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________________ ३८ १७ आचरीय यहीवपमा आचार्य लाभ को में से - (कॉलम १ में) पति (का-३ में) ११ काभंग (का. १ में) और काययोग (का ३ में, २ (का. ३ में) २१-२७ के (का. ३ में ११ से १९ देखो यति वृषभाचार्य लाख कोटि में से ३ पर्याप्ति १. कामंग औदारिक काययोग ४०१ ४. १५ ४१ ४१ 4. मिश्रकायोग जीवाव१ये ३३ माव यशीनि १. अपशकौंलि १,३६ लोकका को. नं १६ मे १९ देखी १ (का. २ में)३ (फा ३ में) ३ का २ में) , मिश्रायद्योग २६ [का, २ में)ये ३३ भाव याति १ये ६६ पत्यका (का. ३ में) ६ (का. ४ में) ४ गतियों में से ३ (का.७ में) १० देखो (का, ४ में) १ मंग को.नं. १६ मे १९ देखो (का. २ में) आहार का (का.३ में) कार्याकाय (कोट में को. नं १७ १४ १८ देसी (का. ४ में) स्वमंग (का ४ में) और का. ७ में (का. १ में) और (का में) ३१ भंग १ मंग अंग १ भंग का.६ में) को.नं. १६ (का. ४ में) भंग जाKAF १ गति चारगतियों में से कोई १ गति जानन आहारक कार्माणकाय को. नं. १८-१९ देखो ४५ सारेमंग mxm. Var १ भंग १ भंग सारेभंग सारेभंग सारेभंग सारेमंग सारेभंग को. नं. १९ सारेमंग सारेभंग सारेमंग भोग ४६ २६ (का. ७ में) भंग [का. ६ में] योग ४६ २५ (का. ८ में) को नं. १७ को.नं. १६
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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