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________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ४ असंयत (अविरत) गुण स्थान पर्याम अपर्याप्त स्थान मामाग्य प्राताप नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के एक जीव है । नाना ममय में | एक समय में . नाना 'एक जीव के ' | नान समय के ,जोच के समय के --. १ गुगा स्थान अमबन चारों गनियों में हरेक में प्रमंयत गुगण जानना का नं१५ से १६ देखो कीनं०१६ ११ सो को ०१:गे चारों गनियों में-हरेक में को नं. १६ मे को न०१६ १६ देखी १ अभयन गूण जानना । १६ दम्रो । मे १९ देखो परन्तु निर्य र पति में | कंवल भोग भूमि को। अपक्षा जानना कर्मभूमि में ४था गुण नहीं होना । २ बीच यमाम मंजी पंचेन्द्रि पर्याप्त और अपर्याप्त में । चागं गतियों में हरंक में कोनं०१६म ,संज्ञी पं० पर्याप्त जानना [१६ देसो को नं. १६ मे १९ देखो ३ पर्यानि को नं. १ देखो मागं गतियों में हरक में का मंग को नं.१६१६ दहो| कान-१६ मे १६ देखो को नं०१६ मे चारों गतियों में हरेक में कोनं. १६ मे को नं०१६ १६ देखो मंगीपं० अपर्याप्त जागना १६ देखो से १९ देखो [परन्तु नियं च गति में केवल भोग भूमि की : : अपेक्षा जानना को नं। १ मे १९ देखो १ भंग भंग १ को नं. १६ मे लम्धि रूप उपयोग मप को नं. १ से | को नं. १६ १६ देखो चारों गतियों में हरेक में है। देखो में १६ देखो का मंग को नं०१६ १६ देखी परन्तु नियं। | च गति में के बल भोग | भूमि की उपेक्षा जानना . १ अंग कोनं.१६ से चारों गनियों में हरेक में कोनसे को १ १६ देखो का भंग को नं. १६ १६ देखो से १६ वेसो से १६ देखो परन्तु तिर्यच । प्राण को न देखो चारों गतियों में हरेक में १० का मंग को नं. १६ से १६ देखो , भंग कोन०१६ मे १६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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