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________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन २ १६ को० नं० १८ देख २१ ध्यान (१) देव गति में ५-६-६ के भंग को० नं० १६ | के समान जानना (५) भोगभूमी में निच मनुष्य गति में ५-६-६ के भंग को० नं० १७-१८ के समान १६ (१) नरक गति में ६-१० के मंग को० नं० १६ के समान (२) निर्यच गति में ०९-१०-११ के मंग को० नं० १७ के समान जानना (३) मनुष्य गति में ८-१-१०-११-७-४-१-१-१-१ के मंग को० नं० १० के समान जानना (४) देव गति में ८-१-१० के मंग को० नं० १६ के समान जानना (५) भोग भूमि में तिच मनुष्य मति में ८-१-१० के भंग को० नं० १७-१८ के समान मानना ( २०६ ) कोष्टक नं० २६ सारे भंग सूचना – अपने अपने स्थान के सारे मंग जानना ५ १ ध्यान अपने अपने स्थान के सारे अंगों में से कोई १ ध्यान जानना (४) व गति में ४-४-६-६ के मंग को० नं० १६ के समान 1 (५) मोगभूमि में तिर्मच मनुष्य में ४-६ के भंग को० नं० १७-१८ के समान ܕܕ त्रिपाकवि वय १. संस्थनविय १ | पृथक्त्वविन विचार १, | एकस्ववितर्क विचार संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में १. | व्युपरत क्रिमनिवनि १ ये ५ घटाकर (१९) (१) नरक गति में - के संग को० नं० १६ के समान जानना (२) सिच गति में का मंग को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य नति में 19-९-७-१ के मंग को० |नं० १= के समान जानना | (४) देव गति में ८२ के अंग को० नं० १६ के समान जानना (५) मोगभूमी में तिर्यंच मनुष्य गति में ७ सारे मंग सूचना पर्वात् ८ १ ध्यान पर्यावत जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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