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________________ चौतीस स्थान प्रशंग साधक नं० २१ एकेन्द्रिय १५ तेरा १ मंगलेल्या । ३ १ भंग लेण्य अशुभ लक्ष्या १ने गगग में ३का भंग ३के भंग में से तेरे गुण? में ३ का मंग ३ के मंगों में से | ३ बा भंग को नं० १७ फे। पोई १ लेश्या ३ का भंग को नं०१७ | कोई १ लेश्या समाजानना के समान जानना २६ मन्यत्व २ १ अवस्था । १अवस्था २ १ भंग १अषस्था भव्य, प्रभव्य ने गुण. पं । भव्य-प्रभव्य में से दोनों में से कोई २-१ के भंग २-१ के भंग में मे २-१ के अंगों में | २ का भंग को नं०१७ के कोई१ जानना । १अवस्या ल गुग में कोई १ मंग से कोई 1 ममान जानना | २ का भंग पर्याप्तवत् प्रवस्था जानना रे गुग में १ का भंग एक भव्य जानना। १७ सम्पन्न १भंग ! १सम्यक्त्व मिथ्यात्व, मासादन ' ले गुगण में १-१के भंग 12-2 के अंगों में से १-१ के अंगों में मिध्य.त्व जानना १ले गुसा में कोई भंग कोई १ सम्यक्त्व १ मिथ्यात्व जानना जानना से गुण में १ सोसादन जानना १८ संजी १ अमंजी मंत्री संजो अयंजी जानना ! १६ पाहारक २ दोनों अवस्था १ अवस्या पाहारक, मनाहारक १ने गुगार में ले रे गा में प्राझारक, अनाहारफ दोनों में से कोई १माहारक जानना (१) विग्रह गनि में अना-1 १ अवस्था हारक जानना (२) याहार पामिक समय। | माहारक अवस्था जानना २० उपयोग ३ । पयोग ३ मंग १उपयोग सुमति, वनि और ले गुगा० में ३ का भंग ३ के मंग में से . ले रे गुरण में ३ का भंग ३ के मंग में से भचक्षुदर्शन ये () !: का मंग 700 के कोई उपयोग का मंग को नं. १७ कोई १ उपयोग समान जानना जानना वे समान जानना जानना ----
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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