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________________ २५ २६ अवगाहना-एक हाथ ऊंचा शरीर जानना । बंध प्रकृतियां-६३ को० नं०६ के समान जानना। ६२ माहारक मिथकाय योग की अवस्थायें में देवायु १ घटाकर ६२ जानना बय प्रकृतियां-६१ को० नं. ६ के ८१ उदय प्रकृतियों में से स्थानगृध्यादि महानिद्रा ३, स्त्री वेद १, नपुंसक वेद, अप्रशस्त बिहायोगति १, दुःस्वर १, संहनन ६, औदारिकद्विक २, पहले समचतुरस्रसंस्थान छोड़कर शेष ५ संस्थान ये २० घटाकर बाहारककाययोग की अपेक्षा ६१ प्र० का उदय जानना । ५७ माहाकाय काययोग की अपेक्षा ऊपर के २१, प्र. में से परवात १, उच्छवास . प्रास्तविहायोगति , सुस्वर १ ये ४ घटाकर ५७ जानना सत्य प्रकृतिया-१४६ नरकायु १, तिचायु ! ये २ घटाकर ४६ प्र. का सत्ता जानना । सक्या-माहारक काययोग में ५४ जीव एक समय में हो सकते हैं और माहारक मिचकावयोग में २७ जीव एक समय में हो सकते हैं। क्षेत्र-लोक का असंख्यातवा भाग प्रमाण जानना । स्पर्शन-- लोक का असंख्यातवां भाग प्रमाण जानना । काल-पाहारक काययोग में एक समय से अन्तर्मुहूर्त तक जानना और ग्राहारकमित्रकाय योग में अन्तर्मुहुर्त से अन्तर्मुहूतं तक जानना। अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से वर्ष पृथक्त्व तक कोई भी माहारक काययोगी नहीं हो सकते । एक जीव की अपेक्षा अन्तमुहूते से या ७ अन्तर्मुहुर्त कम अर्घ पुद्गल परावर्तन काल तक माहारक काययोग धारण न कर सके। जाति (योनि)--१४ लाख योनि मनुष्य जानना । कुल-१४ लाक्ष कोटिफुल मनुष्य जानना । २८
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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