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________________ ( ७८१ ) (६) गुरण स्थानों में ५३ उत्तर भावों के मेव सामान्यपने से कहते हैं ( देखो गो० क. गा० ८२२ को० नं० २३४) गुण स्पान | औपशमिक क्षायिक भाव मिश्र भाव माव२ में से 6 में से । १८ में से प्रौदयिक भव २१ में से पारिवामिक | भाव ३ में से । भावों की संख्या १. मिथ्यात्व २१ =सब । ३= सब १०- कुशान ३, दर्शन २, लब्धि २. सासादन ३२ २०-मिथ्यात्व २= भव्यत्व, वरकर जीवस्व ये ३.मिथ २०- , ११-शानं ३, दर्शन ३, लब्धि २ ॥ ४. असंयत २०- , | २= , ३६ १ उपशम | १ क्षायिक १२= सम्यक्त्व सन्दक्व | ऊपर के ११ में वेदक सम्यक्त्व १ जोड़कर १२ ५. देशसंयत ।१- १= ३१ १३=ऊपर के | १४ - म० ति० | २- १२+१ देशसंयत गति २, कषाय जोड़कर १३ ४. जानमा वेद ३, शुभलेश्या, प्रज्ञान ११ प्रसिद्धत्व १ ये १४ जानना ६. प्रमत्त ॥ । १४-ज्ञान ३, १३= ऊपर के दर्शन ३, लन्धि १४-१ तियंच | गति घटाकर वेदक सं०१, जानना मनः ५० ज्ञान १, सराग चारि.१ . ७, अप्रमत्त १४= ॥ १३ , २= ३१
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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