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________________ (७९४) प्रीति जो? ऐसे गुरु और हम हाथ अंजुलि करे जीवों का महान उपकार किया है आपके ऐसे पावन कार्यका सबलोग अभिनन्दन करेंगे शीतरित् जो ॥ वरूपसम्बोधन ... मुक्ता मुकपयः कर्मभिः संविदादिना । अक्षयं परमात्मानं ज्ञानमूर्ति नमामि नम् ॥ १३२ श्री महाsकलंक विरचित. ----0 ( १ ) चौंतोसस्थान वर्शनपर अभिप्राय ले. १) ताराचन्द जैन शास्त्री न्यायतीर्थं नागपुर. २) सिगई मूलचंद जैन अध्यक्ष श्री दिर्जन पश्चार मंदिर ट्रस्ट नागपुर श्रद्धेय पूजनीय १०८ श्री आदिसागरजी महाराज ( डवाल) जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ हैं, आपने चारों अनुयोगों के महान ग्रंथों का गंभीर अध्ययन किया है. अतः आप चारों अनुयोगों में अगाध पांडित्य रखते है आपने कर्म सिद्धान्त के ग्रंथ गोम्मटसार कर्मकार लम्पसार आदिका सूक्ष्म दृष्टिसे अध्ययन किया, है. अतः आप कर्मसिद्धान्त के विशेषज्ञ है अपने इस अत्यंत कठिन कर्म विषयको जिजामुओं के लिये अत्यंत सरल और सुबोध बनाने के लिये अत्यधिक प्रयत्न किया है. आपने इस कर्म विषय की पूर्ण जानकारी कराने के लिये तीसस्थान दर्शन' नामका ग्रंथ निर्माण किया है. इस ग्रंथ में जिज्ञासुको अल्प समय में कर्म सिद्धांत का मुगम रीतिरो बोध हो सकता है. कमंप्रकृतिओके मंद प्रभेद और प्रयोजनाविको जानने के लिये ग्रंथ के चौतीसम्थान की संदृष्टियां या चार्ट अत्यंत उपयोगी हैं इन चार्टोका गंभीरता से अध्ययन करने पर कोई मी जिजागु विषय का पूर्ण ज्ञाता बन सकता है. पूज्य महाराज ने इस भगवान विषम काल में महान वीतरागता वर्धक ग्रंथ की रचना करके भव्य आत्महिताकांक्षी भव्य जीव ऐसे महाम ग्रंथों का अध्ययन करें और अपना अज्ञान भाव दूर करें. उग अभिप्राय से ही पूज्य १०८ श्री. आदिसागरजी महाराजने इस ग्रंथ का निर्माण किया है. यह ग्रंथ सभी शास्त्रभंडारों और मंदिरोंमें गंग्रहणीय हैं इस संघ के निर्माण कार्य व सोय ब्रह्मनारीजी उतरायजी रोहतक निवासीने पूर्ण योग दिया है. बह्मचारीजी वृद्ध होने पर भी इस पुनीत कार्य के सम्पादन और प्रशन में अहर्निश संलग्न रहे करने में समर्थ हुये हैं हैं. तभी आप ऐसे कठिन विषय के ग्रंथको प्रकाशित इसलिये गाठकवन्द ब्रह्मचारीजी के भी अत्यंत वृतज्ञ हो (२) ले सूरजभान जैन प्रेम आगरा श्री परराज्य अमीक्षण ज्ञान उपयोगी, चारित्र चूडामणी, उप मूर्ति, श्री १०८ मुनि आदि सागरजी शेडवाल (बेलगाम) मंसूर प्रान्त चरणस्पर्श- सादर विनम्र निवेदन हैकि आज ता. ६ अक्टूबर ६७ को ब्र. उल्फतरायजी (रोहतक) ने अपने चातुर्मासयोग स्थान जैन धर्मशाला टेंकी गृहल्ला मेरठ सदर में चौतीस स्थान वर्शन ग्रंथ के विषय समझाए में उन प्रकाशन के तात्विक विषयों को सुनकर बडा प्रभावित हुवा | इस विशाल ग्रंथ में जीव कांड, कर्म कांड, धवला पूज्य ग्रंथों के आध्यात्मिक विषयों को मणिमाला की तरह एक सूत्र में पिरोया है जो अथक र बिखरे थे, यह ग्रथ परीक्षाओं में बैठनेवाले विद्यार्थियों स्वाध्याय प्रेमियों, विद्वानों जिज्ञासुओं को दर्पण की तरह ज्ञान दुकाने में सहवक होत । . C
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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