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________________ चौतीस स्थान दर्शन स्थान सामान्य मालाप २ १ गुण स्थान १२ १ से १२ तक जानना २ जीव समास चक्षुरिद्रय प० अप प्रसज्ञी पं० प० प संजीप० प० मर्याति ये जानना ३ पर्याप्त को० नं० १ देखो पर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा 17 [को० नं० ७१ देखी परन्तु यहां दर्शन के जगह चक्षुदर्शन जाना पर्याप्त अवस्था (१) नरक मनुष्य- देवगति में हरेक में १ संत्री पंचेद्रिय पर्याप्त जानना को० नं० ६ १६ १६ देखी (२) वियंच गति में एकेन्द्रिय सूक्ष्म बादर १० जीव समास २ हीन्द्रिय १ १४ घटाजीव-समास कर जानना १-१ के भंग-को० नं० १७ देखी ( ५०८ ) कोष्टक नं० ७२ ܪ एक जीव के नाना एक जोब के एक समय में समय में १ समास १ जीव समास - को० नं० [को० नं० १० देखो १७ के ७ के भंग में से सारे गुण स्थान को० नं० ७१ देखो १ समास को० नं० १६-१८ १६ देखो " १ मंग ६१) नरक-मनुष्य-देवगति में को० नं० १६-१८० हरेक में १६ देखो " १ गुग्ग० को० नं० ७१ देखो १ समास की० नं० १६१५-१६ देखो १ समास को न० १७ देखा . प्रपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा '' को० नं० ७१ देखो चक्षु दर्शन में १ जीव के नाना समय में ७ सारे गुण स्थान [को० नं० ७१ देखी १ समास ३ अपयश स्था I (१) नरक- मनुष्य-देवगन को न० १६-१८में : टेक म १६ देखो १ मनी पंचेन्द्रिय प जानना को०० १६ १६ १६ देख (२) नियंच गति मं : जीव-समास प्रपय [अवस्था पर्याप्तवत् जाना १ का भंग-भोगभूमि प्रपेक्षा को० नं० १७ देवां १ जीव के एक समय में 1 १ मंग 2 १ भंग को १६ ११ नरक मनुष्य देवति न १६-१८ " देखें। मे हरेक म १६ ६ १ गुण ० को० नं० ७१ देखा १ समास को० नं० १६१०-१६ देखी १ समास १ समास को०१७ देवको० न० १७ दखां 13 १ मग को० नं० १६१५-१६ देखी
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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