SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवगाहना-संख्यात धनागुल या पनागुल के असंख्यातवें भाग से लेकर एक हजार (१०००) योजन तक जानना । बंध प्रकृतियां-को नं. १६ के समान जानना। दय प्रकृतियां-१०१ को न ३५ के समान जानना । सब प्रकृतियां-१४८ को० नं० २६ के समान जानना । सम्दा- असंख्यान जानना। क्षेत्र-लोक के प्रसंख्यातयां भाग जानना। स्पर्शन- लोक का असंख्यातमा भाग, ८ राजु जानना, सर्वलोक को नं० २६ के समान मानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव को अपेक्षा एक समय से अन्तर्मुहूर्त तक जानना । मन्तर नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव को अपेक्षा १ अन्तमुहर्त से मसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक जानना । जाति (योनि)-२६ लाख योनि जानना । (को० नं० २६ देखो) कुल-१०॥ लाख कोटिकुल जानना । (को नं. २६ देखो)
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy