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ज्ञान शब्द कोश
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मूल्य १५)
प्रथम संस्करण, माघी पूर्णिमा २०११ परिवर्धित संस्करण, ज्येष्ठ २०१३
प्रकाशक-शानमण्डल लिमिटेड, बनारस १. मुद्र क-ओम् प्रकाश कपूर, ज्ञानमण्डल यन्त्रालय, बनारस. २०१२
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द्वितीय संस्करणकी भूमिका
'ज्ञान शब्द कोश'का यह परिवर्द्धित संस्करण हमें कुछ शीघ्रतामें तैयार करना पड़ा है, इस कारण हम इसमें उतना सुधार तो नहीं कर सके जितना हम करना चाहते थे। फिर भी हमने सरसरी तौरसे इसे दोहरा जाने तथा यत्र-तत्र आवश्यक संशोधन करनेका प्रयत्न किया है। छूटे हुए शब्द बीचमें न बढ़ाकर हमने अलग परिशिष्टके रूपमें रख दिये हैं। आशा है, यह परिवर्द्धित संस्करण हिन्दी प्रेमियों के लिए और भी अधिक उपयोगी प्रमाणित होगा। ____एक बात और । कागजका तथा जिल्दबन्दीमें लगनेवाली चीजोंका दाम अधिक बढ़ जानेके कारण हमें विवश होकर इसके मूल्यमें वृद्धि करनी पड़ी है, यद्यपि वास्तवमें ऐसा करनेका पहले हमारा कोई इरादा न था। हम अपनी इस विवशताके लिए अपने कृपालु ग्राहकों तथा अनुग्राहकोंसे क्षमा याचना करते हैं और आशा करते हैं कि वे इस संस्करणको भी पूर्ववत् अपनाकर हमें प्रोत्साहित करनेमें सहायक बनेंगे।
मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव
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प्रथम संस्करणकी भूमिका
यह कोश वस्तुतः 'बृहत् हिन्दी कोश'का ही समधिक संक्षिप्त रूप है, जैसा कि उसके साथ इसके दो-चार पृष्ठोंका मिलान करनेपर स्पष्ट हो जायगा। 'बृहत्' कोशका मूल्य सामान्य स्थितिके पाठकोंक लिए कुछ अधिक होनेके कारण उनमेंसे कितने ही उससे लाभ उठा सकनेके सु-अवसरसे वंचित रह जाते थे, अतः उनकी माँग पूरी करनेकी दृष्टिसे ही इसका निर्माण किया गया है । इसमें आज-कलकी या पुरानी हिन्दीमें प्रचलित प्रायः सभी शब्दोंका समावेश करनेकी चेष्टा की गयी है । केवल वे हो शब्द-अरबी, फारसी, संस्कृत आदिके-निकाले गये हैं जिनका प्रयोग हिन्दीके किसी कवि या लेखकने शायद ही कभी, भूले-भटके एकाध बार किया हो अथवा भविष्यमें भी जिनके प्रयुक्त होनेकी कम ही संभावना हो।
शब्दोंका चयन करते समय हमने हिन्दी साहित्यके सामान्य पाठकोंकी आवश्यकताका बराबर ध्यान रखा है और इसे उनके लिए अधिकसे अधिक उपयोगी बनानेका भरपूर प्रयत्न किया है । इसीसे इसमें हमें लगभग ६६ हजार शब्दों या रूपोंका समावेश करना पड़ा है, जितने संभवतः हिन्दीके इसी आकार-प्रकारके अन्य किसी कोशमें सन्निविष्ट नहीं हो सके है।।
समास-पद्धतिका प्रयोग संस्कृत, अंग्रेजी तथा अन्यान्य भाषाओंकी तरह हिन्दीमें भी समस्त पदोंका प्रयोग प्रचुर रूपसे होता है। ऐसे पद प्रायः मूल शब्दके साथ ही कोशमें रखे गये हैं, जिससे स्पष्ट हो जाय कि वे स्वतंत्र शब्द न होकर दो या अधिक शब्दोंके योगसे बने हैं। ऐसे समस्त या संयुक्त शब्दोंको एक साथ रखनेमें उनका प्रायिक सम्बन्ध दिखलानेके अतिरिक्त एक उद्देश्य और था-स्थानकी बचत करना । हाँ, जिन समस्त पदोंके रूपमें सन्धि-सम्बन्धी नियमोंके कारण कुछ विकार हो जाता है, वे प्रायः मूल शब्दसे पृथक रखे गये हैं, जिससे उन्हें पहचानने में सन्धिके नियमोंसे अपरिचित सामान्य पाठकोंको कठिनाई न हो । सुहावरे भी मूल शब्दके साथ ही, समस्त पदोंका सिलसिला समाप्त होनेके बाद, दिये गये हैं । इन सब स्थलोंपर मूल शब्दके स्थानपर डैश (-) का प्रयोग किया गया है और जहाँ मुहावरोंमें मूल शब्दके रूपमें किञ्चित् परिवर्तन हो जाता है, वहाँ डैशके बजाय या तो पूरा शब्द दे दिया गया है या कोकके भीतर परिवर्तनका संकेत कर दिया गया है।
व्युत्पन्न शब्द संस्कृतके समस्त पदोंके साथ ही व्युत्पन्न शब्दोंके भी दे देनेसे स्थानकी बचत तो होती किन्तु एक ही स्थानपर बहुतसे शब्दोंका जमघट हो जानेके कारण उन्हें ढूँढ़नेमें अधिक कठिनाईकी संभावना थी । इस विचारसे प्रत्ययोंकी सहायतासे बनाये गये संस्कृतके शब्द मूल शब्दसे पृथक , क्रमके अनुसार, यथा-स्थान रखे गये हैं। अन्य भाषाओंके शब्दोंके साथ भी केवल वे ही प्रत्ययान्त शब्द रखे गये हैं जिनके मूल रूपमें प्रत्यय लगनेके कारण कोई विकार नहीं होता।
यदि कोई शब्द अपने स्थानपर अर्थात् क्रममें न मिले तो पाठकोंको एक बार यह देख लेना चाहिये कि वह समस्त पद तो नहीं है। ऐसा करनेसे उन्हें सम्भवतः निराश न होना पड़ेगा। उदाहरणके लिए अरघट्ट, कमजोर, दरकार, दरबार, दुविधा, नटसाल, नाहक, पसोपेश, सकर
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पाला, स्वतंत्र आदि शब्द क्रमशः अर, कम, दर, दर, दु, नट, ना, पस, सकर तथा स्वके साथ मिलेंगे।
एक बात और । समास-पद्धति द्वारा बनाये जा सकनेवाले शब्दोंकी संख्या अगण्य है, अतः थोड़ेसे अधिक प्रचलित शब्द ही कोशोंमें दिये जा सकते हैं। विशिष्ट कवियों अथवा लेखकों द्वारा प्रयुक्त कितने ही अनोखे और अटपटे सामासिक शब्दोंका छोड़ दिया जाना स्वाभाविक एवं अनिवार्य-सा है । उदाहरणके लिए एक सु-कविने रणभूमिके लिए 'समर-वसुमती, रणमेदिनी' जैसे शब्दोंका तथा मेघनादके लिए 'घनध्वनि, घननाद, जलदनाद, पयोद-निनाद' आदिका प्रयोग किया है । ऐसे स्थलोंपर अंगीभूत विभिन्न शब्दोंके आधारपर ही पाठकोंको सम्पूर्ण समस्त पदका अर्थ निकालनेकी चेष्टा करनी चाहिये ।
शब्दोंके मूल रूप हिन्दीमें संस्कृत शब्दों (संज्ञाओं) का प्रायः कर्ता कारकके एक वचनका रूप ही प्रयुक्त होता है किन्तु समस्त पदोंका ठीक-ठीक रूप समझनेके लिए मूल रूपकी जानकारी होना भी आवश्यक है, अतः 'बृहत हिन्दी कोश'की तरह इस कोशमें भी हमने संस्कृत शब्दोंके सामने कोष्ठकमें मूल रूप भी दे दिया है । समास बनाते समय पूर्व पदका अन्तिम 'न' लुप्त हो जाता है, इसीसे 'स्वामी' तथा 'मन्त्री' से स्वामिभक्ति, स्वामिसेवा, मंत्रिमंडल, मंत्रिपरिषद् आदि शब्द बनते हैं। कितने ही शब्दोंका कर्ता कारकका रूप अलग दिया है और समास बनानेके पूर्वका रूप, उचित क्रममें, उससे पृथक रखकर उसीके साथ समस्त पद दिये गये हैं। उदाहरणके लिए 'राजा (जन् )' तथा 'पिता (तृ)' शब्द यथास्थान देकर उनके अर्थ भी वहीं रख्ने गये हैं किन्तु उनसे बननेव ले सामासिक शब्द 'राज (न्)' तथा 'पित' के साथ दिखाये गये हैं, जिससे उन्हें पहचानने, समझनेमें कठिनाई न हो।
अरबी-फारसी शब्दोंके मूल रूप जहाँ आवश्यकता प्रतीति हुई, वहाँ ही दिये गये हैं, अन्यथा वे प्रायः उच्चारणके अनुसार रखे गये हैं, जैसे उमदा, हमेशा । व्रजभाषा, अवधी आदिके शब्दोंके विभिन्न रूप कवियोंने प्रयुक्त किये हैं, अतः हमें भी कोशमें उन्हें स्थान देना पड़ा है, यद्यपि अर्थ केवल मुख्य शब्द या अधिक प्रचलित रूपके साथ ही दिये गये हैं। उदाहरणके लिए घी, घिअ, घिउ, घिय, घिव, धरहरा, धराहर, धौरहा, धौलह , धौलाहर, धवरहर, धवराहर, आदि शब्द देखे जा सकते हैं।
व्याकरण-सम्बन्धी कठिनाई हिन्दीमें कितने ही शब्द ऐसे हैं जो देखनेमें तो विशेषण जैसे प्रतीत होते हैं किंतु बहुधा संज्ञाकी तरह भी प्रयुक्त होते हैं। ऐसे शब्द प्रायः कर्तृवाचक हुआ करते हैं, जैसे खेवैया, गवैया, जनैया, कर्ता, विधाता, प्रहारक, विचारक, मारक, अनुयायी, विरोधी, आदि अथवा पतंगबाज, गलेबाज, नशेबाज या मुफ्तखोर, जूताखोर, चुगुलखोर आदि । इनमेंसे जिनका प्रयोग बहुलांशमें संज्ञावत् होता है, उन्हें हमने संज्ञा तथा जिनका प्रयोग बहुधा विशेषणवत होता है उन्हें विशेषण माना है और कितने ही शब्दोंके साथ वि०, पु० दोनों ही दिया है। वस्तुतः स्थलविशेषमें प्रयोगके अनुसार ही इनका शब्दभेद समझना चाहिये।
दूसरी कठिनाई शब्दोंके लिंग-निर्धारणकी है। कुछ लेखक और विद्वान् एक शब्दको पुंलिंग मानते हैं, तो दूसरे उसका प्रयोग स्त्रीलिंगमें करते हैं। रहन-सहन, झंझट, वय, बर्फ, मैल, मिठास, चरागाह', नमाजगाह आदि ऐसे ही शब्द हैं । इस तरहके कितने ही शब्दोंको हमें
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उभयलिंग लिखना पड़ा है किंतु कुछको हमने, उनके अधिकतर प्रयोगके आधारपर, केवल पुंलिंग या स्त्रीलिंगका ही माना है। महिमा, लघिमा, गरिमा, अग्नि आदि शब्द संस्कृतमें पुंलिंग होते हुए भी हिंदीमें स्त्रीलिंगमें ही आते हैं और जय, विजय, आत्मा आदि भी अब अधिकतर लेखकों द्वारा स्त्रीलिंगमें ही प्रयुक्त होते हैं। हाँ, 'सामर्थ्य' अब भी प्रायः दोनों लिंगोंमें प्रयुक्त होता है, यद्यपि 'मामर्थ' केवल स्त्रीलिंगमें ही देख पड़ता है।
पारिभाषिक शब्द पारिभाषिक शब्दोंके निर्माणमें हमें प्रायः संस्कृतसे ही सहायता लेनी पड़ी है। इसका मुख्य कारण यह है कि हिन्दीके सिवा देशकी अन्यान्य भाषाओं-बंगला, मराठी, गुजराती, तेलगू आदिमें भी संस्कृतके शब्द प्रचुर संख्यामें पाये जाते हैं; अतः इसके आधारपर बनाये गये शब्द अन्य प्रदेशवालोंके लिए भी बोधगम्य एवं ग्राह्य हो सकते हैं । इसके सिवा धातुओंके पूर्व उपसर्ग लगाकर तथा तद्धित-प्रत्ययों द्वारा संस्कृतसे भिन्न-भिन्न अर्थोंका द्योतन करनेवाले अगणित शब्द आसानीसे गढ़े जा सकते हैं। फिर भी हमने इस बातका भरसक प्रयत्न किया है कि पारिभाषिक शब्द अधिक कठिन और दुरूह न हों। यों नये शब्दोंका प्रयोग आरम्भ करने में कुछ दिनोंतक थोड़ी-सी कठिनाई तथा अरुचि या अप्रवृत्ति जैसा अनुभव होता ही है किंतु राष्ट्रभाषाके विकास एवं देशहितकी दृष्टिसे इसका सामना करनेके लिए हमें समुद्यत रहना चाहिये।
हिन्दी इस समय संक्रमणकालकी स्थितिमें है, अतः पारिभाषिक शब्दोंके सम्बन्धमें एकरूपता और ऐकमत्यकी आशा करना व्यर्थ है, विशेषकर यह देखते हुए कि इस दिशामें कोई सुव्यवस्थित और सुसंघटित प्रयत्न नहीं हो रहा है। केन्द्रीय सरकार यदि चाहती तो यह काम अधिक तेजीसे और अधिक अच्छे ढंगसे हो सकता था पर उसकी कार्य-पद्धति एवं मन्थरगतिसे हमें निराश-सा होना पड़ रहा है। फिर भी काम तो कुछ हो ही रहा है और विभिन्न विषयोंकी जो नयी-नयी पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं, उनमें तथा समाचारपत्रोंके स्तम्भोंमें कितने ही पारिभाषिक शब्दोंका प्रयोग हो रहा है। इनकी संख्या भी क्रमशः बढ़ती जा रही है।
हमने इस कोशमें अंग्रेजी पारिभाषिक शब्दोंके जो पर्याय दिये हैं, उन्हें अंग्रेजी बिलकुल न जाननेवाले या कम जाननेवाले पाठक भी भली भाँति समझ सकें, इस दृष्टिसे शब्दके साथ ही सरल हिन्दीमें उसकी व्याख्या देने या आशय समझानेका भी प्रयत्न किया है। अंतके पृष्ठोंमें समस्त पारिभाषिक शब्दोंकी सूची भी पृथक रूपसे अंग्रेजी-हिंदीमें दे दी गयी है जिससे अंग्रेजी शब्दोंका पर्याय ढूँढ़नेमें विशेष सुविधा हो ।
विभिन्न कवियों या लेखकों द्वारा प्रयुक्त विशिष्ट शब्दोंका अर्थ और अधिक स्पष्ट करनेके उद्देश्यसे उनकी रचनाओंसे सैकड़ों उदाहरण भी, जहाँ आवश्यक प्रतीत हुआ, वहाँ दे दिये गये हैं।
इस प्रकार इस 'ज्ञान शब्द कोश'को हमने हिन्दीप्रेमियों और पाठकों के लिए अधिक अधिक उपयोगी बनानेका प्रयत्न किया है। यदि इससे उन्हें यथेष्ट सहायता मिल सकी तो इन पंक्तियोंके लेखकको और साथ ही प्रकाशकको भी इससे परम सन्तोष होगा।
निवेदक मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव
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संकेत-सूची
*-पद्यमें प्रयुक्त +-स्थानिक अ०-अव्यय [अ०]-अरबी अ.क्रि०-अकर्मक क्रिया (आ.)-आधुनिक (आयु), (आ००)-आयुर्वेद (इ.)-इत्यादि (उ०)-उदाहरण उप०-उपसर्ग कबीर-कबीर-ग्रंथावली क कौ०-कविताकौमुदी, प्र. भाग कविता०-कवितावली (का)-कानून (को०)-कौटिल्य (क)-कचित् गीता-गीतावली (ग्रा०)-ग्राम्य ग्राम-ग्रामगीत (ज)-जरमन (ज्या०)-ज्यामिति (ज्यो०)-ज्योतिष [तु]-तुर्की दीन-दीनदयाल ग्रंथावली दे०-देखिये (ना.)-नाटक (न्या०)-न्याय पग-पद्मावत [पा०]-पाली पु०-पुंलिंग (पु.)-पुराण प्र०-प्रत्यय (प्रा.)-प्राचीन [फा०]-फारसी []-फ्रेंच (बहु०), (बहुव०)-बहुवचन बि-बिहारी-रत्नाकर बुंदेल-बुंदेलखंडी (बो०), (बोल०)-बोल-चाल (बौद्ध)-बौद्धसाहित्य (भाग०)-भागवत भू-भूषण-ग्रंथावली भू० क्रि०-भूतकालिक क्रिया मति-मतिराम-ग्रंथावली
(मनु)-मनुस्मृति (मी०)-मीमांसा (मुसल)-मुसलमानों में प्रचलित [यू.]-यूनानी (योग)-योगशास्त्र (रघु)-रघुराजसिंह कृत रामस्वयंवर रतन-रतन-हजारा रत्ना-रत्नाकर-ग्रंथावली (रा०)-रामायण राम-रामचंद्रिका रामरसा-रामरसायन रामा०-रामायण, तुलसीकृत ललित०-ललित ललाम (ला)-लाक्षणिक [लै०]-लैटिन (लोक)-लोकप्रचलित (वा.)-वाक्य वि०-विशेषण विद्या-विद्यापति-पदावली विनय-विनयपत्रिका, तुलसीकृत वि० स्त्री-विशेषण स्त्रीलिंग (वे.)-वेदांत (वै०)-वैदिक (व्यं०)-व्यंग्य (व्या०)-व्याकरण [सं०]-संस्कृत स० क्रि०-सकर्मक क्रिया सत्यना०-सत्यनारायण कविरत्न सर्व-सर्वनाम (सांख्य.)-सांख्यशास्त्र (सा)-साहित्य साखी०-कबीर साखीसंग्रह सुंदर-सुंदरविलास सुजान०-सुजानचरित सुदामा०-सुदामाचरित सू-सूरदास (सूफी)-सूफीमत (स्त्रि०)-स्त्रियों की बोल-चाल स्त्री०-स्त्रीलिंग (स्मृति०)-स्मृतिग्रंथ हरि-हरिश्चंद्र, भारतेन्दु (हिं.)-हिंदीमें प्रयुक्त अर्थ [हिं०]-हिंदी भाषाका शब्द
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ज्ञान शब्द कोश
अ
अ - देवनागरी और संस्कृत- कुटुंबकी अन्य वर्णमालाओं का पहला अक्षर और स्वर वर्ण । इसका उच्चारणस्थान कंठ है | व्यंजन वर्णोंका उच्चारण इस अक्षरकी सहायता के बिना नहीं हो सकता, इसीलिए क, ख, आदि वर्ण 'अकार' के साथ बोले और लिखे जाते हैं । अंक - पु० [सं०] चिह्न; छाप; संख्याका चिह्न ( १, २, ३ आदि ); अदद; लिखावट; कलंक, दागः डिठौना; तप्त मुद्राका सांप्रदायिक चिह्न; भूषण; नाटकका एक खंड या सर्ग; रूपकका एक प्रकार; हुक जैसा टेढ़ा औजार; वक्र रेखा; गोद, क्रोड; बगल; पास; स्थान; देह;* दफा, बार; पाप; अपराध, पर्वत । - कार - पु० बाजी आदिका निर्णायक, खेलोंमें हार-जीतका फैसला करनेवाला; वह योद्धा जिसके हारने या जीतनेसे हार या जीत मान ली जाती थी। - गणित- पु० संख्याओंका हिसाब; संख्याओंको जोड़ने-घटाने, गुणा-भाग आदि करनेकी विद्या । - तंत्रपु० अंकशास्त्र, पाटीगणित या बीजगणित | धारणपु० देहपर सांप्रदायिक चिह्न (शंख, चक्र, त्रिशूल आदि ) छपवाना, छाप लगवाना। - धारी (रिन ) - वि० शंख, चक्र आदिके चिह्न धारण करनेवाला । - पत्र - yo (स्टांप ) निर्धारित मूल्यपर मिलनेवाला कागजका टुकड़ा जो लिफाफे, अर्जी आदिपर लगाया जाता है; स्टांप, टिकट । पत्रित - वि० (स्टांड ) ( वह लिफाफा, पत्र या न्यायिक आवेदन-पत्र ) जिसपर अंकपत्र ( स्टांप ) लगा हो । - परिवर्तन - पु० करवट बदलना; बच्चेका गोदमें इधर से उधर होना । - पलई - स्त्री० [हिं०] अंकोंको अक्षरोंके रूपमें काममें लानेकी विद्या । - पालि, - पालिका - स्त्री० गोद; आलिंगन; दाई । - पाली - स्त्री० परिचारिकाः वेदिका नामक एक गंधद्रव्य; आलिंगन । - माल - पु० आलिंगन, अँकवार । -मालिका - स्त्री० अंकमाल; छोटी माला । -मुख- पु० नाटकका आरंभिक भाग जिसमें बीज रूप में कथानक दिया रहता है । -विद्या- स्त्री० अंकगणित - शायिनी - वि० स्त्री० बगल में सोनेवाली । स्त्री० पली । मु०-देना - गले लगाना । - भरना, - लगाना- गले लगाना, लिपटाना । अंकक - पु० [सं०] हिसाब लिखनेवाला; चिह्न करनेवाला ।
कटा - पु० छोटा कंकड़, कंकड़का छोटा टुकड़ा ! अँकड़ी - स्त्री० टेढ़ी कँटिया; लग्गी; टेढ़ी गाँसी; लता । अंकन - पु० [सं०] चिह्न करना; लेखन; शरीरपर शंख, चक्र आदि छपवाना; गिनती करना; चिह्न बनानेका साधन ।
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अंकना - अ० क्रि० आँका जाना; लिखा जाना; अंकित होना । * स० क्रि० आँकना ।
अंकनी - स्त्री० [सं०] (पेंसिल ) एक प्रकारकी लेखनी जो लकड़ी या धातुके पोले लंबेसे टुकड़े में सीसे या विशेष प्रकारके मसालेको सलाई बैठाकर तैयार की जाती है । अंकनीय- वि० [सं०] अंकनके योग्य; मुद्रित करने योग्य । अंकम* - पु० अंक, गोद ।
अँकरा - पु० एक घास; अंकुर; कंकड़का टुकड़ा । अँकरोरी, अँकरोरी - स्त्री० कंकड़ी ।
अँकवाना - सु० क्रि० अंकित कराना; आँकनेके लिए प्रेरित करना, अँकाना |
अँकवार - स्त्री० गोद, अंक; आलिंगन । मु०-देना- गले लगाना । भरना - आलिंगन करना, गले लगाना; गोद में बच्चेका रहना ।
अँकवारना * - स० क्रि० आलिंगन करना, भेंटना । अँकवारी * - स्त्री० गोद |
अंकाई - स्त्री० आँकनेकी क्रिया या उजरत; कृत, अंदाजा । अंकाना - स० क्रि० अंदाजा लगवाना; जँचवाना; चिह्न
कराना; मूल्य ठहरवाना | अंकात्र- पु० आँकनेका काम, अंदाजा लगानेका काम । अंकित - वि० [सं०] चिह्नित; लिखित; गिना हुआ ।
- मूल्य - पु० ( फेस वैल्यू ) वह मूल्य जो किसी मुद्रा, ऋणपत्र आदिपर अंकित हो पर जो विशेष स्थितियों में या विशेष कारणोंसे घटता-बढ़ता रहे । अँकुड़ा - पु० लोहेका टेढ़ा काँटा; लोहेकी छड़ या कँटिया के बने 'कुछ औजार; कुलाबा; किवाड़की चूलमें ठोकनेका लोहेका पच्चड़; बुनकरोंका एक औजार; गाय-बैलका एक रोग ।
अँकुड़ी-स्त्री० ( अँकुड़ाका अल्पा० ) हुक; लोहारोंका एक और; हलका वह भाग जिसमें फाल लगता है; एक्केके पहियेके जोड़ोंपर लगायी जानेवाली कील । - दार - वि० जिसमें अँकुड़ी लगी हो; गड़ारीदार ( कशीदा ) | अंकुर - पु० [सं०] अँखुआ, डाभ; कली; रोमाँ; अँकुड़ा; संततिः जल; रुधिर; नोक; घावका भराव । अंकुरण - पु० ( जर्मिनेशन) अंकुर निकलनेकी क्रिया; किसी वस्तुकी उत्पत्ति होना, शुरू होना ।
अँकुरना, - राना - अ० क्रि० अँखुआ फूटना, अंकुर उगना । अंकुरित - वि० [सं०] अंकुरयुक्त; अँखुआया हुआ; प्रस्फुटित । - यौवना - स्त्री० वह स्त्री जिसमें यौवनके चिह्न प्रकट हो चुके हों ।
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अंकुश - अँगरेजी
अंकुश - पु० [सं०] लोहेका काँटा या एक तरहका भाला जिसे महावत हाथी के सिरपर कोंचकर उसे चलाता है; रोक, दबाव, नियंत्रण । -ग्रह-पु० महावत, पीलवान । अंकुस * - पु० दे० 'अंकुश' ।
अँकुसी - स्त्री० लोहेकी झुकायी हुई कील; हुक; लोहेकी टेढ़ी छड़ जिससे बाहर से अगड़ी या सिटकिनी खोली जाती है; फल तोड़नेकी लग्गीके सिरेपर बँधी छोटी लकड़ी; भट्ठीकी राख निकालनेका एक औजारः नारियलकी गिरी निकालनेका एक छोटा औजार ।
अंकेक्षित लेखा-पु० ( ऑडिटेड अकाउंट) वह लेखा या हिसाब जिसके आय-व्ययादिके आँकड़ोंकी जाँच लेखा परीक्षक द्वारा कर ली गयी हो ।
अँकोर* - पु० गोद, अँकवार; भेंट, नजर; घूस; कलेवा । अँकोरी* - स्त्री० गोद, आलिंगन । अंकोल - पु० [सं०] एक पहाड़ी पेड़ जिसकी छाल दवाके काम आती है । अंक्य - वि० [सं०] चिह्न करने योग्य; दागने योग्य ( अपराधी ) । पु० मृदंग, पखावज आदि । अँखड़ी * - स्त्री० आँख; चितवन । अँखमीचनी - स्त्री०, अँखमूद नो- पु० आँखमिचौनी ।
आँखाना * - अ० क्रि० अनखाना ।
अँखिया - स्त्री० नक्कासी करनेकी कलम; * आँख | अँखुआ - पु० अंकुर, कल्ला ।
अँखुआना - अ० कि० अँखुआ फेंकना ।
अंग - पु० [सं० ] देह; अवयव; भाग, विभाग; गौण या आश्रित वस्तु; वस्तु; प्रधान या अंगीका सहायक; उपायः साधन; मन; जन्मलग्न; (ला० ) ६की संख्या; सप्रत्यय शब्दका प्रत्ययरहित भाग, प्रकृति ( व्या० ); नाटककी पाँच संधियोंके अंतर्गत एक उपविभाग; अंगी या नायकके सहायक पात्र (ना० ); एक संबोधन; भागलपुर के आसपासका प्रदेश; [हिं०] ओर; कक्षः प्रकार | वि० संलग्न; अंगोंवाला; निकट; गौण; प्रतीक । - कर्म (नू ) - पु०, - क्रिया - स्त्री० शरीर में उबटन आदि मलना, देहसंस्कार । - ग्रह - पु० देहका जकड़ना; देहकी पीड़ा । - चालनपु० हाथ-पैर हिलाना ।च्छेद- पु० अंगको काटना; शरीर के अंग ( हाथ, पाँव, नाक, कान आदि ) कटवानेका दंड । -ज, जात वि० देहसे उत्पन्न । पु० बेटा; पसीना; रोम; काम; मदः सात्त्विक विकारोंमेंसे तीन — हाव, भाव और हेला (सा० ); रोग । जा-जाता - स्त्री० बेटी ।
- जाई * - स्त्री० दे० 'अंगजा' । - त्राण - पु० वर्म, वकतर; बस्त्र । - दान - पु० युद्ध में आत्मसमर्पण; ( स्त्रीका ) देहसमर्पण | -द्वार - पु० मुख आदि शरीरके छिद्र । - धारी (रिन् ) - पु० प्राणी; शरीरी । न्यास - पु० मंत्रोच्चार करते हुए एक-एक अंगको हाथसे स्पर्श करना। -पाकपु० अंगोंके पकनेका रोग । - पालि, - पाली - स्त्री० आलिंगन । - पालिका - स्त्री० धाय । - भंग-पु० किसी अंगका टूट जाना; अंगोंका ऐंठना; * अंगभंगी । वि० विकलांग । - भंगी - स्त्री० मोहक अंगसंचालन, अदा । - भू-पु० पुत्रः काम । वि० शरीरसे उत्पन्न । - मर्द - ० हड्डियों में दर्द होना; मालिश करनेवाला नौकर 1
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२
मर्दक, मर्दी (र्दिन) - पु० मालिश करनेवाला नौकर । - मर्दन - पु० मालिश । -मर्ष पु० गठिया रोग । - रक्षक - पु० राजा-महाराजा आदि बड़े आदमियोंकी रक्षापर नियुक्त जन, शरीर रक्षक दल (बॉडी गार्ड) । -रस- पु० पत्ती, फल आदिका कूटकर निचोड़ा हुआ रस । -राग- पु० सुगंधित लेप या उबटन; इनका लेपन । -राज-पु० अंग देशका राजा; कर्ण या लोमपाद । रुह - पु० बाल; ऊन । लेप-पु० दे० 'अंगराग' । - विकृति - स्त्री० देहमें कोई विकार होना; मिरगीकी बीमारी। -शुद्धि - स्त्री० स्नानादि द्वारा शरीरकी शुद्धि । - शैथिल्य - पु० शरीरका ढीलापन । - शोध- पु० सूखा या सुखंडी नामकी बीमारी । - संचालन - पु० हाथ-पाँव आदि हिलानेकी क्रिया । - संस्कार - पु० देहको सँवारना, सजाना, बनाव-सिंगार । - सिहरी - स्त्री० [हिं०] जड़ैया बुखार के पहलेकी कँप - कॅपी, जूड़ी - सेवक- पु० निजी सेवा टहल करनेवाला नौकर । - सौष्ठव - पु० अंगोंकी बनावटकी सुंदरता । -हीन- वि० अंगविशेष-रहित; विकलांग; पु० अनंग, कामदेव । मु० - टूटना - अँगड़ाई आना; ज्वरके पहले देह टूटना ( ? ) । - धरना - पहनना, धारण करना । (फूले ) - न समाना - अत्यंत प्रसन्न होना । - लगना - लिपटना; आहारका पचकर देहकी पुष्टि करना; परचना । - लगाना - लिपटानाः परचाना; विवाहमें देना ।
अंगच्छेद- पु० [सं०] (ऍप्यूटेशन) दे० 'अंग' के साथ | अँगजाई* स्त्री० दे० 'अंगजा' । अंगड़-खंगढ़-वि० टूटा-फूटा; बचा खुचा । पु० टूटा-फूटा
सामान ।
अँगड़ाई - स्त्री० जम्हाईके साथ अंगोंको तानना; देहका टूटना | मु०- तोड़ना - अँगड़ाई लेते समय किसीके कंधे पर हाथ रखकर अपनी देहका भार देना ( जो आम _तौरपर मनहूस समझा जाता है ); कुछ काम न करना । अँगड़ाना - अ० क्रि० अँगड़ाई लेना । अंगण - पु० [सं० ] दे० 'अंगन' |
अंगद - पु० [सं० ] बाजूबंद, विजायठ; बालिका बेटा; लक्ष्मणका एक पुत्र; दुर्योधनके पक्षका एक योद्धा । अंगन - पु० [सं०] टहलनेका स्थान; आँगन, चौक; टहलना; यान, सवारी ।
अंगना - स्त्री० [सं०] सुंदर अंगोंवाली स्त्री; स्त्री । - प्रिय - पु० अशोक वृक्ष । अँगना * - पु० दे० 'आँगन' ।
अँगनाई - स्त्री० भीतर या जनानखानेका आँगन । अँगरखा -पु० एक लंबा बंददार मर्दाना पहनावा, अंगा,
चपकन ।
अँगरा - पु० अंगार; बैलों के पैर में दर्द होनेका एक रोग । अँगराना * - अ० क्रि० 'अँगड़ाना' ।
अँगरी * - स्त्री० जिरह, बख्तर; गोहके चमड़ेका दस्ताना । अँगरेज - पु० इंगलैंड देशका रहनेवाला ( इंगलिशमैन) । अँगरेजियत - स्त्री० अँगरेजपन; अँगरेजी चाल-ढाल अँगरेजी - वि० अँगरेज-संबंधी; अँगरेजका । स्त्री० अँगरेजों -
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अंगलेट-भंघ्रि की भाषा।
अंगुलांक-पु० (फिगरप्रिंट) उँगली या उँगलियोंका अंगलेट-पु० शरीरका गठन या ढाँचा।
निशान । अगवना-स० क्रि० अंगीकार करना; महना; अपने सिर अंगुलि-ली-स्त्री० [सं०] उँगली; हाथीकी सूंड़का अग्रपर लेना।
भाग। -नाण-पु० गोहके चमड़ेका दस्ताना जो बाण अंगांगीभाव-पु० [सं०] अंग और अंगीका संबंध चलाने में उँगलियोंको रगड़से बचानेके लिए पहना जाता परस्पर अंग और देह, गौण और मुख्य, उपकारक और
था। -निर्देश-पु० किसीकी ओर उँगली उठाना; उपकार्यका संबंध।
निंदा, बदनामी करना। -पर्व-पु० उँगलीकी पोर अंगा-पु० अँगरखा।
या गाँठ। -मुद्रा,-मुद्रिका-स्त्री० नाम खुदी हुई अंगाकड़ी-स्त्री० बाटी, लिट्टी (जो अंगारोंपर सेंककर | या मुहरका काम देनेवाली अंगूठी। -वेष्टक,-वेष्ठनबनायी जाती है)।
पु० दस्ताना । अंगाधिप, अंगाधीश-पु० [सं०] लग्नका स्वामी ग्रहा। अँगुली-सी० दे० 'अंगुलि' । राजा कर्ण।
अंगुलीक, अंगुलीय,-क-पु० [सं०] अँगूठी । अंगार-पु० [सं०] अंगारा, दहकता हुआ कोयला या| अंगुल्यादेश-पु० [सं०] उँगलीके द्वारा किया हुआ संकेत । काठखंड कोयला । -धानिका,-धानी-पात्री-शकटी | अंगुश्त-पु० [फा०] उंगली। -नुमाई-स्त्री० अंगुश्तस्त्री० अँगीठी। -मणि-पु० मूंगा । -वल्लरी, वल्ली- नुमा होना, वदनामी, लांछन । स्त्री० करंज, बुधचीकी बेल ।
अंगुश्तरी-स्त्री० [फा०] अँगूठी । अंगारक-पु० [सं०] अंगारा; मंगल ग्रह; (कार्बन) एक | अंगुश्ताना-पु० [फा०] लोहे या पीतलकी टोपी जो
अधात्वीय मूल तत्व जो कितने ही पदार्थों में पाया जाता | मिलाईमें उँगलीके बचावके लिए उसपर पहन ली जाती है । कोयला इसीका उदाहरण है।-मणि-पु० मगा। । है; तीरंदाजीके वक्त उँगलीपर पहननेके लिए सींग या अंगारकाम्ल-पु० [सं०] कार्बन और आक्सीजनके मेल | हट्छीकी बनी हुई अँगूठी । से बननेवाला एक अम्ल ।।
अंगुष्ट-पु० [सं०] अँगूठा । अं(अ)गारा-पु० दहकता हुआ कोयला, कंटा आदि अगुसी-स्त्री० हलका फाल; सुनारोंकी वह नली जिससे अग्निखंड । वि० अँगारे जैसा लाल । म०-बनना,-हो। चिरागको फूककर टॉका जोड़ते हैं। जाना, होना-गुस्सेसे, क्रोधमें लाल हो जाना। --() अंगूठा-पु० हाथ या पैरकी पहली और सबसे मोटी उगलना-जली कटी सुनाना। -फाँकना-ऐसा काम उँगली । मु०-चूमना-खुशामद करना; सम्मान या करना जिसका फल बहुत बुरा हो। -बरसना-आग
अति विनय प्रकट करना। -दिखाना-किसीको तुच्छ वरसना, सख्त गरमी पड़ना; दैव कोप होन।। -(रों) समझनेका भाव दिखाते हुए, नाहीं करना। पर पैर रखना-जान बूझकर अपनेको खतरेमें डालना, अंगठी-स्त्री० उँगली में पहननेका एक गहना, मुंदरी। इतराना । -पर लोटना-क्रोध या ईर्ष्यासे जलनाः तड- | अंगर-पु० [फा०] एक प्रसिद्ध फल जो पकनेपर बहुत पना, विकल होना ।-पर लोटाना-जलाना; तड़पाना। मीठा होता है, द्राक्षा, दाख। [हिं०] भरते हुए घावमें अँगारी-स्त्री० गँडासेसे काटे हुए. ईखके छोटे-छोटे टुकड़ेः |
मांसके लाल दाने !* अँखुआ, अंकुर ।। ईखके मिरेपरकी पत्ती।
अंगरी-वि० [फा०] अंगूरका बना ('अंगूरी' शराब ); अंगिका-स्त्री० [सं०] अगिया, कंचुकी ।
अंगूरके रंगका। पु० हलका हरा रंग जो अंगरक रंगसे अंगिया-स्त्री० चोली, कंचकी दे० 'अघिया।
मिलता है। अंगी (गिन् )-वि० [सं०] देहयुक्त; अवयव विशिष्ट अंगेजना-स० क्रि० सहना; अंगीकार करना । प्रधान; अंशी। पु० प्रधान पात्र या नायक; प्रधान रस अगेरना -स० क्रि० द०
अँगेरना*-सक्रि० दे० 'अँगेजना' । (ना०)।
अँगांछना-स० क्रि० गीले गमछेसे बदन पोंछना या अंगीकरण-पु० [सं०] स्वीकार या ग्रहण करनेकी क्रिया; रगड़ना । वादा करना; राजी होना ।
अंगोछा-पु० देह पोंछनेका कपड़ा, गमछा। अंगीकार-पु० [सं०] स्वीकार ग्रहण, ऊपर लेना, उठाना अँगोछी-स्त्री० छोटा गमछा; छोटी धोती। ( काम, जिम्मेदारी आदि)।
अँगोजना*-स० कि० दे० 'अंगेजना'। अंगीकृत-वि० [सं०] अंगीकार किया हुआ।
अंगौंगा-पु० अनाज या अन्य किसी वस्तुका वह भाग अगाठा-स्त्री० आग रखनेका बरतन, आतिशदान, बोरसी। जो उपयोगमें आनेके पहले धर्मार्थ निकाल दिया जाय; अंगीय-वि० [सं०] अंग देश संबंधी; शरीर संबंधी।
पुरोहितको देने या देवताको चढ़ानेके लिए राशिसे अँगुठा*-पु० दे० 'अँगूठा'।
निकाला गया अन्न, अँगऊँ।। अगुठी-स्त्री० पैरके अँगूठेका एक गहना।
अँगौरिया-पु० मजदूरीके बदले हल-बैल लेकर खेती करने अंगुरि-री-स्त्री० [सं०] हाथ या पैरकी उँगली। काला हलवाहा। अँगुरिया*-स्त्री० दे० 'अँगुरी'।
अंग्रेज-पु० दे० 'अँगरेज'। अंगुरीय,-क-पु० [सं०] उँगलीका एक गहना, अंगूठी। अधिया-स्त्री० झीने कपड़ेसे मढ़ी छलनी। अंगुल-पु० [सं०] उँगली; एक नाप, उँगलीकी चौटाई। अध्रि-पु० [सं०] पाँव, चरण; पेड़की जड़ छंदका चरण ।
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दाता
अँचरा-अंतः -प-पु० वृक्ष (जड़से पान करनेवाला)।
खेलनेकी कौड़ी। अचरा -पु० दे० 'आँचल' ।
अटिया-स्त्री० धाम, पतली लकड़ियों, दातुनों आदिका अंचल-पु० [सं०] वस्त्रका छोर; साड़ी, ओढ़नी आदिका | मुट्टा, गठिया; पूला। वह छोर जो छाती और पेटपर रहता है, आँचल; छोर; अँटियाना-स० कि. उँगलियों के बीच में छिपा लेना; गायब देशका प्रांत-भाग; कोना; तट, किनारा।।
करना; अँटिया बनाना; तागेकी पिंडी बनाना । अँचवना-सक्रि० दे० 'अचवना' ।
अंटी-स्त्री० दो उँगलियोंके बीचकी जगह, घाई; धोतीकी भंछर-पु० एक मुखरोग। + अक्षर मंत्र, टोना । मु०- कमरके ऊपरकी लपेट; गाँठ; टेंट पहलवानीका मारना-जादू-टोना करना।
एक दाव; अटेरन; अट्टी; सूत या रेशमकी लच्छी; बिगाड़; अंज-पु० कंज, कमल।
छोटी बाली। -बाज-वि० दगाबाज, फरेबी। मु०अंजन-पु० [सं०] काजल; सिद्धांजन; सुरमाः स्याही; करना-माल उड़ा लेना; मूत लपेटकर अंटी बनाना । माया (निरंजन); रात्रि। -केश-पु० दीपक । वि० -देना-गरदनी देना। -पर चढ़ना-धोखा खा जाना। जिसके बाल बहुत काले हों। -गिरि-पु. नीलगिरि । -मारना-दूसरेकी चीज धीरेसे उड़ा लेना; कम तौलना । -नामिका-स्त्री० आँखका एक रोग, बिलनी। डाँडी मारना। -शलाका-स्त्री० आँजन या सुरमा लगानेकी सलाई। अॅटौतल-पु० कोल्हू में जुते हुए बैलकी आँखोंपर लगाये -सार-वि० अंजनयुक्त। -हारी-स्त्री० [हिं०] बिलनी | जानेवाले ढक्कन । भुंगी कोड़ा।
अंठी-स्त्री० गुठली; गिलटी; गाँठ; गिरह अँठली। अंजना-स्त्री० [सं०] हनूमान्की माता; बिलनी; व्यंजना अंड-पु० [सं०] अंडा; अंडकोश, फोता; ब्रह्मांडः वीर्य; वृत्ति ।
मृगनाभिः नाफा; शिव 1-कटाह-पु० ब्रह्मांड ।-कोश अंजना*-स० क्रि० दे० 'आँजना'।
-पु० फोता, खुसिया; ब्रह्माण्ड । -ज-वि० अंडेसे अंजनी-स्त्री० [सं०] हनूमानकी माता; चंदन, कुंकुम । उत्पन्न; पु० अंडेसे उत्पन्न होनेवाले प्राणो ( पक्षी,
आदिसे अनुलिप्त स्त्री; बिलनी; माया। -नंदन-पु० साँप, मछली इ०)। -जा-स्त्री० कस्तूरी। -धर-पु० हनूमान् ।
शिव । -वर्धन-पु०, -वृद्धि-ली० फोता बढ़नेकी अंजर-पंजर-पु० शरीरका जोड, ठठरी हडी-पसली। बीमारी। -स-वि० अंडेसे उत्पन्न होनेवाला। अ० अगल-बगल । म०-ढीले हो जाना-जोड-जोड | अंडजेश्वर-पु० [सं०] गरुड़। हिल जाना, सब अंगीका शिथिल हो जाना।
अंडबंड-पु० बे-सिर-पैर की बात । वि० बे-सिर-पैरका: अंजरि*-स्त्री० दे० 'अंजलि'।
ऊंटपटाँग, श्रृंखलाहीन। अंजलि-स्त्री० [सं०] करसंपुट, अंजलिभर वस्तु; अभि- अंडसा-स्त्री० अड़चन, कठिनाई । वादनका संकेत । -कर्म (न)-पु० आदरपूर्वक नम- अंडा-पु० वह गोल पिंड या खोल जिसमेंसे साँप, मछली, स्कार करना । -पुट-पु० दोनों हथेलियोंको मिलानेसे | चिड़िया आदिका बच्चा निकलता है; *देह, पिंड । बननेवाला गढ़ा। -बद्ध-वि० करबद्ध ।
अंडाकार,-कृति-वि० [सं०] अंडेकी आकृतिवाला। अजवाना,-अंजाना-म० क्रि० (प्रे०) अंजन लगवाना। अंडी-स्त्री० रेंड या परंडका पेड़ या बीज; एक रेशमी अंजाम-पु० [फा०] अंत, समाप्ति पूति; फल, नतीजा। कपड़ा। अंजित-वि० [सं०] अंजन-युक्त।
अंडुआ-वि० जो बधिया न किया गया हो। पु० ऐसा अंजीर-पु० [फा०] गूलरकी जातिका एक फल या पशु । -बैल-पु० आँड बैल, साँड़, बड़े अंडकोशवाला उसका पेड़।
या सुस्त आदमी। अंजमन-पु० [फा०] सभा, समिति, मजलिस, महफिल। अंडुआना-स० क्रि० बधिया करना । अँजुरी, अंजुलि,-ली-स्त्री० दे० 'अंजलि'।
अंडैल-वि० (स्त्री०) जिसके पेट में अंडे हों। अंजोर(रा)*-पु० उजाला, प्रकाश ।
अंतः-अ० [सं०] दे० 'अंतर'। -कथा-स्त्री० किसी अंजोरना*-स० क्रि० हरण करना; समेट लेना; (दिया)
प्रसंगमें संकेतित अन्य कथा, घटना या बात । -करणबालना।
पु० भीतरी इंद्रिय; शान, सुख-दुःखके अनुभवका साधन, अंजोरी*-स्त्री० उजाला, चाँदनी । वि० (स्त्री०) उजियाली।
मन मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार इन चार वृत्तियोंका अंझा-पु० अनध्याय, छुट्टी, नागा लोप ।
योग। -कलह-पु. आपसी लड़ाई, गृहयुद्ध ।अँटना-अ० क्रि० समाना ठीक आना,ठीक नापका होना कुटिल-वि० भीतरका कुटिल, छली। -कोण-पु० (कपड़ा,जूता इ०); काफी होना पूरा पड़ना; खप जाना। भीतरका कोण, 'इंटीरियर ऐंगेल'। -क्रिया-स्त्री० अंटसंट-वि०, पु० दे० 'अंडबंड' ।
भीतरी व्यापार; मनको शुद्ध करनेवाला कर्म । -क्षिप्तभंटा-पु० बड़ी गोली; बड़ी कौड़ी; सूत या रेशमका लच्छा; वि० (इन्जेक्टेड) जो सूई द्वारा भीतर प्रविष्ट कराया गया बिलियर्डका खेल। -घर-पु.बिलियर्ड खेलनेका कमरा। हो। -क्षेप,-क्षेपण-पु० (इन्जेक्शन) सूई द्वारा भीतर भंटाचित-वि० पूरी तरह चित; स्तब्ध; नशेमें चर, प्रवेश करानेका कार्य । -पट-पु० दूल्हे और दुलहिनके बेसुध; बर्बाद, बेकार (ला०)।
बीच खड़ा किया जानेवाला कपड़ेका परदा; अतरौटा। गबंधू-पु० सब कुछ हार जानेपरदाँवपर रखी जानेवाली -पटी-स्त्री०वह चित्रपट जिसपर पर्वत,नदी आदिका दृश्य
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भंत-मंतर अंकित हो।-पाल-पु० अंतःपुरका रक्षक। -पुर-पु० -राष्ट्रीय-वि० दे० 'अन्ताराष्ट्रिय राजप्रासाद, जनानखाना, हरम ।-पुरिक-पु० अंतःपुर- अंतरग्नि-पु० [सं०] जठराग्नि । का रक्षक, कंचुकी।-पुरिका-स्त्री० अंतःपुरमें रहनेवाली अंतरण-पु० [सं०] अंतरित करना; व्यवधान डालना; एक स्त्री-प्रेरणा-स्त्री० सहज प्रेरणा ।-शरीर-पु० सूक्ष्म व्यक्तिके हाथसे या एक स्थानसे, दूसरे व्यक्तिके हाथमें या शरीर । -शल्य-वि० भीतर सालनेवाला, गाँसीकी तरह दूसरे स्थानमें जाना। चुभनेवाला । -शुद्धि-स्त्री० चित्तशुद्धि । -संज्ञ-वि० | अंतरराष्ट्रीय-वि० दे० 'अंताराष्ट्रिय' । अपने सुख-दुःखादिके अनुभवों को प्रकट न कर सकने. अंतरवाचन-पु० [सं०] (सिलेक्शन) कई वस्तुओं मेंसे अपनी वाला (वृक्ष आदि)। -सलिला- स्त्री० दे० 'अंतस्स रुचिके अनुसार पसंद करना; विभिन्न अभ्यर्थियों में से लिला'। -स्थ-वि० भीतर या बीचमें स्थित । पु० स्पर्श योग्यता आदिके अनुसार कुछ लोगोंका चुनाव करना ।
और ऊष्म वर्गों के बीचमें पड़नेवाले य, र, ल, व ये चार (निर्वाचन% इलेक्शन)। वर्ण।
अंतरस्थापन-पु० [सं०] (इंटरपोज) अपने आपको बीचमें अंता-पु० [सं०] समाप्ति आखिरनाश; मृत्यु; अंतकाल; डालने, स्थापित करनेकी क्रिया। सीमा, छोर, अंतिम भागासामीप्य पड़ोस; परिणाम; निब- अंतरा-अ० [सं०] भीतर; बीचमें; निकट । पु० स्थायी टारा निश्चय: भीतरका हिस्सा भेद थाह; अंतःकरण *अ० या टेकको छोड़कर गीतके और सब चरण । अंतमें; अन्यत्र । पु० आँत । -कर-करण,-कर्ता,- भतरा-पु. कोना; नागा, रुकावट; एक दिनके अंतरसे कारक-कारी (रिन)-वि० नाश करनेवाला, संहारक। आनेवाला ज्वर । वि० एक छोड़कर दूसरा; जो एक -कर्म (न्)-पु० मृत्युः नाश । -काल-पु० मृत्यु- दिनके अंतरसे हो या आये (अंतरा बुखार; अंतरे दिन)। काल, आखिरी वक्त । -कृत्-वि० अंत करनेवाला । पु० अंतरागम-पु. (इन्फ्लेक्स) जलराशि या जन-समूहका मृत्युः यमराज। -क्रिया-स्त्री० अंत्येष्टि, मृतक-क्रिया। भीतर आना। -घाई*-वि० अन्तघाती, दगाबाज, धोखा देनेवाला। अंतरात्मा(त्मन)-स्त्री० [सं०] आत्मा; अंतःकरण । -च्छद-पु० भीतरका परदा, भीतरका आच्छादन । अतराना-स० क्रि० ' भीतर करना, छिपाना; अलग -ज-वि० सबसे पीछे उत्पन्न होनेवाला । -ता-अ० करना। अंतमें कमसे कम; अंशतः भीतर । -पाल-पु० सीमा- अंतराय-पु० [सं०] विन; अड़चन ओट । रक्षक द्वारपाल । -वेला-स्त्री० दे० 'अन्तकाल'। अंतराल-पु० [सं०] मध्यवर्ती स्थान या काल; बीच, -शय्या-स्त्री० भूमिशय्या; चिता; मृत्यु; अरथी। भीतरका भाग। -दिशा-स्त्री०विदिशा। -राज्यअंतक-वि० [सं०] नाश करनेवाला । पु० मृत्यु; काल; पु० (बफर स्टेट) दो देशोंकी सीमाओंके बीच में पड़नेवाला यमराज; ईश्वर ।
वह स्वतंत्र राज्य जिसके कारण उन दोनोंमें प्रत्यक्ष भंतड़ी-स्त्री० आँत ।
संघर्षकी नौबत नही आने पाती। अंततोगत्वा-अ० [सं०] निदान, आखिरकार, अंतमें। अंतरिद्रिय-स्त्री० [सं०] मन, बुद्धि आदि भीतरकी अंतरंकित-वि० (इन्सक्राइब्ड) (वह वृत्तादि जिसके भीतर इंद्रियाँ। कोई आकृति (त्रिकोणादि) बनायी या अंकित की गयी अंतरिका-स्त्री० [सं०] दो मकानों के बीचकी गली। हो, जिसके भीतर या जिसके ऊपर कोई ख, मूर्ति आदि अंतरिक्ष-पु० [सं०] पृथ्वी और स्वर्ग लोकके बीचका अंकित की गयी हो।
स्थान, आकाश। वि० अदृश्य।-चर,-चारी (रिन)अंतरंग-वि० [सं०] भीतरी; अतिप्रिय या घनिष्ट, दिली पु० पक्षी । वि० आकाशमें चलनेवाला। (दोस्त)। पु० सबसे भीतरके अंग (हृदय, मस्तिष्क); -विज्ञान-पु० (मीटिअरॉलॉजी) अंतरिक्षकी स्थिति, अंतरिंद्रिय । -सचिव-पु०. (प्राइवेट सेक्रेटरी) राष्ट्रपति, | विशेषकर मौसिम, का विवेचन करनेवाला विज्ञान । राज्यपाल, प्रधान मंत्री, आदिका वह सचिव जो उनके अंतरिख,-रिच्छ*-पु० दे० 'अंतरिक्ष। निजी या घरेलू मामलोंकी देखरेख करता है। -सभा- अंतरित-वि० [सं०] भीतर आया था किया हुआ छिपा स्त्री० किसी सभाकी कार्यकारिणी समिति ।
हुआ; बीचमें आया हुआ; ढका हुआ नष्टः अबश्य अंतर-वि० [सं०] पु० भीतरका भाग; आशयः छिद्रः पृथक् किया हुआ; तुच्छ समझा हुआ। आत्मा; मन हृदयः परमात्मा; बीच, अवकाश स्थान; अंतरिम-वि० दो समयोंके बीचका, मध्यवती (इंटेरिम)। प्रवेश; पहुँच, अवधि काल; अवसर; फर्क; शेष (गणित); अतरिया-पु० एक दिनके अंतरसे आनेवाला ज्वर । फासला, दूरी; विशेषता; निर्बलता; दोष, त्रुटि; निश्चया अंतरीप-पु० [सं०] भूमिका नुकीला भाग जो समुद्र में लिहाजा प्रयोजन; गोपन; ओट; अभाव; वस्त्र प्रतिनिधि ।। दूरतक चला गया हो, रास । अ० दूर; भीतर । -ज्ञ-वि० हृदयकी बात जाननेवाला। अंतरीय-पु० [सं०] अधोवस्त्र, नीचे पहननेका कपड़ा, -तम-वि० आत्मीय; अति समीपी । पु० सबसे भीतरका धोती; अंतरौटा । वि० भीतरका। भाग, दिलकी गहराई । -दिशा-स्त्री० दो दिशाओंके अंतरौटा-पु० बारीक साड़ीके नीचे पहननेका कपड़ा, बीचकी दिशा, विदिशा । -पट-पु० परदा; दुराव अस्तर, साया। विवाहके समय वर और कन्याके बीच डाला जानेवाला अंतर-अ० [सं०] भीतर; बीच में । ( उपसर्गके रूपमें परदा कपड़मिट्टी, मिट्टीके साथ लपेटा जानेवाला कपड़ा। व्यवहृत होनेपर संधिके नियमोंके अनुसार कुछ शब्दोंके
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अंतर्जामी-अंत्याक्षरी पूर्व इसका रूप 'अंतः' और कुछके पूर्व 'अंतस्' हो जाता। दे० 'अंतरं कित'। -लीन-वि० भीतर छिपा हुआ; ड्रबा है। -गंगा-स्त्री० गुप्त या छिपी हुई गंमा। -गत- हुआ ध्यानमग्न ।-वस्तु-स्त्री० (कंटेंट्स) किसी बरतन, वि० भीतर समाया हुआ; शामिल; गुप्त । -गत वृत्त, प्रलेख, पुस्तक आदिके भीतर जो कुछ हो, भीतरकी -वृत्त-पु० (इन-सरकिल) किसी ऋजु-भुज क्षेत्रकी सामग्री आदि । -वर्ती (तिन्)-वि० भीतर रहनेसब भुजाएँ जिसका स्पर्श करती हों, वह वृत्त । -गति- वाला । -वाणिज्य-पु० (इटरनल ट्रेड ) देशके भीतरी स्त्री० भावना, मनकी वृत्ति । -गृह,-गेह-पु० मकान- भागोमें होनेवाला वाणिज्य, आभ्यंतर व्यापार । का भीतरी खंड। -गृही-स्त्री० तीर्थस्थानके भीतर -वासित करना-स० क्रि० (टु इण्टर्न) क्षेत्रविशेषकी पड़नेवाले स्थानोंकी यात्रा। -प्रस्त-वि० (इनवावड) सीमाके भीतर रहनेको बाध्य करना, स्थानबद्ध करना। जो किसी विपत्ति, अपराध या कठिनाई आदिमें लिप्त -वासी रोगी-पु० (इन-डोर पेशंट) दे० 'प्रविष्ट रोगी' । या ग्रस्त हो गया हो। -जातीय-वि० दो या कई -विरोध-पु० भीतरी विरोध, आपसी वैमनस्य । जातियों के बीचका ( अंतर्जातीय विवाह या भोज इ०)। -वेग-पु० आंतरिक अशान्ति, चिन्ता; भीतर रहने-जानु-वि० हाथोंको घुटनोंके बीचरखे हुए। -ज्ञान- वाला ज्वर ।-वेद-पु० दे० 'अंत- वेंदि'। -वेदनापु० अंतःकरणमें अपने आप उपजनेवाला ज्ञान, अंतर्बोध ।। स्त्री० हृदयकी वेदना । -वेदि,-दी-स्त्री० गंगा और -ज्योति(स)-स्त्री० भीतरका प्रकाश । वि० जिसकी यमुनाके बीचका देश, ब्रह्मावर्त। -व्याधि-स्त्री. आत्मा प्रकाशमान हो ।-ज्वाला-स्त्री० भीतरकी आग; भीतरका रोग।-व्रण-पु० भीतरका फोड़ा। -हासचिंता, संताप । -दशा-स्त्री० महादशाके अंतर्गत प्रत्येक पु० खुलकर न हँसी जानेवाली हँसी। -हित-पु० ग्रहका भोगकाल या आधिपत्यकाल (ज्यो०)। अदृश्य, गायब ।-हृदय-पु० हृदयका भीतरी भाग । -दशाह-पु० मृत्युके उपरांत दस दिनों के भीतर होने- अंतर्जामी-वि० दे० 'अंतर्यामी'। वाले कृत्य । -दृष्टि-स्त्री० भीतरकी आँखः ज्ञानचक्षु अंतश्छद-पु० [सं०] भीतरका आवरण । अंतर्मुखी दृष्टि । -देशीय-वि० (इनलैंड) देशके भीतर अंतस्-पु० [सं०] हृदय, अंतःकरण । -तल-पु० हृदय । होने या उसके भीतरी हिस्सेसे संबंध रखनेवाला । -ताप-पु० भीतरी वेदना, मनस्ताप । -सलिल-०जलपथ-पु० (इनलेंड वाटरवेज़) देशके भीतरके जल- वि० जिसकी धारा भीतर ही भीतर, जमीनके अंदर ही मार्ग। -वाणिज्य-पु० दे० 'अंतर्वाणिज्य' ।:-दान- अंदर बहती हो। -सलिला-स्त्री० सरस्वती या फल्गु पु० लोप, तिरोधान; (हि०) विलुप्त, अदृश्य । -द्वार- नदी। -सार-वि० भीतरसे ठोस, पोढ़ा; बलवान् । पु० भीतरी या गुप्त दरवाजा। -धान-पु० अदृश्य, पु० भीतरी सार, तत्त्व, ठोसपन; मन, बुद्धि, अहंअलोप हो जाना। -ध्वंस-पु० (सैबटेज) असंतुष्ट कारका योग (सां०); अंतरात्मा । कर्मियों द्वारा कल-कारखानों, रेलपथों, पुलों आदिका अंतहपुर*-पु० दे० 'अंतःपुर'। जान-बूझकर किया गया विनाश, तोड़-फोड़। -नाद- | अंताराष्टिय,-राष्ट्रीय-वि० [सं०] दो या अधिक राष्ट्रोंके पु० अंतरात्माकी आवाज या आदेश। -निविष्ट-वि० बीचका, उनसे संबद्ध या उनमें प्रचलित (विधान आदि)। भीतर गया या समाया हुआ। -निहित-वि० भीतर अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष-पु० (इंटरनेशनल मनेटरी फंड) स्थित, अंतरमें स्थित । -बोध-पु० अंतर्ज्ञान, सहज संयुक्त राष्ट्रसंघकी देखरेख में स्थापित निधि जिसका कार्य ज्ञान, आत्मबोध । -भाव-पु० अंतर्गत होना; अभाव; सदस्य देशोंकी मुद्राओंके विनिमय-मूल्य स्थिर बनाये तिरोभाव; भीतरका, मनका, भाव; (इनक्लूजन) शामिल रखने में सहायता देना तथा विदेशी मुद्राओंकी कमी या समाविष्ट होना, किसी वस्तुका किसी दूसरीके भीतर पड़ जानेपर प्राप्यांशसे अधिक मुद्राएँ निकालने की सुविधा आ जाना। -भावना-स्त्री० मन ही मन किया जाने- प्रदान करना है। वाला चिंतन, अंतस्थ भावना। -भुक्त-वि० भीतर | अंतावरी-स्त्री० अंतंड़ी। आया या मिलाया हुआ। -भूत-वि० भीतर सभाया अंतावसायी (यिन)-पु० [सं०] चांटाल; नाई; नीच हुआ, अंतर्गत । पु० जीवात्मा; प्राण। -भूमि-स्त्री० | जातिका व्यक्ति । भूगर्भ। -भीम-वि० जमीनके अंदरका, भूगर्भस्थ । अंतिम-वि० [सं०] सबसे पीछेका, आखिरी, चरम । -मना (नस्)-वि० बाहरी दुनियासे उदासीन अंतिमत्थम-पु० (अल्टिमेटम् ) अंतिम चेतावनी, अंतिम रहकर अपने विचारोंमें ही डूबा रहनेवाला, समाहित- बार यह कह देना कि इस अवधिके बाद हम न रुकेंगे, चित्त; उदास; घबड़ाया हुआ। -मल-पु० भीतरका अवधिके भीतर यह बात न की गयी तो भयानक परि. मल; चित्तविकार । -मुख-वि० भीतरकी ओर मुख- | णाम होगा। वाला; भीतरकी ओर जानेवाला । -मृत-वि० अंतेउर,-वर*-पु० दे० 'अतःपुर'। भृतजन्मा, गर्भमें ही मर जानेवाला (शिशु)। -याग- अंतेवासी (सिन्)-पु० [सं०] गुरुके पास रहनेवाला पु० मानसयज्ञ या पूजन । -यामी (मिन)-वि: शिष्य चांडाल । वि० पास या साथ रहनेवाला । दिलकी बात जाननेवाला । पु० अंतःकरणमें स्थित जीवकी अंत्य-वि० [सं०] अंतका, आखिरी; सबसे नीचे या प्रेरणा करनेवाला ईश्वर, आत्मा । -राष्ट्रीय-दे० पीछेका बादका। -ज-पु०-जा-स्त्री० शुद्रः अछूत । 'अंताराष्ट्रिय'। -लापिका-स्त्री. वह पहेली जिसका। अंत्याक्षर-पु० [सं०] शब्द या पदका अंतिम अक्षर । . उत्तर उसीके अक्षरोंसे निकलता हो। -लिखित-वि० अंत्याक्षरी-स्त्री० [सं०] पद्यपाठकी वह प्रतियोगिता जिसमें
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अंत्यानुप्रास-अंधेरी पहले पढ़े हुए पद्यके अंतिम अक्षरसे आरंभ होनेवाला अंधड़-पु० आँधी, तूफान । पद्य पढ़ना होता है।
अंधधुंध-पु० अंधेरा, अंधेर, दुराचार । अंत्यानुप्रास-पु० [सं०] पद्यके चरणोंके अन्तिमाक्षरोका अंधर*-पु० दे० 'अंधड़', अंधकार । मेल, तुक, काफिया।
अधरा*-पु० अंधा मनुष्य । वि० अंधा । अंत्यावसायी (यिन )-पु० सिं०] अति निम्नजातीय, | अंधा-वि० बिना ऑखका, देखनेकी शक्तिसे रहित; भलाडोम, चमार आदि ।
बुरा सोचनेमें असमर्थ , विचारहीन; बिना सोचे-समझे अंत्याश्रम-पु० [सं०] आखिरी आश्रम, संन्यासाश्रम । काम करनेवाला; अंधेरा ( अंधी गुफा)। पु० दृष्टिहीन अंत्याश्रमी (मिन)-वि० [सं०] अंतिम आश्रममें रहने- प्राणी। -आईना-पु० दे० 'अंधा शीशा'। -कुआँवाला । पु० संन्यासी।
पु० सूखा कुआँ, अंधकूप, लड़कोंका एक खेल । -कुप्पअंत्येष्टि-स्त्री० [सं०] अंतिम संस्कार, मृतककर्म ।
पु० (ब्लैकआउट) हवाई हमला होनेके समय या उसकी अंत्र-पु० [सं०] आँत, अंतड़ी। -कूज,-कूजन,-पु०
आशंका होते ही सार्वजनिक स्थानोंकी बत्तियोंका बुझा आँतोंमें होनेवाली गुड़गुड़ाहट । -प्रदाह-पु० आँतोंमें दिया जाना या उन्हें इस तरह ढंक देना जिससे बाहरसे, जलन होना। -वृद्धि-स्त्री० आँत उतरनेकी बीमारी; विशेषकर आसमानसे, रोशनी दिखाई न पड़े, चिरागअंडकोश बढ़नेका रोग ।
गुल । -घोड़ा-पु० जूता (साधु-फकीर )। -चिराग, अंत्री-स्त्री० [सं०] दे० 'अंत्र'।*
-दीया-पु० धुंधली रोशनीवाला चिराग । -तारा-पु० अंथऊ-पु० जैनियोंका संध्याकालीन भोजन ।
नेपचून तारा। -भैंसा-पु० लड़कोंका एक खेल । अंदर-अ० [फा०] भीतर । पु० दिल ( अंदरका साफ)। -शीशा-पु० ऐसा आईना जिसमें चेहरा साफ न अँदरसा-पु० एक प्रसिद्ध मिठाई ।
दिखाई दे । -मु०-बनना-बेवकूफ बनना; धोखा अंदरी-वि० भीतरका।
खाना, जान-बूझकर उपेक्षा करना। -बनाना-उल्लू अंदरूनी-वि० [फा०] भीतरी, अंदरका ।
बनाना ।-(धे) की लकड़ी,-लाठी-एकमात्र सहारा । अंदाज़-पु० [फा०] ढंग, ढबमोहक ढंग, अदा; अटकल, अंधाधुंध-अ० विना सोचे विचारे; बेहिसाब; बेतहाशा । उचित मात्रा। वि० फेंकनेवाला (संशाके अंतमें-जैसे | वि०विचारहीन । स्त्री० घना अंधकार; अंधेर, धींगाधांगी। तीरंदाज़, गोलंदाज)।
अंधानुकरण-पु० [सं०] आँख मूंदकर किसीके पीछे अंदाज़न-अ० [फा०] अटकलसे लगभग ।
चलना, किसी व्यक्ति या व्यवहारका बिना विचारे अनुअंदाज़ा-पु० [फा०] अटकल, अनुमान; तखमीना । करण करना। अदाना*-स० क्रि० बचाना, बरकाना। .
अँधार*-पु० अंधकार । अंद-पु० [सं०] अंजीर; हाथीके पाँव बाँधनेकी साँकल; | अधियार, रा*-पु० अंधकार । वि० अँधेरा। पाँवोंमें पहननेका एक गहता, पायजेब, पैरी, नपुर । अँधियारी-स्त्री० अंधकार; घोड़ों, शिकारी चिड़ियों आदि अदुआ-पु० हाथीके पीछेके पैर में डालनेके लिए काठका | की आँखोंपर बाँधी जानेवाली पट्टी । बना हुआ एक काँटेदार यंत्र।
अंधेर-पु० अनीति, अन्याय, धींगाधींगी नियमव्यवस्थाका अंदुक, अंदू, अंदूक-पु० [सं०] दे० 'अंदु' ।
अभाव ।-खाता-पु० गड़बड़, अव्यवस्था; हिसाब किताब अंदेशा-पु० दे० 'अंदेशा'।
का ठीक न रहना। -नगरी-स्त्री० वह स्थान जहाँ अंदेशा-पु० [फा०] सोच, चिंता; शक, आशंका; खतरा; कोई नियम-व्यवस्था न हो। हानि; दुविधा।
अंधेरना-स० क्रि० अंधेर करना; अँधेरा करना। . अंदेस*-पु० दे० 'अंदेशा' ।
अँधेरा-पु० अंधकार, नैराश्य; उदासी; छाया (अँधेरा अंदोर*-पु० शोरगुल, कोलाहल ।
छोड़ो)। वि० प्रकाशरहित; अंधकारमय । -उजालाअंदोह-पु० [फा०] दुःख, रंज; खटका।
पु० सफेद और रंगीन कागजोंको विशेष प्रकारसे लपेटकर अंध-वि० [सं०] अंधा; विचारहीन; निर्बुद्धि; अचेत बनाया हुआ एक खिलौना । -गुप्प, धुप्प-पु० गहरा उन्मत्त । पु० नेत्रहीन व्यक्ति, अंधकार, अज्ञान । -कार, अँधेरा, घोर अंधकार । -पाख-पु० कृष्ण पक्ष । मु०-काल-पु० अंधेरा। -कूप--पु० अंधेरा कुआँ; सूखा -छा जाना-अत्यधिक अंधकार होना; बहुत बड़ी हानि कुआँ जिसका मुँह घास-पातसे हँका हो; अज्ञान; एक आदिके एका-एक होनेपर कुछ दिखाई न देना। -(२) नरक। -खोपड़ी-वि० [हि० ] नासमझ, मुर्ख । | उजेले-समय-कुसमय । -(२) घरका उजाला-अति -तमस,-तामस-पु० घोर अंधकार, अंधेरा घुप्प । सुदर या कांतियुक्त; एकलौता बेटा । -(रे) मुंह-तामिश्र, स्र-पु० निविडांधकार; अशान; २१ नरकों- पौ फटते, उजाला होनेके पहले। मेंसे एक। -परंपरा-स्त्री० बिना सोचे-समझे पुरानी | अंधेरिया-स्त्री०अंधकार अँधेरा पाख; ईखकी पहली गोड़ाई । रीतिका अनुसरण, भेड़ियाधंसान। -बाई*-स्त्री० अंधेरी-स्त्री० अंधकार; अंधड़, घोड़े या बैलकी आँखपर आँधी। -मति-वि० अक्लका अंधा । -विंदु-पु० डालनेका पर्दा या जाली। वि० स्त्री० अंधकार भरी। आँखके भीतरी परदेका अप्रकाशग्राही विंदु या स्थल । -कोठरी-स्त्री० गर्भ, कोख; गुप्त भेद । -० का यार-विश्वास-पु० बिना सोचे-समझे कोई बात मान गुप्त प्रेमी । मु०-डालना या देना-आँख मूंदकर दुर्गति लेना, विचार रहित विश्वास; बहम ।
करना; धोखा देना।
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अंधोटी-अंशु अँधोटी-स्त्री० घोड़े या बैलकी आँखपर डालनेका पर्दा, | बादल; समुद्र घोंघा । -राज-पु० समुद्रः वरुण । -राशि अनवट ।
-पु० समुद्र । -रुह-पु० कमल | -वाह-पु० बादल । अँधौरी-स्त्री० दे० 'अम्हौरी'।
-शायी (यिन)-पु० विष्णु, नारायण ।। अँध्यार *-पु. अंधकार ।
अंबुजाक्ष-वि० [सं०] कमलके समान नेत्रोंवाला । पु० अंध्यारी *-स्त्री० अँधियारी, अंधकार ।
विष्णु । अंब *-पु० आम । स्त्री० दे० 'अंबा' ।
अंबुजासन-पु० [सं०] ब्रह्मा । अंबक-पु० [सं०] अखः पिता; ताँबा ।
अंबुजासना-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी। अंबर-पु० [सं०] आकाशः वस्त्र; एक विशेष प्रकारकी | अंबुवा-पु० आम । साड़ी; केसर; एक सुगंधित वस्तु जो समुद्रके किनारे पायी | अंभापति-पु० [सं०] वरुण । जाती है और दवाके भी काम आती है; कपास, अभ्रक अंभासार-पु० [सं०] मोती। *बादल । -चर-पु० पक्षी; विद्याधर । -चारी | अंभ(स)-पु० [सं०] जल; आकाश; देवता; मनुष्य; (रिन)-पु० ग्रह । -डंबर-पु० सूर्यास्तकालमें पश्चिम शक्ति, तेज; जन्मकुंडली में लग्नसे चीथा स्थान; चारकी दिशामें दिखाई देनेवाली लाली। -पुष्प-पु० असंभव संख्या। बात ।-बेल-स्त्री० [हिं०] आकासबेल।-मणि-पु०सूर्य। अंभनिधि-पु० दे० 'अंभोनिधि' । अंबरांत-पु० [सं०] क्षितिज; वस्त्रका छोर ।
अंभाज-वि० [सं०] जलमें उत्पन्न । पु० कमल; शंख अंबराई-स्त्री०, अँबराव-पु० अमराई ।
चंद्र मा। -जन्मा (न्मन्),-योनि-पु० ब्रह्मा । अंबरीष-पु० [सं०] भाड़, दाना भूननेका मिट्टीका बरतन; | अंभोजिनी-स्त्री० [सं०] कमलिनी; कमलपुष्पोंका समूह; युद्ध; विष्णु; शिव; अनुपात; एक नरक; सूर्य; अमड़ा; वह स्थान जहाँ कमलोंकी बहुलता हो । छोटा जानवर, बछड़ा; अयोध्याका एक सूर्यवंशी राजा अंभोद, अंभोधर-पु० [सं०] बादल; मोथा। जो विष्णुभक्तिके लिए प्रसिद्ध था।
अंभोधि,-निधि-पु० [सं०] समुद्र । अंबल-पु० मादक पदार्थ; खट्टा रस ।।
अंभोराशि-पु० [सं०] समुद्र । अंबष्ट-पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद (लाहौर और | अंभोरुह-पु० [सं०] कमल; सारस । उसके आस-पासका प्रदेश) और उसके निवासी; एक अँवरा, अँवला-पु० दे० 'आँवला'। जाति; कायस्थोंकी एक उपजाति महावत ।
अंश-पु० [सं०] भाग, हिस्सा; चौथा भाग:सोलहवाँ भाग: अंबा-स्त्री० [सं०] माता, अम्माः दुर्गा, गौरी; काशिराज वृत्तकी परिधिका ३६० वाँ भाग; भाज्य अंक; भिन्नकी इंद्रद्युम्नकी तीन कन्याओंमेंसे सबसे बड़ी जिसका भीष्मने लकीरके ऊपरका अंक; एक आदित्य; दिन; कंधा । अपने भाई विचित्रवीर्यसे विवाह करनेके लिए हरण किया -करण-पु० भाग लगाना, बँटवारा करना । -दानथा पाढ़ा लता । *पु० आम ।
पु० (कांट्रिब्यूशन) किसी कोष या सामान्य निधि आदिमें अंबापोली-स्त्री० अमावट, अमरस ।
अथवा देशकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक उन्नति आदिमें अंबार-पु० [फा०] ढेर, राशि। -खाना-पु गोदाम ।। अन्य लोगोंकी तरह अपना भी उचित अंश या भाग अंबारी-पु० दे० 'अम्मारी' ( हौदा)।
प्रदान करना; योगदान; वह रकम या सहायता जो इस अंबालिका-स्त्री० [सं०] माता; पाढ़ालता काशिराज इंद्र- प्रकार प्रदत्त की जाय, अवदान । -पत्र-पु० वह लेखधुम्नकी भीष्म द्वारा हरी गयी कन्याओंमेंसे सबसे छोटी जो । पत्र जिसमें हिस्सेदारोंका हिस्सा लिखा हो । -धरविचित्रवीर्यकी कनिष्ठा पत्नी और पांडुकी माता थी। पु० (शेयरहोल्डर) वह व्यक्ति जो किसी प्रमंडल या अंबिका-स्त्री० [सं०] माता दुर्गा, पार्वती; पाढ़ा लता; व्यापारिक संस्था आदिमें लगायी जानेवाली पूँजीके एक काशिराज इंद्रद्युम्न की भीष्म द्वारा हरी गयी मझली कन्या या एकाधिक हिस्सोंका स्वामी हो, हिस्सेदार ।-पूँजीजो विचित्रवीर्य की बड़ी रानी और धृतराष्ट्रकी माता थी। स्त्री० (स्टॉक) किसी संस्था या निगम आदिमें विभिन्न -पति-पु० शिव ।
व्यक्तियों द्वारा लगायी गयी पूंजीके हिस्से । -भाक,अंबिया-स्त्री० छोटा कच्चा आम जिसमें जाली न पड़ी हो, भागी (गिन्)-वि० हिस्सा पानेवाल।। -सुताटिकोरा।
स्त्री० यमुना नदी । -हर,-हारी (रिन) वि० हिस्सा अँबिरथा*-वि० वृथा।
पानेवाला। अंबु-पु० [सं०] जल; रक्तका जलीय तत्व; जन्मकंडलीमें अंशक-पु० [सं०] भाग, खंड; दिन; हिस्सेदार; दायाद। चौथा स्थान; चारकी संख्या। मगर । -क्रिया-स्त्री० | वि० हिस्सा पानेवाला। पितृतर्पण । -चर-चारी (रिन्)-वि० पानी में अंशत:-अ० [सं०] कुछ अंशमें, किसी हदतक । रहनेवाला (मत्स्य आदि जलचर)। -ज-वि० जलमें | अंशावतार-पु० [सं०] वह अवतार जिसमें ईश्वर या देवउत्पन्न । पु० कमल; चंद्रमा, शंख, बज्र; वेत; कपुर; विशेषकी परी कला अवतीर्ण न हुई हो।
-द-वि० जल देनेवाला । पु० बादल। अंशी (शिन)-वि० [सं०] हिस्सेदार; जिसके कई अंश -धर-पु० बादल । -धि-पु० समुद्र, चारकी संख्या। या अवयव हों, अवयवी; सामर्थ्यवान् । -नाथ-पु० समुद्र । -निधि-पु० समुद्र । -पति- अंशु-पु० [सं०] किरण, प्रभाः छोर, सिरा; वस्त्राभूषण । पु० समुद्र, वरुण । -भव-पु० कमल । -भृत्-पु० -धर-पति,-भर्ता(त),-स्वामी (मिन्)-पु० सूर्य ।
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अंशुक-अकलंक -मान्-पु० मूर्य, चंद्रमा; मूर्यवंशी राजा सगरका पौत्र । | चुका हो। वि० अंशुयुक्त प्रभायुक्त। -माली (लिन)-पु० सूर्य । अकबक-स्त्री० अंडबंड बातें; प्रलाप; सुधबुध; चिंता, अंशुक-पु० [सं०] वस्त्र; मूक्ष्म वस्त्र, बारीक कपड़ा; रेशमी खटका । वि० चकित, निस्तब्ध । कपड़ा; उपरना; दुपट्टा ।
अकबकाना-अ० क्रि० भौचक्का होना; घबराना। अंस-पु० [सं०] अंश; कंधा।
अकबर-वि० [अ०] बहुत बड़ा, महत्तर एक मुगल सम्राट् । अंसल-वि० [सं०] मजबूत कंधोंवाला; तगड़ा।
अकबरी-वि० [अ०] अकबरका चलाया हुआ, अकबरअंसु*-पु० भाग; कंधा; आँसू ।
संबंधी। स्त्री० एक मिठाई; लकड़ीपरकी एक तरहकी असुआ, असुवा-पु० दे० 'आँसू' ।
नक्काशी। असुआना-अ० क्रि० आँसू भर आना।
अकबाल-पु० दे० 'इकबाल' । अंह (सु)-पु० [सं०] पाप; चिंता; कष्ट ।
अकर-वि० [सं०] बिना हाथकाः बिना महमूलका, करसे अंहि-पु० [सं०] चरण; वृक्षमूल । -प-पु० वृक्ष । मुक्त; दुष्करः निष्क्रिय, जो कार्य न कर रहा हो। अ-अ० (उप०) [सं०] यह व्यंजनादि संशा और विशेषण अकरकरा-पु० दवाके काम आनेवाला एक पौधा । शब्दोंके पहले लगाकर सादृश्य (अब्राह्मण ), भेद (अपट), अकरखना *-स० क्रि० आकृष्ट करना, खींचना, तानना। अल्पता ( अनुदश), अभाव ( अरूप, अकाम), विरोध अकरण-वि० [सं०] इंद्रिय-रहितः देह, इंद्रियादिसे रहित (अनीति, असुर ) और अप्राशस्त्य ( अकाल, अकार्य )के (परमात्मा ); अकृत्रिम, स्वाभाविक । पु० कुछ न करना, अर्थ प्रकट करता है। स्वरसे आरंभ होनेवाले शब्दोंके कर्मका अभाव । *वि० अकारण, कारणरहित; जिसका पहले आने पर इसका रूप'अन्' हो जाता है। पु० विष्णु; करना अनुचित या कठिन हो। शिव; ब्रह्मा; वायुः वैश्वानरः विश्व; अमृत ।
अकरणीय-वि [सं०] न करने योग्य । अइला-पु० मुंह छेद ।
अकरन *-वि० अकारण; अकरणीय । अउ, अउरी-अ० और, तथा ।
अकरनीय *-वि० दे० 'अकरणीय' । अऊत -वि० निपूता, निस्संतान ।
अकरा *-वि० बहुमूल्य खरा, चोखा । अऊलना-अ० क्रि० तप्त होना, जलना गरभी पड़नाः | अकराथ *-वि० व्यर्थ, निष्प्रयोजन । चुभना; छिलना।
अकराल-वि० [सं०] जो भयंकर न हो, सुंदर, सौम्य । अऋण, अऋणी (णिन् )-वि० [सं०] जो ऋणी या *वि० भयानक । कर्जदार न हो; ऋणमुक्त ।
अकरास-पु० सुस्ती, आलस्य; अंगड़ाई । अएरना-स० कि० अंगीकार करना; ग्रहण करना। अकरी-स्त्री० हलमें लगा हुआ चोंगा जिससे बीज अकंटक-वि० [सं०] बिना काँटेका; निर्विधन; शत्रुरहित । गिराते है। अकच-वि० [सं०] केशरहित, गंजा । पु० केतु ग्रह । अकरण-वि० [सं०] करुणारहित, निठुर । अकठोर-वि० [सं०] जो कठोर न हो; कमजोर ।
अकर्कश-वि० [सं०] कर्कशतारहित, नरम, मृदु । अकड़-स्त्री० अकड़नेका भाव, ढिठाई; कड़ापन, तनाव | अकर्ण-वि० [सं०] जिसके कान छोटे हों; कर्णहीन, बहरा; ऐंठ; घमंड; हठ; स्वाभिमान । -बाई-स्त्री० एक रोग जिसमें पतवार न हो । पु० सॉप । जिममें नमें तन जाती हैं । -बाज़-वि० अकड़कर अकर्तव्य-वि० [सं०] न करने योग्य, अविहित,अनुचित । चलनेवाला, घमंडी। -बाज़ी-स्त्री० ऐंठ, घमंड । पु० अनुचित कर्म । अकड़ना-अ० क्रि० सूखकर कड़ा होना; ठिठुरना; तनना, । अकर्ता (र्तृ)-वि० [सं०] जो कर्ता न हो, कर्म न ऐंठना; धमंड करना; स्तब्ध होना; तनना, तनकर करनेवाला, कर्मसे अलिप्त ( पुरुष )। चलना जिद करना धृष्टता करना; रुष्ट होना। | अकर्तृक-वि० [सं०] जिसका कोई कर्ता न हो। अकड़ाव-पु० अकड़नेकी क्रिया, तनाव, ऐंटन । अकर्तृत्व-पु० [सं०] कर्तृत्व, कर्तापनके अभिमानका अकड़त-वि० दे० 'अकड़बाज ।
अभाव। अकत्थ-वि० दे० 'अकत्थ्य।
अकर्म (न्)-पु० [सं०] कर्मका अभाव, निष्क्रियता; अकथ*-वि० दे० 'अकत्थ्य' ।
बुरा काम ।-शील-वि० सुस्त, आलसी । अकथनीय-वि० [सं०] दे॰ 'अकत्थ्य'।
अकर्मक-वि० [सं०] ( वह क्रिया) जिसके लिए कर्मकी अकथित-वि० [सं०] जो न कहा गया हो, अनुक्ता गौण अपेक्षा न हो ( व्या०)। (कर्म-व्या०)
अकर्मण्य-वि० [सं०] कर्मके अयोग्य निकम्मा; आलसी; अकथ्य-वि० [सं०] जो कहा न जा सके, कथनके अयोग्य, __ न करने योग्य । अकथनीय ।
अकर्मा (मन)-वि० [सं०] कर्मरहित, जो कुछ करता अकधक *-पु० आगापीछा; आशंका ।
न हो; निकम्मा संस्कार आदिका अनधिकारी। अकनना-स० क्रि० कान लगाकर सुनना; सुनना; अकर्मी (र्मिन्)-वि० [सं०] दुष्कर्म करनेवाला, पापी । आहट लेना या पाना।
अकर्षण-पु० [सं०] कर्षण या खिंचावका न होना । अकना-अ० क्रि० घबड़ाना।
*पु० आकर्षण, खिंचाव । अकन्या-स्त्री० [सं०] वह कन्या जिसका कौमार्य नष्ट हो अकलंक-वि० [सं०] कलंकरहित, निर्दोष बेदाग ।
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अकलंकता-अकिल
अकलंकता-स्त्री० [सं०] दोषहीनता।
*पु० आकार। अकलंकित-वि० [सं०] निर्दोष, शुद्ध बेदाग ।
अकारज*-पु० दे० 'अकाज'। अकल-वि० [सं०] अवयवरहितः अखंड; अंशरहितः | अकारण-अ० [सं०] बिना कारण, बेमतलब । वि० हेतुनिराकार, कलाहीन; गुणहीन । स्त्री० दे० 'अक्ल'। रहित । पु० कारणका अभाव । '-दाढ़-स्त्री० जवान होनेपर निकलने वाली दाढ़, अकारत (थ)-अ० व्यर्थ, बेकार (जाना, होना)। वि० अक्लका दाँत ।
निष्फल, लाभरहित । अकलखुरा-वि० अकेला खानेवाला, स्वार्थी; ईर्ष्यालु; जो | अकारन*-वि०, अ० दे० 'अकारण। मिलनसार न हो।
अकारांत-वि० [सं०] जिसके अंतमें 'अ' हो । अकलुप-वि० [सं०] स्वच्छ, मलहीन, निर्दोष । अकार्पण्य-पु० [सं०] दीनता या नीचताका अभाव । ' अकल्पित-वि० [सं०] कल्पनारहित, अकाल्पनिक अकार्य-वि० [सं०] न करने योग्य, अकर्तव्यः अनुचित । अकृत्रिम ।
पु० बुरा काम, अनुचित कार्य । अकल्मष-वि० [सं०] बेदागनिर्दोष, शुद्ध ।
अकाल-पु० [सं०] अयोग्य या अनियत काल; कुसमय अकल्याण-पु० [सं०] अमंगल; अहित । वि० अशुभ । अनवसर अशुभकाल; कालके परे,परमात्मा [हिं०] दुर्भिक्ष अकवच-वि० [सं०] कवचरहित, जिसके बदनपर बकतर कमी । वि० जो काला न हो, सफेद बेमौसिमका, असामन हो।
यिक। -कुसुम-पु० बेमौसिमका फूल; बेमौसिमकी चीज । अकवन-पु० अर्क, आकका पेड़।
-कुष्मांडा-कूष्मांड-पु० बेमौसिमका कुम्हड़ा बलिदान अक़वाम-स्त्री० [अ०] कौमका बहुवचन ।
आदिके काम न आनेवाला कुम्हड़ा, बेकार चीज; निरर्थक अकस-पु० वैर; द्वेष, ईर्ष्या बराबरी ।
जन्म । (गांधारीके कूष्मांडाकार मांसपिंडका अकालअकसना*-अ० क्रि० बराबरी करना, वैर करना, झगड़ना। प्रसव हुआ था । उसोसे कुरुकुल नाशक दुर्योधन आदि अकसर-वि० [अ०] बहुत अधिक । अ० अधिकतर, बहुधा । सौ पुत्रोंका जन्म हुआ।)-जलदोदय,-मेघोदय-पु० *वि० अकेला । अ० अकेले, बिना किसीको साथ लिये। बेवक्त, बेमौसिम बादलोंका धिरना । -जात-वि० बक्तसे अकसी-वि० अकस रखनेवाला, शत्रु ।
पहले, बेमीसिम उपजा हुआ। -पव-वि० समयसे पहले अकसीर-स्त्री० [अ०] कोमिया, वह दवा जिससे सस्ती पक जानेवाला (फल आदि)। -पुरुष-पु० परमेश्वर, धातुसे सोना बनाया जा सके; रोग विशेषकी अत्यंत परमात्मा (सिख)। -प्रसव-पु० स्त्रीको समयसे पहले गुणकारी, अचूक औषधि । वि० अचूक, अव्यर्थ ।-गर- प्रसव होना ।-मूर्ति-पु० अविनाशी पुरुष । -मृत्युवि० कीमिया बनानेवाला। -की बूटी-सोना-चाँदी स्त्री० असामयिक या अल्पवयमें होनेवाली मृत्यु । -मृत्यु बनानेकी बूटी।
विचारणा-स्त्री० (इनक्वेस्ट) अकालमृत्यु आदिके संबंध अकस्मात्-अ० [सं०] सहसा, अचानक हठात् संयोगवश। की जानेवाली कानूनी जाँच-पड़ताल । -वृद्ध-वि० अकह-वि० अवर्णनीय, न कहने योग्य; अनुचित ।। समयसे पहले बूढ़ा हो जानेवाला । . अकहुआ*-वि० अकथनीय, जिसका वर्णन न हो सके। | अकालिक-वि० [सं०] असामयिक । अकांड-वि० [सं०] बिना धड़ या तनेका; अचानक या | अकाली-पु० सिखोंका एक संप्रदाय; उस संप्रदायका असमय होनेवाला । अ० अकारण ही, अचानक ।-जात- ___ अनुयायी। वि० अचानक पेदा या असमयमें उत्पन्न । -तांडव-पु० अकालोत्पन्न-वि० [सं०] जो समयसे पहले उत्पन्न हुआ हो। व्यर्थकी बहस, उछल कूद आदि ।
अकास*-पु० दे०'आकाश' -दीया-पु० आकाशदीप । अकाज-पु० कार्यहानि; हर्ज; हानि; विघ्न; दुष्कर्म, बरा -बानी-स्त्री० आकाशवाणी। -बेल-स्त्री० अमरबेल । काम । *अ० व्यर्थ ही, निष्प्रयोजन ।
अकासी-स्त्री० एक पक्षी, चील । ताड़ी। अकाजना-*स० क्रि० हानि करना । अ० क्रि० नष्ट होना, अकिंचन-वि० [सं०] जिसके पास कुछ न हो, अतिनिर्धन, न रहना।
दरिद्रः कर्मशून्य, अपरिग्रही। पु० वह वस्तु जिसका अकाजी*-वि० अकाज करनेवाला विघ्न डालनेवाला।।
कोई मूल्य न हो; दरिद्र व्यक्तिः परिग्रहका त्याग (जैन)। अकाट-वि० जो कट न सके (दलील इ०), अखंडनीय ।। वाद-पु० (पॉपर सूट) वह वाद या मामला जिसमें वादी अकाट्य-वि० दे० 'अकाट' (असाधु)।
या प्रतिवादीकी ओरसे यह कहा जाय कि मुकदमेके खर्चके अकातर-वि० [सं०] जो भीरु या हतोत्साह न हो। लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है अतः सरकारकी ओरसे अकाथ*-वि० अकथनीय, न कहने योग्य । अ० अकारथ, मुझे वकील तथा आवश्यक व्यय दिया जाय । व्यर्थ ।
आकिंचनता-स्त्री० (सं०) निर्धनता; परिग्रहका त्याग अकाम-वि० [सं०] निष्काम; इच्छारहित; उदासीन।। (जैन)। *अ० निष्प्रयोजन, बिना कामके ।
अकिंचनत्व-पु० [सं०] दे० 'अकिंचनता'। अकामी (मिन्)-वि० [सं०] दे० 'अकाम' ।
अकिचित्कर-वि० [सं०] जिसके किये कुछ न हो सके अकाय-वि० [सं०] कायरहित, अशरीरी। पु० राहु निरर्थक; तुच्छ । परमात्मा।
अकितव-वि० [सं०] जो जुआरी न हो; निष्कपट । अकार-पु० [सं०] 'अ' अक्षर या उसकी उच्चारण-ध्वनि । अकिल-स्त्री० दे० 'अक्ल'। -दाढ़-स्त्री० जवानी में
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११
अकिल्विष- अक्रर
निकलनेवाला दाँत का अजीरन - बुद्धिका अतिरेक | अकृष्ट-वि० [सं०] जो खींचा न गया हो; जो जोता न (व्यंग्य) । गया हो । पु० परती जमीन, वह जमीन जो जोती न गयी हो । अकृष्टपूर्वा भूमि- स्त्री० ( वर्जिन साइल) वह भूमि जो पहले कभी जोती- बोयी न गयी हो ।
अकृष्ण - वि० [सं०] जो काला न हो, सफेद ; निर्मल । अकेतन - वि० [सं०] गृहहीन, बेघर - बारका । अकेल* - वि० दे० 'अकेला' ।
अकेला - वि० बिना साथीका, तनहा; बेजोड़; फर्द; खाली ( मकान ) । पु० निर्जन स्थान ।
अकेले - अ० बिना किसी साथीके, तनहा; केवल 1 अकेले - अ० बिना किसीको साथ लिये, शरीक किये । - दुकेले - वि० अकेले या एक और के साथ । अकेश - वि० [सं०] केशरहित; अल्प केशयुक्त; बुरे वालोंवाला ।
अकिल्विष - वि० [सं०] पापरहित, निर्मल ।
अकीरति * - स्त्री० दे० 'अकीर्ति' ।
अकीर्ति - स्त्री० [सं०] अपयश, बदनामी । -कर - वि० अपयश देनेवाला; अपमान करनेवाला ।
अकुंठ - वि० [सं०] जो कुंठित या भोथरा न हो, कार्यक्षम, शक्तिशाली; खुला हुआ; तीक्ष्ण, पैना; स्थिर । अकुंटित धि० [सं०] दे० 'अकुंठ' |
अकुटिल - वि० [स०] सीधा; सरल; भोला-भाला । अकुताना * - अ० क्रि० दे० 'उकताना' ।
अकुतोभय - वि० [सं०] जिसे कहीं या किसीसे भय न हो, नितांत भयशून्य, निडर ।
अकुत्सित - वि० [सं०] अनिंदनीय, जो बुरा न हो । अकुल- वि० [सं०] अकुलीन; कुलरहित । पु० शिव; बुरा कुल |
अकुलाना - अ०क्रि० आकुल होना; घबड़ाना; बेचैन होना । अकुलिनी* - स्त्री० व्यभिचारिणी स्त्री । वि० स्त्री० व्यभिचारिणी ।
अकैत - पु० [सं०] निष्कपटता । वि० निष्कपट, निश्छल । अकोट - पु० [सं०] सुपारी या उसका पेड़ । * वि० अगणित, करोड़ों ।
अकोतर सौ - वि० सौसे एक अधिक, एक सौ एकः पु० एक सौ एक की संख्या, १०१ ।
अकुलीन - वि० [सं०] हीन कुलका, कमीना | अकुशल - वि० [सं०] अनाड़ी, (किसी ) काममें कच्चा, अकोप - पु० [सं०] कोपका अभाव; राजा दशरथका एक भाग्यहीनः अशुभ | पु० बुराई, अमंगल | अकूत - वि० जिसकी कूत या अंदाजा न हो सके; विपुल; अकोर* - पु० दे० 'अँकोर' | अपरिमित । अ० अचानक, अकस्मात् (?) ।
मंत्री ।
अकोरी* - स्त्री० अँकवार, गोद ।
अकूल - वि० [सं०] बिना कूल, किन रेका; सीमारहित । अकूहल * - वि० अत्यधिक; अगणित ।
अकृच्छ्र - वि० [सं०] बिना क्लेश, कठिनाईका आसान । अकौआ-पु० मदार, आक; ललरी, घंटी ।
पु० केश या कठिनाईका अभाव ।
अकौता - पु० दे० 'उकवत' ।
अकौशल - पु० [सं०] कुशलताका अभाव, अदक्षता । अक्का - स्त्री० [सं०] माता, जननी ।
अक्कास - पु० [अ०] अक्स उतारनेवाला, फोटोग्राफर । अक्कासी - स्त्री० [अ०] फोटो खींचनेका काम |
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अकृत्स्न - वि० [सं०] अधूरा, जो पूरा न हुआ हो । अकृप - वि० [सं०] निर्दय, दयाहीन |
अकृपण- वि० [सं०] जो कृपण न हो, उदार | अकृपा - स्त्री० [सं०] कृपाका अभाव, नाराजी । अकृश - वि० [सं०] जो दुबला-पतला न हो, सबल, मोटा-ताजा ।
अकृषित - वि० (अनकलूटिवेटेड) जो जोती बोयी न गयी हो (भूमि) ।
अकोविद - वि० [सं०] अपंडित, मूर्ख, अनाड़ी । अकोसना * - स० क्रि० कोसना, बुरा-भला कहना ।
अकृत - वि० [सं०] जो पूरा न किया गया हो; बिगाड़ा हुआ या अन्यथा किया हुआ; जो किसीके द्वारा बनाया न गया हो, अकृत्रिम, जिसने कुछ किया न हो; अविक सित; अपक | - कार्य - वि० विफल । - ज्ञ - वि० कृतघ्न, उपकार न माननेवाला ।
अकृतार्थ - वि० [सं०] विफल |
अकृतास्त्र - वि० [सं०] जिसने अस्त्रोंका चलाना न सीखा हो ।
अक्खा - पु० गोन, खुरजी ।
अकृती ( तिन ) - वि० [सं०] अकुशल, अनाड़ी; अक्त - वि० [सं०] अंजन लगा हुआ, लिप्त, लिपा हुआ; निकम्मा । व्याप्त; युक्तः व्यक्त; ( समासांत में- जैसे तैलाक्त ) ।
अकृत्य - वि० [सं०] जो करने योग्य न हो । पु० दुष्कर्म, अक्टूबर- पु० ईसवी सालका दसवाँ महीना ।
अपराध ।
अकृत्रिम - वि० [सं०] जो बनावटी न हो; स्वाभाविक; असली; सच्चा ।
-
अक्खड़ - वि० उजड्डु, अशिष्ट, उद्धत; लड़ाका; दो-टूक कहनेवाला, निडर, झगड़ालू ; जड, मूर्ख । अक्खर* - पु० दे० 'अक्षर' |
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अक्रम - वि० [सं०] क्रमरहित, अव्यवस्थित, बेसिलसिला; गतिहीन, आगे बढ़नेमें असमर्थ । पु० क्रमका अभाव, बेतरतीबी, अव्यवस्था; गतिहीनता । अक्रमातिशयोक्ति - स्त्री० [सं०] अतिशयोक्ति अलंकारका एक भेद, जहाँ कार्य और कारणका एक साथ हीं होना दिखलाया जाय ।
अक्रिय - वि० [सं०] निष्क्रिय, काहिल, जो कुछ न करे; कर्मशून्य (परमात्मा) : निकम्मा |
अक्रिया - स्त्री० [सं०] निष्क्रियता; कर्तव्य न करना; दुष्कर्म |
अकर - वि० [सं०] दयालु, कोमल चित्त । पु० एक यादव
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अक्रोध - अक्षि
जो कृष्णके चाचा और भक्त थे ।
अक्रोध - पु० [सं०] क्रोधका अभाव; क्रोधका नियंत्रण । वि० क्रोधरहित ।
|
|
अक़्ल - स्त्री० [अ०] बुद्धि, समझ । -मंद - वि० चतुर, बुद्धिमान् । - मंदी - स्त्री० चतुराई ।- (क्ले) इंसानी - स्त्री० मानव-बुद्धि | - (क्ले) हैवानी - स्त्री० पशुबुद्धि । मु० आना - समझ होना । -का कसूर होना- अक्की कमी होना, बुद्धिका दोष का काम न करनाकुछ समझमें न आना । -का चक्करमें आना- हैरान होना, चकित होना । -का चरने जाना - समझ जाती रहना । - का चिराग गुल होना - अक्कु जाती रहना । - का दुश्मन - मूर्ख । -का पुतला - बहुत बुद्धिमान् । - का पूरा - मूर्ख, बुद्ध ( व्यंग्य ) । -का मारा - मूर्ख । -की पुड़िया - बुद्धिमती । -के घोड़े दौड़ाना - तरहतरहकी कल्पना करना। -के तोते उड़ जाना - होश ठिकाने न रहना । —के पीछे लट्ठ लिये फिरनानासमझीके काम करना । - खर्च करना- सोचनासमझना, समझको काम में लाना। -गुम होना - अक्ल मारी जाना, अक्का काम न करना । -जाती रहना - घबड़ा जाना |-ठिकाने होना - होशमें आना । —देनासमझाना-बुझाना | - दौड़ाना, - भिड़ाना, - लड़ानासोचना, गौर करना । - पर पत्थर पड़ना, - पर्दा पड़ना - अल जाती रहना । - मंदकी दुम - मूर्ख ( व्यंग्य ) । - मारी जाना - हतबुद्धि होना । - सठियानाबुद्धि भ्रष्ट होना । से दूर - बाहर होना - समझ में न आना ।
-
अक्लांत - वि० जो थका न हो, कांतिरहित ।
अक्लिष्ट - वि० [सं०] क्लेशरहित, अक्कांत जो अशांत न हो; अनुद्विग्न; जो लिष्ट न हो, सरल ।
अक्की - वि० [अ०] बुद्धि-संबंधी, अहमें आनेवाली (वात); बुद्धिकृत | मु० - गद्दा लगाना - अटकलबाजी करना । अक्लेद्य - वि० [सं०] जो भिगाया या गीला न किया जा सके। अक्लेश-पुं० [सं०] क्लेशहीनता । वि० क्लेशर हित । अक्षंतव्य - वि० [सं०] अक्षम्य ।
|
भक्ष- पु० [सं०] खेलनेका पासा; पासोंका खेल; चौसर; पहिया, चक्रः पहियेका धुरा; धरती की धुरी; गाड़ी; भूमध्यरेखा के उत्तर या दक्षिण किसी स्थानका गोलीय अंतरः रुद्राक्ष; सर्प; सोलह माशेकी एक तौल, कर्ष; एक पैमाना; तराजूकी डाँड़ी; अक्षकुमार । - कर्ण - पु० समकोण त्रिभुजकी सबसे लंबी भुजा । -काम-वि० द्यूतप्रिय । - कुमार - पु० रावणका एक पुत्र । - कुशल, - कोविद - शौंड - वि० जुआ खेलने में चतुर । क्रीड़ा - स्त्री० पासोंका खेल; जुआ । - द्यूत-पु० जुआ । -धर - वि० धुरेको धारण करनेवाला । पु० विष्णुः पहिया । धूर्तवि० जुआ खेलने में कुशल । -बंध- पु० दृष्टि बाँध देनेकी विद्या, नजरबंदी | -माला - स्त्री० रुद्राक्षकी मालाः वर्णमाला । - माली (लिन् ) - पु० रुद्राक्षकी माला धारण करनेवाला; शिवका एक नाम । -रेखास्त्री० धुरीकी रेखा । - विद् - वि० द्यूतज्ञ । -विद्यास्त्री० द्यूतविद्या; जुआ । -हीन- वि० अंधा ।
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१२
अक्षणिक - वि० [सं०] स्थिर, ढ़ः जो क्षणिक न हो ! अक्षत - वि० [सं०] अखंडित, समूचा; क्षतहीन, जिसे घोट न आयी हो । पु० शिव; अखंडित चावल; लावा जौ; धान्य; हानिका अभाव, कल्याण; हिजड़ा । -योनिवि० जिसका कौमार्य भंग न हुआ हो । स्त्री० ऐसी कन्या ( विवाहित या अविवाहित ) ।
अक्षता- स्त्री० [सं०] कुमारी; अक्षतयोनि कर्कट भृंगी । अक्षत्र - वि० [सं०] क्षत्रियोंसे रहित । अक्षम-वि० [सं०] क्षमा-रहित; असहिष्णुः ईर्ष्या करनेवाला; क्षमता-रहित; असमर्थ ।
अक्षमा - स्त्री० [सं०] अधीरता; क्रोध; ईर्ष्या असमर्थत। । अक्षम्य - वि० [सं०] क्षमा न करने योग्य |
अक्षय - वि० [सं०] क्षयरहित, अविनाशी; निर्धन | पु० परमात्मा । - तृतीया - स्त्री० वैशाख शुक्ला तृतीया । -धाम- पु० बैकुंठ; मोक्ष । - नवमी - स्त्री० कार्तिक शुक्ला नवमी -पद-पु० मोक्ष - वट वृक्ष - पु० प्रयाग और गया के वटवृक्ष विशेष नाश न होना माना जाता है । ) अक्षयी (यिन) - वि० [सं०] जिसका नाश न हो । अक्षय्य - वि० [सं० ] क्षय न होने योग्य; कभी न चुकनेवाला ।
( इनका प्रलय में भी
अक्षर - वि० [सं०] अविनाशी, अपरिवर्तनशील, अच्युत, नित्य, अक्षय । पु० वर्ण, हर्फः स्वरः शब्दः ब्रह्म; आत्मा; शिवः विष्णुः खड्गः आकाशः मोक्षः तपस्या; जल; अपामार्ग । - जीवक, -जीवी (विन ) - पु० लिखनेका पेशा करनेवाला, लेखक | -ज्ञान- पु० लिख-पढ़ लेनेकी योग्यता, साक्षरता । - तूलिका - स्त्री० लेखनी | - न्यास - पु० लिखावट; तंत्र की एक क्रिया । - मालास्त्री० वर्णमाला । - वर्जित, शत्रु-वि० अपढ़, निरक्षर । - विन्यास - ५० वर्णविन्यास, हिज्जेः लिपि । अ० अक्षरशः - एक एक अक्षर, हर्फ-वहर्फ, सोलहों आने, पूर्णतया ।
--
अक्षरारंभ - पु० [सं०] पहले-पहल अक्षरोंका ज्ञान कराना । अक्षरार्थ - पु० [सं०] शब्दार्थ; संकुचित अर्थ । अक्षरी - स्त्री० [सं०] वर्षाऋतु | [हिं०] अक्षर-क्रम, हिज्जे, वर्त्तनी ।
अक्षरौटी-स्त्री० वर्णमाला लिपिका ढंग; सितारपर बोल निकाल्नेकी क्रिय! | अक्षांश - पु० [सं०] भूमध्यरेखा से उत्तर या दक्षिणका
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अंतर ।
अक्षार - वि० [सं०] क्षाररहित । पु० प्राकृतिक लवण | - लवण- पु० प्राकृतिक लवण, वह नमक जिसमें खार न हो; बिना नमकका हविष्यान्न | अक्षि-स्त्री० [सं०] आँख; दोकी संख्या । - कंप - पु० पलक मारना । - कूट, - कूटक- पु० आँखकी पुतली, नेत्रगोलक । -गत- वि० ध्ष्ट देखा हुआ; विद्यमान; द्वेष्य ।-गोलक० आँखका टेंडर | तारक- पु० - तारा स्त्री० आँखकी पुतली । - निमेष - पु० पल, क्षण - पक्ष्म (न्) - पु० बरौनी । - पटल - पु० आँखका परदा, आँखके गोलक के पीछेकी झिल्ली । -लोम (न्) - पु० बरौनी । - विकूणित,
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१३
विकशित - पु० कटाक्ष, तिरछी चितवन । -विक्षेप-पु०
कटाक्ष |
अक्षुण्ण - वि० [सं०] अखंडित, अभग्न; अन्यून; अपराजित । अक्षुद्र - वि० [सं०] जो नीच, छोटा या तुच्छ न हो । अक्षुब्ध - वि० [सं०] क्षोभरहित । अक्षेत्र - वि० [सं०] क्षेत्ररहित; चासके अयोग्य, परती । पु० बुरी जमीन; ज्यामितिका अशुद्ध चित्र; मंदबुद्धि छात्र | अक्षोट- पु० [सं०] पर्वतीय पीलु वृक्ष, अखरोटका पेड़ । अक्षोनि * - स्त्री० दे० 'अक्षौहिणी' ।
अक्षोभ - पु० [सं०] क्षोभका अभाव, शांति, हाथी बाँधनेका
खूँटा । वि० शांत, धीर; जो क्षुब्ध या घबड़ाया न हो । अक्षोभ्य - वि० [सं०] धीर, गंभीर, अशांत न होनेवाला | अक्षौहिणी - स्त्री० [सं०] चतुरंगिणी सेनाका एक परिमाण या विभाग (१,०९, ३५० पैदल, ६५,६१० घोड़े, २१,८७० रथ और इतने ही हाथी ) ।
|
अक्स - पु० [अ०] परछाई, छाया, चित्र; फोटो । -मु० उतारना - हूबहू नक्शा बनाना; फोटो खींचना । -लेना
- किसी तसवीरपर बारीक कागज रखकर खाका लेना । अक्सर - अ० दे० 'अकसर'; प्रायः; बहुधा; एकाकी । अक्सी - वि० छाया संबंधी; अक्सके जरिये लिया जाने वाआ (चित्र आदि ); फोटोग्राफ संबंधी । - तसवीर - स्त्री० फोटो, छायाचित्र |
अखंग* - वि० न चुकनेवाला । अखंड - वि० [सं०] संपूर्ण अविकल अटूट, बाधारहित, जिसका सिलसिला न टूटे । - सौभाग्य- पु० स्त्रीका आमरण सौभाग्यवती रहना ।
अक्षुण्ण- अग
अखरोट - पु० एक प्रसिद्ध मेवा और उसका पेड़, अक्षोट । अखर्व (e) - वि० [सं०] जो छोटा न हो; बड़ा; लंबा | अख़लाक़ - पु० [अ०] शिष्टता, सौजन्यः सदाचार । अखाड़ा - पु० कुश्ती लड़ने या कसरत करनेका स्थान, व्यायामशाला; सांप्रदायिक साधुओंकी मंडली; साधुओंके रहनेका स्थान, मठ; करतब दिखाने या गाने-बजानेवालोंकी जमात; सभा, दरबार; अड्डा, जमघट; आंगन; ( इंदरका अखाड़ा ) नृत्यशाला, रंगशाला । मु०-गरम होना - ज्यादा भीड़ होना। -जमना - खेलवाड़ियों का अखाड़े में जमा होना और दर्शकों की भीड़ लगना; किसी जगह बहुत से आदमियोंका जमा होना । - (ड़े) का जवान - कसरती बदनका आदमी। - (ड़े) में आनामुकाबले में खड़ा होना ।
अखाड़िया - वि० दंगली ( पहलवान ) ।
अखात - पु० [सं०] प्राकृतिक झील, ताल; उपसागर (बे), खाड़ी ।
अखाद्य - वि० [सं०] न खाने योग्य, अभक्ष्य । अखारा* - पु० दे० 'अखाड़ा' ।
अखिन्न - वि० [सं०] खेदरहित; क्ल ेशरहित; अक्कांत प्रसन्न । अखिल - वि० [सं०] संपूर्ण, सारा । अखिलात्मा ( मन ) - पु० [सं०] विश्वात्मा | अखिलेश- पु० [सं०] सबका स्वामी, परमेश्वर । अखीन * - वि० अक्षीण, न छीजनेवाला; अविनाशी । अखीर - पु० [अ०] अंत, समाप्ति | अख़ीरी- वि० [अ०] अखीरका, अंतिम
अखूट - वि० अखंड, जो घटे नहीं, अक्षय; अत्यधिक ।
अखंडन - वि० [सं०] अखंडित; अखंडनीयः समूचा । पु० अखेट* - पु० दे० 'आखेट' ।
अखबारी - वि० [अ०] समाचारपत्र संबंधी । अखय* - वि० दे० 'अक्षय' ।
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परमात्मा; कालः स्वीकार; खंडन न करना ।
अखेटक * - पु० दे० 'आखेटक' |
अखंडनीय - वि० [सं०] जिसका खंडन न किया जा सके; अखेटिक - पु० [सं०] वृक्ष; वह कुत्ता जिसे शिकारका सु; अविभाज्य ।
पीछा करना सिखलाया गया हो ।
अखंडल * - वि० अखंड, संपूर्ण । पु० आखंडल, इंद्र । अखंडित - वि० [सं०] अखंड, अटूट, अबाधित; जिसका खंडन न हुआ हो ।
अखज* - वि० अखाद्य । अखड़त - पु० पहलवान, मल्ल | अखती - स्त्री० दे० 'अखतीज' । अखतीज * - स्त्री० अक्षय तृतीया । अखनी - स्त्री० यखनी, शोरबा ।
अख़बार - पु० [अ०] समाचार ( खबरका बहुवचन), समाचारपत्र । - नवीस - पु० अखबार लिखनेवाला, पत्रकार । -नवीसी - स्त्री० पत्रकारी ।
अखेद - पु० [सं०] दुःख या खेदका अभाव, प्रसन्नता । वि० [प्रसन्न, दुःखरहित । अ० प्रसन्नतापूर्वक ।
अखेलत* - वि० जो खेलतान हो; अचंचल; आलस्ययुक्त । अखै* - वि० दे० 'अक्षय' ।
अखैबट, -बर, - वट, - वर- पु० अक्षयवट | अखोर - वि० निकम्मा, तुच्छ
·
अच्छा, भद्र, सुंदर, निर्दोष । पु० निकम्मी चीज, कूड़ा-करकट; खराब घास । अखोह - पु० ऊबड़-खाबड़ जमीन । अखौट (टा) - पु० जाँते या चक्कीकी किल्ली; गड़ारीका डंडा । अख़्वाह - अ० [अ०] आश्चर्य सूचक उद्गार ( किसीके अनपेक्षित आगमन, मिलन या कार्यपर बोलते हैं ); बहुत खूब ।
अख्तियार - पु० दे० ' इख्तियार' ।
अख्यात - वि० [सं०] अप्रसिद्ध, अप्रतिष्ठित, अविदित । अख्यान* - पु० दे० 'आख्यान' । अख्यायिका * - स्त्री० दे० 'आख्यायिका' ।
अखर* - पु० दे० 'अक्षर' ।
अखरना - अ० क्रि० खलना, बुरा लगना; कठिन या कष्टप्रद जान पड़ना ।
अखरा - पु० बिना कुटे जौका आटा; *अक्षर । *वि० जो अगंड - पु० बिना हाथ-पैरका घड़ ।
खरा न हो । अखरावट, - (टी) - स्त्री० वर्णमाला; अक्षरक्रमके अनुसार• आरंभ होनेवाला पद्यसमूह |
अग - वि० [सं०] चलने में असमर्थ, स्थावर; टेढ़ा चलनेवाला; अगम्य; *अज्ञ, अनान । पु० पहाड़; पेड़; साँप; सूर्य घड़ा; सातकी संख्या । -ज- वि० पहाड़ या वृक्षसे
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अगटना - अगात्मज
पैदा होनेवाला; पहाड़ पहाड़ घूमनेवाला; जंगली | पु० हाथी । - जग - पु० चराचर । -जा-स्त्री० पार्वती अगटनrt - अ० क्रि० एकत्र होना । अगड़ * - स्त्री० अकड़, ऐंठ ।
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अगराना * - स० क्रि० मन बढ़ाना; लाड़-प्यारके कारण धृष्ट बनाना । अ० क्रि० प्यार आदिके कारण धृष्टतापूर्वक व्यवहार करना ।
अगरी - स्त्री० [सं०] एक विषनाशक द्रव्य; देवताड़ वृक्ष । [हि०] व्योंडा: फूसकी छाजनका एक ढंग; * बुरी बात । | अगरु - पु० [सं०] अगरका पेड़ या लकड़ी । अगरे। - अ० सामने, आगे ।
अगड़धत्त (त्ता) - वि० लंबा-तगड़ा; ऊँचा; बढ़ा-चढ़ा | अगढ़बगड़ - वि० ऊलजलूल, बेसिरपैरका | पु० अंडबंड
बात या काम ।
अगड़म - बगड़म - पु० तरह-तरह की चीजों या काठ कबाड़का बेतरतीब ढेर ।
अगरो* - वि० अगला; श्रेष्ठ; अधिक; निपुण । अगर्व - वि० [सं०] गर्व या अभिमानसे रहित ।
अगण - पु० [सं०] पिंगलके चार गण-जगण, तगण, रगण, अगर्हित-वि० [सं०] जो बुरा न हो, अनिंद्य ।
सगण - जो छंदके आदिमें अशुभ माने जाते हैं । अगणनीय - वि० [सं०] दे० 'अगण्य' । अगणित - वि० [सं०] अनगिनत, बेहिसाब | अगण्य - वि० [सं०] असंख्य; तुच्छ, उपेक्षणीय । अगत * - स्त्री० दे० 'अगति' । अगति - स्त्री० [सं०] गतिका अभाव; पहुँचका न होना; बुरी गति, असद्गति; गति अर्थात् मोक्षकी अप्राप्ति । अगतिक - बि० [सं०] निरुपायः निराश्रय । - गति - स्त्री० आश्रयहीनका आश्रय, अंतिम आश्रय ( ईश्वर ) । अगत्या - अ० [सं०] अंतमें; सहसा; लाचार होकर । अगढ़ - वि० [सं०] नीरोग, स्वस्थः न बोलनेवाला । पु० औषध, स्वास्थ्य, आरोग्य |
अगदित - वि० [सं०] अकथित, जो कहा न गया हो । अगन+ - स्त्री० अग्नि । पु० दुष्ट गण ( पिंगल ) । वि० अगण, बेशुमार ।
अगनत, अगनित* - वि० दे० 'अगणित' ।
अगनिउ * - पु० अग्निकोण, दक्षिण-पूर्वका कोना । अगनी * - वि० अगणित । स्त्री० अग्नि । अगनू * - स्त्री० आग्नेय कोण ।
अगनेड (त) * - पु० अग्निकोण |
अगम - वि० [सं०] न चलनेवाला, अगंता; सुदृढ़ । पु० वृक्ष; पहाड़ | *वि० दे० 'अगम्य' । पु० दे० 'आगम' | अगमन - पु० [सं०] गमनका अभ्भाव, न जाना । * अ० आगे से पहले ।
अगमनीया - वि० स्त्री० [सं०] दे० 'अगम्या' ।
अगमानी * - पु० अगुआ, नायक । स्त्री० अगवानी । अगमासी - स्त्री० दे० 'अगवाँसी' |
अगम्य - वि० [सं०] दुर्गम पहुँच के बाहर, अप्राप्य; मन, बुद्धि के परे; कठिन; अपार; अथाह । अगम्या-वि॰ स्त्री॰ [सं०] न गमन करने योग्य (स्त्री) । स्त्री० वह स्त्री जिसके साथ संभोग निषिद्ध हो; अंत्यजा । -गमन - पु० अगम्या स्त्रीसे सहवास ( एक महापातक) । अगर- पु० एक पेड़ जिसकी लकड़ी में सुगंध होती हैं और धूप, दसांग में पड़ती है; ऊद |
अगर - अ० [फा०] यदि, जो । -चे- यद्यपि । मु०-मगर करना - तर्क करना; आगा-पीछा करना । अगरई - वि० कालापन लिये हुए सुनहले रंगका । अगरना * - अ० क्रि० आगे जाना या बढ़ना । अगर बगर* - अ० दे० 'अगल-बगल' | अगरा* - दे० 'अगरो' ।
अगल-बगल - अ० इधर-उधर; आस-पास । अगला - वि० आगेका; बीते समयका, पुराना; आनेवाला; बादका | पु० अगुआ; चतुर, चालाक आदमी; पूर्वज । अगवना* - स० क्रि० सहना, अंगेजना । अ० क्रि० अग्रसर होना ।
अगवाँसी - स्त्री० हलकी वह लकड़ी जिसमें फाल लगता है। अगवाई - स्त्री० अगवानी । पु० अगुआ ।
अगवाड़ा - पु० घरके आगेका भाग या भूमि; 'पिछवाड़ा'
का उलटा ।
अगवान - पु० अगवानी करनेवाला; अगवानी | अगवानी - स्त्री० आगे बढ़कर लेना या स्वागत करना, वरात स्वागतार्थं कन्यापक्षका आगे जाना । *५० अगुआ ।
अगवारt - पु० वह अन्न जो गाँवके पुरोहित, फकीर आदिको देनेके लिए खलिहान में राशिसे अलग कर दिया जाता है; ओसाते समय भूसेके साथ उड़नेवाला हलका अन्न; गाँवका चमार; दे० 'अगवाड़ा' | अगसार (री) -
- * अ० आगे ।
अगस्त- पु० ईसवी सालका आठवाँ महीना; दे० 'अगस्त्य' | अगस्ति, अगस्त्य - पु० [सं०] एक प्राचीन ऋषि (पुराणों में इनके समुद्र को चुल्लू में धरकर पी जानेकी बात लिखी हैं ); एक तारा; एक पेड़ ।
अगह* - वि० अग्राह्यः पकड़ में न आने लायक; चंचल; ग्रहण के अयोग्य; दुस्साध्य; वर्णन या चिंतनके बाहर | अगहन - पु० अग्रहायण या मार्गशीर्ष मास । अगहनिया - वि० अगहनमें होनेवाला ( धान ) । अगहनी - वि० अगहन में तैयार होनेवाला । स्त्री० अगइनमें तैयार होनेवाली फसल । अगहर* - अ० आगे, पहले ।
अगहुँड़ * - अ० आगे; आगेकी ओर । वि० आगे चलने
वाला ।
अगाउनी* - अ० अगौनी, आगे ।
अगाऊँ (ऊ) - वि० पेशगी, आगेका । अ० आगसे, पहले से । अगाड़ - पु० हुक्केकी निगाली; ढेकलीके छोरपर लगी पतली लकड़ी ।
,
अगाड़ा - पु० पहले भेजा जानेवाला यात्राका सामान । अगाड़ी - अ० आगे; पहले; सामने; भविष्य में । स्त्री० किसी वस्तुका आगेका हिस्सा; घोड़ेकी गरदन में बँधी रस्सियाँ; अँगरखे या कुरतेका सामनेका भाग | अगात्मजा - स्त्री० [सं०] पार्वती ।
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अगाध-अग्नि अगाध-वि० [सं०] अथाह; अपार; अधिकदुर्बोध । अगूता*-अ० आगे; सामने । अगान-वि० अशानी, नासमझ । पु० अशान, नासमझी। अगृह-वि० [सं०] गृहहीन, बेधरबारका । पु० वानप्रस्थ । अगाम-अ० आगे।
अगेह-वि० [सं०] दे० 'अगृह' । अगार-पु० [सं०] दे० 'आगार' । अ० आगे।
अगोई*-वि० स्त्री० जो गुप्त न हो, प्रकट । अगाव-पु० ईखके ऊपरका नीरस भाग ।
अगोचर-वि० [सं०] जिसका शान इंद्रिणसे न हो सके, अगास*-पु० दे० 'आकाश' द्वारके सामनेका चबूतरा।। इंद्रियातीत; अप्रकट । पु० वह जो इंद्रियातीत हो; ब्रह्म । अगाह*-वि० अथाह; अत्यधिक; उदास, चिंतित; दे० अगोट*-पु० आड़, रोक आश्रय, सहारा सुरक्षित स्थान । 'आगाह' । अ० आगेसे, पहलेसे ।
वि० अकेला, गुटरहित सुरक्षित । अगिधा-वि० अग्निदग्ध, आगसे जला हुआ। | अगोटना*-स० क्रि० छेड़ना, धेरना; छिपा या रोक अगिदाह*-पु० दे० 'अग्निदाह'।
रखना, कैद करना; स्वीकार करना; चुनना। अ० क्रि० अगिन-स्त्री० आग; एक छोटी चिड़िया; एक घास; ऊखका रुकना; फँसना, उलझना। ऊपरका हिस्सा । वि० बहुत अधिक; अगणित । -गोला| अगोता*-अ० सम्मुख, आगे । पु० अगवानी । -पु० एक तरहका बम जिसके फटने पर आग लग जाय। अगोरना -स० क्रि० बाट जोहना;* रखवाली करना; -बाव-पु० चौपायों, विशेषकर घोड़ोंको होनेवाला एक रोकना। रोग । -बोट-पु० स्टीमर, धुआँकश ।
अगोरिया -पु० खेत आदिकी रखवाली करनेवाला । अगिनत, अगिनित-वि० दे० 'अगणित' ।
| अगौढ़ा-पु० पेशगी दी जानेवाली रकम । अगिया-स्त्री० अगिन घास । पु० एक पौधा; घोड़ों-बैलोंका अगोता*-अ० आगे। पु० अगवानी; पेशगी। एक रोग; एक रोग जिसमें पैरमें छाले पड़ जाते अगौनी*-स्त्री० दे० 'अगवानी'; बरात आनेपर द्वारहैं। -बैताल-पु० विक्रमादित्यको सिद्ध दो बैतालोंमेंसे पूजाके समय छोड़ी जानेवाली आतिशबाजी । अ० आगे । एक मुहमे आग उगलनेवाला प्रेत; दलदल आदिसे | अगौरा-पु० दे० 'अगाव' । निकलनेवाली गैस जो आगके समान जलती दिखाई | अगौह*-अ० आगे आगेकी ओर ।
अग्नि-स्त्री० [सं०] आग; पंचमहाभूतों से तेज तत्त्व अगियाना -अ० क्रि० गरम होना; उत्तेजित होना। प्रकाश; उष्णता; गरमी; जठराग्नि; पित्त; अग्निकर्म, स० क्रि० बरतनको आगमें डालकर शुद्ध करना।
जलानेकी क्रिया सोना; ३की संख्या; भिलावाँ -कणर-पु० पूजाके लिए जलायी जानेवाली आग। | पु० चिनगारी-कर्म(न)-पु० अग्निहोत्र; होम; शव+वि० जिसकी आग अधिक समयतक रहे या अधिक तेज दाह; गरम लोहेसे दागना ।-कुंड-पु० बेदी,हवनकुंड । हो (लकड़ी, कोयला इ० )।
-कुमार-पु० शिवके पुत्र कात्तिकेय; एक अग्निवर्धक अगियारी -स्त्री० धूपकी तरह अग्निमें डालनेकी वस्तु । रस । -कुल-पु० क्षत्रियोंका एक वंश जिसकी उत्पत्ति भगीठा-पु० सामनेका हिस्सा, अगवाड़ा।
अग्निकुंटसे मानी जाती है-प्रमार, परिहार, चालुक्य अगीत-पछीत*-पु० अगवाड़ा-पिछवाड़ा। अ० आगे-पीछे। या सोलंकी और चीहान । -केतु-पु० धुआँ; शिव । अगुआ-पु० आगे चलनेवाला; मुखिया; पथप्रदर्शकः । -कोण-पु०,- दिक(श)-स्त्री० पूरब और दक्खिनविवाह तय करानेवाला, बिचुआ; आगेका हिस्सा। का कोना। -क्रिया-स्त्री० शवका दाह; दागना । - अगुआई-स्त्री० नेतृत्व, मार्गप्रदर्शन; अगवानी।
क्रीडा-स्त्री० आतिशबाजी। -गर्भ-वि० जिसके भीतर अगुआना-स० क्रि० अगुआ बनाना। अ० कि० आगे आग हो या जिससे आग पैदा हो । पु० अरणि; सूर्यकांत जाना।
मणि; आतिशी शीशा। -ज,-जन्मान्मन्),-जात अगुआनी-स्त्री० आगे जाकर स्वागत करना।
-पु० सुवर्ण; कात्तिकेय; विष्णु । वि० अग्निसे उत्पन्न अगुण-वि० [सं०] निर्गुण; गुणरहित; अनाड़ी। पु० -जिह्वा-स्त्रो० आगकी लपट; अग्निकी जीमें जो ७
अवगुण, दोष । -ज्ञ-वि० जिसे गुणकी परख न हो, बतायी जाती हैं ।-जीवी(विन)-पु० अग्निके आधारमुंवार।
पर काम करनेवाले--जैसे सुनार, लुहार आदि ।-त्रयअगुणी (णिन)-वि० [सं०] गुणहीन ।
पु०,-वेता-स्त्री० यथाविधि स्थापित तीन प्रकारकी अगुरु-पु० [सं०] अगर या शीशमका पेड़ । वि० हलका अग्नि ( गाई पत्य, आहवनीय और रक्षित)। -दानलघु (वर्ग); निगुरा गुरुसे भिन्न ।
पु० चिताको आग लगाना । -दाह-पु० जलाना; शवअगुवा-पु० दे० 'अगुआ।
दाह । -दिव्य-पु० अग्निपरीक्षा । -दीपक-वि० अगुसरना*-अ० क्रि० आगे बढ़ना ।
पाचनशक्ति बढ़ानेवाला। -परीक्षा-स्त्री० अग्नि द्वारा अगुप्सारना*-स० क्रि० आगे बढ़ाना ।
परीक्षा; जलती आग, खौलते तेल आदिके जरिये किसीके अगूठना*-स० क्रि० अगोटना, घेर लेना।
दोषी-निर्दोष होनेकी जाँच; सोना-चाँदी आदिको आगमें अगूठा-पु० घेरा।
तपाकर परखना कठिन परीक्षा। -पर्वत-पु० ज्वालाअगूढ-वि० [सं०] प्रकट; स्पष्ट; सहज । -गंध-पु०, मुखी पहाड़ । -पूजक-पु० आगकी पूजा करनेवाला;
-गंधा-स्त्री० हींग । -भाव-वि० जिसका भाव, अर्थ पारसी। -प्रणयन-पु० अग्निहोत्रकी अग्निका मंत्रछिपा हुआ न हो; सरल-चित्त ।
पूर्वक संस्कार करना। -प्रवेश-पु० आगमें प्रवेश
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अग्न्यस्त्र-अघोड़ी
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स्त्रीका पतिकी चिता में प्रवेश । - प्रस्तर - पु० चकमक पत्थर । - बाण - पु० वह वाण जिससे आगकी लपट निकले । - बीज - पु० सोना; 'र्' अक्षर -मंथ, - मंथन - पु० अरणीसे रगड़कर आग उत्पन्न करना; इस कार्य में प्रयुक्त मंत्र; गनियारीका पेड़ । - मणि- पु० सूर्यकात मणि; आतशी शीशा । -मांद्य-पु० जठराग्निका मंद हो जाना, हाजमेकी खराबी । - मानू ( मत्) - - मुख- पु० ब्राह्मण; देवता; प्रेत; अग्निहोत्री; चीतेका पेड़, भिलावाँ; एक अग्निवर्द्धक चूर्ण । -लिंग- पु० आग की लपट देखकर शुभाशुभ फल बतानेकी विद्या । - लोक- पु० एक लोक जिसके अधिकारी अग्निदेव माने गये हैं । - वंश - पु० अग्निकुल । - वधू- स्त्री० स्वाहा । - वर्द्धक, वर्द्धन - वि० पाचनशक्ति बढ़ानेवाला | - वर्षा - स्त्री० आगकी या तोपके गोलों, बर्मो आदिकी वर्षा । - विंदु - पु० चिनगारी - वारक- वि० ( फायर प्रूफ) अग्निका प्रभाव रोकनेवाला; वह जो आगके संपर्क में आनेपर भी न जले, सफलतापूर्वक उसके प्रभावका वारण कर सके । - शामक दल - पु० (फायर ब्रिगेड ) किसी मकान आदि में लगी हुई आग बुझानेका काम करनेके लिए संघटित प्रशिक्षित व्यक्तियों का दल । - शिखा - स्त्री० आगकी ज्वाला या लपट; कलियारी पौधा । -शुद्धि-स्त्री० आगमें तपाकर शुद्ध करना; अग्निपरीक्षा | - संस्कार - पु० आग जलाना; तप्त करना; अग्नि द्वारा शुद्धि करना; मृतक दाह; श्राद्ध में एक विधि। सखा, सहायपु० वायु; धुआँ; जंगली कबूतर - सेवन-पु० आग तापना । - होत्र - पु० वैदिक मंत्रोंसे अग्निमें आहुति देना । - होत्री (त्रिन्) - पु० अग्निहोत्र करनेवाला । अग्न्यस्त्र-पु० [सं०] मंत्र - प्रेरित बाण जिससे आग निकले; अग्नि चालित अस्त्र ( बंदूक, तमंचा आदि ) । अग्न्याधान - पु० [सं०] वेदमंत्र द्वारा अग्निकी स्थापना; अग्निहोत्र |
अग्य* - वि० दे० 'अज्ञ' ।
अग्या* - स्त्री० दे० 'आशा' |
अग्यारी - स्त्री० आगमें गुड़, दशांग आदि डालना; अग्यारी करनेका पात्र ।
अग्र - वि० [सं०] अगला; पहला; मुख्य; अधिक । अ०आगे । पु० अगला भाग, नोक; शिखर । - गण्य - वि० गणना में पहले आनेवाला, मुख्य । - गामी (मिन्)वि० आगे चलनेवाला । पु० नायक, अगुआ । -गामी दल - पु० ( फारवर्ड ब्लाक ) भारतका एक राजनीतिक दल जिसकी संस्थापना नेताजी सुभाषचंद्र वसुने की थी । - ज - वि० पहले जनमा हुआ; * श्रेष्ठ । पु० बड़ा भाई; ब्राह्मण; *अगुआ । - जन्मा (न्मन्) - पु० बड़ा भाई; ब्राह्मण । - जा - स्त्री० बड़ी बहन । -णी- वि० आगे चलनेवाला; श्रेष्ठ । पु० नेता; अगुआ; एक अग्नि । -तर - वि० (फरदर) और आगेका, कहे हुएके बादका । - दूत - पु० पहलेसे पहुँचकर किसीके आनेकी सूचना देनेवाला । - भाग - पु० श्रेष्ठ या अगला भाग; सिरा, नोकः श्राद्ध आदिमें पहले दी जानेवाली वस्तु । -लेखपु० समाचारपत्रका मुख्य ( संपादकीय ) लेख, ‘लीडिंग'
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आर्टिकिल' । -वर्ती (र्तिन् ) - वि० आगे रहनेवाला । - सर - वि०, पु० आगे जानेवाला, अग्रगामी, प्रधान, अगुआ । - सारण- पु० आगेकी तरफ बढ़ाना; किसीका आवेदन पत्रादि अपने से बड़े अधिकारीके पास स्वीकृति, आदेश आदि के लिए भेजना । -सारित - वि० (फारवर्डेड) ( आवेदन पत्रादि) जो आगे (ऊँचे अधिकारीके पास) भेज दिया गया हो, जो आगे बढ़ा दिया गया हो। -सोचीवि० [हिं०] आगेकी बात सोचनेवाला, दूरदर्शी । अग्रजाधिकार - पु० (प्राइमोजेनीचर) अपने पिताका राज्य, सम्पत्ति आदि वरासत में पानेका ज्येष्ठ पुत्रका अधिकार । अग्राशन-पु० [सं०] भोजनका वह अंश जो देवता, गौ आदिके लिए पहले निकाल दिया जाय । अग्रासन - पु० [सं०] सम्मानका आसन या स्थान । अग्राह्य- वि० [सं०] ग्रहणके अयोग्य; त्याज्य; अमान्य | - व्यक्ति - पु० ( परसोना नान्-ग्रेटा ) ( किसी देशका ) वह राजदूत, राजपुरुष या अन्य व्यक्ति जो (अन्य देशके) उच्चाधिकारियों आदिको अग्राह्य या अमान्य जान पड़े । अग्रिम - वि० [सं०] पहला, अगला; [हिं०] श्रेष्ठ, उत्तम; पेशगी; आगामी; सबसे बड़ा । - देय - पु० (इम्प्रेस्ट मनी) किसी कार्य - विशेषमें खर्च करने के लिए पहलेसे दिया गया धन, जिसका हिसाब बाद में किया जाय । धन- पु० ( reait) किसीके वेतन, कार्यके पारिश्रमिक, वस्तुके मूल्यादिका वह अंश जो उसे नियत तिथिसे पहले ही या वस्तु प्राप्त होनेके पूर्व ही दे दिया जाय ।
अग्रे मूल्य - पु० ( फारवर्ड प्राइस) आगे मिलने या लगाया जानेवाला मूल्य; बादमें बेची जानेवाली वस्तुका अभीसे लगाया जानेवाला मूल्य ।
अग्रेसर - वि०, पु० [सं०] आगे जानेवाला; अगुआ । अप्रेसरिक - पु० [सं०] नेता; मालिकके आगे जानेवाला नौकर ।
अघ - पु० [सं०] पाप; दुष्कर्म; दुःख; विपत्ति; अशौच । अघट - वि० [सं०] न होने योग्य, कठिन; *बेमेल, अयोग्य । वि० [ हि० ] जो घटे नहीं; जो एकसा बना रहे । अघटित - वि० [सं०] जो हुआ न हो; न होनेवाला, असंभव; अयोग्य, अनुचित; * अवश्यंभावी; * न घटनेवाला । - घटनापटीयसी - वि० (स्त्री०) जो कुछ नहीं हुआ हैं उसे करनेमें कुशल ( माया ) । अघट्ट* - वि० दे० 'अघट' | अघाउ * - पु० तृप्ति, संतोष अघात - पु० [सं०] घात या क्षतिका अभाव; * आघास, प्रहार, चोट । वि० पेटभर; ज्यादा, बहुत । अघाना - अ० क्रि० अफरना, तृप्त होना, छकना; किसी वस्तु के सेवन या उपभोगसे जी भरना; * प्रसन्न होना । अधारि - पु० [सं०] पापका नाश करनेवाला; अघ नामक दैत्य के मारनेवाले, कृष्ण ।
।
अघासुर - पु० [सं०] कृष्णके समयका एक दैत्य ( यह पूतनाका छोटा भाई और कंसका सेनापति था ) । अघी (विन्) - वि० [सं०] पापी । अघेरना - पु० जौका मोटा आटा । अघोड़ी - वि० पु० 'अघोरी' ।
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अघोर - पु० [सं०] शिवका एक रूप; एक शिवोपासक पंथ । वि० जो घोर या भयानक न हो, सौभ्य । -माथ - पु० शिव । - पंथ- पु० [हिं०] अघोरियोंका पंथ वा संप्रदाय । - पंथी - पु० [हिं०] अघोर मतका अनुयायी । अघोरी (डी) - पु० अघोरपंथी, औघड़; घिनौनी चीजें खाने-पीनेवाला । वि० घृणित; गंदा । अघोष - वि० [सं०] बिना शब्दका; अल्प ध्वनिवाला; ग्वालोंसे रहित । पु० एक वर्ण समूह ( प्रत्येक वर्गके प्रथम दो अक्षर तथा श, ष, स ) 1
अघौघ - पु० [सं०] पापसमूह ।
अघान * - पु० दे० 'अघ्राण' |
अघानना * - स० क्रि० गंध लेना, सूंघना |
अचंचल - वि० [सं०] जो चंचल न हो, स्थिर; धीर । अचंभव, अचंभो, भौ* - पु० अचंभा, आश्रर्य | अचंभा - पु० आश्चर्य, विस्मय; आश्चर्यजनक बात । अचंभित* - वि० चकित, विस्मित | अचक - वि० भरपूर, न चुकनेवाला *स्त्री० भौचक्कापन | अचकचाना - अ० क्रि० भौंचक्का होना, विस्मित होना, चौंक उठना ।
अचकन - पु० लंबा कलीदार अंगरखा जिसमें पहले गरेबाँसे कमरपट्टीतक अर्धचंद्राकार बंद लगते थे और अब सीधे बटन टँकते हैं ।
|
अचाहा* - वि० जिसकी चाह न हो; जो प्रेमपात्र न हो; पु० वह व्यक्ति जिसपर प्रेम न हो या जो प्रेम न करे । अचाही* *- वि० इच्छारहित, निष्काम । अचिंत * - वि० चिंता-रहित, बेफिक्र । अचिंतनीय - वि० [सं०] जिसका चिंतन न हो सके; अज्ञ य; आकस्मिक, अप्रत्याशित ।
अचिंतित - वि० [सं०] जो सोचा न गया हो; अतर्कित, आकस्मिक, अप्रत्याशित; उपेक्षित ।
अचित्य - वि० [सं०] दे० 'अचिंतनीय' |
अचकाँ* - अ० अचानक ।
अचिकित्स्य - वि० [सं०] जो चिकित्सा के योग्य न हो, असाध्य, लाइलाज ( रोग ) ( इनक्योरबिल ) ।
अचक्का' – पु० अनजान । - (के) में अचानक, धोखे में । अचिकीर्षु - वि० [सं०] जिसे (कोई काम ) करनेकी इच्छा अचगरा* - वि० उत्पाती, नटखट, शरारती । अचगरी* - स्त्री० नटखटी, शरारत ।
अचना * - मु० क्रि० दे० 'अचवना' |
न हो, जो कुछ करना न चाहता हो, आलसी । अचित्- वि० [सं०] अचेतन, जड । पु० जड जगत् । अचिर- अ० [सं०] शीघ्र; हालमें; कुछ ही पहले । वि० क्षणस्थायी; हालका । -द्युति, - प्रभा - स्त्री० बिजली । अचिरम् - रात्, अ० [सं०] शीघ्र, अविलंब; कुछ ही पहले | अचीता - वि० अनसोचा, आकस्मिक; बहुत अधिक; निश्चित । अचूक - वि० खाली न जानेवाला, अव्यर्थ; निश्चित, भ्रमरहित । * अ० कौशलपूर्वक सफाईसे; निश्चय पूर्वक ।
स्
अचरज - पु० आश्चर्य, अचंभा ।
अचरित - वि० [सं०] जिसपर कोई चला न हो; अव्यवहृत; अछूता । पु० गतिरोध ।
अचल - वि० [सं०] गतिहीन, स्थिर; चिरस्थायी, अटल । पुरै पहाड़; कील; ७की संख्या ( ७ कुल पर्वतोंपर से ); - कन्यका, - दुहिता, - सुता - स्त्री० पार्वती । - पतिराज - पु० हिमालय । -संपत्ति स्त्री० न हटायी जा सकनेवाली सम्पत्ति ( घर, खेत इ० ) । अचला - स्त्री० [सं०] पृथ्वी। -सप्तमी-स्त्री० माघ शुक्ला अचैन* - वि० बेचैन । पु० बेचैनी । सप्तमी ।
अचर-वि० [सं०] अचल, स्थावर | पु० स्थावर प्राणी अचेत ( स ) - वि० [सं०] संज्ञा-रहित, बेहोश; व्याकुल; या पदार्थ । नासमझ; जड | पु० जड पदार्थ; जडता, माया । अचेतन - वि० [सं०] चेतना-रहित; अज्ञान; निर्जीव; संज्ञा-रहित, बेसुध । पु० जड पदार्थ । अचेतनक- पु० ( अनीस्थेटिक ) चेतनाहीन, बेहोश, बना देनेवाला पदार्थ ( जैसे क्लोरोफार्म ) । अचेतनीकरण - पु० ( एनीस्थेसिस ) अचेतन या बेहोश कर दिया जाना, चेतना हीन हो जाना । अचैतन्य - वि० [सं०] चेतना-रहित, जड | पु० चेतनाका अभाव, अज्ञान; बेहोशी; जड पदार्थ ।
अचोना* - पु० आचमनका पात्र ।
अचपल - वि० [सं०] अचंचल, धीर, स्थिर; * वि० चंचल, शोख ।
अचपली* - स्त्री० छेड़छाड़, क्रीडा ।
अचभौन* - पु० अचरजकी बात; दे० 'अचंभा' |
अचमन * - पु० दे० 'आचमन' |
अचवन - पु० दे० 'आचमन' । अचवनrt - स० क्रि० आचमन करना, पीना; छोड़ देना । अ० क्रि० भोजनोपरांत कुल्लो आदि करना । अचवाई* - वि० प्रक्षालित, स्वच्छ । अचवाना - सु० क्रि० आचमन कराना | अचाक, अचाका* - अ० अचानक ।
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अघोर - अच्छा
अचान* - अ० अचानक, सहसा ।
अचानक - अ० यकायक, जिसकी पहले से सूचना, प्रतीक्षा न हो; औचट ।
अचार - पु० चिरौंजीका फल * दे० 'आचार'; + फल या तरकारी में मिर्च-मसाले लगाकर कुछ दिनोंतक तेल या सिरके में रखने से बना चटपटा खाद्य । अचारज* - पु० दे० 'आचार्य' ।
अचारी । - वि०, पु० दे० 'आचारी' । स्त्री० आमोकी फाँकोको धूप में सिझाकर बनाया हुआ अचार |
अचारु - वि० [सं०] असुंदर ।
अचाह* - स्त्री० चाहका अभाव, अनिच्छा । वि० इच्छारहित, निष्काम |
अच्छ - वि० [सं०] स्वच्छ, निर्मल, पारदर्शक; * अच्छा । पु० * आँख; रुद्राक्षः रावणका पुत्र अक्षकुमार । अच्छत - पु० दे० 'अक्षत' । वि० अखंडित; लगातार । अच्छर - पु० दे० 'अक्षर' |
अच्छरा (री)* - स्त्री० दे० 'अप्सरा' ।
अच्छा - वि० भला, बढ़िया; ठीक, सुंदर; खरा; सकुशल;
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अच्छाई-अजसी चंगा, निरोग; सुधरता हुआ; स्वास्थ्यकर ( जलवायु); अविभाज्य; अविनश्वर । संपन्न, प्रतिष्ठित; दाममें मुनासिब, सस्ता (?); जो बुरा न | अछेय-वि० छिद्र-रहित, निदोष । हो; कामचलाऊ । पु० श्रेष्ठ पुरुष, गुरुजन; बड़ा-बूढ़ा। अछेह*-वि० लगातार, निरंतर अत्यधिक । अ० अच्छी तरह; स्वीकार सूचक उत्तर, हाँ; खैर ( यह अछोप-वि० अंगा, तुच्छ, नीच; दीन । आश्चर्य भी प्रकट करता है-अच्छा, आप हैं !)।- अछोभ-वि० क्षोभरहित; गंभीर, शांत; निभीक; मोहखासा-वि० काफी अच्छा। -बुरा-वि० भला-बुरा। रहित; निडर; नीच । मु०-आना-ठीक वक्तपर आना (व्यंगमें इसका उलटा); अछोर*-वि० ओर-छोर-रहित । सुदर बनना ।-करना-तंदुरुस्त करना; आफतसे बचानाः | अछोह-पु० स्नेह, ममता या क्षोभका अभाव; शांति; अच्छा काम करना ।-कहना-तारीफ करना । लगना- निर्दयता । वि० निर्दय, निष्ठुर; स्नेहरहित, क्षोभरहित । सुदर लगना, पसंद आना, भला मालूम होना । अछोही-वि० दे० 'अछोह' । -(च्छी) कटना,-गुजरना,-बीतना-आरामसे दिन अज-वि० [सं०] अजन्मा, अनादि कालसे विद्यमान । पु० बीतना ।-(च्छे)अच्छे-बड़े आदमी ।-वक्त-जरूरतके ईश्वर; ब्रह्मा, विष्णु; शिव; जीवात्मा; दशरथके पिता; एक वक्त ।-से पाला पड़ना-बड़े बेढब आदमीसे वास्ता पड़ना। ऋषि; बकरा; भेड़ा; कामदेव; चंद्रमा मेष राशि -गरअच्छाई-स्त्री० भलाई, अच्छापन, खूबी।
पु० अजदहा, एक विशाल सर्प जो बकरी, हिरन आदिको अच्छापन-पु० उत्तमता, सुंदरता ।
निगल जाता है; एक असुर ।-वृत्ति-स्त्री० निरुद्यम या अच्छिन्न-वि० [सं०] जो कटा न हो, अखंडित ।
भगवानके भरोसे रहनेकी वृत्ति ।-गरी-वि० अजगरकी, अच्छोहिन, अच्छोहिनी-स्त्री० दे० 'अक्षौहिणी। बिना परिश्रमकी । स्त्री० अजगरी वृत्ति; एक पौधा ।। अच्युत-वि० [सं०] जो अपने स्वरूप, सामर्थ्य, स्थानसे अज़-अ० [फा०] से, साथ। -खुद-अ० खुद-बखुद, च्युत न हुआ हो; अचल, अस्खलित, निर्विकार; स्थिर; अपने आप ।-गैब-अ० रोबसे, परोक्षसे, अलक्षित न चूनेवाला । पु० परमेश्वर, विष्णुः कृष्ण ।
स्थानसे | *पु० अदृष्ट स्थान । -गैबी-वि० रोब, अलक्षित अच्युताग्रज-पु० [सं०] बलराम ।
स्थानसे आनेवाला, आकस्मिक, आस्मानी (अज़रीबी अच्युतात्मज-पु० [सं०] कामदेव; कृष्णका पुत्र ।
गोला,-तमाचा,-मार = अचानक आनेवाली विपदा, अछक-वि० जो छका न हो, अतृप्त ।
दैवी कोप)। -हद-अ० बेहद, अत्यधिक । अछकना ---अ० क्रि० न छकना, तृप्त न होना।
अजगर-दे० 'अज' के साथ। अछत*-अ० (क०) विद्यमानतामें, रहते हुए । वि०अविद्य- अजगव-पु० [सं०] शिवका धनुध् । मान, ('छतहूँ अछत समान' ); सिवा; अलावा । | अजगुत-पु० अचंभेकी बात, विचित्र व्यापार; अयुक्त अछताना-पछताना-अ० क्रि० बार-बार पछताना या| बात । वि० आश्चर्योत्पादक; अनुपमेय । खेद करना।
अजड-वि० [सं०] जो जड न हो, चेतन, समझदार । अछन -पु० बहुत दिन । अ० धीरे-धीरे ।
पु० चेतन पदार्थ । अछना-अ० क्रि० विद्यमान रहना।
अज़दहा-पु० [फा०] अजगर । अछप-वि० न छिपने लायक, प्रकट ।
अजन-पु० [सं०] ब्रह्मा, तुच्छ व्यक्ति गमन.। वि०निर्जन, अछय-वि० दे० 'अक्षय' ।
जनहीन; जन्मरहित; अजन्मा । अछरा(री)-स्त्री० दे० 'अप्सरा' ।
अजनबी-वि० [फा०] अपरिचित; परदेशी; अनजान । अछरौटी-स्त्री० वर्णमाला।
अजन्मा (न्मन्)-वि० [सं०] जन्म-रहित; अनादि । अछल-वि० [सं०] निश्छल, सीधा-सादा ।
अजपा-पु० [सं०] एक मंत्र जिसका उच्चारण साँसके भीतरअछवाई-स्त्री० सफाई ।
बाहर आने-जाने मात्रसे किया जाता है; हंस-मंत्र; अछवाना*-स० क्रि० साफ करना, सँवारना .
'सोऽहम्'। -जप-पु० अजपा मंत्रका जप । अछवानी-स्त्री० एक तरहका अवलेह जो प्रसूता स्त्रियोंको | अजब-वि० [अ०] विचित्र, अनोखा । पु० अचरज । दिया जाता है।
अज़मत-स्त्री० [अ०] बड़ाई, बुजुगी; गौरव; चमत्कार। अछाम-वि० जो दुबला न हो, मोटा-ताजा, हृष्ट-पुष्ट । अजमी-वि० [अ०] अजमका । पु० ईरानी, तूरानी । अछिद्र-वि० [सं०] छिद्ररहित; निर्दोष ।
अजय-स्त्री० [सं०] पराजय । वि० अजेय ।। अछूत-वि० दे० 'अछूता'; अस्पृश्य । पु० अछूत जातिका अजया-स्त्री० [सं०] भाँग, माया; दुर्गाकी एक सहचरी; मनुष्य, अंत्यज, हरिजन ।।
*बकरी । अछता-वि० जो छुआ न गया हो, अस्पृष्ट; जो काममें न | अजय्य-वि० [सं०] जो जीता न जा सके, अजेय । लाया गया हो, कोरा, नया।
अजर-वि० [सं०] जरारहित, जो सदा जवान रहे; क्षयअछूतोद्धार-पु० अछूतोंका उद्धार या सुधार; इसका यत्न रहित; *जो पचे नहीं । पु० परब्रह्म; देवता । या आंदोलन ।
अजरायल-वि० जीर्ण न होनेवाला,चिरस्थायी, टिकाऊ! अछेद-वि० अभेद्य । पु० छल-छिद्रका अभाव; निष्क- | अजवायन-स्त्री० एक प्रसिद्ध पौधा और उसके दाने । पटता; अभेद ।
अजस*-पु० दे० 'अयश'। अछेद्य-वि० [सं०] जिसका छेदन या खंडन न हो सके, अजसी-वि० बदनाम, जिसके हाथमें यश न हो।
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१९
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अजस्र - वि० [सं०] अविच्छिन्न, अनवरत । अ० निरंतर । अजहत्-वि० [सं०] जो छोड़े या खोये नहीं। -स्वार्था - स्त्री० वह लक्षणा जिसमें वाच्यार्थका त्याग किये बिना अन्यार्थका बोध होता है. उपादान लक्षणा (सा० ) अजहुँ, - हूँ * - अ० आज भी; अवतक । अजा - स्त्री० [सं०] प्रकृति, माया; शक्ति; बकरी । - गलस्तन - पु० बकरी के गले में लटकनेवाली स्तनाकार थैली; (ला० ) उस जैसी निरर्थक वस्तु ।
अजान - वि० अज्ञान; नासमझ; अज्ञात । पु० नासमझी, अनभिज्ञता ( में के साथ ) । - पन-पु० नासमझी । अज़ान (जाँ ) - स्त्री० [अ०] नमाजके समय की सूचना जो मस्जिद की छत या दूसरी ऊँची जगहपर खड़ा होकर दी जाती है, बॉंग |
अजाच* - वि० दे० 'अजाचक' ।
अजोग* - वि० अनुचित, अयोग्य; बेमेल, बेजोड़ ।
अजाचक, * अजाची* - वि० जिसे किसी से कुछ माँगनेकी अजोरना* - स० क्रि० छीनना, बटोरना; प्रकाशित करना । अज* - अ० आज भी; आजतक, अबतक ।
आवश्यकता न हो, धन-धान्यसे भरपूर | अजात - वि० [सं०] अजन्मा, अनुत्पन्न; अविकसित |शत्रु - वि० शत्रुविहीन, जिसका कोई शत्रु न ( जनमा) हो । पु० युधिष्ठिर; शिव; काशीका एक राजा; भगवान् बुद्धका समकालीन एक मगधनरेश | - श्मश्रु - वि० जिसे दाढ़ी-मूंछ न निकली हो, अल्पवयस्क ।
अजानता * - स्त्री० अज्ञान; अबोधता । अजामिल - पु० [सं०] पुराण-वर्णित एक पातकी जो मरते समय अपने बेटे 'नारायण' का नाम लेनेसे सद्गति पा गया। अजाय * - वि० बेजा, अनुचित । अजायब - पु० [अ०] अद्भुत, अनोखी वस्तुओंका समूह या संग्रह, (अजीवका बहुवचन) । - ख़ाना, - घर - पु० अद्भ तालय, म्यूजियम । अजाया * - वि० मृत ।
अजार* - पु० बीमारी ।
अजिऔरा- पु० आजके पिताका घर ।
अजित - वि० [सं०] जिसे कोई जीत न सका हो, अपरा जित; अजेय । पु० विष्णुः शिवः बुद्ध । अजितेंद्रिय - वि० [सं०] असंयमी, विषयासक्त, जिसे
अपनी इंद्रियोंपर अधिकार न हो । अजिन - पु० [सं०] खाल, चर्मः छाल; धौकनी । अजिर - पु० [सं०] आँगन; शरीर; वायु; इंन्द्रिय विषय । अजिह्न - वि० [सं०] जिह्वारहित | पु० मेढक | अजी - अ० संबोधन, 'एजी' का लघु रूप | अज़ीज़- वि० [फा०] प्रिय, प्यारा । पु०निकट संबंधी; मित्र । अजीत - वि० *अजित; अजेय ।
अजीब - वि० [अ०] अद्भुत, अनोखा ।
अजीबोगरीब - वि० [अ०] अनोखा; दुष्प्राप्य अजीरन - पु० दे० 'अजीर्ण' ।
अजीर्ण पु० [सं०] अपच, बदहजमी; अतिरेक, अतिशयता । वि० जो पचा न हो; जो गला न हो; जो पुराना न हुआ हो ।
अजीव - वि० [सं०] जीव-रहित, मृत; जड । पु० मृत्यु; जट पदार्थ; जड जगत् ( जैन ) ।
अजुगत, अजुगुत-पु० दे० 'अजगुत' ।
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अजस्र - अटकाव
अजूजा - पु० बिज्जू जैसा एक मुर्दाखोर जानवर । अजूबा - पु० [अ०] अनोखी, अचरजमें डालनेवाली चीज । अजूरा* - वि० न जुड़ा हुआ; पृथक; अप्राप्त । पु० मजदूरी । अजूह* - पु० युद्ध |
अजे, अजेई, अजै* -- वि० दे० 'अजेय' । अजेय - वि० [सं०] जिसे कोई जीत न सके । अजैव-वि० [सं०] जो जीव संबंधी न हो; अप्राणिज (इनऑर्गेनिक) ।
अज्ञ - वि० [सं०] ज्ञान-रहित; मूर्ख, नासमझ; अचेतन । अज्ञता - स्त्री०, अज्ञत्व - पु० [सं०] अज्ञान, नासमझी अचैतन्य |
अज्ञा* - स्त्री० दे० 'आशा' |
अज्ञात - वि० [सं०] न जाना हुआ; अप्रकट; अप्रत्याशित । -नामा ( मन्) - वि० जिसका नाम ज्ञात न हो, अप्रसिद्ध । - यौवना - स्त्री० मुग्धा नायिका जिसे यौवनागमका पता न हो । - वास-पु० गुप्तवास - स्वामिकवि० ( वह धन ) जिसके स्वामीका पता न हो । अज्ञान - पु० [सं०] ज्ञानका अभाव; मिथ्या ज्ञान, अविद्या । वि० ज्ञान-रहित, मूर्ख । - ता - स्त्री०, - पन - पु० [हि०] मूर्खता, नादानी, नासमझी ।
अज्ञानी (निन् ) - वि० [सं०] अश, मूर्ख, नासमझ । अज्ञेय - वि० [सं०] जो जाना न जा सके, ज्ञानातीत; जो जानने योग्य न हो । वाद-पु० ईश्वर या परमतत्त्व अज्ञेय है - यह मत । अज्यो * - अ० दे० अजीँ ।
अझर* - वि० जो न झरे; न बरसनेवाला ( बादल ) । अझोरी* - स्त्री० झोली ( जो कंधेपर लटकायी जाती है ) । अटंबर- पु० ढेर, राशि । अट-स्त्री० प्रतिबंध, शर्त ।
अटक - वि० [सं०] भ्रमण करनेवाला, भ्रमणशील । स्त्री० [हि०] अड़चन; उलझन; हिचक ।
अटकन - स्त्री० रोक, अड़चन; उलझन, हिचक; अकाज । अटकन-बटकन - पु० वच्चोंका एक खेल | अटकना - अ० क्रि० रुकनाः बोलने या पढ़ने में रुकना; उलझना; बहस करना; गलेसे न उतरना; प्रेमपाश में बँधना ।
अटकर - स्त्री० दे० 'अटकल' ।
अटकरना, अटकलना - स० क्रि० अनुमान करना; अंदाज लगाना ।
अटकल - स्त्री० अंदाज, अनुमान, पहचान । पच्च - वि० अंदाज, अनुमानाश्रित । अ० अंदाजन, अटकलके सहारे । - बाज़- वि० जो अटकल लगानेमें तेज हो, अनुमानकुशल | - बाज़ी - स्त्री० अटकल लगाना । अटका - पु० जगन्नाथजीको चढ़ाया हुआ भात । स्त्री० रुकावट; जरूरत ।
अटकाना - स० क्रि० रोकना; उलझाना; देर लगाना । अटकाव - पु० प्रतिबंध, रुकावट; अड़चन, बाधा ।
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अटखट-अड़पना
२० अटखट*-वि० अंड-बंड; टूटा-फूटा (सामान)।
लेनेवाला बच्चा; वह खेत जो आठ महीने तक जोतकर अटखेली-स्त्री० दे० 'अठखेली' ।
बिना बोये छोड़ दिया गया हो। वि. आठ ही मासमें अटन-पु० [सं०] घूमना, चलना, भ्रमण ।
उत्पन्न होनेवाला । -वारा-पु० आठ दिनका समय । अटना-अ० क्रि० पूरा पड़ना; काफी होना; बीच में पड़कर । -वाली-स्त्री० आठ कहारोंसे चलनेवाली पालकी;
ओट करना; अटन करना, भ्रमण या यात्रा करना । सेंगरेसे उठानेके लिए भारी चीजमें बाँधा जानेवाला बाँसअटपट-वि० दे० 'अटपटा' । स्त्री० कठिनाई।
का टुकड़ा। -सिल्या*-पु० (?) सिंहासन । अटपटा-वि० टेढ़ा, कठिन; ऊटपटांग; अनोखा; *लड़- अठई*-स्त्री० अष्टमी। खड़ाता हुआ।
अठकरी-स्त्री० दे० 'अठवाली' । अटपटाना*-अ० कि० अटकना; घबराना; हिचकना; अठकौसल-पु० पंचायत; मंत्रणा, सलाह । लड़खड़ाना।
अठखेल-वि० शोख, 'चुलबुला, खिलाड़ी (अप्र०)। अटपटी*-स्त्री० नटखटपनः शरारत ।
-पन-पु. चुलबुलापन;, शोखी । अटब्बर*-पु० आडंवर; कुटुंब ।
अठखेली-स्त्री० किलोल, शोखी, चुलबुलापन; ठसकभरी अटल-वि० अचल, स्थिर, निश्चित, अवश्यंभावी, पक्का । या मस्तानी चाल । (प्रायः बहुवचनमें ही व्यवहृत । ) अटवाटी-खटवाटी-स्त्री० खाट-खटोला, बोरिया-बंधना। । मु०-(लियाँ) करना-किलोल करना, इतराकर,
मु० -लेकर पड़ना-रूठकर अलग जा बैठना । नाजके साथ चलना। अटवि, अटवी-स्त्री० [सं०] वन ।
अठत्तर-वि०, पु० दे० अठहत्तर' । अटहर-पु० देर; फेंटा; अड़चन ।
अठन्नी-स्त्री० आठ आनेका सिक्का । अटा-स्त्री० [हि०] अटारी* पु० अटाला, ढेर।
अठपाव-पु० शरारत, नटखटी। अटाउ*-पु० बिगाड़; शरारत !
अठलाना*-अ० कि० दे० 'इठलाना' । अटाट-वि० अनगिनत, बेशुमार ।
अठवना*-अ० क्रि० जमना, ठनना । अटारी-स्त्री० कोठा, अट्टालिका ।
अठहत्तर-वि० सत्तर और आठ । पु० ७८ की संख्या । अटाला-पु० ढेर, अंबार; असबाब; कसाइयोंकी बस्ती। अठाई -वि० उत्पाती; नटखट । अटूट-वि० न टूटनेवाला, दृढ़, मजबूत; अखंडित; न अठान-वि० न ठानने, न करने योग्य (काम); कठिन चुकनेवाला, बहुत, अपार; अजेय ।
(काम)। पु० वैर, विरोध । अटेरन-पु० सूतकी आँटी बनानेका यंत्र; कुश्तीका एक । अठाना*-स० क्रि० सताना ठानना; छेड़ना; जमाना । पेंचा घोड़ा फेरनेका चक्कर ।
अठारह-वि० दस और आठ । पु०१८ को संख्या। अटेरना-स० क्रि० सूतकी आँटी बनाना बहुत अधिक | अठासी-वि०, पु० दे० 'अट्ठासो'। शराब पीना।
अठिलाना*-अ० क्रि० दे० 'इठलाना'। अटोक*-वि० प्रतिबंध-हीन ।
अठोठ*-पु० ढोंग, आडंबर । अट्ट-वि० [सं०] ऊँचा, उच्च स्वरयुक्तः सूखा हुआ; निरं- अठोतर सी-वि० एक सौ आठ । तर । पु० कोठा, अटारी; महल; बुर्ज; अन्न; भात; हाट; अठोतरी-स्त्री० एक सौ आठ दानोंकी माला। रेशमी कपड़ा; वध, घायल करना; अतिशयता, प्राधान्य । अडंगा-पु० अटकाव, रोक, रुकावट, बाधा; कुश्तीका एक हसित-हास,-हास्य-पु० जोरकी हँसी; ठहाका। पेंच । -(गे)बाज़-पु० अड्गे लगानेवाला। अदृसट्ट-वि० अंडबंड, अगड़म-बगड़म । पु० निरर्थक वात। अडंड-वि० दे० 'अदंड्य' । अट्टालिका-स्त्री० [सं०] महल; पक्की इमारत; अटारी। अडंबर*-पु० दे० 'आडंबर' । अट्टी-स्त्री० सूत या ऊनका लच्छा।
अड़-स्त्री० टेक, हठ । अढा-पु० ताशका वह पत्ता जिसपर आठ बूटियाँ हों। अड़काना-स० क्रि० अड़ाना, टिकाना; उलझाना । अट्ठाइस,-ईस-वि० बीस और आठ । पु० २८की संख्या। अडग-वि० न डिगनेवाला, स्थिर । अट्टानबे-वि० नब्बे और आठ । पु० ९८ की संख्या । अड़गड़ा-पु० बैलगाड़ियोंके ठहरने या बैलों आदिके अट्ठारह-वि०, पु० दे० 'अठारह'।
बिकनेका स्थान । अट्ठावन-वि० पचास और आठ । पु० ५८ की संख्या। अड़गोड़ा-पु० नटखट चौपायोंके गले में बाँधी जानेवाली अढासी-वि० अस्सी और आठ । पु० ८८ की संख्या । एक लकड़ी जो तेज दौड़नेमें बाधक होती है। अठंग*पु० अष्टांग योगकी साधना करनेवाला ।
अड़चन(ल)-स्त्री० रुकावट, बाधा । भठ-पु० आठका समासमें प्रयुक्त रूप । -पतिया-स्त्री० | अड़तल-पु० ओट; बहाना; आश्रयः छाया । एक तरहकी नक्काशी।-पहला-वि० आठ पहलोंवाला, अडतालिस,-तालीस-वि० चालीस और आठ। पु० जिसमें आठ पार्श्व हों। -पृष्ठी, -पेजी-वि० ४८ की संख्या। (आक्टेवो) (छपी हुई पुस्तक या फार्मका वह आकार) अडतीस-वि० तीस और आठ । पु० ३८ की संख्या। जिसमें एक ही तरफ छपे एक कागजमें आठ पृष्ठ किये गये अड़दार-वि० अड़नेवाला; मस्त (हाथी)। हों। -मासा-पु० दे० अठवाँसा । -वासा-पु० गर्भके अडना-अ० क्रि० रुकना, अटकाना; हठ करना। आठवें महीने होनेवाला संस्कार; आठ ही मासमें जन्म अपना-स० कि० डाँटना-डपटना ।
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२१
अड़बंग-अति-उत्पादन अड़बंग,अड़बंगा-वि० टेढ़ा, विकट विलक्षण बेढब, टेढ़े परमाणुओंका संघात; परमाणु; कण, जर्रा; मात्राका मिजाजवाला।
चतुर्थांश ( छंद); वि० अतिसूक्ष्म ।-बम-पु० एक अति अडर*-वि० निडर ।
संहारकारी बम । -वाद-पु० जीवको अणु माननेवाला अड़सठ-वि० साठ और आठ । पु० ६८ की संख्या। दर्शन, वल्लभाचार्यका मत; अणुको नित्य और प्रपंचका अड़हुल-पु० लाल रंगका एक फूल, जपाकुसुम ।
कारण माननेवाला सिद्धांत, न्यायवैशेषिक दर्शन । अड़ाअड़ी-स्त्री० होड़, लाग-डाट ।
-वीक्षण-पु० सूक्ष्मदर्शक यंत्र, खुर्दबीन अढ़ाद-पु० चौपायोंको रखनेका घेरा, खरक; अडार । अतंक*-पु० दे० 'आतंक'। अड़ान-पु० रुकनेकी जगह पड़ाव ।
अतंत्र-वि० [सं०] तंत्र या तंतु-रहित । पु० अनिअड़ाना-स० क्रि० रोकना, अटकाना; डाट लगाना; यंत्रित कार्य । ह्सना, ढरकाना । पु० एक राग; डाटा थूनी, चाँड। | अतंद्र-वि० [सं०] तंद्रारहित, जागरूक, सतर्क। अड़ानी-पु० बड़ा पंखा । स्त्री० कुश्तीका एक पेंच, अडंगा। अतंद्रित,-ल, अतंद्री (दिन् )-वि० [सं०] दे० 'अतंद्र'।
लकड़ीकी रोक जो खिड़की-दरवाजेमें लगायी जाती है। । अतः-अ० [सं०] इसलिए, इस कारण; अबसे; इस स्थानसे; अड़ायती*-वि० आड़ करनेवाला।
___ इससे, इसकी अपेक्षा। अडार-पु. ढेर; जलानेकी लकड़ीका ढेर; लकड़ीकी अतएव-अ० [सं०] इसलिए, इस कारण; इसीसे । दुकान । * वि० नुकीला; तिरछा।
अतथ्य-वि० [सं०] असत्य, अयथार्थ, गलत । अड़ारना*-स० क्रि० डालना; देना ।
अतद्गुण-पु० [सं०] एक अर्थालंकार जिसमें संगति आदि अडिग-वि० जो अपनी जगहसे डिगे, हिले नहीं, अटल । । कारण मौजूद होते हुए दूसरेका गुण ग्रहण न करना अड़ियल-वि० अड़कर चलनेवाला; मट्टरः हठी।
दिखाया जाता है। अड़िया-स्त्री० साधुओंकी कुबड़ी।
अतनु-वि० [सं०] देहरहित; मोटा । पु० कामदेव । अड़ी-स्त्री० दे० 'अड़'; जरूरतका वक्त
अतप्त-वि० [सं०] जो तपा या गरम न हो। अडीठ-वि० जो दिखाई न दे गुप्त ।
अतर-पु०इत्र,पुष्पसार ।-दान-पु०अतर रखनेका पात्र । अडूलना*-स० कि० ढालना, उड़ेलना।
अतरल-वि० [सं०] जो तरल या द्रव न हो, गाढ़ा, ठोस । भडूसा-पु० एक पीधा जिसके पत्तों और फूलोंका रस अतरसों-अ० परसोंके बाद या पहलेका दिन, आजसे कास-श्वासका उत्तम औषधि है।
बादका या पहलेका चौथा दिन । अडोर*-पु० शोर-गुल, अंदोर ।
अतरिख-पु० दे० 'अंतरिक्ष'। अडोल*-वि० अटल, अडिग; स्तब्ध ।
अतर्क-वि० [सं०] तर्कहीन, असंगत, अहेतुक । पु० तर्कका अड़ोस-पड़ोस-पु० आस पास, पास-पड़ोस ।
अभाव; तकहीन बहस करनेवाला। अड़ोसी-पड़ोसी-पु० पास-पड़ोसमें रहनेवाले ।
अतर्कित-वि० [सं०] अनसोचा, अननुमित; आकस्मिक । अडा-पु० मिलने या इकट्ठा होनेकी जगह; चोरों, जुआ- अतयं-वि० [सं०] तक न करने योग्य; अचिंत्य ।
आदिके मिलनेकी जगह; कुटनियोंका डेरा; अतल-पु० [सं०] सात पातालोंमेंसे पहला; शिव । वि० डोली ढोनेवाले कहारोंके रहनेका स्थान; इक्कों, ताँगों तलहीन, अथाह । आदिके रुकने, ठहरनेकी जगह; किसीके उठने-बैठनेकी अतलस-पु० एक तरहका रेशमी कपड़ा। खास जगह; केंद्रस्थान; पिंजड़ेके भीतर चिड़ियाके बैठनेके अतवान*-वि० बहुत अधिक । लिए लगी आड़ी लकड़ी या छड़, कबूतरोंकी छतरी; अताई-वि० जिसने खुद सीखा हो, जो बिना सीखे हुए कपड़ेका गद्दा जिसपर छीपी कपड़ा रखकर छापते हैं; कोई काम करे; चतुर, चालाक; दक्ष, अनाड़ी, जिसे जुलाहेका करधा; जाली काढ्नेका चौखटा; वह पाई जिस- ईश्वरकी देनके रूपमें कोई विद्या प्राप्त हुई हो (व्यंग्य)। पर बैठकर गोटा बुनते हैं ।
पु० वह गवैया या वैद्य जिसने अपने कामकी शिक्षा न अदतिया-पु० आढ़तका कारवार करनेवाला; एजेंट । पायी हो। -नुस्खा-पु० फकीरी नुस्खा; इधर-उधरसे अढ़वना*-स० कि० आशा देना।
सीखा हुआ नुस्खा। अढ़वायका-पु० वह व्यक्ति जो दूसरोंको काम करनेमें अतापी-वि० तापरहित; शांत । नियुक्त करता हो।
अतारांकित प्रश्न-पु० (अन-स्टार्ड क्वेश्चन) विधानसभा अढ़िया -स्त्री० काठ या पत्थरका बना छोटा बरतना आदिके अधिवेशनमें प्रश्नोत्तरके समय पूछा जानेवाला गारा आदि ढोनेकी लोहेकी हलकी छोटी कड़ाही। वह प्रश्न जिसमें तारांक लगाकर विभेद न किया गया हो अदुकना*-अ० क्रि० ठोकर खाना सहारा लेना।
और जिसका उत्तर मौखिक न देकर लिखित दिया जाय । अया-पु० ढाई सेरकी तौल या बाट; ढाई गुनेका पहाड़ा। अति-अ० [सं०] एक उपसर्ग जो संशाके पूर्व आनेपर अतिअणिमा (मन)-स्त्री० [सं०] अणुत्वः सूक्ष्मता; योगकी | शयता, सीमोलंघन, श्रेष्ठता, प्रशंसा आदिका और विशे८ सिद्धियोंमेंसे पहली जिससे योगी अणुरूप ग्रहण कर षण तथा अव्ययके पूर्व आनेपर आधिक्यका सूचन करता अदृश्य हो सकता है।
है । स्त्री० अधिकता, अतिशयता, अतिरेक; सीमोल्लंघन । अणु-पु० [सं०] पदार्थका सबसे छोटा इंद्रिय-ग्राह्य विभाग | अति-उत्पादन-पु० (ओवर-प्रोडक्शन) खपत या माँगसे जो मौलिक वस्तुके गुण रखता है (मॉलेक्यूल); ६० | अधिक मात्रामें पण्य वस्तुओंका उत्पादन ।
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२२
अतिकाय-अतींद्रिय अतिकाय-वि० [सं०] भारी डील-डौलवाला विशालकाय । रामको सिखायी थी; एक पौधा जो दवाके काम आता है। पु० रावणका एक बेटा ।
अतिमुक्त-वि० [सं०] जिसे मुक्ति मिल गयी हो; वीतअतिकाल-पु० [सं०] बेलाका बीत जाना; अबेर ।
राग । पु० दे० 'अतिमुक्तक' । अतिक्रम,-क्रमण-पु० [सं०] (क्षेत्र, अधिकार आदिकी) | अतिमुक्तक-पु० [सं०] माधवी लता; एक वृक्ष । सीमाका उलंघन; कर्तव्यका उल्लंघन; दुरुपयोगः प्रबल | अतिमूत्र-पु० [सं०] बहुमूत्र रोग । आक्रमण; बीतना बढ़ जाना (बल, संख्या आदिका); अतिमैथुन-पु० [सं०] अत्यधिक स्त्री-संभोग। जीतना; काबू पाना; (एंक्रोचमेंट) अपनी भूमि,अधिकार, | अतिमोदा-स्त्री० [सं०] सुगंधकी अधिक मात्रा; नवकर्तव्य आदिकी सीमाका उल्लंघन कर दसरेकी भूमि, मलिका, नेवारी।। अधिकार आदिकी सीमामें प्रवेश, कब्जा या हस्तक्षेप अतियोग-पु० [सं०] अतिशयता; रेल-पेल; औषधमें करना, सीमोलंघन; (वायोलेशन) संधि आदिकी शौका द्रव्यविशेषको नियत मात्रासे अधिक मिलाना । अपालन वा उलंघन।
अतिरंजन-पु० [सं०] बढ़ा-चढ़ाकर कहना। अतिक्रांत-वि० [सं०] आगे बढ़ा हुआ; बीता हुआ; अतीत; अतिरंजना-स्त्री० [सं०] बढ़ा-चढ़ाकर कहना, अतिक्रमका उलंघन किया हुआ । पु० बीती हुई बात ।
शयोक्ति। अतिक्रामक-पु० [सं०] क्रम या मर्यादाका उहंघन अतिरथ, अतिरथी(थिन्)-पु० [सं०] अवेले बहुतोंसे करनेवाला।
लड़नेवाला रथारूढ़ योद्धा । अतिगति-स्त्री० [सं०] उत्तम गतिः मुक्ति ।
अतिरिक्त-वि० [सं०] बढ़ा हुआ, नियत परिमाणसे अधिक अतिचरण-पु० [सं०] जितना करना हो उससे अधिक । फाजिल; भिन्न अद्वितीय । अ० सिवाय, अलावा ।-पत्रकरनाः समान सीमा या अधिकारके बाहर जाना। -पु०वह समाचार या विज्ञप्ति आदि जो अलग छापकर अतिचार-पु० [सं०] अतिक्रमण, आगे बढ़ जाना; एक- समाचार-पत्रके साथ बाँटी जाय, क्रोडपत्र । -लाभराशिका भोगकाल समाप्त हुए बिना दूसरीमें चला जाना
(एक्सेस प्रॉफिट) साधारण या नियमितसे अधिक लाभ । मर्यादाका उहंघन ।
अति(ती)रेक-पु०[सं०] आधिक्य, अतिशयता आवश्यअतिचारी (रिन्)-वि० [सं०] अतिक्रमण करनेवाला,
श्यकतासे अधिक, फाजिल होना; अंतर । आगे निकल जानेवाला।
अतिरोग-पु० [सं०] राजयक्ष्मा, क्षयरोग । भतिजीवन-पु० (सरवाइवल) अन्य व्यक्तियों, प्रजा
अतिवक्ता(क्त)-वि० [सं०] बकवादी, बहुत बोलनेवाला। तियों, प्रथाओं आदिके समाप्त हो जानेके बाद भी किसी अतिवाद-पु० [सं०] कठोर वचन डींग; अतिरंजना। व्यक्ति, प्रजाति, प्रथा आदिका जीवित या बना रहना। अतिवादी(दिन्)-वि० [सं०] बहुत बोलनेवाला; सबके अतिथि-पु० [सं०] अभ्यागत; वह संन्यासी जो कहीं एक
मतका खंडन कर अपने पक्षकी स्थापना करनेवाला खरी रातसे अधिक न ठहरे; यज्ञमें सोम-संबंधी कार्य करने बात कहनेवाला डींग मारनेवाला। वाला अनुचर । -क्रिया-स्त्री० आतिथ्य । -गृह,- अतिवाहन-पु० [सं०] विताना, यापन; भेजना। भवन-पु० (गेस्ट-हाउस) अतिथियों, अभ्यागतीको
अतिवृष्टि-स्त्री० [सं०] अत्यधिक वर्धा । ठहरानेके लिए निर्धारित गृह, प्रकोष्ठादि । -देव-वि० अतिवेला-स्त्री० [सं०] अतिकाल, अबेर; वेलाका अतिक्रम। जिसके लिए अतिथि देवरूप हो। -पति-पु० मेजबान। अतिव्याप्ति-स्त्री० [सं०] लक्षणमें लक्ष्यके अतिरिक्त अन्य -पूजा-स्त्री० अतिथिका स्वागत-सत्कार । -शाला- वस्तुका भी आ जाना (न्याय); लक्षणके तीन दोषोंमेंसे एक। स्त्री० (गेस्ट हाउस) दे० 'अतिथिगृह' । -सत्कार-पु०, अतिशय-वि० [सं०] बहुत ज्यादा; अत्यधिक । पु० -सेवा-स्त्री० अतिथिपूजा, मेहमानकी आवभगत । अधिकता; अतिरेक; श्रेष्ठता; एक अर्थालंकार । अतिदर्प-पु० [सं०] अत्यधिक अभिमान ।
| अतिशयोक्ति-स्त्री० [सं०] किसी बातको बढ़ा-चढ़ाकर अतिदेश-पु० [सं०] अन्य वस्तुके धर्मका अन्यपर आरो- कहना, अतिरंजना; एक अर्थालंकार जिसमें किसी वस्तुका पण निर्दिष्ट विषयके अलावा और विषयोंपर भी लागू अतिरंजित वर्णन होता है। होनेवाला नियम सादृश्य, उपमा; निष्कर्ष ।
अतिसंधान-पु० [सं०] धोखा, छल-कपट; अतिक्रमण अतिदोष-पु० [सं०] बहुत बड़ा दोष, अपराध ।
उचित लक्ष्यसे आगे निशान लगाना ( ओवर हिटिंग, अतिपात-पु० [सं०]अतिक्रम नियम वा मर्यादाका उलंघन; ओवर शूटिंग)। (कालका) व्यतीत हो जाना; अव्यवस्था विरोध; विघ्न । अतिसंधि-स्त्री० [सं०] शक्तिसे अधिक सहायता देनेकी अतिपातक-पु० [सं०] धर्मशास्त्र में बताये हुए ९ महा- प्रतिज्ञा एक मित्रकी सहायतासे दूसरे मित्र या सहापातकोंमेंसे सबसे बड़ा।
यककी प्राप्ति । अतिप्रजनन-पु० (ओवर पॉपुलेशन) किसी देश या क्षेत्र- अति(ती)सार-पु० [सं०] दस्त या आँवकी बीमारी। की आबादीका इतना अधिक बढ़ जाना कि उसके लिए। अतिसौरभ-वि० [सं०] अत्यधिक सुगंधवाला । पु० बहुत वहाँ समुचित रूपसे निर्वाह करना कठिन हो गया हो। अधिक सुगंध; आम। अतिबल-वि० [सं०] अति बलवान् (ऐसायोद्धा)जो बहुतोंसे अतिहसित-पु० [सं०] हासके छः भेदोंमेंसे एक; जोरकी अकेले लड़ सके । पु० बहुत बड़ा बल; शक्तिशाली सैन्य ।। हँसी। अतिबला-स्त्री० [सं०] एक अस्त्रविधा जो विश्वामित्रने अतींद्रिय-वि० [सं०] इंद्रियोंकी पहुँचके बाहर अगोचर ।
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अतीचार-अदभ्र अतीचार-पु० दे० 'अतिचार'।
| अत्र-अ० [सं०] यहाँ, इस जगह; इस संबंधमें; वहाँ। अतीत-वि० [सं०] बीता हुआ, गत; मृत; परे, पार गया -स्थ-यहाँ रहनेवाला; इस जगहका । हुआ; निलेप; न्यारा। पु० भूतकाल; साधु, संन्यासी अत्वरा-स्त्री० [सं०] शीघ्रताका अभाव । गोसाइयोंकी एक जाति; *अतिथि, साधु । अ० परे । अथ-अ० [सं०] आरंभ तथा मंगल-सूचक शब्द; अब तब, अतीतना*-अ० क्रि० बीतना, गुजरना।
अनंतर; अगर । पु० आरंभ, आदि। -किम्-अ० और अतीथ*-पु० दे० 'अतिथि'; गोसाइँयोंकी एक जाति । क्या; हाँ; अवश्य । -च-अ० और; और भी। -से अतीव-अ० [सं०] बहुत अधिक, अत्यंत ।
इतितक-आदिसे अंततक । अतीस-पु० [सं०] एक वनौषधि, अतिविषा ।
अथक-वि० न थकनेवाला। अतुंग-वि० [सं०] जो ऊँचा न हो, नाटा ठिंगना । अथना, अथयना*-अ० कि० अस्त होना। अतुराई*-स्त्री० आतुरता, चंचलता।
अथरा-पु० नाद, मिट्टीका एक बरतन जो कपड़ा रँगने अतुराना*-अ० क्रि० आतुर होना, जल्दी मचाना । आदिके काममें आता है। अतुल-वि० [सं०] जिसकी तौल-माप न हो सके; अमित, अथरी-स्त्री० छोटा अथरा, मिट्टीका छिछला बरतन जिसमें तुलनारहित । पु० तिलक वृक्ष; अनुकूल नायक (केशव)। दही जमाते हैं और कुम्हार हंडी रखकर थापीसे पीटते हैं। अतुलनीय-वि० [सं०] जिसकी तुलना न हो सके। अथर्व-पु० [सं०] एक वेद जो चौथा वेद माना जाता है। अपरिमित ।
अथर्वणि-पु० [सं०] अथर्ववेदोक्त कर्मोको जाननेवाला अतुलित-वि० [सं०] बिना तौला हुआ बेहिसाब बेजोड़। ब्राह्मण पुरोहित ।। अतुल्य-वि० [सं०] बेजोड़ ।
अवनी*-पु० यज्ञादि करानेवाला पुरोहित । अतुप-वि० [सं०] बिना भूसीका।
अथवना*-अ० क्रि० अस्त होना। अतुष्टि-स्त्री० [सं०] अप्रसन्नता, असंतोष ।
अथवा-अ० [सं०] वा, या। अतुहिन-वि० [सं०] जो ठंढा न हो। -कर-रश्मि,- अथाई-स्त्री० बैठक, चौपाल; गाँववालोंके एकत्र होनेका रुचि-पु० सूर्य ।
स्थान, गोष्ठी, मंडली। अतूथ*-वि० अपूर्व, अतुल्य ।
अथान, अथाना-पु० अचार । अतूल*-वि० दे० 'अतुल'।
अथाना-अ० क्रि० दे० 'अथवना' । सक्रि० थाह लेना। अतृप्त-वि० [सं०] असंतुष्ट; भूखा ।
हूँढ़ना। अतृप्ति-स्त्री० [सं०] संतुष्ट न होनेको अवस्था असंतुष्टि । अथावत-वि० अस्त, डूबा हुआ । अतोर*-वि० अटूट।
अथाह-वि० बहुत गहरा, अगाध; अपार, बेहिसाब अतोल, अतील-वि०विना तौला हुआ; बेजोड़ बेहिसाब । अगम्य । पु० समुद्र; गहराई ।। अत्ता-स्त्री. अति, ज्यादती ।
अथिर*-वि० अस्थिर; क्षणस्थायी । अत्तार-पु० [अ०] इत्र बेचनेवाला; यूनानी दवाएँ बनाने, अथोर -वि० जो कम न हो, अधिक, बहुत । बेचनेवाला।
अदंक*-पु० डर, भय । अत्ति-स्त्री० अति, ज्यादती, ऊधम ।
अदंड-वि० [सं०] अदंडनीय; * निर्भय, बिना महसूलका। अत्यंत-वि० [सं०] हदसे ज्यादा; अतिशय पूर्ण, नितांत अदंडनीया-ड्य-वि०स०] दडका अनाधकारात दडमुक्त। अ० अत्यधिक, पूरे तौरसे ।।
अदंडमान-वि० अदंड्य । अत्यंताभाव-पु० [सं०] किसी वस्तु का पूर्ण अभाव | अदंत-वि० [सं०] बे-दाँतका; जिसे दाँत न निकले हों। तीनों कालों में संभव न होना (जैसे आकाश कसुम) अदभ-वि० [सं०] दभराहतः सच्चा; सरल, * अकृत्रिम, अत्यंतिक-वि० [सं०] बहुत चलने या घूमनेवाला; अति | स्वाभाविक । समीपी।
अदक्ष-वि० [सं०] अकुशल, भद्दा, बदशकल । अत्यम्ल-पु० सं०] इमलीका पेड़ । वि० बहुत खट्टा। । अदग*-वि० बेदाग, निदोष, अछूता । अत्यय-पु० [सं०] बीतना; अभाव; विनाश; मृत्यः अंतः। अदत्त-वि० [सं०] नहीं दिया हुआ; अनुचित तरीकेसे दंड; अपराध; आक्रमण; मर्यादाका अतिक्रमण कष्ट ।
दिया हुआ; जो दिया न गया होविवाहमें जिसे न अत्याचार-पु० [सं०] अनुचित आचरण, दुराचार; ढोंग; दिया गया हो । जुल्म, उत्पीडन, अन्याय ।
अदत्ता-स्त्री० [सं०] अविवाहिता कन्या । वि० स्त्री० न अत्याचारी(रिन)-वि० [सं०] अत्याचार करनेवाला । | दी हुई। अत्याज्य-वि० [सं०] जो छोड़ा न जा सके।
अदद-पु० [अ०] संख्या , अंक । अत्याहारी (रिन्)-वि० [सं०] अधिक आहार करनेवाला। अदन-पु० [सं०] भक्षण, खानेकी क्रिया। पु० [अ०] अत्युक्ति-स्त्री० [सं०] किसी बातको बढ़ा-चढ़ाकर कहना,
स्वर्गका उद्यान जहाँ ईश्वरने आदमको रखा था। मुबालिगा; एक अलंकार जिसमें उदारता, वीरता अदना-वि० [अ०] छोटा तुच्छ ।
आदिका बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है। अदब-पु० [अ०] विनय, शिष्टाचार बड़ोंका सम्मान । अत्युत्पादन-पु० [सं०] मालका अत्यधिक मात्रामें / अदबदाकर-अ० हठ करके अवश्य । उत्पादन।
अदभ्र-वि० [सं०] अनल्पः प्रचुर * अपार । २-क
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२४
अदम-अन्दा अदम-पु० [अ०] अभाव, अनस्तित्व; अनुपस्थिति पर- अदिति-स्त्री० दक्षकी पुत्री जी देवताओंकी माता मानी लोक । -पैरवी-स्त्री० मुकदमेमें किसी फरीककी ओरसे जाती है। पृथ्वी प्रकृति; वाणी। जरूरी काररवाईका न होना।
अदिन-पु० कुदिन, कुसमय, अभाग्य । अदम्य-वि० [सं०] जो दबाया न जा सके; उत्कट, प्रबल । अदिव्य-वि० [सं०] लौकिका स्थूल । पु० लौकिक नायक। अदय-वि० [सं०] निष्ठुर, निर्दय ।।
अदिष्टा-पु० दे० 'अदृष्ट'; दुर्भाग्य । अदरक-पु. एक पौधा जिसकी गाँठे दवा, चटनी, अचार अदिष्टी-वि० अदूरदर्शी; दुष्ट; अभागा । आदिके रूप में खायी जाती हैं ।
अदीक्षित-वि० [सं०] जिसने दीक्षा नहीं ली है। अदरकी-स्त्री० सोंठौरा।
अदीठ-वि० अदृष्ट, न देखा हुआ; छिपा हुआ। अदरा-स्त्री० दे० 'आर्द्रा' ।
अदीन-वि० [सं०] दीनता-रहित; अकातर न दबनेवाला; अदराना-अ० क्रि० आदर-मनुहारसे गर्ववृद्धि होना, तेजस्वी उदार । मिजाज बिगड़ना; इतराना । स० क्रि० आदर-मनुहारसे | अदीयमान-वि० [सं०] जो दिया न जा सके, अदेय । मिजाज बिगाड़ना।
अदीह*-वि० अदीर्घ, छोटा । अदर्शन-पु० [सं०] दर्शनका अभाव; दिखाई न देना; अदुंद*-वि० निद्वंद्व, बेफिक्र; शांत; बेजोड़ । लोप, नाश उपेक्षा।
अदुतिय*-वि० अद्वितीय, बेजोड़। अदर्शनीय-वि० [सं०] जो देखने योग्य न हो, भद्दा ।
अदूजा-वि० अद्वितीय । अदल-वि० [सं०] बिना पत्तेका; बिना सेनाका । पु० अदर-अ० [सं०] निकट, पास। वि० पासका। पु० [अ०] दे० 'अद्ल'।
सामीप्य । -दर्शी (शिन)-वि० दूरतक न सोचनेअदल-बदल-पु० हेर-फेर, परिवर्तन ।
वाला; अविचारी। अदली*-वि० न्यायी, न्यायशील ।
अदूषण-वि० [सं०] दूषणरहित, निर्दोष । अदलीय-वि० (इंडिपेंडेंट) जो किसी विशेष दलसे संबद्ध अदषित-वि० [सं०] अविकृत, शुद्ध, निदोष ।
न हो; उन लोगोंसे संबंध रखनेवाला जो किसी दल-! अदृश्य-वि० [सं०] जो दिखाई न दे, जो देखा न जा विशेष में शामिल न हों।
सके, अगोचर; लुप्त, गायब । अदवाइन-स्त्री० दे० 'अदवान'।
अदृष्ट-वि० [सं०] न देखा हुआ; अदृश्य; अज्ञात, अननुअदवान-स्त्री० चारपाईके पैतानेकी रस्सी, ओनचन ।
भूत; अस्वीकृत, अवैध । पु० भाग्य, प्रारब्ध कर्मजन्य अदहन-पु० दाल-चावल आदि पकानेके लिए आगपर संस्कार, पूर्वजन्मोंमें संचित पुण्य-पाप जो इस जन्मके चढ़ाया गया पानी; खौलता हुआ पानी।
सुख-दुःखके कारण माने जाते है। -पूर्व-वि० जो पहले अदांत-वि० [सं०] जो दबाया न गया हो, काबृमें न न देखा गया हो; अदभुत, विलक्षण । -वाद-पु० किया हुआ; जिसने अपनी इंद्रियोंका निग्रह न किया हो। प्रारब्धवाद, नियतिवाद । अदाँत-वि० बिना दाँतका (पशु)।।
अदृष्टाक्षर-पु०[सं०] ऐसी स्याहीसे लिखे अक्षर जोमाधारण अदा-स्त्री० [अ०] देना, चुकाना, पूरा करना; बयान अवस्था में अदृश्य रहें, विशेष उपायसे ही पढ़े जा सकें। करना। [फा०] हाव-भाव, मोहक चेष्टा; टुंग; तर्ज। अष्टार्थ-वि० [सं०] आध्यात्मिक या गूढ अर्थ रखनेवाला; -कार-पु० अभिनेता । -यगी-स्त्री० भुगतान, चुकता जिसका विषय इंद्रियगोचर न हो।
अदेख*-वि० अदृश्य न देखा हुआ, जो न देखा जाय । अदाई*-वि० चालबाज; चतुर ।
अदेखी-वि० जो दूसरेका सुख-उत्कर्ष न देख सके, डाही। अदाग, अदागी*-वि० बेदाग, साफ, स्वच्छ, निष्कलंक । अदेय-वि० [सं०] न देने योग्य; जिसका दान उचित या अदाता (त)-वि० [सं०] जो न दे, अनुदार, कृपण;
वैध न हो; जिसे देनेको कोई विवश न किया जा सके। विवाहके लिए (कन्या) न देनेवाला; जिसे चुकाना न हो। अदेस*-पु० आदेश प्रणाम; दे० 'अंदेशा'। अदान-वि० [सं०] न देनेवाला, कंजूस । * वि० नादान,
अदेह-वि० [सं०] देहरहित । पु० कामदेव । नासमझ।
अदैन्य-वि० [सं०] दीनता या हीनतासे रहित । पु० अदानी*-वि० कृपण, कंजूस ।
दीनताका अभाव। अदाय-वि० [सं०] हिस्सा पानेका अनधिकारी।
अदोख, अदोखिल*-वि० दे० 'अदोष' । अदायाँ*-वि० वाम, प्रतिकूल; बुरा ।
अदोष-वि० [सं०] दोषरहित, बेबा निरपराध । अदालत-स्त्री० [अ०] न्यायालय ।
अदोस*-वि० दे० 'अदोष' । अदालती-वि० अदालत-संबंधी; मुकदमेबाज ।
अदौरी -स्त्री० उर्द की सुखाई हुई बरी । अदाव-पु० कुदा, कठिनाई।
अद्ध*-वि० दे० 'अर्द्ध'। अदावत-स्त्री० [अ०] वैर, शत्रुता ।
अद्धरज-पु० दे० अध्वर्यु'। अदावती-वि० अदावत रखनेवाला; द्वेषसे किया गया। अद्धा-पु० किसी चीजकी आधी तील या नाप; बोतलका अदाह*-स्त्री० हाव-भाव, अदा ।
आधा, बोतली एक बोतली या एक पाइंट शराब; आधे अदाहक-वि० [सं०] न जलानेवाला।
घंटेपर बजनेवाला धंटा; रसीद आदिका आधा भाग जो अदित*-पु० आदित्य; रविवार ।
देनेवालेके पास रह जाता है, मुसन्ना ।
करना।
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अद्धी-अधिक अद्धी-स्त्री० दमड़ीका आधा, पैसेका सोलहवाँ भाग; अधन-वि० [सं०] धनहीन, कंगाल!
मलमलकी किस्मका एक तरहका बढ़िया बारीक कपड़ा। अधनिया-वि० आध आनेका; जो दो पैसे में मिले । अदभुत-वि० [सं०] विचित्र, अनोखा, विस्मयजनक । अधन्ना-पु०, अधन्नी-स्त्री० आध आनेका सिका। पु० काव्यके ९ रसों से एक रस जिसका स्थायीभाव अधफर*-पु० अधर, अंतरिक्ष ।। विस्मय है।
अधम-वि० [सं०] नीच, निकृष्ट; दुष्ट, पापी, निर्लज्ज । अद्भुतालय-पु० [सं०] जहाँ अद्भुत वस्तुओंका संग्रह अधमई, अधमाई*-स्त्री० अधमता, नीचता । हो, अजायबघर।
अधमर्ण-पु० [सं०] ऋण लेनेवाला, कर्जदार (डेटर )। अद्भुतोपमा-स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद । अधमांग-पु० [सं०] शरीरका नीचेवाला भाग, पैर । अध-अ० [सं०] आजकल, आज; अभी। वि० खाने- अधमा-स्त्री० [सं०] नायिकाका एक भेद; निम्न श्रेणीयोग्य ।
की स्त्री; कर्कशा स्त्री। अद्यतन-वि० [सं०] आजका, आजसे संबंध रखनेवाला। अधमुख*-वि० दे० 'अधोमुख'। अद्यापि-अ० [सं०] आज भी; आजतक; अबतक ।
अधमोद्धारक-वि० [सं०] पापियोंको तारनेवाला। अद्यावधि-अ० [सं०] आजतक; अबतक ।
अधर-वि० [सं०] नीचा; नीचेका; नीच, बुरा; घटिया; अद्यावधिक-वि० (अपटुडेट) बिलकुल आज तकका, हाल (हि०) जो पकड़ा न जा सके। पु० नीचेका ओंठ, होंठ तकका; जिसमें बिलकुल हाल तकके तथ्य तथा आँकड़े धरती और आकाशके बीचका स्थान; पाताल; अंतरिक्ष आदि आ गये हों; जो अभी-अभीतकके भूषाचारों, तौर- -पान-पु० होंठ चूमना, चुबन । -बुद्धि-वि० क्षुद्र तरीकों आदिसे परिचित हो।
या नीच बुद्धिवाला। -मधु,-रस-पु० अधरामृत । अद्वा*-स्त्री० दे० 'आर्द्रा'।
-में झूलना-में पड़ना-में लटकना-बीचमें पड़ा अद्वि-पु० [सं०] पहाड़ा पत्थर सातकी संख्या-कन्या, रहना; अधूरा रहना; दुविधामें पड़ा रहना। -तनया,-नंदिनी,-सुता-स्त्री० पार्वती। -पति,- अधरज-पु० ओठोंकी लाली या पानकी लकीर । राज-पु० हिमालय ।
अधरम-पु० दे० 'अधर्म' । अदल-पु० [अ०] न्याय, इंसाफ । -परवर-वि० न्याय- अधराधर-पु० [सं०] नीचेका ओंठ।। शील, इंसाफ करनेवाला।
अधरामृत-पु० [सं०] अधररसके रूपमें रहनेवाला अमृत । अद्वितीय-वि० [सं०] जैसा कोई दूसरा न हो, बेजोड़, अधरोष्ठ, अधरौष्ठ-पु० [सं०] नीचेका ओंठ; नीचे और लासानी; अकेला; अद्भुत, अनोखा:
ऊपरके ओंठ। अद्वैत-पु० [सं०] द्वैत या भेदका अभाव; जीव-ब्रह्म या अधर्म-पु. [सं०] धर्म-विरुद्ध कार्य, शास्त्र-विरुद्ध कर्म या जडचेतनकी एकता; ब्रह्म। वि० अद्वितीय । -वाद- आचरण; पाप, दुष्कर्म; अन्याय अकर्तव्य । पु० जीव और ब्रह्मका अभेद बतानेवाला दर्शन; जगतका अधर्मी(र्मिन्)-वि० [सं०] अधर्म करनेवाला, पापी । मूल तत्त्व एक ही है यह मत, वेदांत ।-वादी(दिन्)- अधर्म्य-वि० [सं०] धर्म-विरुद्ध; अधर्मी; अवैध; अन्याय । वि० अद्वैतवादके सिद्धांतको माननेवाला, वेदांतीं। अधवा-स्त्री० [सं०] विधवा, पतिरहिता, राँड़ । अधः:(धस)-अ० [सं०] नीचे नीचेके लोकमें, पाताल अधश्चर-पु० [सं०] सेंध लगाकर चोरी करनेवाला चोर । या नरकमें । (समासमें नाम या विशेषणके पहले लगकर वि० नीचे-नीचे या जमीनपर रेंगकर चलनेवाला । 'नीचे' या 'नीचेका' अर्थ प्रकट करता है। ) -पतन,- अधात्वीय-वि० [सं०] जो धातुका न बना हो, धातुसे पात-पु० नीचे गिरना; पतन, अधोगति, अवनति । भिन्न पदार्थसे बना हुआ। अध-वि० 'आधा' का समासमें व्यवहृत लघु रूप । अधार*--पु० दे० 'आधार'। -कचरा-वि० अपक्क; अधूरा अधूरी जानकारी रखने- अधारिया-पु० बैलगाड़ीमें गाड़ीवानके बैठनेका स्थान, वाला, अकुशल, अधकुटा। -कपारी-स्त्री० आधे सिर- मोढ़ा। का दर्द, आधासीसी। -करी-स्त्री० मालगुजारी, लगान अधारी*-स्त्री० आधार, सहारा; साधुओंकी लकड़ी आदिकी आधी किस्त । -कहा-वि० अस्पष्ट रूपसे कहा | मुसाफिरी थैला । पु० बे-निकाला हुआ बैल । वि० स्त्री० हुआ। -खिला-वि० अर्द्धविकसित । -खुला-वि० अच्छी, भली लगनेवाली; सहारा देनेवाली। आधा खुला हुआ; अोन्मीलित ( आँखें, कली इ०)। अधार्मिक-वि० [सं०] अधर्मी, धर्मसे संबंध न रखनेवाला; -गोरा-वि० यूरोपियन और एशियाई मा-बापकी | पापी, दुष्कर्मी। संतति, यूरेशियन, ऐंग्लोइंडियन । -घट*-वि० जो अधावट-वि० औटाकर आधा किया हुआ (दूध इ०)। पूरा न घटे; अस्पष्ट अर्थवाला, कठिन । -जर*-वि० अधि-अ० (उप०) [सं] यह ऊपर, मुख्य, प्रधान (अधिआधा जला हुआ। -जल-वि० आधा भरा हुआ (घड़ा राज), अधिक, अतिरिक्त ( अधिमास), संबंधी, विषयक इ०)। -जला-वि० अर्द्धदग्ध, आधा जला हुआ। (अधिदैव, अध्यात्म ) आदि अर्थोंका द्योतन करता है। -पई-स्त्री० एक बाट जो आधा पाव होता है। बुध*- | अधिक-वि० [सं०] बहुत, ज्यादा बढ़ा हुआ; असाधारण; वि० अर्द्धशिक्षित । -बैसू*-बि० अधेड़ । -मरा,- अतिरिक्त, फाजिल; विशेष बादका: गौण । पु० एक अलंमुआ-वि० अर्द्धमृत, मृतप्राय ।
कार जिसमें आधेयका आधारसे अधिक होना कहा जाता अधड़ी*-वि० अधर में स्थित ऊटपटाँग ।
है; एक निग्रहस्थान-हेतु, व्याप्ति और दृष्टान्तसे जो सिद्ध
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अधिकता-अधिनियम हो उससे अधिक सिद्ध करना (न्या०)। -कोण-पु० . हुए देशपर तबतक अधिकार बनाये रखनेवाली सेना जबतक (आब्यूस एंगिल) एक समकोणसे बड़ा, किंतु दो वहाँ नियमित शासनकी व्यवस्था कायम न हो जाय । समकोणोंसे छोटा कोण-कोण त्रिभुज-पु० (आन्ट युस | अधिकारिराज्य-पु० (ब्यूरोक्रेसी) वह राज्य जिसकी एंगिल्ड ट्राइएंगिल) वह त्रिभुज जिसका एक कोण अधिक शासन-व्यवस्था मुख्य रूपसे अधिकारियोंकी परंपरापर कोण हो । -तर-वि० और अधिक, किसीकी तुलनामें आश्रित हो; नौकरशाही कर्मचारितंत्र । अधिक बड़ा । अ० बहुत करके,ज्यादातर ।-तिथि-स्त्री० अधिकारी (रिन)-वि० [सं०] अधिकार रखनेवाला, हकदो दिन मानी जानेवाली तिथि। -दिन,-दिवस-दे० दार । पु० वह जिसमें पात्रता हो; मालिका शासक 'अधिकतिथि-मास-पु. लौंदका महीना, मलमास । अफसर, पुरुष (सृष्टिकर्ता); नाटकका वह पात्र जिसे अधिकता-स्त्री० [सं०] बहुतायत, बढ़ती; विशेषता । मुख्य फलकी प्राप्ति होती है। अधि (क) प्रतिनिधित्व-पु० (वेटेज) किसी अल्पसंख्यक अधिकृत-वि० [सं०] अधिकार या कब्जे में आया हुआ, संप्रदाय या वर्गको दिया जानेवाला उसकी संख्याके | अधिकार-संपन्न; आवश्यक योग्यता रखनेवाला। पु० अनुपातसे अधिक प्रतिनिधित्व ।
अधिकारी, अध्यक्ष । -गणक-पु० (चार्टर्ड अकाउंटेंट) अधिकर-पु० (सूपर टैक्स) अधिक आयपर या किसी। हिसाब-किताबकी जाँच इत्यादिका काम भली-भाँति विशेष अवस्थामें लगनेवाला अतिरिक्त कर ।
जाननेवाला व्यक्ति जिसे उपयुक्त परीक्षाके बाद सरकारसे अधिकरण-पु० [सं०] आधार, आश्रय, अधिष्ठान; संबंध; इसका प्रमाणपत्र मिला हो। सामान, पदार्थ; दावा; प्राधान्य; व्याकरणमें क्रियाका | अधिकृति-स्त्री० [सं०] अधिकार, स्वत्व । आधार, सातवाँ कारक; न्यायालय; प्रकरण, अध्याय, वह अधिकोष-पु० (क) लोगोंका रुपया जमा करने और प्रकरण या परिच्छेद जिसमें किसी विषयकी पूर्ण विवेचना माँगनेपर ब्याज सहित लौटा देने, ऋण देने आदिका काम की जाय; अधिकार-प्रदान; (ट्रिब्यूनल) न्यायालय करनेवाली कोठी या संस्था। राज्यका कोई मुख्य विभाग (जैसे नावधिकरण)। अधिकोषण कार्य (व्यापार)-पु. (बैंकिंग विजिनेस) अधिकरणिक-पु० [सं०] न्यायाधीश अधिकारी। दूसरीका रुपया जमा करने, लोगोंको ऋण देने आदिका अधिकर्म (न)-पु० [सं०] निगरानी, निरीक्षण निरी- कारबार, कोठीवाली, महाजनी। क्षक, अध्यक्ष । -कर, -कृत-पु० मजदूरों आदिके अधिक्रम,-क्रमण-पु० [सं०] आरोहण; चढ़ाई, हमला। कामकी देखभाल करनेवाला, मेठ ।
अधिक्षेत्र-पु० (जूरिडिक्शन) दे० 'अधिकारक्षेत्र' । अधिकर्मी-पु० ( ओह्वरसीयर ) कुछ लोगोंपर निगरानी अधिगत-वि० [सं०] प्राप्त; शात; पढ़ा हुआ। रखते हुए उनके कामोंकी देखभाल करनेवाला अधिकारी। अधिगम-पु० [सं०] प्राप्ति; पहुँचना; जानना; सीखना; अधिकांग-पु० [सं०] अतिरिक्त अंग । वि० अतिरिक्त धनादिकी प्राप्ति; व्यापारिक लाभ । अंगवाला।
| अधिग्रहण-पु० (एक्विजिशन) अधिकार या अभियाचन अधिकांश-पु० [सं०] बड़ा भाग। वि० अधिकतर । अ० द्वारा किसीकी संपत्ति आदि ले लेना। बहुधा, अकसर ।
अधिज्य-वि० [सं०] (धनुषु ) जिसका चिल्ला चढ़ा हुआ अधिकाई-स्त्री० अधिकता; विशेषतामहत्त्व ।
हो, तना हुआ। अधिकाधिक-वि० [सं०]अधिकसे अधिक,ज्यादासे ज्यादा। अधित्यका-स्त्री० [सं०] पहाड़ आदिके ऊपरकी समतल अधिकाना*-अ० कि० अधिक होना, बढ़ना।
भूमि, 'टेबुललेंड'। अधिकार-पु० [सं०] प्रभुत्व; शक्ति, इख्तियार हक, निरी- अधिदंत-पु० [सं०] दाँतके ऊपर निकलनेवाला दाँत । क्षण; कर्तव्य पद: प्रयल; स्थान; स्वत्व, कब्जा; राज्य, | अधिदार्व-वि० [सं०] काष्ठ-संबंधी, काठका। हुकूमत; पात्रता, योग्यता; शान; कर्म-विशेषकी पात्रता अधिदिन-पु० [सं०] दे० 'अधिक दिन' । प्रकरण, विषय; नाटकके प्रधान फलका प्रभुत्व या उसको अधिदेय-पु०(अलाउंस) यात्रा व्यय,भोजन-व्यय, मकानप्राप्त करनेकी योग्यता ।-क्षेत्र-पु०(जरिस्डिक्शन) किसी के किराये आदिके संबंध या किसी अतिरिक्त कामके न्यायाधीश आदिके अधिकारकी सीमा या क्षेत्र । -का | लिए कर्मचारीको दी जानेवाली बँधी हुई रकम, भत्ता ! अवक्रमण-पु(डिवॉल्यूशन ऑफ पावर ) अधिकार-अधिदेव-पु० [सं०] इष्ट देवः प्रधान देव; देवाधिपः परका एक व्यक्ति या संस्थाके हाथसे दूसरेके हाथमें चला। मेश्वर । वि० देव-संबंधी। जाना या दे दिया जाना; अप्रयुक्त अधिकारोंका अंतिम अधिदैव, अधिदैवत-पु० [सं०] दे० 'अधिदेव' । हकदारको प्राप्त हो जाना । -पत्र-पु० (चार्टर)अधिकार अधिनाथ-पु० [सं०] अधीश्वर; प्रधान अधिकारी। प्रदान करनेवाला वह लिखित प्रलेख जो राज्य, राजा या अधिनायक-पु० [सं०] मुखिया, नेता; अनियंत्रित, प्रधान शासकसे प्राप्त हुआ हो। -पृच्छा-स्त्री० ( क्वो सर्वाधिकार-संपन्न शासक या अधिकारी, 'डिक्टेटर'। वारंटो) वह लिखित आदेशपत्र जिसके द्वारा किसी -तंत्र-पु० (डिक्टेटरशिप) एक व्यक्ति या व्यक्तिसमूहका व्यक्ति या निगमित संस्थासे पूछा जाय कि किस अधिकार- स्वेच्छापूर्ण शासन, जिसमें शासित वर्गकी स्वीकृति लेने के आधारपर उसकी ओरसे किसी पद या मताधिकारका या इच्छा जाननेकी आवश्यकता न समझी जाय । दावा किया जा रहा है।
अधिनियम-पु० (ऐक्ट) विधानमंडल (अथवा राजा या अधिकारिका सेना-स्त्री० (आरमी ऑफ आकुपेशन) जीते । प्रधान शासक) द्वारा पारित या स्वीकृत विधि ।
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अधिनियमन-अधिष्ठित अधिनियमन-पु० (इनैक्टमेंट) दे० 'विधायन'।
नालय', काम-दिलाऊ दफ्तर । अधिनिर्वाचित करना-स० क्रि० (कोऑप्ट) किसी संस्थाके अधिरथ-वि० [सं०] रथारूढ़ । पु० रथ हाँकनेवाला, विद्यमान सदस्योंका अपने अधिकारसे किसी बाहरी सारथिः कर्णको पालनेवाला सूत । व्यक्तिको भी संस्थाका सदस्य निर्वाचित कर लेना। अधिराज-पु० [सं०] सम्राट् , अधीश्वर । अधिनिष्कासन-पु० (इविक्शन) विधि-विहित कार्यवाही अधिराज्य-पु० [सं०] सम्राट का पद या अधिकार; साम्राद्वारा किसीको भूमि, मकान आदिसे बाहर निकाल देना। ज्य। पु० (डोमिन्यन) स्वराज्य-प्राप्त उपनिवेश, स्वतंत्र अधिप-पु० [सं०] मालिक, स्वामी; राजा, शासक; प्रधान। उपनिवेश।। अधिपति-पु० [सं०] दे० 'अधिप' ।
अधिरूढ-वि० [सं०] चढ़ा हुआ; बढ़ा हुआ। अधिपत्र-पु० (वारंट) वह पत्र जिसमें किसीको कोई काम अधिरोप-पु० (चार्ज) किराया, दंड आदिके रूप में किसीपर करनेका अधिकार, अनुमति या आशा दी जाय, लिखित अधिरोपित की जानेवाली रकम । आदेशपत्र; किसीको पकड़ने या उसका माल जब्त | अधिरोहण-पु० [सं०] ऊपर चढ़ना, सवार होना, धनुष, करनेकी न्यायालयकी लिखित आशा।
पर चिल्ला चढ़ाना। अधिपुरुष-पु० (बॉस) किसी संस्था आदिका प्रमुख अधि- अधिलाभांश-पु. वह लाभांश जो किसी कारखाने या कारी अधिकारप्राप्त व्यक्ति।
व्यापारिक संस्थाके कर्मियों या हिस्सेदारोंको वेतन या अधिभार-पु० (सरचार्ज) कर या शुल्कादिका वह अति- साधारण लाभांशके अतिरिक्त दिया जाय । रिक्त भार जो विशेष परिस्थितिमें या विशेष कार्यके लिए अधिवक्ता(क्त)-पु० [सं०] किसी पक्षका समर्थन करनेकिसीपर डाला जाय; निर्धारित परिमाणसे अधिक कर, वाला (एडवोकेट), न्यायालय आदिमें किसीके मामलेकी शुल्क इत्यादि।
पैरवी करनेवाला; वकील; वक्ता । अधिमान-पु०(प्रेफरेंस) किसी वस्तु, देश, व्यक्ति आदिको अधिवर्ष-पु० (लीप-ईयर) (अधिक दिन या अधिक मास.
औरोंसे अधिक महत्त्व या मान देना, वरीयता, तरजीह ।। वाला वर्ष) वह चांद्र वर्ष जिसमें मलमास पड़ता हो; अधिमान्य-वि० (प्रेफरेबिल) जो औरोंसे अधिक अच्छा, वह ईसवी सन् जिसमें फरवरी २९ दिनका हो; वह सौर महत्त्वपूर्ण या ग्रहण करने योग्य हो अथवा समझा जाय । वर्ष जिसमें फाल्गुन ३१ दिनका हो । अधिमान्यता-स्त्री० (प्रेफरेंस) अधिमान्य होनेका भाव, अधिवसित-वि० [सं०] अध्युषित, आबाद, बसा हुआ। वरीयता (राजकीय अधिमान्यता=इंपीरियल प्रेफरेंस)। अधिवास-पु० [सं०] वासस्थान, बस्ती विलंबतक ठहरना; अधिमास-पु० [सं०] हर तीसरे वर्ष बढ़नेवाला चांद्र दूसरेके घर जाकर रहना । पु० (डोमिसाइल) एक देश, मास, लौंदका महीना।
प्रांत या राज्यसे हटकर किसी दूसरे देश, प्रांतादिमें स्थायी अधिमूल्यपर-अ० (अबव्ह पार) निर्धारित या अंकित रूपसे बस जाना; सुगंध; सुगंधित उबटन आदिका उपयोग मूल्यसे अधिक दामपर।
विवाहके पहले हल्दी आदि चढ़ानेकी एक रीति; लबादा । अधिया-पु० आधेका हिस्सेदार । स्त्री० आधेकी साझेदारी; | अधिवासित-वि० [सं०] सुगंधित, बसाया हुआ। ऐसी व्यवस्था जिसमें उपजका आधा मालिकको और आधा | अधिवासी (सिन्)-वि०, पु० [सं०] क्सनेवाला, रहनेखेत जोतने-बोनेवालेको मिलता है।
वाला; (डोमिसाइल्ड पर्सन) दूसरे देश या राज्यादिमें अधियाचन-पु० (रेक्विजिशन) किसी विशेष कार्यके लिए स्थायी रूपसे जा बसनेवाला; सुवासित करनेवाला ।। किसीसे कोई चीज अधिकारपूर्वक माँगना या कोई काम अधिविकर्ष-पु० (ओव्हर ड्राफ्ट) अधिकोष या बैंकमें करनेकी (लिखित) माँग करना; किसी सभाके सदस्यों किसीके खाते में जितना रुपया जमा हो, उससे अधिककी द्वारा सभाका अधिवेशन करनेकी लिखित माँग करना। | हुंडी या धनादेश काटना या इस तरह काटी हुई हुंडी। अधियान*-पु० गोमुखी, जपनी; सुमिरनी।
अधिशिक्षक-पु० (रेक्टर ) किसी विश्वविद्यालय, महाअधियाना-सक्रि० आधे-आध बाँट देना। अ० क्रि० विद्यालय आदिका प्रधान; किसी विद्यालयका प्रधान आधा हो जाना या रह जाना।
शिक्षक (स्काटलैंड); मुख्याधिष्ठाता।। अधियार-पु० आधा हिस्सा या आधेका हिस्सेदार; वह अधिशल्क-पु० (प्रीमियम) अंकित या वास्तविक मूल्यसे जमींदार या काश्तकार जिसका आधा संबंध एक गाँवसे अधिक ली जानेवाली रकम या शुल्का किसी मुद्राको और आधा दूसरेसे हो।
उससे अधिक मूल्यकी मुद्रामें परिणत करनेपर अलगसे अधियारिन -स्त्री० सीत; आधे हिस्सेकी हकदार स्त्री। । लिया जानेवाला शुल्क । अधियारी-स्त्री० किसी जायदादमें आधी हिस्सेदारी; | अधिष्ठाता (तृ)-पु० [सं०] देखभाल करनेवाला; नियाकिसीकी जमींदारी या काश्तका दो गाँवों में होना। मकः अध्यक्ष मुखिया; ईश्वर । अधियुक्त-वि० (एम्प्लॉयड) दे० 'नियोजित'। | अधिष्ठान-पु० [सं०] रहनेका स्थान; वास; आश्रय; बस्ती; अधियोक्ता, अधियोजक-पु०(एमप्लायर) दे० 'नियोजक'। नगर; भ्रांति या अभ्यासका आधार (वेदांत); पासमें अधियोग-पु० [सं०] ग्रहोंका एक योग जो यात्राके लिए होना, सन्निधि; अधिकार शासन; राज्य । शुभ माना जाता है।
अधिष्ठापन-पु० (इंस्टलेशन) विद्युयंत्र, तापयंत्र आदिका अधियोजन-पु० (एम्प्लॉयमेंट) दे० 'नियोजन'।
बैठाया, स्थापित किया जाना। अधियोजनालय-पु० (एम्प्लायमेंट ब्यूरो) दे० 'नियोज-अधिष्टित-वि० [सं०] स्थित स्थापित अधिकृत नियोजित ।
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अधिसूचना-अध्याहार
ना-स्त्री० (नोटिफिकेशन) प्रज्ञापन, अधिकृत | मुख्य अधिकारी अधिष्ठाता; (चेयरमैन) किसी सभा, सूचना, सरकार द्वारा प्रकाशित या सरकारी गजटमें छपी संस्था या नगरपालिकाका प्रधान (स्पीकर ) संसद या हुई सूचना।
विधान-सभाके सदस्यों द्वारा चुना गया वह मुख्य अधीक्षक-पु० (सुपरिटेंडेंट) किसी कार्यालय या विभागका अधिकारी जो उसकी बैठकों में अध्यक्षता करे, विवादक वह प्रधान अधिकारी जो अपने अधीन काम करनेवाले समय शांतिभंग न होने दे तथा किसी प्रस्तावके पक्षसमस्त कर्मचारियोंकी निगरानी करे।
विपक्षमें समसंख्यक मत प्राप्त होने पर अपना निर्णायक अधीक्षण-पु० (सुपरिटेंडेंस) मातहत कर्मचारियोंके काम- मत दे प्रमुख । -पीठ-पु० (चेयर) अध्यक्ष या प्रमुखके काजकी देख रेख करना ।
बैठनेकी कुरसी या आसन । -दीर्घा-स्त्री. (स्पीकर्स अधीत-वि० [सं०] पढ़ा हुआ (विषय ); जिसने किसी गैलरी) संसद या विधानसभाके अध्यक्षके पीछेकी वह वस्तुका अध्ययन कर लिया हो।
दीर्घा जहाँ बैठकर विशिष्ट अतिथिगण अथवा अध्यक्षसे अधीन-वि० [सं०] वशवत्ती; मातहत; आश्रित । - अनुमतिप्राप्त विशिष्ट व्यक्ति, सभाकी काररवाई देखते
अधिकारी-पु० (सबॉर्डिनेट आफिसर) किसी बड़े या तथा वक्ताओंके भाषणादि सुनते हैं । मुख्य अधिकारीके नीचे काम करनेवाला अफसर, मात- अध्यच्छ*-पु० दे० 'अध्यक्ष'। हत अफसर । -न्यायालय-पु० (सबाडिनेट कोर्ट ) । अध्ययन-पु० [सं०] पढ़ना; पढ़ाई । -कक्ष-पु० (स्टडी) वह छोटी अदालत जो किसी बड़ी अदालत (उच्च न्याया- लिखने-पढ़ने, अध्ययनादिका कमरा । लय आदि) के मातहत या अधीन हो। -स्थ-वि० अध्यवसान-पु० [सं०] निश्चयः प्रयत्न अध्यवसाय । किसीकी अधीनता, मातहतीमें रहनेवाला (कर्मचारी)। अध्यवसाय-पु० [सं०] यत्न, उद्यम; लगातार कोशिश अधीनता-स्त्री० [सं०] परवशता; विवशता; दीनता। निश्चय; उत्साह । अधीनना*-अ० क्रि० अधीन होना।
अध्यवसायी (यिन)-वि० [सं०] अध्यवसाय करनेवाला; अधीनीकरण-पु० (सब्जुगेशन) वशमें करने, जीतने या| उत्साही; उद्यमशील । अधीनतामें लानेका कार्य ।
अध्यवसित-वि० [सं०] जिसके लिए प्रयत्न या संकल्प अधीर-वि० [सं०] धैर्यरहित, उतावला; उद्विग्न, आकुल; किया गया हो। दृढ़तारहित; अस्थिरचित्त भीरु ।
अध्यात्म-वि० [सं०] आत्मासे संबंध रखनेवाला । पु० अधीरा-स्त्री० [सं०] विजली; मध्या और प्रौढ़ा नायिका. आत्मा-परमात्मा-संबंधी विचार; परमात्मा। -ज्ञानओंका एक भेद ।
पु० परमात्मा या आत्मा-संबंधी शान । -दर्शी (शिन्) अधीश, अधीश्वर-पु० [सं०] मालिका अध्यक्ष राजा -वि० परमात्माको जाननेवाला । -योग-पु० इंद्रियोंके सर्वोपरि या सार्वभौम नरेश ।
विषयोंसे मनको हटाकर परमात्माके ध्यानमें केंद्रित करना अधुना-अ० [सं०] अब इस समय; इन दिनों ।
-विद्या-स्त्री० आत्मा-परमात्माके स्वरूप, संबंध अदिका अधूरा-वि० अपूर्ण; नातमाम; अस्पष्ट ।
विचार करनेवाला शास्त्र; ब्रह्मविचार । -शास्त्र-पु० अति-स्त्री० [सं०] धीरताका अभाव; असंयम ।
अध्यात्म-विद्या। अष्ट-वि० [सं०] जो ढीठ न हो; सलजः विनम्र अजेय । अध्यादेश-पु० (आर्डिनेंस) राज्यके अधिपति द्वारा जारी अधेड़-वि० आधी उम्रका; ढलती उम्रका ।
किया गया वह आधिकारिक आदेश जो किसी आकस्मिक अधेला-पु० पैसेका आधा, धेला ।
या विशेष स्थितिमें थोड़े समयतक लागू हो और जो उक्त अधेली-स्त्री० आठ आनेका सिक्का, अठन्नी ।
स्थितिके न रहनेपर वापस ले लिया जाय या आवश्यकता अधैर्य-पु० [सं०] अधीरता । वि० धैर्यरहित; आतुर । बनी रहनेपर संसद या विधानसभा द्वारा अधिनियमके अधो-अ० [सं०] ('अधः'का संधिगत रूप)।-गति-स्त्री० | रूप में स्वीकृत कर लिया जाय । पतन; गिरावट, अवनति; दुर्गति; दुर्दशा; नरक जाना। अध्यापक-पु० [सं०] पढ़ानेवाला, शिक्षक । -गमन-पु० दे० 'अधोगति' । -गामी (मिन्)-वि० अध्यापकी-स्त्री शिक्षण कार्य, पाठन, पढ़ानेका काम । पतन या अवनतिकी ओर जानेवाला; नरक जानेवाला। अध्यापन-पु०[सं०] पढ़ाना; ब्राहाणोंके छः कर्मों से एक । -भुवन-पु० पाताल; नीचेका लोक। -भूमि-स्त्री० अध्यापयिता (त)-पु० [सं०] पढ़ानेवाला। पर्वतके नीचेकी भूमि । -मार्ग-पु० सुरंगका रास्ता | अध्यापिका-स्त्री० [सं०] पढ़ानेवाली, शिक्षिका । गुदा। -मुख,-वदन-वि० जिसका मुख नीचेकी ओर अध्याय-पु० [सं०] पढ़ना, अध्ययन, पाठ, परिच्छेद । हो; अधिा । अ० मुँहके बल । -यंत्र-पु० भभका । अध्यारूढ-वि० [सं०] सवार, चढ़ा हुआ। -लंब-पु० लंब, साहुल । -लोक-पु० नीचेका लोक, अध्यारोप,-रोपण-पु० [सं०] एक वस्तुके गुण-धर्मका पाताल । -वायु-स्त्री० अपान वायु, गोज । -विंदु- भ्रमवश अन्य वस्तुमें आरोप करना; अध्यासःमिथ्या ज्ञान । पु० पैरके नीचेका विंदु ।
अध्यारोपित-वि० [सं०] भ्रमवश ( एक वस्तुका गुणधर्म अधोरध-अ० दे० 'अधोद्ध।
अन्य वस्तुमें) आरोपित । अधोद्ध-अ० नीचे-ऊपर, तले-ऊपर ।
अध्यास-पु० [सं०] मिथ्या ज्ञान; भ्रांत ज्ञान या प्रतीति अधीड़ी-स्त्री० आधा चरसा; मोटा चमड़ा।
(रस्सीमें साँप, सीपमें चाँदीका भ्रम)। अध्यक्ष-पु० [सं०] निरीक्षणकर्ता नियाभका संचालक | अध्याहार-पु० [सं०] वाक्यमें छूटे हुए पद या पदोंको
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अध्यूढा-अनधिकारिक अर्थपूर्तिके लिए ऊपरसे जोड़ लेना; तर्क-वितर्क; (इंफरेंस) अनखी*-वि० अनख करनेवाला, क्रोधी। घटनावली आदिसे कोई निष्कर्ष निकालना, तथ्योंके अनखुला-वि० जो खुला न हो; जिसका कारण अज्ञात हो। आधारपर कुछ अनुमान लगाना, अनुमान ।
अनखौहाँ*-वि० अनख-भरा, कुपित, चिड़चिड़ा; अनुअध्यूढा-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पति दूसरा विवाह चित; क्रोधोत्पादक । कर ले, प्रथम विवाहिता स्त्री।
अनगढ़-वि० बिना गढ़ा हुआ; बे-डौल; टेढ़ा-मेढ़ा; असंअध्येतव्य, अध्यय-वि० सं०] पढ़नेके योग्य ।
स्कृत; उजड; *स्वयंभू । अध्येता (त)-पु० [सं०] अध्ययन करनेवाला ।
अनगन, अनगिन-वि० दे० 'अनगिनत' । अध्रव-वि० [सं०] अस्थिर; अस्थायी; अनिश्चित संदिग्ध ।। अनगना-वि० जो गिना न गया हो, बेशुमार । पु० गर्भअध्वर-पु० [सं० [ यशः सोमयश; आकाश ।
का आठवाँ मास । अध्वर्यु-पु० [सं०] चार ऋत्विजों-यश करानेवालोंमेंसे । अनगनिया*-वि० अगणित, बे-शुमार । एक, यजुवेंदश ऋत्विज ।
अनगवना*-अ० क्रि० जान-बूझकर देर लगाना; टालअनंग-वि० [सं०] देह-रहित । पु० कामदेव; आकाश;| मटोल करना। मन । -शत्रु-पु० शिव ।
अनगाना-अ० क्रि० देर लगाना। स० क्रि० सुलझाना अनंगना*-अ० क्रि० बेसुध होना, विदेह होना।
(केशादि)। अनंगारि-पु० [सं०] शिव ।
अनगिनत-वि० अगणित, बेहिसाब । अनंगी (गिन्)-वि० [सं०] बिना अंगका. अशरीरी। अनगिना-वि० दे० 'अनगिनत'; जो गिना न गया हो। पु० परमेश्वर; कामदेव ।
अनगिनित-वि० दे० 'अनगिनत'। अनंगीकार करना-स० क्रि० (रिपुडिएट) किसीकी सत्ता, अनगैरी-वि० अपरिचित वे-जाना; गैर । प्रभाव या आशा न मानना; ऋण, दायित्व आदिसे इन- अनघ-वि० [सं०] अघहीन, निष्पाप, पवित्र, अकलुष; कार करना; किसीके कथन, आरोप आदिको न मानना। निर्मल । पु० वह जो पाप न हो, पुण्य; विष्णु । अनंत-वि० [सं०] जिसका अंत न हो; असीम, अपार; अनघरी*-स्त्री० कुसमय, असमय । अक्षय । पु० विष्णु, विष्णुका शंख; शेषनाग; लक्ष्मण; | अनघेरी*-वि० अनिमंत्रित; अनाहूत । असीमता; नित्यता; बलराम; वासुकि; आकाश; बाँहपर | अनघोर-पु० अन्याय, ज्यादती। पहननेका एक गहना; अनंत चतुर्दशीके व्रतमें पहननेका | अनघोरी*-अ० चुपकेसे, अचानक 'जीति पाइ अनघोरी एक गंडा। -विजय-पु० युधिष्ठि रके शंखका नाम । | आये'-छत्र० । -शक्ति-वि० सर्वशक्तिमान् (परमेश्वर)।
अनचहा-वि० जो चाहा न गया हो, अप्रिय,अनिच्छित । अनंतर-अ० [सं०] तुरंत बाद पीछे। वि० अंतर-रहित; अनचाखा*-वि० न चखा हुआ। सटा या लगा हुआ; पास या पड़ोसका।
अनचाहत -वि० न चाहनेवाला, प्रेम-रहित । पु० न अनंता-स्त्री० [सं०] पृथ्वी; पार्वती; अनंतमूल; दृब आदि । चाहनेवाला व्यक्ति ।। अनंद*-पु० दे० 'आनंद'।
अनचीता-वि० बिना सोचा हुआ, न चाहा हुआ। अनंदना*-अ० क्रि० आनंदित होना।
अनचीन्हा-वि० अपरिचित, बे-जाना । अन-पु० [सं०] श्वास-प्रश्वास । * अ० बिना, बगैर (उप- अनचैन -पु० बेचैनी।। सर्गके तौरपर यह व्यंजनादि शब्दोंके पूर्व भी लगता है- अनजान-वि० अज्ञान; न जाननेवाला,अनभिज्ञ; नासमझ जैसे अनहोनी, अनमेल) । वि० दूसरा।
अपरिचित । पु० अज्ञानावस्था; अज्ञान । अनअहिवात*-पु० वैधव्य ।
अनट-पु० अन्याय, अनाचार, अनीति । अनइच्छित*-वि० जिसकी इच्छा न की गयी हो। अनडीठ*-वि० न देखा हुआ, अदृष्ट । अनइस, अनइसा-वि० दे० 'अनेस', 'अनैसा'। | अनत-वि० [सं०] न झुका हुआ, अनम्र । * अ० अन्यत्र, अनऋतु-स्त्री० विरुद्ध ऋतु; अनुपयुक्त समय ।
और कहीं। अनकंप*-वि० कंपनरहित, स्थिर । पु० कंपनका अभाव। अनति-स्त्री० [सं०] नम्रता या विनयका अभाव; घमंड । अनक-*पु० दे० 'आनक'।
वि० अतिका उलटा, थोड़ा। अनकना-स० क्रि० सुनना; लुक-छिपकर सुनना। अनदेखा-वि० न देखा हुआ । अनकरीब-अ० [अ०] शीघ्र; करीब-करीब पास प्रायः। अनद्यतन-वि० [सं०] आजके दिनसे संबंध न रखनेवाला; अनकहा-वि०, बिना कहा हुआ, अनुक्त। [ स्त्री० अन- आजसे पहले वा पीछेका । पु० अद्यतनसे भिन्न काल । कही। ] मु०-(ही) देना*-चुप रहना।
अनधिक-वि० [सं०] जो अधिक न हो; असीम पूर्ण । अनख-पु. क्रोध, रोष; ग्लानि; डाह, जलन; * झंझट; अनधिकार-पु० [सं०] अधिकार, शक्ति, योग्यता, पात्रता, डिठौना । वि० [सं०] नखहीन ।।
हक आदिका अभाव । वि० अधिकाररहित । -चर्चाअनखना*-अ० क्रि० रुष्ट हीना, खीझना।
स्त्री० बिना जाने समझे या योग्यताके बाहर किसी विषयमें अनखाना-अ० क्रि० रुष्ट होना, खीझना । स० कि० रुष्ट वोलना, दखल देना । -चेष्टा-स्त्री० जिस बात या करना, खिझाना।
कार्यका अधिकार न हो वह करना। अनखाहट-स्त्री० दे० 'अनख'।
अनधिकारिक, अनधिकृत-वि० (अन-अथॉराइज्ड)जिसके
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अनधिकारी-अनरुच पीछे समुचित अधिकार न हो; जो अधिकारके बाहर हो। अनबड़ा*-वि० न डूबा हुआ वि० गहराई में न पैठा हुआ। (चेष्टा इ०); जो किसी अधिकारी व्यक्ति द्वारा दिया या अनबेधा-वि० दे० 'अनबिधा'। जाग न किया गया हो (वक्तव्य, विवरण इ०)। अनबोल, अनबोला-वि० न बोलनेवाला; बे-जबान अनधिकारी (रिन)-वि० [सं०] अधिकार न रखनेवाला; (पशु, शिशु, इ०)। किसी विषयकी योग्यता, पात्रता न रखनेवाला।। अनबोलता-वि० दे० 'अनबोल'। अनधिकृत-वि० [सं०] जिसकीअधिकारीके पदपर नियुक्ति अनब्याहा-वि० जिसका ब्याह न हुआ हो, अविवाहित । न हुई हो; जो अधिकारमें न किया गया हो; अनधि- | अनभल*-पु० अहित; हानि । कारिक।
अनभला-वि० बुरा, कुत्सित, निंद्य । अनधिगत-वि० [सं०] न जाना हुआ; अप्राप्त।-मनोरथ अनभाय, अनभाया-वि० न भानेवाला, अप्रिय,
-वि० जिसकी अभिलाषा पूरी न हुई हो, निराश। अरुचिकर । अनध्ययन-पु० [सं०] अध्ययन न करना; अध्ययन करते | अनभावता*-वि० दे० 'अनभाया। समय बीच में होनेवाला विराम ।
अनभिज्ञ-वि० [सं०] मूर्ख, अनजान, अनाड़ी; अपरिचित । अनध्यवसाय-पु० [सं०] अध्यवसायका अभाव; ढिलाई, | अनभिभूत-वि० [सं०] अपराजित; अबाधित । अनध्याय--पु० [सं०] पढ़ाई न होना; पढ़ाई बंद रहनेका अनभिव्यक्त-वि० [सं०] जो व्यक्त न हो, गुप्त, अस्पष्ट । दिन, छुट्टी।
अनभीष्ट-वि० [सं०] अवांछित, अप्रिय । अननुज्ञापित-वि० (डिस-अगउड) (वह प्रस्तावादि)| अनभेदी-वि० भेद न जाननेवाला। जिसे सभामें उपस्थापित करनेकी अनुज्ञा न दी गयी हो। अनभो-पु० अनहोनी बात, अचरज । वि. अलौकिक, अननुभूत-वि० [सं०] जिसका अनुभव न किया गया हो। अदभुत । अननुरूप-वि० (इंकॉम्पैटिबिल) जो रूप, स्वभाव आदिकी अनभोरी*-स्त्री० भुलावा, धोखा । दृष्टिसे अनुरूप न हो, मेल न खाता हो ।
अनभ्यस्त-वि० [सं०] जिसका अभ्यास न किया गया अनन्नास-पु० एक पौधा जिसमें ऊपरके हिस्से में फल जैसी हो; जिसने अभ्यास न किया हो। एक गाँठ बन जाती है। इसका स्वाद खटमीठा होता है। अनभ्यास-पु० [सं०] अभ्यासका अभाव; अनुशीलन, अनन्य-वि० [सं०] एकनिष्ठ; एकाश्रयी; अन्यकी ओर न मश्क या आदतका न होना । जानेवाला; अभिन्न; वही; अद्वितीय; एकाग्र; अविभक्त। अनम-पु० [सं०] ब्राह्मण (जो दूसरेको नमस्कार न करे)। -गति-स्त्री० एकमात्र सहारा। वि० दे० 'अनन्यगतिक'। -गतिक-वि० जिसको दूसरा उपाय या सहारा न हो। अनमद -वि० मदरहित; निरहंकार । अनन्याधिकार-पु० [सं०] किसी वस्तुके बनाने बेचने अनमन, अनमना-वि० उदास, खिन्न; अस्वस्थ । आदिका एकाधिकार, इजारा।
अनमाँगा-वि० बिना माँगा हुआ, अयाचित । अनन्वय-पु० [सं०] अन्वय-संबंधका अभाव; एक अर्था- अनमापा-वि० जिसकी माप न हो सके, जो नापान लंकार जिसमें उपमेय स्वयं ही अपना उपमान होता है। गया हो। अनन्वित-वि० [सं०] असंबद्ध; बे-लगाम; असंगत रहित । अनमारग-पु० कुमार्ग, अधर्म, दुष्कर्म । अनपकारक-वि० [सं०] अहानिकर; निर्दोष ।
अनमिख* --वि० दे० 'अनिभिप' । अनपच-पु० बदहजमी, अपच ।
अनमिल,-मिलत-वि० वे-मेल, असंबद्ध; निलिप्त । अनपढ़-वि० बे-पढ़ा, निरक्षर ।
अनमिलता-वि० न मिलनेवाला, अप्राप्य । अनपत्य-वि० [सं०] संतानहीन; जिसका कोई उत्तरा- अनमीलना*-स० क्रि० आँखें खोलना। धिकारी न हो; जो बच्चोंके अनुकूल न हो।
अनमेल-वि० बे-मेल; खालिस। अनपराध-वि० [सं०] निर्दोष, बेगुनाह । पु० निषिता। अनमोल-वि० अमूल्य बहुमूल्य । अनपाकरण, अनपा कर्म (न्)-पु० [सं०] इकरार पूरा | अनम्र-वि० [सं०] अविनीत; उदंड, घमंडी। न करना; ऋण या मजदूरी न चुकाना।
अनय-पु० [सं०] अनीति; अन्याय; व्यसन विपद । अनपायी (यिन् )-वि० [सं०] अचल, स्थायी, स्थिरः | अनयन-वि० [सं०] नेत्ररहित, अंधा । नाशरहित; अविकारी। [स्त्री० अनपायिनी।] अनयस*-वि० दे० 'अनैस' । अनपेक्ष, अनपेक्षी (क्षिन्)-वि० [सं०] चाह या परवाह | अनयास*-अ० दे० 'अनायास' । न रखनेवाला; तटस्थ, निष्पक्ष; असंबद्ध स्वतंत्र । अनरथ*--पु० दे० 'अनर्थ । अनपेक्षित, अनपेक्ष्य-वि० [सं०] जिसकी चाह या अनरना*-स० क्रि० अनादर करना । परवाह न हो।
अनरस-पु० रसका अभाव; रुखाई; रोष; बिगाड़दुःख । अनफाँस*-पु० बंधका उलटा, मुक्ति ।
अनरसना*-अ० क्रि० उदास होना; खिन्न होना। अनबन-स्त्री० बिगाड़; झगड़ा । * वि० विविध, अनेक । अनरसा-पु० एक मिठाई । * वि० अनमना । अनबिध-वि० दे० 'अनविधा।
अनराता*-वि० न रँगा हुआ; अनुराग-विहीन । अनविधा-वि० बिन-विधा ( मोती)।
अनरीति-स्त्री० कुरीति; अनीति; अनुचित व्यवहार । अनबूझ-वि० दे० 'अबूझ'।
| अनरुच-वि० अरुचिकर ।
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अनरुचि-अनाथ अनरुचि*-स्त्री० अरुचि, अनिच्छा, मंदाग्नि ।
लाना। अनरूप*-वि० कुरूप; असदृश।
अनवांसी-स्त्री० बिस्वांसीका बीसवाँ भाग। अनर्गल-वि० [सं०] बेरीक, लगातार; अनियंत्रित; मन- अनवाद*-पु० कुबोल, कटुवचन । माना विचारहीन । -प्रलाप-पु० मनमानी बकवास। | अनवाप्ति-स्त्री० [सं०] प्राप्तिका अभाव, अप्राप्ति । अनर्घ-वि० [सं०] अमूल्य; कम मूल्यका । पु० गलत / अनशन-पु० [सं०] आहारत्याग, उपवास; किसी विशेष कीमत, अनुचित मूल्य ।
संकल्पके साथ आहार त्याग । अनर्जित-वि० [सं०] न कमाया हुआ; जिसका अर्जन न अनश्वर-वि० [सं०] अविनाशी, सनातन, शाश्वत; ध्रुव । किया गया हो (अनअण्ड); अप्राप्त । -आय-स्त्री० अनसखरी-स्त्री० पक्की रसोई। चीजोंके दाम यकायक चढ़ जानेसे होनेवाली आय | अनसत्त-वि० असत्य । या लाभ।
अनसमझ*-वि० नासमझ । अनर्थ-वि० [सं०] निकम्मा; भाग्यहीन; हानिकारक अनसमझा*-वि० नासमझ; जो समझा हुआ न हो। बुरा; अर्थहीन; भिन्न अर्थवाला। पु० उलटा अर्थ; अर्थका अनसहत*-वि० असह्य । अभाव; अर्थहानि मूल्यका न होना; नैराश्यजनक घटना अनसाना-अ० क्रि० झुंझलाना, क्रुद्ध होना । विष्णु; अनिष्ट; खराबी; निकम्मी चीज । -कर, अनसनी-वि० न सुनी हुई । मु०-करना-सुनकर भी न -कारी (रिन)-वि० अनर्थ करनेवाला; हानि या | सुनने जैसा ओचरण करना; जान-बूझकर उपेक्षा करना । अनिष्ट करनेवाला।
अनसूया-स्त्री० [सं०] दूसरेके गुणों में दोप ढूँढनेकी वृत्तिअनर्थक-वि० [सं०] अर्थरहितः निष्प्रयोजन, बे-मतलब का न होना; ईका अभाव; दक्षकी एक कन्या, अत्रि अलाभकर; भाग्यहीन:
ऋषिकी पली; शकुंतलाकी एक सखी। अनह-वि० [सं०] अयोग्य; अनुपयुक्त; अनधिकारी अनस्तित्व-पु० [सं०] अस्तित्वका अभाव अविद्यमानता । अनर्हता-स्त्री० (डिसक्वालिफिकेशन) किसी कार्य, पद | अनहद-पु० दे० 'अनाहत' । -नाद-पु० दे०
आदिके योग्य न होनेका भाव, अयोग्यता नाकाबिलीयत। 'अनाहत नाद'। अनहींकरण-पु० (डिसक्वालिफाई) किसीको किसी कार्य, अनहित*-पु० बुराई, अहित । वि० अप्रिय, अहितकारी । पद आदिके अयोग्य ठहराना।
अनहितू-वि० अशुभ चाहनेवाला, अपकारी। अनल-पु० [सं०] अग्नि, आगः पाचनशक्ति, पाचन रस; अनहोनी-वि० स्त्री० न होनेवाली; असंभव; अलौकिक । तीनकी संख्या कृत्तिका नक्षत्र; -चूर्ण-पु० बारुद । -
स्त्री० अनहोनी बात । प्रिया--स्त्री० आग्नेयी; स्वाहा । -मुख-पु०देवता ब्राह्मणः | अनाकनी, अनाकानी-स्त्री० दे० 'आनाकानी । चित्रक; भिलावाँ ।
अनाकार-वि० [सं०] निराकार, आकारहीन । अनलस-वि० [सं०] आलस्य-रहित, जागरुक, चुस्त । अनाक्रमम-पु० [सं०] देशादिपर आक्रमण न करना। - अनलायक*-वि० अयोग्य ।
सन्धि-स्त्री० (नॉन-ऐग्रेशन पैक्ट ) दो राष्ट्रोंके बीच की अनलेख-वि० अलख; अगोचर ।
गयी वह संधि जिसमें एक दूसरेके विरुद्ध सैनिक बलका अनल्प-वि० [सं०] थोड़ेका उल्टा, अधिक ।
प्रयोग न करने तथा मतभेद या झगड़ा उत्पन्न होनेपर अनवकाश-पु० [सं०] अवकाशका अभाव, फुरसत या ।
आपसकी बातचीत अथवा पंचायत द्वारा उसे निपटानेकी गुंजाइशका न होना। .
बात स्वीकार की गयी हो। अनवच्छिन्न-वि० [सं०] न बिलगाया हुआ, अखंटित, अनागत-वि० [सं०] न आया हुआ; अप्राप्त; अज्ञात; आनेअन्तर-रहित; जुड़ा हुआ।
वाला भावी; * अनादि, अपूर्व । -विधाता (7)-पु० अनवट-पु० एक आभूषण जो पैरके अँगूठेमें पहना जाता आनेवाले अनिष्टको पहलेसे सोचकर उसके निराकरणका है; कोल्हू के बैलकी आँखोंका ढकन ।
उपाय करनेवाला। अनवद्य-वि० [सं०] अनिंद्य निर्दोष ।।
अनागम-पु० [सं०] न आना; अप्राप्ति । अनवधान-पु० [सं०] अमनोयोग; असावधानता । वि० अनागार, अनागारिक-वि० [सं०] बिना घरका । पु० प्रमादी, लापरवाह ।
साधु-संन्यासी। अनवय-पु० वंश, कुल दे० 'अन्वय'।
अनाघ्रात-वि० [सं०] जो सूंघा न गया हो। अनवरत-वि० [सं०] निरंतर, अविराम । अ० लगातार। अनाचरण-पु० [सं०] किसी (निर्दिष्ठ या निर्धारित) अनवसर-पु० [सं०] निरवकाश; कुसमय ।
कामका न करना । दे० 'अनाचार' । अनवस्था-स्त्री० [सं०] अवस्थितिका अभाव; अस्थिरताः | अनाचार-पु० [सं०] अयोग्य आचरण; दुराचरण, कुरीति । अव्यवस्था; एक तर्कदोष ।
अनाचारी (रिन)-वि० [सं०] बुरे आचरणवाला । अनवस्थित-वि० [सं०] अस्थिर; अस्थिरचित्त । अनाज-पु० अन्न, नाज । अनवस्थिति-स्त्री० [सं०] चापल्य, अस्थिरता; अधैर्यः | अनाड़ी-वि० अशान; अकुशल । आश्रयका अभाव; आचरणहीनता; समाधि प्राप्त होने पर अनातप-वि० [सं०] आतपहीन, छायादार; ठंडा। पु० भी चित्तका स्थिर न होना।
आतपका अभाव, छाया, टंड। अनवासना-स० क्रि० नये बरतन आदि प्रथम बार काममें | अनाथ-वि० [सं०] जिसका कोई मालिक या रक्षक न हो
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अनाथालय - अनित्य
असहाय, निराश्रय, दीन ।
अनाथालय, अनाथाश्रम - पु० [सं०] वह स्थान जहाँ बिना माँ-बाप के बच्चे आदि रखे जायें, यतीमखाना । अनादर - पु० [सं०] आदरका अभाव; तिरस्कार; एक अर्थालंकार, जिसमें अधिक अच्छी लगनेवाली किसी अप्राप्त वस्तुको पाकर या देखकर प्राप्त वस्तुका अनादर किया
जाय ।
अनादरण - पु० [सं०] उपेक्षा या तिरस्कार करना । पु० (डिस ऑनर ) ( खाते में या शिल्लक में धनकी कमी आदिके कारण ) धनादेश (चेक), हुंडी या प्राप्यक ( बिल ) का रुपया देने से इनकार करना ।
अनादि - वि० [सं०] आदिरहित; नित्य ।
अनादिष्ट - वि० [सं०] आदेश न दिया हुआ । अनाहत - वि० [सं०] जिसका आदर न किया गया हो; तिरस्कृत ।
अनाद्यंत - वि० [सं०] जिसका आदि अंत न हो । पु०शिव । अनाधार - वि० [सं०] निराधार, निरवलंब, बेसहारा । अनाना* - स० क्रि० मँगाना ।
अनाप-शनाप - पु० अंडबंड, बेतुकी बकवास | अनापा - वि० विना नापा हुआ; अपरिमित । अनाप्त - वि० [सं०] जो आप्त-आत्मीय, यथार्थज्ञाता, विश्वसनीय या कुशल न हो; जो प्राप्त न हुआ हो । अनाम (न्) - वि० [सं०] नामरहित; अप्रसिद्ध ! अनामय - वि० [सं०] रोगरहितः स्वस्थ । पु० आरोग्य | अनामा, अनामिका - स्त्री० [सं०] कानी और बिचली उँगलियोंके बीच की उँगली ।
अनायत्त - वि० [सं०] जो दूसरोंके वशमें न हो, अवशीभूत, स्वाधीन ।
अनायास - अ० [सं०] बिना परिश्रमके, आसानी से;
अचानक ।
अनायासिक विजय- स्त्री० ( वॉकओहर ) बिना विशेष आयासके, आसानी से, प्राप्त विजय, अनायास प्राप्त विजय । अनार - पु० एक प्रसिद्ध फल और उसका पेड़; एक आतिशबाजी; * अन्याय; ऊधम ( बुंदेल ) । - दाना - ५० अनार के सुखाये हुए दाने ।
अनारी* वि० अनारके रंगका, लाल; दे० 'अनाड़ी' | अनार्जव - पु० [सं०] कपट; कुटिलता; बेईमानी । अनार्तव - पु० [सं०] रजोधर्मका अवरोध |
अनार्य - पु० [सं०] जो आर्य न हो, शूद्र, म्लेच्छ । वि० असभ्य, अप्रतिष्ठित, नीच; अनायचित । अनावरित करना - स० क्रि० ( अनवील ) किसी प्रसिद्ध
व्यक्तिकी मूर्ति या चित्रके ऊपर पड़ा हुआ आवरण हटाकर उसे जनता के दर्शनार्थ खोल देना । अनावरण - पु० (अनवीलिंग) किसी महापुरुषकी मूर्ति या चित्रको अनावरित करनेका कार्य या तत्संबंधी सार्वजनिक समारोह |
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३२
अनावासिक- वि० अन्यत्र निवास करनेवाला, कर्त्तव्यादि संबंधी दायित्व के क्षेत्र में न रहनेवाला (नानरेजिडेंट) । - छात्र- पु० ( डे स्कालर) वह जो विश्वविद्यालय के बाहर, किसी निकटवत्ती नगर या ग्राममें, रहते हुए केवल विद्या अर्जन के लिए वहाँ की पढ़ाई आदिमें सम्मिलित होता हो । अनाविद्ध - वि० [सं०] न विधा हुआ; अनाहत । अनावृत - वि० [सं०] जो ढका न हो; खुला | अनावृत्त - वि० [सं०] जो लौटा न हो; जो दोहराया न गया हो ।
अनावृष्टि स्त्री० [सं०] अवर्षण, सूखा । अनावेदित - वि० [सं०] जिसकी विशप्ति न की गयी हो, जो जनाया न गया हो ।
अनाश्रमी (मिन्) - वि० [सं०] जो किसी आश्रम में न हो; आश्रमधर्मका अनुसरण न करनेवाला | अनाश्रय - वि० [सं०] आश्रयरहित, वे सहारा । अनाश्रित- वि० [सं०] जो दूसरेपर आश्रित न हो, स्वाधीन ।
अनासक्त - वि० [सं०] आसक्तिरहित । अनासक्ति - स्त्री० [सं०] आसक्तिका अभाव । अनासिक - वि० [सं०] बिना नाकका, नकटा | अनासीन - वि० (अन्सीटेड ) जिसे किसी कारणवश अपने स्थान, पद आदि से हट जाना पड़ा हो, स्थानवंचित | अनास्था - स्त्री० [सं०] आस्थाका अभाव, अश्रद्धा; अनादर । अनास्वादित - वि० [सं०] जिसका स्वादन लिया गया हो । अनाहक * - अ० दे० " नाहक " ।
अनाहत - वि० [सं०] आघातरहित; कोरा । पु० हठयोगके अनुसार शरीरके ६ चक्रोंमेंसे एक जिसका स्थान हृदय बताया जाता है । - नाद - शब्द - पु० योगियोंको सुनाई देनेवाली एक आंतरिक ध्वनि; ओम्-ध्वनि । अनाहार - पु० [सं०] आहारका अभाव या त्याग । वि० निराहार; जिसमें कुछ न खाया जाय । अनाहूत - वि० [सं०] बिन बुलाया, अनिमंत्रित । - प्रवेश - पु० ( इन्द्र, जन ) बिना बुलाये किसीके घर में प्रविष्ट हो जाना, किसीके सामने जबरन अपने आपको उपस्थित कर देना । अनिंद* - वि० दे० 'अनिंद्य' ।
अनिंदनीय - वि० [सं०] जो निंदा के योग्य न हो, निर्दोष । अनिंदित - वि० [सं०] निर्दोष, उत्तम, निंदारहित । अनिंद्य - वि० [सं०] निर्दोष, प्रशंसनीय; सुंदर । अनि आई* - वि० अन्यायी ।
अनिकेत - वि० [सं०] जिसका कोई नियत वासस्थान न हो; संन्यासी; खानाबदोश |
अनिग्रह - पु० [सं०] बंधन, रोक या दंडका अभावः तर्क में हार न मानना । वि० अनियंत्रित; अजेय । अनिच्छ, अनिच्छक, अनिच्छु, अनिच्छुक - वि० [सं०] इच्छारहित, न चाहनेवाला ।
अनावर्त्तक, अनावर्त्ती - वि० जो बार-बार न हो, जो अनिच्छा-स्त्री० [सं०] इच्छाका अभाव; अरुचि । एक ही बार दिया या किया जाय (नॉनरेकरिंग) | अनिच्छित - वि० [सं०] जो न चाहा गया हो । अनावश्यक - वि० [सं०] जिसकी आवश्यकता न हो, अनित्य - वि० [सं०] जो सदा न रहे, नश्वर, क्षणस्थायी, अनियमित ।
गैरजरूरी ।
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अनिद्रा-अनुक्रम अनिद्रा-स्त्री० [सं०] नींद न आनेकी बीमारी।
समूह; सेना। अनिद्वित-वि० [सं०] जो सोया न हो, जाग्रत् । अनीक-पु० [सं०] सेना; समूह; सैन्यपंक्ति युद्ध किनारी। अनिप-पु० सेनापति ।
*वि० जो नीक अर्थात् अच्छा न हो, खराब । अनिपुण-वि० [सं०] अकुशल, अधकचरा। -श्रमिक- अनीकिनी-स्त्री० [सं०] सेना; अक्षौहिणी या पूरी सेनाका पु० (अनस्किल्ड लेबर) किसी कारखाने आदिमें काम दसवाँ भाग-२१८७ हाथी, २१८७ रथ, ६५९१ घोड़े करनेवाला वह श्रमिक जिसने अपना काम करनेकी और १०९३५ पैदल ।। विशेष योग्यता, कुशलता न प्राप्त कर ली हो।
अनीठ-वि० अनिष्ट ; अप्रिय; बुरा। अनिमंत्रित-वि० [सं०] विना बुलाया हुआ, अनाहूत । । अनीठि*-स्त्री० बुराई, क्रोध । अनिमा-स्त्री० दे० 'अणिमा'।
अनीत*-स्त्री० अन्याय, दुर्व्यवहार; दुष्कर्म । अनिमिप,-मेष-वि० [सं०] जिसकी पलक न गिरे, स्थिर- अनीति-स्त्री० [सं०] अन्याय, अनुचित व्यवहार; दुराचार। दृष्टि; जागरूक; खुला हुआ, विकसित । अ० बिना पलक , अनीप्सित-वि० [सं०] अनभिलषित, अनिच्छित । गिराये, एकटक । पु० देवता; मछली; महाकाल । -दृष्टि, अनीश-वि० [सं०] जिसका कोई स्वामी या नियंता न -नयन,-लोचन-वि० एकटक देखनेवाला।
हो; प्रधान; असमर्थ । अनियंत्रित-वि० [सं०] प्रतिबंधरहित स्वच्छंद; निरंकुश। अनीश्वरवाद-[सं०] -पु० ईश्वरका अस्तित्व न मानना; अनियत-वि० [सं०] अनिश्चित; अनियमितअस्थिर; नास्तिक मत । -वादी (दिन)-वि० ईश्वरका अस्तित्व असीम; असाधारण; आकस्मिक ।
न माननेवाला; नास्तिक । अनियम-पु० [सं०] नियमका अभाव; व्यवस्थाका अभाव | अनीस*-वि० अनाथ; दे० 'अनीश' । बेकायदगी; निश्चित आदेशका न होना।
अनीह-वि० [सं०] इच्छारहित; उदासीन; बे-परवाह । अनियमित-वि० [सं०] नियमरहित; नियमविरुद्ध । अनीहा-स्त्री० [सं०] अनिच्छा; उदासीनता; निश्चेष्टता। अनियाउ (व)*-पु० दे० 'अन्याय'।
अनु-अ० ( उप०) [सं०] शब्दोंके पहले मिलकर यह अनियारा-वि० अनीदार, पैना केटीला; बाँका, बहादुर ।। पीछे ( अनुचर ), समान (अनुरूप), साथ ( अनुपात), 'चम्पतिराय बड़े अनियारे-छत्र०।।
बारंबार (अनुशीलन), प्रत्येक (अनुदिन ), ओर, अनिरुद्ध-वि० [सं०] जिसका निरोध न हुआ हो या न हो योग्य, मुनासिब, हीन, गौण आदि अर्थोंका द्योतन करता सके; बेरोक; स्वच्छंद । पु० कृष्णके पौत्र, प्रद्युम्नके पुत्र । । है । पु० ययातिका एक पुत्र । * अ० अब हाँ ठीक । * अनिर्णय-पु० [सं०] निर्णयका अभाव, अनिश्चय ।
पु० दे० 'अणु' । अनिर्दिष्ट-वि० [सं०] जिसका निर्देश न किया गया हो; अनुकंपा-स्त्री० [सं०] दया, हमदर्दी । न बताया हुआ; अनादिष्ट ।
अनुकंपित-वि० [सं०] जिसपर अनुकंपा की गयी हो । अनिर्धारित-वि० [सं०] अनिश्चित ।
अनुकरण-पु० [सं० नकल; देखादेखी करना । अनिर्वचनीय-वि० [सं०] निर्वाचनके अयोग्य; जिसके अनुकरणीय-वि० [सं०] अनुकरण करने योग्य । लक्षण आदि न बताये जा सकें; वर्णनके अयोग्य । अनुकारक, अनुकारी (रिन्)-वि० [सं०] नकल या अनिर्वाच्य-वि० [सं०] जिसका निर्वाचन न हो सके, जो देखादेखी करनेवाला; आशाकारी। चुना न जा सके। दे० 'अनिर्वचनीय'।
अनुकूल-वि० [सं०] मेल रखनेवाला, मुआफिक; सहायक; अनिल-पु० [सं०] वायु, पवन, हवा; पवन देव; अष्ट प्रसन्न ।*अ० ओर, अभिमुख । पु० विवाहिता पत्नीमें अनुरक्त वसुओंमेंसे एक; वातरोग; ४९ पवनोंमेंसे एक; ४९की | रहनेवाला नायक; अर्थालंकारका एक भेद जिसमें प्रतिकूल संख्या । -कुमार-पु० हनूमान् भीम ।
वस्तुसे अनुकूलकी सिद्धि दिखायी जाती है। अनिलात्मज-पु० [सं०] हनूमान्; भीम ।
अनुकूलन-पु० (एडेप्टेशन) आवश्यक परिवर्तन कर अनिलामय-पु० [सं०] बातरोग।
अनुकूल बनाना; किसी कार्यादिके उपयुक्त बनाना । अनिलाशन, अनिलाशी (शिन् )-पु० [सं०] साँप। अनुकूलना*-अ० क्रि० प्रसन्न होना; मुआफिक होना । अनिवार्य-वि० [सं०] जिसका निवारण न हो सके;; अटल; | अनुकूलित-वि० (एडैप्टेड ) आवश्यक परिवर्तन करनेके जो छोड़ा न जा सके; अत्यावश्यक। -भरती-स्त्री० बाद जो (स्थिति आदिके) अनुकूल बना लिया गया हो। (कॉन्सक्रिप्शन) स्थल-सेना, जलसेना आदिमें सेवाके लिए अनुकूलीकरण-पु० (एडेप्टेशन) दे० 'अनुकूलन'। अनिवार्य रूपमे भरती कर लिया जाना ।
अनुकृत-वि० [सं०] जिसकी नकल की गयी हो। अनिश्चय-पु० [सं०] निश्चयका अभाव; संदेह ।
अनुकृति-स्त्री० [सं०] नकल; देखादेखी; एक काव्यालंकार । अनिश्चित-वि० [सं०] जिसका निश्चय न हुआ हो या न -काव्य-पु० (पैरोडी) किसी प्रसिद्ध कविकी कविताका हो; कच्चा; संदिग्ध ।
ऐसा अनुकरण जिसमें शब्द-विन्यास एवं विचार-परंपरा अनिषिद्ध-वि० [सं०] जो वजित या अविहित न हो। । इस तरह बदल दी जाय कि उसके पढ़नेसे हास्यमिश्रित अनिष्ट-वि० [सं०] जो इष्ट न हो; अवांछित; हानिकरः | | आनंदकी सृष्टि हो। बुरा । पु० अहित; हानि; अमंगल; विपत् । -कर-वि० | अनुक्त-वि० [सं०] अकथित, न कहा हुआ। हानिकारक । -ग्रह-पु० बुरा या हानिकारक ग्रह । अनुक्रम-वि० [सं०] क्रमबद्ध । पु० उचित कम, सिलअनी-स्त्री० नोक, कोर; लगने, चुभनेवाली बात; ग्लानि । सिला; एकके बाद एक होनेकी क्रिया दे० 'अनुक्रमणी' ।
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अनुक्रमण-अनुनाद अनुक्रमण-पु० [सं०] क्रमपूर्वक आगे बढ़ना; अनुगमन ।। काव्यालंकार जहाँ अच्छे गुणकी लालसामे दोषवाली अनुक्रमणिका, अनुक्रमणी-स्त्री० [सं०] विषयसूची; वस्तुकी भी इच्छा की जाय; वह अनुमति (या स्वीकृति) जो क्रमबद्ध शब्दसूची।
किसी अधिकारी या मान्य व्यक्ति द्वारा कोई काम करनेके अनुक्षण-अ० [सं०] प्रतिक्षण, लगातार ।
लिए दी गयी हो (परमिशन); -धारी-पु० वह व्यक्ति अनुग-वि० [सं०] पीछे चलनेवाला (समासमें)। पु० जिसे कोई वस्तु बेचने या कोई काम करनेके लिए (सरअनुचर; साथी।
कारसे) अनुज्ञापत्र दिया गया हो; प्राप्तानुश (लाइसेंसी)। अनुगत-वि० [सं०] अनुगामी; अनुकूल; उपयुक्त; अधीन। -पत्र-पु० (लाइसेंस) सरकारसे प्राप्त वह पत्र जिसमें पु० सेवक; खुशामद, मनुहार ।
किसी व्यक्तिको उचित शुल्क देनेपर कोई वस्तु बेचनेअनुगतार्थ-वि० [सं०] मिलते-जुलते अर्थका ।
खरीदने या ऐसा ही कोई अन्य काम करनेकी अनुमति अनुगति-स्त्री० [सं०] अनुगमन; अनुकरण ।
दी गयी हो। अनुगम, अनुगमन-पु०[सं०] पीछे चलना, नकल करना; अनज्ञात-वि० [सं०] अनुमति प्राप्त; आदिष्ट । सहमरण; अर्थबोध: समझना।
अनुज्ञापक-पु० [सं०] अनुमति या आशा देनेवाला । अनुगुण-वि० [सं०] समान गुणवाला; अनुकूल, अनुगत। अनुज्ञापन-पु० [सं०] आशा देना; अनुमति या अधिपु० अर्थालंकारका एक भेद जिसमें पहलेसे विद्यमान गुणका कार देना। अन्य वस्तुकी संगति या संसर्गसे बढ़ जाना दिखलाया अनुतप्त-वि० [सं०] अनुताप-युक्त रंजोदा, खिन्न । जाय ।
अनुताप-पु० [सं०] खेद, रंज; पछतावा; जलन, ताप । अनुगृहीत-वि० [सं०] जिसपर अनुग्रह किया गया हो, अनुतोषण-पु० (ग्रेटिफिकेशन) संतुष्ट या प्रसन्न करना; उपकृत; एहसानमंद।
रुपया-पैसा, भेंट आदि देकर किसीको अपने अनुकूल अनुग्रह-पु० [सं०] कृपा, प्रसाद; राज्यकी कृपासे प्राप्त बनाना, परितोषण । सहायता या सुभीता; सेनाके पृष्ठभागकी रक्षा करनेवाला अनुत्तरदायी-वि० [सं०] जो अपना उत्तरदायित्व न दल; * अनिष्ट निवारण । -काल-पु० (डेज ऑफ ग्रेस) समझे, कर्त्तव्यपालन और जिम्मेदारीका खयाल न रखे किसी हुंडी या बीमाकी किस्तकी निर्धारित अवधि बीत (इरेस्पॉन्सिबिल )। जानेके बाद उसके भुगतान या अदायगीके लिए अनुग्रह- अनुत्तान-वि० [सं०]चित नहीं पट, सीनेके बल लेटा हुआ पूर्वक दिया गया अतिरिक्त समय ।-धन-पु० (ग्रेचुइटी)| अनुत्तीर्ण-वि० [सं०] जो परीक्षामें उत्तीर्ण (सफल ) न दीर्घकालीन सेवाके बदले अनुग्रहके रूपमें दिया जानेवाला हुआ हो। धन, सेवोपहार ।
अनुत्पादक-वि० [सं०] जो उत्पन्न न करे या जिससे अनुग्राहक, अनुग्राही (हिन्)-वि० [सं०] अनुग्रह | उत्पन्न न हो; अलाभकर । करनेवाला, मेहरबान।
अनुत्साह-पु० [सं०] चेष्टा, प्रयास या संकल्पका अभाव । अनुचर-पु० [सं०] पीछे चलनेवाला; नौकर: साथी। अनदत्त-वि० [सं०] स्वीकृत माफ किया हुआ; लौटाया अनुचित-वि० [सं०] नामुनासिब बेजा, बुरा । अनुच्छित्ति-स्त्री० [सं०] कटकर अलग न होना; नाश अनुदात्त-वि० सं०] उदात्तका उलटा, छोटा, नीचा। न होना, अनश्वरता।
पु० नीचा स्वर । अनुच्छिष्ट-वि० [सं०] जो जूठा न हो, अभुक्त; शुद्ध । अनुदार-वि० [सं०] अदाता; कंजूस संकीर्ण-हृदय । अनुच्छेद-पु० (आटिकिल; पैराग्राफ) किसी अधिनियम, | अनुदिन, अनुदिवस-अ० [सं०] प्रतिदिन । विधान, नियमावली, संविंदा आदिका वह विशिष्ट अंग अनुदृष्टि-स्त्री० [सं०] अनुकूल दृष्टि । वि० अनुकूल दृष्टि या अंश जिसमें एक विषय और उसके प्रतिबंधों आदिका | रखनेवाला। उल्लेख हो; लेख आदिका वह अंश जिसमें कोई एक बात | अनुदेश-पु० (इन्स्ट्रक्शन) कोई काम करनेके लिए विशेष कही गयी हो और जिसकी पहली पंक्ति आरंभमें कुछ रूपसे समझाना या आदेश देना, हिदायत । स्थान छोड़कर लिखी गयी हो; दे० 'अनुच्छित्ति। अनुद्धत-वि० [सं०] विनीत; शिष्ट; सौम्य । अनुछन-अ० दे० 'अनुक्षण' ।
अनुद्यमी (मिन)-वि० [सं०] उद्यम न करनेवाला: अनुज, अनुजात-वि० [सं०] पीछे जनमा हुआ। पु० आलसी । छोटा भाई ।
अनुयोगी (गिन्)-वि० [सं०] उद्योग न करनेवाला अनुजन्मा (न्मन्)-पु० [सं०] दे० 'अनुज'। निष्क्रिया उदासीन । अनुजा, अनुजाता-स्त्री० [सं०] छोटी बहन । | अनुद्विग्न-वि० [सं०] जिसका मन शांत हो, आशंका; अनुजीवी (विन्)-वि० सं०] किसीके सहारे जीनेवाला; चिता आदिसे मुक्त। आश्रित । पु० सेवक ।
अनुद्वेग-पु० [सं०] भय, आशंका आदिका अभाव । अनुज्ञप्ति-स्त्री० [सं०] दे० 'अनुज्ञापन'; (लाइसेंस) कोई अनुधावन-पु० [सं०] अनुसरण; अनुकरण; चिंतनः वस्तु बेचने-खरीदने आदिकी अनुमति जो उचित शुल्क अनुसंधान । देनेपर सरकारसे प्राप्त की गयी हो; 'अनुज्ञापत्र'। अनुनय-वि० [सं०] विनय, प्रार्थना, मनावन । अनुज्ञा-स्त्री० [सं०] अनुमति, स्वीकृति, आशा; एक | अनुनाद-पु० [सं०] प्रतिध्वनि, गूंज ।
हुआ।
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अनुनादित-अनुमोदित अनुनादित-वि० [सं०] प्रतिध्वनित, जिसकी गूंज हुई हो। अनुबद्ध-वि० [सं०] संबद्ध,लगाव रखनेवाला ।-करनाभनुनासिक-वि० [सं०] जिसका उच्चारण मुँह और स० क्रि० (टु एनेक्स) अंतमें जोड़ना, साथमें रखना या नाकसे हो-(ङ, ञ, ण, न, म और अनुस्वार )। पु० मिला देना। अनुनासिक वर्ण ।
अनुबल-पु० [सं०] पीछे स्थित रक्षक सेना; पृष्ठरक्षक सेना अनुन्नत-वि० [सं०] जो ऊपर उठाया न गया हो; जिसने (रेयर गार्ड )। उन्नति न की हो।
अनुबोध-पु० [सं०] स्मरण; पीछे होनेवाला स्मरण । अनुन्मुक्त-वि० ( अन-डिस्चार्जड) (वह ऋण) जिसका अनुभव-पु० [सं०] प्रत्यक्ष ज्ञान, देख-सुनकर या प्रयोगपरिशीधन न किया गया हो; (वह बंदी) जो कारागृहसे परीक्षासे प्राप्त ज्ञान, मनसे जानना; संवेदन, महसूस मुक्त न किया गया हो।
करनाः सुख-दुःखरूपमें उपलब्धि । -सिद्ध-पु० अनुअनुपम-वि० [सं०] उपमारहित, बे-जोड़, सर्वोत्तम ।। भव करके देखा हुआ; परीक्षा-सिद्ध । अनुपमेय-वि० [सं०] अतुलनीय ।
अनुभवना*-स० क्रि० अनुभव करना। अनुपयुक्त-वि० [सं०] अयोग्य; अनुचित नामोज । अनुभवी (विन)-वि० [सं०] अनुभव रखनेवाला, निकम्मा ।
तजुबेकार; भुक्तभोगी। अनुपयोग-पु० उपयोगी न होना; उपयोगमें न आना। अनुभवोक्ति-स्त्री० ( मैक्सिम) अनुभवके आधारपर कही अनुपयोगिता-स्त्री० [सं०] उपयोगी न होना, निरर्थकता। जानेवाली बात, कहावत आदि । अनुपयोगी (गिन्)-वि० [सं०]उपयोगरहित, बे-मसरफ । | अनुभाव-पु० [सं०] मनोगत भावकी सूचक बाह्य क्रियाएँ अनुपलब्ध-वि० [सं०] अप्राप्त; जो जाना न गया हो। । (सा०); प्रभाव; बड़ाई; संकल्प; दृढ़ विश्वास । अनुपलब्धि-स्त्री० [सं०] अप्राप्ति; जानकारी न होना। अनुभावक-वि० [सं०] अनुभव करानेवाला । अनुपस्थित-वि० [सं०] जो सामने या पासमें न हो, अनभावन-पु० सं०] अंगभंगी द्वारा मनोगत भावोंको गैरहाजिर, अविद्यमान ।
व्यक्त करना। अनुपस्थिति-स्त्री० [सं०] अविद्यमानता, गैरहाजिरी। । अनुभावी (विन)-वि० [सं०] अनुभव करनेवाला; अनुपात-पु० [सं०] सापेक्षिक संबंध; तीन ज्ञात संख्याओंके चश्मदीद गवाह; भावजन्य चिह्न प्रकट करनेवाला; पीछे
आधारपर चौथीको निकालना; त्रैराशिक (गणित); एकके | होने या आनेवाला। . बाद दूसरेका गिरना; अनुसरण ।।
अनुभूत-वि० [सं०] अनुभव किया हुआ; आजमाया अनुपातक-पु० [सं०] ब्रह्महत्यादि महापातकोंके बराबरके हुआ, परीक्षित । पाप-चोरी, हत्या, परस्त्रीगमनादि ।
अनुभूति-स्त्री० [सं०] अनुभव; समवेदना प्रत्यक्ष, अनुअनुपाती प्रतिनिधित्व-दे० 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व' । मिति, उपमिति और शब्दबोध द्वारा प्राप्त ज्ञान (न्या०)। अनुपान-पु० [सं०] दवाके साथ या पीछे ली जाने- अनुभूतिवाद-पु० (एम्पीरिसिज्म) पूर्वज्ञात बातों आदिपर वाली वस्तु ।
नहीं, केवल अनुभव तथा परीक्षणादिपर आश्रित तत्त्ववाद । अनुपालन-पु० [सं०] रक्षण; आशापालन, मानना। अनुभोग-पु० [सं०] उपभोग सेवाके बदले मिलनेवाली अनुपूरक-पु० (सप्लिमेंट) वह अंश जो छूटी हुई बात या माफी जमीन।। कोई कमी पूरी करनेके लिए बादमें जोड़ा जाय। वि० | अनमति-स्त्री० [सं०] स्वीकृति, इजाजत । -पत्र-पु० (सप्लिमेंटरी) जो कमी रह गयी हो उसे पूरा करनेके लिए
जा कमी रह गया हो उस पूरा करनेक लिए स्वीकृति-सूचक पत्र या लेख। जो बादमें रखा जाय, जोड़ा जाय, प्रकाशित किया जाय, |
अनुमरण-पु० [सं०] सती होना, सहमरण । पूछा जाय । -प्रश्न-पु० कोई प्रश्न पूछनेके बाद छटी
अनुमाता (तृ)-वि० [सं० ] अनुमान करनेवाला । हुई बात या तत्संबंधी अन्य जानकारी प्राप्त करनेके लिए |
अनुमान-पु० [सं० ], अटकल, अंदाज; प्रत्यक्षसे अप्रउसी सिलसिले में पूछा गया प्रश्न ।
त्यक्षका ज्ञान ( धुआँ देखकर आगका ज्ञान), न्यायशास्त्रके अनुपूर्व-वि० [सं०] क्रमबद्ध, सिलसिलेवार ।
माने हुए चार प्रमाणोमेंसे एक; अनुमति, स्वीकृति । अनुपूरित-वि० (सप्लिमेंटेड) जो कोई कमी, छूट आदि । -ता-पु० अनुमानसे, अंदाजन ।। पूरी करने के लिए बादमें जोड़ा, रखा या प्रकाशित किया |
रखा या प्रकाशित किया | अनुमानना*-स० क्रि० अनुमान करना,सोचना; समझना। गया हो।
अनुमित-वि० [सं०] अनुमान किया हुआ। अनुपूरण-पु० (सप्लिमेंट) छूट, कमी आदि पूरी करनेके अनुमेय-वि० [सं० ] अनुमान करने योग्य । लिए बादमें कुछ बढ़ाना या मिलाना ।
अनुमोदक-वि० [सं०] अनुमोदन, समर्थन करनेवाला। अनुप्राणन-पु० [सं०] प्राणसंचार, प्रेरण, स्फूर्ति । । अनुमोदन-पु० [सं०] प्रसन्न करना या होना; समर्थन; । अनुप्राणित-वि० [सं०] जिसे जीवन या स्फूति दी गयी। स्वीकृति: पु० (ऐप्रह्वल) किसीके कार्य, मत या प्रस्तावको हो प्रेरित समर्थित पोषित ।
ठीक मानते हुए अपनी सहमति प्रकट करने या उसका अनुप्रास-पु० [सं०] एक शब्दालंकार जिसमें वर्ण-विशेष समर्थन करनेकी क्रिया ।। या वर्ग-विशेषके व की आवृत्ति होती है; वर्णसाम्य । अनुमोदित-वि० समर्थितः (ऐबड) (कार्य या प्रस्ताव) अनुबंध-पु० [सं०] बंधन; संबंध; सिलसिला; आरंभ जिसका किसीने अनुभोदन किया हो या ठीक समझकर नतीजा; मार्ग; क्षुद्रांशा संबंध जोड़नेवाला ।
स्वीकार कर लिया होः प्रसन्न किया हुआ।
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अनुयाचक- अनुशासन
अनुयाचक - पु० (कैनवैसर) माल खरीदने के लिए दूसरोंको राजी करनेका प्रयत्न करनेवाला; मतदाताके पास जाकर उसे अपने पक्षमें मतदान करनेके लिए तैयार करनेवाला, मतप्रार्थी; मतानुयाचक ।
अनुयाचन - पु० ( कैनवैसिंग ) किसीको समझा-बुझाकर अपने पक्ष में करते हुए उससे कोई काम करनेके लिए नम्रतापूर्वक कहना; पदपर नियुक्त करने, मत देने या माल खरीदने की स्वीकृति प्राप्त करनेका प्रयत्न करना; मतप्रार्थना ।
अनुयाता (तृ) पु० [सं० ] अनुसरण करनेवाला, पीछे चलनेवाला, अनुयायी ।
अनुयायी (यिन) - वि० [सं०] पीछे चलनेवाला, अनुगामी किसी मत या नेताका अनुसरण करनेवाला; समान, सदृश । पु० पीछे चलनेवाला; अनुचर । अनुयोग - पु० [सं०] प्रश्न; जिज्ञासा; पूछताछ । अनुयोज्य - वि० [सं०] जिससे प्रश्न किया जा सके; पु० सेवक, आशाकारी सेवक ।
अनुरंजक - पु० [सं०] प्रसन्न, संतुष्ट करनेवाला ।
अनुरंजन- पु० [सं० प्रसन्न करना, संतुष्ट करना । अनुरंजित - वि० [सं०] प्रसन्न, संतुष्ट | अनुरक्त - वि० सं०] अनुराग युक्त, प्रेमी, आसक्त, वफादार; प्रसन्न, संतुष्ट; लाल । अनुरक्ति - स्त्री० [सं०] प्रेम, आसक्ति, भक्ति । अनुरणन - पु० [सं०] घंटा, नूपुर आदिकी प्रतिध्वनि, गूँज व्यंजना ।
अनुराग - पु० [सं०] प्रेम, आसक्ति; भक्ति; लाल रंग । अनुरागना * - स० क्रि० प्रेम करना । अ० क्रि० अनुराग युक्त होना; प्रेम में मग्न होना ।
|
अनुरागी (गिन् ) - वि० [सं०] प्रेमी, आसक्त भक्त । अनुराध* - पु० विनती, अनुरोध ।
अनुराधना * - स० क्रि० बिनती करना ।
अनुराधा - स्त्री० [सं०] एक नक्षत्र ।
अनुरूप - वि० [सं०] समान रूपवाला, सश; योग्य,
उपयुक्त ।
अनुरोधक - पु० (मेमोरेंडम ) शिकायतों, माँगों आदिका संक्षेप में स्पष्टीकरण करते हुए अधिकारियोंके समक्ष उपस्थित किया गया अनुरोध पत्र । अनुलंब - पु० (ऑफसेट ) बहुभुजके दो शीषको मिलानेवाली सरल रेखा (आधाररेखा) पर किसी अन्य शीर्षसे गिराया गया लंब । - खाता - पु० (सस्पेंस अकाउंट) वह खाता जिसमें किसीको दी गयी ऐसी रकम या रकमें अस्थायी रूप से डाल दी जाती हैं जिनकी पक्की खतिओनी बाद में हिसाब प्राप्त होनेपर की जाय, उचंत खाता, अमानत खाता ।
अनुलंबन - पु० (सस्पेंशन) दे० 'निलंबन' । अनुलंबित - वि० (सस्पेंडेड) दे० 'निलंबित', मुअत्तिल । अनुलाप - पु० [सं०] पुनरुक्ति; घुमा-फिराकर बार-बार |
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३६
एक ही बात कहना ।
अनुलाभ-पु० ( पर क्विजिट) दे० 'परिलब्धि' । अनुलिपि-स्त्री० (फैक्सिमिलि) लेख, चित्र आदिको ज्योंकी त्यों प्रतिलिपि या अनुकृति । अनुलेप- पु० [सं०] सुगंधित लेप, उबटन आदि; ऐसी वस्तुओंका लेप या मालिश । अनुलेपन- पु० [सं०] दे० 'अनुलेप' । अनुलोम-वि० [सं०] ऊपरसे नीचे की ओर आनेवाला; यथाक्रम; अविलोम । पु० संगीतमें स्वरोंका उतार, अवरोह - ज - जन्मा (न्मन्) - वि० अनुलोम विवाहसे उत्पन्न । - विवाह - पु० उच्च वर्णके पुरुषका अपनेसे हीन वर्णकी स्त्रीसे विवाह ।
अनुलोमा - स्त्री० [सं०] पतिसे हीन वर्णकी स्त्री । अनुवचन - पु० [सं०] दुहराना; पाठ; शिक्षण; भाषण;
अनुवाद्य - वि० [सं०] अनुवाद करने योग्य |
अनुविद्ध - वि० [सं०] बिधा हुआ, छिद्रित; मिश्रित, संयुक्त; जड़ा हुआ (जैसे रत्न) ।
अनुविभाग - पु० (सेक्शन) पुस्तकादिके मुख्य खंडोंमेंसे किसी एक का छोटा विभाग; किसी समाज, सम्प्रदाय या वर्गका वह खंड या समूह जिसकी अपनी अलग विशेषता, स्वार्थ, रीति-रिवाज आदि हों, उपभेद; किसी कक्षा के विषयादिको भिन्नता के कारण किये गये विभागं; किसी चिकित्सालय, निर्माणशाला आदिके पृथक् पृथक् हिस्से जिनमें अलग-अलग तरहका काम होता हो ।
अनुरूप ना* - स० क्रि० सदृश बनाना ।
अनुरोध - पु० [सं०] अनुसरण; लिहाज; विचार; प्रार्थना; अनुवृत्ति - स्त्री० [सं०] अनुसरण; स्वीकृति; आज्ञापालन; विनय; आग्रह; बाधा, रुकावट ।
अध्याय ।
अनुवर्तन- पु० [सं०] अनुसरण, अनुगमन; आज्ञापालन । अनुवर्ती ( तिनू ) - वि० [सं०] अनुसरण करनेवाला, अनुयायी; आज्ञाकारी; समान; उपयुक्त । - प्रस्तावपु० (सबसीक्वेंट मोशन) बादमें आनेवाला या रखा जाने
वाला प्रस्ताव |
अनुवाद - पु० [सं०] फिरसे कहना; व्याख्या या समर्थनरूप में पुनरुक्ति; समर्थन; जनश्रुति; उलथा, भाषांतर । अनुवादक - पु० [सं०] अनुवाद करनेवाला, उलथाकार । अनुवादित - वि० [सं०] अनुवाद किया हुआ, अनूदित; भाषांतरित ।
आवृत्ति; अनुकरण; वाक्यार्थ स्पष्ट करने के लिए पूर्ववर्ती वाक्यका कुछ अंश लेना । अनुवेशपत्र- पु० (वीजा) पारपत्रका निरीक्षण कर लेनेके बाद उसकी पीठ पर लिखा हुआ यह लेख कि उसकी विधिवत् जाँच की जा चुकी है और यात्रार्थी उसे लेकर आगे बढ़ सकता हैं ।
अनुशंसा - स्त्री० ( रेकॉमेण्डेशन ) दे० 'अभिस्ताव' । अनुशंसित - वि० ( रेकॉमेण्डेड ) जिसके संबंध में अनुशंसा या अभिस्ताव किया गया हो ।
अनुशयाना - स्त्री० [सं०] मिलन स्थानके नष्ट होनेसे दुःखित परकीया नायिका ।
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अनुशासक - पु० [सं०] अनुशासन करनेवाला; शासक । अनुशासन - ५० [सं०] आदेश; शिक्षा; ( किसी विषयका ) निरूपण; नियंत्रण, नियमन; नियम पालन |
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३७
अनुशासित - वि० [सं०] जिसका अनुशासन किया गया हो; आदिष्ट; दंडित ।
अनुशीलन - पु० [सं०] सतत तथा गंभीर अभ्यास; नियमित अध्ययन मनन ।
अनुश्रुत - वि० [सं०] परंपरा से प्राप्त ( ज्ञान आदि ) । अनुश्रुति - स्त्री० [सं०] श्रुति परंपरा से प्राप्त कथा, ज्ञान ३० । अनुषंग - पु० [सं०] संबंध, लगाव; मिश्रण, अर्थपूर्ति के लिए किसी वस्तुकी प्रासंगिक चर्चा या शब्दादिकी आवृत्ति; अवश्यंभावी परिणाम, एक शब्दका अन्य शब्द के साथ या कारण और कार्यका संबंध | अनुषंगी (गिन् ) - वि० [सं०] रूपमें आनेवाला; सामान्य
संबद्ध; अनिवार्य परिणामके रूपसे प्रयुक्त होनेवाला;
आसक्त, अनुरक्त अनुष्टुप् - स्त्री० [सं०] ३२ अक्षरोंका एक प्रसिद्ध छंद । अनुष्टाता (तृ) - वि० [सं०] अनुष्ठान करनेवाला, कार्य आरंभ करनेवाला |
अनुसरना* - स० क्रि० अनुसरण करना; अनुकरण करना; किसी के अनुकूल कार्य करना ।
अनुसार - वि० अनुकूल; अनुरूप, मुताबिक | क्रि० वि० किसीकी तरह ।
अनुशासित-अनेस
अनुस्मरण - पु० [सं०] बार-बार स्मरण, भूली बातको
याद करना ।
अनुस्मारक - पु० ( रिमाइंडर) स्मरण दिलानेवाला पत्र (या व्यक्ति) ।
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अनुस्यूत - वि० [सं०] ग्रथित; पिरोया हुआ; सिला हुआ । अनुस्वार - पु० [सं०] स्वर के बाद बोला जानेवाला हलंत अनुनासिक वर्ण जिसका चिह्न यह है; ( - ) अनुस्वार - सूचक बिंदी |
अनुहरत * - वि० अनुसरण करता हुआ; अनुरूप; उपयुक्त योग्य |
अनुष्ठान - पु० [सं०] करना; आरंभ करना; कोई धार्मिक कृत्य; फल-विशेष के लिए किसी देवताका आराधन । अनुष्टित - वि० [सं०] विधिपूर्वक किया हुआ; आचरित । अनुष्ठेय - वि० [सं०] अनुष्ठान के योग्य; करणीय । अनुसंधान - पु० [सं०] अन्वेषण, खोज, जाँच-पड़ताल; प्रयत्न योजना; आयोजन (इनवेस्टिगेशन) अच्छी तरह देख-सुनकर या जाँच-पड़ताल द्वारा वस्तु-स्थितिका पता लगाना । —लेख- पु० (मेमॉइर) स्वयं पता लगाकर ज्ञात की गयी बातों या सामग्री के आधारपर लिखा गया लेख | अनुसंधानना* - स० क्रि० ढूँढ़ना; विचारना । अनुसंधि - स्त्री० [सं०] गुप्त मंत्रणा, गुप्त योजना । अनुसमर्थन - पु० (रैटिफिकेशन) (प्रतिनिधियों द्वारा किये गये समझौते आदिका जाब्तेसे - संधिपत्र, संविदापत्र पर हस्ताक्षर आदि द्वारा - समर्थन या अभिपुष्टि | अनुसयाना * - स्त्री० दे० 'अनुशयाना' । अनुसर - वि० [सं०] अनुसरण करनेवाला, अनुचर, हमराही, साथी; * दे० 'अनुसार' ।
|
अनुसरण - पु० [सं०] पीछे चलना; अनुकरण; अनुकूल आचरण; अभ्यास ।
अनुसारक- वि० [सं०] अनुसरण करनेवाला, खोज करने बाला, अनुरूप । अनुसारना * - स० क्रि० अनुसरण करना; कोई काम करना; आरंभ करना; चलाना; भेजना, पठाना । अनुसारी (रिन् ) - वि० [सं०] दे० 'अनुसारक' । अनुसाल * - पु० दर्द, पीड़ा । अनुसूचित जाति - स्त्री० (शेड्यूल्ड कास्ट) अनुसूची में उल्लिखित या निर्दिष्ट जाति । अनुसूची- स्त्री० (शेड्यूल) खानापूरी, कोष्ठक या व्यवस्थित सूची के रूपमें दी गयी वह नामावली जो प्रायः किसी विवरण, नियमावली आदिके परिशिष्टकी तरह दी जाय ।
|
अनुहरना* - स० क्रि० अनुसरण करना; नकल करना । अनुहरिया* - स्त्री० आकृति, चेहरा । वि० तुल्य, सदृश । अनुहस्ताक्षरण - पु० (सब्सक्राइविंग ) किसी प्रलेख, आवेदन-पत्रादिमें अपने हस्ताक्षर करना; किसी सिद्धांत या वक्तव्य आदिके संबंध में अपनी स्वीकृति सूचित करनेके लिए हस्ताक्षर करना ।
अनुहार - ५० [सं०] अनुकरण, नकल; समानता । वि० तुल्य, समान । स्त्री० [हिं०] भेद, प्रकार; आकृति | अनुहारना * - स० क्रि० समता करना, उपमा देना । अनुहारि* - वि० अनुसार, समान; योग्य; उपयुक्त । स्त्री० मुखाकृति, चेहरा; वेश ।
अनुहारी ( रिन्) - वि० [सं०] अनुकरण करनेवाला । अनूअर * - अ० लगातार, निरंतर । अनूजरा * - वि० अनुज्ज्वल, मैला । अनूठा - वि० अद्भुत; अनोखा; सुंदर । अनूढ - वि० [सं०] अविवाहित; अवहित । अनूढा - स्त्री० [सं०] अविवाहिता स्त्री । -गमन - पु० अविवाहिता स्त्रीसे संबंध करना । अनूत्तर* - वि० निरुत्तर; मौन ।
अनूदित - वि० [सं०] पीछे कहा हुआ; उलथा किया हुआ । अनून - वि० [सं०] अधिक; अन्यून; जो हीन या घटिया हो; संपूर्ण, समग्र ।
अनूप - वि० उपमारहित, बेजोड़ अति सुंदर | पु० जलप्राय स्थान या देश; दलदल ।
*
अनृत- पु० [सं०] असत्य, झूठ; खेती । वि० झूठा (शब्द, वाक्य); अन्यथा, उलटा । भाषण, वादन - पु० झूठ बोलना । - वादी ( दिन ) - वि० झूठा । अनृतक, अनृती (तिन् ) - वि० [सं०] झूठ बोलनेवाला | अनेऊ - वि० बुरा; कुटिल ।
अनेक वि० [सं०] एकसे अधिक; कई; बहुत । -वादपु० ( प्लूरलिज्म) जीवोंको भी पृथक् और वास्तविक सत्ता भाननेवाला दर्शन, जगत् में दोसे अधिक परम सत्ताओं में विश्वास करनेका सिद्धांत ।
अनेकार्थक - वि० [सं०] जिसके कई अर्थ हों । अनेग* - वि० दे० 'अनेक' |
अनेड - वि० [सं०] मूर्ख; मिकम्मा; खराब; । टेढा 'पियका मारग सुगम है, तेरा चलन अनेड' - कबीर । अनेरा* - वि० स्वच्छंद विचरनेवाला, निरंकुश; बे-रोक-टोक ! दुष्ट; झूठा; व्यर्थ; निकम्मा । अ० व्यर्थ ही । अनेस* - वि० अनिष्ट, अप्रिय, बुरा । पु० अंदेशा, चिंता ।
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-अन्वेषक
अनै*-पु० दे० 'अनय' ।
अनैक्य - पु० [सं०] एकताका अभाव; बहुत्व; फूट अनैच्छिक - वि० [सं०] जो स्वेच्छा से न किया गया हो; इच्छा के विरुद्ध (इनवालंटरी) |
अनोसर - पु० ठाकुरजीको शयन कराना ।
अनौचित्य - पु० [सं०] औचित्यका अभाव या उलटा ।
अनौट* - पु० दे० 'अनवट' ।
अनौद्धत्य - पु० [सं०] उच्छृंखलता या दर्पका अभाव; विन
म्रता; शांति; (नदीके पानीका ) ऊँचा न होना ।
अनौधि* - अ० शीघ्र, बिना देर किये ।
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३८
-- अ० दूसरी जगह, और कहीं । - था- वि० उलटा विरुद्ध; झूठ । अ० नहीं तो । - पुरुष - पु० सर्वनामका एक भेद; दूसरा आदमी। -पुष्टा - स्त्री० कोयल । - भृता - स्त्री० कोयल । भृत्-वि० दूसरेका पालन करनेवाला | पु० काक | - मनस्क - मना (नस् ), - मानस - वि० जिसका चित्त कहीं और हो । -मातृजपु० दूसरी मातासे उत्पन्न, सौतेला भाई । -संभोगदुःखिता - स्त्री० वह नायिका जो अन्य स्त्रीमें प्रियके संभोग चिह्न देखकर दुःखित हो ।
अन्यच्च - अ० [सं०] और भी; इसके सिवा ।
अनैतिक - वि० [सं०] नीति-विरुद्ध । अनैतिहासिक - वि० [सं०] जो इतिहासमें न आया हो या जो इतिहाससे प्रमाणित न होता हो, इतिहास - विरुद्ध । अनैस* पु० अनिष्ट, बुराई; अंदेशा | वि० बुर: । अनैसना* - अ० क्रि० रूठना, अप्रसन्न होना । अनैसा * - वि० अनिष्ट, वुरा । अनैसे* - अ० बुरे भावसे ।
अन्याय - पु० [सं०] न्यायविरुद्ध कार्य, बे-इंसाफी; अनौचित्य, जुल्म, अत्याचार |
अनैहा* - पु० उत्पात मचलना ।
अनोखा - वि० अनूठा, अद्भुत, अपूर्व; नया, सुंदर । - पन अन्यायी ( यिन्) - वि० [सं०] अन्याय करनेवाला । - पु० विलक्षणता; सुंदरता; नयापन ।
अन्याय्य - वि० [सं०] न्यायविरुद्ध, अनुचित |
अन्यारा* - वि० जो जुदा न हो, अभिन्न; अनोखा; अनीदार, नुकीला; बहुत । अन्याश्रित - वि० [सं०] दूसरेपर अवलंबित |
अन्यास* - अ० दे० 'अनायास'; अकस्मात् 'मोको तुम अपराध लगावत कृपा भई अन्यास ' -सू० अन्यून - वि० [सं०] अनल्प, अधिक, बहुत ।
अनौरस - वि० [सं०] जो औरस - विवाहिता पत्नीसे उत्पन्न अन्येद्युः - अ० [सं०] दूसरे दिन; एक समय । - न हो, अवैध या गोद लिया हुआ (पुत्र) ।
अनू - उप० [सं०] 'अ' (नञ्) का स्वरादि शब्दोंके पहले लगनेवाला रूप (दे० 'अ') ।
अन्न- पु० [सं०] खानेकी चीज, भोज्य पदार्थ;पका अन्नः भात; अनाज, धान्य; जल; पृथ्वी सूर्य; विष्णु । वि० अन्य, दूसरा । - कूट- पु० भात या मिष्ठान्नादिका पहाड़ या ढेर; कार्त्तिक शुक्ला प्रतिपदाको होनेवाला एक उत्सव | - जल- पु० दाना-पानी, आब-दाना; स्थानविशेष में रहनेका संयोग । - दा - स्त्री० दुर्गा, अन्नपूर्णा । - दाता (तृ) - वि० अन्न देनेवाला; प्रतिपालन करनेवाला | पु० मालिकों के लिए सेवकों द्वारा प्रयुक्त संबोधन । - दास - वि० भोजनमात्र लेकर काम करनेवाला (नौकर ) । - दोषदूषित अन्न खानेसे होनेवाला रोग इ०; निषिद्ध, अन्न खाने या अग्रा अन्नके प्रतिग्रहसे होनेवाला पाप । - पाक - पु० अग्निपर वा पेटमें खाद्य पदार्थका पकना । - पूर्णा - स्त्री० अन्नकी अधिष्ठात्री देवी, दुर्गाका एक रूप । - प्राशन- पु० बच्चेको पहली बार अन्न खिलानेकी रस्म या संस्कार, चटावन । -शेष-पु० जूठन भूसी-चोकर आदि । - सत्र - पु० वह संस्थान जहाँ साधु-फकीरों, गरीबों- अपाहिजोंको भोजन दिया जाता 1 मु० - जल उठना- रहनेका संयोग या सहारा न होना । अन्नमय-वि० [सं०]अन्नसे बना; अन्नसे भरा । - कोश (प) - पु० वेदांतमें माने हुए पाँच कोशोंमें पहला, स्थूल शरीर । अन्ना - स्त्री० धाय; माता । अन्नोपलब्धि - स्त्री० (प्रोक्यूर मेंट) किसानों, ग्रामीणों आदि
से उचित मूल्य पर खाद्यान्न प्राप्त करना, गल्ला - वसूली । अन्य - वि० [सं०] दूसरा, गैर; भिन्न; साधारण; अतिरिक्त, - तः - अ० दूसरेसे; दूसरे स्थानसे ।-तम- वि०बहुतों में से एक; सर्वश्रेष्ठ (?) । - तर - वि० दोमेंसे एक; दूसरा, भिन्न ।
अन्योक्ति - स्त्री० [सं०] ऐसी उक्ति जो साधर्म्यके कारण कथित वस्तुके अतिरिक्त औरों पर भी घटित हो सके; अर्थालंकारका एक भेद ।
अन्योन्य - वि० [सं०] परस्पर; एक दूसरेको या पर । पु० अर्थालंकारका एक भेद - प्रजनन पु० (क्रॉसब्रीडिंग) विभिन्न जातिके पशु-पौधोंके पारस्परिक संसर्ग द्वारा उत्पादन कराना ।
अन्योन्याभाव- पु० [सं०] अभावका एक भेद, किसी एक पदार्थका अन्य पदार्थ न होना । अन्योन्याश्रय- पु० [सं०] एकका दूसरेपर अवलंबित होना, परस्पर कार्य कारण संबंध | अन्वय- पु० [सं०] अनुगमन; संबंध; मेल; अवकाश; वाक्य में पदोंका परस्पर उचित संबंध; आशय; वंश; नियमानुसार यथास्थान रखना; हेतु और साध्यका साहचर्य (न्या० ); कारण कार्यका संबंध । अन्वयार्थ - पु० [सं०] अन्वयसे निकलनेवाला अर्थ | अन्वर्थ - वि० [सं०] अर्थका अनुसरण करता हुआ, यथार्थ; स्पष्ट अर्थवाला |
अन्वित - वि० [सं०] युक्त, सहित; ग्रस्त ( शोकान्वित ); संबद्ध; समझा हुआ ।
अन्वितार्थ- पु० [सं०] ऐसा अर्थ जो अन्वय करनेसे सहज ही समझमें आ जाय । बि० ऐसा अर्थ रखनेवाला । अन्वीक्षण- पु० [सं०] बारीकी से देखना; खोज, अन्वेषण । अन्वीक्षा - स्त्री० [सं०] अन्वीक्षण | अन्वेष, अन्वेषण - पु० [सं०] खोज करना, जाँच-पड़ताल | अन्वेषक - वि० [सं०] अन्वेषण करनेवाला, खोजी । - प्रकाश - पु० (सर्चलाइट) वह तेज प्रकाश जो अँधेरे में किसी भी दिशा की ओर दूरतक इस आशय से प्रक्षिप्त किया जाय कि उससे शत्रुके विमानों या उसकी गतिविधि
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आदिका अथवा भागते हुए या कहीं छिपे हुए चोर आदिका पता चल सके या उस तरफकी सब चीजें साफसाफ देखी जा सकें ।
अन्वेषण - पु० (रिसर्च) लगातार परिश्रमपूर्वक छानबीन करते हुए ऐतिहासिक बातों तथा अन्य तथ्योंका पता लगाना, गवेपणा, शोध ।
अन्वेषी (पिन् ), अन्वेष्टा (ष्ट) - वि० [सं०] अन्वेषक । अन्वेष्टव्य, अन्वेष्य - वि० [सं०] अन्वेषणके योग्य । अन्हवाना * -- स० क्रि० नहलाना ।
अन्हाना * - अ० क्रि० नहाना ।
अपंकिल - वि० [सं०] बिना कीचड़का, सूखा; निर्मल । अपंग- वि० अंगहीन; लँगड़ा-लूला; अशक्त । अपंडित - वि० [सं०] मूर्ख, निरक्षर, ज्ञानहीन | अप - अ० [सं०] एक उपसर्ग जो वैपरीत्य, वैरुद्धय, बुराई, आधिक्य, निषेध, हीनता, दूषण, विकृति, विशेषता इत्यादिका द्योतन करता है ।
अपकरण - पु० [सं०] दुर्व्यव्यहार; दुष्कर्म | अपकर्ता (तृ) - वि० [सं०] अपकार करनेवाला, हानि या बुराई करनेवाला; शत्रुभाव रखनेवाला । अपकर्म (न्) - पु० [सं०] बुरा काम, दुष्कर्म, ऋणपरिशोध । अपकर्ष - पु० [सं०] नीचे की ओर खींचना या लाना; अवनति, गिराव; हीनता; क्षय; अपमान; अपयश । अपकर्षक- वि० [सं०] अपकर्ष करनेवाला । अपकर्षण- पु० [सं०] दे० ' अपकर्ष' । अपकाजी * - वि० स्वार्थी, खुदगर्ज ।
अपकार - पु० [सं०] उपकारका उलटा; बुराई; अहित; अनिष्टचिंता; नुकसान; शत्रुताः अपमान; अत्याचार; नीच कर्म ।
अपकारक, -कारी (रिन्) - वि० [सं०] अपकार करनेवाला । अपकारीचार* - वि० अपकार करनेवाला; विघ्नकर्ता । अपकीरति* - स्त्री० दे० 'अपकीर्ति' । अपकीर्ति - स्त्री० [सं०] अपयश, बदनामी ।
अपकृत - वि० [सं०] जिसका अपकार किया गया हो । अपकृति - स्त्री० - अपकृत्य- पु० [सं०] अपकार । अपकृष्ट - वि० [सं०] हटाया हुआ; नष्ट किया हुआ; गिराया हुआ; घटिया, खराब ।
अपक्रम - पु० [सं०] पीछे हटना; भागना, बाहर चले आना; भागने की सीमा; व्यतीत होना ( समयका ) । वि० क्रमरहित, जिसका क्रम ठीक न हो । अपक्रमण - पु० [सं०] दे० 'अपक्रम' | अपक्रमी (मिनू ) - वि० [सं०] जानेवाला, हटनेवाला । अपक्रिया - स्त्री० [सं०] हानि, क्षति; अहित; द्रोह, दुष्कर्म; ऋणपरिशोध ।
अन्वेषण - अपण्य
| अपक्षय- पु० [सं०] छीजना, हास; नाश । अपखंड - पु० (गमेंट) किसी वस्तुका टूटा हुआ हिस्सा, अपूर्ण भाग; विनष्ट या लुप्त वस्तुका बचा हुआ अंश । अपगत- वि० [सं०] गया हुआ; बीता हुआ; भागा हुआ; तिरोहित; मृत ।
अपगति - स्त्री० [सं०] अधोगति; दुर्गति; दुर्भाग्य । अपगमन - पु० (मिस्कैरिज ) ( किसी पत्रादिका) भूलसे अन्यत्र चले जाना, निर्दिष्ट व्यक्तिके पास न पहुँचकर अन्य किसी के पास चले जाना ।
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अपगुण - पु० [सं०] दोष, ऐब ।
अपघात - पु० [सं०] रोकना; हत्या; आघात या दुर्घटनासे मरना; धोखा |
अपघाती (तिन् ) - वि० [सं०] अपघात करनेवाला | अपच पु० [सं०] वह जो पाककार्य कपने में असमर्थ हो; वह जो अपने लिए पाककार्य न करे । [हि०] बदहजमी । अपचक्र - पु० (विशस सर्किल) ( दलीलों आदिका) ऐसा दुश्चक्र जिसमें दोष भरे पड़े हों तथा जिसमेंसे बाहर आ सकना कठिन हो; विषम वृत्त ।
अपक्रोश - पु० [सं०] निंदा करना, अपशब्दका प्रयोग करना । अपक्व - वि० [सं०] कच्चा; न पकाया हुआ; अनभ्यस्त । अपक्ष - वि० [सं०] बिना पंखका; जिसके साथी समर्थक न हों । पु० वह जो राज्यके पक्षमें न हो; वह जिससे राज्यको कोई लाभ न हो; वह जिसका किसीसे मेल-जोल न हो। -पात-पु० पक्षपातका अभाव । - पाती (तिन) - वि० पक्षपात न करनेवाला, निष्पक्ष ।
३-क
अपचय - पु० [सं०] हानि; छीजना; व्यय; असफलता; दोष । अपचरण - पु० (ट्रेसपासिंग ) अपनी सीमा या अधिकारक्षेत्र से आगे बढ़कर दूसरेकी ऐसी सीमा या अधिकार क्षेत्रमें चले जाना जहाँ प्रवेश करना अनुचित हो; अनधिकार-प्रवेश ।
अपचार - पु० [सं०] दोषः अनुचित कर्म; दुराचार, अपथ्य । अपचारक, अपचारी - पु० (ट्र ेसपासर) दूसरेकी सीमा या अधिकार क्षेत्र में अनधिकार प्रवेश करनेवाला । अपचारी (रिन्) - वि० [सं०] दुष्कर्मी; बुरा, नीच; पृथक् होनेवाला; अविश्वासी । पु० दे० 'अपचारक' । अपचाल* - स्त्री० कुचाल, खोटाई ।
अपची - स्त्री० [सं०] एक रोग जिसमें गलेकी ग्रंथियाँ बढ़ जाती हैं ।
अपच्छी - वि० विपक्षी, वैरी; बिना पंखका अपछरा* - स्त्री० दे० 'अप्सरा' । अपजस * - पु० अपयश, बदनामी; लांछन । अपजात-पु० [सं०] कपूत; वह पुत्र जो अपने मातापितासे गुणादिकी दृष्टिसे हीन हो । वि० (डिजेनरेट) जो जाति, वंश आदिके श्रेष्ठ गुणों या विशेषताओंसे रहित हो गया हो; जो ऊँचे वंश, परम्परा आदिसे स्खलित होकर क्षुद्र या निकृष्ट श्र ेणीका बन गया हो । अपटु - वि० [सं०] अकुशल, कच्चा, बोदा; सुस्त, अस्वस्थ अपट्टमान* - वि० न पढ़ने योग्य, अपाट्य । अपठ- वि० [सं०] अपढ़, निरक्षर ।
अपठित - वि० [सं०] अपढ़; जो पढ़ा न गया हो । अपडर* - पु० डर, शंका । अपडरना * - अ० क्रि० डरना, शंकित होना । अपढ़ाना * - अ० क्रि० खीचातानी करना, झगड़ना । अपड़ाव * - पु० झगड़ा, तकरार, खींचातानी, 'जन्महिते अपड़ाव करत है गुनि गुनि हृदय कहै ' - सू० अपढ़-वि० बेपदा, अशिक्षित ।
अपण्य-वि० [सं०] न बेचने योग्य; जिसका बेचना
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४०
अपत-अपरांत निषिद्ध हो। पु० न बेचने योग्य वस्तु ।
अपनापन, अपनापा-पु० आत्मीयता, अपनायत; स्वा. अपत*-वि०पत्रहीन; नंगा; निर्लज्ज; अधम । स्त्री विपत्ति। भिमान। अपतई*-स्त्री० निर्लज्जताः ढिठाई; चंचलता ।
अपनाम-पु० [सं०] बदनामी, निंदा । अपताना-पु० जंजाल, झंझट ।।
अपनायत-स्त्री० आत्मीयता, आपसदारी। अपति-वि०सं०] पतिहीन, बिना मालिकका । वि०स्त्री० अपनीत-वि० [सं०] दूर किया हुआ; निकाला हुआ; जिसे विधवा; * निर्लज, दुराचारी । स्त्री० दर्दशा; अप्रतिष्ठा। कोई भगा ले गया हो। अपतिक-वि० [सं०] जिसका कोई मालिक न हो; पति- अपने-आप-अ० स्वतः, खुद, अपनेसे। हीन; कु.मारी; विधवा ।
अपभ्रंश-पु० [सं०] नीचे गिरना, पतन बिगाड़; शब्दका अपतोस*-पु० अफसोस, दुःख ।
विकृत रूप प्राकृत भाषाओंका परवती रूप जिनसे उत्तर अपत्नीक-वि० [सं०] बिना पत्नीका, रडुआ।
भारतकी आधुनिक आर्य-भाषाओंकी उत्पत्ति मानी जाती अपत्य-पु० [सं०] संतान, बेटा या बेटी । -काम-वि० है । वि० बिगड़ा हुआ। संतानका इच्छुक ।
अपभ्रष्ट-वि० [सं०] बिगड़ा हुआ गिरा हुआ। अपत्र-वि० [सं०] बिना पत्तोंका; पंखहीन ।
अपमान-पु० [सं०] मानभंग, बेइजती, अनादर, तिरस्कार। अपथ-[सं०] पु० कुपथ, गलत या बुरी राह । -गामी -लेख-पु० (लाइबेल ) वह लेख, वक्तव्य आदि जिससे (मिन्)-वि० कुमार्गगामी।।
किसी व्यक्तिकी अप्रतिष्ठा, बदनामी या अपमान हो। - अपथ्य-वि० [सं०] बुरा, अयुक्त; अहितकर, स्वास्थ्य- वचन-पु० (स्लैंडर ) किसीकी बदनामी फैलानेके लिए नाशक । पु० प्रतिकूल आहार-विहार ।
गढ़ी हुई झूठी बात कहना या सुनना, निदावाणी। अपद-वि० [सं०] बिना पैरका; बिना ओहदेका। पु० अपमानना-सक्रि० अपमान करना। रेंगनेवाला जंतु । * अ० अनधिकार पूर्वका अनुचित रूप अपमानित-वि० [सं०] जिसका अपमान किया गया हो, से 'सजनी अपद न मोहिं परवोध-विधा० ।
तिरस्कृत, निराहत । अपदस्थ-वि० [सं०] पदसे हटाया हुआ, पदच्युत । अपमानी (निन)-वि० [सं०] अपमान करनेवाला । अपदेखा*-वि० घमंडी।
अपमार्जन-पु० ( डिलीशन ) रद्द करने, मिटा देने या अपद्रव्य-पु० [सं०] बुरा द्रव्य, बुरी वस्तु ।
निकाल देनेकी क्रिया। अपध्वंस-पु० [सं०] पतन; नाश; अपमान; निंदा। . अपमार्जित करना-सक्रि० (डिलीट) (किसी लेख, वाक्य, अपध्वस्त-वि० [सं०] निंदित; अपमानित; पराजित ।। शब्द इत्यादिसे कोई अंश) निकाल देना, मिटा देना या अपन* सर्व० दे० 'अपना'; + हम ।
रद्द कर देना। अपनपो,-पी*-पु० अपनापन, आत्मीयता; अपना स्वरूपः |
| अपमिश्रण-पु० (एदुलटरेशन) घी, दूध या अन्य किसी होश, मुध-बुध; आत्मगौरव गर्व ।।
चीजमें दूषित अथवा घटिय। वस्तुकी मिलावट करना । अपनय-पु० [सं०] दूर करना; स्थानांतरित करना; खंडन; | अपमृत्यु-स्त्री० [सं०] अकाल मृत्यु, साँप काटने, विष दुनीति अपकार।
खाने, कोई दुर्घटना हो जाने आदिसे होनेवाली मृत्यु । अपनयन-पु० [सं०] दूर करना; दूसरी जगह ले जाना अपयश(स)-पु० [सं०] अपकीति, बदनामी। (रोगादिका) दूर होना; ऋण-परिशोध; खंडन; घटाना; | अपयोग-पु० [सं०] कुयोग; कुसमय; कुचाल । (ऐवडक्शन) भगा ले जाना, किसी स्त्री, बालक आदिको अपयोजन-पु० (मिसऐप्रोप्रियेशन) दे० 'दुरुपयोजन' । उसके पति या माता-पिताके पाससे हटाकर अन्यत्र ले जाना। अपरंच-अ० [सं०] और भी; दूसरा भी; फिर । अपना-सर्व० आत्म-संबंधी, निजका, स्वीय; आप, निज । | अपरंपार-वि० अपारं, असीम। पु० स्वजन । -पन-पु० आत्मीयता; स्वाभिमान । | अपर-वि० [सं०] अन्य, दूसरा पिछला; निकृष्ट; साधारण; मु०-करना-मित्र या अनुकूल बना लेना; हाथमें कर दूसरेका पश्चिमी; दूरवती; जिससे बढ़कर या जिसकी बरा. लेना। -पराया,-बेगाना-स्वजन-परजन, दोस्त- बरी करनेवाला कोई न हो। -न्यायाधीश-पु०(एडीशदुश्मन । -सा मुँह लेकर रह जाना-लज्जित होना; . नल जज) अतिरिक्त या दूसरा न्यायाधीश।। -पक्ष-पु० बेवकूफ बनना । -(नी)-अपनी पड़ना-सबको अपनी महीनेका दूसरा पक्ष प्रतिवादी पक्ष ।-लोक-पु०परलोका चिंता होना। -(नी) गाना-अपनी ही बात कहना।। स्वर्ग । -सचिव-पु० (एडीशनल सेक्रेटरी)सचिवका बढ़ा -(नी)गुड़िया सँवार देना-सामर्थ्यानुसार कन्याका | काम संभालनेके लिए रखा गया अतिरिक्त सचिव । विवाह करना।-(नी)नींद सोना-अपनी मजीसेसोना- अपरछन*-वि० अनावृत, अप्रच्छन्न, जो छिपा न हो; जागना; इच्छानुसार काम करना । -(नी) बातका | आवृत, प्रच्छन्न, छिपा हुआ, गुप्त । एक-जो अपनी बातपर डटा रहे। -(नी) बातपर अपरतंत्र-वि० [सं०] जो किसीके वशमें न हो, स्वतंत्र । आना-हठ करना । -(ने)तक रखना-किसीसे न | अपरती*-स्त्री० स्वार्थ । कहना । -(ने) मुँह मियाँ मिट्ठू बनना-आत्मप्रशंसा अपरना-स्त्री० दे० 'अपर्णा' । करना।
अपरबल*-वि० प्रबल; उद्धत प्रचंड । अपनाना-स० क्रि० स्वीकार कर लेना; अपना बना लेना; अपरस-पु० एक चर्मरोग । * वि० अस्पृश्य । अपने पक्ष या वशमें कर लेना।
| अपरांत-पु० [सं०] पश्चिमी सीमांत; पश्चिमी सीमांतका
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देश या निवासी | अपरा-स्त्री० [सं०] अध्यात्म विद्याको छोड़कर शेष संपूर्ण बिद्या; लौकिक विद्या, वेद-वेदांगादि पश्चिमी दिशा । अपराग - पु० [सं०] अरुचि, असंतोष, शत्रुता । अपराजित - वि० [सं०] जो जीता न गया हो । अपराजिता - स्त्री० [सं०] दुर्गा; शेफालिका, जयंती, विष्णुकांता, शंखिनी आदि पौधे; अयोध्या नगरी । अपराजेय - वि० [सं०] जो जीता न जा सके । अपराद्ध - वि० [सं०] जिसने अपराध किया हो; जो । निशाना चूक गया हो; दोषी, गलती करनेवाला; अतिक्रांत । - नरहत्या - स्त्री० ( कल्पेविल होमिसाइड ) ऐसी नरहत्या जो अपराध मानी जाय तथा जिसके लिए दंडकी व्यवस्था हो ।
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अपराध-पु० [सं०] दोष; दंड योग्य कर्म; जुर्म; गलती; पाप । - भंजन- पु० अपराधों या पापों का नाश करनेवाला; शिव । - लेखा-पु० (हिस्ट्री शीट) दे० ' वृत्तफलक' - विज्ञान - पु० (क्रिमिनॉलॉजी ) वह विज्ञान जिसमें अपराध करनेके प्रेरक कारणों तथा निवारक उपायोंका विवेचन हो । - शील- वि० (क्रिमिनल) जो अपराधोंकी ओर प्रवृत्त हो, जो अपराध करते रहनेका आदी हो ( जैसे - अपराधशील जन-जातियाँ ) । -स्वीकरण - पु० ( कन्फेशन ) पुरोहित इत्यादिके सामने अपना अपराध या पाप स्वयं स्वीकार करना; वह कथन जिसमें अपना अपराध स्वीकार किया गया हो । अपराधी ( ( धन्) - वि० [सं०] अपराध करनेवाला; दोषी । अपराद्ध - पु० [सं०] उत्तरार्द्ध ।
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अपरावर्तनीय - वि० ( नॉन-ट्रांसफरेबल) दे० 'अहस्तां
अपरिचित - वि० [सं०] जिससे परिचय न हो, अज्ञात; अनभिज्ञ; परिचयहीन; अजनबी ।
अपरिच्छद - वि० [सं०] वस्त्रहीन; फटेहाल, गरीब अपरिच्छन्न, अपरिच्छादित-वि० [सं०] आवरणरहित, जो ढका न हो, नंगा | अपरिच्छिन्न-वि० [सं०] अंतररहित, मिला हुआ; सीमारहित; विभागरहित । अपरिच्छेद - पु० [सं०] विभाग, बिलगाव या सीमाका अभाव; क्रम या व्यवस्थाका अभाव, नैरंतर्यः विचार या विवेकका अभाव | अपरिणत - वि० ज्योंका त्यों । अपरिणाम-पु० [सं०] विकारराहित्य । - दर्शी (शिंन्) - वि० अदूरदर्शी । अपरिणामी (मन) - वि० [सं०] जो बदले नहीं, निविं
[सं०] अनपका, कच्चा अपरिवर्तित,
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अपरा - अपवर्त्य
कार, एकरस ।
अपरिणीत- वि० [सं०] अविवाहित, काँरा । अपरिपक्क - वि० [सं०] कच्चा, पक्का नहीं, अधकचरा । अपरिमित वि० [सं०] बे-हद; बे-हिसाव; अत्यधिक । अपरिमेय - वि० [सं०] जिसकी तोल-नाप न हो सके, -अंदाज; अनगिनत ।
अपरिवर्तनीय - वि० [सं०] न बदलनेवाला; अटल; अवइयंभावी; जो बदले में न दिया जा सके । अपरिवर्तित - वि० [सं०] जिसमें कोई परिवर्तन, हेर-फेर न हुआ हो; अविकृत ।
अपरिवाद्य - वि० [सं०] जो भर्त्सना के योग्य न हो । अपरिवृत - वि० [सं०] जो चारों ओरसे घिरा न हो ( खेत ); अपरिच्छन्न ।
अपरिष्कृत - वि० [सं०] जो माँजा-धोया न गया हो; मैला भद्दा; असंस्कृत ।
अपरिहार्य - वि० [सं०] जिसका परिहार न हो सके, अनिवार्य; अवश्यंभावी; अत्याज्य ।
अपरीक्षित - वि० [सं०] जिसकी परीक्षा न हुई हो, न आजमाया हुआ; मूर्खतापूर्ण, विचारशून्य; अप्रमाणित । अपरुष - वि० [सं०] क्रोधरहित; अकठोर, मृदुल । अपरूप-वि० [सं०] कुरूप, भद्दा अपूर्व ( बँगला ) | पु० भद्दापन, कुरूपता ।
अपरोक्ष-वि० [सं०] जो परोक्ष न हो, प्रत्यक्ष, इंद्रियगोचर; जो दूर न हो !
अपर्णा - स्त्री० [सं०] पार्वती ( शिवकी प्राप्तिके निमित्त तप करते समय पहले तो पत्ते खाती रहीं, किन्तु आगे चलकर उन्होंने पत्तोंका खाना भी छोड़ दिया, इसीसे अपर्णा नाम पड़ गया । ); दुर्गा |
तरणीय' ।
अपराह्न-पु० [सं०] दोपहर के बादका काल, तीसरा पहर | अपर्याप्त - वि० [सं०] नाकाफी; अधूरा; असीम; अयोग्य अपराह्न - पु० दे० 'अपराह्न ' । अपलक - अ० एकटक, निर्निमेष । अपरिग्रह - पु० [सं०] दानका अस्वीकार; शरीरयात्रा के लिए जितना आवश्यक हो उससे अधिक पैसा, अन्न आदि न लेना; निर्धनता; योगदर्शनोक्त यभोंमेंसे एक । अपरिचय - पु० [सं०] परिचयका अभाव, जान-पहचान न होना ।
अपलक्षण-पु० [सं०] कुलक्षण; अव्याप्ति अथया अतिव्याप्ति-दोषयुक्त लक्षण ।
अपलाप - पु० [सं०] छिपाना; (दोषादिसे) इनकार करना; सत्यका गोपन; बेमतलबकी बकवास । अपलाभ - पु० (प्रोफिटियरिंग) जनताकी या सरकारकी विपत्ति से अनुचित लाभ उठानेकी चेष्टा ।
अपलेखन - पु० ( राइटिंग ऑफ ) ऋण या पावनेकी रकम वसूल न होनेकी आशा न रह जानेपर उसे रद्द कर देना, बट्टे खाते डाल देना । अपलोक* - पु० अपवाद; बदनामी । अपवचन-पु० [सं०] निंदा, अपशब्द | अपवर्ग- पु० [सं०] मोक्ष, निर्वाण; त्याग; दान | अपवर्जन- पु० [सं०] त्याग; दान; चुकाना (ऋण आदि) । अपवर्जित - वि० [सं०] त्याग किया हुआ; दिया हुआ । अपवर्तक - वि० [सं०] सामान्य विभाजक | अपवर्तन- पु० [सं०] परिवर्तन; हटाना, स्थानांतरण; निःशेष भाग; विभाजकः ।
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अपवर्तित - वि० [सं०] परिवर्तित; हटाया हुआ, पृथक् किया हुआ; सामान्य विभाजकसे निःशेष विभक्त किया हुआ । अपवर्त्य - वि० [सं०] जिसका सामान्य विभाजकसे निःशेष
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व्यवधानकारक वस्तु ।
अपवित्र - वि० [सं०] अशुद्ध, नापाक; मैला ।
अपवश-अपाय
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विभाग किया जा सके ।
अपवश* - वि० अपने वशमें, स्वाधीन । अपवाद - पु० [सं०] निंदा, बदनामी; लांछन; सामान्य नियमको बाधित या मर्यादित करनेवाला विशेष नियम, खंडन, प्रतिवादः भ्रांत धारणाका निराकरण; । अपवादक, अपवादी (दिन) - वि० [सं०] निंदा, बदनामी, खंडन आदि करनेवाला; बाधक ।
अपहरण - पु० [सं०] छीन लेना; उठा ले जाना; चुराना; लूट लेना; छिपाना, गायब करना; महसूली मालको दूसरी चीजों में छिपाकर महसूल बचाना ( कौ० ); ( किडनैपिंग ) रुपया ऐंठने, स्वार्थ सिद्ध करने आदिके उद्देश्यसे किसी बालक-बालिका या धनी व्यक्ति आदिको बलपूर्वक उठाकर ले जाना या गायब कर देना । अपहरना* - स० क्रि० अपहरण करना ।
अपवारण - पु० [सं०] छिपना; ढकना; गायब हो जाना; अपहर्ता (तृ) - वि० [सं०] अपहरण करनेवाला | अपहसित पु० [सं०] अकारण हँसी ।
अपहार - पु० [सं०] अपहरण; दूसरेकी संपत्तिका दुरुपयोग; (एंबेजिलमेंट) किसी दूसरेका माल या धन अनुचित रूपसे अपने अधिकारमें कर उसे अपने काममें लाना; गवन; हानि, क्षति ।
अपविद्ध - वि० [सं०] छोड़ा हुआ; बेधा हुआ; नीच । - पुत्र - पु० वह पुत्र जो माता-पिता द्वारा व्यक्त होनेपर अन्य द्वारा पालित हो; बारह प्रकार के पुत्रोंमेंसे एक । अपव्यय - पु० [सं०] अनुचित व्यय, फिजूलखचीं । अपव्ययी (यिन् ) - वि० [सं०] व्यर्थ या अनुचित व्यय करनेवाला, फिजूलखर्च, उड़ाऊ ।
अपशकुन - पु० [सं०] असगुन, अनिष्ट सूचक शकुन | अपशब्द - पु० [सं०] अशुद्ध, बिगड़ा हुआ शब्द; ग्राम्य शब्द; दुर्वचन; गाली-गलौज; अपानवायुका त्याग । अपसंग्रह, अपसंचय - पु० ( होर्डिंग ) बादमें अधिक दाम प्राप्त करनेकी गरजसे बड़ी संख्या या परिमाण में वस्तुओं का संग्रह करना |
अपसगुन - पु० दे० 'अपशकुन' ।
अपसना, अपसवना* - अ० क्रि० भागना; चुपके से चल देना; अपसरण |
अपसर - पु० [सं०] प्रस्थान, पलायन ; उचित कारण; दूरी (ज्या० ) ।
अपसरण - पु० [सं०] हट जाना; पीछे हटना; भागना । अपसर्जन - पु० [सं०] त्याग; दान; मोक्ष |
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अपहारक - वि० [सं०] अपहरण करनेवाला । पु० चोर, डाकू। अपहारित - वि० [सं०] छीना हुआ, लूटा हुआ; छिपाया हुआ !
