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________________ ( ५६६ ) कोष्टक नम्बर २ चातीस स्थान दर्शन अभव्य में में म १ भव्य घटाकर | (३) मनुष्य गति में मारे भंग १ भंग ०-२६ के भंग जानना २६-२३- के भंग-को० को नं०१८ देगा को नं. १६ (४) देवगति में नं. १- के ३०.२४ के | देखा २४.२६-२३ के भन-काल । मारे भंग १ भंग भंग में से १ पत्र्य घटा-: नं०१६ के २५-२७-२४ को नं. १६ देखो . का० नं. १९ । कर २६-१३ के भंग । हरेक मंग में में भव्य देखो 1 जानना घटाकर २४-२६-३ के (४) देवर्गात में मारे भग । ! भग भंग जानना २५-२५-२२ + भंग- कान०१६ देखी को० नं.१३ को.नं. १० के २५२६-२३ के भंग में से १ भव्य घटाकर २५ | २५-२२ के मंग जानना प्रवगाहना-कोन.१६ से २४ देखो। बंध प्रतियो-११७ बंधवांग्य १२० में आहारकद्विक २. तीर्थकर प्र० १ से ३ पटाकर ११७ प्रकृति जानना । जदय प्रकृतिषां-११७ उदययोग्य १२२ में से पाहारकाहिक २, तीर्थकर प्र० १, सम्यम्मिय्यात्व है, सम्यक्त्व प्रकृति १५ पटाकर - १७ प्र. जानना। मत्व प्रकृतियां-१४१ याहा रहिक २, दीर्वकर प्र० १, पाहारक बंधन १, प्राहारक संघात १, सम्यग्मिध्यात्व १, सम्यवस्व प्रकृति १ ये ७ घटाकर १४८ प्रजानना। सख्या-अनन्त जानना। क्षेत्र-सर्वलोक जानना । स्पर्शन-सर्वलोक जानना । काल-सर्वकाल जानना। मन्तर-कोई अन्तर नहीं। जाति (योनि)-४ लास योनि जानना । कुम-१६ लान कोटिकुल जानना।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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