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________________ चौतीस स्थान दर्शन १ १९ आहारक ग्राहारक, अनाहारक २० उपयोग २ नोपयोग ७, दर्शनोपयोग ३, ये १० जानना १५ । २१ ध्यान सूक्ष्म क्रिया प्र० १ व्युप-तक्रिया नि १ ये चटाक (१४) १ प्रहारक चारों गतियों में हरेक में १ आहारक जानना को० नं० १६ से १६ देखो ܕ ܕ | (१) नरक गति में ५-६-६ के मंग को० नं० ६ देख (२) निर्यच गति में ५-६-६-५-६-६ के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में ५-६-६-७-६-७-५.६ ६ के भंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में ५-६-६ के भंग को० नं० १६ देखरे १४ (१) नरक-देवगति में हरेक में ८- ६-१० के भग को० नं० १६० १६ देखो (२) तियंच गति में ८-६-१० ११-८-१-१० के भग को० नं० १७ देखो ( ६५६ ) कोष्टक नं० ६१ १ १ [को० नं० १६ से १ को० नं० १६ से देखो १६ देख १ भंग | को०न० १६ देखी १ मंग को० नं० १७ देखो सारे मंग को० नं० १= देखो १ मंग को० नं० १६ देखो सारे भंग को० न० १६-१६ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ उपयोग को० नं० १७ देखो १ उपयोग को० नं० १८ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो चारों गतियों में हरेक में १- की अवस्था को० नं० १६ से १६ देखो ८ कुअवधि ज्ञान, मनःपय ज्ञान घटाकर (=) (१) नरक गति में ५-६ के मंग को० नं० १६ देखो (२) तियंच गति में ४-४-६ के मंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में ४-६-६-४-६ के भंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में ४-४-६-६ के मंग को० नं० १६ देखो १ ध्यान को० नं० १६-१६ देखो संज्ञी में दोनों अवस्था १ अवस्था को० नं० १६ से १६ को ०नं १६ मे देखो १६ देखो १ उपयोग १ भंग को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो १२ पृथव जितकं विचार, एकत्व वितर्क प्रविचार, ये २ घटाकर (१२) (१) नरक - देवगति में १ भंग १ न | हरेक में को० नं० १७ देखी को० नं० १३ देखी ८ को० नं० १६-११ देखो (*) नियंन गति में ८०३ के मंग को० नं: १७ देखो सारे भंग ० नं० १८ देखो 5 १ मंग को० नं० १६ देखी सारे मंग १ उपयोग को० नं० १७ देखो • उपयोग को० नं० १८ देखो | १ उपयोग को नं० १९ देखी १ ध्यान १ मंग को० नं० १७ देखो को० नं० १६-१९ को०मं० १६-१६ देखो देखो | १ ध्यान को०नं. १७ देतो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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