अपहारी (रिन्) - वि० [सं०] दे० 'अपहारक' । अपहार्य - वि० [सं०] छीनने या चुराने योग्य । अपहास - पु० [सं०] अकारण या बे-मौका हँसी; उपहास, चिढ़ाना |
अपहृत - वि० [सं०] अपहरण किया हुआ, छीना या चुराया हुआ ।
अपहनुति - स्त्री० [सं०] अपह्नवः अर्थालंकारका एक भेदउपमेयका निषेध कर उपमानकी स्थापना करना । अपांक्त, अपांक्तय- वि० [सं०] पंक्ति में बैठने-साथ भोजन करने का अनधिकारी (ब्राह्मण), जाति- बहिष्कृत । अपांग - वि० [सं०] अंगहीन; अशरीरी; पंगु । पु० संप्रदायसूचक तिलक; आँखकी कोर; कामदेवः अपामार्ग | - दर्शन - पु०, - दृष्टि - स्त्री० तिरछी चितवन । अपा* - स्त्री० दे० 'आपा' | अपाकरण- पु०, अपाकृति - स्त्री० [सं०] दूर करना, निराकरण, अस्वीकृति; (ऋणादि) चुकता करना । अपाकर्म (नू ) - पु० [सं०] चुकाना, अदायगी । अपाच्य - वि० [सं०] जो पकाया (पचाया) न जा सके । अपाटव- पु० [सं०] अपटुता, अनाड़ीपन; भद्दापन; रोग | अपात्र - वि० [सं०] अयोग्य, मूर्ख; अनधिकारी; दान, श्राद्ध आदि में निमंत्रणका अनधिकारी ( ब्राह्मण ) । पु० निकम्मा बरतन; अयोग्य व्यक्ति; दान आदि पानेका अनधिकारी ब्राह्मण ।
अपसव्य - वि० [सं०] सव्य (बायाँ) का उलटा, दाहिना; उलटा; जिसका यज्ञोपवीत दाहिने कंधेपर हो । अपसारण - पु० [सं०] दूर ले जाना; बाहर कर देना; फेंक देना; (एक्सपल्शन) किसी स्थान, संस्था आदिसे लपूर्वक या नियमभंग आदिके कारण हटा दिया जाना । अपसारित- वि० [सं०] हटाया हुआ; दूर किया हुआ । अपसिद्धांत - पु० [सं०] गलत या भ्रमयुक्त निर्णय; एक
निग्रहस्थान (न्या० ); विरुद्ध सिद्धांत (जैन) । अपसृत - वि० [सं०] गया हुआ; भागा हुआ; च्युतः फैलाया हुआ; फेंका हुआ; युद्ध से भागा हुआ (को०)। अपसोस * - पु० दे० 'अफसोस' |
अपसोसना * - अ० क्रि० अफसोस करना ।
अपसौन* - पु० अपशकुन |
अपखान - पु० [सं०] कुटुंबी या संबंधीके मरनेपर किया जानेवाला स्नान, मृतकस्नान ।
अपस्फीति - स्त्री० ( डीफ्लेशन) दे० 'विस्फीति' । अपस्मार - पु० [सं०] मृगी रोग; स्मरणशक्तिकी हानि । अपस्मारी (रिन्) - वि० [सं०] अपस्मार रोगवाला । अपस्वर - पु० [सं०] बुरा या गलत स्वर ( संगीत ) | अपस्वार्थी - वि० मतलबी, खुदगरज |
अपान - ५० [सं०] पाँच प्राणोंमेंसे एक; भीतरको खींची जानेवाली साँस; गुदामार्गसे बाहर निकलनेवाली हवा; गुदा । * पु० आत्मज्ञान; आत्मगौरव; होश हवास; अहंकार । सर्व० अपना ।-द्वार - पु० गुदा । - पवन - पु०, - वायु- स्त्री० गुदा मार्गसे निकलनेवाली वायु; पाद, गोजा अपाप - वि० [सं०] पापरहित, निर्दोष । ५० पुण्य | अपामार्ग - पु० [सं०] एक बूटी, चिचिड़ा । अपाय- पु० [सं०] जाना; बिलगाव; लोप; नाश; हानि;
अपहत- वि० [सं०] नष्ट या दूर किया हुआ; मारा हुआ । | अंत; बुराई; खतरा; विपत्ति; * उपद्रव | वि० [ हि० ]
अपादान - पु० [सं०] हटाना, दूर करना; बिलगाव; व्याकरणमें पाँचवाँ कारक ।
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अपिंडी (डिन) - वि० [सं०] पिंडरहित, अशरीरी ! अपि - अ० [सं०] और भी; अगरचे । -च-अ० और भी,
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विना पैरका; निरुपाय |
अपार - वि० [सं०] जिसका पार न हो; असीम, असंख्य अपूरब - * - वि० दे० 'अपूर्व' | अपूरा* - वि० दे० 'अपूर'; व्याप्त ।
अत्यधिकः पहुँच के बाहर । अपारदर्शिता - स्त्री० (ओपेसिटी ) आरपार न देखे जा अचूर्ण - वि० [सं०] जो पूरा या भरा न हो; अधूरा; सकनेका गुण, अपारदर्शी होनेका भाव या गुण । न्यून - भूत-पु० क्रियाके कालका एक भेद जिसमें अपार्थिव - वि० [सं०] जो पृथ्वी या मिट्टी-संबंधी न हो भूतकाल तो पाया जाय, पर क्रियाकी समाप्ति न हुई या उससे उत्पन्न न हुआ हो । हो (व्या० ) ।
अपाव* - पु० दे० 'अपाय' * ।
अपूर्व - वि० [सं०] जो या जैसा पहले न हुआ हो; अद्अपावन - वि० [हिं०] अपवित्रः मैला, गंदा | भुत, बे जोड़: उत्तम । - रूप- पु० अर्थालंकारका एक भेद । अपावर्त्तन-५०, अपावृत्ति - स्त्री० [सं०] लौटना; पीछे अपेक्षण-पु० [सं०] अपेक्षा करना या रखना; चाह, आशा हटना अस्वीकृति; घूमना, चक्कर देना ।
या आवश्यकता; विचारणा ।
अपासन - पु० [सं०] फेंकना; प्रार्थना आदिकी अस्वीकृति अपेक्षणीय, अपेक्ष्य - वि० [सं०] अपेक्षा करने योग्य । ( रिजेक्शन ), अलग करना; वध करना । अपेक्षा - स्त्री० [सं०] दे० 'अपेक्षण' । - कृत - अ० किसी की तुलना में (न्यूनाधिक ) ।
अपासु - वि० [सं०] निर्जीव, मृत ।
अपाहज, अपाहिज-पु० अपंग; निकम्मा; आलसी; अपेक्षित - वि० [सं०] जिसकी चाह, प्रतीक्षा या आवश्य अकर्मण्य |
कता हो ।
बल्कि | -तु-अ० किंतु ।
अपिच्छिल - वि० [सं०] अपंकिल, स्वच्छ; गहरा, गाढ़ा । अपिधान - पु० [सं०] ढकना; छिपाना; ढक्कन; आच्छादन । अपीच - वि० ( अपीच्य ), अति सुंदर, गुप्त | अपीडन - पु० [सं०] पीड़ा न देना; दया, अनुकंपा । अपीत - वि० [सं०] जिसने मद्यपान नहीं किया है । पु० पीतसे भिन्न वर्ण ।
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अपूज्य - वि० [सं०] पूजा या सम्मान के अयोग्य । अपूठा * - वि० अपुष्ट; अधकचरा अनभिज्ञ; अविकसित । अपूत - वि० [सं०] अपवित्र, अशुद्ध; अपरिष्कृतः * निपूता । अप - पु० [सं०] मालपुआ; गेहूँ ; मधुचक्रः । अपूर* - वि० भरपूर, प्रचुर ।
अपार - अप्रतिष्ठा
अपूरना * - स० क्रि० भरना; फूँकना, बजाना ।
अपेक्षी (क्षिन्) - वि० [सं०] अपेक्षा करनेवाला; आकांक्षा, प्रतीक्षा करनेवाला (परमुखापेक्षी) । अपेच्छा - + स्त्री० दे० 'अपेक्षा' ।
अपेय - वि० [सं०] न पीने योग्य । अपेल * - वि० अटल; अकाट ।
अपैठ* - वि० पैठ या पहुँचके बाहर, दुर्गम ।
अपोगंड - वि० [सं०] सोलह बरससे अधिक अवस्थावाला, बालिग; भीरु; विकलांग |
अपौरुष, अपौरुषेय - वि० [सं०] पुरुषार्थहीन; भीरु; अपुरुषोचित, अलौकिक, ईश्वरीय; मनुष्यकृत नहीं, ईश्वरकृत । अप्रकाशित - वि० [सं०] प्रकाशहीन; अप्रकट; न छपा "हुआ, जो छपकर जनसाधारणके सामने न आया हो । अप्रकृत - वि० [सं०] अयथार्थ; बनावटी; अप्रधान, आनु पंगिक, गौण; आकस्मिक; विषयसे असंबद्ध | अप्रखर - वि० [सं०] अतीक्ष्ण; सुस्त; कोमल । अप्रगल्भ - वि० [सं०] सलज्ज; विनीत; दब्बू ; जो प्रौढ़ या ढीठ न हो; ढीला |
अपील - स्त्री० [अ०] साग्रह प्रार्थना; चंदे आदि के लिए सार्वजनिक प्रार्थना; किसी अदालतका फैसला बदलवानेके लिए उससे ऊपरकी अदालत में दरख्वास्त देना, पुनर्वि चारकी प्रार्थना । - अदालत - स्त्री०अपील सुननेकी अधिकारिणी या मातहत अदालतोंके फैसल किये हुए मुकदमे सुननेवाली अदालत |
|
अपुण्य - वि० [सं०] अधार्मिक, अपवित्र, बुरा । पु० पुण्य का अभाव ।
अप्रचलित - वि० [सं०] जिसका चलन या व्यवहार न हो ।
अपुत्र, अपुत्रक - वि० [सं०] पुत्रहीन, निपूता | अपुत्रिक - पु० [सं०] ऐसी लड़कीका पिता जो अपुत्र होने अप्रच्छन्न- वि० [सं०] अनावृत, प्रकट, खुला हुआ ।
के कारण उत्तराधिकारिणी न बनायी जा सके । अपुनपो, अपुनपौ- पु० दे० 'अपनपी' | अपुनरावर्तन - पु० [सं०] फिर न लौटना; भोक्ष । अपुनीत - वि० [सं०] अपवित्र, दूषित | अपुष्ट - वि० [सं०] जिसका पोषण या बाढ़ ठीक तरहसे न हुई हो; कमजोर; मंद (स्वर); एक अर्थदोष (सा० ) । अपुष्प - वि० [सं०] पुष्पहीन, जोन फूले । पु० गूलर नामक वृक्ष । - फल, - फलद - वि० बिना फूले फल देने वाला | पु० कटहल; गूलर ।
अप्रज- वि० [सं०] निस्संतान; अजात, न जनमा हुआ । अप्रतिकारी (रिन् ) - वि० [सं०] प्रतिकार न करनेवाला । अप्रतिबंध - पु० [सं०] रोक-टोक न होना, स्वच्छंदता । वि०बे-रोक-टोक, स्वच्छंद ; बिना किसी झगड़ेके प्राप्त (का० ) । अप्रतिबद्ध - वि० [सं०] वे रोक; मनमाना । अप्रतिभ - वि० [सं०] प्रतिभाहीन, जिसे जवाब या बचाव न सूझे, अप्रत्युत्पन्नमति; उदास; मंद । अप्रतिभट - वि० [सं०] प्रतिभटहीन, जिसका मुकाबला करनेवाला कोई न हो । पु० ऐसा योद्धा । अप्रतिभाव्य - वि० [सं०] (नॉन बेलेबिल) ( वह अपराध ) जिसमें किसी के जामिन बनने या जमानत देने को तैयार होनेपर भी अपराधी के अस्थायी रूपसे रिहा किये जानेकी गुंजाइश न हो ।
अपूजा - स्त्री० [सं०] अनादर, अभक्ति ।
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अप्रतिम - वि० [सं०] बे-जोड़, अनुपम । अप्रतिष्ठा - स्त्री० [सं०] आदर-मानका अभाव; बे-इज्जती;
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अप्रतिष्ठित-अब बदनामी, अपकीत्ति।
पहुँचा हुआ। [स्त्री०-यौवना।] - अप्रतिष्ठित-वि० [सं.] प्रतिष्ठाहीन, समाजमें जिसका कच्ची उभ्रका, ना-बालिग। आदर-सम्मान न हो।
| अप्राप्ति-स्त्री० [सं०] न मिलना, अलाभ; पूर्वनियमसे अप्रतिसंबद्धा भूमि-स्त्री० [सं०] वह भूमि जो दूसरीसे | प्रमाणित न होना, अनुपपत्ति । सटी न हो। (को०)।
अप्राप्य-वि० [सं०] न मिलनेवाला, अलभ्य । अप्रतिहत-वि० [सं०] जिसे कोई रोकनेवाला न हो, अप्रामाणिक-वि० [सं०] प्रमाणरहित; न मानने योग्य अबाधित; अपराजित; अक्षुण्ण । -गति-वि० जिसकी अविश्वसनीय । गति किसी प्रकार रोकी न जा सके।
अप्रासंगिक-वि० [सं०] प्रस्तुत विषयसे असंबद्ध प्रसंगके अप्रतिहार्य-वि० [सं०] जिसका निरोध न किया जा सके। विरुद्ध या बाहरका । अप्रतीत-वि० [सं०] अप्रसन्न; अगम्या विरोधरहित; | अप्रियंवद-वि० [सं०] दे० 'अप्रियवादी' । अस्पष्ट (अर्थवाला-एक शब्ददोष)।
अप्रिय-वि० [सं०] जो प्यारा न हो; अरुचिकर, नापसंद अप्रतीति-स्त्री० [सं०] प्रतीतिका अभाव, अविश्वास वैर करनेवाला । -कर,-कारक,-कारी (रिन् )-वि० (अर्थादिका) स्पष्ट न होना।
अरुचिकर । -वादी (दिन)-वि० कटुभाषी, कठोर अप्रत्यक्ष-वि० [सं०] जो दिखाई न दे, अगोचर; परोक्ष । । बात करनेवाला। -कर-पु० (इनडाइरेक्ट टैक्स) वह कर जो प्रत्यक्ष रूपसे अप्रीति-स्त्री० [सं०] अरुचि, वैर; दुर्भावः स्नेहाभाव । न लिया जाकर विक्रेय वस्तुओं आदिकी बढ़ी हुई कीमतके -कर-वि० कठोर; अनुकूल; अप्रिय । रूपमें उपभोक्ताओंसे उद्गृहीत किया जाय ।
अप्रैल-पु० ईसवी सालका चौथा महीना, एप्रिल । अप्रत्यय-पु० [सं०] विश्वासका अभाव प्रतीतिका, ज्ञानका अप्रौढ-वि० [सं०] अधृष्ट; भीरु; नम्र; अशक्त नाबालिग । अभाव । वि० विश्वास रहित; अनभिज्ञ ।
अप्रीढा-स्त्री० [सं०] कुमारी कन्या; वह कन्या जिसका अप्रत्यादेय-वि०[सं०] (इरिकव्हरेबिल) जो फिर प्राप्त या हालमें ही विवाह हुआ हो, पर रजस्वला न हुई हो। वसूल न किया जा सके ।
अप्सर-* स्त्री० दे० 'अप्सरा'। अप्रत्याशित-वि० [सं०] जिसकी आशा न रही हो | अप्सरा (रस)-स्त्री० [सं०] स्वर्गलोक-वासिनी वेश्या, अनसोचा, आकस्मिक।
परी। -पति-पु० [हिं०] इंद्र । अप्रधान-वि० [सं०] गौण छोटा।
अफ़ग़ान-वि० [फा०] अफगानिस्तानका रहनेवाला अप्रमत्त-वि० [सं०] लापरवाह नहीं, सावधान, जागरूक।।
वि० [स] लापरवाह नहा, सावधान, जागरूक। अफताली-पु० पड़ावपर पहलेसे जाकर आरामका प्रबंध. अप्रमेय-वि० [सं०] जिसकी नाप न हो सके; बेहद, |
जसका नाप न हो सक, बेहद, करनेवाला कर्मचारी। बे-हिसाब; जो सिद्ध या प्रमाणित न किया जा सके; | अफनाना-अ० क्रि० उबलना; क्रुद्ध होना । अशय।
अफयून-स्त्री० [अ०] अफीम । अप्रयुक्त-वि० [सं०] जो काममें न लाया गया हो, अन्य-अफरना-अ० कि. जीभर खाना अधाना; ऊपना । वहृतः अप्रचलित (शब्द)।
अफरा-पु० पेट फूलनेका रोग; अपच या वायुविकारसे अग्रवर्ती-वि० [सं०] (इन-आपरेटिव्ह) जो लागू न हो; जो पेटका फूलना।
अपनी क्रिया न कर रहा हो, प्रभाव न डाल रहा हो। अफरा-तफरी-स्त्री० [फा०] गोलमाल; बदहवासी; आतंक । अप्रवृत्ति-स्त्री० [सं०] प्रवृत्तिका अभाव; कोष्ठबद्धता । अफराना*-अ०वि० दे० 'अफरना' । अप्रशस्त-वि० [सं०] अप्रशंसित; निंद्य; क्षीण ।
अफल-वि० [सं०] फलरहित; निरर्थक बाँझ । अप्रसन्न-वि० [सं०] खिन्न; उदास; नाखुश, नाराज। अफलातून-पु० [फा०] प्राचीन यूनानका एक प्रमुख अप्रसाद-पु० [सं०] अकृपा, अनुकूलता।
विद्वान् तथा दाशनिक, प्लेटो। -का नाती-अपने बड़अप्रसिद्ध-वि० [सं०] जिसे अधिक लोग न जानते हों, पनकी डींग मारनेवाला । गुमनाम; असामान्य ।
अफ़वाह-स्त्री० [अ०] किंवदंती, उड़ती खबर; गप्प । अग्रसूता-स्त्री० [सं०] बंध्या स्त्री । वि०स्त्री० बिनव्यायी। अफसर-पु० [फा०] प्रधान अधिकारी हाकिम, सरदार । अप्रस्तुत-वि० [सं०] अनुपस्थित; अप्रसक्त; अवर्ण्य; गौण, | अफसरी-स्त्री प्रधानता; हुकूमत; अधिकार । अप्रधान; अनुद्यत । पु० उपमान । -प्रशंसा-स्त्री० एक अफसाना-पु० [फा०] कहानी, आख्यान; उपन्यास । अर्थालंकार जहाँ प्रस्तुतके अर्थ अप्रस्तुतका वर्णन । -नवीस-निगार-पु० कहानी-लेखक उपन्यासकार । किया जाय ।
अफसोस-पु० [फा०] दुःख खेद; पछतावा । अप्राकरणिक-वि० [सं०] जिसका प्रकरण या विषयसे | अफ्रीम-स्त्री० पोस्तेके ढांढका गोंद जो नशे और दवाके संबंध न हो।
काम आता है। -ची-वि० अफीम खानेका आदी । अप्राकृत-वि० [सं०] अस्वाभाविक अलौकिक असाधारण। अनीमी-वि० दे० 'अफीमची'। अप्राकृतिक-वि० [सं०] अस्वाभाविक, प्रकृति-विरुद्ध । | अफुल्ल-वि० [सं०] अविकसित (पुष्प)।। अप्राज्ञ-वि० [सं०] ज्ञानहीन; अशिक्षित ।
अबंधु, अबांधव-वि० [सं०] मित्रहीन, अकेला; जिसके भप्राप्त-वि०सिं०] न मिला हुआ; न आया हुआ; न कोई न हो। पहुँचा हुआ अप्रस्तुत । -यौवन-वि० युवावस्थाको न । अब-अ० इस समय; इस क्षण, फिलहाल; आगेसे । पु०
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की, के- इस बार, अगली बार। -जाकर - इतनी देर बाद भी आज भी; इतनेपर भी । -से-आगेसे, आइदा | मु० -तब करना -आज-कल करना, टाल-मटोल करना । - तब लगना या होना - मरणासन्न होना, कुछ देरका मेहमान होना ।
अवतर - वि० [फा०] बिगड़ा हुआ; बुरा, खराब | अवतरी - स्त्री० [फा०] बिगाड़; अवनति, खरावी । अबद्ध - वि० [सं०] न बँधा हुआ, मुक्त, स्वच्छंद, आजाद; - पत्र-प्रपंजी- स्त्री० (लूज लीफ लेजर) वह प्रपंजी जो खुले या बिना सिले पन्नोंके रूपमें हो । - मुख - वि० जो मनमें आये वह बकनेवाला, बदजवान | - मूल - वि० जिसकी जड़ ढ़ न हो ।
अबध* - वि० अबाध ।
अबधू* - पु० अवधूत, संन्यासी । वि० अबोध । अबध्य - वि० [सं०] न मारने योग्य; वधदंडके अयोग्य । अबर* - वि० दे० 'अबल' |
अबरा - पु० [फा०] ऊपरका पल्ला, उपल्ला; न खुलनेवाली गाँठ; उलझन । + वि० निर्बल ।
अबरी - वि० [फा०] बादलकी-सी धारियोंवाला; रंगदार धब्बादार | स्त्री० एक तरहका रंगदार कागज जो जिल्दकें ऊपर लगाया जाता है, 'मार्कुल'; एक तरहका पत्थर; एक तरहकी लाखकी रँगाई ।
अबरक, अबरख - पु० अभ्रक धातु; एक तरहका पत्थर । अबरन* - वि० अवर्णनीय; बिना रंग-रूपकाः भिन्न रंगका । पु० आवरण ।
अबूझ - वि० नासमझ, निर्बुद्धि, अज्ञान ।
अबरस - वि० [अ०] चितकबरा । पु० चितकबरा घोड़ा; अबूत* - वि० व्यर्थ, बेकार । – 'अरु सब गया अबूत' - साखौ । ऐसा रंग । अबे - अ० तिरस्कार सूचक संबोधन, क्योंरे, अरे । मु०तबे करना - अपमान जनक ढंगसे बात करना । अबेध* - वि० जो विधा न हो, अनबिधा । अबेर * - स्त्री० देर, अतिकाल । पु० वरुण । अबेश - वि० अधिक, बहुत । अबैन* - वि० चुप, मौन ।
अबोध - वि० [सं०] अज्ञान, नासमझ; घबड़ाया हुआ । पु० ज्ञानका अभाव । -गम्य-वि० अचिंतनीय, धारणाशक्तिसे परे ।
अबरू (ब्रु) - स्त्री० [फा०] भौं। मु०-पर मैल न आना - (आघात आदिका ) असर न होना; अविचलित रहना ।
अबल - वि० [सं०] कमजोर; अरक्षित । पु० निर्बलता । अबलक - वि० [फा०] सफेद-काला; सफेद और लाल रंगका; चितकबरा । पु० ऐसे रंगका घोड़ा | अबलख - वि० दे० 'अबलक' ।
अबस - वि० निरर्थक, बे फायदा; *जो अपने वशमें न हो । अबाँह * - वि० बिना बाँहका; अनाथ ।
अबाती* - वि० निर्वातः स्थिर रूपसे जलनेवाला । अवाद* - वि० निर्विवाद ।
अबादान - वि० आबाद; समृद्ध ।
अबोल-वि० न बोलनेवाला, मूक, मौन, अनिर्वचनीय | पु० कुबोल | अ० विना बोले हुए ।
अब्ज - वि० [सं०] जलसे उत्पन्न । पु०कमल; शंख; चंद्रमा; धन्वंतरि; निचुल वृक्षः कपूर; अरब (१,००,००,००,०००) । - नयन, नेत्र, - लोचन - वि० कमल जैसे बड़े और सुंदर नेत्रोंवाला । -बांधव - पु० सूर्य । भव, भू, - योनि - ५० ब्रह्मा ।
अबलखा- स्त्री० एक चिड़िया । अबला - स्त्री० [सं०] स्त्री, नारी ।
|
अबवाब - पु० [अ०] मालगुजारी या लगानपर लगनेवाला अतिरिक्त कर गाँव के व्यापारी आदिसे जमींदारको मिलनेवाला कर ।
अब्जा-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; सीपी ( मोतीवाली ) । अब्द-पु० [सं०] वर्ष; बादल; एक पर्वत; आकाश । अब्धि- पु० [सं०] समुद्र, झील, ताल; सातकी संख्या । - कफ- पु० समुद्रका फेन। -ज-पु० चंद्रमा; शंख; अश्विनीकुमार । - जा - स्त्री० लक्ष्मी; वारुणी । अब्बर* - वि० अबल, कमजोर । अब्बा - पु० [अ०] बाप, पिता ।
अब्रह्मण्य - वि० [सं०] ब्राह्मणके अयोग्य, अब्राह्मणोचित । पु० ब्राह्मणके अयोग्य कर्म; हिंसादि कर्म | अब्राह्मण-पु० [सं०] वह जो ब्राह्मण न हो; ब्राह्मणेतर । अभंग - वि० [सं०] अखंडित, न टूटा हुआ; न टूटनेवाला । - पद - पु० इलेष अलंकारका एक भेद जिसमें शब्दको बिना तोड़े दूसरा अर्थ निकाल लिया जाता है । अभंगी (गिन् ) - वि०* जिसका कोई कुछ न ले सके ।
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अबतर - अभंगी
अबाधित- वि० [सं०] जो रोका न गया हो, स्वाधीन; जिसका खंडन न किया गया हो; अनिषिद्ध | अबाध्य - वि० [सं०] जो रोका न जा सके। अबान * - वि० निहत्था ।
अबादानी - स्त्री० दे० ' आबादानी' 1 (सभ्यता, आवादी...) । अबाध - वि० [सं०] बाधारहित, बे रोक; निर्विघ्न; कष्टरहित; * अपार, असीम । पु० बाधा या खंडन न होना । - व्यापार - पु० ( फ्री ट्रेड ) वह व्यापार जिसमें संरक्षक कर आदि लगाकर बाधा न डाली जाय, दे० 'मुक्त वाणिज्य' ।
अबाबील - स्त्री० [फा०] एक छोटी चिड़िया जो प्रायः खँडहरों में घोंसला बनाती है ।
अवार* - स्त्री० अबेर, देर; अ० शीघ्र 'जह स्वयंवर होन हार अबार' (रघु० ) |
अबास * - पु० आवास, घर
अबीर- पु० [अ०] वह लाल रंग जिसे हिंदू अधिकतर होली खेलने के काम में लाते हैं; गुलाल । अबीरी - वि० अबीरके रंगका । अबुझ* - वि० अबूझ, नासमझ । अबुद्ध - वि० [सं०] दे० 'अबुध' । अबुद्धि-स्त्री० [सं०] अज्ञान, नासमझी। वि० नासमझ | अबुध - वि० [सं०] मूर्ख, नासमझ । पु० मूर्ख व्यक्ति । अबुहाना * - अ० क्रि० प्रेतादिसे आविष्ट होकर हाथ-पैर पटकना; बक उठना ।
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अभंगुर - अभिदान
अभंगुर - वि० [सं०] स्थिर; अनश्वर । अभंजन - वि० [सं०] जिसका भंजन न हो सके, अखंड | अभक्त - वि० [सं०] जिसमें भक्ति या आस्था न हो; असंबद्ध : अपूजक; अस्वीकृत; न पकाया हुआ; जिसके टुकड़े न हुए हों, समूचा । पु० आहार नहीं, खाद्येतर पदार्थ अभक्ष, अभक्षण-पु० [सं०] आहार न ग्रहण करना,
अभगत* - वि० दे० 'अभक्त' ।
अभग्न - वि० [सं०] न टूटा हुआ, अखंडित, अबाधित । अभद्र - वि० [सं०] अशुभ, अमंगल; असभ्य, अशिष्ट । पु० अहित, बुराई; शोक, पाप ।
|
अभय - पु० [सं०] भयका अभाव, निर्भयता; परमात्मा । वि० भयरहित, निडर, निरापद । - दान-पु० रक्षाका वचन देना; शरण देना । - पत्र- पु० रक्षाका लिखित आश्वासन; (सेफ कांडक्ट) किसी देशके शासक या सेनापति आदि द्वारा दिया गया वह पत्र जिसमें लिखा रहता है कि यह व्यक्ति गिरफ्तार न किया जाय और न इसे किसी तरह की क्षति पहुँचायी जाय। -प्रद - वि० अभय देनेवाला । - मुद्रा - स्त्री० अभयदानकी मुद्रा; एक तंत्रोक्त मुद्रा । वचन - पु० रक्षाकी प्रतिज्ञा । अभर* - वि० दुर्वह, जो उठाया या ढोया न जा सके । अभरन * - पु० दे० 'आभरण' । अभरम (र्म) - वि० भ्रमरहित; निःशंक ।
अभल* - वि० भला नहीं, बुरा, खराब । पु० अमंगल । अभव्य - वि० [सं०] न होने योग्य; अयोग्य; असुंदर;
अमांगलिक; अभागा ।
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उपवास ।
अभक्ष्य - वि० [सं०] न खाने योग्य; जिसके खानेका अभिक्रम- पु० [सं०] आरंभ; प्रयत्न; आक्रमण; आरोहण । निषेध हो ।
अभिक्रमण - पु० - क्रांति - स्त्री० [सं०] दे० 'अभिक्रम' | अभिगम, अभिगमन- पु० [सं०] पास जाना; संभोग । अभिगामी (मिन्) - वि० [सं०] अभिगमन करनेवाला । अभिगृहीत- वि० [सं०] ( एडॉप्टेड ) जिसका अभिग्रहण किया गया हो ।
अभिगोता (त) - वि० [सं०] रक्षा करनेवाला | अभिग्रहण- पु० [सं०] (एडॉप्शन ) चुन कर लेना, (दूसरे के पुत्र, नियम, प्रथा आदिको ) अपना बना लेना या अपना कहकर स्वीकार करना ।
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प्रमाण न हो; इस प्रकार कही गयी बात । अभिकरण - पु० [सं०] (एजेंसी) किसीकी ओरसे उसके प्रतिनिधि या अभिकर्ताके रूपमें कार्य करना; अभिकर्ता ( एजेंट ) के कार्य करनेका स्थान ।
अभिकर्ता - पु० [सं०] ( एजेंट) किसी व्यापारी, व्यापारिक संस्था या राज्यकी ओरसे प्रतिनिधिरूप में काम करनेवाला या कमीशनपर माल बेचनेवाला व्यक्ति ।
अभिघात - पु० [सं०] प्रहार, आघात, चोट पहुँचाना । अभिघातक, अभिघाती ( तिनू ) - वि० [सं०] अभिघात करनेवाला |
अभिचार - पु० [सं०] तंत्रोक्त मारण, मोहन, उच्चाटन आदि अनुष्ठान, पुरश्चरण; बुरे कामोंके लिए मंत्रका प्रयोग |
अभिचारक, अभिचारी (रिन् ) - वि० [सं०] अभिचार करनेवाला ।
अभिजन - पु० [सं०] कुल, वंश; जन्म; उच्च कुलमें जन्म; जन्मभूमि ; घरका मुखिया या श्रेष्ठ व्यक्तिः ख्याति । अभिजात - वि० [सं०] उच्च कुलमें उत्पन्न, कुलीन; योग्य; सुंदर; श्रेष्ठ; विद्वान्; बुद्धिमान् ।
अभाऊ * - वि० अरुचिकर; असुंदर, अशोभन; अभद्र । अभाग - वि० [सं०] जिसका कोई हिस्सा न हो; अविभक्त । । अभिजित - पु० [सं०] एक नक्षत्र दिनका आठवाँ मुहूर्त | पु० [हिं०] दे० 'अभाग्य' । अभिजित् - वि० [सं०] विजय प्राप्त करनेवाला; अभिजित् नक्षत्र में उत्पन्न | पु० एक नक्षत्र; एक लग्न |
अभागा - वि० भाग्यहीन, बदनसीब |
अभागी (गिन् ) - वि० [सं०] जायदाद में हिस्सा पानेका अभिज्ञ - वि० [सं०] जाननेवाला; कुशल | अनधिकारी; [हिं०] अभागा |
अभिज्ञा स्त्री० [सं०] पहचानना; (रेकॉगनिशन) अस्तित्वस्वीकृति, मान्यता |
अभिज्ञात- वि० [सं०] ( रेकगनाइज्ड ) पहचाना हुआ; जिसका अस्तित्व मान लिया गया हो; सरकारने जिसे मान्यता दे दी हो ।
अभाग्य - पु० [सं०] भाग्यहीनता, बदकिस्मती । अभाव - पु० [सं०] न होना, अनस्तित्व; मृत्यु; लोप; कमी; * दुर्भाव । वि० स्नेहहीन । -ग्रस्त क्षेत्र - पु० ( डेफिसिट एरिया) वह जिला या भूक्षेत्र जहाँ खाद्यान आदिकी कमी हो; कमीवाला क्षेत्र । अभावनीय - वि० [सं०] जिसका चिंतन न किया जा सके, अचिंतनीय |
अभावी (विन्), अभाव्य - वि० [सं०] न होनेवाला । अभाषित - वि० [सं०] अकथित, अनुक्त | अभास * - पु० दे० 'आभास' ।
अभि-उप० [सं०] यह शब्दोंके पूर्व आकर ओर, सामने (अभ्यागत), पास, समीप (अभिसार ), ऊपर (अभिषेक), श्रेष्ठ (अभिधर्म), अति, अत्यधिक (अभिनव ), बारंबार, पुनः पुनः (अभ्यास) आदि अर्थोंका द्योतन करता है। अभिकथन - पु० [सं०] (एलेगेशन) किसीके संबंध में ऐसी बात कहना या ऐसा आरोप लगाना जिसके लिए कोई निश्चित / अभिदान-पु० [सं०] (सब्स्क्रिप्शन ) किसी कामके लिए
अभिज्ञान - पु० [सं०] पहचानना; याद करना; जानना; पहचान; निशांनी; मुद्राकी छाप, मुहर; (आइडेंटि फिकेशन) किसीको देखकर या पहचानकर बतलाना कि वह अमुक व्यक्ति ही है ।
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अभिज्ञापक - वि० [सं०] जतानेवाला; (एनाउंसर ) सूचना देने या बतलानेवाला, रेडियोपर समाचार सुनाने या कार्यक्रम आदि बतानेवाला; उद्घोषक । अभिज्ञापन - पु० [सं०] ( एनाउंसमेंट) कोई बात घोषित करना या बताना, संवाद आदि सुनाना, सूचित करना । अभिदाता - पु० (सब्सक्राइबर) किसी कामके लिए बहुतों से
प्राप्त सहायता रूपमें कुछ धन देनेवाला; चंदा देनेवाला ।
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।
अभिनंदनीय, -नंद्य - वि० [सं०] अभिनंदन करने योग्य । अभिनंदित - वि० [सं०] जिसका अभिनंदन किया गया हो अभिनय - पु० [सं०] मनोगत भाव व्यक्त करनेवाली शरीर चेष्टा आदि; किसीके कार्य, चेष्टादिकी नकल करना; नाटक खेलना, नकल, स्वाँग ।
अभिनव - वि० [सं०] नया; बिलकुल नया; ताजा । अभिनवीकरण- पु० [सं०] ( रैशनैलिजेशन ) ३० 'उद्योग समीकरण' ।
अभिनिर्णय - पु० (वर्डिक्ट) किसी मामले में न्यायसभ्य द्वारा दिया गया निर्णयात्मक मतः किसीके संबंध में उद्घोषित या सूचित जनता, निर्वाचकों आदिका मतः अंतिम निर्णय । अभिनिर्णायक - पु० ( रेफरी) वह व्यक्ति जिससे दो पक्षों के बीच कोई विवाद या झगड़ा उत्पन्न होनेपर, निर्णय करने की प्रार्थना या अनुरोध किया जाय; दे० 'खेल - मध्यस्थ' । अभिनिर्णयाधीन पु० [सं०] (सब-जुडिसी) जो अभिनिर्णयके
लिए न्यायालय के पास भेज दिया गया हो और जिसपर अभी विचार हो रहा हो, विचाराधीन । अभिनिवेश- पु० [सं०] आग्रह; संकल्प; दृढ़ अनुराग; पक्की लगन, योगदर्शन में बताये पाँच क्लेशों में से एक
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अभिधर्म-अभियान
एकजान ।
अभिन्नता - स्त्री० [सं०] भेद या बिलगावका अभाव; गहरी मित्रता; एकरूपता ।
विभिन्न व्यक्तियों द्वारा दिया हुआ धन, चंदा । अभिधर्म - पु० [सं०] श्रेष्ठ धर्म; अध्यात्मतत्त्व (बौद्ध) । -पिटक - पु० बुद्धदेवके उपदेशोंके तीन संग्रहों में से एक जो बौद्ध दर्शनका मूल है ।
अभिधा - स्त्री० [सं०] नाम, पदवी; शब्दका वाच्यार्थ; वाच्यार्थ प्रकट करनेवाली शब्दकी शक्ति |
अभिन्यास - पु० [सं०] ( ले-आउट) किसी परिकल्पना (प्लैन के अनुसार गृह, उद्यान, आदिका निर्माण, विस्तार आदि करना ।
अभिधान - पु० [सं०] नाम, उपाधि; कथन; शब्द; अभिपुष्टि - स्त्री० [सं०] ( कॉनफर्मेशन) किसी कथन, बयान, शब्दकोश |
अभिधायक- पु० [सं०] (अर्थविशेषका) वाचक नाम देने, कहने या प्रकट करनेवाला ।
अभिधावन - पु० [सं०] आक्रमण, धावा | अभिधेय - वि० [सं०] नाम देने योग्य; कथनीयः वाच्यः प्रतिपाद्य; नामवाला । पु० भावार्थ; वाच्यार्थ; नाम । अभिनंदन - पु० [सं०] आनंदित या प्रसन्न करना सरा हना करना; प्रोत्साहन, बधाई देना; स्वागत करना; विनती । - पत्र - पु० मानपत्र ( ऐड्रेस ऑफ वेलकम ), किसी बड़े अधिकारी, नेता आदिके आगमनपर उसके सम्मान एवं प्रशंसा में पढ़ा जानेवाला स्वागत भाषण; मानपत्र |
संवाद आदिकी सत्यता पुनः स्वीकार कर उसे अधिक ढ़ एवं विश्वसनीय बनाना; किसी पदपर किसीकी नियुक्तिका स्थायी और दृढ़ बना दिया जाना ।-सापेक्षवि० (सबजेक्ट टु कनफर्मेशन ) अभिपुष्टि हो जानेपर ही जिसका होना निर्भर हो, अभिपुष्टिके बाद ही जो पक्की समझी जाय । अभिपूर्ति करना - स० क्रि० (इम्प्लेमेंट) ठेके आदिकी शर्तें पूरी करना, दिया हुआ वचन पूरा करना । अभिप्राय- पु० [सं०] उद्देश्य, प्रयोजन; इच्छा; आशय,
मतलब राय ।
अभिप्रेत - वि० [सं०] उद्दिष्ट, अभिलषित; स्वीकृत; प्रिय । अभिभव - पु० [सं०] हराना, दबा लेना; आक्रमण; तिर स्कार, अपमानः प्रवलता ।
अभिभावक, अभिभावी (विन्) - वि० [सं०] हरानेवाला, वशमें करनेवाला, दबा रखनेवाला; आक्रमण करनेवाला, तिरस्कार करनेवाला; (गार्जियन) (किसी बालक, अवयस्क व्यक्ति आदिका) संरक्षक 1 अभिभावी होना - अ० क्रि० ( टु प्रिवेल) प्रभावयुक्त या प्रबल होना, मान्य होना, बेकार न समझा जाना । अभिभाषण - पु० [सं०] बोलना, भाषण करना; भाषण; सभापतिका (लिखित) भाषण | अभिभूत - वि० [सं०] पराजित; वशमें किया हुआ; आक्रांत पीड़ित । अभियंता (तृ) - वि० [सं०] गर्व करनेवाला, घमंडी | अभिमंत्रण - पु० [सं०] मंत्र द्वारा संस्कार या पवित्र
करना; आवाहन |
अभिमंत्रित - वि० [सं०] मंत्र द्वारा पवित्र किया हुआ; आवाहित ।
अभिमत- वि० [सं०] इष्ट, प्रिय, मनचाहा सम्मतः स्वीकृत; आरत । पु० इच्छा; राय; मनचाही बात । अभिमान - पु० [सं०] गर्व, घमंड
मरणभय-जन्य अज्ञान ।
अभिमानी (निन्) - वि० [सं०] घमंडी, दर्जी, अपनेको बड़ा समझनेवाला ।
अभिनिषेध - पु० (एब्रोगेशन) दे० ' निराकरण' । अभिनिष्क्रमण-पु० [सं०] बाहर जाना; प्रव्रज्या के लिए अभिमुख - वि० [सं०] ( किसी की ) ओर मुख किये हुए; गृहत्याग (बौद्ध) |
प्रवृत्त; उद्यत । अ० ओर, सामने ।
अभिनीत - वि० [सं०] अभिनय किया हुआ; अनुकृत; निकट लाया हुआ; सुसज्जित; अलंकृत । अभिनेतव्य, अभिनेय - [सं०] अभिनय करने योग्य | अभिनेता (तृ) - पु० [सं०] अभिनय करनेवाला, ' ऐक्टर' । [स्त्री० अभिनेत्री, 'ऐक्ट्रेस' । ]
अभिन्न - वि० [सं०] जो अलग न हो; भेद या अंतर न रखनेवाला; एकरूप; अविकृत; अपरिवर्तित; अविभक्त । - पद - ५० दे० 'अभंगपद' - हृदय - वि० एकदिल,
अभियाचना - स्त्री० [सं०] ( डिमांड ) ढ़ता के साथ या अधिकारपूर्वक याचना करना, माँग ।
अभियान - पु० [सं०] सामने जाना; युद्ध के लिए आगे बढ़ना, चढ़ाई, आक्रमण; (कैंपेन ) किसी निश्चित क्षेत्र में या किसी विशेष लक्ष्यकी ओर किये गये सैनिक आक्रमणोंकी परम्परा; किसी लक्ष्यकी दृष्टिसे अथवा जनताको किसी नीति के पक्ष में प्रभावित करनेके लिए की जानेवाली संघटित कारवाई |
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अभियुक्त-अभिशून्यीकृत
१८ अभियुक्त-वि० [सं०] जिसपर अभियोग लगाया गया हो, करनेवाला कर्मचारी। मुलजिम; अध्यवसायी; संलग्न; आक्रांत; नियुक्त । अभिलेखन-पु० [सं०] लिखना; खोदना । अभियुक्ति-स्त्री० [सं०] (चाज)न्यायालयमें किसी व्यक्तिपर अभिलोपन करना-स० कि. (आब्लिटरेट) मिटा देना, अपराध या नियमविरोधी कार्य करनेका आरोप लगाना, | उड़ा देना, नष्ट कर देना, कोई चिह्न वा अवशेष न अभियोग।
छोड़ना। अभियोक्ता (क्त) पु० [सं०] अभियोग लगानेवाला, अभिवंदन, अभिवंदना-स्त्री० [सं०] प्रणाम, नमस्कार आरोपी, फरियादी आक्रमण करनेवाला।
स्तुति । अभियोग-पु० [सं०] (किसीपर) अपराध-विशेषका आरोप अभिवंदनीय, अभिवंद्य-वि० [सं०] प्रणाम करने योग्य, (ऐक्यूजेशन) फोजदारी नालिशा मनोयोग, लगकर वंदनीय; स्तुति करने योग्य । कोशिश करना, लगन; आक्रमण ।
अभिवंदित-वि० [सं०] अभिवादित, वंदित । अभियोगाधीन-वि० [सं०] (अंडर ट्रायल) (वह व्यक्ति या अभिवक्ता-पु० [सं०] (प्लीडर ) न्यायालयमें किसीकी बंदी) जिसका अभियोग अभी अदालतमें चल रहा हो। ओरसे मुकदमेकी पैरवी करनेवाला, वकील । अभियोजन-पु० [सं०] (प्रासिक्यूशन) किसीपर फौजदारी अभिवचन-पु० [सं०] प्रतिज्ञा, वादा; (प्लीटिंग) मामला चलानेका कार्य (विशेषतः पुलिस द्वारा)। | न्यायालयमें उपस्थित किसी वाद में किसी पक्षका विधिक -कारी-पु०(प्रासिक्यूटर) (पुलिसकी ओरसे) न्यायालयके प्रतिनिधि बनकर उसके समर्थनमें प्रमाण, तर्क आदि देते सामने रखे गये फौजदारी मामलेका संचालन करनेवाला । हुए भाषण करना। अभिरक्षक-पु० [सं०] (कस्टोडियन)सुरक्षाकी दृष्टिसे किसी अभिवांछा-स्त्री० [सं०] इच्छा, अभिलाषा । वस्तु या व्यक्तिको अपने अधिकार, देखरेख या संरक्षण- | अभिवांछित-वि० [सं०] अभिल पित, मनचाहा । पु० में रखनेवाला; किसी संस्थाके अधिकारों आदिकी रक्षाका इच्छा, अभिलाषा। विशेष रूपसे ध्यान रखनेवाला ।
अभिवाद, अभिवादन-पु० [सं०] प्रणाम करना; छोटेकी अभिरक्षण-पु० [सं०] पूरा-पूरा बचाव ।
ओरसे बड़ेको नमस्कार। अभिरक्षा-स्त्री० [सं०] (कस्टोडी) (किसी वस्तुया व्यक्तिका)अभिवादक, अभिवादयिता(त),अभिवादी(दिन)-वि० किसीके पास या किसीकी देखरेख में सुरक्षित रूपसे रखा। [सं०] अभिवादन करनेवाला । जाना।
अभिवाद्य-वि० [सं०] अभिवादन करने योग्य । अभिरत-वि० [सं०] प्रसन्न अनुरक्त; लगा हुआ; * युक्त । अभिवृद्धि-स्त्री० [सं०] बढ़ती; सफलता, अभ्युदय । अभिरति-स्त्री० [सं०] अनुराग लगन; सुखानुभव। अभिव्यंजक-वि० [सं०] प्रकट करनेवाला; बोधक । अभिरना-अ० कि० भिड़ना; किसीका सहारा लेनाः अभिव्यंजन-पु० [सं०] अभिव्यक्ति । टकराना।
अभिव्यंजना-स्त्री० [सं०] अभिव्यंजन । अभिराम-वि० [सं०] सुखदः सुंदर; मोहक ।
अभिव्यक्त-वि० [सं०] प्रकट, स्पष्ट, प्रकाशित । अभिरुचि-स्त्री० [सं०] चाह; शौक झुकाव; विशेष रुचि। अभिव्यक्ति-स्त्री० [सं०] व्यक्त, प्रकट होना; कारणका अभिलषित-वि० [सं०] चाहा हुआ, वाछित ।
कार्यरूपमें आविर्भाव; प्रकाशन । अभिलाख*-पु० दे० 'अभिलाष' ।
अभिशंसन-पु० [सं०] दोष लगाना; झूठा दोष लगाना; अभिलाखना-स० क्रि० चाहना, अभिलाषा करना चोट पहुँचाना। अभिलाष, अभिलास-पु० [सं०] चाह, इच्छा; लोभ, अभिशंसा-स्त्री० [सं०] (कनविक्शन) अदालत या पंचों प्रियसे मिलनेकी इच्छा।
द्वारा किसी व्यक्तिका अपराधी घोषित किया जाना, यह अभिलाषा, अभिलासा-स्त्री० दे० 'अभिलाष' ।
प्रख्यापित करना कि उसपर जो आरोप लगाया गया था अभिलाषी (षिन)-वि० [सं०] चाहनेवाला, इच्छुक। वह प्रमाणित हो गया। अभिलिखित-वि० [सं०] लिखा या खोदा हुआ;(रेकॉर्डेड) अभिशंसित-वि० [सं०] (कनविक्टेट) न्यायालयमें जिसका नियमित रूपसे लिखकर सुरक्षित रखा हुआ, अभिलेखके दोषी होना प्रमाणित हो गया हो। रूपमें लाया हुआ।
| अभिशप्त-वि० [सं०] शापित, अभियुक्त; जिसपर झूठी अभिलेख-पु० [सं०] लेख; पत्थर, ताम्रपट आदिपर खुदा तुहमत लगायी गयी हो । हुआ लेख; (रेकॉर्ड) किसी तथ्य, विषय या काररवाई अभिशस्त-वि० [सं०] अभिशप्तः (कनविक्टेट) दे० आदिके संबंधमें नियमित रूपसे लिखी हुई सब बातें 'अभिशंसित'; दोषसिद्ध । न्यायालयके कागज-पत्रों, पंजी आदिमें लिखकर सुरक्षित अभिशस्ति-स्त्री० [२०] अभिशाप विपत्ति । रूपसे रखा गया गवाहों, वादी प्रतिवादी आदिका वक्तव्य अभिशाप-पु० [सं०] शाप, किसीका बुरा मानना; या न्यायाधीशका फैसला ।-न्यायालय-पु० (कोर्ट ऑफ लांछन, मिथ्या आरोप; बुराई; अनिष्टका हेतु । रेकॉर्ड) राज्यके प्रधान अभिलेख-विभागका वह न्यायालय | अभिशापन-पु० [सं०] शाप देना; कोसना। जिसे लिपि-संबंधी या ऐसी ही अन्य भूलें ठीक करनेका अभिशून्यन-पु० [सं०] (एनलिंग) विधि, आशप्ति (डिक्री), अधिकार होता है। -पाल-पु० (रेकार्डकीपर) किसी न्यायालयके निर्णय आदिको रद्द कर देना, मंसूख करना । न्यायालय, कार्यालय आदिके अभिलेखोंकी देखभाल अभिशून्यीकृत-वि० [सं०] (एनड) जो र६ या भंसूख
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अभिषंग-अभुक्त कर दिया गया हो (निर्णय, विधि, आदि)।
स्थान पर जानेवाली स्त्री। अभिषंग, अभिषंजन-पु० [सं०] पूर्ण संबंध या मिलन | अभिसारी(रिन)-पु० [सं०] अभिसार करनेवाला%B आलिंगन; संभोग; हार खाना; शपथ; कोसना; प्रतादिका धावा करनेवाला; सहायक, साथी, हमराही।। आवेश।
अभिसूचना-पु० [सं०] ( इंस्ट्रक्शन) कोई काम करनेके अभिषंगी-पु० [सं०] (एकॉमप्लिस) दे० 'सहापराधी'। | लिए विशेष रूपसे दी गयी हिदायत या आदेश । अभिषद-स्त्री० [सं०] ]सिंडिकेट) किसी व्यापारिक वस्तुके अभिसेख*-पु० दे० 'अभिषेक' । उत्पादन या पति आदिका एकाधिकार प्राप्त करने या किसी अभिस्ताव-पु०सं०] (रेकामेंडेशन) किसीके पक्षमें अनुकूल अन्य सामान्य उद्देश्यकी सिद्धिके लिए स्थापित व्यापारिक प्रभाव डालनेके लिए या किसीकी प्रशंसामें कुछ कहना संस्थाओंकी समिति; लेख, कहानिया आदि प्राप्त कर या लिखना; कोई सुझाव या सलाह देते हुए उसके पक्षमें निर्धारित पुरस्कारकी शर्तपर उन्हें एक साथ कई समा- अपना भाव प्रकट करना, सिफारिश। चार-पत्रों, मासिकों आदिमें प्रकाशित करानेवाली संस्था | अभिस्थगित-पु० [सं०] (डेफर्ड) (वेतन, सुनाफा आदि) 'सिनेट'की प्रबंध समिति ।
जिसका दिया या चुकाया जाना निर्धारित अवधि तक अभिषिक्त-वि० [सं०] जिसका अभिषेक हो चुका हो, अथवा कोई खास शर्त पूरी होनेतक स्थगित रखा जाय । जिसपर बाधा दूर करनेके लिए अभिमंत्रित जल छिड़का अभिस्रावण-पु० [सं०] (डिस्टिलेशन) पातालयंत्र (भभके) की गया हो; अधिकार प्राप्तः पदारूढ़ ।
सहायतासे मद्य या अर्क चुलाने, जल शुद्ध करनेकी क्रिया । अभिषेक-पु० [सं० [ जल छिड़कना; राजाका सिंहासना- अभिस्रावणी-स्त्री० [सं०] (डिस्टिलरी) शराब या अर्क रोहण, गद्दीनशीनी; यशादिके अंतमें शांतिके लिए किया| चुलाने का यंत्र, भद्री या घर । जानेवाला स्नान; अभिषेकमें काम आनेवाला पवित्र जल । अभिहत-वि० [सं०] पीटा गया, आह्त; आक्रांत; पराभूत । अभिषेक्ता(क्त)-पु० [सं०] अभिषेक करनेवाला । अभिहरण-पु० [सं०] निकट लाना; लूटमा; (डिस्ट्रेस) अभिषेचन-पु० [सं०] अभिषेक करना ।
ऋण, किराये आदिकी वसूलीके लिए न्याया- लयके अभिषेचनीय, अभिषेच्य-वि० [सं०] अभिषेकके योग्य आदेशसे किसीकी जायदाद, जमीन आदि जब्त कर राज्यारोहणका अधिकारी; अभिषेक संबंधी ।
लेना या नीलाम कर देना। -अधिपत्र-पु० अभिअभिष्यं (स्य)द-पु० [सं० ] आँखका एक रोग; आँख हरणके लिए जारी किया गया अधिपत्र (वाट)। आना; चूना, रसना, स्राव ।
अभिहर्ता(र्तृ)-पु० [सं०] लेकर चल देनेवाला; अपहरण अभिसंधि-स्त्री० [सं०] धोखेबाजी, प्रतारणा; कुचक्र, करनेवाला, डाकू। षड्यंत्र ।
अभिहस्तांकन-पु० [सं०] (असाइनमेंट) किसी भूमि, अभिसमय-पु० [सं०] (कॉनवेंशन)(१) परस्पर संबंध रखने
__ अधिकार आदिका लिखकर वैध रूपसे हस्तांतरण करना; वाले (डाक, तार आदि) कतिपय विषयोंके संबंध किया किसीके लिए कोई हिस्सा, कार्य आदि निर्धारित करना। गया विभिन्न राज्योंका समझौता; (२) युद्धलिप्त देशोंके
| अभिहारी(रिन)-वि० [सं०] हरण करनेवाला, चुरानेसैनिक अधिकारियोंका युद्धस्थगन आदि-संबंधी वह सम- वाला-'राधासी न और अभिहारिणी लखाई है'-राना। झौता जो दोनों ओरके प्रतिनिधियोंकी बातचीत द्वारा अभिहास-पु० [सं०] दिलगी, मसखरी, मजाक; विनोद । किया जाय और जिसका पालन दोनों के लिए पक्की संधि- अभिहित-वि० [सं०] कहा हुआ, उक्तः अभिधा वृत्ति के सदृश ही आवश्यक हो; (३) इस तरहका समझौता द्वारा बोधित । -परिव्यय-पु० (नॉमिनल कॉस्ट) कहने करनेके लिए होनेवाला उक्त राज्योंके प्रतिनिधियोंका भरके लिए, नाममात्रका परिव्यय (लागत)। -पूंजीसम्मेलन; (४) कोई प्रथा या परिपाटी जो परंपरासे चल |
स्त्री० [हिं०] (नॉमिनल कैपिटल ) कहने भरके लिए, नाम पड़ी हो और जो अलिखित होते हुए भी सबके लिए। मात्रकी पूँजी । -संधि-स्त्री० बिना लिखा-पढ़ीकी मान्य हो।
संधि (को०)। अभिसरण, अभिसारण-पु० [सं०] मिलनेके लिए जाना अभी-अ० इसी वक्त, इसी क्षण; तत्काल; अबतक । नायक या नायिकाका मिलनेके लिए संकेतस्थलपर जाना। अभीत-वि० [सं०] निडर, निर्भीक । अभिसरन*--पु० आश्रय, सहारा; अभिसरण ।
अभीति-स्त्री [सं०] निभीकता; हमला, धावा; नकट्य । अभिसरना,अभिसारना*-अनि जाना; संकेत स्थलपर अभीप्सित-वि० [सं०] वांछित, चाहा हुआ, अभिलषित । प्रियसे मिलनेके लिए जाना ।
अभीर-पु० [सं०] अहीर; एक छंद । अभिसर्ग-पु० [सं०] रचना, सृष्टि ।
अभीरी-स्त्री० [सं०] अहीरोंकी बोली। अभिसर्जन-पु० [सं०] दान, देन; वध ।
अभीष्ट-वि० [सं०] चाहा हुआ, अभिलषित; अभिप्रेत; अभिसामयिक-वि० [सं०] (कनवेंशनल) जो पहलेसे चली प्रियः ऐच्छिक, वैकल्पिक। पु० अभिलषित वस्तु; मनो:आती हुई परंपरा या परिपार्टीके अनुरूप हो।
रथ; प्रिय व्यक्ति । -लाभ-पु० अभीष्ट वस्तुकी प्राप्ति । अभिसार-पु० [सं०] अभिसरण; प्रियसे मिलनेके लिए -सिद्धि-स्त्री० अभीष्ट कार्यकी सिद्धि। जाना; संकेतस्थल; साथी; अनुचर युद्ध; शक्ति; यंत्र । | अभुआना*-अ० क्रि० प्रेतावेशमें हाथ-पाँव पटकना, बकअभिसारना*-अ० क्रि० दे० 'अभिमरना'
झक करना आदि। अभिसारिका-स्त्री० [सं०] प्रियसे मिलनेके लिए निर्दिष्ट | अभुक्त-वि० [सं०] न खाया हुआ; न भोगा हुआ
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अभुज-अमनैक (अनकैश्ड) जिसका उपभोग या भुगतान न किया गया पत्रादि) जो किसीको विधिवत् अर्पित या संप्रदत्त कर हो; अछूता, अव्यवहृत; जिसने भोजन या भोग न किया दिया गया हो, तामील । हो। -पूर्व-वि०जिसका पहले उपभोग न किया गया अभ्यसनीय,अभ्यसितव्य-वि०सं०] अभ्यास करने योग्य। हो। -मूल-पु० ज्येष्ठा नक्षत्रके अंत और मूल नक्षत्रके अभ्यस्त-वि० [सं०] अच्छी तरह सीखा हुआ, मश्क किया आदिकी दो-दो घड़ियाँ ।
हुआ; अधीत, पढ़ा हुआ; जिसने अभ्यास किया हो, कुशल; अभुज-वि० [सं०] बाहुरहित, लूला।
पक्का; आदी। अभू-* अ० अब भी।
अभ्यागत-वि० [सं०] सामने या पास आया हुआ अभूखन*-पु० दे० 'आभूषण' ।
अतिथिके रूपमें आया हुआ। पु० अतिथि, मेहमान । अभूत-वि० [सं०] जो हुआ न हो; अविद्यमान; मिथ्या अभ्यास-पु० [सं०] किसी कामको बार-बार करना, मश्क; असाधारण । -पूर्व-वि. जो पहले न हुआ हो; सीखना; अध्ययन; आदत; सैनिक अनुशासन आदि। अनोखा; अद्भुत ।
अभ्यासी (सिन्)-वि० [सं०] अभ्यास करनेवाला, अभूषित-वि० [सं०] अनलंकृत, बिना गहनेका । साधक । अभेद-पु० [सं०] भेदका अभाव, एकता; एकरूपता। वि० | अभ्युक्ति-स्त्री० [सं०](रिमाक) आलोचना या व्यंग्यके ढंगपर भेद-रहित, अनुरूप; अविभक्त; * दे० 'अभेद्य' ।-रूपक- कही गयी कोई बात; किसीके कथनपर या किसी विषयके पु० रूपकालंकारका एक भेद जिसमें उपमान और उप- संबंधमें की गयी उक्ति । मेयकी एकता बतायी जाती है।
अभ्युत्थान-पु० [सं०] उठना; किसीके सम्मानमें उठकर अभेद्य-वि० [सं०] जिसका भेदन न हो सके जिसमें घुसा | खड़ा हो जाना; बढ़ती, उत्कर्ष; उदय। न जा सके; अविभाज्य । पु० हीरा।।
अभ्युदय-पु० [सं०] सूर्य-चंद्रादिका उदय; वृद्धि, समृद्धि अभेय(व)*-पु० अभेद, एकता । वि० अभिन्न, एक । उत्तरोत्तर वृद्धि; इष्टलाभ; उत्सव; आरंभ। अभेरना-सक्रि० संयुक्त करना; मिश्रण करना, मिलाना। | अभ्युदाहरण-पु० [सं०] मिसाल या विपरीत बातके द्वारा अभेरा*-पु० रगड़, टक्कर, मुठभेड़ ।
किसी विषयका स्पष्टीकरण । अभै*-वि० दे० 'अभय'।
अभ्युपगम-पु० [सं०] पास जाना, पहुँचना; पाना; वादा अभोक्तव्य-वि० [सं०] जिसका उपभोग या उपयोग न करना; मानना, स्वीकार करना ।-सिद्धांत-पु० परीक्षाके किया जाय।
लिए पहले स्वीकार कर पीछे खंडन करना । अभोक्ता (क्त)-वि० [सं०] उपभोग न करनेवाला; परहेज अभ्रंकष-वि० [सं०] गगनचुबी, बहुत ऊँचा । पु० हवा । करनेवाला, विरक्त।
अभ्रंलिह-वि० [सं०] बहुत ऊँचा । पु० वायु । अभोग-पु० [सं०] भोगका अभाव । * वि० अभुक्त। अभ्र-पु० [सं०] बादल; आकाश; सोना; अभ्रक; कपूर अभोगी (गिन)-वि० [मं०] अभोक्ता; विरक्त ।
-भेदी(दिन)-वि० गगनचुंबी। अभोग्य-वि० [सं०] जो भोग करने योग्य न हो, जिसे अभ्रक-पु० [सं०] एक धातु, अबरक। भोगना वर्जित हो।
अभ्रांत-वि० [सं०] भ्रमरहित, यथार्थ झाता; धीर । अभोज*-वि० दे० 'अभोज्य'
अमंगल-वि० [सं०] अशुभ, अकल्याणकर; भाग्यहीन । अभोजन-पु० [सं०] न खाना, खानेसे परहेज, उपवास। | पु० अकल्याण, अनिष्ट; दुर्भाग्य; एरंड वृक्ष । अभोज्य-वि० [सं०] न खाने योग्य; जिसके खानेका अमंद-वि० [सं०] सुस्त नहीं, तेज; परिश्रमी; उग्र कम निषेध हो।
नहीं, ज्यादा सुंदर; कुशल । अभौतिक-वि० [सं०]जो पंचभूतोंसे न बना हो, अपार्थिव । अमका-वि० ऐसा-ऐसा; अमुक, फलाना । अभ्यंग-पु० [सं०] लेपन; तेल-उबटन आदिकी मालिश। अमच(चू)र-पु० सुखाये हुए कच्चे आमका चूर । अभ्यंजन-पु० [सं०] दे० 'अभ्यंग'; आँखोंमें सुरमा या अमड़ा-पु० एक खट्टा फल । अंजन लगाना; तेल, अंगरागादि ।
अमतदेय व्यय-पु० [सं०] (नॉन-वोटेबिल एक्सपेंडिचर) अभ्यंतर-पु० [सं०] वस्तुका भीतरी भाग; भीतरका या वह व्यय जिसके संबंधों (धारासभाके) सदस्योंको मत बीचका अवकाश; अंतःकरण । अ० भीतर, अंदर ।
देनेका अधिकार न हो। अभ्यंश-पु० [सं०] (कोटा) दे० बंटितांश', 'नियतांश'। । अमत्त-वि० [सं०] जो नशेमें न हो; सही दिमागका; अभ्यर्चन-पु०, अभ्यर्चना-स्त्री० [सं०] पूजा, आराधन । सावधानः विचारशील । अभ्यर्थन-पु०, अभ्यर्थना-स्त्री० [सं०] बिनती, प्रार्थना अमधुर-वि० [सं०] कड़वा, अरुचिकर । दरख्वास्त; अगवानी, स्वागत ।
अमन-पु० [अ०] शांति, इतमीनान; रक्षा । -अमानअभ्यर्थनीय, अभ्यर्थ्य-वि० [सं०] अभ्यर्थना करने योग्य। पु० शांति और सुरक्षा या सुव्यवस्था । -चैन-पु० सुखअभ्यर्थित-वि० [सं०] जिसकी अभ्यर्थना की गयी हो। | शांति । -पसंद-वि० शांतिप्रिय । अभ्यर्थी (र्थिन्)-वि० [सं०] अभ्यर्थना करनेवाला । पु० अमनिया*-वि० पवित्र, शुद्ध; अछूता । स्त्री० भोजन (कैंडिडेट) किसी परीक्षामें बैठने या नौकरी आदिके लिए बनानेकी क्रिया; रसोई पकाना।। आवेदन-पत्र देनेवाला ।
अमनक-पु० सरदार, अवधमें काश्तकारोंका एक विशेष अभ्यर्पित-वि० [सं०](सर्व ड) (वह सरकारी आदेश, आह्वान वर्ग । वि० दावेदार, अधिकारी ढीठ ।
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अमनैकी-अमावट अमनैकी-स्त्री० अमनैकपन ।
अमली-वि० व्यावहारिक; कामकाजी कार्यरूपमें; नशेअमनोज्ञ-वि० [सं०) चित्तको प्रिय न लगनेवाला, ! बाज । स्त्री० इमली; एक झाड़ीदार पेड़ । अरुचिकर ।
अमलोनी-स्त्र ० नोनी या कुलफा नामक साग । अमर-वि० [सं०] न मरनेवाला; अविनाशी । पु० देवता; अमसूण-वि० [सं०] मुलायम नहीं, कड़ा। पारा; सोना । -कोश (प)-पु० अमरसिंहका बनाया | अमहर-स्त्री० कच्चे आमकी सुखायी हुई फाँक । संस्कृतका प्रसिद्ध कोश ।-गुरु-पु० बृहस्पति ।-तटिनी- अमहल*-वि० जिसका कोई नियत आवास न हो, लास्त्री० देवनदी, गंगा । -तरु-पु० कल्पवृक्ष ।-पति-पु० मकान; व्यापक । इंद्र। -पद-पु० देवपद; मोक्ष। -पुर-पु०,-पुरी- | अमा-स्त्री० [सं०] अमावास्या; चंद्रमाकी १६ वीं कला; स्त्री०इंद्रपुरी, अमरावती ।-बेल-स्त्री० [हिं०] पीले रंगकी घर; आत्मा; अमित होनेकी अवस्था प्रामाणिक न होना । बिना जड़वाली एक लता, अकासबेल । -लोक-पु० अमातना*-स० कि० आमंत्रित करना, न्योतना । देवलोक, स्वर्ग । -वल्लरी,-वल्ली-स्त्री० आकाशलता। अमातृक-वि० [सं०] मातृहीन, बिना माँका । अमरख*-पु० दे० 'अमर्ष' ।
अमात्य-पु० [सं०] मंत्री। अमरता-स्त्री०, अमरत्व-पु० [सं०] अमर होना, देवत्व।। अमान-वि० [सं०] परिमाण-रहित; असीम; अत्यधिक अमरस-पु० अमावट ।
बहुसंख्यक निरभिमान, सरल; जिसका आदर या प्रतिष्ठा अमरांगना-स्त्री० [सं०] देवपत्नी; अप्सरा ।
न हो । पु० रक्षा; अभय शरण; आश्रय; शांति । अमराई-स्त्री० आमका बाग; सुरकानन; उद्यान, 'दान अमानत-स्त्री० [अ०] धरोहर, थाती; थाती रखना; सो विराजै सुरतरु अमराई में'-लछिराम ।
पैमाइशका काम; अमीनका पद; अमन । -खाता-पु० अमराउ*-पु० आमका बाग।
बंक या कोठीका वह खाता जिसमें अमानती रकमें जमा अमराचार्य-पु० [सं०] बृहस्पति ।
की जाय। -खाना-पु. वह जगह जहाँ चीजें अमानतमें अमराधिप-पु० [सं०] इंद्र।
रखी जायें। -दार-पु० अमानत रखनेवाला; अमीन । अमरापगा-स्त्री० [सं०] स्वगंगा ।
-में खयानत-अमानतकी रकम खा जाना। अमरारि-पु० [सं०] देव शत्रु, असुर ।
अमानन-पु०, अमानना-स्त्री० [सं०] अनादर, अवशा। अमरालय-पु० [सं०] स्वर्ग ।
अमाना-अ० कि० अँटना, समाना; * इतराना। अमरावती-स्त्री० [सं०] इंद्रपुरी ।
अमानी(निन)-वि० [सं०] निरभिमान, विनीत । अमरू-पु० एक रेशमी कपड़ा ।
अमानी-स्त्री० वह तामीरी काम जो ठीकेपर न दिया अमरूत, अमरूद-पु० एक प्रसिद्ध फल, बिही।
गया हो; जिस चीजपर कोई रोक-टोक न हो; वह अमरेश, अमरेश्वर-पु० [सं०] देवराज, इंद्र।
भूमि जो सरकारके अधिकारमें हो और जिसका प्रबंध अमर्त्य-वि० [सं०] अनश्वर, मृत्युरहित; दिव्य । पु० सरकारी कर्मचारी करता हो; लगानकी वसूली जिसमें अमर; मानवभिन्न, देवादि । -भुवन-पु० स्वर्ग।
फसल खराब होनेके कारण कुछ छट दी जाय; अंधेर । अमदित-वि० [सं०] जिसका मर्दन न हुआ हो; अपरा- अमानुष-वि० [सं०] मनुष्यसे न होनेवाला; अलौकिक भूत, अपराजित।
अमनुष्योचित; पाशव; पैशाचिक । पु० मनुष्य नहीं, अमर्याद-वि० [सं०] सीमारहित; सीमाका उल्लंघन करने- देवता आदि । [स्त्री० अमानुषी।] वाला प्रतिष्ठारहित।
अमानुषी-वि० अलौकिक पैशाचिक ।। अमर्यादा-स्त्री० [सं०] सीमोल्लंघन; आचरणहीनता; अमानुषीय, अमानुष्य-वि० [सं०] अलौकिक । अप्रतिष्ठा।
अमान्य-वि० [सं०] अमाननीय; न मानने योग्य । अमर्ष-पु० [सं०] असहिष्णुता; क्रोध, कोप; एक संचारी अमान्यन-पु० (डिसमिसल) किसी व्यवहार (मुकदमे),
भाव; अपनी अवज्ञा, तिरस्कार आदिसे उत्पन्न क्षोभ । पुनाय प्रार्थना, दावे आदिका अमान्य, न्यायालयमें अमर्षी (षिन)-वि० [सं०] अमर्ष करनेवाला ।
अविचारणीय, ठहरा दिया जाना। अमल-वि [सं०] मलरहित, स्वच्छ, उज्ज्वल; निष्पाप । अमाप-वि० [सं०] अपरिमित; बहुत अधिक । अमल-पु० [अ०] काम, व्यवहार; कर्म;आचरण; उम्मीद। | अमाय-वि० [सं०] मायारहित; छल-कपटसे रहित; ईमान[हि०] बान, आदत, अधिकार, लत; नशा: प्रभाव; | दार; जो मापा न जा सके । पु० परब्रह्म । समय । -दारी-स्त्री० राज्य; हुकूमत; अधिकार । अमाया-स्त्री० [सं०] छल-कपटका अभाव; अविद्या, भ्रांतिका मु०-दरामद होना-काममें लाया जाना । -पानी अभाव; ईमानदारी। करना-नशा करना, भंग पीना।
अमारग*-पु० दे० 'अमार्ग' । अमलतास-पु० एक पेड़ ।
अमारी-स्त्री० [अ०] दे० 'अम्मारी' । अमलबेत-पु० एक लता; एक खट्टा फल ।
अमार्ग-पु० [सं०] बुरा रास्ता, कुमार्ग; मार्गका अभाव । अमला-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; आँवला । पु० [अ०] कर्म- | अमार्जित-वि० [सं०]जो साफ न किया गया हो; अपरिष्कृत। चारिमंडल; दफ्तर (अमिलका बहुवचन), गिरे हुए मकान- अमाय॑-वि० [सं०] जिसका मार्जन न हो सके। का सामान, काठ-कबाड़ ।
अमाल*-पु० अधिकारी; शासक । अमलिन-वि० [सं०] निर्मल, स्वच्छ, निदोष ।
अमावट-स्त्री० पके आमका रस सुखाकर बनायी हुई मोटी
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अमावना - अयथा
परत; एक तरहकी मछली ।
अमावना* - अ० क्रि० अमाना, भीतर आ सकना । अमावस - स्त्री० दे० 'अमावस्या' ।
अमावस्या, अमावास्या - स्त्री० [सं०] कृष्ण पक्षकी पंद्रहवीं या अंतिम तिथि |
५२
विशेष योग; चारकी संख्या, -कर- पु० चंद्रमा । - - दीधिति - पु० चंद्रमा । -फल- पु० नाशपाती; परवल । - भुक् ( ज्) - पु० अमृतपान करनेवाला; देवता । - मूरि-: - स्त्री० संजीवनी जड़ी। -योग- पु० फलित ज्योतिषमें एक शुभ योग । -रश्मि-पु० चंद्रमा । - लता, - लतिका - स्त्री० गुडुच । -लोक-पु० स्वर्ग | - वल्लरी, - वल्ली, - संभवा- स्त्री० गुडुच । अमृतत्व - पु० [सं०] अमरता; मोक्ष । अमृतदान-पु०. एक ढकनेदार बरतन ।
अमृतबान - पु० एक तरहका रोगन किया हुआ मिट्टीका
बरतन ।
बुद्धका एक नाम ।
अमृतांशु - पु० [सं०] चंद्रमा ।
अमिताशन - वि० [सं०] बहुत खानेवाला; सर्वभक्षी । पु० अमृता - स्त्री० [सं०]मद्य; आमलकी; हरीतकी; गुडुच; तुलसी । अग्नि विष्णु ।
अमिति - स्त्री० [सं०] असीमता ।
अमृताशन, अमृताशी (शिन् ) - पु० [सं०] देवता । अमेजना* - स० क्रि० मिलाना, मिलाबट करना । अ० क्रि० मिलना ।
अमित्र - वि० [सं०] मित्रहीन; वैरी, विरोधी । पु० मित्र नहीं, शत्रु, प्रतिपक्षी ।
अमिय * - पु० अमृत । - मूरि-स्त्री० संजीवनी बूटी । अमिल* - वि० बेमेल; भिन्न वर्गका; जिससे मेल-जोल न हो; ऊबड़-खाबड़ न मिलनेवाला, अप्राप्य । अमिलित - वि० [सं०] जो मिला न हो, पृथक् । अमिली * - स्त्री० वैमनस्य, अनबन; इमली । अमिश्र - वि० [सं०] बिना मिलावटका; खालिस; असंयुक्त । अमिश्रित - वि० [सं०] अमिश्र ।
अमी* - पु० दे० 'अमिय' । -कर-पु० चंद्रमा । अमीत - वि० [सं०] जिसे क्षति न पहुँची हो । *५० शत्रु । अमीन - वि० [अ०] अमानत रखनेवाला । पु० एक दीवानी अहलकार जो पैमाइश, बँटवारे आदिका काम करता है ।
अमाह-पु० आँखकी एक बीमारी, नाखूना । अमिख* - पु० आमिष, मांस ।
अमिट - वि० न मिटनेवाला; सदा रहनेवाला; अटल | अमित-वि० [सं०] बे-हद, बे-हिसाव; अत्यधिक । - वीर्यवि० बे-अंदाज ताकतवाला ।
अमिताभ - वि० [सं०] अति कांतियुक्त या तेजस्वी | पु०
अमीर - पु० [अ०] अधिकारी; सरदार; रईस; धनी व्यक्ति । वि० धनवान् । - जादा - पु० धनिक पुत्र | अमीराना - वि० [अ०] अमीरी जतानेवाला; धनिकोचित । अमीरी - स्त्री० [अ०] दौलतमंदी । वि० अमीरके योग्य । अमुक - वि० [सं०] कोई खास ( आदमी या चीज जिसका नाम नहीं लिया जा रहा ), फलाँ ।
|
अमुक्त - वि० [सं०] जो मुक्त न हो, बँधा हुआ; जिसका मोक्ष न हुआ हो । - हस्त - वि० कम खर्च, अल्पव्ययी । अमुख्य - वि० [सं०] अप्रधान, गौण; निम्न श्रेणीका । अमूर्त - वि० [सं०] आकार-रहित; देह-रहित; निरवयव
( आकाश, काल, वायु, आत्मा, परमात्मा, आदि ) । अमूर्ति - वि० [सं०] आकार-रहित | पु० विष्णु | अमूल - वि० [सं०] बिना जड़का; निराधार; प्रमाणरहित, मनगढंत; मिथ्या ।
अमूलक - वि० [सं०] दे० 'अमूल'; * अमूल्य, अनमोल । अमूल्य - वि० [सं०] अनमोल; बहुमूल्य । अमृत - वि० [सं०] न मरा हुआ; न मरनेवाला; अमर । पु० अमरत्व; वह वस्तु जिसके पीनेसे मुर्दा जी उठे और जीवित प्राणी अजर-अमर हो जाय, सुधा, आबेहयात; अति मधुर, हितकर वस्तु; जल; घी; सोमरस; दूध; यज्ञशेष; अन्न भात; अयाचित भिक्षा; औषध; वार-नक्षत्र के कुछ
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अमे (मै) उना* - स० क्रि० उमेठना ।
अमेध्य - वि० [सं०] यशके अयोग्य; यशका अनधिकारी; अपवित्र । पु० अपवित्र वस्तु; मल आदि; अपशकुन । अमेय - वि० [सं०] सीमारहित; परिमाणरहित; अज्ञ ेय । अमेली* - वि० असंबद्ध; अनाप-शनाप | अमेव* - वि० दे० 'अमेय' ।
अमोघ - ० [सं०] अचूक, अव्यर्थ । अमोरी - स्त्री० अँबिया; आमड़ा । अमोल, अमोलक * - वि० अनमोल; बहुमूल्य । अमोला - पु० आमका उगता हुआ पौधा | अमोही* - वि० निष्ठुर, निर्मोही । अमौआ - वि० आमके रंगका । पु० जदीकी झलक लिये मूँगिया रंग ।
अमौलिक - वि० [सं०] निर्मूल; जो मौलिक या स्वतंत्र रचना न हो, अन्यकी कृतिके आधार पर या अनुवाद रूप में रचित; अयथार्थ |
अम्माँ - स्त्री० माता, माँ ।
अम्मारी - स्त्री० [अ०] हौदा, महमिल ।
अम्ल - वि० [सं०] खट्टा । पु० खट्टापन, खटाई; सिरका; तेजाब; अमलबेत; वमन; मट्ठा; एक नीबू । -पंचक - पु० पाँच मुख्य खट्टे फल - जंबीरी नीबू, खट्टा अनार, इमली, नारंगी और अमलबेत । पित्त-पु० एक रोग जिसमें आहार आमाशय में पहुँचकर अम्ल हो जाता है । अम्लान - वि० [सं०] जो मुरझाया न हो; प्रफुल्ल, प्रसन्न । अम्लिमा (मन्) - ) - स्त्री० [सं०] खट्टापन । अम्लोद्गार - पु० [सं०] खट्टी डकार ।
अम्हौरी - स्त्री० अधिक पसीना निकलनेके कारण बदन में निकलनेवाली छोटी-छोटी फुंसियाँ ।
अयत्न - पु० [सं०] यलका अभाव । - कृत - वि० जो बिना प्रयत्न किये ही, आसानी से हो जाय। -लभ्य - वि० बिना उद्योगके प्राप्त होनेवाला । अयथा - वि० [सं०] जैसे होना चाहिये वैसे नहीं; अनुचित या गलत तरीके से । - तथ-वि० जैसा चाहिये वैसा नहीं, अयोग्य, अनुकूल नहीं; विपरीत; अयथार्थ । - तथ्य - पु०
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अयथार्थ-अरघा अयथार्थता; अनौचित्य अयोग्यता ।
पु० विष्णु; शिव । -जा,-संभवा-स्त्री० सीता । अयथार्थ-वि० [सं०] झूठ, गलत ।-नाम-पु० (मिस- अयोमय-वि० [सं०] लोहेका बना हुआ। नोमर) दे० 'मिथ्यानाम'।
| अयोमल-पु० [सं०] जंग, मोरचा। अयन-पु० [सं०] गति, चलना; सूर्यकी विषुवत् रेखासे अयोमार्ग-पु० (रेलवे) लोहेकी पटरियोंको सिलसिलेसे उत्तर या दक्षिणको गतिः इस गतिका काल; राशिचक्रकी जोड़कर बनाया हुआ मार्ग जिसपर यात्रियों या सामानको गति; मार्ग, रास्ता; गृह; आश्रय (नारायण); थनका वह | ढोनेवाली रेलगाड़ी दौड़ती है, रेल-पथ । भाग जिसमें दूध रहता है। -काल-पु० सूर्यके उत्तरायण अयोमुख-वि० [सं०] जिसके मुंह या सिरेपर लोहा या दक्षिणायन रहनेका काल ।
__ लगा हो। अयश (स)-पु० [सं०] अपयश, बदनामी लांछन। अयोहृदय-वि० [सं० जिसका हृदय लोहेकी तरह अयशस्कर, अयशस्य-वि० [सं०] बदनामी करनेवाला; कठिन हो, निष्ठुर । अयशका हेतु ।
अयोक्तिक-वि० [सं०] युक्तिविरूद्ध, असंगत । अयशी-वि० यशोहीन, बदनाम ।
अरंड-पु० दे० 'एरंड'। अयश्चूर्ण-पु० [सं०] लोहेका चूर ।
अरंभ*-पु० दे० 'आरंभ' अयस-पु० [सं०] लोहा; फौलाद धातु; हथियार, सोना; अरंभना*-अ० क्रि० बोलना; आरंभ होना। स० क्रि० अगुरु नामक वृक्ष । -कांत,-कांतमणि-पु० चुंबक! आरंभ करना। -कार-पु० लोहार । -कीट-पु० मोरचा, जंग। अर-पु० [सं०] पहियेकी नाभि और नेमिक बीचकी लकड़ी, अयाचक-वि० [सं० न माँगनेवालाः कामनारहितः संतष्ट। आरा कोण; सिवार; चक्रवाक पक्षी; पित्तपापड़ा। वि० अयाचित-वि० [सं०] न माँगा हुआ, अप्रार्थित।
तेज; थोड़ा। * स्त्री० दे० 'अड़' । -घट्ट,-घट्टक-पु० अयाची (चिन्)-वि० [सं०] दे० 'अयाचक' ।
रहट; कूप । अयान-वि० [सं०] बिना सवारीका, पैदल; * अजान । अरइल*-वि० दे० 'अड़ियल' । अयानता-स्त्री० अजानपन, अज्ञान ।
अरई-स्त्री० पैनेकी नोकपर लगी हुई कील जिससे तेज अयानप, अयानपन--पु० अनजानपन; भोलापन । चलानेके लिए बैलको कोंचते है। अयाल-पु० [फा०] धोड़े या सिंहकी गर्दनपरके बाल । अरक*-पु० सूर्यः अकवन; दे० 'अर्क' । अयि-अ० [सं०] (संबोधन) हे, ए, अरी।
अरकना*-अ० कि.० टकराना, भिड़ना; दरकना ।अयुक्त-वि० [सं०] न जोता हुआ; न जोड़ा हुआ;बे-लगाव बरकना-अ० क्रि० पकड़में न आनेके लिए हटना, बचना। अधार्मिक; अयोग्य; असंबद्ध; अनुपयुक्त, बे-ठीक; अन्य- अरकला*-पु० रोक, मर्यादा; अर्गल । मनस्क; अनभ्यस्त ।
अरकाटी-पु० गिरमिटिया कुलियोंकी भरती करनेवाला । अयुक्ति-स्त्री० [सं०] संबंध या लगावका अभावः पार्थक्यः | अरकान-पु० [अ० ] प्रधान कार्यकर्ता या कर्मचारी; वे युक्ति, तर्कका अभाव; अनौचित्य ।
लोग जिनपर किसी कार्य या प्रबंधका दारमदार हो * अयुग, अयुगल-वि० [सं०] अलग; अकेला; विषम । प्रमुख राजकर्मचारी। अयुग्म-वि० [सं०] जो जोड़ा न हो, अकेला । -नयन,- अरक्षित-वि० [सं०] जिसकी. रक्षा न की गयी या की नेत्र-पु० (तीन आँखोंवाले ) शिव । -बाण,-शर-पु० जाती हो; बिना बचावका । कामदेव ( पंचशर)।
अरग-पु० दे० 'अरगजा'। अयुत-पु० [सं०] १० हजारकी संख्या । वि० असंबद्ध, | अरगजा-पु० एक सुगंधित लेप जो चंदन, केसर आदि पृथक् ।
मिलाकर तैयार किया जाता है। अबुद्धग्रस्तता, अयुद्धलिप्ति-स्त्री० (नान-बेलिजरेन्सी) अरगजी-वि० अरगजा जैसे रंग या सुगंधवाला । पु० अरकिसी राष्ट्रका, कहनेके लिए युद्धसे पृथक् रहते हुए भी, गजेके रंगसे मिलता हुआ पीला रंग । खुल्लमखुल्ला युद्धलिप्त राष्ट्रकी सहायता करते रहना। । अरगट-*वि० अलग, भिन्न । अयुध-पु० [सं०] वह जो न लड़े; * दे० 'आयुध । अरगनी-स्त्री० कपड़ा टाँगनेके लिए बंधी हुई रस्सी, अयोग-पु० [सं०] बिलगाव; अयुक्तता; अप्राप्ति; अनौ- | बाँस आदि । 'चित्य संकट; दुष्ट ग्रहादिका योग; कुयोग ।
अरगल-पु० किवाड़को भीतरसे बंद करनेके लिए लगायी अयोगी*-वि० अयोग्य ।।
जानेवाली आड़ी लकड़ी, ब्योड़ा। अयोग्य-वि० [सं०] योग्यताहीन, नाकाबिल; निकम्माः अरगाना-अ० क्रि० अलग होना; चुप्पी साधना-सूने अनधिकारी नामुनासिब ।।
सदन मथनियाके ढिग बैठि रहे अरगाई'-सू०। स० अयोधन-पु० [सं०] हथौड़ा।
क्रि० अलग करना। अयोद्धा (द्ध)-पु० [सं०] वह जो योद्धा नहीं है | अरघ-पु० दे० 'अर्घ'। निम्न-श्रेणीका योद्धा।
अरघट्ट-पु० [सं०] दे० 'अर' के साथ । अयोध्य-वि० [सं०] जिससे युद्ध न किया जा सके; अजेय। अरघा-पु० अर्ध-पात्र; अर्ध-पात्रके आकारका बना पत्थरका अयोनि-वि० [सं०] अजन्मा; नित्यकोखसे उत्पन्न नहीं। आधार जिसमें शिवलिंगकी स्थापना की जाती है, जलहरी; पु० ब्रह्मा, शिव । -ज-वि० जो जरायुसे उत्पन्न न हो। वह पात्र जिसमें अर्ध रखकर दिया जाय; कुएँकी जगतपर
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अरघान-अराज़ी
पानी निकासके लिए बना हुआ रास्ता । अरघान, अरघानि* - स्त्री० गंध ।
अरचन* - पु०, अरचना* - स्त्री० दे० 'अर्चन', 'अर्चना' । अरवल * - स्त्री० दे० 'अड़चन' ।
अरचि* - स्त्री० ज्योति, प्रकाश ।
अरचित * - वि० दे० 'अर्चित' | अरज- स्त्री० दे० 'अर्ज़' |
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अरदावा- पु० दला हुआ अन्न; भरता ।
अरदास - स्त्री० प्रार्थना; प्रार्थना-पत्र; नानकपंथी ईश्वर
प्रार्थना; भेंट, नजर ।
अरधंग* - पु० दे० 'अर्द्धांग' |
अरधंगी, अरधाँगी - पु० दे० 'अडांगी' ।
अरध-वि० दे० ‘अर्द्ध’। * अ० अंदर, भीतर ।
अरजना * - स० क्रि० अर्ज करना; प्राप्त करना । अरजी- स्त्री० दे० 'अजी' । * वि० अरज करनेवाला, प्रार्थी । अरणि, अरणी - स्त्री० [सं०] एक वृक्ष, गनियार, अँगे; काठका एक यंत्र जिससे ( विशेषतः ) यशके लिए आग उत्पन्न करते हैं; सूर्य; अग्नि; चकमक पत्थर । अरण्य - पु० [सं०] वन, जंगल; कायफल; संन्यासियोंका एक भेद । - रोदन, विलाप - पु० ऐसा रोना जिसे कोई सुननेवाला न हो, निष्फल कथन, निवेदन इ० । -श्वान - पु० भेड़िया; गीदड़ |
अरण्यानि, अरण्यानी-स्त्री० [सं०] बहुत बड़ा जंगल;वनदेवी । अरत - वि० [सं०] सुस्तः विरक्त; अनासक्त; असंतुष्ट । अरति - स्त्री० [सं०] विरक्ति; असंतोष; उचाट । अरथ* - पु० दे० 'अर्थ' ।
अरविंदिनी - स्त्री० [सं०] नलिनी; कमल-लता; कमलसमूह; कमलपूर्ण स्थान
अरवी - स्त्री० एक कंद, घुइयाँ ।
अरथाना * - स० क्रि० समझाकर कहना; व्याख्या करते हुए कहना ।
अरस - वि० [सं०] रसहीन, नीरस, फीका; असभ्य; सुस्त पु० रसका अभाव; * आलस्य; आकाश, 'जाकी तेग अरसमें डूलें' - छत्र०; छत; महल ।
अरथी - स्त्री० एक सीढ़ी जैसी चीज जिसपर मुर्दे को सुलाकर श्मशान ले जाते हैं, टिकठी । वि० दे० 'अथीं' । अरथी (थिन्) - वि० [सं०] जो रथपर सवार न होकर अरसना - परसना - स० क्रि० छूना; आलिंगन करना । लड़े, पैदल |
अरसना* - अ० क्रि० ढीला या सुस्त पड़ना ।
अरद - वि० [सं०] बिना दाँतका; जिसके दाँत टूट गये हों । * पु० कष्ट पहुँचाना; विनाश ।
अरदन - वि० [सं०] दे० 'अरद', पु० दे० 'अर्दन' ।
अरस परस - पु० आँखमिचौनीका एक खेल; दरस-परस । अरसा - पु० [अ०] समय; अवधि; मैदान; देर; बहुत दिन । अरसाना* - अ० क्रि० अलसाना । अरसिक - वि० [सं०] अरसश; काव्य, संगीत आदिका रस लेने में असमर्थ; स्वादहीन, रूखा; रूखे स्वभावका । अरसी* - स्त्री० अलसी, तीसी ।
अरदना * - स० क्रि० मसलना; कुचलना; मसल-कुचलकर भार डालना ।
अरदली - पु० किसी बड़े अफसर के साथ रहनेवाला खास अरसीला, अरसौहा* - वि० अलसाया हुआ । चपरासी ।
अरहंत* - पु० दे० 'अहंत' ।
अरन - पु० एक तरहकी निहाई; * दे० 'अरण्य' । अरना - पु० जंगली भैंसा । * अ० क्रि० दे० 'अड़ना' । अरनि- स्त्री० दे० 'अरणि'; * अड़ना; रुकना; हठ करना । अरनी - स्त्री० अरणि, यशका अग्निमंथन काष्ठ; जलन । अरन्य* - पु० दे० 'अरण्य' ।
अरपन* - पु० दे० 'अर्पण' |
अपना * - स० क्रि० अर्पण करना, भेंट करना ।
अरपित* - वि० दे० 'अर्पित' ।
अरब - वि० सौ करोड़ । पु० सौ करोड़ की संख्या; * घोड़ा; इंद्र [अ०] एक देश या वहाँका निवासी । अरबर* - वि० अंडबंड; कठिन; टेढ़ा ।
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अरबराना* - अ० क्रि० घबड़ाना; लटपटाना ।
अरबरी - स्त्री० हड़बड़ी ।
अरबी - वि० अरब देशका | पु० अरब-निवासी, अरबका या अरबी नस्लका घोड़ा; एक बाजा । स्त्री० अरबकी भाषा । अरबीला* - वि० अंडबंड, निरर्थक; गर्वयुक्त (?) 1 अरभक* - पु० दे० 'अर्भक' |
अरमा* - स्त्री० चमक- 'मैथिली- विलास बीजुरीकी अरमा सो है' - लधिराम ।
अरमान- पु० [फा०] लालसा, इच्छा, कामना । अरर - अ० विस्मय, उल्लास आदिका सूचक शब्द अरराना* - अ० क्रि० 'अररर' की ध्वनिके साथ ( दीवार, पेड़, डाल आदिका) टूटकर गिरना; भहराना । अरवा - पु० बिना उबाले धानका चावल; ताखा । अरवाती* - स्त्री० ओलती ।
अरविंद - पु० [सं०] कमल सारस; ताँबा । -नयनलोचन - पु० विष्णु । - नाभि-पु० विष्णु । -बंधु - पु० सूर्य । - योनि-पु० ब्रह्मा |
अरहट - पु० कुएँसे पानी निकालनेका यंत्र, रहट ।
अरहन - पु० साग-भाजी में पकाते समय मिलाया जानेवाला आटा या बेसन |
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अरहना * - स्त्री० पूजा ।
अरहर - स्त्री० दालके काम आनेवाला एक अनाज, तुअर । अरा* - पु० आरा झगड़ा ।
अराअरी - स्त्री० दे० 'अड़ाअड़ी' ।
अराजक - वि० [सं०] बिना राजा या राज्यका; अराजकतावादी । पु० राजाका न होना; विप्लव |
अराजकता स्त्री० [सं०] शासनका अभाव; अव्यवस्था, बदअमली । - वाद-पु० राज्यहीन समाज व्यवस्थाका प्रतिपादन करनेवाला मतवाद | अराजपत्रित - वि० (नॉन-गजेटेड) (अधिकारी, कर्मचारी) जिसका नाम या जिसकी पदवृद्धि, स्थानांतरण, छुट्टीपर जाने आदि के संबंध में कोई सूचना सरकारी समाचारपत्र में न छपती हो ।
अराजी - स्त्री० [अ०] जमीन, धरती ( अर्जका बहुवचन
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अराम * - पु० आराम, बाग । अरारूट, अरारोट - पु० एक पौधा; उसकी जड़से निकलनेवाला सत जो तीखुर जैसा होता है और प्रायः
बीमारोंको दिया जाता है ।
५५
• अब एकवचनमें प्रयुक्त ) | अरात* - पु० दे० 'अराति' । अराति - पु० [सं०] दुश्मन, शत्रु कुंडलीका छठा स्थान; काम क्रोधादि षड्रिपु; ६की संख्या । अराधन* - पु० दे० 'आराधन' ।
अराधना * - सु० क्रि० आराधन करना ।
अरुणात्मज - पु० [सं०] शनि; यम; जटायुः सुग्रीवः कर्ण इ० । अरुणात्मजा - स्त्री० [सं०] यमुना और ताप्ती ।
अराधी * - पु० आराधन करनेवाला । अराबा - पु० [अ०] गाड़ी, रथ; तोप लादनेकी गाड़ी; अरुणाभ - वि० [सं०] लाल आभा-युक्त, लालिमा लिये जहाजपर एक ओर एक बार तोप दागना ।
अराल - वि० [सं०] टेढ़ा । पु० मतवाला हाथी । अरावल - पु० हरावल, अग्रगामी सैन्य ।
अरिंद* - पु० शत्रु ।
अरिंदम वि० [सं०] शत्रुओंका दमन करनेवाला, शत्रुविजयी । अरि- पु० [सं०] शत्रुः काम, क्रोध आदि षड्रिपु; जन्मकुंडली में लग्नसे छठा स्थान; ६ की संख्या, एक तरहका खदिर ।
अरियाना * - स०क्रि० अपमानजनक शब्द से संबोधन करना । अरिवन - पु० रस्मीका फँदा जिसमें घड़ा आदि फँसाया जाता है ।
|
अरिष्ट - पु० [सं०] दुर्भाग्य; अशुभ; विपत्ति; शत्रु; अनिष्ट ग्रह या ग्रहयोग; मृत्युकारक योग; ( रोगीके) मृत्युसूचक लक्षण; भूकंपादि उत्पात; दवाओंके खमीरसे बनाया जानेवाला मादक अर्क; रीठा । वि० निरापदः अशुभ । अरिहन* - पु० शत्रुघ्न ।
अरिहा (हन ) - वि० [सं० · शत्रुका नाश करनेवाला ।
पु० शत्रुघ्न ।
अरी- अ० स्त्रियोंके लिए व्यवहृत संबोधन ।
अरुंतुद - वि० [सं०] मर्मस्थलोंको छेदनेवाला; मर्मपीड़क; लगनेवाला | पु० शत्रु |
अरुंधती - स्त्री० [सं०] वसिष्ठ ऋषिकी पत्नी; दक्षकी एक कन्याः सप्तर्षि मंडल के पासका एक छोटा तारा । अरु* - अ० और ।
अरुई + - स्त्री० दे० 'अरवी' ।
अरुग्ण - वि० [सं०] नीरोग, स्वस्थ ।
अरुचि-स्त्री० [सं०] ( किसी वस्तुका ) अच्छा न लगना, अनिच्छा; घृणा; विरक्ति; भूख न लगना, अग्निमांद्य रोग । -कर - वि० जो पसंद न आये, न रुचनेवाला । अरुचिर, अरुच्य - वि० [सं० ] भला न लगनेवाला, अरुचिकर; कुढ़न पैदा करनेवाला ।
अरुज - वि० [सं०] नीरोग, तंदुरुस्त ।
अरुझना* - अ० क्रि० उलझना; फँसना, अटकना; झगड़ना; युद्धमें संलग्न होना ।
अरुझाना * - स० कि० उलझाना । अ० क्रि० उलझना । अरुण - वि० [सं०] लाल, ऊषा या सिंदूर के रंगका; घबढ़ाया हुआ । पु० लाल रंग, उगते हुए सूर्यका रंग; सांध्य लालिमा सूर्य सूर्यका सारथि; सिंदूर; सोना; कुंकुम; एक ४-क
अरात-अर्क
तरहका कुष्ठ रोग । - कर, -किरण- पु० सूर्य । चूड, - शिखा- पु० मुर्गा, नेत्र, लोचन - पु० कबूतर । - प्रिया - स्त्री० सूर्यकी पत्नी, संज्ञा, छाया ।
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अरुणा - स्त्री० [सं०] ऊषा; मजीठ; बुंधची; अतिविषा । अरुणाई - स्त्री०लालिमा ।
हुए ।
अरुणार- वि० दे० ' अरुनारा' | अरुणिमा ( मन्) - स्त्री० [सं०] लाली । अरुणोदय- पु० [सं०] उषःकाल, तड़का, भोर । अरुन* - वि० दे० 'अरुण' । - चूड़, - सिखा- पु० दे० ‘अरुणचूड़,–शिखा’ ।
अरुनई *
* - स्त्री० दे० 'अरुनाई' ।
अरुनता * - स्त्री० अरुणता, लालिमा ।
अरुनाई * - स्त्री० ललाई ।
अरुनाना* - अ० क्रि० सुखी आना, लाल होना । स० क्रि० लाल करना ।
अरुनारा * - वि० लाल ।
अरुनोदय * - पु० दे० 'अरुणोदय' । अरुरना* - अ० क्रि० सिकुड़ना, बल खाना ।
[सं०] जो रूढ न हो, अप्रचलित; * दे०
अरुराना * - स० क्रि० सिकोड़ना; ऐंठना, मरोड़ना । अरूझना * - अ० क्रि० भिड़ना, झगड़ना । अरूढ - वि० 'आरूढ' । अरूप - वि० [सं०] आकृतिहीन, बिना रूप आकारका; कुरूप असमान । पु० भद्दी शक्ल । अरूरना* - अ० क्रि० व्यथित होना, पीड़ित होना । अरूलना * - अ० क्रि० छिलना; कटना ।
अरे-अ० छोटोंके लिए व्यवहृत और प्रायः तिरस्कार-सूचक संबोधन; आश्चर्य, दुःख, आकुलता आदि प्रकट करनेवाला उद्गार |
अरेरना* - स० क्रि० रगड़ना ।
अरोगना * - स० क्रि० खाना |
अरोच* - पु० अरुचि, अनिच्छा ।
अरोचक - वि० [सं०] जो चमकीला न हो; भूख मंद करनेवाला; अरुचि पैदा करनेवाला, अरुचिकर ।
अरोध्य - वि० [सं०] जो रोका न जा सके, अबाधित । अरोर* - वि० शब्दरहित, शांत । अरोहन * - पु० दे० 'आरोहण' । अरोहना* - अ० क्रि० चढ़ना, आरोहण करना । अरोही* - वि० दे० 'आरोही' |
अरौद्र - वि० [सं०] जो भयंकर न हो ।
अर्क - पु० [सं०] ज्योति, प्रकाश-किरण; सूर्य; अग्नि; रविवार; ताँबा; स्फटिक; आक, मदार; इंद्र; विष्णु; १२ की संख्या । वि० पूजा करने योग्य । -ज- तनय - पु० कर्ण; यमः सुग्रीव आदि -जा, - तनया - स्त्री० यमुना; ताप्ती । - नंदन, - पुत्र, सुत, सूनु- पु० शनि; कर्ण; यम आदि । - रिपु - पु० राहु । -वल्लभ-पु० बंधूक;
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अर्क-अर्थो
कमल। -विवाह-पु० मदारके पेड़के साथ किया जाने नवीस-पु० अजी लिखनेवाला । वाला विवाह (तीसरा विवाह करनेवाले पुरुषके लिए पहले | अ न-पु० [सं०] पांडुके पाँच पुत्रोंमेंसे मझले जो महामदारसे विवाह करनेका विधान किया गया है, ताकि भारत-युद्धमें पांडवपक्षके नायक थे; हैहयनरेश कार्तवीर्य; तीसरी पत्नी चौथी हो जाय) । -व्रत-पु० सूर्यका एक इंद्र; सफेद रंग; एक पेड़ जिसकी छाल दवाके काम आती है। व्रत (यह माघ शुक्ला सप्तमीको किया जाता है); राजाका अर्णव-पु० [सं०] समुद्रधारा; अंतरिक्ष; इंद्र, सूर्यः एक प्रजासे कर लेने में सूर्यके नियमका अनुसरण करना (सूर्य वृत्त; चारकी संख्या; रत्न, मणि । ८ महीने अपनी किरणोंसे पानी सोखता और बरसातमें अर्णवोद्भव-पु० [सं०] चंद्रमा; अमृत । उसे कई गुना करके बरसा देता है, अर्थात् लोककी वृद्धिके अर्णवोद्गवा-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी । लिए ही रस ग्रहण करता है)।
अर्थ-पु० [सं०] शब्दका अभिप्राय, मानी; मतलब प्रयोजन अर्क-पु० [अ०] रस; किसी चीजका भभकेसे खींचा हुआ | काम; मामला; हेतु, निमित्त; इंद्रियोंके विषय-शब्द, रस पसीना।
स्पर्श, रस, रूप और गंध, धन, शारीरिक आवश्यकताओंकी अर्कोपल-पु० [सं०] सूर्यकांत मणि चुन्नी।
पूर्तिका साधन; पैसा कमाना जो जीवनके चार पुरुषार्थों से अर्गजा*-पु० दे० 'अरगजा'।
एक माना गया है। उपयोग; लाभ; दिलचस्पी; स्वार्थ; अगल-पु० [सं०] ब्योड़ा, अगड़ी; रोक; किवाड़, लहर इच्छा; प्रार्थना; मूल्य निवारण; फल, परिणाम; कुंडलीमें एक नरक मांस ।
लग्नसे दूसरा स्थान । -कर-वि० जिससे पैसा मिले । अर्गला-स्त्री० [सं०] अगड़ी; सिटकिनी; हाथी बाँधनेकी [स्त्री० 'अर्थकरी' |] -गौरव-पु० अर्थकी गंभीरता । जंजीर।
-चिंतन-पु० द्रव्योपार्जनका उपाय सोचना। -चिंताअलिका-स्त्री० [सं०] छोटी अर्गला ।
स्त्री० धन या पैसेकी चिंता । -दंड-पु. जुर्मानेकी अर्गलित-वि० [सं०] अगड़ीसे बंद किया हुआ।
सजा। -दोष-पु० अर्थ-संबंधी दोष । -पति-पु० कुबेर अर्गली-स्त्री० [सं०] दे० 'अर्गला'।
राजा। -पिशाच-पु० अति कृपण धनी। -प्रबंधअर्घ-पु० [सं०] पूजनके १६ ५पचारोंमेंसे एक दूब, दूध, पु० आय-व्ययकी व्यवस्था। -भृत-पु० तनखाह चावल आदि मिला हुआ जल जो देवता या पूजनीय लेकर काम करनेवाला, वेतनभोगी। -मंत्री(त्रिन)-पु० पुरुषके सामने रखा जाय; हाथ धोनेके लिए दिया गया मंत्रिमंडलका वह मंत्री जिसके जिम्मे राज्यका अर्थप्रबंध जल; दाम, मूल्य; अश्व, घोड़ा, मधु, शहद । -दान-पु० हो। -व्यवस्था-स्त्री० सार्वजनिक राजस्व और उसके अर्घ अर्पण करना। -पतन-पु० सस्ती होना, भाव आय-व्ययकी पद्धति । -शास्त्र-पु० अर्थविज्ञान (राजगिरना; (स्लंप) दे० 'मूल्यावपात'। -पात्र-पु० अर्घ नीतिविज्ञान; नीतिशास्त्र)। -सिद्ध-वि० प्रसंगसे ही अर्पण करनेका पात्र, अरघा । -वृद्धि-स्त्री० भाव बढ़ना, जिसका अर्थ स्पष्ट हो। -सिद्धि-स्त्री० अभीष्टकी प्राप्ति; महँगी होना। -संस्थापन-पु० व्यापारिक वस्तुओंका उद्देश्यकी सिद्धि । -हीन-वि० निर्धन; बे-मानी असफल। मूल्य निर्धारित करना।
अर्थतः-अ० [सं०] अर्थकी दृष्टिसे; वस्तुतः, सचमुच । अर्घा-पु० दे० 'अरघा'।
अर्थातर-पु० [सं०] दूसरा विषय; नयी स्थिति; दूसरा अर्ध्य-वि० [सं०] पूजनीय; बहुमूल्य । पु० पूजामें देने मतलब । -न्यास-पु० अर्थालंकार जहाँ सामान्यसे विशे
योग्य वस्तु, अर्मके उपयुक्त द्रव्य; एक प्रकारका मधु । षका, विशेषका सामान्यसे अथवा कारणसे कार्यका या कार्य अर्चक-वि० [सं०] पूजा करनेवाला।
से कारणका समर्थन हो। अर्चन-पु०, अर्चना-स्त्री० [सं०] पूजन, वंदन । अर्थागम-पु० [सं०] धनागम, आय । अर्चनीय, अर्य-वि० [सं०] पूजनीय सम्मान्य । अर्थात्-अ० [सं०] यानी; दूसरे शब्दोंमें । अर्चमान-वि० [सं०] दे० 'अर्चनीय।
अर्थाना*-स० क्रि० अर्थ लगाना, व्याख्या करना । अर्चा-स्त्री० [सं०] पूजा प्रतिमा जिसकी पूजा करनी हो।। अर्थापत्ति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार 'जिसमें यह दिखअचि(स)-स्त्री० [सं०] किरण; अग्नि-शिखा; प्रकाश, द्युति।। लाया जाय कि जब इतनी बड़ी बात हो गयी तो इस छोटीअर्चित-वि० [सं०] पूजित सम्मानित । पु० विष्णु । सी बातके होनेमें क्या संदेह हो सकता है।' परिणाम; एक भर्चिष्मान् (मन्)-वि० [सं०] चमकवाला; लपटवाला । प्रमाण जिसमें एक बातसे दूसरी बातकी सिद्धि होती है। पु० अग्नि ; सूर्य।
अर्थापन-पु० (इंटरप्रेटेशन) अर्थ लगाना; विशेष ढंगसे अर्ज-पु० [अ०] निवेदन प्रार्थना; चौड़ाई ।
समझना या समझाना; व्याख्या । अर्जन-पु० [सं०] कमाना; संग्रह करना।
अर्थार्थी (र्थिन)-वि० [सं०] धनकी कामना रखने या अर्जनीय-वि० [सं०] संग्रह या प्राप्त करने योग्य ।
उसकी प्राप्तिके लिए प्रयास करनेवाला; गरज रखनेवाला। अर्जित-वि० [सं०] कमाया हुआ; बटोरा हुआ। -छडी- अर्थालंकार-पु० [सं०] वह अलंकार जो शब्द-प्रयोगपर स्त्री० (अर्ल्ड लीव) वह छुट्टी जिसे पानेका वह कर्मचारी नहीं, किंतु अर्थपर आश्रित हो। अधिकारी माना जाता है जिसने निर्धारित समयतक काम | अर्थिक-वि० [स०] किसी वस्तुका चाहनेवाला। करनेके बाद उसका अर्जन कर लिया हो।
अर्थित-वि० [सं०] माँगा हुआ; चाहा हुआ। अर्जी-स्त्री० [अ०] प्रार्थनापत्र, दरख्वास्त । -दावा-पु० अर्थी (र्थिन)-वि० [सं०] चाह, गरज रखनेवाला प्रार्थी दीवानी या मालके मुकदमे में वादी पक्षका प्रार्थनापत्र । - धनी । पु० म.गनेवाला; भिक्षुका वादी।
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अदन-अलक्ष्य अर्दन, अईन-पु० [सं०] पीडन; वध; याचना; जाना। रोग जिसमें शरीर में कहीं बड़े इले जैसा मांसपिंड निकल अर्दना-स्त्री० [सं०] दे० 'अर्दन' (पु०) *-स० क्रि० कष्ट आता है। दो महीनेका गर्भ; बादल । पहुँचाना।
अर्भ-पु० [सं०] शिशु, बच्चा; छात्र नेत्रबाला; कुशा । अर्दित-वि० [सं०] पीडित; हत; याचित; गया हुआ । अर्भक-पु० [सं०] बच्चा छौना; नेत्रबाला; कुशा। अद्ध (ध)-वि० [सं०] आधा । पु० आधा भाग; भाग ।
अर्थमा (मन)-पु० [सं०] सूर्य बारह आदित्योंमेंसे एक । -चंद्र-पु० आधा चंद्रमाः सानुनासिकका चिह्न, चंद्रबिंदुअर्वाचीन-वि० [सं०] इधरका; हालका; आधुनिक । वह वाण जिसका फल अर्द्धचंद्राकार हो; मोरपंखकी आँख; अर्श-पु० [अ०] छत; आकाश; बिहिश्त ।-मु. (दिमाग) निकाल बाहर करनेके लिए गर्दनमें हाथ लगाना, गर्दनिया -पर होना-अपनेको बहुत बड़ा समझना; अपनी शक्ति(देना); एक प्रकारका त्रिपुंड। -जल-पु० शवको स्नान सामर्थ्य पर इतराना; बड़े-बड़े मनसूबे बाँधना । कराकर आधा बाहर आधा जलमें रखनेकी क्रिया। अर्श (स)-पु० [सं०] एक रोग, बवासीर । -नारीश,-नारीश्वर-पु० शिवका वह रूप जिसमें | अर्शीघ्न-पु० [सं०] शूरण; भिलावाँ; सज्जीखार तेजबल; आधा भाग पार्वतीका होता है, शिव-पार्वतीका संयुक्त सफेद सरसों। रूप । -निशा,-रात्रि-सी० आधी रात । -पारावत | अर्शीहर-पु० [सं०] दे० 'अर्शोधन' । -पु० तीतर । -मागधी-स्त्री० प्राकृतका वह रूप अोहित-पु० [सं०] भरलातक, भिलावाँ । जो पटना और मथुराके बीच बोला जाता था। -वृत्त अहत-वि० [सं०] योग्य । पु० बुद्ध जिन; शिव । -पु० (सेमिसरकिल) वृत्तका आधा भाग जो व्यास- अर्ह-वि० [सं०] पूजनीय; सम्मान्य; योग्य उपयुक्त। के एक ओर या दूसरी ओर हो। -वृद्ध-वि० अधेड़ | अहण-पु०, अर्हणा, अर्हा-स्त्री० [सं०] पूजा; सम्मान । उम्रका । -व्यास-पु० केंद्रसे परिधितककी दूरी ।-शेष- अहणीय-वि० [सं०] पूजा या सम्मानके योग्य । वि० जिसका आधा ही बचा हो। -सम-वि० आधेके अर्हत-पु० [सं०] परम ज्ञानी; बुद्ध तीर्थकर । वि० पूज्य । बराबर । पु० वह वृत्त या छंद जिसके पहले और तीसरे अर्हता-स्त्री० (क्वालिफिकेशन) किसी स्थान या पदके तथा दूसरे और चौथे चरण समान हों (जैसे दोहा और योग्य बनानेवाली विशिष्टता, गुणराशि या योग्यता । सोरठा)। -साप्ताहिक-वि० सप्ताह में दो बार निकलने | अर्हित-वि० [सं०] पूजित सम्मानित । या होनेवाला । पु० सप्ताहमें दो बार निकलनेवाला पत्र । अा-वि० [सं०] पूजनीय प्रशंसनीय; योग्य; अधिकारी । अद्धक-पु० (बाइसेक्टर) किसी कोण आदिको दो समान अलं-अ० [सं०] दे० 'अलम्'। -करण-पु० सजाना; भागों में बाँटनेवाली रेखा।
सजावट; आभूषण ।-का-वि० सजानेवाला। -कारअों(र्धा)ग-पु० [सं०] आधी देह; पक्षाघात रोग, पु० सजावट; भूषा; आभूषण, गहना; रचनामें शब्दफालिज; शिव ।
योजना या अर्थका चमत्कार; उपमा, रूपक, अनुप्रास अद्धों(र्धा)गिनी-स्त्री० [सं०] पत्नी, सहधर्मिणी। आदि६ वह हाव-भाव या क्रिया आदि जिससे स्त्रियोंका अर्धा(धर्धा)गी (गिन् )-पु० [सं०] शिव ।
सौंदर्य बढ़े । -शास्त्र-पु० अलंकारका वर्णन, विवेचन अ (र्धा ली-स्त्री० आधी चौपाई ।
आदि करनेवाला शास्त्र । -कृत-वि० अलंकार-युक्ता अ (र्धा)सन-पु० [सं०] आधा आसन; बहुत अधिक भूषित । -कृति-स्त्री० अलंकार; सजावट । सम्मानकी जगह; बराबरीका स्थान ।
अलैंग*-अ० ओर, तरफ। दु-पु० [सं०] अर्द्ध चंद्र। -मौलि-पु०शिव । अलंघनीय, अलंध्य-वि० [सं०] जो लाँधा या पार न 'अर्डोत्तोलित ध्वज-पु० (हाफमास्ट फ्लैग) किसी महान् | किया जा अके; अटल ।
व्यक्तिके मरनेपर उसके सम्मानमें आधी ऊँचाईतक झुकाया| अलंब*-पु० दे० 'आनंब'। हुआ राष्ट्रीय झंडा, अधझुका झंडा ।।
| अलक-स्त्री०सं०] सिरके लटकते हुए बाल; जल्फ हरताल, अद्धों(?)दक-पु० [सं०] आधे शरीरतक गहरा पानी; सफेद मदार । मरणासन्न व्यक्तिको आधा पानीमें, आधा बाहर रखना। अलकतरा-पु० काले रंगका एक गाढ़। द्रव जो लकड़ी अ (धो)दय-पु० [सं०] एक पर्व जिसमें स्नान सूर्य- आदि रॅगनेके काम आता है, 'कोलतार' । ग्रहण-स्नानका पुण्य देनेवाला माना जाता है।
अलकल.ता, अलकसलोरा-वि० लाड़ला, दुलारा। अर्धग*-पु० दे० 'अर्धांग' ।
अलका-स्त्री० [सं०] कुबेरपुरी; आठ और दस बरसके अधगी*-पु० दे० 'अर्धांगी' ।
बीचकी लड़की । -पति-पु० कुबेर । अर्पण-पु० [सं०] देना, दान करना; भेंट करना; वापस अलकाधिप, अलकेश्वर-पु० [सं०] कुबेर । करना; रखना (पदार्पण); छेदन । -प्रतिभू-पु. ऐसी अलकावलि-स्त्री० [सं०] केश-समूह; लटें; धुंधराले बालं । जमानत करनेवाला प्रतिभू जो ऋणीके न दे सकनेपर | अलक्त, अलतक-पु० [सं०] लाख महावर । स्वयं धन देना स्वीकार करे ।
अलक्षण-वि० [सं०] चिह्नरहित, जिसमें कोई परिचायक अर्पना-सक्रि० दे० 'अरपना'।
चिह्न न हो; अशुभ । पु० अपशकुन; बुरा चिह्न । अर्पित-वि० [सं०] अर्पण किया हुआ।
अलक्षित-वि० [सं०] न देखा हुआ; अज्ञात; अदृश्य गुप्त । अर्ब-दर्ब*-पु० धन-संपत्ति, माल-दौलत ।
अलक्ष्मी-स्त्री० [सं०] दुर्भाग्य; दारिद्रय । अर्बुद-पु० [सं०] दस करोड़की संख्या आबू पहाड़, एक | अलक्ष्य-वि० [सं०] अश्य; अशेय; चिद्दरहित; जिसका
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अलख-अलिप्त
लक्षण न किया जा सके।
अललबछेड़ा-पु० घोड़ेका जवान बच्चा; अल्हड़ आदमी। अलख-वि० जो देखा न जा सके अलक्ष्य; अगोचर । पु० अललहिसाब-अ० [अ०] बिना हिसाब किये । मु०-देना परमेश्वर । -धारी,-नामी-पु० गोरख-पंथियोंका एक | -पावनेका हिसाब किये बिना कुछ रकम दे देना। संप्रदाय और उसका अनुयायी। -निरंजन,-पुरुष- अललाना -अ० क्रि०चिल्लाना, गला फाड़कर बोलना। पु० परमात्मा । मु०-जगाना-'अलख'-'अलख' पुकारकर | अलवाँत, अलवाँती -स्त्री० प्रसूता, जच्चा । परमात्माको याद करना; 'अलख'-'अलख' पुकारकर भीख अलवाई-वि० (स्त्री०) जिसे हालमें ही बच्चा पैदा हुआ हो माँगना।
(गाय-भैंस)। अलखित -वि० दे० 'अलक्षित' ।
अलवान-पु० [अ०] एक तरहका ऊनी शाल । अलग-वि० जुदा; भिन्न; दूर; तटस्थ, सुरक्षित; न्यारा, अलस-वि० [सं०] आलसी, सुस्त; अलसाया हुआ, लांत । विशिष्ट । -अलग-अ० व्यक्तिशःप्रत्येककोया प्रत्येकसे। अलसना, अलसाना-अ० क्रि० थकावट या सुस्ती भालूम -थलग-वि० जुदा; दूर । मु०-करना-दूर करना, | होना; कुछ करनेको जी न चाहना । हटाना; बेचना पृथक् करनाः छाँटना । -होना-दूर या अलसान, अलसानि*-स्त्री० आलस्य । किनारे होना; संयुक्त परिवारसे पृथक होना; नौकरी | अलसी-स्त्री० एक पौधा और उसके बीज जिनसे तेल छोड़ना।
निकलता है, तीसी । * वि० आलसी । अलगनी-स्त्री०कपड़े टाँगने के लिए बाँधी गयी रस्सी या बाँस । अलसेट-पु० अड़चन; अडंगा; ढिलाई, टालमटूल । अलगरजा-वि० लापरवाह ।
अलसेटिया-वि० अलसेट डालनेवाला। अलगरजी-वि० लापरवाह । स्त्री० लापरवाही। अलसौहा-वि० अलसाया हुआ, क्लांत । अलगाऊ-वि० अलग करनेवाला; जो अलग करनेके अलहदगी-स्त्री० [अ०] बिलगाव, अलगौझा। पक्षमें हो।
अलहदा-वि० [अ०] अलग, जुदा । अलगाना-स० क्रि० अलग करना; दूर करना; छाँटना । | अलाई-वि० आलसी, काहिल । पु० घोड़ेकी एक जाति । अ० कि० अलग होना।
अलात-पु० [सं०] अंगार; लुकाठी । -चक्र-पु० लुकाठी अलगोज़ा-पु० [अ०] एक तरहकी बाँसुरी ।
या लुकको घुमानेसे बननेवाला मंडल; जलती बनेठी। अलगोझा -पु० संयुक्त कुटुंबसे अलग होना, बँटवारा। अलान-पु० हाथी बाँधनेका खूटा या सीकड़, बेड़ी, बेल अलघ-वि० [सं०] हलका नहीं, भारी; लंबा उग्र गंभीर। चढ़ानेके लिए गाड़ी हुई लकड़ी। अलच्छ*-वि० दे० 'अलक्ष्य'।
अलानिया-अ० [अ०] खुले खजाने, डंकेकी चोट । अलज*-वि० दे० 'अलज्ज'।
अलाप-पु० दे० 'आलाप'। अलज-वि० [सं०] लज्जारहित, बेहया ।
अलापना-अ० क्रि० बात करना; बोलना; गाना, तान अलता-पु० स्त्रियोंके पैरोंमें लगानेके काम आनेवाला एक लगाना। प्रकारका लाल रंग।
अलापी-वि०अलाप करनेवाला; बोलनेवाला गानेवाला। अलप-वि० दे० 'अल्प' ।
अलाभकर जोत-स्त्री० (अनएकॉनामिक होल्डिग) किसी अलपाका-पु० दक्षिणी अमेरिकाका एक जानवर जिसके। काश्तकार द्वारा जोती-बोयी जानेवाली वह भूमि जिसकी बालोंका बढ़िया ऊन बनता है; अलपाकेका ऊन; अलपाके उपज उसके परिवार के भरण-पोषणके लिए पर्याप्त न हो। का ऊन और रेशम या सूत मिलाकर बुना हुआ कपड़ा। अलाम*-वि० बात बनानेवाला; मिथ्यावादी । अलफा-पु० [अ०] बिना बाँहका ढीलाढाला कुरता जिसे अलामत-स्त्री० [अ०] चिह्न, पहचान, लक्षण । प्रायः मुसलमान फकीर पहना करते हैं।
अलायक*-वि० अयोग्य, निकम्मा। अलबत्ता-अ० [अ०] बेशक, निस्संदेह हाँ।
अलार-पु० [सं०] किवाड़, * अलाव, आगका ढेर। अलबेला-वि० सुंदरः अनूठा बाँका; मनमौजी। पु० नारि अलाल*-वि० अकर्मण्य, काहिल । यलका हुक्का।
अलाव-पु० [फा०] तापनेके लिए जलायी हुई आग,कौड़ा। अलब्ध-वि० [सं०] अप्राप्त । -निद्व-वि० जिसे नींद न | अलावा-अ० [अ०] सिवा, अतिरिक्त । आती हो।
अलिंग- वि० [सं०] बिना चिह्न या लक्षणका; जिसका अलभ*-वि० दे० 'अलभ्य'।
लक्षण न किया जा सके बुरे चिह्नोंवाला; (वह शब्द) अलभ्य-वि० [सं०] जो न मिलता हो, अप्राप्य; दुर्लभ जिसका कोई लिंग न हो या जो सब लिंगों में व्यवहृत हो बहुमूल्य; अनमोल।
सके (हम तुम आदि-व्या०)। पु० ईश्वर, परमात्मा । अलम-पु० [अ०] दुख; झंडा, निशान भाला।
अलिंद-पु० [सं०] बाहरी दरवाजेके सामनेका चौतरा या अलमस्त-वि० मस्त, मतवाला; मीजी; बे-फिक्र ।
छज्जा; * भौरा। अलमारी-स्त्री०पुस्तक आदि रखनेके लिए बना कई खानों- अलि-पु०[सं०] भौरा बिच्छु; कोयल, कौआवृश्चिक राशि वाला ऊँचा संदूक या आला ।
मदिरा । स्त्री० दे० 'अली' ।-कुल-पु० भौरोंका समूह । अलम्-अ० [सं०] पर्याप्त, काफी, पूरा; बस ।
अलिखित-वि० [सं०] जो लिखित न हो। अलर्क-पु० [सं०] पागल कुत्ता; सफेद मदार ।
अलिप्त-वि०सं०] बिना लेपका, असंलग्न, बेलाग अललटप्पू-वि० अटकलपच्चू ।
अनावृत निदोष ।
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५९
अली-अवकीर्ण अली-स्त्री० सखी (प्रायः संबोधन में प्रयुक्त); पाँत । * पु० बाद थोड़ा ठहरना; इसका चिह्न (,)। -संख्य,भौरा।
संख्यक-वि० कम जनसंख्यावाला (समुदाय)।-संतोषी अली (लिन्)-पु० [सं०] भ्रमर; बिच्छू ।
(पिन्)-वि० थोड़ेसे संतोष कर लेनेवाला । -सूचित अलीक-वि० [सं०] अप्रियः मिथ्या, झूट, मनगस्त; अल्प । प्रश्न-पु० (शार्ट नोटिस क्वेश्चन) संसद् या विधानसभा * स्त्री० अप्रतिष्ठा।
आदिमें पूछा जानेवाला ऐसा प्रश्न जिसके लिए सामान्यसे अलीजा*-वि० प्रचुर, बहुत-सा ।
कम सूचना दी गयी हो। अलीन-पु० दरवाजेकी चीखटका साह; बरामदे आदिका अल्पशः-अ० [सं०] थोड़-थोड़ा करके । खंभा जो दीवारसे लगा हो। वि० अलग अनुचित;अग्राह्य।। अल्पायु (स्)-वि० [सं०] जिसकी आयु थोड़ी हो, छोटी अलीपित*-वि० अलिप्त ।
उभ्रमें मरनेवाला। अलील-वि० [अ०] बीमार ।
अल्पावकाश-पु० [सं०] (रिसेस) विद्यालयों, न्यायालयों अलीह*-वि० अलीक, असत्य; अनुचित ।
या खेल आदिमें बीचमें थोड़े समयके लिए जलपान या अलक-पु० [सं०] एक समास जिसमें पूर्वपदकी विभक्तिका विश्रामके लिए मिलनेवाला अवकाश । लोप नहीं होता (सरसिज, असूर्यपश्या)।
अल्पाहार, अल्पाहारी (रिन् )-वि० [सं०] जिसका अलुझना*-अ० क्रि० दे० 'अरुझना' ।
आहार थोड़ा या संयत रहता हो। अलुटना*-अ० क्रि० लोटना; लड़खड़ाना।
अल्पिष्ट-वि० [सं०] (मिनिमम) कमसे कम; न्यूनतम । अलूप-वि० दे० 'अलोप'।
अल्पीकरण-पु० [सं०] (डेरोगेशन) अधिकार, प्रतिष्ठा, अलूला-पु० बुलबुला लपट; उद्गार ।
महत्त्व,शक्ति आदिका घट जाना या उसमें कमी हो जाना । अलेख-वि० बे-हिसाब; अशेय; अदृश्य ।
अल्ल-पु० वंश या कुलका नाम (तिवारी, पाँडे, मिसिर इ०)। अलेखा-वि० अनगिनत; वृथा।
अल्लम-गल्लम-पु० अंड-बंड, अनाप-शनाप अलेखी*--वि० अन्यायी, अंधेर करनेवाला ।
अल्ला-पु० [अ०] दे० 'अल्लाह' । अलोक-वि० [सं०] अदृश्य; निजंन । पु० जगत् नहीं,
अल्लाना*-अ० क्रि० चिल्लाना पातालादि लोक; संसारका विनाश; आध्यात्मिक जगत् अल्लाह-पु० [अ०] परमेश्वर, खुदा।-अल्लाह-अविस्मय * अपयश, बदनामी।
और इलाधा-सूचक उद्गार । अलोकना*-स० क्रि० देखना, अवलोकन करना। अल्लाहो अकबर-अ० [अ०] ईश्वर महान् है भलोचन-वि० [सं०] नेत्रहीन बिना खिड़कीका (मकान)। अल्हजा*-पु० इधर-उधरकी बात, गप। अलोना-वि० बिना नमकका; बे-मजा ।
अल्हड़-वि० बालोचित सरलताके साथ मस्त और लापरअलोप-पु० [सं०] लुप्त न होना (वर्ण आदिका) । * वि० वाह; दुनियादारी न जाननेवाला; भोला। -पन-पु० लुप्त, अदृश्य, गायब।
अल्हड़ स्वभाव भोलापन और लापरवाही। अलोल-वि० [सं०] अचंचल, स्थिर; इच्छारहित । अल्हर*-वि० दे० 'अल्हड़'। अलोलिक*-पु० अचंचलता, स्थिरता ।
अवंति, अवंती-स्त्री० [सं०] एक प्राचीन नगर, आधुनिक अलोलुप-वि० [सं०] जो लालची न हो, लोभरहित।
उज्जैन मालव जनपद । अलोकिक-वि० [सं०] जो लोकमें न मिलता हो, लोको- | अवंतिका-स्त्री० [सं०] उज्जैन; उज्जैनकी भाषा । त्तर; अमानुपी; अतिप्रकृत; असाधारण; अद्भुत; विरल। अवंश-वि० [सं०] नि:संतान । पु० नीच या खराब कुल । अल्प-वि० [सं०] तुच्छ; थोड़ा, कम; छोटा । -कालीन अव-उप० [सं०] यह दूर या नीचे होने, निश्चय, व्याप्ति, ऋण-पु० (शार्ट टर्म लोन) वह ऋण जो थोड़े ही समयके अल्पता, हास, शान आदिका बोध कराता है। लिए लिया गया हो अतः जो शीघ्र ही (प्रायः ५-१० अवकर--पु० [सं०] बहारनेसे निकली हुई धूल आदि, कूड़ा। वर्षोंके भीतर) अदा कर दिया जाय । -जीवी (विन)- -पात्र-पु० ( डस्टबिन) झाड़ने-बुहारनेसे निकला हुआ वि० अल्पायु । -ज्ञ-वि० थोड़ा जाननेवाला; मूर्ख।। कूड़ा रखनेकी टोकरी, अवकरी।
० थोड़ी बुद्धि रखनेवाला, मूर्ख। -प्राण-पु० अवकरी-स्त्री० (डस्टबिन) 'अवकर-पात्र'। प्रत्येक व्यंजन वर्गका पहला, तीसरा और पाँचवाँ अक्षर | अवकलन-पु० [सं०] देखना; जानना; ग्रहण । तथा य, र, ल, व (व्या०)। -बुद्धि,-मति-वि० दे० अवकलना*-अ० क्रि० सूझना; समझमें आना। 'अल्पधी' । -भाषी (पिन्)-वि० कम बोलनेवाला। अवकलित-वि० [सं०] देखा हुआ; शात; गृहीत । -भोग योजना-स्त्री. (ऑस्टेरिटी स्कीम) आवश्यक अवकाश-पु० [सं०] स्थान; शून्य स्थान; अंतर, व्यवधान, वस्तुओंका कम प्रयोग करने, कष्ट उठाते हुए थोड़ेसे फासला; अवसर, दरार, छिद्र गुंजाइश, फुरसत, “छुट्टी; पदार्थोंसे ही काम चला लेनेपर जोर देनेवाली योजना, दृष्टिपात । -ग्रहण-पु० काम या नौकरीसे अलग होना, मितोपभोग योजना, कष्ट सहन योजना । -मत-पु० पेंशन लेना, रिटायर होना ।-प्राप्त-वि. जो काम या छोटा, अल्पसंख्यक पक्ष या.समुदाय, बहुमतका उलटा। | नौकरीसे अलग हो चुका हो, 'रिटायर्ड'।
नौकरीसं अलग हा चुका हा, । -वयस-वयस्क-वि० छोटी उम्रका, कमसिन । अवकिरण-पु० [सं०] बिखेरना; दे० 'अवकर'। -वादी सदस्य-पु० (बैकोचर) दे० 'क्वचिदभाषी अवकीर्ण-वि० [सं०] बिखेरा हुआ; फैलाया हुआ; चर सदस्य ।' -विराम-पु० अर्थबोधके लिए किसी शब्दके | किया हुआ ध्वरत; जिसका ब्रह्मचर्य व्रत भंग हो गया हो।
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अवक्खन-अवतार अवक्खन*-पु० दे० 'अवेक्षण'।
अवचित-वि० [सं०] बटोरा हुआ; अधिवसित । अवक्तव्य-वि० [सं०] जो कहने योग्य न हो, अश्लील; अवचूर्णित-वि० [सं०] चूर्ण किया हुआ, पीसा हुआ। अनुचित, निंद्या असत्या वर्णनातीत ।
अवचेतना-स्त्री० [सं०] अंतःसंज्ञा अर्दू चेतन।। अवक्त्र-वि० [सं०] विना मुँहका ( फोड़ा, बरतन)। अवच्छिन्न-वि० [सं०] अलगाया हुआ; सीमित; अवक्रम-पु० [सं०] नीचे आना, गिराव, अधोगमन । सविशेषण ।
-करना-स० कि० (सूपरसीड) पहले नियुक्त किये अवच्छेद-पु० [सं०] खंड, अंश; परिच्छेद; बिलगाव, हुए किसी व्यक्तिके स्थानपर और किसीको नियुक्त करना सोमाः (शब्दार्थकी) सीमा बाँधना; निश्चय; पदार्थका किसीका स्थान ग्रहण करना, अधिक्रांत होना; अपने वह गुण जो उसे औरोंसे अलग कर दे; व्याप्ति
उच्चतर अधिकारसे (किसी आदेशादिको) व्यर्थ बना देना। अवच्छेदक-वि० [सं०] अवच्छेद करनेवाला । पु० विशेअवक्रय-पु० [सं०] मूल्य; भाड़ा; उजरत; कर, महसूल; पण; सीमा।। किरायेपर देना।
अवच्छेदन-पु० [सं०] काटकर अलग करना, विभाजन, अवक्रांति-स्त्री० [सं०] दे० 'अवक्रम' ।
हद बाँधना इ०। अवक्रोश-पु० [सं०] कोसना; शाप देना; निंदा । अवछंग-पु० दे० 'उछंग' । अवक्षय-पु० [सं०] नाश, बर्बादी ।
अवजय-स्त्री० [सं०] पराजय । अवक्षेप-पु० [सं०] लांछननिंदा; आक्षेपः आपत्ति, उज; अवजित-वि० [सं०] पराजित, विजित; तिरस्कृत । (प्रेसिपिटेट) वह अवशिष्ट पदार्थ जो छन्ना-पत्रादिकी सहा- अवज्ञा-स्त्री० [सं०] अनादर, अपमान, उपेक्षा, किसी यतासे किसी द्रवके छाननेपर छन्ना-पत्रके ऊपर रह आशा या कानूनको न मानना; अर्थालंकार जिसमें एकके जाता है।
गुण-दोषसे दूसरेके गुण-दोषका न होना दिखलाया जाय । अवगणित-वि० [सं०] अवज्ञात; तिरस्कृत; पराभूत निंदित। अवज्ञात-वि० [सं०] जिसकी अवज्ञा की गयी हो; तिरस्कृत । अवगत-वि० [सं०] जाना हुआ, ज्ञात; गया या गिरा हुआ। अवज्ञेय-वि० [सं०] अवज्ञाके योग्य । अवगतना-स० क्रि० सोचना, विचारना।
अवटना-स० क्रि० दे० 'औटना' । मु०-(टि) मरना* अवगति-स्त्री० [सं०] ज्ञान, बोध; बुरी गति ।
-कष्ट उठाना, ठोकरें खाना। अवगारना*-स० क्रि० समझाना।
अवडेरी-पु० झंझट, बखेड़ा। अवगाह-पु० [सं०] पानी में उतरकर नहाना भीतर पैठना, अवडेरना*-स० कि० रहने न देना, उदबासना परेशान डूबना; थाह लेना; खोज, छानबीन; नहानेका स्थान; करना। खतरेकी जगह कठिनाई। *वि० अथाह; कठिन । अवडेरा-वि० झंझटवाला; चक्करदार; भद्दा । अवगाहन-पु० [सं०] अवगाहकी क्रिया ।
अवतंस-पु० [सं०] बाली; करनफूल टीका; मुकुट; भूषण अवगाहना*-स० क्रि० बिलोड़ना; हलचल मचाना; पार हार; श्रेष्ठ व्यक्ति दूल्हा । करना; देखना; बिचारना छानबीन करना: ग्रहण करना। अवतंसक-पु० [सं०] बाली; करनफूल; आभूषण ।
अ०वि० डुबकी लगाना; जलमें घुसकर स्नान करना। अवतरण-पु० [सं०] उतरना; नीचे आना या जाना; अवगाह्म-वि० [सं०] नहाने या डुबकी लगाने योग्य । नहानेके लिए जलमें उतरना; पार होना; देवादिका पार्थिव अवगुंठन-पु० [सं०] चूँघट; स्त्रीका माथा और मुँह ढकना, रूपमें प्रकट होना; नदीका घाट; धाटकी सीढ़ी; अनुवाद धट निकालना; बुर्का पर्दा ।।
भूमिका; (कोटेशन) किसीके कहे हुए शब्दों, संदेश आदिअवगुंठनवती-वि० स्त्री० [सं०] धूंघटवाली।
को ( उलटे विराम चिह्नोंके बीच ) उद्धृत करना; उद्अवगंठित-वि० [सं०] ढका, छिपा हुआ; चूर्णित । धृत अंश, उद्धरण; एकाएक गायब हो जाना; तीर्थ । अवगंफित-वि० [सं०] गूंथा हुआ; बुना हुआ ।
-चिह्न-पु० अवतरित अंशके ठीक पहले तथा अंतमें अवगुण-पु० [सं०] दोष, ऐब, बुराई ।
दिये जानेवाले उलटे विराम-चिह्न । -पथ-पु० (रनवे) अवगुन-पु० दे० 'अवगुण'।
वायुयानों के लिए बना वह लंबा-सा पथ जिसपर उन्हें ऊपर अवग्रह-पु० [सं०] रुकावट, बाधा, संधि-विच्छेद (व्या०); उठनेके पूर्व या नीचे उतरनेके बाद कुछ दूरतक चलना शब्दके बीच में ए और ओ के बाद आनेवाला लुप्त 'अ'; पड़ता है।-भूमि-स्त्री० (लैंडिंग-ग्राउंड) हवाई जहाजों अवर्षण; दंड (अनुग्रह का उलटा ); हाथीका ललाटा के लिए आकाशसे नीचे उतरनेका स्थान । प्रकृति, स्वभाव; कोसना; भ्रांत मत ।
अवतरणिका-स्त्री० [सं०] ग्रंथारंभमें सरस्वती आदिकी अवघट-वि० विकट, दुर्गम ।
संक्षिप्त वंदना प्रस्तावना; परिपाटी । अवघर्षण-पु० [सं०] रगड़ना; पीसना साफ करना । अवतरना*-अ० कि० अवतार लेना; प्रकट होना; उत्पन्न अवघात-पु० [सं०] मारना; आधात करना;धान आदिको होना । कूटना; अपमृत्यु।
अवतरित-वि० उतरा हुआ; अवतारके रूपमें उत्पन्न पार अवचट-पु० दे० 'औचट' । अ० अचानक ।
पहुँचा हुआ; उद्धृत । . अवचनीय-वि० [सं०] कहने योग्य नहीं, अश्लील । अवतान-पु० [सं०] फैलाना; कमानकी टोरी ढीली अवचय, अवचाय-पु० [सं०] पुष्पादिका चयन; तोड़कर करना; मुँह लटकाना; पौधेका फैलना; आवरण; चंदोवा । इकट्ठा करना।
अवतार-पु० [सं०] उतरना; नीचे आना; किसी देवता
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अवतारण-अवमर्श या ईश्वरका मनुष्यादिके रूपमें जन्म लेना या वैसी अभि- अवधारण-पु० [सं०] निश्चय करना; हद बाँधना; शब्दाव्यक्ति; विष्णुके १० या २४ अवतारोंमेंसे कोई एक विशिष्ट र्थकी सीमा बाँधना (शब्दविशेषपर) जोर देना।
वर भूमिका पार करना; * सृष्टि, रचना। अवधारणा-स्त्री० [सं०] (कॉन्सेप्शन) मन में किसी धारणा, -वाद-यु० धर्मग्लानि होने पर उसकी पुनः स्थापनाके लिए कल्पना या विचारका उदय होना, बनना या स्थिर होना। ईश्वर पृथ्वीपर जन्म लिया करता है, यह मत या विश्वास । अवधारणीय-वि० [सं०] निश्चय करने योग्य विचारणीय । अवतारण-पु० [सं०] उतारना; नीचे लाना; भूत-प्रेतका अवधारना*-स० क्रि० ग्रहण करना, धारण करना ।
आवेश; अनुवाद; भूमिका; वस्त्रका छोर, उद्धरण । अवधारित-वि० [सं०] निश्चित; सुज्ञात । अवतारणा-स्त्री० [सं०] दे० 'अवतारण' ।
अवधार्य-वि० [सं०] दे० 'अवधारणीय' अवतारना*-स० क्रि० जन्म देना; पैदा करना। अवधि-स्त्री० [सं०] सीमा; अंतिम सीमा; नियत काल, अवतारी (रिन)-वि० [सं०] अवतार-लेनेवाला; जिसने मीयाद । अ० तक । म०-देना-धरना-बदनाकिसी देवताका अवतार ग्रहण किया है।
समय नियत करना, मुद्दत बाँधना । अवतीर्ण-वि० [सं०] उतरा हुआ, नीचे आया हुआ; अवधिमान-पु० समुद्र ।। प्रादुर्भूत; अवतारके रूपमें उत्पन्न; जलमें उतरा या स्नान अवधी-वि० अवधसे संबंध रखनेवाला। स्त्री० अवधकी किया हुआ; पार गया हुआ।
बोली; *दे० 'अवधि। अवदंश-पु० [सं०] उत्तेजक या प्यास उत्पन्न करनेवाली अवधू*-पु० दे० 'अवधूत' ।
चटपटी चीज जो मद्यपानके समय खायी जाती है, गजक। अवधूक-वि० [सं०] पत्नीरहित । अवदंस-पु० दे० 'अवदंश' ।
अवधूत-पु० [सं०] संन्यासी साधुओंका एक भेद । अवदरण-पु० [सं०] फोड़ना; फाड़ना; अलग करना। अवधेय-वि० [सं०] ध्यान देने योग्य; रखने योग्य; अवदात-वि० [सं०] उज्ज्वल निर्मल; सुंदर; पीला; गुण- जानने योग्य । विशिष्ट ।
अवधेश-पु० [सं०] अवध-नरेश; दशरथ । अवदान-पु० [सं०] प्रशस्त कर्म; उज्ज्वल कर्म; पराक्रम; अवध्य-वि० [सं०] वधके अयोग्य । उल्लंघन; विभाजन; खंड; वीरणमूल; (कांट्रिब्यूशन) दे० | अवन-पु० [सं०] रक्षण प्रसन्न करना । * स्त्री० रास्ता भूमि । 'अंशदान', योगदान ।
अवनत-वि० [सं०] झुका हुआ; गिरा हुआ; पिछड़ा हुआ; अवदान्य-वि० [सं०] पराक्रमी; कंजूस
हीन; अस्त होता हुआ; विनीत । अवदारण-पु० [सं०] चीरना; विभाजन करना; खोदना अवनति-स्त्री० [सं०] झुकाव; गिराव; अधःपतन; उतार; काटकर टुकड़े-टुकड़े करना; कुदाल, खंता।
अस्त होना; दंडवत; विनम्रता । अवद्य-वि० [सं०] निय; त्याज्य; अधम पापी; दोषी; अवनद्ध-वि० [सं०] निर्मित; ढका हुआ; बँधा हुआ। चर्चाके अयोग्य । पु० अपराध; पाप; दोष; निंदा, लज्जा।। अवना*-अ० क्रि० आना । अवध-पु० [सं०] कोशल; अयोध्या; उत्तर प्रदेशका एक |
अवनि, अवनी-स्त्री० [सं०] धरती, जमीन । -सतअंश; वध न करना। वि. जो बधके योग्य न हो । * पु० मंगल ग्रह ।-प,-पति-पाल,-भृत्-पु० राजा । स्त्री० दे० 'अवधि।
अवनींद्र-पु० [सं०] राजा। अवधा-स्त्री० (सेगमेंट आफ ए सरकिल) वह आकृति जो अवनीश, अवनीश्वर-पु० [सं०] राजा। किसी जीवाऔर उस जीवाके एक ओर के चापसे घिरीहो। अवपात-पु० [सं०] अधःपतन; झपट्टा रंध्रा गर्त । अवधाता-पु० [सं०] (केयरटेकर) वह व्यक्ति जो असली | अवबाहुक-पु० [सं०] भुजस्तंभ, भुजाकी गति रुक जानेमालिककी अविद्यमानतामें मकान आदिकी निगरानी करे। का रोग। अवधात्री सरकार-स्त्री० (केयरटेकर गवर्नमेंट) वह सरकार अवबोध-पु० [सं०] जागना; शान, बोध; विवेक; जताना । जो निर्वाचन आदि होनेके बाद नयी सरकारके कार्यभार ! अवबोधक-वि० [सं०] झापक । पु० जगानेवाला-सूर्यः ग्रहण कर लेनेतक शासन व्यवस्थाकी निगरानी करती रहे। बंदी; चौकीदार, शिक्षक, विचार । अवधान-पु० [सं०] ध्यान; मनोयोग; किसी विषयमें | अवबोधन-पु० [सं०] बताना, जताना; शान । मनकी एकाग्रता; चौकन्नापन; (केयर, चार्ज) किसी व्यक्ति, अवभृथ-पु० [सं०] यज्ञका अंत; यज्ञके अंतमें शद्धिके वस्तु या कार्यकी देखभाल करने या उसपर नजर रखनेका । लिए किया जानेवाला स्लान; मुख्य यज्ञकी समाप्तिपर कार्य; * गर्भ ।
दोष-त्रुटियोंके प्रायश्चित्तरूपमें किया जानेवाला यश । अवधानी (निन् )-वि० [सं०] ध्यान देनेवाला; मनो- -स्नान-पुण्यशकी पूर्णाहुतिके बाद किया जानेवालालान । योगयुक्त।
अवम-वि० [सं०] अंतिम; अधम । पु० चांद्र और सौर अवधायक अधिकारी-पु० (आफिसर इनचार्ज) वह | दिनका अंतरः पितरोंका एक वर्ग। -तिथि-स्त्री० वह अधिकारी जिसकी देखभाल या अधीनतामें कोई कार्य तिथि जिसका क्षय हो गया हो। अथवा कार्यालय हो।
अवमर्दन-पु० [सं०] कुचलना; दमन; उत्पीड़न, मालिश अवधायक सरकार-स्त्री०(केयरटेकर गवर्नमेंट) दे० 'अव- करना । धात्री सरकार'।
अवमर्दित-वि० [सं०] रौंदा हुआ; मर्दन किया हुआ। अवधारक-वि० [सं०] अवधारण करनेवाला। । अवमर्श-पु० [सं०] स्पर्श; संपर्क । -संधि-स्त्री० नाट्य
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अवमर्ष-अवलोक्य
शास्त्रके अनुसार पाँच प्रकारकी संधियोंमेंसे एक । अवरोधक-वि० [सं०] घेरा डालनेवाला; रोकनेवाला। अवमर्ष-पु० [सं०] आलोचना; नाटककी पाँच मुख्यसंधियों- अवरोधन-पु० [सं०] घेरना, घेरकर रोक रखना; (मुख, प्रतिमुख, गर्भ, अवमर्ष और निर्वहण) मेंसे एक। घेरा, रोक । अवमान-पु० [सं०] अवज्ञा, अपमान; तिरस्कार (कंटेम्प्ट) अवरोधना*-स० क्रि० रोकना, मना करना; बाधा डालना। न्याय-व्यवस्थामें हस्तक्षेप; शासकादिके आदेशोंकी अवज्ञा। अवरोधिक-पु० [सं०] अंतःपुरका प्रहरी। वि० बाधा अवमानन-पु०, अवमानना-स्त्री० [सं०] तिरस्करण। डालनेवाला; रोक डालनेवाला। अवमानित-वि० [सं०] अपमानित; तिरस्कृत ।
अवरोधी (धिन)-वि० सं०] दे० 'अवरोधक' । अवमूल्यन-पु० [सं०] (डीवेलुएशन) किसी सरकार द्वारा अवरोप-पु० सं०] (डिसचार्ज) किसी आरोप या अभि
अन्य देश या देशोंकी मुद्राओंकी तुलनामें अपने देशकी | योगसे मुक्त करना या होना। मुद्राका मूल्य घटा दिया जाना, मुद्राका विनिमय मल्य अवरोह-पु० [सं०] उतार, ऊपरसे नीचे आना; संगीतमें या सापेक्ष मूल्य गिरा देना।
स्वरोंके ऊपरसे नीचे आनेका व्रम; बरोह । अवमूल्यपर-अ० (बिलो पार) निर्धारित या अंकित मूल्यसे | अवरोहण-पु० [सं०] उतरना, नीचे आनेकी क्रिया; ऊपर कम दामपर।
जाना, चढ़ना। अवयव-पु० [सं०] शरीर या शरीरका कोई भाग, (हाथ- | अवरोहना-अ० क्रि० उतरना; चढ़ना। स० क्रि० पाँव आदि) अंग, (वस्तुका) अंश; तर्क या वाक्यके पाँच रोकना; अंकित करना । अंगों (प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन) मेंसे अवरोही (हिन्)-वि० [सं०] नीचे आनेवाला। पु० कोई एक उपकरण ।
| ऊपरसे नीचे आनेवाला स्वर; वटवृक्ष । अवयवार्थ-पु० [सं०] शब्दके अवयवों( प्रकृति-प्रत्यय )से | अवर्ण-वि० [सं०] बिना रंगका; बदरंग; वर्ण-धर्म-रहित । निकलनेवाला अर्थ।
अवर्ण्य-वि० [सं०] वर्णनके अयोग्य । पु० उपमान । अवयस्क-वि० [सं०] जो अभी प्राप्तवयस्क न हो, नाबा- अवत-पु० दे० 'आवर्त' । लिग (माइनर)।
अवर्धमान-वि० [सं०] न बढ़नेवाला । अवर-वि० [सं०] छोटा दरजे, कोटि, गुण आदि में नीचाः | अवर्ष, अवर्षण-पु० [सं०] वर्षा न होना, सूखा । हीन; पीछे होनेवाला; बादका; अंतिम; * और, दूसराः | अवलंघना*-स० क्रि० लाँघना । बलहीन। -सदन-पु० ( लोअर हाउस) दे० 'निम्म अवलंब-पु० [सं०] सहारा, आश्रय; भरोसा; लकुट । सदन', अवरागार ।
अवलंबन-पु० [सं०] सहारा लेना; अपनाना; अवलंब । भवरत-वि० [सं०] रुका हुआ; निवृत्त; विरामयुक्त । * अवलंबना*-सक्रि० आश्रय लेना । पु० आवर्त्त, पानीका भँवर ।
अवलंबित-वि० [सं०] आश्रित, मुनहमर । अवरागार-पु० [सं०] (लोअर हाउस) संसद या विधान- अवलंबी (बिन्)-वि० [सं०] अवलंबन करनेवाला । मंडलका निम्न सदन-लोकसभा, कामंस सभा, प्रति- | अवलि*-स्त्री० दे० 'अवली' । निधिसभा, विधानसभा, इ०; प्रथम सदन ।
अवली-स्त्री० पात समूह; नवान्नके लिए खेतसे काटकर अवराधक*-वि० आराधना करनेवाला ।
लाया हुआ कुछ अंश।। अवराधन*-पु० आराधन ।।
अवलीक-वि० निष्पाप; दोषरहित; शुद्ध । अवराधना*-स० क्रि० पूजा करना; सेवा करना। अवलेखना*--स० क्रि० खुरचना; चिह्न करना । अवराधी*-वि० दे० 'अवराधक' ।।
अवलेखनी-स्त्री० [सं०] कंघी; ब्रश।। अवरार्ध-वि० [सं०] उत्तरार्द्ध । पु. पं.छे या नीचेका अवलेप-पु० [सं०] लेप, उबटन, चंदन आदि; लेप करना। आधा भाग।
भवलेपन-पु० [सं०] लेपन; उबटन, तेल आदि; लेपनकी अवरुद्ध-वि० [सं०] रुका या रोका हुआ; प्रच्छन्न; घिरा | क्रिया; लगाव; धमंड; चंदन वृक्ष । हुआ; बंद ।
अवलेह-पु० [सं०] चटनी; चाटकर खायी जानेवालों भवरुद्धा-स्त्री० [सं०] रखेली।
दवा; माजून। अवरूद-वि० [सं०] उतरा हुआ, आरूढका उलटा। अवलेहन-पु० [सं०] चाटना; चटनी। अवरेखना*-स० क्रि० उरेहना, तसवीर खींचना; देखना; अवलोक, अवलोकन-पु० [सं०] देखना; अनुसंधान; जानना; सोचना।
निरीक्षण; दृष्टि; दृष्टिपात । अवरेब-पु० कपड़ेकी तिरछी काट; वक्र गति; * उलझन, अवलोकक-वि० [सं०] देखनेकी इच्छा रखनेवाला कठिनाई; झगड़ाव्यंग्य, उक्तिकी वक्रता । -दार-वि० (गुप्तचरके रूपमें)। तिरछी काटका (कपडा)।
अवलोकना*-स० क्रि० देखना; जाँचना। अवरोक्त-वि० [सं०] जिसका अंतमें या बादमें उल्लेख अवलोकनि-स्त्री० देखनेका ढंग, दृष्टि, चितवन । हुआ हो (लैटर)।
अवलोकनीय-वि० [सं०] देखने योग्य । अवरोध-पु० [सं०] रोक, अटकाव; चारों तरफ डाला गया। अवलोकित-वि० [सं०] देखा हुआ । पु० एक बुद्ध; घेरा; आवरण, ढकना बाड़ा; अंतःपुर: किसी राजाकी| चितवन । रानियोंका समूह ।
| अवलोक्य-वि० [सं०] देखने योग्य ।
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अवलोचना-अवाप्य अवलोचना*-स० क्रि० निवारण करना; दूर करना। अवस्कंदक-पु० [सं०] वह जो लोगोंको अकारण, राह अवलोप-पु० [सं०] काटकर अलग करना; नष्ट करना; चलते मारे-पीटे, गुंडा। दाँत काटना; चूमना।
अवस्त्र-वि० [सं०] वस्त्रहीन, नग्न । अवश-वि० [सं०] बे-बस, लाचार; इंद्रियोंका दास; जो अवस्था-स्त्री० [सं०] हालत, दशा; देहादिकी कालकृत दूसरेके वशमें न हो; निरंकुश ।
अवस्था-लड़कपन, जवानी, बुढ़ापा आदिः उम्र; स्थिति अवशप्त-वि० [सं०] अभिशप्त, जिसे शाप दिया गया हो। स्थिरता; आकृति; भग । -चतुष्टय-पु० जीवनकी चार अवशिष्ट-वि० [सं०] बचा हुआ, बाकी, फाजिल। अवस्थाएँ-बाल्य, कौमार, यौवन और वार्धक्य । -य-शक्तियाँ-स्त्री० ( रेसीडुअरी पावर्स ) किसी संविधान | पु० जीवात्मा या चित्तकी तीन अवस्थाएँ-जागति, स्वप्न, आदिमें जिन शक्तियों या अधिकारोंकी स्पष्ट रूपसे व्याख्या सुषुप्ति । -दशक-पु० प्रेमीकी दस अवस्थाएँ -अभिलाष; या चर्चा कर दी गयी हो, उनके पाद बची हुई अन्य सब चिंता, स्मृति, गुणकथन, उद्वेग, संलाप, उन्माद, व्याधि, शक्तियाँ या अधिकार ।
जड़ता और मरण । -द्वय-पु० जीवनकी दो अवस्थाएँअवशीर्ष-वि० [सं०] जिसका सिर झुका हो। पु० एक सुख और दुःख । नेत्ररोग।
अवस्थान-पु० [सं०] ठहरना; रहना; रहने, ठहरनेका अवशेष-पु०[सं०] वह जो बच रहे या बाकी रहे; समाप्ति । स्थान, धर; (स्टेशन) यात्रा-मार्ग तय करते समय रेलगाड़ी, वि० बचा हुआ; समाप्त ।
बस आदिके बीच-बीच में कुछ समयतक रुकनेकी जगह अवशेषित-वि० [सं०] दे० 'अवशिष्ट' ।
जहाँ यात्रियों या मालके चढ़ने-चढ़ानेकी व्यवस्था हो; वह अवश्यंभावी (विन्)-वि० [सं०] अटल, जिसका होना स्थान जहाँ सैनिक या पुलिसके आदमी रक्षा आदिकी निश्चित हो।
व्यवस्थाके लिए रखे गये हों या रहते हों; (स्टेज) दे० अवश्य-वि०[सं०] जो वश में न किया जा सके अनिवार्य । 'प्रक्रम'; मौका; अवस्थितिकी विशेष परिस्थिति; ठहरनेका अ० जरूर, निश्चय ।
काल। अवश्यमेव-अ० [सं०] निस्संदेह, यकीनन् ।
अवस्थापन-पु० [सं०] रखना; बिठाना; स्थापित करना। अवस*-अ० दे० 'अवश्य' । वि० लाचार ।
अवस्थित-वि० [सं०] ठहरा हुआ,टिका हुआमौजूद खड़ा । अवसन्न-वि० [सं०] सुस्त, बे-दम; उदास, खिन्न; अपना | अवस्थिति-स्त्री० [सं०] अवस्थान । कार्य करने में असमर्थ नाशोन्मुख ।
| अवहार-पु० [सं०] अपहरण; लौटाना; रणविराम; अवसर-पु० [सं०] मीकासुयोग; अवकाश अर्थालंकारका (रिबेट) प्राप्य धन (महसूल आदि) का विशेष स्थितिमें कुछ एक भेद । -ग्रहण-पु० (रिटायरमेंट) दे० 'अवकाश- अंश छोड़ दिया जाना, छुट । .. ग्रहण'। -प्राप्त-वि० (रिटायर्ड) नौकरीकी अवधि या अवहित्थ-पु०, अवहित्था-स्त्री० [सं०] एक संचारी सेवाकाल समाप्त हो जानेपर कार्यसे पृथक होनेवाला, भाव जिसमें लज्जा, भय आदि छिपानेका प्रयत्न होता है; जिसने नौकरी आदिसे अवकाश ग्रहण कर लिया हो। भावगोपन । -वाद-पु० (अपॉरच्यूनिज्म) प्रत्येक सुअवसरसे लाभ अवहेलना, अवहेला-स्त्री०[सं०] अनादर, अवशा; उपेक्षा। ठानेकी प्रवृत्ति यानीति ।-वादी-वि० (अपारच्यूनिस्ट) अवहेलित-वि० [सं०] अवज्ञात; तिरस्कृत । जो किसी स्थिर नीतिपर दृढ़ न रहकर प्रत्येक उपयुक्त अवाँ-पु० दे० 'आवाँ'। अवसरसे पूरा-पूरा लाभ उठानेका प्रयत्न करे।
अवांछनीय-वि० [सं०] जिसकी चाहना न की जाय, अवसर्ग-पु० [सं०] मुक्त करना; ढीला करना, दंड आदि अनभिलषणीय; अप्रिय । में कमी कर देना रोक न लगाना।
अवांतर-वि० [सं०] बीचमें स्थित, मध्यवती: अंतर्गत अवसर्पण-पु० [सं०] नीचे उतरना, अधोगमन । गौण । -दिशा-स्त्री० विदिशा, दो दिशाओंके बीचका अवसाद-पु० [सं०] सुस्ती, शिथिलता थकावट; उदासी नाश; अंत; हार (कानून)।
| अवाई-स्त्री० आगमन; गहरी जोताई । भवसान-पु० [सं०] विराम समाप्ति; मृत्यु हद्द ।
च)-वि० [सं०] मीन,चुप; स्तब्ध । पु० ब्रह्म। भवसि*-अ० अवश्य ।
-श्रुति-वि० गूंगा और बहरा । अवसित-वि० [सं०] समाप्त; गत; ज्ञात; परिपक्क निश्चित: | अवागी*-वि० मौन। माँड़ा हुआ (अनाज); संबद्ध अ-वसित-न बसा हुआ। अवाङमुख-वि० [सं०] अधोमुख, जिसका मुख नीचेकी अवसेख*-पु० दे० 'अवशेष'।
ओर हो; लज्जित । अवसेचन-पु० [सं०] सींचना छिड़कना सींचने इत्यादिके अवाच्य-वि० [सं०] न कहने योग्य; बात करनेके अयोग्य काममें आनेवाला पानी पसीना निकलना पसीना निका- अस्पष्ट; दक्षिणी । पु० अपशब्द न कहने योग्य बात । लनेकी क्रिया; जोंक, फस्द आदिके जरिये रक्त निकालना। अवाज*-स्त्री० दे० 'आवाज' । अपसेर*-स्त्री० देर; उलझन; केश-'गाइनके अवसेर अवाजी*-वि० आवाज करनेवाला । मिटावहु' सू० चिंता; व्याकुलता।।
अवाप्ति-स्त्री० [सं०] प्राप्ति । अवसेरना*-स० क्रि० कष्ट देना, परेशान करना। अवाप्य-वि० [सं०] प्राप्त करने योग्य न काटने योग्य अवसेषित-वि० दे० 'अवशिष्ट ।
(केशादि)।
अब
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अवाय-अविश्वास
अवाय * - वि० अनिवार्य; उद्धत, निरंकुश |
अवार - पु० [सं०] नदीका इधरका किनारा, पारका उलटा; इस ओर ।
अवारना * - स० क्रि० रोकना, वारण करना ।
अवारा - वि० दे० 'आवारा' ।
अवास * - पु० दे० ' आवास' |
अविकच, अविकचित - वि० [सं०] बंद, अविकसित । अविकत्थ, अविकत्थन - वि० [सं०] घमंड न करनेवाला, डींग न मारनेवाला ।
अविकल - वि० [सं०] जो घटाया बढ़ाया या बदला न गया हो, ज्योंका त्यों; व्यवस्थित; जो बे-चैन न हो, शांत । अविकल्प - वि० [सं०] विकल्परहित; अपरिवर्तनीयः निश्चित | पु० विकल्प या संदेहका अभाव ।
विधानका अभाव |
अविधिक - वि० [सं०] विधि यानी कानूनके विरुद्ध, ( इल्लीगल ) ।
अवारजा, अवारिजा - पु० [फा०] खतियौनी; जमाखर्च- अविनय - स्त्री० [सं०] विनय या नम्रताका अभाव; धृष्टता; की बही; गोशवारा, रोजनामचा । अशिष्टता; उजड्डपन; घमंड; अपराध । वि० विनयहीन । अवारणीय - वि० [सं०] जिसका निवारण न हो सके, ला- अविनश्वर - वि० [सं०] जिसका नाश न हो । पु० परब्रह्म । इलाज | अविनाभाव - पु० [सं०] अविच्छेद्य संबंध (जैसे आग और
अपरिवर्तनशील |
अविकाशी (शिन् ), अधिकासी (सिन्) - वि० [सं० जिसका विकास न हो, न खिलनेवाला; न चमकनेवाला अविकृत - वि० [सं०] जो बदला या बिगड़ा न हो । अविक्रम - वि० [सं०] शक्तिहीन, कमजोर । पु० भीरुता अविक्रेय - वि० [सं०] जो बिक्रीके लिए न हो । अविगत- वि० [सं०] जो गया या बीता न हो, मौजूद; * अज्ञेय; अशात; अविनाशी ।
अविकार - वि० [सं०] विकार रहित, न बदलनेवाला । अविकारी (रिन्) - वि० [सं०] दे० ‘अविकार' | अविकार्य - वि० [सं०] जिसमें विकार या परिवर्तन न हो, अविरथा* - अ० नाहक, बेकार ।
अविग्रह - वि० [सं०] निराकार, देहरहित; अशात
अविचल - वि० [सं०] अचल, स्थिर ।
अविचार - पु० [सं०] अविवेक, नासमझी, अन्याय, अनीति । अविचारी (रिन्) - वि० [सं०] विवेकहीन, उचित अनुचितका विचार न रखनेवाला । अविच्छिन्न- वि० [सं०] अविभक्त, जो लगातार हो । अविच्छेद - वि० [सं०] विच्छेदरहित । पु० विच्छेद, बिलगावका अभाव |
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अविछीन* - वि० अविच्छिन्न, अटूट । अविजन - पु० दे० 'अभिजन' |
*
अविजित - वि० [सं०] जो जीता न गया हो । अविज्ञ - वि० [सं०] अजान, अनाड़ी | अविज्ञात - वि० [सं०] बे जाना-समझा; संदिग्धः अस्पष्ट । अविज्ञेय - वि० [सं०] जो पहचाना न जा सके; जो जाना न जा सके; न जानने योग्य | पु० परमेश्वर । अविदित- वि० [सं०] अज्ञात; अप्रकट । अविद्यमान- वि० [सं०] अनुपस्थित; असत् । अविद्या - स्त्री० [सं०] विद्या या ज्ञानका अभाव; विपरीत ज्ञान; भ्रांति; वह भ्रांति जिसके कारण ब्रह्म में जगत्की प्रतीति होती है, माया, प्रकृति (सांख्य० ) । -कृत, जन्य - वि० अविद्यासे उत्पन्न । अविधि - वि० [सं०] अवैध, विधिविरुद्ध । स्त्री० विधि या
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धुएँका); संबंध, लगाव ।
अविनाशी (शिन्) - वि० [सं०] नाशरहित, अक्षय, नित्य । अविनासी* - वि० दे० 'अविनाशी' । पु० ईश्वर । अविनीत - वि० [सं०] अनम्र, अशिष्ट, गुस्ताख, उजड्ड; घमंडी | अविनीता - स्त्री० [सं०] कुलटा, व्यभिचारिणी । अविभक्त - वि० [सं०] अखंड; साबित, समूचा; एक । अविभाज्य - वि० [सं०] जो बाँटा न जा सके । पु० वह राशि जिसका किसी गुणकसे भाग न किया जा सके । अविमुक्त-वि० [सं०] अमुक्त, बद्ध |
अविरत - वि० [सं०] विरामहीन; अनिवृत्त, लगा हुआ; परित्यक्त | अ० लगातार, निरंतर । अविरति - स्त्री० [सं०] विरामका अभाव; आसक्ति ।
अविरल - वि० [सं०] मिला, सटा हुआ; अविरत; घना । अविराम - वि० [सं०] विरामहीन । अ० लगातार, बिना ठहरे-सुस्ताये ।
अविरुद्ध - वि० [सं०] जो विरुद्ध न हो, अप्रतिकूल; अनुकूल । अविरेचन - पु० [सं०] कब्ज करनेवाली चीज | अविरोध - पु० [सं०] विरोधका अभाव, मेल; सामंजस्य । | अविलंब - वि० [सं०] विलंबरहित । अ० झटपट, तुरत । अविलंब्य - वि० [सं०] (अर्जेण्ट) जिसकी ओर तुरन्त ध्यान देना आवश्यक हो; जिसे करने, पूरा करने, भेजने, पहुँचाने आदि में विलंब न किया जा सके । अविलोकना* - स० क्रि० दे० 'अवलोकना' । अविवक्षित - वि० [सं०] अनुद्दिष्ट; जिसके विषय में कहना न हो । अविवाहित- वि० [सं०] बिन ब्याहा कॉरा । अविवेक-पु० [सं०] भला-बुरा समझने की शक्तिका अभाव; अविचार; नासमझी ।
अविवेकिता - स्त्री० [सं०] अविवेक ।
अविवेकी (किन् ) - वि० [सं०] विवेकरहित, नासमझ | अविशंक - वि० [सं०] शंकारहित; निडर । अविशुद्ध - वि० [सं०] जो शुद्ध न हो, अपवित्र; मिलावटी । अविशेष - वि० [सं०] भेदरहित, समान । पु० भेदक धर्मका
अभाव, समानता; एकता; सूक्ष्म भूत (सांख्य०) । अविश्रंभ - ५० [सं०] विश्वासका अभाव, अविश्वास | अविश्रांत - वि० [सं०] न थकनेवाला; अविराम । अ० लगातार ।
अविश्वसनीय - वि० [सं०] जो विश्वासके योग्य न हो । अविश्वस्त - वि० [सं०] जिसका विश्वास न हो, संदिग्ध । अविश्वास-पु० [सं०] विश्वास न होना, बे-एतबारी;
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शंका, संदेह । - प्रस्ताव - ५० ( मोशन ऑफ नो-कानफिडेंस ) मंत्रिमंडल या उसके किसी सदस्य अथवा किसी
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अविश्वासी-अशब्द संस्थाके अध्यक्ष आदिमें विश्वास न रह जानेका प्रस्ताव जो अपवादरहित; स्थायी, नित्य; सदाचारी। विधानसभा या उक्त संस्था में पुरःस्थापित किया जाय । अव्यय-वि० [सं०] अविकारी; अक्षय; नित्य; कंजूस । पु० अविश्वासी (सिन)-वि० [सं०] विश्वास न करनेवाला; | वह शब्द जिसका रूप सब वचनों, लिंगों, विभक्तियों में श्रद्धाहीन; जो विश्वासके योग्य न हो।
एक ही रहे; ब्रह्मः शिवः विष्णु; कंजूसी । अविप-वि० [सं०] विषहीन; विषहारका रक्षक। पु० अव्ययित शेष-पु० [सं०] (अनरपेंट बैलेंस) किसी कामके समुद्र; राजा; आकाश।
लिए निर्धारित या जमा किये हुए धनका वह अंश जो अविषय-वि० [सं०] जो किसी इंद्रियका विषय न हो, व्यय न किये जानेके कारण बच गया हो । अगोचर प्रतिपादनके अयोग्य निविषय ।
अव्ययीभाव-पु० [सं०] वह समास जिसमें पूर्वपद अव्यय अविसर्गी (निन्)-वि० [सं०] न हटनेवाला, लगातार हो; अनश्वरता; व्ययाभाव (निर्धनताके कारण) । बना रहनेवाला (ज्वर)।
अव्यर्थ-वि० [सं०] व्यर्थ न होनेवाला; सफल; अचूक । अविस्तीर्ण-वि० [सं०] जो अधिक न फैलाकर छोटा कर | अव्यवसायी (यिन् )-वि० [सं०] उद्यमहीन । दिया गया हो।
अव्यवस्था-स्त्री० [सं०] नियम, व्यवस्थाका अभाव, बेकाअविस्तृत-वि० [सं०] ठसा हुआ, घना ।
यदगी, गड़बड़, बदअमली; शास्त्रविरुद्ध व्यवस्था । अविहड़*-वि० अविनाशी; बीहड़ ।
अव्यवस्थित-वि० [सं०] व्यवस्थाहीन; शास्त्रमर्यादाके अवृथा-अ० [सं०] व्यर्थ नहीं, सफलतापूर्वक ।
विरुद्ध अस्थिर । -चित्त-वि० जिसके विचार बदलते अवृष्टि-स्त्री० [सं०] अवर्षण, सूखा ।
रहे, अस्थिरचित्त। अवेक्षण-पु० [मं०] देखना; निरीक्षण, देख-भाल ।
अव्यवहार्य-वि० [सं०] व्यवहारके अयोग्य, जो काममें न अवेक्षणीय-वि० [सं०] देखने योग्य निरीक्षण योग्य ।
लाया जा सके। जिसके साथ खान-पानका व्यवहार न अवेक्षा-स्त्री० [सं०] देखना; ध्यान, खयाल ।
रखा जा सके, जातिच्युत । अवेज*-पु० बदला।
अव्यवहृत-वि० [सं०] जिसकाव्यवहार न किया गया हो। अवला-स्त्री० [सं०] अनुपयुक्त समय, कुबेला; चर्वित अव्यसन-वि० [सं०] व्यसनहीन, जिसे कोई बुरी लत ताम्बूल या पूग ।
न लगी हो । पु० व्यसनका अभाव । अवेश*-पु० दे० 'आवेश'।
अव्याख्यात-वि० [सं०] जिसकी व्याख्या या स्पष्टीकरण अवेस्ता-स्त्री० [पह? ] पारसियोंकी मूल धर्म-पुस्तक, न किया गया हो। जेंद-अवेस्ता।
अव्याज-वि० [सं०] बिना छल-कपटका । पु० छल-कपटका अवैतनिक-वि० [सं०] वेतन न पाने या न लेनेवाला,
अभाव; सरलता; ईमानदारी। 'ऑनरेरी'।
अध्यापन्न-वि० [सं०] जो मरा न हो, जीवित । अवैदिक-वि० [सं०] वेदविरुद्ध; अवेदोक्त ।
अव्यापी (पिन्)-वि० [सं०] जो सर्वव्यापी न हो; अवैद्य-वि० [सं०] जो बैद्य या विद्वान् नहीं है ।
सीमित, परिच्छिन्नजो सामान्य न हो, विशेष । अवैध-वि० [सं०] विधिविरुद्ध, (इल्लीगल) कानुनके अव्याप्त-वि० [सं०] जो सर्वत्र व्याप्त न हो; परिच्छिन्न । विरुद्ध, अविहितः विधानविरुद्ध, गैर-आइनी। -जात- अध्याप्ति-स्त्री० [सं०] अधूरी व्याप्ति; लक्षणका लक्ष्यपर वि० (इल्लिसिट) अवैध रूपसे उत्पन्न या प्राप्त ( सन्तान,
घटित न होना (न्या०)। आमदनी इ०)। -निरोधन-पु० ( रांगफुल कनफाइ- | अव्युत्पन्न-वि० [सं०] अकुशल, अदक्ष, अनुभवहीन; जो नमेंट) किसी व्यक्तिको अवैध रूपसे रोक रखना, कमरे या (शब्द) व्याकरणसे सिद्ध न हो सके व्युत्पत्तिरहित । घर आदिमें बन्द कर देना। -प्रषण-पु० (स्मग्लिग) | अव्रत-वि० [सं०] शास्त्रविहित नियमों, कर्तव्योंका पालन चुगी आदिसे बचानेकेलिए (कोई माल) अवैध रूपसे | न करनेवाला, व्रतहीन । पु० व्रतत्याग (जैन)। भेजना या मँगाना; अपहरण (को०)।
अव्वल-वि० [अ०] पहला, प्रथमः सर्वश्रेष्ठ । पु० आदि, अवैधाचरण-पु० [सं०] (इल्लीगल प्रैक्टिस) विधि या आरंभ। -तो-पहले तो, प्रथमतः । मु०-आनाकानूनके विरुद्ध किया जानेवाला व्यवहार या आचरण । रहना-प्रतियोगितामें सर्वप्रथम आना। अवैमत्य-पु० [सं०] ऐक्यमत; मतभेदका अभाव । अशंक, अशंकित-वि० [सं०] शंकारहित; निर्भय; निरापद। अव्यक्त-वि० [सं०] अप्रकट, अदृश्य; अझय; अनाविभूत; अशकुन-पु० [सं०] असगुन, अशुभ लक्षण। अज्ञात; अनुच्चार्य; अनिश्चित । पु० मूल प्रकृति, अविद्या | अशक्त-वि० [सं०] शक्तिहीन,कमजोर; असमर्थ; अयोग्य । ब्रह्म आत्मा; सूक्ष्म शरीर; शिव, विष्णु, कामदेव; मूर्ख | अशक्ति-स्त्री० [सं०] निर्बलता; असामर्थ्य । व्यक्ति; सुषुप्ति अवस्था । -गति-वि० अलक्षित गमन | अशक्य-वि० [सं०] जो न हो सके, असाध्य; जो काबूमें करनेवाला ।-राग-वि० हलका लाल, गुलाबी-राशि न किया जा सके। -स्त्री० वह राशि जिसका मान निश्चित न हो (बीग०)। | अशत्रु-वि० [सं०] शत्रुरहित; जिसका शत्रुओंकी औरसे -साम्य-पु० अव्यक्त राशियोंका समीकरण ।
। विरोध न हो । पु० चंद्रमा शत्रुरहित होनेकी अवस्था । अव्यभिचार-पु० [सं०] एकनिष्ठता, वफादारी; नित्य | अशन-पु० [सं०] भोजन; भोज्य पदार्थ भक्षण; पहुँचना। साहचर्य ।
अशनि-पु०[सं०] वज्र, बिजली अस्त्रास्वामी इंद्र; अग्नि । अन्यभिचारी (रिन् )-वि० [सं०] अविरोधी, अनुकूल; | अशब्द-वि० [सं०] जो शब्दोंमें व्यक्त न हुआ हो; मूक;
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अशरण-अश्व
शब्दरहित । पु०ब्रह्म।
अशोकाष्टमी-स्त्री० [सं०] चैत्र शुक्ला अष्टमी । अशरण-वि० [सं०] आश्रयहीन, असहाय ।-शरण-वि० अशोच-पु० [सं०] चिताका अभाव; शांति; नम्रता । अशरणको शरण देनेवाला ( भगवान्)।
अशोच्य-वि० [सं०] शोक न करने योग्य । अशरफ-वि० [फा०] बहुत शरीफ, उच्चतर ।
अशोधित-वि० [सं०] जिसका शोधन या संस्कार न हुआ अशरफ्री-स्त्री० [फा०] सोनेका सिका, मुहर ।
हो, साफ न किया हुआ। -शेष-पु० (अनरिडीम्ड अशरा-पु० [अ०] मुहर्रमका दसवाँ दिन ।
बैलेंस) किसी ऋण आदिका वह बचा हुआ अंश जिसका अशराफ़-पु० [फा०] भले और प्रतिष्ठित लोग (शरीफका भुगतान या अदायगी न हुई हो। बहुवचन)।
अशोभन-वि० [सं०] असुंदर, अभद्र, न फबनेवाला । अशरीर-वि० [सं०] शरीररहित, निराकार । पु० पर- अशौच-पु० [२०] अपवित्रता; जन्म-मरणके कारण मात्मा; कामदेव संन्यासी ।
कुटुंबियों और सपिंड जनीको लगनेवाली छुत । अशरीरी (रिन)-वि० [सं०] शरीरहीन, अपार्थिव । पु० अश्म (न्)-पु० [सं०] पहाड़, पत्थर; चकमका बादल; ब्रह्मा; देवता।
सोनामाखी; लोहा । -ज-पु० लोहा; गेरू; शिलाजतु । अशर्फी-स्त्री० दे० 'अशरफी' ।
-जतु,-जतुक-पु. शिलाजतु । अशस्त्र-वि० [सं०] शस्त्रहीन, निःशस्त्र । पु० शस्त्र नहीं। | अश्मरी-स्त्री० [सं०] पथरी नामक रोग। अशांत-वि० [सं०] शांतिरहित, बेचैन, उद्विग्न; अस्थिर; अश्र-पु० [सं०] आँसू ; रक्त । -प-पु० राक्षस, नरभक्षक। अपवित्र अधार्मिक ।
अश्रद्धा-स्त्री० [सं०] श्रद्धाका अभाव; अविश्वास । अशांति-स्त्री० [सं०] बेचैनी क्षोभ; खलबली।
अश्रांत-वि० [सं०] न थका हुआ, अथक । अशालीन-वि० [सं०] विनयहीन, ढीठ ।
अश्राव्य-वि० [सं०] न सुनने योग्य । अशास्त्रीय-वि० [सं०] शास्त्रविरुद्ध, अविहित । अश्रु-पु० [सं०] आसू ।-कला-स्त्री० अश्रबिंद ।-गैसअशिक्षित-वि० [सं०] अपढ़; गँवार ।।
स्त्री० (टियरगैस) एक तरहकी जहरीली गैम जो आखोंमें अडिशव-वि० [सं०] अकल्याणकरः अमंगल-सचकः टरा- लगनेसे तेज जलन पैदा कर देती है जिससे आँस निकल वन। । पु० अमंगल; दुर्भाग्य, अहित ।
पड़ते और देखने में कठिनाई होती है (इसका प्रयोग अशिष्ट-वि० [सं०] शिष्टतारहित, असभ्य, उजदु; अवि- पुलिस द्वारा उपद्रवोन्मुख भीड़को तितर-बितर करने और नीत; अधार्मिक; अविहित।
कभी-कभी युद्धस्थलमें शत्रुसेनाकी बाढ़ रोकनेके लिए अशिष्टता-स्त्री० [सं०] अशिष्ट व्यवहार, असभ्यता, किया जाता है)। -पात-पु० आँसू गिरना; रोना । उजडुपन ।
-मुख-वि० रुऑसा; एकाएक रो पड़नेवाला । अशीत-वि० [सं०]ठंढा नहीं,गरम ।-कर-रश्मि-पु०सूर्य। अश्रुत-वि० [सं०] न सुना हुआ; विद्याहीन, अशिक्षित, अशीति-स्त्री० [सं०] ८०, अस्सीकी संख्या।
अवैदिक । -पूर्व-वि० पहले न सुना हुआ; अद्भुत । अशील-वि० [सं०] शीलरहित, उद्दण्ड । पु० उइंडता। अश्रति-वि० [सं०] कर्णहीन । स्त्री० न सुनना विस्मृति । अशुचि-वि० [सं०] अपवित्र, नापाक; मैला; काला। अश्लाघ्य-वि० [सं०] प्रशंसाके अयोग्य; निंद्य । स्त्री० अपवित्रता; अपकर्ष ।
अश्लिष्ट-वि० [सं०] श्लेषरहित, जिससे एकाधिक अर्थ न अशुद्ध-वि० [सं०] अपवित्र, नापाक; साफ न किया हुआ; निकलते हों; असंयुक्त; असंगत । अशोधित; सदोष; गलत ।
अश्लील-वि० [सं०] भद्दा; ग्राम्य; गंदा; लज्जा, घृणा या अशुद्धि-स्त्री० [सं०] अशुद्धता; गलती; गंदगी ।
अमंगलकी व्यंजना करनेवाला । अशुन-पु० अश्विनी नक्षत्र ।
अश्लीलता-स्त्री० [सं०] भद्दापन; ग्राम्यता रचनामें अश्लील अशुभ-वि० [सं०] अमंगलकारी; अनिष्टसूचक; अपवित्र; शब्दोंका प्रयोग। भाग्यहीन । पु० अमंगल; पाप; दुर्भाग्य ।
अश्लेष-वि० [सं०] शेषरहित, जिसमें दुहरा अर्थ न हो । अशषा-स्त्री० [सं०] अभिभावककी आशामें न रहनेका । अश्लेषा-स्त्री० [सं०] एक नक्षत्र ।-भव-भू-पु०केतु ग्रह । अपराध ।
अश्व-पु० [सं०] घोड़ा, ७ की संख्या (सूर्यके रथके घोड़ोंअशून्य-वि० [सं०] खाली नहीं; पूरा किया हुआ। की संख्या सात मानी गयी है)। -चिकित्सा-स्त्री०
-शयन-पु०, -शयनद्वितीया-स्त्री०,-शयनग्रत- पशुचिकित्सा शास्त्र । -तर-पु० खच्चर; एक सर्पराज; पु० श्रावण कृष्णा द्वितीयाको होनेवाला एक व्रत ।
एक गंधर्ववर्ग। -दंष्ट्रा-स्त्री० गोखरू। -दूत-पु० धुड़अशेष-वि० [सं०] संपूर्ण, समूचा; सबका सबा अपार; सवार दूत । -निबंधिक,-पाल,-पालक,-रक्ष-पु० असंख्य । -साम्राज्य-पु० शिव ।
साईस । -पति-पु० घुड़सवार; घोड़ोंका.मालिका भरतके अशोक-वि० [सं०] शोकरहित । पु० एक पेड़ जिसकी मामा । -मुख-पु० किन्नर, गंधर्व । -मेध-पु. एक पत्तियाँ लहरदार और सुंदर होती हैं और विशेषकर बंदन- प्रसिद्ध वैदिक यज्ञ जिसे कोई चक्रवती राजा या सम्राट वार बाँधने में काम आती है। कटुका राजा दशरथका एक ही कर सकता था और जिसमें सभी देशोंका भ्रमण करके मंत्री; मौर्यवंशका एक यशस्वी सम्राट विष्णु ।-पूर्णिमा- लौटनेवाले घोड़ेको मारकर उसकी चबीसे हवन किया स्त्री० फाल्गुनकी पूर्णिमा । -वाटिका-स्त्री. अशोककी जाता था; एक तान जिसमें पट्ज स्वर नहीं लगता। बाड़ी; वह बगीचा जहाँ रावणने सीताको कैद कर रखाथा। -युप-पु० अश्वमेधके घोड़ेको बाँधनेका खूटा। -वह,
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भश्वत्थ-असंयम
वाहक-पु० घुड़सवार। -वार-चारक-पु० घुड़सवार; अष्टाध्यायी (यिन)-वि० [सं०] आठ अध्यायोंवाला। साईस। -व्यूह-पु० घुड़सवार सेनाको सामने और अष्टावक्र-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध ऋषि । वि० जिसके अगल-बगल रखकर रचा हुआ व्यूह । -शक्ति-स्त्री० | आठ अंग टेढ़े हों; कुरूप । . (हार्सपावर) उतनी शक्ति जितनी प्रति सेकंड ५५० असंक*-वि० दे० 'अशंक'। पौंड (= ६।। मन) वजनको एक फुट ऊपर उठानेके लिए असंका-स्त्री० दे० 'आशंका'। आवश्यक होती हैं। -शास्त्र-पु० घोड़ेके शुभाशुभ असंकुल-वि० [सं०] जहाँ भीड़ न हो; खुला हुआ चौड़ा। लक्षण बतानेवाला शास्त्र; शालिहोत्र।
असंक्रांत-वि० [सं०] जिसका संक्रमण न हुआ हो, जो एक अश्वत्थ-पु० [सं०] पीपल; पीपलका गोदा ।
क्षेत्रसे दूसरे में न गया हो । पु० अधिक मास । अश्वत्थामा (मन्)-पु० [सं०] महाभारतमें कौरवपक्षका एक | असंख-वि० दे० 'असंख्य'।। महारथी, द्रोणाचार्यका पुत्र; महाभारतमें हत एक हाथी। असंख्य, असंख्यक, असंख्यात-वि० [सं०] अगणित, अश्वस्तन, अश्वस्तनिक-वि० [सं०] आजसे ही संबंध रखने बे-हिसाब, बे-शुमार । वाला; अगले दिनके खानेका ठिकाना न रखनेवाला। असंख्येय-वि० [सं०] अगणित, बे-शुमार । अश्वाध्यक्ष-पु० [सं०] घुड़सवार सेनाका नायक । असंग-वि० [सं०] अनाशक्त, बंधनरहित, निलिप्त अकेला। अश्वानीक-स्त्री० [सं०] घुड़सवार सेना, रिसाला ।
पु० अनाशक्तिः पुरुष, आत्मा (सांख्य०)। अश्वायुर्वेद-पु० [सं०] अश्व-चिकित्सा-शास्त्र ।
असंगत-वि० [सं०] बेमेल, असंबद्ध, प्रसंगविरुद्ध अनुचित, अश्वरूढ, अश्वारोही (हिन्)-पु० [सं०] घुड़सवार । __ अयुक्त; असमान; उजड्ड । अश्विनी-स्त्री० [सं०] घोड़ी; २७ नक्षत्रोंमेंसे पहला नक्षत्र; असंगति-स्त्री० [सं०] मेलका न होना, अनौचित्य; एक जटामासी । -कुमार, पुत्रा-सुत-पु० सूर्यकी पत्नी __ अर्थालंकार जिसमें कार्य-कारण, देश, काल-संबंधी असंगति प्रभाके घोड़ीका रूप ग्रहण कर लेनेपर उससे उत्पन्न दो पुत्र (अन्यथात्व) का वर्णन किया जाय-कार्य कहीं,कारण कहीं जो देवताओंके वैद्य माने जाते हैं, स्ववेद्य ।
दिखाया जाय। अष्ट (न्)-पु० [सं०] आठकी संख्या । वि० ७ से १ असंचय-वि० [सं०] संभारहीन, जिसके पास आवश्यक अधिक या ९ से १ कम, आठ। -कमल-पु० हठयोगमें वस्तुएँ मौजूद न हों। पु० संचय या संभारका अभाव । मूलाधारसे मस्तकतक माने गये आठ चक्र । -कुल-पु० असंचयिक, असंचयी (यिन्)-वि० [सं०] संचय न पुराणों में बताये गये सौके आठ कुल । -कृष्ण-पु० करनेवाला। वल्लभ-संप्रदायमें माने गये कृष्णके आठ रूप-श्रीनाथ, असंज्ञ-वि० [सं०] संशाहीन । नवनीतप्रिय, मथुरानाथ, विट्टलनाथ, द्वारकानाथ, गोकुल- असंत-वि० असाधु, खल । नाथ, गोकुलचंद्रमा और मदनमोहन । -कोण-वि० असंतुष्ट-पु० [सं०] अतृप्त; अप्रसन्न । अठकोना, अठपहल । -गंध-पु० पूजनमें व्यवहृत आठ असंतोष-पु० [सं०] अतृप्ति अप्रसन्नता, नाराजगी; बेसब्री, सुगंधित वरतुओंकसमूह, गंधाष्टक । -छाप-पु० [हिं०] लोभ । आठ पुष्टि मागी कवियोंका वर्ग, जिसमें सूरदास, नंददास, असंतोपी (पिन)-वि० [सं०] संतुष्ट न होनेवाला; बेसब्र; कुंदनदासादि थे। -दल-वि० अठपहला, अठकोना । पु० आठ दलोंका कमल । -द्रव्य-पु० यशकी सामग्रीके | असंदिग्ध-वि० [सं०] संदेहरहित; निश्चित, पक्का । आठ द्रव्य-पीपल, गूलर, पाकड़, बरगद, तिल, सरसों, असंप्रज्ञात-वि० [सं०] सम्यक् प्रकारसे न जाना हुआ। पायस और घृत । -धाती-वि० [हि०] जिसके माता- | -समाधि-स्त्री० वह समाधि जिसमें शाता, शय, ज्ञानका पिताका ठीक पता न हो, वर्णसंकर । -धातु-स्त्री० आठ भेद नहीं रह जाता, निर्विकल्प समाधि । मुख्य धातुएँ-सोना, चाँदी, ताँबा, राँगा, जता, सीसा, | असंबद्ध-वि० [सं०] संबंधहीन; बे-मेल; बे-लगाव; असंगत, लोहा और पारा। -पत्र-पु० आठ दलोंका कमल । बेतुका । -प्रलाप-पु० बेतुकी बकवास । -पद-वि० आठ पैरोंवाला । पु० मकड़ा; कीड़ा; शरभ | असंभव-वि० [सं०]न होने या होसकनेवाला,नामुमकिन । कैलास । -पदी-स्त्री० एक छंद; एक प्रकारका गीत पु० वह अर्थालंकार जिसमें यह दिखलाया जाय कि जो एक तरहकी चमेली; बेलेका फूल और पौधा ।।
बात हो गयी, उसका होना असंभव था; अनस्तित्व अष्टक-पु० [सं०] आठ वस्तुओंका समूह या योग; आठ | असंभावना; असाधारण घटना। ऋषियोंका एक गण; विश्वामित्रका एक पुत्र; अष्टाध्यायी असंभार*-वि० जो सँभाला न जा सके; विशाल; अपार । (व्या०)।
असंभावना-स्त्री० [सं०] संभावनाका न होना; होने योग्य अष्टम, अष्टमक-वि० [सं०] आठवाँ ।
न होना; अशक्यता। अष्टमी-स्त्री० [सं०] सित या असित पक्षकी आठवीं तिथि। असंभावनीय, असंभाव्य-वि० [सं०] दुबोध; असंभव । अष्टांग-वि० [सं०] जिसके आठ अंग या भाग हों। पु० असंभावित-वि० [सं०]जिसकी संभावना नरहीहो; असंभव। शरीरके वे आठ अंग जिनसे साष्टांग प्रणाम किया जाता | असंभाष्य-वि० [सं०] न कहने योग्य वार्तालाप न करने है-घुटना, हाथ, पाँव,छाती, सिर, वचन, दृष्टि और बुद्धि । योग्य । पु० कुवचन । -योग-पु० योगके आठ अंग-यम, नियम, आसन, असंयत-वि० [सं०] संयमरहित अनियंत्रित; बंधनहीन । प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । असंयम-पु० [सं०] संयमका अभाव; मन, इंद्रिय आदिको
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भसंयुक्त-असहयोग वशमें न रखना; विलासिता।
असमंजस-पु० [सं०] दुविधा, कठिनाई; अनौचित्य संयक्त-वि० [सं०] बिलग, न जुड़ा हुआ, जुदा। __ अंतर सगरका ज्येष्ठ पुत्र ( जस्), अंशुमान्का पिता। संयोग-पु० [सं०] योग या मेल न होना । वि० जिसके असमंत*-पु० चूल्हा ।। साथ संपर्क निषिद्ध हो।
असम-वि० [सं०] जो बराबर न हो; असहश; बेजोड़ असंशय-पु० [सं०] संशयका अभाव, संदेहका न होना विषम, ताक; ऊँचा-नीचा, नाहमवार । पु० अर्थालंकार वि० संशयशून्य, शंकारहित ।
जिसमें उपमानका मिलना असंभव दिखलाया जाय; बुद्ध । असंश्लिष्ट-वि० [सं०] असंयुक्त । पु० शिव ।
-नयन, नेत्र,-लोचन-पु० तीन आँखोंवाले शिव । असंसक्ति-स्त्री० [सं०] अनासक्ति,विरक्ति संबंधका अभाव। -बाण-पु० कामदेव । -वृत्त-पु. वह वर्णवृत्त जिसके असंसारी (रिन)-वि० [सं०] जिसका संसारसे कोई सब चरणोंमें समान गण न हों, विषमवृत्त । -शरसंबंध न हो, विरक्त।
पु० कामदेव, पंचशर । असंस्कृत-वि० [सं०] संस्कारहीन, जिसका कोई संस्कारन | असमत-स्त्री० [अ०] पवित्रता, निष्पापता; सतीत्व । हुआ हो, जो सँवारा-सुधारा न गया हो; असभ्य । -फरोशी-स्त्री. सतीत्वविक्रय, व्यभिचार । अस*-वि० ऐसा, जैसा, समान, तुल्य ।
असमय-पु० [सं०] समयका उलटा; अयोग्य काल; असकताना-अ० क्रि० आलस्य अनुभव करना ।
कुसमय । अ० बेवक्त, बेमौके । असक्त-वि० [सं०] आसक्तिरहित; बे-लगाव; उदासीन असमयोचित-वि० [सं०] (इनएक्स्पीडिएंट) जो समय*अशक्त, दुर्बल।
विशेष या स्थिति-विशेषको देखते हुए उचित न हो। असगंध-पु० एक पौधा जिसकी जड़ दवाके काम आती | असमर्थ-वि० [सं०] अशक्त, अपेक्षित शक्ति या योग्यता है, अश्वगंधा।
न रखनेवाला; अभीष्ट अर्थ व्यक्त न कर सकनेवाला असगुन-पु० अपशकुन ।
असमर्थता-निवृत्तिवेतन-पु० [सं०] (इनवैलिडिटी पेंशन) असगोत्र-वि० [सं०] भिन्न गोत्र या कुलका।
रोग, दुर्घटना आदिके कारण किसी कर्मचारीके कामकरने में असनन-वि० [सं०) जो भला आदमी न हो। पु० स्थायी रूपसे असमर्थ हो जानेपर उसे भरण-पोषणके लिए बुरा, दुष्ट आदमी।
मिलनेवाली वृत्ति । असती-वि० स्त्री० [सं०] अपतिव्रता, पुंश्चली।
असमान-वि० [सं०] जो बराबर न हो, असदृश । * पु० असतू-वि० [सं०] अविद्यमान, जिसका अस्तित्व न हो, आसमान, आकाश। मिथ्या बुरा; अनुचित । पु० अनस्तित्व; अहित मिथ्यात्व। असमाप्त-वि० [सं०] अपूर्ण, नातमाम, अधूरा । -कार्य-पु० बुरा पेशा या काम ।
असमेध*-पु० दे० 'अश्वमेध'। असत्कार-पु० [सं०] अनादर,आवभगत नहोना; अहित। असम्मत-वि० [सं०] मतभेद रखनेवाला, विरुद्ध अनाहत;
पत्ता-स्त्री० [सं० सत्ताका अभाव, नेस्ती असाधता। अस्वीकृत, नामंजुर । पु० शत्रु, विरोधी। असत्त्व-वि० [सं०] अशक्त, निर्बल; सत्त्वगुणरहित । पु० असम्मति-स्त्री० [सं०] मतभेद; अस्वीकृति; विकर्षण । असत्ता; असाधुता ।
असम्मान-पु० [सं०] निरादर । असत्य-वि० [सं०] झूठ, मिथ्या, गलत । पु० झुठाई; असयाना*-वि० अचतुर, सीधा, भोला। झूठ बोलनेवाला व्यक्ति। -वाद-पु० झूठ बोलना। असर-पु० [अ०] खोज; पदचिह्न खंडहर, छाप, प्रभाव; -वादी (दिन्)-वि० झूठ बोलनेवाला ।-शील-वि० गुण; दबाव; फल; दे० 'अस्र'। जिसकी झूठ बोलनेकी ओर प्रवृत्ति हो
असरार*-अ० लगातार । असत्यता-स्त्री० [सं०] झुठाई ।
असल-वि० [अ०] दे० 'अस्ल' । पु० एक झाड़ जिसकी असदृश-वि० [सं०] असमान; अयोग्य, अनुचित । छालसे चमड़ा सिझाते है। असद्भाव-पु० [सं०] अस्तित्वका अभाव, अनुपस्थिति;बुरी असलियत-स्त्री० [अ० असल बात, वास्तविकता; जड़, भावना; बुरा स्वभाव ।
मूल तत्त्व। असन*-पु० भोजन ।
असली-वि० सच्चा, शुद्ध; खालिस । असनान*-पु० स्नान, नहाना ।
असलेउ*-वि० दे० 'असह्य' । असन्नद्ध-वि० [सं०] जो हथियार न बाँधे हो या तैयार न असवर्ण-वि० [सं०] भिन्न वर्ण या जातिका । हो; घमंडी।
असवारी-पु० दे० 'सवार' । असपिंड-वि० [सं०] जो अपने कुलका या कुलमें सात असवारी -स्त्री० दे० 'सवारी'। पीढ़ियोंके अंदर न हो।
असह-वि० [सं०] असहिष्णु, न सहनेवाला; अधीर । असफल-वि० [सं०] विफल, नाकामयाब ।
असहकार-पु० [सं०] दे० 'असहयोग'। असफलता-स्त्री॰ [सं०] विफलता ।
असहन-वि० [सं०] असहिष्णु; ईर्ष्यालु । -शील-वि० असबाब-पु० [अ०] (सबबका बहुवचन) कारण; आवश्यक असहिष्णु, चिड़चिड़ा, क्रोधी। सामग्री; धीज, वस्तु; मुसाफिरके साथका सामान । असहनीय, असहितव्य-वि० [सं०] दे० 'असह्य'। असभ्य-वि० [सं०] सभाके अयोग्य, अशिष्ट; गँवार, सामा- असहयोग-पु० [सं०] सहयोगका अभाव या उलटामिलजिक व्यवस्थामें पिछड़ा हुआ; जंगली ।
कर या साथ काम न करना; सरकारसे या शासनकार्य में
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असहाय-असुर सहयोग न करना । -वाद-पु० असहयोग द्वारा सरकार असामी-पु० [अ०] नाम, नामसूची [इस्म-नामका पर दबाव डालनेका सिद्धांत । -वादी (दिन -वि० बहुवचन ]; पद, नौकरी; काश्तकार; कर्जदार; ग्राहक असहयोगवादको माननेवाला।
मुलाजिम, आदमी (लाखोंका असामी)। " असहाय-वि० [सं०] जिसका कोई साथी, सहायक न हो, असाम्य-पु० [सं०] अंतर; असमानता; अननुकूलता। निराश्रय, बे-सहारा; निरुपाय ।
असार-वि० [सं०] सारहीन, सत्त्वशून्य; पोला, निरर्थक । असहिष्णु-वि० [सं०] बर्दाश्त न करनेवाला, चिड़चिड़ा, असावधान-वि० [सं०] जो सजग-चौकन्ना न हो, क्रोधी; झगड़ालू ।
गाफिल, बेखबर । असही*-वि० जो दूसरेकी बढ़ती न देख सके, अदेखा । असावधानता-स्त्री० [सं०] गफलत, बेखबरी । असह्य-वि [सं०] न सहने लायक, असहनीय । असावधानी-स्त्री० दे० 'असावधानता' असाँच-वि० असत्य, झूठ ।
असावरी-स्त्री० एक रागिनी जो भैरव रागकी स्त्री मानी असांद्र-वि० [सं०] विरल, जो धना न हो।
जाती है। असांप्रत-वि० [सं०] असामयिका वर्तमान कालका नहीं। असि-स्त्री० [सं०] तलवार; खगः भुजाली; श्वास । असांप्रदायिक-वि० [सं०] जिसका किसी संप्रदायसे संबंध -चर्या-स्त्री० खड्ग चलानेका अभ्यास ।-जीवी (विन) न हो।
-वि० तलवारसे जीविका करनेवाला, सिपाही। -दंत, असांसद-वि० [सं०] ( अनपार्लिमेंटरी) संसदकी मर्यादा, -दंष्ट्र, दंष्ट्रक-पु० मगर, घड़ियाल । -पुत्रिका, कार्यविधि, परंपरा आदिके प्रतिकृल; जो संसदमें कहने -पुत्री-स्त्री० छुरी। या करने योग्य न हो (अशिष्ट)।
असित-वि० [सं०] अश्वेत; काला; नीला। पु० काला असा-पु० [अ०] डंडा, सोंटा; चाँदी या सोना मढ़ा हुआ या नीला रंग; शनि; कृष्ण पक्ष; धव वृक्ष । -केशासोंटा । -बरदार-पु० राजा, दूल्हे आदिकी सवारीके स्त्री० काले बालोंवाली स्त्री। -गिरि-नग-पु० नील आगे-आगे असा लेकर चलनेवाला ।
गिरि, नीलाचल । -पक्ष-पु० कृष्ण पक्ष । असाई*-वि० अश, मूर्ख ।
असितांबुज-पु० [सं०] नील कमल । असाक्षिक-वि० [सं०] जिसका कोई साक्षी न हो; जिसकी असितार्चि (स)-पु० [सं०] अग्नि । तसदीक न हुई हो।
| असितोपल-पु० [सं०] नीलम । असाक्षी (क्षिन)-वि० [सं०] जो चश्मदीद गवाह न हो; 'असिद्ध-वि० [सं०] अप्रमाणित; न पका हुआ, कच्चा गवाह बननेके अयोग्य ।
अपूर्ण असफल; जिसे योगसिद्धि न मिली हो। पु० एक असाक्ष्य-पु० [सं०] गवाहका न होना ।
हेत्वाभास जिसमें हेतु स्वयं असिद्ध होता है। असाढ़-पु० आषाढ़ मास ।
असिद्धि-स्त्री० [सं०]अपूर्णता विफलता साबित न होना। असाढ़ा-पु० रेशमका बटा हुआ तागा; एक तरहकी कच्ची असिव*-वि० दे० 'अशिव' । चीनी।
असीम-वि०[सं०] जिसकी सीमा न हो,बे-हद; बे-हिसाव असाढ़ी-वि० असाढ़का । स्त्री० असाढ़में बोयी जानेवाली
अपार । फसल; आषाढकी पूर्णिमा।
असीमित-वि० [सं०] जिसकी हद नबाँधी गयी हो; असाढ़ -पु० मोटी सिल्ली, भोट (१)।
अपरिमित । असाध*-वि० असाध्यअसाधु ।
असीर-वि० [अ०] बंदी, कैदी। असाधन-वि० [सं०] साधनहीन । पु० साधन या सिद्धि असीरी-स्त्री० [अ०] कैद । न होना।
असील-वि० [अ०] कुलीन, शुद्ध रक्तवाला, नेक; *असल । असाधारण-वि० [सं०] जो साधारण, आम न हो, विशेष, असीस*-स्त्री० आशीर्वाद । गैरमामूली । -राजदूत-पु० ( एंबैसेडर एक्स्ट्राआडि- असीसना*-स० क्रि० आशीर्वाद देना। नरी) विशेष अवसरपर या विशेष उद्देश्यसे भेजा गया असुंदर-वि० [सं०] भद्दा, जो सुंदर न हो; अप्रशस्त । राजदूत ।
अस-पु० [सं०] प्राण; प्राण वायु; चित्त; पलकका छठा असाधु-वि० [सं०] दुर्जन, दुष्ट; असदाचारी; खोटा; अप्रा- भागः विचार; हृदय; शोक; * घोड़।। -त्याग-पु० माणिक; असंस्कृत (शब्द)। पु० बुरा आदमी।
प्राणत्याग। असाध्य-वि० [सं०] जिसका साधन वा सिद्धि न हो। असकर-वि० [सं०] जिसे करना कठिन हो। सके; अच्छा न होनेवाला, लाइलाज (रोग); अति | असुख-वि० [सं०] अप्रसन्न, दुःखी; । पु० दुःख, कष्ट । कठिन ।-साधन-पु०न हो सकनेवाले कामको कर लेना। असुखी (खिन्)-वि० [सं०] दुःखमय, दुखी;शोकपूर्ण। असाध्वी-स्त्री० [सं०] व्यभिचारिणी, असती।
असुखोदय-वि० [सं०] दुःखकारक; दुःखांत । असामयिक-वि० [सं०] जो नियत समयपर न हो, बेवक्त, असुग-वि०, पु० दे० 'आशुग' । बेमौका ।
असुचि-वि० दे० 'अशुचि' । असामर्थ्य-स्त्री० [सं०] अक्षमता,सामर्थ्यहीनता; निर्बलता। असप्त-वि० [सं०] जो सोया न हो, जागता हुआ। असामान्य-वि० [सं०] असाधारण, जो औरों में न मिले, असुभ*-वि० दे० 'अशुभ'। विशेष ।
असुर-पु० [सं०] दैत्य, दानव; सूर्य, राहु, बादल; खल,
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असुराई-अस्थायी
दुष्ट । वि० जीवित; अपार्थिव; ब्रह्म या वरुणका एक विशे- रण आदिमें भूल-चूक न करनेवाला; शुद्ध; सत्पथसे न षण । -गुरु-पु० शुक्राचार्य । -राज-पु० राजा बलि । बहकनेवाल!; अच्युत । -रिपु,-सूदन-पु० विष्णु।।
अस्तंगत-वि० [सं०] डूबा हुआ; अवनत; नष्ट लुप्त । असुराई*-स्त्री० असुरत्व उत्पात ।
अस्त-वि० [सं०] डूबा हुआ फेंका हुआ; गत; समाप्त । असुराचार्य-पु० [सं०] शुक्राचार्यः शुक्र ग्रह ।
पु० (सूर्य-चंद्रका) डूबना; अदृश्य होना; ह्रास पतन; अंत; असुराधिप-पु० [सं०] राजा बलि ।
नाश कुंटली में लग्नसे सातवाँ स्थान । -गमन-पु. असुरारि-पु० [सं०] विष्णु; देवता ।
डूबना लोपः मृत्यु । -गिरि-पु० पश्चिमी पर्वत । असुरी-स्त्री० [सं०] राक्षसी; राई ।
-व्यस्त-वि० तितर-बितर, जहाँ-तहाँ बिखरा हुआ असविधा-स्त्री० सुभीता न होना; अड़चन; कठिनाई । अव्यवस्थित, बे-तरतीब । असुस्थ-वि० [सं०] अस्वस्थ, बीमार ।
अस्तन*-पु० दे० 'स्तन'। असहाती*-वि० स्त्री० अच्छी न लगनेवाली, बुरी। अस्तबल-पु० [अ०] अश्वशाला, तबेला। असूझ-वि०अंधकारमय जिसका वारापार न मूझे, अपार; अस्तमन-पु० [सं०] डूबना, अस्त होना । विकट । स्त्री० अदूरदर्शिता ।
अस्तमित-वि० [सं०] अस्तंगत । असूत*-वि० असंबद्ध ।
अस्तर-पु० सिले कपड़े, जूते आदिके भीतरकी तह, असूया-स्त्री० [सं०] दूसरेके गुण, सुख, समृद्धि आदिको भितल्ला; अंतरौटा; इत्रकी जमीन; चित्रकी जमीन बाँधनेसहन न कर सकना; दूसरेके गुणमें दोष निकालना का मसाला। जलन, ईर्ष्या रोष; एक संचारी भाव ।
अस्ताचल, अस्ताद्रि-पु० [सं०] पश्चिमका वह कल्पित असूयिता (त), असूयु-वि० [सं०] ईर्ष्यालु; असंतुष्ट । । पर्वत जिसके पीछे सूर्यका अस्त होना माना जाता है। असूर्यपश्या-वि० स्त्री० [सं०] ऐसे कड़े पर्दे में रहनेवाली कि अस्ति-स्त्री० [सं०] सत्ता, भाव, विद्यमानता । -अस्ति*
सूर्यको भी न देख सके । स्त्री० राजमहिषी; पतिव्रता स्त्री। -अ० वाह-वाह ! असृग्दोह-पु० [सं०] खून आना।
अस्तित्व-पु० [सं०] सत्ता, हस्ती, विद्यमान होना। असेग*-वि० असह्य, कठिन ।।
अस्तिमंत-पु० (दि हैज) धनी या संपन्न व्यक्ति । असेचन, असेचनक, असेचनीय-वि० [सं०] जिसको | अस्तु-अ० [सं०] जो हो, ऐसा हो । देखनेसे तृप्ति न हो, अत्यधिक सुंदर ।
अस्तुति-स्त्री० [सं०] प्रशंसा न करना; * दे० 'स्तुति' । असेवन-बि० [सं०] सेवा न करनेवाला उपेक्षा करनेवाला; अस्तुरा-पु० दे० 'उस्तुरा' । अभ्यास न कर परित्याग करनेवाला । पु० उपेक्षा त्याग अस्तेय-पु०[सं०] चोरीन करना; चोरी न करनेका व्रत । " ध्यान न देना।
अस्त्र-पु० [सं०] हथियार, फेंककर चलाया जानेवाला असेवा-स्त्री० [सं०] (रोगी आदिकी) सेवा-शश्रषा न हथियार (बाण आदि); धनुष, मंत्र-प्रेरित बाण आदि; करना, उपेक्षा।
चीर-फाड़का औजार, नश्तर । -कार,-कारक,-कारी असेवित-वि० [सं०] उपेक्षित; जिसकी ओर ध्यान न (रिन्)-पु० हथियार बनानेवाला। -चिकित्सादिया गया हो; जिससे परहेज किया गया हो।
स्त्री० चीर-फाड़, शल्य-चिकित्सा । -जीव-जीवीअसैनिक-वि० [सं०] जो सैनिक न हो; सैनिकसे भिन्न | (विन्),-धारी (रिन्) पु० सैनिक । -निर्माण, (सिविल) देश यां समाजके शासन इत्यादिसे संबंध रखने- शाला-स्त्री० (आर्डनेंस फैक्टरी) तोपें, गोला-बारूद वाला (सैनिकका उलटा), मुल्की (फोजी नहीं)।-व्यय- बम आदि तैयार करनेका कारखाना। -मार्जक-पु० पु० (सिविल एक्सपेंडिचर) असैनिक कार्योंके लिए होने- अस्त्र साफ करनेवाला । -लाघव-पु० अस्त्र चलानेकी वाला व्यय ।
कुशलता । -विद्या-स्त्री० अस्त्र-संचालनकी विद्या, बाणअसैनिकीकरण-पु० [सं०] (डीमिलिटैरिजेशन) किसी
विद्या । -वेद-पु० धनुर्वेद । -शस्त्र-पु० हरबा-हथिस्थान या क्षेत्रका सैन्यविहीन कर दिया जाना।
यार । -शाला-स्त्री० अस्त्र-शस्त्र रखनेका स्थान । असैला*-वि० कुमार्गगामी; अनुचित ।
-शिक्षा-स्त्री० अस्त्र-संचालनकी शिक्षा । असोक*-वि०, पु० दे० 'अशोक' ।
अस्त्रागार-पु० [सं०] हरवा-हथियार रखनेका भंडार, असोच-वि० चिंतारहित, निर्दछ ।
सलहखाना। असोजा-पु० आश्विन मास, कार ।
अस्त्री (स्त्रिन)-वि० [सं०] अस्त्रसे लड़नेवाला, अस्त्रधारी। असोढ-वि० [सं०] जिसका सहन न किया जा सके; जो अस्त्रीक-वि० [सं०] बिना स्त्रीका रँडुआ । वशमें न लाया जा सके।
अस्थल*-पु० दे० 'स्थल'। असोस*-वि० न सूखनेवाला, अशोष्य ।
अस्थाई*-वि० दे० 'स्थायी'। असौंदर्य-पु० [सं०] कुरूपता।
अस्थान-पु०[सं०] बुरा स्थान या अवसर; *दे० स्थान' । असौंध-पु० दुगंध।
अस्थायी (यिन)-वि० [सं०] जो सदा या अधिक दिन असौच-पु० दे० 'अशीच' ।
रहनेवाला न हो, क्षणिक; अस्थिर । -संधि-स्त्री० असौम्य-वि० [सं०] असुंदर. भद्दा; अप्रिय ।
(आमिसटिस) युद्ध समाप्त कर देनेके संबंधों की गयी अस्खलित-वि० [सं०] जो फिसले-डगमगाये नहीं; उच्चा-! अस्थायी संधि ।
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अस्थावर - वि० [सं०] जंगम, चल (संपत्ति) |
अस्थि - स्त्री० [सं०] हड्डी; गिरी। -बंधन - पु० स्नायु बंधन | - भंग - पु० हड्डीका टूट जाना। -भक्ष- पु० हड्डियाँ खानेवाला, कुत्ता । - भुक् ( ज्) - पु० कुत्ता । - शेष - वि० जिसके शरीर में हड्डियाँभर रह गयी हों, बहुत दुबला । - संचय - पु० शवदाह के बाद गंगा आदिमें प्रवाह के लिए हड्डियाँ या राख एकत्र करना; अस्थियोंका ढेर । - संधि-स्त्री० हड्डीका जोड़ । - संभव - पु० मज्जा वज्र । - समर्पण - पु० संचित अस्थियोंको गंगा आदिमें फेंकना । - सार - स्नेह - पु० मज्जा । अस्थिर-वि० [सं०] जो स्थिर न हो; डावाँ-डोल; चंचल; अनिश्चित, बे भरोसेका * स्थिर । अस्थैर्य - पु० [सं०] अस्थिरता ।
अस्निग्ध - वि० [सं०] जो चिकना न हो; कठिन; शुष्क । अस्नेह - पु० [सं०] स्नेहका अभाव |
अस्पंद - वि० [सं०] स्पंदन-हीन, न हिलने-डुलनेवाला । अस्पताल - पु०दवाखाना, चिकित्सालय [अं०' हास्पिटल'] । अस्पष्ट-वि० [सं०] जो साफ दिखाई न दे या साफ समझमें न आये, धुंधला, संदिग्ध ।
अस्पृश्य - वि० [सं०] न छूने लायक, अछूत | अस्पृश्यता - स्त्री० [सं०] स्पर्शकी अयोग्यता, अछूतपन । - आंदोलन - पु० अछूतोद्धार - छुआछूत मिटानेका आंदोलन |
अस्पृष्ट-वि० [सं०] न हुआ हुआ, अछूता । अस्पृह - वि० [सं०] निलोंभ, जिसे लालच न हो । अस्फटिक - वि० [सं०] ( एमार्फस ) जिसका चूर्ण चम
कीला तथा खुरदरा न हो वरन् चिकना जान पड़े । अस्फुट - वि० [सं०] अस्पष्ट; अप्रकट |
अस्मदीय - वि० [सं०] मेरा ।
अस्र - पु० [सं०] कोण; रक्त; आँसू ; केसर; केश । -जपु० मांस । - - वि० रक्त पीनेवाला । पु० राक्षस मूल नक्षत्र । - पा-स्त्री० जोंक; डाकिनी; चुड़ैल | अत्र - पु० [अ०] काल; युग; उम्र; दिनका चौथा पहर । -की नमाज - शामकी नमाज ।
अस्रु-पु० [सं०] दे० 'अश्रु' । अस्ल-पु० [अ०] जड़, मूल; बीज; सचाई; मूल धन; मूल वस्तु; नकलका उलटा | वि० दे० 'असली' । -मेंवास्तव में, सचमुच ।
अस्ली - वि० [अ०] मौलिक; खालिस; खरा; सच्चा । अस्लीयत - स्त्री० [सं०] वस्तुस्थिति, (घटना) सच्ची स्थिति
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अस्थावर - अहल्या.
अस्वीकृति - स्त्री० [सं०] अस्वीकार | अस्वेद, अस्वेदन - पु० [सं०] पसीनेका न निकलना । अस्सी- पु० ८० की संख्या । वि० सत्तर और दस । अहंकार - पु० [सं०] अपनी सत्ताका बोध; गर्व, घमंड; अंतःकरणकी पाँच वृत्तियों में से एक (वेदांत, सांख्य० ) । अहंकारी (रिन्) - वि० [सं०] घमंडी | अहंकृति - स्त्री० [सं०] अहंकार, गर्व । अहंता - स्त्री० [सं०] घमंड, गर्व अहंपूर्विका, अहं प्रथमिका - स्त्री० [सं०] होड़, प्रतिद्वंद्विता । अहंवाद - पु० [सं०] डींग मारना । अहंवादी ( दिन ) - वि०, पु० [सं०] डींग मारनेवाला । अह - अ० अचरज, दुःख, क्लेश आदिका सूचक उद्गार । अह (न्) - पु० [सं०] दिन; सूर्य; विष्णु । अहक * - पु० लालसा, अतृप्त आकांक्षा । अहकना * - अ० क्रि० इच्छा करना, कामना करना । अहटाना * - अ० क्रि० आहट मिलना; दुखना । स० क्रि० पता लगाना ।
अहथिर - वि० दे० 'स्थिर' |
अहद - पु० [अ०] दे० 'अहद' (प्रतिश। ) ।
अहदी - वि० [अ०] आलसी । पु० वह सैनिक जिससे असाधारण आवश्यकता के समय ही काम लिया जाय (अकबरकी सेनाकी एक श्रेणी) ।
अहना* - अ० क्रि० वर्तमान रहना, होना । अहनिसि - * अ० दे० 'अहर्निश' ।
अहमक़
अहम - वि० [अ०] बहुत जरूरी, महत्त्वपूर्ण । क्र - वि० [अ०] जडमति, मूर्ख, नासमझ । अहमग्रिका, अहमहमिका- स्त्री० [सं०] चढ़ाऊपरी, होड़, प्रतियोगिता; 'अहंपूर्विका' | अहमिति * - सी० घमंड, गर्व । अहमेव - पु० [सं०] घमंड, गर्व ।
अहम् - सर्व० [सं०] मैं । पु० अहंभाव, अहं तत्त्व -मतिस्त्री० गर्न, घमंड, ममता । -मन्य-वि० अपनेको बहुत बड़ा माननेवाला |
अहरणीय - वि० [सं०] जो हटाने या हरण करने योग्य न हो; ढ़, स्थिर । पु० पहाड़ । अहरन, अहरनि * - स्त्री० निहाई । अहरना-स० क्रि० लकड़ी छीलकर सुडौल करना । अहरह - अ० [सं०] दिन-दिन ।
अहरा - पु० आग सुलगानेके लिए लगाये गये कंडे या उपले; इकट्ठा किये हुए कंडेसे तैयार की गयी आग; लोगों के ठहरनेका स्थान; प्याऊ । अहर्निश - 3
- अ० [सं०] दिन-रात; आठों पहर ।
या रूप; जड़ ।
अस्वच्छ - वि० [सं०] गंदा; धुंधला । अस्वाभाविक - वि० [सं०] स्वभावविरुद्ध अनैसर्गिक, अहर्पति -पु० [सं०] सूर्य । अहर्मणि - पु० [सं०] सूर्य |
बनावटी ।
अहलकार - पु० दे० 'अहकार' ।
अस्वामिक- वि० [सं०] विना मालिकका, लावारिस | पु० अहर्मुख- पु० [सं०] उपःकाल, सबेरा, भोर । वह धन या संपत्ति जिसका कोई दावागीर न हो । अस्वास्थ्य - पु० [सं०] रोग, बीमारी । अस्वीकार - पु० [सं०] न मानना; इनकार; न लेना । अस्वीकृत - वि० [सं०] न माना हुआ, नामंजूर; ग्रहण न किया हुआ ।
५-क
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अहलना * - अ० क्रि० हिलना; दहलना । अहलमद - पु० दे० 'अहमद ' ।
अहल्या- स्त्री० [सं०] गौतम ऋषिकी पत्नी जो शापसे शिला बन गयी थी और जिसने रामके चरण
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.अहवान-आँख
७२
स्पर्शसे पुनः पूर्वरूप प्राप्त कर लिया। -जार-पु० इंद्र। अफीम । -बेल-स्त्री० [हिं०] दे० 'अहिवल्ली' । -भुक् -नंदन-पु० अहल्याके पुत्र, सतानंद ।
(ज)-पु० गरुड़ा मोर; नेवला । -भृत्-पु. शिव । अहवान*-पु० दे० 'आह्वान'।
-माली (लिन् )-पु० शिव । -मेध-पु० सर्पसत्र, अहवाल-पु० [अ०] वृत्तांत, समाचार हाल ('हाल'का बहु०)। नागयश। -लता-स्त्री० नागवल्ली, पान, गंधनाकुली। अहसान-पु० दे० 'एहसान'।
-वल्ली-स्त्री० नागवल्ली, पान । -विषापहा-स्त्री० गंधअहस्कर-पु० [सं०] सूर्य ।
नाकुली। -साव*-पु० साँपका बच्चा, सँपोला । अहस्तक्षेप-नीति-स्त्री० [सं०] (लैसेज फेयर) अर्थ-शास्त्रियों-अहित-पु० [सं०] हितका अभाव या उलटा, बुराई, अपका यह सिद्धांत कि देशके आर्थिक मामलों (व्यापारादि) कार; हानि; शत्रु । वि० अहितकर, अपथ्या विरोधी । - में राज्यको बिलकुल हस्तक्षेप न करना चाहिये।
कर,-कारी (रिन् )-वि० हानि, अपकार करनेवाला । अहस्तांतरकरणीय-वि० [सं०] (इनएलाइनेबिल) जिसके अहिम-वि० [सं०] ठंढा नहीं, गरम । -कर,-किरण,स्वामित्व या अधिकारका हस्तान्तरण न किया जा सके। । रश्मि-पु० सूर्य । अहस्तांतरणीय-वि० [सं०] (नान-ट्रांसफरेविल) जो हस्तां-अहिमांशु-पु० [सं०] सूर्य । तरित न किया जा सके, जिसका हस्तांतरण न हो सके। अहिवात-पु० सुहाग । अहह-अ० [सं०] दुःख, क्लेश, आश्चर्य और संबोधन- अहिवातिन, भहिवाती-वि० स्त्री०सौभाग्यवती, सधवा। सूचक उद्गार ।
अहीर-पु० आभीर, ग्वाला। अहा, अहाहा-अ० हर्ष तथा विस्मय-सूचक उद्गार । अहीश-पु० [सं०] सर्पराज; लक्ष्मण; बलराम । अहाता-पु० [अ०] दे० 'एहाता'।
अहुटना*-अ० क्रि० हटना, अलग होना। महान*-पु० आह्वान, पुकार ।
अहुटाना*-स० क्रि० हटाना, दूर करना। अहार*-पु० दे० 'आहार'।
अहठ-वि० साढ़े तीन । अहारना-स० क्रि० लकड़ीको छील-छालकर सुडौल करना; अहेतु-वि० [सं०] हेतुरहित । पु० हेतुका अभाव; एक चिपकाना; * आहार करना, खाना ।
अलंकार, जहाँ कई कारणोंके विद्यमान रहते हुए भी कार्यअहारी*-वि० दे० 'आहारी'।
का न होना वर्णित किया जाय। अहाये-वि० [सं०] जो हरा, चुराया न जा सके; जो धन अहे(है)तुक-वि० [सं०] हेतुरहित, अकारण। या चकमा देकर वशमें न किया जा सके; दृढ़, न अहेर-पु० आखेट, शिकार । बदलनेवाला।
अहेरी-वि०शिकारी । पु० शिकार करनेवाला, आखेटक । अहिंसक-वि० [सं०] हिंसा न करनेवाला।
अहो-अ० [सं०] विस्मय, प्रशंसा, खेद, विषाद, धिक्कारअहिंसा-स्त्री० [सं०] किसी प्राणीको न मारना; मन, सूचक उद्गार संबोधन में भी व्यवहृत । -रूपमहीध्वनिवचन, कर्मसे किसीको पीडा न देना हैस नामकी घास। परस्पर प्रशंसा (लोको०)। -वादी (दिन)-वि० अहिसा सिद्धांतकोमाननेवाला। अहोरात्र-पु० [सं०] दिन और रात दो सूर्योदयोंके बीचअहिंस्र-वि० [सं०] अहिंसक।।
का समय । अहि-पु० [सं०] साँप; सूर्य; राहु वृत्रासुर; पथिका जल; अहोरा-बहोरा-पु० ब्याह या गौनेमें दुलहिनका ससुराल पृथिवी; ठग, वंचक; बादल; नाभिः सीसा अश्लेषा नक्षत्र।। जाकर उसी दिन वापस आना । अ० बार-बार । -कोष-पु० केंचुल । -च्छत्रक-पु० कुकुरमुत्ता। - अहद-पु० [अ०] प्रतिज्ञा काल; राजत्व । -नामा-पु० जित्-पु० कृष्ण । -जिह्वा-स्त्री० नागफनी। -तुंडिक प्रतिज्ञापत्र, इकरारनामा। -पु० सपेरा। -द्विष,-मार,-रिपु-पु० गरुड़, नकुल; अह-वि० [अ०] योग्य, अधिकारी, पात्र । पु० कुटुंबी। मयूर; इंद्र। -नाथ-पु० शेषनाग । -नाह*-पु० -कार-पु० कर्मचारी राजकर्मचारी ।-(हे)कलमशेषनाग । -निर्मोक-पु० केंचुल । -पति-पु० वासुकि वि० लेखक; लेखन-व्यवसायी; शिक्षित । नाग; कोई बड़ा साँप । -फेन-पु० साँपकी लार या विषः अहीयत-स्त्री० [अ०] योग्यता, पात्रता।
आ
आ-देवनागरी वर्णमालाका दूसरा अक्षर और अका दीर्घ रूप। | आँकुस*-पु० दे० 'अंकुश' । भा-अ० विस्मयसूचक शब्द ।
आँकू-पु० आँकनेवाला, कृतनेवाला । ऑक-पु० अंक; अदद; चिह्न; अक्षर; अँकवारगोदः | आँख-स्त्री० देखने-रूपबोध करनेकी इंद्रिय, नयन, चक्षुः सिद्धांत; निश्चय; अंश; लकीर ।.
निगाह, दृष्टि; कृपादृष्टि; परख, पहचान; ईखकी गाँठपरकी औंकड़ा-पु० अंक, हुक; पशुओंका एक रोग।
नोक जिससे अँखुआ निकलता है; अँखुआ; आँखकी शक्लका ऑकना-सक्रि० कृतना,अनुमान करना निशान लगाना।। चिह्न (मोरपंखपरका); छिद्र (सूईका); ध्यान; संतान । - आँकर*-वि० गहरा; महँगा; बहुत ज्यादा ।
-मिचौली-मीचली-स्त्री० लड़कोंका एक खेल। भाँकुड़ा-पु० अंकुड़ा।
-मचाई-स्त्री० आँखमिचौनी । मु०-आना, श्रांकुशिक-पु० [सं०] अंकुश मारनेवाला, महावत ।
उठना-आँखों में लालिमा आकर उनमें पीड़ा और
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सूजन होना । - उठाकर न देखना- ध्यान न देना, उपेक्षा करना; लज्जा आदिके कारण सामने न देखना । - उठाना - निगाह सामने करके देखना; बुरी निगाह या शत्रुभावसे देखना । - उलट जाना - मरनेके समय आँखोंका पथरा जाना; घमंड होना । - ऊँची न होना - लज्जाके कारण सामने न देखना; नजर बराबर न करना । - ऊपर न उठाना -लज्जा या भयसे सामने न देखना । - ओट, पहाड़ ओट-सामने न होनेपर दूर-नजदीक एकसा होना । - कडुआना - आँख गड़ाकर देखने या देरतक ताकने के कारण आँख में पीड़ा होना । -का अंधा गाँठका पूरा - पैसोंवाला, पर मूर्ख । -का अंधा नाम नयनसुखनाम-गुण में विरोध, कालेको गोरा कहना । -का काँटाजिसे देखकर कष्ट हो; शत्रुः कार्यमें बाधक । -का काजल चुराना - सामने या पासकी वस्तु चुरा लेना, सफाईसे हाथ मारना | का कोया, -का डेला - आँखका उभरा हुआ सफेद भाग जिसपर पुतली रहती है। -का जाला - आँखका एक रोग जिसमें पुतलीपर सफेद झिल्ली आ जाती है । - का तारा-का तिल- कनीनिका; प्रिय व्यक्ति । - का परदा उठना-भ्रम दूर होना । -का पानी ढल जाना - निर्लज्ज हो जाना। -की किरकिरी - आँखका काँटा । - की ठंढक- प्रिय व्यक्ति या वस्तु । -की पुतली - आँख के भीतर के परदेका वह भाग जो बाहरसे काला दिखाई देता है; अति प्रिय व्यक्ति की पुतली फिरनाआँखका पथराना। -की बढ़ी भौके आगे- किसीका दोष उसके मित्र या संबंधी के सामने कहना । - खुलनापलक खुलना; जागना; भ्रम दूर होना; दिमागपर तरीताजगी पहुँचना । - खुलवाना - आँख बनवाना । - खोलना - आँख बनाना; सावधान करना; होश में आना । - गढ़ना - आँख दुखना; दृष्टि जमना । - गड़ानाटकटकी लगाकर देखना । - चमकाना - आँखोंसे संकेत करना; आँख मटकाना -चर जाना - नजर गायब होना । -चुराकर कुछ करना - छिपकर कुछ करना । - चुराना, - छिपाना-कतरा जाना, सामना बचाना; लज्जा से सामने न देखना; बे-मुरौवत हो जाना । - चूकना - गाफिल होना । - जमना - दृष्टि स्थिर रहना । - झपकना - पलक गिरना, नींद आना । -झपकानाआँख से संकेत करना । - झेंपना - लज्जित होना । - टँगना - पुतलीका स्तब्ध होना, टकटकी बँधना । - टेढ़ी करना - बेमुरौवती दिखलाना। -दिखानारोष या अवज्ञासूचक दृष्टि से देखना । - न खोलना( ज्वर आदिके कारण ) गाफिल, बेसुध होना । -न ठहरना - चमक आदिके कारण दृष्टिका न टिकना । - न पसीजना - आँख में आँसू न आना । -निकालनाआँखके डेलेको निकालना; क्रोधपूर्ण दृष्टिसे देखना । - नीची करना या होना - लज्जित होना । - नीलीपीली या लाल-पीली करना-गुस्सा दिखाना; धमकाना । - पटपटा जाना-आँख फूटना । - पड़ना - दृष्टिगत होना; पानेकी इच्छा होना। -पथराना - मरनेके समय पुतलीका गतिहीन होना । - पसारना, - फैलाना- दूरतक नजर दौड़ाना। - फड़कना - पलकका बार-बार हिलना
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(इसके आधार पर शुभाशुभका अनुमान किया जाता है) । - फाड़-फाड़कर देखना - आश्चर्य या औत्सुक्य के साथ देखना । - फूटना - अंधा होना; बुरा मालूम होना, देखकर जलना । - फेरना- पहलेकासा प्रेम न रखना, निगाह बदलना । - फोड़ना - आँख नष्ट करना; आँखपर जोर पड़नेवाला काम करना । - बंद कर ( मूंदकर ) कोई काम करना - बिना सोचे-समझे कोई काम करना; और किसी बातकी परवा न कर अपना काम करते जाना । — बंद होना, -मुँदना - आँख झपकना; मृत्यु होना । - बचाना - आँख चुराना । -बनानामोतियाबिंद आदिका शल्योपचार करना । - बराबर करना - सामने ताकना; डटकर बात करना । - बिगड़ना - आँख खराब होना । - बिछानाआदरपूर्वक स्वागत करना । - बैठना- चोट आदिके कारण आँखका नष्ट हो जाना ; आर्थिक आघात लगना । -भर आना - आँखका अश्रुपूर्ण होना । - भर देखना- अच्छी तरह देखना । -मचकाना - बार-बार पलकें गिराना; संकेत करना। -मारनाआँखोंसे इशारा करना । - मिलाना - बराबरीके भावसे देखना | - मूँद लेना - न देखना, ध्यान न देना । - में भाँख डालना - आँख मिलाना; धृष्टतापूर्ण दृष्टिसे देखना । - में खटकना - बुरा मालूम होना । - में गड़ना - खटकना; मन लुभा लेना । - में चुभना - पसंद आना; बुरा लगना । - में बसनाध्यानपर चढ़ना । - मोड़ना - आँख फेरना । - लगनानींद आना; दिल लगना। -लड़ना - नजर मिलाना; प्रेमदृष्टि से देखना । - लड़ाना - आँख मिलाना, घूरना । - ललचाना - देखनेकी इच्छा होना। -लाल करनाक्रोधपूर्ण दृष्टि से देखना। -सामने न करना-लज्जा आदिके कारण सामने न ताकना । - सेंकना - सौंदर्यदर्शनका सुख लेना, हसीनोंको घूरना । -से आँख मिलाना - नजर बराबर करना; आँख लड़ाना । ( फूटी ) - से भी न देखना- तुच्छ समझना । - होनापरख होना, ज्ञान होना । (खें ) चढ़ना - नींद आदिके कारण पलकोंका चढ़ जाना। -चार करना, -होनादेखादेखी होना । - ठंढी होना- जी भरना, तृप्त होना । - डबडबाना - आँखों में आँसू भर आना । - तरेरनाक्रोधकी दृष्टिसे देखना । -दौड़ाना- नजर दौड़ाना, इधर-उधर देखना । - फिर जाना-बेमुरौवत होना, नजर बदल जाना। -बदल जाना-नजर बदल जाना, कृपादृष्टि न रहना । (खों ) की ठंढक- प्रिय व्यक्ति या वस्तु । - की सूइयाँ निकालना - किसीके कोई काम लगभग पूरा कर लेने पर थोड़ा करके सारा श्रेय लेनेका प्रयत्न करना । - के आगे अँधेरा छाना-मूच्छित होना; निर्बलता आदिके कारण क्षणमात्र के लिए कुछ न देख पड़ना । - के आगे अँधेरा होना- विपत्ति आदिमें अपनेको असहाय पाकर निराश होना; मूच्छित होना । - के आगे चिनगारी छूटना - चोट आदिके कारण चकाचौंध होना । - के आगे नाचना, या फिरना -सामने इथ मौजूद रहना; स्मृतिमें बना रहना । -के आगे
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आँखड़ी - आंबिय
रखना - सामने रखना । - के डोरे-आँखों के सफेद भागपर लाल रंगकी बारीक नसें । - के तारे छूटना - चोट आदिके कारण चकाचौंध होना । -के सामने नाचना - स्मृतिमें बना रहनाः दृश्य सामने रहना । - देखा हुआ - स्वयं देखा हुआ । - पर पट्टी बाँध लेना - ध्यान न देना । पर परदा पड़ना-भ्रम होना, समझमें न आना । - पर बैठाना - आदर के साथ रखना । - पर रखना - खातिरदारी के साथ रखना । -मेंनजर में, परखमें । - में काजल घुलना - काजलका खूब लगना । - में खून उतरना - क्रोधसे आँखोंका लाल होना । - में चढ़ना-पसंद आना, जँचना । - में चुभना - अच्छा न लगना, खटकना । में टेसूमें तीसी, - में सरसों फूलना - ध्यान में रहनेवाली बात सर्वत्र दिखाई देना; मस्ती आना । - में धूल झोंकना या डालना - धोखा देना । - में नाचना-ध्यान बना रहना । दृश्य सामने रहना । - में फिरना-ध्यान बना रहना ; - में बसना, - में समाना - दिल में घर कर लेना । - में बैठना - पसंद आना । - में भंग घुटना - भंगके नशे में होना । - में रखना - प्यारसे रखना, हिफाजत से रखना । - में रात काटना - जागकर रात बिताना। - में शील होना - मुरौवती होना । - में समाना - ध्यानपर चढ़ना; स्मरण बना रहना । लगना - ऊपर आना, शरीरपर बीतना । - से उतरना - नजरोंसे उतर जाना। -से ओझल होना - सामने न रहना, दृष्टिसे परे होना । - से काम करना - इशारेसे काम निकालना । - से गिरना - आँखोंसे उतरना । -से लगाकर रखना - प्यार के साथ रखना । आँखड़ी * - स्त्री० आँख; अँखड़ी ।
आँखा - पु० एक तरह की छलनी ।
आँग* - पु० अंग; शरीर; स्तन । आँगन - पु० चौक, अजिर, घरके भीतरका सहन । आंगिक - वि० [सं०] अंग या शरीर संबंधी; अंगचेष्टा द्वारा व्यंजित या कृत ( भाव, अभिनय आदि ) । पु० शारीरिक चेष्टाः कायिक अनुभाव । - अभिनय - पु० शारीरिक चेष्टाओं द्वारा किया जानेवाला अभिनय । आँगी* - स्त्री० अँगिया ।
आँगुर (ल) पु० अंगुल ।
आँगुरिया * - स्त्री० दे० 'आँगुर' |
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आदिका सामने रहनेवाला छोर; ॐचला; स्तन (ला० ) । मु० - दबाना - दूध पीना । - देना- बच्चेको दूध पिलाना; विवाहकी एक रीति; आँचलसे हवा करना । - में बाँधना - गाँठ बाँधना, अच्छी तरह याद कर लेना; ( किसी वस्तुको ) सर्वदा साथ रखना । - लेना - आँचल से पैर छू
कर प्रणाम करना । आँजन-पु० अंजन |
आँजना - स० क्रि० अंजन लगाना । आंजनेय - पु० [सं०] हनूमान् ।
आँट - पु० अँगूठे और तर्जनी के बीच की जगह; दाँव; पूला; लाग-डाट; गाँठ । - साँट - स्त्री० साजिश, बंदिश । मु० - पर चढ़ना - दाँवपर चढ़ना । आँटना* - अ० क्रि० अँटना; पूरा पड़ना; पार पाना; पहुँचना मिलना, हाथ लगना । स० क्रि० अँटाना । आँटी-स्त्री० गुल्ली-डंडा खेलनेकी गुल्ली; पूला; सूतका लच्छा; कुश्तीका एक पेच; टेंट ।
आँठी - स्त्री० दही, बलगम आदिका थक्का; गाँठ; गुठली । आँड़ - पु० अंडकोष |
आँड़ी - स्त्री० गाँठ, कंद; सिरा; पहियेकी साभी । आँडू - वि० जो वधिया न हो, अँडुआ (बैल) । भाँत - स्त्री० पाचन संस्थानका आमाशय के बादसे मलद्वारतकका भाग जिसमें से होकर आहार, रसग्रहणके बाद, मलरूपमें बाहर निकलता हैं, अंत्र, अंतड़ी । मु० -उतरना - आँत उतनेकी बीमारी, अंत्रवृद्धि, 'हानियाँ' । - ऐंटना - आँतों में ऐंठन होना, मरोड़ होना । आँतें कुलकु (बु)लाना-भूखसे देचैन होना । - मुँह में आना - आँतों में वल पड़ना। समेटना - भूख सहना । - सूखना- बहुत भूखा होना । आँतोंका बल खुलना
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छककर खाना ।
आँतर - पु० अंतर; खेतका वह भाग जो एक बार जोतने के लिए घेरा जाता है; पानीको क्यारियोंके बीच छोड़ा गया
रास्ता ।
आंतरिक्ष- वि० [सं०] अंतरिक्ष-संबंधी, आकाशीय । आंत्र - वि० [सं०] आँतसे संबंध रखनेवाला । पु० आँत । आंत्रिक - वि० [सं०] अंत्र-संबंधी ।
आँदू*-५० सीकड़; बेड़ी ।
आंदोलन - पु० [सं०] इधर से उधर आना-जाना, झूलना, हिलना; हलचल, किसी बात के लिए व्यापक सामूहिक प्रयत्नः तहकीक |
आंदोलित - वि० [सं०] कंपित; झुलाया हुआ; हलचलसे पूर्ण । आँध-स्त्री० अँधेरा; रतौंधी; आफत |
आँगुरी* - स्त्री० उँगली ।
आँधी - स्त्री० महीन जालीसे मढ़ी छलनी । आँच - स्त्री० गरमी ; जलन; लपट; आग; ताव; तेज; चोट, हानि, अहित; संकट; प्रेमः कामताप । मु० - आनाहानि होना; कष्ट, आघात पहुँचना । - खाना- आँचपर पकाया जाना; (पकायी जानेवाली चीजका ) अधिक आँच
खा जाना, ताव खाना ।
आंचन, आंछन- पु० [सं०] अस्थिभंग, मोच आदि ठीक करना; शरीर से काँटा, बाण आदि निकालना ।
आँचना * - स० क्रि० जलाना, तपाना ।
आँचर* - पु० दे० 'आँचल' ।
बाहलदी - स्त्री० आमाहलदी ।
आँचल - पु० शाल, दुपट्टे आदिका छोरा साड़ी, धोती | आंबिकेय - पु० [सं०] कार्त्तिकेयः धृतराष्ट्र |
आँधना * - अ० क्रि० हल्ला बोलना, टूट पड़ना । आँधर, आँधरा - * वि० अंधा । आँधारंभ- पु० अंधेर, मनमाना कार्य । आँधी-स्त्री० धूलभरी जोरकी हवा, तूफान; भारी हलचल । वि० आँधी-जैसा वेगवान्, बहुत तेज । मु०-उठना - हलचल मचना; तूफान उठना ।
आँधे * - स्त्री० दे० 'अधी' ।
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आँ-बाँय - पु० अंडदंड, निरर्थक प्रलाप, बकबक | आँव - पु० एक तरहका चिकना मल; पेचिश रोग । आँट - पु० किनारा; कपड़े या बरतनका किनारा । आँवड़ना* - - अ० क्रि० उमड़ना, बह निकलना । आँवड़ा * - वि० गहरा
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आँवरा - पु० आँवला |
आँवल - स्त्री० खेड़ी, वह झिल्ली जिसमें गर्भस्थ शिशु लिपटा रहता है।
आँवलगट्टा - पु० सूखा आँवला ।
आँवला- पु० एक पेड़ या उसका फल जो मुरब्बा, अचार बनाकर खाने या दवा के काममें आता है । - पत्ती - स्त्री० सिलाईका एक प्रकार । -सार गंधक-स्त्री० साफ की हुई गंधक
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आवा- पु० दे० 'आवाँ' ।
आंशिक - वि० [सं०] अंश संबंधी; कुछ, थोड़ा ।
कज-पु० [सं०] धूप दिखलाया हुआ पानी । आँस* - पु० आँसू ; वेदना, कष्ट । स्त्री० डोरी, रेशा । आँसी * - स्त्री० वायन, भेंद ।
आँसू - पु० नेत्रजल, अश्रु । - ढाल - पु० चौपायों का एक रोग जिसमें आँखों से बहुत पानी गिरता है । मु० - गिराना, - ढालना - रोना । -पीकर रह जाना-मन मसोसकर रह जाना । ( किसीके ) - पोंछना - ढाढ़स बँधाना । आँसुओं से मुँह धोना - बहुत रोना । आँहड़-पु० बरतन |
हाँ - अ० निषेधसूचक शब्द, नहीं ।
आ - उप० [सं०] तक ( आसेतु ); से ( आजन्म ); ( आजीवन); सहित ( आबालवृद्ध) आदिका सूचक । आइंदा - वि० [फा०] आनेवाला, भविष्य । अ० आगे । आइ* - स्त्री० आयु, जीवन ।
आइस (सु) - पु० दे० 'आयसु ' ।
आई* - स्त्री० आयुः मौत ।
आईन - पु० [अ०] विधान, कानून, नियम । आईना - पु० [फा०] दर्पण, शीशा [ला०] स्पष्ट, खुला; किवाडेका दिल्हा । - बंदी - स्त्री० कमरे में झाड़ आदि सजाना; फर्शमें पत्थर आदिकी जुड़ाई; रोशनी करने के लिए टट्टियाँ खड़ी करना। -साज़-पु० आईना बनानेवाला । मु० आईने में मुँह देखना- अपनी योग्यता समझ लेना ।
आईनी - वि० [अ०] वैध, विधानसंगत; नियमबद्ध | आउ* - स्त्री० दे० 'आयु' ।
आउज ( झ ) * - पु० एक बाजा, ताशा । आउ वाउ - पु० आयें-बायें (बकना); प्रलाप | आकंप, आकंपन- पु० [सं०] हिलना, काँपना । आकंपित - वि० [सं०] हिला, काँपा हुआ; हिलाया या कँपाया हुआ; क्षुब्ध किया हुआ ।
आक- पु० मदार |
आक़ (क्रि) बत- स्त्री० [अ०] मृत्यु या प्रलयके बादका काल; परलोक । मु० - बिगड़ना - परलोक बिगड़ना | भाकबाक* - पु० दे० 'अकबक' | आकर - पु० [सं०] खान; उत्पत्तिस्थान; भांडार; भेद ।
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आँय - आकाश
- ग्रंथ - पु० शब्दकोश, विश्वकोष आदि ऐसे ग्रंथ जिनमें शब्दों देशों, व्यक्तियों, घटनाओं इत्यादिका विवरण दिया रहता है और जिनसे ग्रंथादिके प्रणयनमें सहायता ली जाती है, संदर्भ-ग्रन्थ, निर्देश-ग्रंथ ( बुक्स ऑव रेफ्रेंस ) । - भाषा - स्त्री०वह मूल प्राचीन भाषा जिससे कोई नयी भाषा, आवश्यकता होनेपरं, शब्द ग्रहण करे । आकरखना * - स० क्रि० आकृष्ट करना, खींचना । आकरिक - पु० [सं०] खानके कामकी निगरानी करनेवाला; खान खोदनेवाला |
भर आकर्षित - वि० [सं०] दे० 'आकृष्ट' ।
आकरी - स्त्री० [सं०] खान खोदनेका धंधा; * व्याकुलता, आकली ।
आकर्ण-अ० [सं०] कानतक । वि० कानतक पहुँचा हुआ, कानको छूता हुआ । आकर्णन - पु० [सं०] सुनना |
आकर्णित - वि० [सं०] सुना हुआ ।
आकर्ष - पु० [सं०] खींचनाः खिंचाव; चुंबक, पासा; पासेका खेल; पासेकी बिसात; कसौटी । आकर्षक - वि० [सं०] खींचनेवाला; दूसरोंका मन, ध्यान अपनी ओर खींचनेवाला, रोचक, सुंदर । आकर्षण-पु० [सं०] ( अपनी ओर ) खींचना; खिंचाव; दूरस्थ व्यक्तिको मन खींचकर बुला लेनेका तांत्रिक प्रयोग । - शक्ति - स्त्री० किसी भौतिक पदार्थको अन्य पदार्थको अपनी ओर खींचनेकी प्राकृतिक शक्ति, चुंबक-शक्ति । आकर्षन * - पु० दे० 'आकर्षण' | आकर्षना* - स०क्रि० खींचना |
आकलन - पु० [सं०] ग्रहण, पकड़ना; समझाना; इकट्टा करना;, गिनना; खोज करना, अनुसंधान; इच्छा, आकांक्षा ।
आकलित - वि० [सं०] गृहीत; संगृहीत; आवद्ध; गुँथा हुआ; कंपित किया हुआ; समझा हुआ; परिगणित । आकली*-स्त्री० बेचैनी, व्याकुलता; गौरैया नामक पक्षी । आकस्मात् * - अ० दे० 'अकस्मात् ' ।
आकस्मिक - वि० [सं०] अचानक होनेवाला, इत्तिफाकी; कारणहीन । - छुट्टी - स्त्री० अचानक आवश्यकता पड़नेपर ली जानेवाली छुट्टी । आकस्मिकतानिधि - स्त्री० [सं०] (कंटिनजेंसी फंड ) वह निधि या कोष जिसमें से अकस्मात् उपस्थित होनेवाली आवश्यकता आदिके लिए रुपया व्यय किया जा सके । आकांक्षा - स्त्री० [सं०] चाह, इच्छा; अपेक्षा; वाक्यमें
अर्थ- पूर्ति के लिए पदविशेषकी आवश्यकता; खोज - पूछ । अकांक्षित - वि० [सं०] चाहा हुआ; अपेक्षित । आकांक्षी (क्ष) - वि० [सं०] इच्छा, अपेक्षा रखनेवाला । आकार - पु० [सं०] रूप, शल; गढ़न, बनावट; लंबाईचौड़ाई, फैलाव ( छोटा-बड़ा आदि ); एकरूपता; 'आ' स्वर । - पत्र - पु० (फार्म) दे० 'प्रपत्र' | आकारी* - वि० बुलानेवाला ।
आकाश - पु० [सं०] पंच महाभूतोंमेंसे प्रथम जो शब्द गुणवाला माना जाता है, आसमान; ईथर; शून्य (ग०); शून्य स्थान; अवकाश; छिद्र, रंध्रः ब्रह्म; अभ्रक । - कुसुम,
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आकाशी-आग
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-पुष्प-पु० आसमानका फूल, अनहोनी बात।-गंगा- आक्षेप-पु० [सं०] फेंकना; उछालना; खींचना; लांछन; स्त्री० आकाशमें उत्तरसे दक्षिणतक फैला हुआ छोटे-छोटे आपत्ति, एतराज; एक अलंकार जिसमें विवक्षित वस्तुकी तारोंका समूह; आकाशवाहिनी गंगा, मंदाकिनी-चारी कुछ विशेषता प्रतिपादित करनेके लिए निषेध-सा किया (रिन्)-वि० आकाशमें चलने-फिरनेवाला (पक्षी, ग्रह जाता है; एक वातरोग । आदि)। -दीप,-दीया [हिं०],-प्रदीप-पु० बाँसके आक्षेपक-वि० [सं०] आक्षेप करनेवाला; शिकारी । सिरेपर बाँधकर जलाया जानेवाला दीया या लालटेन । आखंडल-पु० [सं०] इंद्र । -नदी-स्त्री० आकाशगंगा। -निंब-पु० अकासनीम । | आखत-पु० अक्षत; विवाह आदिमें नाई आदिके लिए -निद्रा-स्त्री०,-शयन-पु० खुली जगहमें सोना । - | निकाला जानेवाला अन्न; केसर आदिमें रंगा हुआ चावल भाषित-वचन-पु० अभिनयमें किसी पात्रका आकाशकी | जो दूल्हे या देवताके मस्तकपर लगाया जाता है।
ओर देखकर कोई प्रश्न करना और फिर उसका उत्तर आखन*-अ० प्रतिक्षण । देना।-मंडल-पु० खगोल । -वल्ली-स्त्री० अमरबेल । आखना*-स० क्रि० कहना; देखना चाहना; उल्लंघन -वाणी-स्त्री० आसमानसे आनेवाली आवाज, अभौ
करना; छलनीसे छानना । तिक वाणी; रेडियो। -वृत्ति-स्त्री० ऐसी जीविका आखनिक-पु० [सं०] खोदनेवाला; खान खोदनेवाला; जिसका कुछ ठीक-ठिकाना न हो, अनिश्चित वृत्ति । - चूहा; शूकर; चोरः कुदाल | सलिल-पु० मेह, ओस ।मु०-खुलना-आसमान साफ आखर*-पु० अक्षर, वर्ण । होना, बादल हटना। -छूना-बहुत ऊँचा होना। | आखा-पु० झीने कपड़ेसे मढ़ी छलनी; खुरजी । * वि० -पाताल एक करना-भारी प्रयास करना, हलचल पूरा, समूचा; अनगढ़ा। मचाना। -पातालका अंतर-बहुत बड़ा अंतर । -से आखात-पु० [सं०] उत्खनन; कुदाल खंती; उपसागर । बातें करना-बहुत ऊँचा होना।
आखिर-पु० [फा०] अंत, समाप्ति, सीमा; परिणाम । वि० आकाशी-स्त्री० धूपसे बचनेके लिए ताना गया चॅदोवा। अंतका, पिछला । अ० अंतमें, आखिरको अवश्य; भला; आकाशीय-वि० [सं०] आकाश-संबंधी; आकाशमें स्थित मगर । -कार-अ० अंतमें । या उत्पन्न ।
आख़िरी-वि० [अ०] अंतिम, सबसे पीछेका । आकीर्ण-वि० [सं०] फैलाया;बिखेरा हुआ भराहुआ,व्याप्त। आखु-पु० [सं०] चूहा; चोर; सूअर, कुदाल; देवताड़। आकंचन-पु० [सं०] सिकुड़ना; सिमेटना, टेढा होना।।
आखेट-पु० [सं०] शिकार, मृगया। आकुंचित-वि० [सं०] सिकुड़ा हुआ कुटिल घुघराले(केश)। | आखेटक-पु० [सं०] शिकारी शिकार । आकुंटित-वि० [सं०] जड़ा लज्जित; कुंद, भोथरा । आखोर-पु० [फा०] पानी पीनेकी जगह; चौपायोंके चारा आकुल-वि० [सं०] उद्विग्न, परेशान; बेचैन; भरा हुआ; खानेका स्थान, सार, चरनी; उनके आगेकी घास, उनके अव्यवस्थित; दबा; अभिभूत (शोकाकुल)।
खानेसे बचा चारा रद्दी चीज; कूड़ा। वि० निकम्मा; आकुलता-स्त्री० [सं०] बेचैनी, उद्विग्नता; परेशानी। । सड़ा-गला; गंदा। -की भर्ती-रद्दी चीजोंका ढेर। आकृति-स्त्री० [सं०]रूप,गढ़न; चेहरा; जाति; एक वर्णवृत्त। आख्या-स्त्री० [सं०] नाम; विवरण; व्याख्या; यश आकृष्ट-वि० [सं०] खींचा हुआ।
(रिपोर्ट) दे० 'प्रतिवेदन'। आक्रंदन-पु० [सं०] रोना, चिल्लाना; पुकारना । आख्यात-वि० [सं०] कहा हुआ प्रसिद्ध। आनंदी (दिन)-वि० [सं०]रोने,चिल्लाने या पुकारनेवाला। आख्याति-स्त्री० [सं०] कहना, बताना नाम, प्रसिद्धि । आक्रम-पु०[सं०]निकट जाना प्राप्त करना; पराभूत करना। आख्यान-पु० [सं०] कहना, वर्णन; वृत्तांत; कथा-कहानी; आक्रमण-पु० [सं०] पास जाना; टूट पड़ना; चोट करना; वह कथा जिसे कवि या लेखक स्वयं कहे; पौराणिक कथा। हमला, चढ़ाई पराभूत करना; आक्षेप ।
आख्यायिका-स्त्री० [सं०] सिलसिलेवार कहानी या आक्रमित-वि० [सं०] जिसपर आक्रमण किया गया हो,। वृत्तांत; शिक्षा देनेवाली कल्पित कथा; वह आख्यान आक्रांत ।
जिसमें पात्र भी कहीं-कहीं अपना चरित्र अपने मुँहसे आऋमिता-वि० स्त्री० [सं०] (वह नायिका) जो मनसा- | कहते है। वाचा-कर्मणा नायकको अपने वशमें करे ।
आगंतक-वि० [सं०] बिना बुलाये आनेवाला; अचानक आक्रांत-वि० [सं०] जिसपर हमला किया गया हो। प्राप्त; आने या होनेवाला; अजनबी प्रक्षिप्त भूला-भटका (जानपराभूत; जिसपर कब्जा किया गया हो; कष्टग्रस्त । वर); आकस्मिक । पु०क्षेपक; अजनबी; अतिथि। आक्रामक-वि० [सं०] आक्रमण करनेवाला।
आग-स्त्री० अग्नि; कामाग्नि, वात्सल्य प्रेम; जलन; आक्रोश-पु० [सं०] कोसना शाप निंदा, कुत्सा; कटूक्ति झगड़ा संताप, अंताला । पु० ऊखका अगौर, हरसेकी आक्रोशक-वि० [सं०] कोसने, शाप देनेवाला ।
नोकके पास बना हुआ खड्डा । वि० जलता हुआ, गरम; आक्रोशन-पु०[सं०] कोसना, शाप देना बुरा-भला कहना। (ला०) अति ऋद्ध ।*अ० आगे। मु०-उठाना-झगड़ा आक्रोष्टा (ष्ट)-वि० [सं०] आक्रोशक ।
उठाना; दबी वेदनाको जगाना। -का पुतला-क्रोधी, आक्षिप्त-वि० [सं०] फेंका, गिराया हुआ; छीना हुआ अग्निशर्मा। -के मोल-बहुत महँगा। -खाना अंगार जिसपर आक्षेप किया गया हो; अभिभूत; लांछित; परित्यत्तः । हगना-जैसी करनी वैसी भरनी। -देना-दाहकर्म निर्दिष्ट; जिसे चुनौती दी गयी हो
करना; आतशबाजीमें आग लगाना; जलाना; नष्ट करना;
"ना हुआ सामु.
ला-प्राय
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आगणन-आग्नेय तोषमें बत्ती देना।-पर आग डालना-जलेको जलाना। अधिक कुशल, चतुर । -पर पानी डालना-क्रुद्धको शांत करना, लड़नेवालोंको आगरी-पु० नमक बनानेवाला। समझाना-बुझाना। -पर लोटना-तड़पना, बेचैन होना; आगल*-पु० अगड़ी। वि० अगला । अ० आगे, सामने । ईर्ष्या करना ।-पानीका वैर-सहज वैर ।-फाँकना- आगला* -वि० अगला ।। डींग मारना ।-फूकना-बद्ध करना ।-फूसका वैर- आगवन-पु० दे० 'आगमन' । सहज वैर ।-बबूला या भभूका होना-गुस्सेसे लाल आगा-पु० वस्तुका आगेकी ओरका भाग; अँगरखे आदिमें होना, अतिक्रुद्ध होना ।-बरसना-सख्त गरमी पड़ना आगेका पल्ला या टुकड़ा; मकानके आगेका सहन, अगया लू चलना; गोले-गोलियोंकी बौछार होना ।-बरसाना वारा, सेनाका अग्रभाग, लिंगेंद्रिय; चेहरा; माथा; गलही; -दुश्मनपर गोले-गोलियोंकी वर्षा करना।-बुझा लेना- भविष्या आगम । -पीछा-पु० आगे पीछे होनेवाली कसर निकालना।-बोना-उत्पात खड़ा करना; झगड़ा बातें; (कार्यका) परिणाम, नतीजा; हिचक, पसोपेश; लगाना ।-भड़काना-हलचल मचाना; लड़ाई बढ़ाना; देहका अगला-पिछला भाग, विशेषतः गोपनीय अंग । जोश बढ़ाना ।-भूनना-अति करना ।-में कूदना- मु०-काटना-किसी अपशकुन-कारक व्यक्ति या प्राणीका अपने ऊपर विपत्ति लेना।-में घी छोड़ना या डालना- आगेसे निकल जाना। -भारी होना-गर्भवती होना । क्रोध भड़काना झगड़ा बढ़ाना ।-में झोंकना-(किसीको) आग़ा-पु० [सं०] बड़ा भाई मालिक काबुलका रहनेवाला। आफत, खतरे, अनिष्टमें ढकेल देना।-में पानी डालना- आगान*-पु० प्रसंग हाल, वृत्तांत । क्रोध शांत करना; झगड़ा मिटाना।-लगना-क्रोध भड़क आगामिक-वि० [सं०] भविष्यत् कालसे संबंध रखनेवाला; उठना, गुस्सेसे लाल हो जाना; डाहसे जलने लगना; किसी आनेवाला। वस्तुका बहुत महंगा हो जाना; नष्ट होना । -लगाकर आगामी (मिन्)-वि० [सं०] आनेवाला; भावी । तमाशा देखना-झगड़ा खड़ा करके उसमें आनंद लेना। आगार-पु० [सं०] घर; स्थान; भांडार (अस्त्रागार); -लगाकर पानीको दौड़ना-पहले झगड़ा लगाकर फिर खजाना । -गोधिका-स्त्री० छिपकली । उसको शांत करनेका यत्न करना । -लगाना-क्रोध या आगाह-वि० [फा०] जानकार, खबर रखनेवाला, अमिश । ईर्ष्या भड़काना चुगली खाना; नाश करना। -लगेपर | पु० होनहार, भवितव्य । कुआँ खोदना-पहलेसे करनेके कामको ऐन वक्तपर करने आगाही-स्त्री० जानकारी, सूचना । चलना । -लेने आना-उलटे पाँव लौट जाना। -से आगि*-स्त्रा० आग। पानी होना-क्रोध करनेके बाद शांत होना। -होना- आगिल(ला)-*वि० अगला । क्रुद्ध होना।
आगी*-स्त्री० आग। आगणन-पु० [सं०] ( एस्टिमेट) दे० 'प्राक्कलन'। आगू*-अ० आगे। पु० परिणाम । आगत-वि० [सं०] आया हुआ, पहुँचा हुआ; घटित; आगृहीत-वि० [सं०] (ड्रान) जमा किये हुए धनमेंसे प्राप्त; बाहरसे आया हुआ (माल)। -पतिका,- पुनः निकाला या लिया हुआ। भर्तका-स्त्री० बह नायिका जिसका पति परदेशसे लौटा आगृहीता, आग्राहक-पु० [सं०] (ड्राअर) जमा किये हो -स्वागत-पु० अतिथि, निमंत्रितका स्वागत- हुए धनमेंसे कुछ अंश निकालनेवाला । सत्कार, आव-भगत ।
आगे-अ० सामने सामनेकी और कुछ दूरपर; पहले; आग-पीछ*-पु० आगा-पीछा ।
पीछे बादमें; अधिक; आइंदा; गोदमें । -आगे-अ० आगम-पु० [सं०] आना, अवाई; समागमः प्राप्ति; क्रमशः कुछ दिन बाद; आगे चलकर । -पीछे-अ० एक जन्म; वृद्धि, संचयः (धनागम ), आमदनी; (रेवेन्यू) के बाद एक मुँहपर और पीठ पीछे; अव्यवस्थित रूपसे; दे० 'राजस्व'; प्रवाह; ज्ञान; वेद, शास्त्र; दर्शन; तंत्र- पास-पास; थोड़ा आगे या पीछे; वंशमें ( उसके आगे-पीछे शास्त्र, नीतिशास्त्र, न्यायमें माने हुए चार प्रमाणोंमेंसे कोई नहीं)। मु०-आना-सामना करना; कर्मका फल एक, शब्द-प्रमाण सिद्धांत; साक्षिपत्र; शब्दसाधनमें किसी मिलना; घटित होना । -करना-सामने रखना, हाजिर वर्णकी वृद्धि (व्या०); होनहार; आनेवाला समय: उपक्रम । करना; अगुआ बनाना; खतरे आदिके सामने कर देना, वि० आगामी ।-जानी-वि० [हिं०] होनहार-भविष्यको आड़ लेना ।-को-आगेसे, आइंदा । -डालना-खानेके समझनेवाला । - ज्ञानी (निन्)-वि० दे० 'आगम- लिए सामने रखना ।-दौड़ पीछे चौड़-आगे करते जाना जानी'। -वक्ता(क्त)-वि, पु० भविष्य बतलाने- और पीछेका खयाल न रखना। -धरना,-रखनावाला ।-सोची-वि० [हिं०] आगेकी बात सोचनेवाला । हाजिर करना; भेंट करना; आदर्श बनाना ।-निकलनामु०-जनाना-होनहारकी सूचना देना । -बाँधना- साथियों, प्रतिस्पद्धियोंसे आगे बढ़ जाना। -लेनाआनेवाली बातका निश्चय करना ।
अगवानी करना, आगे जाकर मिलना। -से-पहलेसे; आगमन-पु० [सं०] आना; लौटना; प्राप्ति; उत्पत्ति । भविष्यमें सामनेसे ।-से लेना-वागत करना ।-होकर आगमी (मिन्)-वि० [सं०] ज्योतिषी; सामुद्रिक जानने- लेना-आगे बढ़कर स्वागत करना। होना-अग्रसर होना; वाला; शास्त्रश; आनेवाला; भावी ।
बढ़ जाना; सामना करना; परदा करना; स्वागत करना । आगर-पु० आकर, खान; ढेर, खजाना; घर छप्पर नागौन*-पु० आगमन । नमक जमानेका गड्ढा; * अगड़ी, ब्योड़ा । वि० बढ़कर, भाग्नेय-वि० [सं०] अग्नि-संबंधी; अग्निको अर्पित अग्नि
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आग्नेयास्त्र-आज़ार से उत्पन्न; अग्निगर्भ; जिससे आग निकले; अग्निदीपन; आचार-व्यवहार बिगड़ गया हो, पतित । -विचारअग्नि-जैसा (कीड़ा)। पु० स्कंद; अगस्त्यः किष्किधाके पु० आचार और शौचादिका ध्यान । पासका एक प्राचीन जनपद; अग्नि-पूजक; अग्निको आचारज*-पु० दे० 'आचार्य' । अर्पित हवि आदि; कृत्तिका नक्षत्र, सोना; रक्त; लाख, आचारजी*-स्त्री० पौरोहित्य आचार्य होनेका भाव । बारूद; आग्नेयास्त्र; वह कीड़ा जिसके काटनेसे जलन हो आचारवान (वत्)-वि० [सं०] शास्त्रोक्त कर्म करनेवाला, (भिड़ आदि); ज्वालामुखी पर्वत, आग्नेयी दिशा। कर्मनिष्ठ, सदाचारी। -पुराण-पु० अग्निपुराण ।
आचारी(रिन्)-वि० [सं०] आचारवान्; शुद्ध आचरणआग्नेयास्त्र-पु० [सं०] अभिमंत्रित बाण जिससे आग वाला । पु० रामानुज संप्रदायका अनुयायी, श्रीवैष्णव । निकले; तोप-बंदूक आदि ( फायर आर्स)।
आचार्य-पु० [सं०] गुरु, शिक्षक, उपनयन करने और वेद आग्नेयी-स्त्री० [सं०] अग्निपत्नी, स्वाहा; पूर्व-दक्षिणके पढ़ानेवाला गुरु; (किसी विषयका) असाधारण पंडित; पूज्य बीचकी दिशा प्रतिपदा; अग्नि उद्दीप्त करनेवाली औषध । पुरुष; मतप्रवर्तक; यज्ञमें कर्मका उपदेश करनेवाला; आग्रह-पु० [सं०] लेना, पकड़ना; अनुरोध; हठ; अनुग्रह; पांडवों आदिके गुरु, द्रोणका उपनाम; महाविद्यालयका नैतिक बल; निश्चयः जोर देना; मुस्तैदी ।।
प्रधान अधिकारी (प्रिंसिपल)। -देव-वि० जो आचार्यको आग्रहायण-पु० [सं०] अगहनका महीना ।
अपना आराध्य देव मानता है । आग्रही (हिन्)-वि० [सं०] आग्रह करनेवाला, हठी। आचार्या-स्त्री० [सं०] स्त्री गुरुमंत्रकी व्याख्या करनेवाली। आघ*-पु० अर्घ, मूल्य ।
आचार्यानी-स्त्री० [सं०] आचार्यपत्ली। आधर्षणी-स्त्री० [सं०] ब्रश रबर ।
| आचित्य*-वि. जो चितनमें न आ सके। पु० ईश्वर । आघाट-पु० [सं०] सरहद, सिवान; अपामार्ग; नृत्यके | आच्छन्न-वि० [सं०] छिपा हुआ; ढका हुआ। साथ बजाया जानेवाला एक वाद्य ।
आच्छादक-वि० [सं०] ढकने, छिपानेवाला । आघात-पु० [सं०] चोट; प्रहार घाव; धक्का; वध; बूचड़- आच्छादन-पु० [सं०] ढकना; छिपाना; ढक्कन; खोल; खाना विपत्ति; पेशाबका रुकना।-स्थान-पु० वधालय । वस्त्र, पहनावा; छाजन, ठाट लोप । आघूर्ण-वि० [सं०] चक्कर खाता हुआ, धूमता हुआ। आच्छादित-वि० [सं०] ढका, छिपा हुआ । आघर्णित-वि० [सं०] घुमाया या चक्कर खाया हुआ। आछत*-अ० होते, रहते हुए, मौजूदगीमें । आघोष-पु० [सं०] जोरसे पुकारना, ऊँची आवाजमें आछना*-अ०क्रि० होना, मौजूद होना। कहना मुनादी।
आछा*-वि० दे० 'अच्छा'। आघ्राण-पु० [सं०] सूधना; तृप्ति ।
आछी*-वि० स्त्री० अच्छी । वि० खानेवाला। आघ्रात-वि० [सं०] सूं घा हुआ; तृप्त; स्पृष्ट
आछे*-अ० अच्छी तरह । आघ्रय-वि० [सं०] जो सूघा जाय; सूंघने योग्य । आछेप*-पु० दे० 'आक्षेप' ।। आचमन-पु० [सं०] पूजन आदिके पहले शुद्धिके लिए आज-पु० वर्तमान, बीतता हुआ दिन । अ० वर्तमान हथेलीपर जल लेकर पीना; इस प्रकार पीनेका जल; गर- दिनमें; वर्तमान कालमें; इस घड़ी, इस वक्त। -कलगर शब्दके साथ कुल्ली करना।
पु० वर्तमान काल; नया जमाना । अ० वर्तमान कालमें, आचमनक-पु० [सं०] शूकनेका पात्र, पीकदान । इन दिनों। मु०-कल करना, बताना-टालमटोल करना। आचमनी-स्त्री० कलछीके आकारका चम्मच जिसमें जल -कलका-हालका; नये जमानेका । -कलमें-दो-चार लेकर आचमन करते हैं।
दिनोंमें ही, बहुत जल्द । -कल लगाना-मौत करीब आचरज*-पु० दे० 'अचरज' ।
होना। -को-इस समय । भाचरजित*-वि० दे० 'आश्चर्यित'।
आजन्म-अ० [सं०] जन्मसे, जन्मकालसे लगाकर; जन्मआचरण-पु० [सं०] करना; बताना; अनुसरण; शुद्धि; भर, आजीवन । लक्षण; चरित्र; चाल-चलनः आगमन; नियमः रथ, आज़माइश-स्त्री० [फा०] परीक्षा, जाँचपरीक्षार्थ प्रयोग । गाड़ी। -पंजी,-पुस्तक-स्त्री० (कांडक्टबुक) वह पुस्तक आज़माइशी-वि० [फा०] परीक्षाके लिए किया गया। (पंजी) जिसमें कर्मचारीके आचरण, व्यवहार, कर्तव्य- आजमाना-सक्रि०परीक्षा करना परीक्षार्थ प्रयोग करना । पालन इत्यादिसे संबंध रखनेवाली बातें समय-समयपर आज़मूदा-वि० [फा०] आजमाया हुआ, परीक्षित, अनुभूत। लिखी जाती है।
आजा-पु० दादा, पितामह । आचरणीय-वि० [सं०]आचरण करने योग्य, अनुसरणीय । आज़ाद-वि० [फा०] स्वाधीन, जो दास या बंधुआ न हो; आचरन*-पु० दे० 'आचरण'।
निडर; उद्धत; हाजिरजवाब शास्त्र या लोकाचारके बंधनको आचरना*-स० कि० व्यवहार करना ।
न माननेवाला; बे-परवाह । -खयाल-वि० स्वतंत्र आचरित-वि० [सं०] किया हुआ, अनुसृत निर्दिष्ट । । विचारका । -तबीयत-वि० खुले दिलका, सरल । आचार-पु० [सं०] चरित्र, चाल; अच्छा चाल-चलन; आज़ादी-स्त्री० [फा०] स्वाधीनता, मुक्ति । शील; व्यवहार; शास्त्रोक्त आचार; रिवाजी या रूढ आजानु-अ० [सं०] जाँधके अंत या घुटनेतक ।-बाहुव्यवहार (लोकाचार, कुलाचार ); व्यवहारका तरीका | वि० जिसकी बाँहें घुटनेतक पहँचती हों। आहार; आचरण-संबंधी नियम । -भ्रष्ट-वि०जिसका | आज़ार-पु० [फा०] रोग; कष्ट, पीड़ा।
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आजि-आतश आजि-पु० [सं०] युद्ध युद्धस्थल दौड़का मैदान; सीमा । ताल; डंक । मु० आड़े देना*-ओट करना। आजिज़-वि० [अ०] दीन, लाचार, अशक्त; तंग आया | आड़ना*-स० क्रि० रोकना; बाँधना; बंधक रखना। दुआ; नम्र। [-आना-तंग आना, ऊब जाना। आडा-वि० देखनेवालेके दाहिनेसे बायें या बायेंसे दाहिने आजिज़ी-स्त्री० [अ०] लाचारी,अशक्तता; विनय दीनता। गया हुआ, खड़ा या सीधाका उलटा, पड़ा। पु० एक आजी-स्त्री० दादी, पितामही।।
धारीदार कपड़ा; जहाजका लट्टा; शहतीर; बुनाई में सूत आजीवन-अ० जीवनपर्यंत, जिंदगीभर ।
फैलानेकी लकड़ी। मु०-तिरछा होना-ऋद्ध होना। आजीविका-स्त्री० [सं०] रोजी; रोजगार, धंधा ।
-पड़ना,-होना-बाधक होना; रुकावट डालना। आड़े आज्ञप्त-वि० [सं०] आदिष्ट; जिसके संबंधमें आज्ञा दी आना-संकटमें सहायक होना, कठिनाईमें काम आना; गयी हो।
बाधक होना। -हाथों लेना-व्यंग्य-बाणोंसे वेधना, बुरी आज्ञप्ति-स्त्री०सं०] आशा, आदेश (डिक्री) दीवानी तरह बनाना । मुकदमेमें न्यायालय द्वारा किसीके पक्षमें दिया गया आडि*-स्त्री० हठ । निर्णयः किसी उच्चाधिकारी या परिषद आदिका वह आदेश आड़ी-स्त्री० संगीतका एक ताल; ओर, तरफ । वि० अपने जो किसी व्यवस्था आदिके संबंधमें हो तथा जिसका पक्षका । मानना आवश्यक हो।-हर-पु० आशावाहक, दूत । आड़-पु० एक खटमिट्टा फल और उसका पेड़ आज्ञा-स्त्री० [सं०] हुक्म, आदेश; अनुमति ।-करण,- आढ़-पु० अनाजका एक वजन या परिमाण जो लगभग चार पालन-पु० आदेशका पालन ।-कारी (रिन) वि० सेरके बराबर होता है । स्त्री० आड़; अंतर; एक आभूषण, आज्ञापालक ।-पत्र-पु० हुक्मनामा, आदेशापक पत्र . | टीका । वि० कुशल । मु०-करना-टालमटूल करना। -फलक-वि० वह पत्र जिसपर किसी विषयादिकी आढक-पु० [सं०] आढ़, चार सेरका वजन या माप । आज्ञा लिखी हो।-भंग-पु० आशाका उल्लंघन, आशाके आढ़त-स्त्री० दूसरेके मालको कमीशन लेकर बिकवा देनेका विरुद्ध कार्य करना।
रोजगार; वह स्थान जहाँ ऐसा माल रहे। -दार-पु० आज्ञाता (7)-वि० [सं०] आज्ञा देनेवाला ।
अदतिया । आज्ञापक-वि० [सं०] आशा देनेवाला; मालिक, स्वामी।। आढ़तिया-पु० अदतिया। आज्ञापन-पु० [सं०] हुक्म देना; जताना।
| आल्य-यि० [सं०] (किसी वस्तुसे)संपन्न, भरा-पूरा(धनाध, आज्ञापित-वि० [सं०] आदिष्ट; सूचित ।
बलाढ्य); धनवान् प्रचुर । आज्य-पु० [सं०] धीमधीकी जगह काम आनेवाला पदार्थ। आणक-पु० [सं०] रतिका एक आसन; आना (?)। आटना-स० क्रि० तोपना, ढक देना।
आणविक-वि० (ऐटमिक) अणु-संबंधी, अणुशक्ति-संबंधी। आटविक-पु० [सं०] वनवासी सेनाका एक भेद । आतंक-पु० [सं०] रोग; ज्वर; पीड़ा, भय, दहशतः दबदबा; आटा-पु० पिसा हुआ अन्न, पिसान । मु०-(मुफ- संदेह,अनिश्चयः डंकेका शब्द । -युद्ध-पु० ( वार ऑफ लिसीमें)-गीला होना-कठिनाई में कठिनाई पैदा हो। नर्ज) प्रचारादि द्वारा ऐसा आतंक उत्पन्न करना जिससे जाना। आटे के साथ घन पीसना-बड़े आदमीके शत्रुपक्षका नैतिक साहस छिन्न-भिन्न हो जाय और उसकी साथ छोटेको नुकसान पहुँचाना ।-दालका भाव मालूम
युद्ध-क्षमता क्षीण होने लगे। -वाद-पु० राज्य या होना-अस्लियतका पता चलना; कियेका फल मिलना। विरोधिवर्गको दबानेके लिए भयोत्पादक उपायोंका अवलंबन, -दालकी फिक्र-गृहस्थीकी चिंता ।-में नमक-थोड़ा- 'टेरोरिज्म' । -वादी(दिन)-वि० आतंकवादका आश्रय सा, जरासा।
लेनेवाला राजनीतिक लक्ष्यकी सिद्धिके लिए हत्या और आटोप-पु० [सं०] फूलना, फैलाव; घमंड; आडंबर। डकैतीका सहारा लेनेवाला। आठ-वि० सात और एक, चारका दूना। पु० आठको आतंचन-पु० [सं०] दूधको जमानेके लिए जामन देना; संख्या । मु०-अठारह होना-तितर-बितर होना; हैरान जामन । होना। -आठ आँसू रोना-बहुत विलाप करना। आततायी (यिन्)-वि० [सं०] जिसकी कमान दूसरेकी -पहर चौंसठ घड़ी-हर वक्त । आठों गाँठ कुम्मैत- जान लेनेके लिए खिंच चुकी हो, बधोद्यत, हत्यारा; वह घोड़ा जिसके सब अंग दुरुस्त हों और रंग कुम्मैत हो; निदारुण अपराध करनेवाला। पु० आग लगानेवाला; दुष्ट; चालाक। -पहर-हर वक्त। -पहर सूलीपर जहर देनेवाला; शस्त्रधारी; धन, धरती, स्त्रीका हरण रहना-हमेशा कष्टमें रहना
करनेवाला (स्मृतिकाने इसके वध दोष नहीं माना है)। आठक*-वि० आठ ।
आतप-पु० [सं०] धूप; गरमी; प्रकाश; ज्वर (?) । -त्रभाठे, आठों-स्त्री० अष्टमी तिथि।
त्रक-वारण-पु० छतरी, छाता। -स्नान-पु० (सनआडंबर-पु० [सं०] दिखावा, ठाट-बाट; अनावश्यक या वाथ) विवस्त्र होकर धूप में कुछ समय इस प्रकार बैठना या दिखाऊ आयोजन; बादलोंका गर्जना या हाथीका चिग्धा- लेटना जिससे समस्त शरीरपर सूर्यकी किरणें पड़े। इना; लड़ाईका डंका; डंका बजना; युद्धका कोलाहल; तंबू। आतपी(पिन्)-पु० [सं०] सूर्य । वि० धूप-संबंधी । आडंबरी (रिन)-वि० [सं०] आडंबर करनेवाला ढोंगी। आतम-वि० दे० 'आत्म'। आड़-स्त्री० ओट, परदा बचाव, आश्रय; रोका टेक; एक आत(ति)श-पु० [फा०] आग। -खाना,-गाहभूषण; लंबी टिकली; आड़ा तिलक टीका; संगीतमें एक पु० अग्नि-पूजकों(पारसियों)का अग्निमंदिर आग रखनेका
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आतशक - आत्माराम
स्थान । - ज़नी - स्त्री० आग लगाना । दान - पु० अँगीठी । - परस्त - पु० अग्निपूजकः पारसी । -बाज़पु० आतिशबाजी बनाने या जलानेवाला । - बाज़ी - स्त्री० बारूद भरकर बनाये हुए खिलौने (अनार, महताबी, छहूँदर, पटाखा इत्यादि); इनके जलानेका दृश्य या तमाशा । -मिज़ाज - वि० . झट क्रुद्ध हो जानेवाला, बिगड़ैल | आतशक - स्त्री० [फा०] गरमीकी बीमारी, उपदंश । आतशी - वि० [फा०] अग्नि-संबंधी; अग्निसे उत्पन्न; अग्नि- उत्पादक । - आईना, शीशा - पु० वह शीशा जिसे सूर्य के सामने करनेसे उसके मध्यविंदुके नीचे रखी रुई, तिनका आदि जल उठते हैं ।
आतापि - पु० [सं०] एक असुर जिसे अगस्त्यने चबा डाला था । आतापी (पिन), आतायी (यिन् ) - पु० [सं०] चील | आतिथेय - वि० [सं०] अतिथि-निमित्तक, अतिथिके लिए उपयुक्त (भोजनादि); अतिथिसेवापरायण । पु० अतिथिसत्कार; अतिथि सत्कारकी सामग्री; अतिथि सत्कार करनेवाला, अतिथिपति, मेजबान |
आतिथ्य - पु० [सं०] अतिथि सत्कार, आवभगत । आतिशय्य - पु० [सं०] अतिशयता, बहुतायत । आती-पाती - स्त्री० लड़कोंका छिपने और छूनेका एक खेल आतुर - वि० [सं०] पीडित; बीमार; अशक्तः व्याकुल; अधीर, बेसन; उत्सुक । * अ० जल्द, शीघ्र । - शालास्त्री० दे० 'आतुरालय' । - संन्यास-पु० ऐसे रोगी द्वारा लिया हुआ संन्यास जिसके बचनेकी आशा न रह गयी हो ।
आतुरता - स्त्री० [सं०] अधीरता, उतावली; बेचैनी; शीघ्रता । आतुरताई* - स्त्री० आतुरता ।
आतुराना* - अ० क्रि० उतावला होना; उत्सुक होना । आतुरालय - पु० [सं०] चिकित्सालय, अस्पताल ।
आतुरी* - स्त्री० आतुरता ।
आत्मभरि - वि० [सं०] अपना ही पेट पालनेवाला; खुदगर्ज । आत्म - वि० [सं०] ( 'आत्मन् ' शब्दका समासमें व्यवहृत रूप । अपना, निजका; आत्माका, मनका । -कथास्त्री० अपनी जीवन कहानी; स्वलिखित जीवनचरित । - कल्याण- पु० अपना भला, हित । -काम- वि० अभिमानी; आत्माको जानने, पानेका अभिलाषी ।-गतवि० मनके भीतरका, स्वगत । - गौरव - पु० अपना गौरवः प्रतिष्ठा; आत्मसम्मान । -घात - पु० आत्महत्या, खुदकुशी । - घातक, -घाती (तिन् ) - वि० आत्महत्या करनेवाला । - घोष-पु० (अपने को ही पुकारनेवाला) कौआ; मुर्गा | - चरित, - चरित्र - पु० आत्मकथा । -जपु० बेटा, वंशधर; कामदेव । - जय - स्त्री० अपनेको जीतना, मन, इंद्रियादिको वशमें कर लेना । - जा - स्त्री० बेटी । - जात-पु० बेटा, वंशधरः कामदेव | -1 - जिज्ञासा स्त्री० अपनेको जानने की इच्छा। -ज्ञान-पु० अपनेको जानना; अध्यात्मज्ञान; ब्रह्मका साक्षात्कार । - तत्त्व - पु० आत्माका स्वरूप, रहस्य । - तुष्टि - स्त्री० आत्मसंतोष | - त्याग - पु० दूसरेके भले के लिए अपने स्वार्थका त्याग । - त्राण - पु० आत्मरक्षा | -द्रोह - पु० अपनेको ही पीड़ा पहुँचाना; अपनी ही हानि करना । निंदा
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स्त्री० अपनी निंदा। -निरीक्षण- पु० अपनेको देखनासमझना, अपने भावों, वृत्तियों, त्रुटियों, दोषोंको जाननेसमझने का प्रयत्न । - निवेदन - पु० अपना तन-मन-धन अपने आराध्य देवको अर्पित कर देना; नवधा भक्तिका एक अंग; अपनी कैफियत । -निष्ठ-वि० आत्मा में निष्ठा रखनेवाला; आत्मसाधन में निरत । - प्रशंसा - स्त्री० अपने मुँह अपनी तारीफ करना । -बल-पु० आत्माका, मनका बल । -बोध- पु० आत्मज्ञान । - भरित योजनास्त्री० ( सेल्फसफीशियन्सी प्लैन ) देशको, प्रदेशको आवश्यक वस्तुओंके संबंध में स्वावलंबी बनानेकी योजना । - भू - वि० स्वयं उत्पन्न । पु० ब्रह्मा; शिव; विष्णुः कामदेव पुत्र | - मंथन - पु० अंतःकरण में अनेक वृत्तियों, भावोंका मंथन होना । -रक्षा-स्त्री० अपना बचाव; इंद्रवारुणी वृक्ष । -रत-वि० ब्रह्मज्ञानी । - वंचक - वि० अपनेको धोखा देनेवाला । -वंचना - स्त्री० अपनेको धोखा देना, अपने दोषको गुणरूपमें देखना । -वध-पु० आत्महत्या | - वाद-पु० आत्माके अस्तित्वका प्रतिपादन । - वादी ( दिन ) - वि० आत्माका अस्तित्व माननेवाला ।-विक्रय - पु० अपनेको, अपनी आजादीको बेच देना । - विद्या - स्त्री० अध्यात्मतत्त्व । - विश्वासपु० अपनी शक्ति, योग्यतापर विश्वास । - विस्मृतिस्त्री० अपनेको भूल जाना, सुध-बुध न रहना, बेखुदी । - वृत्तांत- पु० आत्मकथा ।-शासन-पु०दे० 'स्वराज्य' । - श्लाघा, - स्तुति - स्त्री० आत्मप्रशंसा । -संभव - पु० पुत्रः शिवः ब्रह्मा; कामदेव; ईश्वर । -संयम-पु० अपने मन, इंद्रियादिको वश में रखना । - संवेदन- ५० आत्मबोध |- संस्कार - पु० अपना सुधार । - समर्पणपु० अपनेको ( पुलिस, शत्रुसेना आदिके हाथ ) सौंप देना; हथियार डाल देना । - साक्षात्कार - पु० आत्माका अपरोक्ष ज्ञान | - सात्- अ० अपने अधिकार में । - साधन - पु० आत्मसाक्षात्कार की साधना, मोक्ष-साधन । - सिद्ध-वि० आप ही आप होनेवाला । - हत्या - स्त्री०, - हनन - पु०, - हिंसा - स्त्री० अपने हाथों अपना वध, खुदकुशी ।
आत्मा ( मन ) - स्त्री०, पु० [सं०] जीव, जीवनतत्व; व्यष्टि जीव, जीवात्मा; चेतन तत्त्व; परमात्मतत्त्व; अंत:करण; मन, बुद्धि, स्वरूप, जातः स्वभाव; देही; सार तत्त्व; विचारशक्तिः साहसः शक्तिः पुत्रः सूर्य; अग्नि; वायु । मु०-ठंडी होना - संतोष होना । आत्माधीन - वि० [सं०] अपने वशका | आत्मानंद-पु० [सं०] आत्मज्ञान, आत्म-साक्षात्कार से मिलनेवाला आनंद |
आत्मानुभव - पु० [सं०] अपना तजर्बा । आत्मानुभूति - स्त्री० [सं०] आत्म-साक्षात्कार । आत्मानुरूप- वि० [सं०] गुण आदिमें अपने समान । आत्माभिमान - पु० [सं०] आत्म सम्मान, स्वाभिमान । आत्माभिमुख - वि० [सं०] आत्माकी ओर लौटा हुआ, अंतर्मुख
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आत्माराम - पु० [सं०] आत्मज्ञानका प्रयासी योगी; आत्मामें रमण करनेवाला ।
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उन्नति ।
आत्मार्पण-आदेश आत्मार्पण-पु० [सं०] आत्मनिवेदन, अपनेको अर्पित कर -बाद-पु० वह वाद या मत जिसके अनुसार रचनामें देना।
आदर्श चरित्र आदिकी स्थापना की जाती है। ऊँचे आत्मावलंबी (बिन्)-वि० [सं०] अपने भरोसे सब | सिद्धान्तोंके अनुसरणपर जोर देना। काम करनेवाला ।
आदाता (त)-वि० [सं०] लेने, पानेवाला । आत्मिक-वि० [सं०] आत्म-संबंधी।
आदान-पु० [सं०] लेना, ग्रहण; रोग-लक्षण; बॉधना; आत्मीय-वि० [सं०] अपना । पु० स्वजन, निकट संबंधी। अश्वसज्जा । -प्रदान-पु० लेना-देना, अदल बदल । आत्मीयता-स्त्री० [सं०] अपनापन, मैत्री।
आदाब-पु० [फा०] व्यवहार-नियम; अदब-कायदा; शिष्टाआत्मोत्कर्ष-पु० [सं०] अपना अभ्युदय, आत्मोन्नति । । चार नमस्कार । ('अदब'का बहु०)।-अज़-पु०नमस्कार । आत्मोत्सर्ग-पु० [सं०] दूसरेके हितके लिए अपनेको संकट- | आदायी (यिन)-वि० [सं०] लेने, पानेवाला। में डालना; अपना जीवन अर्पित कर देना।
आदि-वि० [सं०] प्रथम; मूल; प्रधान । पु० आरंभ मूलआत्मोदय-पु० [सं०] अपना अभ्युदय ।
कारण; परमेश्वर; । अ० वगैरह, इत्यादि । -कर्ता (1)आत्मोद्धार-पु० [सं०] अपना उद्धार, मुक्ति अपने ही पु० स्रष्टा । -कवि-पु. वाल्मीकि; ब्रह्मा । -कांडप्रयत्नसे अपना छुटकारा।
पु० रामायणका प्रथम कांड, बालकांड । -कारण-पु० आत्मोन्नति-स्त्री० [सं०] अपनी या अपनी आत्माकी सृष्टिका मूल कारण, उपादान (सांख्यमतसे मूल प्रकृति,
वैशेषिकमतमे परमाणु, वेदांतमतसे ब्रह्म) । -काव्यआत्मोपजीवी (विन्)-पु० [सं०] अपने ही श्रमसे पु० वाल्मीकीय रामायण । -देव-पु० परमेश्वर, नाराजीविका चलानेवाला; मजदूर, अभिनेता ।
यण, विष्णु । -पर्व (न्)-पु. महाभारतका पहला आत्यंतिक-वि० [सं०] जिसकी अतिशयता हो, अत्यधिक। पर्व। -पुराण-पु० ब्रह्मपुराण । -पु(पू)रुष-पु० आग्रेय-वि० [सं०] अत्रि-संबंधी; अत्रिसे या उनके गोत्रमें परमेश्वर, नारायण, विष्णु । -रस-पु० श्रृंगार (सा०)। उत्पन्न | पु० अत्रि-पुत्र (दत्त, दुर्वासा, चंद्रमा); अत्रिका -राज-पु० पृथुः मनु । -शक्ति-स्त्री० महामाया; वंशज।
दुर्गा । -वासी(सिन्)-पु० किसी देशके मूल निवासी। आत्रेयी-स्त्री० [सं०] अत्रि-पत्नी; अत्रिगोत्रकी स्त्री रज- आदिक-अ० [सं०] वगैरह, इत्यादि । स्वला ।
आदित्य-पु० [सं०] सूर्य देव; अदितिके इन बारह पुत्रों आथना*-अ० क्रि० होना।
मेंसे कोई जो सभी सूर्य माने जाते हैं-धाता; मित्र,अर्यमा, आथर्वण-वि० [सं०] अथर्ववेद या अथर्वण ऋषिसे संबंध रुद्र, वरुण, सूर्य, भग, विवस्वान् , पूषा, सविता, त्वष्टा और रखनेवाला अथवा उनसे उत्पन्न । पु० अथर्ववेदका ज्ञाता विष्णुः विष्णुका वामन अवतार; १२ की संख्या; मदार । ब्राह्मण; अथर्ववेदोक्त कर्म करानेवाला पुरोहित ।
वि० अदितिसे उत्पन्न; आदित्य-संबंधी या आदित्यसे उत्पन्न । आथी*-स्त्री० पूँजी।
-मंडल-पु० सूर्यके चारों ओरका प्रभा-मंडल । -वारआद*-स्त्री० (?) दे० 'आदि' ।
पु० रविवार । -सूनु-पु० सूर्यपुत्र-सुग्रीव, यम, शनि आदत-स्त्री० [अ०] अभ्यास, बान, टेक, लत; व्यसन । और कर्ण। आदतन्-[अ०] अभ्यासतः, स्वभावतः; स्वभावानुरोधसे । आदिम-वि० [सं०] आदिमें उत्पन्न; पहला, पुराना । आदम-पु० [अ०] यहूदी, इसलाम आदि धर्मोंके अनुसार आदिल-वि० [अ०] अदल-इंसाफ करनेवाला, न्यायी। ईश्वरसृष्ट प्रथम मनुष्य, आदि-मानव; मनुष्य । -क़द- आदिष्ट-वि० [सं०] आदेश-प्राप्त; जिसे (कार्यका) आदेश वि० मनुष्यके आकारका । -खोर-वि०, पु० नरमांस- | किया गया हो, कथित । -धनादेश-पु० (आर्डरचेक) भक्षी । -जाद-पु० आदम-संतान, मनुष्य ।
वह धनादेश जिसकी पीठपर पानेवालेको अर्थात् जिसके आदमियत-स्त्री० दे० 'आदमीयत' ।
नाम वह जारी किया गया हो उसे, पहलेसे हस्ताक्षर आदमी-पु० [अ०] मनुष्य व्यक्ति नौकर; पति (बोल- | करना पड़ता है, तभी उसका भुगतान किसी अन्य आदिष्ट चाल)। मु०-बनना-मनुष्यताआना,सभ्यता, शिष्टता | आदमीके हाथ किया जा सकता है । सीखना; संपन्न होना, पैसा पैदा कर लेना ।
आदी-वि० [अ०] अभ्यरत; जिसे किसी चीजकी आदत, आदर्मायत-स्त्री० [अ०] मनुष्यता, इनसानियत; भल- लत लग गयी हो, व्यसनी । * अ० निपट; तनिक भी। मनसी।
स्त्रिी० अदरक । आदर-पु० [सं०] सम्मान; इज्जत; पूज्यभाव; कद्र; उत्सु- आदीपन-पु० [सं०] आग लगाना; उत्तेजित करना; कता प्रयत्न; आरंभ; प्रेम ।-भाव-पु० आदर-सत्कार । | दीवारकी सफेदी करना । आदरण-पु० [सं०] आदर करना ।
आहत-वि० [सं०] आदर-प्राप्त सम्मानित । आदरणीय-वि० [सं०] आदरके योग्य, सम्मान्य । आदेय-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य; जिसपर शुल्कादि आदरना*-स० क्रि० सम्मान करना।
लिया जा सके। पु० ( असेट्स) वह धन जो हमें दूसरोंसे आदरस*-पु० दे० 'आदर्श'।
पावना हो या जो हमें अपनी संपत्ति-घर, मेज, कुरसी आदर्श-पु० [सं०] आईना; मूल लेख; असल; वह व्यक्ति | आदि-बेचनेसे प्राप्त हो सकता हो, परिसंपत् । या कार्यादि जो अनुकरणीय हो नमूना; टीका, व्याख्या। आदेश-पु० [सं०] आज्ञा, हुक्म हिदायत सलाह; विवरण; -बिंब-पु० गोल आईना । -मंदिर-पु० शीशमहल ।। भविष्यकथन; एक अक्षरके स्थानपर दूसरे अक्षरका आना
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आदेशक-आनत
(व्या०); ग्रह-नक्षत्रोंकी स्थितिका फल (ज्यो०); *प्रणाम । संबंधी; न्यायालयके आदेशसे होनेवाला। -देय-वि०( पेयेबिल टु आर्डर) (वह हुंडी आदि) जिसका आधिकारिक-वि० [सं०] अधिकार या अधिकारीसे संबद्ध रुपया किसीको देनेका आदेश प्राप्त होनेपर दिया जाय। साधिकार; सरकारी, 'आफिशल' । पु० मूल कथावस्तु । आदेशक-वि० [सं०] आदेश-आज्ञा करनेवाला । आधिकोषिक-पु० [सं०] (बैंकर) किसी अधिकोष (बैंकका आदेशी (शिन)-वि० [सं०] आदेश करनेवाल;ज्यौतिषी। मालिक, साझेदार, संचालक आदि । आदेष्टा (ष्ट)-वि० [सं०] दे० 'आदेशक' ।
आधिक्य-पु० [सं०] अधिकता, बहुतायत; प्राधान्य । आदेस*-पु० दे० 'आदेश' ।
आधिदैविक-वि० [सं०] दैवकृत या भूत-प्रेतकृत (शादि)। आद्यत-अ० [सं०] आदिसे अंततक । पु० आदि-अंत। । आधिपत्य-पु० [सं०] प्रभुत्व; राज्य । आद्य-वि० [सं०] आदिका पहला, प्रथम प्रधान। आधिभौतिक-वि० [सं०] प्राणियों या पंचभूतोंसे संबद्ध आद्यक्षर-पु० [सं०] (इनीशल्स) किसी व्यक्तिके नामके या उनसे उत्पन्न । विभिन्न शब्दों या खंडोंके आरंभके अक्षर जो पूरे नामके आधीन*-वि० दे० 'अधीन' । बदले (प्रायःसंक्षिप्त हस्ताक्षरके रूपमें) लिख दिये जाते हैं। आधीनता*-स्त्री० दे० 'अधीनता' । आद्यक्षरित-वि० [सं०] (इनीशल्ड) जिसपर पूरे हस्ताक्षरके आधुनिक-वि० [सं०] आजकलका, वर्तमान कालका। बजाय नामके आरंभके अक्षर मात्र लिख दिये गये हों। | आत-वि० [सं०] किसीके सहारे टिका हुआ, अवलंबित । आद्या-स्त्री० [सं०] दुर्गा प्रतिपदा ।
आधेक -वि० अ० दे० 'आधिक' ।। आद्योपांत-अ० [सं०] आदिसे अंततक ।
आधेय-वि० [सं०] जो रखा या स्थापित किया जाय; जो आद्रा-स्त्री० दे० 'आर्द्रा'।
धारण किया जाय; जो बंधक रखा जाय; किसी आधारआध-वि० दे० 'आधा'।
पर टिका हुआ; ठहराने या रखने योग्य । पु० किसी आधमर्य-पु० [सं०] कर्जदार होना ।
आधार पर रखी या टिकायी हुई वस्तु; रखनेकी क्रिया । आधा-वि० वस्तुके सम विभागों में से किसी एकके बराबर, आध्यात्मिक-वि० [सं०] परमात्मा या आत्मासे संबंध अर्द्ध, नीम, निस्फ। -सीसी-स्त्री० आधे सिरका दर्द। रखनेवाला; मनसे संबंध रखनेवाला। म०-तीतर, आधा बटेर-कुछ एक तरहका, कुछ दूसरी
आनंत्य-पु० [सं०] असीमता; अमरत्व । तरहका, बेमेल । -होना-दुबला होना, सूखना। आधी
आनंद-पु० [सं०] मोद, हर्ष, खुशो, मीज ब्रह्मा; मदिरा बात न पूछना-कदर न करना । आधे आध-दो बराबर ४८वाँ संवत्सर । -कानन-पु० काशी। -जल,-वाष्प या अर्द्ध भाग।
-पु० आनंदजन्य अश्रु । -बधाई-स्त्री०, आधाझारा-पु० चिचड़ा।
-बधावा-पु० [हिं०] उछाह-बधावा; उत्सव-मंगल ।आधाता (त)-वि० [सं०] आधान करनेवाला; बंधक रखने- -मंगल-पु० सुख-चैन, हँसी-खुशी। -मत्ता-स्त्री० वाला।
| दे० 'आनंदसम्मोहिता' ।-वन-पु० काशी। -सम्मोआधान-पु० [सं०] रखना, स्थापन; ग्रहण, लेना; अग्नि- हिता-स्त्री० संभोगके आनन्द में विभोर प्रौढ़ा नायिका । होत्रके लिए अग्निका स्थापन; धारण करना; पूरा करना; आनंदना*-अ० क्रि० आनंदित होना। रखने या जमा करनेका स्थान; धेर; बंधक, धरोहर । आनन्दमय-वि० [सं०] आनंदसे भरा हुआ। -कोशआधार-पु० [सं०] सहारा, आलंबन; वह जो किसी वस्तुको पु० वेदांतमें माने हुए आत्माके पाँच कोशों या आवरणोंधारण करे; बरतन; तालाब बाँध; अधिष्ठान; पात्र (ना०); | मेंसे अंतिम । थाला; संबंध; अधिकरण कारक; (बेस) त्रिभुजकी कोई आनंदयिता(त)-वि० [सं०] आनंद देनेवाला । भी भुजा जो बेंड़ी दिशामें खींची गयी होया आवश्यकता- आनंदाश्र-पु० [सं०] आनंदके अतिरेकसे निकलनेवाले नुसार ऐसी मान ली गयी हो। -स्तंभ-पु० किसी कार्य आँसू । या वस्तुका मुख्य आधार ।
आनंदित-वि० [सं०] प्रसन्न, खुश । आधाराधेयभाव-पु० [सं०] आश्रयाश्रयिभाव ।
आनंदी (दिन)-वि० सं०] प्रसन्न, मुदिता प्रसन्न आधारित-वि० दे० 'आधृत' ।
करनेवाला। आधि-स्त्री० [सं०] मानसिक पीड़ा; अभिशाप; विपत्तिः आन-स्त्री० मर्यादा, गौरव, गर्व, ठसक; दुहाई शपथ बंधक, धरोहर ।-कर्ता (त)-पु० (पॉनर) कोई वस्तु या ढंग; शर्म; भय; अदब, लिहाज; घोषणा; हठ । * वि० किसी व्यक्तिको किसीके पास धरोहर या जमानतके रूपमें अन्य, दूसरा। -बान-पु० सजधज; ठसक । मु. रखनेवाला । -ग्राही-पु० (पॉनी) वह जो कोई धरोहर -तोड़ना-प्रतिज्ञा भंग करना हठ छोड़ना ।-रखनाया जमानतकी वस्तु अपने पास रखे। -पाल-पु० अपनी बात रखना। धरोहरका रक्षाप्रबंध करनेवाला राजकर्मचारी। -भोग- आन-स्त्री० [अ०] क्षण, लहज़ा। मु०-की आनमेंपु० धरोहरकी चीजका उपयोग । -मोचन-पु० बंधक बातकी बातमें। छुड़ाना। -व्याधि-स्त्री० मन और शरीरकी पीड़ा। आनक-पु० [सं०] डंका, नगाड़ा; गड़गड़ाता हुआ बादल । आधिका-वि० आधा या आधेके लगभग । अ० लगभग -दुंदुभि-पु० कृष्णके पिता वसुदेव । -दुंदुभी-स्त्री० आधा; किंचित् ।
नगाड़ा। आधिकरणिक-पु० [सं०] न्यायाधीश । वि० न्यायालय- आनत-वि० [सं०] झुका हुआ; नम्र, विनीत ।
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आनति-आपात आनति-स्त्री० [सं०] झुकना प्रणाम करना; सत्कार; संतुष्टि । आनुमानिक-वि० [सं०] अनुमान, अटकलपर आश्रित । आनद्ध-वि० [सं०] बँधा या मढ़ा हुआ; कोष्ठबद्ध । पु० | आनुवंशिक-वि० [सं०] वंशपरंपरासे प्राप्त, पुश्तैनी । मढ़ा हुआ बाजा-ढोल, मृदंग आदि बनाव-सिंगार। आनुषंगिक-वि० [सं०] संबद्धः अप्रधान, गौण प्रासंगिक । आनन-पु० [सं०] मुंह; चेहरा ग्रंथका बड़ा खंड, अध्याय ।। आप-पु० [सं०] पानी प्राप्ति; एक वसु; आकाश । वि० आननफानन-अ० तुरत, अति शीघ्र ।
प्राप्य । -गा-स्त्री० नदी। -निधि-पु० समुद्र। . आनना*-स० क्रि० लाना।
आप-सर्व० खुद, स्वयं; तुम, वे, येका आदरार्थक रूप । आनमित-वि० [सं०] झुकाया हुआ, नवाया हुआ। पु० परमात्मा। -काज-पु० अपना काम । -काजीआनम्य संविधान-पु० [सं०] (फ्लेक्सिबिल कांस्टिट्यूशन) वि० अपना मतलब देखनेवाला । -बीती-स्त्री० अपने किसी राज्यका ऐसा संविधान जिसमें देश-कालकी आवश्य- ऊपर बीती हुई बात; अपने जीवन या तदंतर्गत घटनाकताके अनुसार आसानीसे परिवर्तन किया जा सके। विशेषकी कहानी। -स्वार्थी-वि० खुदगर्ज, मतलबी। आनयन-पु०[सं०] लाना; पास ले जाना; उपनयन संस्कार। मु०-आप करना-खुशामद करना । -आपकी पड़ना आनर्त-पु० [सं०] सौराष्ट्र देश या वहाँका निवासी रंगशाला; -अपने-अपने कामोंमें व्यस्त रहना । -आपको अलग
नृत्यशाला; नृत्य; युद्ध; जल; एक सूर्यवंशीय नरेश । अलग, अपने-अपने अपनेको । -से आप-खुद-बखुद, आनर्तन-पु० [सं०] नाचना ।
अपने आप । -ही आप-स्वतः, अपने मनसे; मन ही मन । आना-अ० क्रि० एक जगहसे चलकर दूसरी जगह (कहने आपण-पु० [सं०] बाजार, दुकान ।। या सुननेवालेके पास या उसके स्थानपर) पहुँचना; वहाँके आपणिक-वि० [सं०] बाजार संबंधी; बाजारसे प्राप्त (कर लिए रवाना होना; लौटना शुरू होना; फल-फूल लगना; आदि) । पु० दुकानदार; बाजार, दुकानका कर। मिलना; भोज्य वस्तुका पकना; स्खलित होना; ज्ञान या आपतिक-वि० [सं०] आकस्मिक; दैवी; अदृष्ट। पु० बाज। अभ्यास होना; अँटना; बैठना; बदना (धान कमरतक आ| आपत्-स्त्री० [सं०] दे० 'आपद्'। -काल-पु० मुसीगये हैं); आविर्भाव होना, (क्रोधादिका) उत्पन्न होना । बत,कष्ट, कठिनाईके दिन । -कालिक-वि० आपत्कालमें पु० रुपयेका सोलहवाँ भाग, चार पैसे; सोलहवाँ भाग । होनेवाला; आपत्कालके लिए उचित । -सहायकार्य-पु० आता-जाता-आने-जानेवाला । आना-जाना-आमद- (रिलीफ वर्क) दुष्काल या बाढ़, भूकंपादि जैसे संकटके रफ्त, मिलना-जुलना । आनी-जानी-आने-जाने बनने- समय आर्त और असहाय जनताकी सहायताके लिए आरंभ बिगड़नेवाली, अस्थिर, नश्वर । मु० आ धमकना
किया गया सार्वजनिक निर्माण कार्य । अचानक आ जाना। आ निकलना-अचानक पहुँच आपत्ति-स्त्री० [सं०] विपत, संकट; दोष; उज, एतराज । जाना । आ पड़ना-यकायक आ जाना, टूट पड़ना; आपदा-स्त्री० [सं०] विपत् । संकट, विपद् आना । आ बनना-अवसर हाथ लगना। | आपद-स्त्री० [सं०] विपत्, मुसीबत; कष्ट, कठिनाई । आया गया-मेहमान, अतिथि । आयेदिन-नित्यप्रति । -गत,-प्रस्त-वि० मुसीबतमें फंसा हुआ; भाग्यहीन । आ रहना-गिर पड़ना। आ लगना-आरंभ होना; -धर्म-पु. वह आचरण, वृत्ति आदि जिसकी इजाजत साथ लगना; ठिकाने पहुँचना।
केवल आपत्कालके लिए हो। आनाकानी-स्त्री० टालमटूल, उज्र, एतराज; कानाफूसी। आपन, आपना, आपनो*-सर्व० दे० 'अपना'। आनाह-पु० [सं०] बंधन; मलावरोध; मल-मूत्रके अव
आपन्न-वि० [सं०] आपद्ग्रस्त प्राप्त; संकटको पहुँचा हुआ। रोधसे पेटका फूलना; लंबाई (कपड़े आदिकी)।
आपयिता (त)-वि० [सं०] पाने, जुटानेवाला । आनि*-स्त्री० दे० 'आन'।
आपराह्निक-वि० [सं०] तीसरे पहर होनेवाला। आनीत-वि० [सं०] लाया हुआ; पास लाया हुआ। आपस-पु० संबंध, हेलमेल, नाता; परस्परका संबंध । आनुक्रमिक-वि० [सं०](ग्रैट्ट एटेड) जिस में अंशोंके चिह्न बने -का-स्वजनों, संबंधियों, मित्रोंके बीचका (-का मामला हों; जिसमें ॐ चे-नीचे, कठिन-सरलका सिलसिला निबाहा -की फूट) । -दारी-स्त्री० परस्पर निकट संबंध, भाईगया हो, जो अनुक्रमसे हो; क्रमशः बर्द्धमान ।
चारा। -में-परस्पर, एक दूसरेके साथ । आनुगत्य-पु० [सं०] अनुगत होना; अनुगमन; परिचय । | आपसी-वि० आपसका । आनुग्रहिक-वि० [सं०]अनुग्रह-प्रेरित ।-कर-नीति-स्त्री० | आपा-पु० अपना स्वरूप; सत्ता, जात; अपनी सत्ताका ज्ञान, कुछ चीजोंपर रिआयती कर लेनेकी नीति ।।
अहंभाव, खुदी; अहंकार, गर्व, सुध-बुध । स्त्री० बड़ी बहन आनुग्रामिक-वि० [सं०] ग्राम-संबंधी, ग्रामीण । (मुसल०) । मु०-खोना-घमंड छोड़ना; अपनेको बरबाद आनुपातिक प्रतिनिधित्व-पु०सं०] (प्रपोर्शनल रिप्रेजेंटे- करना; मरना। -तजना-मेटना-द्वैत भावका त्याग; शन) विधानसभा आदिके चुनावकी वह प्रणाली जिसके घमंड छोड़ना ।-दिखलाना-दर्शन देना ।-बिसरानाअनुसार सभी दलोंको, उन्हें प्राप्त हुए कुल मतोंके अनु- अपनेको भूल जाना सुध-बुध खो देना।-संभालनापातसे, प्रतिनिधित्व दिये जानेकी व्यवस्था की जाती है। चेतना, सजग होना। आपेमें आना या होना-होशआनुपूर्व, आनुपूर्य-पु० [सं०] एकके बाद एक होना, हवासमें होना; मनोभावोंपर काबू होना। -में न सिलसिला, क्रम; वर्णव्यवस्था या उसका क्रम; (सक्सेशन) रहना, -से निकलना, -से बाहर होना-क्रोधादिके वस्तुओं या व्यक्तियोंका एक पहले, दूसरा बादमें, इस अतिरेकसे मनपर काबू न रहना ववकर सिलसिलेसे आना; सिलसिला, अनुक्रम ।
आपात-पु० [सं०] गिराना; गिराव अचानक आ धमकना,
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आपाततः-आभिजात्य
टूट पड़ना; वर्तमान क्षण या काल; प्रथम दर्शन, पहली तूफानी । -का मारा-विपदग्रस्त, दुर्दैव-पीडित । निगाह(इमर्जेंसी) अकस्मात् आयी हुई संकटककी स्थिति,
-ढाना-उपद्रव मचाना; कष्ट पहुँचाना, पीड़ित करना; आकस्मिक आवश्यकता।
अनहोनी बात कहना । -मचाना-उपद्रव मचाना, शोरआपाततः-अ० [सं०] पहली निगाहमें, ऊपरसे देखनेमें; गुल करना; (किसी काममें ) बहुत उतावली करना । तत्क्षण, तुरत; अकस्मात् अन्त में ।
-मोल लेना,-सिरपर लेना-कोई झंझट, बखेड़ा अपने आपातिक, आपाती-वि० [सं०] (इमर्जेंट) आकस्मिक सिर लेना; संकटको न्योता देना। आवश्यकताके कारण उत्पन्न, आहत या सामने आनेवाला आफ़ताब-पु० [फा०] सूर्य; धूपं । अथवा उससे संबंध रखनेवाला।
आफ़ताबा-पु० [फा०] हाथ-मुँह धुलानेका गडुआ। आपादमस्तक-अ० [सं०] सिरसे पैरतक ।
आफ़ताबी-नि० [फा०] सूर्य-संबंधी; धूपमें बनाया या आपाधापी-स्त्री० हरएकको अपनी चिंता होना; धाँधली। सिझाया हुआ । स्त्री० एक तरहकी आतिशबाजी; जरीके आपान-पु० [सं०] कुछ लोगोंका मिलकर शराब पीना, कामका पंखा जिसपर सूर्यका चित्र कदा होता है। झाँप । पानगोष्ठी; इकट्ठा होकर शराब पीनेका स्थान । -गोष्ठी- | आफ-स्त्री० अफीम ।। स्त्री० कई व्यक्तियोंका एक साथ मिलकर मद्य पीना। आब-पु० [फा०] पानी; पसीना; आँसू, शराब । स्त्री० -भूमि-स्त्री० वह स्थान जहाँ कई आदमी बैठकर मद्य- चमक, कांति; शोभा धार प्रतिष्ठा; उत्कर्ष । -कारपान करें।
पु० शराब बनाने, बेचनेवाला, कलाल । -कारी-स्त्री० आपीड-वि० [सं०] पीड़ा देनेवाला; दबानेवाला । पु० शराब बनाने, बेचनेका स्थान; मद्य या मादक वस्तुओंका सिरपर पहननेकी चीज; किरीट; माला; मुकुटमणि । व्यवसाय । -महकमा-पु० नशीली चीजोंके उत्पादन, आपीडन-पु० [सं०] दबाना; मसलना; पीड़ा देना। विक्रय आदिका नियमन करनेवाला विभाग, ‘एक्साइज आपु*-सर्व० दे० 'आप'।
डिपार्टमेंट' । -खोरा-पु० एक तरहका गिलास जो मुँहआपुन, आपुनो*-सर्व० दे० 'अपना'; स्वयं ।
पर कुछ सकरा होता है। -जोश-पु० लाल मुनक्का । आपूर-पु० [सं०] जलधारा; बाढ़, भरना।
-दार-वि० चमकदार; धारदार । -(बो) ताबआपूरना-*अ० क्रि० भरना ।
स्त्री० चमक-दमक; शोभा। -दस्त-पु० सौंचना, आपूरित, आपूर्ण-वि० [सं०] पूरी तरह भरा हुआ। पानी छूना; आबदस्तका पानी। -(बो) दानाआपेक्षिक-वि० [सं०] अपेक्षा रखनेवाला; जिसका अस्तित्व
पु० अन्न-जल । -पाशी-स्त्री० खेतको सिंचाई। -रूदूसरी वस्तुपर आश्रित हो; तुलनात्मक, निस्बती। स्त्री० मान, प्रतिष्ठा । -(बे) रवाँ-पु. बहुत बारीक -गुरुत्व-पु० दो वस्तुओंका तुलनात्मक घनत्व।-ताप- मलमल ।-(बे) हयात-पु० अमृत । -,(बो) हवापु० (स्पेसिफिक हीट) किसी वस्तु का तापक्रम एक अंश स्त्री० जल-वायु । -(बे) हैवाँ-पु० अमृत । मु०-, बढ़ानेके लिए जितने तापकी आवश्यकता हो और उसके (बो) दाना उठना-स्थानविशेषमें जीविकाका उपाय समान मात्राके पानीका तापक्रम एक अंश बढ़ानेमें जितने | (नौकरी आदि) न रह जाना । तापकी आवश्यकता हो, उन दोनों तापोंकी मात्राओंका | आबद्ध-वि० [सं०] बँधा हुआ; जकड़ा हुआ। अनुपात।
आबनूस-पु० तेंदू नामक एक जंगली वृक्ष । आप्त-वि० [सं०] प्राप्त, पाया, मिला हुआ; पहुँचा हुआ; आबनूसी-वि० आबनूसका गहरा काला । प्रामाणिक विश्वसनीय; यथार्थ ज्ञान रखनेवाला; कुशल; आबाद-वि० [फा०] बसा हुआ, बस्तीवाला; संपन्न, खुशघनिष्ठ । पु० विश्वस्त व्यक्ति; मित्र; संबंधी।-काम-वि० हाल, फलता-फूलता । जिसकी कामना पूरी हो गयी हो, संतुष्ट; जिसमें सांसारिक आबादानी-स्त्री० आवाद जगह; सभ्यता, संस्कृति; अभ्युकामनाएँ और आसक्तियाँ न रह गयी हों। -वचन,- दयः कृषि; आबादी; बहुतायत; करबृद्धि; आमोद-प्रमोद । वाक्य-पु० श्रुति, स्मृति, इतिहास, पुराण आदि; | आबादी-स्त्री० [फा०] बस्ती; जनसंख्या; खुशहाली। प्रमादादिशून्य वचन ।
आबी-वि० [फा०] जलीय; जलचर हलका नीला। आप्यायन-पु० [सं०] बाढ़, वर्द्धन; तृप्ति; तृप्त करना; आब्दिक-वि० [सं०] प्रतिवर्ष होनेवाला, वार्षिक, सालाना। प्रसन्नता; मोटा करना; बढ़ाना।
आभ-स्त्री० दे० 'आभा' । पु० पानी। आप्यायित-वि० [सं०] तृप्तः प्रसन्न वद्धित; बलवान् ।।
आभरण-पु० [सं०] आभूषण, गहना; पोषण । आप्रवास-पु० [सं०] (इमिग्रेशन) बाहरसे आकर किसी | आभरन*-पु० दे० 'आभरण' । देशके भीतर बस जाना।
आभरित-वि० [सं०] भरा हुआ; सँवारा हुआ; भूषित। आप्रवासी-वि० [सं०] (इमिग्रैण्ट) बाहरसे आकर किसी| आभा-स्त्री० [सं०] चमका द्युतिः झलका छाया प्रतीति । देशके भीतर बस जानेवाला ।
आभार-पु० [सं०] बोझ एहसान । आप्लावन-पु० [सं०] स्नान; सिंचन; डुबाना, बोरना। आभारी (रिन)-वि० [सं०] एहसानमंद, ऋणी। आप्लावित-वि० [सं०] स्नात; सिक्ता डुबाया हुआ। | आभास-पु० [सं०] द्युति, चमक; झलक; छाया; सादृश्य; आफ़त-स्त्री० [अ०] विपद्, मुसीबत; दुःख, केश; मुंकट, प्रतीति; भ्रम; संकेत; अभिप्राय । बला; ऊधम । मु०-उठाना-ऊधम मचाना। -का आभिचारिक-वि० [सं०]अभिचार-संबंधी, अभिचारात्मक । टुकड़ा,-का परकाला-बहुत तेज, चलता, धूर्त आदमी आभिजात्य-पु० [सं०] कुलीनता, ऊँचे कुलमें उत्पत्ति ।
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आभिधानिक-आयु आभिधानिक-वि० [सं०]कोशमें लिखित । पु० कोशकार। आमिल-वि०, पु० [अ०] अमल-काम करनेवाला, साधक आभीर-पु० [सं०] अहीर; एक जनपद या उसके निवासी अधिकारी; झाड़-फूंक करनेवाला । वि० सिद्ध; *खट्टा । एक राग । -पल्ली-स्त्री० अहीरोंका पुरवा या गाँव। आमिष-पु० [सं०] भांस शिकार; भोग्य वस्तु; लुभावनी आभीरी-स्त्री० [सं०] अहीरिन; अहीरोंकी बोली।
वस्तु, चारा; घुस । -भोजी(जिन)-वि० मांसभक्षी । आभूषण-पु० [सं०] गहना, अलंकार; सजावट, शृंगार । आमुख-पु० [सं०] आरंभ; भूमिका; नाटककी प्रस्तावना। आभूषन*-पु० दे० 'आभूषण' ।
आमूल-अ० [सं०] मूलपर्यंत, जड़तक; जड़से । -सुधारआभूषित-वि० [सं०] अलंकृत, सजाया हुआ; शोभित । | वाद-पु० (रैडिकलिज्म) जड़से या पूर्णतः सुधार करनेआभोग-पु० [सं०] विस्तार; परिपूर्णता; भोजन; तृप्तिः पर जोर देनेवाला राजनीतिक सिद्धांत । साँपका फैला हुआ फन पद्यमें कविका नामोल्लेख । आमेजना*-स० क्रि० मिलाना। आभ्यंतर-वि० [सं०] भीतरका, अंदरूनी, आंतर । | आमोद-पु० [सं०] हर्ष, प्रसन्ननता; बिखरने, फैलने-व्यापार-पु० दे० 'अंतर्वाणिज्य'।
वाली सुगंध, सुरभि।-प्रमोद-पु० मौज-चैन, रंग-रलियाँ। आभ्यंतरिक-वि० [सं०] दे० 'आभ्यंतर'; भीतरी। आमोदित-वि० [सं०] प्रसन्न, आनंदिता सुवासित । आमंत्रण-पु० [सं०] संबोधन, बुलाना, पुकारना; आम्र-पु० [सं०] आम। -वन-पु० अमराई । निमंत्रण; स्वागत; अनुमति सलाह-मश्विरा।।
आम्रातक-पु० [सं०] आमड़ा। आमंत्रित-वि० [सं०] निमंत्रित, न्योता, बुलाया हुआ। आम्लिका-स्त्री० [सं०] इमली खट्टी डकार । आम-वि० [सं०] कच्चा, अनपका; न पचा हुआ। पु० आयती-पायती-स्त्री० सिरहाना-पायताना। अपक आहार-रस; आँव; अजीर्ण । -गर्भ-पु० भ्रूण । आयंदा-वि०, अ० दे० 'आइंदा'। -शूल-पु० अजीर्णके कारण होनेवाली भयंकर पीड़ा; आय-स्त्री [सं०] धनागम, आमदनी; लाभ । -व्ययआँवके कारण पेट मरोड़नेका रोग ।
पु० आमद-खर्च । -व्ययक-पु० (बजट) किसी राज्यकी आम-पु० एक प्रसिद्ध फल और उसका पेड़, आम्र, रसाल । या किसी व्यक्ति अथवा संस्थाकी सालभर में या किसी मु०-के आम, गुठलीके दाम-दोहरा लाभ ।
निश्चित कालतक होनेवाली संभावित आय एवं उसी आम-वि० [अ०] फैला हुआ, व्यापक प्रसिद्ध साधारण, अवधिके संभावित व्ययके अनुमानका लेखा, बजट । - सामान्य । -दरबार-पु० खुला दरबार जिसमें सब । व्यय-फलक-पु०(बैलेंसशीट) दे० देयादेय-फलक',चिट्ठा । लोग जा सके। -फहम्-वि० जो सबकी समझमें आ आयत-स्त्री० [अ०] कुरानका वाक्यः चिह्न, निशान । वि० जाय, सुबोध । -राय-स्त्री० लोकमत । -लोग-पु० [सं०] लंबा; विस्तृत; विशाल; आकृष्ट । पु० (रेक्टेंगिल) जनसाधारण ।
वह सामानांतर चतुर्भुज जिसका प्रत्येक कोण समकोण हो। आमड़ा-पु० एक खट्टा फल और उसका पेड़।
-नेत्र,-लोचन-वि० बड़ी-बड़ी या लंबी आँखोंवाला। आमद-स्त्री० [फा०] आना, अवाई; आमदनी ।
आयतन-पु० [सं०] स्थान; घर: आश्रय; देवस्थान; यशआमदनी-स्त्री० [फा०] आय; प्राप्ति; देसावरसे आने- स्थान; बखार; मकान बनानेका स्थान; किसी पात्रादिके वाला माल, आयात ।
अंदरका स्थान जिसमें कोई चीज अँट सके (कैपेसिटी)। आमन-पु० अगहनी धान (बंगाल); एकफसला खेत । आयति-स्त्री० [सं०] लंबाई; विस्तार; वह सीमा जहाँआमना-सामना-पु० सामना; भेट ।
तक कोई वस्तु पहुँच सकती हो। आमने-सामने-अ० एक दूसरेके सामने, मुकाबलेमें । आयत्त-वि० [सं०] अधीन आश्रित, अवलंबित । आमय-पु० [सं०] रोग, बीमारी; क्षति; अग्निमांद्य । आयथातथ्य-पु०[सं०] जैसा होना चाहिये वैसा न होना, आमरख-पु० क्रोध; अमर्ष ।
अयथार्थता अनौचित्य । आमरखना*-अ० क्रि० क्रोध करना ।
आयद-वि० [४०] लौटनेबाला घटित होनेवाला। आमरण-अ० [सं०] मरणपर्यंत, जीवनके अंततक । आयस-पु० [सं०] लोहा, लोहेकी बनी चीज; हथियार । आमर्द, आमर्दन-पु० [सं०] मसलना, रगड़नाः दबाना। वि० लौहनिर्मित; लोहेके रंगका । * स्त्री० दे० 'आयसु' । आमर्ष-पु० [सं०] दे० 'अमर्ष'।
आयसु*-स्त्री, पु० आदेश, आज्ञा । आमलक-पु० [सं०] आँवला।
आया-स्त्री० [पुर्त०] बच्चेको दूध पिलानेवाली स्त्री, धाय । आमलकी-स्त्री० [सं०] छोटा आँवला ।
[फा०] अ० क्या; या। आमला-पु० आँवला।
आयात-वि० [सं०] आगत; देसावरसे आया हुआ (माल)। आमातिसार-पु० [सं०] आँव, पेचिशकी बीमारी जिसमें पु० देसावरसे माल आना या मँगाना, आमदनी। मलके साथ सफेद आँव आता है।
आयातक-पु० [सं०] (इंपोर्टर) विदेशोंसे बड़ी मात्रामें आमादगी-स्त्री० [फा०] आमादा-तैयार होना, तत्परता।
माल मँगानेवाला व्यवसायी। आमादा-वि० [फा०] तैयार, तत्पर, उद्यत ।।
आयाम-पु० [सं०] लंबाई; खींचना रोक (प्राणायाम)। आमाशय-पु० [सं०] पाचन-संस्थानका वह थैलीनुमा आयास-पु० [सं०] यत्नः कड़ी कोशिश; श्रम; थकावट । भाग जिसमें आहार इकट्ठा होकर पचता है, मेदा। आयासी (सिन्)-वि० [सं०] आयास करनेवाला। आमिख*-पु० दे० 'आमिष' ।
आयु (स)-स्त्री० [सं०] जीवन; जीवनकाल; जीवनी आमिर-वि० [अ०] हुक्म देनेवाला । पु० हाकिम । शक्ति आहार । मु०-खुटाना*-आयु कम होना।
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आयुक्त-आराध्य आयुक्त-वि० [सं०] संयुक्त नियुक्त । पु० मंत्री; कारिंदा; जो किसी विशेष दृष्टिसे या विशेष व्यक्तियोंके लिए, अथवा (कमिश्नर) किसी विशेष कार्यके लिए नियुक्त 'आयोग' स्वयं अपने हाथमें, सुरक्षित रखे गये हों। का सदस्य जिसे विशेष अधिकार दिया गया हो; विशेष आरक्षी(क्षिन)-वि० [सं०] रक्षा करनेवाला। पु० (पुलीस) कार्यके लिए जिसकी नियुक्ति की गयी हो, किस्मत या | दे० 'आरक्षक' । -त्वरितदल-पु० ( फ्लाइंगस्क्वैड ऑफ कमिश्नरीका प्रधान अधिकारी । -अधिकारी-पु० दि पुलीस) पुलिसके सिपाहियोंका वह विशेष दल जो (कमिशंड आफिसर) लेफ्टनेण्टसे बड़ा या वह अधिकारी | मोटर-गाड़ियों, मोटर साइकिलों आदिसे सज्जित हो, जिसकी नियुक्ति आयोग द्वारा की जाय। . जिससे वह त्वरित गतिसे चोर-डाकुओं, उपद्रवियोंका पीछा आयुध-पु० [सं०] युद्धका साधन, हथियार । -जीवी- कर सके पुलिसका तूफानी दस्ता, द्रतगामी आरक्षी-दल । (विन)-विक अस्त्रसे जीविका करनेवाला, सिपाही। आरज*-वि० दे० 'आर्य' । -पाल-पु० शस्त्रागारका अफसर । -शाला-स्त्री० आरजू-स्त्री० [फा०] इच्छा, कामना, बिनती। -मंदशस्त्रागार।
वि० इच्छुक । आयुधागार-पु० [सं०] हरबे-हथियारका गोदाम, आरण्य-वि० [सं०] जंगलका, बनैला । पु० जंगल । सिलहखाना।
आरण्यक-वि० [सं०] वन्य; वनमें उत्पन्न । पु० बनवासी। आयुर्बल-पु० [सं०] आयु, जिंदगी ।
आरत-वि० [सं०] शांत; सौम्य; * दे० 'आत। आयुर्वृद्धि-स्त्री० [सं०] उम्र बढ़ना ।
आरति-स्त्री० [सं०] विराम, रोका [हि०] दे० 'आरती'; आयुर्वेद-पु० [सं०] स्वास्थ्य-शास्त्र, चिकित्सा-शास्त्र ।। * दे० 'आति'। आयुर्वेदिक, आयुर्वेदी(दिन )-पु० [सं०] आयुर्वेदका आरती-स्त्री० पूजन-अभिनंदन आदिमें देवता या अभिशाता; चिकित्सक । वि० चिकित्सा-शास्त्र-संबंधी।
नंदनीय व्यक्तिके मुखके चारों ओर कपूर-दीपक घुमाना; आयुष्कर-वि० सं०] आयु बढ़ानेवाला।
वह पात्र जिसमें कपूर या दीपक रखा जाय; उस समय आयुष्काम-वि० [सं०] दीर्घायु चाहनेवाला ।
पढ़ा जानेवाला स्तोत्र । मु०-उतारना-अभिनंदन करना। आयुष्मान(मत्)-वि० [सं०] चिरंजीव, लंबी उम्रवाला। आरन*-पु० दे० 'आरण्य' । आयुष्य-वि० [सं०] दीर्घायु देनेवाला । पु० उम्र; आयु । आर-पार-पु० नदीके दोनों किनारे । अ० इस पावसे उस आयोग-पु० [सं०] नियुक्ति कोई काम देना या किसी पार्वतक। काममें लगाना; कार्य-संपादन; (कमीशन) कोई विशेष कार्य आरबल-पु० दे० 'आयुर्बल'। संपन्न करनेके लिए नियुक्त व्यक्तियोंका मंटल ।
आरब्ध-वि० [सं०] शुरू किया हुआ । पु० आरंभ । आयोजक-वि० [सं०] आयोजन करनेवाला । | आरब्धि-स्त्री० [सं०] आरंभ । आयोजन-पु० [सं०] जोड़ना, इकट्ठा करना; ग्रहण; आरभटी-स्त्री० [सं०] साहस; वह वृत्ति जो रौद्र, भयानक उद्योग प्रबंध; तैयारी।
| और वीर रसोंके वर्णनमें प्रयुक्त होती है (ना०)। आयोजित-वि० [सं०] जिसका आयोजन किया गया हो; आरव-पु० [सं०] आहट; चिल्लाहट; आवाज । संगृहीत; संबद्ध किया हुआ।
आरषी-वि० स्त्री० दे० 'आप'। आरंभ-पु० [सं०] शुरू, इब्तिदा, श्रीगणेश कार्य प्रयत्न | आरस*-पु० आलस्य । स्त्री० दे० 'आरसी'। उपक्रम शुरूका हिस्सा; उत्पत्ति तीव्रता अभिमान वध । | आरसी-स्त्री० आईना; आइना जड़ा छल्ला जिसे स्त्रियाँ आरंभक-वि० [सं०] आरंभ करनेवाला ।
दाहिने हाथके अँगूठेमें पहनती हैं। आरंभना*-स० क्रि० शुरू करना । अ०क्रि० शुरू होना। आरा-पु० [सं०] लकड़ी चीरनेका एक दाँतीदार औजार आरंभिक-वि० [सं०] आरंभका, शुरूमें होनेवाला । चमड़ा सीनेका सूजा; पहियेकी गड़ारी और पुट्टीके बीचकी आर-स्त्री० शत्रुता; घृणा; सूजा; अनी; डंकसोंटे या पटरी; धोड़िया बैठानेके लिए दीवारपर रखी जानेवाली पहियेमें लगी कील; *हठ, जिद; [अ०] शर्म, लज्जा। लकड़ी या पत्थरकी पटरी; * आला, ताखा । -कशभारकाटी-पु० शर्तवन्द कुलियोंकी भरती करनेवाला पु० आरा खींचनेवाला। व्यक्ति।
आराइश-स्त्री० [फा०] सजावट, शृंगार; कागजके फूल-पत्ते। आरक्त-वि० [सं०] हलका लाल; सुर्ख ।
आराजी-स्त्री० [अ०] दे० 'अराजी'। आरक्षक-पु० [सं०] प्रहरी, पहरेदार; (पुलिस) देशमें | आराति-पु० [सं०] शत्रु ।
आंतरिक शांति बनाये रखने तथा अपराधियों आदिको आराधक-वि० [सं०] आराधना करनेवाला, पूजा न्यायालयोंके समक्ष उपस्थित करनेका काम करनेवाला करनेवाला । कर्मचारी, पुलिसका सिपाही। -बल-पु० (पुलीसफोस) आराधन-पु० [सं०] पूजा, उपासना करना; तुष्ट, प्रसन्न आरक्षकोंका दल या समूह ।
करना; सेवा करना; सम्मान करना; पाककार्य; अर्जन । आरक्षिक-पु० [सं०] दे० 'आरक्षक'।
आराधना-स्त्री० [सं०] पूजा, उपासना सेवा । * स० कि. आरक्षित कोष-पु० [सं०] (रिजर्ल्ड फंड) विशेष आवश्य- पूजा, उपासना करना, आराधन करना । कता या संकटके समय काम आ सके, इस दृष्टिसे इकट्टा आराधनीय-वि० [सं०] आराधनके योग्य, पूज्य । किया जानेवाला कोष ।
आराधित-वि० [सं०] पूजित; सेवित । आरक्षित विषय-पु० [सं०] (रिजर्ल्ड सबजेक्ट्स) वे विषय | आराध्य-वि० [सं०] आराधन करने योग्य ।
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आराम-आलापी आराम-पु० [सं०] सुख, प्रसन्नता; बगीचा, उद्यान, उपवन; आर्द्रा-स्त्री० [सं०] एक नक्षत्र जो प्रायः शुरू आषाढ़में [फा० ] सुखः चैन; विश्राम; आरोग्य । वि० चंगा, | पड़ता है। नीरोग। -कुरसी-स्त्री० लंबी कुरसी जिसपर लेटा आर्य-पु० [सं०] अनार्यों और शूद्रोंसे भिन्न भारतकी एक भी जा सकता है । -गाह-पु० सोनेका कमरा, शयना- प्राचीन सभ्य जाति; अपने धर्म और नियमोंके प्रति आस्था गार । -तलब-वि० सुख चाहनेवाला; आलसी । मु० । रखनेवाला व्यक्ति, सम्मान्य और सदाचारी व्यक्ति -करना-सोना; चंगा कर देना। -से-धीरे-धीरे आचार्य; मित्र; श्वशुर । वि० आर्य जातिका; आर्यके योग्य फुरसतमें। -होना-चंगा होना।
आदरणीय; भद्र, श्रेष्ठ । -धर्म-पु० सदाचार, उत्तम भारि*-स्त्री० हठ, जिद; मर्यादा ।
आचरण; हिन्दूधर्म। -पुत्र-पु. आदरणीय व्यक्तिका आरिज़ी-वि० [अ०] आकस्मिक; अस्थायी, चंदरोजा।। पुत्र; पतिका संबोधन (ना०)। -समाज-पु. स्वामी आरी-स्त्री० छोटा आरा; पैनेकी नोकमें खंसी कील; सुतारी दयानंद द्वारा प्रवर्तित एक धार्मिक समाज । * किनारा, कोर।
आर्यभट्ट-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध भारतीय ज्योतिषी जिन्होंने आरूढ-वि० [सं०] सवार; आसीन; जमकर बैठा हुआ। बीजगणितका आविष्कार किया था । आरेस*-पु० ईर्ष्या, डाह ।
आर्या-स्त्री० [सं०] पार्वती; एक वृत्त; सास, श्रेष्ठ स्त्री। आरो*-पु० दे० 'आरव' ।
आर्यावर्त्त-पु० [सं०] उत्तर भारत । आरोग-वि० नीरोग, स्वस्थ ।
आर्ष-वि० [सं०] ऋषिकृत; ऋषिप्रयुक्त; वैदिक । पु० आरोगना*-स० क्रि० खाना, भक्षण करना।
विवाहके ८ प्रकारोंमेंसे एक वेद । -ग्रंथ-पु. वेदादि । आरोग्य-पु० [सं०] रोगका अभाव, तंदुरुस्ती। -लाभ- -प्रयोग-पु० ऋषियों या बड़े विद्वानों द्वारा किया गया पु० (कॉनवेलेसेंस) बीमारी खानेके बाद क्रमशः स्वास्थ्य शब्दोंका व्याकरण-विरुद्ध प्रयोग । और शक्ति प्राप्त करना, दे० 'रोगोत्तर स्वास्थ्यलाभ' ।- | आलंकारिक-वि० [सं०] अलंकार-संबंधी; अलंकारयुक्त शाला-स्त्री० चिकित्सालय, अस्पताल; (सैनेटोरियम) दे० अलंकार-शास्त्र-वेत्ता। 'स्वास्थ्य-निवास'।-स्नान-पुरोगमुक्तिके बादका स्नान ।
आलंब-पु० [सं०] सहारा, आधार; लटकन, 'पेंडुलम' । आरोधना*-स० क्रि० रोकना ।
आलंबन-पु० [सं०] सहारा; सहारा लेना; आधार; आरोप-पु० [सं०] एक पदार्थमें दूसरेके गुण-धर्मकी कल्पना रसकी उत्पत्तिका आधार (सा०)। लगाना; न्यास, संस्थापना; इलजाम । -पत्र, फलक- | आलक्षित-वि० सं०] देखा हुआ समझा हुआ; अनुभूत । पु० (चार्जशीट) (न्यायालय द्वारा तैयार किया हुआ) वह
आलजाल*-पु० ऊटपटाँग, ऊलजलूल । पत्र जिसमें किसी व्यक्तिपर लगाये गये आरोपोंका ब्यौरा
आलथी-पालथी-स्त्री० दाहिनी एड़ी बायीं और बायी दिया रहता है।
एड़ी दाहिनी जाँधपर रखकर बैठना। आरोपक-वि० [सं०] आरोप करनेवाला ।
आलन-पु० मिट्टीके गारे आदिमें मिलाया जानेवाला आरोपण-पु० [सं०] ऊपर चढ़ाना; मढ़ना; संस्थापन, भूसा आदि; सागमें मिलाया जानेवाला बेसन । रखना; रोपना लगाना; झूठी कल्पना; भ्रम । | आलबाल-पु० दे० 'आलवाल'। आरोपित-वि० [सं०] आरोप किया हुआ; रोपा हुआ। आलम-पु० [अ०] दुनिया, जगत् ; अवस्था भीड़। आरोह-पु० [सं०] चढ़नेवाला; चढ़ना, ऊपरको जाना, आलमारी-स्त्री० दे० 'अलमारी। (घोड़े आदिपर) सवार होना; संगीतमें स्वरोंका चढ़ाव ।। आलय-पु० [सं०] घर, मकान, आधार, आश्रय-स्थान । आरोहक-वि [सं०] आरोहण करनेवाला । पु० सवार ।। आलर्क-वि० [सं०] पागल कुत्तेका (विष)। आरोहण-पु० [सं०]चहना; सवार होना; ऊपरको जाना।। आलवाल-पु० [सं०] थाला; मेघ । आरोही (हिन्)-वि० [सं०] आरोह करनेवाला; ऊपरकी आलस-वि० [सं०] आलसी । * पु० आलस्य । ओर-पटजसे निषादकी ओर-जानेवाला । पु० सवार।
आलसी (सिन्)-वि० [सं०] सुस्त, काहिल । आर्जव-पु० [सं०] ऋजुता, सीधापन; नम्रता ।
आलस्य-पु० [सं०] काम करनेकी अनिच्छा, सुस्ती। आतं-वि० [सं०] पीड़ित, किसी कष्ट-पीड़ासे बेचैन, दुःखी;
आला-पु० ताक, ताखा; पजावा । * वि० गीला; ताजा बीमार । -ध्वनि-स्त्री०,-नाद,-स्वर-पु० दुखियाकी हरा । पु० [अ०] औजार, उपकरण, साधन । वि० बहुत पुकार, दर्दभरी ऊँची आवाज।
ऊँचा; श्रेष्ठ । -दरजेका-बहुत बढ़िया, उत्तम । - आतंव-वि० [सं०] ऋतु-संबंधी; ऋतुमें उत्पन्न; मासिक आलात-पु० [सं०] जलती हुई लकड़ी, लुका-चक्र-पु० खावासबधा । पु० स्त्रियोंको मासिक धर्मके समय होनेवाला जलते हुए लुकको घुमानेसे बननेवाला मडल । रजःस्राव; स्त्री-रज ।-दोष-पु० मासिक धर्मकी गड़बड़, आलान-पु० [सं०] हाथी बाँधनेका खंभा, खूटा या रस्सा ऋतुदोष ।
बेड़ी, जंजीर; बंधन । आर्ति-स्त्री० [सं०] क्लेश, पीड़ा; रोग; मनोव्यथा; बुराई।।
आलाप-पु० [सं०] कथन; बातचीत संगीतके सातों स्वरः आर्थिक-वि०सं०] अर्थ-संबंधी, माली, रुपये-पैसेसे संबंध | स्वरोंका साधन, अलाप । रखनेवाला। -अवस्था-स्त्री० माली हालत ।
आलापक-वि० [सं०] गानेवाला; बातचीत करनेवाला । आद्र-वि० [सं०] गीला, तर, नम; रसयुक्त द्रवित,पिधला | आलापना-स० क्रि० आलापलना, नाना हुआ (स्नेहा, करुणार्द्र)।
आलापी (पिन)-वि० [सं०] बातचीत करनेवाला;
आरोही (हिन नपादकी और बाधापन; नम्रता चैन, दुःखी
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आलिंगन-आवासी गानेवाला।
में दी गयी हो। आलिंगन-पु० [सं०] लपटाना; गले लगाना ।
आव*-स्त्री० आयु । आलिंगना*-स० क्रि० गले लगाना; भेटना ।
आवज, आवझा-पु० एक बाजा, ताशा । आलि-पु० [सं०] बिच्छू; भ्रमर । स्त्री० दे० 'आली'। आवटना*-स० क्रि० औटना, खौलाना । पु० हलचल । आलिम-वि० [अ०] जाननेवाला, विद्वान् , पंडित। । आवन*-पु०, आवनि*-स्त्री० आगमन । आली-स्त्री० [सं०] सखी, सहेली; पंक्ति रेखा । वि० आव-भगत-स्त्री० स्वागत-सत्कार, खातिर-बात । . [अ०] ऊँचाबड़ा। -जाह-वि० अँचे पद, मर्तबेवाला । आव-भाव-पु० आव-भगत । -शान-वि० बड़ी शानवाला, शानदार ।
आवरण-पु० [सं०] ढकना; छिपाना घेरना; ढक्कन, बेठन; आलुलित-वि० [सं०] क्षुब्ध, चंचल ।
परदा; बचाव; ढाल; चहारदीवारी; ताला; ब्योड़ा। आलू-पु० एक प्रसिद्ध कंदशाक ( पोटैटो)। -दम-पु० | -पत्र-पु० पुस्तककी जिल्दके रक्षार्थ उसपर चढ़ाया हुआ दे० 'दमआलू।
कागज जिसपर उसका नाम दाम भी रहता है, 'कवर' । आलूचा-पु० एक पेड़ या उसका फल ।
आवर्त-पु० [सं०] घुमाव, चक्कर; भंवर; (घोड़ेकी) भँवरी; आलूबुखारा-पु० आलूचेका सुखाया हुआ फल ।
घनी आबादी लाजवर्द नामक रत्न; किसी बातको बारआलेख-पु० [सं०] लिखावट, लिखाई; पत्र; लेख, तहरीर बार सोचना-बिचारना; चिंता; संसार । (डिक्टेशन) जोरसे कहना या इस तरह पढ़ना कि सुनकर | आवर्तक, आवर्ती (तिन्)-वि० [सं०] धूमने, चक्कर लिखनेवाला उसे लिख ले; इस तरह सुनकर लिखा गया खानेवाला; ( रेकरिंग) बार-बार होने या दिया जानेलेख या इबारत; श्रतिलेख, इमला ।
वाला (व्यय, अनुदान इ०)। आलेखन-पु० [सं०] लिखना; तसवीर बनाना, चित्रांकन। आवर्तन-पु० [सं०] घूमना, चक्कर खाना मंथन, आलो-विद्या-स्त्री० चित्रकला, तसवीरकशी।
डना (धातु) गलाना; दुहराना, फिर-फिर करना या आलेखनी-स्त्री० [सं०] कूची, ब्रश; पेंसिल। . होना । -मणि-पु० राजावर्त मणि । आलेख्य-वि० [सं०] लिखने, चित्रित करने योग्य । पु० / आवश्यक-वि० [सं०] जरूरी; अवश्यंभावी । लेख, चित्र।
आवश्यकता-स्त्री० [सं०] जरूरत । आलेप-पु० [सं०] लेप, उबटन आदि; पलस्तर । आवश्यकीय-वि० जरूरी। आलेपन-पु०[सं०] लेप करना; पलस्तर करना; उबटन,लेप। आवह-वि० [सं०] (समासांतमें) जनक, उत्पादक (भयावह, आलोक-पु० [सं०] प्रकाश, उजाला। -कर-वि० | लशावह)। प्रकाश करनेवाला -चित्रण-पु०( फोटोग्राफी) रासा- आवाँ-पु० मिट्टीके बरतन पकानेका भद्रा। यनिक मसालोंसे तैयार किये गये विशेष पटलपर प्रकाशकी आवागमन-पु० [सं०] आना-जाना; जन्म-मरणका चक्र प्रतिक्रिया द्वारा चित्र उतारना । -पथ,-मार्ग- पु० या बंधन, संसृति । [-छूटना-मुक्ति मिलना।] दृष्टिपथ।
आवागवन, आवागौन-पु० दे० 'आवागमन' । आलोकन-पु० [सं०] देखना, दर्शन; विचार करना । आवाज़-स्त्री० [फा०] बोल, ध्वनि स्वर; पुकार; शोर । आलोकनीय-वि० [सं०] देखने योग्य ।
मु०-उठाना,-ऊँची करना-किसी बातके पक्ष या विपक्षआलोकित-वि० [सं०] देखा हुआ; प्रकाशित ।
में कहना, बोलना । -खुलना-गला ठीक हो जानेके बाद आलोचक-वि० [सं०] देखनेवाला; समीक्षक ।
शब्दका पुनः साफ निकलन । -गिरना-स्वरका मंद आलोचन-पु०, आलोचना-स्त्री० [सं०] देखना; गुण- होना । -देना-पुकारना, बुलाना। -निकालनादोषका विवेचन, परख, समीक्षा ।
बोलना। -फटना- आवाज भर्राना । -बैठना-गला आलोच्य-वि० [सं०] आलोचना करने योग्य ।। बैठना, स्वरभंग होना। -लगाना-आवाज देना, ऊँची आलोडन-वि० [सं०] मंथन, बिलोना; मर्दन छान-बीन।। तान लगाना। आलोड़ना*-स० क्रि० मंथना; ऊहापोह करना । आवाज़ा-पु० [फा०] प्रसिद्धि, शुहरत; व्यंग्य, ताना। आलोडित-वि० [सं०] मथित; हिलोरा हुआ; विचारित । मु०-कसना-बोली बोलना, व्यंग्य करना । आलोल-वि० [सं०] थोड़ा हिलता हुआ, ईषच्चंचल। आवा-जानी-स्त्री० जन्म-मरण ।। आल्हा-पु० महोबेके एक प्रसिद्ध वीर; वह वीरगाथा जिसमें आवाजाही -स्त्री० आना-जाना, आमद-रफ्त । आल्हा और उनके अनुज ऊदलके कार्योंका वर्णन है। उक्त आवारगी-स्त्री० [फा०] आवारापन । वीरगाथाका छंद, वीरछंद; बहुत लंबा वर्णन । -का आवारजा-पु० [फा०] जमा-खर्च-बही; रोजनामचा। पवारा-निरर्थक लंबा वर्णन ।
आवारा-वि० [फा०] जो बेकार घूमता-फिरता, भटकता आवंटन-पु० [सं०] (एलॉटमेंट) भूमि, संपत्ति आदिका रहे; कुमार्गगामी निकम्मा। -गर्द-वि० बेकार धूमने, हिस्सों में बाँटा जाना; विभाजन; किसीके लिए भूमि भटकता रहनेवाला ।-गर्दी-स्त्री० बेकार घूमना, भटकना। आदिका कोई हिस्सा निर्धारित करना, (भूमिका- आवास-पु० [सं०] वासस्थान, घर, कमरा। = एलाटमेंट ऑफ लैंड । राजस्वका-= एलाटमेंट ऑफ आवासिक-वि० [सं०] (रेजिडेंट) उसी स्थानपर रहनेरेवेन्यू)।
वाला (आवासिक चिकित्सक, अध्यापक आदि)। आवंव्य-पु० [सं०] (एलॉटी) वह जिसे कोई वस्तु आवंटन | आघासी (सिन)-वि० [सं०] रहनेवाला, वास करनेवाला,
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आवाहन-आश्रय दे० 'आवासिक'। -प्रतिनिधि-पु० (रेजिडेंट) किसी आशय-पु० [सं०] शयनस्थान, विश्रामस्थान; रहनेकी अर्द्ध स्वतंत्र राज्यमें स्थायी रूपसे रहनेवाला अन्य | जगह; घर; आधार; अर्थ, अभिप्राय, तात्पर्य । देशका प्रतिनिधि ।
आशर-पु० [सं०] राक्षस अग्नि, वायु । आवाहन-पु० [सं०] बुलाना, पुकारना; पूजनमें किसी आशा-स्त्री० [सं०] किसी वस्तुकी प्राप्तिकी इच्छा और देवताको मंत्र द्वारा बुलाना; अग्निको होम अर्पित करना। किंचित् विश्वास; उम्मीद, साधारण विश्वास या भरोसा आवाहना*-स० क्रि० आमंत्रित करना।
आसरा दिशा। -पाल-पु० दिक्पाल | -भंग-पु. आविद्ध-वि० [सं०] विधा, छेदा हुआ; जोरसे फेंका हुआ। आशाका टूटना, आशा पूरी न होना। -वसन-वि० पु० तलवारका एक हाथ ।
दिगंबर, नग्न । -वाद-पु० (ऑप्टिमिज्म) प्रत्येक आविर्भाव-पु०[सं०] प्रकट होना, सामने आना; उत्पत्ति; घटना और प्रत्येक वस्तुके संबंधों आशामयी दृष्टि रखना, अवतारवस्तुधर्म।
सदा अच्छी बातों और अच्छे परिणामोंकी आशा करनेका आविर्भावन-पु० [सं०] ( इनवेंशन ) दे० 'उद्भावन' । स्वभाव । -वादी (दिनू )-वि० (ऑप्टिमिस्ट) आविर्भूत-वि० [सं०] प्रकटित, अभिव्यक्तः अवतीर्ण । । सर्वदा अच्छी बातों और कल्याणमय परिणामोंकी आविष्करण-पु०[सं०] प्रकट करना, दिखाना; कोई अज्ञात | आशा करनेवाला । मु०-टूटना-आशा भंग होना। बात खोज निकालना; नयी चीज बनाना, ईजाद । -तोड़ना-निराश करना। -देना-उम्मीद बंधाना । आविष्कर्ता(त)-वि० [सं०] आविष्कार करनेवाला। -पूजना-आशा पूरी होना । -बंधना-आशा उत्पन्न आविष्कार-पु० [सं०] दे० 'आविष्करण' ।
होना। आविष्कारक-वि० [सं०] दे० 'आविष्कर्ता।
आशातीत-वि० [सं०] आशासे अधिक । आविष्कृत-वि० [सं०] प्रकट किया हुआ; ईजाद किया। आशिक-वि० [अ०] इश्क-प्रेम करनेवाला, अनुरक्त, हुआ।
आसक्त । पु० प्रेम करनेवाला व्यक्ति ।-माशूक-पु० आविष्ट-वि० [सं०] आवेशयुक्त; तादिसे ग्रस्त; तत्पर प्रेमी और प्रेमपात्र ।-मिज़ाज-वि० प्रेमप्रवण दिलफेंक । भरा हुआ, अभिभूत ( क्रोधाविष्ट ); प्रविष्ट ।
आशिकाना-वि० [अ०] प्रेमीके अनुरूप या उपयुक्त आवृत-वि० [सं०] ढंका, छिपा, लपेटा हुआ; घेरा हुआ। प्रेमसूचक, अनुरागमय । आवृति-स्त्री० [सं०] आवरण ।।
आशियाँ, आशियाना-पु० [फा०] धोंसला बसेरा घर। भावृत्ति-स्त्री० [सं०] घूमना; लौटना; चक्कर लगाना; | आशीर्वचन, आशीर्वाद-पु० [सं०] असीस । पलायन; दुहराना; बार-बार पढ़ना, अभ्यास, संसृतिः | आशु-वि० [सं०] तेज, द्रत । अ० तेजीसे, फौरन । पुस्तकादिका फिरसे छपना, संस्करण; उपयोग, प्रयोग । | -कवि-पु० तुरत कविता बनाने में समर्थ कवि । -ग-दीपक-पु० दीपक अलंकारका वह भेद जिसमें क्रिया- | वि० शीघ्रगामी; जल्द जाने या पहुँचनेवाला (एक्सप्रेस पदोंकी आवृत्ति हो।
तार या गाड़ी)।-तोष-वि० झट प्रसन्न होनेवाला । पु० आवेग-पु० [सं०] प्रबल मनोवेग, बिना सोचे-बिचारे शिव । -पत्र-पु० ( एक्स्प्रेस लेटर ) शीघ्रतापूर्वक भेजा कुछ कर बैठनेकी अंतःप्रेरणा, झोंक; अशांति; उतावली; जानेवाला पत्र, वह पत्र जो पत्रालय (डाकघर) में पहुँचते एक संचारी भाव ।
ही हरकारे द्वारा तुरंत पानेवालेके पास भेज दिया जाय । आवेदक-वि० [सं०] आवेदन करनेवाला। पु० मुद्दई; | -बोध-वि० जल्द सिखलानेवाला । -लिपि-स्त्री० प्रार्थी।
(शार्ट हैंड) विशेष संकेतों द्वार। भाषणादि शीघ्र लिख लेने आवेदन-पु० [सं०] निवेदन, अजी; प्रार्थना करना | की एक प्रणाली। -लिपिक-पु० (स्टेनोग्राफर) आशुनालिश। -पत्र-पु० अर्जी, प्रार्थनापत्र ।
लिपि (शीघ्रलिपि) की सहायतासे कोई भाषण या आवेश-पु० [सं०] प्रवेश, व्याप्ति; दबा लेना, हावी हो बोला-सुनाया गया मजमून शीघ्रतापूर्वक लिख लेनेवाला जाना (क्रोधावेश); प्रेतादिका पकड़ लेना; जोशगुस्सा | कर्मचारी (व्यक्ति)। धमंड; लगन, अभिनिवेश; मूर्छा; भृगी।
आश्चर्य-पु० [सं०] अचरज, अचंभा, विस्मय; अद्भुत आवेष्टन-पु०[सं०] लपेटना, ढकना; बेठन, खोल; चहार- रसका स्थायी भाव । दीवारी, घेरा।
आश्चर्यित-वि० चकित, विस्मित । आवेष्टित-वि० [सं०] छिपा, ढका, घिरा हुआ। आश्रम-पु० [सं०] साधु-संतकी कुटी, मठ; तपोवन; आशंका-स्त्री० [सं०] भय, खतरे, अनिष्टकी संभावना | साधक-समुदायके रहनेका स्थान; वर्णाश्रम-धमी द्विजके संदेह, अविश्वास ।
जीवनके चार विभाग या अवस्थाएँ (ब्रह्मचर्य, ग्रार्हस्थ्य, आशंकित-वि० [सं०] जिसकी आशंका हो; आशंकायुक्त । वानप्रस्थ, संन्यास); विद्यालय । -गुरु-पु० आचार्य । आशंसा-स्त्री० [सं०] इच्छा, अपेक्षा; आशा कथन; चर्चा -धर्म-पु० आश्रमविहित धर्म; ब्रह्मचारी, गृहस्थ आदिके आश-* स्त्री० आशा । पु० [फा०] पेय; लपसी।--जौ- विशेष धर्म । -वासी (सिन्)-वि० आश्रममें रहने पु० जौका जूस या लपसी।
वाला । पु० वानप्रस्थ । भाशना-वि० [फा०] परिचित, जान-पहचानवाला। आश्रमिक, आश्रमी (मिन्)-वि० [सं०] आश्रममें पु०, स्त्री प्रेमी, यार प्रेमपात्र; रखेली।।
रहनेवाला; चार आश्रमोंमेंसे किसी आश्रमका । आशनाई-स्त्री० [फा०] दोस्ती; प्रेम; अवैध संबंध । | आश्रय-पु० [सं०] आधार; विषय; शरण, ठिकाना धर;
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आश्रयी-आसीन सहायता; सहारा; संरक्षक ।
आसना*-अ० क्रि० होना।। आश्रयी (यिन)-वि० [सं०] आश्रय लेनेवाला। आसनी-स्त्री० छोटा आसन, बैठनेभरका बिछावन । आश्रित-वि० [सं० (किसीके सहारे) ठहरा, टिका हुआ; आसन्न-वि० [सं०] पास आया हुआ; उपस्थितप्राय: लगा, अवलंबित; अधीन; जो भरण-पोषणके लिए किसीपर। सटा हुआ। -कोण-पु० (ऐडजेसेंट) वे कोण जो एक ही अवलंवित हो।
विदुपर एक उभयनिष्ठ भुजाके दोनों ओर बने हों। - आश्लिष्ट-वि० [सं०]लगा, जुड़ा हुआ; संबद्ध आलिंगित ।। प्रसवा-वि० स्त्री० जिसे आज-कलमें ही बच्चा होनेवाला आश्लेष-पु० [सं०] लगाव, संबंध; आलिंगन ।
हो । -भूत-पु० भूत कालका वह भेद जिससे क्रियाकी आश्वस्त-वि० [सं०] आश्वास-प्राप्त, जिसका डर दूर कर | पूर्णता और भूतकालकी निकटता सूचित होती हो (व्या०)। दिया गया हो; जिसे ढाढ़स बंधाया गया हो; उत्साहित । -मरण,-मृत्यु-वि०जिसकी मृत्यु पास आ गयी हो, आश्वासक-वि० [सं०] आश्वासन देनेवाला।
कुछ ही देरका मेहमान । आश्वासन-पु० [सं०]. दिलासा देना; भयनिवारण; आस-पास-अ० अगल-बगल, चारों ओर करीब, पासमें । प्रोत्साहन ।
आसमान(माँ)-पु० [फा०] आकाश; स्वर्ग । मु०-के आश्विन-पु० [सं०] वह महीना जिसमें चंद्रमा अश्विनी तारे तोड़ना-दुस्साध्य, अनहोनी बात कर डालना । नक्षत्रके पास रहता है, कार ।
-छूना-बहुत ऊँचा होना, गगनचुंबी होना ।-जमीनके आश्विनेय-पु० [सं०] अश्विनीकुमार; नकुल-सहदेव । कुलाबे मिलाना-दूनकी हाँकना,लंबी-चौड़ी बातें करना । आषाढ-पु० [सं०] असाढ़का महीना।
-झाँकना,-ताकना-धमंड करना ।-टूटना-अचानक आषाढी-स्त्री० [सं०] आषाढकी पर्णिमा; इस दिन होने- भारी विपद् आ पड़ना, दैवकोप होना। -दिखानावाला कृत्य ।
कुश्ती में प्रतिद्वंद्वीको चित कर देना। -पर उड़ना, आसंग-पु० [सं०] आसक्ति, लगाव साथ संलग्नता। -पर चढ़ना-गर्वसे इतराना, मिजाज बहुत बढ़ जाना। आसंगी(गिन)-वि० [सं०] आसक्त संबद्ध ।
-पर चढ़ाना-अति प्रशंसाके द्वारा मिज़ाज बिगाड़ देना। आसंजन-पु० [सं०] बाँधना; धारण करना; उलझ जाना; -पर थूकना-बड़े आदमीको निंदित करनेके प्रयत्नमें संबंध; मूठ ।
स्वयं निंदित होना। -फटना-अचानक भारी विपद् आसंदिका-स्त्री [सं०] छोटी कुरसी; मचिया ।
आ पड़ना, दैवकोप होना। -में छेद होना-वर्षाका आसंदी-स्त्री० [सं०] मचिया; आराम-कुरसी; वेदी। न थमना, लगातार अतिवृष्टि होना। -में थिगली या आस-स्त्री० आशा भरोसा; सहारा कामना; * दिशा। थूनी लगाना-कठिन, अनहोनी बात करना। -सिरसु०-होना-आशा या सहारा होना; गर्भ रहना। पर उठा लेना बहुत शोर, ऊधम, कोलाहल मचाना । आसकतां-स्त्री० सुस्ती, आलस्य ।
-सिरपर टूट पड़ना-दैवकोप होना, अचानक कोई आसकती-वि. आलसी।
भारी विपद् आ पड़ना । -से गिरना,-से टपकनाआसक्त-वि० [सं०] आसक्तियुक्ता मनका प्रबल लगाव
(किसी चीजका) अपने आप उपस्थित हो जाना । -से रखनेवाला, अनुरक्त फँसा हुआ, लिप्त (विषयासक्त)। बातें करना-आसमान छूना। आसक्ति-स्त्री० [सं०] मनका लगाव अनुराग, लगन ।
आसमानी-वि० [फा०] आसमानका; आसमानके रंगका आसति-स्त्री० सत्य; आसक्ति समीपता मुक्ति । दैवी । स्त्री० हलका नीला रंग ताड़ी। आसतीन-स्त्री० दे० 'आस्तीन'।
आसमुद्र-अ० [सं०] समुद्रतक । आसते*-अ० दे० 'आहिस्ता'।।
आसय-पु० दे० 'आशय'। आसतोष-वि०, पु० दे० 'आशुतोष' ।
आसर*-पु० दे० 'आशर'। आसत्ति-स्त्री० [सं०] निकट संबंध, समीपता; मेल; वाक्यमें आसरना*-स० कि० आश्रय लेना । संबद्ध पदोंका पास-पास रहना; लाभ, प्राप्ति।
आसरा-पु० सहारा; अवलंब भरोसा; आशा प्रतीक्षा । आसथान*-पु० दे० 'आस्थान'।
आसव-पु० [सं०] मद्य रस; पुष्परसः अधरामृत; फल आसन-पु० [सं०] बैठना; वह चीज जिसपर बैठा जाय | आदिके खमीरसे तैयार किया हुआ अर्क; मद्यपात्र । (चटाई, कुरसी आदि); बैठनेकादंग रुकना रहनाः फेंकनाः आसा*-स्त्री० दे० 'आशा' । पु० दे० 'असा'। हठयोगके अंदर बैठने और विभिन्न अंगोंके व्यायामकी आसाइश-स्त्री० [फा०] सुख, आराम: विधियाँ रतिक्रियाकी कोई विधि । मु०-उखड़ना-जम
आसाढ़-पु० दे० 'आषाढ'। कर न बैठ सकना, डगमगाना ।-करना-योगके अनुसार आसादित-वि० [सं०] लब्ध, प्राप्त रखा हुआ। शरीरको विशेष स्थितिमें रखना; टिकना । -कसना
आसान-वि० [फा०] सहल, सुगम, सीधा। अंगोंको तोड़-मरोड़कर बैठना । -छोड़ना-उठकर चल | आसानी-स्त्री० [फा०] सहल होना, सुगमता । देना । -जमाना-जमकर, अडिग भावसे बैठना अपनी | आसार-पु० [अ०] पदचिह्न चिह्न, लक्षण बँडहर । स्थिति, अधिकार दृढ़ कर लेना; डेरा डालना ।-डिगना, आसिख(खा)*-स्त्री० आशीर्वाद । -डोलना-चित्तका विचलित हो जाना: मनमें भय या आसिरवचन-पु० आशीर्वाद । घबराहट पैदा हो जाना; मन ललचाना। -मारना,- आसी*वि०खानेवाला (आशी) । लगाना-आसन जमाना, जमकर बैठना ।
| आसीन-वि० [सं०] बैठा हुआ।
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आसीस-आहुत
आसीस-स्त्री० आशीर्वाद ।
आस्वाद-पु० [सं०] रस, स्वाद, मजा; रसानुभव, चखना। आसु*-सर्व ० इसका । अ० दे० 'आशु' । -ग-वि० दे० आस्वादन-पु० [सं०] रस,स्वाद लेना, चखना; खाना । 'आशुग'। -तोष-पु० दे० 'आशुतोष' ।
आस्वादित-वि० [सं०] चखा, स्वाद लिया, खाया हुआ। आसुर-वि० [सं०] असुरका; असुर-संबंधी। पु. वह
आस्वाद्य-वि० [सं०] चखने, स्वाद लेने योग्य; मजेदार । विवाह जिसमें वर कन्याके पिता-माताको धन देकर | आह-अ० कुश, शोक, वेदना आदिका सूचक उद्गार, हाय। कन्या खरीदता है; * असुर ।
स्त्री० दुःख, पीड़ा प्रकट करनेवाली ध्वनि, कलपने, करा आसुरी-स्त्री० * असुर-स्त्री, दानवी ।-वि० स्त्री० [सं०]
हनेकी आवाज; हाय, ठंढी साँसः शाप । * पु० साहस असुरकी; असुर-संबंधिनी; असुरोचित । -चिकित्सा- जोर, बल; क्रोध; ललकार । मु०-करना-कलपना। स्त्री० शल्य-चिकित्सा। -माया-स्त्री० असुरोंकी माया।
-खींचना-टॅढी साँसके साथ आह करना, कलपना। -संपत्-स्त्री० बुरे तरीकेसे प्राप्त किया हुआ धन ।
-पड़ना-शाप पड़ना, किसीको सताने, रुलानेका फल आसूदगी-स्त्री० [फा०] आसूदा होना; तृप्ति । -
मिलना । -भरना-दे० 'आह खींचना'। -मारनाआसूदा-वि० [फा०] तृप्त, संतुष्ट; सम्पन्न ।
ठंढी साँस खींचना । -लेना-सतानेका फल अपने ऊपर आसेक-पु० [सं०] भिगाना, तर करना, सिंचन करना।
लेना। आसेचन-पु० [सं०] दे० 'आसेक' ।
आहट-स्त्री०किसीके चलने, हिलने आदिसे होनेवाली आसेध-पु० [सं०] (अटैचमेंट) कर्ज या जुर्माने आदिकी
हल्की आवाज, चाप; किसीकी उपस्थितिका अनुमान वसूलीके लिए न्यायालयकी आज्ञासे किसीकी संपत्तिपर |
करानेवाली ध्वनि टोह । मु०-लेना-आहट पाने, टोह अधिकार किया जाना, कुकी।
लेनेके लिए कान लगाये रहना। आसेधक-वि० [सं०] कैद करनेवाला, रोक रखनेवाला। आहत-वि० [स] जिसपर प्रहार, आघात किय आसेब-पु० [फा०] चोट; कष्ट; बाधा; प्रेतबाधा।
बजाया हुआ; घायल; रोंदा हुआ हटाया, निकाला हुआ आसोज(जा) -पु० आश्विन मास ।
गुणित; व्याघात दोषयुक्त, असंगत (वाक्य)। आसौं*-अ० इस साल ।
आहतोपचारी दल-पु० [सं०] (ऐंबूलेंसकोर) घायलोंका भास्तरण-पु० [सं०] फैलाना; बिछाना; दरी; गहा
उपचार करनेवाले डाक्टरों, कंपाउंडरों, परिचारकों
आदिका दल, परिचारण-दल । आस्तिक-वि० [सं०] ईश्वर और परलोकको माननेवाला; | आहनन-पु० [सं०] मारना, पीटना; डंडा। वेदको माननेवाला; धर्मनिष्ठ । पु० ईश्वर तथा परलोकमें आहर* -पु० समय; दिन; युद्ध; पशुओंके धोने आदिके विश्वास करनेवाला व्यक्ति ।
लिए बना हुआ जलाधार । आस्तिकता-स्त्री०, -आस्तिकत्व-पु० [सं०] दे० आहरण-पु० [सं०] लेना; छीन लेना; उठा ले जाना। 'आस्तिक्य' ।
हटाना। आस्तिक्य-पु०[सं०] ईश्वर आदि में विश्वास धार्मिकता। आहरन-पु० निहाई । आस्तीन-स्त्री० [फा०] सिले कपड़ेका बाँहपरका भाग, आहर्ता (1)-वि० [सं०] आहरण करनेवाला; छीनने, बाँही । मु०-का सॉप-मित्र बनकर शत्रुता करनेवाला, लेनेवाला; लानेवाला। दोस्तनुमा दुश्मन । -चढ़ाना-लड़नेको तैयार होना आहवन-पु० [सं०] यज्ञ होम करना; हवि । किसी कामके लिए तैयार होना ।
आहवनीय-वि० [सं०] आहुति देने योग्य । आस्ते*-अ० दे० 'आहिस्ता'।
आहाँ*-स्त्री० दुहाई, पुकार, आह्वान ।अनिषेध-सूचक आस्थगन-पु० [सं०] (अबेएंस) कुछ समयके लिए स्थगित शब्द।। कर देना या लागू न करना।
आहा-अ० हर्ष, आश्चर्य व्यक्त करनेवाला उद्गार, अहाहा । आस्था-स्त्री० [सं०] आदर; विश्वास; श्रद्धा; आलंबन, आहार-पु० [सं०] ग्रहण, लेना; खाना, भोजन; खानेकी सहारा सभा; वादा; आशा स्थिति प्रयल।
वस्तु । -विज्ञान-पु० वह विज्ञान जिसमें खाद्य पदार्थोके आस्थान-पु० [सं०] स्थान; सभा; सभागृह; दरबारः गुण-दोष, योग, पोषणतत्त्व, वर्गीकरण आदिका विचार 'मनोरंजनका स्थान; श्रद्धा, आस्था।
किया गया हो। -विहार-पु० भोजन, शयन, श्रम आस्पद-पु० [सं०] स्थान; अधिष्ठान, आलंबन, पद, अल्ल, आदि; रहन-सहन । कुलकी उपाधिः काम; कुंटलीमें दशम स्थान ।
आहारी (रिन् )-वि० [सं०] ग्रहण करनेवाला; खानेआस्फालन-पु० [सं०] हिलाना; फड़फड़ाना, घमंड। - वाला; एकत्र करनेवाला। आस्फोट-पु० [सं०] ताली बजाने या ताल ठोकनेकी| आहार्य-वि० [सं०] ग्रहण करने, लेने, छीनने, खाने आवाज; रगड़ या धक्का; हिलना; काँपना।
योग्य । पु० नायक-नायिकाका एक दूसरेका भेस बनाना । आस्मारक-पु० [सं०] ( मेमोरियल ) वह रचना, कार्य, | आहिंडन-पु० [सं०] (वैसी) वेधर-द्वारके, बेमतलब भवन इत्यादि जिसका लक्ष्य किसीकी याद बनाये रखना इधर-उधर भटकना, बेकार घूमना, आवारागर्दी। हो; कही हुई बातों आदिका मरण दिलानेके लिए किसी आहिस्ता-अ० [फा०] धीरेसे धीरे-धीरे धीमी आवाजसे । अधिकारीके पास भेजा गया पत्रक ।
| -आहिस्ता-अ० धीरे-धीरे; क्रमशः। आस्य-पु० [सं०] मुंह, चेहरा ।
आहत-वि० [सं०] देवादिके लिए हविरूपमें अर्पित.
