SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ea Breezi www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान २५ ।। घटनेत घट नाम है । बहुरि कुटिलता कुट नाम है । तातें तिस क्रियारूप परिणति समयही तिस शब्द की प्रवृत्ति हो है । इस न्यायतें घटनक्रियाविषै कर्तापणां है सोही घटका स्वात्मा है । कुटिलतादिक परात्मा है । तहां घटक्रियापरिणतिक्षणही मैं घट है । अन्यक्रिया में अघट है । जो घटन किया परिणति मुख्य करिभी घट न होय तौ घटव्यवहारकी निवृत्ति होय । बहुरि जो अन्यक्रिया अपेक्षाभी घट होय तो तिस क्रियाकरि रहित जे पटादिक तिनिविषैभी घटशब्दकी वृत्ति होय । ऐसे ये दोय भंग भये || ८ || अथवा घट शब्द उच्चारते उपज्या जो घटकै आकार उपयोग ज्ञान सो घटक स्वात्मा है । अरु बाह्य घटाकार है सो परात्मा है । बाह्य घटके अभाव होतेंभी घटका व्यवहार है । सो घट उपयोगाकारकरि घट है । बाह्याकारकरि अघट है । जो उपयोगाकार घटस्वरूपकरिभी अघट होय तौ वक्ता श्रोताके हेतुफलभूत जो उपयोगाकार घटके अभाव तिस आधीन व्यवहारका अभाव होय । बहुरि जो उपयोग दूरिवर्ती जो बाह्य घटभी घट होय तौ पादिकैभी घटका प्रसंग होय । ऐसे ये दोय भंग भये ॥ ९ ॥ अथवा चैतन्यशक्तिका दोय आकार हैं । एक ज्ञानाकार है एक ज्ञेयाकार है । तहां ज्ञेयतें जुड्या नांही ऐसा आरसाका विनां प्रतिबिंब आकारवत् तौ ज्ञानाकार है । बहुरि ज्ञेयतें जुड्या प्रतिबिंवसहित आरसका आकारवत् For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy