SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६६ याख्यात संयम में क्र० स्थान | मामान्य पानाप पर्याप्त अपर्याप्त | एक जीव के नाना एक डोब के एक १ जीव के नाना । एक जीव के | ममय में भमय में । नाना जीवों की अपेक्षा । समय में एक समय में नाना गीत्र की अपेक्षा गुम्ग स्थान ' गारे गुग्ण स्थान । गगन ११ से १ ४ गुणा ११ मे १४नक के गृगाः । व गूगा जानना २ जीबसमान १ मंज्ञी प. प. अपर्याप्त (१) मनुष्य गति में 12) मनग्य गति में मंत्री पं० पर्याप्त जानना! : मझीप. यायांस मानना कान दम्पा को० नं. १८ सो ३ पदमि १ मंग १ भंग ? भंग भंग को ना१दत्रा (१) मनुष्य गति में को००१८ देहो कोनदा ) मनुष्य गति में कोल नं०१५ देखो कोनं०१५ दग्दो ६का भग का भग ___ का न १८ देखो वो नं. १५ दम्रो भंग नं १ दवा ) मनग्य गति में २का भन कोलनं देखा भंग ! भंग को नं. १ देखी कोल्न. १८देखो ४ प्रारण ! अंग को नं०१ देखो | (1) मनुष्य गान में को नं. १८ देखो १०.४१ केभंग वोल नं. १८ देखो ५संज्ञा 10) अपगत संज्ञा ६गति १ मनुष्य पनि जानना ७ इन्द्रिय जानि । १पंचन्द्रिय जाति जानना काय १ श्रमकाय जानना हयोग ! . सारे मंग मनोयोग४, बचनयोग: प्रो. मिश्र काययोग, ४, मौ० मिथ काय- कार्मागा काययोग योग १, प्रो० काय- । ये घटाकर (1) . 04.... .. मारे मंग १ योग प्रो. मिनफाययोग १ कार्मागा फाययोग । . - . . - - -. . -- - - - - - -
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy