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________________ २४ पवाहना-१ले नरक की जघन्य अवगाहना ७ घनुष : हाथ मंगल प्रमागा मिना मोर वें नरममा उत्कृष्ट अवगाहना ५०० धन्य । जानना, बीच के अनेक भेदों को अवगाहना जानना । बंध प्रकृतियां-१०१ ११) ने रे रे नरक में पयोम अवस्था में १०१ प्रकृतियों बन्ध होता है । बन्धयोग्य १२० प्रनियों में से नरक हिक २, नरकायु १, देवद्विक २, देवाय १, वैक्रियकतिष २, पाहा रकदिक २, एकन्द्रियादि जाति ४. साधारण १. मूक्ष्म १. स्थानर , अपर्याप्ति १. मातप १ इन १६ प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता। कारण नारकी मारकर इन अवस्थामों में जन्म नहीं ले सकता है । इसलिय में १६ प्रतियां घटाकर १०१ जानना । EE (२) ले २२ रे नरक में निर्वृत्य पर्याप्त अवस्था में तिर्यचायु १, मनुष्याय १ इन दोनों का इन्ध नहीं होता इसलिय ये २ ऊपर के १०१ प्रकृनिया में म घटाकर ६६ प्रकृतियों का बन्ध जानना। १०० (३) ४ ५ ६ ७ नरक में पर्याप्त अवस्था में १०० प्रकृतियों का बन्ध होता है। ऊपर के १०१ प्रकृतियों में से वीर्वकर प्रकृति १ घटाकर १०० जानना (देखो गो० क० मा०६३) 22 () ये व ६वें नरक में निकृत्य पर्याप्त अवस्था में तिर्यचायु १, मनुष्यायु १ व २ का बन्ध नहीं होता इसलिये थे २ ऊपर के १०० प्रकृतियों में से घटाकर ६८ प्रकृतियों का कम जानना । ६५ (५) ७३ नरक के नित्य पर्याप्त अवस्था में मनुष्य गति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी १, उच्चगोत्र १, इन ३ प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता इसलिये ये ३ ऊपर के १८ प्रकृतियों में से घटाकर ६५ का बन्ध जानना । उदय प्रकृतियां-७६ ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ६ (तीन महानिद्रा घटाकर), वेदनीय २, मिथ्यात्व-सम्यग्मिथ्यात्त-सम्यक् प्रकृति ३, कषाय २३, (स्त्री-पुरुष वेद घटाकर), नरकायु १, नीचगोत्र १, अन्तराय ५, नामकर्म ३०, (नरक गति १, पंचेन्द्रिय बाति , निर्माण १, बैंक्रियकत्रिक २, तेजस १, कार्माण १, हुंडक संस्थान १, स्पादि ४, नरकगत्यानुपूर्वी १, प्रगुरुसवु १, उपघात १, परपात १, उच्छवास १, अप्रशस्त विहायोगति १, प्रत्येक १, बादर १, त्रस १, पर्याप्ति १, दुर्भग १, स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, प्रशुभ १. दु:स्वर १, अनादेय १.मयणकीर्ति १ये ३०) इन ७६ प्रकृतियों का उदय जाममा । (देखो गोक० गा०२६०) सत्व प्रकृतियां-१४७ (१) १ल २रे ३रे नरक में देवायु १ घटाकर १४७ प्रकृतियों का पत्ता जानना । १४६ (२) ४थे ५३ ६ नरक में देवायु १. तीर्थकर प्रकृति १ये २ घटाकर १४६ का सत्ता जानना। १४५ (३ ७वें नरक में मनुष्यायु का बन्ध नहीं कर सकता इसलिय देवायु, तीर्थकर प्रति १, मनुष्वायु १ ये ३ घटाकर १४५ प्रकृज्ञियों का सत्ता जानना । २६ २७
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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