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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७५ कृपण या नील सोश्या में (४) देवगति में ४.-2 के भंग : को० नं. १६ देन्यो । सार भंग १ भंग को नं. १६ देखो का नं०१९ देखो ६ | नारे भंग । १ भग . सारे भंग १ मम उपशम-मायिक म. (नरक गनिमें को . १६ देखो को१६ देख उपगम-सायिक२, कुजान । मान, २४-१२-२२-२६ सयोपशम सम्परत्व ३, : दर्शन ३, लब्धि ५. . २५ के भंग ४ वेदक सम्यक्त्व ११ । कोल्नं० १६ के २६ घटाकर (३२) मनि ४, का४. २४-2--05-२५ के: (१) नरक गति में को० नं०१६ दंसो कोनं०१६ देखो लिग ३, कुष्गा नीच में हरेक भंग में में कृरगा- । २२-1 के मंग मे जिमका विचार कियाः नील लेण्याबों में में । | कोके - . जाय वह १ लावा, जिमका विचार कगे के हरेक मग में मिध्या दर्शन ओ १ छोडकर नेष२ में पत्रिवत् ग २ प्रसंगममियग, अजान लेण्या घटाकर -! लेज्या बटाका. २३१. ग्रसिद्धत्व ।। २२-२३-०६-२५ के भंग । २५ भंग जानना परिमिक भाव ६, जानना (E) निर्वत्र भति में | सारे भंग भंग थे भाव जानना () नियंच गनिमें ।२२-२२-२५-२५-20- मो. नं०१३ देखो कोन०१३ देखो २२-२३.२५ केभंगको० नं १ देखो कोनं.१० देखो २१-२२-२३ केभंग बालन: १७ के २४ को न.१५ के २४२५-२३ के हरेक मंग २५-२५-२५-२२-२३-| में में ऊपर के ममान |५-१के हरेक भंग शेष २ लन्या घटाकर ' मग पर्यामवत् शेष २२-२३-५ के भंग लेण्या घटाकर :जानना २८-२५-२५.२ के अंग '२३.३ के भंग जानना को नं. १७ के ११-, भंग भूमि में ' पहां कोई भंग नहीं होने।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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