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________________ चौतीस स्थान दर्शन २ ३ ( २५२ ) कोष्टक नम्बर ३५ ३७ का भंग-उपर के के भंग में से नपुंसक वेद १ घटाकर ३७ का भंग जानना ३४ गुण स्थान में ३३ का भंग-ऊपर के ३४ भंग में से नपुंसक वेद २ घटाकर ३३ का भंग जानना (३) मनुष्य--२४-१४ १२-१४-८-७-६-५-४-३-२-२-१-४२-३० ३३ के मंग १ ले गुण स्थान में | ४३ का मंग सामान्य १४३ के मंग ही जानना में मिथ्यात्व २ गु ३ का भग-ऊपर के ४३ के भंग में ५ घटाकर ३० का भंग जानना ४ये बुरग स्थान में ३४ का भंग-ऊपर के ३० के भंग में अनंता | बंधी कषाय ४ घटाकर ३४ का भंग जानना ५ गुरण मं ६ का मंग ऊपर के ३४ के भंग में से अप्रत्या ख्वान कषाय ४ और असहिसा प्रविरत १ ये घटाकर २६ का भंग जानता ६ वे मुग्म स्थान में - सौदारिककाय की अपेक्षा १४ का मंग-ऊपर के २६ के भंग में मे प्रत्यास्यान कषाय ४, अविरत ११, (हिसक का इन्द्रिय | विषय ६--स्थावर्हिस्य ५ ये ११) ये १५ घटाकर | T १४ का मंग जानना ६ वे योग की अपेक्षा 10 में माहारककाय गुण० १२ का भंग-ऊपर के १४ के अंगों में से नपुंसक वेद १ स्त्रीवेद १ मे २ घटाकर १२ का भंग जानना सत्यमनोयोग या अनुभव मनोयोग में ६-७-८ ५
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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