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आहुति-इंद्रानी होमा हुआ । पु० अतिथि सत्कार; भूतयज्ञ ।
कता पड़नेपर संचालकों द्वारा हिस्सेदारोंसे माँगा जाय । आहुति-स्त्री० [सं०] यशादिके समय हवनसामग्री आह्निक-वि० [सं०] दैनिक एक दिन या प्रतिदिनका। अग्निमें डालना; हवनसामग्री; उतनी हवनसामग्री जो -कर्म(न)-पु० नित्यकर्म । एक बारमें अग्निमें डाली जाय; बलि; ललकार । आह्लाद-पु० [सं०] हर्ष, आनंद, खुशी। आहुती*-स्त्री० यज्ञाग्निमें हवनसामग्री डालना; हवनके | आह्लादित-वि० [सं०] आहादयुक्त, आनंदित । रूपमें डाली जानेवाली वस्तु ।
आह्वान-पु० [सं०] बुलाना; पुकार, बुलावा; देवताका आइत-वि० [सं०] बुलाया, पुकारा, न्योता हुआ।-पूजी- आवाहन; अदालतमें हाजिर होनेका आदेश, तलबनामा स्त्री० [हिं०] (कॉल्ड अप कैपिटल) किसी कारखाने, ललकार, चुनौती; नाम ।-पत्र-पु०(समंस) न्यायालय में कंपनी आदिके बिके हुए हिस्सोंका वह अंश जो आवश्य-। उपस्थित होनेका आदेश, समन ।
भारानी क० ईसा गेदुरी,
इ-देवनागरी वर्णमालाका तीसरा (स्वर) वर्ण । इसका । स्त्री० चंद्रमाकी कला; अमृता; गुडुची। -कांत-पु० उच्चारण-स्थान तालु है।
चंद्रकांत मणि । -कांता-स्त्री० रात्रि केतकी। -ज,इंगला-स्त्री० इडा नामकी नाडी।
नंदन,-पुत्र-पु० बुध ग्रह । -भूषण, भृत्-मौलि,इंगित-पु० [सं०] संकेत, इशारा; अभिप्राय; मनका भाव शेखर-पु० शिव । -मणि-पु० चंद्रकांत मणि, मोती। बतानेवाली अंगचेष्टा । वि० जिसकी ओर संकेत किया -रेखा, लेखा-स्त्री० चंद्रमाकी कला; अमृता; गुडुची । जाय; चलित, कंपित ।
-वदना-स्त्री० चंद्रमुखी; एक वर्णवृत्त । -वल्ली-स्त्री० इंगुद-पु०, इंगुदी-स्त्री० [सं०] हिंगोटका पेड़।
सोमलता । -वासर-पु० सोमवार । -व्रत-पु० इंगुर*-पु० दे० 'ईगुर'।
चांद्रायण व्रत। हुँगुरीटी-स्त्री० ईगुर या सेंदुर रखनेकी डिबिया । | इंदुआ-पु० दे० 'इंदुरी' । इंच-स्त्री० [अं०] फुटका बारहवाँ भाग, तीन जौकी लंबाई । मती-स्त्री० [सं०] पूर्णिमा; अजकी पत्नी । इचना*-अ० क्रि० खिचना ।
इंदूर-पु० [सं०] चूहा। इंजन-पु० एंजिन कल, यंत्र; भाप आदिकी शक्तिको चालक | इंद्र-पु० [सं०] देवराज; अंतरिक्षका देवता; वर्षाका देवता
शक्तिमें बदल देनेवाला यंत्र; रेलवे इंजन; देह (ला०)। मेध; राजा, अधिपति श्रेष्ठ, प्रधान व्यक्ति आदि (कवींद्र); इंजीनियर-पु० [अं०] इंजन बनानेवाला; यंत्रविशेषज्ञ छप्पय छंदका एक भेद; १४ की संख्या; आत्मा । नहर, पुल आदिके नकशे बनाने और उनके निर्माणकी
-गोप-पु० बीरबहूटी।-चाप-पु० इंद्रधनुष् । -जाल निगरानी करनेवाला।
-पु० जादू, नजरबंदीके काम; हाथकी सफाईके काम इंजील-स्त्री० [यू०] ईसाइयोंकी धर्मपुस्तक, बाइबिल । बाजीगरी; अर्जुनका एक अस्त्र; एक रणकौशल । -जालिक इंदुरी*-स्त्री०, इंडवा-पु० गेंडुरी, बिड़ई ।
-पु० इंद्रजाल करनेवाली, जादूगर, बाजीगर ।। -जित् इंतितकाल-पु० [अ०] हस्तांतरित होना; मरना, मृत्यु । -वि० इंद्रको जीतनेवाला। पु० मेघनाद । -जी-पु० इंति(त)ख़ाब-पु० [अ०] छाँटना; चुनाव; खसरे- [हिं०] दे० 'इंद्रयव' । -दमन-पु० बाढ़में नदीके पानीखतियौनीके किसी कागजकी वाजान्ता नकल ।
का किसी वट, पीपल या कुंडतक पहुँच जाना; मेघनाद । इंति(त)जाम-पु० [अ०] प्रबंध करना; व्यवस्था, उपाय ।
-धनुष-पु० बरसातमें आकाशमें अक्सर दिखाई देने इंति(त)ज़ार-पु० [अ०] प्रतीक्षा करना, राह देखना । वाला सतरंगा अर्द्धवृत्त । -नील-पु० नीलकांत मणि । इति(त)हा-स्त्री० [अ०] अंत, समाप्ति; सीमा; अति । -नेत्र-पु० इंद्रकी आँखें; एक हजारकी संख्या (इंद्रकी -पसंद-वि० अतिवादी, 'एक्सट्रीमिस्ट' । [-कर देना- आँखोंकी गिनतीसे)। -प्रहरण-पु० वज्र । -मखअति करना, हद कर देना।]
पु० इंद्रकी तुष्टिके लिए किया जानेवाला एक यश-मद इंति(तहाई-वि० [अ०] अतिशय, हद दर्जेकी ।
-पु० पहली वर्षासे मछलियोंको होनेवाला एक रोग । इंद, इंदर-* पु० दे० 'इंद्र'।
-यव-पु० कुटजका बीज, इंद्रजी। -लोक-पु० स्वर्ग । इंदराज-पु० [फा०] बही या हिसाबमें चढ़ाया जान।। -वज्रा-स्त्री० एक वर्णवृत्त ।-वधू-स्त्री० बीरबहूटी। इंदव-पु० एक वृत्त; * दे० 'इंदु'।
-वारुणी-स्त्री० इंद्रायन । -व्रत-पु० राजाका प्रजाके इंदारा-पु० कूप ।
समृद्धिसाधनमें इंद्रका अनुसरण करना, जो जल बरसाकर हुँदारुन-पु० एक लता और उसका फल जो देखने में सुंदर संपूर्ण प्राणियोंका पोषण करता है। -सारथि-पु० पर स्वादमें बहुत कड़वा होता है (यह विष है, पर दवाके मातलि; वायु ।-सुत,-सूनु-पु० जयंत; अर्जुन; बालि । काम आता है), इंद्रायन ।
-सेनानी-पु० कात्तिकेय । -का अखाड़ा-इंद्रसभा इंदिरा-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; कांति, शोभा । -मंदिर- नाच-रंगकी खूब जमी हुई महफिल । -की परीपु० विष्णु; नील कमल । -रमण-पु० विष्णु ।
अप्सरा अति रूपवती स्त्री। इंदि(दी)वर-पु० [सं०] नील कमल ।
इंद्राणी-स्त्री० [सं०] इंद्रकी पत्नी; दुर्गा; इंद्रायन । इंद-पु० [सं०] चंद्रभा एककी संख्या कपूर । -कला- | इंद्रानी*-स्त्री* दे० 'इंद्राणी' ।
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इंद्रानुज, इंद्रावरज-पु० [सं०] विष्णु ।
इंद्रायन - पु० एक लता जिसका फल कड़वा होता है । इंद्रायुध - पु० [सं०] वज्र ; इंद्रधनुष् । इंद्रासन - पु० [सं०] इंद्रकी गद्दी इंद्रपद । इंद्रिय - स्त्री० [सं०] शरीरके ज्ञान और कर्मके साधन-रूप अंग, वे अवयव जिनसे बहिर्जगत्का बोध होता या शारीरिक क्रियाएँ संपन्न होती हैं; लिंगेंद्रिय । -गोचर- वि० इंद्रियोंका विषय होने योग्य, इंद्रियग्राह्यः ज्ञेये । -जित् - वि० इंद्रियोंको वश में रखनेवाला, जितेंद्रिय । - निग्रह - पु० इंद्रियों, भोगेच्छाओंको वशमें या अंकुशमें रखना । - लोलुप - वि० विषयभोगकी उत्कट इच्छा रखनेवाला । - सुख - पु० विषय सुख, भोग । इंद्रियातीत - वि० [सं०] इंद्रियोंका विषय न होने योग्य,
|
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अशय ।
इंद्रियार्थ - पु० [सं०] किसी इंद्रियका विषय, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंधमेंसे कोई । - वाद पु० (सेंशुअलिज्म) यह सिद्धांत कि हमें सब तरहका ज्ञान इंद्रियों द्वारा होनेवाले अनुभवसे ही प्राप्त होता हैं, संवेदनवाद; इंद्रियोंकी तृप्तिको ही जीवनका सर्वोच्च लक्ष्य माननेका सिद्धांत | इंद्री - स्त्री० दे० 'इंद्रिय' । - जुलाब- पु० अधिक पेशाब लानेवाली दवा |
इंधन - पु० [सं०] जलानेकी लकड़ी, कोयला, उपले आदि । इंसाफ़ - पु० [अ०] न्याय; निर्णय, फैसला । इ - पु० [सं०] कामदेव ।
इकंक* - अ० निश्चय ही ।
|
इकंग * - वि० एकतरफा । पु० अर्द्धनारीश्वर, शिव । इकत* - वि०, पु० दे० 'एकांत' । इक* - वि० दे० 'एक' । आँक* - अ० दे० 'एक आँक' । - जोर* - अ० एक साथ । - तरा-पु० एक दिनके अंतर से आनेवाला ज्वर । -ताना * - वि० एकनिए, अनन्यचित्त । - तार- वि० एकरस, समान । अ० निरंतर । -तारापु० दे० 'एकतारा' । - ताला- पु० दे० 'एकताला' । - तीस - वि० तीस और एक । पु० ३१ की संख्या । - बारगी - अ० दे० 'एकबारगी' । - रदन * - पु० दे० 'एकरदन' । - रस* - वि० दे० 'एकरस' । -ला- वि० दे० 'अकेला' | - लाई - स्त्री० एक पाटका दुपट्टा; बारीक फदी धोती; अकेलापन । जो अपने माँ-बापकी एकमात्र संतान हो साठ और एक । पु० ६१ की संख्या ।
बना बारीक -लौता - वि०
।
सठ- वि० - सूत* - वि०
इकट्टा; एक साथ | - हरा - वि० एक परतका । - हाई* -
अ० एक साथ; एकबारगी ।
इकइस* - वि० पु० दे० 'इक्कीस' |
इकट्टा - वि० यकजा, एकत्र; एक साथ |
इकतर, इकत्र* - वि० दे० 'एकत्र' |
इकता - स्त्री० दे० 'एकता' |
इकताई * - स्त्री० एक होनेका भाव; एकांतप्रियता ।
इकतीस - वि०, पु० दे० 'इक' में ।
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इंद्रानुज - इच्छा
इकबाली गवाह - पु० अपराधि - साक्षी ।
इकराम - पु० [अ०] दान, बख्शिश; अनुग्रह; मान, बड़ाई । इक़रार - पु० [अ०] हाँ करना, स्वीकृति; वचन, प्रतिज्ञा । -नामा - पु० प्रतिज्ञापत्र । इकलाई - स्त्री० दे० 'इक' में | इकल्ला - वि० एकहरा; एकाकी । इकसठ - वि०, पु० दे० 'इक' में | इकसर - वि० दे० 'अकसर' | इकांत* - वि० दे० 'एकांत' । इकाई - स्त्री० गणना में प्रथम अंक या उसका स्थान; वह मान या माप जो दूसरी चीजोंकी नाप-तौल में मानदंडका काम दे; यौगिक पदार्थ के मूल अवयव । इकारांत - वि० [सं०] जिसके अंत में 'इ' हो (शब्द) । इकेला* - वि० दे० 'अकेला' । इकैट * - वि० इकट्ठा ।
इकोतर - वि० एक अधिक, एकोत्तर । - सौ-वि० एक सौ एक, १०१ ।
इकौंज-स्त्री०वह स्त्री जिसे एक ही संतान हुई हो, काकवंध्या । इकौनी - वि० स्त्री० बेजोड़, अद्वितीय इकौसा - वि० एकांत ।
इक्का - वि० अकेला; अद्वितीय । पु० एक घोड़े की गाड़ी; अकेले लड़नेवाला योद्धा; एक मोतीवाली बाली; अपने झुंडसे अलग रहनेवाला पशु; ताशका एक बूटीवाला पत्ता | -दुक्का - वि० अकेला - दुकेला ।
इक्कावन - वि०, पु० दे० 'इक्यावन' |
इक्कासी - वि० दे० 'इक्यासी' ।
इक्की - स्त्री० एक बैलका गाड़ी; ताशका इक्का । इक्कीस - वि० बीस और एक, पु० २१ की संख्या । इक्यावन - वि० पचास और एक पु० ५१ की संख्या । इक्यासी - वि० अस्सी और एक पु० ८१ की संख्या । इक्षु - पु० [सं०] ईख ; कोकिला वृक्ष; इच्छा ।-कांड - पु० ईखका डंठल; ईख ; कास; मूँज । - गंधा - स्त्री० गोखरू; तालमखाना; कास; शुक्ल भूमिकुष्मांड । - पाक - पु० गुड़ | मेह- पु० मधुमेह । - यंत्र - पु० ईख पेरनेकी कल । यष्टि-स्त्री० ईखका डंठल । -रस-पु० ईखका रस; शीरा; कास ।-सार-पु० शीरा, गुड़ आदि । इक्षुर - पु० [सं०] ईख, गोखरू; तालमखाना । इक्ष्वाकु - पु० [सं०] वैवस्वत मनुका पुत्र और सूर्यवंशका पहला राजा; कड़वी लौकी ।
इखद* - वि०, अ० ईषत्, थोड़ा।
इखराज - पु० [अ०] निकालना, बाहर करना ।
इखराजात - पु० [अ०] खर्चे, व्यय ।
इखलास - पु० [अ०] पवित्रता; प्रीति; सच्ची मित्रता । इबु* - पु० दे० 'इपु' ।
इख़्तियार - पु० [अ०] ग्रहण, पसंद करना; अधिकार; वश; विचाराधिकार ।
इख्तिलाफ़ - पु० [अ०] भेद, अंतर; विरोध; अनबन । इगा (ग्यारह * - वि० दस और एक । पु० ११की संख्या ।
इकन्नी - स्त्री० दे० 'एकन्नी' ।
इक़बाल - पु० [अ०] सौभाग्य, समृद्धि, प्रताप; कबूल इच्छना * - स० क्रि० इच्छा करना ।
करना, स्वीकार ।
इच्छा - स्त्री० [सं०] चाह, कामना; ख्वाहिश; रुचि
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इच्छित - इनसानियत.
- निवृत्ति - स्त्री० इच्छाका दमन; विरक्ति । - पत्र - पु० (बिल) मृत्युके पहले लिखा गया वह पत्र या प्रलेख जिसमें कोई व्यक्ति यह इच्छा प्रकट करता है कि मेरी संपत्ति इस इस प्रकारसे इन-इन व्यक्तियोंको दी जाय, मेरी दाहक्रिया इस स्थानपर, इस ढंगसे की जाय इत्यादि, वसीयतनामा । - भेदी (दिन) - वि० जितने चाहे उतने दस्त लानेवाला ( रेचक) । - भोजन-पु० अपनी रुचि, पसंदका भोजन |
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इजाज़त - स्त्री० [अ०] अनुमति, परवानगी । इज़ाफ़ा - पु० [अ०] वृद्धि, बढ़ती । - लगान - पु० लगान | का बढ़ना, बढ़ती ।
इच्छित - वि० [सं०] चाहा हुआ, अभिलषित । इच्छु - वि० [सं०] चाहनेवाला (समासांतमें), * पु० ईख । इताति* - स्त्री० दे० ' इताअत' | इच्छुक - वि० [सं०] चाहनेवाला ।
इजमाल - पु० [अ०] इकट्टा करना; थोड़े में कहना; साझा । इजमाली - वि० [अ०] साझेका, शिरकती । इजरा - स्त्री० उर्वरता बढ़ाने के लिए परती छोड़ी हुई जमीन । इजराय - पु० [अ०] जारी करना, होना; काममें लाना या लाया जाना। - डिगरी- पु० डिगरीका जारी किया जाना या अमल में लाया जाना ।
इजलास - पु० [अ०] बैठक; हाकिम या अधिकारीका (विचार के लिए) बैठना; उसके बैठनेका स्थान, कचहरी । इज़हार - पु० [अ०] जाहिर करना, प्रकट करना; अदालत - में दिया हुआ बयान या गवाही । - (३) तहरीरी - पु० लिखित बयान या गवाही ।
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इजार - पु० [अ०] पाजामा, सुथना । - बंद-पु० पाजामा या लहँगा बाँधनेका बंद या फीता, नारा । इजारा - पु० [अ०] ठेका, पट्टा; एकाधिकार, किसी वस्तुके बनाने, बेचने, भोगने आदिका अकेले अधिकारी होना । इज्ज़त - स्त्री० [अ०] मान, प्रतिष्ठा, बड़ाई; आदर । - दार - वि० प्रतिष्ठित । मु० - उतारना, - बिगाड़ना, -लेनाआवरू करना, अपमानित करना । - खोना, - गँवानामर्यादा खोना । - देना - मर्यादा खोना; गौरवान्वित करना । इठलाना - अ० क्रि० गर्वसूचक चेष्टाएँ करना, ठसक, ऐंठ दिखाना, इतराना; नखरा करना; बनना । इठलाहट - स्त्री० इठलानेका भाव, ऐंठ । इठाई* - स्त्री० मित्रता, प्रीति रुचि ।
इडा, इला - स्त्री० [सं०] धरती; वाणी; आहुति, हवि; धारावाहिक स्तुति; अन्न; गाय; स्वर्ग; एक नाडी जो रौढ़की हड्डीसे होकर मस्तकतक पहुँचती है; मनुकी पुत्री जो बुधकी पत्नी और पुरूरवाकी माता थी; दुर्गा ।
इत* - अ० इधर, यहाँ । उत - अ० यहाँ वहाँ ।
इतक्राद- पु० दे० 'एतकाद' ।
इतना - अ० इस मात्रा, मिकदारमें। इतनेमें- इसी बीच या अरसे में तबतक ।
इतर - ५० दे० ' इत्र' | वि० [सं०] दूसरा, और; भिन्न । इतराजी* - स्त्री० दे० 'एतराज़' ।
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इतराना - अ० क्रि० गर्वसे ऐंठना, गर्वका इतना बढ़ जाना कि वचन, व्यवहारसे प्रकट होने लगे; इठलाना । इतरेतर - अ० [सं०] परस्पर, एक दूसरेको या से । इतरेतराश्रय- पु० [सं०] एक तर्कदोष, दो वस्तुओंकी सिद्धिका एक दूसरीकी सिद्धिपर अवलंबित होना । इतरौहा* - वि० जिससे इतराना प्रकट हो, गर्वसूचक । इतवार - पु० रविवार ।
इतस्तत: -, अ० [सं०] यहाँ-वहाँ ।
इताअत- स्त्री० [अ०] अधीनता, ताबेदारी; आशापालन ।
इति - अ० [सं०] समाप्ति सूचक शब्द । स्त्री० समाप्ति; अंत; पूर्णता । - कर्तव्यता - स्त्री० (किसी कार्यका) आवश्यक या कर्तव्य होना । वृत्त-पु० घटना; कहानी; पुरानी (राजाओं, ऋषियों आदिकी) कहानियाँ । -हासपु० अबतक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाले व्यक्तियोंका कालक्रमानुसार वर्णन इस प्रकार के वर्णनवाली पुस्तक । - ०कार - पु० इतिहास लेखक | इतेक+ वि० इतना |
इतो, इत्तो* - वि० इतना |
इत्ति (त) फ़ाक़ - पु० [अ०] मेल, एकता; सहमति; संयोग । इत्ति (त) फ़ाक़न् - अ० [अ०] संयोगवश, अचानक । इत्ति (त) फ़ाक़िया, इत्ति (त्त) फ़ाक़ी - वि० [अ०] अचानक होनेवाला, आकस्मिक |
इन्ति (त्त) ला - स्त्री० [अ०] सूचना, खबर, जानकारी ।
-नामा - पु० सूचनापत्र !
| इत्तिहाद - पु० [अ०] एका, मेल; संयोग । इत्थम् - अ० [सं०] इस प्रकार, यों । इत्यादि, इत्यादिक - अ० [सं०] इसी प्रकार और, वगैरह । इत्र- पु० [अ०] सुगंध; सुगंधसार; चंदनके तेलपर उतारा हुआ पुष्पसार, इतर; सार । दान-पु० इत्र रखनेका पात्र या संदूकची । -फ़रोश - पु० इत्र बेचनेवाला, गंधी । - साज़ - पु० इत्र बनानेवाला ।
इधर - अ० इस ओर; यहाँ । -उधर - अ० यहाँ-वहाँ; जहाँ-तहाँ आस-पास अगल-बगल; सब ओर । मु०उधर करना - इधरका उधर, कहींका कहीं कर देना; टालमट्टूल करना । - उधरकी- जहाँ तहाँकी, सुनीसुनायी, बाजारी, अप्रामाणिक (बात, खबर ) ।-उधरकी हाँकना - गप मारना । - उधरसे - जहाँ-तहाँ से; दूसरोंसे । - उधर होना - अव्यवस्थित हो जाना; टाल-मटूल होना । - का उधर होना - कहींका कहीं हो जाना, उलट-पुलट जाना। - की उधर करना या लगाना-झगड़ा लगाना, चुगली खाना | - की दुनिया उधर हो जाना - असंभवका संभव होना । - या उधर - अनुकूल या प्रतिकूल, पक्ष या विपक्षमें; जीत या हार ।
इनक़लाब - पु० [अ०] उलट-पलट; भारी उलट-फेर; क्रांति । - जिंदाबाद - क्रांति जीती रहे ! क्रांतिकी जय !
इतमाम* - पु० दे० 'इहतिमाम' |
इतमीनान - पु० [अ०] भरोसा, विश्वास; तसल्ली; शांति | इनकार - पु० [अ०] मुकरना, अस्वीकृति; न मानना । इतमीनानी - वि० [अ०] विश्वासी, भरोसेका ।
इनसान - पु० [अ०] मनुष्य, आदमी ।
इनसानि ( नीयत - स्त्री० [अ०] मनुष्यता; मनुष्योचित गुण, सहानुभूति; सौजन्य ।
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९५
इनाम-ईसारत इनाम-पु० पुरस्कार, बख्शिश; माफी जमीन । -दार- इलाम*-पु० आज्ञा, सूचना । पु० माफीदार।
इलायची-स्त्री० एक सुगंधित फल जिसके सूखे दाने या इनायत-स्त्री० [अ०] अनुग्रह, कृपा प्रदान ।-करना- बीज मसाले, दवा आदिके काम आते हैं। -दाना--पु० फरमाना-(कृपापूर्वक) देना, प्रदान करना।]
चीनीमें पगे हुए इलायची या पोस्तेके दाने । इनारा-पु० कूप
इलावत*-पु० दे० 'इलावृत्त' । इनारुन-पु० इंद्रायनका फल ।
इलाही-अ० [अ०] हे ईश्वर, या खुदा! पु० ईश्वर, इने-गिने-वि० गिने-गिनाये, कुछ थोड़े, कतिपय । खुदा । -गज़-पु० अकबरका चलाया हुआ गज जो इफ्ररात-स्त्री० [अ०] बहुतायत, प्रचुरता; अतिशयता। अब इमारत आदि नापनेके काम आता है। इबरानी-वि० यहूदी-संबंधी। पु० यहूदी, इसरायली। इल्ज़ाम-पु० दे० 'इलज़ाम'। स्त्री० यहादियोंकी पुरानी भाषा, तोरेतकी भाषा ।
इल्म-पु० [अ०] शान, जानकारी, विद्या, शास्त्र । इबादत-स्त्री० [अ०] पूजा, उपासना वंदना ।-खाना- | इल्लत-स्त्री० [अ०] कारण; रोग; दोष; झंझट; दुर्व्यसन । पु० उपासना-मंदिर।
इल्ली-स्त्री० उड़नेवाले कीड़ोंके बच्चोंका अंडेसे निकलनेके इबारत-स्त्री० [अ०] वाक्यकी बनावट, रचना; लेखः । बादका रूप। लिखनेका ढंग
इव-अ० [सं०] समान, सदृश, मानिंद । इभ-पु० [सं०] हाथी। -कुंभ-पु० हाथीका मस्तक। इशारा-पु० [अ०] संकेत, सैन; गुप्त प्रेरणा; छिपी, अस्पष्ट -केशर-पु० नागकेशर ।
सूचना । -(रे) बाज़ी-स्त्री० इशारे करना, आँखोंसे इभानन-पु० [सं०] गणेश ।
(विशेषतः प्रेमी-प्रेमिकाका) संकेत करना। इमदाद-पु० [अ०] मदद, सहायता; मदद करना। इश्क-पु० [अ०] प्रेम, चाह, अनुराग; आसक्ति । -बाज़ इमदादी-वि० [अ०] मदद पाने या मददसे चलनेवाला। -वि० प्रेमी, रसिक, दिलफेंक । पु० ऐसा व्यक्ति । इमरती-स्त्री० जलेबी जैसी एक मिठाई ।
इश्ति(श्त)हार-पु० [अ०] प्रसिद्धि; विज्ञापन; सूचना । इमलिया-स्त्री. सॉकल जैसा एक साधन जिसे कोंढ़े में इश्ति(श्तहारी-वि० [अ०] जिसका इश्तिहार निकला फंसाकर ताला लगाते हैं।
हो, विशापित । -मुजरिम-पु. वह फरार अपराधी इमली-स्त्री० एक पेड़ और उसका फल जो पहले खट्टा, जिसकी गिरफ्तारीके लिए इश्तिहार निकला हो। किंतु पकनेपर कुछ मीठा हो जाता है और चटनी, अचार इषणा-स्त्री० इच्छा, कामना । आदिके काम आता है।
इषु-पु० [सं०] बाण, तीर; पाँचकी संख्या जीवाके मध्यइमाम-पु० [अ०] नेता, अगुआ; धर्मके कार्यों में नेतृत्व | विदुसे परिधितक खींची गयी सीधी रेखा (ज्या०)।करनेवाला (इसलाम); हसन-हुसैनकी उपाधि । -बाड़ा- कार-पु० बाण बनानेवाला। -धर-पु० तीरंदाज, पु० [हिं०] वह इहाता जिसमें ताजिये दफनाये जाते हैं। बानैत । -धि,-धी-पु० तूणीर । इमारत-स्त्री० [अ०] मकान पक्का मकान
इट-वि० [सं०] चाहा हुआ, अभिलषित; वांछनीय: प्रियः इमि*-अ० इस प्रकार ।
उद्दिष्टः पूजित । पु० ईट; मित्र; इच्छा; प्रिय व्यक्ति, पति; इम्तहाम, इम्तिहान-पु०[अ०] परीक्षा, परख, आजमाइश। इष्टदेव । -काल-पु० किसी घटनाके घटित होनेका ठीक इयत्ता-स्त्री०, इयत्त्व-पु० [सं०] परिमित संख्या या
समय (फ० ज्यो०)। -देव-देवता-पु० आराध्य देव परिमाण; सीमा, हृद।
कुलदेवता । मु०-होना-किसी देवताकी आराधनामें इरषा, इरिषा*-स्त्री० दे० 'ईर्ष्या'।
सिद्धि प्राप्त कर लेना, उसके आवाहन और अभिलषित इरषित-वि० दे० 'ईर्षित' ।
कार्य कराने में समर्थ होना। इरा-स्त्री० [सं०] भूमि; वाणी, सरस्वती, जल, मध ।
इष्ट(ष्टि)का-स्त्री० [सं०] ईंट । इरादतन्-अ० [अ०] इरादा करके, जान-बूझकर । इष्टि-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाह; निवेदन । इरादा-पु० [अ०] संकल्प; इच्छा; विचार ।
इस-सर्व० 'यह'का विभक्तिके पहले प्रयुक्त रूप । इर्द-गिर्द-अ० आस-पास, चारों ओर ।
इसपंज-पु० मुर्दा बादल, स्पंज । इलज़ाम-पु० [अ०] आरोप, अभियोग, दोष लगाना।
इसपात-पु० कड़ा और बढ़िया लोहा, फौलाद । इलहाम-पु० [अ०] ईश्वरका दिलमें कोई बात टालना,
इसबगोल-पु० एक लुआबदार दाना जो अतीसार आदि ईश्वरीय प्रेरणा या संदेश, देववाणी ।
रोगों में दिया जाता है। इलहामी-वि० [अ०] ईश्वरसे प्रेरित । -किताब-स्त्री० इसराज-पु० सारंगी जैसा, एक बाजा। ईश्वर-प्रेरणासे रचित, ईश्वरकी भेजी हुई धर्मपुस्तक ।
इसरार-पु० [अ०] आग्रह, हठ; आग्रह करना। इला-स्त्री० [सं०] भूमि; गायः सरस्वती; वैवस्वत मनुकी इसलाम-पु० [अ०] स्वीकार करना; ईश्वरेच्छाके सामने कन्या जो बुधकी पत्नी और पुरूरवाकी माता थी।-धर- सिर झुका देना; मुहम्मदका चलाया हुआ धर्म; मुसलपु० पर्वत । -वृत्त-पु० जंबुद्वीपके नौ भागोंमेंसे एक। । मानोंकी समष्टि, मुसलिम जगत् । इलाका-पु० [अ०] लगाव, संबंध; जमींदारी; पूरे गाँवकी इसलाह-पु० [अ०] सुधारना, शोधना, गलती दुरुस्त
जमींदारी रियासत । -(के)दार-पु० जमींदार । करना; रचनाका संशोधन (देना, लेना)। इलाज-पु० [अ०] निवारक उपाय, उपचार, चिकित्सा। इसारत-स्त्री० इशारा, संकेत ।
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इस्तकबाल - ईमान
इस्तिकबाल - पु० [अ०] अगवानी, स्वागत | इस्तिगासा - पु० [अ०] न्यायकी प्रार्थना, फरियाद; | फौजदारी नालिश | इस्तमरारी - वि० [अ०] सदा रहनेवाला, स्थायी, सार्वकालिक । - बंदोबस्त - पु० जमीनका वह बंदोबस्त जिसमें मालगुजारी सदाके लिए निश्चित हो जाती है । इस्ति (स्त) री - स्त्री० पीतल या लोहेका वह औजार जिसके भीतर जलते कोयले रखकर धुले या सिले कपड़ोंकी शिकन दूर की और तह बैठायी जाती है । इस्तीफ़ा - पु० [अ०] काम, नौकरीसे छुटकारेकी प्रार्थना;
त्यागपत्र ।
इस्तेमाल - पु० [अ०] काममें लाना, व्यवहार, उपयोग । इस्त्री* - स्त्री० दे० 'स्त्री' ।
इस्म - पु० [अ०] नाम, संज्ञा । -नवीसी - स्त्री० नाम
|
- देवनागरा वर्णमालाका चौथा (स्वर) वर्ण, 'इ' का दीर्घरूप || ई गुर - पु० लाल रंगका एक खनिज द्रव्य ( सौभाग्यवती हिंदू स्त्रियाँ माथेपर इसकी बिंदी लगाती हैं ) । ई चना* - सु० क्रि० ऐचना, खींचना । ईट - स्त्री० आयताकार साँचे में ढालकर पकाया हुआ मिट्टीका टुकड़ा जो दीवार बनानेके काम में आता है; धातुका चोखूँटा ढला हुआ टुकड़ा; ताशके चार रंगोंमेंसे एक | - कारी - स्त्री० ईंटका काम । - पत्थर- पु० कुछ नहीं । मु० - का छल्ला देना-कच्ची दीवार की मजबूती के लिए उससे सटाकर ईंटें चुनना । (डेढ़ या ढाई ) - की मस्जिद अलग बनाना - अपनी ही बातपर चलना निराला ढंग रखना । - गढ़ना- ईंटोंको काट-छाँटकर जोड़ाई के काम में आने योग्य बनाना। - चुनना - इंटोको जोड़कर दीवार उठाना । - पाथना - गीली मिट्टीको साँचेर्भे डालकर इंटका आकार देना । (गुड़ दिखाकर ) - मारना - भलाईकी आशा बँधाकर बुराई करना। -से ईंट बजना - मकानका ध्वस्त होना । - से ईंट बजाना
मकान ध्वस्त करना ।
'टा-पु० दे० 'ईंट' |
"डरी, ई डुरी-स्त्री० डुरी, बिड़ई ।
धन- पु० जलावन, जलानेकी लकड़ी, उपला आदि । - पु० [सं०] कामदेव | स्त्री० लक्ष्मी । * सर्व० यह ।
* अ० ही ।
ईकारांत - वि० [सं०] जिसके अंत में 'ई' हो (शब्द) । ईक्षण - पु० [सं०] देखना, दर्शन, दृष्टि, देखभाल; आँख; विवेचन; आलोचना |
ईख - स्त्री० गन्ना, ऊख ।
ईखना* - स० क्रि० देखना । स्त्री० एषणा, इच्छा । ईछन* - पु० ईक्षण, आँख । ईछना * - स० क्रि० इच्छा करना । ईछा* - स्त्री० दे० 'इच्छा' । ईजति * - स्त्री० इज्जत, मर्यादा । ईजाद - स्त्री० [अ०] कोई नयी चीज बनाना, निकालना ।
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लिखाई; ( गवाहों आदिकी) नाम सूची । इह - अ० [सं०] यहाँ, इस जगह; इस लोकमें; अब इस कालमें | पु० यह लोक । - लीला - स्त्री० इस लोकका जीवन । - लोक-पु० यह लोक; यह जीवन । - लौकिक - वि० इस लोकका, इस लोक-संबंधी; इस लोक में सुख देनेवाला (असाधु) ।
इहतिमाम - पु० [अ०] प्रबंध; आयोजन; निगरानी । इहतियात - स्त्री० [अ०] बचाव, परहेज; सावधानी । इहतियातन - अ० [अ०] सावधानीको दृष्टिसे । इहतियाती - वि० [अ९] दे० 'एहतियाती' - काररवाई - स्त्री० दे० ' एहतियाती- काररवाई' ।
९६
इहसान - पु० [अ०] नेकी, भलाई, उपकार; नेकी, उपकार करना । - फ़रामोश वि० कृतघ्न, उपकार न माननेवाला । - मंद - वि० कृतश, ऋणी ।
ईठ* - वि०, पु० इष्ट, मित्र, प्यारा । ईठना* - अ० क्रि० चाहना ।
इंठि* - स्त्री० मित्रता, प्रीति; यत्न; चाह । ईडन - पु० [सं०] प्रशंसा करना । ईडुरी* - स्त्री० दे० 'डुरी' । ईढ़ * - स्त्री० हठ |
ईतर* - वि० इतरानेवाला; ढीठ; साधारण; नीच ईति -
[स्त्री० [सं०] बाधा खेतीको नुकसान पहुँचानेवाले छः उपद्रव - अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चूहों, टिड्डियों और पक्षियोंका फसल खा जाना और दूसरे राजाकी चढ़ाई । ईद - स्त्री० [अ०] खुशीका दिन, त्योहार; (मुसलमानोंका ) मजहबी त्योहार | - गाह-पु० ईद के दिन मुसलमानों के एकत्र होकर नमाज पढ़ने की जगह । मु०- का चाँदऐसी वस्तु जिसके दर्शन दुर्लभ हों । इंदिया - पु० [अ०] ईद या दूसरे त्योहारोंपर एक दूसरे के यहाँ भेजी जानेवाली सौगात ।
ईदी स्त्री० [अ०] ईदका इनाम, त्योहारी; ईद या इस प्रकार के त्योहार के अवसरपर उसके बखानमें लिखित पथ; वह सुंदर हाशियेदार कागज जिसपर वह पद्य लिखा हो । ईदुज्जुहा - स्त्री० [अ०] दसवीं जिलहिजको मनायी जानेवाली ईद; बकरीद |
ईदुलफ़ितर - स्त्री० [अ०] रमजानकी समाप्ति पर नया चाँद होनेके दूसरे दिन मनाया जानेवाला त्योहार | ईदृश - वि० [सं०] ऐसा, इस तरहका । अ० ऐसे, इस तरह । ईप्सा - स्त्री० [सं०] पानेकी इच्छा; चाह, इच्छा । ईप्सित - वि० [सं०] चाहा हुआ; जिसकी चाह हो, प्रिय । ईबी सीबी* - स्त्री० सीत्कार, (रतिकालमें स्त्रीका) सी-सी
करना ।
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ईमान - पु० [अ०] धर्मविश्वास; ईश्वरपर विश्वास; धर्म; सचाई ;खरापन; लेन-देन आदि में सचाई; दयानत; नीयत । - दार- वि० सच्चा, विश्वसनीय; रुपये-पैसेके मामले में सच्चा, दयानतदार | मु० - का सौदा खरा व्यवहार । -की कहना - सच कहना, सच्ची बात कहना । - ठिकाने
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ईरखा-उऋण न रहना-धर्मपर दृढ़ न रहना। -डिगना-नीयतमें ईश्वर-पु० [सं०] स्वामी; राजा; धनी या बड़ा व्यक्ति खामी आना। -बिगड़ना,-में फर्क आना-नीयत | पति; जगन्नियंता, परमेश्वर; आत्मा एक संवत्सर; शिव । बिगाड़ना; धर्ममें सच्ची निष्ठा न रहना। -लाना-किसी वि० ऐश्वर्ययुक्त; शक्तिमान् ; समर्थ; धनी। -निष्ठ-वि० मत, सिद्धांत या धर्मकी सचाई पर विश्वास करना; उसे ईश्वर में विश्वास करनेवाला। धर्मरूपमें स्वीकार करना।
| ईश्वरा-स्त्री० [सं०] ईश्वरी; दुर्गा; लक्ष्मी या कोई शक्ति । ईरखा*-स्त्री० दे० 'ईा'।
ईश्वराधीन-वि० [सं०] ईश्वरकी इच्छापर अवलंबित। . ईरमद*-पु० बिजली; वज्राग्नि वडवाग्नि ।
ईश्वरी-स्त्री० [सं०] दुर्गा; लक्ष्मी; कोई शक्ति। [हिं०] वि०दे० ईरानी-वि० [फा०] ईरान या फारस देशका। पु० ईश्वरीय-वि० [सं०] ईश्वरका ईश्वर-संबंधी। ['ईश्वरीय'। ईरानवासी।
ईषत्-वि० [सं०] थोड़ा। अ० कुछ-कुछ, आंशिक रूपमें । ईर्षणा*-स्त्री० दे० 'ईर्ष्या'।
ईषदुष्ण-वि० [सं०] थोड़ा गरम, कुनकुना। ईर्षा-स्त्री० [सं०] दे० 'ईर्ष्या' ।
ईषना*-स्त्री० एषणा; बलवती इच्छा। ईर्षित-वि० [सं०] जिससे ईर्ष्या की गयी हो।
ईस*-पु० दे० 'ईश'। ईर्ष्या-स्त्री० [सं०] दूसरेकी बढ़ती न देख सकना, डाह, ईसन-पु० ईशान कोण । जलन ।
ईसब(र)गोल-पु० दे० 'इसबगोल' ईर्ष्यालु-वि० [सं०] ईर्ष्या करनेवाला ।
ईसर*-पु० महादेव; ऐश्वर्य । ईयु-वि० [सं०] डाह करनेवाला ।
ईसवी-वि० [अ०] ईसासे संबंध रखनेवाला, मसीही। ईश-पु० [सं०] स्वामी, मालिक राजा; पति ईश्वर शिव -पु० ईसाके जन्मकालसे चला हुआ सन् ।
एक रुद्र; ११की संख्या । वि० ऐश्वर्ययुक्त समर्थ । ईसा-पु० [अ०] ईसाई धर्मके प्रवर्तक, मसीह । ईशता-स्त्री० [सं०] प्रभुत्व, स्वामित्व ।
ईसाई-पु० [अ०] ईसा-प्रवर्तित धर्मको माननेवाला। ईशा-स्त्री० [सं०] ऐश्वर्यः अधिकार; ऐश्वर्ययुक्त स्त्री; दुर्गा। ईसान*-पु० ईशान कोण । ईशान-पु० [सं०] शिव; एक रुद्र; उत्तर-पूर्वका कोना ईहा-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाहा उद्यम, चेष्टा । -मृग-पु० ईशिता-स्त्री०, ईशित्व-पु० [सं०] ईश्वरत्व प्राधान्य भेड़िया रूपकका एक भेद जिसमें चार अंक होते हैं । आठ सिद्धियोंमेंसे एक ।
। ईहित-वि० [सं०] चाहा हुआ, अभिलषित; चेष्टित ।
उ-देवनागरी वर्णमालाका पाँचवा (स्वर) वर्ण । इसका | उँचान*-पु० ऊँचाई । उच्चारणस्थान ओष्ठ है।
उचाना*-स० क्रि० ऊँचा करना, ऊपर उठाना। उ-अ० प्रश्न, क्रोध आदिका सूचक एक अव्यक्त शब्द । उँचाव-पु० ऊँचाई। उँखारी -स्त्री० दे० 'उखारी' ।
उंचास-वि०, चालीस और नौ, ४९ । पु० ४९की संख्या। उँगनी-स्त्री० ओंगने अर्थात् गाड़ीकी धुरीमें तेल देनेकी किया। उँचास-स्त्री० ऊँचाई। उंगल*-पु० दे० 'अंगुल'।
उंछ-पु० [सं०] खेतमें (लुनाईके बाद) या रास्तेमें पड़े हुए उँगली-स्त्री० हाथके फलीके आकारवाले अंतिम भाग जो दाने जीविकाके लिए चुनना, सीला बीनना। -वृत्तिछोटी चीजोके पकड़ने-उठाने आदिके साधन होते है। पाँवके | स्त्री० खेतमें छूटे हुए दाने चुनकर गुजर करना । वि० इस ऐसे ही भाग, अंगुली । मु०-उठना-बदनामी होना, प्रकार निर्वाह करनेवाला। -शील-वि० उंछवृत्तिसे उपहासका पात्र होना। -उठाना-दोष, लांछन लगाना; जीविका करनेवाला। बदनाम करना; बुरी निगाह, हानि पहुँचानेकी दृष्टिसे उजरिया-स्त्री० चाँदनी रोशनी। वि० स्त्री० उजेली । देखना । -करना-परेशान करना, सताना ।-चटकाना उजियार*-पु० प्रकाश । वि० प्रकाशमान; उज्ज्वल । -उँगलियोंसे चट-चट शब्द करना। -चमकाना-उँग- उजियारी, उज्यारी-स्त्री० चाँदनी, प्रकाश। वि० स्त्री० लियोंको हिलाना। -पकड़ते पहुंचा पकड़ना-थोड़ा प्रकाशयुक्त । पाकर अधिक पानेका प्रयत्न करना, किप्तीकी भलमनसीका उँजेरा, उँजेला-पु०, वि० दे० 'उजेला'। अनुचित लाभ उठानेका यल करना ।-रखना-(किसीकी उँटड़ा(रा)-पु० गाड़ीका अगला भाग जमीनपर टिकानेके कृतिमें) दोष दिखाना।-लगाना-(किसी काममें) नाम- लिए जूएके नीचे लगायी जानेवाली लकड़ी। मात्र सहायता या सहारा देना, हाथ लगाना ।-(लियाँ) उडेलना-स० क्रि० दे० उड़ेलना' । नचाना-उँगलियाँ चमकाना । -(लियों) पर नचाना- | उंदुर, उंदुरु-पु० [सं०] चूहा ।
म कराना, इशारोपर नचाना हेरान करना।। उह-अ० अस्वीकार, घृणा, वेदना आदिका सूचक शब्द । उघाई-स्त्री० ऊँधनेकी क्रिया, झपकी ।
उअना*-अ० क्रि० उगना, उदय होना। उंचन-स्त्री० अदवान ।
उआना*-स० क्रि० उगाना; हाथ या हथियार उठाना । उंचना-स० क्रि० अदवान कसना
उऋण-वि० ऋणमुक्त; जो किसीके प्रति अपने कर्तव्यका उँचाई-स्त्री० ऊँचापन; ऊँचेपनकी सीमा; बड़ाई
पालन कर चुका हो।
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उकचन-उघटना
९८
उकचन*-पु० मुचकुंदका फूल ।
तोड़ कुश्तीका एक पंच । -पछाड़-स्त्री० उलट-पुलट । उकचना*-अ० क्रि० उखड़ना, उचड़ना; हट जाना। उखाड़ना-स० क्रि० गड़ी, जमी, बैठायीहुई चीजको उसकी उकटना-स० क्रि०किसीपर अपने उपकार या उसके अप- जगहसे हटा देना; ऊपर लाना; हड्डीको जोड़से हटा देना कारको बार-बार कहना, उघटना ।।
तितर-बितर कर देना; रंग, प्रभाव आदि न जमने देना; उकटा-वि० उकटनेवाला । पु० उकटनेका कार्य। -पुरान भगाना, उदवासना; नष्ट करना । (गड़े मुरदे उखाड़ना
-पु० पुरानी शिकायतोंको उघटना, गड़े मुर्दे उखाड़ना।। बीती हुई बातोंकी चर्चा फिर चलाना)। उकठना-अ० क्रि० सूखकर ऐंठ जाना।
उखाड़ -वि० उखाड़नेवाला। उकठा-वि० सूखकर ऐंठा हुआ।
उखारना*-स० क्रि० दे० 'उखाड़ना। उक-पु० बैठनेका वह ढंग जिसमें घुटने (खड़ेबल) मोड़े। उखारी-स्त्री० ईखका खेत । जाते हैं (बैठना)।
उखालिया-पु० सरगही, व्रत आरंभ करनेके पूर्व कुछ रात उकत*-स्त्री० दे० 'उक्ति' ।
रहते ग्रहण किया जानेवाला अल्पाहार । उकताना-अ० क्रि० ऊबना, अधीर होना
उखेड़ना-स० क्रि० दे० 'उखाड़ना' । उकति -स्त्री० दे० 'उक्ति।
उखेरना*-स० कि० दे० 'उखाड़ना'। उकलना-अ० क्रि० लपेट या ऐंठनका खुलना, उघड़ना। उखेलना*-स० क्रि० तसवीर बनाना, उरेहना। उकलाना-अ० क्रि० कै करना ।
उगटना*-सक्रि० दे० 'उघटना'। उकवथ-पु० एक चर्मरोग, एक तरहकी सूखी या गीली दाद।। उगना-अ० क्रि० उदय होना; जमना; उपजना । उकसना-अ० क्रि० उभरना; अंकुरित होना ।
उगरना -अ०क्रि० निकलना; कुएँ में जमी हुई मिट्टी ऊकसनि*-स्त्री० उभार ।
आदिकी सफाई होना। उकसाना-स० क्रि० उभारना; भड़काना; उछाल देना उगलना-स० कि. मुंहमें ली हुई चीज थूक देना; खायी(दीयेकी बत्तीको) आगे सरकाना, बढ़ाना। अ०क्रि० पी हुई चीजको मुंहकी राह बाहर कर देना; छिपा रखी हट जाना-'हाथिनके होदा उकसाने'-भू०।
हुई बात प्रकट कर देना; अपराध स्वीकार कर लेना उकसाहट-स्त्री० उकसानेका भाव; उत्तेजना ।
दबा, छिपा रखा हुआ माल लौटा देना; बाहर निकालना, उकसौहा*-वि० उठता, उभरता हुआ।
बिखेरना (आग, जहर आदि)। उक्राब-पु० [अ०] गरुड़; बड़ी जातिका गिद्ध ।
उगलवाना, उगलाना-सक्रि. उगलनेका काम कराना। उकासना*-स० कि.० ऊपरकी ओर फेंकना।
उगवना*-स० क्रि० उगाना, उपजाना । उकासी*--स्त्री० उघड़ जाना; छुट्टी; उत्सव ।
उगसाना-स० क्रि० दे० 'उकसाना'। उकिलना -अ० क्रि० दे० 'उकलना।
उगसारना-स० क्रि० कहना; प्रकट करना। उकील*-पु० दे० 'वकील'।
उगहना-स० क्रि० दे० 'उगाहना। उकुति-स्त्री० दे० 'उक्ति'।
उगहनी -स्त्री० चंदा। उकुरू-पु० दे० 'उकइँ ।
उगाना-स० क्रि० जमाना, उपजाना; उदय करना; उकुसना*-स० क्रि० उधेड़ना; उजाड़ना।
उठाना; तानना। उकेलना-स० क्रि० खोलना, उधेड़ना; उचाइना । उगार-पु० निचुड़ा या निचोड़ा हुआ पानी रँगे हुएकपड़ेउकोथ(था)-पु० दे० 'उकवर्थ' ।
के निचोड़नेसे निकलनेवाला पानी; दे० 'उगाल'। उकौना -पु० गर्भावस्थामें होनेवाली इच्छाएँ, दोहद ।। उगारना-स० कि० कुएँकी मिट्टी आदि निकालकर सफाई उक्त-वि० [सं०] कहा हुआ, कथित ।
करना। उक्ति-स्त्री० [सं०] कथन; वाक्य; कवित्वमय वचन, पद्य । उगाल-पु० थूक, खखार; पीक । -दान-पु० थूकनेका उखटना-स० क्रि० खोटनाः कुतरना। अ० कि० लड़खड़ाना। बरतन, पीकदान । उखड़ना-अ० कि० जमी, गड़ी या जड़ी हुई चीजका उगाहना-स० कि० बहुतसे लोगोंसे लेकर इकट्ठा करना; ऊपर आ जाना, अपनी जगहसे हटना; टूटना (दम, चंदा करना; वसूल करना। साँस); निशान पड़ना, उपटना; हड्डीका जोड़से हट | उगाही*-स्त्री० वमूली; चंदा लगान । जाना; बेताल या बेसुरा हो जाना; तितर-बितर होना; उगिलना*-स० क्रि० दे० 'उगलना' । (गाने आदिका) न जमना। मु० उखड़ी-उखड़ी उगिलवाना, उगिलाना-स० क्रि० दे० 'उगलवाना' । बातें करना-बेलौस होकर बात करना । उखड़ी-पुखड़ी उग्र-वि० [सं०] उत्कट, तीन; भयानका कर तीखा, तज; सुनाना-अंडबंड सुनाना ।
क्रुद्धः कोपनशील । पु० शिव रुद्र रौद्र रस; केरल देश। उखम -पु० गरमी । -ज-पु० दे० 'ऊष्मज' । उग्रसेन-पु० [सं०] कंसके पिता, मथुराके राजा। उखर*-पु० उख बोनेके बाद होनेवाली हलकी पूजा । उग्रह-पु० ग्रहणसे छूटना, मोक्ष । उखरना*-अ० कि० दे० 'उखड़ना।
उग्रा-स्त्री० [सं०] दुर्गा, महाकाली; उग्र स्वभाववाली, उखली-स्त्री० दे० 'ओखली'।
कर्कशा स्त्री; अजवायन, बच, इ० । उखा*-स्त्री० दे० 'ऊषा'।
उघटना-स० क्रि० किमीपर अपने उपकारों या उसके अपउखाड़-पु० उखाड़नेकी क्रिया; पेंच या दलीलकी काट; कारोंकी उद्धरणी करना, उकटना; कोसना ताल देना।
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उघटा-उच्छेद उघटा-वि० उबटनेवाला । -पुरान-पु० दे० 'उकटा- या राज्यका प्रधान न्यायालय। -सदन-पु० (अपर पुरान'।
हाउस) धन, विद्या, वय आदिकी दृष्टिसे अधिक संपन्न या उघड़ना-अ० क्रि० खुलना; प्रकट होना; नंगा होना;भंडा- अनुभवी माने जानेवाले सदस्योंसे निर्मित सदन, द्वितीय फोड़ होना । मु० उघड़कर नाचना-मान-मर्यादाका | सदन । खयाल छोड़कर मनमानी करना।
उञ्चरण-पु० [सं०] ऊपर उठना, आना; बाहर आना; उघरना*-अ० क्रि० दे० 'उघड़ना।
ध्वनि, शब्दरूपमें (मुँहसे) बाहर आना । उघरारा*-वि० खुला हुआ। पु० खुला स्थान ।
उच्चरना*-स० क्रि० उच्चारण करना । उघाड़ना-स० क्रि० खोलना; अनावृत करना; वस्त्रहरण । उच्चरित-वि० [सं०] ऊपर, बाहर आयाहुआ; कहा हुआ। उघारना*-स० क्रि० दे० 'उधाइना' ।
उच्चाकांक्षा-स्त्री० [सं०] ऊँची, बड़प्पनकी आकांक्षा । उघेलना*-स० कि० उघाड़ना।
उच्चाटन-पु० [सं०] हटाना; निकालना; उखाड़ना; किसीके उचंत(उचिंत)खाता-पु० (सस्पेंस अकाउंट) दे० 'अनुलंब चित्तको किसी व्यक्ति, स्थान, कार्य आदिसे उचटाना; खाता'।
तंत्रके छ: अभिचारों में से एक। उचकन-पु० कोई चीज ऊँची करनेके लिए उसके नीचे उच्चाटित-वि० [सं०] जिसका उच्चाटन किया गया हो। दिया जानेवाला ईंट आदिका टुकड़ा।
उच्चायुक्त-पु० [सं०] (हाई कमिश्नर) राष्ट्रमंडलके किसी उचकना-अ० कि० पंजेके बल खड़ा होना; किसी चीजको एक देशका राजदूत जो मंडलके किसी अन्य देशमें अपने पाने या देखनेके लिए ऊपर उहना; उछलना स० क्रि० । देशका प्रतिनिधि बनकर रहे । लपककर ले लेना; उठा लेना।
उच्चार-पु० [सं०] (शब्दको) बोलना, कहना; मल, विष्ठा । उचका*-अ० सहसा, अचानक
उच्चारक-वि० [सं०] उच्चारण करनेवाला, कहनेवाला । उचकाना-स० क्रि० ऊपर उठाना ।
उच्चारण-पु० [सं०] शब्दको मुँहसे निकालना, बोलना; उचक्का-पु० उचककर, छीन-झपटकर ले जानेवाला, चाई, शब्द या उसके वर्णौको कहनेका ढंग । -स्थान-पु० उठाईगीरा।
मुँहका वह स्थान जिसके प्रयत्नसे कोई विशेष ध्वनि निकले उचटना-अ० क्रि० उचड़ना; अलग होना, बिलगाना; | (कंठ, तालु, ओष्ठ, जिह्वा आदि)।
छूटना; मनका हट जाना, न लगना; भड़कना । उच्चारणीय-वि० [सं०] उच्चारण करने योग्य । उचटाना-स० क्रि० अलग करना, छुड़ाना; विरक्त करना; उच्चान्ति-वि० [सं०] कहा, बोला हुआ । बिचकाना, भड़काना।
उच्चार्य-वि० [सं०] उच्चारणीय । उचड़ना-अ० क्रि० सटी, चिपकी हुई चीजका अलग हो | उच्चूड, उच्चूल-पु० [सं०] ध्वजा या उसका ऊपरका जाना; उखड़ना; चल देना, उड़ जाना।
भाग झंडेके सिरेपरकी सजावट । उचना*-अ० क्रि० उचकना, ऊपर उठना। स० क्रि० ! उच्चैःश्रवा(वस्)-पु० [२०] इंद्रका घोड़ा। वि० ऊँचा ऊपर उठाना।
सुननेवाला; लंबे कानोंवाला । उचनि*-स्त्री० उठान, उभार ।
उच्छरना*-अ० क्रि० दे० 'उछलना' । उचरना-स० क्रि० उच्चारण करना, बोलना । अ० क्रि० | उच्छलन-पु० [सं०] उछलना, तरंगित होना। ध्वनि, शब्द होना, दे० 'उचड़ना।
उच्छलना-अ० क्रि० छलकना; ऊपर उठकर गिरना। उचाट-पु० विरक्ति, उदासी, जी न लगना। वि० उचटा उच्छलित-वि० [सं०] उछलाया उछलता हुआ, तरंगित, हुआ, जो किसी काममें न लगे (मन उचाट है)।
क्षुब्ध; कंपित । उचाटन*-पु० दे० 'उच्चाटन' ।
उच्छव-पु० उत्सव । उचाटना-स०कि उचाट कर देना, उच्चाटन करना।
उच्छाव -पु० दे० 'उछाव'। उचाटी-स्त्री० उचाट, उदासी ।
उच्छास*-पु० दे० 'उच्छास' । उचाड़ना-स० क्रि० सटी, चिपकी चीजको जुदा करना । उच्छासन-वि० [सं०] नियंत्रणमें न रहनेवाला, निरंकुश। उखाड़ना।
उच्छाह*-पु० दे० 'उछाह' । उचाना*-स० क्रि० ऊँचा करना, उठाना ।
उच्छिन्न-वि० [सं०] कटा, उखड़ा हुआ; नष्ट । उचार*-पु० दे० 'उच्चार' ।
उच्छिष्ट-वि० [सं०] खानेसे बचा, खाकर छोड़ा हुआ; उचारना*-स० क्रि० उच्चारण करना, बोलना; उखाड़ना। परित्यक्त; बासी । पु० जूठा अन्न, जूठन। -भोजी उचित-वि० [सं०] ठीक, योग्य, मुनासिब स्तुत्य; विहित। (जिन)-वि० उच्छिष्ट खानेवाला। उचेड़ना, उचेलना -स० कि० दे० 'उचाइना' । उच्छल्क-वि० [सं०] जिस(माल)पर चगी न दी गयी उचहा, उचौहा*-वि० उभरा हुआ, उठा हुआ। हो (को०)। अ० बिना चुगी या महसूल दिये । उच्चंड-वि० [सं०] अति उग्र, प्रचंड; अति क्रुद्ध; तेज; | उच्च-स्त्री० गलेमें कुछ अटकनेसे आनेवाली खाँसी । उतावला।
उरछखल-वि० [सं०] क्रमरहित; बंधन न माननेवाला, उच्च-वि० [सं०] ऊँचा, लंबा बड़ा, श्रेष्ठ, कुलीन; तेज | निरंकुश, स्वेच्छाचारी। जोरदारशुभः ऊँचे, दूसरोंपर प्रभाव डालने योग्य स्थलमें उच्छेद, उच्छेदन-पु० [सं०] काटना; जड़ उखाड़ना, बैठा हुआ। -न्यायालय-पु० (हाई कोर्ट) किसी प्रदेश | उन्मूलन; नाश ।
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उच्छेष-उटक-नाटक उच्छेष, उच्छेषण-पु० [सं०] अवशेष; जूठन ।
उजारना*-स० क्रि० दे० 'उजाड़ना' । उसन-पु० [सं०] साँस लेना; गहरी साँस लेना।। उजारा*-पु० दे० 'उजाला'। उच्छसित-वि० [सं०] उल्लासयुक्त; प्रसन्न; प्रफुल, विक- उजालना-स० क्रि० (गहने आदिका) मैल साफ करना, सित; आशानुप्राणित; आश्वासित; चिंतामुक्त क्षुब्ध । निखारना; चमकाना; जलाना । उछास-पु० [सं०] ऊपर खींची या छोड़ी जानेवाली उजाला-पु० प्रकाश, रौशनी; कुल या जातिमें श्रेष्ठ व्यक्ति । साँस; आह भरना प्रोत्साहन; मरण; ग्रंथका अध्याय । वि० प्रकाशयुक्त, अँजोरा। -पाख-पु० शुक्ल पक्ष । उच्छासित-वि० [सं०] प्रसन्न किया हुआ; उठाया हुआ उजाली-स्त्री० चाँदनी । वि० स्त्री० प्रकाशमयी। ढाढ़स बंधाया हुआ; मुक्त, ढीला या पृथक् किया हुआ उजास-पु० उजाला, रौशनी; चमक । थका हुआ; अत्यधिक ।
उजासना*-अ० क्रि० प्रकाशित होना उछंग-पु० गोद, हृदय ।
उजियर*-वि० उजला । उछकना*-अ० क्रि० चौकना होश में आना।
उजियरिया -स्त्री० उजाली, चाँदनी । उछरना*-अ० क्रि० उछलना; के करना; उतराना; उजियार*-पु० उजाला, रौशनी । वि० प्रकाशित,रौशन । उपटना।
उजियारना*-स० कि० रोशन करना; बालना। उछल-कूद-स्त्री० उछलना-कूदना, कूद-फाँद ।
उजियारा*-पु० प्रकाश, उजेला; प्रतापी व्यक्ति । वि० उछलना-अ० क्रि० तेजीके साथ नीचेसे ऊपर उठना, उझ- चमकवाला, कांतिमान्; उज्ज्वल । कना, कूदना; ऊपर उठकर नीचे गिरना; हर्ष या क्रोधकी | उजियारी-स्त्री० चाँदनी रौशनी । अतिशयतासे उझकना; उपटना, उभरना; उतराना। उजियाला-पु० दे० 'उजाला' । उछाँटना*-स० क्रि० उपाटना; चुनना, छाँटना उचाटना। | उजीर*-पु० दे० 'वजीर'। उछारना*-स० क्रि० दे० 'उछालना' ।
उजुर-पु० दे० 'उज्र'। उछाल-स्त्री० उछलनेकी क्रिया, कुदान, छलाँग; ऊपर उजेनी*-स्त्री० उज्जयिनी ।
उठनेकी हद; उलटी, कै; छोटा; ऊपर उठता हुआ कण । | उजेर, उजेरा-पु० दे० 'उजेला'। उछालना-स० क्रि० जोरसे ऊपर फेंकना; जाहिर करना। उजेला-पु० उजाला; चाँदनी । वि० प्रकाशयुक्त । उछाव-पु० उत्सव, खुशी; उत्साह, उमंग ।-बधाव-पु० उज्जयि(य)नी-स्त्री० [सं०] आधुनिक उज्जैन । धूमधाम, आनंद ।
उजर*-वि० दे० 'उज्ज्वल' । उछाह-पु० उत्साह; हर्प; उत्सव; चाव, हौसला । उज्जल-अ० [सं०] धाराके प्रतिकूल | *वि० उज्ज्वल । उछाही*-वि० उत्साही; उछाह करनेवाला।
उज्जीवन-पु० [सं०] नया जीवन मिलना, पुनः प्राणउछिन्न-वि० दे० 'उच्छिन्न।
संचार होना; मृतप्राय होकर फिर स्वस्थ, चंगा हो जाना। उछीनना*-स० क्रि० उच्छेद, नाश करना ।
उज्ज़ंभ, उज्जभण,-पु०,-उज्जभा-स्त्री० [सं०] मुँह उछीर*-पु० अवकाश, दरार ।
बाना, जंभाई लेना; फैलना; खिलना; फटना क्षोभ । उछेद-पु० दे० 'उच्छेद'।
उज्ज्वल-वि० [सं०] जलता हुआ चमकता हुआ; उजला; उजड़ना-अ० क्रि० जनशून्य, वीरान होना; तबाह होना। स्वच्छ, निर्मल; सुंदर, खिला हुआ। उजडु-वि० अशिष्ट, असभ्य, गवार; उद्धत ।
उज्ज्वलन-पु० [सं०] जलना; चमकना; दीप्ति, चमक । उज़बक-पु० [तु०] तातारियोंकी एक जाति । वि० मूर्ख, | उज्ज्वलित-वि० [सं०] जलता हुआ; प्रकाशित; चमकाया निर्बुद्धि ।
हुआ। उजर*-वि० दे० 'ऊजड़'।
उज्यारा*-पु० दे० 'उजाला'। उजरत-स्त्री० [अ०] मजदूरी, पारिश्रमिक, मेहनतका बदला। उज्यास-पु० दे० 'उजास'। उजरा*-वि० दे० 'उजला'।
उज्र-पु० [अ०] आपत्ति, विरोध; बहाना; हेतु।-दारीउजराई*-स्त्री० उजलापन, सफेदी; कांति ।
स्त्री० अदालतकी किसी आज्ञा या उसे प्राप्त करनेकी उजराना*-स० क्रि० उजाला करना; साफ करना; दरखास्तके खिलाफ दी गयी दरखास्त, आपत्तिनिवेदन । चमकाना।
उज्रत-स्त्री० [अ०] दे० 'उजरत' । उजलत-स्त्री० [अ०] जल्दी, उतावली। -पसंद-वि० उझकना-अ० क्रि० उचकना; चौंकना। जल्दबाज । -बाज़ी-स्त्री० उतावली।
उझपना-अ० क्रि० खुलना । उजला-वि० सफेद, उज्ज्वल; स्वच्छ ।
उझरना*-स० क्रि० ऊपर उठाना; सरकाना; ऊपरको उजागर-वि० दीप्तिमय; प्रकट, प्रकाशितः प्रसिद्ध । अ० । सरकाना । प्रकट रूपसे, खुले आम ।
उझलना-स० वि० उड़ेलना । * अ० क्रि० उमड़ना। उजाड़-वि० ध्वस्त, उजड़ा हुआ; वीरान, जनशून्य । प० उझिलना-सक्रि० दे० 'उझलना' । उजड़ा हुआ, वीरान स्थान ।
उटंग-वि० जो पहनने में काफी नीचेतक न आये, उचितसे उजाड़ना-स० क्रि० बसे हुएको निकाल बाहर करना, कम लंबाई या चौड़ाईवाला, ओछा (कपड़ा)। रहने न देना; नष्ट, बर्बाद कर देना; तोड़-फोड़ मचाना। उटकना*-स० क्रि० अंदाजा लगाना। उजान-अ० बहावकी उलटी दिशामें,चढ़ावकी ओर, उज्जल। उटक-नाटक-वि० ऊँचा-नीचा; अंड-बड।
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१०१
उज - पु० [सं०] झोपड़ी, कुटी ।
उटड़पा, उटड़ा, उटहड़ा - पु० गाड़ीका अगला हिस्सा जमीनपर टिकानेके लिए जूएके नीचे लगी लकड़ी ! उगना - अ० क्रि० बैठनेमें किसी चीजका सहारा लेना; थकावट मिटाने के लिए बैठे-बैठे थोड़ा सो लेना । उगाना - स० क्रि० किवाड़ोंको बिना साँकल-सिटकिनी के बंद करना जिससे वे केवल धकेलनेसे खुल जायें; किसी चीजको दूसरी चीजके सहारे टिकाना ।
उठना- अ० क्रि० ऊपर की ओर जाना, ऊँचाईमें बढ़ना, जुड़-जुड़कर ऊँचा होना; लेटे हुएका बैठना; बैठेका खड़ा, होना; जागना; शय्या छोड़ना; मनमें उपजना ( विचार, शंका इ० ); याद आना; अचानक उपस्थित होना (आँधी, पीड़ा इ०); उगना; खमीर या सड़न पैदा होनेसे उफनना; निर्माण होना; खर्च होना; बिकना; भाड़े या लगानपर जाना; कुछ काल या सदाके लिए बंद होना; अंत होना; चलना, प्रस्थान करना; मरना; (गाय आदिका) मस्तीपर आना; उन्नति करना, ऊँची स्थितिको प्राप्त होना; रोगमुक्त होना; आमदा होना; उभरना (छपने में अक्षर आदिका) । मु० उठ खड़ा होना - चलनेको तैयार होना । ( दुनिया से ) उठ जाना - मर जाना, चल बसना । उठती जवानी - किशोरावस्था, उभरती हुई जवानी । उठते-बैठते - हर वक्त | उठना-बैठना-साथ, मेल-जोल । उठा बैठी- उठने-बैठने की कसरत; हैरानी । उठल्लू - वि० एक स्थानपर जमकर न रहनेवाला, जो कहीं टिके नहीं । मु० - का चूल्हा - बेमतलब घूमनेवाला । उठाईगीरा - पु० जो छोटी-मोटी चीजें उठाकर चलता बने,
उचक्का ।
उठान - स्त्री० उठनेकी क्रिया; बाढ़; आरंभ; खपत; ऊँचाई । उठाना - स० क्रि० नीचेसे ऊपर ले जाना; लेटे हुएको बैठाना; बैठे हुएको खड़ा करना; जगाना; ऊपर लेना, वहन या धारण करना; हटा या निकाल देना; अंगीकार करना; छेड़ना, आरंभ करना; कुछ काल या सदा के लिए बंद करना; अंत करना; खर्च करना; भोगना; भाड़ेपर देना; बनाना, निर्माण करना; कसम खानेके लिए हाथमें लेना (गंगाजल, तुलसी आदि । ) मु०-उठा रखनाकसर रखना, छोड़ रखना या बाकी रखना । उठाव - पु० उठा, उभरा हुआ भाग; उठान । उठौआ - वि० जो उठाया जा सके; जो दूसरी जगह ले जाया जा सके ।
W
उठौनी - स्त्री० उठानेकी उजरत; पेशगी दिया हुआ मूल्य, दादनी; पुरहत; उधार लेन-देन; ब्याह पक्का करनेके लिए कन्यापक्षको दिया जानेवाला धन; पूजा आदिके निमित्त अलग रखा हुआ धन; मृतक संबंधी एक रीति; एक तरहकी धानके खेतकी जोताई; प्रसूताकी शुश्रूषा । उड़कू - वि० उड़नेवाला; चलने-फिरनेवाला । उड़* - पु० दे० 'उड्डु' । -पति, पाल, - राज - पु० दे० 'उडुपति' ।
उड़द - पु० दे० 'उरद' ।
उड़न-स्त्री० उड़नेकी क्रिया, उड़ान । - खटोला - पु० उड़नेवाला खटोला, विमान ।-छू - वि० गायब, लापता ।
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उटज - उड्डयन
उड़ना - अ० क्रि० पंख के सहारे हवामें चलना-फिरना; विमान आदिपर बैठकर आकाशमार्गसे यात्रा करना; हवा के साथ डोलना-फिरना ( पत्ता, धूल आदि ); बिखरना; फैलना; फहराना, लहराना; नष्ट, लुप्त होना; फीका पड़ना; कटकर अलग हो जाना; खर्च होना; ( आनंदपूर्वक ) भोगा जाना; पड़ना, लगना ( जूते, बेंत इ० ); छलाँग भरना, घोड़ेका चौफाल कूदना; उछलकर लाँघ जाना; बहुत तेजीसे जाना, भागना; धोखा, चकमा देना; बात उड़ाना; इतराना; बहानेबाजी करना । उड़ती खबर - स्त्री० सुनी सुनायी खबर । उड़प - पु० एक तरहका नाच; उडुप | उड़सना* - अ० क्रि० उठना, भंग होना ।
|
उडाँक (कू) *- वि० उड़नेवाला; जिसमें उड़नेकी योग्यता हो । उड़ाइक * - पु० ( गुड्डी आदि ) उड़ानेवाला । उड़ाऊ - वि० पैसा बर्बाद करनेवाला, फुजूलखर्च । - पनपु० फुजूलखचीं । उड़ाक - वि० उड़ानेवाला; पतंग उड़ानेवाला । उड़ाका - पु० उड़नेवाला; हवाई जहाजपर उड़नेवाला; हवाई जहाजका चालक । उड़ाकू - वि० उड़नेवाला; उड़ने में समर्थ । उड़ान - स्त्री० उड़नेकी क्रिया; उड़नेकी सामर्थ्य की सीमा; हवाई जहाज आदि एक उड़ान में जहाँतक जा सकें; (लंबी) छलाँग; * कलाई ।
उड़ाना-स० क्रि० उड़नेकी क्रिया कराना, उड़नेवाले प्राणी, वस्तुको चलाना; लहराना, फहराना; बिखेरना, फैलाना; गायब करना; सफाईसे चुराना; झटक लेना; नष्ट करना, मिटा देना; अलग कर देना, काटकर फेंक देना; बारूद, गोले आदिसे नष्ट कर देना; खर्च करना; भोगना; (चिड़ियों आदिको भगा देना; मारना; तेजी से दौड़ाना; लगाना; चकमा, भुलावा देना; चुपकेचुपके कौशल से कुछ सीख लेना छितरा जाना । उड़ायक* - वि० दे० 'उड़ाइक' | उड़ास * - स्त्री० वासस्थान ।
।
* अ० क्रि० उड़ना;
उड़ासना - स०क्रि० (बिस्तरा आदि) समेटना, उठाना; "भगाना, उदवासना; उजाड़ना ।
उड़िया - पु० उड़ीसाका निवासी । स्त्री० उड़ीसा की भाषा । उड़ी - स्त्री० मालखंभकी एक कसरत; कलाबाजी । उदुंबर - पु० [सं०] गूलर; दरवाजेकी चौखट । उडु - पु० [सं०] नक्षत्र; जल । -५ -५० चंद्रमा वरुण; एक तरहकी नाव, मेला; एक तरहका पानपात्र । - पतिराज - पु० चंद्रमा वरुण । - पथ - पु० आकाश | उ. डुस - पु० खटमल |
उड़ेरना* - स० क्रि० दे० 'उड़ेलना' ।
लड़ेलना-स० क्रि० तरल पदार्थको एक वर्तन से दूसरे बर्तनमें ढालना या जमीनपर गिराना ।
उड़ैनी* - स्त्री० जुगनू - 'साम रैन जनु चलै उड़नी' - प० । उड़ौहा*- * - वि० उड़नेवाला ।
उड्डयन- पु० [सं०] उड़ना । - विभाग पु० हवाई जहाजों आदि की व्यवस्था करनेवाला सरकारी विभाग ।
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उड्डीयमान-उत्कर्ण
१०२ उडीयमान-वि० [सं०] उड़नेवाला; उड़ता हुआ। उतार-पु० उतरनेकी क्रिया; चढ़ावका उलटा, ढाल; उत. उढ़कना-अ० क्रि० ठोकर खाना सहारा लेना; रुकना।। रनेका क्रम, घटाव; भाटा; वह जगह जहाँसे नदी हलकर उढ़काना-स० कि० सहारा देकर खड़ा करना, भिडाना। पार की जा सके; (विषमंत्रका) प्रभाव दूर करनेवाली दवा, उढ़ना*-स० क्रि० बाहर निकालना।
युक्ति; उतारन; *उतारा। -चढ़ाव-पु० ऊँचाई-नीचाई; उढरना -अ० क्रि० स्त्रीका परपुरुषके साथ निकल जाना ।। हानि-लाभ । उदरी-स्त्री० भगाकर लायी हुई स्त्री, रखेली
उतारन-पु० पहना हुआ पुराना कपड़ा जो नौकर आदिको उढ़ाना-स० कि० दे० 'ओढ़ाना'।
दे दिया जाय; न्योछावर, निकृष्ट वस्तु । उढ़ारना-स० क्रि० दूसरेकी स्त्रीको भगा लाना।
उतारना-स० क्रि० ऊपरसे नीचे लाना; पहनी हुई चीजउदावनी, उढ़ौनी-स्त्री० दे० 'ओढ़नी'।
को अलग करना; दूर करना; मंत्रादि पढ़कर प्रभाव दूर उतंक*-वि० ऊँचा।
करना; निकाल लेना (मलाई आदि); काटकर जुदा कर उतंग*-वि० ऊँचा, उत्तुंग ।
देना; कमीकी ओर लाना, घटाना; (साँचे आदिपर चढ़ी उतंत*-वि० बड़ा, सयाना, जवान ।
वस्तुको) तैयार कर लेना; पका लेना; खींचना, उरेहना; उत*-अ० उधर, वहाँ।
नकल करना; पटाना, चुकाना; कस ढीला करना; मुकाउतन*-अ० उधर ।
बलेमें लाना; पार पहुँचाना, प्यादेको बढ़ाकर बड़ा मोहरा उतना-वि० उस मात्राका; उस कदर । अ० उस मात्रामें । बनाना; तीलमें पूरा कर देना; टिकाना, ठहरनेका प्रबंध उतपन्न*-वि० दे० 'उत्पन्न ।
करना; न्योछावर करना; सिर या चेहरेके चारों ओर उतपानना*-स० क्रि० उपजाना । अ० क्रि० उपजना, घुमाना (आरती आदि); उतारा करना; वसूल करना उत्पन्न होना।
(चंदा आदि); अर्क खींचना निकालना; तोड़ना। उतमंग*-पु० दे० 'उत्तमांग'।
उतारा-पु० रोग या प्रेतबाधाकी निवृत्तिके लिए पीड़ित उतर-पु० दे० 'उत्तर'।
व्यक्तिपर कोई चीज वारकर चौराहे आदिपर धर देना; उतरना-स्त्री० उतारा, पुराने कपड़े। -पुतरन-स्त्री० इस क्रियामें व्यवहृत सामग्री; * टिकना पड़ावः नदी उतारे हुए पुराने कपड़े।
पार करना। उतरना-अ० कि० ऊपरसे नीचे आना, ह्रास, बिगाड़की उतारू-वि० उद्यत, आमादा ।
ओर आना; ढलना; घटना; फीका, हलका पड़ना; दूर | उताल*-अ० शीघ्र । स्त्री० शीघ्रता । होना (ज्वर, क्रोध आदि); हटना भोगकाल समाप्त होना उताली*-स्त्री० शीघ्रता, फुर्ती । (मास, नक्षत्र आदिका); कटकर अलग होना; पके फलोंका | उतावल*-अ० शीघ्रतापूर्वक, जल्द । तोड़ा जाना; (साँचे आदिपर चढ़ी चीजका) बनकर तैयार उतावला-वि० उतावली करनेवाला, जल्दबाज; बेसब्र । होना; पार होना; टिकना, ठहरना सिद्ध होना, निकलना; उतावली-स्त्री० जल्दी, जल्दबाजी; अधीरता । वि० स्त्री० प्रवेश करना; वसूल होना; ढीला होना; खिंचना, अंकित जल्दी मचानेवाली, अधीर । होना; नकल होना तौलमें ठीक आना; जन्म लेना अखाड़े में | उताह (हि)ल*-अ० दे० 'उतावल' कुश्तीके लिए आना; प्यादेका कोई बड़ा मोहरा बनना उतृण*-वि० उऋण, ऋणमुक्त । (शतरंज); पकती हुई चीजका तैयार होना; बच्चोंका मर| उतै-अ० उस ओर, वहाँ । जाना; भर आना (नजला आदि); उधड़ना घटित होना ।। उतैला*-वि० उतावला । उतरवाना-स० क्रि० 'उतारना'का प्रे० रूप ।
उत्, उद्-उप० [सं०] यह शब्दोंके पहले लगकर ऊपर उतराई-स्त्री० उतरनेकी क्रिया; चढ़ाईका उलटा, ढाल; (उद्गमन), अतिक्रमण ( उत्क्रांत), उत्कर्ष (उद्बोधन), नदीके पार उतारनेका भाड़ा, खेवा; पुलका महसूल । । प्राबल्य (उद्बल),प्राधान्य (उद्दिष्ट), अभाव (उत्पथ), विकास उतराना-अ० क्रि० पानीके ऊपर रहना, बहना या आना (उत्फुल्ल, शक्ति (उत्साह) आदिका सूचन करता है। उफनना; हर जगह देख पड़ना; छा जाना; पीछे-पीछे | उत्कंठ-वि० [सं०] गरदन ऊपर किये हुए, उग्रीव लगे फिरना।
उद्यत; उत्कंठायुक्त। उतरायल-वि० उतारा हुआ; पहना हुआ।
उत्कंठा-स्त्री० [सं०] विलंब न सह सकनेवाली इच्छा, उतरावना*-स० क्रि० 'उतारना'का प्रे० रूप ।
लालसा बेचैनी; प्रियसे मिलनेकी उत्सुकता । उतरीहां -अ० उत्तरकी और । वि० उत्तरका
उत्कंठित-वि० [सं०] उत्कंठायुक्त, उत्सुक अधीर । उतरिन*-वि० ऋणमुक्त।
उत्कंठिता-स्त्री० [सं०] प्रियमिलनके लिए बेचैन नायिका; उतलाना*-अ० क्रि० उतावली करना ।
संकेतस्थलपर प्रियके न मिलनेसे चिंता करनेवाली नायिका । उतल्ला*-अ० दे० 'उताइल'।
उत्कंधर-वि० [सं०] जिसने गरदन ऊपर उठायी हो, उतहसकंटा-स्त्री० उत्कंठा ।
- उग्रीव । उताह(य)ल*-अ० उतावलीके साथ, जल्दी-जल्दी । वि० उत्कच-वि० [सं०] जिसके बाल खड़े हों; गंजा। उतावला।
उत्कट-वि० [सं०] तीव्र; उग्र प्रबल; विकट । उताइ(य)ली*-स्त्री० उतावली
उत्कर्ण-वि० [सं०] जो कान खड़े किये हुए हो; सुननेको उतान-वि० चित, पीठके बल लेटा हुआ ।
उत्सुक।
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१०३
उत्कर्ष - पु० [सं०] ऊपर खींचना, उठाना; ऊपर चढ़ना, उन्नति; श्रेष्ठता; समृद्धि; इफरात ।
उत्कल - पु० [सं०] वर्तमान उड़ीसा; बहेलिया ।
उत्का* - स्त्री० उत्कंठिता नायिका ।
उत्कीर्ण - वि० [सं०] छितराया हुआ; खुदा हुआ; छिदा हुआ ।
उत्कृष्ट - वि० [सं०] उन्नत; श्रेष्ठ; उत्तम । उत्कोच - पु० [सं०] घूस, रिश्वत । उत्क्रांति - स्त्री० [सं०] उत्क्रमण; क्रमिक उन्नति या विकास । उत्क्रोश- पु० [सं०] शोर-गुल; घोषणा; कुररी पक्षी । उत्खनन - पु० [सं०] खुदाई; खोदकर बाहर निकालना । उत्खात - वि० [सं०] खोदा हुआ; उखाड़ा हुआ; खोदकर निकाला हुआ; नष्ट किया हुआ । पु० छेद, बिल; गढ़ा । उत्तंग* - वि० दे० 'उत्तु ंग' | उत्तंस - पु० [सं०] कर्णपूर, कर्णाभरण; शेखर; शिरोभूषण; आभूषण; * दे० 'अवतंस' ।
उत्त - * पु० अचरज; संदेह । अ० उधर ।
|
उत्तप्त - वि० [सं०] बहुत ज्यादा गरम; दुःखी; क्रुद्ध । उत्तम - वि० [सं०] सबसे अच्छा, श्रेष्ठः प्रधान । - पुरुष - पु० बोलनेवालेका सूचक सर्वनाम ( मैं, हम ); ईश्वर | -साखपत्र-पु० [ हि० ] ( गिल्टएज्ड सिक्यूरिटीज़ ) वे साखपत्र या प्रतिभूतियों जो बिलकुल सुरक्षित मानी जाती हों तथा जिनके डूब जानेका कमसे कम खतरा हो । व्यावसायिक संस्थाएँ, व्यापारी आदि इनमें रुपया लगाना शौकसे पसंद करते हैं ( प्रथम श्रेणीके साखपत्र ) । उत्तमता - स्त्री० [सं०] श्रेष्ठता; अच्छाई ।
|
उत्तमोत्तम - वि० [सं०] अच्छे से अच्छा, सर्वश्रेष्ठ । उत्तर- वि० [सं०] उत्तर दिशा-संबंधी; ऊपरवाला; ऊँचा; पीछे आनेवाला, पिछला ; श्रेष्ठ (लोकोत्तर); अतीत... से अधिक ( अष्टोत्तर शत ); वाम; शक्तिशाली; पार करने या किया जानेवाला । पु० दक्षिणकी उलटी दिशा; शुमाल, जवाब: बदला; वादका जवाब, बचाव; भविष्यत् काल । अ० पीछे; बाद । -काल- पु० आनेवाला समय, भविष्यत् काल । -च्छद - पु० बिछावनकी चादर; आवरण । - तिथित, - तिथीय- वि० ( पोस्ट डेटेड) जिसपर बादकी तिथि डाली गयी हो (वह प्रलेख, धनादेश आदि) । - ०धनादेश - पु० (पोस्ट डेटेट चेक) वह धनादेश जिसपर बादकी तिथि डाल दी गयी हो अतः जिसका भुगतान तुरंत न होकर उक्त तिथिको ही या उसके बाद संभव हो सके । - दाता (तृ), १- दायक - वि० जवाब देनेवाला, जिम्मेदार | - दायित्व - पु० जवाबदेही, जिम्मेदारी | - दायी (यिन् ) - वि० जवाब देनेवाला, जिम्मेदार | पट पु० दुपट्टा, चादर । - पद - पु० समासका अंतिम पद ।
७- क
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उत्कर्ष - उत्थान
-वादी ( दिन ) -
- प्रत्युत्तर - पु० सवाल-जवाब, बहस हुज्जत । - प्रदेश - पु० दिल्ली पंजाब और बिहार के बीचका प्रदेश, जिसे पहले संयुक्त प्रांत कहते थे। - प्राप्य - भोग्य - वि० (रिवर्शनरी) जो बाद में, प्रायः मृत्युके उपरांत दिया जाय; जो प्राप्य हो जानेपर भी तुरंत न दिया जाकर पूरी अवधि समाप्त हो जानेपर या मृत्यु हो जानेपर ही मिले। - वय, - वयस - स्त्री० बुढ़ापा । - घस्त्र - पु० ऊपर पहननेका वस्त्र; दुपट्टा, उपरना । पु० प्रतिवादी, मुद्दालेह । उत्तरण - पु० [सं०] पार होना; उतरना; पानीसे निकलना । उत्तरा - स्त्री० [सं०] उत्तर दिशा; एक नक्षत्र; अभिमन्युकी पत्नी जिससे परीक्षितका जन्म हुआ । - खंड-पु० भारतवर्षका उत्तरी, हिमालय के पासका भाग। - फाल्गुनीस्त्री० एक नक्षत्र । - भाद्रपदा - स्त्री० एक नक्षत्र । उत्तराधिकार - पु० [सं०] किसीके (मरने या हटने के बाद उसकी संपत्ति, पद आदि पानेका हक, वरासत । उत्तराधिकारी (रिन् ) - वि० [सं०] किसीके ( मरने या हटने के ) बाद उसकी संपत्ति, पद आदि पानेका हकदार, वारिस |
उत्तराभास - पु० [सं०] झूठा जवाब; बहाना; टालमटूल । उत्तरायण - पु० [सं०] सूर्यका मकर रेखा से उत्तर (कर्क रेखा)की ओर जाना; वह छः महीनेका काल जब सूर्यकी उत्तरकी ओर गति रहती है ।
उत्तराद्ध, उत्तरार्ध - पु० [सं०] देहका कमर से ऊपरका भाग; पिछला, अंतकी ओरका आधा भाग (पूर्वार्धका उलटा ) । उत्तराशा - स्त्री० [सं०] उत्तर दिशा । उत्तरापाढा - स्त्री० [सं०] एक नक्षत्र ।
उत्तमताई*-स्त्री० उत्तमता ।
उत्तमर्ण, उत्तमर्णिक - पु० [सं०] महाजन, ऋण देनेवाला। उत्तरीय, उत्तरीयक- वि० [सं०] उत्तरका; ऊपरका | पु० उत्तमांग- पु० [सं०] सिर । उत्तमा- वि० स्त्री० [सं०] भली, नेक। - दूत - स्त्री० वह दूती जो नायक या नायिकाको बातोंसे मना ले । नायिका - स्त्री० वह नायिका जो प्रतिकूल पतिके साथ भी अनुकूल आचरण करे ।
दुपट्टा, उपरना ओढ़नी ।
उत्तरोत्तर - अ० [सं०] अधिकाधिक दिन-दिन अधिक;
लगातार 1.
उत्तान - वि० [सं०] ताना, फैलाया हुआ; पीठके बल लेटा हुआ, चित; सीधा (खड़ा); | - पाद - वि० जिसकी टाँगें फैला दी गयी हैं । पु० ध्रुवका पिता ।
उत्ताप - पु० [सं०] तेज गरमी ; दुःखः क्लेश; चिंता; क्षोभ । उत्तारण- पु० [सं०] पार उतारना; उद्धार करना; विष्णु । उत्ताल - वि० [सं०] ऊँचा; प्रबल; प्रचंड; भयंकर; विशाल | उत्तीर्ण - वि० [सं०] पार पहुँचा हुआ; जिसका उद्धार किया गया हो; कर्तव्य से मुक्त; परीक्षा में पास; चतुर, अनुभवी । उत्तरंग - वि० [सं०] बहुत ऊँचा, गगनस्पशीं । उत्तेजक - वि० [सं०] उभारने, बढ़ावा देनेवाला; काम, क्रोध आदिको भड़कानेवाला । उत्तेजन पु० [सं०] उभारना, भड़काना; बढ़ावा देना । उत्तेजना - स्त्री० [सं०] बढ़ावा; प्रेरणा; रोष; क्रोध । - जनक - वि० भड़कानेवाला; क्रोधोत्पादक | उत्तोलन - पु० [सं०] ऊपर उठाना; तानना; तौलना ।
- यंत्र - पु० (क्रेन) रेलके डब्बे, भारी गाँठें आदि ऊपर उठानेवाला, सारसकी चोंच जैसा यंत्र । उत्थवना* - स० क्रि० आरंभ करना; उठाना । उत्थान - पु० [सं०] उठना; उठान; उन्नति, बल-वैभवको
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उत्थानक-उदघाटन
१०४ वृद्धि; जागना ।-पतन-पु० उठना-गिरना, वृद्धि-हास। एक वैदिक कर्म जो सालमें दो बार किया जाता है; वेदाउत्थानक-पु० [सं०] (लिफ्ट) मकानके नीचेके खंडसे ध्ययन स्थगित करना। ऊपरके खंड में पहुँचाने या वहाँसे नीचे उतारनेवाला उत्सर्जित-वि० [सं०] छोड़ा, त्यागा हुआ। बिजलीका आसन, उन्नयनयंत्र।
उत्सव-पु० [सं०] आनंद, प्रसन्नता; आनंदजनक कार्य, उत्थापन-पु० [सं०] उठाना; जगाना; उभारना । विवाह आदि; जलसा समारोह; उछाव-बधाव (मनाना); उत्थित-वि० [सं०] उठा हुआ; उठता हुआ; बल-वैभवमें
पर्व। बढ़ा हुआ, उन्नत; उद्धार किया हुआ ।
उत्सादन-पु० [सं०] नाश करना; बाधा डालना; घावका उत्पत्ति-स्त्री० [सं०] जन्म; उत्पादन; आरंभ; उद्गम; भरना; ऊपर चढ़ना; उठाना; मालिश करना; खेतकी अस्तित्व ग्रहण करना; सृष्टिः उपज; लाभ ।
दूसरी जोताई करना; (ऐब्रोगेशन) किसी विधि (कानून), उत्पन्ना-वि० [सं०] जनमा हुआ; उपजा हुआ।
अधिनियम, प्रथा आदिको उठा देना, रद्द कर देना; उत्पल-पु० [सं०] कमल; नील कमल; कुमुद ।
(एबॉलिशन) नष्ट करना, अंत करना, विनाशन । उत्पाटन-पु० [सं०] उखाड़ना; जड़मूलसे नाश करना। उत्सादित-वि० [सं०] नष्ट किया हुआ; रद्द किया हुआ; उत्पाटित-वि० [सं०] जड़से उखाड़ा हुआ; हटाया हुआ। आरूढ़ उठाया हुआ। उत्पात-पु० [सं०] ऊपर उठना; उछाल; विपत्सूचक, उत्साह-पु० [सं०] हौसला, उमंग; उद्यम, चेष्टा; प्रवृत्ति आकस्मिक घटना; आफत, उपद्रव, दंगा।
अध्यवसाय; दृढ़ संकल्प; वीर रसका स्थायी भाव । उत्पाती(तिन)-वि० [सं०] उपद्रवी, खुराफाती। उत्साहिल*-वि० दे० 'उत्साही' । उत्पाद-वि० [सं०] जिसके पैर ऊपर उठे हों। पु० जन्म, उत्साही (हिन्)-वि० [सं०] उत्साहयुक्त; उद्यमी ।
उत्पत्ति । -शय,-शयन-पु० शिशुः टिट्टिभ पक्षी। उत्सुक-वि० [सं०] उत्कंठित; अत्यधिक इच्छुक; बेचैन । उत्पादक, उत्पादी-वि० [सं०] पैदा करनेवाला । -व्यय उत्सुकता-स्त्री० [सं०] अधीरता, व्याकुलता, बेचैनी;
-पु० (प्रॉडक्टिव एक्सपेंडिचर) उत्पादन बढ़ानेवाला उत्कंठा प्रबल इच्छा; आसक्ति, प्रेम पश्चात्ताप, अफसोस । व्यय, उत्पादक कार्योंके निमित्त किया जानेवाला व्यय । उत्सृष्ट-वि० [सं०] उत्सर्ग किया हुआ, परित्यक्त । उत्पादन-पु० [सं०] पैदा करना, उपजाना; (माल) उत्सेक-पु० [सं०] छिड़कना; बाढ़, प्लावित करना । तैयार करना तैयार किया गया माल । -बाधा-स्त्री० उथपना*-स० क्रि० उठा देना; उजाड़ या उखाड़ देना । (बाटिलनेक).वह वस्तु जो उत्पादनका कार्य सुचाररूपसे | उथलना* --अ० क्रि० डगमगाना; उलटना । -पुथलनाचलनेमें बाधक हो। -शुल्क-पु० (एक्साइज ड्यूटी) नीचे-ऊपर होना; इधरका उधर होना । देशमें उत्पादित कतिपय वस्तुओंपर लगनेवाला कर उथल-पुथल-स्त्री० भारी उलट-फेर हलचल । (भारतमें चीनी, तंबाकू आदिपर लगनेवाले करकी आय उथला-वि० छिछला, कम गहरा । केंद्रीय सरकारको तथा अफीम, गाँजा आदिपरकी आय उदंड*-वि० दे० 'उदंड' । राज्यकी सरकारोंको मिलती है)।
उदंत-वि० जिसके (दूधके) टूटे दाँत न जमे हो। उत्पादित-वि० [सं०] उत्पन्न; उपजाया, पैदा किया हुआ। उदक-पु० [सं०] पानी । -कर्म (न),-कार्य-दानउत्पीडक-वि० [सं०] दबानेवाला; सतानेवाला ।
पु० दे० 'उदकक्रिया। -क्रिया-स्त्री० पितरोंको जल उत्पीडन-पु० [सं०] दबाना; सताना, जुल्म करना। देना, पितृतर्पण । -दाता(त),-दायी (यिन्)-वि० उत्पीडित-वि० [सं०] दबाया, सताया हुआ, मजलूम। पितरोंको पानी देनेवाला; वारिस। -स्पर्श-पु० शरीरके उप्रवासी(सिन्)-पु० [सं०] (एमीग्रैंट) एक देश छोड़कर विभिन्न अंगोंका जलसे स्पर्श कराना; शपथ, प्रतिज्ञा आदिके अन्य देशमें जा बसनेवाला ।
पूर्व जलका स्पर्श करना। उत्प्रेक्षा-स्त्री० [सं०] उद्भावना, अनुमान; उपेक्षा; अर्था- उदकअद्रि*-पु० हिमालय । लंकारका एक भेद जिसमें प्रस्तुत वस्तुमें सादृश्यके कारण उदकना*-अ० क्रि० उछलना-कूदना छटकना। अन्य वस्तुकी कल्पना की जाती है ।
उदकार्थी (थिन्)-वि० [सं०] प्यासा; जल चाहनेवाला । उप्रेषणलेख, उत्प्रेषणादेश-पु० [सं०] (सशीऔररी) उदके वर-वि० [सं०] जलचर ।
अधीन न्यायालयमें विचार किये गये किसी मामलेके उदकेशय-वि० [सं०] जलमें सोने या रहनेवाला । कागज-पत्र प्रेषित करनेका उच्च न्यायालयका आदेश। उदगरना-अ० क्रि० निकलना, प्रकट होना; उभड़ना । उत्फुल्ल-वि० [सं०]खिला हुआ, पूर्णतः विकसित प्रसन्न । उदगार*-पु० दे० 'उद्गार'। उत्संग-पु० [सं०] गोद, अंक; मध्यभाग; नितंबके उदगारना*-स० क्रि० उगलना; डकार लेना भड़काना । ऊपरका भाग।
उदगारी*-वि० उगलने, डकार लेनेवाला। उत्स-पु० [सं०] स्रोत, सोता; जलमय स्थान ।
उदग्ग-वि० दे० 'उदय'। उत्सन्न-वि० [सं०] क्षीण; नष्ट, उच्छिन्न, जिसकी जड़ उदग्र-वि० [सं०] ऊपरको उभरा हुआ; उदार: वयोवृद्ध; उखाड़ दी गयी हो; उठाया हुआ; अभिशप्त; विलुप्त । ऊँचा; उन्नत प्रवर्धित; विशाल; असह्य प्रचंडप्रबल; उग्रः उत्सर्ग-पु० [सं०] अलग करना; छोड़ना, त्यागना; दान; | भयंकर; क्रुद्ध । समापन (अध्ययन आदिका )।
उदघटना*-अ० क्रि० प्रकट होना । उत्सर्जन-पु० [सं०] उत्सर्ग करना; त्यागा दान करना; उदघाटन*-पु० दे० 'उद्घाटन।
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१०५
उदघाटना-उदुंबर उदघाटना*-स० क्रि० प्रकट करना; खोलना।
उदसना*-अ० क्रि० उजड़ना; उद्ध्वस्त होना। उदजन-पु० (हाइड्रोजन) दे० 'जलजन'।
उदात्त-वि० [सं०] ऊँचा; महान् ; श्रेष्ठ, उदार; ऊँचे स्वरमें उदथ*-पु० सूर्य।
उच्चरित । पु० स्वरके तीन भेदोंमेंसे एक, ऊँचा स्वर दान उदधि-पु० [सं०] समुद्र । -कन्या,-तनया-स्त्री० एक अर्थालंकार, जहाँ अतिशय समृद्धिका वर्णन किया लक्ष्मी। -मेखला,-वस्त्रा-स्त्री० पृथ्वी। -संभव- जाय; नायकका एक प्रकार; एक तरहका बड़ा ढोल । पु० समुद्री नमक । -सुत-पु० चंद्रमा, अमृत, शंख | उदान-पु० [सं०] प्राण वायुके पाँच भेदोंमेंसे एक जिसका आदि । -सुता-स्त्री० लक्ष्मी ।।
स्थान कंठ और गति हृदयसे कंठ-तालुतक है; साँस । उदन्वान्(न्वत्)-पु० [सं०] समुद्र ।
उदाम*-वि० दे० 'उद्दाम'। उदपान*-पु० कमंडलु 'कर उदपान काँध बधछाला'-५०। उदायन*-पु० उद्यान, बाग। उदबस*-वि० उजड़ा हुआ, सूना; उद्वासित; जो आज उदार-वि० [सं०] दानशील; ऊँचे दिलवाला; खरा; यहाँ, कल वहाँ रमता रहे।
उच्च; दयालु; भला विशाल । -चरित-वि० ऊँचे चरित्रउदबासना-स० क्रि०किसी स्थानसे हटा, भगा देना। वाला। -चेता (तस्),-मना (नस्)-वि० ऊँचे उदवेग-पु० दे० 'उद्वेग।
दिलवाला। -दर्शन-वि० देखने में भला लगनेवाला । उदभव*-पु० दे० 'उद्भव' ।
-धी-वि० प्रतिभाशाली; ऊँचे दिलवाला, भला । पु० उदभौत-पु० अद्भुत घटना, अचंभेकी बात ।
विष्णु । स्त्री० सद्गुण । उदमदना*-अ० क्रि० उन्मत्त होना, सुध-बुध खो देना। उदारता-स्त्री० [सं०] दानशीलता; उदार स्वभाव । उदमाती-वि० स्त्री० मस्तीसे भरी हुई, मस्तानी । उदाराशय-वि० [सं०] ऊँचे दिलवाला। उदमाद*-पु० उन्माद, मस्ती।
उदावत-पु० [सं०] बड़ी आँतका एकरोग,काँच, गुदग्रह। उदमान-वि० मतवाला; उन्मत्त ।
उदास-पु० * दुःख । वि०जिसका मन उचटा रहता हो, उदमानना*-अ० क्रि० उन्मत्त होना ।
खिन्न; दुःखी; उदासीन; तटस्थ । उदय-पु० [सं०] (सूर्यादिका) उगना, निकलना, आकाश- उदासना-अ० वि० उदास होना । * स० क्रि० उजाड़ना; में ऊपरकी ओर उठना; प्रकट होना; बढ़ती, उत्थान समेटना (बिस्तर)। सृष्टि; उद्गमस्थान; उदयाचल, -गढ़*-पु० उदयगिरि । उदासिल -वि० उदासीन । -गिरि-पर्वत,-शैल-पु० पूर्वका एक (कल्पित) पर्वत उदासी-स्त्री० रंजीदगी, खिन्नता । जिसके पीछेसे सूर्यका उगना माना जाता है।
उदासी (सिन)-वि० [सं०] तटस्थ, निरपेक्ष; विरक्त । पु० उदयना*-अ० कि० उदय होना ।
संन्यासी, विरागी; नानकशाही साधु । उदयाचल-पु० [सं०] उदयगिरि ।
उदासीन-वि० [सं०] विरक्त; तटस्थ; निष्पक्ष । पु० अजउदया तिथि-स्त्री० [सं०] सूर्योदयकालमें वर्तमान तिथि । नवी; तटस्थ व्यक्ति या नरेशः अभियोगसे असंबद्ध व्यक्ति । उदयादि-पु० [सं०] उदयगिरि ।
-भागीदार-पु० (स्लीपिंग पार्टनर) ऐसा साझेदार उदयान -पु० उद्यान, बाग।
जिसने कारखाने या व्यवसाय आदिमें रुपया तो लगाया उदयी (यिन)-वि० [सं०] उगता हुआ, उठता हुआ;| हो पर जो प्रबंधादिमें दिलचस्पी न लेता हो। प्रवाहित होनेवाला; उन्नतिशील ।
उदासीनता-स्त्री० [सं०] विरक्ति; तटस्थता, निरपेक्षिता । उदरभर*-वि० दे० 'उदरंभरि'।
उदाहरण-पु० [सं०] दृष्टांत, मिसाल; अनुकरणके योग्य उदरंभरि-वि० [सं०] अपना ही पेट पालनेवाला; पेटुः । कार्य; वाक्यके पाँच अवयवों मेंसे तीसरा (न्या०); एक स्वार्थी।
अर्थालंकार, जिसमें कोई सामान्य कथन करनेके बाद उदर-पु० [सं०] पेट; वस्तुका भीतरी भाग; अंतर; विजा- बानगीके तौरपर कोई बात कही जाय । तीय द्रव्य एकत्र होने या जलोदर आदिके कारण पेटका उदाहृत-वि० [सं०] कथित, वर्णित; जिसका दृष्टांत दिया बढ़ना । -ज्वाला-स्त्री० पेटकी आग, भूख । -दास- गया हो। पु० पैदाइशी गुलाम, वह दास जिसके माँ-बाप भी दास उदित-वि० [सं०] उगा हुआ, निकला हुआ; प्रकट, प्रकारहे हों। -रेखा-स्त्री० त्रिबली। -वृद्धि-स्त्री० रोगके शित; ऊँचा; बदिया। -यौवना-स्त्री० मुग्धा नायिकाका कारण पेटका बढ़ना। -सपी न)-वि० पेटके बल एक भेद। रेंगनेवाला।
उदीची-स्त्री० [सं०] उत्तर दिशा । उदरना*-अ०क्रि० विदीर्ण होना; (मेड़, दीवार आदिका) उदीचीन-वि० [सं०] उत्तरी; उत्तराभिमुख ।
कटकर अलग हो जाना; टूट जाना; नष्ट होना; गिरना। उदीच्य-वि० [सं०] उत्तरका रहनेवाला। उदराग्नि-स्त्री० [सं०] जठराग्नि, पाचनशक्ति । उदीपन*-पु० दे० 'उद्दीपन' । उदरामय-पु० [सं०] पेटकी बीमारी।
उदीपित*-वि० दे० 'उद्दीप्त' । उदरावर्त-पु० [सं०] नाभि ।
उदीयमान-वि० [सं०] उगता, उदय होता हुआ । उदरी (रिन्)-वि० [सं०] बड़ी तोंदवाला ।
उदीरण-पु० [सं०] कथन, उच्चारण, बोलना। उदवना*-अ० क्रि० उदय होना ।
उदीरित-वि० [सं०] कहा हुआ। उदवाह-पु० दे० 'उद्वाह'।
उदुंबर-पु० [सं०] दे० 'उडुंबर'।
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उदूलहुक्मी-उन्नावन उदूलहुक्मी-स्त्री० [अ०] हुक्म न मानना, आशाका लक्ष्य । पु० जिसके विषयमें कुछ कहा जाय (व्या०)। उलंघन ।
उद्दोत*-वि०, पु० दे० 'उद्योत'; प्रकाशित-'पुर पैठत उदेग*-पु० दे० 'उद्वेग'।
श्री रामके भयो मित्र उद्दोत'-राम । उदै, उदो, उदौ*-पु० दे० 'उदय' ।
उद्दोतिताई-स्त्री० प्रकाश । उदोत*-पु० प्रकाश; शोभा; वृद्धि, उन्नति। वि० प्रकाशित; उद्योत-वि० [सं०] प्रकाशमान, ज्वलंत । पु० चमकना;
शुभ्र । -कर-वि० प्रकाश करनेवाला; चमकानेवाला। प्रकाशित होना; प्रकट होना; प्रकाश; कांति; अध्याय । उदोती*-वि० उदय करनेवाला; प्रकाश करनेवाला । -कर,-कारी(रिन)-वि० प्रकाशित करनेवाला। उद्गम-पु० [सं०] उठना; उदय, उत्पत्ति; उत्पत्तिस्थान । उदद्योतित-वि० [सं०] प्रकाशित किया हुआ; प्रज्वलित निकलना; निकास।
किया हुआ; चमकीला । उद्वार-पु० [सं०] मुँहसे बाहर आना; थूक; डकार दिल में उद्ध*-अ० ऊपर। भरी हुई बातका बाहर निकलना; हर्ष, शोक आदिके सूचक | उद्धृत-वि० [सं०] ऊपर उठाया हुआ; अतिशय; कठोर; शब्द (शोकोद्गार इ०); बार-बार कहना; शब्द ।
उजडु, अक्खड़, अविनीत; घमंडी; प्रचंड । पु० राजमल्ल । उदारी(रिन)-वि० [सं०] डकार लेने या वमन करने -मनस्क,-मना(नस)-वि० अभिमानी। वाला; ऊपर जानेवाला; बाहर निकालनेवाला।
उद्धना*-अ० क्रि० ऊपर उठना; उड़ना; बिखरना। उद्गीर्ण-वि० [सं०] उगला हुआ; निकाला हुआ। उद्धरण-पु०[सं०] उतारना; निकालना; उन्मूलन; सुधार; उद्ग्रहण-पु० [सं०] (लेवी) कर आदि अधिकारपूर्वक उद्धार होना या करना; मुक्ति पढ़ा हुआ दुहराना; कुछ वसूल करना, उगाहना, उगाही।
अंश लेना; किसी उक्ति या लेखका दूसरी जगह अविकल उग्रीव-वि० [सं०] जिसकी गर्दन ऊपर उठी हो, उत्कंठ। रखा जाना, अवतरण । उदघाटन-पु० [सं०] खोलना, प्रकट करना; किसी सम्मे- उद्धरणी-स्त्री० [सं०] पढ़े हुए पाठको दुहराना। लनादिका प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा आरंभ किया जाना; ऊपर उद्धरना*-स० क्रि० उद्धार करना । उठाना।
उद्धव-पु० [सं०] एक यादव जो कृष्णके सखा और संबंधी उदघाटित-वि० [सं०] खोला, उघाड़ा हुआ ऊपर उठाया। थे; यशाग्नि; उत्सव । । हुआ, उत्तोलित; आरंभ किया हुआ ।
उद्धार-पु०[सं०] ऊपर उठाना; बाहर निकालना (विपत्ति, उदघात-पु० [सं०] आघात; आरंभ; उल्लेख हवाला। दुर्दशा आदिसे); छुटकारा, (जन्म-मरणके बंधनसे) मुक्तिः उदघातक, उद्घाती (तिन्)-वि०, पु० [सं०] आधात ऋण या ऋणरूप कर्तव्यसे छुटकारा; मरम्मत या सुधार करने, धक्का मारनेवाला आरंभ करनेवाला
कर कामके योग्य बनाना। उद्घोष-पु० [सं०] ऊँची आवाजमें कहना; धोषणा, उद्धारक-वि० [सं०] उद्धार करनेवाला । मुनादी करना; जनतामें चलनेवाली बात ।
उद्धारण-पु० [सं०] उबारना, ऊपर उठाना; भाग लेना । उदघोषणा-स्त्री० [सं०] (प्रोक्लेमेशन) सार्वजनिक रूपसे उद्धारना*-स० क्रि० उद्धार करना।
और सरकारी तौरपर घोषित करना; सबकी जानकारीके उद्धृत-वि० [सं०] ऊपर उठाया हुआ; उबारा, बचाया लिए दी जानेवाली सूचना ।
हुआ; उन्मूलित; पृथक् किया हुआ; अन्य रचनासे (अवउइंड-वि० [सं०] निडर, न दवनेवाला, अक्खड़, उजडु । तरण-रूपमें) लिया हुआ; वमित । उहत*-वि० दे० 'उद्यत'।
उद्ध्वस्त-वि० [सं०] ढहा, गिरा हुआ; नष्ट । उद्दाम-वि० [सं०] बंधनरहित, निरंकुशा प्रचंट; उग्रः उद्घाहु-वि० [सं०] जो बाहें ऊपर उठाये हुए हो। घमंडी; विशाल; असाधारण; असीम; भयंकर ।
उद्बुद्ध-वि० [सं०] जगा या जगाया हुआ; विकसित उहित*-वि० दे० 'उदित'; 'उद्धत'; 'उद्यत' ।
उद्दीप्ता याद आया या दिलाया हुआ। उदिम -पु० दे० 'उद्यम' ।
उद्बोधक-वि० [सं०] जगाने, उठाने, याद दिलानेवाला; उहिष्ट-वि० [सं०] बताया हुआ; चाहा, सोचा हुआ, उद्दीपक । अभिप्रेत ।
उद्बोधन-पु०[सं०] जगना, चेतना; शान कराना; जगाना; उद्दीपक-वि० [सं०] उत्तेजित या प्रज्वलित करनेवाला। डाँट-डपटकर समझाना, चेतावनी देना (एडमॉनिशन)। उद्दीपन-पु० [सं०] उत्तेजित करना, भड़काना; जगाना; उदाधिता-स्त्री० [सं०] परकीया नायिकाका एक भेद । रसका पोषण-वर्द्धन करनेवाली वस्तु (सा०); जलाना। उद्भट-वि० [सं०] श्रेष्ठ; असाधारण; जबर्दस्त प्रचंड । वि० उद्दीपन करनेवाला।
उन्नव-पु० [सं०] जन्म, उत्पत्ति उद्गम, मूल; वृद्धि । उद्दीपित-वि० दे० 'उदीप्त' ।
-वेश्म-पु० (ओरिजिनेटिंग चेंबर )संसद या विधानउनीप्त-वि० सं०] जगाया, भड़काया हुआ; उत्तेजित मंडलका वह सदन जिसमें कोई प्रस्ताव पहले पहल उप
मंडलका वह सदन ।जसम काइ प्रस्ताव पहल प्रज्वलित; चमकीला।
स्थापित किया गया तथा स्वीकृत हुआ हो।। उद्देश-पु० [सं०] चर्चाका विषय बनाना; संकेत या लक्ष्य उद्भाव-पु० [सं०] उद्भव; कल्पना; उदाराशयता; दे० करना; अभिप्राय, इरादा; तर्कके लिए रखी जानेवाली 'उद्भावन' । प्रतिज्ञा।
| उद्भावन-पु० [सं०] उत्पादन; कल्पना करना; सोचना; उद्देश्य-वि० [सं०] स्पष्ट या इंगित किये जाने योग्य; (इनवेंशन) किसी नयी प्रणाली, यंत्रादिका निर्माण करना
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१०७
उद्भावना-उनतीस (जिसका पहले अस्तित्व न रहा हो); आविर्भावन, उपशा । उद्वास-पु० [सं०] निकालना; खदेड़ना; त्यागः वध करनेउद्भावना-स्त्री० [सं०] उद्भवः कल्पना ।
के लिए ले जाना; वध; मुक्त करना । उद्भास-पु० [सं०] चमक, दीप्ति प्रकाश ।
उद्वासन-पु० [सं०] खदेड़ देना; गृहादि नष्ट कर देना, उद्भासित-वि० [सं०] व्यक्त; चमकता हुआ; प्रकाशित; | उजाड़ना; मार डालना । अलंकृत।
उद्वासित-वि० [सं०] (डिसप्लेस्ड) दे० 'विस्थापित' । उद्भिज्ज-वि० [सं०] धरती फोड़कर बाहर निकलनेवाला; उद्वाह-पु० [सं०] उठाना; सँभालना; विवाह । उगनेवाला। पु० पेड़-पौधे, वनस्पति । -शास्त्र-पु० उद्वाहन-पु० [सं०] उठाना; सँभालना; विवाह करना; वनस्पतिशास्त्र।
एक बार जोते हुए खेतको जोतना; चिंता। उद्भिद-वि० [सं०] धरती फोड़कर उगने, निकलनेवाला। उद्विकासित-वि० [सं०](इवॉल्वड) जो आरंभिक अवस्थासे पु० अँखुआ; पौधा; उत्स, झरना ।
धीरे-धीरे पूर्ण विकासको अवस्थाको पहुँचाया गया हो, उद्भूत-वि० [सं०] उत्पन्न, सृष्ट ।
जो क्रमशः विकसित किया गया हो। उद्भति-स्त्री० [सं०] उत्पत्ति; उत्कर्ष, उन्नति ।
उद्विग्न-वि० [सं०] उद्वेगयुक्त, परेशान; चिंतित; खिन्न । उद्भेद-पु० [सं०] बीजका अंकुरित होना, धरती फोड़कर | उद्वग-पु० [सं०] क्षोभ, घबराहट; परेशानी; चित्तकी
निकलना; प्रकट होना; उत्स; ज्वालामुखीका फूटना। अस्थिरता; चिंता; भय; मनोवेग । उभेदन-पु० [सं०] फोड़कर बाहर निकलना; उगना; उद्वजक-वि० [सं०] उद्वेगकारक, क्षोभ उत्पन्न करनेवाला । प्रकट होना।
उद्वल-वि० [सं०] उफनकर बहनेवाला; मर्यादाका उभ्रम-पु० [सं०] घूमना, चक्कर खाना; धुमाना; अतिक्रमण करनेवाला; अतिशय । पश्चात्ताप।
उदोलित-वि० [सं०] ऊपरसे बहाया हुआ। उद्भ्रांत-वि० [सं०] धूमा, चक्कर खाया हुआ; भीत; उधड़ना-अ० क्रि० खुलना, टूटना (सीवन; टाँका); अलग भ्रमितचित्त; हेरान; व्याकुल; उन्मत्त; पागल ।।
होना (खाल इ०); बिखरना; उखड़ना। उद्यत-वि० [सं०] उठाया हुआ,तानाहुआ तैयार,आमादा। उधम*-पु० दे० 'ऊधम । उद्यम-पु० [सं०] उठाना श्रम, मेहनत; उद्योग धंधा। उधर-अ० उस ओर, वहाँ; उस पक्षमें । -से-उस ओरउद्यमी(मिन्)-वि० [सं०] मेहनती; उद्योगी।
से दूसरे पक्षकी ओरसे। -ही उधर-बाहर ही बाहर, उद्यान-पु० [सं०] बगीचा, वाटिका । -कर्म-पु० (हार्टि- वक्ताके पास न आकर । कल्चर) उद्यान में पेड़-पौधे लगाने तथा उनकी देखभाल | उधरना-अ० क्रि० उद्धार होना; दे० 'उघड़ना'। स० आदि करनेका काम । -गोष्टी-स्त्री० (गार्डन पाटी) क्रि० उद्धार करना। किसीके उद्यान में या दूर्वाक्षेत्र आदिपर आयोजित प्रीतिभोज उधराना-अ० कि० तितर-बितर होना, बिखरना; उड़
अथवा प्रीतिसम्मेलन । -पाल,-रक्षक-पु० माली। जाना; गायब हो जाना। उद्यापन-पु० [सं०] व्रतादिकी समाप्ति ; व्रतकी समाप्तिपर उधार-पु० कर्ज; मैंगनी; *उद्धार ।-पट्टा अधिनियमकिया जानेवाला हवनादि ।
पु० (लैंड एंड लीज ऐक्ट ) द्वितीय महायुद्धके समय उद्यापित-वि० [सं०] विधिपूर्वक पूर्ण किया हुआ; जिसको | अमेरिका द्वारा प्रवर्तित अधिनियम जिसके अनुसार उद्यापन हो चुका हो।
वह युद्ध लिप्त मित्र राष्ट्रोंको आवश्यक सामग्री या उद्योग-पु० [सं०] अध्यवसाय; यत्न श्रमउद्यम कार्य सैनिक महत्वके अड्ड उधार अथवा पट्टे पर देता था जीवनके लिए आवश्यक सामग्री उत्पन्न करनेका धंधा, और उनसे भी इसी प्रकार सहायता प्राप्त करता था। 'इंडस्ट्री' । -धंधा-पु० [हिं०] उत्पादक धंधा। -पति मु०-खाना-कर्जपर गुजर करना । -खाये बैटना-पु० माल तैयार करनेवाले कारखानेका मालिक । - किसी बातपर तुल जाना; किसी चीजके आसरे रहना । शाला-स्त्री० माल तैयार करने या उत्पादक धंधा सिखाने- उधारक, उधारन*-वि०, पु० उद्धार करनेवाला । वाली संस्था। -समीकरण-पु० (रैशनलिजेशन आफ उधारना*-स० क्रि० उद्धार करना। इंडस्ट्री) श्रमिकोंक काम, समय तथा सामग्री आदि-संबंधी | उधारी*-वि०, पु० दे० 'उधारक' । बरबादी दूर कर उद्योगकी स्थिति सुधारना;अभिनवीकरण। उधेड़ना-स०नि० खोलना, तोड़ना (सीवन, टाँका आदि); उद्योगी(गिन्)-वि० [सं०] उद्योगशील, कोशिश में लगा उखाड़ना; अलग करना; बिखेरना । मु० उधेड़कर रहनेवाला; मेहनती।
रख देना-कच्चा चिट्टा खोल देना; सब दोष, बुराई उद्योत-पु० दे० 'उद्योत' ।
उधर देना। उद्रेक-पु० [सं०] बढ़ती; अधिकता आरंभ; अर्थालंकारका उधेड़-बुन-पु० सोच-विचार, चिंता; उलझन । एक भेद।
उधेरना*-स० कि० दे० 'उधेड़ना'। उदाह-पु० [सं०] बेटा; वायुके सात स्तरों मेंसे एक। उनंत*-वि० झुका हुआ, नमित । उद्वहन-पु० [१०] उठाकर ले जाना; उठाना; सँभालना; उनइस*-वि०, पु० दे० 'उन्नीस' । विवाह करना; (किसी वस्तुसे) युक्त या संपन्न होना।- | उनचन-स्त्री० उंचन, अदवान । यंत्र-पु० (पंप) पानी, तेल आदि ऊपर उठाकर बाहर उनचास-वि० चालीस और नौ, ४९ । पु० ४९ की संख्या। निकालनेवाला पिचकारी जैसा यंत्र ।
| उनतीस-वि० बीस और नौ, २९ । पु० २९ की संख्या।
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उनदा-उन्मोचन उनदा, उनदहा*-वि० उनींदा ।
उनासी-वि० सत्तर और नौ, ७९ । पु० ७९की संख्या। उनमत, उनमद*-वि० उन्मत्त मस्त, मतवाला। उन्निद्र-वि० [सं०] जिसे नींद न आती हो, पूर्णतः विकउनमना*-वि० अनमना, उदास ।
सित । पु० निद्रा न आनेका एक रोग। उनमाथना*-स० क्रि० मथना ।
उनीस-वि० दस और नौ, १९; कम; छोटा; घटकर । पु० उनमाथी*-वि० मथनेवाला ।
१९की संख्या।-बिस्वे-अ० अधिकतर,प्रायः। मु०-बीस उनमाद*-पु० दे० 'उन्माद' ।
होना-कम-बेश होना, (एक दूसरेसे) कुछ घट-बढ़कर उनमान*-मु० अनुमान, अंदाजा; भाव; थाह सामर्थ्य । | होना, लगभग बराबर होना; भला-बुरा होना ।-होनावि० सदृश, अनुरूप ।
घटना, कुछ कम होना। उनमानना*-स० क्रि० अनुमान करना सोचना । उन्नैना*-अ० क्रि० झुकना । उनमीलन*-पु० दे० 'उन्मीलन' ।
उन्मत्त-वि० [सं०] नशे में चूर, मतवाला; पागल,सनकी। उनमुना*-वि० चुप, खामोश ।
-प्रलाप-पु० पागलकी बहक; मतवालेकी बकवास, अर्थउनमुनी*-स्त्री० दे० 'उन्मनी' ।
संगति-रहित बातें। उनमूलना*-सक्रि० उखाड़ना; नष्ट करना ।
उन्मद-वि० [सं०] मतवाला; पागल; उन्मत्त करनेवाला । उनमेख*-पु० दे० 'उन्मेष' ।
उन्मन*-वि० दे० 'उन्मना'। उनमेखना-अ० क्रि० विकसित होना; आँख खुलना। उन्मना(नस) वि० [सं०] उद्विग्न; उत्कंठायुक्त; अन्य. उनमेद-पु० प्रथम वर्षासे उत्पन्न जहरीला फेन, माँजा । मनस्क; उदास। उनमोचन*-पु० मुक्त करना; दूर करना।
उन्मनी-स्त्री० [सं०] हठयोगकी पाँच मुद्राओंमेंसे एक । उनयना*-अ० क्रि० दे० 'उनवना' ।
उन्माद-पु० [सं०] पागलपन, सनक; एक संचारी भाव । उनरना*-अ० क्रि० उमड़ना; उठना; कूदते हुए चलना -ग्रस्त-वि० उन्माद रोगसे पीड़ित, पागल । उछलना।
उन्मादक-वि० [सं०] उन्मत्त करनेवाला। पु० धतूरा । उनवना*-अ० क्रि० झुकना; गिरना; धहराना, ऊपर उन्मादन-पु० [सं०] उन्माद उत्पन्न करना, उन्मत्त करना; आना।
कामदेवके पाँच बाणों में से एक । उनवर*-वि० तुच्छ; कम ।
उन्मादी(दिन)-वि० [सं०] उन्मादग्रस्त; उन्मत्त । उनवान*-पु० अनुमान, खयाल ।
उन्मार्गी(गिन्)-वि० [सं०] कुमार्गगामी, पथ भ्रष्ट । उनसठ-वि० पचास और नौ, ५९ । पु० ५५की संख्या।उन्मीलन-पु० [सं०] खुलना (आँखका); खिलना; विकउनहत्तर-वि० साठ और नौ, ६९ । पु०६९की संख्या । सित होना। उनहानि*-स्त्री० दे० 'उन्हानि' ।
उन्मीलना*-स० क्रि० विकसित करना; खोलना । उनहार*-वि० दे० 'अनुहार' ।
उन्मीलित-वि० [सं०] खुला हुआ; खिला हुआ अंकित । उनहारि*-स्त्री० अनुरूपता, समानता।
पु० एक काव्यालंकार जहाँ दो वस्तुओंमें, बहुत सादृश्य उनाना*-स० क्रि० झुकाना; लगाना; सुनना, आशा | होनेके कारण, भेद करना कठिन होने पर भी किसी एक मानना।
बातसे भेद करना संभव हो सके, जैसे 'हिमगिरि तो यशसों उनारना*-सक्रि० उठाना; उकसाना; खसकाना, बढ़ाना ' मिल्यो छुए परत है जान' । -'ज्योति बढ़ावत दशा उनारि'-राम० ।
उन्मुक्त-वि० [सं०] बंधनरहित, आजाद; मुक्त किया उनासी*-वि०, पु० दे० 'उन्नासी' ।
हुआ। -पीताश्रय-पु० (फ्री पोर्ट) वह बंदरगाह जहाँ उनींदा-वि० नींदसे भरा हुआ, ऊँघता हुआ।
व्यापारिक वस्तुओंपर किसी तरहका कर, चुगी आद उन्नइस*-वि०, पु० दे० 'उन्नीस' ।
नहीं लगायी जाती-जो सब राष्ट्रोंके व्यापारके लिए, उन्नत-वि० [सं०] उठा हुआ; ऊँचा; आगे बढ़ा हुआ | समान रूपसे खुला हो। श्रेष्ठ, विद्या, कला आदिमें आगे बढ़ा हुआ; सभ्य । उन्मुक्ति-स्त्री० [सं०] (इम्यूनिटी) कर देने, किसी कर्तव्य के उन्नति-स्त्री० [सं०] ऊँचाई; बढ़ती; तरक्की; गरुड़की पत्नी। पालन या रोगके आक्रमणकी संभावना आदिसे मुक्ति,
-शील-वि० आगे बढ़ने या उसका यत्न करनेवाला। विमुक्ति । उन्नतोदर-पु० [सं०] वृत्त-खंड आदिका उठा हुआ अंश । उन्मुख-वि० [सं०] जिसका मुख या दृष्टि ऊपरकी ओर वि० जिसका उदर या मध्यवती भाग उठा हो। -बह-| | हो, उद्यत की ओर जाता हुआ (पतनोन्मुख); उत्कंठित । भुज-पु० (कानवेक्स) वह बहुभुज जिसका कोई भी कोण उन्मूलन-पु० [सं०] जड़ उखाड़ देना; जड़-मूलसे नाश पुनयुक्त कोण न हो।
करना (अपरूटिंग); अस्तित्व मिटाना, परिसमाप्ति उन्नयन-पु० [सं०] उठाना, उन्नतिकी ओर ले जाना (अबॉलिशन)। निकालना; खींचना (पानी); रेखा या सीमंत बनाना उन्मूलित-वि० [सं०] उखाड़ा हुआ; मिटाया हुआ। (गर्भवती स्त्रीका)। वि०जिसकी आँखें ऊपर उठी हों। उन्मेष-पु० [सं०] खुलना (आँखका); खिलना; स्फुरण; -यंत्र-पु० दे० 'उत्थानक' ।
प्रकाश दीप्ति । उन्नाब-पु० एक तरहका सूखा बेरजोदवाके काम आता है।। उन्मोचन-पु० [सं०] खोलना ढीला करना; (डिसचार्ज) उनायक-वि० [सं०] ऊपर उठानेवाला, उन्नति करानेवाला। (सजा पूरी हो जाने पर) कैद या बंधनसे मुक्त कर देना;
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ऋणादि चुका देना । उन्हानि* - स्त्री० बराबरी । उन्हारि* - स्त्री० दे० ' उनहारि' ।
उपंग * - पु० एक तरहका बाजा; उद्धवके पिता । उपंत* - वि० उत्पन्न |
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|
उप-उप० [सं०] यह शब्दोंके पूर्व आकर समीपता (उप नयन, उपकूल), आरंभ ( उपक्रम ), सामर्थ्य (उपकार), छुटाई, गौणता ( उपमंत्री, उपपुराण) इत्यादिका द्योतन करता है ।
उपकर - पु० [सं०] ( सेस ) एक तरहका छोटा कर जो विविध वस्तुओं पर विभिन्न स्थितियों में लगाया जाता है । उपकरण - पु० [सं०] उपकार करना; साधन; औजार; सामग्री; राजाओं के छत्र, चँवर आदि । उपकरना * - स० क्रि० उपकार करना । उपकर्ता () - वि० [सं०] उपकार करनेवाला | उपकल्पना - स्त्री० [सं०] ( हाइपोथेसिस ) कोई बात सिद्ध करने के लिए पहले से ही कुछ मान लेना, जो बात प्रमाणित की जा सकती हो या जिसके सत्य होनेकी संभावना हो उसकी कल्पना पहलेसे कर लेना । उपकार - पु० [सं०] भलाई; हित-साधन; सहायता; लाभ ।
[ - मानना - एहसान मानना; कृतज्ञता प्रकाश करना।] उपकारक - वि० [सं०] भलाई करनेवाला; लाभदायक । उपकारी (रिन्) - वि० [सं०] उपकारक; लाभदायक । उपकुलपति - पु० [सं०] (प्रो वाइस चांसलर) किसी विश्वविद्यालयका वह अधिकारी जो कुलपतिका मातहत होता है और जो व्यवस्था संबंधी तथा अन्य कायोंमें उसकी सहायता करता है।
उपकृत - वि० [सं०] जिसका उपकार किया गया हो,
एहसानमंद |
उपकंठ - वि० [सं०] पास, समीप । पु० सामीप्य; ग्रामकी सीमा के भीतरका स्थान ।
उपकथा - स्त्री० [सं०] छोटी कहानी | उपकनिष्ठिका - स्त्री० [सं०] कानी उँगली के पासकी उँगली, उपचर्या - स्त्री० [सं०] सेवा; उपचार, इलाज । अनामिका ।
उपकृति - स्त्री० [सं०] उपकार, भलाई ।
उपक्रम - पु० [सं०] निकट जाना; आरंभ; लेख या भाषणका उठान, प्रस्तावना; योजना; साहस । - और जननिर्देश- - पु० ( इनीशियेटिव एंड रेफरेंडम ) कोई विधि या अधिनियम बनानेके लिए जनता द्वारा स्वयं उपक्रमण किया जाना तथा किसी महत्त्वपूर्ण प्रश्नके संबंध में समस्त जनताका मत लिया जाना - जनताका वास्तविक मत जाननेके ये दो उपाय ।
उपक्रमणिका - स्त्री० [सं०] प्रस्तावना; विषय-सूची । उपक्रमी (मिन) - पु० [सं०] (एण्टरप्रेन्यूर) किसी कारखाने या उद्योगका वास्तविक नियंत्रण करनेवाला व्यक्ति । उपक्षेप - पु० [सं०] किसीकी ओर फेंकना; चर्चा; संकेत;
आक्षेप; अभिनयके आरंभ में कथावस्तुका संक्षेपमें कथन । उपखंड - पु० [सं०] (विधानकी) किसी धारा या उपधाराके खंडका कोई विभाग ( सबक्लॉज ) । उपखान* - पु० दे० 'उपाख्यान' |
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उन्हानि - उपदिशा
उपगत- वि० [सं०] पास आया या गया हुआ; घटितः प्राप्त; जाना हुआ; स्वीकृत; प्रतिज्ञातः गत; मृत । उपगति - स्त्री० [सं०] जानना; प्राप्ति; अंगीकार करना । उपगार* - पु० दे० 'उपकार' |
उपगारी* - वि० दे० 'उपकारी' ।
उपग्रह - पु० [सं०] बड़े ग्रहकी परिक्रमा करनेवाला छोटा ग्रह; गिरफ्तारी; कैद; कैदी; पराजय । -संधि-स्त्री० विजेताको सब कुछ देकर की जानेवाली संधि ।
उपघात - पु० [सं०] आघात; नाश; इंद्रियोंकी असमर्थताः आक्रमण; रोग; पाप ।
उपचय - पु० [सं०] इकट्ठा होना; चयन; वृद्धि; उन्नति; लग्नसे तीसरा, छठा, दसवाँ या ग्यारहवाँ स्थान ।
उपचार - पु० [सं०] सेवा; इलाज, चिकित्सा; विधान; पूजानुष्ठान; पूजाके अंग या द्रव्य ( षोडशोपचार पूजा); शिष्टाचार; चापलूसी; रस्मी व्यवहार । उपचारक - वि० [सं०] इलाज करनेवाला; सेवा, टहल करनेवाला; विधान करनेवाला । उपचारना* - स० क्रि० व्यवहार करना; विधान करना । उपचारी (रि) - वि० [सं०] दे० 'उपचारक' | उपचेतना - स्त्री० [सं०] अर्द्ध चेतनावस्था |
उपज - स्त्री० उत्पत्ति, पैदावार; सूझ; मनगढ़ंत बात; गाने में कोई नयी तान लगाना । उपजत* - स्त्री० पैदावार ।
उपजना - अ० क्रि० उत्पन्न होना; उगना; सूझना । उपजाऊ - वि० जिसमें अधिक उपजे, जरखेज; सूझवाला । उपजाति - स्त्री० [सं०] इंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा तथा इंद्रवंशा और वंशस्थके मेलसे बननेवाले वर्णवृत्त; जातिका कोई उपभेद ।
उपजाना - सु० क्रि० उत्पन्न करना । उपजिह्वा, उपजिह्निका - स्त्री० [सं०] जीभके मूल में स्थित छोटी जीभ, घंटिका; एक कीट । उपजीवक, उपजीवी (विन्) - वि० [सं०] ......से जीविका करनेवाला, जीविका के लिए दूसरेपर आश्रित । उपजीविका - स्त्री० [सं०] जीवननिर्वाहका साधन; वृत्ति,
व्यवसाय ।
उपज्ञा स्त्री० [सं०] अन्तःकरणमें अपने आप उपजा हुआ, अनुपदिष्ट ज्ञान; आद्य ज्ञान; दे० उद्भाव (इनवेंशन) । उपज्ञात - वि० [सं०] बिना किसीके बताये जाना हुआ, मनमें उपजा हुआ; अज्ञातपूर्व; आविष्कृत । उपटन - पु० आघात आदिका चिह्न; उबटन |
उपटना- अ० क्रि० निशान पड़ना; उभरना; उखड़ना । उपटाना* - स० क्रि० उखाड़ना; उखड़वाना; उबटन लगाना या लगवाना ।
उपटारना * - स० क्रि० उचाटना - 'मधुबनतें उपटारि स्याम कह... सू०; उठाना; हटाना । उपत्यका - स्त्री० [सं०] पहाड़के पासको जमीन, तराई,
घाटी ।
उपदंश - पु० [सं०] चाट; गरमीको बीमारी, आतशक । उपदिशा - स्त्री० [सं०] अंतदिशा, कोण |
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हुआ हो।
उपदिष्ट-उपपुराण
११० उपदिष्ट-वि० [सं०] उपदेश किया हुआ; सिखाया हुआ। बोर्ड, रेलवे कंपनी आदिके बनाये हुए नियम (बाई-ला)। उपदेव, उपदेवता-पु० [सं०] छोटादेवता(यक्ष, गंधर्वादि)। उपनिर्वाचन-पु० [सं०] (बाई-इलेक्शन) मृत्यु या अन्य उपदेश-पु० [सं०] शिक्षा, सीख; नेकसलाह; दीक्षा; कारणसे विधानसभा, नगरपालिका आदिके किसी सदस्यका निर्देश।
यां किसी पदाधिकारी आदिका स्थान रिक्त हो जानेपर उपदेशक-वि०, पु० [सं०] उपदेश करनेवाला, सीख देने | होनेवाला चुनाव। वाला; घूम-घूमकर प्रचार करनेवाला ।
| उपनिवेश-पु० [सं०] दूसरे देशसे आये हुए लोगोंकी उपदेष्टा (ष्ट्र)-वि०, पु० [सं०] दे० 'उपदेशक' । बस्ती; विजित देश जिसमें विजेता राष्ट्र के लोग आकर बस उपदेस*-पु० दे० 'उपदेश'।
गये हों (कालोनी)। -पद-पु. स्वतंत्र उपनिवेशोंका उपदेस(श)ना*-स० क्रि० शिक्षा या सलाह देना। दरजा; उस प्रकारका स्वराज्य या स्वतंत्रता जो उन्हें प्राप्त उपद्रव-पु० [सं०] उत्पात सार्वजनिक संकट या आपत्ति है (डोमिनियन स्टेटस)। ( अतिवर्षण, विप्लव आदि); दंगा-फसाद, बखेड़ा; एक उपनिवेशन-पु० [सं०] (कॉलोनिज़ेशन) अन्य देशोंमें जाकर
गके बीच में होनेवाला दूसरा गौण रोग; उपसर्ग। अपनी वस्ती या उपनिवेश बसानेकी क्रिया। उपद्गवी (विन्)-वि० [सं०] उपद्रव करनेवाला, उत्पाती। उपनिवेशित-वि० [सं०] उपनिवेश बनाया हुआ । उपद्वार-पु० [सं०] छोटा, बगलका दरवाजा ।
उपनिवेशी (शिन)-वि० [सं०] दूसरे देशमें बस जानेउपद्वीप-पु० [सं०] छोटा टापू ।
वाला, उपनिवेशवासी, आबादकार । उपधरना*-स० क्रि० अपनाना; सहारा देना।
उपनिषत्-स्त्री० [सं०] वेदोंका शानकांड माने जानेवाले उपधर्म-पु० [सं०] गौण धर्म।
ब्रह्मविद्या प्रतिपादक ग्रंथविशेष; वेदरहस्य; ब्रह्मशान । उपधा-स्त्री० [सं०] छल; दंगा-फरेब, ईमानदारीकी उपनीत-वि० [सं०] पाम लाया हुआ; जिसका उपनयन परीक्षा । उपधातु-स्त्री० [सं०] अप्रधान या अर्ध धातु, मिश्र धातु उपनेता(त)-वि०, पु० [सं०] पास ले जानेवाला; उपनयन (ये सात है--सोनामाखी, रूपामाखी, तूतिया, कांसा, करानेवाला (गुरु); नेताका नायब या सहकारी । मुर्दासंख, मेंदुर और सिलाजीत); शरीरस्थ सात धातुओं- उपनौकाध्यक्ष-पु० [सं०] (वाइस-एडमिरल) नौ-सेनाका से उत्पन्न सात गौण धातुएँ-दूध, रज, ची, पसीना, वह अधिकारी जो प्रधान नौकाध्यक्षके ठीक नीचे काम दाँत, केश और ओज ।
करता हो। उपधान-पु० [सं०] वह वस्तु जिसका सहारा लिया जायः | उपन्यास-पु० [सं०] धरोहर, अमानत; वाक्यका उपक्रम तकिया।
संधिका एक प्रकार; कल्पित और काफी लंबी कहानी उपधारा-स्त्री० (सब-सेक्शन) किसी अधिनियम आदिके (नावेल)। -कार-पु. उपन्यास लिखनेवाला। अंतर्गत उसका कोई विभाग या उपांग ।
उपपंजीयक-पु० [सं०] (सबरजिस्ट्रार) पंजीयनका काम उपनगर-पु० [सं०] नगरका बाहरी भाग, शहरसे सटी। करनेवाला मातहत अधिकारी।
हुई या उसके डाँड़ेपरकी बस्ती, शाखानगर (सबर्ब)। उपपति-० [सं०] परस्त्रीसे प्रेम करनेवाला पुरुष, यार । . उपनना*-अ० क्रि० उपजना ।
उपपत्ति-सी० [सं०] घटित होना; प्रकट होना; उत्पन्न उपनय-पु० [सं०] प्राप्ति नियुक्तिः पास ले जाना; गुरुके होना; हेतु, युक्ति; सिद्धि में युक्ति-प्रमाण देना; सिद्धि, पास ले जाना; उपनयन संस्कार; वाक्यके पाँच अवयवोंमेंसे प्रतिपादन समाधान सहारा प्रमाण (ग०); उपयुक्तता । चौथा (न्या०)।
उपपत्नी-स्त्री० [सं०] रखेली। उपनयन-पु० [सं०] पास ले जाना; यशोपवीत संस्कार ।
उपपद समास-पु० [सं०] कृदंतके साथ हुआ नाम (संशा) उपना*-अ० क्रि० उत्पन्न होना-'.."सुनि हरि हिय गरब
का समास (कुंभकार, घरफूंक आदि)। गूढ उपयो है'-गीता।
उपपन्न-वि० [सं०] युक्तियुक्त संभव; सिद्ध किया हुआ; उपनागरिका-स्त्री० [सं०] वृत्त्यनुप्रासकी तीन वृत्तियोंमेंसे योग्य; युक्त; पूर्ण; प्राप्त; नीरोग किया हुआ; (एक्सपीडिऐंट) एक जिसमें श्रतिमधुर वर्ण बार-बार आते हैं और समास | अवसरके उपयुक्त, सुविधाजनक या लाभकारी, समयोचित । नहीं होते, यदि होते है तो छोटे होते हैं।
उपपातक-पु० [सं०] छोटा पाप । उपनाना*-स० क्रि० उपजाना, पैदा करना। | उपपादन-पु० [सं०] युक्ति देकर सिद्ध करना, सम्यक उपनाम(न)-पु० [सं०] गौण नाम; पुकारनेका नामः | प्रतिपादन; संपादन; (इंडक्शन) किसी पदार्थको विद्युत् या पदवी; लेख-कविता आदिमें व्यवहृत छोटा नाम, तखल्लुस। चुबक-शक्तिसे युक्त वस्तुके सन्निकट ले जाकर उसमें भी उपनायक-पु० [सं०] गौण या अप्रधान नायक; नाटक विद्युत् या चुंबक शक्ति उत्पन्न कर देना।
आदिमें वह पात्र जो नायकका प्रधान सहायक हो। | उपपादित-वि० [सं०] प्रमाणित, सिद्ध किया हुआ; पूरा उपनायिका-स्त्री० [सं०] नायिकाकी प्रधान सहायिका।। किया हुआ। उपनिधि-स्त्री० [सं०] धरोहर, अमानत; मुहरबंद अमा- उपपाद्य-वि० [सं०] उपपादन करने योग्य; जिसे तर्कसे नत। -भोक्ता(क्त)-पु० दूसरेकी धरोहरको स्वयं सिद्ध करना हो । व्यवहार में लानेवाला मनुष्य ।
उपपुर-५० [सं०] उपनगर । उपनियम-पु० [सं०] गौण नियम (सबरूल); म्युनिसिपल उपपुराण-पु० [सं०] छोटा या गीण पुराण, व्यासाक्त
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अठारह पुराणोंसे भिन्न, अन्य मुनियोंके रचे पुराण । उपप्रश्न - पु० [सं०] प्रश्न के अंदर पैदा होनेवाला प्रश्न । उपप्लव - पु० [सं०] उत्पात, उपद्रव, भौतिक दुर्घटना; पीड़न; विघ्न; (इनसरेक्शन) राजसत्ता या सरकार के प्रति छोटे पैमानेपर किया गया या आरंभिक अवस्थाका विद्रोह |
उपबंध - पु० [सं०] संबंध; संयोग; (प्रोविजन) किसी विधि, अधिनियम आदिके वे खंड या उपखंड जिनमें किसी बातकी संभावना आदिको ध्यान में रखते हुए पहले से कोई प्रबंध या गुंजाइश रख दी जाय; इस तरह रखी गयी गुंजाइश या गुंजाइश रखनेकी क्रिया ।
|
उपबंधित - वि० [सं०] ( प्रोवाइडेड ) उपबंधके अनुरूप, उपबंध में निर्दिष्ट |
उपबरहन* - पु० दे० 'उपबर्हण' ।
उपबर्ह, उपबर्हण - पु० [सं०] दबाना; तकिया | उपबाहु - पु० [सं०] हाथका बाहुसे नीचे (कुहनीसे कलाईतक) का भाग, पहुँचा |
उपभुक्त - वि० [सं०] भोगा, काममें लाया हुआ; जूठा । उपभूमि- स्त्री० [सं०] (सब-सॉइल) भूमिके ऊपरी भाग या तलके नीचेका स्तर |
उपभेद - पु० [सं०] गौण भेद, उपविभाग | उपभोक्ता (क्त)-वि० [सं०] उपभोग करनेवाला; बरतनेवाला; काबिज ।
उपभोग - पु० [सं०] भोगना; सुख, स्वाद लेना; बरतना; विषय-सुख ।
उपभोग्य - वि० [सं०] भोगने, व्यवहार करने योग्य | पु० भोगकी वस्तु । - वस्तुएँ - स्त्री० (कंज्यूमर्स गुड्स) मनुष्यके उपभोग या काममें आनेवाली आवश्यक वस्तुएँ - जैसे गल्ला, कपड़ा आदि ।
उपभोज्य - वि० [सं०] खाने योग्य | उपमंत्री (त्रिन्) - पु० [सं०] सहायक मंत्री | उपमा-स्त्री० [सं०] समता, तुलना; अर्थालंकारका एक भेद जिसमें दो वस्तुओं में भेद होते हुए भी धर्भगत समता दिखायी जाती है।
उपमाता (तृ) - वि० [सं०] उपमा देनेवाला स्त्री० घाय; मातृतुल्य संबंधिनी - मौसी, चाची आदि । उपमान - पु० [सं०] वह वस्तु जिससे किसीकी तुलना की जाय । - लुप्ता - स्त्री० उपमा अलंकारका एक भेद । उपमाना* - स० क्रि० तुलना करना ।
उपमित- वि० [सं०] जिसकी किसीसे उपमा दी गयी हो ।
५० कर्मधारय समासका एक भेद ।
वाला ज्ञान (न्या० ) ।
उपमेय - वि० [सं०] उपमा देने योग्य | पु० वह वस्तु जिसकी किसीसे तुलना की जाय, वर्ण्य । उपमेयोपमा स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद जिसमें उपमेयकी उपमा उपमानसे और उपमानकी उपमेयसे दी गयी हो ।
उपयंत्र - ५० [सं०] छोटा यंत्र या औजार । उपयाचित- वि० [सं०] प्रार्थित, निवेदित ।
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उपप्रश्न - उपराष्ट्रपति
उपयुक्त - वि० [सं०] उपयोग में लाया हुआ; प्रयुक्त; उचित, ठीक, मौजू; योग्य; अनुकूल |
उपयोग- पु० [सं०] व्यवहार, काम लेना; लाभ; उपयुक्तता; प्रयोग; दवा देना या तैयार करना । उपयोगिता - स्त्री० [सं०] उपयोगी होना, उपयुक्तता ।
- वाद-पु० अधिक से अधिक लोगोंका अधिक से अधिक हितसाधन धर्म है - यह मत ( यूटिलिटेरियनिज्म ) । - वादी (दिन) - पु० उपयोगितावादका अनुयायी । उपयोगी (गिन्) - वि० [सं०] काममें आनेवाला, कारामद; लाभजनक; काममें आनेवाला ।
उपरंजक - वि० [सं०] रँगनेवाला; प्रभाव डालनेवाला । उपरंजन - पु० [सं०] रँगना; पासकी चीजपर अपना रंग या असर डालना ।
उपरक्त - वि० [सं०] विषयासक्त; पीड़ित; जिसे ग्रहण लगा हो; रंजित; जिसमें उपाधिके सान्निध्य से उसके गुणकी प्रतीति होती हो ।
उपरत - वि० [सं०] विरक्त, रागरहित; निवृत्त । उपरति - स्त्री० [सं०] विषय-भोगसे विरक्ति; उदासीनता । उपरत्न- पु० [सं०] घटिया किस्मके रत्न (सीप, स्फटिक इ० ) | उपरना - पु० दुपट्टा, उत्तरीय । * अ० क्रि० उखड़ना । उपरफट, उबरफट्ट - वि० ऊपरी; बाहरी; निष्प्रयोजन, बेकार; नियमितके अलावा ।
उपरस - पु० [सं०] पारेके सदृश गुणवाले पदार्थ- गंधक, अभ्रक, मैनसिल, गेरू आदि; गौण भाव । उपरांत - अ० [सं०] अनंतर, बाद ।
उपराग - पु० [सं०] रंग; लाली; चंद्र-सूर्य ग्रहण; विषयासक्तिः निकटस्थ वस्तु के प्रभावसे रंग रूप बदलना (सांख्य० ) । उपर चढ़ी - स्त्री० एक दूसरेसे बढ़ जानेकी कोशिश, प्रतिस्पर्धा, लाग-डाट ।
उपराजना* - स० क्रि० उत्पन्न करना, उपजाना; बनाना; उपार्जन करना ।
उपराजसंरक्षक - पु० [सं०] (वाइस रीजेंट) राजसंरक्षक की अनुपस्थिति में उसका काम सम्हालनेवाला ।
उपमिति - स्त्री० [सं०] सादृश्य, पटतर; साध्यसे होने- उपराना* - अ० क्रि० ऊपर आना; उतराना । स० क्रि०
उपराज - पु० [सं०] राजाका नायब, राजप्रतिनिधि ( वाइसराय) । * स्त्री० उपज, पैदावार । उपराजदूत, उपराजप्रतिनिधि - पु० [सं०] (लिगेट) अन्य देशमें रहनेवाला किसी राज्य या राष्ट्रका वह कूटनीतिक मंत्री या प्रतिनिधि जिसे अभी मुख्य राजदूतका पद प्राप्त न हुआ हो ।
उपराजदूतावास - ५० [सं०] ( लिगेशन) उपर राजदूतका निवासस्थान |
ऊपर करना, उठाना ।
उपराम - पु० [सं०] उपरति; निवृत्तिः त्याग । उपराला* - पु० सहायता; बचाव पक्षग्रहण | उपरावटा* - वि० जो सिर ऊपर किये हुए हो, अकड़ता हुआ ।
उपराष्ट्रपति - पु० [सं०] ( वाइस प्रेसीडेंट ) गणतंत्रका वह निर्वाचित पदाधिकारी जो राष्ट्रपतिकी अनुपस्थिति, बीमारी आदिके समय उसके कार्योंका निर्वाहन करता है ( भारत में
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उपराहना-उपसागर
११२ यह पदेन राज्यपरिषद का सभापति होता है)।
व्यापारिक केंद्रोंमें रहकर काम करता है। उपराहना*-स० क्रि० प्रशंसा करना।
उपवास-पु० [सं०] भोजनका त्याग या अप्राप्ति, फाका उपराही*-अ० ऊपर । वि० बढ़कर ।
व्रत-रूपमें भोजनका त्याग । उपरि-अ० [सं०] ऊपर; उपरांत । -कथित-वि० ऊपर | उपवासक-वि० [सं०] उपवास करनेवाला। कहा गया, उपयुक्त।
उपवासी (सिन्)-वि० [सं०] उपवास करनेवाला । उपरी-उपरा*-पु० चढ़ा-ऊपरी ।
उपविद्या-स्त्री० [सं०] गौण विद्या; लौकिक विद्या । उपरूपक-पु०[सं०] गीण रूपक जो १८ प्रकारका होता है। उपविधि-स्त्री० [सं०] ( बाई-ला) किसी विधिके अंतर्गत उपरैना*पु० दे० 'उपरना।
बनायी गयी छोटी विधि; किसी नगर पालिका या निगम उपरैनी*-स्त्री० ओढ़नी ।
आदि द्वारा निर्मित विधि । उपरोक्त-वि० ऊपर कहा हुआ (उपर्युक्तका अशुद्ध रू.प)। उपविष-पु० [सं०] कृत्रिम या हलके विष (मदार, उपरोध-पु० [सं०] रोक, बाधा; घेरना; ढकना। धतूरा इ०)। उपरोधक-वि० [सं०] उपरोध करनेवाला । पु० भीतरका उपविष्ट-वि० [सं०] बैठा हुआ प्रविष्ट (किसी अवस्थामें)। कमरा।
उपवीत-पु० [सं०] जनेऊ; उपनयन संस्कार । उपरोधी(धिन)-वि० [सं०] उपरोध करनेवाला। उपवेद-पु० [सं०] वेदोंसे निकली लौकिक विद्याएँ-आयुउपरोहिता-पु० दे० 'पुरोहित' ।
वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद और स्थापत्यवेद । उपरोहिती -स्त्री० दे० 'पुरोहिती'।
उपवेशन-पु० [सं०] दे॰बैठना, जमना; बैठाना, (सिटिंग) उपरौटा-पु० किसी चीजका ऊपरका पल्ला
सभाकी बैठक होती रहना, बैठक होती रहनेकी स्थिति । उपरौना*-पु० दे० 'उपरना' ।
उपवेशिका-स्त्री० [सं०] (लाउंज) एक तरहका सोफा या उपर्युक्त-वि० [सं०] ऊपर या पहले कहा हुआ। आरामसे लेटने, बैठनेकी कुरसी। उपल-पु० [सं०] पत्थर; रत्न; ओला; बादल ।
उपवेशित-वि० [सं०] बैठाया हुआ। उपलक्षित-वि० [सं०] लक्ष्य किया हुआ; अनुमान किया उपवेशी (शिन् ) उपवेष्टा(ट)-वि० [सं०] बैठनेवाला। हुआ; इशारेसे बतलाया हुआ।
उपव्याघ्र-पु० [सं०] चीता। उपलक्ष्य-वि० [सं०] अनुमान करने योग्य; लक्ष्य करने उपशम-पु० [सं०] शांत होना; तृष्णा, वासनाका नाश योग्य । पु० सहारा; अनुमान; संकेत; उद्देश्य । -में- इंद्रिय-निग्रह रोगकी पीड़ाका घटना; निवृत्ति उपाय। निमित्तसे (विवाहके उपलक्ष्यमें)।
उपशमन-पु०[सं०] शांत करना; तुष्ट करना; निवारण उपलब्ध-वि० [सं०] मिला हुआ, प्राप्त; ज्ञात ।
दबाना; घटाना; लुप्त होना; शूल-नाशक औषध । उपलब्धा )-वि० [सं०] प्राप्त करनेवाला; अनुभव उपशिक्षक-पु० [सं०] सहायक शिक्षक, नायब मुदरिस । करनेवाला । पु. आत्मा।
उपशिष्य-पु० [सं०] शिष्यका शिष्य । उपलब्धि-स्त्री०[सं०] प्राप्ति; अनुभव ज्ञान प्रत्यक्ष शान; | उपशीर्षक-पु० [सं०] होटा शीर्षक, मुख्य शीर्षकके नीचे (एव्हेलेबिलिटी; सप्लाई) किसी पण्यवस्तुकी वह संख्या या बीचमें आनेवाला शीर्षक। या परिमाण जो बाजार खरीदने या माँगकी पूर्ति करने- उपशुल्क-पु० [सं०] (रेट) स्थानीय आवश्यकताओंकी के लिए किसी समय प्राप्य हो; (इमाल्यूमेंट) किसी पदपर दृष्टिसे नगरपालिका आदि स्थानीय संस्थाओं द्वारा लिया काम करनेसे वेतन, परिश्रम आदिके रूपमें मिलनेवाला जानेवाला कर, उपकर। लाभ; (अचीव्हमेंट) प्राप्त की गयी सफलता'लोगोंको अपने उपसंक्षेप-पु० [सं०] (ऐब्सट्रेक्ट) किसी विवरण, हिसाब पूर्वजोंकी उपलब्धियोंषर गर्व हो रहा था'-भारतका वैधा- आदिका संक्षिप्त रूप; सारांश । निक विकास ।
उपसंपादक-पु० [सं०] सहायक संपादक, (सब-एडिटर)। उपलभ्य-वि० [सं०] मिलने योग्य, प्राप्य; सम्भान्य । उपसंहार-पु० [सं०] समाप्ति समेटना, बटोरना; सारांश, उपला-पु० गोहरा । स्त्री० [सं०] शर्करा ।
निचोड़; लेख आदिके अंतमें दिया जानेवाला खुलासा उपली-स्त्री० गोहरी, चिपड़ी।
पुस्तकका अंतिम अध्याय; नाश; अंत । उपलेपन-पु० [सं०] लेप लगाना; लेपकी सामग्री। उपसभापति-पु० [सं०] (वाइस प्रेजीडेंट) किसी संस्थाका उपल्ला-पु० ऊपरकी पर्त, भितल्लाका उलटा ।
वह अधिकारी जो सभापतिकी अनुपस्थितिमें उसका स्थान उपवन-पु० [सं०] बगीचा, उद्यान ।
ग्रहण करे। उपवना*-अ० क्रि० उड़ जाना, अदृश्य हो जाना; | उपसमिति-स्त्री० [सं०] (सब-कमिटी). छोटी समिति, उदय होना।
कार्यविशेषके लिए बनी छोटी कमेटी ।। उपवाक्य-पु० [सं०] बड़े वाक्यके भीतर आया हुआ छोटा उपसर्ग-पु० [सं०] वह अव्यय जो धातु या धातुसे बने वाक्य (क्लॉज)।
नाम (संज्ञा)के पहले लगकर उसका अर्थ बदल देता है उपवाणिज्यदूत-पु० [सं०] (प्रोकॉन्सल) किसी देशके (प्र, अव, उप, सम् आदि); भौतिक या दैवी उपद्रव; एक व्यापार वाणिज्य-संबंधी हितोंकी निगरानीके लिए अन्य रोगके बीच में उत्पन्न दूसरा गौण रोग; उपद्रव; अपशकुन, देशमें नियुक्त वाणिज्यदूतके अधीन काम करनेवाला छोटा मृत्युसूचक चिह्न प्रेतबाधा । दूत जो प्रायः राजधानीके अतिरिक्त अन्य महत्त्वके उपसागर-पु० [सं०] चौड़े मुँहकी खाड़ी, आखात ।
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उपसेवन-उपेंद्र उपसेवन-पु० [सं०] भोग सेवन पूजन आदी होना। उपाटना*-स० क्रि० उखाड़ना। उपस्कर-पु० [सं०] संस्कार-साधन; (सजानेकी) सामग्री उपाड़ना*-स० क्रि० दे० 'उपाटना' । घरकी सफाई-सजावटके साधन; आभूषणादि ।
उपाती*-स्त्री० उत्पत्ति । उपस्करण-पु० [सं०] हिंसा करना; सजाना, संवारना । उपादान-पु० [सं०] ग्रहण; स्वीकार; कारण; वह द्रव्य उपस्कृत-वि० [सं०] (फनिश्ड) मेज, कुसी आदि सामा- जिससे कोई वस्तु बने; कार्यरूप प्राप्त करनेवाला कारण नोंसे सजाया हुआ।
प्रयोग; उल्लेख कथन; इंद्रियोंको विषयोंसे पृथक करना; उपस्त्री-स्त्री० [सं०] उपपत्नी, रखेली।
शरीरका प्रयत्न । -कारण-पु० समवायी कारण । उपस्थ-पु० [सं०] शरीरका मध्य भाग; पेड़ स्त्री या| उपादि*-स्त्री० दे० 'उपाधि'।
पुरुषकी जननेंद्रिय; गोद । वि० पास बैठा हुआ। उपादेय-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य; प्रशस्त; उत्कृष्ट । उपस्थान-पु० [सं०] पास आना; सामने आना; देवताके उपाधि-स्त्री० [सं०] छल, धोखा; विशेष लक्षण; अवच्छेदक सामने खड़ा होकर स्तुति या आराधना करना; उपा- गुण-धर्म; चिह्नः योग्यता या प्रतिष्ठा सूचित करनेवाला सनास्थल ।
शब्द, पदवी । -धारी (रिन)-वि० जिसे कोई उपाधि उपस्थापक-वि० [सं०] पास लाने या रखनेवाला, उप- दी गयी हो। स्थित करनेवाला; सिखाने समझानेवाला ।
उपाध्यक्ष-पु० [सं०] (डिप्टी चेयरमैन; डिप्टी स्पीकर) उपस्थापन-पु० [मं०] पास या सामने रखना; (प्रेजेंटे- किसी सभा, संस्था, विधान-सभा आदिका वह पदाधिकारी शन) विधान-सभा आदिके सामने कोई प्रस्ताव विचारार्थ जो अध्यक्षके सहायकके रूप में या उसके अनुपस्थित रहने पर उपस्थित करना; किसी अधिकारीके सामने कोई विषय | उसके स्थानपर काम करता है। उसकी स्वीकृति प्राप्त करनेके लिए रखना; उपस्थिति। उपाध्याय-पु० [सं०] शिक्षक, अध्यापक; वेद-वेदांग उपस्थापित करना-स० क्रि० (टु प्रेजेंट) विधान सभा | पढ़ानेवाला; ब्राह्मणोंकी एक उपजातिकी उपाधि । आदिके सामने कोई प्रस्ताव विचारार्थ रखना।
उपाध्याया-स्त्री० [सं०] अध्यापिका । उपस्थित-वि० [सं०] पास या सामने आया हुआ, मोजूद, उपाध्यायानी-स्त्री० [सं०] गुरुपत्नी । हाजिर; याद ।
उपाध्यायी- स्त्री० [सं०] अध्यापिका गुरुपत्नी । उपस्थिति-स्त्री० [सं०] हाजिरी, मौजूदगी, विद्यमानता । उपानना*-स० कि० उत्पन्न करना। उपहत-वि० [सं०] चोट खाया हुआ, घायल; नष्ट दृषित, उपानह-पु० जूता ।। विकृत; अभिभूत; जिसपर वज्रपात हुआ हो; लांछित । । उपाना*-स० क्रि० उपजाना, उत्पन्न करना; करना। उपहसित-वि० [सं०] जिसका उपहास किया गया हो। उपाय-पु० [सं०] पास जाना; साधन; युक्ति, तदबीर, पु० व्यंग्य-कटाक्षभरी हँसी।
इलाज; यत्न । उपहार-पु० [सं०] भेंट, सौगात; पूजनद्रव्य; नैवेद्यः क्षति- उपायन-पु० [सं०] पास जाना; भेंट, उपहार । पृति, संधिके लिए दी जानेवाली रकम ।
उपायी(यिन)-वि० [सं०] उपायकुशल; उपाय करनेवाला। उपहास-पु० [सं०] निंदासूचक, बनानेवाली हसी; खिल्ली उपारना*-स० क्रि० उखाड़ना। उड़ाना; निंदा, बदनामी; तमाशा।
उपार्जन-पु० [सं०] कमाना; पैदा करना; हासिल करना । उपहासक-वि०, पु० [सं०] उपहास करनेवाला । उपार्जित-वि० [सं०] कमाया हुआ; प्राप्त; बटोरा हुआ। उपहासास्पद-वि० [सं०] हँसने योग्य, उपहास्य । उपालंभ, उपालंभन-पु० [सं०] उलाहना, शिकायत उपहासी*-स्त्री० उपहास ।
निदा। उपहास्य-वि० [सं०] उपहासके योग्य ।
उपाव*-पु० दे० 'उपाय' । उपही-पु० अजनबी, बाहरी आदमी, परदेशी-'ये उपही उपास-पु० उपवास, फाका । कोउ कुँवर अहेरी'-गीता० ।
उपासक-वि०, पु० [सं०] उपासना करनेवाला, आराधका उपांग-पु० [सं०] छोटा अंग; अंगका विभागः पूरक वस्तु; भक्त; अनुयायी । [स्त्री० उपासिका।] वेदांगके पूरक विषय-पुराण, न्याय, मीमांसा और | उपासन-पु० [सं०] सेवा, पूजा करना; आराधन । धर्मशास्त्र ।
उपासना-स्त्री० [सं०] सेवा, आराधना; भक्ति। * स० उपांजन-पु० [सं०] लीपना; सफेदी करना ।
क्रि० आराधना करना, पूजा-सेवा करना । उपांत-पु० [सं०] छोर, किनारा; हाशिया; आँखका उपासा-वि०जिसने उपास किया हो, निराहार । कोना; सान्निध्य; अंतके पासका अक्षर । वि० अंतके पास- उपासित-वि० [सं०] पूजित, आराधित । का। -स्थ-वि० हाशियेपर लिखा जानेवाला। उपासिता(त)-वि० [सं०] आराधक, पूजक । उपांत्य-वि० [सं०] अंतके पासका, आखिरीसे पहलेका।। उपास्य-वि० [सं०] पूजाके योग्य, आराध्य, अर्च्य । उपाइ, उपाउ*-पु० दे० 'उपाय।
उपाहार-पु० [सं०] जलपान, नाश्ता। -गृह-पु० वह उपाकर्म(न्)-पु० [सं०] उपक्रम; आरंभ; वेदपाठ | स्थान या दूकान जहाँ जलपान, चाय आदिको व्यवस्था
आरंभ करने के पहले किया जानेवाला एक संस्कार। हो, होटल । उपाख्यान, उपाख्यानक-पु० [सं०] छोटी कथा या उपेंद्र-पु० [सं०] इंद्रके छोटे भाई, वामन, विष्णु, कृष्ण । कहानी पौराणिक कहानी।
-वज्रा-स्त्री० एक छंद।
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उपेक्षक-उमर उपेक्षक-वि० [सं०] उपेक्षा करनेवाला; उदासीन धीर। उबीधना*-अ० कि० फंसना; धंसना, चुभना । उपेक्षणीय-वि० [सं०] उपेक्षा करने योग्य ।
उबीधा-वि० कँटीला, गड़नेवाला, छेदनेवाला; गड़ा हुआ, उपेक्षा-स्त्री० [सं०] अपेक्षाका उलटा, उदासीनता, अव- फँसा हुआ; फंसा हुआ। हेलना, तिरस्कार, लापरवाही ।
उबेना*-वि० नंगे पाँव । उपेक्षित-वि० [सं०] जिसकी उपेक्षा की गयी हो। उबेरना*-स० क्रि० दे० 'उबारना' । उपेक्ष्य-वि० [सं०] उपेक्षणीय ।
उभइ-वि० दे० 'उभय' । उपेखना*-स० क्रि० उपेक्षा करना ।
उभटना -अ० क्रि० अहंकार करना । उपेत-वि० [सं०] मिला हुआ, प्राप्त; युक्त ।
उभड़ना-अ० कि० दे० 'उभरना' । उपैना*-वि० खुला हुआ, नग्न । अ० क्रि० उड़ जाना। उभना*-अ० कि० उठना । उपोत्पादन-पु० [सं०] (बाई-प्राडक्ट) वह गौण उत्पादन उभय-वि० [सं०] दोनों, दोमेंसे प्रत्येक । -चर-वि० (उत्पादित वस्तु) जो किसी अन्य मुख्य वस्तुका निर्माण जल-स्थल दोनों जगह रह सकनेवाला (प्राणी)। -निष्ठ करते समय अनायास तैयार हो जाय या किया जाय । -वि० दोनोंमें जिसकी निष्ठा हो; जो बीचमें होनेके कारण उपोद्धात-पु० [सं०] आरंभ प्रस्तावना, भूमिका। दोनों ओर सम्मिलित किया जा सके। -मध्यस्थ-वि० उपोसथ-पु० [पा०] निराहार व्रत (बौद्ध) ।
(इंटरमीडियरी) दो व्यक्तियों या पक्षोंके वीच काम करनेउफ-अ० [अ०] पीड़ा, पछतावा आदिका सूचक उद्गार, वाला । -मुखी-वि० स्त्री० गर्भवती। -संकट-पु० आह । स्त्री० आह, अफसोस ।
धर्मसंकट; धर्मसंकट-जैसी स्थिति । उफड़ना*-अ० क्रि० उफनना ।
उभयतः-अ० [सं०] दोनों ओरसे, दोनों प्रकारसे । उफनना, उफनाना-अ० क्रि० उबलना, जोश खाना । उभयान्वयी (यिन्)-वि० [सं०] दोनों (पद और वाक्य)उफान-स्त्री० उबाल, जोश; जोश खाकर ऊपर उठना। से जुड़नेवाला (व्या०)। उफाल-स्त्री० लंबा डग ।
उभयार्थ-वि० [सं०] द्वयर्थी; अस्पष्ट । उबकना-अ० क्रि० कै करना ।
उभयालंकार-पु० [सं०] वह अलंकार जो शब्दालंकार उबकाई-स्त्री० कै, मतली।
और अर्थालंकार दोनों हो। उबट-वि० ऊबड़-खाबड़, टेढ़ा; कठिन (रास्ता)। पु० उभरना-अ० क्रि० ऊपर उठना, ऊँचाहोना; प्रकट होना; ऊबड़-खाबड़ रास्ता।
खुलना; बढ़ना; जवानीपर आना; उकसना । उबटन-पु० सरसों, तिल, चिरौंजी आदिका लेप ।
| उभरौहाँ*-वि० उभरता हुआ; ऊपर उठा हुआ । उबटना-अ० क्रि० स० कि० उबटन लगाना, उबटन उभाड़-पु० दे० 'उभार'। आदिकी मालिश करना ।
उभाड़ना-स० क्रि० दे० 'उभारना'। उबना*-अ० कि० ऊबना; ऊपर उठना ।
उभाना-अ० क्रि० अभुआना, सिर हिलाना और हाथउबरना-अ० क्रि० बचना, छुटकारा पाना; बाकी बचना। पैर पटकना। उबरी-स्त्री० दे० 'ओबरी'; एक तरहकी काश्तकारी। उभार-पु० उभरने, बढ़नेकी क्रिया या अवस्था, उठान, उबलना-अ० क्रि० खौलना, उफनना, जोश खाना । मु० बाढ़। -दार-वि० उभरा हुआ। उबल पड़ना-बद्ध होकर अंड-बंड बकना।
उभारना-स० क्रि० ऊपर उठाना, लाना; बढ़ाना; भड़उबहन (नी) -[स्त्री]0 कुएँसे पानी निकालनेकी रस्सी। काना; उकसाना।। उबहना-स० क्रि० ( तलवार आदि) खींचना; ऊपर | उभिटना*-अ०कि. हिचकना, अटकना । उठाना; उलीचना; जोतना। अ०कि. ऊपर उठना, उभे*-वि० दे० 'उभय' । उभरना । वि० बिना जूतेका ।
उमंग-स्त्री० उल्लास, मौज; जोश; उभार; आकांक्षा। उबाँत -स्त्री० के, उलटी।
उमँगना*-अ० क्रि० उमंगमें आना, उल्लसित हाना; उबाना-स० क्रि० ऊबनेका कारण होना, तंग, परेशान | जोश में आना। करना; * उगाना। पु० कपड़ा बुनने में राछके बाहर रह | उमग, उमगन*-स्थी० दे० 'उमंग' । जानेवाला सूत । * वि० नंगे पाँव ।
उमगना*-अ० कि० उमड़ना, जोशमें आना। उबार-पु० बचाव; छुटकारा; बचत; ओहार, पर्दा । उमगाना-स० कि० उमगनेका कारण होना; उत्साहित उबारना-स० क्रि० बचाना; छुड़ाना, उद्धार करना। करना। उबाल-पु० खौलकर ऊपर उठना, उफान, जोश; क्रोध | उमचना*-अ० क्रि० हुमचना; चौंकना। आदिका भड़क उठना।
उमड़-स्त्री० बाढ़ धावा; घिराव । उबालना-स० क्रि० खौलाना, जोश देना; पानीमें (बिना उमड़ना-अ० क्रि० बढ़कर फैलना; बह चलना; छाना; घी, मसालेके) पकाना।
जोशमें आना। मु०-घुमड़ना-घूम-घूमकर फैलना। उबासी-स्त्री० अँभाई।
उमदना*-अ० क्रि० दे० उमँगना। उबाहना-स० क्रि० दे० 'उबहना'
उमदा-वि० [अ०] दे० 'उम्दा'। उबिठना, उबीठना*-स० कि० अरुचि पैदा करना, उमदाना-अ० क्रि० मस्त होना; जोशमें आना । उबाना विरक्त करना । अ० क्रि० ऊबना, जी भर जाना। उमर-स्त्री० दे० 'उम्र'।-ऊद-स्त्री० जिंदगीभरकी कैद ।
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उमरती-उर्फ
उमरती*-स्त्री० एक बाजा।
'उर उरझाही'-राम। उमरा-पु० [अ०] धनिका सरदार सामंत (अमीरका बहु०)। उरझेर*-पु० झकोरा। उमराव*-पु० दे० 'उमरा' ।
उरण-पु० [सं०] मेढ़ा, भेड़ा; एक असुर (उरणी= भेड़)। उमस-स्त्री० दे० 'ऊमस' ।
उरद-पु० दालके वर्गका एक अनाज, माष । उमहना*-अ० कि० दे० 'उमड़ना'; उमंगमें आना। उरदावना-स्त्री० अदवान, उंचन । उमहाना-स० क्रि० उमड़ाना; उमाना।
उरदी-स्त्री० दे० 'उरद'; दे० 'वी' । उमा-स्त्री० [सं०] पार्वती दुर्गा; कांतिः कीर्ति ।-गुरु,- उरध-अ० वि०, अ० 'ऊर्ध्व'। जनक-पु० हिमाचल । -धव,-नाथ,-पति-पु० उरधारना*-स० क्रि० फैलाना, बिखराना; उधेड़ना । शिव । -धो-पु० दे० 'उमा-धव' ।
उरना*-अ० क्रि० दे० 'उड़ना' । उमाकना*-स० क्रि० दे० 'उखाड़ना।
उरबसी-स्त्री० दे० 'उर्वशी'; एक भूषण । उमाकिनी*-स्त्री० उखाड़नेवाली।
उरबी*-स्त्री० वे० 'उवीं' । उमाचना*-स० क्रि० उभारना, निकालना।
उरमना*-अ० क्रि० लटकना, झूलना। उमाद*-पु० दे० 'उन्माद'।
उरमाना*-स० क्रि० लटकाना, झुलाना । उमाह* -पु० उत्साह, उमंग; आनंद-'प्रगट करौ सब | उरमाल*-पु० रूमाल ।
चातुरी मनमें विपुल उमा'-चाचा हित०।। उरमी*-स्त्री० दे० 'ऊर्मि' । उमाहना-अ० क्रि० उमड़ना, उत्साहित होना, आवेशमें | उरला*-वि० पिछला; विरल, निराला। आना । स० कि.० उमड़ाना ।
उरविज*-पु० धरती-पुत्र, मंगल । उमाहल*-वि० उत्साह-भरा।
उरश्छद-पु० [सं०] छातीपर बाँधनेका कवच । उमेठन-स्त्री० ऐंठन, मरोड़।
उरस-वि० [सं०] चौड़ी छातीवाला; नीरस, सीठा। उमेठना-स०कि. मरोड़ना, ऐंठना ।
उरसना*-स० क्रि० उठाना-गिराना, ऊपर-नीचे करना । उमेठवाँ-वि० घुमावदार; ऐंठनवाला ।
उरसिज-पु० [सं०] स्तन, उरोज । उमेड़ना*-स० क्रि० दे० उमेठना' ।
उरस्त्राण-पु० [सं०] दे० 'उरश्छद'। उमेलना*-स० क्रि० प्रकट करना, खोलकर बताना। उरहन(ना)*-पु० दे० 'उलाहना' उम्दगी-स्त्री० [अ०] अच्छाई, खूबी ।
उरा*-स्त्री० धरती। उम्दा-वि० [अ०] अच्छा, बदिया, उत्तम ।
उराउ, उराय*-पु० दे० 'उराव' । उम्मीद-स्त्री० [फा०] आशा; अपेक्षा; आकांक्षा, इच्छा उराना*-अ० क्रि० खतम हो जाना, चुक जाना। गर्भ (ला०)। -वार-वि० आशा, अपेक्षा रखने- उरारा*-वि० प्रशस्त, फैला हुआ, विस्तृत । वाला; नौकरी या पदविशेषका प्रार्थी । पु० नौकरीकी उराव*-पु० उत्साह; चाह, उमंग, हौसला; आनंद । आशासे बिना वेतन काम करनेवाला; काम सीखनेवाला; उराहना-पु० दे० 'उलाहना' । स० क्रि०दे० 'ओगारना । चुनावके लिए खड़ा होनेवाला।
उरिन*-वि० दे० 'उऋण' । उम्मेद, उम्मैद-स्त्री० [फा०] दे० 'उम्मीद'।
उरु-वि० [सं०] विशाल, विस्तृत प्रचुर; बहुल; श्रेष्ठ । * उम्र-स्त्री० [अ०] वयस, अवस्था, आयु। मु०-का प्याला पु० दे० 'ऊरु' (जंघा) । -गाय-वि० बहुप्रशंसित; चलनेभर जाना-मृत्यु निकट होना ।
फिरनेके लायक बिस्तृत । पु० विष्णु; सोम; इंद्र; प्रशस्त उर (स)-पु० [सं०] छाती; हृदय, मन । मु०-आ- स्थान; स्तुति । नना*-छातीसे लगाना; सोचना, ध्यान करना । | उरुजना*-अ० क्रि० दे० 'उलझना' । -धरना-मनमें रखना। -लाना*-छातीसे लगाना; उरे*-अ० परे, दूर । सोचना, ध्यान करना।
उरेखना*-सक्रि० उरेहना; सोचना; देखना । उरई-स्त्री० खस।
उरेह-पु० चित्रकारी चित्र आलेखन । उरकना*-अ० कि० रुकना, ठहरना ।
उरेहना-स० क्रि० तसवीर बनाना, चित्र खींचना-पुनि उरग-पु० [सं०] (छातीके बल रेंगनेवाला) साँप, नाग। धनि सिंध उरेहै लागै'-प० ।
-भूषण-पु० शिव । -राज-पु० वासुकि शेषनाग। | उरांज-पु० [सं०] स्तन, कुच । उरगना*-स० क्रि० झेलना, अंगीकार करना ।
उरोरुह-पु० दे० 'उरोज'। उरगाद-पु० [सं०] गरुड़; मोर ।
उर्द-पु० दे० 'उरद'। उरगाय*-वि०, पु० दे० 'उरुगाय' ।
उर्दू -पु० [तु०] लश्कर; छावनी । स्त्री० हिंदी या हिंदुउरगारि, उरगाशन-पु० [सं०] गरुड़, मोर ।
स्तानीका वह रूप जिसमें अरबी-फारसी शब्द अधिक व्यवउरगिनी*-स्त्री० सर्पिणी।।
हृत होते हैं और जो फारसी अक्षरों में लिखा जाता है। उरगी-स्त्री० [सं०] मादा साँप, सर्पिणी
-ए मुल्ला-स्त्री० उच्च उर्दू, टकसाली उर्दु ।-बाजारउरज, उरजात*-पु० दे० 'उरोज' ।
पु० लश्करका बाजार; वह बाजार जहाँ सब चीजें मिलें। उरझना*-अ० क्रि० दे० 'उलझना' ।
उर्ध*-वि०, अ० दे० 'ऊर्ध्व'। उरझाना*-स० कि० दे० 'उलझाना' । अ० क्रि० फँसना- उर्फ-पु० [अ०] अधिक प्रचलित नाम, पुकारनेका नाम ।
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उर्मि-उलेल उर्मि-स्त्री० दे० 'ऊमि'।
बायें हो; औंधा; विपरीतकम; असमान; जो होना चाहिये उर्वर-वि० उपजाऊ, जिससे बहुतसे विचार, सुझाव आदि | उसके विपरीत, बेठीक, बेढंगा; विरुद्ध; बर-अकश । अ० निकलें (मस्तिष्क)।
जैसे होना चाहिये उसके विपरीत, अनुचित रूपमें, बेजा उर्वरक-पु० (फर्टिलाइजर) बह रासायनिक खाद जो तौरपर । पु० एक पकवान, बेसनका पराठा ।-ज़मानाभूमिकी उर्वरता बढ़ाने में सहायक हो।
पु. वह काल जिसमें उलटी रोति चलती हो, अंधेरका उर्वरता-स्त्री० उपजाऊपन ।
जमाना। -तवा-वि० (ला०) बहुत काला । उलटाउर्वरा-स्त्री० [सं०] उपजाऊ, जरखेज जमीन; जमीन । पलटा,-पुलटा-वि० अंडबंड, बेसिर-पैरका। -सीधाउर्वशी-स्त्री० [सं०] इंद्रलोककी एक प्रसिद्ध अप्सरा। वि० सही-गलत; अच्छा-बुरा । मु. उलटी खोपड़ीकाउर्विजा*-स्त्री० दे० 'उवीजा'।
मूर्ख, नासमझ, उलटी अक्लवाला। -गंगा बहानाउ:-स्त्री० [सं०] पृथ्वी, जमीन । -जा-स्त्री० पृथ्वीसे उलटीरीति चलाना; रीतिविरुद्ध बात करना । -पट्टी उत्पन्न, सीता। -तल-पु० धरातल, पृथ्वीकी सतह । पढ़ाना-बहकाना । -माला फेरना-मारण आदिका -धर-पु० पर्वत; शेषनाग । -धव,-पति-पु० राजा। प्रयोग करना; बुरा मनाना; कोसना। -सॉस चलना-रुह-पु० पौधा, वृक्ष ।
दम उखड़ना; मरणासन्न होना । -साँस लेनाउर्वीश, उर्वीश्वर-पु० [सं०] राजा ।
जल्द-जल्द साँस लेना; मरणासन्न होना। -सीधी उर्स-पु० [अ०] किसी मुसलमानसाधु-संतकी निधनतिथि- सुनाना-खरी-खोटी सुनाना, फटकारना । -हवा को मनाया जानेवाला उत्सव ।
बहना-उलटी रीति चलना। -उलटे काँटे तौलनाउलंग-वि० नंगा।
कम तौलना । -छुरेसे मूंड़ना-बेवकूफ बनाकर पैसा उलंगना, उलंघना*-स० क्रि० लाँधना, उल्लंघन करना; ऐंठना । -पाँव फिरना,-पाँव लौटना-तुरत लौटना । न मानना।
-मुँह गिरना-दूसरेकी क्षति करनेके प्रयत्नमें अपनी उलका*-स्त्री० दे० 'उल्का'।
क्षति कर लेना। उलछना*-स० कि० उलीचना; छितराना, फैलाना। उलटाना-स० क्रि० दे० 'उलटना' । उलछारना*-स० क्रि० ऊपरकी तरफ फेंकना, प्रकट उलटाव-पु० चक्कर; पलटाव । करना।
उलटी-स्त्री० कै, वमन, मालखंभकी एक कसरत । उलझन-स्त्री० फँसाव; गुत्थी; कठिनाई; चिंता, सोच . उलटे-अ० जैसा होना चाहिये उसके विपरीत, बेजातौरपर । उलझना-अ० क्रि० तागा, डोरी आदिका गुँथ जाना; उलथना*-अ० क्रि० उलटना; उछलना । स० क्रि० उलटलिपटना झगड़ा, तकरार करना आसक्त होना; लीन या| पलट करना। मशगूल होना; अटक जाना। उलझा-सलमा-वि० उलथा-पु० करवट बदलनाः बठे-बैठे अंगीको मोड़ना; टेढ़ा-सीधा; बुरा-भला।
कलाबाजी; दे० 'उल्था । उलझाना-स० क्रि० फँसाना; गुत्थियाँ डाल देना; अट- उलद*-स्त्री० झड़ी, लगातार वर्षा । काना लगाये रखना । * अ० क्रि० उलझना।
उलदना*-स० क्रि० उड़ेलना; बरसाना । उलझाव-पु० उलझन; बखेड़ा फेर ।
उलफत-स्त्री० [अ०] प्रेम, मुहब्बत, चाह । उलझौहा*-वि० उलझानेवाला; फँसाने, लुभानेवाला।। उलमना*-अ० क्रि० दे० 'उरमना। उलटना-अ० क्रि० सीधेका औंधा होना; एकसे दूसरे उलरना*-अ० क्रि० ऊपर-नीचे होना; उछलना झपटना । रुख होना; विपरीत स्थितिमें जाना; पलटना; धूमना,
उलरुआ-पु० गाड़ीको उलार होनेसे रोकनेके लिए पीछेकी मुड़ना; उमड़ना; टूट पड़ना; कुछका कुछ हो जाना, बिल- ओर लगायी जानेवाली लकड़ी। कुल बदल जाना; अस्त-व्यस्त होना; के करना नष्ट होना; उललना*-अ० क्रि० ढरकना; उलटना । चित होना; बेहोश होना; मरना; गर्वसे बदल जाना |
उलसना*-अ० क्रि० शोभित होना; प्रसन्न होना। ऐंठना। सक्रि० नीचेका ऊपर कर देना एकसे दसरे कख उलहना*-अ० कि० फूटना निकलना; खिलना, हुलकरना, पलटना; चित करना; नष्ट करना; बदल देना;
सना । पु० दे० 'उलाहना'। कुछका कुछ कर देना; बात दुहराना; उड़ेलना; खोद-उलाँघना*-स० कि० लाँधना; आज्ञाका उल्लंघन करना । कर फेंक देना; रटना; बोये खेतको फिरसे बोनेके लिए। उलारी-वि० पीछेकी ओर (अधिक बोझसे) झुका हुआ। जोतना; सरसरी तौर पर देखना या पढ़ना । -पलटना- | उलारना*-स० क्रि० उछालना; ओलारना । सक्रि० ऊपरसे नीचे, इस बलसे उस बल करना; अस्त- उलाहना-पु० किसी व्यवहार, बरतावकी शिकायत, उपाव्यस्त करना; कुछका कुछ कर देना । अ० क्रि० इस बलसे | लभ । * स० कि० दोष देना, गिला करना । उस बल होना, पलटे खाना ।
उलिचना, उलीचना-स० क्रि० (पानी) बाहर फेंकना। उलट-पलट, उलट-पुलट-पु० अदल-बदल, परिवर्तन; उलक-पु० [सं०] उल्लू पक्षी, घुग्घू; इंद्र; * लुक, उस्का।
गड़बड़ा अस्त-व्यस्तता । वि० अस्त-व्यस्त; परिवर्तित। -दर्शन-पु० वैशेषिक दर्शन । उलट-फेर-पु० उलट-पलट, परिवर्तन ।
उलूखल-पु० [सं०] ओखली; खल । उलटा-वि० जो स्वाभाविक स्थितिमें न होकर विपरीत | उलेडना, उलैंडना*-स० क्रि० उड़ेलना। स्थिति में हो, जिसका ऊपरका भाग नीचे या दाहिनेका उलेल*-पु०बाद उमंग उछल-कूद । वि०लापरवाह; अबोध ।
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उल्का - स्त्री० [सं०] लुक; लौ; रातमें आकाशसे टूटकर गिरनेवाला प्रकाशमय पिंड या तारा; मशाल । -धारी (रिन् ) - पु० मशालची । -पात-पु० आकाशसे जलते fuser टूटकर गिरना । - पाषाण-पु० जमीनपर गिरी हुई उल्का जो पत्थरकी सिल-जैसी हो ( मीटियर स्टोन) । - मुख- पु० प्रेतोंका एक भेद, अगियाबैताल; गीदड़ । उल्था - पु० भाषांतर, तर्जुमा; अनुवाद |
उल्लंघित - वि० [सं०] लाँधा हुआ; तोड़ा हुआ; अतिक्रांत । उल्लसन - पु० [सं०] उल्लसित होना; हर्ष; रोमांच, पुलक । उल्लसित - वि० [सं०] हर्षयुक्त, मुदित; चमकता हुआ । उल्लाला - पु० एक मात्रिक छंद । उल्लास - पु० [सं०] हर्ष; आह्लाद; उमंग; आरंभ; कांति; प्रकाश; परिच्छेद; वह अर्थालंकार जहाँ किसीके गुण या दोष से किसी दूसरेका गुण या दोष होना दिखलाया जाय । उल्लासना * - स० क्रि० प्रकट करना; प्रसन्न करना । उल्लिखित - वि० [सं०] लिखा हुआ; पूर्वकथित; वर्णित । उल्लू - पु० एक पक्षी जिसे दिनमें नहीं दिखाई देता और जो बहुत मनहूस माना जाता है, उलूक । वि० मूर्ख, नासमझ । मु० - का गोश्त खिलाना - बेवकूफ बनाना; वश में कर लेना । - का पट्टा - निपट मूर्ख । -बनानाबेवकूफ बनाना; ठगना । -बोलना- उजड़ जाना, वीरान होना ।
उणमा (मन्) - स्त्री० [सं०] गरमी । उष्णीष-पु० [सं०] पगड़ी, साफा; मुकुट |
उल्लंघन - पु० [सं०] लाँधना; विरुद्धाचरण; (आज्ञा, नियम उष्म- पु० [सं०] गरमी; ऊमस; धूप, ग्रीष्म ऋतु; जोश ।
आदिको तोड़ना |
- ज - पु० पसीने या मैलसे पैदा होनेवाले कीड़े-जूँ, खटमल आदि ।
उल्लंघना* - स० क्रि० उल्लंघन करना |
उष्मा (मन्) - स्त्री० [सं०] ताप; वाप; ग्रीष्म ऋतु; जोश । उसकन - पु० बरतन माँजनेका तृणादिका मुट्टा । उसकाना, उसकारना* - स० क्रि० उभाड़ना; चला देना; ऊपर उठना ।
उल्लेख- पु० [सं०] चर्चा, जिक्र; वर्णन; खुदाई; वह अर्था लंकार जहाँ एक ही वस्तुका विषयभेद या द्रष्टाभेद के कारण अनेक प्रकार से वर्णन किया जाय । उल्लेखनीय, उल्लेख्य - वि० [सं०] उल्लेख करने योग्य; कहने योग्य, बताने योग्य ।
उल्व - पु० [सं०] गर्भस्थ बच्चेपर लिपटी रहनेवाली झिल्ली, आँवल ।
उवना* - अ० क्रि० दे० 'उगना' |
उवनि * - स्त्री० उदयः प्रकट होना ।
उशी (पी) र, उशी (पी)रक - पु० [सं०] खस । उषः ( प ) - स्त्री० [सं०] भोर, तड़का, भोरकी लाली । - काल - पु० भोर, तड़का -पान-५० बहुत सबेरे उठकर नाकके द्वारा पानी पीना ।
ऊ - देवनागरी वर्णमालाका छठा (स्वर) वर्ण । ॐध-स्त्री० नींदका झोंका, निद्रागम; तंद्रा, झपकी । ऊँघन - स्त्री० झपकी, हलकी नींद ।
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उल्का - ऊँच
का, अधिक गरम, भाग। -कर,-दीधिति - पु० सूर्य । उष्णता स्त्री०, उष्णत्व - पु० [सं०] गरमी । उष्णांक - पु० [सं०] (कैलरी) तापकी वह मात्रा जो एक ग्राम पानोको एक अंश सेंटीग्रेटतक गरम बनानेके लिए आवश्यक हो ( तापमापक इकाई) ।
उषा - स्त्री० [सं०] भोर, प्रत्यूषः तड़का; भोरकी लाली; बाणासुर की कन्या जिसका ब्याह अनिरुद्ध से हुआ था । उष्ट्र - पु० [सं०] ऊँट । - यान-५० ऊँट-गाड़ी | उष्ट्रिका, उष्टी-स्त्री० [सं०] ऊँटनी ।
उष्ण- वि० [सं०] गरम गरम तासीरवाला; तीखा । - कटिबंध- पु० पृथ्वीका कर्क और मकर रेखाओंके बीच
|उसारा - पु०, उसारि - स्त्री० सायबान, बरामदा । उसास - स्त्री० दे० 'उसाँस' |
उसाखी * - स्त्री०छनभर सुस्ताने की मुहलत - ' जाने को केशव केतिक बार मैं सेसके सीसन्ह दीन्ह उसासी' - राम० । उसिनना - स० क्रि० दे० 'उसनना' । उसीर *-५० दे० 'उशीर' ।
उसीला * - पु० वसीला; सहायक - 'साहब कहूँ न रामसे तोसे न उसीले'- विनय० । उसीस (सा)* -
* - पु० सिरहाना; तकिया ।
उसनना-स० क्रि० उबालना, पकाना । उसनाना - स० क्रि० उसननेके कार्य में लगाना, उबलवाना। उसनीस* - पु० दे० 'उष्णीष' ।
उसरना* - अ० क्रि० घटना; अलग होना; बीतना; भूलना । उसलना* - अ० क्रि० दे० 'उसरना'; पानी में उतराना । उससना * - अ० क्रि० साँस लेना; उसाँस लेना; खिसकना । उसाँस - स्त्री० ऊपरको खींची हुई या लंबी साँस; दुःखसूचक साँस; साँस ।
उसाना-स० क्रि० दे० 'ओसाना' ।
|
उसार (ल) ना*[* - स० क्रि० उखाड़ना; भगाना; + मकान या दीवार आदि खड़ी करना ।
उसूल - पु० [अ०] नियम, कायदा; सिद्धांत ('असल' का बहु ० ) । उसूली - वि० [अ०] उसूलका; सैद्धांतिक । उस्तरा - पु० दे० 'उस्तुरा' |
उस्ताद - पु० [अ०] गुरु; शिक्षक । वि० प्रवीण; विश; धूर्त । उस्तादी - स्त्री० [अ०] गुरुआई; प्रवीणता; चालाकी । उस्तानी - स्त्री० [अ०] गुरुआनी; शिक्षिका; धूर्त स्त्री । उस्तुरा - पु० [फा०] छुरा, बाल मूँड़नेका औजार । उस्वास * - स्त्री० दे० 'उसाँस' । उहाँ*
* - अ० वहाँ ।
| उहार-५० पालकी आदिपरका परदेका कपड़ा ।
ऊ
ऊँघना - अ० क्रि० नींद में झूमना, उनींदा होना; ढिलाईसे काम करना ।
ऊँच * - वि० ऊँचा; बड़ा; कुलीन, ऊँची जातिका । -नीच
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ऊँचा-ऊमक
११८ वि० छोटा-बड़ा; कुलीन-अकुलीन; भला-बुरा ।
ऊढा-स्त्री० [सं०] विवाहिता स्त्री; परकीया नायिकाका ऊँचा-वि० ऊपरकी ओर अधिक उठा हुआ, बुलंद लंबाई | एक भेद । या अर्जमें छोटा, उटंगा; बड़ा, श्रेष्ठ, उच्च, उदात्त; जोरका ऊत-वि० निपूता; बेवकूफ । पु० निःसंतान व्यक्ति । पद-प्रतिष्ठा में बड़ा सम्मानित ।-नीचा-वि० ऊबड़-खाबड़; उतर*-पु० बहाना; दे० 'उत्तर' । भला-बुरा । मु०-नीचा सुनाना-भला-बुरा कहना । | उतला*-वि० उतावला; तेज । -सुनना-केवल जोरसे कही हुई बात ही सुन सकना, | ऊद-पु० [अ०] अगर बरबत नामका बाजा; ऊदबिलाव । अर्ध-बधिर होना। ऊँची दुकान फीका पकवान- -बत्ती-स्त्री० एक तरहकी अगरबत्ती। नामके अनुरूप काम, गुण आदि न होना।
ऊदबिलाव-पु. नेवलेकी शकुका एक उभयचर जंतु । ऊँचाई-स्त्री० ऊँचा होना, बुलंदी, बड़ाई।
वि० मूर्ख, बुद्ध । ऊँचे-अ० ऊँचाई पर, ऊपरकी ओर ।
उदा-वि० बैंगनी रंगका । पु० बैंगनी रंगका घोड़ा । ऊँछना*-स० क्रि० कंघी करना।
ऊदी-वि० [अ०] ऊदका; ऊदके रंगका। पु० ऊदी रंग। ऊँट-पु० बोझ ढोने तथा सवारीके काम आनेवाला एक | ऊधम-पु० शोरगुल, हंगामा; उत्पात । जानवर जो गरम और रेगिस्तानी प्रदेशोंमें अधिकतर पाया | उधमी-वि० ऊधम मचानेवाला; उत्पाती। जाता है, उष्ट्र ।-कटारा,-कटीरा-पु० एककँटीली झाड़ी
| उधव, ऊधो*-पु० दे० 'उद्धव'। जिसे ऊँट बड़े चावसे खाते हैं। -वान-पु० ऊँट चलाने ऊन-पु० भेड़, दुबे आदिका कोमल रोम जिसका कपड़ा वाला । मु०-किस करवट बैठता है-देखिये, मामलेका | बनता है । वि० [सं०] न्यून, थोड़ा; छोटा; घटिया । मु०क्या नतीजा होता है। -की चोरी और नीचे-नीचे | मानना-दिल छोटा करना, दुःखी होना। (झुके झुके)-न छिपनेवाली बातको छिपानेकी कोशिश। ऊना-वि० दे० 'ऊन'। -के गले में बिल्ली-बेमेल, असंगत बात । -के मुंह में ऊनी-वि० ऊनका बना, पशमी । स्त्री० कमी; ग्लानि । जीरा-अधिक खानेवाले या आवश्यकतावालेको थोड़ी- ऊप*-स्त्री० दे० 'ओप' । पु० अन्नका अन्नके ही रूपमें सी चीज देना ।-निगल जाय, दुमसे हिचकियाँ-बड़ी दिया जानेवाला ब्याज । बड़ी बातें कर जाना और छोटी में अटकना।
ऊपना*-अ० क्रि० उपजना । ऊँटनी-स्त्री० मादा ऊँट । -सवार-पु० साँड़नी-सवार ।। ऊपर-अ० ऊँचाईपर; आकाशकी ओर; नीचेके विरुद्ध ऊँडा*-पु० वह बरतन जिसमें रुपये आदि रखकर गाड़ | कोठे या छतपर, ऊपरकी मंजिलमें सहारे सिरपर, जिम्मे दिये जायें तहखाना।
बड़े या ऊँचे दरजेमें; (लेखादिमें) पहले; अधिक; अतिरिक्त ऊंदर*-पु० चूहा।
जाहिरा, प्रकटमें; किनारेपर। -ऊपर-अ० ( वक्तासे) ॐ -अ० नहीं; कदापि नहीं।
बिना जताये, बाला-बाला; जाहिरा। -ऊपरसे-जाहिरा, ऊ-पु० [सं०] शिव चंद्रमा । * अ० भी । *सर्व वह । प्रकटमें ।-की आमदनी-वेतन आदिकी बँधी आमदनीसे ऊअना*-अ० क्रि० उदय होना, उगना।।
अतिरिक्त आय, बालाई आमदनी। मु०-की दोनों ऊआबाई*-वि० व्यर्थ, बेसिर-पैरका। स्त्री निरर्थक बात। जाना*-दोनों आँखे फूट जाना। -तलेके-आगे-पीछे ऊक*-पु० लुक, उल्का । स्त्री० जलना; आँच;चूक, गलती। होनेवाले, तरपरिया। -लेना-सिरपर या जिम्मे लेना । ऊकना-अ०क्रि० चूकना । स० कि० छोड़ना; भूलना; -से-ऊँचाईसे,"के अतिरिक्त, अलावा; इधर-उधरसे; तपाना; जलाना-'लूक वसंतकी ऊकन लागी'।
जाहिरा। -होना-पद या अधिकार में बड़ा होना; ऊकार-पु० [सं०] 'ऊ' अक्षर या उसकी ध्वनि ।
प्रधान होना। ऊख-पु०, स्त्री० दे० 'ईख' । * वि० गरम, तप्त । ऊपरी-वि० ऊपरका, बालाई; बाहरी दिखाऊ ।-फसाद, ऊखम -पु० दे० 'ऊष्म'।
-फेर-पु०प्रेतबाधा। ऊखल-पु० दे० 'ओखली'; एक तरहकी घास ।
ऊब-स्त्री० ऊबनेका भाव, उकतान; * उमंग; उत्साह । ऊगना*-अ० क्रि० दे० 'उगना' ।
ऊबट*-वि० ऊबड़-खाबड़ा कठिन । पु० ऊबड़-खाबड़ ऊज*-पु० अंधेर, उपद्रव, उत्पात ।
रास्ता। ऊजद-वि० उजाड़, वीरान ।
ऊबड़-खाबड़-वि० ऊँचा-नीचा, अटपटा । ऊजर*-वि० दे० 'उजला'; दे० 'ऊजड़।
ऊबना-अ० क्रि० देरतक एक ही स्थितिमें रहने, एक ही ऊजरा*-वि० दे० 'उजला'।
चीजको देखते-सुनते रहनेसे मनका उकता जाना, घबराना; ऊटक-नाटक-पु० अललटप्पू , अनिश्चित काम ।
गरमाना 'मोरी कमरिया पाँच टकाकी सबरी ऊबै देह'ऊटना*-अ० क्रि० जोशमें भरना; सोच-विचार करना। | बुंदेल, वै०। ऊटपटाँग-वि० बेतुका, असंगत, बेसिर-पैरका, निरर्थक ।
ऊबर*-वि० ज्यादा। उड़ना*-स० क्रि० ब्याह करना।
उबरना*-अ० कि० दे० 'उबरना'। उड़ा*-पु० टोटा, अभाव; महँगी।
ऊभ*-वि० ऊँचा । स्त्री० ऊमस बेचैनी; उत्साह । उड़ी-स्त्री० पनडुब्बी चिड़िया; गोता ।
ऊभना*-अ० क्रि० खड़ा होना, उठना; ऊबना । उढना-अ० क्रि० अनुमान करना; सोचना; * विवाह ऊभासाँसी-स्त्री० दम फूलना, ऊबना। करना।
ऊमक*-स्त्री० झपट, झोंक, वेग ।
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ऊमना-ऋण
जमना*-अ० क्रि० उमड़ना ।
एक ताल । -दृष्टि-वि० ऊपरको देखनेवाला; महत्त्वाउमर-पु० गुलर; एक वैश्य जाति ।
कांक्षी । स्त्री० त्रिकुटीपर दृष्टि जमानेकी क्रिया (यो०)। ऊमस-स्त्री० हवा न चलनेसे मालूम होनेवाली गरमी, -नेत्र-वि० ऊपरकी और देखनेवाला; महत्त्वाकांक्षी। बरसातकी गरमी, हब्स ।
-पतन-पु० (सबलिमेशन) स्थूलसे एकदम वायुमें, ऊमहना*-अ० क्रि० उमंगमें आना; धिरना
बिना बीचकी तरल अवस्थाको पार किये, परिणत होना। ऊर*-पु० ओर, अंत ।
-पाद-वि०, पु० दे० 'ऊर्ध्वचरण'। -पुंड-पु० खड़ा उरज-पु० दे० 'ऊर्ज'।
तिलक, वैष्णव या रामानंदी तिलक। -बाहु-पु० वह ऊरध-वि०, अ० दे० 'ऊर्ध्व' ।
साधु या तपस्वी जो अपनी एक बाँहको सदा ऊपर उठाये उरु-पु० [सं०] जाँघ, रान। -जन्मा (न्मन),- रहे । -बिंद-पु० (जेनिथ) सिरके ठीक ऊपरका सबसे संभव-वि० जाँघसे उत्पन्न | पु० वैश्य । -स्तंभ-पु० ऊँचाईका स्थान या बिंदु, 'शीर्षविंदु'; चरमसीमा। -मुखएक रोग, जाँघों और पैरोंका जकड़ जाना।
वि० जिसका मुंह ऊपर की ओर हो।-रेता (तस)-वि० ऊर्ज-वि० [सं०] बली, शक्तिशाली; बलकारक, शक्तिदायक । वीर्यपात न होने देनेवाला, नैष्ठिक ब्रह्मचारी। पु० शिव; पु० बल; उत्साह; चेष्टा; उद्यम; जीवन; जननशक्ति प्राण; भीष्म पितामह; हनूमान् ।-लोक-पु० आकाश; स्वर्ग । अन्नका अत्यंत सारभूत रम; अन्न; जल; कात्तिक मास; -श्वास-पु० ऊपरको चढ़नेवाली साँस, उलटो साँस । अर्थालंकारका एक भेद ।
ऊर्धारोहण-पु० [सं०] स्वर्गगमन, मृत्यु । ऊर्जस्वल-वि० [सं०] बलवान; तेजस्वी श्रेष्ठ; उत्कृष्ट । ऊर्मि-स्त्री० [सं०] लहर, तरंग प्रवाह; प्रकाश; कपड़ेकी ऊर्जस्वी (स्विन्)-वि० [सं०] दे० 'ऊर्जस्वल' ।
शिकन खेद । -माला-स्त्री० तरंगावली, तरंगोंकी एक ऊर्जित-वि० [सं०] ओजस्वी (भाषण); बलवान्, शक्ति- श्रेणी; एक वृत्त । शाली; समृद्ध गंभीर; तेजस्वी; श्रेष्ठ ।
ऊर्मिमान् (मत्)-वि० [सं०] तरंगित; टेढ़ा; धुंधराले उर्ण-पु० [सं०] ऊन; ऊनी कपड़ा।
(केश)। ऊर्णायु-वि० [सं०] ऊनी । पु० भेड़ा, मकड़ा; ऊनी कंबल।। ऊलजलूल-वि० बेढंगा; बेसिर-पैरका; अनाड़ी; अशिष्ट । ऊर्णावान् (वत्)-वि० [सं०] ऊनी।
उलना*-अ० क्रि० उछलना । ऊर्ध्व-वि० [सं०] ऊँचा; सीधा; उठाया हुआ; खड़ा; बिख-| उलूक-पु० [सं०] दे० 'उलूक'। राये हुए (बाल); ऊपर फेंका हुआ। अ० ऊपर ऊपरकी ऊषा-स्त्री [सं०] दे० 'उपा'। ओर आगे; बाद । पु० ऊँचाई; ठीक ऊपरकी दिशा। ऊष्म-पु० [सं०] गरमी; ताप; गरमीका मौसम । वि. -कंठ-वि०जिसकी गरदन उठी हो। -कच,-केश- गरम ।-ज-पु० जूं आदि क्षुद्रकीट। वि० गरमीसे उत्पन्न । वि० जिसके बाल खड़े या बिखरे हों। पु० केतु । -कर्ण -वि० जिसके कान उठे हों। -गति-स्त्री० ऊपरकी और उष्मा(मन)-स्त्री० [सं०] गरमी; भाप; ग्रीष्म काल; जाना; वृद्धिकी ओर जानेकी प्रवृत्ति (अपवर्ट टेड)। वि० आवेश; उग्रता। ऊपरकी ओर जानेवाला । -गामी (मिन)-वि० ऊपर- ऊसर-पु० वह जमीन जिसमें रेह हो और कुछ पैदान हो। की ओर जानेवाला; पुण्यात्मा । -चरण-वि० जिसकी ऊह-पु० [सं०] अनुमान; तर्क-वितर्क । टाँगें ऊपर की ओर उठी हों, सिरके बल खड़ा (साधु) । पु० ऊहा-स्त्री० [सं०] दे० 'ऊह' । -पोह-पु० प्रश्नविशेषके शरभ नामक एक पौराणिक जंतु । -ताल-पु० संगीतका पूर्व और उत्तर दोनों पक्षोंपर विचार करना; तर्क-वितर्क ।
R
ऋ-देवनागरी वर्णमालाका सातवाँ (स्वर) वर्ण ।
अनुकूल; हितकर । -कोण-पु० (स्ट्रेट एंगिल) वह कोण ऋक(च)-स्त्री० [सं०] ऋचा, वेदमंत्र ऋग्वेद ।
जो दो समकोणोंके बराबर हो। ऋक्थ-पु० [सं०] धन; उत्तराधिकार में मिलनेवाली संपत्ति, ऋजुता-स्त्री० [सं०] सीधापन, सिधाई; सचाई; सरलता। वरसा, बपौती। -ग्राह-भागी (गिन्)-पु० ऋक्थ ऋण-पु० [सं०] कर्ज, देना, उधार ली हुई रकम; एहसानका पानेवाला, वारिस ।
बोझ घटाने या बाकीका चिह्न (ग०)। वि० ऋणरूप, ऋक्ष-पु० [सं०] रीछ, भल्लुक तारा, नक्षत्र ।-नाथ,- ऋणात्मक (नेगेटिव)। -कर्ता(त)-वि० कर्ज लेनेवाला । पति,-राज-पु० चंद्रमा; जांबवान् ।
-ग्रस्त-वि० कर्जमें फँसा हुआ। -ग्राही(हिन)-वि० ऋक्षेश-पु० [सं०] चंद्रमा ।
कर्ज लेनेवाला। -च्छेद-पु० कर्ज अदा करना ।-श्रयऋग्वेद-पु० [सं०] चारों वेदोंमेंसे एक जो पहला और पु० देव ऋण, ऋषि-ऋण और पितृ ऋण । -दास-पु० प्रधान माना जाता है।
वह दास जो उसका ऋण चुकाकर खरीदा जाय । -पत्रऋग्वेदी(दिन)-वि० [सं०] ऋग्वेदका ज्ञाता या पहनेवाला; पु० तमस्सुक, रुक्का (बांड)। -परिशोधकोष-पु. जिसके संस्कार ऋग्वेदके अनुसार होते हों।
(सिकिंग फंड) राज्य या संस्थाविशेषके ऋणके क्रमिक परिऋचा-स्त्री० [सं०] वेदमंत्र; ऋग्वेदका मंत्र ।
शोध(अदायगी)के उद्देश्यसे समय-समय पर पृथक रूपसे ऋजु-वि० [स०] सीधा, सरल, कुटिलतारहित; सच्चा | जमा की जानेवाली धनराशि, निक्षेप-निधि । -परि.
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ऋणात्मक-एक
१२०
समापन-पु० (लिक्विडेशन ऑफ डेट) ऋण पूरा-पूरा संभोग । -नाथ,-पति-पु० वसंत । -फल-पु० ऋतुचुका देना, बेबाक कर देना ।-बंधनपत्र-पु० (प्रो-नोट)। विशेषमें होनेवाला फल । -राज-पु. वसंत ऋतु । वह पत्र या रुक्का जो ऋण लेनेवाला शोंके साथ रसीदके -विज्ञान-पु० वायुमंडल में होनेवाले परिवर्तनोंका विज्ञान तौरपर लिखता है, हैडनोट । -मक्त-वि० जिसने ऋण जिसके आधार पर वर्षा, तूफानका अनुमान किया जाता चुका दिया हो, उऋण । -मुक्ति-स्त्री०, -मोक्ष-पु० है (मीटियरालोजी)। -विपर्यय-पु० ऋतुके विपरीत (री.पशन) ऋणसे छुटकारा पाना, ऋणका चुकाया | बात होना। -स्नाता-स्त्री० ऋतुस्नान करके शुद्ध हुई जाना। -लेख्य-पु०ऋणपत्र । -विद्युत्-स्त्री० विकर्षण स्त्री। -स्नान-पु० रजोदर्शनके बाद चौथे दिन किया
करनेवाली बिजली । -विद्य दणु-पु. ( इलेक्ट्रान)| जानेवाला स्नान। ऋण-विद्युत् शक्तिकी अवि भाज्य इकाई स्वरूप वे कण ऋतुमती-वि० स्त्री० [सं०] रजस्वला । जो परमाणु (ऐटम )के धनविद्युत् शक्तिकणके चारों ऋविज-पु० [सं०] यश करानेवाला । तरफ, सूर्यमंडलके ग्रहोंकी तरह घूमते हैं।-शुद्धि ऋद्ध-वि० [सं०] खुशहाल, धन-धान्यसे संपन्न । -स्त्री० ऋणका अदा होना । -शोधन-पु० ऋण ऋद्धि-स्त्री० [सं०] संपन्नता; वृद्धि, बढ़ती, उत्कर्ष गौरव चकाना। -संपिंडन-पु० (कॉनसॉलिडेशन ऑफ डेट) सफलता; पार्वती, लक्ष्मी, पत्ली। -सिद्धि-स्त्री० धनबहुतसे ऋणोंको मिलाकर एक कर देना, ऋणकी छोटी- दौलत और सफलता । छोटी रकमोंको मिलाकर एक बड़े पिंड या राशिमें परिणत ऋनिया, ऋनी-वि० दे० 'ऋणी'। कर देना। -स्थगन-पु० (मॉरेटोरियम) बैंकों आदि | ऋषभ-पु० [सं०] बैल; संगीतके सात स्वरोंमेंसे दूसरा । द्वारा (उच्च न्यायालयके या सरकारके आदेशसे) लोगांका | वि० उत्तम श्रेष्ठ (समासांतमें-पुरुषर्षभ, भरतर्षभ पावना या ऋण चुकाना अस्थायी रूपसे बंद कर दिया जाना । मु०-उतारना-कर्ज अदा करना। -चढ़ना- ऋषभी-स्त्री० [सं०] गाय; वह स्त्री जिसे मछ, दाढी या कर्ज होना। -पटाना-धीरे-धीरे कर्ज अदा करना। और कोई पुरुष-चिह्न हो विधवा । ऋणात्मक-वि० [सं०] ऋणरूप (नेगेटिव ।
ऋषि-पु० [सं०] मंत्रद्रष्टा, वेदमंत्रोंका साक्षात्कार और ऋणापनोदन-पु० [सं०] कर्ज चुकाना ।
प्रकाशन करनेवाला; बहुत बड़ा तपस्वी, मुनि; प्रकाशऋणी(णिन्)-वि० [सं०] कर्जदार, अधमर्ण; उपकृत ।। किरण; ७की संख्या। -ऋण-पु० मनुष्यका ऋषियोंके ऋतु-स्त्री० [सं०] वर्षके वर्षा, शरद् आदि छ: विभाग, प्रति कर्तव्य । (वेद पढ़ने-पढ़ानेसे इससे मुक्ति मिलती है)। मौसमः किसी चीजके होनेका नियत काल; रजःस्राव -कल्प-वि० ऋषितुल्य । -कुल-पु० ऋषिका वंश; ६की संख्या । -काल-पु० रजोदर्शनके बादकी १६ रातें ऋषिका आश्रम; वह विद्यालय जहाँ ब्रह्मचारियोंको विद्या जिनमें स्त्रीके गर्भधारणकी अधिक सम्भावना रहती है। पढ़ायी जाय। -पंचमी-स्त्री० भादों सुदी पंचमी । -चर्या-स्त्री० ऋतुविशेषके अनुकूल आहार-बिहार। ऋष्यशृंग-पु० [सं०] एक ऋषि जिन्हें दशरथ-कन्या शांता -दान-पु० ऋतुलाता पत्नीके साथ संतान-कामनासे | ब्याही थी।
ए-देवनागरी वर्णमालाका ८ वाँ (स्वर) वर्ण ।
एक, बारी-बारीसे। -कलम-अ० [हिं०] एकबारगी; एँच-पँच-पु० उलझन, पेच-पाच; चक्कर; चाल-घात । पूरे तौरसे। -कालिक,-कालीन-वि० एक ही बार एंडा-बड़ा-वि० उलटा-सीधा ।
होनेवाला; एक बारका; समकालीन । -गाछी-स्त्री० एँ.डुआ-पु० गेंडुरी, कुंडली।
[हिं०] एक ही पेड़के तनेसे बनायी गयी नाव । ए-पु० [सं०] विष्णु । * सर्व० यह ।
-चश्म-वि० [हिं०] काना। पु० वह तसवीर एकंगा-वि० एकतरफा, एक ओरका ।
जिसमें चेहरेका एक ही रुख और एक आँख दिखाई दे । एकड़िया-वि० जिसमें एक ही अंड वा गांठ हो । पु० एक, -चश्मी-षि० [हिं०] एकरखी। -चारिणी-वि० स्त्री०
अंठीवाली लहसुनकी गाँठ; एक अंडकोषवाला बैल । पतिव्रता स्त्री। -चित्त-वि० एक ही विषयको सोचनेएकत*-वि० दे० 'एकांत'।
वाला, एकाग्र, तल्लीन; एक मन, विचारके। -चाबाएक-वि० [सं०] पहले अंक या इकाईसे सूचित, दोका वि० [हिं०] एक चोब या खंभेपर खड़ा किया जानेवाला
आधा; अकेला; जैसा दूसरा न हो, बेजोड़; वही; अपरि- (खेमा) । -च्छत्र-वि० जिसमें दूसरेका अधिकार, वर्तित; स्थिर; प्रधान; सत्य; ईषत् ; कोई एक भी; कोई प्रभुत्व न हो, असपत्न, एकतंत्र ( राज्य)। -ज-पु० या कुछ भी (एक न चलना, न सुनना); जो मिलकर सगा भाई। वि० अकेले पैदा होने या बढ़नेवाला; * एक चीज, एकरूप हो गया हो, भेदरहित । पु० पहला एकमात्र । -जात-वि० एक माता-पितासे उत्पन्न अंक या इकाई, १; विष्णुः परमात्मा * ऐक्य, साम्य ।। सहोदर। -जातीय-वि० ( होमोजीनियस) एक ही -अंक,-आँक-अ० [हिं०] पक्की बात, निश्चय; निश्चय ही। जाति, वर्ग या किस्मका; जिसके सब अंग या अंश -आध-वि० [हिं०] एक या आधा, एक-दो, दो-एक । एक सदृश हों। -जान-वि० [हिं०] जो घुल-मिल-एक-वि० [हिं०] हर एक, प्रत्येक । अ० एकके बाद । कर एक हो गया हो, एकरूप, एकदिल, अभिन्न-हृदय ।
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- जीव - वि० एकरूप; अभिन्न । - टक - वि०, अ० [हिं०] बिना पलक गिरे या गिराये, अनिमेष । - तंत्र - वि० जिसमें सब शक्ति, अधिकार एक आदमीके हाथमें हो, एकहत्था (राज्य शासनप्रबंध); एक व्यक्ति द्वारा, एकके प्रबंध से परिचालित । -तरफ़ा - वि० [हिं०] एकपक्षीय, जिसमें दूसरे पक्षका विचार न किया गया हो। - ०डिग्री - स्त्री०, ०फैसला - पु० [हिं०] वह डिग्री या फैसला जो प्रतिवादी पक्षका जवाब सुने बिना ( उसकी अनुपस्थितिके कारण ) दी जाय या किया जाय । -तान - वि० एक ही विषयका ध्यान करनेवाला, एकचित्त, तल्लीन । - तानता - स्त्री० (मॉनोटोनी) तान या स्वरकी नीरस एकरूपता । - तार- वि० [हिं०] एकसा, एक रंग-रूपका । अ० लगातार ।-तारा - पु० [हिं०] एक तरहका तंबूरा जिसमें एक ही तार होता है । -तालवि० जिसमें ताल सुरका पूरा मेल हो । ताला - पु० [हिं०] संगीतका एक ताल | तीस - वि० [हिं०] तीस और एक, ३१ । पु० ३१ की संख्या । - दंत- पु० गणेश । वि० एक दाँतवाला । - दंता - वि० [हिं०] एक दाँतवाला (हाथी) । - दंष्ट्र - पु० गणेश । दम-अ० [हिं०] एकबारगी, तुरत; बिलकुल । -दरा - वि० [हिं०] एक दरका दालान, बैठक इ०।- दलीय शासनतंत्र - पु० (टोटलिटेरियनिज्म) समूचे देशके लिए एक ही दलके शासनकी प्रणाली जिसकी लपेट में नागरिकोंका सार्वजनिक जीवन ही नहीं, निजी और व्यक्तिगत जीवन भी आ जाता है। -दिल - वि० [हिं०] एक विचारके; एकचित्त; अभिन्न, एकरूप । - दिली - स्त्री० [हिं०] एक दिल होना, एका । - देशीय - वि० एक ही देशका; जो किसी विशेष स्थल या अवस्थामें ही लगे, सर्वत्र न लगे । - धर्मा (र्मन्), - धर्मी (मिंन्) - वि० समान धर्म या गुण-स्वभाववाला । -नयन - वि० एकाक्ष | पु० शिव; कौवा । - निष्ठ- वि० एकके ही ऊपर निष्ठा, रखनेवाला । - निष्ठा - स्त्री० एकनिष्ठता; अनन्यता; वफादारी । - पक्षीय - वि० एकतरफा; (यूनिलेटरल ) एक ही पक्ष या दलसे संबंध रखनेवाला; केवल एक तरफसे होने या किया जानेवाला । - पत्नीव्रत - पु० विवाहिता पत्नी के सिवा और किसी स्त्रीसे प्रेम न करने का व्रत । -पाठी (ठिन् ) - वि० जिसे एक ही बार पढ़ने या सुननेसे पाठ याद हो जाय । -पास * - अ० पास-पास । - प्राण- वि० एकजान, एकदिल । - फसला - वि० [हिं०] जिस (खेत या जमीन ) में साल में एक ही फसल उपजे । -ब-एक-अ० [हिं०] अचानक, यकायक । -बारगीअ० [हिं०] एक ही बार में; विलकुल । -मंजिला - वि० [हिं०] एक मंजिला या तल्लेवाला ( मकान ) । - मत- वि० एक या समान मत रखनेवाले । -मुश्त - अ० [हिं०] इकट्टा, एक बार में । - मोला - वि० [हिं०] एक दाम कहनेवाला, जो दाममें कमी-बेशी न करे । -रंग- वि० एक रंगवाला; एकरूप; बाहर-भीतर से एक, दुरंगीपनसे रहित, सच्चा, निष्कपट | - रदन - पु० गणेश । -रस - वि० जो सदा एक रूपमें रहे, कभी बदले नहीं, अपरिणामी; जो मिलकर एक हो गया हो, एकदिल । - रुखा - वि० [हिं०] एक रखवाला, जिसका मुँह एक ही ओर हो; एकतरफा;
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एक-एकत
एकचश्म । - रूप - वि० एक ही रूपवाला, जो सब अव स्थाओं में एकसा रहे ; समान रूपवाला; दे० 'एक-जातीय' । -लौता - वि०, पु० [हिं०] अपने माँ-बापका अकेला (बेटा) । -वचन - वि० एकका वाचक (सिंगुलर) । पु० एकका वाचक वचन या शब्द । - वस्त्रा - वि० स्त्री० जो वे ही कपड़े पहने रहे, रजस्वला । -वाक्यतास्त्री० एकराय होना; एकार्थता । - वेणि, - वेणी - स्त्री० सीधे-सादे ढंग से बँधा जूड़ा या चोटी । वि० इस प्रकारका जूड़ा बाँधनेवाली, विधवा, वियोगिनी । - सठ- वि० [हिं०] साठ और एक, ६१ । पु० ६१ की संख्या । -सत्ताक - वि० एकहत्था, एकतंत्र । - सदनात्मक - वि० ( यूनिकेमरल ) जिसमें केवल एक ही सदन, विधानसभा, हो । - सदस्य निर्वाचीक्षेत्र - पु० (सिंगिल मेम्बर कांसू टिटुएंसी ) वह निर्वाचनक्षेत्र जहाँसे केवल एक ही सदस्य चुना जानेको हो । - साँ- वि० [हिं०] समान, बराबर । - स्व-पु० दे० क्रममें ( सभास भी ) । - हत्था - वि० [हिं०] एक हाथमें केंद्रित, एक व्यक्ति द्वारा संचालित, एकतंत्र | मु० - अनार सौ बीमारचीज थोड़ी और चाहनेवाले बहुत । - आँख न भानातनिक भी न भाना, बिलकुल नापसंद होना । - आँख से सबको देखना - एकसा मानना, व्यवहार करना । - एकके दस-दस करना - खूब नफा कमाना । -और एक ग्यारह होते हैं- दोके मिलकर काम करनेसे शक्ति कई गुना बढ़ जाती है । -की चार लगाना - बढ़ा चढ़ाकर कहना, शिकायत करना; अपनी ओरसे बातें जोड़मिलाकर कहना; भड़काना । की दवा दो- एकको दबाने, हरानेके लिए दो बहुत होते हैं । -की दस सुनाना - एक कड़ी बातके बदले दस कड़ी बातें सुनाना । - चना भाड़ नहीं फोड़ सकता - एक आदमीके किये वह काम नहीं हो सकता जो कई आदमियोंके मिलकर करनेका हो । - चनेकी दाल- बिलकुल एकसे, हर बात में बरावर; सगे भाई । -जान दो क़ालिब-बहुत गहरे दोस्त, अभिन्नहृदय होना। तवेकी रोटी, क्या मोटी क्या छोटी - एक कुल, घरानेके सब आदमी बराबर हैं, कोई बड़ा-छोटा नहीं । - थैलीके चट्टे-बट्टे- दोनों एक-से हैं, दोनों में कोई वास्तविक अंतर नहीं । - न शुद दो शुद - एक बला थी ही, दूसरी और आ पड़ी; एक कष्ट या विपत्तिके रहते दूसरीका आ जाना। -पंथ दो काज-एक यत्न, उपायसे दो कार्य सिद्ध होना; एक काम करते हुए दूसरा हो जाना । - पाँव भीतर, एक पाँव बाहर- कामकी भीड़ या परेशानीसे एक जगह ठहर न सकना, कभी यहाँ, कभी वहाँ आते-जाते रहना । - पाँव रिकाबमें होना - यात्रा के लिए हर समय तैयार रहना । - पाँव से खड़ा रहना-आशाकी प्रतीक्षामें खड़ा रहना; ताबेदारी बजाना । लाठीसे सबको हाँकना - सबके साथ एक-सा बरताव करना, भले-बुरेका विचार न करना । -से दो होना-ब्याह होना, बीबीका घरमें आना ।
एकड़ पु० [अ०] एक नाप जो ३२ बिस्वेके लगभग होती है । एकत* - अ० एक ही स्थानपर, एकत्र ।
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एकतरा-एक्यावन
१२२ एकतरा-पु० एक दिनके अन्तरसे आनेवाला ज्वर । एकाक्ष-वि० [सं०] काना । पु० कौवा; शिव। एकता-स्त्री० [सं०] एक होना, एका, मेल; अभेद । एकाक्षरी (रिन्)-वि० [सं०] एक अक्षरवाला। -कोशएकतालीस-वि० चालीस और एक । पु०४१ की संख्या। पु० संस्कृतका एक कोश जिसमें अलग-अलग अक्षरोंके अर्थ एकत्र-अ० [सं०] इकट्ठा, यकजा।।
दिये गये हैं। एकत्रित-वि० इकट्ठा किया हुआ, एकत्रीकृत (असाधु)। । एकाग्र-वि० [सं०] एक ही नोकवाला; जिसका ध्यान एक एकत्व-पु० [सं०] दे० 'एकता'।
ही ओर, एक ही वस्तुमें लगा हो; अचंचल । -चित्तएकदा-अ० [सं०] एक बार, एक समय ।
वि० स्थिरचित्त । एकनी-स्त्री० एक आनेका सिक्का ।
एकाग्रता-स्त्री० [सं०] एकाग्र होनेका भाव । एकबाल-पु० [अ०] स्वीकार, हामी; प्रताप; सौभाग्य। | एकात्म-वि० [सं०] एकप्राण, अभिन्न । -वाद-पु० एकरार-पु० [अ० ] स्वीकार; वादा । -नामा-पु० आत्माकी एकता, जीव-ब्रह्मकी एकताका सिद्धांत, अद्वैतवाद । प्रतिज्ञापत्र।
एकादश-वि० [सं०] दस और एक, ११।। एकल-वि० [सं०] अकेला । -संक्रमणीय मत-पु० एकादशाह-पु० [सं०] मृत्यु या दाहकी तिथिसे ग्यारहवाँ
(सिंगिल ट्रांसफरेबल वोट) (आनुपातिक प्रतिनिधित्व- दिन; उस दिनका कर्म। प्रणालीमें) मतदाता द्वारा, किसी निर्वाचन क्षेत्रसे चुने | एकादशी-स्त्री० [सं०] प्रत्येक पक्षकी ग्यारहवीं तिथि जानेवाले अनेक सदस्यों मेंसे किसी एकको इस शर्तके साथ | एकाधिक-वि० [सं०] एकसे अधिक, अनेक । दिया गया मत कि यदि निर्धारित संख्यामें मत प्राप्त कर | एकाधिकार-पु० [सं०] एक या अकेले आदमी या कंपनीलेनेके कारण, उसे इसकी आवश्यकता न रहे, तो वह | का अधिकार; इजारा (मॉनोपाली)। उसके बादके अधिमान दिये गये उम्मेदवारके पक्षमें संक्र- एकाधिप, एकाधिपति-पु० [सं०] सारे देशपर एकच्छत्र मित हो जायगा।
राज्य करनेवाला, अकेला स्वामी या शासक । एकला*-वि० दे० 'एकल' ।
एकाधिपत्य-पु० [सं०] एकाधिकार, एक आदमीको सर्वाएकवाँज-स्त्री० काकवंध्या।
धिकार होना। एकसर-अ० एक सिरेसे दूसरे सिरेतक; एक ही दफा । एकानुरूप-वि० [सं०] (होमोलॉगस) जो एक सदृश हो, वि० अकेला; एक पल्लेका।
समान सापेक्ष स्थितिवाला । एकस्व-पु० [सं०] ( पेटेंट) किसी उद्भावित या स्वनिर्मित | एकार्थ, एकार्थक-वि० [सं०] समान अर्थवाला, हममानी। वस्तुसे होनेवाली आयका एकाधिकार देनेवाला सरकारी एकावली-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ पूर्व पूर्व के मुद्रांकित प्रलेख ।-पत्र-पु०( लेटर्स पेटेंट ) किसी बातका प्रति उत्तरोत्तर वस्तुओंका विशेषणके रूपमें स्थापन या एकाधिकार प्रदान करनेवाला पत्र । -भेषज-स्त्री० निषेध किया जाय। (पेटेंट मेडिसिन ) वह भेषज या दवा जिसे बेचने-बनाने- | एकाह-वि० [सं०] एक दिन में होनेवाला । पु० एक दिन का एकाधिकार सरकारी मुद्रांकित प्रलेख द्वारा उसके उद्भावक या मूल निर्माताको ही प्राप्त हो ।
एकीकरण-पु० [सं०] दो या अधिक वस्तुओंको मिलाकर एकहत्तर-वि० सत्तर और एक । पु० ७१ की संख्या। । एक रूप कर देना; (एमलगमेशन) दो या अधिक समिएकहरा-वि० एक परतका।।
तियों, व्यापारिक संस्थाओं आदिका मिलकर एक हो जाना। एकांकी (किन्)-वि० [सं०] एक अंकवाला (दृश्य काव्य)। एकीकृत-वि० [सं०] मिलाकर एक किया हुआ। एकांग-वि० [सं०] एक अंगवाला; विकलांग । -वात- एकीमवन, एकीभाव-पु० [सं०] मिलकर एक हो जाना पु० पक्षाघात, फालिज।
पूरी तरह मिल जाना। एकांगी(गिन्)-वि० [सं०] एक अंगवाला; एकपक्षीय। एकीभूत-वि० [सं०] जो मिलकर एक हो गया हो। एकांत-वि० [सं०] अकेला; अलग; एक ही वस्तुको लक्ष्य | एकद्रिय-वि० [सं०] (वह प्राणी) जिसे एक ही इंद्रिय करनेवाला; अत्यंत; निरपवाद; निश्चित; एक ही ओर | (त्वचा) हो (केंचुआ, जोंक इ०) । लगा हुआ । पु० निराला, सूना स्थान; तनहाई । एकेश्वरवाद-पु० [सं०] ईश्वर, जगत्का सर्जन-नियमन -वास-पु० एकांत स्थानमें रहना।।
करनेवाली शक्ति, एक ही है-यह मत । एकांतर-वि० [सं०] एकके बाद आने या पड़नेवाला | एकोत्तर-वि० [सं०] एक अधिक (जैसे पाँचसे छः) । (आल्टरनेट) बीचमें एकको छोड़कर दूसरा । पु०अंतराज्वर । | एकौझा*-वि० अकेला, तनहा ।। एकांतरिक-वि० [सं०] (आल्टरनेट) बीचमें एक दिन एक्का-वि० अकेला; बेजोड़ । पु० दो पहियोंकी गाड़ी जिसमें छोड़कर दूसरे दिन होने या आनेवाला; बीचमें एकको | एक ही घोड़ा जोता जाता है; ताश, गंजीफेका वह पत्ता छोड़कर दूसरेसे संबंध रखनेवाला।
जिसपर एक ही बूटी हो, एकी; अकेले कठिन काम एकांतिक-वि० [सं०] पक्का, निश्चित ।
कर सकनेवाला सिपाही। -दुक्का-वि० अकेला-दुकेला; एका-पु० एकता, मेल, इत्तिफाक, एकमत होना । एक-दो (आदमी)। -वान-पु० एक्का हाँकनेवाला। एकाएक-अ० अचानक, सहसा।
एक्की-स्त्री० एक बैलकी गाड़ी; एक बूटीवाला ताश । एकाएकी*-अ० दे० 'एकाएक' । वि० एकाकी। एक्यानबे-वि० नब्बे और एक, ९१ । पु० ९१ की संख्या एकाकी (किन्)-वि० [सं०] अकेला ।
एक्यावन-वि० पचास और एक, ५१। पु० ५१ की संख्या।
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१२३
एक्यासी-ऐकराज्य एक्यासी-वि० अस्सी और एक,८१ पु०८१ की संख्या। एतावत्-वि० [सं०] इतना। एक्स-रे-पु० [अं॰] बिजलीकी विशेष किरणें जिनकी सहा- एतिक*-वि० स्त्री० इतनी। यतासे शरीर जैसे ठोस पदार्थके भीतरके भागोंका चित्र एन-पु० दे० 'एण' । लिया जा सकता है।
एरंड-पु० [सं०] रेंड । -खरबूजा-पु० [हिं०] पपीता। एजेंट-पु० [अं०] किसीकी ओरसे, उसके प्रतिनिधिके रूपमें | एरंडक-पु० [सं०] दे० 'एरंड' । काम करनेवाला; किसी व्यापारी या फर्भकी ओरसे खरीद-एलची-पु० [तु०] दूत; राजदूत । बेची आदि करनेवाला गुमाश्ता; कमीशनपर माल बेचने- | एला-स्त्री० [सं] इलायची; इलायचीका पेड़ । वाला; किसी राज्य या उपनिवेशमें प्रतिनिधिरूपसे रहने- एलुवा-पु० मुसब्बर । वाला अधिकारी
एवज़-पु० [अ०] बदला, प्रतिफल (किसीके) बदले में काम एजेंसी-स्त्री० [अं०] एजेंटका पद, कार्य या कार्यक्षेत्र; वह | करनेवाला, स्थानापन्न । अ० बदले में । स्थान जहाँ कमीशनपर माल बेचा जाय; किसी एजेंटके एवज़ी-वि०,पु० [अ०] बदलेमें काम करनेवाला, स्थानापन्न । अधीन प्रदेश या इलाका ।
एवमस्तु-अ० [सं०] ऐसा हो। एड-स्त्री० एड़ी। मु०-देना,-लगाना-(धोड़ेको) तेज | एवम्-अ० [सं०] ऐसे, इस प्रकार; ऐसे ही और और । करने या आगे बढ़ानेके लिए एड़ मारना।
एषणा-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाह; प्रार्थना, याचना । एड़ी-स्त्री० तलवेका टखनेके नीचेका भाग। मु०-चोटीका एह*-सर्व० दे० 'यह'। पसीना एक करना-बहुत मेहनत, कोशिश करना । | एहतिमाली-वि० [अ०] संदिग्ध । -से चोटीतक-सिरसे पैरतक । -(डियाँ) रगडना- एहतियात-पु० [अ०] बचना, बचाव; चौकसी, होशियारी । बहुत कष्ट भोगना; बहुत श्रम, दौड़-धूप करना ।
एहतियातन-अ० [अ०] एहतियातके तौरपर; बचावकी एण-पु० [सं०] काले रंगके हिरनका एक भेद ।
दृष्टिसे। एतकाद-पु० [अ०] श्रद्धा, विश्वास, एतबार, भरोसा। एहतियाती-वि० [अ०] खतरेसे बचावके लिए किया जाने एतदर्थ-अ० [सं०] इसलिए; इसके लिए ।
वाला; बचाव-संबंधी, हिफाजती । -काररवाई-स्त्री० एतद्देशीय-वि० [सं०] इस देशका ।
संभाव्य अनिष्ट या खतरेसे बचावके लिए की गयी कारएतबार-पु० [अ०] विश्वास, भरोसा साख ।
रवाई। एतबारी-वि० [अ०] विश्वास करने योग्य, मातबर । एहसान-पु० [अ०] नेकी, भलाई, उपकार; ऋण । -मंद एतमाद-पु० [अ०] विश्वास, भरोसा ।
-वि० उपकार माननेवाला, कृतज्ञ । एतराज़-पु० [अ०] विरोध, आपत्ति दोष निकालना। एहाता-पु० [अ०] घेरा; चहारदीवारीसे घेरी हुई जगह; एतवार-पु० दे० 'इतवार' ।
बड़ा सूबा, प्रेसिडेंसी। एता*-वि० इतना।
एहि*-सर्व० इस, एहका विभक्तिके पहलेवाला रूप । एतादृशी-वि० स्त्री० [सं०] इस प्रकारकी, ऐसी। एहो-अ० संबोधनार्थक अव्यय, हे, ए !
ऐ-देवनागरी वर्णमालाका नवाँ (स्वर) वर्ण ।
वाला, गीला, घमंडी। ए-अ० आश्चर्यादि सूचक शब्द ।
ऐड़ना-अ० क्रि० ऐंठना; अँगड़ाना; इतराना; सूखकर कड़ा ऐचना-सक्रि० खींचना; अपने जिम्मे लेना; फटकना। पड़ जाना । स० क्रि० ऐंठना, बल देना; (बदन) तोड़ना। ऐ चाताना-वि० जिसकी पुतली ताकते समय दूसरी तरफ ऐड-बड़*-वि० वक्र, टेढ़ा, तिरछा । खिंची रहे ।
ऐंडा-वि० ऐंठा हुआ, दर्पयुक्त 'ऍड़ो रहे निसंक तासु हाँसी ऐचातानी-स्त्री० अपनी-अपनी ओर खींचनेकी कोशिश । करि डोले'-दीन । ऐचीला-वि० लचीला खीचे जाने योग्य ।
ऐंडाना-अ०क्रि० अंगड़ाई लेनाऐंठ दिखलाना, इतराना। ऐछना*-स० क्रि० झाड़ना, कंधी करना-'देह पछि ऐंदव-वि० [सं०] इंदु-चंद्रमा संबंधी । पु० मृगशिरा पुनि छि श्याम कच'-रघु०।
नक्षत्र, चांद्रायण व्रत; चांद्र मास । ऐंठ-स्त्री० ऐंटन; अकड़, धमंड; द्वष ।
एंद्र-वि० [सं०] इंद्र-संबंधी । पु० अर्जुन; बालि । ऐंठन-स्त्री० मरोड़, घुमावः खिचाव ।।
ऐंद्रजाल-पु० [सं०] जादूगरी, बाजीगरी । ऐठना-स० कि.० मरोड़ना, घुमाव देना; धोखा देकर था | ऐंद्रजालिक-वि० [सं०] इंद्रजाल, जादू, बाजीगरी जानने
भय दिखाकर ले लेना । अ० कि० अकड़ना; बल खाना; वाला । ५० बाजीगर, जादूगर । टर्राना; मरना।
ऐंद्रिय-वि० [सं०] इंद्रिय-संबंधी इंद्रियग्राह्य । ऐ ठा-पु० रस्सी बटनेका एक यंत्र ।
ऐ-अ० [सं०] संबोधन-हे, ए! ऐठाना-सक्रि० ऐंठनेके काममें लगाना।
ऐकपत्य-पु० [सं०] पूर्ण प्रभुत्व; एकतंत्र शासन । ऐ४-वि० घमंडी, अकड़बाज ।
ऐकमत्य-पु० [सं०] एकराय होना, एका । ऐड-पु० ऐंठ, शान, गर्व, भँवर । -दार-वि० शान- ऐकराज्य-पु० [सं०] एकच्छत्र या एकतंत्र राज्य ।
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ऐकांतिक- ओछा
१२४
ऐकांतिक - वि० [सं०] बिना शर्त या अपवादका; कतई; ऐयार - पु० [अ०] धूर्त, चालाक, चलता-पुरजा व्यक्ति ।
ऐयारी - स्त्री० [अ०] धूर्तता, चालाकी । ऐयाश - वि० [अ०] विलासी, विषयासक्त, काभुक । ऐयाशी- स्त्री० [अ०] विलासिता, विषयासक्ति, कामुकता । ऐरा - ग़ैरा - वि० इधर-उधरका; बाहरी; अजनबी; ऐसावैसा, तुच्छ, नगण्य । मु०- नत्थू खैरा - जिसकी कोई हैसियत न हो, साधारण जन; तुच्छ, नगण्य जन । ऐरापति* - पु० दे० 'ऐरावत' ।
ऐरावत- पु० [सं०] इंद्र का हाथी; पूर्व दिशाका दिग्गज; बिजलीसे चमकता हुआ बादल; इंद्रधनुष्
|
ऐरावती - स्त्री० [सं०] ऐरावतकी भार्या; बिजली ! ऐल - *पु० प्रचुरता; बाढ़; कोलाहल; हलचल; समूह । ऐश- पु० [अ०] सुख, भोग, विलास; विषयसुख । -गाहपु० विलासभवन | - पसंद- वि० आरामपसंद, विलासी । - व आराम - पु०, व इशरत - स्त्री० सुख चैन, भोगविलास ।
अकाट्य, पक्का ।
ऐकात्म्य - पु० [सं०] एकात्मता, एकरूपता, तादात्म्य | ऐक्य - पु० [सं०] एकता, एका; एकरूपता; समाहार, जोड़ । ऐगुन* - पु० दे० 'अवगुण' ।
ऐच्छिक - वि० [सं०] अपनी इच्छा या मर्जीपर अवलंबित, इख्तियारी; वैकल्पिक ।
|
ऐज़न् - अ० [अ०] ऊपर लिखे या कहे अनुसार; फिर वही, उसी तरह [किसी शब्द या अंककी आवृत्ति से बचने के लिए यह शब्द या इसका चिह्न (") लिखा जाता ] । ऐत* - वि० इतना |
।
[सं०] इतिहास-संबंधी; इतिहास में
ऐतरेय - पु० [सं०] ऋग्वेदका एक ब्राह्मण; एक आरण्यकः एक उपनिषद् | ऐतिहासिक - वि० वर्णित | पु० इतिहासका ज्ञाता । ऐन* - पु० दे० 'अयन' और 'एण' । स्त्री० [अ०] आँख; चश्मा, सोता; वस्तुकी अस्लीयत । वि० ठीक, असल; बहुत; परम । अ० हूबहू, ज्योंका त्यों । वक्त-पु० ठीक वक्त, ठीक मौका |
ऐनक - स्त्री० [अ०] चश्मा । -फ़रोश- पु० चश्मा बेचनेवाला - साज़ - पु० चश्मा बनानेवाला । ऐना* - पु० दे० 'आईना' ।
ऐपन - पु० चावल और हल्दी एक साथ पीसकर बनाया हुआ लेप जो मांगलिक कार्यों, पूजनों में काम आता है । ऐब- पु० [अ०] दोष, खोट, बुराई धब्बा, लांछन । - जोई - स्त्री० ऐब ढूँढ़ना, छिद्रान्वेषण । - दार- वि० ऐबवाला, सदोष |
ऐबी - वि० [अ०] जिसमें ऐब या दूषण हो; विकलांग | ऐयाम - पु० [अ०] दिन; समय ('योग' - दिनका बहु० ) ।
ओ
ओ - देवनागरी वर्णमालाका दसवाँ वर्ण । इछना - स०क्रि० वारना, न्योछावर करना । आँकना * - अ० क्रि० के करना; ऊबना; फिर जाना । ओंकार - पु० [सं०] 'ओम्' मंत्र या इसका उच्चारण; आरंभ |
आँगन * - पु० गाड़ीकी धुरी में दिया जानेवाला तेल | आँगना - स० क्रि० गाड़ीकी धुरी में तेल लगाना । ओँठ - पु० होंठ; घड़े इत्यादिके मुँहका किनारा। मु०चबाना - ओंठको दाँतों तले दबाना, क्रोध प्रकट करना । -चाटना - खा चुकनेपर स्वादके लालचसे ओंठों पर जीभ फेरना; स्वादकी लालसा रह जाना । फड़कना - क्रोधके कारण ओंठोंका काँपना । - हिलाना -मुँहसे शब्द निकालना । ओंठों पर - जबानपर, प्रकट होनेके निकट । - में कहना - बहुत धीमी आवाज में बोलना । ओंडा * - वि० गहरा । पु० गड्ढा; सेंध । ओ - पु० [सं०] ब्रह्मा । अ० पुकारनेमें प्रयुक्त है, ए, अरे; कोई विस्मृत बात यकायक याद आनेपर भी बोलते हैं (ओ, आपने ठोक कहा); ओह (विस्मय के अर्थ में); और ।
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ऐश्वर - वि० [सं०] ईश्वरीय; शिव-संबंधी; शक्तिशाली । ऐश्वर्य - पु० [सं०] ईश्वरता; शक्तिः प्रभुत्व; आधिपत्य; धन-वैभव; अणिमादि सिद्धियाँ; सर्वव्यापकता; सर्वशक्तिमत्ता । - शाली (लिन् ) - वि० ऐश्वर्यवाला | ऐश्वर्यवान् (वत्) - वि० [सं०] ऐश्वर्यवाला | ऐस* - वि० दे० 'ऐसा' । पु० दे० 'ऐश' । ऐसा- वि० इस तरहका । - वैसा - वि० साधारण; तुच्छ, नाचीज । ( किसीकी ) ऐसी-तैसी - गाली । -0 में जाय - चूल्हे, भाड़ में जाय (खीझ या उपेक्षा के अर्थ में) । ऐसे- अ० इस प्रकार, इस ढंगसे । ऐहलौकिक - वि० [सं०] इस लोक से संबंध रखनेवाला, ऐहिक |
ऐहिक - वि० [सं०] इस लोक से संबंध रखनेवाला, सांसारिक ।
ओक-स्त्री० मतली | पु० अंजलि [सं०] घर; पनाह । ओकना - अ० कि० कै करना; भैंसकी तरह चिल्लाना । ओकाई - स्त्री० ओक, वमन । | ओखद* - स्त्री० दे० 'औषध' ।
ओखल - पु० ओखली; परती जमीन ।
ओखली - स्त्री० पत्थर या काटका वह पात्र जिसमें धान कूटा जाता है, कूँटी । मु० में सिर देना- कोई झंझट सिरपर लेना; कष्ट, हानि सहनेको तैयार होना । ओखा * - पु० बहाना । वि० कठिन; झीना; मिलावटवाला; रूखा-सूखा ।
ओग* - पु० उगहनी, चंदा; कर; गोद ।
ओगरना। -अ० क्रि० टपकना, रसना; साफ किया जाना ( कूप आदि) ।
ओगारना। - स० क्रि० कीचड़ आदि निकालकर कुएँकी सफाई करना ।
ओघ - पु० [सं०] धारा, बहाव, समूह, ढेर, राशि | ओछा-वि० गंभीरता रहित, छिछोरा; क्षुद्रः खोटा; छोटा; हलका | - पन - पु० छिछोरापन; क्षुद्रता; खोटाई ।
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१२५
ओछाई - ओलिक
ओछाई - स्त्री० छिछोरापन, हलकापन; क्षुद्रता, खोटाई । ओज (स्) -पु० [सं०] शुक्रकी सारभूत और शरीरको कांति, तेज देनेवाली धातु; बल; वीर्य; तेज; कांति; जल; आविर्भाव; रचनाका वह गुण जिससे पढ़ने-सुननेवालेके हृदय में उत्साह या जोश पैदा हो; शस्त्रकौशल । ओजना + - स० क्रि० सहना, झेलना, अंगेजना । ओजस्विता - स्त्री० [सं०] प्रताप; तेज; दीप्ति; प्रभाव; वर्णनका प्रभावोत्पादक ढंग ।
ओधना* अ० क्रि० (काममें) लगना; फँसना, उलझना । ओनंत* - वि० भवनत, झुका हुआ। ओनचन - स्त्री० अदवान, पैतानेकी रस्सी । ओनचना - स० क्रि० पैतानेकी रस्सी खींचकर कड़ी करना । ओनवना* - अ० क्रि० झुकना; घिर आना; टूटना । ओना* - पु० पानी निकलनेका रास्ता । ओनाना * - स० क्रि० कान लगाकर सुनना; झुकाना, प्रवृत्त करना; आदेशका पालन करना ।
ओजस्वी ( स्विन्) - वि० [सं०] ओजभरा; जोश पैदा | ओनामासी - स्त्री० अक्षरारंभ; आरंभ ( 'ॐ नमः सिद्धम्'करनेवाला; बल-वीर्य-शाली ।
का बिगड़ा हुआ रूप ) ।
ओझ - पु० पेट; आमाशय, अँतड़ी ।
ओझड़ी (री) - स्त्री०, ओझर - पु० पेट; आमाशय, मेदा ओझल - पु० ओट, आड़ ।
ओप - स्त्री० चमक, कांति, आब; जिला, पालिश । ओपची - पु० कवचधारी योद्धा; रक्षकयोद्धा । ओपना - स० क्रि० चमक लानेके लिए माँजना, रगड़ना, पालिश करना | अ० क्रि० चमकना, आब आना । ओपनि* - स्त्री० झलक, चमक। - वारी - वि० स्त्री० चमकवाली ।
ओझा - पु० झाड़-फूँक करनेवाला; ब्राह्मणोंकी एक उपजाति । ओझाई - स्त्री० झाड़-फूँक या उसकी उजरत; ओझाका काम । ओट-स्त्री० आड़; रोक; शरण, सहारा । ओटना - स० क्रि० रुईसे बिनौलेको अलग करना; किसी ओपनी स्त्री० ईंट या पत्थरका टुकड़ा जिससे तलवार आदि बातको बार-बार कहना; ऊपर लेना, ओढ़ना ।
ओटनी - स्त्री० वह चरखी जिसमें दबाकर रुईसे बिनौलेको अलग करते हैं ।
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माँजी जाय; मोहरा ।
ओन-अ० [अ०] दे० 'उफ़' ।
ओद - वि० गीला, भीगा हुआ । पु० गीलापन, तरी । ओदन - पु० [सं०] भात; बादल । ओदर* - पु० दे० 'उदर' ।
ओदरना* - अ० क्रि० फटना; गिर पड़ना; नष्ट होना । ओदा - वि० गीला, नम ।
ओदारना * - स०क्रि० गिराना, ढाना; फाड़ना; नष्ट करना ।
ओबरी - स्त्री० तंग कोठरी, ऐसी कोठरी जिसमें हवा और रोशनी के लिए रास्ता न हो ।
ओटा - पु० परदे के लिए बनी हुई दीवार । ओठंगना । - अ० क्रि० किसी चीजका सहारा लेकर बैठना; ओम् - पु० [सं०] वेदपाठके पहले और पीछे कहा जानेवाला सुस्ताने के लिए लेटना । पवित्र शब्द, प्रणव, ॐ ।
ओ गाना - सु० क्रि० टिकाकर रखना; साँकल आदि ओर - स्त्री० तरफ, दिशा, पक्ष । पु० छोर; अंत; आरंभ ।
लगाये बिना ही किवाड़ से किवाड़ लगा देना । ओठ-पु० ओठ, होंठ ।
मु० - निबाहना, - निभाना - अंततक कर्तव्य पूरा करना । ओरती* - स्त्री० दे० 'ओलती' |
ओड़ - पु० गधेपर मिट्टी, चूना आदि ढोनेवाला ।
ओड़न* - पु० वह चीज जिससे वार रोका जाय, ढाल, फरी । ओड़ना - स० क्रि० रोकना, ऊपर लेना; (हाथ) पसारना । ओड़ा। - पु० बड़ा टोकरा; ओंडा; टोटा; टोकरेका मान । ओढ़ना - स० क्रि० किसी कपड़े, खाल आदिसे बदनको ढँकना, छिपाना; अपने ऊपर, जिम्मे लेना । पु० ओढ़नेकी चीज । मु० - उतारना - अपमानित करना । - ओढ़ानाविधवा स्त्रीके साथ सगाई करना । - बिछौना बना लेनाहर वक्त काममें लाना; लापरवाहीसे बरतना । ओढ़नी - स्त्री० स्त्रियोंके ओढ़नेका छोटा दुपट्टा | मु० - बदलना-सहेली बनाना, बहनापा जोड़ना । ओढ़र* - पु० बहाना, व्याज ।
ओढ़ाना - स० क्रि० (दूसरेको) कपड़े से ढकना । ओत- स्त्री० आराम, चैन; लाभ, प्राप्ति । वि० [सं०] बुना हुआ; गुंथा हुआ । पु० तानेका सूत । -प्रोत - वि० ताने-बानेकी तरह बुना या गुंथा हुआ; भरा हुआ । पु० ताना-बाना | ओता* - वि० उतना ।
ओरमना* - अ० क्रि० झुकना; लटकना, झूलना। ओरमाना * - स० क्रि० झुकाना; लटकाना । ओरा* - पु० ओला ।
ओराना। - अ० क्रि० समाप्त होना, चुकना । ओरिया । - स्त्री० दे० 'ओरी' | भरी-स्त्री० ओलती ।
ओलंबा* - पु० दे० 'ओलंभा' । ओलंभा* - पु० उलाहना, शिकायत |
ओल-स्त्री०आड़; आश्रय; गोदः शरण; किसी बातकी जमानत में रखी या रोक रखी गयी चीज या आदमी; जमानत; बहाना । वि० [सं०] गीला, नम । पु० सूरन । ओलचा - पु० लकड़ीका दस्तेदार पात्र जो खेतको छिड़ककर सींचने के काम आता हैं, हत्था; छिछली दौरी जिससे पानी उलीचने या अनाज ओसानेका काम लेते हैं । ओलती-स्त्री० छप्पर या छाजनका छोर जहाँसे वर्षाका पानी जमीनपर गिरता है। मु० तलेका भूत - पास रहनेवाला आदमी जो घरके सब भेद जानता हो । ओलना * - स० क्रि० परदा करना; रोकना; चुभाना; ओड़ना, ऊपर लेना ।
ओला- पु० जमे हुए जलकणों या बर्फका गोला जो जाड़ेकी वर्षा में कभी-कभी गिरता है, बिनौली, उपल; मिश्री या दानेदार चीनीका बना हुआ गोला लड्डू; भेद; परदा । वि० बहुत ठंडा, बर्फसा ठंडा । ओलिक * - पु० आड़, परदा ।.
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ओलियाना - औदासीन्य
ओलियाना+ - स० क्रि० गोद में भरना; घुसाना । ओली-स्त्री० गोद; अंचल; झोली ।
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ओल्यो * - पु० बहाना - 'बैठी बहू गुरु लोगनिमें लखि लाल गये करिकै कछु ओल्यो'- भाववि० । ओषध* - स्त्री० दे० 'औषध' ।
ओषधि, ओषधी - स्त्री० [सं०] वनस्पति; जड़ी-बूटी । ओषधीश - पु० [सं०] चंद्रमा कपूर ।
ओष्ठ - पु० [सं०] ओठ ।
ओष्ठ्य - वि० [सं०] ओठसे संबद्ध; ओठसे उच्चरित । - वर्ण ओहट* - स्त्री० ओट |
१२६
कता की पूर्ति नहीं हो सकती । - पढ़ना - बेरौनक हो जाना; उदासी छाना; उत्साह नष्ट हो जाना; ठंडा हो जाना । ओसरी - स्त्री० अवसर, बारी।
ओसाई - स्त्री० ओसाने की मजदूरी या काम | ओसाना-स० क्रि० माँड़े हुए अनाजको हवा में उड़ाकर दानेको भूसे आदिसे अलग करना । ओसारा - पु० सायबान, बरामदा । ओह - अ० दुःख या आश्चर्यसूचक शब्द ।
- पु० उ, ऊ, प्, फ् ब् भ् म् ।
ओहदा - पु० [अ०] पद, स्थान । - (दे ) दार - पु० पदाधिकारी !
ओस - पु० हवाकी भाप जो रात में जलकणके रूपमें जमीनपर गिरती है, शबनम | -का मोती क्षणभंगुर । मु० - चाटने से प्यास नहीं बुझती - थोड़ीसी वस्तुसे बड़ी आवश्य
ओहार - पु० पालकी आदिपर परदे या शोभाके लिए डाला हुआ कपड़ा ।
औ
दाना* - अ० क्रि० उन्मत्त होना; व्याकुल
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औ - देवनागरी वर्णमालाका ग्यारहवाँ (स्वर) वर्ण । आँगना - स० क्रि० दे० 'ओंगना' |
आँगा* - वि० गूँगा ।
आँघना, आँधाना - अ० कि० दे० 'ऊँघना' ।
औचित्य - पु० [सं०] उचित होना, उपयुक्तता, मुनासिबत ।
आँजना* - अ० क्रि० ऊबना, व्याकुल होना । स० क्रि० औज-पु० दे० 'ओज'; [अ०] ऊँचाई, बुलंदी; उत्कर्ष । उझिलना, ढालना ।
औजड़ * - वि० उजड्डु | औज़ार - पु०
आँटन - पु० चारा आदि काटनेका ठीहा ।
आँटना - स० क्रि० दे० 'औटना' ।
ठ - स्त्री० बरतन आदिका उठा हुआ किनारा; ओंठ । औड* - पु० ओड़; बेलदार ।
औड़ा* - वि० गहरा; उभड़ा या उभड़ता हुआ । औदना, होना ।
आँधना - अ० क्रि० उलट जाना, औंधा होना । स० क्रि० उलट देना ।
आँधा - वि० जिसका मुँह नीचेकी ओर हो, उलटा; नीचा । मु० - हो जाना - बेसुध होना; गिर पड़ना । आँधी खोपड़ीका - वि० मूर्ख । - समझ - उलटी बुद्धि । आँधे मुँह गिरना - धोखा खाना; भूल करना । आँधाना - स० क्रि० नीचा या उलटा करना । औरा - पु० आँवला ।
औ* अ० दे० 'और' ।
औक़ात - पु० [अ०] वक्त, समय; जमाना ('वक्त'का बहु० ) । औतार - पु० दे० 'अवतार' |
स्त्री० हैसियत ।
औगत* - वि० दे० 'अवगत' । * स्त्री० दे० 'अवगति' । औगाहना * - सु० क्रि० अ० क्रि० दे० 'अवगाहना' । ओगी - स्त्री० चाबुक, पैना; जंगली जानवरको फँसानेके लिए बना हुआ गड्ढा; कारचोबी जूतेका ऊपरका चमड़ा । औगुन* - पु० दे० 'अवगुण' ।
औगुनी * - वि० दोषी; दुर्गुणी ।
औय - पु० [सं०] उग्रता, भयंकरता । औघट* - वि० कठिन, दुर्गम । पु० दुर्गम मार्ग । औघड़ - पु० अघोरी; फक्कड़, मनमौजी । वि० अटपट । औघर - वि० अनगढ़; अटपटा, टेढ़ा; विचित्र |
औचक - अ० अचानक, यकायक ।
औचट - स्त्री० कठिनाई, संकट । अ० अचानक; भूलसे । औचित* - वि० निश्चित, बेखबर ।
[अ०] कोई काम करनेका साधन, आला,
उपकरण ।
औज्ज्वल्य - पु० [सं०] उजलापन; चमक । औझक* - -अ० दे० 'औचक' । औझड़ (₹) *. * - अ० लगातार, निरन्तर । औटन * - स्त्री० औटनेकी क्रिया; ताव, आँच । औटना - स०
क्रि० दूध, रस आदिको आँच देकर गाढ़ा करना, देर तक उबालना, खौलाना । अ० क्रि० खीलना, आँच खाना; पगना; तपना; * भटकना । औटनी - स्त्री० ओटी जानेवाली चीजको चलानेकी कलछी । औटाना - स० क्रि० औटना, आँच देकर गाढ़ा करना औठपाय* - पु० अठपाव, शरारत, धूर्तता । औढर - वि० चाहे जिधर ढल जानेवाला; थोड़े में प्रसन्न होकर निहाल कर देनेवाला, आशुतोष । - दानी- वि० प्रार्थी, भक्तको निहाल कर देनेवाला ।
औतरना* - अ० क्रि० अवतार ग्रहण करना, जन्म लेना ।
औत्तरेय - पु० [सं०] उत्तरासे उत्पन्न, परीक्षित । औत्पत्तिक - वि० [सं०] उत्पत्ति-संबंधी; सहज, पैदाइशी । औरस - वि० [सं०] झरनेमें उत्पन्न या झरना-संबंधी । औत्सुक्य- पु० [सं०] उत्सुकता । भौथरा * - वि० उथला, छिछला । औदकना* - अ० क्रि० चौंकना ।
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औदरिक - वि० [सं० [ उदर-संबंधी; बहुत खानेवाला, पेटू । औदसा * - स्त्री० अवदशा, दुर्दशा, विपत्ति । औदार्य - पु० [सं०] उदारता ; महत्ता; अर्थगांभीर्य । औदासीन्य, औदास्य- पु० [सं०] उदासीनता, उदासी; एकाकीपन, निर्जनता; वैराग्य ।
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१२०
औदुंबर-कंकतिका औदुंबर-वि० [सं०] उदुबर या गूलरका बना हुआ; ताम्र- औरस-वि० [सं०] विवाहिता पत्नीसे उत्पन्न, वैध, जायज । निर्मित । पु० गूलरकी लकड़ीका बना यज्ञपात्र ।
पु० विवाहिता पत्नीसे उत्पन्न पुत्र । औद्धत्य-पु० [सं०] उद्धतता, उजड़पन ।
औरसना*-अ० क्रि० रूठना, अनखाना । औद्यानिक योजना-स्त्री० [सं०] ( हार्टिकल्चरल स्कीम) श्रीरासा*-वि० विलक्षण; बेढंगा-'कहँ अब काल चाल उद्यानों में पेड़-पौधे लगाने तथा उनके रक्षण आदिकी | औरासी'-सू०। योजना।
| औरेब-पु० तिरछापन, टेढ़ापन; कपड़ेकी तिरछी काट; पेच, औद्योगिक-वि० [सं०] उद्योग-संबंधी। -उन्नति-स्त्री० ल । -दार-वि० तिरछी काटवाला । उद्योग-धंधों, कल-कारखानोंकी उन्नति या बाढ़। -तथ्य- औलना-अ० क्रि० गरमी पड़ना, औसना; तप्त होना। पु० (इंडस्ट्रियल डेटा) उद्योग-धंधोंसे संबंध रखनेवाली औलाद-स्त्री० [अ०] संतान, बेटा-बेटी, वंश । प्रामाणिक बातें। -वासव्यवस्था-स्त्री० (इंडस्ट्रियल औला-दौला-वि० लापरवाह, मौजी हाउसिंग) कारखानों में काम करनेवाले श्रमिकोंके लिए औलिया-पु० [अ०] सिद्ध पुरुष, संत, महात्मा, पहुँचा रहनेके मकान बनानेकी व्यवस्था ।
हुआ मुसलमान फकीर ('वली'का बहु०)। औद्योगिकीकरण-पु० (इंडस्ट्रियलिजेशन) अनेक कार- औवल-वि० [अ०] पहला, प्रथम प्रधान, सर्वश्रेष्ठ । खानों, उद्योगों आदिकी स्थापना, विस्तार आदि द्वारा| औशि*-अ० दे० 'अवश्य'। देशको उद्योगप्रधान बनाना ।
औषध-स्त्री० [सं०] दवा, ओषधि, जड़ी-बूटी; एक खनिज औध*-पु० दे० 'अवध' । स्त्री० दे० 'अवधि।
द्रव्य । वि० जड़ी-बूटियोंसे बनी । -निर्देश-पु० श्रीधारना*-स० क्रि० दे० 'अवधारना'; प्रारंभ करना । (प्रस्क्रिपशन ) किसी रोगके शमनार्थ चिकित्सक द्वारा औधि -सी० दे० 'अवधि' ।
दवाओंके नाम, मात्रा, प्रयोगादिके संबंधमें दिया गया औनि*-स्त्री० दे० 'अवनि' । -प-पु० राजा । (लिखित) निर्देश ।-निर्माणशास्त्र-पु० (फारमाकोपीया) औने-पीने-अ० कुछ कम दामपर, कुछ घाटा उठाकर । औषध तैयार करनेकी विद्या या उसकी विधि बतानेऔपचारिक-वि० [सं०] उपचार-संबंधी रस्मी, दिखाऊ।। वाले ग्रंथ । औपटी-वि० स्त्री० अटपटी, कठिन ।
औषधालय-पु० [सं०] दवाखाना । औपनिवेशिक-वि० [सं०] उपनिवेश-संबंधी; उपनिवेशमें औषधि, औषधी-स्त्री० [सं०] दे० 'ओषधि । रहनेवाला । -स्वराज्य-पु. एक प्रकारका स्वराज्य जो औषधोपचार-पु० [सं०] दवा-इलाज । कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि ब्रिटिश उपनिवेशोंको प्राप्त है।। औसत-वि० [अ०] बीचका, दरमियानी; साधारण । पु० औपन्यासिक-वि० [सं०] उपन्यास-संबंधी; उपन्यासके। बीचकी संख्या या राशि, राशियोंके जोड़को उनकी संख्याढंगका; अदभुत । पु० उपन्यासकार ।
से भाग देनेपर भागफलके रूपमें प्राप्त संख्या, परता। औपपत्तिक-वि० [सं०] उपपत्ति-युक्तायुक्ति-संगत, उपयुक्त। -दरजेका-बीचका, न बहुत अच्छा, न बुरा । औपसर्गिक-वि० [सं०] उपसर्ग-संबंधी; उपसर्ग-रूपमें | औसना -अ० क्रि० ऊमस होना; गरमीसे खानेकी चीजका प्राप्त (रोग)।
बिगड़ना; फलादिका सूखकर पकना । औम-वि० दे० 'अवम' ।
औसर*-पु० दे० 'अवसर'। और-अ० दो शब्दों और वाक्योंको जोड़नेवाला एक शब्द; औसान-पु० होश-हवास, चेत-'गै औसान सबन्हकर ब, तथा । वि० दूसरा, अधिक । मु०-का और-कुछका देखि समुदकै बाट'---40% * अंत, अवसान । कुछ, उलटा। -क्या ?-हाँ, अवश्य, नहीं तो क्या ? | औसाना-स० कि० फलादिको भूसे आदिमें रखकर -तो और-दूसरोंकी बात जाने दो, दूसरोंकी तो बात | पकाना । ही क्या ? -ही कुछ-सबसे निराला; जुदा; अनूठा। औसेर*-स्त्री० दे० 'अवसेर' । औरत-स्त्री० [अ०] स्त्री०; पल्ली।
औहत*-स्त्री० अपमृत्यु, कुगति । औरना-अ० क्रि० आगे बढ़ना; सूझना ।
औहाती*-वि० स्त्री० दे० 'अहिवाती'।
क-देवनागरी वर्णमालाका पहला व्यंजन वर्ण । | पीते हैं । -पत्थर-पु० कूड़ा-करकट, रद्दी चीजें। उधा*-स्त्री० दे० 'कौं धा।
कंकड़ी-स्त्री० छोटा कंकड़, छरी; छोटा टुकड़ा, डली,रवा। कंक-पु० [सं०] एक मांसाहारी पक्षी जिसके पंख बाणमें | कंकड़ी(री)ला-वि० कंकड़ मिला हुआ, जिसमें कंकड़ लगाये जाते थे, सफेद चील ।-पत्र-पु० वह बाण जिसमें अधिक हो। कंकका पर लगा हो; कंकका पर ।
कंकण-पु०[सं०] कंगन विवाहके पहले वर-कन्याके हाथमें कंकड़-पु० जमीनके अंदरसे निकलनेवाला एक तरहका बाँधा जानेवाला धागा, विवाहसूत्र । रोड़ा जो सड़क बनानेके काममें आता और जिसे जलाकर कंकणी, कंकणीका-स्त्री० [सं०] कटि आदिमें पहननेके चूना बनाया जाता है; पत्थरका छोटा टुकड़ा, गिट्टी; सूखा घुघरूदार गहने क्षुद्रघंटिका । या सुरतीका चूरा मिला हुआ तंबाकू जिसे गाँजेकी तरह । कतिका, कंकती-तं.. [सं०] कंधी।
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कंकन-कंठान
१२८ कंकन*-पु० दे० 'कंकण'।
कंजई-वि० कंजेके रंगका, गहरा खाकी । पु० खाकी रंग; कंकर*-पु० दे० 'कंकड़'।
इस रंगकी आँखोंवाला घोड़ा। कंकरीट-स्त्री० [अ० कांक्रीट] कंकड़, सीमेंट बालू आदिके कंजड़-पु० एक खानाबदोश जाति । मेलसे बना हुआ छत आदि बनानेका मसाला; छोटी कंजा-पु० एक कँटीली झाड़ी। वि० खाकी रंगका; कंजी कंकड़ी।
आँखोंवाला। . कंकाल-पु० [मं०] हड्डियोंका ढाँचा, ठठरी । -माली कजियाना-अ० क्रि० काला-सा पड़ना; मुरझाना। (लिन्)-वि० हड्डियोंकी माला पहननेवाला। पु० शिव। कंजूस-वि० सूम, कृपण, खसोस ।
-शेष-वि० जिसकी देहमें ठठरीभर रह गयी हो।। कंजूसी-स्त्री० कृपणता। कंकालिनी-स्त्री० [सं०] काली। वि० स्त्री० झगड़ालू, कंट*-पु० काँटा। कर्कशा (स्त्री)।
कंटक-पु० [सं०] काँटा; सुई या किसी नुकीली चीजकी कखवारी-स्त्री० काँखका फोड़ा।
नोक; बाधा; छोटा शत्रु; परेशान करनेवाला; रोमांच । कँखौरी-स्त्री० दे० 'कँखवारी'; काँख ।
-फल-पु० कटहल; गोखरूं; रेंड या धतूरेका पेड़ । कंगन-पु० कलाईमें पहननेका एक गहना, कंकण; वह -भक्षक,-भुक (ज)-पु० ऊँट। -शोधन-पु० धागा जिसमें हलदी, लोहेका छल्ला, पीली सरसों, चोकर काँटा निकालना, दूर करना; विघ्न-बाधाओंको दूर करना; आदि बाँधकर हलदीकी रस्मके समय वर-कन्याके हाथमें उपद्रवियोंका दमन ।। बाँध देते हैं।
कंटकारिका, कंटकारी-स्त्री० [सं०] भटकटैया, सेमल । कॅगना-पु० कंगन बाँधते समय गाया जानेवाला गीत दे० कंटकित-वि० [सं०] कँटीला; रोमांचयुक्त । 'कंगन' । स्त्री० एक तरहकी घास ।
कंटर-पु० शीशेकी सुराही जो शराब, गुलाबजल आदि कँगनी-स्त्री० छोटा कंगन, कलाई में पहननेका एक गहना; रखनेके काम आती है। लाखकी बनी दंदानेदार चूड़ी; दीवार में उमड़ी हुई लकीर, कंटिका-स्त्री० [सं०] (पिन) तार आदिका बहुत पतला कार्निसः दंदानेदार चक्कर या चक्करपरके उभड़े हुए दाने नुकीला टुकड़ा जिसमें ऊपरकी ओर चिपटी धुंडी या साँवाकी जातिका एक अन्न, काकुन
टोपी-सी होती है और जो कागजों, कपड़ों आदिमें खोंसी कॅगला-वि० दे० 'कंगाल'।
जाती है, शूक, अलपीन । कॅगहरा* -पु० दे० 'कंधेरा'।
कंटिकाधार-पु० [सं०] (पिनकुशन) काठ, पीतल आदिका कंगारू-पु० [अं०] आस्ट्रेलिया, न्यूगिनी आदिमें पाया वह गद्दीदार ढाँचा जिसमें अलपीने (कोटिकाएँ) खोसकर जानेवाला एक जानवर ।
रखी जाती है, शूकधानी ।। कंगाल-वि०निर्धन, गरीब मुहताज । -गुंडा-बांका। कटिया-स्त्री० छोटी कील मछली मारनेकी बंसी; अंकुसीके
-पु. वह आदमी जो कंगाल होते हुए शौकीनी करे। आकारकी चीज जिसमें कोई चीज फंसायी जाय । कंगाली-स्त्री० गरीबी, निर्धनता।
कँटीला-वि० काँटेदार । कंगुरिया -स्त्री० दे० 'कनगुरिया'।
कंठ-वि० कंठस्थ, याद । पु० [सं०] गला, हलका स्वर, कंगूरा-पु० शिखर बुर्ज। -(२) दार-वि० कंगूरेवाला। आवाज; घड़े आदिका गला; तोते आदिके गलेपरकी कंघा-पु० बाल सँवारने-सुलझानेका दंदानेदार आला; रंगीन वृत्ताकार लकीर; कोण; किनारा । -गतजुलाहोंका एक ओंजार।
वि० गलेमें आया, अटका हुआ । -च्छेदि स्पर्धा-स्त्री० कंघी-स्त्री० छोटा कंधा; जुलाहोंका एक औजार एक पौधा। (कटथ्रोट कांपिटीशन) गला काट देनेवाली, अत्यंत गहरी, कॅघेरा-पु०पंधी बनानेवाला।
प्रतियोगिता। -तालव्य-वि० जिसका उच्चारण कंठ कंच-पु० दे० 'काँच'।
और ताल दोनोंसे हो ('ए', 'ऐ'-च्या०)। -मणिकंचन-पु० सोना; धन-दौलत; धतूरा; एक जाति । वि०
पु० गले में पहना हुआ मणि प्रिय वस्तु; घोड़ेकी गरदनकी निर्मल; नीरोग। -पुरुष-पु० दे० कांचनपुरुष'
भँवरी। -माला-स्त्री० गलेका एक रोग जिसमें लगातार कंचनी-स्त्री० कंचन जातिकी स्त्री वेश्या ।
बहुतसे फोड़े निकलते हैं। -श्री-स्त्री० गले में पहननेका कंचुक-पु० [सं०] बक्तर; जामा, अंगरखा; चोली, अॅगिया
एक गहना । -संगीत-पु० (वोकल म्यूजिक) मानवकेंचुल; भूसी, छिलका तसभा।
कंठ द्वारा उच्चरित गीत-ध्वनि । -सिरी*-स्त्री०कटी। कंचुकी-स्त्री० चोली, अँगिया; * केचुल।
-स्थ-बि० कंठमें स्थित; कंठगत; जबानी याद । मु०कंचुकी (किन्)-वि० [सं०] बक्तरधारी । पु० रनिवास- खुलना-आवाज निकलना । -फूटना-आवाज निकका रक्षक, अंतःपुराध्यक्ष द्वारपाल ।
लना; जवानी आनेपर आवाजका बदलना। -बैठनाकंचुरि*- स्त्री० दे० 'केचुल'।
गला बैठना; बेसुरा होना । -होना-जबानी याद होना। कंचलिका, कंचुली-स्त्री० [सं०] चोली, अँगिया । कॅटला-पु० दे० 'कठला'। कॅचुली*-स्त्री० दे० 'केचुल' ।
कँठहरिया*-स्त्री० कंठी। कचेरा-पु० काँचका काम करनेवाला ।
कंठा-पु० बड़े मनकोंकी माला जो गलेसे सटी होती है। कंज-पु० [सं०] कमल; ब्रह्मा; केश; अमृत । वि० जलसे | तोते आदिके गलेकी रंगीन रेखा । उत्पन्न । -ज-पु० ब्रह्मा । -नाभ-पु० विष्णु कंठाग्र-वि० [सं०] कंठस्थ, बरजबान ।
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१२९
कंठी-ककनू कंठी-स्त्री० [सं०] कंठ; घोड़ेके गलेकी रस्सी; छोटे मनकों- काँवर आदि एकसे दूसरे कंधेपर लेना। -लगना-जुएकी का कंठा; [हि०] तुलसीके छोटे दानोंकी छोटी माला जो रगड़से कंधे में घाव हो जाना। कंधेसे कंधा छिलनावैष्णवत्वका प्रधान चिह्न है। मु०-तोड़ना-वैष्णवत्वका | भारी भीड़ होना । त्याग; मांस-मछली फिर खाने लगना ।
कंधार-पु० अफगानिस्तानका एक नगर और प्रदेश, गांधार; कंठो(ठौ)ष्ठ्य-वि० [सं०] जिसका उच्चारण कंठ और ओठ * दे० 'कर्णधार' दोनोसे हो ( 'ओ', 'औ'-व्या० )।
कंधारी-वि० कंधारका; कंधार में उपजा हुआ। पु० कंधार कंव्य-वि० [सं०] कंठ-संबंधी; कंठके लिए उपयुक्त या हित- देशका घोड़ा। कर; कंठसे उच्चरित ।-वर्ण-पु० वह वर्ण जिसका उच्चारण कधावर-पु० छोटा दुपट्टा जो कंधेपर डाल लिया जाता कंठसे होता है ( अ-आ, क, ख, ग, घ, ह और विसर्ग)। है; जुएका वह भाग जो बैलके कंधेपर रहता है । कंडा-पु० वह गोबर जो यों ही पड़ा-पड़ा सूख गया हो, | कंधेला-पु० साड़ीका कंधेपर डाला हुआ छोर । बिना पाथा उपला; सूखा मल; सरकंडा। मु०-होना- | कंधैया-पु० दे० 'कन्हैया' । मर जाना; ऐंठ जाना।
कंप-पु० [सं०] हिलना; काँपना; एक सात्त्विक भाव । कंडाल-पु० गोल मुंहका गहरा लोहे-ताँबे आदिका बरतन | कँपकँपी-स्त्री० कॉपना; कंप। जो पानी रखनेके काम आता है; नरसिंहा।
कंपति-पु० [सं०] समुद्र । कंडी-स्त्री० छोटा कंडा; सूखा मल, गोटा ।
कंपन-पु० [सं०] काँपना; कँपकँपी; शिशिर ऋतु । कंडील-स्त्री० दे० 'कंदील'।
कँपना-अ० क्रि० काँपना, हिलना; डरना । कंडु, कंडू-स्त्री० [सं०] खाज, खारिश ।
कंपनी-स्त्री० [अं०] संयुक्त धनसे व्यापार करनेवाले कंडुर-वि० [सं०] खुजली पैदा करनेवाला ।
व्यक्तियोंका समूह; जत्था सेनाका एक विभाग। कंडूयन-पु० [सं०] खुजलाना।
कंपा-पु० बाँसकी तीलियों में लासा लगाकर बनाया हुआ कंडोल-पु० [सं०] बाँस या ३तका टोकरा, दौरी । एक तरहका फंदा जिससे बहेलिये चिड़ियोंको फंसाते है। कंडौरा-पु० कंडे रखनेकी जगह कंडोंका ढेर ।
कपाना-स० क्रि० हिलाना; डराना । कंत-* पु० पति, प्यारा; ईश्वर ।
कंपायमान-वि० [सं०] काँपता हुआ। कंथ-पु० दे० 'कत'।
कंपास-स्त्री० [अं०] दिग्दर्शक यंत्र, कुतुबनुमा; परकार । कथा-स्त्री० [सं०] गुदड़ी कथरी ।
कंपित-वि० [सं०] काँपता, हिलता हुआ। कंथी (थिन् )-वि० [सं०] गुदड़ी धारण करनेवाला। कंपू-पु० [अ० कैप] फौजकी छावनी, पड़ाव खेमा, फौज । पु० साधु, फकीर ।
कंपोज़िटर-पु० [अं०] टाइप बैठानेवाला । कंद-पु० [सं०] गाँठदार या गूदेदार जड़ सूरन; बादल। कंबल-पु० [सं०] कम्मल; गाय-बैलके गले में नीचे लटकनेक्रंद-पु० [अ०] सफेद शकर, मिस्री ।
वाली.खाल, सास्ना; जल; एक छोटा कीड़ा। | गुफा, अंकुश, सोंठ । * मुल; बादल। बु-पु०सं०] शंख, गला; हाथी। वि० कई वर्णांका। कंदरा, कंदरी-स्त्री० [सं०] गुफा; घाटी ।
-ग्रीव-वि० शंख जैसी सुराहीदार गरदनवाला । कंदर्प-पु० [सं०] कामदेव । -दहन, मथन-पु० शिव । | कंबुक-पु० [सं०] शंख, घोंघा; अधम व्यक्ति । कंदला-पु० तार खींचने में व्यवहृत चाँदीकी गुल्ली; पासा; कंबोज-पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद जो अब अफगासोने-चाँदीका तार ।
निस्तानका भाग है। कंदा-पु० शकरकंद; अरुई।
कॅवल-पु० दे० 'कमल' । -गट्टा-पु० कमलका बीज । कंदील-स्त्री० [अ०] कागज, मिट्टी या अबरकका ले कंस-पु० [सं०] काँसा; एक मापकटोरा सुराही; झाँझा जिसमें दिया जलाकर लटकाते हैं।
काँसेका बरतन; उग्रसेनका लड़का, कृष्णका मामा। - कंदक-पु० [सं०] गेंद; गलतकिया; सुपारी । -क्रीड़ा- निषूदन,-शत्रु-पु० कृष्ण । स्त्री० गेंदका खेल।
| कँसहँड-पु. काँसेके बरतनों के टुकड़े। कंदैला-वि० गॅदला; मिट्टी कीचड़वाला ।
कॅसहँडी-स्त्री० देग या बटलोहीके ढंगका एक बरतन । कंध-पु० [सं०] बादल; मोथा; * तनेका ऊपरी भाग कंसाराति, कंसारि-पु० [सं०] कृष्ण । कंधा।
क-पु० [सं०] ब्रह्मा, विष्णु; कामदेव, सूर्य, अग्नि, वायु कंधनी-स्त्री० करधनी मेखला ।
यम, मेघ; आनंद; पानी इ० । कंधर-पु० [सं०] गरदन बादल; मोथा; एक शाक । कहन, कइनी -स्त्री० बाँसकी पतली, लंबी टहनी टहनी। कंधरा-स्त्री० [सं०] गरदन ।
कई-वि० एकाधिक, कुछ, चंद । ० शरीरका गरदन और बाहुमूलके बीचका भाग, ककडी-स्त्री० गरमी और बरसातमें भी होनेवाली एक बेल स्कंध, शाना, मोढ़ा; बैल या भैंसेकी गरदनके ऊपरका जिसका फल खीरेसे मिलते-जुलते आकारका होता है । भाग जिसपर जुआ रखा जाता है। मु०-डाल देना- | ककना-पु० दे० 'कंगन' । बैलका कंधेपर जुआ न लेना; हिम्मत हारना; (कोई) ककनी-स्त्री० दे० कँगनी'; दानेदार चक्कर; कँगनीके वोझ, जिम्मेदारी उठानेसे भागना । -देना-अरथी ढोने- आकारकी एक मिठाई। में कंधा लगाना; मदद देना। -बदलना-पालकी, ककनू*-पु० एक तरहका पक्षी जिसके गानेपर घोंसले में
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ककरी-कचा
१३०
आग लग जाती है और वह जल मरता है।
कचर-कचर-पु० कच्चा फल खानेका शब्द कचकच । ककरी-स्त्री० दे० 'ककड़ी'।
कचरकूट-पु० कसकर पीट देना, पूरी मरम्मत + डटकर ककरौल-पु० खेखसा।
भोजन करना। ककहरा-पु० 'क'से 'ह'तक अक्षर, वर्णमाला; किसी कचरना-सक्रि० कुचलना, रौंदना खूब खाना । विषयकी आरंभिक, मोटी-मोटी बातें, अलिफ-बे।
कचर-पचर-पु० गिचपिच; किचकिच । ककही-स्त्री० एक तरहकी कपास चौबगला; दे० 'कंघी'। । कचरा-पु० कूड़ा-करकट; रुईका बिनौला, मैल आदिः ककुद, ककुद् -पु० [सं०] चोटी, पर्वत-शिखर; बैल या दालका बेकार अंश; कच्चा खरबूजा; ककड़ी; समुद्रा साँड़के कंधेपरका डिला; सींग राजचिह्न ।
सेवार । ककुभा-स्त्री० [सं०] दिशा; एक रागिनी।
कचरी-स्त्री० एक लता जिसका फल तरकारीके काम ककूना-पु० रेशमके कीड़ेका कोया।
__ आता है, पहुँटा; पहुँटेके सुखाये हुए गोल टुकड़े। ककड़ा, ककोड़ा-पु० खेखसा नामकी तरकारी । कचलोन-पु० एक प्रकारका नमक । ककोरना -स० क्रि० खरोंचना; मोड़ना, सिकोड़ना(बुंदेल०) कचहरी-स्त्री० इजलास; अदालत; दरबार दफ्तर; जमाव । कक्कड़-पु० सुरतीका चूरा मिला और सेककर बनाया कचाई-स्त्री०कच्चापन अनुभव-हीनता;दोष; त्रुटि, खामी । हुआ भुरभुरा तमाकू।।
कचाना-अ० कि० कचियाना, आगा-पीछा करना । कक्का-पु. केकय देश; दे० 'काका
कचायँध-स्त्री० कच्चेपनकी गंध। कक्ष-पु० [सं०] काँख; कछोटा; कमरा कछार मूखी घास; कचायन-स्त्री० लड़ाई-झगड़ा, किचकिच । लता; सूखा जंगल; राजाका अंतःपुर, बगल, बाजू, काँख; कचारना -स० क्रि० पछाड़ना, फीचना। सेनाका दाहिना बाँयाँ बाजू; दलदल जमीन; कटिबंध; कचालू-पु० उबाले आलू आदिके टुकड़े जिनपर नमक, अंचल, धोती आदिका छोर।
मिर्च, खटाई आदि छिड़का हो। कक्षा-स्त्री० [सं०] परिधि, दायरा; दरजा; ग्रहोंका भ्रमण- कचीची*-स्त्री० कचपचिया; जबड़ोंका जोड़; दाढ़ । मु०पथ; काँख काँखका फोड़ा; कछोटा; चहारदीवारी; ऑगन बँधना-दाँत बैठना।। अंतःपुर; समता पलड़ा।
कचुला-पु० चौड़ी पेंदीका कटोरा, प्याला। कक्षोन्नति-स्त्री० [सं०] (प्रमोशन) अधिक ऊँची कक्षा या कचमर-पु० कुचली हुई चीज, भर्ता । मु०-करना,
अधिक ऊँची स्थितिमें चढ़ा दिया, पहुँचा दिया, जाना। निकालना-भर्ता बना देना, पीटकर बेदम कर देना; कखौरी-स्त्री० दे० 'कँखौरी'।
लापरवाहीसे बरतकर चीजको नष्ट कर देना। कगर-पु० कगार, बारी मेड़; कारनिस । * अ०किनारेपर, कचर-पु० हलदीकी जातिका एक पौधा जो दवाके काम निकट; अलग।
आता है; * कटोरा । कगरी-स्त्री० दे० 'कगार'।
कचोटना-अ०कि. चुभना, गड़ना; किसी प्रिय जनको कगरे*-अ० किनारे, अलग ।
। याद कर दुःखी होना । कगार-पु० ऊँचा किनारा नदीका करारा टीला । | कचोरा*-पु० कटोरा। कच-पु० [सं०] सिरके बाल, केश; सूखा फोड़ा या घाव कचोरी*-स्त्री० कटोरी । बंध; मेध; [हिं०] दाँत, काँटे आदिका किसी नरम चीजमें कचौड़ी-स्त्री० दे० 'कचौरी' । तेजीसे धंसने या कुचले जानेकी आवाज ('कच'से चभ कचौरी-स्त्री० उरद या किसी और चीजकी पीठी भरकर गया)। वि० 'कच्चा'का समासमें व्यवहृत रूप ।-दिला- बनायी हुई पूरी; समोसेका मसाला भरकर बनाया हुई वि० कच्चे दिलका ।-पंदिया-वि० कच्ची पेंदीका; जिसकी छोटी टिकिया। बातका भरोसा न हो, दुलमुल । -लोहा-पु०,-लोही कञ्चा-वि० अनपका, अपक्का हरा (फल), आँचमें न -स्त्री० कच्चा लोहा । -लोह-पु० पंछा।
तपाया हुआ (कच्चा घड़ा); अधकचरा, जिसके पकने में कचकच-स्त्री० दे० 'किचकिच'।
कसर हो (चावल अभी कुछ कच्चे है); असंस्कृत, साफ कचकचाना-अ० क्रि० कचकचकी आवाज होना; दाँत / न किया हुआ; मिट्टीका बना प्रामाणिक तौल-मापसे कम पीसना।
(कच्चा सेर, कच्चा बीघा); जो पके रूपमें न हो; जिसमें कचकोल-पु० दरियाई नारियलका भिक्षापात्र ।
काट-छाँट, रद-बदल हो सके ( कच्चा मसौदा ); जो नियकचड़ा-पु० दे० 'कचरा'।
मित रूपमें, बाकायदा न हो (कच्ची रसीद); अधिक दिन कचनार-पु० एक पेड़ जिसकी कली तरकारी और छाल | न टिकनेवाला (कच्चा रंग); पूरी बादको न पहुँचा हुआ; तथा फूल दवाके काम आते है, कांचनार ।
अपरिपक्व, अनुभवहीन; जिसमें धैर्य, दृढ़ता न हो, कमकचपच-पु० थोड़ी जगहमें बहुतसो चीजोंका जमा हो जोर, बेहिम्मत; अपटु, अनाड़ी; अनभ्यस्त; नकली जाना, गिचपिच; कचकच ।
(गोटा)। पु० खाका; कच्ची सिलाई मसौदा: खर्रा कञ्चपचिया, कचपची*-स्त्री० आकाशमें पूर्वकी ओर कनपटी । -असामी-पु. वह असामी जिसे खेतपर दिखाई देनेवाला छोटे तारोंका एक समूह कृत्तिका नक्षत्र कोई स्थायी अधिकार न हो, शिकमी असामी; जो बातका चमकीला बुंदा, सितारा ।
धनी, लेन-देनमें खरा न हो। -काग़ज़-पु० तेल आदि कचबची-स्त्री० चमकदार बुंदा, सितारा ।
छाननेका कागज; वह दस्तावेज जिसकी रजिस्टरी न हुई
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१३.
कच्चू-कट हो। -कोढ़-पु० खुजली; गरमीकी बीमारी। -घड़ा- कछनी-स्त्री० घुटनेतककी कसी हुई धोती जिसमें दोनों पु० न पका हुआ घड़ा; सीखनेकी उम्रका, संस्कार ग्रहण ओर लाँग बाँधी जाती है। छोटी धोती; घुटनेतक रहनेकरने योग्य व्यक्ति (बालक आदि)। -चिट्ठा-पु० पूरा वाला एक तरहका धाँघरा; वह वस्तु जिससे कोई चीज विवरण, सञ्चा हाल, कथा; किसीकी गुप्त या गोपनीय बातें | काछी जाय। (खोलना, सुनाना)। -चूना-पु० बिना बुझाया हुआ | कछवाहा-पु० राजपूतोंकी एक उपजाति । चूना । -जिन-पु० मूर्ख; हठी, पीछे पड़ जानेवाला कछान-पु० कछनी काछना। आदमी। -जोड़,-टाका-पु० राँगेका जोड़। -पक्का- कछार-पु० नदीके किनारेकी तर और नीची जमीन । वि० सिझा-अनसिझा । -पैसा-पु० स्थान-विशेषमें | कछियाना-पु० काछियोंकी बस्ती; वह खेत जिसमें तरकाप्रचलित पैसा-गोरखपुरी, बालासाही आदि। -माल- रियाँ बोयी जाय तरकारियोंकी खेती। पु० वह वस्तु जिससे (शिल्प द्वारा) कोई चीज बनायी कछु*-वि० दे० 'कुछ' । जाय (जैसे कपड़ेके लिए. रुई); कच्चा बाना; कच्चा गोटा । | कछआ(वा)-पु० एक प्रसिद्ध जल-जंतु, कच्छप । -हाल-पु० दे० 'कच्चा चिट्टा'। कञ्ची कली-स्त्री० | कछक*-वि० दे० 'कुछ' । मुँहबँधी कली; अप्राप्त-यौवना स्त्री । -की-स्त्री० कछोटा-पु०, कछोटी-स्त्री० कछनी; स्त्रीको कछनीके मुकदमेका फैसला होनेके पहले निकलवायी जानेवाली कुकी, टुंगपर पहनी हुई धोती। मु०-मारना-स्त्रीका कछोटा -गोटी,-गोली-स्त्री० चौसरकी वह गोटी जिसने आधा बाँधना। या अधिक रास्ता पार न कर लिया हो। -चीनी-स्त्री० कज-वि० [फा०] टेढ़ा, झुका हुआ, वक्र । पु० ऐब (?) । राबसे शीरा निकालकर बनायी हुई चीनी जो अधिक
। निकालकर बनाया हुइ चाना जा आधक | कजरा*-पु० काजल; काली आँखोंवाला बैल । वि० काली साफ नहीं होती। -ज़बान-स्त्री० गाली, अपशब्द । आँखोंवाला; जिसकी आँखोंमें काजल लगा हो; श्याम । -जाकड-स्त्री. वह बही जिसमें कच्ची विक्री, जाकड़पर कजराई-स्त्री० कालापन । गयी हुई चीजका ब्योरा लिखा जाय। -नकल-स्त्री० कजरारा-वि० काजल लगा हुआ, अंजनयुक्त; काला । खानगी तौरपर ली हुई सरकारी कागजकी नकल । कजरी-पु० एक धान । स्त्री० दे० 'कजली' । -नीद-स्त्री० वह नींद जो पूरी न हुई हो । -पक्की कजरौटा, कजलौटा-पु० काजल पारने रखनेकी डॉडीदार बात-स्त्री० अपशब्द, गाली । -पेशी-स्त्री० मुकदमेकी डिबिया । पहली पेशी जिसमें फैसला नहीं होता। -बही-स्त्री० | कजरीटी, कजलौटी-स्त्री० छोटा कजरौटा। वह बही जिसमें कच्चा हिसाब, याददाश्तें आदि लिखी कजला-पु० स्याह रंगका एक पक्षी, मटिया। वि० काली जायँ । -रसोई-स्त्री० पानीमें पका हुआ अन्न, पक्की आँखोंवाला; जिसकी आँखों में अंजन लगा हो। रसोईका उलटा । -रोकड़-स्त्री० वह बही जिसमें | कजलाना-अ० क्रि० स्याह पड़ना; आगका जवाना । स० रोजके आय-व्ययका कचा हिमाव लिखा जाय । क्रि० काजल लगाना । -सड़क-स्त्री० वह सड़क जिसपर गिट्टियाँ या कंकड़ न कजली-स्त्री० कालिख पारे और गंधककी लुगदी; काली कूटे गये हों। -सिलाई-स्त्री० बखिया करनेके पहले आँखोंवाली गाय; एक तरहकी भेड़; स्त्रियोंका एक त्योहार डाला हुआ टाँका जो पीछे खोल दिया जाता है, लंगर । जो भादों बदी तीजको मनाया जाता है। इस अवसर के लिए कच्चे पक्के दिन-पु० चार-पाँच महीनेका गर्भ; दो मिट्टी में गोदकर उगाये गये जौके पौधे, जई; एक तरहका ऋतुओंका संधिकाल । -बच्चे-पु० छोटे बच्चे; बहुतसे | गीत जो बरसातमें मिर्जापुर आदिमें गाया जाता है। बाल-बच्चे। मु. कच्चा करना-वातिल ठहराना, काट | कजा*-स्त्री० माँड़, काँजी। देना; लजित करना; कच्ची सिलाई करना ।-जाना-गर्भ क्रजा-स्त्री० [अ०] ईश्वरीय आदेश; नियति, भाग्य; मृत्यु गिरना । -पड़ना- गलत ठहरना; सकुचाना ।-(ची) कर्तव्य-पालन; निर्णय या न्याय करना। गोटी, -गोली खेलना-अनाड़ी, अनुभवहीन होना। कजाक-पु० दे० 'कज्जाक'। कच्चे घड़े पानी भरना-कठिन काम करना ।
कजाकी -स्त्री० दे० 'काजाकी'; * छल, धोखेबाजी। कच्चू-स्त्री० अरवी, बंडा ।
कजाचा-पु० एक तरहकी ऊँटकी काठी। कच्छ-पु० [सं०] किनारेकी जमीन, कछार; अनूपदेश, कज़िया-पु० [अ०] झगड़ा, टंटा । दलदल जमीन धोतीकी काछ या लाँग, नौकाका भाग- |
कजी-स्त्री० [फा०] टेढ़ापन, वक्रता; दोष । विशेष; कच्छ देश; * कछुआ । -प-पु० कछुआ; | कजल-पु० [सं०] काजल; कालिख सुरमा बादल । विष्णुके २४ अवतारों से एक ।
कजलित--वि० [सं०] कालिखसे पुता हुआ; आँजा हुआ, कच्छटिका-स्त्री० [सं०] धोतीकी लाँग (कछोटा)। जिसमें काजल लगा हो। कच्छा-स्त्री० चौड़े छोरवाली बड़ी नाव जिसमें दो पतवारें कजली-स्त्री० [सं०] एक तरहकी मछली; रोशनाई पारे
लगती हैं। कई बड़ी नावोंको मिलाकर बनाया गया बेड़ा। और गंधकके मिश्रणसे बना हुआ एक द्रव्य। कच्छी-वि० कच्छ देशका। पु० कच्छ देशका निवासी रजाक-पु० [तु] एशियाई रूसकी एक तुर्क जाति जो कच्छ देशका घोड़ा जिसकी पीठ बीचमें कुछ गहरी वीरताके लिए प्रसिद्ध है; डाकू, लूट-मार करनेवाला । होती है।
करजाकी-स्त्री० [तु०] लुटेरापन, राहजनी । कछना-पु० दे० 'कछनी ।
। कट-पु० [सं०] हाथीका गंडस्थल; कटिदेश, श्रोणि चटाई,
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कटक-कव्याना
१३२ टट्टी; घास, सरपत; शव; अरथी; श्मशान; [अं०] काट, कटाछनी-स्त्री० मारकाट । तराश ।-पीस-पु० नये कपड़ोंके टुकड़े; वह नया कपड़ा कटान-स्त्री० कटने या काटनेकी क्रिया। जो बुनाईके समय ही कट गया हो।
कटाना-स० क्रि० काटनेकी क्रिया दूसरेके कराना; डसकटक-पु० [सं०] सोना; सोनेका कड़ा; सेना, फौजा वाना; गाड़ी आदि बगलसे घुमाकर ले जाना (गाड़ीवान
समूह; पहाड़का मध्य भाग; राजधानी; लवण; चटाई। कटार-स्त्री० एक दुधारा हथियार, खंजर । कटकई-स्त्री० सेना, फौज ।
कटारी-स्त्री० छोटी कटार । कटकट-स्त्री० दाँतोंके एक दूसरेपर लगनेसे होनेवाला कटाव-पु० काट; काट या खोदकर बनाये हुए फूल आदि । शब्द; किचकिच ।
-दार-वि० जिसपर कटावका काम हुआ हो। कटकटना*-अ० कि० दे० 'कटकटाना।
कटावन-पु० कटाई करनेका काम; कतरन । + वि० काटने कटकटाना-अ० क्रि० दाँत पीसना ।
वाला, भयंकर । कटकाई*-स्त्री० कटक, सेना।
कटाह-पु० [सं०] कड़ाह; कछुएकी पीठका कड़ा आवरण; कटकी (किन्)-पु० [सं०] पहाड़ ।
सूप; टूटे हुए घड़ेका टुकड़ा; भैसका बच्चा । कटखना-वि० काट खानेवाला; चिड़चिड़ा, क्रोधी कटि-स्त्री० [सं०] कमर; कमरके नीचेका मांसल भाग; कटघरा-पु० दे० 'कठघरा'।
पेड़ ; हाथीका गंडस्थल । -जेब-पु० [हिं०] करधनी । कटजीरा-पु० स्याहजीरा ।
-देश-पु० पेड़ ; श्रोणि । -बंध-पु० कमरबंद; सरदीकटताल-पु० दे० 'करताल'।
गरमीकी कमी-बेशीके विचारसे किये गये पृथ्वीके विषुवत् कटती-स्त्री० बिक्री; खपत; छंटना ।
रेखाके समानांतर पाच विभागों में से एक। -बद्ध-वि० कटना-अ० क्रि० दो टुकड़े होना; टुकड़े होना; विभक्त कमरबस्ता, तैयार, आमादा। -सूत्र-पु० करधनी, होना; किसी धारदार चीजका शरीर में धंसना, जख्मी कमरपट्टी। होना; पिसना; अलग होना; दूर होना; बीतना; खत्म कटियाना-अ० त्रि.० कंटकित, रोमांचित होना। होना; लज्जित होना; काटा जाना; कतरा जाना; युद्ध में कटीला-वि० काँटेदार; नुकीला, तीक्ष्ण, पैना; तेज असर मारा जाना मिलना, हाथ लगना (माल कटना); रद्द करनेवाला; मुग्ध करनेवाला; आनबानवाला। होना; खारिज होना; मुजरा या मिनहा होना; खाने या कटु-वि० [सं०] कड़वा, चरपरा; अप्रियः बुरा लगनेवाला । क्यारीके रूपमें विभाजित होना; किसी संख्याका पूर्ण पु० ६ रसोंमेसे ए.क; कड़वापन । -त्रय-पु० त्रिकुटा। विभाजन या बराबर हिस्सों में बँट जाना; गाड़ी आदिसे -भाषी(षिन)-वि० कड़वी बात बोलनेवाला राहमें मालका चुरा लिया जाना । मु०कट मरना-लड़ कटुआ -वि० अनेक टुकड़ोंमें कटा हुआ मरना । कटपर नमक छिड़कना-दुखियाको और दुःख कटूक्ति-स्त्री० [सं०] कड़वी बात । देना, कष्ट पाते हुएको कष्ट पहुँचाना ।
कटया-पु० काटनेवाला; फसल काटनेवाला स्त्री० कटनास*-पु० नीलकंठ।
भटकटैया। कटनि*-स्त्री० काट; आसक्ति ।
कटोरदान-पु० पीतल आदिका एक ढक्कनदार बरतन । कटनी-स्त्री० फसलकी कटाई काटनेका औजार । कटोरा-पु० [सं०] फूल, काँसे आदिका प्याला । मु०कटरा-पु०. छोटा चौकोर बाजार; * कटार ।
चलाना-चोरका पता लगानेके लिए मंत्रकी शक्तिसे कटोरेकटवाँ-वि० जिसमें कटाईका काम हुआ हो।-ब्याज-पु० | को चलाना।
वह सूद जो कुछ मूल धन चुकता हो जानेपर शेषपर लगे। कटोरिया-स्त्री० दे० 'कटोरी' । कटवाँसी-पु० एक तरहका ठोस बाँस ।
कटोरी-स्त्री० छोटा कटोरा, कटोरीकीसी शकलवाली चीज कटवाना-स० क्रि० दे० 'कटाना।
अँगियाका वह भाग जिसमें स्तन रहते हैं; तलवारकी कटसरैया-स्त्री० एक काँटेदार पौधा ।
मूठमें ऊपरका गोला भाग; हरी पत्तियोंका कटोरीके कटहर* --पु० दे० 'कटहल'।
आकारका वह भाग जिसमें फूल निकलते और रहते है। कटहरा-पु० दे० 'कठघरा' । स्त्री० एक छोटी मछली। कटौती-स्त्री० किसी रकममेंसे (धर्मादा, दस्तूरी आदिके कटहल-पु० एक बड़ा फल जो खानेके तथा तरकारीके रूपमें ) कुछ काट लेना । -का प्रस्ताव-किसी विभागके काम आता है। इसका पेड़ ।
कार्यपर असंतोष प्रकट करनेके लिए उसके खर्चकी माँगसे कटहा-वि० काटनेवाला।
कोई छोटी रकम घटा देनेका प्रस्ताव । कटा*-स्त्री कटाकटी, मारकाट; हत्या प्रहार, चोट । कट्टर-वि० काट खानेवाला; दृढ़ः जिसे अपने मत या कटाइक*-वि० काटनेवाला ।
विश्वासका अधिक आग्रह हो, दुराग्रही असहिष्णुः अनुकटाई-स्त्री० काटनेका काम; काटनेकी मजदूरी; भटकटैया।
दार विचारवाला। कटाउ*-पु० दे० 'कटाव' । वि० काटे जाने लायक । कहा-वि० तगड़ा, मोटा-ताजा। कटाकट-पु० कटकट शब्द ।
कट्ठा-पु० जमीनकी एक नाप, जरीबका बीसवाँ भाग; कटाकटी-स्त्री० मारकाट, खून-खराबा।
एक प्रकारका (लाल) गेहूँ। कटाक्ष-पु० [सं०] तिरछी निगाह; आक्षेप, चोट, तनज । कट फल-पु० [सं०] कायफल । कटाच्छ*-पु० दे० 'कटाक्ष'।
कठ्याना*-अ०नि० दे० 'कटियाना'।
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१३३
कटंगर - वि० मोटा; कड़ा ।
कठ - पु० एक बाजा; काठ (केवल समासमें ) । वि० काठका बना; घटिया, निकृष्ट; कठोर (समास में ) । – केला - पु० एक घटिया जातिका केला, जो कड़ा और कम मीठा होता है । -कोला - पु० कठफोड़ा चिड़िया । -गुलाब - पु० एक तरहका जंगली गुलाब । - गूलर - पु० एक प्रकारका गूलर, कठूमर । - घरा-पु० काठका जँगलेदार घर; बड़ा पिंजड़ा जिसमें कोई जंगली जानवर रखा जा सके । - घोड़ा-पु० घोड़ेकी सवारीका एक स्वाँग । -जामुनपु० घटिया जामुन, छोटा और अधिक खट्टा जामुन । - ताल - ५० दे० 'करताल' । - पुतली - स्त्री० काठकी पुतली या गुड़िया जिसे तार या सूत हिलाकर नचाते हैं; दूसरे के आदेश या इशारेपर काम करनेवाला व्यक्ति । - ० का नाच - एक तमाशा जिसमें कठपुतलियोंका नाच दिखाया जाता है । -फोड़वा, - फोड़ा - पु० एक चिड़िया जो अपनी चोंचसे पेड़ोंकी छाल छेदकर उसके नीचेके कीड़ोंको खाती है । - बाप- पु० सौतेला बाप | - मलिया * - वि० जो काठकी माला पहने हो । पु० बना हुआ साधु । - मस्त, - मस्ता- वि० मस्त, बेफिक्र; मुस्तंडा । - मुल्ला - पु० कम पढ़ा हुआ, कट्टर, अक्षरपूजक मुल्ला या मौलवी ।
कठरा - पु० दे० 'कठघरा'; कटौता; काठका संदूक | कठला - पु० चाँदीकी चौकियों, बघनखा, बजरबट्टू आदिकी माला जो बच्चोंको पहनायी जाती है ।
कठवत - स्त्री०, कटवता - पु० दे० 'कठौत' ।
कठारा* -- पु० नदी आदिका किनारा । कठिन - वि० [सं०] कड़ा, सख्त; दुस्साध्य, मुश्किल ; टेढ़ा । * स्त्री० कठिनाई; कष्ट । - पृष्ट-पु० कछुआ । कठिनताई * - स्त्री० दे० 'कठिनाई' | कठिनाई - स्त्री० कठिन, दुस्साध्य होना; कष्टः संकट; दिक्कत, झंझट |
कठिया - वि० कड़े छिलकेवाला । पु० एक तरहका गेहूँ । कटुवाना * - अ० क्रि० सूखकर काटकी तरह कड़ा हो जाना । कठूमर - पु० जंगली गूलर । कठेठ, कठेठा* - वि० कठोर ।
कठोर - वि० [सं०] कड़ा, सख्त, निष्ठुर, बेरहम; विकासप्राप्त । - गर्भा - स्त्री० जिस स्त्रीका गर्भ पूर्ण विकसित - ७-८ मासका - हो चुका हो ।
कठोरता - स्त्री० [सं०] कड़ापन, सख्ती; निर्दयता ।
कठोरताई* - स्त्री० दे० 'कठोरता' । कठौत - स्त्री० छोटा कठौता ।
कठौता - पु० काठका वह छिछला बरतन जिसमें प्रायः खाने-पीनेका सामान रखा जाता है । कठौती - स्त्री० छोटा कठौता ।
कडक - पु० [सं०] समुद्री नमक ।
कड़क -स्त्री० बहुत कड़ी और डरावनी आवाज; बिजली चमकनेके बाद होनेवाली आवाज; जोरसे डाँटने, डपटनेकी आवाज; बिजली; पेशाबका रुक-रुककर जलन के साथ आना; रुक-रुककर होनेवाला दर्द; घोड़ेकी सरपट चाल; पटेबाजीका एक हाथ - नाल-स्त्री० एक तरहकी तोप ।
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कटंगर - कदना
कड़कड़ाता - वि० जिससे कड़कड़की आवाज निकले, कलफदार; तेज ।
कड़कड़ाना-अ० क्रि० कड़कड़ शब्द करना; धी तेलका इतना गरम हो जाना कि उसमेंसे कड़कड़की आवाज निकले । स० क्रि० खूब गरम करना ( घी आदि ) । कड़कड़ाहट - स्त्री० कड़कड़की आवाज । कड़कना - अ० क्रि० बिजली कौंधनेकी आवाज होना, गरजना; डाँटते हुए जोर से बोलना ।
कड़खा- पु० वीरोंकी प्रशंसा में रचित गीत जो योद्धाओंको उत्साहित करने के लिए गाया जाता है । कड़खैत - पु० कड़खा गानेवाला, भाट | कड़वा - वि० जीभको लगनेवाला; झालदार; कटुः अप्रिय; नागवार ; क्रोधी; चिड़चिड़ा; रुष्ट, खफा; कठिन; टेढ़ा । तेल - पु० सरसों का तेल । - पन - पु०, - हट - स्त्री० कड़वा होनेका भाव, कटुता । मु०- घूँट पीना - अति कष्टकर बातको सह लेना |
कड़वाना - अ० क्रि० कड़वा लगना; कड़वा हो जाना । कड़वी - वि० स्त्री० दे० 'कड़वा' । स्त्री० जुआरके डंठल जो चारेके काममें लाये जायें। - खिचड़ी, - रोटी - स्त्री० वह खाना जो मृत व्यक्तिके निकट संबंधी या मित्र उसके कुटुंबियों के लिए भेजते हैं ।
कड़ा - वि० सख्त, कठोर; जो नरम या लचीला न हो; कसा हुआ, ठोस; रिआयत न करनेवाला; दचित्त, धीर; कठिन; दुष्कर; न दबने, न डरनेवाला; तेज; गहरा; कर्कशः तीव्र असह्य; रोषसूचक (तेवर); कड़ी देहवाला; सशक्त । [स्त्री० कड़ी ] । पु० चूड़ीके आकारका गहना जो हाथ या पाँव में पहना जाता है, वलय; लोहेका बड़ा छला जिसे सिख पहनते हैं; कंडाल - कड़ाही आदिको उठानेके लिए उसमें लगा हुआ छला; एक तरहका कबूतर । मु०पड़ना-ध्दता दिखाना, न दबना । कड़ाई - स्त्री० कड़ापन, सख्ती; कठोर व्यवहार
कड़ाका - पु० कड़ी चीजके टूटने की आवाज; उपवास, फाका । - - (के) का - तेज, सख्त, जोरका । कढ़ाबीन - स्त्री० घोड़सवारोंके उपयुक्त छोटी बंदूक । कड़ाह, कड़ाहा - पु० लोहेका गोला, छिछला बरतन जो अधिक मात्रामें पूरियाँ, तरकारी, गुड़ आदि बनानेके काम आता है ।
कड़ाही - स्त्री० कड़ाहेकी शक्लका छोटा पात्र । कड़िहरा - स्त्री० कमर । कड़िहार* - पु० ऊद्धारक, निकालनेवाला । कड़ी - स्त्री० कठिनाई, मुसीबत; जंजीरका एक छला कोई चीज लटकानेका छल्ला; गीतका एक पद; छोटी धरन या शहतीर; भेड़ आदि की छातीकी हड्डी; जरीबका १ / १०० भाग । वि० दे० 'कड़ा' । - कैद - स्त्री० वह सजा जिसमें कैदीसे कड़ी मेहनतके काम लिये जायँ, सपरिश्रम कारावास । क. हुआ - वि० दे० 'कड़वा' । - कसैला - वि० अरुचिकर । - तेल - पु० सरसों का तेल ।
क. हुआना-अ० क्रि० कडुवा लगना; आँखें गड़ना; खफा होना ।
कढ़ना - अ० क्रि० निकलना; खिंचना; * उदय होना; लाभ
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कढ़राना-कथना
१३४ होना; बढ़ जाना; काढ़ा जाना; दूधका खौलकर गाढ़ा कतरी-स्त्री० कोल्हूका पाट; एक गहना; कतरनी; जमी होना। मु० कढ़ जाना-किसी स्त्रीका किसीके साथ हुई मिठाईका पतला टुकड़ा, कतरी। निकल जाना।
क़तल-पु० दे० 'कल'। कढ़राना,कढ़लाना*-सक्रि० घसीटकर बाहर निकालना। कतला-पु० किसी खाद्य वस्तुका तिकोने या चौकोने कढ़वाना-स० क्रि० दे० 'काढ़ना'।
आकारमें कटा हुआ टुकड़ा, फाँक । कढ़ाई-स्त्री० बेल-बूटे बनानेका काम या उत; निकालने-कतली-स्त्री० पकवान आदिके चौकोर कटे टुकड़े; चीनीकी की क्रिया था उज्रत; दे० 'कड़ाही'।
चाशनीमें पगे खरबूजेके बीज, चिरौंजी आदि । कढ़ाना-स० क्रि०निकलवाना, बाहर कराना; बेल-बूटे | कतवाना-सक्रि० कातनेका काम कराना। बनवाना।
कतवार-पु. कूड़ा-करकट; * कातनेवाला । -खानाकढ़ाव-पु० बेल-बूटेका काम दे० 'कड़ाह' ।
पु० कूड़ा-करकट आदिके फेंकनेका स्थान । कढ़ावना*-स०नि० दे० 'कढ़ाना।
कतहुँ, कतहूँ*-अ० कहीं, किमी जगह । कढ़ी-स्त्री० बेसन, दही और मसालेके योगसे बननेवाला क़ता-स्त्री० [अ०] काटना; काट, तराश; काट-छाँट दंग। लपसी जैसा एक व्यंजन । मु०-का(कासा)उबाल- कताई-स्त्री० कातनेकी क्रिया; कातनेकी मजदूरी । क्षणिक उत्साह या आवेश ।-में कंकड़ी,-में कोयला- कतान- पु० अधिक ऐंठनेवाले धागेका बारीक रेशमी कपड़ा अत्यंत सुंदर वस्तुमें खटकनेवाला दोष होना।
जिससे साड़ियाँ, दुपट्टे आदि बनाये जाते हैं। पुराने कदआ(वा)-पु० मटके अदिसे पानी निकालनेका बरतन | जमानेका एक अत्यंत सुंदर कोमल वस्त्र।
आटा-चावल आदि निकालने या नापनेका काम देनेवाला ताना-स० वि० 'कातना'का प्रे०, कतवाना । बरतन; ऋण; बच्चोंके प्रातःकाल खानेके लिए बचाकर कतार-स्त्री० [अ०] पाँत, पंक्ति; क्रम, सिलसिला समूह । रखा गया रातका भोजन । वि० अलग किया हुआ। कति-वि० [सं०] कितना; कितने; * कितने ही; कौन करैया-पु० निकालनेवाला । स्त्री० कड़ाही।
बहुसंख्यक। कढ़ोरना, कढ़ोलना*-सक्रि० घसीटना ।
कतिक-वि० कितना; थोड़ा बहुत । कण-पु० [सं०] अनाजका एक दाना; चावल आदिका कतिपय-वि० [सं०] कई; कुछ । बहुत छोटा टुकड़ा, जलसीकर; रवा; भिक्षा। -जीर, कतीरा-पु० एक पेड़का गोंद । -जीरक-पु० सफेद जीरा। -भक्ष,-भुक् (ज)- कतेक*-वि० दे० 'कितेक' । पु० कणाद मुनि ।
कतेब-स्त्री० किताब, धर्मग्रंथ । कणाद-पु० [सं०] वैशेषिक दर्शनके प्रवर्तक उलूक मुनि। कतौनी-स्त्री० कताई; ढिलाईसे काम करना; बहुत देर कणिका-स्त्री० [सं०] कण; तिनका; जीरा; अग्निमंथ वृक्ष। लगाना; कातनेकी उज्रत । कणी-स्त्री० कणिका; एक अन्न ।
कत्ता-पु० बसफोरोंका बाँस काटनेका एक औजार, बाँक कणीकरण-पु० [सं०] (क्रिस्टलाइजेशन) कणों या रवोंके छोटी और कुछ टेढ़ी तलवार; पासा । रूपमें परिणत करना; दे० 'स्फटिकीकरण' ।
| कत्ती-स्त्री० छोटी तलवार; बटार; सोनारीको कतरनी; कण्व-पु० [सं०] शकुंतलाका पालन करनेवाले ऋपि। एक तरहकी पगड़ी। कत*- क्यों, किसलिए।
कत्थई-वि० कत्थेके रंगका, खैर। । पु० कत्थई रंग। कृतई-वि० [अ० पका, निश्चित; बिना शर्तका । अ० कत्थक-पु० गाने-बजानेका पेशा करनेवाली एक हिंदू एकदम, नितांत, बिलकुल । -फैसला-पु० पक्का, अंतिम जाति। -नृत्य-पु० कत्थकोंमें प्रचलित एक प्रकारका निर्णय । -हक्म-पु० पक्का, अवश्य कर्तव्य आदेश । नाच। कतक*- अ० क्यों, किसलिए; कैसे कितना ।
करथन-पु० [सं०] डींग मारना । वि० डीग मारनेवाला। कतना-अ०नि० काता जाना।
कथा-पु० खैरकी लकदीका सत जो पानमें खाया जाता है। कतर-छाँट-स्त्री० काट-छाँट ।
काल-पु० [अ०] जानसे मार डालना, वध, हत्या। -की कतरन-स्त्री० कपड़े, कागज आदिके काटने के बाद बच रात-स्त्री० मुहर्रमकी दसवीं रात ।-गाह-पु० वधस्थल । रहनेवाले छोटे, रद्दी टुकड़े।
करले आम-पु० अंधाधुंध वध, अपराधी-निरपराध, बच्चे कतरना-स० क्रि०. कैची या सरौतेसे काटना ।
बूढेका विचार किये बिना सबको करल करना। कतरनी-स्त्री० कतरनेका साधन, औजार; कैची। कथंचित्-अ० [सं०] शायद । कतरब्योंत-स्त्री० काट-छाँट; हिसाब या खर्च में काट-छाँट; कथा-पु० कत्था । किफायतशारी; जोड़-तोड़।
कथक-पु० [सं०] कथा कहनेका पेशा करनेवाला; पुराण कतरवाना-स० कि० कतरनेका काम दूसरेसे कराना। | बाँचनेवाला; दे० 'कत्थक' । कतरा-पु० दे० 'क़तला'।
कथक्कड़-पु० कथा बाँचनेका पेशा करनेवाला; रामायणादिक़तरा-पु० [अ०] बूँद ।
के तरह-तरहके अर्थ करनेवाला । कतराई-स्त्री० कतरनेका काम या मजदूरी।
कथन-पु० [सं०] कहना; वचन, उक्ति वर्णन; उपन्यासकतराना-अ० क्रि० किसीसे बचनेके लिए थोड़ा हटकर का एक भेद । किनारेसे निकल जाना। स० क्रि० कतरवाना, कटवाना। कथना*-स० कि० कहना; निंदा करना।
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कथनी * - स्त्री० बात, कथन; बकवाद । कथनीय - वि० [सं०] कहने योग्य ।
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कथम् - अ० [सं०] किस रूपमें; कैसे; कहाँसे ।
कथरी - स्त्री० चीथड़े जोड़कर बनाया हुआ बिछौना, गुदड़ी। कथांतर - पु० [सं०] दूसरी कथा; किसी कथाके अंतर्गत दूसरी गौण कथा |
कथा-स्त्री० [सं०] कहानी; कल्पित कहानी, हिकायत; वृत्तांत-वर्णन; चर्चा, जिक्र; हाल; रामायण-पुराणादिका अर्थसहित वाचन । -नायक - पु० कथाका प्रधान पात्र या आलंबन । - पीठ-पु० कथाका मुख्य भाग; कहानीकी प्रस्तावना । - प्रबंध - पु० कहानी ; ( कल्पित ) आख्या - यिका । - प्रसंग-पु० बातचीत का सिलसिला; कथावार्त्ता । - वस्तु - स्त्री० कथाका मूल रूप । - वार्त्ता - स्त्री० पुराणादिकी कथाओंकी चर्चा; अनेक प्रकारके प्रसंग | कथानक - पु० [सं०] छोटी कथा; कहानीका खुलासा । कथित - वि० [सं०] कहा हुआ, उक्त ।
कथोद्धात - पु० [सं०] रूपककी प्रस्तावना के पाँच भेदोंमेंसे कदाचन - अ० [सं०] दे० 'कदाचित्' ।
दूसरा कथाका आरंभ ।
कदन्न - पु० [सं०] खराब, मोटा अन्न- साँवा, कोदो आदि । कदम - पु० दे० 'कब' |
क़दम - पु० [अ०] पाँव; डग; चलनेमें दोनों पगोंके बीचका अंतर; पदचिह्नः कार्यविशेषके लिए किया गया यत्न, कोशिश; काम; घोड़ेकी एक चाल । -चा-पु० पैर रखनेकी जगह; पाखाने की खुड्ढी; पाखाना - ब क़दम - अ० साथ-साथ - बाज़- वि० कदमकी चाल चलनेवाला (घोड़ा) । - बोसी - स्त्री० पाँव चूमना; गुरुजनोचित सम्मान-दर्शन; साक्षात्कार । मु०- उखड़ना - पाँव उख ड़ना, भाग जाना। - उठाना- आगे बढ़ना । - चूमनापाँव छूना; गुरुजनोचित सम्मान करना; गुरु मान लेना । - छूना - पाँव पकड़कर प्रणाम करना; किसीकी कसम खाना; खुशामद करना। -निकालना - (घोड़ेको) कदमकी चाल सिखाना; बाहर जाना । पर क़दम रखनापीछे-पीछे चलना, अनुसरण करना ।-ब-क़दम चलनासाथ-साथ चलना; अनुसरण करना । - बढ़ाना- चाल तेज करना; आगे बढ़ना । - मारना-दौड़-धूप करना; यत्न- प्रयत्न करना। -लेना - पाँव पड़ना, पाँव छूकर प्रणाम करना; आदर-सम्मान करना । ( इस शब्द के बहुतसे मुहावरे 'पाँव' में मिलेंगे ।)
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क़दर - स्त्री० [अ०] माप; मात्रा; भाग्य; प्रतिष्ठा, इज्जत । - दान - वि० दे० ' कद्रदान' । दानी स्त्री दे०
९-क
कथनी
'क़द्रदानी' ।
कदरई * - स्त्री० कायरपन ।
कदरज * - वि० दे० 'कदर्य' । पु० एक प्रसिद्ध पापी; + कूड़ाकरकट |
कदरमस* - स्त्री० मार-पीट, लड़ाई । कदराई - स्त्री० कायरपन ।
कदराना * - अ० क्रि० डरना; कचियाना, पीछे हटना । कदर्थ - वि० [सं०] निरर्थक, निकम्मा | कदर्थन - पु०, कदर्थना - स्त्री० [सं०] सताना, पीड़ा पहुँचाना; तिरस्कार; निंदा; दुर्दशा ।
- कन
कदर्शित - वि० [सं०] जिसकी दुर्दशा की गयी हो; तिरस्कृत । कदर्य - वि० [सं०] कृपण, कंजूस; तुच्छ; क्षुद्र । कदली- स्त्री० [सं०] केला; एक हिरन; झंडा । कदा - अ० [सं०] कब, किस समय ।
कदाकार - वि० [सं०] कुरूप, भद्दा, भोंड़ा । पु० बुरा रूप । कदाच, कदाचि* - अ० कदाचित् ।
कथोपकथन - पु० [सं०] बातचीत, संवाद |
कदंब - पु० [सं०] एक सुंदर पेड़ जिसमें गोल, पीले फूल
लगते हैं, कदम; देवताडक तृण; समूह; सरसोंका पौधा । कदंश - पु० [सं०] हीन, निकृष्ट भाग ।
कद - वि० [सं०] जल देनेवाला; सुखद । पु० बादल । * अ० कब, किस समय ।
क़द - पु० [फा०] डील, देहकी ऊँचाई लंबाई ।
कदधव * - पु० कुमार्ग ।
कद्दावर - वि० [अ०] बड़े डील-डौलका, लंबा-चौड़ा ।
कदन-पु० [सं०] वध; विनाश; युद्ध; पाप; *छुरी- 'विरह कद्दू - पु० [फा०] एक प्रसिद्ध तरकारी, लौकी । -कशकदन करि मारत लुंजै' - सू० । पु० कद्दू, कुम्हड़ा आदि रेतनेका आला । क़द्र-स्त्री० [अ०] बड़ाई; इज्जत; दरजा; मरतबा ।-दानवि० कद्र समझनेवाला; सिरपरस्त । - दानी -स्त्री० सिरपरस्ती; गुणकी पहचान |
कद्रु, कद्रू स्त्री० [सं०] कश्यपकी पत्नी जो साँपों की माता मानी जाती है । -ज, पुत्र, सुत- पु० साँप, नाग । कधी । - अ० कभी । कनक* - पु० कनक, सोना ।
कदाचार - पु० [सं०] बुरा, कुत्सित आचार | कदाचित् - अ० [सं०] कभी; शायद । कदापि - अ० [सं०] कभी, हर्गिज
कदाहार - पु० [सं०] बुरा भोजन; खराब चीजें खाना । क़दीम - वि० [अ०] पुराना, प्राचीन । क़दीमी - वि० दे० 'क़दीम' |
कदुष्ण - वि० [सं०] थोड़ा गरम, कुनकुना ।
कद * - अ० कदा; कभी ।
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कन-पु० कण; प्रसाद; भीख; कन्ना; बूँद; सत; 'कान' का समासमें व्यवहृत संक्षिप्त रूप । - कटा - वि० जिसका कान कटा हो, बूचा 1 - खजूरा - पु० गोजरकी जातिका एक कीड़ा जो कभी-कभी कान में घुस जाता 1 - खोदनीस्त्री० लोहे, ताँबे आदिका बना कान खुजलाने और उसका मैल निकालनेका एक औजार । - छेदन - पु० कान छेदे जानेकी रस्म, कर्णवेध संस्कार । - टोप - पु० वह टोपी जिससे कान ढँके रहें । - पट- पु०, पटीस्त्री० कान और आँखके बीचका स्थान, गंडस्थल । - फटा - पु० गोरखपंथी साधु जिसके कान फटे होते हैं । - फुंकवा - पु० कान फूंकनेवाला, दीक्षागुरु । - फुंकावि० दीक्षा देने या लेनेवाला । पु० कान फूँकनेवाला गुरु; शिष्य । - फुसका - पु० कानमें धीरेसे बात कहनेवाला, चुगलखोर; बहकानेवाला । - फुसकी - स्त्री० दे० 'कानाफूसी' । - फूल-पु० दे० 'करनफूल | - बतिया -
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कनउँगली कशी
स्त्री० कान में धीरेसे कही हुई बात। - मैलिया-पु० कानका मैल निकालनेवाला । -रस-पु० संगीतका रसः गाने-बजाने या बात सुननेका व्यसन । - रसिया - वि० संगीत- प्रिय । - सुई - स्त्री० छिपकर सुनना, टोह लेना । - हार* - पु० दे० ' कर्णधार' ।
कनउँगली - स्त्री० कानी उँगली, छिगुनी । कनउड़ * - वि० दे० 'कनौड़ा' ।
|
कनक - पु० [सं०] सोना; गेहूँ या उसका आटा; धतूरा; पलाश; नागकेशर; चंपा । - कली - स्त्री० कान में पहनेकी लौंग । -कशिपु-पु० हिरण्यकश्यप । -क्षार पु० सुहागा। - गिरि, -शैल- पु० सुमेरु पर्वत । - चंपा - स्त्री० कनियारीका पेड़ । - रंभा - स्त्री० स्वर्णकदली । कनकना - वि० हलकी-सी चोटसे भी टूट जानेवाला; चिड़
चिड़ा, तुनुकमिजाज |
कनकनाना - अ० क्रि० चौकन्ना होना; रोमांचित होना; कनिहार - पु० कर्णधार, मल्लाह ।
चुनचुनाना; नागवार लगना ।
कनकनाहट - स्त्री० कनकनाने का भाव ।
कनका - पु० कनकी; कण ।
कनकाचल, कनकाद्रि- पु० [सं०] सुमेरु पर्वत । कनकाध्यक्ष - पु० [सं०] खजांची, कोषाध्यक्ष ।
कनकाना - पु० घोड़ेकी एक जाति ।
करना ।
कनखैया * - स्त्री० दे० 'कनखी' ।
कनकी - स्त्री० चावलका टूटा हुआ कण; छोटा कण । कनकूत - पु० जमींदार और असामीमें उपजके बँटवारे के कनूका * - पु० दाना; कण ।
लिए खड़ी फसलका कृत होना । कनकैया - स्त्री० दे० 'कनकौवा' । कनकौवा - पु० बड़ा पतंग, गुड्डी । - (वे) बाज़ - पु० पतंग उड़ाने-लड़ानेवाला । मु०- (वे) से दुमछल्ला बड़ामुख्य वस्तुसे अंगभूत, उससे उपजी वस्तुका बड़ा होना । कनखियाना - स० क्रि० कनखी से देखना; इशारा करना । कनखी-स्त्री० आँखकी कोर; तिरछी निगाह से देखना; आँखका इशारा, सैन | मु०-मारना - आँखसे इशारा
कनगुरिया - स्त्री० कानी उँगली, छिगुनी ।
कनधार * - पु० कर्णधार, केवट ।
कनमनाना - अ० क्रि० सोनेमें आहट पाकर या बेचैनीसे हाथ-पाँव हिलाना, सिकोड़ना; विरोध-सूचक चेष्टा करना । कनय* - पु० कनक, सोना । कनवास - पु० [ अं० कैनवस ] सन, पटसन आदिका बना
मोटा कपड़ा जिसके पर्दे, जूते आदि बनते हैं, 'किरमिच' । कनस्तर - पु० [अ० 'कनिस्टर'] टीनका चौखूँटा पीपा । कनहार* - दे० 'कन' के साथ |
कना - पु० कन; सरकंडा ।
कनाई - स्त्री० पतली शाखा, टहनी ।
कनाउड़ा* - वि० दे० 'कनौड़ा' ।
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कनावड़ा-वि० दे० 'कनौड़ा' । कनिआरी - स्त्री० कनकचंपा । कनिक-स्त्री० गेहूँ; गेहूँ का आटा । कनिका - स्त्री० दे० 'कणिका' | कनिगर* - वि० आनवाला । कनियाँ * - स * - स्त्री० गोद ।
कनियाना - अ० क्रि० कतराना, आँख बचाकर निकल जाना; गुड्डीका एक ओर झुकना । कनियार - पु० कनकचंपा |
कनिष्ठ वि० [सं०] उम्र में सबसे छोटा; छोटा; अत्यल्प. । कनिष्ठा - वि० स्त्री० [सं०] सबसे छोटी; छोटी । स्त्री० कानी उँगली; सबसे पीछे ब्याही हुई पत्नी; वह नायिका जो पतिको कम प्यारी हो; छोटे भाईकी स्त्री । कनिष्ठिका - स्त्री० [सं०] छिगुनी ।
१३६
कनी - स्त्री० छोटा टुकड़ा; कणिका; हीरेकी कणिका; चावल या भातका वह (छोटा) भाग जो कच्चा रह गया हो; बूंद ।
कनीनका - स्त्री० [सं०] क्कारी लड़की; आँखकी पुतली । कनीनिका, कनीनी - स्त्री० [सं०] छिगुनी; आँख की पुतली । कनीर* - पु० कनेर वृक्ष या उसका फूल । कनु* - पु० दे० 'कण' |
कनेखी* - स्त्री० दे० 'कनखी' । कनेठा - वि० काना; ऍचा-ताना । कनेठी - स्त्री० कान ऐंठना, गोशमाली कनेर, कनैर-पु० एक पौधा जिसमें सफेद, पीले और लाल रंगके फूल लगते हैं, करवीर । कनेरिया - वि० कनेर के फूलके रंगका । कनोई * - पु० कानका मैल, खूंट कनोखा - वि० कटाक्षयुक्त ।
कनौजिया - वि० कन्नौजका रहनेवाला । पु० कान्यकुब्ज
ब्राह्मण |
कनौठा - पु० कोना; किनारा; भाई-बंधु ।
कनौड़ा - वि० काना; अपंग; बदनाम; क्षुद्र; हीन; लज्जित; एहसानमंद | पु० क्रीत दास ।
कनौती - स्त्री० पशुका कान या उसकी नोक; कान खड़े करनेका ढंग; बाली । मु० कनौतियाँ बदलना - घोड़ेका कान खड़ा करना; चौकन्ना होना ।
कन्ना - पु० किनारा, कोर; पतंगमें ऊपर-नीचे बँधा हुआ वह धागा जिसमें लंबी डोर बाँधकर उसे उड़ाते हैं; चावलकी धूल जो छाँटने में निकलती है; पौधोंका एक रोग । वि० कन्ना लगा हुआ (फल या लकड़ी) । मु० - ढीला होनाहौसला पस्त होना; ऐंठ ढीली पड़ जाना। -साधनाकन्नेकी गाँठ ठीक जगह पर बाँधनेके लिए उसकी लंबाई नापना ।
कनागत* - पु० पितृपक्ष ।
क़नात - स्त्री० [तु०] कपड़ेकी दीवार जो खेमे या किसी कन्नी - स्त्री० किनारा; कोर; हाशिया; पतंगका किनारा; खुले स्थानके चारों ओर खड़ी करते हैं ।
नाती - वि० [अ०] कनातसे बनाया हुआ । - मस्जिद - स्त्री० कनात खड़ी कर नमाज पढ़नेके लिए बनाया हुआ स्थान ।
वजन बराबर करनेके लिए पतंगकी काँप या कमानीमें बाँधी जानेवाली धज्जी; वह औजार जिससे राजगीर गारा लगाता, पलस्तर करता है; पेड़का नया कला; तंबाकू के
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कन्यका-कक्र वे कल्ले जो पत्ते काट लेनेपर फिरसे निकलते हैं । मु०- डाश पकाया जाता है। अंडेका छिलका; भड़भजेकी काटना-कतराना, किनारेसे निकल जाना। -खाना- खपड़ी। -क्रिया-स्त्री० शवदाहमें मुर्देकी खोपड़ीको पतंगका उड़नेमें एक ओर झुकना। -दबाना-काबूमें, | बाँससे फोड़नेकी क्रिया; किसी चीजको पूरी तरह नष्ट अधीनतामें लाना।
कर देना। -माली (लिन)-पु० शिव । कन्यका-स्त्री० [सं०] कन्या; अविवाहित लड़की। कपालिका-स्त्री० [सं०] खोपड़ी; घड़ेका टुकड़ा; काली; दुर्गा । कन्या-स्त्री० [सं०] लड़की; क्वाँरी लड़की; दशवर्षीया अवि- कपालिनी-स्त्री० [सं०] दुर्गा। वाहिता बालिका; बारह राशियोंमेंसे छठी; दुर्गा; बड़ी कपाली (लिन्)-पु० [सं०] शिव; कपाल लेकर भीख इलायची; घृतकुमारी; एक वर्णवृत्त । -कुमारी-स्त्री० माँगनेवाला; एक वर्णसंकर जाति, कपरिया।। एक अंतरीप जो दक्षिणमें भारतकी स्थलसीमा है। -गत- | कपास-स्त्री० एक पौधा जिसके डोडेसे रुई निकलती है। वि० कन्या राशिमें स्थित (सूर्य)। -दान-पु० विवाह में | कपासी-वि० कपासके फूलके रंगका। पु० एक रंग जो वरको कन्याका दान । -धन-पु० दहेज, दायज । कपासके फूलसे मिलता और हलका पीला होता है। -भर्ता)-पु० जामाता, कन्याका पति; कात्तिकेय । कपिंजल-पु० [सं०] पपीहा; गौरा पक्षी; तीतर । वि० -रासी-वि० [हिं०] कन्या राशिमें उत्पन्न, स्त्री-स्वभाव- पीले रंगका। वाला; दब्बू; दुर्बल । -शल्क-पु० कन्याका मूल्य जो कपि-पु० [सं०] बंदर हाथी; सूर्यः शिलारस: एक धप । वरकी ओरमे कन्याके पिताको दिया जाय ।
-केतन,-ध्वज-पु० अर्जुन । कन्हाई-पु० दे० 'कन्हैया' ।
कपित्थ-पु० [सं०] कैथ । कन्हावर*-पु० दुपट्टा।
कपिल-वि० [सं०] भूरा, बादामी । पु० एक मुनि जोराजा कन्हैया-पु० कृष्ण; सुंदर बालक; प्रियजन ।
सगरके साठ हजार पुत्रोंको शाप देकर भस्म कर देनेवाले, कपट-पु० [सं०] बनावटी व्यवहार; छल, धोखा; मनके | सांख्य-दर्शनके प्रवर्तक और विष्णुके चौबीस अवता में भावको छिपाना, दुराव ।
माने जाते हैं। अग्निका एक रूप; सूर्य; शिलाजतु; कुत्ता। कपटना-स० क्रि० वस्तुको ऊपरसे थोड़ा तोड़-नोच लेना; कपिला-वि० स्त्री० [सं०] भूरे या बादामी रंगवाली। स्त्री० खोटना; रुपये-पैसे, रकमसे कुछ काट-निकाल लेना। | भूरे या सफेद रंगकी गाय; सीधी गाय ।
कपिश-वि० [सं०] भूरा, बादामी, जिसमें काला-पीला कपटाघाती, छलघाती(तिन्)-पु० [सं०] (स्नाइपर ) रंग मिला हो। पु० भूरा या बादामी रंग; धूप । छिपकर था धोखेमें, शत्रुके शिविरपर गोलियोंकी कपिस*-पु० रेशमी वस्त्र। बौछार करनेवाला या इस तरह किसीको मार डालने, कपींग-पु० [सं०] सुग्रीव हनूमान् । आहत करनेवाला।
कपीश-पु० [सं०] हनूमान् ; सुग्रीव । कपटी (टिन्)-वि० [सं०] छल-कपट करनेवाला, फरेबी। कपूत: पु० नालायक बेटा, कुपुत्र । कपड़-पु० 'कपड़े'का समासमें व्यवहृत रूप। -कोट-कपूती-स्त्री० नालायकी; कपूतका काम । पु० खेमा, तंबू । -गंध-स्त्री० कपड़ा जलनेकी दुगंध। कपूर-पु० स्फटिकके रंग-रूपका एक गंध-द्रव्य जो रखनेसे -छन,-छान-पु० पिसी हुई (सूखी) वस्तुको कपड़ेसे | कुछ दिनोंमें उड़ जाता है। छाननेकी क्रिया (करना)। वि० कपड़ेसे छाना हुआ। कपूरी-वि० कपूरके रंगका । पु० हलका पीला रंग; एक -मिट्टी-स्त्री० रस-भस्मादि बनाने में संपुटपर गीली मिट्टी तरहका पान । स्त्री० एक जड़ी। और कपड़ा लपेटनेकी क्रिया (करना)।
कपोत-पु० [सं०] कबूतर पंडुक चिड़िया। -पालिका, कपड़ा-पु० कपास, ऊन आदिके धागोंसे बुनी हुई ओढ़ने- -पाली-स्त्री० कबूतरोंका दरबा; कबूतरोंकी छतरी। पहननेके काममें आनेवाली वस्तु; पहनावा ।-लत्ता-पु० | कपोतारि-पु० [सं०] बाज।। पहननेका सामान । मु०-उतार लेना-सब कुछ छीन | कपोती-स्त्री० [सं०] कबूतरी; पंडुकी। लेना; बदनपर कपड़ा न रहने देना । -रँगना-गेरुआ | कपोल-पु० [सं०] गाल । -कल्पना-स्त्री. मनसे गढ़ बाना लेना, विरक्त होना। कपड़ों में न समाना-फूले लेना; मनसे गढ़ी हुई बात । -कल्पित-वि० मनगढंत । अंग न समाना। -से होना-रजस्वला होना ।
-राग-पु० गालपरकी लाली । कपड़ी(रौ)टी-स्त्री० दे० 'कपड़मिट्टी'।
कप्तान-पु० [अ० कैप्टेन] जल-स्थल सेनाका एक अफसर कपर्द, कपर्दक-पु० [सं०] कौड़ी; (शिवका) जटा-जूट । । दल-नायक; पुलिस सुपरिटेंडेंट । कपर्दिका-स्त्री० [सं०] कौड़ी।
कप्पड़ (२)*-पु० कपड़ा। कपर्दिनी-स्त्री० [सं०] दुर्गा ।
कफ-पु० [सं०] एक गाढ़ी, लसीली चीज जो अक्सर कपर्दी (दिन )-वि० [सं०] जटाजूटधारी । पु० शिव ।। खाँसनेसे बाहर आती है, बलगम; शरीरकी तीन धातुओंकपाट-पु० [सं०] किवाड़, दरवाजा ।-वक्षा (क्षस्)- (बात, पित्त, कफ)मेंसे एक; झाग, फेन। -करवि०किवाड़ जैसी चौड़ी छातीवाला।
कारक-वि० कफ पैदा करनेवाला । -न-हर-वि० कपार*-पु० दे० 'कपाल'।
कफनाशक। -ज्वर-पु० कफके संचय और प्रकोपसे कपाल-पु० [सं०] खोपड़ी, मस्तक; भाग्यलेख, घड़का | होनेवाला बुखार । टुकड़ा; मिट्टीका भिक्षापात्र, खप्पर वह पात्र जिसमें पुरो-कफ-पु० [अं०] कमीज, कुरते आदिकी आस्तीनका वह
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कफ़न - कम
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दुहरा भाग जिसमें बटन लगता है; खाँसी । - दार- वि० क़बीला - पु० [अ०] कुल; वंश; जाति; जंगली आदमियोंका व्यक्तिविशेषको नेता माननेवाला समूह । स्त्री० पत्नी, जोरू । कबुलवाना - स० क्रि० स्वीकार कराना । कबुलाना - स० क्रि० दे० 'कबुलवाना' । कबूतर - पु० एक प्रसिद्ध पक्षी, कपोत । - खाना - पु० कबूतर रखनेका दरबा। -बाज़ - पु० कबूतर पालने, उड़ाने, लड़ानेवाला |
[हिं०] जिसकी आस्तीन में कफ लगा हो । कफन - पु० [अ०] मुर्दों पर लपेटा जानेवाला कपड़ा, शवाच्छादन । -खसोट - वि० कंजूस; दूसरेका माल जवरदस्ती हड़प जानेवाला । -खसोटी- स्त्री० श्मशानका कर जिसे डोम कफन फाड़कर वसूल करता था; कंजूसी; नोचखसोटकर धन बटोरना । चोर-पु० वह जो कब्र खोदकर मुर्देका कफन चुराये; भारी चोर; दुष्ट व्यक्ति । मु०को कौड़ी न रखना- जो कुछ कमाना सब खर्च कर डालना । - को कौड़ी न होना बहुत गरीब होना । - फाड़कर चिल्लाना या बोलना-बहुत जोर से बोलना । - सिर (सर) से बाँधना - मरनेको तैयार होना; जानपर खेलना ।
-
|
कफनाना - स० क्रि० मुर्देको कफन में लपेटना । कफनी - स्त्री० [अ०] बिना आस्तीनका कुरता जो (मुसलमान) मुको पहनाया जाता है; साधु-फकीरोंका बिना बाँहका पहननेका ढीला-ढाला कुरता ।
कबंध - पु० [सं०] सिरकटा या बिना सिरका घड़; पेट; बादल; जल; पुच्छल तारा; राहु; एक राक्षस जो दंडक नमें रामके हाथों मारा गया ।
कब - अ० किस समय; कभी नहीं ( वह मेरी बात कब सुनता है) । -का- कितनी देरसे; बहुत देरसे; बहुत पहले । कबड्डी - स्त्री० लड़कोंका एक खेल; कंपा । ख़बर - स्त्री० दे० 'कब' |
कबरस्तान, कबरिस्तान - पु० दे० 'कब्रिस्तान' । कबरा - वि० जिसमें दूसरे रंगके दाग-धब्बे हों; चितकबरा । क़बल - अ० दे० 'कल' ।
क़बा - पु० [अ०] एक लंबा, ढीला पहनावा ।
वाला ।
कबाब - पु० [फा०] कुटे या बारीक कटे हुए मांसका गोला या टिकिया जो सीखचेमें गोदकर आगपर सुर्ख की गयी हो । वि० भुना हुआ; जला-भुना । मु०-करना - भूनना; जलाना; कष्ट पहुँचाना। - होना - जलना-भुनना; अति क्रुद्ध होना ।
कबाबचीनी-स्त्री० एक दवा जिसके दाने मिर्च कैसे होते हैं । कबाबी - पु० कबाब बेचनेवाला; मांसभोजी । कबाय* - पु० दे० 'क़बा' ।
कबार - पु० व्यवसाय, व्यापार; छोटा व्यवसाय; रद्दी चीजें क़बाला - पु० [अ०] संपत्ति दूसरेको देनेका दस्तावेज; बयनामा; दानपत्र; अधिकारपत्र ।
कबाहट - स्त्री० दे० 'क़बाहत' ।
बाहत - स्त्री० [अ] दोष, खराबी; कठिनाई; झंझट । कबीर - वि० [अ०] बड़ा; बुजुर्ग; सम्मानित । पु० एक प्रसिद्ध संत, संप्रदाय प्रवर्तक और हिंदी कवि; होली में गाया जानेवाला एक प्रकारका गीत । - पंथी- पु० कबीरके पंथ या संप्रदायका अनुयायी । कबीला - पु० दे० 'कमीला' ।
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कबूतरी - स्त्री० कबूतरकी मादा, कपोती; नर्तकी; सुंदर स्त्री । क़बूल - पु० [अ०] मानना, स्वीकार करना, इकबाल करना । कबूलना - स० क्रि० स्वीकार करना, मान लेना । कबूलियत - स्त्री० [अ०] स्वीकृति; वह दस्तावेज जो पट्टा लेनेवाला देनेवालेको लिखकर उसकी शर्तोंकी स्वीकृति के रूप में देता है।
कबाड़ - पु० टूट-फूटा सामान, रद्दी चीजें । कबाड़ा - पु० झंझट, बखेड़ा ।
कबाड़िया, कबाड़ी - पु० टूटी-फूटी चीजें खरीदने-बेचने क़ब्रिस्तान - पु० [अ०] वह
कबूली - स्त्री० चनेकी दालकी खिचड़ी या पुलाव | क़ब्ज़ - पु० [अ०] पकड़ अधिकार; अवरोध; कोष्ठवद्धता, मलका आँतों में रुकना, पेट साफ न होना ।
क़ब्ज़ा - पु० [अ०] दखल; अधिकार; पकड़; काबू; बस; दस्ता, मूठ; बाजू ; लोहे या पीतलका पुरजा जिससे किवाड़े आदि चौखटसे जोड़नेपर घूम सकते हैं; कुश्तीका एक पेंच । - दार- वि० कब्जा रखनेवाला; अधिकारी; जिसमें कब्जा लगा हो । मु० क़ब्ज़ेपर हाथ रखनातलवार खींचने, किसीपर वार करनेको उद्यत होना । कब्जियत - स्त्री० दे० ' कब्ज' |
क़ब्र - स्त्री० [अ०] वह गढ़ा जिसमें मुर्दा गाड़ा जाय; उसके ऊपर रखा हुआ पत्थर या बनवाया हुआ चबूतरा | -गाह - स्त्री० कब्रिस्तान । - का मुँह झाँक आनामौत के मुँह से निकल आना, मरते-मरते बचना । (अपनी ) - खोदना - अपने सर्वनाशका उपाय करना । - में पाँव (पैर) लटकाये होना - मृत्युका दिन करीब होना; अति वृद्ध होना ।
स्थान जहाँ मुर्दे गाड़े जायँ,
जहाँ बहुत-सी क हों । क़ब्ल-अ० [अ०] पहले, पेश्तर, आगे ।
कभी - अ० (कब + ही) किसी समय । -कभी - अ० जबतब यदा तदा । -का - कबका, अरसे से । कभू* - अ० दे० 'कभी' |
कमंगर - पु० [फा०] कमान बनानेवाला; चित्रकार, उखड़ी हुई हड्डी बैठानेवाला |
कमंडल - पु० दे० 'कमंडलु' ।
कमंडली - वि० कमंडलधारी; ढोंगी । पु० साधु | कमंडलु - पु० [सं०] साधु-संन्यासियोंका दरियाई नारियल, तूंकी आदिका बना जलपात्र ।
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कमंद - * ५० दे० 'कबंध' । स्त्री० [फा०] फंदा; फंदेदार रस्सी जिसके सहारे चोर ऊँचे मकानोंपर चढ़ जाते हैं । कम - वि० [फा०] थोड़ा, अल्प; छोटा; बुरा, खराब | अ० क्वचित्, बहुत कम । - अन्नल - वि० मूर्ख; निर्बुद्धि । - असल- वि० दोगला कमीना, नीच । - उम्र - वि० छोटी उम्रवाला, अल्पवयस्क । - क़ीमत- वि० सस्ता, अल्पमूल्य । - ख़र्च - वि० किफायत से चलनेवाला । ( - ० बाला नशीं - मस्ती पर बढ़िया, यथेष्ट उपयोगी । )
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कमची-कमानी
-खराक-वि० कम खानेवाला । -स्वाब-पु० एक गिलास; मूत्राशय । -गट्टा-पु० [हिं०] कमलका बीज । रेशमी कपड़ा जिसपर सोने-चाँदीके तारोंका काम होता -गर्भ-पु. कमलका छत्ता। -ज-पु० ब्रह्मा। -नयन है । -ज़ोर-वि० दुर्बल, कम ताकत या असरवाला। -वि० कमलकी पंखुड़ीसी आँखोंवाला । पु० विष्णु, राम; -ज़ोरी-स्त्री० दुर्बलता, अशक्तता । -(व, मो)ज्यादा, कृष्ण। -नाम-पु० विष्णु । -नाल-स्त्री० कमलकी -बेश-अब थोड़ा-बहुत । -तरीन-वि० छोटेसे छोटा; डंडी। -बंध-पु० एक चित्रकाव्य । -बंधु-बांधवकमसे कम; लघुतम । -तोला-वि० कम तौलनेवाला, पु० सूर्य । -बाई-स्त्री० [हिं०] कँवल रोग, पीलिया। डाँड़ी मारनेवाला । -नज़र-वि० जिसकी निगाह थोड़ी -भव-भू-संभव-पु० ब्रह्मा ।-वन-पु० कमलोंका ही दूरतक जाय, अदूरदर्शी । -नसीब-वि० अभागा, समूह । -वायु-स्त्री० एक रोग जिसमें आँखें पीली हो बदनसीब । -बरत-वि० अभागा, हतभाग्य । -बखती जाती हैं, पीलिया। -स्त्री० दुर्भाग्य, बदनसीबी। (-०का मारा-अभागा।) कमला-पु० स्पर्शसे खुजली पैदा करनेवाला सूंड़ी नामक -सिन-वि० कमउम्र; अल्हड़ । -हिम्मत-वि० पस्त- एक कीड़ा; सड़े फल आदिमें पड़नेवाला कीड़ा । स्त्री० हिम्मत, डरपोक, कायर ।
[सं०] लक्ष्मी; धन; एक नदी; एक वर्णवृत्त; एक नीबू । कमची-स्त्री० [तु०] पतली, लचकनेवाली छड़ी; बाँस -कांत,-पति-पु० विष्णु।
आदिकी पतली टहनी; तीली; पंजा लड़ानेका एक प्रकार । कमलाकर-पु० [सं०] कमलोंका समूह; कमलोंसे भरी कमटी-स्त्री० पतली, नरम टहनी ।
झील, तालाब आदि। कमठ-पु० [सं०] कछुआ; बाँस कमंडलु; तूंबी; सलईका कमलाक्ष-वि० [सं०] कमलसी आँखोवाला। वृक्ष; एक दैत्य ।
कमलालया-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी। कमठा-पु० कमान ।
कमलासन-पु० [सं०] ब्रह्मा; एक आसन, पद्मासन । कमना -अ० क्रि० कम होना, घटना
कमलिनी-स्त्री० [सं०] कमलका पौधा; कमल-समूह; कमनी*-वि० दे० 'कमनीय' ।
कमल; कमलसे पूर्ण जलाशय । -कांत,-बंधु-पु० सूर्य । कमनीय-वि० [सं०] कामना करने, चाहने योग्य; सुंदर। कमली-स्त्री० छोटा कंबल । कमनैत-पु० कमान बाँधनेवाला, तीरंदाज ।
कमलेश-पु० [सं०] विष्णु । कमनैती-स्त्री० तीरंदाजी ।
कमवाना-स० क्रि० 'कमाना'का प्रे०। कमर-स्त्री० [फा०] शरीरका मध्य, पेट और पेड़ के बीचका कमसिन-वि० दे० 'कम'के साथ । भाग, कटि; मध्य भाग; कुश्तीका एक पेंच । -कोट,- कमाइच*-स्त्री० कमानी; छोटी कमान कोटा-पु० परकोटेके ऊपरकी दीवार जो लगभग कमरभर कमाई-स्त्री० परिश्रमसे पैदा किया हुआ पैसा या माल, ऊँची रहती है; रक्षाके लिए घेरी हुई दीवार । -तोड- उपार्जित धन; श्रम-फल; मजदूरी पैसा कमानेका धंधा पु० कुश्तीका एक पेंच । -पट्टी-स्त्री० अँगरखे आदिमें उद्यम; वस्तुको सुधारने-बनानेका कोम । कमरके ऊपर लगायी जानेवाली पट्टी। -बंद-पु० कमर कमाऊ-वि० कमानेवाला, कमासुत । बाँधनेका एक दुपट्टा, पटुका, पेटी; इजारबंद । -वि० कटि- कमाच-पु० एक रेशमी कपड़ा। बद्ध, मुस्तैद । -बंदी-स्त्री० मुस्तैदी; लड़ाईकी तैयारी। कमाची-स्त्री० झुकी हुई तीली, कमची । मु०-कसना-(किसी कामके लिए) तैयार, आमादा होना; कमान-स्त्री० [फा०] धनुष्; इंद्रधनुष् , मेहराब; दो पक्का इरादा करना। -खोलना-कमरबंद खोलना; दम तारोंके कोणांशकी दूरी या क्षितिजसे किसी तारेकी ऊँचाई लेना; ( यात्रा या किसी कामका) संकल्प, विचार त्याग नापनेका यंत्र; मालखंभकी एक कसरत, * तोप। -गरदेना । -टूटना-हिम्मत पस्त होना; दिल बैठ जाना; पु० कमान बनानेवाला । -चा-पु० छोटी कमान; सारंगी कुछ करनेका दम न रह जाना । -बाँधना-कमरबंद बजानेका गज; धुनकी । -दार-वि० मेहराबदार; कमान बाँधना; सफरके लिए तैयार होना; कमर कसना । -बैठ बाँधनेवाला। जाना-दे० 'कमर टूटना'। -सीधी करना-थकावट कमान-स्त्री० [अ० कमांड] आदेश, हुक्म फौजी ट्यूटी। मिटाना, सुस्तान।।
-अफसर-पु० कमांडर; कमांडिंग अफसर । मु०-पर कमरख-पु० एक वृक्ष या उसका फल जो फाँकदार और जाना-लड़ाईपर जाना। कुछ खट्टा होता है।
कमाना-स० कि० श्रम-उद्यमसे पैसा पैदा करना; अन्नादि कमरखी-वि० कमरख जैसा कमरखके समान फाँकदार। उपजाना; पैदा करना; घरकी कुछ विशेष सेवाएँ (नाई, स्त्री० किसी गोल चीजके किनारे कटी हुई कँगूरेदार फाँके । बारी आदिके काम) नियमपूर्वक करना; पाखाना साफ कमरा-पु० कोठरी; + दे० 'कम्मल' ।
करना; वस्तुको श्रम द्वारा सुधारना, काम लेने लायक कमरिया-स्त्री० दे० 'कमली'; + कमर ।
बनाना (खेत, चमड़ा इ०); संचय करना (पाप,पुण्य इ०); कमरी*-स्त्री० दे० 'कमली'; सलूका।
कसब, वेश्या-वृत्ति करना; + घटाना; छीलकर पतला कमल-पु० [सं०] पानीमें होनेवाला एक प्रसिद्ध पौधा करना।
और उसका फूल, पद्म, जल; ताँबा, लोभ, सारस, ब्रह्मा, कमानिया-पु० तीरंताज, कमनैत । वि० मेहराबदार । औषध; मृगोंका एक भेद आँखका कोया; गर्भाशयका मुंहा। कमानी-स्त्री० लोहे आदिकी लचीली और कुछ झुकायी एक वृत्त; पीलिया रोग; मोमबत्ती जलानेका काँचका हुई तीली; घड़ी आदिका तारोंके चक्करकी शकुका पुरजा
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कमाल - करछाल
वह पेटी जो आँत उतरनेकी बीमारी में पहनी जाती है; सारंगी बजानेका गज; बढ़ई आदिका एक औजार जिसमें बरमा फँसाकर खींचते हैं । -दार - वि० कमानीवाला | कमाल - पु० [अ०] पूर्णता, समाप्तिः पराकाष्ठा; निपुणता, कौशल; गुण, जौहर; अद्भुत चमत्कारिक कार्य; कबीरका बेटा । वि० सर्वोत्तमः पूर्ण; अतिशय । मु० - करना - अद्भुत कुशलता, योग्यताका परिचय देना । कमालियत - स्त्री० [अ०] दक्षता; पूर्णता । कमासुत - वि० कमानेवाला, कमाऊ ।
कमिश्नरी - स्त्री० [अ०] कमिश्नर के अधीन प्रदेश, विभाग, किस्मत; कमिश्नर की कचहरी ।
कमी - स्त्री० कम होना, अल्पता; त्रुटि: न्यूनता; घाटा; कोताही । - बेशी- स्त्री० कम या ज्यादा होना, अल्पताअधिकता ।
कमीज़ - स्त्री० कफ और कालरदार कुरता, 'शर्ट' | कमीना - वि० [फा०] नीच, क्षुद्र, खोटा । पन-पु० नीचता । कमीला - पु० एक फलदार छोटा पेड़ । कमीशन -- पु० [अ०] किसी विषयको जाँच, विचारके लिए नियुक्त छोटी समिति या मंडल; दूरस्थ व्यक्तिके इजहार के लिए एक या अधिक वकीलोंकी नियुक्ति; एजेंटका काम करनेका अधिकार; दलाली, दस्तूरी । कमुकंदर* - पु० धनुष तोड़नेवाले रामचंद्र | कमेटी - स्त्री० किसी खास कामके लिए बनायी गयी समिति । कमेरा- पु० काम करनेवाला; नौकर ।
कमेला - पु० जानवरोंको जिबह करनेका स्थान, कसाईखाना । कमोदन * - स्त्री० दे० 'कुमुदिनी' ।
कमोदिन * - स्त्री० दे० 'कुमुदिनी' । कमोरा - पु० मटका ।
कमोरी - स्त्री० छोटा कमोरा, मटकी । कम्मल - पु० ओढ़ने-बिछाने के कामका उनका बना मोटा कपड़ा, कंबल 1.
