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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक तं० ४७ पुरुष वेद में का स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त अपर्याप्त एक जीव के नाना एक जाचक एक समय मे समय में । नाना जीवों की प्रपना । नाना जीवों की प्रगेझा जोच के नाना १जीन के एक समय में | समय में देखो १ गुग स्थान | सारे गुण स्थान गण सारे गुण १ अगा। १ मे ६ नु० जानना (१) नियंन गति में अपन अपन धान ' फागुगा। (१निगम में अपने मन रवान को गूग, कर्म भूमि में के ५मार मुगा । गुगगन | कभनि में अगर | केनार मा को० न.१७ १ मे ५ गुण - मानना स्थान को ०१ भोगभूमि में मुगा .: 10? देखो मोनभूमि में १ से ४ गुग का न०१७ देखो' दसो । (२) मान्य गति म | सारंग पु र (२) मनुष्य गति में सारमा ! १० फर्ममाम म कान नं १मी को न १८ कर्मभूमि मे १ते गुगर को ना १५ देखो सोनं०११.४. जागना भोनि में - ४शन भोगभूमि में १४ मुसा ( दयगति मे । न गुण गु ण | (३) बनान में | मारे गगा । १गण १-२-४ गुण जानना बोन. देवीकोन.१९देखो | १ मे ४ मुग्गा जानना 'कोन. १९ देशों को नरदेवों १ नमाम १ समास २जीव समास | समास १ समास (१) तिर्वच गनिमें प्रसं-1 पं० पर्याप्त पर्याप्त ११) नियंच गति में १ मममी प पर्याप्त पतिन् पाचन सजीपचेन्द्रय । १ असंनी पं० पर्याप्त को० । मममी पं० ११ यज पं. (२) निर्धन-मनप्यये ४ जानना नं०१७ दवा को न० १५ दंगो १. देवईन म हरक में मुचना-प्रमजी पंगल | यिन-मनुष्य-देवगनि में | १ सनीपंचेन्द्रिय पर्याप्त पवन पतिवन अपर्याप्त अवस्था यहाँ । हरेक में प्रवस्था जानना गोक गा०३०-२६११ नगी पंचेन्द्रिय पयप्ति | १ संजी०प | १ मंशी ५०प०| के समान लिया है अवस्था जानना का नं० १७-१८-१९ देखो १ मंग ३ पर्याप्ति (१) तिर्यन-मनुष्य- ३ का मंग ३का मंग को० नं०१ देखी । (१) नियंच गति में ५ का भंग ५ का भंग देवनि में हरेक में "५ का भंग-प्रसंज्ञी पं. के ३ का भंग जानना कोनं०१७ देखो १ मंग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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