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________________ चौतांस स्थान दर्शन काष्टक नं०६३ अनुभय संजी (न संज्ञी न असंज्ञी) में २० रुपयोग । यारे भंग उपयोग। २ । सारे भंग । १ उपयोग केवल ज्ञान-कैवस (१) मनुष्य गति में को नं० १८ देखो को नं०१८ ! (2) मनुष्य गति में कोल नं० १८ देखो | कोः नं०१८ दर्शनोपयोग ये (२) २ का भंग-युगपत 'देवो २ का भंग-युगपत को न १८मो मो.नं. १८ देखो । २१ ध्यान २ मारे भंग । १ घ्यान १ . सारे भंग । १ ध्यान सूरम चिया प्रनिपाती १) मनुष्य मति में को० नं. १८ देखो ! को० नं. १८ (१) मनुष्य गति में को२०१८ देखो | को० नं०१५ त्युारत क्रिया नि. । १ का भंग-कोर नं. देखो ये २ ध्यान जानना को० नं०१० देखो |१८ देखी २२ प्रामव | मारे भंग । १ भंग । मारे.भंग को नं० १: देखो और मिश्रकाय योग १, । ग्रो० मिश्रकाय योग कार्मारणकाय योग १ कार्मामाकाय योग १ । ये २ पटाकर (५) 'ये२ योग जानना (१) मनृप्य गति में सारे भंग १ मंग । (१) मनुष्य गति में मारे भंय १ भंग ५-३-० के भंग को०१८ देखो। को न०१८ | २-१ के भंग को० नं० १८ देखो | कोन:१५ को. नं०१८ देखो देखो | को० न०१८ देखो । देखो २३ मानव | सारे भंग भंग । ४ सारे भंग १ मंग को० न०१३ देखो | (२। मनुष्य गति में को.नं. १८ देखो को० नं०१६ (१) मनुष्य गति में को० न०१८ देखो । को.नं.१८ १४-६ : के भंग १४ का भग-कोनं . को नं० १- देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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