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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान २५ ।।
घटनेत घट नाम है । बहुरि कुटिलता कुट नाम है । तातें तिस क्रियारूप परिणति समयही तिस शब्द की प्रवृत्ति हो है । इस न्यायतें घटनक्रियाविषै कर्तापणां है सोही घटका स्वात्मा है । कुटिलतादिक परात्मा है । तहां घटक्रियापरिणतिक्षणही मैं घट है । अन्यक्रिया में अघट है । जो घटन किया परिणति मुख्य करिभी घट न होय तौ घटव्यवहारकी निवृत्ति होय । बहुरि जो अन्यक्रिया अपेक्षाभी घट होय तो तिस क्रियाकरि रहित जे पटादिक तिनिविषैभी घटशब्दकी वृत्ति होय । ऐसे ये दोय भंग भये || ८ || अथवा घट शब्द उच्चारते उपज्या जो घटकै आकार उपयोग ज्ञान सो
घटक स्वात्मा है । अरु बाह्य घटाकार है सो परात्मा है । बाह्य घटके अभाव होतेंभी घटका व्यवहार है । सो घट उपयोगाकारकरि घट है । बाह्याकारकरि अघट है । जो उपयोगाकार घटस्वरूपकरिभी अघट होय तौ वक्ता श्रोताके हेतुफलभूत जो उपयोगाकार घटके अभाव तिस आधीन व्यवहारका अभाव होय । बहुरि जो उपयोग दूरिवर्ती जो बाह्य घटभी घट होय तौ पादिकैभी घटका प्रसंग होय । ऐसे ये दोय भंग भये ॥ ९ ॥ अथवा चैतन्यशक्तिका दोय आकार हैं । एक ज्ञानाकार है एक ज्ञेयाकार है । तहां ज्ञेयतें जुड्या नांही ऐसा आरसाका विनां प्रतिबिंब आकारवत् तौ ज्ञानाकार है । बहुरि ज्ञेयतें जुड्या प्रतिबिंवसहित आरसका आकारवत्
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