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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ७१ अचक्षु दर्शन में । १ भंग Theन देखो। (४) देवगति में सारे भंग १ भंग (४) देवति में सारे मंग ५.०-४५-४१-४६-४४.४०-को. नं० १९ देखो को० नं०१९४३-३८-३३-४२-३७-३३- को० नं.११ देखो| कोन ४० के भंग को.नं. १६ ३३ के भंग- कोन देखो १६ देखो २३ माव सारे मंग १ ६ . सारे भंग १ भंग उपशम सम्यकद १, (१) नरक गति में को. नं०१६ देखो | को० न० १६ उपशम चारित्र, उपशम चारित्र, २५-२३ के भंग-को० नं. क्षायिक चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व १, १६ के २६-२४ के हरेक यवधिशान १ क्षायिक चारित्र १, भंग में से जिसका विचार मनः पर्यय ज्ञान १ । कुज्ञान ३. अन ४, । करो यो १ दर्शन छोड़कर संयमासंयम १, ५..., अचक्षुदान १. लब्धि ५. मेष १ दर्शन घटाकर २५ घटाकर (३६) वेदक स. १, सराग- २३ के मंग जाना (१) नरक गति में सारे भंग १ भंग संगम १, संयमासंयम १, -६-२६-२५ के मंग-को २४ का मंग-को.नं. को.नं० १६ देखो | को० न०१६ गति ४, कषाय ४, । नं०१६ के २५-२८-२७ १६ के २५ के भंग में देखो लिंग ३, लश्या ६, । के हरेक मंग में में ऊपर से पर्याप्तवत् शेष १ दर्शन | मिथ्यादर्शन १, असंयम १, के समान शेष २ दर्शन घटाकर २४ का मंग अज्ञान, प्रसिद्धत्व है। बटाकर २३-२६-२५ के । जानना पारिगामिक भाव ३, मंगजानना २५ का भंग-को०० ४. जानना । (२) तिर्यच मति में सारे भंग , भग १६ २० क भंग में से का भंग-का० नं. को.नं.१३ देना का नं०१७ पर्याजवत ग्रेग २ वर्णन । १७ के समान जानना दम्बो घटाकर २५ का भग २४-२६-३०-२८ के मंग जानना को नं. १० के २५-२७- | 1) तिच गनि में मार भंग १ अंग ३१-२६ के हरेक भंग में २४ का भंग-का० नं. कोन. १७ देवा । को.नं. १५ में कार के समान थप १ । १३ के समान जानना दर्शन घटाकर २४-०६- | २४-६-२६ के संग३०.०८ के भंग जानना को० नं०७ के २५. २८-30--- के भंग को २७-03-के हक भग नं०१७ के 10 में मे पयांतदत गर
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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