कया* - स्त्री० दे० 'काया' ।
कयाम - पु० [अ०] ठिकाना; ठहराव; उठना; खड़ा होना । कयामत - स्त्री० [अ०] मुसलमानों, ईसाइयों आदिके विश्वासानुसार प्राणियों के कर्मोंका लेखा लेनेका दिन, प्रलय; आफत; हंगामा, हलचल । का - बलाका, गजबका । - की घड़ी - प्रलयकाल । कयास - ५० [अ०] अनुमान, अटकल; कल्पना । करंक - पु० [सं०] खोपड़ी; ठटरी; अस्थि; नरियरी, कमंडलु । करंज, करंजक - पु० [सं०] एक झाड़, कंजा जिसके फल आदि दवाके काम आते हैं; [हिं०] मुरगा । - खानापु० मुरगोंको रखनेकी जगह ।
करंजा - पु० दे० 'करंज' । वि० भूरी आँखोंवाला । करंड - पु० कुरुल पत्थर; [ सं० ] बाँसका बना टोकरा या पिटारा; शहदका छत्ता; तलवार; एक तरह की बत्तख, कारंडव; एक तरहकी चमेली ।
कर -* प्र० का ['ताकर नाम भरत अस होई', रामा०] । * पु० कल, छल, धूर्तता; [सं०] दाथ; किरण; हाथीकी सूँड़; मालगुजारी, महसूल; ओला; हस्त नक्षत्र; लंबाईकी एक माप । वि० करनेवाला ( समासांत में 'सुखकर',
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'दुःखकर' ।) - कोष-पु० पानी लेनेके लिए गहरायी हुई हथेली, चुल्लू । गत-वि० हस्तगत -ग्रहग्रहण - पु० कर लगाना या वसूल करना; पाणिग्रहण । - ज - पु० नाखून; उँगली । - तल-पु० हथेली | - ० ध्वनि - स्त्री० ताली । -तली - स्त्री० हथेली; ताली । - तारी* - स्त्री० दे० 'करताली'; दे० क्रममें । - ताल - पु० ताली करतल ध्वनि; हाथसे बजानेका, कीर्तन आदि में व्यवहृत, एक बाजा । - तालिका - स्त्री० ताली । - ताली - स्त्री० छोटा करताल; ताली । -दुवि० कर, खिराज देनेवाला ( राजा, राज्य ); सहारा देनेवाला | पु० किसान । - निर्धारण - पु० (असेसमेंट) मूल्य या लाभादिकी मात्रा के आधारपर निश्चय करना कि खेत, घर आदिके स्वाभीपर कितना कर लगाया जाय ।
- पत्र, - पत्रक - पु० आरा। -पल्लव- पु० उँगली । - पलई *- * - स्त्री० उँगलियों के संकेत से शब्दोंके द्योतनकी विद्या - पात्र - पु० कुछ लेनेके लिए गहरायी हुई हथेली | - पानी (त्रिन्) - वि० अँजुली में ही अन्नजल लेकर ग्रहण करनेवाला (साधु) । - पाल - पु० खड्ग, करवाल | - पिचकी* - स्त्री० दोनों हाथोंको मिलाकर बनायी हुई पिचकारी। -पीड़न-पु० पाणिग्रहण, विवाह; हाथ मिलाना ( शेक-हैंड ) । -भार-पु० कर या करोंका बोझ; भारी कर । - माली (लिन्) - पु० सूर्य । - मूल - पु० कलाई । - योग्य मूल्य-पु० ( रेटेबिल या टैक्सेबल वैल्यू ) कर लगानेकी दृष्टिसे आँका गया किसी मकान, संपत्ति आदिका मूल्य ( या उससे किराये, सूद आदिके रूपमें हो सकनेवाली आय ) । - रुह - पु० नाखून। - वार* - पु० दे० 'करवाल' । -वालपु० खड्ग; नाखून वाली स्त्री० करौली । -वीर,वीरक- पु० कनेर, तलवारः श्मशान । - संपुट - ५० दोनों हथेलियों के मिलानेसे बना गड्ढा, अंजलि | - सूत्र - पु० विवाहका कंगन |
करक- स्त्री० पेशाबका थोड़ा-थोड़ा और जलनके साथ होना; थोड़ी-थोड़ी देर के बाद होनेवाली पीड़ा, टीस । पु० [सं०] कमंडलु करवा; नारियलकी खोपड़ी; अनार । करकच- पु० समुद्रके पानीसे बनाया जानेवाला नमक । करकट - पु० कूड़ा, कतवार; + लोहेकी कलईदार चद्दर जिससे बालटी बनती है ।
करकना - अ० क्रि० आवाजके साथ फटना, तड़कना; चुभना, सालना ।
करकरा - वि० दे० 'किरकिरा' । करकराहट - स्त्री० दे० 'किरकिराहट ' करकस* - वि० दे० 'कर्कश' । करका - स्त्री० [सं०] ओला ।
करखना - अ० क्रि० जोशमें आना ।
करखा- पु० उत्तेजना, ताव; कड़खा; एक पद; कालिख । करगहना + - पु० भरेठा ।
करघा - पु० कपड़े बुननेका यंत्र; वह गड्ढा जिसमें पाँव लटकाकर जुलाहा कपड़ा बुनता है । करचंग-पु० एक तरहका टफ । करछाल - स्त्री० छलाँग, कुदान, उछाल ।
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१४१
करछी, करछुली | - स्त्री० दे० 'कलछी' । करछैयाँ* * - वि० स्त्री० कुछ-कुछ काली, श्यामा (गाय) । करट - पु० [सं०] कौआ; हाथीकी कनपटी; निंद्य जीवन । करण - पु० [सं०] करना; क्रिया; क्रियाविशेषके लिए अनिवार्य, आवश्यक साधन; औजार; इंद्रिय; तृतीय, साधन 'बतानेवाला कारक ( व्या०); हेतु; देह; क्षेत्र; स्थान; नाचमें हाथकी चेष्टासे भाव बतानेकी क्रिया; कालका एक विशेष मान; दिनका एक विभाग; गणितको एक क्रिया; दस्तावेज, लिखित प्रमाणः परमात्मा; उच्चारण; एक रतिबंध; वह संख्या जिसका पूरा-पूरा वर्गमूल न निकल सके; * कान (कर्णं) ।
करतबिया - वि० दे० 'करतबी' ।
करतबी - वि० गुणी; पुरुषार्थी; करतब दिखानेवाला । करतरी * - स्त्री० दे० 'कर्तरी; दे० ' करतली' ।
करतव्य * - पु० करने योग्य काम; धर्म । वि० करणीय । करता - पु० दे० 'कर्ता'; मुखिया, अधिकारी; एक वर्णवृत्त । -धरता - पु० जिसकी मरजी, आदेशसे सब काम हों, सर्वाधिकारी |
करतार - पु० दे० 'कर्ता'; * दे० 'करताल' ।
करतारी* - स्त्री० करतापन, कर्तृत्व; ईश्वरकी लीला; एक बाजा; ताली ।
करतूत - स्त्री० काम, करनी; निंद्य कर्म; गुण; कला । करतूति* - स्त्री० दे० 'करतूत' ।
करणीय - वि० [सं०] करने योग्य, कार्य ।
करतब - पु० काम, कर्म; हुनर, गुण, कौशल; अचरजमें करमकल्ला - पु० पत्तेवाली गोभी, पातगोभी ।
डालनेवाला काम ( दिखाना); बाजीगरी ।
करद - स्त्री० छुरी, चाकू । वि० [सं०] दे० 'कर' में | करदम * -- पु० कर्दम, कीच; पाप; मांस |
करदा- पु० बिक्रीके अनाज आदि में मिला हुआ कूड़ा-करकट; कूड़े-करकटकी वजहसे होनेवाली मूल्य में कमी; बदलाई । करधन - स्त्री० दे० 'करधनी' ।
करधनी - स्त्री० एक गहना जो कमर में पहना जाता है; सूत या रेशमकी बनी हुई मेखला ।
करन + - पु० दे० 'कर्ण; जरिश्क । -धार-पु० दे० 'कर्णधार' । - फूल - पु० कानमें पहननेका एक गहना, काँप । - बेध - पु० कनछेदन |
करना - स० क्रि० किसी कामके होनेमें यलवान् होना, अंजाम देना; साधन-संपादन; निबटाना; बनाना, अन्य रूप देना; पकाना; रखना; पहुँचाना; रोजगार, पेशा करना; भाड़े पर लेना (एक्का ताँगा आदि ) ; पति या पत्नीके रूपमें ग्रहण करना; पोतना; प्रसंग करना । * पु० करनी, काम । करनाई - स्त्री० तुरही।
करनाल - स्त्री० एक तरहकी तोप; पु० भोंपा; बड़ा ढोल | करनी - स्त्री० कर्म, करतूत; अंत्येष्टि; पेसराजोंका एक औजार, कन्नी ।
करपर* - पु० खोपड़ी; खप्पर । वि० कृषण ।
करबरना * - अ० क्रि० फलरव करना (पक्षियों आदिका) । करबला - स्त्री० [अ०] इराके अरबका वह जलहीन मैदान जहाँ इमाम हुसैन अपने साथियों सहित शहीद हुए; वह स्थान जहाँ ताजिये दफन किये जाते हों; जलहीन स्थान ।
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करछी - करसना
करबूस- पु० घोड़ेके जीनमें टँकी हुई पट्टी जिसमें हथियार लटकाया जाता है ।
करभ - पु० [सं०] करपृष्ठ; हाथीकी सूँड़; हाथीका बच्चा; ऊँटका बच्चा; ऊँट; एक सुगंधित द्रव्य ।
करभक - पु० [सं०] ऊँट; हाथीका बच्चा । करभी - स्त्री० [सं०] ऊँटनी ।
कभी ( भिन्) - पु० [सं०] हाथी । करभोरु - वि० स्त्री० [सं०] जिसकी जाँघ हाथीकी सूँड़के समान हो, सुंदर जाँघोंवाली ।
करम - पु० कर्म, काम; कर्मफल; भाग्य । - चंद* - पु० कर्म । - भोग- पु० कर्मफल; कर्मफल- रूप में मिलनेवाला दुःख ।
करमट्ठा* - वि० कंजूस ।
करमठ * - वि० दे० 'कर्मठ' । करमी* - वि० दे० 'कमी' ।
करमुँहा, करमुखा - वि० काले मुँहवाला; जिसके मुँहमें कालिख लगी हो; कलंकित ।
कररना - अ० क्रि० चर चर करके टूटना; कर्कश बोली बोलना ।
करराना * - अ० क्रि० दे० 'कररना' ।
कररी - स्त्री० वनतुलसी; एक पक्षी, कुररी । करल* - पु० कड़ाही ।
करला - पु०, करली - स्त्री० कल्ला, कोमल पत्ता । करवट - स्त्री० दाहिने या बायें बाजू लेटना; इस तरह लेटनेकी स्थिति; पहलू, बाजू । पु० करवत, आरा । मु०न लेना - कर्तव्यपर ध्यान न देना; चुप्पी साधना । - वदलना - लेटने में पहलू बदलना, दूसरी ओर हो जाना; बेचैनीसे बार-बार पहलू बदलना, सो न सकना । - लेना-लेटे या सोये हुए आदमीका दूसरी ओर घूमना, पहलू बदलना; बदलना, पलटनाः स्वर्ग प्राप्तिकी आशासे काशी, प्रयाग आदिके विशेष आरोंके नीचे कटकर जान देना ।
करवत - पु० करपत्र, आरा ।
करवर* - स्त्री० घात; संकट, विपत्ति; कठिनाई । पु०
करवाल ।
करवरना * - अ० क्रि० चहकना, कलरव करना । करवा - पु० मिट्टी या धातुका टोंटीदार बरतन । करवानक* - पु० गौरैया पक्षी, चिड़ा । करवाल- पु० [सं०] दे० 'कर' के साथ | करवीर - पु० [सं०] दे० 'कर' के साथ | करवील* - पु० करील ।
करवैया - वि० करनेवाला, करतबी ।
करश्मा - पु० [फा०] आँख या भौंका इशारा; नाजनखरा; अनोखी बात; चमत्कार, करामात ।
करष * - पु०, स्त्री० खिंचाव; अक्स; वैर; ताप; क्रोध । करषक * - पु० कृषक, किसान । करपना* - स० क्रि० तानना, खींचना, सोखना; बुलाना; actor |
करसना * - स० क्रि० दे० 'करषना' ।
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करसाइल-करेली
१४२ करसाइल, करसायल-पु० काला हिरन ।
माँझी-'ज्यों करिया बिन नाव'-सू० । वि० काला। करसान*-पु० किसान ।
करियाई*-स्त्री० कालापन; कालिख । करसी-स्त्री० सूखे गोबर, उपलों आदिका चूर या छोटे | करियारी*-स्त्री० दे० 'कलियारी'; लगाम । टुकड़े।
करिल*-स्त्री० बाँसका नया कला, कोंपल । वि० काला । करहंच*-पु० दे० 'करहंस' ।
करिश्मा-पु० [फा०] दे० 'करश्मा' । करहंस-पु० [सं०] एक वर्णवृत्ति ।
करींद्र-पु० [सं०] ऐरावत; श्रेष्ठ, बहुत बड़ा हाथी । करह*-पु० ऊँट; पुष्पकलिका।
करी*-स्त्री० कली;+ सौरी नामकी मछली; कड़ी, धरन । करहाट,-हाटक-पु० [सं०] कमलकी जड़, कमलका छत्ता। करी (रिन् )-पु० [सं०] हाथी (समासमें 'करि')। कराकुल-पु० क्रौंच पक्षी।
-कुंभ-पु० हाथीका मस्तक । -दारक-पु० सिंह । करा*-स्त्री० कला।
-प-पु० महावत । -पोत,-शाव,-शावक-पु० कराइत-पु० दे० 'करैत'।
हाथीका बच्चा। कराई-स्त्री० दालका छिलका जो पशुओंको खिलाया जाता करीना-प०अ० मेल, समानताः ढंग, सलीकाः तरतीब,
है; करने या करानेका भाव या उजरत; * कालापन । क्रम, सिलसिला। कराघात-पु० [सं०] हाथका प्रहार, आघात ।
क़रीब-वि० [अ०] निकटस्थ, समीपी । अ० पास, निकट करात-पु० एक वजन जो लगभग ३॥ ग्रेनके बराबर होता | लगभग । -करीब-अ० लगभग । है और सोना-जवाहरात आदि तौलनेके काम आता है ।
करीबन्-अ० [अ०] लगभग । कराना-स० क्रि० 'करना'का प्रे० ।
करीबी-वि० [अ०] निकटका (संबंधी)। करापवंचन-पु० [सं०] (इवेज़न ऑव टैक्स) ऐसी हिकमत | करीम-वि० [अ०] उदार; दयालु नेक । पु० ईश्वर ।
या चालाकी करना जिससे कर अदा न करना पड़े। करीर-पु० [सं०] बाँसका नया कला; करील; घड़ा। कराबा-पु० [अ०] शीशेका सुराही जैसा बरतन ।
करील-पु० झाड़ीके रूपमें उगनेवाला एक कँटीला और करामात-स्त्री० [अ०] चमत्कार, सिद्धि; अचरजभरी बात। बिना पत्तेका पेड़।। करामाती-वि० [अ०] करामात करने-दिखानेवाला, करीश-प० [सं० दे० 'करी' । चमत्कारी।
करीष-पु० [सं०] सूखा गोबर, बनकंडा, करसी। . करार-पु० नदीका ऊँचा और कुछ खड़ा किनारा, कगार। करीय-पटकरी। करार-पु० [अ०] ठहराव; चैन, आराम; धीरज प्रतिज्ञा, करुआ(वा)*-वि० दे० 'कड़वा' । पु० करवा घड़ा। इकरार।
करुआई*-स्त्री० कड़वापन । करारना*-अ० क्रि० क व-काव करना; कर्कश स्वरमें | करुआ(वा)ना*-अ० कि० दुखना, गडना; कटुआ बोलना।
लगना । स० क्रि० कड़वाहटसे मुँह बिचकाना । करारा-वि० कड़ा; तेज; दृढ़; खूब सिंका हुआ; गहरा। करुखी*-स्त्री० कनखी, तिरछी चितवन । पु० कगार टीला; कौआ।
करुण-पु० [सं०] अनुकंपा, दया; एक काव्य-रस; परकरारोपण-पु० [सं०] (लेवी) कर आदि प्राधिकृत रूपसे । मात्मा। वि० करुणायुक्त दयनीयः करुणा उत्पन्न करनेवाला। लगाना, वसूल करना या उगाहना
करुणा-स्त्री० [सं०] अनुकंपा, दया। -निधान,-निधिकराल-वि० [सं०] बड़े-बड़े दाँतोंवाला डरावना, भयानका वि० करुणा, दयासे भरा हुआ करालिका-स्त्री० [सं०] दुर्गा ।
करुणामय-वि० [सं०] दयालु कराली-स्त्री० [सं०] अग्निकी सात जिह्वाओंमेंसे एक। करुना*-स्त्री० दे० 'करुणा' । कराव-पु० दे० 'करावा'।
करुर*-वि० कडुआ। करावा-पु० पतिके जीवित रहते हिंदू स्त्रीका दूसरा ब्याह, करुवारि*-स्त्री० पतवार । सगाई।
करेजा*-पु० दे० 'कले जा' । कराह-स्त्री० दर्द या पीड़ाकी आवाज, आह । * पु० दे० | करेजी-स्त्री० दे० 'कले जी'। 'कड़ाह'।
करेणु-पु० [सं०] हाथीकर्णिकारका पेड़ । स्त्री० हथिनी । कराहना-अ० क्रि० आह-आह करना, पीड़ासे चीखना। करेणुका-स्त्री० [सं०] हथिनी । कराहा*-पु० दे० 'कड़ाहा'।
करेणू-स्त्री० [सं०] हथिनी । पु० हाथी कराही*-स्त्री० दे० 'कड़ाही'।
करेनुका-स्त्री० दे० 'करेणुका' । करिंद*-पु० ऐरावत; बड़ा हाथी।
करेब-पु० [अ० क्रेप] बारीक और झीनी बुनावटवाला करि*-पु० हाथी।
एक रेशमी कपड़ा। करिखई*-स्त्री० कालापन ।
करेमू-पु० पानी में होनेवाली एक बेल जिसके पत्ते सागकी करिखा-पु० कालिख ।
तरह खाये जाते हैं। करिणी-स्त्री० [सं०] हथिनी ।
करेर, करेरा*-वि० कड़ा, सख्त । करिनी*-स्त्री० दे० 'करिणी'।
करेला, करैला-पु० एक तरकारी। करिया*-पु० ऊखका एक रोग; * पतवार; कर्णधार, करेली,करैली-स्त्री०छोटी जातिका करेला; जंगली करेला।
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१४३
करैत-कर्म करेत-पु० एक जहरीला साँप।
कानका पकना । -पाली-स्त्री० कानकी लौ; बाली । करैल-स्त्री० काली मिट्टी जो गीली होनेपर बहुत लसदार -पुट-पु० श्रवणमार्ग ।-फूल-पु० कानका एक गहना। हो जाती है । पु० बाँसका नरम कल्ला।
-मल-पु० चूट । -रंध्र-विवर-पु० कानका छेद । करोट-स्त्री० करवट ।
-रोग-पु० कानमें उत्पन्न होनेवाले रोग, कर्णपाक आदि । करोटन-पु० [अं० कोटन वनस्पतिका एक वर्ग जिसके | -वेध-पु० कनछेदनका संस्कार या रस्म । -वेधनी,पौधोंके पत्ते सुंदर और रंग-बिरंगे होते हैं।
वेधनिका-स्त्री० कान छेदनेका औजार । -वेष्ट,करोड़-वि० सौ लाख, एक कोटि। पु०सौ लाखकी संख्या। वेष्टन-पु० कुंडल । -शूल-पु० कानका दर्द।-स्राव
-पती-वि० जिसके पास करोड़ों रुपये हों, बहुत बड़ा पु० कानका बहना। -हीन-वि० बहरा । पु० साँप । अमीर ।
कर्णाटी-स्त्री० [सं०] कर्णाट देशकी स्त्री या वहाँकी भाषा; करोड़ी-पु० रोकड़िया; महसूल इकट्ठा करनेवाला । एक राग। करोदना*-स० क्रि० दे० 'कुरेदना'।
कर्णिका-स्त्री० [सं०] करनफूल; बिचली ऊँगली; कमलका करोना*-स० क्रि० खुरचना, कुरेदना
छत्ता; हाथीकी टू ड़की नोक; लेखनी। करोर*-वि०, पु० दे० 'करोड़।
कर्णिकार-पु० [सं०] कनियारका पेड़ या फूल । करोला*-पु० गडआ।
कर्णेजप-पु० [सं०] कानमें लगकर परनिंदा करनेवाला, करौंछा-स्त्री० दे० 'कलाँस'।
चुगलखोर; भेद बतलानेवाला । करौंछा*-वि० कुछ-कुछ काला ।
कर्तन-पु० [सं०] काटना; कतरना; कातना । करौंजी*-स्त्री० दे० 'कलौंजी' ।
कर्तनी-स्त्री० [सं०] करतनी, कैंची । करौंट*-स्त्री० दे० 'करवट'।
कर्तब*-पु० दे० 'करतब। करौंदा-पु० एक काँटेदार झाड़ या उसका फल, करमर्द कतरिका, कर्तरी-स्त्री० [सं०] कैंची, कतरनी; छुरी । एक जंगली फल जो मटरके बराबर होता है और पकने पर कर्तव्य-वि० [सं०] जिसे करना उचित या आवश्यक हो, काला हो जाता है।
| करणीय । पु० करणीय कार्य, फर्ज। -मढ-वि० जो करा दिया, करौंदी-वि० करौदेके रंगका । पु० गुलाबीसे | घबराहटके कारण अपने कर्तव्यका निश्चय न कर सके । मिलता-जुलता एक रंग।
कर्ता(त)-वि० [सं०] करनेवाला, बनानेवाला । पु० • आरा । स्त्री० रखेली स्त्री।
विधाता, ब्रह्माईश्वर; करनेवाला; क्रियाक करनेवालेका करौल, करौला*-पु० [ तु० करावल ] हकवा करने, बोधक कारक (व्या०)। -धर्ता-पु० [हिं०] करने, शिकार खेलानेवाला।
धरनेवाला; वह जिसे सब कुछ करनेका अधिकार हो । करौली-स्त्री० सीधी, मूठदार छुरी।
(त)-प्रधान-वि० जिसमें कर्ताकी प्रधानता हो कर्क-पु० [सं०] केकड़ा, बारह राशियोंमसे चौथी। (व्या०)।-वाच्य-पु० क्रियाका वह रूप जिसमें कर्ताकी कर्कट-पु० [सं०] केकड़ा; कर्क राशि: कमलकी जड़, सारस- प्रधानता हो (व्या०)। का एक भेद; काँटा तराजूकी डंडीका सिरा ।
कार-पु० कर्ता; ईश्वर । कर्कटिका-स्त्री० [सं०] छोटी ककड़ी।
कर्तृत्व-पु० [सं०] कार्य करनेवालेकी अवस्था में होना। कर्कश-वि० [सं०] कठोर; खुरदरा; तीव्र परुष; निर्दय । | कनिका, कों-स्त्री० [सं०] छुरी; कैची। कर्कशा-वि० स्त्री० [सं०] लड़ाकी कटुभाषिणी। कर्दम-पु० [सं०] कीचड़ मांस; पाप (ला०) । कर्धा-पु० दे० 'करधा'।
कर्पट-पु० [सं०] फटा, मैला कपड़ा, चीथड़ा। कचूर-पु० सं०] कचूर; सोना ।
कर्पटिक, कर्पटी (टिन)-वि० [सं०] जो चीथड़े लपेटे हो; कर्ज-पु० [अ०] ऋण, उधार, देना। -स्वाह-पु० कर्ज भिखारी ।
नेवाला, महाजन । -दार-पु. ऋणी, कर्ज लेनेवाला। कर्पर-पु० [सं०] कड़ाह; कपाल ठीकरा; एक हथियार । कर्जा-पु० दे० 'कर्ज'।
कर्पूर-पु० [सं०] कपूर । -गौर-वि० कपूर जैसा सफेद । कर्ण-पु० [सं०] कान; नावकी पतवारः त्रिभुजके समकोणके कबुर-वि० [सं०] चितकबरा, रंग-बिरंगा । पु० चितकबरा सामनेकी भुजा (हाइपॉटेन्यूज); कुंतीका ज्येष्ठ पुत्र जी। रंगपाप; राक्षस सोना; जल; धतूरा; कचूर । बड़ा दानी था।-कटु-वि० कानोंको अप्रिय लगनेवाला। कर्म(न)-पु० [सं०] शास्त्रविहित नित्य-नैमित्तिक आदि -कुहर-पु० कानका छेद । -गोचर-वि० जो सुना - कर्म; काम; क्रिया; धंधा; आचरण; वह पूर्वकृत कर्म जा सके । -जप-पु० चुगलखोर । -धार-पु० पतवार जिसका फल इस जन्ममें मिल रहा होभाग्यवह जिसपर पकड़नेवाला, माँझी। -धारसमिति-स्त्री० (स्टीयरिंग | क्रियाका फल पड़े (व्या०)।-कर-पु० मजदूर, उजरतपर कमिटी) संयुक्त राष्ट्रसंघ, कांग्रेस आदिकी वह समिति जो काम करनेवाला । -कांड-पु. वेदका वह विभाग जिसमें संघ, कांग्रेस आदिकी विभिन्न समितियोंके कार्यक्रम, नित्य-नैमित्तिक आदि कर्मोंका विधान है; यश, संस्काराविषयक्रम आदिका निर्धारण करती है; (कार्य) संचालन- दिकी विधि बतानेवाला शास्त्र । -कांडी(डिन)-पु० समिति । -नाद-पु० कानमें सुनाई पड़नेवाली गूंज; कर्मकांडका ज्ञाता, पुरोहित। -कार-पु० मजदूर कानका एक रोग जिसमें गूंज सुनाई पड़ती है। -पटह- बेगार; कारीगर लुहार । -कार-हानिपूरण अधिनियम पु० कानके भीतरी हिस्सेका मध्य भाग । -पाक-पु० -पु० (वर्कमेंस कंपेनसेशन ऐक्ट) दे० 'श्रमिक-क्षति-पूर्ति
देनेवाला, महान
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कर्मठ-कलई
१४४ अधिनियम'।-क्षेत्र-पु० कर्मभूमि, कार्यक्षेत्र।-चांडाल खरोंचना; समय बढ़ाना; क्षति पहुँचाना । -पु. वह जो कर्मसे चांडाल माना जाय; नीच कर्म करने- कर्ष(ख)ना*-स० क्रि० खींचना तानना। वाला --चारी (रिन)-१० काम करनेवाला, अहलकार। कर्षिणी-स्त्री० [सं०] धोड़ेकी लगाम, खिरनीका पेड़। --चारि-तंत्र-पु० (ब्यूरोक्रेसी) दे० 'अधिकारिराज्य', कर्षित-वि० [सं०] खींचा हुआ, जोता हुआ, क्षीण । नौकरशाही ।-चारिद-पु० (स्टाफ) किसी प्रधान अधि- कलंक-पु० [सं०] धब्बा; काला दाग; लांछन, बदनामी कारीके नीचे काम करनेवाले (किसी संस्था आदिके) कर्म- चंद्रमामें दिखाई देनेवाला काला दाग; दोष; लोहेका चारियोंका समूह । -धारय-पु० तत्पुरुष समासका एक मोरचा; पारेकी कजली । -का टीका-बदनामीका भेद जिसमें विशेष्य और विशेषण समानाधिकरण हों। धब्बा, लांछन । -निष्ठ-वि० शास्त्रविहित कामोंमें आस्था रखने, उन्हें कलंकित-वि० [सं०] कलंकयुक्त मोरचा लगा हुआ। श्रद्धापूर्वक करनेवाला । -प्रधान-वि० जिस (क्रिया- कलंकी (किन्)-वि० [सं०] जिसे कलंक लगा हो; वाक्य ) में कर्मकी प्रधानता हो-क्रियाका लिंग, वचन बदनाम । पु० चंद्रमा कल्कि अवतार । कर्भका अनु सरण करता हो। -फल-पु० पूर्वजन्ममें कलँगी-स्त्री० दे० 'कलगी'। किये हुए कर्मोंका फल (सुख-दुःख)। -भोग-पुं० कलंदर-पु० [अ०] मुसलमान साधुओंका एक विरक्त समुकर्मफल; कर्मफलके रूपमें प्राप्त दुःख । -मार्ग-पु० दाय; उस समुदायका व्यक्ति; बंदर-भालू नचानेवाला। विहित कर्तव्य कर्म करते हुए मोक्ष-प्राप्तिका मार्ग। कलंदरा-पु० [अ०] एक तरहका रेशमी कपड़ा। -योग-पु० कर्ममार्गकी साधना । -योगी (गिन)- कलंब-पु० [सं०] बाण, कदंबसाग आदिका डंटल । पु० कर्ममार्गकी साधना करनेवाला।-रंग-पु० कभरख। कल-वि० [सं०] अस्पष्ट मधुर, मंद मधुर (ध्वनि); सुहा-रेख-स्त्री० कर्मकी रेखा, तकदीर । -रोधन-पु० | वना; श्रुतिमधुर, कोमल; ऐसा शब्द उत्पन्न करनेवाला । ( स्ट्राइक) किसी अन्याय आदिके विरोधमें काम-काज पु० अस्पष्ट मधुर. ध्वनि वीर्य । -कंठ-मीठी आवाजबंद कर देना, हड़ताल । -वाच्य-पु० क्रियाका वह वाला । पु० कोयल; कबूतर; हंस । -कल-पु० झरने रूप जिसमें कर्मकी प्रधानता हो (व्या०)। -वाद-पु० या नदीके प्रवाह आदिकी कोमल मधुर ध्वनि अनेक कर्भका फल अवश्य होता और भोगना पड़ता है-यह लोगोंके एक साथ बोलनेकी आवाज; शिव; धूना ।-घोषमत, प्रारब्धवाद । -वीर-वि० कर्तव्य, लोकहित कर्म पु० कोयल । -धौत-पु० सोना, चाँदी; मंद, मधुर करनेमें वीर; विघ्न-बाधाओंसे भिड़ते हुए कर्तव्य-पालन ध्वनि । -ध्वनि-स्त्री० कोमल, मधुर ध्वनि । पु० करनेवाला पुरुषार्थी । -शाला-स्त्री. (वर्क्स, वर्कशॉप) कोयल; मोर; कबूतर । -नाद-पु० हंस । वि० मंद कारखाना; लोहे, लकड़ी आदिका या निर्माण-संबंधी अन्य | मधुर स्वरवाला। -रव-पु० कोमल, मधुर ध्वनि । काम करनेका स्थान । -शील-वि० उद्योगी; परिश्रमी। -री-पु० दे० 'कलरव' । -हंस-पु० दे० क्रममें । -शूर-वि० कर्मवीर । -संन्यास-पु० कर्मत्याग। कल-अ० अगले या पिछले दिन, आगे चलकर, पीछे। -साक्षी (क्षिन)-पु० कार्यविशेषको देखनेवाला, -का-कुछ ही दिनोंका, बिलकुल हालका (कलकी बात)। चश्मदीद गवाह; मनुष्यके भले-बुरे कर्मोंके साक्षी देवता -का छोकरा-(वक्तासे) उम्रमें बहुत छोटा; नादान, (सूर्य, चंद्र, यम, काल, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और नासमझ । -की कलपर है-आगेकी बात आगे, यथाआकाश )। -हीन-वि० जिससे कोई अच्छा कार्य न समय देखी जायगी। -को-कल, कलके दिन । हो हतभाग्य।
कल-वि० कालाका समास-व्यवहृत रूप (कलमुँहाँ, कलकर्मठ-वि० [सं०] काममें कुशल; मुस्तैदीसे काम करने- सिरा इ०)। -चोंचा-पु. वह कबूतर जिसकी सारी वाला; कर्मनिष्ठ ।
देह सफेद पर चोंच काली हो। -जिब्भा-वि० काली कर्मणा-अ० [सं०] कर्मसे, कर्मतः ।
जीभवाला; जिसकी कही हुई अमंगल बातें सत्य हो जायें। कर्मण्य-वि० [सं०] कर्मकुशल; उद्यमी।
-जीहा*-वि० दे० 'कल जिब्भा'। -मुँहाँ-वि० काले कर्मना*-अ० दे० 'कर्मणा'।
मुँहवाला; कलंकित । -सिरी-स्त्री० एक चिड़िया जिसके कर्मिष्ठ-वि० [सं०] कर्मकुशल; कर्मनिष्ठ ।
सिरका रंग स्याह होता है। कर्मी (मिन्)-वि० [सं०] काम करनेवाला; उद्यमी; कल-स्त्री० चैन, आराम, शांति; इतमीनान; युक्तिः कारीगर ।
कौशल; यंत्र, मेशीन; पेच-पुरजा; बंदूकका घोड़ा; करवट, कर्मेंद्रिय-स्त्री० [सं०] वह इंद्रिय जिससे कोई काम किया बल; अंग । -दार-पु० कलसे ढला हुआ सिक्का, रुपया । जाय ( हाथ, पाँव, वाणी, गुदा और उपस्थ )।
वि० कल-पेचवाला । -बल-पु० दाव-पेच; जोड़-तोड़ । कर्रा-वि० कड़ा, कठिन ।।
* वि० अस्पष्ट उच्चारित (वचन) । मु०-ऐठना,कर्राना*-अ० कि० कड़ा होना, सख्त होना ।
घुमाना-कल चलाना; किसीके मनको अभीष्ट दिशामें कर्ष-पु० [सं०] खींचना; जोतना; जताईड, खरोंच मोड देनाः पट्टी पदाना। -बेकल हो १६ माशेका मान ( ५ रत्तीके माशेसे); पुराने जमानेका किसी पेच-पुरजेका ढीला होना, अपनी जगहसे हट जाना। एक सिक्का, हूण; जोश; ताव ।
कलई-स्त्री० [अ०] राँगा; राँगेका मुलम्मा जो ताँबे, कर्षक-वि० [सं०] खींचनेवाला । पु० किसान ।
पीतलके बरतनोंपर किया जाता है; लेप; मुलम्मा; चूना कर्षण-पु० [सं०] खींचना; जोतना; झुकाना; कृषिकर्म चूनेकी पुताई, सफेदी; असलीयतको छिपानेवाली वस्तु,
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१४५
कलक-कला
बनावट; चाल, तदबीर । -गर-पु० कलई करनेवाला। एक तरहका बाफता। -कारी-स्त्री० कलमकी कारीगरी; -दार-वि० जिसपर कलई की गयी हो। मु०-खुलना- कलमसे बनाये हुए बेल-बूटे। -तराश-पु० कलम असलीयतका प्रकट हो जाना, पोल खुलना ।
बनानेका चाकू । -दान-पु० काठ, पीतल आदिकी लंबी कलक-पु०[अ०]दुःख, रंज; पछतावा, ग्लानि; विकलता। संदूकची या खुला आधार जिसमें कलम-दावात रखी कलकना-अ० क्रि० चिंघाड़ना, चीत्कार करना। जाय । -बंद-वि० लिखा हुआ, लिपिबद्ध । मु०-करना कलकान (नि)*-स्त्री० दुःख परेशानी; कलह ।
-काटना; छाँटना। -खाँचना-लिखे हुएको काटना। कलक्टर-पु० [अं०] जिलेमें मालका सबसे बड़ा अफसर । -घसीटना,-चलाना-लिखना। -तोड़ना-रचनामें कलक्टरी-स्त्री० कलक्टरकी कचहरी; कलक्टरका पद या| ऐसी सुंदर, अनूठी बात कहना जिससे अधिक सुंदर, कार्य । वि० कलक्टरका कलक्टरसे संबद्ध ।
अनूठी बात न कही जा सके, रचना-कौशलकी पराकाष्ठा कलगी-स्त्री० [फा०] टोपी, पगड़ीमें लगाया जानेवाला कर देना। -फेरना-लिखे हुएको काटना, रद्द करना। तुर्रा या फूंदना; मोर या मुगेके सिरपरकी चोटी; सिरका कलमख*-पु० दे० 'कल्मष' । एक गहना; ऊँची इमारतका शिखर; लावनीकी एक तर्ज । | कलमना*-स० क्रि० कलम करना, काटना। कलचुरी-पु० दक्षिण भारतका एक राजवंश ।
कलमलना*-अ० क्रि० दे० 'कलमलाना' । कलछा-पु० बड़ी कलछी।
कलमलाना-अ० कि० कसमसाना; विकल होना। कलछी-स्त्री० लंबी डाँडीका गोल कटोरीवाला चम्मच कलमा-पु० [अ०] सार्थक शब्द; बात, उक्ति; वह जिससे दाल आदि निकालते हैं।
वाक्य जी मुसलमानोंके धर्म-विश्वासका मूल मंत्र हैकलठुला-पु० लंबी डॉडीका कलछा जिससे भड़भूजा भाड़. 'ला इलाह इलिलाह, मुहम्मद रसूलिल्लाह' । मु०से जलती बालू निकालता है ।
पढ़ना-इसलाम धर्म स्वीकार करना; ईमान लाना। कलजुग-पु० दे० 'कलियुग' ।
(किसीका)-पढ़ना,-भरना-(किसीका) भक्त, अनुगत, कलहर* -पु० दे० 'कलक्टर'।
प्रेमी, प्रशंसक होना; (किसीके) रूप-गुणपर मुग्ध होना। कलत्र-पु० [सं०] पत्नी, भार्या श्रोणि; दुर्ग ।
-पढ़ाना-इसलामकी दीक्षा देना, मुसलमान बनाना । कलन-पु० [सं०] ग्रहण, जानना; समझना; शब्द करना; कलमास*-वि० दे० 'कल्माष'। गणितकी क्रिया; धब्बा; दोष ।
कलमी-बि० हस्तलिखितः कलम काटकर लगाया हुआ कलना-स्त्री० [सं०] ज्ञान; ग्रहण, लेना; छोड़ना, मोचन । (पेड़); रवादार । -शोरा-पु. लंबे रवेवाला और अधिक कलप-पु० दे० 'कला' और 'कल्प'; खिजाब ।
साफ शोरा। कलपना-अ० क्रि० विलाप करना; अंतर्वेदनाको शब्दों में | कलल-पु० [सं०] गर्भका आरंभिक रूप जब वह केवल कुछ व्यक्त करते हुए रोना; विमूरना; दुःख पाना; कुढ़ना आह| कोषोंका गोला रहता है; गर्भाशय । करना। + * स० क्रि० काटना-'कलपी माथ बेगि कलवरिया-स्त्री० कलवारकी दुकान, शराबखाना। निस्तरऊँ-१०। स्त्री० आह, हाय (पड़ना); दे० 'कल्पना'। कलवार-पु० एक हिंदू जाति जो पहले शराब बनाने-बेचनेकलपाना-स० क्रि० सताना, रुलाना।
का पेशा करती थीउस जातिका व्यक्ति, कलाल । कला-पु० धुले कपड़े में कड़ाई, चिकनाई लानेके लिए कलश, कलस-पु० [सं०] घड़ा, कलसा; मंदिर आदिका लगायी हुई लेई या माँडी; चेहरेपस्का काला धब्बा । शिखर, कँगूरा; चोटी (ला०); सिरमौर ।-जन्मा(न्मन्), कलबूत-पु० ढाँचा; टोपी बनानेका ढाँचा, गोलंबर । -भव-पु० अगस्त्य मुनि । कलभ-पु० [सं०] हाथीका बच्चा, हाथी; ऊँटका बच्चा। कलशी(सी)-स्त्री० [सं०] छोटा घड़ा, गगरा; छोटा कँगूरा। कलभक-पु० [सं०] हाथीका बच्चा।।
कलसा-पु० धड़ा; कँगूरा। कलम-स्त्री० [सं०] लेखनी। पु० एक तरहका धान। कलहंस-पु० [सं०] राजहंस; उत्तम राजा; परब्रह्म कलम-स्त्री० [अ०] काटना; सरकंडे, नरसल आदिका कलह-पु० [सं०] झगड़ा, लड़ाई; युद्ध; रास्ता; तलवारका टुकड़ा जिससे लिखनेका काम लेते है। लकड़ी, सेलुलाइड म्यान । -कार-वि० झगड़ालू , लड़ाका। -कारीआदिका गोल लंबोतरा टुकड़ा जिसमें लोहे आदिकी जीभ (रिन्)-वि० कलह करनेवाला ।-प्रिय-वि० झगड़ालू । (निब) लगाकर लिखते हैं, लेखनी; किसी पेड़-पौधेकी टहनी पु० नारद । -प्रिया-वि० स्त्री० लड़ाकी । जो नया पेड़ तैयार करनेके लिए काटी जाय; ऐसी टहनीसे कलहांतरिता-स्त्री० [सं०] पतिका या नायकका अपमान लगाया हुआ पौधा; कनपटियोंपर सुंदरताके लिए छोड़े कर पीछे पछतानेवाली नायिका (सा०)। और कुछ लंबाई में कटे हुए बाल; चित्र बनाने या रंग कलहारी*-वि० स्त्री० झगड़नेवाली । भरनेकी कूँची; काँच या स्फटिकका पहलदार लंबोतरा कलही (हिन्)-वि० [सं०] झगड़ालू । टुकड़ा; नक्काशी या खोदाई करनेका औजार, होरेकी कलाँ-वि० [फा०[ बड़ा; दीर्घाकार । कनी जड़ी हुई लकड़ी जिससे शीशा काटा जाता है। शोरे, कला-स्त्री० [सं०] अंश; छोटा भाग; चंद्रमंडलका सोलहवाँ नौसादर आदिका रवा लिखावट, लिपि; आदेश, हुक्म; भाग; राशिके तीसवें अंशका साठवाँ भाग; कालका एक एक तरहकी फुलझड़ी। वि० कटा, तराशा हुआ।-कसाई मान (१.६ मिनट); रक्त-मांस-मेद आदिको अलग रखने-पु० कुछ लिख-पढ़कर लोगोंकी हानि करनेवाला ।-कार वाली शरीरकी झिल्लियाँ हुनर,गुण; गाने-बजाने आदिकी -पु० लेखक; चित्रकार, चित्रोंकी रेखाओं में रंग भरनेवाला विद्या सुंदर रचना या उसकी रीति व्याज; स्त्रीका रजः
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कलाई-कलेजा
१४६ अणु भ्रण; लगाक; नौका; छल-कपट चाल; लीला; मात्रा जिसकी आयु ४ लाख ३२ हजर मानववर्ष मानी जाती (छंद); यंत्र; * ज्योति, तेज; छटा, शोभा। -कार-पु० है; पाप-बुद्धि । स्त्री० कली। * वि० काला । -कर्म(न) ललित कलाओंमेंसे किसीको जानने, उससे जीविका -पु० संग्राम ।-प्रिय-वि० झगड़ालू । पु० नारद बंदर । करनेवाला, कलावंत (आर्टिस्ट)। -कुशल-वि० किसी -मल-पु० पाप। -सरि*-स्त्री० कर्मनाशा नदी। कलामें निपुण । -कृति-स्त्री० कलामयी रचना । -युग-पु० कलिकाल । -युगी-वि० [हिं०] कलियुग-कौशल-पु० कला-विशेष में निपुणता हुनर। -क्षय- का; कलियुगी बुद्धि, प्रवृत्तिवाला। -वर्य-वि० जिसका पु० चंद्रमाका घटना । -धर,-नाथ,-निधि-पु० कलियुगमें निषेध हो । पु० कलियुगमें निषिद्ध कर्म । चंद्रमा; * कलाविद् । -पंजी-स्त्री० (मिनट बुक) वह | कलिका-स्त्री० [सं०] कली; एक छंद, वीणामूल | पंजी या रजिस्टर जिसमें किसी सभा समितिका संक्षिप्त कलिकान*-वि० हैरान, परेशान । कार्य-विवरण लिखा जाय । -बाज़-पु० [हिं०] कला- | कलित-वि० [सं०] गृहीत; शात; प्राप्तः युक्त; विभूषित; बाजी करनेवाला; नटका काम करनेवाला। -बाज़ी- गणना किया हुआ; ध्वनित; सुंदर। स्त्री० [हिं०] सिर नीचे और पैर ऊपर करके उलट जाना, कलिया-पु० [अ०] पकाया हुआ रसेदार मांस । लौटनियाँ नटविद्या; चालाकी, तिकड़म ।
कलियाना-अ० कि० कलियोंसे युक्त होना; पक्षियोंका नया कलाई-स्त्री० हाथमें हथेलीके जोड़के ऊपर, हथेली और __पंख निकलना। पहुँचेके बीचका भाग, गट्टा; कलाई पकड़ने-छुड़ानेकी कलियारी-स्त्री० विषैली जड़वाला एक पौधा । . कसरत; सूतका लच्छा; पूला; हाथीके गले में लगायी जाने- कलींद, कलींदा-पु० तरबूज । वाली रस्सी जिसमें पीलवान पैर फंसाता है; अलान । कली-स्त्री० [सं०] मुंह बँधा फूल, बोडी; चिडियाका पहले कलाकंद-पु० एक तरहकी बरफी।
निकलनेवाला छोटा पर; अप्राप्तयौवना कन्या (ला); कलाद, कलादक-पु० [सं०] सोनार ।
[हिं०] कुतें आदिमें लगनेवाला तिकोना कपड़ा; पत्थर कलादा-पु० हाथीकी गरदनपरका वह भाग जहां पील- आदिका फुका हुआ टुकड़ा जिससे चना बनाया जाता है। वान बैठता है।
म. (दिलकी)-खिलना-चित्तका प्रसन्न होना। कलाप-पु० [सं०] समूह; पूला; मोरकी पूंछ; एक गहना; कलीट*-वि० काला, कलूटा।
करधनी; तरकश; बाण; चंद्रमा; एक अर्द्ध चंद्राकार अस्त्र। कलुख*-पु०, कलुखाई*-स्त्री० दे० 'कलुष' । कलापक-पु० [सं०] समूह; पूला; मोतियोंकी लड़ी; कलुखी*-वि० दोषी, कलुषयुक्त ।। करधनी; चार ऐसे श्लोकोंका समूह जिनके मिलानेसे एक कलुष-पु० [सं०] मैल, गंदगी; पाप; क्रोध; भैसा । वि० वाक्य होता है; हाथीके गलेकी रस्सी ।
मैला, गंदा; पापी; निंदित; क्रुद्ध कर । कलापिनी-स्त्री० [सं०] मोरनी; रात ।
कलुषाई*-स्त्री० दोष, अपवित्रता। . कलापी(पिन)-वि० [सं०] तरकशधारी;दुम फैलानेवाला कलुषित-वि० [सं०] कलुषयुक्त; रुष्ट । (मोर)। पु० मोर; कोयल; वटवृक्ष ।
कलूटा-वि० काले रंगका, काला । कलाबत्तू-पु० रेशमके धागेपर लपेटा हुआ सोने या चाँदीका | कलूला-पु० कुल्ली।
तार; सोने-चाँदीका तार; कलाबत्तका बना पतला फीता। कलेऊ-पु० दे० 'कलेवा' । कलाबा-प० [अ०] सूतका लच्छा या गोला; तकलीपर कलेजा-पु० प्राणियोंका एक भीतरी अवयव जो सीनेके लिपटा हुआ सूत; हाथीके गलेकी रस्सी हाथीकी गरदन । अंदर बाँयी ओर रहता है और जिससे पित्त बनता तथा कलाम-पु० [अ०] वचन, उक्ति; बात-चीत; रचना वादा; दूषित रक्त शुद्ध होता है; यकृत, जिगर, छाती, दिल; उज्र, एतराज ।
साहस, हिम्मत; अति प्रिय व्यक्ति या वस्तु । मु०-उछकलामत* --पु० कलावंत, संगीतश।
लना-हर्ष, उद्वेग, आशंका आदिसे दिलका धड़कना । कलार-पु० दे० 'कलवार' ।
-कटना-विषादिसे आँतोंमें छेद होना; दिलको चोट कलाल-पु० दे० 'कलवार'।
पहुँचना; खूनी दस्त आना। -काँपना-दिल दहलना, कलावंत-पु० विधिवत् शिक्षाप्राप्त गायक या वादक । वि० डरसे काँप जाना । -कादना,-निकालना-वेदना कला-कुशल ।
पहुँचना; प्रिय वस्तु या सर्वस्व ले लेना। -खानाकलावती-वि० स्त्री० [सं०] कला जाननेवाली; संदरी।। सताना, पीड़ा देना; किसी चीजको बार-बार माँगकर कलावा-पु० दे० 'कलाबा' ।
कष्ट पहुँचाना । -खिलाना-प्रिय वस्तु देना; आदर. कलिंग-वि० [सं०] चतुर, धूर्त । पु० प्राचीन भारतका सत्कारमें कोई बात उठा न रखना। -छलनी होनाएक जनपद; वहाँका निबासी; कुलंग पक्षी; इंद्रजी; सिरिस ताने, व्यंग्य-बाणोंसे कलेजा छिद जाना। -छिदना,वटवृक्ष; तरबूज; एक राग ।
बिधना-कड़ी बातसे जी दुखना । -जलाना-कष्ट कलिंगड़ा-पु० एक राग ।
पहुँचाना, सताना। -टूटना-जी टूटना, हौसला पस्त कलिंद-पु० [सं०] वह पर्वत जिससे यमुना निकलती है; होना। -ठंढा होना-मनको शांति मिलना, जलनबहेड़ा, सूर्य । -कन्या,-जा,-तनया-स्त्री० यमुना। बेकलीका दूर होना। -थामकर रह जाना-असह्य कलिंदी*-स्त्री० दे० 'कालिंदी'।
कष्ट-वेदनाको बिना आह किये, दिल पकड़कर सह लेना, कलि-पु० [सं०] कलह, झगड़ा; युद्ध; चार युगोंमेंसे चौथा वेदनाको बाहर न आने देना। -थाम लेना या पकड़
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लेना - वेदनाको बाहर न आने देनेके लिए दिलको पकड़ लेना, दबा रखना। - धक-धक करना, धड़कनाभय, आशंकासे असह्य कष्टके सहनके लिए मनमें बलसंचय करना; चित्तका विचलित, विकल हो जाना; दिल दहलना । - धकसे हो जाना- एकाएक डर जाना; स्तब्ध हो जाना, विस्मित होना। -निकालकर घर या रख देना - अति प्रिय वस्तु अर्पण कर देना; जान दे देना; सारी शक्ति लगा देना । -पक जाना- किसी कष्टसे ऊब जाना; उसका असह्य हो जाना। - पकाना - नाक में दम करना, परेशान करना । - पत्थरका करना - असहा दुःख के सहनके लिए जी कड़ा करना; निष्ठुर, निर्मम बन जाना। - फट जाना - किसीके दुःखसे हृदयका विदीर्ण, द्रवित होना । - बल्लियों, बाँसों, उछलना- हर्ष, भय, आशंका आदिसे हृदयका जोरसे स्पंदित होना । - मुँहको आना- किसी कष्ट, व्यथासे व्याकुल, बेचैन होना, अति क्लेश होना । कलेजेका टुकड़ा - संतान, बेटा । - की कोर-संतान, बेटी पर छुरी चल जाना या फिरना - हृदयपर गहरा आघात होना, कलेजा कटने, चिरनेका-सा कष्ट होना । - पर साँप लोटना- किसी बातको याद कर, किसी चीजको देखकर यकायक बहुत दुःखी हो जाना; व्यथासे बहुत बेचैन हो जाना; ईर्ष्यासे जल उठना । - में आग लगना-द्वेप होना; प्यास लगना; शोक होना । - में डालना - प्यारसे पास रखना । - में तीर लगना-दिल में गहरी चोट लगना । - में पैठना-भेद लेने या मतलब निकालनेके लिए हेलमेल बढ़ाना। - से लगाना-छाती से चिपटा लेना, प्यार
करना ।
कलेजी - स्त्री० कलेजेका मांस ।
कलेवर - पु० [सं०] देह, चोला; डील, आकार । बदलना - नया शरीर धारण करना, चोला बदलना; जगन्नाथजीकी पुरानी मूर्तिकी जगह नयीकी स्थापना होना । कलेवा - पु० सबेरेका जलपान, नाश्ता; व्याहकी एक रस्म; मार्ग में खाने के लिए साथ लिया गया भोजन, पाथेय । मु० - करना - खा जाना ।
कलेस* पु० दे० 'क्लेश' |
कलैया - पु० कलाबाजी (खाना, मारना) कलोर - स्त्री० जवान गाय जो ब्यायी या गाभिन न हो । * पु० बछड़ा - 'मानो हरे तृन चारु चरै बगरे सुरधेनुके धौल कलोरे' - कविता |
कलोरी - स्त्री० जवान गाय, कलोर - 'नवें नारि तो दसें कलोरी ।'
कलोल - पु० क्रीड़ा, केलि ।
कलोलना* - अ० क्रि० कलोल करना ।
कलौंछ- स्त्री० दे० 'कलो स' ।
मु० -
कलौ स - स्त्री० कलंक; कालिमा; स्याही | कल्क - पु० [सं०] तेल आदिके नीचे जमनेवाला मैल, कीट; मैल; कानका मैल, खूँट; एक तरहका काढ़ा; दंभ; पाप । कल्कि - पु० [सं०] विष्णुका दसवाँ और अंतिम अवतार
१०
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कलेजी-कल्याण
जो पुराणों के अनुसार कलियुग के अंत में संभल (मुरादाबाद)में होगा ।
कल्प - पु० [सं०] धार्मिक कर्तव्योंका विधि-विधान; विहित विकल्प; वेदके ९ अंगों में से वह जिसमें यज्ञों, संस्कारों आदिकी विधियाँ बतायी गयी हैं; ब्रह्माका एक दिन (एक हजार महायुग - ४ अरब ३२ करोड़ मानववर्ष ); प्रलय; चिकित्सा; शरीरको पुनः नया एवं नीरोग करनेका उपाय; आयुर्वेदका विष चिकित्सा अंग विभाग (पुस्तकादिका); स्वर्गका एक वृक्ष । वि० लगभग बराबर, जरासा कम ( केवल समासांत में - देवकल्प, मृतकल्प इत्यादि ); उचित, योग्यः सशक्तः संभव; व्यवहार में लाने योग्य । -कारपु० कल्पसूत्रों का रचयिता (आश्वलायन, आपस्तंव, बोधायन, कात्यायन ); नाई; शराब । वि० सजाने-सँवारनेवाला । तरु, द्रुम, पादप-पु० दे० 'कल्पविटप' । - पाल - पु० शराब बेचनेवाला । - लता - स्त्री० कल्पवृक्ष; कल्पवृक्ष की शाखा । -वास-पु० माघके महीनेभर गंगातटपर ब्रह्मचर्यपूर्वक रहकर धर्मकृत्य करना । - विटप, - वृक्ष - शाखी (खिन् ) - पु० नंदनकाननका एक वृक्ष जो समुद्रमंथन से निकले हुए १४ रत्नों में और जो कुछ भी माँगिये उसे देनेवाला माना जाता है । कल्पक - वि० [सं०] कल्पना करनेवाला; रचनेवाला; काटनेवाला | पु० नाई; कचूर; एक संस्कार । कल्पन - पु० [सं०] रचना; बनाना; सजाना, सँवारना; एक वस्तु में दूसरीका आरोप करना; कल्पना करना; छाँटना, कतरना ।
राज्य |
कल्पनीय - वि० [सं०] जिसकी कल्पना की जा सके । कल्पांत - पु० [सं०] प्रलय, सृष्टिका अंत । - स्थायी (यिन) - वि० सृष्टिके अंततक बना रहनेवाला ।
कल्पित - वि० [सं०] सोचा, माना हुआ; मनसे गढ़ा हुआ, फर्जी; सजाया, सँवारा हुआ ।
कल्मष - पु० [सं०] मल; मैल; पाप; एक नरक ।
कल्माष - वि० [सं०] चितकबरा । पु० चितकबरा रंग; काला रंग; राक्षस; अग्निका एक रूप; एक खुशबूदार चावल दाग, धब्बा ।
कलौंजी - स्त्री० मसाला भरकर घी तेल में तली हुई समूची | कल्य- पु० [सं०] भोर, तड़का; मद्य मंगलकामनः भिंडी, बैगन आदि; मँगरैला ।
- पाल, - पालक - पु० कलवार, मद्यव्यवसायी । कल्या - स्त्री० [सं०] शराब; कल्याणवचन; हरीतकी; कलोर गाय (?) । - पाल, - पालक - पु० कलवार । कल्याण- पु० [सं०] मंगल; सुख-सौभाग्य; भलाई; अभ्युदय; एक राग | -कर,-कारी (रिन् ) - वि० कल्याण,
कल्पना - स्त्री० [सं०] रचना; कोई नयी बात सोचना, उद्भावना; इसकी शक्ति; इस तरह सोची हुई बात, उपज; मनकी वह शक्ति जो परोक्ष विषयोंका रूप, चित्र उसके सामने ला देती है; सोचना; मान लेना; एक वस्तुमें दूसरीका आरोप; सँवारना; सवारीके लिए हाथीको सजाना | - चित्र - पु० कल्पनासे खींचा हुआ चित्र, नकशा । - प्रसूत - वि० कल्पनासे उपजाया हुआ, मनगढंत । - शक्ति - स्त्री० कोई नयी बात सोचनेकी शक्ति, उद्भावनाशक्ति । सृष्टि स्त्री० कल्पनाकी रचना, मनो
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कल्याणी-कस
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मंगल करनेवाला । -कृत-वि० शुभ कर्म करनेवाला3B ___ बंगाली वैद्योंकी एक उपाधि । -समय-पु० वे मान्यताएँ कल्याणकारी।
जिनका कवि लोग प्राचीन कालसे वर्णन करते आ रहे है कल्याणी-वि० स्त्री० [सं०] कल्याणकारिणी; कल्याणमयी; (जैसे स्त्रीके पदाघातसे अशोकका पुष्पित होना)।
सुंदरी । स्त्री० गाय; कलोर गाय; जंगली उरद । कविता-स्त्री० [सं०] रसात्मक छंदोबद्ध रचना । कल्यान*-पु० दे० 'कल्याण' ।
कविताई*-स्त्री० दे० 'कविता'। कल्ल-वि० [सं०] बहरा।
कवित्त-पु० कविता; एक वर्णवृत्त । कल्लर-पु० नोनी मिट्टी, रेह ।
कवित्व-पु० [सं०] काव्यरचनाकी शक्ति काव्यका गुण, कल्लाँच-वि० गुंडा; कंगाल । कल्ला-पु० अँखुआ; गोफा (फूटना); जबड़ा; जबड़ेके नीचे कविनासा*-स्त्री० कर्मनाशा नदी ।
गलेतकका भाग; लंपका बर्नर । -तोड़-वि० मुंहतोड़ कविलास*-पु० कैलास; स्वर्ग । मुंह बंद कर देनेवाला (जवाब)। -दराज़-वि० मुंह- कवींद्र-पु० [सं०] श्रेष्ठ कवि । जोर, जिसकी जबान बहुत तेजीसे चले; लड़ाका । कवेला-पु. कौएका बच्चा। -दराज़ी-स्त्री० मुंहजोरी, जबाँदराजी। मु०-दबाना कवोष्ण-पु० [सं०] थोड़ा गरम, कुनकुना । -बोलनेसे रोकना । -फुलाना-मुँह फुलाना । कव्य-पु० [सं०] पितरोंको दिया जानेवाला अन्न । -मारना-गाल बजाना।
कश-पु० [सं०] चाबुक: [फा०] खींच; तंबाकू, सिगरेट कल्लाना-अ० क्रि० जलनके साथ दर्द होना ।
आदिके धुएँका धूट; फूक । वि० खींचनेवाला; उठानेवाला कल्लू-वि० काला, कलूटा ।
(केवल समासमें-आराकश, मेहनतकश)। -मकशकल्लोल-पु० [सं०] कुछ ऊँची और आवाज करनेवाली स्त्री० खीचा-तानी; संघर्ष; भीड़-भाड़, धक्कमधक्का । लहर, मौज; आनंद; क्रीड़ा।
कशा-स्त्री० [सं०] चाबुक; रस्सी। कल्लोलिनी-स्त्री० [सं०] लहरवाली नदी ।
कशाघात-पु० [सं०] चाबुक या कोड़ा मारना । कल्हण-पु० [सं०] इतिहासग्रंथ राजतरंगिणीके कर्ता। कशिश-स्त्री० [फा०] खिचाव, आकर्षण खींचनेकी शक्ति; कल्हर*-पु० नोनी मिट्टी । वि० बंजर ।
झुकाव, प्रवृत्ति । कल्हरना*-अ० क्रि० कड़ाही में भूना या तला जाना। | कशीद-स्त्री० [फा०] अर्क खींचना (करना, होना)। कल्हारना-स० क्रि० (हरे या भिगोये चने, मटर -गी-स्त्री० खिंचाव; मनमोटाव, नाराजगी ।
आदिको) घी या तेल डालकर हलका तलना । अ० क्रि०कशीदा-पु० [फा०] सूई-धागेसे कपड़ेपर बनाया हुआ कराहना।
बेल-बूटा, गुलकारी (काढ़ना)। कवच-पु० [सं०] बक्तर, वर्म; छिलका तांत्रिक साधना-कशेरु, कशेरुक-पु० [सं०] कसेरू । का एक रक्षा मंत्र; उस मंत्रसे बना यंत्र, ताबीज; बड़ा कश्चित्-वि० सर्व० [सं०] कोई; कोई एक । नगाड़ा। -धर,-हर-वि० कवच धारण करनेवाला। कश्ती-स्त्री० [फा०] दे० 'किश्ती'। कवचित यान-पु० [सं०] (आर्मर्ड कार ) युद्धभे काम कश्मल-पु० [सं०] मूर्छा; मोह; उत्साहहीनता; पाप ।
आनेवाली वह गाड़ी जिसपर तोपों आदिकी मारसे उसे कश्मीर-पु० [सं०] भारतके पश्चिमोत्तर कोणमें स्थित एक सुरक्षित रखनेके लिए लोहेकी मोटी चद्दर चढ़ा दी गयी। सुंदर पहाड़ी प्रदेश। -ज-पु० केसर । हो तथा जो स्वयं तोपों, तोपचियों आदिसे सुसज्जित हो। कश्मीरी-वि० कश्मीरका; कश्मीर में उपजा। स्त्री० कवन -सर्व कौन ।
कश्मीरकी भाषा । पु० कश्मीर-निवासी। कवयित्री-स्त्री० [सं०] काव्यरचना करनेवाला स्त्री कष-पु० [सं०] कसौटी परीक्षा; सान; रगड़ना । कवर-पु० [सं०] जूड़ा, चोटी; दे० 'कवल'।
कषण-पु०[सं०] रगड़ना; चिह्न करना; कसीटीपर कसना । कवरना*-सक्रि० सेंकना, जरा-जरा भूनना । कषा-स्त्री० [सं०] दे० 'कशा'। कवरी-स्त्री० [सं०] चोटी; वनतुलसी ।
कषाय-वि० [सं०] कसैला; सुगंधयुक्त; गेरू के रंगका । कवर्ग-पु० [सं०] 'क'से 'ड'तकके अक्षरोंका समूह । कष्ट-पु० [सं०] पीड़ा, व्यथा; पाप; दुष्टता; कठिनाई; कवल-पु० [सं०] कौर, ग्रास; कुल्ली ।
मुसीबत; श्रम । वि० बुरा; हानिकर; दुःखकर; कठिन कवलित-वि० [सं०] खाया, चबाया, निगला हुआ। दुःखी । -कर-वि० तकलीफ देनेवाला। -कल्पनाक्रवाम-पु० [अ०] शीरा, चाशनी; पानके साथ खानेके | स्त्री० वह बात जिसकी उपपत्तिमें बहुत खींच-तान करनी लिए सुरतीका पकाकर गाढ़ा किया हुआ रस ।
पड़े; जो मुश्किलसे दिमागमें आये । -कारक-वि० कष्ट क्रवायद-पु० [अ०] नियमावली; कार्यविधि ('कायदा- देनेवाला । -मोचन-वि० कष्टसे छुड़ाने, उबारनेवाला। का बहु०)। स्त्री० व्याकरण सेना या पुलिसके सिपाहियों- पु०कष्ट छडाना ।-सहन-योजना-स्त्री०(ऑस्टेरिटी रकीम) का युद्धकलाका अभ्यास करना, परेड ।
दे० 'अल्पभोग योजना। -साध्य-वि० जो कठिनाईसे कवि-पु० [सं०] कविता करनेवाला, शायर; ऋषिः ब्रह्मा | किया जा सके जिसे करने में बहुत श्रम करना पड़े। वाल्मीकि; सूर्य; उल्ल, शुक्राचार्य । -कर्म (न्)-पु० | कष्टार्तव-पु० [सं०] स्त्रीको रजोधर्ममें पीड़ा होना । कविता; काव्यरचना ।-ज्येष्ठ-पु० आदि-कवि वाल्मीकि।| कष्टार्थ-पु० [सं०] खींच-तानकर लाया हुआ अर्थ । -पुत्र-पु० शुक्राचार्य। -राज-पु० कविश्रेष्ठ; भार; कस-पु० [सं०] कसौटी; [हिं०] जोर, बल; दृढ़ता, मजबूती;
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कसक-कहगिल काबू, दाब; रोक; जाँच; तलवारकी लचक; अर्क, सार; और बिके। कसाव । * अ० कैसे, क्योंकर । -का-काबूका, बसका। | कसवाना-स० क्रि० कसनेका काम कराना। मु०-में रखना-रोक या दबावमें रखना ।। | कसहड़-पु. काँसेके बरतनोंके टुकड़े ।
रह-रहकर होनेवाली पीड़ा, टीसः खटक; | कसहँडा-पु०, कसहँडी-स्त्री० देग या बटलोईके आकारअरमान, अभिलाषा पुराना वैर; हमददीं।
का एक बरतन । कसकन-स्त्री० कसकनेकी क्रिया, कसक ।
कसाई-पु० [अ०] मांस-विक्रेता; गोमांस बेचनेवाला, कसकना-अ० क्रि० पीड़ा होना, टीसना सालना । बूचड़ । वि० बेरहम, बेदर्द । -खाना-पु. वह स्थान कसकुट-पु० ताँबे और जस्तेके मेलसे बनी एक धातु। । जहाँ मांसके लिए पशुओंका वध किया जाय। मु०-के कसन-स्त्री० कसनेकी क्रिया, कसाव कसनेकी रस्सी कुश। खूटे बँधना-निर्दय व्यक्तिके पाले पड़ना; बेदर्दसे ब्याहा कसना-स० कि० बंधन या तनावको कड़ा करना; ढीली जाना। चीज, गाँठ, फंदे आदिको कड़ा करना; खींचकर बाँधना; कसाकसी-स्त्री० तनातनी, वैर-विरोध । मुश्के बाँधना; जकड़ना; पेच, पुरजेको कड़ा बैठाना | कसाना-अ० क्रि० कसैला स्वाद हो जाना; धातुका कसाव (चुस्त बैठनेवाली चीजको) पहनना,बाँधना (वदी, चपरास | उतर आनेसे बिगड़ना । स० क्रि. कसवाना । आदि); कद् आदिको रेतना; दाम अधिक लेना; ट्रंसकर कसार-पु० चीनी मिला भूना हुआ आटा, पँजीरी; tढूँढी। भरना; घोड़े, हाथीको चारजामा, हौदा रखकर (सवारीके कसाला-पु० कष्टकर श्रम; कष्ट । लिए) तैयार करना; सोनेको कसौटीपर घिसना; परखना; | कसाव-पु० कसैलापन; कसनेका भाव; तनाव; * कसाई । * क्लेश देना; तपाना; व्यंग्य, कटाक्षभरी उक्तिका लक्ष्य | कसावट-स्त्री० तनाव, खिचाव । बनाना (फबती कसना)। अ०क्रि०तंग, चुस्त होना; बंधन, कसीटना*-स० क्रि० कसना; रोकना । फंदा आदिका कड़ा होना; खिंचना; कसा,जकड़ा जाना। | कसीदा-पु० दे० 'कशीदा'। पु० कसने, बाँधनेका साधन; बेठन, खोल । कसकर-अ० | क़सीदा-पु० [अ०] उर्दू-फारसीका वह पद्य जिसमें किसीमजबूतीसे, जकड़कर पूरा-पूरा; जोरसे बेरहमीसे । की प्रशंसा या (क्वचित् ) निंदा की गयी हो। कसनि*-स्त्री० दे० 'कसन' ।।
कसीस-पु०एक लौहजन्य पदार्थ । स्त्री निर्दयता कोशिश । कसनी-स्त्री० वह रस्सी जिससे कोई वस्तु कसी जायः क भी*-वि० कुसुमके रंगका; इस रंगमें रंगा हुआ। बेठन; अगिया; कसौटी; जाँच; कसावका पुट, हथौड़ी। कसूमर-पु० दे० 'कुसुम' । कसब-पु० [अ०] अर्जन, कमाना; पेशा,धंधा; वेश्यावृत्ति। कसूर-पु० दे० 'कुसूर'।-मंद-वि० दे० 'कुसूरमंद'। कसबा-पु० [अ०] छोटा शहर ।
कसेरा-पु० एक हिंदू जाति जो काँसे आदिके बरतन बनानेकसबाती-वि० नगरवासी, नागरिक ।
बेचनेका धंधा करती है । कसबिन-स्त्री० दे० 'कसबी' ।
कसेरू-पु० एक प्रकारके मोथेकी जड़ जो छीलकर खायी कसबी-स्त्री० वेश्या, व्यभिचारसे जीविका कमानेवाली। जाती है। -खाना-पु० वेश्यालय ।
कसया*-पु० कसने या जकड़नेवाला; परखनेवाला। कसम-स्त्री० [अ०] शपथ, सौगंध शपथपूर्वक की हुई प्रतिज्ञा। | कसैला-वि० जिसमें कसाब या कसैलापन हो। मु०-उतारना-शपथके बंधन या प्रभावसे अपने आपको कसैली -स्त्री० सुपारी । मुक्त करना (लड़के); रस्म-अदाई; कहनेभरके लिए कुछ कसोरा-पु० मिट्टीका बना प्याला जो छिछला होता है। करना । (किसी बातकी)-खाना-किसी बातके करने | कटोरा । या न करनेकी प्रतिज्ञा करना।-खानेको-नाममात्रको। कसोटी-स्त्री० एक काला पत्थर जिसपर सोना घिसकर कसमस-पु०, स्त्री० कसमसाहट ।
परखा जाता है; परखा जाँच (ला०)। कसमसाना-अ० कि. भीड़के कारण आपसमें रगड़ खाते कस्तूर-४० कस्तूरी मृगः कस्तूरी-जैसा एक पदार्थ जो हुए हिलना, कुलबुलाना; ऊबकर हिलना-डोलना; घब- | बीवर नामक जंतुकी नाभिसे निकलता है। डाना, बेचैन होना; हिचकना।
कस्तूरिका-स्त्री [सं०] कस्तूरी। कसमसाहट-स्त्री० कुलबुलाहट; बेचैनी, घबराहट । कस्तूरिया-वि० कस्तूरीका; कस्तूरीसे मिलकर बना; कसमा कसमी-स्त्री० दोनों ओरसे कसम खाना । कस्तुरीके रंगका । पु० कस्तूरी-मृग । कसर-स्त्री० [अ०] कमी, न्यूनता; घाटा; वैर; | कस्तूरी-स्त्री० [सं०] एक सुगंधित पदार्थ जो एक तरहके विकार । मु०-करना,-रखना-(किसी बातके करनेमें) | नर हिरनकी नाभिके पासकी गाँठमें पैदा होता और दवा कमी रखना, कोताही करना । -खाना-घाटा सहना । के काम आता है ।-मृग-पु० वह हिरन जिसकी नाभि-निकलना-क्षतिपूर्ति होना; बदला मिलना। -निका- | के पासकी गाँठ(नाफा) में कस्तूरी पैदा होती है। लना-बदला लेना; घाटा या कमी पूरी करना। कस्साब-पु० [अ०] बूचड़ । -खाना-पु० बूचड़-खाना । कसरत-स्त्री० [अ०] शरीरको पुष्ट, बलवान् बनानेवाली कहूँ*-प्र० को, के लिए । अ० दे० 'कहाँ। क्रियाएँ, व्यायाम, वजिशा बहुलता, आधिक्य । कहकहा-पु० [अ०] खिलखिलाकर हँसना, जोरकी हँसी। कसरती-वि० कसरत करनेवाला; कसरतसे बनाया हुआ। कहगिल-स्त्री० [फा०] मिट्टी में भूसा, पुआलकी कुट्टी आदि कसरहट्टा-पु० कसेरोंकी हाट, वह बाजार जहाँ बरतन बने| सानकर बनाया हुआ गारा
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कहत-कांजी कहत-पु० [अ०] अवर्षण; अकाल; दुष्प्राप्यता (किसी। कही-अ० किसी जगह; दूसरी जगह; (प्रश्नरूपमें, चीजका क०)। -ज़दा-वि० अकालपीड़ित ।
काकुसे) नहीं, कदापि नहीं; अगर; शायद । वि० बहुत कहन-स्त्री० उक्ति, वचन; कहनावत ।
बहुत ज्यादा । -कहीं-अ० कुछ स्थानों में, जहाँ-तहाँ । कहना-स० क्रि० शब्द द्वारा भाव-प्रकाश करना; बोलना; -का-किसी जगहका; न जाने कहाँका (उल्लू कहींका)। बयान करना, बताना प्रकट करना; सूचित करना; पुका- | कही-स्त्री० कही हुई बात, कथन । रना; बहकाना; आशा देना; अयुक्त बात कहना; कविता कह, कह-अ० दे० 'कहीं। रचना । पु० उक्ति, कथन; आशा, आदेश । मु०-सुनना | वह-पु० [अ०] बला, आफत; जुल्म। वि० भीषण। मु. -समझाना-बुझाना; अनुरोध, प्रार्थना करना ।-कहने- -करना-जुल्म करना। -टूटना-दैवी संकट पड़ना। को-नामको, बरायनाम । (किसीके) कहने में आना -ढाना-किसीपर आफत लान।। -किसीके चकमेमें आना । (किसीके)-में होना- काँइयाँ-वि० चालाक, धूर्त । किसीके हाथमें, वशमें होना।
काँई-अ० क्यों। कहनाउत*-स्त्री० दे० 'कहनावत' ।
काँकर*-पु० कंकड़। कहनावत-स्त्री० कथन; कहावत ।
काँकरी*-स्त्री० छोटा कंकड़ । कहनि*-स्त्री० दे० 'कहन'।
काँ-काँ*-पु० दे० 'काँव-काँव' । कहर-पु० [अ०] दे० 'कह' । वि० विकट; अपार । काँकुनी-स्त्री० कँगनी । कहरना*-अ० क्रि० कराहना ।
कांक्षणीय-वि० [सं०] चाहने योग्य । कहरवा-पु० एक ताल; कहरवा तालपर गाया जानेवाला कांक्षा-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाह; झुकाव, प्रवृत्ति । दादरा।
कांक्षी(क्षिन)-वि० [सं०] चाहनेवाला । क़हरी-वि० कहर करनेवाला ।
काँख-स्त्री० बाहुमूलके नीचेका गढ़ा, वगल । कहल*-पु० ऊमस, हवा बंद हो जानेसे होनेवाली गरमी कॉखना-अ० कि० मलत्यागमें जोर लगाने या भारी बोझ ताप; दुःख-दर्द।
उठाने आदिसे गलेसे खाँसनेकीसी आवाज निकलना। कहलना*-अ० क्रि० व्याकुल, बेचैन होना ।
काँखासोती-स्त्री० दुपट्टा डालनेका एक ढंग जिसमें वह कहलवाना-स० क्रि० दूसरेके जरिये किसीसे कुछ कहना; बाँये कंधेके ऊपर और दाहिनी बगलके नीचेसे जनेउकी संदेशा भेजना; उच्चारण कराना । अ० क्रि० पुकारा तरह निकाला जाता है। जाना।
काँगही*-स्त्री० दे० 'कंधी' । कहलाना-स० कि० दे० 'कहलवाना' । अ० क्रि० पुकारा काँगुरा*-पु० दे० 'कंगूरा'। जाना; * दे० 'कहलना'-'कहलाने एकत रहत अहि मयूर कांग्रेस-स्त्री० [अं०] सम्मेलन संघटन या समुदाय-विशेषके मृग बाघ'-वि०।
प्रतिनिधियोंकी वार्षिक बैठक; भारतकी राष्ट्रीय महासभा, कहवाँ*-अ० कहाँ।
इंडियन नेशनल कांग्रेस; संयुक्तराष्ट्र अमेरिकाकी पार्लमेंट क़हवा-पु० [अ०] एक पेड़का बीज जिसे भूनकर पीसते | या राष्ट्रसभा । -जन-पु० [हिं०] कांग्रेसका अनुयायी।
और दूध, शकर मिलाकर चायकी तरह इस्तेमाल करते हैं। कांग्रेसी-वि० कांग्रेससे संबद्ध । पु० कांग्रेसका अनुयायी। कहवाना-स० क्रि० दे० 'कहलवाना' ।
काँच-पु० शीशा । स्त्री० गुदाका भीतरका भाग; काछ । कहाँ-अ० किस जगह । पु० तुरंत पैदा हुए बच्चेके रोनेका मु०-निकलना-एक रोग जिसमें मलत्यागके समय काँच शब्द । -अमुक, कहाँ अमुक-दोनोंमें बहुत अंतर है, बाहर निकल आती है; श्रमादि सहने में असमर्थ होना। दोनोंकी कोई तुलना नहीं। -का-कैसा कैसा बड़ा। कांचन-पु० [सं०] सोना; दीप्ति, चमक; धन; धतूरा; विकट (मूर्ख इत्यादि); नाहकका, व्यर्थका। -की बात चंपा; पाकेसर । वि० सोनेका बना, सुनहरा । -गिरि-कैसी अनहोनी बात ।
पु० सुमेरु । -पुरुष-पु० सेनेके पत्तरपर बनायी हुई कहा-पु० सलाह; आदेश; कहना । * स्त्री० कथा । अ० | पुरुषकी मृति जो एकादशाह कर्ममें महाब्राह्मणको दान कैसे कब । सर्व० क्या । वि० क्या ।-कही-स्त्री० उत्तर- दी जाती है। प्रत्युत्तर, तकरार । -सुना-पु० बोलने में हुई भूल चूक; काँचरी(ली)--खी० दे० 'के चुली' । अनौचित्य । -सुनी-स्त्री० हुज्जत, तकरार ।
काँचा*-वि० कच्चा; अस्थिर । कहाउति*-स्त्री० दे० 'कहावत' ।
कांचि, कांची-स्त्री० [सं०] करधनी मेखला दक्षिण भारतकहाना-स० कि०, अ० क्रि० कहलाना।
का एक प्रसिद्ध नगर जो सप्तपुरियोंमेंसे है, कांजिवरम् । कहानी-स्त्री० कथा; वृत्तांत; आख्यायिका, उपन्यासके ली)-स्त्री० दे० 'के चुली' ।
की छोटी रचना जो प्रायः एक ही घटना या परिस्थिति- काँछना-स० क्रि० काछना सँवारना; पहनना को लेकर लिखी गयी हो; मनसे गढ़ी, उपजायी हुई बात । कांछा*-स्त्री० दे० 'कांक्षा'। कहार-पु० एक हिंदू जाति जो प्रायः टोली ढोने, पानी कांजिक-पु० [सं०] काँजी। भरने आदिके काम करती है।
कांजी-स्त्री० [सं०] माँड़,राईके धोल, सिरके आदिमें जीरा, कहावत-स्त्री० मसल, लोकोक्ति उक्ति, कथन ।
नमक आदि डालकर बनाया जानेवाला एक खट्टा पेय जो कहिया-अ० कब, किस दिन ।
स्वादिष्ठ और पाचक होता है; दही या फटे हुए दूधका पानी।
| कार
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काँजी-काक काँजी-स्त्री० दे० 'कांजी' ।
काँदा-पु. एक गुल्म जिसमें प्याज जैसी गाँठ पड़ती है। कांजी हाउस-पु० [अ० काइन-हाउस] मवेशीखाना, वह | प्याज । बाड़ा जिसमें दूसरेका खेत आदि खानेवाले या लावारिस काँदो*-पु० पंक, कीचड़ । चौपाये बंद किये जाते हैं ।
| काँध*-पु० कंधा; कोल्हू के जाठका ऊपरका भाग। काँट*-१० दे० 'काँटा'।
काँधना*-सक्रि०उठाना; सँभालना;मचानामान लेना। काँटा-पु० पेड़-पौधोंकी टहनियों में निकली हुई सूई जैसी | काँधर*-पु० कृष्ण । पैनी नोकवाली चीज, कंटका लोहेकी लंबी, पतली कील; काँधा*-पु० कृष्ण; कंधा । मछली पकड़नेकी कँटिया; अंकुसोंका समूह जिससे कुएँ में काँधी-स्त्री० कंधा । मु०-देना-टालमटूल करना । गिरे हुए कलश, बालटी आदि निकालते हैं; मछलीकी -मारना-सवारको गिरानेकी गर जसे घोड़ेका झटकेसे बारीक हथियाँ जो खाते हुए गले में चुभती हैं; लोहे-पीतल गरदन फेरना। आदिके तराजूकी डाँडामें बीचो-बीच लगी सुई; सोना-कॉप-स्त्री० कानमें पहननेका एक गहना, करनफूल; चाँदी तौलनेका काटेदार तराजू; घड़ीकी सूई; वह आला| पतली, लचीली तीली; पतंगमें लगायी जानेवाली तीली; जिससे किसान भूसा उठाते हैं। वह क्रिया जिसमे हिसाब- कलईका चूना; हाथीका दाँत; सूअरका खाँग । के सही-गलत होनेकी जाँच की जाय (ग); एक आला | काँपना-अक्रि०हिलना; लरजनाः डरसे हिलना, थर्राना । जिससे यूरोपीय खाना उठाकर खाते हैं; फल आदि तोड़ने- काँपा-पु० बाँसकी पतली तीली । की अँकुसी; झाड़ टांगनेका हुक; नाककी कील । मु० | काय-काय--पु० दे० 'काँव-काँव' । -निकलना-मनका क्लेश, कसक मिटना। -होना- | काँव-काँव-पु. कौवेका शन्द । सूखकर कड़ा हो जाना; सूखकर ठटरीभर रह जाना। काँवर-स्त्री० बाँसका मोटा फट्टा जिसे कंधेपर रखकर और काँटेकी तौल-बिलकुल ठीक, न कम न अधिक । छोरोंपर बंधे छीकों पर चीजें रखकर ढोते हैं, बहँगी। -पड़ना-गले या जीभका प्याससे सूखना । (राहमें)- काँवरि*-स्त्री० दे० 'काँवर'। -बिछाना-बाधाएँ खड़ी करना, रोड़े अटकाना।-बोना काँवरिया-पु. काँवर लेकर चलनेवाला व्यक्ति, काँवारथी । -बुराई करना; भावी अनिष्टका कारण बनना। कॉटौँ- काँवारथी-पु० काँवर लेकर तीर्थयात्रा करनेवाला । पर लोटना-बेचैन होना, तड़पना; ईर्ष्यासे जलना। | काँस-पु० एक लंबी घास जो शरद् ऋतुमें फूलती है । काँटी-स्त्री० छोटा काँटा; कँटिया; अंकुड़ी।
काँसा-पु० ताँबे और जस्तेके मेलसे बनी एक धातु; भीख काँठा*-पु० गला; किनारा; पार्श्व तोतके गलेकी मंडला- माँगनेका खप्पर । -गर-पु० काँसेका काम करनेवाला। कार रेखा।
काँसार-पु० कसेरा। कांड-पु० [सं०] अंश, विभाग; ईख-नरकुल आदिकी पोर; कांस्य-पु० [सं०] ताँबे और जस्तेके मेलसे बनी एक पेड़का तना, वृक्ष-स्कंध; ग्रंथका विभाग, परिच्छेद गुच्छा; धातु.। वि० कासेका बना हुआ। -कार-पु० कसेरा; समूह; शाखा; डंडा; बाण; सरकंडा; डंठल; नाल; हाथ- ठठेरा ।-युग-पु० इतिहासका वह युग जिसमें हथियार, पाँवकी लंबी हट्टी; नली; अवसर; निर्जन स्थान; घटना बरतन आदि काँसेके ही बनते थे। (हत्याकांड)। वि० कुत्सित, खराब (केवल समासांतमें)। का-प्र० संबंध कारककी विभक्ति । * सर्व० क्या। काँड़ना*-स० क्रि० कुचलना-'भट भारी भारी रावरे कै काइयाँ-वि० धूर्त, चालाक। चाउरसे काँडिगो'- कविता, कूटना ।
काई-स्त्री० पानी या सील में रहनेवाले पत्थर आदिपर काँडी-स्त्री० (छाजनमें लगनेवाली) लकड़ीका बला या
जमनेवाली बारीक, रेशे जैसी घास; बँधे पानीके ऊपर बाँस ओखलीका गढ़ा; हाथीका एक रोग जो तलवेमें आनेवाली गोल पत्तियोंकी एक धास; मिट्टीकी तरह जमा होता है; भारी चीजें ढकेलनेका लकड़ीका टंडा; मछ- हुआ मैल; ताँबे-पीतल आदिपर लगनेवाला मोरचा । लियोंका झुंड ।
मु०-छुड़ाना-जमा हुआ मैल छुड़ाना; दुःख-दैन्य दूर कांत-वि० [सं०] प्रिय; मनोरम, शोभन । पु० प्यार करना। -सा फटना-बिखर जाना । करनेवाला, पति; प्रिय व्यक्ति; विष्णु; कृष्ण; चंद्रमा काऊ*-अ० कभी । सर्व० कुछ; कोई । वसंत; कार्तिकेयकुंकुम; एक तरहका लोहा ।-पाषाण- काक-पु० [सं०] कौआ। -चेष्टा-स्त्री० कौए की तरह पु०चुबक । -लोह-पु. कांतसार; इस्पात । -सार- चौकन्ना रहना। -तालीय न्याय-पु० किसी घटनाका पु० एक तरहका लोहा जो दवाके काम आता है। केवल संयोगवश होना ( जैसे ताड़के पेड़के नीचे कौएके कांता-स्त्री० [सं०] प्रिया; पत्नी; सुंदरी स्त्री पृथ्वी । बैठते ही उसके ऊपर ताड़के पके फलका चू पड़ना)। कांतार-पु० [सं०] गहन वन; दुर्गम पथ; विवर, गड्ढा । -दंत-पु० कौएका दाँत; कोई अनहोनी बात (ला०)। कांति-स्त्री० [सं०] सौंदर्य, चमक, दीप्ति; इच्छा; सुंदर -पक्ष-पु० कनपटियोंपर लटकनेवाले बालोंके पट्टे, स्त्री; चंद्रमाकी सोलह कलाओंमेंसे एक; दुर्गा । -सार- जुल्फ । -पाद-पु० छूटे हुए शब्दके लिए पंक्तिके नीचे पु० एक बढ़िया लोहा।
बनाया जानेवाला चिह्न (A) | -पाली-स्त्री० कोयल । काँती*-स्त्री० बिच्छूका डंक; तीव्र व्यथा; छुरी; कैची।। -बंध्या,-वंध्या-स्त्री० एक बच्चा जनकर वंध्या हो काथरि*-स्त्री० गुदड़ी।
जानेवाली स्त्री। -माचिका,-माची,-माता-स्त्री० काँदना-अ० क्रि० रोना-चिल्लाना।
मकोय । १०-क
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काकड़ासीगी-काट
१५२ काकड़ासींगी-स्त्री० दवाके काम आनेवाला एक द्रव्य, पतले छिलकेवाला (बादाम, नीबू इ०)। पु० कागज बनाने कर्कटशृंगी।
या बेचनेवाला; बिलकुल सफेद कबूतर । -काररवाई। काकणी-स्त्री० [सं०] घुघची
स्त्री० लिखा-पढ़ी। काकरी*-स्त्री० ककड़ी।
कागद-पु० [सं०] कागज । काकरेज़-पु० [फा०] एक तरहका ऊदा-काले और लाल | कागर*-पु० कागज; केंचुली; मुलायम पर, पंख । रंगके मेलसे बना हुआ-रंग।
| कागरी*-वि० तुच्छ । काकरेजा-पु० [फा०] काकरेज रंगका कपड़ा।
कागा*-पु० कौआ। -बासी-स्त्री० तड़के छानी जानेकाकरेजी-वि० [फा०] काकरेज रंगका । १० काकरेज रंग। वाली भाँग; एक तरहका मोती। -रोल-पु० कौओंका काकलि, काकली-स्त्री० [सं०] मधुर, अस्फुट ध्वनि | काँव-काँव करना; शोरगुल ।
पतली मीठी आवाज; चोरीमें सहायक एक औजार । कागौर-पु० काकबलि । काकलीक-पु० [सं०] मंद, मधुर स्वर ।
काच-पु० [सं०] शीशा खारी मिट्टी। -मणि-पु० काका-पु० चचा। स्त्री० [सं०] काकजंघा, काकोली। स्फटिक । -लवण-पु० काला नमक । काकाक्षिगोलक न्याय-पु० [सं०] एक शब्द या पदसे, काचरी-स्त्री० केंचुली। कौएकी आखके डेलेकी तरह, दो काम निकालना। काचा, काचो*-वि० दे० 'कच्चा'। काकातुआ-पु० बड़ा तोता जिसके सिरपर चोटी होती है। काची-स्त्री० सिंहाड़े, कुम्हड़े आदिका हलुआ । काकारि-पु० [सं०] उल्लू ।
काछ-पु० पेड़ और जाँधका जोड़; धोतीका छोर जिसे काकिणी-स्त्री० [सं०] कौड़ी; पणका चौथाई, पाँच गंडे जाँघोंके बीचसे ले जाकर पीछे खाँ सते हैं, लॉग; सिखोंका कौड़ी; माशेका चौथाई; धुंधची।
कच्छ; नटोंका वेश-विन्यास। काकी-स्त्री० काकाकी स्त्री; [सं०] कौएकी मादा। | काछना-स० कि० लाँगको पीछे ले जाकर खोंसना; काकु-पु० [सं०] भाव या अर्थके भेदसे ध्वनिमें भेद होना| मँवारना, पहनना; किसी पतली चीजको पोंछकर, उँगली वक्रोक्ति अलंकारका एक भेद जिसमें ध्वनिभेद, कहनेका आदिसे एक तरफ हटाकर इकट्ठा करना । ढंग बदलनेसे अर्थ बदल जाता है; * व्यंग्य, छिपी चोट काछनी-स्त्री० घुटनोंतक कसकर पहनी हुई धोती जिसमें करनेवाली उक्ति ।
दोनों लांगें पीछे खुसी हों; मूर्तियों आदिको पहनाया काकुत्स्थ-पु० [सं०] काकुत्स्थके वंशमें उत्पन्न व्यक्ति- जानेवाला एक तरहका घाघरा। दशरथ, राम आदि ।
काछा-पु० कुछ ऊपर चढ़ाकर और कसकर पहनी हुई काकुन-स्त्री० एक मोटा अन्न, कॅगनी ।
धोती जिसकी दोनों लाँगें पीछे खोंसी जाती है। काकुल-स्त्री०[फा०] कनपटीपर लटकते हुए बाल, जल्फ। काछी-पु० एक हिंदू जाति जो तरकारियाँ बोने-बेचनेका काकोदर-पु० [सं०] साँप ।
काम करती है, कोयरी, मरार (छत्तीसगढ़)। काकोल-पु० [सं०] काला कौआ, डोमकौआ सर्प शूकर । काछू-पु० कछुआ। काकोली-स्त्री० [सं०] एक वनौषधि, जीवंती ।। काछे*-अ० पास, निकट । काकोलूकीय न्याय-पु० [सं०] कौए और उल्लूकासा काज-पु० काम, कार्य, धंधा; अर्थ, प्रयोजन; विवाहादि सहज वैर।
कृत्य; बटनका छेद । (के काज-के लिए, के वास्ते । ) काक्ष-पु० [सं०] कटाक्ष; चढ़ी हुई त्यौरी ।
काजर-पु० दे० 'काजल'। काक्षी-स्त्री० [सं०] एक गंधद्रव्य; एक तरहको सुगंधित | काजरी*-स्त्री० वह गाय जिसकी आँखके चारों ओरका मिट्टी।
हिस्सा काला हो। काग-पु० [अं० 'कार्क'] बोतल या शीशीकी डाट; [सं०] काजल-पु० दियेके धुएँ की कालिख जो सुरमेकी तरह कौआ। -भुसुंडि,-भुसुंडी-पु० एक रामभक्त जो आँख में लगायी जाती है। -की कोठरी-ऐसी जगह शापवश कौआ हो गया था।
जहाँ जानेसे, ऐसा काम जिसे करनेसे, कलंक लगना काग़ज़-पु० [अ०] सन, बाँस, चीथड़े आदिकी लुगदीसे | अनिवार्य हो, बदनामीका घर । मु०-पारना-दियेकी बनायी हुई वस्तु जो लिखने छापने आदिके काम आती लीपर कजरौटा आदि रखकर कालिख इकट्ठा करना। है, कागद; लिखी हुई चीज, लेख लिखित प्रमाण, दस्ता-काज़ी-पु० [अ०] मुसलमान न्यायाधीश जो शराके वेज; रुका ऋणपत्र; अखबार ।-पत्र-पु० किसी मामलेसे | अनुसार मामलोंका निर्णय करे; निकाह पढ़ानेवाला संबद्ध लिखी हुई बातें; कागजात सबूत । -का रुपया- मौलवी; विचारक। नोट । -की नाव-कागज मोड़कर (खेलके लिए) बनायी काजू-पु० एक पेड़ और उसका फल जिसकी गिरी मेवेके हुई नाव; न टिकनेवाली, क्षणभंगुर वस्तु । मु०-काला करना-बेकार बातें लिखना। -के घोड़े दौड़ाना-लंबी काट-स्त्री० काटनेका काम; काटनेका ढंग; तराश; चोट, लिखा-पढ़ी, पत्र-व्यवहार करना; (केवल) कागजी कार- घावः चालबाजी; पेचका तोड़ा तेल आदिकी तलछट; रवाई करना।
घाव पर किसी चीजके लगनेसे होनेवाली छरछराहट । काग़ज़ात-पु० [अ०] कागजपत्र ।
-कपट-स्त्री० छिपाकर या अनुचित रीतिसे काटना । काग़ज़ी-वि० [अ०] कागजका बना लिखित (सबूत इ०); | .-कूट-स्त्री० कलमसे लकीर खींचकर लिखी हुई चीजको
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काटना-कान
रद्द करना; मार-काट । -छाँट-स्त्री० कतर-ब्योंत; घटाव- सूत्रोंपर वात्तिक लिखनेवाले वररुचिः विश्वामित्रके वंशज बढ़ाव; शोधन ।
एक ऋषि जिन्होंने श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र आदिकी रचना काटना-स० कि० छरी कैची आदिसे किसी चीजके टुकड़े की है। पालीका व्याकरण लिखनेवाले आचार्य कच्चायन । करना; अलग करना; तराशना; फाँक उतारना; कतरना; कात्यायनी-स्त्री० [सं०] कत गोत्रमें उत्पन्न स्त्री; याशछरछराहट पैदा करना; घाव करना; कतल करना; रगड़ वल्क्यकी एक पत्नी; वृद्धि या अधेड़ विधवा पार्वती।या रेतकर टुकड़े करना (पतंग इत्यादि); दाँत धसाना, पुत्र,-सुत-पु० कात्तिकेय । दाँतसे चोट करना; धक्के दरेरसे तोड़ देना, बहा ले जाना काथ-पु० कत्था-'जहँ बीरा तहँ चून है पान सोपारी (बाँध, जमीन); (कुछ अंश) निकाल लेना, कम कर देना; काथ'-५०; गुदड़ी।। बट्टा, मिनहा करना; बारीक पीसना (भाँग, मसाला); दूर काथरी-स्त्री० गुदड़ी, कथरी । करना, हटाना; रद्द करना; खंडन करना; बिताना, कादंबरी-स्त्री० [सं०] कदंबके फूलोंकी शराब; शराब गजगुजारना; खारिज करना; नहर, नाली, क्यारी आदि मद कोकिला; मैना; बाणभट्टरचित प्रसिद्ध गद्यकाव्य बनाना; एक रेखा, लाइन, सड़क आदिका दूसरीके ऊपरसे और उसकी नायिका सरस्वती । निकल जाना; एक संख्याका दूसरीसे ऐसा विभाजन कि कादंबिनी-स्त्री० [सं०] बादलोंकी लंबी पंक्ति, मेघमाला । कुछ बचे नहीं; डॅसना; डंक मारना; कष्ट, पीड़ा पहुँचाना कादर-वि० दे० 'कातर'। (ला०); उड़ाना; हथियाना । मु० काट खाना-दाँतोंसे कान-पु० शब्दबोधकी इंद्रिय, श्रुति, कर्ण; सुननेकी शक्ति घायल करना; इँसना; डंक मारना । काटने दौड़ना- | कानमें पहननेका एक गहना; बरतनका दस्ता; बंदूककी बहुत गुस्से में बोलना, अति क्रोष प्रकाश करनाः सूना रंजकदानी; चारपाईका टेढ़ापन; सितार आदिकी खूटी;
और उदाससा लगना। काटे खाना-मनेपन, किसीकी नावकी पतवार । स्त्री० दे० 'कानि'। मु०-उठानायाद दिलाने आदिके कारण दुःखद होना; मनको क्लेश (पशुका) चौकन्ना होना; आहट लेना। -उठना,देना। काटो तो खून नहीं-अचानक उत्पन्न हुए ऐंठना-दंड या चेतावनी देनेके लिए कान मरोड़ना । भयादिके कारण स्तब्ध होना।
-करना-सुनना, कान देना। -का कच्चा-जो कुछ काटर*-वि० कट्टर।
सुने उसपर बिना विचार किये विश्वास कर लेनेवाला । काठ-पु० [सं०] चट्टान, पत्थर [हिं०] लकड़ी; धन; काठकी -खड़े करना,-होना-सचेत, चौकन्ना होना -खड़े बनी बेड़ी; कठपुतली ।-कबाड़-पु० लकड़ीकी रद्दी,बेकार रखना-होशियार रहना । -खोलना-सावधान कर चीजें । -का उल्लू-वज्र मूर्ख । -का घोड़ा-बैसाखी। देना । -गरम करना-कान मलना, उमेठना । -देना -की हाड़ी-धोखेकी टट्टी, दिखाऊ चीज । मु०-मारना -सुनना, ध्यान देना । -धरना-ध्यानसे सुनन; कान -काठकी वेड़ी पहनाना; चलने-फिरनेपर रोक लगाना। उमेठना । -न दिया जाना-शोरके मारे सुनाई न देना; -में पाँव देना-काठकी बेड़ी पहनाना; स्वयं बंधनमें शोर और ध्वनिकी कर्कशतासे असह्य कष्ट होना। -न पड़ना । -होना-कट्टा या संशाहीन होना।
हिलाना-च न करना; विरोध, आपत्ति न करना। - काठिन्य-पु० [सं०] कठिनाई; कड़ापन; निष्ठुरता। पकड़कर उठना-बैठना-बच्चोंको दी जानेवाली एक काठी-स्त्री० वह जीन जिसमें नीचे काठ होता है। अंग्रेजी सजा। -पकड़कर निकाल देना-अनादरपूर्वक निकाल ढंगकी जीन; देहकी गठन ।
बाहर करना। -पकड़ना-अपनी भूल स्वीकार कर काड़ी-स्त्री० अरहरका सूखा डंठल, रहठा।
भविष्यमें वैसी बात न करनेकी प्रतिज्ञा करना,तोबा करना; काढ़ना-स० क्रि० निकालना, बाहर लाना; उरेहना | आगेके लिए सचेत हो जाना । -पड़ी आवाज सुनाई (सुईसे) बेल-बूटे बनाना लेना (कर्म); धी-तेलमें छानना । न देना-शोर-गुलके कारण कानमें पड़ी हुई बातका सुनाई कादा-पु० दवाओंको पानीमें औटकर बनाया हुआ पेय, न देना। -पर जूं न रँगना-तनिक भी परवाह न काथ।
होना बिलकुल ध्यान न देना। -फूकना-दीक्षा देना; काण-वि० [सं०] काना; छेद किया हुआ। पु० कीआ। कान भरना, बहकाना। -बंद या बहरे कर लेनाकातना-स० क्रि० चरखे या तकलीपर रुई या ऊनसे धागा जान-बूझकर किसीकी बात न सुनना, सुनकर भी उसपर निकालना; सनसे सुतली बनाना।
ध्यान न देना । -बहना-कानसे लसदार और कुछ गाढ़े कातर-वि० [सं०] अधीर; उद्विग्न, परेशान; कष्टसे आकुल, सवका बहना ।-भर जाना-सुनते-सुनते ऊब जाना ।
आत; विवश; भीत; भीरु । पु० घड़नई; एक बड़ी मछली।। -भरना-किसीके विषयमें किसीकी धारणा बिगाड़ देना, कातर्य-पु० [सं०] कातरता, भीरुता।
बदगुमान कर देना । -मलना-कान उमेठना । (कोई काता-पु० काता हुआ सूत; बाँस छीलनेकी छुरी, बाँक। बात)-में डाल देना-सुना देना ।-में तेल डालनाकातिक-पु० कार्तिक मास ।
कान बहरे कर लेना। -में पारा या सीसा भरनाकातिब-पु० [अ०] लिखनेवाला; लीथो प्रेसके लिए कापी गरम पारा या पिघलाया हुआ सीसा कानमें भरकर लिखनेवाला।
बहरा कर देना (पुराने जमानेकी एक सजा)।-लगनाकातिल-पु० [अ०] कत्ल करनेवाला, हत्यारा । वि०धातक । कानसे सटकर धीरे-धीरे कुछ कहना। कानोंपर हाथ काती-स्त्री० कैची; कत्ती; छुरी।
धरना-अनभिज्ञता प्रकट करना, अनजान बनना, साफ कात्यायन-पु० [सं०] कत गोत्रमें उत्पन्न पुरुषः पाणिनीय ! इनकार करना।
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कानन-काम
१५४
कानन-पु० [सं०] वन, जंगल; बाग; घर ।
अदृश्य हो जाना। काना-वि० जिसकी एक आँख फूट गयी हो, एकाक्षा कीड़ा काफ़री-वि० [फा०] कपूरका बना हुआ; कपूरके रंगका ।
खाया हुआ, दागी (फल आदि); टेढ़ा, तिरछा। पु० चौसर | काबर-वि० चितकबरा । पु० एक तरहकी जमीन । के पासेको बिंदी (तीन काने)।
काबा-पु० [अ०] चौकोर इमारत; मक्केकी एक चौकोर कानाकानी-स्त्री० काना-फूसी ।
इमारत जिसकी नीव इब्राहीमकी रखी हुई मानी जाती है। कानागोसी*-स्त्री० काना-फूसी ।
काबिज़-वि० [अ०] कब्जा करने, रखनेवाला, भोक्ता कानाफूसी-स्त्री० कानसे लगकर धीरे-धीरे बात करना । कब्ज करनेवाला। कानाबाती-स्त्री० कानमें कही जानेवाली बात । काबिल-वि० [अ०) योग्य, लायक; विद्वान् । -(ले) कानि*-स्त्री० लोकलज्जा; मर्यादा, लिहाज ।
तारीफ-वि०सराहने योग्य । -दीद-वि० देखने योग्य, कानी-वि० स्त्री० एक आँखवाली (स्त्री); फूटी हुई (आंख)।। दर्शनीय ।
-उँगली-स्त्री० छिगुनी। -कौड़ी-स्त्री० फूटी कौड़ी। काबिलीयत-स्त्री० [अ०] योग्यता विद्वत्ता । कानीन-पु० [सं०] बिनब्याही स्त्रीका बेटा, कारेपनमें | काबुक-स्त्री० [फा०] कबूतरोंका दरबा।
पैदा पुत्र; व्यास कर्ण। वि० अविवाहिता स्त्रीसे उत्पन्न । काबुल-पु० अफगानिस्तानकी राजधानी और एक प्रांत । कानून-पु० [अ०] राजनियम; वह नियम जिसे मानना | मु०-में क्या गधे नहीं होते ?-अच्छोंके बीच बुरे,
राज्यविशेषके प्रत्येक प्रजाजनका फर्ज हो; विधि, आईन पंडितोंके कुलमें मूर्ख भी हो सकते हैं। नियम । -गो-पु० माल महकमेका एक कर्मचारी जिसका काबुली-वि० काबुलका; काबुल में उत्पन्न । पु० काबुलका काम पटवारियोंके कागजातकी जाँच करना है। -दा- रहनेवाला। वि० कानून जाननेवाला।
काबू-पु० [तु०] बस, अधिकार, जोर, नियंत्रण । कानूनन्-अ० [अ०] कानूनके मुताबिक, नियमतः । काम-पु० [सं०] इच्छा, चाह, कामना, इंद्रिय या विषयकानूनिया-वि० कानूनका ज्ञाता हुज्जत करनेवाला । सुखकी इच्छा; चतुर्वर्ग से एक; संभोगकी इच्छा कामदेव कानूनी-वि० [अ०] कानूनसे संबंद्ध; कानूनका; कानूनके परमेश्वर; कामनाका काम विषय; प्रेम; शुक्र (काम अनुकूल; कानून बघारनेवाला, हुजती।
= कार्य इ०, आगे देखो)। -कला-स्त्री० कामकी कानोंकान-अ० एकसे दूसरे कानतक; कर्णपरंपराके द्वारा। पत्नी रति; मैथुन, रतिसुख-वर्द्धन करनेवाली कला।
मु०-खबर न होना-तनिक भी खबर, पता न होना। -केलि,-क्रीडा-स्त्री० रतिक्रीड़ा । -ग-वि० जहाँ जी कान्यकुब्ज-पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद या वहांका चाहे वहाँ जा सकनेवाला; लंपट । -गति-वि० जहाँ निवासी।
चाहे वहाँ जानेमें समर्थ । -गिरि-पु० चित्रकूट । कान्ह*-पु० कृष्ण, कन्हैया ।
-चारी (रिन)-वि० यथेच्छाचारी; लंपट | पु० गरुड़ । कान्हड़ा(रा)-पु० एकराग।-नट-पु० एक संकर राग । -ज-वि० वासनाजनित। -जित्-वि० कामको जीतनेकापटिक-वि० [सं०] कपट करनेवाला, दुष्ट । पु० चाटु- वाल! । पु० शिव; स्कंद; जिनदेव । -ज्वर-पु० आयुकार; विद्याथीं। .
वेंदके अनुसार एक प्रकारका ज्वर जो अखंड ब्रह्मचर्यके कापव्य-पु० [सं०] दुष्टता, छलछम ।
पालनसे उत्पन्न होता है। -द-वि० अभीष्ट-दायक, कापथ-पु० [सं०] कुमार्ग, बुरा रास्ता; खस ।
कामना पूरी करनेवाला । -मणि-पु० चितामणि । कापर-*पु० कपड़ा।
-दर्शन-वि० देखने में सुंदर लगनेवाला। -दहन-पु० कापालिक-पु० [सं०] एक वाममागी शैव संप्रदायका कामको भस्म करनेवाले शिव । -दा-स्त्री. कामधेनु; अनुयायी जो मनुष्यकी खोपड़ी लिये रहता और उसीमें एक देवी । -दुघा-स्त्री० कामधेनु । -देव-पु० कामका खाता-पीता है । वि० कपाल-संबंधी।
देवता रतिपति, कंदर्प । -धेनु-स्त्री० स्वर्गकी गाय जो कापाली (लिन्)-पु० [सं०] शिव ।
सब कामनाओं की पूर्ति करनेवाली मानी जाती है। कापी-स्त्री० [अं॰] नकल, प्रतिलिपि सादे कागजकी बही; | -बाण-पु० कामदेवके पाँच बाण-भोहन, उन्मादन, छापाखाने में छपनेके लिए दिया जानेवाला लेखादि । संतपन, शोषण और निश्चेष्टीकरण | -मूढ़-मोहित-राइट-पु० ग्रंथकार या प्रकाशकको रचना विशेषपर वि० कामवश, कामातुर । -रिपु-पु० शिव । -रुचिप्राप्त स्वत्व, उसके छापने, बेचने आदिका अधिकार । स्त्री० रामको विश्वामित्रसे प्राप्त एक अस्त्र । -रूप-पु. कापुरुष-पु० [सं०] कायर, नीच, कुत्सित पुरुष ।
आसामका एक जिला जहाँ कामाख्या देवीका मंदिर है। क्राफ्रिया-पु० [अ० तुक, अंत्यानुप्रास ।
वि० मनचाहा रूप धारण कर सकनेवाला (देवता); सुंदर। क्राफ्रिर-पु० [अ०] मुसलिम धर्म न माननेवाला नास्तिका -लता-स्त्री० पुरुषं द्रिय, लिंग। -वल्लभा-स्त्री० चाँदनी। एक जाति । वि० दुष्ट निर्दय ।
-शर-पु० दे० 'कामबाण'; आम । -शास्त्र-पु० कामकाफिला-पु० [अ०] यात्रियों, एकसे दूसरे देशको माल कला सिखानेवाला शास्त्र, रतिशास्त्र, कोकशास्त्र। -सखाले जानेवालोंका समूह ।
पु० वसंत । -सूत्र-पु० वात्स्यायनकृत कामशास्त्रका काफ्री-स्त्री० [अं०] कहवा । वि० [अ०] किफायत करने- प्रसिद्ध ग्रंथ । पूरा पड़नेवाला; पर्याप्त; बहुत।
काम-पु० जो कुछ किया जाय, कर्म, अर्थ, प्रयोजन, मतकाफर-पु० [फा०] कपूर । मु०-होना-उड़ जाना, लब, गरजा धंधा, रोजगार, नौकरी; उपयोग.दुस्साध्य
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काम-कार कार्य; बेल-बूटे, नक्काशी आदि कारीगरी। -का-जिससे कामी(मिन)-वि० [सं०] कामनायुक्त, चाह रखनेकाम निकले, उपयोगी। -काज-पु. काम-धंधा, कार- वाला; जिसमें कामवेगकी प्रबलता हो, विषयासक्त। बार। -काजी-वि० कामकाजमें लगा रहनेवाला, उद्यमी। कामुक-वि० [सं०] चाहनेवाला; कामी, विषयासक्त । -चलाऊ-वि० जिससे काम निकल जाय, आवश्यकता कामोद-पु० [सं०] एक राग ।-कल्याण-पु० एक संकर की पूर्ति हो जाय। -चोर-वि०कामसे जी चुरानेवाला, राग। -तिलक-पु० एक संकर राग । आलसी। -दानी-स्त्री० वह सूत या रेशमी कपड़ा जिस- कामोद्दीपक-वि० [सं०] काम, सहवासकी इच्छा बढ़ाने पर जरीकी बूटियाँ बनी हों। -दार-वि० जरदोजी या
वाला। कलाबत्तके कामवाला (टोपी, जूता)। -धाम-पु० काम- कामोन्माद-पु० [सं०] कामवासना पूरी न होनेसे उत्पन्न काज। -न करो' हड़ताल-स्त्री० (स्टे-इन स्ट्राइक) उन्माद या व्याधि । हड़तालका वह प्रकार जिसमें श्रमिक या कमी कारखाने काम्य-वि० [सं०] चाहने योग्य; जिसकी चाह, कामना आदिमें तो जाते हैं पर कोई काम नहीं करते-अपने हो; सुंदर; उद्देश्यविशेषसे किया हुआ। स्थानपर चुपचाप बैठे रहते हैं । मु०-आना-इस्तेमाल काम्येष्टि-स्त्री० [सं०] कामनाकी सिद्धिके लिए किया जानेहोना, काममें आना; युद्ध में मारा जाना; साथ देना; वाला यश । सहायक होना। -करना-असर करना कारगर होना; काय-पु० [सं०] शरीर, देह; पेड़का तना; (तारोंके अतिकृतकार्य होना; अर्थ सिद्ध करना। -चलना-काम रिक्त) वीणाका ढाँचा संघ, समूह मूल धन; निवासस्थान; होना; कामका जारी रहना। -चलाना-प्रयोजन, स्वभाव; छिगुनी, प्राजापत्य विवाह; लक्ष्य । -कृशआवश्यकतापूर्ति करना; ज्यों-त्यों काम निकाल लेना; पु० शारीरिक कष्ट-पीड़ा। काम जारी रखना ।-तमाम करना-काम पूरा करना; कायदा-पु० [अ०] नियम ढंग; विधान; क्रम । मार डालना । -तमाम होना-काम पूरा होना; मारा। कायफल-पु० एक पेड़ जिसकी छाल दबाके काम आती है। जाना; मरना । -निकलना-प्रयोजन सिद्ध होना। कायम-वि० [अ०] खड़ा हुआ; ठहरा हुआ; स्थापित -बनना-प्रयोजन निकलना । -रखना-वास्ता, सरोजारी; स्थाथी; बराबरीमें रहनेवाला (बाजी इ०)। - कार रखना कठिन होना। -लगना-दरकार होना। मुकाम-वि० दूसरेकी जगह अस्थायी रूपसे काम करने-से काम रखना-अपने काम, प्रयोजन, अर्थका ही। वाला, एवज । ध्यान रखना, और बातों में न पड़ना।।
कायर-वि० डरपोक, बुजदिल ।। काम-पु० [फा०] इच्छा, कामना इरादा, मतलब; तालु; कायल-वि० [अ०] माननेवाला; अपनी गलती स्वीकार मुँह । -याब-वि० सफल मनोरथ, कृतकार्य; परीक्षामें करनेवाला; निरुत्तर । मु०-करना-किसीसे कोई बात उत्तीर्ण । -याबी-स्त्री० सफलता, कृतकार्यता ।
मनवा लेना; निरुत्तर कर देना। -होना-मान लेना कामठ-वि० [सं०] कछुएसे संबंध रखनेवाला।
विपक्षीकी बातका औचित्य स्वीकार करना; निरुत्तर हो कामना-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाह ।
जाना। कामरिया, कामरी*-स्त्री० कमली।
कायली-स्त्री० लज्जा, ग्लानि आलस्य । कामरेड-पु० [अं०] साथी, साथ काम करनेवाला (साम्य- काया-स्त्री० देह, शरीर । -कल्प-पु० ओषधि-प्रयोगसे वादियोंका एक दूसरेको संबोधन)।
शरीरका नया या जवान हो जाना ।-पलट-पु० चोला कामलरी*-स्त्री० कमली।
बदल जाना; भारी क्रांतिकारी परिवर्तन । कामला-पु० एक प्रकारका रोग, पीलिया।
कायिक-वि० [सं०] देह-संबंधी; शरीरसे किया हुआ। कामली*-स्त्री कमली।
कारंड, कारंडव-पु० [सं०] एक तरहका ईस या बत्तख । कामांध-वि० [सं०] जो कामसे अंधा हो गया हो, कार- वि० काला । पु० [सं०] (समासके अंतमें) करने कामातुर ।
वाला, कर्ता (ग्रंथकार, चित्रकार इ०); क्रिया; काम कामा-* स्त्री० कामिनी । पु० [अं०] लघुविराम । (पुरुषकार, चमत्कार इ०); [फा०] काम, कार्य । -कुनकामाक्षी-स्त्री० [सं०] दुर्गाका एक नाम ।
पु० काम करनेवाला, कारिंदा। -खाना-पु० वह जगह कामाख्या-स्त्री० [सं०] दुर्गाका एक नाम; सतीका योनि- जहाँ कोई बिक्रीकी चीज बनायी जाया कार्यालय; कारबार; पीठ, कामरूप।
मामला; घटना ।-खानेदार-पु० कारखानेका मालिक । कामातुर-वि० [सं०] कामपीड़ित, कामवेगसे बेहाल । -गर-वि० असर करनेवाला, प्रभावकर । -गुज़ारकामायिनी-स्त्री० [सं०] वैवस्वत मनुकी पत्नी श्रद्धाका वि० कार्यकुशल, काममें चतुर । -गुज़ारी-स्त्री० मुस्तैदी एक नाम ।
और होशियारीसे काम करना। -चोब-पु० लकड़ीका कामारि-पु० [सं०] शिव ।
चौटा ढाँचा जिसपर कपड़ा तानकर कशीदे या गुलकारीकामार्त-वि० [सं०] कामातुर, कामसे पीड़ित ।
के काम करते हैं; जरदोजीका काम करनेवाला; गुलकारीकामित-वि० [सं०] अभिलषित, इच्छित ।
का काम । -चोबी-स्त्री० गुलकारी, कशीदेका काम । कामिनी-स्त्री० [सं०] कामवती नारी; सुंदर स्त्री। वि० कशीदेका (काम)। -नामा-पु० प्रशंसनीय काम कांचन-पु० सुंदरी स्त्री और धन ।
कार्यावली; करतूत । -परदाज़-वि० काम करनेवाला, कामिल-वि० [अ०] पूरा, संपूर्ण, तमाम; योग्य; पूर्ण ज्ञाता। प्रबंधक । -बार-पु० काम-काज; रोजगार, व्यापार ।
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कारक - काल
- बारी - वि० काम-काजी; रोजगारी । -रवाई - स्त्री० किसी कामको करना, जारी रखना; काम; हरकत; उपाय, तदबीर; चाल | -स्तानी - स्त्री० साजिश, चालबाजी। कारे खैर - ५० नेक काम, पुण्य कार्य, भलाईका काम । कारक - पु० [सं०] संज्ञा या सर्वनामका वह रूप जिससे वाक्यमें दूसरे शब्दोंके साथ उसका संबंध प्रकट होता है। वि० करनेवाला (लाभकारक हानिकारक इ० - प्रायः समासांतमें) । - दीपक - पु० एक अर्थालंकार जिसमें बहुतसी क्रियाओंके साथ कारक अर्थात् कर्ताका एक ही बार कथन हो । -विभक्ति - स्त्री० कारक सूचित करने वाली विभक्तियाँ । हेतु-पु० वह हेतु जो कार्यका उत्पा दक हो ।
कारज - * पु० दे० 'कार्य' । कारटा* - पु० करट, कौआ ।
कारण- पु० [सं०] किसी बात के होनेका हेतु, वह जिससे कार्यकी उत्पत्ति हो, निमित्त, सबव; साधन; कथावस्तुका आधार (ना० ); मूल; प्रमाण । - माला - स्त्री० एक अर्थालंकार जिसमें किसी कारण से उत्पन्न होनेवाला कार्य स्वयं उत्तरोत्तर कारण बनते हुए अन्य कार्य उत्पन्न करता चले । कारतूस - पु० पीतल, दफ्ती आदिकी बनी खोली जिसमें बंदूक, तमंचे आदिके एक फैरभरके लिए गोली, बारूद भरी रहती कारन* - पु० दे० 'कारण'; करुणा - 'नागमती कारन के रोई'- प० ।
|
कारनी* - वि० कर्मकी प्रेरणा करनेवाला; भेद बतानेवाला । कारवाँ - पु० [फा०] देशांतर जानेवाले यात्रियों, व्यापारियोंका झुंड ।
कारा - वि०काला | पु० सर्प । स्त्री० [सं०] कैद; कैदखाना; पीड़ा; । -गार, -गृह-पु० कैदखाना । -गारिक - पु० ( जेलर) बंदीगृह या वहाँ के बंदियोंकी व्यवस्था, देखरेख आदि करनेवाला मुख्य अधिकारी, कारापाल । - पालपु० जेलका रक्षक, 'जेलर', कारागारिक। - रोधन - पु० ( इनकार सरेशन) कारागृह में बन्द कर देने, जेल भेज देनेकी क्रिया । - वास-पु० कैद |
कारिंदा - पु० काम करनेवाला, कर्मचारी, गुमाश्ता । कारिका - स्त्री० [सं०] श्लोकबद्ध व्याख्या; नटी, नर्तकी । कारिख - स्त्री० दे० ' कालिख' ।
कारित - वि० [सं०] कराया हुआ ।
कारीगर - पु० [फा०] दस्तकार, शिल्पी । कारीगरी - स्त्री० [फा०] शिल्प, दस्तकारी; शिल्प कौशल । कारु - पु० [सं०] करने, बनानेवाला; कारीगर; विश्वकर्मा । -कार्य-पु० शिल्पकार्य, जाली, नक्काशी आदिका कार्य । कारुणिक - वि० [सं०] दयाशील, करुणा करनेवाला । कारुण्य - पु० [सं०] दया, करुणा । कारूँ-पु० [अ०] मूसाका चचेरा भाई जो बहुत धनवान् पर बड़ा कंजूस था । - का ख़ज़ाना - बेहिसाब दौलत । कारूरा - पु० [अ०] चिकित्सकको रोगीका पेशाब दिखाने की शीशी; पेशाब । मु० - मिलना - बहुत मेल होना । कारोंछ- स्त्री० दे० 'कालो छ' । कारो* - वि० काला । पु० काला आदमी; कृष्ण; सर्प
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१५६
कारोबार - पु० दे० 'कारबार' । कार्कश्य- पु० [सं०] कठोरता; दृढ़ता; निर्दयता । कार्ड- पु० [अ०] मोटे कागजका टुकड़ा; पोस्टकार्ड कार्त्तिक - पु० [सं०] आश्विन के बादका महीना । कार्त्तिकेय पु० [सं०] स्कंद |
कार्पण्य - पु० [सं०] कृपणता, कंजूसी; निर्धनता; दया । कार्मण-पु० [सं०] मंत्र-तंत्रादिका प्रयोग । कार्मना * - स्त्री० दे० 'कार्मण' ।
कार्मुक - पु० [सं०] धनुष् ; धनुराशि; चाप । वि० कर्मशील । कार्य - पु० [सं०] जो कुछ किया जाय या करना है, कर्त्तव्य; काम; धंधा, व्यवसाय; धार्मिक कृत्य; कारणका विकार, परिणाम; हेतु; नाटकका अंतिम फल । -करवि० काम करनेवाला; प्रभावकर । - कर्ता (र्तृ ) - पु० काम करनेवाला, कर्मचारी । -कारण-भाव-पु० कार्य और कारणका संबंध । -कारी (रिन्) - वि० किसीके स्थानपर अस्थायी रूप से काम करनेवाला, कार्यवाहक (ऐक्टिंग ) 1 - काल - पु० कार्य करनेका समय; किसी पदपर रहनेका काल | - कुशल- वि० काममें होशियार, दक्ष । -क्रम५० होने या किये जानेवाले कार्योंका क्रम या उनकी सूची । - ग्रहणकाल - ५० (जाइनिंग टाइम) किसी संस्था आदिमें या किसी पदपर नियुक्त होनेके बाद काम शुरू करनेका समय । - परिषद् - स्त्री० ( काउंसिल ऑव ऐक्शन) किसी कार्य, काररवाई, आंदोलन आदिका संचालन, नियंत्रण आदि करनेके लिए गठित परिषद् । - पालिका - शक्ति - स्त्री० ( एग्जीक्यूटिव पॉवर) विधि, आज्ञप्ति, न्यायिक अभिनिर्णय आदिको कार्य में परिणत कराने, पालन करानेकी शक्ति । -भार- पु० किसी कार्य या पदका दायित्व । - वाहक - पु० (एजेंट) वह जो किसी देश, संस्था आदिकी ओरसे कार्य करनेके लिए अधिकृत किया गया हो, एजेंट । - वाही- पु० कार्यका भार उठानेवाला । स्त्री० सभा आदिमें हुआ काम, काररबाई । - विवरण - पु० सभा आदिमें हुए कार्यों का विवरण या हाल । -समिति - स्त्री० किसी संस्थाके संचा लनादिका काम करनेवाली मुख्य समिति । - सिद्धिस्त्री० कार्यकी सफलता, कामयाबी । - स्थगन प्रस्तावपु० ( ऐडजर्नमेंट मोशन) किसी अत्यंत आवश्यक एवं सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्नपर विचार करनेके लिए विधानसभा आदिमें रखा गया प्रस्ताव जिसमें प्रार्थना की जाती है कि अन्य कार्य छोड़कर पहले इसीपर विचार किया जाय ।
कार्यतः - अ० [सं०] कार्यरूपमें; फलतः ।
कार्याकार्य - पु० [सं०] कर्तव्य अकर्तव्य । - विचार - पु० कर्तव्य - अकर्तव्यका विचार ।
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कार्यान्वित - वि० [सं०] कार्यरूप प्राप्त, कार्यमें परिणत | कार्यालय - पु० [सं०] काम करनेका स्थान, दफ्तर | कार्य- पु० [सं०] दुबलापन; सालका पेड़ । कार्षापण-पु० [सं०] भारतका एक पुराना सिक्का । काल - पु० [सं०] समय, अवसर; अवधिः समयका कोई विभाग (घड़ी, घंटा आदि); मौसम; अंत; मृत्यु; महाकाल; यम; अकाल, दुर्भिक्ष; शिव; शनि; प्रारब्ध; आँखका काला
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१५७
कालबूत-काशिका भाग; कोयल; लोहा; एक गंधद्रव्य । वि० काला, गहरे | कालातिपात-पु० [सं०] समयका नाश; विलंब ।। नीले रंगका। -कूट-पु० एक भयानक विष; हलाहल | कालातीत-वि० [सं०] जिसका समय बीत गया हो; विष । -कोठरी-स्त्री० हिं०] भयंकर अपराधियोंको निर्धारित समय बीत जानेसे जो बेकार हो गया हो एकाकी रखने के लिए जेल में बनी हुई एक कोठरी जो बहुत | (टाइमबार्ड, दस्तावेज आदि)। तंग और अँधेरी होती है (सॉलिटरी सेल)। -क्रम-पु० कालानल-पु० [सं०] प्रलयकालकी अग्नि ।। समयकी गति । -क्षेप-पु० समय बिताना, दिन काटना। कालापास-पु० (कैलिपर्स) बेलनों, गोलों आदिका व्यास -चक्र-पु०समयका हेर-फेर, भाग्यपरिवर्तन ।-ज्ञ-वि० नापनेका एक भाला जो दो चपटे, टेढ़े फौलादके टुकड़ों(कार्यविशेषके) अवसरको पहचाननेवाला । पु० ज्योतिषी। का बना होता है-ये एक ओरसे नोकदार व दूसरी ओर-अप-पु. तीनों काल-भूत, भविष्य और वर्तमान । से चौड़े होते हैं। -दंड-पु० मृत्युः यमराजका दंड । -दोष-पु० (एना- कालावधि-स्त्री० [सं०](पीरियड) निर्धारित समयकी सीमा । क्रॉनिज्म) किसी वस्तु, व्यक्ति या घटनाका अपने वास्त-कालास्त्र-पु० [सं०] वह बाण जिसके प्रहारसे प्राणांत विक या ठीक समयसे बहुत पहले अथवा पीछे होना वर्णित | निश्चित हो । किया जाना, बतलाया जाना । -धर्म-पु० ऋतुविशेषके कालिंग-वि० [सं०] कलिंग देशका | पु० कलिंग देशका उपयुक्त आचरण; मृत्यु । -निशा-स्त्री० दीपावलीकी निवासी; वहाँका राजा, कलिंग देशका सर्प, हाथी। रात; घोर अंधेरी रात । -नेमि-पु० रावणका मामा। कालिंदी-स्त्री० [सं०] (कलिंद पर्वतसे निकली हुई) यमुना -पाश-पु० यमका फंदा। -पाशिक-पु० जल्लाद । नदी; सगरकी माता; कृष्णकी एक पत्नी। -कर्षण,-पुरुष-पु० कालरूप ईश्वर । -यापन-पु० वक्त गुजा- भेदन पु० बलराम (कहा जाता है कि वे अपने हलसे रना, दिन काटना। -रात, राति-स्त्री० दे० 'काल- | यमुनाको वृंदावन में खीच लाये)। रात्रि'। -रात्रि-रात्री-स्त्री० अँधेरी, डरावनी रातः कालि*-अ० कल, बीता हुआ या आनेवाला दिन । प्रलयकी रात; मौतकी रात: दिवालीकी रात; हर आदमीके | कालिका-स्त्री० [सं०] देवीकी एक मूर्ति, चंडिका; कालिमा; ७७वें वर्षके ७वें मासकी ७वीं रात; दुर्गाका एक नाम; काला रंग काले रंगकी स्त्री। यमराजकी बहिन । -वाचक-वि० जिससे समयका | कालिख-स्त्री० कलौंछ; स्याही; कलंक (लगना)। बोध हो। -सर्प-पु. काला साँप जो अति विषधर होता कालिदास-पु० [सं०] रघुवंश, कुमारसंभव आदि काव्योंहै (स्त्री० 'कालसपिणी')। -सूर्य-पु० प्रलयकालका सूर्य। के रचयिता जो महाराज विक्रमादित्यके सभा-पंडित, कालबूत-पु० मेहराब बनानेके लिए रखा गया कच्चा भराव।। संस्कृतके सर्वश्रेष्ठ कवि थे। कालर-पु० [अं०] कपड़ेकी इकहरी या दुहरी पट्टी जो कोट- कालिमा(मन)-स्त्री० [सं०] कालापन; कालिख कलंक । कमीज आदिमें लगाकर या अलगमे गले में पहनी जाती है। कालिय-पु० [सं०] यमुनामें रहनेवाला एक नाग जिसका कत्तेके गले में बाँधनेका चमड़े या धातुका पट्टा; * कल्लर, कृष्णने दमन किया। -जित्,-मर्दन-पु० कृष्ण । रेह-'ते नर कधी न नीपजे ज्यों कालरका खेत'-साखी। काली-स्त्री० [सं०] पार्वती; दुर्गा, कालिका दश महाकालांतर-पु० [सं०] दूसरा समय, अन्य काल । -विष- विद्याओंमेंसे पहली, अग्निकी ७ जिह्वाओंमेंसे एक; काले पु० वह जंतु जिसके काटनेका जहर कुछ अरसेके बाद रंगकी स्त्री। चढ़ता है (चूहा, पागल कुत्ता आदि)।
कालीन-पु० [अ०] बड़ा गलीचा; गलीचा । काला-वि० कोयलेके रंगका, स्याह, कृष्णवर्ण; कलुषित; | कालुष्य-पु० [सं०] मलिनता; अपवित्रता; अस्वच्छता । भारी; बहुत । पु० काला साँप; काले रंगका आदमी। कालौंछ-स्त्री० कालिमा, कालिख । -कलूटा-वि० बहुत काला । -चोर-पु० भारी चोरः काल्पनिक-वि० [सं०] कल्पनामें स्थित; कल्पित, फजीं। कोई निकृष्ट व्यक्ति। -जीरा-पु० स्याह रंगका जीरा।। काल्ह, काल्हि*-अ० दे० 'कल'। -दाना-पु० एक लता जिसके बीज रेचक होते हैं। कावा-पु० [फा०] घोड़ेको वृत्त या दायरे में चक्कर देना; -नमक-पु० साँचर नमक । -नाग-पु. काला साँप चकर। -बाज़-वि० चकर लगानेवाला; छापामार । अति दुष्ट, कुटिल जन (ला०)।-पान-पु० ताशमें हुकुमका ] -बाज़ी-स्त्री० कावा काटना; दुश्मनपर जब जहाँ मौका रंग। -पानी-पु० अंडमानका टापू जहाँ पहले आजीवन | मिले, छापा मारते रहना । कैदका दंड पानेवाले अपराधी भेजे जाते थे; आजीवन कैद-कावेरी-स्त्री० [सं०] दक्षिण भारतकी एक नदी; वेश्या। की सजा । -भुजंग-वि० अति काला । काली खाँसी-काव्य-पु० सं०] वह वाक्यरचना जो रसात्मक हो; स्त्री० बच्चोंको होनेवाली कष्टकर खाँसी । -जीरी-स्त्री० कविता। -लिंग-पु० एक अर्थालंकार जहाँ किसी कही एक पौधेके बीज जी दवाके काम आते है। -मिट्टी-| हुई बातका समर्थन करनेके लिए प्रमाणस्वरूप कोई स्त्री० चिकनी करैली मिट्ट।। -मिर्च-स्त्री० गोल स्याह कारण भी बताया जाय । रंगकी मिर्च । काले कोस,-कोसों-अ० बहुत दूर । काव्यापत्ति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ इस मु० (अपना) मुँह-करना-व्यभिचार या कुकर्म | प्रकार वर्णन किया जाय कि 'जब हमने वह कर लिया करना । मुँह काला करो= हट जाओ।
तो यह कौन बड़ी बात है। कालाग्नि-स्त्री० [सं०] दे० 'कालानल' ।
काश-पु० [सं०] काँस खाँसी । अ० [फा०] ईश्वर करता! कालातिक्रमण-पु० [सं०] समय बीत जाना, देर होना। काशिका-स्त्री० [सं०] काशीपुरी; पाणिनीय व्याकरणपर
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काश्मीरा - पु० एक ऊनी कपड़ा ।
काश्मीरी - वि० कश्मीरका । पु० कश्मीर निवासी ।
काष - पु० [सं०] कसौटी; सान ।
काशी - किध
लिखी एक वृत्ति । काशी - स्त्री० [सं०] उत्तर भारतकी एक प्रसिद्ध नगरी जो सप्तमोक्षदा पुरियों में से एक है, वाराणसी । -करवट - पु० [हिं०] काशी के अंतर्गत एक तीर्थस्थान जहाँ पुराने समय में लोग सद्गतिकी आशासे आरेके नीचे कटकर जान देते थे । - फल - पु० कुम्हड़ा । काश्त - स्त्री० [फा०] खेती; जीत । - कार - पु० खेतिहर । - कारी - स्त्री० खेती किसानी; वह जमीन जिसपर किसीको खेती करनेका अधिकार हो । किकियाना - अ० क्रि० रोना, चिल्लाना । काश्मीर - वि० [सं०] कश्मीरका; कश्मीर में उत्पन्न । पु० किचकिच- स्त्री० झगड़ा, विवाद; अशांति । कश्मीर देश; केशर । -ज-पु० केसर ।
क्या ।
काषाय - वि० [सं०] हड़, बहेड़े आदि से रँगा हुआ; गेरुआ । काष्ठ - पु० [सं०] काठ, लकड़ी; ईंधन । कीट- पु०धुन । - तक्ष, - तक्षक - पु० बढ़ई । - भारिक- पु० लकड़ी ढोनेवाला; लकड़हारा ।
काष्ठा - स्त्री० [सं०] दिशा; सीमा; चरम सीमा काष्टिक - पु० [सं०] लकड़हारा ।
कास - पु० [सं०] ख. सी; छींक, सहिजनका पेड़; एक घास । कासनी - स्त्री० एक पौधा; उसके बीज जो दबाके काम आते हैं; कासनी के फूलकासा हलका नीला रंग । कासा - पु० [फा०] प्याला; कटोरा; फकीरोंका भिक्षापात्र । कासार - पु० [सं०] तालाब; ताल; झोल । काह * - सर्व० क्या, क्या बात ।
काहल * - वि० गंदा, पंकिल - 'तोहि मथ करिहैं काहल' - दीनद० । काहि *
- स० किसे; किससे ।
काहिल - वि० [अ०] सुस्त, आलसी, कीमचोर | काहिली - स्त्री० [अ०] सुस्ती, आलस्य, ढिलाई । काहीँ - *अ० को; पास; द्वारा ।
काही - वि० स्याही लिये हुए हरे रंगका, घासके रंगका ।
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किंपुरुष - पु० [सं०] किन्नर ; जंबूद्वीपका एक खंड;नीच व्यक्ति । किंवदंती - स्त्री० [सं०] जनरव, अफवाह | किंवा - अ० [सं०] या, या तो, अथवा । किंशुक - पु० [सं०] पलाश, टेसू ।
कि- अ० एक योजक शब्द, जो देखना, कहना आदि क्रियाओंके विभिन्न रूपोंके बाद, संज्ञा वाक्यांश आरंभ होने के पहले आता है; अथवा; इतनेमें; *क्यों, क्योंकर;
काहे * - अ० क्यों, किसलिए |
किंकर - पु० [सं०] सेवक; टहलू; राक्षसोंकी एक जाति । किंकर्तव्यविमूढ - वि० [सं०] जिसकी समझ में न आये कि अब क्या करना चाहिये, भौचक्का ।
किचकिचाना-अ० क्रि० दाँतपर दाँत रखकर दबाना, दाँत पीसना ।
किचकिचाहट - स्त्री० किचकिचानेका भाव । किचड़ा ( रा ) ना- अ० क्रि० (आँख में) कीचड़ भरना । किचपिच - स्त्री० भीड़भाड़; फिसलन; गिचपिच । वि० अस्पष्टः क्रमरहित ।
किचरपिचर - स्त्री०, वि० दे० 'किचपिच' । किटकिट - स्त्री० झगड़ा, किचकिच |
किटकिटाना - अ० क्रि० गुरसेसे दाँत पीसना; खाते समय दाँतके नीचे कंकड़ी पड़ना ।.
किटकना - पु० ठेकेदारसे लिया हुआ, ठेकेदारकी ओरसे दूसरोंको दिया जानेवाला ठेका; किफायतसारी; थोड़े पैसों से काम चलानेका ढंग; चालाकी; सोनारोंका ठप्पा - (a) दार - पु० ठेकेदार से ठेका लेनेवाला । - बाज़- वि० किफायत, चतुराई से काम करनेवाला ।
किट्ट, किट्टक - पु० [सं०] तलछटकी तरह बैठा हुआ, जमा हुआ मैल; कीट; धातु का मैल ।
कित * - अ० किधर, किस ओर; कहाँ; तरफ । वि० कितना । कितक* - वि० कितना; कहीं, कितनी दूर ..कहै कितक तव धाम' - चाचा हित० ।
कितना - वि० किस मात्रा या गिनतीका; वि.स दरजेका; बहुत अधिक; बहुत बड़ा । अ० किस मात्रामें; वहाँतक; बहुत ज्यादा ।
कितने - वि० बहुतेरे, बहुतसे ।
पु० गहरा रंग, घासका रंग ।
काहु *
- सर्व० किसी ।
कितव - पु० [सं०] जुआरी; धूर्त; ठग; दुष्ट; सनकी; धतूरा ।
काहू- *सर्व० किसी | पु० [फा०] एक पौधा जो दवाके क्रिता- पु० - [अ०] टुकड़ा, खंट; एक उर्दू पद्य; दे० 'कता' । काम आता है ।
किताब - स्त्री० [अ०] लिखी हुई चीज; पोथी; बही । - खाना - पु० पुस्तकालय । फ़रोश- पु० पुस्तक-विक्रेता । किताबी - वि० किताब से संबद्ध, पुस्तकीय । -इल्म
पु० पुस्तकीय विद्या । -कीड़ा पु० किताबमें लगनेवाला कीड़ा; वह आदमी जो बराबर पुस्तक पढ़ता रहता है । कितिक* - वि० कितना; बहुत ।
किंकिणी - स्त्री० [सं०] करधनी; क्षुद्रघंटिका । किंकिनी* - स्त्री० करधनी ।
किंगरी, किंगिरी - स्त्री० छोटा चिकारा ।
किंचन - पु० [सं०] पलाश; असाकल्य, थोड़ी वस्तु ।
कितेक * - वि० कितना; बहुत । कितेब* - स्त्री० किताब | कितै* :- अ० कहाँ, किस जगह । कितो* - वि०, अ० कितना ।
किंचित्- वि०, अ० [सं०] कुछ, थोड़ा।
किंजल, किंजल्क - पु० [सं०] कमलका केसर, पद्मकेसरः कित्ति - स्त्री० दे० 'कीर्ति' ।
नागकेशर ।
किंतु - अ० [सं०] लेकिन, परंतु; बल्कि । किंपुरुख* - पु० दे० 'किंपुरुष' ।
किधर - अ० किस ओर, कहाँ । मु०-से चाँद निकलाकिधर भूल पड़े ?
किध - अ० या, अथवा; या तो ।
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१५९
किन-किल किन-सर्व० 'किस'का बहु० । अ० क्यों न । * पु० चिह्नः रेखा, अंशु, रश्मि । -पति,-माली(लिन्) पु० सूर्य । घट्ठा; गोखरू।
किरतम*-पु० मायिक प्रपंच-'पूरन ब्रह्म कहाँते प्रकटे किनका-पु० कण टूटा हुआ दाना।
किरतम किन उपराजा'-बीजक । किनहा -वि० जिसमें कीड़े पड़ गये हों (फल)।
किरन-स्त्री० दे० 'किरण'। मु०-फूटना-सूर्योदय होना। किनारदार-वि० जिसमें किनारा हो।
किरपा*-स्त्री० दे० 'कृपा'। किनारा-पु० [फा०] तट, तीर; हाशिया; गोट; छोर; किरपान-पु० दे० 'कृपाण' । बगल, पहलू । -कशी-स्त्री० किनारा खींचना; किनारे । किरम-पु० कृमि, कीड़ा।
ना । मु०-करना,-खींचना-अलग होना, दूर | किरमाल*-पु० तलवार । होना।
किरमिच-पु० एक तरहका चिकना मोटा कपड़ा जिसके किनारी-स्त्री० [फा०] पतला गोटा जो दुपट्टों आदिके परदे, जूते आदि बनते हैं। किनारे लगा होता या लगाया जाता है।
किरमिज-पु० एक तरहका लाल रंग; किरिमदानेका किनारे-अं० किनारेपर; अलग । मु०-लगना-पार | चूर्ण; किरमिजी रंगका घोड़ा।
पहुँचना; काम समाप्त होना। -होना-दूर हटना; छुट्टी | किरामजी-वि० किरामज या कारमदानकर पाना।
किरराना-अ० क्रि० दाँत पीसना; किरकिर की आवाज किनिका, किनुका-पु० 'किनका'।
करना। किन्नर-पु० [सं०] देवताओंकी एक योनि जिनका मुंह किरवान, किरवार*-पु० कृपाण, तलवार । घोड़ेके जैसा होना माना जाता है, किंपुरुष ।
किरवारा*-पु० अमलतास । किनारी-स्त्री० [सं०] किन्नर स्त्री; एक तरहका तंबूरा, किरसुन*-पु० दे० 'कृष्ण' । किंगरी।
किराँची-स्त्री० असबाब ढोनेवाली गाड़ी; भूसा आदि ढोनेकिफायत-स्त्री० [अ०] काफी, पूरा होना; कमखी; वाली बैलगाड़ी। बचत; थोड़ा मूल्य । शिआर-वि०किफायतसे काम किरात-पु०[सं०] एक जंगली जाति; साईस, बीना; शिव । करनेवाला; थोड़े खर्च में काम चलानेवाला । मु०-का- किरात-स्त्री० एक वजन जो जवाहरात तीलनेके काम कम दामका, सस्ता।
| आता है (लगभग ४ जीके बराबर)। किफायती-वि० [अ०] किफायत करनेवाला।
किराती-स्त्री० [सं०] किरात जातिकी स्त्री; किराती-वेशकिबला-पु० [अ०] कावा, वह स्थान जिसकी और मुंह धारिणी पार्वती; स्वगंगा । करके मुसलमान नमाज पढ़ते है; पश्चिम दिशा; पूज्य । किराना-पु० पंसारीकी दुकानसे मिलनेवाली चीजें, मिर्चपुरुषः बाप-दादा आदिका संबोधन । -नुमा-पु० एक मसाला आदि । यंत्र जिसकी सुई सदा पच्छिमकी ओर रहती है। किरानी-पु० अंग्रेजी दफ्तरका क्लर्क यूरेशियन । किमरिक(ख)-पु० एका चिकना सफेद कपड़ा। किराया-पु० दूसरेकी चीज काममें लानेका बदला, भाड़ा। किमाछ-पु० केवाच ।।
-(ये) दार-पु० कोई चीज, खासकर मकान किरायेपर किमाम-पु० दे० 'वाम' ।
लेनेवाला । मु०-उतारना-भाड़ा वसूल करना । किमि*-अ० कैसे।
किरावल-पु० सेनाका वह भाग जो लड़ाईका मैदान साफ किम्-सर्व० [सं०] कीन, क्या । अ० क्यों, कैसे; कहाँसे। करने के लिए आगे जाता है; बंदूकसे शिकार करनेवाला । किम्मत*-स्त्री० कौशल; बहादुरी दे० 'कीमत' । | किरासन-पु० मिट्टीका तेल, 'केरोसिन' । कियत्-वि० [सं०] कितना ।
किरिच-स्त्री० नुकीला टुकड़ा या रवा; नोंककी ओरसे कियारी-स्त्री० दे० 'क्यारी' ।
भोंकी जानेवाली सीधी तलवार । किरका-पु० कंकड़, नन्हाँ टुकड़ा।
किरिया*-स्त्री० शपथ; कर्तव्य; मृतककर्म। किरकिटी-स्त्री० दे० किरकिरी' ।
किरीट-पु० [सं०] एक शिरोभूषण जिसे राजा या राजकिरकिरा-वि० करीला । पु० लोहारोंका एक औजार । कुमार धारण करते थे, मुकुट; एक वर्णवृत्त । -धारी मु०-होना-आनंदमें विघ्न पड़ना ।
(रिन् )-पु० राजा । -माली (लिन)-पु० अर्जुन । किरकिराना-अ० कि० दाँत या आँख में किरकिरी पड़नेसे किरीटी (टिन)-वि० [सं०] किरीटधारण करनेवाला। गड़ना, कष्ट होना।
इंद्र; अर्जुन । किरकिराहट-स्त्री० किरकिरी पड़नेका अनुभव या कष्ट । किरीरा*-स्त्री० दे० 'क्रीड़ा'। किरकिरी-स्त्री० रेत या किसी कड़ी चीजका छोटा कण; किरोध-पु० दे० 'क्रोध' । छोटी कँकड़ी; अपमान, हेठी ।
किरोलना-स० क्रि० खुरचना। किरकिल-पु० गिरगिट । *स्त्री० वह शरीरस्थ वायु जिससे किरीना-पु. कीड़ा। छींक आती है।
किर्च-स्त्री० दे० 'किरिच'। किरकिला-पु० दे० 'किलकिला' ।
किर्तनिया-पु० कीर्तन करनेवाला । किरच-स्त्री० दे० 'किरिच'; नुकीला रवा ।
किल-अ० [सं०] निश्चय ही, सचमुच । -किचित्-पु० किरण-स्त्री० [सं०] ज्योतिसे प्रवाहरूपमें निकलनेवाली संयोग शृंगारका एक हाव जिसमें नायिका एक साथ कई
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किलक -कीक
भाव प्रकट करती है ।
किलक - स्त्री० किलकारी; एक तरहका नरकट ।
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किलकन - स्त्री० किलकनेकी क्रिया ।
किलकना - अ०क्रि० बच्चों बंदरों आदिका किलकारी मारना । किलकार (री) - स्त्री० बच्चों, बंदरों आदिके मुखसे अधिक हर्ष की अवस्था में निकलनेवाली अस्पष्ट ध्वनि या चीख । किलकारना - अ० क्रि० जोरसे आवाज करना । किलकिल - स्त्री० झगड़ा, किचकिच । पु० [सं०] हर्षसूत्रक ध्वनि, किलकारी; शिव । किलकिला - स्त्री० [सं०] हर्षसूचक ध्वनि, किलकारी; [हिं०] मछली खानेवाली एक छोटी चिड़िया । पु० समुद्रका वह भाग जहाँ लहरें तेज आवाज करती हों; एक समुद्र 1
किलकिलाना - अ० क्रि० किलकारी मारना, हर्ष-ध्वनि
करना ।
किलकिलाहट - स्त्री० किलकारी ।
किलना - अ० क्रि० कीला जाना; वशमें किया जाना । किलनी - स्त्री० एक कीड़ा जो कुत्तों, गाय-बैलों आदिकी देहसे चिमटा रहता है । किलबिलाना -- अ० क्रि० चंचल होना; बहुतसे कीड़ों आदिका छोटीसी जगह में एक साथ हिलना- डोलना । किलवाना -स०क्रि० कील ठुकवाना, कीलनेकी क्रिया दूसरे से कराना; मंत्रादि द्वारा प्रेतादिके विघ्नको बंद कराना । किलवारी - स्त्री० छोटी नावों, डोंगियों आदि में पतवारका काम देनेवाला छोटा डाँड़ा ।
किलविष - पु० दे० 'किल्विष' ।
किलविषी* - वि० रोगी; पापी; दोषी । किलहँटा - पु० सिरोही नामक पक्षी । क़िला-पु० [अ०] वह संगीन और लंबी-चौड़ी इमारत जिसके भीतर से रक्षात्मक युद्ध किया जा सके, गढ़, दुर्ग; विशाल और मजबूत बनावटवाली इमारत; शतरंज में वादशाह के लिए शहसे सुरक्षित स्थान । - (ले) दार - पु० किलेमें रहनेवाली सेनाका प्रधान नायक, दुर्गरक्षक । - बंदी - स्त्री० किसी स्थानको चहारदीवारी, खाई आदिसे सुरक्षित करना ।
किलावा - पु० हाथीके गलेमें लपेटी हुई रस्सी जिसपर महावत पैर रखता है; सोनारोंका एक औजार । किलिक - ५० दे० 'किल्क' ।
किलोल + - पु० दे० 'कल्लोल' ।
किल्क - पु० [फा०] एक नरकट जिसकी कलम बनती है । किल्लत - स्त्री० [अ०] कमी, तंगी; दुर्लभता । किल्ला - पु० बड़ी मेख, खूँटा; चक्की या जाँतेके बीचोबीच गड़ी मेख | मु०-गाड़कर बैठना- अटल होकर बैठना । किल्लाना * - अ० क्रि० कलोल करना; किलकिलाना । किल्ली - स्त्री० खूँटी; सिटकिनी; कलकी मुठिया; पेंच; चाभी | मु० - ऐंठना, घुमाना - पेंच घुमाना; किसीका मत फेर देनेकी युक्ति करना; जोड़-तोड़ लगाना । ( किसीकी) - हाथमें होना- किसीका किसीके बस, काबू में होना; किसीसे मनचाहा काम करा लेनेकी युक्ति | मालूम होना ।
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किल्विष - पु० [सं०] पाप; दोष; रोग । किवाड़ - पु० लकड़ी, शीशे आदिका पल्ला जिससे दरवाजा बंद किया जाता है, कपाट । मु०-देना- दरवाजा बंद
करना ।
किशमिश - स्त्री० सुखाया हुआ छोटा अंगूर । किशमिशी - वि० किशमिशका; किशमिशके रंगका । पु० एक तरहका रंग । - अंगूर - पु० छोटा अंगूर । किशल, किशलय - पु० [सं०] कोंपल, नवपल्लव | किशोर - पु० [सं०] ११ से १५तककी उम्र वाला लड़का बेटा । किशोरक- पु० [सं०] बच्चा ।
किश्त - स्त्री० [फा०] खेती, कृषिकर्म; शतरंज में बादशाहका विपक्षी के किसी मुहरेकी जद में आना, शह (देना, लगना) । किश्ती - स्त्री० [फा०] नाव, डोंगी; लकड़ी या धातुकी बनी लंबी तश्तरी । -नुमा - वि० नावकी शकलका | किष्किंध - पु० [सं०] मैसूरके आसपासका देश या पर्वत । aftaar, afteध्या - स्त्री० [सं०] किष्किंध देशकी - बालिसुग्रीवकी राजधानी; किष्किंध पर्वतकी एक गुफा । किसनई। स्त्री० किसानी, कृषिकर्म | किसब * - पु० दे० 'कसब' ।
किसबत - स्त्री० [फा०] नाईकी पेटी या थैल। । किसमिस - स्त्री० दे० 'किशमिश ' । किसमी* - पु० मजदूर ।
किसल, किसलय - ५० [सं०] दे० 'किशल', 'किशलय' । किसान- पु० खेतिहर, काश्तकार | किसानी - स्त्री० किसानका काम, खेती । किसिम-स्त्री० दे० 'किस्म' |
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किसी सर्व० वि० 'कोई' का विभक्तिके पूर्वका रूप । किसू* - सर्व० दे० 'किसी ' ।
क़िस्त - स्त्री० [अ०]अंश, भाग;देन या लगान, मालगुजारीका वह भाग जो नियत समयपर दिया जाय या देय हो; देन, मालगुजारी आदिके अंशविशेषके चुकानेका नियत समय । - खिलाफ़ी - स्त्री० किस्तका नियत समयपर अदा न होना । - बंदी - स्त्री० किस्त बाँधना, देनको कई हिस्सों में बाँटकर हर एकके चुकाये जानेका समय बाँध देना । किस्म - स्त्री० [अ०] प्रकार, भेद, तरह ।
किस्मत - स्त्री० [अ०] अंश, भाग; भाग्य, तकदीर; कमिश्नरी, विभाग | - आजमाई - स्त्री० भाग्यकी परीक्षा । वरवि० भाग्यवान्, खुशनसीब । मु०- आजमाना - भाग्यके भरोसे, सफलताका निश्रय न होते हुए भी काम करना । - का धनी - भाग्यवान्; बड़े भाग्यवाला । -का फेरबदकिस्मती ; जमानेका उलट-फेर । -का लिखा - जो भाग्य में बदा हो, नियति । - चमकना, - जागना - भाग्य खुलना; बढ़ती के दिन आना । - पलटना- स्थिति बदल जाना, दुःख सुख या सुखसे दुःखके दिन आना । -फूटना - भाग्यका मंद पड़ना । - लड़ना - भाग्यका अनुकूल होना । किस्सा - पु० [अ०] कहानी, वृत्तांत; जिक्र, चर्चा; झगड़ा, तकरार | मु० - ख़त्म, - तमाम,-पाक होना-झगड़ा खत्म होना; मिटना, भरना । की - *अ० या, अथवा; क्या ।
कीक- स्त्री० चीख, चीत्कार |
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कीकट - पु० [सं०] मगध देश; घोड़ा ।
कीकना - अ० क्रि० 'की की' की आवाज के साथ चीखना । कीकर- पु० बबूलका पेड़ ।
कीच - स्त्री० पंक, कीचड़ ।
कीचक - पु० [सं०] पोला बाँस ।
कीचड़ - पु० पैरों में चिपकनेवाली गीली मिट्टी, पंक; आँखसे निकलनेवाला मैल |
कीट - पु० जमा हुआ मैल। [सं०] कीड़ा; -नाशक - पु० ( इनसेक्टिसाइड) कीटाणुओंको नष्ट करनेवाली दवा । - विज्ञान - पु० (एंटोमॉलॉजी ) कीड़े-मकोड़ोंकी उत्पत्ति, स्वरूप, विशेषताओं आदिका विवेचन करनेवाला विज्ञान। कीटाणु - पु० [सं०] वे छोटे-छोटे कीड़े जो अनेक रोगोंके मूल कारण माने जाते हैं ।
कीड़ा - पु० रेंगने या उड़नेवाले क्षुद्र जंतु, कीट ( भिड़, गुबरैला, खटमल आदि ); किसी चीजके सड़नेसे पैदा होनेवाले क्षुद्र कोट, कृमि; साँप थोड़े दिनका बच्चा । मु० - पढ़ना - ( किसी चीज में ) सड़ने से कीड़ा पैद हो जाना । लगना - कीड़ोंका किसी चीज ( कपड़ा, किताब आदि ) को खा जाना या उसमें घर करना । कीड़ी - स्त्री० छोटा और बारीक कीड़ा; चींटी । कीदॐ * * - अ० दे० 'किधौं ' ।
कीनखाब- पु० दे० 'कमख्वाब' |
कीनना। - स० क्रि० खरीदना, क्रय करना । कीना - पु० [फा०] द्व ेष, वैर, । कीप-स्त्री० अर्क, तेल आदिको आसानी से बोतल में ढालनेके लिए काम में लायी जानेवाली धातु आदिकी चोंगी। -स्तंभ - पु० ( फनेल स्टैंड ) वह स्तंभ जैसा आला जिसमें कीप फँसायी जाती है ।
कीमत- स्त्री० [अ०] मूल्य, दामः गुणः योग्यता | कीमती - वि० [अ०] बहुमूल्य, दामी |
कीमा पु० [अ०] छोटे-छोटे टुकड़ों में कटा हुआ मांस । कीमिया - स्त्री० [अ०] रसायन-विद्या; सोने-चाँदी बनानेकी विद्या; अकसीर रसायन; कार्य साधक युक्ति । -गर साज़ - पु० रसायनविद्, सोना-चाँदी बनानेवाला; कारंधमी । - गरी - स्त्री० सोना चाँदी बनाना । कीर - पु० [सं०] तोता; मांस; कश्मीर देश; * व्याधा; सर्प । कीरति * - स्त्री० दे० 'कीति' ।
कीरी - स्त्री० दे० 'कोड़ी' ।
कीर्ण - वि० [सं०] बिखरा हुआ; ढका हुआ; धृत । कीर्तन - पु० [सं०] कीर्ति-वर्णन, यशोगान राम, कृष्ण आदिकी कथा गाते बजाते हुए कहना । - कार - पु० कीर्तन करनेवाला ।
कीर्तनिया - पु० कीर्तन करनेवाला | कीर्ति स्त्री० [सं०] यशः ख्याति, नामवरी; दीप्ति । -शाली (लिन् ) - वि० [सं०] यशस्वी, नामवर - शेष - वि० जिसकी कीर्तिमात्र इस दुनियामें रह गयी हो, नामशेष, मृत । -स्तंभ - पु० (किसी के) स्मारकरूपमें बनाया गया स्तंभ |
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कीकट - कुंड
गहना, लौंग, मुँहासे, फुंसी आदिको दबाने से निकलनेवाली कड़ी पीब; चक्की के बीचोबीच गड़ी खूँटी; खूँटी; वह खूँटी जिसपर चाक घूमता है। -काँटा पु० औजार, साज समान, हरबा - हथियार ।
कीलक- पु० [सं०] खूँटी; यंत्रका मध्य भाग; अन्य मंत्रका प्रभाव नष्ट कर देनेवाला मंत्र ।
कीलना - स० क्रि० कील ठोंकना, खूंटी गाड़ना; तोपकी नली में सामने की ओर से लकड़ी ठोंक देना; बाँधना; मंत्रको प्रभावहीन कर देना; साँपको मंत्र प्रभाव से हिलने-डोलने से असमर्थ कर देना; वश में करना ।
कीला - पु० बड़ी खूँटी; जाँतेका खूँटा; चाककी खूँटी; मूढगर्भ । कीलाल- पु० [सं०] देवताओंका अमृत जैसा एक पेय; मधुः पशुः जल; सीना; रुधिर । कीलित - वि० [ सं ] कीला हुआ; बद्ध; निरुद्ध । कीली - स्त्री० खूँटी; धुरा; कुश्तीका एक दाँव । कीश- पु० [सं०] बंदर । -केतु,- ध्वज-पु० अर्जुन । कीस * - पु० बंदर |
कीसा - पु० [फा०] जेब, खरीता, थैली ।
कुँअर - पु० कुमार, लड़का; राजकुमार । विरास* - पु० दे० 'कुँअरविलास' । - विलास-पु० एक तरहका बढ़िया धान या चावल ।
कुँअरि * - स्त्री० कुमारी; राजकुमारी । कुँअरेटा * - पु० छोटा बालक । कुँआ - पु० दे० 'कुआँ' । कुँआरा - पु० अविवाहित व्यक्ति । कुँआरी - स्त्री० कुमारी, अविवाहिता कन्या । कुँइयाँ+ - स्त्री० छोटा कुँआ ।
कुँई' - स्त्री० दे० 'कुई' |
कुंकुम - पु० [सं०] केसर; रोली; कुंकुमा । कुकुमा - पु० लाखका पोला गोला जिसमें गुलाल भरकर मारते हैं ।
कुंज - पु० [सं०] लता आदिसे घिरा या ढका हुआ स्थान; हाथीका दाँत दाँत नीचेका जबड़ा; गुफा । -कुटीरपु० लतागृह । - गली - स्त्री० [ हि० ] लताओंसे ढका हुआ पथ; तंग गली ।
कुंजक * - पु० अंतःपुर में जा सकनेवाला डेवढ़ीदार, कंचुकी । कुँजड़ा - पु० एक जाति जो तरकारी बेचनेका धंधा करती है । कुंजर- पु० [सं० ] हाथी; पीपल; बाल; आठकी संख्या । वि० [श्रेष्ठ ( कपिकुंजर ) ।
कुंजराराति, कुंजरारि - पु० [सं०] सिंह; शरभ । कुंजरी - स्त्री० [सं०] हथिनी । कुंजल- पु० [सं०] काँजी; * हाथी । कुंजित - वि० कूजित ।
कुंजी - स्त्री० ताली; अर्थ खोलनेवाली पुस्तक ।
कुंठ- वि० [सं० ] भोथरा; मंदबुद्धि; सुस्त कमजोर । कुंठित - वि० [सं०] कुंद या भोथरा किया हुआ; मूर्ख ।
कीर्तिमान् ( मत्) - वि० [सं०] दे० 'कीर्तिशाली' । कील - स्त्री० छायाघड़ीका काँटा; नाकमें पहननेका एक | कुंड -- पु० [सं०] पानी रखनेका कुंडा; मटका; छोटा
कुंचन-पु० [सं०] सिकुड़ना, सिमटना; टेढ़ा होना । कुंचित-वि० [सं०] सिकुड़ा हुआ; टेढ़ा, घुँघराले । कुंची * - स्त्री० कुंजी ।
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कुडरा-कु
१६२ तालाब हौज; हवनकी अग्नि या जल-संचयके लिए खोदा कुदेरा-पु० दे० 'कुनेरा।। हुआ गढ़ा; बटलोई; ऐसी स्त्रीका जारज पुत्र जिसका पति कुंभ-पु० [सं०] मिट्टीका घड़ा; कलस; हाथीके सिरका जीवित हो; * लोहेका टोप; हौदा।
कुछ उभरा हुआ भाग जो उसके दोनों ओर होता है। कुँडरा-पु० गेंडुरी; कुंडा।
एक राशि अनाजका एक मान; एक पुण्यजनक पर्व जो कंडल-पु० [सं०] कानमें पहननेका बाला, बाली; कड़ा । हर बारहवें बरस पड़ता है।-कर्ण-पु. एक विशालकाय या चूड़ा; गोल बनावटका वह गहना जिसे कनफटे कानोंमें | राक्षस जो रावणका छोटा भाई था ।-कार-पु० कुम्हार; पहनते हैं; रस्सी, तार या साँपकी फेंटी; एक छंद ।
एक संकर जाति; सांप; उल्लू । -ज,-जन्मा(न्मन),कुंडलाकार-वि० [सं०] कुंडलके आकारका, गोल । जाता-योनि-पु० अगस्त्य मुनिः द्रोण । कुंडलिका-स्त्री० [सं०] मंडलाकार रेखा; कुंडलिया छंद। कुंभी-स्त्री० [सं०] छोटा घड़ा; हंडी; जलकुंभी।-पाकजलेबी।
। पु० एक नरक; हंडीमें पकायी हुई चीज । कुंडलित-वि० [सं०] जो कुंडली मारे हुए हो, चक्करके कुंभी(भिन)-पु० [सं०] हाथी; मगर कुंभीपाक नरक । रूपमें लपेटा हुआ।
कुंभीपुर*-पु० हस्तिनापुर । कुंडलिनी-स्त्री० [सं०] दुर्गा या शक्तिका एक रूप; कुंभीर-पु० [सं०] घड़ियाल; एक छोटा कीड़ा। मूलाधार चक्रमें स्थित एक शक्ति जिसे तंत्र और हठयोगका कुँवर-पु० लड़का; राजकुमार । साधक जगाकर ब्रह्मरंध्रमें लगानेका यत्न करता है। जलेबी। कुँवरि(री)-स्त्री० कुमारी; राजकन्या । कुंडलिया-स्त्री० एक मात्रिक छंद ।
कुँवरेटा-पु० छोटा लड़का । कुंडली-स्त्री० [सं०] जन्मकुंडली; कुंडलिनी; जलेबी, सॉपकी कुँवाँ-पु० दे० 'कुआँ' ।। फेंटी; इंडरी।
कुँवारा-पु० दे० 'कुँआरा' । कुंडली (लिन्)-वि० [सं०] कुंडलधारी; जो कुंटल या कुहकुँह-पु० दे० 'कुमकुम' ।
फेंटी मारे हुए हो; लपेटा हुआ। पु० साँप; मोर; वरुण । कु-स्त्री० [सं०] पृथ्वी; त्रिभुजका आधार। -ज-पु० कुंडा-पु० नाद; बड़ा मटका; कोंढ़ा।
मंगल ग्रह; वृक्ष; नरकासुर । वि० लाल । -देव-पु० कंडी-स्त्री० पत्थरका बना गोला, गहरा पात्र जिसमें भांग भूदेव, ब्राह्मण । -धर,-भृत्-पु० पहाड़ शेषनाग । घोंटी जाती है, पथरी; एक तरहका शिरस्त्राण; दरवाजेकी
ह, पथरा। एक तरहका शिरस्त्राण, दरवाजकी -सुत-पु० मंगल ग्रह । जंजीर या सांकल । मु०-खटखटाना-दरवाजा खुलवाने-कु-अ० [सं०] हीनता, नीचता, दुष्टता, अल्पता, कुत्सा के लिए सांकलको हिलाना।।
आदिके अर्थ देता है-जैसे कुकर्म, कुदृष्टि, कुपथ्य, कुमार्ग कुंत-पु० [सं०] कौडिला; भाला; क्रोधनँ ।
आदि । स्वरादि शब्दोंके पहले इसका रूप कत्, कब कुंतल-पु० [सं०] सिरके बाल; प्याला; हल; बहुरुपिया। और का हो जाता है-जैसे कदाचार, कवोष्ण, कोष्ण, कंता*-स्त्री० दे० 'कुंती'।
आदि । -कर्म (र्मन्),-कृत्य-पु० बुरा काम, पापकुंती-स्त्री०बरछी; एक तरहकी मधुमक्खी; [सं०] युधिष्ठिर, कर्म । -कर्मी (मिन्)-वि० कुकर्म करनेवाला । भीम और अर्जुनकी माता, पृथा ।
-खेत-पु० बुरी जगह, कुठांव। -ख्यात-वि० बदकंद-पु० [सं०] सफेद फूलवाला एक पौधा; कनेरका पेड़ नाम । -गति-स्त्री० दुर्गति, दुर्दशा। -गहनि*-स्त्री० कमल, विष्णु कुबेरकी नौ निधियोंमेंसे एक; ९की संख्या
हठ, दुराग्रह । -घात-पु० [हिं०] कपटभरी चाल, खराद । -कर-पु० खरादनेवाला।
छल-छंद; कुठांव । -चक्र-पु० किसीको विपदमें फंसाने, कंद-वि० [फा०] भोथरा, गुठला; मंद। -जेहन-वि० नुकसान पहुँचानेकी चाल, साजिश, षड्यंत्र । -चक्री मंदबुद्धि, मोटी अकलका।
(क्रिन्)-वि० साजिश, षडयंत्र करनेवाला --चालकंदन-पु०खालिम और दमकता हुआ सोना; शुद्ध मोनेका स्त्री० [हिं०] दुराचार, दुष्टता; खोटाई । -चालक-वि. पत्तर । वि० तपे हुए सोने जैसा शुद्ध और निर्मल; कांति- (बैड कंडक्टर) (वह वस्तु) जिसमें विद्युत् , ताप आदिका युक्त स्वस्था सुंदर । -साज़-घु० कुंदनका पत्तर बनाने- परिचालन सुगमतासे न हो सके, कुसंवाहक । -चालीवाला, जड़िया।
वि० [हिं०] दुराचारी, दुष्ट, खोटा। -चिल*,-चील*, कुंदरू-पु० एक बेल और उसका फल ।
-चीला-वि० दे० 'कुचैला' । -चेल,-चैल-वि० कंदा-पु० [फा०] लकड़ीका बड़ा और मोटा टुकड़ा; वह मोटी जिसके कपड़े बहुत मैले या फटे हों । पु० मलिन वस्त्र ।
और चपटी लकड़ी जिसपर रखकर कुंदीगर कपड़ेपर कुंदी -चेष्टा-स्त्री० कुत्सित चेष्टा । -चैन*-स्त्री०बेचैनी। करता और बकरकसाब मांस काटता है; बंदूकका काठका -चैला-वि० [हिं०] मैले कपड़ेवाला, मलिन ।-जंत्रबना वह भाग जिसमें घोड़ा और नली जड़ी होती है, पु० टोना-टोटका । -जन्मा (न्मन्)-पु० नीच कुल, दस्ता; काठकी बेड़ी; काठ; चिड़ियाका डैना; कुश्तीका जातिमें उत्पन्न । -जस-पु० अपयश; बदनामी । एक पेंच खोया।
-जाति-स्त्री० नीच जाति । वि० हीन जातिवाला; कंदी-स्त्री० कपड़ेकी सिलवट दूर करने और चमक लानेके जातिच्युत । -जोग*-पु० कुसंग; प्रतिकूल अवसर । लिए उसे मुँगरीसे पीटना । -गर-पु० कुंदी करनेवाला। -टेक-स्त्री० [हिं०] अनुचित हठ । -टेव-स्त्री० [हिं०] मु०-करना-खूब पीटना, पूरी मरम्मत कर देना ।
बुरी बान, लत। -ठाँउ-ठाँय,-टाँव-पु०, स्त्री० कँदेरना-स० क्रि० खरादना; छीलना ।
[हिं०] बुरी जगह; बेमौका। -ठाट-पु० [हिं०] बुरे,
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किसीकी बुराई करनेवाले कामका आयोजन, कुचक्र | - ठाहर, - ठौर - पु० [हिं०] दे० 'कुठाँव' । - डौलवि० [हिं०] बेडौल, भद्दा, कुरूप ढंग - पु० [हिं०] बुरा ढंग, चाल । वि० बेढंगा । - ढंगा-वि० [हिं०] बेढंगा; बेशऊर । -ढंगी - वि० [हिं०] कुपथगामी । - तर्क - पु० दूषित, असंगत तर्क, वितंडा । - तर्कों (र्किन्) - वि० कुतर्क करनेवाला।। - दर्शन - वि० कुरूप, बदशक्ल । - दाँव-पु० [हिं०] कुघात; विश्वासघातः कुठौर । - दाई * - वि० [हिं०] कुघात करनेवाला । - दाउ, - दाय * - पु० दे० 'कुदाँव' । -दिन- पु० दुर्दिन; विप त्तिके दिन । दिष्ट* - स्त्री० दे० 'कुदृष्टि' । - दृष्टि - स्त्री० बुरी, खोटी निगाह; पाप-दृष्टि; अशुभ दृष्टि । - देवपु० दैत्य, राक्षस । - देश - पु० बुरा देश, स्थान । - धातु-स्त्री० निकृष्ट धातु, लोहा । - नाम * - पु० बदनामी । -नामा (मन्) - वि० जिसका नाम सबेरे लेनेसे अमंगलकी आशंका की जाय । पु० अति कृपण व्यक्ति । - पंथ - पु० [हिं०] दे० 'कुपथ' । -पंथी - वि० [हिं०] कुचाली, कुमागी । - पढ़-वि० [हिं०] अनपढ़, मूर्ख । - पथ - पु० अधर्म, अनीतिका रास्ता, कुमार्ग; * कुपथ्य | गामी ( मिनू ) - वि० बुरे आचरणवाला, कुचाली। -पथ्य-वि० अयुक्त, अस्वा स्थ्यकर | पु० अयुक्त, अस्वास्थ्यकर आहार-विहार, बदपरहेजी । - पाठ - पु० बुरी सलाह, कुमंत्रणा । -पात्रवि० (किसी वस्तुका ) अनधिकारी, अयोग्य । - पुत्र- पु० नालायक बेटा, कपूत । - पोषण - पु० (मालन्यूट्रिशन) उत्तम पोषणका अभाव वा कमी, न्यूनपोपण -प्रबंधपु० बुरा, सदोष प्रबंध, बदइंतजामी - बत* - स्त्री०
बुरी बात; बुराई; कुचाल | - बाक* - पु० दे० 'कुवचन' ।
- बानि * - स्त्री० बुरी आदत, टेव । - बानी* - स्त्री० बुरा वाणिज्य | - बुद्धि-स्त्री० दुर्बुद्धि; नासमझी । वि० जिसकी अकल ठीक न हो, नासमझ - बेला - स्त्री० [हिं०] अतिकाल; कुसमय । - बोल - [ [हिं०] पु० कटु, कठोर या अमंगल वचन। - बोलनी* - वि० स्त्री० कुमा पिणी, बुरे बोल बोलनेवाली -भाव-पु० बुरा भाव, द्वेषभाव । - मंत्र - पु० बुरी सलाह, कुपाठ । -मति - स्त्री० दुर्बुद्धि; अपनी बुराई करनेवाली बुद्धि । - मारग पु० दे० 'कुमार्ग' | - मार्ग - पु० कुपथ, बुरा रास्ता । - गामी ( मिनू ), - मार्गी ( गिंन्) - वि० अधर्म, अनीतिकी राहपर जानेवाला, कुचाली । -योग- पु० अशुभ योग; अनिष्ट संयोग । - राय* - स्त्री० दे० 'कुराह' । - राह - स्त्री० [हिं०] कुमार्ग, ऊबड़• खाबड़ रास्ता । - राही - वि० [हिं० ] कुपथगामी । - रीति- स्त्री० बुरा ढंग; निंदनीय प्रथा - रुखवि० [हिं०] जिसका रुख खराब हो, नाराज । - रूप - वि० भद्दी, बेढंगी शकलवाला । -रोग- पु० कठिन, दुस्साध्य रोग । - लक्षण - पु० बुरा लक्षण, अनिष्टसूचक चिह्न | वि० बुरे लक्षणवाला । -लक्षणीवि० [स्त्री० बुरे, अशुभसूचक लक्षणवाली । स्त्री० बुरे लक्षणवाली स्त्री । - लच्छन* - वि०, पु० दे० 'कुलक्षण' । - लच्छनी - वि० स्त्री० [हिं०] दे० 'कुलक्षणी' । वचन,
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कुआँ-कुक्षि
- वाक्य पु० दुर्वचन, गाली । - वाच्य - वि० न कहने योग्य | पु० गाली, दुर्वचन । - वासना - स्त्री० पापमय वासना । - विचार - पु० बुरा, दूषित विचार । - विचारी (रिन्) - वि० बुरे विचारवाला । - वेश- पु० अभद्र वेश । - वैद्य - पु० अशास्त्रीय ढंगसे चिकित्सा करनेवाला, अताई । - शासन - पु० बुरा राज्य प्रबंध, कुराज्य । - संग - पु०, - संगति - स्त्री०बुरी सोहबत । - संस्कारपु० चित्तपर पड़ा हुआ बुरा असर; चित्तमें जमी हुई कुधारणा । - सगुन- पु० अपशकुन | - समय - पु० बुरा समय । - साइत - स्त्री० [हिं०] कुसमय; बुरा मुहूर्त । - साखी - पु० बुरा पेड़, कुवृक्ष । - सूत-पु० बुरा सूत्र; बुरा प्रबंध ।
कुआँ - पु० भूगर्भस्थ जल या तेल निकालने के लिए खोदा गया गहरा और साधारणतः गोल ( कच्चा या पक्का ) गढ़ा, कृप । मु० - खोदना- किसीकी हानि, बुराई करनेका उपाय करना; रोजीके लिए मेहनत करना । कुएँ की मिट्टी कुएँ में लगना - जहाँकी कमाई वहीं खर्च हो जाना । - झँकाना - परेशान करना; तलाश में दौड़ाना। - झाँकना - किसी चीजकी कोशिश में बहुत जगह भटकना, बहुत हैरान होना । - परसे प्यासे आना - कार्यसिद्धिकी जगह से निराश लौटना । - में गिरना - जान-बूझकर विपद् में फँसना । में डालना, - में ढकेलना - लड़कीको बुरे घरमें डाल देना, उसकी जिंदगी बर्बाद कर देना ।
कुआर - पु० आश्विन मास । कुइयाँ- स्त्री० छोटा कुआँ |
कुइँ स्त्री० कमल जैसा एक पौधा जिसमें सफेद फूल लगते और रात में खिलते हैं, कुमुद ।
कुकटी - स्त्री० एक तरहकी कपास, कोकटी । कुकड़ना - अ० क्रि० सिमटना | कुकड़ी-स्त्री० कच्चे सूतका लच्छा; मदारका फल; खुखड़ी | कुकनू - पु० [यू०] एक कल्पित पक्षी जिससे यूनानियोंके विश्वासानुसार संगीतकी उत्पत्ति हुई, आतशजन । कुकरी* - स्त्री० कुक्कुटी, मुर्गी । कुकरौंदा (घा) - पु० एक पौधा ।
कुकुर - पु० [सं०] कुत्ता । - खाँसी, ढाँसी - स्त्री० [हिं०] एक तरहकी बहुत कष्ट देनेवाली और संक्रामक सूखी खाँसी । - दंत - पु० साधारण दाँतोंसे कुछ नीचे निकलनेवाला अतिरिक्त दाँत । - निंदिया- स्त्री० [हिं०] कुत्तेकी नींद, जरासे खटकेसे खुल जानेवाली नींद । - माछी-स्त्री० [हिं०] एक तरह की मक्खी जो घोड़े, कुत्ते आदिको लगा करती है। -मुत्ता - पु० [हिं०] एक तरहका पौधा जो बरसात के दिनों में पेड़ोंकी जड़ोंमें या सीलकी जगहों में उगा करता है, छत्रक । कुकुही - स्त्री० बनमुर्गी । कुक्कुट - पु० [सं०] मुर्गा बनमुर्गा; लुक; चिनगारी । कुक्कुटादि पालन- पु० [सं०] ( पोल्ट्री कीपिंग ) कुक्कुट, बत्तक आदि पालने, उनके अंडे बेचने आदिका व्यवसाय । कुक्कुर - ५० [सं०] कुत्ता; ग्रंथिपणीं । कुक्षि-स्त्री० [सं०] पेट, कोख, गर्भाशय ।
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कुषा-कुतुब
१६४ कुषा*-सी० दिशा, ओर।
-पु० दे० 'कुटीरशिल्प'। कुच-पु० [सं०] स्तन, उरोज ।
कुटीर-पु० [सं०] कुटी, कुटिया। -शिल्प-पु० (कॉटेज कुचकुचा*-वि० खानेमें कच्चा लगनेवाला, पिचपिचा। । इंडस्ट्री) वह छोटा उद्योग या धंधा जो अपने घरपर ही कुचकुचाना-स० क्रि० बार-बार हलके हाथों कोंचना; बैठकर किया जा सके और जिसके लिए बड़े-बड़े यंत्रों थोड़ा कुचलना।
आदिकी आवश्यकता न हो। कुचना*-अ० क्रि० सिकुड़ना, संकुचित होना।
कुटुब-पु० [सं०) बाल-बच्चे, संतान; कुनबा, परिवार । कुचलना-स० क्रि० किसी भारी चीजसे जोरसे दबाना, कुटुबिक, कुटुंबी(बिन्)-पु० [सं०] कुनबे, बाल-बच्चेमसलना; रौंदना।
बाला; कुटुंबका व्यक्ति देख-भाल करनेवाला (ला०)। कुचला-पु० एक पेड़ और उसका बीज जो विष है।
कुटुम* -पु० दे० 'कुटुंब'। -कबीला-पु० बाल-बच्चे । कुचाग्र-पु० [सं०] स्तनका अग्रभाग।
कटौनी -स्त्री० धान कुटनेका काम, कृटनेकी उजरत । कुचाह*-स्त्री० अमंगल बात, संवाद ।
-पिसौनी-स्त्री० कूटने पीसनेका काम । कुच्छित*-वि० दे० 'कुत्सित'।
कुट्ट(हिनी-स्त्री० [सं०] कुटनी। कुछ-वि० थोड़ासा, तनिक । सर्व० कोई चीज ( कुछ देते- कुट्टनीयता, कुट्यता-स्त्री० [सं०] (मैलिऐबिलिटी) कूटकर खिलाते हो?); कोई बड़ी बात, काम (कुछ कर दिखाना); फैलाये जाने योग्य होनेका गुण या विशेषता । कोई अनुचित, अनिष्ट बात (कुछ कर बैठना, कह देना)। कुट्टमित-पु० [सं०] नायिकाभेदमें माने हुए स्त्रियोंके -एक-वि० थोड़ासा । -कुछ-अ० थोड़ा, किसी कदर । ११ हावोंमेंसे एक-सुखानुभवके समय बनावटी दुःख-चेष्टा। मु०-कर देना-जादू-टोना कर देना। -कर बैठना- कुट्टी-स्त्री. चारेको छोटे-छोटे टुकड़ों में काटनेकी क्रिया; कोई अनुचित, अनिष्ट बात कर डालना। -कहना-कोई| बारीक काटा हुआ चारा लड़कोंका खेलमें किसी साथीसे कंड़ी बात कहना। -का कुछ-उलटा, औरका और । मैत्री-भंग; कूटा और सड़ाया हुआ कागज। मु०-करना-खा लेना-जहर खा लेना। -गुड़ ढीला, कछ | चारा काटना; मित्रता भंग करना। बनिया,-सोना खोटा, कुछ सोनार-दोष दोनों ओर | कुठला-पु० अनाज रखनेके लिए मिट्टीका बना बड़ा पात्र । है। -न चलना-वश न चलना। -न पूछिये-कहनेकी कुठार-पु० [सं०] कुल्हाड़ी, फावड़ा; नाश करनेवाला।बात नहीं; क्या कहना, क्या बात है। -लगाना,- -पाणि-वि० जिसके हाथमें कुठार हो । पु० परशुराम । समझना-( अपने आपको) बड़ा समझना, अपने धन, कुठाराघात-पु० [सं०] कुल्हाड़ीका धाव; घातक चोट । बल आदिका गर्व करना। -हो-चाहे जो हो। -हो कुठारी-पु०भंडारी स्त्री० नाश करनेवाली; [सं०] कुल्हाड़ी। जाना-रोग, प्रेतबाधा आदि हो जाना।
कठाली-त्रा० सोना-चांदी गलानेकी धरिया। कुटंत*-स्त्री० मार पड़ना, पिटाई ।
कुड़बुड़ाना-अ० क्रि० भीतर ही भीतर कुढ़ना,झंझलाना। कुट-पु० कूटा हुआ टुकड़ा; [सं०] गढ़, किला; घर; कलस; कुडमल-पु० दे० 'कुटमल' ।
हथौड़ा; वृक्षः पर्वत । -ज-पु० कुरैया, इंद्रजौ अगस्त्य । कुड़री-स्त्री० इंदुरी; नदीके घुमावसे घिरी हुई जमीन । कुटका-पु० छोटा टुकड़ाकशीदेमें काढ़ा हुआ तिकोना बटा। कुडव-पु० [सं०] १२ मुट्ठीके बराबर अन्नकी माप । कुटकी-स्त्री० एक पौधा; एक छोटा कीड़ा जो मच्छरकी
कुड़ा-पु० कुरैया। तरह काटता है।
कडक-पु० एक प्राचीन बाजा । स्त्री० अंडा न देनेवाली कुटनपन, कुटनपना, कुटनपेशा-पु० कुटनीका काम या| मुगी । वि० व्यर्थ; खाली । पेशा; झगड़ा लगानेका काम ।
कुडमल-पु० [सं०] खिलती हुई कली; एक नरक । कुटनहारी-स्त्री० धान कूटनेवाली स्त्री।
कुढ़न-रूपी० कुढ़नेका भाव, खीझ दूसरेके दुःख और उसके कुटना-पु० स्त्रियोंको फुसलाकर परपुरुषसे मिलनेवाला; निवारणमें अपनी विवशताकी अनुभूतिसे होनेवाला
चुगलखोर, कूटनेका औजार । अ० क्रि० कूटा जाना। मनस्ताप । कुटनाना-स० क्रि० किसी स्त्रीको बहकाकर व्यभिचारके कढ़ना-अ०कि० भीतर ही भीतर जलना, खीझना, चिढ़ना; मार्गपर ले जाना।
मन-ही-मन दुःखी होना, संतप्त होना । कुटनापा-पु० कुटनीका काम, पेशा।
कुढ़ाना-स० क्रि० चिढ़ाना, खिझाना; जलाना । कुटनी-स्त्री० किसी स्त्रीको बहका-फुसलाकर परपुरुषसे कुतका-पु० सोंटा; गतका; अँगूठा । मिलानेवाली स्त्री, कुट्टनी; झगड़ा लगानेवाली, चुगली कुतना-अ० क्रि० कृता जाना। खानेवाली स्त्री।
कुतरन-स्त्री० कुतरा हुआ टुकड़ा। कटवाना-स० क्रि० कूटनेकी क्रिया दूसरेसे कराना। कुतरना-सक्रि० दाँतोंसे किसी चीजका कुछ अंश काट कुटाई-स्त्री० कूटनेका काम; कूटनेकी उजरत; + पिटाई। लेना; किसीको मिलनेवाली रकममेंसे कुछ काट लेना। कुटिया-स्त्री० घास-फूसका बना छोटा घर, कुटी । कुतवार-पु० कृत करनेवाला; * दे० 'कोतवाल' । कुटिल-वि० [सं०] टेढ़ा; छली, चालबाज; दुष्ट, खोटा। कुटिलता-स्त्री० [सं०] टेढ़ापन; खुटाई ।
कुतुब-पु० [अ०] किताबका बहुवचन । -खाना-पु० कुटिलाई*--स्त्री० कुटिलता।
पुस्तकालय । फरोश-पु० किताब बेचनेवाला । कुटी-स्त्री० [सं०] कुटिया, झोपड़ी; श्वेत कुटज ।-शिल्प कुतुब-पु० [अ०] ध्रुव तारा । -नुमा-पु० एक यंत्र
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जिसकी सुईका एक सिरा सदा उत्तरी ध्रुवकी ओर रहता है । कुतूहल - पु० [सं०] किसी वस्तु या व्यक्तिको देखनेकी उत्कट इच्छा, उत्सुकता; अचंभा; क्रीड़ा । कुतूहली (लिन्) - वि० [सं०] कुतूहलयुक्त; उत्सुक । कुत्ता - पु० भेड़िये, स्यार आदिको जातिका एक मांसभक्षी जानवर जो अब अधिकांशमें पालतू पशु बन गया है, श्वान; बंदूकका घोड़ा; करगहने में लगा हुआ लकड़ीका टुकड़ा जिसे गिरा देनेसे दरवाजा बाहर से नहीं खुल सकता, बिलैया; तुच्छ, क्षुद्रजन (ला० ); पेटका गुलाम (ला० ) । मु० कुत्तेका काटना - सनक जाना, पागल हो जाना (मुझे कुत्तेने नहीं काटा है जो अमुक बात करूँ) । - की दुम कभी सीधी नहीं होती- प्रकृतिगत खुटाईपर सम झाने-बुझानेका कोई असर नहीं होता । की नींदऐसी नींद जो जरासे खटकेसे खुल जाय । की मौत मरना -बड़ी दुर्दशा के साथ मरना । - के पाँव जानाबहुत तेज दौड़ते हुए जाना ।
कुत्सा - स्त्री० [सं०] निंदा, गर्हणा ।
कुत्सित - वि० [सं०] निंदित, नीच, गर्हित |
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कुदकना - अ० क्रि० कूदना ।
कुदक्कड़ - वि० कूदनेवाला |
कुदरत - स्त्री० [अ०] ईश्वरीय शक्ति, प्रकृति; शक्ति, सामर्थ्य । कुदरती - वि० [अ०] प्राकृतिक, असली |
कुदरा * - पु० कुदाल |
कुदलाना * - अ० क्रि० कूदते हुए चलना ।
कुदान - स्त्री० कूदने की क्रिया; छलांग; कूदनेका स्थान । कुदारी - स्त्री० दे० ' कुदाली' |
कुदाल, कुदाली - स्त्री० मिट्टी खोदनेका एक औजार । कुनकुना - वि० थोड़ा गरम ।
कुनना - स० क्रि० खरादना ।
कुनबा - पु० कुटुंब, परिवार ।
कुनबी - पु० दे० 'कुमी ।
कुनह - पु० संचित वैर, द्व ेष, शत्रुता ।
कुनही - वि० कुनह रखनेवाला ।
कुनाई - स्त्री० लड़की चीरने, खरादने आदि से निकलनेवाला चूर; कोयलेका चूर; (बरतन ) खरादनेका काम या मजदूरी । कुनित * - वि० बजता, झनकार करता हुआ, कणित । कुनेरा - पु० खरादनेवाला, खरादी ।
कुनैन - स्त्री० [अ० किनीन ] एक कड़वा सत जो प्रायः मलेरिया ज्वर में दिया जाता है ।
कुपना* - अ० क्रि० दे० 'कोपना' ।
कुपित - वि० [सं०] कोपयुक्त, क्रुद्ध, विकृत, बिगड़ा हुआ (दोष) । कुप्पा - पु०चमड़े का बना गोल आकारका पात्र जिसमें घीया तेल रखते हैं । मु० - होना - सूजना; मोटा होना; रूठना । कुप्पी - स्त्री० छोटा कुप्पा |
कुकुर* - पु० दे० 'कुफ' ।
कु. क्र- पु० [अ०] न मानना; ईश्वर के अस्तित्व से इनकार, नास्तिकता; हठ, दुराग्रह; कृतघ्नता ।
. कुप्रल - पु० [अ०] ताला ।
कुबंड * - पु० कोदंड, धनुष् । वि० विकलांग | कुब - ५० दे० 'कूबड़' ।
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कुतूहल - कुमेरु
कुबजा* - स्त्री० दे० 'कुब्जा' ।
कुबड़ा - वि० जिसकी पीठ टेढ़ी हो गयी हो; टेढ़ा | पु० टेढ़ी पीठवाला आदमी ।
कुबड़ी - स्त्री० टेढ़ी पीठवाली स्त्री; वह छड़ी जो सिरेपर या बीचसे टेढ़ी हो ।
कुबत* - स्त्री० दे० 'कु' के साथ |
कुबरी - स्त्री० कंसकी दासी कुब्जा; कैकेयीकी दासी मंथरा; दे० 'कुबडी' |
कुबेर- पु० [सं०] एक देवता जो उत्तर दिशा के अधिष्ठाता और धन-समृद्धि के स्वामी माने जाते हैं, यक्षराज । कुबेराचल, कुबेराद्रि- पु० [सं०] कैलास पर्वत । कुब्जा - स्त्री० [सं०] कंसकी कुत्री दासी जिसकी पीठ कृष्णने सींधी कर दी थी ।
कुब्बा - पु० डिल्ला ।
कुमठी* - स्त्री० पतली, लचीली टहनी । कुमइत* - पु०, वि० दे० ' कुम्मैत' ।
कुमक- स्त्री० [फा०] सहायता; किसी सेना के सहायतार्थ भेजी हुई सेना ।
कुमकी - स्त्री० सिखायी हुई हथिनी जिससे हाथियोंके पकड़नेमें सहायता ली जाती है । वि० कुमकका । कुमकुम - ५० केसर; कुमकुमा ।
कुमकुमा- पु० लाखका बना पोला लड्डू जिसमें अबीरगुलाल भरकर होली में एक दूसरेको मारते हैं; कांचका बना पोला गोला जिसकी माला बनती या सजावटके काम आता है ।
कुमाच - पु० एक तरहका रेशमी कपड़ा; केवांच । कुमार - पु० [सं० ] वेदा, लडका; पांच वर्ष से कम उम्रका लड़का युवावस्था या उससे पहलेकी अवस्थाका पुरुष; राजकुमार; युवराज; कात्तिकेयः तोता; सिंधु नद; वरुण वृक्षः मंगल ग्रह; खरा सोना । वि० अविवाहित, कुँआरा । - तंत्र - ५० आयुर्वेदका वह भाग जिसमें बाल-रोगोंका निदान और चिकित्सा हो । भृत्या - स्त्री० प्रसव करानेकी विद्या; गर्भिणी या नवजात शिशुकी परिचर्या । - वाहन, - वाही ( हिन्) - ५० मयूर । छत-पु० आजीवन ब्रह्मचर्य पालनका व्रत ।
कुमारिका - स्त्री० [सं० ] कुमारी |
कुमारी - स्त्री० [सं०] १० से १२ बरसतककी कन्या; कुँआरी कन्या; लड़की; दुर्गा; पार्वती; सीता; भारतवर्ष के दक्खिनी छोरपरका अंतरीप; धीकु.आर; बड़ी इलायची | वि० अविवाहिता, कुँआरी (लड़की) । - पुत्र- पु० कर्ण । - पूजन- पु० एक रस्म जिसमें देवीका पूजन कर कुमारी लड़कियोंको भोजन कराया जाता है । कुमुद - पु० [सं०] कुई; रक्तकमल; चाँदी; विष्णु कपूर; चन्द्र (?) । - कला - स्त्री० चंद्रकला । - किरण - स्त्री० चंद्रकिरण । - नाथ, - पति, - बंधु,-बांधव, सुहृद् - पु० चंद्रमा ।
कुमुदिनी - स्त्री० [सं०] कुईका पौधाः कुमुदोंसे भरा हुआ तालाब आदि; कुमुद पुष्पोंका समूह । नाथ, - पतिपु० चंद्रमा ।
कुमेरु - पु० [सं०] दक्षिणी ध्रुव ।
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कुमोदनी-कुल कुमोदनी, कुमोदिनी-स्त्री० दे० 'कुमुदिनी'। के लिए बनाया गया चबूतरा पीढ़ी, पुश्त ।-नामा-पु० कुम्मैत-पु० [फा०] स्याही मायल लाल रंगका घोड़ा। वंशवृक्ष । मु०-देना-आदर करना, इज्जत देना। वि० कुम्मैत रंगका।
कुरा-पु० पुराने फोड़े में पड़नेवाली गांट; * कटसरैया। कुम्मैद*-पु०, वि० दे० 'कुम्मैत' ।
करान-पु० [अ०] मुसलमानोंका धर्मग्रंथ । कुम्हड़ा-पु० एक प्रसिद्ध बेल और उसका फल, काशीफल। कुराहर*-पु० कोलाहल ।
-(ड)बतिया*-स्त्री० बहुत ही कमजोर बेजान चीज । कुरिया -स्त्री० दे० 'कुटिया'; छोटा गांव; ढेर, राशि । कुम्हड़ौरी-स्त्री० रेते हुए सफेद कुम्हड़े (पेठे)को पीठीमें कुरियाल-स्त्री० पक्षियोंका मौजमें पंख खुजलाना, फुर• मिलाकर बनायी हुई बरी ।
हरी लेना। कम्हलाना-अ० क्रि० मुरझाना, ताजगीका न रहना । कुरिहार*-पु० कोलाहल । कुम्हार-पु० मिट्टीके बरतन बनानेवाला, कुंभकार ।
कुरी-स्त्री० ढेर, राशि; खंड, टुकड़ा टीला; * कुल,घराना। कुम्ही*-स्त्री० दे० 'कुंभी' ।
कुरु-पु० [सं०] एक चंद्रवंशी राजा जिसके वंशज कौरव कुरंग-पु० बुरा हाल बुरा लक्षण; [सं०] हिरन तामड़े कहलाये दिल्लीके आसपासका देश जिसपर कुरुवंशियोंका रंगका हिरन । वि० खराब रंगका। -नयना,
शासन था। -क्षेत्र-पु० दिल्लीके पच्छिम करनाल जिलेनयनी,-लोचना-वि० स्त्री० हिरनकीसी आँखोंवाली।। का एक मैदान जहां कीरवा-पांडवों में संग्राम हुआ था।
-नाभि,-सार-पु० कस्तूरी। -लांछन-पु० चंद्रमा। -खेत*-पु० दे० 'कुरुक्षेत्र' । -राज-पु० दुर्योधन । कुरंगक, कुरंगम-पु० [सं०] मृग ।
कुरुम*-पु० दे० 'कृर्भ'। कुरंगिन-स्त्री० हिरनी।
कुरेदना-स० क्रि० खुरचना, करोदना । कुरंट, कुरंटक-पु० [सं०] पीली कटसरैया।
कुरेदनी-स्त्री० नोकदार छह-जैसी चीज जिसमे भट्रेकी कुरंडक-पु० [सं०] पीली कटसरैया।
आग खुलेड़ते हैं। कुरकी-स्त्री० दे० 'कुकी'।
कुरेर*-स्त्री० किलोल, क्रीड़ा। कुरकुट-पु० छोटा टुकड़ा; * कुक्कुट, मुर्गा ।
कुरेलना-स० क्रि० दे० 'कुरेदना' । कुरकुर-पु० खरी चीजोंके दबकर टूटनेका शब्द । दुरैना*-२० क्रि० ढालना, गिराना ढेर लगाना । पु० कुरकुरा-वि० ( खरी, सिंकी या तली हुई चीज) जिसे राशि, ढेर । तोड़ने या चबानेसे चुरमुरकी आवाज निकले। . करीना-स० वि० ढेर लगाना, राशि करना। कुरकुराहट-स्त्री० कुरकुरी चीजके टूटनेकी आवाज । क्रक-पु० त०] रोकना; माल-जायदादकी रोक, जन्ती । कुरकुरी-स्त्री० घोड़ेकी एक बीमारी; कोमल अस्थि ।
-अमीन-पु० माल कुर्क करनेवाला अहलकार । कुरता-पु० कमीजके ढंगका एक पहनावा ।
क़ी-स्त्री० [तु०] देन, जुर्माने आदिकी वसूलीके लिए कुरती-स्त्री० स्त्रियोंका एक पहनाव।।
माल या जायदादका जब्त किया जाना, आसंजन । कुरना-स० क्रि० ढेर लगाना; एक बारगी उझल देना। कर्बानी-स्त्री० [अ०] दे० 'कुरबानी'।
* अ० कि० ढेर लगना; उझल दिया जाना; दे० कर्मी-पु० एक कृषिजीवी हिदू जाति, नवी । ''कुरलना'।
कुर्सी-स्त्री० दे० 'कुरसी'। कुरब, कुरबक-पु० [सं०] लाल कटसरैया; आक ।
कुलंज, कुलंजन--पु० [सं०] एक पौधा। करबान-पु० [अ०] बलि, निछावर ।
कुल-वि० सब, सारा । पु० [सं०] वंश, घराना; गोत्र, करबानी-स्त्री० [अ०] (मुसलमानोंका) बकरीदके दिन उच्च कुल; एक जातिवालोंका समूह, समुदाय; जाति;
ईश्वर-प्रीत्यर्थ पशु-वलि करना; पशुबलि; आत्मत्याग ।। शिल्पियों-व्यापारियोंका संघ, श्रेणी; कुलीनतंत्र राज्य कुरमा*-पु० कुटुंब, परिवार ।
घर, आवास; जनपद । -कंटक-पु० अपने बुरे कार्योंसे कुरर-पु० [सं०] क्रीच, कराकुल; एक तरह का गिद्ध। कुलके लोगोंको दुःखी करनेवाला। -कलंक-पु० कुलमें कुररा-पु. क्रौच; टिटिहरी ।
दाग लगानेवाला,कुलकी मान-प्रतिष्ठाका नाश करनेवाला । कुररी-स्त्री० [सं०] भादा कुरर; एक छंद ।
-कानि-स्त्री० [हिं०] कुलकी मर्यादा। -ज,-जातकुरलना*-अ० कि० कलरव करना-'खुदहिं कुरल हिं । वि० ऊँचे कुलमें उत्पन्न, कुलीन । -जा-स्त्री० कुलवधू । जनु सर हंसा-प० ।
-तारन-वि० [हिं०] कुलको तारनेवाला; बहुत बड़ा कुरला-पु० कुल्ला क्रीड़ा।
पुण्य करनेवाला । -दीप,-दीपक-वि० जिससे कुलका कुरव-पु० [सं०] लाल फूलवाली कटसरैया; आक; गीदड़। नाम उजागर हो, कुलभूषण । -देव-पु० वह देवता वि० कर्कश आवाजवाला ।
जिसकी पूजा कुलविशेषमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी होती आ रही कुरवना-स० कि० ढेर लगाना; एक साथ अधिक परिमाण- हो। -देवता-पु० कुलदेव । -द्वम-पु० बेल, बरगद, में गिराना।
पीपल, गूलर, नीम, आमला, लसोड़ा, इमली, करंज कुरवारना-स० क्रि० खोदना; खरोंचना ।
और कदंब-ये दस प्रधान वृक्ष । -धर्म-पु. कुलका कुरसी-स्त्रो० ऊँचे पायेका एक आदमीके बैठनेका आसन | क्रमागत धर्म; कुलरीति । -नायिका-स्त्री० वह स्त्री जो जिसमें पीठके सहारेके लिए पटरीसी और अक्सर हाथोंके वाममागियोके चक्रमें पूजी जा सकती हो-नटी, कपासहारेके लिए बाजू भी होते हैं; मकानकी सतह ऊँची करने लिनी, धोविन, वेश्या, नाइन, ब्राहाणी, शूद्रा, अहीरिन
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कुलक-कुशल और मालिनमें से कोई। -पति-पु० कुलका मुखिया | कुलाँट-स्त्री० दे० 'कुलाँच';+ कलाबाजी। वह ब्रह्मर्षि जो १० हजार मुनियों या विद्यार्थियोंका कुलाचल, कुलाद्वि-पु० [सं०] दे० 'कुलपर्वत' । भरण-पोषण करता हुआ उन्हें पढ़ायः (वाइस-चांसलर) कुलाचार-पु० [सं०] कुलकी रीति-नीति; कुलधर्म | विद्यापीठ या विश्वविद्यालयका प्रधान अधिकारी, जिसका कुलाधि*-स्त्री० पाप । पद अधिपति (चांसलर )के बाद ही माना जाता है। कुलाबा-पु० किवाड़को चौखटसे जकड़नेका काँटा; मछली -परंपरा-स्त्री० वंश परंपर।। -पर्वत-पु० भारतवर्ष के | फंसानेका काँटा; मोरी। इन ७ प्रधान पर्वतों में से कोई-महेंद्र, मलय, सह्य, शक्ति, कुलाल-पु० [सं०] कुम्हार, बनमुर्गा; उल्लू । ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र। -पूज्य-पु० कुल-परंपरासे कुलाह-पु० [सं०] काले घुटनोंवाला भूरे रंगका घोड़ा पृजा-सम्मानका अधिकारी । -बोरना-वि. कुलका [फा०] ऊँची नोककी टोपी जिसे ईरान-अफगानिस्तानके नाम डुबानेवाला, नालायक । -वधू-स्त्री० भले घरकी लोग पगड़ीके नीचे पहनते हैं; राजमुकुट, ताज; टोपी। स्त्री। -वृद्ध-पु० घरका बड़ा-बूढ़ा, बुजुर्ग । -श्रेष्ट- कुलाहल*-पु० दे० 'कोलाहल'। वि० कुल में योग्यतम । पु० कायस्थोंकी एक उपजाति । कुलिंग-पु० [सं०] चिड़िया गौरा एक तरहका चूहा । --सचिव-पु० ( रजिस्ट्रार ) दे० 'पीठस्थविर'। -स्त्री- कलिक-वि० [सं०] कुलीन । पु० शिल्पि-श्रेणीका प्रधान, स्त्री० दे० 'कुलवधू'।
कुलका प्रधान । कुलक-पु० [सं०] शिल्पियोंकी श्रेणीका मुखिया; बाँबी; कुलिश-पु० [सं०] इंद्रका वज्र; बिजली; हीरा; कुठार । परवलकी लता; कुचिला; पाँच पोंका समूह; सदृश एवं -धर-पाणि-पु० इंद्र। सम्बद्ध वस्तुओंका समूह (सेट) । वि० अच्छे कुलका। कली-पु० [तु.] गुलाम; बोझ ढोनेवाला, मजदूर । कुलकना-अ० क्रि० प्रसन्न होना, किलकना ।
-कबारी-पु० निम्न श्रेणीके लोग। कुलकुलाना-अ० क्रि० कुलकुलकी आवाज निकलना।
कुलीन-वि० [सं०] ऊंचे कुलमें जनमा हुआ; शुद्ध; यभिचारी, लंपट मि०] अनौरस पत्र-दत्तक, निर्मल । -तंत्र-पु० (आलिगकी) उच्च कुलके व्यक्तियों गोलक आदि।
द्वारा शासन चलानेकी.पद्धति । कुलटा-स्त्री० [सं०] व्यभिचारिणी, अनेक पुरुषोंसे प्रेम कुलुफ-पु० ताला, कुपल । करनेवाली स्त्री।
कुलू, कुल्त-पु०[सं] पश्चिमोत्तर भारतका एक जन-पद। कुलत्थ-पु., कुलस्थिका-स्त्री० [सं०] कुलथी।
कुलेल-सी० दे० 'कलोल' । कुलथी-स्त्री० उरदकी जातिका एक मोटा अन्न ।
कलेलना*-अ० क्रि० कलोल करना । कुलना-अ० कि० दर्द करना, टीसना ।
कुल्माष-पु० [सं०] कुलथी; चना आदि द्विदल । कुलफ*-पु० दे० 'कुफ्ल' ।
कुल्या-स्त्री० [सं०] नहर नाली; छोटी नदी; कुलीन स्त्री। कुलात-स्त्री० [अ०] मनोव्यथा, रंज; विकलता। कुल्ला-पु० गरारा, कुल्ली; काकुल; घोड़ेका एक रंग या कुलफा-पु० एक पौधा जिसका साग खाया जाता है उस रंगका धोड़ा। डोलके आकारका आला जिसमें मलाई, संतरे आदिकी कुल्ली-स्त्री० मुँह साफ करने के लिए मुँहमें पानी भरकर बरफ जमाते हैं।
फेंकना; पानीका एक घूट । कुलफ़ी-स्त्री० वह नली जैसा साँचा जिसमें दूध, मलाई | कुल्हड़-पु० पुरवा, मिट्टीका छोटा जलपात्र ।
आदि भरकर बरफसे जमाते है। उक्त साँचे में भरकर कुल्हाड़ा-पु० लकड़ी चीरने, काटनेका एक औजार। जमायी हुई चीज; पीतल या ताँबेकी नली जो नैचे और | कुल्हाड़ी-स्त्री० छोटा कुल्हाड़ा। निगालीको जोड़ती है।
कुल्हिया-स्त्री० छोटा पुरवा; घरिया । मु०-में गुड़ कुलबुलाना-अ०क्रि० कीड़ों, मछलियों आदिका एक साथ । फोड़ना-छिपाकर काम करना। हिलना-डोलना; हाथ-पाँव हिलाना; सोतेमें हिलना; कुवलय-पु०[सं०] कुई नीली कुई नील कमल; भूमंडल । (हाथ-पाँवमें) खुजली-सी होना; बेचैनी प्रकट करना। कुवलयापीड़-पु० [सं०] एक हस्ति-रूपधारी असुर भो कुलबुलाहट-स्त्री० कुलबुलानेका भाव ।
कृष्णके हाथों मारा गया। कुलवंत-वि० कुलीन ।
कुवलयिनी-स्त्री० [सं०] नीली कुई का पौधा नीली कुई के कुलवंती-वि० स्त्री० कुलीन और सती (स्त्री)।
फूलोंका समूह। कुलवान(वत्)-वि० [सं०] कुलीन । स्त्री० 'कुलवती'।] | कुवाँ-पु० दे० 'कु आँ' । कुलह-स्त्री० टोपी शिकारी चिड़ियों की आँखें ढक रखने-कश-पु० [सं०] कड़ी और नुकीली पत्तियोंवाली एक घास वाली टोपी, अँधियारी ('कुलाह'का लघु रूप)।
जो यश, पूजन आदि धर्मकृत्योंकी आवश्यक सामग्री है, कुलहा-पु० दे० 'कुलह'।
दर्भ रामके ज्येष्ठ पुत्र; कुशद्वीप; जल; हरिसको जुए में कुलही*-स्त्री० बच्चोंको टोपी, कनटोप।
जोड़नेवाली रस्सी,नाधा; फाल । विन्दुष्ट, विक्षिप्त । कुलांगना-स्त्री० [सं०] कुलवधू ।
-ध्वज-पु० राजा जनकके छोटे भाई । -मुद्रिकाकुलांगार-पु० [सं०] कुलका नाश करनेवाला; कुल-कलंक । । स्त्री० पवित्री, पैती। कुलाँच-स्त्री० छलाँग, चौकड़ी (भरना, मारना)। कुशल-वि० [सं०] चतुर, होशियार; कार्यविशेषमें निपुण कलाँचना-अ० कि० चौकड़ी भरना; दौड़-धूप करना। (नीतिकुशल, कर्मकुशल); उचित प्रसन्न । स्त्री० क्षेम,
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कुशलाई
थना
मंगल, खैरियत, सलामती; भलाई; चातुर्य । -क्षेम-पु० आनंद-मंगल; सुख-स्वास्थ्य - प्रश्न- पु० कुशल-मंगल, खैरियत पूछना । - मंगल- पु० कुशल क्षेम, खैरियत । कुशलाई, कुशलात * - स्त्री० दे० 'कुसलाई' | कुशा - स्त्री० [सं०] रस्सी; लगाम; कुशः काठका तख्ता । कुशाग्र - वि० [सं०] कुशकी नोक जैसा तीक्ष्ण, तेज । - बुद्धि-वि० पैनी, तीक्ष्ण बुद्धिवाला ।
कुशादगी - स्त्री० [फा०] कुशादा होना; फैलाव, विस्तृति । कुशादा - वि० [फा०] फैला हुआ; लंबा-चौड़ा; खुला हुआ । कुशासन - पु० [सं०] कुशाका बना हुआ आसन दे० 'कु' के साथ ।
कुशिक - पु० [सं०] एक राजा जो विश्वामित्रके दादा, गाधिके पिता थे; फाल; तेलकी तलछट | कुशीनगर - पु० [सं०] बुद्धका निर्वाणस्थल, कसया । कुशीलव- पु० [सं०] भाट, चारण; नट; गायक; वाल्मीकि । कुशेश* - पु० दे० 'कुशेशय' । कुशेशय - पु० [सं०] कमल; कुई; सारस । कुशोदक- पु० [सं०] कुश सहित जल । कुश्तमकुश्ता - पु० गुत्थमगुत्था, कुश्ती ।
कुश्ता - पु० [फा०] धातु या औषधद्रव्यका भस्म; लाश । कुश्ती - स्त्री० [फा०] दो आदमियोंका एक दूसरेको पछानेके लिए गुथकर लड़ना, मलयुद्ध । - बाज़- वि० कुश्ती लड़नेवाला । मु० - खाना - कुश्ती में हार जाना । -मारना - कुश्ती जीतना, विपक्षीको पछाड़ देना । कुष्ठ-पु० [सं०] कोढ़; कूट; कुड़ा; एक विष । कुष्ठालय-पु० [सं०] (लेपर ऐसाइलम ) कोढ़ियोंकी देखरेख और सहायताकी दृष्टिसे बनाया गया निवास स्थान । कुष्ठी (ष्ठिन् ) - वि० [सं०] कुष्ठ रोग से पीड़ित, कोढ़ी । कुष्मांड, कुष्मांडक - पु० [सं०] कुम्हड़ा | कुसल * - वि०, स्त्री० दे० 'कुशल' । कुसलई * - स्त्री० कुशलता । कुसलाई ** - स्त्री० कुशलता; कुशल-क्षेम । कुसलात * - स्त्री० कुशल- समाचार | कुसली * - स्त्री० आमकी गुठली; गोझा । वि० दे० ' कुशली' । कुसवारी - पु० रेशमका जंगली कीड़ा; रेशमका कोया । कुसी - स्त्री० हलकी फाल । कुसीद - पु० [सं०] सूदपर रुपये देना, महाजनी; सूदपर लिया हुआ कर्ज; सूदखोर सूद । - जीवी (विन्) - पु० महाजनी करनेवाला, सूदखोर ।
कुसुंभ - पु० [सं०] कुसुमका फूल; केसर; सोना । कुसुंभा- पु० कुसुमका रंग; एक मादक द्रव्य । कुसुंभी - वि० कुसुमके रंगका ।
-
कुसुम-पु० [सं०] फूल; स्त्रीका रज; आँखोंका एक रोग; एक पौधा जिसके फूल लाल, गुलाबी, पीले आदि रंगके होते हैं; अग्निका एक रूप । -चाप - धन्वा (न्वन्) पु० कामदेव । - पंचक - पु० कामदेव के बाणरूप पाँच फूल । - पुर- पु०पाटलिपुत्र, पटना । - बाण, -शर, सायकपु० कामदेव | - रेणु - पु० पराग - शयन- पु०, - शय्या - स्त्री० फूलोंकी सेज । - स्तबक - पु० फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता ।
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कुसुमांजलि - स्त्री० [सं०] फूलोंसे भरी अंजलि । कुसुमाकर - पु० [सं०] बाग; वसंत | कुसुमागम - पु० [सं०] वसंत । कुसुमाधिप, कुसुमाधिराज - पु० [सं०] चंपाका पेड़ । कुसुमायुध - पु० [सं०] कामदेव | कुसुमासव - पु० [सं०] शहद; फूलोंसे बनी शराब । कुसुमित- वि० [सं०] फूला हुआ, पुष्पित । . कुसूर - पु० [अ०] जुर्म, अपराधः भूल-चूक; कोताही, दोष । - मंद, -वार- वि० अपराधी; दोषी । कुसेस, कुसेसय * - पु० दे० 'कुशेशय' । कुस्टी * - पु० कोढ़ी |
कुहँ कुहँ - पु० दे० 'कुमकुम' |
कुह चा* - पु० कलाई ।
कुहक - स्त्री०मोर या कोयलका बोल । पु० [सं०] इंद्रजाल; धोखेबाजी; ठग, वंचक |
१६८
कुहकना - अ० क्रि० मोर, कोयल आदिका मीठी आवाज में बोलना, कृजना |
कुहकनी - स्त्री० कोयल ।
कुहकुह * - पु० कुंकुम; केसर ।
कुहना * - स० क्रि० कूटना, मारना 'कासी कामधेनु कलि कुहत कसाई हैं' - कविता० ।
कुहनी - स्त्री० बाहु और भुजाका जोड़ |
कुहर - पु० [सं०] छेद; कान या गलेका छेद; * कुहरा । कुहरा - पु० हवामें मिले हुए जलकण जो ठंडसे जमकर नीचे गिरते हैं ।
कुहराम - पु० कई आदमियोंका एक साथ रोना-पीटना, बावेला; कोलाहल |
कुहाड़ा ( रा ) - पु० कुल्हाड़ा ।
कुहाना * - अ० क्रि रूठना, नाराज होना ।
कुहासा * - पु० दे० 'कुहरा' |
कुही - स्त्री० बहरी । पु० एक तरहका घोड़ा ।
कुहु कुहू - स्त्री० [सं०] अमावास्या; कोयलकी कूक । - कंठ, मुख, रव - पु० कोयल । कुहुक-स्त्री० चिड़ियोंकी मधुर बोली, कूजन । - बान - पु० एक बाण जिसे चलाते समय आवाज निकलती है । कूँख+ - स्त्री० कोख ; पेट; काँखनेका शब्द । कूँच - स्त्री० लोहारोंकी बड़ी सँडसी; पैरकी मोटी नस । कूँचा - पु० बढ़नी; करछा ।
कूँची - स्त्री० छोटी बढ़नी; ब्रश; तूलिका; मिसरी जमानेकी कुल्हिया ; * ताली ।
कूज - पु० क्रौंच पक्षी ।
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कूजना * - अ० क्रि० दे० 'कृजना' ।
कुँड - स्त्री० लोहेकी टोपी; पानी निकाल नेका डोल जैसा एक बरतन; जोतनेसे बनी हुई गहरी लकीर; एक गहरा पात्र जो तबलेका बायाँ बनाने के काम आता है । कूँड़ा-पु० पानी रखनेका चौड़ा बरतन, कुंडा; गमला, कठौता; रोशनी करनेकी शीशेकी हाँड़ी । कूड़ी - स्त्री० पत्थरको कटोरी, पथरी; छोटी नाँद । कूँथना - अ० क्रि० पीड़ासे 'उह' की आवाज निकालना; दबी आवाज से कराहना; कबूतरोंका गुडरगू करना ।
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कूई-कृतांत कूई-स्त्री० दे० 'कुई।
कूतना-सक्रि० अंदाजा, तखमीना करना। कूक-स्त्री० कोयलकी बोली; घड़ी, बाजे आदिमें कुंजी देना। कूद-स्त्री० कूदनेको क्रिया, कुदान । -फाँद-स्त्री० कूकना-अ०क्रि० कोयलका बोलना, 'कुहू कुहू' करना। उछल-कूद। सक्रि० घड़ी या बाजे में ताली भरना ।
कूदना-अ०क्रि० उछलना; ऊँचाईसे उछलकर नीचे आना; कूकर-पु० कुत्ता ।-कोर-पु० कुत्तेके आगे डाली जाने- इतराना । स० क्रि० फाँदना, लाँधना । वाली जूठन, टुकड़ा तुच्छ वस्तु ।
कूप-पु० [सं०] कुआँ; गड्ढा; छेद; चमड़ेका बना तेलका कूका-पु० सिखोंका एक संप्रदाय; लंबी गहरी आवाज। कुप्पा ।-कच्छप,-मंडूक-पु० कुएँका कछुआ,"मेढका कूच-पु० [फा०] एकसे दूसरी जगह जाना, रवानगी; वह जो अपने स्थानसे कहीं बाहर न गया हो और जिसके मृत्युः परलोकयात्रा ।-ब-कृच-अ० मंजिलपर मंजिल ज्ञानकी सीमा बहुत संकुचित हो। -चक्र-यंत्र-पु० ते करते हुए। मु० (किसीके) देवता-कर जाना- पानी निकालनेकी चरखी । भौंचक्का रद्द जाना ।-का डंका बजना-(फौजका)रवाना कूब-पु० दे० 'कूबड़' । होना । -बोलना-रवानगीका हुक्म देना रवाना होना। कूबड़-पु० पीठकी हड्डीका इस तरह निकल आना कि कूचा-*पु० क्रौंच पक्षी-'बायें कुररी दहिने कूचा'-५०; वह टेढ़ी हो जाय । [फा०] गली, सँकरा रास्ता। -गर्दी-स्त्री० बेमतलब कूबरी-स्त्री० [सं०] दे० 'कुबरी' । इधर-उधर घूमते रहना, आवारागदी। -बंद-पु० बंद कूबा-पु० दे० 'कूबड़' । गली, वह गली जिसमें एक ही और रास्ता हो। कूर-वि० निर्दयः कर, मनहूस; निकम्मा; नालायका कूचिका-स्त्री० [सं०] कूँची; कुंजी।
कायर; मूर्ख; * मिथ्या। कूची-स्त्री० दे० 'कूची'।
कूरम*-पु० दे० 'कूर्म' । कूज, कूजन--पु० [सं०] पक्षीका कलरव ।
कूरा-पु० ढेर, राशि; भाग । वि० कुटिल; खराब । कूजना-अ० क्रि० मधुर ध्वनि करना ।
कूरी-स्त्री० छोटी राशि; * टीला, धुस । कूजा-पु.ल्हड़ाकुल्हड़में जमायी हुई मिसरी बेलेका फूल। कूर्चिका-स्त्री० [सं०] कूँची तसवीर बनानेकी कूँची; कुंजी। कजित-वि० [सं०] ध्वनित, गूंजा हुआ। पु० कूजन। कूर्म-पु० [सं०] कछुआ; विष्णुके दस अवतारों से दूसरा; कूट-पु० [सं०] छल, कपट, म्यान आदिमें छिपाया हुआ वह प्राण या वायु जिससे पलकें खुलती-मुंदती हैं । हथियार: जटिल प्रश्न; पहाड़की चोटी; सींग; राशि, ढेर | कूल-पु० [सं०] नदी आदिका किनारा, तट; सामीप्य; असत्य व्यंग्य; निहाई कीना; नगर-द्वार; गृह । वि० दहा तालाब; सेनाका पृष्ठभाग । * अ० पास । अचल; बनावटी; मिथ्यावादी । -कर्म (न्)-पु० छल, कूलवती-स्त्री० [सं०] नदी । धोखेबाजी। -नीति-स्त्रो० छल-कपटकी नीति, चाल- कूलिनी-स्त्री० [सं०] नदी। बाजी। -पणकारक-वि० जाली सिक्का आदि बनाने | कूल्हा-पु० कमरके दोनों ओरकी हड्डी । वाला । :-प्रश्न-पु० पहेली । -मुद्रा-स्त्री० जाली मुहर .कूवत-स्त्री० [अ०] शक्ति, बल । या आदेश (को०)। -युद्ध-पु० छल, धोखेकी लड़ाई, कूष्मांड-पु० [सं०] कुम्हड़ा; एक मंत्रकार ऋषि । अधर्मयुद्ध । -योजना-स्त्री० कुचक्र, पड्यंत्र । -लेख,- कूह-स्त्री० हाथीकी चिग्वाड़, चीख । लेख्य-पु० जाली दस्तावेज। -साक्षी (क्षिन)-पु० | कृच्छ्र-वि० [सं०] कष्टमय; कष्टसाध्य । पु० कष्ट; दुःखः झूठी गवाही देनेवाला । -साक्ष्य-पु० झूठी शहादत । कठिनाई; सांतपन प्रायश्चित्त, व्रतः पाप; मूत्रकृच्छ रोग। -स्थ-वि० चोटीपर, सबसे ऊपर अवस्थित; जो सदा एक कृत-वि० [सं०] किया हुआ; बनाया हुआ; पकाया हुआ। रूपमें स्थित रहे, अपरिणामी । पु० परमात्मा। -स्वर्ण- पु० काम; उपकार; कर्मफल । -काम-वि० जिसकी पु० खोटा, नकली सोना।
कामना पूरी हो गयी हो। -कारज*-वि० दे० 'कृतकूटना-स० क्रि० मूसल-मुंगरीसे किसी चीजको लगातार कार्य'। -कार्य-वि० जो अपना कार्य या अभीष्ट सिद्ध पीटना; सिल-चक्की आदिमें टाँकीसे दाँता निकालना, कर चुका हो, सफलमनोरथ । -कृत्य-वि० सफलमनोमारना-पीटना; बधिया करना । मु० कूट-कूटकर भरा रथ, कृतार्थ । -धन-वि० नेकी, उपकार न माननेवाला। होना-(किसी दोष या गुणकी) अतिशयता, अत्य- -[कृतघ्नता-स्त्री० एहसान न मानना ।-नताई*धिकता होना।
स्त्री० कृतघ्नता। -घ्नी*-वि० दे० 'कृतघ्न'। -ज्ञकूटायुध-पु० [सं०] छड़ी आदिके भीतर छिपाया हुआ वि० नेकी, उपकार माननेवाला, एहसानमंद । -दंड*हथियार।
पु० यमराज। -निश्चय-वि० जिसने किसी बातका कूटार्थ-पु० [सं०] जल्दी समझमें न आनेवाला, गूढ अर्थ । पक्का निश्चय कर लिया हो । -युग-पु० चारों युगोंमेंसे कूटू-पु० एक पौधेका बीज जो व्रतादिमें खाया जाता है।
पहला, सतयुग । -विद्य-वि० विद्वान् । -वीर्य-वि० कूड़ा-पु० धूल, राख आदि, बुहारन; रद्दी, निकम्मी वीर्यशाली, बली । पु० सहस्रार्जुनका पिता। -संकल्पचीजें। -करकट-पु० रद्दी, निकम्मी चीजें; कतवार । वि०जिमने कोई संकल्प, निश्चय किया हो। -ख़ाना-पु० कूड़ा फेंकनेकी जगह ।
कृतक-वि० [सं०] बनाया हुआ, बनावटी; अनित्य कूढ़-वि० मूर्ख, निर्बुद्धि । -मरज-वि० मंदबुद्धि । (न्या०)।-पुत्र-पु० गोद लिया हुआ पुत्र, दत्तक । कृत-स्त्री० संख्या, माप, तौल आदिका अंदाजा, तखमीना। कृतांत-वि० [सं०] अंत या निश्चय करनेवाला । पु०
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कृताकृत-आ
१७०
यम; देवता; पूर्वजन्म में किये हुए शुभाशुभ कर्म जिनका कृमि - पु० [सं०] कीड़ा; मकड़ा; चींटी; लाख । -कोश, - फल इस जन्म में प्राप्त हो; शनि । कोष -पु० रेशम के कीड़ेका कोया, ककूना । धन- वि० कीड़ोंका नाश करनेवाला । -ज- वि० कीड़ोंसे उत्पन्न | पु० रेशम; अगर । - जा - स्त्री० लाख | -फल- पु० गूलर । - रोग - पु० आँतों में कीड़े या केंचुए पैदा हो जाना। - शोधित दुग्ध - (पैस्टराइज्ड मिल्क) वह दूध जिसके कीटाणु विशेष प्रक्रिया द्वारा नष्ट कर दिये गये हों । कृश - वि० [सं०] दुबला, कमजोर; थोड़ा; अकिंचन । कृशता - स्त्री० [सं०] दुबलापन | कृशता ई * - स्त्री० दे० 'कृशता' | कृशरान्न - पु० [सं०] खिचड़ी | कृशांगी - स्त्री० [सं०] दुबली-पतली स्त्री; प्रियंगु लता । कृशानु - पु० [सं०] अग्नि; चित्रक | कृशित - वि० [सं०] क्षीणकाय, दुबला-पतला । कृशोदरी - वि० स्त्री० [सं०] पतली कमर वाली (स्त्री) । कृषक - पु० [सं०] हल जोतनेवाला, किसान; बैल; फाल । कृषाण - पु० [सं०] किसान, खेतिहर |
कृताकृत - वि० [सं०] किया और न किया हुआ; अंशतः किया हुआ ।
कृतात्यय- पु० [सं०] भोग द्वारा कर्मनाश (सांख्य०) । कृतापराध - वि० [सं०] अपराधी ।
कृतार्थ - वि० [सं०] कृतकार्य, सफलमनोरथ, संतुष्ट । कृति - स्त्री० [सं०] क्रिया; काम; रचना; जादू ; दो समान अंकोंका घात ( ग० ); २० की संख्या; वध । -स्वाम्यपु० ( कॉपीराइट) किसी लेख, पुस्तक, कविता, कहानी आदिको पुनः प्रकाशित करने, बेचने आदिका अधिकार । कृती ( तिनू ) - वि० [सं०] कृतकार्य; भाग्यवान्; जिसने अच्छे काम किये हों, पुण्यवान् ; कुशल; आज्ञाकारी । कृत्-वि० [सं०] करने, बनानेवाला; कर्ता (केवल कर्तृवाचक संज्ञा बनाने में व्यवहृत - जैसे 'ग्रंथकृत्', 'पुण्यकृत् ') । कृत्ति - स्त्री० [सं०] खाल; मृगचर्म; भोजपत्र; कृत्तिका नक्षत्र । - वास, - वासा (सस ) - पु० शिव । कृत्तिका - स्त्री० [सं०] २७ नक्षत्रों में से तीसरा । कृत्य - वि० [सं०] करने योग्य, कर्तव्य । पु० कर्तव्य कर्म; शास्त्रविहित कर्म ( पूजन, हवन आदि); काम । कृत्या - स्त्री० [सं०] काम; अभिचार; जादूगरनी; एक शक्ति या देवी जो अभिचार द्वारा किसीको मारनेके लिए अनुछान विशेषसे उत्पन्न की जाती है; कर्कशा स्त्री । कृत्याकृत्य - पु० [सं०] कर्तव्याकर्तव्य | कृत्रिम - वि० [सं०] बनाया हुआ, बनावटी; (माँ- बापकी स्वीकृति बिना ) गोद लिया हुआ । पु० पुत्रवत् पालित अनाथ बालक । - गर्भरोपण - पु० (आर्टिफिशल इन सेमिनेशन) पिचकारी आदिकी सहायतासे शुक्राणु भीतर प्रविष्ट कराकर गर्भस्थिति कराना, कृत्रिम उपायों द्वारा गर्भाधान कराना |
कृपालु - वि० [सं०] कृपायुक्त, दयालु ।
कृपिन* - वि०, पु० दे० 'कृपण' ।
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कृपिनाई * - स्त्री० कृपणता ।
कृपी - स्त्री० [सं०] कृपाचार्यकी बहन और द्रोणाचार्यकी पत्नी । - सुत - पु० अश्वत्थामा ।
कृषि - स्त्री० [सं०] जोतना बोना, खेती; जमीन जोतना । - कर्म (नू ) - पु० खेतीका काम । - कार - पु० कृषक | - मंत्र - पु० ( ट्रॅक्टर) पहियोंवाला एक तरहका इंजन जिसका प्रयोग कृषि संबंधी अनेक कार्यों में किया जाता है । - जीवी (विनू) वि० खेती से निर्वाह करनेवाला (किसान) । कृषिक - पु० [सं०] कृषक | वि० कृषि सम्बन्धी । कृषी - स्त्री० [सं०] खेत; * खेती, कृपि । कृषीवल - पु० [सं०] किसान, खेतिहर । कृष्ट-वि० [सं०] खींचा हुआ; जोता हुआ ।
कृदंत - पु० [सं०] धातु कृत् प्रत्यय लगानेसे बना शब्द । कृपण- वि० [सं०] सूम, कंजूस; नीच; क्षुद्र । पु० कंजूस आदमी । - बुद्धि-वि० छोटे दिलका, क्षुद्राशय । कृपणता - स्त्री० [सं०] कंजूसी; दैन्य । कृपन* - वि०, पु० दे० 'कृपण' । कृपनाई * - स्त्री० दे० 'कृपणता' । कृपया - अ० [सं०] कृपापूर्वक, कृपा करके ।
कृपा - स्त्री० [सं०] प्रत्युपकारकी अपेक्षा न रखते हुए परदुःख निवारणकी इच्छा, अनुग्रह, दया । -दृष्टि-स्त्री० कृपाभाव । - पात्र - वि० जो कृपाके योग्य हो, अनुग्रहभाजन | - सिंधु - वि० कृपाके समुद्र (भगवान्) । कृपाण - पु० [सं०] तलवार; छुरी; कटारी; एक दंडक वृत्त । कृपाणिका - स्त्री० [सं०] छोटी तलवार; कटारी ।
कृपाणी - स्त्री० [सं०] छोटी तलवार; कटार; कतरनी; छुरी । कृष्णाभिसारिका - स्त्री० [सं०] अँधेरी रात में अभिसार कृपाल * - वि० दे० 'कृपालु' ।
करनेवाली नायिका ।
कृष्ण-वि० [सं०] काला, श्याम; नीला; कुत्सित या पापकर्म करनेवाला, दुष्ट । पु० काला या गहरा नीला रंग; यदुवंशी वसुदेव और देवकीके पुत्र जो विष्णुके आठवें अवतार माने जाते हैं; परब्रह्मा काला हिरन कौआ; कोकिल; अशुभ या पापकर्म; अँधेरा पाख; कलियुग; वेदव्यास, अर्जुन; काला अगर; काली मिर्च, लोहा, सुरमा; करौदा; एक मंत्रकार ऋषि । - कर्म (नू ) - ५० काली करतूत, पापकर्म । - गिरि- पु० नीलगिरि । -चंद्रपु० वासुदेव । - जीरक- पु० स्याह जीरा । द्वैपायन० महाभारत और पुराणोंके रचयिता वेदव्यास । -धनपु० जुए आदिसे कमाया हुआ धन, पापकी कमाई । - पक्ष- पु० अँधेरा पाख; अर्जुन -फल- ५० करौदा । - सार - पु० कृष्ण मृग; थूहड़; शीशम; खैरका पेड़ । कृष्णा - स्त्री० [सं०] द्रौपदी; दक्षिण भारतकी एक नदी; काली दाख; काली पत्तियोंवाली तुलसी; पिप्पली; काला जीरा; अग्निकी ७ जिह्वाओं में से एक । कृष्णाजिन - पु० [सं०] काले मृगका चर्म ।
कृष्णाष्टमी - स्त्री० [सं०] भाद्र कृष्णा अष्टमी । कृष्ण - वि० [सं०] खेती करने योग्य (भूमि) (कल्टिवेबिल) । केंचुआ (वा) - पु० एक बरसाती कीड़ा जिसकी देह बिना हड्डी और लगभग एक बित्ता लंबी होती है; आँतों में पैदा हो जाने और मलके साथ बाहर आनेवाला कीड़ा ।
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कचुल-केश -छन्द-पु० वह छन्द जिसके चरणोंकी मात्राएँ बराबर जो पुराणों के अनुसार सहिकेय राक्षसका कबंध है और न हों, रबर छंद ।
जिसका सिर राहु हुआ; पुच्छल तारा; श्रेष्ठ ('रघुकुल. कैचुल-स्त्री० दे० 'केचुली।
केतु'); चमक किरण । कचुली-स्त्री० साँपकी त्वचा जो जाड़ेमें सूखकर अपने आप केतुमान(मत्)-वि० [सं०] ध्वजयुक्त चिह्वयुक्त तेजस्वी । खोलकी शकलमें गिर जाती है। मु०-झाड़ना-साँपका केतो*-वि० 'कितना' । केंचुली छोड़ना। -बदलना-केंचुली झाड़ना; वेशभूषा केदार-पु० [सं०] धानका खेत; कियारी; थाला; हिमालयबदलना।
की एक चोटी। -नाथ-पु० केदार पर्वतपर प्रतिष्ठित केंदु-पु० [सं०] तेंदूका पेड़।
एक शिवलिंग। कदू-पु० दे० 'केंदु'।
केदारा-पु० एक राग। केंद्र-पु० [सं०] वृत्तका मध्य विदु जहाँसे परिधिको प्रत्येक केन-पु० [सं०] ११ प्रधान उपनिषदों से एक । विंदुकी दूरी एक ही हो (सेंटर); नाभि, मध्यवती स्थान; | केना*-पु० अनाज देकर खरीदी जानेवाली चीज । मुख्य स्थान; किसी वस्तुके उत्पादन, वितरण, प्रसारका केम, कैम-पु० कदंब । . स्थान, 'सेंटर'; जन्मकुंडली में लग्नका तथा चौथा, केयर-पु० [सं०] बिजायठ, भुजबंद; एक रतिबंध । सातवाँ और दसवाँ स्थान । -ग,-गामी (मिन्)-वि० केर*-प्र० का; के । पु० केला । केंद्रकी ओर जानेवाला ।-स्थ-वि० केंद्र स्थित । केरल-पु० [सं०] आधुनिक भलावार । केंद्रापसारी (रिन)-वि० [सं०] केंद्रसे दर जानेकी | केरा*-प० केला।। प्रवृत्तिवाला । -शक्तियाँ-स्त्री० (सेंट्रिफ्यूगल फोर्सेज )| केराना-पु० दे० 'किराना। केंद्रसे दूर हटानेवाली शक्तियाँ ।
| केराव -पु० मटरकी जातिका एक कदन्न । केंद्राभिमुख-वि० [सं०] केंद्र की ओर जानेकी प्रवृत्तिवाला । | केरि*-प्र० की । स्त्री० केलि । केंद्राभिसारी (रिन्), केंद्रोन्मुख-वि० [सं०] केंद्रकी | केरी*-प्र० की।
ओर जानेवाला । -शक्तियाँ-स्त्री० (सेंट्रिपेटल फोर्सेज) केला-पु० एक प्रसिद्ध फलवृक्ष, कदली; उसका फल । केंद्र की ओर ले जानेवाली शक्तियाँ।
केलि-स्त्री० [सं०] क्रीड़ा; कामक्रीड़ा, रति; हंसी-मजाक केंद्रित-वि० [सं०] केंद्र में स्थित स्थानविशेषमें एकत्रीभूत ।। धरती। -कला-स्त्री० केलि-कुशलता; कामकला; सरकेंद्रीकरण-पु० [सं०] केंद्रित करना, एक जगह लाना; स्वतीकी वीणा। -गृह,-निकेतन,-मंदिर-सदनजमा करना; एक हाथमें, एक व्यवस्थामें लाना ।
पु० रतिगृह; क्रीड़ागृह । केंद्रीभूत-वि० [सं०] 'कोदित' ।
केवका-पु. प्रसूताको दिया जानेवाला मसाला । केंद्रीय-वि० [सं०] केंद्र-संबंधी; केंद्रमें स्थित; मुख्य । | केवट-पु० कैवर्त, मलाह । -आवास-मंडल-पु० ( सेंट्रल हाउसिंग बोर्ड ) नये-नये | केवटी-स्त्री० दो या अधिक प्रकारकी दालें मिलकर पकायी आवासों (धरों)का निर्माण कराने के लिए स्थापित केंद्रीय हुई दाल । संस्था। -करण-५० (सेंट्रलाइ दोशन) एक स्थान या केवडई-पु० एक तरहका रंग जो केवड़ेके रंगसे मिलता केंद्रपर लाना, पद्रित करना, जमा करना; एक हाथमें, है। वि० केवड़ेके रंगका । एक व्यवस्था लाना।
केवडा-५० एक पौधा जिसका फूल अपनी सुगंधके लिए के-प्र० 'का' विभक्तिका बटुव वन रूप ।। सर्व० कौन। प्रसिद्ध है, सफेद केतकी; उसका फूल या फूलका अर्क । केटा-सर्व० कोई।
केवराज-पु० दे० 'केवड़ा'। केउर*-पु० दे० 'केयूर' ।
केवल-वि० [सं०] असंग, अकेला; संपूर्ण शुद्ध; अमिश्र । केकड़ा-पु. एक गोलाकार क्षुद्र जलतु जिसके आठ टाँगे अ० सिर्फ, मात्र । होती है।
केवलात्मा(मन्)-पु० [सं०] ईश्वर; शुद्ध स्वभाववाला केकय-पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद, आधुनिक कका | मनुष्य । (कश्मीर); उस देशका निवासी ।
केवली(लिन्)-पु० [सं०] केवल शानवाला, मुक्तिका केकयी-स्त्री० [सं०] भरतकी माता कैकयी।
अधिकारी साधु । केका-स्त्री० [सं०] भोरकी बोली।
केवाँच-स्त्री० दे० की च'। केकी (किन् )-पु० [सं०] भोर ।
केवा-पु० कमल-'भौर खोज जस पावै केवा'-५०%; केचित्-सर्व० [सं०] कोई कोई-कोई ।
केवड़ा; बहाना; संकोच । केड़ा-पु० कोपल, कल्ला; नवयुवक (ला)।
केवाड़-पु० दे० 'किवाड़' । केत-पु० [सं०] घर, स्थान; पताका; * केतकी। केश-पु० [सं०] सिरके बाल; बाल; घोड़े या सिंहकी गर. केतक-पु० [सं०] केवड़ा । * वि० कितना बहुत । दनपरके बाल; किरण; एक गंधद्रव्य; विष्णु; वरुण । -कर्म केतकी-स्त्री० [सं०] एक फूल, केवड़ा।
(न)-पु० बाल सँवारना, कंघी-चोटी; मुंडन ।-कलाप-- केतन-पु० [सं०] धर; स्थान; निमंत्रण पताका; चिह्न ।। पु० केश-राशि। -कीट-पु० जूं । -पाश-पु. केशकेता, केतिक*-वि० कितना।
समूह; लटकती हुई लटें ।-प्रसाधनी-स्त्री०,-मार्जककेतु-पु० [सं०] पताका चिह्न; सौर मंडलका नवाँ ग्रह पु० कंधी । -बंध-पु० जूड़ा बाँधनेका फीता आदि ।
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केशर-कौंछियाना
१७२ -मार्जन-पु० बालोंको मलना, साफ करना। -रचना कपड़ेके हाशियेपर लगाते हैं । -स्त्री०,-विन्यास-पु० बालोंको सँवारना; माँग-पट्टी। कैथ, कथा-पु० एक फल वृक्ष; उसका फल, कपित्थ । केशर-पु० [सं०] दे० 'केसर' ।।
कैथी-स्त्री० नागरी लिपिका एक भेद जिसमें कुछ अक्षर केशव-पु० [सं०] विष्णु, परमेश्वर ।
कम है और जिसमें शिरोरेखा नहीं होती।। केशांत-पु० [सं०] १६ संस्कारोंमेंसे एक जो उपनयन और कैद-स्त्री० [अ०] बंधन; कारावासा शर्त, प्रतिबंध ।
समावर्तनके अवसरपर होता है; मुंडना बालका सिरा। -खाना-पु० बंदीगृह, जेलखाना। -तनहाई-स्त्री० केशिका-स्त्री० [सं०] (कैपिलरी ट्यूब) बहुत ही पतले | कैदीको अकेला बंद रखने, कालकोठरीकी सजा। -महज़(केशके सदृश) सूराखवाली नलिका।
स्त्री० सादी कैद । -सखत-स्त्री० कड़ी कैद । केशिनी-स्त्री० [सं०] सुंदर बालोंवाली स्त्री रावणकी मातादी -वि०,०[अ०] बंधुआ वंदी, केदकीसजाभोगनेवाला। कैकसी; एक अप्सरा।
कंधो *-अ० या, वा, किधौं । केशी (शिन)-पु० [सं०] सिंह धोड़ा; एक असुर । कैफ-पु० [अ०] नशा, मस्ती; आनंद । केसर-पु० [सं०] फूलके बीचका सींका या रेशा; बाल; कैफ़ि(फ़ी)यत-स्त्री० [अ०] हाल, विवरण; लुत्फ, आनंद । एक विशेष फूलका सींका जो पीलापन लिये लाल रंगका मु०-तलब करना-जवाब माँगना कारण पूछना । और सुगंधयुक्त होता है, कुमकुम, जाफरान; सिंह या कैबर*-स्त्री० तीरकी गाँसी।। धोडेकी गरदनपरके बाल, अयाल; नागकेसर ।
कैबा-अ० कितनी बार, कई बार । केसरिया-वि० केसरके रंगका; केसरमें रँगा हुआ; केसर कैबार*-पु० किवाड़ ।
मिला हुआ। पु० केसरका रंग; केसर जैसा रंग। कैरव-पु० [सं०] कुई; श्वेत कमल; शत्रु । -बंधु-पु० केसरी (रिन)-पु० [सं०] सिंहघोड़ा, पुन्नाग; बिजौरा चंद्रमा । नीबू; नागकेसर: हनूमान्के पिता । वि. सिंह जैसा कैरा-पु० भूरा रंग; वह सफेदी जिसके भीतर सुखींकी पराक्रमी (महाराष्ट्र-केसरी, पंजाब-केसरी इत्यादि)। झलक हो; ऐसे रंगका बैल । वि० भूरा, कंजा। -किशोर-पु० सिंहशावक; हनूमान् । -तनय,- कैलास-पु० [सं०] हिमालयकी एक चोटी जो पुराणों में नंदन,-सुत-पु० हनूमान् ।
शिव और कुबेरका वासस्थान मानी गयी है; * स्वर्ग । केसारी-स्त्री० मटरकी जातिका एक मोग अन्न ।
-नाथ,-पति-पु. शिव; कुबेर । -वास-पु० मृत्यु । केसू*-पु० टेसू , पलासका फूल ।
कैवर्त-पु० [सं०] केवट, निषाद । केहरि*-पु० केसरी। -नहा-पु० बधनहा।
कैवल्य-पु० [सं०] आत्माका असंग, अलिप्त भाव; स्वरूपकेहरी-पु० दे० 'केसरी' ।
में स्थिति मोक्ष; एक उपनिषद् । केहा*-पु० मोर; तीतर जैसा एक पक्षी ।
कैशिक-वि० [सं०] केश जैसा; केशोंसे युक्त । केहि -वि० किस । सर्ब० किसे ।
कैशिकी-स्त्री० [सं०] नाटककी चार वृत्तियोंमेंसे एका दुर्गा । केहुनी-स्त्री० दे० 'कुहनी'।
कैशोर-पु० [सं०] किशोरावस्था । केहूँ, केह-अ० किसी तरह ।
कैसर-पु० [अ०] सम्राट , शाहंशाह; जर्मनी, आस्ट्रिया कैंकर्य-पु० [सं०] दासत्व, सेवा-टहल ।
आदिके पूर्व सम्राटोंकी उपाधि । कचा-पु० बड़ी कैची । दि० ऐंचा-ताना।
कैसा-वि०किस तरहका । कची-स्त्री० [तु०] कतरनी; दो लकड़ियाँ जो कैचीकी शकल- कैसिक*-अ० किस प्रकार ।
में बँधी या जड़ी हों; कुश्तीका एक पेंच, मालखंभकी कैसे-अ० किस प्रकार । - एक कसरत ।
कैसो*-वि० कैसा जैसा । कड़ा-पु० खाका उतारनेका आला; पैमाना, मोटा अंदाजा; काँइछा-पु० स्वीके अंचलका वह हिस्सा जिसमें कुछ ढंग; ढाँचा; चालाकी । मु०-लेना-खाका उतारना । बाँधकर छोर कमरमें खोंस लिये जाते हैं। को-वि० कितने । अ० या, अथवा ।
कौई-स्त्री० दे० 'कुई'। -स्त्री० [अ०] उलटी, वमन ।
कोंकण-पु० [सं०] सह्याद्रिके पच्छिमका प्रदेश । - स्थकैकस-पु० [सं०] राक्षस ।
वि० कोंकणमें रहनेवाला। पु० महाराष्ट्र ब्राह्मणोंकी एक कैकसी-स्त्री० [२०] रावणकी माता।
जाति । कैकेयी-स्त्री० [सं०] केकय नरेशकी बेटी, भरतकी माता। काँचना-स० मि० चुभी देना, गड़ाना । कैटभ-पु० [सं०] विष्णुके हाथों मारा गया एक दैत्य, कौंचा-पु० एक जलपक्षी; बालू निकालनेका भड़भूजेका
मधुका छोटा भाई । -जित्,-रिपु-पु० विष्णु । कलछा दे० 'खोंचा। कैटभारि-पु० [सं०] विष्णु ।
काँछ-पु० आँचलका कोना । मु०-भरना-सौभाग्यवती कैतव-पु० [सं०] धोखा, छल; ठगी; जुआ; लहसुनिया।। स्त्रीके आँचलमें (प्रस्थानके समय) चावल हलदी आदि कैतवापहनुति-पु० [सं०] अपह्नुति अलंकारका एक | डालना। भेद जिसमें यथार्थ बातका निषेध प्रत्यक्ष रूपसे न किया | कौंछना-स० क्रि० दे० 'को छियाना' । जाकर मिस, व्याज आदि शब्दों द्वारा किया जाय । कौंछियाना-स० क्रि० कोंछ भरकर आँचलके छोरोको कैतन-पु० [तु०] जरी और रेशमकी घटी हुई डोरी जिसे | कमरमें पीछेकी ओर खोंस लेना; फुबती चुनना।
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१७३
कौंदा-कोठी काढ़ा-पु० लोहे, पीतल आदिका छला जिसमें जंजीर या | सोनहा। कोई चीज अटकायी जाय ।
कोच-पु० [अं॰] एक तरहकी बग्घी-घोड़ागाड़ी; गद्देदार कौँथना-अ० क्रि० दे० 'कू थना'।
पलंग, कुरसी या बैंच । -बकस,-बक्स-पु० घोड़ाकॉप-स्त्री० दे० 'को पल' ।
गाड़ीमें हाँकनेवालेके बैठनेकी जगह । -बान-पु० [हिं०] कोपरी -पु० डालका पका आम ।
घोडागाडी हाँकनेवाला । काँपल-स्त्री० नयी कोमल पत्ती, कला ।
कोचना-स० क्रि० कोई नुकीली चीज चुभोना । काँवर(रा)*-वि० कोमल, मुलायम ।
कोचा-पु० नोकदार हथियारका घाव जो पार न हुआ हो; कौहड़ा-पु० दे० 'कुम्हड़ा'।
चुटीली बात, व्यंग्य (मारना)। कौहडौरी।-स्त्री० दे० 'कुम्हड़ौरी' ।
कोचीन-पु० दक्षिण भारतका एक राज्य । काँहारी-पु० दे० 'कुम्हार'।
कोजागर-पु०[सं०] शरत्पूर्णिमाको होनेवाला एक त्योहार; को-प्र० कर्म और संप्रदानकी विभक्तिः व्रजभाषामें संबंधकी। शरत्पणिमा । भी। * सर्व० कौन ।
कोट-पु०[सं०] गढ़, दुर्ग; परकोटा; राजप्रासाद ।-पालकोइरी-पु० एक खेतिहर जाति, काछी।
पु० दुर्गरक्षक, किलेदार । -वार*-पु० दुर्गरक्षक कोइला, कोइलिया*-स्त्री० दे० 'कोयल' ।
शांतिरक्षक, चौकीदार । कोइला -पु० दे० 'कोयला'।
कोट-वि० दे० 'करोड़' । पु० समूह, यूथ; [अं॰] अंग्रेजी कोइली-स्त्री० काले दागवाला कच्चा आम आमकी गुठली। ढंगका एक पहनावा । -पतलून-पु० युरोपीय पहनावा, कोई-सर्व० अशात, अनिर्दिष्ट वस्तु या व्यक्ति; चाहे जो साहवी पोशाक ।
एक । अ० लगभग।-नकोई-सर्व०चाहे जोएका हर एक।। कोटर-पु० [सं०] पेड़के तनेका खोखला भाग; किलेके कोउ*-सर्व० दे० 'कोई'।
आसपासका जंगल जो उसके रक्षार्थ लगाया गया हो । को उक*-सर्व० कुछ लोग; कोई एक ।
कोटा-पु० [अं०] किसीको देने या किसीसे लेनेके लिए कोउ*-सर्व० दे० 'कोई'।
निर्धारित अंश। कोक-पु० [सं०] चकवा, चक्रवाका कोयल; मेढक; विष्णु, कोटि-स्त्री० [सं०] धनुपकी नोक, सिरा; किसी चीजका कामशास्त्रके एक आचार्य; भेड़िया। -बंधु-पु० सूर्य । सिरा; किसी हथियारकी नोक दर्जा, वर्ग; वादका पूर्वपक्ष; -शास्त्र-पु० कामशास्त्र ।।
परमोत्कर्ष; आखिरी दर्जा; करोड़की संख्या; अर्द्ध चंद्रका कोकई-वि० गुलाबीकी झलक लिये हुए नीला। पु० | सिरा; राशिचक्रका तीसरा अंश; ९० अंशके चापके दो ऐसा रंग । स्त्री० छोटी कटिया।
समान भागोंमेंसे एक । वि० सौ लाख, करोड़ ।-च्युतकोकटी-स्त्री० एक तरहकी कपास, कुकटी।
वि० (डिग्रेडेड) जो अपनी कोटि, श्रेणी या पदसे नीचेकी कोकनद-पु० [सं०] लाल कमल; लाल कुई ।
कोटि, श्रेणी या पदपर भेज दिया गया हो। -बंध-पु० कोका-पु० दक्षिणी अमेरिकामें होनेवाला एक झाड़ जिसकी। (ग्रेडेशन) कोटि या दरजेके अनुसार रखना, कोटियों में पत्तियाँ उत्तेजनाके लिए चबायी जाती है। धायकी संतान, विभक्त करना; दे० 'क्रमस्थापन' । दूबमाई; हौआ । स्त्री० नीली कुई । -बेरी-बेली-स्त्री० कोटिक-वि० [सं०] पराकाष्ठाको प्राप्त; करोड़, अगणित । नीली कुमुदनी।
कोटिर-पु० [सं०] सींगके रूपमें बँधी हुई जटा; इंद्र; कोकाह-पु० [सं०] सफेद घोड़ा।
नेवला; बीरबहूटी। कोकिल-पु० [सं०] कोयल; अंगारा; एक छंद । -कंठी- कोटिशः-अ० [सं०] करोड़ों; अगणित बार या तरहसे । वि० स्त्री० कोयलकेसे गले, आवाजवाली।
कोटीश्वर, कोट्यधीश-पु० [सं०] करोड़पती । कोकिला-स्त्री० [सं०] कोयल ।
कोट्ट-पु० [सं०] कोट, किला । -पाल-पु० दुर्गरक्षक । कोकी-स्त्री० [सं०] मादा चकवा ।
कोठ-पु०[सं०] एक तरहका कोढ़ । वि० कुंठित (दाँत)। कोकीन-पु० दे० 'कोकेन'।
कोठरी-स्त्री० छोटा कमरा । कोकेन-पु० [अं०] कोकाकी पत्तियोंसे निर्मित द्रव्य जो कोठा-पु० बड़ा कमरा; अटारी बालाखाना; भंडार, कोठार; लगानेसे कुछ देरके लिए अंगको सुन्न कर देता है और पेट मेदा खाना,घर (चौसर, शतरंज आदिका); मस्तिष्कनशेके तौरपर पानमें खाया जाता है।
का वृत्ति-विशेषका अधिष्ठानरूप विभाग । -दार-पु० कोको-स्त्री० कौआ (बहकानेके लिए बच्चोंसे कहा जाता है कोठारी, भंडारी। -(8)वाली-स्त्री० वेश्या। मु० 'कोको ले गयी')। पु० [अं॰] एक तरहला ताड़ या -बिगड़ना-पाचन विगड़ना। -साफ होना-पेटका उसके फलसे बनाया जानेवाला चाय जैसा पेय ।
साफ होना; खुलकर दस्त आना। -(8)पर बैठनाकोख-स्त्री० पेटका दोनों पसलियोंके नीचेका भाग, कुक्षि वेश्यावृत्ति करना। पेट; गर्भाशय । -जली-वि० (स्त्री) जिसके बच्चे न जीते | कोठार-पु० भंडार, बखार । हो । मु०-उजड़ना-बच्चेका मर जाना। -खुलना- कोठारी-पु. भंडारी । बच्चा होना, बंध्यात्व दूर होना। -बंद होना,-मारी | कोठिला-पु० दे० 'कुठला'। जाना-गर्भ न रहना; संतान न होना।
कोठी-स्त्री० पक्का और काफी ऊँचा-बड़ा मकान, हवेली, कोगी-पु. लोमड़ीकी शकलका एक जंगली जानवर, अमीर या रईसका आवास; वह मकान जहाँ लेन-देन
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कोड़ना - कोरा
या बड़े पैमाने पर कोई कार-बार हो; थोक बिक्रीकी दुकान; कोठा; बखार; बंदूककी वह जगह जहाँ बारूद रहती है; एक जड़से निकले हुए बाँसोंका समूह; पुलके खंभे या कुएँ की दीवार की पानीके अंदरकी जोड़ाई जो जमवटके ऊपर होती है; पत्थर के कोल्हू में जाठके आसपासका स्थान जिसमें ईखकी गडेरियाँ भरी जाती हैं। -वाल - पु० देनलेन करनेवाला महाजन । -वाली- स्त्री० मुड़िया अक्षर; देन लेनका काम । मु० - गलाना - जमवटके ऊपर होनेवाली जोड़ाईको नीचे धँसाना। - चलना-देन लेनका कारवार होना ।
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कोड़ना - स० क्रि० दे० 'गोड़ना' । कोड़ा - पु० चाबुक; सोंटा; लगनेवाली बात |
कोड़ाई - स्त्री० कोड़ने का काम; कोड़नेकी मजदूरी । कोड़ी - स्त्री० बीसका समूह, बीसी । वि० बीस । कोढ़ - पु० एक चर्म-रक्त-रोग जिसके एक उग्र भेदमें हाथपाँवकी उँगलियाँ गल-गलकर गिर जाती हैं; घृणित और विनाशकारी बुराई (ला० ) । मु० - की खाज, में खाज कोढ़ में खुजली होना; संकटपर संकट आना । - चूनाटपकना - कोढ़के घावसे पीव बहना । कोढ़ी - पु० कोढ़ रोगसे पीड़ित; काहिल, निकम्मा आदमी । कोण - पु० [सं०] कोना; एक दूसरीसे मिलने, एक दूसरीको काटनेवाली दो रेखाओंके बीचका झुकाव (एंगिल); अंतर्दिशा; सारंगीकी कमानी; तलवार आदिकी धार; डंडा, सोंटा; ढोल, नगाड़ा बजानेका चोब; शनि ग्रह; मंगल ग्रह
- पुण-पु० खटमल ।
कोत* - स्त्री० वल; दिशा ।
कोतल - पु० [तु०] किसी राजा-रईसकी खास सवारीका घोड़ा; जुलूस आदि के साथ सजा सजाया खाली चलने वाला घोड़ा ।
कोतवाल - पु० जिलेके मुख्य नगरका पुलिस अफसर जिसके मातहत वहाँ के सब थानेदार और थाने होते हैं; वह व्यक्ति जो पंडितों की सभा आदिके लिए उनका परिचय देता और निमंत्रण पत्र बाँटता है ।
कोतवाली - स्त्री० कोतवालका पदः कोतवालका दफ्तर; नगरका केंद्रीय थाना ।
कोता* - वि० दे० 'कोताह' ।
कोताह - वि० [फा०] थोड़ा; छोटा; तंग | - हिम्मतवि० छोटी हिम्मतवाला, पस्त- हिम्मत |
कोताही - स्त्री० [फा०] कमी, त्रुटि ।
कोति* - स्त्री० दिशा, ओर, तरफ । कोदंड - पु० [सं०] धनुष्; धनु राशि; भौंह । कोदंडी (डिन् ) - पु० [सं०] शिव |
राम०;
कोद* - स्त्री० दिशा, ओर- 'एक कोद रघुनाथ उदार'कोना । कोदों, कोदो - पु० साँवाँकी जातिका एक मोटा अन्न । -दलना - अधिक श्रमवाला निकृष्ट काम करना । - देकर पढ़ना - सेंत में पढ़ना, फलतः कुछ सीख न पाना, मूर्ख
रह जाना ।
कोद्रव * - पु० [सं०] कोदो । कोध* - स्त्री० दे० 'कोद' ।
मु
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कोन - पु० कोना; खेतका कोना जो जोताई में छूट जाता है। मु० - मारना - जोतने में छूटे हुए कोनों को गोड़ना । कोना - पु० कोण, गोशा; खूँट; कमरे आदिका वह स्थान जहाँ दो दीवारें मिलती हों; वह स्थान जहाँ जल्दी किसीकी निगाह न जाय । मु० - झाँकना - भय या लज्जासे जी चुराना ।
कोनिया- स्त्री० छाजनका एक प्रकार; घर के कोने में दीवार से लगाकर बाँस, काठकी पटरी आदिसे बनाया हुआ छोटा तिकोना मचानः पानीकी नली में मोड़पर लगाया जानेवाला कुहनी के ढंगका टुकड़ा ( एलवो ) । कोप - पु० [सं०] क्रोध, रोप; दोष या मलका बिगड़ना, वेग | भवन - पु० वह मकान या कमरा जिसमें कोई रूठी हुई स्त्री जाकर बैठ रहे ।
कोपन - पु० [सं०] कोपना, कुपित होना । वि० कुपित; कुपित करनेवाला; शरीर में विकार उत्पन्न करनेवाला । कोपनक - पु० [सं०] चोवा । वि० क्रुद्ध | कोपना - अ० क्रि० कोप करना, क्रुद्ध होना । स्त्री० [सं०] क्रुद्ध स्त्री । वि० स्त्री० कोप करनेवाली ।
कोपर - पु० टपका आम; बड़ी थाली जैसा गहरा बरतन जिसमें उठाने के लिए दोनों ओर कुंडे लगे रहते हैं I कोपित - वि० [सं०] कोपयुक्त, क्रुद्ध | कोपी - वि० कोई भी (कोऽपि ) 1
कोपी (पिन) - वि० [सं०] कोप करनेवाला; कोपकारक । कोपीन - पु० दे० 'कौपीन' |
कोफ़्ता - पु० [फा०] कटा हुआ मांस;कुटे हुए मांसका कबाब । कोमल - वि० [सं०] नरम, मुलायम; सुकुमार; अपरिपक्क; मधुर, मनोहर; दयार्द्र । कोमलता - स्त्री० [सं०] नरमी, सुकुमारता । कोमला [स्त्री० [सं०] एक वृत्ति या वर्णयोजना जिसमें य, र, ल, व, स ह आदि कोमल अक्षरों तथा छोटे समासोंका ही प्रयोग किया जाता है । (सा० ) ; खिरनी | कोय * - सर्व० कोई ।
कोयर + - पु० सब्जी; हरा चारा ।
कोयल - स्त्री० काले रंगकी एक चिड़िया जो अपने बोलकी मिठासके लिए प्रसिद्ध है, कोकिल ।
कोयला - पु० पूरी तरह न जली हुई लकड़ीका बुझा हुआ अवशेष, कोयलेकी शकलका एक खनिज पदार्थ जो जलानेके काम आता है ।
कोया - पु० आँखका डेला; आँखका कोना; रेशमके कीड़ेका घर या घोंसला, पके कटहलका बीजकोष ।
कोर - स्त्री० किनारा, हाशिया; कोना; वैर, दुश्मनी; हथि यारकी धार; पंक्ति । - कसर - स्त्री० कमी, त्रुटि । कोरक - पु० [सं०] कली; फूलकी कटोरी; मृणाल । कोरना - सु० क्रि० पत्थर या काठपर खुदाई करना, खोदखुरचकर चित्रादि बनाना; कोर निकालना । क़ोरमा पु० मसाला देकर भुना हुआ गोश्त ।
कोरा - वि० नया, न बरता हुआ; जो पछाड़ा न गया हो, माँड़ीदार (कपड़ा); जो धुला न हो; जिसपर पानी न पड़ा हो (मिट्टीका बरतन ); सादा, अलिखित; रहित, वंचित; अपढ़, मूर्ख, अनभिश; खाली, केवल । + पु० गोद ।
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कोरि-कौंतेय -जवाब-पु० साफ इनकार ।
दरबेकी तरह, बड़े खानेके भीतर बने हुए, छोटे-छोटे खाने कोरि*-वि० करोड़।
जिनमें कागज-पत्र रखे जाते हैं। -पाल-पु० भंडारी कोरिया-पु० एक नीच जाति ।
कोषाध्यक्ष । -बद्धता-स्त्री० कब्ज ।-शुद्धि-स्त्री० पेटकी कोरी-पु० हिंदू जुलाहा ।
सफाई, आँतका मलरहित हो जाना। कोर्ट-पु० [अं॰] दरबार, राजसभा; अदालत, न्यायालय । कोष्टक-पु० [सं०] लकीरोंसे बनाया हुआ खाना; कई
-इंस्पेक्टर-पु० फौजदारी अदालतोंमें पुलिसकी ओरसे खानोंवाला चक्र, सारणी; चहारदीवारी; अंकों, शब्दों मुकदमोंकी पैरवी करनेवाला अफसर ।
आदिको घेरनेमें व्यवहृत चिह्नोंका जोड़ा (केट)। कोल-पु० [सं०] सूअर, कृबड़, गोद; एक जंगली जाति; कोष्ठागार-पु० [सं०] भंडार; कोषागार । काली मिर्च बर।
कोष्ठागारिक-पु० [सं०] कोशवासी प्राणी; भंडारी। कोलना-स० क्रि० लकड़ी या पत्थरको बीचसे काटकर कोष्ठाग्नि-स्त्री० [सं०] पाचनशक्ति, आग्नेय रस । पोला करना।
कोष्टी-स्त्री० [सं०] जन्मपत्री। कोलाहल-पु० [सं०] बहुससे लोगोंके एक साथ बोलनेसे कोस-पु० दूरीकी एक नाप जो लगभग दो मीलके बराबर होनेवाला शोर, हंगामा, हल्ला; एक संकर राग। | होती है । कोसों, काले कोसों-बहुत दूर । कोलिया -स्त्री० तंग रास्ता; कुलिया, गली।
कोसना-स० क्रि० निंदा करना; बुरा-भला कहना कोलियाना -अक्रि० तंग रास्तेसे जाना । पु० कोलियोंके गालियोंके रूपमें शाप देना । (मु०पानी पी-पीकर रहनेका स्थान ।
कोसना-बहुत अधिक कोसना ।) कोली-स्त्री० अँकवार; सँकरी गली । पु० कोरी । कोसल-पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद, अवध; कोसलवासी। कोल्हू-पु० ईख या तेल पेरनेका यंत्र । मु०-काटकर कोसला-स्त्री० [सं०] कोसल प्रदेशको राजधानी, अयोध्या। मुंगरी बनाना-छोटे लाभके लिए बड़ी हानि करना। कोसा-पु० एक तरहका रेशमी कपड़ा; मिट्टीका कसोरा; -का बैल-कड़ी मेहनत करने, हर वक्त पिसनेवाला; बददुआ। -काटी-स्त्री० शापके रूप में गाली । एक ही जगह चक्कर खानेवाला।
कोसिया-स्त्री० मिट्टीका छोटा कसोरा । कोविद-वि० [सं०] पंडित, विद्वान्, प्रवीण ।। कोसिला*-स्त्री० दे० 'कौशल्या' । कोविदार--पु० [सं०] कचनारका पेड़ या फूल ।
कोहड़ा-पु० दे० 'कुम्हड़ा'। कोश-पु० [सं०] अंडा; गोलक (नेत्रकोष); पानपात्र; | कोल्डौरी-स्त्री० दे० 'कुम्हड़ौरी' । म्यान; धनागार, खजाना; सोना-चाँदी; संचित धन; कोह-पु० * क्रीध; [फा०] पहाड़, पर्वत । -आतिश-पु० शब्दकोश, लुगत; खोल, आवरण; रेशमका कोया; कटहल ज्वालामुखी पहाड़। -(हे) आदम-पु० लंकाके एक आदिका कोया; वेदांतमें माने हुए जीवात्माके पाँच पर्वतकी चोटी जिसपर बिहिश्तसे निकाले जानेके बाद (अन्नमय, प्राणमय आदि) आवरण; अंडकोष; कली; आदमका उतरना माना जाता है। -कन-वि०पहाड़ गुठली । -कार-पु० शब्दकोश बनानेवाला; म्यान खोदनेवाला। पु० फरहाद । -काफ-पु० काफ पर्वत, बनानेवाला; रेशमका कीड़ा । -कारक,-कीट-पु० काकेशस पर्वतमाला जिसके आसपासके लोग बहुत सुंदर रेशमका कीड़ा ।-कीट-पालन-पु० (सेरिकल्चर) रेशमके होते हैं ।-नूर-पु०भारतका एक इतिहास प्रसिद्ध हीरा । कीड़े पालनेका काम या उद्योग ।-पति-पु० कोषाध्यक्ष। -सार-पु० पहाड़ी स्थान, प्रदेश; पहाड़। -पान-पु० अभियुक्तके अपराधी या निरपराध होनेकी काहनी-स्त्री० दे० 'कुहनी' । जाँचकी एक प्राचीन विधि । -पाल-पु० कोषरक्षक । | कोहबर-पु० वह घर या कमरा जिसमें विवाहके समय -वृद्धि-स्त्री० अंडवृद्धिका रोग; धनवृद्धि ।
। कुलदेवताकी स्थापना और कुछ रस्में अदा की जाती है । कोशल-पु० [सं०] एक राग; दे० 'कोसल'।
कोहरा-पु० दे० 'कुहरा'। कोशला-स्त्री० [सं०] दे० 'कोसला'।
कोहल-पु० [सं०] नाट्यशास्त्रको प्रणेता एक मुनि । कोशा(पा)गार-पु० [सं०] खजाना, रुपया-पैसा रखनेका कोहाँरी-पु० दे० 'कुम्हार' । धर, तोशखाना।
कोहान-पु० [फा०] ऊँटकी पीठपरका कूबड़ । कोशाणु-पु०सं०] (सेल) वे सूक्ष्म सजीव कण जिनके कोहाना-अ०क्रि० रूठना, रुष्ट होना ऋद्ध होना। योगसे पिंडका निर्माण होता है।
कोहिस्तान-पु० [फा०] पहाड़ी प्रदेशः पर्वतमाला । कोशा (षा)धिप, कोशा(षा)ध्यक्ष-पु० [सं०] खजांची। कोही-वि० * क्रोधी; [फा०] पहाड़ी। + स्त्री० बाज कोशिश-स्त्री० [फा०] श्रम; यत्न, उद्योग ।
पक्षीकी मादा। कोष-पु० [सं०] दे० कोश'।-विपत्र-पु० (ट्रेजरी विल्स) कौंकम-वि० [सं०] केसर-संबंधी; केसरके रंगका; केसरमें दे० 'खजानेकी इंडियाँ ।
रँगा हुआ। पु० एक केतुवर्ग । कोष्ठ-पु० [सं०] घरका भीतरी भाग; कोठा; शरीरके कौंच-स्त्री० सेम जैसी एक फली जिसकी तरकारी बनती भीतरका आमाशय, मूत्राशय, पित्ताशय जैसा कोई अंग और दवाके काम भी आती है। इसकी बेल, केवाँच । पु० पेट; बड़ी आँत, मलाशयः शरीरके अंदरका एक चक्र [सं०] हिमालयका एक पहाड़ । भंडार, बखार; चहारदीवारी; कोष्ठक, (ब केंट) । -खंड- कौंछ-स्त्री० दे० 'कौंच'। पु० (पिजन होल) (किसी आलमारी आदिमें) कबूतरके। कौंतेय-पु० [सं०] कुंतीपुत्र-युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन ।
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राष्ट्रीय।
काँध-कौवाल कौंध-स्त्री० बिजलीकी चमक; चमक ।
हँसी-मजाक; विवाहका कंगन कंगनकी विधि । -प्रियकाँधना-अ० कि० बिजलीका चमकना।
वि० जिसे खेल-तमीशा या हँसी-मजाक पसंद हो। काँधनी -स्त्री० करधनी।
कौतुकिया-वि० दे० 'कौतुकी'। कौंधा*-स्त्री० बिजलीकी चमक; बिजली-'जनु कौंधा कौतुकी(किन्)-वि० [सं०] खेल-तमाशा करनेवाला, लोकहि दुइ कोने'-५०; चमक ।
विनोदी विवाह-संबंध करानेवाला। कौल*-पु० कमल ।
कौतूह*-पु० लीला, कौतुक ।। कौवरा-वि० कोमल ।
| कौतूहल-पु० [सं०] कुतूहल; त्योहार, उत्सव । कौ*-प्र० कर्म, संप्रदान और संबंध कारककी विभक्ति। कौन-सर्व प्रश्नवाचक सर्वनाम । वि० किस प्रकारका। कौआ-पु० एक पक्षी जो अपने काले रंग, धूर्तता आदिके | कौनप*-पु० दे० 'कोणप'। लिए प्रसिद्ध है; धूर्त मनुष्य; गलेके भीतरकी धाँटी; कन-कौपीन--पु० [सं०] गुह्य भागको ढकनेवाला वस्त्र-खंड, कुटकी; एक मछली। -ठोठी-स्त्री० एक लता जिसके लँगोटी; चीथड़ा। फूलकी शकल कौएकी चोंचकीसी होती है। -परी-स्त्री० कीज्य-पु० [सं०] कुवड़ापन । काली, बदशकल स्त्री। -रोर-पु० हल्ला, कागारोल ।। क्रीम-स्त्री० [अ०] मनुष्य-समूह; जाति, वंश, नस्ल राष्ट्र । कौआल-पु० दे० 'कौवाल'।
-परस्त-वि० राष्ट्रवादी। कौआली-स्त्री० दे० 'कौवाली' ।
कौमार-पु० [सं०] कुमार-(जन्मसे पाँच बरसतककी) कोक्कुटिक-पु०[सं०] मुगें पालनेवाला; ढोंग करनेवाला । अवस्था; कुँवारापन । वि० कुमार-संबंधी; कोमल; युद्धकौटिलीय-वि० [सं०] कौटिल्यकृत ।
देव-संबंधी। -भृत्य-पु० बच्चोंका पालन-पोषण, दवाकौटिल्य-पु० [सं०] कुटिलता, टेढ़ापन, फरेब, बेईमानी; इलाज; आयुर्वेदका शिशु-चिकित्सा-अंग। -व्रत-पु०
अर्थशास्त्रके कर्ता और कूटनीतिके आचार्य चाणक्य । अविवाहित रहनेका व्रत । कीड़ा-पु० बड़ी कौड़ी; अलाव ।
क्रौमि(मी)यत-स्त्री० [अ०] जाति, कीमका भाव, जातीकौड़िया-वि० कौड़ीके रंग-रूपका। * पु० दे० 'कोडिला' । | यता राष्ट्रीयता। कौडियाला-वि० कौड़ीके रंगका, कोकई । पु० कोकई रंग; कौमी-वि० [अ०] कौमसे संबंध रखनेबाला, जातीय; एक जहरीला साँप; एक वनौषधि; कंजूस धनवान् । । कौड़ियाही-स्त्री० मिट्टी, ईटों आदिकी ढुलाई जो खेप पीछे कीमुदी-स्त्री० [सं०] चाँदनी कात्तिककी पूर्णिमा आश्विनकुछ कौड़ियोंके हिसाबसे दी जाती है। वि० स्त्री० बहुत | की पूर्णिमा उत्सव; दीपोत्सवः कुमुद; व्याख्या, टीका छोटी रकम लेकर काम करनेवाली।
(ग्रंथके नामके साथ)। -पति-पु० चंद्रमा । -महोकौडिल्ला-पु० एक मत्स्यभक्षी जलपक्षी।।
रसव-पु० कात्तिकी पूर्णिमाको होनेवाला उत्सव । कौड़ी-स्त्री० धोंधे, शंख आदिके वर्गका एक कीड़ा; उस कौमोदकी, कौमोदी-स्त्री० [सं०] विष्णुकी गदा । कीड़ेका अस्थिकोश जो विनिमयके साधनके रूपमें भी काममें कौर-पु० कवल, निवाला ।। लाया जाता है, वराटिका पैसा, धन; कर, महसूल; जाँध,कीरना -स० कि० हलका भूनना। काँख आदिमें निकलनेवाली छोटी गिलटी; आँखका डेला कौरव-पु० [सं०] कुरुका वंशज; कुरु-नरेश । वि० कुरुसीनेकी वह हदी जिसपर नीचेकी पसलियां मिलती है। वंशियोंसे संबंध रखनेवाला (कौरव सेना)। -पतिकटारकी नोक । -का-मूल्यरहित; तुच्छ, हेय ।-भर- पु० दुर्योधन । कौड़ी बराबर; बहुत थोड़ा। मु०-केफनको न होना
कीरा-पु० दरवाजेके अगल-बगलकी, चौखटेके पीछेकी बिलकुल मुफलिस, मुहताज होना ।-के तीन,-के तीन- दीवार; कुत्तेको दिया जानेवाला खाना; दे० 'कोड़ा' । तीन-बहुत सस्ता, जिसे कोई न पूछे ।-के तीन होना- म. कोरे लगना-किसीकी बातें सुननेके लिए. दरवाजेकी तुच्छ, हेय होना। -के मोल-बहुत सस्ता या सस्तेमें। बगल में छिपकर खड़ा रहना मुह फुलाना धातमें बैटना। -०न पूछना,-न लेना-मुफ्तमें भी न लेना, एकदम कोरी*-स्त्री० अंक, गोद । निकम्मा समझना । -.बिकना-बहुत सस्ता बिकना; | कौलंज-पु० पसलियोंके नीचे होनेवाला एक तरहका दई । तुच्छ, बेकदर होना। -कौड़ीका हिसाब-छोटीसे छोटी कौल-पु० कौर; * कमल कोर । रकमका. पाई-पाईका हिसाब । -कौडीको मुहताज- कौल-पु० [अ०] वचन, उक्ति प्रतिज्ञा, इकरार; वह बिलकुल मुफलिस, अति निर्धन । कीड़ी चुका देना-पूरा सूफियाना गीत या शेर जो कीवाल गाते हैं । -(व) पावना, पाई-पाई बेबाक कर देना ।-कौड़ी जोड़ना-एक- करार-पु० परस्पर प्रतिशा । -का पक्का-बातका धनी। एक पैसा-थोड़ा-थोड़ा करके धन बटोरना ।-फिरना- कौलटेय-पु० [सं०] कुलटाका पुत्र; भिक्षुकीका पुत्रा जुएमें अपना दाँव पड़ने लगना।
जारज पुत्र । कौणप-पु० [सं०] मुर्दाखोर राक्षसावि० पातकी, अधभी। कौलव-पु० [सं०] ज्योतिषके ११ करणों से एक । कौणिक-वि० [सं०] जिसमें कोण हो, नुकीला । कौलीन्य-पु० [सं०] कुलीनता । कौतिक, कौतिग*-पु० दे० 'कौतुक' ।
कौली*-अ० कबतक । कौतुक-पु० [सं०] कुतूहल, उत्सुकता कुतूहल जगानेवाली कौवा-पु० दे० 'कौआ'। वस्तु अचंभा; तमाशा; उत्सव, आनंदा हास्य-विनोद, कौवाल-पु० [अ०] कौवाली गानेवाला; गवैया ।
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कौवाली - स्त्री० [अ०] सूफियाना गजल या गीत; संगीत में
एक ताल ।
कौशल - पु० [सं०] कुशलता, दक्षता; मंगल, कल्याण । कौशलेय - पु० [सं०] कौशल्या के पुत्र, राम | कौशल्य - पु० [सं०] दे० 'कौशल' ।
कौशल्या - स्त्री० [सं०] दशरथकी पट्टमहिषी, रामकी माता | कौशांत्री-स्त्री० [सं०] वत्सदेशकी प्राचीन राजधानी जिसे कुशके पुत्र कौशांबने बसाया था, आधुनिक कोसम । कौशिक - पु० [सं०] कुशिकका वंशज; विश्वामित्र इंद्र; कोशकार; कोषाध्यक्ष; उल्लू ; नेवला; शृंगार रस; मज्जा; गुग्गुल । वि० म्यानमें रखा हुआ; उल्लू-संबंधी; कुशिक वंशका; रेशमी । - प्रिय - पु० राम । कौशिकी - स्त्री० [सं०] दुर्गा; के.सी नदी; दृश्य काव्यकी चार वृत्तियोंमेंसे एक; एक रागिनी । - कान्हड़ा - पु० [हिं०] कौशिकी और कान्हड़ा के योगसे बना एक संकर राग । कौशी (पी) धान्य- पु० [सं०] कोशसे उत्पन्न होनेवाला धान्य, तिलादि ।
कौशीलव- पु० [सं०] नट, अभिनेताका पेशा । कौशे (पे) - पु० [सं०] रेशम; रेशमी कपड़ा; रेशमी साड़ी । वि० रेशमी । कौसल्या - स्त्री० रामचंद्र | कौसिक* - पु० दे० 'कौशिक' |
[सं०] दे० 'कौशल्या' । -नंदन - पु०
कौसिला* - स्त्री० दे० 'कौशल्या' । कौस्तुभ - पु० [सं०] समुद्र मंथन से निकला हुआ एक रल जिसे विष्णु छातीपर धारण किये रहते हैं ।
क्या - सर्व० प्रश्नवाचक सर्वनाम । वि० कितना; बहुत; कैसा बहुत बढ़िया । अ० किम लिए, किस कारण; प्रश्नसूचक शब्द |
क्यार - * प्र० दे० 'का' पु० पेड़का थाला । क्यारी - स्त्री० बाग या खेतकी मेंड बनाकर प्रायः चौकोर खानेकी शकल में किया हुआ विभाग ।
ऋतु - पु० [सं०] विष्णु; एक प्रजापतिः संकल्पः प्रज्ञा,
: विवेक; इच्छा; देवताकी स्तुति आदि; यश; अश्वमेध यज्ञ । - पति-पु० यश करनेवाला । - पशु, -हय- पु० यज्ञका घोदा । - पुरुष - पु० विष्णु । - भुक् ( ज् ) - पु० हविष्य खानेवाला, देवता ।
क्रथन - पु० [सं०] काटना; वध; एक दानव । क्रम - पु० [सं०] आगे बढ़नेके लिए कदम उठाना, डग भरना; उग, कदम; आरंभ; घटनाओं, वस्तुओं, व्यक्तियोंकी आगे पीछे या ऊपर-नीचेके विचारसे यथास्थान अवस्थिति, तरतीब, सिलसिला; नियमित व्यवस्था;
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कौवाली- क्रिकेट
वेदपाठकी एक विशेष प्रणाली; शक्ति; आक्रमणकी मुद्रा; तैयारी; कल्प; विष्णु ( वामनरूपमें ); एक अर्थालंकार ( ' यथासंख्य' ); * कर्म, कार्य, कृत्य । - बद्ध - वि० क्रमयुक्त, सिलेसिलेवार -भंग - पु० क्रम - तरतीबका टूट जाना । संख्या - स्त्री० किसी वस्तु, व्यक्तिकी क्रमप्राप्त संख्या, सिलसिलेका नंबर । - संन्यास - पु० ब्रह्मचर्यादि आश्रमोंमें रह चुकने के बाद लिया हुआ संन्यास । - स्थापन - पु० ( ग्रेडिंग ) श्रेणी, कोटि या क्रमके अनुसार रखना । क्रमनासा * - स्त्री० कर्मनाशा नामकी नदी । क्रमशः - अ० [सं०] यथाक्रम, सिलसिलेसे; धीरे-धीरे । क्रमांक - पु० [सं०] क्रमसंख्या । क्रमागत- वि० [सं०] क्रमप्राप्त; कुलक्रमागत, बाप-दादासे चला आता हुआ ।
क्याली * - स्त्री० दे० 'क्यारी' |
क्यों - अ० किस लिए, किस कारण । -कर- अ० कैसे | -कि- अ० कारण यह कि, इसलिए कि । - नहीं - अ० अवश्य, बेशक । - न हो-अ० क्या कहना, शाबाश । क्रंदन - पु० [सं०] रोना, विलाप, युद्धके लिए आह्वान | कंदित - वि० [सं०] ललकारा हुआ, आहूत | क्रकच - पु० [सं०] आरा; एक बाजा; एक नरक; करीलका | क्रशित- वि० [सं०] क्षीणकाय, दुबला-पतला । पेड़, ग्रंथिल वृक्ष; ज्योतिष में एक योग ।
क्रमानुसार - अ० [सं०] यथाक्रम, सिलसिले से । क्रमि पु० [सं०] दे० 'कृमि' |
क्रमिक - वि० [सं०] क्रमागत; कुलक्रमागत । क्रमुक - पु० [सं०] सुपारीका पेड़, नागरमोथा; पठानी लोध; शहतूतका पेड़; कपासकी डोंड़ी । क्रमेल, क्रमेलक - पु० [सं०] ऊँट
क्रय - पु० [सं०] मोल लेना, खरीदना । - पंजी - स्त्री० ( परचेजेज जर्नल ) प्रतिदिन खरीद की गयी वस्तुओं आदिका विवरण लिखनेकी वही, खरीद - बही ।-प्रपंजीस्त्री० (परचेज़ेज़ लेजर ) वह प्रपंजी या खाताबही जिसमें समय-समय पर खरीदी हुई विभिन्न वस्तुओंका हिसाब, हर एकका अलग-अलग, क्रयपंजीसे उतारकर लिखा जाता है। - लेख्य-पु० बयनामा, कवाला । ० पत्रपु० किसी वस्तुके क्रय-विक्रय से संबंध रखनेवाला पत्र | - विक्रय - पु० खरीद-बिक्री, व्यापार । -विक्रयिकपु० व्यापारी । -शक्ति-स्त्री० (पचेंजिंग पॉवर) बाजार में उपलब्ध वस्तुओं को खरीद सकनेकी जनताको सामर्थ्य या क्षमता ।
क्रयण- पु० [सं०] खरीदना ।
क्रय्य - वि० [सं०] जो खरीदा जा सके; विक्रीके लिए रखा हुआ (माल) ।
क्रवान * - पु० कृपाण, तलवार ।
क्रव्याद, क्रव्याद् - वि० [सं०] कच्चा मांस खानेवाला । पु० राक्षस, मांसभक्षी जंतु - बाघ, भेड़िया आदि ।
क्रांत - वि० [सं०] गया हुआ; बीता हुआ; लाँधा हुआ; दबा हुआ; चढ़ा हुआ । पु० पाँव; घोड़ा; गमन; डग; चंद्रमा के किसी ग्रहके साथ योगकी स्थिति । क्रांति - स्त्री० [सं०] क्रमण; जाना; लाँघना; सूर्यका भ्रमण - मार्ग; दिक्पात; स्थिति में भारी उलट-फेर; पूर्ण परिवर्तन; राज्यव्यवस्थाका उलट दिया जाना, राजक्रांति । -कक्ष, - मंडल, - वृत्त - पु० सूर्यका भ्रमणमार्ग । -कारी (रिन्) - वि० स्थिति, व्यवस्था में भारी उलट-फेर कर देनेवाला । पु० राजक्रांतिका प्रयासी ।
काय (थि) क - पु० [सं०] खरीदनेवाला; व्यापारी । क्रिकेट - पु० [अ०] गेंदका एक खेल जो बलेसे खेला जाता है ।
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क्रिमि-क्लेव्य क्रिामे-पु० [सं०] दे० 'कृमि' ।-ज-पु० अगर ।-जा- | सहित पत्र; समाचारपत्रके साथ अलगसे छापकर वितस्त्री० लाख ।
रित लेख, विशापन आदि । -मुख-पु० गैड़ा। क्रियमाण-वि० [सं०] जो किया जा रहा हो, होता हुआ। क्रोध-पु० [सं०] किसी अनुचित कर्म, अपकार आदिसे क्रिया-स्त्री० [सं०] कुछ किया जाना, कर्म, व्यापार, चेष्टा%3B । उत्पन्न दूसरेका अपकार करनेका तीव्र मनोविकार, कोप, काम करनेकी विधि; शिक्षण; शान; अभ्यास; रचना; गुस्सा, रौद्र रसका स्थायी भाव (मा०)।। धार्मिक संस्कारः प्रायश्चित्तः श्राद्ध; पूजन; उपचार; क्रोधन-वि० [सं०] क्रोधी स्वभाववाला, गुस्सेवर । पु० अध्ययन; साधन, उपकरण; अभियोगका विचार आदि। कौशिकका एक पुत्र; साठ संवत्सरोंमेंसे एक क्रोध करना । -कर्म(न)-पु० मृतक क्रिया, अंत्येष्टि । -कलाप-पु० क्रोधना-वि० स्त्री० [सं०] क्रोधी स्वभाववाली। संपूर्ण शास्त्रविहित कर्म । -चतुर-पु० शृंगार रसमें क्रोधवंत*-वि० क्रुद्ध, कुपित । नायकका एक भेद । -पंथ-पु० कर्मकांड । -पद्ध- क्रोधालु-वि० [मं०] क्रोधी। वि० कार्यकुशल । -पद-पु० क्रियावाचक शब्द ।-फल क्रोधित*-वि० ऋद्ध, कुपित । -पु० कर्मका परिणाम |-वाचक,-वाची (चिन्)-वि० क्रोधी (धिन्)-वि० [सं०] क्रोध करनेवाला, जिसे जल्द क्रियाका अर्थ देनेवाला । -विदग्धा-स्त्री० क्रियाके द्वारा गुस्सा आ जाय । पु० भैसा; कुत्ता; गैंडा; एक संवत्सर । अपना अभिप्राय बतानेवाली नायिका। -विशेषण-पु० क्रोश-पु० [सं०] रोना; जोरसे चिलाना; पुकारना; कोस । वह शब्द जो क्रियाकी विशेषता, उसका काल, स्थान,रीति क्रोशाधिदेय-पु० (माइलेज) किसी कामसे यात्रा करनेपर आदि बताये। -शील-वि० कर्मनिष्ठ । -शून्य-वि० सरकारी या गैरसरकारी कर्मचारीको मीलोंके हिसाबसे कर्महीन ।
मिलनेवाला भत्ता। क्रियात्मक-वि० [सं०] क्रियारूपमें किया हुआ, अमली। क्रौंच-पु० [सं०] एक तरहका बगला, करॉकुल; एक पर्वत क्रियावान (वत्)-वि० [सं०] कर्मनिष्ठ ।
जो पुराणोंमें हिमवान् (हिमालय )का पोता और मैनाकक्रिस्तान-पु० ईसाई।
का बेटा बताया गया है। सात महाद्वीपोंमेंसे एक; मय क्रिस्तानी-वि० ईसाइयोंका ।
दानवका पुत्र जो स्कंदके हाथों मारा गया। -दारण,क्रीट-पु० दे० 'किरीट' ।
रिपु,-शत्रु,-सूदन-पु० कात्तिकेय; परशुराम । क्रीड-पु० [सं०] क्रीडा, खेल-कूद; हंसी-मजाक । क्रौर्य-पु० [सं०] करता। क्रीडक-पु० [सं०] क्रीडा करनेवाला; द्वारपाल ।
कुब-पु० [अं०] साहित्य-संगीत आदिकी चर्चा या मनक्रीड़ना* --अ० क्रि० क्रीडा करना, खेल करना ।
बहलावके कामों के आयोजन के लिए स्थापित समिति । क्रीडा-स्त्री० [सं०] खेल-कूद, किलोला हास्य-विनोद तालके कम, कृमथ, कुमथु-पु० [सं०] थकावट, कांति । मुख्य भेदोंमेंसे एक । -कानन,-वन-क्रीडाके लिए उप-कुर्क-पु० [अं०] लिखनेका काम करनेवाला कर्मचारी, युक्त उद्यान, प्रमोदवन । -गृह,-मंदिर-पु० केलिगृह । मुशी, किरानी, लिपिक । -पर्वत,-शैल-पु० उद्यान आदिमें बनाया जानेवाला कुर्की-स्त्री० कुर्वका धंधा, किरानीगिरी। कृत्रिम पर्वत । -मृग-पु० खेलने, जी बहलानेके लिए क्लांत-वि० [सं०] थका हुआ, श्रांत; मुरझाया हुआ; पाला हुआ हिरन । -शील-वि० खेलवाड़ी।
क्षीणकाय; हतोत्साह । क्रीत-वि० [सं०] क्रय किया हुआ, खरीदा हुआ। क्लांति-स्त्री० [सं०] थकावट । क्रद्ध-वि० [सं०] क्रोधयुक्त, गुस्सेसे भरा; निर्दय । क्लास-पु० [अं०] दर जा, श्रेणी; विद्यार्थियोंका वर्ग, कक्षा। कर-वि० [सं०] निर्दय, संगदिल, परपीडका डरावना; -टीचर-पु० किसी खास वासादरजेका मुख्य अध्यापक । कठिन; तीक्ष्ण। -कर्मा (मन्)-वि० कर कर्म करने-किष्ट-वि० [सं०] कृशयुक्त, पीड़ित; पूर्वापर-विरुद्ध अर्थवाला। -कोष्ठ-वि० कड़े कोठेवाला, जिसपर मृदु विरे- वाला (वाक्य); जिसका अर्थ बहुत सोचने या खींच-तानसे चनका असर न हो। -ग्रह-पु० रवि, शनि, राहु, निकले; क्षतिग्रस्त; मुरझाया हुआ। -कल्पना-स्त्री० मंगल और केतुमेंसे कोई । -दृक् ()-वि० बुरी बहुत खींचतान या धुमाव-फिराववाली कल्पना । दृष्टिवाला; खल, दुष्ट । पु० शनि मंगल ।
क्लिष्टि-स्त्री० [सं०] केश, पीड़ा; नौकरी । क्रराकृति-वि० [सं०] डरावनी शकलवाला । पु० रावण । क्लीब, लीव-वि० [सं०] हिजड़ा, पंट, नपुंसक, नामर्द, रात्मा(त्मन्)-पु० [सं०] शनि । वि० निर्दय।
कम'ना; कायर, डरपोक । पु० नपुंसक पुरुष नपुंसक लिंग। ऋस-पु० [अं० 'कास'] सूली, सलीब ईसाइयोंका धर्म- वेद-पु० [सं०] गीलापन, आर्द्रता; दुःख पसीना; सड़ना। चिह्न जो सूलीसे मिलते-जुलते आकारका होता है।
कुश-पु० [सं०] दुःख, पीड़ा; व्यथा; अविद्या ।-कर-वि० क्रेडिट-पु० [अं०] साख ।
केश देनेवाला। -मुक्ति-स्त्री० (रोड्रेस) किसी कुश, क्रेता (त)-पु० [सं०] खरीदनेवाला ।
कठिनाई, उत्पीड़न आदिसे छुटकारा पा जाना । क्रेय-वि० [सं०] खरीदने योग्य ।
क्लेशक-वि० [सं०] केश देनेवाला । कोड-पु० [सं०] छाती, वक्षःस्थल; गोद, अंक; पेड़का | कुशित-वि० [सं०] पीड़ित, कृशयुक्त । खोखला; सूअर; शनि ग्रह; किसी वस्तुके बीच या अंदर- क्लेष्टा(ष्ट)-पु० [सं०] कुश देनेवाला । का हिस्सा। -पत्र-पु० पुस्तकादि लिखने में छूटे हुए. केस*-पु० दे० 'श'। अंशकी पूर्तिके लिए अलगसे लिखकर रखा हुआ चिह्न | कुव्य-पु० [सं०] कीवता, नपुंसकता कायरपन ।
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१७९
क्लोम-क्षमा क्लोम-पु० [सं०] दाहना फेफड़ा।
मिला होता है। -योनि-वि० जिस(स्त्री)का पुरुषसे . क्लोरोफार्म-पु० [अं॰] एक तरल औषध जिसे सुंघाकर | समागम हो चुका हो, कौमार्य नष्ट हो चुका हो। चीर-फाड़के लिए रोगीको बेहोश करते हैं।
-विक्षत-वि० जिसकी देह घावोंसे भरी हो, बहुत क्वचित्-अ० [सं०] कहीं; कहीं-कहीं; बहुत कम कभी। । जगह कट-फट गयी हो । -वृत्ति-स्त्री० जीविकाका क्वचिढभाषी सदस्य-पु० [सं०] ( बैकबेंचर) विधान-सभा ! साधन न होना। -व्रण-पु० चोट पक जानेसे होने
आदिका वह सदस्य जो अपनो कम उम्र या कम अनुभवके वाला फोड़ा। -व्रत-वि० जिस(ब्रह्मचारी)का व्रत खंडित कारण अथवा दलमें अपेक्षाकृत कम महत्त्व रखनेके कारण हो गया हो।-सर्पण-पु० गमनशक्तिका नाश ।-हरप्रायः पीछेकी ही पंक्तियों में बैठता और विवादादिमें
। पापावाम १०ता आर विवादादिम पु० अगुरु। नाममात्रका ही हिस्सा ग्रहण करता है।
क्षता-स्त्री० [सं०] वह कन्या जिसका कौमार्य ब्याहके पहले क्वणन-पु० [सं०] वीणा, घुघरू आदिका बजना; मिट्टीका ही नष्ट हो चुका हो। छोटा बरतन।
क्षति-स्त्री० [सं०] हानि, हास; घाटा; चोट। -अस्तक्वणित-वि० [सं०] ध्वनित; गूंजता हुआ। पु० ध्वनि । वि० जिसकी हानि हुई हो। -पूर्ति-स्त्री० (रिपरेशंस) क्वथन-पु० [सं०] औटना; काढ़ा करना।
क्षति या हानि पूरी करनेका कार्य या इसके बदले दी क्वथनांक-पु० [सं०] (बॉइलिंग पॉइंट) वह विशेष तापक्रम | जानेवाली रकम, नुकसानका मुआवजा । जिसपर कोई द्रव वस्तु उबलने लगे।
क्षतोदर-पु०[सं०] एक उदर-रोग जिसमें आँतें कोई कड़ी, कथित-वि० [सं०] औटा हुआ; काढ़ा किया हुआ। | नुकीली चीज निगल जाने आदिसे कट जाती है। काँरा-वि० दे० क्वारा।
क्षत्र-पु० [सं० ] क्षत्रिय; योद्धा; बल; राज्य; देह; धन । क्वाथ-पु० [सं०] काढ़ा, जोशादा; कष्ट, दुःख, व्यसन । -कर्म(न्)-पु० क्षत्रियोचित कर्म ।-धर्मा(र्मन्)कान-पु० झनकार; कण ।
वि० क्षात्र धर्मका पालन करनेवाला । पु० योद्धा, सिपाही । क्वार-पु० आश्विन मास ।
-प-पु० प्राचीन पारसीक साम्राज्यके मांडलिक राजाओंक्वारपन-पु० अविवाहित अवस्था, वारापन ।
की उपाधि प्रांताधिपति, गवर्नर। -पति-पु० राजा। कारा-वि० कुंआरा, अविवाहित ।
-विद्या-स्त्री० धनुर्विद्या; युद्ध विद्या । -वृक्ष-पु० कैला*-पु० कोयला।
मुचकुंद ।-वेद-पु० धनुर्वेद । -सव-पु० एक यश जिसे क्षंतव्य-वि० [सं०] क्षमा करनेके योग्य, सहन करनेके | केवल क्षत्रिय कर सकता है। योग्य ।
क्षत्रांतक-पु० [सं०] परशुराम । क्ष-पु० [सं०] खेत; किसान; नाश; प्रलय; बिजली; एक | क्षत्राणी-स्त्री० वीर नारी क्षत्रिया । राक्षस; विष्णुका चतुर्थ-नरसिंह-अवतार । -किरण- क्षत्रिय-पु० [सं०] हिंदुओंके चार वर्गों में से दूसरा, योद्धा स्त्री० (एक्सरे) दे क्रममें।
जाति.। -हण-पु० परशुराम । क्षकिरण-स्त्री० [सं०] (एक्सरे) विद्युत् प्रवाहसे प्रभावित वे क्षत्रिया-स्त्री० [सं०] क्षत्रिय स्त्री। अदृश्य किरणें जो हाथ या शरीरके अन्य किसी भागके आर- | क्षत्रियाणी, क्षत्रियी-स्त्री० [सं०] क्षत्रियकी पत्नी । पार पहुँचकर हड्डियों के ढाँचेका छायाचित्र विशेष आग्राही क्षत्री (विन)-पु० [सं०] क्षत्रिय । काचपट्टपर अंकित कर देती है, पारदी किरण। क्षप-पु० [सं०] जल। क्षण-पु० [सं०] छन, लमहा; ४/५ सेकेंड, निमेषका चोथाई | क्षपणक-पु० [सं०] नग्न रहनेवाला बौद्ध या जैन संन्यासी; या ३० कलाके बराबर काल; अवसर; अवकाश; शुभ काल; विक्रमादित्यकी राजसभाके नौ रत्नोंमेंसे एक । उत्सव आनंद । -दा-स्त्री० रात; हलदी। -कर- क्षपांत-पु० [सं०] प्रभात । पु० चंद्रमा। -द्यति-प्रभा-स्त्री० बिजली ।-निःश्वास क्षपाध्य-पु० [सं०] रतौंधी। -पु. ( स । -भंग-पु० 'क्षणिकवाद' (बौद्ध)।-भंगु* क्षपा-स्त्री० [सं०] रात; हलदी। -कर-पु० चंद्रमा -वि० दे० 'क्षणभंगुर'।-भंगुर-वि० छनभरमें, थोड़ीही कपर ।-घन-पु० काला बादल ।-चर-पु० निशाचर । देरमें मिट जानेवाला । -मात्र-अ० छनभर ।
-नाथ,-पति-पु० चंद्रमा कपूर। क्षणिक-वि० [सं०] क्षणस्थायी ।-वाद-पु० बौद्ध दर्शन- क्षम-वि० [सं०] सहन करने में समर्थ; योग्य; उपयुक्त का यह मत कि प्रत्येक वस्तु उत्पत्तिसे दूसरे ही क्षण में | (हिंदीमें यह शब्द केवल समासमें आता है-कार्यक्षम, नष्ट हो जाती है अर्थात् प्रतिक्षण बदलती रहती है। अक्षम आदि)। क्षणिका-स्त्री० [सं०] बिजली ।
क्षमणीय-वि० [सं०] क्षमा करने योग्य, क्षम्य । क्षणिनी-स्त्री० [सं०] रात ।
क्षमता-स्त्री० [सं०] शक्ति, सामर्थ्य, योग्यता । क्षत-वि०[सं०] घायल; कटा-फटा हुआ; क्षतिग्रस्त खंडित, | क्षमना*-स० क्रि० माफ करना । भग्न । पु० घाव, जख्म; चोटसे होनेवाला फोड़ा, दःखः क्षमनीय*-वि० दे० 'क्षमणीय'। भय, खतरा। -चिह्व-पु० (स्कार) चोट लगने, जल जाने। क्षमवाना-स० क्रि० 'क्षमना'का प्रेरणार्थक रूप । या फोड़े आदिके कारण पड़ा हुआ निशान। -ज-पु० क्षमा-स्त्री० [सं०] परकृत अपकार, अपराधको बिना क्रोध रक्त; पीब । वि० घावसे उत्पन्न । -०कास-पु० फेफड़े में किये या दंड-प्रतीकारकी बात सोचे सह लेनेवाली चित्तजख्म होनेसे पैदा हुई खाँसी जिसमें कफके साथ खून वृत्ति, दरगुजर, माफी, सहनशीलता; धरती; दुर्गा; बेतवा
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क्षमाना- क्षुधा
राजा - भृत् पु० - युक्त, - शील- वि०
नदी; दक्षकी एक कन्या; एककी संख्या; खदिर वृक्ष; एक वृत्त । - भुक् (ज्) - पु० पहाड़ | - मंडल - पु० भूमंडल । क्षमा करनेवाला, सहनशील । क्षमाना * - स० क्रि० क्षमा कराना । क्षमान्वित - वि० [सं०] दे० 'क्षमायुक्त' ।
क्षाम - वि० [सं०] क्षीण, पतला, दुबला; कमजोर; अल्प । क्षार - पु० [सं०] जड़ी-बूटियोंकी राख या खनिज द्रव्योंका रासायनिक विधिसे बनाया हुआ नमक, खार; नमक; शोरा; सुहागा ; काला नमक; जवाखार; काँच; राख । वि० खारा; क्षरणशील | - लवण - पु० खारी नमक | क्षारित -- वि० [सं०] टपकाया हुआ । क्षारोद क्षारोदक, क्षारोदधि - पु० [सं०] लवणसमुद्र । क्षालन - पु० [सं०] धोना, साफ करना । क्षालित - वि० [सं०] धोया हुआ, साफ किया हुआ । क्षिति- स्त्री० [सं०] पृथ्वी; घर, वासस्थान; क्षय; प्रलयकाल; एककी संख्या । - ज - पु० वृक्ष; मंगल ग्रह; केंचुवा; वह स्थान जहाँ धरती और आकाश मिले हुए दिखाई देते हैं, दृष्टिसीमा ; नरकासुर । -जा-स्त्री० सीता । - तनय
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१८०
पु० मंगल ग्रह । - तनया - स्त्री० सीता । -देव- पु० ब्राह्मण । - घर - पु० पहाड़ । -नंदन, सुत- पु० मंगल ग्रह । - नाग - पु० केंचुवा । - नाथ, पति, प्राण, - - भुक् (ज्) - पु० राजा । - मंडल - पु० भूमंडल | - रुह - पु० वृक्ष ।
क्षितींद्र, क्षितीश, क्षितीश्वर - पु० [सं०] राजा । क्षिप्त - वि० [सं०] फेंका हुआ; त्यागा हुआ; अवज्ञात, उपेक्षित; चंचल; बहिर्मुख (चित्त); वातरोगग्रस्त | पु० चित्तकी पाँच वृत्तियोंमेंसे एक (योग०) ।
क्षमापन - पु० [सं०] क्षमा कराना, माफी माँगना । क्षमावान् (वत्) - वि० [सं०] दे० 'क्षमायुक्त' । क्षमित- वि० [सं०] क्षमा किया हुआ । क्षमता (तृ) - वि० [सं०] क्षमाशील, सहिष्णु । क्षमी (मिन्) - वि० [सं०] क्षमाशील; समर्थ । क्षम्य - वि० [सं०] क्षमा करने योग्य । क्षयंकर - वि० [सं०] नाश करनेवाला, क्षयकारक । क्षय- पु० [सं०] वासस्थान; छीजन, हास; नाश; अर्थहानि; मूल्यादिका गिरना; प्रलय; यक्ष्मा रोग; ६० संवत्सरोंमेंसे अंतिम । - कर- वि० क्षयकारक । -कारी रोगपु० (वेस्टिंग डिजीज ) क्रमशः क्षीण या दुर्बल करते जानेवाला रोग । -काल- पु० प्रलयकाल । -तिथिस्त्री० वह तिथि जो व्यवहार में लुप्त मानी जाय । -मासपु० दो संक्रांतियोंवाला चांद्र मास जो १४१ वें वर्ष और कभी-कभी १९ वें वर्ष भी आता है, हीन मास । -रोगपु० एक दुस्साध्य रोग जिसमें रोगीको सदा मंदज्वर बना रहता है और उसके फेफड़े में जख्म हो जाता है । क्षयाह- पु० [सं०] वह चांद्र दिन जो चांद्र और सौर पंचांग में मेल बैठाने के लिए छोड़ दिया जाता है । क्षयिष्णु - वि० [सं०] क्षय होनेवाला, छीजनेवाला, नश्वर । क्षयी (यिन) - वि० [सं०] क्षय होनेवाला; क्षय रोगग्रस्त; नष्ट होनेवाला । पु० चंद्रमा ।
क्षीण - वि० [सं०] दुबला-पतला, कमजोर; घटा हुआ; क्षतिग्रस्तः क्षयप्राप्तः मृतः समाप्त; थोड़ा; निर्धन । -कायवि० दे० ' क्षीणशरीर' । -चंद्र- पु० सात या इससे कम कलाओंवाला चंद्रमा । -धन- वि० जिसके पास पैसा न रह गया हो, निर्धन । - पुण्य - वि० जो अपने सब पुण्य कर्मों का फल भोग चुका हो। -वित्त-वि० दे० 'क्षीणधन' । - शक्ति - वि० जिसकी शक्ति नष्ट हो गयी हो । - शरीर - वि० दुबला-पतला, कमजोर । क्षीयमाण-वि० [सं०] जो बराबर घटता, छीजता जाय । क्षीर-पु० [सं०] दूध; बरगद, गूलर आदि वृक्षोंसे निकलनेवाला दुग्धरूप रस; जल । -कांडक - पु० थूहड़; मदार । - ज - पु० चंद्रमा; दही; मक्खन; अमृत; कमल । वि० दूधसे उत्पन्न । - जा - स्त्री० लक्ष्मी । - धात्री - स्त्री० दूध पिलानेवाली धाय । -धि-निधि-पु० समुद्र; क्षीरसागर। -प-पु० दुधमुहाँ बच्चा । - समुद्र, - सागर - पु० पुराण वर्णित सात समुद्रों मेंसे एक । क्षीराब्धि - पु० [सं०] क्षीरसागर ।
क्षय्य - वि० [सं०] जिसका क्षय हो सके ।
क्षर - वि० [सं०] चल; नाशमान | पु० जल; बादल; देह; क्षीरोद - पु० [सं०] क्षीरसमुद्र । - तनया - स्त्री० लक्ष्मी । क्षीरोदधि - पु० [सं०] क्षीरसागर ।
अज्ञान ।
क्षरण - पु० [सं०]चूना, रसना; छूटना; उँगलियोंका पसीजना । क्षीरोदन- पु० [सं०] दूधमें पका हुआ चावल, खीर । क्षरित - वि० [सं०] स्रवित, चुआ हुआ । क्षांत - वि० [सं०] क्षमाशील, सहनशील; क्षमा किया हुआ । क्षांति - स्त्री० [सं०] क्षमा, सहिष्णुता । क्षात्र - वि० [सं०] क्षत्रिय संबंधी; क्षत्रियोचित । पु०क्षत्रियका कर्म; क्षत्रिय जाति; क्षत्रियत्व ।
क्षुण्ण - वि० [सं०] चूर किया हुआ; पिसा हुआ; खंडित; दलित; अनुगत; पराजित; अभ्यस्त ।
क्षुत् स्त्री० [सं०] भूख, क्षुधा; छींक । -पिपासा - स्त्री० भूख-प्यास ।
क्षुद्र - वि० [सं०] छोटा, नन्हा; तुच्छ, नीच, खोटा, ओछा; कंजूस | पु० चावलका कण, खुद्दी मधुमक्खी या बरें । - कुलिश - पु० एक बहुमूल्य पत्थर, बैक्रांत मणि । - घंटिका - स्त्री० एक तरहकी करधनी जिसमें घंटियाँ या घुंघरू लगे रहते हैं । - प्रकृति - वि० खोटे, ओछे स्वभाववाला । - बुद्धि-वि० ओछे विचारवाला, जो सदा छोटी, ओछी बातें सोचे, देखे ।
क्षिप्र - वि० [सं०] तेज, शीघ्रगामी; लचीला । अ० जद, तत्काल । - हस्त - वि० जिसका हाथ तेजीसे चले; तेज काम करनेवाला |
क्षुद्रता - स्त्री० [सं०] छोटाई, नीचता, ओछापन । क्षुद्रा - स्त्री० [सं०] मक्खी; मधुमक्खी; वेश्या; अमलोनी । क्षुद्रात्मा (त्मन्) - वि० [सं०] नीच, हीन विचारवाला । क्षुद्रावली - स्त्री० [सं०] क्षुद्रघंटिका । क्षुद्राशय - वि० [सं०] छोटी, ओछी तबीयतका । क्षुधा - स्त्री० [सं०] भूख, भोजनेच्छा । - निवृत्ति - स्त्री० भूखकी शांति, पेट भरना ।
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क्षुधातुर-क्ष्मा क्षुधातुर, क्षधार्त-वि० [सं०] भूखा, भूखसे पीड़ित ।। क्षेत्रिय-वि० [सं०] खेत-संबंधी खेतमें उपजा हुआ। क्षुधावंत-वि० भूखा ।
क्षेत्री(विन्)-वि० [सं०] क्षेत्रस्वामी । पु० किसान । क्षुधित-वि० [सं०] भूखा।
क्षेप-पु० [सं०] फेंकना; उछालना; भेजना; हिलाना; क्षुप-पु० [सं०] छोटे तने, डालियोंवाला पेड़, झाड़। बिताना; आघात; विलंब; डाँड़ चलाना; निंदा; अपमान; क्षुपक-पु०, क्षुपा-स्त्री० [सं०] झाड़ी।
आक्षेप; दर्प; लेपन, पुष्पगुच्छ । क्षुब्ध-वि० [सं०] क्षोभयुक्त, उत्तेजित, अशांत; भीत; क्षेपक-वि० [सं०] फेंकनेवाला; मिलाया हुआ; अपमानखफा, जिसमें जोरकी लहरें उठ रही हो, तूफानी जनक । पु० (पुस्तकादिमें) पीछेसे मिलाया, बढ़ाया हुआ (समुद्र)।
अंश; कर्णधार; डाँड खेनेवाला । क्षुभित-वि० [सं०] अशांत; भीत; क्रुद्ध ।
क्षेपण-पु० [सं०] फेंकना; हिलाना; झटकना; फेंककर क्षुर-पु० [सं०] छुरा, उस्तुरा खुरः चारपाईका पावा। मारना; निंदा, आक्षेप करना; बिताना फेंकनेका साधन
-कर्म(न्)-पु०,-क्रिया-स्त्री० छुरेसे मूंड़ना, क्षौर । (ढलवाँस आदि)। क्षुरिका-स्त्री० [सं०] छुरी पालक ।
क्षेपणि-पु०, क्षेपणी-स्त्री० [सं०] डाँड़, मछली पकड़ने क्षुरी(रिन्)-पु० [सं०] नाई; खुरवाला पशु ।
का जाल; ढेलवाँस या गुलेल । क्षुल्ल-वि० [सं०] छोटा; थोड़ा, अल्प ।-तात-पु. बापका | क्षेपणीय-वि० [सं०] फेंकने योग्य; जो फेंका जा सके। छोटा भाई, छोटा चचा।
क्षेप्ता(प्त)-वि० [सं०] फेंकनेवाला । क्षेत्र-पु० [सं०] खेत; जमीन; स्थान; उत्पत्तिस्थान; घर क्षेमंकरी-स्त्री० [सं०] देवी-विशेष ।
सिद्ध स्थान; तीर्थस्थान; वह स्थान जहाँ भोजन क्षेमकरी(रिन)-पु०[सं०] एक तरहकी सफेद चील जी वितरित होता है, सत्र; उर्वरा भूमि; पत्नी; कार्य- शुभ मानी जाती है। (हिं० में स्त्री०) (विशेष)का स्थान; मैदान; कार्यके लिए अवकाश; देहक्षेम-पु० [सं०] कुशल, मंगल; सुरक्षा प्राप्त वस्तुकी रक्षा अंत:करण; राशि (कर्क, मिथुन आदि); रेखाओंसे घिरा (योगक्षेम); मुक्ति आधारविश्रामस्थान; नक्षत्र, चोवा । स्थान; ज्ञानेंद्रियों, कर्मेंद्रियों, शब्द, स्पर्श आदि तथा मन, क्षैण्य-पु० [सं०] दुबलापन, क्षीणता; क्षय । इच्छा, द्वेष आदिका समाहार (गीता)।-कर,-कर्षक- | क्षेप्र-पु० [सं०] क्षिप्रता। पु० किसान । -गणित-पु० खेत, जमीनका रकबा निका- क्षोणि, क्षोणी-स्त्री० [सं०] धरती; एककी संख्या ।-देवलनेकी विद्या, भूमिति, रेखागणित । -ज-वि० खेतमें | पु० ब्राह्मण ।-पति,-पाल-पु०राजा ।-रुह-पु०वृक्ष । उपजा हुआ; शरीरसे उत्पन्न । पु० विधिवत् नियुक्त पुरुषसे । क्षीद-पु० [सं०] चूर्ण, धूल; चूर करना; पीसना सिल । उत्पन्न पुत्र (धर्मशास्त्रमें जायज माने हुए. १२ प्रकारके -क्षम-वि० परीक्षामें टिकनेवाला। पुत्रोंमेंसे एक)। -जात-वि० परपुरुष द्वारा उत्पन्न क्षोभ-पु० [सं०] हलचल, खलबली; व्याकुलता रोष । (संतान)। -दूरेक्षिका-स्त्री० (फील्ड ग्लासेज) खेत या | क्षोभक-वि० [सं०] क्षुब्ध करनेवाला । मैदान आदिमें प्रयुक्त होनेवाला दूरकी वस्तु देखनेका यंत्र। क्षोभण-वि० [सं०] क्षोभकारी। पु० क्षुब्ध करना; काम-पति-पु० खेत, जमीनका मालिक । -पाल-पु० देवका एक बाण । खेतकी रखवाली करनेवाला भैरवका एक भेद । -फल- क्षोभना*-अ० क्रि० व्याकुल होना; भीत या ऋद्ध होना; पु० खेत, स्थान, रेखागणितकी शक्का रकबा, उसकी | चित्तका चलायमान होना । लंबाई-चौड़ाईका गुणनफल (एरिया)। -माप-पुस्तिका- | क्षोभित*-वि० क्षोभयुक्त । स्त्री० (फील्डबुक) खेतों, भूमि आदिकी माप या पैमाइश क्षोभी(भिन्)-वि० [सं०] क्षोभयुक्त, क्षुब्ध; व्याकुल । करते समय काममें आनेवाली पुस्तिका। -मिति-स्त्री० क्षोम-पु० [सं०] दुमंजिलेपरका कमरा; अटारी; अलसी क्षेत्रगणित, भूमिति । -रक्षक-पु. (फील्डर) क्रिकेट, आदिके रेशोंसे बना हुआ कपड़ा। बेसबाल आदिके खेल में क्षेत्ररक्षणका काम करनेवाला क्षौणि, क्षोणी-स्त्री० [सं०] पृथ्वी; एककी संख्या। खेलाड़ी। -रक्षण-पु०,-रक्षा-स्त्री० (फील्डिंग) क्रिकेट, क्षौद्ग-पु० [सं०] क्षुद्रता; चंपाका पेड़; छोटी मक्खीका बेसवाल आदिके मैदानमें खड़े होकर बल्लंबाज द्वारा आहत शहद; जल । गेंदको रोकने, लोकने तथा फेंकनेवालेके पास लौटा देने क्षौद्रेय-पु० [सं०] मोम । आदिका काम।
क्षौम-वि० [सं०] अलसी आदिसे बना हुआ। पु० अलसी क्षेत्राधिकार-पु० [सं०] (जूरिस्डिक्शन) किसी विशेष | आदिके रेशोंसे बना हुआ कपड़ा; अलसी रेशमी कपड़ा। क्षेत्रके या विशेष प्रकारके मुकदमे सुननेका अधिकार। छतके ऊपरका (हवादार) कमरा; अटारी । क्षेत्राधिप-पु० [सं०] खेतका मालिक राशीश । क्षौर-पु० [सं०] सिर आदिके बाल मूंड़ना, कतरना, क्षेत्रापखंडन-पु० [सं०] (कॅगमेंटेशन आफ होल्डिग्ज) | हजामत बनाना। -कर्म(न्)-पु० हजामत बनाना। बँटवारेके कारण खेतका या जोतका छोटे-छोटे टुकड़ोंमें -मंदिर-पु० दे० 'क्षौरालय' । विभक्त हो जाना।
क्षौरालय-पु० [सं०] (बार्बर्स सैलून) बाल बनवानेकी क्षेत्राभिरक्षक-पु० [सं०] (वार्डन) नागरिक संघटनका वह | दुकान। . अधिकारी जो हवाई हमलेके समय क्षेत्र विशेषके नागरिकों- क्षौरिक-पु० [सं०] नाई । की रक्षाके काममें सहायता करे।
क्ष्मा-स्त्री० [सं०] धरती । -धर-पु० पहाड़ ।
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ख- ख
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खंख - वि० छूछा, खाली; उजाड़ । खंखर* - वि० वीरान, उजड़ा हुआ । खँखारना - अ० क्रि० दे० 'खखारना' | खंग - पु० दे० 'खड्ग' ;* गैंडा । स्त्री० घाव | खंगना * - अ० क्रि० घटना, कमी होना । खगहा - वि० खाँगवाला, सँगैल । पु० गैड़ा । खंगारना - स०क्रि० दे० 'खँगालना' । खंगालना-स० क्रि० मॅजे-धुले बरतनको पूरी सफाई के लिए फिरसे धोना; सब कुछ उठा ले जाना; साफ करना; खाली करना; झाड़ू फेर देना ।
खँगी* - स्त्री० कमी ।
गुवा - पु० गैड़ेका सींग |
खगैल - वि० खाँगवाला, दंतैला; जिसके खुर पके हों । खंचिया - स्त्री० छोटा खाँचा, टोकरी ।.
