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________________ चौतीस स्थान दर्शन १ १६ भवरद भव्य श्रभम्य १७ सम्यक्त्व मिथ्यात्व सासादन | १८ संज्ञी १६ भाद्दारक २ २० उपयोग १ २ आहारक, अनाहारह २ कुमति, कुत पयोग अपक्ष-दर्शन २ ये ४ उपमण जानना ३ १ ले गुण ० में २ का मंग को० नं० १७ के समान १ ले गु० में १ मिध्यात्व जानना १ले गुण ० में १ संजी १ D १ गुण में आहारक जानना १ ले गुराह में ४ का भंग को० नं० १७ के समान जानना I ( १९२ ) कोष्टक नं० २४ Y १ भंग को० न० २१ देखा १ भंग ४ का भंग ! १ अवस्था २ में से कोई १ अवस्था | I १ उपयोग ४ वे भंग में से कोई १ 1 उपयोग ¦ इ २-१ के नंग में १ ले गुग्ण० में २ का रंग पर्याप्तवत् ने गुगः ० के १ भव्य जानना २ १-१ के भंग १ले गुण में १ मानना २० में १ सासादन जानना १२ गुण में १ प्रती S २ में १-१ के भंग १ले २ रे गुण० * विग्रह गति में अनाहारक जानना २ प्रहार पर्याप्त के समय ब्राहारक जानना ४ D ४-३-४ के वंग १ ले गुण ० में ४ का भंग को० नं० १७ के समान जानना २२ गु० में ३-४ के भंग को० नं० १७ के समान जानना i . चतुरिन्द्रिय १ भंग २-१ केभंगों में से कोई ? मंग १ मान १-१ के भंगों में से कोई १ मंग दनों जानना १ मंग ४-३-४ के भंग में से कोई १ भंग जानवा . 5 १ अब पा २-१ के भंगों में से कोई अवस्था १ सम्यक्स्व १-१ के गंगों में से कोई १ सम्पवत्व १ अवस्था दोनों में से कोई १ उपयोग ४-३-४ के भंगों में से कोई १ उपयोग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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