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________________ चौतीस स्थान दर्शन ० स्थान सामान्य आलाप पर्याप्त ? २ जीव समारा संशी पं० पर्याप्त अपर्याप्त ३ २ सुर स्थान १२ ४ से १२ तक के गुण (१) नरक गति में १४ से (२) नियंत्र वृत्ति में भोग भूमि में (६) मनुष्य गत्ति में भांग भूमि में १ (४) देवगति में कोन १ इ नागा जीव की क्षा İ १ से ४ १ से १२ से ४ १ से ४ १ संत्री पं० पर्याप्त अवस्था चारों गतियों में हरेक में १ संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना को० नं० १६ से १६ देखी ६ चारों गतियों में हरेक में ९ का भग को० नं० १६ से १० देखी ६५३ 2 कोष्टक नं० ११ एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में ५ सारे गुण स्थान १ मुख० अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान खारे गुण स्थान के सारे मंगों में ते कोई १ गुण जानना जानना १ समास १ समास को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ से देखो १३ देखी १ मंग ९ मंग क०मं०१६ से १६ को० नं० १६ मे देखो १९ देख नाना जीवों की अपेक्षा ४ (१) नरक गति में १ ले ४ये (२) नियंच गति में १-२ भोग भूमि में $-3-6 (२) मनुष्य गति में १-२-४-६ भोग भूमि में (४) देवगति में १-२-४ । १-२-४ १ संजो पं० पर्या अवस्था चारों दतियों में हरेक में १ संज्ञी पं० अपर्याप्त जानना ! को०नं १६ से १६ देखी १ जीव के नाना रामय में ७ अपर्याप्त ३ चारों गतियों में हरेक में को० ३ का भंग को० नं० १६ से १६ देखो लब्धि रूप ६ का भंग भी होता है। संज्ञी में तारे दु ३ १ गुण० अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान सारे गुग्गु आनना के सारे गुग्० में मे कोई १ गुण० I जानना १ समास को० नं० १६ से १६ देखो एक जीव के एक समय में ! ― १ समास को० नं० १६ से १६ देखो १ मंग ५ भंग नं० १६ मे १६ को० नं० १६ से देखा १६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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