खँचैया' - पु० खींचनेवाला ।
खंज - वि० [सं०] लँगड़ा । - खेट, - खेल - पु० खँड़रिच । खँजड़ी-स्त्री० डफलीके ढंगका, आकार में उससे छोटा,
ख
ख- पु० देवनागरी वर्णमाला के कवर्गका दूसरा अक्षर । इसका उच्चारणस्थान कंठ है ।
रद करना; दूसरे के मतका युक्तिपूर्वक निराकरण | वि०तोड़ने, काटनेवाला । - मंडन - पु० खंडन और मंडन; बहस, विवाद |
खंडना *-स० क्रि० खंडित करना; निराकरण करना; टुकड़ेटुकड़े करना ।
खंडनी - स्त्री० मालगुजारीकी किस्त । खंडनीय - वि० [सं०] खंडन करने योग्य | खँडरना* - स० क्रि० खंड-खंड करना, टुकड़े-टुकडे करना । खंड - पु० बेसनका बना एक पकवान | खँड़रिच - पु० खंजरीट ।
खंडला - पु० टुकड़ा, कतला ।
खंडशः - अ० [सं०] खंड-खंड करके, कई खंडोंमें बाँटकर । खँडहर - पु० टूह, गिरे हुए मकानका अवशेष; गिरा, ढहा हुआ मकान |
खंडित - वि० [सं०] तोड़ा हुआ, टुकड़े किया हुआ; टूटा हुआ, भग्न; गलत ठहराया हुआ, निराकृत । खंडिता - स्त्री० [सं०] नायकमें अन्य स्त्रीसे संभोग के चिह्न देखकर कुपित हुई नायिका |
खंडिया - पु० ऊखकी गडेरियाँ बनानेवाला । स्त्री० टुकड़ा । खंडी - स्त्री० बीस मनकी एक तौल या माप । खंडोष्ट - पु० [सं०] ओठका एक रोग । खंडौरा - पु० मिसरीका लड्डू, 'ओला' । ख़तरा - पु० दरार, अंतरा, छोटा गड्ढा ( प्रायः 'कोना'के साथ अंत में आता है ) ।
खंता - पु० मिट्टी खोदनेका औजार; कुदाल; वह गडढा जिसमें से कुम्हार मिट्टी लाते हैं ।
एक बाजा ।
खंजन- पु० [सं०] एक प्रसिद्ध छोटी चिड़िया जो मैदानी प्रदेशोंमें केवल जाड़ेमें दिखाई देती है, खंडरिच; लँगड़ाते हुए चलना ।
खंजर - पु० [अ०] कटार, एक तरहका बड़ा छुरा । खंजरी - स्त्री० दे० 'खँजड़ी' ।
खंजरीट, खंजरीटक - पु० [सं०] खंजन | खंड- पु० [सं०] टुकड़ा; भाग; ग्रंथका विभागः देश; समूह; सभीकरणकी एक क्रिया (ग०); खाँड़, चीनी *दिशा; खाँड़ा । - काव्य - पु० छोटा काव्य, वह काव्य जिसमें महाकाव्य के पूरे लक्षण न हों। पति-पु० राजा | - परशु - पु० शिव; परशुराम; विष्णु । - पाल- पु० हलवाई । - प्रलय - पु० ब्रह्माका एक दिन एक हजार चतुर्युगी - बीतनेपर होनेवाला आंशिक प्रलय जिसमें पुराणानुसार स्वर्ग से नीचेके सब लोकोंका नाश हो जाता हैं । -मेरु- पु० पिंगलकी प्रस्तार-संबंधी एक रीति । वर्षा - स्त्री० वह वर्षा जो नगरादिके कुछ भागों में हो, कुछ न हो। - शर्करा - स्त्री० मिसरी । खंड-पु० खाँड (केवल समासमें व्यवहृत रूप ) । - पूरी - स्त्री० मेवा, शक्कर मिली सूजी, खोया आदि भरकर बनायी हुई मोयनदार पूरी । - वरा- पु० खँड़ौरा | - वानी - स्त्री० खाँड़का शरबत; बरातियोंके सत्कार के लिए शरबत भेजे जानेकी एक रस्म ( खंड - खाँड़ + पानी) । - सार, - साल - स्त्री० देशी ढंगसे चीनी बनानेका कार खाना। - सारी - स्त्री० एक तरहकी देशी चीनी । खंडक - वि० [सं०] खंडन करने या काटनेवाला; हटानेवाला । खंडत* - वि० खंडित ।
खंडन - पु० [सं०] काटना; तोड़ना; नाश करना; हानि करना; निराश करना (प्रणय); किसी बातको गलत बताना,
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खंदक - स्त्री० [अ०] खाई, गहरा गड्ढा । खंदा* -- पु० खोदनेवाला । बँधवाना+ - स० क्रि० खाली कराना (पात्र ) । खँधार* - पु० तंबू ; छावनी; सरदार | खंभ - पु० स्तंभ, खंभा; सद्दारा ।
खंभा - पु० पत्थर, लकड़ी, लोहे या ईंटों आदिका बना लंबा आधार; सहारा ।
खँ (खं) भार* - पु० चिंता; डर; घबड़ाहट; शोक । खँभिया - स्त्री० छोटा खंभा । खँसना - अ० क्रि० गिरना, खसकना ।
ख - पु० [सं०] शून्य स्थान, आकाश; सूर्य; शून्य, बिंदी; स्वर्ग; पुर, नगर; क्षेत्र; अभ्रक; ज्ञानेंद्रिय; ज्ञान; लग्नसे दसवाँ स्थान; ब्रह्म; सुख; कर्म; गड्ढा; छेद; निकास; श्वासनलिका; जख्म । - कक्षा - स्त्री० आकाशकी परिधि । - कुंतल - पु० व्योमकेश, शिव । - गंगा - स्त्री० आकाशगंगा । - ग - पु० पक्षी; सूर्य ग्रह; वायुः बादल; चंद्रमा; बाण; देवता । -0 केतु, - नाथ, पति - पु० गरुड़ । - गोल, - गोलक - पु० आकाशमंडल | -ग्रासवि० सर्वग्रास ( ग्रहण) । - चित्र -५० असंभव बात । - द्योत - पु० सूर्य; जुगनू । - द्योतन - पु० सूर्य । - पुष्प५० असंभव कल्पना, आकाशकुसुम । -मणि-पु० सूर्य । - विद्या - स्त्री० ज्योतिष विद्या ।
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खई-खटाना खई*-स्त्री० नाश, क्षय युद्ध; झगड़ा-'सुत सनेह तिय खट-स्त्री० दो चीजोंके टकरानेकी ध्वनि । -खट-स्त्री० सकल कुटुम मिलि निसिदिन होत खई-सू० ।
खटखटकी आवाजझमेला, खटराग; झगड़ा; किचकिच । खक्खा-पु० कहकहा, अट्टहास; अनुभवी व्यक्ति; बड़े । -खटा-पु० पक्षियोंको भगानेके लिए वृक्षोंमें बाँधा जानेडील-डौलका हाथी।
वाला बाँसका टुकड़ा। -पट-स्त्री० खट-खटकी आवाज खखरा-वि० झीना । पु० बाँसका बना टोकरा; देग। अनबन, झगड़ा। -पटिया-वि० झगड़ालू ; उपद्रवी । खखार-पु० गाढ़ा-लमदार बलगम ।
पु० काठकी बनी चप्पल, चट्टी। -से-तुरत । खखारना-अ०क्रि० खखार निकालना, थूकना, खरखरा- खट-स्त्री० खाटका लघु रूप (केवल समासमें व्यवहृत)। हटके साथ गले में चिपका हुआ कफ निकालना; संकेत- -कीड़ा,-कीरा-पु० खटमल । -पाटी-स्त्री० खाटकी रूपमें खाँसना।
पाटी। -बुना-पु० खाट बुननेवाला ।-मल-पु० मैली खखेटना*-स० क्रि० खदेड़ना; दबाना; छेदना; घायल खाट, बिस्तर आदिमें पैदा होनेवाला एक ऊष्मज कीड़ा करना; व्याकुल करना।
जो आदमीका खून पीकर जीता है, मत्कुण । -मलीखखेटा, खखेट्यो*-पु० छिद्रः शंका, खटका ।
वि० खटमलके रंगका । -मुत्ता-वि० सोते समय खाटपर खगन*-अ० क्रि० गड़ना, चुभना; चित्तमें बैठना; अनुरक्त पेशाब कर देनेवाला (बच्चा) । मु०-पाटी,-वाटी लेनाहोना; चिह्नित होना, उपट आना; असर होना।
(स्त्रीका) मान या क्रोधसे खाटपर, पाटीसे लगकर, पड़ खगांतक-पु० [सं०] बाज ।
रहना। खगेंद्र, खगेश-पु० [सं०] गरुड़ ।
खट-वि० खट्टाका समासमें व्यवहृत रूप। -मिट्ठा,खग्गा *-पु० दे० 'खड्ग'।
मीठा-वि० जिसमें खटास-मिठास दोनों हों; खट्टा-मीठा खचन-पु० जड़ने, उलझने या अंकित होनेकी क्रिया। । (फल)। खचना*-अ० क्रि० जड़ा जाना; अंकित होना; उलझ खट*-वि० छः। -करम-टेढ़े विधि-विधानवाला पूजन, जाना; रम जाना । स० क्रि० जड़ना; अंकित करना। अनुष्ठान; झमेला, खटराग । -करमी-पु० खटकरम खचरा-वि० दोगला; नीच ।
करने, खटराग फैलानेवाला । -पद-पु० दे० 'षट्पद' । खचाखच-अ० बिलकुल (मरा हुआ), ठसाठस ।
-पदी-स्त्री० दे० 'षट्पदी' । -मुख-पु० दे० 'षण्मुख' । खचाना*-स० क्रि०चिह्न-लकीर-बनाना, खचित करना; -रस-वि० दे० 'पटस' । -राग-पु० झंझट, झमेला; तेजीसे लिखना।
काठकबाड़ (फैलाना)। खचित-वि० [सं०] अंकित; चिह्नित; आबद्ध; जड़ा हुआ। | खटक-स्त्री० खटकनेका भाव; चुभन, टीसा दुःखशिकाखचिया -स्त्री० दे० 'बँचिया'।
यत; खटका, आशंका (बखटक)। खच्चर-पु० घोड़ेसे मिलता-जुलता एक जानवर जो घोड़े खटकना-अ० क्रि० चुभना; गड़ना; बुरा लगना, अनुचित और गधेकी मिश्र संतति है।
जान पड़ना; उचटना; बिगाड़ होना; खटपट शब्द होना। खज*-वि० खाद्य, खाने योग्य ।
खटका-पु० खट-खटकी आवाज; आशंका; चिता; पेच, खजला-पु० खाजेकी तरहकी एक मिठाई ।
पुरजा; सिटकिनी; पक्षियोंको उड़ानेके लिए वृक्षमें बाँधा खजहजा*-पु० खाने योग्य अच्छा फल; मेवा ।
जानेवाला बाँसका टुकड़ा, खटखटा। खजांची-पु० [फा०] खजानेका अधिकारी, कोषाध्यक्ष। । खटकाना-स० क्रि० खटखटाना; भड़काना; अनबन, खज़ानची-पु० दे० 'खजांची'।
बिगाड़ कराना। ख़ज़ाना-पु० [फा०] रुपया, सोना-चाँदी रखनेका स्थान, खटविका-स्त्री० [सं०] खिड़की। कोप, धनागार, भंडार, धन-माल; बंदूकमें बारूद रहनेका | खटखटाना-स० क्रि० किसी चीजको पीट, हिलाकर खटस्थान; राजस्व । -(ने) की हुंडियाँ-स्त्री. (ट्रेजरी | खटकी आवाज निकालना; याद दिलाना, टोकना । बिल्स) वे अस्थायी हुंडियाँ जो तात्कालिक आवश्यकताएँ | खटना-अ० क्रि० कठोर श्रम करना, पिसना; धनोपार्जन पूरी करनेके लिए धन प्राप्त करनेके निमित्त राज्यके करना, कमाना। खजानेसे जारी की जायँ, कोपविपत्र ।
खटला-पु० बाल-बच्चे, परिवार; पत्नी; कानमें बाली खजीना-पु० [फा०] खजाना, कोश ।
पहननेका छेद । खजुआ(वा)-पु० खाजा खजला; भटवाँस ।
खटाई-स्त्री० खटास, तुी; खट्टी चीज (आम, इमली खजुराही -स्त्री० खजूरका बाग ।
आदि)। मु०-में डालना-गहना साफ करनेके लिए खजुलाना-स० कि० दे० 'खुजलाना'।
खटाई (इमली आदि) में डालना; (किसी कामको) टाल खजुली-स्त्री० दे० 'खुजली'; एक मिठाई ।
देना, लटकाये रखना, कुछ तै न करना । -में पड़नाखजूर-पु० ताड़की जातिका एक पेड़ जिसका रस ताड़ी- खटाईमें डाला जाना (सभी अर्थों में)। की तरह पिया जाता है और उससे गुड़-शकर भी बनाते खटाका-पु० 'खट'की आवाज । हैं; मैदेकी बनी एक मिठाई । -छड़ी-स्त्री० एक रेशमी खटाखट-पु० खटखटकी आवाज । अ० खटखटकी आवाज कपड़ा जिसपर खजूरकी पत्तियोंकीसी धारियाँ होती है। | करते हुए; तुरत, तत्काल । खजूरी-वि० खजूरका खजूरके (पत्तेके) आकारका (खजूरी खटाना-अ० किं खटास आना, खट्टा हो जाना; निबाह चोटी)। * स्त्री० खजूर ।
| होना; टिकनापरखमें ठीक उतरना । स० क्रि० कसके १२-क
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खटापटी-खता
१८४ काम लेना।
सहायक होना; चुनावमें उम्मेदवार होना। खटापटी-स्त्री० झगड़ा, विरोध, अनबन ।
खड़ाऊँ-स्त्री० काठकी बनी खूटीदार, खुली पादुका । खटास-स्त्री० खट्टापन, तुशी । पु० गंधबिलाव, खट्टाश। | खड़ाका-पु० खड़कनेका शब्द । खटिक-पु०फल, तरकारी आदि बेचनेवाली एक हिंदू जाति । खड़ानन*-पु० कात्तिकेय । खटिका-स्त्री० [सं०] खड़िया मिट्टी कानका छेद । खड़िका-स्त्री० [सं०] खड़िया मिट्टी। खटिया-स्त्री० छोटी चारपाई ।
खड़िया-स्त्री० सफेद, मुलायम मिट्टी या एक तरहके चूनेका खटीक-पु० तरकारी बेचनेका काम करनेवाली एक हिं पत्थर जो लिखने और सफेदी आदिके काममें आता है। जाति; * कसाई।
खड़ी-स्त्री० खड़िया मिट्टी। वि० स्त्री० दे० 'खड़ा'। खटोलना*-पु० दे० 'खटोला'।
-चढ़ाई-स्त्री० सीधी, बहुत कम ढालवाली चढ़ाई । खटोला-पु० छोटी खाट; बुंदेलखंडके अंतर्गत एक प्रदेश ।। -तैराकी-स्त्री० खड़े रहकर, केवल पाँव चलाते हुए खट्टा-वि० जिसमें खटास हो, तुर्श, अम्ल । मु०- तैरना। -पाई-स्त्री० सीधी, छोटी रेखा; मात्राएँ खाना-नीचा देखना; विफल होना; दिल फिर जाना। लिखने में अक्षरके आगे या पीछे बनायी जानेवाली सीधी (जी)-होना-अप्रसन्न होना।
लकीर; पूर्ण विरामका चिह्न । -बोली-स्त्री० दिल्लीखट्वांग-पु० [सं०] पाया जड़ी हुई पाटी जो शिवका मेरठ प्रदेशकी बोली जो आधुनिक हिंदीका मान्य रूप है। अस्त्र बतायी जाती है। प्रायश्चित्त करते समय भिक्षा -लकीर-स्त्री० लंबके रूपमें सीधी लकीर । -सवारीम.गनेका पात्र । -धर-पु० शिव ।
अ० तुरत, खड़े-खड़े (रुखसत करना)।-हुंडी-स्त्री० वह खटवा-स्त्री० [सं०] खाट, चारपाई झूला।
हुंडी जिसका रुपया चुकाया न गया हो। मु०-पछाड़ें खञ्जा -पु० ईटोंकी खड़ी जोड़ाई ।।
खाना-खड़े हो-होकर गिर पड़ना, पछाड़ें खाना । खड़कना-अ० कि.० 'खड़-खड़की आवाज होना; सूखे -सवारी आना-तुरत लौट जानेको तैयार होना। पत्तोंके परस्पर टकराने या दबनेकी आवाज होना, खाँड़े-खड़े-खड़े-अ० खड़ा रहते हुए; ( देरतक) खड़ा रहनेसे; तलवारके बक्तर आदिपर गिरनेकी आवाज होना; खटकना। | जल्दी, तुरत; थोड़ी देर, कुछ क्षणके लिए। खड़काना-स० कि० खटकाना ।
खड़ेघाट-अ० तुरत । मु०-धोना-घाटपर ही कपड़ा लेकर खडक्किका, खडक्की-स्त्री० [सं०] खिड़की।
बिना भट्ठी दिये धो देना; कुछ घंटोंमें ही कपड़ा धो देना। खड़खड़ाना-अ० कि०'खड़-खड़'आवाज होना, निकलना। खड्ग-पु० [सं०] तलवारकी शकका एक प्राचीन अस्त्र, स० कि० किसी चीजको पीट, बजाकर खड़-खड़ आवाज खाँड़ा; तलवार; लोहा। गैंडेका सींग गैंड़ा।-कोश(ष)पैदा करना, खटखटाना।
पु० खड्ग या तलवारका म्यान । -धर-वि०, पु०तलवार खड़खड़ाहट-स्त्री० खड़-खड़की आवाज; खड़खड़ आवाज
धारण करनेवाला। -पुत्रिका-स्त्री० कटार। -फलहोना।
पु० खगकी धार । -हस्त-वि० जिसके हाथमें खड्ग, खड़खड़िया-स्त्री० एक तरहकी (पटिया) पालकी; घोड़ोंको तलवार हो; मारनेको उद्यत । शिक्षा देनेके काम आनेवाली एक प्रकार की गाड़ी। खड्गी (गिन् )-वि० [सं०] खड्गधारी । पु० गैड़ा; शिव। . खड़ग-पु० दे० 'खग'।
खडु-पु० गड्ढा । खड़गी-वि० खड्गधारी । पु० गैंड़ा।
खड्डा-पु० दे० 'खड्डे' । खड़जी-पु० गैड़ा।
खत*-पु०क्षत, घाव । -खोट-स्त्री० खुरंड, सूखते हुए खड़बड़-स्त्री० पत्थर, धातु आदिकी चीजोंके टकराने, घावके ऊपर जमी पपड़ी। गिरने आदिकी आवाज; गड़बड़, गोलमाल; खलबली। | खत(त्त)-पु० [अ०] लकीर, रेखा; चिह्न लिखावट पत्र, खड़बड़ाना-अ० क्रि० घबराना; क्रम बिगड़ जाना; अस्त- | चिट्ठी; लेख, तहरीर; नयी उगती दाढ़ी-मूंछोंके रोयें जैसे व्यस्त हो जाना । स० क्रि० खड़बड़ करना; क्रम उलट- बाल, रेख; सूरत-शकल, हुलिया। -किताबत-स्त्री० पुलट देना।
पत्र-व्यवहार, चिट्ठी-पत्री। खड़बड़ाहट-स्त्री० खड़बड़ी।
खतना-पु० [अ०] मुसलमान बच्चे के लिंगके अगले खड़बड़ी-स्त्री० बेतरतीबी; खलबली; घबराहट ।
हिस्सेकी त्वचा काट देनेकी रस्म या संस्कार, सुन्नत । खड़मंडल-पु० गड़बड़, गोलमोल ।
खतम-वि० [अ०] दे० 'खत्म'। खड़ा-वि० सीधा ऊपरको उठा हुआ, लंबरूप पाँवोंके खतमी-स्त्री० एक पौधा जिसकी जड़ और बीज दवाके सहारे स्थित, स्थिर, ठहरा हुआ; रुका हुआ तैयार; उप- | काम आते हैं। स्थित; उद्यत; बाकी; मौजूद; कच्चा, अपक्का जारी; जो खतर, खतरा-पु० [अ०] डर, भय, आशंका; जोखिम । काटा न गया हो, खेतमें मौजूद (खड़ी फसल ); समूचा, -(र)नाक-वि० खतरेवाला, खतरेसे भरा हुआ। साबित; प्रतीक्षामें ठहरा हुआ। -खेत-पु० वह खेत भयजनक । जिसमें फसल मौजूद हो। मु०-करना-तैयार करना | खतरानी-स्त्री० खत्री स्त्री। बनाना; ढाँचा बनाना; कच्ची सिलाई करना; गाड़ना खतरेटा-पु० खत्रीका बेटा; खत्री। (खंभा आदि); चुनाबमें ( मेंबरी आदिका) उम्मेदवार | खता*-पु० क्षत, घाव + फोड़ा। बनाना । -होना-तैयार होना; बनना ढाँचा बननाखता-स्त्री० [अ०] चूक दोष, अपराध; धोखा-'जाहु जनि
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खति-खमीर आगे, खता खाहु मत यारो-भू०। -वार-वि० दोषी, खपची,खपच्ची-स्त्री० बाँसकी फट्टी तीली कबाब भूननेकी अपराधी।
सीख। खति*-स्त्री० दे० 'क्षति' ।
खपड़ा-पु० मिट्टीका पकाया हुआ टुकड़ा जिससे मकान खतियाना-स० क्रि० खातेमें चढ़ाना, लिखना।
छाते हैं। मिट्टीका खप्पर टूटे हुए मिट्टीके बरतनका टुकड़ा। खतियौनी-स्त्री० दे० 'खतौनी'।
खपड़ी-स्त्री० मिट्टीकी ड़ी जिसमें भड़भूजे दाना भूनते खतौनी-स्त्री. वह कागज या बही जिसमें पटवारी हर हैं। ठीकरा, छोटा खपड़ा। काश्तकारकी जोतका रकबा, नवैयत (प्रकार ), लगान खपड़ेल-स्त्री० दे० 'खपरैल'। आदि लिखता है; बही-खाता खतियानेका काम । मु०- खपत-स्त्री० खपनेका भाव; खर्च मालकी बिक्री; निबाह । करना-खातेमें चढ़ाना।
खपना-अ० क्रि० खर्च होना; लगना; बिकना; मरना; खत्ता-पु० गड्ढा; कोई चीज बनाने, रखने आदिके लिए! नाश होना; निबाह होना। वना गड्ढा, प्रांत, स्थान ।
खपरा-पु० दे० 'खपड़ा। खत्ती-स्त्री० छोटा खत्ता या खाता, बखार ।
खपरैल-स्त्री० खपड़ेकी छाजन खपड़ेसे छाया हुआ घर । खत्म-पु० [अ०] अंत, समाप्ति; पूरा होना।
खपाना-स० क्रि० खतम कर देना; तंग करना; मार खदंग-पु० [फा०] तीर, बाण; केकड़ा; चनारका पेड़ । डालना; काममें लाना; बेचना: निभाना। खदंगी*-स्त्री० तीर, बाण ।
खपुआ-*वि० डरपोक । पु० दरवाजेके नीचे चूलको छेदमें खदखदाना, खदबदाना-अ० क्रि० किसी चीजका उबलते । ठीक तरहसे बैठानेके लिए लगायी जानेवाली लकड़ी। समय 'खदबद' शब्द करना।
खप्पड़, खप्पर-पु० मिट्टीका तसले जैसा बरतन; कालीके खदरा-वि०निकम्मा, रद्दी । पु० गड्ढा ।
हाथमें रहनेवाला रुधिरपात्र; भिक्षापात्र; कपाल । खदान-स्त्री० खान ।
ख़फ़गी-स्त्री० [फा०] रोष, नाराजगी, क्रोध । खदिर-पु० [सं०] खैरका पेड़, इंद्र चंद्रमा ।
खफा-वि० [फा०] रुष्ट, नाराज, कुपित । ख़दीव-पु० [तु०] मांडलिक नरेश; भित्रके बादशाहोंकी ख़फ्री-वि० [अ०] हलका; थोड़ा, तुच्छ; लज्जित । उपाधि ।
मु०-होना-लज्जित होना । खदेड़ना-स० क्रि० भगाना; हटाना; पीछा करते हुए। खफ्रीना-स्त्री० [फा०] छोटी रकमोंके दावे सुननेवाली भगाना।
अदालत (स्माल काज कोट); बदचलन औरत । खदेरना-स० क्रि० दे० 'खदेड़ना' ।
खबर-स्त्री० [अ०] सूचना; जानकारी, पता; हाल, समा. खद्दर-पु० हाथका कता-बुना कपड़ा, खादी ।
चार; सँदेसा; चेत, होश। -गीर-वि० खोज-खबर खन-* पु० खंड, मंजिल; छन । अ० तुरत, तत्काल । लेनेवाला; देखरेख रखनेवाला; सहायक। -गीरी-स्त्री० स्त्री० रुपये-पैसे आदिके बजनेकी ध्वनि, खनक ।
खोज-खबर लेना; देख-रेख; सहायता । -दार-वि० खनक-स्त्री० खनकनेकी क्रिया, आवाज; रुपये, चूड़ियों सावधान, चौकन्ना । -दारी-स्त्री० सावधानता, होशि• आदिके बजनेकी आवाज । पु० [सं०] खोदनेवाला; खान यारी। -रसाँ-पु० खबर पहुँचानेवाला, संदेशवाहक । खोदनेवाला; सेंध मारनेवाला; चहा; खान ।
मु०-लेना-खोज-खबर लेना, हाल पूछना; जवाब खनकना-अ० क्रि० खन-खन करके वजना, खनखनाना । तलब करना; डाँटना, फटकारना; दंड देना। खनकाना-स० क्रि० 'खन-खन' ध्वनि उत्पन्न करना; खबरि, खबरिया*-स्त्री० दे० 'खबर' । रुपये आदिको परखने के लिए, बजाना । .
खबीस-वि० [अ०] नापाक; दुष्ट कर । खनकार-स्त्री० खनक, झंकार ।
ख़ब्त-पु० [अ०] झक, सनक, धुन । खनखनाना-अ० क्रि० खनकना। स०वि० खनकाना, खब्ती-वि० [अ०] जिसे खब्त हो, सनकी। रुपया आदि बजाना।
खभर(ड)ना-स० क्रि० मिलाना; हलचल, खलबली खनन-पु० [सं०] खोदना, गोड़ना ।
मचाना। खनना-स० क्रि० खोदना ।
खभार*-पु० घबराहट, परेशानी भय; दुःख । खनयित्री-स्त्री० [सं०] खोदनेका औजार, खंती . ख़म-वि० [फा०] झुका हुआ, टेढ़ा, वक्र । पु० धुमाव; खनवाना, खनाना-स० क्रि० खोदनेका काम कराना। टेढ़ापन; बाजू ।-दम-पु० हिम्मत, जोश ।-दार-वि० खनि-स्त्री० [सं०] खान; गढा गुफा। -ज-वि० टेढ़ा; धुंधराले ( बाल ) । मु०-खाना-हारना, नीचा खानसे निकला हुआ (सोना आदि)- विज्ञान-पु० देखना-'मुरक्यो तुरक वहाँ खम खाई'-छत्र प्र० । खानों तथा खनिज पदार्थोंका विवेचन करनेवाला विज्ञान। -ठौंकना-लड़नेके लिए ताल ठोंकना, ललकारना । -वसति-स्त्री० (माइनिंग सेटिलमेंट) लोहे, कोयले आदि- खमसा-वि०[अ०] पाँचसे संबंध रखनेवाला । पु० पाँचका की खानके पास बसे हुए लोगोंकी बस्ती ।
समाहार, पंचक; वह पद्य जिसके हर बंदमें पाँच-पाँच खनित्र-पु० [सं०] खंता; फावड़ा।
मिसरे हों; पाँचों उँगलियाँ संगीतमें एक ताल। . खनियाना*-सक्रि० खाली करना।
खमीर-पु० [अ०] गुंधे आटे आदिमें (देरतक रखनेसे) पैदा खनोना*-सक्रि० दे० 'खनना'।
होनेवाली खटास और उभार; वह चीज जिसमें यह गुण खपच-स्त्री० बाँसका नोकदार टुकड़ा; लकड़ीकी कलछी। पैदा हो गया हो, पौंस प्रकृति बनावट । मु०-उठना
ग
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ख़मीरा-ख़रीता
आटे आदिका खमीर पैदा हो जानेसे फूलकर उठना, फैलना ।
ख़मीरा - वि० [अ०] खमीरवाला | पु० मिसरी या चीनी की चाशनी में पकायी हुई दवा; कटहल आदिका खमीर मिलाकर बनाया हुआ सुगंधित तंबाकू । ख़मीरी - वि० स्त्री० [अ०] खमीरवाली ( रोटी ) । खम्माच - स्त्री० रातमें गायी जानेवाली एक रागिनी । खय* - पु० दे० 'क्षय' ।
खया * - पु० भुजमूल ।
खयानत - स्त्री० [फा०] अमानत रखी हुई चीज, रकमको चुरा लेना, दबा लेना, गबन; बददयानती; बेईमानी । ख़याल - पु० [फा०] ध्यान, चिंता, सोच-विचार; कल्पना; मत, विचार; लिहाज; याद; दे० 'ख्याल' । - (ले) ख़ाम - पु० असंगत, नासमझीका विचार । मु० में समाना - ध्यान में चढ़ जाना, हर वक्त याद रहना । - से उतरना - याद न रहना, भूल जाना । ख़याली - वि० [फा०] कल्पित, सोचा-माना हुआ । मु०पुलाव पकाना - कल्पनाके महल खड़े करना, अनहोनी बातें सोचना |
खरक - ५० बाँस, बल्लोंसे बनाया हुआ गाय रखनेका बाड़ा, गोठ; चरागाह । स्त्री० खड़क; खटक । खरकना - अ० क्रि० दे० 'खड़कना'; 'खटकना ' ; चल देना । खरका - पु० सूखा कड़ा तिनका; दाँत खोदनेका तिनका;
खरक ।
खर - वि० [सं०] कड़ा; तेज, तीक्ष्ण; घना; मोटा; अशुभ; हानिकर ; तीक्ष्ण धारवाला; ज्यादा सिंका हुआ ('सेवर' का उलटा ); गरम; निष्ठुर । पु० गधाः खच्चर; बगला; कौआ; रामके हाथों मारा गया एक राक्षसः ६० संवत्सरों में से पचीसवाँ; कुरर पक्षी । - कर, -रश्मि- पु० सूर्य । - मासपु० दे० 'खरवाँस' । - वाँस - पु० [हिं०] धन-मकरकी संक्रांति ( पूस) या मेष वृषकी संक्रांति (चैत) जिसमें शुभ कार्यका निषेध है । -वार- पु० अशुभ दिन- रवि, मंगल आदि । खर- पु० तृण, घास । खानेवाली ) । -पात-पु० घास-पात | खर - पु० [फा०] गधा । वि० मूर्ख; बहुत बड़ा; भद्दा | - गोश- पु० खरहा । - दिमाग़ - वि० हठी; घमंडी |
|
- खीकी * - स्त्री० आग (तृण
नासमझ;
खरखरा - वि० खुरखुरा ।
खरखशा - पु० [फा०] झगड़ा, विवाद; बखेड़ा, झंझट |
खरग* - पु० दे० 'खड्ग' |
खरच - ५० दे० 'खर्च' ।
खरचना - स० क्रि० खर्च करना; काममें लाना । खरचा - पु० दे० 'खर्चा'; दे० 'खरका' | खरजूर - पु० दे० 'खर्जूर' ।
खरतुआ - पु० एक निकम्मी घास ।
खरदुक* -- पु० एक पुराना पहनावा । खरब - वि० सौ अरब, खर्व । पु० सौ अरबकी संख्या । ख़रबूज़ा- पु० गरमी के दिनोंमें होनेवाला एक प्रसिद्ध फल । मु० - (ज़े) को देखकर ख़रबूज़ा रंग पकड़ता है
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आदमी जैसेका संग करे वैसा ही हो जाता है । खरबूज़ी - वि० खरबूजेके रंगका ।
खरभर* - पु० खलबली, हलचल, शोर, हला । | खरभरना, खरभराना - अ० क्रि० खलबलाना; हलचल
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मचना ।
खरभरी * - स्त्री० दे० 'खरभर' ।
खरल - पु० पत्थर या लोहेकी कूँड़ी जिसमें दवाएँ कूटते, घोंटते हैं। मु० - करना - खरल में बारीक पीसना । खरसा* - पु० एक पकवान ।
खरहरा - पु० लोहेकी कई दंतपंक्तियोंवाली चौकोर कंधी जिससे घोड़ेके बदन की गई साफ की जाती है; अरहर के डंठलोंकी झाड़
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खरहरी* - स्त्री० एक मेवा, छुहारा ।
खरहा - पु० लोमड़ीकी जातिका, कदर्भे दिल्लीके बराबर, एक जंतु जिसके कान बहुत लंबे होते हैं, खरगोश | खरांशु - पु० [सं०] सूर्य ।
खरा - वि० विशुद्ध, खालिस; सच्चा; छल-कपट से रहित; स्पष्टभाषी; व्यवहार में सच्चा; नकद; खूब पका या तपा हुआ; खूब सिंका हुआ; करारा । असामी- ५० देनलेनमें सच्चा, ईमानदार आदमी । - खेल - पु० सच्चा खेल, व्यवहार । - खोटा - वि० अच्छा-बुरा । मु०खोटा परखना - भले-बुरे की पहचान करना । खराई - स्त्री० खरापन, सचाई, ईमानदारी; + भोरके समय कुछ खानेको न मिलनेके कारण तबीयतका कुछ खराब होना ।
ख़राज - पु० [अ०] दे० 'खिराज' | खराद - पु० [फा०] खरादनेका आला, चरख; खरादनेका काम; गढ़न । मु०- पर चढ़ाना - खरादने के लिए चरखपर चढ़ाना; सुधारना, दुरुस्त करना । खरादना - स० क्रि० चरखपर चढ़ाकर लकड़ी या धातुको चिकना, सुडौल करना; छील-छालकर दुरुस्त, सुडौल
करना ।
ख़राब - वि० [अ०] उजड़ा हुआ, वीरान; नष्ट, वर्षाद; बुरा, हीन; दुश्चरित्र |
खराबी - स्त्री० [अ०] दोष, बुराई; तबाही, बरबादी | खरारि - पु० [सं०] विष्णुः रामः कृष्णः बलराम । खरारी*-५० दे० 'खरारि' ।
ख़राश - स्त्री० [फा०] त्वचाका छिलजाना, खरोंच; खुजली । खरिक* - ५० गोठ; चरागाह |
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खरिका* - ५० दे० 'खरिक' | + दे० 'खरका' । खरिया - स्त्री० रस्सीकी बनी जाली जिसमें भूसा आदि बाँधकर ले जाते हैं; थैली; कंडेकी राख; दे० 'खड़िया' । खरियानri - स० क्रि० झोली में भर लेना; प्राप्त करना । खरिहाना - पु० दे० 'खलियान' |
खरी - वि० स्त्री० दे० खर । स्त्री० दे० 'खड़िया'; 'खली' | - खोटी - स्त्री० कड़वी - कसैली, कड़ी लगनेवाली बात । मु० -खरी, -खोटी सुनाना- दो टूक, सच्ची बात कहना; भला-बुरा कहना | खरीक* - पु० तिनका ।
[ख़रीता- पु० [अ०] थैली; बड़ा लिफाफा जिसमें सरकारी
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खरीद-खस आदेश भेजे जाते है। इस प्रकार प्रेषित सरकारी आदेश खलबलाना-अ० क्रि० खौलना क्षुब्ध, बेचैन होना। जेब; सुई-धागा रखनेकी थैली ।
खलबलाहट-स्त्री० खलबलानेका भाव, बेचैनी; खलबली। खरीद-स्त्री० [फा०] खरीदनेकी क्रिया या भाव, क्रयः खलबली-स्त्री० हलचल बेचैनी, घबराहट; क्षोभ । खरीद की हुई वस्तु । -फरोख्त-स्त्री० खरीदना-बेचना, खलभल-पु०, खलभली-स्त्री० दे० 'खलबली' । लेवा-बेची।
खलभलाना-अ० क्रि० दे० 'खलबलाना'। खरीदना-स० क्रि० मोल लेना, दाम देकर लेना। खलभलाहट-स्त्री० दे० 'खलबलाहट'। खरीदार-पु० [फा०] खरीदनेवाला, ग्राहक इच्छुक । खलल*-पु० धूम। खरीफ-स्त्री० [अ०] वह फसल जो असाद-सावनमें बोयी खलल-पु० [अ० ] बाधा, अड़चन; बिगाड़ा रोग ।
और कातिक-अगहनतक काट ली जाय (धान, मकई इ०)। -अंदाज़-वि० बाधा डालनेवाला। -दिमाग़-स्त्री० खरेई, खरोई -अ० सचमुच; अत्यंत ।
दिमागका बिगड़ जाना; सनक, पागलपन । वि० जिसका खरौंच-स्त्री० त्वचाका काँटे, नाखून आदिसे छिल जाना, | दिमाग बिगड़ गया हो, सनकी । खराश; छिल जानेका निशान ।
खलाई।-स्त्री० दुष्टता। खरोचना-स० कि. खुरचना छीलना ।
खलाना*-स० क्रि० खाली करना; गड्ढा करना; फँसाना। खरों (रो)ट-स्त्री० दे० 'खरोंच।
खलास-पु० [अ०] छुटकारा, मुक्ति,निवृत्ति (पाना, होना)। खरोष्ट्री, खरोष्टी-स्त्री० [सं०] एक प्राचीन लिपि जो | खलासी-स्त्री० दे० 'खलास' । पु० जहाज, तोपखाने फारसीकी तरह दाहनेसे वायें लिखी जाती थी और मौर्य- आदिमें छोटे-मोटे काम करनेवाला मजदूर, खेमा आदि कालमें पश्चिमोत्तर भारतमें चलती थी।
खड़ा करनेवाला नौकर। खराँट-स्त्री० दे० 'खरोच' ।
खलित*-वि० स्खलित; चलित; हिला हुआ गिरा हुआ। खरौहाँ*-वि० कुछ-कुछ खारा ।
खलियान-पु० वह स्थान जहाँ फसल काटकर रखी और खर्ग*-पु० तलवार।
माँड़ी जाय; ढेर । मु०-करना-काटी हुई फसलका ढेर खर्च, खर्चा-पु०[फा०] पैसे,चीजका किसी काममें लगना, लगाना; नष्ट करना। सर्फ होना, व्यय; आवश्यक कार्यों में लगनेवाला पैसा। खलियाना-स० क्रि० खाल उतारना (कटे बकरे आदिकी); मु०-उठाना-सर्फा बर्दाश्त करना, व्ययभार वहन खाली करना । करना। -निकलना-सा, लागत निकल आना खली-स्त्री० [सं०] तेलहनकी सीठी। खर्चना-स० क्रि० दे० 'खरचना'।
खलीता-पु० दे० 'खरीता। खर्चीला-वि०बहुत खर्च करनेवाला, खर्राच; जिसमें ज्यादा | खलीफा--पु० [अ०] उत्तराधिकारी, जानशीन; पैगंबरखर्च पड़े।
(मुहम्मद)का उत्तराधिकारी नेता;गतके आदिके उस्तादका खर-पु० [सं०] खजूरका पेड़, उसका फल; चाँदी नायब; बूढ़ा दरजी नाई; बावर्ची । हरताला धतूरा; बिच्छू। -रस-पु० ताड़ी।
खलु-अ० [सं०] निश्चय, निषेध, जिज्ञासा, अनुनय इ. खपर-पु० [सं०] खप्पर, कपाल, खोपड़ी; मिट्टीका फूटा अर्थों में प्रयुक्त । हुआ बरतन; छाता खपरिया।
खल्त-मल्त-वि० गढ-मड, मिला-जुला । खरी-पु० लंबा लेख; विवरण; मसौदा एक चर्मरोग । खल्लड़-पु० खलड़ी; मशक; अति वृद्ध व्यक्ति (जिसकी खर्राच-वि० बहुत खर्च करनेवाला।
खाल लटक गयी हो)। खर्राट-वि० होशियार अनुभवी; वृद्ध ।
खल्वाट-वि० [सं०] गंजा । पु० गंजापन । खर्राटा-पु० सोतेमें नाकसे निकलनेवाली खर्र-खर्रकी खवा-पु० कंधा, भुजमूल । मु०-(वे) से खवा छिलना. . आवाज । मु०-(8)भरना,-मारना,-लेना-गहरी ___-बहुत भीड़, धकम-धका होना। नींद, बेखबर सोना।
खवाई-स्त्री० खानेकी क्रिया; 'खिलाई। खर्व(ब)-वि० [सं०] विकलांग; बौना; छोटा सौ अरब । खवाना-स० क्रि० खिलाना । पु० सी अरबकी संख्या।
खवारा*-वि० खोटा, खराब । खर्वित-वि० [सं०] खर्व, छोटा किया हुआ।
खवास-पु० [अ०] चुने हुए लोग, विशिष्ट जन (अवामका खल-वि० [सं०] दुष्ट, दुर्जन; खोटा बेहया; नीचा चुगल- उल्टा); खास खिदमतगार; मुसाहब सखा; गुण, तासीर खोर । पु० खलियान; खरल ।
* नाई । स्त्री० लौंडी; सहेली। खलई*-स्त्री० खलता।
खवासी-स्त्री० [अ०] खवासका काम, पद हौदे या गाड़ीखलक-पु० [अ०] जीवसमष्टि, लोकसमूह; संसार । में खास टहलू के बैठनेकी जगह । खलकत*-स्त्री० दे० 'खिलकत'।
खवैया-पु० खानेवाला; अधिक खानेवाला । खलड़ी-स्त्री० खाल ।
खस-पु० [सं०] गढ़वालके उत्तरका प्रदेश; उस प्रदेशका खलना-अ० क्रि० बुरा लगना, कुशकर होना, चुभना। निवासी; खासिया; खुजली; पोस्तेका पौधा । स० क्रि० मोड़ना; झुकाना; धुंघरूमें गड्ढा बनाना; खस-पु० [फा०] सूखी घास; गाडर नामकी घासकी जड़ * स० क्रि० खरलमें घोंटना।
जिसकी टट्टियाँ गरमीके दिनोंमें कमरेको ठंडा रखनेके खलबल-स्त्री० दे० 'खलबली'
लिए खिड़कियों, दरवाजोंपर लगायी जाती हैं ।-खाना
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खसकना-खाड़ी
१८८ पु० खसकी टट्टियोंसे घिरा हुआ स्थान, कमरा ।
खाँभ*-पु० खंभा दे० 'खाम' । खसकना-अ.क्रि० दे० 'खिसकना।
खाँवाँ-पु० खेत या बागके चारों ओर खोदा हुआ गढ़ा या खसकाना-स० क्रि० दे० 'खिसकाना'।
मेंड़, कम चौड़ी, गहरी खाई। खसखस-पु० पोस्तेका दाना।
खाँसना-अ० क्रि० गलेसे बलगम आदि निकालने या खसखसा-वि० भुरभुरा बहुत छोटा पोस्तेके दानेसा । संकेतके लिए फेफड़ेसे झटके और आवाजके साथ हवा खसना*-अ० क्रि० खिसकना; गिरना।
बाहर निकालना। खसबो*-स्त्री० दे० 'खुशबू' ।
खासी-स्त्री० खाँसनेकी क्रिया गले या श्वासनलीमें सुरखसम-पु० [अ०] दुश्मन, लड़नेवाला; मालिक, पति ।। सुराहट होनेसे फेफड़ेसे झटके और आवाजके साथ हवाका खसरा-पु० एक तरहकी खुजली; पटवारीकी बही जिसमें । बाहर निकलना। गाँवके हर खेतका नंबर, रकबा, काश्तकारका नाम इ० खाई, खाई-स्त्री०किले, परकोटे आदिके चारों ओर रक्षार्थ लिखे रहते है। हिसाबका कच्चा चिट्टा, खर्रा।
खोदी हुई नहर, खंदक । ख़सलत-स्त्री० [अ०] आदत, स्वभाव; गुण ।
खाऊ-वि० बहुत खानेवाला; घूस लेनेवाला ।-मीत-पु. खसाना-स० क्रि० गिराना; फेंकना।
खानेके लिए दोस्ती करनेवाला, मतलबका यार । खसासत-स्त्री० [अ०] खसीसपन, कंजूसी; क्षुद्रता, ख़ाक-स्त्री० [फा०] धूल, मिट्टी; राख, भस्म; तुच्छ वस्तु नीचता।
मृतत्व । वि० तुच्छ; छोटा । अ० कुछ नहीं; किस लिए। खसिया-पु० आसामकी एक पहाड़ी; उस पहाड़ीके आस- -का पुतला-मनुष्य । -सार-वि० तुच्छ, नाचीज; पासका प्रदेश । * वि०, पु० दे० 'खसी'।
दीन; विनीत । मु०-उड़ना-तबाह, बरबाद हो जाना खसियाना-स० क्रि० खसी करना ।
बदनामी, बेइज्जती होना। -उड़ाना-भटकते फिरना, खसी-वि० [अ०] बधिया; हिजड़ा; नपुंसक । पु० बधिया । खाक छानना । -करना-जलाकर राख कर देना; बकरा । मु०-करना-बधिया करना ।
तबाह कर देना। -चाटकर-अति नम्रतापूर्वक ( कोई खसीस-वि० [अ०] कंजूसा क्षुद्रहृदय ।
बात कहना)। -छानना-किसी चीजकी तलाशमें बहुत खसोट-स्त्री० खसोटनेकी क्रिया या भाव ।
हैरान होना, मारा-मारा फिरना। -डालना-(ऐबपर) खसोटना-स० क्रि० नोचना, उखाड़ना; छीन लेना। पर्दा डालना, छिपाना; भूल जाना। -बरसना-उजाड़ खसोटी-स्त्री० दे० 'खसोट' ।
लगना, धूल उड़ना। -में मिलना-धूल में मिलना; खस्तगी-स्त्री० [फा०] खस्तापन ।
नष्ट, बरबाद होना। खस्ता-वि० [फा०] घायल; खिन्न, लांत; दुर्दशाग्रस्त | खाकसी-स्त्री० [फा०] एक वनस्पतिका दाना जो दवाके जरासा दबानेसे चूर हो जानेवाला; बहुत नरम ।-हाल- काम आता है। वि० खिन्न; विपन्न, दुर्दशाग्रस्त, फटेहाल ।
खाकसीर-स्त्री० दे० 'खाकसी। खस्सी -वि०, पु० [अ०] दे० 'खसी' ।
खाका-पु० [फा०] नकशे या चित्रपर पारदशी कागज खाँखरी-वि० जिसमें बहुत सूराख हों; झीना ।
रखकर बनाया हुआ नक्शा या चित्र; कचा नक्शा खाँग-प० काँटा; जंगली सूअरका वह दाँत जो बाहर रेखाचित्र; ढाँचा; स्थूल योजना; एक तरहका कशीदा निकला रहता और शस्त्रकासा काम देता है; गड़ेके मुँह- (उतारना, खींचना)। मु०-उड़ाना-खिल्ली उड़ाना । पर रहनेवाला सींग; तीतर, मुर्ग आदिके पैरका काँटा; खाकी-वि० [फा०] मिट्टीका बना; मिट्टीके रंगका, गाय-बैल आदिके खुर पक जानेका रोग । स्त्री० + कमी, मटियाला । पु० मटियाला रंग; इस रंगका कपड़ा; पुलिस त्रुटि-'बरिस बीस लगि खाँग न होई'-५० ।
| या फौजकी वदी; साधुओंका एक संप्रदाय । खाँगना-अ० क्रि० लँगड़ा हो जाना; घटना। स० क्रि० खाख*-स्त्री० खाक, धूल; चूर्ण । छेदना।
खाखरा*-पु० एक तरहका बाजा। खाँगी -स्त्री० कमी।
खागना*-अ० क्रि० चुभना । खाँचना*-स० कि० दे० 'खौचना' ।
खाज-स्त्री० त्वचामें खुजली होनेका रोग, खारिश । खाँचा-पु० अरहरके डंठल आदिका बना टोकरा, झाबा। खाजा-पु० खाद्य, खानेकी चीज; मैदेकी बनी एक मिठाई । खाँची-स्त्री० छोटा खाँचा, बँचिया ।
खाजी*-स्त्री० खाद्य पदार्थ । खाँड़-स्त्री० गुड़का वह भेद जो गीला होता है और जिससे खाट-स्त्री० चारपाई, खटिया । -खटोला-पु० गृहस्थीका शक्कर बनाते हैं, राब; शकर, कच्ची चीनी; दे० 'खाड़' । सामान, बोरिया-बधना। मु०-पर पड़ना-बीमार -सारी-स्त्री० दे० 'खडसारी।
होना । -से उतारा जाना-आसन्नमरण होना । -से खाँड़ना -स० क्रि० कुचलना; टुकड़े-टुकड़े करना; चबाना। लगना-रोगके कारण उठने-बैठने में अशक्त हो जाना। खाडर*-पु० बँडरा कतला ।
खाटा, खाटो*-वि० खट्टा, अम्ल । खांडविक-पु० [सं०] हलवाई ।
खाड़*-पु० गड्ढा । खाँडा-पु० खङ्गा सीधी और कुछ चौड़ी तलवार; भाग, खाड़व-पु० छः स्वरोंवाला राग, षाडव । खंड । मु०-बजना-तलवार चलना, युद्ध होना। खाड़ी-स्त्री० समुद्रका वह भाग जो तीन ओर खुश्कीसे खाँधना*-सक्रि०खाना-'चोरि दधि कौने खाँधो-सू०।। घिरा हो, खलीज।
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१८९
खात-खार खात-पु० [सं०] खोदना; तालाब; कुआँ गड्ढा, खाई। खानक-पु० [सं०] खोदनेवाला; खान खोदनेवाला। वि० खोदा हुआ।
खानगाह-पु० [फा०] मठ, दरगाह । खातमा-पु० [अ०] अंत; मृत्यु; पुस्तकका अंतिम अध्याय । खानगी-वि० [फा०] घरका, घरेलू , निजी, जाती। खाता-स्त्री० [सं०] तालाब । पु० [हिं०] वह बही जिसमें खानदान-पु० [फा०] घराना, कुल; कुटुंब । हर एक ग्राहक, असामी आदिका अलग-अलग हिसाब खानदानी-वि० [फा०] कुलक्रमागत, पैतृक ऊँचे कुलका, लिखा जाय; लेखा, हिसाब; मद्द बखार । मु०-खोलना, कुलीन। -डालना--किसीसे लेन-देन आरंभ करना। -(ते)में | खाना-स० क्रि० ठोस आहारको चबाकर निगलना, भक्षण पड़ना-किसीके नाम, किसीके हिसाबमें लिखा जाना करना; निगलना; मारकर भक्षण करना (हिस्र जंतुओंका); पक्की बही में लिखा जाना।
चूसना, चबाना (पान, गड़ेरियाँ); चाट जाना (कीड़ों खातिर-स्त्री० [अ०] मन, दिल; ध्यान, खयाल; आदर, आदिका); खर्च करना; नष्ट करना; कमजोर, खोखला लिहाजा सत्कार, आवभगत; इच्छा, मरजी । अ० वास्ते, करना; काटना; सहना, अंगेजना; लगने, पड़ने देना (धूप, लिए। -स्वाह-अ० इच्छानुसार, जैसा मन चाहे । हवा आदि); हड़पना, गबन करना; चोरी, बेईमानीसे -जमा-स्त्री० इतमीनान, दिलजमई । -दारी-स्त्री० हथियाना, पैदा करना। पु० भोजन ।मु०खा जाना खा आवभगत, सत्कार।
डालना-निगल जाना; मार डालना; खर्च कर देना; खातिरन्-अ० [अ०] वास्ते; (किसीकी) प्रसन्नताके लिए । हजम,गबन कर लेना । खाना-कमाना-मेहनत-मजदूरीसे खाती-स्त्री० गड्ढा छोटा तालाब खतिया जाति; बढ़ई । पैसा कमाकर गुजर-बसर करना ।-खिलाना-अच्छी चीजें खातून-स्त्री० [तु०] भद्र, कुलीन महिला।
बनाकर खाने और दूसरोंको खिलानेका शौक रखना। खाद-स्त्री० जमीनका उपजाऊपन बढ़ानेवाली, पेड़-पौधोंके | खाना पीना-भोजन-पान, खाने-पीनेका सुख भोगना । लिए खाद्यरूप वस्तु । पु० [सं०] खाना, भक्षण ।
खा-पी जाना-खा-पीकर खतम करना, उड़ा डालना। खादक-वि०, पु० [सं०] खानेवाला; कर्जदार । | खाना-पु० [फा०] घर, आलम; स्थान; डिबिया, केस; खादर-पु० नीची जमीन जहाँ बरसातका पानी इकट्ठा हो आलमारी, संदूकका विभाग; कागज या कपड़ेपर रेखाओंजाय, कछार ।
से बना विभाग, कोष्ठक ।-आबाद-घर बसा, धनधान्यखादित-वि० [सं०] खाया हुआ।
से भरा रहे (आशीर्वचन)। -आबादी-स्त्री० घर ख़ादिम-पु० [अ०] खिदमत करनेवाला, सेवक ।
बसना; समृद्धि; व्याह । -खराब-वि० आवारा; बेघरख़ादिमा-स्त्री० [अ०] टहलुई, सेविका ।
बारका; घरको बरबाद करनेवाला ।-जंगी-स्त्री० आपसी खादिर-वि० [सं०] खदिरसे उत्पन्न । पु० कत्था । लड़ाई, गृहयुद्ध । -तलाशी-स्त्री० घरकी तलाशी। - खादी-स्त्री० हाथका बुना मोटा कपड़ा, गजी; हाथके कते दारी-स्त्री० घर-गृहस्थीका काम, गार्हस्थ्य।-परी-स्त्री० सूतका हाथ करघेपर बना हुआ कपड़ा। केंद्र-पु० खादी किसी.नकशे, सारणीके खानोंको भरना। -बदोश-वि० बुने जानेका केंद्र, वह स्थान जहाँ खादीका उत्पादन बड़े जिसका कोई घर, ठौर-ठिकाना न हो। पु० खेमों, सिरपैमानेपर हो।
कियोंमें रहनेवाली, स्थायी आवास-रहित जाति, जन । खाद्य-वि० [सं०] खाने योग्य । पु० खानेकी चीज,भोजन। खानि-स्त्री० [सं०] खान; * खूट; ओर, प्रकार, भेद ।
-समवितरण-पु० (फूड साशनिंग) नागरिकोंको निर्धा- खानिक-पु० [सं०]दीवार में किया हुआ छेद । *स्त्री० खानि। रित मात्रामें खाद्यान्नोंका समान रूपसे वितरण ।
खाब*-पु० दे० '..ख्वाब' । खाद्योज-पु० [सं०] (विटामिन) प्राकृतिक खाद्य पदार्थों में खाम-पु० लिफाफा; जोड़ * खंभा । * वि० घटनेवाला। पाया जानेवाला सूक्ष्म तत्व जो प्राणियोंके स्वास्थ्य एवं ख़ाम-वि० [फा०] कच्चा; जो पका-पकाया या पक्का न अभिवृद्धिके लिए आवश्यक माना जाता है (इसके कई भेद हो; अप्रौद, अनुभवहीन; छोटा (बाट, तौल); अयुक्त, माने जाते हैं); पोषक तत्त्व, जीवन-तत्त्व ।
असंगत । -ख़याली-स्त्री० नासमझी; नासमझीका, खाध*-पु० दे० 'खाद्य' ।
बुद्धि विरुद्ध विचार ।। खाधु, खाधुक -पु० खानेवाला, भक्षक ।
खामखाह-अ० दे० 'ख्वाहम.ख्वाह'। खान-स्त्री० वह जगह जहाँसे धातु, कोयला आदि खोद- खामना-स० कि० आटे आदिसे (घड़े आदिका) मुँह बंद कर या पत्थरकी सिलें तोड़कर निकाली जायँ, खानि; करना; लिफाफेमें बंद करना । स्रोत; आकर, भंडार, खजाना। पु० खानेकी क्रिया ख़ामा-स्त्री० [फा०] कचाई; कमी; दोष; अनुभवहीनता। भोजन । -पान-पु० खाना-पीना; खाने-पीनेका ढंग; | खामोश-वि० [फा०] चुप, मौन । खाने-पीनेका व्यवहार, संबंध ।
ख़ामोशी-स्त्री० [फा०] चुप्पी । खान-पु० [तु०] स्वामी, मालिक, सरदार रईसपठान; | खार-पु० क्षार; क्षार गुण, खारापन; रेह; लोना; सज्जी; कुछ पठान शासकोंकी उपाधि, तातार और खताके पुराने राख, पोखरा, डबरा-'दई न जात खार उतराई, चाहत वादशाहोंकी उपाधि । -बहादुर-पु० ब्रिटिश सरकारकी चढ़न जहाज'-सू०, दे० 'खार'। एक उपाधि जो मुसलमानों और पारसियोंको दी जाती खार-पु०[फा०] काँटा,फाँस; दूष,जलन । मु०-खानाथी।-सामाँ-पु० शाही महलका भंडारी या पाकशाला. जलना, द्वेष करना। -निकालना-बदला लेना; जलन का प्रबंधक; बावरची।
मिटाना।
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खारक-खिजमत खारक*-पु० दे० 'खारिक' ।
खाविंद-पु० [फा०] मालिक, स्वामी, पति । खारा-वि० जिसमें खारापन हो, क्षार गुणवाला; नमकीन खास-वि० [अ०] आमका उलटा, विशेष; विशिष्ट; चुना बदमजा । पु० घास, पत्ते बाँधनेकी जाली; बड़ा टोकरा, हुआ; मुख्य व्यक्तिविशेषसे संबंध रखनेवाला; निजका; झाबा; एक धारीदार कपड़ा।
बढ़िया प्रिय, प्यारा ठेठ ठीक । पु० विशिष्ट जन; प्रिय ख़ारिक-पु० [फा०] खजूर, छुहारा ।
जन । -कर-अ० विशेषतः, खास तौरसे। -कलमखारिज-वि० [अ०] बाहर; बाहर किया हुआ, बहिष्कृत पु० निजका मुंशी। -खास-वि० चुने हुए, प्रमुख अलग किया हुआ।
(लोग)। -गी-स्त्री० खासीयत, विशेषता। -तराशख़ारिजी-वि० [अ०] बाहरी, बाह्य परराष्ट्र-संबंधी। पु० राजा, बादशाहकी हजामत बनानेवाला नाई । खारिश,खारिश्त-स्त्री० [फा०] खुजली खुजलीकी बीमारी। -नवीस-पु० खासकलम । -बरदार-पु० वह सिपाही खारी-वि० खारा । स्त्री० खारी नमक । -नमक-पु० | जो बंदूक लेकर राजा, बादशाहकी सवारीके आगे-आगे लोना मिट्टीसे निकला हुआ नमक जो बैलों आदिको चले; वह नौकर जो ( राजा, रईसका) पानदान लेकर खिलाया जाता है।
साथ चले । -बाज़ार-पु० राजमहलके सामने या खारुआँ, खारुआ-पु० एक तरहका गहरा लाल रंग; पासका, उसकी आवश्यकताओंके लिए बसाया गया उक्त रंगमें रंगा हुआ कपड़ा।
बाजार । -महल-पु० अंतःपुर, जनानखाना; प्रधान खारो*-वि० दे० 'खारा'।
बेगम, पट्टमहिषी। -महाल-पु० वह जायदाद जिसका खाल-स्त्री० त्वचा, चमड़ा; छिलका; धौंकनी; आधा प्रबंध राज्य या सरकार खुद करे। चरसा; * मृत देह; नीची जमीन; गहरी जगह; खाड़ी। खासा-वि० [अ०] काफी अच्छा, बढ़िया; औसत दरजेका; मु०-उधेड़ना-इतना पीटना कि खाल उड़ जाय, बहुत सुंदर । पु० रईसका खाना; राजाकी सवारीका घोड़ा; मारना। -खींचना-जीवित शरीरपरसे चमड़ा अलग हाथी; मलमलकी किस्मका एक सूती कपड़ा; एक कर लेना।
तरहकी पूरी। खालसा-पु. वह सरकारी जमीन या इलाका जिसका खासियत-स्त्री० दे० 'खासीयत'। प्रबंध सरकार खुद करे और जो किसी की जागीर, जमीं- खासीयत-स्त्री० [अ०] गुण, प्रभाव; प्रकृति, स्वभाव । दारी न हो; सिखोंका एक (प्रमुख) संप्रदाय । -दीवान- खाहमखाह-अ० दे० 'ख्वाहम.ख्वाह'। पु० सिखोंकी धर्मसभा । मु०-करना-सरकारका किसी ख़ाहिश-स्त्री० दे० '.ख्वाहिश'। जमीन, जायदादका प्रबंध अपने हाथ में ले लेना, जब्त ! खिंचना-अ० क्रि० खींचा जाना, तनना; किसी दिशामें कर लेना।
बढ़ना, आकर्षित होना; कसा जाना; (म्यान आदिसे) खाला-वि० नीचा ( ऊँचा-खाला)।
बाहर निकलना; विरक्त, अप्रसन्न होना; चित्रित होना, खाला-स्त्री० [फा०] माँकी बहन, मौसी। -जाद-वि०
उतरना; दूर होना; सोखा जाना। मौसैरा (भाई-बहन)। -का घर-बहुत आसान काम।
खिंचवाना-स० क्रि० 'खींचने का काम दूसरेसे कराना । खालिक-वि० [अ०] बनानेवाला, सृष्टिकर्ता । -बारी
वैचाई-स्त्री० खींचनेकी क्रिया; खींचनेकी उजरत । स्त्री० अमीर खुसरो-रचित एक पद्य-पुस्तक जिसमें प्रचलित
खिंचाना-स० क्रि० दे० 'खिंचवाना'। अरबी-फारसी शब्दोंके हिंदी पर्याय दिये गये हैं।
खिंचाव-पु० खींचे जानेका भाव, तनाव; विरक्ति खालिस-वि० [अ०] शुद्ध, बेमेल; खरा, सच्चा।।
नाराजगी। खाली-वि० [अ०] जिसमें कुछ भरा-धरा न हो, रीता,
खिंचावट, खिंचाहट-स्त्री० दे० 'खिंचाव' । रहित, शून्य, जिसमें कोई रहता न हो (मकान); जिससे खिखिंद*-पु० किष्किध पर्वत; बीहड़ भूमि । काम न लिया जा रहा हो, अव्यवहृत; जिसके पास कोई खिचड़वार-पु० मकर-संक्रांति । काम न हो, सावकाश व्यर्थ, बेकार । अ० केवल । पु० खिचड़ा-पु० गेहूँ और कई तरहकी दालें मिलाकर पकायी तबले आदि बजानेमें खाली छोड़ा हुआ ताल ।-महीना- गयी खिचड़ी जो प्रायः मुहर्रममें बाँटी जाती है। पु० मुसलमानोंका ग्यारहवाँ महीना जीकाद जो मनहूस खिचड़ी-स्त्री० मिला हुआ या मिलाकर पकाया हुआ समझा जाता है (इससे पहले महीने में ईद और बादके दाल-चावल; दो या अधिक चीजोंकी मिलावट; दो रंगकी महीनेमें बकरीद पड़ती है)। -दिन-पु० शुभकार्य या चीजों-( स्याह-सफेद बाल, रुपये और अशर्फियों)की नये कामके लिए अनुपयुक्त दिन। -पेट-वि० जो कुछ मिलावट; ब्याहकी एक रस्म जिसमें वर और उसके छोटे खाये न हो, भूखा । अ० बिना कुछ खाये, बासी मुँह ।। भाइयोंको खिचड़ी खिलाते हैं; मकर संक्रांति; नाचकी -हाथ-वि० जिसके हाथमें, पास कुछ न हो, निर्धन, साई । वि० मिला-जुला, खल्त-मस्त ।-बोली-भाषाजिसके हाथमें कोई हथियार न हो। अ० हाथमें बिना स्त्री० वह बोली, भाषा जिसमें दो या अधिक भाषाओंके कुछ लिये, बिना पैसे या हथियारके । मु०-जाना- शब्दोंका मिश्रण हो । मु०-पकना-गुप्त मंत्रणा, निशानेपर न लगना, व्यर्थ होना। -बैठना-बेकार | साजिश होना। बैठना। -हाथ लौटना-बैरंग, विफल लौटना । खिचना-अ० क्रि० दे० 'खिंचना' । खालू-पु० [अ०] मौसा; मा ।
खिजना-अ० क्रि० दे० 'खीजना' । वि० चिड़चिड़ा। खाले*-अ० नीचे।
| खिजमत*-स्त्री० दे० 'खिदमत' ।
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खिजमति-खींचा-खींची खिजमति*-स्त्री० दे० 'खिदमत' । -गार-पु० दे० फबना प्रसन्न, प्रफुल्ल होना; भला लगना; पक,भुनकर 'खिदमतगार'।
अलग-अलग हो जाना (चावल, खीले), फट जाना। खिजलाना-अ० कि० चिढ़ना । स० क्रि० चिढ़ाना। खिलवत-स्त्री० [अ०] एकांत खाली, जनशून्य स्थान । खिजाँ-पु०, स्त्री० [फा०] पतझड़की ऋतु हास; हासकाल; | -ख़ाना-पु० अकेले में मिलने, गुप्त मंत्रणाका स्थान । बुढ़ापा।
खिलवाड़-पु० दे० 'खेलवाड़। खिजाना-स० कि० दे० 'खिझाना' ।
| खिलवाना-स० क्रि० दूसरेसे परसवाकर, दूसरेके द्वारा खिजाब-पु० [अ०] सफेद बालोंको स्याह कर देनेवाली किसीको भोजन कराना प्रफुल्ल कराना। दवा, केशकल्प (करना, लगाना)।
खिलवार*-पु० दे० 'खिलवाद'; खेलाड़ी। खिझ*-स्त्री० दे० 'खीज'।।
खिलाई-स्त्री० खिलानेका काम; खिलानेका नेग (खिचड़ी खिझना-अ० क्रि० दे० 'खीजना'।
| खिलाई); बच्चा खेलानेपर नियुक्त मजदूरनी। खिझाना, खिझावना*-स० क्रि० चिढ़ाना, छेड़ना; खिलाड़ी-वि० खेलनेवाला; किसी खास खेलमें कुशल; गुस्सा दिलानेवाली बात करना ।
कुश्ती, गतका आदिमें कुशल । पु० खेलनेवाला; खेलखिड़कना*-अ० क्रि० दे० 'खिसकना'।
तमाशा, करतब दिखानेवाला, बाजीगर । खिड़की-स्त्री० मकान, रेल, जहाज आदिमें हवा और खिलाना-सक्रि०('खाना'का प्रेर०) भोजन कराना; दावत रोशनी आनेके लिए बनाया हुआ छोटा दरवाजा, झरोखा, देना; खिल नेका कारण होना; विकसित, प्रफुल्ल करना । वातायन; किले या परकोटेका चोर-दरवाजा। -दार- मु०-पिलाना-भोजन-पानसे सत्कार करना । वि० जिसमें खिड़की या खिड़कियाँ हों। -बंद-वि० खिलाफ़-वि० [अ०] विरुद्ध प्रतिकूल, उलटा।-कानून(मकान) जो पूरा किरायेपर ले लिया जाय, जिसमें अन्य | वि० कानूनके विरुद्ध, गैरकानूनी। किरायेदार न रहे।
खिलाफ़त-स्त्री० [अ०] खलीफाका पद; पैगंबर या वादखिताब-पु० [अ०] किसीकी ओर मुँह करना, मुखातिब
शाहका जानशीन या प्रतिनिधि होना। -आंदोलनहोना; बात-चीत; पदवी; राज्यकी ओरसे दी जानेवाली पु० [हिं०] प्रथम महायुद्ध (१९१४-१८) के बाद खिलाउपाधि । -याफ्ता-वि० जिसे खिताब मिला हो। फतकी पुनः स्थापनाके लिए भारतमें ब्रिटिश सरकारके ख़ित्ता-पु० [अ०] भूखंड, प्रदेश ।
विरुद्ध चलाया गया आंदोलन । खिदमत-स्त्री० [फा०] सेवा, टहल, चाकरी काम पद । खिलौना-पु० खेलनेकी चीज, साधना काठ, मिट्टी आदिका
-गार-पु० खिदमत करनेवाला, टहलू । -में-सामने, बना हुआ हाथी, घोड़ा, आदि; मनबहलावकी चीज । पास, सेवामें।
खिल्ली-स्त्री० हँसी, मजाक कील; पानका बीड़ा ।-बाज़ खिदमती-वि० [फा०] खिदमत करनेवाला; खिदमतके। -पु० खिल्ली उड़ानेवाला । बदलेमें प्राप्त (खिदमती जागीर)।
खिसकना-अ० कि० हटना, सरकना; चुपकेसे चल देना। खिन*-पु० छन, क्षण।
खिसकाना-स० क्रि० हटाना, सरकाना; चुपकेसे हथिया खिम्न-वि० [सं०] खेदयुक्त दःखी; उदासः चितितः कांत । लेना, उड़ाना। खिपना-अ० क्रि० सपना; मिल जाना, निमग्न होना। | खिसलना-अ०क्रि० दे० 'फिसलना'। खियाना -अ० क्रि० धिस जाना । स० क्रि० खिलाना । खिसलाहट-स्त्री०फिसलनेका भाव । खियाला-पु० खयाल, विचार; हँसी, मजाक । खिसाना-अ.क्रि.० दे० 'खिसियाना'। खिरका-पु०पशुओंका बाड़ा, खरक-'राँभति गौ खिरकन- खिसारा-पु० खसारा, धाटा, हानि । में बछरा हित धाई'-सू० ।
खिसि(आ)याना-अ० क्रि० लज्जित होना; लज्जित होकर, खिरकी -स्त्री० दे० 'खिड़की' ।
बेवकूफ बनकर खीझना; कुढ़ जाना; खफा होना । वि. खिरनी-स्त्री० एक फलवृक्ष या उसका फल, क्षीरिणी।। खिसियाया हुआ; लज्जित । मु. (खिसियानी)बिल्ली खिराज-पु० [अ०] कर, मालगुजारी; अधीन राज्यकी खंभा नोचे-खिसियाया हुआ आदमी अपनी खीस ओरसे प्रभु राज्यको दिया जानेवाला कर ।
दूसरोंपर उतारता है। खिरिरना*-सक्रि० अनाजको साफ करनेके लिए सूराख- | खिसियाहट-स्त्री० खिसियानेका भाव । दार छाजमें रखकर छानना; खुरचना।
खिसी*-स्त्री० लज्जा खीस धृष्टता। खिरौरी*-स्त्री० केवड़े में सुवासित कत्थेकी टिकिया। खिसीहाँ*-वि० लज्जितसा; क्रुद्धसा । खिलअत-पु० [अ०] जोड़ा, पोशाक; वह पहनावा जो खाँच-स्त्री० खींचनेकी क्रिया या भाव; माँग, रफ्तनी। राजा, बादशाह किसीको सम्मानार्थ प्रदान करे।
-तान-स्त्री० खींचा-खींची, नोंक-झोंक; खींच-खाँचकर ख़िलक़त-स्त्री० [अ०] सृष्टि, रचना; प्रकृति जगत् । अर्थ लगाना । खिलखिलाना-अ० क्रि० आवाजके साथ खुलकर हँसना, खींचना-स० क्रि० अपनी ओर आकृष्ट करना, ऐंचना; कहकहा लगाना।
घसीटना; चूसना; सारपदार्थ निकाल लेना चित्रित करना; खिलखिलाहट-स्त्री० खिलखिलाकर हँसनेकी आवाज । | रोक रखना; व्यापारिक वस्तुएँ मँगाना। खिलत, खिलति, खिलवति-स्त्री० दे० 'खिलअत'। खींचा खींची-स्त्री० किसी वस्तुकी प्राप्तिके लिए दोव्यक्तियोंखिलना-अ० क्रि० कलीका विकसित होना, फूल बनना का परस्पर विरोधी उद्योग, नोक-झोंक ।
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खींचातानी-खुदा
खींचातानी - स्त्री० दे० ' खींचतान' |
खीज - स्त्री० खीजनेका भाव; झुंझलाहट, कुढ़न, गुस्सा । खीजना - अ० क्रि० झुंझलाना, क्रुद्ध होना । खीझ * - स्त्री० दे० 'खीज' |
खीझना * - अ० क्रि० दे० 'खोजना' ।
खीन* - वि० दे० ' क्षीण' । - ता- दे० 'खीनताई' | खीनता ई * - स्त्री० दुर्बलता, सूक्ष्मता; घटी । खीर - स्त्री० दूध में पकाया हुआ चावल ( या सूजी, लौकी, मखाना आदि ) । पु० दूध । - चटाई - स्त्री० अन्नप्राशन । - मोहन- ५० छेनेसे बननेवाली एक मिठाई । खीरा - पु० ककड़ीकी जातिका एक फल । मु०खीरे ककड़ी की तरह काटना - धड़ाधड़, बिना प्रयास, काटना | खीरी - स्त्री० गाय, भैंस आदिके थनके ऊपरका मांस * खिरनी ।
खुबी, खुंभ* - स्त्री० दे० 'खुभी' । खुआरी* - स्त्री० दे० 'वारी' । खुक्ख, खुक्खा - वि० खाली, छू छा; नादार | खुखड़ी - स्त्री० तकुएपर लपेटा हुआ सूत, ऊन; एक तरहका बड़ा छुरा, नेपाली कटार, करौली । खुगीर - पु० दे० 'खोगीर' ।
खुचड़, खुचर, खुचुर - स्त्री० किसीके काम में खाहमखाह दोष निकालना, छिद्रान्वेषण ( करना, लगाना ) । खुचड़िया, खुचरी, खुखुरी - वि० खुचड़ निकालनेवाला । खुजलाना - अ० क्रि० खुजली मालूम होना, त्वचामें ऐसी चुलकन उठना जो सहलाने, रगड़ने से मिटे; (अंगविशेषका) किसी काम के लिए बेचैन होना । स० क्रि० खुजली मिटानेके लिए त्वचाको मलना, नाखून से खरोचना | खुजलाहट - स्त्री० खुजली ।
खुजली - स्त्री० चुलकन या सुरसुरी जो खुजलानेसे मिटे, खाज; एक रोग जिसमें त्वचापर दाने निकलते और उनमें तीव्र खुजली होती है, खारिश; ( किसी बातकी ) तीव्र इच्छा ।
खुजाना- अ० क्रि०, स० क्रि० 'खुजलाना' । खुज्झा, खुशड़ा * - पु० दे० 'खुझा' |
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: खील- स्त्री० भुना हुआ धान, लावा; + दे० 'कील' । खीलना - स० क्रि० पानके बीड़े, दोने आदिमें तिनका गोदना । खुट्टी - स्त्री० खुरंड, घावके ऊपरकी पपड़ी । खीला + - पु० कील, खूँटी ।
खीली - स्त्री० पानका बीड़ा ।
स्टक * - स्त्री० खटका, शंका ।
खुटकना - स० क्रि० किसी पौधेकी फुनगी या ऊपर का भाग नोच लेना, खोंटना ।
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खुटका - पु० दे० 'खुटक' ।
खुटचाल * - स्त्री० खोटापन, दुष्टता । खुटचाली* - वि० खोटा, दुष्ट ।
खुटना* - अ० क्रि० दे० 'खुलना' - 'खुटै न कपट-कपाट'बि० समाप्त होना |
खुटपन (ना) - पु० खोटापन, दुष्टता, पाजीपन | खुटाई - स्त्री० खोटापन, दोष ।
खुटाना * - अ० क्रि० पूरा होना, समाप्त होना । खुटिला - पु० करनफूल ।
खुट्टी+ - स्त्री० संबंध-विच्छेद सूचित करनेवाली बालकों की एक क्रिया जिसमें वे दूसरेकी कानी उँगली से अपनी कानी उँगली मिलाकर चूम लेते हैं ।
खुतबा - पु० [अ०] वह धार्मिक व्याख्यान जो जुमे या ईद की नमाज के बाद इमाम मेंवरपर खड़ा होकर करता है और जिसके अंत में उस समय जो खलीफा होता हैं उसके लिए दुआ की जाती है; व्याख्यान, भाषण (पढ़ना); पुस्तककी भूमिका |
है
|
खीवन, खीवनि - स्त्री० मस्ती, मत्त होना । खीस - स्त्री० खिसियानेका भाव; लज्जा; खीझ; ऐसी हँसी जिसमें दाँत खुल जायँ; बाहर निकले हुए दाँत; पेउस; + नुकसान, खराबी - 'अब सलाह इनसों करे कछू न खीस'-छत्र०; नाश । * वि० नष्ट, विध्वस्त | मु०कादना, -निकालना - इस तरह हँसना किं दाँत दिखाई दें; वेढंगी हँसी हँसना; गिड़किड़ाकर माँगना । खीसना * - अ० क्रि० नष्ट होना, खराब, बरबाद होना । खीसा - पु० थैली, बटुआ, जेव । खुटकढ़वा - पु० कानका मैल निकालनेवाला । खुदवाना - स० क्रि० घोड़ेकी टापसे कुचलवाना, रौंदवाना । खु दाना-स० क्रि० घोड़ा कुदाना ।
खुत्थ- पु० कटे हुए पेड़की जड़ और उसके ऊपरका भाग खुत्थी - स्त्री० छोटा खुत्थ, खूँटी; धरोहर, थाती; कमर में रुपये बाँधकर रखनेकी पतली लंबी थैली, बसनी । .खुद- अ० [फा०] स्वयं, आप । - इख्तियार - वि० स्वतंत्र,
स्वयं अधिकार रखनेवाला । - काश्त - वि० अपनी जमीन में खुद खेती करनेवाला । स्त्री० वह (सीर से भिन्न) जमीन जिसे जमींदार खुद जोते। -कुशी - स्त्री० आत्महत्या; आत्मघातक कार्य । -ग़रज़-वि० अपनी गरज, मतलब देखनेवाला, स्वार्थी, मतलबी । -परस्तवि० घमंडी; स्वार्थी । - पसंद- वि० हठी, खुदराय; घमंडी | -ब-खुद - अ० अपने आप स्वतः । - मतलब - वि० खुदगरज - मुस्तार - वि० जिसपर किसीका दाव, नियंत्रण न हो, स्वतंत्र ।
खुड्डी, खुड्डी - स्त्री० पाखाने में बैठने के पायदान, कदमचा पाखाना फिरनेका गढ़ा ।
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खुदना - अ० क्रि० खोदा जाना । खुदरा -५० दे० 'खुर्दा' । खुदवाई - स्त्री० खुदवाने की क्रिया या मजदूरी । खुदवाना-स० क्रि० खोदनेका काम दूसरे से कराना । खुदा-५० [फा०] स्वयंभू ; ईश्वर, मालिक । - ई-स्त्री० ईश्वरता; ईश्वरकी महिमा, विभूति, सृष्टि, दुनिया । वि० खुदाका, ईश्वरीय । -का कारखाना - विश्व-प्रपंच, दुनिया | - का घर - अर्श, वैकुंठ; उपासनास्थल, मस्जिद । -की राहपर - खुदा के नामपर ईश्वरके प्रीत्यर्थ । - परस्त - वि० ईश्वरको मानने, पूजनेवाला, भक्त । - वंद - पु० मालिक, स्वामी; ( संबोधन में ) श्रीमन् । - वंदी - स्त्री० मालिकी, बादशाहत; अनुग्रह | मु० - के घर जाना - मरना । - खदा करके- बड़ी कठिनाईसे । - गंजेको ना. खुन न दे-ईश्वर ओछे,
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खुदाई-खुला कमीनेको धन, अधिकार न दे। -न रखवास्ता-ईश्वर न खुरचाला-स्त्री* खुटचाल, शरारत, दुष्टता । करे ( ऐसा हो)। -हाफ़िज़-ईश्वर रक्षक है। खुरजी-स्त्री० बीचमें खुला लंबा थैला या झोला जिसमें खदाई-स्त्री० खोदनेकी क्रिया या उजरत । दे०.खुदा में। घोड़सवार जरूरी सामान रखकर घोड़ेकी पीठसे बाँध खुदाव-पु० खुदाईका काम ।
लेता है। .खुदी-स्त्री० [फा०] आपा, अहंता, गर्व, अहंकार । खुरदरा-वि० जिसकी सतह चिकनी, हमवार न हो, खुद्दी-स्त्री० चावल, दाल आदिके बहुत छोटे-छोटे टुकड़े। दानेदार, खुरखुरा। खुनस-स्त्री० रोष, क्रोध ।
खुरपा-पु० घास काटने, छीलनेका औजार । खुनसाना-अ० क्रि० क्रोध करना।
खुरपी-स्त्री० छोटा खुरपा । खुफिया-वि० [फा०] छिपा हुआ, गुप्त। -खाना-पु० खरमा-पु० [फा०] खजूर; छुहारा एक मिठाई । चकला । -पुलिस-स्त्री० गुप्त रूपसे काम करनेवाली खुरहा-पु० पशुओंका एक रोग, खुरपका । पुलिस; जासूस।
खुरा-पु० खुरपका रोग। खुभना-अ० क्रि० चुभना, धंसना, गड़ना।
.खुराक-स्त्री० [फा०] खाना, आहार; एक आदमीका एक खुभराना*-अ० क्रि० इठलाते फिरना; उत्पात करनेके समयका (नियत) भोजन; दवाकी एक मात्रा। -बंदीलिए घूमना।
स्त्री० (राशनिंग) गल्ले, कपड़े आदिका निर्धारित मात्रामें खुभी-स्त्री० कानमें पहननेकी कील या लौंग-'मनमथ | वितरण । नेजा नोकसी खुभी खुभी जिय माँहिं'-बि०% हाथीके खराकी-वि० [फा०] अधिक खानेवाला। स्त्री० खुराकके दाँतपर चढ़ाया जानेवाला धातुका पोला।
बदले दिया जानेवाला पैसा; (दैनिक) भोजनव्यय । खुमखाना-पु० [फा०] शराबखाना, मदिरालय । खुराघात-पु० [सं०] खुरका आघात टापसे मारना। खुमान*-वि० आयुष्मान् , बड़ी आयुवाला । पु० खराफात-स्त्री० [अ०] बेहूदा बातें, बकवास; शरारत, शिवाजीकी उपाधि ।
झगड़ा खड़ा करनेवाली बात; बखेड़ा । खमार-पु० [फा०] नशा, मद; आँखों में छाया हुआ मद; .खुरानाती-वि० [अ०] खुराफात करनेवाला। नशेका उतार; नशा उतरते समय मालूम होनेवाली थका-खरी-स्त्री० टापका चिह्न । वट, सिर-दर्द आदि; जागरण, कच्ची नींद टूटनेसे आँखोंका | खुरी(रिन् )-पु० [सं०] खुरवाला जानवर । चढ़ जाना । मु०-तोड़ना-नशेके उतारका अवसाद दूर खुर्द-वि० [फा०] छोटा; उम्रमें छोटा, अल्पवयस्क । करनेके लिए थोड़ीसी शराब फिर पी लेना।
-बीन-स्त्री० एक आला जिससे आँखोंसे न दिखाई देनेखुमारी-स्त्री० दे० 'खुमार'।।
वाली चीजें देखी जा सकती है, अणुवीक्षण-यंत्र । खुमी-स्त्री० एक उद्भिद्वर्ग जिसके अन्दर भुई-फोड़, कुकुर- ख-पु० [फा०] टुकड़ा, रेजा; रेजगारी; थोड़ी मात्रा मुत्ता आदि पौधे आते हैं; दाँतमें जड़ी हुई सोनेकी कील; " (थोकका उलटा); बिसातबानेका सामान; छोटी-मोटी हाथीके दाँतपर चढ़ाया हुआ धातुका पोला ।
चीजें । अ० थोड़ी मात्रामें, फुटकल (बिक्री)। -फरोशखुम्हारि-स्त्री० दे० 'खुमार'।
पु० फुटकल बेचनेवाला, बिसाती । खुरंट-पु० दे० 'खुरंड' ।
खुर्राट, खुर्राट-वि० बूढ़ा; अनुभवी, चालाक, उस्ताद । खुरंड-पु०सूखते हुए धावके ऊपर जमनेवाली पपड़ी,खुट्ठी । खुरां टा, खुर्राटा-पु० दे० 'खर्राटा' । खुर-पु० [सं०] सुम, नखः छुरा; चारपाईके पायेका एक | खुलना-अ० क्रि० रोक हटना; आवरण हटना; बंधन हिस्सा । -तार*-पु० खुरका आधात । -प्राण-पु० छूटना, फंदेसे निकलना, बँधी हुई चीजका बंधन न रहना नाल । -न्यास-पु० खुरका निशान, खुरवाले पशुका फटना; छेद या दरार होना; प्रकट होना; बताया जाना; पदचिह्न। -पका-पु० [हिं०] गाय, बैल आदिका खुर आरंभ होना, कायम होना; निकलना; बंद, रुके हुए और मुँह पक जानेका रोग। -बंदी-स्त्री० [हिं०] / कामका फिर जारी होना (स्कूल, दफ्तर); छूटना (रेल, नालबंदी।
नाव आदि); काममें आने लगना (लाइन, सड़क); उधड़ना खुरखुर-स्त्री० साँस लेते समय, कफ आदि रहनेके कारण, (सिलाई); सजना; खिलना; मनकी बात कहना; निःसंहोनेवाली आवाज।
कोच होकर बात करना; (रंग) साफ होना, साँवलापन खुरखुरा-वि० दे० 'खुरदरा'।
घटना; जगना ( भाग्य )। -खुलकर-अ० निःसंकोच; खुरखुराना-अ० क्रि० साँससे घरघराहटकी आवाज निक- स्पष्टतः; प्रकट रूपमें । मु०खुल खेलना-छिप-छिपाकर लना; 'खुर-खुर' शब्द होना; खुरखुरा मालूम होना। किये जानेवाले कामको खुलकर करने लगना; लज्जासंकोच खुरखुराहट-स्त्री० घरघराहट; खुरदरापन ।
त्याग देना । खुलता रंग-हलका साफ रंग। खुरचन-स्त्री० खुरचकर निकाली हुई चीज; कड़ाही आदि- खुलवाना-स० क्रि० खोलनेका काम दूसरे कराना । में नीचे जमा हुआ दूध जो खुरचकर निकाला जायएक खुला-वि० जो बँधा या बंद न हो; जिसमें रोक न हो। तरहकी गाढ़ी रबड़ी।
जो ढका-छिपा न हो, प्रकट, जाहिर; जो तंग, घिरा हुआ खुरचना-स० क्रि० बरतनमें जमी, चिपकी हुई चीजको न हो; लंबा-चौड़ा (महल, मैदान); जहाँ काफी हवा-रोशनी छीलकर अलग करना; कुरेदना।
आये । [स्त्री० खुली।] मु. खुले आम, ख़ज़ाने,• खुरचनी-स्त्री० खुरचनेका आला।
बाजार-बेधड़क, सबके सामने, अलानिया। -दिलसे
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. खुलासा - खेचरो
उदारतापूर्वक । - मैदान - खुले खजाने, डंके की चोट
.खुलासा- पु० [अ०] निचोड़, सार, संक्षेप । वि० संक्षिप्त, छाँटा हुआ; [हिं०] स्पष्ट । अ० साफ-साफ (बो०) । खुल्ल - वि० [सं०] छोटा; कमीना । - तात- पु० पिताका छोटा भाई ।
खुल्लमखुल्ला - अ० खुले आम प्रकाश्य रूपसे । खुवारी * - स्त्री० दे० ' ख्वारी' ।
ख़श - वि० [फा०] मुदित, प्रसन्न; सुखी; प्रफुल; अच्छा, भला । - इंतिज़ामी - स्त्री० सुप्रबंध । - क़िस्मत- वि० अच्छे भाग्यवाला, भाग्यवान् । -ख़त - वि० सुंदर अक्षर लिखनेवाला, सुलेखक । -ख़बरी - स्त्री० खुश करनेवाली खबर, शुभ समाचार | -दिल- वि० प्रसन्नचित्त, आनंदी, हँसमुख | -नवीस - वि० सुंदर अक्षर लिखनेवाला, खुशखत | - नसीब - वि० भाग्यवान्, खुशकिस्मत | नुमा - वि० भला लगनेवाला, सुंदर । - नुमाई - स्त्री० सुंदरता । - बू - स्त्री० सुगंध । - ०दार - वि० सुगंधयुक्त । -मिज़ाज - वि० प्रसन्नचित्त, हँमुसख। - हाल- वि० संपन्न, रुपये-पैसे से सुखी ।
• खुशामद - स्त्री० [फा०] खुश करनेवाली बात, चापलूसी । . खुशामदी - वि० [फा] चापलूस, खुशामद करनेवाला । - टट्टू - वि० खुशामद की कमाई खानेवाला, जीहुजूर । . खुशी - स्त्री० [फा०] खुश होना, प्रसन्नता, हर्ष, इच्छा, मरजी । - खुशी - अ० प्रसन्नतापूर्वक, खुशीके साथ । - का सौदा - वह काम जिसे करना न करना अपनी मरनीकी बात हो ।
खुश्क - वि० [फा०] सूखा; रूखा; अरसिक; जिसके साथ और कुछ न हो, खाली ( - तनख्वाह, रोटी) ।
. खुश्की - स्त्री० [फा०] सूखापन; रूखापन; रसहीनता; अवर्षण; स्थल भाग । -की राह - स्थलमार्गसे । खुसामति* - * - स्त्री० दे० ' खुशामद' | खुसाल, खुस्याल* -- वि० खुश, मगन । खुसुरफुसुर- स्त्री० कानाफूसी । अ० बहुत धीमी आवाज में । . खुसूसियत - स्त्री० [अ०] विशेषता; मेल, सौहार्द । खुही- स्त्री० लबादेकी तरह ओढ़ा हुआ कंबल, घोघी । खूँखार - वि० दे० 'खून' के साथ |
खूँट - पु० कोना; मकानके कोनेपर लगाया जानेवाला पत्थर; ओर, दिशा; भाग; कानका मैल; छोटी पूरी; कानका एक गहना, ढार; रोक ।
|
खूँटना - अ० क्रि० घटना; चुकना; - 'मसि खूँटी कागर जल भीजे'- सू०; टूटना | स० क्रि० रोकना; छेड़छाड़ करना; खोंटना ।
खूँटा - पु० लकड़ी या बाँसकी मेख जिसे गाड़कर गाय, बैल आदिको बाँधते हैं; खड़ी गड़ी हुई लकड़ी । खूँटी - स्त्री० छोटी मेख; लकड़ीकी मेख जो कपड़े आदि टाँगनेके लिए दीवार में गाड़ी जाय; जॉते या चक्कीकी किल्ली; सितार, सारंगी, खड़ाऊँ आदिमें जड़ी छोटी मेख; अरहर, ज्वार आदिकी खुत्थी जो फसल काटने के बाद खेत में रह जाय; बालकी जड़ जो उस्तरे से मूँड़नेके बाद रह जाय । खूँद - स्त्री० खूँदनेकी क्रिया । खूँदना-अ
-अ० क्रि० घोड़ेका बलात् रोके जानेपर उसी जगह
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हटना बढ़ना, पाँव मारना, टापसे जमीन खोदना, रौंदना । खूझा - पु० फल, तरकारीका रेशेदार भाग; अधिक उलझा हुआ लच्छा ।
खूटना* - अ०क्रि० घटना; चुकना; रुकना, अवरुद्ध होना । ०क्रि० टोकना, पूछताछ करना; छेड़ना ।
खूद - पु० किसी तरल चीजको छानने, निधारनेसे निकलनेवाला मैल, तलछट ।
खून- पु० [फा०] रक्त, लहू; हत्या, कतल । -खराबा - पु० मार-काट, खून -कतल । - (खूँ ) खार - वि० दे० ‘.खूँख्.वार' । –(.खूँ) ख़्वार - वि० क्रूरकर्मा, जालिम; खूनी, हिंस्र; डरावना । - ( . खूँ) रेज़- वि० खून बहाने - वाला, खूनी, मारकाट मचानेवाला । - (खूँ ) रेज़ी - स्त्री० मारकाट, रक्तपात । मु० - आँखों में उतरना - क्रोधसे आँखें लाल हो जाना, अति क्रुद्ध होना । - का जोशकुल, वंशके नाते उत्पन्न स्नेह, ममता, सगेपनकी मुहब्बत । - का दौरा - रक्त संचार । -का प्यासा - जान लेनेपर तुला हुआ, जानी दुश्मन के आँसू रोना- अतिशय व्यक्ति होना । - के घुँड पीना-भारी गुस्सेको पी जाना, सह लेना । - खौलना - अति क्रुद्ध होना, गुस्से से लाल हो जाना। - गरदनपर होना - (किसी के) कतलका जिम्मेदार होना । - पानी एक करना - खून पानीकी तरह बहाना। - पीना - बहुत सताना; जान लेना, मार डालना । - बहाना - रक्तपात करना, खून कतल करना । - मुँह ( को ) लगना - खून का मजा मिलना, चाट लगना; काटने की आदत पड़ जाना। - सिरपर चढ़कर बोलता है - - हत्याका पाप छिपा नहीं रहता। - सिरपर चढ़नाखूनीके चेहरे, चेष्टा आदि से भय, घबराहट प्रकट होने लगना; किसीका खून करनेपर आमादा हो जाना । - सूखना- घबरा जाना ।
.खूनी - पु० [फा०] खून करनेवाला, कातिल । वि० क्रूर, जालिम; हत्या सूचक हत्याके भाव से पूर्ण (आँख); रक्तपातमय, मार-काटवाला । -बवासीर-स्त्री० वह बवासीर जिसमें मस्सेसे खून निकलता है ।
. खूब - वि० [फा०] अच्छा, बढ़िया सुंदर । अ० अच्छी तरह, पूरी तरह; बहुत साधु, वाह ! - सूरत - वि० सुंदर, रूपवान् । -सूरती - स्त्री० सुंदरता । खूबकलाँ - पु० [फा०] एक घास या उसके बीज | .खूबी - स्त्री० [फा०] भलाई, अच्छाई, गुण, विशेषता । खूसट - वि० जराजीर्ण; अरसिक; मनहूस । पु० उल्लू । खूसर* - वि०, पु० दे० 'खूसट' ।
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खेक (ख) सा - पु० एक बेल या उसका कँटीलासा परवल जैसा फल जो तरकारीके काम आता है खेचर - वि० [सं०] आकाशमें चलनेवाला । पु० ग्रह; पक्षी; वायु; बादल; विमान; देवता; राक्षसः सूर्य; भूत-प्रेत । खेचरी - वि० स्त्री० [सं०] आकाशचारिणी । स्त्री० दुर्गा; परी । - गुटिका - स्त्री० एक तंत्र वर्णित गोली जिसके संबंध में कहा जाता है कि उसे मुँह में रखनेवाला आकाश में उड़ सकता है । - मुद्रा - स्त्री० योगकी अंगभूत एक मुद्रा जिसमें जीभ उलटकर तालूमें लगायी और दृष्टि त्रिकुटीपर स्थापित की जाती है ।
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खेटक-खैराती खेटक-पु० [सं०] छोटा गाँव, खेड़ा; ढाल; बलरामकी लंबी कुदान, शतरंज, टेनिस आदिमें भाग लेनेवाले कुशल गदा; * आखेट, शिकार ।
खेलाड़ियों या व्यक्तियोंके बीच होनेवाली प्रतियोगिता। खेटकी-पु० भड़ेरिया, ज्योतिषी शिकारी ।
खेलना-अ० क्रि० मनबहलावके लिए या चित्तके उल्लाससे खेड़ा-पु० छोटा गाँव । -पति-पु० गाँवका मुखिया। दौड़ना, नाचना, उछलना-कूदना, क्रीड़ा करना; कामखेड़ी-स्त्री० एक तरहका इसपात; आँवल ।
केलि करना; अभुआना; * चला जाना; बिचरना। स० खेत-पु० जमीनका टुकड़ा जो जोता-बोया जाय या जा क्रि० कोई खास खेल (ताश, शतरंज, जुआ आदि) खेलना, सके, क्षेत्र खेतमें खड़ी फसल (ला०); घोड़े-बैल आदिकी अभिनय करना। किसी जातिका उत्पत्तिस्थान, नस्ल; रणक्षेत्र; तलवारका खेलवाड़-पु० खेल, क्रीड़ा। फल । मु०-आना-वीरगति प्राप्त करना ।-कमाना- खेलवाड़ी-वि० खेल-कूद में अधिक रुचि रखनेवाला (लड़का)। जुताई, खाद आदिसे खेतको उपजाऊ बनाना ।-करना- खेलवार*-पु० खेल करनेवाला, खिलाड़ी खेल । चाँद उगते समय चाँदनीका फैलना; युद्ध करना; * सम- खेला-स्त्री० [सं०] खेल,क्रीड़ा मनबहलाव (साकेत २४३)। थल करना। -छोड़ना-पीठ दिखलाना। -पर चढ़े खेलाड़ी-वि० दे० 'खिलाड़ी'। किसानी-योग्यताका पता काम पड़नेपर लगता है। | खेलाधार-पु० (प्ले-ग्राउंड) विद्यालय आदिसे संबद्ध वह -रहना,-होना-युद्ध में मारा जाना ।
मैदान जहाँ हाकी, गेंद-बला आदि खेलनेकी व्यवस्था हो । खेतिहर-पु० किसान, खेती करनेवाला ।
खेलाना-स० क्रि० खेलमें प्रवृत्त या शामिल करना; खेती-स्त्री० खेत जोतने-बोनेका काम, किसानी; बोआई, खेलनेका अवसर देना; (बच्चेको) बहलाना; शिकारको काश्त; फसल । -बारी-स्त्री० किसानी, कृषिकर्म। थकाने या क्रीड़ाके लिए दौड़ाना, नचाना; उलझाये खेद-पु० [सं०] दुःख, रंज; उदासी, ग्लानि; थकावट रखना। व्यथा। -जनक-वि० खेद देनेवाला; शोचनीय । खेलार*-पु० खिलाड़ी। खेदना*-स० क्रि० शिकारका पीछा करना; दे० 'खदेड़ना'। खेलौना-पु० दे० 'खिलौना' । खेदा-पु० किसी जंगली जानवरको घेरकर शिकारकी जगह खेवक*-पु० खेनेवाला; केवट । ले जाना, हकवा आखेट ।
खेवट-पु० पटवारीका एक कागज या बही जिसमें गाँवके खेना-स० क्रि० नाव चलाने के लिए डाँड़ मारना; बिताना। हर जमींदार या पट्टीदारके हिस्से, मालगुजारी आदिका खेप-स्त्री० उतना माल, बोझ जितना एक बार में ढोया जा ब्योरा रहता है; * खेनेवाला; केवट । -दार-पु० सके; एक बारका बोझा बोझ ढोनेवाले (आदमी, चौपाये, पट्टीदार। गाड़ी आदि) का एक बार आना-जाना, एक फेरा। खेवटिया*-पु० मलाह, केवट । खेपना-स० क्रि० बिताना; बिदा करना ।
खेवनहार-पु० खेनेवाला; पार लगानेवाला। खेम -पु० दे० 'क्षेम'।
खेवना-स० क्रि० दे० 'खेना' । खेमटा-पु० एक ताल; उस तालपर गाया जानेवाला गीत। खेवरिया-पु० खेनेवाला । खेमा-पु० डेरा, तंबू ।
खेवा-पु० नाव खेनेकी उजरत, नावका भाड़ा, उतराई; खेरा*-पु० दे० 'खेड़ा।
नावकी खेप; बार; * बोझ-लदी नाव । खेरोरा*-पु० एक तरहका लड्डू, बँडीरा ।
खेवाई-स्त्री० खेनेका काम; खेनेकी उजरत । मु०-भी खेल-वि० [सं०] क्रीड़ाशील । पु० [हिं०] मनबहलाव और बह भी जाना-पैसे देकर बेवकूफ बनना। या व्यायामके लिए या केवल चित्तके उल्लाससे किया खेवैया-पु० नाव खेकर पार ले जानेवाला व्यक्ति । जानेवाला काम, चेष्टा; क्रीड़ा; वाजी करतब, तमाशा, खेस-पु० एक तरहकी मोटे सूतकी बुनी चादर । अभिनय लीला; चाल, कारसाजीका काम; बहुत आसान | खेसारी-स्त्री० केरावकी जातिका एक कदन्न । काम; कामकेलि । -पंच-पु० (अंपायर) खेलों में, विशेष- खेह-स्त्री० धूल; राख । मु०-खाना-दुर्दशाग्रस्त होना। कर क्रिकेट आदिमें, विवाद उत्पन्न होने पर अभिनिर्णय खेहर*-स्त्री० दे० 'खेह'। करनेवाला व्यक्ति; (रेफरी) फुटबाल, हाकी आदिमें खंचना-स० क्रि० दे० 'खाँचना । पंचका काम करनेवाला । -मध्यस्थ-पु० (रेफरी) गेंद- खैर-पु० बबूलकी जातिका एक पेड़ जिसकी लड़की उबालबल्ला आदिके खेलमें खेलाड़ियोंके दोनों दलोंके खेलका कर कत्था बनाते हैं, खदिर, कत्था ।-सार-पु० कत्था। निरीक्षण करने तथा विवाद या मतभेद उत्पन्न होनेपर खैर-स्त्री० [अ०] भलाई; कुशल, सलामती । अ० अच्छा; पंच या निर्णायकका काम करनेवाला, अभिनिर्णायक । अस्तु । -खाह-वि० दे० 'खर.ख्वाह'। -स्वाह-वि० मु०-करना-किसी कामको तुच्छ समझकर हँसीमें खर, भलाई, चाहनेवाला, हितचिंतक । उड़ाना। -के दिन-खेलने-खानेके दिन, लड़कपन खैरलोभैर(ल)*-पु० खलबली, हलचल; शोरगुल । -खेलना-चाल चलना । -खेलाना-तंग, हैरान खैरा-वि० कत्थई । पु० कत्थई रंगका कबूतर या घोड़ा। करना । -समझना-बहुत आसान समझना। -बिग- खैरात-स्त्री० [फा०] ('खर'का बहुक्चन) पुण्यकर्म, दानड़ना-काम बिगड़ना।
पुण्य । -खाना-पु० लंगरखाना, अन्नसत्र । खेलक*-पु० खेलनेवाला, खेलाड़ी।
खेराती-वि० [फा०] खैरातका, धर्मार्थ संचालित; मुफ्तमें खेलनप्रतियोगिता-पु० [सं०] (टूर्नामेंट ) ऊँची कुदान, मिला हुआ। -अस्पताल, दवाखाना-पु०. वह दवा
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खैरियत-खोली
१९६ खाना जहाँ धर्मार्थ, मुफ्त दवा दी जाय, दातव्य औषधालय । | खोद-पु० लोहेका बना टोप, शिरस्त्राण । स्त्री० खोदनेकी स्तरि(री)यत-स्त्री० [फा०] कुशल; भलाई; नेकी । क्रिया; छानबीन । -पूछ-स्त्री० छानबीन, पूछताछ । खैलर, खैला*-स्त्री० मथानी ।
खोदना-स० क्रि० खुरचना, कुरेदना; गड्ढा करना; खों इचा(छा)।-पु० मोड़ा हुआ आँचल ।
खोदकर उखाड़ना; ढहाना; लकड़ी आदिको कुरेदकर चित्र खो खी-स्त्री० खाँसी।
उरेहना, बनाना; नकाशी करना; कोई नुकीली चीज खो खो -पु० खाँसने या बंदरोंके घुड़कनेकी आवाज। धीरेसे चुभोना उकसाना उभारना । मु. खोदखोच-स्त्री० खरोंच, कपड़ेकी चीर या छेद जो किसी | खोदकर पूछना-पूरी बात जाननेके लिए जिरह करना, नुकीली चीजसे उलझकर हो जाय। पु० मुद्रीभर अन्न। | एक-एक बातपर शंका-प्रश्न करते हुए पूछना। खो चा-पु. लगगी या बाँस जिसके सिरेपर लासा लगाकर | खोदनी-स्त्री० खोदनेका औजार।। बहेलिये चिड़िया फँसाते हैं ।
खोदवाना-स० क्रि० 'खोदनेका काम दूसरेसे कराना। खों ची-स्त्री. वह अन्न, तरकारी आदि जो दुकानदार खोदाई-स्त्री० दे० 'खुदाई'। राशिमेंसे उठाकर भिखमंगेको दे दे।
खोना-स० कि० गँवाना, अपनी चीज कहीं भूल, छोड़ खोटना-स० क्रि० किसी चीजका, खासकर साग-पातका, आना नष्ट, बरबाद करना। मु० खो जाना-गुम हो ऊपरका भाग, फुनगी नोच लेना।
जाना; किसी चिता-विचारमें डूब जाना; हक्का-बक्का हो खो डर, खाँडरा-पु० कोटर, गड्ढा ।
जाना । खोया-खोया रहना-किसी चिता-विचारमें खों ड़ा-वि० विकलांग; जिसका दाँत टूट गया हो; खंडित। निमग्न रहना; गुम-सुम रहना। खो ता-पु० घोंसला।
खोन्चा-पु० बड़ा थाल जिसमें फेरीवाले मिठाइयाँ आदि खोप-स्त्री० दूर-दूर लगा हुआ टाँका; खाँच।
रखकर बेचते हैं, 'रू.वानचा'।-फरोश-पु० फेरीवाला। . खो पा-पु० हलका वह भाग जिसमें फाल लगा रहता है; खोपड़ा-पु० कपाल, सिर; गरीका गोला; नारियल । भूसा रखनेका छाजनदार घेरा; छाजनका कोना; चोटीका खोपड़ी-स्त्री० कपाल, सिर । मु०-खा जाना-चाट गुच्छा, चूड़ा-'खोंपा छोरि केस मुकलाई-५०।'
जाना-बहुत बकवास करके कष्ट पहुँचाना। -खाली हो खाँ सना-स० क्रि० अटकाना, फँसाना ।
जाना-(किसीकी बकवास या अधिक श्रमसे) दिमागका खोआ-पु० दे० 'खोया।
थक जाना। -खुजलाना-मार खानेका उपाय करना, खोई-स्त्री० ईखका डंठल जिसका रस निकाल लिया गया पिटनेको जी चाहना । -गंजी होना-इतनी मार खाना हो लाई खुही, कंबल की घोधी ।
कि सिरके बाल झड़ जायँ, सिरपर खूब जूते पड़ना । खोखला-वि० भीतरसे खाली, पोला। पु० खोखली जगह खोपरा-पु० दे० 'खोपड़ा। कोटर; बड़ा छेद ।
खोपा-पु० छाजनका कोना; जूड़ा बँधी हुई चोटी; केशखोगीर-पु० [फा०] जीनकी भरती; नमदा ।-की भरती विन्यासका एक भेद; गरीका गोला । -रद्दी, निकम्मी चीज।
खोभरा*--पु० गड़नेवाली चीज, खूटी आदि । खोज-स्त्री० खोजनेकी क्रिया, तलाश, अन्वेषण; निशान, खोभार-पु० तंग दरवाजेवाला झोपड़ा जिसमें सूअर रातचिह्नः पहियेकी लीक पदचिह्न । मु०-खबर लेना-हाल | को बंद किये जाते है; कूड़ा फेंकनेका अड्डा । पूछना, पता लेना। -मारना-लीक या पदचिह्न मिटा खोम* --पु० झंड-'बसे खलनके खेरन खबीसनके खोम देना। -मिटाना-नाम निशान, लीक, मिटा देना। है'-भू० जाति । खोजक*-वि०, पु० खोज करनेवाला ।
| खोया-पु० औटाकर लुगदीसा बनाया हुआ दूध, मावा; खोजना-स० क्रि० ढूँढ़ना, तलाश करना, पता लगाना। ईंट पाथनेका गारा । खोजवाना-सक्रि० खोजनेका काम दूसरेसे कराना। खोर-स्त्री० गली; गाय-बैलको चारा-पानी देनेकी नाँदा खो(लो)जा-पु० हिजड़ा; हरममें रहनेवाला हिजड़ा सेवक दे० 'खोरि' । वि० [सं०] लँगड़ा।। एक तिजारत-पेशा मुसलमान जाति ।
खोरनाt-अ०कि. नहाना । स० कि० खोलना। खोजी-वि०, पु० खोज करनेवाला, अन्वेषक ।
खोरा-+ पु० कटोरा-'रतनजड़ाऊ खोरा-खोरी'-५०% खोट-स्त्री० दोष, बुराई; खता, कुसूर; पाप, दुष्टता, खुटाई आबखोरा । * वि० खोंडा, विकलांग। सोने-चाँदी में किसी घटिया धातुकी मिलावट; इस तरह खोराकी-स्त्री० दे० 'खुराकी'; वि० पेटू । मिलायी हुई चीज; खुरंड । वि० दुष्ट; ऐबी ।
खोरि(री)-स्त्री० गली; दोष, बुराई कटोरी;दे० 'खौरि'। खोटता*-स्त्री० खुटाई, बुराई ।
खोरिया-स्त्री० कटोरी; बुंदेके रूपमें कटे हुए डाँकके टुकड़े। खोटा-वि०जिसमें खोट हो; 'खरा'का उलटा सदोष, बुरा, खोल-पु० गिलाफ, आवरण; बेठन; मोटी चादर घटिया; मिलावटवाला; खल, दुरात्मा। -खरा-वि० कीड़ोंकी ऊपरी त्वचा जो केंचुलकी तरह झड़ा करती है । भला-बुरा; सच्चा-झूठा; घटिया-बढ़िया। -सिक्का-पु० खोलना-स० क्रि० आवरण, अवरोध, बंधन हटाना; जाली, अप्रामाणिक, न चलनेवाला सिका। मु०-खाना* दरार, छेद करना; चीरना, उधेड़ना; प्रकट, जाहिर -बेईमानीकी कमाई खाना। खोटी-खरी सुनाना-बुरा- | करना आरंभ करना; चलाना; स्थापित करना; कार्यारंभ भला कहना, गालियाँ देना।
करना । खोलकर-अ० साफ-साफ। खोड़रा-पु० कोटर; दाँत आदिके भीतरका गड्ढा । खोली-स्त्री० गिलाफ थैली; दलाई जैसा कपड़ा जिसमें
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खोवा-गैठ रुई न भरी हो; कोठरी ।
ख्यात-वि० [सं०] प्रसिद्ध कथित, वर्णित । खोवा-पु० दे० 'खोया'।
ख्याति-स्त्री० [सं०] प्रसिद्धि, शुहरत, नाम; प्रशंसा । खोसना*-स० कि० छीनना, लुचकना ।
ख्यापन-पु० [सं०] शुहरत करना; प्रकट, प्रकाशित खोह-स्त्री० गुफा, कंदरा; दो पहाड़ोंके बीचकी तंग | करना। जगह, दर्रा।
ख्याल-पु० दे० 'खयाल'; एक विशेष गान-पद्धति; * खेल, खोही-स्त्री० पत्तोंकी छतरी; धोधी; पहाड़ोंके बीचका गहरा मजाक । गड्ढा ; * धूल ।
ख्याली-वि० दे० 'खयाली'; खेल, क्रीड़ा-कौतुक करने खौं-स्त्री० खात, गड्ढा; अन्न एकत्र करनेका गहरा गड्ढा। वाला; सनकी, बहमी। खाँचा-पु० साढ़े छःका पहाड़ा।
खिष्टान-पु० ईसाई। खौट*-स्त्री० खोंटनेकी क्रिया, खरोंच खुरंड । | खीष्ट-पु० क्राइस्ट, ईसा । नौत-पु० [अ०] डर, भय । -नाक-वि० डरावना। ख्वाजा-पु० [फा०] मालिक, सरदार; कछ मसलमान खौर-पु० चंदनका आड़ा तिलक, त्रिपुंड्रा एक गहना । जमातोंकी पदवी; हिजड़ा; खोजा जाति । खीरना-स० क्रि० खौर करना, तिलक लगाना । स्वान-पु० [फा०] थाल, तश्त । -चा-पु. छोटा थाल । खोरहा-वि० खौरा रोगवाला; गंजा।
ख्वाब-पु० [फा०] नींद; सपना । -गाह-पु० सोनेका खौरा-पु० कुत्तों आदिको होनेवाली एक तरहकी खुजली। कमरा। वि० खौरा रोगवाला।
स्वारी-स्त्री० [फा०] जिल्लत, बेइज्जती; खराबी, बरबादी। खौरि*-स्त्री० तिलक; गली।
स्वाह-अ० [फा०] चाहे, अथवा, या। -मख्वाह-अ० • खौलना-अ० क्रि० उबलना, जोश खाना ।
चाहे या बिना चाहे, मजबूरन अवश्य । खोलाना-स० क्रि० उबालना, औटाना ।
| ख्वाहिश-स्त्री[फा०] इच्छा, चाह । -मंद-वि० इच्छुक ।
ग-कवर्गका तीसरा अक्षर । उच्चारणस्थान कंठ । | गंगाल-पु० कंडाल, बड़ा जलपात्र । गंग-पु० भक्तिकालका एक प्रसिद्ध हिंदी कवि; एक मात्रिक गंगावतरण-पु० [सं०] गंगाका स्वर्गसे धरतीपर आना। छंद । स्त्री० गंगा। -बरार-स्त्री० गंगा या दूसरी नदीकी | गंगावतार-पु० [सं०] दे० 'गंगावतरण'। धाराके नीचेसे निकली हुई (नयी) जमीन ।
गंगेय*-पु० दे० 'गांगेय'। गंगा-स्त्री० [सं०] भारतवर्षकी एक प्रधान और पवित्रतम । गंगोझ*-पु० दे० गंगोदक' । नदी,जाहवी,भागीरथी।-गति*-स्त्री० गंगालाभ, मुक्ति। गंगोत्तरी-स्त्री० हिमालयकी एक चोटी जहाँसे गंगा -जमनी-वि० [हिं०] दोरंगा; सोने-चाँदीका बना; निकली है। सोने-चाँदीके कामवाला; काला-उजल।। स्त्री० कानका गंगोदक-पु० [सं०] गंगाजल; एक वर्णवृत्त । एक गहना धोड़ोंकी दोरंगी गरदनी केवटी दाल; सुनहले- | गंगोटी-स्त्री० गंगाके किनारेकी रेत या मिट्टी। रुपहले कामकी जरतारी। -जल-पु० गंगाका पानी | गंज-पु० सिरके बाल झड़ जानेका रोग, गंजापन, बालपवित्र जल जिससे कसम खिलाते हैं; एक सफेद रेशमी | खोरा रोगः [सं०] खान, खजाना; ढेर, भंडार; मंडी, कपड़ा-'गंगाजलकी पाग सिर सोहत श्री रघुनाथ-राम। बाजार; [फा०] धनराशि ढेर, भंडार, मंडी; वह चीज -जली-स्त्री० [हिं०] धातु या सीसेकी सुराही जिसमें जिसमें कई उपयोगी चीजें एक साथ हों।-गुबारा*यात्री हरद्वार आदिसे गंगा जल लाते हैं; धातुकी सुराही; पु० बमगोला । -गोला-पु. तोपका वह गोला जिसमें लोटे जैसा पात्र जिसमें कड़ीदार ढक्कन लगा होता है। एक बहुतसी चीजें भरी हों। तरहका गेहूँ। -धर-पु० शिव । -पुत्र-पु. भीष्म; गंजन-पु० [सं०] अवज्ञा करना; हरा देना; नाश; नीचा कात्तिकेय, गंगा आदिके घाटोंपर बैठने और पंडोंका काम दिखाना: संगीतके आठ तालोंमेंसे एक; *दुःख । वि० अवज्ञा करनेवाला ब्राह्मण । - पुजैया-स्त्री० [हिं०] दे० 'गंगा- करनेवाला; *नाशक । पूजा' । -पूजा-स्त्री० ब्याहके बाद वर-वधूको लेकर गंजना*-स० क्रि० अवज्ञा करना; नाश करना। गाजे-बाजेके साथ होनेवाली गंगा, देवताओं आदिकी गंजा-वि०गंज रोगवाला, खल्वाट। पुं० गंजापन; गंज रोग। पूजा। -यात्रा-स्त्री० बीमारको गंगातटपर इसलिए ले गंजी-स्त्री० छोटा गंज, ढेर, राशि; एक बुना हुआ पहनावा, जाना कि वहीं उसकी मृत्यु हो। -राम-पु० [हिं०] | बनियायन । तोतेका प्यारका नाम जिससे पढ़ाते समय उसका संबोधन | गंजीफा-पु० ताश जैसा एक खेल जिसमें पत्ते गोल और करते हैं। -लाभ-पु० गंगाकी प्राप्ति, गंगातटपर मृत्यु संख्या में ९६ होते हैं । या दाहकर्म होना; मृत्यु । -सागर-पु. एक तीर्थ स्थान | गॅजेड़ी-वि० गाँजा पीनेवाला । जहाँ गंगा समुद्रसे मिलती है। -सुत-पु० भीष्म गँठ-स्त्री०समासमें व्यवहृत 'गाँठ'का संक्षिप्त रूप ।-कटाकात्तिकेय ।मु०-उठाना,-जली उठाना-गंगाजल
पु० गिरहकट, पाकेटमार । -जोड़ा-पु० गँठबंधन । लेकर कसम खाना।
-बंधन-पु०विवाहकी एक रीति जिसमें वर-वधके कपड़े
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गंड-गगन
१९८ के छोर एकमें बाँध दिये जाते हैं। पक्का नाता, अटूट संबंध । गंधरबिन*-स्त्री० गंधर्व स्त्री या गंधर्वकी स्त्री। गंड-पु० [सं०] गाल; कनपटी; गालसे कनपटीतकका | गंधर्व-पु० [सं०] देवताओंका एक भेद जो देवलोकके गायक मुखभाग हाथीकी कनपटी फोड़ा, फुसी; घेधा; योद्धा; गाँठ; माने जाते हैं। गायक; एक हिंदू जाति जिसकी लड़कियाँ गंडा; गड़ा; हलका; मंडलाकार रेखा; चिह्न, निशान; वीथि नाचने-गानेका पेशा करती है। -नगर,-पुर पु० ष्टि(नाटक)का अंगविशेष; एक अनिष्ट योग (ज्यो०)।-देश,- दोषसे आकाशमें दिखाई देनेवाला मिथ्या आभासरूप स्थल-पु० कनपटी। -माला-स्त्री० कंठमाला रोग। नगर, कल्पित नगर महाभारतमें वर्णित मानसरोवरके -स्थली-स्त्री० दे० 'गंडस्थल'।
पासका एक नगर ।-लोक-पु० गुह्यक लोकके ऊपर और गंडक-स्त्री० एक नदी। पु० [सं०] गंडा; गिरह ।
विद्याधर लोकके नीचे अवस्थित एक लोक। -विद्यागंडकी-स्त्री० [सं०] गंडक नदी; मादा गैंड़ा।
स्त्री० गानविद्या । -विवाह-पु० वह विवाह जिसे वरगँड़तरा-पु० वह मोटा वस्त्र या कथरी जो छोटे बच्चों के कन्या परस्पर-प्रीतिसे प्रेरित होकर माता-पिताकी अनुमति नीचे बिछा दी जाती है ताकि पेशाब-पाखानेसे बिस्तर न लिये बिना ही करें। -वेद-पु० चार उपवेदों में से एक, खराब हो।
संगीत-शास्त्र। गंडा-पु० गाँठ; मंत्र पढ़कर गाँठ लगाया हुआ धागा जो गंधाना -अ० क्रि० महकना, दुर्गंध निकलना ।। जंतर-तावीजकी तरह पहना जाय; तोते आदिके गलेका गंधाबिरोजा-पु. एक गोंद जिसका मरहम बनता है। रंगीन हलका कंठा, घोड़ेके गले में पहनानेका पट्टा आड़ी गंधार-पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद, कंधारके आसधारी; चारका समूह (कौड़ी, पैसा), आना।
पासका देशः सप्तकका तीसरा स्वर; एक राग । गडासा-पु० एक हथियार जिसमें डंडेके सिरेपर लोहेका गंधी(धिन)-पु० [सं०] इत्रफरोशाखटमल एक धास। ।
खमदार फलक लगा होता है, परशु; एक औजार जिससे गंधीला*-वि० गंदा, मैला। चारा काटते हैं।
गंधेंद्रिय-स्त्री० [सं०] घ्राणेंद्रिय, नाक । गँडासी-स्त्री० एक औजार जिससे चारा काटते हैं। गंधोपजीवी (विन्)-पु० [मं०] गंधी, इत्रफरोश । गंडक*-पु० दे० 'गंडूष' ।
गंभीर-वि० [सं०] गहरा; ऊँची और भारी (आवाज); गंडू-वि० गाँडू।
मंद्र (ध्वनि); गहन; गढ़, दुर्बोध; सोच-विचारकर बोलने, गंडूष-पु० [सं०] चुल्लू (जल आदि); कुल्ली; हाथीकी काम करनेवाला; कम बोलने और हँसी-मजाकसे दूर सँड़की नोक।
रहनेवाला, संजीदा। गँडेरी-स्त्री०ईख या गन्नेका कुछ लंबोतराटुकड़ा जो चसने गँव-स्त्री० दे० 'गौं' ।-हिं*-अ० गौसे, चपकेसे । __ या कोल्हू में पेरनेके लिए काटा जाय; छोटा लंबोतरा टुकड़ा। गँवई-स्त्री० छोटा गाँव । गंतव्य-वि० [सं०] जाने योग्य, गम्य; जहाँ जाना हो। रमसला-पु० गँवारोंकी उक्ति । गंत्र-पु० [सं०] (एंजिन) यंत्रों, कल-पुरजों आदिको गति गँवाऊ-वि० गँवानेवाला, उड़ाऊ ।
प्रदान करनेवाला एक तरहका यांत्रिक साधन । गँवाना-स० क्रि० खोना, नष्ट करना या हो जाने देना । गंदगी-स्त्री० [फा०] मलिनता; मल; नापाकी; बदबू । गँवार-वि,पु० गाँवका रहनेवाला, देहाती; मूर्ख, अनाड़ी; गँदला-वि० गंदा, मैला-कुचैला ।
उजड्ड । -ता*-स्त्री० गँवारपन । गंदा-वि० [फा०] मैला; नापाक; बदबूदार बिगड़ा हुआ। गवारी-वि० स्त्री० गँवारकीसी, गँवार.। स्त्री० गवार स्त्री। गंदुम-पु० [फा०] गेहूँ।
गवारू-वि० गॅवारकासा, बेढंगा; भोंड़ा। गंदुमी-वि० [फा०] गेहुँए रंगका, दबती गोराईवाला। गवेली-स्त्री० गँवार स्त्री। गंध-स्त्री० [सं०] वास,बू, पृथ्वीतत्त्वका गुण (न्या०) सुगंध; | गंस*-पु०, स्त्री० दे० 'गाँस' । सुगंधित द्रव्य; चंदन, केसर आदिका लेप; लेश, नाममात्र गसना*-सक्रि० जकड़ना, कसना । अ०नि०कसा जाना। -द्रव्य-पु० सुगंधित द्रव्य (चंदन, केसर आदि)।-नाल* गँसीला-वि० जिसमें गाँसी हो, चुभनेवाला; गँसा -पु० दे० 'गंधनाली'।-नालिका,-नाली-स्त्री० नाका हुआ, गफ । -बिलाव-पु० [हिं०] नेवलेसे मिलता-जुलता एक जंतु, ग-पु० [सं०] गीत; गणेश । वि० गमन करनेवाला; गानेमुश्कबिलाब । -मादन-पु० एक पुराणवर्णित पर्वत; उस | वाला (समासके अंत.)। पर्वतपर लगा हुआ सुगंधित वृक्षोंका जंगल; भौरा ।। गइंद-पु० दे० 'गयंद'। -मार्जार-पु. गंधबिलाब। -मैथुन-पु० साँड़ । गइनाही*-स्त्री० ज्ञान, जानकारी। -राज-पु०मोगरा बेला; नंदन; जवादि नामक गंधद्रव्य । गई-बहोर*-वि० गयी, गँवायी हुई चीजको पुनः प्राप्त -सार-पु० चंदन, मोगरा वेला।
कराने, बिगड़ीको बनानेवाला । गंधक-पु०, स्त्री० [सं०] एक तीक्ष्ण गंधयुक्त पीतवर्ण खनिज | गऊ-स्त्री० गाय; सीधा आदमी। पदार्थ जो दवा, बारूद आदि बनानेके काम आता है; | गकरिया-स्त्री० लिट्टी, बाटी; मधुकरी ।
शोभांजन; सुगंध ।-बटी-स्त्री०एक प्रसिद्ध पाचकऔषध । गगन-पु० [सं०] आकाश, अंतरिक्ष; शून्य । -कुसुमगंधकाम्ल-पु० [सं०] गंधकका तेजाब ।
पु० आकाशकुसुम । -गढ़*-पु० गगनस्पर्शी, बहुत गंधकी-वि० गंधकके रंगका।
ऊँचा महल । -गिरा-स्त्री० आकाशवाणी। -चर-- गंधरब-पु० दे० 'गंधर्व' ।
वि० आकाशचारी । पु० पक्षी; शशिचत्र नक्षत्र; देवत।।
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गगनापगा-गट्टा -चुंबी भवन-पु० (स्काई स्कपर) बहुत ऊँचा मकान देहपर डाल लेता है)। जो आकाशको छूता हुआ-सा जान पड़े, अभ्रंकष । | गज़-पु० [फा०] लंबाईका एक मान, १६ गिरह, ३६ इंच; -पति-पु० इंद्र। -भेदी- (दिन)-वि० आकाशका सारंगी आदि बजानेकी कमानी; लोहेका छड़ या छड़ भेदन करनेवाला, बहुत ऊँचा, प्रचंड ।-विहारी(रिन जैसी लकड़ी जिससे बंदूक भरी जाती है। एक तरहका वि० आकाशमें विचरण करनेवाला । पु० प्रकाशपिंड, सूर्य; तीर । -इलाही-पु० अकबरी गज जो ४१ इंचका देवता ।
होता है। गगनापगा-स्त्री० [सं] आकाशगंगा ।
गज़क-पु० [फा०] वह चटपटी चीज जो शराबके साथ गगरा-पु० ताँबे, पीतल या लोहेका बना धड़ा, कलसा । या शराब पीनेके बाद तुरत खायी जाय, चाट; तिलगगरिया*-स्त्री० दे० 'गगरी' ।
शकरी; कलेवा । गगरी-स्त्री० मिट्टीका घड़ा; छोटा गगरा।
गज़ट-पु० [अं०] सरकारी अखबार , वह सामयिक पत्र गच-स्त्री० किसी नरम चीज में कड़ी-पैनी चीजके धंसने, जिसमें सरकारी सूचनाएँ प्रकाशित हों; समाचारपत्र । घुसनेकी आवाज; पक्का फर्शः पक्की छत; छत बनानेका ग़ज़नवी-पु० [फा०] गजनीका रहनेवाला; एक तुर्क वंश । मसाला । -कारी-स्त्री० पक्की छत या फर्श बनाना । गजना*-अ० क्रि० गर्जन करना ।
-गर-पु० गच बनानेवाला ।-गोरी*-स्त्री० गचकारी। ग़ज़ब-पु० [अ०] क्रोध; विपत्, आफत; अंधेर, जुल्म । गचना*-स० क्रि० गाँसना हँसकर भरना।
-का-वि० अतिशय, बेहद; बहुत बड़ा; अद्भुत, गचाका-पु० गचसे गिरनेकी आवाज । स्त्री० जवान स्त्री। विलक्षण । मु०-टूटना,-पड़ना-भारी विपत्तिमें आ गच्छना*-अ० क्रि० जाना।
पड़ना । - ढाना-आफत करना, जुल्म करना । गछना*-अ० क्रि० जाना । स० क्रि० निवाहना; अपने गजबीला*-वि० गजब करने, गजब ढानेवाला । ऊपर लेना; गूंथना-'हरवा गछत भइल साँझ रे'- गजर-पु० पहर-पहर बजनेवाला घंटा; भोरका घंटा; ग्रामगी०; बनाना।
जगानेकी घंटी। -दम-अ० तड़के, पौ फटते । गजंद(दा)*-पु० दे० 'गजेंद्र'।
गजरभत्ता,-भात-पु० गाजरके साथ पकाया हुआ भात । गज-पु०[सं०] हाथी; आटकी संख्या; लंबाईकी एक माप, गजरा-पु० फूलोंकी धनी गुथी हुई माला, हार; कलाईपर ३० अंगुल; गजासुर, ८ दिग्गजोंमेंसे एक; नीव, पुश्ता। पहननेका एक गहना; एक रेशमी कपड़ा। -असन*-पु० दे० 'गजाशन' । -कंद-पु० एक | ग़ज़ल-स्त्री० [अ०] फारसी-उर्दू में मुक्तक काव्यका एक भेद वनौषधि, हस्तिकंद । -कर्ण-पु० एक यक्षा दद्र रोग । जिसका प्रधान विषय प्रेम होता है; उर्दू का एक तरह-भ-पु० हाथीके मस्तकका उभरा हुआ भाग। का पद्य । -गति-स्त्री० हाथीकीसी मंद, गौरवभरी चाल; एक! गजा*-पु० नगाड़ा बनानेका डंडा । वर्णवृत्त ।-गामिनी-वि०,स्त्री० हाथीकीसी मंद, गौरवभरी गजानन-पु० [सं०] गणेश । चालवाली। -गाह*-पु० हाथीपर डाली जानेवाली गजायुर्वेद-पु० [सं०] हस्ति-चिकित्सा-शास्त्र। झूल, पाखर । -गौन* -पु० गजगमन । -गौनी- गजारि-पु० [सं०] शिव सिंह; एक विशेष वृक्ष । वि० स्त्री० गजगामिनी । -चर्म(न्)-पु० हाथीकी | गजाशन-पु० [सं०] पीपल; कमलकी जड़ । खाल; एक चर्मरोग। -दल-पु० हाथीका दाँत; गणेश; | गजी-स्त्री० [सं०] हथिनी। कपड़े टाँगनेके लिए दीवारमें गाड़ी हुई खूटी; एक | गजी-पु० हाथका बुना मोटा कपड़ा, गाढ़ा। तरहका घोड़ा; दाँतपर निकला हुआ दाँत; नृत्यका एक गजेंद्र-पु० [मं०] बड़ा हाथी, गजराज; ऐरावत; इंद्रद्युम्न भाव । -दंती-वि० [हिं०] हाथीदाँतका बना हुआ। नामक राजा जो अगस्त्यके शापसे हाथी हो गया और -दान-पु० हाथीका दान; हाथीके गंडस्थलसे बहनेवाला ग्राहग्रस्त होनेपर भगवान्को याद कर शापमुक्त हुआ। मद । -नाल-स्त्री० भारी तोप जिसे पहले हाथी खींचते गज्जूह-पु० हाथियोंका झुंड, गजयूथ । थे। -नासा-स्त्री० हाथीकी सूई। -पति-पु० हाथी गझिना-वि० धना, गाढ़ा । रखनेवाला; विशालकाय, गिल्लेका सरदार हाथी; विजय- गटकना-स० क्रि० निगलना, उदरस्थ करना; हड़पना। नगरके राजाओंकी उपाधि । -पाल-पु. हाथीवान, गटगट-अ० गटगटकी आवाजके साथ, जल्दी-जल्दी; महावत । -पिप्पली-स्त्री० गजपीपल । -पीप(रोल- लगातार (पीना, निगलना)। स्त्री० गटगटकी आवाज । स्त्री० [हिं०] एक पौधा जिसकी मंजरी दवाके काम आती गटना*-अ० क्रि० बँधना, जकड़ जाना। है। -बदन*-पु० गणेश। -मणि-पु० गजमुक्ता। गटपट-स्त्री० दो या अधिक वस्तुओं, व्यक्तियोंका बिलकुल -मद-पु० गजदान । -मुक्ता-स्त्री० कविसमय-सिद्ध मिल-जुल जाना; सहवास । मोती जिसका हाथीके मस्तकसे निकलना माना जाता है। गटरमाला-स्त्री० बड़े दानोंकी माला । -मुख,-वक्त्र,-वदन-पु० गणेश । -मौक्तिक-पु० गटागट-अ० दे० 'गटगट' । गजमुक्ता । -यूथ-पु० हाथियोंका झुंड । -राज-पु० | गटापारचा-पु० एक तरहका गाद । बहुत बड़ा हाथी, गजेंद्र । -वान-पु० [हिं०] महावत । गटी-स्त्री० गाँठ; समूह ।। -शाला-स्त्री० फीलखाना । -स्नान-पु० हाथीका गहा-पु० कलाई; धुट्टी, टखना; नैचेकी गाँठ जो फरशीके नहाना; निरर्थक कार्य ( हाथी नहानेके बाद कीचड़, धूल मुंहपर रहती है; गाँठ; बीज (कमलगट्टा); एक मिठाई ।
१३-क
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गहर-गढ़ाई
२०० गहर-पु० बड़ी गठरी, गट्ठा ।
गड़बड़िया-वि० गड़बड़ करनेवाला । गट्ठा-पु० बड़ी गठरी, गट्ठर घास, लकड़ी आदिका बोझा गड़बड़ी-स्त्री० दे० 'गड़बड़'। प्याज इत्यादिकी गाँठ; कहा।
गड़रिया-पु० एक हिंदू जाति जो भेड़ें पालती है। गट्टी-स्त्री० गाँठ।
गड़वाँत-स्त्री० पहियेकी लीक । गठन-स्त्री० बनावट, रचना; अंगोंका कसाव, दृढ़ता। गड़वाना-स० क्रि० गाड़नेका काम कराना। गठना-अ० कि० जुड़ना; गाँठा जाना; सिला जाना, गड़हा-पु० दे० 'गड्ढा '। टॉका भरा जाना; ठीक तौरसे बनना; कसा हुआ, हृढ़ | गड़ही-स्त्री० छोटा गड्ढा । होना; अधिक हेल-मेल होना।
गड़ा-पु० ढेर, गाँज, राशि। गठरी-स्त्री० कपड़े में बँधा हुआ सामान, बुकचा; बोझ; गड़ाना-स० क्रि० चुभाना, फँसाना; दे० 'गड़वाना'। संचित धन, जमा; बड़ी रकम, तैराकीमें घुटनोंको छातीसे गड़ायत*-वि० गड़ने, चुभनेवाला। लगाने और दोनों हाथोंसे बाँध देनेकी मुद्रा । -मुटरी-गड़ारी-स्त्री० वृत्त, घेरा; आड़ी लकीर; घिरनी, गोल स्त्री० गठरीमें बँधा हुआ सामान, यात्रीका सामान । चरखी; घिरनीके बीचका गड्ढा; एक घास ।-दार-वि. मु०-कटना-भारी रकम हाथसे निकल जाना।
आड़ी धारियोंवाला, घेरदार जिसमें गड़ारी जैसा गड्ढा हो। गठवाई-स्त्री० (जूता) गाँठनेकी उजरत ।
ग.डुआ(वा)-पु० टोटीदार लोटा, झारी; फूलका लोटा। गठवाना, गठाना-स० क्रि० सिलवाना; जुड़वाना । ग.दुई-स्त्री० छोटा ग डुवा । गठा-पु० दे० 'गट्ठा'।
ग.दु(डो)लना-पु० बच्चोंको घुमानेकी छोटी गाड़ी। गठाव-पु० गठन।
गड़ेरदार-वि० घेरदार । गठित-वि० ग्रथित, गठा हुआ, बना हुआ।
गड़ेरिया-पु० दे० 'गड़रिया। गठिबंध*-पु० दे० 'गँठबंधन'।
गड़ोना-म०कि.चुभाना, फँसाना । गठिया-पु० अनाज आदिका बोझ लादनेका दुहरा थैला गड़ौना-पु० एक तरहका पान; * काँटा । या बोरा, खुरजी छोटी गठरी संधिवात ।
गड-पु० एकपर एक रखी हुई चीजोंकी राशि ताशके गठियाना-स० क्रि० गाँठ देना; गाँठमें बाँधना । पत्तों, कागज आदिका ढेर; * गड्ढा । -बडु,-महगठिवन-पु० एक पेड़ जिसकी कलियाँ दवाके काम आती वि० बिना किसी क्रम-नियमके मिला हुआ, खस्त-मस्त । हैं, ग्रंथिपर्णी ।
गड्डी-स्त्री० छोटा गड, ढेर; ताशके पत्तों, कागजों, सोनेगठीला-वि० गठा हुआ, कसा हुआ, दृढ़ ।
चाँदीके वरकों आदिका एकपर एक जमाकर रखा हुआ ढेर । गठौत, गठौती-स्त्री० मेलजोल, दोस्ती; अभिसंधि । गट्टा-पु० गढ़ा, गर्त ।। गड़कना*-अ० क्रि० गड़गड़ शब्द करना; इबना। गढंत-वि० गढ़ा हुआ, कल्पित । स्त्री० गढ़ी हुई बात । गड़गड़ा-पु० एक तरहका हुक्का, बड़ी गुड़गुड़ी।
गढ़-पु० कोट, किला; अड्डा, केंद्र खाई । -कप्तान-पु० गड़गड़ाना-अ० क्रि० गड़गड़ शब्दहोना,गरजना(बादल)। किलेदार । -पति-पु० गढ़का प्रधान अधिकारी, किले
स० क्रि० गड़गड़ शब्द उत्पन्न करना; हुक्का पीना। दार । -पाल-पु० गढ़पति । -वार*-पु० गढ़वाल । गड़गड़ाहट-स्त्री० गड़गड़ाने, बादल गरजने आदिकी -वाल-पु० गढ़पति; उत्तराखंडका एक प्रदेश। आवाज; हुक्केकी आवाज ।
गढ़त, गढ़न-स्त्री० बनावट, आकृति; गठन । गड़दार-पु० मतवाले हाथीकेसाथ भाला लेकर चलनेवाला; गढ़ना-सक्रि० किसी चीज, उपादानभूत पदार्थसे औजामहावत ।
रोंकी सहायतासे कुछ बनाना, रचना, निर्माण करना; गड़ना-अ० क्रि० चुभना, फँसना; चुभनेकी पीड़ा होना; काट-छाँट या ठोक-पीटकर सुडौल करना; कल्पना करना, घुसना, समाना; जमना, ठहरना, स्थिर होना; गाड़ा। मनसे उपजाना; पीटना, मरम्मत करना (ग्रा०)। जाना, दफन होना; (झंडा आदि) खड़ा किया जाना । | गढ़वाना-स० क्रि० 'गढ़ना'का प्रेर०, गढ़ाना। मु० गड़ जाना-लज्जासे सिर झुक जाना; गड़ा मुर्दा गढ़ा-पु० जमीनमें खोदकर बनाया हुआ या प्रकृति-निर्मित या गड़े मुर्दे उखाड़ना-पुरानी भूली हुई ( अप्रिय ) छेद, गर्त, गार; दबी, धंसी हुई जगह; पेट (ला०) । बातोंकी चर्चा करना, याद दिलाना ।
मु० (किसीके लिए)-खोदना-किसीकी बुराईका, गइप-स्त्री० पानी, दलदल में किसी चीजके जल्दीसे धंसने, किसीको नुकसान पहुँचानेका उपाय करना । -भरनाडूबनेका शब्द ।
घाटा पूरा होना; पेट भरना। गढ़ेमें गिरना-विपद्में गड़पना-स० कि० निगलना, गपकना ।
फँसना पतन होना। गड़प्पा-पु० भारी गहा, दलदल, पाल जिसमें चीज या गढ़ाई-स्त्री० गढ़नेका काम; गढ़नेकी उजरत । आदमी धंस जाय।
| गढ़ाना-स० क्रि० गढ़वाना, बनवाना। अ० क्रि० खलना। गड़बड़-वि० गड-बड, अस्त-व्यस्त । पु०, स्त्री० अव्यवस्था, गढ़िया-पु० गढ़नेवाला। गोलमाल; बद-अमली, उपद्रव; खराबी रोगादिका प्रकोप। गढ़ी-स्त्री० छोटा गढ़, किला; मजबूत मकान । -झाला-पु० गोलमाल, अव्यवस्था, झमेला ।
गढ़ीश(स)*-पु० गढ़पति, किलेदार । गड़बड़ाना-अ० कि० गड़बड़ होना। स० क्रि० गड़बड़ | गढ़ेया-वि० गढ़नेवाला । स्त्री० गड़ही, छोटा तालाब । करना।
| गढ़ोई*-पु० गढ़पति ।
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सिं०] जाना
चनेकी सानीवात्मा
२०१
गण-गदहपूरना गण-पु० [सं०] समूह, गरोह; वर्ग: श्रेणी; जाति; समान बनाना-दुर्दशा करना; खूब मरम्मत करना । उद्देश्यवाले मनुष्योंका समूह, संघ; अनुचर या अनुयायि- गतका-पु० लकड़ीका डेढ़-दो हाथ लंबा, चमड़ा चढ़ा, वर्ग; अक्षौहिणीका एक विभाग-२७ रथ, २७ हाथी, ८१, मुठियादार डंडा जिससे एक खास खेल खेला जाता है, घोड़े और १३५ पैदल; छंदःशास्त्र में तीन वर्णीका समूह | गतका-फरीका खेल जो लाठी लड़नेसे मिलता-जुलता है। (भगण, यगण आदि); समान लोप, आगम आदिवाले गतांक-पु० [सं०] पिछला अंक, संख्या (सामयिक शब्दों, धातुओंका वर्ग (व्या०); शिवके सेवकोंका समुदाय, | पत्रादिकी)। प्रमथा सेवक, अनुचर । -तंत्र-पु० शासनका एक प्रकार गतानुगतिक-वि० [सं०] आँख मूंदकर दूसरोंके पीछे जिसमें शासनका कार्य चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा होता । चलनेवाला, अंधानुयायी। है। -तंत्रवादी(दिन)-पु० (रिपब्लिकन) गणतंत्रके | गतार्तवा-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो अब ऋतुमती न होती सिद्धांतोंका प्रतिपादन, अनुसरण या समर्थन करनेवाला | हो, बुढ़िया । संयुक्त राष्ट्र अमेरिकाका एक राजनीतिक दल जो व्यापा- गतासु-वि० [सं०] मृत । रिक संरक्षण एवं केंद्रीय शक्तिके विस्तारका समर्थक माना
गति-स्त्री० [सं०] जाना, गमन; चाल, रफ्तार; हरकत जाता है । -दीक्षा-स्त्री० बहुतोंकी एक साथ, सामूहिक
लीला; पहुँच, प्रवेश; जाने-पहुँचनेकी सामर्थ्यकी सीमा दीक्षा । -द्रव्य-पु० पंचायती धन, माल । -नाथ,- दशा, हालत; स्थिति; रूप-रंग; मृत्युके बाद जीवात्माकी नायक,-पति-पु० गणस्वामी; गणेशशिव । -पूर्ति- भली-बुरी दशा सद्गति; मार्ग; ग्रहोंकी चाल; नासूर; स्त्री० (कोरम) सदस्योंकी वह अल्पतम निर्धारित संख्या शान; उपाय; अवलंब, सहारा; साधन; प्रवाहा नृत्य जो किसी सभाका कार्य संचालित करनेके लिए आवश्यक पैतरा दे० 'गत' । -भंग,-भेद-पु० छंद, गान आदिमानी गयी हो । -राज्य-पु. वह राज्य जिसमें शासन
में पढ़ने, गानेकी लयका टूट जाना। -रोध-पु० (डेडजन प्रतिनिधियों द्वारा होता हो।
लॉक) किसो वार्ता आदिमें ऐसी जटिल स्थिति या बाधागणक-पु० [सं०] गणना करनेवाला, ज्योतिषी; दे० | का उत्पन्न हो जाना जिससे आगे बढ़ने आदिकी संभावना 'लेखापाल' ।
ही न जान पड़े, जिच। -विज्ञान-शास्त्र-पु० गणन-पु० [सं०] गिनना; हिसाब करना; मानना ।
विज्ञानका वह विभाग जिसमें द्रव्यादिकी गति और शक्तिगणनक-पु० (टैबुलेटर) चुनावमें प्राप्त मतों या परीक्षामें संबंधी सिद्धांतोंका निर्धारण किया जाता है (डायनाप्राप्त अंकोंको क्रमसे रखकर जोड़नेवाला व्यक्ति या
मिक्स) । -विधि-स्त्री० चेष्टा, हरकत कार्य (असा०) । यंत्र।
-शील-वि० गतिमान् । -हीन-वि० असहाय, परिगणना-स्त्री० [सं०] गिनना; हिसाब; लिहाज; ( अका- त्यक्त गतिरहित । उंट) दे० 'लेखा'।
गतिमानू (मत्)-वि० [सं०] गतियुक्त, हरकत करनेगणनाध्यक्ष-पु० [सं०] दे० 'लेखापाल' ।
वाला। गणनीय-वि० [सं०] गिननेलायक; भान्य ।
गत्ता-पु० एक तरहकी घटिया दफ्ती। गणाधिप, गणाधिपति, गणाध्यक्ष-पु० [सं०] गण- | गत्तालखाता-पु० बट्टाखाता । स्वामी; सेनानायक; गणेश; शिव ।
गत्थ*-पु० दे० 'गथ' । गणिका-स्त्री० [सं०] वेश्या, धनके लोभसे नायकसे प्रेम | गन्यवरोध-पु० [सं०] दे० 'गतिरोध' । करनेवाली नायिका ।
गथ*-पु० पूँजी, जमा; माल, धन; झुंड । गणित-पु० [सं०] संख्या, अवकाश, मात्रा आदिका
गथना*-स० कि० जोड़ना, एक साथ बाँधना; गढ़कर विचार करनेवाला शास्त्र, अंकशास्त्र हिसाब । वि० गिना | बातें करना। हुआ; जोड़ा हुआ। -ज्ञ-वि० गणितशास्त्री, ज्योतिषी। गद-पु० [सं०] रोग; विष । -हा(हन)-पु. वैद्य '-विद्या-स्त्री० अंकशास्त्र, इल्मे हिसाव ।
[हिं०] दे० 'गधा'। गणेश-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध हिंदू देवता जो शिव-पार्वती- गदका-पु० दे० 'गतका'। के पुत्र माने जाते हैं।
गदकारा-वि० गुलगुला, नरम। गण्य-वि० [सं०] गणनीय । -मान्य-वि० सम्मानित । गदगद-वि० दे० 'गद्गद' । गत-वि० [सं०] गया हुआ; वीता हुआ; मृत; पहुँचा हुआ | गदनास
गदना*-स० क्रि० कहना, बोलना। प्राप्त; स्थित; से संबद्ध; रहित; शात; पिछला (गत | ग़दर-पु० [अ०] विप्लव, बगावत, विद्रोह । सप्ताह, मास)। -चेतन-वि० नष्टचेतन, बेहोश । | गदरा-वि० गदराया हुआ, अधपका। -प्राण-वि० मृत, बेजान । -प्राय-वि० गया, बीता | गदराना-अ० क्रि० पकनेपर होना; यौवनागभमें अंगोंका हुआसा। -भर्तृका-स्त्री० विधवा । -वय(स भरना, खिलना; आँखमें कीचड़ आना, आँख दुखने आना। घयस्क-वि० अधिक अवस्थाका ।
* वि० गदराया हुआ। अवस्थाका।
. गत-स्त्री० गति, हालत बुरी गति; ढंग; रूप; सितार गदला-वि० मैला, मिट्टी या कीचड़ मिला हुआ (पानी)।
आदिपर बजाया जानेवाला रागका 'सरगम'; नृत्यमें | गदहपचीसी-स्त्री०१६ से २५ बरसतककी अवस्था, मस्ती विशेष अंगचेष्टा ।-का-ठिकानेका, अच्छा ।(-बजाना- और नासमझीके दिन । सितार आदिपर रागका 'सरगम' बजाना।) मु०- | गदहपूरना-स्त्री० एक पौधा, पुनर्नवा ।
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गदहरा-गम्य
२०२ गदहरा*-पु० गधा; गद्दा ।
करना, बकवास करना । -लड़ाना-गपशप करना। गदहिला-पु. वह गधा जिसपर ईट आदि लादते हैं। गपकना-स० क्रि० निगल लेना, शटसे खा लेना; * झूठ गदा-स्त्री० [सं०] लोहेका बना एक पुराना हथियार जिसके | कहना।। एक सिरेपर नोकदार बड़ा लट्ठ लगा होता था, गुर्ज; | गपड़चीथ-पु० गड़बड़, गोलमाल; बेकारकी बकवास, डंडेमें पहनाया हुआ पत्थरका गोला जिसे मुद्गरकी तरह गप । वि० ऊटपटाँग, अंडबंड । भाँजते है ।-धर-वि० गदा धारण करनेवाला। पु० विष्णु। गपना*-स० क्रि० गप मारना । गदाई-स्त्री० [फा०] भिक्षावृत्ति । । वि० तुच्छ, निकम्मा।| गपिया-वि० गप मारनेवाला। गदेला-पु० गद्दा; * लड़का, बालक-'फिरे मुलकमें मुगल-गपिहा*-वि० गप्पी । गदेले'-छत्र।
गपोड़, गपोडिया-वि० गप भारनेवाला। गदाद-वि० [सं०] हर्ष, प्रेम आदिके अतिरेकसे जिसका गपोड़ेबाज़ी-स्त्री० झूठी बकवास । गला भर आया हो, जिसके मुँहसे स्पष्ट शब्द न निकलते गप्प-स्त्री० दे० 'गप'। हों, पुलकित; आनंदित ।
गप्पी-वि० गप हाँकनेवाला। गहा-पु० भारी, मोटा तोशका टाटकी बनी मोटी गद्दी। गफ-वि० ठस, घना (बुना हुआ), 'शीना'का उलटा। गद्दी-स्त्री० छोटा गद्दा जिसपर दुकानदार, साहूकार बैठता ग़फ़लत-स्त्री० [अ०] भूल; असावधानता, बेखबरी । है; अधिक सम्मानित व्यक्तिके बैठनेके लिए लगाया हुआ गफिलाई*-स्त्री० गफलत । आसन; राजा, मठाधीश आदिका पद: कई तह किया | ग़फ़र-वि० [अ०] क्षमा करनेवाला, दयालु । हुआ कपड़ा जो पाव आदिपर रखते है ।-नशीनी-स्त्री० गबडी*, गबडी-स्त्री० कबड़ी। गद्दीपर बैठना । मु०-चलना-वंशपरंपरा या शिष्यपरं-ग़बन-पु० [अ०] अमानतकी रकम खा जाना, खयानत । पराका जारी रहना ।-पर बैठना-राजगद्दीपर बैठना। | गबरा*-वि० धनी हठी-'धनी भये निधन, निधन भये गद्य-पु० [सं०] वह रचना जो छंदोबद्ध न हो, वातिक, गवरे'-कको० दे० 'गब्बर'।। पद्यका उलटा । -काव्य-पु० गद्यमें की गयी काव्यके | गबरू-वि० नौजवान, जिसकी रेख भिन रही हो; भोलागुणोंसे युक्त रचना।
भाल।।+ पु० दूल्हा । गधा-पु० घोड़ेकी जाति का एक चौपाया जो अधिकतर बोझ गब्बर-वि० घमंडी; मट्टर, सुस्त हठी; धनी । लादनेके लिए पाला जाता है, खर, रासभ। वि० नासमझ, गभस्तिमान(मत्)-वि० [सं०] चमकवाला । पु० सूर्य । मूर्ख, अहमक (ला०)। -पन-पु० मूर्खता, नासमझी। गभीर-वि० [सं०] दे० 'गंभीर' । मु० गधेको बाप बनाना-काम निकालनेके लिए मूर्खकी गभआ(वार-वि० पेटका, पैदाइशी (केश); जिसका खुशामद करना । पर चढ़ाना-जलील,बेइज्जत करना ।
दाना जलालाबइज्जत करना। मुडन न हुआ हो; छोटा (बालक) । गन*-पु० दे० 'गण' । -नायक,-प,-पति-पु० दे० 'गणनायक', 'गणपति' । -राय-पु० गणेश ।
ग़म-पु० [अ०] दुःख, शोक चिंता, परवा । -खोर,गनक*-पु० दे० 'गणक'।
स्वार-वि० दुःख बटानेवाला, हमदर्द सहनशील । गनगनाना-अ० त्रि. जाड़ेसे काँपना; रोमांच होना । -स्वारी-स्त्री० मददी; सहनशीलता। -गीनगनगौर-स्त्री० चैत-शुक्ला तृतीया।
वि०खिन्न, उदास । -नाक-वि० दुःखभरा; दुःखद । गनती*-स्त्री० गिनती।
मु०-खाना-क्षमा करना, सह लेना; दूसरेके दुःखसे गनना*-स० क्रि० गिनना । स्त्री० दे० 'गणना'। दुःखी होना। गनाना*-स० क्रि० दे० 'गिनाना'। अ० बि.० गिना | गमक-स्त्री० वास, महक; गूंजनेकीसी आवाज। वि० जाना।
[सं०] बोधक, सूचक । पु० गानेमें एक श्रुतिसे दूसरी गनाल*-स्त्री० एक तरहकी तोप ।
श्रति पर जानेकी एक रीति ।। गनिका*-स्त्री० दे० 'गणिका' ।
गमकना -अ० क्रि० महँकना; गूंजनेकीसी आवाज होना। गनियारी-स्त्री० एक झाड़ जिसकी लकड़ी रगड़नेसे आग गमन-पु० [सं०] जाना; पास जाना; चढ़ाई, विजययात्रा निकलती है, छोटी अरनी।
करना; संभोग करना। ग़नीम-पु० [अ०] डाकू, लुटेरा; दुश्मन ।
गमनना*-अ० क्रि० जाना। गनीमत-स्त्री० [अ०] लूटका माल; मुफ्तका माल; बड़ी गमना*-अ० क्रि० जाना; चलना; दे० 'गमिना' । बात; संतोष करने योग्य बात ।
गमनागमन-पु० [सं०] आना-जाना, यातायात । गन्ना-पु० ईख ।
गमला-पु० बालटी जैसा मिट्टीका बरतन जिसमें फूलों के गप-पु० निगलने, गपकने की क्रिया या उसका शब्द । पौधे लगाये जाते हैं। कमोड । स्त्री० इधर-उधर की बातें, निष्प्रयोजन बाते; मन- गमाना*-स० क्रि० दे० 'गँवाना' । बहलावके लिए की जानेवाली बात-चीत; झूठी बात; झूठी गमार*-वि०, पु० दे० 'गँवार' । खबर: डींग। -शप-स्त्री० इधर-उधरकी बातचीत, मन-गमिना*-अ० क्रि० राम करना, ध्यान देना। बहलावकी बातचीत । मु०-उड़ना-झूठी खबर फैलना। ग़मी-स्त्री० [अ०] मृत्युशोक, मातम मृत्यु । -मारना, हाँकना-डींग भारना; लंबी-चौड़ी बातें गम्य-वि० [सं०] जाने योग्य; जिसके पास जाया जा
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२०६
गयंद-गरांडील सके संभोग करने योग्य (स्त्री०गम्या); लभ्य; व्यंग्य(अर्थ)। गरदनियाँ-स्त्री. निकाल बाहर करनेके लिए किसीके गयंद-पु० गजेंद्र, बड़ा हाथी ।
। गले में हाथ लगाना, अर्द्धचंद्र (देना)। गय-पु०[सं०] धर धन प्राण; आकाश; पुत्र; एक राजर्षि गरदनी-स्त्री० घोड़ेकी गरदन और पीठपर उढ़ाया जानेजिनकी यज्ञभूमिका नाम गया पड़ा; एक असुर ।
वाला एक कपड़ा; गले में पहननेका एक गहना; गरेबान; गय*-पु० गज; हाथी। -नाल-स्त्री० दे० 'गजनाल'। | कारनिस; गरदनियाँ; गरदनपर लगाया जानेवाला घस्सा। गयल*-स्त्री० गली; रास्ता।
गरदा-पु० दे० 'गर्द'। गया-स्त्री० [सं०] मगधकी एक पुरी और प्रसिद्ध तीर्थस्थान ।। गरदान-वि० [फा०] जो घूम-फिरकर अपनी जगहपर -वाल-पु० [हिं०] गयाका पंडा।मु०-करना-गयामें लौट आये। पु. वह कबूतर जो घूम-फिरकर अपने जाकर पिंडदान आदि करना ।
अङ्ग्रेपर लौट आये । स्त्री० शब्दोंका रूप साधन । गयागुजरा, गयाबीता-वि० खराब; निकम्मा हीन गरदानना-सक्रि० गरदान करना, शब्दोंके रूप साधना दशाको प्राप्त ।
दुहराना; कबूल करना, मानना; समझना । गर-पु० [सं०] विष; रोग। -न-वि० विष-नाशक; गरदिश-स्त्री० दे० 'गर्दिश' । स्वास्थ्यकर।
गरना-अ० क्रि० निचोड़ा जाना; निचुड़ना; * दे० गर-प्र०[फा०] बनानेवाला। * पु० गला, गरदन ।-नाल- 'गलना'; टपकना, गिरना-'रहत न नयन नीरको स्त्री० चौड़े मुँहकी तोप, धननाद; + मंडलाकार भारी लोहा गरिबो'-सू० दे० 'गड़ना' । या पत्थर जिसे गलेमें डालकर बैठक लगाते हैं। गरब*-पु० दे० 'ग'; हाधीका मद । -गहेला-वि० सरक-वि० [अ०] डूबा हुआ, निमग्ना नष्ट; लीन, तन्मय । गरवीला, घमंडी। ग़रक़ाब-वि० [अ०] डूबा हुआ। पु० डूबनेभर पानी, गरबई*-स्त्री० गर्व, धमंड । डुवाच ।
गरब(बा)ना-अ० कि० गर्व करना । गरगज-पु० किलेकी चहारदीवारीपरका बुर्ज जिसपर तोप गरबा-पु. एक तरहका गुजराती नाच । चढ़ी रहती है; युद्ध-सामग्री रखनेके लिए बना हुआ टीला | गरबित*-वि० दे० 'गर्वित' । नावके ऊपरकी छत; टिकटी। वि०विशाल ।
गरबीला-वि० घमंडी, गर्वयुक्त। गरगाब*-वि० दे० 'गरकाब' ।
गरभ-पु० * दे० 'गर्व'; [सं०] दे० 'गर्भ'। गरज-स्त्री. ऊँची, गंभीर आवाज; कड़ककर बोलनेकी गरभाना*-अ० क्रि० गर्भ धारण करना; पौधोंमें बाल आवाज; मेघध्वनि; शेरकी दहाड़।।
लगना। ग़रज़-स्त्री० [अ०] मतलब, प्रयोजन; चाह, जरूरत । गरभी*-वि० धमंडी। -मंद-वि० गरज रखनेवाला, अथीं। -का बावला- गरम-वि० जिसे छूनेमें उष्णता या तापका अनुभव हो, अपनी गरज निकालनेके लिए सब कुछ करनेको तैयार । ऊँचे तापक्रमवाला; जलता हुआ; तेज, तीखा; ऋद्ध; गरजन*-पु० दे० 'गर्जन'।
शीघ्र उत्तेजित हो जानेवाला (खून, मिजाज); जोशीला गरजना-अ० क्रि० जोरसे कड़ककर बोलना; बादलोंका गरमी करनेवाला । -कपड़ा-पु० जाड़ेमें पहननेका
गड़गड़ाना; दहाड़ना । वि० गर्जन करनेवाला । कपड़ा, ऊनी या रुईदार कपड़ा ।-खबर-स्त्री० वह खबर ग़रज़ी-वि० [अ०] गरजमंद ।
जिसकी बहुत चर्चा हो। -मसाला-पु० धनियाँ, मिर्च गरजू-वि० दे० 'सरजी'।
लौंग, इलायची इत्यादि या इनका चूर्ण । गरट्ट-पु० झुंड ।
गरमागरम-वि• तुरतका पका हुआ, तत्ता, ताजा; जिसमें गरद-पु०:एक रेशमी कपड़ा । स्त्री० दे० 'गर्द' ।
गरमी या उत्तेजना हो (गरमागरम बहस)। गरदन-स्त्री० [फा०] गला, ग्रीवा; घड़े, सुराही आदिका गरमागरमी-स्त्री० जोश, सरगर्मी; गुस्से में आ जाना। मुंहके नीचेका तंग, लंबोतरा भाग ।-तोड़-पु० कुश्तीका गरमाना-अ० क्रि० गरमाहट अनुभव करना; गरम होना; एक पेंच । -.बुखार-पु० एक संक्रामक, सांघातिक | मस्तीपर आना; क्रुद्ध होना । स० क्रि० गरम करना। रोग । मु०-उठाना-विरोध करना। -उड़ाना-सिर गरमाहट-स्त्री० गरमी, उष्णता।। धड़से अलग कर देना, 'कतल करना। -ऐंठी रहना- गरमी-स्त्री० गरम होनेका भाव, उष्णता, हरारत; तेजी%B घमंडमें चूर या नाराज रहना । -काटना-गला काटना; क्रोध; आवेश; उमंग: ग्रीष्म ऋतु; धमंड; उपदंश रोग भारी अहित करना। -झुकना-अधीन होना; लज्जित हाथी-घोड़ोंका एक रोग । -दाना-पु० अम्हौरी । मु०होना; बेहोश होना। -न उठाना-लज्जित होना निकलना,-पचना-धमंड चूर हो जाना । बीमारीसे पड़े रहना; सब कुछ सह लेना। -नापना- गररा*-पु० दे० 'गरी'। धक्के देकर निकाल बाहर करना; वेइज्जती करना । -पर गरराना*-अ० क्रि० गरजना, गंभीर ध्वनि करना। छुरी फेरना-हलाल करना; भारी अन्याय करना। -पर | गरल-पु० [सं०] जहर, विष; सर्पविष । जुवा रखना-भारी काम सुपुर्द करना। -पर होना- गरवा-वि० दे० 'गरुआ' । पु० गला । ऊपर होना, जिम्मेदार होना (हत्या, पाप)।-फंसना- गरहा-पु० दे० 'ग्रह' । मु०-कटना-अरिष्ट दूर होना। वश होना । -में हाथ देना-गरदनियाँ देना बेइज्जत | गरहन*-पु० दे० 'ग्रहण' । करना।
गरांडील-वि० लंबा-तगड़ा, ऊँचे कदका ।
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२०४
गराँव-गर्भ गराँबा-पु० बैल आदिके गलेकी फंदेदार रस्सी । गरेबान-पु० [फा०] दे० 'गरीबान' । गराज*-स्त्री० गर्जन ।
गरेरना*-स० क्रि० घेरना, मुहासिरा करना; रोकना। गराड़ी-स्त्री० चरखी, घिरनी; रगड़से पड़ी हुई लकीर । गरेरा*-पु० घेरा । वि० धुमावदार । गराना*-स० कि० गलाना निचोड़ना ।
गरेरी-स्त्री० चरखी, घिरनी; गडेरी। *वि० घुमावदार, गरानी-स्त्री० ग्लानि; भारीपन; महँगी; पेटका भारी होना। चक्करदार । गरारा-वि० घमंडी; उद्धत ।
गरैयाँ-पु० दे० 'गराँव' । ग़रारा-पु० [अ०] गले में पानी लेकर 'गरगर' आवाजके गरोह-पु० [फा०]समूद, दल, झुंड।-बंदी-स्त्री० दलबंदी। साथ कुल्ली करना; कुल्ली करनेकी दवा; पाजामेकी ढीली गर्ग-पु० [सं०] एक मंत्रकार ऋषि साँड़ा केंचुआ। मोहड़ी शामियानेके चौबका गिलाफ । -(२)दार-वि० गर्गरी-स्त्री० [सं०] गगरी, घड़ा, कलसी; भथानी; दहेड़ी। ढीली मोहड़ीका (पजामा) ।
गर्ज-पु० [सं०] हाथीका चिग्धाइना; बादलोंका गर जना; गरास*-पु० दे० 'ग्रास'।
गर्जना; (चिग्धाइता हुआ) हाथी । गरासना*-स० क्रि० ग्रसना; निगलना; कष्ट देना। ग़र्ज-स्त्री० दे० 'गरज'। गरिमा(मन)-स्त्री० [सं०] गुरुता, भारीपन, गौरव, | गर्जन-पु० [सं०] गरजनेकी क्रिया, गरजना; गरजनेकी महत्त्व; गर्व आठ सिद्धियोंमेंसे एक जिससे अपना देह- आवाज; बादलोंकी गड़गड़ाहट; गंभीर ध्वनि; गुस्सा; युद्ध भार चाहे जितना बढ़ाया जा सकता है।
फटकार । -तर्जन-पु० गरज-तड़प डाँटना-धमकाना। गरियाना-स० क्रि० गाली देना।
गर्जना-स्त्री० [सं०] गर्जन । गरियार(ल)-वि० अड़ियल, मट्टर (बैल); सुस्त । गर्त-यु० [सं०] गढ़ा, खड; बिल नहर; कब्र । गरिष्ठ-वि० [सं०] सबसे भारी; सबसे सम्मानित; बहुत गर्ताश्रय-पु० [सं०] बिलमै रहनेवालाजंतु (चूहा,खरगोश)। कड़ा; दुष्पाच्य (भोजन); सबसे खराब ।
गर्द-स्त्री० [फा०] धूल, राख । वि० घूमनेवाला (केवल गरी-स्त्री० नारियलका मग्ज, खोपरा; गिरी।
समासमें-'आवारागर्द', 'जहाँगर्द')। -खार,-ख़ोरगरीब-वि० [अ०] परदेसी; अनोखा; निर्धन, मुफलिस; वि० धूलको जज्ब कर लेनेवाला, जल्दी मैला न होनेदीन-हीन । -खाना-पु० दीनकी कुटिया (नम्रतावश ।वाला। पु० दरवाजेके सामने पैर पोंछनेके लिए बिछायी अपने घरको कहते है)। -निबाज़-वि० दीनपर दया, हुई नारियल आदिकी चटाई, पाअंदाज, पापोश ।-(व) अनुग्रह करनेवाला, दीनदयालु । -परवर-वि० गरीबों | गुबार-पु० खाक-धूल, धूलधक्कड़ । का पालन करनेवाला । .
गर्दभ-पु० [सं०] गधा; सफेद कुई; गंध । गरीबान-पु० [फा०] अँगरखे, कुरते आदिका वह भाग गर्दभी-स्त्री० [सं०] गधी; गर्दभिका नामक चर्म रोग; जो गलेके नीचे और छातीके ऊपर रहता है।
गुबरैला । गरीबाना-वि० [अ०] निर्धनोचित । अ० गरीबी ढंगसे। गर्दिश-स्त्री० [फा०] घुमाव, फेरा चकरगति परिवर्तन, ग़रीबी-स्त्री० [अ०] निर्धनता, मुफलिसी; दीनता । फेर। -(शे) जमाना-स्त्री० दिनका फेर, दुर्भाग्य । गरु*-वि० भारी, वजनदार; गंभीर, शांत ।
गर्नाल-स्त्री० दे० 'गरनाल। गरुअ(आ)*-वि० वजनदार, भारी; गौरवयुक्त । गर्ब-पु० दे० 'गर्व'। गरुआई*-स्त्री० भारीपन, गुरुत्व ।
गीला-वि० धमंडी। गरुआना-अ० क्रि० भारी या वजनदार होना। गर्भ-पु० [सं०] शुक्र-शोणितके संयोगसे उत्पन्न मांसगरुड-पु० [सं०] विनताके गर्भसे उत्पन्न कश्यपके पुत्र जो |
पिंड, गर्भाशयमें स्थित बच्चा या भ्रण, हमला; कोख, गर्भापक्षिराज और विष्णुके वाहन माने जाते हैं; उकाब; लंबी शय; गर्भाधानकाल; किसी वस्तुका भीतरी, मध्यवती गरदनवाला एक पक्षी जो मछलियाँ पकड़कर खाता है। भाग; बिल; नदीका पेटा; घर-मंदिरका भीतरी भाग; -गामी(मिन्)-पु०विष्णु ।-घंटा-पु० वह घंटा जिस- नाटककी ५ प्रकारकी संधियों से एक । -कर-वि० गर्भ पर गरुड़की प्रतिमा बनी हो। -ध्वज-पु० विष्णु; वह धारण करानेवाला। पु० पुत्रजीव वृक्ष । -काल-पु० खंभा जिसमें ऊपर गरुड़की मूर्ति बनी होती है; गुप्त ऋतुकाल, गर्भधारणका समय । -केसर-पु० फूलके सम्राटोंका राजचिह्न । -पुराण-पु० अठारह पुराणों में से सूत जैसे रेशे जो गर्भनाल के अंदर होते हैं। -कोश,-- एक जिसमें नरकोंका वर्णन, प्रेतकर्मका विधान आदि है। कोष-पु० गर्भाशय, बच्चादानी । -गुवीं-स्त्री० -मंत्र-पु० एक विषहारक मंत्र ।
गर्भिणी । -गृह-पु० घरके बीचोबीचका कमरा, घरका गरुता*-स्त्री० दे० 'गुरुता'।
मध्य भाग; मंदिरकी वह कोठरी जिसमें मुख्य देवताकी गरमानू(मत्)-पु० [सं०] पक्षी; गरुड़ अग्नि ।
प्रतिमा हो। -च्युति-स्त्री० प्रसव; गर्भपात । -ज,गरुवाई*-स्त्री० दे० 'गरुआई'।
जात-वि. जन्मका, पैदाइशी। -द-वि० गर्भ देनेगरू*-वि० गुरु, भारी; बड़ा ।
वाला । पु० पुत्रजीव वृक्ष । -दा,-दात्री-स्त्री० सफेद ग़रूर-पु० [अ०] गर्व, घमंड ।
भटकटैया । -धारण-पु० गर्भवती होना, हमल रहना। गरूरत, गरूरताई-स्त्री० मस्ती; धमंड |
-नाल-स्त्री० फूलके भीतरकी पतली नाली जिसके गरूरा*-वि० मगरूर; मतवाला।
सिरेपर गर्भकेसर होता है। -पत्र-पु० कोपल; फूलके गरूरी*-वि० घमंडी, मगरूर ।
अंदरके पत्ते । -पात-पु० गर्भका गिर जाना । -भवन
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गर्भवती-गलन पु० गर्भगृह; सौरी । -मंडप-पु० शयनागार; गर्भगृह । जोत-स्त्री० [हिं०] वह रस्सी जिससे दो बैल एक साथ -मास-पु. वह महीना जिसमें गर्भ रहे। -मोक्ष- बाँधे, जोते जायँ; गलेका हार। -झप-पु० [हिं०] पु० बच्चेकी पैदाइश। -लक्षण-पु० गर्भके चिह्न । (युद्ध में) हाथीके गलेपर डाली जानेवाली लोहेकी झूल । -वध-पु० भ्रूणहत्या । -वास-पु० (बच्चेका) गर्भके। -तनी-स्त्री० [हिं०] बैलोंके गराँवके साथ बाँधनेकी भीतर रहना; कोख, गर्भाशय । -व्यूह-पु० एक व्यूह रस्सी। -थन,-थना-पु० [हिं०] गलस्तन । -द्वारया सैन्य-रचना जिसमें सेना कमलके आकारमें खड़ी की पु० मुख ।-फाँस-स्त्री० [हिं०] मालखंभकी एक कसरत । जाती हैं । -शंक-पु० एक तरहकी सँड़सी जिससे मरा -फाँसी-स्त्री० [हिं०] गलेकी फाँसी; फंदा; जंजाल, हुआ बच्चा पेटसे निकाला जाता है (फारसेप्स)।-संधि- गलग्रह । -बंदनी-स्त्री० [हिं०] गलेका एक गहना, स्त्री० नाट्यशास्त्र में कथित एक प्रकारकी संधि । -स्थ- गुलूबंद । -बहियाँ-बाही-स्त्री० [हिं०] गलेमें बाँह वि० गर्भमें स्थित । -स्राव-पु० गर्भपात, चार महीने- डालना, बगलसे आलिंगन । -शुंडिका,-शुंडी-स्त्री० तकके गर्भका गिर जाना। -हत्या-स्त्री भ्रूणहत्या। छोटी जीभ, उपजिह्वा; एक रोग जिसमें तालूमें शोथ हो गर्भवती-वि० स्त्री० [सं०] गर्भवाली, गर्भिणी, हामिला। जाता है। -सिरी-स्त्री० [हिं०] गलेका एक गहना, गांक-पु० [सं०] रूपकमें अंकके अंतर्गत अंक या दृश्य- कंठश्री। -स्तन-पु० बकरियोंके गलेसे लटकनेवाली थन विशेष ।
जैसी थैली, गलथन । -हस्त-पु० अर्द्धचंद्र, गरदनियाँ। गर्भागार-पु० [सं०] गर्भाशय; गर्भगृह; शयनागार | गल-पु० गालका लघु रूप ( केवल समासमें व्यवहृत)। प्रमूतिगृह ।
-गंज-पु० शोर, हला । -चुमनी-स्त्री० कानका गर्भाधान-पु० [सं०] गर्भ रहना,गर्भ-धारण १६ संस्कारी एक गहना जो गालोंको छूता रहता है। -तकिया-पु० मेंसे एक।
गालके नीचे रखनेका छोटा नरम तकिया।-थैली-स्त्री. गर्भाशय-पु०म०] स्त्रीके पेटकी वह थैली जिसमें बच्चा बंदरके गालके अंदर रहनेवाली थैली। -फड़ा-पु० रहता है, बच्चादानी।
जलचरों आदिका वह अवयव जिससे वे सांस लेते है। गर्भिणी--वि० स्त्री० [सं०] जिसे गर्भ हो, गर्भवती। गालका चमड़ा। -फूला-वि. जिसके गाल फूले हों।
-दीहद-पु० गर्भवतीका कुछ चीजोंपर मन चलना।। पु० गलसुआ ।-मंदरी-स्त्री.दे० 'गलमुद्रा'।-मुच्छागर्भित-वि० [सं०] गर्भयुक्तः भरा हुआ। पु० काव्यका पु० गालोपर दोनों ओर मूंछकी सीधमें रखे हुए बाल, एक दोष, किसी अतिरिक्त वाक्यका किसी वाक्यके बीच में गलगुच्छा। -मुद्रा-स्त्री० शिवकी पूजामें उन्हें प्रसन्न आ जाना।
करनेके लिए गाल बजाना। -सुआ-पु० एक रोग गर्म-वि० [फा०] गरम ।
जिसमें गालोंके नीचेके हिस्से सूज आते है और ज्वर गर्रा-वि० लाखके रंगका । पु० लाखी रंग; लाखी रंगका रहता है। -सुई*-स्त्री० गलतकिया। घोड़ा जिसके कुछ बाल सफेद हों; लाखी रंगका कबूतर | गलका-पु० हाथ या पाँवकी उँगलियोंमें होनेवाला एक गराड़ी, चरखी; पानीका आघात ।
तरहका छाले जैसा फोड़ा। गर्व-पु० [सं०] घमंड-धन, विद्या आदिमें अपनेको दूसरों- गलगंजना-अ० क्रि० दे० 'गलगाजना' । से बढ़कर और दूसरोंको अपने सामने छोटा समझनेका गलगल-पु० चकोतरेके आकारका बहुत खट्टा नीबू ; चूना भाव; एक संचारी भाव ।
और अलसीका तेल मिलाकर बनाया हुआ एक तरहका गर्ववंत-वि० गर्वयुक्त ।
मसाला; एक चिड़िया। गर्वाना*-अ० कि० गर्व करना ।
गलगला*-वि० गीला, तर । गर्वित-वि० [सं०] गर्वयुक्त, घमंडी।
गलगाजना-अ० क्रि० खुशीसे फूलकर, इतराकर बड़ी-बड़ी गर्विता-स्त्री० [सं०] अपने रूप-गुणपर गर्व करनेवाली बातें करना; जोर-जोरसे बोलना । नायिका।
गलगुथना-वि० मोटा-ताजा । गर्यो(विन)-वि० [सं०] गर्व करनेवाला, धमंडी। गलतंस*-पु० ऐसे आदमीकी संपत्ति जो अपने पीछे गर्वीला-वि० घमंडी।
किसीको छोड़ न गया हो; निःसंतान मृत व्यक्ति । गहणीय-वि० [सं०] निंदा करने योग्य, निंद्य । ग़लत-वि० [अ०] जो सही या ठीक न हो, मिथ्या; गर्हित-वि० [सं०] निदित, बुरा, दूपित ।
असत्य । -नामा-पु० शुद्धिपत्र । -फहमी-स्त्री० गह-वि० [सं०] गहणीय, निंद्य ।
गलत समझना, कुछका कुछ समझना। -बयानी-स्त्री० गलंतिका, गलंती-स्त्री० [सं०] छोटी कलसी; छेददार अयथार्थ कथन । घड़ा जिससे शिवलिंग आदिपर पानी चूता रहता है। ग़लता-पु०[फा०] रेशम और सूतकी मिलावटसे बना एक गल-पु० [सं०] गला, कंठ सालका गोंद । -कंबल-पु० | चमकदार कपड़ा। गाय-बैलके गलेका नीचे लटकनेवाला भाग, झालर। ग़लती-स्त्री० [अ०] गलत होना, अशुद्धि भूल-चूक । -गंड-पु० गलेका एक रोग जिसमें एक गाँठसी निकल | गलन-पु० [सं०] चूना, क्षरण; झड़ना; गलना; सरकना। आती है और कभी-कभी वह बढ़कर लटकने लगती है, गलनहाँ-पु० हाथियोंका नाखून गलनेका रोग। घेधा। -ग्रह-पु० गला पकड़ना, धोंटना; गलेका. एक गलना-अ० क्रि० ठोस वस्तुका तरल होना, पिघलना; रोग; वह चीज जिससे जल्दी जान न छूटे। -जोड़,- कड़ी चीजका पककर नरम होना, सीझना; घुलना; दुबला
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गलबल - - गवेषणा
होना; सूखना; ठिठुरना; नष्ट होना; गलाया जाना । गलबल * - पु० खलभल, कोलाहल 'भई भीर गलबल मच्यो' - छत्र० ।
ग़लबा - पु० [अ०] प्रबलता; जीत, विजय ( होना - पाना) । गलवाना - स० क्रि० गलानेका काम कराना । गांकुर - पु० [सं०] गलेका एक रोग, 'टौंसिल' का बढ़ना । गला - पु० सिरको घड़से जोड़नेवाला अंग, कंठ, हलक, सुर, आवाज; अँगरखे आदिका गरेबान; घड़े, लोटे आदिका मुँह के नीचेका तंग भाग । गलेबाज़-पु० अच्छे गलेवाला गवैया बढ़कर बातें करनेवाला । - बाज़ी - स्त्री० ताल-सुरसे गाना; तान लेना । मु०-उठाना, करना - घंटी बैठाना | - कटना -कतल किया जाना; ( दूसरे के कामसे) भारी हानि होना, हकतलफी होना । - कटवाना, - कटाना-जान देना, कतल होना; अपनी भारी हानि करना । -काटना - गरदन मारना, बध करना; घोर अहित करना; गले में खुजली, चुनचुनाहट पैदा करना (जमीकंद आदिका) । - खुलना - दबी हुई आवाजका साफ हो जाना | - घुटना - गला दबाये जानेसे साँस रुकना । - घोंटना - गलेको इस तरह दबाना कि साँस रुक जाय; गलेको इस तरह दबाकर जान लेना । - छुड़ाना - परेशान करनेवाले व्यक्ति या वस्तुसे पीछा छुड़ाना - दबाना - गला घोंटना; दबाव डालना, जबर्दस्ती करना । - बैठना - (शोथ, बहुत बोलने, गाने आदिसे) साफ आवाज न निकलना, स्वर विकृत हो जाना। - फाड़कर चिल्लाना, - फाड़ना-चीखकर बोलना, इतने जोर से बोलना कि गला बैठ जाय । - रेतना-गला काटना, हलाल करना; बहुत पीड़ा देना । - (ले) का हार - जो इतना प्यारा हो कि जुदा न किया जा सके, अति प्रिय; - के नीचे उतारना - घोंटा, निगला जाना; समझ में आना; ठीक लगना । - पड़कर देना - जबर्दस्ती देना; मत्थे मढ़ना । - पड़ना - अनचाही, अरुचिकर वस्तुकी प्राप्ति होना, उसके ग्रहण के लिए विवश होना, मत्थे मढ़ा जाना । - पर छुरी फेरना-भारी अहित, अन्याय करना, गला काटना । - मढ़ना - ( किसीका) गले पड़कर कोई चीज देना; कोई काम सौंपना । -मिलना, -लगना-आलिंगन करना; भेंटना | - में खटकना - घोंटा, निगला न जा सकना; मनमें न बैठना, बुद्धिको स्वीकार न होना । - लगाना - आलिंगन करना; गले मढ़ना । गलाऊ - वि० गलनेवाला ।
गलाना - स० क्रि० किसी ठोस चीजको तरल, किसी कड़ी चीजको नरम बनाना, घुलाना, पिघलाना; गाँठ, गिल्टी आदिको धीरे-धीरे गायब कर देना; (कोठी) धँसाना; खर्च कराना ।
गलानि - स्त्री० दे० 'ग्लानि' ।
गलित - वि० [सं०] गला हुआ, पिघला हुआ; चुआ, गिरा हुआ; जीर्ण; क्षयप्राप्त; सरका हुआ; निगला हुआ; * परिपक्क । - कुष्ठ-पु० वह कोढ़ जिसमें हाथ-पाँवकी उँगलियाँ आदि गलकर गिर जाती हैं । -नखदंत - वि० जिसके नख और दाँत गिर गये हों । - यौवना - वि० स्त्री० जिस (स्त्री) की जवानी ढल गयी हो, ढलती उम्रवाली ।
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गलियारा - पु०, गलियारी - स्त्री० सँकरा, गली जैसा रास्ता । गली-स्त्री० सँकरा, सड़कसे कम चौड़ा रास्ता जिसके दोनों ओर मकानोंकी कतार हो, कृचा; ( किसीके घर के आसपासका स्थान, टोला | - कूचा - पु० गली । मु० गलियाँ झाँकना या छानना- किसीकी खोजमें बहुत भटकना, हैरान होना ।
गलीचा - पु० सूत या उनके धागेसे बुना हुआ बिछौना, कालीन ।
ग़लीज़ - वि० [अ०] गंदा, मैला । पु० मैला, विष्ठा । गलीत * - वि० गलित, जीर्ण; दुर्दशाप्राप्तः क्षयप्राप्त । गलेबाज़ - पु० दे० 'गला' के साथ | गलौ* - पु० चंद्रमा ।
गलौआ - पु० बंदरोंके गालके अंदरकी थैली । गल्प-पु०, स्त्री० गप्प; डीँग; कहानी |
गल्ला - पु० शोर, हल्ला; [फा०] जानवरोंका झुंड, खेड़ | - बान- पु० भेड़, बकरी आदि चरानेवाला, गड़रिया । ग़ल्ला - पु० [अ०] अनाज, वह अनाज जिसका आटा पोस कर खाया जाय; रोजकी बिक्रीकी आमदनी, गोलक । - फ़रोश- पु० अनाज बेचनेवाला । गव* - स्त्री० दे० 'गीँ' ।
गवन* - ५० गमन; गौना । - चार -पु० गौना । गवनना * - अ० क्रि० जाना । गवर्नमेंट-स्त्री० [अ०] शासन, हुकूमत; सरकार । गवर्नर - पु० [अ०] शासक; देश, प्रदेश या नगरका राजा या राज्यकी ओर से नियुक्त शासक; सूवेदार; राज्यपाल । - जेनरल - पु० प्रधान शासक; ब्रिटिश साम्राज्य के देशों में ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त सम्राट्का प्रतिनिधिरूप प्रधान
शासक ।
गवाँना - स० क्रि० खोना ।
गवाक्ष, गवाक्षक-पु० [सं०] छोटी खिड़की, झरोखा | गवाख, गवाछ* - पु० दे० 'गवाक्ष'
गवामयन - पु० [सं०] १०, १२ महीने में पूरा होनेवाला
एक यज्ञ ।
गवार - वि० [फा०] पचनेवाला; रुचनेवाला, अनुकूल (केवल समास में - 'खुशगवार', 'नागवार' इत्यादि) । गवारा - वि० [फा०] पचनेवाला; रुचिकर, मनोनुकूल । गवाशन - वि० [सं०] गोभक्षी । पु० चमार; चांडाल । गवास - पु० * गोभक्षी, कसाई । + स्त्री० गानेकी इच्छा । गवाह - पु० [फा०] जिसने किसी घटनाको अपनी आँखों देखा हो या उसको जानता हो, साक्षी; अदालत में किसी घटना, दावे, बयानकी सचाई की शहादत देनेवाला । गवाही - स्त्री० [फा०] गवाहकी हैसियत से दिया जानेवाला बयान, साक्ष्य |
गवेजा * - स्त्री० बात-चीत, बहस । गवेल * - वि० गँवार ।
गवेष, गवेषण- पु० [सं०] हूँढना, खोजना; चाहना । गवेषक छात्र- पु० [सं०] गवेषणाकार्य में लगा हुआ छात्र ( रिसर्च स्कालर ) ।
गवेषणा - स्त्री० [सं०] खोज; किसी विषयका विशेष परि श्रम और सावधानी के साथ अध्ययन तथा छान-बीन;
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अन्वेषण | - शाला-सी० (रिसर्च इंस्टिट्यूट) अन्वेषण, छान-बीन आदि करनेका स्थान ।
गवेषी-गाँठ
मित्रता होना; खूब आमोद-प्रमोद होना । - छननागाढ़ी या अधिक भाँग पीना; दिली दोस्ती होना; घुलघुलकर बात होना । - साँस भरना-ठंढी साँस लेना । गहराई - स्त्री० गहरापन, गहरा होना; गहरेपनकी माप । गहराना - अ० क्रि० गहरा होना; नाराज होना । स० क्रि० गहरा करना ।
गहराat - पु० गहराई ।
गहरु * - वि० दे० 'गहर' ।
गव्य - वि० [सं०] गाय से उत्पन्न, प्राप्त (दूध, दही, गोबर आदि ); गोवंशके उपयुक्त । ५० गायोंका झुड; दूध; चरागाह; ज्या; गोरोचन; * पंचगव्य । गश-पु० [अ०] मूर्च्छा । मु०-खाना - मूच्छित होना । गशी - स्त्री० [अ०] बेहोशी |
गहरेबाजी | - स्त्री० एक्के के घोड़ेको खूब तेज दौड़ाना; इसकी होड़ करना ।
गहलौत - पु० राजपूतोंका एक वंश |
गहवारा- पु० [फा०] पालना, बच्चेको सुलानेका झूला | गहाई * - स्त्री० गहन, पकड़ । गहागड्ड - वि० गहरा; खूब तेज । गहागह- अ० दे० 'गहगह' ।
|
गइत - स्त्री० [फा०] फिरना, भ्रमण, चक्कर; पुलिस कर्म चारीका पहरे के लिए रात में घूमना, रौंद (करना, लगाना) गश्ती - वि० [फा०] गश्त करनेवाला, फिरनेवाला; एकसे दूसरेके पास जानेवाला (हुक्म, परवाना इ० ) । - चिट्ठी - स्त्री०, हुक्म पु० वह चिट्टी या हुक्म जो सब मातहत कर्मचारियों के पास क्रमशः भेजा जाय । गसना - स० क्रि० पकड़ना, ग्रसना; कसना । गसीला - वि० गठा हुआ; ठस बुना हुआ । गहकना * - अ० क्रि० ललकना, लालसायुक्त होना । गहगह ( हा) - वि० प्रफुल्ल, आनंद-उल्लास से भरा हुआ ।
गहाना - स० क्रि० पकड़ाना, 'गहना' का प्रेर० । गहासना * - स० क्रि० निगलना; पकड़ना । गहिरो* - वि० दे० 'गहरा' | महिला * - वि० पागल, बावला । गहीर* - वि० दे० 'गहरा' | गहीला - वि० गवला, घमंडी । गहेजुआ * - पु० छछूंदर । गहेलरा* - वि० बावला; मूर्ख ।
अ० धूमधामसे, हर्ष-उत्साह के साथ ।
गहगहाना - अ० क्रि० खुशीसे भर उठना, बहुत आनंदित गहेला-वि० हठी; घमंडी; पागल, बौड़म | होना ।
या - पु० पकड़नेवाला, ग्रहण करनेवाला |
गहगहे - अ० धूमधामसे, हर्ष-उत्साह के साथ | गहडोरना। - अ० क्रि० गंदा करना ।
गह्वर - वि० [सं०] गहरा; घना; निविड़; दुर्गम; गुप्त | पु० गुफा, बिल; अँधेरी, छिपने लायक जगह; निकुंज; गडढ़ा । गांग- वि० [सं०] गंगा-संबंधी; गंगाका । पु० भीष्मः कार्त्ति केय; सोना; धतूरा ।
गहन - वि० [सं०] गहरा घना, अभेध, निविड़: दुर्गम कठिन | पु० गहराई; गुफा; जल; जंगल; दुर्गम स्थान; गहना; * ग्रहण; विपद्ः बंधक । * स्त्री० पकड़; छठ | गहनता - स्त्री० [सं०] गंभीरता, गहराई, दुर्गमता । गहना - पु० बंधक; [सं०] जेवर, आभूषण (संस्कृत में स्त्री० ) । गाँछना - स० क्रि० गूँथना ।
गांगेय - पु० [सं०] भीष्म; कार्त्तिकेय; सोना; कसेरू; हिलसा मछली । वि० गंगा में या गंगातटपर स्थित ।
* स० क्रि० पकड़ना; दे० 'गाइना' |
गहनि* - स्त्री० पकड़; हठ, जिद ।
गवेषी (चिन) - वि० [सं०] गवेषण करनेवाला, खोजी । गवेसना * - स० क्रि० खोजना । स्त्री० दे० 'गवेषणा' । गवेसी - वि० दे० ' गवेषी' ।
गवै हाँ - वि० देहाती, ग्रामका । गवैया - पु० गानेवाला ।
गहने * - अ० बंधक के तौरपर ।
गहबर* - वि० दुर्गम; गह्वर; शोकविह्वल; आत्मविस्मृतः
व्याकुल; ध्यानमग्न ।
गहबरना * - अ० क्रि० घबड़ाना, व्याकुल होना । गहबराना * - स० क्रि० धबड़ा देना । अ० क्रि० घबड़ाना । गहर* - स्त्री० देर । वि० गहन, दुर्गम । गहरना* - अ० क्रि० देर लगाना; लड़ना; कुपित होना । गहरा - वि० जिसकी सतह आसपास के स्थान या किनारेसे नांची हो, निम्नगामी, उथलाका उल्टा; गंभीर; गाढ़ा; भारी; कठिन; बहुत ज्यादा; जिसके मनकी बात जल्दी जानी न जा सके, गंभीर स्वभावका; गूढ़, जो जल्दी समझमें न आ सके (चाल) । - असामी- पु० बड़ी पूँजी रखनेवाला आदमी, मालदार आदमी । - पेट - वि० भेद न खोलनेवाला | मु० - हाथ मारना - ऐसा वार करना कि गहरी चोट बैठे; भारी रकम, भारी मूल्यकी चीज दधियाना, उड़ाना। - (रो) घुटना - गाढ़ी भाँग पिसना; गाढ़ी
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गाँज - पु० ढेर; पयाल-पत्तों आदिका ढेर | गाँजना - स० क्रि० ढेर लगाना ।
गाँजा - पु० भाँगकी जातिका एक पौधा जिसकी पत्तियाँ नशेके लिए तंबाकूकी तरह पीते हैं ।
गाँट-स्त्री० रस्सी, धागे आदिका फंदा कसने या जोड़ने से पड़ी हुई गुत्थी, गिरह, ग्रंथि; कपड़े के छोर में कुछ रखकर लगायी हुई गिरह; जेब; टेंट; गठरी; उँगली, हाँथ-पाँव आदिके जोड़, ईख, बाँस आदिके पोरोंके जोड़, पर्व; गाँठकी शकलकी जड़; गट्टा; गिलटी; वैर, शत्रुता । -कट, - कतरा - पु० जेब काटनेवाला, पाकेटमार; उचक्का; ठग । - का- पासका, जो अपने पास हो । - गोभी - स्त्री० एक तरह की गोभी जिसमें जड़से कुछ ऊपर गाँठ होती है । -दार - वि० गाँठवाला । मु०-कटना-जेब कटना; गाँठ का पैसा निकल जाना; ठगा जाना। -कतरना, - काटना - जेब कतरना । -करना-संग्रह करना । -का पूरा, आँखका अंधा-पैसेवाला पर मूर्ख । - खुलनाउलझन दूर होना; दिलकी सफाई होना; मनकी बात खोलकर कह दिया जाना । छोड़ना - कठिनाई दूर
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गाँठना-गादर
२०८ करना । -जोड़ना-गँठबंधन करना । (मनमें)-पड़ना | गागरी*-स्त्री० दे० 'गगरी' । -बिगाड़ होना; (किसीके प्रति) मनमें बैर-बुराई पैदा गाची-पु० एक तरहका जालीदार कपड़ा, फुलवर । होना ।-पर गाँठ पड़ना-कठिनाई, पेचीदगी या बुराई, गाछ-पु० पेड़, पौधा । वैमनस्यका बढ़ते जाना । -बाँधना-(किसी बातको) गाज-स्त्री० गर्जन, बिजलीकी कड़क बिजली । पु० फेन । अच्छी तरह याद कर लेना कि भूल जानेका डर न रहे। मु०-गिरना-पड़ना-बिजली गिरनाआफत आना। गाँठना-स० कि० गिरह लगाना; जोड़ना; जूता सीना;गाजना-अ० क्रि० गरजना; खुशीके मारे जोर-जोरसे मिलाना; हाथमें कर लेना, मनचाही बात करनेको तैयार बोलना। कर लेना; कसना (पंजा, सवारी); निश्चय करना; बाँधना गाजर-स्त्री० [सं०] एक मीठा मूल जो कच्चा और अचार(मजमून, मंसूबा); दबाना; वार रोकना ।
मुरब्बे आदिके रूप में भी खाया जाता है। -मूली-स्त्री० गाँठि*-स्त्री० दे० 'गाँठ।
तुच्छ वस्तु। गाँड़-स्त्री० गुदा तला, पेंदा ।
ग़ाज़ा-पु० [अ०] सुगंधित पाउडर जिसे स्त्रियाँ सौंदर्यगाँडर-स्त्री० एक घास जिसकी जड़को खस कहते हैं; एक वृद्धि के लिए गालों पर मलती है ।
गाजी-पु० [अ०] काफिरोंसे लड़नेवाला मुसलमान योद्धा गाँडा-पु० ईखका बोने या पेरनेके लिए काटा हुआ टुकड़ा; विजेता; शूर-वीर। ईख, मेंडरी।
गाड़-पु० गड्ढा; अनाज रखनेका गड्ढा, खत्ता, खत्ती । गांडी (डि)व-पु० [सं०] अर्जुनका धनुष जो उन्हें अग्निसे गाड़ना-सक्रि० गड्ढे में रखकर मिट्टीसे ढंकना, दफन मिला था; धनुष । -धन्वा(न्वन)-पु० अर्जुन । करना; धरतीमें फँसाना; छिपाकर रखना। गांडीवी(विन्)-पु० [सं०] अर्जुन ।
गाडर*-स्त्री० भेड़। गांडू-वि० जिसे गुदामंजन करानेकी लत हो कमजोर | गाडा-पु० घातमें बैठनेका गड्ढा या जगह; * छकड़ा, दिलका; निकम्मा; डरपोक ।
बैलगाड़ी; कोल्हूके नीचेका गड्ढा । गाँती-स्त्री० दे० 'गाती'।
गाड़ी-स्त्री० पहियेके सहारे चलनेवाली सवारी, शकट; गाँथना-स० क्रि० गूंथना; गाँठना, जोड़ना।
रेलगाड़ी। -खाना-पु० गाड़ी या गाड़ियाँ रखनेका गांधर्व-वि० [सं०] गंधर्व-संबंधी; गंधर्व देशमें उत्पन्न । स्थान । -वान-पु० गाड़ी हाँकनेवाला ।
-वेद-पु० दे० 'गंधर्व-वेद', सामवेदका उपवेद । गाढ-वि० [सं०] अवगाहन किया हुआ; गाढ़ा; गहरा; गांधर्वि()क-पु० [सं०] गवैया ।
ठस; घना खूब मजबूत; अत्यधिक कठिन; तीव्र दुर्गम । गांधार-पु० [सं०] भारतवर्षका एक प्राचीन जनपद,पेशा- गाद-पु० [हिं०] संकट, कठिनाई; करघा । वरसे कंधारतकका प्रदेश, कंधार, गांधार देशवासी गांधार-गाढ़ा-वि० जो अधिक पतला न हो, जिसकी तरलतामें
का राजा: सात स्वरों में से तीसरा सिंदूरएक राग। । ठोस पदार्थका अंश कुछ अधिक हो; घनिष्ठ; मोटा; ठस; गांधारी-स्त्री० [सं०] गांधारकी राजकुमारी, दुर्योधनकी गहरा कटिन; विकट । * अ० दे० 'गाढ़े'। पु० हाथका माता; एक रागिनी।
बुना मोटा कपड़ा, गजी; मतवाला हाथी । मु० गाढ़ी गांधारेय-पु० [सं०] दुर्योधन ।
छनना-खूब भंग पिया जाना; गहरी मित्रता होना; गुप्त गाँधी-पु० गुजराती वैश्योंका एक अक्ल; भारतके एक | मंत्रणा होना; विरोध होना । गादेका साथी-विपत्महान् नेता जिन्होंने सत्य और अहिंसाके आधारपर काल में साथ देनेवाला । -दिन-गाढ़, मुसीबतके दिन । आन्दोलन चलाकर देशको स्वतंत्र कराया; हरे रंगका एक | -पसीने की कमाई-कड़ी मेहनतसे कमाया हुआ छोटा कीड़ा जिसमें तेज दुर्गध होती है। एक घास हींग । पैसा। -में-बिपतमें । -टोपी-स्त्री० खादीकी किश्तीनुमा टोपी। -वाद- गाढ़े -अ० कसकर जोरसे; अच्छी तरह । पु० सत्य और अहिंसाका सिद्धांत जिसका प्रतिपादन गात*-पु० शरीर, गात्र । गांधीजीने किया।
गाता(त)-पु० [सं०] गायक, गवैया; गंधर्व । गांभीर्य-पु० [सं०] गंभीरता, गहराई; चित्तकी स्थिरता, गाती-स्त्री. चादर आदि ओढ़नेका एक खास ढंग; उस अचंचलता; जटिलता।
दंगसे ओढ़ा हुआ कपड़ा। गाँव-पु० ग्राम, छोटी बस्ती ।
गात्र-पु० [सं०] देह; अंग। -मार्जनी-स्त्री० अंगोछा, गाँस-स्त्री० रुकावट; भेदकी बात वैर गठ, फंदा तीरका तौलिया। फल; * निगरानी; शासन अधिकार ।
गाथ-पु० [सं०] स्तोत्र; गान । * स्त्री० गाथा, यश । गाँसना-स. क्रि० गूंथना; कसना छेदना + रोकना; गाथा-स्त्री० [सं०] अवैदिक स्तोत्र; इलोका प्राकृतका एक वशमें रखना।
भेद: कथा; छंदोबद्ध कथा; छंद; आर्या छंद । -कार-पु० गाँसी-स्त्री० तीर आदिका फल, हथियारकी नोक; गाँठ महाकाव्यका रचयिता; गायक । कपट; चुभनेवाली बात ।
गादा-स्त्री० तलछट । गाइ*-स्त्री० दे० 'गाय'।
गादड-पु० गरियार बैल; मेढ़ा, गीदड़ । वि० डरपोक । गागर*-स्त्री० घड़ा, कलसा । मु०-में सागर भरना-गादरी-वि० डरपोक, गदराया हुआ; मट्टर, सुस्त । पु० थोड़े में बहुत बातोंका समावेश करना ।
गीदड़ मट्टर बैल ।
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२०९
गादा-गाहक गादा-पु० अधपका अनाज या फसल; महुएका फूल । गारो*-पु० गर्व; गौरव प्रतिष्ठा । गादी-स्त्री० गद्दी; एक पकवान ।
गार्ड-पु० [अ०] रक्षक, प्रहरी ट्रेनको रक्षाके लिए जिम्मेगादुर*-पु० चमगादड़ ।
दार अधिकारी जो सबसे पीछेके डब्बेमें बैठता है। गाध-वि० [सं०] जिसकी थाह मिल सके; हलकर पारगार्हपत्याग्नि-स्त्री० [सं०] एक तरहकी अग्नि जो परिकरने लायक, उथला; स्वल्प । पु० वह जगह जहाँ नदी वारमें वंशानुगत चलायी जाती है। हलकर पार की जा सके, थाह; स्थान प्राप्तिकी इच्छा। गाहमेध-पु० [सं०] गृहस्थके लिए कर्तव्य पंचयज्ञ । गाधि-पु० [सं०] विश्वामित्रके पिता जो इंद्रके अंशसे
गार्हस्थ्य-पु० [सं०] गृहस्थाश्रमः गृहस्थके लिए कर्तव्य उत्पन्न माने जाते हैं । -तनय,-सुत-पु० विश्वामित्र । पंचयश; गिरस्ती; गृहकार्य । -विज्ञान-पु० (डोमेस्टिक गान-पु० [सं०] गाना; गीत; बखान, स्तवन । -वाय- साइंस) गृहस्थीके कार्यों (रसोई बनाना, कपड़े सीना आदि)पु० गाना-बजाना । -विद्या-स्त्री० संगीत-विद्या । का विवेचन करने तथा उनकी शिक्षा प्रदान करनेवाला गाना-स० कि० लय-तालके साथ शब्दोंका उच्चारण करना; शास्त्र। किसी गीतको ताल-सुरके साथ कहना; वर्णन करना, बखा- गाल-पु० चेहरेके दोनों ओरका ठुड्ढी और कनपटीके नना (गुण गाना); स्तुति करना; मीठे बोल बोलना बीचका भाग, कपोल, रुखसारा मुँहजोरी, वाचाल ता; (कोयल आदिका)। पु० गीत, गान ।
मध्य; मुँह (कालके गालमें); झींक। -गूल*-पु० व्यर्थ ग़ाफिल-वि० [अ०] गफलत करनेवाला, बेखबर, असाव- बात। -मसूरी*-स्त्री० एक पकवान । मु०-करना*धान, लापरवा।
बढ़-बढ़कर बात करना; मुंहजोरी करना-'गाल करब गाभ-पु० दे० 'गाभा'; पशुका गर्भ ।
केहिकर बल पाई'-रामा० । -फुलाना-गर्व जताना; गाभा-पु. कल्ला, कोंपल; डाल; पेड़ आदिका हीर। मुँह फुलाना, रूठना ।-बजाना-बढ़-बढ़कर बात करना; गाभिन-वि० स्त्री० गर्भवती (गाय, भैस आदि) । बकवास करना । -मारना-डींग हाँकना; मुँह में ग्रास गाम-पु० * दे० 'ग्राम'; [फा०] पाएँ, पद; डग लगाम । डालना । -में जाना-मुँहमें पड़ना । गामी (मिन्)-वि० [सं०] गमन करनेवाला, जाने, चलने-गालन-पु० [सं०] निचोड़ना; गलाना। वाला; पहुँचनेवाला; संभोग करनेवाला (केवल समासांतमें)| गालना*-स० कि० बोलना, दे० 'गाहना। गाय-स्त्री० [हिं०] गोजातीय मादा पशु जो दूध देनेवाले गालप-पु० [सं०] एक ऋषि जो विश्वामित्रके शिष्य थे; पशुओंमें सर्वप्रधान और हिंदूधर्म में पूज्य मानी जाती है, पाणिनिके पूर्ववती एक वैयाकरण,लोधातेंदू एक स्मृतिकार। धेनु; बहुत सीधा, दीन आदमी (ला०)। -गोठ-सी० गाला-पु० धुनी हुई नरम रुईका गोला, पूनी; * मुंहजोरी। वह बाड़ा या छप्पर जिसमें गाये रखी, बाँधी जायँ, गालि-स्त्री० [सं०] गाली। गोष्ठ ।
गालित-वि० [स] निचोड़ा हुआ; गलाया हुआ। गायक-पु० [सं०] गानेवाला, गवैया अभिनेता। ग़ालिब-वि० [अ०] जीतनेवाला, विजयी प्रबल । गायकवाड़-पु० बड़ौदानरेशकी उपाधि ।
गालिबन्-अ० [अ०] संभवतः, अधिकतर संभव है। गायत्री-स्त्री० [सं०] एक वैदिक छंद या उसमें रचित एक गालिम-वि० दे० 'गालिब'। वैदिक मंत्र, सावित्री; दुर्गा; गंगा।
गाली-स्त्री० गंदा या अश्लील शब्द, अपशब्द; चरित्रपर गायन-पु० [सं०] गवैया, गायक; गाना।
लांछन लगानेवाली बात; विवाहादिमें गाया जानेवाला ग़ायब-वि० [अ०] छिपा हुआ; अनुपस्थित लुप्त; अदृश्य ।। अश्लील गीत । -गलौज,-गुप्ता-स्त्री० एक दूसरेको गार-स्त्री० गाली। प्र० [फा०] करनेवाला (खिदमत- गालियाँ देना; अपशब्द, दुर्वचन।
गार, गुनहगार); साधन (यादगार); योग्य (रुस्तगार)। | गालू*-वि० गाल बजानेवाला; शेखी बघारनेवाला । गार-पु० [अ०] गडढा, गर्त; गुफा, खोह; माँद । गाल्हना*-स० क्रि० बोलना, कहना। ग़ारत-स्त्री० [अ०] लूट-मार; तबाही, बरबादी (करना, | गाव-पु० [फा०] गाय, बैल; वृष राशि। -कुशी-स्त्री० होना) । वि० नष्ट; तबाह । -गर-पु० लुटेरा।
गोवध । -खाना-पु० मवेशीखाना; मुर्दा जानवरोंकी गारद-स्त्री० [अं० 'गार्ड'] सैनिकोंकी टुकड़ी जो किसी खाल उतारनेकी जगह । -ज़बाँ,-ज़बान-पु. एक स्थान, व्यक्ति आदिकी रक्षापर नियुक्त की गयी हो पहरा; प्रसिद्ध वनौषधि । -तकिया-पु० बड़ा तकिया, मसनद । रक्षक, प्रहरी।
-दी-वि० मूर्ख, बुद्धू , जड़बुद्धि । -दुम,-दुमागारना -स० कि. निचोड़ना; * घिसना, रगड़ना; वि० जो ऊपरसे नीचेको पतला होता जाय, ढालू । गलाना; * त्यागना; नष्ट करना ।
गावन*-स्त्री० गानेका ढंग । गारा-पु० मिट्टी या चूने-सुखीका लेप जिससे इटें जोड़ी गास*-पु० दुःख, संकट ।
जाती हैं। पलस्तरके लिए बनाया हुआ मिट्टीका लेप । गासिया-पु० जीनपोश । गारी*-स्त्री० दे० 'गाली' ।
गाह-वि० [सं०] गाहन करनेवाला । पु० अवगाहन; गारुड-वि० [सं०] गरुड़-संबंधी। पु० साँपका जहर दूर गहराई; * ग्राहक; पकड़; मगर, ग्राह । स्त्री० [फा०] करनेवाला मंत्र; गरुड़ास्त्र गरुड़-व्यूह सोना ।।
स्थान, जगह: समय, काल; बारी । गारुडिक, गारुडी(डिन)-पु० [सं०] साँपका जहर गाहक-पु. ग्राहक, खरीदार; कद्रदाँ [सं०] अवगाहन उतारनेवाला, विषवैद्य; सँपेरा।
करनेवाला।
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गाहकताई-गिरह
२१० गाहकताई -स्त्री० खरीदारी कद्रदानी।
रखना-बहुत धीरे-धीरे चलना, छोटे-छोटे कदम रखना। गाहकी-स्त्री० खरीदारी; बिक्री। पु० ग्राहक ।
गिन-गिनकर गालियाँ देना-घरके हर आदमीका गाहन-पु० [सं०] पानीमें धंसना, पैठना, गोता लगाना, नाम ले-लेकर गालियाँ देना। गिन देना-तुरत चुकता निमज्जन; थाह लेना; छानना; बिलोड़ना।
कर देना । गिने-गिनाये, गिने-चने-थोड़ेसे, गिनतीके । गाहना-स० क्रि० थाह लेना; अवगाहन करना बिलोड़ना; गिनवाना-स० दे० क्रि० "गिनाना' । पार करना;-'फेरि भीमरा कृष्णा गाही'-छत्र० ग्रहण गिनाना-स० क्रि० गिननेका काम दूसरेसे कराना । करना; अनाज माँड़नेमें दाना झाड़नेके लिए डाँठको गिनी-स्त्री० [अं०] एक विलायती घास सोनेका अंग्रेजी डंडेसे उठाना।
सिक्का जो २१ शिलिंगका होता है। -गोल्ड-पु. वह गाहा*-स्त्री० कथा, गाथा, वृत्तांत ।
सोना जिसमें ताँबेका मेल हो। गाहित-वि० [सं०] गाहन किया हुआ।
गिसी-स्त्री० चक्कर दे० 'गिनी'। गाहिता(त)-वि० [सं०] गाहन करनेवाला ।
गिय*-स्त्री० गला, गरदन । गाही-स्त्री० पाँच चीजोंका समूह या गिननेका मान । गिर*-पु० दे० 'गिरि' । -धर,-धारन,-धारी*-पु. गिजना-अ० क्रि० गीजा जाना।
दे० 'गिरिधर'। -वर*-पु० बड़ा, श्रेष्ठ पहाड़, गिरिवर । गिँजाई-सी० गीजनेकी क्रिया; बरसातमें पैदा होनेवाला गिरगिट-पु० छिपकलीकी जातिका एक जंतु जो कई तरहएक कीड़ा।
के रंग बदल सकता है । मु०-की तरह रंग बदलनागिदुरी-स्त्री० दे० 'ई"डुरी' ।
मत, वृत्ति बदलते रहना; कभी कुछ, कभी कुछ बनना। गिंदुक-पु० [सं०] गेंद, कंदुक ।
गिरगिटान-पु० गिरगिट । गिदौड़ा(रा)-पु० मोटी रोटीकी शकलमें जमायी हुई गिरजा-पु० ईसाइयोंका उपासनागृह; एक पक्षी । * स्त्री० चीनी।
दे० 'गिरिजा'। गिआन*-पु० दे० 'ज्ञान' ।
गिरद*-अ० दे० 'गिर्द' । गिउ*-स्त्री० ग्रीवा, गला ।
गिरदा -पु० चक्कर तकिया; फरशीके नीचे रखनेका गीला गिचपिच-वि० पास-पास लिखा हुआ, अस्पष्ट ।
कपड़ा; ढाल; खंजरीका मेंडरा । गिचर-पिचर-वि० दे० 'गिचपिच'।
गिरदान*-पु० गिरगिट । गिजगिजा-वि० गीला; पिलपिला।
गिरदावर-वि० दे० 'गिर्दावर'। ग़िज़ा-स्त्री० [अ०] आहार, खाद्य पदार्थ ।
गिरना-अ० क्रि० ऊपरसे, अपनी जगहसे नीचे आना; ग़िज़ाई-वि० [अ०] आहार-संबंधी; जो आहार-रूपमें हो। ढहना (घर, दीवार); उखड़ना; झड़ना; (नदी आदिका) गिजाई-स्त्री० गिंजाई या ग्वालिन नामक कीड़ा।
बड़ी नदी आदिमें मिलना; छीजना; अवनत होना; मंदा गिटकिरी-स्त्री० तान लेनेमें स्वरको कँपाना ।
होना, घटना (भाव); बरसना; घायल होकर गिर जाना, गिटपिट-स्त्री० विकृत, अर्थहीन शब्दावली । -भाषा- हारना; मारा जाना या पतन होना; (शक्ति, प्रतिष्ठा
स्त्री० अंग्रेजी । मु०-करना-टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलना। आदिका) घटना, ह्रास होना; बीमार होना, खाट पड़ना; गिट्टक-पु० चिलमके छेदपर रखनेकी कंकड़ी; लकड़ी, टूटना (बाजका शिकारपर); किसी चीजके लिए बहुत चाव लोहे आदिका छोटा और मोटा टुकड़ा।
दिखाना; सुस्त, उत्साहरहित होना; ऐसे रोगका होना गिट्टा-पु० चिलमके छेदपर रखनेकी कंकड़ी।
जिसका सिर या दिमागसे नीचेकी ओर आना माना गिट्टी-स्त्री० पत्थरके छोटे तोड़े हुए टुकड़े जो छत बनाने जाता हो (फालिज, नजला गिरना)। गिरते-पड़ते-अ०
आदिमें काम आते हैं; मिट्टीके बरतनका छोटा टुकड़ा | गिरते-उठते, बड़ी कठिनाईसे। गिरा-पड़ा-वि० जमीनचिलमके छेदपर रखनेकी कंकड़ी; धागेकी गोली।
पर पड़ा हुआ; छूटा-छटका हुआ; ढहा हुआ, जीर्ण-शीर्ण । गिड़गिड़ाना-अ० क्रि० दीन भावसे प्रार्थना करना, गिरफ्त-स्त्री० [फा०] पकड़ा भूल पकड़ना; एतराज; मूठ । आजिजी करना, चिरौरी करना।
गिरफ्तार-वि० [फा०] पकड़ा हुआ; फंसा हुआ; बंदी। गिड़गिड़ाहट-स्त्री०गिड़गिड़ानेका भाव ।
गिरफ्तारी-स्त्री० [फा०] गिरफ्तार करना या होना; कैद । गिद्ध-पु० मरे जानवरोंका मांस खानेवाला एक बड़ा पक्षी गिरमिट-पु० बड़ा बरमा [अं० 'एग्रीमेंट'] एकरारनामा। जिसकी दृष्टि बड़ी तीक्ष्ण होती है। -राज-पु. जटायु । गिरमिटिया-पु० किसी उपनिवेशमें गया हुआ शर्त बंद गिनगिनानाt-अ० त्रि.० देहका काँपना, गनगनाना | हिंदुस्तानी मजदूर। रोमांच होना। सक्रि० झकझोरना ।
गिरवान*-पु० दे० 'गीर्वाण'; दे० 'गरीबान'। गिनती-स्त्री० गिननेकी क्रिया, गणना; संख्या; मूल्य गिरवाना-सक्रि० 'गिराना'का प्रेरणार्थक । महत्त्व: हाजिरी (सेना)। -के-गिने हुए, थोड़ेसे । गिरवी-स्त्री०बंधक, रेहन; बंधक रखी हुई चीज ।-गाँठा म.-पर जाना-हाजिरी देने जाना 1-में आना-में -पु० बंधक । -दार-पु० बंधक रखनेवाला, रेहनदार । होना-कुछ मूल्य, महत्त्वका होना, कुछ समझा जाना । | गिरस्ती-स्त्री० दे० 'गृहस्थी'। गिनना-स० क्रि० संख्या, गिनती मालूम करना, गणन, गिरह-स्त्री० [फा०] गाँठ, बंधन; गुत्थी, उलझन; जेब, टेंट; गणना करना; हिसाब लगाना; समझना, कुछ मूल्य, ईख आदिके पोरोंका जोड़ा वैर, बुराई जो अधिक दिनसे महत्त्व रखनेवाला मानना । मुगिन-गिनकर कदम मनमें हो; कलाबाजी; एक माप जो सवा दो इंचके बराबर
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२१
गिरही-गीर्वाण होती है। -कट-वि०, पु० जेब कतरनेवाला, पाकिट- | गिलबिलाना-अ० क्रि० अस्पष्ट बोल बोलना । मार। -दार-वि० जिसमें गाँठ हो। -बाज़-पु. वह गिलम-स्त्री० ऊनी कालीन; मोटा गद्दा । वि० मुलायम । कबूतर जो उड़ते हुए कलाबाजी करता है। मु०-कटना, गिलमिल-पु. एक तरहका बढ़िया कपड़ा। -खुलना-दे० 'गाँठ कटना' इत्यादि ।
गिलहरा-पु० बाँसकी चपटी तीलियोंका बना पनडब्बा; गिरही*-वि०, पु० दे० 'गृही'।
एक धारीदार कपड़ा। गिरी-वि० भारी; महँगा; कठिन; अप्रिय ।
गिलहरी-स्त्री० पेड़ोंपर रहनेवाला चूहे जैसा एक छोटा गिरा-स्त्री० [सं०] वाणी, सरस्वती; वाक्य बोली, जबान। जंतु, गिलाई, चिखुरी। -पति-पु० ब्रह्मा । -पितु*-पु० ब्रह्मा ।
गिला-पु० [फा०] शिकायत; उलाहना। गिराना-स० कि० नीचे डालना; फेंकना; ढहाना; पटक गिलाई-स्त्री० गिलहरी । देना; लुढ़का देना; बहाना; (नाली आदिके) गिरनेका गिलान*-स्त्री० दे० 'ग्लानि'; घृणा । उपाय करना; शक्ति, प्रतिष्ठा आदि घटाना; बुरी दशाको गिलान-पु० [फा०] तकियेकी खोली; सितार आदिकी
ले जाना; सहसा उपस्थित करना; युद्ध में मार डालना। खोली लिहाफ म्यान । गिरानी -स्त्री० दे० 'गरानी' (भारीपन, महँगापन)। गिलावा -पु० गारा, गीली मिट्टी। गिराव-पु० दे० 'गिरावट' ।
गिलास-पु० शीशे या धातुका बना पानी पीनेका गोल, गिरावट-स्त्री० गिरनेका भाव, पतन, अधःपात ।
लंबोतरा प्याला; कश्मीर में होनेवाला एक स्वादिष्ठ फल । गिरास*-पु० दे० 'ग्रास' ।
गिलिम*-स्त्री० दे० 'गिलम' । गिरासना*-स० क्रि० दे० 'ग्रसना'।
गिली-* स्त्री० दे० 'गुल्ली। वि० [फा०] मिट्टीका। गिराह-पु० दे० 'ग्राह' ।
गिलोय-स्त्री० [फा०] गुडुच । गिरि-पु० [सं०] पहाड़, पर्वत; आठकी संख्या ।-कंटक- | गिलोला*-पु० गुलेलसे फेंकी जानेवाली मिट्टीकी गोली । पु० इंद्रका बज्र-कंदर-पु० पहाड़की गुफा ।-कच्छप गिलौरी-स्त्री० पानका तिकोना या चौकोना वीड़ा।-दान-पु० पहाड़की गुफामें रहनेवाला कछवा ।-कानन-पु० पु० पनडब्बा । पहाड़के ऊपर लगाया हुआ बाग। -कुहर-पु० गिरि- गिल्टी-स्त्री० दे० 'गिलटी' । कंदर । -जा-स्त्री० पार्वती; गंगा ।-०पति-पु० शिव । गिल्यान*-स्त्री० दे० 'गिलान'। -धर,-धारी(रिन्)-पु० कृष्ण ।-धरन,-धारन*- गिल्ला-पु० दे० 'गिला'। दे० 'गिरिधर'। -धातु-स्त्री० गेरू । -नंदिनी-स्त्री० गिल्ली-स्त्री० गुल्ली। पार्वती; गंगा ।-नाथ-पु० शिव ।-निंब-पु० बकायन । गाँजना -स० क्रि० नरम, नाजुक चीजको मसलकर -राज-पु० बड़ा पहाड़, हिमालय । -शिखर-पु० खराब कर देना; खानेकी चीजोंको भद्दे तरीकेसे एकमें पहाड़की चोटी। -शृंग-पु० पहाड़की चोटी; गणेश । मिलाना ।
-सार-पु० लोहा, राँगा; शिलाजतु; मलय पर्वत । गाँव-स्त्री० ग्रीवा, गरदन । - -सुत-पु० मैनाक पर्वत । -सुता-स्त्री० पार्वती। गीत-वि० [सं०] गाया हुआ; कथित, वर्णित; जिसका गिरीद्र-पु० [सं०] बड़ा पहाड़, हिमालय; शिव ।
यश गाया गया हो। पु० गानेकी चीज; गान; बड़ाई । गिरी-स्त्री० बीजके भीतरका गूदा, मज ।
-क्रम-पु० किसी गीतका गानक्रम, स्वरोंका उतार-चढ़ाव । गिरीश-पु० [सं०] हिमालय कैलास; सुमेरु; शिव ।। -गोविंद-पु० जयदेव-रचित संस्कृतका एक प्रसिद्ध गिरैयाँ*-स्त्री० गलेका छोटा रस्सा । वि० गिरनेवाला। गीतिकाव्य ।-शास्त्र-पु० संगीतविद्या । मु० (किसीके) गिरो-वि० बंधक, गिरवी; बंधक रखा हुआ ।
-गाना-बड़ाई, बखान करना । गिर्द-अ० [फा०] आस-पास पास । पु० गोलाई घेरा। गीता-स्त्री० [सं०] गुरु-शिष्य-संवाद-रूपमें आध्यात्म-तत्त्वगिर्दागिर्द-अ० [फा०] चारों ओर, इर्द-गिर्द ।
का उपदेश करनेवाला पद्यग्रंथ । * गाथा, कथा । गिर्दावर-वि० [फा०] घूमनेवाला, दौरा करनेवाला । गीति-स्त्री० [सं०] गीत; एक मात्रावृत्त । -काव्य-पु० गिल-वि० [सं०] निगलनेवाला । पु० घड़ियाल |-गिल,- गीतके रूप में बना हुआ काव्य जो प्रायः आत्मपरक होता ग्राह-पु० घड़ियाल ।
है। -नाट्य,-रूपक-पु० वह नाटक जिसमें पथ या गिल-स्त्री० [फा०] मिट्टी; गीली मिट्टी, गारा। -कार- गानेकी चीजोंकी प्रधानता हो । पु० मिट्टीका पलस्तर करनेवाला । -कारी-स्त्री० पलस्तर | गीतिका-स्त्री० [सं०] छोटा गीत; एक मात्रिक छंद । करनेका काम।
गीदड़-पु० स्यार, शृगाल । वि० डरपोक । -भबकीगिलगिलिया-स्त्री० सिरोही पक्षी।।
स्त्री० दिखाऊ धमकी। गिलट-स्त्री० मुलम्मा, सोनेका पानी चढ़ानेका कामः | गीदड़ी-स्त्री० शृगाली, मादा गीदड़। चाँदीके रंगकी एक घटिया धातु ।
गीध-पु० दे० 'गिद्ध'। गिलटी-स्त्री० शरीरके संधिस्थानकी गाँठ या उसकी सूजन। गीधना*-अ० क्रि० परचना। गिलन-पु० [सं०] निगलना ।
गीर-स्त्री० वाणी, बोली; सरस्वती। -वाण,-वान*गिलना-सक्रि० निगलना-'कुंजर कीरी गिल बैठी'- पु० दे० 'गीर्वाण'। सुंद, मनमें रखना।
| गीर्वाण-पु० [सं०] देवता।
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गीला - गुट्टा
गीला - वि० भीगा हुआ, नम, आर्द्र । पन - पु० नमी । गीव, गीव* - स्त्री० दे० 'ग्रीवा' |
२१२
गुच्छा - पु० एक टहनी में पास-पास लगे हुए फूल या फल; एक में बँधे हुए फूल; एकमें लगी, बँधी छोटी चीजोंका समूह; झब्बा; फुंदना । - (च्छे ) दार - वि० गुच्छेवाला ।
गुंगी - स्त्री० दोमुहाँ साँप ।
गँगुआना * - अ० क्रि० गूँगेकी तरह बोलना; धुआँ देना, गुच्छी-स्त्री० करंज, रीठा; कश्मीर की तरफ होनेवाला एक अच्छी तरह न जलना ।
I
फूल जो सुखाये जानेपर सब्जी बनानेके काम आता है । गुज़र - पु० [अ०] रास्ता; घाट; पहुँच, प्रवेश; जाना, निकलना; निर्वाह, गुजारा। -बसर - पु० निर्वाह, गुजारा मु० - करना - निर्वाह करना; दिन काटना। -होनानिर्वाह होना; ( किसी और रास्तेसे) निकलना; जा निकलना ।
गुंचा - पु० [फा०] कली; झुरमुट; भेड़ । वि० घना आबाद। गुंज - स्त्री० गलेमें पहननेका एक गहना, गोफ; * दे० 'गुंजा' । पु० [सं०] भौंरेका गुंजार; गुच्छा । गुंजन - पु० [सं०] भौंरेका भनभनाना, गुंजार; कलरव । गुंजना - अ० क्रि० भौंरेका गुंजार करना; गुनगुनाना । गुंजरना * - अ० क्रि० गुंजार करना; गरजना । गुंजा - स्त्री० [सं०] घुंघची; भनभनाहट; कलध्वनि । गुंजाइश - स्त्री० [फा०] स्थान; अवकाश; समाई | गुंजान - वि० [फा०] घना, सटा हुआ । गुंजायमान - वि० [सं०] गूँजता हुआ । गुंजार - पु० भौरेकी भनभनाहट । गुंजारना - अ० क्रि० गूँजना । गुंजित - वि० [सं०] गुंजनयुक्त गुंठन - पु० [सं०] ढकना; छिपाना; लेपन । गुंठा - पु० एक तरहका घोड़ा। + विन्नाटा, छोटे कदका । गुंठित - वि० [सं०] ढका, छिपाया हुआ; लेप किया हुआ । गुंडई - स्त्री० गुंडापन, दुष्टता ।
गुँडली - स्त्री० गेंडुरी, कुंडली ।
गुंडा - वि०, पु० बदमाश, दुर्वृत्त, खोटे चाल-चलनवाला । गुना - अ० क्रि० गूंथा जाना; गुँधना । गुँला - पु० नागरमोथा ।
गुँधना - अ० क्रि० गूँधा जाना; गुँथना ।
गुँधाई - स्त्री० गूंधने की क्रिया या भाव; गूंधनेकी उजरत । गुंफ - पु० [सं०] गूँथना; संयुक्त करना; फँसाव; सजावट; मूँछ, गलमुच्छा; बाजूबंद ।
गुंबा- पु० कड़ी गोल सूजन । कुंभी * - स्त्री० अंकुर; कोंपल । गुआ * - स्त्री० सुपारी, गुवाक । गुआर - स्त्री० कुलथी । * पु० ग्वाला । गुआरपाठा - स्त्री० दे० ' ग्वारपाठा' | गुआरि* - स्त्री० ग्वालिन । गुआलिन* - स्त्री० ग्वालिन |
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गुज़ारना - स० क्रि० बिताना, काटना; अदा करना (नमाज); पेश करना (अरजी, नजर ) ।
गुंफन - पु० [सं०] गूँथना; सजाना, तरतीब देना ।
गुज़ारा पु० [फा०] घाट पुल या नावसे नदी पार करना; निर्वाह; निर्वाहार्थं दी जानेवाली रकम । - (३) की नाव - आर-पार जानेवाली नाव, घटहा । गुज़ारिश - स्त्री० [फा०] निवेदन, अर्ज, प्रार्थना | गुजरी - स्त्री० [सं०] दे० 'गुर्जरी' |
गुंफित - वि० [सं०] गूंथा हुआ; सजाया हुआ । गुंबज - पु० दे० 'गुंबद ' ।
गुंबद - पु० [फा०] मस्जिद आदिकी गोल छत जिसमें गुझरोट, गुझरौट* - पु० कपड़ेकी शिकन; स्त्रियोंकी नाभिके आवाज गूँजे ।
गुइयाँ- पु०, स्त्री० खेलका साथी; सखी । गुखरू - पु० दे० 'गोखरू' ।
1
गुग्गुल, गुग्गुलु - पु० [सं०] एक कँटीला पेड़, उस पेड़का गोंद जो गंधद्रव्य है और दवाके काम में भी आता गुच्ची - स्त्री० गुल्ली आदि खेलनेके लिए जमीनमें बना हुआ बहुत छोटा गढ़ा । वि० [स्त्री० बहुत छोटी । गुच्छ - पु० [सं०] गुच्छा; गुलदस्ता; कलाप, मोरकी पूँछ । गुच्छक - [सं०] पु० दे० 'गुच्छ' ।
गुज़रना - अ० क्रि० बीतना, कटना जाना, निकलना; गुजर होना; (नदी) पार होना; निभना; घटित होना; कष्ट, कठिनाइयाँ आना; भोगरूप में प्राप्त होना; ( दर्खास्त आदिका ) पेश होना; (जी में) आना (भाव, विचार ) । मु० गुज़र जाना - अ० क्रि० मर जाना । गुजरात - पु० भारत के दक्षिण-पश्चिमका एक प्रदेश । गुजराती - वि० गुजरातका, गुजरातका बना । पु० गुजरात में बसनेवाला । स्त्री० गुजरातकी भाषा ।
गुज़रान - पु० [अ०] गुजर, निर्वाह । गुजरिया । - स्त्री० दे० ' गूजरी' ।
गुजरी - स्त्री० शामको सड़क के किनारे लगनेवाला बाजार; गुदड़ी; एक तरहकी पहुँची; दे० 'गूजरी' | गुजरेटी - स्त्री० गूजर कन्या; गूजरी ।
गुज़रता - वि० [फा०] बीता हुआ; पिछला (मास, वर्ष इ० ) । गुज़ार - वि० [फा०] (समासांतमें) अदा करनेवाला ('शुक्रगुज़ार', 'खिदमतगुज़ार') ।
आस-पासका भाग ।
गुझिया - स्त्री० मैदेकी कुसली में मेवा, खोया आदि भरकर बनाया हुआ एक पकवान; खोयेकी बनी एक मिठाई । गुझोट* - पु० दे० 'गुझरोट' ।
गुट-५० दे० 'गुट्ट' |
गुटकना - अ० क्रि० कबूतरका गुटरगू करना; निगलना । गुटका - पु० गोली, गुढ़िया; छोटे आकार, पाकेट साइजकी पुस्तक लट्टू पानमें खानेका एक मसाला |
गुटकाना - सु० क्रि० (तबला) बजाना । गुटरगूं - स्त्री० कबूतरकी बोली ।
गुटिका, गुटी - स्त्री० [सं०] बटी, गोली; रेशमका कोया; मोती; मंत्रसिद्ध गोली जिसे मुँह में रखनेवालेका दूसरोंके लिए अवश्य हो जाना माना जाता है; फुंसी, फुड़िया । गुट्ट - पु० दल, समूह; थोडेसे आदमियों का दल । -बंदी - स्त्री० दल बनाना । मु० - बाँधना - दल बनाना । गुट्टा - पु० लड़कियोंके खेलनेकी लाखकी चौकोर गोटी ।
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२१३
गुडल - वि० गाँठ, गुठलीवाला; कठिन; जड़, मूर्ख । पु० रुई आदिके बनेसे बनी गाँठ; गिलटी । गुडो-स्त्री० मोटी गाँठ; टखना ।
गुठलाना - अ० वि० कुंद, भोथरा हो जाना; खदाईके असर से दाँतों का काटने, चबाने लायक न रहना । गुठली - स्त्री० ( आम, जामुन आदि) फलका कड़ा और कुछ बड़ा बीज, कुसली; गिलटी; गुलधी ।
गुडंबा- ५० गुड़की चाशनी में पकाया हुआ कच्चा आम । गुड - पु० [सं०] ५० दे० 'गुड' | गुड़-पु० ईख या ताड़ खजूर के रसको गाढ़ा करके बनायी हुई बट्टी या भेली । - धनिया, - धानी - स्त्री० भुने हुए गेहूँ को गुड़में पागकर बनाया हुआ लड्डू | - पाक - पु० गुड़की चाशनी में डालकर औषध बनानेकी प्रक्रिया; उस प्रक्रियासे बनी औषध । मु० - खामा, गुलगुलेसे परहेज करना - बड़ी बुराई करना, छोटीसे बचना | - दिखाकर ढेला मारना - लाभका लोभ दिखाकर कष्ट देनेवाला काम करना । -भरा हँसिया - टेढ़ा, साँप - छछूंदरकी गतिवाला काम से मरे तो ज़हर क्यों दे - नरमी से काम चले तो कड़ाई क्यों करे ? गुड़गुड़- पु० हुक्का पीने या आँतोंगें वायुके संचार से होनेवाला शब्द |
गुड़गुड़ाना-अ० क्रि० गुड़गुड़की आवाज होना, निकलना । स० क्रि० हुक्का पीना । गुड़गुड़ाहट - स्त्री० गुड़गुड़की आवाज; वैसी आवाज होना । गुड़गुड़ी - स्त्री० काठकी निगालीवाला छोटा हुक्का । गुड़हर (ल) - पु० अड़हुलका फूल, जपाकुसुम, एक छोटा पेड़ ।
गुडाकू ( खू) - पु० वह तंबाकू जिसमें गुड़ मिला हो । गुडाकेश- पु० [सं०] अर्जुन; शिव ।
गुड़िया - स्त्री० कपड़े की बनी हुई पुतली । मु० - सँवारनाअपनी हैसियत के मुताबिक लड़की की शादी कर देना । गुड़ियों का खेल - बहुत आसान काम ।
गुड़ी* - स्त्री० गुड्डी; गाँठ, कीना ।
गुड़ीort - वि० गुड़ जैसा मीठा ('गुरी । ' - बुंदेल) । गुडुच - स्त्री० एक बेल जिसका डंठल दवाके काम आता है, गुडूची, गिलोय |
गुडुवा - पु० गुड्डा |
गुडूची - स्त्री० [सं०] गुडुच, गुरुच, गिलोय |
गुड्डा- पु० बड़ी गुड़िया, नर गुड़िया; बड़ी पतंग | मु०बाँधना - भाटका किसी कंजूस जजमानको बदनाम करनेके लिए बाँसके सिरे पर उसका पुतला बाँधना और घूम घूमकर उसकी निंदा करना ।
गुड्डी - स्त्री० पतंग; एक छोटा हुक्का; घुटनेकी हड्डी । गुढ़ - पु० छिपने, वचनेका स्थान । गुढ़ना * - अ० क्रि० छिपना ।
गुण - पु० [सं०] जाति-स्वभाव, धर्म, सद्गुण; निपुणता, कमाल; प्रभाव, असरः लाभः प्रशंसनीय बात; विशेषता; प्रकृतिका धर्म - सत्त्व, रज, तमः वीणा आदिका तार; धागा डोरी, प्रत्यंचा; गौण वस्तु; नाव खींचनेकी डोरी; स्नायु; ज्ञानेंद्रियका विषय बत्ती; गुणा, आवृत्तिः ए, ओ
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गुल-गुडिया और अर् जो क्रमशः अ +इ, अ + उ तथा अ + ऋ के स्थानपर होते हैं (व्या० ) ; तीनकी संख्या । कथन - पु० गुणवर्णन, गुणगान शृंगार रस में नायककी दस दशाओंमेंसे एक । - कारक, -कारी (रिन् ) - वि० असर करनेवाला; लाभ करनेवाला । -कीर्तन- पु० गुणगान । - गान - पु० बखान, गुण-वर्णन | ग्राहक, -ग्राही ( हिन्) - वि०, पु० गुण समझने, गुणका आदर करनेवाला, कद्रदान । ग्राम- पु० गुणोंका समूह । वि० गुणनिधान । - ज्ञ - वि० गुण जानने, समझनेवाला, कद्रदान | -त्रय - त्रितय-पु० प्रकृतिके तीन गुणसत्त्व, रज, तम । - दोष-पु० गुण और दोष, भलाईबुराई । - निधि - वि० गुणों का खजाना। -वाचकपु० गुणद्योतक शब्द, विशेषण | वि० गुणका बोध करानेवाला ।
गुणक - पु० [सं०] वह अंक जिससे गुणा करें । गुणन - पु० [सं०] गुणा करना । - फल - पु० एक अंकको दूसरे से गुणन करने से उपलब्ध अंक । गुणनीय - वि० [सं०] गुणन करने योग्य | गुणवान् (वत्) - वि० [सं०] गुणशाली, गुणी । गुणाकर- वि० [सं०] गुणोंकी खान, गुणराशि । गुणाढ्य - वि० [सं०] बहुतसे अच्छे गुणोंवाला, गुणी । गुणातीत - वि० [सं०] प्रकृतिके तीनों गुणोंसे अलिप्त, परे । पु० परमेश्वर ।
गुणानुवाद - पु० [सं०] गुणगान, गुणकथन | गुणालय - वि० [सं०] बहुत से गुणोंवाला । | गुणित - वि० [सं०] जिसका गुणन किया गया हो; राशीकृत। गुणी (नि) - वि० [सं०] गुणयुक्तः कोई हुनर, कला जाननेवाला ।
गुणीभूत- वि० [सं०] मुख्य अर्थसे रहित; गौण बनाया हुआ । - व्यंग्य - पु० काव्यका वह भेद जिसमें व्यंग्यार्थ वाच्यार्थसे अधिक चमत्कारवाला न हो । गुण्य- पु० [सं०] वह अंक जिसे गुणा करना हो । गुत्थमगुत्था - पु० गुथ जानेका भाव, भिड़ंत । गुत्थी - स्त्री० तागे आदिमें उलझनेसे पड़ी हुई गाँठ, उलझन । गुथना - अ०क्रि० उलझना; लिपटना; भिड़ना; गूँथा जान। । - कर बनाया हुआ । गुद-स्त्री० [सं०] गुदा, मलद्वार। - कील, - कीलक - पु० बवासीर । - पाक-पु० मलद्वारका पक जाना । - भ्रंश - पु० काँच निकलना ।
गुदकार (रा) - वि० गूदेदार; भरा, फूला हुआ; गुदगुदा । गुदगुदा - वि० भरा हुआ; नरम, गुलगुला ! गुदगुदाना -स० क्रि० बगल, तलवे आदिको उँगलियोंसे इस तरह सहलाना कि सुरसुराहट या सुखद खुजली मालूम हो; छेड़ना; उभारना ।
गुदगुदाहट - स्त्री० गुदगुदी । गुदगुदी स्त्री० गुदगुदानेसे पैदा होनेवाली सुखद सुरसुराहट या हँसानेवाली खुजली; चाव, चुल ।. गुड़िया - पु० जो गुदड़ी ओढ़े या चीथड़े लपेटे हो; खेमा आदिभार देनेवाला; गूदड़ बेचनेवाला । - पीर - पु० गाँव के पासका वह वृक्ष जिसमें चीथड़े लपेटकर गँवार
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गुदड़ी-गुर
११४ मनौती मानते हैं।
गुपाल*-पु० दे० 'गोपाल' । गुदड़ी-स्त्री० चीथड़ों, रंग-बिरंगे टुकड़ोंको सीकर बनाया । गुपुत*-वि० दे० 'गुप्त' । हुआ ओढना, बिछावन, कंथा; टूटी फूटी चीजोंका ढेर; गप्त-वि० [सं०] रक्षितः छिपा या छिपाया हुआ; अदृश्य: गुदड़ी बाजार । -बाज़ार-पु० फटी-पुरानी, टूटी-फूटी | गूढः संपृक्त, संयुक्त । पु० वैश्योंका उपनाम या वर्णसूचक चीजोंका बाजार । मु०-का लाल-साधारण घरमें जनमा उपाधि; भारतका एक प्राचीन राजवंश । -चर-पु० हुआ असाधारण गुणी।
जासूस, छिपकर टोह लेनेवाला। -दान-पु० छिपाकर गुदनहारी-स्त्री० गोदनेवाली।
दिया जानेवाला दान; वह दान जिसे दाताके सिवा दूसरा गुदना-अ० क्रि० गड़ना, चुभना । पु० गोदना ।
न जाने ।-मार-स्त्री० [हिं०] ऐसी मार जिसमें भारनेगुदर*-पु० राजदरबार में हाजिरी ।
का कोई चिह्न ऊपर न देख पड़े। गुदरना*-अ० कित्यागना, अलग होना निवेदन करना, | गुप्ता-स्त्री० [सं०] सुरति छिपानेवाली नायिका रखेली। गुजारिश करना; व्यतीत होना, गुजरना।
गुप्ति-स्त्री० [सं०] ढकने, छिपानेकी क्रिया, गोपन; रक्षण; गुदराना*-स० क्रि० पेश करना; निवेदन करना-'निकट | गड्ढा; गुफा; मलद्वार; कारागार । विभीषण आय तुलाने, कपिपतिसौँ तबही गुदराने'-राम गुप्ती-स्त्री. वह डंडा या छड़ी जिसके भीतर तलवार जैसा गुदरैन-स्त्री० पाठ याद होनेकी परीक्षा देना; परीक्षा। हथियार छिपा हो। गुदवाना-स० कि. गुदाना।
गुफा-स्त्री०पहाड़ या जमीन में बना लंबागढ़ा, खोह, गुहा। गुदांकुर-पु० [सं०] बवासीर ।
गुफ्तगू-स्त्री० [फा०] बातचीत, बोलचाल | गुदा-स्त्री० [सं०] मलद्वार, गुद ।
गुबरैला-पु० गोबर, मैला आदि खानेवाला एक कीड़ा। गदाज़-वि [10] नरम, गुदगुदा; (समासमें) पिघलानेवाला गुबार-पु० [अ०] धूल, गर्द; मनमें संचित दुःख, शिका(गुदगुदाज)।
यत, मैल । मु०-निकालना-मनमें भरी हुई बातें कह गुदाना-स० क्रि० ('गोदना'का प्रर०), गुदवाना । डालना, भड़ास निकालना। गुदारी-वि० गूदेदार, मांसल; गुदाज ।
गुबिंद*-पु० दे० 'गोविंद'। गुदारना*-स० क्रि० सुनाना; पढ़ना-'मुलना तहाँ। गुब्बारा-पु० कागजका बना हुआ गोल थैला जो नीचेसे निवाज गुदाएँ'- छत्र० ।
खुला रहता है और तारमें चीथड़े लपेटकर जला देनेसे गुदारा*-पु० नावपर नदी पार होना, गुजारा दे० हवामें उड़ता है। रेशम आदिका बना और हवासे हलकी 'गुजारा । वि० गूदेदार ।
गैससे भरा हुआ थैला जो आकाशमें उड़ सकता है, बैलून; गुद्दी*-स्त्री० मग्ज, मींगी।
गोलेकी शक्लकी एक आतिशबाजी। गन-पु० दे० 'गुण' ।-गाहक-वि०,पु०दे० गुणग्राहक'। गुम-वि० [फा०] खोया हुआ, गायब, लुप्त, लापता ।
-गौरि-स्त्री० गौरी जैसी सौभाग्यवती, पतिव्रता स्त्री -नाम-वि० जिसका नाम प्रसिद्ध न हो; बिना नामका स्त्रियोंका एक व्रत । -वंत,-वान-वि० गुणी, गुणवान् । (पत्र, लेख)। -राह-वि० जो रास्ता भूल गया हो; गुनगुना-वि० दे० 'कुनकुना'; नाकसे बोलनेवाला। पथभ्रष्ट । -सुम-वि० चुप और निश्चेष्ट, स्तब्ध (होना)। गनगनाना-अ० कि. नाकसे बोलना; बहुत धीमे स्वरभे, | गुमटा-पु० चोट आदिके कारण होनेवाली माथेपरकी गोल अस्पष्ट शब्दोच्चारण करते हुए गाना।
सूजन; कपासका एक कीड़ा। गुनना-स० क्रि० विचार करना; * वर्णन करना; गाना।। गुमटी-स्त्री० मकानमें सबसे ऊपर उठी हुई कमरे या सीढ़ी गुनहगार-वि० [फा०] गुनाहगार, दोषी, अपराधी। की छत चौकीदारके लिए रेलवे लाइनके किनारे बनी हुई गुनही*-वि० गुनहगार ।
छोटी कोठरी। गुना-वि० गुणित (यह शब्द संख्यावाचक शब्दोंके अंतमें गुमना -अ० क्रि० गुम होना,खो जाना। लगकर विशेष्य शब्दकी संख्या या मात्रामें उतनी बारका | गुमर-पु० घमंड, द्वप, गुबार; कानाफूसी । अर्थ उत्पन्न करता है, जैसे तिगुना, चौगुना इत्यादि)। गुमान-पु० [फा०] संदेह, शक; अनुमान; गर्व, घमंड; गुनावन*-पु० विचार।
* बदगुमानी, कुधारणा। गुनाह-पु० [फा०] पाप, दुष्कर्म दोष, अपराध । -गार- गुमाना*-स० कि० खो देना, गँवाना। वि० दोषी, अपराधी; जिसने पाप किया हो।
गुमानी-वि० [फा०] गुमान करनेवाला, घमंडी। गुनाही*-वि० गुनाहगार ।
गुमाश्ता-पु० [फा०] किसी व्यापारी या कोठीकी ओरसे गुनिया--पु० दे० 'गोनिया', विचार करनेवाला । वि० माल खरीदने-बेचनेवाला व्यक्ति, एजेंट । गुणी।
गमिटना*-अ० क्रि० लिपटना, लपेटा जाना। गुनियाला*-वि० गुणोंवाला ।
गुमेटना*-स० क्रि० लपेटना । गुनी-वि० गुणोंवाला । पु०चतुर मनुष्या झाड़-फूंक करने- गुम्मट-पु० दे० 'गुंबद'। वाला।
गुरंब(बा) -पु० दे० 'गुडूंबा'। गुनीला*-वि० गुणोंवाला, गुणी ।
गुरंभर-पु० मीठे आमका पेड़ । गुपचुप-अ० छिपकर, गुप्त रीतिसे । पु० एक मिठाई, गुर-पु० हिसाब निकालनेका संक्षिप्त और पक्का कायदा गुलाबजामुन; लड़कोंका एक खेल; एक खिलौना । कार्य साधनेकी युक्ति, उपाय; * दे० 'गुरु'; दे० 'गुल';
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गुरगा-गुल
गुरुविनी*-स्त्री० दे० 'गुर्विणी' । गुरगा-पु० नौकर, टहलू ; चेला; जासूस ।
गुरू-पु० गुरु । -घंटाल-वि० बहुत चालाक, धूर्त । गुरगाबी-पु० मुंडा जूता।
गुरेरना-स० क्रि० घूरना ।। गुरची-स्त्री० बल, सिकुड़न ।
गुरेरा-* पु० दे० 'गुलेला'; घरनेकी क्रिया, देखादेखीगुरदा-पु० [फा०] शरीरके अंदर रीढ़के दोनों ओर अवस्थित | 'अंत कंतसों भयो गुरेरा'-प० । अंग जिनका काम आहारसे पेशाबको अलग करना और | गर्मा-प० दे० 'गरगा'। खूनसे बेकार 'नत्रजनीय' द्रव्यको निकालकर उसे साफ | गुर्ज-पु० [फा०] गदा; बुर्ज.। -बरदार-पु० गदाधारी करना है, वृक्क; हिम्मत, जीवट ।
सैनिक । -मार-पु. एक तरहके मुसलमान फकीर जो गुरबिनी*-स्त्री० दे० 'गुविणी' ।
हाथमें लोहेका गुर्ज लिये रहते हैं और भिक्षा न पानेपर गुरवी*-वि० घमंडी।
अपने सिरपर मार लेते हैं, मुँडचिरा । गुरसी -स्त्री० अँगीठी, गोरसी ।
गुर्जर-पु० [सं०] गुजरात देश; गुजरातका रहनेवाला । गुराई*-स्त्री० दे० 'गोराई'।
गुर्जरी-स्त्री० [सं०] गुजरात देशकी स्त्री; एक रागिनी । गुराब-पु० तोप लादनेकी गाड़ी।
गुर्दा-पु० दे० 'गुरदा'; * एक तरहकी छोटी तोप । गुरिद*-पु० गुर्ज, गदा ।
गुर्राना-अ० कि० (कुत्ते-बिल्लीका) क्रोधमें मुँह बंद करके गुरिया-स्त्री० छोटी गोली; मनका, मालाका दाना; (मांस भारी आवाज निकालना; (ला०) क्रोधसूचक आवाजमें आदिका) छोटा टुकड़ा, बोटी ।
बोलना। गुरिल्ला-पु० दे० 'गोरिल्ला'; छापामार दस्तेका सैनिक। गर्विणी, गुर्वी-स्त्री० [सं०] गर्भवतीस्त्री; गुरुपत्नी; श्रेष्ठ स्त्री। गुरीरा-वि० सुंदर; माधुर्यमय, मीठा ।
गुल-पु० [फा०] गुलाबका फूल; फूल; कपड़े आदिपर वना गुरु-वि० [सं०] भारी, वजनदार; बड़ा; देरमें पचनेवाला; हुआ पुष्पाकार बूटा; गोल निशान; जलने या दागनेका पूज्य महत्; कठिन; दीर्घ या दो मात्राओंवाला (वर्ण, निशान; बत्तीका सिरा जो बिलकुल जल गया हो; फूलके ताल); प्रिय; दर्पपूर्ण (उक्ति); दुर्दम; शक्तिशाली। पु० आकारकी कार चोबीकी बनी हुई बड़ी टिकली; हंसते समय पिता; पूज्य पुरुष; बुजुर्ग; शिक्षक, विद्या देनेवाला, कोई भरे हुए गालों में पड़नेवाला गड्ढा; पशुओंके. शरीरपरका कला, विद्या सिखानेवाला, उस्ताद: गायत्री मंत्रका उपदेश भिन्न रंगका दाग छाप, दाग; कनपटीपर लगायी जानेकरनेवाला; बृहस्पति ग्रह; देवताओंके गुरु बृहस्पतिः पुष्य वाली चूनेकी बिंदी; जलता हुआ कोयला, अंगारा; तंबाकूनक्षत्र; द्रोणाचार्य; परमेश्वर; दो मात्राओंवाला वर्ण, का जवा; * कनपटी।-अब्बास-पु० एक फूल; उसका ताल । -कुल-पु० गुरु या आचार्यका वासस्थान जहाँ पौधा । -कंद-पु० गुलाबको पंखड़ियोंमें शकर मिलाकर रहकर शिष्य विद्याध्ययन करते हों, गुरुगृह; प्राचीन बनायी हुई एक सरस औषध । -कार-पु० गुलकारी पद्धतिपर स्थापित विद्यापीठ । -जन-पु० बड़ा, बुजुर्ग, करनेवाला; वह चीज जिसपर गुलकारी की गयी हो । पूज्य पुरुष, माता, पिता, आचार्य आदि । -डम-पु० -कारी-स्त्री० बेलबूटे काढ़नेका काम, कशीदाकारी। [हिं०] गुरु बनकर सबसे अपनी पूजा कराना । -द्वारा- -जार-पु० बाटिका, उद्यान । वि० खिला हुआ, पु० [हिं०] गुरुके रहनेका स्थान; सिखोंका मठ या मंदिर । प्रफुल्ल ; चहल-पहलवाला । -तराश-पु० गुल कतरनेकी -पाक-वि० देर में पचनेवाला, भारी। -पूर्णिमा-स्त्री० कैची; वह कैंची जिससे बगीचेके पीधोंकी काट-छाँटकी आषाढकी पूर्णिमा जिस दिन गुरुकी पूजाका विशेष विधान | जायः पत्थरपर बेल-बूटे बनाकेका औजार । चिरागका गुल है। -भाई-पु० [हिं०] एक ही गुरुसे शिक्षा या दीक्षा काटने या पौधोंकी काट-छाँट करनेवाला आदमी।-दस्ता पानेवाला, एक गुरुका शिष्य होनेके नाते भाई ।-मंत्र- -पु० फूलोंका गुच्छा; चुनी हुई चीजों(पद्य आदि)का पु० गुरुसे प्राप्त मंत्र । -मुख-वि० दीक्षाप्राप्त, दीक्षित । संग्रह, चयनिका । -दान-पु० गुलदस्ता रखनेका पात्र । -मखी-स्त्री० देवनागरी लिपिका एक रूप जिसमें पंजाबी -दाउ(ऊ)दी-स्त्री० शरद् ऋतुमें फूलनेवाला एक फूल; भाषा लिखी जाती है ।-वार, वासर-पु० बृहस्पतिवार । उसका पौधा । -दार-वि० दागदार; जिसपर फूल बने गुरुआइनो-स्त्री० दे० 'गुरुआनी' ।
हों। -दुपहरिया-स्त्री० गहरे लाल रंगका एक फूल गुरुआई-स्त्री० गुरुका काम; मंत्रोपदेश देनेका काम । उसका पौधा । -नार-पु० अनारका फूल; अनारके फूल गुरुआनी-स्त्री० गुरुपत्नी; शिक्षा देनेवाली स्त्री।
जैसा गहरा लाल रंग। -बकावली-स्त्री० अमरकंटकके गुरुचा-स्त्री० दे० 'गुड़ च'।
जंगलोंमें होनेवाला एक सफेद, सुगंधित फूल जो आँखोंके गुरुता-स्त्री० [सं०] भारीपन, बोझा गौरव; गुरुका पद । रोगोंकी अच्छी दवा बताया जाता है। -बदन-वि० गुरुताई*-स्त्री० दे० 'गुरुता'।
फूलसी देहवाला, सुंदर । पु० एक तरहका धारीदार रेशमी गुरुत्व-पु० [सं०] गुरुता। -केंद्र-पु० पदार्थ या पिंडमें कपड़ा।-बाज़ी-स्त्री० फूलोंसे खेलना, एक दूसरेपर फूल वह मध्य बिंदु जिसपर समस्त वस्तुका भार केंद्रित हो। फेंकना। -मेख-स्त्री० वह कील जिसका सिरा फूल सके। -केंद्र (ग्रिभुजका)-पु० (सेंट्रॉइड) त्रिभुजकी। जैसा गोल होता है। -मेहँदी-स्त्री० एक निगंध फूलः माध्यिकाओंका मिलन-बिंदु ।
उसका पौधा । -लाला-पु० एक फूल जो पोस्तेके फूलसे गुरुत्वाकर्षण-पु० [सं०] भारके कारण वस्तुका पृथ्वीके मिलता है। उसका पौधा । -शन-पु० बाग, बाटिका। केंद्रकी ओर खींचा जाना।
-शब्बो-पु०एक फूल जिसकी सुगंध रातको अधिक होती १४-क
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२१६
गुल-गुहार है। मु०-कतरना-कागज-कपड़े आदिके फूल कतरकर | रचित फारसीका एक प्रसिद्ध नीतिग्रंथ । बनाना; बत्तीका गुल काटना; अचंभेकी बात करना। गुलूबंद-पु० [फा०] सरदीसे बचनेके लिए गले में लपेटी -खिलना-भेद खुलना; कोई अनोखी, मजेदार बात जानेवाली पट्टी; गले में पहननेका एक जेवर । होना; बखेड़ा उठना ।-खिलाना-कोई अद्भुत, अचंभेकी गुलेनार-पु० दे० 'गुलनार'।। बात करना; बखेड़ा उठाना। -होना-(दीपक) बुझना। गुलेल-स्त्री० [अ०] दो ताँतोंकी कमान जिसपर मिट्टीकी गुल-पु० दे० 'गुल' । -गपाड़ा-पु० शोरगुल, हल्ला। गोली रखकर फेंकते हैं। -ची-पु० गुलेल चलानेवाला। .गुल-पु० [फा०] शोर, हला-1-गुला-पु० शोर, धूम। गुलेला-पु० गुलेलसे फेंकनेकी मिट्टीकी गोली; गुलेल । गुलगुल-वि० दे० 'गुलगुला'।
गुल्फ-पु० [सं०] एडीके ऊपरकी गाँठ, टखना, घुट्टी। गुलगुला-वि० नरम, मुलायम । पु० एक पकवान ।। गुल्म-पु० [सं०] बिना तनेका पौधा जिसमें जड़से ही कई गुलगुलाना -स० क्रि० किसी गूदेदार चीजको दबाकर शाखाएँ निकलती है (ईख, धान, सरकंडा इत्यादि); झाड़; पिलपिला करना; * गुदगुदाना।
सेनाका एक विभाग-९ हाथी, ९ रथ, २७ घोड़े और ४५ गुलगुली*-स्त्री० गुदगुदी। वि० स्त्री० मुलायम ।
पैदल; नदीके घाटपर रक्षार्थ स्थापित चौकी; तिल्ली; एक गुलचना*-स० क्रि० गुलचेका आघात करना ।
उदररोग, पेटके भीतर गोलासा बँध जाना; दुर्ग । गुलचा-पु० मुद्री बाँधकर उँगलियोंकी पोरसे, प्रेममय गुल्लक-पु० [सं०] गोलक । विनोदमें गालोंपर आघात करना (मारना)।
गुल्ला-पु०[फा०] गुलेलपर फेंकी जानेवाली मिट्रीकी बनी गुलचाना, गुलचियाना -स० क्रि० गुलचा मारना। |
गोली; * शोर, गुल (हल्ला-गुल्ला)। गुलछर्रा-पु० मीज, चैन, ऐश। म०-(१)उड़ाना- गुल्लाला-पु० दे० 'गुललाला'। निद्वंद्व होकर सुख भोगना, मौज करना।
गुल्ली-स्त्री० लंबोतरा टुकड़ा जिसके दोनों छोर नुकीले हों; गुलझटी-स्त्री० धागे आदिमें उलझकर पड़ी हुई गाँठ,
काठका लंबोतरा टुकड़ा: सोने या चाँदीका डला; गुठली; गुत्थी; शिकन । मु०-निकालना-मनोमालिन्य दर महुएके फलकी गुठली; छत्ते में मधु रहनेका स्थान । - करना। .
डंडा-पु. लड़कोंका एक खेल जिसमें गुल्लीको डंडेसे गुलझड़ी-स्त्री० दे० 'गुलझटी'।
मारते हैं। गलथी-स्त्री० चोट लगनेसे शरीर में होनेवाला गिलटी या! गुवा-पु० दे० 'गुवाक' ।
गुठली जैसा शोथ; मैदा आदिको घोलनेसे बनी हुई गाँठ। गुवाक-पु० [सं०] सुपारी; चिकनी सुपारी। गुलमा-पु० सिरपर चोट लगनेसे होनेवाली गोल सूजना। गुवार* --पु० दे० 'ग्वाल' । गुलाब-पु० [फा०] एक कँटीला पौधा या झाड़, उसका गुवारपाठा-पु० दे० 'ग्वारपाठा'। फूल जो बहुत सुंदर और मीठी सुगंधवाला होता है। गुवालि*--स्त्री० 'ग्वालिन' । गुलाबके फूलोंका अरक, गुलाबजल । -जल-पु० [हिं०] गुविंद-पु० दे० 'गोविद'। गुलाबका अरक । -जामुन-पु० [हिं०] एक प्रसिद्ध गुसला-पु० दे० 'गुस्ल' । -खाना-पु० दे० 'गुस्लमिठाई, जामुनकी शकलके, घीमें छानकर शीरेमें डुबोये हुए, खोयेके लड्डू। -पाश-पु० गुलाबजल छिड़कनेका | गुसाई -पु० दे० 'गोस्वामी' । एक हजारादार यंत्र ।
गुसा*-पु० दे० 'गुस्सा'। गुलाबास-पु० गुलअब्बास ।
गुसयाँ*-पु० स्वामी; ईश्वर । गुलाबा-पु० एक बरतन ।
गुस्ताख-वि० [फा०] ढीठ, अविनीत, बेअदब । गलाबी-वि० [फा०] गुलाबकेरंगका, हलका लाल; हलका
गुस्ताखी-स्त्री० [फा०] ढिठाई, अशिष्टता, बेअदबी । (जाड़ा, नशा); गुलाबमें बसाया हुआ (रेवड़ी आदि); गुस्ल-पु० [अ०] सारे शरीरको धोना, स्नान; मुर्देको गुलाब-संबंधी । पु० गुलाबकी पंखड़ियोंकासा हलका |
नहलाना । -खाना-पु० नहानेकी कोठरी, स्नानागार । लाल रंग।
गुस्सा -पु० [अ०] क्रोध, रोष, कोप । -वर-वि० जिसे गुलाम-पु० [अ०] खरीदा हुआ और मालिककी संपत्ति जल्दी गुस्सा आये । मु०-उतारना,-निकालनासमझा जानेवाला नौकर, दास, पराधीन व्यक्ति ताशका | क्रोधकी शांतिके लिए (किसीपर) बिगड़ना, मारना एक पत्ता। -चोर-पु० [हिं०] ताशका एक खेल । इत्यादि । -जादा-पु. गुलामका बेटा (वक्ता नम्रतावश अपने गुस्सैल-वि० गुस्सावर, क्रोधी। बेटेके लिए कहता है)।
गुह-पु०[सं०] कात्तिकेया घोड़ा; शृंगवेरपुरका निषादराज गुलामी-स्त्री० [अ०] दासता; चाकरी; पराधीनता। जिसने वनगमनके समय रामको गंगापार कराया गुहा । गुलाल-पु० अबीर ।
गुहना -स० क्रि० गूंथना। गुलाला-पु० दे० 'गुललाला'।
गुहराना -स० क्रि० पुकारना । गलिका-स्त्री० [सं०] खेलनेका छोटा गेंद; गोली। गुहाँजनी-स्त्री० बिलनी ।
ना -स० क्रि० दे० 'गोलियाना'; चोंगेमें औषध गहा-स्त्री० [सं०] गुफा, खोह, मद; छिपनेकी जगह । आदि भरकर पशुको पिलाना ।
| गुहाई-स्त्री० गुहनेकी क्रिया; गुहनेकी मजदूरी। गलिस्ताँ-पु० [फा०] पुष्पवाटिका, उद्यान, शेखसादी• गुहार-स्त्री० दोहाई, रक्षाके लिए पुकार ।
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गुहारि-गृह गुहारि*-स्त्री० दे० 'गुहार'।
गूनी*-स्त्री० दे० 'गोनी'। गुहेरा-पु० गोह।
गूमडा-पु० सिरपर चोट लगनेसे होनेवाली गोल सूजन । गुहे।-स्त्री० बिलनी।
गूलर-पु० बरगद-पीपलकी जातिका एक पेड़, उदुंबर उसका गुह्य-वि० [सं०] छिपाने लायक; गुप्त गूढ, कठिनतासे फल । मु०-का कीड़ा-कूपमंडूक। -का फूल-ऐसी
समझमें आनेवाला । पु० भेद, रहस्य; गुप्त अंग । चीज जो कभी देखनेमें न आये, अलभ्य वस्तु । गूंगा-वि० जो बोल न सके, मूक; जो मौन साधे हो। गृह-पु० दे० 'गू'। मु. (गूंगे)का गुड़,-का सपना-वह बात जो अनुभव गृहन-पु० [सं०] छिपाना। की जाय पर कही न जा सके, अकथनीय अनुभव । गृध्र-पु० [सं०] गिद्ध । वि० लोभी।-राज-पु० जटायु । ज-स्त्री० प्रतिध्वनि, टकराकर लौटनेवाली आवाज; देर- गृह-पु० [सं०] धर, वासस्थान; पत्नी; गृहस्थाश्रम । - तक बनी रहनेवाली ध्वनि; गुंजारः बाली या नथकी मुड़ी उद्योग-पु० घरमें किया जानेवाला धंधा । कर्म(मन)हुई नोक; लटूकी कील ।
पुगृहकार्य गृहस्थके लिए विहित कर्म ।-कलह-पु०घरेलू गूंजना-अ० क्रि० आवाजका टकराकर लौटना, प्रतिध्व- झगड़ा, भाई-भाईकी लड़ाई । -गोधा,-गोधिका-स्त्री० नित हो जाना; किसी ध्वनिसे किसी स्थानका व्याप्त हो छिपकली । -जन-पु० कुटुंबी । -त्याग-पु० घर जाना; किसी ध्वनिका देरतक सुनाई देते रहना; भौरे या छोड़ना; गृहस्थाश्रमका त्याग। - त्यागी(गिन्)-पु० मधुमक्खीका गुंजार करना; गरजना।
संन्यासी । -देवता-पु० अग्निसे ब्रह्मातक ४५ देवता गूंथना-सक्रि० दे० 'गूथना'; दे० 'गूंधना' ।
जिनकी गृहके विविध अंगोंमें स्थिति मानी जाती है। गँधना-सक्रि० आटेमें पानी डालकर उसे हाथोंसे मस- -प-पु० गृहपति; गृहपाल; कुत्ता। -पति-पु० घरका लना, माँड़ना; चोटी करना; पिरोना।
मालिका गृहस्थ; यजमान; अग्नि; (वार्डन) दे० गू-पु० [सं०] मैला, पाखाना, विष्ठा ।-मूत-पु० [हिं०] | 'छात्राभिरक्षक' । - परिभाग-पु० (प्रेमिसेज) मकान मलमूत्र । मु०-उछालना-कलंककी शुहरत करना ।-में। और उसके चारों ओरकी सीमाके भीतरका क्षेत्र,गृहोपान्त, ढेला फेंकना-कमीनेको छेड़ना, नीचके मुँह लगना। परिसर । -पशु-पु० कुत्ता । -पाल-पु० घरकी रखगूगल, गूगुल-पु० दे० 'गुग्गुल'।
वाली करनेवाला; कुत्ता । -प्रवेश-पु० नये घरमें विधिगूजर-पु० अहीरोंका एक भेद: क्षत्रियोंका एक भेद । । पूर्वक प्रवेश करना । -भेदी(दिन)-वि० घरमें झगड़ा गूजरी-स्त्री० गूजर स्त्री; एक रागिनी; पैरका एक गहना। लगानेवाला; सेंध मारनेवाला। -मंत्री(त्रिन)-पु० गूझा-पु० बड़ी गुझिया + गूदा; फलोंके भीतरका रेशा। (होम मिनिस्टर ) राज्यके भीतरी मामलों ( शांतिरक्षा * वि० गुप्त ।
आदि) की व्यवस्था करनेवाला मंत्री । -मेध-पु० गूढ-वि० [सं०] छिपा हुआ, ढका हुआ, गुप्त; समझने में पंचयश पंचयश करनेवाला, गृहस्थ । -युद्ध-पु० घरका, कठिन; गहन जिसमें कोई छिपा अर्थ या व्यंग्य हो ।-पत्र- भाई-भाईका झगड़ा; किसी देशके निवासियों या विभिन्न पु० (बैलट) दे० 'शलाका', 'मतदान-पत्र'। -पुरुष- वर्गोंकी आपसकी लड़ाई, खानाजंगी । -रक्षक-पु० पु० जासूस, गुप्तचर । -मैथुन-पु० कौवा । -लेख- (होमगाड) युद्ध या व्यापक अशांतिके समय नगर, मुहल्ले पु० (साइफर) लिखने या संवाद भेजनेकी गुप्त लिपि- आदिकी रक्षा करनेवाली नागरिक सेनाका सदस्य । प्रणाली।-०संहिता-स्त्री० (साइफरकोड) गूढ़ लेख-संबंधी -लक्ष्मी-स्त्री० घरकी लक्ष्मी, सुशीला गृहिणी । नियमों, संकेतों आदिका संग्रह ।।
-वाटिका-स्त्री० घरसे सटा हुआ बाग, नजरबाग । गूढता-स्त्री०,गूढत्व-पु० [सं०] गूढ़ होना, गंभीर होना। -शास्त्र-पु० दे० 'गार्हस्थ्य विज्ञान'। -स्थ-पु० ब्रह्म
-की शपथ-स्त्री०(ओथ ऑफ सीक्रेसी) दे० गोपन-शपथ। चर्य पालनके बाद विवाह करके दूसरे आश्रममें प्रवेश करने गूढोक्ति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जिसमें कोई गुप्त या रहनेवाला,गृही; घर-बारवाला; खेती-बारी करनेवाला, बात, जिससे उसका संबंध हो उसको छोड़कर किसी अन्य- | किसान । -स्वामिनी-स्त्री० धरकी मालकिन, पत्नी । के प्रति लक्ष्य कर कही जाय, जिससे समीपवाले अन्य लोग गृहस्थाश्रम-पु० [सं०] ब्रह्मचर्यके बादका आश्रम, गृहस्थउसे समझ न सकें।
का जीवन विवाहित जीवन । गूढोत्तर-पु० [सं०] एक अर्थालंकार जिसमें किसी प्रश्नका | गृहस्थी-स्त्री० गृहस्थका जीवन; गाईस्थ्य, घर-बार घरका उत्तर कोई गूढ अर्थ लिये हुए दिया जाता है।
काम-काजघरका माल असबाबा बाल-बच्चे, कुटुंब गूथना-स० क्रि० (मनका, फूल आदि ) धागेमें पिरोना; खेती।
लड़ी बनाना, गुंफना टाँकना; मोटी सिलाई करना । गृहागत-वि० [सं०] धर आया हुआ (अतिथि)। गूदा-पु० गूदा । स्त्री० गढ़ा; चिह्न ।
गृहिणी-स्त्री० [सं०] गृहस्वामिनी, पत्नी । गूदड़-पु० वीथड़ा। शाह,-साँई-पु०गुदड़ीपोश साधु । गृही(हिन्)-वि०, पु० [सं०] गृहस्थ, घर-बारवाला । गूदर*-पु० दे० 'गूदड़।
गृहीत-वि० [सं०] ग्रहण किया हुआ; पकड़ा हुआ; स्वीगूदा-पु० फलका छिलकेके नीचेका खाद्य भाग; मगज, कृत; प्राप्त; ज्ञात; संगृहीत; वादा किया हुआ। मांगी; मोटी रोटीका छिलकेके नीचेका नरम भाग; सार- गृहोद्यान-पु० [सं०] गृहवाटिका । भाग । (गुदे)दार-वि० जिसमें गूदा हो।
| गृह्य-वि० [सं०] गृह संबंधी; घरमें किया जानेवाला गून-स्त्री० वह रस्सी जिससे नाव खींची जाती है, गुण। । (कर्म)।
स्त्री० गदा माटी सिलाम पिरोना. कामाला गृहस्थ
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गें उड़ा-गो
२१८ गें उड़ा-पु० दे० 'गाइड़ा।
गैब-पु० [अ०] छिपा होना, दृष्टिगोचर न होना; परोक्ष । गेंडा-पु० ईखके ऊपरके हरे पत्ते; गैड़ा।
गैबर*-पु० श्रेष्ठ हाथी। गे दुआ(वा)*-पु० तकिया बड़ा गेंद।
गैबी-वि० [अ०] ईश्वरीय गुप्त; अज्ञातअशय गेंडरी (ली)-स्त्री० इंडुरी; कुंडली।
गैयर*-पु० बड़ा हाथी, गजवर । गेंद-पु० कपड़े, रबर, काठ, कार्क आदिका बना गोला गैया*-स्त्री० गाय । जिससे लड़के खेलते हैं, कंदुका टोपी बनाने या पगड़ी गैर-स्त्री० अंधेर; अन्यायपूर्ण बर्ताव; * गैल; निंदा । बाँधनेका कलबूत; तारकी जालियोंका बना गोला जिसमें गैर-वि० [अ०] दूसरा, अन्य; भिन्न, बदला हुआ (हालत दिया रखकर जलाते हैं। -घर-पु. क्रिकेट या टेनिस गैर होना); वेगाना, पराया। -आबाद-वि० जो आदि खेलनेका स्थान (बिलियर्ड-रूम)। -बल्ला-पु० आबाद न हो, उजाड़ परती (जमीन)। -इनसाफ़ीगेंद और बल्ला, क्रिकेट खेलनेकी सामग्री क्रिकेटका खेल । स्त्री० नाइंसाफी, अन्याय । -जरूरी-वि० अनावश्यक । -बाज़-पु० ( बोलर ) गेंदबल्ले (क्रिकेट )के खेलमें वह -ज़िम्मेदार-वि० (अपनी) जिम्मेदारी न समझनेवाला, व्यक्ति जो बल्लेबाजके सामने गेंद फेंकनेका काम करे। दायित्वहीन; जिसका भरोसा न किया जा सके। -मन-बाज़ी-स्त्री० (बोलिंग) क्रिकेटके खेल में ( बल्लेबाजकी कूला-वि० अचल, स्थावर (संपत्ति)। -मामूली-वि० तरफ) गेंद फेंकनेकी क्रिया, गोलंदाजी।
असाधारण ।-मिसिल*-वि० अनुचित, अयोग्य (स्थानगँदई-वि० गेंदेके फूल जैसे रंगका, जर्द ।
में)। -मुकम्मल-वि० अधूरा, अपूर्ण । -मुनासिबगेदवा* -पु० दे० 'गें दुआ'।
वि० अनुचित, जो मुनासिब न हो। -मुमकिन-वि० गैंदा-पु० एक पौधा; उसका फूल जो पीले रंगका होता असंभवः अशक्य । -मुल्की-वि० विदेशी। -मुस्त
है; एक आतिशबाजी; एक गहना; + गेंद, कंदुक । किल-वि० अस्थिर; अस्थायी। -मुस्तरका-वि० बिना गँदुआ(वा)-पु० गोल तकिया, उसीसा।
साझेका, एकजाई; जो एककी ही संपत्ति हो।-मौरूसीगेटिस-पु० मोजा बाँधनेका फीता ।
वि० जो बपौती न हो; जिसपर या जिसे मौरूसी हक गेड़ना-स० क्रि० लकीरसे घेरना । अ० क्रि० चारों ओर हासिल न हो। -वाजिब-वि० जो वाजिब, मुनासिब फिरना।
न हो, अनुचित । -सरकारी-वि० जो सरकारी न हो। गेय-वि० [सं०] गाने लायक, जो गाया जा सके। -हाज़िर-वि० अनुपस्थित, जो हाजिर, मौजूद न हो। गेरना*-स० क्रि० गिराना; उँडेलना; डालना; आरोप -हाज़िरी-स्त्री० अनुपस्थिति, नागा । करना । अ० क्रि० चारों ओर फिरना।
गरत-स्त्री० [अ०] लज्जा, हया आन । गेराँवा-पु० चौपायोंके बंधनका वह भाग जो गले में | गैरिक-पु० [सं०] गेरू सोना । वि० पहाड़से उत्पन्न । रहता है।
गरीयत-स्त्री० [अ०] गैर होना, बेगानगी, पराथापन । गेरुआ-वि० गेरूके रंगका; गेरूमें रँगा हुआ, जोगिया। गैरेय-वि० [सं०] गिरिसे या गिरिपर उत्पन्न, पहाड़ी। पु० गेरूके रंगका एक कीड़ा, गहूँके पौधोंका एक रोग। पु० गेरू; शिलाजतु । -बाना-पु० गेरुआ वस्त्र, संन्यासियोंका जोगिया | गैल-स्त्री० रास्ता; गली । पहनावा।
गैस-स्त्री० [अं॰] वायुरूप सूक्ष्म और चाहे जितना फैल गेरुई।-स्त्री० गेहूँ, जी आदिकी फसलका एक रोग जिसमें | सकनेवाला द्रव्य । उनके पत्ते लालसे हो जाते हैं ।
गाँठा-पु० उपला। गेरू-स्त्री॰खानोंसे निकलनेवाली एक तरहकी लाल मिट्टी। गाँइडा-पु० गाँवके पासका स्थान । गेली-स्त्री० [अ०] कालमकी नापकी लोहे या लकड़ीकी गाँठ-स्त्री० धोतीकी लपेट, मुरीं । बनी छिछली किश्ती जिसपर कंपोज किया हुआ मैटर | गाँठना-स० कि० रेखासे घेरना; गुझिया आदिकी कोर कालम पेज आदि बनानेके लिए रखते हैं।
मोड़ना नोक या कोर भोथरा कर देना । गेह-पु० [सं०] घर, मकान | -पति-पु० गृहपति । | गाँठनी-स्त्री० गुझियाकी कोर बनानेका औजार । गेहनी*-स्त्री० दे० 'गहिनी'।
गौंड-पु० एक असभ्य जाति; पानी भरने आदिका काम गहिनी-स्त्री० सं०] गृहिणी, गृहस्वामिनी ।
करनेवाली एक जाति । गेही(हिन्)-वि०, पु० [सं०] घरवाला, घर-बारवाला।
गौंडा-पु० चहारदीवारीसे घिरा हुआ स्थान, बाड़ा। गेहअन-पु० गेहूँके रंगका एक जहरीला साँप ।
गोंडी-स्त्री० मध्यभारतकी एक बोली । गेहुआँ-वि० गेहूँके रंगका, गंदुमी।।
गौंद-पु० पेड़का लसदार पसेव जो सूख गया हो, निर्यास । गेहूँ-पु० एक अन्न जिसकी फसल चैतमें कटती है। * स्त्री० एक वृक्ष, गोंदी। -दानी-स्त्री० भिंगोया हुआ गैंडा-पु० भैसेकी शकलका विशालकाय जंतु जिसकी गोंद रखनेका बरतन ।-पंजीरी-स्त्री० प्रसूताको खिलायी नाकपर एक या दो साँग होते हैं।
जानेवाली वह पंजीरी जिसमें गोंद मिला रहता है। गती-स्त्री० मिट्टी खोदनेका एक औजार ।
गौंदरी-स्त्री० एक जलीय पौधा जिसकी चटाई बनती है। गैन*-पु० रास्ता, गैल; गमन-'सुख पायो तो बिरमियो, पयालकी चटाई।
नहिं करि जैयो गैन'-चाचा हित०, गगन; गयंद । गोंदला-पु० बड़ा नागरमोथा; एक तृण । गैनी*-वि० स्त्री० गामिनी ।
| गो-स्त्री० [सं०] गाय, गऊ; ढोर, पशुः रश्मि, किरण;
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२१९
इंद्रिय; वाणी, सरस्वती; आँख; वृष राशि; धरती; माता; दिशा; जीभ | पु० बैल; आकाश; सूर्य; चंद्रमा; बाण; जल; स्वर्ग; वज्र; हीरा; शब्दः ९का अंक; रोम; गायक; गोमेधयज्ञ | - कंटक - पु० गायका खुर; गायके खुरका निशान; गोखरू । - कन्या * - स्त्री० कामधेनु । - कर्ण - वि० गायके जैसे कानोंवाला । पु० खच्चर; मलाबार में स्थित शैवोंका एक तीर्थ; वहाँ स्थापित शिवकी मूर्ति । -कुल- पु० गायोंका झुंड, गोशाला, गोठ; वृंदावन के पासका एक गाँव जो नंदका वासस्थान था और जहाँ कृष्ण तथा बलरामका पालन-पोषण हुआ । ० नाथ, पति-पु० कृष्ण । -कृत- पु०गोबर । - कोस- पु० [हिं०] उतनी दूरी जहाँतक गायकी आवाज सुनाई दे । -क्षीर-पु० गायका दूध । - क्षुर, - क्षुरक- पु० गायका खुर; गोखरू । - खग* - पु० थलचर प्राणी, पशु । - खुर-पु० गायका खुर; गायके खुरका निशान । -गृह- पु० गोठ, गोशाला । -ग्रासपु० भोजनका वह भाग जो गायके लिए अलग कर दिया जाता है; गायकी तरह मुँ इसे उठाकर बिना चत्राये भोजन करना । - घातक, -घाती (तिन) - वि० गोवध करनेवाला पु० कसाई | -घ्न- वि० गोवध करनेवाला; जिसके लिए गोवध किया जाय, अतिथि। -चर- वि० इंद्रिय द्वारा जानने योग्य, इंद्रियग्राह्य । पु० इंद्रियका विषय (रूप, रसादि); इंद्रियग्राह्य वस्तु; साक्षात्कार; चरागाह । -- चारक, - चारी (रिन्) - पु० गायें चरानेवाला, ग्वाला । - चारण-पु० गायें चराना। -जाति- स्त्री० गोवंशः सारी दुनिया के गाय-बैल, गोसमष्टि । - तीर्थ - पु० गोशाला, गोठ । - दान-पु० गायका दान; विवाह के पहलेका एक संस्कार, केशांत । - दारण- पु० हल; कुदाल | - दुट् (ह् ), - दुह - पु० गाय दुहनेवाला, ग्वाला । - दोहन - पु० गाय दुहना; गाय दुहनेका समय । - दोहनी - स्त्री० दूध दुहनेका बरतन । -धन- पु० गायों, गाय-बैलोंका समूह; गाय-बैल रूप धन; * गोवर्द्धन पर्वत । - धूलि, - धूली- स्त्री० गायोंके चरकर लौटने का समय, संध्या वेला । -प-पु० गोपालक; ग्वाला, अहीर; गोष्ठका अध्यक्ष; रक्षक; राजा; प्राचीन हिंदू राजव्यवस्था में गाँवकी सीमा, आबादी, खेती-बारी, कय-विक्रय, आदिका लेखा रखनेवाला कर्मचारी । - प कन्या - स्त्री० गोपकुमारी; ग्वालिन, गोपी । -प-वधू, स्त्री० गोप-पत्नी; गोपी । - पति-पु० गायोंका मालिक, गोस्वामी; साँड़; ग्वाला; राजा; कृष्ण; शिव; विष्णु; सूर्य । - पद - पु० गायके खुरका निशान या उससे बना गढ़ा; चरागाह | -पदी* - वि० गोपदके जितना छोटा ।-पास्त्री० गोप स्त्री, ग्लालिन; श्यामा लता; बुद्धकी पत्नी, यशोधरा । - पाल- वि० गोपालक; ग्वाला, अहीर; राजा; कृष्ण; शिव । - पी - स्त्री० गोपवधू, ग्वालिन । - पी चंदन - पु० एक तरहकी पीली मिट्टी जिसका वैष्णव तिलक लगाते हैं । - पीता* - स्त्री० गोपी। -पुच्छ - पु० गायकी पूँछ; एक तरहका बंदर; एक तरहका हार -पुरपु० नगरद्वार, शहरका फाटक; मद्दल या मंदिरका मुख्य द्वार; तोरण । - फन-पु० [हिं० ] ढेलवाँस । -बरपु० [हिं० ] दे० क्रममें । - भुक् ( ज् ) - पु० राजा ।
|
गो-गोजर
पु०
- भृत् - पु० पहाड़ | मर* - पु० गोधातक, कसाई । - मल - पु० गोवर । - मांस-पु० गाय-बैलका मांस । - माता (तृ) - स्त्री० मातृस्थानीय गोजाति, गायरूपी माता । - मुख - वि० गायकेसे मुखवाला । पु० एक तरहका शंख; नरसिंहा; नाक, घड़ियाल, गोमुखी । -मुखी - स्त्री० जपमाला रखनेकी गोमुखके आकारकी थैली । - मूत्र - पु० गायका मूत्र । - मेद-पु० एक रत्न । - मेदक - पु० गोमेद । - मेघ - पु० कलियुगके लिए निषिद्ध एक वैदिक यज्ञ जिसमें गोबलिका विधान है । - यान- पु० बहली, बैलगाड़ी । - रक्षिणी - वि० स्त्री० गोरक्षा करनेवाली, गोरक्षा के लिए स्थापित (सभा) । -रज(स) - ५० गायके खुरोंसे उड़ी हुई धूलि । -रस - पु० दूध; दही; मठा; इंद्रियसुख । रोचन - पु० एक सुगंधित पदार्थ । - रोचना - स्त्री० गोरोचन । - लोक- पु० वैकुंठ । - लोकवास - पु०स्वर्गवास, मृत्यु । - लोकेश - पु०कृष्ण । - लोचन - ५० दे० 'गोरोचन' । - वत्स - पु० बछड़ा । - वध - पु० गायकी हत्या करना, गावकुशी । -वर्धनपु० वृंदावनका एक पहाड़ जिसे पुराणोंके अनुसार इंद्रके कोपले व्रजभूमिकी रक्षा करनेके लिए भगवान् ने अपनी उँगली पर उठा लिया था। - वर्धनधर, - वर्धनधारी (रिन् ) - पु० कृष्ण । - विंदु - पु० गोपालकः कृष्ण - शाला - स्त्री० गायोंके रहनेका स्थान, बाड़ा, गोष्ठ । -ष्ठ - पु० गोशाला, गोठ, पशु-शाला; अहीरोंका गाँव; गोष्ठी । - ष्ठ- पति-पु०गोष्ठका अध्यक्षः ग्वालोंका सरदार | - ष्ठी - स्त्री० सभा, मंडली, समाज वार्तालाप; समूह; पारिवारिक संबंध; नाटकका एक भेद जिसमें एक ही अंक होता है । - साँई - पु० [हिं० ] गोस्वामी; ईश्वर; गृहस्थ शैव साधुओंका एक संप्रदाय । वि० मालिक; श्रेष्ठ । - सुत - पु० बछड़ा । - सैयाँ - पु० मालिक, स्वामी । - स्वामी (मिन्) - पु०गायका मालिक; गायें रखनेवाला; जितेंद्रिय; वल्लभकुल, निंबार्क संप्रदाय और मध्व-संप्रदाय के आचार्यों की पदवी - हत्या - स्त्री० गोवध । गो- अ० [फा०] यद्यपि, अगरचे । -कि-अ० यद्यपि । गोइँठा-पु० उपला ।
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गोइँड़ (डा ) + - पु० गाँव के पासकी जमीन जो अधिक उपजाऊ होती है । :
गोइंदा - पु० दे० 'गोयंदा ' | गोइ* - पु० गेंद |
गोइयाँ- पु०, स्त्री० दे० 'गुइयाँ' | गोई* - स्त्री० सखी, गोइयाँ ।
गोऊ* - पु० चुरानेवाला, गोपन करनेवाला । गोखरू - पु० एक क्षुप; उसका कँटीला फल जो दवाके काम आता है; गोखरू के आकार के लोहे आदिके बने कँटीले टुकड़े; गोटे; पाँवमें पहननेका एक गहना; तलवे या हथेली में पड़ा हुआ घट्टा । गोखा + - पु० झरोखा, गवाक्ष; ताक ।
गोचना - पु०, गोचनी - स्त्री० चना मिला हुआ गेहूँ । गोज़ - पु० [फा०] अपान वायु । गोजई - स्त्री० जौ मिला हुआ गेहूँ । गोजर* - पु० कनखजूरा |
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गोजी-गोपिका
२२० गोजी-स्त्री० लाठी, डंडा ।
गोत्र-पु० [सं०] कुल, वंश; गोत्रप्रवर्तक माने हुए ऋषियोंगोझा-पु० गुझिया; गुज्झा।
की संतानपरंपरा; आदि-पुरुषके नामसे प्राप्त वंशस शा; गोट-स्त्री० कपड़ेकी दुहरी पट्टी जो सुंदरताके लिए कपड़ोंके समूह, संघ; पर्वत क्षेत्र । -कर्ता(त),-कार-पु० गोत्रकिनारे लगाते हैं, मगजी, संजाफ; किनारी; चौसर, प्रवर्तक । -ज-वि० एक ही गोत्रका, गोती।-प्रवर्तकपचीसी आदि खेलनेकी लकड़ी आदिकी बनी गोटी, नर्द; पु० गोत्र चलानेवाला, गोत्रकार । -भिद-पु० इंद्र । मंडली; नगरके बाहरकी वह सैर जिसमें खाना-पीना भी -सुता-स्त्री० पार्वती। हो; गोष्ठी । पु० गाँव तोपका गोला ।
गोत्री(विन्)-वि० [सं०] एक ही गोत्र में उत्पन्न, गोती। गोटा-पु० सुनहले या रुपहले और रेशमके तारोंको मिला- गोत्रीय-वि० [सं०] गोत्रवाला (अमुक) गोत्रमें उत्पन्न । कर बुना फीता, पट्टा; लचका; छोटे टुकड़ोंमें कतरी हुई गोद-स्त्री० कोड़, पहलू ; आँचल । -नशी-वि० गोद गिरी, सुपारी, बादाम, इलायची आदि जो पानके बदले लिया हुआ, दत्तक ।-नशीनी-स्त्री० गोद लिया जाना। खायी जाती है। धनियाकी गिरी; सूखा हुआ मल, कंडी; मु०-का-गोदमें खेलनेवाला; छोटा (बच्चा)। -देनागोला-'ओ ज्यों छुटहिं बज्र कर गोटा'-५०।
अपना लड़का दत्तक बनानेके लिए दूसरेको देना। गोटी-स्त्री० गोट, नर्द, कंकड़ या पत्थर, खपड़े आदिके -बिठाना-गोद लेना, दत्तक लेना। -भरना-शुभ छोटे टुकड़े जिनसे लड़के कई तरहके खेल खेलते हैं; अवसरोंपर सौभाग्यवती स्त्रीके आँचलमें नारियल आदि गोटियोंकी सहायतासे पत्थर आदिपर कोष्ठक बनाकर डालना संतान होना। -लेना-किसी लड़केको दत्तक खेला जानेवाला खेल; युक्ति, उपायः प्राप्तिका डौल । बनाना। मु०-जमना-बैठना-युक्ति सफल होना प्राप्तिका डौल | गोदनहारी-स्त्री० गोदना गोदनेवाली स्त्री । बनना। -मरना-किसी.गोटीका मृत मान लिया जाना, गोदना-स० क्रि० चुभाना, गड़ाना; ताना मारना; अंकुश खेलमें काम न आ सकना । -लाल होना-चौसर या देना; बदनमें सुई चुभोकर और सूराख में नीलका पानी पचीसीकी गोटीका सब खानों में फिरकर उठ जाना; काम आदि भरकर सुंदरताके लिए बिंदी, फूल आदि बनाना । बनना लाभ होना।
पु० सुई चुभाकर बदनपर बनायी हुई बिदी आदि खेत गोठ*-पु० गोष्ठ, गोशाला; गोष्ठी-श्राद्ध; गोष्ठी सैर-सपाटा। गोड़नेका औजार । गोठा*-पु० सलाह ।
गोदनी-स्त्री० गोदना गोदनेकी सुई टीका लगानेकी सुई । गोड़ -पु० पावँ, पैर ।-गाव-पु० वह रस्सी जो पिछाड़ी-गोदा-पु. बड़, पीपल या पाकड़का पका फल; नयी डाल । वाली रस्सीके साथ लगाकर धोड़ेके पिछले पैरों में फंसायी गोदाम-पु० (तिजारती) माल रखनेका स्थान । जाती है ।-बाँस-स्त्री० पशुके पैर में बाँधनेकी रस्सी । | गोदी-स्त्री० दे० 'गोद' । मु०-भरना-पामें महावर लगाना। -लगना-पावँ छूना।
गोधा-स्त्री० [सं०] गोह धनुषके चिल्लेकी चोटसे बचनेके गोड़इता-पु० गाँवका चौकीदार ।
लिए बायीं कलाई पर बाँधनेका चमड़ा, घड़ियाल । गोड़ना-स० क्रि० मिट्टीको नरम और भुरभुरी करनेके | गोधिका-स्त्री० [सं०] छिपकली; घड़ियालकी मादा। लिए कुदाल आदिसे खोदना, कोड़ना; खोदना । गोधूम-पु० [सं०] गेहूँ। -चूर्ण-पु० आटा । गोड़वाना-स० कि० 'गोड़ना'का प्रेरणार्थक ।
गोन-स्त्री० बैलपर अनाज आदि लादनेका दोनों ओर गोड़ा -पु० चारपाई आदिका पाया; घोड़िया; थाला। लटकनेवाला थैला, गोनी, बोरा; अनाजकी एक तौल; गोड़ाई-स्त्री० गोड़नेकी क्रिया; गोड़नेकी मजदूरी। नाव खींचनेक लिए नावके मस्सूलमें बँधी हुई रस्सी । गोड़ाना-स० क्रि० 'गोड़ना'का प्रेरणार्थक ।
गोना*-स० क्रि० छिपाना, गोपन करना । गोड़ापाई।-स्त्री० बार-बार आना-जाना ।
गोनिया-पु० बैल लादनेवाला; बोरे ढोनेवाला; रस्सी गोड़िया-स्त्री० छोटा पैर या पाया । वि० युक्ति भिड़ाने- | बाँधकर नाव खींचनेवाला । स्त्री० दीवार आदिकी सीध वाला।
नापनेका एक औजार । गोत-पु० वंश, गोत्र; समूह ।
गोनी-स्त्री० टाटका थैला, बोरा; पाट, सन । गोतम-पु० [सं०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि, अहल्याके पति; गोप*-पु० गोपन, छिपाना; दे० 'गो'के साथ । स्त्री०
न्यायशास्त्रके प्रवर्तक गौतम मुनि । -पुत्र-पु० शतानंद। गलेका एक आभूषण । गोतमी-स्त्री० [सं०] गोतम-पत्नी अहल्या।
गोपन-पु० [सं०] छिपाना, छिपाव; भर्त्सना, निंदा गोता-पु० [अ०] पानीमें डूबना, डुबकी। -ख़ोर-पु० संरक्षण । -शपथ-स्त्री० (ओथ ऑफ सीक्रेसी) मंत्रियों डुबकी लगानेवाला; कुएँसे गिरी हुई चीजें निकालनेवाला। आदि द्वारा सरकारकी गोपनीय बातें प्रकट न करनेके -मार-पु० समुद्रसे सीप, मोती आदि निकालनेवाला, संबंधमें पदग्रहणके समय ली जानेवाली शपथ । पनडुब्बा; पनडुब्बी नौका; गोताखोर । मु०-खाना- गोपना-स्त्री० [सं०] रक्षण; दीप्ति । * स० क्रि० छिपाना। ड्रबना; धोखा खाना। -देना-डुबकी देना, दुबोना; | गोपनीय-वि० [सं०] छिपाने लायक; रक्षणीय । धोखा देना। -मारना-डुबकी लगाना; नागा करना । गोपांगना-स्त्री० [सं०] ग्वालिन; गोपवधू । गोतिया, गोती-वि० अपने गोत्रवाला, गोत्रज । गोपाष्टमी-स्त्री० [सं०] कात्तिक शुक्ला अष्टमी। गोतीत*-वि० अगोचर, जो इंद्रियग्राह्य न हो।
गोपिका-स्त्री० [सं०] ग्वालिन; गोपवधू ।
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२२१
गोपित - वि० [सं०] रक्षितः छिपाया हुआ ।
गोपी - स्त्री० [सं०] शारिवा लता; छिपानेवाली; दे० 'गो' में । गोप्ता (ट) - वि० [सं०] गोपनकर्ता; रक्षक । पु० विष्णु । गोप्य - वि० [सं०] गोपनीय ।
गोफ - पु० एक तरहका कंठा ।
गोफन - पु० दे० 'गो' के साथ ।
गोफा - पु० कल्ला, गोभा । * स्त्री० गुफा, - 'गोफन माँही पौड़ते, परिमल अंग लगाय' - साखी; तहखाना । गोबर - पु० गोमल । - गणेश - पु० मूर्ख, बुद्ध | गोबरी - स्त्री० गोबरका लेप ( करना ); कंडा, उपला । गोबरैला, गोबरौरा, गोबरौला - पु० दे० 'गुबरैला' । गोभ, गोभा* - स्त्री० लहर, तरंग - 'उठति सखि आनंद की गोभा' - गदाधर ।
गोभी - स्त्री० एक प्रसिद्ध शाक जो फूलगोभी, पातगोभी या करमकल्ला और गाँठगोभी के भेदसे तीन तरहका होता है; बनगोभी; पौधोंका एक रोग ।
गोम * - पु० स्थान । स्त्री० घोड़ोंकी एक भँवरी । गोमती - स्त्री० [सं०] उत्तरप्रदेशकी एक नदी जो बनारस और गाजीपुर जिले की सीमापर गंगा में मिलती है; एक वृत्त । गोमय - पु० [सं०] गोवर । गोड़-पु० गाँव के पासकी जमीन । गोयंदा - वि० [फा०] बोलनेवाला । पु० जासूस, भेदिया । गोय - पु० [फा०] गेंद ।
गोया - अ० [फा०] मानों, जैसे ।
गोर - + वि० दे० 'गोरा' । स्त्री० [फा०] वह गढ़ा जिसमें मुर्देको दफन करें, कब
गोरख - पु० गोरखनाथ । -धंधा - पु० तार, कड़ियाँ आदि जो एकमें जोड़कर फिर अलग की जा सकें; गोरखपंथी साधुओं के हाथमें रहनेवाला डंडा जिसमें बहुत-सी कड़ियाँ जड़ी होती हैं; जल्दी समझमें न आनेवाली चीज, पहेली; झमेला । - नाथ- पु० १५वीं शतीके एक प्रसिद्ध हठयोगी और पंथप्रवर्तक संत । - पंथ - पु० गोरखनाथका चलाया हुआ एक शैव पंथ या संप्रदाय, नाथसंप्रदाय । - मुंडी - स्त्री० एक घास जो दवाके काम आती है । गोरखा- पु० नेपालका एक प्रदेश या वहाँका निवासी । गोरटा * - वि० गोरा ( स्त्री० गोरटी-गोरी, सुंदर स्त्री ) । गोरसी - स्त्री० अँगीठी ।
गोरा - वि० गौर, श्वेत वर्णवाला। - चिट्टा - वि० खूब गोरा । - पत्थर - पु० एक सफेद मुलायम पत्थर । गोराई - स्त्री० गोरापन; सुंदरता ।
गोरिल्ला - पु० अफ्रीका में पाया जानेवाला हिंस्र बनमानुस । गोरी - वि० स्त्री० गौर वर्णवाली । स्त्री० सुंदरी स्त्री । गोरु - पु० चौपाया, ढोर (गाय, बैल, भैंस आदि ) । गोलंदाज - पु० गोला चलानेवाला, तोपची; गेंदबाज । गोलंदाजी - स्त्री० गोलंदाजका काम ।
गोलंबर - पु० गुंबज; गुंबज जैसी गोल उठी हुई कोई चीज; कालिब; बागमें बना हुआ गोल चबूतरा ।
गोल - पु० [सं०] मंडल, गोलाकार पिंड, वृत्त; धरतीका मंडल या गोला । - यंत्र - पु० वह यंत्र जिससे ग्रहनक्षत्रों की गति, स्थिति आदि जानी जा सकती है।
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गोपित - गोशा
-योग- पु० ज्योतिषका एक योग, एक राशिमें ६ या ७ ग्रहों का एकत्र हो जाना; गोलमाल । - विद्या - स्त्री० ज्योतिर्विद्याका अंग-विशेष; धरतीका आकार, विस्तार, गति आदि जाननेकी विधि |
गोल - वि० गोला, वृत्ताकार; ठिगना और मोटा अस्पष्ट । - गप्पा - पु० छोटी, खूब फूली हुई करारी पूरी जिसे चाटकी तरह खाते हैं । - गोल- वि० गोला; अस्पष्ट । - मटोल - वि० जिससे कोई साफ अर्थ न निकले, अस्पष्ट । - माल - पु० गड़बड़, घपला । - मिर्च - स्त्री० काली मिर्च । - मेज सम्मेलन- स्त्री० सर्वपक्ष-सम्मेलन, ऐसा सम्मेलन जिसमें सभी पक्षोंके लोग एक साथ बैठकर विचार करें ।
गोल - पु० [अ०] फुटबाल आदिके खेल में वह स्थान जहाँ गेंद पहुँचने से पक्ष-विशेषकी जीत होती है; इस तरह हुई जीत ( करना, होना ) । -कीपर- पु० गोलकी रक्षापर नियुक्त खिलाड़ी ।
गोल - पु० [फा०] मंडली, झुंड, भीड़ ।
गोलक - पु० वह संदूक या डब्बा आदि जिसमें रोजकी आमदनी या कार्यविशेषके लिए धन एकत्र किया जाय; इस तरह इकट्ठा हुआ धन; गुंबद | [सं०] गोलपिंड; गोली; काठका गेंद; मटका; विधवाका जारज पुत्र; आँखका डेला; कई ग्रहोंका योग; गुड़; गोलोक ।
गोला - वि० गोलाईवाला, वृत्ताकार । पु० गोल वृत्ताकार वस्तु या पिंड; लोहेकी बड़ी गोली जिसे तोपमें भरकर दागते हैं; नारियलका साबित मग्ज; रस्सी आदिकी पिंडी; गल्ले, किराने आदिका बाजार जो किसी इहातेके अंदर हो; गोल शहतीर, बल्ला; घासका गट्ठा; वायुगोला रोग; जंगली बाँस जो भीतर से पोला नहीं होता; जंगली कबूतर; एक तरहका बेत । - बारूद - स्त्री० गोला और बारूद; युद्धसामग्री । गोलाई - स्त्री० गोलापन ।
गोलार्द्ध - पु० [सं०] पृथ्वीका आधा भाग जो एक से दूसरे ध्रुवतक रेखा खींचनेसे बने |
गोलियाना + - स० क्रि० गोल आकारका बनाना; गोल बाँधना ।
गोली - स्त्री० छोटा गोला; मिट्टी, काँच आदिका बना छोटा गोला जिससे लड़के खेलते हैं; गोलीका खेल; सौसे या लोहेका छोटा गोला जिसे बंदूक, तमंचे में भरकर छोड़ते हैं; गोलीके रूपमें बनायी हुई दवा, बटी । मु०- खानाबंदूक की गोली से घायल होना; गोलीकी चोट सहना । - चलना - बंदूक से गोलीका चलाया जाना, फैर किया जाना। - मारना - गोली से घायल करना; उपेक्षापूर्वक त्याग देना, ठुकरा देना । गोवना* - स० क्रि० छिपाना; गोश - पु० [फा०] कान। -माल, - माली - स्त्री० कान मलना, उमेठना, कनेठी; ताड़न । -वारा- पु० बाला, कुंडल; बड़ा मोती; पगड़ीका कलाबत्तू से बुना हुआ अंचल; कलगी; जोड़, मीजान; हिसाबका खुलासा ; रजिस्टर आदिके खानोंका शीर्षक ।
ढकना ।
गोशा- पु० [फा०] कोना, कोण; दिशा; एकांत स्थान |
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गोश्त - ग्रसित
- नशीनी - स्त्री० एकांतवास ।
गोश्त - पु० [फा०] मांस, सालन, लहम; गूदा । गोष्टागार - पु० [सं०] सभागृह ।
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२२२
- शाली (लिन्) - वि० गौरवयुक्तः सम्मानित । गौरवान्वित - वि० [सं०] गौरवयुक्त | गौरांग - पु० [सं०] चैतन्यदेव; कृष्ण; विष्णु । वि० गोरा; यूरोपीय । - महाप्रभु-पु० चैतन्यदेव ।
गोष्ठी - स्त्री० [सं०] दे० 'गो' के साथ |
गोह - स्त्री० छिपकली की जातिका एक जहरीला जंतु जो गौरा- स्त्री० [सं०] गोरी स्त्री; पार्वती; हल्दी; एक रागिनी । आकार में नेवलेके बराबर होता है । गौरी - स्त्री० [सं०] गोरी स्त्री; पार्वती; आठ वर्षकी अविवाहिता कन्या; धरती; वाणी; सफेद दूब; हल्दी; गोरोचन । - कांत, - नाथ- पु० शिव । -गुरु-पु० हिमालय । - शंकर - पु० हिमालयकी एक ऊँची चोटी । -शिखरपु० हिमालयकी वह चोटी जिसपर पार्वतीने तपस्या की थी। गौरीश- पु० [सं०] शिव । गौरैया - स्त्री० एक छोटी चिड़िया ।
गौल्मिक - पु० [सं०] ३० सिपाहियोंका नायक, गुल्मनायक । वि० गुल्म, अर्बुद रोग-संबंधी ।
गौहर - पु० [फा०] मोती; जौहर | ग्यान* - पु० दे० 'ज्ञान' | ग्यारस - स्त्री० एकादशी ।
ग्यारह - वि० दस और एक । पु० दस और एककी संख्या । ग्रंथ - पु० [सं०] पुस्तक, किताब; धन। -कर्ता (तृ), - कार - पु० ग्रंथ लिखने, रचनेवाला । -चुंबक- वि०, पु० पुस्तक के कुछ पन्ने पढ़कर ही, विषयका स्वल्प ज्ञान प्राप्त करके ही रह जानेवाला, पलवग्राही । - माला- स्त्री० कार्यालयविशेषसे क्रमपूर्वक प्रकाशित पुस्तकें। रचना - स्त्री० पुस्तक- रचना, किताब लिखना । - साहब-पु० [हिं०] सिखों का धर्मग्रंथ, सिख गुरुओं के उपदेशोंका संग्रह । ग्रंथन - पु० [सं०] गाँठ देकर बाँधना, गठियाना; गूंथना, गुफन; रचना |
ग्रंथना* - स० क्रि० गूंथना ।
ग्रंथागार - पु० [सं०] पुस्तकालय ।
गोहन - पु० [सं०] ढकना; छिपाना; + संग, साथ; संग लगा रहनेवाला, साथी । गोहरा - पु० उपला ।
गोहराना * - स० क्रि० अ० क्रि० आवाज देना; पुकारना । गोहार - स्त्री० पुकार; सहायता के लिए चिल्लाना; शोर-गुल । गोही* - स्त्री० छिपाव, गोपन; गुप्त बात । गोहुअ (व) न - पु० एक अति विषधर साँप । गोहेरा - पु० गोह; बिसखोपड़ा । गौँ-पु० काम निकलनेका मौका, अवसर, घात; मतलब, युक्ति; * गति, पहुँच; ढंग, चाल । मु० -का- मतलबका, कामका । -का यार - मतलबका दोस्त । -गाँठनाकाम निकालना, अपनी गरज देखना । -निकलनाकाम निकलना। -पड़ना - काम पड़ना । -से-चुपकेसे । गौ- स्त्री० [सं०] गाय | - चरी - स्त्री० [हिं०] गाय चरानेका
कर । - दुमा* - वि० गावदुम, गायकी पूँछ जैसा । - मुखी - स्त्री० दे० 'गोमुखी' । - शाला - स्त्री० दे० 'गोशाला' ।
गौat - स्त्री० दे० 'गौखा'; चौपाल ।
गौart - पु० झरोखा, गवाक्ष; गायका चमड़ा । गौग़ा - पु० [अ०] शोर-गुल, हल्ला; अफवाह | गौड़ - पु० [सं०] बंगालका पुराना नाम; गौड़ देशवासी; ब्राह्मणका एक वर्ग, पंच गौड़ ब्राह्मणोंकी एक उपजाति; कायस्थोंकी एक उपजाति; एक राग ।
गौड़ी - स्त्री० [सं०] गुड़ से बनायी हुई शराब; एक रागिनी; काव्य-नाटककी तीन रचना-रीतियों में से एक । गौण - वि० [सं०] अप्रधान; महत्त्व में दूसरे दरजेका । गौणी - वि०स्त्री० [सं०] गुण-संबंधिनी; अप्रधान ।-लक्षणास्त्री० लक्षणाका एक भेद (सा० ) ।
गौतम - पु० [सं०] गोतमका वंशज; न्यायशास्त्र के प्रवर्तक अक्षपाद ऋषिः एक ऋषि (अहल्या के पति); बुद्धदेव । गौतमी - स्त्री० [सं०] अहल्या; द्रोणाचार्यकी पत्नी; गोदा
वरी नदी; दुर्गा |
गौन * - पु० गमन; गौना । वि० चंचल |
गौनहारिन - स्त्री० दे० 'गौनहारी' । गौनहारी - स्त्री० गानेका पेशा करनेवाली स्त्री । गौना- पु० विवाहके कुछ काल बाद दुलहिनका मैकेसे बिदा होकर ससुराल जाना, द्विरागमन, मुकलावा । गौर - वि० [सं०] गोरा, श्वेत; पीला; उज्ज्वल । पु० सफेद रंग पीला रंग; लाल रंग; चंद्रमा; सोना; धवका पेड़ । - वर्ण - वि० गोरे रंगवाला, गोरा । पु० गोरा रंग । गौर - पु० [अ०] सोच-विचार, चिंतन । - से ध्यान देकर,
पूर्व गौरव - पु० [सं०] गुरुता, भारीपन महत्त्व, बड़प्पन; आदर, सम्मान प्रतिष्ठा, मर्यादा; गहराई, गांभीर्य ।
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ग्रंथागारिक- पु० [सं०] ( लाइब्रेरियन) ग्रंथागार ( पुस्तकालय) में संगृहीत ग्रंथोंकी अभिरक्षा तथा उनके आदान-प्रदान, संग्रहादिकी व्यवस्था करनेवाला व्यक्ति । ग्रंथावलि, ग्रंथावली - स्त्री० [सं०] ग्रंथमाला । ग्रंथावलोकन - पु० [सं०] पुस्तकाध्ययन ।
ग्रंथि - स्त्री० [सं०] गांठ, गिरह, गुठली; गुत्थी; अंगांका जोड़; शरीर के अंदरकी गाँठें जिनसे रस निकलता है; (ला०) माया-पाश | -च्छेदक- पु० गिरहकट । दूर्वास्त्री० गाडर दूव । - पर्णो- स्त्री० ग्रंथिदूर्वा । -भेद, - मोचक - पु० गिरहकट ।
ग्रंथिल - वि० [सं०] गाँठदार | पु० पिपरामूल; अदरक; विकंकत वृक्ष; करीर; चोरक नामक गंधद्रव्य; चौराईका साग; विकंटक वृक्ष; पिंडालू ।
ग्रंथी (थिन्) - वि० [सं०] जिसके पास बहुतसे ग्रंथ हों; जिसने बहुत से ग्रंथ पढ़े हों, विद्वान् । पु० ग्रंथकर्ता; ग्रंथका पाठ करनेवाला |
ग्रंस* - पु० कुटिलता, छलछिद्र ।
ग्रथित - वि० [सं०] गूंथा हुआ; इकट्ठा बाँधा हुआ; रचित । ग्रसन - पु० [सं०] भक्षण, निगलना; पकड़ना; जकड़ना । ग्रसना - स० क्रि० पकड़ना; ग्रास करना; सताना । ग्रसित - वि० दे० 'ग्रस्त' |
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ग्रस्त-घंघोलना अस्त-वि० [सं०] असा हुआ, पकड़ा, निगला हुआ पीड़ित। काव्यका एक दोष, जहाँ ग्राम्य शब्दोंका प्राधान्य हो; ग्रस्तास्त-पु० [सं०] सूर्य या चंद्रमाका ग्रहण लगे हुए अशिष्ट, अश्लील शब्द । -दोष-पु. काव्य या रचनामें ही अस्त हो जाना।
गँवारू शब्द अधिक आना । -धर्म-पु० मैथुन । प्रस्तोदय-पु० [सं०] सूर्य या चंद्रमाका ग्रहण लगे हुए ही | ग्राव*-पु० दे० 'ग्रावा', ओला । उदय होना।
ग्रावा(वन्)-पु० [सं०] पत्थर, पहाड़ बादल । ग्रह-पु० [सं०] सूर्यकी परिक्रमा करनेवाला तारा; सौर-| ग्रास-पु०[सं०] कौर, निवाला आहार निगलना: ग्रसना; मंडलके ९ प्रधान तारों-सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, आहार चंद्र या सूर्यका ग्रस्तांश; ग्रहण । शनि, राहु और केतु-मेंसे कोई एक नौकी संख्या: ग्रहण; ग्रासना*-स० कि० दे० 'ग्रसना'। प्राप्ति ; पकड़; चोरी । -दशा-स्त्री० जन्मराशिकी दृष्टि से ग्राह-पु० [सं०] ग्रहण; पकड़ा आग्रह; मगर, घड़ियाल । ग्रहोंकी स्थिति; उनका शुभ या अशुभ फलदायक होना; / ग्राहक-वि० [सं०] ग्रहण करनेवाला; लेनेवाला; मलबुरे दिन, विपत्काल ।-दोष-पु० ग्रह-विशेषकी अशुभ, रोधक । पु० गाहक, खरीदार । -यंत्र-पु० (रिसीव्हर) अरिष्टकारक दृष्टि । -नायक-पु० सूर्य; शनि । -पति- टेलीफोन, रेडियो या तारकी वाणी अथवा ध्वनि ग्रहण पु० सूर्य; चंद्रआक । -पीडन-पु०,-पीडा-स्त्री० करनेवाला यंत्र-वह यंत्र या यंत्रका भाग जिसकी सहाग्रहजनित पीडा, ग्रहबाधा । -मैत्री-स्त्री० वर-कन्याके यतासे दूरकी वाणी अथवा ध्वनि सुनाई दे सके । ग्रहस्वामियोंका परस्पर मित्र या अनुकूल होना ।-योग- ग्राहकांग-पु० [सं०] (रिसीव्हर) दे० 'ग्राहक-यंत्र'। पु० राशि-विशेषके एक ही अंशपर दो ग्रहोंका आ जाना। ग्राही(हिन्)-वि० [सं०] ग्रहण करनेवाला; पकड़ने -वेध-पु० ग्रहोंकी स्थितिका ज्ञान प्राप्त करना। वाला; कब्ज करनेवाला। -शांति-स्त्री. जप, पूजन आदिके द्वारा ग्रहदोषकी | ग्राह्य-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य पकड़ने, लेने, समनिवृत्तिका उपाय किया जाना ।
झने योग्य; मान्य । ग्रहण-पु० [सं०] पकड़नेकी क्रिया, पकड़ा लेना, स्वीकार; ग्रीखम*-पु० दे० 'ग्रीष्म'। प्राप्ति; धारण; समझना, अर्थबोध; ग्रह-विशेषका दूसरे ग्रीवा-स्त्री० [सं०] गरदन, गला । ग्रहकी छायासे कुछ कालके लिए छिप जाना; सूर्य और ग्रीषम*-पु० दे० 'ग्रीष्म' । पृथ्वीके बीच में चंद्रमाका या सूर्य और चंद्रमाके बीचमें ग्रीष्म-पु०[सं०] गरमीका मौसम,गरमी, निदाघ ।-कालपृथ्वीका आ जाना।
पु० गरमीके दिन । -कालीन-वि० ग्रीष्म ऋतु-संबंधी। ग्रहणीय-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य ।
ग्रेह-पु० गेह। ग्रहीता(त)-वि०, पु० [सं०] ग्रहण करनेवाला ग्राहका ग्रेही*-वि० संसारी। कर्ज लेनेवाला; निरीक्षण करनेवाला ।
प्रैव, अवेय, अवेयक-वि० [सं०] गला-संबंधी । पु० हार, मांडील-वि० बड़े डील-डौलका ।
हाथीके गले में पहनायी जानेवाली शृंखला। ग्राम-पु० [सं०] बस्ती; गाँव; जाति; समूह; एक षडजसे | ग्रंष्म, प्मिक-वि० [सं०] ग्रीष्म-संबंधी । दूसरे षट्जतकका स्वर-समूह, स्वर-सप्तक । -कंटक-पु० ! ग्लपित-वि० [सं०] क्लांत; शिथिल । वह जो ग्राममें झगड़े-बखेड़े उठाता है, ग्रामद्रोही। ग्लानि-स्त्री० [सं०] थकावट, शिथिलता; अपने किसी कार्य-णी-पु० गाँवका मुखिया; हज्जाम ।-देव-देवता- पर उत्पन्न खेद, पश्चात्ताप; अनुत्साह; एक संचारी भाव । पु० गाँवका अधिष्ठाता, गाँवकी रक्षा करनेवाला, देवता ।। ग्वार-स्त्री० कुलथी। * पु० ग्वाल । -द्रोही(हिन्)-पु० ग्रामके नियमका भंग, ग्राम | ग्वारनट-पु० एक बढ़िया रेशमी कपड़ा। पंचायतके निर्णयका उल्लंघन करनेवाल।। -पंचायत- ग्वारपाठा-पु० घीकुआर । स्त्री० [हिं०] गाँवके झगड़े सुनने और स्वास्थ्य, सफाई | ग्वारिन-स्त्री० दे० 'ग्वार'; दे० 'ग्वालिन'। आदिका प्रबंध करनेवाला मंडल । -मृग-पु० कुत्ता। ग्वाल-बाल-पु० अहीरोंके लड़के, कृष्णके बालसखा । -वासी(सिन)-पु० गाँवमें बसनेवाला, देहाती। | ग्वाला-पु० गोप, अहीर; एक छंद । -सिंह-पु० कुत्ता। -सुधार-पु० [हिं०] ग्रामके ग्वालिन-स्त्री० अहीरिन; एक बरसाती कीड़ा; एक तरकारी । संपूर्ण जीवनको सुधारनेका काम ।
ग्वैठना-स० क्रि० ऐंठना, मरोड़ना, टेढ़ा करना । ग्रामांत-पु० [सं०] गाँवकी सीमा, सिवाना ।
ग्वै ठा-पु० उपला । * वि० ऐंठा हुआ, टेढ़ा। . ग्रामीण-वि० [सं०] ग्राम-संबंधी; गँवार, देहाती। पु० | ग्वैड*--स्त्री०सीमा-'सुंदरताकी बैंड ऐंड्सों पैड़ चलैया'ग्रामवासी।
(रत्नाकर )। ग्राम्य-वि० [सं०] ग्राम-संबंधी; ग्रामीण; मूर्ख, अनाड़ी; | ग्वैडा-पु० दे० 'गोड़ा' । असभ्य, अशिष्ट; अश्लील (शब्द); पालतू (पशु)। पु० ग्वै ।-अ० निकट, पास ।
घ-कवर्गका चौथा वर्ण। उच्चारण स्थान जिह्वा-मूल या कंठ। घंघरी-स्त्री० दे० 'घधरी' । धुंधरा-पु० दे० 'धधरा'।
घंघो(र)लना-स० क्रि० पानीको हिलाकर उसमें मिट्टी
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घंट- घड़ियाली
आदि घोलना; पानीको गंदा करना ।
घंट- पु० प्रेतक्रिया में पीपलसे लटकाया जानेवाला घड़ा;घंटा । घंटा - पु० [सं०] काँसेका गोल पट्ट जिसे मुँगरीसे पीटकर पूजनमें या समयकी सूचना के लिए बजाते हैं, घड़ियाल; मंदिरों आदि में लगाया जानेवाला काँसेका लंगरदार बाजा जो लंगर हिलानेसे बजता है; घंटा बजनेका शब्द; [हिं०] ६० मिनट या २ || घड़ीका काल-मान; ठेंगा; कुछ नहीं । - घर - पु० ऊँची मीनार जिसमें इतनी ऊँचाईपर धरमघड़ी लगी हो कि बहुत दूरसे दिखाई दे । - पथ - पु० राजमार्ग, चौड़ी सड़क । -रव, - स्वर - पु० घंटेका शब्द | - वादक - पु० घंटा बजानेवाला ।
घंटिका - स्त्री० [सं०] छोटी घंटी; घुँघरू; उपजिह्वा । घंटी - स्त्री० बहुत छोटा घंटा; घुँघरू; घंटी की आवाज; जीभकी जड़के ऊपर लटकनेवाला मांसखंड, कौआ; गलेकी वह छोटी हड्डी जो आगेकी ओर निकली रहती है; लुटिया । घई * - स्त्री० भँवर; प्रवाह; थूनी । वि० बहुत गहरा । घघरा - पु० स्त्रियोंका एक पहनावा, लहँगा । घघरी - स्त्री० छोटा लहँगा ।
घट-पु० [सं०] घड़ा, कलसा; पिंड, देह; कुंभ राशि; हृदय, अंतर; कुंभक; हाथीका कुंभ; २० द्रोणकी तौल; किनारा । - कर्ण - पु० कुंभकर्ण । कर्पूर- पु० एक कवि जो विक्रमादित्य की सभा के नवरलों में थे; ठीकरा । -कारपु० कुम्हार । - ज, - योनि, - संभव - पु० अगस्त्य । -स्थापन - पु० पूजनमें किसी देवताके आवाहनार्थ घटकी
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घटा - स्त्री०जलभरे काले बादलोंका समूह, मेघमाला; [सं०] युद्ध आदि के लिए एकत्र हाथियोंका समूह । घटाई * *- स्त्री० अप्रतिष्ठा, मानहानि ।
घटाटोप - पु० [सं०] गाड़ी, पालकी आदिका ओहार जो उसे पूरी तरह ढक ले; कोई ढक लेनेवाली वस्तु, सामान; घनघटा, आडंबर |
घटाना - स० क्रि० कम करना; बाकी निकालना; मानप्रतिष्ठा में गिराना ।
घटाव - पु० घटी, कमी; अवनति; बाढ़का घटना । घटिका - स्त्री० [सं०] २४ मिनटका समय, घटी; छोटा घड़ा; एक छोटा घड़ा जिससे दिनकी घड़ियाँ मालूम की जाती थीं । - यंत्र - पु० दे० 'घटीयंत्र' |
घटित - वि० [सं०] जो हुआ हो; जोड़ा, मिलाया हुआ; जो ठीक उतरा हो; रचित । घटिताई * - स्त्री० कमी, त्रुटि ।
घटिया - वि० जो बढ़िया न हो, खराब, निकृष्ट । घटिहा - वि० धोखा देनेवाला, विश्वासघाती; नीच; मक्कार । घटी - स्त्री० [सं०] २४ मिनटका काल-मान, घड़ी; छोटा घड़ा, कलसी; रहँटकी घड़िया; समय जानने के लिए काम में लाया जानेवाला जलपात्र । यंत्र - पु० घड़ी, कालज्ञापक यंत्र; रहँट |
घटी - स्त्री० कमी; घाटा, नुकसान । घटूका * - पु० घटोत्कच ।
घटोत्कच - पु० [सं०] हिडिंबासे उत्पन्न भीमसेनका पुत्र । घटोद्भव - पु० [सं०] अगस्त्य मुनि । घटोर* - पु० मेढ़ा ।
घट्ट - पु० [सं०] घाट; चुंगी या महसूल लेनेकी जगह । -कर- पु० ( फेरी टॉल) नाव द्वारा या पुलपरसे नदी पार करने या सामान ले जाने आदि के कारण घाटपर लगनेवाला कर | - कुटी - स्त्री० चुंगीकी चौकी । -जीवी (विन्) - ५० घाटके महसूल या घटहा नावके खेवेसे गुजर करनेवाला |
स्थापना ।
घटबढ़ - स्त्री० कमी - बेशी । वि० कम-ज्यादा । घटक - वि० [सं०] करानेवाला, साधक; मिलानेवाला, योजक । पु० ब्याह तै करानेवाला, बिचुआ, दलाल; अवयव-भूत वस्तु; वंशावली सुनानेवाला; घड़ा | घटकना * - स० क्रि० पीना, गलेके नीचे उतारना । घटका - पु० आसन्नमरण व्यक्तिकी साँसका रुक-रुककर चलना, कफसे गलेका रुद्ध हो जाना (लगना) । घटती-स्त्री० कमी; अवनति; हेठी, अप्रतिष्ठा । घटन - पु० [सं०] होना, बनना; मिलाना, जोड़ना; गढ़ना । घटना - अ० क्रि० घटित होना; लगना- 'सपने नृपकहँ घटे विप्रवध'- विनय०; उक्ति या वचनका यथार्थं सिद्ध होना; काम आना; कम होना, छीजना; तौलमें कम होना; (किसी चीज की कमी होना । स्त्री० [सं०] जो बात हो या घटित हो, व्यापार, वाकिया; रचना; योजना; अचानक होनेवाली बात, हादिसा; समूहीकरण; गजदल । -क्रम, -चक्र- पु० घटनाओंका सिलसिला । घटनावली - स्त्री० [सं०] घटनाओंका सिलसिला, समूह । घटवाई* - वि० घाटवाला; रुकावट डालनेवाला - 'आवन जान न पावत को तुम मगमें घटवाई' - सू० । घटवाना - स० क्रि० 'घटना'का प्रेरणार्थक ।
।
घट्टा - पु० लगातार रगड़ लगने से शरीरपर पड़नेवाला चिह्न | मु०-पड़ना - आदत पड़ना, अभ्यास होना । घड़घढ़ाना-अ० क्रि० घड़-घड़ आवाज होना, निकलना । घड़घड़ाहट - स्त्री० घड़-घड़ शब्द ।
घढ़नई - स्त्री० बाँसके ढाँचे में घड़े बाँधकर बनायी हुई काम
चलाऊ नाव |
घड़ना-स० क्रि० गढ़ना । घड़नैल-स्त्री० दे० 'घड़नई' |
घड़ा - पु० मिट्टी या धातुका, पानी रखनेका बरतन, कलसा । मु०-घड़ों पानी पढ़ जाना-बहुत लज्जित होना । घड़ाना - स० क्रि० दे० 'गढ़ाना' ।
घड़िया - स्त्री० मिट्टीका बना घड़के आकारका छोटा बरतन, कुल्हिया, सोना-चाँदी गलानेकी घरिया ।
घटवार - पु०घाटका ठेकेदारघाटकी नाव खेनेवाला; घाटिया । | घड़ियाल ५० घंटा, पहर आदि बतानेके लिए बजाया घटवारि (लि) या - पु० घाटिया; केवट ।
घटवाह - पु० घाटका ठेकेदार, घाटका महसूल लेनेवाला । घटert - पु० घाटका ठेकेदार; आर-पार जाने-आनेवाली
नाव |
जानेवाला घंटा; एक हिंसक जलजंतु, ग्राह । -का कटोरा - एक तरहका कटोरा जिससे घड़ीका काम लेते थे । घड़ियाली - पु० घड़ियाल बजानेवाला । स्त्री० पूजा के समय बजानेका एक तरहका घंटा, झालर ।
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घड़ी-घरघड़ी-स्त्री० ६० पल या २४ मिनटका कालमान, घटी, घनिष्ठता-स्त्री० [सं०] घनिष्ठ होनेका भाव; गहरी दोस्ती। दंड; समय, वक्त; अवसर, घड़ी, घंटा बतानेवाला यंत्र ।। घनीभूत-वि० [सं०] गाढ़ा; ठोस बना हुआ; केंद्रीभूत । -घड़ी-अ० बार-बार; थोड़ी-थोड़ी देर बाद । -भर- -खाद्य-पु० (कंडेंस्ट फूट) दबाकर छोटा या गाढ़ा अ० थोड़ी देर, क्षणभर । -साज-पु० घड़ीकी सफाई, किया हुआ खाद्य-पदार्थ । मरम्मत करनेवाला । -साज़ी-स्त्री० घड़ीसाजका काम, | धनेरा*-वि० बहुत, अतिशय, बहुसंख्यक । पेशा। मु. (घड़ियाँ)गिनना-बड़ी उत्कंठाके साथ घपची-स्त्री० दोनों हाथोंसे कसकर पकड़ लेना। प्रतीक्षा करना; आसन्नमरण होना । घड़ी टलना- घपला-पु० गड़बड़, गोलमाल । किसी बातका नियत काल, मुहूर्त टलना ।-में घड़ियाल घपुआ, घप्पू-वि० मूर्ख, उल्लू । है-जिंदगीका भरोसा नहीं, छनभरमें न जाने क्या घबड़ाना-अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'घबराना। हो जाय।
घबड़ाहट-स्त्री० दे० 'घबराहट' । घड़ीदिआ-पु० मृत व्यक्तिके घर मृत्युके स्थानपर दस | घबराना-अ० क्रि० अधीर होना; भय, चितासे अस्थिर, दिनोंतक रखा जानेवाला घड़ा और दिया।
उद्विग्न होना; बुद्धिसे काम न लेना; हक्काबक्का होना; घडीची-स्त्री० घड़ा रखनेका चबूतरा या तिपाई । उतावलीमें होना । स० क्रि० अस्थिर, अधीर करना; परेघण*-पु० दे० 'धन'।
शान करना; रवाना; हड़बड़ीमें डालना। घतिया-पु० घाती, धोखा देनेवाला ।
घबराहट-स्त्री० अधीरता, उद्विग्नता; परेशानी; हड़बड़ी। घतियाना-स० कि० घातमें लाना; छिपाना ।
घमंका-पु० चूसा, मुक्का । घन-वि० [सं०] घना, ठम; गझिन; ठोस; निविड़; दृढ़ घमंड-पु० गर्व, दर्प; शेखी; भरोसा, सहारा। गंभीर; निरंतर; पूर्ण; विशाल । पु० मेघ; लुहारका घमंडी-वि० घमंड करनेवाला, मगरूर शेखीबाज । . बड़ा हथौड़ा; किसी अंकको उसी अंकसे दो बार गुणा घमक-स्त्री० घुसा इत्यादिके प्रहारका शब्द; चोट । करनेसे उपलब्ध गुणनफल (क्यूब); लंबाई-चौड़ाई-मोटाई, घमकना-स० कि० सा मारना। * अ० क्रि० गरजना, विस्तार; दृढ़ता; घनत्व; धातुका बना झाँझ-करताल जैसा घहराना। एक बाज; घंटा; शरीर; * कपूर । -घटा-स्त्री० [हिं०] | घमका-पु० दे० 'घमाका'; ऊमस-'होत घमका विषम बादलोंका जमाव, गहरी काली घटा । -घोर-वि० बहुत | यों न पातु खरकतु है'-सेना। घना; जबर्दस्त; गहरा डरावना। पु० डरावनी गड़गड़ाहट, | घमखोरी-वि० घाम सह सकनेवाला । आवाज।-चक्कर-वि० [हिं०] मूर्ख, अस्थिरमति, आवारा- | घमघमाना-स० क्रि० लगातार से मारना । अ० क्रि० गर्द । पु०एक आतिशबाजी, चरखी; मूर्ख व्यक्ति ।-नाद- 'घम-धम' शब्द होना। पु० मेघगर्जन मेघनाद । -प्रिय-पु० मोर । -फल- घमर-पु० नगाड़े आदिकी आवाज, गंभीर ध्वनि। पु० लंबाई-चौड़ाई-मोटाईका गुणनफल । -बान-पु० घमरा-पु. मैंगरा, भुंगराज । [हिं०] बादल फैला देनेवाला बाण ।-बेल*-वि० जिस- | घमस-स्त्री० दे० 'घमसा'। पर घने बेल-बूटे बने हों। -मूल-पु० धन राशिका | घमसा-पु० ऊमस घनापन, आधिक्य । मूल अंक। -रव-पु० मेघगर्जन। -वर्धनीय-वि० घमसान-पु० घोर युद्ध, भयानकमारकाट (होना मचना)। (मैलियेबिल) (घनसे) पीटनेपर जो चपटा होकर बढ़ | वि० घोर । -की लड़ाई-घोर युद्ध, विकट संग्राम । जाय ।-वर्धनीयता-स्त्री० मैलियेबिलिटी) किसी ठोसका | धमाका-पु० घूसे या और किसी भारी आपातका शब्द । पीटनेपर चपटा होकर बढ़ जानेका गुण । -श्याम-वि० घमाघम-स्त्री० 'घम-घम'की आवाज घमाका । अ० 'घमजलभरे बादल जैसा काला । पु० कालो बादल; कृष्ण । | घम'के साथ । -सार-पु० जल; कपूर ।
घमानाt-अ० क्रि० धूप खाना; धूपकी गरमीसे पकना, घनक*-स्त्री० गर्जन, गड़गड़ाहट; चोट, प्रहार ।
पीला हो जाना। घनकना-अ० क्रि० गरजना, आवाज करना ।
घमायल-वि० घामसे पका हुआ घाम खाया हुआ। घनकारा-वि० ऊँची आवाज करनेवाला, गरजनेवाला । | घमासान-पु० दे० 'घमसान' । घनघनाना-अक्रि० घन-धन की आवाजहोना, निकलना। घमीला-वि० घाम खाया हुआ; घामसे मरझाया हआ। घनघनाहट-स्त्री० 'धनधन'की आवाज ।
घमोय-पु० भड़माँड़, सत्यानासी। घनता-स्त्री०, घनत्व-पु० [सं०] घनापन; ठोसपना | घमोरी-स्त्री० अम्होरी, पसीना मरनेसे उत्पन्न फंसियाँ। दृढ़ता; लंबाई, चौड़ाई और मोटाईका भाव ।
घर-पु० [सं०] आदमीके रहनेकी जगह, आवास, दीवारसे घनांत-पु० [सं०] शरद् ऋतु ।
घिरा और छाया हुआ स्थान, मकान; [हिं०] कमरा घना-वि० गुजान, जिसके अवयव पास-पास सटे हों (जंगल, स्थान, ठिकाना; पैतृक वासस्थान; स्वदेश, वतन; कुल, बाल); रुस, गाढ़ा; * बहुत अधिक, अतिशय; दृढ़ । * पु०
घराना कार्यालय (तारघर); उत्पत्तिस्थान; जहाँ किसी जंगल, पेड़ोंका समूह ।
चीजकी बहुतायत हो; वह स्थान जहाँ घरका-सा आराम, घनाकर, घनागम-पु० [सं०] वर्षा ऋतु ।
सुपास मिले; कोठा, खाना (चौसर, संदूक, शतरंज आदि घनाक्षरी-स्त्री० दंडक छंद, कवित्त ।
का); म्यान, कोश; जन्मकुंडली में ग्रहविशेषका स्थानः घनिष्ठ-वि० [सं०] बहुत धना; गाढ़ा; गहरा; अंतरंग। । चौखटा, फ्रेम, किसी चीजके जड़ने, बैठानेका स्थानः टेट
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घर-घर्राटा
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रागका स्थान; घरका माल-असबाब, घर-बार; घरका काम- -बिगाड़ना-घरको बिगाड़ना, बर्बादीकी ओर ले जाना; काज, गृहस्थी; चोट मारनेका स्थान; आँखका गोलक; घरमें फूट डालना । -बेचिराग़ हो जाना-कोई नामदाँव। -का-वि० अपने घरका, कुटुंबका (आदमी); लेवा न रह जाना। -बैठना-बाहर निकलना बंद कर अपना, निजका; आपसका। -गिरस्ती,-गृहस्थी- देना; एकांतवासी होना; नौकरी छोड़ देना; (वर्षासे) स्त्री० घरका काम-काज । -घाल,-घालन-वि० घर मकानका ढह जाना । (किसीके)-बैठना-किसीकी घालने, बिगाड़नेवाला । -घुसड़ा,-घुसना-वि० जो पत्नी या रखेली बनना । -बैठी रोटी-घर बैठे सदा घरमें घुसा, जनानखानेमें बैठा रहे । -जवाई- मिलनेवाली रोजी, पेंशन । -भरना-घरका धन-जनसे पु. वह दामाद जिसे सास-ससुर अपने घर रख लें। भरा होना; घरको धन-धान्यसे भरना; धन जोड़ना; माल -जाया-पु० गुलाम, गृहदास । -जोत-स्त्री० निजकी जमा करना। -भाँय-भाँय करना-सूनेपनके कारण खेती, खुदकाश्त । -दासी-स्त्री० गृहिणी, पत्नी । घरका डरावना लगना ।-में-पत्नी या पति (बो०)।-में -द्वार-पु० घर, वासस्थान; घरकी चीज-वस्तु, माल- डालना-रखेली बना लेना। -सिरपर उठा लेनाअसबाब; गृहस्थी । -फोड़नी-वि० स्त्री० घरमें झगड़ा बहुत शोर, ऊधम मचाना। -से-पाससे, गाँठसे । लगानेवाली । -फोरी*-वि० दे० 'घरफोड़नी'। -बसा -सेना-बेकार बैठे रहना ।-से पाँव निकालना-कुल-वि० दे० 'घर-घुसना' । पु० उपपति । -बसी-स्त्री० मर्यादाका अतिक्रमण करना, स्वच्छंदाचारी हो जाना। उपपत्नी । वि० स्त्री० सौभाग्यवती; घर बसानेवाली; घरका घरघराना-अ० क्रि० 'घर-घर'की आवाज निकलना । नाश करनेवाली (व्यंग्य)। -बार-पु० घर, वासस्थान; घरघराहट-स्त्री० 'घर-घर'की आवाज; गले में कफ होनेपर गृहस्थी; बाल-बच्चे घरकी चीज-वस्तु, माल-असबाब । साँस लेने में होनेवाली आवाज । -बारी-पु० बाल-बच्चोंवाला, गृहस्थ । -बैठे-अ० बिना घरणी-स्त्री० [सं०] दे० 'घरनी' । काम किये। -वात*-स्त्री० घरका सामान, चीज-वस्तु । घरनाल-स्त्री० एक तरहकी पुरानी तोप । -वाला-पु० गृहस्वामी, पति । -वाली-स्त्री० गृह- घरनी-स्त्री० गृहिणी, पत्नी। स्वामिनी, पत्नी । -हाई*-वि. स्त्री० घर में कलह | घरम-पु० दे० 'धर्म'। -कर-पु० सूर्य । कराने, घर बिगाड़नेवाली । मु०-आबाद होना-दे० घरयार*-पु० दे० 'घड़ियाल'। 'घर बसना'। -उजड़ना-घरका तबाह होना, घरके | घररना-अ० क्रि० रगड़ खाना, घिसना । धन-जनका नाश होना। -करना-अपने लिए जंगह घरसा*-पु० दे० 'घिस्सा'। निकालना; बसना; घर बनाना । -का अच्छा-खुश- घरा*-पु० दे० 'घड़ा'। हाल । -का आँगन हो जाना-खंडहर हो जाना घराऊ-वि० घरू, घरेलू । संतान उत्पन्न होना । -का उजाला-घरभरका प्यारा, घराती-पु० कन्यापक्षका आदमी, 'बराती'का उलटा । बहुत सुंदर ( बेटा); घरकी समृद्धिका कारण । -का काटे घराना-पु० कुल, वंश । खाना-घरका भयानक लगना । -का चिराग़-दे० घरिआ(या)री-पु० दे० 'घड़ियाल'। 'घरका उजाला'। -का न घाटका-जो कहींका न हो; घरिया-स्त्री० दे० 'घड़िया' । निकम्मा । -का बोझ उठाना,-सँभालना-घरका | घरियाना -स० क्रि० घरी लगाना, तह करना। काम-काज देखना, घर-बार सँभालना। -का भेदिया,- | घरियारी*-पु० घंटा बजानेवाला । का भेदी-धरके सब भेद जाननेवाला । -का मर्द,- | घरी-स्त्री० दे० 'घड़ी'; छोटा घड़ा; घड़िया; तह, लपेट । का शेर-जो घरमें ही बहादुरी दिखा सके, गेहेशूर । घरीक*-अ० घडीभर, छनभर । -की खेती-अपने यहाँ पैदा होनेवाली चीज; अपना घरुआ(वा) -पु० घरका अच्छा प्रबंध; चश्मा आदि माल । -की बात-घरका मामला; स्वजनोंसे संबंध | रखनेका डिब्बा। रखनेवाली बात; घरका भेद । -की मुर्गी दाल बराबर-घरू-वि० घरका, खानगी । घरकी अच्छी चीजकी भी कद्र नहीं होती। -के घर | घरेलू-वि० घरका; घरसे संबंध रखनेवाला; पालतू । रहना-किसी सौदे या रोजगारमें न घाटा होना, न घरैया-पु० स्वजन । वि० घरका; घनिष्ठ संबंधवाला। नफा । -के लोग-कुटुंबी; स्त्री-बच्चे । -घरका हो घरौंदा(धा)-पु० खेलनेके लिए बच्चोंका बनाया हुआ जाना-तितर-बितर हो जाना, मारे-मारे फिरना । मिट्टीका नन्हासा घर । -घालना-घर बिगाड़ना; घरकी प्रतिष्ठा नष्ट करना। | घरौना-पु० घर घरौंदा । -जमना-गृहस्थी ठीक होना। -डूबना-घर तबाह धर्म-पु० [सं०] धूप, घाम; ग्रीष्मकाल; पसीना; पतीली । होना । -तक पहुँचना-बाप-दादा बखानना; माँ- | | -चर्चिका,-विचर्चिका-स्त्री० घमौरी, अम्हौरी । बहिनकी गाली देना। ख लेना-बार-बार कुछ माँगने -जल,-वारि-पु० पसीना। -विंद-पु० श्रमसीकर । आना, परच जाना। -फूंक तमाशा देखना-घरको | घात-पु० [सं०] वर्षा ऋतुका आरंभ; वर्षाकाल । बरबाद कर, घरकी दौलत लुटाकर, मौज करना। घमाबु-पु० [सं०] पसीना। -फोड़ना-घरमें फूट डालना, झगड़ा लगाना ।-बसना घाशु-पु० [सं०] सूर्य। -घरका आबाद होना; घरमें स्त्रीका आना, ब्याह होना। घर्मोदक-पु० [सं०] पसीना। -बसाना-घरको आबाद कराना; शादी करा देना। घर्राटा-पु० खर्राटा (भरना)।
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घर्षक-पाल घर्षक-पु० [सं०] घिसनेवाला; पालिश करनेवाला। जानेका रास्ता; पहाड़; नाव या पुलकी उतराई, महसूल घर्षण-पु० [सं०] घिसना, रगड़ना; माँजना पीसना । ओर, तरफ; तलवारका बाढ़से ऊपरका भागः रंग-ढंग, घलना-अ० कि० मारा, फेंका जाना (तीर आदिका); चाल-ढाल । * वि० न्यून, कम, थोड़ा। + स्त्री० कपट; मार-पीट हो जाना।
कुकर्म । -कपतान-पु० बंदरगाहका बड़ा अफसर । घलाघल(ली)*-स्त्री० परस्पर आघात, मारपीट । -बंदी-स्त्री० नाव खोलनेकी मनाही। -वाल-पु० घलुआ-पु० घाल, घाता।
घाटिया, गंगापुत्र । मु०-घाटका पानी पीना-जगहघवद*-स्त्री० दे० 'घौद'।
जगह फिरना, भटकना; बहुतेरेकी बीबी बनना ।-धरनाघवरि*-स्त्री० दे० 'घौर'।
राह वेंकना । -नहाना-जिस घाट या तालाब आदिपर घसकना -अ० क्रि० खिसकना।
प्रेतकर्म किया जा रहा हो वहाँ नहाकर तिलांजलि देना। घसखुदा-पु० घास छीलनेवाला ।
-मारना-घाटका महसूल, उतराई न देना । घसना-स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'घिसना'।
घाटा-पु० टोटा, घटी, नुकसान ।-()का आयव्ययकघसिटना-अ०क्रि० घसीटा जाना।
पु० (डेफिसिट बजट) बह आयव्ययक जिसमें आयसे व्यय घसियारा-पु० घास खोदने, बेचनेवाला; तुच्छ आदमी।। अधिक दिखाया गया हो। घसियारिन, घसियारी-स्त्री० घास खोदने, बेचनेवाली स्त्री। | घाटारोह*--पु० बाटका अवरोध, घाटबंदी, घाटसे किसीघसीट-स्त्री० घसीटनेका भाव; जल्दी में लिखे हुए अक्षर को उतरने न देना। जिनकी शुद्धि और सुंदरताका खयान न रखा गया हो, घाटि*-वि० कम, न्यून । स्त्री० नीच कर्म; बुराई; कपट । शिकस्त लिखावट ।
घाटिया-पु० घाटपर बैठकर दान लेनेवाला ब्राह्मण । घसीटना-स० कि० किसी चीजको इस तरह खींचना कि घाटी-स्त्री० दो पहाड़ोंके बीचकी नीची जमीन, मैदान; वह जमीनसे रगड़ खाती हुई खिंचे किसीको किसी मामले दर्रा पहाड़का ढाल । -मार्ग-पु० (गॉर्ज) पहाड़ियोंके में उसकी इच्छाके विरुद्ध शामिल करना; जल्दी-जल्दी, बीचमें नदीकी धारा आदि द्वारा बनाया हुआ संकीर्ण पथ । घसीट लिखावट लिखना।।
घात-पु० [सं०] चोट, आघात,प्रहार; वध, हत्या; अहित; घहनाना-अ० क्रि० दे० 'घहराना।
गुणनफल; * टक्कर। घहरना-अ० कि० दे० 'घहराना।
घात-स्त्री० कार्यसिद्धिका अच्छा अवसर, ताक; दाँव-पेंच घहराना-अ० क्रि० गरजना, गड़गड़ाना ।
छल; चाल ।मु०-पर चढ़ना-में आना-बशमें आना, घहरानि*-स्त्री० घहरानेका भाव; गर्जन; गंभीर ध्वनि । दाँव पर चढ़ना। -में फिरना-ताकमें घूमना। -में घहरारा*-पु० धहरानेकी ध्वनि,गर्जन । वि० गरजनेवाला। बैठना-आक्रमण आदि करनेके लिए छिपकर बैठना । घहरारी*-स्त्री० दे० 'घहरानि'।
-में रहना-किसीके खिलाफ कोई काम करनेका मौका घाँ*-स्त्री० ओर, तरफ, दिशा।
ढूँढ़ते रहना । -लगना-अच्छा मौका मिलना । घाँघरा-पु. लहँगा; बोड़ा, लोबिया ।
-लगाना-ताकमें बैठना; आक्रमण आदिके अवसरकी घाँघरी-स्त्री० दे० 'घाँघरा'।
खोजमें रहना। घाँटी-स्त्री० गलेके अंदरकी घंटी, कौआ।
घातक-वि० [सं०] घात करनेवाला; कतल करनेवाला, घाँह, घाँही*-स्त्री० ओर, तरफ ।
हत्यारा हानिकर । पु० घात करनेवाला व्यक्ति । घा*-स्त्री० ओर, तरफ ।
घातकी-वि० दे० 'घातक' । घाइ -स्त्री० दे० 'धाव' ।
घाता-पु० घलुआ, घाल। घाइल*-वि० दे० 'घायल' ।
घाती(तिन्)-वि० [सं०] घात करनेवाला; नाशक । धाई *-स्त्री० ओर, तरफ; दो वस्तुओंके बीचकी जगह, घाती-वि० घातमें रहनेवाला; छली, विश्वासघाती। संधि; भँवर, बार, दफा ।
घान-पु० उतना अनाज जितना एक बार पीसने के लिए घाई-स्त्री० दो उँगलियोंके बीचकी जगह, अंटी; * धोखा; चक्की में डाला जाय, उतना तेलहन जितना एक बार दे० 'धाव'।
कोल्हू में डाला जाय; उतनी चीज जितनी एक बार भाड़घाउ*-पु० दे० 'घाव' ।
में भूनी या कड़ाहमें एक बार छानी जाय; आघात, चोट । घाउघप-वि० दूसरेका माल-जमा चुपचाप डकार जाने- घाना*-स० कि० मारना; नष्ट करना; पकड़ना । पु० वाला; जिसका भेद जल्दी न खुले, भारी चंट । | प्रहार युद्ध । घाघ-पु० भोजपुरी बोलीके एक कवि जिनकी कृषिकर्म, घानी-स्त्री० घान; ढेर । नीति आदि विषयकी कहावतें बहुत प्रसिद्ध है; बहुत | घाम-पु० धूप; पसीना । -निधि -पु० सूर्य । चालाक आदमी, काइयाँ; जादूगर ।
घामड़-वि० मूर्ख; आलसी; धूपका सताया हुआ (पशु)। घाघरा-पु. लहँगा । स्त्री सरयू नदी ।
घाय*-पु० दे० 'घाव। . घाट-पु० [सं०] नाव आदिसे उतरनेका स्थान; [हिं०] | घायक*-वि० नाश करनेवाला। नदी, झील आदिमें वह स्थान जहाँ लोग नहाये-धोयें, घायल-वि० जो चोट खाये हो, जख्मी, क्षतयुक्त, आहत । जानवर पानी पियें, धोबी कपड़ा धोयें; वह स्थान जहाँसे घाल-पु० ग्राहकको तौल या गिनतीके ऊपर दी जानेवाली नदी हलकर पार की जाय; पहाड़पर चढ़ने या उसके पार चीज, घलुआ । मु०-न गिनना-कुछ न समझना ।
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२२८
पालक-घुटकी घालक*-वि० मारनेवाला; नाश करनेवाला ।
घिरी-स्त्री० (पुली) (लकड़ी या) लोहेका बना हुआ पहिया घालकता*-स्त्री० विनाशका काम ।
जिसका घेरा नालीदार होता है और जो सुगमतापूर्वक घालना*-म० क्रि० नाश करना; बिगाड़ना; फेंकना; प्रहार स्वतंत्रतासे घूम सकता है, घिरनी।
करना, मारना; (हथियार) डालना, रखना करना। घिवा-पु० घी। घाल मेल-वि० गड-मड, खस्त-मस्त (करना, होना)। धिसघिस-स्त्री० देर, ढिलाई; अनिश्चय । घालिका, घालिनी*-स्त्री० नाश करनेवाली, धातिनी। घिसना-स० क्रि० किसी चीजको किसी कड़ी चीजपर इस घाव-पु० चोट, आघात; व्रण, क्षत । मु०-पर नमक तरह रगड़ना कि उसका कुछ अंश कटता जाय (पत्थर, छिड़कना-दुःखकी हालतमें कष्ट देना।
चंदन घिसना) । अ० कि० रगड़से कटना, छीजना । घावरिया -पु० जर्राह, घावका इलाज करनेवाला । घिसपिसा-स्त्री०धिसघिस; सट्टा-बट्टा । घास-स्त्री० [सं०] खाद्य पदार्थ; मैदान में उगनेवाला दूबकी घिसवाना-सक्रि० 'घिसना'का प्रेरणार्थक । जातिका चौपायोंका एक चारा, तृण । -स्थान-पु० चरा- घिसाई-स्त्री० घिसनेकी क्रिया या भाव; घिसनेकी उजरत; गाह । -पात,-फूस-पु० [हिं०] खर-पतवारकूड़ा- घिसनेसे नष्ट हुआ अंश । करकट । मु०-काटना-खोदना, छीलना-तुच्छ, घिसाना-स० क्रि० "घिसना'का प्रेरणार्थक । निरर्थक काम करना। -खाना-पशुतुल्य होना; घोर घिसाव-पु०, घिसावट-स्त्री० घिसनेका भाव, रगड़, छीज। मूर्खताका परिचय देना।
घिस्सा-पु० रगड़ एक पतंगकी डोरसे दूसरे पतंगकी डोरघासलेट-पु० मिट्टीका तेल; तुच्छ वस्तु ।
की रगड़ धक्का; कुश्तीमें प्रतिस्पद्धीकी गरदनपर कुहनी घासलेटी-वि० निकृष्ट; निकम्मा; गंदा ।
और कलाईके बीचकी हड़ीकी रगड़, रंदा। घासी*-स्त्री० घास।
घींच*-स्त्री० गरदन । घाह*-पु० दे० 'घाई'।
घी-पु० दुधकी चिकनाई जो उससे अलग कर ली गयी हो। धिक्ष, घिउ -पु० घी।
गलाया हुआ मक्खन । मु०-के दिये (चिराग़)जलनाघिग्घी-स्त्री० अधिक भयके कारण मुँहसे बोल न निकलना; मुराद पूरी होना, बहुत आनंद होना।-के दिये(चिराग) रोते-रोते साँस रुकने लगना, हिचकी (बँधना)।
जलाना-मनोकामना पूरी होनेपर खुशी मनाना, उत्सव घिधियाना-अ० क्रि० रोते हुए बिनती करना,गिड़गिड़ाना। मनाना। घिचपिच-स्त्री० थोड़ी जगह में अधिक चीजों, आदमियोका घीकुआ(वा)र-पु० ग्वारपाठा, घृतकुमारी।
जमा हो जाना, भीड़; जगहकी कमी; आगा-पीछा। वि० घीया-पु० दे० 'घिया। -पत्थर-पु० गोरापत्थर । मिला-जुला; अस्पष्ट, गिचपिच (लिखावट)।
घीसा--पु० रगड़। घिचपिचाना-अ० क्रि० आगा-पीछा करना; सिटपिटाना। घुइँयाँ-स्त्री० अरुई नामक कन्द । घिन-स्त्री० घृणा, नफरत ।
घुघची-स्त्री० एक बेल; उसका लाल या सफेद बीज,गुंजा। घिनाना-अ० क्रि० घृणा करना।
घुघनी-स्त्री०उबाला या भिगोकर तला हुआ चना आदि । घिनौना-वि० घिन उपजानेवाला, घृणित ।
धुंघरारा*-वि० दे० 'धुंघराला'। घिनी-स्त्री० दे० 'गिन्नी'; दे० 'घिरनी'।
घुघराला-वि० बल खाया हुआ, छल्लेदार (केश), कुंचित । घिया-पु० घी।
धुंघरू-पु० चाँदी, पीतल आदिका गोल, पोला दाना घियाँड़ा-पु० घी रखनेका मिट्टीका बरतन, घृतपात्र । जिसके भीतर प्रायः कंकड़ी भरी होती है और हिलनेसे धिया-पु० कद्दू, लौकी; नेनुआँ ।-कश-पु० कद्कश । | बजता है, मंजीर; ऐसे दानोंका बना हुआ पाँवोंमें पहनने
-तरोई,-तुरई,-तोरई,-तोरी-स्त्री० एक बेल जिसके का गहना, धटका । -दार-वि० जिसमें घु घरू लगे हों। फल तरकारीके काम आते हैं; नेनुआँ; सतपुतिया । | घुघ(घ)वारा-वि० दे० 'धुंघराला'। घिरत, घिरित*-पु० दे० 'घृत' ।।
धुंडी-स्त्री० कपड़ेकी गोली जिससे बटनका काम लेते है। घिरना-अ० क्रि० घेरे में आना,घेरा जाना; छाना,फैलना। कड़े, जोशन आदिकी गुहनमें छोरपर बनी हुई गोल,नोकघिरनी-स्त्री० कुएँ से पानी खींचनेकी चरखी रस्सी बटनेकी | दार गाँठ; एक घास । -दार-वि० जिसमें धुंडी बनी हो।
चरखी; एक जलपक्षी; लोटन कबूतर । -दार विमान-घुआ-पु० दे० 'धूआ'। पु० (जाइरोप्लेन ) ऊपरकी ओर लगी हुई घिरनियोंकी घुइयाँ-स्त्री० एक शाक, अरुई । सहायतासे आकाशमें उठनेवाला विमान ।
घुग्धी-स्त्री० धोघी; पंडुक । घिरवाना-स० क्रि० घेरनेका काम कराना; एकत्र कराना। घुग्ध-पु० उल्लू । घिराई-स्त्री० घेरनेकी क्रिया; पशुओंको चरानेका काम या घुघरी, घुघुरी-स्त्री० धुधनी। उसकी मजदूरी।
घुघुआ-पु० दे० 'धुग्धू'। घिराव-पु० घेरनेकी क्रिया या भाव; घेरा।
घुघुआना-अ०क्रि० उल्लूका बोलना उल्लूकी तरह बोलना; घिरावना*-स० क्रि० दे० 'घिरवाना।
बिल्लीकी तरह गुर्राना। घिरिनपरेवा-पु० गिरहबाज कबूतर ।
घुटकना -स० क्रि० घुट-घूट करके पीना निगल जाना। घिरिया-स्त्री० शिकार घेरनेके लिए बनाया हुआ आदमियों- घुटकी-स्त्री० गलेकी वह नली जिससे होकर आहार पेट में का घेरा।
। पहुँचता है। मु०-लगना-प्राणका कंठगत होना ।
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घुटना-घूघट घुटना-अ० क्रि० घोंटा जाना; पीसा जाना; घुल-मिल घुमरना-अ0 क्रि० दे० 'घुमड़ना'; गड़गड़ाना, बहुत जाना, एक हो जानारगड़से चिकना होना; (सिर) मूंडा जोरसे बजना। जाना; साँस रुकना, अटकना । मु० घुट-घुटकर मरना घुमराना-अ० क्रि० दे० 'घुमरना' । -घुल-घुलकर, असह्य कष्ट सहते हुए मरना । घुटा घुमरी। -स्त्री० दे० 'घुमड़ी'; पानीका भँवर; पशुओंका एक हुआ-मुँडा हुआ; बहुत चालाक, काइयाँ। .
