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________________ कोष्टक नं० १६ नरक गति में चौतीस स्थान दर्शन *० स्थान सामान्य प्राचाग पर्याप्त अपर्याप्त १जीन बनाना एक जीव के समय में एक ममय में एक जीव के नाना एक जीच के एक समय में | समय में नाना जीव की अपेक्षा नाना चावा का अपना १४ गगाल जानना ले मिथ्यात्व, सासादन, मिथ, मविरत मृग्गा ये ४ गुग० जानना । सारे गुण स्थान ये दोनों गुमा जानना पुग ने ये गुण में में कोई १ नृग्गा मारे मुग्गः १ गुणः । १ से ४ सारे गगण. १स में कोई | १ले थे ये २ गुग न जाना माः जाजा जानना सुचना- मनुष्य और | निर्यच गति याना जीव सामान गुरुः स्थान में मरपर नरक गति में ! जन्म नहीं लेना, इसलिये वहां नरक गति में मातादन गुग स्थान नहीं । होता । (देखा गो. का २जीव समास संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याम " अपर्याप्त ये २ जानना पर्याप्ति की नं०१ देखो १ पर्याप्त अवस्था । १ जीव समास । १ समास १ प्रगर्याप्त अवस्था समाम १ समास १ में ४ गुगा में १ संजी पं० पर्याप्त मंत्री पं० पर्याप्त ले ये गुग में १ मंजी पं० पर्याप्त संजी पं० अपमंत्री पं० गति जानना जानना । जानता १ संजी पं० अपर्याप्त अवस्था जानना , र्याप्त जानना जानना . भंग । १ भग १ भंग १ भंग १ मे ४ गुग में ६का भंन जानना का मंग 'मन-भाषा-श्वासोच्छवास ३ का भंग जानना ३ मा भंग का भंग जानना ये ३ पटाकर शेष १३) जामना मामाग्यवत जानना इथे गुण. मे ३ का भंग ग्राहार शरीर । इन्द्रिय पर्याप्ति ये ३ का भंग जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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