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________________ i_ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०१६ देव गति _ . 7 - " रे गुमा० में | रे मुरण. मे १५ का भंग में था गुगा नहीं होना । २५ का भग ऊपर के २३ ! १६ के भंग १६ के भंग से कोई से कोई १ भग | कारगा ४थे गुगाम मर' भग | के भंग में मोघ दान जारकर को नं० १० देखो जानना कर पान वाला जीव २४ का भंग जानना परन्तु यहां भी की। भवनविक देव नहीं करता. ४ये गुण म | पुरुष इन दो वेदो | (२) कल्पवासी देवा में २६ का भंग उपशम-क्षयो- में से कोई १ बंद । १ले गुरस में ले गुण में | १७ के अंगों में पशम सम्यवल २ जान ३, । डानना २६ का भंग पर्याप्त के १७ का मंग को० से कोई १ भंग दर्शन ३ लब्धि ५, देवगति १ ४थे गुग में ।१७के भंगों | २७ के भंग में मे न १८ दवा | मानना कषाय ४, स्त्री-पुरुष लिंग २, १७ का भंग से कोई १ भंग कुप्रयधि ज्ञान घटाकर परन्तु यहां मी लेश्या पीत १, असंयम १, को००१८ देता । जानना २६ का भंग जानना स्त्री पुरुष वेदों में अज्ञान १, प्रसिद्धत्व १, भव्यत्व परन्तु यहां ही स्त्री २रे गुण में से कोई १ वेद १,जावत्व १, ये २६ के पुरुष इन दोनों वडों; २४ का भंग जानना भंग जानना में से कोई देद | गर्यात के २५. के भंग में ! रे गुरण में १६ के मंगों में । (२) कल्पवासी देवों में जानना से कुयधिशान घटाकर १६ का भंग कोई १ मंग १ले गुण में १ने गुण में ७ के भंगों में २४ का भंग जानना । पर्याप्तव जानना | जानना २७ का भंग ज्ञान ३, १७ का भंग से कोई १ मग ४ गुण में ये गुण में १७ के भंगों में दर्शन २. लब्धि ५, देवति | ऊपर के भवननिक ! जानना २८ का भंग १७ का भंग से कोई १ भंव कषाय ४, स्त्री पुरुष लिंग २, दबों के १ले गुण पर्याप्ति के २६ के भंग में पर्याप्तवत् जानना | जानना शुभ लेश्या ३, मिथ्यादर्शन १, के १७ के भग के से स्त्री-वेद १ घटाकर | मसंयम १, प्रजान १, प्रसिद्धत्व समान जानना २८ का भंग जानना १,पारगामिक भाव ३, ये ।। (३) नवग्रं बेयक देवों में २७ का भंग जानना १ले गुरण में ले गुग में २२ गुण में रे गुण में के भगों में २३ का भग १७का भंग । २५ का भंग ऊपर के २७ । १६ का मंग में काई १ भग | पर्याप्तके २४ के भंग में| पतिवत जानना के भंग में से मिध्वादन १, को न०१८ देखो जानना से कुभवधि शान घटाकर प्रमन्य १ ये २ घटाकर २५ | परन्तु यहां भी स्त्री। २३ का भंग जानना का भंग जानना पुरुष वेदों में से २रे गुरा में २रे मुरण में १६ के अंगों में दरे गुण में कोई१वेद जानना २१मा भंग १६ का मंग से कोई 1 मंग २६ का भंग ऊपर के ३२ गुरा० म पर्याप्त के २२ के भंग में पर्याक्षवत् जानना जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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