रोग, घुमनी। घुटना-पु० जाँघ और टाँगके बीचका जोड़ । म०- घुमाना-सक्रि०फिराना, चक्कर देना मोड़ना ऐठना । टेकना-घुटने जमीनसे लगानाअधीनता स्वीकार करना, । घुमाव-पु० घूमने, घुमानेका भाव; चक्कर, फेरा; रास्तेका पराजय स्वीकार कर लेना। -(नी)के बल चलना- मोड़ । -दार-वि० पेचदार, चकरदार । बच्चेका वैयाँ-बयाँ चलना। -में सिर देना-सोचमें | घुम्मरना*-अ० क्रि० दे० 'घुमरना'। बैटना, चिंतित, उदास होना; लज्जित होना। -से घुरकना*-स० क्रि० दे० 'घुड़कना'। लगकर बैठना-हरदम पास रहना, सटे रहना। घुर-घुर-पु० गलेमें कफसंचय होनेसे साँस लेनेमें निकलनेघुटना-पु० घुटनेतकका पाजामा, निकर ।
वाली आवाज; बिल्ली, सुअर आदिके गलेकी आवाज । घुट(टु)रू-पु० घुटना ।।
घुरघुराना-अ० क्रि० गलेसे 'घुर-धुर' आवाज निकालना । घुटवाना-स० क्रि०पिसवाना; रगड़वाना सिर मुंडाना। घुरघुराहट-स्त्री० घुर-धुर आवाज निकालनेकी क्रिया घुटाई-स्त्री० धोंटनेकी क्रिया या भाव; घोंटनेकी उजरत । | या भाव। घुटाना-स० कि० 'घोंटने का प्रेरणार्थक ।
घरना*-अ० कि० बजना-'घुरत निसान मृदंग संख धुनि घुटी*-स्त्री० दे० 'धुट्टी'; घूट ।
भेरि झाँझ सहनाई'-सू० दे० 'घुलना' । घुटुरुअ(व)न, घुटुरुन-अ० घुटनोंके बल (चलना)। घुरबिनिया-स्त्री० घूरपर फेंके हुए दाने या सड़क-गलीमें घुट्टी-स्त्री० शिशुको पिलायी जानेवाली रेचक-पाचक दवा। टूटी-फूटी चीजें इकट्टी करना; पु० यह काम करनेवाला । घुड़-पु० 'घोड़ा'का समासमें व्यवहृत रूप । -चढा-वि० | घुमित*-वि० दे० 'घूर्णित'। घोड़सवार । पु० घोड़सवारीका एक स्वाँग । -चढ़ी-स्त्री०
घलनशीलता-स्त्री० (साल्यूबिलिटी) किसी द्रव पदार्थमें ब्याहकी एक रीति,वरका घोड़ेपर चढ़कर वधुके घर जाना किसी स्थूल (या अन्य द्रव) पदार्थके घुलमिल जानेका गुण । देहाती या छोटे-मोटे बाजार में रहनेवाली वेश्या जो प्रायः घुलना-अ० कि किसी तरल वस्तुमें हल हो जाना, गलजाड़ेके दिनोंमें घोड़ेपर चढ़कर गाँव-गाँव घूमकर नावती
कर मिल जाना, गलना; पिघलना, पककर नरम होना; गाती है; घुड़नाल । -दौड़-स्त्री० घोड़ोंकी दौड़ घोड़ोंकी (रोगादिसे) सूखना, क्षीण होना; व्यतीत होना। मु० वह दौड़ जो शर्त या बाजी बदकर की जाय; उछल-कूद ।
घुलकर काँटा होना-बहुत दुबला हो जाना । घुल-नाल-स्त्री० धोड़ेपर ढोयी जानेवाली हलकी तोप । घुलकर जान देना, मरना-रोग-शोकसे क्रमशः छीजकर, -सवार-पु० अश्वारोही । -सार-साल-स्त्री० सूखकर, बहुत दिनोंतक कष्ट उठाकर मरना। हल-मिलअस्तबल, अश्वशाला ।
कर-प्यार, मुहब्बतके साथ, हिल-मिलकर । घुला हुआघुड़कना-स० कि० धमकीके स्वर में डॉटना, डपटना। खूब पका हुआ पिलपिला; बूढ़ा। घुड़की-स्त्री० घुड़कनेको क्रिया या भाव; धमकी भरी डाँट । | धुलवाना-स० कि० 'घुलाना' या 'घोलना'का प्रेरणार्थक । घुड़ला-पु० छोटा घोड़ा; घोड़ेकी शकलका खिलौना ।। धुलाना-स० क्रि० गलाना, पिघलाना; पिलपिला करना घुड़िया-स्त्री० दे० 'घोड़िया'।।
चुभलाना; (सुरमा, काजल) लगाना, रचाना; बिताना। घुणाक्षर-पु० [सं०] धुनोंके खानेसे लकड़ीमें या दीमकके |घुलावट-स्त्री० नरमी, पिलपिलापन काजल, सुरमेकी शोभा। चाटनेसे पुस्तक में बनी हुई लकीर । -न्याय-पु० किसी घुल्य-पु० (साल्यूट) वह स्थूल (या द्रव) पदार्थ जो किसी बातका बिना प्रयत्नके, संयोगवशात हो जाना।
द्रव पदार्थ में डालनेसे उसमें बिलकुल घुलमिल जाय, जैसे धुन-पु० अनाज, लकड़ी आदिमें लगनेवाला छोटा कीड़ा। नमक जो पानी में डालनेसे घुल जाता है । मु०-झड़ना-घुन लगी हुई लकड़ीके चूरका छन-छनकर घुवा-पु० दे० 'घूआ'। गिरना । -लगना-अनाज आदिका घुन द्वारा खाया घसना-अ० कि० भीतर जाना, दाखिल होना; बलपूर्वक जाना ऐसा रोग लगना जोभीतर-भीतर देहको खा जाय । प्रवेश करना; फँसना; किसी काममें दखल देना; दूर हो घुनघुना-पु० लकड़ी, टीन आदिका बजनेवाला खिलौना। जाना; ध्यान देना । [घुस-पैठ-स्त्री० पहुँच, रसाई ।] घुनना-अ० क्रि० लकड़ी, अनाज आदिको घुन लगना। घुसवाना-सक्रि० घुसानेका काम कराना। घुमा-वि० चुप्पा, अपने मनके भावोंको गुप्त रखनेवाला। घुसाना-सक्रि० भीतर पहुँचाना, दाखिल करना; धंसाना। घुमकड़-वि० बहुत घूमनेवाला, सैरसपाटेका शौकीन । घुसेड़ना-स० कि० भीतर पहुँचाना; फँसाना ढूँसना । धुमटा-पु० सिरका चक्कर ।
घुघट-पु० साड़ी, दुपट्टे या चादरका किनारा जो स्त्री धुमड़ना-अ० क्रि० बादलोंका इधर-उधरसे आकर जमा लज्जावश परदेके लिए मुँहपर खींच लेती है, अवगुंठन; होना, छाना।
बाहरी दरवाजेके पीछेकी दीवार जो आँगनके परदे के लिए घुमड़ाना*-अ० क्रि० दे० 'धुमड़ना' ।
बनायी जाती है, गुलाम-गदिश; घोड़ेकी आँखपर डालनेका घुमड़ी-स्त्री० सिरका चकर खाना; चक्कर; परिक्रमा। परदा, अँधेरी । मु०-उठाना,-उलटना-मुँह खोलनेके घुमनी --स्त्री० पशुओंका एक रोग; घुमड़ी।
| लिए घूघटको ऊपर उठाना, परदा हटाना। -करना,
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२३०
रा
घुघर-घोड़ा काढ़ना-निकालना-साडी-दुपट्टे आदिसे मुँइको ढक -दार-वि० बड़े घेरवाला; चाड़।। लेना, परदा करना।
घेरना-स० कि० आवेष्टित करना; अवरोध करना; रोकना; घूघर-पु० बालोंमें पड़ा हुआ छल्ला । -वाला-वि० धुंध- छेकना; रूँधना; किसी कामके लिए किसीके यहाँ बार-बार राला (बाल)।
जाना; चराना (ढोर); ग्रस्त करना। घुघरी*-स्त्री० धुंधरू, नूपुर ।
घेरा-पु० विस्तार, फैलाव; परिधिका मान; घेरनेवाली धैंचा-पु० घूसा।
चीज, दीवार आदि; घिरा हुआ स्थान; अवरोध । घुट-पु० जल या किसी पेय पदार्थकी वह मात्रा जो एक | घेराई-स्त्री० दे० 'घिराई'। बार में गलेके नीचे उतारी जा सके किसी तरल पदार्थकी घेराव-पु० दे० 'घिराव' । थोड़ी मात्रा।
घेवर-पु० मैदे, घी, चीनीके योगसे बनी हुई एक मिठाई । घुटना-सक्रि० किसी तरल पदार्थको गलेके नीचे उतारना। घैया-स्त्री० थनसे निकलती हुई दूधकी धार; ताजा दूधके धैंटी-स्त्री० बच्चोंकी एक दवा ।
ऊपरका मक्खन; इस तरहका मक्खन एकत्र करनेका काम। घसा-पु० प्रहारके लिए बँधी हुई मुट्ठी, मुक्का; ऐसी मुट्टी- धैर, घैरु*-पु० बदनामी; चुगली ।
का प्रहार । -(से)बाजी-स्त्री० पँसोंकी लड़ाई। थैला -पु० घड़ा, कलसा । धुआ-पु० काँस, सरकंडे आदिका रुई जैसा फूल कीचड़में घेहा*-पु०घायल व्यक्ति-'धूमन लगेसमर में धैहा'-छत्र। रहनेबाला एक कीड़ा; चूल अटकानेका छेद ।।
घौघा-पु० शंखकी जातिका एक कीड़ा, शंबुक; गहुँकी घुघ-पु० युद्ध में सिरके रक्षार्थ पहनी जानेवाली लोहे या। बालका कोश जिसमें दाना रहता है। वि० मुर्ख, बेवकूफ पीतलकी बनी टोपी, शिरस्त्राण; चूँघट ।
खोखला, निःसार । -बसंत-वि० महामूर्ख । घूघू*-पु० दे० 'घुग्घू'।
घाँचवा-पु० वह बैल जिसके सींग नीचेकी तरफ मुड़े हों। घटना*-स० क्रि० दे० 'घुटना' ।
घौचा-पु० घौद, गुच्छा। घूम-स्त्री० घुमाव, मोड़, घेरा । -घुमारा-वि० घेरदार; घौंचुआ-पु० दे० 'घोंसला'।
मतवाला; उनीदा। -घुमाव-वि० चक्करदार । घोंटना-स० क्रि० चूँटना; गलेको इस तरह दबाना कि घूमना-अ० क्रि० फिरना, चक्कर खाना; एक धुरीके | साँस रुक जायः हजम करना; रगड़ना, पीसना; रटना । चारों ओर चक्कर खाना; भ्रमण करना; मुड़ना; लौटना घौंपना-सक्रि० भोंकना, घुसेड़ना; चलती सिलाई करना। * उन्मत्त होना।
घौसला-पु० वृक्षादिपर तृणादिका बना हुआ पक्षीके घूमनि*-स्त्री० घेरा।
रहनेका स्थान, नीड़, खोता। घूर-पु० दे० 'पूरा'।
घोंसुभा-पु० दे० 'घोसला'। घूरना-अ०क्रि०, सक्रि० आँखें गड़ाकर, तीखी निगाहसे घोखना-स० क्रि० याद करनेके लिए बार-बार पेढ़ना, देखना; काम या क्रोधभरी दृष्टिसे देखना।
रटना। घुरा-पु० कूड़ा-करकट फेंकनेकी जगह; कूड़े-करकटका ढेर। घोखवाना,घोखाना-सक्रि० 'घोखना'का प्रे०, रटाना। घूर्णन-पु०, घूर्णना-स्त्री० [सं०] घूमना, चक्कर खाना। घोघी -स्त्री० लबादेकी तरह कोढ़ा हुआ कंबल, बोरा आदि । घूर्णित-वि० [सं०] घूमता हुभा, भ्रमित; घुमाया हुआ। घोट, घोटक-पु० [सं०] घोड़ा। -जल-पु० भँवर । -वात-पु० बवंडर ।
घोटना-स० क्रि० रगड़कर बारीक करना (भाँग); रगड़कर घुस-स्त्री० वह धन या वस्तु जो अपने अनुकूल, पर भनु- चिकना करना (तख्ती, कागज इत्यादि); हल करना, चित, अवैध कार्य करानेके लिए किसीको दी जाय, रिश्वत | मूंड़ना (बाल); अभ्यास करना; घोंटना । पु० घोटनेका (खाना, देना, लेना)। पु० एक तरहका बड़ा चूहा। औजार । -खोर-वि० घूस खानेवाला।
घोटवाना-स० क्रि० 'घोटना'का प्रेर०, घोटनेका काम घृणा-स्त्री० [सं०] घिन, नफरत; बीभत्स रसका स्थायी कराना। भाव; दया, करुणा।
घोटा-पु० घोटनेका साधन; भाँग घोटनेका सोंटा; घुटा घृणालु-वि० [सं०] दयालु ।
हुआ चमकीला कपड़ा; पशुओंको दवा आदि पिलानेका घृणास्पद-वि० [सं०] घृणा करने योग्य .
बाँसका चोंगा; डाक चमकीला करनेका एक औजार, घृणित-वि० [सं०] घृणा करने योग्य निदित, गहित । घुटाई। घृणी(णिन)-वि० [सं०] घृणा करनेवाला, दयालु, दीप्त । घोटाई-स्त्री० घोटनेकी क्रिया या भाव; धोटनेकी उजरत । घृण्य-वि० [सं०] घृणा करने योग्य, घृणापात्र ।
घोटाला-पु० घपला, गोलमाल, गड़बड़ । घृत-पु० [सं०] घो।
घोड़-पु० घोड़ा (केवल समासमें व्यवहृत)। -चढ़ाघृताहुति-स्त्री० [सं०] घीकी आहुति ।
दौड़ा-मुँहा-साल-दे० 'घुड़चढ़ा'; 'धुड़दौड़', 'घुड़घेघा-पु० गलेका एक रोग, गलगंड ।
मुँहा'; 'घुड़साल'। घेड़ोंची-स्त्री० दे० 'धड़ौ ची' ।
घोड़ा-पु. एक चौपाया जो गधेसे बड़ा होता है और घेर-पु० घेरा, फैलाव; घेरने-फैलनेकी क्रिया ।-घार-पु० सवारी आदिके काम आता है, अश्व, तुरंग; बंदूक, तमंचेघेरना, सब ओरसे जमना, इकट्ठा होना (बादलोंका का खटका जिसे दबानेसे वह दगता है; शतरंजका एक घेरघार); कार्यविशेषके लिए अनुनय-विनय, अति आग्रह। मोहरा खूटी; छज्जेके नीचे दीवार में लगाया जानेवाला
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मचाना।
घोडिया-चंडा लकड़ी आदिका टोड़ा । -गाड़ी-स्त्री० वह गाड़ी जिसमें घोल-पु० [सं०] बिना पानी डाले मथा हुआ दही; लस्सी घोड़ा या घोड़े जोते जायें। -नस-स्त्री० एड़ीसे महा; घोलकर बनायी हुई चीज, द्रावण (सोल्यूशन)। ऊपरकी ओर जानेवाली मोटी नस। -बाँस-पु० एक घोलक-पु० (सालवेंट) जो घुला दे, घुला देनेवाला; वह तरहका बाँस । मु०-उड़ाना-घोड़ेको सरपट दौड़ाना। द्रव-पदार्थ (पानी, मथसार आदि) जिसमें डालनेसे कोई -कसना-घोड़ेपर जीन या चारजामा कसना । स्थूल (या द्रव पदार्थ बिलकुल घुल-मिल जाय । -डालना-फैकना-घोड़ेको किसी दिशामें तेजीसे घोलना-स० क्रि० किसी चीजको पानी आदिमें इस तरह दौड़ाना। -फेरना-घोड़ेको सधाना, सवारी या गाड़ीके | मिलाना कि वह उसमें घुल जाय । लायक बनाना। -बेचकर सोना-बेफिक्र होकर सोना, घोप-पु० [सं०] ध्वनि घोषणा; अफवाह बादलकी गरज खुर्राटे भरना। -पर चढ़ भाना-लौटनेकी जल्दी अहीरोंका गाँव, बस्ती; चरवाहा, ग्वाला; मच्छड़ा नारा
वर्गों के उच्चारणके बाह्य प्रयत्नोंमेंसे एक; तट तालका एक घोडिया-स्त्री० छोटा घोड़ा, कपड़े टाँगनेकी खूटी। । भेद; बंगाली कायस्थोंकी एक उपाधि; शिव; * गोशाला । घोड़ी-स्त्री० घोड़ेकी मादा; पाटा; ब्याहमें दुल्हेका घोड़ी-घोषक-पु० [सं०] घोषणा, मुनादी करनेवाला । पर चढ़कर दुलहिनके घर जाना; ब्याह में वरपक्षकी ओर- घोषण-पु०, घोषणा-स्त्री० [सं०] जोरसे बोलकर जताना, से गाये जानेवाले गीत; जुलाहोंका एक औजार; धोबियों मुनादी या एलान करना; ध्वनि । की अलगनी; पानीके घड़े रखनेके लिए खंभोंके सहारे घोषवती-स्त्री० [सं०] वीणा। लगायी हुई पटरी।
घोसना-स्त्री० दे० 'घोषणा' । स० कि० घोषित करना । घोर-वि० [सं०] डरावना, भयानक धन, निबिड़; गाढ़ा, घोसी-पु० अहीर मुसलमान अहीर । गहरा; कठिन, कठोर; भारी; बुरा । * स्त्री० ध्वनि, शब्दः | धौर, घीरा-पु० दे० 'घौद'। पु० मट्ठा; जोर ।
घौद-पु० फलोंका गुच्छा। घोरना-स० क्रि० घोलना । अ० क्रि० गर्जन करना। घौर, धौरा-पु०, घौरी-स्त्री० दे० 'धौद'-'काहु गही घोरा-पु० घोड़ा खूटा टोड़ा।
केराकै घौरी'-५०। घोरिया -स्त्री० दे० 'घोड़िया' ।
घ्राण-पु० [सं०] गंध; मूंघना; मूंघनेकी शक्ति नाक ।" घोरिला*-पु० बच्चोंके खेलनेका मिट्टीका बना घोड़ा धोड़े | घ्राणेंद्रिय-स्त्री० [सं०] नाक । जैसे मुहवाला खूटा।
Jघ्रातव्य-वि० [सं०] सूंघने योग्य ।
हु-व्यंजन वर्णका पाँचवाँ और कवर्गका अंतिम अक्षर ।
। -पु०.[सं०] इंद्रिय-विषयः विषयेच्छा।
च-देवनागरी वर्णमालाका छठा व्यंजन ।
( अस्थिरडाँवाडोला कंपित; चुलबुला, चपल; शोख कामुक । चंक-वि० समूचा । पु० उत्तर भारतका एक उत्सव । चंचलता-स्त्री० [सं०] अस्थिरता; चपलता । चंक्रम, चंक्रमण-पु० [सं०] घूमना; टहलना; कूदना। चंचलताई*-स्त्री० दे० 'चंचलता। चंक्रमित-वि० [सं०] घूमा या चक्कर खाया हुआ। चंचला-स्त्री० [सं०] बिजली; लक्ष्मी; पिप्पली । चंग-वि० [सं०] स्वस्थ, सुंदर; चतुर । पु० [फा०] डफकी चंचलाई*-स्त्री० चंचलता। शकलका एक बाजा । स्त्री० पतंग ।
चंचु-पु० [सं०] एरंड; बरसातमें होनेवाला एक साग, चंगना*-स० क्रि० सी चना, कसना।
चैच । स्त्री० चोंच। -प्रवेश-पु० किसी विषयका अल्प चंगा-वि० स्वस्थ, नीरोग निर्मल; भला ।
शान । -प्रहार-पु० ठोरसे मारना । चंगु*-पु० दे० 'चंगुल' ।
चंचुमान् (मत्)-पु० [सं०] पक्षी । चंगुल-पु० (चिड़ियोंका) पंजा; पकड़, काबू । | चचोरना-स० क्रि० दाँतोंसे दबाकर चूसना । चंगेर(री)-स्त्री० फूल रखनेकी डलिया; छिछली टोकरी; चंट-वि० चतुर, चालाक, उस्ताद । मशका टोकरीका रस्सीसे बनाया हुआ झूला ।
चंड-वि० [सं०] तीक्ष्ण उग्र गरमहानिकर । -कर,. चंगेरा-पु० दे० 'चंगेर'।
-दीधित,-भानु-पु० सूर्य । -मुंड-पु. शुंभ-निशुंभ चंगेरिक-पु०, चंगेरिका-स्त्री० [सं०] टोकरी, डलिया। के दो सेनापति जो दुर्गाके हाथों मारे गये । -रश्मिचंगेली-स्त्री० दे० 'चंगेरी'।
पु० सूर्य। चंच-पु० [सं०] टोकरी, डलिया; * स्त्री० चोंच । चंडता-स्त्री० [सं०] उग्रता; तीक्ष्णता । चंचरी(रिन्), चंचरीक-पु० [सं०] भ्रमर ।
चंडांशु-पु० [सं०] सूर्य । ३०] भ्रमरोंका समूह; एक वर्णवृत्त । चंडा-वि० स्त्री० [सं०] उग्र स्वभाववाली, कोपनशीला चंचल-वि० [सं०] एक जगह, एक स्थितिमें न रहनेवाला, (स्त्री)। स्त्री दुर्गा अष्टनायिकाओं से एक; एक गंधद्रव्य ।
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चंडाई-चंपा चंडाई*-स्त्री० उतावली; जोर-जबर्दस्ती ।
पुत्र बुध ।-ग्रह,-ग्रहण-पृथिवीकी छायासे चंद्रमंडलका चंडाल-पु० [सं०] दे० 'चांडाल' ।
छिप जाना । -चूड-पु० शिव । -जोत-स्त्री० [हिं०] चंडालिका-स्त्री० [सं०] दुर्गा; एक तरहकी वीणा । चाँदनी; एक आतशबाजी, महताबी ।-धर-पु० (चंद्रमाचंडालिनी-स्त्री० चांडाल स्त्री; दुष्टा ।
को धारण करनेवाले) शिव । -प्रभा-स्त्री. चंद्रज्योति, चंडावल-पु० सेनाका पृष्ठभाग; वीर सैनिक; पहरेदार । चाँदनी; बकुची; कचूर ।-प्रासाद-पु० छतपरका कमरा। चंडि, चंडिका-स्त्री० [सं०] दुर्गा ।
-बंधु-पु० शंख, कुमुद । -बधूटी*-स्त्री० बीरबहूटी। चंडी-स्त्री० [सं०] दुर्गा; उग्र स्वभावकी, कर्कशा स्त्री। -बाण-पु० वह बाण जिसका फल चंद्राकार हो ।-बिं. चंडीश-पु० [सं०] शिव ।
(वि)द-पु० सानुनासिक वर्णके ऊपर लगाया जानेवाला चंडू-पु० अफीमका किवाम जिसे नशेके लिए तंबाकूकी अर्द्धचंद्राकार चिह्न सहित बिंदु । -बिब-पु० चंद्रमंडल । तरह पीते हैं। -ख़ाना-पु. चंडू पीनेका स्थान । -भागा-स्त्री० चनाब नदी। -भाल,-भूषण(-खानेकी गप-झूठी, बेतुकी बात।) -बाज़-पु० पु. शिव । -मंडल-पु. चंद्रबिंब, चंद्रमाके चारों चंडू पीनेवाला, जिसे चंडू पीनेकी लत हो।
ओर देख पड़नेवाला घेरा। -मणि-पु० चंद्रकांत चंडल-पु० एक चिड़िया, भद्दी शकलका आदमीभारी मूर्ख। मणि । -मुखी-वि०, स्त्री० चंद्रमा जैसे मुखवाली, विधुचंडोल-पु० एक तरहकी पालकी; मिट्टीका एक खिलौना । वदनी, सुंदरी । -मौलि-पु० शिव । -रेखा,-लेखाचंद-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर, पृथ्वीराजके दरबारी कवि स्त्री चंद्रकलाचंद्रकिरण, एक अप्सरा बाणासुरकी कन्या चंदबरदाई जो पृथ्वीराजरासोके रचयिता माने जाते हैं। उषाकी सखी; एक वर्णवृत्त । -लोक-पु. चंद्रमाका -बान-पु० [हिं०] दे० 'चंद्रवाण' ।
लोक । -वंशी,-वंशीय-वि० चंद्रवंशमें उत्पन्न । चंद-वि० [फा०] कुछ, थोड़ेसे, दो-चार । -रोज़ा-वि० -बदन-वि० चंद्रमा जैसे मुखवाला । -वधू-स्त्री० कुछ ही दिन टिकने, रहनेवाला ।
बीरबहूटी।-वार-पु० सोमवार।-शाला,-शालिकाचंदक-पु०[सं०] चंद्रमा चाँदनी; एक छोटी मछली; सिर- स्त्री० चाँदनी छतके ऊपरका कमरा या बँगला, जिससे पर पहननेका एक गहना ।
चाँदनीका पूरा आनंद लिया जा सके। -शेखर-पु० चंदन-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसकी लकड़ी एक (चंद्रमा है मस्तकमें जिसके) शिव । -संभव-पु० बुध । प्रधान गंधद्रव्य है, संदल; उसकी लकड़ी; चंदनको घिसकर -सुत-पु० बुध । -हार-पु० एक तरहका कंठहार । बनाया हुआ लेप । -गिरि-पु० मलयाचल । -चूर- -हास-पु० तलवार; खगः रावणकी तलवार । पु० [हिं०] दे० 'चंद्रचूडं' । -हार-पु० दे० 'चंद्रहार'। | चंद्रक-पु० [सं०] चंद्रमा चाँदनी; मोरपंखपरका चंद्राचंदना-स्त्री० [सं०] चंदनशारिवा । पु०चंद्रमा ।
कार चिह्न नाखून; सफेद मिर्च; जल । चंदनीता*-पु० एक तरहका लहँगा।
चंद्रमा(मस)-पु० [सं०] सौरमंडलका एक उपग्रह, चाँद, चदराना-अ०क्रि० किसी बातको जानते हुए अनजानकी | इंदु, सोम । -ललाम-पु० [हिं०] शिव । तरह पूछना।
चंद्रा-स्त्री० [सं०] चॅदोवा; छोटी इलायची; गुडुच । चंदला-वि० गंजा, खल्वाट ।
चंद्रातप-पु० [सं०] चाँदनी; चंदोवा, वितान; खुला चंदवा-पु० गद्दी आदिके ऊपर खड़ा किया गया छोटा | दालान ।
शामियाना, चेंदोवा; गोल चकती; मोरपंखकी चंद्रिका । | चंद्रात्मज-पु० [सं०] बुध । चंदा-पु० बहुतोंसे उगहनी करके, थोड़ा-थोड़ा लेकर इकट्ठा | चंद्रानना-वि० स्त्री० [सं०] चंद्रमुखी । किया हुआ धन, बेहरी सदस्यताका शुल्क सामयिक पत्र, चंद्रायण*-पु. चांद्रायण । पुस्तकका वार्षिक, छमाही आदि मूल्य; चाँद ।-मामा,- चंद्रावली-स्त्री० [सं०] राधाकी एक सखी; एक योगिनी ।
मा-पु० चाँद (बच्चोंको बहलानेके लिए कहा जाता है)। चंद्रिका-स्त्री० [सं०] चाँदनी; प्रकाश; मोरपंखकी आँख; चंदिका-स्त्री० दे० 'चंद्रिका'।
बड़ी इलायची; जूही.या चमेली; एक गहना, बैंदी। चंदिनि(नी)*-स्त्री० चाँदनी। वि० स्त्री० चाँदनीवाली। चंद्रिकोत्सव-पु० [सं०] शरत्पूर्णिमाको मनाया जानेचंदिया-स्त्री० सिरका मध्य भाग, खोपड़ी; + पीछेकी | वाला उत्सव । छोटी रोटी; चाँदीकी टिकिया।
चंद्रोदय-पु० [सं०] चंद्रभाका उदय; बँदोवा; एक चंदेरी-स्त्री० एक प्राचीन नगर ।-पति-पु० शिशुपाल । | रसौषध । चंदोया, चँदोवा-पु० दे० 'चॅदवा'।
चंपकली-स्त्री० 'दे० 'पाकली' । चंद्र-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर जल; सोना; हीरा; चंद्रमा | चंपई-वि० चंपाके फूल जैसे रंगका । पु० उक्त रंग । जैसा चिह्नः मोरपंखका अर्द्धचंद्राकार चिह्न चंद्रबिंदु (ला०)| चंपक-पु० [सं०] चंपाका पेड़, उसका फूल; एक राग एककी संख्या सुंदर, आहादजनक वस्तु । -कर-पु० | चंपाकेला; एक गंधद्रव्य । -माला-स्त्री० चंपाके फूलोंकी चंद्रकिरण, चाँदनी । -कला-स्त्री. चंद्रमंडलका १६वाँ ! माला; चंपाकली; एक वर्णवृत्त । भाग चंद्रमाको १६ कलाएँ माथेपर पहननेका एक गहना।| चंपत-वि० चलता, गायब (होना)। -कांत-पु० एक मणि जिसके विषयमें प्रसिद्धि है कि चपना-अ० क्रि० चाँपा जाना, दबना। चंद्रकिरणके स्पर्शसे वह पसीज जाता है। -कांता-स्त्री० चंपा-पु० एक पुष्पवृक्ष; उसका हलके, पीले रंगका फूल चंद्रमाकी पत्नी रात; चाँदनी। -कुमार-पु०चंद्रमाका जो अपनी तीव्र गंधके लिए प्रसिद्ध है; एक तरहका मीठा
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केला; रेशमके कीड़ेका एक भेद । -कली - स्त्री० एक तरहका हार जिसके दाने चंपाकी कलीकेसे होते हैं । -पुरी- स्त्री० कर्णकी राजधानी चंपा ।
चंपारण्य - पु० [सं०] एक प्राचीन स्थान, चंपारन | चंपू - पु० [सं०] गद्य-पद्य मय काव्य |
चंबल - पु० भीख माँगनेका प्याला; पानीकी बाढ़; नहर के किनारे लगी हुई सिंचाईकी लकड़ी ।
चँवर - ५० सुरागायकी पूँछके बालोंका गुच्छा । - ढार पु० चवर डुलानेवाला ।
चैवरी - स्त्री० चैवरकी शकलका घोड़ेकी पूँछके बालोंका गुच्छा । च - पु० [सं०] शिव; चंद्रमा; कछुआ; चबाना; दुर्जन; चोर । च उपाई* - स्त्री० दे० 'चौपाई' ।
चउर* - ५० दे० 'चंवर' ।
चउरा -५० दे० 'चौरा' ।
चक- पु० चकवा; चकई नामका खिलौना; पहिया; जमीनका बड़ा खंड; एक अस्त्र, चक्र; छोटा गाँव, पुरवा; एक गहना; आधिक्य; अधिकार | वि० भरपूर ; भौचक्का, चकित ! - डोर-स्त्री० चकईकी डोरी; करधेकी डोरी जिसमें बेसर बँधी होती है। - फेरी-स्त्री० परिक्रमा । - बंदी - स्त्री० जमीनका बड़े-बड़े टुकड़ों में बँटवारा। -बस्त - वि० चकोंमें बँटा हुआ । पु० कश्मीरी ब्राह्मणोंकी एक उपजाति ।
चकई - स्त्री० मादा चकवा; घिरनीके आकारका एक खिलौना ।
चकचकाना - अ० क्रि० रसना; गीला होना । चकचाना* - अ० क्रि० चौंधियाना । चकचाव * - पु० चकाचौंध |
चकचून, चकचूर* - वि० पिसा हुआ, चकनाचूर | चकचूरना* - स० क्रि० चकनाचूर करना । चकचोही * - वि० स्त्री० चिकनी चुपड़ी । चकाचौंध - स्त्री० दे० 'चकाचौध' ।
चकचौंधना - अ० क्रि० चौंधियाना। स० क्रि० आँखों में
चकाचौंध पैदा करना ।
चकचौंधी, चकचौंह-स्त्री० दे० 'चकाचौंध' । चकचोहना- सु० क्रि० आशाभरी दृष्टि से देखना । चकता - पु० दे० 'चकत्ता' ।
चकताई * - पु० दे० 'चगताई' ।
चकती - स्त्री० कपड़े या चमड़े आदिका छोटा टुकड़ा जो दूसरे कपड़े या चमड़े आदिमें जोड़की तरह लगाया गया हो, पैबंद; धज्जी ।
चकत्ता - पु० त्वचापर पड़ा हुआ बड़ा निशान; दाँत काटनेका निशान; ददोरा; दे० 'चरात्ता' ।
चकना * - अ० क्रि० चकित होना, चौकना । चकनाचूर - वि० जो टूटकर चूर-चूर हो गया हो, चूर्णित; बहुत थका हुआ । 'चकपकाना - अ० क्रि० भौंचक होना, चौंकना, चकित होना । 'चकमक - पु० एक तरहका पत्थर जिसपर आघात करनेसे आग निकलती है ( दियासलाईके आविष्कारके पहले इसीसे आग झाड़कर दिया बालते, आग सुलगाते थे) । चक्रमा - पु० धोखा, भुलावा, (खाना, देना); हानि ।
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चंपारण्य - चक्कर
चकर* - पु० चकवा; दे० 'चक्कर' ।
चकरबा - पु० चक्कर, फेर; विकट परिस्थिति; झगड़ा, दंगा । चकरा* - वि० चौड़ा ।
चकराना - अ० क्रि० सिरका घूमना, चक्कर खाना; चकित, हैरान होना, चकपकाना ।
चकरी- स्त्री० चक्की; चकई ।
चकला -५० रोटी बेलनेका पाटा, चौका; चक्की; इलाका; व्यभिचार से जीविका चलानेवाली स्त्रियोंका अड्डा । वि० चौड़ा । - (ले) दार - पु० चकलेका हाकिम; मालगुजारी वसूल करनेवाला अफसर |
चकलाना - स० क्रि० चौड़ा करना; दूसरी जगह लगानेके लिए पींड़ी के साथ पौधा उखाड़ना ।
चकल्लस - स्त्री० झगड़ा; बखेड़ा; मित्रोंका परिहास ।
चकवड़ - पु० एक बरसाती पौधा ।
चकवा - पु० एक पक्षी जिसके विषयमें यह प्रसिद्धि है कि रात में अपने जोड़ेसे उसका वियोग हो जाता है, चक्रवाक, सुर्खाब ।
चकवाना * - अ० क्रि० चकित होना । चकवारि पु० कछुआ - 'उर निरखि चकवारि बिथके' - सू० । चकवाह * - पु० दे० 'चकवा' । चकवी* - स्त्री० दे० 'चकई' |
चकहा * - पु० चक्का, पहिया ।
चका* - पु० दे० 'चक्का'; चकवा । वि० चकित | चकाचक - वि० तर-बतर । अ० तृप्त होकर, अधाकर । चकाचौंध - स्त्री० प्रकाशकी प्रखरतासे दृष्टिका स्थिर न रह
सकना, आँखका झपकना, तिलमिलाहट; हैरानी । चकाचौंधी - स्त्री० दे० 'चकाचौंध' ।
चकाना* - अ० क्रि० चकित होना, हैरान होना । चकाबू, चकाबूह - पु० दे० 'चक्रव्यूह' । चकासना * - अ० क्रि० चमकना, प्रकाशित होना'... आपने भावतें बीज चकासै' - सुंदर० ।
चकित - वि० [सं०] विस्मित, हैरान, भौंचक; शंकित; भीत। चकितवंत* - वि० चकित, विस्मित | चकिताई * - स्त्री० अचंभा, विस्मय ।
चकुला * - पु० चिड़ियाका बच्चा । चकृत * - वि० दे० ' चकित' ।
चकैया * - स्त्री० चकई । + वि० चिपटापन लिये हुए गोल । चकोटना * - स० क्रि० चुटकी काटना, बकोटना । चकोतरा - पु० एक तरहका बड़ा नीबू, महानीबू । चकोर, चकोरक - पु० [सं०] तीतरकी जातिका एक पक्षी जो चंद्रमाका प्रेमी माना जाता है (स्त्री० चकोरी ) । anta - स्त्री० दे० 'चकाचौंध ' ।
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चक्क - पु० [सं०] कष्ट, पीड़ा; * चकवा; चाक; दिशा, खूँट । चक्कर - पु० पहिये जैसी वस्तु; चाक; चक्र; घेरा, मंडल; ( घोड़दौड़ आदिका) वृत्ताकार मार्ग; फेरा, परिक्रमा; घुमाव, फेर, हैरानी; पेच पाच; सिरका घूमना; भँवर; कुश्तीका एक पेंच; एक अस्त्र । - दार- वि० घुमाव, पेच, फेरवाला | मु० - काटना - गोलाई में घूमना; फेरा करना; भटकना । - खाना- घूमना; पहिये या चाककी तरह घूमना । - बाँधना - इस तरह घूमना कि वृत्त बन जाय ।
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चकवड़ - चटखना
-मारना - चक्कर लगाना; भटकना । में आना - में पड़ना - हैरान होना, भौंचक होना; चालमें फँसना । चक्क * - वि, पु० दे० 'चक्रवर्ती | चक्कवत* - पु० चक्रवतीं राजा ।
चक्कत्रै* - वि०, पु० दे० 'चक्रवती' ।
चक्का - पु० पहिया; थक्का; ढेला; बड़ा, जमा हुआ टुकड़ा; गिनती के लिए क्रमसे लगाये हुए पत्थरों या ईटोंका ढेर । - ब्यूह - पु० चक्रव्यूह |
चक्की - स्त्री० पत्थरका बना आटा पीसने या दाल दलनेका यंत्र, जाँता; घुटनेकी गोल हड्डी; ऊँटके बदनपरका गोल घट्टा | मु० - पीसना - चक्की चलाना; कड़ी मेहनत करना । चक्र - पु० [सं०] चाका, पहिया; तेल पेरनेका कोल्हू चक्की; पहिये के आकारका एक अस्त्र; भँवर; बवंडर; समूह; सेना; राज्य; सेनाका मंडलाकार व्यूहः एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक फैला हुआ प्रदेश; रेखाओं से घिरे हुए खाने; ग्रामसमूह; भूमंडल; योगवर्णित देहके भीतरके ६ पद्म (मूलाधार, मणिपूर आदि); वृत्त, घेरा; हथेली, तलदेकी मंडलाकार रेखा; पक्षियोंका मंडलाकार उड़ना; भ्रमण, चक्कर (कालचक्र); वर्ष समूह; तगरका फूल; चित्रकाव्यका एक भेद; षड्यंत्र; छल; चकवा; एक वर्णवृत्त; * दिशा । - जीवक, -जीवी (विन्) - पु० कुम्हार । - घर - वि० चक्रधारण करनेवाला । पु० विष्णुः कृष्ण; राजा । -नाभि - स्त्री० चक्रकी नाभि, मध्य बिंदु । - नेमि-स्त्री० चक्रकी परिधि । - पाणि, - पानि * - पु० विष्णु । -मर्द, - मर्दक - पु० चकवड़ । - मुद्रा - स्त्री० तांत्रिक पूजनमें प्रयुक्त एक मुद्रा; शंख, चक्र आदिके चिह्न जो वैष्णव अपने शरीरपर छपाते हैं । यान- पु० पहियेसे चलनेवाला वाहन ( वेहिकल ) । लेखित्र - पु० (साइकोस्टाइल) लेखनीकी नोकपर लगे हुए छोटेसे चक्रसे लिखे गये विशेष प्रकारके कागजसे बहुत-सी प्रतियाँ छाप देनेवाली मशीन । -वर्ती (तिन) - वि० सार्वभौम । पु० सम्राट्, समुद्रपर्यंत पृथ्वीका अधिपति । - वाक-पु० चकवा -वात-पु० बवंडर, बगूला । - वृद्धि - स्त्री० वह ब्याज जिसमें संचित ब्याज भी मूलमें शामिल हो जाय, सूद-दर-सूद । - व्यूह - पु० चक्र के आकार में सेना की स्थापना । चांग-पु० [सं०] रथ, गाड़ी; चकवा; हंस; कुटकी । चक्रानुक्रमसे - अ० ( इन रोटेशन) चक्रकी तरह बारीबारीसे, एकके बाद दूसरेके समुचित अनुक्रमसे । चक्रायुध-पु० [सं०] विष्णु । चक्रित* - वि० दे० 'चकित' |
चक्री (क्रिन्) - वि० [सं०] चक्रयुक्त; चक्रधारी; गोल | पु० चक्रवर्तीीं; कुम्हार; तेली; साँप; मुखबिर; षड्यंत्रकारी; विष्णु; शिव; मंडलाधीश, सम्राट् बाजीगर; चकवा; चकवड़ ।
चक्षु ( स ) - पु० [सं०] आँख; दृष्टि, देखनेकी शक्ति । चक्षुरिद्रिय - स्त्री० [सं०] आँख । चक्षुष्मान् ( मत्) - वि० [सं०] आँखवाला; सुलोचन । चख* - पु० आँख |
चख - स्त्री० [फा०] झगड़ा, तकरार; वैर । - चख - स्त्री० झगड़ा, कहासुनी ।
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चखचौंध * - स्त्री० चकाचौंध ।
चखना- स० क्रि० स्वाद लेना, रसास्वादन करना । चखाचखी-स्त्री० विरोध, तनातनी; लाग-डाट । चखाना - स० क्रि० 'चखना' का प्रेरणार्थक । चखु * - पु० दे० 'चक्षु' । चखोड़ा * - पु० दिठौना |
चगड़ा - वि० चंट, चालाक । चग़ताई - पु० [फा०] चंगेज खाँके बेटे चगताई खाँसे चला हुआ मंगोलवंश जिसमें बावर, अकबर आदि हिंदुस्तानके मुगल बादशाह हुए ।
चग़त्ता - पु० [तु०] दे० 'चराताई' । चचा- पु० बापका भाई । -जाद - वि० चचेरा । चचिया । - वि० चचेरा ( ससुर, सास ) । चचौड़ा - पु० दे० 'चिचिंडा' । चची - स्त्री० चचाकी स्त्री । चड़ा - पु० दे० 'चिचिंडा' । चचेरा - वि० चचासे उत्पन्न, चचाज़ाद | चचोड़ना - स० क्रि० दाँतोंसे दबाकर चूसना I चच्छु* - पु० दे० 'चक्षु' । चट-अ० झट, तुरत । पट-अ० झटपट, शीघ्र । चट - स्त्री० किसी चीजके टूटनेकी आवाज; उगलियाँ फोड़नेका शब्द | - चट-स्त्री० 'चट-चट' की आवाज । चट-स्त्री० चाटनेका भाव। वि० चाट-पोंछकर खाया हुआ ।
मु० - कर जाना - चाट - पोंछकर खा जाना; निगल जाना । चट -* पु० दाग, धब्बा, लांछन, कलंक; + पटसनका टाट ।
- कल - स्त्री० पटसनकी वस्तुएँ बनानेका कारखाना या मशीन । - शाला- स्त्री० बच्चोंकी पाठशाला । - सार* - साल - स्त्री० दे० 'चटशाला'; रंगभूमि । चटक - पु० [सं०] गौरवा । * वि० चटकीला; फुर्तीला; चटपटा । * अ० झटपट । स्त्री० [हिं०] चमक; रंगकी शोखी; भड़क; तेजी, फुरती; कलियोंके चटकनेकी क्रिया । - -दार - वि० चटकीला, शोख । -मटक- स्त्री० ठसक, नाजनखरा; सजधज । - वाह - वि० फुरतीला । चटकन - पु० तमाचा ।
चटकना - अ० क्रि० हलकी आवाजके साथ टूटना, फूटना, जलना; फटना; कलीका खिलना; कपास, सेमलकी बोड़ीका फटना; झुंझलाना; बिगाड़ होना । पु० तमाचा । चटकनी - स्त्री० किवाड़ बंद करनेकी कुंडी, सिटकिनी । चटकाना - स० क्रि० किसी नीजके चटकनेका कारण होना; 'चट' की आवाज पैदा करना; उँगलियाँ फोड़ना; तोड़ना; दूर करना; चिढ़ाना | मु० जूतियाँ चटकाना - मारा-मारा फिरना ।
चटकारा - वि० चटकीला; चपल । पु० दे० ' चटखारा' | चटकारी* - स्त्री० चुटकी ।
चटकाली - स्त्री० [सं०] गौरैयोंकी पंक्तिः चिड़ियोंका झुंड । चटकाहट - स्त्री० चटकनेका भाव; कलियोंके खिलनेकी
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आवाज ।
चटकीला - वि० चटकदार, चमकीला, शोख; चटपटा । चटकोरा* - पु० बच्चों का एक खिलौना । चटखना - अ० क्रि०, ५० दे० 'चटकना ' I
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चटखनी - स्त्री० सिटकिनी ।
चटखारा - पु० स्वादिष्ठ वस्तुको खाते समय लगने से होनेवाली आवाज । मु०- ( २ ) लेकर खाना, होंठ चाटना ।
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जीभके तालूसे भरना - स्वाद
चटचटाना - अ० क्रि० 'चट चट की आवाज के साथ टूटना, 'कूटना, जलना; लस पैदा हो जाना, चिपकना ।
चटचेटक * - पु० जादू, इंद्रजाल ।
चटनी - स्त्री० चाटनेकी चीज; नमक, मिर्च, खटाई के योग से बना हुआ अवलेह जो स्वाद के लिए भोजन के साथ खाया जाता है; चटनीके रूपमें बनी हुई दवा, अवलेह; काठका बना एक खिलौना जिसे हाथमें लेकर छोटे बच्चे चाटा करते हैं । मु० - करना - बहुत बारीक पीसना । चटपटा - वि० चरपरा, मिर्च-मसालेदार ; मजेदार | पु० चटपटी चीज, चाट (चने - चटपटे ) ।
चटपटाना - * अ० क्रि० छटपटाना; + हड़बड़ी मचाना । चटपटी - स्त्री० घबड़ाहट, उतावली, छटपटी | चटवाना-स० क्रि० दे० 'चटाना' ।
चटाई - स्त्री० घास, सीक, बेंतकी छाल आदिका बना बिछावन, साथरी; चाटनेकी क्रिया ।
चटान* - स्त्री० दे० 'चट्टान' | चटाना-स० क्रि० चाटनेकी क्रिया कराना; थोड़ा-थोड़ा खिलाना; घूस देना; तलवार आदिपर शान धराना । चटापटी - स्त्री० उतावली, जल्दी; संक्रामक रोगसे लोगोंका जल्दी-जल्दी मरना ।
चटावन - पु० बच्चोंको पहली बार अन्न खिलाने या चटानेकी रस्म, अन्नप्राशन संस्कार ।
चढ़ना - अ० क्रि० नीचेसे ऊपरको जाना, ऊँचा होना; तेज, तीखा होना (स्वर); सवार होना; दलबल के साथ जाना, चढ़ाई करना; उठना, उन्नति करना; बहाव के विरुद्ध जाना; चढ़ाया जाना (कागज, खोल चढ़ना); तनना, कसा जाना; देवतादिको भेंट किया जाना; लगना, आरंभ होना (मास, नक्षत्र आदि); पावना होना, निकलना; लिखा जाना (नाम, रकम); असर होना; आवेश होना (भूत); पोता जाना; पकने के लिए चूल्हेपर चढ़ाया जाना; तेज, महँगा होना (भाव); मामला अदालतमें ले जाना; ( नदीका ) बढ़ना, बाढ़पर होना । चढ़ बढ़कर, चढ़ा बढ़ा - वि० अधिक अच्छा, श्रेष्ठ | मु० चढ़ दौड़ना - चढ़ाई करना । चढ़वाना - स० क्रि० चढ़नेकी क्रिया कराना । चढ़ाई - स्त्री० चढ़नेकी क्रिया, भाव; धावा; ऊँचाई या उत्तरोत्तर ऊँची होती जानेवाली भूमि; * चढ़ावा ।
चटाकपटाक-अ० झटपट तेजीसे ।
चटाका (खा) - पु० लकड़ी, चिमनी आदिके टूटने, उँगली के चढ़ा - उतरी - स्त्री० बार-बार चढ़ना-उतरना । चटकने, तमाचा आदि पड़नेकी आवाज | चढ़ा उपरी - स्त्री० लाग-डाट, होड़, प्रतियोगिता ।
चटाचट - स्त्री० किसी वस्तुके टूटने, फूटनेको 'चट-चट' चढ़ा-चढ़ी - स्त्री० चढ़ा उपरी, लाग-डाट । आवाज | अ० 'चट-पट' आवाजके साथ ।
चटिक * - अ० चटपट; तत्काल ।
चटियल - वि० पेड़-पौधों से रहित, सपाट (मैदान) । चटी - स्त्री० चटशाला; एक तरहका जूता, चट्टी । चटुल- वि० [सं०] चंचल; अस्थिर; सुंदर । चटेल - वि० दे० 'चटियल' ।
चटोर - वि० दे० 'चटोरा' । -पन- पु० स्वाद लोलुपता । चटोरा - वि० स्वादिष्ठ, चटपटी चीजोंका शौकीन स्वाद
लोलुप, खाने-पीने में रुपये उड़ानेवाला; लोभी | खट्ट - वि० चाट-पोंछकर खाया हुआ; समाप्त, गायब ! चट्टा - पु० चेला, शागिर्द; चकत्ता; बाँसकी चटाई; मैदान । चट्टान - स्त्री० बृहत् शिला, बड़ा पत्थर ।
चट्टा बट्टा - पु० काठके खिलौनों-चट्टू, झुनझुने आदिका समूह; ( बहुवचन) बाजीगरकी थैलीसे निकलनेवाले गोले या गोलियाँ । मु० एक ही थैलीके चट्टे बट्टे - एक जैसे, एक ही विचार - स्वभाव के मनुष्य । चट्टे बट्टे लड़ाना- इधरकी उधर लगाकर झगड़ा कराना । चट्टी - स्त्री० पड़ाव, यात्रियोंके टिकनेकी जगह; स्लिपर, एड़ीकी तरफ खुला हुआ जूता; हानि, टोटा; दंड । चट्ट - वि० चटोरा | पु० काठका एक छोटा खिलौना जिसे
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चटखनी - चतुराई
छोटे बच्चे मुँह में डालकर चाटते रहते हैं । चड्डी - स्त्री० एक तरहका लँगोट |
चड्डी - स्त्री० पीठकी सवारी; एक बच्चेका दूसरे बच्चेकी पीठपर सवार होनेका खेल |
चढ़त - स्त्री० देवताको चढ़ायी हुई वस्तु, चढ़ावा । चढ़न* - स्त्री० चढ़नेकी क्रिया ।
चढ़ाना - स० क्रि० ऊपर ले जाना; लटकती हुई चीजको सिकोड़ - सरकाकर ऊपर ले जाना (आस्तीन च० ); तेज, ऊँचा करना (भाव, स्वर); कसना; देवतादिको भेंट देना, अर्पण करना; लिखना, दर्ज करना; खींचना, तानना ( भौं कमान); लादना (कर्ज) ; पोतना; मढ़ना; पी जाना, उदरस्थ करना; चढ़ने, चढ़ाई करनेको प्रेरित करना; खींचना (नाक से पानी च० ); प्रवेश कराना; ढीठ बना देना ।
चढ़ाव - पु० चढ़नेका भाव, चढ़ाई; बढ़ाव; तेजी; ब्याइके समय वधूको वरपक्षकी ओरसे पहनाया जानेवाला गहना, चढ़ावा; धारा या बहावकी उलटी दिशा । चढ़ावा - पु० पूजा में देवताको चढ़ायी जानेवाली सामग्री; चढ़ाव या डालका गहना; चौराहे आदिपर रखी जानेवाली टोटकेकी सामग्री |
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चणक- पु० [सं०] चना; एक गोत्रकार ऋषि । चतुरंग - वि० [सं०] चार अंगोंवाला । पु० चतुरंगिणी सेना; ऐसी सेनाका प्रधान अधिकारी; शतरंज; एक तरहका गाना जिसमें सरगम, तराना, तबले आदिके बोल बैठाये होते हैं । चतुरंगिणी - वि० स्त्री० [सं०] चार अंगोंवाली (सेना) । स्त्री० हाथी, घोड़ा, रथ और पैदलसे युक्त सेना । चतुर - वि० [सं०] होशियार, कार्यदक्ष, तेज, फुरतीला । चतुरई* - स्त्री० दे० 'चतुराई' |
चतुरम्ल - पु० [सं०] अमलबेत, इमली, जंबीरी नीबू और कागजी नीबू - इन चार खट्टे फलोंका समाहार । - चतुरश्र (ख) - वि० [सं०] चौकोर, चतुष्कोण; सुडौल । चतुरसम* - पु० दे० 'चतुस्सम' | चतुराई - स्त्री० होशियारी, चालाकी ।
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'चतुरानन-चपवाना
चतुरानन - ५० [सं०] ब्रह्मा । चतुरापन - पु० चतुराई ।
चतुराश्रम - पु० [सं०] ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास - इन चार आश्रमोंका समाहार । चतुर् - वि० [सं०] चार । पु० चारकी संख्या (इस रूपमें यह शब्द केवल समास में व्यवहृत होता है) । -गुणवि० चौगुना; जिसमें चार बंद या बंधन हों ( बदनपर पहनने का कपड़ा) । - दंत - वि० चार दाँतोंवाला । पु० ऐरावत हाथी । - दश (नू ) - - वि० चौदह; चौदहवाँ । पु० १४की संख्या । - दश भुवन - पु० भूः भुवः स्वः, महः, जनः तपः, सत्यं - ये सात स्वर्ग और अतल, सुतल, वितल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल - ये सात अधोलोक । - दश विद्या स्त्री० ४ वेद, ६ वेदांग और धर्मशास्त्र, पुराण, मीमांसा और तर्क (न्याय) - ये १४ विद्याएँ । -दशी - स्त्री० पक्षविशेषकी चौदहवीं तिथि । - दिक् (श्) - 1- अ० चारों ओर, चौखूँट । स्त्री० चारों दिशाएँ । - धाम (न्) - पु० हिंदुओंके चार मुख्य तीर्थ, चारों धाम । - भुज- वि० चार भुजाओंवाला । पु० वह समक्षेत्र जो चार सरल रेखाओंसे घिरा हो (क्वाड्रिलेटरल) चतुष्कोण क्षेत्र; विष्णु । - भुजी ( जिन्) - पु० वैष्णवोंका एक संप्रदाय इस संप्रदायका अनुयायी । वि० चतुर्भुज । - मास-पु० बरसातका चौमासा; आषाढ़की पूर्णिमा या शुक्ला १२ से कार्त्तिक शुका १२तकका काल । - मुख - वि० चार मुँहोंवाला । पु० ब्रह्मा । अ० चारों ओर । - युग - पु०, - युगी - स्त्री० चारों युगों- सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुगका समाहार, चौकड़ी । वक्त्रपु० ब्रह्मा । वि० चार मुहोंवाला । - वर्ग - पु० चारों पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । - वर्ण - पु० चारों वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । -- वेद-पु० चारों वेद; परमेश्वर । वि० चारों वेदों का ज्ञाता । - वेदी (दिन) - वि० चारों वेदोंका ज्ञाता । पु०ब्राह्मणोंकी एक उपजाति । चतुर्थ - वि० [सं०] चौथा ।
चतुर्थांश - पु० [सं०] चौथा भाग, चौथाई । चतुर्थाश्रम - पु० [सं०] संन्यास ।
चतुर्थी - स्त्री० [सं०] पक्ष-विशेषकी चौथी तिथि, संप्रदान कारक ( व्या० ) ।
चतुष्कल - वि० [सं०] चार कलाओं, मात्राओंवाला । चतुष्कोण - वि० [सं०] चार कोनोंवाला, चौकोर । चतुष्टय - पु० [सं०] चारकी संख्या; चार वस्तुओं, व्यक्तियों
का समाहार ।
चतुष्पथ - पु० [सं०] चौराहा; ब्राह्मण ।
चतुष्पद - वि० [सं०] चार पैरोंवाला । पु० चौपाया जानवर। चतुष्पदी - स्त्री० [सं०] चार चरणोंवाला पद्य; चौपाई छंद । चतुस्सम- पु० [सं०] एक औषध जिसमें लौंग, जीरा, अजवायन और हड़के सम भाग होते हैं; एक गंधद्रव्य जो कस्तूरी, चंदन, कुंकुम और कपूरके योगसे बनता है । चतुस्सीमा - स्त्री० [सं०] चौहद्दी । चत्वर - पु० [सं०] चौकोर स्थान; चौराहा; चबूतरा; यशके लिए साफ किया हुआ मैदान । चदरा - पु० दे० 'चादर' |
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चदरिया* - स्त्री० दे० 'चादर' | चद्दर - स्त्री० दे० 'चादर' | चनक* - पु० चना । चनकट* - स्त्री० चपत, तमाचा । चनकना। - अ० क्रि० चिटकना, दरकना; नाराज होना । चनखना । - अ० क्रि० चिढ़ना; चनकना । चनन* - पु० दे० 'चंदन' |
चनवर* - ५० ग्रास, कौर - 'आपने हाथ लै देत हैं चनवर दूध दही घृत सानि' - अष्ट० ।
चना- पु० चैती फसलका एक प्रधान अन्न जो कई रूपों में खाया जाता है, रहिला | खार-पु० चनेके डंठल, पत्तियों आदिको जलाकर निकाला हुआ खार। मु०नाकों चने चबवाना-खूब हैरान करना । लोहेका चना-बहुत कठिन काम । चनाब - स्त्री० पंजाबकी एक नदी, चंद्रभागा । चनार - पु० एक ऊँचा सुंदर पेड़ जो कश्मीर में बहुत होता है।
चपकन - स्त्री० एक तरहका अँगरखा; ताला लगानेका लोहे या पीतलका दोहरा साज । चपकना - अ० क्रि० दे० 'चिपकना' । चपकाना - स० क्रि० दे० 'चिपकाना' | चपटना। अ० क्रि० दे० 'चिपकना' | चपटrt - वि० दे० 'चिपटा' । चपटाना - स० चिपकाना, चिमटाना । चपटी* - स्त्री० ताली; चुटकी; एक कीड़ा, किलनी ; योनि । + वि० स्त्री० चिपटी । चपड़-चपड़ - स्त्री० दे० 'चभड़-चभड़’। चपड़ा - पु० साफ की हुई लाख; पत्तर; एक कीड़ा । चपत - स्त्री० तमाचा; धौल; धक्का, नुकसान । - बाज़ी - स्त्री० मनोविनोद के लिए किसीको चपत लगाना । मु०बैठना, - लगना-नुकसान होना ।
चपना -- अ० क्रि० दबना, कुचला जाना; दाबमें पड़ना; लज्जित होना ।
चपनी - स्त्री० कटोरी; दरियाई नारियलका कमंडलुः घुटनेकी हड्डी इंडीका ढक्कन
चपरगट्टू - वि० अभागा, विपद्ग्रस्त; गुत्थमगुत्था । परना - स० क्रि० दे० 'चुपड़ना '; सानना । चपरा- ५० दे० 'चपड़ा' ।
। चपरास-स्त्री० सिपाही, अरदली आदिका धातुनिर्मित चिह्न जिसे पेटी या परतलेमें लगाकर पहनते हैं । चपरासी - पु० चपरास धारण करनेवाला, अरदली । चपरि* - अ० झपटकर, फुरतीसे ।
चपल - वि० [सं०] चंचल, अस्थिर; तेज; जल्दबाज; अविचारी; क्षणिक ।
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चपलता - स्त्री० [सं०] चंचलता, अस्थिरता; तेजी; जल्दबाजी । चपला - स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; बिजली; पुंश्चली स्त्री; जीभ । चपलाई * - स्त्री० चपलता ।
चपलाना * - अ० क्रि० हिलना, चलना । स०क्रि० चलाना, हिलाना ।
चपवाना-स० क्रि० दबवाना ।
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२३७
चपाकदै*
* - अ० अचानक; चटपट । चपाती - स्त्री० पतली रोटी, फुलका । चपाना - स० क्रि० दबवाना | चपेट-स्त्री० धक्का; रगड़ा; दबाव । चपेटना - स०क्रि० दाबना; पीछा करते हुए भगाना; डाँटना । चपेटा - पु० धक्का; दबाव; रगड़ा; लकड़ी, लाख आदिका छः पहला टुकड़ा । स्त्री० [सं०] चपत, तमाचा । चपेरना * - स० क्रि० दबाना, चापना । चप्पड़ - पु० दे० 'चिप्पड़' ।
चप्पल- पु०, स्त्री० खुली एड़ीका जूता ।
चप्पा - पु० चार अंगुल या चार बित्ता स्थान; थोड़ा-सा स्थान; चतुर्थांश । -चप्पा - अ० रत्ती रती; हर जगह । चप्पी - स्त्री० चाँपनेकी क्रिया; धीरे-धीरे पाँव दबाना । चप्पू- पु० पतवारका काम देनेवाला एक तरहका डाँड़ । बवाना - स० क्रि० 'चबाना' का प्रेरणार्थक | चबाई* - पु० दे० 'नवाई' |
चबाना - स० क्रि० दाँतोंसे कुचलना, चूर करना । चबा चबाकर - रुक-रुककर, कुछ बातोंको छोड़ते, छिपाते हुए ( बोलना ) | मु० चबा जाना-खा जाना; काट खाना । चबारा* - पु० चौबारा ।
चबाव * - पु० दे० 'चवाव' |
चबावन* - पु० दे० 'चवाव' |
चबूतरा - पु० मिट्टी, ईटों आदि से बैठनेके लिए बनाया गया। थोड़ा ऊँचा स्थान |
चबे (बै) ना - पु० चबाकर खानेकी चीज, भुना हुआ चना, चावल आदि, भूजा ।
चबे (बैनी - स्त्री० तली दाल, मिठाई आदि जलपानकी सामग्री; चबेना; जलपानका मूल्य ।
चभक - पु० किसी चीजके पानी में डूबनेकी आवाज । चभड़-चभड़ - स्त्री० कुत्ते-बिल्ली आदिके पानी पीते या तरल वस्तु खाते समय मुँह से निकलनेवाली आवाज; खाते समय मुँह से उत्पन्न होनेवाला शब्द ।
चभाना - स० क्रि० खिलाना; तर माल खिलाना । चभोरना - स० क्रि० गोता देना, डुवाना; तर करना । चमकना * - अ० क्रि० दे० 'चमकना' । चमक- स्त्री० ओप, कांति; झलक; भड़क; लचक; झटके आदिसे कमर आदि में अचानक पैदा होनेवाला दर्द । - ताई * - स्त्री० चमकीलापन । - दमक- स्त्री० दीप्ति; तड़क-भड़क । - दार- वि० चमकवाला, कांतियुक्त । चमकना - अ० क्रि० झलकना, जगमगाना; प्रसिद्ध होना; समृद्धि प्राप्त होना; जोर पकड़ना; चौकना; भड़कना; अचानक दर्द होना; झटपट चल देना । चमकाना - स० क्रि० चमकदार बनाना, उज्ज्वल करना; चिढ़ाना; भड़काना; एड़ लगाकर घोड़ेको यकायक चंचल और तेज करना; धमकाने के लिए दिखाना, हिलाना (छुरी, तलवार); मटकाना ( उँगलियाँ, आँखें) । चमकारी * - स्त्री० चमक; चकाचौंध पैदा करनेवाली
रोशनी । वि० स्त्री० चमकीली । चमकी - स्त्री० कारचोवी में जमीन भरनेके काम आनेवाला बूटा, सितारा; नकली रेशमका कपड़ा ।
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चमकीला - वि० चमकदार । चमकवल - स्त्री० चमकानेकी क्रिया ।
चपाकदै -
चमगादड़ - पु० चूहेकी शकलका स्तनपायी जीव जो चिड़ियोंकी तरह उड़ सकता है।
-चम्मच
चमचम- स्त्री० एक बँगला मिठाई । अ० दे० 'चमाचम' । चमचमाना- अ० क्रि० चमकना, इतना साफ-स्वच्छ होना कि चमक निकले । स० क्रि० चमकाना, चमाचम करना । चमचा - पु० छिछली कलछी जैसा पात्र जिससे खाना परोसनेका काम लेते हैं; चिमटा; कोयला निकालनेका फावड़ा। चमची - स्त्री० छोटा चमचा; चौड़ी चपटी नोकवाली सलाई जिससे कत्था चूना निकालते और पानपर फैलाते हैं । चमजुई, चमजोई - स्त्री० एक तरहकी छोटी किलनी; चिमटनेवाली चीज |
चमड़ा - पु० प्राणिशरीरका नैसर्गिक आवरण, चर्म, त्वचा; शरीर से अलग की हुई त्वचा, खाल; छिलका । चमड़ी - स्त्री० चर्म, त्वचा ।
चमत्कार - पु० [सं०] लोकोत्तर वस्तु देखकर मनमें उत्पन्न होनेवाला आनंदरूप विस्मय; अद्भुत बात, करामात; तमाशा; उत्सव; भीड़; काव्योत्कर्ष ।
चमत्कारी (रिन्) - वि० [सं०] विस्मित करनेवाला; चमत्कारयुक्त ।
चमत्कृत - वि० [सं०] अचंभे में आया हुआ, विस्मित | चमत्कृति - स्त्री० [सं०] चमत्कार |
चमन - पु० [फा०] क्यारी; फुलवारी; हरा-भरा स्थान । चमर - पु० [सं०] सुरा गाय नामका एक पशुः चँवर । चमरख - स्त्री० चमड़े की चकती जिसमेंसे होकर चरखेका तकला घूमता है । वि० स्त्री० दुबली-पतली (स्त्री) | चमरस- पु० जूतेकी रगड़का घाव । चमरी - स्त्री० [सं०] सुरा गाय; चंवरी; मंजरी । चमरोटी - स्त्री० चमारोंकी बस्ती ।
चमरौट - पु० चमारोंको उनके कामके बदले मिलनेवाला फसल आदिका भाग ।
चमरौधा - पु०देशी ढंगका बना, भारी, भद्दा जूता, चमौआ । चमाऊ - पु० चँवर ।
चमाक * - स्त्री० चमक, कांति । चमाचम - अ० चमकके साथ ।
चमार - पु० चमड़ा कमाने, जूते आदि बनानेका धंधा करनेवाली एक जाति । - चौदस - पु० चमारोंका जलसा; चार दिनकी धूमधाम । ( स्त्री० चमारिन ) । चमारी - स्त्री० चमार स्त्री; चमारका धंधा । चमू - स्त्री० [सं०] सेना; सेनाका एक भाग जिसमें ७२९ हाथी, ७२९ रथ, २१८७ सवार और ३६४५ पैदल होते थे । - नायक, - पति-पु० सेनानायक । चमेलिया - वि० चमेली के रंगका ।
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चमेली - स्त्री० सुगंधित फूलोंवाली एक लता । चमोटा - पु० चमड़ेका टुकड़ा जिसपर छुरेको धार तेज करने के लिए रगड़ते हैं ।
चमोटी-स्त्री० चमोटा; चाबुक; पतली छड़ी | चमौवा - पु० चमरौधा जूता । चम्मच - पु० दे० 'चमचा' |
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चय-चरमराना
२३८ चय-पु० [सं०] समूह, ढेर, नीव दह, टीला; खाईकी चलना, भ्रमण; भक्षण; आचरण; (ला०) चरणोंकी समीमिट्टीसे बना हुआ बाँध या धुस्स, दुर्गप्राचीर; दुर्ग; तिपाई, पता, आश्रय । -कमल,-पम-पु० पादपद्म, सुंदर चौकी; लकड़ीका ढेर ।
चरण ।-चिह्न-पु० पाँवका निशान, पदचिह्न । -दासीचयन-पु० [सं०] इकट्ठा करना, चुनना; फूल चुनना; स्त्री० पली; जूती । -पादुका-स्त्री० खड़ाऊँ पत्थर क्रमसे लगाना; चुनी हुई वस्तुओंका संग्रह; यशके लिए आदिपर बना चरणचिह्न । -पीठ-पु० खड़ाऊँ; पाँवड़ी। अग्निका एक संस्कार; लकड़ी जमा करना; * दे० 'चैन' । -रज (स)-स्त्री० चरणधूलि । -सेवा-स्त्री० पाँव -शील-वि० संग्रह करनेवाला, संग्रही।
दबाना; सेवा, खिदमत । -सेवी (विन)-पु० टहल, चयनिका-स्त्री० [सं०] चुनी हुई कविताओं, कहानियों सेवक; चरणों में रहनेवाला । मु.-छूना-पाँव छूकर आदिका संग्रह।
प्रणाम करना। -पढ़ना-आगमन, प्रवेश होना। चयनीय-वि० [सं०] चयन करने योग्य ।
चरणामृत-पु० [सं०] वह जल जिसमें किसी देवमूर्ति या चर-पु० [सं०] स्वराष्ट्र या परराष्ट्रकी छिपी बातें मालूम पूज्य पुरुषके पाँव पखारे गये हों; देवमूर्तिको स्नान कराया करनेपर नियुक्त व्यक्ति, गुप्त दूत, भेदिया; दूत । वि०चल, हुआ दूध, दही आदि, पंचामृत । अस्थिर; चलनेवाला।
चरणायुध-पु० [सं०] मुरगा। चरई-स्त्री० पशुओंको चारा या पानी देनेके लिए पत्थर चरणारविंद-पु० [सं०] दे॰ 'चरणकमल' । आदिका बना हुआ हौज, चरनी; तारकी खटी।
चरणाद्ध-पु० [सं०] चरणका आधा भाग । चरक-पु० एक प्रकारका कुष्ठ जिससे बदनपर सफेद दाग चरणोदक-पु० [सं०] चरणामृत । हो जाते हैं, फूल; [सं०] चर, दूत; आयुर्वेदके एक प्रधान चरन*-पु० दे० 'चरण'। -दासी-स्त्री. जूती (साधु) । आचार्य जिनका ग्रंथ 'चरकसंहिता' आयुर्वेदका प्रधान -बरदारी-पु० जूता पहनाने या जूता लेकर चलनेचिकित्सा ग्रंथ माना जाता है। चरकसंहिता । -संहिता- वाला नौकर, (कफश-बरदार) । स्त्री० चरक मुनिका बनाया हुआ चिकित्साग्रंथ । चरना-स० क्रि० पशुओंका मैदान या खेतमें घास, चरकटा-पु० ऊँट, हाथी आदिके लिए चारा काटकर लाने शस्यादि खाना; * लाँधना, दबाना । * अ०क्रि० चलना; वाला; तुच्छ जन ।
व्यवहार करना; फिरना, बिचरना । पु० काछा। चरकना*-अ० क्रि० टूटना, फूटना, दरकना ।
चरनायुध-पु० दे० 'चरणायुध'। चरका-पु० हलकासा जख्म, खरोंच, गरम लोहेसे दागने- | चरनि*-स्त्री० चलनेकी क्रिया या ढंग; चाल ।
का निशान हानि, घाटा; चकमा, धोखा (खाना, देना)। चरनी-स्त्री० मेंडदार लंबोतरा चबूतरा जिसपर गाय-बैलको चरख-पु० चाक; चरखी, घिरनी खराद; चरखा; रेशम चारा-पानी दिया जाता है। गाय-बैलको चारा-पानी देनेके या कलाबत्त लपेटनेकी चरखी; ढेलवाँस; तोप ढोनेवाली लिए गड़ी हुई नाँद; * चारा; चरागाह; चरनेकी क्रिया। गाड़ी; लकड़बग्घा; एक शिकारी चिड़िया।
चरपट-पु० उचक्का; चपत, तमाचा; एक छंद । चरखा-पु. हाथसे सूत कातनेका काष्ठनिर्मित यंत्र (कातना, चरपर-वि० दे० 'चरपरा'। चलाना); रहँट; सूत लपेटनेकी चरखी घिरनी; खड़खड़िया चरपरा-दि० तीखे खादवाला, झालदार, तेज, छटपट । बेडौल पहिया शिथिलांग वृद्ध व्यक्ति; झंझटवाला काम।चरपराना-अ० क्रि० चर्राना; घावमें खुश्कीके कारण चरखी-स्त्री० घूमनेवाला चक्कर; चाक; ओटनी; छोटा तनाबसे पीड़ा होना। चरखा सूत लपेटनेकी फिरकी; एक आतिशबाजी जो चरपराहट-स्त्री० स्वादका तीखापन, झाला घावकी जलन; चक्कर खाती हुई छूटती है; जुलाहोंका एक औजार कुएँसे | डाह, द्वेष ।। पानी निकालनेकी गराड़ी; हिंडोला।
चरफराना*-अ० क्रि० तड़फड़ाना; व्याकुल होना। चरग*-पु० चरख नामकी शिकारी चिड़िया; लकड़बग्धा। चरब-वि० [फा०] चरबीदार, चिकना, मोटा तेज। चरचना-स० कि० चंदन, केसर आदिका लेप करना; चरबन-पु०, स्त्री० चबैना। पहचानना; ताड़ना, भाँपना-'सैननि चरचि लई'-रसवि० चरबाँ(बा)क-वि० चतुर; ढीठ, निडर, चंचल । पूजा करना।
चरबा-पु० [फा०] वह चिकना, बारीक कागज या कपड़ा चरचराना-अ० कि० 'चर चर की आवाजके साथ टूटना। जिसे ऊपर रखकर चित्र या नक्शेका अक्स उतारते हैं, या जलना चर्राना; तनावके कारण दर्द होना।
खाका (उतारना); प्रतिलिपि । चरचराहट-स्त्री० चरचरानेकी क्रिया या भाव; किसी चरबी-स्त्री० मांसके ऊपर और त्वचाके नीचे रहनेवाला चीजके चरचरानेका शब्द ।
सफेद या हलके पीले रंगका चिकना पदार्थ, वसा, मेद; चरचित*-वि० दे० 'चचिंत'।
मोटाई । मु०-चढ़ना-मोटा होना; घमंड होना। चरचा*-स्त्री० दे० 'चर्चा' ।
चरम-वि [सं०] अंतिम; हद दरजेका सबसे ऊपरका; चरचारी*-पु० चर्चा करनेवाला; निंदक ।
सबसे पीछेका; जरठ (अवस्था)। -काल-पु० मृत्युकाल । चरज*-पु० चरख पक्षी।
चरमर-पु. चलने में जूतेसे, चारपाईपर बैठने आदिसे चरजना-स० क्रि० बहकाना । अ० क्रि.० अंदाजा लगाना। होनेवाली आवाज । चरण-पु० [सं०] पाँव, पग, कदमः श्लोक या छंदका एक चरमराना-अ०क्रि० 'चरमर' आवाज होना । स० कि. पाद; चतुर्थांश; उपविभाग; सूर्य, चंद्र आदिकी किरण; 'चरमर' शब्द उत्पन्न करना ।
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चरमवती* - स्त्री० दे० 'चर्मण्वती' |
चरमोत्पादन - पु० [सं०] ( पीक प्रॉडक्शन ) अधिकतम चरुखला * - पु० चरखा ।
मात्रा में किया गया उत्पादन ।
चरसिया, चरसी - पु० चरस पीनेवाला, चरसका व्यसनी; चरसके जरिये पानी निकालने या खेत सींचनेवाला । चराई - स्त्री० चरने या चरानेका काम या उजरत । चरागाह - पु०, स्त्री० [फा०] पशुओंके चरने चराने की जगह, घासका मैदान ।
चराचर - वि० [सं०] चलनेवाला और न चलनेवाला, स्थावर और जंगम । पु० संपूर्ण जगत् ; आकाश । चराना - स० क्रि० गाय, बैल आदिको जंगल आदि में ले जाकर घास, चारा खिलाना; बेवकूफ बनाना, धोखा देना । चरावर* - स्त्री० बकवास । चरिंदा - पु० [फा०] चरनेवाला प्राणी, जानवर, चौपाया । चरित - पु० [सं०] आचरण; कर्म; शील, स्वभाव; जीवन चरित | वि० आचरित किया हुआ; प्राप्त; गत; ज्ञात । - कार - लेखक - पु० जीवनचरितका लेखक ।-नायक - पु० किसी कथा कहानीका प्रधान पात्र । चरितव्य - वि० [सं०] आचरण करने योग्य; जाने योग्य । चरितार्थ - वि० [सं०] जिसका अर्थ, प्रयोजन सिद्ध हो
गया हो, कृतार्थ; संतुष्ट; जो ठीक उतरे, यथार्थं सिद्ध हो । चरितार्थता - स्त्री० [सं०] कृतार्थता; यथार्थ सिद्ध होना; घटित होना ।
चरितावली - स्त्री० [सं०] वह पुस्तक जिसमें बहुतों के
जीवनचरित दिये गये हों; चरितमाला | चरित्तर - पु० चरित्र; छल, फरेब; ढोंग । चरित्र- पु० [सं०] आचरण, व्यवहारा चाल-चलन; कर्तव्य, कर्म-कलाप; शील, स्वभाव; सदाचार; जीवनी, वृत्त; पैर; गमन । - गठन - पु० शील, सदाचार-वृत्तिका निर्माण । -दोष - पु० चाल-चलनकी खराबी, आचरणकी खुटाई । - नायक - दे० ' चरितनायक' । - पंजी-स्त्री० (कैरेक्टर बुक) दे० 'आचरण पंजी' । -हीन- वि० दुश्चरित्र, खराब चाल-चलनवाला ।
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चरमवती - चर्वण
जच्चाके लिए पानी गरम किया जाय ।
चरवाई- - स्त्री० चरानेका काम; चरानेकी उजरत । चरवाना - स० क्रि० चरानेका काम कराना । चरवाहा - पु० गाय-भैंस चरानेका काम करनेवाला | चरवाही - स्त्री० चरवाहेका काम; पशु चरानेकी उजरत । चरवैया - पु० चरनेवाला; चरानेवाला ।
चरस - पु० गाँजेके पेड़से निकला हुआ गोंद जो गाँजेकी ही तरह पिया जाता है; दे० 'चरसा' ।
चर्चक - पु० [सं०] चर्चा करनेवाला; आवृत्ति करनेवाला । चरसा - पु० बैल, भैंस आदिका चमड़ा; चमड़ेका बना बड़ा चर्चन - पु० [सं०] चर्चा; अध्ययन; चंदनादिका लेपन | थैला; मोट । चर्चरिका - स्त्री० [सं०] नाटक में एक परदा गिरनेके बाद और दूसरा उठने के पहले गाया जानेवाला गाना; तालीसे ताल देना; आमोद-प्रमोदकी धूम; उत्सव; चापलूसी । चर्चरी - स्त्री० [सं०] चर्चरिका; चाँचर, फाग; रंगरलियाँ मनाना, हर्षक्रीड़ा; करतलध्वनिः तालका एक भेद; एक वर्णवृत्त; एक तरहका ढोल; आमोद-प्रमोद; गाना-बजाना । चर्चा - स्त्री० [सं०] पाठ, आवृत्ति; वाद-विवाद; जिक्र, बयान; वार्तालाप; अफवाह; विचारणा; चंदनादिका लेपन । चर्चित - वि० [सं०] लेपित; विचारित; इच्छित; जिसकी चर्चा की गयी हो ।
चरू* - पु० दे० 'चरु' । चरेश* - वि० खुरदरा; रूखा । चरेरू* - पु० पक्षी |
चरैया - पु० चरनेवाला; चरानेवाला । चरोखर - पु० चरी, गोचर भूमि | घरोतर - पु० निर्वाहार्थ जिंदगीभर के लिए दी गयी जमीन । चर्खा -पु० दे० 'चरखा' |
चर्नार* - पु० चुनार ( चरणाद्रि ) नामक स्थान | चर्बण-पु० [सं०] दे० 'चर्वण' । चर्बी - स्त्री० दे० 'चरबी' ।
चर्म - पु० [सं०] ढाल; दे० 'चर्म (न्)' ।
चर्म (न्) - पु० [सं०] चमड़ा, खाल; स्पर्शेद्रिय; ढाल । - कार - कारक - पु० चमार, चमड़ेका काम करनेवाला, मोची । - कील- पु० बवासीर; एक रोग जिसमें देहमें नुकीला मस्सा निकल आता है । - चक्षु ( स ) - पु० स्थूल दृष्टि | - दंड - पु० चमड़ेका बना चाबुक |- पादुका - स्त्री० जूता । - प्रसाधक - वि० (टेक्सिडर मिस्ट) पशु-पक्षियोंके चमड़े या खालको पृथक् कर उसमें भूसा आदि भरकर सजाने या जीवित-सा रूप देनेका काम करनेवाला । - वाद्य - पु०ढोल, नगाड़ा । - शोधन - पु० ( टैनिंग) विशेष प्रकारके घोलोंमें डालकर या अन्य प्रक्रिया द्वारा चमड़ेको सिझाना, मुलायम बनाना। -शोधनालय - पु० ( टैनरी) वह स्थान या कारखाना जहाँ विशेष प्रक्रिया द्वारा चमड़ेको सिझाने, मुलायम बनानेका काम किया जाता है । चर्मण्वती - स्त्री० [सं०] चंबल नदी । चर्ममय - वि० [सं०] चमड़ेका बना हुआ ।
चर्मोदक - पु० [सं०] ( लिम्फ ) शरीर के चमड़े या जखम इत्यादि से निकलनेवाला एक तरहका लसीला पदार्थ; लसीका ।
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चरित्रवान् (वत्) - वि० [सं०] सदाचारी |
चरी - स्त्री० पशुओंके चरनेके लिए जमींदारकी ओरसे बिला लगान मिली हुई जमीन, गोचारणभूमि; हरी ज्वार जो गाय-बैलोंको खिलानेके लिए बोयी गयी हो । चरु - पु० गोचर भूमि; गोचर भूमिका कर; [सं० यज्ञमें आहुति देनेके लिए पकाया हुआ अन्न, हव्यान्न; वह बरतन जिसमें चरु पकाया जाय; यज्ञ ।
चर्या - स्त्री० [सं०] आचरण; पालन; जीविका; नियमपूर्वक अनुसरण; गति, गमन; भ्रमण; भोजन; चाल, प्रथा; दुर्गा । चराना - अ० क्रि० खालमें खुश्कीसे तनाव या हलका दर्द होना; 'चर-चर' करके टूटना; (ला० ) प्रबल इच्छा होना (शौक चर्राना) ।
चरी - स्त्री० लगनेवाली बात ।
aert - पु० चौड़े मुँहका मिट्टीका पात्र; वह पात्र जिसमें । चर्वण - पु० [सं०] चबाना; रसास्वादन; चबाकर खाया
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जातका
चर्वित-चसक जानेवाला भुना हुआ दाना, चबेना; ठोस खाद्य पदार्थ।।
हुआ दाना, चबना; ठोस खाद्य पदार्थ । चलवंत*-पु० पैदल सैनिक । चर्वित-वि० [सं०] चबाया हुआ । -चर्वण-पु० चबाये चलवाना-स० क्रि० चालने या चलानेका काम कराना। हुएको चबाना; कही हुई बातको फिर-फिर कहना। चलवैया-पु० चलनेवाला । चल-वि० [सं०] गतिमान; हिलता-डोलता अस्थिर जंगमः चलाऊ-वि० अधिक दिन चलनेवाला, टिकाऊ । क्षणस्थायी। -चित्त-वि० अस्थिरचित्त, चंचल चित्त- चलाक*-वि० चालाक, चतुर, चंचल । वाला । -चित्र-पु० सिनेमा, बाइसकोप । -चूक*- चलाका*-स्त्री०बिजली। स्त्री० छल-कपट । -दल,-पत्र-पु० पीपल ।-निक्षेप- चलाचल-वि० [सं०] चल और अचल; अस्थिर; क्षणपु० (करेंट डिपॉजिट) बैंकके चलते खातेमें जमा की हुई स्थायी; चंचल । पु० कौआ। * स्त्री० चलाचली; चाल । रकम । -वेिचल-वि० अस्थिर, डावाँडोल । -संपत्ति-चलाचली-स्त्री० चलचलाव; बहुतोंका एक साथ चलना। स्त्री० ऐसी संपत्ति जो एक स्थानसे हटाकर अन्यत्र ले जायी | चलान-स्त्री०, पु० दे० 'चालान'। जा सके।
चलाना-स० कि० चलनेको प्रेरित करना, चलनेकी क्रिया चलचलाव-पु० कूच; मौत; चलनेकी तैयारी; प्रस्थान- कराना; हाँकना; हिलाना, हरकत देना; आचरण कराना; काल; प्रस्थानकी हड़बड़ी, रवारवी ।
चलन कराना (सिक्का); आरंभ करना; प्रवर्तन करना चलता-स्त्री० [सं०] चल या गतिशील होनेका भाव (चर्चा, धर्म, वंश; जारी रखना काममें लाना; छोड़ना, अस्थिरता । वि० [हिं०] चलता हुआ, गतिमान्; जिसका फेंकना (तीर, गोली); निभाना, गुजर करना; बढ़ाना, चलन हो, प्रचलित; जो सदा खुला, जारी रहे (खाता); चमकाना (रोजगार, वकालत); परसना; दायर करना चलनेवाला, काम देने लायक; बढ़ता, चमकता हुआ (मुकदमा इ०); बहाना ।। (चलती दुकान, बकालत ); सरसरी, ऊपरी (चलती | चलायमान-वि० [सं०] विचलित; डावाँडोल, चंचल । निगाह); चालाक ( व्यवहारकुशल); कामचलाऊ (कार्य); चलार्थ-पु० [सं०](करेंसी) वह सिक्का या मुद्रा जिसका प्रयोग हलका अशास्त्रीय (गाना, चीज)। -खाता-पु० बंक- या व्यवहार निरंतर होता रहता हो, जो एक आदमीके का वह खाता जिसमें चाहे जब रुपया जमा किया और हाथसे दूसरेके हाथमें जाता रहता हो ।-पत्र-पु०(करेंसी निकाला जा सके। -पुरज़ा-वि० चालाक, धून । मु० नोट) सिक्केकी तरह व्यवहृत होनेवाली कागजको मुद्रा । -करना-हटाना, विदा करना; निपटाना। -फिरता चलाव-पु० प्रस्थान, रवानगी; गौना; चलावा। नज़र आना-चलता बनना। -बनना, होना-चल चलावा-पु० गौना, मुकलावा; चलन, रिवाज; बीमारीमें देना, खिसक जाना।
एक गाँवकी ओरसे दूसरे गाँवकी सीमामें किया जानेवाला चलती-स्त्री० जोर, असर ।
उतारा। चलन-पु० [सं०] हिलना-डोलना; गति, चाल; भ्रमण; चलित-वि० [सं०] चलता हुआ; हिलता, काँपता हुआ;
चरण ।-कलन-पु० ज्योतिषका एक गणित जिसके द्वारा अस्थिर; गत; प्राप्त; शात; हटाया हुआ । दिनमानका घटना-बढ़ना जाना जाता है। -समीकरण | चलित्र-पु० [सं०] (लोकोमोटिव ) ( रेलगाड़ी आदिको) -पु० गणितकी एक विशेष क्रिया जिसके द्वारा शात राशिकी सहायतासे अशात राशि निकाली जाती है।
चलिष्णु-वि० [सं०] गमनशील; जानेको तैयार । चलन-पु० चलनेका भाव; व्यवहार, रिवाज; रीति; चाल, चलौवा-पु० एक तरहका उतारा जो दूसरे गाँवकी सीमामें ढंग प्रचार । -सार-वि० जिसका चलन, व्यवहार हो,! फेंक दिया जाता है। प्रचलित (सिक्का); टिकाऊ ।
चवना*-अ० क्रि० चूना, टपकना । सक्रि०चुआना, चलना-अ०क्रि० हिलना, हरकत करना; एकसे दूसरी सवित करना ।
जगह जाना,प्रस्थान करना प्रचलित होना; आरंभ होना, चवन्नी-स्त्री० चार आने मूल्यका चाँदी आदिका सिक्का। छिड़ना (चर्चा, बात ); बिदा होना; मरना; जारी रहना | चवा-स्त्री० एक साथ चारों दिशाओंसे बहनेवाली हवा । (नाम, वंश); निभना; टिकना; बहना; काममें लाया चवाई-पु० चुगलखोर, निंदक, चवाव करनेवाला । जाना ( तलवार, लाठी इ०); छूटना, फेंका जाना (तीर, चवाउ*-पु० दे० 'चवाव। गोली ); हो सकना; उठना; बढ़तीपर होना, चमकना चवाव-पु० अफवाह; बुराईकी चर्चा; चुगलखोरी । चलती होना; काम देना, कारगर होना ( जादू-मंत्र); चश्म-स्त्री० [फा०] आँख, नेत्र; नेत्राकार वस्तु ।-दीदजोर, बस होना; आचरण करना; परसा जाना; पढ़ा वि० आँखों देखा; जिसने आँखों देखा हो, प्रत्यक्षदशी जाना (पत्रादि); खाया जाना; गुजर होना; दायर होना (गवाह)। -पोशी-स्त्री० किसीके दोष-दुर्गुण देखकर (मुकदमा इ०)। स० कि० (शतरंज, चौसर आदिमें) टाल जाना, उपेक्षा करना । -व चराग़-पु० आँख और मोहरे या गोटको एकसे दूसरे घरमें रखना, हटाना,बढ़ाना; ज्योति; बहुत प्यारा; (ला०) बेटा। (ताश, गंजीफेमें) कोई पत्ता खेलनेवालोंके सामने फेंकना। चश्मा-पु० [फा०] सोता, स्रोत; ऐनक सुईका छेद । मु० चल निकलना-ठीक तौरसे चलने लगना, जमनाचष-पु० दे० 'चक्षु'। -चोल-पु० आँखकी पलक । सफलताकी ओर बढ़ना।
चषक-पु० [सं०] शराब पीनेका प्याला, पानपात्र; एक चलनि*-स्त्री० दे० 'चलन' ।
तरहकी शराब; शहद । चलनी-स्त्री० + दे० 'छलनी'।
चसक-स्त्री० मगजीके आगे लगायी जानेवाली पतली
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२४१
गोट हलकी पीड़ा, टीस । * पु० दे० 'चषक' । चसकना - अ० क्रि० कसकना, हलका दर्द होना । चसका - पु० किसी चीजका मजा मिलनेसे उसे फिर करने, भोगनेकी इच्छा होना, चाट; इस तरह लगी हुई लत । चसना - अ० क्रि० मरना; चिपकना । चसम* - स्त्री० दे० 'चश्म' |
चसमा - पु० दे० 'चश्मा' |
चह - पु० नदी में बल्ले गाड़कर तथा तख्ते बिछाकर बनाया हुआ अस्थायी पुल; [फा०] ('चाह' का लघु रूप) कुआँ, गढ़ा। - बच्चा - पु० गंदा पानी जमा होनेके लिए खोदा हुआ गढ़ा; रुपया-पैसा गाड़नेके लिए बनाया हुआ गढ़ेकी
|
शकलका तहखाना ।
चहक - स्त्री० चहकनेका भाव, चहचहा । + पु० पंक चहकना - अ० क्रि० चिड़ियोंका चहचहाना, आनंद में भर कर कलरव करना; खुशी से खिलकर बोलना; जलना । म० क्रि० जलाना, संतप्त करना ।
चहनि * - स्त्री० दे० 'चाह' |
चहर* - स्त्री० चहल-पहल ; आनंदका कोलाहल, शोर; उपद्रव । वि० बढ़िया; तेज । -पहर- स्त्री० दे० 'चहलपहल' |
चहकारना! -- अ० क्रि० चहकना ।
चहकारा* - वि० चहकनेवाला, कलरव करनेवाला । चहचहा - पु० 'चहचहाना' का भाव; चिड़ियोंकी आनंदभरी बोली, कलरव, हँसी-खुशी; कई आदमियोंका एक साथ हँसना, मुदित होकर बोलना; हँसी-मजाक । वि० 'चहचह ' शब्दसे भरा हुआ; आनंदपूर्ण; उल्लास-युक्त । चहचहाना - अ० क्रि० चिड़ियोंका आनंद में भरकर लगा चाँड़ी। स्त्री० चोंगी, कीप । तार बोलना, चहकना ।
चहना* स० क्रि० देखना; चाहना ।
चहरना * - अ० क्रि० मुदित होना । चहराना * - अ० क्रि० प्रसन्न होना; चर्राना; फटना । चहल * - स्त्री० दे० 'चहला'; आनंदोत्सव | -पहल- स्त्री० किसी स्थान में अधिक आदमियोंके इकट्ठे होने, आने-जानेसे वायुमंडल में पैदा हुई सजीवता, धूमधामः प्रसन्नता; आवादी; रौनक |
चहलकदमी - स्त्री० [फा०] चेहलकदमी, धीरे-धीरे टहलना । चहला * - पु० कीचड़ ।
चहार - वि० [फा०] चार | पु० चारको संख्या । - दीवारी - स्त्री० किसी स्थानके चारों ओर, आड़ बचावके लिए खींची हुई दीवार, परकोटा।
चहारुम - वि० [फा०] चौथा । पु० चतुर्थांश, चौथाई । चहु* * वि० चार, चारों । -घा - दिस-अ० चारों ओर । चहुटना * - स० क्रि० चोट पहुँचाना। चहूँ* - वि० दे० 'चहुँ' ।
चहूँटना - अ० क्रि० सटना ।
चटना* - स० क्रि० दे० 'चपेटना'; निचोड़ना चहेता - वि० प्यारा, प्रेमपात्र । [स्त्री० 'चहेती' ।] होड़ (र) ना + - स०क्रि० रोपना; सँभालना । चाँइयाँ - वि० धूर्त, ठग । चाहूँ - वि० उचक्का, धूर्त, चालाक; गंजा । पु० ठग । स्त्री०
चसकना
- चाँदा
सिरका एक रोग जिसमें फुंसियाँ होती और बाल गिरते हैं। चाँक- पु० काठकी थापी जिससे खलियानमें अन्नकी राशि गोठते हैं; अन्नकी राशि गोंठनेका चिह्न । चाँकना - स० क्रि० गोंठना, रेखाओंसे घेरना । चाँगला - वि० धूर्त, चालाक; हृष्टपुष्ट । चाँचर, चाँचर - स्त्री० होली के अवसरपर गाया जानेवाला एक राग, फाग; परती जमीन ।
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चांचल्य - पु० [सं०] चंचलता, चपलता । चाँचु - स्त्री० चोंच ।
चाँटा पु० चपत, तमाचा; * चींटा ।
चाँटी-स्त्री० कारीगरोंपर लगनेवाला एक पुराना कर; तबले के ऊपर किनारेपर लगायी जानेवाली मगजी; इस मगजीपर आघात होनेसे निकलनेवाला शब्द; * चींटी । चाँड़- स्त्री०भारी आवश्यकता, गरज; बेकली, प्रबल इच्छा - 'तोरे धनुष चाँड़ नहिं सरई' - रामा०; दबाव; लकड़ीकी पटरी या पाटन जिसपर सामान आदि रखा जाय; थूनी । वि० प्रबल, उग्र, प्रचंड, श्रेष्ठ; तृप्त, अघाया हुआ । चाँड़ना - स० क्रि० रौंदना; तोड़-फोड़कर नष्ट करना; खोद डालना ।
चांडाल - पु० [सं०] अंत्यज-वर्ग में सबसे नीची मानी गयी जाति, डोम; निषाद; क्रूर, नीच कर्म करनेवाला व्यक्ति । चाँडिला* - वि० चंड प्रचंड प्रबलः उद्धत; बहुत बढ़ा हुआ ।
चाँद - पु० चंद्रमा, एक गहना जो दूजकी चाँदको शकलका होता है; चाँदमारीका निशान; कलाईपर गोदा जानेवाला एक तरहका गोदना । स्त्री० चाँदिया, खोपड़ी । - तारा- पु० बारीक मलमल जिसपर चाँद और तारेकी शकलकी बूटियाँ बनी होती है; एक तरहकी पतंग | - बीबी - स्त्री० आदिलशाहकी विधवा पली जिसने अकबरकी सेनाके अहमदनगर घेर लेनेपर असाधारण शौर्य और रणकौशलका परिचय दिया । - मारी - स्त्री० बंदूक से निशाने लगानेका अभ्यास । -सूरज-पु० एक गहना जो चोटीमें गूँथकर पहना जाता है; बादलेके बने चाँद और सूरज जो कामदार टोपियों में लगाये जाते हैं । मु० - का कुंडल, - का मंडल - हलकी बदलीपर प्रकाश पड़ने से चंद्रमाके चारों ओर बना हुआ घेरा। -का टुकड़ा - अति सुंदर । - को गहन लगना- अच्छी, सुंदर वस्तुमें दोष होना । - गंजी हो जाना-इतने जूते लगना कि चाँदपर बाल न रह जायें। - चढ़ना-नया महीना चढ़ना; ऋतुका बीत जाना; गर्भ रहना (मुसल० स्त्रियाँ) । • - पर ख़ाक या धूल उड़ाना-निर्दोष व्यक्ति या वस्तु में दोष निकालना; साधुचरित जनपर दोष लगाना। - पर थूकना - साधुचरित या महान् पुरुषपर लांछन लगाकर स्वयं लांछित होना ।
चाँदना - पु० उजाला, रौशनी; चाँदनी । मु० - होनापौ फटना, सबेरा होना ।
चाँदनी - स्त्री० चाँदकी रोशनी, ज्योत्स्ना; फर्शपर बिछाने - की लंबी-चौड़ी सफेद चादर; छतगीर; गुलचाँदनी । चाँदा - पु० दूरबीनका लक्ष्य स्थान; भूमिकी एक माप कोण बनानेका चाँदकी शकलका आला ।
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चाँदी-चापलूस
२४२ चाँदी-स्त्री० सफेद रंगकी एक नरम चमकीली धातु जो झूठी प्रशंसा, चापलूसी। -कार-पु. चापलूमी करनेगहने, सिक्के आदि बनानेके काममें आती है; आर्थिक | वाला। -कारी-स्त्री० चापलूसी। . लाभ; एक छोटी मछली; * दे० चँदिया । मु०-कटना- | चाटूक्ति-स्त्री० [सं०] चापलूसी । गहरी आय होना, खूब रुपये मिलना । -का जूता,-चाड़*-स्त्री० दे० 'चाँड'। की जूती-घूस, उत्कोच । -होना-खूब लाभ होना, चादा-पु० प्रेमपात्र, प्यारा प्रेमी । वि० आसक्त, मुग्ध । माल मिलना।
चाणक्य-पु० [सं०] (चणक मुनिके वंशमें उत्पन्न) चंद्रगुप्त चांद्रा-वि० [सं०] चंद्र-संबंधी। पु० चांद्र मास; चंद्रकांत मौर्यके प्रधान मंत्री, अर्थशास्त्रके रचयिता विष्णुगुप्त, मणि; चांद्रायण व्रत; अदरक । -मास-पु० चंद्रमाकी कौटिल्य । गतिके अनुसार होनेवाला महीना।
चाणाक्ष-वि० धूर्त, चालाक । चांद्रायण-पु० [सं०] एक मास चलनेवाला एक व्रत । चातक-पु० [सं०] पपीहा, सारंग । चाँप-पु० दे० 'चाप'; बंदूकका एक पुरजा; * चंपाका चातकनी*-स्त्री० मादा चातक, चातकी। फूल । स्त्री० दे० 'चाप' ।
चातकानंदन-पु० [सं०] बादल, वर्षाकाल । चाँपना-स० क्रि० दबाना ।
चातुर-वि० [सं०] चारसे संबद्धः चतुर; चापलूस चारसे चाँय-चाय, चाँव-चाँव-स्त्री० बकबक ।
खींचा जानेवाला (रथ); शासन करनेवाला। पु० चार चाँवर* -पु. चावल ।
पहियोंकी गाड़ी। चाइ, चाउ*-पु० दे० 'चाव। .
चातुरई। -स्त्री० दे० 'चातुरी' । चाउरी-पु० दे० 'चावल'।
चातुरी-स्त्री० [सं०] चतुराई । चाक-पु० चक्राकार पत्थर जिसे फिराकर कुम्हार बरतन | चातुर्थक, चातुर्थिक-वि० [सं०] चौथे दिन होनेवाला, बनाता है। पहिया चरखी; [फा०] चीर; दरार । वि० चौथिया। पु० चौथिया ज्वर । फटा हुआ।
चातुर्मास-वि० [सं०] चार महीनेमें होनेवाला । चाक-वि० [तु०] चुस्त; स्वस्थ; हृष्टपुष्ट ।
चातुर्मासिक-वि० [सं०] चार महीने में होनेवाला (यशादि)। चाकचक्य-पु० [सं०] उज्ज्वलता; चमक-दमक; शोभा। चातुर्मास्य-पु० [सं०] चार मासमें होनेवाला एक वैदिक चाकचिक्य-पु० [सं०] चमक; चकाचौंध ।
यज्ञ चौमासा। चाकना-स० कि० रेखाएँ खींचकर किसी चीजकी 'हद | बनाना, रेखाओंसे घेरना; अनाजकी राशिपर मिट्टी या | चातुर्वर्ण्य-पु० [सं०] चारों वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, गोबरसे छापा लगाना पहचानके लिए चिह्न बनाना । शूद्र; चारों वर्गों के धर्म, कर्तव्य । चाकर-पु० [फा०] नौकर, सेवक ।।
चात्रिक, चात्रिग*-पु० चातक । चाकर(रा)नी-स्त्री० नौकरानी ।
चादर-स्त्री० साड़ीके ऊपर ओढ़ा जानेवाला अधिक लंबाचाकरी-स्त्री० [फा०] नौकरी, सेवा ।
चौड़ा दुपट्टा; बिस्तरके ऊपर बिछाया जानेवाला दुपट्टा चाका-पु० गाड़ी आदिका पहिया, चक्र ।
लोहे-पीतल आदिका लंबा-चौड़ा, पतला खंड, पत्तर; ऊँचे चाकी-स्त्री० चकी बिजली; सिरपर की जानेवाली पटेकी चोट।। स्थानसे गिरनेवाली पानीकी चौड़ी धार; चादरके रूपमें चाकू-पु० [तु०] छोटी छुरी, कलम बनाने, फल-तरकारी गुंथे हुए फूल जो कब या मजारपर चढ़ाये जाते हैं । मु. काटनेका छोटा औजार, कलमतराश ।
-उतारना-बेपर्द, बेइज्जत करना ।-ओढ़ाना,-डालना चाक्षुष-वि० [सं०] चक्षु-संबंधी; चक्षुसे प्राप्त (ज्ञान); चक्षु- -विधवाको घरमें डाल लेना, विधवासे ब्याह करना। ग्राह्य । पु० चक्षुसे प्राप्त ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाणका एक भेद । -देखकर पाँव फैलाना-वित्त, बिसात देखकर खर्च -गवाह-पु० [हिं०] (आई-विटनेस) वह गवाह जिसने करना। -हिलाना-युद्ध में आत्मसमर्पण या लड़ाई बंद स्वयं किसी घटनाको घटित होते देखा हो।
करनेके लिए कपड़ा हिलाना । चाखना-स० क्रि० चखना, स्वाद लेना ।
चान*-पु० चंद्रमा। चाचर, चाचरि-स्त्री० दे० 'चाँचर';होलीका स्वांग, हुरदंग।। चानक*-अ० दे० 'अचानक' । चाचरी-स्त्री० योगकी एक मुद्रा। ।
चानन*-पु० चंदन । चाचा-पु० बापका भाई, चचा । (स्त्री० चाची)। . चाप-स्त्री० दबाव; धक्का; पाँवोंकी आहट । पु० [सं०] चाट-स्त्री० चसका, लत; मिर्च-मसाला देकर तैयार किया धनुष; इंद्रधनुष, धनु राशि; वृत्तकी परिधिका कोई हुआ तीखे स्वादवाला खाद्य (दही-बड़ा, गोलगप्पा आदि); अंश (आर्क)। -कर्ण-पु० (कॉर्ड) दे० 'जीवा'। गजक (पड़ना, लगना)।
चापड़-वि० जो दाब पड़नेसे चपटा हो गया हो; समतल; चाटना-स० कि० चटनी जैसी चीजको जीभसे उठाकर या बरबाद, मटियामेट । स्त्री० चोकर । पोंछकर खाना; किसी चीजपर जीभ फिराना; स्वाद लेना चापना-स० क्रि० दबाना, दाब पहुँचाना। (होंठ, हाथ चाटना); (गाय, कुत्तेआदिका प्यारसे) जीभसे चापल-पु० [सं०] चपलता, चंचलता; अस्थिरता उतावली सहलाना, जीभ फेरना; कीड़ोंका किसी वस्तुको खाना।। शोखी क्षोभ । * वि० चपल । मु० चाट जाना-खा डालना, साफ कर देना। चापलता*-स्त्री० दे० 'चपलता' । चाटु-पु० [सं०] प्रियवचन, मीठी बात; झूठी प्रिय बात; चापलूस-वि० [फा०] खुशामदी, चाटुकार ।
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२४३
चापलूसी-चालक चापलूसी-स्त्री० [फा०] खुशामद, झूठी प्रशंसा । होना-(कुश्ती में) इस तरह चित होना कि पूरी पीठ चापल्य-पु० [सं०] चंचलता, अस्थिरता ।
और हाथ-पाँव जमीनसे लग जायें पूरी तरह परास्त चाब-स्त्री० एक पौधा; डाढ़ ।
हो जाना; (कोई शोक-संवाद सुनकर) स्तब्ध, बदहवास चाबना-स० क्रि० चबाना; खूब खाना ।
हो जाना; हिम्मत हार जाना। चाबी-स्त्री० कुंजी; पञ्चड़ ।
चार-पु० आचार, रीति, (द्वार-चार); * सेवक, टहलू ; चाबुक-वि० [फा०] फुरतीला, चुस्त, तेज। पु० कोड़ा। [सं०] गति; गुप्तचर, जासूस; कारागार; प्रियाल; कृत्रिम
-सवार-पु० घोड़ेको सधाने, चाल सिखानेवाला। विष । -कर्म(न -पु०,-व्यवस्था-स्त्री० (एस्पिऑनेज) चाभना-स० क्रि० खाना; भकोसना; तर माल खाना। जासूसोंका काम; जासूस नियुक्त कर उनसे काम लेना। चाभी-स्त्री० दे० 'चाबी' ।
चारजामा-पु० [फा०] घोड़ेपर कसनेका कपड़ेका जीन चाम-पु० चमड़ा, खाल । -के दाम-चमड़ेके सिक्के जिसमें काठ नहीं लगा होता । निजाम भिस्तीका चलाया हुआ सिक्का जिसे हुमायूँको चारण-पु० [सं०] तीर्थयात्री; भाट, वंदीजन; गुप्तचर; डूबनेसे बचानेके बदले आधे दिनकी बादशाही मिली राजपूतानाकी एक जाति; चरानेका कार्य । थी; व्यभिचारकी कमाई।
चारन*-पु० दे० 'चारण'। चामर-पु० [सं०] चँवर; मोरछल; एक वर्णवृत्त । चारना*-स० क्रि० दे० 'चराना' । चामरिक-पु० [सं०] चँवर डुलानेवाला ।
चारा-पु० चौपायोंके खानेकी चीज-घास, चरी आदि; चामीकर-पु० [सं०] सोना; धतूरा ।
चिड़ियों, मछलियों आदिको खिलायी जानेवाली चीजचामुंडा-स्त्री० [सं०] दुर्गाका एक रूप ।
सत्त, आटेकी गोली आदि; मछलियाँ फँसानेके लिए चाय-* पु०दे० चाव' । स्त्री० एक पौधा जिसकी पत्तियोंका | कँटियामें लगाया जानेवाला गीला आटा आदि; [फा०] काढ़ा दूध-शकर मिलाकर पिया जाता है। उक्त पौधेकी
उपाय, इलाज। -जोई-स्त्री० (अदालतसे) अन्यायके सुखायी हुई पत्तियाँ चायकी पत्तियोंको उबालकर बनाया प्रतिकारकी प्रार्थना, नालिश, फरियाद । हुआ पेय । -दान-पु०,-दानी-स्त्री० वह बरतन चारि*-वि० चलनेवाला, आचरण करनेवाला; चार । पु० जिसमें चाय बनायी या बनाकर रखी जाय । -पानी- संदेश । स्त्री० दौत्य; चुगली। पु० जलपान ।
चारित-वि० [सं०] जो चलाया गया हो; भबकेसे खींचा चायक*-पु० चाहनेवाला ।
हुआ। पु० आरा; * पशुओंका चारा, चरी। चार-वि० तीन और एक कुछ, कई । पु० चारकी संख्या। चारित्र-पु० [सं०] चरित्र, चाल-चलन; स्वभाव, शील;
-काने-पु० पासेका इस तरह पड़ना कि एकका दो कुलक्रमागत आचार, सदाचार; साधुता सतीत्व (स्त्री) । बिदियोंवाला और दोका एक-एक बिंदीवाला बल चित हो। चारित्र्य-पु० [सं०] दे० 'चारित्र'। -खाना-पु० वह कपड़ा जिसमें रंगीन धारियोंके चौखूटे | चारी-स्त्री० [सं०] जाल; दौत्य; जासूसी; * चुगली। खाने बने हों। -जामा-पु० दे० क्रममें। -दिन-चारी(रिन)-वि० [सं०]चलनेवाला,जानेवाला(व्योमचारी); पु० थोड़े दिन, अल्प काल । -दीवारी-स्त्री० दीवारोंका आचरण करनेवाला। [स्त्री०'चारिणी'] पु० पैदल सिपाही । घेरा, प्राचीर, परकोटा ।-पाई-स्त्री० खाट, छोटा पलंग। चारु-वि० [सं०] प्रिया सुंदर, मनोहर । -नेत्रा,-पाया-पु० चीपाया, पशु । -बाग़-पु० चौकोर बाग; | -लोचना-वि० स्त्री० सुंदर नेत्रोंवाली । -हासिनीवह शाल या रूमाल जो रंगोंके जरिये चार हिस्सों में | वि० स्त्री० मनोहर हँसी, मुसकानवाली (स्त्री)। स्त्री० बँटा हो। (चारों)धाम-पु० चारों दिशाओं में स्थित | एक वृत्त। हिंदुओंके चार प्रधान तीर्थ-पुरी, बदरिकाश्रम, द्वारका | चारेक्षण-पु० [सं०] राजा । और रामेश्वर । -पदार्थ-पु० मनुष्य जीवनके चार चार्चिक्य-पु० [सं०] अंगरागका लेपन; अंगराग। पुरुषार्थ-अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष । मु० (चार) चार्वाक-पु० [सं०] चार्वाक-दर्शनके रचयिता एक मुनि
आँखें करना-देखादेखी, साक्षात्कार करना; निगाह | जो नास्तिक मतके आदि-प्रवर्तक, बृहस्पतिके शिष्य बताये मिलाना । -आँखें होना-देखा-देखी होना ।-क़दमथोड़ा फासला । -के कंधे-के काँधे चढ़ना, चलना-चाल-स्त्री० चलनेकी क्रिया, गति; हिलना, घूमना, हरकत मर जाना, अरथी उठना। -के कान पड़ना-चर्चा | (घड़ीकी चाल); चलनेका ढंग; चलनेकी सायत; चलन, होना, बातका फैलना। -चाँद लगना-शोभा, सुंदरता आचरण; रीतिरिवाज; ढब, बनावट; ढंग, प्रकार; बढ़ना । -दिनकी चाँदनी-दो-चार ही दिन रहने, छल, धोखा देनेवाली बात; कूटयुक्ति; ताश, शतरंज टिकनेवाली बात, चंदरोजा चीज ।-पाँच करना-हीला- आदिमें पत्ते या मुहरेको चलना; आहट; इस दंगसे हवाला करना; हुज्जत करना ।-पाईपर पड़ना-लेटना; बनाया हुआ भारी मकान जिसमें पचासों किरायेदार बीमार होना । -पाईसे पीठ लगना-सख्त बीमार | कुटुंब रह सकें (बंबई); * हलचल |-चलन-पु० आचहोना, उठने-बैठने की शक्ति न रह जाना । (चारों)खाने रण, चरित्र, नीति-संबंधी आचरण । -ढाल-स्त्री० तौरचित गिरना-दे० 'चारों शाने चित गिरना' । तरीका, रहन-सहनका ढंग । -बाज़-वि० चालें चलने -फूटना-दो स्थूल आँखें और दो हृदयकी, सबका | वाला, छलिया, धूर्त । -बाज़ी-स्त्री० छल, धूर्तता । फूट जाना, निपट अंधा होना । -शाने चित गिरना, चालक-वि० [सं०] चलानेवाला; * छली, चालबाज ।
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चालन-चिकट
२४४
चालन-पु. चालनेके बाद बचा हुआ अंश, भूसी, चोकर चाहा-पु० बगलेकी तरहका एक पक्षी।
आदि; [सं०] चलाना; प्रचार करना; हिलाना चाहि-अ..."से बढ़कर, अधिक । हिलना, गति; छानना।
चाहिये-अ० उचित है, वाजिब है; अपेक्षित है, दरकार है। चालना-स० क्रि० छानना; * चलाना; हिलाना, * | चाही-वि० स्त्री० चहेती (क०); [फा०] कूप-संबंधी; कुएँसे प्रसंग छेड़ना । अ० क्रि० दुलहिनका पहली बार सुसराल सींची जानेवाली (जमीन)।
आना; *चलना ।-(न)हार-पु० चलने, चलानेवाला ।। चाहे-अ० जो चाहे, मरजीमें आये (तो), ख्वाह; या तो। चाला-पु० रवानगी प्रस्थानका मुहूर्त, दुलहिनका पहली | चिआँ-पु० इमलीका बीज । बार सुसराल आना।
चिउँटा-पु० दे० 'चीटा। चालाक-वि० [फा०] चुस्त, फुरतीला; चतुर, धूर्त ।। चिउँटी-स्त्री० दे० 'चीटी'। चालाकी-स्त्री० [फा०] चतुराई; धूर्तता।
चिंगना-पु० मुरगीका छोटा बच्चा, चूजा; छोटा बच्चा। . चालान-पु० भेजे हुए मालकी सूची, विवरण, बीजक; चिंघाड़-स्त्री० हाथीके चिल्लानेका शब्द; चीत्कार, गर्जन । रवन्ना; मालका एक जगहसे दूसरी जगह भेजा जाना; चिंघाड़ना-अ० क्रि० हाथीका जोरसे बोलना; चीखना, बाहर भेजा हुआ या वहाँसे आया हुआ माल; अभियुक्तका | चीत्कार करना, गरजना । विचारके लिए मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाना । -बही- चिंचा-स्त्री० [सं०] इमली; इमलीका चिआँ; गुजा। स्त्री० वह बही जिसमें चालान किये जानेवाले मालका | चिचिनी-स्त्री० [मं०] इमली। विवरण लिखा जाय ।
चिंची-स्त्री० [सं०] गुजा । चालिया-वि० चालबाज ।
चिंजा*-पु० बेटा। चाली-वि० चालबाज, छली; * नटखट । * स्त्री० चाल, | चिंजी*-खी० बेटी । चलनेका तरीका।
चिंत*-स्त्री० चिंता; खयाल, याद । चालीस-वि० तीस और दस । पु० चालीसकी संख्या, ४०। चिंतक-वि० [सं०] चिंतन करनेवाला; ध्यान करनेवाला ।
-वा-वि० जो क्रममें ३९के बाद आये । पु० मृत व्यक्ति चिंतन-पु० [सं०] किसी वस्तु, व्यक्तिको बार-बार याद के चालीसवें दिनका कर्म, चेहलुम चेहलुमकी फातिहा। | करना; सोचना-विचारना, मनन । चालीसा-पु० चालीस वस्तुओं या पद्योंका समूह; चालीस चिंतना-स्त्री० स० क्रि० चिंतन करना; सोचना-समझना । दिनका काल, चिल्ला।
| चिंतनीय-वि० [सं०] चिंता करने योग्य, विचारणीय चालुक्य-पु० [सं०] दक्षिण भारतका एक प्रमुख राजवंश शोचनीय । जिसने छठीसे तेरहवीं शती (वै०)तक राज्य किया। चितवन-पु० दे० 'चिंतन'। चालह, चाल्हा*-स्त्री० चेल्हवा मछली।
चिंता-स्त्री० [सं०] चिंतन; फिक; ध्यान; परवाह; एक चाव-पु० तीव्र इच्छा, चाह; शौक प्रेम, अनुराग; उमंग संचारी भाव । -जनक-वि०चिताका कारणरूप,चितित उत्साह; * निंदा, बदनामी ।
कर देनेवाला। -पर,-मग्न-वि० चिता, सोचमें डूबा चावड़ी-स्त्री० चट्टी, पड़ाव; कोतवाली (छत्तीस०) । हुआ। -पल*-वि० दे० 'चिंतापर'। -मणि-पु० एक चावना*-स० क्रि० चाहना ।
कल्पित रत्न जिसमें जो माँगो वह देनेकी सामर्थ्य मानी चावरी-पु० दे० 'चावल'।
जाती है। सब कामनाएं पूरी करने में समर्थ, परमेश्वर चावल-पु० धान, साँवाँ, कोदो आदिका सार भाग जो यात्राका एक योग; सरस्वतीकाबीजमंत्र जोनवजात शिशुबीजसे भूसी अलग कर देनेपर बच रहता है, तंडुल; की जीभपर विद्याप्राप्तिके लिए लिखा जाता है। -शील पकाया हुआ चावल, भात; रत्तीका आठवाँ भाग। -वि० जिसे सोच-विचारकी आदत हो, मननशील, मनीषी। चाशनी-स्त्री० [फा०] चखनेकी चीज; खाद्य वस्तुका नमूना चिंताकुल-वि० [सं०] चिंतासे आकुल, उद्विग्न । जो चखनेके लिए दिया जाय; चीनी-गुड़ आदिका शीरा; चिंतातुर-वि० [सं०] चितासे उद्विग्न । स्वाद, मजा; नमूनेका सोना जो गाहक अपने पास चिंतित-वि० [सं०] चितायुक्त, सोच में पड़ा हुआ । रखता है।
चित्य-वि० [सं०] चिंता करने योग्य, चितनीय, विचारणीय। चाष-पु० [सं०] नीलकंठ पक्षी; चाहा; * चक्षु, ओख । चिंदी-स्त्री० छोटा टुकड़ा, धज्जी । चास-पु० [सं०] दे० 'चाष' ।। स्त्री जोत, खेती। | चिउँटा-पु० दे० 'चीटा। चासा-पु० किसान; हलवाहा ।
चिउँटी-स्त्री० दे० 'चीटी' । -की चाल-बहुत धीमी चाह-स्त्री० इच्छा, लालसा, प्रेमः जरूरत, गरजा पूछ, । चाल । मु०-के पर निकलना-मरनेका समय आना; आदर; * खबर; भेद।
शामत आना । (चींटीके पर निकलनेपर वह उड़ती और चाहक*-पु० चाहनेवाला, प्रेमी।
गिरकर मर जाती या चिड़ियोंका भक्ष्य बनती है। ) चाहत*-स्त्री० चाह, प्रेम ।
चिउड़ा-पु० दे० 'चिड़वा' । चाहना-स० कि० इच्छा करना, इरादा करना; माँगनाः | चिउरा*-पु० दे० 'चिड़वा'। प्रेम करना पसंद करना; यत्न करना; चाहभरी दृष्टिसे चिक-स्त्री० बाँसकी तीलियोंका बना हुआ झीना पर्दा जिसे देखना, निहारना;-'सीय चकित चित रामहि चाहा'- | खिड़की-दरवाजोंपर डालते हैं। पु० बकरकसाव । रामा; हूँढ़ना; समझना । * स्त्री० चाह ।
चिकट-वि० दे० 'चीकट'। पु० एक नरहका रेशमी कपड़ा।
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२४५
चिकटना-चित चिकटना-अ० क्रि० मेलसे ढककर चिपचिपा हो जाना। | चिचाना*-अ० क्रि० चिल्लाना। चिकटा-वि० दे० 'चीकट'।
चिचावना*-अ० क्रि० दे० 'चिचियाना' । चिकन-पु० सूती कपड़ेपर सुईसे बेल-बूटे बनानेका काम; चिचिंड-पु० [सं०] चिचिंडा । ऐसे कामवाला कपड़ा।
चिचिंडा-पु० एक बेल जिसमें गोल लंबोतरे फल लगते चिकना-वि०जिसकी सतह बराबर रगड़ी, रंदा की हुई और तरकारीके काम आते है। उसका फल । हो, जो खुरदरा न हो; जिसपर हाथ-पाँव फिसले; साफ चिचियाना -अ० क्रि० चीखना, चिल्लाना । और चमकीला; तेल, घी लगा हुआ, स्निग्ध; *स्नेही। चिचुकना-अ० क्रि० दे० 'चुचुकना' । + पु० धी; तेल । -घड़ा-जिसपर कहने-सुननेका असर चिचोड़ना -स० क्रि० दे० 'चचोड़ना'। न हो, बेया।
चिजारा*-पु० राज, मेमार । चिकनाई-स्त्री० चिकनापन, स्निग्धता; घी, तेल आदि। चिट-स्त्री० कागजका छोटा टुकड़ा, पुरजा; कपड़ेकी धज्जी। चिकनाना-सक्रि० चिकना करना, रूखापन, खुरदरापन -नवीस-पु० लेखक, मुहरिर । मिटाना; तेल आदि लगाना । अ० क्रि० चिकना होना; चिटकना-अ० क्रि० सूखकर फटना, तड़कना; लकड़ीका मोटा होना, चरबी बढ़ना; चिकनी-चुपड़ी बातें करना; जलते समय 'चिटचिट' आवाज करना; चिढ़ना,खीझना। * स्नेहसे युक्त, अनुरक्त होना।
चिटकाना-स० क्रि० तोड़ना; खिझाना, चिढ़ाना । चिकनावट, चिकनाहट-स्त्री० चिकनाई ।
चिट्टा-वि० गोरा, सफेद (गोरा-चिट्टा)। पु० हानिकर चिकनिया-वि० जो बना-ठना रहे, छैला।
कार्यके लिए दिया जानेवाला चकमा, बढ़ावा (देना, चिकनी-वि० स्त्री० दे० 'चिकना'। -चुपड़ी बातें-स्त्री०
।। -चुपड़ा बात-स्त्रा० लड़ाना)। किसीको ठगने-फुसलाने के लिए कही जानेवाली मीठी बातें, चिट्टा-पु० खाता; आय-व्यय आदिका वार्षिक विवरण; चापलूमीकी बातें। -डली,-सुपारी-स्त्री० उबाली हुई दैनिक, साप्ताहिक या मासिक मजदूरी, वेतनका हिसाब चिपटी सुपारी। -मिट्टी-स्त्री० काली, लसदार मिट्टी। उसे चकानेके लिए बाँटा जानेवाला रुपयाः विवरण । चिकरना-अ० क्रि० चिंघाड़ना ।
चिट्ठी-स्त्री० पत्र, खत; पुरजा; आज्ञापत्र; निमंत्रणपत्र चिकवा-पु० बूचड़, चिक; * एक रेशमी कपड़ा।
पुरजे डालकर विशेष वस्तु या पुरस्कार पानेवालेका नाम चिकार*-पु० चीत्कार, चीख ।
निश्चित करना (लाटरी)। -पत्री-स्त्री० पत्र पत्रव्यवहार । चिकारना*-अ० क्रि० चीत्कार करना ।
-रसाँ-पु० चिट्टियाँ बाँटनेवाला, डाकिया। चिकारा-पु० एक तरहकी सारंगी; एक तरहका हिरन । चिड़चिड़ा-वि० जो जरासी बातपर चिढ़ जाय, झुंझला चिकित्सक-पु० [सं०] चिकित्सा करनेवाला, वैद्य ।
उठे, तुनकमिजाज । -पन-पु० तुनक-मिजाजी। चिकित्सा-स्त्री० [सं०] रोगनिवारणका उपाय, इलाज; चिड़चिड़ाना-अ० क्रि० चिटकना, जलनेमें 'चिड़चिड़' औषधोपचार।
आवाज होना; चिढ़ना; झुंझलाना । चिकित्सालय-पु० [सं०] अस्पताल, शफाखाना। चिड़वा-पु० हरे या भिगोये हुए धानको भून और कूटकर चिकित्सित-वि० [सं०] जिसका इलाज किया गया हो। चिपटा किया हुआ एक खाद्य पदार्थ । चिकीर्षक-वि० [सं०] करनेकी इच्छा रखनेवाला । चिड़ा-पु० गौरवा, चटक । चिकीर्षा-स्त्री० [सं०] करनेकी इच्छा।
चिड़िया-स्त्री० उड़नेवाला, पंखयुक्त प्राणी, पक्षी, पखेरू; चिकीर्षु-वि० [सं०] करनेकी इच्छा रखनेवाला।
चौबगला; अँगियाकी कटोरियोंके बीचकी सिलाई, पायचिकुटी*-स्त्री० चिकोटी, नुटकी।
जामे या लहँगेका नेफा; ताशका एक रंग, चिड़ी; बैसाखी चिकुर-पु० [सं०] केश, शिरके बाल; रेंगनेवाला जीव; आदिके सिरपर लगायी जानेवाली चिड़ियाकी शकलकी पहाड़ गिलहरी, छहँदर । -कलाप,-निकर,-पाश- लकड़ी; एक प्रकारकी सिलाई । -खाना,-घर-पु० पशुपु० केशकलाप, जुल्फ, लट ।
पक्षियोंको रखनेका स्थान, जंतुशाला। मु०-फसानाचिकोटी-स्त्री० दे० 'चुटकी' ।
शिकार फंसाना किसी सुंदरी युवती या मालदार असामीचिकट-वि० बढ़त मैला, गंदा । पु० जमा हुआ मैल ।। को फुसलाकर हाथमें कर लेना। चिकण-वि० [सं०] चिकना ।
चिड़िहार*-पु० दे० 'चिड़ीमार'। चिक्कणी-स्त्री० [सं०] सुपारी; चिकनी सुपारी।
चिड़ीमार-पु० चिड़िया पकड़नेवाला, बहेलिया । चिक्करना-अ० क्रि० चीत्कार करना, चिघाड़ना। चिढ़-स्त्री० चिढ़नेका भाव, खीझ, नाराजगी; नफरत । चिनार-पु० चिकार ।
चिढ़ना-अ०कि.. खफा, नाराज होना; किसी तात्कालिक चिखना-पु० मद्यपानके समय खायी जानेवाली चटपटी | बातपर बद्ध हो जाना, बुरा मानना।। वस्तु, चाट।
चिढ़ाना-स० क्रि० नाराज करना; कुपित करनेवाली बात चिखुरी-स्त्री० मादा गिलहरी ।
कहना, खिझाना, मुँह बनाना; छेड़ना; उपहास करना। चिग्घाड़-स्त्री० दे० 'चिधाड़' ।
चित-वि० [सं०] चुनकर इकट्ठा किया हुआ। चिचड़ा-पु० लटजीरा नामक पौधा, अपामार्ग । चित*-पु० चितवन; दे० 'चित्त'। -चीता*-वि० चिचड़ी-स्त्री० किलनी।
मनचाहा, चाहा हुआ। -चोर-वि०चित्त चरानेवाला, चिचान* -पु० बाज ।
मनोहर । -भंग-पु० उचाट, जी न लगना; बुद्धि
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चितानेके र
चित-चित्रांगद ठिकाने न रहना।
चित्तरसारी*-स्त्री० चित्रशाला। चित-वि० जिसका मुँह-पेट ऊपर की ओर हो, उत्तान, चित्ताकर्षक-वि० [सं०] मनको खींचने, लुभानेवाला । पटका उलटा । अ० पीठके बल । मु०-करना-कुश्ती में | चित्ती-स्त्री० छोटा धब्बा रोटीमें जल जानेका दाग चिपटी प्रतिपक्षीको पछाड़ना, उसकी पीठ लगा देना । -होना- कौड़ी जिससे जुआ खेलते हैं। कुम्हारके चाकके किनारेका कुश्ती में हार खाना।
गढ़ा, इमलीका चिआँ जिसका एक ओरका छिलका रगड़चितउर*-पु०चित्तौर ।
कर दूर कर दिया गया हो; चीतल या चित्तीदार साँप चितकबरा-वि०जिसमें एक रंगकी जमीन पर दूसरे गके मुनिया चिड़िया। धब्बे हों, चितला; रंग-बिरंगा।
चित्तीर-पु० मेवाड़के महाराणाओंकी पुरानी राजधानी । चितकूट*-पु० चित्रकूट ।
चित्र-पु०[सं०] कागज, कपड़े आदिपर बनायी हुई वस्तुकी चितगुपित*-पु० दे० 'चित्रगुप्त' ।
प्रतिमूर्ति, तसवीर; आलेख्य; तिलका शब्दचित्र; चित्रचितरना*-स० क्रि० चित्र, बेल-बूटे बनाना, उरेहना। काव्य; चित्रगुप्त, चित्रक। वि० रंग-बिरंगा; चितकबरा चितला-वि० चितकबरा। पु० चित्तीदार खरबूजा।
चमकीला; कई वर्णोंवाला; विचित्र; * ठीक, दुरुस्त । चितवन-स्त्री० किसीकी ओर देखनेका ढंग, दृष्टि; कटाक्ष ।
-कंठ-पु० कबूतर । -कर्म(न)-पु० चित्र बनाना चितवना*-स० क्रि० देखना, निरखना।
आलेखन; बाजीगरी; विचित्र कार्यः अलंकरण । -कर्माचितवनि*-स्त्री० दे० 'चितवन' ।
(मन्)-पु० विचित्र कार्य करनेवाला बाजीगर चित्रकार। चिता-स्त्री० [सं०] मुरदेको जलाने के लिए चुनकर रखी
-कला-स्त्री० चित्रविद्या, चित्र बनानेकी कला ।-कायहुई लकड़ियाँ ढेर, समूह; * श्मशान ।
पु० चीता। -कार-पु० चित्र बनानेवाला, चितेरा। चिताना-स० क्रि० चेत कराना, याद दिलाना; किसी
-कारी-स्त्री० [हिं०] चित्रकारका काम, धंधा, चित्रकला । खतरे-बुराईके बारेमें सावधान करना; शानोपदेश करना ।
-काव्य-पु०चित्र (छत्र, चमर आदि)के आकरमें लिखित चितारी -पु० दे० 'चितेरा।
काव्य । -कूट-पु० बाँदा जिलेका एक पर्वत जिसपर चितारोहण-पु० [सं०] (विधवाका) सती होनेके लिए | वनवास-कालमें राम-सीता कई बरस रहे । -केतु-पु० चितापर जाना।
लक्ष्मणका एक पुत्र। -गुप्त-पु० १८ यमों से एक चितावनी-स्त्री० चितानेकी किया; चितानेके लिए कही
यमके दरबारके लेखक जो सब मनुष्योंका पाप-पुण्य लिखा गयी बात, आगाही, तंबीह (देना)।
करते हैं और जो कायस्थ जातिके आदिपुरुष माने जाते हैं। चिति-स्त्री० [सं०] चयन, चनाई; ढेर चिता; चेतना -पट-पु० चित्र; वह कपड़ा, चमड़ा या कागज जिसपर ईटोंकी जोड़ाई; समझ; दुर्गा दे० 'चित्ती' ।
चित्र बनाया जाय, चित्राधार सिनेमाकी फिल्म-फलकचितेरा-पु० चित्रकार ।
पु० काठ, हाथीदाँत आदिकी पटिया जिसपर चित्र बनाया चितेरिन, चितेरी-स्त्री० स्त्री चित्रकार: चित्रकारकी पत्नी।। जाय । -मृग-पु० चीतल हिरन। -युद्ध-पु० नकली चितैना*-स० क्रि० दे० 'चितवना' ।
लड़ाई। -योग-पु० बूढ़ेको जवान, जवानको बूढ़ा बना चितौन, चितौनि*-स्त्री० दे० 'चितवन'।
देनेकी विद्या; ६४ कलाओंमसे एक। -रथ-पु० सूर्य चितौना*-स० कि० दे० 'चितवना'।
कुबेरका सखा एक गंधर्व ।-रेखा-स्त्री० बाणासुरकी कन्या चितौनी-स्त्री० दे० 'चितावनी'।
उषाकी एक सहेली।-ल-वि० चितकबरा ।-लिखितचित्-स्त्री० [सं०] चेतना शान; आत्मा ब्रह्मा चित्त । ।
वि०चित्रित गतिहीन; मूक। -लिपि-स्त्री. वह लिपि चित्त-पु०[सं०] अंतरिंद्रिय, अंतःकरण, मन; अंतकरणकी
जिसमें अक्षरोंकी जगह सांकेतिक चित्र काममें लाये जायें। चिंतना, अनुसंधानकारिणी वृत्ति (वे०)। -ज,-जन्मा
-लेखक-पु० चित्रकार । -लेखा-स्त्री० चित्र; बाणा(मन)-पु० कामदेव । -निवृत्ति-स्त्री० संतोष, सुख । सुरके मंत्रीकी कन्या जो उपाकी एक सखी थी; एक अप्सरा -विकृति-स्त्री० (अनसाउंडनेस ऑफ माइंड) चित्त या तसवीर बनानेकी ।ची। -विचित्र-वि० रंगबिरंगा; मनका विकार या त्रुटि मानसिक सदोषता। -विक्षेप- वेल-बूटेदार ।-विद्या-स्त्री० चित्र बनानेकी विद्या, चित्रपु० चित्तकी अस्थिरता, अनेक विषयोंमें भटकते रहना। कला। -शार्दूल-पु० चीता (जंतु) । -शाला-स्त्री० -विभ्रंश,-विभ्रम-पु० भ्रांति; उन्माद । -वृत्ति- वह भवन, मंडप आदि जिसमें बहुतसे चित्र लगा रखे गये स्त्री० चित्तकी अवस्था; मनका भाव ।-वृत्ति-निरोध-पु० हो, जहाँ चित्रकलाका प्रदर्शन किया जाय (पिक्चर-गैलरी); चित्तको बाह्य विषयोंसे हटाकर अंतर्मुख करना ।-शुद्धि- वह स्थान जहाँ चित्र बनाये जायँ ( स्टूडियो); दे० 'रंगस्त्री० चित्तका निर्मल, कुवासनाओंसे रहित होना। शाला; भित्ति-चित्रीसे भरा भवन, मंडप । -सारी-स्त्री० मु०-उचटना-जी न लगना, मन उदास होना। [हिं०] चित्रशाला। -चढ़ना-दे० 'चित्तपर चढ़ना'। - टना-चित्तमें चित्रक-पु० [सं०] चीता, बाध; चीता नामका क्षुप एरंडा पीड़ा उत्पन्न करनन ।-चुराना-मन मोह लेना-देना- तिलक चित्रकार युद्धका एक ढंग; एक विशेष वन । मन लगाना; ध्यान देना। -पर चढ़ना-बराबर याद चित्रना*-स० क्रि० चित्र बनाना, उरेहना रंग भरना। रहना या बराबर याद आना। -बटना-मनका किसी चित्रमय-वि० [सं०] चित्रोंसे भरा हुआ, सचित्र । एक विषयमें न लग सकना, चित्तमें बहुत-सी चिताएँ चित्रवत्-वि० [सं०] चित्र जैसा (ला०) स्थिर, गतिरहित। होना ।-से उतरना-अप्रिय हो जाना; याद न रहना। चित्रांगद-पु० [सं०] शांतनुका पुत्र, विचित्रवीर्यका भाई ।
, तंबीह (
चति-स्त्री०
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चिथड़ा-पु० फटा पुराना कपड़ा, गूदड़, कपड़ेकी धज्जी । चिथाड़ना - सु० क्रि० फाड़ना, चिथड़ा कर देना; (किसी के
२४७
|
चित्रा - स्त्री० [सं०] २७ नक्षत्रोंमेंसे एक; चितकबरी गाय; ककड़ी; खीरा; मजीठ; वायविडंग; मूषिकपर्णी; एक अप्सरा एक रागिनी; एक मूर्च्छना; एक सर्प ; सुभद्रा । चित्राधार - पु० [सं०] चित्रपट ( एलबम ) चित्र, फोटो आदि सुरक्षित रूपसे रखनेकी किताब या मोटे पन्नों की खोली । चित्रालय - पु० [सं०] चित्रसंग्रहालय, चित्रशाला । चित्रिणी - स्त्री० [सं०] कामशास्त्रमें माने हुए स्त्रियों के पद्मिनी आदि चार भेदोंमेंसे एक ( यह कलानिपुण और बनावसिंगारकी शौकीन होती है ) ।
चित्रित - वि० [सं०] जिसका चित्र खींचा गया हो, उरेहा हुआ; चित्रयुक्त; चितकबरा ।
चित्रोत्तर - पु० [सं०] एक शब्दालंकार जिसमें प्रश्न के शब्दों चिमटी - स्त्री० छोटा चिमटा; वह आला जिससे छोटी चीज में ही उसका उत्तर होता है ।
पकड़ने, उठाने आदिका काम लेते हैं; चुटकी; चिकोटी | चिमड़ा - वि० दे० 'चीमड़' । - पन- पु० ( टेनेसिटी ) ठोसके कणोंका परस्पर इस तरह चिपके रहना कि उन्हें पृथक् करनेके लिए बड़ी शक्तिकी आवश्यकता पड़े । चिमनी - स्त्री० [अ०] इंजन आदिका धुआँ या भाप निकलनेके लिए बनी हुई नली जैसी वस्तु; धुआँ निकालने के लिए घर की छत में छेद करके बनायी हुई लोहे, सीमेंट आदिकी नली; लंपके ऊपर लगी हुई शीशेकी नली जिससे लंपकी लौको हवा मिलती और उसका धुआँ बाहर निकलता है ।
पक्षका) हर पहलू से खंडन करना; लथेड़ना, जलील करना । चिदाकाश-पु० [सं०] शुद्ध ज्ञानस्वरूप ब्रह्म । चिदाभास - पु० [सं०] चित्स्वरूप परब्रह्मका अंतःकरण में प्रतिबिंबित आभास, जीव ।
चिद्रूप - वि० [सं०] शुद्ध चैतन्यरूप, चिन्मय, ज्ञानी । पु०
परब्रह्म ।
चिद्विलास - पु० [सं०] चित्स्वरूप परमेश्वरकी माया; आत्मा या ब्रह्मस्वरूपमें रमण ।
चिनक- स्त्री० जलन के साथ होनेवाली पीड़ा; सूजाक के रोग
में मूत्रनली में होनेवाली जलन और पीड़ा । चिनगटा* - पु० चिथड़ा |
चिनगारी - स्त्री० जलते हुए कोयले आदिका बहुत छोटा टुकड़ा, अग्निकण, स्फुल्लिंग | मु०-छोड़ना - झगड़ा लगानेवाली बात कहना ।
चिनगी * - स्त्री० दे० 'चिनगारी' |
चिनना * - स० क्रि० दीवार उठाना; चुनना । चिनाना * - स० क्रि० चुनवाना; दीवार उठवाना | चिनाब - स्त्री० पंजाबकी पाँच प्रधान नदियों में से एक, चंद्रभागा ।
चिनिया - वि० चीनी के रंगका, सफेद; चीनी जैसे स्वादका मीठा; चीन देशका | केला - पु० बंगाल में होनेवाला एक मीठा केला । - बादाम- पु० मूँगफली । चिन्मय - वि० [सं०] शुद्ध ज्ञानमय, ज्ञानस्वरूप | पु० परब्रह्म । चिन्मात्र - पु० [सं०] शुद्ध चैतन्य । वि० शुद्ध ज्ञानस्वरूप । चिन्ह - पु० दे० 'चिह्न' |
चिन्हवाना, चिन्हाना स० क्रि० पहचान कराना । चिन्हानी - स्त्री० चिह्न, पहचान; यादगार । चिन्हारि, चिन्हारी* - स्त्री० जान-पहचान । चिपकना - अ० क्रि० किसी लसदार चीजके योगसे एक
चीका दूसरी से जुड़ना; लिपटना; किसी काममें लगना । चिपकाना - स० क्रि० किसी लसदार चीजके योगसे एक
चीजको दूसरी से जोड़ना, साटना; लिपटाना । चिपचिपा - वि० लसदार, चिपकनेवाला । चिपचिपाना - अ० क्रि० लसदार होना; लगना । चिपचिपाहट - स्त्री० चिपचिपा होना, लस ।
१६- क
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चित्रा - चिर
चिपटना-अ० क्रि० दे० 'चिमटना' ।
चिपटा - वि० जो उभरा हुआ न हो, बैठा या धँसा हुआ । चिपड़ा - वि० जिसकी आँख में कीचड़ भरा हो । चिपड़ी, चिपरी - स्त्री० उपली । चिप्पड़-पु० लकड़ीको छाल आदिका टुकड़ा । चिप्पी - स्त्री०लकड़ी आदिका छोटा चिपटा टुकड़ा; उपली; कागजका छोटा टुकड़ा जो कहीं चिपका दिया जाय । : चिबु, चिबुक - स्त्री० [सं०] ठुड्डी | चिमटना - अ० क्रि० चिपकना; लिपटना; पिंड़ न छोड़ना । चिमटा - पु० जलता कोयला आदि पकड़नेका आला । चिमटाना - स० क्रि० चिपकाना; लिपटाना |
चिरंजीव - अ० [सं०] चिरजीवी हो, बहुत दिन जियो (आशीर्वाद); [हिं०] बेटा, पुत्र । वि० दे० 'चिरजीवी' । चिरंजीवी (विन्) - वि० [सं०] चिरजीवी | चिरंतन - वि० [सं०] बहुत दिनोंका, पुरातन । चिर- वि० [सं०] जो बहुत दिनोंसे हो, दीर्घकालीन, पुरान जो बहुत दिन बना रहे, दीर्घकालस्थायी । अ० बहुत दिन बहुत दिनोंतक, सदा । -कांक्षित - वि० जिसकी चाह, कामना बहुत दिनोंसे रही हो । -कालिक, - कालीन - वि० बहुत दिनका, पुराना; जीर्ण (रोग) | 1.-जीवी (विन्) - वि० बहुत दिन जीनेवाला, जिसकी
आयु लंबी हो; अमर । पु० विष्णु, कौवा, हनूमान् मार्कडेय आदि । - निद्रा - स्त्री० महानिद्रा, मृत्यु | - नूतन - वि० जो सदा नया बना रहे, चिरनवीन । - परिचित - वि० जिसे बहुत दिनोंसे जानते - पहचानते ह्रीं । - पाकी ( किन् ) - वि० देर में पकनेवाला । - पोषित - वि० जिसका बहुत दिनोंतक धारण, पोषण किया गया हो, चिरकांक्षित । प्रचलित - वि० जो बहुत दिनोंसे चला आ रहा हो, पुराना प्रसिद्ध - वि० जो बहुत दिनोंसे प्रसिद्ध हो । मान्य, - सम्मानित - वि० ( टाइम आनई) बहुत दिनोंसे जिसकी मान्यता रही हो, जिसका सम्मान होता आया हो। - रोगी (गिन् )वि० जो बहुत दिनोंसे बीमार हो; जो सदा रोगी रहे । - विस्मृत - वि० जो बहुत दिनोंसे भूल गया हो या भुला दिया गया हो। शत्रु - वि० पुराना दुश्मन, जिसके साथ बहुत दिनोंका वैर हो । -शांति - स्त्री० दीर्घकालव्यापी शांति; स्थायी शांति, मुक्ति । - संगी (गिन् ) - 'वि० सदाका साथी, जन्मसंगी । - स्थायी (यिन् ) - वि० बहुत दिनों तक बना रहनेवाला, टिकाऊ । -स्मरणीय
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चिरकना-चींटी
वि० बहुत दिनों तक याद रखने लायक ।
चिलड़ा। - पु० एक पकवान, उलटा, चीला |
चिरकना - अ० क्रि० थोड़ासा पाखाना करना; कई बार चिलता- पु० [फा०] एक तरहका कवच ।
थोड़ा-थोड़ा पाखाना करना ।
चिरकुट - पु० बहुत फटा हुआ कपड़ा, चिथड़ा । चिरचना * - अ० क्रि० क्रुद्ध होना, चिड़चिड़ाना । चिरचिटा - पु० चिचड़ा ।
चिरना - अ० क्रि० फटना; सीधा कट जाना । चिरम, चिरमि* - स्त्री० धुँधची ।
चिरमिटी * - स्त्री० घुंघची । चिरवाई - स्त्री० चिरवानेका काम या उजरत । चिरवाना - स० क्रि० चीरनेका काम दूसरेसे कराना । चिरहँदा - पु० चिड़ीमार ।
चिराई - स्त्री० चीरनेकी क्रिया; चीरनेकी मजदूरी। चिराक* - पु० दे० 'चिराग' । चिराग़- पु० [फा०] पु० दिया, दीपक, लंप; (ला०) बेटा । - गुल - पु० (ब्लैक आउट) दे० 'अंधाकुप्प' । -जलेअ० दिया जलनेके समय, अँधेरा होनेपर । -दानपु० दीवट, दीपाधार । बत्तीका वक्त दिया जलानेका वक्त, झुटपुटा । मु०का हँसना-चिरागसे फूल झड़ना । - गुल करना, ठंढा करना - दिया बुझाना। -गुल, पगड़ी गायब - निगाह झपते ही मालका गायब कर दिया जाना। - गुल होना - दिया बुझना । -तले अँधेरारखवालेके सामने चोरी; ज्ञानी, पंडित के घर में घोर मूर्खताका या अशास्त्रीय आचरण होना । - बदानादिया बुझाना | -बत्ती करना-दिया जलाना । लेकर हूँढ़ना - बहुत कोशिश से ढूँढ़ना, तलाश करना । चिराग़ी - स्त्री० [फा०] दिया-बत्तीका खर्च; मजारपर दी जानेवाली भेंट जो प्रायः चिरागके नीचे रख दी जाती है; किसी मजार पर दिया बत्ती करनेका खर्च । चिरातन* - वि० पुराना; फटा-पुराना । चिराना-स० क्रि० 'चिरवाना' । अ० क्रि० बीचसे चिर जाना - 'मकु गोहूँ कर हिया चिराना' - प० । * वि० पुराना, बहुत दिनोंका |
चिरायँध - स्त्री० चमड़े, मांस आदिके जलनेकी दुर्गंध । चिरायता - पु० कड़वे स्वादका एक छोटा पौधा जो दवाकै काम आता है ।
चिरायु (स्) - वि० [सं०] बहुत दिन जीनेवाला, चिरजीवी । चिराव- पु० चीरनेका भाव; चीरनेका घाव, चीरा । चिरिया * - स्त्री० दे० 'चिड़िया' ।
चिरिहार* - पु० चिड़ीमार, बहेलिया ।
चिरी* - स्त्री० 'चिड़िया' । -खाना - पु० चिड़ियाघर । चिरौंजी - खी० पियालके बीजकी गिरी । चिरौरी - स्त्री० दीनतापूर्वक की जानेवाली प्रार्थना । चिलक- स्त्री० चमक, झलक; टीस; हिलने आदिसे एक बारगी होनेवाली तीव्र पीड़ा; रुक-रुककर होनेवाली पीड़ा । चिलकना - अ० क्रि० चमकना; चिलक मारना; टीसना । चिलकाना - स० क्रि० चमकाना; उज्ज्वल करना । चिलगोजा - पु० [फा०] एक मेवा जिसकी गिरी खायी जाती है ।
चिलचिलाना - अ० क्रि० चमकना ।
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चिलबिला (ला) - वि० चंचल, शरारती, नटखट । चिलम स्त्री० [फा०] मिट्टी या धातुका कटोरीनुमा पात्र जिसपर तंबाकू- गाँजा आदि रखकर पीते हैं । - चटवि० बहुत तंबाकू पीनेवाला ।-बरदार - पु० हुक्का पिलाने या लेकर साथ चलनेवाला नौकर । चिलमची - स्त्री० एक बरतन जिसका किनारा थाल जैसा और बीचका भाग देगची जैसा होता है और जो हाथमुँह धोने, कुली आदि करनेके काम आता है; हुक्केका वह भाग जिसपर चिलम रखी जाय । चिलमन - पु० [फा०] बाँसकी तीलियोंका पर्दा, चिक । चिलवाँस * - पु० चीलका मांस (जिसे खानेसे विक्षिप्त हो जानेकी बात कही जाती है); चिड़िया फँसानेका फंदा । चिलड़-पु० जूँ जैसा कीड़ा जो पसीना मरनेवाले गंदे कपड़ों में पड़ा करता है । चिल्लपों-स्त्री० चीख-पुकार, शोर-गुल । चिल्लवाना-स० क्रि० चिल्लानेको प्रेरित, विवश करना । चिल्ला - पु० धनुष्की डोरी, कमानकी ताँत; चीला; पगड़ीका छोर (जिसमें कलाबत्तूका काम रहता है); [फा०] चालीस दिनोंका काल; चालीस दिनोंका व्रत, अनुष्ठान; प्रसूताका चालीस दिनका स्नान ( मुसल० ) । मु० चिलेका जाड़ा-कड़ी सरदी ।
चिल्लाना-अ० क्रि० जोर से बोलना, चीखना, शोर करना । चिल्लाहट - स्त्री० चिल्लानेकी क्रिया, शोर, हल्ला; पुकार । चिलिका - स्त्री० [सं०] भ्रुकुटी; झींगुर; * वज्र, बिजली । चिल्ली- स्त्री० [सं०] झींगुर; * बिजली । चिल्ही* - स्त्री० चील ।
. चिवुक - पु० [सं०] ठुड्डी । चिक* - स्त्री० दे० 'चहक' | चिहकार* - स्त्री० चहचही । चिहुँकना - अ० क्रि० चौंकना । चिटना* -
- स० क्रि० चुटकी काटना । अ०क्रि० लिपटना । चिहु (हु) टनी * - स्त्री० घुंघची । चिहुँटी* - स्त्री० चुटकी |
चिर- पु० [सं०] दे० 'चिकुर' |
चिह्न - पु० [सं०] लक्षण, पहचान, निशान, छाप (पदचिह्न); लकीर; पद आदिकी सूचक वस्तु; ध्वजा; लक्ष्य; निशानी । चिह्नांकन - पु० [सं०] [पंक्चुएशन) किसी रचना, वाक्य, प्रस्तर आदि में विराम चिह्न लगाना ( जहाँ आवश्यक हो वहाँ उन्हें लिख देना ) |
चिह्नांकित - वि० [सं०] ( ग्रेजुएडेट) ( वह गिलास, आदि ) जिसपर नापके लिए चिह्न लगे हुए हों । चिह्नित - वि० [सं०] जिसपर चिह्न हो, चिह्नयुक्त, अंकित । चीं -स्त्री० छोटी चिड़ियों या चिड़ियोंके बच्चोंकी बारीक आवाज । - चपड़ - स्त्री० कार्य या शब्द द्वारा विरोधका प्रदर्शन ।
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चींटा - पु० ची टीसे मिलता-जुलता, पर उससे बड़े आकार का कीड़ा, चिउँटा ।
चींटी-स्त्री० एक छोटा कीड़ा जो मीठेकी गंधसे उसके पास
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पहुँच जाता है, पिपीलिका ।
चींतना * - स० क्रि० चित्रित करना; लिखना । चौथना - स० क्रि० दे० 'चीथना' । चीक - स्त्री० दे० 'चीख'; कीचड़ । पु० कसाई । चीकट - पु० तेलका मैल; चिकट; लसार मिट्टी; + एक तरहका रेशमी कपड़ा; भांजे या भांजीकी शादी में बहनको दिये जानेवाले कपड़े गहने आदि । वि० जिसपर चिकनाई - के साथ मैल जमा हो, बहुत मैला ।
चीकना - अ० क्रि० चीखना । * वि० चिकना ।
चीन - स्त्री० चिल्लाने की आवाज, चिल्लाहट ।-पुकार - स्त्री० शोर-गुल; शोर मचाकर की जानेवाली फरियाद । चीखना - स० क्रि० स्वाद जाननेके लिए किसी चीजको थोड़ी मात्रा में खाना ।
चीखना - अ० क्रि० चिल्लाना, शोर मचाना |
चीखर, चीखल* पु० कीचड़ ।
चीखुर - पु० गिलहरी ।
चीज़ - स्त्री० [फा०] वस्तु, पदार्थ; बहुमूल्य, अनूठी वस्तु; बात, काम; साहित्य या कलाकी वस्तु (गीत, रचना इ० ) । - वस्तु - स्त्री० सामान; गहना कपड़ा । चीठ* - स्त्री० मैल |
चीठा* - पु० दे० 'चिट्ठा' ।
चीटी - स्त्री० दे० 'चिट्टी' |
चीड़-पु० एक सुंदर सदाबहार पेड़ जो बहुत ऊँचा होता है और जिसकी लकड़ी संदूक आदि बनाने के काम आती है । चीढ़ - पु० दे० 'चीड़' ।
चीत* - पु० दे० 'चित्त'; चित्रा नक्षत्र ।
चीतकार* - पु० दे० 'वीत्कार' ।
चीतना* - स० क्रि० सोचना; चेत करना; चाहना; याद करना; चित्र बनाना ।
चीतल - पु० हिरनका एक भेद जिसकी खालपर सफेद चित्तियाँ होती हैं, चित्रमृग; चित्तीदार अजगर; एक सिक्का । चीता - पु० एक तरहका बाध जिसकी खालपर लंबी काली, पीली धारियाँ होती है; एक क्षुप जिसकी छाल और जड़ दवा के काम आती है; * चित्त । * स्त्री० चिंता 'मंदोदरी हृदय करि चीता' - रामा० ।
चीकार - पु० [सं०] चीख, चिल्लाहट; शोर ं चिंघाड़ । चीथड़ा - पु० दे० 'चिथड़ा' ।
चीथना - स० क्रि० फाड़ना, धज्जी-धजी करना; दाँतों से फाड़ना, क्षत-विक्षत कर देना (हिंस्र जंतुका) । चीरा* - पु० दे० 'चिथड़ा' |
चीदा - वि० [फा०] चुना हुआ; अच्छा, बढ़िया । -चीदावि० चुने हुए (व्यक्ति, वस्तु); अच्छे-अच्छे | चीन - पु० [सं०] एशियाका एक प्रसिद्ध देश; एक तरहका हिरन; चीनका बना रेशमी कपड़ा; एक तरहका सावाँ, चेना; सीसा; पताका; सूत ।
चीनना* - स० क्रि० चीन्हना, पहचानना । चीनांशुक - पु० [सं०] चीनमें बनने या चीनसे आनेवाला रेशमी कपड़ा; रेशमी कपड़ा ।
चीना - वि० चीन देशका; चीनमें उत्पन्न, उपलब्ध । पु० चीन देशवासी, चीनी चीनी कपूर - ' कीन्हेसि भीमसेन औ
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चाँतना-चुंदी
चीना' - १०; चिह्न |
चीनिया - वि० चीनी, चीनका । - बादाम - पु० मूँगफली । चीनी - स्त्री० ईख, खजूर आदिके रससे बना हुआ सफेद दानेदार चूर्ण जो गुड़-खाँड़की जगह काममें लाया जाता है, शकर । वि० चीन संबंधी; चीनका; चीनमें उत्पन्न, उपलब्ध | पु० चीन देशवासी । -चंपा -पु० एक तरहका बढ़िया केला । - मिट्टी - स्त्री० पकायी हुई सफेद मिट्टी जिसके बरतन, खिलौने आदि बनते हैं ।
चीन्हना - स० क्रि० पहचानना । चीन्हा* - पु० चिह्न ।
चीपड़-पु० आँखका कीचड़ ।
चीमड़- वि० जो जल्दी फटे, टूटे नहीं । पु० एक पौधा । चीमर - वि०, पु० दे० 'चीमड़' । चीयाँ - पु० दे० 'चिंआँ' ।
चीर - पु० [सं०] वस्त्रखंड; कम लंबा वस्त्रखंड, पट्टी, धज्जी; कपड़ा, वस्त्र; बौद्ध भिक्षुओंका पहनावा; पेड़की छाल; रेखा, लकीर; गायका धन । - चरम * - पु० बाघंबर; मृगछाला । चीर-स्त्री० चीरने या फाड़नेकी क्रिया या भाव; कुश्तीका एक पेंच । पु० दे० 'चीड़' । - घर - पु० (मॉरटुअरी) वह स्थान जहाँ दुर्घनाओं आदिसे मरनेवालोंके शव, चीरफाड़ या परीक्षण द्वारा मृत्युका कारण ज्ञात करने के उद्देश्य से, कुछ समय के लिए भेज दिये जाते हैं । -फाड़ - स्त्री० चीरने फाड़नेका काम; चीरा लगाना, शल्य क्रिया । चीरना-स० क्रि० फाड़ना, टुकड़े करना; विदीर्ण करना; राह निकालना ( भीड़, पानी) ।
चीरा- पु० चीरनेका घाव, फोड़ेका शिगाफ; पगड़ी बनाने के काम आनेवाला लहरियादार कपड़ा; गाँवकी सीमापर गाड़ा हुआ पत्थर | चीरी* - स्त्री० चिड़िया ।
चील - स्त्री० बाजकी जातिकी एक बड़ी चिड़िया । झपट्टा - पु० किसी चीजको चीलकी तरह झपट्टा मारकर छीन लेना; बच्चोंका एक खेल । चीलड़, चीलर - पु० दे० 'चिल्लड़' । चीला - पु० उलटा नामका पकवान, चिल्ला । चील्ह - स्त्री० चील ।
चीही* - स्त्री० एक तंत्रोपचार, टोटका । चीवर - पु० [सं०] वस्त्र, पहनावा, साधु-संन्यासियों का पहनावा; बौद्ध भिक्षुओंका ऊपरी पहनावा; कंथा । चीवरी (रिन्) - पु० [सं०] बौद्ध या जैन संन्यासी, भिक्षु । चुंगल - पु० शिकारी चिड़ियों, जानवरोंका पंजा, चंगुल;
बुकटा; पकड़ | -भर- वि० चुटकीभर; थोड़ासा । चुंगी - स्त्री० चुंगलभर चीज; अनाज आदि बेचनेवालोंसे इस रूप में लिया जानेवाला महसूल; मालके म्युनिसिपल सीमा में आनेपर लिया जानेवाला महसूल । -कचहरी - स्त्री० म्युनिसिपलिटीका दफ्तर ।
घुँघाना - स० क्रि० चुसाना ।
|
चुंडित* - वि० जिसके सिर में चुटिया हो । चुंडी - स्त्री० दे० 'चु'दी' | चुंदरी । - स्त्री० दे० 'चुनरी' ।
चुंदी - स्त्री० शिखा, चोटी, चुटिया ।
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चुंधा-चुनट
२५० चुंधा-वि० छोटी आँखोंवाला; जिसकी दृष्टि क्षीण हो। चुचकारना-स० क्रि० दे० 'चुमकारना'। चुधियाना-अ० क्रि० चौधना ।
चुचकारी-स्त्री० दे० 'चुमकारी' । चुंबक-पु० [सं०] चुबन करनेवाला; कामुक; वह जो चुचाना-अ० कि० चूना, टपकना, रिसना । बहुतसे ग्रंथोंको जहाँ-तहाँसे पढ़कर, उलट-पुलटकर छोड़ दे, चुचुआना-अ० क्रि० चुचाना। किसीको पूरी तरह पढ़े-समझे नहीं; धूर्त; घड़ेके मुँहपर चुचुक-पु० [सं०] दे० 'चूचुक' । लगाया जानेवाला फंदा; वह धातु या पत्थर जो लोहेको चुचुकना-अ० क्रि० सूखकर सिकुड़ना। अपनी ओर खींचता है। -वृत्ति-स्त्री० ग्रंथोंको इधर
चुचुकारना*-स० क्रि० दे० 'चुमकारना'। उधर पढ़कर छोड़ देनेकी आदत ।
चुटकना-स० क्रि० चाबुक मारना; चुटकीसे तोड़ना। चुंबकत्व-पु० [सं०] चुंबकका गुण, आकर्षण ।
चुटकला-पु० दे० 'चुटकुला'। चुंबकीय-वि० [सं०] जिसमें चुबक या उसका गुण हो। चटका-पु० बड़ी चुटकी; चुटकीभर चीज। चुंबन-पु० [सं०] चूमनेकी क्रिया, बोसा; (ला०) छूना । चुटकी-स्त्री० किसी चीजको पकड़ने, उठाने आदिके लिए चुंबना*-स० क्रि० चूमना ।
अँगूठे और तर्जनी या बीचकी उँगलीको परस्पर सटाना; चंबित-वि० [सं०] चूमा हुआ; छुआ हुआ, स्पृष्ट । बीचकी उँगलीपर अंगूठेको दबाने और छटकानेसे होनेवाली चुंबी(बिन्)-वि० [सं०] चुंबन करनेवाला; छूनेवाला । आवाज भिक्षुकको दिया जानेवाला चुगलभर आटा आदि, चुअना-*अ० क्रि० दे० 'चूना' । वि० चूने, रिसनेवाला ।। भीख; अँगूठे और तर्जनीसे चमड़ेको पकड़कर दबाना या चुआई-स्त्री० चुआनेका काम; चुआनेकी मजदूरी । नाखून गड़ाना (काटना); कपड़ेमें रंग न चढ़ने देनेके लिए चुआना-स्त्री० नहर सोता; गड्ढा ।
दी गयी गाँठ; पेचकश; कागज आदिको पकड़ रखनेका चुआना-स० क्रि० टपकाना; भबकेसे अर्क खींचना * आला, 'विप'; पाँवकी उँगलियों में पहननेका एक गहना चुपड़ना।
दरीके तानेका सूत । -बजाते-अ० दमभर में, बातकी चुआव-पु० चुआनेकी क्रिया या भाव। ।
बातमें। -भर-वि० चुंगलभर, थोड़ासा । मु०-देनाचुकंदर-पु० [फा०] गाजर या शलजमकी शकलका एक | चुटकी बजाना; भीख देना । -बजाना-बीचकी उँगलीपर मूल जी साग-भाजीके रूपमें खाया जाता है और जिसके अँगूठेको दबा और छटकाकर आवाज निकालना। रससे चीनी भी बनती है।
-भरना-चुटकी काटना; चुटकी लेना।-माँगना-भीख चुक-पु० दे० 'चूक'।
माँगना ।-लगाना-चुटकीसे पकड़ना; मसलना; कपड़ेको चुकचुकाना-अ० कि० रिसकर बाहर आना, पसीजन।। दो उँगलियोंमें फँसाकर फाड़ना; (रुपया-पैसा चुरानेके चुकट*-पु० दे० 'चुकटा'।
लिए ) उँगलियोंसे जेब फाड़ना । -लेना-हँसी उड़ाना, चुकटा-पु० चुटकी; चुटकीभर वस्तु ।
व्यंग्य, तानाजनी करना । (चुटकियों)में-चुटकी बजाते, चुकता-वि० जो चुका दिया गया हो, अदा, बेबाक।
दमभरमें। -में उड़ाना-बातकी बातमें कर डालना; चुकना-अ० क्रि० समाप्त होना, बाकी न रहना; निबटना, । खेल समझना।
तै होना; अदा, बेबाक होना; * चूकना, खाली जाना। चटकला-पु० छोटीसी, पर मनोरंजक उक्ति, लतीफा, चकवाना-स० क्रि० अदा कराना; दिलवाना।
अनूठी बात; छोटासा, सस्ता पर काम करनेवाला नुस्खा, चुकाई-स्त्री० चुकता होनेका भाव ।
दवा। मु०-छोड़ना-मनोरंजक, कुतूहलजनक बात कहना। चुकाना-स० क्रि० अदा करना, चुकता करना; निबटाना, चुटिया-स्त्री० सिरके बीचोबीच छोड़ रखे हुए लंबे बाल, ते करना। * अ० क्रि० चूकना-'तेउ न पाइ अस समय । चोटी, शिखा। चुकाहीं'-रामा०।
चुटियाना-स० क्रि०चुटीला करना । चुक्कड़-पु० पुरवा, कुल्हड़ ।
चुटीला-वि० जो चोट खाये हो, घायल, जख्मी; चोट चुक्रिका-स्त्री० [सं०] नोनिया; इमली।
करनेवाला; चोटीका, सबसे बढ़िया । पु० छोटी चोटी । चुखानाt-स० क्रि० चखाना; गायके पेन्हानेके लिए चटकी*-स्त्री० दे० 'चुटकी। दुहते समय बछड़ेको दूध पिलाना ।
चुटैल-वि० चोट खाया हुआ, जख्मी; चोट करनेवाला। चुग़द-पु० [फा०] उल्लूकी एक छोटी किस्म; मूर्ख व्यक्ति। | चुडिहारा-पु० चूड़ियाँ बनाने, बेचने, पहनानेवाला।। चुगना-स० क्रि०चिड़ियोंका चोंचसे चुन-चुनकर दाना खाना। चुडैल-स्त्री० भूतनी, डायन; काली, कुरूप स्त्री; कर चुगल-पु०दे० 'चुगल' । -खोर-पु० दे० 'चुगलखोर'।। स्वभाववाली स्त्री। चुगली-स्त्री० परोक्षों की हुई निंदा, बुराई (खाना)। चुन-पु० चूर, पूर्ण (लोहचुन); आटा, चुगनेकी चीज। चुगा-पु० चिड़ियोंके चुगनेके लिए डाली गयी चीज चनचुना-वि० चुनचुनाहट पैदा करनेवाला, लगनेवाला; दे० 'चोगा।
चिड़चिड़ा । पु० मलाशयमें पैदा होनेवाला सफेद, सूत चुगाई-स्त्री० चुगनेकी क्रिया या भाव; चुगानेकी क्रिया। जैसा कीड़ा जो मलके साथ निकलता है, चुन्ना।। चुगाना-स० कि. चिड़ियोंको दाना खिलाना ।
चनचनाना-अ० कि० जलनके साथ खुजली पैदा होना च.गुल-पु० [फा०] पीठ पीछे निंदा-बुराई करनेवाला, | या चुभना, लगना; (बच्चोंका) ठिनकना।। चुगली खानेवाला । -खोर-पु० चुगली खानेवाला, पीठ चनचनाहट-स्त्री० जलनके साथ होनेवाली खुजली। पीछे निदा-बुराई करनेवाला।-खोरी-स्त्री०चुगलीखाना। चनट(त)-स्त्री० कपड़े, कागज आदिमें दाबसे पड़नेवाली
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चुनन-चुवा या दबाकर डाली गयी शिकन, सिलवट ।
मनमें फँसनाः सालना; * तन्मय, लीन होनाचुनन-स्त्री० दे० 'चुनट'। -दार-वि०जिसमें चुनट चुभवाना-स० क्रि० 'चुभाना'का प्रेरणार्थक । डाली गयी हो।
चुभाना, चुभोना-स० क्रि० पैंसाना, गड़ाना । चुनना-स० कि० छोटी चीजोंको एक-एक करके इकट्टा | चुभीला*-वि० चुभनेवाला; मनमें घर कर लेनेवाला, करना, बीनना; चिड़ियोंका चोंचसे दाना आदि उठाना, | मोहक । चुगना; तोड़ना, लोढ़ना (फूल, कली); बहुतोंमेंसे किसी चुमकार-स्त्री० चुमकारनेकी आवाज, पुचकार । खास चीजको, कार्य-विशेषके लिए उपयुक्त या श्रेष्ठ मान- चुमकारना-स० कि० बच्चोंको प्यार करने, पशुओंको कर अलग करना, छाँटना पसंद करना; वोटके द्वारा दो बुलानेके लिए मुंहसे चूमने जैसी आवाज निकालना, या अधिक उम्मीदवारोंमेंसे पद या कार्यविशेषके लिए एक- पुचकारना। को पसंद करना; सजाना, तरतीबसे लगाना; जोड़ना | चुमकारी-स्त्री० दे० 'चुमकार (इटे-); चुनट डालना।
चुम्मा-पु० चुंबन । चुनरी-स्त्री० वह रंगीन कपड़ा जिसपर सफेद या दूसरे चुर-पु० हिंस्र जंतुकी माँद; बैठक सूखे पत्ते आदिके टूटनेरंगकी बूटियाँ बनी हों; चुन्नी, याकूत ।
फटनेका शब्द । *वि० अधिक, बहुत। -मुर-पु० खरी, चुनवाना-स० क्रि० चुननेका काम दूसरेसे कराना। करारी चीजके टूटनेकी आवाज । *वि० कुरकुरा ।-मुराचुनाँचे-अ० [फा०] इस प्रकार; अतः, निदान ।। वि० जो दबानेसे 'चुरमुर' करके टूट जाय, करारा । चुनाई-स्त्री० चुननेकी क्रिया याउजरतदीवारकी जोड़ाई। चुरकुट, चुरकुस*-वि० चकनाचूर, चूर्णित ।। चुनाना-स० क्रि० दे० 'चुनवाना' ।।
चुरचुराना-अ० क्रि० 'धुरचुर' शब्द करते हुए टूटना । चुननेकी क्रिया या भाव; (वोटके द्वारा)किसी- चुरना-अ०क्रि० पानीमें पकना,सीझना; गुप्त मंत्रणाहोना। का पद या कार्यविशेषके लिए पसंद किया जाना। चुरमुराना-स० क्रि० 'चुरमुर' शब्दके साथ तोड़ना । अ० चुनिंदा-वि० चुना हुआ, छाँटा हुआ; बढ़िया, श्रेष्ठ । क्रि० 'चुरमुर' शब्दके साथ टूटना। चुनियाँ*-स्त्री० दे० 'चुनी'।
चुराई-स्त्री० चुरने या पकानेकी क्रिया या उजरत । चुनी-स्त्री० दे० 'चुन्नी'।
चुराना-स० क्रि० दूसरेकी चीजको उसकी जानकारी या चुनौटिया-पु० एक तरहका कत्थई या काकरेजी रंग। अनुमतिके बिना ले लेना; छिपाना, बचाना (आँख,ह); वि० उक्त रंगका-'पहिरे चीर चुनौटिया चटक चौगुनी करने, देने में कसर रखना, उचितसे कम करना, देना होत'-बि०।
(गायका दूध चुराना); पानीमें पकाना । चुनौटी-स्त्री० पान या तंबाकूके लिए चुना रखनेकी चुरिहारा-पु० दे० 'चुड़िहारा' । डिबिया ।
चुरी*-स्त्री० चूड़ी। चुनौती-स्त्री० बढ़ावा युद्ध, शास्त्रार्थ आदिके लिए आह्वान, चुरुट-पु० सिगरेट, सिगार । ललकार (देना); चुनौटी ।
चुरू*-१० चल्लू । चुन्नट(त)-स्त्री० दे० 'चुनट' ।
चुल-स्त्री० खुजली तीव्र इच्छा कामोद ग (उठना,मिटना)। चुना-पु० दे० 'चुनचुना'।
चुलचुलाना-अ० कि. चुल, खुजली उठना (बच्चोंका) चुसी-स्त्री० माणिक या लालका छोटा टुकड़ा, छोटा नग; नटखटी करना। चमकी भरहर या और किसी दालके टुकड़े।
चुलचुलाहट, चुलचुली-स्त्री० चुल, खुजली। चुप-वि० जो वोलता न हो, मौन, खामोश । स्त्री० चुप्पी, चुलबुला--वि० चंचल, नटखट, जो स्थिर न रह सके। मौन ।-चाप-अ०बिना बोले, चुपकेसे बिना हिले-डुले। -पन-पु० चंचलपन, नटखटी; शोखी। चुपका-वि० चुप, मीन; घुन्ना । -(के)से-चुपचाप । चुलबुलाना-अ० क्रि० बार-बार हिलना, डोलना; स्थिर चुपकी-स्त्री० मौन, चुप्पी ।
न रह सकना, चंचलता दिखाना । चुपड़ना-स० क्रि० तेल, घी या दूसरी तरल, चिकनी चीज चुलबुलिया -वि० दे० 'चुलबुला'। लगाना, पोतना (रोटीमें घी चुपड़ना); चापलूसी करना । चुलाना-स० क्रि० दे० 'चुआना' । चुपरना*-स० क्रि० दे० 'चुपड़ना।।
चुलुक-पु० [सं०] चुल्लू । चुपाना*-अ० क्रि० चुप हो रहना; सक्रि० चुप करना। चुलूक*-पु० चुल्लू । चुप्पा-वि० चुप रहनेवाला; जो कम बोलता हो; घुन्ना।। चुल्लू-पु० उँगलियोंको थोड़ा मोड़कर गहरी की हुई हथेली, चुप्पी-स्त्री० मौन, खामोशी।
आधी अंजली। मु०-भर पानी में डूब मरना-लज्जासे चुब(भोलाना-स० क्रि० किसी चीजको मुँहमें रखकर मुँह न दिखा सकना । (चुल्लुओं) रोना-बहुत रोना । जीभसे थोड़ा हिलाते-डुलाते हुए स्वाद लेना।
-लहू पीना-बहुत सताना। चुभकना-अ०क्रि० बार-बार गोताखाना, डूबना-उतराना। चुल्हौना*-पु० चूल्हा । चुभकाना-स० क्रि० बार-बार गोता देना।
चुवना*-अ० क्रि० चूना, टपकना । स० क्रि० चुगना; चुभकी-स्त्री० गोता, डुबकी।
टपकाना । वि० चूनेवाला । चुभन-स्त्री० चुभनेका भाव; दर्द, खटक ।
चुवा-पु० चौपाया, पशु-'चारु चुवा चहुँ ओर चलै'चुभना-अ० क्रि० धंसना, नुकीली चीजका भीतर घुसना; कविता० + मज्जा।
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चुवाना-चूर
२५२ चुवाना-१०क्रि० दे० 'चुआना'।।
की चोटी; पहाड़की चोटी; मस्तक । पु० कलाई पर पहननेचुसकी-स्त्री० तरल पदार्थको होठोंसे हुक्केके कशकी तरह का एक गहना, कड़ा, कंकण, कुआँ चूडाकरण संस्कार । खींचकर पीना हुक्केका कशा घूट ।
-करण,-कर्म(न्)-पुहिंदू बच्चेका पहली बार सिर चुसना-अ० क्रि० होठोंसे पिया जाना; चूसा जाना; निचु- मुंडानेका संस्कार, मुंडन ।-मणि-पुल्सीसफूल; घुघची। इना खोखला, सारहीन, धनहीन हो जाना ।
वि० सर्वश्रेष्ठ, अग्रगण्य ।-रत्न-पु० सीसफूल । चुसनी-स्त्री० एक खिलौना जिसे बच्चे मुंहमें डालकर चूसते | चूड़ा-पु० चिड़वा।। है। बच्चोंको दूध पिलानेकी शीशी।
चूड़ी-स्त्री० काँच, लाख, सोने, हाथी दाँत आदिका बना चुसवाना-स० क्रि० दे० 'चुसाना।
वृत्ताकार आभूपण जिसे स्त्रियाँ कलाईपर पहनती हैं। चूड़ीचुसाई-स्त्री० चूसनेकी क्रिया या भाव।।
की शकलकी चीज; पुरजा; ग्रामोफोनका रेकर्ड छड़ चुसाना-स० क्रि० चूसनेका काम दुसरेसे कराना । आदिके सिरेपर बनायी जानेवाली चुड़ीकी शकलकी गहरी चुस्त-वि० [फा०] तेज, फुरतीला; तंग, कसा हुआ; दृढ़, | रेखाएँ। -दार-वि० जिसमें चड़ियाँ हों; जिसमें पासमजबूत; ठीक, उपयुक्त फबता हुआ। -(व)चालाक- पास कई लकीरें हों । पु० तंग और लंबी मोहरीका वि० तेज, फुरतीला और चतुर ।
पाजामा जिसे पहननेपर चूड़ियों जैसी सिलवटें पड़ जाती चस्ती-स्त्री० [फा०] तेजी, फुरती; तंग होना, कसाब हैं । मु० (चूड़ियाँ) ठंढी करना, तोड़ना-स्त्रीके विधवा मजबूती।
होनेपर चूड़ियाँ तोड़ देना। -पहनना-जनाना मेस चुहँटी, चुहटी*-स्त्री० चुटकी ।
बनाना, स्त्री बनना :( व्यं० ); विधवाका फिरसे व्याह चुहचुहा-वि० दे० 'चुहचुहाता'।
करना या किसीके घर बैठ जाना। -पहनाना-विधवासे चुहचुहाता-वि० रसीला, मजेदार; फड़कता हुआ। व्याह करना। चुहचुहाना-अ० क्रि० चिड़ियोंका बोलना, चहचहाना; चूत-स्त्री० भग, योनि । पु० [सं०] आमका पेड़ । रस टपकना; भड़कीला लगना ।
चूतड़-पु० कमरके नीचे और जाँघोंके ऊपर पीठकी ओरका चहचही-स्त्री० एक छोटी चंचल चिड़िया जिसकी बोली |
मांसल, गुलगुला भाग, नितंव । मु०-दिखाना-भाग बड़ी प्यारी होती है।
जाना ।-पीटना,-बजाना-बहुत खुश होना । चुहटना*-स० कि० रौंदना, कुचलना।
| चूतिया-वि० मूर्ख, बुद्ध ।-पंथी-स्त्री० बेसमझी, मूर्खता, चहल-स्त्री० हँसी, ठिठोली, मजाक, विनोद । -बाज़ वि० हँसी-ठिठोली करनेवाला, विनोदी। -बाज़ी-स्त्री०चून-पु० आटा, चुगने या खानेकी वस्तु-'चोंच दई जिन ठिठोली।
चूनहि दैहैं'-सुंद०; एक तरहका थूहड़; * दे० 'चूना' । चुहिया-स्त्री० मादा चूहा; छोटा चूहा ।
चूनर, चूनरी-स्त्री० दे० 'चुनरी'। चुहटना*-अ०क्रि० चिमटना । वि० चिमटनेवाला। चूना-अ०क्रि० टपकना, बूंद-बूंद करके नीचे गिरना पके चुटनी-वि० स्त्री० चिमटनेवाली । स्त्री० घुघची। फल आदिका झड़ पड़ना; * गर्भपात होना। वि० च-पु० छोटी चिड़िया या चिड़ियाके बच्चेकी बोली; 'चूंकी चूनेवाला। पु० पत्थर, कंकड़, सीप आदिको फूंककर आवाज । -चूँ-पु० चिड़ियोंकी बोली । 'ची-चौँ', 'चूँ. प्रस्तुत किया जानेवाला तीक्ष्ण क्षार जो पानमें खाने और चूँ की आवाज; एक खिलौना जिसे दबानेसे 'चूं-धूं की पलस्तर, सफेदी करने आदिके काम आता है । -दानीआवाज निकलती है। म मुरब्बा-तरह-तरह- स्त्री० चुनीटी । मु०-फेरना-सफेदी करना । -लगाना की बेमेल चीजोंका योग । -न करना-तनिक भी उज्र, __-बेवकूफ बनाना; नीचा दिखाना; हानि पहुँचाना । एतराज न करना।
चूनी-स्त्री० अन्न, खासकर चने आदिकी दालके छोटे-छोटे चूंकि-अ० इसलिए कि, यतः, क्योंकि ।
टुकड़े, चुन्नी, अन्नकण । -भूसी-स्त्री० चुन्नी और भूसी चूच*-स्त्री० चोंच।
या चोकर; मोटा-झोटा अन्न । चूंदरी*-स्त्री० दे० 'चुनरी' ।
चूपरी*-स्त्री० घी लगी हुई रोटी। चक-स्त्री० भूल, गलती, खता; अपराध; छल, धोखा । पु० चूमना-स० क्रि० स्नेह प्रकाशके लिए होंठोसे किसीनीबूका सुखाया हुभा रस । बि० बहुत खट्टा।
(प्रियजन)के होठों, गालों आदिका स्पर्श करना, दबाना; चूकना-अ० क्रि० भूल, गलती करना; खोना, गँवाना सम्मानप्रकाशके लिए किसी(गुरुजन)के हाथ या पाँवको (अवसर); लक्ष्यपर न लगना, खता होना (निशाना); कोई होंठोंसे छूना; चुंबन करना, वोसा लेना विवाह या बात करने, कहनेका अवसर आनेपर उसे न करना, न उपनयनमें कुटुंबकी स्त्रियों, लड़कियोंका वर या ब्रह्मचारीके कहना; करने कहनेसे बाज रहना (वह कब चूकनेवाला है)। कंधे, माथे आदिको दूब, चावलसे छूना । चूची-स्त्री० स्तनका अग्रभाग, चूचुका स्तन ।
चूमा-पु० चूमनेकी क्रिया, चुंबन ।-चाटी-स्त्री०चूमनाचूचुक, चूचूक-पु० [सं०] स्तनका अग्रभाग ।
चाटना; चुंबन-आलिंगन । . चूजा-पु० [फा०] मुरगीका बच्चा ।
| चूर-पु० किसी ठोस वस्तुका कूटने पीसने या रेतनेसे बहुत चूडांत-पु० [सं०] चरम सीमा । अ० बहुत ज्यादा । वि० बारीक टुकड़ोंमें हुआ रूपांतर, चूर्ण, धूल, चूरा । वि० - चरम सीमापर पहुँचा हुआ।
डूबा हुआ, निमग्न; बेसुध, बदमस्त (नशेमें चूर); शिथिल, घूडा-स्त्री० [सं०] चोटी, शिखा; मोर या मुरगेके सिरपर- [ पस्त (थककर चूर होना)। मु०-चूर करना-तोड़-फोड़कर
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२५३
टुकड़े टुकड़े कर देना; नष्ट कर देना । चूरण - पु० दे० 'चूर्ण' ।
चूरन - पु० दे० 'चूर्ण'; घीमें भुना हुआ आटा जिसमें चीनी चेटका - स्त्री० श्मशान; चिता । मिली हो; पाचक दवाओं का चूर्ण |
चूरना* - स० क्रि० चूर करना, तोड़ना ।
चूल्हा - पु० मिट्टी, ईंटों आदिकी बनी हुई तीन बाजुओं वाली अँगीठी जिसमें आग जलाकर खाना पकाते हैं । मु० - न्यौतना - सारे घरको भोजनका निमंत्रण देना । - फूँकना - खाना पकाना । ( चूल्हे) में जाय, - में पढ़ेनष्ट हो जाय, भाड़ में जाय (शाप) । - से निकलकर भट्ठी में पड़ना - छोटी मुसीबत से निकलकर बड़ी में फँसना । चूषण - पु० [सं०] चूसना ।
चूष्य - वि० [सं०] जो चूसा जा सके । पु० चूसनेकी चीज । चूसना - स० क्रि० होंठों और जीभके योगसे रसपान करना, रस, सार निचोड़ लेना, खोखला कर देना; धनका हरण करना, शोषण करना ।
चूरमा - पु० बाटी, बाजरेकी मोटी रोटी आदिको मसलकर चेटिकी * - स्त्री० चेटिका । और घी-शकर मिलाकर बनाया हुआ खाद्य । चेटिया * - पु० छात्र । चूरा- पु० किसी वस्तुका चूर्ण रूप, बुरादा, धूल; चिड़वा चेटी-स्त्री० [सं०] दासी । कड़ा, बेरवा । * स्त्री० चोटी; शिखा; मस्तक । - मणि* - मनि* - पु०, स्त्री० दे० 'चूड़ामणि' । चूर्ण-पु० [सं०] चूर;चूरन;गंधद्रव्योंका चूर्ण; अबीर; चूना । चूर्णक - पु० [सं०] सत्तू; सुगंधित चूर्ण; वह गद्य जो सरल आर कर्णकटु वर्णोंसे रहित तथा अल्पसमास हो । चूर्णन - पु० [सं०] चूर्ण करना । चूर्णित - वि० [सं०] चूर किया हुआ; नष्ट, ध्वस्त । चूल - स्त्री० लकड़ी, बॉस आदिका पतला सिरा जो दूसरी लकड़ी, बाँस आदिके छेद में ठोका जाय; : पुराने ढंगके किवाड़का नीचे ऊपरका गोल लंबोतरा भाग जिसपर वह घूमा करता है । पु० [सं०] बाल; चोटी । चूलिका - स्त्री० [सं०] नेपथ्यसे किसी घटना के होनेकी सूचना (ना० ) ।
चूहड़ा - पु० भंगी; डोम ।
चूहर, चूहरा - पु० दे० 'चूहड़ा' ।
चूहा - पु० घरों, खेतों में बिल बनाकर रहनेवाला एक चतुपद जंतु जिसके दाँत बहुत तेज होते हैं, मूषक। - दंतीस्त्री० एक तरहकी पहुँची । -दान-पु० चूहे फँसानेका खटकेदार पिजड़ा । ( चूहे ) दानी -स्त्री० दे० 'चूहादान' । -स्त्री० चिड़ियोंकी बोली । - च- स्त्री० चीं चीं; बकबक । - पैं - स्त्री० चीं-चपड़; बकवाद ।
च-पु० बरसात में उगने वाला एक साग ।
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मिलानेवाला चतुर सेवकः चसका; शीघ्रता । चेटकनी * - स्त्री० चेटिका ।
चेटकी - पु० इंद्रजाल करनेवाला, बाजीगर । चेटिका - स्त्री० [सं०] दासी, लौंडी ।
चूरण- चेहरा
चेत (स्) - पु० [सं०] होश, संज्ञा; याद; ज्ञान; चित्त, मन । चेतक - वि० [सं०] चेत करानेवाला; चेतन । पु० (हिप) वह अधिकारी जो संसद या विधान सभा में अपने दल के सदस्यों द्वारा 'सभा' में अनुशासन पालन कराने, उनकी उपस्थिति ठीक रखने, उन्हें आवश्यक सूचना देने, उन्हें वोट देनेके लिए बुलाने आदिकी व्यवस्था करता है, सचेतक । चेतन - पु० [सं०] आत्मा, जीव; परमेश्वर; मनुष्य; प्राणी; मन । वि० प्राणयुक्त, चैतन्य - विशिष्ट । चेतना - अ०क्रि० होश में आना; बुद्धि-विवेक से काम लेना, सावधान होना । स०क्रि० सोचना, बिचारना (भला चे०, आगम चे०) । स्त्री० [सं०] चैतन्य; ज्ञान; होश; याद; बुद्धि; चेत ; जीवनी शक्ति, जीवन । चेतवनि* - स्त्री० चितवन; चितावनी । चेतावनी- स्त्री० सावधान करने, किसी हानिकर कार्यसे रोकने के लिए कही गयी बात, तंबीह, खतरेकी पूर्वसूचना | चेतिका* - स्त्री० चिता |
वेदि - पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद; वहाँ के निवासी; वहाँका राजा । - पति, - राज - पु० शिशुपाल | चेप-पु० गाढ़ा, लसदार रसः लासा; * उत्साह । - दारवि० चेपवाला, लसदार ।
चेर* - पु० दास, सेवक । [स्त्री० 'चेरि', 'चेरी' ।] चेरा* - पु० दास, सेवक, चेला, शिष्य । चेराई -स्त्री० गुलामी, चाकरी; शागिदीं । चेल - पु० [सं०] कपड़ा, वस्त्र । चेल का ई* - स्त्री० दे० 'चेलहाई' |
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चेलहाई+ - स्त्री० चेलोंका समूह; चेला बनानेका व्यवसाय; चेलोंके यहाँ घूमकर भेंट, पूजा लेना ।
चेला- पु० शिष्य, शागिर्द, दीक्षा, गुरुमंत्र लेनेवाला । स्त्री० चेल्हवा मछली । मु० - मूँड़ना - चेला बनाना । चेलिन, चेली - स्त्री० गुरुदीक्षा प्राप्त करनेवाली स्त्री चेल्हवा- स्त्री० एक छोटी मछली ।
चेष्टा - स्त्री० [सं०] गति, हरकत; क्रियासाधक कायिक व्यापार; मनका भाव बतानेवाली अंगोंकी गति, भावभंगी; प्रयत्न, कोशिश ।
टुआ * - पु० चिड़ियाका बच्चा ।
चेक - पु० [अ०] किसी बंकके नाम किसीको रुपये देनेका | चेहरा- पु० [फा०] सिरका सामनेका, माथेसे लगाकर ठुड्डी
लिखित आदेश; चारखाना। - बुक-स्त्री० चेक-बही । चेचक स्त्री० एक छुतहा रोग जिसमें ज्वरके साथ सारी देहमें दाने निकल आते हैं, शीतला । चेजा* - पु० छेद, सूराख ।
तकका भाग, मुखमंडल; सामनेका रुख, आगा; किसी देवदानवकी धातु, मिट्टी आदिकी मुखाकृति; रजिस्टर आदिमें लिखी जानेवाली हुलिया । -मुहरा - पु० सूरत शकल । मु०-उतरना - चेहरेसे सुस्ती, उदासी, गहरी चिंता आदि प्रकट होना, चेहरेपर तेज, प्रफुल्लता न रहना । - पीला हो जाना- रोग, भय आदिके कारण चेहरेपर पीलेपनकी झलक आ जाना। - बिगाडना
चेट - पु० [सं०] दास, सेवकः पति; नायक और नायिकाको मिलानेवाला; भाँड़; एक मछली ।
चेटक - पु०जादू; [सं०] दास; उपपति; नायकको नायिकासे
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चेहलकदमी - चोर
इतना मारना कि चेहरेकी हुलिया बदल जाय। -सफेद हो जाना - रोग या भयके कारण चेहरेपर सफेदी आ जाना, उसकी चमक, सुखका गायब हो जाना । - - (२) पर हवा इयाँ उड़ना-भय, घबराहट से चेहरेका रंग उड़ जाना । चहलकदमी - स्त्री० [फा०] धीरे-धीरे थोड़ासा टहलना; मुसलमानोंकी अंत्येष्टिको एक रस्म ।
चेहलुम - वि० [फा०] चालीसवाँ । पु० मुसलमानों में मृत्युके चालीसवें दिनका फातिहा और भोज; मुहर्रमके चाली सवें दिन होनेवाला करबला के शहीदोंका फातिहा । चै* - पु० दे० 'चय' ।
चैत- पु० चैत्र मास, फाल्गुनके बादका महीना । चैतन्य - पु० [सं०] चेतना, ज्ञान, आत्मा; चित्स्वरूप परमात्मा; प्रकृति; गौरांग महाप्रभु ।
चैती - वि० चैतमें होनेवाला ( चैती गुलाब) । स्त्री० चैतमें पकनेवाली फसल, रबी; एक तरहका चलता गाना । चैत, चैत्तिक- वि० [सं०] चित्त-संबंधी, मानसिक । चैत्य - वि० [सं०] चिता-संबंधी, । पु० घर; देवालय; समाधि मंदिर, यज्ञशाला; गाँवकी सीमापरका वृक्षसमूह; बुद्धमूर्ति बौद्ध भिक्षु, बौद्ध विहार; पीपल; बेलका पेड़ । तरु, वृक्ष - पु० पीपल । - विहार - पु० बौद्ध या जैन मठ -स्थान- पु० वह स्थान जहाँ बुद्धदेवकी मूर्ति हो; पवित्र
स्थान ।
चैत्र- पु० [सं०] वह चांद्र मास जिसकी पूर्णिमा चित्रा नक्षत्रमें पड़ती है, चैत; देवालय, चैत्य; बौद्ध भिक्षु । -रथ, - रथ्य - पु० चित्ररथ गंधर्वका बनाया हुआ कुबेरका उद्यान । चैन - पु० सुख, आराम; कल, शांति । मु०- की वंशी
बजाना - बड़े आनंदसे दिन बिताना। -से कटना, - से गुजरना - आराम से जिंदगी बसर होना । चैयाँ* - पु० बाँह |
चैल - पु० [सं०] कपड़ा, वस्त्र पहनावा ।
चैला - पु० जलाने के लिए चिरी हुई लकड़ी, फट्ठा । चौंक * - स्त्री० चुंबनका चिह्न |
चाँगा - पु० बाँसकी खोखली नली जिसका एक सिरा बंद और दूसरा खुला हो; कागज आदिकी बनी हुई वैसी नली । चाँघना * - स० क्रि० चुगना । चोंच - स्त्री० चिड़ियोंके मुँहका अगला, नोकदार भाग, टोंट; मुँह ( व्यं० ) । मु० दो-दो चाँचे होना- कहासुनी होना । चाँचला - पु० दे० 'चोचला' ।
चाँटना * - स० क्रि० खोंटना; चौंथना, नोचना । चौड़ा - पु० सिंचाई के लिए खोदा गया छोटा कच्चा कुआँ । चौथ - पु० गाय-बैल आदिका एक बार में किया गया गोवर । चौथना - स० क्रि० खोंटना; नोचना; चीथना । चोआ - पु० कई गंधद्रव्योंको मिलाकर बनाया जानेवाला एक सुगंधित द्रव्य; किसी चीजकी कमी पूरी करनेके लिए उसके साथ रखी जाने वाली चीज; बाटकी कमी पूरी करनेके लिए लड़ेपर रखा जानेवाला कंकड़ आदि; दे० 'चोटा' । चोई - स्त्री० भिगोकर मलने से निकलनेवाला दालका छिलका। चोकर - पु० गेहूँ, जौ आदिका छिलका जो आटेको छानने से छलनी में रह जाता है ।
चोख * - स्त्री० तेजी, फुरती । वि० दे० 'चोखा' |
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६५४
चोखना । - स०क्रि० थनसे मुँह लगाकर दूध पीना, चूसना । चोखनि* - स्त्री० चोखनेकी क्रिया ।
चोखा - वि० खालिस, बेमेल; सच्चा, खरा; चतुर; तीखी धारवाला | पु० आलू, बैगन आदिका भरता । चोगद-पु० दे० 'चुराद' ।
चोग़ा - पु० [फा०] लंबा, ढीला-ढाला अँगरखा जिसका आगा खुला होता है (गाउन) ।
चोचला - पु० नखरा, हाव-भाव 1- (ले) बाज़ - वि० नखरेबाज
चोज - पु० चमत्कारपूर्ण उक्ति; व्यंग्यभरी हँसी । चांद-स्त्री० आघात; वार, घात-प्रतिघात, घाव; हिंस्र पशुका आक्रमण; व्यथा; व्यंग्य; बार, दफा; हानि पहुँचाने के लिए चली हुई चाल । -चपेट- पु० घाव, ठेस । मु० - उभरना - चोट खाये हुए अंगका ठंढ लगने आदि से फिर सूज आना, दर्द करना । चोटना पोटना* - स० क्रि० मनाना, फुसलाना । चोटहा - वि० जिसपर चोटका चिह्न हो । चोंट करनेवाला | चोटा-पु० रावके ऊपर उठ आनेवाला शीरा, जूसी । चोटार* - वि० चोट करनेवाला; चोट खाया हुआ । चोटारना* - स० क्रि० चोट करना । चोटिया - स्त्री० चोटी, बालोंकी लट | चोटियाना - स०क्रि० चोट पहुँचाना; चोटी पकड़ना । चोटी - स्त्री० (हिंदुओंके ) सिर के बीचोबीच छोड़ रखे हुए लंबे बाल, शिखा; स्त्रीके सिरके गुंथे हुए और पीठकी ओर या अगल-बगल लटकनेवाले बाल; वह रंगीन डोरा जो चोटी बाँधने के काम आता है; चिड़ियोंके सिरपरकी कलगी; एक गहना जो जूड़े में बाँधकर पहना जाता है; पहाड़का सबसे ऊँचा भाग, शिखर; (ला० ) उत्कर्षकी सीमा । - का - औवल दरजेका, सर्वोत्कृष्ट । -द्वार - वि० चोटी - वाला । मु० - कटाना - बस में होना, गुलाम बनना । - कतरना - बसमें करना, अधीन करना । -करनासिरके बाल सँवारकर गूँथना । - दबना, - हाथमें होना - दबाव में होना, काबू में होना ।
चोटी-पोटी * - वि० चिकनी-चुपड़ी, बनावटी (बात ) | चोट्टा-पु० चोर |
चोद* - पु० चाव, उमंग । चोदक- वि० [सं०] प्रेरक |
चोदना - स० क्रि० संभोग करना । स्त्री० [सं० ] प्रेरणा; प्रवर्तन; विधि, शास्त्रादेश ।
चोप- पु० आमकी ढेपनी तोड़नेसे निकलनेवाला तेजावी रस; * चाह; चाव; उमंग बढ़ावा । स्त्री० दे० 'चोब' | -दार - पु० दे० 'चोबदार' | चोपना * - अ० क्रि० मोहित होना; आसक्त होना । चोपी *वि० चाव, चाह, उत्साह रखनेवाला । स्त्री० आमके मुँह पर से निकलनेवाला रस ।
चोब - स्त्री० [फा०] लकड़ी; डंडा, सोंटा; खेमेका डंडा; ढोल, नगाड़ा आदि बजानेकी लकड़ी; सोना या चाँदी मढ़ा हुआ डंडा, असा -दार पु० असावरदार । चोर - पु० [सं०] चोरी करनेवाला, छिपकर दूसरेकी चीज हथिया लेनेवाला, तस्कर; उचितसे कम काम करने, कम
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२५५
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माल देनेवाला, बेईमान; छिपकर काम करनेवाला; जो मनका भाव प्रकट न होने दे; मनमें छिपी बुराई, दुर्भाव; घाव आदिके भीतर छिपी विकृति, खराबी; खेल में हारनेवाला लड़का जिससे और लड़के दाँव लें; ताश, गंजीफेका पत्ता जिसे कोई खिलाड़ी दबाये बैठा हो; एक गंध-द्रव्य, चोरक । वि० [हिं०] छिपा हुआ, गुप्त; जिसका बाह्य रूप धोखा देनेवाला हो (चोर दरवाजा, चोर महल, इत्यादि) - कट - पु० [हिं०] चोर, चोट्टा । -ख़ाना - पु० [हिं०] संदूक, आलमारीका छिपा खाना। - खिड़की - स्त्री० [हिं०] छोटा चोर दरवाजा | गढ़ा - पु० [हिं०] छिपा हुआ गढ़ा । -गली - स्त्री० [हिं०] सँकरी गली जिसका पता कुछ ही लोगोंको हो; गलीके भीतर की गली। - ज़मीन - स्त्री० [हिं०] वह दलदल जो ऊपर से देखने में सूखा, कड़ी जमीनसा जान पड़े। - ताला-पु० [हिं०] किवाड़ के अंदर लगा हुआ गुप्त ताला जिसका पता ऊपरसे न लगे; वह ताला जो अनोखे रहस्यमय ढंगसे खोला जाय | -धन- वि० [हिं०] दुहते समय दूध चुरा रखने वाली | - दंत - ५० दे० 'चोरदंता' । - दंता, दाँत - पु० [हिं०] बत्तीस दाँतोंके अतिरिक्त दाँत जिसके निकनेमें बहुत कष्ट होता है । - दरवाजा- पु० [हिं०] मकानके पिछवाड़ेका छोटा दरवाजा जिसका पता कुछ खास लोगों को ही हो। -द्वार - पु० चोर दरवाजा । - पेट - पु० [हिं०] ऐसा पेट जिसमें गर्भका पता अरसे - तक न लगे । - बदन-पु० [हिं०] वह मनुष्य जो ऊपरसे कमजोर मालूम हो, पर वस्तुतः बलवान् हो । - बाज़ार - पु० [हिं०] वह दुकान, स्थान जहाँ चोरीसे, नाजायज तरीके से माल बेचा, खरीदा जाय। -बालूस्त्री० [हिं०] वह रेता जिसके नीचे दल-दल हो । -महलपु० [हिं०] वह महल जिसमें किसी राजा, रईसकी रखेलियाँ रहें । - मिहीचनी* - स्त्री० आँख-मिचौनी । - मूँग - पु० [हिं०] मूँगका वह कड़ा दाना जो न दलनेसे दला जाय और न पकानेसे गले ।
चोरटा - पु० चोर । [स्त्री० 'चोरटी' ।] चोरना* - स० क्रि० चोरी करना । चोर-चोरी* - अ० दे० 'चोरी-चोरी' । चोरित - वि० [सं०] चुराया हुआ । चोरी - स्त्री० चोरका काम, चुरानेकी क्रिया; छिपाव, दुराव; ठगी, धोखेबाजी । - चोरी - अ० छिपे छिपे; छिपाकर । - छिनाला - पु० चोरी और व्यभिचार; दूषित कर्म । - का काम, - की बात - छिपाकर करनेका काम, बात । से - छिपाकर ।
चोल - पु० [सं०] दक्षिण भारतका एक प्राचीन जनपद, आधुनिक तंजौर; उक्त जनपदका निवासी; चोला; मजीठ; वल्कल; कवच । स्त्री०चोली - 'क्या करै बपुरी चोल' - साखी । - खंड - पु० एक चोलीके ब्योंतभरका जरदोजीके कामका कपड़ा । - सुपारी - स्त्री० [हिं०] चिकनी सुपारी | चोलना * - पु० साधुओंका लंबा कुरता । चोला- पु० मुल्लाओं, फकीरों आदिके पहननेका लंबा, ढीलाढाला कुरता; शिशुको पहली बार पहनाया जानेवाला कपड़ा; अँगरखेका ऊपरका भाग; देह, शरीर । मु०- बदलना -
चोरटा - चौ
एक शरीर त्यागकर दूसरा धारण करना; रूप बदलना । चोली- स्त्री० [सं०] वह अँगिया जिसमें पीछेकी ओर बंद न हों; चोला । मु० - दामनका साथ कभी न छूटनेवाला
साथ ।
चोल्ला* - पु० दे० 'चोला' । चोवा- पु० दे० 'चोआ' ।
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चोषक - पु० [सं०] चूसनेवाला । चोषण- पु० [सं०] चूसना । चोषना* - स० क्रि० दे० 'चोखना' ।
चोष्य - वि० [सं०] चूसने योग्य | पु० चूसकर खायी जानेवाली चीज |
चौंकना - अ० क्रि० भय, विस्मय या पीड़ाकी अचानक अनुभूतिसे चंचल हो जाना, हिल, काँप उठना; सोतेसे थकायक जाग उठना; चौकन्ना या चकित होना; भड़कना । चौंकाना - स० क्रि० दूसरेके चौकनेका कारण होना । चौंटना* - स० क्रि० चुटकीसे तोड़ना (फूल आदि) । चौतीस - वि० तीस और चार । पु० चौंतीसकी संख्या, ३४ । चौंध - स्त्री० चकाचौंध, तिलमिलाहट | चौधना* - अ० क्रि० (बिजलीका) चमकना, कौंधना | चौंधियाना-अ० क्रि० चकाचौंध होना । चाँधी* - स्त्री० चकाचौंध |
चाँप * - स्त्री० इच्छा - 'कबीर सोया क्या करे, जागनकी करि चौप' - साखी ।
चौर - पु० चँवर; झालर, फुंदना; भड़भाँड़की जड़ । - गाय - स्त्री० सुरा गाय |
चौराना* - स० क्रि० नॅवर डुलाना; बुहारना । चौरी - स्त्री० घोड़ेकी पूँछके बालोंका गुच्छा जिससे घुड़सवार मक्खियाँ उड़ानेका काम लेते हैं; चोटी बाँधने की डोरी; सफेद पूँछवाली गाय ।
चौंसठ - वि० साठ और चार । पु० चौंसठकी संख्या, ६४ । चौ- पु० मोती आदि तौलनेका बाट । वि० चार (केवल समासमें व्यवहृत ) । - आई, बाई, वाई- स्त्री० चारों दिशाओंसे, कभी इस और कभी उस दिशा से बहनेवाली हवा; अफवाह । -कठ-स्त्री० दे० 'चौखट' ।-कठा- पु० दे० 'चौखटा' | - कड़ा - पु० दो-दो मोतियोंवाली बाली । - कड़ी - स्त्री० चार चीजोंका समूह; चार आदमियोंकी मंडली; चार घोड़ोंकी गाड़ी; चौपायोंकी वह दौड़ या छलाँग जिसमें चारों पाँव एक साथ फेंके जायँ; हिरन आदिकी कुलाँच (भरना); चार युगों का समूह; चारपाईकी वह बुनावट जिसमें सुतली या बानकी चार-चार लड़ियाँ एक साथ हो। (मु०चौकड़ी भूल जाना - अकलका काम न करना; राह न सूझना; घबरा जाना ।) -कन्ना - वि० चारों ओर ध्यान रखनेवाला, सजग, सावधान, होशियार । - करी* - स्त्री० दे० 'चौकड़ी' । -कल- पु० चार मात्राओंका समूह । - कस - वि० चौकन्ना, सावधान; ठीक, दुरुस्त । - कसाई, - कसी - स्त्री० सावधानी; निगरानी । -कोन वि० दे० 'चौकोना' । -कोना - वि० चौकोर, चतुष्कोण । - कोर - वि० चौकोना, चौखूँटा । - खंडवि० चार खंडोबाला (मकान ), चौमंजिला । - खट-स्त्री० लकड़ीका चौकोर ढाँचा जिसमें किवाड़ के पल्ले जड़े जाते
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चौ-चौक
हैं; देहली। (मु० चौखटन झाँकना - (किसी के घर) कभी न आना 1) - खटा - पु० लकड़ीका ढाँचा जिसमें तसवीर या आईना जड़ा जाय; चौखट । - खना- वि० चार खंडोंवाला ( मकान ) । - खानि* - स्त्री० चार प्रकारकी सृष्टि, अंडज, पिंडज आदि चार प्रकार के जीव । - खूँट- अ० चारों ओर । - खूँटा - वि० चौकोना, चौकोर । - गड्डा - पु० वह स्थान जहाँ चार गाँवोंकी सीमाएँ या चार रास्ते मिलते हों । -गिर्द - अ० चारों ओर । - गुन* - वि० दे० 'चौगुना' । - गुना - वि० किसी वस्तुका चार गुना, चार बार उसके बराबर, चतुर्गुण । -गून* - वि० दे० 'चौगुना' । - गोड़ा - वि० चार पैरोंवाला । पु० पशु; खरहा। - गोड़िया - स्त्री० चार पायोंकी ऊँची डंडेदार तिपाई जिसपर चढ़कर ऊँचे स्थानोंकी सफाई, सफेदी आदि की जाती है। -गोशा- वि० चार कोनोंवाला, चतुष्कोण । - गोशिया - वि० चौगोशा । स्त्री० चार तिकोने टुकड़ोंकी बनी हुई टोपी । - घड़ा - पु० चार खानोंवाला डिब्बा जिसमें लौंग, इलायची आदि रखते हैं; मसाला रखनेका चार खानोंका बरतन; मिट्टीका बना खिलौना जिसमें एक दूसरी से जुड़ी चार कुल्हियाँ होती हैं; चार बीड़े पानकी खोंगी । - घड़िया - वि० चार घड़ियोंका । स्त्री० चार पायोंकी ऊँची चौकी, चौगोड़िया । -घड़िया मुहूर्त - पु०जल्दी के कामों के लिए शोधा जानेवाला दो-चार घड़ीका कामचलाऊ मुहूर्त । - घर* - वि० सरपट (चाल) । - घरा- पु० पीतलकी दीयट; दे० 'चौघड़ा' । - घोड़ी* -- स्त्री० चार घोड़ोंकी गाड़ी, चौकड़ी । -तनियाँ - स्त्री० दे० ' चौतनी'; अँगिया, चोली । -तनी-स्त्री० बच्चोंकी चौगोशी टोपी । -तरफा- अ० चारों ओर, चौगिर्द ।
- तरा* - पु० चार तारोंबाला एक बाजा; दे० 'चबूतरा' | - तहा - वि० चार तहोंवाला । - ताल - पु० मृगका एक ताल; होली में गाया जानेवाला एक गीत । - तुका - वि० चार तुकोंवाला । पु० वह छंद जिसके तुकांतमें समता हो । - दंता - वि० चार दाँतोंवाला; अल्हड़ । - दस - स्त्री० किसी पक्षकी चौदहवीं तिथि, चतुर्दशी । दह - वि० दस और चार | पु० चौदहकी संख्या, १४ । - दाँत * - पु० दो हाथियोंकी लड़ाई। - धारी* - स्त्री० चारखाना । - पई-स्त्री० एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १५ मात्राएँ होती हैं । पट - वि० चारों ओरसे खुला हुआ; नष्ट, तबाह, सत्यानास । - पट चरण- वि० जिसके कहीं पहुँचते ही तबाही, बरबादी आ जाय, सत्यानासी । - पटहा+ - वि० दे० 'चौपटा' । - पटा - वि० चौपट करनेवाला, बिगाड़ | - पड़ - पु० चौसर । -पत-पु० वह पत्थर जिसमें लगी कीलपर कुम्हाका चाक टिका रहता है । - पतिया - स्त्री० एक साग; एक घास; चार पन्नोंकी पोथी; कशीदेकी चार पत्तियोंवाली बूटी ।-पथ-पु० चौराहा, चतुष्पथ; दे० 'चौपत'। - पद * - पु० चौपाया, चतुष्पद । पदा - पु० चार चर गोवाला एक विशेष छंद । - पल-पु० दे० 'चौपत' । - पहल - वि० चार पहलों या पहलुओंवाला । - पहला - वि० दे० 'चौपहल' । पु० एक तरहकी हलकी, खुली पालकी, चौपाल । - पहिया - वि० चार पहियोंवाला । स्त्री० चार पहियोंवाली गाड़ी । - पाई - स्त्री० १६-१६
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२५६
मात्राओं के चार चरणोंका एक प्रसिद्ध छंद । - पाड़-पु० दे० 'चौपाल' । - पाया-पु० चार पैरोंवाला पशु, जानवर, ढोर, गाय-भैंस आदि । - पार* - पु० दे० 'चौपाल' ।
- पाल - पु० खुली या छायी हुई मंडपाकार बैठक जहाँ गाँव के लोग बैठकर पंचायत आदि करते हों; एक तरहकी पालकी । - पुरा - पु० वह कुआँ जिसपर चार पुर एक साथ चल सकें । - पैया - पु० एक मात्रिक छंद । - फला - वि० चार फलोंवाला (चाकू) । फेर - अ० चारों ओर । - बंदी - स्त्री० चुस्त, कम लंबा अँगरखा जिसके नीचे-ऊपरके दोनों पल्लों में चार-चार बंद होते हैं । - बगला - पु० कुरते, अँगरखे आदिकी बगलके नीचे और कली के ऊपरका भाग । अ० चौतरफा । - बगली - स्त्री० चौबंदी । - बारा - पु० बालाखानेका कमरा जिसमें चारों ओर खिड़कियाँ या दरवाजे हों; चौपाल । -बीस - वि० बीस और चार | पु० चौबीसकी संख्या, २४ । -बोला- पु० एक मात्रिक छंद । - मंजिला - वि० चार मंजिलों या खंडवाला ( मकान ) । -मसिया - वि० चौमासेमें होनेवाला | पु० चौमासेभर काम करनेके लिए रखा गया हलवाहा । - महला - वि० चौमंजिला । -मार्ग * - पु० चौराहा । - मास - पु० दे० 'चौमासा' । - मासा - पु० बरसात के चार महीने, असाढ़से कुआरतकका काल; वह खेत जो चौमासेमें केवल जीतकर छोड़ दिया जाय, बोया न जाय; वर्षाऋतु-संबंधी कविता । -मासी - स्त्री० चौमा सेमें गाया जानेवाला एक गाना । मुख - अ० चारों ओर। मुखा - वि० चार मुँहोंवाला जिसके मुँह चारों ओर हो । - मुखादि (दी) या - ५० वह दिया जिसमें चारों ओर चार बत्तियाँ लगायी जायें । मुहानी - स्त्री० चौराहा, चतुष्पथ । - मँड़ा - पु० वह जगह जहाँ चार डाँड़े या सरहदें मिलती हों । -रंग-वि०तलवारके आघा तसे कई टुकड़ों में कटा हुआ । पु० तलवारका एक हाथ । - रंगा - वि० चार रंगोंवाला । - रँगिया - पु० मालखंभकी एक कसरत । -रस- वि० समतल, चौपहल | - रस्ता - पु० चौराहा । - राहा - ५० वह जगह जहाँ चार रास्ते मिलें या दो सड़कें एक दूसरीको काटें, चौमु हानी । - लड़ा - वि० चार लड़ियोंवाला (हार इ० ) । -सर- पु० गोटों और पासोंके सहारे बिसातपर खेला जानेवाला एक खेल, चौपड़, इस खेलकी बिसात; * चार लड़ियोंका हार । * वि० चार लड़ियोंवाला, चौलड़ा। -सिंहा- पु० वह जगह जहाँ चार गाँवोंकी सीमाएँ मिलती हों । - हट (दृ) *, - हट्टा - पु० चौक; चौमुहानी । - हद्दा - पु० वह स्थान जहाँ चार गाँवोंकी सीमाएँ मिलती हो । हड्डी - स्त्री० किसी स्थान या मकान आदिकी चारों सीमाएँ; पिप्पलादि चार दवाओंका योग । चौआ-पु० चार अंगुलकी माप; चार उँगलियोंका समूह;
ताशका चार बूटियोंवाला पत्ता, चौका; चौपाया । चौआना -* अ० क्रि० चकित होना । + स० क्रि० तागे' को हाथकी चार उँगलियोंपर लपेटना (जनेऊ चौआना)। चौक- पु० चौखूँटा सहन, आँगन, चौमुहानी; नगरका मुख्य बाजार, चौखूँटा चबूतरा; पूजन आदिमें आटे आदिकी रेखाओं से बनाया जानेवाला क्षेत्र; चारका समूह;
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चौसर की बिसात; चार दाँतोंकी पंक्ति; चार वस्तुएँ । चौका - पु० पत्थर की चौकोर सिल; भूमिका चौखूंटा टुकड़ा; रोटी बेलनेका चकला; चार चीजोंका समूह; आगे के चार दाँतों की पंक्ति हिंदूके खाना पकाने या खानेका स्थान; मिट्टी या गोबरका लेप; आटे आदिकी लकीरोंसे बना हुआ चौकोर चित्र; सीसफूल; ताशका वह पत्ता जिसपर चार बूटियाँ हों; फर्श पर बिछाने के काम आनेवाला एक तरहका कपड़ा । - बरतन - पु० रसोई में चौका लगाने और बरतन माँजनेका काम (करना, होना) । मु०लगाना - किसी स्थानको गोबर या मिट्टी से लीपना; चौपट, सत्यानास करना ।
चौकिया सुहागा- पु० चौकोर टुकड़ोंमें कटा हुआ सुहागा जो खानेकी दवा के तौरपर काम आता है । चौकी - स्त्री० लकड़ी या पत्थरका चार पायोंवाला, चौकोर आसन, छोटा तख्त; वह स्थान जहाँ पुलिस या सेनाके थोड़े से सिपाही रक्षा, निगरानी आदिके लिए रखे जायें; चु ंगी वसूल करनेवालोंके रहनेका स्थान; पहरा (बिठाना, बैठना ); रखवाली; पड़ाव, टिकान; गले में पहननेकी चौकोर पटरी; चकला; मंदिर में मंडपके खंभोंके बीचका स्थान; किसी देवी-देवताको चढ़ायी जानेवाली भेंट; जादू ; तेलके कोल्हू में लगनेवाली एक लकड़ी । - दार- पु० पहरा देनेवाला; गाँवमें पहरा देनेके लिए नियुक्त पुलिस कर्मचारी, 'गोडइत' । - दारी - स्त्री० चौकीदारका काम, रख वाली; चौकीदार रखनेके लिए लिया जानेवाला कर। मु० - भरना - पहरेकी ड्यूटी पूरी करना; किसी देवीदेवता, पीर-पैगंबर आदिकी भेंट- पूजाकी मनौती पूरी
करना ।
चौगान - पु० [फा०] गेंद्र - बल्लेका खेल जो पोलोसे मिलताजुलता है; चौगान खेलनेका बल्ला जो आगेकी ओर कुछ झुका हुआ होता है; नगाड़ा बजाने की लकड़ी; * चौगान खेलने का मैदान । - गाह-पु० चौगान खेलनेका मैदान । बाज़ - पु० चौगान खेलनेवाला ।
चौगानी - स्त्री० हुक्केकी निगाली । चौघड़ - पु० दे० 'चौभड़' । चौचंद - पु० बदनामी, अपवाद, झगड़ा स्त्री० जो दूसरोंकी निंदा, बदनामी करती फिरे । चौड़ा - वि० लंबाईके दोनों छोरोंके बीच विस्तृत, चकला, फराख ।
हाई - वि०
चौड़ाई - स्त्री॰ चौड़ापन, लंबाईके दोनों छोरोंके बीचका विस्तार, पाट |
चौड़ान - स्त्री० दे० 'चौड़ाई' ।
चौड़ाना - स० क्रि० चौड़ा करना । चौतरा* - पु० चबूतरा ।
atr - स्त्री० प्रत्येक पक्षकी चौथी तिथि, चतुर्थी; चौथाई; राजस्वका चतुर्थांश जो मराठे दूसरे राज्योंसे करके रूपमें लिया करते थे । * वि० चौथा । -का चाँद - पु० भाद्र शुक्ला चतुर्थी का चंद्रमा जिसके देखनेसे झूठा कलंक लगना माना जाता है। पन* - पु० दे० 'चौथापन' | चौथा - वि० जो क्रममें तीनके बाद, चारके स्थानपर हो । - पन - पु० बुढ़ापा, जीवनकी चौथी अवस्था ।
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चौक-चौरा
चौथाई - स्त्री० चौथा भाग, चतुर्थांश । चौथि* - स्त्री० दे० 'चौथ' । चौथिया -! - पु० चौथे दिन आनेवाला ज्वर; चौथाईका हकदार; अनाजकी एक नाप । चौथी - वि० 'चौथा' का स्त्रीलिंग रूप । स्त्री० विवाह के चौथे दिन दूल्हा-दुल्हन के कंगन खोलनेकी रीति; विवाहके चौथे दिन (या कुछ अधिक दिन बाद भी) कन्याके घरसे मिठाइयाँ, कपड़े आदि भेजे जानेकी रस्म; बँटाईकी वह रीति जिसमें जमींदार चौथाई और असामी तीन-चौथाई फसल लेता है । मु० - खेलना - ब्याह के चौथे दिन दूल्हे - दुल्हिनका एक दूसरेपर या दूल्हे और उसके छोटे भाइयोंका ससुराल जाकर सालियों आदिपर मेवे आदि फेंकना ।
चौधराई - स्त्री० चौधरीका पद या काम । चौधराना - पु० चौधराई; चौधरीका पुरस्कार चौधरानी - स्त्री० चौधरीकी पत्नी ।
चौधरी - पु० किसी जाति या समाजका मुखिया, सरदार; जाटों, कुर्मियों आदिकी पदवी । चौपतना, चौपरतना - स० क्रि० तह लगाना । चौबच्चा - पु० दे० 'चहबच्चा' । चौबाइन - स्त्री० चौबेकी स्त्री ।
चौबाछा - पु० मुगल शासन में लिया जानेवाला एक कर । चौबे- पु० ब्राह्मणोंकी एक उपजाति, चतुर्वेदी । चौभड़ - स्त्री० चौड़ा, चपटा दाँत जो आहारको कुचलनेका काम करता है ।
चौर - पु० [सं०] चोर । - कर्म (न्) -पु० चोरी | चौरठ, चौरठा-पु० दे० 'चौरेठा' । चौरसाई- स्त्री० चौरस करनेका काम या उजरत । चौरसाना - स० क्रि० चौरस करना । चौरा-पु० चबूतरा; चौपाल; वह चबूतरा या वेदी जिसपर किसी देवी, सती या प्रेत आदिकी स्थापना हुई हो; लोबिया ।
चौराई + - स्त्री० दे० 'चौलाई'; एक चिड़िया । चौरानबे, चौरानवे - वि० नब्बे और चार । पु०चौरानबेकी संख्या ९४ ।
चौरासी - वि० अस्सी और चार ! पु० चौरासीकी संख्या, ८४; चौरासी लाख योनि; एक तरहकी टाँकी; घुँघरुओंका गुच्छा । चौरी - स्त्री० छोटा चौरा; एक पेड़ ।
चौरेठा - पु० चावलका आटा; पानीसे पीसा हुआ चावल | चौर्य - पु० [सं०] चोरी, चोरका काम; छलछद्म; छिपाव । - वृत्ति - स्त्री० चोरीकी आदत या पेशा ।
चौर्योन्माद - पु० [सं०] ( क्लेप्टोमेनिया) चुरा लेने या छिपा रखनेकी दुष्प्रवृत्ति ।
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चौल - वि० [सं०] चूल - चूडा-संबंधी । पु० मुंडन, चूडाकर्म । चौलाई - स्त्री० एक पत्रशाक ।
चौवन- वि० पचास और चार । पु० चौवनकी संख्या, ५४ । चौवा - पु० दे० 'चौआ' ।
चौवालीस - वि० चालीस और चार । पु० चौवालीसकी संख्या, ४४ ।
चौहरा - वि० जिसमें चार तहें हों; चौगुना ।
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चौहत्तर-छटाँक चौहत्तर-वि॰सत्तर और चार । पु०चौहत्तरकी संख्या,७४ ।। क्षय आदि रोगोंकी प्रसिद्ध औषधि है। चौहानं-पु० अग्निकुलवाले क्षत्रियोंकी एक शाखा । च्यावन-पु० [सं०] चुआना, टपकाना; निकाल देना।' चौहैं*-अ० चारों ओर ।
| च्युत-वि० [सं०] चुआ, झड़ा हुआ, क्षरित; गिरा हुआ च्यवन-पु०[सं०] चूना, टपकना, क्षरण (लीकेज); च्युति अपनी जगहसे हटा या हटाया हुआ, स्थानभ्रष्ट; चूका एक ऋषि जिनके विषयमें प्रसिद्ध है कि अश्विनी कुमारोंने | हुआ (कर्तव्यच्युत)। उन्हें च्यवनप्राश खिलाकर बूढ़ेसे जवान बना दिया। च्युति-स्त्री० [सं०] च्युत होना, चूना, झड़ना; अपने -छूट-स्त्री० [हिं०] ,-मोक-पु० किसी द्रव पदार्थके च स्थानसे भ्रष्ट होना, स्खलित होना; चूका लोप (वर्णच्युति)। जाने, बह जाने आदिके बदले में दी जानेवाली छूट । | च्यूँटा-पु० दे० 'चीटा' । -प्राश-पु० आयुर्वेदका एक अवलेह जो श्वास-कास, । च्यौना-पु० घरिया ।
छ-देवनागरी वर्णमालाका सातवाँ व्यंजन ।
वि० छ महीने पर होनेवाला (इम्तहान आदि).। -मुखछंग*-पु० गोद, अंक।
पु० कात्तिकेय । छंगा, छंगू-वि० जिसके किसी पंजेमें छ उँगलियाँ हों। छई-स्त्री० क्षय रोग । वि० क्षय होनेवाला क्षय रोगवाला । छंगुनिया-स्त्री० दे० 'छगुनी' ।
छक-स्त्री० नशा तृप्ति; लालसा । छंगुलिया, छंगुली-स्त्री० दे० 'छगुनी' ।
छकड़ा-पु० सग्गड़, बैलगाड़ी। छछौरी-स्त्री० एक पकवान जो छाँछमें बनाया जाता है।। छकना-अ० क्रि० अघाना, तृप्त होना; नशे में चूर,बदमस्त छटना-अ० कि० छाँटा जाना; चुना जाना; कटना; दूर होना हैरान होना; चकराना; धोखा खाना। होना; अलग होना; बिखरना; क्षीण होना; साफ किया छकाछक-वि० तृप्त ; परिपूर्ण; नशे में चूर । जाना। छटा हुआ-चालाक, धूर्त । मु० छटे-छटे | छकाना-स० क्रि० भरपेट खिलाना, तृप्त करना; खूब नशा फिरना-दूर-दूर रहना।
पिलाकर बदमस्त कर देना; हैरान करना धोखेमें डालना। छटनी-स्त्री० छाँटने, (कर्मचारी आदिको) हटाने की क्रिया। छकीला*-वि० छका हुआ, मस्त । छटवाना-स० क्रि० छाँटनेका काम दूसरेसे कराना। छक्का-पु० छ अवयवोंवाली वस्तु का समूह जुएके चार छंटाई-स्त्री० छाँटनेका काम; छाँटनेकी उजरत; ( कर्मचारी दाँवोंमेंसे एक; ताशका पत्ता जिसपर छ बूटियाँ हों; पासेका आदिको) अलग करनेका काम ।
वह बल जिसमें छ बिदियाँ हों; जुआ; होश। -पंजाछंटाना-स० क्रि० दे० 'छंटवाना' ।
पु० दाँव-पेंच, छल-कपट । मु०-पंजा भूल जाना-उपाय छंटाव-पु० छंटाई।
न चलना, अकलका काम न करना । (छक्के) छुड़ानाछैटेल-वि० ईंटा हुआ, धूर्त; छाँटकर अलग किया हुआ। | हौसला पस्त कर देना, परेशान कर देना । -छटनाछड़ना*-स० क्रि० छोड़ना, त्यागना; छाँटना । अ० क्रि० हिम्मत हारना, हैरान हो जाना। कै करना।
छगड़ा*-पु० बकरा। छंदाना*-स० क्रि० छीनना, दूसरेके हाथसे झपट लेना। छगन-पु० छोटे बच्चोंके लिए प्यारका शब्द; नन्हाँ प्यारा छंदशास्त्र-पु० [सं०] छंद-रचना-संबंधी शास्त्र ।
बच्चा। -मगन-पु० हँसते-खेलते बच्चे, छोटे-छोटे बच्चे। छंद-पु० कलाई पर पहननेका एक गहना; दे० 'छंद(स); | छगनी-स्त्री० कानी उँगली। [सं०] अभिलाष, नियंत्रण, वश्यता; रुचि ।
छछिआ, छछिया-स्त्री० छाँछ नापनेका बरतन । छंद(स)-पु० [सं०] इच्छा; अभिप्राय; धोखा, छल; मात्रा, छंदर-पु० चूहेकी जातिका एक जंतु जिसकी बोलीमें 'छू
वर्ण, यति आदिके नियमोंसे युक्त वाक्य; छंदःशास्त्र । छू की ध्वनि रहती है और देहसे तीव्र गंध निकलती है। छंदोदोष-पु० [सं०] छंदमें वर्ण, मात्राके घट-बढ़ जाने एक आतिशबाजी; निष्प्रयोजन इधर-उधर चलता-फिरता आदिका दोष ।
रहनेवाला व्यक्ति । मु०-छोड़ना-झगड़ा लगाना । छंदोबद्ध-वि० [सं०] पद्यरूपमें रचित, श्लोकबद्ध । छजना-अ० क्रि० शोभा देना, फबना ठीक जान पड़ना। छंदाभंग-पु० [सं०] छंदमें वर्ण, मात्रा आदिके नियमका छजा-पु० छतका दीवारके बाहर निकला हुआ भाग; पूर्ण पालन न होना।
बारजा; दीवार के बाहर निकली हुई पत्थरकी पट्टी। छ:-वि० पाँच और एक । पु० छकी संख्या, ६।
छटंकी-स्त्री० छटाँकका बाट । वि० छोटा, छटपट (बालक)। छ-वि० पाँच और एक । पु० छकी संख्या, ६। -कड़िया छटकना-अ० कि० तेजीके साथ पकड़से निकल जाना, -स्त्री० वह पालकी जिसके ढोने में छ कहार लगें ।-कड़ी हाथसे सरक जाना; काबूसे निकल जाना; दूर-दूर रहना। -स्त्री० छका समूह; छकड़िया पालकी; चारपाईकी वह छटकाना-स० क्रि० झटका देकर बंधन या पकड़से छुड़ा बुनावट जिसमें सुतलीके छ फेरे एक साथ बुने जायँ। लेना, सरकाना। -पद-पु० भ्रमर, घट्पद, भँवरा । -बुंदा-पु० एक छटपटाना-अ०क्रि० व्याकुल होना, तड्पना; आतुर होना। जहरीला कीड़ा जिसकी पीठपर छ बुंदे होते हैं ।-मासी-छटपटी-स्त्री० आकुलता, बेचैनी; छटपटानेका भाव । स्त्री० मृत्युके छ महीने बाद होनेवाला श्राद्ध । -माही- छटाँक, छटाक-स्त्री० एक सेरका सोलहवाँ भाग।
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छटा-छनाना छटा-स्त्री० [सं०] शोभा, छवि; दीप्ति, झलक बिजली; छत्ता-पु० मधुमक्खियों, भिड़ों आदिका घर; चकत्ता; छतरी। परंपरा, अविछिन्न शृंखला समूह, ढेर; *लड़ी-'मोतिनकी छत्तीस-वि० तीस और छ । पु० ३६ की संख्या । बिथुरी शुभ छट'-राम ।
छत्तीसा-पु० नाई। वि० दे० 'छतीसा'। छटेल-वि० बँटा हुआ; चालाक ।
छत्तीसी-वि० स्त्री० दे० 'छतीसी' । छट्ठी-स्त्री० दे० 'छठी'।
छन्न-पु० [सं०] छतरी राजाओंके ऊपर लगायी जानेवाली छठ-स्त्री० पक्षकी छठी तिथि, षष्ठी।
राजचिह्नरूप छतरी छत्रक, कुकुरमुत्ता; एक प्रकारका विष । छठवाँ-वि० दे० 'छठा' ।
-च्छाया-स्त्री० छत्रकी छाया, आश्रय ।-धर,-धारछठाँ, छठा-वि० जो क्रममें पाँचके बाद, छके स्थानपर पु० छत्रधारी, राजा; राजाके ऊपर छत्र लगा रखनेवाला
हो । मु० छठे-छमासे-कभी-कभी, बहुत अरसेके बाद । सेवक ।-धारी(रिन)-पु० दे० 'छत्रधर'। -पति-पु० छठी-वि०स्त्री० 'छठा'का स्त्री० रूप (जैसे छठी चीज, छठी राजा; महाराज शिवाजीकी पदवी ।-भंग-पु० राज्यका
औरत इ०)। स्त्री जन्मके छठे दिनका स्नान, पूजन, नाश; स्वाधीनताका नाश; ज्योतिषका एक योग जिसका उत्सव । मु०-का दूध याद आना-कठिन मेहनत फल राजनाश माना जाता है । पड़ना। -में न पड़ना-प्रकृतिमें न होना; भाग्यमें | छत्रक-पु० [सं०] छतरी; कुकुरमुत्ता; खुमी; शहदका न होना।
छत्ता; शिवमंदिर । छड़-पु०, स्त्री० लोहे, पीतल, बाँस आदिका पतला डंडा छत्री*-स्त्री० महलकी बुजी । जो खिड़की-अँगले आदिमें लगाया जाता है।
छत्री(त्रिन)-वि० [सं०] छत्रयुक्त, जो छाता लगाये हो । छडना-स० क्रि० (चावल आदि) छाँटना; * छोड़ना। | प० नाई: दे० 'त्रिय' । छड़ा-पु० चाँदीके तारका बना चूड़ी. जैसा गहना जो छद, छदन-पु० [सं०] आवरण, ढकनेवाली चीज; खाल; पाँवमें पहना जाता है। वि० अकेला, तनहा ।
गिलाफ, खोल; पत्ता; पंख । छड़िया-पु० दरबान, छड़ीबरदार ।
छदाम-पु० दुकड़ा, पैसेका चौथा भाग। छडी-स्त्री० बाँस, बैंत, लकड़ी आदिका बना पतला, छोटा छद्म(न)-पु० [सं०] छल, कपट; अपना असली रूप डंडा; पीरोंके मजारपर चढ़ानेकी झंडी। -दार-वि० जो
छिपाना; बदला हुआ भेस। -नाम-पु० (स्यूडोनिम) छड़ी लिये हो; सीधी धारियोंवाला (कपड़ा)। पु० छड़ी
कोई लेख या पुस्तकादि लिखते समय लेखक द्वारा गृहीत बरदार । -बरदार-पु० चोबदार, असाबरदार।
बनावटी नाम । -युद्ध-पु० (शैम फाइट) नकली लड़ाई, छत-स्त्री० मकानकी पक्की पाटन या बालाखानेका पक्का,
दिखाऊ युद्ध । -वेश-पु० बनावटी भेस । -वेशी खुला फर्श; वह चादर जो छतके नीचे बाँधी जाय, छत
(शिन)-वि० जो भेस बदले हो। गीर । * पु० क्षत, घाव । * अ० अछत, (किसीके) होते,
छद्मावरण-पु० [सं०] (कैमूफ्लेज) शत्रुको धोखेमें डालनेके रहते हुए । -गीर-पु. छतके नीचे बाँधनेकी चादर या
| लिए विमानों, तोपों आदिको वृक्षोंकी पत्तियों, धूमपटल बाँडनी।गीरी-स्त्री० छतगीर ।-वंत-वि० घायल, आटिमेटम टेना. लाar क्षतवाला।
छद्मी(द्मिन)-वि० [सं०] छद्मबेशधारी; कपटी। छतना*-पु० पत्ते जोड़कर बनाया हुआ छाता; मधुमक्खी
छन-पु० क्षण, पल; पुण्यकाल । -छबि-स्त्री०बिजली, का छाता । अ० क्रि० रहना।
क्षणप्रभा । -दा*-स्त्री० रात्रि बिजली । -भंग*-वि० छतनार(रा) -वि०(पेड़-पौधा) जिसकी डालियाँ, टहनियाँ |
क्षणभंगुर । -भर-अ० एक क्षण, जरा देर । दूरतक फैली हों; फैला हुआ।
छनक-* पु० एक क्षण । अ० क्षणभर । स्त्री 'छन-छन'छतरी-स्त्री० छाता; पत्तोंका छाता; चॅदोवा; वह बड़ा की आवाज; झनकार; भड़का फुतीं। -मनक-स्त्री० छाता जिसके सहारे सैनिक विमानसे नीचे उतरते हैं। गहनोंकी झनकारः सजधजः ठसक । ईखके पत्तों, सरपत आदिकी बनी हुई छत्राकार मँड़ई;
छनकना-अ० क्रि० 'छन-छन' करके उड़ जाना (जलते किसीकी समाधि या चिताके स्थानपर बना हुआ मंडप तवे आदिपर पानीकी बूंदका); झनकार होना भड़कना । कबूतरोंके बैठनेका ठट्टर; डोलीके ऊपरका ठट्टर; बहली छनकाना-स० क्रि० पानीको ऑचपर रखकर उसका कुछ आदिके कमानीदार ढाँचेके ऊपरका आच्छादन; कुकुर- | अंश जलाना; गरम किये हुए बरतन में पानी डालना; मुत्ता, छत्रक । -दार-वि० जिसपर छतरी हो।
भड़काना। छता*-पु० छाता।
छनछनाना-अ०क्रि० 'छन-छन की आवाज होना झनछति*-स्त्री० दे० 'क्षति' ।
कार होना । स० क्रि० 'छन-छन' शब्द उत्पन्न करना। छतिया*-स्त्री० दे० 'छाती' ।
छनना-अ० क्रि० छाना जाना, कड़ाहीमें खौलते धीमें छतियाना-स० कि० छातीसे लगाना, सटाना (बोझ, सिक्त होकर पूरी आदिका निकलना; छोटे-छोटे छिद्रोंसे बंदूकका कुंदा इ०)।
होकर निकलना; छिद जाना; मादक पदार्थका सेवन छतिवन-पु० एक पेड़, सप्तपणी ।
किया जाना। पु० छाननेका साधन, महीन कपड़ेका छतीसा-वि० चालाक, मक्कार।
टुकड़ा जिससे दूध, पानी आदि छाना जाय । छतीसी-वि० स्त्री० ढोंग, नखरे करनेमें चतुर, छिनाल । । छनवाना-स० क्रि० छाननेका काम दूसरेसे कराना। छतुरी*-स्त्री० दे० 'छतरी'।
छनाना-स० कि० छनवाना; पिलाना (भाँग, शराब इ०)।
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छनिक-छल
२६० छनिक*-वि० दे० 'क्षणिक' । अ० छनभर । पु० एक क्षण । घुघरू, पायल आदिकी बार-बार होनेवाली आवाज; छन्न-वि० [सं०] छिपा हुआ ढका हुआ; लुप्त ।
जोरका मेह पड़नेकी आवाज; छमाछम । अ० 'छमछम' छन्ना-पु० दे० 'छनना'। -पत्र-पु० (फिल्टर पेपर) तेल शब्दके साथ। आदि छाननेका मसिशोष जैसा कागज ।
छमक-स्त्री० ठसक, चाल-ढालकी बनावट (स्त्रियोंकी)। छन्य-पु० (फिलट्रट) वह द्रव जी छन्नापत्र आदिकी सहा- छमकना-अ० क्रि० गहने बजाना; धुंघरू आदि बजाकर यतासे छनकर नीचे आ जाता है।
आवाज करना; ठसक दिखाना। छप-स्त्री० पानी में किसी चीजके जोरसे गिरने या किसी छमछमाना-अ० क्रि० 'छम-छम' शब्द करना या 'छमगाढ़ी चीज(कीचड़, दही इ०)के किसी अन्य वस्तुपर गिरनेसे छम' करते हुए चलना। होनेवाली आवाज। -छप-स्त्री० 'छपकी आवाज छमना*-स० क्रि० क्षमा करना । बार-बार होना।
छमा*-स्त्री० दे० 'क्षमा'। -पन-पु० क्षमा करनेकी छपक-स्त्री० तलवार आदिसे कटनेकी आवाज । क्रिया। -वान-वि० सहनशील, क्षमा करनेवाला । छपका-पु० सिर में पहननेका एक गहना; पानीका छींटा; | छमाई*-स्त्री० क्षमा । पानीमें हाथ-पैर मारना; दे० 'छपाका'।
छमाछम-स्त्री० 'छम-छम'की आवाज। अ० 'छम-छम' छपछपाना-अ० क्रि० पानीपर हाथ-पैर मारना। स० शब्दके साथ । क्रि० पानीपर छड़ी आदि मारकर 'छप-छप'की आवाज | छय-पु० दे० 'क्षय' । निकालना।
छयना*-अ० क्रि० क्षय, नाश होना; छा जाना। छपन*-पु० नाश, संहार ।-हार-वि० नाश करनेवाला। छर-स्त्री० छरों या कंकड़ियोंके गिरनेकी आवाज । * वि० छपना-अ० कि० छापा जाना, छपनेका काम होना; नाशवान् । * पु० दे० 'छल' । -छंद-पु० दे० छलटीका लगना।
छंद' | -छंदी*-वि० धूर्त, कपटी। छपरखट, छपरखाट-स्त्री० वह पलंग जिसपर मसहरी छरकना-अ० कि० बिखरना, छिटकना दे० 'छलकना' । लगानेके लिए डंडे लगे हों। .
छरकीला -वि० लंबा और सुडौल, छहरीला। छपरछपर*-वि० तराबोर ।
छरछराना-अ० क्रि० घावपर नमकया खार लगनेसे पीड़ा छपरबंदी-स्त्री० छप्पर छानेका काम या उजरत ।
होना। छपरी*-स्त्री० झोपड़ी।
छरछराहट-स्त्री० धावपर नमक या खार लगनेसे होनेवाली छपवाना-स० क्रि० दे० 'छपाना'।
पीड़ा। छपवैया -वि०, पु० छापनेवाला छपानेवाला । छरना-अ० क्रि० चूना; चुचुवाना; नष्ट होना; क्षीण होना; छपा*-स्त्री० रात; हलदी। -कर-नाथ-पु० चंद्रमा छटना, अलग होना; * छला जाना; भूत-प्रेतको देखकर
मोहित, पीड़ित होना। * स० क्रि० छलना, ठगना; छपाई-स्त्री० छापनेका काम या उसकी उजरत ।
मोहना; भूत-प्रेतका बनावटी रूप दिखाकर मोहना, आतंछपाका-पु०पानीपर किसी चीजके गिरनेकी आवाज;पानी, कित करना। दही, कीचड़ आदिके किसी चीजपर पड़नेकी आवाज । छरभार*-पु० प्रबंधभार, कामका बोझा झंझट । छपाना-स० क्रि० छापनेका काम दूसरेसे कराना; छापा- छरहरा-वि० इकहरे बदनका; चुस्त, फुरतीला । खाने (प्रेस)में पुस्तक आदि मुद्रित कराना; टीका लग- छरा*-पु० छड़ लड़ी रस्सी; नीबी, इजारबंद। वाना; * छिपाना । * अ०क्रि० लगा रहना।
छरिया-पु० दे० 'छड़िया' । छपाव*-पु० छिपाव, दुराव ।
छरी*-स्त्री० दे० 'छड़ी' । वि० दे० 'छली'।-दार-वि. छप्पन--वि० पचास और छ । पु० छप्पनकी संख्या, ५६। पु० दे० 'छड़ीदार' । छप्पय-स्त्री० छ चरणोंवाला एक मात्रिक छंद ।
छरीदा-वि० अकेला, तनहा; जिसके पास कोई गठरीछप्पर-पु० फूस, पताई आदिकी छाजन; तलैया । -बंद- मुटरी न हो। पु. छप्पर छानेवाला । वि० जो (गाँवमें) बस गया हो, छरीला-पु० एक परोपजीवी पौधा जो मसाले में पड़ता और आबाद (पाहीका उलटा-'छप्परबंद असामी')। -बंदी- दवाके भी काम आता है, शैलेय, शिलापुष्प । स्त्री० छप्पर छानेका काम । मु०-फाड़कर देना-बिना छर्दि(स्)-स्त्री० [सं०] कै, वमन; मतली; घेरा, मकान । कुछ श्रम किये, घर बैठे देना।
छर्रा-पु० कंकड़ी; धुंघरुओं, गहनों में भरी जानेवाली कंकछब*-स्त्री० दे० 'छबि'। -तरुती-स्त्री० देहकी सुंदर ड़ियाँ सीसे, लोहे के छोटे टुकड़े जो बंदूक में भरे जाते है । गठन, गात्र और वक्षस्थलकी सुंदरता ।
छरी-स्त्री० छोटां छर्रा । छबि-स्त्री० शोभा, सुंदरता । -धर-मान-वि० सुंदर। | छल-पु० [सं०] अपने असली रूपको छिपाना, यथार्थका छबीला-वि० छबिवाला, सुंदर, सजीला।।
गोपन; दुसरेको ठगने, धोखा देनेवाली बात; व्याज, छब्बीस-वि० बीस और छ । पु० छब्बीसकी संख्या, २६ ।। बहाना धूर्तता; दुश्मनपर युद्ध-नियमके विरुद्ध वार करना। छब्बीसी-स्त्री० छब्बीस गाहीका सैकड़ा (१३०)।
-कपट-पु० मकरफरेब, धोखेबाजी। -छंद-पु० छलछम-स्त्री० धुंधरू बजने या मेह पड़नेकी आवाज । + वि० कपट । -छंदी(दिन)-वि० छल-कपट करनेवाला, योग्य, समर्थ । पु० सामर्थ्य, शक्ति। -छम-स्त्री० धोखेबाज। -छात-पु० छल-छिद्र । -छाया-स्त्री०
कपूर।
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२६१
छलक-छाती
कपट जाल, माथा ।-छिद्र-पु० दे० छलकपट' । छेव*-1 काना क्षार करना, भस्म करना । पु० दे० 'छल-छिद्र' । -योजन-पु० ( मैनिपुलेशन) छहरीला-वि० छितरानेवाला; दे० 'छरहरा', चुस्त । चतुराईसे अयथार्थ या बनावटी रूप दे देना; ऐसी चाल छहियाँ*-स्त्री० छाया। चलना जिससे कोई वस्तु मनोनुकूल रूप ग्रहण कर ले । छाँगना-60 क्रि० काटना, छाँटना (डाल इ०)। . छलक, छलकन*-स्त्री० छलकनेका भाव ।
| छाँगुरी-पु. वह जिसके पंजेमें छ उँगलियाँ हों। छलकना-अ० क्रि० मुँहतक भरे हुए जल या दूसरे तरल | छाँछ*-स्त्री० मट्ठा, मही। पदार्थका हिलनेके कारण बरतनके बाहर गिरना; उछलना; छाँट-स्त्री० छाँटनेकी क्रिया या ढंग; कतरनेकी क्रिया या उमड़ना।
ढंग; छाँटकर अलग की हुई बेकार चीज; भूसी; कै, वमन । छलकाना-सक्रि० बरतनमें भरे हुए जल आदिको हिला- छाटन-स्त्री० छाँटनेसे निकली हुई बेकार चीज; कतरन । कर गिराना।
छाँटना-स० क्रि० काटना, कतरना; चुनना, बिलगाना; छलछलाना-अ० कि० आँखोंका भर आना, आर्द्र हो __ अनाजको साफ करनेके लिए कूटना, फटकना; कतरकर जाना।
छोटा करना; निकालना, दूर करना (साबुनका मैल, छलन-पु० [सं०] छलना, ठगना, कपट ।
दवाका कफ छाँटना); किसी चीजके ज्ञान, पांडित्यका छलना-सक्रि० धोखा देना, ठगना । स्त्री० [सं०] छल, प्रदर्शन करना (ज्ञान, कानून, पंडिताई छाँटना)। धोखा, वंचना।
छाड़ना -स० क्रि० दे० 'छोड़ना' । छलनी-स्त्री० छाननेका आला, झीना कपड़ा या चमड़े, छाँद-स्त्री० छाननेकी रस्सी; नोई । लोहे, पीतल आदिकी जाली मढ़ी हुई बँजड़ीकी शकलकी | छाँदना-स० कि० बाँधना, कसना; (चरनेके लिए) जानचीज जिससे आटा चालते हैं। मु०-कर देना-छेदोंसे वरोंके अगले या पिछले पैर एक साथ बाँधना । भर देना, जर्जर कर देना । -में डालकर छाजमें | छांदस-वि० [सं०] छंद-संबंधी; वेद-संबंधी, वैदिक; वेदश, उड़ाना-(किसीके ) थोड़ेसे दोषको लेकर बहुत ज्यादा वेदपाठी । पु० वेदपाठी, ब्राह्मण, श्रोत्रिय । बदनाम करना, तिलका ताड़ बनाना ।-हो जाना-फट- छाँदा-पु० पकवान; परोसा; हिस्सा । चिथकर बेकार हो जाना, जर्जर हो जाना।
छांदोग्य-पु० [सं०] सामवेदका एक ब्राह्मण उक्त ब्राह्मणकी छलहाया*-वि० छली। [स्त्री० 'छलहाई'।]
उपनिषद् जो मुख्य दस उपनिषदोंमेंसे है। छलाँग-स्त्री० चौकड़ी, कुदान, उछाल ।
छाँव-स्त्री० दे० 'छाँह'। छला-पु० दे० 'छल्ला't कांति, दीप्ति ।
छाँवड़ा*-पु० छौना, पशुशावक छोटा बालक । छलावरण-पु० [सं०] दे० 'छनावरण' ।
छाँह-स्त्री० छाया; आश्रय-स्थान-'छाँही चाहत छाँह'छलाई*-स्त्री० कपट-भाव, धूर्तता।
वि० छायी हुई जगह; प्रतिबिंब, परछाई। -गीर-पु. छलावा-पु० भूत-प्रेतकी छाया जो झट अदृश्य हो जाय; छत्र, आईना। मु०-न छने देना-पास न आने देना। भूत-प्रेत; दलदल, श्मशान आदिमें रातको दिखाई देने -बचाना-पास न जाना। वाली रोशनी जो कुछ-कुछ क्षणपर दृश्य-अदृश्य होती| छाक-स्त्री० छकनेका भाव, तृप्ति; नशा, मस्ती; वह खाना रहती है, अगिया-बैताल; धोखा, जादू । मु०-खेलना- जो हलवाहों, चरवाहों आदिके खानेके लिए दोपहर में छलावे या अगिया-बैतालका यहाँसे वहाँ दौड़ते दिखाई भेजा जाता है; माठ।। देना।
छाकना*-अ० क्रि० दे० 'छकना। छलित-वि० [सं०] छला, ठगा हुआ।
छाग-पु० [सं०] बकरा। छलिया-वि० छली।
छागल-स्त्री०पाँवमें पहनेका एक गहना । पु०[सं०] बकरा। छली(लिन)-वि० [सं०] छल करनेवाला, धोखेबाज । छाछ-स्त्री० मट्ठा, मही। छलीक*-वि० छलिया, धोखा देनेवाला।
छाज-५० सीक या बाँसके छिलकोंका बना पात्र जिससे छल्ला-पु० बिना नग-नक्काशीकी, चाँदी-सोने आदिका तार अनाज फटकते हैं, सूप; छाजन; स्वांग।
यी हुई अँगूठी, कुंडली; कोई मंडलाकार वस्तु | जन-स्त्री० आच्छादन, कपड़ा-'छाजन भोजन प्रीतिसों कड़ी। -(ल्ले)दार-वि० जिसमें छल्ले हो, गिरदार, दीजे साधु बुलाय'-कबीर; छप्पर, अपरस । यूँघरवाले (बाल)।
छाजना-अ० क्रि० फबना, शोभा देना; सुशोभित होना । छल्ली-स्त्री०कच्ची दीवारके रक्षार्थ खड़ी की हुई पक्की दीवार ।
छाजा-पु० छज्जा; छाजन । छवा* पु० छौना, शावक; एड़ी-'छूटे छवानि लौं केस | छाजित*-वि० शोभित । बिराजत'-रसवि०।
छात-पु० छत्र, छतरी आश्रय । छवाई-स्त्री० छानेका काम; छानेकी उजरत ।
छाता-पु० छतरी ताड़के पत्तों, बाँसके छिलकों या लोहेकी छवाना-स० क्रि० छानेका काम दूसरेसे कराना। तीलियोंके ढाँचेपर बनी कपड़ेकी छतरी; छत्ता चौड़ी छवि-स्त्री० [सं०] शोभा, सुंदरता; चमक, कांति । छवैया-पु० छानेका काम करनेवाला।
छाती-स्त्री० धड़का पेटके ऊपरका, पेट और गरदनके बीचछहरना*-अ० क्रि० बिखरना, छिटकना।
का भाग, वक्षस्थल, सीना; स्तन; हिम्मत, हौसला।मु०छहराना*-अ० क्रि० छहरन।। स० क्रि० बिखराना, छिट- -कूटना-दे० 'छाती पीटना'। -छलनी होना
छाती।
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छात्र-छालना
२६२ क्लेश, आघात सहते-सहते ऊब जाना, कलेजा पक जाना * बिछाना छाएँ करना आश्रय देना। -जलना-दुःखसे मनका व्यथित, संतप्त होना; डाहसे - छानि* छानी-स्त्री० छप्पर । मनमें जलन होना ।-जुड़ाना -दे० 'छाती ठंडी करना, छान-छाने*-अ० चुपकेसे, छिप-छिपे । -होना।-ठंडी करना-किसी बेचैन कर रखनेवाली छाप-स्त्री० किसी वस्तुका चिह्न, निशान; मुहरका निशान कामना, बदलेकी भावना आदिको तृप्त कर शांतिलाभ मुहरवाली अंगूठी, शंख, चक्र आदिके चिह्न जो वैष्णव करना, जीकी जलन मिटाना ।-ठंडी होना-जीकी जलन अपने अंगोंको दगवाकर लगवाते हैं; विभिन्न कारखानोंमें मिटना । -ठौंककर कहना-कोई कठिन कार्य करनेकी | बनी वस्तुओंपर पहचानके लिए छपा हुआ शब्द या चित्र, प्रतिज्ञा करना, विश्वास दिलाना ।-देना-बच्चेके मुँहमें मार्का; असर, प्रभाव (पड़ना, डालना)। स्तन देना । -धड़कना-किसी भय, आशंकासे हृदयका | छापना-सक्रि० ठप्पा, मुहर, अक्षर आदिका चिह्न स्याही जोरसे उछलना। -निकालकर चलना-सीना तानकर, या रंगके योगसे कागज आदिपर उतारना; जोड़े हुए अकड़कर चलना ।-पकना-आजिज आना; स्तनोंमें घाव अक्षरों, ब्लाक आदिकी प्रतिकृति कागज आदिपर उतारना, हो जाना ।-पत्थरकी करना-कोई भारी दुःख, आघात पुस्तक आदि मुद्रित करना; छापकर प्रकाशित करना। सहनेके लिए दिल कड़ा करना । -परका जम-हर घड़ी छापा-पु० साँचा, ठप्पा; मुहर; छपा हुआ चिह्न या अक्षर घेरे रहनेवाला आदमी।-परका पत्थर-वह चीज जिसकी शंख, चक्र आदिके दागे हुए चिह्न, मुद्रा; छाप, मार्का; चिंता सदा सिरपर सवार रहे। पर कोदो(मगदलना- हलदी या ऐपनसे दीवार आदिपर लगाया जानेवाला किसीको दिखा-दिखाकर उसे जलाने-कुदानेवाली बात
पंजेका चिह्नः छापेकी कल; वह हमला जो दुश्मनपर करना; सौत लाना ।-पर बाल होना-ऊँचे हौसलेवाला, अचानक, बहुत तेजीसे किया जाय, यकायक टूट पड़ना; भरोसा करनेलायक होना ।-पर साँप लोटना-हृदयको
धावा (मारना)। -खाना-पु. वह जगह जहाँ छपाईका गहरी वेदना होना; ईासे हृदय जल उठना ।-पीटना
काम हो, प्रेस । -मार-वि० छापा मारनेवाला, छापा शोकसे व्याकुल होकर या ईर्ष्याके अतिरेकसे छातीपर मारकर दुश्मनोंको परेशान करनेवाला (सैनिक, दस्ता) । बार-बार हाथ पटकना; मातम मनाना। -फटना- -(पे)की कल-छपाईकी मशीन, प्रेस । दुःखका असह्य हो जाना, हृदय विदीर्ण होना; डाहसे छाम-वि० क्षाम, दुबला-पतला, क्षीण । जलना । -फुलाना-गर्व करना, इतराना । -से छामोदरी-वि० स्त्री० छोटे पेटवाली, कृशोदरी । लगाना-आलिंगन करना, गले लगाना।
छाया-स्त्री० [सं०] प्रकाशके अवरोधसे उत्पन्न हलका अँधेरा, छात्र-पु० [सं०] शिष्य, विद्याथीं ।-नायक-पु० (मॉनिटर) छा, साया; प्रकाशका अवरोध करनेवाली वस्तुकी परकक्षाका प्रमुख विद्यार्थी जिसका कर्तव्य कक्षामें अनुशासन- छाई वह स्थान जहाँ किसी चीजकी छाया पड़ती हो; वह की रक्षा आदि करना होता है।-वृत्ति-स्त्री० विद्यार्थीको स्थान जहाँ धूप न पहुँचती हो; प्रतिबिंब, अक्स; तद्र प विद्याभ्यासमें सहायतार्थ मिलनेवाला धन, वजीफा । वस्तु, अनुकृति; सादृश्य; अँधेरा; कांति; चेहरेका रंग छात्राभिरक्षक-पु० [सं०] ( वार्डन) किसी विद्यालय, सौंदर्य रक्षा, आश्रयः चित्रका अपेक्षाकृत कम प्रकाशवाला छात्रावासादिका अभिरक्षक, छात्रोंपर निगरानी रखनेवाला भाग; भूत-प्रेतका प्रभाव, साया (परीकी छाया); एक शिक्षाधिकारी, गृहपति ।
रागिनी; दुर्गा; सूर्यकी पत्नी, संशा। -ग्राहिणी-स्त्री० छात्रालय, छात्रावास-पु० [सं०] किसी स्कूल, कालेजके छायाके जरिये ग्रहण करनेवाली एक राक्षसी जिसने हनू
अंतर्गत वह इमारत जिसमें विद्याथीं रखे जायें (होस्टेल)। मान्को पकड़ लिया था। -चित्र-पु० अवसी तसवीर, छात्रावासीय विश्वविद्यालय-पु० [सं०] ( रेजिडेंशल फोटो। -चित्रण-पु० फोटो उतारना। -दान-पु० यूनिवर्सिटी) वह ,विश्वविद्यालय जिसके विद्यार्थी प्रायः ग्रहजनित अरिष्टकी शांतिके लिए किया जानेवाला एक समीपस्थ छात्रावासोंमें विश्वविद्यालयके वातावरणमें ही विशेष दान जिसमें काँसेकी कटोरीमें घी या तेल भरकर रहते हों।
और उसमें अपनी छाया देखकर सदक्षिण दान करते हैं । छादन-पु० [सं०] छाना; आच्छादन करना; आच्छादन । -पथ-पु० आकाश-गंगा। -पुरुष-पु० हठयोग तंत्रके छादित-वि० [सं०] छिपा, ढका हुआ; आच्छादित । अनुसार आकाशमें (साधना-विशेषसे) दिखाई पड़नेवाली छानो-स्त्री० छप्पर।
द्रष्टाकी छायारूप आकृति ।-मूर्ति-स्त्री० (एप्पैरिशन) वह छानना-स० क्रि० आटे आदिका मोटा अंश छलनीसे छाया जो भ्रांतिवश किसी पुरुष या व्यक्ति जैसी प्रतीत निकालना दूध, पानी आदिको साफ करने के लिए बारीक हो; अस्पष्ट, अशरीरी मूर्ति । -लोक-पु० अदृश्य जगत्, कपड़ेके पार निकालना; मिली-जुली चीजोंको अलग करना, स्वप्नलोक। -वाद-पु. एक काव्यगत शैली जिसमें बिलगाना; ढूँढ़ना, खोजना; जाँच-पड़ताल करना; नशा अशेयके प्रति जिज्ञासा और प्राकृतिक विषयों में नराकार पीना; घीमें तलना; दे० 'छाँदना'; * भेदना, पार करना। भावना व्यक्त की जाती है। छान-फटक,छान-बीन-स्त्रीखोज,जाँचपड़ताल; तहकीक। छार-पु० क्षार, क्षार पदार्थ; खारी नमक; राख; धूल । छानबे-नब्बे और छ । पु० छानवेकी संख्या, ९६ । छाल-स्त्री० [सं०] पेड़के धड़, शाखा आदिपरका कड़ा छाना-अ० क्रि० ऊपर फैलना, पसरना; बसना, टिकना।। छिलका, वल्कल; वल्कलवस्त्र; * एक मिठाई । स० क्रि० ढकना, आच्छादित करना; मकानपर छप्पर या छालटी-स्त्री० सन या पटसनके रेशेसे बना कपड़ा। . खपरैल डालना; आच्छादन करनेवाली चीजको फैलाना;/छालना-सक्रि० छानना, साफ करना छेद करना; धोना।
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छाली - स्त्री० सुपारी; कटी हुई सुपारी ।
छra- - स्त्री० छाया, परछाई; शरण, आश्रय ।
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२६३
छाला - छिलवाना
छाला - पु० फफोला; छाल, चर्म (मृगछाला); * पत्र ।
निकालना ।
छालित* - वि० धुला हुआ, प्रक्षालित ।
छिद्रान्वेषी (पिन्) - वि० [सं०] छिद्रान्वेषण करनेवाला ।
छालिया - पु० छायादान करनेकी कटोरी। स्त्री० दे० 'छाली । छिद्रित - वि० [सं०] जिसमें छेद हों, सुराखदार । छिन* - पु० दे० 'छन' । - छबि - स्त्री० बिजली । -दास्त्री० क्षणदा, रात । - भंग - वि० क्षणभंगुर । छिनक * - पु० एक क्षण । अ० क्षणभर ।
छावना* - स० क्रि० दे० 'छाना' ।
छावनी - स्त्री० छप्पर; छप्परपोश मकान; वह स्थान जहाँ छिनकना-स० क्रि० साँसके साथ नाकका मल बाहर
निकालना, नाक साफ करना ।
छिनना - अ० क्रि० छीना जाना; सिल आदिका कुटना । छिनरा - वि०, पु० परस्त्रीगामी, लंपट | छिनवाना - स० क्रि० छीननेका काम दूसरेसे कराना । छिनाना-स० क्रि० दे० 'छिनवाना'; * छीनना । छिनार, छिनाल - वि० स्त्री० पुंश्चली, बदकार, कुलटा ( स्त्री) 1 छिनाला - पु० छिनालपन, व्यभिचार, बदकारी । छिनौछबि-स्त्री० दे० 'छिनछबि ' ।
छिन्न- वि० [सं०] कटा हुआ; काटकर अलग किया हुआ, खंडित; नष्ट किया हुआ । -नासिक - वि० नकटा । - भिन्न - वि० नष्ट-भ्रष्ट; जो तितर-बितर हो गया हो । - मस्त, - मस्तक - वि० जिसका सिर कट गया हो । - मस्तका, - मस्ता - स्त्री० दस महाविद्याओंके अंतर्गत एक देवी जो अपना सिर हथेलीपर घरे गलेसे निकलती रक्तधाराको पीती हुई मानी जाती है । छिपकली - स्त्री० एक रेंगनेवाला जंतु जो अक्सर घरकी दीवारों पर दिखाई देता और कीड़े-मकोड़े खाता है, बिस्तुइया, गृहगोधिका ।
सेना रखी जाय, पड़ाव, शिविर |
छावरा* - पु० छौना, शावक ।
छावा - पु० बच्चा बेटा; हाथीका पट्टा ।
छासठ - वि० साठ और छ । पु० छासठकी संख्या, ६६ ।
छाह - स्त्री० दे० 'छाछ' ।
हिंगुनिया, हिंगुनी - स्त्री० कानी उँगली । छिंगुलिया, छिंगुली - स्त्री० दे० 'छिँगुनी' । छिंछ, छिछि - स्त्री० छींटा; - 'सोनित छिछ उछरि आका सहि, गज बाजिन सिर लागी' - सू० ; फुहारा; धार । छिंड़ाना - सु० क्रि० छीन लेना ।
छिः, छि- अ० घृणा, तिरस्कार या धिक्कारसूचक शब्द, छी । छिउँकी - स्त्री० एक तरहकी चींटी; एक उड़नेवाला कीड़ा । छिकनी - स्त्री० एक बूटी जिसे सूँघनेसे बहुत छींकें आती हैं। छिगुनी - स्त्री० कानी उँगली, कनिष्ठिका । छिच्छ* - स्त्री० बूँद; छींटा ।
छिछड़ा - पु० मांसका बेकार टुकड़ा जो कुत्तों-बिल्लियोंके खाने के लिए फेंक दिया जाता है; जानवरोंका मलाशय । छिछला - वि० उथला ।
छिछोरपन - पु० छिछोरेका काम, ओछापन, क्षुद्रता । छिछोरा - वि० ओछा, क्षुद्रः कमीना |
छिटकना - अ० क्रि० विखरना, फैलना; किसी चीजको ज्योति, खासकर चाँदनीका फैलाना ।
छिटकाना - स० क्रि० बिखेरना, फैलना ।
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छिपना-अ० क्रि० आड़ या परदे में होना, ऐसी जगह होना जहाँ कोई देख न सके; दृश्य न होना; डूबना, अस्त होना ।
छिपा रुस्तम - वि०, पु० असाधारण, किंतु अप्रसिद्ध गुणी । छिपाना - स० क्रि० आड़ में करना, ऐसी जगह या स्थिति में रखना जहाँ कोई देख न सके; ढँकना; प्रकट न करना । छिपाव-पु० छिपानेको क्रिया या भाव, गोपन ।
छिटकी। स्त्री० छींटा ।
छिटवा - पु० टोकरा, पावा ।
छिड़कना - स० क्रि० जल या दूसरे द्रव द्रव्यके छींटे फेंकना छिपी - पु० दे० 'छीपी'; दजी (बुंदेल०) ।
भुरकना !
