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________________ चौतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान सामान्य झालाप १ गुरण स्थान १-२-४-१३ मे गुण स्थान जागना २ २ जीव समास एकेन्द्रिय सूक्ष्मवत " बादर डीन्द्रिय वान्द्रिय ४ प्राण " 17 चतुरिन्द्रिय प्रपंचेन्द्रिय संज्ञीपंचेन्द्रिय ये ७ जीव समास जानना ३ पर्याप्त ३ को० नं० १ देखो " 27 फो० नं० १ देखो पर्याप्त ३-४-५ सूचनायहाँ पर पर्याप्त अस्था नहीं होती है। ! ( २८२ ) कोष्टक नं० ४१ प्रपर्यात नाना जोवों की प्रपेक्षा ४ स्थान जानना १--२-४-१३ मे ९ (१) तियंच गति में १-२ गुण स्थान जानना को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में १२-४-१३ मुख स्थान को० नं० १८ देखो (३) भोग भूमि में तिर्यच मनुष्य गति में १- २-४ गुण स्थान में को० नं० १७-१८ देखी ७ (१) नियंच गति में ७-६-१ के गंग को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में १-१ के भंग को० नं० १८ देखो ३ (१) तिर्यच गति में ३-३ के भंग - को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में ३-३ के भग-को० नं० १८ देखो ७ (१) तियंच गति में चौदारिक मिश्रकाय योग में एक जीव के नाना समय में सारे गुण स्थान अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना १ समस को० नं० १७ देखी १ समास को० नं० १० देख १ भंग को० न० १७ देखी १ भग को० नं० १८ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो I एक जीव के एक समय में १ गुण स्थान अपने अपने स्थान के गुण० में से कोई १ गुण० १ समास को० नं० १७ देखो १ समास को० नं० १८ देखो १ मंग [को० नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १० देखो १ मंग को० नं० १७ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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