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________________ २४ २५ २६ २७ २० २६ ३० ३१ ३२ ३३ २४ ( ter ) अवगाहना - लक्ष्य पर्यासक जीवों की जधन्य अवगाहना धनांगुल के प्रसंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट प्रवगाहना भ्रमर की एक योजन तक जानना । बंध प्रकृतियां - १०६ और १०० को० नं० २१ के समान जानना । प्रकृतियां - ८१ को० नं० २२ के ८१ में से श्रीन्द्रिय जाति १ चतुरिन्द्रियाति ११ की जानता। सत्य प्रकृतियां - १४५ - १४३० नं० २१ के समान जानना । संख्या- प्रख्यात लोक प्रमास जानना क्षेत्र लोक का प्रसंख्यातवां भाग प्रमामु जानना । स्पर्शनको० नं० २३ के नमान जानना । काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक जानना एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से संस्यात हजार वर्ष तक जानना । अन्तर— नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यः मोक्ष नहीं हो तो - इसके बाद चतुरिन्द्रिय में ही जन्म लेना पड़ता है। जाति (योनि)–२ लाख योनि जानना । - कुल – ७ लाख कोटिकुल जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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