छिप्र* - वि०, अ० दे० 'क्षिप्र' |
छिड़काई - स्त्री० छिड़काव; छिड़कनेकी उजरत । छिड़काव - पु० छिड़कनेकी क्रिया; छींटोंसे तर करना । छिड़ना - अ० क्रि० छेड़ा जाना, आरंभ होना, चल पड़ना; झगड़ा, लड़ाई शुरू होना ।
छितनी - स्त्री० बाँसकों फट्टियों आदिसे बनी छोटी टोकरी । छितराना - अ० क्रि० विखरना । स० क्रि० बिखराना, फैलाना; अलग-अलग करना ।
छिमा * - स्त्री० दे० 'क्षमा' |
छिया- *वि० मैला, गंदा; घृणित; तुच्छ । + पु० मैला, गू (बच्चोंकी बोली ) । स्त्री० गंदी, घिनौनी चीज; लड़की । मु० - छरद करमा-छी-छी करना । छियानबे - वि०, पु० दे० 'छानवे' ।
छियालीस - वि० चालीस और छ । पु० ४६ की संख्या । छियासी - वि० अस्सी और छ । पु० ८६ की संख्या ।
छिति* - स्त्री० दे० 'क्षिति' । -कंत, - नाथ, पाल-पु० छिरकना* - स० क्रि० दे० 'छिड़कना' |
राजा । - रुह पु० वृक्ष ।
छितीस * - पु० राजा ।
छिरना* - अ० क्रि० दे० 'छिलना' । छिलकना * - स० क्रि० दे० 'छिड़कना' ।
छिलका - पु० फल, मूल, अंडे आदिका ऊपरी आवरण । छिलछिला * - वि० छिछला ।
छिदना - अ० क्रि० छेदा जाना, छेद होना; घायल होना; घावोंसे भर जाना; छलनी होना (कलेजा छिद गया) । छिदवाना - स० क्रि० दे० 'छिदाना' । छिदाना - स० क्रि० छेदने का काम दूसरे से कराना । छिद्र - पु० [सं०] छेद, सूराख; अवकाश; गडढा; दोष, ऐब । छिद्रान्वेषण - पु० [सं०] दूसरेके दोष ढूँढ़ना, खुचड़ | छिलवाना-स० क्रि० छीलनेका काम दूसरेसे कराना ।
छिलना- अ० क्रि० चमड़े या छिलकेका कटकर अलग हो जाना या रगड़से उधड़ जाना ।
छिलवाई - स्त्री० छिलवानेकी क्रिया या मजदूरी ।
१७- क
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छिलाई-छुभित
२६४ छिलाई-स्त्री० छीलनेका काम; छीलनेकी मजदूरी। | छीलर-पु० मोटका पानी उड़ेलनेके लिए कुएँके पास बना छिलाना-स० कि० दे० 'छिलवाना' ।
हुआ गड्ढा छिछला गड्डा, तलैया । वि० छिछला । छिहत्तर-वि०सत्तर और छ । पु० छिहत्तरकी संख्या,७६।। छीव-वि० उन्मत्त, मतवाला। छिहानी*-स्त्री० मरघट, मसान ।
छुगनी, ऊँगली-स्त्री० धुंधरूदार अंगूठी । छींक-स्त्री० छींकनेकी क्रिया या आवाज ।
| छुआछूत-स्त्री० छूतछातका खयाल; अस्पृश्यको छूना। छींकना-अ० क्रि० नथुनोंमें खुजली, चुनचुनाहट पैदा छुआना। -स० क्रि० दे० 'छुलाना' । करनेवाली या श्वासक्रियामें बाधक वस्तुको निकालनेके छुईमुई-स्त्री० लज्जावती, लजालू ; बहुत ही नाजुक या लिए भीतरकी वायुका वेगके साथ बाहर आना।
नाजुकमिजाज या चिड़चिड़ा आदमी; बहुत कमजोर चीज । छीका-पु० दे० 'छीका'।
छुगनू*-पु० घुघरू। छाँट-स्त्री० वह कपड़ा जिसपर रंग-बिरंगी बूटियाँ छपी छुच्छा-वि० दे० 'छंछा'।
हो; दे० 'छींटा'-'आनन रहीं ललित पय छीटें'-सू०। छुच्छी-वि० स्त्री० दे० 'छछी' । स्त्री० पतली, छोटी नली; छीटना-स० क्रि० छितराना, बिखेरना।
| जुलाहोंकी नरी; नाकमें पहननेका एक गहना,कील की। छाँटा-पु० पानी या दूसरे द्रव द्रव्यकी बूंदें जो फेंकने, | छट-*अ० छोड़कर, सिवाय । वि० 'छोटा'का समासमें उछालनेसे किसी चीजपर पड़ें; छीटेका दाग; नन्हासा | व्यवहृत रूप । -पन-पु० छोटापन, छुटाई; बचपन । दाग हलकी वर्षा; बौछार; हलका आक्षेप, व्यंग्योक्तिः | -भैया-पु० छोटे दरजे, हैसियतका आदमी। हाथसे बखेरकर बोये हुए बीज; इस तरहकी बोआई। दे० छुटकाना*-स० क्रि० त्यागना, छोड़ना; अलग करना । 'छोटा' । मु०-छोड़ना,-फेंकना-आक्षेप करना, व्यंग्य छटकारा-पु० बंधनसे छटना, रिहाई, निस्तार; छुट्टी। करना । -देना-भड़काना, उकसाना।
छुटना*-अ० क्रि० दे० 'छूटना'।। छी-अ० पृणा, तिरस्कार या धिक्कारका सूचक शब्द, थू, छुटाना -स० क्रि० दे० 'छुड़ाना' । अ० कि० गाय-भैसका धिक्कार ।
| दूध देना बंद करन।। छीका-पु० रस्सी, तार आदिकी बनी, झोली जैसी चीज छटौती-स्त्री० सूद या लगान जो छोड़ दिया जाय । जिसे छत आदिसे लटकाकर उसपर खाने-पीनेकी चीजें छुट्टा-वि० जो बंधा न हो; अकेला, बिना बाल-बच्चेका। रखते हैं, सीका, सिकहर; मोहरा झूलेका पुल; छितनी। | -पान-पु. वह पान जिसका बीड़ा न लगा हो। मु०-टूटना-संयोगसे बिना प्रयत्न किये कोई लाभ हो जाना। छुट्टी-स्त्री० छुटकारा, अवकाशकाल, फुरसत; काम बंद छीछड़ा-पु० दे० 'छिछड़ा।
रहनेका दिन, तातील; आये हुएको जानेकी अनुमति छीछालेदर-स्त्री० दुर्दशा, फजीहत ।
मौकूफी । मु०-मनाना-अवकाशका आनंद लेना। छीज-स्ली० छीजनेका भाव, क्षय, घटाव, हास; * घाटा। छुड़वाना-स० क्रि० छोड़नेका काम दूसरेसे कराना। छीजन-स्त्री० छीजने, खराब होने इत्यादिके कारण होनेछुड़ाई-स्त्री० छोड़ने या छुड़ानेकी क्रिया; छोड़नेके बदलेमें वाली कमी, दे० 'छीज'।
दिया जानेवाला धन ।। छीजना-अ० क्रि० क्षीण होना; घटना; नष्ट होना; खराब छुड़ाना-सक्रि० पकड़ रखी हुई वस्तु या व्यक्तिके छूटने होना हानि होना।
का उपाय करना, छुटकारा दिलाना; रिहा करानाबंधनसे छीटा-पु० बाँसकी तीलियोंका बना टोकरा, बड़ी छितनी।। निकालना; दूसरेके कब्जेसे निकालना ( रेहन, खेत इ०); छीति -स्त्री० हानि, घटी।
महसूल आदि चुकाकर ले लेना; दूर करना (दाग, मैल छीदा-वि० बहुतसे छेदोंवाला; विरल ।
इ०); नौकरीसे अलग करना; दे० 'छोड़वाना' । छीन*-वि० दे० 'क्षीण' ।
छुड़ेया-पु० छुड़ानेवाला; बचानेवाला। स्त्री० गुडीको छीनना-स० क्रि० दूसरेसे जबरदस्ती ले लेना, उचक लेना, ऊपर उठाकर झटकेसे छोड़ देना। ऐंठ लेनाछिन्न करना, काट देना; सिल आदि कूटना। छुड़ौती -स्त्री० छोड़नेके लिए दिया जानेवाला धन; छीना*-स० क्रि० छूना, स्पर्श करना।
छुटौती। छीना-खसोटी, छीना-छीनी, छीना-झपटी-स्त्री० एक छत(ति)हा -वि० छूतवाला; जिसे छूत लगी हो। दूसरेके हाथसे छीन लेनेकी कोशिश ।
-अस्पताल-पु० वह अस्पताल जहाँ संक्रामक रोगोंसे छीप-स्त्री० छाप, दाग; सेहुओँ । * वि० तेज, वेगवाला। पीड़ित रोगियोंका इलाज किया जाता है । छीपी-पु० छीटें छापनेवाला ।
छत्*-स्त्री० दे० 'क्षुत्' । छीबर*-स्त्री० छीटकी साड़ी; बेल-बूटेदार कपड़ा। छद्र - वि० दे० 'क्षुद्र'। -घंट-पु०,-घंटिका-स्त्री० दे० छीमी-स्त्री० फली; मटरकी फली।
'क्षुद्रघंटिका'। छीर*-पु० दे० 'क्षीर'; कपड़ेका छोर । -ज-पु० चंद्रमा | छुद्रावली*-स्त्री० दे० 'क्षुद्रटिका' । दही। -धि-पु० क्षीरसागर । -प-पु० दूध पीनेवाला छधा-स्त्री० भूख, क्षुधा। बच्चा।-समुद्र-सागर,-सिंधु-पु० दे० 'क्षीरसागर'। छुधित-वि० भूखा, क्षुधित । छीलक*-पु० छिलका।
छुपना-अ० क्रि० दे० 'छिपना'। छीलना-स० क्रि० छिलका उतारना; खरोंचना; खुरचकर छुपाना-स० क्रि० दे० 'छिपाना' । अलग करना; गले आदिमें चुनचुनाहट पैदा करना। छभित*-वि० दे० 'क्षुभित'।
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२६५
छुभिराना-छेवा छुभिराना*-अ० क्रि० क्षुब्ध होना।
छूना-स० क्रि० किसी चीजसे सट, लग जाना, किसी छुरधार*-स्त्री० छुरेकी धार ।
चीजका हाथ या शरीरके किसी अंगसे स्पर्श करना; छुरा-पु० बड़ा चाकू जो बंद नहीं किया जा सकता और किसीके पास पहुँचना; दौड़ आदिमें (किसीको) पकड़ मांस काटने, आक्रमण करने आदिके काम आता है; बाल लेना; दानके लिए स्पर्श करना (खिचड़ी, सीधा छूना); मूंडनेका औजार, उस्तरा। -(२)बाज़ी-स्त्री० छुरेकी हाथ लगाकर छोड़ देना, थोड़ा ही काममें लाना; बहुत लड़ाई छुरा भोंकनेकी घटनाएँ होना।
हलकी चपत लगाना; पोतना, रंग करना । अ० क्रि० छुरिका-स्त्री० [सं०] छुरी।।
दो वस्तुओंके बीच व्यवधानका अभाव होना, एकका छुरी-स्त्री० [सं०] छोटा छुरा, कमलतराश चाकू । मु०- दूसरीसे सट जाना। कटारी लिये रहना-लड़नेको तैयार रहना।-चलाना,- कना-स० क्रि० घेरना; रोकना; जगह लेना; अक्षर फेरना-बहुत सताना, कष्ट देना; भारी हानि करना। आदि काटना, मिटाना। छुलाना-स० कि० दूसरी चीजसे सटाना, स्पर्श कराना। | छेक-पु० [सं०] पालतू पशु; * छेद कटाव।। छुवाना*-स० क्रि० दे० 'छुलाना'।
छेकानुप्रास-पु० [सं०] अनुप्रास अलंकारका वह भेद जिसमें छुहना*-स० क्रि० चूनेसे पोतना, सफेदी करना; रँगना, एक या अधिक वर्णों की आवृत्ति एक ही बार होती है। पोतना । अ० क्रि० रेंगा, पोता होना ।
छेकापहति-स्त्री० [सं०] अपह्न ति अलंकारका एक भेदछुहाना -अ० क्रि० छोह उत्पन्न होना, स्नेहयुक्त होना; | दूसरेकी अनुमितिका अयथार्थ उक्ति द्वारा खंडन । दया, अनुग्रह करना; रँगा, पोता जाना, सफेदी होना। छेकोक्ति-स्त्री० [सं०] अर्थांतर-गर्भित लोकोक्ति । स० क्रि० रँगवाना, पोतवाना, सफेदी कराना।
छेटा*-स्त्री० रुकावट । छुहारा-पु० खजूरका एक भेद, पिंडखजूर ।
छेड़-स्त्री० छेड़नेकी क्रिया या भाव; उँगलीसे छ, कोंचकर छही -स्त्री० सफेद मिट्टी।
या व्यंग्य, चुटकी द्वारा किसीको चिढ़ानेकी कोशिश छेछा-वि० खाली, रीता; साररहित, खोखला; निर्धन ।। चिढ़ाने, खिजानेवाली बात; नोक-झोंक; एक दूसरेपर मु०-पड़ना*-व्यर्थ जाना, निष्फल होना ।
चो? करना; सुर निकालनेके लिए बाजेको छने दबानेकी ठूछी-वि० स्त्री० दे० ',छा' । स्त्री० दे० 'छुच्छी' । क्रिया। -खानी,-छाड़-स्त्री० छेड़नेवाली बात, काम, छू-पु० फूकने, खासकर मंत्र पढ़कर फूकनेकी आवाज ।। हँसी-ठिठोली, नोक-झोंक । मु०-मंतर होना-तुरत दूर होना, उड़ जाना (पीड़ा छेड़ना-स० कि० हँसाने, चिढ़ानेके लिए उँगली आदिसे आदिका)।
छना, कोचना, व्यंग्य करना, चुटकी लेना; किसीको उत्तेछूछा-वि० दे० ' छा'।
जित करनेके लिए कुछ करना, कहना, छेड़-छाड़ करना; छूट-स्त्री० छूटनेका भाव, छुटकारा; अवकाश; (कुछ करने
आरंभ करना (काम, चर्चा); स्वर निकालने के लिए बाजेकी) आजादी, रोक न होना; लगान, मालगुजारी या को छूना, दबाना। ऋणकी (अंशतः) माफी (रेमिशन); बने, पटे आदिकी वह
छेत्र-पु० दे० 'क्षेत्र। लड़ाई जिसमें चाहे जहाँ वार किया जा सके (लड़ना); | छेद-पु० छोटे मुँहवाला गहरा गडढा, बिल, सूराख; वह अश्लील परिहासकर्तव्यकर्म करने में चक, नागा फकड़- छिद्र जो किसी चीजके आर-पार हो गया हो; दोष; [सं०] बाजी; तलाक।
छेदन खंडन; नाश; कटनेका धाव । छूटना-अ० क्रि० बंधन दूर होना, छुटकारा होना बझी | छेदक-पु० [सं०] छेदनकर्ता, काटनेवाला; भाजक; दे० हुई चीजका खुल जाना; सटी, चिपकी हुई चीजका अलग 'छेदकरेखा' । -रेखा-स्त्री० (सीकेट) वह सरल रेखा होना, निकलना खुलना, रवाना होना ( रेल आदिका); जो वृत्तको दो विंदुओंपर काटती है। चलना वेगसे फेंका, मारा जाना (तीर, बंदक आ०); छेदन-पु०[सं०] काटना, दो टुकड़े करना; दर, निराकरण बिछुड़ना, (से) जुदा, वियुक्त होना; दूर होना, जाता। करना; नाश करना काटने, छाँटनेका अख। रहना (रोग, ज्वर, आदत); धारारूपमें बेगसे निकलना छेदनहार*-वि० काटनेवाला; नाश करनेवाला । (पिचकारी, आतिशबाजी); रसना, निचुड़ना (पानी छ०); | छेदना-सक्रि० छेद, सूराख करना, बेधना; धाव करना। बचना, बाकी रहना; बंधे हुए पशुका निकल भागना | छेदनीय-वि० [सं०] छेदन करने योग्य ।। बंधकसे निकलना; किसी काम या चीजको भूल जाना, छेना-पु० फटे हुए दूधका पानी निचोड़ देनेपर बच रहनेचूक, प्रमाद होना; नौकरी आदिसे अलग किया जानाः | वाला ठोस अंश । स० क्रि० ताड़, खजूरके तनेको रस चलना रुकना, बंद होना (नाड़ी, साँस); मिटना, उड़ना निकालने के लिए छीलना काटना । * अ०क्रि० क्षीण होना। (दाग, रंग)।
छेनी-स्त्री० पत्थर या कोई धातु काटने या उसपर खुदाई छत-स्त्री० छूने, छु जानेका भाव, स्पर्श; स्पर्शजनित अशु. करनेका औजार, टाँकी; अफीम पाछनेकी नहन्नी । चिता, स्पर्शदोष; स्पर्शसे एकका रोग दूसरेको होना, छेम-पु० दे० 'क्षेम' । -करी-स्त्री० सफेद चील । लगना; स्पर्शसे होनेवाले रोगका विष; बुरा प्रभाव; मनहूस | छरी-स्त्री० बकरी । आदमी या भूत-प्रेतकी छाया । -का रोग,-की छेव-पु० वार, चोट; घाव छेद; अंत । बीमारी-वह रोग जो रोगी या उसके मल-मूत्र आदिके | छेवना-स० कि० काटना चिह्नित करना; * फेंकना । स्पर्शसे दूसरेको हो जाय।
छेवा*-पु० दे० 'छेव' ।
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छेह-जंगला छेह*-पु० छेव; राख; धूल; नाश, अंत; नृत्यका एक भेद ।। सौंपना । छोड़-छाड़कर-छोड़कर । वि० खंडित; न्यून।
छोड़वाना-स० क्रि० छोड़नेका काम दूसरेसे कराना। छै-+वि०, पु० दे० 'छः' । * पु० क्षय, नाश ।
छोड़ाना-स० क्रि० दे० 'छुड़ाना'। छैना*-अ० क्रि० छीजना, क्षय होना।
छोत*-स्त्री० दे० 'छूत'। छैया*-पु०क्षयकारी, नाश करनेवाला छोटा बच्चा(प्यारमें)। छोनिप*-पु० क्षोणिप, राजा । छैल*-पु० दे० 'छैला'। -चिकनियाँ,-छबीला-वि०, छोनी*-स्त्री० क्षोणी, भूमि । पु० बनाव-सिंगारका शौकीन ।
छोप-पु० छोपनेकी क्रिया; मोटा लेप; छोपनेके काम छैला-पु० वह जो खूब बना-ठना रहे; बाँका, रँगीला पुरुष।। आनेवाली गीली मिट्टी आदि । -छाप-पु० दीवारकी छौँडा-पु० मथानी; लड़का (छोड़ी = लड़की)।
मरम्मत । छोआ-पु० जूसी, चोटा।।
छोपना-स० क्रि० किसी चीजकी लुगदीका लेप करना; छोई-स्त्री० ईखकी सूखी पत्ती, पताई, खोई निस्सार वस्तु। दीवार पर पलस्तर करने, उसका गढ़ा आदि भरनेके लिए छोकड़ा-पु० दे० 'छोकरा'।
गिलावा लगाना; दबोचना, धर दबाना; ढकना, मढ़ना। छोकरा-पु० कच्ची उम्र और अकुका लड़का, लौडा। छोभ*-पु० दे० 'क्षोभ'; नदी आदिका उमड़ना । छोकरी-स्त्री० कच्ची उम्र और अकुकी लड़की, लौडिया। छोभना*-अ० क्रि०क्षुब्ध होना; चंचल, उद्विग्न होना। छोटा-वि० ऊँचाई, लंबाई, चौड़ाई या उम्रमें कम, लघु, छोभित*-वि० दे० 'क्षोभित' । पद, प्रतिष्ठा, योग्यतामें कम, कमउम्र; महत्त्वरहितः छोम*-वि० चिकना; मुलायम । तुच्छ, ओछा, कमीना, क्षुद्र । -मोटा-वि० छोटासा.:छोर-पु० सिरा, नोक कोना; सीमा । साधारण । मु०-2)मॅह बड़ी बात-अपनी हैसियतसे | छोरटी*-स्त्री० लड़की, छोकरी । बड़ी बात कहना, छोटे आदमीका बड़ेके दोष निकालना, छोरना*-स० क्रि० अपहरण करना, छीनना दे० निदा करना।
'छोड़ना। छोटाई-स्त्री० छोटापन; क्षुद्रता ।
छोरा*-पु० लड़का, छोकरा । छोटी-वि० स्त्री० 'छोटा'का स्त्री०। -इलायची-स्त्री० | छोलदारी-स्त्री० छोटा तंबू । हरापन लिये सफेद और पतले छिलकेकी इलायची, गुज- छोलना-*सक्रि० छीलना, खुरचना; फैलाना; दिखाना। राती इलायची ।-जाति-स्त्री० वह जाति जिसका दरजा पु० हथियारोंका मुरचा छुड़ानेका एक औजार । समाज में नीचा माना जाता हो, नीच जाति । -बात- छोलनी -स्त्री० छीलनेका औजार, खुरचनी । स्त्री० ओछेपन, क्षुद्रताका काम । -हाजिरी-स्त्री० छोला-पु० चना; ऊख काटने और छीलनेवाला। हिंदुस्तानमें रहनेवाले यूरोपियनोंका सबेरेका नाश्ता छोह-पु० स्नेह, ममता; कृपा, दया। -गरी-वि० प्रेमी, (बेरा, खानसामाँ)।
छोह करनेवाला। छोड़ना-स० क्रि० पकड़से निकाल देना, बंधन खोलना. | छोहना-अ० कि० दे० 'छोभना'; दया या प्रेम करना। छुटकारा देना; न लेना; मुआफ करना; पावनेमें छूट छोहरा*-पु० लड़का, छोकरा । देना; त्यागना, अलग होना; (घर, देशसे) प्रस्थान करना, छोहरिया, छोहरी*-स्त्री० लड़की, छोकरी । बिदा होना पड़ा रहने देना; साथ न लाना, न लेना | छोहाना-अ० कि० छोह करना; दया, कृपा करना। (किसी कामके लिए) रवाना करना, भेजना, दौड़ाना, छोहारा-पु० दे० 'छुहारा' । . चलाना; (किसीके) पीछे लगाना; वेगसे छूटने, निकलने- छोहिनी*-स्त्री० अक्षीहिणी । वाली चीजको फेंकना, मारना, चलाना (पिचकारी, छोही-वि० छोह करनेवाला,स्नेही । स्त्री० गडेरीकी सीठी । आतिशबाजी इ०); दूरगामी अस्रोंको चलाना; उपभोगसे | छौंक-स्त्री० छौंकनेकी क्रिया, बधार । बचा रहने देना, बाकी रखना (जूठन, काम, संपत्ति इ०); | छौँकना-स० क्रि० बधारना, तड़का देना । नीचे गिराना, डालना न करना, करने, कहने, लिखने में छौँडा-पु. लड़का, छोकरा; गाड़, खत्ता। भूलसे या जानकर छूट जाने देना; करनेसे विरत होना, छौना-पु० जानवरका छोटा (प्यारा) बच्चा, शावक । न करना (नौकरी, आदत); फुलझड़ी, पटाखा छोड़ना; छौर-पु० दे० 'क्षीर' । (किसीपर) छोड़ना-किसीके भरोसे छोड़ना, किसीको
कसाक भरास छाड़ना, किसीको छाना*-स० किं० छुलाना।
ज-देवनागरी वर्णमालाका आठवाँ व्यंजन ।
जगह ले जा सकें, स्थावरका उलटा (जंगम संपत्ति)। पु० जंकशन-पु० [अं॰] दो सड़कों, रास्तोंके मिलनेका स्थान; लिंगायत संप्रदायके गुरुओंकी उपाधि ।-विष-पु० चर
वह स्टेशन जहाँ दो या अधिक रेल-लाइनें मिलें। प्राणियों (सर्पादि)के डंसने, काटनेसे पैदा होनेवाला जहर । जंग-स्त्री० [फा०] लड़ाई, युद्ध, रण।
जंगरैत-वि० जाँगरवाला, परिश्रमी। जंग-पु०[फा०] मोरचा, धातुका मैल; हबशियोंका देश । जंगल-पु०[सं०] वन; रेगिस्तान; एकांत या उजाड़ स्थान । जंगम-वि० [सं०] चलनेवाला, चल जिसे एकसे दूसरी जंगला-पु. छत, बरामदे आदिके आगे लगी हुई बाड़
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२६७
जंगली - जक्त
जंपना* - स० क्रि० कहना, बोलना ।
"
जिसमें लोहे या लकड़ीकी छड़ें या जाली जड़ी हो; छड़ जंद-पु० आर्योंकी ईरानी शाखाकी प्राचीन भाषा; जरथुस्त्री या जाली लगी हुई खिड़की । पारसियों का प्रथम धर्मग्रंथ, जंद अवेस्ता । जंगली - वि० जंगलमें मिलने या पैदा होनेवाला, वन्य जंदरा - पु० जाँता; कल । बिना बोये उगनेवाला; जो पालतू न हो, बनैला, असभ्य, उजड्डु | पु० जंगलमें रहनेवाला, वनवासी । जंगार - पु० [फा०] ताँबेका कसाव, तूतिया; एक रंग । जंगारी - वि० [फा०] जंगारके रंगका, नीला । जंगाल - पु० [सं०] बाँध; मेंड़; दे० 'जंगार' | जंगाली - वि० दे० 'जंगारी' । पु० एक तरहका रेशमी कपड़ा ।
जंबीर- पु० [सं०] जैबीरी नीबू; मरुवा; वनतुलसी । जंबीरी नीबू - पु० एक तरहका अधिक खट्टा नीबू । जंबु, जंबू - पु० [सं०] जामुनका पेड़ और फल | - खंडपु० दे० 'जंबुद्वीप' | -द्वीप-पु० पुराणानुसार धरती के सात महाद्वीपों में से एक जिसके नौ खंडों में से एक भारतवर्ष भी है ।
जंगी-वि० [फा०] युद्ध-संबंधी; सेना-संबंधी, फौजी; युद्धो चित ( जंगी काररवाई ); युद्धोपयोगी; विशालकाय, बड़े डील-डौलका; लड़ाका, झगड़ालू । -जवान - पु० लंबाचौड़ा, बड़े डील-डौलका जवान जहाज़ - पु० लड़ाई में काम आनेवाला जहाज, युद्धपोत । - बेड़ा - पु० जंगी जहाजों का बेड़ा |
जंघा - स्त्री० [सं०] जाँध, रान; पिंडली; कैचीका दस्ता । जँचना-भ०क्रि० जाँचमें ठीक आना; अच्छा मालूम होना,
ठीक लगना; पसंद आना; जाँचा जाना । जंजर, जंजल * - वि० टूटा-फूटा, जीर्ण; निकम्मा | जंजार*, जंजाल - पु० झंझट, वखेड़ा; फँसाव, झमेला; लंबी नलीकी भारी बंदूक (प्रा० ); बड़े मुँहकी तोप (प्रा० ) । जंजालिया - वि० दे० 'जंजाली' | जंजाली - वि० बखेड़िया, फसादी । स्त्री० वह रस्सी और घिरनी जिनसे पाल चढ़ाने उतारनेका काम लेते हैं । जंजीर - स्त्री० [फा०] साँकल, श्रृंखला, लड़ी; बेड़ी । जंजीरा - पु० जंजीरकी शकल में बटा हुआ डोरा; कशीदेकी सिलाई जिससे जंजीरसी बनती जाती है, लहरिया - ( ३ ) दार - वि० लहरियादार (सिलाई) । जंतर-पु० यंत्र, तावीज; ताँबे-चाँदी आदिका तावीज जिसमें यंत्र भरकर पहनाया जाय; गलेमें पहननेका एक गहना । - मंतर - पु० यंत्र-मंत्र; जादू-टोना; वेधशाला । अंतरी - स्त्री० पंचांग, पत्रा; छोटा जंतर । पु० जंतर-मंतर
।
करनेवाला; दे० 'जंत्री' ।
जैतसार - स्त्री० वह घर या स्थान जहाँ जाँता गड़ा हो । जंता - पु० यंत्र; तार खींचनेका औजार । वि० यंत्रणा देनेवाला; नियमन करनेवाला ।
जंतु - पु० [सं०] प्राणी, जीव; पशु; कीड़ा-मकोड़ा; जीवात्मा । - विज्ञान - पु० (, जूलॉजी) जंतुओं - पशु-पक्षियों आदि - की उत्पत्ति, विकास, स्वभाव, वर्गीकरण इत्यादिका विवेचन करनेवाला शास्त्र । - शाला - स्त्री० वह स्थान जहाँ प्रदर्शन या अध्ययन करनेके लिए जीवित जंतु रखे जायँ, चिड़ियाघर |
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जंत्र - पु० यंत्र, तावीज; ताला । - मंत्र - पु०दे० 'जंतर-मंतर' | जंत्रना* - स० क्रि० ताला लगाना - 'भरत भगति सबकै मति जंत्री' - रामा० । स्त्री० दे० 'यंत्रणा' । जंत्रित* - वि० यंत्रित, जकड़ा हुआ; बंद | जंत्री- पु० वीणा । वि० वीणावादक । स्त्री० तिथिपत्र |
जंबुक - पु० [सं०] जामुन; स्यार, शृगाल; केवड़ा | जंबुमान् ( मत्) - पु० [सं०] पहाड़ | जंबूर - पु० [अ० जन्बूर] भिड़; शहद की मक्खी; पुराने समयकी एक छोटी तोपख़ाना-पु० भिड़ या शहदकी मक्खियोंका छत्ता । -ची- पु० तोपची । जंबूरक-स्त्री० दे० 'जंबूर'; तोपकी चर्ख; भँवरकली । जंबूरा - पु० दे० 'जंबूरक'; एक औजार, बाँक । जंभ - पु० [सं०] डाढ़; ढुड्डी, चबाना, भक्षण; अंश; जम्हाई; कर्कशः महिषासुर का बाप जो इंद्रके हाथों मारा गया; जंबीरी नीबू । - द्विद्(ष्),-भेदी ( दिन), -रिपु- पु० इंद्र | जंभक- वि० [सं०] जम्हाई लेनेवाला; भक्षण करनेवाला । जंभा - स्त्री० [सं०] जम्हाई । जंभाई-स्त्री० दे० 'जम्हाई' ।
जँभाना - अ० क्रि० दे० 'जम्हाना' । जंभारि - पु० [सं०] इंद्र; वज्र; अग्नि ।
जैतसर - पु०, जँतसारी - स्त्री० वह गीत जो चक्की पीसते जकंदना * - अ० क्रि० छलाँग मारना; झपटना । वक्त स्त्रियाँ गाती हैं । जकंदनि * - स्त्री० दौड़धूप; उलझन
ज - पु० [सं०] मृत्युंजय; जन्म; पिता । वि० सामासोत में 'में या से उत्पन्न' (जैसे- जलज, वातज, अंडज इ० ) । जई - स्त्री० जौकी जातिका एक अनाज, ओट; जौका अँखुआ; खीरे, कुम्हड़े आदिकी बतिया । ज़ईफ़ - वि० [अ०] बूढ़ा; दुर्बल जईफी - स्त्री० [अ०] बुढ़ापा; दुर्बलता | जऊ * - अ० यद्यपि ।
जकंद - स्त्री० दे० 'ज़क़द’।
ज़क्रंद, जगंद - स्त्री० [फा०] छलाँग, चौकड़ी ।
जक- स्त्री० हठ; धुन, रटना । ( - बँधना-रट लगना) । ज़क - स्त्री० [अ०] हार, पराजय; नीचा देखना; हानि । जकड़ - स्त्री० जकड़ने, कसकर बाँधनेकी क्रिया या भाव ।
- बंद - वि० कसकर बाँधा हुआ । पु० कड़ा बंधन, पकड़ । जकड़ना-स० क्रि० कसकर बाँधना । अ० क्रि० ( किसी अंगका ) अकड़ना ।
जकना * - अ० क्रि० भौचक्का होना, स्तंभित होना । जकरना * - स० क्रि० दे० 'जकड़ना' ।
जकात - स्त्री० दे० 'जकात'; देसावर से आनेवाले भालपर लगनेवाला कर, आयातकर ।
जकात - स्त्री० [अ०] दान, खैरात । जकाती - पु० जकात वसूल करनेवाला | जकित * - वि० चकित, भौचक्का । जक्त * - पु० जगत्, संसार ।
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जक्ष-जजमानी
२६८ जक्ष*-पु० यक्ष ।
जगद्विख्यात-वि० [सं०] विश्वविश्रुत । जखनी-स्त्री० दे० 'यक्षिणी'।
जगना-अ० क्रि० जागना, नींदसे उठना; सचेत होना; जखम-पु० दे० 'ज.ख्म'।
उभरना; बलना, प्रदीप्त होना; शक्ति, तेजका अधिक जखमी-वि० दे० 'ज.स्मी' ।
परिचय देना; तंबाकू, आदिका सुलगना । जखीरा-पु० [अ०] खजाना; भंडारा ढेर, पेड़-पौधे या जगन्नाथ-पु० [सं०] परमेश्वर; विष्णुः पुरीमें स्थापित बीज मिलनेका स्थान ।
विष्णुमूर्ति । -का भात-जगन्नाथजीका महाप्रसाद; वह जखम-पु० [फा०] घाव, चोट; हानि । -(मे)जिगर- वस्तु जो किसीके छूनेसे अपवित्र न हो, जिसे सभी पु० दिलपर लगी हुई चोट, दुःख, मनोवेदना । मु०- ग्रहण कर सकें। हरा होना-बीते हुए कष्टका फिर लौट आना।
जगन्नियंता(त)-पु० [सं०] जगत्का नियमन करनेवाला, जख्मी-वि० [फा०] घायल, जिसे जख्म लगा हो। परमेश्वर । जग-पु० जगत् , दुनिया । -कारन*-पु. जगत्के| जगनिवास-पु० [सं०] परमेश्वर, विष्णु । कारणरूप परमेश्वर । -जननी*-स्त्री० दे० 'जगज्जननी'। जगन्मयी-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी । -जामिनि*-स्त्री० संसाररूपी रात्रि । -जाहिर-वि० जगन्माता(त)-स्त्री० [सं०] दुर्गा; लक्ष्मी । जगत्प्रसिद्ध, सर्वविदित । -जीवन-पु० जगत्के जीवन-जगन्मोहिनी-स्त्री० [सं०] महामाया; दुगो । रूप परमेश्वर । -जोनि-पु० दे० 'जगद्योनि' । जगमग-वि० चमकीला, जगमगाता हुआ, प्रकाशित । -तारन*-पु० जगत्को तारनेवाला, परमेश्वर । स्त्री० जगमगाहट । -निवास-पु० दे० 'जगन्निवास। -प्रान-पु० दे० जगमगाना-अ० कि० अपनी या दूसरेकी रोशनीसे चम'जगत्प्राण' । -बंद*-वि० दे० 'जगद्वंद्य । -बंदन- कना, प्रकाशके कंपनसे झलकना, दमकना, चमचमाना । वि० जगदथ, सबके लिए पूज्य ।-बीती-स्त्री० लोकवृत्त, जगमगाहट-स्त्री० जगमगानेका भाव, चमक, दमक । किस्सा-कहानी । -मोहनी-वि० स्त्री० दुनियाको जगरन*-पु० दे० 'जागरण' । मोहनेवाली, सुंदरी । -सूर*-पु० राजा। -हँसाई- जगर-मगर-वि० दे० 'जगमग' । स्त्री० लोकनिंदा।
जगवाना-स० क्रि० जगानेका काम दूसरेसे कराना । जगच्चक्षु (स्)-पु० [सं०] सूर्य ।।
जगह-स्त्री० अवकाशका अंश-विशेष; अवकाशका वह अंश जगजगानाt-अ०क्रि० जगमगाना, चमचमाना । जिसमें किसी वस्तु या व्यक्तिकी स्थिति हो, स्थान, वस्तु जगजननी-स्त्री० [सं०] जगदंबा, परमेश्वरी ।
या व्यक्ति-विशेषका नियत स्थान; समाई, गुंजाइश पद, जगजयी(यिन)-वि० [सं०] दुनियाको जीतनेवाला । उहदा; नौकरी; अवसर, मौका । -जगह-अ० हर जगण-पु० [सं०] पिंगलके आठ गणोंमेंसे एक जिसमें आदि- जगह, सर्वत्र।
अंत वर्ण लघु और मध्य वर्ण गुरु होता है (उ० रमेश)। | जगाजोति*-स्त्री० जगमगाहट । जगत-स्त्री० कुएँका चबूतरा। पु० जगत् , दुनिया ।। जगात*-स्त्री० दे० 'जकात' । -पति-पु० दे० 'जगत्पति'। -सेठ-पु० राज्य-विशेषका जगाती*-पु० जकात वसूल करनेवाला। सबसे बड़ा महाजन, वह महाजन जिसकी साख सर्वत्र जगाना-सक्रि० सोतेसे उठाना, जागनेको प्रेरित करना; मानी जाय।
सजग, सावधान करना; सुलगाना, प्रदीप्त करना (ज्योति जगती-स्त्री० [सं०] धरती; दुनिया, जगत् मानवजाति ज०); यंत्र-मंत्रको सिद्ध करना या उनका प्रभाव बनाये -तल-पु० धरती; दुनिया।
रखने के लिए ग्रहण आदिपर उनका जप आदि करना । जगत-प० [सं०] दनिया, संसार, वायु । वि. जंगम, जा*-स्त्री० जागरण. जागति ।
चल । -कर्ता(त)-पु० परमेश्वरः ब्रह्मा। -कारण- जगीर*-स्त्री० दे० 'जागीर' । पु० सृष्टिके कारणरूप परमेश्वर । -पति,-पिता(त) जगीला*-वि० उनी दा । पु० परमेश्वर । -प्राणं-पु० वायु ।
जग्य*-पु० यश । जगदंबा, जगदंबिका-स्त्री० [सं०] दुर्गा, जगज्जननी। जघन-पु० [सं०] स्त्रियोंका पेड़ नितंब सेनाका पिछला जगदामा(स्मन्)-पु० [सं०] परमेश्वर; वायु । भाग।-चपला-स्त्री० कामुका, व्यभिचारिणी स्त्री। जगदाधार-पु० [सं०] परमेश्वर; वायुः काल ।
जघन्य-वि०[सं०] अंतिम; नीच; निंदित, हेय । पु० शूद्र । जगदीश-पु० [सं०] जगत्पति, परमेश्वर विष्णु । जच्चा-स्त्री० [फा०] सद्यःप्रसूता; वह स्त्री जिसे प्रसव किये जगदीश्वर-पु० [सं०] परमेश्वर शिव; इंद्र; राजा। ४० दिन न हुए हों। -ख़ाना-पु. प्रसवगृह । जगद्गुरु-पु० [सं०] परमेश्वर, त्रिदेव; नारद; शंकरा- | जच्छ*-पु० दे० 'यक्ष' । चार्यकी गद्दीपर बैठनेवालोंकी पदवी।
जज-पु०[अं॰] वह अधिकारी जिसे मुकदमे सुनकर उनका जगद्धाता(त)-वि० [सं०] जगत्को धारण करनेवाला। ! फैसला करनेका अधिकार हो, विचारक । पु० परमेश्वर; ब्रह्मा।
जजना*-स० क्रि० आदर करना, पूजना; -'कलि पूर्जे जगद्धात्री-स्त्री० [सं०] दुर्गा; सरस्वती ।
पाखंडको ज न स्रति आचार'-दीनद० । जगद्योनि-पु० [सं०] परमेश्वर; त्रिदेव ।
जजमान-पु० दे० 'यजमान'। जगढुंध-वि० [सं०] सबका पूज्य ।
जजमानी-स्त्री० दे० 'यजमानी'।
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जज़िया - पु० दे० 'जिजिया' । जज़ीरा - पु० [अ०] टापू, द्वीप। जज्ञ* - पु० दे० 'यज्ञ' ।
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-नुमा - पु० प्रायद्वीप ।
जज्ब - पु० [अ०] सोखना; खिंचाव, आकर्षण | जज्बा - पु० [अ०] भाव, मनोविकार; जोश; रोष । जटना - स० क्रि० ठगना; * जड़ना, जकड़ना । ज़टल - स्त्री० बकवास, बेतुकी बात; गप । -क़ाफ़िया - पु० बेतुकी बात; गप -बाज़- वि० बकवासी, गप
हाँकनेवाला ।
जटा - स्त्री० [सं०] उलझे और आपस में चिपके हुए लंबे बाल; पेड़-पौधों की जड़; शाखा; उलझे हुए रेशे । - जूटपु० जूड़ेके रूप में बँधी हुई जटा; शिवकी जटा । जटाना - अ० क्रि० जटा जाना, ठगाना । जटायु - पु० [सं०] रामायण में वर्णित एक गिद्ध जिसने सीताको छुड़ाने के लिए रावणसे युद्ध किया था ।
जटित - वि० जड़ा हुआ
जटिल - वि० [सं०] जटाधारी; उलझा हुआ, पेचीदा; कठिन । जटिलता - स्त्री० [सं०] पेचीदगी, उलझन; कठिनाई । जटी - स्त्री० [सं०] जटा; समूह |
जटी ( टिनू ) - वि० [सं०] जटाधारी । पु० शिव; बरगद | ज ू - वि० जटनेवाला, उचित से अधिक मूल्य लेनेवाला । जठर- पु० [सं०] पेट; कुक्षि, जरायु; एक पुराणोक्त पर्वत । वि० कड़ा, कठिन; वृद्ध, बूढ़ा । -ज्वाला - स्त्री० उदरज्वाला, भूखका कष्ट
जठरागि* - स्त्री० दे० 'जठराग्नि' | जठराग्नि - स्त्री० [सं०] उदरस्थित अग्नि जो आयुर्वेद के मतसे आहारको पचानेका काम करती है; आमाशयकी गिल्टियोंसे निकलनेवाला पाचक रस, (गैस्ट्रिक जूस) । जठरानल - पु० [सं०] दे० 'जठराग्नि' | जठरामय - पु० [सं०] अतीसार; जलोदर रोग । जठेरा* - वि० जेठा, बड़ा । पु० लड़का- 'छलसों कछु करतु फिरतु महरिको जठेरो'- सू० । जड-वि० [सं०] अचेतन, चेतनरहित; निर्बुद्धि, मूर्ख; सदी से ठिठुरा, अकड़ा हुआ; निश्चेष्ट । पु० जड़, अचेतन पदार्थ; जल; सीसा । - जगत्-पु० जडप्रकृति, पांचभौतिक पदार्थों की समष्टि | -पदार्थ- पु० अचेतन पदार्थ, भौतिक जगत्का उपादानरूप द्रव्य । - प्रकृति - स्त्री० जडजगतू, पंचभूत या पांचभौतिक पदार्थोंकी समष्टि । जड़ - स्त्री० पेड़-पौधों का वह भाग जो जमीनके अंदर रहता है और जिसके द्वारा वे धरती से पोषण प्राप्त करते हैं, मूल; नीव, आधार, मूल कारण । मु०- उखाड़ना - समूल नाश करना । - काटना, - खोदना - तबाह करनेकी कोशिश करना, भारी हानि पहुँचाना । जडता - स्त्री०, जडत्व- पु० [सं०] जड होनेका भाव; अचेतनता, अज्ञान, मूर्खता; एक संचारी भाव । जड़ताई * - स्त्री० दे० 'जडता' ।
जड़ना - स० क्रि० एक बस्तुको दूसरी में बैठाना, जमाना, पच्ची करना;ठोकना (कील, नाल); मारना, लगाना (धौल, चाँटा); किसी की चुगली खाना या किसीके खिलाफ किसी के कान भरना, शिकायत करना ।
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जज़िया - जन
जड़वाना - स० क्रि० दे० 'जड़ाना' । जड़हन - पु० अगहनी धान ।
जड़ाई - स्त्री० जड़नेका काम; जड़नेकी उजरत ।
जड़ाऊ - वि० जिसपर नग या रत्न जड़ा हो, जड़ाववाला । जड़ाना - स० क्रि० जड़ने का काम दूसरेसे कराना । अ० क्रि० जाड़ा लगना, जाड़ा खाना । जड़ाव - पु० जड़नेका काम, पच्चीकारी ।
जड़ावर - पु० जाड़े में पहनने ओढ़नेके गरम कपड़े । जड़ित - वि० जड़ा हुआ; जड़ाऊ । जडिमा (मन्) - स्त्री० [सं०] जडता, स्तब्धता; संज्ञाहीनता । जड़िया- पु० नग जड़नेका काम करनेवाला ।
जड़ी - स्त्री० वनौषधि, बूटी; वह वनौषधि जिसकी जड़ दवाके काम में लायी जाय । -बूटी - स्त्री० वनौषधि । जडीकृत परिसंपत् - स्त्री० [सं०] ( फ्रोजन एसेट्स) वह परिसंपत् जिसके विक्रय, हस्तांतरण आदिकी मनाही कर दी गयी हो ।
जडीभूत - वि० [सं०] जो हिलता डुलता न हो, निःस्पंद । जड़ेया । - स्त्री० जाड़ा देकर आनेवाला ज्वर, जूड़ी । जत* - वि०, अ० जितना । जतन - पु० दे० 'यत्न' ।
जतनी - वि० यत्न करनेवाला; चालाक, चतुर । जतलाना - स० क्रि० दे० 'जताना' ।
जताना - स० क्रि० बताना, अवगत कराना; आगाह करना । जति* - पु० दे० 'यति' ।
जती | - पु० दे० 'यती' ।
जतु-पु० [सं०] गोंद; लाख; शिलाजतु । -गृह- पु० लाख - का बना घर (जैसा दुर्योधनने पांडवोंको जलानेके लिए बनवाया था ) । - रस - पु० लाख; महावर । जतुक - पु० [सं०] हींग; लाख; चमड़ेपरका दाग जो जन्मसे हो, लच्छन ।
जतुका - स्त्री० [सं०] लाख; चमगादड़; पर्पटी लता । जतेक* - वि०, अ० जितना ।
जत्था - पु० कार्य- विशेषके लिए संघटित छोटा दल, यूथ ।
- (स्थे) दार - पु० जत्थेका नायक, दलनायक । -बंदी - स्त्री० जत्था बनाना, दलबंदी ।
जथा* - अ० दे० 'यथा'। स्त्री० धन, पूँजी । पु० दे० ' जत्था' | जथारथ * - वि० दे० 'यथार्थ' । जद - अ० जब; यदि । जदपि* - अ० दे० 'यद्यपि ' ।
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ज़दा - वि० [फा०] भरा हुआ, पीड़ित (मुसीबतज़दा) । जदु* - पु० दे० 'यदु' | - कुल * - पु० दे० 'यदुकुल' । - नाथ, - पति-पु० दे० 'यदुनाथ' ।-पुर-पु० मथुरा | - बंसी - वि० दे० 'यदुवंशी' | - राइ, - राय - पु० यदुराज, कृष्ण । - वीर - पु० कृष्ण । जद्द - *वि० प्रबल; अधिक । स्त्री० [अ०] कोशिश । - (दो) जेहद - स्त्री० प्रयत्न, दौड़-धूप; आंदोलन | जद्दपि * - अ० यद्यपि ।
जन- पु० [सं०] मनुष्य; व्यक्ति; मनुष्य-समूह, लोक; जाति; सेवक, दास । - आंदोलन - पु० किसी उद्देश्यकी सिद्धिके लिए जनता द्वारा चलाया गया आंदोलन । -कल्याण
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जनक-जना
२७० केंद्र-पु० (बेलफेयर सेंटर) जनताके स्वास्थ्य, उन्नति तथा | जनता-स्त्री० [सं०] जनसमूह, लोक; जनन ।-जनार्दनभलाईके लिए किये जानेवाले कार्योका केंद्र। -गणना- पु० जनतारूप जनार्दन, भगवान् । स्त्री० मर्दुमशुमारी, देशविशेषके सब मनुष्योंकी गणना। जनन-पु० [सं०] उत्पत्ति जन्म; आविर्भाव, प्रकट होना; -जागरण-पु० समस्त जनतामें अपने अधिकार, हिता- | जनना, उत्पादन वंश; जीवन परमेश्वर, पिता।-गतिहितका ज्ञान होना। -जाति-स्त्री० (ट्राइब) जंगलों या स्त्री० ( बर्थ रेट ) आबादीके प्रतिसहस्र व्यक्तियोंके पीछे पहाड़ी स्थानों आदिमें रहनेवाले ऐसे लोगोंका समूह जो होनेवाले शिशु-जन्मकी गति ।। शिक्षा, सभ्यता आदिमें समीपवती स्थानोंके लोगोंसे कुछ जनना-सक्रि० बच्चेको जन्म देना, प्रसव करना! * पिछड़े हुए हों और जो अपने-अपने मुखियों या सरदारोंके | जानना-'जो यह पीर जनै'-स्वामी हरिदास । आदेशोंके अनुसार चलनेके आदी हों। -तंत्र-पु० जननाशौच-पु० [सं०] प्रसवका अशौच, सौरीका सूतक । लोकतंत्र, प्रजातंत्र । -धन-पु० आदमी और पैसा
जननी-स्त्री० [सं०] जन्म देनेवाली, माता दया; चम(जन-धनसे सहायता)।-निर्देश-पु० (रिफरेंडम) गादड़लाखजूडी; मजीठ; कुटकी; जटामासीपर्पटी;जनी। संसदमें पुरःस्थापित किसी महत्त्वपूर्ण विवादग्रस्त विषयको | जननेंद्रिय-स्त्री० [सं०] वह इंद्रिय जिससे संतानकी समस्त जनताके सामने मतदान द्वारा अपना निर्णय देनेके | उत्पत्ति होती है, उपस्थ । लिए उपस्थित करना। -पद-पु० देश, राज्य; राज्य- जनम-पु० जन्म; जीवन, जिंदगी। -घूटी-स्त्री. नवजात विशेषका ग्राम-भाग; लोक, प्रजा।-प्रवाद-पु० अफवाह, बच्चेको पिलायी जानेवाली चूंटी। -दिन-पु० दे० आम चर्चा । -प्रिय-वि० लोकप्रिय । -मत-पु० लोक- _ 'जन्मदिन'।-पत्री-स्त्री०.दे०जन्मपत्रिका' ।-संगीमत, जनसाधारणकी राय । -रंजन-वि० लोकको सुख, वि०जिसका साथ जन्मसे हो या जिंदगीभर रहे ( पति आनंद देनेवाला । पु० लोकरंजन ।-रक्षा अधिनियम- या पत्नी)। -संघाती*-वि० जनमसंगी। पु० (पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट) सर्वसाधारणकी रक्षाकी दृष्टिसे जनमना-अ० कि० जन्म लेना, पैदा होना । स०कि. बनाया गया अधिनियम ।-रव-पु० अफवाह, जनश्रुति; जन्म देना-'सुंदर सुत जनमत भई ओऊ'-रामा० । लोकापवाद । -लोक-पु. ऊपरके सात लोकोंमेंसे | जनमाना-स० क्रि० जन्म देना, जनना। पाँचवाँ, महलोंके ऊपर स्थित लोक । -वाद-पु० दे० जनमारो*-पु० जन्म, जीवन । 'जनरव' । -वास-पु. सर्वसाधारणके ठहरनेका स्थान; जनमेजय-पु० [सं०] परीक्षितका पुत्र जिसने उनके सर्प
दंशसे मरनेके बाद साँके नाशके लिए सर्पसत्र किया। [हिं०] बरातियोंके ठहरनेकी जगह । -शून्य-वि० आद. जनयिता(त)-वि० [सं०] जन्म देनेवाला, उत्पादक । मियोंसे खाली, सुनसान । -श्रुत-वि० प्रसिद्ध, जिसे पु० पिता। बहुत लोग जानते हों।-श्रुति-स्त्री० जनरव ।-संख्या- जनयित्री-स्त्री० [सं०] जननी, माता । स्त्री० स्थान विशेषमें बसनेवालोंकी संख्या, आबादी। जनवरी-स्त्री० ईसवी सालका पहला महीना । . -संग्राम-पुथ्वह युद्ध जिसमें सारी जनता शामिल हो। जनवाई-स्त्री० जनवानेकी उजरत या नेग । -संपर्काधिकारी(रिन्)-पु०(पब्लिक रिलेशन ऑफिसर) जनवाना-स० क्रि० बच्चा जनाना, जनने में मदद करना; सरकारका जनतासे संपर्क बनाये रखनेवाला अधिकारी। सूचित कराना। -समुदाय-पु० भीड़, मजमा। -समुद्र-पु० समुद्रवत् जनांतिक-पु० [सं०] अभिनयमें एक अभिनेताका दूसरेके विशाल जनसमूह, भारी भीड़। -समूह-पु० भीड़, कानसे सटकर कुछ कहना । मजमा। -साधारण-पु. साधारण जन; जनसमाज; | जना-वि० उत्पन्न किया हुआ। जनता। -स्थान-पु० दंडकारण्यका वह भाग जहाँ | जनाई-स्त्री० जनानेकी उजरत या नेग; जनानेवाली स्त्री। सीताका हरण हुआ था। -हरण-पु० एक दंडक वृत्त । | जनाउ*-पु० दे० 'जनाव' । -हित-पु० लोकहित, जनताके लाभका काम ।-हितैषी जनाकीर्ण-वि० [सं०] आदमियोंसे भरा हुआ; बहुत धनी राज्य-पु० (वेलफेयर स्टेट) वह राज्य जहाँ जनताके | आबादीवाला। स्वास्थ्य, शिक्षा, सुख-सुविधा आदिकी विशेष व्यवस्था हो | जनाज़ा-पु० [अ० ] लाश; अरथी, तावूत ( उठना, तथा जीविका दिलाने एवं असमर्थता-वृत्ति आदिका आयो- निकलना) । -(जे)की नमाज़-स्त्री० मुसलमानकी जन हो। -हीन-वि० जनशून्य, विजन ।
अंत्येष्टिके अवसरपर रारतेमें या कब्रिस्तान में पढ़ी जानेजनक-वि० [सं०] जन्म देनेवाला, उत्पादक । पु० पिता | वाली नमाज । मिथिलाका रामायण-कालीन राजवंश जिसमें कई बड़े
जनानखाना-पु० [फा०] घरका वह भाग या खंड जिसमें ब्रह्मज्ञानी हुए; उक्त वंशके राजा सीरध्वज जोसीताके पिता
स्त्रियाँ रहें, अंतःपुर । थे। -तनया,-सुता-स्त्री० सीता। -दुलारी-स्त्री० जनाना-सक्रि० जताना दे० 'जनवाना'। [हिं०] सीता।
जनाना-वि० [फा०] स्त्री-संबंधी (स्कूल, अस्पताल आदि); जनकात्मजा-स्त्री० [सं०] सीता ।
स्त्रीकी तरह (चाल, सूरत)। पु० जनानखाना; हिजड़ा; जनकौर*-पु० जनकपुर; जनकवंश ।
डरपोक आदमी; पत्नी । -पन-पु० हिजड़ापन, नामदर्दी; जनखा-पु० औरतोंकी तरह बोलने और चेष्टाएँ करने | स्त्रीसुलभ हाव-भाव । वाला, हिजड़ा, स्त्रैण ।
जनाब-पु० [अ०] श्रीमान् , महोदय, महाशय ।
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स्त्री; माता; पत्नी; पुत्रवधू ; दासी । जनित - वि० [सं०] उत्पन्न, पैदा हुआ । जनिता (तृ) - पु० [सं०] पिता । जनित्री - स्त्री० [सं०] माता, जननी ।
जनियाँ - स्त्री० दे० 'जानी' ।
जनी - वि० स्त्री० पैदा की हुई । स्त्री० [सं०] कन्या; माया; दे० 'जनि' ।
२७१
जनाभिवक्ता (तृ) - पु० [सं०] (ट्रिब्यून) जनताके अधिकारों के लिए लड़नेवाला तथा उनका समर्थक । जनार्दन - पु० [सं०] विष्णुः परमेश्वर । वि० जनपीडक । जनाव- पु० जनानेका काम; * जतानेका भाव, सूचना । जनावर * - पु० जानवर पशु ।
जनि* - अ० नहीं, मत (निषेधार्थक) । स्त्री० [सं०] जन्म; जन्मोत्सव - पु० [सं०] बच्चोंकी बरही - छुट्टीका उत्सव;
जन्मदिनका उत्सव, बरस-गाँठ ।
जन्य - वि० [सं०] जात, उत्पन्न; (समासांत में) से उत्पन्न; जन-संबंधी; किसी जाति या वंशसे संबंध रखनेवाला; जनतामें प्रचलित | पु० जन्म; जनक, पिता; साधारण जनः पुत्रः युद्ध |
जन्या - स्त्री० [सं०] माताकी सखी; वधूकी सहेली; प्रीति । जप- पु० [सं०] किसी मंत्र, स्तोत्र, ईश्वरके नाम आदिको धीमे स्वर से बार-बार दुहराना; किसी शब्द, नाम आदिको बार-बार मुँह से कहना । - तप-पु० पूजा-पाठ, व्रतउपवास । - माला - स्त्री० जप करनेकी माला । जपना - सं० क्रि० जप करना; यज्ञ करना । जपनी स्त्री० माला; गोमुखी । जपनीय - वि० [सं०] जप करने योग्य ।
जपा - * वि० जप करनेवाला । स्त्री० [सं०] अड़हुल |
जनु* - अ० मानों, जैसे ।
जनून - पु० [अ०] पागलपन, उन्माद; (ला० ) खन्त । जनूनी - वि० [अ०] पागल |
जनूबी - वि० [अ०] दक्खिनी । जनेऊ - पु० यज्ञोपवीत; यशोपवीत संस्कार । मु० का हाथ - तलवारका ऐसा वार जिससे विपक्षीका जनेवा
कट जाय ।
जनेत - स्त्री० बरात ।
जनेवा - पु० दे० 'जनेऊ '; 'जनेवा' ।
जनेवा - पु० धड़का वह भाग जिसपर जनेऊ रहता है । जनेश - पु० [सं०] राजा, नरेश । जनैया* - वि०, पु० जाननेवाला । जनोपयोगी (गिन् ) - वि० [सं०] लोकोपयोगी । - सेवास्त्री० (पब्लिक यूटिलिटी सर्विस) दे० 'लोकोपयोगी सेवा' । जनौ * - अ० मानों, जानो ।
जनौघ - पु० [सं०] मनुष्यों का मजमा, भीड़ । जन्नत - पु० [अ०] उद्यान, बाग; स्वर्ग, वैकुंठ, विहिश्त । जन्म (नू ) - पु० [सं०] गर्भसे बाहर आना; उत्पत्ति, पैदाइश; जीवन; जन्मलग्न । - कुंडली - स्त्री० वह चक्र जिसमें जन्मकालके ग्रहोंकी स्थिति बतायी गयी हो । - गत- वि० जन्मसे प्राप्त, पैदाइशी । - ग्रहण - पु० उत्पत्ति, जन्म लेना । - तिथि - स्त्री० जन्मकी तिथि, बरसगाँठ | - द, दाता (तृ) - वि० जन्म देनेवाला । पु० पिता । - दात्री - स्त्री० माता। -दिन, दिवस-पु० किसी के जन्म या पैदाइशका दिन, जन्मतिथि । -नक्षत्र - पु० वह नक्षत्र जिसमें किसीका जन्म हुआ हो । - नाम (न्) - पु० वह नाम जो जन्मके समय या जन्मके बारहवें दिन रखा जाय । - पत्र - पु०, पत्रिका - स्त्री० वह पत्र या कागज जिसमें किसीके जन्मकाल के ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, उनकी दशा, अंतर्दशा और उनके शुभाशुभ फल बताये
|
गये हों, जायचा । - प्रमाणक - पु० (बर्थ सटीफिकेट) वह प्रमाणपत्र जिसमें किसीकी जन्मतिथिका प्राधिकृत ब्योरा दिया गया हो । - भूमि - स्त्री० वह जगह - ग्राम, नगर, देश - जहाँ किसीका जन्म हुआ हो, जन्मस्थान । - राशि - स्त्री० वह राशि जिसमें किसीका जन्म हुआ हो । -सिद्ध. वि. जन्मतः प्राप्त, पैदाइशी । -स्थान- पु० जन्मभूमि । जन्मना - अ० क्रि०दे० 'जनमना' । अ० [सं०] जन्मसे,
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नाभिवक्ता-ज़बान
जन्मतः (जन्मना ब्राह्मण) ।
जन्मांतर - पु० [सं०] दूसरा जन्मः पिछला जन्म; अगला जन्म; परलोक । - वाद-पु० पुनर्जन्मवाद | जन्मांध - वि० [सं०] जन्मका अंधा, पैदाइशी अंधा । जन्माष्टमी - स्त्री० [सं०]भाद्र कृष्णाष्टमी, कृष्णकी जन्मतिथि ।
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- कुसुम - पु० अड़हुलका फूल ।
जपिया* - वि०, पु० दे० 'जपी' । जपी (पिन) - वि०, पु० [सं०] जप करनेवाला |
ज़फ़र (ल) - स्त्री० [अ०] सीटी; मुँह से निकाली जानेवाली सीटीकी आवाज ।
जब - अ० जिस समय, यदा । -कभी - अ० चाहे जब, किसी समय । - तब - अ० कभी-कभी, यदा-कदा ; जबड़ा - पु० मुँह में नीचे ऊपर की हड्डी जिसमें दाँत जड़े होते हैं, कल्ला । - तोड़- वि० जो मुँह तोड़ सके, बलवान् ; (शब्द) जिसका उच्चारण कठिन हो । जबर - वि० मजबूत, बलवान् । - दस्त - वि० दे० 'जबरदस्त' । ज़बर - वि० [फा०] ऊपरवाला; बलवान् ; बलमें अधिक । पु० अरबी-फारसी लिखावटमें हस्व अकारका चिह्न | अ० ऊपर । - दस्त - वि० बलवान् ; प्रबल पड़नेवाला; विजयी; भारी । - दस्ती - स्त्री० जुल्म; ज्यादती; धींगा-धींगी । जबरन्-अ० [अ०] दे० 'जन्' | जबरा - वि० जबरदस्त, बलवान् । ज़बर्दस्त - वि० दे० 'जबरदस्त' । ज़बर्दस्ती - वि० दे० 'ज़बरदस्ती' । जबह - पु० दे० 'ज़ब्ह' ।
जबहा - पु० हिम्मत, जीवट; [अ०] माथा, पेशानी । ज़ (जु)बान - स्त्री० [फा०] जीभ, रसना, वाणी, बोली; भाषा; वचन, बात । - गीर - वि० जासूस, भेदिया । -दराज़ - वि० बहुत बोलनेवाला; बोलने में धृष्ट, मुँहफट; बदजबान । - दराज़ी - स्त्री० वाचालता, धृष्टता; बदजबानी । -दाँ - वि० भाषा (विशेष ) का पंडित | - बंदी - स्त्री० किसी मुकदमेके गवाहोंका बयान लिख लिया जाना; खामोशी । मु० - खींचना - बुरी बातें कहने के कारण कड़ा दंड देना । - खुलना - बोलनेमें समर्थ होना, मुँहसे बात निकलना; बच्चेका बोलने
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ज़बानी-जमाना
२७२
लगना । -.खुश्क होना-बहुत प्यासा होना; बहुत बातें | जमक*-पु० दे० 'यमक' । करना । -खोलना-कुछ कहना, बोलना; उन या जमघट (टा)-पु० आदमियोंकी भीड़, जभाव, मजमा । शिकायत करना। -चलना-मुँहसे शब्दोंका जल्दी- जमघट्ट-पु० दे० 'जमघट' । जल्दी निकलना, तेजीसे बोलना। -चलाना-तेजीसे ज़मज़म-पु० [अ०] काबाके पासका एक कुआँ । बोलना; बदनबानो करना । -चलायेकी रोटी खाना- जमदग्नि-पु० [सं०] एकवैदिक ऋषि जो परशुरामके पिता थे। चापलूसीसे पेट पालना। -थामना-दे० 'ज़बान जमन-पु० दे० 'यवन' । पकड़ना' । -देना-वचन देना, वादा करना । जमना-स्त्री० दे० 'यमुना' । अ०क्रि० पतली चीजका गाढ़ी -पकड़ना-किसीको अपनी बात कहनेसे रोकना, या ठोस होना (दहा, पानी); किसी जगह देरतक बैठना; बोलने न देना; वचनमें दोष, गलती निकालना; अपनी जगह पर डटा, बना रहना, टिकना, दृढ़तासे स्थित टोकना । -पर आना-किसी बातका मुँहसे निकालना, होना; जड़ मजबूत होना, ठीक तौरसे चलने लगना नीचे कहा जाना । -पर मुहर होना-जबान बंद होना, बोल बैठना (तल-छट); जमा, इकद्रा होना; दिलमें बैठना; न सकना। -पर लाना-कहना, बयान करना। -पर सुंदर, सफल, यथेष्ट रसोत्पादक होना (गाना, खेल, होना-हर वक्त याद रहना; कंठस्थ होना; चर्चाका विषय व्याख्यान); चल निकलना ( दुकान इ०); ठीक आना, होना (यह बात आज बहुतोंकी जबानपर है)।-पलटना बैठना (टोपी, पगड़ी इ०); (घोड़ेका) ठुमुककर चलना -बात कहकर मुकरना, वचन भंग करना । -बंद होना | उगना (बीज, बाल)। -बोल न सकना, चुप रहनेको विवश होना; बहसमें हार | जमनिका-स्त्री० दे० 'जवनिका'; * काई । जाना। -बदलना-दे० 'जबान पलटना' । -बिगढ़ना जमवट-स्त्री० लकड़ीका गोला चकर जिसके ऊपर पके -अपशब्द कहने, गालियाँ बकनेकी आदत पड़ना; चटोर- कुएँकी जोड़ाई होती है। पनकी आदत लगाना !-में काँटे पढ़ना-जबानका सूख-जमा-स्त्री० [अ०] समूह, जमात; जोड़ (ग०); बहुवचन कर खुरदरी हो जाना। -में: वुजली होना-लड़ने, (व्या०); पूँजी, धन; वही-खातेका वह भाग या भद जिसमें उलझनेको जी चाहना । -में(पर)ताला लगना-चुप प्राप्ति या आमदनी लिखी जाय; लगान। -खर्च-स्त्री० रहना, मौनावलंबन करना । -में लगाम न होना- आमदनी और खर्च आमदनी-खर्चका हिसाब, ब्योरा । बोलने में उचित-अनुचितका विचार न होना, मुँहफट हो -जथा-स्त्री० पूँजी,धन-संपत्ति। -दार-पु० सिपाहियों जाना । (मुँहमें)-रखना-बोलनेमें, उत्तर देने में समर्थ आदिका मुखिया पुलिसका हेडकांस्टेबल; भंगियोंके कामकी होना। -रुकना-बोलनेमें अटकना, चुप होना । निगरानी करनेवाला कर्मचारी। -पूँजी-स्त्री० दे० 'जमा-रोकना-बोलना बंद करना, चुप हो रहना; जबान जथा' । -बंदी-स्त्री० लगानका हिसाब; पटवारीकी वह पकड़ना ।-संभालना-बोलनेमें उचित-अनुचितका विचार बही जिसमें गाँवके हर काश्तकारके लगानका हिसाब और रखना, अनुचित शब्द मुँहसे न निकालना। -से निक- ब्योरा लिखा होता है; गाँव, महाल या हिस्सेका कुल लना-उच्चारित होना, कहा जाना ।-हारना-वचनबद्ध लगान।-मार-वि० दूसरेका पावनाहजम कर जानेवाला, होना, प्रतिज्ञा करना। -हिलाना-बोलनेकी कोशिश बेईमान । मु०-खर्च करना-हिसाब बराबर करनेके करना; बोलना।
लिए किसी रकमको जमामें लिखकर फिर खर्चमें लिखना। जबानी-वि० [फा०] जो केवल जबानसे कहा गया हो। -मारना-लगान, ऋण या अमानतके रूपमें दूसरेका मौखिक अलिखित (इजहार, सवाल, संदेशा इ०); ऊपरी, पावना हजम कर जाना, दूसरेका पैसा मार लेना। दिखाऊ । -जमाखर्च-पु. वह बात जो कही जाय, पर | जमाअत-स्त्री० [अ०] समुदाय, जत्था; भीड़, मजमा दल; की न जाय, दिखाऊ, मौखिक काररवाई।
कक्षा, श्रेणी; नमाजियोंकी पंक्ति । ज़बून-वि० [फा०] खराब, निकृष्ट; निर्बल।
जमाअती-वि० [अ०] सामुदायिक । जब्त-पु० [अ०] प्रबंध; निगरानी; सहन; धैर्य-धारण; जमाई-पु० दामाद । स्त्री० जमानेकी क्रिया या मजदूरी । राज्य द्वारा किसी वस्तु, संपत्तिका हरण (करना, होना)। | जमात-स्त्री० दे० 'जमाअत'। -शुदा-वि० जब्त किया हुआ।
जमानत-स्त्री० [अ०] जिम्मेदारी; किसीके कोई काम करनेजब्ती-स्त्री० [अ०) किसी चीजका जब्त किया जाना,कुर्की। (समयपर हाजिर होने, ऋण चुकाने, प्रतिज्ञाका पालन जब-पु० [अ०] दबाव, मजबूरी; जबरदस्ती; सख्ती जुल्म । करने आदि)की जिम्मेदारी जो दूसरा आदमी अपने ऊपर जबन-अ० [अ०] जबरदस्तीसे, दबाव देकर, बलात् । ले किसी बातके किये जाने के इतमीनानके लिए जमा की जब्ह-पु० [अ०] गला काटकर जान लेनेका कार्य । हुई रकम, जायदाद; इस तरहका इतमीनान दिलानेवाली जम-पु० दे० 'यम' ।-कात, कातर*-स्त्री० एक तरह- चीज, गारंटी। -दार-पु० जमानत करनेवाला, जामिन। का खाँडा, यमका खाँड़ा। पु० भँवर । -घंट-पु० दे० -नामा-पु० जामिन होनेकी लिखित स्वीकृति । 'यमघट' । -ज-वि० जुड़वाँ (बच्चे )।-डाद-स्त्री० एक जमानती-वि० [अ०] जिसमें या जिसकी जमानत हो झुकी नोकवाली कटार । -दिसा*-स्त्री० दक्षिण दिशा।। सके, जमानतके काबिल (-वारंट)। -दत-पु० दे० 'यमदूत' । -धर-पु० दे० 'जमडाद'। जमाना-स० क्रि० पतली चीजको गाढ़ी या ठोस बनाना -बार* -पु० दे० 'यमद्वार' ।-राज-पु० दे० 'यमराज'।। (दही, बरफ आदि); मजबूतीसे बैठाना; दिलमें बैठाना; मु०-हो जाना-न टलना, पीछा न छोड़ना।
सजाकर रखना, चुनाई करना; जमनेका कारण, हेतु
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ज़माना-जया होना; जड़ मजबूत करना; ठीक तौरसे चलने लायक | जमुना-स्त्री० यमुना नदी । बनाना (कारबार, स्कूल आदि); बैठाना, स्थापित करना जमुनियाँ -वि० जामुनके रंगका । पु० जामुनका रंग। (असर, धाक, रोब आदि); इकट्ठा करना; खाना, उदरस्थ | जमुहाना*-अ० क्रि० जम्हाई लेना। करना (भाँगका गोला); मारना, रसीद करना (थप्पड़, जमूरक*-पु० पुराने समयकी एक तोप जो घोड़े या घुसा, लाठी आदि); मश्क करना, बैठाना (हाथ); डालना, ऊँटपर चलती थी। उगाना, उपजाना।
जमूरा-पु० दे० 'जमूरक' । ज़माना-पु० [अ०] काल; युग; अरसा, अवधि; बहुत जमैयत-स्त्री० [अ०] इकट्ठा होना; समुदाय; सभा। समय राज्यकाल; कार्यकाल; दुनिया, संसार; क्रियाका | जमोगना -स० क्रि० हिसाबकी जाँच कराना; मूल धनमें काला सौभाग्यकाल । मु०-उलटना-समयका यकबारगी सूद जोड़ना; अपनी कोई जिम्मेदारी दूसरेको सौंपना बदल जाना, नया युग उपस्थित हो जाना। -देखे और उससे इसकी हामी भरा लेना; किसीकी बातकी पुष्टि होना-अनुभवी होना । -पलटना,-बदलना-अच्छे या तसदीक करना । दिनसे बुरे या बुरेसे अच्छे दिन आना। -(ने)की जमोगवाना -सक्रि० जमोगनेका काम दूसरेसे कराना। गर्दिश-समयका उलट-फेर, दिनका फेर ।
जम्हाई-स्त्री० ऊँघ, ऊब, आलस्य आदिसे होनेवाली जमाल-पु० [अ०] सुंदरता, शोभा; ईश्वरका माधुर्य, ऐश्वर्य । शरीरकी एक सहज क्रिया जिसमें मुँह पूरा खुल जाता जमालगोटा-पु. एक विरेचक बीज ।
और साँस जोरसे अंदर खिंचकर फिर धीरे-धीरे बाहर जमाव-पु० जमनेका भाव; भीड़, मजमा ।
निकलती है, उबासी। जमावट-स्त्री० जमनेका भाव ।
जम्हाना-अ० क्रि० जम्हाई लेना। जमावड़ा-पु. जमाव ।
जयंत-पु० [सं०] इंद्रका पुत्र; शिव; विष्णु; चंद्रमा; जमी*-वि० संयमी, इंद्रियोंका निग्रह करनेवाला । कात्तिकेय । वि. विजयी; बहुरुपिया । ज़मीन-स्त्री० [फा०] पृथ्वी (ग्रह); धरती, भूमि, धरतीका | जयंती-स्त्री० [सं०] पताका; इंद्रकी कन्या, जयंतकी बहन स्थलभाग; जमीनका टुकड़ा, खेत; यह लोक; मिट्री दुर्गा; पार्वती; भाद्र-कृष्णा अष्टमीको आधी रातको रोहिणी कागज, कपड़े आदिकी सादी या अस्तर की हुई सतह
नक्षत्र होनेसे पड़नेवाला एक योग (कृष्णका जन्म इसी जिसपर चित्रकारी, नक्काशी या छपाई की जाय; वह तेल योगमें हुआ था); किसी व्यक्ति या संस्थाकी जन्मतिथिजिसपर कोई इत्र तैयार किया जाय, इत्रका मादा का उत्सव । नदी, तालाब आदिका तलभाग। (जमी)कंद-पु० । जय-स्त्री० [सं०] शत्रु या विपक्षीको हराना, पछाड़ना, सूरन । -दार-पु० जमीनका मालिक । -दारी-स्त्री० जीत; वशमें करना, निग्रह (इंद्रियजय); दूसरोंसे बढ़ जमींदारका हका वह जमीन जिसपर किसी खास जाना। पु० विष्णुके दो द्वारपालों( जय, विजय )मेंसे आदमीको जमींदारका हक हासिल हो; जमींदारका काम, एका युधिष्ठिरका अज्ञातवासके समयका नाम । -कारपेशा। -दोज़-वि० जमीन में धंसा हुआ, इस तरह
पु० जयध्वनि । -गोपाल-पु० हिंदुओंमें प्रचलित एक बना हुआ कि जमीनके ऊपर न उभरा हो (किला, | प्रकारका अभिवादन। -घोष-पु० जयध्वनि । -जयमकान); जो जमीनके बराबर कर दिया गया हो, पटपर । कार-पु० जयघोष; जयप्राप्तिका आशीर्वाद । -जीव*-बोसी-स्त्री० जमीन चूमना । मु०-आसमान पु० एक तरहका प्राचीन अभिवादन । -देव-पु० गीतएक करना-अत्यधिक प्रयास या उद्योग करना; हलचल | गोविंदके रचयिता प्रसिद्ध वंगीय कवि । -ध्वनि-स्त्री० मचाना; दुनिया छान मारना। -(व)आसमानका जयघोष । -पत-पु० दे० 'जयपत्र'। -पत्र-पु० फ़क़-बहुत अधिक अंतर, आकाश-पातालका अंतर । पराजित राजा आदिका वह लेख जिसमें वह अपनी परा-(व)आसमानके कुलाब मिलाना-बहुत डींग मारना, | जय स्वीकार करे, मुकदमेमें जीतनेवाले पक्षको मिलनेअत्युक्ति करना; किसी कामके लिए बहुत प्रयत्न करना ।। वाला जयसूचक पत्र, डिगरी। -पराजय-स्त्री० जीत-का पाँव तलेसे खिसक या निकल जाना-भय या हार । -पाल-पु. जमालगोटा, विष्णु । -माल-स्त्री० घबराहटसे खड़ा न रह सकना, बदहवास हो जाना। [हिं०] दे० 'जयमाला'। -माला-स्त्री० विजेताको -का पैबंद होना-दफन होना, मरना। -चूमना- पहनायी जानेवाली जयसूचक माला; वह माला जो इस तरह गिरना कि मुँह-नाक जमीनसे लग जाय; स्वयंवरा कन्या मनोनीत वरके गले में डाले (हिं०)। जमीनसे माथा टेककर (राजा, बादशाह आदिको) प्रणाम -लक्ष्मी-स्त्री० जयश्री। -श्री-स्त्री० विजयकी अधिकरना, जमीबोसी । -दिखाना-पटकना, गिराना । ष्ठात्री देवी विजय; एक रागिनी। -स्तंभ-पु० देश-नापना-अधिक यात्रा करना; बेकार फिरते रहना। विजयके स्मारक रूपमें संस्थापित स्तंम । मु०-मनाना-पकड़ना-जमकर बैठ जाना; (कुश्ती में) चित न होना। (किसीकी) विजय या कल्याणकी कामना करना। -पर आना-गिरना, (कुश्तीमें) नीचे आना । -पर जयद्रथ-पु० [सं०] सिंधु-सौवीरका राजा (दुर्योधनका पाँव न पड़ना या न रखना-बहुत गर्व होना, बहुत बहनोई) जिसने चक्रव्यूहमें फँसे अभिमन्युका वध किया। इतराना । -में गड़ जाना-अत्यंत लज्जित होना, जयना*-स० क्रि० विजय प्राप्त करना । लज्जासे सिर न उठा सकना। ।
जया-स्त्री० [सं०] दुर्गा; दुर्गाकी एक सहचरी; पताका जमुकना-अ० क्रि० पास आना, होना।
| हरी दूब शमी; जैत; हड़; भाग अड़हुलका फूल । * वि०
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२० जजर ।
जयिष्णु-जल
२७४ स्त्री० जय दिलानेवाली ।
ज़रा-वि० [अ०] थोड़ा, तनिक । अ० तनिक, थोड़ी देरके जयिष्णु-वि० [सं०] जयशील; सदा जीतनेवाला । लिए। जयी (यिन)-वि० [सं०] जीतनेवाला, जयशील । । जराउ*-वि० दे० 'जड़ाऊ'। जयोल्लास-पु० [सं०] विजयका उल्लास, जीतकी खुशी।। जरातुर-वि० [सं०] जराग्रस्त, बूढ़ा । जर-वि० [सं०] वृद्ध; क्षीण । पु० जरा विनाश; * जल; जराना*-स० कि० जलाना; ईर्ष्या उत्पन्न करना । ज्वर; दे० 'जर'। * स्त्री० जड़, हैसियत, औकात । ज़राफत-स्त्री० [अ०] हँसोड़पन; हँसी-मजाक ।-पसंद-वारा*-वि० पैसेवाला, धनी।
वि० परिहास-प्रिय, हँसोड़ । ज़र-पु० [फा०] सोना; धन, दौलत । -अस्ल-पु० मूल जराफ़ा-पु० [अ०] दे० 'जिराफा' । धन । -कश-पु० कलाबत्तके तार खींचनेवाला। वि० जराय, जराव*-वि० जड़ाऊ । पु० पच्चीकारी। (कपड़ा) जिसपर जरी या कलाबत्तका काम हो।-कस,- जरायम-पेशा-वि० अपराध करनेवाला, जुर्म करनेवाला । कसी*-वि० दे० 'जरकश' । -खरीद-वि० रुपया जरायु-पु० [सं०] वह झिल्ली जिसमें लिपटा हुआ बच्चा देकर खरीदा हुआ, क्रीत (गुलाम, जमीन); जिसपर पूर्ण माँके गर्भसे बाहर आता है, खेड़ी; गर्भाशय । -ज-पु० स्वामित्व प्राप्त हो। -खेज़-वि० उपजाऊ (जमीन)। वह प्राणी जो खेड़ीमें लिपटा हुआ पैदा हो या जिसका -तार-वि० जिसपर जरीका काम हो। पु० जरी । जन्म गर्भाशयमें हो, पिंडज ।-मूल-पु० (प्लेसेंटा) जरायु-तारी-वि० दे० 'जरतार' । स्त्री० जरीका काम ।
का वह ऊपरवाला हिस्सा जो गर्भाशयसे चिपटा रहता है -दार-वि० धनी, मालदार । -दोज़ी-स्त्री० कलाबत्त । और जो बच्चेका जन्म हो जानेके बाद बाहर निकलता है, या सलमे-सितारेका काम । -बाफ्री-वि० कलाबत्तके
पुरइन, अपरा। कामका । स्त्री० जरदोजी।
जरिया*-पु० दे० 'जड़िया' । जरई-स्त्री० धान, जौ आदिका भिगोकर या मिट्टी में गाड़
ज़रिया-पु० दे० 'ज़रीया' । कर उगाया हुआ अखुआ; धानके अॅखुआये हुए बीज ।। जरी*-स्त्री० दे० 'जड़ी' । जरकटी-पु० एक शिकारी पक्षी।
ज़री-स्त्री० [फा०] चाँदीका तार जिसपर सोनेका पानी जरछार-वि• जो जलकर राख हो गया हो।
चढ़ाया गया हो; ताश नामका कपड़ा। -का कामजरजर-वि० दे० 'जर्जर'।
कलाबत्तू या सलमे-सितारेका काम । जरठ-वि० [सं०] कठोर, ककेश; बूढ़ा; जीर्ण; झुका हुआ। जरीब-स्त्री० [अ०] लाठी, डंडा जमीन नापनेकी जंजीर जरठाई*-स्त्री० बुढ़ापा।
जो ५५ या ६० गजकी होती है। जरतुश्त-पु. प्राचीन पारसी धर्मके प्रवर्तक और जंद- जरीया-पु० [अ०] लगाव, वसीला, साधन । अवेस्ताके रचयिता।
| ज़रूर-वि० [अ०] आवश्यक, अवश्य-करणीय, जरूरी। जरत्-वि० [सं०] बूढ़ा; जीर्ण । पु० बूढ़ा आदमी ।-कारु- अ० अवश्य, बेशक । -जरूर-अ० अवश्यमेव । पु० एक मुनि जिन्होंने वासुकि नागकी बहन मनसा देवीसे जरूरत-स्त्री० [अ०] आवश्यकता, हाजत । ब्याह किया था।
ज़रूरतन्-अ० [अ०] आवश्यकतावश । जरद-वि० दे० 'ज़र्द' ।
ज़रूरियात-स्त्री० [अ०] किसी वस्तु या कार्यके लिए आव. ज़रदा-पु० [फा०] केसर देकर पकाये हुए मीठे चावल; श्यक वस्तुएँ, क्रियाएँ ।मु०-से फ़ारिग़ होना-शौचादिपानके साथ खानेके लिए विशेष विधिसे बनायी हुई सुगं- - से निवृत्त होना। धित सरती; पीले रंगका घोड़ा; पीली आँखोंवाला कबूतर । जरूरी-वि० [अ० आवश्यक, जिसके बिना काम न चले। -फरोश-पु० जरदा बेचनेवाला ।
जरौट*-वि० जड़ाऊ । जरदी-स्त्री० दे० 'ज़दी।
ज़र्क-बर्क-वि० [अ०] चमक-दमकवाला, भड़कदार। स्त्री० जरन*-स्त्री० दे० 'जलन'।
चमक-दमक, ठाट-बाट । जरना*-अ० क्रि० दे० 'जलना' । सक्रि० दे० 'जड़ना' ।।
| जर्जर-वि० [सं०] जीर्ण; टूटा-फूटा क्षत; पीड़ित ।
-तिक जी जरनि*-स्त्री० दे० 'जलन'।
जरित-वि० [सं०] जो जीर्ण, जर्जर होगया हो; अभिभूत। जरब-स्त्री० [अ०] चोट; मार, आघात; थाप; ठप्पा; गुणाजर्द-वि० [फा०] पीला। (ग०); तोपका दगना, बाढ़ । -ख़ाना-पु० टकसाल । जर्दा-पु० दे० 'जरदा'। जरबीला-वि० भड़कीला, चमक-दमकवाला। ज़र्दी-स्त्री० [फा०] पीलापन । जरमन-वि० [अं०] जरमनीका। पु० जरमनीका निवासी। जर्रा-पु० [अ०] अण, वह कण जो सूर्य-प्रकाशमें उड़ता स्त्री० जरमनीकी भाषा ।-सिलवर-पु० जस्ते, ताँबे और दिखाई देता है, त्रसरेणु । -मर्रा-अ० तिल-तिल; कणनिकलकी मिलावटसे बनी एक धातु ।।
कण । -भर-वि० तिलभर, तनिकसा । जरा-स्त्री० [सं०] बुढ़ापा; बुढ़ापेसे पैदा हुई कमजोरी। जर्राह-पु० [अ०] चीर-फाड़, शल्यक्रिया करनेवाला । -अस्त-वि० बूढ़ा । -जीर्ण-वि० बुढ़ापेसे जिसके अंग जर्राही-स्त्री० [अ०] चीर-फाड़का काम । और इंद्रियाँ शिथिल हो गयी हो। -संध,-सुत-पु० जलंधर-पु० [सं०] एक असुर; एक ऋषि दे० जलोदर' । मगधका राजा जो कंसका ससुर था और युधिष्ठिरके राज-जल-पु० [सं०] पानी खस; पूर्वाषाढा नक्षत्र ।-कंटकसूय यज्ञके समय भीमके हाथों मारा गया ।
| पु० सिंघाड़ा; घड़ियाल । -कंड-पु० बराबर भीगा
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जल रहनेके कारण पाँवोंमें होनेवाली खुजली। -कपि-पु० स्त्री० [हिं०] (ड्रेनेज़ स्कीम)दे० 'जलोत्सारणयोजना'। राँस, शिशुमार। -कपोत-पु० पानीके किनारे रहने- -निधि-पु० समुद्रः चारकी संख्या । -निर्गमवाली एक चिड़िया, जलपारावत । -करंक-पु० नारि- पु० पानीका निकास, जलपथ । -पक्षी(क्षिन)-पु० यल; कमल; जललता; बादल; शंख । -कर-पु० पानी- पानीके किनारे रहनेवाला, मछलियाँ आदि खानेवाला का कर; जलसे मिलनेवाले पदार्थो(मछली,सिंघाड़े आदि)पर |
पक्षी । -पटल-पु० बादल । -पति-पु० समुद्र वरुण; लगनेवाला महमूल । -कल-स्त्री० [हिं०] पानीका नल,
पूर्वापाढा नक्षत्र । -पथ-पु० जलमार्गः नहर आदि; पाइप ।-कलविभाग-पु०म्युनिसिपलिटीका वह विभाग पानीका रास्ता । -पद्धति-स्त्री० नाला। -पाटल*जो नगरका जलप्रबंध करे (वाटरवस)। -कष्ट-पु० , पु० काजल । -पात्र-पु० पानी पीने या रखनेका बरपानीकी कमी, जलाभाव । -कांक्ष,-कांक्षी(क्षिन्)
तन ।-पान-पु० कलेवा, नाश्ता ।-पान गृह-पु० वह पु० हाथी। -काक-पु० जलकौआ । -कुंतल-पु०
स्थान जहाँ जलपानका सामान (चाय, मिठाई आदि) सिवार । -कुंभी-स्त्री० दे० 'कुंभी'। -कुक्कुट-पु० मिले; जहाँ जलपान किया जा सके (रेस्तराँ)। -पारामुरगाबी। -केलि-स्त्री० जलक्रीडा । -कौआ-पु०
वत-पु० जलकपोत। -पुष्प-पु० पानीमें होनेवाला [हिं०] एक जलपक्षी जिसकी सारी देह काली और गर- फूल (कमल, कुई इ०)। -प्रणाली-स्त्री० (वाटर चैनल) दन सफेद होती है। -क्रिया-स्त्री० तर्पण ! -क्रीडा
दो समुद्रोंके बीचमें पड़नेवाला लंबासा जलमार्ग जो जलस्त्री० नदी, तालाब आदिमें स्त्रियोंका परस्पर या नायक
डमरुमध्यसे अधिक चौड़ा हो। -प्रदान-पु० प्रेतादिके नायिकाका एक दूसरेपर पानीके छीटे फेंकना, जलकेलि;
लिए जलदान, तर्पण । -प्रपा-स्त्री० पौसरा, प्याऊ । क्रीडाके लिए पानीमें तैरना आदि । -खरी-पु० गाँव
-प्रपात-पु० झरना; किसी नदी-नालेका पहाड़के ऊपरसे की जमीनका जलभाग, ताल-तालाब आदि । -घड़ी- नीचे गिरना। -प्रलय-पु. संपूर्ण सृष्टिका जलमग्न हो स्त्री० [हिं०] कालशानका एक साधन, पानीपर तैरता
जाना । -प्रवाह-पु० पानीका बहाव; पानीकी धारा हुआ कटोरा जिसके पेंदे में छेद होता है और जो ठीक एक
शवको नदी आदिमें बहा देना । -प्रस्फोट-पु० घड़ीपर पानीके बोझसे डूब जाता है। -चर-पु० जल में (डेप्थचार्ज) पानीमें फूटनेवाला प्रस्फोट (बम) जो किसी. रहनेवाला प्राणी, जलजंतु । -चरी-स्त्री० मछली।
पनडुब्बीपर या उसके निकट गिराया जाता है। प्रांगण-चादर-स्त्री० [हिं०] पानीकी चादर, ऊँचाईसे गिरने- पु० (टेरिटोरियल वाटर्स) दे० 'जलीय क्षेत्र'। -प्रांत-पु० वाली पानीकी काफी चौड़ी धार । -चारी(रिन)- नदी, झील आदिके पासकी जमीन । -प्राय-पु० जलपु० जलचर, मछली। -जंतु-पु० जल में रहनेवाला | बहुल प्रदेश । वि० जहाँ जल अधिक हो। -प्रिय-पु० जीव, जलचर। -जंतुका-स्त्री० जोक। -ज-पु० चातक; मछली ।-प्रेत-पु० वह प्रेत जो (किसीके) जलमें कमल; शंख, मछली; सिवार; जलबेत; समुद्रलवण; चंद्रमा डूबकर मरनेके कारण प्रेतयोनिको प्राप्त करे । -पावनकुचला । वि० जलमें उत्पन्न । -जन-पु० (हाइड्रोजन) पु० जलप्रलय; बाढ़ । -फल-पु० सिंघाड़ा ।-बिब-पु० एक गंधहीन, वर्णहीन, अदृश्य गैस (वायव्य) जिससे
बुलबुला। -बिडाल-पु० ऊदबिलाव । -बुबुद-पु० पानीका निर्माण होता है (पानीमें इसका दो तिहाई अंश बुलबुला । -भँवरा-पु० [हिं०] पानीपर तैरनेवाला एक विद्यमान रहता है), उदजन। -जन्म(न)-पु० कीड़ा, भौतुआ। -भाजन-पु० जलपात्र । -भीतिकमल । -जात-वि० जलमें उत्पन्न । पु० कमल । | स्त्री० जलातंक रोग। -भृत्-पु० बादल; पानी रखनेका -जीवी(विन्)-पु० मछुआ। -डमरूमध्य-पु० दो बरतन, घड़ा आदि। -मन-वि० पानीमें डूबा हुआ। समुद्रों, खाड़ियों आदिको जोड़नेवाली जल-प्रणाली।
-मातंग-पु० जलहस्ती ।-मानुष-पु० एक कल्पित(?) -तरंग-पु० एक बाजा जिसमें पानीसे भरी कटोरियोंपर प्राणी जिसकी नाभिसे नीचेकी देह मछलीकी और ऊपरकी छड़ीसे आघात कर ध्वनि उत्पन्न की जाती है। स्त्री० मनुष्यकी मानी जाती है, 'परीरू'।-मार्ग-पु० जलपथ, पानीकी लहर । -त्रास-पु० जलातंक रोग। -थंभ- जलप्रणाली।-मार्जार-पु० ऊदबिलाव ।-मुक(च)पु० [हिं०] जलस्तंभन । -थल-पु० [हि०] जल और
पु० बादल; एक प्रकारका कपूर । -यंत्र-पु० फुहारा; स्थल । -द-पु० बादल; कपूर, मोथा । वि० जल देने
कुएँ आदिसे पानी निकालनेका यंत्र (रहट आदि); जलवाला ।-द काल-पु० वर्षाकाल । -दक्षय-पु० शर- घड़ी। -यंत्र गृह,-यंत्र मंदिर-पु० वह मकान जिसमें त्काल । -दस्यु-पु० समुद्री डाकू। -दान-पु० प्रेत- या जिसके आस-पास फुहारे हों; वह मकान जिसके चारों कर्मके अंतर्गत मृत व्यक्तिको तिलांजलि देना, तर्पण । ओर पानी हो। -यात्रा-स्त्री० जलमार्गसे नाव आदिके -दुर्ग-पु० नदी, झील आदिसे घिरा हुआ किला, जल- द्वारा यात्रा; तीर्थजल लानेके लिए यजमानकी सविधि वेष्टित दुर्ग। -देव-पु० पूर्वापाढा नक्षत्र, वरुण । यात्रा । -यान-पु० जहाज, नाव ।-युद्ध-पु० पानीके -देवता-पु० वरुण । -धर-पु० वादल; समुद्र मोथा; ऊपर होनेबाला युद्ध, जहाजी लड़ाई ।-रंग-पु० (वाटरतिनिशका वृक्ष ।-धर माला-स्त्री० मेघपंक्ति एक हंद । कलर) दे० 'जलीय रंग'।-राक्षसी-स्त्री० लवण-समुद्र में -धरी-स्त्री० जलहरी । -धार*,-धारा-स्त्री० जलका | रहनेवाली सिहिका नामकी राक्षसी । -राशि-स्त्री. प्रवाह 1-धारी*-पु० बादल । -धि-पु०समुद्रः चारकी पानीका बहुत बड़ा ढेर, स्थानविशेषपर संचित अत्यधिक संख्या। -धिजा-स्त्री० लक्ष्मी। -धेनु-स्त्री० दानके जल । पु० समुद्र। -रुह-पु० कमल । -वायस-पु० लिए पानीके घड़े में कल्पित गाय। -निकास-योजना- कौडिल्ला नामकी चिड़िया। -वाह-पु० बादल; जल
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जलजला-जलोत्सारणयोजना
वाहक I -वाहक-पु० पानी ढोनेवाला ।-वेत(स)- तृप्तिके लिए किया जानेवाला जलदान, तर्पण । पु० जलबेत । -व्याल-पु० पानी में रहनेवाला साँप, जलाक*-स्त्री० लू, पेटकी ज्वाला। डेडहा। शयन,-शायी (यिन्)-पु० विष्णु; नारायण । जलाका-स्त्री० [सं०] जोंक; * दे० 'जलाक' । वि० पानीपर सोनेवाला । -शूकर-पु० घड़ियाल । जलाजल-पु० गोट आदिकी झालर । वि० जलमय । -संस्कार-पु० स्नान; शवका जलप्रवाह । -समाधि- जलातंक-पु० [सं०] पागल कुत्ते, पागल स्यार आदिके स्त्री० जल में डूबकर प्राणत्याग, नदी, समुद्र आदिमें किसी काटे हुएको होनेवाला एक तरहका उन्माद रोग जिसमें वह चीजका डूबना या डुबाया जाना। -सर्पिणी-स्त्री० पानी देखकर डरता है (हाइड्रोफोबिया)। जोंक । -सिक्त-वि० जलसे सींचा हुआ, तर । -सुत- जलाधिप-पु० [सं०] वरुण; वह ग्रह जो संवत्सरविशेषमें पु० कमल; मोती ।-सेक,-सेचन-पु० पानी छिड़कना; जलका स्वामी हो। सींचना, तर करना ।-सेना-स्त्री० जंगी जहाजोंका बेड़ा; जलाना-सक्रि० जलनेका कारण होना, किसी चीजको जंगी जहाजोंपरसे जल में लड़नेवाली सेना, नौसेना। आग पकड़ाना, बालना, आग लगाना; गरमी या आँच -सेनापति-पु० जलसेनाका सबसे बड़ा अफसर,नौसेना- पहुँचाकर सुखाना; झुलसाना; सताना, व्यथित, संतप्त ध्यक्ष (एडमिरल) | -स्तंभ-पु० जलस्तंभनजलस्तंभन करना। मु० जला-जलाकर मारना-बहुत सताना, करनेवाला मंत्र; समुद्र, झील आदिमें बादलोंका खंभेके घुला घुलाकर मारना । आकार में झुक आना। -स्तंभन-पु० मंत्रबलसे पानीको जलापा-पु. डाहकी जलन । बाँध देना, उसकी गति अवरुद्ध कर देना। -स्थल-पु० जलाभ्यंतरवाहिनी नौका-स्त्री० [सं०] (सबमैर न) एक जल और स्थल, तरी और खुश्की । -स्रोत-पु० पानीका तरहका रणपोत जो पानीकी सतह के नीचे डुबकी लगाकर सोता; जलप्रवाह । -हर*-वि० जलमय । पु० जलाशय भी अपना काम जारी रख सके और जो टारपीडो-गोलों, -'वे जलहर, हम मीन बापुरी'-सू०। -हरण-पु० तोपो आदिसे सजित हो, पनडुब्बी, डुबकनी। पानी ढोना; एक मात्रावृत्त । -हरी-स्त्री० [हिं०] शिव- | जलायुका-स्त्री० [सं०] जोंक। 'लंग स्थापित करनेका अर्धा; गर्मीके दिनोंमें शिवलिगके | जलार्क-पु० [सं०] जलमें प्रतिबिंबित सूर्य । ऊपर लटकाया जानेवाला (जलपूर्ण) घड़ा जिसके पेंदे में एक जलार्णव-पु० [सं०] जलसमुद्रा वर्षाकाल) छेद होता है। -हस्ती (स्तिन)-पु०सीलकी जातिका जलार्द्र-वि० [सं०] पानीसे भीगा हुआ, गीला । एक स्तनपायी जलजंतु जिसकी शकल हाथीसे थोड़ी-बहुंत ! जलाल-पु० [अ०] तेज; महत्ता, गौरव रोब; ताकत । मिलती है। सिंधुघोटक । मु०-थल एक होना-चारों जलालुका, जलालोका-स्त्री० [सं०] जोंक ।
ओर पानी ही पानी दिखाई देना, घोर वृष्टि होना। जलावतन-पु० [अ०] निर्वासन, देसनिकाला। जलजला-पु० [अ०] भूकंप, भूडोल ।
जलावन-पु० जलानेके काममें आनेवाली चीजें, ईधन । जलदागम-पु० [सं०] वर्षाकाल ।
जलावर्त्त-पु० [सं०] भंवर । जलन-स्त्री० जलनेकी पीडा, दाह, द्वेष, मनस्ताप । जलाशय-पु० [सं०] झील, तालाब, जलाधार; मछली; जलना-अ० क्रि०किसी चीजकाआग पकड़ना,अग्निसंयोग- समुद्र खस, सिंघाड़ा । वि० जल में रहनेवाला; मूर्ख। से ज्योति या ज्वालाका रूप प्राप्त करना, बलना, धधकना; जलाहल-वि० जलमय । भस्म होना; दग्ध होना, झुलसना; सूखना; ईया-द्वष जलीय क्षेत्र-पु० [सं०] (टेरिटोरियल वाटस) किसी देशक
ना, संतप्त होना । म०-जलकर, जल-भन- किनारेके आस-पासका समुद्र जिसपर उसकी सत्ता हो। कर कबाव, कोयला, खाक या राख होना-बहुत ऋद्ध जलीय रंग-पु० [सं०] (वाटर कलर) पानी मिलाकर होना, आग-बबूला होना । जल भुनना-जलना, कुढ़ना। तैयार किया गया रंग। जल मरना-डाहसे बुरी तरह कुढ़ना, जलना; जलकर | जलील-वि० [अ०] अपमानित; शर्मिदा। मर जाना, आत्मघात करना। जलती आगमें कृदना- | जलका, जलूका-स्त्री० [सं०] दे० 'जलौका' । जान-बूझकर विपतमें फंसानेवाला काम करना। जलती जलूस-पु० दे० 'जुलूस'। आगमें घी (तेल) डालना-झगड़ा बढ़ाना, ऐसी बात ! जलेंद्र-पु० [सं०] वरुण; शिव; समुद्र । करना जिससे क्रुद्धका क्रोध और बढ़ जाय । जला-बला, | जलेबा-पु. बड़ी जलेबी। -भुना-क्रोधमें उबलता हुआ, बहुत ऋद्ध । जली-कटी जलेबी-स्त्री० कुंडली; कुंडलीके आकारकी एक मिठाई एक -गुस्से या जलनसे भरी हुई बातें, तीखे व्यंग्य (सुनाना)। पौधा; एक आतिशबाजी। जलेपर नमक छिड़कना-जलेको जलाना; दुखियाको और जलेश, जलेश्वर-पु० [सं०] वरुण; समुद्र । दुःख देना। जले फफोले फोड़ना-भड़ास निकालना। जलेशय-पु० [सं०] जलशायी, विष्णु; मत्स्य । जलपना*-अ० कि० डीग मारना । स० कि० डींग मारते जलोढ भूमि-स्त्री० [सं०] (एल्यूवियल सॉइल) बाढ़ हुए कहना; पुनः पुनः कहना । स्त्री० डीग; व्यर्थकी बात। आदिके द्वारा वहन कर लायी गयी भूमि, पूर द्वारा जलमय-वि० [सं०] पानीसे भरा हुआ, जलप्लावित; आनीत भूमि, कछारी भूमि । जलनिर्मित । पु० चंद्रमा।
जलोत्तोलनयंत्र, जलोद्वहनयंत्र-पु० [सं०] (वाटर पंप) जलसा-पु० [अ०] बैठक; अधिवेशन; सभा; महफिल । पानी नीचेसे ऊपर खींचकर बाहर निकालनेवाला यंत्र । जलांजलि-स्त्री० [सं०] अंजलीभर पानी प्रेत या पितरोंकी जलोत्सारणयोजना-स्त्री० [स०] (ड्रेनेज स्कीम) नालियाँ
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२७७
आदि बनाकर नगरका गंदा पानी बाहर निकालनेकी योजना, जलनिकासयोजना |
जलोदर - पु० [सं०] एक रोग जिसमें पेटकी त्वचा के नीचे पानी इकट्टा हो जाता है ।
जलौका (कस् ) - स्त्री० [सं०] जोंक |
अ० जल्द ।
जल्द - वि० [अ०] तेज, फुरतीला; चालाक । अ० झटपट, शीघ्र । - बाज़ - वि० उतावला, जल्दी मचानेवाला । - बाज़ी - स्त्री० उतावलापन । जल्दी - स्त्री० तेजी, शीघ्रता, उतावलापन । जल्प - पु० [सं०] कथन; बकवाद; तर्क; बहस । जल्पक, जल्पाक - वि० [सं०] बातूनी, वाचाल । जल्पन - पु० [सं०] कथन; बकवास; बकवाद करना; डींग । जल्पना - स० क्रि० अ० क्रि० दे० 'जलपना' | स्त्री० [सं०] दे० 'जल्पन' |
जल्पित - वि० [सं०] कथित; डींगके रूपमें कहा हुआ । जल्लाद - पु० [अ०] राजाज्ञासे दंडित जनकी गरदन मारनेवाला या उसे फाँसी चढ़ानेवाला, वधिक । वि० निर्दय, बेरहम |
जलोदर - ज़हर
जवाबी - वि० [फा०] उत्तररूपमें बदलने में किया हुआ; जिसका जवाब तुरत माँगा गया हो। - कार्ड - पु० जुड़े हुए दो कार्ड जिनमें से एक जवाबके लिए भेजा जाता है । - तार-पु० वह तार जिसके जवाबका खर्च भेजनेवाला पहले ही जमा कर दे ।
जवाब- पु० [फा०] प्रश्नका उत्तर; सवालका हल; पत्र लिखनेवालेको लिखा गया पत्रः प्रत्यभिवादन; दावे या अभियोगके उत्तररूपमें कही गयी बात, प्रतिवाद; बच. व; बदले में किया हुआ काम; जोड़, बराबरी करनेवाली चीज; नौकरीसे अलग किये जानेकी सूचना; इनकार, नाहीं । -तलब - वि० पूछने जवाब माँगने लायक । -तलबीस्त्री० जवाब माँगा जाना | दावा- पु० दावेका जवाब, प्रतिवादीका उत्तर । - देह - वि० ( वह आदमी ) जिससे किसी बात का जवाब माँगा जा सके, उत्तरदायी; जिम्मेदार | - देही - स्त्री० (दावेका) जवाब देना, लगाना; उत्तरदायित्व; जिम्मेदारी । -सवाल- पु० प्रश्नोत्तर; बहस । मु०तलब करना - ( किसी बातका कारण पूछना, कैफियत तलब करना । - देना- नौकरीसे अलग करना; इनकार करना; छोड़ना, अलग होना; बेकार होना ।
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जवार - + स्त्री० दे० 'जुआर' । * पु० दे० 'जवाल' | जवारा - पु० जौके अंकुर जिन्हें ब्राह्मण दसहरे के दिन यजमानोंके कानपर रखते हैं, जरई ।
जवाला - पु० झंझट, जंजाल ।
जवाल - पु० [अ०] हास, घटाव, अवनति । जवास - पु० दे० 'जवासा' ।
जवासा - पु० एक कँटीला क्षुप जो बरसात में पत्रहीन हो जाता और शरद् ऋतु में फिर पनपता है, यवासक । जवाहर - पु० दे० 'जवाहिर' |
जवाहिर - पु० [अ०] रत्न, मणि ('जौहर' का बहु०, पर प्रायः एकवचनमें प्रयुक्त) । - खाना-५० रत्नाभूषण रखनेका स्थान, तोशाखाना ।
जवाहिरात - पु० [अ०] कई प्रकार के रत्न-मणि । जवी (वि) - वि० [सं०] वेगवान् ।
जवैया - पु० जानेवाला ।
जव - वि० [सं०] वेगवान् । पु० वेग; 1 जौ ।
जवन - पु० दे० 'यवन' ।
जवनिका - स्त्री० [सं०] पर्दा; कनात; पाल । जवनी - स्त्री० दे० 'यवनी'; दे० 'जवनिका' । जवाँमर्द - पु० [फा०] बहादुर, वीर, मर्दाना । जवाँमर्दी - स्त्री० [फा०] बहादुरी, मर्दानगी । जवा - पु०लहसुनका एक दाना; एक तरहकी सिलाई। स्त्री० [सं०] अड़हुल, जपा | -कुसुम-पु० अड़हुलका फूल । जवाई + - स्त्री० जानेकी क्रिया या भाव, गमन । जवाखार - पु० जौके पौधेको जलाकर निकाला जाने जस्ता पु० खाकी रंगकी एक धातु जिसे ताँबेके साथ
जस्त - पु० दे० 'जस्ता' । स्त्री० [फा०] छलाँग, चौकड़ी । |जस्तई - वि० जस्तेके रंगका, खाकी । पु० जस्तेका रंग ।
मिलानेसे पीतल बनता है; दे० 'दस्ता' |
वाला खार ।
जवान - वि० [फा०] युवा, तरुण; वीर; बलवान् । पु० जहँ * - अ० दे० 'जहाँ' ।
युवा पुरुष; सिपाही; योद्धा ।
जवानी - स्त्री० [फा०] युवावस्था, यौवन; जवानीका जोश, मस्ती; सुंदरता । - की नींद-गहरी, बेफिक्रीकी नींद। मु० - चढ़ना - जवानी आना, मस्ती पर होना । ढलनाजवानी से बुढ़ापेकी ओर बढ़ना, गतयौवन होना । -फटी पढ़ना- जवानीका खिल उठना ।
जशन - पु० दे० 'जश्न' ।
जश्न- पु० [फा०] उत्सव, खुशीका जलसा; गाना-बजाना । जस- +५० दे० 'यश' । * अ० जैसा । जसोदा * - स्त्री० दे० 'यशोदा' | जसोमति, जसौवै - स्त्री० दे० 'यशोदा' ।
जहँड़ना* - अ० क्रि० दे० 'जहँड़ाना' । जहँड़ाना- अ० क्रि० ठगाना, गँवाना; हानि उठाना । जहतिया * - पु० जकात - कर, लगान वसूल करनेवाला | जहत्स्वार्था - स्त्री० [सं०] लक्षणाका एक भेद जिसमें पद या वाक्य वाच्यार्थ का त्याग कर उससे संबद्ध दूसरा अर्थ प्रकट करता है ।
जहदना - अ० क्रि० कीचड़ होना; थक जाना । जहदा * - पु० दलदल | जहद्दम* - पु० दे० 'जहन्नुम' |
जहना* - स० क्रि० छोड़ना; नाश करना । जहन्नुम - पु० [अ०] गहरा कुआँ; नरक । मु० - में जाना - नष्ट होना, बरबाद होना । जहन्नुमी - वि० [अ०] नरकमें जानेवाला, नारकीय । ज़हमत - स्त्री० [अ०] कष्ट, तकलीफ, झंझट । ज़हर - पु० [फा०] वह चीज जो देह में पहुँचकर मृत्युका कारण हो या स्वास्थ्यकी हानि करे, विष; स्वाद में अति कटु वस्तु अति अप्रिय, असह्य बात । वि० अति हानिकर, घातक; अति कटुः अप्रिय । -दार- वि० जहरीला विषयुक्त । - बाद- पु० एक जहरीला और कष्टसाध्य फोड़ा । - मोहरा - पु० एक तरहका पत्थर जिसमें साँपके
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जहरी - जाइ
और कुछ दूसरे विषोंको भी सोख लेनेका गुण होता है । मु० - उगलना - लगनेवाली बात कहना, जली-कटी कहना । - कर देना - (खानेकी चीजको ) इतना कड़वा, तीता कर देना कि निगला न जा सके; ऐसी कटु, कठोर या दुःखद बात कह देना कि भोजनका स्वाद-सुख जाता रहे । - का घूँट - अति अप्रिय, असह्य बात । -का घूँट पीना, - का घूँट पीकर रह जाना-विवशता के कारण गुस्सेको अंदर ही दबा रखना, असह्यको सह लेना । -की पुड़िया- भारी उपद्रवी, फसादी । (किसी बातपर ) - खाना- किसी बातसे खिन्न, दुःखी होकर आत्महत्याका यत्न करना । - मारना- जहर का असर दूर करना । - में बुझाना - तीर-तलवार आदिको आगमें लाल करके विषमिश्रित जलमें बुझाना जिससे उनसे घायल होनेवालेके शरीरमें विष प्रवेश कर जाय; बातको मर्मभेदी, असह्य बना देना । - होना- किसी विशेष | खाद्य पदार्थ या भोजनका अखाद्य हो जाना, घोंटा निगला न जा सकना ।
|
जहरी, जहरीला - वि० जिसमें जहर हो, विषयुक्त ।
जहल * - स्त्री० गरमी, ताप ।
जहल्लक्षणा - स्त्री० [सं०] दे० 'जहत्स्वार्था' ।
जहाँ - अ० जिस जगह, जिस स्थानपर । - तहाँ - अ० इधर-उधर; अनेक स्थानोंपर का तहाँ-जहाँ था
वहीं, अपनी जगहपर |
|
जहाँ - पु० [फा०] दे० 'जहान' (केवल समास में व्यवहृत ।) -गर्द - वि० घुमक्कड़, विश्वपर्यटक । -गर्दी - स्त्री० विश्वभ्रमण । - गीर - वि० दुनियापर राज्य करनेवाला, विश्व विजयी | पु० भारतका चौथा मुगल सम्राट्, अकबरका पुत्र । - गीरी - वि० जहाँगीरका, जहाँगीरसे संबद्ध । स्त्री० विश्वविजय; भूमंडलका राजत्व; कलाईपर पहनने का एक जड़ाऊ गहना । —दीदा - वि० जो दुनिया देखे हो, अनुभवी । - पनाह - वि० दुनियाकी रक्षा करनेवाला, जगत्का आश्रयरूप | पु० बादशाह, सम्राट् ।
जहाज़-पु० [अ०] बड़ी और समुद्र में चलने या चल सकनेवाली नाव, जलयान; पोत । -घाट- पु० ( ह्वार्फ ) माल उतारने, चढ़ाने के लिए संमुद्रतटके पास बनाया गया लकड़ी, पत्थर आदिका घाट । -रानी - स्त्री० जहाज चलाना; जहाज चलानेका काम । जहाज़ी - वि० [अ०] जहाजका; जहाजसे होनेवाला (कारबार) | पु० जहाज से यात्रा करनेवाला; जहाजका खलासी । - डाकू - पु० जहाजों पर डाके डालनेवाला, जलदस्यु जहान - पु० [फा०] दुनिया, जगत्, लोक ! - आरा ( जहानारा ) - वि० दुनियाको सजानेवाला, सृष्टिकी शोभा, शृंगार । - आरा बेगम - स्त्री० शाहजहॉकी बड़ी बेटी जो उसकी मृत्यु तक उसके साथ कैदखाने में रही । जहालत - स्त्री० [अ०] अज्ञान, मूर्खता, जाहिलपन । जहिया * - अ० जब |
।
जहीं * - अ० ज्योंही; जिसी स्थानपर, जहाँ ही । जहूर - पु० दे० 'जुहूर' । 'जहेज-पु० [अ०] वह धन जो कन्या (या वर ) को विवाह - के समय उसके माँ-बाप से मिले, दहेज |
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जह्न - पु० [सं०] विष्णु; एक राजर्षि जिन्होंने, पौराणिक कथा के अनुसार, भगीरथके गंगा लाते समय उसे पी लिया और उनकी विनतीपर फिर कानकी राह निकाल दिया था। - कन्या, - तनया - स्त्री० गंगा । जाँ - स्त्री० [फा०] दे० 'जान' (समास भी) । जाँउनि* - स्त्री० जामुन ।
जाँगर - पु० मटर, उरद आदिका वह डंठल जिससे दाना निकाल लिया गया हो; श्रमशक्ति, श्रमशीलता; पौरुष । - चोर - वि०, पु० जोंगर चोरानेवाला । मु० - थकनाशरीरका थकना, शिथिल होना; पौरुषका जवाब देना । जाँगरा- पु० भाट, बंदी ।
जांगल - वि० [सं०] जंगलका, जंगली | पु० वह प्रदेश जहाँ पानी कम बरसे, धूप-गरमी अधिक कड़ी हो । जाँगलू - वि० दे० 'जंगली' |
जाँघ - स्त्री० पाँवका कमर और घुटनेके बीचका भाग, ऊरु | जाँघिया - पु० एक तरहका लँगोट; घुटनों तक का पाजामा | जाँच - स्त्री० जाँचनेकी क्रिया, परख, परीक्षा, छान-बीन, तहकीकात | -पड़ताल - स्त्री० छानवीन, तहकीकात । जाँचक* - पु० दे० 'याचक' । जाँचकता* - स्त्री० माँगनेका काम ।
जाँचना-स० क्रि० किसी बात के सही-गलत, खरी-खोटी होने का पता लगाना, परख करना; * दे० 'जाचना' | जाँजरा * - वि० जीर्ण, जर्जर |
जाँझ, जाँझा - पु० जोरकी हवा के साथ होनेवाली वर्षा, तूफानी वर्षा ।
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जाँत, जाँता - पु० आटा पीसने की चक्की | जांतव- वि० [सं०] जंतु-संबंधी, जंतुओं से प्राप्त, उत्पन्न । जाँपना* - स० क्रि० दबाना, चाँपना | जांब*-५० जामुनका फल | जांबवंत - ५० दे० 'जांबवान्' ।
जांबवती - स्त्री० [सं०] जांबवान्की कन्या जिसका विवाह कृष्ण से हुआ था; नागदमनी लता । जांबवान् (वत्) - पु० [सं०] सुग्रीवका मंत्री जिससे लंकाविजय में रामचंद्र को बहुत सहायता मिली । जांबील - पु० [सं०] घुटने के जोड़परकी गोल चिपटी हड्डी; जँवीरी नीबू |
जांबुक - वि० [सं०] शृगाल-संबंधी । जांबुमाली (लिन् ) - पु० [सं०] लंकाका एक राक्षस जो अशोकवाटिका उजाड़ते समय हनूमान् के हाथों मारा गया । जांबुवान् (वत्) - पु० [सं०] दे० 'जांबवान्' । जांबू* - पु० दे० 'जंबू' । जाँवर * - पु० गमन, जाना ।
जा - * सर्व० जिस । स्त्री० [सं०] जाति; देवरानी; माता; [फा० ] जगह, स्थान; मौका । वि० उचित, मुनासिब । - नमाज़ - स्त्री० वह कपड़ा जिसे बिछाकर नमाज पढ़ते हैं, मुसल्ला । -नशीन - पु० किसीके स्थान, पदका अधिकारी; उत्तराधिकारी । - बेजा - वि० उचित-अनुचित, बुरा भला । अ० मौके बेमौके, ठिकाने बेठिकाने । (-मार बैठना, हाथ छोड़ देना ।) जाइ* - वि० वृथा, बेकार ।
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जाई-जात्रा जाई-स्त्री० कन्या चमेली।
जाटू-स्त्री० जाटोंकी बोली, बाँगड़ । जाक*-पु० यक्ष ।
जाठ-पु० कोल्हूकी कूँडीमें रहनेवाला लकड़ीका गोल चिकना जाकड़-पु० नापसंद होनेपर लौटा देनेकी शर्त पर खरीदा | बल्ला जिसके घूमनेसे पेरनेकी क्रिया होती है। तालाबके हुआ सौदा (देना, लेना)। -बही-स्त्री० वह बही जिसमें | बीचमें गाड़ा हुआ बला। जाकड़ विक्रीका ब्योरा या याददाश्त लिखी जाय । जाठर-वि० [सं०] जठर-पेट-संबंधी; जठरसे उत्पन्न । जाखिनी*-स्त्री० दे० 'यक्षिणी' ।
जाठराग्नि-स्त्री० [सं०] जठराग्नि । जाग-स्त्री० जागनेका भाव, जागरण; * जगह, स्थान । जाड़*-पु० दे० 'जाड्य' । * पु० यश।
जाड़ा-पु० शीतकाल-हेमंत और शिशिर ऋतुएँ, सरदी, जागता-वि० जागता हुआ अपनी शक्तिका परिचय देने- | ठंड (पड़ना, लगना) । मु०-खाना-जाड़ेका कष्ट सहन वाला, तेजस्वी, प्रकट, प्रत्यक्ष ।
करना। जागतिक-वि० [सं०] जगतसंबंधी, सांसारिक ।
जाड्य-पु० [सं०] जडता; निश्चेष्टता; मूर्खता; ठंढ। जागना-अ० क्रि० नींदका त्याग करना; जगा हुआ होना; जात-वि० [सं०] जनमा हुआ, जना हुआ; उत्पन्न; प्रकट, फलदायक होना (भाग्य, नसीब); सजग होना; चेतना: व्यक्त । पु० जन्म; बेटा वर्ग; समूह; प्राणी।-कर्म(न)सक्रिय, प्रबुद्ध होना, उठना; बढ़ना; चमकना, प्रदीप्त पु०,-क्रिया-स्त्री० पुत्रजन्मके अवसरपर किया जानेवाला होना; * उभरना, प्रसिद्ध होना।
एक संस्कार । -रूप-वि० सुंदर । पु० सोना; धतूरा । जागबलिक*-पु० दे० 'याज्ञवल्क्य' ।
-वेदा (दसू)-पु० अग्नि; सूर्य; चित्रक; परमेश्वर । जागरण-पु० [सं०] जगना; जाग; जगा हुआ होना; जात-स्त्री० दे० 'जाति'। -पति-स्त्री० बिरादरी ।
भजन-कीर्तन आदि करते हुए रात बिताना, रतजगा । जात-स्त्री० [अ०] वस्तुतत्व, स्वरूप; स्वभाव; देह व्यक्ति जागरन*-पु० दे० 'जागरण'।
व्यक्तित्व प्रकार । जागरित-वि० [सं०] जागता हुआ, जाग्रत् ।
जातक-पु० [सं०] नवजात शिशु, बच्चा; भिक्षुः फलित जागरूक-वि० [सं०] जागता हुआ; जागरणशील; स्व- ज्योतिषका वह अंग जिससे नवजात शिशुका शुभाशुभ कर्तव्यके विषय में सावधान ।
कहा जाता है। जातकर्म; एक जैसी वस्तुओंका संग्रह; वह जागरूपा-वि० जागता हुआ(देवता, तेज); प्रत्यक्ष, स्पष्ट । बौद्ध ग्रंथ जिसमें बुद्ध के पूर्व जन्मोंकी कथाएँ लिखी है। जागर्ति-स्त्री० [सं०] जागरण ।
जातना, जातनाई*-स्त्री० दे० 'यातना' । जागा*-स्त्री० दे० 'जगह' ।
जाता-स्त्री० [सं०] लड़की। जागी-पु० बंदी, भाट ।
जाति-स्त्री० [सं०] जन्म, उत्पत्ति, वंश, गोत्र, जीवश्रेणी जागीर-स्त्री० [फा०] वह जमीन जो राज्यकी ओरसे कुल, वर्ण या योनिका भेद सूचित करनेवाला वर्ग; वर्ण; किसीको किसी विशेष सेवाके पुरस्काररूपमें दी गयी हो; वंश, बनावट, देश-भेद आदिकी दृष्टिसे किया गया मानववह जमीन जो गाँवके नाई, कहार, कुम्हार आदिको समाजका विभाग (रेस); हिंदुओंके विभिन्न वर्गों के अंतर्गत उनकी सेवाके बदले में बिना लगान जोतनेको दी गयी हो। परस्पर रोटी-बेटीका संबंध रखनेवाला और सामान्यतः एक -खिदमती-स्त्री० सेवा-विशेषके लिए दी हुई जागीर । ही धंधा करनेवाला जन्मकृत जनसमुदाय; वर्गविशेषके -दार-पु० जिसे जागीर मिली हो; सरदार, सामंत । विभिन्न व्यक्तियों में पाया जानेवाला समान धर्म (न्या०); -दारी-स्त्री० जागीरदारका पद या जागीरदार होनेका | छोटा आँवला, चमेली; जावित्री; जायफल; स्वर-सप्तक । भाव; रईसी।
-कोश,-कोष-पु० जायफल ।-च्युत-वि० स्वजातिसे जागीरी*-स्त्री० दे० 'जागीरदारी'।
अलग किया हुआ। -पत्र,-पर्ण-पु०,-पत्री-स्त्री० जागृति-स्त्री० दे० 'जाग्रति ।
जावित्री। -पाँति-स्त्री० [हिं०] जाति-उपजाति, जातिजाग्रति-स्त्री० जागरण, जाग्रत् होनेका भाव ।
वर्ण ।-फल-पु० जायफल । -भ्रंश-पु० जातिभ्रष्टता, जाग्रत्-वि० [सं०] जागता हुआ; सजग, सावधानः | जातिच्युति । -भ्रष्ट-वि० जातिच्युत । -वाचक-वि० प्रकाशमान । पु० वह अवस्था जिसमें जीव शब्द, स्पर्श जाति बतानेवाला (संज्ञा)। -संकर-पु० दो जातियोंका आदि विषयोंको ग्रहण करे ।-स्वप्न-पु० जागतेका सपना, मिश्रण, दोगलापन ।-स्मर-वि० जिसे अपने पूर्व जन्मकल्पनासृष्टि ।
का वृत्तांत याद हो।-हीन-वि०नीच जातिका जातिच्युत। जाचक-पु० दे० 'याचक' ।
जाती-स्त्री० [सं०] चमेली; मालती; छोटा आँवला; जायजाचकता*-स्त्री० याचकवृत्ति, भिखमंगी।
फल । -कोश,-कोष,-फल-पु० जायफल ।-पत्रीजाचना*-स० कि० माँगना; भीख माँगना ।
स्त्री० जावित्री। जाजम-स्त्री० दे० 'जाज़िम'।
जाती-वि० [अ०] व्यक्तिगत, निजी, अपना; वस्तुगत । जाजरा*-वि० जीर्ण, जर्जर ।
जातीय-वि० [सं०] जाति-संबंधी; जातिका । जाज़िम-स्त्री० [तु०] दरीके ऊपर बिछानेकी छपी चादर। जातीयता-स्त्री० [सं०] जातिविशेषसे संबद्ध होनेका भाव, जाज्वल्यमान-वि० [सं०] प्रज्वलित; तेजोमंडित । कौमीयत; अपनी जातिका अभिमान राष्ट्रीयता। जाट-पु० पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, पंजाब, राजपूतानाआदिमें जातुधान*-पु० यातुधान, राक्षस । बसनेवाली एक हिंदू जाति; उस जातिका जन ।
जात्रा-स्त्री० दे० 'यात्रा। १८-क
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जात्री - जानपद
जात्री- पु० दे० 'यात्री' । जाथका * - स्त्री० ढेर, राशि | जादव * - पु० दे० 'यादव' । पति-पु० कृष्ण । जादसपति, जादसपती* - पु० वरुण । जादा* - वि० दे० ' ज्यादा' ।
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जादू - पु० [फा०] टोना, जंतर-मंतर; वशीकरण; मोहनी; इंद्रजाल, नजरबंदी; हाथकी सफाईका काम, बाजीगरी । - गर - पु० जादू करनेवाला । - गरी स्त्री० जादूका काम; जादू करनेकी विद्या । मु० - उतरना - जादूका असर दूर होना । - चलना-जादूका असर होना; बातोंका असर होना । - वह जो सिरपर चढ़कर बोले- उपाय वही अच्छा है जो सफल हो और विरोधीको भी मानना पड़े । जादौ* - पु० दे० 'यादव' । - राय - पु० कृष्ण । जान - पु०, स्त्री० जाननेका भाव, ज्ञान, जानकारी; समझ, खयाल | ( इस शब्दका प्रयोग की जानमें' जैसे अव्ययपद में या समासों में ही होता है। प्राचीन कविता और वोलचाल में प्रायः पुंलिंगमें ही प्रयोग मिलता है । ) वि० ज्ञानवान्, सुजान । - कार - वि० जाननेवाला, अभिश, विज्ञ । -कारी - स्त्री० परिचय; अभिशता, विज्ञता । - पना - पु०, पनी * - स्त्री० जानकारी; चतुराई । -पह चान - स्त्री० परिचय, भेंट मुलाक़ात । -मनि, - राय *वि० ज्ञानियोंमें मणिरूप, ज्ञानिश्रेष्ठ, ज्ञानिराज । जान * -- स्त्री० जादू-टोना - 'मेरे जान जानकी तू जानत है जान कछू ' - कविप्रि० । पु० यान, वाहन; दे० 'जानु' । जान - स्त्री० [फा०] प्राण, जीव; जीवन; बल, दम; सार सत्त्व; किसी चीज में जान डालनेवाली चीज; रस, शोभा आदिका आधारभूत गुण, तत्त्व ( यही वाक्य सारे निबंध-की जान है ); अति प्यारी वस्तु; प्रियजनका संबोधन । - जोखिम, - जोखौं - स्त्री० जान जानेका डर, जिंदगीका खतरा । - दार - वि० जिसमें जान हो, सजीव; हिम्मतवाला; जिसमें बल या ओज हो । पु० प्राणी । -निसार - वि० जान देनेवाला; जो किसीके लिए मरने को तैयार हो; स्वामिभक्त । - निसारी - स्त्री० वफादारी, स्वामि भक्ति । - बख़्शी - स्त्री० प्राणदान; प्राणदंडके अपराधीको क्षमादान । - बाज़ - वि० जानपर खेलनेवाला, वीर, साहसी । - बाज़ी - स्त्री० साहस, वीरता, जानको खतरेमें डालनेका भाव । - बीमा- पु० जिंदगीका बीमा । -लेवा - वि० जान लेनेपर तुला हुआ, जानी दुश्मन । -व माल - पु० प्राण और धन, धन-जन । -वर- पु० प्राणी; पशु, हैवान । वि० मूर्ख; उजड्ड । मु० - आँखों में आ जाना - आसन्नमरण होना । -का गाहक- जो जान लेनेपर अमादा हो, जानका वैरी । का नुकसान-प्राण हानि, किसी दुर्घटना में मनुष्योंका मरना या मारा जाना । -का रोग- कष्ट देनेवाली वस्तु या व्यक्ति जिससे जल्दी पीछा न छूटे, भारी जंजाल । -की ख़ैर-प्र :- प्राण-रक्षा; कुशल । — की तरह रखना - तनिक भी कष्ट न पहुँचने देना, सुख-सुपासका विशेष ध्यान रखना, बहुत सँभालकर रखना। -की पड़ना-जान बचानेकी चिंता होना, प्राणभय होना । - के लाले पड़ना-जान बचाना कठिन हो जाना, उबरने की आशा न रहना । (किसीकी) - को
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२८०
रोना- किसीसे, किसीके कारण पहुँचे हुए कष्ट, हानिको याद कर करके कुढ़ना । - खपाना - (किसी काममें) बहुत श्रम करना, कष्ट उठाना । खाना- किसी बात के लिए बार-बार कहकर, किसी बातकी याचना या तकाजेसे परे शान कर देना । - खोना-जान देना; किसी दुःख में घुलना । - चुराना - दे० 'जी चुराना' । - छुड़ानाछुटकारेका उपाय करना कराना, पीछा छुड़ाना। - छूटना - छुटकारा मिलना । - देना-मरना; मरनेको तैयार होना । (किसी चीज के लिए ) - देना - दाँतसे पकड़े रहना, व्यय या हानि सह न सकना । ( किसीपर ) - देना- किसी के कार्य से खिन्न, रुष्ट होकर प्राणत्याग, आत्महत्या करना; किसी पर बहुत अनुरक्त, आसक्त होना । - निकलना - अति कष्ट होना; जान सूखना । -निसार करना - दूसरे के लिए मरना, प्राणोत्सर्ग करना । - पढ़ना - प्राणसंचार होना; शक्ति आना; हरा भरा होना । - पर आ बनना-जान जानेका डर होना, भारी संकट में पड़ना । - पर खेलना-जानजोखोंका काम करना; साहस, वीरताका काम करना जिसमें जान जानेका डर हो । - पर नौबत आना-दे० 'जानपर आ बनना' । - बचाना - किसी अप्रिय या कष्टसाध्य कामसे कतराना, भागना, पीछा छुड़ाना। -बची लाखों पाये - मरनेसे बचे यही परम लाभ है । भारी होना- जीना दुःखद हो जाना, जिंदगी से ऊब जाना । में जान आनाढाढ़स बँधना, इतमीनान होना । - में जान होनाजिंदा होना ( जबतक जानमें जान है ) । - लड़ानाजी-जान से, जीतोड़ कोशिश करना। -लबौंपर आनादे० 'जान होठों पर आना' । -लेना - वध करना; बहुत कष्ट देना; बहुत कड़ी मेहनत लेना । -सूखना - डरसे होश गुम हो जाना, सुन्न हो जाना। -से गुज़र जाना, - से जाना - मर जाना। -से तंग आना,-से बेज़ार होना- जीना असह्य हो जाना, जीनेसे ऊब जाना । - से मारना - मार डालना, कतल कर देना । - से हाथ धोना - जान गँवाना, मरना । - है तो जहान हैदुनियाका सब सुखजिंदगी के साथ है। होंठों पर आना आसन्न -मरण होना; प्राणांतक कष्ट होना । जानकी - स्त्री० [सं० जनककी पुत्री, सीता । -जानि (जानकी है जाया जिनकी), - जीवन, - नाथ, - रमण, - रवन *, -वल्लभ- पु० रामचंद्र । जाननहार* - पु० जाननेवाला ।
जानना - स० क्रि० किसी वस्तु, व्यक्ति, घटनाका अभिश, जानकार होना; ज्ञाता होना, पहचानना, नाम-धामसे परिचित होना, अवगत होना। जानकर - जानते हुए, जान-बूझकर | मु० जान पड़ना - मालूम होना, दिखाई देना । जान-बूझकर - जानते-समझते हुए, सोच-समझकर । जाने-अनजाने - जानकर या बिना जाने । जानपद-पु० [सं०] जनपदवासी, ग्रामवासी जन, लोक; देश; जनपद से प्राप्त कर आदि । वि० जनपद-संबंधी । - सैन्य - पु० (मिलीशिया) ( युद्धकाल में ) अपने नगर या आस-पास के स्थानों में उपद्रवादिका शमन करनेके लिए बनायी गयी नागरिकोंकी सेना ।
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२८१
जानहार* - वि० जानेवाला; नष्ट होनेवाला । जानहुँ* - अ० मानों, जानो ।
|
जाना - अ० क्रि० एकसे दूसरे स्थानपर पहुँचने के लिए | हरकत करना, गमन करना, रवाना होना; दूर होना; बिदा होना; नष्ट होना; बीतना, गुजरना; खोना, नुक सान होना; बिगड़ना (हमारा क्या जाता है ? ), हाथसे निकल जाना; बहना, जारी होना; गरना; (किसी बात, शब्दों आदिपर) विश्वास करना, ठीक मान लेना; * पैदा होना । * स० क्रि० जनना। मु० जा धमकना - एकाएक पहुँच जाना । जा निकलना अचानक पहुँच जाना । जाने देना - छोड़ देना; माफ कर देना । जा पड़नाअचानक जा पहुँचना । जा लेना- आगे जानेवालेके बराबर हो जाना; भागनेवालेको पकड़ लेना । जानि - स्त्री० [सं०] पत्नी, भार्या (केवल समासमें व्यवहृत- जामातु - पु० दे० 'जामाता' | 'जानकीजानि') । * वि० ज्ञानी ।
जामिक - पु० दे० 'यामिक' |
जामित्र - पु० [सं०] कुंडली में लग्न से सातवाँ स्थान । ज़ामिन- पु० [फा०] जमानत करनेवाला; जिम्मा लेनेवाल ; नैचेकी दोनों नलियोंको अलग रखनेके लिए बाँधी जानेवाली एक लकड़ी; जामन; वह चीज जो दूसरी चीजको उड़ने से बचाने के लिए साथ रखी जाय (जैसे कपूरके साथ मिर्च ) । - दार - पु० जामिन (असाधु) । जामिनी-स्त्री० दे० 'यामिनी' । जामी * - स्त्री० जमीन ।
जानिब - स्त्री० [अ०] तरफ, दिशा । - दार- वि० पक्षपाती, तरफदार । - दारी - स्त्री० पक्षपात, तरफदारी । जानी - वि० [फा०] जानका; जानसे संबंध रखनेवाला; गहरा । विoस्त्री० प्राणप्रिया, प्यारी । - दुश्मन पु० कट्टर शत्रु, जान लेने को तैयार रहनेवाला शत्रु । जानु - अ० दे० 'जानो' । पु० [सं०] घुटना ।-पाणि- अ० घुटनों और हाथ के पंजोंके बल, घुटुरुवन । - पानि * - अ० दे० 'जानुपाणि' |
जानू - पु० [फा०] घुटना; जाँघ । जानो। - अ० मानों, जैसे ।
जाप - पु० [सं०] जप; * जपमाला । जापक- वि० [सं०] जप करनेवाला | जापा - पु० सौरी |
जापानी - वि० जापानका । पु० जापानवासी । स्त्री० जापानकी भाषा ।
जापी (पिन) - वि० [सं०] जप करनेवाला |
ज़ाफ़रान - पु० [अ०] केसर |
1
जाफरानी - वि० [अ०] केसरिया, केसर के रंगका । जाबा - पु० बैलके मुँह पर पहनानेकी रस्सीको जाली । ज़ाबिता - पु० [अ०] नियम, कायदा; दस्तूर व्यवहार, विधि, पद्धति । - (तए) दीवानी - पु० दीवानी अदालतोंकी कार्यविधि (कोड ऑव सिविल प्रोसियोर) |- (तए) फ़ौजदारी - पु० फौजदारी अदालतोंकी कार्यविधि (कोड ऑव क्रिमिनल प्रोसिडयोर) । जाब्ता - पु० दे० 'जाविता' । जाम - ५० पहर, याम; जामुन; [फा०] प्याला; शराबका ध्याला; खरासानका एक नगर । - ( मे ) जम, - जमशेद - go ईरान के बादशाह जमशेद के लिए वैज्ञानिकोंका बनाया हुआ प्याला । कहते हैं कि इसमें देखनेसे भविष्य में होनेवाली बातों या सारी दुनिया में होनेवाली बातोंका ज्ञान हो जाता था । - सिहत - पु० किसीकी स्वास्थ्य-कामना से पिया जानेवाला शराबका प्याला । मु०-चलनाशराबका दौर चलना, प्यालेपर प्याला पीते जाना । जामदग्न्य- पु० [सं०] जमदग्निके पुत्र, परशुराम । जामदानी - स्त्री० [फा०] कपड़ा रखनेका संदूक (जामा
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जानहार-जार
(दानी); चमड़े का संदूक; शीशे या अबरककी बनी संदूकची; एक महीन कपड़ा, बूटीदार अद्धी । जामन - पु० दूधको जमानेके लिए डाला जानेवाला दही या और कोई खट्टी चीज; जामुन । जामना * - अ० क्रि० दे० 'जमना' । जामनी-स्त्री० दे० 'यावनी' । जामवंत - पु० दे० 'जांबवान्' ।
जामा - पु० [फा०] कपड़ा, पहनावा, दूल्हे को पहनाया जानेवाला अँगरखा जिसका नीचेका घेरा पेशवाज जैसा होता है । - दार- पु० वह कर्मचारी जिसका काम कपड़ोंकी सँभाल हो । मु० - (मे) से बाहर होना - आपेमें न रहना, अति क्रुद्ध या प्रसन्न होना । जामाता (तृ) - पु - पु० [सं०] दामाद, कन्याका पति ।
जामुन - पु० एक खटमिट्ट । फल और उसका पेड़, जंबू । जामुनी - वि० जामुनके रंगका, स्याह । जाय* - अ० वि० व्यर्थ, बेकार । स्त्री० [फा०] जगह । जायका - पु० [अ०] स्वाद, मजा; रसग्रहणकी शक्ति; रसेंद्रिय । - (के) दार - वि० स्वादिष्ठ, मजेदार | जायचा - पु० [फा०] जन्मपत्री ।
जायज - वि० [अ०] उचित; विहित; मानने योग्य । जायजा - पु० [अ०] परख; जाँच-पड़ताल (देना, लेना) । जायदाद - स्त्री० [फा०] माल असबाब, संपत्ति, जगहजमीन ।
जायफल - पु० एक सुगंधित फल जो मसाले और दवा के रूप में काम में लाया जाता है, जातीफल । जायसी - पु० जायस (रायबरेली) का रहनेवाला; अवधी के सुप्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी । वि० जायसका ।
जाया - वि० उत्पन्न किया हुआ । स्त्री० [सं०] विधिवत् ब्याही हुई स्त्री, पत्नी । -जीव- वि० पत्नीकी कमाई खानेवाला । पु० नट; नर्तक; वेश्याका पति । -धनवि० पत्नीहंता । पु० जन्मकुंडली में सातवें स्थानपर मंगल या राहुके होनेसे पड़नेवाला एक योग जिसका फल पत्नीका धात माना गया है; ऐसे योगवाला पुरुष; शरीरका तिल |
जाया - वि० [अ०] नष्ट, बरबाद, व्यर्थ (करना, होना) । जार-पु० जाल; [सं०] परस्त्रीसे प्रेम करनेवाला; उपपति, आशना । - कर्म (नू ) - पु० व्यभिचार । -, - जन्मा (न्मनू ), - जात - वि० जारसे उत्पन्न | पु० उपपतिसे उत्पन्न संतान । -ज योग- पु० फलित ज्योतिषका
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जारण-जिज़िया
२८२ एक योग जिसमें उत्पन्न संतानके जारज होनेका संदेह , ज़ाहिर-वि० [अ०] प्रकट, खुला हुआ। पु० बाध रूप। किया जाता है।
-दारी-स्त्री० दिखावा, बनावट । -परस्त-वि० ऊपरी जारण-पु० [सं०] गलाना पचाना; भस्म करना; किसी बातोंपर दृष्टि रखनेवाला, दुनियादार । धातुका शोधन, मारण; पारेका एक संस्कार ।
जाहिरा-अ० [अ०] ऊपरसे, देखने में, प्रकटतः। जारना -स० क्रि० दे० 'जलाना'।
जाहिरी-वि० ऊपरी, बाह्य, दिखाऊ । जारिणी-स्त्री० [सं०] जारसे प्रेम करनेवाली स्त्री, कुलटा। जाहिल-वि० [अ०] अश, अपढ़ गँवार । जारी-स्त्री० जारकर्म । वि० [अ०] बहता हुआ; चलता जाहिली-स्त्री० [अ०] अज्ञता, मूर्खता। हुआ, प्रचलित बना हुआ।
जाहिलीयत-स्त्री० [अ०] जाहिल होना, अशता । जालंधरी विद्या-स्त्री० इंद्रजाल ।
जाही-स्त्री० एक तरहकी चमेली; एक आतिशबाजी। जाल-पु० [सं०] सूत, सन आदिकी जालीदार बुनी हुई जाह्ववी-स्त्री० [सं०] गंगा (जनुसे जनमी हुई)।
चीज जिससे मछलियाँ, चिड़िया आदि फँसाते हैं; जाली; जिंद-पु० दे० 'जंद': [अ०] भूत-प्रेत, जिन । रेललाइनों, नहरों आदिका विस्तार; ठगने, फँसानेकी जिंदगानी-स्त्री० [फा०] जिंदगी।
, फंदा, मकड़ीका जाला; समूह; झरोखा, क्षारजिंदगी-स्त्री० [फा०] जीवन, जीवित होना; आयु; सजीइंद्रजाल । -जीवी(विन्)-पु० मछुआ। -दार-वि० | वता। -बख्श-वि० जीवनप्रद स्फूर्तिदायक । -भर[हिं०] जालीदार फंदेदार । मु०-फैलाना,-बिछना- अ० आजीवन । मु०-बसर करना-जीवन बिताना, फँसानेकी युक्ति रचना। -में फँसना-धोखा खाना, जीवनयापन करना । -में मौतका मज़ा चखना-बहुत किसीके फरेबमें आना।
कष्ट भोगना। जाल-पु० [अ०] किसी चीजकी नकल जो धोखा देनेके जिंदा-वि० [फा०] जीता हुआ, जीवित; सजीव; प्रफुल्ल, लिए की जाय; दूसरेकी लिखावट या दस्तखतकी नकल 'हरा-भरा बलती, सुलगती हुई (आग)। -दिल-वि० (करना, बनाना)। -साज़-पु० जाल करनेवाला। हँसोड़, प्रसन्नचित्त उत्साही। -दिली-स्त्री० जिंदादिल -साज़ी-स्त्री० जाल करना, नकली दस्तावेज, दस्तखत | होना । -बाद-वा० जीता रहे ! आदि बनाना।
जिवाना-स० क्रि० दे० 'जिमाना'। जालना*-स० क्रि० जलाना।
जिंस-स्त्री० [अ०] वस्तु; व्यापारकी चीजें; गला; असबाब; जाला-पु० मकड़ीका बुना हुआ जाल; धास, भूसा आदि आभरण; वर्ग, किस्मः लिंग, जाति, परिवार, व्यवहारबाँधनेका जाल; आँखोंका एक रोग जिसमें पुतलीपर झिल्ली- गणित (अंक-गणित)। -खाना-पु० भंडारधर ।-वारसी चढ़ जाती है। एक तरहका सरपत ।
वि० वर्गके अनुसार । पु० पटवारियोंका एक कागज जिसमें जालिका-स्त्री० [सं०] जाल; स्त्रियोंका मुखावरण; जोंक फसलका विवरण रहता है । -वारी-स्त्री० वर्गीकरण । जालीका बना कवच, *समूह; जाल ।
जिआना*-सक्रि० जिलाना; पालना। जालिम-वि० [अ०] जुल्म करनेवाला, अत्याचारी कर। जिउ*-पु० दे० 'जीव' । ज़ालिमाना-वि० [अ०] अत्याचारपूर्ण ।
जिउकिया-पु० बीहड़ वन-पर्वतोपर प्राप्त वस्तुएँ (कस्तूरी, जालिया-वि० [अ०] जालसाज ।
शिलाजतु इ०) लाकर बेचनेवाला; रोजगारी। जाली-स्त्री० बह चीज जिसमें जाल जैसे छोटे-छोटे छेद जिउतिया-स्त्री० आश्विन-कृष्णा अष्टमीको होनेवाला व्रत बने हों; ऐसी बनावटकी लकड़ी या पत्थर जो खिड़कियों जिसे केवल पुत्रवती स्त्रियाँ रखती है, जीवत्पुत्रिका व्रत । आदिमें जड़ा जाता हैऐसी बुनावटका कपड़ा जो मसहरी ज़िक्र-पु० [अ०] चर्चा; वर्णन; स्मरण । आदिके काम आता है। वह कसीदा जिसमें बेल-बृटेके जिगर-पु० [फा०] यकृत, कलेजा; जीवट, हिम्मत; सारबीचमें छोटे-छोटे छेद हों; आमकी गुठलीपरके रेशे ।-दार भाग । मु०-के टुकड़े होना-दिलपर भारी सदमा होना, --वि० जिसमें जाली हो।।
दुःख होना। -थामकर बैठ जाना-असह्य आधात, जाली-वि० [अ०] नकली, झूठा (दस्तावेज, नोट आदि)। पीड़ासे व्याकुल होना ।। जावक-पु० महावर, अलक्तक ।
जिगरा-पु० जीवट, साहस। जावत-अ० दे० 'यावत्।
जिगरी-वि० [फा०] जिगरका, दिली, अंतरंग (-दोस्त)। जावन*-पु० दे० 'जामन'।
जिगीषा-स्त्री० [सं०] जीतनेकी इच्छा, जयकी अभिलाषा। जावा-पु० पूर्वी एशियाका एक बड़ा द्वीप, यवद्वीप। जिघांसा-स्त्री० [सं०] मार डालनेकी इच्छा प्रतिहिंसा। जावित्री-स्त्री० जायफनका छिलका जो मसाले और दवा- जिघांस-वि० [सं०] मार डालनेकी इच्छा रखनेवाला। के रूपमें काममें लाया जाता है।
जिय-स्त्री० मजबूरी, विवशता; शतरंज में बादशाहको जापनी*-स्त्री०३० 'यक्षिणी' ।
चलनेके लिए घर और इर्दब देनेके लिए कोई मुहरा न रह जासु-सर्व० जिसका.।
जाना या कोई मोहरा चलनेकी जगह न रह जाना; किसी जासूस-पु०. छिपकर भेद लेनेवाला, अपराध आदिका मामले में आगे बढ़नेका रास्ता बंद हो जाना, गतिरोध । पता लगानेवाला, मुखबिर ।
जिजिया-स्त्री० बड़ी बहन । जासूसी-स्त्री० जासूसका काम ।
जिज़िया-पु० [अ०] एक कर जो मुसलमान शासक गैरजाहर*-वि० दे० 'ज़ाहिर'।
मुसलमान प्रजापर लगाते थे ।
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जिज्ञासा-जिल्द जिज्ञासा-स्त्री० [सं०] जाननेकी इच्छा, शानकी चाह ज़िम्मा-पु० [अ०] प्रतिज्ञा, किसी बातके करने, किये ज्ञानप्राप्तिके लिए विचार, पूछ-ताछ, खोज।
जानेका भार; जमानतः सिपुर्दगी। -(जिम्मेदार-वि० जिज्ञासु-वि० [सं०] जाननेका इच्छुक; खोजी; मुमुक्षु । जवाबदेह । -दारी-स्त्री० जवाबदेही । -वार-वि० जिज्ञास्य-वि० [सं०] जिज्ञासा करने योग्य ।
जिम्मेदार । -वारी-स्त्री० जिम्मेदारी। मु०-लेनाजिठानी-स्त्री० दे० 'जेठानी'।
(किसी कामका) भार उठाना, हामी भरना। (किसीके जित*-अ० जिधर, जिस ओर । वि० [सं०] जीता हुआ, जिम्मे-किसीके ऊपर या किसीके हवाले करना, लगाना, पराजित, वशमें किया हुआ।-क्रोध-वि० जिसने क्रोधको निकलना।) जीत लिया हो, क्रोधरहित । -मन्यु-वि० दे० 'जित- जिय*-पु० जी, जीव । -बधा-पु० जल्लाद । क्रोध' । पु० विष्णु । -लोक- वि० जिसने दुनियाको | जियन*-पु० जीवन । जीत लिया हो; जो पुण्यबलसे स्वर्गादिका अधिकारी हो जियरा*-पु० जीव; हृदय । गया हो। -शत्रु-वि० जिसने शत्रुको जीत लिया हो, ज़ियादती-स्त्री० [अ०] अधिकता; जुल्म, जबर्दस्ती। विजयी। -श्रम-वि० जो थके नहीं। -स्वर्ग-वि० ज़ियादा-वि० [अ०] अधिक, बहुत, फाजिल । पुण्यबलसे स्वर्ग प्राप्त करनेवाला ।
जियान-पु० [फा०] हानि, नुकसान, टोटा । जितना-वि० जिस मात्राका, जिस कदर। अजिसमात्रामें। जियाना*-स० क्रि० दे० 'जिलाना'। जितवना*-स० क्रि० जताना; जितान।।
ज़ियाफ़त-स्त्री० [अ०] दावत, भोजनसे सत्कार; आतिथ्य । जितवाना-स० क्रि० दे० 'जिताना'।
ज़ियारत-स्त्री० [अ०] साधु-संत, देवमूर्ति आदिके दर्शन जितवार*-वि० जीतनेवाला।
करना या दर्शनार्थ जाना; तीर्थयात्रा। जितवैया-पु० जीतनेवाला ।
जियारी*-स्त्री० जीवन; जीवट; जीविका । जितामा(त्मन्)-वि० [सं०] जिसने अपने मन, अपनी | जिरगा-पु० [फा०] जमात; झुंड; सरहदी पठानोंकी इंद्रियोंको वशमें कर लिया हो।
पंचायत। जिताना-सक्रि० जीतनेका कारण होना, जीतने में समर्थ | जिरह-स्त्री० [अ० 'जरह'] चीरा, घाव; वे प्रश्न जो प्रतिकरना।
पक्षी या उसका वकील बयानकी सचाई जाँचने के लिए करे । जितारि-वि [सं०] जिसने अपने शत्रुओं या काम, क्रोध ज़िरह-स्त्री० [फा०] फौलादकी कड़ियोंका बना हुआ कवच ।
आदि-पड्रिपुओं-को जीत लिया हो । पु० बुद्ध । ज़िराअत-स्त्री० [अ०] खेती, किसानी। -पेशा-वि० जितेंद्रिय-वि० [सं०] जिसने अपनी इंद्रियोंको वशमें कृषिजीवी, खेतिहर । कर लिया हो।
जिराफा-पु० [अ० 'जराफा'] अफ्रीकाके जंगलों में पाया जिते*-वि०जितने।
जानेवाला एक जानवर जिसकी गरदन और अगली टाँगे जित*-अ० जिस ओर ।
ऊँटकीसी और खालपर बड़े-बड़े लाल-पीले या भूरे धब्बे जितैया*-पु० जीतनेवाला ।
होते हैं । चौपायों में यह सबसे ऊँचा होता है। जितो*-वि०जितना।
जिला-स्त्री० [अ०] चमक, ओप, पालिश; रगड़-माँजकर जित्-वि० [सं०] "को जीतनेवाला (जैसे इंद्रजित्) । चमकानेका काम। -कार,-साज़-पु० जिला करने जित्वर-वि० [सं०] जीतनेवाला, जयशील ।
वाला, सिकलीगर । जिद-वि० [अ०] उलटा । स्त्री० हठ, दुराग्रह ।
ज़िला-पु० [अ०] पहलू , पार्श्व; देशका विभाग, प्रदेश ज़िहन-अ० [अ०] हठवश ।
प्रांत या सूबेका वह भाग जो डिपटी कमिश्नर या कलक्टरज़िद्दी-वि० [अ०] हठी, जिद करनेवाला ।
के मातहत हो (डिस्ट्रिक्ट)। -अफसर-पु० कलक्टर । जिधर-अ० जिस ओर; जहाँ। -तिधर-अ० जहाँ-तहाँ। -जज-पु० जिलेका प्रधान न्यायाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट जिन-पु० [सं०] बुद्ध जैन तीर्थकर विष्णु ।
जज)। -जेल-स्त्री०, पु० जिलेका जेलखाना । जिन, ज़िन्न-पु० [अ०] मुसलमानोंके विश्वासके अनुसार -पालिका-स्त्री० (डिस्ट्रिक्ट बोर्ड) दे० 'जिलाबोर्ड' । एक तेजस योनि, भूत, प्रेत, आसुरी बल-पौरुषवाला -बोर्ड-पु० जिलेके प्रतिनिधियोंका मंडल जिसका आदमी; हठी आदमी। मु०-चढ़ना,-सवार होना- काम जिलेकी सड़कों, शिक्षा, स्वास्थ्य आदिका प्रबंध गुस्से में पागल हो जाना।
करना होता है।-मजिस्टेट-पु० जिलेका प्रधान प्रबंधाज़िना-पु० [अ०]परस्त्रीगमन या परपुरुषगमन, व्यभिचार । धिकारी ।-(ले)दार-पु० जमीदारका कारिंदा जो गाँवका जिनि*-अ० दे० 'जनि' ।
लगान वसूल करे; नहर-महकमेका एक कर्मचारी। जिनिस-स्त्री० दे० 'जिंस' ।
जिलाना-स० क्रि० मरे हुएको जिंदा करना; पालनाजिन्सवार-पु० दे० 'जिंस' के साथ ।
पोसना; मरनसे बचाना, जीवन देना। जिबह-पु० गला काटना, हलाल करना।
जिलाह*-पु० जालिम, अत्याचारी। जिव्हा*-स्त्री० दे० 'जिह्वा' ।
जिल्द-स्त्री० [अ०] खाल, त्वचा; पुस्तककी रक्षाके लिए जिभ्या*-स्त्री० दे० 'जिह्वा' ।
लगायी, चिपकायी हुई दफ्ती आदि; पुस्तकका अलग जिमाना-स० क्रि० खाना खिलाना।
सिला, बँधा हुआ खंड; पुस्तककी प्रति । -गर-पु० दे० जिमि*-अ० जैसे, जिस प्रकार ।
'जिल्दबंद' । -दार-वि० जिसकी जिल्द बँधी हो।
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ज़िल्लत-जीत
- बंद - पु० जिल्द बाँधनेवाला । - बंदी - स्त्री० जिल्द बाँधने, बनानेका काम । -साज़-पु० दे० 'जिल्द बंद' । जिल्लत - स्त्री० [अ०] बेइज्जती; हीनता; दुर्गति । जिल्होरी - ५० एक अच्छा अगहनी धान | जिव | - पु० दे० 'जीव' ।
जिवाँना - स० क्रि० दे० 'जिमाना' ।
जिवाना * - स० क्रि० जिलाना ।
जिष्णु - वि० [सं०] जीतनेवाला, जयशील । पु० विष्णुः सूर्य । जस्ता - पु० दे० 'दस्ता' ।
जिस्म - पु० [अ०] शरीर, बदन; ठोस चीज |
जिस्मानी - वि० [अ०] शारीरिक, देहभव (तकलीफ, सजा) । जिस्मी - वि० [अ०] शारीरिक ।
समझदार, जो
जिहन - पु० दे० 'जेल' । - दार - वि० बातको जल्दी समझ ले । जिहाद - पु० [अ०] (मुसलमानका ) काफिरोंसे लड़ना; वह युद्ध जो धर्मकी रक्षा के लिए किया जाय । जिहादी - वि० [अ०] जिहाद करनेवाला | जिह्म- वि० [सं०] टेढ़ा, कुटिल; दुष्ट; मंद | जिह्माक्ष - वि० [सं०] ऐंचा | जिह्वल - वि० [सं०] जिभला, चटोरा । जिह्वा - स्त्री० [सं०] जीभ, रसना; आगकी लपट । - जप - पु० वह जप जिसमें केवल जीभ हिले । -मूल-पु० जीभकी जड़ । - मूलीय- पु० जिह्वामूलसे उच्चारित वर्ण ( व्या० ) । - लोलुप - वि० चटोरा, जिभला । - लौल्य - पु० चटोरपन । जींगन * - पु० जुगनू ।
मु०
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करना । - जानसे-पूरे दिलसे; पूरी शक्तिसे । - टँगा रहना या होना- किसी बातकी चिंता लगी रहना, खटका बना रहना । - टूट जाना - हिम्मत या उत्साह न रह जाना। ठंढा होना- दे० 'कलेजा ठंढा होना' । - डूबना - बेहोशीसी होना, दिल-दिमागका बहुत सुस्त हो जाना। - तरसना - किसी चीजको पाने, भोगनेके लिए दिल्का बेचैन होना । - दहलना - दे० 'दिल दहलना' । - दुखाना - चित्तको क्लेश पहुँचाना, दिल दुखाना । - देना- नेवछावर होना; बहुत ज्यादा प्यार करना । - धँसा जाना- दे० 'जी बैठा जाना' । धकन्धक करना - भय से घबराना, दिल धड़कना । - निढाल होना -चित्तका व्याकुल होना। -पक जाना- किसी कष्टकर बातसे जी ऊब जाना, किसी कष्टका असह्य हो जाना । - पर आ बनना - प्राण बचाना भी कठिन हो जाना । - पर खेलना- दे० 'जानपर खेलना' । - फट जानादे० 'दिल फट जाना'। - बँटना - दिलका (किसी चिंता, सोचको भूलकर) दूसरी बातमें लग जाना, ध्यानका दूसरी ओर चला जाना। - बढ़ना, - बढ़ाना - दे० 'दिल बढ़ना, बढ़ाना' । - वहलना-चित्तका किसी बात में लगकर दुःख भूल जाना, प्रसन्नता अनुभव करना । - बहलाना - चित्त को किसी प्रिय, प्रसन्नताजनक कार्य में लगाना। - बिगड़ना-जी मतलाना; घिन लगना । - बैठ जाना - दिल डूबना; चित्तका अति खिन्न होना । - बैठा जाना-दिल बेचैन होता जाना, मनका स्थैर्य नष्ट होता जाना। -भर आना-दे० 'दिल भर आना' । -भरकर - जितना जी चाहे, यथेच्छ । - भरना - तृप्ति होना, अधाना धिन न लगना; दिलजमाई करना । भारी होना - अनमना होना; तबीयत सुस्त होना । -मतलाना - मतली होना, वमनका उसवास होना । - में आना - इच्छा होना; विचार उठना । - में खुभना में गड़ना - मनमें बस जाना। - में जलना - मनमें कुढ़ना, जलना । - में धरना- दे० 'जीमें रखना' । - मैं बसना - दिल में घर कर लेना, सदा याद रहना । - में बैठना- हृदयपर अंकित हो जाना; ठीक लगना । - में रखना - याद रखना; खयाल करना; बुरा मानना । - लगना-दिल लगना । —लगाना - दिल लगाना। -लगा होनाध्यान बना रहना, चिंता लगी रहना। -लरजनाकलेजा काँपना । - ललचाना- किसी चीजको पाने, भोगनेकी प्रबल इच्छा होना; मनमें लोभ या लालच पैदा करना । - लेना-मन टटोलना; प्राण लेना । -लोट जाना, - लोटना- किसी चीज के लिए दिलका बेचैन हो जाना | -सन्न होना-चित्त स्तब्ध हो जाना, होश उड़ जाना। - से जाना - मर जाना । जीअ, जीउ - पु० दे० 'जी', 'जीव' | जीअन* - पु० दे० 'जीवन' |
जीगन* - ५० दे० 'जाँगन' ।
जी- अ० नाम, अल्ल या पदवी के साथ जोड़ा जानेवाला आदरसूचक शब्द ( गुरुजी, ठाकुरजी ) । पु० जान, जीव; मन, चित्त, तबीयत; जीवट | (किसी पर) - आना- किसीपर अनुरक्त होना, आशिक होना । - उचटना- किसी काममें, किसी स्थान में दिल न लगना । - उड़ा जाना - चित्तका अतिशय चंचल, उद्विग्न हो जाना, बहुत घबराहट होना । - उलझना - दिल घबराना | - करना - इच्छा होना, दिल चाहना; हिम्मत करना | - का बुखार निकालना - दिलका गुबार निकालना | - का बोझ हलका हो जाना - चिंता या आशंकाका दूर हो जाना। -की जीमें रहना चाही, सोची हुई बातका न होना, हौसला या अरमानका न निकलना । - की पड़ना-दे० 'जानकी पड़ना' । की लगी - मनमें बसी हुई बात, मनोव्यथा । -को रोग लगना- किसी बात की फिक्र करना । -खट्टा करनाकिसीके दिल में घृणाका भाव भर देना । - खोना - जान देना; दिलका हाथमें न रहना । - खोलकर - जी भरकर, यथेष्ट | - चाहना-इच्छा होना । -चुराना- किसी कामसे भागना, जान चुराना - छूटना - हिम्मत टूटना, हताश होना । - छोटा करना - उत्साह कम करना; दिल छोटा करना । - छोड़कर भागना - बदहवास होकर भागना, साँस लेने को भी न रुकना । - छोड़ना - हिम्मत हारना । - जलना - हृदय में भारी दुःख, संताप होना, कुढ़ना | - जलाना - सताना; कुढ़ाना । - जान | ज़ीट-स्त्री० डींग |
लड़ाना - दत्तचित्त होकर प्रयत्न करना; खूब मेहनत | जीत - स्त्री० युद्ध, बाजीके खेल, मुकदमे, प्रतियोगिता आदि
जीजा - पु० बड़ी बहनका पति । जीजी - स्त्री० बड़ी बहन ।
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जीतना-जीवन में मिलनेवालो सफलता, जय, फतह लाभ ।
वृद्ध व्यक्ति; वृक्ष; जीरा; शिलाजतु; बुढ़ापा; क्षीणता । जीतना-सं०क्रि० युद्ध, मुकदमा, खेल, प्रतियोगिता आदि- -ज्वर-पु० पुराना बुखार, अधिक दिनसे रहनेवाला में विपक्षीको हराना, जयलाभ करना; दमन करना, वशमें मंदज्वर; बारह दिनसे अधिकका ज्वर (आ०)।-वाटिकालाना (मन, इंद्रिय आदिको)।
स्त्री० खंडहर । जीता-वि० जीता हुआ; जिंदा; तौल या नापसे थोड़ा जीर्णक-वि० [सं०] करीब-करीब सूखा या मुरझाया हुआ। अधिक (तौलना)। -जागता-वि० भला-चंगा, सशक्त, जीर्णोद्धार-पु० [सं०] पुरानी, टूटी-फूटी चीजकी मरम्मत; सतेज । -नाखुन-पु० मांससे लगा हुआ नाखुन । पुराने मंदिर, कुएँ, तालाब आदिकी मरम्मत । -लहू-पु० ताजा लहू । -लोहा-पु० चेयक । मु० जीर्णोद्यान-पु० [सं०] वह बगीचा जो पुराना हो जाने या जीती मक्खी निगलना-जान-बूझकर कोई दोष करना, सिंचाई आदि न होनेके कारण उजड़ रहा हो। न करने लायक बात करना । जीते जी-जिंदा रहते हुए, जीला*-वि० झीना, बारीक । मौजूदगीमें जिंदगीभर । जीते जी मर जाना-जीवन्मृत जीवंत-वि० [सं०] जीवित, जीता हुआ; दीर्घायु । हो जाना, किसी भारी शोक, आघातसे मनका मर जाना, जीव-पु० [सं०[ देहस्थित या देहावच्छिन्न चैतन्य, जीवात्मा; निरानंद, निरुत्साह हो जाना । जीते-मरते-किसी | प्राण, जान; जीवन, प्राणी, लिंगदेह; जीविका; विष्णु; तरह, बड़ी कठिनाईसे।
कर्ण; एक मरुत् बुहस्पति । -जंतु-पु० प्राणी; छोटे प्राणी, जोति-स्त्री० [सं०] विजयः क्षति, क्षय ।
कीड़ा-मकोड़ा ।-जगत्-पु० प्राणि-समष्टि । -जीव-पु० जीन-वि० [सं०] जीर्ण, क्षीण वृद्ध । पु० चमड़ेका थैला। चकोर । -दान-पु. प्राणदान । -धन-पु० पशुधन, ज़ीन-पु० [फा०] चार जामा, काठी; पलाना एक मोटा, गाय-बैल, घोड़ा-हाथी आदि; प्रिय व्यक्ति ।-धारी(रिन) कड़ा सूती कपड़ा। -पोश-पु० जीनके ऊपर डालनेका पु० प्राणी, जंतु । -पुत्रा,-वत्सा-स्त्री० वह स्त्री जिसका झालरदार कपड़ा, झूल । -सवारी-स्त्री० घोड़ेको सवारी | बेटा जीता हो । -प्रिया-स्त्री० हड़। -बंद-पु० के काम लाना । -साज़-पु. जीन बनानेवाला। दे० 'जीवबंधु'। -बंधु-पु० गुलदुपहरिया। -बलिजीनत-स्त्री० [अ०] सजावट, शृंगार; शोभा। -महल- स्त्री०पशु आदिकी बलि ।-मंदिर-पु०शरीर ।-मातृकावि० महलकी शोभा, शृंगार-स्वरूप ।
स्त्री० सात देवियाँ जो माताके समान प्राणियोंका पालनजीना-अ० कि० जीवनकी अवस्थामें होना, देहमें प्राण या पोषण करनेवाली मानी जाती हैं (कुमारी, धनदा, नंदा, जीवका बना रहना, जिंदा होना; जीवनयात्रा करना, विमला, मंगला, बला और पद्मा) । -योनि-स्त्री० जीव(किसी चीजपर जीना-किसी चीजके सहारे जीना); धारियोंकी योनि, जंगम योनि (मनुष्य, पशु-पक्षी आदि)। प्रसन्न होना । मु० जी उठना-मरे हुएका जो जाना; -लोक-पु० संसार, मर्त्यलोक, प्राणिजगत् । -विज्ञान सूखे हुएका हरा हो जाना । जीना दूभर, भारी हो -पु० जीव-जंतुओंकी शरीररचना, वगीकरण, जीनेके ढंग जाना-जीवनका भाररूप या कठिन हो जाना । जीनेका | आदिका विज्ञान (.जूलॉजी)। -शेष-वि० जिसकी जानमज़ा-जीवनका सुख ।
भर बची हो; जो सब कुछ छोड़कर केवल जान लेकर भाग जीना-पु० [फा०] सीढ़ी, सोपान ।
आया हो। -संक्रमण-पु० जीवका एक देह त्यागकर जीभ-स्त्री० मुंहके भीतर स्थित चपटा मांसल अंग जो रस- दूसरीमें जाना। -हत्या-स्त्री० जीववध, जीवहिंसा । ज्ञान और मनुष्यों में बोलनेकी क्रियाका साधन है, जिह्वा, । रसना, जबान; कलमकी नोक जिससे लिखा जाता है। | जीवट-पु० हिम्मत, साहस; बहादुरी। मु०-हिलाना-बोलना, मुँह खोलना।
जीवति*-स्त्री० जीविका । जीभी-स्त्री० ताँबे, पीतल आदिके पत्तरकी बनी चीज जिस-जीवत्पुत्रिका-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पुत्र जीता हो; से जीभका मैल साफ करते हैं; छोटी जीभः चौपायोंका। आश्विन कृष्णाष्टमीका व्रत। एक रोग; निब; लगामका एक भाग ।
जीवद्वत्सा-वि० स्त्री० [सं०] जीवित पुत्रवाली । जीमना-स० क्रि० भोजन करना।
जीवन-पु० [सं०] जीता रहना, प्राणधारण; जीवित दशा, जीमूत-पु० [सं०] बादल; पर्वत; इंद्र; सूर्य । -वाहन- जिंदगी; जीवनका आधाररूप वस्तु; प्राणी; जीविका; पु० इंद्र (मेघ है वाहन जिसका)।
जल; वायुः पुत्रः परमात्मा ताजा दूध, मक्खन, मज्जा । जीय-पु० दे० 'जी', 'जीव' । -दान-पु० प्राणदान । वि० जीवनदाता, प्राणप्रद । -क्रम-पु० जीवनयात्रा, जीयति*-स्त्री० जीवन ।
रहन-सहनका ढंग। -चरित,-चरित्र-पु० जीवनजीर*-वि० जीर्ण, जर्जर | पु० जिरह, कवच ।
वृत्तांत; वह पुस्तक जिसमें किसीका जीवनवृत्त लिखा जीरक, जीरण-पु० [सं०] जीरा ।
हो। -चर्या-स्त्री० रहन-सहनका तरीका। -तत्त्वजीरण, जीरन*-वि० दे० 'जीर्ण'।
पु० (विटामिन) दे० 'खाद्योज'। -द-वि० जीवनदाता। जीरना-अ० कि जीर्ण होना; कुँभलाना; फटना।
-दान-पु० शत्रु या अपराधी आदिको प्राण न लेनेका जीरा-पु० एक सुगंधित बीज जो मसाले और दवाके काम | वचन देना; देश या समाजकी सेवाके लिए जीवन अर्पित आता है; जीरेकी शक्ल का बीज फूलका केसर ।
करना, लगाना । -धन-वि० जीवनका आधार, जीर्ण-वि० [सं०] बूढा, जरायुक्त; पुराना, दिनी; फटा. सर्वस्व, (पति)। -धर-वि० जीवन-रक्षक, जीवनदाता । पुराना ढहता हुआ, जर्जर, क्षयप्राप्त; पचा हुआ। पु० -निर्वाह-पु०,-यात्रा-स्त्री०,-यापन-पु० जीवनकी
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मामा
जीवनांत-जुगवना
२८६ आवश्यकताएं पूरी करना, रोजका खर्च चलाना। जीविका-स्त्री० [सं०] जीवनयात्राका साधन,रोजी, वृत्ति । -बूटी-स्त्री० [हिं०] संजीवनी बूटी। -मरण- जीवित-वि० [सं०] जीता हुआ, जीवंत, जीवनयुक्त; जिसे पु० जीना-मरना, जिंदगी-मौत । -मूरि-स्त्री० [हिं०] पुनः जीवन मिला हो। पु० जीवन; जीवन-काल; संजीवनी बूटी; अति प्रिय वस्तु या जन ।-यापनव्यय- जीविका, प्राणी। -काल-पु० आयु । -नाथ-पु० पु० (कॉस्ट ऑव लिविंग) जीवन-निर्वाहका व्यय- पति । -संशय-पु० जीवनका खतरा । भोजन, वस्त्र, निवास आदि-संबंधी वह सामान्य व्यय जो जीवितांतक-पु० [सं०] शिव । जीवनयापनके लिए आवश्यक होता है। -रक्षक नौका- जीवितेश-पु० [सं०] प्राणाधार, पति ईश्वर चंद्र, सूर्य । स्त्री० (लाइफ बोट) जहाज डूबते समय प्राण बचानेवाली जीवी(विन्)-वि० [सं०]...से जीनेवाला (जैसे श्रमविशेष प्रकारकी नौका । -रक्षक पेटी-स्त्री० (लाइफ जीवी, चिरंजीवी, दीर्घजीवी इ०) । बेल्ट) डूबनेसे बचनेके लिए बाँधी जानेवाली पेटी जिसमें जीवेश-पु० [सं०] परमेश्वर । हवा भरी रहती है या बड़ा-सा काग (कार्क) लटकता जीह, जीहा*-स्त्री० दे० 'जीभ' । रहता है। -वृत्त,-वृत्तांत-पु० जीवनचरित ।-वत्ति- जीहि, जीही*-स्त्री० दे० 'जीभ' । स्त्री० जीविका। -संघर्ष-पु० कठिन परिस्थितियोंमें | जुई-स्त्री० दे० 'जुई। अस्तित्व बनाये रखनेका भारी प्रयत्न । -हर-वि० जु-अ०, सर्व० दे० 'जो'। जीवनका हरण करनेवाला।
जुअती*-स्त्री० दे० 'युवती'। जीवनांत-पु० [सं०] जीवनका अंत, मृत्यु ।
जुआँ, जुआ-पु० दे० ''। जीवनावास-पु० [सं०] वरुण शरीर।
जुआ-पु० इल, बैलगाड़ी आदिमें जीते जानेवाले बैल या जीवनि*-स्त्री० संजीवनी बूटी, जिलानेवाली चीज; अति | बैलोंके कंधेपर रखी जानेवाली लकड़ी; जाँतेकी मूठा बाजी प्रिय वस्तु ।
लगाकर खेला जानेवाला (ताश आदिका) खेल, धत जीवनी-स्त्री०जीवनचरित ।
सोलह चित्ती कौड़ियोंसे खेला जानेवाला इस तरहका जीवनोपाय-पु० [सं०] जीविका ।
खेल। -खाना-पु० जुआ खेलनेका अड्डा। -चोरजीवनौषध-स्त्री० [सं०] वह दवा जो मरतेको जिला दे। पु० जीतकर भाग जानेवाला जुभाड़ी; धोखवाज। जीवन्मुक्त-वि० [सं०] जो जीवित दशामें ही आत्मज्ञान | -चोरी-स्त्री० धोखेबाजी। प्राप्त कर संसार-बंधनसे छूट गया हो ।
जुआड़ी-पु० जुआ खेलनेवाला । जीवन्मृत-वि० [सं०] जो जीता हुआ भी मुर्दे जैसा हो। जुभार-स्त्री० दे० 'ज्वार'; * पु०दे० जुआडी' -भाटाजीवरा*-पु० जीव; प्राण ।
पु० दे० 'ज्वारभाटा'। जीवरि*-स्त्री० जीवन धारण करनेकी शक्ति ।
जुआरी-पु० जुआ खेलनेवाला । जीवांतक-पु० [सं०] बहेलिया। वि० जीवोंका वध करने जुडें-स्त्री० छोटी जू; मटर आदिमें लगनेवाला छोटा कीड़ा। वाला।
जुकाम-पु० [अ०] एक रोग जिसमें नाक बहती, कुछ जीवा-स्त्री० [सं०] धनुषकी डोरी; चापके दो सिरोंको। ज्वर हो आता और सिर भारी हो जाता है। मु०मिलानेवाली रेखा; (कॉर्ड) वह रेखा जो परिधिके एक बिगड़ना-जुकामका सूख जाना । (मेढकीको)विंदुसे दूसरेतक खींची जाय, किंतु जो केंद्रसे होकर न होना-छोटे आदमी में बड़ोंकी बराबरी करनेका हौसला
जाय, चापकर्ण; जल, पृथ्वी; जीविका वचा; जीवंती। होना। जीवाजून*-पु० जीवजंतु ।।
जुग-पु० युग; पीढ़ी; जोड़ा, युग्म गुट्ट; चौसरकी गोटियोंजीवाणु-पु० [सं०] (वेसिलस) क्षुद्रतम जीव; (बैक्टीरिया) का जोड़ा, एक घर में बैठी हुई दो गोटियाँ। -जुग-अ० विकारसे उत्पन्न होनेवाले अति-सूक्ष्म एक-कोपीय शाकाणु सदा, युगोंतक । -जुग जियो-युगोंतक जीते रहो, लंबी जिनमेंसे कितने ही तो रोगोंकी उत्पत्तिके कारण माने | आयु भोगो । मु०-टूटना,-फूटना-दो इकट्ठी गोटियोंका जाते हैं और कुछ शरीरके लिए लाभदायक भी होते हैं। अलग-अलग हो जाना; एका न रह जाना, फूट पड़ना। -नाशक-वि० (एंटी-बायोटिक) जो (रोगादि उत्पन्न | जुगजुगाना-अ० क्रि० झिलमिलाना, टिमटिमाना । करनेवाले) जीवाणुओंका नाश करने में समर्थ हो (दवा)। | जुगजुगी-स्त्री० एक चिड़िया, शकरखोरा। -विज्ञान-पु० (बैक्टीरियालॉजी) जीवाणुओंकी उत्पत्ति, | जुगत-स्त्री० युक्ति, उपाय, चतुराई; द्वयर्थक बात, व्यंग्यविकास आदिका विवेचन करनेवाला विज्ञान | -विद- विनोदभरी उक्ति । * वि० युक्त, संभव। मु०-लगानापु० (बैक्टीरियालॉजिस्ट) जीवाणुओं संबंधी जानकारी जोड़-तोड़ भिड़ाना, युक्ति करना। रखनेवाला, जीवाणु-विज्ञान जाननेवाला ।
जुगती-वि० जोड़-तोड़ लगानेवाला, चतुर । जीवात्मा(त्मन्)-पु० [सं०] जीव, देहस्थ चैतन्य, जुगनी-स्त्री० दे० 'जुगनू', * हार आदि में लगा हुआ नग। व्यष्टि आत्मा।
जुगनू-पु० एक कीड़ा, खद्योत (रातमें उड़नेपर इसकी दुमजीवाधार-पु० [सं०] जीवका अधिष्ठान, हृदय । से रोशनी निकलती है); गलेमें पहननेका एक गहना। जीवावशेष-पु० [सं०] (फॉसिल) धरतीके भीतरी स्तरोंसे | जुगम*-वि० दे० 'युग्म' । निकले हुए प्राचीन कालके जीवों, वनस्पतियों आदिके जुगल-वि० दे० 'युगल'। अवशिष्टांश।
जुगवना-स०नि०जोड़ना,इकट्ठा करना;संभालकर रखना ।
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जुगालना - अ० क्रि० जुगाली करना । जुगाली - स्त्री० गाय-बैल आदिका निगले हुए चारेको थोड़ा थोड़ा पेटसे मुँह में लाकर चबाना, रोमंथ; चर्वितचर्वण । जुगुत, जुगुति * - स्त्री० दे० 'युक्ति' ।
जुगुप्सा - स्त्री० [सं०] निंदा; घृणा; बीभत्स रसका स्थायी जुबाद * - ५० एक तरहकी कस्तूरी ।
भाव ।
जुगुप्सित - वि० [सं०] निंदित; घृणित ।
जुगुल * - वि० दे० 'युगल' ।
जुज़ - अ० [फा०] के सिवा, बगैर, बिना । पु० [अ०] अंश, टुकड़ा; बहुत छोटा खंड; पुस्तक के अलग भांजे और सिले हुए पन्ने, फार्म । - बंदी - स्त्री० किताबके जुजोंको जिल्दबंदी के लिए सीना; किताबकी सिलाई जिसमें एकएक जुज या फार्म अलग-अलग सिला जाय ।
जुझाना - स० क्रि० जूझनेको प्रेरित, उत्साहित करना । जुझार* - वि० रणप्रिय वीर । पु० युद्ध । जुट- स्त्री० जोड़ा, युग्म; दो अभिन्न मित्र; गुद |
जुटना - अ० क्रि० जुड़ना, संयुक्त होना; सटना, चिमटना, गुथना; जमा, इकट्ठा होना; पहुँचना; (किसी काममें) मुस्तैदी से लगना; संभोग करना; अभिसंधि करना | जुटली * - वि० बालोंकी लंबी लटोंवाला । जुटाना - स० क्रि० जोड़ना; पास पहुँचाना; इकट्टा करना।
जुटाव - पु० जमाव ।
जुठारना, जुठालना-स० क्रि० जूठा कर देना । जुठिहारा- पु० जूठा खानेवाला ।
जुज्झ* - पु० युद्ध |
जुझाऊ - वि० युद्ध-संबंधी; जूझनेको उत्साहित करनेवाला, जुरा* - स्त्री० बुढ़ापा; मृत्यु । भारू (-बाजा) ।
जुड़वाई - स्त्री० दे० 'जोड़वाई' ।
जुड़वाना - सु० क्रि० ठंडा करना; तृप्त करना; दे० 'जोड़वाना' ।
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जुन्हरी - स्त्री० ज्वार । जुन्हाई, जुन्हैया* - स्त्री० चाँदनी, चंद्रिका; चंद्रमा । जुबराज * - पु० दे० 'युवराज' | जुबली - स्त्री० [अं० जुबिली ] उत्सव; जयंती ।
जुत्थ* - पु० दे० 'यूथ' ।
जुदा - वि० [फा०] अलग; भिन्न; निराला । जुदाई - स्त्री० [फा०] वियोग, बिलगाव | जुद्ध*- पु० दे० 'युद्ध' ।
• जुबान - स्त्री० [फा०] दे० 'जवान' (समास भी) । जुमला - वि० [अ०] कुल, तमाम, सब । पु० जोड़; वाक्य | जुमा - पु० [अ०] शुक्रवार । - (मे) रात - स्त्री० गुरुवार । मु० - जुमा आठ दिन - थोड़े दिन, चंद रोज । जुम्मा-पु० दे० 'जुमा' | जुर* - पु० ज्वर ।
जुरअत - स्त्री० [अ०] बहादुरी, मर्दानगी; साहस । जुरना* - अ० क्रि० दे० 'जुड़ना' ; भिड़ना | जुरमाना - पु० दे० 'जुर्माना' ।
जुराना * - अ० क्रि० ठंडा होना । स० क्रि० एकत्र करना । जराफा - पु० दे० 'जिराफ़ा' |
जुगालना - जुही
जुरावना * - स० क्रि० दे० 'जुराना' ।
जुर्म - पु० [अ०] अपराध, वह काम जो कानून में दंडनीय माना गया हो ।
जुर्माना - पु० [अ०] वह रकम जो किसी अपराधके दंडरूप में देनी पड़े, अर्थदंड |
जुर्रत स्त्री० दे० 'जुरअत' ।
जुर्रा- पु० [फा०] नर बाज | जुर्राब - स्त्री० [तु० ] मोजा ।
जुड़ना - अ० क्रि० जोड़ा जाना, संयुक्त होना; इकट्टा होना; जुलफ, जुलुफ* - स्त्री० दे० 'जुल्फ' ।
जुल - पु० झाँसा, चकमा । -बाज - वि० जुल देनेवाला । जुलकरन*-पु० [अ०जुलकरनैन] सिकंदर ( रूमी) की उपाधि ।
जुतना; उपलब्ध होना ।
जुलाई - स्त्री० [अ०] ईसवी सन्का सातवाँ महीना ।
जुड़पित्ती - स्त्री० एक रोग जिसमें बदन में खुजली होती और जुलाब-पु० दस्त लानेवाली दवा, विरेचन । बड़े-बड़े ददोरे निकल आते हैं, पित्ती । जुड़वाँ - वि० जुड़े हुए, यमल । पु० एक साथ पैदा हुए दो बच्चे ।
जुड़ाना - अ० क्रि० ठंडा होना । स० क्रि० ठंडा करना । जुड़ावना* - स० क्रि० ठंडा करना ।
जुत* - वि० दे० 'युक्त' ।
जुतना - अ० क्रि० जोता जाना; लगना; जुटना ।
जुतवाना - स० क्रि० जोतनेका काम दूसरे से कराना । जुताई - स्त्री० जोतनेकी क्रिया या भाव; जोतनेकी उजरत । जुवा- पु० दे० 'जुआ' | जुताना स० क्रि० दे० 'जोताना' ।
जुतिओवल - स्त्री० आपस में जूतोंसे मारपीट करना । जुतियाना - स० क्रि० जूते लगाना; बुरी तरह अपमानित
करना, जलील करना ।
जुलाहा - पु० कपड़ा बुननेवाला, तंतुवाय; पानी पर तैरने - वाला एक कीड़ा; एक बरसाती कीड़ा ।
जुलूस - पु० [अ०] तख्तनशीनी, राज्यारोहण; राजाकी सवारी; बहुत से लोगोंका इकट्टा होकर समारोहके साथ कहीं जाना या नगर भ्रमण (निकलना, निकालना) । जुलोक*- * - पु० द्युलोक, सुरलोक, वैकुंठ ।
• जुल्फ़-स्त्री० [फा०] पट्टा, काकुल ।
. जुल्म - पु० [अ०] अन्याय; जबरदस्ती; अत्याचार, अंधेर ।
. जुल्मी - वि० [अ०] जालिम, अत्याचारी | जुल्लाब - पु० [अ०] जुलाब, विरेचन । जुवराज * - पु० दे० 'युवराज'
जुवार - स्त्री० दे० 'ज्वार' ।
जुवारी - पु० दे० 'जुआरी' ।
जुष्ट-वि० [सं०] युक्त; जूठा । पु० जूठन, उच्छिष्ट
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जुहाना, जुहावना* - स० क्रि० इकट्ठा करना । अ० क्रि० एकत्र होना - ' ... लाखन विप्र जुहाने' - रघु० । जुहार - स्त्री० अभिवादनका एक प्रकार, प्रणाम । जुहारना - स० क्रि० अभिवादन करना । जुही-स्त्री० दे० 'जूही' ।
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.जुहूर-जेब
२८८ .जुहर-पु० [अ०] प्रकट होना; नुमाइश ।।
जूरना*-स० क्रि० जोड़ना, इकट्ठा करना। अ० क्रि० गूं-पु०,स्त्री० मैल और पसीना मरनेसे सिरके बालों में पैदा
- इकट्टा होना। हो जानेवाला एक नन्हा कीड़ा, ढील । मु(कानोपर)- जूरा*-पु० दे० 'जूड़ा' । न रेंगना-स्थितिपर ध्यान न जाना, होश न होना। जूरी-स्त्री० पूला, जुट्टी; एक तरहकी पकौड़ी; [अं०] पंचोंगूंठन-स्त्री० दे० 'जूठन'।
का मंडल जो फौजदारी मुकदमे में अभियुक्तके अपराधी जू-अ० नामके साथ लगाया जानेवाला आदरसूचक शब्द होने या न होनेके संबंध में जजको अपनी राय देता है। 'जी'का व्रज, बुंदेलखंडी आदि भाषाओं में प्रचलित रूप। जूस-पु० दालका पानी; रोगीको दिया जानेवाला पथ्य । जूआ-पु० दे० 'जुआ।
जूसी-स्त्री० राबके ऊपर छूटने या शकर बनानेमें उसके जूजू-पु० बच्चोंको डरानेके लिए कल्पित जीव, होआ। मैल और नमीके रूपमें निकलनेवाला शारा, चोटा। जूझ*-पु० युद्ध ।
जूह*-पु० दे० 'यूथ'। जूझना-अ० क्रि० लड़ना; लड़ते हुए मर जाना। जूहर-पु० दे० 'जौहर'।। जूट-पु० [सं०] जूड़ा; जटा; [अं०] पटसन ।
जूही-स्त्री० एक झाड़ जिसके फूल बहुत छोटे, सुकुमार जूटना* स० क्रि० जोड़ना, मिलाना। अ० क्रि० एकत्र और बड़ी मधुर गंधवाले होते हैं। एक आतिशबाजी । होना; प्रवृत्त होना, लगना ।
जभ-पु० [सं०] जम्हाई; फैलाव; खिलना। जूठन-स्त्री० खाकर छोड़ा हुआ भोजन, उच्छिष्ट; इस्तेमाल जभक-वि० [सं०] जंभाई लेनेवाला; सुस्त करनेवाला । की हुई चीज।
पु० एक अस्त्र; एक रुद्रगण ।। जूठा-वि० खाकर छोड़ा हुआ, जुठारा हुआ, उच्छिष्ट; जभण-पु० [सं०] जम्हाई लेना; फैलना खिलना। जिसमें खाया-पिया गया हो (बरतन, चौका); जिसमें भा-स्त्री० [सं०] दे० 'जभ' । जूठा लगा हो (हाथ, मुँह ); * झूठा । पु० जूठन। जभिका-स्त्री० [सं०] जम्हाई; आलस्य । जूड़*-वि० शीतल प्रसन्न । पु० दे० 'जूड़ा।
जभित-वि० [सं०] जिसने जम्हाई ली हो; फैला हुआ जूडा-पु० सिरके बाल जो लपेटकर बाँध दिये गये हों, जूट, फैलाया हुआ; चेष्टित: खिला हुआ। चोटी; गेंडुरी।
अँगना*-पु० जुगनू-जगनाकी जोति कहा रजनी बिलात जूड़ी-स्त्री० जाड़ा देकर आनेवाला ज्वर, जड़ेया बुखार । । है'-संद०। जूता-पु० चमड़े, किरमिच, रबर आदिका बना हुआ पाद- | जैना*-स० क्रि० दे० 'जीमना'। त्राण, उपानह, पापोश। -खोर-वि० पीटे जानेका जे वन-पु० खानेकी चीज या कार्य । आदी, लतखोर,बेहया ।मु०-उछलना-मार-पीट होना, जैवना-स० क्रि० दे० 'जीमना' । पु० भोजन । जूती-पैजार होना।(जूते)गाँटना-जूतोंकी मरम्मत करना; जेवनार-स्त्री० दे० 'जेवनार' । नीच काम करना । -चलना-दे० 'जूता उछलना'। जवाना-स० कि० भोजन कराना। -चाटना-चापलूसी करना । -पड़ना,-बरसना- जे*-सर्व० 'जोका बहु०। जूतोंकी मार पड़ना। -मारना-जुते लगाना; जलील | जेड, जेउ, जेऊ*-सर्व० दे० 'जो'। करना; मुँहतोड़ जवाब देना। -लगना-जूते पड़ना; जेट-स्त्री० ढेर; गोद । नुकसान होना, घाटा पड़ना; अपमानित होना ।-लगाना जेटी-स्त्री० पानीके ऊपर बना हुआ लकड़ी आदिका चबू-जूते मारना; अपमानित करना, लथेड़ना । (
तरा जिसपरसे जहाजपर माल चढ़ाया-उतारा जाता है। खबर लेना.-से बात करना-जूते लगाना।
जेठंस-पु०, जेठंसी-स्त्री. बड़े भाईका हिस्साज्येष्ठांश । जूती-स्त्री० जनाना जूता; जूता । -कारी-स्त्री० जूतोंकी जेठ-वि० ज्येष्ठ, उम्र में बड़ा। पु० पतिका बड़ा भाई; मार -खोर,-खोरा-वि०जूते खानेका आदी; निर्लज्ज । बैसाख और असाढ़के बीच पड़नेवाला चांद्रमास । -छि(छ)पाई-स्त्री० जूते छिपाने और लौटानेका नेग। जेठा-वि० बड़ा, ज्येष्ठ; श्रेष्ठ । -पैजार-स्त्री० जूता चलना, मार-पीट; गंदी लड़ाई। | जेठाई-स्त्री० जेठा होना, जेठापन । म०-की नोकपर मारना-कुछ न समझना। -की जेठानी-स्त्री० पतिके बड़े भाईकी स्त्री। नोकसे-(मेरी) बलासे, कुछ परवाह नहीं। -के बरा- जेठी-वि० जेठका जेठमें होनेवाला । * स्त्री० जेठानी। बरन समझना-तुच्छ,हेय समझना । जूतियाँ चटखाते जेठीमधु-पु० मुलेठी।। फिरना-मारा-मारा फिरना ।
जेठौत, जेठौता-पु० जेठका लड़का । जूथ*-पु० दे० 'यूथ' ।
जेतव्य-वि० [सं०] जीतने योग्य, जेय । जूथका, जूथिका*-खो० दे० 'यूथिका'। जून-* वि० जीर्ण, पुराना । पु० वेला, वक्त दिनका | जेता(त)-वि० [सं०] जीतनेवाला, विजयी । पु० विष्णु ।
अर्द्ध भाग; तृणः [अं०] ईसवी सन्का छठा महीना । जेतिक*-अ० जितना । जूप*-पु० जुआ, घत; विवाहमें वर-वधूके जुआ खेलनेकी जेते*-वि० जितने । एक रीति; दे० 'यूप' ।
जेना-१०क्रि० दे० 'जीमना'। जूमना*-अ० क्रि० जुटना, इकट्ठा होना ।
जेब-पु० [अ०] गरेबान; कुरते, कमीज आदिमें रुपये-पैसे, जूर*-पु० जोड़ ढेर ।
| घड़ी-रूमाल आदि रखनेके लिए लगी हुई थैली, खीसा,
जितना ।"
जेता
ठा महीना ।
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२८९
पाकिट (हिंदी में स्त्रीलिंग भी) । -कट, -कतरा - पु० जेब कतरनेवाला, पाकिटमार । - खर्च - पु० निजी खर्च; निजी खर्चके लिए मिलनेवाली रकम । - खास - पु० राजा, बादशाह के निजी खर्चके लिए राज्यकोशसे दिया जानेवाला धन । - घड़ी - स्त्री० जेब में रखनेकी (छोटी) घड़ी ।
जेबी - वि० [अ०] जेब में रखने लायक; छोटा । जय - वि० [सं०] जीतने योग्य, जेतव्य । जेर- स्त्री० आँवल ।
ज़ोर-अ० [फा०] नीचे, तले । वि० कमजोर, दबा हुआ । स्त्री० अरबी-फारसी लिखावटमें इ, ई और एकी मात्रा । - जामा - पु० वह कपड़ा जिसे घोड़ेकी पीठपर डालकर ऊपर जीन कसते हैं । तजवीज़- वि० विचाराधीन, जिसपर विचार हो रहा हो, अनिणींत ( मुकदमा ) । - बार - वि० बौझके नीचे दबा हुआ; ऋणग्रस्त; भारी खर्च, आर्थिक हानि उठानेवाला । जेरना * - स० क्रि० उत्पीड़ित करना, परेशान करना । जेरिया, जेरी - स्त्री० चरवाहेका डंडा; खेतीका एक औजार । जेल - पु०, स्त्री० [अ०] कैदखाना, बंदीगृह; * जंजाल, खाना-पु० कैदखाना, कारागार । मु०काटना- कैद की सजा भुगतना ।
बंधन |
जेलर - पु० [अ०] जेलकी देखभाल करनेवाला अफसर । जेवड़ी - स्त्री० दे० 'जेवरी' ।
जेवना - स० क्रि० दे० 'जीमना' ।
जेवनार - स्त्री० भोज, दावत ।
जेवर - पु० एक चिड़िया; दे० 'जेवर' । स्त्री० रस्सी । जेवर - पु० [फा०] गहना, आभूषण; शोभारूप वस्तु, शृंगार । जेवरा* - पु० फंदा, रस्सी । जेवरी* - स्त्री० रस्सी ।
जेह-स्त्री० [फा०] कमानका चिला; लैस, फीता; दीवार में नीचे की ओर किया हुआ कुछ अधिक मोटा पलस्तर । जेहन - पु० दे० 'जेल' । - दार- वि० तीक्ष्णबुद्धि । जेहर* - पु० पाजेब |
जेहरि, जेहरी* - स्त्री० दे० 'जेहर' | जेहि * - सर्व० जिसे; जिससे ।
. जे - पु० [अ०] धारणाशक्ति; बुद्धि, समझ । जै - + वि० जितने । * स्त्री० दे० 'जय' । -कार- पु० दे० 'जयकार' । - माल, - माला - स्त्री० दे० 'जयमाला' | जैत - पु० एक पेड़ । * स्त्री० जीत, जय । - पत्र - पु० जय पत्र । - वार- वि० जीतनेवाला, विजेता |
जैतून - पु० [अ०] एक सदाबहार पेड़ जिसका फल खाया और बीजोंका तेल खाने और दवाके काम में लाया जाता है। जैन - पु० [सं०] जिनकी उपासना करनेवाला धर्म, अहिंसाको माननेवाला भारतका एक निरीश्वरवादी संप्रदाय । जैनी - पु० जैन धर्मको माननेवाला । जैनु* - पु० भोजन |
जैमिनि - पु० [सं०] पूर्वमीमांसा दर्शन के प्रवर्तक एक मुनि जो वेदव्यासके शिष्य थे । - दर्शन- पु० पूर्वमीमांसा । लदार पु० [अ०] वह कर्मचारी जिसके जिम्मे कई गाँवोंकी तहसील आदि हो ।
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जेबी-जोगीश्वर
जैस * - वि० जैसा ।
जैसा - वि० जिस तरहका, याध्श; जितना; सरीखा, सदृश । .- (से) को तैसा - जो जैसा है उसके साथ वैसा (व्यवहार) । जैसे- अ० जिस तरह, जिसरीतिसे । - जैसे- अ० ज्यों-ज्यों । जैसो* - वि० दे० 'जैसा' |
जो - अ० दे० 'ज्यो' । -जाँ - अ० दे० ज्यों - ज्यो” । जाँक- स्त्री० पानीका एक कोड़ा जो प्राणियोंकी देहमें चिपककर उनका रक्त पीता है, जलौका, जलसर्पिणी । जो की स्त्री० पानीके साथ जोंक पी जानेसे गाय-बैल आदि के पेट में होनेवाली जलन; पानीका एक कीड़ा; जोंक । जोरी, जो धरी- स्त्री० छोटे दानेकी ज्वार । जो धेया" - स्त्री० चाँदनी । जो- सर्व० संबंधवाचक सर्वनाम | अ० यदि, अगर । - पै* - अ० अगर, यद्यपि । जोअना* - स० क्रि० दे० 'जीवना' । जोइ * - स्त्री० दे० 'जोय' । सर्व० दे० 'जो' | जोइसी* - पु० दे० 'ज्योतिषी' । जोउ०- सर्व० दे० 'जो' ।
जोख - स्त्री० जोखनेकी क्रिया या भाव; तौल । जोखना- स० क्रि० तोलना; * सोचना, विचारना । जोखम - स्त्री० दे० 'जोखिम' |
जोखा - पु० हिसाब (प्रायः 'लेखा' के साथ : प्रयुक्त) जोखिउँ * - स्थी० दे० 'जोखिम' |
जोखिता* - स्त्री० दे० 'योषिता' ।
जोखिम - स्त्री० हानि, अनिष्ट, घाटेकी संभावना; खतरा; ऐसी चीज जो विपत्तिका कारण हो । -का काम - खतरेका काम | मु० - उठाना, - लेना - जोखिमवाला काम करना, हानि या अनिष्टका खतरा लेनेको तैयार होना । जोखिमी - वि० जिसमें जोखिम हो । जोखाँ-- स्त्री० जोखिम, खतरा ।
जोग - पु० दे० 'योग' । वि० दे० 'योग्य' । अ० को, के लिए (जोग लिखी से ) । - माया - स्त्री० दे० 'योगमाया' । - साधन- पु० तपश्चर्या ।
जोगड़ा - पु० नकली योगी ।
जोगन - स्त्री० दे० 'जोगिन' |
जोगवना * - स० क्रि० हिफाजत से रखना; इकट्ठा करना; ध्यान न देना; पूरा करना; आदर करना । जोगानल - पु० योगसे उत्पन्न अग्नि । जोगिंद* - पु० दे० ‘योगींद्र’। जोगि* - स्त्री० दे० 'जोगिन' ।
जोगिन स्त्री० जोगी स्त्री या जोगीकी स्त्री; पिशाचिनी; एक रणदेवी ।
जोगिनी - स्त्री० दे० 'योगिनी'; दे० 'जोगिन' । जोगिया - वि० जोगका, जोगीका; गेरूके रंगका, भगवा | पु० जोगिया रंग; जोगीड़ा; जोगी । जोगींद्र - पु० दे० ' योगींद्र' ।
जोगी - पु० दे० 'योगी'; भिक्षाजीवी गृहस्थ साधु | जोगीड़ा - पु० वसंतमें गाया जानेवाला एक तरहका चलता गाना; इस प्रकारका गाना गानेवालोंका समाज । जोगीश्वर, जोगेश्वर - पु० दे० 'योगीश्वर' |
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जोग्य-जोरू जोग्य-वि० दे० 'योग्य'।
जोताई-स्त्री० जोतनेकी क्रिया या भाव; जोतनेकी मजदूरी। जोजन*-पु० दे० 'योजन' ।
जोताना-स० क्रि० जोतनेका काम (दूसरेसे) कराना। जोट*-पु० जोड़ा; साथी; झुंड । वि० बराबरीका । जोति-स्त्री० जोतने लायक जमीन; दे० 'ज्योति'; देवजोटा-पु० जोड़ा; गोनी ।
ताओंके प्रीत्यर्थ जलाया जानेवाला दीपक । -चंत*जोटिंग-पु०[सं०] महादेव महाव्रती,कठिन तप करनेवाला। वि० ज्योतिर्मय । जोटी*-स्त्री० जोड़ी; जोड़का साथी ।
जोतिक, जोतिखी* -पु० दे० 'ज्योतिषी' । जोड़-पु० जोड़नेकी क्रिया; कई संख्याएँ जोड़नेसे आने- जोतिसी*-पु० दे० 'ज्योतिषी' । वाली संख्या, योगफल; वह जगह जहाँ दो चीजें या दो जोती -स्त्री० दे० 'ज्योति'; दे० 'जोति'; चक्कीकी कीली टुकड़े जुड़ें; संधिस्थान, गाँठ; जोड़ा जानेवाला टुकड़ा, और हत्थेमें बँधी रहनेवाली रस्सी लगाम । पैवंद; एकसी या एक साथ काममें लायी जानेवाली दो जोत्स्ना-स्त्री० दे० 'ज्योत्स्ना'। चीजें जोड़ा मेल; बराबरी करनेवाला, प्रतिभट; एक घरमें | जोध, जोधा-पु० दे० 'योद्धा'। बैठी हुई दो गोटें; पूरा पहनावा, सिरसे पाँवतकके कपड़े, जोन -स्त्री० दे० 'योनि'। दो पहलवान जिनकी कुश्ती हो। -का-बराबरीका, जोना*-स० क्रि० देखना । प्रतिभट। - जोड़-पु० गाँठ-गाँठ, हर अंग। -तोड़- जोनि-स्त्री० दे० 'योनि'। पु० दाव-पेच (भिड़ाना, लड़ाना)। -दार-वि० जोड़- जोन्ह, जोन्हाई-स्त्री० चाँदनी । वाला । मु०-का तोड़-बराबरीका, जवाब ।-छूटना- जोन्हरी-स्त्री० छोटे दानेकी ज्वार । पहलवानोंके एक जोड़का कुश्तीके लिए अखाड़े में उतारा
जोन्हि-स्त्री० जुन्हाई, चाँदनी । जाना।
जोप*-पु० दे० 'यूप' ।। जोड़ना-स० क्रि० दो चीजों, टुकड़ोंको एक दूसरेके साथ ज़ोफ़-पु० [अ०] कमजोरी, निर्बलता। चिपकाना, सीना, मिलाना; टूटी हुई चीजके टुकड़ोंको जोबन-पु० जवानी, यौवन; यौवनजनित सुंदरता; बहार मिलाना, बैठाना; तरतीबसे लगाना (ईटे, अक्षर); स्तन, छाती । वि० युवा - 'सूर स्याम लरिकाई भूली संख्याओंको जमा करना; गिनती में शामिल करना; गढ़ना, जोबन भये मुरारी'-सू० । मनसे उपजाना (बात); जलाना; पद्यरचना करना; जोम-पु० [अ०] गर्व, घमंड; धारणा, खयाल । स्थापित करना (मित्रता, नाता); जोतना ।
जोय*-स्त्री० पत्नी, जोरू । सर्व० जो । जोड़वाँ-वि०, पु० दे० 'जुड़वाँ' ।
जोयना*-सक्रि० जलाना; दे० 'जोहना' । जोड़वाई-स्त्री० जोड़वानेकी क्रिया या उजरत । जोयसी*-पु० दे० 'ज्योतिषी'। जोड़वाना-स० क्रि० जोड़नेका काम दूसरेसे कराना। ज़ोर-पु० [फा०] बल, शक्ति प्रबलता; वेग, तेजी; वश, जोड़ा-पु० एकसी या एक साथ काम में लायी जानेवाली | इख्तियार; सहारा, भरोसा; शतरंजके एक मुहरेको दूसरेसे दो चीजें; साथ पहने जानेवाले दो कपड़े (कुरता-पाजामा, मिलनेवाला बल, सहारा; बलप्रयोग, जबरदस्ती; मेहनत, लहँगा-दुपट्टा); पूरा पहनावा; दोनों पाँवोंके. जूते; नर श्रम । -आज़माई-स्त्री० बलपरीक्षा । -का-प्रवल, और मादा, स्त्री और पुरुष; वर-कन्या; ब्याहमें दुलहिनके |
जोरदार । -ज़ल्म-पु० अन्याय-अत्याचार। -दारलिए भेजा जानेवाला कपड़ा-लहँगा, साड़ी आदि; जोड़। वि० जोरवाला, प्रबल; आग्रह-युक्त (सिफारिश)।-शोरमु०-खाना-(पशु-पक्षीका) मैथुन करना ।
पु० तेजी; प्रबलता; जोश । (जोरे)कलम-पु० कलमका जोड़ाई-स्त्री० जोड़नेका काम या उजरत ।
जोर, :लेखनशक्ति। -बा.जू-पु० बाहुबल, भुजबल । जोड़ी-स्त्री० जोड़ा; एक साथ जोते जानेवाले दो बैल या |
मु०(ज़ोर )आज़माना-बलपरीक्षा करना, भिड़ना, घोड़े; दो घोड़ोंकी गाड़ी, बग्घी; मुगदरका जोड़ा; मॅजीरा; मुकाबला करना । -करना-बल लगाना; कोशिश जोड़। -दार-वि० बराबरीका, जोड़का। -वाल-पु० करना; बढ़ना व्यायाम करना ।-चलना-बस चलना। गायकदलके साथ मजीरा बजानेवाला ।
-डालना-दबाव डालना, आग्रह करना ।-दिखानाजोड़-स्त्री० दे० 'जोरू'।
शक्ति, अधिकारका परिचय देना। -देना-शतरंजके जोत-स्त्री० जोतनेका भाव; काश्त; उतनी जमीन जितनी मुहरेको दूसरे मुहरेका सहारा देना; आग्रह करना; बोझ एक काश्तकार जोतता हो; वह रस्सी या तस्मा जिससे बैल डालना। -पकड़ना-बल प्राप्त करना; बढ़ना । -पर हलके और घोड़े गाड़ीके साथ जोते जाये; तराजूके पलड़ोंको होना-बाढ़पर, बढ़ा हुआ,प्रबल होना ।-बाँधना-प्रबल डाँडीसे बाँधनेवाली रस्सी । -दार-पु० काश्तकार । होना, बल प्राप्त करना। -मारना-बहुत जोर लगाना; जोतना-सक्रि० घोड़ों, बैलों आदिको गाड़ी, हल आदिसे बहुत कोशिश करना। (जोरों)से-जोर देकर, बहुत इस तरह बाँधना कि वे उसे खींच सके, नाँधना; गाड़ी आग्रहके साथ। आदिको घोड़े आदि जोतकर चलनेके लिए तैयार करना; | जोरना*-स० क्रि० दे० 'जोड़ना' । हलसे जमीनको चीरना, बोने लायक बनाना; किसीको जोराजोरी-अ० बलपूर्वक, जबरदस्ती। स्त्री० जबरदस्ती। उसकी इच्छाके विरुद्ध काममें लगाना ।
जोरावर-वि० [फा०] बलवान् ; जबरदस्त । जोता-पु० जुआठेमें बँधी हुई रस्सी जिसमें हल या गाड़ी में जोरी*-स्त्री० दे० 'जोड़ी'; जबरदस्ती । जोते जानेवाले बैलकी गरदन फंसायी जाती है। हलवाहा। जोरू-स्त्री० पली, भार्या । -जाँता-पु० घर-बार ।
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जोल * - पु० समूह, झुंड - 'चिथके पट्पद जोल' - सू० । जोलहा - पु० जुलाहा । जोलाहल * - सी० ज्वाला | जोलाहा - पु० दे० 'जुलाहा ' |
जोली* - स्त्री० बराबरी; जोड़ी, बराबरीका आदमी । जोलो * - पु० अंतर ।
जोवना * - स० क्रि० दे० 'जोहना' । जोश- पु० [फा०] उफान, उबाल; गरमी, उत्तेजना; उत्साह; आवेश । - व खरोश - पु० धूम, शोरगुल; उत्साह | मु०-देना - उबालना । - मारना - उबलना; उमड़ना; मथना । - में आना - क्रुद्ध होना; उत्तेजित होना । जोशन - पु० [फा०] बाँहपर पहननेका एक गहना; कवच | जोशाँदा - पु० [फा०] काढ़ा, काथ । जोशी (पी) - पु० ज्योतिषी; गुजराती ब्राह्मणों की उपजाति । जोशीला - वि० जोशसे भरा हुआ, ओजःपूर्ण । जोष* - स्त्री० जोख, तील; स्त्री ।
जोषा - स्त्री० [सं०] स्त्री । जोषिता, जोषित - स्त्री० [सं०] स्त्री । जोह* - स्त्री० खोज; प्रतीक्षा; दृष्टि ।
जोहन * -- स्त्री० देखनेकी क्रिया; खोज; प्रतीक्षा | जोहना * - सु० क्रि० देखना; राह देखना; खोजना | जोहारना - स० क्रि० दे० 'जुहारना' । जौं * - अ० जो, यदि; ज्यों ।
जीरा- भौंरा - पु० खजाना रखनेका तहखाना ।
जौं रे* - अ० निकट, आस-पास ।
जौ - पु०बीकी फसलका एक अनाज, यव; इसका पौधा; एक पौधा जिसकी टहनियोंके टोकरे आदि बनते हैं; एक तोल । * अ० जो, यदि, अगर; जब । - पै* - अ० अगर, यदि । जौक, जौख* - पु० समूह, झुंड, सेना । जौजा- स्त्री० [फा०] पत्नी, भार्या । जौतुक - पु० दे० 'यौतुक' ।
--
जौन* - सर्व० दे० 'जो' । पु० दे० 'यवन' | जोन्ह* - स्त्री० दे० 'जोन्ह' । जौबति* -
* - स्त्री० दे० 'युवती' |
जौबन, जीवन* - पु० दे० 'यौवन' |
|
जौहर - ५० युद्ध में शत्रुको विजय निश्चित हो जानेपर राजपूत स्त्रियोंका दहकती हुई विशाल चितामें एक साथ प्रवेश कर जल मरना; इस कार्यके लिए बनायी गयी चिता [अ०] रत्न; सार, सत्त्व; गुण, खूबी (खुलना, दिखाना); तलवारपरकी वारीक धारियाँ जिनसे लोहेकी अच्छाईका पता चलता है; आईनेकी चमक । - दार- वि० जिसमें जौहर हो ।
जौहरी - पु० [अ०] जवाहरातका रोजगार करनेवाला, रत्न- व्यवसायी; पारखी, गुण-दोष पहचाननेवाला, कद्रदाँ । - बाज़ार - पु० वह बाजार जहाँ जवाहरात बिर्के, रलहाट । झ - वि० [सं०] (संज्ञा, आदिके अंत में लगने से ) जाननेवाला, ज्ञाता (अज्ञ, बहुज्ञ इ० ) ।
ज्ञपित, ज्ञप्त - वि० [सं०] जताया हुआ, शापित । ज्ञात - वि० [सं०] जाना हुआ, विदित। -यौवनास्त्री० वह मुग्धा नायिका जिसे यौवनागमका ज्ञान हो ।
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जोक - ज्यों
ज्ञातव्य - वि० [सं०] जानने योग्य, शेय । ) ज्ञाता (तृ) - वि० [सं०] जाननेवाला । पु० चतुर आदमी । ज्ञाति- स्त्री० जाति । पु० [सं०] पिता; पितृवंश में उत्पन्न व्यक्ति, गोतिया । - कर्म (न्) - पु०भाई-बंदका कर्तव्य । ज्ञान- पु० [सं०] जानना, बोध, जानकारी; सम्यक् बोध; पदार्थका ग्रहण करनेवाली मनकी वृत्ति; शास्त्रानुशीलन आदिसे आत्मतत्त्वका अवगम, आत्मसाक्षात्कार |-कोशपु० वह कोश जिसमें ज्ञातव्य विषयोंका विवरण दिया गया हो । - गम्य - वि० जो जाना, समझा जा सके; जो केवल ज्ञानका विषय हो सके ( परमेश्वर ) । - गर्भ - वि० ज्ञानसे भरा हुआ। - गोचर - वि० ज्ञान-गम्य । - चक्षु (स् ) - पु० ज्ञानकी आँख, अंतर्दृष्टि । - दा - स्त्री० सरस्वती । - दाता (तृ) - वि० ज्ञान देनेवाला | पु० गुरु । - पिपासा - स्त्री० ज्ञानप्राप्तिको तीव्र आकांक्षा । -योग-पु० शुद्ध ज्ञान द्वारा मोक्षका साधन । -वृद्धवि० ज्ञान में बड़ा |
ज्ञानमय - वि० [सं०] ज्ञानसे भरा हुआ; ज्ञानरूप; चिन्मय । ज्ञानी (निन्) - वि० [सं०] ज्ञानवान्, जिसने आत्मज्ञान या ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया है । पु० दैवज्ञ; ऋषि । ज्ञानेंद्रिय - स्त्री० [सं०] विषयबोधका साधन, इंद्रियाँ - आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा । ज्ञानोदय- पु० [सं०] ज्ञानका उदय, उत्पत्ति । शाप - पु० (मेमो) दे० 'शापन', स्मार । ज्ञापक - वि० [सं०] जतानेवाला, सूचक, बोधक | पु० गुरु । ज्ञापन - पु० [सं०] जताना, बताना; प्रकट करना; (मेमोरेंडम ) वह पत्र जिसमें याद दिलानेके लिए आवश्यक बातें संक्षेप में लिख दी गयी हों; घटनाओंका वह संक्षिप्त अभिलेख जो बाद में प्रयोगके लिए हो; स्मारक । ज्ञापयिता (तृ) - वि० [सं०] ज्ञापक ।
ज्ञापित - वि० [सं०] जताया हुआ, सूचित; प्रकाशित । ज्ञेय - वि० [सं०] जानने योग्य; जो जाना जा सके । ज्या - स्त्री० [सं०] धनुष्की डोरी; चापके सिरोंको मिलानेवाली सीधी रेखा; पृथ्वी; माता । - मिति - स्त्री० रेखागणित | ज्यादती - स्त्री० अधिकता; जुल्म; जबरदस्ती । ज्यादा - वि० अधिक फाजिल | ज्यान* - पु० दे० 'जियान' |
ज्याना * - स० क्रि० दे० 'जिलाना' ।
ज्यारना * - स० क्रि० जिलाना । ज्यावना * - स० क्रि० जिलाना । ज्यूँ - अ० दे० 'ज्यों' |
ज्येष्ठ- वि० [सं०] सबसे बड़ा; श्रेष्ठ | पु० बड़ा भाई; जेठका महीना; परमेश्वर । तात-पु० बापका बड़ा भाई | ज्येष्ठांश- पु० [सं०] बपौती में बड़ा भाग पानेका हक, जेठंसी । ज्येष्ठा - स्त्री० [सं०] बड़ी बहिन; १८वाँ नक्षत्र; वह स्त्री जो पति को औरों से अधिक प्यारी हो (सा० ); लक्ष्मीकी बड़ी बहिन, अलक्ष्मी, दरिद्रा; गंगा; विचली उँगली; छिपकली । ज्येष्ठाश्रम - पु० [सं०] गृहस्थाश्रम; गृहस्थ ज्यों- अ० जैसे, जिस तरह; जिस क्षण । - का त्योंजैसा था वैसा हो । -ज्यों - अ० जैसे-जैसे, जिस क्रमसे ।
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ज्योतिशास्त्र-झंडा
२९२ -त्यों-भ० जैसे-तैसे, किसी तरह; कठिनाईसे। ज्यौ*-अ० यदि, अगर । ज्योतिःशास्त्र-पु० [सं०] ज्योतिर्विद्या ।
ज्योतिष-वि० [सं०] उयोतिष-संबंधी। ज्योति (स)-स्त्री० [सं०] प्रकाश, रोशनी; ली; सूर्य ज्योतिषिक-पु० [सं०] ज्योतिषी ।
नक्षत्र; अग्नि; आँखकी पुतलीका मध्यविदुष्टि; आत्मा ।। ज्वर-पु० [सं०] एक साधारण रोग जिसका मुख्य लक्षण ज्योतिक*-पु० ज्योतिषी।
शरीरकी गरमीका स्वाभाविकसे अधिक हो जाना है, ताप, ज्योतित-वि० [सं०] द्यतिमान्, प्रकाशित ।
बुखार, मानसिक कष्ट; उत्तेजना (कामज्वर) । ज्योतिमान-वि० दे० 'ज्योतिष्मान्'।
ज्वरा-स्त्री० [सं०] ज्वर; * मृत्यु । 'ज्योतिर'-स्त्री० [सं०] 'ज्योतिस'का समासगत रूप । ज्वरातिसार-पु० [सं०] ज्वरयुक्त अतिसार रोग।
"इंग,-इंगण-पु० जुगनू ।-मंडल-पु० नक्षत्रमंडल । ज्वरी*-पु० दे० 'जुरी'। -मय-वि० ज्योतिसे भरा हुआ, धुतिमय 1-लिंग-पु० ज्वलंत-वि० जलता हुआ, प्रकाशमान; स्पष्ट । शिवः शिवके मुख्य-सोमनाथ,महाकाल,विश्वेश्वर आदि- ज्वलन-पु०[सं०] जलन,जलना; अग्नि; लपट |-शील१२ लिंगों में से कोई। -लोक-पु० धवलोकः परमेश्वर । वि०(कंबस्टिबिल, इनफ्लेमेबिल) जो बड़ी आसानीसे, थोड़े में -विद-पु० ज्योतिषशास्त्र जाननेवाला । -विद्या-स्त्री० ही, जल उठे, भड़क उठे; ज्वलनीय, ज्वल्य । ज्योतिषशास्त्र ।
ज्वलित-वि० [सं०] जलता-बलता हुआ, दीप्त ।। ज्योतिश्चक्र-पु० [सं०] नक्षत्रोंसे युक्त राशिचक्र । ज्वल्य-वि० [सं०] (कंबस्टिबिल) जल उठने या भभक उठने ज्योतिष-पु० [सं०] ग्रह-नक्षत्रों की गति, स्थिति आदिका / योग्य । विचार करनेवाला शास्त्र (ग० ज्यो०); ग्रह-नक्षत्रोंआदिके ज्वान-वि०, पु० दे० 'जवान' ।
शुभाशुभ फल बतानेवाला शास्त्र (फ० ज्यो०)। ज्वानी -स्त्री० दे० 'ज्वानी'। ज्योतिषी(पिन)-पु० [सं०] ज्योतिषशास्त्र जाननेवाला, ज्वार-स्त्री० खरीफकी फसल में होनेवाला एक मोटा अनाज दैवज्ञ ।
चंद्रमाके आकर्षणके कारण समुद्रके जलका ऊपर उठना, ज्योतिष्ना*-स्त्री० ज्योत्स्ना ।
भाटाका उलटा । -भाटा-पु. समुद्र के जलका ऊपर ज्योतिष्पथ-पु० [सं०] आकाश, अंतरिक्ष ।
उठना और फिर नीचे आना, चढ़ाव-उतार । ज्योतिष्मती-स्त्री० [सं०] रात्रि ।
ज्वाल-पु० [सं०] ज्वाला; मशाल । ज्योतिष्मान(मत्)-वि० [सं०] ज्योतिर्मय, आलोकयुक्त । ज्वाला-स्त्री० [सं०] आगकी लपट, अग्निशिखा; ताप,दाह । पु० सूर्यः प्लक्षद्वीपका एक पर्वत ।
-मुखी-स्त्री० एक पीठस्थान; अग्नि, लावा आदि; * ज्योत्स्ना-स्त्री [सं०] चाँदनी; चाँदनी रात; दुर्गा; सौंफ । सुरांगना । पु० [हिं०] वह पहाड़ जिसकी चोटीके पास ज्योनार-स्त्री० रसोई; भोज ।
स्थित गर्तसे कोयला, राख, जलता हुआ तरल पदार्थ, ज्योहत*-पु० आत्महत्या।
जलती हुई गैस आदि बाहर निकले ।
झ-देवनागरी वर्णमालाका नवाँ व्यंजन वर्ण ।
झंझर-पु० दे० 'झज्झर'। झंकना-अ० क्रि० दे० 'झी खना'।
झंझरा-वि० खखरा, झीना। झंकार-स्त्री० [सं०] झनझनाहट; झाँझ, पायल आदिके झंझरी-स्त्री० जाली; जालीदार खिड़की; जालीदार चादर बजनेसे होनेवाली ध्वनि वीणा, सितार आदिकी ध्वनि । । चलनी। -दार-वि० जालीदार, सूराखदार । झंकारना-स० कि. 'झन झन' आवाज करना । अक्रि. झंझा-* वि० तेज, प्रबल । स्त्री० [सं०] तेज हवा, अंधड़ा 'शन-झन' आवाज होना।
आँधी-पानी; बड़ी-बड़ी बूंदोंकी वर्षा; अंधड़ या अंधड़के साथ झंकारी (रिन्)-वि० [सं०] गुंजन करनेवाला; झंकारयुक्त होनेवाली वर्षाकी आवाज । -वात-पु० अंधड़; वर्षाके झंकृत-वि० [सं०] झंकारयुक्त, झंकार करता हुआ। साथ बहनेवाली तेज हवा । झंकृति-स्त्री० [सं०] झंकार ।।
झंझानिल-पु० [सं०] दे॰ 'झंझावात' । झंखना-अ० क्रि० दे० 'झी खना।
झंझार*-पु० आगकी लपट, ज्वाला। झंखाड़-पु० काँटेदार झाड़ी या पौधा; ऐसी झाड़ियों या झंझोड़ना-म०क्रि० झकझोरना; बिल्ली आदिका शिकारको पौधोंका समूह; रही चीजोंका ढेर ।
दाँतों में पकड़कर झटके देना, नोचना। सँगा-पु० दे० 'झगा'।
झंड-पु० (बच्चेके) मुंडनसे पहलेके, पैदाइशी बाल । अँगुला, डेंगूला*-पु० ढीला कुरता (बच्चोंका)। झंडा-पु० बाँस या लकड़ी के डंडेके सिरेपर पहनाया हुआ अँगुलिया, अँगुली, झंगूली*-स्त्री० दे० 'झगा'। तिकोना या चौकोना कपड़ा जो राष्ट्र आदिके प्रतीकके रूपझंझ*-पु० दे० 'झाँझ'।
में या संकेत आदिके लिए काममें लाया जाता है, पताका, झंझट-पु०,स्त्री० झमेला झगड़ा-बखेड़ा कठिनाई परेशानी।। निशान । -जहान-पु० बेड़े के नायकका जहाज । झंझटी-वि० झंझटवाला (काम); झगड़ालू , बखेडिया। -बरदार-पु० झंडा ले चलनेवाला । मु० (किसी झंझनाना-स० कि०, अ० कि० दे० 'झंकारना' ।
चीजका)-खड़ा करना-किसी चीजके नामपर, किसी
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झंब* पु० गुच्छा, समूह । झँवकार, झँवकारा* - वि० स्याह, श्यामवर्ण । झँवराना - अ० क्रि० काला पड़ना; मुरझाना | झवा - पु० दे० 'झाँवाँ' ।
२९३
( बगावतका झंडा खड़ा करना ) | ( किसी नगर, दुर्ग आदिपर) - गाड़ना- कब्जा करना; अपने अधिकारकी घोषणा करना । - झुकाना - किसीकी मृत्युपर राज्य या किसी दल, संस्थाकी ओर से शोकप्रकाश किया जाना । (किसी के) झंडे तले (- के नीचे ) आना, जमा होनाकिसीकी ओर से लड़नेके लिए तैयार होना, एकत्र होना । झंडी - स्त्री०छोटा झंडा । - दार- वि० जिसमें झंडी लगी हो । झेंडूला - वि० जिसके सिरपर गर्भके बाल हों, जिसका मुंडन न हुआ हो; गर्भका; धनी पत्तियोंवाला ।
बात के लिए लोगों को इकट्टा करना, उनका आह्वान करना |झकोल - पु० दे० 'झकोर' | झक्क-स्त्री०, वि० दे० 'झक' | झक्कड़-पु० अंधड़, तेज हवा | वि० दे० 'शक्की' । झक्की - वि० सनकी, खब्ती; बक्की, बकवादी । झक्खना * - अ० कि० दे० 'झाँखना' | झख-पु० दे० 'झष' । स्त्री० झीँ खनेकी क्रिया । - केतुदे० 'झषकेतु' । - निकेत - पु० दे० 'शषनिकेत' । -राज५० दे० 'झषराज' | मु० - मारना - बेकार काम करना, मजबूर होना ।
झंप - ५० [सं०] छलाँग, कुदान, घोड़ोंके गलेका एक गहना । शँपना - अ० क्रि० छलाँग मारना, उछलना; झपटना; ढकना; झेंपना; (पलकोंका) गिरना; ऊँघना | परिया, शँपरी* - स्त्री० पालकीका ओहार । झंपान- पु० पहाड़की चढ़ाई में काम आनेवाली एक तरहकी खुली डोली ।
झंपित* - वि० ढका हुआ ।
पोला- पु० छोटा झाँपा, पिटारा |
झवाना - अ० क्रि० कुछ स्याही आ जाना; मुरझाना; आगका जलकर बुझने लगना, कोयले, अंगारेपर राख चढ़ जाना; घटना; झाँवेसे रगड़ा जाना । स०क्रि० स्याही ला देना; आग ठंडी करना; झाँवेसे रगड़ना या रगड़वाना । झँवाचना* - स० क्रि० दे० 'वाना' । झँसना - स० क्रि० ठगना, धोखा देकर, बेवकूफ बनाकर पैसे ले लेना; सिर आदि में धीरे-धीरे तेल मलना ।
झ - पु० [सं०] झंझावात; अंधड़; तेज हवा के साथ वृष्टि; बृहस्पति; दैत्यराज; 'झन-झन'की आवाज; ताल; नष्ट वस्तु । झीँ*-- * स्त्री० दे० 'झाँई " ।
झउआ - पु० मिट्टी ढोनेका छिछला टोकरा ।
झक - स्त्री० सनक, खब्त, धुन; बड़बड़ाहट; आँच, ताप; दे० 'झख' । वि० चमकता हुआ, झकाझक । शकशक- स्त्री० कहासुनी हुज्जत, तकरार | झकझकाहट - स्त्री० चमक । झकझेलना - स० क्रि० दे० 'झकझोरना' । झकझोर - पु० झकझोरनेका भाव, झकझोरा; झोंका, झटका । झकझोरना - स०क्रि० पकड़कर जोर से हिलाना, झटका देना । झकझोरा - पु० झकझोरनेका भाव, झोंका, झटका । झकड़ - पु० दे० 'झक्कड़' ; लू (बुंदेल) ।
झकना - अ० क्रि० बकवाद करना; बड़बड़ाना; झगड़ना । झका* - वि० दे० 'झक' |
झकाझक - वि० खूब साफ और चमकता हुआ, चमाचम । झकुराना * - अ० क्रि० झकोरा खाना | स०क्रि०झकोरा देना । झकोर - पु० दे० 'झकोरा' |
झकोरना - अ० क्रि० हवाका झोंकेके साथ, पेड़ोंको झकझोरते हुए बहना, झकोरा मारना । झकोरा - पु० हवाका तेज झोंका; झटका ।
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झंडी - झड़ना
झखना * - अ० क्रि० दे० 'झाँखन ।' । झखी * - स्त्री० झप, मछली ।
झगड़ना - अ० क्रि० (दो आदमियोंका) झगड़ा करना, लड़ना । झगड़ा - पु० दो आदमियोंका वाक्कलह, तकरार; बखेड़ा । मु० - मोल लेना - जान-बूझकर झगड़े में पड़ना; झगड़ा खड़ा करनेवाली बात करना । झगड़ालू - वि० झगड़ा करनेवाला, कलहप्रिय । झगड़ी - वि० स्त्री० झगड़ा करनेवाली । झगर- पु० एक चिड़िया; * दे० 'झगड़ा' । झगरना * - अ० क्रि० दे० 'झगड़ना' । झगरा* - पु० दे० 'झगड़ा' | झगराऊ * - वि० दे० 'झगड़ालू' । झगरी - वि० स्त्री० 'झगड़ी' । स्त्री० झगड़ा, रार । झगला* - ५० दे० 'झगा' |
झगा - पु० (बच्चों का ढीला कुरता, अँगरखा । झगुलिया, झगुली - स्त्री० झगा ।
झज्जर, झज्झर-५० चौड़े मुँहका छोटा घड़ा, झंझर झझक - स्त्री० झझकनेकी क्रिया या भाव; दे० 'झिझक' | झझकन * - स्त्री० दे० 'झझक' |
झझकना - अ० क्रि० यकायक क्रुद्ध होकर बड़बड़ाने, जोरजोरसे बोलने लगना; भड़क उठना दे० 'झिझकना' । झझकारना - स० क्रि० दुतकारना; तुच्छ समझना । झझिया - स्त्री० दे० 'झिँ झिया' ।
झट-अ० बहुत जल्द, तुरत । -पट - अ० बहुत जल्द । झटकना - स० क्रि० झटका देना; झटकारना; छीन लेना; हथियाना, ऐंठना ।
झटका - पु० झोंकेके साथ दिया हुआ धक्का; (हवाका ) झोंका; पशुबलिका वह प्रकार जिसमें पशुकी गरदन तलवार आदिके एक ही हाथमें अलग हो जाय; आकस्मिक और चंदरोजा बीमारी; अचानक आयी हुई विपत्ति; हानि; कुश्तीका एक पेंच । - (के) का माँस-झटकेकी रीतिसे मारे हुए पशुका मांस ।
झटकारना - स० क्रि० झटका देकर हिलाना जिससे धूल, आदि झर जाय, झक्का देना ।
झटका - अ० जल्दी से, चटपट ।
झटिका - स्त्री० [सं०] झाड़ी; भुइँआँवला । झटिति - अ० [सं०] झटपट, तुरत ।
झड़ - स्त्री० दे० 'झड़ी' |
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झड़न - स्त्री० वह जो किसी चीज से झड़कर गिरे; झड़नेकी क्रिया; खुरचन; ऊपरी आमदनी । -झुड़न - स्त्री० झड़न । झड़ना-अ० क्रि० टूटकर गिरना ( पेड़से पत्तों, सिरसे
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झड़प - झरकना
२९४
बालोंका ); बरसना; (शहनाईका) बजना (नौबत झड़ना); झपट्टा - पु० झपटने का भाव । -मार - वि० झपटनेवाला, टूट पड़नेवाला (हवाई जहाज ) ।
साफ किया जाना ।
झड़प - स्त्री० दो पक्षियों आदिकी अल्पकालिक भिड़ंत; झड़ झपताल - पु० पाँच मात्राओं का एक ताल |
झपना - अ० क्रि० दे० 'झपकना' । झपलैया * - स्त्री० झपोला ।
झपाका- अ० झटपट । पु० शीघ्रता ।
पका भाव, वाग्युद्ध; आवेश; लपट; झटका | झड़पना - अ० क्रि० हमला करना, टूट पड़ना; उलझना । स० क्रि० झटकना, झटकेसे छीन लेना ।
झड़पा झड़पी - स्त्री० गुत्थमगुत्था ।
झड़पाना - स० क्रि० पक्षियोंको आपस में लड़ाना । झड़बेरी - स्त्री० जंगली बेर ।
झनकारना - अ० क्रि० 'झन-झन'की आवाज निकलना । स० क्रि० 'झन झन की आवाज पैदा करना | झनझना - वि० 'झन-झन' शब्द उत्पन्न करनेवाला । झनझनाना - अ० क्रि० 'झन-झन'की ध्वनि होना । सु० क्रि० 'झन-झन ' की ध्वनि निकालना, उत्पन्न करना । झनझनाहट - स्त्री० 'झन-झन'की आवाज; झुनझुनी । झनिया* - वि० झीना ।
झन्नाना - अ० क्रि० झनझनाना ।
झन्नाहट - स्त्री० झनझनाहट । झप अ० झट, तुरत ।
झपक- स्त्री० पलकोंका गिरना; पलक गिरने में लगनेवाला समय, निमेषः झपकी ।
झपकना - अ० क्रि० पलक गिरना; झपकी लेना; झपटना; झेंपना |
झड़वाना - स० क्रि० झाड़नेका काम दूसरे से कराना । झड़ाई - स्त्री० झाड़नेकी क्रिया या उजरत । झड़ाका - पु० झड़प । अ० फौरन, तत्काल । झड़ाझड़ - अ० लगातार, झड़ीके रूपमें । झड़ी-स्त्री० लगातार झड़ना; हलकी किंतु लगातार वर्षा; झड़ीके रूपमें चलनेवाली बातें, अविराम वाग्धारा (बँधना, लगना; बाँधना, लगाना); तालेके भीतरका खटका । झणकर - पु० [सं०] झनकार |
झन - स्त्री० धातुखंडपर आघात से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि । झनक - स्त्री० झनकार; झनझनाहट; पैर को झटके के साथ उठाते हुए चलना । - मनक- स्त्री० पायल आदिकी मंद, मधुर ध्वनि ।
झनकना - अ० क्रि० झनक होना; झुंझलाना, खीझना; पैरको झटका देते हुए चलना । झनकार - स्त्री० 'झन-झन'की आवाज; झींगुरों आदिके झब्बा-पु० गुच्छा, फुंदना ! बोलने से होनेवाली ध्वनि ।
झबूकना * - अ० क्रि० चौंकना ।
झपकाना - स० क्रि० बार-बार पलक गिराना । झपकी- स्त्री० हलकी, थोड़ी देरकी नींद, आँख लगना; * चकमा, धोखा |
चूर
झपकौहाँ * - वि० नींद से झपकनेवाली (आँखें); नशे में झपट - स्त्री० झपटनेकी क्रिया या भाव, टूटना । झपटना- अ० क्रि० किसी चीजको लेने, पकड़ने, किसी चीजपर हमला करने के लिए तेजी से उसकी ओर बढ़ना, टूटना, लपकना । स० क्रि० झपटकर छीन लेना, पकड़ लेना ।
झपटान - स्त्री० झपट ।
झपटाना - स० क्रि० झपटने में प्रवृत्त करना ।
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।
झपाटा - पु० झपट्टा; झपट ।
झपाना - स० क्रि० मूँदना, (आँखें बंद करना; झुकाना । झपित* -- वि० झपा हुआ, मुँदा हुआ; लज्जित । झपेट-स्त्री० दे० 'झपट' ।
झपेटना - स० क्रि० दबोचनी ।
झपेटा - पु० हमला; धक्का; प्रेतबाधा । झपोला - पु० दे० 'झपोला' | झप्पड़, झप्पर* - पु० थप्पड़ । झप्पान-पु० दे० 'झंपान' |
झबरा - वि० लंबे और सब ओर बिखरे हुए बालोंवाला । झबरीला - वि० चारों ओर बिखरा हुआ (केश-समूह ) । झबरैरा* - वि० दे० 'झबरीला' । झबा-५० दे० 'झब्बा' ।
झबार, झबारि - स्त्री० जंजाल, झंझट; झगड़ा । झधिया - स्त्री० छोटा झब्बा बाजूबंद आदिमें नीचे लटकनेवाली कटोरी ।
झमक- स्त्री० ठसककी चाल; 'झम-झम' की आवाज; चमक । झमकना - अ० क्रि० पाँवोंके गहनोंकी झनकार करते चलना; नाचना; 'झम-झम' की आवाज होना; 'झम-झम' करते हुए तेजीसे आना-जानाः सहसा सामने आना'पावक झरसी झमककै गई झरोखे झाँखि' - वि० चमकना; छाना; अकड़ दिखाना ।
झमकाना - स० क्रि० चमकाना; मटकाना; 'झम-झम' की आवाज करना; युद्ध आदिमें हथियार खटखटाना । झमकारा - वि० 'झम-झम' करके बरसनेवाला (बादल) । झमकीला - वि० चंचल; चमकीला ।
झम-झम- स्त्री० घुँघुरुओं के बजने या जोरसे वर्षा होनेकी आवाज, 'छम छम' । अ० 'झम-झम' करते हुए । झमझमाना - अ० क्रि० 'झम-झम' आवाज होना; चमकना । स० क्रि० 'झम-झम' ध्वनि उत्पन्न करना; चमकाना । झमना * - अ० क्रि० झुकना, दबना । झमाका- ५० 'झम-झम' की आवाज; ठसक । झमाझम - अ० 'झम-झम' करते हुए; चमक के साथ । झमाट-५० झुरमुट ।
झमाना - अ० क्रि० छाना, घेरना; दे० 'वाना' (अ० क्रि०, स० क्रि० दोनों) ।
झमेला - पु० झगड़ा; बखेड़ा; झंझट; * भीड़ । झमेलिया - वि० झमेला करनेवाला, झगड़ालू ।
झर - पु० [सं०] झरना; सोता । * स्त्री० झड़ी; झड़ी या जलप्रवाहकी ध्वनि; ज्वाला; आँच; तालेका कुत्ता; झुंड । झरक* - स्त्री० दे० 'झलक' |
झरकना* - अ० क्रि० झलकना । स० क्रि० उपटकर बोलना ।
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झर-झर-झाँप झर-झर-स्त्री० वर्षाकी झड़ी लगने, हवा बहनेकी आवाज। झलाझल-वि० चमकता हुआ, चमाचम । अ०चमकके साथ। झरझराना-अ० क्रि० 'झर-झर' करते हुए बहना, गिरना, झलाझली-वि० चमकदार । जलना । स० कि० 'झर-झर'की आवाजके साथ गिराना। झलाना-स० क्रि० दे० 'झलवाना' । झरना-पु० पहाइसे नीचे गिरनेवाला सोता, निर्झर; झलाबोर-पु० सुनहले-रुपहले तारों से बुना हुआ साड़ीका छेददार पलटा जिससे पूरियाँ आदि छानी जायँ; अनाज | आँचल; कारचोबी । वि० चमकता हुआ, चमाचम । छाननेकी बड़ी छलनी । वि० झड़नेवाला । * अ०क्रि० झलामला-स्त्री० चमक-दमक । जलधारका पर्वत आदिसे नीचे गिरना; दे० 'झड़ना'; झल्लक-पु०, झल्लकी-स्त्री० [सं०] करताल; शाँझ । बजना । सक्रि० बजाना ।
झल्ला-पु० बड़ा टोकरा बौछार । वि० जो गाढ़ा न हो। झरनि*-स्त्री० दे० 'झड़न'।
झल्लाना-अ० क्रि० बहुत बिगड़ जाना, झुंझला उठना। झरनी*-वि० स्त्री० जिससे कुछ झड़े ।
झवर*-स्त्री० झगड़ा। झरप*-स्त्री० झोंका; वेग; चिक; सहारा दे० 'झड़प'। झवारि-स्त्री० दे० 'झवर'। झरपना*-अ० क्रि० झोंका देना; दे० झड़पना' । झष-पु० [सं०] मछली; मगर; मीन राशि: मकर राशि झरफ*-स्त्री० दे० 'झरिफ'।
ताप; वन । -केतन,-केतु,-ध्वज-पु० कामदेव । झरबेर, झरबेरी-स्त्री० दे० 'झड़बेरी'।
-निकेत-पु० जलाशय । -राज-पु० मगर । झरसना-अक्रि०दे० 'झुलसना'। सक्रि०दे० झुलसाना'। झपना-अ० क्रि० झखना । झरहरना -अ० क्रि० 'झर-झर' ध्वनि करना ।
झहनना-अक्रि० झन्नाना, सन्नाटेमें आना रोमांच होना। झरहरा-वि० सूराखदार, जालीदार ।
झहनाना-स० क्रि० झनकार करना; बजाना । झरहराना-अ० क्रि० पत्तोंका आवाजके साथ नीचे आना, झहरना*-अक्रि० दे० 'झहराना' । सक्रि० झिड़कना।
खड़खड़ाना। सक्रि० डाल हिलाकर पत्तों आदिको गिराना। झहराना -अ०क्रि०शिथिल होकर गिर पड़ना ( पत्तों झरापना -स० क्रि० झड़पना, हमला करना।
आदिका); झल्लाना; तिरस्कृत होना । सक्रि० झकझोरना; झरि*-स्त्री० दे० 'झड़ी' ।
लथेड़ना। झरिफ*-स्त्री०चिक, परदा ।
झाई-स्त्री० छाया, परछाई अँधेराः प्रतिध्वनि; धोखा; झरी-स्त्री० [सं०] झरना, सोता; झड़ी + वह कर जो रक्तविकार के कारण पड़ा हुआ काला धब्बा ।-माई-स्त्री० बाजार में अपना माल ले जाकर बेचनेवालोंसे बाजारके बच्चोंका एक खेल । मु०-आना-आँखोंके सामने अँधेरा मालिकको या ठेकेदारको मिले; संधि, दरार ।
छा जाना। -बताना-धोखा देना। झरोखा-पु० छोटी खिड़की, गवाक्ष ।
झाँकना-अ० क्रि० आड़से, झरोखे आदिसे बाहरकी वस्तुझर्प* स्त्री० दे० 'झड़प'।
को देखना; इधर-उधर देखना। झल-पु० ज्वाला,जलन, क्रोध, उत्कट कामना; कामवासना। झाँकनी-स्त्री० झाँकी; कुआँ । झलक-स्त्री० चमक; आभास; क्षणिक, अधूरा दर्शन | झाँका-पु० जालीदार खाँचा; झरोखा; अंतर-'परन न (दिखाना, मारना)। -दार-वि० चमकीला ।
पायो झाँको'-सू० । झलकना-अ० क्रि० चमकना; भीतरसे चमकना; दिखाई | झांकी-स्त्री० दर्शन; कुछ दूरसे होनेवाला अपूर्ण दर्शन देना; आभास होना।
सजायी हुई देवमूर्तिका दर्शन दृश्य झरोखः । झलकनि*-स्त्री० दे० 'झलक' ।
झाँख-पु० एक तरहका जंगली हिरन । झलका-पु० छाला, फफोला।
झाँखना*-अ० क्रि० दे० 'झी खना'; झाँकना । झलकाना-स० कि० चमकाना; झलकदार बनाना झाँखर-पु० झंखाड़ा काँटेदार झाड़ियोंका समूह । * दिखाना; आभास देना । * अ० कि० दे० 'झलकना'। | झाँगा*-पु० दे० 'झगा'। झल-झल-अ० साफ, पूरी झलकके साथ । स्त्री० चमक झाँझ-स्त्री० काँसेके दो तश्तरी जैसे टुकड़ोंसे बना मंजीरे झलझलाना-अ० क्रि० चमकना, झलक मारना; भड़क जैसा बाजा, झाल; शरारत; अड़ियलपन; झाँझन । उठना, झलाना । स० क्रि० चमकाना ।
झाँझड़ी-स्त्री० दे० 'झाँझ'। झलझलाहट-स्त्री० चमक ।
झाँझन-स्त्री० पाँवमें पहननेका पोला कड़ा जो चलनेसे झलना-स० क्रि० (पंखा आदि) हिलाकर हवा करना हवा 'झन-झन' बजे, झाँझदार कड़ा। करनेके लिए हिलाना । अ० क्रि० हिलना।
झाझर*-स्त्री० दे० 'झाँझन' । वि० जर्जर; छिद्रोंवाला। झलमल-पु० झलमलानेका भाव (-करना)। वि० अस्थिर, | झाँझरि*-स्त्री० दे० 'झाँझर'। झलमलाता हुआ (प्रकाश)।
झाँझरी*-स्त्री० झाँझ झाँझन । झलमला-वि० झलकता हुआ, चमकीला ।
झाँझा-पु० फसलको लगनेवाला एक कीड़ा, झाँझा झंझट । झलमलाना-अ० क्रि० रह-रहकर, कभी तेज,कभी धुंधली झाँझिया-पु० झाँझ बजानेवाला। रोशनी देना; रोशनीका इधर-उधर हिलना।
झाँट, झाँटि-स्त्री० उपस्थके ऊपरके बाल, पशम । झलराना*-अ० क्रि० बढ़ना, फैलना।
| झाप-पु० ढकनेके काम आनेवाली चीज; बाँसका टोकरा झलवाना-स० क्रि० झलने या झालनेका काम कराना। बाँसका बड़ा खानपोश; खिड़की-दरवाजेके सामने, धूपझला*-पु० हलकी, थोड़ी देरकी वर्षा झालर पंखा। । वर्षासे बचावके लिए लगाया जानेवाला टीन, लकड़ी आदि
१९-क
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झपन-झिरी
का बना परदा; बग्धीका टप; बाँसकी तीलियोंका बना मुर्गियोंका दरबा; उछल-कूद । * स्त्री० पर्दा, चिक; झपकी । झाँपना-स० क्रि० ढकना, छोप लेना । अ०क्रि० झेंपना । झाँपी - स्त्री० टोकरी; बाँसकी पिटारी; झपकी ।
झाँसना - स० क्रि० झाँसा देना, ठगना; बहकाना । झाँसा - पु० धोखा, जुल, बुत्ता । - पट्टी - स्त्री० दमबाजी । झाँसिया, झाँसू - वि० झाँसा देनेवाला ।
झा - पु० मैथिल ब्राह्मणोंकी एक उपाधि ।
झाऊ - पु० रेतीले मैदानोंमें होनेवाला एक छोटा झाड़ । झाग- पु० फेन, गाज 1
झाँवना* - स० क्रि० झाँबेसे रगड़ना ( मैल छुड़ाने के लिए) । झाँवर- स्त्री०नीची जमीन । वि० मुरझाया हुआ; मलिन । झाँवली - स्त्री० झलक; झाई; आँखका संकेत । झाँवाँ - पु० जली हुई ईट जो मैल छुड़ानेके लिए देह रग- शामी* - वि० छलिया, धोखेबाज |
के काम आती है ।
झागड़ * - पु० दे० ' झगड़ा' |
झाड़-पु० छोटा पेड़ या पौधा जिसकी जड़से डालियों जैसे कई तने निकलकर झाड़ियोंकी शक्ल में फैल जायँ; छोटा, गुंजान, कँटीला पेड़; झाड़की शक्लका फानूस जो छत या शामियानेसे लटकाकर जलाया जाता है और जिसमें बहुतसी मोमबत्तियाँ या बल्ब एक साथ जलाये जा सकते हैं; एक आतिशबाजी; ताँता । - खंड-पु० जंगल; दे० 'झारखंड' । -झंखाड़-पु० कँटीले पेड़ों, झाड़ियोंका समूह; टूटी-फूटी, रद्दी चीजें ।-दार- वि० कटीला; घना । पु० एक तरहका कशीदा । -फ़ानूस- पु० शीशेका बना रोशनी और सजावटका सामान । झाड़ - स्त्री" झाड़नेकी क्रिया ( केवल समासमें व्यवहृत ); फटकार, भर्त्सना; मंत्रोपचार। - पाँछ - स्त्री० सफाई । - फूँक- स्त्री० झाड़ना फूकना, मंतर - जंतर । झाड़न-स्त्री० झाड़ने से निकली हुई चीज; पु० झाड़नेके काम आनेवाला कपड़ा ( डस्टर ) । झाड़ना - स० क्रि० झटकारना, धूल-गर्द साफ करना; बुहारना, झाड़ू देना; मंत्र पढ़कर फूँकना; फटकारना; कंघी करना; ( पेड़से फल ) नीचे गिराना; ( चिड़ियोंका पंख) छोड़ना; दूर करना, भगाना ( शेखी, बदमाशी, घमंड) | मु० झाड़ पछोड़कर देखना- जाँच-तौल करना; खूब आजमाना । झाड़-पोंछकर - कुल इकट्ठा करके,
झाड़-बुहारकर |
झाड़ा - पु० जामा तलाशी; झाड़-फूँक; विष्ठा; शौच जाने की इच्छा या क्रिया; टट्टी ।
झाड़ी - स्त्री० कँटीले पौधों या झाड़ोंका समूह; एक में मिले हुए कँटीले पौधे । झाड़-स्त्री० सींकों, तीलियों आदिका पूला जिससे धूल, आदिकी सफाई करते हैं, बुहारी, बढ़नी; पुच्छल तारा । - कश-पु० झाड़ देनेका पेशा करनेवाला, भंगी ।-बरदार - पु० दे० 'झाड़ कश' । मु०-फिरना- कुछ बाकी न रहना, सब नष्ट हो जाना। - मारना - तिरस्कार करना, ठोकर मारना (स्त्रि०) ।
झापड़ - पु० थप्पड़, जोरका तमाचा । झाबर - पु० दलदल; * खाँचा ।
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झाबा - पु० टोकरा; कुप्पा; चमड़ेका गोल थाल जो पंजाब में आटा छानने के काम आता है; झाड़; झब्बा | झाम- पु० गहराई से मिट्टी खोदकर निकालनेवाला एक यंत्र; एक बरतन जो भोज आदिमें दाल-तरकारी आदि परसने के काम आता है; * गुच्छा; छल, धोखेबाजी; डॉट-डपट । झामर - पु० पाँवों में पहननेका एक गहना । वि० झाँवरा, मलिन ।
झायँ झायँ - स्त्री० सुनसान जगह में होनेवाली 'झन-झन' आवाज, हवाका शब्द | मु०- करना-सूना, डरावनालगना । झार* - स्त्री० जलन, ज्वाला; झाल । पु० दे० 'झाड़'; समूह; पौना । वि० निरा, निपट, सब । - खंड - पु० एक पर्वतमाला जो वैद्यनाथसे पुरीतक गयी है; छत्तीसगढ़; छोटा नागपुर ।
झारना-स० क्रि० दे० 'झाड़ना' ।
झारा - पु० झरना, सूप; पतली छनी हुई भंग; * तलाशी । झारि-स्त्री०, वि० दे० 'झार' | झारी-स्त्री० पानी परसने, हाथ-मुँह धुलाने आदिके लिए काम में लाया जानेवाला टोटीदार बरतन, ग. डुआ; * झाड़ी। झाल- पु० झाँझ; झालनेकी क्रिया । स्त्री० चरपराहट, तीखापन; लहर; ज्वाला; संभोगकी इच्छा; वर्षा की झड़ी जो कई दिन लगी रहे । वि० दे० 'झार' । झालना - स० क्रि० धातुकी बनी चीजको टाँकेसे जोड़ना; किसी चीजको ठंढा करनेके लिए बरफ या शोरेमें रखना । झालर - स्त्री० लटकनेवाला हाशिया; किनारा; घड़ियाल; * एक पकवान । - दार- वि० जिसमें झालर लगी हो । झालरना * - अ० क्रि० दे० 'झलराना'; पुष्पादियुक्त होना । झालि* - स्त्री० झड़ी; झाल ।
झावझावँ - स्त्री० हुज्जत, तकरार । झिंगवा- पु० दे० 'झीँगा' | झिंगुली* - स्त्री० दे० 'झगा' ।
झिंझिया - स्त्री० वह घड़ा जिसके पेंदे में बहुतसे छेद होते हैं और जिसमें दिया बालकर घुमाया जाता है । झिगड़ना, झिगरना* - अ० क्रि० दे० 'झगड़ना' | झिझक स्त्री० हिचक, भड़क; लज्जाजनित संकोच । झिझकना-अ० क्रि० भय या लज्जाके कारण कोई बात कहने, करने में हिचकना, ठिठकना; भड़कना । झिझकार - स्त्री० झिझकारनेकी क्रिया या भाव। झिझकारना- स० क्रि० दुतकारना; झिड़कना । झिड़कना - स० क्रि० डाँटना, फटकारना । झिड़की - स्त्री० झिड़कनेका भाव, डाँट फटकार । झिपना - अ० क्रि० दे० 'झे पना'; बंद होना । झिपाना-स० क्रि० लजवाना, शर्मिंदा करना । झिर-स्त्री० दे० 'झिरी' | झिरकना-स० क्रि० दे० 'झिड़कना' | झिरझिरा - वि० झीना ।
झिरझिराना- अ० क्रि० 'झिरझिर' करते हुए बहना । झिरना - अ० क्रि० दे० 'झरना' । पु० छेद | झिरहर* - वि० झीना, सुराखदार । झिरी - स्त्री० संधि, झरी; वह गढ़ा जिसमें पानी रिसकर
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झिलँगा-झुराना इकट्टा हो; पाला।
स्वीकार करना प्रवृत्त होना, लगना किसी और पक्षपात झिलेगा-पु० पुरानी खाट जिसकी बुनावट ढीली हो गयी। करना; मानना; * हुँझलाना; ऋद्ध होना-'भैयनसों या टूट गयी हो; ऐसी खाटका बाध ।
प्रभु झुकत हैं."-राम + मरना । झिलना-अ० क्रि० घुसना; तृप्त होना; मगन होना; झेला झुकमुख*-पु० झुटपुटा ।
जाना (झेलनाका कर्म०) । स० कि० हमला करना। झुकराना*-अ० क्रि० झोंका खाना । झिलम-स्त्री० लोहेका बना टोप या शिरस्त्राण ।
झुकवाना-सक्रि० झुकानेका काम दूसरेसे कराना । झिलमिल-स्त्री० हिलती, रह-रहकर चमकती हुई रोशनी | झुकाई-स्त्री० झुकानेकी क्रिया या भाव; झुकानेकी उजरत । झिलमिलानेका भाव । पु० एक महीन वस्त्र । वि० झिल- | झुकाना-स० क्रि० टेढ़ा करना, लटकाना; मोड़ना; नीचा मिलाता हुआ।
करना; प्रवृत्त करना, लगाना । झिलमिला-वि० झीना; जिससे झिलमिलाती हुई रोशनी झुकामुखी*-स्त्री० दे० 'झुकमुख'। निकले; चमकता हुआ।
झुकाव-पु० झुकनेकी क्रिया या भाव; ढाल, प्रवृत्ति चाह । झिलमिलाना-अ०क्रि० रोशनीका हिलना, कभी चमकना, झुकावट-स्त्री० दे० 'झुकाव'। कभी न चमकना; टिमटिमाना।
झुझकावना*-स० क्रि० रेलना, आक्रमणके लिए प्रेरित झिलमिलाहट-स्त्री० झिलमिलानेकी क्रिया या भाव । करना। झिलमिली-स्त्री० खिड़कियों आदिमें जड़ा जानेवाला आड़ी | झुटपुटा-पु० सबेरे या शामका समय जब प्रकाश इतना पटरियोंका ढाँचा जो पीछे लगी लकड़ीको खींचनेसे खुलता, | कम हो कि कोई चीज साफ दिखाई न दे, वह समय जब बंद होता है; चिक, चिलमन; एक तरहकी जाली । कुछ-कुछ अँधेरा और कुछ-कुछ उजाला हो। झिलवाना-स० क्रि० झेलनेका काम दूसरेसे कराना । झुटुंग-वि० झोटेवाला, जटाधारी। झिली*-स्त्री० झींगुर ।
झुठकाना-स० क्रि० दे० 'झुठलाना' । झिल्लड़-वि०जिसकी बुनावट दूर-दूर हो, झीना। झुठलाना-स० क्रि० झूठा साबित करना; झूठी बात. कहझिल्लिका-स्त्री० [सं०] झींगुर, झींगुरकी झनकार; सूर्य- कर धोखा देना। प्रकाश दीप्ति ।
झुठवना*-स० कि० झूठा बनाना। झिल्ली-स्त्री० चमड़े आदिकी पतली तह; बारीक छिलका; झुठाई-स्त्री० झूठापन, असत्यता। [सं०] दे० 'झिलिका' ।
झुठाना-स० क्रि० दे० 'झुठलाना। झिल्लीक-पु० [सं०] झींगुर ।
झठालना-स० कि० दे० 'झुठलाना'; दे० 'जठारना। झीकना-अ० क्रि० दे० 'झी खना'।
झुनकना-अ० क्रि० 'झुन-झुन' बजना । झीका-पु० अन्नकी वह मात्रा जो पीसनेके लिए चक्कीमें | झुनकारा*-वि० झीना। एक बार डाली जाय: छीका।
झुन-झुन-पु० नूपुर, पैजनी आदिके बजनेकी आवाज । झीखना-अ० क्रि० दुःखी होना, कुढ़ना; दुखड़ा रोना । झुनझुना-पु. काठ, टिन आदिका बना खिलौना जो झींगा-पु. एक छोटी मछली।
हिलानेसे 'झुन-झुन' बजता है, घुनघुना । झींगर-पु. तेज आवाजवाला एक छोटा कीड़ा। झुनझुनाना-अ० क्रि० 'झुन-झुन' ध्वनि होना । स० क्रि० झीवर*-पु० दे० 'झीवर'।
'झुन-झुन' शब्द उत्पन्न करना । झाँसी-स्त्री० नन्हीं-नन्हीं बूंदोंमें होनेवाली वर्षा, फुहार। | झुनझुनियाँ-स्त्री० 'झुन-झुन' शब्द करनेवाला गहना; झीका-पु० छीका।
बेड़ी सनईका पौधा । झीखना-अ० क्रि० दे० 'झी खना' ।
झुनझुनी-स्त्री० हाथ-पाँवके एक हालतमें देरतक रहने या झीठ-वि० झूठ, मिथ्या।
दबनेसे पैदा होनेवाली सनसनाहट । झीड़ना*-अ० क्रि० घुसना; धंसना-'मानहुँ सुधासिंधुमें अपरी*-स्त्री० दे० 'झोंपड़ी। झीड़त मकर पानके हेत'-सू०।
झुबझुबी -स्त्री० कानका एक गहना। झीना-वि० बहुत बारीक; दूर-दर बुना हुआ, झाँझर । झुमका-पु० कानमें पहननेका एक गहना जो करनफूलकी झीनासारी*-पु० एक तरहका चावल ।
तरकीसे लटकता रहता है। एक पौधा; उसका फूल । झील-स्त्री० प्रकृति-निर्मित सरोवर; बहुत बड़ा ताल । झुमिरना* अ० क्रि० दे० 'झूमना'। झीलर-पु० छोटी झील या तालाब ।
| झरझरी-स्त्री० जूड़ी-बुखारकी कँपकँपी। झीवर-पु० माँझी, मछुआ, धीमर ।
झरना-अ०क्रि० सूखना; दुःख या चिंतासे क्षीण होना। झुंगना-पु० जुगनू ।।
झुरमुट-पुक पास-पास उगे हुए पेड़ या झाड़, समूह, झुंझना*-पु० झुनझुना, एक खिलौना।
मंडली; चादरको इस तरह ओढ़ना कि सारा शरीर ढक झुंझलाना-अ० क्रि० खीझना, चिढ़ना, बिगड़ना । जाय ( मारना)। झुंझलाहट-स्त्री० झुंझलानेका भाव, चिढ़, खफगी। झुरसना*-अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'झुलसना'। झुंड-पु० समूह, विशेषतः पशु-पक्षियोंका गिरोह, गिल्ला। सुरसाना*-स० क्रि० दे० 'झुलसाना' । झकना-अ० क्रि० टेढ़ा होना, लटकना; मुड़ना; नीचा झुरहुरी-स्त्री० दे० 'झुरझुरी'। होना (आँखोंका); दबना, नमित होना; हार या छुटाई झुराना*-अ० क्रि० सूखना । स० क्रि० सुखाना।
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झुरावन-झौटा झुरावन -स्त्री०सूखनेसे वस्तुकी तौल में होनेवाली कमी। झूमड़-पु० दे० 'झूमर'। -झामड़-पु० अंडबंड, व्यर्थकी झरी-स्त्री० सूखनेसे (चेहरे आदिपर) पड़नेवाली शिकन ।। बात, ढकोसला। झुलना-पु० झूला; ढीला कुरता।
झूमना-अ०क्रि० इधर-उधर हिलना, झोंके खाना; लहझुलनी-स्त्री० सोने, भोतियों आदिकी बनी लटकन जो राना; (मस्ती, आनंदमें) सिर-धड़को आगे-पीछे हिलाना; नथमें लटकायी या बेसरकी तरह नाकमें पहन जाती है। । नशेमें लड़खड़ाना। झुलमुला*-वि० दे० 'झिलमिला।
झूमर-पु० होलीमें नाचके साथ गाया जानेवाला एक गीत; झुलवाना-स० कि० झुलानेका काम दूसरेसे कराना। उस गीतके साथ होनेवाला नाच, सिरमें पहननेका एक झुलसना-अ० क्रि० इतना जलना कि सतह स्याह हो | गहना; मंडलाकारमें खड़े स्त्री-पुरुष, नावें आदि; हलका। जाय, वस्तुके केवल ऊपरी भागका जलना, अधजला झरना-अ० क्रि० सूखना। होना; धूप, लू या पालेसे पौधों आदिका सूखना, मुर- झूरा-वि० सूखा, खुश्क खाली । * पु० अवर्षण; कमी। झाना । सक्रि० दे० 'झुलसाना'।
झूरै-अ० व्यर्थ ही, बेकार । * वि० व्यर्थ; मूखा खाली। झुलसाना-स० क्रि० वस्तुका ऊपरी भाग, सतह जला | झूल-स्त्री० हाथी-घोड़े आदिकी पीठपर सजावटके लिए देना, अधजला कर देना; झुलसनेका कारण होना। डाला जानेवाला कपड़ा; ढीला-ढाला, भद्दा पहनावा; झुलाना-सक्रि० झूलेको हिलाना, धकेलना; लटकाकर * दे० 'झूला'। -दंड-पु० दंडकी एक कसरत जो झूलते हिलाना; अटकाये रखना, आज-कल करते रहना।
हुए की जाती है। मुलावना*-स० क्रि० दे० 'झुलाना।
झूलना-अ० कि० लटककर आगे-पीछे होना; नाचना, झुलावनि-स्त्री० झुलानेकी क्रिया या भाव ।
झूलेपर बैठकर या लेटकर पेंग लेना; किसी आशामें लटके झुलौआ, झुलौवा*-पु० दे० 'झूला' ।
रहना । पु० हिंडोला; एक छंद । वि० झूलनेवाला। झूक*-पु० दे० 'झोका' । स्त्री० दे० 'झोंक'। झूलरि*-स्त्री० दे० 'झुमका' । झूका-पु० दे० 'झोंका।
झूला-पु० झूलनेका साधन, पेड़की डाल, छतकी कड़ियों झंखना*-अ० क्रि० दे० 'झी खना' ।
आदिमें बँधी हुई रस्सीके सहारे लटकता हुआ तख्ता झूटा-वि० झूठा । पु० पेंग; बालोंका समूह, ओंटा । आदि, हिंडोला; झटका; रस्सों, जंजीरों आदिका बना झूझ*-पु० दे० 'युद्ध'।
बिना खंभेका पुल; एक तरहकी बिना बाँहकी कुती जिसे झूझना-अ० क्रि० जूझना, युद्ध करना।
प्रायः देहातकी स्त्रियाँ पहनती हैं। झूल; एक गहना । झूठ-वि० जो सच न हो, अयथार्थ, अतथ्य, मिथ्या । पु० झपना-अ० कि० लजाना, शर्मिदा होना। झूठी बात, असत्य ।-मूठ-अ० यो ही, अकारण, बेकार । झैंपू, झेपू-वि० झेंपनेवाला, लज्जाशील । -सच-पु० कुछ झूठी और कुछ सच्ची बात, झूठ और | झर-स्त्री० देर, विलंब झंझट, बखेड़ा। सचकी खिचड़ी। मु०-का दफ्तर-मनगढ़ंत बातें, ऐसा | झरना-स० कि० झेलना छेड़ना । कथन जो आदिसे अंततक झूठ हो । -का पुतला-बहुत | झेरा*-पु० झगड़ा झंझट; दे० 'झेर' । झूठ बोलनेवाला, भारी झूठा । -का पुल बाँधना- झेल-स्त्री० झेलनेकी क्रिया या भाव; हिलोर धका; * देर, झूठकी झड़ी लगा देना, झूठपर झूठ बोलना। -सच जोड़ना या लगाना-सचमें झूठ मिलाकर कहना; झूठी झेलना-स० क्रि० सहना, बरदाश्त करना; ठेलना; हलकर शिकायतें करना।
पार करना । * अ० क्रि० मानना। झूठन-स्त्री० दे० 'जूठन' ।
झेलनी-स्त्री० चाँदी या सोनेकी जंजीर जो कानके गहनोंका झूठा-वि०जो सच न हो, असत्य, मिथ्या; झूठ बोलनेवाला, | बोझ सँभालनेके लिए बालोंमें अटकायी जाती है। मिथ्याभाषी; नकली, बनावटी; दिखाऊ (-फैर); जूठा । झोंक-स्त्री० वेग, झोंका; बोझ; धुन, आवेश; * चोट, मु०-पड़ना-(किसी कल-पुरजे या अंगका ) काम देने आघात; चाल, ढंग। लायक न रहना, बेकार हो जाना । (झठे): झों कना-स० क्रि० आगेकी ओर फेंकना; धकेलना; भट्टे, काला-झूठा हर जगह जलील होता है। -की कब- भाड़में ईधन डालना, फेंकना; बुरी जगह डालना, ठेल (के घर) चना या हो आना-झूठेका झूठ पकड़- देना; (.. में झोंकना) उड़ाना,खर्च करना; (दोष) लगाना। कर, साबित करके उसे लज्जित करना। -पर ख़दाकी झो कवाना-स० क्रि० झोंकनेका काम दूसरेसे कराना। मार या लानत-झूठ बोलनेवालेका सत्यानास हो। झोका-पु० तेज हवाका धक्का; झकोरा तेजीसे जानेवाली झूठों-अ० झूठ-मूठ, योही, दिखानेके लिए(-न पूछना)। | चीजका धक्का; पानीका हिलोरा; * ठाट, चाल; मुट्ठी। झूना-वि० दे० 'झीना' ।
झोकाई-स्त्री० झोंकनेकी क्रिया या उजरत । झूम-स्त्री० झूमनेकी क्रिया या भाव; ऊँघ ।
झो किया-पु० झोंकनेका काम करनेवाला । झूमक-पु० झूमर, झूमर के साथ होनेवाला नृत्य; गुच्छा, झों की-स्त्री० बोझ, जवाबदिही; जोखिम । साड़ी दुपट्टे के माथेपर रहनेवाले भागपर टॅका मोतियों झो झा-पु० ₹क, गिद्ध आदिके गलेसे थेलीकी शकुमें - आदिका गुच्छा। -साड़ी-स्त्री० वह साड़ी जिसमें झूमक | लटकता हुआ मांस घोसला । टँके हों।
झो झल-पु० झुंझलाहट । झूमका-पु० दे० 'झुमका'; दे० 'झूमक' ।
| झोटा-पु० बिखरे हुए, रूखे, मैले, लंबे बाल, जटा; जुट्टा
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झो पड़-टकराना * पेंग। -झोटी-स्त्री० दो स्त्रियोंका परस्पर बाल खसो- हीलाहवाली ।-दार-वि०जिसमें झोल हो,ढीलारसेदार । टते हुए लड़ना।
झोलना*-स० क्रि० जलाना। झो पड़, झोपड़ा-पु० घास-फूससे छाया हुआ छोटा कच्चा झोला-पु० कपड़े, किरमिच आदिका थैला;खोली, गिलाफ; घर, कुटिया, मड़ई।
चोला; लकवा; * झोंका; इशारा। झोपड़ी, झोपड़ी-स्त्री० छोटा झोंपड़ा।
झोली-स्त्री० चारों कोने बाँधकर कंधे आदिसेलटकाया हुआ झोपा-पु० झब्बा, गुच्छा।
कपड़ा जो झोले या थैलेका काम देसफरी बिस्तर चरसा झोटिंग-पु० झोंटेवाला, जटाधारी।
घास बाँधनेका जाल; एक तरहका फंदा; राख । झोरना*-स० क्रि० जोरसे हिलाना, झकझोरना; डालको झोर-पु० झुंड, समूह; गुच्छा, कुंज, झुरमुट; एक गहना। इस तरह हिलाना कि फल झड़ जायँ; बटोरना । छककर | झोरना-अ० क्रि० गूंजना । स० क्रि० झपटकर पकड़ना। भोजन करना।
झौरा-पु० दे० झौर। झोरि*-स्त्री० दे० 'झोली'।
झीराना*-अ० क्रि० झूमना, झोंके खाना; झाँवर होना; झोरी*-स्त्री० झोलो पेट; एक तरहकी रोटी ।
मुरझाना। झोल-पु० रसा; कढ़ी; कपड़ेके किसी अंशका ढीला या झाँसना -अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'झुलसना'। नापसे बड़ा होनेके कारण झूलना, लटकना; इस तरह झीर-पु० झगड़ा, हुज्जत, तकरार डाँट; भगदड़ । लटकनेवाला अंश; मुलम्मा; * आँचल; ओट; वह झिल्ली झीरना*-स० क्रि० झपटकर दबोच लेना। जिसमें लिपटा हआ बच्चा पैदा होता है, जराय: गर्भ;राख झोरे*-अ० पास, निकट साथ। -'तेहिपर बिरह जराइकै चहै उड़ावा झोल'-५०,जलन। झौवा -पु० बँचिया। वि० ढीला निकम्मा । -झाल-वि० ढीलाढाला । पु० । झौहाना-अ० क्रि० गुस्से में आकर बोलना ।
अ-देवनागरी वर्णमालाका दसवाँ व्यंजन वर्ण ।
। अ-पु० [सं०] गायन धर्धर ध्वनि ।
ट-देवन.गरी वर्णमालाका ग्यारहवाँ व्यंजन वर्ण । टँको(कौ)री-स्त्री० सोना-चाँदी तौलनेका छोटा तराजू । टंक-पु० [सं०] चार माशेकी एक तौल, पत्थर काटने या टॅगड़ी-स्त्री० टाँग, पैर । गढ़नेकी छेनी कुल्हाड़ी; तलवार; म्यान; पहाड़ीका ढाल; टॅगना-अक्रि.० लटकना; लटकाया जाना; फाँसी चढ़ना। सोहागा; एक राग क्रोध दर्पः पैर नील कपित्थ; सिक्का पु० अलगनी । मु० टॅग जाना-फाँसीपर चढ़ना। दरार । -शाला-स्त्री० दे० 'टंकक-शाला' ।
टॅगिया-स्त्री० छोटी कुल्हाड़ी। टंककशाला-स्त्री० [सं०] सिक्के ढालनेकी जगह (मिट)। टंच-वि० तैयार; हृष्ट-पुष्ट; * कंजूस कठोरहृदय; दुष्ट । टंकण, टंकन-पु० [सं०] सोहागा; टाँकी देना; (काइनेज) टंट-घंट-पु० पूजा-पाठका आडंबर, ढोंग । ताँबे, चाँदी आदिके सिक्कोंकी ढलाई ।
टंटा-पु० झगड़ा, फसाद, कलह । टॅकना-अ० क्रि० टाँका जाना; सिलना; सिलाई द्वारा टॅड़िया-स्त्री० बाँहपर पहननेका एक गहना, बहूँटा ।
अँटकाया जाना लिखा जाना; सिल आदिका कुटना । टई-स्त्री० काम, काम निकालनेकी युक्ति; ताक । टँकवाना-स० क्रि० 'टाँकना'का प्रेरणार्थक ।
टक-स्त्री० एक ही ओर देरतक लगी हुई दृष्टि (बँधना, टंका-पु० चाँदीकी एक पुरानी तील; ताँबेका पुराना सिक्का। लगाना)। टैंकाई-स्त्री० टाँकनेका काम, टाँकनेकी उजरत ।
टकटका*-पुण्दे० 'टकटकी'। वि० एक जगह स्थित (दृष्टि)। टंकाना-स० कि० सिक्केकी जाँच कराना।
टकटकाना -स० क्रि० टकटकी लगाकर देखना। अ० टकाना-सक्रि० टाँके लगवाना; सिल आदि कुटवाना क्रि० 'टक-टक' शब्द करना। याददाश्तके लिए लिखवा देना।
टकटकी-स्त्री०निनिमेष दृष्टि । टंकार-स्त्री० [सं०] धनुषकी चढ़ी हुई डोरीको खींचकर टकटोना*-स० क्रि० उँगलियोंसे छूकर किसी वस्तुका पता छोड़नेसे उत्पन्न ध्वनि; धातुखंड आदिपर आघात होनेसे लगाना, टटोलना ढूँढ़ना, खोजना। उत्पन्न ध्वनि चिल्लाहट प्रसिद्धि ।
टकटोरना*-स० क्रि० दे० 'टकटोलना'। टंकारना-सक्रि० धनुषका रोदा तानकर आवाज करना। टकटोलना-सक्रि० स्पर्शसे पता लगाना या जाँचना। टंकिका-स्त्री० [सं०] पत्थर काटनेकी छेनी, टाँकी । टकटोहन*-पु० टटोलकर देखनेका काम । -टंकी-स्त्री० पानी, तेल आदि रखने के लिए बनाया हुआ। टकटोहना*-स० क्रि० दे० 'टकटोलना'। बक्सके आकारका बड़ा पात्र; एक रागिनी।
टकराना-अ०क्रि० दो वस्तुओंका एक दूसरीसे भिड़ जाना टंकोर-स्त्री० दे० 'टंकार'।
ठोकर लग जाना; कार्यकी सिद्धिके लिए बार-बार आनाटंकोरना-स० क्रि० दे० 'टकारना'।
जाना; * मारा फिरना; इधर-उधर घूमना। स० क्रि०
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टैकसार-टर दो वस्तुओंको आपस में लड़ा देना।
बारातमें निकाली जानेवाली फुलवारीका तख्ता । मु०टकसार-स्त्री० दे० 'टकसाल' ।
की आड़से शिकार खेलना-छिपकर चाल चलना, गुप्त टकसाल-स्त्री०सिक्कोंकी ढलाईका स्थान (गिट); * निर्दोष रीतिसे विरुद्ध कार्य करना । -की ओट बैठना-छिपे
वस्तु । वि० चोखा, खरा ।-का खोटा-नीच, कमीना। तौरपर कोई कार्य करना । टकसाली-वि० टकसालका प्रामाणिक; खरा; शिष्टों द्वारा टटू-पु० छोटे कदका घोड़ा।
अनुमोदित । पु० टकसालका अध्यक्ष ।-बात-स्त्री० ठीक टड़िया-स्त्री० बाँह पर पहननेका एक गहना । बात, पक्की बात । -बोली-स्त्री० शिष्ट भाषा ।
टन-स्त्री० घंटे, धातुके बरतन या टुकड़ेसे उत्पन्न शब्द । टकहाई-वि० स्त्री० दे० 'टकाही'।
-टन-स्त्री० घंटा बजनेका शब्द । टका-पु० चाँदीका पुराना सिक्का, रुपया; दो पैसोंके बराबर टनकना-अ० कि० टन-टन बजना; धूप लगने आदिके ताँबेका सिक्का, अधन्ना; आधी छटाँककी तील; सवा सेरका कारण सिरमें दर्द होना, रह-रहकर पीड़ा होना। गढ़वाली परिमाण ।-भर-वि० जरासा । मु०-पास न टनटनाना-स० क्रि० घंटा, धातुके बरतन या टुकड़ेसे 'टनहोना-निर्धन होना। -सा जवाब देना-साफ इनकार टन'की ध्वनि निकालना। अ० क्रि० घंटे आदिका 'टन. कर देना । -सा मुंह लेकर रह जाना-लजा जाना। टन बजना । टकासी-स्त्री० दो पैसे फी रुपयेका सूद ।
टनमन-पु० जादू-टोना । वि० दे० 'टनमना' । टकाही-वि० स्त्री० एक-एक टकेपर अपना सतीत्व बेचने- टनमना-वि० स्वस्थ; चंगा; प्रसन्नचित्त; सतेज ।
वाली; निम्न श्रेणीकी (वेश्या)। स्त्री० दे० 'टकासी'। टनाटन-पु० लगातार घंटा बजनेकी आवाज । वि० ठीक टकुआ-पु० सूत कातने और लपेटनेके काम आनेवाला हालतमें, पुष्ट । अ० 'टन-टन' आवाजके साथ । सूआ, तकला।
टप-स्त्री० बूंद इत्यादिके गिरनेका शब्द; टमटम आदिकी टकुली-स्त्री० पत्थर काटनेकी छेनी; नकाशीके काम आने- छतरी जो इच्छानुसार फैलायी या मोड़ी जा सकती है। वाला एक औजार।
किसी चीजके टपकनेका शब्द । -से-झटसे, बहुत जल्द । टकैत-वि० टकेवाला, धनी, मालदार ।
टपक-स्त्री० टपकनेकी क्रिया या भाव; बूंदोंके गिरनेका टकोर-स्त्री० टंकोर डंकेकी चोट या शब्द; हलकी चोट ।। शब्द रुक-रुककर होनेवाली पीड़ा। टकोरना-स० क्रि० धीरेसे आधात करना; बजाना; डंके टपकन-स्त्री० रुक-रुककर होनेवाली पीड़ा, टीस । आदिपर चोट करना; पोटलीसे सेंकना ।
टपकना-अ० क्रि० बूंद-बूंद गिरना; पके फलका आपसे टकोरा-पु० डंकेकी चोट ।
आप गिरना; किसी भावका आभासित होना, झलकना; टकोरी*-स्त्री० टक्कर; चोट, आघात ।
मुग्ध होना; धाव आदिमें रह-रहकर पीड़ा होना। टकौरी-स्त्री० छोटा तराजू; चाँदी-सोना तौलनेका काँटा। टपका-पु० बूंद-बूंद गिरना; टपका हुआ फल आदि। टक्कर-स्त्री० ठोकर, दो वस्तुओंका वेगके साथ आपसमें | ठोकर रह-रहकर होनेवाली पीड़ा; चौपायोंका एक रोग, भिड़ जाना; मुकाबला; हानि । मु०-खाना-मारा- खुरपका ।-(के) की विद्या-छीन-झपटकर लानेकी विद्या । मारा फिरना; मुकाबलेका होना।
टपका-टपकी-स्त्री० फलका एक-एक कर गिरना; बूंदाटखना-पु० एडीके ऊपरकी हड्डीकी गाँठ ।
बूंदी; कुछ लोगोंका महामारी आदिसे रोज मरना । वि० टगण-पु० [सं०] छ मात्राओंका एक गण ।
कोई-कोई, एक-आध । टगर-पु० [सं०] सोहागातगरका वृक्ष क्रीड़ा; मेंडा टीला। टपकाना-स० क्रि० बूंद-बूंद गिराना, चुलाना। टघरना -अ० क्रि०टिघलना, द्रवीभूत होना।
टपना-अ० कि० बिना खाये-पीये पड़ा रहना; व्यर्थ किसीके टच-टच*-अ० धाय धाय' करते हुए (आगका जलना) । भरोसे बैठा रहना; लाँघ जाना; कूदना। स० क्रि० ढकना। टटका*-वि० ताजा; हालका; कोरा ।
टपाटप-अ०'टप-टप'की आवाजके साथ; लगातार; शीघ्रताटटकाई*-स्त्री० ताजगी।
से; एक-एक करके। टटल-बटल*-वि० बेसिर-पैरका, ऊटपटाँग ।
टपाना-सक्रि० बिना खिलाये-पिलाये रखना; झूठ-मूठ टटिया-स्त्री० बाँस आदिकी टट्टी ।
हैरान करना, व्यर्थ आसरेमें रखना + कुदाना, लँघाना । टटीबा*-पु० घिरनी, चक्कर ।
टप्परी-पु० छप्पर छज्जा । टटुआ-पु० टटू ।
टप्पा-पु० उछलती हुई वस्तुका बीच-बीचमें पृथ्वी छूना; टटोरना*-स० क्रि० दे० 'टटोलना'।
वह फासला जहाँतक कोई चीज पहुँचे फलाँग; एक तरह टटोलना-स० क्रि० उँगलियोंसे छूकर पता लगाना, दवा- का गाना; t अंतर । मु०-मारना-दूर-दूर सिलाई
कर छूना; वार्तालाप द्वारा विचारका पता लगाना । करना। टट्टर-पु० रक्षा या परदेके लिए लगाया हुआ बाँस आदिकी टमटम-पु० [अ० ₹डेम'] दो पहियोंकी एक खुली गाड़ी फट्टियोंका पल्ला।
जिसमें एक घोड़ा जोता जाता है । टट्टा-पु० बड़ी टट्टी।
टमटी*-स्त्री० एक बरतन । टट्टी-स्त्री० छोटा टट्टर या पल्ला; पतला शीशा ओट, परदा टमाटर-पु० [अं॰ 'टोमैटो'] विलायती बैगन । पलेकी दीवार; अंगूर चढ़ानेके काम आनेवाली बाँसकी टर-स्त्री० कटु शब्द: मेढककी बोली; अकड़, घमंड हठ । फट्टियोंकी दीवार; शिकार खेलनेकी आड़, पाखाना मु०-टर करना,-टर लगाना-बक-बक करना, ढिठाईसे
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टरकना-टाप
बोलते ही जाना।
न-पु० छोटे कदका घोड़ा। टरकना-अ० क्रि० खिसक जाना; कर्कश स्वरसे बोलना। टाँगना-स० क्रि० खूटी या अलगनी जैसे ऊँचे आधारसे टरकाना-स० क्रि० खिसका देना; टाल देना; चलता करना । अँटकाना, लटकाना; फाँसी चढ़ाना, फाँसी देना। टरटराना-अ० कि० अंड-बंड बकना, टर्राना।
टाँगा-पु० कुल्हाड़ा; पीछेकी ओर लटकी हुई एक गाड़ी टरना-अ० क्रि० दे० 'टलना' ।
जिसमें एक घोड़ा जीता जाता है। टराना*-अ० क्रि० हटना, टलना।
टाँगी-स्त्री० कुल्हाड़ी। टटर-स्त्री० मेढककी आवाज ।
टाँघन*-पु० दे० 'टाँगन' । टरां-वि० ऐंठकर बातें करनेवाला; अविनयपूर्वक कठोर टाँच-स्त्री० ऐसी बात जिससे बनता हुआ काम बिगड़ जाय,
उत्तर देनेवाला, कटुभाषी; उदंडतासे बोलनेवाला; उजड्ड । भाँजी टाँका; सिलाई पैबंद; * काट-छाँट । टर्राना-अ०क्रि० गर्वके साथ बात करना; सीधे न बोलना। टाँचना-सक्रि० टाँकना सिलाई करना; काट-छाँट करना। टलना-अ.क्रि. विचलित होना; खिसकना; अलग होना टाँची-स्त्री० रुपये रखकर कमरमें बाँधनेकी थैली, बसनी । अपने स्थानसे हटना, सरकना; मिटना; अन्यथा होना; टाँठ*-वि० कड़ादृढ़, बलवान् । स्थगित होना; व्यतीत होना।
टाँड़-स्त्री० सामान रखनेके लिए बनी हुई लकड़ीकी पाटन; टलाटली-स्त्री० टालमटोल, बहानेबाजी ।
मचान; बाहुपर पहननेका एक गहना । पु० समूह, राशि टवाई*-स्त्री० व्यर्थ घूमना ।
टाँड़ा; घरोंकी कतार । टस-स्त्री० भारी वस्तुके हटनेकी आवाज।मु०-से मस टाँडा-पु. बैलोंपर लदी हुई व्यापारकी वस्तुएँ; ऐसी
न होना-थोड़ासा भी न हिलना, प्रभावित न होना। वस्तुओंसे लदे हुए बैलोंका झंड, व्यापारियोंका समूह, टसक-स्त्री० रुक-रुककर होनेवाली पीड़ा, टीस ।
परिवार; लकड़ीका एक कीड़ा; * लदकर एक स्थानसे टसकना-अ.नि.. किसी भारी चीजका अपनी जगहसे दूसरे स्थानपर जानेवाला माल ।
हटना; खिसकना; चले जाना; टीसना; प्रभावित होना। टाँडी*-स्त्री० टिड्डी। टसकाना-सकि० किसी चीजको उसकी जगहसे हटाना। टॉय-टॉय-स्त्री० 'टे-2'का कर्कश शब्द: बकवाद । मु० टसर-पु० एक तरहका कड़ा और मोटा रेशम ।
-फिस-लंबी बातें, पर परिणाम कुछ नहीं; धूम-धामसे टहनी-स्त्री० पतली और लचीली उपशाखा ।
काम शुरू करना, पर अंतमें कुछ न हो सकना । रहरना*-अ०कि दे० 'टहलना'।
टाइप-पु० [अं०] छपाईके काम आनेवाले सीसेके ढले टहल-स्त्री० सेवा, शुश्रषा, चाकरी। -टई *-स्त्री० सेवा- अक्षर । -राइटर-पु. वह छोटी मशीन जिसके द्वारा शुश्रूषा । मु०-बजाना-सेवा करना।
कागजपर टाइपके अक्षर छापे जाते हैं, मुद्रलेखन यंत्र । टहलना-अ० कि० मनोविनोद या स्वाथ्यकी दृष्टि से धीरे-टाइम-पु० [अं०] समय, काल | -टेबुल-पु. वह कागज धीरे चलना, घूमना।
जिसपर भिन्न-भिन्न कार्योंके लिए नियत समय लिखा हो, टहलनी-स्त्री० दासी, नौकरानी; चिरागकी बत्ती उसकाने- समयसूची। -पीस-स्त्री० मेज आदिपर रखनेकी एक की लकड़ी।
प्रकारकी घड़ी। टहलाना-स० क्रि० घुमाना-फिराना, सैर कराना, हवा टाउन-पु० [अं०] कसबा । -हाल-पु. शहरकी वह खिलाना; धीरे-धीरे चलाना; हटा देना।
इमारत जिसमें सरकार या जनतासे संबंध रखनेवाली टहलुआ, टहलुवा-पु० दे० 'टहलू'।
सभाएँ या बैठकें हों, नगरभवन । टहलुई-स्त्री० दे० 'टहलनी' ।
टाट-पु०बिछाने या परदेके काम आनेवाला सन या पटटहलू-पु० खिदमत करनेवाला, चाकर, सेवक ।
सनका मोटा कपड़ा; (ला०) मोटा कपड़ा; बिरादरी महाटहोका-पु० हाथ या पैरसे दिया जानेवाला धक्का । जनकी गद्दी। -बाफ-पु. टाट बुननेवाला; कपड़ोंपर टाँक-स्त्री० चार माशेकी एक तौल; जाँच; हिस्सा सोने-चाँदीके काम करनेवाला। मु०-उलटना-दिवाला * लिखावट; लेखनीकी नोक; कटोरा।
निकलना । -पर मूंजका बखिया-जैसी भद्दी चीज वैसी टॉकना-स० क्रि० सिलाई द्वार। जोड़ना या अँटकाना; ही सजावट । -बाहर होना-बिरादरीसे बहिष्कृत
हलकी सिलाई करना; बहीपर चढ़ाना; सिल कूटना । | होना। -में पाटका बखिया-बेमेल सजावट । टाँका-पु. वह वस्तु जिसके द्वारा दो वस्तुएँ जोड़ी जाय | टाटर-पु० दे० 'टट्टर'; * ठठरी खोपड़ी। धातुकी चहर जोड़नेके काम आनेवाला काँटा: सीवन; घाव- टाटिका*-स्त्री० टट्टी। की सिलाई; चिप्पी; डोभ; जोड़ (धातुका)।
टाटी-स्त्री० छोटा टट्टर दट्टी। टॉकी-स्त्री० पत्थर काटनेकी छेनी; खरबूजे आदिपरका टाठी-स्त्री० थाली।
चौकोर कटाव; काटकर बनाया हुआ छेद; हौज कंडाल | टाड़ *-पु० भुजापर पहननेका एक आभूषण । टॉग-स्त्री० जांघसे लेकर एडीतकका भाग, वह अंग जिसकेटान-स्त्री० खिंचाव, तनाव; खींचनेकी क्रिया;सितार बजाने सहारे प्राणी चलते-फिरते हैं । मु०-अड़ाना-बिना का एक तरीका । पु० मचान । अधिकारके किसी काममें हस्तक्षेप करना, बाधा डालना । टानना-स०क्रि० खींचना । -तलेसे निकलना-पराजय स्वीकार करना ।-पसारकर टाप-स्त्री० घोड़ेके पाँवका सबसे नीचेका भाग, सुम घोड़ेके सोना-बेखटके सोना; निद्व होकर चैनसे दिन बिताना। पाँवके पृथ्वीपर पड़नेसे उठी आवाज; चारपाईके पायेका
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टापना - टीकना
नीचेका उभरा हुआ भाग; मछली पकड़ने, मुर्गियोंको बंद करनेका टोकरा या खाँचा । मु०-देना - छलाँग मारना टापना - अ० क्रि० दे० 'टपना'; टाप मारना; ताकते रह जाना । + स० क्रि० कूद जाना ।
।
|
टामक* - पु० डुग्गी, डिमडिमी । टामन * - पु० टोना, टोटका ।
गोल टुकड़ा; बिंदी |
टिकुरी, स्त्री० तकली ।
टिकुली - स्त्री० तकली; चमकी, विदी ।
टिकैत - पु० युवराज, राजकुमार जो राजाके बाद तिलकका अधिकारी हो; सरदार ।
टापा - पु०
मैदान; उछाल; झाबा ।
टापू - पु० पृथ्वीका वह भाग जो चारों ओर जलसे घिरा हो, टिकोरा - पु० आमका कच्चा छोटा फल, अंबिया । द्वीप ।
टिक्कड़ - पु० वाटी, अंगाकड़ी; बड़ी टिकिया ।
टिक्की - स्त्री० टिकिया; बाटी; अँगूठे आदिका किसी रंगसे
टारart - स० क्रि० दे० 'टालना' ।
टारपीडो - पु० [अ०] एक स्वतः चलनेवाला विध्वंसक पनडुब्बी जहाज जो दूसरे जहाजसे टकराते ही फट जाता है और टकरानेवाले जहाज में छेद कर देता है । टाल - स्त्री० पुआल आदिका पुंज, अटाला; लकड़ीकी दूकान; टालने की क्रिया । पु० कुटना । - टूल - स्त्री० बहाना; टरकानेकी क्रिया । - मटाल, - मटूल, - मटोल - स्त्री० दे० ‘टाल-टूल’।
|
टालना - सु० क्रि० किसी वस्तुको उसके स्थान से हटाना, खिसकाना; टरकाना; स्थगित कर देना; * हटाना; व्यतीत. करना; उसकाना; उल्लंघन करना । मु० टाल देनादूर कर देना; बहाना कर देना, टरकाना; (ला०) नाश करना; किसी कामको दूसरे समय के लिए रख छोड़ना; समय निर्धारित करना । किसीपर टाल देना- समय बिताना; अपनी जान बचाते हुए दूसरेका निर्देश कर देना । टाली - स्त्री० बैल आदिके गलेकी घंटी; तीन वर्ष से कम उम्रकी बछिया जो बहुत उछलती - कूदती हो । टाहली* - पु० सेवक, नौकर ।
टिंड, टिंडा - पु० एक फल जो तरकारीके काम आता है। टिकट- पु० महसूल या कर चुकानेपर प्राप्त कागजका वह टुकड़ा जिससे थियेटर, लाटरी, ट्रेन आदि में प्रवेशका अधिकार प्राप्त होता है, प्रवेशपत्र; विशेष प्रकारका कर या फीस स्टांप |
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अड़ाना ।
टिकिया - स्त्री० ठोस पदार्थका गोला, चिपटा टुकड़ा; एक मिठाई; तंबाकू पीनेके लिए कोयलेसे बनाया हुआ चिपटा
|
३०२
बना हुआ निशान; ताशकी बूटी ।
टिघलना - अ० क्रि० पिघलना, ठोससे द्रवरूप में परिवर्तित होना ।
टिघलाना-स० क्रि० पिघलाना । टिट* - स्त्री० हठ, टेक |
टिटकारना - स० क्रि० 'टिक-टिक' शब्द करके घोड़े आदिको चलनेके लिए प्रेरित करना । टिटिह-पु० दे० 'टिट्टिभ' |
टिटिहरी - स्त्री० पानीके किनारे रहनेवाली एक चिड़िया । ( कहा जाता है कि यह आकाशके गिरनेके भय से टाँगें ऊपर करके सोती है । )
टिटिहा- पु० दे० 'टिट्टिभ' । - रोर - पु० शोर-गुल । टिट्टिभ - पु० [सं०] नर टिटिहरी । टिट्टिभा, टिट्टिभी - स्त्री० [सं०] टिट्टिभकी मादा । ढिड्डा-पु० एक परदार कीड़ा ।
टिड्डी-स्त्री० एक परदार लाल रंगका कीड़ा जो फसलको हानि पहुँचाता है । - दल - पु० बड़ा झुंड | टि.बिंगा - वि०. बेडौल, टेढा-मेढ़ा ।
टिन - ५० दे० 'टीन' । टिपका - पु० बूँद |
टिपकारी-स्त्री० ईंटों आदि की जोड़ाईके संधिस्थानपर लगाया गया सीमेंट या बारीक मसाला । दिप-टिप-स्त्री० बूँदोंके गिरनेका शब्द ।
टिपवाना-स० क्रि० दबवाना; प्रहार करना; लिखवाना । टिपारा* - पु० मुकुटके आकार की एक टोपी । टिपुर-पु० ढोंग; घमंड ।
टिप्पणी, टिप्पनी - स्त्री [सं०] संक्षिप्त टीका । टिप्पन - पु० जन्मकुंडली; दे० 'टिप्पणी' | टिप्पस - स्त्री० युक्ति, उपाय; प्रयोजन - सिद्धिका ढंग | टिप्पी - स्त्री० अँगूठे आदिका किसी रंगसे बना हुआ निशान । टिमटिमाना - अ० क्रि० क्षीण प्रकाशके साथ जलना; मरनेके करीब होना ।
टिरफिस- स्त्री० विरोध; ढिठाई ।
टिक-टिक-स्त्री० घड़ीकी आवाज; घोड़ा हाँकनेका संकेत । टिकटिकी- स्त्री० टकटकी; अपराधीको बाँधकर बेंत लगानेके लिए बना हुआ ढाँचा; फाँसी देनेका तख्ता, टिकठी । टिकठी- स्त्री० फाँसीका तख्ता; तिपाई; * अरथी । टिकड़ा - पु० चिपटा, गोल टुकड़ा; धातु, पत्थर या खपड़े आदिका छोटा टुकड़ा; आँचपर सेंकी हुई बाटी । टिकड़ी - स्त्री० छोटा टिकड़ा ।
टिकना - अ० क्रि० ठहरना; थोड़े समय के लिए वास करना; अड़ना; विशेष अवधितक काम देना; स्थित रहना; जमना । टिकरी - स्त्री० एक नमकीन पकवान; टिकिया । टिकली - स्त्री० छोटी बिंदी; टिकिया; तकली । टिकस - पु० कर |
टिर्राना - अ० क्रि० दे० 'टर्राना' ।
टिल्ला - पु० धक्का, ठोकर । - (ले) नवीसी - स्त्री० निठल्लापन; बहाना ।
टिकाऊ - वि० टिकनेवाला, कुछ दिनोंतक बना रहनेवाला । टिहुकना। अ० क्रि० चौंकना; रूठना । * वि० रूठनेवाला । टिकान - स्त्री० टिकनेकी क्रिया; पड़ाव ।
टिहुनी + - स्त्री० कुहनी, घुटना ।
टिकाना - स० क्रि० ठहराना; वासके लए स्थान देना; टीँड़सी - स्त्री० एक फल जिसकी तरकारी बनती है ।
टीँड़ी* - स्त्री० टिड्डी |
टीक-स्त्री० गले या सिरका एक गहना ।
टीकना-स० क्रि० टीका या निशान लगाना ।
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टीका-टेनी टीका-पु० तिलक, मस्तकपर चंदन या रोली आदिका | टूका -पु० दे० 'टुकड़ा'। उँगलीसे बनाया हुआ चिह्नविशेष; विवाहके पूर्वकी एक टूट *-वि० टूटा हुआ, खंडित । स्त्री० भूल, चूक, त्रुटिरस्म भेट; कलंक; युवराज; राजतिलक; संक्रामक रोगसे 'टूट सँवारहु मेरबहु सजा'-प० । बचनेक लिए. सूदे द्वारा शरीरमें औषध प्रविष्ट करनेकी क्रिया टूटना-अ० क्रि० मग्न होना, खंडित होना, दो टुकड़े हो सिरका एक आभूषण; *किसी कुल था समुदायका सर्वश्रेष्ठ जाना; हड्डियोंके जोड़का अलग हो जाना; गतिका रुक पुरुष नजराना । स्त्री० [सं०] व्याख्या । -कार-पु० जाना वेगसे किसी ओर झपटना, सहसा आक्रमण करना; किसी ग्रंथकी व्याख्या करनेवाला ।
च्युत होना; संबंध न रहना; कम हो जाना; अंगड़ाईके टीन-पु० [अं०] कलई की हुई लोदेकी चद्दर, कनस्तर । साथ पीड़ाका उठना; फलोंका तोड़ा जाना; अनायास टीप-स्त्री० हाथसे दबानेका काम; हलका आधात; ईटोंके कहींसे आ पड़ना; कृश होना; धनहीन होना। मु० जोड़ोंपर लगाये गये मसालेकी लकीर; ऊँचा स्वर; तार- टूटकर बरसना-मूसलधार वर्षा होना। टूट जानासप्तकमसे किसी एकपर अल्पकालीन ठहराव जन्मपत्री बंद हो जाना; चलना रुक जाना; गढ़का कब्जे में आ हुंडी; गचकी पिटाई; टाँक लेनेकी क्रिया। -टाप-स्त्री० जाना; दुर्बल या शक्तिहीन होना। टूट पड़ना-अचाठाट-बाट, सजावट।
नक आ जाना; ऊपरसे नीचे गिरना।। टीपन स्त्री० जन्मपत्री । स्त्री० घट्टा, गाँठ।
टूटा-वि० खंडित । -फटा-वि० जीर्ण-शीर्ण; (ला) टोपना-सक्रि० हाथ या उँगलीसे दबाना; हलका आधात साधारण कोटिका; सजावटसे रहित । करना; टिपकारी करना; तारस्वरभे गाना; टाँक लेना।। टूठना*-अ०क्रि० संतुष्ट होना; प्रसन्न होना। स्त्री० जन्मपत्री।
टूठनि*-स्त्री० संतोष; प्रसन्नता । टीबा-पु० टीला
हैं-टैं-स्त्री. बकवाद, व्यर्थकी बात । टीम-स्त्री० [अं०] खेलाड़ियोंका दल ।
टैंट-स्त्री० धोतीकी मुरी; कपासका फल या डोंडा करीलटीम-टाम-स्त्री० तड़क-भड़क ।
का फल; पशुओंका एक धाव । टीला-पु० ऊँची जमीन, दूह, मिट्टी या बालूका ऊँचा ढेर। टैंटस-स्त्री० विकारके कारण आँखमें उमड़ा हुआ मांस । टीस-स्त्री० रह-रहकर उठनेवाली जोरकी पीड़ा, कसक। टैंटी-स्त्री० करीलका फल । वि० झगड़ालू चिड़चिड़ा। टीसना-अ० क्रि० रह-रहकर पीड़ा होना ।
टेउकन-पु०, टेउकी-स्त्री० वह वस्तु जो किसी वस्तुको टुंटा-वि० लूला, जिसके हाथ न हो; हूँठा।
लुढ़कनेसे रोकने के लिए उसके नीचे लगायी जाती है। टुक-वि० थोड़ा, तनिक, अल्प । अ० थोड़ा, जर।।
टेक-स्त्री० थूनी, सहारा चबूतरा टीला; संकल्प, हठ टुकड़ा-पु० किसी वस्तुका एक खंड (ला०) जूठन; भाग आदत गीतका स्थायी पद; * आश्रय, अवलंब । मु०(खेत०)।-(टुकड़)खोर-वि० टुकड़ा माँगकर जीनेवाला । निबाहना-संकल्प पूरा करना । -पकड़ना-आग्रह -गदा-वि० धर-घर रोटीका टुकड़ा माँगनेवाला ।पु० करना, हठ पकड़ना। मँगता ।-गदाई-स्त्री० टुकड़ा माँगनेका काम ।-तोड़- टेकना-स. क्रि० थाम लेना सहारा लेना; सहारेके लिए वि० दूसरेके भरोसे जीनेवाला।
कोई वस्तु पकड़ना; * सहन करना; हठ पकड़ना। टुकड़ी-स्त्री० छोटा टुकड़ा; छोटा झुंड या समुदाय | टेकनी-स्त्री. वह चीज जिसका सहारा दिया, लिया जाय। सैनिकोंका छोटा दल, 'कंपनी'।
टेकर, टेकरा-पु० ऊँची भूमि, दूहा छोटी पहाड़ी। टुकुरटुकुर-अ० टकटकी लगाकर ।
टेकला*-स्त्री० धुन, रटन । टुक्का-पु० टुकड़ा; चतुर्थांश ।
टेकान-पु० टेक, थंभ, थूनी; वह ऊँचा चबूतरा जिसपर टुघलाना-स० क्रि० मुँह में रखकर चुभलाना ।
बोझा होनेवाले अपना बोझा रखकर सुसताते हैं । टुच्चा-वि० नीच, कमीना, दुष्ट ।
टेकाना-स० क्रि० सहारा देना; थामना । टुटपुंजिया-वि० कम पूँजीवाला; थोड़ी विद्या, धन | टेकानी-स्त्री० धुरीकी कील जो पहियेको गिरनेसे रोकती है। आदिवाला।
टेकी-वि० दृढ़प्रतिश; हठी, आग्रही। टुटरूँहूँ-ली. पेंडुकीकी बोली । वि० अकेला; अशक्त। । टेढ़-वि० दे० 'टेढ़ा' । स्त्री० टेढ़ापन; उजगुपन; दुष्टता । टुडी-स्त्री० नाभि ठोड़ी टुकड़ी डली ।
-बिडंगा-वि० टेढ़ा-मेढ़ा।। टुनगी-स्त्री० फुनगी।
टेढ़ा-वि० वक्र, झुका हुआ, कुटिल, बाँका कठिन, दुःसाध्य टुनहाया-वि०, पु० जादू-टोना करनेवाला ।
पेचीदा; अनम्र, विनयरहित, उद्दड, बुरे स्वभावका । ट्रॅगना-स० कि० टहनीके पत्तों, छोटे पौधोंको ऊपरसे | -पन-पु० दे० 'टेढ़ाई'। -मेढ़ा-वि० जो सीधा न हो,
काटना; कुतरना,खाद्यवस्तुको थोड़ा-थोड़ा काटकर खाना । जो वक्रता लिये हुए हो। (टेदी)खीर-स्त्री० कठिन हूँद-पु० जौ, गेहूँ, धान आदिकी बालमें ऊपरकी ओर काम । मु० (टेढ़ी)सीधी सुनाना-बुराभला कहना । निकला हुआ नुकीला भाग, मच्छड़ आदि कीड़ोंके मुँहके टेढ़ाई-स्त्री० टेढ़ा होनेका भाव, टेढ़ापन । आगे Vड़की तरह निकली हुई पतली नली ।
टेढे-अ० तिरछे । मु०-टेढ़े जाना-धमंड करना, इतराना। ट्रैडी-स्त्री० गाजर-मूली आदिकी नोक; लंबी नोक; नाभि। | टेना-स० क्रि० पत्थर आदिपर धार तेज करना। टूअरा-वि० (वह बच्चा) जिसकी माँ गुजर गयी हो। टेनी -स्त्री० छोटी उँगली । म०-मारना-(सौदा) कम टूक*-पु० टुकड़ा, खंड ।
चढ़नेके लिए तराजूकी डाँडीको उँगलीसे दबा देना।
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टेम-ठकुरई
३०४ टेम-स्त्री० दीयेकी लौ । पु० [अं० 'टाइम'] समय । टोटक*---पु० दे० 'टोटका'। टेर-स्त्री० पुकार, हाँक; ऊँचा गायन ।।
टोटका-पु० टोना ।-(के)हाई-स्त्री० टोना करनेवाली। टेरना-सक्रि० तार स्वरमें गाना; पुकारना दूरसे बुलाना टोटा-पु० कारतूस, बाँस आदिका टुकड़ा. घाटा, कमी। मददके लिए पुकारना; बिताना, काटना; पूरा करना। टोड़ा-पु० पुराने ढंगके मकानों में दीवार में गाड़ा जानेवाला टेलीप्रिंटर-पु० [अं॰] वह यंत्र जिसमें तार द्वारा प्राप्त विशेष बनावटका पत्थर या लकड़ीका टुकड़ा जो आगे बढ़ी संदेश स्वयं टाइप हो जाता है, दूरमुद्रक ।
हुई छाजनकी रोकके लिए लगाया जाता है । टेलीफोन-पु० [अं०] वह यंत्र जिसमें तारके संबंधसे टोड़ी-स्त्री० एक रागिनी, भैरव रागकी स्त्री।
दूरके शब्द ज्योंके त्यों सुनाई देते हैं, दूरभाष । | टोनहा-पु० दे० 'टोनहाया। टेलीविज़न-पु० [अं०] व्यवधान रहते हुए भी दूरकी | टोनहाई-स्त्री० टोना, तंत्र-मंत्र करनेवाली स्त्री। वस्तुको देखनेकी क्रिया ।
टोनहाया-पु० टोना, जादू करनेवाला । टेव-स्त्री० लत, आदत, स्वभाव (पड़ना)।
टोना-पु० जादू, टोटका; * एक शिकारी पक्षी । स० क्रि० टेवना -स० कि० दे० 'टेना'।
उँगलियोंसे दबाकर या छूकर मालूम करना, टटोलना । टेवैया -पु. धार तेज करनेवाला ।
टोप-पु० बड़ी टोपी; शिरस्त्राण, लोहेकी टोपी; + बूंद । टेसुआ-पु० दे० 'टेसू'।
टोपा-पु० बड़ी टोपी; शिरस्त्राण; टोकरा। टेसू-पु० पलाशका फूल; * लड़कोंका एक खेल।
टोपी-स्त्री० सिरका एक पहनावा; गोल और गहरा ढकन क-पु० [अं०] लड़ाईके काम आनेवाली मोटरकार जैसी शिकारी जानवरके मुँह पर चढ़ानेकी थैली। -दार-वि० गाड़ी जो तोप आदिसे लैस और लोहेकी मोटी चादरसे टोपीवाली (बंदूक); जिसमें टोपी लगी हो । ढकी रहती है।
टोभ-पु० टाका। टैक्स-पु० [अं०] कर, महसूल, टिकस ।
टोर*-स्त्री० कटारी, कटार । टेक्सी-स्त्री० [अं०] किरायेपर चलनेवाली मोटर कार । टोरना*-सकि० तोड़ना । टोचना-स० क्रि० गड़ाना; गोदना । पु० उलाहना ताना। टोल-स्त्री० दल, समुदाय, झुंडा टुकड़ा, रोड़ा; पाठशाला। टॉट-स्त्री० चोंच।
पु० एक राग; [अं०] यात्रियों आदिपर लगनेवाला कर। टोटनी-स्त्री० जलपात्र में लगी हुई टोंटी।
टोला-पु० छोटी बस्ती; महला। टो टी-स्त्री० बरतन आदिमें लगी हुई पानी गिरानेकी टोली-स्त्री० छोटा महला मंडली; झुंडा सिल । नली; थूथन ।
टोह-स्त्री० खोज, अनुसंधान; पता देख-भाल । टोक-स्त्री० टोकनेकी क्रिया, रोक; पूछ-ताछ । -टाक-टोहक विमान-पु० (रिकानेसेंस प्लेन) शथुकी स्थितिका स्त्री० पूछ-ताछ।
पता लगाने, सैनिक आवश्यकता या पुल आदि बनानेकी टोकना-स० वि० चलते समय यात्राके विषयमें पूछ-ताछ दृष्टिसे आसपासके भूक्षेत्रका पर्यवेक्षण करनेवाला विमान । करना; किसी बातकी याद दिलाना; अशुद्धिपर बोल टोहना-स० क्रि० खोजना, सुराग लगाना; टटोलना । उठना; एतराज करना । पु० हंडा टोकरा।
टोहाटाई-स्त्री० खोज, छान-बीन; देख-भाल । टोकनी-स्त्री० टोकरी, देगची; छोटा हंडा।
टोहिया-वि०, पु० टोह लगानेवाला; खुफिया । टोकरा-पु० बड़ी टोकरी; झाबा, खाँचा ।
टोनहाल-पु० दे० 'टाउनहाल'। टोकरी-स्त्री० धास, फल, तरकारी आदि रखनेका बाँसट्रॅक-पु० [अ०] लोहे या टीनका कपड़े आदि रखनेका संदूक । या झाऊ आदिका बना गोला, गहरा पात्र, बँचिया । ट्रेन-स्त्री० [अं०] रेल गाड़ी।
ठ-देवनागरी वर्णमालाका बारहवाँ व्यंजन वर्ण ।
मुलम्मा जो बिना आँचके चढ़ाया जाय । मु०-करना-वि०जिसकी डालियाँ और पत्तियाँ सूख या कटकर | क्रोध शांत करना । -पड़ना-क्रोध शांत होना; आवेशगिर गयी हों, हूँठा।
रहित होना । -होना-मर जाना । ठंठनाना-स० क्रि० 'ठं-ट'की ध्वनि निकालना। ठंढाई-स्त्री० तरी पहुँचानेवाली औषधियाँ पेय विशेष । ठंड-स्त्री० सरदी, जाड़ा।
ठंढी-वि०स्त्री०दे० 'ठंडा' ।-आग-स्त्री०पाला।-सासठंडक-स्त्री० दे० 'ठंड'।
स्त्री० दुःखभरी साँस । मु०-साँस लेना-आह भरना । ठंडा-वि० सर्द, शीतल; बुझा हुआ; बेरौनक, श्रीहत । ठंढे-टंढे-अ० आराममें, धूप कड़ी होनेसे पहले । ठंडाई-स्त्री० दे० 'ठंढाई'।
ठ-पु० [सं०] शिव; भारी शब्द; चंद्रमंडल; शून्य स्थान । ठंडी लड़ाई-स्त्री० (कोल्ड वार) दे० 'शीत युद्ध'। ठक-पु० काठपर काठ बजानेका शब्द । * स्त्री० हठ । वि० ठंढ-स्त्री० दे० 'ठंड' ।
भौंचक्का, स्तब्ध । -ठक-स्त्री० मनमुटाव, झगड़ा; 'ठकठंढई-स्त्री० दे० 'ठंढाई।
ठक' शब्द । मु०-हो जाना-स्तंभित हो जाना, भौचका ठंदक-स्त्री० दे० 'ठंड' (ला) सुख, तृप्तिः संतोष शांति।। हो.जाना। ठंढा-वि० दे० 'ठंडा'। -मुलम्मा-पु० सोने-चाँदीका ठकुरई -स्त्री० दे० 'ठकुराई'।
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३०५
ठकुरसुहाती - स्त्री० व्यक्तिविशेष या स्वामीको प्रिय लगनेवाली बात, चापलूसी, चाटुकारिता । टकुराइत - स्त्री० दे० ' ठकुरायत' । ठकुराइन | - स्त्री० स्वामिनी; ठाकुरकी, नाईकी स्त्री; * रानी । ठकुराई- स्त्री० स्वामित्व, प्रभुता, शासनाधीन प्रदेश, राज्य; क्षत्रिय, स्वामी या जमींदार होनेका रोबदाब | ठकुरानी - स्त्री० जमींदार, ठाकुर या सरदारकी स्त्री; रानी । ठकुराय * - पु० क्षत्रियोंका एक भेद ।
ठकुरायत - स्त्री० प्रभुता, स्वामित्व, अधीश्वरता; शासनाधीन प्रदेश |
ठग - पु० धोखा देकर लूटनेवाला; धोखेबाज आदमी; धूर्त, वंचना करनेवाला | -पना- पु० ठगहाई; ठगनेकी क्रिया; धूर्तता । - मूरी-स्त्री० ठगनेकी गरज से बेहोश करनेके लिए सुधायी जानेवाली एक जड़ी । - मोदक-पु० नशीली वस्तुओंसे युक्त मोदक जिसे खिलाकर ठग पथिकोंको बेहोश करते थे। - लाडू - पु० दे० 'ठगमोदक' |--विद्या- स्त्री० धोखा देने का हुनर |
उगना - स० क्रि० धोखा देकर लूटना; दगाबाजी करना, छलना; ग्राहकों से अधिक दाम लेना । * अ० क्रि० ठगा जाना; धोखा खाना; दंग रह जाना । ठगनी - स्त्री० ठगनेवाली स्त्री; ठगकी स्त्री; कुटनी । ठगवाना - स० क्रि० दूसरे द्वारा धोखा दिलवाना । ठगहाई, ठगहारी - स्त्री० दे० ठगपना ।
गाई। स्त्री० ठगपना ।
ठगाना - अ० क्रि० धोखा खा जाना; भुलाने में आकर किसी वस्तुका अधिक मूल्य दे देना ।
ठगाही * - स्त्री० ठगपना ।
ठगिन - स्त्री० धोखा देनेवाली स्त्री, दगाबाज स्त्री; ठग पत्नी । ठगिनी - स्त्री० दे० ठगिन ।
ठगिया - पु० ठग |
ठगी - स्त्री० ठगनेकी क्रिया; ठगका पेशा; ठगपना | ठगोरी - स्त्री० मोहित कर देनेवाली क्रिया, जादू टोना । ठट - पु० वस्तुओं अथवा लोगों का जमाव; भीड़; ठाट, सजावट । - कीला - वि० भड़कदार |
ठटना - अ० क्रि० डटना; अड़ना; विरोध में स्थित रहना; स० क्रि० सजाना; तैयार करना; छेड़ना ।
ठडा - पु० परिहास । ( उ ) बाज़ - वि० दिलगीबाज । उठई * - स्त्री० दे० 'ठट्टई' |
ठठरी - स्त्री० दे० 'ठटरी' |
उठाना - स० क्रि० आघात करना; जोरसे पीटना | अ०क्रि० अट्टहास करना, जोर से हँसना ।
ठठिरिन* - स्त्री० दे० 'उठेरिन' ।
ठठेरा - पु० धातुके बरतन बनानेवाला, कसेरा । उठेरिन - स्त्री० ठठेरेकी स्त्री ।
ठठोल - वि० मसखरा, अधिक परिहास करनेवाला । पु०
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ठकुरसुहाती - ठहनाना
परिहास करनेवाला; परिहास । ठठोली- स्त्री० हँसी, मजाक, परिहास । उड़ा, ठढ़rt - वि० खड़ा, सीधा स्थित । टनक- स्त्री० तबला, मृदंग आदिकी ध्वनि; टीस | ठनकना - अ० क्रि० 'ठन-ठन' करके बजना; शंका उत्पन्न होना; रुक-रुककर पीड़ा होना ।
उनका - पु० दे० 'ठनक' |
उनकाना - स० क्रि० धातुखंड या तबला आदि बजाकर शब्द उत्पन्न करना । ( रुपया ठनका लेना- रुपया वसूल कर लेना) । ठनकार - स्त्री० धातुखंडसे उत्पन्न ध्वनि । ठनगन-पु० नेग पानेके लिए हठ करना; हठ, जिद | उनगना - अ० क्रि० ठनगन करना । ठन-ठन गोपाल - पु० वह जिससे जयगोपाल - कोरा शिष्टाचार-के अतिरिक्त कुछ न मिले; निःसार वस्तु | ठनठनाना- स० क्रि० 'ठन-ठन' की ध्वनि उत्पन्न करना । अ० क्रि० 'ठन-ठन' करके बजना । ठनना-अ० क्रि० निश्चित होना; ढ़ता के साथ कार्यका आरंभ होना; छिड़ना; प्रयुक्त होना; लगना; तैयार होना । ठनाका - पु० 'ठन-ठन' की ध्वनि । ठनाठन - अ० 'ठन-ठन' आवाजके साथ | ठप-वि० बंद |
उदनि* स्त्री० सजधज; तैयारी; बनाव |
ठटरी - स्त्री० ढाँचा; शरीरका ढाँचा; अरथी । मु० - होना- ठलाना* - स० क्रि० गिराना; निकलवाना ।
अत्यंत कुश होना ।
ठट्ट - पु० दे० 'ठट' |
ठडई - स्त्री हँसी, परिहास ।
ठपका * - पु० टक्कर, ठोकर, आघात ।
ठप्पा - पु० साँचा जो छापा या चिह्नविशेष लगानेके काम आता है; साँचेसे उखड़ी हुई छाप ।
ठमक- स्त्री० सहसा रुक जानेका भाव; इतराते हुए चलनेका भाव; नजाकतभरी चाल ।
ठमकना - अ० क्रि० भय, आश्चर्य आदिसे चलते-चलते रुक जाना; सहम जाना; इतराते हुए हाव-भाव के साथ चलना । ठमकाना - स० क्रि० चलतेको सहसा रोक देना; * बजाना । ठयना * - सु० क्रि० ठानना; दृढ़ निश्चयके साथ आरंभ करना; तैयार करना; पूरा करना; स्थापित करना; लगाना । अ० क्रि० संकल्पपूर्वक आरंभ होना; उनना; ठहरना, जमना; प्रयुक्त होना ।
ठरनाt - अ० क्रि० सरदीसे गलना, ठिठुरना; अत्यंत अधिक शीत पड़ना; * स्तब्ध हो जाना ।
ठर्रा - पु० कड़ा बटा हुआ मोटा सूत; एक देशी शराब ।
ठवन - स्त्री० अंग-संचालनका ढंग; खड़े होने, बैठने आदिका ढंग स्थिति; मुद्रा ।
टवना-स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'ठयना' । ठवनि* - स्त्री० दे० 'ठवन' |
उस - वि० आलसी, कंजूस; जिससे कुछ निकलता न हो; घनी बुनावटका (कपड़ा), दबीज; (रुपया) जिसकी आवाज भारी हो; हठी; स्थिर; ध्ढ़ ।
उसक-स्त्री० नखरा, गवली चाल-ढाल; ऐंठ, शान । -दार - वि० ठसकवाला ।
उसका - पु० सूखी खाँसी; ठोकर, धक्का; फंदा । ठसाठस - अ० खचाखच, हँस-हँसकर (भरा) । ठहनाना * - अ० क्रि० बजना; (घोड़ेका) हिनहिनाना ।
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ठहर-ठीका
३०६ ठहर*-पु० स्थान, जगह; चौका, लीपी हुई जगह । ठाम*-पु० दे० 'ठाँउँ'; शरीरकी मुद्रा, अंगविन्यास । ठहरना-अ० क्रि० रुकना; टिकना; बना रहना; अस्थायी ठाय-स्त्री० दे० 'ठाँय' (स्त्री०) । पु० दे० 'ठाँव' । रूपसे रहना; पक्का होना तय होना; थमना; प्रतीक्षा ठाला-पु० बेकारी; आयकी कमी; काम-धंधेका मंद पड़ करना।
जाना । वि० बेकार, निठल्ला । ठहराई-स्त्री० ठहरानेकी क्रिया या मजदूरी; कब्जा। ठाली-वि० बेकार, निठला । * स्त्री० धीरज, ढाढ़स । ठहराऊ-वि० ठहरनेवाला, टिकाऊ ।
ठाहर*-पु० जगह; ठहरनेका स्थान; ठिकाना। ठहराना-स० क्रि० रोकना; स्थिर करना; टिकाना; तय ठिगना-वि० कम ऊँचा, छोटे कदका, नाटा । करना; पक्का करना (ठहरना' कार०)। * अ० क्रि० ठिकठन*-पु० व्यवस्था, प्रबंध.। ठहरना, टिकना, रुकना।
ठिकना*-अ० कि० दे० 'ठिठकना' । ठहराव-पु० ठहरनेका भाव; स्वर या तानका विराम ठिकरा-पु० दे० 'ठीकरा'। (संगीत); रुकाव; निर्णय ठहरौनी; समझौता।
ठिकाना-पु० स्थान; वासस्थान रहने या ठहरनेकी जगह, ठहरौनी-स्त्री० दहेज आदिके लेन-देनकी प्रतिज्ञा या । मुकाम; अवलंब गुजर करनेका स्थान; नियत या अनुकूल निश्चय।
स्थान; उपाय, व्यवस्था सीमाभरोसा विश्वास; जागीर । ठहाका-पु० जोरकी हँसी । मु०-लगाना-अट्टहास मु०-लगना-आश्रयस्थान या जीविकाका अवलंब प्राप्त करना।
होना । -लगाना-नौकरी या रहनेका स्थान ठीक ठहियाँ-स्त्री० स्थान, जगह ।
करना । -(ने)आना-ठीक रास्तेपर आना, असलियतठाँ, ठाँई-स्त्री० दे० 'ठाँव' । अ० तई, प्रति पास । पर पहुँचना । -कीबात-युक्ति-संगत बात, कामकी बात। ठाउँ*-पु० दे० 'ठाँव' । अ० निकट, पास ।
-पहुँचाना-अभीष्ट स्थानतक पहुँचा देना। -लगनाठाँठ-वि० रसहीन; (गाय आदि) जो दूध न देती हो। उचित स्थानपर पहुँच जाना; काममें आना; मर जाना। ठोठर*-पु० ठठरी।।
-लगाना-मार डालना खत्म कर देना । ठाँय-पु० दे० 'ठाँव' । स्त्री० बंदूक छुटनेकी आवाज । ठिठकना-अ० क्रि० चलते-चलते सहसा रुक जाना; स्तब्ध ठाँव-पु० स्थान, जगह: अवसर, मौका।
होना; ठक रह जाना । ठाँसना-स० क्रि० हँसना या कसकर भरना। अ० क्रि० ठिठुरना-अ० क्रि० सीसे सिकुड़ जाना। ढाँसना।
ठिठोली-स्त्री० दे० 'ठठोली। ठाकुर-पु० देवप्रतिमा (विशेषकर विष्णुकी); परमेश्वर; ठिनकना-अ० क्रि० (बच्चोंका) बनावटी तौरसे रोना । अधीश्वर, स्वामी; क्षत्रियोंकी उपाधि; जमींदार; नाई। ठिरना-अ० क्रि० बहुत अधिक सदी पड़ना; ठिठुरना। -द्वारा-पु० ठाकुरजीका मंदिर, पुरीस्थित जगन्नाथजीकाटिलना-अ० कि० बलपूर्वक ढकेला जाना; आगे खिसकाया मंदिर । -बाड़ी-स्त्री० देवस्थान ।
या बढ़ाया जाना; तेजीसे धुसना; धंसना। ठाट-पु० रोक या रक्षाके काम आनेवाला बाँसका ढाँचा; ठिलाठिल*-अ० कसमसाते हुए; धक्कमधक्केके साथ । सजधज; शान; सितारका तार; डिल्ला; * तैयारी; आयो- ठिलिया-स्त्री० मिट्टीका छोटा घड़ा, गगरी। जन; जनसमूह, भीड़; वेशरचना; झुंड; अधिकता। ठिलुआ-वि० निठला, बेकार, जिसे कोई काम न हो। -बाट-पु० तड़क-भड़क । मु०-बदलना-भेष बदलना; ठिल्ली-स्त्री० दे० 'ठिलिया। बड़प्पन जताना।
ठिहारी*-वि० स्त्री० पक्की, स्थायी न टूटनेवाली। स्त्री० ठाटना-स० क्रि० ठाट करना; सजाना; आयोजन करना।। .निश्चय, ठहराव। ठाटर-पु० टट्टर; ठठरी; बाँसकी बनी कबूतरोंकी छतरी ठीक-वि० उपयुक्त युक्तिसंगत; यथार्थ; अच्छा; मनोनुकूल; * सजधज, सजावट।
उचित अभ्रांत; शुद्ध, सही; दुरुस्त; जमा चाहिये वैसा, ठाटी*-स्त्री० दे० 'ठट' ।
न ढीला, न कसा न कम, न ज्यादा न इधर, न उधर ठाठ-पु० दे० 'ठाट'।
नियत, बँधा हुआ; पूरा-पूरा । अ० सीधे मुनासिब ढंगसे, ठाठना*-स० कि० दे० 'ठाटना'।
उचित रीतिसे; हूबहू । पु० निश्चय; व्यवस्था, प्रबंध; ठाठर-पु० दे० 'ठाटर'।
जोड़, योग । -ठाक-पु० व्यवस्था, प्रबंध, बंदोबस्त । ठाढ़, ठाढ़ा*-वि० खड़ा; उन्नत; बिना टुकड़ा किया हुआ; वि० नियत; दुरुस्त ।।
रचित । मु० (ठाढ़ा)देना-टिकाना; ठहराना। ठीकड़ा-पु० दे० 'ठीकरा'।। ठाढ़ेश्वरी-पु० दिनरात खड़े रहनेवाले साधु ।
ठीकमठीक-अ० विलकुल ठीक; पूर्णरूपसे, एकदम, ठादर-पु० राड़, झगड़ा-'देव आपनो नहीं संभारत बिलकुल । करत इंद्रसों ठादर'-सू० ।।
ठीकरा-पु० मिट्टीके बरतन या खपड़ेका टुकड़ा; भिक्षापात्र ठान-स्त्री० ठाननेका भाव, करनेका हद निश्चयः हाव- | (ला०) रुपया-पैसा निकम्मी चीज ।
भावके साथ अंगसंचालन कार्यविशेषकी तैयारी कार्यारंभ। ठीकरी-स्त्री० छोटा ठीकरा; चिलमपर रखनेका मिट्टीका ठानना-स० क्रि० करनेका दृढ़ निश्चय करना; छेड़ना; तवा । कार्यविशेषको तत्परतासे प्रारंभ करना।
ठीका-पु० नियत समय अथवा दरपर कोई काम करने ठाना*-स० क्रि० दे० 'ठानना'; दे० 'ठयना'। __ या करानेका इकरार कर आदि वमूल करनेका जिम्मा ।
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३०७
ठिकुरी-ठौर (ठीके)दार-पु० ठीका लेनेवाला ।
पी-स्त्री० बोतल आदिका मुँह बंद करनेकी लकड़ी ठीकुरी*-स्त्री० पत्थर, परदा ।
आदि, काग, डाट। ठी-ठी-स्त्री० हलकी आवाजवाली हँसी, बेहूदा हँसी। ठेका-पु० अब्जा, टेक तबलेका वायाँ तबला बजानेका एक ठीलना*-स० कि० दे० 'ठेलना'।
प्रकार; दे० 'ठीका' । (ठेकेदार-पु० दे० 'ठीकेदार' । ठीवन*-पु० थूक, खखार, श्लेष्मा।
ठेकाई-स्त्री० कपड़ेके किनारेकी छपाई। ठीहा-पु० (पृथ्वीमें गड़ा) लकड़ीका टुकड़ा जिसपर रखकर | ठेकाना*-पु० स्थान; ठहरनेकी जगह; निवास स्थान ।
कोई चीज गढ़ी या काटी जाती है; ऊँची जगह; वेदी। ठेगना*-स० कि० रोकना, मना करना; दे० 'टेकना' । ढुंठ-पु० बिनाडाल-पातका सूखापेड़ या उसका तना लूला। ठेघना*-सक्रि० ठहराना रोकना । अ० क्रि० ठहरना; ठकना-अ० क्रि० पीटा जाना ठोका जाना; चोट खाकर रुकना।
भीतर धंसना दायर होना (दावा); हानि होना। ठेघा*-पु० )नी, स्तंभ। टकराना-स० कि० ठोकर मारना; पैरसे मारकर हटाना; ठेठ-वि० एकदम, निरा; असाहित्यिक, साधारण बोलतिरस्कार करना ।
चालकी, जिसमें दूसरी (भाषा)का मेल न हो; शुद्ध । ठकवाना-सक्रि० पिटवाना; दे० 'ठोकवाना'; हानि ठेपी-स्त्री० दे० 'पी'। कराना।
ठेलना-स० क्रि० ढकेलकर आगे बढ़ाना; * उसकाना । ठुड्डी-सी० ठोड़ी, होंठके नीचे निकली हुई हट्टी; भूना ठेलमठेल-अ० कसमसके साथ । हुआ दाना जो खिला न हो, तुरी।
| ठेला-पु० ठेलकर चलायी जानेवाली गाड़ी; धक्का, भीड़। ठनकाना-स० क्रि० उँगलीसे धीरेसे आघात करना। -ठेल,-ठेली-स्त्री० धक्कमधक्का । ठुमक-वि० ठसक भरी हुई; (चाल) जिसमें चलते समय ठेस-स्त्री० हलकी चोट आघात, धक्का । थोड़ी-थोड़ी दूरपर पैर पटका जाय ।-ठुमक-अ० शीघ्रता टन*-स्त्री० स्थान, जगह । और उमंगके साथ थोड़ी-थोड़ी दूरपर पैर पटकते हुए (छोटे | ठैयाँ*-स्त्री० दे० 'छैन'। बच्चोंका चलना); उछल-कूदके साथ (चलना)।
छैलपैल-स्त्री० धक्कमधक्का, रेलपेल । ठुमकना-अ० क्रि० नाचते समय तालके अनुसार रह-रह- ठौँकना-स० क्रि० भारी वस्तुसे आघात करना; प्रहार
कर पैर पटकना; थोड़ी-थोड़ी दूरपर पैर पटकते हुए चलना। द्वारा भीतर घुसाना; मारना, पीटना; ताड़न करना; ठमका-वि० छोटे कदका, नाटा।
(मुकदमा) दायर करना प्यार या तावसे थपथपाना; ठमकारना -स० कि० पतंगकी डोरीको झटका देना। । मजबूतीसे जड़ना; 'खट-खट' शब्द उत्पन्न करते हुए आघात ठमकी-वि०स्त्री० छोटे कदकी, नाटी । स्त्री० पतंगकी डोरी- करना; बेड़ी आदि में जकड़ना। को उँगलीसे खींचकर दिया जानेवाला झटका ।
ठौंग-स्त्री० चोंच, चोंचकी मार; मुड़ी हुई उँगलीकी ठोकर । ठुमरी-स्त्री० एक तरहका छोटा मधुर गाना जिसे गाते ठौंगना-स० कि० चोंच मारना; मुड़ी हुई उँगलीसे ठोकर समय प्रायः कई रागोंका मिश्रण कर दिया जाता है।
मारना। ठुरियाना-अ० क्रि० सीसे ठिठुर जाना।
ठौँगा-पु० कागजका बना थैली जैसा पात्र । तुरी-स्त्री० वह दाना जो भूननेपर खिला न हो।
ठो -अ० पूरबी हिंदीमें संख्यावाचक शब्दोंके साथ लगनेठुसना-अ०क्रि०तंग जगहमें भर जाना, दबाकर भरा जाना। वाला एक शब्द, अदद । ठसवाना, ठसाना-स० क्रि० तंग जगहमें प्रविष्ट कराना, ठोकना-स० क्रि० दे० 'ठोंकना' । घुसवाना ('ठुसना'का प्रेर०)।
ठोकर-स्त्री० चलते समय कंकड़-पत्थर आदिसे टकरानेसे हूँठ, दूंठा-पु० दे० 'ठेठ'।
पैर में लगी चोट; ऐसी वस्तु जिससे चोट लगनेकी संभावना ट्रॅठी-स्त्री० ज्वार, बाजरे, अरहर आदिके डंठलका नीचेका हो; पैरसे किया गया आघात; धक्का; जुतेका अगला
भाग जो खेत काटते समय पृथ्वी में गड़ा छूट जाता है, खूटी। हिरसा। मु०-उठाना-घाटा सहना तकलीफ उठाना। हँसना-स० क्रि० दे० 'ठूसना' ।
-खाते फिरना-उद्योगविशेषमें असफल होते रहना; ठूसना-स० क्रि० दवा-दबाकर भरना, कसकर रखना | मारा-मारा फिरना। -खाना-असावधानीका कुपरिजोरसे घुसाना (ला०) बहुत अधिक खाना ।
णाम भोगना। उँगना-वि० दे० 'ठिंगना'।
ठोकवा -पु० मीठा डालकर बनायी हुई मोटी पूरी। ठेगा-पु० अँगूठा; डंडा, लट्ट । मु०-दिखाना-साफ | ठोकवाना-स० क्रि० ठोकने में प्रवृत्त करना । इनकार करना; निराश करना ।-बजना-लाठी चलना। ठोठरा*-वि० पोपला, खाली। उँगेसे-बलासे।
ठोड़ी, ठोढ़ी-स्त्री० दे० 'ठुड्डी' । "गुरी-पु० दौड़ने और उछल-कूद मचानेवाले चापायोंके ठोर-पु० पूरी जैसा एक पगा हुआ पकवान; * चोंच। गले में बाँधी जानेवाली लकड़ी।
ठोस-वि० जो पोला न हो, जो भीतर खाली न हो, ठेघा-पु० थूनी।
ठस। ठा-पु० दे० 'ठी'।
ठोहना*-सक्रि० स्थान ढूँढ़ना, खोजना । ठेठी-स्त्री० कानका मैल; कानका छेद बंद करनेके लिए ठौनि*-स्त्री० दे० 'ठवनि'। लगी रुई आदि काग, डाट ।
| ठौर-पु० स्थान, जगह अवसर, मौका; उपयुक्त स्थान । २०
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ड-नागरी वर्णमालाका तेरहवाँ व्यंजन वर्ण ।
डेवरुआ*-पु० गठिया, एक वातव्याधि जिसमें शरीरकी डंक-पु० बिच्छू, मधुमक्खी, भिड़ आदिका जहरीला काँटा गाँठोंमें दर्द होता है । जिसे वे दूसरे प्राणियों के शरीरमें चुभा देते हैं, दंश; टंक | डॅवाडोल-बि० अस्थिर, डगमगाता हुआ; बेचैन । द्वारा किया गया भेदन कलमकी जीभ; * डंका। -दार- डंस-पु० दे० 'डाँस' । वि० डंकवाला।
डॅसना-स० क्रि० दे० 'इसना'। डंकना*-अ० क्रि० भारी शब्द करना; तोपका गरजना। | ड-पु० [सं०] शब्द; एक तरहका नगाड़ा; बड़वाग्नि । डंका-पु० नगाड़ा, धौंसा । मु०-बजना-अधिकार होना; डक-*पु० खेलनेका स्थान; [अं॰डॉड]सूती या सन आदिका चलती होना । (लड़ाईका)-बजना-युद्ध आरंभ होना | बना दबीज कपड़ा जिससे छोटे पाल या अन्य पहनावे (डंके)की चोट कहना-निडर होकर सबके मुँहपर (विशेषकर नाविकोंके) बनते हैं। एक कपड़ा, पक्का घाट जहाँ कहना, घोषित करना।
जहाजमें माल लादते और उतारते हैं। डंकिनी-स्त्री० दे० 'डाकिनी'।
डकरना-अ० क्रि० डकार लेना; खाकर तृप्त होना-'डकरी डंगर-पु० चौपाया, पशु । वि० दुबला-पतला; (ला०)जड।। चमुंडा गोलकुंडाकी लड़ाई में'-कालिदास त्रिवेदी।। डगरा-पु० बड़ी ककड़ी, खरबूजा (बुंदेल)।
डकराना-अ० क्रि० साँड़,बैल या भैसेका जोरसे बोलना। इंटैया-पु० डाँटनेवाला; धमकी देनेवाला । | डकार-स्त्री० आवाजके साथ मुँहसे निकली हुई हवा,
ऊर्ध्व डंटल-पु० गेहूँ, जौ, ज्वार अदिका तना जिसपर बाल वायु, उद्गार; दहाड़ । मु०-न लेना-चुप्पी साध लेना। लगती हैं।
डकारना-अ० क्रि० डकार लेना; दहाड़ना । स० क्रि० डंड-पु० बाजू, बाँह; एक कसरत जो हाथ-पैरके पंजोंके किसीका माल पचा जाना । सहारे पेटके बल की जाती है; सजा, जुरमाना; घाटा; डकैत-पु० डाकू, लुटेरा। समयका एक परिमाण (२४ मिनट)। -पेल-पु० अधिक डकैती-स्त्री० डाका डालनेका काम, लूट, डाकाजनी। डंड करनेवाला, पहलवान ।
डग-पु० चलने में दोनों पाँवोंके बीचका अंतर, फाल, डंडक*-पु० दे० 'दंडक' ।
कदम । मु०-भरना-कदम बढ़ाना। -मारना-लंबे-लंबे डंडवत-पु० दे० 'दंडवत्' ।
डग डालना। डॅडवारा-पु०,-डॅडवारी-स्त्री० रोक या धेरेके लिए बनी | डगडगाना-अ० क्रि० अस्थिर या डगमग होना; काँपना। हुई कम ऊँची दीवार; चहारदीवारी।
डगडोलना*-अ० क्रि० दे० 'डगमगाना' । डडवी-वि० कर देनेवाला।
डगडौर-वि० डाँवाडोल, अस्थिर । डंडा-पु० बाँस आदिका लंबा टुकड़ा, लाठी, सोंटा; चहार- ढगना*-अ० क्रि० हिलना; विचलित होना; अपने स्थान
दीवारी । -डोली-स्त्री० लड़कोंका एक खेल । -बेड़ी- से हटना, खसकना; लड़खड़ाना; चूकना । स्त्री० वह बेड़ी जिसमें छड़ लगे हों।
डगमग-अ० हिलते-डुलते लड़खड़ाहटके साथ । डंडाकरन*-पु. दंडकारण्य ।
डगमगना*--अ० कि० दे० 'डगमगाना'। इंडिया*-स्त्री० ऐसी साड़ी जिसपर पड़ी धारियोंके रूपमें | डगमगाना-अ० कि.. इधर-उधर हिलना या झुकना; गोटे टँके हों; गेहूँ के पौधेकी वह सींक जिसमें बाल लगी विचलित होना, डाँवाडोल होना; लड़खड़ाना । स० क्रि० हो । पु० महसूल उगाहनेवाला ।
हिलाना-डुलाना। इंडियाना-स० क्रि० दो कपड़ोंको लंबाईकी ओरसे मिला- डगर-स्त्री. मार्ग, राह, रास्ता । कर सीना।
डगरना*-अ० क्रि० चलना, रास्ता पकड़ना; गिलते डंडी-स्त्री० छोटी, सीधी और पतली लकड़ी, छाते आदिमें हुए चलना। लगी हाथमें पकड़नेकी लकड़ी जिसपर कमानी चढ़ायी डगरा*-पु० मार्ग, रास्ता; + बाँस आदिका बना एक जाती है। तराजूकी लकड़ी जिसके दोनों ओर रस्सियोंसे छिछला बरतन । पलड़े बाँधे जाते हैं। तनेका ऊपरी भाग जिसपर फूल या| डगा*-पु० डुग्गी आदि बजानेकी लकड़ी, चोब । फल स्थित रहते हैं, नाल । -मार-वि० जो कम सौदा डगाना-स० क्रि० विचलित करना टसकाना; हिलाना । तौले । पु० बनिया।मु०-मारना-कम सौदा तोलना। डटना-अ० क्रि० अड़ना, एक स्थानपर जमा रहना, स्थिर डडीर-स्त्री० सीधी रेखा।
रहना; जगहसे न हटना; (कार्य में) प्रवृत्त होना, लगाना; डंडोरना*-स० क्रि० उलट-पुलटकर हूँढना।
* फबना। * स० क्रि० देखना । डंडौत-पु० दे० 'दंडवत्।
डटाना-स० क्रि० सामने रखना; अड़ाना, जमाना डंफना-अ.क्रि० जोरसे चिल्लाना या रोना।
सटाना, भिड़ाना। डंबर-पु० [सं०] आडंबर; चहल-पहल समूह, राशि डहा-पु. काग नैचा ठप्पा; (रिटॉर्ट स्टैंड) कोई चीज सारश्य; गर्व; आयोजन; भारी शब्द, सौंदर्य विस्तार
गरम करने, रखने आदिका पीछेकी ओर झुका या टेढ़ाएक प्रकारका बड़ा चँदोवा । वि० प्रसिद्ध ।
सा आला।
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३०९
बहार-डहरिया डद्वार*-वि० लंबी दाढ़ीवाला हिम्मती;मजबूत दिलवाला। -यंत्र-पु० अर्क खींचने तथा सिंगरफका पारा और डदन*-स्त्री० जलन, संताप; झुलसना।
कपूर उड़ानेका एक यंत्र । डढ़ना*-अ० क्रि० जलना; झुलसना ।
डमरुआ-पु० दे० 'डॅवरुआ'। डदार, डढ़ारा-वि० जिसके डाढ़ें हों; डाढ़ीवाला । डमरू-पु० दे० 'डमरु'। -मध्य-पु० दे० 'डमरुमध्य' । डदियल-वि० लंबी डाढ़ीवाला ।
डयन-पु० [सं०] उड़नेकी क्रिया, उड़ान; पालकी; पंख । डब्योरा*-वि० दे० डडढार'।
डर-पु० भय, भीति, त्रास, खौफ; अंदेशा। डपट-स्त्री०झिड़क,फटकार,धौंस डाँट; घोड़ेकी सरपट चाल। डरना-अ० क्रि० भय खाना, भीत होना; सशंक होना। डपटना-स० कि० झिड़कना; धुड़कना, डाँटना । अ०क्रि० डरपना-अ० क्रि० दे० 'डरना। सरपट दौड़ना।
डरपाना*-स० क्रि० डराना, त्रस्त करना। डपोरशंख, डपोरसंख-पु० जो केवल बातें बनाता हो । डरपोक-वि० कायर, बुजदिल, भीरु । विकत्थन; जड़ मनुष्य ।
डरवाना-स० क्रि० दे० 'डराना। डफ-पु० कौवाली आदि गानेवालोंका एक बाजा; चमड़ा डरा*-पु० डला, ढोका।
मढ़ा हुभा एक बाजा जो लकड़ीसे बजाया जाता है। डराडरी*-स्त्री० भय, डर । डफला-पु० दे० 'डफ'।
डराना-स० क्रि० भय दिखाना, सशंक करना । डफली-स्त्री० छोटा डफ, बँजरी।
डरापना*-वि० भयानक । डफार*-स्त्री० गला फाड़कर रोनसी आवाज, चिग्घाड़। डरावना-वि०जिसे देखकर डर लगे,भयानक,भयोत्पादक । डफारना*-अ० क्रि०चिग्घाड़ना; डाढ़ मारना । डरावा-पु० फलवाले पेड़ोंमें बँधी लकड़ी जिससे डराकर डफालची-पु० दे० 'डफाली'।
चिड़ियोंको उड़ाते हैं। डरानेके लिए कही जानेवाली बात । डफाली-पु० डफ बजानेवाला; डफपर कौवाली, लावनी | डरिया*-स्त्री० दे० 'डाल' । आदि, गानेवाला मुसलमानोंका एक वर्ग ।
डरी*-स्त्री० डली, छोटा टुकड़ा। डफोरना*-अ० क्रि० हाँकके साथ कहना, गरजना | डरीला*-वि० शाखायुक्त ।
-'तुलसी चित्रकूट चढ़ि कहत डफोरिकै-कविता०। डरेला, डरैला*-वि० डरावना। डबकना-अ० कि. टीसना, दर्द करना; आँखोंका अश्रु. डल-पु० खंड, टुकड़ा; झील; कश्मीरकी एक झील । पूर्ण होना।
डलना-अ० क्रि० डाला जाना, छोड़ा जाना पड़ना। डबकौहाँ*-वि० अश्रपूर्ण, डबडबाया हुआ।
डलवाना-स० क्रि० डालनेका काम दूसरेसे कराना। डबडबाना-अ० क्रि० आँखों में आँसू आ जाना, अश्र-| डला-पु० टुकड़ा, खंड, (नमक, मिसरी आदिका) ढेला%B युक्त होना।
बाँस आदिका गोला, गहरा, बड़ा बरतन । डबरा-पु० छिछला गड़हा या वह नीची जमीन जहाँ | डलिया-स्त्री० बाँस आदिका बना एक छोटा पात्र । पानी लगता हो।
डली-स्त्री० छोटा टुकड़ा सुपारी; दे० 'डलिया। डबरी-स्त्री० छोटा गड़हा ।
डसन-स्त्री० डसनेकी क्रिया; डसनेका ढंग। डबल-पु. एक तरहका ताँबेका सिक्का, पैसा । -रोटी- डसना-स० क्रि० साँप आदि जहरीले जंतुओंका दाँतसे स्त्री० पावरोटी।
काटना; डंक मारना। डबला-पु० धातु या मिट्टीका चौड़े मुंहका छोटा बरतन । डसवाना-स० क्रि० दे० 'डसाना' ('डसना'का प्रेर०)। डबिया-स्त्री० छोटा डिब्बा।
डसाना-सक्रि०सर्प आदि द्वारा दाँतसे कटवाना *बिछाना। डबी*-स्त्री० दे० डिब्बी' ।
डहकना*-सक्रि० छलना किसी वस्तुका लालच देकर डब्बा-पु० धातुका बना ढकनदार छोटा पात्रविशेष रेल- उसे आत्मसात् करना । * अ० कि० धोखा खाना; फूटगाडीका वह कोठरीनुमा हिस्सा जो अलग किया जा सके। | फूटकर रोना; चिग्घाड़ना; फैलना, छाना (चाँदनी)। डब्बू-पु० करछुल जैसा एक पात्र जोपरसनेके काम आता है। डहकाना*-स० क्रि० खोना, गँवाना, बरबाद करना; डभकना-अ०क्रि० ( नेत्रोंमें ) आँसू भर आना; डूबना- सताना, रुलाना । अ० क्रि० ठगा जाना; धोखा खाना। उतराना।
डहडहा*--वि० लहलहाता हुआ हरा-भरा; प्रफुल्ल ताजा। डभका-पु० आधा भूना हुआ चना या मटर । वि. डहडहाट*-स्त्री० ताजगी। कुएँसे ताजा निकाला हुआ (पानी)।
डहडहाना-अ० क्रि० हरा-भरा होना; प्रसन्न होना। डभकाना-स० क्रि० 'डभ'की आवाजके साथ डुबोना । डहडहाव-पु० हरा-भरा होनेका भाव, प्रफुल्लता। डभकहाँ-वि० दे० 'डबकौ हाँ।
डहन*-पु० पर, पाँख । स्त्री० जलन, दाह, संताप । डभकेरि*-क्रि०वि० अधाकर ।
डहना-पु० ना।। अ० क्रि० जलना, दग्ध होना; ईर्ष्या डभकौरी-स्त्री० उड़दकी पीठीकी बड़ी।
करना; बुरा मानना। सक्रि० जलाना (ला०) कष्ट देना। डमरु-पु० [सं०] चमड़ेसे मढ़ा जानेवाला एक छोटा बाजा | डहर*-स्त्री० दे० 'डगर'। जो बीच में पतला होता है और हिलानेपर उसमें लगी | डहरना*-अ० कि० चलना, घूमना । धुंडियोंसे बजता है। -मध्य-पु० जल या स्थलके दो | डहराना*-सक्रि० चलाना, घुमाना। बड़े खंडोंको मिलानेवाला जल या स्थलका संकीर्ण भाग । रेया, डहरी -स्त्री० अनाज रखनेका मिट्टीका बड़ा
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डहार-डाह बरतन, कुठिला।
लयीय प्रमाणपत्र'। डहार-वि० कष्ट देनेवाला, तंग करनेवाला।
डाकू-पु० डाका डालनेवाला, लुटेरा। डॉक-स्त्री० चाँदी या ताँबेका अत्यंत पतला पत्तर जो डाक्टर-पु०[अं०] आचार्य, पारंगत विद्वान्, किसी विषयनगीनोंके तले बैठाने और टिकली आदि बनानेके काम का सर्वोच्च उपाधिप्राप्त व्यक्ति; एलोपैथी आदिके अनुसार आता है; + उछाल, उलटी । * पु० डंक; डंका। चिकित्सा करनेवाला। डॉकना-सक्रि० फाँदना, लाँघना । अ० क्रि० वमन | डाक्टरी-स्त्री० एलोपैथी, होम्योपैथी आदि पाश्चात्य चिकिकरना।
त्साशास्त्र । वि० डाक्टरका । डॉग-*पु० डंका; घना जंगल; + लाठी, डंडा; फलाँग। डाख -पु० पलाश, ढाक । डाँट-स्त्री० फटकार, झिड़का दबाव, शासन । मु०-में | डाट-स्त्री० टेक; अटकाव कागः चाँड़, फटकार । रखना-शासन द्वारा वशमें रखना।
डाटना-सक्रि० किसी वस्तुको दूसरी वस्तु भिड़ाकर आगे डाँटना-स० क्रि० झिड़कना, फटकारना, भय दिखानेके ढकेलना; जोरसे भिड़ाना; छेद आदि बंद करना; * हँसलिए जोरसे बोलना।
हँसकर खाना पहनना (व्यंग्य)। डाँड-पु० डंडा; नाव खेनेका बाँस; बिना चमड़ेका गदका डाढ़-स्त्री० चबानेके दाँत, चौभड़ा सूअरका निकला हुआ खेतकी सीमा, मेंड़, ऊँची जमीन; कमर जुरमाना खोयी | दाँत वट आदि वृक्षोंकी शाखासे निकलकर नीचे लटकनेया नष्ट हो गयी वस्तुका बदला ।
वाली जटा, बरोह । डाँड़ना-स० क्रि० जुरमाना करना; हरजाना लेना। | डाढ़ना*-स० क्रि० जलाना, दग्ध करना । डाँडा-पु० डंडा खड्ग नाव खेनेका डंडा, मेंड़ सीमा। डाढ़ा*-पु० वनाग्नि, दावानल; ताप, जलन । -में डा-पु०,-में डी-स्त्री० दो सीमाओंके बीचकी मेंड़ डाढ़ी-स्त्री० ठुड्डी; ठुड्डीपरके बाल । (ला०) घनिष्ठता, निकटता; एका; अनबन ।
डाबक, डाभक-वि० ताजा (पानी)। डाँडी-स्त्री० लंबी, पतली लकड़ी; सीधी रेखा; तराजूकी डाबर-पु० गड्ढा; गड़ही; मैला पानी । वि० गंदा । डंडी; झोली जैसी एक पहाड़ी सवारी जिसमें दो ओर दो डाबा*-पु० डब्बा, ढक्कनदार गहरा बरतन । डंडे लगे रहते हैं। तनेका वह भाग जिसपर फूल या फल डाभ-पु० एक कुश जैसी घास, कुश; (आमकी) बौरस्थित रहता है, टहनी; रस्सियाँ या लकड़ियाँ जिनसे 'जउलहि अंबहि डाम न होई'-५०; हरा नारियल । हिंडोलेकी पटरी लटकती रहती है। * रस्सी; पालकी । डामर-+ पु० सालका गोंद, राल; राल बनानेवाली एक मु०-मारना-कम तौलना ।
मधुमक्खी; अलकतरा। [सं०] शिव द्वारा उपदिष्ट तंत्रविशेष डॉवरा*-पु० दे० 'डावरा'।
होहल्ला; दंगा; हलचल; अद्भुत दृश्य, चमत्कार; एक डाँवरी*-स्त्री० दे० 'डावरी' ।
संकर जाति । वि० भयंकर; अनुरूप; दंगा करनेवाला। डॉवाडोल-वि० चंचल, अस्थिर, हिलता हुआ।
डामल-पु० आजीवन कारावासका दंड देशनिर्वासन । डाँस-पु० एक तरहका बड़ा मच्छड़, कुकुरौंछी । डायन-स्त्री० दे० 'डाइन'। डाइन-स्त्री० चुडैल; जादू करनेवाली स्त्री; डरावनी स्त्री। डायरी-स्त्री० [अं॰] वह पुस्तिका जिसमें दैनिक कार्योंका डाक-स्त्री० पत्रादि पहुँचाने या सवारीका ऐसा प्रबंध जिसमें विवरण हो, रोजनामचा। स्थान-स्थानपर थके हुए मनुष्यों तथा घोड़ोंके बदलनेकी डार* --स्त्री० डाल; फूल आदि रखनेकी डलिया; समूह, झुंड । व्यवस्था हो; चिट्टियों आदिके आने-जानेका सरकारी| हाल-स्त्री० शाखा । पु० विवाहकी एक रस्म जिसमें वरकी प्रबंध; कागज-पत्र जो डाकसे आये, डाक द्वारा आनेवाली ओरसे वधूको कपड़े और गहने दिये जाते हैं। बाँसकी बनी वस्तु; नीलामकी बोली; + वमन । -खाना-पु० पोस्ट- वस्तु जिसमें ये चीजें रखी जाती है; डलिया थाल या आफिस ।-गाड़ी-स्त्री० डाक ढोनेवाली गाड़ी।-घर- डलियामें सजाकर भेजी जानेवाली खाने-पीनेकी चीजें। पु० पोस्ट-आफिस । -चौकी-स्त्री० वह स्थान जहाँ डालना-स० क्रि० गिराना ऊपरसे नीचे पहुँचाना, फेंकना; सवारीके धोड़े आदि बदलें। -बंगला-पु० अफसरों या छोड़ना; मिलाना घुसाना, प्रविष्ट कराना; अंकित करना; परदेशियोंके टिकनेका सरकारी मकान । -महसूल, पहनाना; मत्थे मढ़ना; उपयोगमें लाना; रखना । मु. -व्यय-पु० डाक द्वारा भेजी, मँगायी जानेवाली वस्तु- डाल देना-त्याग करना; छोड़ना; याद न रखना दिलसे पर लगनेवाला खर्च । मु०-बैठाना-शीघ्र पहुँचनेके उतारना; फैलाना, पर्देके रूपमें कोई वस्तु लटकाना । लिए स्थान-स्थानपर सवारी बदलनेकी व्यवस्था करना। डालर-पु० एक अमेरिकन सिका (लगभग चार रुपये)। डाकना-सक्रि० फाँदना, लाँधना । अ०क्रि० कै करना।डाली-स्त्री० भेंटके रूपमें भेजे हुए फल, फूल, मिठाई आदि, डाका-पु० माल लूटनेके लिए लुटेरों द्वारा किया गया नजर पेड़की छोटी शाखा । (भेजना, लगाना।) धावा, छापा । -जनी-स्त्री० डाका मारनेकी क्रिया, डावरा-पु० पुत्र, बेटा। लूट, डकैती।
डावरी*-स्त्री० पुत्री, बेटी। डाकिनी-स्त्री० [सं०] कालीकी एक अनुचरी चुडैल । डासन-पु० बिछावन, बिस्तर । डाकिया-पु० डाक ढोनेवाला ।
डासना-सक्रि० बिछाना; (सादिका) काटना । डाकीय आदेश-पु०(पोस्टल ऑर्डर)दे० पत्रालयिक आदेश। डासनी-स्त्री० खाटा बिछावन । डाकीय प्रमाणपत्र-पु० (पोस्टल सर्टीफिकेट) दे० 'पत्रा-डाह-स्त्री० ईर्ष्या, जलन ।
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डाहना-डेरा डाहना-स० क्रि० जलाना; संतप्त करना; तंग करना। व्यक्ति ।-डौल-पु० लंबाई-चौड़ाई आदि, शरीरका विस्तार। डिंगर-पु० रोक न माननेवाले पशुके गले में बाँधी जाने- डीह-पु० गाँव; गाँवका बड़ा ऊँचा टीला जो पहली वस्तीके वाली लकड़ी।
| उजड़ जानेसे बना होता है; ग्रामदेवता । डिंगल-स्त्री. राजपूतानाके चारणों या भाटोंकी काव्य- ढुंग*-पु० राशि, ढेर ढूह, टीला । भाषा । वि० नीच, कमीना ।
डुंगवा*-पु० दे० 'डुंग'। डिंडसी-स्त्री० एक तरकारीवाला फल ।
डंड *-पु० दे० 'हूँठ'। डिंडिम-पु० [सं०] डुगडुगी, डुग्गी; कृष्णपाक फल। दुक-पु० घूसा।। डिब-पु० [सं०] भय; कोलाहल; दंगा; भयकी ध्वनि | डुकियाना-स० क्रि० घुसे जमाना । प्लीहा; फुफ्फुस; विप्लव; आरंभिक अवस्थाका भ्रणा डुगडुगाना-स० कि० डुग्गी आदिको लकड़ीसे बजाना। (ओव्हम) स्त्रीका वह कोशाणु जिसमें शुक्राणुके प्रवेश करने दुगडुगी-स्त्री० दे० 'डुग्गी'।मु०-पीटना-मुनादी करना।
और गर्भाशयमें पहुँचने पर गर्भाधान होता है, गर्भाशय । दुग्गी-स्त्री. चमड़ेसे मढ़ा चौड़े मुँहका एक छो डिंबाशय-पु० [सं०] (ओव्हरी) स्त्रीके गर्भाशयकी वे दो दुपट्टा -पु० दे० 'दुपट्टा' ।
ग्रंथियाँ जिनमें डिंब रहते और परिपक्क होते है। डुबकनी-स्त्री०(सबमेरीन) पानीके भीतर चलनेवाली नाव, डिंभ-पु० [सं०] छोटा बच्चा; शावक; मूर्ख; एक उदररोग। पनडुब्बी।। डिंभक-पु० [सं०] छोटा बच्चा।
डुबकी-स्त्री० पानी में डूबनेकी क्रिया, गोता; एक तरहकी डिगना-अ०क्रि० हटना हिलना; वचन भंग करना। बिना तली हुई बड़ी। डिगरी-स्त्री० [अं०] अंश, कला; विश्वविद्यालयसे मिलने- | डुबवाना-स० क्रि० डुबानेका काम दूसरेसे कराना । वाली उपाधि; + वादीको संपत्ति आदिपर अधिकार दुबाना-स० क्रि० पानी या अन्य तरल पदार्थमें सतहसे दिलानेवाला फैसला, डिक्री। -दार-वि० वह जिसके नीचे पहुँचाना, गोता देना, बोरना; कलंकित करना, पक्षमें अदालतका हक दिलानेबाला फैसला हुभा हो। (कुल आदिपर)धब्बा लगाना; किसीकी प्रतिष्ठा नष्ट करना। डिग(ग)लाना-अ० क्रि० हिलना, डगमगाना । डुबाव-पु० (किसीके) डूबनेभरकी गहराई । डिगाना-सक्रि० हटाना; सरकाना; हिलाना ।
दुबोना-सक्रि० दे० 'डुवाना'। डिग्गी-स्त्री० तालाब; बावली।
दुब्बा-पु० पानीमें डुबकी लगानेवाला, पनडुब्बा । डिठौना-पु० नजर लगनेसे बचानेके लिए लगाया जाने डुब्बी-स्त्री० गोता। वाला काजलका टीका।
डुभकौरी-स्त्री० दे० 'डभकौरी'। डिडकारी*-स्त्री० ढाड़ मारकर रोना ।
डुलना*-अ० क्रि० दे० 'डोलना'। डिढ़ाना-सक्रि० दृढ़ करना; मनमें पक्का निश्चय करना। डुलाना-स० क्रि० हिलाना, चालित करना; झलना दूर डिबिया-स्त्री० छोटा डिब्बा।
भगाना, हटाना; इधर-उधर घुमाना-फिराना । डिब्बा-पु० दे० 'डब्बा' ।
डूंगर-पु० ऊँची जमीन, टीला, दहा छोटा पर्वत । डिब्बी-स्त्री० छोटा डब्बा।
डॅडा-वि० एक सींगवाला (बैल)। डिभगना*-स०. क्रि० छलना, प्रतारित करना । डूबना-अ० क्रि० पानी या अन्य तरल पदार्थकी सतहके डिम-पु० [सं०] चार अंकोंका एक रौद्र रस-प्रधान रूपक | नीचे चला जाना, मग्न होना; गोता खाना; लीन होना; जिसमें माया, इंद्रजाल, लड़ाई तथा पिशाचलीला आदिका __ अस्त होना; कलंकित होना; किसी काम लायक न होना; चित्रण रहता है।
बिगड़ना; बरबाद होना; मारा जाना । मु० डूबतेको डिमडिमी-स्त्री० दे० 'डिडिम'।
तिनकेका सहारा होना-अवलंबहीनको थोड़ा सहारा डिमाई-स्त्री० [अं०] १८x२२ इंचकी कागजकी नाप ।। मिलना । डूबना-उतराना-चिंतामें लीन होना, किसी डिल्ला -पु० एक छंद; बैलके कंधेपरका कूबड़ ।
उलझनमें पड़ा रहना । डूब मरना-लज्जाके मारे मर डींग-स्त्री० लंबी-चौड़ी आत्मप्रशंसाः अभिमान-द्योतक | जाना; लज्जाके मारे मुंह न दिखाना। . कोरी गप; शेखी।मु०-हाँकना-लंबी-चौड़ी बातें कहना।। हैंडसी-स्त्री० पपीते जैसी एक तरकारी । डीठ-स्त्री० दृष्टि, नजर; सूझ । -बंध-पु० नजरबंदी। डेगची-स्त्री० दे० 'देगची' । मु०-चुराना,-छिपाना-सामने न ताकना ।-बाँधना डेढ-वि० एक और आधा। डेढ़की संख्या , १॥। मु.
जादू द्वारा दृष्टिमे भ्रम उत्पन्न करना । -मारना-नजर -इंटकी मस्जिद चुनना या बनाना,-चावलकी डालना। -रखना-देखरेख करना ।-लगाना-अच्छी। खिचड़ी अलग पकाना-सबसे अलग राय कायम करना वस्तुको इस प्रकार देखना कि उसपर बुरा प्रभाव पड़े, या काम करना। नजर लगाना।
डेढ़ा-वि० डेढ़गुना । पु० डेढ़का पहाड़ा। डीठना*-सक्रि० देखना । अ० क्रि० देख पड़ना। डेबरी -स्त्री० टीन या शीशे आदिका बना दीपक । डीठि*-स्त्री० दे० 'डीठ' । -मूठि-स्त्री० जाद, टोना। डेरा-पु० टिकाव, पड़ाव; अल्पकालिक निवास; बिस्तर, डीबुआ*-पु० पैसा ।
बरतन आदि ठहरनेकी सामग्री; टिकनेकी जगह; खेमा, डीमडाम*-पु० आडंबर; आटोप; धूमधाम; गर्व, ठसक। रावटी आदि जिसमें टिका जाय; रहनेकी जगह, घर, डील-पु० कद, शरीरकी ऊँचाई-चौड़ाई आदि; देह, शरीर मकान । * वि० बायाँ। -डंडा-पु० ढेरेका सामान । .
२०-क
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डेरी-ढड्रा
३१२ डेरी-स्त्री० [अं॰] वह स्थान जहाँ दूध देनेके लिए गायें- आदि बेचती है; ढाढ़ी। -कौआ-[हिं०] पु० बड़ा,
भैसें रखी जाती हों और मक्खन आदि तैयार होता हो। काला कौआ। डेल*-पु० उल्लू ढेला; निस्सार वस्तु; पिंजड़ा, डलिया। डोमड़ा-पु० दे० 'डोम' । डेलटा-पु० [अं॰] नदीके मुहानेपर बनी तिकोनी भूमि। डोमनी, डोमिनी-स्त्री० डोम जातिकी स्त्री; दाढ़ीकी स्त्री। डेला-पु० रोड़ा, ढेला; आँखका गोलक ठेंगुर ।
डोर-स्त्री० [सं०] धागा, तागा, सूत्र (ला०) बंधन, लगाव । डेली*-स्त्री० डलिया, झापा।
डोरा-पु० सूत, तागा; धारी; आँखकी पतली लाल नसें; डेवढ़-पु० क्रम, सिलसिला । * वि० डेढ़ गुना।
वह वस्तु जिसके सहारे किसीका अनुसंधान किया जा सके। डेवढ़ना-स० कि० (कपड़ा इ०) मोड़ना, तह लगाना । डोरिया-पु० धारीदार कपड़ा। डेवढ़ा-वि० डेढ़गुना। पु० एक पहाड़ा जिसमें क्रमसे डोरियाना*-सक्रि० घोड़ों आदिको रस्सी बाँधकर ले जाना। प्रत्येक अंककी डेढ़गुनी संख्या पढ़ी जाती है। -दरजा- डोरिहारी-पु० पटवा । पु० इंटर कास।
डोरी-स्त्री० रस्सी; (ला०) सूत्र; बंधन; फाँस, लगन । डेवढ़ी-स्त्री० दे० 'ड्यौदी।
डोरे*-अ० साथ-साथ । डेस्क-पु० [अं०] लिखने-पढ़नेके काम आनेवाली | डोल-पु० पानी भरनेका लोहेका गोल बरतन; * झूला ढालुओँ मेज।
पालकी हलचल । वि० डोलनेवाला, हिलनेवाला; चंचल । डेहरी -स्त्री० अन्न रखनेका कच्ची मिट्टीका बना बड़ा डोलची-स्त्री० छोटा डोल; फल-फूल ढोनेका हाथमें लटकाने बरतन ।
योग्य डोलनुमा छोटा वरतन । डैन*-पु० दे० 'डैना'।
डोलना-अ० क्रि० हिलना; इधर-उधर घूमना, चलनाडैना-पु० पंख, पर।
फिरना; अपनी जगहसे हटना; (मनका) विचलित होना। डैश-पु० [अं॰] विरामसूचक आड़ी लकीर ।
डोला-पु० स्त्रियोंकी एक सवारी जिसे कहार ढोते है। डोंगर-पु० ढूह, टीला, भीटा; पहाड़ी।
मु०-देना-लड़की वरके घर ले जाकर ब्याह देना। डोंगा-पु० बड़ी नाव ।
डोलाना-स० क्रि० हिलाना; झलना; हटाना। डॉगी-स्त्री० छोटी नाव ।
डोली-स्त्री० एक तरहकी स्त्रियोंकी पालकी, शिविका । डाँडा*-पु० कारतूस; फलबड़ी इलायची।
डोही*-स्त्री० दे० 'डोई'। डोड़ी-स्त्री० पोस्तेका फल; टोंटी; डोंगी; डौंड़ी, डुगडुगी। डौंडी-स्त्री० डुग्गी, मुनादी । डोई-स्त्री० काठकी डाँडीवाली एक तरहकी कलछी जिससे डौंरू-पु० दे० 'डमरू'। दूध आदि चलाते हैं ।
डीआ*-पु० काठकी बनी बड़ी करछी। डोकरा-पु० बूढ़ा आदमी।
डौल-पु० ढाँचा, बनावटका तर्ज, ढव; रूपरेखा, गठन; डोका-पु० तेल आदि रखनेका काठका बरतन ।
(ला० ) स्वरूप; कार्यसाधनका उपाय; प्रबंध, युक्ति । डोकिया, डोकी-स्त्री० छोटा डोका ।
-डाल-पु० उपाय; कोशिश । -दार-वि० सुडौल, डोब, डोबा-पु० गोता, डुबकी।
सुंदर । मु०-डालना-रूपरेखा तैयार करना। -पर डोबना-स० क्रि० गोता देना, डुबाना ।
लाना-कतरब्योंत कर दुरुस्त करना । डोम-पु० [सं०] अंत्यजोंकी एक जाति जो दौरी, सूप | ड्योढ़ी-स्त्री० दहलीज, पौरी । -वान-पु० द्वारपाल ।
ढ-नागरी वर्णमालाका १४ वाँ व्यंजन वर्ण ।
करना । अ० क्रि० छिपना, आच्छादित होना ढंकना-पु०, स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'ढकना' । ढकनियाँ-स्त्री० ढाकनेकी वस्तु, ढक्कन । ढंख*-पु० पलाश, ढाक ।
ढकनी -स्त्री० हाँकनेकी वस्तु; कसोरा। ढंग-पु० रीति, शैली, तरीका; तर्ज; चलन; प्रकार, रूप, | ढका*-पु० धक्का, प्रहार, बड़ा ढोल ।
बनावट; उपाय, कुशलता; आचरण; पाखंड; लक्षण । ढकिल* --स्त्री० आक्रमण, चढ़ाई। ढंगी-वि० धूर्तः कुशल; जिसे काम निकालनेका ढंग हो।
| ढकेलना-सक्रि०ठेलकर गिराना; धक्का देकर आगे बढ़ाना । ढढोर*-पु० आगकी ऊँची लपट ।
ढकोसना-स० क्रि० अत्यधिक मात्रामें पीना; जल्दीढंढोरची-पु० मुनादी करनेवाला।
जल्दी पीना। ढंढोरना*-स० कि० हूँढ़ना, एक-एक वस्तुपर ध्यान देते | ढकोसला-पु० झूठा दिखावा; आडंबर, पाखंड । हुए खोजना।
ढक्कन-पु० ढकना, ढाँकनेकी वस्तु । ढंढोरा-पु० डुग्गी, मुनादी। मु०-पीटना-घोषित करना। ढगण-पु० [सं०] तीन मात्राओंका एक मात्रिक गण । ढंढोरिया-पु० हूँढोरा पीटनेवाला।
ढचर-पु० आयोजन आडंबर; बखेड़ा, झंझट । ढपना-पु०, स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'ढकना। ढढी-स्त्री० दाढ़ी बाँधनेकी पट्टी; काग। तु-पु० [सं०] बड़ा ढोल; कुत्ता; कुत्तेकी पूँछ; सर्प ।। | ढड्रा-वि० अनावश्यक विस्तारवाला; जिसमें दिखावा ढकना-पु० ढकन। स० क्रि० छिपाना, आच्छादित, अधिक हो । पु० आडंबर, दिखावटी ठाटबाद ।
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ढनमना-ढीठो, ढील्यो
ढनमना-अ०क्रि० लुढ़कना; चक्कर खाकर गिरना। ढाँस-स्त्री० सूखी खाँसी खाँसनेकी आवाज । ढप, ढफ*-पु० दे० 'डफ'।
ढासना-अ० क्रि० सूखी खाँसी खाँसना । ढपना-पु० ढक्कन । अ० क्रि० स० कि०पना,छिपाना । ढाई-वि० दो और आधा । पु० ढाईकी संख्या, २॥ ।मु०ढपला -पु० दे० 'डफला' ।
दिनकी बादशाहत-चंद दिनोंकी मौज; दूल्हा बनना। ढब-पु० ढंग, तरीका; तरह; बनावट; आदत; युक्ति। ढाक-पु० पलाशा बड़ा ढोल । ढमकाना-स० क्रि० बजाना।
ढाड़, ढाढ़-स्त्री० चीत्कार, चीख चिग्घाड़। मु०-मारना ढयना-अ० कि० मकान आदिका गिरना।
-चीत्कार करते हुए रोना। ढरकना*-अ० क्रि० नीचेकी ओर जाना ढालकी ओर ढाढ़ना*-स० क्रि० दे० 'डादना' । बहना; जल आदिका पात्रमेंसे गिरना; ढलन।।
ढाढ़स, ढारस-पु० धीरज, दिलासा, सांत्वना । ढरका -पु० आँखसे बराबर पानी बहनेका रोग; बाँसका | ढाढ़ी-पु०घूम-घूमकर जन्मोत्सवके गीत गानेवाली एक जाति । चोंगा जिससे चौपायोंको दवा आदि पिलाते हैं।
ढाना-सक्रि० गिराना; ध्वस्त करना। ढरकाना*-स० क्रि० जल आदिको पात्रसे गिराना। ढाबर*-वि० गदला, गंदा, मटमैला । ढरकी-स्त्री० जलाहोंका एक औजार जिससे वे बानेका ढाबा-पु० मुर्गियों आदिको बंद करनेका टोकरा या खाँचा: सूत फेंकते है, भरनी।
जाल, ओलनी; परछत्ती; रोटीकी दुकान । ढरकीला-वि० दरकने या लुढ़कनेवाला ।
ढामक-पु० नगाड़ा, ढोल; डंके, ढोल आदिका शब्द । ढरना*-अ० क्रि० दे० 'ढलना।
ढार*-पु० ढालुवाँ जमीन; उतारः ढाँचा; मार्ग। स्त्री० ढरनि* --स्त्री० गिरनेका भाव या क्रिया, झुकाव; किसी कानका एक गहना फलक; ढाल । ओर ढलना; किसीकी ओर झुकना।
ढारना*-सक्रि० दे० 'ढालना। ढरहरना*--अ० क्रि० ढलना; सरकना, झुकना।।
ढाल-स्त्री० आगेकी ओर क्रमशः नीची होती गयी जमीन ढरहरा-वि० ढालुवाँ ।
उतार; ढंग, प्रकार; [सं०] तलवार, भाले आदिके आधाढराना -स० वि० दे० 'ढलाना'। अ० वि० आँसू बहाना। |तको रोकनेका लोहे या गेंडेके चमड़ेका बना कछुएकी ढरारा-वि० ढलनेवाला द्रवित होनेवाला; ढालू ।
पीठ जैसा एक साधन । ढर्रा-पु० मार्ग, रास्ता; शैली; आदत; उपाय ।
ढालना-सक्रि० पानी आदिको गिराना, उड़ेलना; शराब ढलकना-अ० क्रि० दे० 'ढलना'।
पीना पिघली हुई धातुको साँचे द्वारा विशेष रूप देना। ढलका-पु० आँखोंसे पानी गिरनेका रोग ।
ढालवाँ-वि० जो आगेकी ओर नीचा होता गया हो, ढालू । ढलकाना-स० कि० (पानी आदि) लुढ़काना ।
ढालू-वि० दे० 'ढालवाँ'। ढलनशीलता-स्त्री० (प्लैस्टिसिटी) ढलनशील होनेका गुण, ढास-पु० डाकू, लुटेरा । गलाकर ढाले जानेकी शक्ति या गुण ।
ढासना-पु० टेक, आधारकी वस्तु, सहारा तकिया। ढलना-अ०क्रि० दरकना; लुढ़कना; बीतना; नीचेकी ढाहना*-सक्रि० दे० 'ढाना।
ओर जाना; अस्ताचलकी ओर जाना;साँचेमें ढाला जाना; ढिंढोरना*-स० क्रि० दे० 'ढंढोरना। समाप्ति या अंतकी और जाना; चँवर आदिका विशेष ढंग-ढिंढोरा-पु० मुनादी, डुग्गी; डुग्गी बजाकर की गयी से इधर-उधर हिलाया जाना द्रवित होना; उड़ेला जाना।। घोषणा । ढलवा-वि० ढाला हुआ।
ढिग-अ० पास, समीप, नजदीक । * स्त्री० तटकिनारा । ढलवाना-स० क्रि० ढालनेका काम दूसरेसे कराना। ढिठाई-स्त्री० धृष्टता, बेअदबी; दुःसाहस । ढलाई-स्त्री० ढालनेकी क्रिया या उजरत.।
ढिपुनी-स्त्री० चूचुक । ढलाना-स० कि० दे० 'ढलवाना।
ढिबरी-स्त्री० दीपकके काम आनेवाली टीन, शीशे, मिट्टी ढलुवाँ-वि० दे० 'ढलवाँ'।
आदिकी बनी डिबिया। ढलैत-पु० ढालधारी, सैनिक ।
ढिमका-सर्व० अमुक, फलाँ। ढवरी*-स्त्री० लगन, धुन । .
ढिमरिया-स्त्री० कहारिन, पानी लानेवाली। ढहना-अ०क्रि० मकान आदिका गिरना, ध्वस्त होना। ढिलाई-स्त्री० ढीलापन; सुस्ती, शिथिलता । ढहरना*-अ० क्रि० लुढ़कना, गिर पड़ना।
ढिलाना-स० क्रि० ढीला कराना; बंधनसे छुड़ाना; * ढीला ढहराना -स० क्रि० लुढ़काना; गिराकर अलग करना। __ करना; बंधनसे मुक्त करना । ढहरी*-स्त्री० देहली; मटकी।
ढिसरना*-अ० क्रि० फिसल पड़ना प्रवृत्त होना झुकना। ढहधाना-स० क्रि० ढहानेका काम दूसरेसे कराना। ढींगर*-पु० अधिक लंबा-चौड़ा व्यक्ति; जार । ढहाना-स० क्रि० गिराना, ध्वस्त करना।
ढींद, ढींढा-पु० गर्भ; बड़ा पेट । ढाँकना-स० कि० दे० 'ढकना'।
ढीच*-स्त्री० कूबड़ । ढाख-पु० दे० 'ढाक' ।
ढीट*-स्त्री० रेखा, लकीर । ढाँचा-पु० किसी वस्तुकी बनावटका आरंभिक या स्थूल ढीठ-वि० धृष्ट, बेअदबा संकोचरहित; चपल, निडर । रूप पंजर बनावट; तरह तरीका ।
ढीठता*-स्त्री० ढिठाई। ढाँपना-स० क्रि० दे० 'ढकना'।
| ढीठो, ढीव्यो*-पु० ढिठाई ।
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ढीम-ढोली
३१४ ढीम*-पु० दे० 'ढीमा।
दर-पु० दे० टेटर। ढीमरी-पु० धीवर, पानी भरनेवाली एक जाति । |ढेदा-पु० दे० 'देंद'। ढीमा-पु० मिट्टीका ढोका; ईट, पत्थर आदिका टुकड़ा। हूँढ़ी-स्त्री० कपास, सेमर, पोस्ते इत्यादिका डोंडा; छीमी। ढील-स्त्री० ढिलाई, सुस्ती; शिथिलता; व्यर्थकी देर; फुर- प-स्त्री० फल या पत्तेके मुँहपरका वह पतला भाग
सत । पु० बालों में पड़नेवाला एक छोटा कीड़ा, नँ। जिसके बल वह पेड़की टहनीसे लटकता रहता है। ढीलना-स० क्रि० ढीला करना; बंधन-मुक्त करना; सरकने | ढेउआ -पु० पैसा (ला०) धन । देना; पानी आदि देकर पतला करना।
| ढेबरी-स्त्री० दे० 'ढिबरी' । ढीला-वि०जिसमें तनाव, खिंचाव न हो; जो कसा न हो; वेबुआ -पु० पैसा धन । जो कसकर बैठा या बँधा न हो; जो पहनने में अधिक लंबा- ढेबुक*-पु० ताँका एक सिक्का, पैसा । चौड़ा हो; ज्यादा गीला; सुस्त; शांत, नरम । (ढीली) | ढेर-पु० राशि, अटाला, टाल, पुंज । वि० बहुत, अधिक । आँख-आधी खुली आँख मदपूर्ण दृष्टि ।
मु०-करना-मार डालना। -हो जाना-मर जाना । ढीह-पु० टीला, ढूह ।
ढेरी-स्त्री० दे० 'ढेर'। ढुंढ*-पु० उचक्का, ठग, लुटेरा ।
ढेल*-पु० दे० 'ढेला'। हुँदवाना-स० क्रि० खोजवाना, पता लगवाना । ढेलवाँस-पु० ढेला फेंकनेकी रस्सी जिसमें उसे रखनेके ढुंढा-स्त्री० [सं०] हिरण्यकशिपुकी बहिन जो प्रहादको लिए फंदा बना होता है, गोफना । गोद में लेकर आगमें बैठने पर जल मरी ।
ढेला-पु० मिट्टी, पत्थर आदिका टुकड़ा। -चौथ-स्त्री० दुढी-स्त्री० बाँह मुसुक; नाभि !
