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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव इसके लिए उसके चारों ओर एक श्लेष्मधरकला का कन्चुक चढ़ा होता है । जहां कण्डरा का प्रत्यक्ष घर्षण अस्थि के साथ होता है वहां कण्डरा का एक भाग घनीभूत गांठ का रूप धारण कर लेता है जो कालान्तर में अस्थि बन जाता है।
मांसधराकला की तान्तव ऊति लम्बे लम्बे एकन्यष्टि तन्तुरूहों ( fibroblasts ) के द्वारा बनती है। इन तन्तुरुहों के बीच बीच में उनकी आवश्यकतानुसार रक्तवाहिनियां, वातनाड़ियां, लसवहा, वसा आदि रहते हैं। तान्तव ऊति की सघनता भी कहीं कम और कहीं अधिक देखी जाती है। व्रणवस्तु ( scar tissue ) में सब के सब तन्तुरुह होते हैं। मांसधराकला में तन्तुरुह और अन्य सब वाहिनियां होती हैं तथा अन्तरालित ऊति ( areolar tissue ) में स्नेह तथा वाहिनियों की बहुलता होती है।
पेशीपाक ( Myositis)-पेशी में दो प्रकार का पाक प्रायः देखा जाता हैएक तीव्र और दूसरा जीर्ण । तीव्र पेशीपाक का कारण समीपस्थ ऊतियों में व्रणशोथ जैसे पर्यस्थपाक या कोशोतिपाक का होना माना जाता है। यदि किसी तीक्ष्ण शस्त्र से भेदन करके व्रण कर दिया जाय तो प्रत्यक्ष रूप से भी तीव्र पेशीपाक हो सकता है। सर्वप्रथम व्रणशोथ का प्रभाव मांसधराकला पर होता है उससे पेशी के तन्तु प्रभावित होते हैं। पेशी के कोशा कणात्मक हो जाते हैं फूल जाते हैं और खाली हो जाते हैं उनकी अनुप्रस्थ रेखाएं मिट जाती हैं और अन्त में वे विघटित हो जाते हैं। यदि उपसर्ग तीव्र हुआ तो वहां सपूय विद्रधि बन जाती है या पूयान्तराभरण प्रसार ( diffuse purulent infiltration ) हो जाता है।
मांसगत कुपित वात का लक्षण लिखते हुए चरक स्पष्ट करता हैगुर्वङ्गं तुद्यते स्तब्धं दण्डमुष्टिहतं यथा । सरुक् स्तिमितमत्यर्थं मांसमेदोगतेऽनिले ॥ सुश्रुत कहता है
............ "ग्रन्थीन् सर्लान् मांससंश्रितान् । वाग्भट बतलाता हैमांसमेदोगतो ग्रन्थींस्तोदाढ्यान् कर्कशान् श्रमम् । गुर्वषं चातिरुक्स्तब्धं मुष्टिदण्डइतोपमम् ॥
अङ्ग का भारीपन, तोद, कार्यशक्ति का ह्रास होकर स्तब्धता आना, शूल होना, भीगा भीगा सा लगना, गांठ पड़ जाना, श्रम करने में कष्ट होना तथा ऐसा प्रतीत होना मानो डण्डे से पीटा गया हो या मुष्टिक प्रहार हुआ हो। यह विवरण पेशीपाक के नैदानिक स्वरूप ( clinical aspect ) को प्रगट करता है।
पेशीपाक एक और प्रकार का ही तीव्र स्वरूप का देखा जाता है। यह सज्वर एवं सहसा होता है। पेशियों में शूल पर्याप्त होता है वे सूज और फूल जाती हैं साथ ही त्वचा पर भी उत्कोठ या नीलोहिक सिध्म (purpuric patches ) देखे जाते
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