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________________ २४ २५ २६ २७ २= २६ ३. ३१ ३२ ३१ ३४ ( ४१ ) - हाथ में ५२५ धनुष तक जानना । बंध प्रकृतियां - ११-१२० सातावेदनीय का बन्ध जानता को नं० ११-१२-१३ देखी १४ ० में अबन्ध जानना है उदय प्रकृति-११-१२-१६ गुगा० में क्रम मे ५६-५७-४२१२० का उदय जानना | को० नं० ११ से १४ देखो । सस्य प्रकृतियाँ-११-१२-१३-१४वें गुरु० में क्रम मे १४२-१३६-१०१-८५ (६१ र १३ ) का सत्व जानना को० नं० ११ मे १४ देखो संख्या-कफो० नं० ११ से १४ के समान जानना J क्षेत्र- लोक का असंख्यातवां भाग जानना । प्रसंख्यातवां भाग सर्वलोक, इसका विशेष खुलासा को० नं० १३ में देखो । स्पर्शन- ऊपर के क्षेत्रत्र जानना | बदामा जोवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना एक जीव की अपेक्षा उपगम सी वाला एक समय से अन्तर्मुहूर्त काल तक जानना । और क्षपक श्रेणी वालों की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से देश एक कोटिपूर्व वर्ष तक जानना । अन्तरमना जीवों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं, एक एक जीव की अपेक्षा उपणम श्रेणी में अन्तर्मुहूर्त से देशोन अर्थ पुद्गल परावर्तन काल तक यथाख्यात संयम धारण न कर सके । जाति (पनि) १४ लाख मनुष्य योनि जानना | वृ-१४ ला कोटिकुल में प्य को जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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