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________________ कर्म कांड शक्ति की विशेषता की कुछ ज्ञातव्य बातें १.प्रतिसाव्य का प्रचं कारण के बिना वस्तु का से सावधान किया इम्रा भी प्रोखों को नहीं उधाह जो सहज स्वभाव होता है उप्स को प्रकृति कहने हैं, सकता है। उसको शील या स्वभाव भी कहते हैं। जैसे कि जल का (क) प्रचला-प्रचला-इस फर्म के उदय से मुख से स्वभाव नीचे को गमन करना है, प्रकृत में यह स्वभाव लार बहती है और हाथ पैर मगरह अंग चलते हैं, किन्तु सावधान नहीं रहता। जीव तथा कर्म का ही लेना चाहिये इन दोनों में से जीव का स्वभाच रागादिरूप परिमाने हो जाने) का है (४) निजा-इस कर्म के उदय से ममन करता हमा धौर कर्म का स्वभाव रागादिरूप परिणमानने का है भी खड़ा हो जाता है, बैठ जाता है, गिर पड़ता है तथा दोनो का सम्बन्ध कनक पाषाणवत स्वयं सिद्ध है इत्यादि क्रिया करता है (देनो गो० क० गा० २) (५) प्रवला-इस कर्म के उदय से यह जीय कुछ कुछ मौखों को उघारकर सोता है और सोता हया भी २. समय प्रबर-सि राशि के जो कि अनन्तानन्त थोड़ा-थोड़ा आनता है, पुन:-पुनः जागता है अर्थात बारप्रमाण कही है, उसके अनन्त में भाग और मभव्य राशि बार मन्द शयन करता है यह निद्रा श्वान के समान है, जो जघन्ययुक्तान्ति प्रमाण है उससे मनग्न मुरणं परमारण सब निद्रामों में से उसम है। समूह को यह ग्रात्मा एक एक समय में बांधता है, अपने इन पांच निद्राओं में से प्रथम की तीन निद्राओं को साथ संबद्ध करता है इसको समय प्रबद्ध कहते हैं, योगों _ 'महानिद्रा' कहते हैं। की विशे ता से विसदृश बंध भी होता है सारांश (देखो गो क० गा० २३-२४-२५) परिणामों में कषाय की तीव तथा मन्दता से कर्म ४, शरीर में अंगोपांग-कौन कौन से हैं? परमाणु भी ज्यादा या कम बंधते हैं, जैसे कम-अधिक नलको बाहु च तथा मितम्ब पृष्ठे खरच शीर्षे च । चिकनी दीवार पर धूलि कम-अधिक लगती है। प्रष्टव तु अगानि "देहे शेषारिण उपङ्गानि ॥२८॥ (देखो गो क. गा० ४) । अर्थ-दो पैर. दो हाथ, नितम्ब-कमर के पीछे का ३. वसंमोहनीय के भेदों से पांच मिजामों का कार्य भाग, पीठ, हृदय और मस्तक ये पाठ पारीर में अंग है स्वरूप - और दूसरे सब नेत्र, काम, वगैरह उपाङ्ग कहे जाते है [१ स्थानगृद्धि-इस कर्म के उदय से उठाया हुभा (देखो गो क गा० २८) भी सोता ही रहे, उस नींद में ही अनेक कार्य करे स्था । ५. संहनन ६ हैं- वयवृषभ नाराच, वच्चकुछ बोले भी परन्तु सावधानी न होय। नाराच, अर्धनाराच, कीलित (कीलफ), असंप्राप्तासृपाटि१निया मित्रा-इस कर्म के उदय से अनेक तरह का मेहनन ये हैं? प्रश्न किस किस संहनन वाले जीव कौन-कौन गति मैं उत्पन्न होते हैं ? ६वे अ० सुपाटिका संहनन वाले जीव १ले स्वर्ग से वे हम तक चार युगलों में उत्पन्न
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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