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________________ १ २ ४ ( ७६२ ) ४२. जोवों का उपयोग गुरप स्थान में कहते हैं— उपयोग के मुख्य दो भेद हैं। एक दर्शनोपयोग दूसरा ज्ञानोपयोग, दर्शनोपयोग के प्रचक्षु दर्शन, चक्षु दर्शन, प्रवधि दर्शन केवल दर्शनोपयोग ऐसे मे ४ व होते हैं और ज्ञानोपयोग के कुमति, कुश्र ुत, कुअवधि, मति श्रुत, अदोष, मनः पर्येय, केवल ज्ञानोपयोग ऐसे भेद हैं। दोनों मिलकर १२ जानना । देखो गो० क० ग्रा० ४६१ और को० नं० १४६ ) * मुरवस्थान ३ मिश्र ८ मिध्यात्व प्रसंयत ५ देश संगत ६ प्रमत्त सासादन अप्रमत्त अपूर्व क० ६ अनियुक १० सूक्ष्म सां० ११ उपशांत मोह १२ क्षीरा मोह १२ सयोग के० १४ प्रयोग के० उपयोग संख्या ५ ५. ६ ६ ७ 19 ७ २ अक्ष दर्शन १, चक्षु दर्शन १, कुमति कु त कुप्रवधि दर्शन ये ३ । 21 36 क्षुद० १, क्षुद० १ अवधि दर्शन १ मति तयवधि ज्ञान ये सीनों ज्ञान मित्र होते हैं) ० १ ० १ अवधि ५० १ मति श्रुतवधि ज्ञान ये ३ । 17 , विशेष विवरण 37 31 ऊपर के ६ + १ मनः पर्यय ज्ञान = ७ जानना । 17 #2 #T " 71 י 21 " 12 " " " د. 12 IT 13 71 21 केवल दर्शन १, केवल शाम १ ( मे दोनों युगपद जानना ) ग !
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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