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________________ सूचना-अपर्याप्त अवस्था में वेदक सम्यक्त्व सहिन मरने वाला जीव निपम से कल्पवासो देन ही बनता है। पान्नु अपति अवस्था में मनुष्य और निर्षच गति का उदय उन्हीं जीवों में हो सकता कि जिन्होंने देदक सभ्यक्त्व प्राप्त करने से पहले मनुष्य पा! गा तिर्यच पाबु बन्ध रखी हो, मो नियम में भोप भूमे के मनुष्य या तिन ही बनते है (दको गोकप) मममाहना-कोन.१६ से १६ देखो। चष प्रकृतिया-७७-६७-६-५६ को ० ४ मे के गगान जानना । वय प्रकृतियां-१०४-०७-१-७६ । स्य प्रकृतियां- १४०-१४७-१४६-१४६ ॥ सख्या-अमख्यात जामना । मैत्र--सोक का असंख्यातवां भाग जानना। स्पशन-लोक का अमस्यातवां भाग ८ राजु, को० नं. २६ के समान जाना । काल-मामा जीवीं की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा मन्तमहन से ६९ सागर बाल ना निरागार मेदक मम्यक्त्व ६ फलाई: अन्तर-नाना जीवों को पोक्षा कोई अन्तर नहीं एक श्रीव की अपेक्षा अन्तम हुनं में देशोन् यदान परावर्तन काल त। योशम सम्पवरव म हो सके। भाति (योनि)-२६ लाख मौनि जानना । (को० न० २६ देखो) कुल-१०८।। लाम्ब कोटिकल जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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