Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३०/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ४०
से विकथा के ४ भेद हैं-स्त्रीकथा, भवत(भोजन) कथा, राष्ट्रकथा, राजकथा ! कषाय के भी चार भेद हैंक्रोध, मान, माया, लोभ । इन्द्रिय के पाँच भेद हैं-स्पर्शन, रसना, घारण, चक्षु, थोत्र । निद्रा व स्नेह का कोई भेद नहीं है अत: इनमें अक्षसंचार-परिवर्तन नहीं होता । मात्र विकथा, कषाय और इन्द्रिय इनमें ही अक्षसंचार परिवर्तन सम्भव है, क्योंकि इनके उत्तर भेद हैं।
- तृतीय पक्ष--इन्द्रिय के प्रथम भेद स्पर्श के साथ द्वितीय प्रक्ष-कषाय के आदिभेद 'क्रोध' कषाय को रखकर प्रथम अक्ष-विकथा के प्रादिभेद स्त्रीकथा को कहना चाहिए, यह प्रथम पालाप है। द्वितीय पालाप में तृतीय अक्ष के दूसरे भेद रसना इन्द्रिय के साथ वही द्वितीय और प्रथम प्रक्ष के प्रादिभेद क्रोधकषाय व स्त्रीकथा का उच्चारण करना चाहिए । इस प्रकार मात्र तृतीय अक्ष में परिवर्तन करते हुए अन्तिम भेद श्रोत्र इन्द्रिय तक उच्चारण करना चाहिए । पुनः लौटकर तृतीय अक्ष के आदिभेद स्पर्शन इन्द्रिय को ग्रहरणकर उसके साथ द्वितीय प्रक्ष में परिवर्तन करके द्वितीय भेद 'मानकषाय' और प्रथम अक्ष के आदिभेद स्त्रीकथा का उच्चारण करना चाहिए । यह क्रम ततीय अक्ष के अन्तिम भेद तक ले जाना चाहिए । पुनः लौटकर तृतीय अक्ष के आदिभेद को ग्रहण करने पर द्वितीय अक्ष में पपिाय करके तृतीय भेद माया' कपाय और प्रथम अक्ष के प्रादिभेद स्त्रीकथा का उच्चारण करना चाहिए। यह क्रम तृतीय अक्ष के अन्तिम भेद तक ले जाना चाहिए। पुनः लौटकर तृतीय अक्ष के मादिभेद 'स्पर्शन इन्द्रिय' को प्राप्त करके द्वितीय अक्ष-कषाय में परिवर्तन करके उसके अन्तिम भेद 'लोभ' कषाय को ग्रहण कर इनके साथ प्रथम अक्ष के आदिभेद स्त्रीकथा का उच्चारण करना चाहिए। यह
म तृतीय अक्ष के अन्तिम भेद धोत्रेन्द्रिय तक ले जाना चाहिए । इस नालाप में तृतीय अक्ष के अन्तिम भेद धोत्र इन्द्रिय और द्वितीय प्रक्ष के अन्तिम भेद लोभकषाय का ग्रहण होने से तृतीय और द्वितीय दोनों अक्ष अपने अन्त को प्राप्त हो जाते हैं । पुनः लौटकर तृतीय अक्ष का और द्वितीय अक्ष का आदिभेद ग्रहण होने पर प्रथम प्रक्ष में परिवर्तन होकर द्वितीय भेद भक्तकथा' के साथ पालाप होता है। जिस प्रकार स्त्रीकथा के साथ तृतीय अक्ष में पुनःपुनः परिवर्तन कर के और द्वितीय अक्ष में एक बार क्रमशः प्रादि से अन्त तक परिवर्तन करके २० पालाप कहे, उसी प्रकार भक्तकथा, राष्ट्रकथा और अन्तिम राजकथा के साथ भी २०-२० पालाप कहने चाहिए। इस प्रकार अन्तिम पालाप में तीनों अक्ष अपने-अपने अन्त को प्राप्त हो जाते हैं।
द्वितीय प्रस्तार की अपेक्षा अक्ष-संचार का अनुक्रम पढमक्खो अंतगदो प्राविगद संकवि विदियक्षो ।
दोणि वि गंतरांतं प्रादिगदे संकमेदि तदियक्लो ॥४०॥ गाथार्थ--प्रथम अक्ष जब अन्त तक पहुँचकर पुनः प्रादिस्थान पर प्राता है तब दूसरा अक्ष भी संक्रमण कर जाता है और जब ये दोनों अन्त तक पहुँचकर प्रादि को प्राप्त होते हैं तब तृतीय अक्ष का भी संक्रमण हो जाता है ।।४०।।
विशेषार्थ--प्रमाद के प्रथम अक्ष (भेद) विकथा के स्त्री, भक्त, राष्ट्र और राजकथा इन चारों को क्रम से पलटकर कहना चाहिए तथा इनमें से प्रत्येक के साथ कषाय व इन्द्रिय का प्रथम
१. धवल पु. ७ पृ. ४५ माथा ११।