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________________ ( ३० ). कोष्टक नं०५३ चौतीस स्थान दर्शन प्रत्याख्यान ४ कपायों में १६ भव्यत्व १ भंग १ प्रबस्था । भा. .. प्रवम्या चारों गतियों में हरेन में कोनं०१६ मे १६' कोजागरी हरेन में कोनं०१६ में १६ को न १६ में चारों गनियों में हमें को० नं १६ने १६ कोम० १६ २-१ के भंग । देखो १६ देको २-१ के 'ग । देखो १६ देखो को नं.१६ से १६. देखो की न०१६ में १२ । १७ सम्यक्त्व मारे भंग १ मम्यन्य | | गांग भंग १ राम्यक्त्व को० न०१६ देल्लो (१) नरक गति में को.नं.१६ दखो को नं. १६ देखो मिट घटाकर (1) (१)गरक गति में कान १८ को कोन - १६ देखो को० नं०१६ देखो ।१-२ के भंग (२) नियंच गति में सम्पद | काग १६ दलों २-१-१-२-१-१-१-३ केभंग को० न०१७ देखो कोनं०१७ देखो, (२) निर्यच गति में भंग सम्पर को नं०१७ देखो १-१-१-१-२ के मंग कोनं. १७ देखो कोन०१७ दंशो (B) मनुष्य गनि में मारे भंग | मम्बवत्त । को १७देखो १-१-१-३-१-1-1-३ के भंगकोर नं० १देखो की१८ देखो, (३) मनुष्य गति में सारे भंग , सम्यकल्ल को० नं १८ देखो १-१-२१-१-२.के भंग को नं.१५ देखो को नं.१८ देखो (४) देवगति में । सारे भंग | १ गभ्यवरव कोन.१५ देखो १-१ -२-२-२ के भंग को० न०१६ देसो कोनं १६ देखो, (४) देवगति में । मारे भंग १ सम्यक्त्व को.नं. ११ देखो । को मं० १६ देखो को.नं. १६ देखो | को. नं-१६ देखो । १५ संजो १ मंग पवम्पा । २ १ भंग । १परस्था संजी, असंही रामरक-मनथ्य-देव गनि में को.नं. १५-१८- कान १-१-(१) नरक-मनुष्य देवगति में कोनं १६-१८. कोन-१६-१८हरेक में | १६ देखो । १६ देखो हरेक पं । १६ देखो । १२ देखो १ मंत्री जानना १ मंजी जानना कोल०१६-१८-१९ । को नं. १६-१-१६ । देखा देखो १ भंग । १अवस्था । (२) निर्यन गति में । १ भंग व स्था १-१-१-१के भंग को० नं १७ देखो कोन०१७ देवो 1-1-1-1-1-1 के भंग न ११ दमो को०नं०१७ देखो को.नं.१७ देखो | का.नं.१३ देखो । । (२) निवंच गनिम है
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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