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________________ २५ २६ अवगाहना-कोड नं०१७-१८-१६ देखा। बघ कृतियः १११ बन्धयोग्य १२. प्रकृनियों म स नरकदिक २, नरकायु १, बिकलवय ३, साधारण १, मूभम १, पर्याति? यह घटाकर १११ जानना । उदय प्रकृतिपां-१०८ उदय योग्य १२२ प्रकृतियों में से नरकट्रिक २, नरकासु, निर्वच गयानुपूर्वी १, एकेन्द्रियादि जाति र, प्रातप. तीर्थकर १, सरचारण १, सूक्ष्म १, स्थावर ।, अपर्याप्त १ ये १४ प्रकृत घटाकर १०६ जानना तत्व प्रकृति-१४८ को. नं० १से ७ गुण स्वान के समान जानना। संख्या असंख्यात जानना। क्षेत्र-लोक का असंख्यात्तवां भाग जानना। स्पर्शन-लोक का अभन्यानवां भान ८ राजु, ६ राजु जानना । को० नं० २६ देखो काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा अन्तमुहर्त से दो अन्तमुहत और २ नागर प्रमाण ररे स्वर्ग की अपेक्षा जानना । अन्तर.... माना जीनों sive: मा नहीं : एकनीक की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक पौत लेश्या न हो सके। जात्ति (योनि)-२२ लाख योनि जानना । (पंचेन्द्रिय तिर्यच ४ लाख, देव ४ लाख, मनुष्य १४ लाख ये सब २२ लाख जानना) । कुल-८३ लाख कोरिकुल जानना । (पंचेन्द्रिय तिथंच ४॥ देव २६, मनुष्य १४ ये सब ३॥ लाख कोटिकुन्द जानना)
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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