SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरगाहना-लब्धय पांक्षक जीवों को जघन्य अवगाहना पनांगुत के असंख्यातवा भाग और उत्कृष्ट अवगाहना १२ योजन तक शंख को पालना । बंध प्रतिपां-१०६ पर्याप्त अवस्था में जानना, को० नं. २१ देखो, १०७ अपर्याप्त अवस्था में जानना को न०२१ देखो। वरय प्रकृतियां-१ को २०२१ के ६० प्रकृतियों में में साधारण १, सूक्ष्म १, स्थावर १, एकेन्द्रिय १, पातप १, ये ५ घटाकर शेष ७५ औदारिक अंगोपांग १, पनंप्राप्ता मृपाटिका संहनन १, अप्रशस्त विहायोगति १, त्रस १, दुःस्वर १, हौन्दिय जाति १६ जोड़कर १ प्र० का उदय जानना । साय प्रकृतियां.-१४५-१४, को में० २१ के ममान जानना । संख्या-अगख्यान जानना। क्षेत्र-लोक का असंख्वानवा भाग प्रमाण जानना। म्पर्शन–नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक एक जीद की अपेक्षा सोक का असंख्यातवां भाग प्रमाण जानना । काल-नाना जोगों की अपेक्षा सर्वकाल, एक जीव की अपेक्षा भव से संस्थान हजार वर्ष पर्वत निरन्तर द्वीन्द्रिय हो बना रह सकता है। अन्तर-नाना जीवों को बोक्षा अन्नर नहीं एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक या मोन नहीं हो तो इसके बाद दोन्द्रिय बनना है। पड़े। जाति (योनि)-२ लाख योनि जानना : कुल–७ लाख कोटिकुन जानना । ३४
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy