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________________ ( ११४ ) कोटक नं०१८ चौंतीस स्थान दर्शन मनुष्य गति गंांग भूमि में में 6 गुग में मंजीय. यामजनना ३ पर्याप्ति का० नं १ देखा - के भंग (१) नार्म भूमि में गगन हरेक में का भंग नामान्यवन् जानना भोग भूमि में १ मे ४ मुगा में हरंक में का भंग 'मामान्यवन् जानना (१) भार भूमि में | ल य गण. म. गंजो अपमांत १ मंझी ५० १ यज्ञी पं० अपर्याप्त | जानना अपर्याप्त आमना प्रया जानना १ भन भंग । ३-६ में भंग ६ के भंग मन-भाग-स्वागावाम' यघटाकर + का भम ! ६ भंग नप () उपयोग की अपेक्षा जानना लब्धि प जानना ६.३ के भंग का भंग का भंग (१) कर्म भूमि में १-२-४-६-१३ गुरंग में मंग का अंग ३ का भंग याहार, शरीरन्द्रिय पर्याप्ति ये ३ वा भंग जानना (सभोग भूमि में १ ४वे गुगा. में ६ का भंग ३ का मंग ' का भंग पर के कर्म भूमि के समान जानना १ भंग १भग अपने अपने स्थान के मनौदल, वचन चन, अपने अपने स्थान के स्वासोच्छवाय ये ३ १० का भंग १० का भंग · घटाकर शेष 10) ७-२- के भंग ४ प्राण १० का० नं.१ इम्रो १० १-४-१-20 के भंग (१) कर्म भूमि में १२ १२ गुगार में हरक में १० का भंग सामान्यवन जानना ये नुरण में ४ का भंग केवली समुद्धान की दण्ड अवस्थायें प्रायु, ४ का मंग ' ४ का भंग ७ का भंग का भंग १-२-४-वे गगण में ७ का भंग प्रायु बल १, कायबल १, इन्द्रिय प्रारम ५
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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