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________________ मुक्ती ८ पंड पंक्ति अशुद्धता १०२ ५ का.४ में १ से ४ १.२ २४ का. में ६ १०३ ११ का. ३ में में २५ का १०७ २३ , २ का मंग १०३ १२-१३ का ६ में ३ १०४ १०४ १०५ ये २५ का ५ का मंग ४ का भंग-पर्याप्त के ५ के भंगमे से कूअबधिज्ञान घटाकर ४ का भंग जानना । ६ के मंगमे से कोई १ उपयोग रोदध्यान ४, घमंध्यान ३ ऊपर के ८ के मंग मे १ले २ रे गुण मे सारेभंग अविरत की जगह ८ गिनकर ३८ चहिता १०५ २१ १०८ १८ १०८ का. ५ में ६ का भंग का. २ में रौद्रयान ३ का. ३ में ऊपर के का. ४ में १ ले गुण मे का.७ में भंग रा, ६ में अविरत ८ की " जगह गिनकर ३९ का. ३ में असंज्ञी पंचेन्द्रिय का, ५ में २७ के का. ७ में १ मंग कोष्टक नं. . का. ४ में २७ का मंग का. १ में २५ का, २ में मन ध्याय १, उच्चगोत्र का. ६ में ३ का, ४ में का. ५ में का. ६ में १ का. ६ में ३ का. ४ में १ भंग का ७ मे १ मंग का. ४ मे १ आयबल प्रमाण का ४ मे १ मंग का. ३ मे ६ गुण के सारेभंग कोष्टक नं. १७ १७ का मंग २६ मनुध्याय १, क्रियिकदिक २ उच्चगोत्र १११ ३ ११३ १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जामना १ संशी प. पर्याप्त जानना १ ११४ ११४ ११४ ११४ सारेभंग सारेभंग १ आयु बरु प्राण सारेयंग ६ गण के १का मंग के ११७ ९ सारेमंग ११८ १ का. ४ १ भंग में ११८ १ का.५ में सारेवेद ११८१३-१४ का. ६ में सुचना-आहारककाय योगी पुरुषवेदीही होता है अर्थात पुरुषवेदवाले के ही आहारकपुतला बनता है। यह दोनों पक्तियां क्रमसे धोरा भूमि में १ले २ रे गुण और ४ में के सामने पको। ११८ . का. ७ में
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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