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________________ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३२ 3: ३८ ( ४४५ ) वाहनाको० नं० १६ से १६ देखी बंध प्रकृतियां – ७७ ६७-६३-५६-५८-२२-१७-१-१ प्रकृतियों का बंध क्रम से ४ से १२ गुण स्थानों में जानना | को० नं० २६ देखो । उदय प्रकृतियां १०४-६७ ६१-७६-७२ - ६६-६०-५६-५७ प्र० का उदय क्रम से ४ से १२ गुण स्थानों में जानना | को० नं० २६ देखो। सदर प्रकृतियां - १४६ - १४७० क्रम से ४ ५वे गुण० में, १४६ - १३६ ० ६वे गुर० में १४६ - १३६ प्र० ७वे गुरा में १४२-१३६ - १३८ до वे गुण ० में, १४२-१३१-१३८ ० ६ गुण० में १४२-१३९-१०२ प्र० १० गु० में १४०-१३ ० ११वे गुण • में. १९०१ प्र० का सत्ता १२वे गु० में जानना | को० नं० २६ देखो । संख्या-प्रपात जानना । क्षेत्र लोक का प्रसंख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन – लोक का प्रसंख्यातवां भाग ८ राजु जानना | को० नं० २६ देवो । काल --- नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । अन्तर—माना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं जाति (योनि) - २६ लाख जानना। इसका विगत को० नं० २६ में देखो । कुल - २०६।। लाख कोटिकुल जानना, इसका विगत को० नं० २६ में देखो । एक जीव की अपेक्षा श्रन्तं मुहर्त ने ६६ सागर और ४ कोटिपूर्व तक जानना एक जीव की पेक्षा अन्र्तमुहूर्त से देशान श्र पुद्गल परावर्तन काल तक सम्यक्त्वी नहीं बने
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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