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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० १३ मयोगबली गुण स्थान में पर्याक्ष अपर्याप्त क्रमांकस्थानसामान मानार नाना जीवों की अपेक्षा नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के | नानाडा में एक जीव के । एकगमय में । १जीव के एक जीव के 'नाना समय के कए समय के १ गूगा स्थान १ १ मयोग केवली गृगाः १ मयोग केवी गुन्ग २ जीव समास मंत्री पं० ५० अपत | संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्ति अवस्था | मंजो पंचेन्द्रिय अपर्याप्त ३पर्याप्ति । १ भंग ! १भंग को नं. १ यो । वा भंग की नं० १८ देखो | का भंग । का भंग | ३ का भंग को नं०१८ देखा ३ का भंग का भंग नन्धि रूप ६ का भंग · नन्धि रूप ६ लब्दिरूप: ! का भंग - का भंग १ भंग भंग ४ प्राग १भंग भं ग प्रा.यूबन १, काय बन? २ का भंग । २का भंग पायु, नाय पल का भंग का नं०१८के । ४ का भंग का भेगम २ प्रमाण जानना स्वासोच्छवास मृभिब जानना २ का भंग को नं. १८ देवी : वचन रस ।।. मना १०) अपगन मजा गति मना गनिजानना निय जानि पंचांग जानि प्रमकम्य जानना योग । दोनों भंग . १ वोग दोनों भंग . . योग भ-य मनःयोग ?! यात काम ५.३ के भग ५-३ के भगों में काम ग का ग . २.१ के भंग :-१ के भगों पत्नुभय योग को मित्र काय योग । में कोई योग घोभिनाय न . म में कोई मत्य वचन मंग . जानना । ये योग जानना व जानना +भय योग ५- भंग २. के भंग कंन ? के । काय योग की न०१- के मुजिब मुजिव जनना पौ० मित्र काय योग, कामगि काय यंग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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