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________________ ८५६ qठं पंक्ति अशुद्धता ७१३९ का. ३ में सुम शुभ । कोर की ४६-३-४३ ७३४ ५ का.५में १७-३-४३ ४३-१० १-३२ ३७-५ की. नं. १ का. ५ में ३२-७-५ ७३६ ७३८ ७३१ १६ ७४. ७४. १ ७४१ १३ प, रकाने में जिस बंध का सप्तत १ रकाने मेंकम स्वरूप में २ रे रकाने में कम विभाग से का. ५ में २२-१२ वेदनाय के ऊपर के १ में से २में से ४ १ लें रकाने में जो २ २ रे रकाने में वा १से रकाने में मेरे २ रे काने में बाको बची सब प्रकृतियों का उदब . का. ५ में अप्रत्याख्यान का ५ में ५६-. २२ गुणस्थानी का. ५ में जिस बंष का चसनत कर्मस्वरूप कम विमाग से २२-२१ वेदनीय के १ प्रकृति साता या असाता ऊपर के २१ में से ये २ऐसे ४ जो २५ ६ वा में से यह विषय २ र रकाने में से निकालकर १ ले रकाने में रखना चाहिये। प्रत्याख्यान ४१ २२ २८ गणस्थाना गं १८ रकाने में अयोगशाम में ११.१-२० भयोपनाम गुण का इस कारण असाता के ११७ ५४५४ २रे रकान में स कारण , असाता देवक का. ३ १० ७४. ७४ २रे रकाने में का ७४७ १३ , ओ ७४८ १ २रे रकाने में करने क और करमेका
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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