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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०१६ देव गति मुजान ३, ज्ञान, ये ६ जान जानना 'परन्नु मूचना ऊपर के समान जानना सारे भंग १कुज्ञान मार भंग | १कुञान ३-३ के भंग अपने अपने स्थान के 'कुप्रवधि ज्ञान घटाकर (1) अपने अपने स्थान के भवनाविक गे नयन बेयक तक | | २-२-३-1 के भंग लि रे रे गण में | ३ का भंग जान .|३ केभंग में में ) भवनत्रिक देवों में ३६ भंग वुमनि, वुथु ति, कुज्ञान जा ना कोई १ कुजान। ले २रे गुण में २ का भंग जानना २ के भंग में से बुधवधि ज्ञान व ३का भंग जानना | २ का भंग कुमति कुश्रुति कोई १ कुशान जानना ये २ कुज्ञान का भंग जानना भवनधिक से सधि सिद्धि तक थे गुण में ३ज्ञान के मंग में से । (२) ले स्वर्ग से नव- : . का मंग मति, अति, अवधि | कोई १बान | चंचेयक तक के देवों में | ज्ञान ये का भंग जानना जानमा १ले २रे गुण. में २का भंग २के मंग में से २ का भंग कुमति कुन ति. कोई १ कुशान ये २ कुजान जानना । बानना ४थे गुग में का मंग | ३ के भंग में से ३ का भंग मति अति कोई मान अवधि ज्ञान ये ३ जान : जानना जानना (३) नव अनुर्दिश और पंचानुत्तर के देवों में वे गण में . ३ का भंग ३ का भंग मति इति । अवधि शान थे। शाम: जानना १३ संयम असंयज्ञ भसंयम १ से ४ गुप में १असंयम जानना असंयम | ले २रे ४थे गुण में १ असंयम जानना प्रसंयम
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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