भादों सुदी चौथ जब चंद्रमाको देखनेपर लोग दूसरेके दुकना-अ० क्रि० घुसना; ताकमें बैठना; आड़में बैठना । घरपर देला फेंकते हैं। दुकास-स्त्री० तेज प्यास।
ढैया-पु० ढाई सेरका बटखरा; एक पहाड़ा जिसमें क्रमसे दुटोना*-पु० ढोटा, लड़का ।
अंकोंकी ढाईगुनी संख्या पढ़ी जाती है। ढुरकना*-अ०कि लुढ़कना सरकना; फिसलना झुकना।
ढाँका-पु० पत्थर आदिका बड़ा टुकड़ा जो गढ़ा न गया द्वरना*-अ० क्रि० ढरना; ढरकना; फिसलना; नीचेकी | हो; बड़ा डला।
ओर बहना; डोलना प्रसन्न होकर किसीकी ओर झुकना। ढोंग-पु० पाखंड, उल। -बाज-वि० दे० 'ढोंगी। दुरहुरी*-स्त्री० लुढकनेकी क्रिया; तंग रास्ता ।
ढोंगी-वि० ढोंग करनेबाला, पाखंडी। दुराना, दुरावना-स० क्रि० ढरकाना दुलकाना; गिराना।
ढाँद-पु० पोस्ते, कपास आदिका डोंड़ा, डेढ़ी। दुरुकना*-अ० क्रि० दे० 'दुलकना' ।
ढोंढ़ी-स्त्री० नाभि । दुरी-स्त्री० पगडंडी।
ढोआई-स्त्री० दे० 'ढुलाई। दुलकना-अ० क्रि० उलटते-पुलटते गिरना।
ढोटा*-पु० पुत्र, बेटा; बालक । दुलकाना-स० क्रि० लुढ़काना ।
ढोटी*-स्त्री० पुत्री, बेटी; बालिका । दुलना-अ० क्रि० दे० 'दुरना'; ढोया जाना ।
ढोटौना*-पु० दे० 'ढोटा'। ढुलमुल-वि०शिथिल, अस्थिर ।
ढोना-स० क्रि० बोझको एक स्थानसे दूसरेपर पहुँचाना; दुलवाना-स० कि० ढोनेका काम दूसरेसे कराना। किसी वस्तुको ले चलना, उठाकर या लादकर ले जाना । दुलवाई, दुलाई-स्त्री० ढोनेकी क्रिया या उजरत ढोर-पु० चौपाया, मवेशी; * छटा, अदा । दुलाना-स० क्रि० दे० 'दुराना' दे० 'दुलवाना';*पोतना। | ढोरना*-स० क्रि० दे० 'ढरकाना'; हिलाना। हूँकना-अ० क्रि० दे० 'दुकाना'।
ढोल-पु० [सं०] हाथसे बजानेका एक बाजा जो दोनों ओर हूँढ़-स्त्री० खोज, तलाश ।
चमड़ेसे मढ़ा होता है। कानका भीतरका परदा, कर्णपटह । ढूँढ़ना-स० क्रि० खोजना, तलाश करना ।
-ढमक्का-पु० [हिं०] चहल-पहल, धूम-धाम; बाजाद्वकना*-अ० क्रि० दे० 'ढुकना' ।
गाजा । मु०-पीटना-चारों ओर कहते फिरना । द्वह-पु० ढेर, अटाला; टीला ।
ढोलक-स्त्री. छोटा ढोल । इहा-पु० दे० 'दूह'।
ढोलकिया-पु० ढोल बजानेवाला, स्त्री०+ छोटा ढोल । उक-पु० [सं०] एक जलीय पक्षी जिसकी चोंच और गर- ढोलकी-स्त्री० छोटा ढोल । दन लंबी होती है।
ढोलना-पु० ढोलकके ढंगका गले में पहननेका जंतर ढे कली-स्त्री० तिचाईके लिए पानी निकालनेका एक यंत्र; पालना; बड़ा बेलन । * स० क्रि० ढरकाना, गिराना।
धान कूटनेका एक यंत्र, टेंकी; अर्क निकालनेका एक यंत्र । | ढोलनी-स्त्री० छोटा पालना । ढका-पु० बड़ी ढेंकी; कोल्हू में जाटके सिरेसे लगाया जाने-ढोला-पु० फल आदिमें पड़नेवाला एक सफेद कीड़ा; वाला बाँस।
मेहराबका लदाव; शरीर; पति; एक तरहका गीत, किया-स्त्री० कपड़ेकी एक काट जिसमें लंबाई घट जाती सीमा-चिह्न । और चौड़ाई बढ़ जाती है।
ढोलिनी*-स्त्री० ढोल बजानेवाली स्त्री। ढेकी-स्त्री० धान कूटनेका एक यंत्र ।
ढोलिया-पु० दे० 'ढोलकिया । ढे ढ-पु० फली; एक जाति; मूर्ख; कपास आदिका डोंडा। ढोली-स्त्री० दो सौ पानोंकी गड्डी; हँसी, परिहास ।
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ढोव* - पु० मांगलिक अवसरपर राजा आदिको नजर की जानेवाली वस्तु, डाली, भेंट- 'लै लै ढोव प्रजा प्रमुदित चले' गीता० ।
ण - देवनागरी वर्णमालाका १५वाँ व्यंजन वर्ण ।
ढोवा - पु० ढोये जानेकी क्रिया; लूट; दे० 'ढोव' | ढोवाई - स्त्री० दे० 'ढुलाई' । ढोहना * - स० क्रि० ढूँढ़ना - 'सूर सुबैद बेगि ढोहौ किन, ढौरी* - स्त्री० धुन, लगन ।
ण
। ण-पु० [सं०] भूषण; निर्णय; ज्ञान; शिव ।
त
तंडव* - पु० दे० 'तांडव' |
तंडुल - पु० [सं०] धान्य; चावल; एक सरसोंकी तौल | तंत* - पु० ताँत; तत्त्व; इच्छा; तारवाला बाजा; उपाय; तंत्रशास्त्र; अभिलाषा; अधीनता । स्त्री० उतावली, जल्दबाजी । - मंत- पु० दे० 'तंत्र-मंत्र' |
तंतरी* - पु० तारवाला बाजा बजानेवाला; तारवाला बाजा । स्त्री० बाजेका तार ।
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ढोव-तक
भये मरनके जोग' - सू०; ढोना ।
ढौंचा-पु० एक पहाड़ा जिसमें क्रमसे अंकोंकी साढ़े चारगुनी संख्या पढ़ी जाती है ।
ढाँसना * - अ० क्रि० धूमधाम मचाना; हर्षध्वनि करना । ढौकन- पु० [सं०] डाली, भेंट, उपहार; रिश्वत ।
तंतु-पु० [सं०] सूत, तागा; रेशा; ग्राह; संतान; परमेश्वर; मकड़ीका जाला । -नाभ - पु० मकड़ी । - वाप, वाय - पु० जुलाहा, ताँती; मकड़ा ।
राष्ट्र;
तंत्र- पु० [सं०] तंतु; ताँत; ओषधि; जुलाहा; वस्त्र; राज्य शासन प्रबंध; शासन प्रणाली; सेना; प्रबंध; परिवारका भरण-पोषण; करघा; अधीनता; विज्ञान संबंधी सिद्धांत, रचना या नियम; ऐसी रचनाका एक अध्याय; शिव-शक्तिकी पूजा और अभिचार आदिका विधान करनेवाला शास्त्र; आगम; वीणा आदिका तार । -मंत्र- पु० जादू-टोना; उपाय युक्ति । - वाप, वाय- ५० दे० ' तंतुवाप' ।
|
त - देवनागरी वर्णमालाका १६वाँ व्यंजन वर्ण । तंग-पु० [फा०] जीन कसनेकी पेटी । वि० संकीर्ण, विस्तार में कम; चुस्त कसा हुआ; दिक, परेशान । - दस्त - वि० जिसके पास पैसेकी कमी हो, अर्थकष्टमें पड़ा हुआ । - दस्ती - स्त्री० पैसेकी कमी, अर्थकष्ट । हालवि० तंगदस्त; विपद्ग्रस्त | मु० - आना-परेशान होना । - करना - दुःख पहुँचाना; हैरान करना । तंगी - स्त्री० [फा०] तंग होना; चुस्ती; गरीबी ।
तंदेही - स्त्री० दे० 'तनदिही'; परिश्रम | तंद्र - वि० [सं०] क्लांत, शिथिल; आलसी । तंद्रा - स्त्री० [सं०] ॐध; कांति; वैद्यकमें शरीर के भारी और इंद्रियोंके शिथिल होने की दशा ।
परेशानी;
तंज़ ेब - ५० दे० 'तनजेब' ।
तंड- पु० [सं०] एक ऋषि; * नाच ।
तंत्री - स्त्री० [सं०] वीणा आदि में लगातार; गुडुची; देहकी नस; रस्सी; नाड़ी; तारवाला बाजा; वीणा । तंत्री (त्रिन्) - वि० [सं०] तारोंवाला; तंत्रका अनुसरण करनेवाला | पु० गवैया; सैनिक |
तंदरा* - स्त्री० दे० 'तंद्रा'
तंदुरुस्त - वि० [फा०] स्वस्थ, जिसका स्वास्थ्य ठीक हो । तंदुरुस्ती - स्त्री० [फा०] स्वास्थ्य, आरोग्य | तंदुल* - पु० दे० 'तंडुल' ।
तंदूर - पु० एक तरहका चूल्हा जिसे गरम करके रोटियाँ पकाते हैं ।
तंद्रालु - वि० [सं०] तंद्रायुक्त | तंद्रि-स्त्री० [सं०] तंद्रा |
तंद्रिल - वि० [सं०] तंद्रावाला; तंद्रासे संबद्ध |
तंबाकू - पु० सुरती; सुरतीसे बनायी हुई एक नशीली चीज जिसे चिलम आदिपर रखकर पीते हैं; जर्दा ।
तँबिया - पु० ताँबेका छोटा तसला ।
तंबीह - स्त्री० [फा०] चेतावनी | तंबू- पु० शामियाना, खेमा ।
तंबूर - पु० [फा०] एक तरहका ढोल । -ची- पु० तंबूर बजानेवाला ।
तंबूरा-पु० सितार जैसा एक बाजा जिसे सुर कायम रखनेके लिए बजाते हैं, तानपूरा ।
तंबूल* - पु० पान, तांबूल । तंबोल - पु० तांबूल, पान ।
तंबोली- पु० पान बेचनेवाला, बरई । तंभ* - पु० एक सात्त्विक अनुभाव; स्तंभ | तंभन* - पु० दे० 'तंभ'; स्तंभन । त-पु० [सं०] चोर; अमृत । * अ० तो । तअज्जुब - पु० [अ०] आश्चर्य, अचंभा । तअल्लुक़ - पु० [अ०] संबंध, लगाव |
तअल्लुका - पु० [अ०] बड़ा इलाका । - (के) दार - पु० तअल्लुकेका मालिक ।
तअस्सुब- पु० [अ०] पक्षपात; धर्म-संबंधी पक्षपात; कट्टरपन |
तइसा* - वि० तैसा ।
तई - प्र० को, प्रति, से | अ० वास्ते ।
तई - स्त्री० जलेबी आदि बनानेकी छिछली कड़ाही । तउ* - अ० तब; त्यों ।
तऊ* - अ० तो भी, तथापि ।
तक - अ० सीमा या अवधि सूचित करनेवाला अव्यय, पर्यंत । * स्त्री० टक, निर्निमेष दृष्टि; तराजू । * पु० तक्र, मही ।
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तकदमा-तटिनी तक़दमा-पु० [अ०] अंदाजा, तखमीना; पेश करना फैसला। था। इसे १७३९ में नादिरशाह लूटकर ले गया। तक़दीर-स्त्री० [अ०] भाग्य, किस्मत । -बर-वि० भाग्य | तख्ता-धु० [फा०] ऊँची चौकी; लकड़ीका लंबा और कम वान् । मु०-आज़माना-माग्यके भरोसे कोई काम मोटा चौकोर टुकड़ा, पला । मु०-उलट जाना-बरबाद करना ।-ऊँची जगह लड़ना-अमीर घर में शादी होना। हो जाना, नष्ट-भ्रष्ट हो जाना, तबाह हो जाना। -का खेल-भाग्यके करिश्मे । -का धनी-भाग्यवान् । तख्ती-स्त्री० लकड़ी, धातु आदिका छोटा, चौकोर टुकड़ा; -जागना-भाग्यका उदय होना । -फटना-किस्मत छोटा तख्त पटिया। खराब होना।
तगड़ा-वि० हट्टा-कट्टा, मोटा-ताजा मजबूत । तक़दीरी-वि० [अ०] भाग्य-संबंधी।।
तगण-पु० [सं०] तीन वर्गों का एक मात्रिक गण । तकना*-स० कि० देखना ताकमें रहना; आश्रय लेना। तगना-अ०क्रि० तागा जाना। तकमा -पु० तमगा मुद्धी।
'तगमा-पु० दे० 'तमगा' । तकरार-स्त्री० [अ०] बार-बार कहना हुज्जत, झगड़ा। तगर-पु० [सं०] एक वृक्ष । तकरारी-वि० [अ०] तकरार करनेवाला ।
तगा*-पु० तागा। तकरीबन-अ० [अ०] लगभग।
तगाई-स्त्री० तागनेका काम या उजरत । तकरीर-स्त्री० [अ०] बोलना; बातचीत, भाषण । तगादा-पु० दे० 'तकाजा'। तकला-पु० सूत लपेटनेके काम आनेवाली चखेंमें लगी। तगाना-स० क्रि० तागनेका काम दूसरेसे कराना । लोहेकी सलाई, टेकुआ।
तगीर*-पु० स्थिति-परिवर्तन, तबदीली । तकली-स्त्री० छोटा तकला; सूत कातने तथा लपेटनेका तचना*-अ० क्रि० अत्यंत तप्त होना, तपना; दुःखी होना। एक छोटा आला ।
तचा*-स्त्री० त्वचा, चमड़ा। तकलीफ़-स्त्री० [अ०] दुःख, कष्ट, केश ।
तचाना*-स० क्रि० संतप्त करना, तपाना । तकल्लुफ़-पु० [अ०] तकलीफ उठाना शिष्टाचार, बनावट। तचित -वि० तपा हुआ, संतप्तः दुःखी। तकवाना-स. क्रि० किसीको ताकने में प्रवृत्त करना। तच्छ*-पु० दे० 'तक्ष'। तक्रसीम-स्त्री० [अ०] बाँटना; बँटवारा; एक संख्यासे तच्छक*-पु० दे० 'तक्षक' । दूसरी संख्याको भाग देना (ग०) ।
तच्छिन-अ० तत्क्षण, उसी समय । तक़सीर-स्त्री० [अ०] कुसूर, अपराध, गुनाह, दोष। तज-पु० दारचीनीकी जातिका एक वृक्ष जिसकी छाल तकाई-स्त्री० ताकनेका क्रिया ।
दवाके काम आती है । इसके पत्तेको 'तेजपत्ता' कहते हैं। तक़ाज़ा-पु० [अ०] तगादा, पावना माँगना; इच्छा; आव- तजकिरा-पु० [अ०] जिक्र, चर्चा: जीवन-चरित । श्यकता आदेश; अनुरोध; कोई काम करनेके लिए किसी- तजन*-पु० त्याग; चाबुक । से बार-बार कहना।
तजना-स० क्रि० छोड़ना, त्यागना । तकाना-स० क्रि० देखने में प्रवृत्त करना; दिखाना। | तजरबा-पु० [अ०] अनुभव; किसी वस्तुके बारेमें शान तकावी-स्त्री० [अ०] बीज, नैल आदि खरीदनेके लिए प्राप्त करनेके लिए की गयी परीक्षा; आजमाइश ।-कारकिसानोंको सरकारकी ओरसे दिया जानेवाला ऋण । | वि० अनुभवी । तकिया-पु० [फा०] बालिश; भरोसा, सहारा; आश्रय- | तजवीज़-स्त्री० [अ०] सलाह, राय; फैसला, निर्णय स्थान; छज्जे आदिपर रोकके लिए लगायी जानेवाली निर्देश विचार। -सानी-स्त्री० किसी फैसलेका उसी पत्थरकी पटिया; फकीरोंके रहनेकी जगह । -कलाम- अदालतमें पुनर्विचार ।। पु० सखुनतकिया।
तज्जनित, तज्जन्य-वि० [सं०] उससे उत्पन्न । तकुआ-पु० दे० 'तकला' देखनेवाला।
तज्जातीय-वि० [सं०] उस जातिका । मटा जिसमें एक चौथाई भाग जलका हो, तज्ञ-वि० जानकारी तत्त्वविद । छाछ । -सार-पु० मक्खन ।
तटक-पु० कानका एक गहना, कर्णफूल । तक्ष-पु० [सं०] रामके भाई भरतका ज्येष्ठ पुत्र; एक नाग। तट-पु० [सं०] पहाड़की ढाल; क्षितिज; किनारा, कूल, तक्षक-पु० [सं०] आठ नागोंमेंसे एक जिसने परीक्षित्को तीर; नदीके किनारेकी भूमि, प्रदेश क्षेत्र; शिव । अ० काटा था; विश्वकर्मा; सूत्रधारः बढ़ई।
पास, समीप।-स्थ-वि० जो समीप रहता हो, निकटस्थ; तक्षण-पु० [सं०] लकड़ी आदि छीलना, काटना । जो मतलब न रखता हो, उदासीन; जो गुटबंदीसे पृथक, तक्षणी-स्त्री० [सं०] लकड़ी तराशनेका औजार, बसूला। हो । पु० उदासीन व्यक्ति । तखमीनन्-अ० [अ०] अंदाजन् , अनुमानतः । तटका-वि० ताजा, तुरंतका। तख़मीना-पु० [अ०] अंदाजा आमद या खर्चका अंदाजा। तटनी*-स्त्री० दे० 'तटिनी'। तखल्लुस-पु० [अ०] कवि या लेखकका उपनाम । तटस्थीकरण-पु० [सं०] (न्यूट्रलिजेशन) किसी देश या तख्त-पु० [फा०] सिंहासन; लकड़ीकी बड़ी चौकी। । स्थानको तटस्थ बना देने, घोषित कर देनेकी क्रिया प्रति
-गाह-स्त्री० राजधानी। -नशीन-वि० सिंहासना• कूल गुण, शक्ति आदि द्वारा किसीके गुण या शक्तिका फल रूढ़ । -पोश-पु० तख्तपर बिछानेकी चादर ।-ताऊस- अथवा प्रभाव बेकार कर देनेकी क्रिया। पु० शाहजहाँका प्रसिद्ध सिंहासन जो मोरके आकारका तटिनी-स्त्री० [सं०] नदी । -पति-पु० समुद्र ।
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तटी - स्त्री० [सं०] तीर, किनारा; * नदी; समाधि | तड़-पु० जातिका उपविभाग, बिरादरी; थप्पड़ मारने या कड़ी चीज तोड़नेकी आवाज । - बंदी - स्त्री० जातीयताकी दृष्टि गुट बनाने की क्रिया, दलबंदी । तड़क- स्त्री० तड़कनेकी क्रिया या भाव; तड़कनेका चिह्न |
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- भड़क - पु० ठाट-बाट; चमक-दमक ।
तड़कना - अ० क्रि० आँच पाकर 'तड़ की आवाज के साथ फटना या टूटना; कर्कश स्वर में बोलना; झुंझलाना; उमंगके साथ जोर से उछलना ।
तड़का - पु० प्रभात, सबेरा; बधार । तड़कानां - स० क्रि० 'तड़' शब्द के साथ तोड़ना; खिजाना । तड़कीला - वि० भड़कीला, चमकीला; तड़कनेवाला । तड़का * - अ० शीघ्र, झटपट ।
तड़तड़ाना - अ० क्रि० 'तड़-तड़' शब्द होना । स० क्रि०
'तड़-तड़' शब्द उत्पन्न करना ।
तड़प - स्त्री० तड़पने की क्रिया या भाव; बिजलीकी कड़क; बिजली की चमक । -दार- वि० भड़कीला, चमकीला । तड़पना - अ० क्रि० अत्यंत दुःखी होना, कलपना, छट
पढ़ाना; गरजना; कूदना- फाँदना ।
तड़पाना - स० क्रि० अत्यधिक कष्ट पहुँचाना, कलपाना । तड़फड़ाना - अ० क्रि. ० बेचैन होना । स० क्रि० व्याकुल करना, कष्ट पहुँचाना ।
तडाक- पु० [सं०] दे० 'तडाग' |
तड़ाक - स्त्री० तड़ाकेका शब्द; कड़ी चीजके जोरसे टूटनेका शब्द | अ० झटपट । -पढ़ाक, फड़ाक - अ० चटपट, फौरन । - से- 'तड़ाक' शब्द के साथ ।
तड़ाका - पु० 'तड़' की आवाज । अ० चटपट । तडाग - पु० [सं०] तालाब, सरोवर, हिरन फँसानेका फैदा । तड़ागना * - अ० क्रि० डींग मारना; उछल-कूद मचाना; कोशिश करना ।
तड़ातड़ - अ० 'तड़-तड़' की ध्वनि के साथ । तड़ावा- पु० दिखावटी तड़क-भड़क । तड़ित, तड़िता * - स्त्री० दे० ' तडित्' । तडित् - स्त्री० [सं०] बिजली, विद्युत्; हिंसा। पति-पु० मेघ । - प्रभा - स्त्री० कात्तिकेय की एक मातृका; बिजलीकी चमक |
तडित्वान् (वत्) - पु० [सं०] मेघ । वि० बिजलीवाला | तडिद्गर्भ- पु० [सं०] मेघ, बादल । तड़िपाना* - अ० क्रि० दे० 'तड़पना' । तडिल्लेखा-स्त्री० [सं०] बिजलीकी लीक | तड़ी - स्त्री० चपत, थप्पड़ । तड़ीत* - स्त्री० दे० 'तडित्' ।
तत - वि० तप्त; उतना । पु० तत्त्व; सार वस्तु; तंतु । - बाउ* - पु० दे० ' तंतुवाय' । -सार-स्त्री० लोहा आदि तपानेकी जगह ।
ततकार, ततकाल * - अ० दे० 'तत्काल' । ततखन * - अ० दे० 'तत्क्षण' ।
ततछन * - अ० दे० 'तत्क्षण' | ततपर* - वि० दे० 'तत्पर' | ततबीर* - स्त्री० दे० 'तदबीर' |
तत्त* - पु० दे० 'तत्त्व' ।
तत्ता* - वि० गरम, उष्ण ।
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तताई * - स्त्री० गरमी । ततुवाउ* - पु० दे० ' तंतुवाय' ।
ततैया - स्त्री० बरें भिड़, हड्डा । वि० तेज; चालाक । तत् पु० [सं०] ब्रा; वायु । सर्व० वह । -काल- अ० तत्क्षण, तुरत, उसी समय । -कालीन - वि० उस या उसी समयका । -क्षण-अ० दे० 'तत्काल' | - तदेशीय - वि० उस उस या भिन्न-भिन्न देशका | -पर-वि० कार्य विशेष में लगा हुआ, तल्लीन; सन्नद्ध । - परता - स्त्री० तत्पर होनेकी क्रिया या भाव, मुस्तैदी; सन्नद्धता; तल्लीनता । - पश्चात् - अ० उसके बाद, पीछे । - पुरुष - पु० परम पुरुष; एक समास ( व्या० ) । - सदृश, - सम-वि० उसके समान, उसके जैसा । - पु० किसी अन्य भाषाका वह शब्द जो देशी भाषा में अविकृत रूपमें प्रयुक्त होता हो ।
तटी - तदर्थ
ताई - स्त्री० नाचके शब्द या बोल । तत्तोथंबी- पु० बीचबचाव; दिलासा ।
तत्त्व - पु० [सं०] यथार्थता, वस्तुस्थिति, असलीयत; सार; स्वरूप; ब्रह्म; सांख्यशास्त्रोक्त प्रकृति आदि पचीस पदार्थ; पंचभूत; मूल पदार्थ । - ज्ञ-पु० ब्रह्मको जाननेवाला; वह जिसे सार वस्तुका ज्ञान हो; अध्यात्मवेत्ता; दार्शनिक । - ज्ञान - पु० ब्रह्म, आत्मा और जगद्विषयक ययार्थ ज्ञान, ब्रह्मज्ञान । - ज्ञानी (निन्) -- पु० ब्रह्मज्ञानी । - दृष्टि - स्त्री० तत्त्वज्ञान प्राप्त करानेवाली दृष्टि । - निष्ठ-वि० सिद्धांतका पक्का । - भाषी (पिन्) - वि० यथार्थवक्ता । - विद् - पु० दे० 'तत्त्वज्ञ' ; परमेश्वर । - विद्या - स्त्री० दर्शनशास्त्र, अध्यात्मविद्या । - वेत्ता (तू) - पु० तत्त्वश; दार्शनिक । तत्त्वतः - अ० [सं०] यथार्थ रूपमें, वास्तव में । तत्वावधान - पु० [सं०] देखरेख | तत्र - अ० [सं०] वहाँ, उस जगह । तत्रत्य - वि० [सं०] वहाँ रहनेवाला । तथा - अ० [सं०] और, वः वैसा; वैसा हो । कथित - वि० दे० 'तथोक्त' । गत- पु० बुद्धका एक नाम । - विध-वि० उस प्रकारका ।
तथापि - अ० [सं०] तो भी, तिसपर भी, वैसा होनेपर भी । तथास्तु-अ० [सं०] ऐसा ही हो, एवमस्तु । तथैव - अ० [सं०] उसी प्रकार ।
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तथोक्त - वि० [सं०] तथाकथित; नाम मात्रका | तथ्य - पु० [सं०] सत्य, सच्ची बात, यथार्थता । - भाषी(पिन), - वादी (दिन्) - वि० सच्ची, सारगर्भ बात कहनेवाला ।
तदनंतर - अ० [सं०] उसके बाद ।
तदनुरूप - वि० [सं०] उसीके रूपका, उसीके जैसा | तदनुसार- अ० [सं०] उसके अनुसार । तदपि - अ० [सं०] वह भी; * तो भी, तथापि । तदबीर - स्त्री० [अ०] उद्योग, यत्न, प्रयास; उपाय; प्रबंध । तदर्थ - अ० [सं०] उसके लिए । समिति - स्त्री० (एडहॉक कमिटी) किसी विशेष कार्यके लिए बनी हुई समिति जो कार्य संपादन के बाद स्वतः विघटित हो जाती है।
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३.८
दे० 'तना हुआ; रुष्ट ।
न*-पु०
तदा-तपन तदा-अ० [सं०] उस समय, तब ।
तनिमा(मन)-स्त्री० [सं०] दुबलापन, कृशता सुकुमारता। तदाकार-वि० [सं०] उसके आकारका, उसकी तरहका । तनियाँ, तनिया-स्त्री० कछनी तनीदार कुरता। तदीय-वि० [सं०] उसका ।
तनी-स्त्री० बंद, बंधन । * वि०, अ० दे० 'तनि'। तदुपरांत-अ० [सं०] उसके बाद ।
तनु-पु० [सं०] शरीर, काय; स्वभाव, प्रकृति; चर्म; लग्नतदुपरि-अ० [सं०] उसके ऊपर या बाद ।
स्थान । वि०विरल अल्पासुकुमार कृश; तुच्छ; छिछला। तद्वत-वि० [सं०] उसमें स्थित तल्लीन; उससे संबद्ध । -कूप-पु० रोमकूप । -ज-पु० पुत्र । -जा-स्त्री० तद्गुण-वि० [सं०] जिसमें वे गुण हों; उसके जैसे गुणों- पुत्री। -त्याग-वि० कंजूस । पु० शरीर-त्याग ।-त्रवाला। पु० एक अर्थालंकार जिसमें किसी वस्तु द्वारा अपने त्राण-पु० कवच, वर्म । -धारी(रिन्)-वि० देहधारी। गुणका परित्याग कर निकटकी दूसरी वस्तुका गुण ग्रहण -पात-पु० मृत्यु । -भव-पु० पुत्र, बेटा। -भवाकर लिया जाना दिखाया जाता है।
स्त्री० पुत्री, बेटी । -भृत्-वि० शरीरधारी। -मध्यमातद्देशीय-वि० [सं०] उस देशका ।
वि० स्त्री० पतली कमरवाली। -मध्या-स्त्री० एक वर्णतद्धित-पु० [सं०] संज्ञा-शब्दोंमें लगनेवाला एक प्रकारका वृत्त; पतली कमरकी स्त्री। -राग-पु० एक सुगंधित प्रत्यय (व्या०)। वि० उसके लिए उपयुक्त।
उबटन जिसमें केसर आदि छोड़ते हैं। इस उबटनके कामके तद्भव-वि० [सं०] उससे उत्पन्न । पु० किसी भाषाका वह गंधद्रव्य । -रुह-पु० रोम, रोआँ । -लता-स्त्री० लता
शब्द जो देशी भाषामें कुछ विकृत रूपमें प्रयोगमें आता है।। जैसी लोचवाली सुकुमार देह । तयपि-१० तथापि, तिसपर भी।
तनुक*-वि०, अ० दे० 'तनिक'। तद्रूप-वि० [सं०] उसी प्रकारका, वैसा ही।-रूपक-पु० तनुता-स्त्री०, तनुत्व-पु० [सं०] पतलापन, कृशता । रूपकालंकारका एक भेद ।
तनू-पु० [सं०] शरीर; पुत्र । -ज-पु.बेटा। -जातद्रूपता-स्त्री० [सं०] सादृश्य, समानता।
स्त्री० बेटी। -रुह-पु० रोम, रोआँ; पंख; पुत्र । तद्वत्-वि० [सं०] वैसा, उसके समान । अ० उसी प्रकार । तनूर-पु० तंदूर।। तन-पु० शरीर, देह; योनि। *अ० ओर, तरफ ।-वाण, तनेना*-वि० तिरछा, वक्र; खिंचा हुआ; रुष्ट । त्रान-पु० कवच । -पात-पु० मृत्यु ।-रुह*-पु० दे० | तनेनी*-वि० स्त्री० दे० 'तनेना' । 'तनूरुह'।-सुख-पु० तनजेब जैसा एक फूलदार कपड़ा। तनै*-पु० दे० 'तनय'। -मनसे-जी-जान लगाकर।
तनैया-स्त्री० दे० 'तनया' । तन-पु० [फा०] शरीर । -जेब-पु० बढ़िया महीन तनोज*-पु० रोम; पुत्र ।
मलमल । -दिही-स्त्री० मुस्तैदी, तत्परता; मिहनत । तनोरुह-पु० दे० 'तनूरुह' । तनक-स्त्री० एक रागिनी ।*वि० थोड़ा छोटा । *अजरा। तन्ना-पु० तानेका सूत । तनकना-अ० क्रि० दे० 'तिनकना।
तन्नी-स्त्री० वह रस्सी जिससे तराजूका पलड़ा बंधा होता है । तनखाह-स्त्री० दे० 'तनख्वाह'।
तन्मनस्क-वि० [सं०] तन्मय, तल्लीन । तनख्वाह-स्त्री० [फा०] वेतन, तलब ।
तन्मय-वि० [सं०] दत्तचित्त, तल्लीन । तनगना*-अ० क्रि० दे० 'तिनकना'।
तन्यता-स्त्री० (डक्टिलिटी) तारके रूपमें खींचे जा तनज-पु० [अ०] 'तंज' ताना; मजाक ।
सकनेका ठोसका गुण । तनजल-पु० [अ०] नीचे उतरना, अवनति, हास । तन्वंग-वि० [सं०] दुर्बल, सुकुमार शरीरवाला । तनजुली-स्त्री० दे० 'तनजुल'।
तन्वंगी-वि० स्त्री० [सं०] दुबली, नाजुक, सुकुमार तनतनाना-अ० क्रि० झुंझलाना।
अंगोंवाली। तनना-अ० कि० खिंचकर कड़ा होना; फैलना; खड़ा होना तन्वी-वि० स्त्री० [सं०] कृशांगी, सूक्ष्मांगी। स्त्री० पतली, खिंचना, रुष्ट होना।
सुकुमार स्त्री। तनमय-वि० दे० 'तन्मय' ।
तपःकृश-वि० [सं०] तपसे क्षीण । तनय-पु० [सं०] पुत्र, बेटा; कुल ।
तपःपूत-वि० [सं०] जो तपस्या करके पवित्र हो गया है। तनया-स्त्री० [सं०] पुत्री, लड़की।
तपःसाध्य-वि० [सं०] तपसे सिद्ध होनेवाला । तनवाना-स० क्रि० ताननेका काम दूसरेसे कराना । तप-पु० [सं०] तपस्या; ताप, दाह; सूर्य; ग्रीष्म ऋतु; तनहा-वि० [फा०] अकेला । अ० अकेले ।
ज्वर । वि० जलानेवाला; तप्त करनेवाला; कष्टकर । तनहाई-स्त्री० [फा०] अकेलापन; एकांत स्थान । तप(स्)-पु० [सं०] ताप; सूर्य; अग्नि; कष्ट; विषयत्यागतना-पु० [फा०] धड़ । * अ० ओर, तरफ।
पूर्वक कष्टदायक व्रत, नियम, उपासना आदिका आचरण; तनाउ*-पु० दे० 'तनाव'।
भूख-प्यास, शीत-उष्ण आदि सहने की क्रिया; मौन आदि तनाज़ा-पु० [अ०] झगड़ा, लड़ाई ।
व्रत; चांद्रायण, प्राजापत्य आदि प्रायश्चित्त मन, इंद्रियोंको तनाय*-पु० दे० 'तनाव' ।
एकाग्र रखनेकी क्रिया एक लोक । तनाव-पु० तननेका भाव या क्रिया; रस्सी ।
तपकना-अ० क्रि० धड़कना; टपकना; चमकना। तनि, तनिक*-वि० थोड़ा, अल्प; छोटा-'इहाँ हुती मेरी तपती-स्त्री० [सं०] सूर्यकी एक कन्या; ताप्ती नदी। तनिक मडैया'-सू० । अ० जरा।
तपन-पु० [सं०] तपनेकी क्रिया या भाव; ताप, गरमी
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कष्ट देना; सूर्य; भल्लातक वृक्ष; एक नरक; ग्रीष्मः सूर्यकांत | प्रसाद चढ़ानेका रिवाज | मणि; विरहसे उत्पन्न संताप | वि० उष्ण -कर, - दीधिति - पु० सूर्य । -च्छद-पु० सूर्यमुखी फूल । - तनय - पु० यम; शनि; कर्ण; सुग्रीव; शमीवृक्ष । - तनया - स्त्री० यमुना । -मणि-पु० सूर्यकांत मणि । तपनांशु - पु० [सं०] सूर्य; सूर्यरश्मि ।
तपना - अ० क्रि० धूप, आँच आदि से गरम होना; तापमें पड़ा रहना; किसी वस्तुकी प्राप्तिके लिए कष्ट सहना; सूर्यका प्रखर होना; किसीका प्रभुत्व छाना या आतंक फैलना; * तप करना । * स० क्रि० पकाना - 'सूरज जेहि कै तपै रसोई' - प० ।
तपनि * - स्त्री० ताप, जलन ।
तपनी + - स्त्री० कौड़ा, अलाव ।
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तपवाना - स० क्रि० तप्त कराना । तपश्चरण- पु०, तपश्चर्या - स्त्री० [सं०] तपस्या । तपसा - स्त्री० ताप्ती नदीका दूसरा नाम । तपसाली - वि० जिसने बहुत तपस्या की हो । तपसी -* पु० दे० 'तपस्वी' । स्त्री० एक मछली । तपस्या-स्त्री० [सं०] तप; (ला० ) किसी अभीष्टकी सिद्धिके लिए उठाया जानेवाला कष्ट । तपस्वी ( स्विन् ) - वि० [सं०] तपस्या करनेवाला; कष्ट उठानेवाला; दीन दुखिया । पु० नारदः संन्यासी । तपस्विनी - स्त्री० [सं०] तपस्या करनेवाली स्त्री; जटामासी । तपा* - पु० तपस्वी । वि० तपश्चर्या में संलग्न | तपाक - पु० [फा०] प्रेम; उत्साह |
तपाना - स० क्रि० तप्त करना; कष्ट पहुँचाना ।
तपावंत * - पु० तपस्वी ।
तपाव-पु० तपनेकी क्रिया या भाव, गरम होना । तपित - वि० [सं०] गरम किया हुआ; शुद्ध किया हुआ (सोना) ।
तपिया* - पु० तप करनेवाला ।
तपिश - स्त्री० [फा०] गरमी, तपन ।
तपी - पु० तपस्वी, साधु ।
तपेदिक - स्त्री० [फा०] जीर्ण ज्वर, यक्ष्मा |
तपेला * - पु० भट्टी |
तपोधन- वि० [सं०] तप ही जिसका धन हो, तपस्वी । तपोनिधि - वि० [सं०] तपस्वी । पु० धर्मप्राण व्यक्ति । तपोनिष्ठ - वि० [सं०] तपमें जिसकी निष्ठा हो । तपोबल - पु० [सं०] तप द्वारा प्राप्त शक्ति । तपोभंग - पु० [सं०] तपश्चर्याका भंग होना । तपोभूमि- स्त्री० [सं०] तप करनेका स्थान | तपोमय - वि० [सं०] तपवाला; तपस्या करनेवाला । तपोमूर्ति - पु० [सं०] परमेश्वर; तपस्वी । तपोलोक - ५० [सं०] ऊपर के सात लोकों में छठा लोक । तपोवन - पु० [सं०] तपस्वी लोगों के रहनेका वन; तपस्या करने योग्य वन ।
तपोवृद्ध - वि० [सं०] जिसे तपस्या के कारण श्रेष्ठता प्राप्त हो
तपनांशु-तग़ा
तप्त - वि० [सं०] तपाया हुआ; गरम; दुःखित; जिसने तपस्या की हैं; पिघला हुआ; ऋद्ध ।
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तप्प* - पु० तप ।
तफ़रीह - स्त्री० [अ०] मनबहलाव; दिल्लगी; ताजगी । तक़रीहनू - अ० [अ०] मनबद्दलावके रूपमें; हँसीसे । तफ़सील - स्त्री० [अ०] अलग करना; ब्योरा । तलावत- पु० [अ०] अंतर, फर्क; फासला ।
तब - अ० उस समय; बाद में; इस वजहसे । -भी-अ० फिर भी, तिसपर भी ।
तबक- पु० [अ०] तह; परत; सोने-चाँदी आदिका वरक; बड़ी रकाबी । - गर-पु० सोने-चाँदी आदिके पत्तर बनानेवाला ।
तबका - पु० [अ०] तख्ता; मंजिल; तह; खंड; लोक; आदमियोंका समूह; जमीनका छोटासा टुकड़ा; पद, दरजा । तब किया - पु० दे० ' तबक़गर' । वि० जिसमें परत हो । तबदील - स्त्री० [अ०] बदलना, एक स्थानसे दूसरे स्थानपर
जाना ।
तबदीली - स्त्री० कर्मचारीका एक जगहसे दूसरी जगह भेजा जाना; परिवर्तन |
तबर - पु० [फा०] कुल्हाड़ी; एक शस्त्र ।
तबर्रा - पु० [अ०] किसीके प्रति घृणा प्रकट करना; धिक्कारना; शियोंका अलीसे पहलेके तीन खलीफाओंका कोसना । तबल - पु० [अ०] बड़ा ढोल नगाड़ा |
तबलची - पु० तबला बजानेवाला ।
तबला - पु० ताल देनेका चमड़ेसे मढ़ा एक बाजा । मु०खनकना, ठनकना - तबला वजना; नाच-रंग, गानाबजाना होना ।
तबलिया - पु० तबला बजानेवाला, तबलची । तबलीग़- स्त्री० [अ०] धर्मप्रचार |
तबाह - वि० [फा०] बरबाद, नष्ट |
तबाही - स्त्री० [फा०] नाश, बरबादी |
तबीअत तबीयत - स्त्री० [अ०] जी, मन, दिल; समझ । -दार - वि० भावुक, सहृदय । मु० - आना-आसक्त होना । -फिरना - जी हटना ।
तबीब- पु० [अ०] चिकित्सक, हकीम |
तबेला - पु० अस्तबल, घुड़साल - 'रारि सी मची है त्रिपुरारिके तबेला में - भूधर ।
तब्बर* - पु० दे० ' तबर' |
तभी - अ० उसी समय; इसीलिए ।
तमंचा - पु० [फा०] पिस्तौल |
तमःप्रवेश- पु० [सं०] अँधेरे में टटोलना; किंकर्तव्यविमूढ़ता । तम - पु० [सं०] अंधकार; पैरका अगला भाग; तमोगुणः
राहु |
तम ( स् ) - पु० [सं०] अंधकार; भ्रम; सत्त्वादि तीनों गुणोंमें से एक; अविद्या के पाँच स्वरूपों में से एक (सांख्य०) । तमक - पु० आवेश; उद्व ेग; रोष; झुंझलाहट; जोश । तमकना - अ० क्रि० आवेशमें आना; रुष्ट होना; क्रोधका आधिक्य दिखलाना |
तपोव्रत - पु० [सं०] तपस्या-संबंधी व्रत |
तपौनी - स्त्री० मुसाफिरों को लूट चुकनेपर ठगोंका देवीको तमग़ा पु० [तु०] विद्यार्थी, सिपाही आदिको पुरस्कार के
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तमचर-तरणि
३२० रूपमें दिया जानेवाला सोने, चाँदी आदिका खंड जो प्रायः वस्त्र; हिलना-डोलना; इधर-उधर घूमना; ग्रंथका खंड; सिक्केकी शकलका होता है, पदक ।
स्वरोंका आरोह-अवरोह । -दैर्ध्य-पु० (वेव्ह लेंग्थ) तमचर-पु० निशाचर; उल्लू ।
आकाशमें प्रसारित भिन्न-भिन्न विद्यत्-चुंबकीय लहरोंकी तमचुर तमचूर, तमचोर*-पु० कुक्कुट, मुरगा। लंबाई ( रेडियोके विभिन्न केंद्रोंसे प्रायः अलग-अलग
अ० क्रि० क्रोध या धूपके कारण चेहरेका लाल | तरंग दैर्ध्यपर वार्ता प्रसारित की जाती है, इसीसे उसके हो जाना।
सुनने-समझने में बाधा नहीं पड़ने पाती)। तमन्ना-स्त्री० [अ०] इच्छा, ख्वाहिश ।
-माली(लिन्)-पु० समुद्र । तमयी*-स्त्री० रात।
तरंगवती-स्त्री० [सं०] नदी। तमस-पु० [सं०] अंधकार; कुआँ । वि० काले रंगका। तरंगायित-स्त्री० [सं०] तरंगयुक्त । * स्त्री० तमसा नदी, टौंस ।
तरंगिणी-स्त्री० [सं०] नदी। -नाथ-पु० समुद्र। तमसा-स्त्री० [सं०] एक नदी, टोस ।
तरंगित-वि० [सं०] लहराता हुआ; ऊपरसे बहता हुआ तमस्सुक-पु० [अ०] ऋणपत्र ।
कंपायमान । तमा-स्त्री० [सं०] रात्रि; * इच्छा।
तरंगी(गिन)-वि० [सं०] तरंगयुक्त; मौजी; अस्थिर । तमाकू-पु० दे० 'तंबाकू'।
| तरंबुज-पु० [सं०] तरबूज । तमाचा-पु० थप्पड़, झापड़ ।
तर-[सं०] एक प्रत्यय जो गुणाधिक्य प्रकट करनेके लिए तमादी-स्त्री० [अ०] लेन-देन या मुकदमेकी सुनवाई | लगाया जाता है (जैसे-स्थूलतर,-व्या०)। आदिकी अवधिका बीत जाना।
तर*-अ० नीचे, तले । -छटा-स्त्री० तलछट । तमाम-वि० [अ०] कुल, सारा समाप्त, खतम । तर-वि० [फा०] आर्द्रः अत्यन्त सिक्ता ठंडा; मालदार । तमामी-स्त्री० समाप्ति; एक जरीदार कपड़ा।
-बतर-वि० सराबोर । -च ताज़ा-वि० तुरंतका। तमारि-पु० [सं०] सूर्य । * स्त्री० तँवार, घुमटा, चक्कर । तरई*-स्त्री० तारा, नक्षत्र । तमाल-पु० [सं०] एक सदाबहार वृक्ष; एक प्रकारकी तरक*-पु० सोच-विचार, ऊहापोह चुटीली बात चातुरीतलवार; वरुण वृक्ष काला खैर, तेजपात ।
पूर्ण उक्ति । स्त्री० दे० 'तड़क' । तमाशबीन-पु० तमाशा देखनेवाला; ऐयाश ।
तरकना*-अ० कि० तर्क करना; अंदाजा लगाना; उछतमाशा-पु० [अ०] मनोरंजक दृश्य; अद्भुत बात । लना झपटना; दे० 'तड़कना' । तमाशाई-पु० [अ०] दे० 'तमाशबीन'।
तरकश-पु० [फा०] तीर रखनेका चोंगा, तूणीर, निषंग। तमि, तमी-स्त्री० [सं०] रात्रि, मोह, मूर्छा; हल्दी । तरकस*-पु० दे० 'तरकश'। (तमी)चर-पु० राक्षस, निशाचर । -नाथ-पु० तरकसी*-स्त्री० छोटा तरकश । चंद्रमा। -पति-पु० चंद्रमा ।
तरका-पु० उत्तराधिकारीको मिलनेवाली संपत्ति । तमिस्र-पु० [सं०] अंधकार; अज्ञान; मोह; क्रोध । तरकारी-स्त्री० वह पौधा जिसके पत्ते, फूल, फल, कंद तमित्रा-स्त्री० [सं०] अँधेरी रात: निविड़ अंधकार । आदि पकाकर भोज्य वस्तुके साथ खानेके काम आते हैं, तमीज़-स्त्री० [अ०] अच्छे-बुरेकी पहचान, विवेक; अदब । सब्जी, शाक। तमूरा-पु० दे० 'तंबूरा'।
तरकी-स्त्री० फूल की तरहका कानका एक गहना । तमोगुण-पु० [सं०] प्रकृतिका एक गुण जो अज्ञान, आलस्य, तरकीब-स्त्री० [अ०] मिलावट; उपाय ढंग, तरीका। क्रोध, भ्रम आदिका कारण है।
तरकुला-पु०, तरकुली*-स्त्री० कानका एक गहना, तमोगुणी(णिन)-वि० [सं०] तामस वृत्तिवाला।
तरकी। तमोघ्न-पु० [सं०] अंधकार या अज्ञानको हरनेवाला, सूर्य तरक्की-स्त्री० [अ०] उन्नति, बढ़ती; पद-वृद्धि ।
अग्नि, चंद्रमा, विष्णु, शिव; वि०जिससे अँधेरा दर हो।। तरखा-पु० पानीका तेज बहाव । तमोज्योति-पु० [सं०] जुगनू ।
तरखान-पु० बढ़ई। तमोभिद्-पु० [सं०] जुगनू ।
तरछाना-*अ० क्रि० आँखसे इशारा करना; + मैलका तमोमणि-पु० [सं०] जुगनू, गोमेदक मणि ।
नीचे बैठ जाना। तमोमय-वि० [सं०] तमोगुणसे भरा हुआ; ज्ञानहीन; तरज-पु० दे० 'तर्ज' । अंधकारपूर्ण ।
तरजना-अ० क्रि० डाँटकर बोलना; घुड़कना । तमोर, तमोल*-पु० तांबूल, पान ।
तरजनी-स्त्री० अँगूठेके पासकी उँगली, तर्जनी भय, डर । तमोलिन-स्त्री० बरइन ।
तरजीला*-वि० क्रोधयुक्ता उग्र। तमोली-पु० बरई, पान बेचनेवाला।
तरजीह-स्त्री० [अ०] प्रधानता बढ़-चढ़कर होना, महत्त्वमें तमोहर-वि० [सं०] अंधकार दूर करनेवाला । पु० सूर्य। अधिक होना। तय-वि० [अ०] पूरा किया हुआ, समाप्त निश्चित, निर्णीत। तरजुमा-पु० [अ०] अनुवाद, उल्था। तयना*-अ० क्रि० तपना, गरम होना; दुःखी होना। | तरजीहाँ*-वि० क्रुद्ध उग्र । तयार*-वि० दे० 'तैयार'।
| तरण-पु० [सं०] नदी आदि पार करनेकी क्रिया, तरना । तरंग-स्त्री० [सं०] (पानीकी) लहर, मौज; उमंग; उछाल; तरणि-पु० [सं०] सूर्य किरण । स्त्री० छोटी नौका ।
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३२१
तरणी-तरुन -जा,-तनया, -तनूजा, -सुता-स्त्री० यमुना । तरसाना-स० कि. किसी वस्तुके लिए किसीको व्याकुल -तनय, -सुत-पु० यम, शनि, कर्ण, सुग्रीव आदि । करना या ललचाना। तरणी-स्त्री० [सं०] बेड़ा, नौका; घीकुआर ।
तरसौहाँ*-वि० तरसनेवाला । तरतराता-वि० (पकवान) जिससे घी चूता हो।
तरह-स्त्री० [अ०] प्रकार, भाँति, ढंग; बनावट; स्थिति । तरतराना*-अ० क्रि० दे० 'तड़तड़ाना' ।
-दार-वि० अच्छे ढंग या तर्जका सजीला । मु०-देना तरतीब-स्त्री० [अ०] क्रम, सिलसिला।
-बचा जाना; जान-बूझकर उपेक्षा करना। तरदीद-स्त्री० [अ०] रद करना, खंडन ।
| तरहटी-स्त्री० दे० 'तलहटी'। तरदुद--पु० [अ०] झंझट; परेशानी; चिंता, फिक्र, | तरहर, तरहारि, तरहुँड*-अ० नीचे, तले । अंदेशा।
तरहेल*-वि० पराजित, परास्त; वशीभूत । तरन*-पु० दे० 'तरण'; तरौना। -तारन-पु० उद्धार तराई-स्त्री० पहाड़के आस-पासकी निम्न भूमि जहाँ सदा करनेवाला; उद्धार ।
तरी बनी रहती है; * तारा। तरना-अ० क्रि० पार होना; तैरना; भवबंधनसे छुटकारा तराजू-पु० तौलनेका एक यंत्र जिसमें डाँडीके दोनों पाना । स० क्रि० पार करना; * दे० 'तलना' ।
सिरोंसे तन्नियों द्वारा दो पलड़े बँधे रहते हैं। द० 'तराण' । स्त्री० दे० 'तरणी'। -जा, | तराटक-पु० दे० 'त्राटक' । -तनूजा-स्त्री० दे० 'तरणिजा'।
तराना-पु० [फा०] एक प्रकारका गाना। तरनि*-पु०, स्त्री० दे० 'तरणि ।
तराप*-स्त्री० तोपकी आवाज । तरप*-स्त्री० दे० 'तड़प'।
तरापा-पु० हाहाकार । तरपत*-पु० सुभीता।
तराबोर-वि० सराबोर, तर बतर । तरपन-पु० दे० 'तर्पण'।
तराभर*-स्त्री० 'तडातड़की आवाज; तेजीसे कोई काम तरपना-अ० क्रि० दे० 'तड़पना'।
करना। तरपर-अ० नीचे-ऊपर ।
तरायला*-वि० चंचल तेज। तरपरिया-वि० नीचे-ऊपरका क्रममें पहले और पीछेका। तरारा-पु० लगातार गिरनेवाली जलकी धारा; छलाँग । तरपीला*-वि० तड़पदार, चमकीला ।
तरावट-स्त्री० तरी शरीरमें ठंढक लानेवाली चीजें । तरफ-स्त्री० [अ०] और बगल । -दार-वि० पक्षपाती, तराश-स्त्री० [फा०] तराशनेकी क्रिया; काट, बनावट तर्ज। सहायक । -दारी-स्त्री० पक्षपात ।
-खराश-स्त्री०-तर्ज-बनावट, काट-छाँट । तरफराना*-अ० क्रि० दे० 'तड़फड़ाना'।
तराशना-सक्रि० काटन।, फाँक-फाँक करना । तरबूज-पु० [फा०] बलुई जमीनपर फैलनेवाली एक बेल-तरास-पु० दे० 'त्रास'।। का फल जो गोल आकारका होता है ।
तरासना*-स० कि० त्रस्त करना। तरबूजा-पु० ताजा फल ।
तराही*-अ० नीचे। तरबूजिया-वि० तरबूजेके रंगका, गहरा हरा।
तरिणी-स्त्री० [सं०] दे० तरणी' । तरबोना-स० क्रि० तराबोर करना, भिगोना। अ० क्रि० तरिता*-स्त्री० दे० 'तडित्' । . तराबोर होना।
तरियाना -स० क्रि० नीचे करना; ढाँकना । अ० क्रि० तरभर*-स्त्री० :'तडातड़की आवाज; खलबली-'बजी तले बैठना, नीचे जमना । बँदूई तरभर माची'-छत्र।
तरिवन-पु० कर्णफूल, तरकी। तरमीम-स्त्री० [अ०] दुरुस्ती, संशोधन, हेर-फेर । | तरिवर*-पु० दे० 'तरुवर'। तरराना*-स० क्रि० ऐंठना ।
तरिहत*-अ० नीचे। तरल-वि० [सं०] द्रव; हिलता-डुलता; चपल; तीव्रगामी; तरी-स्त्री० तरावट, गीलापन; कछार; तराई; * तरकी क्षणभंगुर अस्थिर; चमकीला ।
जूतेका तला; जूती; [सं०] नौका; गदा; धुआँ । तरलाई-स्त्री० तरलता, द्रबत्व ।
तरीका-पु० [अ०] रीति, ढंग; उपाय । तरलायित-वि० [सं०] कॅपाया या हिलाया हुआ। तरु-पु० [सं०] वृक्ष, पेड़। -कोटर-पु० वृक्षका खोखला तरलित-वि० [सं०] हिलता हुआ, अस्थिर; प्रवाहशील । भाग। -बाही*-स्त्री० शाखा, डाल। -मृग-पु० तरवन-पु० कानका एक आभूषण, तरकी।
बंदर । -वर-पु० उत्तम वृक्ष । तरवर*-पु० उत्तम वृक्ष ।
तरुण-वि० [सं०] सोलह वर्षसे ऊपरकी अवस्थावाला, तरवरिया*-पु० तलवार चलानेवाला।
युवा; चढ़ती जवानीवाला; जो पूर्ण विकासको न प्राप्त तरवरिहा -पु० दे० 'तरवरिया'
हुआ हो । पु० युवा पुरुष । -ज्वर-पु० वह ज्वर जो तरवार*-स्त्री० दे० 'तलवार' ।
एक सप्ताहसे कमका हो। तरवारि-स्त्री० [सं०] तलवार ।
तरुणाई-स्त्री० युवावस्था । तरस-पु० दया, रहम।
तरुणिमा(मन)-स्त्री० [सं०] तारुण्य, जवानी। तरसना-अ० क्रि०किसी वस्तुको पानेके लिए बेचैन रहना। तरुणी-स्त्री० [सं०] युवती; दंती वृक्ष; एक पुष्प । * स० क्रि० तराशना, काटना।
| तरुन*-वि० दे० 'तरुण'।
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तरुनई-तलेटी तरुन(ना)ई-स्त्री०, तरुनापन, तरुनापा-पु० तारुण्य। -कर-पु० तालाब आदिपर लगनेवाला कर । -घरातरदा-पु० पानीमें उतरानेवाली वह वस्तु जिसके सहारे पु० [हिं०] तहखाना । -छट-स्त्री० [हिं०] पानी आदि पार हुआ जा सके।
द्रव पदार्थों में नीचे बैठनेवाला मैल । -त्राण-पु० युद्ध में तरी-अ० नीचे, तले।
हथेलीकी रक्षाके लिए पहना जानेवाला चमड़ेका दस्ता। तरेट-पु० पेड़ ।
-मल-पु० दे० 'तलछट' । तरेटी-स्त्रो० तलहटी; पहाड़के नीचेकी भूमि ।
तलक*- अ० तक। तरेरना*-स० क्रि० तिरछे देखना; बरजने या डाँट बतानेके तलना-स० क्रि० घी या तेलमें पकाना। लिए (नेत्र) तिरछे कर देखना।
तलप-पु० दे० 'तल्प' । तरैया-पु० तरनेवाला; तारनेवाला । स्त्री० तारा । तलपना*-अ० क्रि० दे० 'तलफना'। तरोई-स्त्री० दे० 'तुरई'।
| तलफ-वि० [अ०] नष्ट, बरबाद, तबाह । * स्त्री० कष्ट । तरोवर*-पु० दे० 'तरुवर'।
तलफना-अ० क्रि० पीड़ासे व्याकुल होना, छटपटाना। तरीछ-स्त्री० तलछट ।
तलब-स्त्री० [अ०] माँग इच्छा; आवश्यकता चाहा बुलावा; तरौटा-पु० चक्कीका नीचेवाला पत्थर ।
वेतन । -गार-वि० माँगने या चाहनेवाला । -दारतराँस-पु० तट, किनारा ।
वि० दे० 'तलबगार'। -नामा-पु० समन, अदालतमें तरौना-पु० कानका एक गहना, तरकी, ताटंक ।
हाजिर होनेकी लिखित आशा । मु०-करना-बुलाना। तर्क-पु० [सं०] ऊहा, जिसके द्वारा कारणका उपपादन तलबाना-पु० [फा०] अदालतमें जमा किया जानेवाला करते हुए किसी वस्तुके अज्ञात तत्त्वको जाना जाय; न्याय- __गवाहोंको तलब करनेका खर्च; समयपर मालगुजारी जमा शास्त्र युक्ति, दलील; विवेचन; इच्छा। -वितर्क-पु० न करनेपर लगनेवाला दंड, तावान । ऊहापोह । -विद्या-स्त्री० न्यायशास्त्र । -शास्त्र-पु० तलबी-स्त्री० [फा०] बुलाहट; माँग । वह शास्त्र जिसमें तर्क के नियम, सिद्धांत आदि निरूपित | तलबेली-स्त्री० बेचैनी; तीव्र लालप्ता।
हो । गौतम और कणाद इसके प्रधान आचार्य माने जाते हैं। तलमलाना -अ० क्रि० दे० 'तिलमिलाना' । तर्कक-पु० [सं०] तर्क करनेवाला, तर्कशास्त्री; वादी; पूछ- | तलवा-पु० खड़े होने या चलने में पृथ्वीपर पड़नेवाला पैर ताछ करनेवाला।
का नीचेका भाग । मु० तलवे चाटना-बहुत अधिक तर्कण-पु०, तर्कणा-स्त्री० [सं०] तर्क करनेकी क्रिया, खुशामद करना ।-सहलामा-खुशामद करना । तलवोंविचार ।
से आग लगना-बहुत अधिक क्रोध चढ़ना। तर्कना-स्त्री०विचार युक्ति। * अ० क्रि० तर्क करना। तलवार-स्त्री० एक प्रसिद्ध हथियार, खड्ग । -का खेततर्कश-पु० दे० 'तरकश'।
लड़ाईका मैदान । -की आँच-तलवारके वारका मुकातर्कसी-स्त्री० दे० 'तरकसी'।
बला । मु०-के घाट उतारना-तलवारसे मार डालना। तर्काभास-पु० [सं०] गलत तर्क, गलत परिणाम निका- -खींच छेना-लड़नेके लिए म्यानसे तलवार बाहर लना; ऐसा तर्क जो ऊपरसे सही जान पड़े, पर दरअसल निकाल लेना।। गलत हो, हेत्वाभास।
तलहटी-स्त्री० पहाड़के नीचेकी भूमि । तर्की (किंन)-पु० [सं०] तर्क करनेवाला; मीमांसक। तला-पु० पेंदा। तक्य-वि० [सं०] विचारणीय, चिंतनीय ।
तलाई-स्त्री० छोटा ताल । तज़-पु० [अ०] रीति, शैली, ढंग; बनावट ।
तलाक-पु० [अ०] वैधानिक रीतिसे विवाह-संबंधकाविच्छेद । तर्जन-पु० [सं०] धमकाना; डाँटना; ढराना; क्रोध । तलातल-पु० [सं०] सात अधोलोकोंमेंसे एक । तर्जना-स्त्री० [सं०] दे० तर्जन । * स० क्रि० डॉटना, डप- | तलाबेली-स्त्री० दे० 'तलबेली'। टना । * अ० क्रि० क्रोधमें तड़पना।
तलामली*-स्त्री० दे० 'तलबेली' । तर्जनी-स्त्री० [सं०] अँगूठेके पासकी उँगली ।-मुद्रा-स्त्री० तलाव*-पु० तालाब। तांत्रिक उपासनामें हाथकी एक मुद्रा ।
तलाश-स्त्री० [तु.] खोज; चाह । तर्जित-वि० [सं०] अपमानित; जो फटकारा गया हो। तलाशना -स० क्रि० खोजना, हूँढना। तर्जुमा-पु० [अ०] दे० 'तरजुमा'।
तलाशी-स्त्री० [फा०] छिपायी या गुम की हुई वस्तुको ऐसी तर्पण-पु० [सं०] तृप्त करनेकी क्रिया; देवताओं, ऋषियों | जगह खोजनेकी क्रिया जहाँ उसके छिपाकर रखे होनेका
और पितरोंको तिल या तंडुलमिश्रित जल देनेकी क्रिया । संदेह हो । मु०-देना-तलाशी लेनेवालेको घर-बार तर्पित-वि० [सं०] तृप्त किया हुआ।
आदि हूँढ़ने देना । -लेना-जिसपर किसी वस्तु के गुम तस्योना*-पु० दे० 'तरौना।
करने या छिपानेका संदेह हो उसके घर-बार आदिमें तल-पु० [सं०] निचला भाग; वह भाग जिसके बल कोई / उसकी खोज करना। वस्तु स्थित हो; पेंदा, पेटा; सतह; (सरफेस) किसी वस्तुका तलित-वि० [सं०] तेल या धीमें भूना हुआ; देवाला ऊपरी पृष्ठ जिसमें लंबाई और चौड़ाई हो, पर मोटाई न हो; तली-स्त्री० पेंदी; तलछट हथेली; तलवा। जंगल; घरकी छत थप्पड़, हथेली; तलवा; तलवार आदिकी तले-अ० नीचे। -ऊपर-एकके ऊपर दूसरा मूठ; गड्ढा, माँदा सात पातालोंमेंसे पहला; तालाब तलेटी-स्त्री० पेंदी तलहटी।
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तलैया-तांबूलिक तलैया-स्त्री० छोटा ताल ।
वि० बिलकुल नया ( कपड़ा आदि), जिसकी तह न तलीछ-स्त्री० दे० 'तलछट' ।
खुली हो। -पेच-पु० पगड़ीके नीचेका कपड़ा।-बंदतल्प-पु० [सं०] शय्या, सेज, पलंग; अटारी;(ला०) पत्नी ।। पु० लुंगी जो प्रायः मुसलमान पहनते हैं। -बाज़ारी-कीट-पु० खटमल ।
स्त्री० वह बँधी हुई रकम जो जमींदार या ठेकेदार बाजारतल्पक-पु० [सं०] पलंग बिछानेवाला नौकर ।
में सौंदा बेचनेवालोंसे वसूल करता है। -मत-पु० तल्ला-पु० जूतेका वह भाग जो पैरके नीचे रहता है। लुंगी । तहेदिलसे-सच्चे दिलसे। (मकानकी) मंजिल; * सामीप्य ।
तहकीकात-स्त्री० [अ०] किसी मामले या घटनाके विषय में तल्लीन-वि० [सं०] उसमें मग्न, लगा हुआ।
सरकारकी ओरसे होनेवाली जाँच-पड़ताल । तव-सर्व० [सं०] तुम्हारा ।
तहजीब-स्त्री० [अ०] सभ्यता, शिष्टता । तवज्जुह-स्त्री० [अ०] किसीकी ओर रुख करना, ध्यान देना। तहना*-अ० क्रि० तपना; क्रुद्ध होना। तवना-अ० क्रि० दे० 'तयना'।
तहरी-पु० [अ०] एक प्रकारकी खिचड़ी। तवनी-स्त्री. छोटा तवा ।
तहरीक-स्त्री० [अ०] गति; उत्तेजन उसकाना, बढ़ावादेना। तवा-पु० रोटी सेंकनेका एक गोल छिछला पात्र चिलमपर | तहरीर-स्त्री० [अ०] लिखावट, लिखाई, लिखनेका ढंग रखकर तंबाकू पीनेका गोल ठीकरा । तवेकी बूंद | लिखित प्रमाण; लिखनेकी उजरत । आवश्यकतासे बहुत कम; क्षणखायी । मु०-सिरसे | तहरीरी-वि० [अ०] लिपिबद्ध । बाँधना-सिरपर चोट सहनेके लिए प्रस्तुत होना । तहलका-पु० [अ०] खलबली, हलचल । तवाज़ा-स्त्री० [अ०] आदर, सम्मान; दावत ।
तहवील-स्त्री० [अ०] अमानत; किसी मदका रुपया जो तवाना-सक्रि० गरम कराना । वि० [फा०] मोटा-ताजा। किसीके पास जमा हो। -दार-पु० वह जिसके पास तवायफ-स्त्री० [अ०] रंडी, बेश्या ।
किसी मदका रुपया जमा रहता हो। तवारा*-पु० जलन, ताप ।।
तहसनहस-वि० बरबाद, सर्वथा नष्ट । तवारीख-स्त्री० [अ०] इतिहास ।
तहसील-स्त्री० [अ०] वसूल करनेकी क्रिया; मालगुजारी तवालत-स्त्री० [अ०] लंबाई; विस्तार अधिकता; झमेला। बसूल करना; मालगुजारी जो किसी विशेष प्रदेशसे उगाही तवी-स्त्री० छोटा तवा । दे० 'तई'।
जाती है। जिलेका वह भाग जो तहसीलदारके अधीन रहता तशखीस-स्त्री० [अ०] निश्चय रोगका निदान; लगान है। तहसीलदारकी कचहरी। -दार-पु० सरकारी मालनिर्धारित करनेकी क्रिय।।
गुजारी वसूल करनेवाला, माल के मुकदमेका एक अफसर तशरीफ-स्त्री० [अ०] इज्जत करना; आदर, सम्मान; मालगुजारी वसूल करनेवाला । -दारी-स्त्री० तहसीलबुजुर्गा । मु०-रखना-बिराजना, आसनस्थ होना । - दारका पद तहसीलदारका काम । लाना-पधारना । -ले जाना-चला जाना।
तहसीलना-स० क्रि० मालगुजारी आदि वसूल करना। तश्त-पु० [फा०] थाली, परात जैसा छिछला बरतन । तहाँ-अ० वहाँ। तश्तरी-स्त्री० [फा०] छोटी रकाबी।
तहाना-स० क्रि० तह लगाना, लपेटना । तष्टा(ष्ट)-पु० [सं०] बढ़ई, रथकार; विश्वकर्मा । तहिया*-अ० उस दिन, उस समय । तष्टी- स्त्री० एक तरहकी रकाबी।
तहियाना -स० क्रि० तह करना । तस*-वि० वैसा । अ० वैसे ही।
ताँई-अ० तक; वास्ते, निमित्त के प्रति; पास । तसकीन-स्त्री० [अ०] सांत्वना, तसल्ली ।
तांगा-पु० पीछेकी ओर लटकी हुई एक गाड़ी जिसमें एक तसदीक़-स्त्री० [अ०] प्रमाणित करना, पुष्टि, समर्थन। घोड़ा जोता जाता है। तसदीह*-स्त्री० पीड़ा, कष्ट ।
तांडव-पु० [सं०] पुरुषोंका नृत्य; शिवका प्रसिद्ध नृत्य । तसद्दक़-पु० [अ०] कुर्बानी भक्ति, दान, खैरात । -प्रिय-पु० शिव । तसबी-स्त्री० दे० 'तसबीह'।
तांत-स्त्री० भेड़-बकरी आदिके चमड़े या नसोंको बटकर तसबीह-स्त्री० [अ०] माला, सुमिरनी ।
बनायी हुई धागे जैसी वस्तु, तंत्री; धनुषको डोरी। तसमा-पु० चमड़े या सूतकी चौड़ी पट्टी जो किसी वस्तुको | ताँता-पु० अटूट पाँत; कतार । मु०-लगना-तार न कसनेके काम आती है।
टूटना, एकके बाद एक इस तरह आना कि पंक्ति भंग तसला-पु० कटोरेकी शकलका कुछ बड़ा भौर गहरा बरतन । | न हो। तसली-स्त्री० छोटा तसला ।
ताँतिया-वि० ताँत जैसा दुबला-पतला । तसलीम-स्त्री० [अ०] अभिवादन; अंगीकार करनेकी क्रिया। तांत्रिक-पु० [सं०] तंत्रशास्त्रका ज्ञाता, तंत्रका प्रयोग तसल्ली-स्त्री० [अ०] ढाढ़स, दिलासा, सांत्वना ।
करनेवाला । वि० तंत्र-संबंधी। तसवीर-स्त्री० [अ०] चित्र ।
ताँबा-पु. लाल रंगकी एक प्रसिद्ध धातु । तस्कर-पु० [सं०] चोर । -वृत्ति-पु० पाकेटमार; चोर। तांबूल-पु० [सं०] पान; पानका बीड़ा। -वल्ली-स्त्री० तह, तह वा*-अ० वहाँ।
पानकी बेल, नागवल्ली। -वाहक-पु० पान खिलानेतह-स्त्री० [फा०] परत; दे० 'तल' । -खाना-पु० वाला और साथ-साथ पान लेकर चलनेवाला । जमीनके नीचे बना हुआ कमरा या घर ।-जर्द,-दर्ज- तांबूलिक-पु० [सं०] पान बेचनेवाला, तमोली ।
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ताव मोधःपु० मुंशी, न
ताज-पु.
तांबूली(लिन्)-तादृश
३२४ तांबूली(लिन्)-पु० [सं०] पान बनाकर देनेवाला; पान | स्थानपर दफनाया जाता है। बेचनेवाला।
ताज़ियाना-पु० [फा०] चाबुक, कोड़ा। ताँवरा-पु० दे० 'ताँवरी'।
ताज़ी-वि० [फा०] अरबी, अरबका। पु० अरबी घोड़ा; तावरी*-स्त्री० झाँई, चक्कर, मूर्छा; जूड़ी; ज्वर । शिकारी कुत्ता । स्त्री० अरबी भाषा । तासना*-स० क्रि० धमकाना; डराना डाँटना; तंग करना। ताजीम-स्त्री० [अ०] दूसरेको बड़ा समझना; बड़ोंके प्रति ता-प्र० [सं०] एक भाववाचक प्रत्यय । अ० [फा०] तक आदर-भाव प्रदर्शित करना। * तो। * सर्व०, वि० उस ।
ताज़ीमी सरदार-पु० [फा०] वह सरदार जिसकी ताजीम ताई *-अ० तक, पर्यत ।
बादशाह भी करे। ताई-स्त्री० जेठी चाची; हलका ज्वर; जलेबी आदि बनाने ताज़ीर-स्त्री० [अ०] दंड, सजा। की छिछली कड़ाही।
ताज़ीरात-स्त्री० [अ०] 'ताजीर'का बहु०।-हिंद-स्त्री० ताईद-स्त्री० [अ०] समर्थन, पुष्टि । पु० मुंशी, नायब । भारतमें प्रयोगमें आनेवाले फौजदारी कानूनोंका संग्रह, ताउ*-पु० ताप, तावक्रोध; आवेश ।
भारतीय दंडविधान । ताऊ-पु० पिताका बड़ा भाई(बछियाके ताऊ-महामूर्ख)। ताज़ीरी-वि० [अ०] दंडात्मक; दंडरूपमें तैनात या लगाया ताउन-पु० [अ०] प्लेग।
हुआ (-पुलिस, कर आदि)। ताऊस-पु० [अ०] मोर; सितार जैसा एक बाजा जिसपर ताज्जुब-पु० दे० 'तअज्जुब' । मोरकी शकल बनी होती है।
ताटक-पु० [सं०] कानका एक आभूषण; एक इंद। ताक-स्त्री० ताकनेकी क्रिया; अचल दृष्टि; घात; खोज, ताटस्थ्य-पु० [सं०] तटस्थता, निरपेक्षता, उदासीनता। टोह । -झाक-स्त्री० किसीकी प्रतीक्षा या खोजमें रह-ताड़-पु. एक लंना वृक्ष जिसमें शाखाएँ नहीं होती। रहकर ताकने या झाँकनेको क्रिया। मु०-में रहना- ताडका-स्त्री० [सं०] एक राक्षसी जिसे रामने मारा था। मौका देखते रहना । -लगाना-घातमें रहना।
ताडकेय-पु० [सं०] ताड़काका पुत्र, मारीच । ताक्र-पु० [अ०] ताखा, आला। मु०-पर धरना- ताडन-पु० [सं०] आघात; मार; फटकार, अनुशासन । पर रखना-काममें न लाना।
ताडना-स्त्री० [सं०] मार; आधात; मारने-पीटनेकी क्रिया; ताकत-स्त्री० [अ०] बल, शक्ति। -वर-वि० बलवान् । डाँट-डपट ।। ताकना-स० क्रि० देखना; स्थिर दृष्टिसे देखना; नजरताड़ना-सक्रि० भाँपनाजान लेना, समझ लेना; मारना; रखना; चाहना; निश्चय करना: ताड़ लेना।
सजा देना; कष्ट देना; दुर्वचन कहना। ताकि-अ० [फा०] इसलिए कि, जिसमें, जिससे । ताडनीय-वि० [सं०] दंडनीय । ताकीद-स्त्री० [अ०] किसी कार्यके लिए बार-बार चेताने-ताडित-वि० [सं०] जिसपर मार पड़ी हो; जिसे दंड दिया की क्रिया।
गया हो। ताखा, ताखा-पु० आला, ताक ।
ताड़ी-स्त्री० ताड़के वृक्षसे निकलनेवाला सफेद मादक रस; ताग-स्त्री० तागनेकी क्रिया । * पु० तागा । -पाट-पु० ध्यान, समाधि, तारी । रेशमका एक विशेष धागा जिसे विवाहके समय वरका तात-पु० [सं०] पिता; आदरणीय व्यक्ति एक संबोधन बड़ा भाई वधूको पहनाता है।
जो बराबरके लोगों या अपनेसे छोटोंके लिए प्रयुक्त होता तागड़ी-स्त्री० करधनी, क्षुद्रधंटिका ।
है। * वि० तप्त, गरम । तागना-स० क्रि० रजाई आदिमें दूर-दूरपर सिलाई करना। ताता*-वि० तप्त, गरम । तागा-पु० सूत, डोरा ।।
ताताथेई-स्त्री० नृत्यका एक बोल । ताज-पु० [फा०] राजाका मुकुटकलगी शिखा चाबुका / तातार-पु० [फा०] मध्य एशियाका एक देश । ताजमहलका संक्षिप्त नाम । -पोशी-स्त्री० राज्याभिषेक तातील-स्त्री० [अ०] अवकाश, छुट्टी। सिंहासनारूढ होने या ताजधारण करनेके समयका उत्सव । तात्कालिक-वि० [सं०] तत्कालका, उसी या उस समयका। ताज़गी-स्त्री० [फा०] ताजा होनेका भाव; नयापन तात्त्विक-वि० [सं०] तत्त्व-संबंधी; जिसमें तत्त्वपर विशेष सूखापन या कुम्हलाहटका अभाव; श्रांति या शैथिल्यका ध्यान दिया गया हो; वास्तविक । उलटा।
तात्पर्य-पु० [सं०] आशय, अभिप्राय, मंशा । ताजन, ताजना*-पु० दे० 'ताज़ियाना'; उत्तेजन देने- तात्पर्यार्थ-पु० [सं०] वाक्यार्थसे भिन्न अर्थ जो वाक्यवाली वस्तु; दंड।
विशेष में वक्ताका अभिप्राय समझा जाय । ताज़ा-वि० [फा०] हरा-भरा; जो सूखा या मुरझाया ताथेई-स्त्री० दे० 'ताताई' । हुआ न हो; पौधे या पेड़से तत्कालका तोड़ा हुआ (पुष्प, ! तादर्थ्य-पु० [सं०] उद्देश्यकी एकरूपता; अर्थकी समानता फलादि); तुरतका तैयार किया हुआ; तुरतका निकाला| उद्देश्य । हुआ; जो अधिक दिनोंका या बासी न हो।
तादात्म्य-पु० [सं०] अभिन्नता, दो वस्तुओंके परस्पर ताज़िया-पु० [अ०] बाँसकी तिल्लियों, रंगीन कागजों | अभिन्न होनेका भाव -संबंध-पु० अभेद संबंध ।
आदिका बना हुआ वह ढाँचा जो इमाम हसन और इमाम | तादाद-स्त्री० [अ०] संख्या । हुसेनके मकबरोंकी आकृतिका बनाया जाता और नियत ताश-वि० [सं०] वैसा, उसके समान ।
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३२५
तान-तायफा तान-स्त्री० संगीतमें स्वरका विस्तार; ताननेकी क्रिया या तापता-पु० [फा०] धूपछाँह रेशमी कपड़ा। भाव; खिचाव । पु० [सं०] सूत्र विस्तार; ज्ञानका विषय । | ताब-स्त्री० [फा०] तापः हिम्मत, सामर्थ्य मजाल; धैर्य । -तरंग-स्त्री० [हिं०] तानकी लहर ।
ताबड़तोड़-अ० लगातार। तानना-स० क्रि० खींचकर कड़ा करना; फैलाना; खड़ा ताबूत-पु० [अ०] मुरदा ले जानेका संदूक । करना; समेटी हुई चीजको फैलाकर व्यवहार योग्य स्थितिमें ताबे-वि० वशवती, अधीन । -दार-वि० आज्ञाकारी । लाना; खींचकर कुछ अंतरपर स्थित दो आधारोंमें फँसाना पु० नौकर । -दारी-स्त्री० सेवा, नौकरी। किसीको लक्ष्य करके मारनेके लिए अस्त्र आदि उठाना। ताम-*पु० अँधेरा; क्रोध-'कंसको निर्वश हहै करत इनपर तानपूरा-पु० सितारके आकारका एक बाजा ।
ताम'-सू० । [सं०] भयका कारण, भीषण वस्तु; त्रुटि; तानबान*-पु० ताना-बाना।
चिंता; उद्वेग, ग्लानि; इच्छा; क्लोति । वि० भयानक ताना-पु० करधेमें लंबाईके बल फैलाया हुआ सूत [अ०] व्याकुल। व्यंग्यपूर्ण चुटीली बात । * स० क्रि० तपाना; परीक्षाके | तामजान, झाम, दान-पु० एक तरहकी खुली पालकी। लिए तपाना; ढाँकना । -पाई-स्त्री० ब्यर्थ आते-जाते | तामड़ा-वि० ताँबेके रंगका । रहना। -बाना-पु. लंबाई और चौड़ाईके बलका सूत । तामरस-पु०[सं०] कमल; सुवर्ण; ताँबा धतूरा; एक छंद । मु०-मारना-चुटीली बात कहना।
तामलेट, तामलोट-पु० टीनका वह पात्र जिसपर चीनी तानारीरी-स्त्री० नौसिखियेका गाना ।
मिट्टी आदिकी कलई हो। तानाशाह-पु० अनियंत्रित शासक, निरंकुश अधिकारी। तामस-पु० [सं०] खल; सर्प, क्रोध; अज्ञान; अंधकार । तानाशाही-स्त्री० अधिनायकत्व स्वेच्छाचारिता। वि० जिसमें तमोगुणकी प्रधानता हो, तमोगुणसे युक्तः तानी -स्त्री० बुनावटमें लंबाईके बल रखा हुआ सूत; * बंद। शानहीन कुटिल। ताप-पु० [सं०] (हीट) आग या बिजली आदिसे उत्पन्न वह तामसी-स्त्री० [सं०] महाकाली; अँधेरी रात; मायाविद्या शक्ति जिससे वस्तुएँ गरम हो जाती है और मात्रा अधिक जो मेघनादको शिवसे मिली थी । वि०स्त्री० तमोगुणवाली। होनेपर पिघलने या वाष्पके रूपमें परिणत होने लगती हैं, तामित्र-पु०[सं०] एक नरक घृणा द्वेष क्रोध । उष्णता, गरमी; ज्वर; दुःख; मानसिक व्यथा, आधि । तामीर-स्त्री० [अ०] मकान बनाना या मरम्मत करना; -क्रम-पु० (टेंपरेचर) शरीर या वायुमंडलकी उष्णता- मकान, इमारत । का उतार-चढ़ाव ।-तरंग-स्त्री० (हीटवेव्ह) अत्यंत गरम तामील-स्त्री० [अ०] अमल करना; (हुक्म) बजा लाना; हवाकी लहर जो कुछ स्थानोंसे अन्य स्थानोंकी ओर प्रवा- तलब किये गये व्यक्तिका समनपर हस्ताक्षर करना या हित होती जान पड़े। -तिल्ली-स्त्री० [हिं०] प्लीहा। अँगूठेका निशान लगाना । -त्रय-पु० आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तामोल*-पु० दे० 'तांबूल' । दुःख । -द-वि० कष्टकारक । -नियंत्रण-पु० (एयर ताम्र-पु० [सं०] ताँबा; एक प्रकारका कोढ़ । वि० ताँबेका कंडीशनिंग) कमरे आदिके भीतरकी हवाको कृत्रिम रूपसे बना हुआ ताँबेकी तरह लाल रंगका। -कार,-कुट्टसमशीतोष्ण बनाये रखनेकी क्रिया। -नियंत्रित-वि० पु० तमेरा, साँबेके बरतन आदि बनाकर जीविकोपार्जन (एयर कंडीशंड) जिसके भीतरका तापमान कृत्रिम उपायों करनेवाला ।-चूड-पु० मुर्गा; कुंकरौधा ।-पट्ट,-पत्रद्वारा समस्थितिमें रखा गया हो।-मान-पु० थरमामीटर पु० दानपत्र आदि खुदवानेका ताँबेका पत्तर; ताँबेकी द्वारा मापी गयी शरीर या वायुमंडलके तापका मात्रा। चद्दर । -पर्णी-स्त्री० दक्षिण भारतकी एक नदी। -मान-यंत्र-पु० थरमामीटर । -विकिरण-पु० -पल्लव-पु० अशोक वृक्ष ।-पात्र-पु० ताँबेका बरतन । (रेडियेशन) तापलहरियोंका किसी एक केंद्रसे चारों -पुष्प-पु. कचनार । -मुख-वि० जिसका मुख दिशाओं में प्रसारित या विकिरित किया जाना । -हर- ताँबेके रंगका हो । पु० यूरोपीय ।-मूला-स्त्री० छुईमुई। वि० तापनाशक ।
-मृग-पु० एक तरहका लाल हिरन ।-युग-पु० इतितापक-पु० [सं०] (हीटर) (कमरे आदिमें) गरमी पहुँचाने हासका वह आरंभिक काल जब लोग ताँबेके औजार, या उत्पन्न करनेका यंत्र ।
पात्र आदि काममें लाते थे।-योग-पु० एक रासायनिक तापती-स्त्री० [सं०] सूर्यकी कन्या; एक नदी।
औषध । -लिप्त-पु० बंगालका तामलूक नामक भूखंड । तापन-पु० [सं०] सूर्य; ग्रीष्म ऋतु; कामदेवका एक बाण -लेख-पु० दे० ताम्रपत्र । -वर्ण-वि० ताँबेके
सूर्यकांत मणि मदार । वि० तापकारक कष्टदायक । रंगका, रक्तवर्ण । पु० सिंहल । -वल्ली-स्त्री० मजीठ । तापना-अ०क्रि० आँच या तापसे शरीर गरमाना। स० -वृक्ष-पु० कुलथी; लाल चंदनका वृक्ष । क्रि० नष्ट करना, उड़ाना; * तपाना।
ताय*-अ० से तक। तापस-पु० [सं०] तपस्वी; बगला; तेजपात । वि० तपस्या ताय*-पु० ताप; जलन; धूप । सर्व० उसको। या तपस्वी-संबंधी; तपस्वी।
तायदादी-स्त्री० दे० 'तादाद'। तापित-वि० [सं०] तपाया हुआ; पीडित ।
तायना*-सक्रि० तपाना संताप पहुँचाना । तापी-स्त्री० [सं०] ताप्ती नदी; यमुना नदी। -ज-पु० तायनि-स्त्री० तपन, जलन; पीड़ा। माक्षिक धातु।
| तायफा-स्त्री० [अ०] वेश्या वेश्या और उसके समाजियोंतापी (पिन)-वि० [सं०] तप्त करनेवाला; गरम ।
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ताया-ताली
३२६
ताया-पु० बापका बड़ा भाई, ताऊ ।
बृहस्पति; बालि; सुग्रीव । -पथ-पु० आकाश । तार-पु० [सं०] महादेव विष्णु; चाँदी; पार करना; तारा; -मंडल-पु० तारोंका समूह; एक कपड़ा । मु० (तारे)
आँखकी पुतली; उच्च स्वर सबसे ऊँचे स्वरमें गाया जाने- गिनना-रातभर जागते रहना। -तोड़ लाना-कोई वाला सप्तक । वि० उच्च स्वच्छ, निर्मल । -स्वर-पु० कठिन काम कर दिखाना । (तारों)की छाँह-तड़के । उच्च स्वर।
| ताराधिप-पु० [सं०] चंद्रमा; शिव; बृहस्पतिः बालि; तार-पु० तागेकी तरह गोल या चौकोर, कम मोटी,लोचदार सुग्रीव । वस्तु जो तपायी धातुओंको पीटकर या खींचकर बनायी तारावली-स्त्री० [सं०] तारोंकी पंक्ति, तारोंका समूह । जाती है। वह तार जिसके द्वारा बिजलीकी शक्तिसे समा-तारिका-स्त्री० [सं०] ताड़ी; * दे० 'तारका'। चार भेजे जाते हैं। तार द्वारा भेजी हुई खबर, ताता, अन-तारिणी-वि० स्त्री० [सं०] तारनेवाली, सद्गति देनेवाली। वरत क्रम; नाप; युक्ति; सुभीता; सूत्र; * ताल; तल; | तारित-वि० [सं०] पार कराया हुआ; जिसका उद्धार कानकी तरकी। -क.माँजी-स्त्री० नगीना काटनेका किया गया हो। धनुष जैसा एक औजार जिसमें तारकी डोर लगी रहती तारी*-स्त्री० करतलध्वनि, ताली; कुंजी समाधि, ध्यान है। -कश-पु० तार खींचनेवाला। -कशो-स्त्री० टकटकी; f ताड़ी। तार खींचनेका काम । -घर-पु० तार भेजनेका सरकारी तारीख-स्त्री० [भ०] तिथि मितिवह तिथि जिसमें कोई दफ्तर । -घाट-पु० व्यवस्था, उपाय। -बी-स्त्री० ऐतिहासिक या महत्त्वपूर्ण घटना घटी हो; कार्यविशेषके वह तार जिसके द्वारा बिजलीकी शक्तिसे समाचार भेजे लिए निबत किया हुआ दिन; इतिहास । मु०-टलनाजाते हैं। मु०-तार करना-धज्जियाँ उड़ाना। निवत दिनका भौर भागे बढ़ जाना। -पड़ना-तारीख तारक-पु० [सं०] तारनेवाला; नक्षत्र; आँखकी पुतली; | निश्चित होना। इंद्रका शत्रु एक दैत्य जिसे नपुंसकका रूप धारण कर तारीफ-स्त्री० [अ०] परिचय; लक्षण, परिभाषा प्रशंसा, विष्णुने मारा था; एक असुर जिसे कार्तिकेयने मारा था बड़ाई; विशेषता । (स्टार, ऐस्टरिस्क) छपाई में तारे जैसा चिह्न (*)।-चिह्न
छपाइम तार जसा चिह्न (*) -चिह्न- तारु, तारू*-पु० दे० 'तालु'। पु० (ऐस्टरिस्क) पादटिप्पणी या अभिनिर्देशके लिए अथवा | तारुण्य-पु० [सं०] जवानी, यौवन । महत्त्व प्रदर्शित करनेके लिए छापे या लिपिमें प्रयुक्त तारा तारुण्यागम-पु० [सं०] (प्यूवटी) तरुणावस्थाका आगमन, जैसा चिह्न (*)।
यौबनारंभ, उस लितिका आरंभ जब स्त्री या पुरुषमें तारका-स्त्री० [सं०] नक्षत्र, आँखकी पुतली; बृहस्पतिकी संतानोत्पत्तिकी क्षमताका आगमन हो जाता है। स्त्री; सिनेमाकी अभिनेत्री (स्टार, ऐस्टरिस्क) दे० तारय-पु० [सं०] ताराका पुत्र-अंगद; बुध । 'तारक-चिह्न।
तारेश-पु० [सं०] चंद्रमा । तारकासुर-पु० [सं०] तारक नामक असुर ।
तार्किक-पु० [सं०] तर्कशास्त्रका ज्ञाता, तर्कवेत्ता, नैयायिका तारकित-वि० [सं०] तारोंसे खचित ।
ताल-पु० [सं०] हायका तल, हथेली; हाथपर हाथ तारकोल-पु० अलकतरा ।
मारनेसे उत्पन्न शब्द, संगीतमें नियत मात्राओंपर ताली तारण-पु० [सं०] तारने या उद्धार करनेकी क्रिया तारने बजाना; मँजीरा; तादका पेड़ या फल; जंघे या बाजूपर वाला; नौका पार करना । वि० उद्धार करनेवाला।
हथेलीसे ठोककर उत्पन्न किया हुआ शब्द, ताला या तारतम्य-पु० [सं०] तर और तमका भाव, न्यूनाधिक्य सिटकिनी; तालाब । -पत्र-पु० ताड़का पत्ता । न्यूनाधिक्यके अनुसार क्रम ।
-मखाना-पु० [हिं०] एक पौधा; मखाना। -मेलतारन-स्त्री० छत या छज्जेकी ढाल; कड़ियोंके नीचे रहने- पु०(संगीतमें) तालोंका मिलान । -रस-पु० ताड़ी। वाला बाँस । *पु० दे० 'तारण' ।
तालक-पु०* दे० 'तअल्लुक'। तारना-सक्रि० पार करना उद्धार करना तेरानाताड़ना। तालव्य-वि० [सं०] तालु-संबंधी; तालुसे उच्चारित होनेतारपीन-पु. बारनिश, चित्रकारी और औषध आदिके वाला (वर्ण)।
काम आनेवाला चीड़के गोंदसे तैयार किया हुआ तेल। ताला-पु० किवाद, संदूक भादिको मजबूतीसे बंदरखनेका तारल्य-पु० [सं०] तरलता; चंचलता; कामुकता ।
लोहे-पीतल भादिका एक यंत्र जो खास कुंजीसे बंद होता तारांकित-वि० [सं०] (स्टार्ड) (वह शब्द, वाक्य, प्रश्न और खुलता है । -बंदी-स्त्री०(लॉक आउट) कर्मचारियों
आदि) जिसके साथ सितारे (*) का चिह्न दिया गया हो। पर दबाव डालने के लिए मालिकोंका कारखानेके फाटकपर -प्रश्न-पु० विधानसभा आदिके अधिवेशनमें प्रश्नोत्तरके ताला लगाकर उन्हें बाहर रखनेका कार्य । समय मौखिक उत्तर पानेकी दृष्टिसे पूछा गया प्रश्न । तालाब-पु० पोखरा, सरोवर । तारा-पु० [सं०] रातको आकाशमें चमकनेवाला ज्योति- तालाबेलिया, तालबेली*-स्त्री० व्याकुलता। पिड, नक्षत्र, सितारा; भाग्य; आँखकी पुतली; मोती। तालिका-स्त्री० [सं०] सूची; कुंजी; तालमूली; मजीठ। सी० तंत्रोक्त दस महाविद्याओंमेंसे एक बृहस्पतीकी पत्नी तालिब-पु० [अ०] चाहनेवाला। -इल्म-पु० विद्याथीं। जिसे चंद्रमाने भी कुछ दिनोंतक रख लिया था; बालिकी ताली-सी० छोटा ताल, तलैया। [सं०] ताला बंद करने पत्नी जिसने पतिकी मृत्यु के बाद सुग्रीवसे विवाह किया और खोलनेका एक विशेष प्रकारका औजार ताड़ी; छोटा था। -कुमार-पु० अंगद । -नाथ,-पति-पु० चंद्रमा ताड़ हथेलियोंका परस्पर आघात; इससे उत्पन्न शब्द,
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तालीम-तितिक्षा फरतलध्वनि । मु०-पीटना-उपहास करना।
का एक आधार । -पाड़*-वि० तीन पाटोंका। -बारा तालीम-स्त्री० [अ०] शिक्षा ।
-वि० तीसरी बार । पु० तीन बार उतारी हुई शराब तालीशपत्र-पु० [सं०] एक पहाड़ी वृक्ष भुइँआँवला । तीन द्वारोंवाला कमरा । -माशी-स्त्री० तीन माशेकी तालु-पु०[सं०] ऊपरके दाँतों और कौवेके बीचका गड्ढा । एक तौल। -महानी-स्त्री० तीन नदियों, सड़कों या तालू-पु० दे० 'तालु'; दिमाग । मु०-चटकना-प्याससे गलियोंके एकमें मिलनेकी जगह । -रंगा-वि० तीन रंगोंमुँह सूखना; तेलकी कमीसे बच्चे के तालुका धंस-सा वाला। -राहा-पु० तीन रास्तोंके मिलनेकी जगह । जाना । -से जीभ न लगना-चुप न रहना, बोलते -लड़ा-वि० तीन लड़ोंका। -लड़ी-स्त्री० गले में जाना।
पहननेकी तीन लड़ियोंकी एक माला। -लोक-पु० ताल्लुक-पु० दे० 'तअल्लुक'।
दे० 'त्रिलोक'। -लोकपति-पु० विष्णु। -लोचनाताव-पु. किसी वस्तुको तपाने या पकानेके लिए पहुँचायी जानेवाली गरमी, ताप, आँच, आँच द्वारा पहुँचायी हुई | -वासा, वासी-वि० तीन दिनोंका। गरमीका मान; अहंकारयुक्त रोषका आवेश; अहंकारकी | तिआ*-स्त्री० तिया, स्त्री। झोंक; कागजका बड़ा, चौकोर, बिना कटा-फटा टुकड़ा। तिआहा-वि० जिसका तीसरा विवाह होनेको हो । पु० मु०-आना-यथेच्छ गरमी पहुँचना। -दिखाना-ऐंठ मृत्युके ४५ वें दिन होनेवाला एक श्राद्ध । या क्रोध प्रकट करना । -देना-तपाना। -पर-मौके | तिउहा-पु० दे० 'त्योहार'। पर । -बिगड़ना-कम या अधिक गरम होना। तिकड़म-पु० चतुराई, युक्ति । तावत्-अ० [सं०] तब उस अवधि या मात्रातक, तबतक । तिकड़मी-वि० तिकड़म करनेवाला । तावना -स० कि० तपाना, जलाना; संतप्त करना । तिकी-स्त्री० तीन बूटियोंवाला ताश या गंजीफेका पत्ता । तावर*-स्त्री० दे० 'तावरी' ।
तिक्ख-वि० तीक्ष्ण, तीखा; तेज, चालाक । तावरा-धु० ताप, गरमी; धाम ।
तिक्त-वि० [सं०] तीता, जो स्वादमें नीम या गुड़चके तावरी-स्त्री० ताप; ज्वर; धूप; मूर्छा, सिर चकराना। | समान हो; सुगंधयुक्त। तावान-पु० [फा०] हरजाना; जुरमाना, दंड । तिक्ष*-वि० तीक्ष्ण, तेज, तीखा। तावीज़-पु० [अ०] कागज या भोजपत्रपर अंकित मंत्र या तिक्षता*-स्त्री० तेजी । चक्र आदि जिसे सोने-चाँदी आदिके संपुट में बंद कर गले, | तिखाई-स्त्री० तीक्ष्णता, तेजी। बाँह, कमर आदिमें धारण करते हैं; सोने-चांदी आदिका तिच्छ-वि० तीक्ष्ण । विशेष आकारका एक आभूषण ।
तिच्छन-वि. तीक्ष्ण । ताश-पु० खेलनेके कामका मोटे कागजका चौकोर टुकड़ा तिजरा-पु० एक दिन नागा देकर आनेवाला ज्वर । जिसपर पान, ईट आदि रंगोंके छापे हों; ताशका खेल; तिजहरिया, तिजहरी-स्त्री० अपराल, दिनका तीसरा दफ्तीका टुकड़ा जिसपर तागा लपेटा हो।
पहर । ताशा-पु० चमड़ेसे मढ़ा चौड़े मुँहका एक बाजा जो गले में तिजारत-स्त्री० [अ०] व्यापार, वाणिज्य, व्यवसाय । लटकाकर लकड़ीसे बजाया जाता है।
तिजारी-स्त्री० दे० 'तिजरा'। तास*-पु० एक तरहका कपड़ा।
तिजिल-पु० [सं०] चंद्रमा राक्षस । तासन, तासों*-सर्व० उससे ।
तिजोरी-स्त्री० लोहेकी आलमारी जिसमें रुपये,गहने आदि तासीर-स्त्री० [अ०] असर करना; प्रभाव, गुण, असर। | रखे जाते हैं। तासु*-सर्व उसका।
तिडी-स्त्री० दे० 'तिक्की'। -बिड़ी-वि० अस्त-व्यस्त, तास्कर्य-पु० [सं०] चोरी।
छितराया हुआ। मु०-करना-गायब करना। ताहम-अ० [फा०] तथापि ।
तित-अ० वहाँ, तहाँ; उधर । ताहि, ताही*-सर्व० उसे, उसको ।
तितना*-वि० उतना। तितिडिका, तितिडी-स्त्री० [सं०] इमली।
तितर-बितर-वि० इधर-उधर फैला हुआ, बिखरा हुआ, तितिलि(ली)का, तितिली-स्त्री० [सं०] इमली। विकीर्ण; विघटित । तिंदुक, तिंदुल-पु० [सं०] तेंदूका पेड़।
तितली-स्त्री० सुंदर पंखोंवाला एक प्रसिद्ध फतिंगा; एक ति-स्त्री० तिया। सर्व० वे, वह । वि० तीन (समासमें | घासः (ला०) बहुत तड़क-भड़कसे रहनेवाली स्त्री। व्यवहृत)।-कोना-वि० तिकोना । कोना-वि० जिसमें तितलौआ-पु० कड़ए स्वादका कडू । तीन कोने हों, त्रिभुजाकार । पु० समोसा । -कोनिया- | तितलौकी-स्त्री० दे० 'तितलौआ । वि० दे० 'तिकोना' । -खटी*-स्त्री० तिपाई; तीन पैरों- | तितिंबा-म० ढोंग, ढकोसला; परिशिष्ट । वाला काठका आसन। -खटा-वि० जिसमें तीन खंट तितिक्ष-वि० [सं०] जो गरमी-सरदी आदि द्वंद्वोंकी सहे, हों, तिकोना। -गुना-वि० तीन गुना, जो आकार या| सहिष्णु, सहनशील । पु० एक ऋषि ।। परिमाणमें दो बार और अधिक हो। -तारा-पु० तीन तितिक्षा-स्त्री० [सं०] सरदी-गरमी आदि द्वंद्वोंको सहनेकी तारोंवाला एक बाजा । -दरी-स्त्री० तीन दरवाजोंवाला क्रिया या शक्ति; बिना प्रतीकार या विकलताके सभी कमरा । -पाई-स्त्री० चौकी जैसा लकड़ीका तीन पायों- दुःखोंको सहना, सहनशीलता; क्षमा।
२१-क
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तितिक्षु-तिरानवे
तितिक्षु - वि० [सं०] तितिक्षायुक्त, सहनशील, क्षमावान् । तितिभ - पु० [सं०] बीरबहूटी; जुगनू । तितिम्मा- पु० [अ०] पूरक अंश; पुस्तकका परिशिष्ट । तितिर, तितिरि- पु० [सं०] तीतर पक्षी । तितीर्षा - स्त्री० [सं०] तरने या पार करनेकी इच्छा । तितीर्षु - वि० [सं०] तरने या पार होनेका इच्छुक । तिते* - वि० उतने ।
तितेक* - वि० उतना ।
तितै* - अ० तहाँ; उधर ।
तितो* - वि० उतना ।
पत्र
तिथि - स्त्री० [सं०] वह काल विशेष जिसमें चंद्रमा एक कला घट, १-२ आदि संख्याओं द्वारा निर्दिष्ट चांद्र मासका प्रत्येक दिन; मिति, तारीख मृत्युदिवस; पंद्रहकी संख्या । -क्षय-पु० तिथिकी हानि । पु० पंचांग। - वृद्धि - स्त्री० जो तिथि दो सूर्योदय तक चले । - संक्रामी - वि० (डिफाल्टर ) ( न्यायालय में उपस्थित होने, ऋणको किस्त आदि जमा करनेकी) निर्धारित तिथिका संक्रमण करनेवाला ( उस तिथिको उपस्थित न होनेवाला, किस्त न चुकानेवाला आदि) । - संधि - स्त्री० दो तिथियों की संधि ।
तिथित - वि० (डेटेड) ( वह पत्रादि) जिसपर कोई तिथि या महीने की तारीख लिखी या डाली गयी हो, दिनांकित । तिधर - अ० उधर, उस ओर ।
तिन* - सर्व० 'तिस' का बहुवचन । पु० तृण, तिनका । तिनउर* - पु० तृणराशि ।
तिनकना - अ० क्रि० झल्लाना, बिगड़ना, रूठना । तिनका- पु० तृण, घासफूम । तोर -पु० नाता तोड़ | मु० - तोड़ना - बलैया लेना, अपनेको न्यौछावर करना; हमेशा के लिए नाता तोड़ लेना। - दाँतों में पकड़ना - दयाकी भिक्षा माँगना । ( तिनके का सहारा - थोडीसी सहायता । -की ओट पहाड़-छोटीसी वस्तुमे बहुत बड़े रहस्यका छिपा होना । तिनगना - अ० क्रि० दे० 'तिनकना' । तिनगरी * - स्त्री० एक पकवान । तिनपहला - वि० तीन पहलोंवाला । तिनस, तिनसुना- पु० दे० 'तिनिश' । तिनिश - पु० [सं०] शीशमकी जातिका एक वृक्ष । तिनुका, तिनूका* - पु० दे० 'तिनका' । तिन्ना - पु० तिनीके धानका पौधा । तिनी-स्त्री० स्वयं उत्पन्न होनेवाला एक धान जिसका चावल फलाहारके काम आता है, नीवार । तिपति* - स्त्री० तृप्ति ।
तिब्बिया - वि० [अ०] तिब्ब-संबंधी । -कालेज - पु० यूनानी चिकित्साशास्त्रकी शिक्षा देनेवाला विद्यालय । तिमिंगिल - पु० [सं०] एक समुद्री जंतु जो तिमिको निगल सकता है; बहुत भारी मछली, होल । - गिल-पु०
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तिमिंगिलको भी निगल जानेवाला समुद्री जंतु । तिमि - अ० * उस प्रकार । पु० [सं०] समुद्र; बहुत बड़े आकारका एक समुद्री मत्स्यः मत्स्य । - ध्वज - पु० एक दैत्य जिसे इंद्रने दशरथकी सहायता से मारा था । तिमिर - पु० [सं०] अंधकार; आँसका एक रोग; लोहका मोरचा दे० 'तिरमिरा' । भिद् - वि० अंधकार का भेदन करनेवाला | पु० सूर्य । -रिपु-पु० अंधकारका शत्रु, सूर्य । - हर- पु० सूर्य; दीपक ।
तिमिरारि - पु० [सं०] अंधकारका शत्रु, सूर्य । तिमिरारी* - स्त्री० तिमिराली, अंधकार पुंज; अंधेरा । ० सूर्य
तिय* - स्त्री० स्त्री; पत्नी ।
तिया स्त्री० दे० 'तिक्की'; * दे० 'तिय' । तियाग* - पु० दे० 'त्याग' । तिर - वि० 'त्रि'का बिगड़ा हुआ समासमें व्यवहृत रूप । -कुटा - पु० दे० 'त्रिकटु' । - खूंटा - वि० जिसमें तीन खूँट हों । - पाई - स्त्री० दे० 'तिपाई' । - फला- पु० दे० 'त्रिफला' । - बेनी* स्त्री० दे० 'त्रिवेणी' | - मुहानी - स्त्री० दे० 'तिमुहानी' । -लोक - पु० दे० 'त्रिलोक' | - सठ - वि० साठ और तीन । पु० तिरसठकी संख्या, ६३ । - सूल - ५० दे० 'त्रिशूल'; तापत्रय । तिरखा* - स्त्री० दे० 'तृषा' | तिरखित* - वि० दे० 'तृषित' |
तिरछा - वि० जो एक ओर कुछ झुका हुआ हो, वक्र, कज, बाँका, कुटिल । - पन- पु० तिरछा होने का भाव । तिरछाई - स्त्री० तिरछापन । तिरछाना - अ० क्रि० तिरछा होना । तिरछे* - अ० तिरछेपन के साथ; तिरछी गतिसे | तिरछाँहाँ- वि० कुछ-कुछ तिरछा । तिरछा है - अ० दे० 'तिर छे' ।
तिरना- अ० क्रि० दे० 'तरना'; पानीपर तैरना; उतराना । तिरनी* - स्त्री० नीवी, फुफुंदी |
तिरप - स्त्री० नाचका एक ताल ।
तिरपटा - वि० एक बगल कुछ झुका हुआ, तिरछा; कठिन । तिरपन - वि० पचास और तीन । पुतिरपनकी संख्या ५३॥ तिरपाल - पु० पानी से बचावके कामका एक मोठा कपड़ा; छाजनके नीचे लगाया जानेवाला सरकंडेका मुट्टा । तिरपित* - वि० दे० 'तृप्त' ।
तिरमिरा - पु० आँखका एक रोग जिसमें देखनेकी शक्ति क्षीण हो जाती है, सामने धुंध छाया रहता है, प्रकाश असह्य हो जाता है और कुछका कुछ दिखाई देता है; चकाचौंध |
तिपाई - स्त्री० दे० 'ति' के साथ |
. तिबारा - वि०, पु० दे० 'ति' के साथ ।
तिरमिराना - अ० क्रि० दे० 'तिलमिलाना' । तिरस्कार - पु० [सं०] अपमान, अनादर; अवज्ञा ।
तिब्ब - स्त्री० [अ०] चिकित्साशास्त्र; यूनानी चिकित्सा तिरस्कृत- वि० [सं०] अपमानित, अनाहत, जिसकी अव शास्त्र, हकीमी ।
हेलना की गयी हो; आच्छादित ।
तिरस्क्रिया - स्त्री० [सं०] आच्छादित करनेकी क्रिया; दे० 'तिरस्कार' ।
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तिरहुत-पु० मिथिला-मुजफ्फरपुर और दरभंगा तिरानबे - वि० नब्बे और तीन । पु० तिरानवे की संख्या, ९३ ।
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तिलंगा - पु० अंगरेजी फौजका हिंदुस्तानी सिपाही । तिलंगाना - पु० तैलंग देश |
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तिराना - स० क्रि० पानीपर तैराना या ठहराना; पार करना; उद्धार करना "।
तिरासी - वि० अस्सी और तीन । पु० तिरासीकी संख्या, ८३ । तिरिन* - पु० दे० 'तृण' । तिरिया * - स्त्री० स्त्री, औरत। - श्चरित्तर- ५० स्त्रीकी पुरुषको ठगने या बेवकूफ बनानेकी चतुराई ।
तिरीछा* - वि० दे० 'तिरछा' । तिरंदा -५० समुद्र में तैरता हुआ पीपा जो खतरे की सूचनाके लिए लगाया जाता है; बंसीकी डोरीमें लगी हुई छोटी लकड़ी जो उतराती रहती है; उतरानेवाला काठ या इस तरहकी कोई चीज जिसके सहारे नदी आदि पार की जाय । तिरोधान, तिरोभाव- पु० [सं०] तिरोहित या दृष्टिसे ओझल होने या करनेकी क्रिया, अंतर्धान, लोप । तिरोहित-वि० [सं०] अंतर्हित, लुप्त, ओझल, गुप्त, आच्छादित, ढका हुआ । तिरौंछा* - वि० तिरछा ।
तिरौंदा - पु० दे० 'तिरे दा' ।
तिर्यकू (च्) - वि० [सं०] तिरछा; आड़ा; वक्र । अ० तापूर्वक तिरछे; आड़े । पु० पशु पक्षी । तिर्यग्गामी (मिनू ) - पु० [सं०] केवड़ा तिर्यग्योनि - स्त्री० [सं०] पशु-पक्षी; उनकी योनि । तिर्यग रेखा - स्त्री० [सं०] (ट्रांसवर्सल) वह रेखा जो दो या तिलवा- पु० तिलका लड्डू | अधिक दी हुई रेखाओंको काटती है ।
तिराना- तिष्ठना
चंदन, केसर या रोली आदिसे ललाटपर बनाया हुआ विशेष प्रकारका चिह्न, टीका; सिंहासनारूढ़ होते समय युवराजके मस्तकपर लगाया जानेवाला टीका; वसंत में फूलनेवाला एक वृक्ष; तिलका पौधा; किसी कुल या समुदायका सर्वश्रेष्ठ पुरुष (समासांत में ); विवाह संबंधी एक रस्म जिसमें कन्यापक्षके लोग वरके मस्तकपर टीका लगाते और कुछ द्रव्य आदि चढ़ाते हैं; स्त्रियोंका एक शिरोभूषण; एक रोग; शरीरपरका तिल; ध्रुवकका एक भेद जिसमें प्रत्येक चरण में पचीस अक्षर होते हैं; सूथनके ऊपर पहनने का बिना आस्तीनका ढीला जनाना कुरता । - हार - पु० [हिं०] तिलक चढ़ानेके लिए भेजा जानेवाला व्यक्ति । तिलकना - अ० क्रि० गीली मिट्टी या जमीनका सूखकर फटना; फिसलना ।
तिलछना - अ० क्रि० व्याकुल होना, छटपटाना 1 तिलदानी - स्त्री० सूई, अंगुरताना आदि रखनेकी दर्जियोंकी छोटी थैली ।
तिलमिल - स्त्री० तिलमिलाहट, चकाचौंध | तिलमिलाना - अ० क्रि० बेचैन होना; चौंधियाना । तिलमिलाहट - स्त्री० तिलमिलाने की क्रिया या भाव, बेचैनी । तिलमिली - स्त्री० तिलमिलाहट । तिलचट - पु० तिलपट्टी |
तिलस्म - पु० दे० 'तिलिस्म' |
तिलहन - पु० फसलके रूपमें बोये जानेवाले तेलके पौधे । तिलांजलि - स्त्री० [सं०] और्ध्वदेहिक कृत्यका एक अंग जिसमें हिंदू मृतक के नाम तिलमिश्रित जलकी अंजलि देते हैं । तिलांबु-पु० [सं०] दे० 'तिलांजलि' । तिला पु० नपुंसकता नष्ट करनेवाला एक तेल | तिलान- पु० दे० 'तलाक' । तिलान्न- पु० [सं०] तिलकी खिचड़ी । तिलिस्म - पु० [अ०] जादू; इंद्रजाल; ऐंद्रजालिक रचना; गाड़े हुए धन आदिपर बनायी हुई सर्प आदिकी भयावनी आकृति; जादूकी रेखा या चिह्न । मु० - तोड़ना - जादू या करामातका भेद खोल देना ।
तिलिस्मी - वि० जिसमें तिलिस्मके चमत्कारका वर्णन हो; तिलिस्म-संबंधी ।
तिलोत्तमा - स्त्री० [सं०] एक अप्सरा जिसे पाने के लिए सुंद और उपसुंद आपस में लड़ गरे थे । तिलोदक-पु० [सं०] दे० 'तिलांजलि' । तिलोरी* - स्त्री० एक प्रकारकी मैना; तिलौरी । तिलौंछना-स० क्रि० तेल लगाकर चिकना करना । तिलौंछा - वि० तेलकेसे स्वादवाला; चिकना । तिलौरी - स्त्री० तिल मिलाकर बनायी हुई उर्द या मूँगकी बरी । तिल्ला - पु० कलाबत्तू आदिका काम; दुपट्टा, पगड़ी आदिका वह भाग जिसपर कलाबत्तू आदिका काम हो । तिल्ली - स्त्री० प्लीहा; तिल । तिवा (डी) री - पु० ब्राह्मणोंका एक भेद, त्रिपाठी । तिशना- पु० ताना । * स्त्री० तृष्णा । तिष्ट* -- वि० बनाया हुआ, रचित ।
तिलंगी - स्त्री० गुड्डी, पतंग । पु० तिलंगानाका निवासी । तिल - पु० [सं०] काले या सफेद रंगका एक छोटे दानेका तेलहन, इसका पौधा; तिलके आकारका काला दाग जो शरीरपर होता है; तिलके बराबर एक गोदना; किसी पदार्थका बहुत छोटा टुकड़ा या का। -किट्ट पु० तिलकी खली । -कुट-पु० [हिं०] तिल और चीनी या गुड़के मेल से बननेवाली एक मिठाई । -घटा - पु० [हिं०] एक प्रकारका झींगुर । चाँवरी* - स्त्री० तिल और चावल की खिचड़ी। - तंडुल- पु० तिल और चावल; ऐसा संयोग जिसमें मिलनेवालोंका अस्तित्व स्पष्टतः दिखाई | दे । - धेनु - स्त्री० तिलकी बनी गाय जो दानरूपमें दी जाय । - पट्टी, - पपड़ी - स्त्री० [हिं०] खाँड़ या गुड़की चाशनी में पगे तिलकी बनी रोटी जैसी वस्तु । - पीड- पु० तिल पेरनेवाला, तेली । - पुष्पक-पु० तिलका फूल; बहेड़ेका पेड़ नासिका -भर- अ० थोड़ासा भी, रंच मात्र | मु० का ताड़ करना छोटीसी बातको बड़ा रूप देना । की ओट पहाड़-छोटी बातके अंदर बहुत बड़ी बात होना । -तिल करके थोड़ा-थोड़ा करके । - धरनेकी जगह न होना - थोड़ासा भी स्थान रिक्त न होना, ठसाठस भरा होना। (तिलों) में तेल न होनाशील-संकोच न होना, मुरौवत न होना । तिल - पु० पुतली के बीचका बिंदु; * क्षण - 'सेही पिरीत अनुराग वखानइत तिले तिले नूतन होई' - विद्यापति । -भर- अ० थोड़ी देर ।
तिलक - पु० [सं०] धार्मिकता या शोभाकी दृष्टिसे घिसे हुए | तिष्ठना* - अ० क्रि० टिकना, ठहरना ।
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तिसपर-तुंडिल
३३० । तिसपर-अ० उसके बाद ऐसी स्थितिमें; तथापि, इतना करना-टाल-मटोल करना । -में, न तेरह मेंहोनेपर भी।
नगण्य, जिसकी कहीं पूछ न हो; तटस्थ । तिसना*-स्त्री० दे० 'तृष्णा'।
तीनि*-वि० तीन । तिसरायत-स्त्री० तीसरा होनेका भाव ।
तीमार-पु० [फा०] सेवा-शुश्रूषा, हिफाजत । -दार-पु० तिसरत-पु० वह व्यक्ति जो दो पक्षोंमेंसे किसी एकका रोगीकी सेवा करनेवाला ।-दारी-स्त्री० रोगीकी सेवा।
भी न हो; तीसरा व्यक्ति; मध्यस्थ, पंच; तीसरे भागका तीय(या)*-स्त्री० स्त्री, औरत । अधिकारी।
तीरंदाज़-पु० [फा०] तीर चलानेवाला, धनुर्धर । तिसाना*-अ० क्रि० प्यासा होना, तृषित होना। तीरंदाजी-स्त्री० [फा०] तीर चलानेकी क्रिया या विद्या । तिहत्तर-वि०सत्तर और तीन । पु० तिहत्तरकी संख्या, ७३। तीर-पु० [सं०] नदीका किनारा, तट, कूल; गंगा-तट; तिहरा-वि० दे० 'तेहरा' ।
सीसा राँगा; बाण । -वर्ती(र्तिन)-वि० तीरपर स्थित, तिहराना-स० कि० दे० 'तेहराना' ।
जो किनारेपर रहता हो । तिहरी-स्त्री० तीन लड़ोंकी माला; दही जमानेका मिठीका तीरथ*-पु० दे० 'तीर्थ' । छोटा बरतन ।
तीर्ण-वि० [सं०] जो पार कर चुका हो; जो पार किया तिहाई-स्त्री० तीसरा भाग, तीसरा हिस्सा; फसल । जा चुका हो। तिहाउ*-पु० दे० 'तिहाव' ।
तीर्थंकर-पु० [सं०] जिन; विष्णुः शास्त्रकार । तिहार, तिहारा, तिहारो*-सर्व० तुम्हारा।
तीर्थ-पु० [सं०] वह पुण्यस्थान जहाँ विशेष धर्मक अनुतिहाव-पु० क्रोध, रोष; बिगाड़।
थायी पूजा, स्नान आदिके लिए जाते हों-जैसे काशी, तिहि-सर्व० दे० 'तेहि।
प्रयाग आदि; यज्ञ; क्षेत्र। -कर-पु० जिन; विष्णु । तिहूँ *-वि० तीनों।
-पति-पु० दे० 'तीर्थराज'। -पुरोहित-पु. तीर्थका ती*-स्त्री० स्त्री पत्नी।
पंडा। -यात्रा-स्त्री० तीर्थ करनेके लिए की गयी यात्रा, तीक्षण, तीक्षन*-वि० दे० 'तीक्ष्ण' ।
तीर्थाटन । -राज-पु. प्रयाग। तीक्ष्ण-वि० सं०] तेज नोक या तेज धारवाला; तीव्र, तीर्थाटन-पुं० [सं०] तीर्थभ्रमण, तीर्थयात्रा। कुशाग्र प्रखर तेज, चोखा, चुभता हुआ; मर्मभेदी; उग्रः तीर्थोदक-पु० [सं०] तीर्थका जल । तीखा; तीखे या चरपरे स्वादका; उत्कट गंधवाला; कठोर । | तीन*-वि० दे० 'तीर्ण । -दृष्टि-वि० जिसकी दृष्टि तीखी हो; सूक्ष्मदशी ।-धार- तीली-स्त्री० सलाई, मोटी सींक या खपची। पु० खड्ग, तलवार । वि० तेज धारवाला । -बुद्धि-वि० तीवई-स्त्री० स्त्री, औरत । जिसकी बुद्धि प्रखर हो।-रश्मि-पु० सूर्य । वि०जिसकी तीवर-पु० [सं०] समुद्रः मछुआ, बहेलिया; एक वर्णकिरणें प्रखर हों।
संकर जाति । तीक्ष्णांशु-पु० [सं०] सूर्य ।
तीन-वि० [सं०] अत्यंत, नितांत; तेज, तीक्ष्ण, अत्युष्णा तीख*-वि० तीखा।
कटु असथा जोरका; अत्यधिक दूत; भयंकर कुछ ऊँचा तीखन*-वि० तीक्ष्ण ।
(स्वर)। पु० तीक्ष्णता; इस्पात; राँगा, लोहा, शिव तीर, तीखा-वि० तीक्ष्ण । -पन-पु० तीक्ष्णता ।
कूल । -गति-वि० जिसकी चाल तेज हो। पु० पवन, तीखुर, तीखुल-पु. एक कंद जिसका सात मिठाई, खीर हवा । स्त्री० तेज चाल, द्रुत गति । -द्युति-पु० सूर्य । आदि बनानेके काम आता है।
तीस-वि० बीस और दस । पु० तीसकी संख्या, ३० ।-मार तीछन*-वि० तीक्ष्ण ।
खाँ-वि० बाँका बीर ।(तीसौं)दिन-अ० सदा, सर्वद।। तीछा*-वि० तीक्ष्ण ।
तीसर*-वि० तीसरा। तीज-स्त्री० पक्षकी तीसरी तिथि: भाद्र-शक्ला तृतीयाको तीसरा-वि० दूसरेके बादका, जो क्रममें दोके बाद पड़े, होनेवाला एक व्रत, हरतालिका व्रत ।
जो गिनती में तीनके स्थानपर हो; जो दो से किसी पक्षका तीजा-पु० मुसलमानोंमें मृत्युके बादका तीसरा दिन। न हो, गैर । पु० दे० 'तिसरैत' । -पहर-पु० अपराह्न । इस दिन मृतककी यादगारमें उसके संबंधी एकत्र होते हैं तीसी-स्त्री० एक तेलहन, अलसी ।
और गरीबोंको खाद्य पदार्थ बाँटे जाते हैं । वि० तीसरा।। | तुंग-वि० [सं०] ऊँचा, उन्नत; उग्र प्रधान । पु० पुन्नागतीत*-वि० दे० 'तीता'।
का पेड़, नारियल, पर्वत; बुध ग्रह । तीतर-पु० एक प्रसिद्ध पक्षी जिसे लोग लड़ानेके लिए तुंगारण्य-पु० [सं०] ओड़छाके समीप बेतवाके किनारेका पालते हैं।
एक तीर्थ । यहाँ अबतक जंगल हैं और मेला लगता है। तीता-वि० तीखे, चरपरे स्वादका, तिक्त गीला । तुंड-पु० [सं०] मुख; मुखका आगेकी ओर निकला हुआ तीतुर, तीतुल*-पु० दे० 'तीतर'।
भाग, थूथन; चोंच; हथियारकी नोंक; तलवारका अग्र तीतुरी*-स्त्री० दे० 'तितली'।
भाग; शिव; एक राक्षस: हाथीकी सूंड़। तीन-वि० दो और एक । पु० तीनकी संख्या, ३ । मु तुंडि-पु० [सं०] मुँह चोंच; बिंबाफल । स्त्री० नाभि । -तेरह करना-अस्त-व्यस्त करना, तितर-बितर करना। तुंडिक-वि० [सं०] थूथनवाला । -तेरह होना-तितर-बितर होना,छितरा जाना ।-पाँच । तुंडिल-वि० [सं०] बहुत बोलनेवाला;जिसकी नाभि निकली
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या उभरी हुई हो; तोंदवाला ।
तुंडी - स्त्री० नाभि; [सं०] एक तरहका कुम्हड़ा | तुंडी (डिन्) - वि० [सं०] मुँह, चोंच, थूथन या सूँड़से युक्त । पु० शिवका नंदी; * गणेश ।
- कूपिका, कूपी -
तुंद - पु० [सं०] नाभि; पेट, तोंद स्त्री० नाभिका गड्ढा । तुंदिक - वि० [सं०] जिसका उदर बड़ा हो; जिसे तोंद हो । तुंदिल - वि० [सं०] दे० 'तुंदिक' | तुंदी - स्त्री० [सं०] नाभि ।
दैल, दैला - वि० तुंदिल, तोंदवाला ।
तुंब - पु० [सं०] लौकी, लोआ; तूंबा; आँवला । तुंबर - पु० [सं०] तानपूरा; तुंबुरु नामक गंधर्व । तुंबा - पु० कद्दू से बना पात्र । स्त्री० [सं०] कद्दू | बिका - स्त्री० [सं०] हुई लौकी; तँबी । तुंबी - स्त्री० [सं०] कडुईलौकी, इसका बना हुआ छोटा पात्र । तुंबुरु - पु० [सं०] एक प्रसिद्ध गंधर्व, जैनमत में पंचम अर्हत का उपासक; धनिया ।
तुअ * - सर्व० तुम्हारा ।
तुअना* - अ० क्रि० चूना, टपकना, रुक न सकना; गर्भपात होना ।
तुअर - स्त्री० अरहर ।
तुक - स्त्री० किसी छंद के चरणोंके अंतिम अक्षरोंका मेल, अंत्यानुप्रास; सामंजस्य । -बंदी - स्त्री० तुक मिलानेकी क्रिया; साधारण पद्यरचना; भद्दी कविता । मु०-बैठाना - छंदके चरणोंके अंतमें ऐसे शब्दोंकी योजना करना जिनकी तुक मिल जाय, तुकबंदी करना ।
तुकमा - पु० [फा०] फंदा जिसमें घुंडी फँसाते हैं । तुकांत - वि० जिसमें अंत्यानुप्रास, चरणोंके अंतिम अक्षरोंका मेल हो ।
तुका* - ५० दे० 'तुक्का' । तुकारना - स० क्रि० 'तू-तू' करके संबोधित करना । तुक्कड़ - पु० तुकबंदी करनेवाला, साधारण पद्य रचनेवाला | तुक्का - पु० [फा०] शल्यरहित बाण, बिना फलका बाण । तुख - पु० दे० 'तुष' ।
तुखार - पु० [सं०] एक प्राचीन देश; वहाँका घोड़ा - 'स्याम करन अरु बाँक तुखारा' - प०; वहाँका निवासी; * दे० ' तुषार' ।
तुख्म - पु० [अ०] बीज ।
तुच तुचा* - स्त्री० दे० 'त्वचा' |
तुचार* - वि० पैना - 'परिगो दाग अधरवा चोंच तुचार'
- गुलाब |
तुच्छ - वि० [सं०] हीन, क्षुद्र, ओछा; नगण्य; निकृष्ट; अल्प; निस्तत्त्व, असार; शून्य, रिक्त; मंद; दीन; परित्यक्त । तुच्छातितुच्छ - वि० [सं०] एकदम गया गुजरा, अत्यंत निकृष्ट |
तुजुक - पु० [०] वैभव, शान-शौकत, ऐश्वर्यः विधान, व्यवस्था; आत्मचरित ।
तुझे - सर्व ० 'तू' का कर्म और संप्रदान कारकका रूप, तुझको । तुट* - वि० अत्यल्प, थोड़ासा । तुट्टना* - अ० क्रि० तुष्ट होना, प्रसन्न होना । स०क्रि० तुष्ट,
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तुंडी-तुरकी
प्रसन्न करना ।
तुड़वाना - स० क्रि० दे० 'तोड़वाना' । तुड़ाना-स० क्रि० तोड़वाना; बंधन तोड़ना; संबंध-विच्छेद करना; बड़ा सिक्का भुनाना; मूल्य घटवाना । तुतरा* - वि० दे० 'तोतला' | तुतराना* - अ० क्रि० दे० 'तुतलाना' | तुतरौँहाँ* - वि० दे० 'तोतला' ।
तुतलाना - अ० क्रि० बच्चोंका शब्दों तथा वर्णोंका अस्फुट और कुछका कुछ उच्चारण करते हुए बोलना । तुनक- वि० [फा०] थोड़ा; छोटा; दुर्बल; नाजुक; सूक्ष्म । -मिज़ाज - वि० जो झटपट या छोटी-छोटी बातोंपर नाराज हो जाय, चिड़चिड़ा; नाजुकमिजाज । -मिज़ाजी - स्त्री० चिड़चिड़ापन |
तुनीर* - पु० दे० 'तूणीर' ।
तुनुक - वि० दे० 'तुनक' ।
तुपक- स्त्री० [तु०] छोटी तोप; बंदूक । -ची- पु० तुपक चलानेवाला, गोलंदाज ।
तुरूंग - स्त्री० [फा०] एक प्रकारकी लंबी नली जिसके द्वारा फूँकके जोर से कंकड़ी, तीर आदि छोड़े जाते हैं; हवाई बंदूक
तुभना * - अ० क्रि० स्तब्ध हो जाना; थक जाना; मुग्ध होकर अचल हो जाना ।
तुम-सर्व ० वह सर्वनाम जिसका प्रयोग उस पुरुषके लिए होता है जिसे संबोधित करके कुछ कहा जाता है । तुमड़ी - स्त्री० सूखा कद्दू; सूखे कद्दू का गूदा आदि निकालकर बनाया हुआ पात्र; एक बाजा जिसे सँपेरे बजाते हैं । तुमरी । - स्त्री० दे० 'तुमड़ी' |
| तुमुर - वि०, पु० [सं०] दे० 'तुमुल' |
तुमुल - वि० [सं०] जिसमें शोरगुल हो; कई तरहकी ध्वनियोंके मेलसे उत्पन्न (ध्वनि); भयंकर; घबड़ाया हुआ । पु० घोर युद्ध, धमासान, गहरी लड़ाई ।
तुरंग - पु० [सं०] घोड़ा; मन, चित्त, सातकी संख्या । - मुख- पु० किन्नर । - शाला - स्त्री०, -स्थान - पु० घुड़साल, अस्तबल | तुरंगक-पु० [सं०] घोड़ा; बड़ी तोरई । तुरंगम - पु० [सं०] घोड़ा; एक वृत्त । तुरंगमी, तुरंगी - स्त्री० [सं०] घोड़ी; असगंध | तुरंगमी (मिन्), तुरंगी (गिन् ) - पु० [सं०] अश्वारोही, घुड़सवार ।
तुरंज-पु० चकोतरा नीबू; दुशालेके किनारों तथा कुरते आदिके मोढ़ोंपर सूतसे काढ़कर बनाया हुआ बड़ा बूटा । - बीन - स्त्री० नीबू के रसका शर्बत । तुरंत - अ० दे० 'तुरत' ।
तुरई -स्त्री० एक बेल जिसके फलोंकी तरकारी बनती है। तुरकाना - वि० [फा०] तुर्क जैसा, तुर्ककी तरहका । पु० तुर्कोंका देश; तुर्कोंकी बस्ती ।
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तुरकानी - स्त्री० [फा०] तुर्क औरतोंका एक ढीला-ढाला पहनावा; तुर्क जातिकी स्त्री । वि० स्त्री० तुर्कोंकीसी । तुरकी - वि० [फा०] तुर्क देशका ; तुर्क देश-संबंधी । स्त्री० तुर्कोंके देशकी भाषा; खड़ी बोली । पु० तुर्क देश ।
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तुरग - तुहिन
तुरग - पु० [सं०] दे० 'तुरंग' (समास भी) । तुरत - अ० शीघ्र, तत्काल, चटपट ।
तुरपन - स्त्री० तुरपनेकी क्रिया; एक तरहकी सिलाई । तुरपना-स० क्रि० लंबाई के बल सीधे सीना । तुरय* - पु० घोड़ा ।
तुरसीला * - वि० घायल करनेवाला, पैना - ' शब्द हैं तुर सीले ' - नारायण स्वामी । तुरही - स्त्री०
फूँककर बजानेका एक पतले मुँहका बाजा जो दूसरे सिरेकी ओर बराबर चौड़ा होता जाता है । तुरा* - स्त्री० दे० 'त्वरा' |
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तुलनात्मक - वि० [सं०] तुलनायुक्त; जिसमें किसी से तुलना की जाय ।
तुलवाई - स्त्री० तौलनेकी क्रिया या मजदूरी । तुलसी स्त्री० [सं०] एक प्रसिद्ध पौधा । - दल - पु० तुलसीकी पत्ती | - दास - पु० उत्तरी भारतके एक सुप्रसिद्ध भक्त कवि |
तुला - स्त्री० [सं०] तराजू, काँटा; समानता; नाप तौलमें बरावरी, तुलना; सातवीं राशि -दंड- पु० तराजूकी डंडी | - दान - पु० एक दान जिसमें दाता द्वारा अपनी या किसी अन्यकी तौलके बराबर अन्न द्रव्यादिका दान किया जाता है। -मान- पु० तराजूकी डंडी, तुलादंड; बाट, बटखरा । - यष्टि-स्त्री० तुलादंड । - सूत्र - पु० तराजूकी डंडीमें बीचोबीच छेद करके लगाया हुआ मोटे सूत या रस्सीका टुकड़ा ।
तुरावती* - वि० स्त्री० वेगवती, तीव्र गति से चलने या तुलाई - स्त्री० दे० 'तौलाई' ; गाड़ीकी धुरीमें तेल देनेकी बहनेवाली ।
क्रिया; दुलाई - ...तूल तुलाई माह ' - बि० । तुलाना* - अ० क्रि० आ पहुँचना; बराबर होना । स०क्रि० धुरी में तेल दिलाना ।
तुल्य-वि० [सं०] समान, सहश, बराबर, अभिन्न । - योगिता - स्त्री० एक अर्थालंकार, जहाँ कई उपमेयों या • उपमानोंका एक ही समान धर्म कहा जाय अथवा जहाँ हित तथा अहित में एक ही वृत्ति दिखायी जाय । तुवर- वि० [सं०] कसैला; बिना दाढ़ी या बिना मूँछका ।
तुराइ, तुराय* - अ० आतुरताके साथ ।
तुराई* - स्त्री० तोशक; उतावली, जल्दी । अ० तुरंत । तुराना * - अ० क्रि० शीघ्रता या उतावली करना । स० क्रि० दे० ' तोड़ाना' ।
तुरावान* - वि० वेगयुक्त, त्वरायुक्त । तुरास * - अ० वेगसे । पु० वेग | तुरिया - स्त्री० जुलाहों का एक औजार; वह गाय या भैंस जिसका बच्चा मर गया हो; * तुरीयावस्था । तुरी - स्त्री० घोड़ी; लगाम; फूलोंका गुच्छा; मोतीकी लड़ियोंका झब्बा; तुरही; * तुरीयावस्था । * पु० घोड़ा; सवार । तुरीय - वि० [सं०] गतियुक्त; चतुर्थ; चार खंडोंवाला; श्रेष्ठ; शक्तिशाली | पु० वेदांत के अनुसार एक अवस्था जिसमें आत्मा ब्रह्ममें लीन हो जाती है ।
तुरुपना - स० क्रि० दे० 'तुरपना' ।
तुरुष्क - पु० [सं०] तुर्क जाति; तुर्क जातिका मनुष्य; तुकिं स्तानका निवासी; तुर्किस्तान; एक गंधद्रव्य, लोबान । तुर्क - पु० [फा०] तुर्की का रहनेवाला ।
तुर्की - पु० तुकींका देश, तुरकाना | वि०, स्त्री० दे० 'तुरकी' ।
- टोपी- स्त्री० एक झब्बे दार, गोल, ऊँची टोपी । तुर्रा - पु० [अ०] जुल्फ; पगड़ी या टोपी आदि में लगा हुआ फुंदना या पर, कलगी; पक्षियोंकी शिखा; चाबुक । वि० [फा०] अनोखा | मु० - यह कि - ऊपरसे इतनी बात और कि ।
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तुरुक - पु० दे० 'तुर्क' ।
तुरुप - पु० ताशके खेलमें प्रधान माने हुए रंगका पता जो तुषानल-पु० [सं०] भूसीकी आग; एक तरहका प्राण-दंड अन्य रंगके पत्तों को काट सके ( ट्रंप ) ।
जिसमें बदनपर तिनके लपेटकर आग लगा दी जाती थी । तुषार - पु० [सं०] हवामें मिली भाप जो जमकर श्वेतकणोंके रूप में पृथ्वीपर गिरती है, हिम, बरफ; चीनिया कपूर; घोड़ोंके लिए प्रसिद्ध हिमालय के उत्तरका एक प्राचीन देश | वि० जो छूने में बरफकी तरह ठंडा हो । -करपु० चंद्रमा; कपूर । - गिरि, पर्वत - पु० हिमालय पड़ाड़ - गौर - पु० कपूर । वि० तुषारकी तरह सफेद रंगका । -द्युति-पु० चंद्रमा ! -पाषाण- पु० ओला; बरफ । - शिखरी (रिन्), -शैल- पु० हिमालय । तुषाराद्वि-पु० [सं०] हिमालय पर्वत ।
तुर्श - वि० [फा०] खट्टा; रूखा; क्रुद्ध । तुर्शाना - अ० क्रि० खट्टा हो जाना । तुर्शी - स्त्री० [फा०] खटाई, खट्टापन; रुष्टता । तुलन - पु० [सं०] तौलना; तौल; तुलना, बराबरी करना । तुलना - अ० क्रि० तौला जाना, मापित होना; तौल या माप में समान होना; किसी आधारपर इस प्रकार स्थित या आसीन होना कि किसी ओर थोड़ासा भी झुकाव न हो, सधकर स्थित होना (जैसे- तुलकर बैठना ); सधना, ठीक अंदाजके अनुसार अभ्यस्त होना; सन्नद्ध, उतारू होना; धुरीका औंगा जाना; * पहुँचना । स्त्री० [सं०] न्यूनाधिक्यका विचार, समता, बराबरी, मिलान; अंदाजा लगाना; जाँच करना ।
पु० कपाय रसः अरहर ।
तुष-पु० [सं०] अन्नके ऊपरका छिलका, भूसी; अंडेके ऊपरका छिलका; बहेड़ेका पेड़ ।
तुष्ट - वि० [सं०] तोषयुक्त, प्रसन्न, तृप्त, खुश | पु० विष्णु । तुष्टना* - अ० क्रि० तुष्ट होना, प्रसन्न होना । तुष्टि - स्त्री० [सं०] संतोष, प्रसन्नता; भोग्य वस्तुओंके प्रति ऐसी वृत्ति जिसमें और अधिककी लालसा न हो; जितना प्राप्त हो उससे अधिक की इच्छा न होना । तुष्टीकरण-पु० [सं०] ( अपीजमेंट) किसी क्रुद्ध या झगड़ेपर उतारू व्यक्तिको रियायत देकर अनुनय-विनय द्वारा संतुष्ट करना, मनुहार । तुस- पु० [सं०] दे० 'तुष' |
तुसार - पु० [सं०] दे० 'तुषार' | तुसी* - स्त्री० दे० 'तुष' |
तुहमत - स्त्री० [फा०] वुरी राय; इलजाम; झूठी बदनामी | तुहिन - पु० [सं०] तुषार, हिम; बरफ; चंद्रमा की ज्योति,
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तुहिनांशु-तृप्ति चंद्रिका; कपूर । -कर,-किरण,-गु,-द्युति,-रश्मि- तूरान-पु० [फा०] तातार देश । · पु० चंद्रमा कपूर ।-गिरि,-शैल-पु० हिमालय पर्वत । | तूरानी-वि० [फा०] तूरानका; तूरान-संबंधी । पु० तूरानतुहिनांशु-पु० [सं०] चंद्रमा; कपूर ।
का निवासी। तुहिनाचल, तुहिनादि-पु० [सं०] हिमालय पर्वत । तूर्ण-वि० [सं०] तेज । अ० तेजीसे, शीघ्र । तूंबड़ा-पु० तूंबा।
तूर्य-पु० [सं०] तुरही; मुरज, मृदंग । तूंबा-पु० कटुतुंबी; कड़वे कद्दूको खोखला कर बनाया तूल-पु० लाल रंगका कपड़ा; गाढ़ा लाल रंग; [सं०] हुआ पात्र ।
आकाश; रुई; तूतका पेड़ [अ०] लंबाई, विस्तार, ढेर । तूंबी-स्त्री०छोटा तूंबा रक्त या वायु खींचनेका एक औजार । * वि० समान, सदृश । मु०-पकड़ना-किसी बातका तू-सर्व० एक सर्वनाम जो उस व्यक्तिके लिए आता है बहुत अधिक बढ़ जाना या उग्र रूप धारण करना । जिसे संबोधित करके कुछ कहा जाता है; 'तुम'का एक- तूलता*-स्त्री० समता, सादृश्य । वचन रूप(इसका प्रयोग छोटों या नीचोंके लिए होता है)। तूलना*-अ० क्रि० समान होना, समता करना । सक्रि० स्त्री० कुत्तोंको बुलानेका शब्द । -तू, मैं-मैं-स्त्री० धुरीमें तेल देना या इस कार्यके लिए पहियेको लकड़ीके वाकलह, बोल-ठोल, गाली-गलौज । मु०-तू, मैं-मैं| सहारे टिकाना। करना-कहा-सुनी करना, गाली-गलौज करना । तूलमतूल*-अ० आमने-सामने, समक्ष ।। तूख-पु० खरका, सींक ।
तूला-स्त्री० [सं०] कपास, दीपककी बत्ती। तूटना-अ० क्रि० दे० 'टूटना' ।
तूलिका-स्त्री० [सं०] चित्रकारोंकी रंग भरनेकी कूची3B तूठना*-अ० क्रि० दे० 'तुष्टना' ।
लेखनी; रुई-भरा गद्दा, तोशक । तूण-पु० [सं०] दे० 'तूणीर' ।
तूष्णीक-वि० [सं०] मौन रहनेवाला। तूणी -स्त्री० [सं०] तरकश । -धर,-धार-पु० कमनैत । तूष्णीम्-अ० [सं०] चुप चाप, बिना बोले ।(तूष्णी)युद्धतणीर-पु० [सं०] बाण रखनेका चोंगा, तरकश, निषंग। पु० वह युद्ध जिसमें शत्रुपक्षक प्रमुख व्यक्ति फोड़ लिये तूतिया-पु० नीला थोथा ।
जायँ (को०)। तृती-स्त्री० एक छोटी चिड़िया जिसकी बोली बहुत मीठी | तूस-पु० तुष, भूसी; भूसा एक प्रकारका उम्दा ऊन, होती है । मु०(नक्कारखानेमें)-की आवाज-शोरगुल पश्मीना; गहरे लाल रंगका कपड़ा। होते समयकी धीमी आवाज जो सुनाई नहीं पड़ती; तूसना-स० क्रि० संतुष्ट करना, प्रसन्न करना । अ०कि० बड़ौके सामने छोटोकी बात (जिसकी कदर नहीं होती)। प्रसन्न या संतुष्ट होना। (किसीकी)-बोलना-(किसीकी) धाक जमना, खूब | तृखा*-स्त्रा० द० तृषा' चलती होना।
तृजग-वि०, पु० दे० 'तिर्यक् । तूदा-पु० [फा०] ढेर, पुश्ता, टीला; हदबंदीका निशान तृण-पु० [सं०] तिनका घास । -कुटी,-स्त्री०,-कुटीर,
चाँदमारीका अभ्यास करनेका मिट्टीका टीला।। -कुटीरक-पु० घास-फूसकी बनी कुटिया। -धान्यतून-पु० एक पेड़, तुन; लाल वस्त्र-विशेष; *तूण, तूणीर । पु० तिन्नी नामक धान, नीवारसावाँ । मु०-गहना या तूनीर*-पु० तूणीर ।
पकड़ना-शरणमें जाना; दैन्य प्रकट करना। -(किसी तूफ़ान-पु० [अ०] जोरकी बाढ़, सैलाब; आधी, अंधड़ वस्तुपर)-टूटना-किसी वस्तुका इतना सुंदर होना कि जिसमें हवा-पानी आदिका भीषण उरपात हो; भारी। । देखनेवाले उसपर अपनेको न्योछावर कर दें। (किसीसे) आपत्ति, कहर हंगामा उपद्रव, दंगा-फसाद ।
-तोड़ना-संबंधविच्छेद करना, नाता तोड़ना । मु०-उठाना या खड़ा करना-बखेड़ा मचाना।
-तोडना-बलैया लेना; अपनेको न्योछावर करना। तूफ़ानी-वि० [अ०] प्रचंड; फसादी; ऊधमी, उपद्रवी।। तृणाग्नि-स्त्री०, तृणानल-पु० [सं०] तिनकेको आग । तूमड़ी-स्त्री० दे० 'तुमड़ी'।
तृणावर्त-पु० [सं०] वात्याचक्र, बवंडर, एक दैत्य जो तूमना-स० क्रि० उँगलियोंसे नोच-नोचकर रुईके रेशोंको। ___ बवंडरका रूप धारण कर कृष्णको मारने गया था। अलग करना; ऐब निकालना भद्दी गालियाँ देना; पीटनाः | तृतीय-वि० [सं०] तीसरा। नाकमें दम करना; चुनना ।
तृतीयांश-पु० [सं०] तीसरा भाग। तूमरी-स्त्री० दे० 'तुमड़ी' ।
तृतीया-वि० स्त्री० [सं०] तीसरी । स्त्री० पक्षकी तीसरी तूमा-पु. नवा। -पर.टी,-फेरी-स्त्री० इसकी चीज तिथि, तीज, करण कारककी विभक्ति । उसको देना; फेर-बदल ।
ततीयाश्रम-पु० [सं०] तीसरा आश्रम, वानप्रस्थ । तूमार-पु० [अ०] छोटा बातको बेकार बहुत बढ़ा देना।। तृन*-पु० दे० 'तृण'। तूर-स्त्री० अरहर । पु० [सं०] हरकारा; एक तरहका | तृपति*-स्त्री० दे० 'तृप्ति' । बाजा; * तुरही; ताना लपेटनेकी जुलाहोंकी एक लकड़ी। तृपित*-वि० दे० 'तृप्त' । तूरज-पु० दे० 'तृर्य' ।।
तृपिता-स्त्री० 'तृप्ति' । तूरण, तूरन*-अ० दे० 'तूर्ण' ।।
तृप्त-वि० [सं०] अघाया हुआ, संतुष्ट । तूरना-स० क्रि० दे० 'तोड़ना' । पु० तुरही ।
तृप्ताना*-अ० क्रि० तृप्त होना । तूरा-स्त्री० [सं०] वेग । * पु० तुरही।
तृप्ति-स्त्री० [सं०] तृप्त होनेका भाव, भोजन आदिकी प्राप्तिमे
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तृषा-तेहि
३३४ उत्पन्न संतोष; इच्छित वस्तुकी प्राप्तिसे जीका भरना । से साफ किया हुआ सोना। तृषा-स्त्री० [सं०] प्यास तीव्र इच्छा, अभिलाष; लोभ । तेजी-स्त्री० [फा०] तेज होनेका भाव, तीक्ष्णता, तीव्रता तषालु-वि०सं०] प्यासा, पिपासित, पिपासात । प्रखरता; शीघ्रता, जल्दी; महँगी, सस्तीका उलटा । तृषावंता-वि० तृषावान् ।
तेजोमय-वि० सं०] तेजसे परिपूर्ण; जिसके शरीरसे तेज तषाचान(वत)-वि० [सं०] तृषालु, प्यासा ।
निकलता हो, ज्योतिर्मय। तृषित-वि० [सं०] प्यासा ।
| तेजोमूर्ति-पु० [सं०] सूर्य। वि० जिसमें तेजकी प्रचुरता हो। तृष्णा-स्त्री० [सं०] प्यास; अप्राप्त वस्तुको पानेकी तीव्र | तेजोवान्(वत्)-वि० [सं०] तेजसे युक्त; तीखा; तेज । इच्छा; लोभ ।-क्षय-पु० संतोष, इच्छाका अंत; शांति। तेजोहत-वि० [सं०] जिसका तेज नष्ट हो गया हो। तृष्णालु-वि० [सं०] तृष्णावान्, प्यासा लोभी। तेता*-वि० उतना, जो परिमाणमें उसीके बराबर हो। ते *-प्र० से; द्वारा।
तेतालीस-वि०, पु० दे० 'ते तालीस'। तैंतालीस-वि० चालीस और तीन । पु० ४३ की संख्या। तेतिक*-वि० उतना । ततीस-वि० तीस और तीन । पु० तैतीसकी संख्या, ३३।। तेतो*-वि० उतना। तेंदुआ-पु० चीतेकी जातिका एक हिंस्र जंतु जो प्रायः तेरस-स्त्री० दे० 'त्रयोदशी' । पीलापन लिये भूरा-सा होता है और इसकी देहपर काले- तेरह-वि० दस और तीन । पु० तेरहकी संख्या, १३ । काले गोल धब्बे या चित्तियाँ-सी होती हैं।
(तीन-तेरह-दे० 'तीन' में)। तदू-पु० एक पेड़ जिसका हीर आबनूसके नामसे बिकता है।। तेरहीं-स्त्री० मरनेकी तिथिसे तेरहवीं तिथि जिस दिन ते-*अ० से । सर्व० [सं०] वे, वे लोग।
ब्राह्मणभोजनके बाद मरणाशौचका अंत होता है। तेइ-सर्व० वे ही।
तेरुस*-पु० पिछला या आगेका तीसरा साल। स्त्री०तेरस । तेईस-वि० बीस और तीन । पु० तेईसकी संख्या, २३।। तेरे*-प्र० से। तेऊ*-सर्व वे भी।
तेरो*-सर्व० तेरा। तेखना*--अ०क्रि० रुष्ट, नाराज होना।
तेल-पु०बीजों, वनस्पतियों आदिसे निकलने या विशेष तेग़-स्त्री० [फा०] बड़ी तलवार ।
उपाय द्वारा निकाला जानेवाला स्निग्ध तरल पदार्थ; वरतेगा-पु० दे० 'तेग'; कुश्तीका एक दाँव ।
वधूको विवाहके पूर्व हल्दी मिला हुआ तेल लगानेकी एक तेज-पु० [सं०] तीखापन; शस्त्रकी तीक्ष्णता; चमक; रीति ।मु०-चढ़ना-विवाह-संबंधी तेलकी रस्म पूरी होना । उत्साह ।-पत्ता,-पात-पु० [हिं०] मसालेके काम आने-| तेलग-स्त्री० तैलंग या आंध्र देशकी भापा । वाला एक प्रकारका पत्ता । -पत्र-पु० तेजपात । तेलहन-पु० वे बीज जिनसे तेल निकाला जाता है। तेज(स)-पु० [सं०] तीक्ष्णता; तीक्ष्ण धार; दिव्य ज्योति | तेलहा -वि० तेलसे संबद्ध तेलका, तेल में बना हुआ; दीप्ति, प्रभा, चमक; बल, पराक्रम वीर्य; उग्रता, अधीरता | जिसमें तेल हो। प्रभाव; अपमान या अधिक्षेपको न सहनेका गुण; ताप; तेलिया-वि० जो तेलकी भाँति चिकना हो; जिसका रंग नवनीत, मक्खन, सोना; अग्नि, पंचमहाभूतोंमें तीसरा तेलके रंग जैसा हो। पु० एक रंग; इस रंगका घोड़ा; एक ओज; दूसरोंको अभिभूत करनेकी सामर्थ्य ।
विष । स्त्री० एक मछली। -पखान-पु० एक तरहका तेज़-वि० [फा०] जिसकी धार तीक्ष्ण हो, पैनी धारका; काला, चिकना पत्थर । -मसान-पु० कंजूम आदमी। द्रतगामी, वेगवान् फुतीला तीक्ष्ण बुद्धिवाला; तीखे स्वाद- -सुहागा-पु० एक प्रकारका चिकना सुहागा । का; जल्द असर करनेवाला; महँगा, जिसका मूल्य चढ़ तेली-पु०हिंदुओंकी एक जाति जो तेल पेरने और बेचनेका गया हो; प्रखर, प्रचंड; उग्रः चपल, चंचल ।
पेशा करती है। मु०-का बैल-रात-दिन पिसनेवाला तेजन-पु० [सं०] दीप्ति या तेज उत्पन्न करनेकी क्रिया या व्यक्ति ।
भाव; चाकू आदि तेज करना; बाणकी नोक शस्त्रकी धार। तेवर-पु. क्रोधसूचक भ्रभंग, क्रोधभरी दृष्टि, कोप प्रकट तेजना*-स० क्रि० तजना, छोड़ना।
करनेवाली तिरछी नजर, भौंह । मु०-चढ़ना-क्रोधके तेजवंत-वि० तेजवान् ।
मारे भौंहोका तन जाना। -बदलना-क्रुद्ध होना। तेजवान-वि० तेजसे युक्त पराक्रमी; बलिष्ठ; ओजस्वी। | तेवरी-स्त्री० दे० 'त्योरी' । तेजसी*-वि० तेजस्वी।
तेवहार-पु० दे० 'त्योहार'। तेजस्काम-वि० [सं०] शक्ति, प्रताप आदिकी इच्छा करने- तेवान*-पु० सोच, चिंता । वाला।
तेवाना*-अ० कि० सोचमें पड़ना, चिंता-मग्न होना । तेजस्वान्(स्वत्)-वि० [सं०] तेजसे युक्त, तेजवाला । | तेह-पु० क्रोध; स्वाभिमान, ऐंठ; ताव; प्रखरता, तेजी। तेजस्विता-स्त्री० [सं०] तेजस्वी होनेका भाव ।
तेहरा-वि० तीन परत किया हुआ, तीन तहोंका; जिसकी तेजस्वी(स्विन्)-वि० [सं०] तेजवाला; प्रतापी शक्ति- तीन प्रतियाँ एक साथ हों; तीसरी बार किया हुआ। शाली प्रभावशाली।
तेहराना-स० क्रि० तीन परतों या तहोंका बनाना; तीसरी तेज़ाब-पु० [फा०] किसी क्षार पदार्थका अम्ल जिसमें | बार करना; तीसरी बार पढ़ना ।
दूसरी वस्तुओंको गलानेकी शक्ति रहती है (एसिड)। तेहा*-पु० दे० 'तेह'।। तेजाबी-वि० [फा०] तेजाव-संबंधी ।-सोना-पु० तेजाब- | तेहि*-सर्व० उसको, उसे ।
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तेही-तोता तेही*-वि० क्रोधी, गुस्सैल; अभिमानी ।
तो-अ० तब, उस स्थितिमें; एक अव्यय जिसका प्रयोग त*-सर्व० तू । प्र० से ।
किसी शब्द पर जोर देनेके लिए अथवा यों ही किया जाता तैतालीस-वि०, पु० दे० 'ते तालीस' ।
है* था। * सर्व० तुझ, 'तू'का वह रूप जो उसे विभक्ति तैतीस-वि०, पु० दे० 'ते तीस' ।
लगनेके पहले प्राप्त होता है। तै-वि० दे० 'तय' ।। अ० उतने ।
तोइ*-पु० तोय, जल । तेण्य-पु० [सं०] तीक्ष्ण होनेका भाव, तीक्ष्णता । तोई-स्त्री० मगजी, गोट । तैजस-वि० [सं०] चमकीला; तेजसे उत्पन्न; जिसमें तेज हो। | तोख*-पु० दे० 'तोष'। तैना*-स० कि० तपाना, जलाना ।
तोखना*-स० क्रि० संतुष्ट करना, प्रसन्न करना। तैनात-वि० किसी कामके लिए नियत या नियुक्त। तोखार*-पु० दे० 'तुखार' । तैनाती-स्त्री नियुक्ति, मुकर्ररी।
तोटक-पु० [सं०] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरणमें चार तैयार-वि० जो बनकर बिलकुल ठीक हो गया हो; जो सगण होते है। पककर खाने योग्य हो गया हो; पूर्णतः व्यवहारके योग्य तोटना*-अ० क्रि० टूटना । उद्यत, कटिबद्ध मुस्तैद प्रस्तुत, मौजूद; हृष्ट-पुष्ट; शिक्षा तोड़-पु० तोड़नेकी क्रिया या भाव; नदी आदिके जलका आदिके द्वारा कामके योग्य बनाया हुआ ।
जोरदार बहाव; कुश्तीमें एक दाँवके जवाबमें किया गया तैयारी-स्त्री० तैयार होनेकी क्रिया या भाव; तत्परता, दूसरा दाँव; झोंका दहीका पानी ।-जोड़-पु० दाँव-पेंचा
मुस्तैदी सजधज शरीरकी पुष्टता; अभ्याससे प्राप्त कुशलता । उपाय, युक्ति। तैयो*-अ० तो भी, फिर भी।
तोड़क-पु० तोड़नेवाला। तैरना-अ०क्रि० किसी जीवका हाथ पाँव आदि चलाते हुए तोड़ना-म०क्रि० आधात, झटके या दवाबसे किसी वस्तुके पानीपर चलना पानीके ऊपर-ऊपर फिरना; उतराना। दो या अधिक टुकड़े करना; किसी वस्तुके अंगको या उसमें तैराई-स्त्री० तैरनेकी क्रिया या भाव; तैरने-तैराने के बदले लगी हुई दूसरी वस्तुको नोचकर या और तरहसे आधारसे प्राप्त द्रव्य ।
पृथक करना; किसी वस्तुका कोई अंग खंडित या बेकाम तैराक-वि० तैरनेमें कुशल । पु० वह व्यक्ति जो अच्छी करना; बल, प्रभाव आदिको निःशेष या नष्ट करना; तरह तैरना जानता हो।
किसी संस्था या कार-बार आदिको सदाके लिए बंद कर तैराना-स० क्रि० तैरनेका काम दूसरेसे कराना; दूसरेको देना; किसी नियमको रद करना या कायम न रखना; तैरने में लगाना, संतरणमें प्रवृत्त करना।
किसी आज्ञाका उल्लंघन करना; संबंध या नातेको आगेके तैलंग-पु. आंध्र देश तैलंग देशका रहनेवाला । लिए न निभाना; बातपर कायम न रहना; दूर करना; तैलंगी-वि० तैलंग देशका; तैलंग देश-संबंधी। पु० तैलंग फुसला लेना, फोड़ना।। देशका निवासी । स्त्री० तैलंग देशकी भाषा।
तोड़र*-पु० तोड़ा; पैरका एक गहना। तैल-पु०[सं०] तिलको पेरकर निकाला हुआ द्रव्य, तेल । | तोड़वाना-स० [क्रि० तोड़नेका कार्य दूसरेसे कराना, -कार-पु० तेली । -किट्ट-पु० तेलके नीचे बैठा हुआ तोड़ने में प्रवृत्त करना; तोड़ने देना ('तोड़ना'का प्रेर०)। मैल; खली। -चित्र-पु० (आइल पेंटिंग) तेल मिले हुए तोड़ा-पु० रुपये रखनेकी टाट आदिकी थैली जिसमें एक रंगोंसे बनाया गया चित्र। -पोत-पु० (आइल टैंकर) हजार रुपये अँट सकें; कलाई में पहननेका एक गहना खनिज तेल ढोनेवाला जहाज। -वाहक पोत-पु० | टोटा; नाचका एक हिस्सा; हरिस; पलीता । (तोड़ेदार (टेकर) बड़ी मात्रामें खनिज तेल अपनी टंकीमें भरकर बंदक-स्त्री० पलीता दागकर छोड़ी जानेवाली बंदूक । ले जानेवाला जहाज, तेलपोत ।
मु० (तोड़े) उलटना या गिनना-किसीको बहुत अधिक तैलाक्त-वि० [सं०] जिसमें तेल लगा हो; जिसने तेल द्रव्य देना। सोखा हो।
तोड़ाई-स्त्री० तोड़ाने या तोड़नेकी क्रिया या भाव; तैलाभ्यंग-पु० [सं०] शरीर में तेल मलनेकी क्रिया। तोड़नेकी उजरत । तैलिकयंत्र-पु० [सं०] कोल्हू ।
तोड़ाना-स० क्रि० तोड़नेका काम दूसरेसे कराना; रस्सीके तैश-पु० [अ०] आवेगपूर्ण क्रोध, क्रोधकी झझक । मु०- बंधनसे अपनेको मुक्त करना; किसी सिक्केको भुनाना । में आना-बहुत ऋद्ध होना।
तोण*-पु० तरकश, तूणीर । तैसा-वि० दे० 'वैसा'।
तोत*-पु० राशि, समूह । तैसे-अ० दे० 'वैसे।
तोतई-वि० तोतेके रंगका । पु० तोतेकासा रंग । तों*-अ० त्यों, उस प्रकार; उस समय ।
तोतक*-पु. पपीहा। तीअर*-पु० भाले जैसा एक अस्त्र, तोमर ।
तोतरी-वि० दे० 'तोतला'। तौंद-स्त्री. पेटका आगेकी ओर बढ़ा हुआ भाग ।। तोतरा-वि० दे० 'तोतला'। पचकना-मोटाई दूर होना ।
तोतराना-अ० क्रि० दे० 'तुतलाना'। तौदल-वि० तोंदवाला, जिसका पेट निकला हुआ हो। तोसला-वि० जो तुतलाकर बोलता हो तुतलानेकासा । तौदी-स्त्री० नाभि ।
तोतलाना-अ० क्रि० दे० 'तुतलाना'। तौंदीला-वि० तोंदवाला।
तोता-पु० हरे या अन्य रंगका प्रसिद्ध पक्षी जिसकी चोंच
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तोद-तौलिया
लाल होती है सुग्गा; बंदूकका घोड़ा । चश्म-वि० जो तोतेकी भाँति आँखें फेर ले, बेवफा; जिसमें थोड़ीसी भी मुरौवत न हो। - चश्मी - स्त्री० बेमुरौवती; बेवफाई | -परी- पु० एक तरहका आम । मु० - पालना- किसी दुर्व्यसनका आदी होना; किसी बीमारी या बुराईको बढ़ने देना । (तोते) की तरह आँखें फेरना - एकदम बेमुरौवत होना, पुराना संबंध भुला देना । -की तरह रटनाबिना अर्थ समझे कंठ करना ।
तोद - पु० [सं०] व्यथा, पीड़ा, कष्ट; शूल; हाँकना । तोदन - पु० [सं०] व्यथा, पीडन; कोड़ा, अंकुश | तोप - स्त्री० [तु० ] युद्ध में गोलाबारी करनेका एक प्रसिद्ध अस्त्र । - ख़ाना - पु० वह स्थान जहाँ तोपें और उनके आवश्यक उपकरण हों; युद्धके लिए सुसज्जित तोपोंका समूह । - ची - पु० तोप चलानेवाला, गोलंदाज । - विद्या - स्त्री० ( गनेरी) बड़ी तोपोंके निर्माण तथा प्रबं धादिका काम |
तोपना * - स० क्रि० ढाँकना, छिपाना । तोफा - वि० तोहफा, बढ़िया ।
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तोबढ़ा- पु० घोड़ेको दाना खिलानेका चमड़े या टाटका थैला | मु० - चढ़ाना - बोलने न देना, मुँह बंद करना । तोबा - पु० [अ०] तौबः ] घृणित या निंद्य कर्म पुनः न करनेकी पश्चात्ताप या शपथपूर्वक की गयी दृढ़ प्रतिज्ञा (कभी-कभी किसी व्यक्ति या पदार्थके प्रति घृणा प्रकट करनेके लिए इसका प्रयोग होता है); अफसोस, पछतावा, पश्चात्ताप | मु० - तिल्ला मचाना-चीखना, चिल्लाना; किसी नुकसानपर हाय-हाय करना । - तोड़ना-कौलसे फिर जाना; तोबा किये हुए कामको पुनः करना । तोम - ५० समूह, राशि । तोमड़ी - स्त्री० बड़ी |
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तोमर - पु० [सं०] भालेकी तरहका एक प्रसिद्ध अस्त्र; एक छंद राजपूतोंका एक प्राचीन राजवंश । तोमरी* - स्त्री० तुमड़ी; कडुआ कद्दू । तोय - पु० [सं०] जल, पानी; पूर्वाषाढा नक्षत्र । -क्रीडास्त्री० जल-क्रीड़ा । - गर्भ-पु० नारियल । -द-पु० मेघ, बादल । - घर, - धार - पु० मेघ, बादल; मोथा । -धि-निधि - पु० सागर, समुद्रः चारकी संख्या । - यंत्र - पु० जलघड़ी; फौवारा ।
तोर -पु० अरहर; * दे० 'तोड़' । * सर्व० तेरा । तोरई - स्त्री० तुरई ।
तोरण - पु० [सं०] किसी घर या नगरका बाहरी दरवाजा, बहिर्द्वार; दीवारों, खंभों आदि की सजावट के लिए लगायी जानेवाली मालाएँ आदि, बंदनवार ।
तोरन* - पु० दे० 'तोरण' |
तोरना* - स० क्रि० दे० 'तोड़ना'; दूर करना । तोरा* - सर्व ० तेरा, तुम्हारा । पु० तुर्रा, कलगी । तोराई* - अ० वेगपूर्वक, शीघ्रतापूर्वक, तेजीसे । तोराना* - स० क्रि० दे० ' तोड़ाना' । तोरावान् * - वि० वेगवान्, तेज । तोरी - स्त्री० काले रंग की सरसों; तुरई । तोलन - पु० [सं०] तौलनेकी क्रिया; उठाना ।
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३३६
तोलना* - स० क्रि० तौलना; पहियेकी धुरीमें तेल देना; धनुष् आदि सँभालना; उठाना ।
तोला- पु० बारह माशेकी एक तौल; इस तौलका बाट । तोशदान-पु०पाथेय रखनेकी थैली; कारतूस रखनेकी थैली । तोशक- स्त्री० [तु०] रुई भरा बिछावन, छोटा गद्दा । - खाना - पु० अमीरोंके वस्त्रादि रखनेका स्थान । तोशा-पु० [फा०] संबल, पाथेय । - खाना - पु० दे० 'तोशकखाना' |
तोष-पु० [सं०] मनकी वह वृत्ति जिसमें प्राप्त वस्तु, सुख आदिसे अधिककी लालसा न हो, तुष्टिः प्रसन्नता, प्रसाद । तोषक - वि० [सं०] संतुष्ट या तृप्त करनेवाला | तोषण-पु० [सं०] संतुष्ट करनेकी क्रिया या भाव; तोष । तोषना* - स० क्रि० संतुष्ट करना, तृप्त करना; प्रसन्न करना । अ० क्रि० संतुष्ट होना, तृप्त होना । तोस* - पु० दे० 'तोष' |
तोसा - पु० दे० 'तोशा' । - खाना - पु०दे० ' तोशाखाना'। तोसागार* - पु० दे० ' तोशाखाना' ।
तोहफ़ा - वि० [अ०] नायाव; बढ़िया, अच्छा । पु० सौगात, नजर, भेंट; सुंदर या बढ़िया चीज ।
तोहमत - स्त्री० [अ०] मिथ्या आरोप, लांछन । तोहमती - वि० [अ०] मिथ्या आरोप करनेवाला । तोहार - सर्व० तुम्हारा ।
तोहि * - सर्व • तुझे, तुम्हें । ताँकना * - अ० क्रि० आँचसे तपना । ताँस-स्त्री० धूप खानेसे लगी तेज प्यास; ताप, ऊमस ताँसना * - अ० क्रि० तप जाना, गरमीसे झुलस जाना । तसा - पु०कड़ी गरमी, भीषण ताप । तौ*- * - अ० तो । * अ० क्रि० था।
तौक्क - पु० [अ०] हँसुली; मन्नत पूरी करने के लिए बच्चोंको पहनायी हुई हँसुली; कबूतर आदि पक्षियोंके गलेका हँसुली जैसा चिह्न । (तो). गुलामी - पु० हँसुली जो गुलामों के गले में पहनाते थे ।
तौकी* - स्त्री० गलेका एक गहना । तौन+सर्व० वह, सो । तौनी-स्त्री० छोटा तवा ।
तौफ़ीक़ - पु० [अ०] शक्ति, सामर्थ्य; हिम्मत, हौसला । तौर - पु० [अ०] चाल, ढंग, तरह, भाँति । - तरीका - पु०
चाल-चलन, चाल-ढाल, बात-व्यवहार । तौरि* - स्त्री० घुमटा, चक्कर
तौरेत- पु० [इव० ] यहूदियोंका प्रधान धर्मग्रंथ ।
तौल - स्त्री० तौलनेकी क्रिया; माप, जोख, वजन; परख । तौलना - स० क्रि० किसी पदार्थका परिमाण या भारीपन जानने के लिए उसे तराजू या काँटेपर रखना, जोखना; साधना; गाड़ीकी धुरी में तेल लगाना ।
तौलवाई - स्त्री० दे० 'तौलाई' ।
तौलवाना - स० क्रि० तौलनेका काम दूसरे से कराना | | तौलाई - स्त्री० तौलनेकी क्रिया या भाव; तौलनेकी उजरत । तौलाना - स० क्रि० तौलनेका काम कराना । तौलिया - पु०, स्त्री० शरीर पोंछनेका विशेष प्रकारका अँगोछा ।
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तौसना-त्रि तौसना*-अ० कि० दे० 'तौं सना'। स० क्रि० ताप या त्रय-वि० [सं०] तीन । गरमी पहुँचाकर बेचैन करना।
त्रयी-स्त्री० [सं०] तीनका समाहार-जैसे वेदत्रयी। तौहीन-स्त्री० [अ०] अनादर, अपमान, बेइज्जती। त्रयोदशी-स्त्री० [सं०] किसी पक्षकी तेरहवीं तिथि, तेरस । तौहीनी-स्त्री० दे० 'तौहीन'।
भ्रष्टा*-पु० एक प्रकारकी थाली जो प्रायः ठाकुर-पूजनके त्यक्त-वि० [सं०] त्यागा, छोड़ा हुआ, जिसका त्याग कर काम आती है। दिया गया हो।-जीवित,-प्राण-वि० जिसने जीवनकी । त्रसरेणु-स्त्री० [सं०] धूलका वह सूक्ष्म कण जो छिद्रसे आशा छोड़ दी है। मरनेको प्रस्तुत। लज-वि०निर्लज्जा आनेवाले प्रकाशमें दिखाई देता है। सूक्ष्म कण; सूर्यको जो संकोचमें न पड़ा रहे ।
एक पत्नी। त्यक्तव्य-वि० [सं०] छोड़ने, त्यागने योग्य ।
व्रसन-पु० [सं०] भय, चिता; व्याकुलता। त्यक्ता(क्त)-वि०, पु० [सं०] छोड़नेवाला, त्यागनेवाला। सना*-अ० क्रि० डरना, भीत होना। त्यजन-पु० [सं०] छोड़ने, त्यागनेकी क्रिया।
साना*-स० क्रि० डराना, भय दिखाना । त्याग-पु० [सं०] किसी वस्तु परसे अपना स्वत्व हटा लेने त्रसित-वि० डरा हुआ, भीत, त्रस्त; ग्रस्त, आक्रांत । अथवा अपनेपनका भाव मिटाकर उसे छोड़ देनेकी क्रिया, स्त-वि० [सं०] भीत, डरा हुआ; चकित ।
सीसे नाता तोड़ देनेकी क्रिया सांसारिक विषयों त्राटक-पु० [सं०] हठयोगमें किसी विदुपर दृष्टि जमानेकी तथा भोगोंमें लिप्त न रहनेकी क्रिया या भाव; ममत्वका क्रिया। उच्छेदः परहितसाधन अथवा उच लक्ष्यकी प्राप्तिके लिए त्राण-पु० [सं०] भयके हेतुका निवारण, रक्षा, बचाव । की गयी स्वार्थकी उपेक्षा, कुरबानी; किसी पद या स्थानसे | त्राता(त)-पु० [सं०] रक्षक, बचानेवाला । संबंध न रखना । -पत्र-पु० इस्तीफा । -शील-वि० उदार, त्यागी।
त्रास-पु०[सं०] भय, डर; कष्ट ।-कर-पु०दे० 'त्रासक'। त्यागना-स० कि० छोड़ना, त्याग करना ।
-दायी (यिन)-वि०, पु० भयदायक । त्यागी (गिन)-वि० [सं०] जो सांसारिक सुखोंमें लिप्त त्रासक-पु० [सं०] डरानेवाला; नाशक; दूर करनेवाला। न होजिसने स्वार्थ, भोगकी इच्छा आदिका त्याग कर | ग्रासन-पु०[सं०] डराने या त्रस्त करनेकी क्रिया त्रासक । दिया हो, विरक्त ।
वासना*-स० क्रि० डराना, भय दिखाना । त्याज्य-वि० [सं०] छोड़ने, त्यागने योग्य ।
त्रासित-वि० [सं०] त्रस्त किया हुआ, डराया हुआ। त्यार*-वि० दे० 'तैयार'।
ब्राहि-अ० [सं०] बचाओ, रक्षा करो, पाहि । मु०-त्राहि त्यो -अ० उस प्रकार, उस तरह, वैसे; उसी वक्त, उसी करना-दैन्यपूर्वक रक्षाके लिए प्रार्थना करना, बेबस होकर समय, तत्क्षण; * (किसीकी) ओर, तरफ ।
बचानेके लिए किसीको पुकारना। -त्राहि मचनात्योनार*-पु० दे० 'त्यौनार ।
विपग्रस्तोंके मुंहसे 'त्राहि-त्राहि की पुकार निकलना । त्योर*-पु० दे० त्योरी'।
त्रि-वि० [सं०] तीन । यह यौगिक शब्दोंके आरंभमें जोड़ा त्योर(क)सा-प० बीता हुआ या आगेका तीसरा वर्ष। जाता है, जैसे-त्रिकाल, त्रिदेव, त्रिलोक इ०।-कंट,स्योरी-स्त्री० माथेका बल, माथेकी सलोट; निगाह, दृष्टि। कंटक-पु० गोखरू; सेहुँडा टेंगरा मछली। वि०जिसमें मु०-चढ़ना या बदलना-क्रोधसे माथेमें बल पड़ना, तीन काँटे या नोकें हों।-कटु,-कटुक-पु० तीन कड़ए कोपसे भ्रकुटीका ऊपर की ओर खिंच जाना । -चढ़ाना पदार्थोंका समाहार-सोंठ, पीपर और मिर्च। -कालया बदलना-क्रोध व्यक्त करनेके लिए पेशानीपर बल | पु०तीनों काल-भूत,वर्तमान और भविष्य; तीनों समयडालना। -में बल पड़ना-त्योरी चढ़ना ।
प्रातः, मध्याह्न और सायं । अ० प्रातः, मध्याह्न और त्योहार-पु० प्रतिवर्ष निश्चित तिथिको मनाया जानेवाला सायं-तीनों समय । -कालज्ञ-वि०,पु० तीनों कालोंकी कोई बड़ा धार्मिक या जातीय उत्सव, पर्व।।
बातें जाननेवाला । -काल दर्शक-पु० ऋषि । वि०जिसे त्योहारी-स्त्री० वह वस्तु जो त्योहारके उपलक्ष्यमें छोटों तीनों कालोंकी बातें ज्ञात हों।-कालदर्शिता-स्त्री० त्रिया नौकरोंको दी जाय ।
कालदर्शी होनेकी शक्ति या भाव ।-कालदर्शी(शिन्)त्यो -अ० दे० 'त्यो।
वि०, पु० दे० 'त्रिकालज्ञ' । -कुटी-स्त्री० भौहोंके मध्यत्योनार*-पु० ढंग, तरीका।
के कुछ ऊपरका स्थान जहाँ त्रिकूट-चक्रकी स्थिति मानी त्यौर-पु० दे० 'त्योरी' ।
जाती है। -कूट-पु० वह पर्वत जिसपर लंका बसी थी; त्योराना-अ० क्रि० सिर घूमना, सिर में चक्कर आना। तीन शृंगीवाला पर्वत; एक पर्वत जो सुमेरुका पुत्र माना त्यौरी-स्त्री० दे० 'त्योरी'।
जाता है (वामन पु०); योगमें एक चक्र जिसकी स्थिति त्यौरुसा-पु० 'त्योरुस' ।
त्रिकुटीमें मानी जाती है। समुद्री लवण । -कोण-पु० स्यौहार-पु० दे० 'त्योहार' ।
(ट्राइएंगिल) तीन कोनोंका क्षेत्र, त्रिभुज A कामरूपका -वि० [सं०] (समासांतमें) रक्षा करनेवाला; तीन । प्र० एक सिद्ध पीठ; जन्मकुंडली में लग्नस्थानसे पाँचवाँ और सप्तमी विभक्तिके रूप में प्रयुक्त होनेवाला एक प्रत्यय । | नवाँ स्थान । वि०जिसमें तीन कोने हों, तिकोना ।-कोण अपा-स्त्री० [सं०] लज्जा, लाज, शर्म कुलटा,व्यभिचारिणी फल-पु० सिंघाड़ा। -कोण भवन-पु० जन्मकुंडली में स्त्री यश; कुल, वंश, जाति । * वि० लजित ।
लग्नस्थानसे पाँचवाँ और नवा घर ।-कोणमिति-स्त्री०
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ज्यामितिका एक विभाग।-कोणक-पुत्रिभुज ।-क्षार- 'त्रिवेणी' -भंग-वि० तीन जगहोंसे झुका हुआ जिसमें पु० तीन क्षारोंका समाहार-जवाखार, सज्जी तथा तीन जगह टेढ़ापन हो । पु० खड़े होनेकी एक मुद्रा जिसमें सुहागा। -गर्त-पु. उत्तरभारतका वह प्राचीन प्रदेश गरदन, कमर और दाहिने पाँवमें बल पड़ता है ( कृष्णके जिसमें वर्तमान पंजाबके जालंधर और काँगड़ा आदि वंशी बजानेका वर्णन इसी रूपमें मिलता है)। -भजजिले सम्मिलित हैं। इस प्रदेशका निवासी। -गुण- पु० (ट्राइएंगिल) वह समक्षेत्र जो तीन भुजाओंसे घिरा हो पु० सत्त्व, रज, तम-इन तीन गुणोंका समाहार । वि० तथा जिसमें तीन कोण हों, त्रिकोण । -भुजलंब-पु० तीन गुना, तिगुना जिसमें सत्त्वादि तीनों गुण हों; तीन (आल्टीट्य ड) त्रिभुजके शीर्षसे आधारतक खींची जानेवाली धागोंवाला। -गुणा-स्त्री० माया; दुर्गा । -गुणातीत- वह सरल रेखा जो आधारपर लंब ( पर डिक्यूलर ) हो वि० जो सत्त्वादि तीनों गुणोंसे परे हो। पु० परमात्मा। ( इसे त्रिभुजकी ऊँचाई भी कहते हैं)। -भुवन-पु० -गुणात्मक-वि० जिसमें सत्त्वादि तीनों गुण हों। स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल-इन तीन भवनोंका समाहार । -गणित-वि० तिगुना किया हुआ । -चक्रयान-पु० -भुवन सुंदरी-स्त्री० दुर्गा, पार्वती । -मात-वि० (ट्राइसिकिल) एक तरहकी तीन पहियोंवाली गाड़ी जो दे० 'त्रिमात्र'। -मात्र,-मात्रिक-वि० जिसमें तीन प्रायः बाइसिकिलकी तरह पैडल मारनेसे चलती है। मात्राएँ हों, प्लुत। -मुनि-पु० पाणिनि, कात्यायन -चक्षु (स)-पु० शिव । -जग*-पु० तीनों लोक- और पतंजलि-ये तीनों मुनि, मुनित्रय । -मुहानीस्वर्ग, पृथिवी और पाताल, दे० क्रममें । -जगती-स्त्री० स्त्री० दे० 'तिमुहानी' । -मूर्ति-पु. वह जिसकी ब्रह्मा, -जगत्-पु० तीनों लोक । -जटा-स्त्री० अशोकवाटिका- विष्णु और शिव-ये तीन मूर्तियाँ हैं, परमेश्वर; सूर्य । में जानकीके साथ रहनेवाली एक राक्षसी । -जाता- -यान-पु० बौद्धधर्मके अंतर्गत महायान, हीनयान तथा जातक-पु० इलायची, दारचीनी और तेजपत्ता-इन
मध्यमयान-ये तीन यान ।-यामा-स्त्री० रात्रि; हल्दी; तीनोंका समाहार । नागकेसर मिलाकर इसे चतुर्जातक यमुना नील; काला निसोथ। -युग-पु० तीन पीढ़ियाँ कहते हैं। -जामा*-स्त्री० दे० 'त्रियामा' ।-जीवा,- तीनों ऋतुएँ-वसंत, वर्षा तथा शरद् तीनों युग-सत्य, ज्या-स्त्री० (रेडिअस) वृत्तके केंद्रसे परिधितक खिंची हुई द्वापर और त्रेता विष्णु । -रेख-पु० शंख । वि० जिसमें सीधी रेखा (यह लंबाई में व्यासकी आधी होती है)। तीन रेखाएँ हों, तीन रेखाभोंसे युक्त । -लघु-पु० (वह -ताप-पु० दे० 'तापत्रय' । -दंडी(डिन्)-पु० जिसमें तीनों वर्ण लघु हों) नगण । -लवण-पु० सेंधा, वह जिसने वाणी, मन और शरीर-इन तीनोंको वशमें साँभर और सोचर नमक ।-लोक-पु. स्वर्ग, मर्त्य और कर लिया हो, संन्यासी, परिव्राजक। -दल-पु० पाताल-ये तीनों लोक । -लोकनाथ,-लोकपति-पु० बेलका पेड़ -दश-पु० देवता जीव । -दश गुरु-पु० तीनों लोकोंका स्वामी,ईश्वर राम, कृष्ण आदि विष्णुका कोई देवगुरु, बृहस्पति । -दशपति-पु० इंद्र । -दशवधू- अवतार; सूर्य।-लोकी-स्त्री०दे० त्रिलोक-लोकीनाथस्त्री० अप्सरा। -देव-पु. ब्रह्मा, विष्णु और महेश- पु० दे० 'त्रिलोकनाथ'।-लोचन-पु. शिव ।-लोचना ये तीनों देव । -दोष-पु० तीनों दोष-वात पित्त -स्त्री० दुर्गा; असती, व्यभिचारिणी स्त्री ।-लोचनीऔर कफ; इन तीनोंके प्रकोपसे उत्पन्न रोग, सन्नि- स्त्री० दुर्गा । -वर्ग-पु० धर्म, अर्थ और काम; त्रिफला; पात ।-दोषज-पु० सन्निपात । वि०तीनों दोषोंसे उत्पन्न । त्रिकटु सत्व, रज और तम (सांख्य०); ब्राह्मण, क्षत्रिय -नयन-पु. शिव। -नयना-स्त्री० दुर्गा, पार्वती। और वैश्यः क्षय, स्थिति और वृद्धि (राजनीति)।-विक्रम -पथ-पु० ज्ञान, कर्म और उपासना-ये तीनों मार्ग: पु० तीन डग (विष्णुके); विष्णु; वामन ।-विध-वि०तीन आकाश, पृथ्वी और पाताल; वह स्थान जहाँ तीन रास्ते प्रकारका ।-विध बहिष्कार-पु० (ट्रिपिल बॉयकॉट) तीन मिले हों।-पथगा,-पथगामिनी-स्त्री० (स्वर्ग,मर्त्य और तरफका या तीन चीजोंका बहिष्कार (भारतके असहयोग पाताल तीनों लोकोंमें बहनेवाली) गंगा। -पदस्तंभ- आंदोलनके समय इसका अर्थ विदेशी अदालतों, विदेशी पु० (ट्राइपॉड) एक तरहकी तिपाई या तीन पाँवोंवाला शिक्षालयों तथा विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार लिया जाता आला जिसपर रखकर कोई वस्तु गरम की जाय । -पदी था)। -वेणी-स्त्री० वह स्थान जहाँसे तीन नदियाँ तीन -स्त्री० गायत्री छंद; तिपाई; हाथीका पैर बाँधनेका रस्सा। ओर बही हों; तीन नदियोंके मिलनेका स्थान; प्रयागमें -पाठी(ठिन्)-वि० तीनों वेदोंका ज्ञाता । पु० ब्राह्म- गंगा, यमुना और सरस्वतीके मिलनेका स्थान । -वेदणोंकी एक उपजातिकी उपाधि-तिवारी, त्रिवेदी। -पिटक पु० तीनों वेद-ऋक्, यजुः और साम; इन तीनों वेदोका -पु० बौद्धोंका मूल ग्रंथ जो विनय, सुत्त और अभिधम्म- शाता ।-वेदी(दिन)-पु० तीनों वेदोंका ज्ञाता; ब्राह्मणोंका तीन पिटकों( भागों) में विभक्त है ।-पुंड पु०[हिं०],-पुंड- एक उपभेद, त्रिपाठी। -वेनी*-स्त्री० दे० त्रिवेणी' । पु०एक तिलक जिसमें ललाट आदिपर भस्म अथवा चंदनकी -शंकु-पु० एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जी हरिश्चंद्रके तीन आड़ी या अर्ध चंद्राकार रेखाएँ बनाते हैं। -पटी- पिता थे । ( इनके बारेमें कहा जाता है कि स्वर्ग और स्त्री० छोटी इलायची; ज्ञाता, शेय और ज्ञान; ध्याता; पृथ्वीके बीच उलटे लटके हुए हैं ।)-शत-वि० तीन सौ । ध्येय और ध्यान: द्रष्टा, दृश्य और दर्शन आदि तीन-तीन -शाल-पु० तीन कमरोंवाला मकान।-शिरा(रस)का समाहार; * दे० 'त्रिकुटी'। -पुरारि-पु० महादेव । पु० एक राक्षस जिसे रामने दंडकारण्यमें मारा था। -फला-पु० आँवला, हड़ और बहेड़ा। -बली कुबेर । -शुल-पु० तीन फलोंका एक प्रसिद्ध अस्त्र जो
पेटपर पड़नेवाले तीन बल । -बेनी*-स्त्री० दे० शिवका प्रधान अस्त्र है।-शूलधारी(रिन)-पु० शिव ।
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३३९
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-शूली (लिन्) - पु० शिव । - श्रृंग-पु० त्रिकूट पर्वत; त्रिकोण । - संध्य- पु० दिनके तीन भाग-प्रातः, मध्याह्न और सूर्यास्त । - संध्याव्यापिनी - वि० स्त्री० प्रातः काल से संध्याकालतक रहनेवाली ( तिथि ) । - संध्या-स्त्री० तीनों संध्याएँ । - सम- पु० सोंठ, गुड़ और हड़का समाहार | वि० जिसकी तीनों भुजाएँ बराबर हों (ज्या० ) । - सर - पु० तीन लड़ियों का मुक्ताहार; खिचड़ी - स्रोता (तस् ) - स्त्री० गंगा । न्त्रिक - पु० [सं०] तीनका समाहार; रीढ़का अधोभाग जहाँ कूल्हे की हड्डियाँ मिलती हैं, कटिदेश; कंधेकी हड्डियोंके बीचका भाग; त्रिफला, त्रिकटुः त्रिमद; तीन मार्गों के मिलनेका स्थान | वि० तेहरा; तीन प्रतिशत; तीसरी बार होनेवाला । - वेदना - स्त्री०, - शूल - पु० वातके प्रकोपसे कूल्हों और रीढ़की हडडीके संधिस्थान में होने वाली पीड़ा ।
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त्रिखा* - स्त्री० 'तृषा' ।
त्रिजग* -- पु० दे० ' तिर्यक्' । - जोनि - स्त्री० दे० ' तिर्यग्योनि' । त्रोण-पु० [सं०] तरकश | त्रिदशाचार्य - पु० [सं०] वृहस्पति ।
त्रोन* - पु० दे० 'त्रोण' ।
त्रिदशाधिप - पु० [सं०] इंद्र |
त्रिदोषना * - अ० क्रि० तीनों दोषोंसे ग्रस्त होना; काम,
क्रोध और लाभके वशमें होना ।
त्रिधा - अ० [सं०] तीन तरहसे; तीन भागोंमें । वि० तीन प्रकारका । मूर्ति पु० परमेश्वर जिसकी ब्रह्मा, विष्णु और महेश- तीन मूर्तियाँ हैं ।
त्रिपिताना* - अ० क्रि० तृप्त होना । स० क्रि० तृप्त या संतुष्ट करना ।
त्रिय, त्रिया* स्त्री० स्त्री, नारी । (त्रिया) चरित्र - पु० दे० 'तिरिया चरित्तर' |
त्रिषा - स्त्री० दे० 'तृषा' |
त्रिपित*, त्रिसित - वि० दे० 'तृषित' ।
थ - देवनागरी वर्णमालाका सत्रहवाँ व्यंजन वर्ण । थंडिल * - पु० यज्ञवेदी ।
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धर्म या भाव।
वैदशिक - वि० [सं०] दैविक, ईश्वरीय | ध-वि० [सं०] तेहरा । अ० तीन प्रकार से । त्रैमातुर- पु० [सं०] लक्ष्मण |
त्रैमासिक - वि० [सं०] तीन महीनोंका; तीन महीनों में होनेवाला हर तीसरे महीने निकलनेवाला । त्रैमास्य- पु० [सं०] तीन मासका समय । त्रैराशिक - पु० [सं०] तीन ज्ञात राशियोंके सहारे चौथी • अज्ञात राशि निकाल लेनेकी रीति (ग० ) । त्रैलोक्य - पु० [सं०] दे० 'त्रिलोक' । - नाथ- पु० राम । - बंधु - पु० सूर्य ।
त्रैवर्णिक - पु० [सं०] ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य - इन तीनों वर्णों का धर्म; ये तीनों वर्ण । वि० त्रिवर्ण-संबंधी । त्रैवार्षिक - वि० [सं०] तीन वर्षोंका; तीन वर्षों में होनेवाला । त्रोटक - पु० [सं०] एक शृंगारप्रधान नाटक; एक विषैला कीड़ा; एक राग; एक छंद ।
त्रिक - थकना
त्र्यंगुल - वि० [सं०] तीन अंगुलका ।
त्र्यंजन- पु० [सं०] कालांजन, रसांजन और पुष्पांजन | त्र्यंबक - पु० [सं०] शिव । - सख- पु० कुबेर । त्र्यंबका- स्त्री० [सं०] दुर्गा |
त्वक् ( चू ) - पु० [सं०] छिलका; वल्कल; चर्म; दारचांनी; चर्म में व्याप्त रहनेवाली एक बाह्य ज्ञानेंद्रिय जो स्पर्श द्वारा अपने विषयका ज्ञान कराती है। -छेदन- पु० चर्मकर्तन; सुन्नत । - तरंगक-पु० झुरीं । - पंचक - पु० बरगद, गूलर, पीपल, सिरीस और पाकड़की छाल । afiद्रिय - स्त्री० [सं०] स्पर्शेद्रिय | त्वग्जल - पु० [सं०] पसीना ।
त्वचकना * - अ० क्रि० पचकना, भीतरकी ओर धँसना; पुराना पड़ना ।
त्रुटि - स्त्री० [सं०] कमी, कसर; भूल, चूक; अंगहीनता । त्रुटित - वि० [सं०] टूटा हुआ; खंडित ।
त्रेता - पु० [सं०] चार युगोंमें दूसरा युग - ( इसकी अवधि त्वदीय - वि० [सं०] तुम्हारा |
• १२५६००० वर्ध मानी गयी है) । त्रै * - वि० तीन ।
त्वरा - स्त्री० [सं०] शीघ्रता, जल्दी ।-लिपि-स्त्री० (शार्टहैंड) दे० 'शीघ्रलिपि' ।
त्रैकालिक - वि० [सं०] त्रिकाल -संबंधी; तीनों कालों में होने- स्वरावान् (वत्) - वि० [सं०] शीघ्रता करनेवाला; द्रुतगामी, वाला; त्रिकालवर्ती ।
तेज; प्रखर ।
.
त्वचा - स्त्री० [सं०] चर्म, चमड़ा । - पत्र - पु० दारचीनी ।
कोणिक - वि० [सं०] तीन कोणोंवाला; तिपहला । त्रैगुण्य- पु० [सं०] तीनों गुणोंका समाहार; तीनों गुणों का
त्वरित - वि० [सं०] तीव्र गतिवाला, तेज । अ० तेजी से | स्वष्टा (ष्ट ) - पु० [सं०] विश्वकर्मा |
थ
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थँभना* - अ० क्रि० सँभलना; ठहरना, रुकना । थंभित* - वि० रुका हुआ, टिका हुआ; स्तब्ध |
थंब - पु० दे० 'थंभ' । थंबी - स्त्री० चाँड़, धूनी ।
थ - पु० [सं०] पहाड़; रक्षक; खतरेका चिह्ना एक रोग । थकन - स्त्री० दे० 'थकान' ।
थंभ* - पु० स्तंभ, खंभा - 'अति अद्भुत थंभनकी दुगई' - थकना - अ० क्रि० श्रमके कारण शिथिल होना, श्रांत होना;
राम० ।
थंभन - पु० रुकावट; एक तांत्रिक प्रयोग; स्तंभन करनेवाली औषध ।
२२
तंग आना; सुध-बुध भूल जाना; लुभा जाना; छकना; धीमा पड़ना । थका-माँदा - वि० थका, हारा हुआ, श्रमसे शिथिल । मु० थक जाना-तंग आ जाना, परेशान हो
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थकान-थाना
३४०
जाना; अशक्त हो जाना।
थरथराहट-स्त्री० कँपकँपी। थकान-स्त्री० थकावट, श्रांति, शैथिल्य ।
थरथरी-स्त्री० भय आदिके कारण होनेवाली कँपकँपी । थकाना-स० क्रि० श्रांत करना, शिथिल बना देना। थरसल*-वि० थहराया हुआ, स्तब्ध, हक्काबका। थकावट, थकाहट-स्त्री० दे० 'थकान' ।
थरहर-स्त्री० दे० 'थरथरी'। थकित-वि० श्रांत, शिथिल, थका हुआ; मुग्ध ।
थरहराना-अ० क्रि० दे० 'थरथराना' । थकौं हाँ*-वि० कुछ थका हुआ, थोड़ा शिथिल । थरहरी-स्त्री० दे० 'थरथरी' । थक्का-पु० किसी चीजका जमा हुआ टुकड़ा, लोंदा । | थरहाई-स्त्री० निहोरा, थराई । थगित-वि० रुका हुआ; शिथिल ।
थरि, थरी*-स्त्री० सिंह, बाघ आदिकी माँद । थणुसुत*-पु० शिवपुत्र-गणेश तथा कात्तिकेय । थरिया-स्त्री०३० 'थाली'। थति*-स्त्री० थाती; पूँजी।
थरु*-पु० दे० 'स्थल'। थत्ती-स्त्री० राशि, ढेर।।
थर्राना-अ० क्रि० काँप उठना, दहलना। थन-पु० गाय-भैंस आदिका स्तन, गाय-भैस आदिका थैली थल-पु० स्थल, स्थान, जगह, ठौर; खुश्की; फोड़ेका घेरा। जैसा अंग जिसमें दूध रहता है।
-चर-पु० पृथ्वीपर रहनेवाले जीव । -चारी-वि० थनेला-पु०,थनेली-स्त्री०स्त्रियोंके स्तनपर होनेवाला फोड़ा। पृथ्वीपर विचरण करनेवाला । -ज-पु० गुलाब । -पति थनैत-पु० गाँवका मुखिया; जमींदारका कारिंदा । -पु० राजा, भूपति । -बेड़ा-पु० नाव या जहाजके थपकना-स० कि० प्यार या लाड़-चावसे किसीकी पीठ किनारे लगनेकी जगह; (ला०) ठिकाना। -रुह-पु०
आदिपर हथेलीसे हलका आघात करना, थपकी देना। । पृथ्वीपर उगनेवाले वृक्ष आदि । थपका-पु० थक्का; थपकी।
थलकना-अ० क्रि० मोटाई या झोलके कारण चलने थपकी-स्त्री० हथेलीका हलका आघात ।
आदिमें हिलना; काँपना।। थपड़ी-स्त्री० ताली, करतलध्वनि।मु०-पीटना-बजाना थलथल-वि० मोटाई या ढीलेपनके कारण हिलता हुआ। - हथेलियोंके परस्पर आघात द्वारा शब्द उत्पन्न करना; थलथलाना-अ० क्रि० शरीरकी स्थूलताके कारण मांसका उपहास करना।
ऊपर-नीचे हिलना। थपथपी-स्त्री० दे० 'थपकी'।
थली-स्त्री० स्थान प्रदेश; भूमि; जलके नीचेका तल बैठक थपन*-पु० स्थापन, स्थापित करनेकी क्रिया । -हार- रेतीली जमीन; वह भूखंड जो अपने प्रकृत रूपमें हो। पु० पुनः स्थापित करनेवाला, प्रतिष्ठापक ।
थवई-पु० राजगीर, मकान बनानेवाला कारीगर । थपना*-अ० क्रि० स्थापित होना, स्थापित किया जाना । थहना-स० कि० थाह लेना; आंतरिक अभिप्रायका पता स० क्रि० स्थापित करना, स्थिर करना, दृढ़ करना;| लगाना।। जमाना; ठोकना । पु० थापी ठोकनेका साधन । थहरना-अ० कि. हिलना, काँपना । थपाना*-स० क्रि० स्थापित कराना।
थहराना-अ० क्रि० भयसे काँपना; हिलना। थपुआ-पु० चौड़ा-चिपटा खपड़ा जिसके ऊपर नरिया रखी
| थहाना-स० कि० थाह लेना, गहराईका पता लगाना। जाती है।
थॉग-पु० चोरोंका गुप्त अड्डा, खोज, सुराग; भेद । थपेड़ना-स० क्रि० चपत जमाना; आघात करना, ठोकर थाँगी-पु० चोरोंका मुखिया; चोरीका माल लेनेवाला; देना।
चोरोंका पता देनेवाला; चोरीका पता लगानेवाला, जासूस थपेड़ा-पु० चपत, चपेटा; घात-प्रतिघात, दरेरा, धक्का। चोरोंको आश्रय देनेवाला। थपोड़ी-स्त्री० दे० 'थपड़ी।
थाभ-पु० खंभा। थपोरी*-स्त्री० दे० 'थपड़ी' ।
थाँभना*-स० क्रि० दे० 'थामना' । थप्पड-पु० तमाचा, झापड़, चपेटा ।मु०-कसना,-थावला-पु० थाला। लगाना-तमाचा मारना ।
था-अ० क्रि० 'होना'का भूतकालिक रूप, रहा । थम*-पु० स्तंभ केलेकी पड़ी।
थाई*-वि० जो बहुत कालतक बना रहे, स्थायी । थमकारी-वि० रोकनेवाला, थामनेवाला ।
थाकना*-अ० क्रि० दे० 'थकना' । थमना-स० क्रि० रुकना, ठहरना, चालू न रहना, बंद थात-वि० बैठा या ठहरा हुआ, स्थित । होना, होता न रहना, रुक जाना प्रतीक्षा करना; ठहरा थाति -स्त्री० स्थिरता, स्थायित्व, ठहरने या रहनेको रहना; धैर्य रखना।
क्रिया; थाती। थर-पु० राजपूतानेके उत्तर में एक रेगिस्तान स्थल, जमीन | थाती-स्त्री० धरोहर, अमानत, किसीके पास जमा की हुई जगह । स्त्री० तह; शेरकी माँद ।
वस्तु; संचित धन, पूँजी। थरकना*-अ० क्रि० भयसे कंपित होना, थर्राना ।
थान-पु० स्थान; रहनेकी जगह; देवता, ब्रह्म आदिका थरकाना -सक्रि० भयसे कँपाना ।
स्थान; पशुओंके बाँधे जानेकी जगह; बँधी हुई लंबाईका थरकहाँ-वि० काँपता हुआ चंचल स्थिर ।
कपड़ेका बड़ा टुकड़ा; अदद। थरथर-अ० इस प्रकार कि सभी अंगामें कंपन हो जाय। थाना-पु० पुलिसकी चौकी; केंद्र; निवासस्थान, बाँसकी थरथराना-अ० क्रि० भयके मारे काँपना, काँपना। । कोठी । -पति--पु० ग्रामदेवता, स्थानका रक्षक देवता।
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३४१
थानु-)
(थाने)दार-पु० थानेका प्रधान अफसर, दारोगा। पु० स्थायी भाव । -दारी-स्त्री० थानेदारका पद या पेशा।
थिर-वि०स्थिर, गतिहीन, एक ही जगह अड़ा या रुका थानु*-पु० स्थाणु, शिव । -सुत-पु० गणेश ।
हुआ; अचल, अचंचल; एक ही स्थितिमें रहनेवाला । थानैत-पु० किसी स्थानका स्वामी, अधिपति या देवता।। -जीह*-पु. मछली। -थानी*-वि० एक स्थानमें थाप-स्त्री० 'थपकी ध्वनिके साथ तबले आदिपर किया गया स्थिर रहनेवाला। हथेलीका आधात; खुले हुए हाथका पूरा आघात, थप्पड़, थिरक-स्त्री० नृत्यमें चंचलताके साथ पैरोंका उठना, आदर, सम्मान; मर्यादा, गौरव; धाक; हाथ आदिका पूरा- गिरना तथा हिलना। पूरा पड़ा हुआ चिहा विश्वास, ठिकाना; शपथ । थिरकना-अ० क्रि० चंचलताके साथ पैरोंको उठाते, गिराते थापन-पु० पुनः स्थापित करने या स्थायी बनानेकी क्रिया, या हिलाते हुए नाचना; नाचने में अंगोंको हाव-भावके स्थापन; उखड़ी हुई जड़को जमानेवाला।
साथ संचालित करना; आगे-पीछे डोलना। थापना-स० क्रि० स्थापित करना; उखड़ी हुई जड़को मज-थिरकहाँ*-वि० थिरकनेवाला स्थिर । बूत करना; गोबर, गीली मिट्टी आदिको हाथसे पीटकर थिरता, थिरताई*-स्त्री० स्थिरता, ठहराव; अचंचलता; या साँचे आदिमें भरकर कोई वस्तु तैयार करना । स्त्री० स्थायित्व; शांति । स्थापना, प्रतिष्ठा।
थिरना-अ० क्रि० पानी आदि द्रव पदार्थीका हिलना रुक थापर*-स्त्री०, पु० दे० 'थप्पड़'।
जाना, क्षुब्ध या आलोडित जलका स्थिर होना; पानी में थापा-पु० गीली हल्दी, मेहँदी आदिसे बनाया हुआ हाथ- मिली मिट्टी आदिका नीचे बैठना; मैल आदिके नीचे का छापा पूजाका चंदा; चिह्न डालनेका छापा; साँचा; | जमनेसे पानीका निर्मल होना; ठहरना । राशि, ढेर नेपालियोंकी एक जाति ।
| थिरा*-स्त्री० पृथ्वी। . थापी-स्त्री० गच पीटनेकी चिपटी मुंगरी; कच्चा घड़ा पीटने-थिराना-स० कि० पानी आदि द्रव पदार्थोंका हिलना बंद
का कुम्हारोंकाची सिरेका लकड़ी या मिट्टीका एक औजार।। करना, आलोडित या क्षुब्ध जलको स्थिर होने देना थाम-स्त्री० थामनेकी त्रिया; पकड़ा अवरोध । *पु०खंभा। गंदे पानीको मैल उँटकर निर्मल होने देना। अ० क्रि० थामना-स० क्रि० अवरुद्ध करना, किसी वस्तुको गतिसे | दे० 'थिरना'। निवृत्त करना; गिरने, लुढ़कने आदिसे बचाना,रोके रहना; थीता*-पु० स्थिरता, शांति, चैन । पकड़ना, हाथमें लेना; सँभालना; किसी कार्यको अपने थीती*-स्त्री० दे० 'थीता'। जिम्मे लेना।
थीर*-वि० स्थिर। थायी*-वि० स्थायी ।-भाव-पु० दे० 'स्थायी भाव'। थुकहाई-वि० स्त्री० (ऐसी स्त्री) जिसे सभी धिक्कारें। थारी -स्त्री० 'थाली'।
थुकाई-स्त्री० थूकनेका काम । थाल-पु. काँसे या पीतलका थालीकी शकलका बड़ा बरतन। थुकाना-स० क्रि० थूकने में प्रवृत्त करना; थूकनेका काम थाला-पु० पौधे या वृक्षकी जड़के चारों ओर बनाया गया दूसरेसे कराना; किसी वस्तुको उगलवाना; निंदा कराना। क्यारीकी तरहका घेरा, आलबाल; फोड़ेकी सूजन । थुक्काफजीहत-स्त्री० धिक्कार और तिरस्कार । थालिका-स्त्री० थाला, आलबाल।
थुड़ी-स्त्री० धिक्कारसूचक शब्द, लानत । मु०-थुड़ी थाली-स्त्री. काँसे, पीतल आदिका गोलाकार छिछला | करना-धिक्कारना, थू-थू करना। -थुड़ी होना-सबकी पात्र जिसमें भोजन करते हैं, बड़ी तश्तरी । मु०--का | दृष्टिसे गिर जाना। बैगन-वह जो किसी एक मतका न हो।
थुतकारना-स० क्रि० 'थू-थू करना; किसी चीजपर बारथावर*-वि० अचल; जंगमका उलटा, स्थावर ।। | बार थूकना; घोर घृणा प्रकट करना । थाह-स्त्री० नदी, ताल, समुद्र आदिका तल या नीचेकी । थुत्कार-५० [सं०] थूकनेकी आवाजः थूकनेकी क्रिया। धरती; नदी आदिमें वह स्थान जहाँ बिना डूबे पाँव टिक थुथना-पु० दे० 'थूथन' । जाय या तल छूआ जा सके; गहराईकी सीमा, गाध; थुनी-स्त्री० दे० 'थुन्नी' । पार; सीमा; इंतिहा; किसी वस्तुकी इयत्ताका अनुमान; थुन्नी-स्त्री० खंभा, थूनी। छिपे तौरसे लगाया गया पता । वि० कम गहरा, उथला। थुपथुपी-स्त्री० थपकी; झोका । मु०-लगना-गहराईका पार मिलना। -लेना-गह
थुरना-स० क्रि० कूटना; (ला०) पीटना। राईका अंदाज लगाना; किसी वस्तुकी परिमिति या रहस्य- थरहथा-वि० छोटे हाथका; जिसकी हथेली में थोड़ी वस्तु की जाँच करना।
अँट सके-'कन दैवो सौंप्यो ससुर बहू थुरथी जानि'थाहना-स० क्रि० थाह लेना पार पानेका यत्न करना; बि०, कमखर्च। गहराईका पता लगाना; अंदाज लेना।
थुलमा-पु० एक तरहका पहाड़ी कंबल जिसमें ऊपरसे थाहरा*-वि० उथला, कम गहरा ।
बाल जमाये गये होते हैं। थिगली-स्त्री० पैबंद, चकती।
थुली-स्त्री० दलिया। थित*-वि० बैठाया ठहरा हुआ, स्थित ।
थू-पु० थूकनेका शब्द, थूकने में मुँहसे निकलनेवाला शब्द । थिति*-स्त्री० स्थिति, ठहराव बने रहनेकी क्रिया या भावः अ० घृणा और धिक्कार-सूचक शब्द, छिः, थुड़ी, लानत । पालन; दशा, परिस्थिति; स्थिरता, शांति । -भाव*- म०-थ करना-थुड़ी-थुड़ी करना, घृणा और तिरस्कार
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थूक दंड
सूचित करना । -थू होना - चारों ओर निंदा होना । थूक - पु० लारकी तरहका रस जो मुँहसे अपने आप छूटा करता है, खखार । मु० - लगाना - नीचा दिखाना । थूकों सत्तू सानना - अत्यंत कृपणता से काम चलाना; थोड़ी सामग्री से बड़ा काम करने लगना । थूकना - अ० क्रि० मुँहसे थूक बाहर निकालना या फेंकना; धिक्कारना, छिः छिः करना । स० क्रि० उगलना; निंदा करना । मु० थूककर चाटना - त्यक्त वस्तुको ग्रहण
करना ।
थूथन + - पु० लंबे मुँहका आगेकी ओर निकला हुआ भाग । धूनी - स्त्री० बोझको रोकने के लिए लगाया जानेवाला छोटा खंभा, स्तंभ, टेक |
थूला* - वि० मोटा, हृष्ट-पुष्ट ।
थूवा - पु० द्वह, टीला |
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रखनेवाला; खजाने में रुपये उठानेवाला । -बरदार - पु० थैली ढोनेवाला । मु० - खोलना -तोड़े गिनना; थैलीके सब रुपये दे देना ।
द- देवनागरी वर्णमालाका १८वाँ व्यंजन वर्ण । दंग - वि० [फा०] चकित, हक्का-बक्का । *५० खौफ, डर । दंगई - वि०, पु० दंगा करनेवाला, फसादी, लड़ाका । दंगल - पु० [फा०] कुश्ती आदिकी प्रतिद्वंद्विता; अखाड़ा; मजमा, समूह; गद्दा | मु०- बाँधना-हलका बाँधना । -मारना - कुश्ती जीतना । - लड़ना - कुश्ती लड़ना । दंगली - वि० [फा०] दंगल संबंधी; दंगल मारनेवाला; दंगल• जाने या भेजने के योग्य; लड़ने, युद्ध करनेवाला । दंगा - पु० झगड़ा-फसाद, बलवा, विप्लव, उत्पात; हला, कोलाहल | दंगेबाज़ - वि०, पु० दे० 'दंगई' | दंगाई-पु० दंगा करनेवाला, बलवाई । दंत - वि०, ५० दे० 'दंगई' |
दंड - पु० [सं०] डंडा, लगुड; ब्रह्मचारियों, संन्यासियों के धारण करनेका बाँस, पलाश आदिका डंडा; राजाके हाथ में रहनेवाला खड्ग या डंडा जो अधिकार और सजाका सूचक होता है; एंडेकी तरह कड़ी और सीधी वस्तु; बाजा बजानेकी कमानी या डंडा; आक्रमण; दमन; भूमिकी एक माप, लट्ठा; व्यूहका एक भेद; शरणागत-रक्षण आदि तीन कर्म; शासन; जुरमाना, डाँड़; साठ पल ( २४ मिनट ) का कालका एक सूक्ष्म विभाग, घड़ी; राजाओंकी चार नीतियोंमेंसे एक; यमः अभिमान; अश्व; कोण; मथानीका डंडा; तराजूकी डंडी; वह बाँस या डंडा जिसमें पताका लगी रहती है; हलमें लगी लंबी लकड़ी, हरिस; दंडवत् एक
थोक-पु० राशि, ढेर; फुटकर या खुदराका उलटा; एकत्र किया हुआ माल; मालकी बड़ी राशि । -दार- पु० थोक माल बेचनेवाला व्यापारी । -फरोश- ५० थोक माल बेचनेवाला व्यापारी । मु०-करना* जमा करना, एकत्र करना ।
थूरना * - स० क्रि० कूटना; पीटना; (ला० ) तोड़ देना; चूर थोथरा - वि० निःसार; बेकाम |
करना; हँस-हँसकर खाना । धूल * - वि० स्थूल ।
थोड़ा - वि० न्यून मात्राका, जो परिमाणमें कम हो, जरासा, अल्प, कुछ, किंचित् । अ० जरासा । बहुत-जराभना, कुछ-कुछ | -सा-तनिक, जरासा । थोड़े ही - एकदम नहीं (काकु) ।
थोथा - वि० निःसार; खोखला; निकम्मा; भोथरा । थोपड़ी, थोपी - स्त्री० चपत ।
थोपना - स० क्रि० मिट्टी आदिके लोंदेको किसी वस्तुपर
इस प्रकार रखना कि वह उसपर चिपक जाय; आरोपित करना; रोटी बनाने के लिए गीले आटेको तवेपर यों ही फैला देना; आक्रमण आदिसे रक्षा करना । थोबड़ा - पु० थूथन; तोबड़ा ।
थोर, थोरा - वि० दे० 'थोड़ा' | थोरिक* - वि० थोड़ासा ।
थूहड़ - पु० दे० ' थूहर ' ।
थूहर - पु० सेहुँड़ |
थेईथेई - स्त्री० नाचका एक ढंग और ताल । थैला - पु० कपड़े, टाट आदिका बना बटुएके आकारका बड़ा पात्र जिसमें चीजें रखी और बंद की जा सकें; रुपयोंका थैला, तोड़ा ।
थाँद* - स्त्री० दे० 'तोद' ।
थैली - स्त्री० छोटा थैला; रुपपोंकी थैली । - दार-पु० रोकड़ | ध्यावसा* - पु० स्थिरता, चैन, कल, धीरज ।
द
कसरत; पेड़का घड़; कमल आदिकी नाल; हाथीकी सूँड़; जहाज या नावका मस्तूल । -कर- पु० ( प्यूनिटिव टैक्स) दे० 'दंडात्मक कर' । -कर्म (न्) - पु० सजा देनेका काम; सजा । - चारी (रिन्) - पु० सेनापति । - ताडन - पु० अभियोगीको डंडे से पीटने की सजा, बेंतकी सजा ।-घरपु० वह व्यक्ति जो डंडा लिये हो, डंडा धारण करनेवाला; यमः राजा; शासक संन्यासी । - धारक - पु० न्याय करनेवाला । - धारणा - स्त्री० वह स्थान जहाँ शासनकी सुव्यवस्था के लिए सेना रखनी पड़े । -नायक- पु० सेनापति, सेनानी; न्यायाधीश, दंडविधायकः राजा । -नीति - स्त्री० शत्रुओं या अपराधियोंको दंड देकर वशमें रखनेकी नीति । - नेता (तृ) - पु० राजा यम; विचारपति । - न्यायालय - पु० (क्रिमिनल कोर्ट ) (विधि-विधानोंको भंग करनेवाले) अपराधोंका विचार, निर्णय करनेवाली अदालत, दंड व्यवस्था करनेवाला न्यायालय; दे० 'फौजदारी अदालत' । -प-पु० राजा । -पाणिपु० यम; काशीस्थ एक भैरवमूर्ति; वह व्यक्ति जिसके हाथमें दंड हो । - पाल, - पालक - पु० दंडनायक; द्वारपाल; एक मछली । -प्रणाम - पु० साष्टांग प्रणाम, वह प्रणाम जो पृथ्वीपर डंडेकी भाँति पड़कर किया जाय । - यात्रा - स्त्री० दिग्विजय के लिए प्रयाण; शत्रुपर की नयी चढ़ाई; वरयात्रा, बरात । -वध-पु० फाँसी, प्राणदंड । - विज्ञान - पु० (पीनॉलॉजी) अपराधके अनुरूप
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दंड देने तथा कारागृहकी व्यवस्था आदि संबंधी विद्या । - विधान- पु० दंडकी व्यवस्था, जुर्म और सजाका कानून । - विधि - स्त्री० दे० 'दंडविधान' । - व्यूह - पु० एक प्रकारकी व्यूहरचना जिसमें सेना के विविध अंग पॉस-पास कतारों में स्थित किये जाते थे । - शास्त्र - पु० जुर्म और सजाका कानून ।
दंडक - पु० [सं०] डंडा, सोंटा; हरिस; झंडेका डंडा; दंड देनेवाला, शासित करनेवाला; वह छंद जिसके प्रत्येक चरण २६ से अधिक अक्षर हों; दंडकारण्य । दंडकारण्य - पु० [सं०] विंध्यके दक्षिण एक प्राचीन वन जहाँ वनवास काल में रामने निवास किया था ।
दंडन - पु० [सं०] दंड देनेकी क्रिया, सजा देना, निग्रह | दंडना * - स० क्रि० दंडित करना, दंड देना । दंडनीय - वि० [सं०] दंड देने योग्य ।
दंडमान - वि० [सं०] दंडनीय |
दंडवत् - पु०, स्त्री० [सं०] डंडेकी तरह पृथ्वीपर पड़कर किया जानेवाला प्रणाम, साष्टांग प्रणाम ।
दंडात्मक - वि० [सं०] (प्यूनिटिव) ( सार्वजनिक उपद्रव आदि के कारण) क्षेत्र विशेष के लोगों को दंड देना ही जिसका उद्देश्य हो; दंड देनेकी गरजसे लगाया गया या बैठाया गया । - कर - पु० ( प्यूनिटिव टैक्स) दंड मा सजाके रूपमें लगाया गया कर, दंडकर, ताजीरी कर । दंडादंडि - स्त्री० [सं०] लाठियोंकी मार-पीट, वह मार-पीट जिसमें दोनों ओरसे लाठी चलती हो । दंडादेश - पु० [सं०] (सेंटेंस) किसी अपराधीको दंड देनेका न्यायाधीश द्वारा सुनाया जानेवाला आदेश या निर्णय । दंडादेशित - वि० [सं०] (सेंटेंस्ड) जिसे किसी अपराधके कारण न्यायालय ने दंडका आदेश दिया हो । दंडाधिकारी - पु० [सं०] ( मजिस्ट्रेट) फौजदारी मुकदमे सुनने और शासन प्रबंधका काम करनेवाला अफसर । दंडाधिप - पु० [सं०] स्थानविशेषका प्रधान शासक । दंडापूप - पु० [सं०] डंडा और पूआ । - न्याय- पु० एक तर्क-प्रणाली जिसके अनुसार आधेयरूप बात उसी प्रकार स्वतः सिद्ध मानी जा सकती है जिस प्रकार किसी डंडे के गायब हो जानेपर उसमें बँधे हुए पूएका गायब होना । डायमान- वि० [सं०] जो डंडेकी भाँति सीधा स्थित हो;
|
खड़ा ।
दंडाई - वि० [सं०] दंड पाने योग्य ।
दंडालय - पु० [सं०] अदालत, न्यायाधिकरण । दंडित - वि० [सं०] जिसे दंड दिया गया हो, सजायाफ्ता । दंडी (डिन् ) - पु० [सं०] यम; राजा; द्वारपाल पुलिसकर्मचारी; दंडधारी संन्यासी । दंडपबंध - पु० [सं०] ( सैक्शन ) किसी अधिनियम या अंतरराष्ट्रीय संधिके साथ लगा हुआ यह उपबंध कि उसका पालन न करनेपर उल्लंघनकारीको क्या दंड मिलेगा । दंड्य - वि० [सं०] दे० 'दंडनीय' । - षड्यंत्र - पु० (क्रि मिनल कांस्पिरेसी) ऐसा षड्यंत्र जो देशकी विधि-व्यवस्था के अनुसार दंडनीय हो, अपराद्ध षड्यंत्र । दंत - पु० [सं०] दाँत; पठार; कुंज; ३२ की संख्या । - कथा - स्त्री० किंवदंती, जनश्रुति ।
-क्षत - पु०
२२-क
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दंडक - दंभान
कविप्रसिद्धि के अनुसार कामकेलिमें कपोलों, अधरोंपर दाँत काटने से पड़नेवाला चिह्न । -च्छद-पु० ओष्ठ, होंठ । - छत, छद* - पु० दे० 'दंतक्षत' । जात-पु० वह बच्चा जिसके दाँत निकल आये हों; दाँत निकलनेका समय । : धावन - पु० दाँत साफ करनेका काम, दंतमार्जन; दातौन; करंजका पेड़; मौलसिरीका पेड़ । -पंक्तिस्त्री० दे० 'दंतालि' । - पात - पु० दाँत गिरना । - प्रक्षालन - पु० दाँत साफ करना । -बीज, - बीजक, - वीज-पु० अनार । -मूल-पु० दाँतकी जड़; एक औषध; दाँतका एक रोग । - लेखक - पु० दाँतकी रँगाई से जीविका चलानेवाला । - वेष्ट-पु० दाँतका एक रोग; मसूड़ा; हाँथीदाँत पर चढ़ाया जानेवाला छल्ला । - शर्करा - स्त्री० दाँतपर जमनेवाली पपड़ी । -शोफपु० मसूड़ों की सूजन - श्लिष्ट - वि० दाँतों में अँटका हुआ । दंतादंति - स्त्री० [सं०] लड़ाई-झगड़ेमें एक दूसरेको दाँत से
काटना ।
दंतायुध - पु० [सं०] सूअर (जिसका आयुध उसका दाँत है) । दैतार- वि० बड़े दाँतोंवाला । पु० हाथी । दंतार्बुद - पु० [सं०] मसूड़े में होनेवाला फोड़ा । दंतालि - स्त्री० [सं०] दाँतों की कतार । दंति - पु० हाथी ।
दतिया - स्त्री० छोटे-छोटे दाँत ।
दंती (तिन् ) - पु० [सं०] हाथी; गणेश; पहाड़ । वि० दाँतोंवाला । - चक्र - पु० (गिअर) साइकिल या किसी यंत्रादिका दाँतोंसे युक्त पहिया अथवा पहियोंका समूह जो गति प्रदान करनेमें सहायक होता है। -मद- पु० हाथी के मस्तक से चूनेवाला मद ।
दंतुर - वि० [सं०] जिसके दाँत आगेकी ओर निकले हों । दैतुरिया * - स्त्री० बच्चों के नये-नये दाँत ।
तुला - वि० जिसके दाँत बड़े या आगेकी ओर निकले हों । दंतोभेद - पु० [सं०] दाँतोंका निकलना । -काल - पु० (टीथिंग पीरियड) वह समय जब बच्चे के दाँत निकल रहे हों । दंतोष्ठ्य - वि० [सं०] दाँत और ओठसे उच्चरित होनेवाला । दंत्य - वि० [सं०] जिसका उच्चारणस्थान दंत हो। दंद * - पु० द्वंद्व, झगड़ा, उपद्रव । स्त्री० गरमी । दंदन* - वि० दमन करनेवाला ।
दंदान - पु० [फा०] दाँत । - साज-पु० दाँत बनानेवाला । दंदाना - अ० क्रि० गरमाना, गरम हो लेना । पु० [फा०] आरा, कंघी आदिका दाँत । - (ने) दार - वि० जिसमें दंदाने हों ।
दंदी* - वि० झगड़ालू, उपद्रवी । दंपति * - पु० दे० 'दंपती' ।
दंपती - पु० [सं०] पति-पत्नी, स्त्री-पुरुष । दंपा* - स्त्री० विद्युत्, बिजली ।
दंभ - पु० [सं०] पाखंड, आडंबर, ढकोसला; अभिमान; कपट; शाट्य; इंद्र का वज्र; शिव । दंभक - वि०, पु० [सं०] पाखंड ; वंचक, कपटी । दंभन - पु० [सं०] ढोंग करना, पाखंड करना । दंभान* - पु० पाखंड; घमंड - 'हौं जु कहत लै चलो जानकी छाड़ि सबै दंभान' - सू० ।
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दंभी - दगली
दंभी ( भिन्) - वि० [सं०] दंभ करनेवाला, पाखंडी | देवरी - स्त्री० अनाज निकालने के लिए सूखे डंठलोंको बैलोंसे रौंदवाना ।
वारि* - स्त्री० दवाग्नि । दंश - पु० [सं०] दाँत काटने या डंक मारनेकी क्रिया; दाँत काटनेका घाव विषैले जंतुके काटने या डंक मारनेका घाव; चुभने वाली बात; एक प्रकारकी बड़ी मक्खी जो बहुत तेज काटती है, डाँस, वनमक्षिका; दाँत । दशक - वि० [सं०] काटनेवाला; डंक मारनेवाला । दंशन - पु० [सं०] काटने या डंक मारनेकी क्रिया; कवच । दशना* - स० क्रि० दाँतसे काटना या डंक मारना । दंशित - वि० [सं०] जो हँसा गया हो, जिसे किसीने दाँत से काट लिया हो; जिसने कवच धारण किया हो, सन्नद्ध । दंष्ट्रा - स्त्री० [सं०] दाद, चौभर । - कराल - वि० भयंकर दाँतोंवाला ।
|
दइमारा* ~ वि० दे० 'दई मारा' |
दई - पु० दैव, भाग्य, विधि, विधाता । -दई - -अ० हा दैव ! हा दैव !, ईश्वरकी दुहाई। मारा - वि० देवका मारा हुआ, हतभाग्य ।
दक्षिणायन - पु० [सं०] सूर्यका विषुवत् रेखाकी ओर से मकर रेखाकी ओर गमन; ६ महीनोंका समय जिसमें सूर्य विषुवत् रेखा से दक्षिणकी ओर रहता है । वि० दक्षिणकी ओर गया हुआ ।
दंष्ट्रायुध - पु० [सं०] शूकर, वराह ।
दंस* - पु० दे० 'दंश' ।
द - वि० [सं०] (समासांत में) देनेवाला; उत्पन्न करनेवाला । दक्षिणावर्त - पु० [सं०] वह शंख जिसमें हवा निकलनेका दद्दत * - पु० दे० 'दैत्य' ।
मार्ग दाहिनी ओर हो । वि० दक्षिण दिशा में स्थित; जिसका घुमाव दाहिनी ओर हो ।
दक्षिणाशा - स्त्री० [सं०] दक्षिण दिशा । - पति - पु० यम । दक्षिणी - पु० दक्षिण देशका निवासी । वि० दक्षिण देशका | दक्षिणीय - वि० [सं०] जो दक्षिणा पाने योग्य हो ।
सनारूढ़ हुआ था ।
दकियानूसी - वि० पुराना, कदीमी; पुराने खयालका, पुराणपंथी ।
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३४४
दक्षिण दिशा में । - पवन - पु० दक्षिण या मलयागिरिकी ओरसे आनेवाली हवा । -मार्ग - पु० एक तंत्रोक्त आचार; पितृयान ।
दक्षिणा - स्त्री० [सं०] दक्षिण दिशा; यज्ञ, दानकर्म आदिके अंत में ब्राह्मणों और पुरोहितोंको दिया जानेवाला द्रव्य । वि० [स्त्री० (वह नायिका) जो दूसरे नायकमें अनुरक्त रहती हुई भी पूर्व नायक के प्रति प्रेम और सद्भाव रखती है । - पथ- पु० भारतका दक्षिण भाग । दक्षिणाचल - पु० [सं०] मलय गिरि । दक्षिणाचारी (रिन) - वि०, पु० [सं०] शुद्ध आचरणवाला; शक्तिपूजक
दक़ीक़ा - पु० [अ०] सूक्ष्म वस्तु; युक्ति, उपाय । मु०उठान रखना, बाकी न छोड़ना - कोई कसर न छोड़ना । दक्खिन - पु० प्रातःकाल सूर्यकी ओर मुँह करके खड़े होनेपर दाहिने हाथकी ओर पड़नेवाली दिशा; भारतवर्षका दक्षिणी भाग, दक्षिण देश । अ० दक्षिण दिशा में । दक्खिनी - वि० दक्खिनकी ओर पड़नेवाला; दक्षिण दिशा में स्थित; दक्षिण देशका; जिसकी उत्पत्ति दक्षिण देशमें हुई हो; दक्षिण देश संबंधी । पु० दक्षिण देशका निवासी, दाक्षिणात्य ।
दक्ष - वि० [सं०] जिसमें किसी विषयको तत्काल समझने तथा कोई कार्य तत्काल करनेकी शक्ति हो, कुशल, निपुण, सिद्धहस्त, माहिर, चतुर; ईमानदार; दाहिना, दक्षिण । पु० एक प्रजापति; नंदी; अग्नि; शिव; वह नायक जिसके कई नायिकाएँ हों । - कन्या - स्त्री० दक्ष प्रजापतिकी कन्या, सती; दुर्गा । -जा, - तनया - स्त्री० दे० 'दक्षकन्या' । दक्षता अर्गल - पु० [सं०] (एफिशिएंसी बार) दे० ' प्रगुणताअर्गल' । दक्षिण - पु० [सं०] उत्तरके सामनेकी दिशा, दक्खिन; विष्णु शिव; एक तंत्रोक्त आचार; नायकका एक भेद; दाहिना हाथ; दाहिना पार्श्व । वि० दाहिना; दक्षिण दिशा में स्थित; दूसरेकी इच्छा के अनुसार कार्य करनेवाला, अनुकूल; ईमानदार, सच्चा; अपनी सभी नायिकाओं में तुल्य अनुराग रखनेवाला (नायक); पटु । अ० दक्खिनकी ओर,
दक्षिणाभिमुख - वि० [सं०] जिसका मुँह दक्षिणकी ओर हो; दक्षिण दिशाकी ओर बहनेवाला ।
दकियानूस - पु० एक रोमन सम्राट् जो ३४९ ई० में सिंहा- दक्षिन* - पु० दे० 'दक्षिण' ।
दक्षिनी* - वि० दे० 'दक्षिणी' ।
दखमा पु० वह स्थान जहाँ पारसी अपने मुर्दे पक्षियोंके खा जानेके लिए रख आते हैं । दखल-पु० [अ०] प्रवेश, घुसना; कब्जा, अधिकार, अख्ति यार | --दिहानी - स्त्री० कानूनी ढंगसे दखल दिलाना । - नामा - पु० वह सरकारी आज्ञापत्र जिसमें किसीको किसी वस्तुको स्वायत्त करनेकी आज्ञा दी गयी हो, दखल पानेका परवाना | मु०- देना - हस्तक्षेप करना । दखील - वि० [अ०] दखल देनेवाला; काविज, जिसके अधिकारमें हो। - कार - पु० जमीनपर स्थायी कब्जेका अधिकारी काश्तकार; कारबार में दखल देनेवाला; सलाहकार ।
दग़दग़ा - वि० चमकता हुआ । पु० एक तरहकी छोटी कंडी, [अ०] डर, भय; अंदेशा, संदेह । दगदग़ाना - अ० क्रि० चमकना; रौशन होना । स० क्रि०
चमकाना ।
दगदगाहट - स्त्री० चमक-दमक; तमतमाहट । दगधना * - अ० क्रि० जलना; पीड़ित होना । स० क्रि० जलाना; कष्ट देना; ठगना ।
दगना - अ० क्रि० (बंदूक, तोप आदिका) छूटना या चलाया जाना, दागा जाना; जलना; चिह्नयुक्त होना; प्रसिद्ध होना । स० क्रि० दे० 'दागना' | दगरा* - पु० देर, विलंब मार्ग, डगर । दगल * - पु० दे० 'दगला' |
दगला - पु० एक लंबा ढीला पहनावा, लबादा । दगली-स्त्री० दे० 'दगला' ।
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दगवाना-दफ्तर दगवाना-स० क्रि० दागनेका काम दूसरेसे कराना।
राज-पु० दे० 'ददिहाल' । दगहा-वि० दागा हुआ, दागदार । पु० मृतक संस्कार ददियाल-पु० दे० 'ददिहाल' । करनेवाला।
ददिया ससुर-पु० ससुरका पिता। दग़ा-स्त्री० [फा०] धोखा, फरेब, छल । -दार-वि० फरेब ददिया सास-स्त्री० समरकी माता, सासकी सास । करनेवाला, धोखेबाज, छलिया। -बाज़-वि० धोखा | ददिहाल-पु० दादाका कुल या घर । देनेवाला, कपटी। -बाज़ी-स्त्री० धोखेबाजी, फरेब, छल। | ददोड़ा-पु० दे० 'ददोरा'। दगल-वि०जिसे दाग लगा हो; खोटा; दगाबाज, छलो। ददोरा-पु० चकत्ता जो मच्छर आदिके काटने या खुजदग्ध-वि० [सं०] जला या जलाया हुआ, भस्मीकृत; लानेसे शरीरपर पड़ जाता है। पीडित, संतप्त धूर्त; अशुभ नीरस तुच्छ, निकृष्ट । पु० दग-पु० [सं०] एक प्रकारका कुष्ठ, दाद नामका रोग । एक घास । -काक-पु० डोमकौआ।
-न-पु० चक्रमर्द, चकवड़। दग्धा-स्त्री० [सं०] वह दिशा जिसमें सूर्य बराबर सिरपर दध*-पु० दे० 'दधि' । -सार-दे० 'दधिसार'। रहता है। कुछ विशेष तिथियाँ जो अशुभ मानी जाती हैं। दधना*-अ० क्रि० दे० 'दहना'। दग्धा(ग्ध)-वि०, पु० [सं०] जलानेवाला ।
दधि-पु० [सं०] दही; वस्त्र । -काँदो-पु० [हिं०] कृष्ण दग्धाक्षर-पु० [सं०] कुछ अक्षर-झ, ह, र,भ और ष- जन्माष्टमीके बाद पड़नेवाला एक उत्सव जिसमें लोग जिनका छंदके आरंभमें प्रयोग करना निषिद्ध है।। हल्दी मिला हुआ दही एक-दूसरेपर फेंकते हैं । कृष्णजन्मदग्धित-वि० दे० 'दग्ध' ।।
के उपलक्ष्यमें गोकुलमें यह उत्सव मनाया गया था और दचक-स्त्री० दचकनेकी क्रिया; दचका; धक्का दबाव । तभीसे चला आ रहा है। -ज,-जात-पु० मक्खन । दचकना-अ० क्रि० दबना; नीचे-ऊपर होना; झटका। -मंथन-पु० दही मथना । -मुख,-वक्त -पु० रामखाना । स०क्रि० धक्का लगाना; दबाना ।
की बानरी सेनाका एक सेनापति; एक तरहका साँप । दचका-पु० सवारीके नीचे-ऊपर होनेसे लगनेवाला धक्का; -सार-पु० दहीसे निकाला हुआ मक्खन । ठोकर।
दधि -पु० उदधिः समुद्र। -ज,-जात-पु० चंद्रमा । दचना*-अ० क्रि० पड़ना, गिरना।
-सुत-पु० कमल; चंद्रमा; मोती; विष, हलाहल; जलंदच्छ*-पु० दे० 'दक्ष'। -कुमारी,-सता-स्त्री० दे० धर नामक दैत्य ।-सुत-सुत-पु०पंडित, विज्ञ।-सुता'दक्षकन्या'।
स्त्री० सीप, शुक्ति । दच्छना, दच्छिना -स्त्री० दक्षिणा, ब्राह्मणोंको दिया। दधीच, दधीचि-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध ऋषि जिनकी जानेवाला दान; भेट ।
हड्डीसे इंद्रका वज्र बना था । दच्छिन*-वि०, पु०, अ० दे० 'दक्षिण ।
दनदनाना-स० क्रि० 'दन-दन' शब्द करना; खुशी दढ़ना-अ० क्रि० जलना।
मनाना। दढ़ियल-वि० दाढ़ीवाला।
दनादन-अ० 'दन-दन' की आवाजके साथ । दतवन-स्त्री० दातीन ।
दनु-स्त्री० [सं०] कश्यप ऋषिकी एक पत्नी जिसके पुत्र दतारा-वि० बड़े दाँतोंवाला (हाथी)।
दानव कहलाये ।-ज-पु० दानव, असुर । -ज दलनीदतिया-स्त्री० दाँतका अल्पार्थक, छोटा दाँत ।
स्त्री० दुर्गा ।-ज द्विद् ()-पु० देवता ।-ज राय*दतुअ(व)न, दतू(तौ)न-स्त्री० दे० 'दातन' ।
पु० हिरण्यकशिपु । -ज पति-पु० रावण । -पुत्र,दत्त-पु० [सं०] दत्तात्रेय; दत्तक (पुत्र); दान । वि० दिया। संभव,-सून-पु० दे० 'दनुज'। हुआ; दान किया हुआ; सुरक्षित । -चित्त-वि० जिसका दनुजारि-पु० [सं०] देवता, सुर । मन किसी कार्य में अच्छी तरह लगा हो, एकाग्र ।-दृष्टि- दनुजेंद्र, दनुजेश-पु० [सं०] रावण; हिरण्यकशिपु । वि० जिसकी दृष्टि किसी एक वस्तुपर लगी हो, कृतेक्षण । | दनू*-स्त्री० दे० 'दनु' ।। दत्तक-पु० [सं०] जो औरस पुत्र न होनेपर शास्त्र-विधिसे | दपट-स्त्री० डाँटने-डपटनेकी क्रिया; घुड़की । पुत्र बना लिया गया हो, गोद लिया हुआ पुत्र, मुतबन्ना। | दपटना-स० कि० घुड़कना, डाँटना । -ग्रहण-पु० (एडॉप्शन) किसीको दत्तक (गोद लिया। दपु*-पु० दर्प, अहंकार । हुआ पुत्र) बनानेका कार्य, दत्तक ग्रहण करने या स्वीकार दान-पु० [अ०] गाड़ना; किसी वस्तु या मुरदेको करनेके कार्य।
जमीनमें गाड़नेका काम । दत्तात्मा(त्मन्)-पु० [सं०] वह जो माता-पिताके दफ़नाना-स० क्रि (मुरदेको) जमीनमें गाड़ना । निधनके कारण अथवा उनके द्वारा त्यागे जानेपर स्वयं दफा-स्त्री० बार, मर्तबा; किसी कानूनकी किताबका वह किसीके यहाँ जाकर उसका दत्तक पुत्र बने।
अंश जिसमें एक नियमका उल्लेख हो, कानूनका एक दत्तात्रेय-पु० [सं०] अत्रि ऋषिके पुत्र जो विष्णुके चौबीस | नियम, धारा। -दार-पु० चौकीदारोंका मुखिया । अवतारोंमेंसे एक अवतार माने जाते हैं।
दफ्रा-पु० [अ०] दूर करना, हटाना, ढकेलना। दधिम-वि० [सं०] दानसे प्राप्त । पु० बारह प्रकारके दफीना-पु० [अ०] पृथ्वीमें गाड़ा हुआ धन, दफन किया पुत्रोंमेंसे एक, दत्तक पुत्र ।
हुआ खजाना। ददा-पु० दे० 'दादा'।
दफ्तर-पु० [अ०] हिसाब-किताबके कागज, बही, रजिस्टर,
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दफ़्तरी- दम
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डालना - प्रभावित करना ।
वह स्थान जहाँ किसी संस्था या कंपनी आदिके कर्मचारी | दबाव - पु० दबानेकी क्रिया या भाव, चाँप, दाब । मु०लिखा पढ़ी, लेन-देन आदिका कार्य करते हों; किसी अधिकारीका निजी कमरा जहाँ वह अपने कार्यकी देख-रेख करता हो, कार्यालय; बड़ा चिट्ठा, लंबी कहानी । दफ़्तरी - पु० [अ०] वह जो दफ्तर में जिल्दवंदी, रूल खींचने आदिका काम करता हो; जिल्दबंदी करनेवाला । - ख़ाना - पु० दफ्तरीके काम करनेका स्थान । दफ़्ती, दफ़्तीन- स्त्री० [फा०] कई कागजोंको आपसमें चिपकाकर बनाया हुआ मोटा कागज जो जिल्द बाँधनेके काम आता है, कुट
दबंग-वि० जो किसीसे दबता न हो; जिसका दूसरोंपर प्रभाव हो, प्रभावशाली; रोबीला ।
दबक- स्त्री० दबकनेकी क्रिया, सिमटना; धातुको पीटकर लंबा करनेकी क्रिया । -गर-पु० धातुको पीटकर लंबा करनेवाला |
दबकना - अ० क्रि० भयके मारे सिमटकर तंग जगह या आड़ में छिपना; दबका रह जाना । स० क्रि० पीटकर लंवा करना; * डाँटना, डपटना ।
दबकवाना - स० क्रि० दबकानेका काम दूसरे से कराना | दबका - पु० धातुका पीटकर लंबा किया हुआ तार । दबकाना - स० क्रि० छिपाना; ओटमें करना; डाँटना । दबदबा - पु० आतंक; रोब-दाब ।
दबना - अ० क्रि० भार या दाबके नीचे पड़ना; ऐसी स्थितिमें होना जिसमें किसी ओर विशेष भार पड़े; प्रबल शत्रु द्वारा आक्रांत होकर पीछे हटना; किसीसे त्रस्त या अधिक प्रभावित होकर उसके अनुकूल आचरण करना, किसीसे डरकर उसका विरोध न करनेके लिए बाध्य होना; फीका पड़ना; किसी बात या मामलेका गुप्त रह जाना अथवा आगे न बढ़ना; जोर न पकड़ना, शांत रहना; ठंडा पड़ना; किसी वस्तुका दूसरेके हाथमें इस प्रकार पड़ जाना कि वह फिर मिल न सके; (किसी अभावके कारण) अधिक लाचार हो जाना; झेंप खाना, संकुचित होना । दबवाना - स० क्रि० ददानेकी क्रियामें दूसरेको लगाना । दबा - वि० भारसे आक्रांत किसी ओरको झुका हुआ । (दबी) आवाज़ - स्त्री० धीमा स्वर । (दुबे) पाँव - अ० इस प्रकार कि किसीको पैरकी आहट मालूम न हो, आहिस्ते, चुपके । मु० (दबी) ज़बानसे कहना - डरतेडरते अस्पष्ट शब्दोंमें कहना । (दबे ) - दबाये रहनाचुपचाप पड़ा रहना ।
दबाना - स० क्रि० भार या दबावके नीचे लाना; भार या
जोर पहुँचाना थकान या पीड़ा दूर करनेके लिए किसी अंगपर जोर पहुँचाना; दमन करना; सामने टिकने न देना, बलपूर्वक पीछे हटाना; किसीको इतना त्रस्त या प्रभावित करना कि वह विरुद्ध आचरण न कर सके, किसी पर रोब जमाकर उसे स्वच्छंद आचरण न करने देना; निजी गुणोंके द्वारा किसीको मात करना; किसी बात या मामले को आगे न बढ़ने देना, ज्योंका त्यों रहने देना; भड़कने न देना, शांत करना, जोर न पकड़ने देना; किसीकी कोई वस्तु हड़पना लाचार बना देना, विवश करना; दफन करना; छिपाना ।
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दबीज - वि० [फा०] मोटा, गफ, ठस, मजबूत | दबैल - वि० जिसपर दबाव पड़ा हो; दब्बू, दबनेवाला । दबोचना - स० क्रि० झपटकर दवा बैठना, घर दवाना; छिपाना ।
दबोरना * - स० क्रि० बलपूर्वक पीछे हटा देना; दबाना | दमकना * - अ० क्रि० चमकना ।
दम - पु० [सं०] दंड, दमन; बाह्येद्रियों को उनके विषयोंसे निवृत्त करना, बाह्य वृत्तियों का निग्रह; कुकर्मोंसे मनको हटाना, कर्दम, कीचड़; [फा०] श्वास, साँस; पल, लहजा, क्षण; जान, जिंदगी; ताकत, जोर; हुक्क आदिका कश; धोखा, फरेव पानीका घूँट; तलवारकी धार; नेजेको नोक; समय, वक्त; कुछ कच्ची खाद्य वस्तुको पकने के लिए पात्रका मुँह बंद करके धीमी आँचपर रखनेकी क्रिया । आलू-पु० आलूकी मसालेदार तरकारी जिसमें आलू खड़े रहते हैं । - कल - पु० एक या अधिक नलवाला यंत्र - विशेष जिसमें भरा हुआ तरल पदार्थ, विशेषतः पानी हवाके वलसे उक्त नलों द्वारा किसी ओर झोंकेसे फेंका जा सके; उक्त ढंगका आग बुझानेका प्रसिद्ध यंत्र । - कला - पु० दमकलके नमूनेपर बना हुआ महफिल आदि में गुलाबजल छिड़कने का एक यंत्र; दमचूल्हा । - चूल्हा - पु० लोहेका एक प्रकारका चूल्हा जिसमें कोयला जलता है । -झाँसा - पु० मिथ्या आश्वासन, झूठी सांत्वना । - दार- वि० ढ़, जिसमें जीवनी शक्ति अधिक हो; तेज । - दिलासा - पु० कोरी आशा; फुसलावा । -पट्टी-स्त्री०, बुत्तापु० झाँसापट्टी । - पर दम - बन्दम- अ० प्रतिक्षण; बार-बार । - बाज़ - वि० दम देनेवाला, झूठा आश्वासन देनेवाला; फरेबी | बाज़ी - स्त्री०दम या झूठा आश्वासन देनेका काम; धोखा; फरेब । -साज़- पु० गाते समय गवैये के साथ सुर भरनेवाला । मु०-अटकना - श्वासका अवरुद्ध होना । - खींचना - चुप्पी साधना, कोई हरकत न करना; श्वासको ऊपर चढ़ाना। -घुटना - हवाकी कमीसे श्वास न लिया जाना; श्वास-प्रश्वास क्रियाका बंद होना । - घाँटना- किसीकी श्वासक्रिया रोक देना, साँस न लेने देना; गला दबाकर या अन्य प्रकार से किसीका साँस लेना बंद करना । -चुराना - साँस रोककर अपनेको मरा हुआसा जाहिर करना । - टूटना - साँस रुक जाना; दौड़ने आदिमें अधिक श्रांत होकर हॉफने लगना । - तोड़ना - आसक्तिवश किसीसे वियुक्त होनेपर जान जानेकासा अत्यधिक कष्ट होना; मर जाना । - नाक (या नाक में दम ) आना - बहुत परेशान होना । - निकलना - प्राण निकलना, मृत होना। -पचनाकिसी श्रमके कार्यमें इतना अभ्यस्त होना कि साँस न फूले । - पर आ बनना - दे० 'जानपर आ बनना' । - फ़ना होना - मर जाना; जी सूख जाना। -फूलनाअधिक श्रांत होने या दमेके कारण साँसका भारीपन और वेगके साथ चलना। -भरना - साँस चढ़ना; हर वक्त किसीकी तारीफ करना; मुहब्बत का दावा करना; भरोसा करना; यकीन करना । - मारना - धकावट दूर करनेके
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दमक-दरकना लिए थोड़ी देर रुक जाना, सुस्ताना। -में दम रहना
दयाका भांडार, वह व्यक्ति जिसमें कूट-कूटकर दया भरी या होना-जान रहना, प्राण रहमा। -लगाना
हो। -निधि-पु० परमेश्वर; दे० 'दयानिधान' । गाँजा, चरस आदिका कश लेना या धुआँ खींचना । -पान-वि० जो कृपा करनेके योग्य हो; जिसपर किसी-लेना-दे० 'दम मारना' ।-साधना-श्वास रोकनेका | की दया हो। -वीर-पु. वह नायक जिसके हृदय में अभ्यास करना; मौन ग्रहण करना, चुप लगाना; साँस दया करनेका अधिक उत्साह हो। -शील-वि०जिसका रोकना । -हाँठौंपर आना-मरनेकी स्थितिमें होना; स्वभाव दया करनेका हो, दयालु । -सागर-पु० दयामरणासन्न होना।
वान् व्यक्ति । दमक-स्त्री० चमक, चाकचिक्य, प्रभा । पु० [सं०] दमन दयानत-स्त्री० [अ०] ईमानदारी, सचाई। -दार-वि० करनेवाला, दबानेवाला ।
ईमानदार। दमकना-अ० क्रि० चमकना,द्योतित होना; सुलग उठना।। दयाना*-अ० क्रि० दयार्द्र होना, कृपायुक्त होना। दमड़ी-स्त्री० पेसेका आठवाँ हिस्सा; एक पक्षी। -के दयामय-पु० [सं०] परमेश्वर । वि० अत्यंत कृपालु । तीन- बहुत सस्ता।
दयार-पु० देवदार । * वि० दयालु । दमदमा-पु० थैलों में बालू आदि भरकर की गयी मोरचे- दयाई-वि० [सं०] जिसका हृदय दयासे द्रवित हो, दयालु । बंदी नकारेकी आवाज; तोपोंकी आवाज, शोहरत । दयाल*-वि० दे० 'दयालु'। दप्सन-पु० [सं०] दबाने या बलपूर्वक शांत करनेका काम; | दयालु-वि० [सं०] कृपायुक्त ।
आत्मनियंत्रण; दंड देना; वध; इंद्रियोंकी बाह्य वृत्तियोंका दयावंत*-वि० दयावान् । निरोध; सारथि सैनिक, योद्धा दौना एक ऋषि जिनके दयावना*-वि० दयनीय, दयाके योग्य । आशीर्वादसे दमयंतीकी उत्पत्ति हुई थी। वि० अनुशासित | दयावान (वत्)-वि० [सं०] दयालु, कृपायुक्त । करनेवाला; पराजित करनेवाला; शांत । -शील-वि० दयित-वि० [सं०] प्रिय, मनचाहा । पु० प्रिय व्यक्ति पति । जिसका स्वभाव दमन करनेका हो, जो बराबर दमन | दयिता-स्त्री० [सं०] पली; प्रेयसी। किया करता हो।
दर-स्त्री० भाव; गौरव, महत्ता। वि. अल्प, थोड़ा। दमनक-पु० [सं०] एक छंद; दौना ।
पु० [सं०] भय; विदारण; गढ़ा; कंदरा, गुहा; शंख दमना-स० क्रि० दमन करना, दबाना; दूर करना।। स्रोत; दल, सैनिकों या पार्श्वचरोंका समूह; ईख, पु० द्रोणलता, दौना।
[फा०] द्वार, दरवाजा, फाटक, दहलीज। अ० में, दमनी-स्त्री० संकोच; लज्जा।
अंदर। -असल-अ० असलमें, वास्तवमें। -कारदमनीय-वि० [सं०] दमन करने योग्य ।
वि० आवश्यक, जरूरी। -किनार-वि० अलग, जुदा; दमयंती-स्त्री० [सं०] विदर्भ नरेश भीमसेनकी कन्या और । बगलमें अलहदा; एक तरफ । -कूच-अ० पड़ाव बदराजा नलकी पत्नी।
लते हुए, बराबर आगे बढ़ते हुए। -ख्वास्त-स्त्री० दमरी*-स्त्री० दे० 'दमड़ी।
प्रार्थना प्रार्थनापत्र, अजी। -गह-पु०,-गाह-स्त्री० दमा-पु० एक प्रसिद्ध श्वासरोग जिसमें साँस लेने में बहुत चौखट; शाही दरबार- 'धणी सहेगा सासना जमकी कष्ट होता है और कफ रुक-रुककर बहुत जोर लगानेपर दरगह माँह'-कवीर; मकबरा, मजार; मस्जिद । -गुजरनिकलता है।
वि० अलग । -दर-अ० दरवाजे-दरवाजे, प्रतिगृह । दमाद-पु० पुत्रीका पति, जामाता।
-पेश-अ० सामने, आगे । -बान-पु० ड्योढ़ीदार, दमानक*-स्त्री० तोपोंकी बाद ।
फाटकपर रहनेवाला, चौकीदार । -बानी-स्त्री० दरदमामा-पु० डंका, नगाड़ा।
बानका काम या पद । -बार-पु० वह स्थान जहाँ बाददमारि*-स्त्री० वनकी आग, दावानल ।
शाह या सरदारकी कचहरी लगती हो, राजसभा द्वार, दमावती*-स्त्री० दमयंती ।
दरवाजा, ड्योढ़ी। -बारदारी-स्त्री० किसीके पास जादमित-वि० [सं०] जिसका दमन किया गया हो; विजित । जाकर देरतक बैठने और खुशामद करनेका काम । दमी-वि० दमवाला; दम लगानेवाला; गाँजा, चरस आदि- -बारी-वि० दरबार-संबंधी; दरवारका। पु० दरबारमें का दम खींचनेवाला।
सम्मिलित होनेवाला व्यक्ति, राजसभाका सदस्य ।-बारे दमी(मिन्)-वि० [सं०] दमनशील; जितेंद्रिय । आम-पु० बादशाह या राजाका वह दरबार जिसमें दमैया-पु० दमन करनेवाला; मिटानेवाला; हरनेवाला । सर्वसाधारण सम्मिलित हो सकें। -बारे खास-पु० दमोदर*-पु० दे० 'दामोदर'।
बादशाह या राजाका वह दरबार जिसमें गिने-चुने लोग दयनीय-वि० [सं०] दया करने योग्य ।
ही सम्मिलित हों। -माहा-पु० मासिक वेतन, तन- दया-स्त्री० [सं०] किसी विपन्नके प्रति हृदयमें उत्पन्न होने- ख्वाह । -मियान-पु० बीच, मध्य । अ० बीचमें,
वाला सहानुभूतिका भाव जो उसका दुःख दूर करनेके भीतर। -मियानी-वि० भीतरी, आंतरिक । -हकीलिए प्रेरित करे, करुणा, अनुकंपा, रहमा दक्ष प्रजापतिकी क़त-अ० दे० 'दर-असल'। -हाल-अ० आजकल, एक कन्या जिसका विवाह धर्मसे हुआ था। -कर-वि० वर्तमान समयमें। मु०-गुज़रना-छोड़ देना; बाज दयाळु । पु० शिव ।-कूट-कूर्च-पु० बुद्धदेव ।-दृष्टि- आना; माफ कर देना। स्त्री० दयापूर्ण दृष्टि, करुणाभरी दृष्टि । -निधान-पु० दरकना-अ० क्रि० खिंचाव या दबावसे फटना, विदीर्ण
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दरख्त - पु० [फा०] पेड़, वृक्ष । दरज - स्त्री० दरार, चीर । दरजन - वि०, पु० दे० 'दर्जन' । दरजा - पु० दे० 'दर्जा' ।
दरजी - पु० दे० 'दजी' ।
दरका - दर्जा
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होना, मसकना ।
रखनेका खाना जो बाहर-भीतर किया जा सकता है । वि० दे० 'दराज' |
दरका* पु० चीर, दरार ।
दरकाना - स० क्रि० फाड़ना, विदीर्ण करना । * अ० क्रि० दराज - वि० [फा०] लंबा, दीर्घ, विशाल | अ० बहुत, विदीर्ण होना, फटना ।
अधिक ।
दरखत* - पु० दे० 'दरख्त' ।
दरार - स्त्री० रेखाकी तरहका लंबा छिद्र जो सूखी धरती, दीवार या लकड़ी आदि में फटने के कारण पड़ जाता है । दरारना* - अ० क्रि० फटना, विदीर्ण होना । दरारा - पु० दरेरा, घात-प्रतिघात, धक्का । वि० दरारवाला, फटा हुआ ।
दरिंद, दरिंदा - पु० [फा०] फाड़ खानेवाला, हिंस्र जंतु । दरित - वि० [सं०] भीत; डरपोक; विदीर्ण । दरिद्र - वि० [सं०] निर्धन, कंगाल, गरीव । पु० निर्धन मनुष्य; * दरिद्रता, निर्धनता । -नारायण-पु० कँगला | दरिद्रावसति - स्त्री० [सं०] (स्लम) गरीबोंकी बस्ती, मलिनावास ।
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दरद - पु० दर्द, पीडा, करुणा, तरस । -मंद - वि० दे० 'दर्दमंद'। -वंत* - वि० करुणायुक्त, दयालुः दुःखित, पीड़ित । - वंद* - वि० दे० 'दरदवंत' | दरदरा - वि० जिसके कण बारीक न हों; जो मोटा पीसा गया हो ।
दरदराना - स० क्रि० मोटा पीसना ।
दरद्द * - पु० दे० 'दर्द' |
दरन* - पु० दे० 'दलन' |
दरना* - स० क्रि० दलना; नष्ट करना; पीसना; मलना । दरप* - पु० दे० 'दर्प' ।
दरपक* - पु० दे० 'दर्पक' ।
दरपन - पु० दे० 'दर्पण' |
दरपना- अ० क्रि० हप्त होना, अभिमान करना, गर्वित होना ।
दरपनी - स्त्री० छोटा दर्पण |
दरब-पु० द्रव्य, धन; खरी धातु । दरबा - पु० कबूतरोंके रहने के कामका लकड़ीका खानेदार संदूक; पेड़ आदिका खोखला भाग जिसमें कोई पक्षी या अन्य जीव रहे ।
दरबी* - स्त्री० दव, करछुल । दरभ - पु० बंदर; दे० 'दर्भ' |
दररना - स० क्रि० रगड़ना; धक्का देना; दलना; पीसना । दरराना * - अ० क्रि० वेगपूर्वक आना । दरवाज़ा - पु० [फा०] द्वार ; कपाट, किवाड़ | दरवी - स्त्री० दे० 'देव' ।
दरवेश - पु० [फा०] फकीर, भिखारी, मंगन | दरशाना- स० क्रि० दिखलाना; बतलाना; समझाना । अ० क्रि० देख पड़ना ।
सौंदर्य |
दरसनिया - पु० मरीकी शांति के लिए पूजा करनेवाला । दरसनी * - स्त्री० दर्पण, आईना ।
दरसनीय * - वि० दे० 'दर्शनीय' ।
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दरसनी हुंडी - स्त्री० दे० 'दर्शनी हुंडी' । दरसाना - स० क्रि० दिखाना, दृष्टिगत करना; (ला०) बतलाना | अ० क्रि० दिखाई पड़ना, दृष्टिगत होना । दराई । - स्त्री० दलनेकी क्रिया या उजरत । दराज - स्त्री० दरार; मेज आदिमें बना हुआ कागज आदि
दरिया - पु० नदी, समुद्रः + दे० 'दलिया' । -दिल- वि० उदार । - दिल्ली - स्त्री० उदारता । - बरामद, -बरार - पु० नदी द्वारा छोड़ी हुई जमीन । मु०-को कूजेमें बंद करना - थोड़े में बहुत कह जाना ।
दरियाई - स्त्री० एक तरहका रेशमी कपड़ा । वि० नदीसंबंधी; जो नदीमें रहता हो; नदी के किनारेका; समुद्रसंबंधी । - घोड़ा - पु० अफ्रीकाका एक मोटे चमड़ेवाला, गैडे जैसा, जानवर जो नदियोंके किनारे रहता है । - नारियलपु० अफ्रीका, अमेरिका आदिमें समुद्र के किनारे होनेवाला एक प्रकारका नारियल ।
दरस - पु० दर्शन, साक्षात्कार; रूप, दरसन - पु० दे० 'दर्शन' ।
दरेरा - पु० रगड़, जोरका धक्का; धावा; बहावका तोड़ । दरेसी - स्त्री० काट-छाँटकर दुरुस्त करना; समतल करना; सजाना ( ड्रेसिंग) ।
दरसना* - अ० क्रि० दिखाई देना, देख पड़ना, दृष्टिगत दरैया * - पु० दरनेवाला; दलन करनेवाला; नाशक । होना । स० क्रि० देखना । दरोग - पु० [अ०] असत्य, मिथ्या, झूठ। - हलफ़ी - स्त्री० झूठा हलफ ।
दरोगा ! - पु० दे० 'दारोगा' ।
दर्ज - स्त्री० दे० 'दरज' । वि० [अ०] लिखा हुआ, अंकित, उल्लिखित ।
दरिया - पु० दे० 'दरिया' ।
दरियाफ़्त - स्त्री० [फा०] ज्ञात करना, पता लगाना, जाँच, पड़ताल | वि० जिसकी जाँच की गयी हो, ज्ञात । दरियाव - ५० दे० 'दरिया' ।
दरी - स्त्री० मोटे सूतोंका एक बिछाबन, शतरंजी; [सं० ] कंदरा, गुफा, खोह |
दरीखाना - पु० वह घर जिसमें अनेक द्वार हों । दरीचा - पु० [फा०] छोटा दरवाजा; खिड़की; मोखा । दरीबा - पु० पानका बाजार ।
दश्ती - स्त्री० अनाज दलनेकी चक्की ।
दरेरना - स० क्रि० रगड़के साथ धक्का देना, तीव्र आघात
करना ।
दर्जन - वि० बारह | पु० बारह (वस्तुओं) का समाहार । दर्जा - पु० [अ०] तारतम्यकी दृष्टिसे निर्धारित स्थान, श्रेणी, कोटि योग्यता के अनुसार पढ़ाईके लिए निर्धारित किया गया विद्यार्थियोंका वर्ग, कक्षा; पद, ओहदा; खाना ।
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३४९ -
दर्जिन - स्त्री० दर्जी जातिकी स्त्री; दर्जाकी स्त्री ।
दर्जी - पु० [फा०] कपड़ा सीनेवाला, वह व्यक्ति जिसका व्यवसाय कपड़ा सीना हो ।
दर्द-पु० [फा०] पीडा, व्यथा; कष्ट, दुःख, तकलीफ, तरस, रहम; सहानुभूति; शोक । - अंगेज़ - वि० दर्द उठाने वाला, मनको व्यथित करनेवाला । -नाक- वि० दर्द से भरा हुआ। -मंद-वि॰ पीडित; दूसरेकी व्यथाको समझनेवाला, करुणाशील । (दर्दे) दिल - पु० मनोव्यथा । दर्दुर-पु० [सं०] मेढक ।
- पु० [सं०] दद्दू, दाद । - न - पु० चकवड़ | द', दण - पु० [सं०] वह व्यक्ति जिसे दादका रोग हुआ हो ।
दर्प - पु० [सं०] चित्तका वह भाव जिसके कारण मनुष्य दूसरों की अवज्ञा करे और गुरु, स्वामी, राजा आदिको भी कुछ न समझे, अहंकार; हर्ष से उत्पन्न गर्व; मृगमद, कस्तूरी; उच्छृंखलता; उत्साह । -हर- वि० दर्प हरण करनेवाला । दर्पक - पु० [सं०] दर्प करनेवाला मनुष्यः कामदेव | दर्पण - पु० [सं०] आकृति देखनेका शीशा, आईना, मुकुर,
आरसी; नेत्र; एक पर्वत जो कुबेरका निवासस्थान था । दर्पित, दर्पी ( पिनू ) -- वि० [सं०] दर्पयुक्त, अहंकारी । द* - पु० द्रब्य, धन-दौलत; खरी धातु (सोना, चाँदी आदि ) ।
दर्बान - पु० दे० 'दरबान' ।
दर्बार - पु० दे० 'दरबार' ।
दर्भ - पु० [सं०] कुश, डाभ; कुशासन ।
दर्भासन - पु० [सं०] कुशका बना हुआ आसन, कुशासन । दर्मियान - पु०, अ० दे० 'दरमियान' |
दर्याव * - पु० दे० 'दरिया' ।
दर्श - पु० मोटा आटा; [फा०] दो पहाड़ोंके बीचसे होकर जानेवाला तंग रास्ता, घाटी; दरार, दरज ।
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दर्जिन - दलील
तान देखते ही, तुरंत करना पड़े । दर्शयिता (तृ) - ५० [सं०] दिखलानेवाला; मार्गप्रदर्शन करनेवाला; द्वारपाल ।
दर्शाना- स० क्रि०, अ० क्रि० दे० ‘दरसाना' । दर्शित- वि० [सं०] दिखाया हुआ; प्रकटित, प्रकाशित; प्रमाणित; प्रकट |
दर्शी ( शिंन् ) - वि० [सं०] (समासांत में) साक्षात्कार करने वाला; विवेचन करनेवाला; प्रदर्शित करनेवाला |
दल - पु० [सं०] उन दो बराबर भागों में से एक जिनमें अन्न के दाने या फल आदिके बीज दबाव पड़नेपर अपने आप विभक्त हो जायँ; कटा हुआ टुकड़ा; अंश; म्यान; पत्ता, पत्र; तमालपत्र; फूलकी पँखड़ी; एक विचारके या एक साथ कार्य करनेवाले व्यक्तियोंका समूह, गुट, झुंड, गिरोह, टोली; हमराही; सैनिकोंका समूह, फौजका दस्ता; मिश्रण; आधारभूत परत - गंजन- वि० भारी वीर । - नेता - पु० (कैप्टन) खेलमें सम्मिलित होनेवाले दो पक्षों या दलों में से किसी एकका नेता, कप्तान; सेनाकी टुकड़ी (कंपनी या ट्रूप) का नायक । - पति-पु० दलका मुखिया या सरदार | -वाल* - पु० सेनानी । -वीटकपु० कानका एक गहना ।
दलक-स्त्री० गुदड़ी; टीस, चमक; आघात से उत्पन्न कंप । दलकन - स्त्री० दलकनेकी क्रिया या भाव; दलक; आघात । दलकना - अ० क्रि० इस तरह फटना कि दरार पड़ जाय, चिर जाना; कंपित होना, काँपना; डगमगाना । स० क्रि० त्रस्त कर देना; कंपा देना। मु० दलक उठना - कंपित हो उठना, क्षुब्ध हो जाना ।
दलदल-पु०, स्त्री० [अ०] कीचड़, पंक; दूरतक गीली जमीन जिसमें पाँव धँसता चला जाय । मु० में फँसनाऐसी मुसीबत में फँसना जिससे उबरना बहुत मुश्किल हो । दलन- पु० [सं०] चूर्ण करना, पीसना, कुचलना; नाश संहार, उच्छेद; विदारणः नाशकारक |
दलना - स० क्रि० चक्की में डालकर दो या अधिक टुकड़े करना; कुचलना; नष्ट करना; तोड़ना; चूर करना । दलमलना - स० क्रि० रौंद डालना, कुचलना; मसल डालना ।
दव - स्त्री० [सं०] बड़ी करछुल; साँपका फन । दर्शक - पु० [सं०] देखनेवाला, द्रष्टा; दिखानेवाला । दर्शन - पु० [सं०] चाक्षुष प्रत्यक्ष साक्षात्कार, जानना; वह शास्त्र जिसमें आत्मा, अनात्मा, जीव, ब्रह्म, प्रकृति, पुरुष, जगत्, धर्म, मोक्ष, मानव जीवनके उद्देश्य आदिका निरूपण हो, तत्त्वज्ञान करानेवाला शास्त्र [छः आस्तिक-सांख्य, योग, वैशेषिक, न्याय, मीमांसा (पूर्व मीमांसा) और वेदांत (उत्तर मीमांसा) तथा छः नास्तिक - चार्वाक, जैन, माध्यमिक, योगाचर, सौत्रांतिक और वैभाषिक - प्रधान माने जाते हैं ]; नेत्रदृष्टि; बुद्धि; स्वप्न; प्रदर्शन; परीक्षण; शास्त्र; दर्पण; धर्म; रूपरंग; रायः नीयत; यश; उपस्थिति (न्यायालयमें) । - प्रतिभू-पु० वह प्रतिभू जो महाजनकी इच्छा के अनुसार ऋणीको किसी भी समय या किसी भी स्थानपर उपस्थित करनेका भार स्वीकार करे; जमानतदार । - प्रातिभाव्य - पु० दे० 'दर्शन-प्रतिभू' । दर्शनीय-वि० [सं०] देखने, दर्शन करने योग्य; मनोहर । दर्शनी हुंडी - स्त्री० ऐसी हुंडी जिसका भुगतान तत्काल करना पड़े; (ला० ) ऐसी वस्तु जिसके द्वारा कोई वस्तु तत्काल प्राप्त की जा सके । दर्शनेदेय - वि० [सं०] (पेयेबिल ऐट साइट) जिसका भुग- | दलील - स्त्री० [अ०] युक्ति, तर्क; बहस ।
दलवाना - स० क्रि० दलनेका काम दूसरे से कराना । दलवैया - पु० दलनेवाला; जीतनेवाला ।
दलहन- ५० वह अन्न जिससे दाल तैयार की जाय । दलहरा - पु० दाल बेचनेवाला । दलादली-स्त्री० दलोंकी होड़ । अ० होड़ करके । दलाना - पु० दे० 'दालान' |
दलाल - पु० सौदे आदिको पटाने में मध्यस्थता करनेवाला, बिचवई कुटना |
दलाली - स्त्री० दलालका काम; दलालका काम करने के बदले में मिलनेवाली रकम ।
दलित- वि० [सं०] रौंदा, कुचला, दबाया हुआ, पदाक्रांत । - वर्ग-पु० हिदुओं में वे शूद्र जिन्हें अन्य जातियोंके समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं। दलिया-पु० दला हुआ अनाज जो दरदरा हो !
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दलेल - दस्त
'दलेल - पु० सिपाहियोंसे सजाके तौरपर करायी जानेवाली कड़ी कवायद । मु० - बोलना-सजाके लिए कड़ी कवायदकी आज्ञा देना ।
दलैart - पु० नाशक, निहंता ।
दव - पु० [सं०] वन, जंगल; दावानल |
दवन * - पु० दमन; दौना; दमन या नाश करनेवाला । दवना * - पु० दे० 'दौना' । स० क्रि० जलाना, झुलसना । दवनी - स्त्री० दे० 'देवरी' ।
दवरिया * - स्त्री० दे० 'दवारि' ।
दवा - *स्त्री० दावानल; [फा०] औषध, इलाज, उपचार, चिकित्सा; शमनका उपाय; रास्तेपर लानेका उपाय । -ख़ाना - पु० वह स्थान जहाँ बेचनेके लिए दवा रखी हो, औषधालय । - दरपन - पु०, दारू - स्त्री० इलाज,
|
उपचार ।
दवाई - स्त्री० दे० 'देवा' । - खाना - पु० दे० 'दवाखाना' । दवागि, दवागिन * - स्त्री० दे० 'दावानल' । दवाग्नि- स्त्री० [सं०] वनमें स्वतः लगनेवाली आग, वनाग्नि, दावानल |
दवात - स्त्री० [अ०] स्याही रखनेका बरतन, मसिपात्र । दवान * - पु० एक हथियार ।
दवानल - पु० [सं०] दे० 'दवाग्नि' |
|
दवामी - वि० [अ०] स्थायी, कायमी । - बंदोबस्त - पु० जमीनका वह प्रबंध जिसमें मालगुजारी हमेशा के लिए निश्चित कर दी जाती है, उसमें कभी वृद्धि नहीं होती । दवार, दवारि* - स्त्री० दे० 'दवाग्नि'; संताप । दश (न्) - वि० [सं०] नौ और एक । पु० दसकी संख्या, १० । — कंठ - पु० दशानन रावण । -कंठ जहा*, - कंठ जित्-पु० राम - कंठारि-पु० राम । - कंधर - पु० दे० 'दश-कंठ' । - कर्म (न्) - पु० गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टिक्रिया या विवाहतकके दस कर्म । -गात * - पु० दे० 'दशगात्र' । - गात्र- पु० शरीरके मुख्य दस अंग; मृत्यु के दसवें दिन पूरा होनेवाला एक और्ध्वदेहिक कृत्य । - ग्रामपति -पु० वह जिसे राजाकी ओरसे दस गाँवोंके शासनका भार सौंपा गया हो। -ग्रामिक दे० 'दशग्रामपति' । - ग्रीव - पु० रावण-द्वार - पु० मनुष्य शरीरके दस छिद्र । - नामी- पु० [हिं०] शंकराचार्यके दस प्रशिष्यों से चला संन्यासियों का एक संप्रदाय । -पंच तपा ( प ) - पु० दसों इंद्रियोंको वशमें रखते हुए पंचा ग्नि तप करनेवाला तपस्वी बाहु-पु० शिव । - - भुज-पु० ( डेकेगॉन) वह आकृति जिसमें दस भुजाएँ हों । - भुजा, - महाविद्या- स्त्री० दुर्गा । -मास्य - वि० जो दस महीनोंतक गर्भमें स्थित रहा हो। -मुख- पु० रावण । - मुखांतक - पु० राम । - मूल - पु० दस पेड़ों-सरिवन, पिठवन, गोखरू आदिकी जड़ या छाल । - मौलि - पु० रावण । -रथ- पु० अयोध्याके एक प्राचीन सूर्यवंशी सम्राट् जो रामके पिता थे । -वक्त्र, - वदन- पु०रावण । - शिर, - शीर्ष - पु० रावण । - शीश, - सीस* - पु० रावण । -हरा- पु० ज्येष्ठ शुक्ला दशमी जिस दिन गंगाका जन्म हुआ था और सेतुबंध में रामने रामेश्वर की स्थापना की थी; विजया दशमी । स्त्री०गंगा ।
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३५०
दशक - पु० [सं०] दसका समाहारः (डिकेड) दस वर्षोंका समाहार, दशाब्द |
दशन - पु० [सं०] दाँत; दाँतसे काटने की क्रिया; कवच; शृंग, चोटी । - बीज - पु० अनार । दशनामी - पु० दे० 'दश' के साथ |
दशम - वि० [सं०] दसवाँ । पु० दसवाँ भाग । - दशास्त्री० कामकी अंतिम दशा जिसमें वियोगी प्राण त्याग देता है । - भाव- पु० फलित ज्योतिष के अनुसार जन्म लग्न से दसवाँ घर । - लव - पु० भिन्नका एक भेद जिसमें हर दश या उसका कोई घात होता है (ग०) । दशमांश - पु० [सं०] दसवाँ भाग ।
दशमी - स्त्री० [सं०] चांद्र मास के प्रत्येक पक्षकी दसवीं तिथि । दशांग-पु० [सं०] गुग्गुल, चंदन, जटामासी आदि गंधद्रव्योंके योगसे संपन्न एक हवनीय धूप । - क्काथ- पु० दस ओषधियों - अड़ूसा, गुडुच आदिका काढ़ा | दशांत - पु० [सं०] वृद्धावस्था, बुढ़ापा; दीयेकी बत्तीका छोर ।
दशांतर - पु० [सं०] जीवनकी विभिन्न अवस्थाएँ । दशा - स्त्री० [सं०] अवस्था, स्थिति; जीवनकी कालकृत विशेष अवस्था - जैसे गर्भवास, जन्म, बाल्य आदि; कामकी दस अवस्थाओं में से एक; ग्रह-विशेषका भोग्य काल; दीयेकी बत्ती; किसी वस्त्र या अँगरखेका छोर । दशाधिपति-पु० [सं०] विशिष्ट दशाका स्वामी ग्रह (ज्यो०); दस पैदल सिपाहियोंका नायक । दशानन - पु० [सं०] रावण । दशाब्द-पु०, दशी - स्त्री० [सं०] (दिकेड) दश वर्षोंका
समय, दशक |
दशाद' - वि० [सं०] दसका आधा, पाँच । दशावतार - पु० [सं०] विष्णुके दस अवतार | दशास्य- पु० [सं०] रावण ।
दशाह - पु० [सं०] दस दिनोंका • समाहार; और्ध्वदेहिक कृत्यका दसवाँ दिन ।
'दस - वि०, पु० दे० 'दश' । - माथ, - मौलि* - पु०रावण । दसन-पु० * दे० 'दशन' ।
दसना-अ० क्रि० बिछना, बिस्तर आदिका फैलाया जाना । पु० दे० 'डासन' |
दसमी - स्त्री० दे० 'दशमी' |
दसवाँ - वि० जो क्रममें नौके बाद या दसके स्थानपर हो । पु० मृत्युतिथिसे दसवाँ दिन; उस दिन होनेवाला प्रेतकृत्य । दसा* - स्त्री० दे० 'दशा' |
दसाना * - स० क्रि० बिछाना ।
दसोतरा - वि० जिसमें दस और जुड़ा हो, दस अधिक । पु० सौ पीछे दसकी रकम । दसौंधी - पु० चारणोंकी एक जाति, भाट । दस्तंदाज़ - वि० [फा०] दखल देनेवाला हस्तक्षेप करनेवाला । दस्तंदाजी - स्त्री० [फा०] हस्तक्षेप, छेड़छाड़ | दस्त - पु० [फा०] हाथ; पंजा; पतला पाखाना; प्रिय मेहमानों को बैठानेकी जगह । - कार - पु० हाथसे कारीगरीका काम करनेवाला व्यक्ति ।-कारी - स्त्री० दस्तकारका काम; हाथकी कलापूर्ण कृति । -ख़त पु० हस्ताक्षर । -ख़ती
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दस्तक-दांडिक वि० हस्ताक्षरयुक्त।-गीर-वि० हाथ पकड़नेवाला सहारा संतप्त या पीड़ित करना । वि० दाहिना । देनेवाला, सहायक ।-दराज़-वि० हथछुटः परायी चीज- दहनाराति-पु० [सं०] पानी। पर हाथ मारनेवाला; परायी बहू-बेटीपर हाथ डालनेवाला। दहनि*-स्त्री० जलनेकी क्रिया, दग्ध होना। -दराज़ी-स्त्री० हथछुटपना परायी बहू-बेटीपर हाथ | दहनीय-वि० [सं०] जलने योग्य; जलाये जाने योग्य । डालना। -बंद-पु० स्त्रियोंका हाथमें पहननेका मोतियों दहपट-वि० ढहाकर धूलमें मिलाया हुआ, ध्वस्त; कुचला और जवाहरातका लच्छा । -बदस्त-अ० हाथोंहाथ । हुआ; पादाक्रांत । -बरदार-वि० हाथ हटा लेनेवाला, वाज आनेवाला। दहपटना-सक्रि० दहाना, ध्वस्त करना; कुचल डालना। दस्तक-स्त्री० [फा०] ताली; माल आदिके आने-जानेकी | दहर*-पु० दे० 'दह'। लिखित आशा या स्वीकृति; राहदारीका परवाना; माल- | दहरना-अ०क्रि०दे० दहलना' । सक्रि०दे० 'दहलाना' । गुजारी वसूल करनेके लिए निकाला गया आज्ञापत्र; दहरौरी-स्त्री० एक तरहका गुलगुला । राजस्व महसूल; समन तामील करनेका शुल्क।
दहल-स्त्री० थरथराहट, डरसे काँप उठना। दस्तरख्वान-पु० [फा०] खाना रखनेका फर्श या चौकी दहलना-अ० क्रि० डरके मारे काँपना, थर्राना । आदिपर फेलाया जानेवाला कपड़ा।
दहला-पु० ताशका वह पत्ता जिसपर किसी रंगके दस दस्ता-पु० [फा०] औजार आदिकी मूंठ या बेट; खरलका | चिह्न बने हों; * थाला, आलबाल । मुसल; सैनिकोंकी टोली; जत्था; कागजके चौबीस तख्तोंकी दहलाना-सक्रि० डराकर कैंपा देना, अत्यंत भीत करना। गड्डी; फूलोका गुच्छा।
दहली*-स्त्री० दे० 'देहरी'। दस्ताना-पु० [फा०] हाथमें पहननेका सूत आदिका बना | दहलीज़-स्त्री० [फा०] चौखटकी नीचेवाली लकड़ी जो हुआ गिलाफ; हाथपर पहननेकी लोहे की जिरह तलवार- जमीनसे सटी रहती है, देहली । मु०-का कुत्ता-पालतू का कब्जा ।
कुत्ता; मुफ्तखोर । -की मिट्टी ले डालना-बहुतसे फेरे दस्तावर-वि० [फा०] जिसके खानेसे दस्त आये, रेचक । करना, बार-बार जाना । -झाँकना-किसीके पास किसी दस्तावेज़-स्त्री० वह पत्र जो दो या अधिक आदमियोंके कामके लिए जाना। -न झाँकना-बहुत अधिक परदे में बीच होनेवाले व्यवहारके संबंधमें लिखा गया हो; तमस्सुक । रहना। दस्ती-वि० हाथका; जो हाथसे ले जाया जाय । स्त्री० दहशत-स्त्री० [फा०] भय, डर, आतंक ।
छोटा बेट; छोटा रूमाल; कुश्तीका एक दाँव; मशाल । दहा-पु० ताजिया मुहर्रमका समय; दहला। दस्तर-पु० [फा०] रीति, तरीका, प्रणाली, चाल; नेग। दहाई-स्त्री० अंकोंकी गिनती करते समय दाहिनी ओरसे दस्तूरी-स्त्री० वह बँधी हुई रकम जो अमीरोंके नौकर सौदा दूसरा स्थान । खरीदने पर दुकानदारोंसे लेते हैं।
दहाड़-स्त्री० शेर या बाधका धोर गर्जन; जोरकी चिल्लाहट; दस्यु-पु० [सं०] डाकू, लुटेराखल; चारों वर्गों के अतिरिक्त रोते समय जोरसे चिल्लानेकी आवाज । एक प्राचीन छोटी जाति (मनु); अनार्य जो प्राचीन काल में दहाड़ना-अ०क्रि० शेर या बाघका गरजना; चिल्ला-चिल्लायशविध्वंस आदि किया करते थे। -वृत्ति-स्त्री० डाकूका कर रोना । पेशा, लुटेरापन ।
दहाना-पु० [फा०] मुँह मशकका मुँह; नदीके दूसरी नदी दह-पु० नदीका वह भाग जहाँ पानी बहुत गहरा हो; या समुद्र में गिरनेकी जगह; लगामका मुँह में रहनेवाला हौज । स्त्री० अग्निशिखा, ज्वाला । * वि० दस । हिस्सा। सक्रि० स्थानीय मानके अनुसार अंकोंको पढ़ना। दहक-स्त्री० आगका दहकना, लपट, ज्वाला ।
दहिऔ -स्त्री० दही डालकर बनाया हुआ गुलगुला । दहकना-अ० क्रि० लपट फेंकते हुए जलना, इस प्रकार दहिना -वि० दे० 'दाहिना'।
जलना कि आँच या लपट बाहर निकले तप्त होना। दाहिने-अ० दे० 'दाहिने' । दहकान-पु०[फा०] देहात या गाँवका रहनेवाला, किसान, दही-पु० खटाई या जामन डालकर जमाया हुआ दूध । काश्तकार । वि० गँवार, उजड्ड, जाहिल ।
दह*-अ० कदाचित् , शायदा अथवा, या। दहकाना-स० क्रि० इस रूपमें जलाना कि आँच या लपट | दहडी-स्त्री० दही रखनेका मिट्टीका पात्र । बाहर निकले; भड़काना, उत्तेजित करना।
दहेज-पु० विवाहके अवसरपर कन्यापक्षकी ओरसे वरपक्षदहकानि(नी)यत-स्त्री० [फा०] गँवारपन, देहातीपन । | को दिया जानेवाला धन और सामान, दायजा। दहन-पु०[सं०] जलना, दाह; आग, अग्नि जलानेवाला;दहला*--वि० दग्ध, जला हुआ; परितप्त, पीडित; दुःखी । तप्त लोहेसे जलाना; कृत्तिका नक्षत्र; दुष्ट व्यक्ति चित्रक, दहोतरसो-वि० एकसौ दस । एकसौ दशकी संख्या,११० । चीता; भिलावाँ एक तरहकी काँजी; कबूतर, तीनकी दह्यो*-पु० दही। संख्या (ज्यो०); एक रुद्रः ज्योतिषके अनुसार एक योग। दाँ-पु०बार, दफा । वि० [फा०] जानकार, विश (समासमें)। वि० जलानेवाला, विनाशक । -केतन-पु० धुआँ । दाँकना*-अ० क्रि० गरजना, दहाड़ना। -प्रिया-स्त्री० अग्निकी पत्नी, स्वाहा । -शील-वि० | दाँग*-पु० टीला; छोटी पहाड़ी; डंका । जलानेवाला, दाहक।
दाँज*-स्त्री० समानता, तुलना, बराबरी। दहना*-अ० कि. जलना, दग्ध होना, भस्म होना| दाँड़ना -स० क्रि० दंड देना । धंसना । सक्रि० जलाना, भस्म करना; कष्ट देना, दांडिक-वि०, पु० [सं०] दंड देनेवाला।
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दांत - दात
३५२
दांत - वि० [सं०] दंत संबंधी; जिसने बायेंद्रियोंका दमन दाऊदखानी पु० [फा०] एक तरहका गेहूँ या चावल |
किया हो; दमित; शांत । पु० दाता ।
किरकिरे
दाक्षिणात्य - पु० [सं०] दक्षिण देशका निवासी; नारियल । वि० दक्षिण देशका, दक्षिणी । दाक्षिण्य - पु० [सं०] अनुकूलता; निपुणता, पटुता; उदारता; सरलता; नायक द्वारा नायिकाका अनुवर्तन (सा० ) । दाक्षी - स्त्री० [सं०] दक्षकी पुत्री; पाणिनिकी माता । दाक्षेय- पु० [सं०] पाणिनि मुनि । दाक्ष्य-पु० [सं०] दक्षता, निपुणता, कार्यपटुता । दाख- स्त्री० अंगूर; मुनक्का । दाखि* - स्त्री० दे० 'दाख' |
दाँत - पु० दे० 'दंत'; दे० 'दाँता' । मु० - काटी रोटीगहरी मित्रता । - काढ़ना- गिड़गिड़ाना । होना- हार मानना । - कुरेदनेको तिनका न रहनापासमें कुछ न होना । - खट्टे करना- परास्त करना; "नाक में दम करना । - गढ़ना- किसी वस्तु के लिए बहुत अधिक लालायित होना । - चबाना-दे० 'दाँत पीसना' । -तले उँगली दबाना - दे० 'दाँतो उँगली काटना' । - तोड़ना - परास्त करना । - दिखाना- घुड़कना; अपना बड़प्पन दिखलाना | -निकालना, -निपोरना- गिड़ गिड़ाना; टें बोल देना; व्यर्थ हँसना । - पीसना - बहुत अधिक क्रुद्ध होना । - बजना- ठंडके मारे दाँतोंका किटकिटाना। - बैठना - बेहोशीके कारण ऊपर-नीचेके दाँतोंका इस प्रकार सट जाना कि मुँह न खुल सके । लगनादे० 'दाँत गड़ना' ; दे० 'दाँत बैठना' | -लगाना(किसी वस्तुको ) हड़प जानेकी ताक में रहना, आत्मसात् करनेकी प्रबल इच्छा रखना । ( दाँतों ) उँगली काटना - आश्चर्य में पड़ जाना, दंग हो जाना । धरती पकड़कर - बड़ी कठिनाईसे, बड़ी दिक्कतसे । पसीना आना-बहुत अधिक श्रम पड़ना । -में जीभ-सा होनाप्रतिक्षण शत्रुओंके बीच में रहना । - से उठाना -बड़ी कंजूसीसे (द्रव्य आदि) संचित करना । दाँता - पु० दे० 'दंदाना' ।
दाखिल- वि० [फा०] भीतर घुसा हुआ, प्रविष्ट; शामिल । - ख़ारिज - पु० किसी सरकारी कागजपरसे एक व्यक्तिका नाम हटाकर उसके नाम लिखी जायदादपर दूसरेका नाम चढ़ाने की कानूनी कारवाई | दफ़्तर - वि० दफ्तर में बिना किसी निर्णयके अलग रख दिया हुआ (कागज ) । मु०- करना - अदा या जमा करना । दाखिला - पु० [फा०] प्रवेश; जमा करनेका कार्य, अदा यगी; वह रजिस्टर जिसमें किसी दाखिल या जमा की जानेवाली वस्तुका लेखा हो; महसूल या चुगीकी रसीद । दाग-पु० दग्ध करनेकी क्रिया; दाह; दे० 'दाग'; *जलन । दाग़- पु० [फा०] किसी प्राणी के शरीरपरका जन्म-जात अथवा घाव या जलने आदिका चिह्न; रंग आदिके लग जानेसे कपड़े आदिपर पड़ जानेवाला चिह्न, धब्बा; कलंक । -दार- वि० जिसपर दाग हो, धब्बेदार । - बेल-स्त्री० [हिं०] सड़क, नहर, नींव आदि खुदवानेके स्थानपर फावड़े से खोदकर लगाया हुआ निशान ।
दाँत किटकिट, - किलकिल - स्त्री० तकरार, तूतू-मैंमैं । दांत - स्त्री० [सं०] आत्मनिग्रह; तपः क्लेशन्सहिष्णुता । दाँती - स्त्री० घास आदि काटनेका हँसिया; नाव बाँधनेका खूँटा; दंतपंक्ति; दर्रा ।
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दागना - स० क्रि० जलाना; संतप्त करना; तपाये हुए लोहे या अन्य धातुकी मुद्रासे किसीके शरीरपर विशेष प्रकारका चिह्न अंकित करना; अधिक तेज दवा लगाकर फोड़े आदिको जला या सुखा देना; बंदूक आदि छोड़ना; धब्बा लगाना ।
दांपत्य - पु० [सं०] पति-पत्नीका संबंध । वि० दंपतीका; दाग़ी - वि० [फा०] जिसपर दाग लगा हो, दागदार; कलंकित; कलुषित; चरित्रहीन; सजा भुगता हुआ ।
पतिपत्नी-संबंधी |
दाँना - स० क्रि० डंठलसे दाना अलग करनेके लिए फसलको बैलोंसे रौंदवाना ।
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दाँय * - स्त्री० दे० 'देवरी' । दाँयाँ - वि० दे० 'दाहिना' । दाँवना - ० क्रि० दे० 'दाँना' । दाँवनी - स्त्री० एक गहना ।
दांभिक - वि० [सं०] कपटी, दंभी । पु० ढोंग करनेवाला दाघ- पु० [सं०] ताप, दाह ।
व्यक्ति ।
दाजन, दाझन * - स्त्री० जलन; पीड़ा |
दाँवरी - स्त्री० रस्सी, डोरी । दाइ * - पु० दे० 'दाय' ।
दाइज, दाइजा* - पु० दे० 'दायज' |
दाइँ - वि० स्त्री० दाहिनी । स्त्री० बार, दफा ।
दाई - स्त्री० वह स्त्री जो अपना दूध पिलाकर दूसरेके बच्चेको पाले, उपमाता, धाय; बच्चा जनानेवाली स्त्री; बच्चोंकी देखरेख करनेवाली दासी । * वि० दे० 'दायी' । मु०से पेट छिपाना - ऐसे व्यक्तिसे कोई बात छिपाना जिसे सारा भेद मालूम हो ।
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दाउँ* - पु० दे० 'दाएँ' ।
दाउ * - स्त्री० दावानल |
दाऊ - पु० बड़ा भाई; कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम ।
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दाजना, दाझना * - अ० क्रि० दग्ध होना, जलना; संतप्त होना; ईर्ष्या करना । स० क्रि० जलाना; संतप्त करना । दाडिम- पु० [सं०] अनार | - प्रिय, भक्षण - पु० शुक, तोता ।
दाढ़ - पु० जबड़े के भीतर के दाँत जिनसे खाते समय अन्न आदि चबाते हैं, चौभड़ । स्त्री० गरज, दहाड़ | दादना * - अ० क्रि० जलना; संतप्त होना; गरजना | स० क्रि० जलाना; संतप्त करना, कष्ट पहुँचाना ।
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दाढा - स्त्री० [सं०] दंष्ट्रा, बड़ा दाँत; समूह; इच्छा । दादा -पु० वनाग्नि, दावाग्नि; अग्नि; जलन; लंबी दाढ़ी | वि० जलाया हुआ; संतप्त ।
दाढिका- स्त्री० [सं०] दाढ़ी; दाँत ।
दाढ़ी - स्त्री० ठुड्डी; ठुड्डीपरके बाल, डाढ़ी । -जार - पु० एक गाली जो स्त्रियाँ पुरुषोंको देती हैं (जिसकी दाढ़ी जल गयी हो ) ।
दात - * पु० दान दाता । वि० [सं०] विभक्त, छिन्न; धुला
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३५३
हुआ, मार्जित ।
दातव्य - वि० [सं०] देने योग्य; दानसे चलनेवाला; लौटाया जानेवाला; जहाँ दानके रूपमें कोई चीज दी जाती हो । * पु० दानशीलता ।
दाता (तृ) - पु० [सं०] देनेवाला, दान देनेवाला; महाजन | दातार- ५० देनेवाला; प्रदान करनेवाला । दाती * - स्त्री० देनेवाली, दात्री ।
दातुन, दातून स्त्री० दे० 'दातौन' |
दातृता - स्त्री०, दातृत्व - पु० [सं०] दान-शीलता । दातौन - स्त्री० नीम, बबूल आदिकी गीली टहनीका वह • टुकड़ा जो दाँत सफा करनेके काम में लाया जाता है । दारयोनि* - स्त्री० दे० 'दातौन' | दात्री - वि० स्त्री० [सं०] देनेवाली; दान करनेवाली । स्त्री० हँसिया ।
दाद - स्त्री० एक प्रसिद्ध चर्मरोग । मर्दन- पु० चकवड़ । दाद - स्त्री० [फा०] इंसाफ, न्याय । मु०- देना - न्याय करना; न्यायोचित प्रशंसा करना ।
दादरा- पु० एक चलता गाना; एक ताल | दादा-पु० पिताके पिता, पितामहके लिए प्रयुक्त आदरसूचक शब्द बड़ा भाई; गुरुजन
दादि* - स्त्री० दे० 'दाद' ; फरियाद ।
दादी - स्त्री० पिताकी माता, पितामही । पु० फरियाद करनेवाला |
दादुर* - पु० मेढ़क ददुर ।
दादू - पु० 'दादा' शब्दका संबोधन कारकका एक रूप; एक पंथप्रवर्तक साधु । - पंथी- पु० दादूके मतको माननेवाला । दाध* - स्त्री० जलन; ताप ।
दाधना * - स० क्रि० जलाना; तपाना; पीडा देना । दान - पु० [सं०] देनेकी क्रिया; धर्मकी दृष्टिसे या दयावश किसीको कोई वस्तु देनेकी क्रिया; दी हुई वस्तु; शिक्षण; शत्रु पर विजय पानेके साम आदि चार उपायों में से एक, कुछ देकर शत्रुको वश में करनेकी नीति; उदारता; हाथी के गंडस्थलसे निकलनेवाला मदजल ।-तोय-पु० दे० 'दानवारि' । - पत्र - पु० वह लेख या पत्र जिसमें किसी वस्तुके दानरूपमें दिये जानेका उल्लेख हो । - पात्र - पु० दान देने योग्य व्यक्ति, वह व्यक्ति जिसे दान दिया जा सके । -वारि-पु० हाथीका मदजल । - वीर-पु० बहुत दानी व्यक्ति । - शील, शूर - वि० जिसका स्वभाव दान देने का हो, जो बराबर दान दिया करता हो । दानव - पु० [सं०] कश्यपके पुत्र जो दनुके गर्भ से उत्पन्न हुए थे। - गुरु-पु० शुक्राचार्य | दानवारि - पु० [सं०] विष्णु; इंद्र; देवता (दे० 'दान - वारि') । दानवी - वि० दानव-संबंधी; दानवोचित । स्त्री० [सं०] दानवकी स्त्री ।
दानवेंद्र - पु० [सं०] बलि ।
दाना - वि० [फा०] बुद्धिमान्, समझदार । पु० अनाजका एक कण; अन्न; भोजन; चबेना; अनार, पिस्ता आदिका एक-एक बीज; मनका, गुरिया; एक में पिरोकर या एक साथ जोड़कर काममें लायी जानेवाली गोल या पहलदार वस्तुओं में से एक-एक अदद, रवा; फुंसी । - पानी- पु०
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दातव्य - दाय
अन्न-जल; खाना-पीना । (दाने) दार- वि० जिसमें दाने या रखे हों, रवादार | मु०-पानी उठना-जीविका न रहना; अन्यत्र जानेका संयोग होना । ( दाने ) दानेको तरसना - भूखों मरना । - दानेको मुहताज - जिसे एक दाना भी मयस्सर न हो, अति निर्धन | दानाई - स्त्री० [फा०] बुद्धिमत्ता, समझदारी |
दानाध्यक्ष - पु० [सं०] वह राजकर्मचारी जिसके हाथमें दानका प्रबंध हो ।
दानि - वि०, पु० दे० 'दानी' ।
दानिनी - स्त्री० [सं०] दान करनेवाली स्त्री । दानिया - वि० दे० 'दानी' ।
दानिश - स्त्री० [फा०] अक्कु, बुद्धि । - मंद - वि० बुद्धिमान् । दानी (निन्) - वि० [सं०] दान करनेवाला; दानशील, उदार । पु० दाता; कर उगाहनेवाला । दानो* - पु० दे० 'दानव' |
दाप-पु० दर्प, घमंड; प्रताप; शक्ति; दबदबा; उत्साह; क्रोध, रोष; जलन, दुःख ।
दापक-पु० दबानेवाला; दलन करनेवाला; दूर करनेवाला; मिटानेवाला, नाशक ।
दापना * - स० क्रि० दबाना; वर्जित करना ।
दाब - स्त्री० दबने या दबानेका भाव, दबाव, चाँप, भार; शासन; नियंत्रण; रोब, अधिकार, प्रभुत्व | -दार - वि० प्रभावशाली; मस्त | मु० - दिखाना - रोब जमाना, प्रभुताका भय दिखाना । मानना-प्रभुता स्वीकार करना, किसीकी प्रबलतासे भय खाना; वशवत होकर रहना । दाबना-स० क्रि० दे० 'दबाना' ।
दाबा - पु० कलम लगानेके लिए वृक्षकी टहनीको मिट्टी में
गाड़ना या दबाना | दाभ-पु० दे० 'दर्भ' ।
दाम- पु० दमड़ीका तृतीयांश; समूह; माला; मूल्य, कीमत; द्रव्य, रुपया-पैसा, सिक्का; शत्रुपर विजय पानेके चार उपायों में से एक, दाननीति ।
दाम (न्) -पु० [सं०] रज्जु, रस्सी; लड़ी; माला; रेखा । दामन - पु० [फा०] अँगरखे आदिका नीचे लटका हुआ भाग, पल्ला; पहाड़के नीचेकी जमीन; पाल । - गीर - वि० पहला पकड़नेवाला; दावेदार; मदद चाहनेवाला । दामरि, दामरी* - स्त्री० रस्सी । दामा-स्त्री० [सं०] रस्सी; * दावाग्नि । दामाद - पु० जामाता ।
दामिनी - स्त्री० [सं०] विद्युत्, बिजली; सिरका एक गहना । दामी - वि० कीमती । स्त्री० कर । दामोदर - पु० [सं०] कृष्ण; नारायण । दायँ * - पु० दे० 'दाव' । स्त्री० दे० 'दाँयँ' |
दाय - पु० [सं०] देने योग्य धन; वह धन जिसे किसीको देना हो; विवाह के समय कन्या और जामाताको दिया जानेवाला द्रव्य आदि, दायजा; वह पैतृक या संबंधीकी संपत्ति जो पानेवालों में बाँटी जा सके; दान; खंडन; विभाग; क्षति; स्थान; * दे० 'दाव' । - कर- पु० ( इनहेरिटेंस टैक्स) उत्तराधिकार में प्राप्त धन या संपत्तिपर लगाया जानेवाला कर, रिक्थकर | -भाग- पु० पैतृक या संबंधीकी संपत्ति
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प्रकोप से तलवेका चमड़ा फट जाता और दर्द करने लगता है, बेवाई; * कुलटा नारी - ' अपनो पति छाँड़ि और निसों रति, ज्यों दारनिमें दारी' - स्वामी हरिदास ।
दायक - पु० [सं०] देनेवाला, दाता; दायाद । दायज, दायजा - पु० विवाहके समय वरपक्षको दिया जाने दारु-पु० [सं०] काष्ठ, काठ; पीतल; देवदारु; शिल्पी, वाला धन आदि, यौतुक, दहेज ।
दायमी - वि० [अ०] सदा रहनेवाला, सार्वकालिक; स्थायी । दायर - वि० [अ०] चलनेवाला, फिरनेवाला; जो निर्णयके लिए हाकिमके सामने पेश किया गया हो । मु०-करना - निर्णयके लिए मुकदमा अदालत में पेश करना । दायरा - पु० [अ०] गोल घेरा; कार्य या अधिकारका क्षेत्र । दायाँ - वि० दाहिना ।
कारीगर; उदार व्यक्ति । वि० दानशील; चटपट टूट या फूट जानेवाला; विदारण करनेवाला | - कृत्य - पु० लकड़ीका काम । - जोषित - स्त्री० दे० 'दारु- योषित्' । -नटी, - नारी - स्त्री० कठपुतली । -पुत्रिका, - पुत्री - स्त्री० कठपुतली । - यंत्र - पु० काठका बना हुआ यंत्र; कठपुतली । - योषा, - योषित्,- योषिता - स्त्री० कठ पुतली । - वधू - स्त्री० काठकी गुड़िया । - सार - पु० चंदन । - हस्त - हस्तक-पु० काठकी करछी । दारुका - स्त्री० [सं०] काठकी पुतली; काठको मूर्ति ।
दाया - * स्त्री० दे० 'दया' । स्त्री० [फा०] दे० 'दाई' | -गरी - स्त्री० दाईका काम |
दायागत-वि० [सं०] जो मौरूसी हिस्से में पड़ा हो । पु० दारुण - वि० [सं०] कठोर; निर्दय; भयंकर; उग्र; घोर; दायके रूपमें प्राप्त दास । कँपा देनेवाला । पु० भयानक रस; एक नरक ।
दायाद - पु० [सं०] दायका अधिकारी, ज्ञाति; सपिंड दारुन* - वि० दे० 'दारुण' |
दायक - दावा
का उत्तराधिकारियों में विभाजन; इसकी व्यवस्था या कानून; दायाधिकार ।
संबंधी पुत्र |
दायादा, दायादी स्त्री० [सं०] कन्या; दायकी अधिकारिणी । दायाधिकारी होना- अ० क्रि० (सक्सीड) किसीकी मृत्युके बाद उसकी संपत्ति पानेका अधिकारी होना, उत्तराधिकारी बनना ।
दायापवर्तन - पु० [सं०] उत्तराधिकार में मिली हुई जायदादकी जब्ती ।
दायित्व - पु० [सं०] दायी होनेका भाव, जिम्मेदारी । दायी ( यिन्) - वि० [सं०] देनेवाला; पहुँचानेवाला (समासांतमें); उत्तरदायी ।
दायें - अ० दाहिनी तरफ ।
दार-* पु० दारु, काष्ठ; [सं०] चीरना; दरार, छिद्र । स्त्री० स्त्री, पत्नी; + स्त्री॰ दाल । - कर्म (न्) -पु०, - क्रिया - स्त्री० विवाह । - ग्रहण, परिग्रह - पु० विवाह | दारक - पु० [सं०] बालक; पुत्र; शावक; ग्राम-शूकर । दारचीनी - स्त्री० एक प्रकारका तज जिसका छिलका दवा और मसाले के काम आता है ।
दारण - पु० [सं०] निर्मली; वह अस्त्र आदि जिससे कुछ चीरा जाय; चीरनेकी क्रिया, भेदन; औषधका एक भेद । वि० चीरने या विदीर्ण करनेवाला |
दारन* - वि० दे० 'दारुन'; 'दारण' । पु० दे० 'दारण' | दारना * - स० क्रि० चीरना, फाड़ना; नष्ट कर देना । दारमदार - पु० [फा०] किसी कार्यके होने या न होने
अथवा बनने-बिगड़ने की पूरी जिम्मेदारी; कार्यभार । दारा - स्त्री० स्त्री, पत्नी, भार्या । पु० [फा०] मालिक; शाह । दाई - स्त्री० [फा०] एक तरहका लाल रेशमी कपड़ा । दारि - स्त्री० [सं०] विदारण, छेदन; * दे० 'दाल' | दारिॐ* - पु० दे० 'दाडिम' ।
दारिका - स्त्री० [सं०] कन्या, पुत्री । दारिद* - पु० दे० 'दारिद्र्य' । दारिद्र* - पु० दे० 'दारिद्रथ' ।
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दारुमय - वि० [सं०] काठका; काठका बना हुआ । दारू-स्त्री० [फा०] दवा; बारूद; शराब । दारो* - पु० अनारका दाना या बीज । दारोगा - पु० [फा०] हिफाजत करनेवाला; निगरानी करनेवाला; थानेदार । -गरी - स्त्री० दारोगाका काम या ओहदा ।
दारोगाई - स्त्री० दारोगा का काम या ओहदा । दारयों * - पु० अनार; अनारका दाना ।
दार्शनिक - पु० [सं०] दर्शनशास्त्रका जानकार, तत्त्ववेत्ता । वि० दर्शनशास्त्र संबंधी ।
दाल - स्त्री० दली हुई अरहर, मूँग आदि जिसे मिझाकर भात, रोटी आदिके साथ खाते हैं; पकायी हुई दाल, सालन; खुरंड | - मोठ- स्त्री० घी या तेलमें तली हुई दाल जिसमें नमक, मिर्च आदि मिलाते हैं । मु० - गलना -युक्तिका सफल होना । - में काला होना- कोई दोष छिपा होना । - रोटी चलना - निर्वाह होना । दालचीनी - स्त्री० दे० 'दारचीनी' । दालना* - स० क्रि० दे० 'दलना' । दालान - पु० बरामदा, ओसारा ।
दाव- पु० बार, मर्तबाः कार्यसिद्धिका उपयुक्त अवसर, सुयोग; इष्टसाधनका उपाय, युक्ति; कुश्तीका पेच; छलनेकी चाल; जूए आदिके खेल में जितानेवाली चाल; खेलनेकी बारी; + जगह, रिक्त स्थान ।
दाव- पु० [सं०] वन, जंगल; वनमें लगनेवाली अग्नि; दाह; पीडा, कुश; + पु० एक हथियार; जगह, रिक्त स्थान । दावत- स्त्री० भोजका निमंत्रण; कोई काम करनेका बुलावा । दावन* - पु० दमन; संहार; हँसिया; दामन । वि० नाश करनेवाला ।
दावना - स० क्रि० दमन करना; नष्ट करना; दाँना । दावनी - स्त्री० स्त्रियोंका एक शिरोभूषण । वि० [स्त्री० नष्ट करनेवाली ।
दारिद्र्य - पु० [सं०] दरिद्रता, धनहीनता, निर्धनता, गरीबी। दावरी* - स्त्री० दे० 'दाँवरी' |
दारिम * - पु० दे० 'दाडिम' | दारी - स्त्री० [सं०] दरार; एक क्षुद्र रोग जिसमें वायुके
दावा- स्त्री० दे० 'दावाग्नि' । पु० [अ०] स्वत्वकी रक्षाया अन्याय के प्रतिकार के लिए न्यायालय में दिया हुआ प्रार्थना
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दावाग्नि-दिग्गज पत्र; किसी वस्तुको अपना बताकर उसकी जोरदार माँग दिउला-पु०, दिउली -स्त्री० सूखे हुए चेचकके दानोंके करना; अधिकार, हका हाँक; जोर; किसी बातकी यथार्थ- ऊपरकी पपड़ी, खुरंड; छोटा दीया। ताके विषयमें दृढ़ आत्मविश्वास गर्वोक्ति। -गीर-पु० दिक-पु० [अ०] एक प्रकारका ज्वर जो यक्ष्माके रोगीको दावा करनेवाला, अधिकारकी माँग करनेवाला । -दार- होता है, तपेदिक । वि० तंग आया हुआ, परेशान, पु० दे० 'दावागीर'।
आजिज । दावाग्नि-स्त्री० [सं०] वनकी आग जो बाँस आदिके रगड़ दिकदाह*-पु० दे० 'दिग्दाह' । खानेसे स्वतः लग जाती है।
दिक(श.)-स्त्री० [सं०] दिशा । -कन्या-स्त्री०दिशादावात-स्त्री० दे० 'दवात' ।
रूपिणी कन्या।-करी(रिन)-पु०दिग्गज ।-कांता, दावानल-पु० [सं०] दे० 'दावाग्नि' ।
-कामिनी-स्त्री० दे० 'दिकन्या' । -कुंजर-पु० दाशरथ-वि० [सं०] दशरथका; दशरथ-संबंधी। पु० दश- दिग्गज । -पति-पु० आठ ग्रह जो आठ दिशाओंके रथपुत्र राम आदि ।
स्वामी माने जाते हैं (ज्यो०); दस दिक्पाल । -पालदाशरथि-पु० [सं०] दशरथके पुत्र, राम, भरत आदि। । पु० दस दिशाओंके रक्षक-इंद्र, अग्नि, यम, आदि दस दास-पु० [सं०] वह जो दूसरेकी सेवाके लिए अपनेको देवता; एक छंद । -शूल-पु. वह समय जब किसी समर्पित कर दे; भृत्य, किंकर, नौकर खरीदा हुआ नीकर, विशेष दिशामें जाना वर्जित हो ।-सिंधुर-पु० दिग्गज । गुलामः शूद्रोंकी एक उपाधि; दस्यु; *बिछावन ।
-सुंदरी-स्त्री० दिशारूपी सुंदरी (स्त्री)। -स्वामीदासता-स्त्री० [सं०] दास होनेका भाव, गुलामी, पर- (मिन्)-पु० दे० 'दिक्पति'। तंत्रता।
दिक्क़त-स्त्री० [अ०] मुश्किल, तंगी, परेशानी, कठिनाई। दासन-पु० दे० 'डासन'।
दिखना-अ० क्रि० दिखाई देना। दासा-पु० दीवारसे सटाकर उठाया हुआ पुश्ता; दरवाजे | दिखराना*-स० क्रि० दे० 'दिखलाना।
या दीवारकी कुरसीके ऊपर लगायी हुई लकड़ी या पत्थर। दिखरावना-स० क्रि० दे० 'दिखलाना' । दासानुदास-पु० [सं०] दासोंका दास; विनम्र सेवक । दिखरावनी।*-स्त्री० दिखानेका काम या भाव; (नववधू दासिका-स्त्री० [सं०] दे० 'दासी'।
भादिका) मुँह देखनेका नेग । दासी-स्त्री० [सं०] सेवा-टहल करनेवाली स्त्री, सेविका। दिखलाई-स्त्री० दिखलानेका काम वा उजरत । दासेय-पु० [सं०] दासीका पुत्र; दास ।
दिखलाना-स० क्रि० देखनेका काम दूसरेसे कराना, दास्तान-स्त्री० [फा०] वृत्तांत; कहानी; विवरण, बयान । । दूसरेको देखने में लगाना, किसी वस्तुका चाक्षुष प्रत्यक्ष दास्य-पु० [सं०] भक्तिका एक भेद; दे० 'दासता' । कराना प्रदर्शित करना, प्रकट करना, जाहिर करना। दाह-पु० [सं०] जलाना; जलन, ताप; रोग जिसमें शरीर- दिखलावा-पु० दे० 'दिखावा। में विशेष जलन होती है; संताप; मुर्दा जलाना। -कर्म दिखवैया -पु० दिखलानेवाला; देखनेवाला । (न्)-पु० शवसंस्कार, शव जलानेका कृत्य ।-क्रिया- दिखहार*-पु० देखनेवाला। स्त्री० दे० 'दाहकर्म' । -ज्वर-पु. एक ज्वर जिसमें | दिखाई-स्त्री० दिखानेकी क्रिया या भाव; दिखानेकी शरीरमें बहुत जलन होती है।
उजरत देखनेकी क्रिया या भाव; देखनेके बदलेमें दिया दाहक-पु० [सं०] अग्नि चित्रक वृक्ष । वि० जलानेवाला; जानेवाला धन । तप्त करनेवाला। -प्रस्फोट (बम)-पु० (इनसेंडिअरी दिखाऊ-वि० देखने योग्य; दिखाने योग्य; जो केवल बम) आग लगा देनेवाला प्रस्फोट या बम ।
| देखनेभरको हो, दिखौआ । दाहन-पु० [सं०] जलाने या जलवानेका काम । दिखाना-स० क्रि० दे० 'दिखलाना' । दाहना-स० क्रि० जलाना, भस्मसात् करना नष्ट करना; दिखावट-स्त्री० दिखानेका भाव या तर्ज; बाह्य आडंबर । कष्ट पहुँचाना, संतप्त करना। वि० दाहिना ।
दिखावटी-वि० जो देखनेभरको अच्छा लगे, दिखौआ, दाहिन*-वि० दाहिना; अनुकूल ।
ऊपरी। दाहिना-वि० शरीरके उस पार्श्वका नाम जो पूर्वकी ओर दिखावा-पु० आडंबर, ढोंग ।। मुँह करके खड़े होने पर दक्षिण दिशाकी ओर पड़े, बायाँका | दिखैया-पु० देखनेवाला; दिखानेवाला । उलटा, दक्षिण; दाहिने हाथकी ओर पड़नेवाला; अनुकूल। दिखौआ, दिखौवा-वि० दिखावटी । मु०-हाथ होना-मुख्य सहायक होना। (दाहिनी) दिगंगना-स्त्री० [सं०] दे० 'दिक्कन्या' । देना,-लाना-प्रदक्षिणा, परिक्रमा करना।
दिगंत-पु० [सं०] दिशाका अंत, छोर । दाहिने-अ० दाहिने हाथकी ओर । मु०-होना-अनुकूल दिगंतर-पु० [सं०] दो दिशाओंके बीचकी जगह । होना।
दिगंबर-पु० [सं०] शिव, शंकर; जैनियोंका एक संप्रदाय । दाही(हिन्)-वि०, पु० [सं०] जलानेवाला; कष्ट देनेवाला। वि० जिसके लिए दिशाएँ ही वस्त्र-रूप हों, नग्न, भंगा। दिअना-पु० दे० 'दीया' ।
दिगंबरी-स्त्री० [सं०] दुर्गा । दिअरी, दिअली-स्त्री० छोटा दीया ।
| दिगदंति*-पु० दे० 'दिग्गज'। दिआ-पु० दे० 'दीया'। -बत्ती-दे० 'दीया-बत्ती'। दिगीश, दिगीश्वर-पु० [सं०] दे० 'दिक्पति' । -सलाई-स्त्री० दे० 'दियासलाई'।
| दिग्गज-पु० [सं०] वह हाथी जो पृथ्वीको सँभालनेकेहि
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दिग्गयंद-दिनांत
३५६ प्रत्येक दिशामें स्थित माना जाता है।
दित्सा-स्त्री० [सं०] देने या दान करनेकी इच्छा।-प्रस्ताव दिगगयंद-पु० दिग्गज ।
-पु० (ऑफर) किसीको कोई सहायता, धन था अन्य दिग्ध-वि० दे० 'दीर्घ'।
वस्तु देनेको तैयार हो जाना, जिसे स्वीकार करना, न दिग्जय-स्त्री० [सं०] दे० 'दिग्विजय' ।
करना उसकी इच्छापर निर्भर हो। दिग्दंती(तिन्)-पु० [सं०] दिग्गज ।
दिसु-वि० [सं०] जिसे देने या दान करनेकी इच्छा हो। दिग्दर्शक यंत्र, दिग्द्योतक यंत्र-पु० [सं०] दिशाका शान दिदृक्षा-स्त्री० [सं०] देखनेकी इच्छा । करानेवाला एक यंत्र जिसकी सुईकी नोक सदा उत्तरकी दिक्ष-वि० [सं०] देखनेका इच्छुक । ओर रहती है, कुतुबनुमा, कंपास ।
दिन-पु० [सं०] सबेरेसे शामतकका समय; सूर्योदयसे दिग्दर्शन-पु० [सं०] सामान्य परिचय, सामान्य ज्ञान । सूर्योदयतकका चौबीस घंटेका समय समय, काल; मिति, दिशाका शान कराना; कुतुबनुमा ।
तिथि तारीख, नियत समय कालविशेष ! * अ० सदा । दिग्दाह-पु०[सं०] एक उत्पात जिसमें असमय में दिशाओंमें -अर*-पु० :सूर्यः आक, मदार । -कंत*-पु. ललाई छा जाती है और ऐसा ज्ञात होता है जैसे आग सूर्य ।-कर,-कर्ता(त),-कृत्-पु०सूर्य; आक, मदार । लगी हो।
-कर-कन्या-स्त्री० यमुना; तापती। -कर-तनय-पु. दिग्देवता, दिग्दैवत-पु० [सं०] दे० 'दिक्पति'। शनि; यम; कर्णः सुग्रीव । -कर-तनया-स्त्री० यमुना; दिग्बल-पु० [सं०] वह बल जो ग्रहोंके विशिष्ट दिशामें तापती । -कर-सुत-पु० दे० । 'दिनकरतनय' । स्थित होनेसे मिलता है।
-क्षय,-पात-पु० तिथिक्षय; सायंकाल । -चर्या-स्त्री० दिग्बली(लिन)-पु० [सं०] दिग्बलसे युक्त ग्रह । दिनभरका कार्य ।-चारी(रिन्)-पु० सूर्य |-दानी*दिग्भ्रम-पु० [सं०] दिशासंबंधी भ्रम, दिशाओंका न पह- पु० वह जो प्रतिदिन दान करता हो।-दिन-अ० प्रतिचाना जाना, दिशा भूल जाना।
दिन; कालक्रमसे । -दीप-पु० सूर्य। - नाथ,-नायक दिग्वसन, दिग्वस्त्र, दिग्वासा (सस)-पु०, वि० -पु० सूर्य ।-नाह*-पु० सूर्य ।-पंजी- स्त्री० (डायरी) [सं०] दे० 'दिगंबर'।
वह रजिस्टर (पंजी), कापी इत्यादि जिसमें प्रतिदिन किये दिग्विजय-स्त्री० [सं०] किसी राजाका दलबलके साथ गये कार्यादिका विवरण लिखा जाय, दैनंदिनी ।-पतिभूमंडलके अन्य समस्त राजाओंको घूम-घूमकर परास्त | पु० सूर्य। -पाल,-बंधु-पु० सूर्य ।-मणि-पु० सूर्य । करना किसी विशिष्ट विद्वान्, मतप्रचारक या गुणीका '-मान-पु० सूर्योदयसे सूर्यास्ततकके समयका मान । सभी प्रतिद्वंद्वियोंको हराकर संसार में अपनी धाक जमाना। -मुख-पु० प्रातःकाल, सबेरा। -राइ,-राउ*-पु० दिग्विजयी(यिन)-वि० [सं०] दिग्विजय करनेवाला, सूर्य - -राज-पु० सूर्य। -रात-[हिं०],-रैन -अ० जिसने दिग्विजय की हो।
सदैव, सर्वदा। -विकृति-विवरण-पु. (वेदर रिपोर्ट) दिग्विभावित-वि० [सं०] जिसकी ख्याति सभी दिशाओं- दिन-रातमें होनेवाले ताप, शीत, वर्षादि-संबंधी विकारोंका में फैली हो।
विवरण, मीसिमका हाल । -शेष-पु० संध्या, सायंकाल, दिग्व्याप्त-वि० [सं०] सभी दिशाओं में व्याप्त ।
शाम । मु०-काटना-किसी तरह निर्वाह करना ।-को दिङनाग-पु० [सं०] दिग्गज ।
तारे दिखाई देना-दुःखकी.प्रबलताके कारण होश ठिकाने दिङनाथ-पु० [सं०] दे० 'दिक्पति' ।
न रहना । -को दिन, रातको रात न समझना-काम दिङमंडल-पु० [सं०] दिशाओंका समूह; क्षितिज । करनेकी धुनमें अपने स्वास्थ्य आदिका खयाल न करना। दिच्छा-स्त्री० दे० 'दीक्षा'।
-को रात कहना-उलटी बात कहना ।-गिनना-प्रतीक्षा दिच्छित, दिछित*-वि० दे० 'दीक्षित' ।
करना ।-चढ़ना-मासिकधर्मका टल जाना, गर्भवती होनेदिजराज*-पु० दे० 'द्विजराज' ।
की संभावना होना; उदयके पश्चात् सूर्यका आकाशमें कुछ दिजोत्तम*-पु० दे० 'द्विजोत्तम'।
और ऊपर आना ।-चढ़े-सबेरा होनेके काफी देर बाद । दिठवन-स्त्री० दे० 'देवोत्थान' (एकादशी)।
-डबना-संध्या होना, सूर्यास्त होना ।-ढलना-सूर्यदिठादिठी-स्त्री० देखादेखी, साक्षात्कार ।
का अस्ताचलगामी होना ।-दहाड़े-दिनमें खुले तौरपर, दिठौना-पु. वह चिह्न जो बच्चोंको कुदृष्टिसे बचानेके लिए खुले खजाने । -दुना, रात चौगुना होना या बढ़ना
काजलसे उनके गाल या मस्तकपर बना दिया जाता है। शीघ्रतासे और बहुत अधिक उन्नति करना। -धरनादिढ़*-वि० दे० 'दृढ'।
दिन नियत करना, तारीख मुकरर करना । -धरानादिढ़ता*-स्त्री० दे० 'दृढता'।
दिन नियत कराना। -निकलना या होना-सूर्योदय दिवाई*-स्त्री० दे० 'दृढता' ।
होना, सबेरा होना। -फिरना-भले दिन आना, सुखके दिढ़ाना-स० क्रि० दृढ़ करना, पक्का करना।
दिन आना। दिढ़ाव*-पु० दृढ़ बनाना; समर्थन करना हढता। दिनांक-पु० [सं०] (डेट) गणनाके अनुसार किसी वर्षके दित-वि० [सं०] कटा हुआ, खंडित; विभक्त । | किसी महीनेका वह दिन जब कोई घटना हुई हो या पत्र, दिति-स्त्री० [सं०] दैत्योंकी माता जो दक्ष प्रजापतिकी लेखादि लिखा गया हो, तिथि । कन्या और कश्यपकी पत्नी थी। -ज-तनय,-पुत्र,- दिनांकित-वि० [सं०] (डेटेड) दे० 'तिथित' । सुत-पु० असुर, दैत्य ।
| दिनांत-पु० [सं०] संध्या, शाम ।
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३५७
दिनांध - वि० [सं०] जिसे दिनको दिखाई न देता हो, दिरिस * - पु० दे० 'दृश्य' ।
दिवांध | पु० उल्लू पक्षी ।.
दिनाई * - स्त्री० प्राणांत करनेवाली विषैली चीज - 'ऊधो, दीनी प्रीति दिनाई' - सू० । दिनागम - पु० [सं०] प्रातःकाल, सबेरा । दिनाय - स्त्री० एक चर्मरोग, दाद । दिनार* - पु० दे० 'दीनार' | दिना - पु० [सं०] मध्याह्न । दिनिका - स्त्री० [सं०] एक दिनकी मजदूरी । दिनियर* - पु० सूर्य |
दिनी - वि० बहुत दिनोंका, पुराना, प्राचीन । दिनेर* - ५० सूर्य ।
दिनेश - पु० [सं०] सूर्य; मदार; दिनके स्वामी ग्रह । दिनेस* - पु० दे० 'दिनेश' । दिनाँधी-स्त्री० एक रोग जिसमें सूर्यके प्रकाश में बहुत कम दिखाई देता है ।
दिपति * - स्त्री० दे० 'दीप्ति' ।
दिपना* - अ० क्रि० देदीप्यमान होना, चमकना । दिपाना* - अ० क्रि० चमकना । स० क्रि० चमकाना । दिव* - पु० दिव्य परीक्षा |
दिमाक * - पु० दे० 'दिमाग' । - दार- वि० दे० 'दिमागदार' | दिमाग़ - पु० [अ०] सिरके भीतरका गूदा या मग्ज, भेजा, मस्तिष्क, बुद्धि, समझ अभिमान । -चट - पु० बकवादी; खोपड़ी चाट जानेवाला ।-दार - वि० अच्छी समझवाला, बुद्धिमान् ; अभिमानी, मगरूर । - रौशन - पुं० सुँघनी । मु० - आसमानपर होना- अत्यधिक अभिमान होना । - खाना - बहुत बकवाद करना । - ख़ाली करना- किसीको समझाते समझाते थक जाना; दे० 'दिमारा खाना' । - चढ़ना - अत्यधिक अभिमान होना । -चाटना - दे० 'दिमाग खाना' । - सातवें आसमानपर होना बहुत अधिक घमंड होना ।
दिमाग़ी - वि० [अ०] दिमागदार; दिमाग संबंधी । दिमात * - वि०, पु० दो माताओंवाला; दो मात्राओंवाला । दिमाना* - वि० दे० 'दीवाना' | दियट-स्त्री० दे० 'दीभट' ।
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दियरा * - पु० दीया; एक पकवान । दिया- ५० दे० 'दीया' । - बत्ती - स्त्री० दीया जलानेका कार्य । -सलाई - स्त्री० एक सिरेपर गंधक आदि मसाले लगाकर बनायी हुई छोटी, पतली सलाई जो रगड़ने से जल उठती है; लकड़ीका छोटा बक्स जिसमें ऐसी तीलियाँ रखी रहती हैं । मु० - सलाई लगाना - आग लगाना । दियानत - स्त्री० दे० 'दयानत' । दियारा - पु० कछार; प्रदेश; लुक । दियासा* - पु० मृगतृष्णा । दिरद* - पु० दे० 'द्विरद' । दिरमान | - स्त्री० चिकित्सा | दिरमानी * - पु० चिकित्सक, वैद्य । स्त्री० चिकित्साशास्त्र'जस आमय भेषज न कीन्ह तस दोष कछू दिरमानी'विनयप० ।
दिरानी * - स्त्री० देवरानी ।
दिनांध - दिल
दिल- पु० [फा०] एक अवयव जिसके द्वारा मनुष्यके शरीर में रुधिरका संचार होता रहता है; हृदय, मन, जी; हिम्मत; हौसला; इच्छा । - आरा - वि० माशूक, प्रियतम । - कश-वि० मनको खींचनेवाला, चित्ताकर्षक । - कुशा - वि० चित्तको प्रसन्न करनेवाला । - कुशाई - स्त्री० चित्तको प्रसन्न करना । - कुशी - स्त्री० जीको लुभाना, चित्तको अपनी ओर खींचना । - खुशवि० मनको प्रसन्न करनेवाला । -ख़्वाह - वि० मनचाहा । -गीर - वि० शोकग्रस्त, उदास, रंजीदा । - गीरी - स्त्री० उदासी, रंज । - चला - वि० साहसी, उत्साही, बहादुर । -चस्प - वि० जिसमें मन रमे, रुचिकर । -चस्पी - स्त्री० चाव, रुचि, शौक । -चोर - वि० भीरु, कायर; कामचोर । - जमई - स्त्री० चित्तका समाधान, इतमीनान, तसल्ली । - जला - वि० दुःखी । जोई - स्त्री० ढाढ़स, दिलासा, सांत्वना । - दरिया - वि० दे० 'दरियादिल' । - दार - वि० जिससे प्रेम किया जाय, प्रेमपात्र; रसिक; उदार । - दारी - स्त्री० प्रेमपात्रता; रसिकता; उदारता । - पसंद - वि० जो जीको अच्छा लगे, जिसे मन चाहे । - फेंक - वि० रूपलोभी । -बर- वि० दे० 'दिलदार' | -बस्त - वि० जिसका दिल कहीं लगा हुआ हो। - बस्तगीस्त्री० मनबहलाव । -रुबा - वि० मनको लुभानेवाला; प्यारा, प्रेमपात्र । पु० एक बाजा । -शिकन - वि० दिल तोड़नेवाला, हिम्मत पस्त करनेवाला । - शिकस्त - वि० उदास, चिंतित । -शुदा - वि० आशिक, दीवाना | - सोज़ - वि० परदुःखकातर हमदर्द । मु० - अटकना- किसीसे प्रेम हो जाना। कड़ा करना - मनमें ढ़ता लाना। - कबाब होना - मनका जल-भुन जाना । - का खोटा - कपटी, दगाबाज का गवाही देनाअंतरात्माका कोई काम करना स्वीकार करना । -का गुबार निकलना - मनका मलाल दूर करना । -का बादशाह - अति उदार; मनमौजी ।-की आग बुझना -
ठंडा होना; इच्छा पूरी होना । - की कली खिलनाजी खुश होना । - की दिलमें रहना-मनोरथका पूर्ण न होना । - की फाँस - आंतरिक वेदना । - के फफोले फूटना - मनका उद्योग शांत होना । - के फफोले फोड़ना- किसीको खरी-खोटी सुनाकर मनका उद्व ेग शांत करना । - को क़रार होना -- मनका आश्वस्त होना । - खट्टा होना - मन फिर जाना। -चुराना - काममें मन न लगाना। -जमना - दिल लगना । - जलना - रंज होना, गम होना । - जलाना-सताना; गम खाना । - डूबना - बेहोश या बेचैन होना । - तोड़ना - हिम्मत तोड़ना । - दहलना - कलेजा काँपना । - दुखाना - कष्ट पहुँचाना, सताना | - देना - प्रेमासक्त होना । - दौड़नाप्रबल इच्छा होना । - दौड़ाना - -मन चलाना; सोचना, बिचारना । - धड़कना - दे० 'कलेजा धड़कना' । -पक जाना - दिलमें सख्त रंज होना; ताने सुन-सुनकर दिलको कष्ट होना । - पर साँप लोटना - दे० 'कलेजेपर साँप लोटन' । - फट जाना या फटना-दिल खट्टा होना । - फटा जाना-बेचैन होना, व्याकुल होना । - बढ़ना
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दिलवाना-दिसा
३५८ उत्साहित होना, जोश आना। -बढ़ाना-उत्साहित * स्त्री० मर्यादा-'दिल्ली दल दाविकै दिवान राखी करना, जोश दिलाना । -बैठा जाना-व्याकुल होना; दुनीमें-भू० । बेहोश होना। -भर आना-करुणा आदिसे विचलित | दिवाना*-वि० दे० 'दीवाना' ।*सक्रिदे० 'दिलाना' । होना। -मिलना-दे० 'मन मिलना'। -में आना- दिवाभिसारिका-स्त्री० [सं०] दिनमें अभिसार करनेवाली इच्छा होना, विचारमें आना। -में गाँठ या गिरह | नायिका। पड़ना-द्वष होना; फूट पैदा होना। -में घर करना, दिवारी-स्त्री० दे० 'दीवार' । -में जगह करना-किसी बातका हृदयमें अच्छी तरह | दिवारी*-स्त्री० दे० 'दीवाली' । जम जाना । -में फफोले पड़ना-बहुत अधिक मानसिक दिवाला-स्त्री० दे० 'दीवार' । कष्ट होना। -में फर्क आना-मनमोटाव होना ।-मैला दिवाला-पु० अर्थहीनताकी वह दशा जिसमें कोई व्यक्ति करना-दे० 'मन मैला करना। -लगना-दे० 'जी अथवा संस्था अपना ऋण न चुका सके; सर्वथा अभाव लगना'-लगाना-दे० 'जी लगाना' ।-से उतरना- हो जाना। स्नेह या श्रद्धाका पात्र न रह जाना । -से दूर करना- दिवालिया-वि० जिसके पास अपना ऋण चुकानेके लिए भुला देना। -हट जाना-मन फिर जाना।
कुछ न रह गया हो, जिसका दिवाला निकला हो । दिलवाना-स० क्रि० दे० 'दिलाना' ।
| दिवाली-स्त्री० दे० 'दीवाली' । दिलवैया-पु० दिलानेवाला।
दिवैया-पु० देनेवाला। दिलाना-स० क्रि० देनेका काम दूसरेसे कराना। दिवौका(कस्)-पु० [सं०] स्वर्ग में निवास करनेवाला; दिलावर-वि० [फा०] साहसी, हिम्मती, बहादुर, दिलेर। देवता; चातक पक्षी । दिलावरी-स्त्री० [फा०] दिलावर होनेका गुण, बहादुरी। दिव-पु० [सं०] स्वर्ग; आकाश; दिन प्रकाश चमक । दिलासा-पु० आश्वासन, सांत्वना, धीरज ।
दिव्य-वि० [सं०] स्वर्ग-संबंधी; स्वगीय; आकाशीयः दिली-वि० [फा०] जिससे किसी प्रकारका भेदभाव न हो, अलौकिक देवोचित; चमकीला, दीप्तियुक्त; अतिसुंदर, अभिन्न हार्दिक ।
भव्य, बढ़िया। पु० आकाशमें होनेवाला उत्पात-विशेष दिलेर-वि० [फा०] साहसी, जीवटवाला, जवाँमर्द ।
एक परीक्षा जिससे प्राचीन काल में अपराधीकी सदोषता दिलेरी-स्त्री० [फा०] हिम्मत बहादुरी ।
या निर्दोषताका निर्णय करते थे। -क्रिया-स्त्री० दिव्य दिल्लगी-स्त्री० हँसी, परिहास, मजाक । -बाज़-वि०,
परीक्षा लेनेका कार्य । -चक्षु(स)-वि० दिव्य नेत्रोंपु० हँसी-परिहास करनेवाला, मसखरा ।
वाला; सुंदर आँखोंवाला; अंधा। पु० दिव्य दृष्टि; बंदर । दिल्ला-पु० किनारोंकी ओर कुछ ढालुआँ गढ़ा हुआ
-दर्शी(शिन्)-वि० अलौकिक पदार्थोंका द्रष्टा । लकड़ीका चौकोर टुकड़ा जिसे शीशेके किवाड़ या खिड़कीके
-दृष्टि-स्त्री० दे० 'दिव्यचक्षु'।-नदी-स्त्री० मंदाकिनी। पल्लेमें शोभाके लिए जड़ देते हैं।
-नारी-स्त्री. अप्सरा देववधू । -सरित्-स्त्री० दिल्लीवाल-वि० दिल्लीका; दिल्लीका बना हुआ। पु०
मंदाकिनी। दिल्लीका निवासी एक विशेष प्रकारका जूता। दिव्यांगना-स्त्री० [सं०] अप्सरा; देववधू । दिवंगत-वि० [सं०] स्वर्गगत ।
दिव्या-स्त्री० [सं०] लोकोत्तर गुणोंसे युक्त नायिका; हरीदिव-पु० [सं०] स्वर्ग; आकाश; दिन; वन । -राज
तकी; वंध्या कर्कोटकी; शतावरी; महामेदा; ब्राझी । पु० इंद्र।
दिव्यादिव्य-पु० [सं०] तीन प्रकारके नायकोंमेंसे एक, दिवस-पु० [सं०] दिन, वार, रोज। -अंध*-पु० दे० वह नायक जिसमें लोकोत्तर गुण भी हों, जैसे-नल आदि । "दिवांध' । -कर,-नाथ-पु० सूर्य मदार । -मणि- दिव्यादिव्या-स्त्री० [सं०] नायिकाओंका एक भेद, वह पु० सूर्य । -मुख-पु० प्रभात, सुबह । -मुद्रा-स्त्री० नायिकाजिसमलाकात्तर गुण भाहा, जस-दमयता आद। दिनभरकी मजदूरी, एक दिनका पारिश्रमिक । दिव्यास्त्र-पु० [सं०] मंत्र-शक्तिसे चलाये जानेवाले अस्त्र । दिवसेश, दिवसेश्वर-पु० [सं०] सूर्य ।
दिव्योदक-पु० [सं०] वर्षाका जल । दिवस्पति-पु० [सं०] इंद्र।
दिशा-स्त्री० [सं०] ओर, तरफ; क्षितिज-मंडलके चार दिवांध-पु० [सं०] उल्लू । वि०जिसे दिनमें दिखाई न दे। कल्पित भागों-पूर्व, पश्चिम आदि-मेंसे कोई एक दसकी दिवा-+ पु० दीया, चिराग; [सं०] दिन, वार; एक संख्या। -गज-पु० दिग्गज । -पाल-पु० दिक्पाल । वर्णवृत्त । -कर-पु० सूर्य; मदार; कौआ; सूर्यमुखी -भ्रम-पु० दिशा भूल जाना, दिग्भ्रम । -शूल-पु० नामका फूल । -चर-पु० चांडाल; एक पक्षी, श्यामा।| दे० 'दिक्-शूल'। -सूल*-पु० दे० 'दिक्-शूल'। -चारी(रिन)-पु० दिनमें संचरण करनेवाला प्राणी। दिश्य-वि० [सं०] दिशासंबंधी; दिशाविशेषमें होनेवाला। -भीत-भीति-पु० उल्लू ; रातमें खिलनेवाला एक दिष्टि-स्त्री० [सं०] भाग्य; सौभाग प्रकारका कमल; चोर । -मणि-पु० सूर्य । -मध्य-पु० | दिसंतर-पु० देशांतर, विदेश । अ० बहुत दूरतक । मध्याह्न, दोपहर । -रात्र-अ०दिन-रात । -स्वम-पु० | दिस*-स्त्री० दे० 'दिशा'। दिनको सोना, दिवसनिद्रा; मनोराज्य, हवाई किला। दिसना*-अ० क्रि० दे० 'दिखना' । मु०-स्वप्न देखना-हवाई किले बनाना।
दिसा -स्त्री० दे० 'दिशा'; मलत्याग ।-दाह*-पु० दे० दिधान-पु० दे० 'दीवान'; राजाका छोटा भाई; समूह। दिग्दाह'। -सूल*-पु० दे० 'दिक्-शूल'।
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३५९
दिसावर - पु० परदेश, अन्य देश ।
दिसावरी - वि० बाहरसे लाया या आया हुआ, बाहरी । दिसि* - स्त्री० दे० 'दिशा' । - दुरद* - पु० दिग्गज । - नायक* - पु० दिक्पाल । प, राज-पु० दिक्पाल | दिसिटि * - स्त्री० दे० 'दृष्टि' । दिसैया * - पु० देखनेवाला; दिखानेवाला ।
दिस्टि* - स्त्री० दे० 'दृष्टि' । -बंध - पु० दे० 'दृष्टिबंध' । दीन - वि० [सं०] अर्थहीन, दरिद्र; विपन्न, दयनीय दशा में
दिस्ता - पु० कागजके २४ तख्तोंकी गड्डी | दिहानियत - स्त्री० देहातीपन ।
|
दीक्षक - पु० [सं०] दीक्षा देनेवाला, गुरु, मंत्रोपदेष्टा । दक्षिण - पु० [सं०] दीक्षा देनेकी क्रिया; यज्ञ समाप्त होनेपर उसकी त्रुटियोंकी शांति के लिए किया जानेवाला यजन । दीक्षांत - पु० [सं०] पहले यज्ञमें हुए दोषोंके मार्जनके लिए किया जानेवाला यश; दीक्षाका अंत; किसी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय के अध्ययनकी सफल समाप्ति । भाषण० उपाधि या प्रमाण पत्रादि देनेके समय समुत्तीर्ण स्नातकोंको संबोधन कर किया गया किसी विद्वान् या सम्मान्य नेताका भाषण ।
दिसावर - दीपिका
दीद - वि० [फा०] देखा हुआ ।
दोदा - पु० आँख, दृष्टि, निगाह; धृष्टता (स्त्रि ० ) । मु० - लगना - काम में तबीयत लगना । दीदार- पु० [फा०] चेहरा; दर्शन, साक्षात्कार । दीदी - स्त्री० बड़ी बहनको संबोधित करनेका शब्द | दीधिति - स्त्री० [सं०] किरण; उँगली ।
दीक्षा - स्त्री० [सं०] याग; उपनयन संस्कार; तंत्र के अनुसार किसी देवता के मंत्रका उपदेश; तंत्रोक्त रीति से किसी देवताका मंत्र ग्रहण करनेकी क्रिया; (कोई धार्मिक) कृत्य; नियम । - गुरु- पु० मंत्र देनेवाला गुरु । दीक्षित - वि० [सं०] जिसे दीक्षा दी गयी हो या जिसने गुरुसे दीक्षा ली हो; जिसने सोम आदि याग किये हों । दीखना - अ० क्रि० दिखाई देना, दृष्टिगत होना । दीघी - स्त्री० दे० 'दीर्घिका' |
दीच्छा* - स्त्री० दे० 'दीक्षा' |
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दिert - पु० देवस्थान, देवायतन ।
दिहली - स्त्री० दे० 'दहलीज' ।
दिहाती - वि० दे० 'देहाती' । - पन - पु०दे० 'देहातीपन' । दीन - पु० [अ०] धर्म, मजहब, पंथ । -इलाही - पु० दीअट - स्त्री० दे० 'दीयट' |
दीआ - पु० दे० 'दीया' ।
अकबरका चलाया हुआ एक धर्म जो कुछ ही समयतक चलकर रह गया । - दार - वि० धर्मनिष्ठ । - दुनिया - स्त्री० इहलोक तथा परलोक ।
पड़ा हुआ; दुःखपूर्ण, करुण । - दयाल - वि०, पु० [हिं०] दे० 'दीनदयालु' । - दयालु - वि० दीनोंपर दया करनेवाला । पु० परमेश्वर । - बंधु - वि० दीनोंकी सहायता, रक्षा करनेवाला । पु० परमेश्वर ।
दीठ - स्त्री० दे० 'दृष्टि'; बुरा प्रभाव उत्पन्न करनेवाली निगाह - ' दूनी व लागन लगी दिये दिठौना दीठ' - बि० । - बंद -५० नजर बाँधनेकी क्रिया । -बंदी - स्त्री० नजर बाँधनेकी क्रिया । -वंत* - वि० दृष्टियुक्त; समझदार । मु०-खा जाना - ऐसे व्यक्ति द्वारा देखा जाना जिसकी दृष्टि अच्छी न हो। -जलाना - बुरी दृष्टिका प्रभाव दूर करना । - पर चढ़ना - दे० 'नजर पर चढ़ना' ।-फिरनादृष्टिका दूसरी ओर प्रवृत्त होना; कृपा न बनी रहना । - फेरना - दूसरी ओर नजर कर लेना; किसीपर कृपादृष्टि न रहने देना । - बाँधना-दे० 'नजर बाँधना' । - बिछाना - आशापूर्ण दृष्टिसे किसीके आनेकी प्रतीक्षा करना; बड़ी श्रद्धा से आवभगत करना ।-मारना - आँखसे | संकेत करना । - मारी जाना-देखनेकी शक्ति नष्ट होना । - में समाना- नेत्रोंको सुखद होनेके कारण सदा ध्यानमें बना रहना । - लगना- कुदृष्टि पड़ जाना । —लगानाटकटकी लगाकर देखना ।
|
दी ठना* - स० क्रि० देखना | दीठि* - स्त्री० दे० 'दीठ' |
२३-क
दीनता - स्त्री० [सं०] दरिद्रता; विपन्नता; विवशता । दीनताई * - स्त्री० दीनता ।
|
दीनानाथ - पु० दीनोंके नाथ - स्वामी, रक्षक, परमेश्वर । दीनार - पु० [सं०] सोनेका भूषण; सोनेका एक सिक्का । दीप* - पु० द्वीप; [सं०] दीया, चिराग । -कलिकास्त्री० दीपककी लौ । -कली- स्त्री० दीपककी लौ । - किट्ट - पु० कज्जल, काजल | - दान-पु० आराध्य देवताके सामने दीप जलाना । ध्वज - पु० कज्जल; दीवट - पादप-पु० दीपाधार, दीवट; देवदारु । - माला, - मालिका - स्त्री० जलते हुए दीपककी पंक्ति, दीवाली । - शत्रु - पु० पतंग, फलिंगा । - शलभ - पु० जुगनू । - शिखा - स्त्री० दे० 'दीपकलिका' । -स्तंभपु० दीपाधार, दीवट; (लाइट-हाउस) दे० 'प्रकाश स्तंभ' | दीपक - पु० [सं०] दीया; एक मात्रिक छंद; अर्थालंकारका एक भेद जहाँ वर्ण्य अवर्ण्य या उपमेय - उपमानका एक ही धर्म कहा जाय अथवा जहाँ क्रियापदोंकी आवृत्ति हो या जहाँ एक ही कर्ता के साथ बहुतसे क्रियापदोंकी आवृत्ति हो (दे० 'कारक- दीपक ) ; एक रागः एक ताल । वि० दीप्त करनेवाला; आलोकित करनेवाला; अग्निवर्धक - मालास्त्री० दीपकालंकारका एक भेद जिसमें एकावली तथा दीपकका मेल होता है; एक वर्णवृत्त । दीपकावृत्ति स्त्री० [सं०] दीपक अलंकारका एक भेद जिसमें एक ही क्रियापद विभिन्न अर्थों में कई बार आये या एक ही अर्थके विभिन्न क्रियापदों का प्रयोग हो । दीपत, दीपति* - स्त्री० चमक; शोभा; प्रताप । दीपन - पु० [सं०] दीप्त करना, प्रज्वलित करना; आलोकित करना; अग्निवर्द्धन; उत्तेजित करना; तगरकी जड़ । वि० उत्तेजित करनेवाला; अग्निवर्द्धक ।
दीपना * - अ० क्रि० दीप्त होना; चमकना । स० क्रि० चमकाना; प्रदीप्त करना ।
दीपाधार - पु० [सं०] दीयट | दीपाराधन-पु० [सं०] आरती उतारना । दीपालि, दीपाली - स्त्री० [सं०] दीपमाला, दीवाली । दीपावलि, दीपावली - स्त्री० [सं०] 'दीवाली'। दीपिका - स्त्री० [सं०] छोटा दीपक; एक रागिनी; अर्थ
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दीपित-दुःख स्पष्ट करनेवाली पुस्तक ।
दीर्घावकाश-पु० [सं०] (वैकेशन) न्यायालयों या विद्यादीपित-वि० [सं०] दीप्त, प्रज्वलित, प्रभासित; उत्तेजित ।। लयोंके दो सत्रोंके बीचकी लंबी छुट्टी। दीपोत्सव-पु० [सं०] दीवाली ।
दीर्घास्य-पु० [सं०] हाथी। वि० जिसका मुंह बड़ा हो। दीप्त-वि० [सं०] दे० 'दीपित' ।
दीर्घिका-स्त्री० [सं०] जलाशयका एक भेद, वापी । दीप्ति-स्त्री० [सं०] प्रभा, द्युति, चमक; कांति, छटा। दीर्ण-वि० [सं०] विदारित, फाड़ा हुआ; फटा हुआ। -प्रसारण,-विकिरण-पु० (रैडियेशन) प्रकाशकी किरणें दीवट-स्त्री० दीपक रखनेका लकड़ी आदिका आधार । चारों ओर प्रसारित करना, फैलाना ।
दीवा*-पु० दे० 'दीया'। दीप्तिमान् (मत्)-वि० [सं०] प्रभायुक्त, कांतिमान् , दीवान-पु० [फा०] शाही दरबार या अदालत, आस्थानशोभन ।
मंडप; राजा या बादशाहकी बैठक; प्रधान मंत्री; वह दीप्यमान-वि० [सं०] प्रकाशमान, चमकता हुआ। पुस्तक जिसमें गजलें संगृहीत हों। -आम,-आलम-पु. दीमक-स्त्री० एक तरहकी सफेद चींटी जो कागज, लकड़ी | बादशाह या राजाका वह दरबार जिसमें सर्वसाधारण अदिके लिए बहुत हानिकर है।
प्रवेश पा सकें। -खाना-पु० बैठक; बाहरी लोगोंसे दीयट-स्त्री० दे० 'दीवट'।
मुलाकात करनेकी जगह । -ख़ास-पु० बादशाह या दीया-पु० तेल या घीके योगसे जलनेवाली बत्तीका आधार; राजाका वह दरबार जिसमें गिने-चुने लोग सम्मिलित हों। मिट्टीका छोटा छिछला पात्र जिसमें बत्ती जलाते हैं। | दीवानगी-स्त्री० [फा०] दे० 'दीवानापन' । -बत्ती-स्त्री० दीया जलानेका कार्य । -सलाई-स्त्री० दीवाना-वि० [फा०] पागल, विक्षिप्त, सनकी । -पनदे० 'दिया-सलाई'।मु०-जलनेके समय-संध्या समय । पु० दीवाना होनेका भाव, पागलपन, सनक । -ठंडा करना-दीपकको बुझादेना। -ठंडा होना-दीपक दीवानी-स्त्री० [फा०] वह अदालत जिसमें रुपये और बुझना । -दिखाना-(किसीके) सामने आलोक करना । जायदादके मुकदमोंकी सुनवाई होती है; दीवानका पद । -बत्तीका समय-दीया जलानेका समय, सायंकाल । दीवार-स्त्री० [फा०] मिट्टी; ईट आदिका बनाया हुआ -लेकर हूँढना-बड़े परिश्रमसे खोजना।
परदा या घेरा, भीत। -गीर-स्त्री० दीवार में लगाया दीरघ-वि० दे० 'दीर्घ'।।
हुआ दीया रखनेका आधार दीवार में लगानेका लैप। दीर्घ-वि० [सं०] (देश और काल दोनोंकी दृष्टिसे) बड़ा; दीवाल-स्त्री० [फा०] दे० 'दीवार'। . ऊँचा, आयत; गहरा (जैसे श्वास); विस्तृत; लंबा गुरु दीवाली-स्त्री० कात्तिककी अमावास्याको पड़नेवाला हिंदु. (मात्रा)। पु० ऊँट; गुरु मात्रा (आ, ई आदि)।-काय- ओंका एक त्योहार जिसमें दीपक जलाये जाते है । वि० लंबा। -गति-पु० ऊँट (जिसके डग बहुत बड़े होते दीसना-अ० क्रि० दिखाई देना, दृष्टिगत होना । हैं)। -ग्रीव-पु० ऊँट सारस । वि० लंबी गरदनवाला। दीह*-वि० दीर्घ; लंबा; बड़ा। -जिह-पु० सर्प । -जीवी(विन)-वि० जो बहुत दिनों दंद*-पु० दो व्यक्तियोंका युद्ध या कलह, ऊधम, उत्पात तक जीये, चिरजीवी। -दर्शी(शिन)-पु० भालू गीध। युगल, जोड़ा; नगाड़ा, डंका । अ० ठक-ठक । वि० जो बहुत दूरतककी बात सोचे या सोच सके, दूर-दुंदभ*-पु० जन्म-मरणादिका क्लेश । दशी। -दृष्टि-पु. गीध । वि० दूरदर्शी। -निद्रा- म-पु० [सं०] एक तरहका नगाड़ा। स्त्री० बहुकालव्यापी निद्रा; मृत्यु । -नि:श्वास-पु० दुंदु-पु० [सं०] एक तरहका नगाड़ा; कृष्णके पिता वसुदेव; शोक या दुःखके कारण ली जानेवाली लंबी साँस ।-बाह | * जन्म-मरण आदि कष्ट । -वि० जिसकी भुजा लंबी हो। -रद-पु० शूकर । वि० दुंदुभ-पु० [सं०] डंका, दुंदुभि पानीमें रहनेवाला साँप जिसके दाँत बड़े हों। -वक्त्र-पु० हाथी। वि० जिसका | * जन्म-मरणादिका कष्ट । मुँह लंबा हो। -सत्र-पु. बहुत दिनोंतक चलनेवाला दुदुभि-खी० [सं०] डंका, नगाड़ा । पु० वरुण; एक दैत्य । यश ऐसा यज्ञ करनेवाला व्यक्ति ।-सूत्रता-स्त्री. प्रत्येक दुंदुभी-स्त्री० नगाड़ा। कार्यको देर में करनेकी आदत; (रेड टेपिज्म) सार्वजनिक दुदुर-पु० चूहा । कार्योंके संबंधमें सरकारी कर्मचारियों द्वारा अत्यधिक औप- दुदुह*-पु० दे० 'डिडिम' । चारिकताके कारण की जानेवाली देर । -सूत्री(विन) दुबक-पु० [सं०] एक प्रकारका भेढ़ा, दुबा । -वि० जो प्रत्येक कार्यको देरमें करे, जो आरंभ किये हुए दुबा-पु० एक प्रकारका मेढ़ा जिसकी पूँछ सिरेपर गोल, कार्यमें उचितसे अधिक समय लगाये।
मोटी और चौड़ी होती है। दीर्घा-स्त्री० [सं०] लंबा तालाब; भवनके भीतर दर्शकोंके दुकुंत*-पु० दे० 'दुष्यंत'।
बैठनेके लिए बना हुआ लम्बा-सा ऊँचा स्थान (गैलरी) दुःख-पु० [सं०] कष्ट, कुश, तकलीफ। -कर-वि० दीर्घाकार-वि० [सं०] बड़े आकारका ।
दुःख पहुँचानेवाला, कष्टप्रद । -ग्राम-पु० संसार दीर्धाध्वग-पु० [सं०] दूत, हरकारा।
दुःखोंका समूह । -त्रय-पु० आधिभौतिक, आधिदैविक दीर्घायु-पु० [सं०] कौआ सेमरका पेड़ मार्कण्डेय ऋषि ।। और आध्यात्मिक-ये तीन प्रकारके दुःख । -द-वि० वि० दीर्घजीवी, लंबी आयुवाला।
दुःख पहुँचानेवाला, क्लेशकर । -दग्ध-वि० जो बहुत दीर्घायुध-पु० [सं०] भाला; सूअर; साही। वि० जिसके दुःखमें हो, भीषण कष्टमें पड़ा हुआ। -दाता()-पु० पास बड़ा अस्त्र हो।
। वह व्यक्ति जो कष्ट पहुँचाये । -दायका-दायी(यिन्)
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दुःखमय-दु वि० दुःख देनेवाला; जिससे कष्ट पहुँचे ।-प्रद-वि० दे० -स्त्री० एक बातपर मन न जमना, द्विविधा; संदेह; चिंता। 'दुःखद'।-प्राय, बहुल-वि० जिसमें दुःखका आधिक्य -चित्ता-वि० दे० 'दुचित' । -ज*-पु० दे० 'द्विज' । हो, दुःखपूर्ण, कष्टसंकुल । लभ्य-वि० दुर्लभ, दुष्प्राप्य । -ज-पति*-पु० दे० 'द्विजपति'। -ज-राज*-पु० -साध्य-वि० दे० 'दुःसाध्य' । मु०-उठाना-तकलीफ । दे० 'द्विजराज'।-जन्मा*-पु० दे० द्विजन्मा'।-जातिसहना। -देना-कष्ट पहुँचाना। -पहुँचना-कष्ट होना। -पु०, स्त्री० दे० 'द्विजाति'। -जानू*-अ० दो घुटनोंके -पाना-तकलीफ सहना, झेलना । -बटाना-विपत्तिमें बल ।-जीह -पु० दे० 'द्विजिह्व'।-टूक-वि०जिसके दो साथ देना, ,सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार द्वारा दुःख हलका | टुकड़े कर दिये गये हों। -तरफा-तर्फा-वि० दोनों करना । -मानना-खिन्न होना, दुःखी होना।
ओरका; दुरंगा। -तारा-पु० सितारकी तरहका एक दुःखमय-वि० [सं०] दुःखोंसे भरा हुआ, दुःखपूर्ण । बाजा जिसमें दो तार लगे रहते हैं। -दल-पु० दे० दुःखांत-वि० [सं०] जिसका अंत दुःखमय हो; जिसका | "द्विदल'। -दिला*-वि० दे० 'दुचित'। -धारा-पु० पर्यवसान दुःखमें हो। पु० वह नाटक जिसकी समाप्ति एक प्रकारकी तलवार जिसमें दोनों ओर धार रहती है। दुःखमयी घटनासे हो; दुःखका अंत या नाश ।
-नाली-वि० स्त्री० जिसमें दो नल हों, दो नलोंवाली । दुःखार्त-वि० [सं०] दुःखी, कष्टमें पड़ा हुआ।
-पटा-पु० दे० 'दुपट्टा'। -पटी*-स्त्री० छोटा दुपट्टा । दु:खित-वि० [सं०] जिसे कष्ट हो, पीडित खिन्न । -पट्टा-पु० ओढ़नेकी चादर, उत्तरीय । -पट्टी*-स्त्री. दुखिनी-वि० स्त्री० [सं०] (वह स्त्री) जिसपर विपत्ति पड़ी। छोटा दुपट्टा । -पद-पु० दे० 'द्विपद'। -पर्दी-स्त्री० हो, दुःख में पड़ी हुई।
एक तरहकी मिर्जई जिसमें दोनों ओर पर्दै लगे रहते हैं, दुःखी(खिन्)-वि० [सं०] जिसे दुःख हो, जो कष्टमें हो, बगलबंदी । -पलिया-वि० स्त्री० दो पल्लोंवाली । स्त्री० दुःखान्वित ।
एक तरहकी टोपी। -पहर-स्त्री० दे० 'दोपहर'।-पहदुःशकुन-पु० [सं०] बुरा शकुन; अनिष्ट-सूचक लक्षण । रिया-स्त्री० एक छोटा पौधा जिसमें लाल-लाल फूल लगते दुःशासन-पु० [सं०] दुर्योधनका छोटा भाई जिसने भरी| हैं; + दोपहर, मध्याह्न ।-पहरी-स्त्री० दोपहर, मध्याह्न । सभामें द्रौपदीका केशाकर्षण किया था। वि० जिसपर -फसली-वि० रबी और खरीफ दोनोंमें पैदा होनेवाला; शासन करना कठिन हो।
संदिग्ध । -बगली-स्त्री० मालखंभकी एक कसरत । दुःशील-वि० [सं०] जो सुशील न हो, बुरे स्वभावका; -बधा-स्त्री० दे० 'दुबिधा'। -बारा-दे० 'दोबारा'। दुर्विनीत, उद्धत ।
-बिधा-स्त्री० चित्तकी किसी एक बातपर न जमनेकी दुःश्रव-पु० [सं०] काव्यमें एक दोष, श्रति कटु दोष । ।
क्रिया या भाव, निश्चयका अभाव; संशय, संदेह, अंदेशा वि० श्रुतिकटु, कर्णकटु, सुनने में अप्रिय ।
संकल्प-विकल्प, असमंजस । -भाखी,-भाषिया,दुःसह-वि० [सं०] जिसे सहना कठिन हो, असह्य । भाषी-पु. वह दो भाषाएँ जाननेवाला मध्यस्थ जो दुःसाध्य-वि० [सं०] जो कठिनतासे सिद्ध किया जा सके; उन भाषाओंके बोलनेवाले दो व्यक्तियोंकी वार्ताके अवसरजिसका करना कठिन हो, दुष्कर; असाध्य ।
पर एकको दूसरेका अभिप्राय समझाये। -मंजिला-वि० दुःसाहस-पु० [सं०] असंभव या दुष्कर कार्यकी सिद्धि के जिसमें दो मंजिलें हों। -माही-वि० दो महीनोंपर लिए किया गया साहस; अनुचित साहस; धृष्टता । होनेवाला । -मुँहा-वि० जिसके दो मुँह हों, दो मुखोंसे दुःसाहसिक-वि० [सं०] जिसके लिए साहस करना | युक्त । -रंग(गा)-वि० दो रंगोंवाला, जिसमें दो रंग ठीक न हो।
हों; दो प्रकारका, जिसमें एकरूपता न हो। -रंधा*दुःसाहसी(सिन्)-वि० [सं०] व्यर्थका साहस करनेवाला, वि० जिसमें दो रंध्र हो; जिसमें आरपार छेद हो।-रद*, अनुचित साहस करनेवाला ।
-रदाल*-पु० दे० 'द्विरद' ।-रस-पु० सहोदर भाई दुस्वा -पु० [सं०] डरावना स्वप्न बुरे फलवाला स्वप्न ।। दे० 'दोमट' । वि० दे० 'दोरसा', दे० क्रममें। -राजदास्वभाव-वि० [सं०] खोटे स्वभावका, दुष्ट, नीच, कुटिल। पु० एक ही देशमें दो राजाओंका शासन, दो अमली पु० बुरा स्वभाव ।
शासन; दोषपूर्ण शासन । -राजी*-वि० जिसमें दो दु-वि० दोका संक्षिप्त रूप जो समस्त पदोंमें पूर्वपदके रूपमें राजा राज्य करते हों, जिसपर दो राजाओंका शासन या प्रयुक्त होता है। -अनी-स्त्री० दो आनेका सिका। अधिकार हो । -रुखा-वि० दो रुखोंवाला, जिसके दोनों -आब,-आबा-पु० दो नदियोंके मध्यका भूखंड । ओर दो रंग हों। -रेफ-पु० दे० 'द्विरेफ' । -लड़ी-कूलिनी*-स्त्री०जिसके दो किनारे हों, नदी।-खंडा स्त्री० .दो लड़ोंकी माला | -लत्ती-स्त्री० घोड़े आदि -वि० दे० दो खंडोंवाला (मकान)। -गना-वि० दे० चौपायोंका पीछेके दोनों पैरोंसे मारना ।-शाला-पु०एक 'द्विगुण' । -गाड़ा-पु० दोनाली बंदूक । -गुण,-गुन*, तरहकी पशमीनेकी चादर जो दोहरी होती है और किनारे-गुना-वि० दे० 'द्विगुण' ।-घड़िया-वि० दो घड़ीका; पर बेल-बूटे होते हैं। -शाला-पोश-वि० जो दुशाला दो धड़ीके हिसाबसे निकाला हुआ। -घड़िया मुहूर्त- ओढ़े हो । -शाला-फरोश-पु० दुशाला बेचनेवाला । पु० दो-दो घड़ीके हिसाबसे निकाला हुआ मुहूर्त ।-घरी -साखा-पु० दो शाखाओंवाला समादान ।-सार*-स्त्री० दुधड़िया मुहूर्त । -चंद-वि० दुगना । -चित* पु०एक ओरसे दूसरी ओरतक जानेवाला छेद । साला--वि० जिसका मन किसी एक बातपर जमता न हो, । पु० दे० 'दुशाला'।-सूती-वि० जिसमें ताने और बाने अस्थिरचित्त; अनमना, चिंताग्रस्त । -चितई,-चिताई* दोनोंमें दोहरा सूत लगा रहे । स्त्री० इस प्रकारका मोटा
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दुगन
-पु०
दु
कूल' ।
दुअन-दुनवना कपड़ा। -सेजा*-पु० पलंग। -हत्था-वि० जिसमें दुखित -वि० दे० 'दुःखित' । दोनों हाथ काममें लाये गये हो; दो मूठोंवाला।-हत्थी-दुखिया-वि० दुःखमें पड़ा हुआ, विपद्ग्रस्त । स्त्री० मालखंभकी एक कसरत ।
दुखियारा-वि० दुखिया, संकटापन्न । दुअन-पु० दे० 'दुवन'।
दुखी-वि० जिसे मानसिक व्यथा हो; खिन्न; रुग्ण । दुअरवा*-पु० दे० 'द्वार'।
दुखीला -वि० दुःखयुक्ता जिसे दुःखका अनुभव हो दुअरिया*-स्त्री० छोटा दरवाजा ।
रहा हो। दुआ-स्त्री० [अ०] ईश्वरसे माँगनाः प्रार्थना, याचना; दुखौहाँ*-वि० दुःखकर, कष्टप्रद । आशीर्वाद (करना, माँगना)।
दुगई*-स्त्री०बरामदा-'अति अदभुत खंभनकी दुगई'-राम। दुआदस*-वि० दे० 'द्वादश' ।
दुगदुगी-स्त्री० छातीके नीचेका गढ्ढा, धुकधुकी । दुआर, दुआरा -पु० दे० 'दार'।
दुगना*-१० क्रि० दे० 'दुकना' ।वि० दे० 'दु'के साथ। दुआरी -स्त्री० छोटा द्वार ।
दुगासरा*-पु० दुर्गके पासका गाँव छिपनेका स्थान । दुइ-वि० दे० 'दो।
दुगूल-पु० [मं०] दे० 'दुकूल'। दुइज*-स्त्री० दे० 'दूज' । पु० द्वितीयाका चंद्रमा। | दुग्ग-पु० दे० 'दुर्ग'। दई-स्त्री०दो होना, दोकी भावना, द्वतः गैर समझना। दुग्ध-पु० [सं०] दृधः पौधोंका दूध जैसा रस; दहना। दुऔ-वि० दोनों।
वि० दूहा हुआ। -फेन-पु. दूधका फेन, मलाई; एक दुकड़हा-वि० जिसकी कीमत एक दुकड़ा हो; एक-एक __ पौधा, क्षीरहिंडीर ।-समद्र-पु० पुराणोक्त सात समुद्रों
टुकड़ेके लिए लालायित रहनेवाला; अधम कोटिका । | मेंसे एक, क्षीरसागर । दुकड़ा-पु० युग्म; जोड़ा; एक पैसेका चौथा हिस्सा । दुग्धोद्योग-पु० [सं०] (डेअरी इंडस्ट्री) दूध तथा उससे दुकढ़ी-स्त्री० ताशकी वह पत्ती जिसपर किसी रंगकी दो बननेवाले विभिन्न पदार्थ-मक्खन, घी आदि-तैयार
बूटियाँ छपी हों; वह बग्घी जिसमें दो धोड़े जुते हों। करानेका उद्योग । दुकना*-अ०क्रि० छिपना, लुकना।
दुग्धाब्धि-पु० [सं०] क्षीरसागर ।-तनया-स्त्री० लक्ष्मी। दुकान-स्त्री० [फा०] वह स्थान जहाँ बेचनेकी चीजें सजाकर दुग्धिका-स्त्री० [सं०] दुद्धी नामकी घास, दुधिया । रखी हों, सौदा बेचने और खरीदनेकी जगह । -दार- दुज*-पु० दे० 'दु'के साथ । पु० दुकानका स्वामी, दुकानवाला; वह व्यक्ति जिसने | दुजेश*-पु० दे० 'द्विजेश' । अर्थोपार्जनके लिए ढकोसला रच रखा हो, पाखंडी, ठग । | दुड़ी-स्त्री० दे० 'दुक्की' । -दारी-स्त्री० दुकानदारका धंधा; दुकानदारका पद: धन दुतकारना-सक्रि० 'दुत-दुत' कहकर तिरस्कार करना, कमानेके लिए रचा गया ढकोसला।
धिक्कारना। दुकाल-पु० दे० 'अकाल' (हिं०)।
दुति-स्त्री० दे० 'द्युति' । -मान-वि० दे० 'द्युतिमान्'। दुकूल-पु० [सं०] रेशमी वस्त्र, चिकना और बारीक | -वंत-वि०प्रभायुक्त, कांतिमान् । कपड़ा, क्षौम वस्त्र, पट्ट वस्त्र । -पट्ट-पु० अच्छे कपड़ेका दुतिय*-वि० दे० 'द्वितीय' । साफा।
दुतिया*-स्त्री. 'द्वितीया'। दुकेला-वि० जिसके साथ कोई और भी हो।
दुतीय*-वि० दे० 'द्वितीय' । दुकेले-अ०किसी और के साथ ।
दुतीया*-स्त्री० दे० 'द्वितीया'। दुकड़-पु० शहनाईके साथ बजाया जानेवाला एक बाजा। दुदलाना*-स० क्रि० दे० 'दुतकारना'। दुका-वि० जो एक जोड़ेके रूपमें हो दे० 'दुकेला'। दुद्धी-स्त्री. एक प्रकारकी घास जिसमें दध होता है। दुकी-स्त्री० ताशका वह पत्ता जिसपर किसी रंगकी दो | खड़िया मिट्टी; क्षीरावली लता। बूटियाँ छपी हों।
दुध-पु० 'दूध' शब्दका एक रूपांतर । -मुंहा)*-मुखदुखंत*-पु० दे० 'दुष्यंत'।
वि० दे० 'दूधमुँहा'। -हँदी-स्त्री० दूध गरम करनेका दुख-पु० दे० 'दुःख'।-द-वि० दे० 'दुःखद'।-दाई*- |
मिट्टीका पात्र । वि० दे० 'दुःखदायो' । -दुंद*-पु० दुःख तथा द्व'- दुधार-वि० जिसमें दूध हो जो अधिक दूध देती हो। सुख-दुःख, राग-दोष, शीत-उष्ण आदि परस्पर विरोधी | भाव और अनुभूतियाँ।
दुधिया-स्त्री० दुद्धी नामकी घास, ज्वारकी एक किस्म दुखड़ा-पु. दुःखः दुःखगाथा। मु०-रोना-दूसरेको खड़िया मिट्टी; एक चिड़िया; एक प्रकारका विष । वि० अपनी विपन्नावस्थाका वृत्तांत सुनाना।
दूध मिला हुआ; जिसका रंग दूधकी तरह सफेद हो। दुखना-अ० क्रि० दर्द करना, पीड़ा होना।
-पत्थर-पु. एक तरहका सफेद पत्थर । दुखरा*-पु० दे० 'दुखड़ा'।
दुधैल-वि० स्त्री० जो बहुत दूध देती हो। दुखवना*-स० क्रि० दे० 'दुखाना'।
दुनवना*-अ० कि० किसी लोचदार चीजका इतना झुक दुखाना-स० क्रि० पीड़ा पहुँचाना, कष्ट देना; स्पर्श | जाना कि उसके दोनों सिरे मिल जाय। सक्रि०किसी
आदिके द्वारा फुसी, घाव आदिमें व्यथा उत्पन्न करना । लोचदार चीजको इतना झुका देना कि उसके दोनों सिरे दुखारा, दुखारी-वि० दुःखी, व्यथित ।
आपस में मिल जायें।
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दुनियवी-दुरासद दुनियवी-वि० [अ०] दुनियावी, दुनियाका, संसार-संबंधी। दुरना-अ०क्रि० दूर होना; आँखोंसे ओझल होना, छिपना । दुनिया-स्त्री० [अ०] संसार, जगत् ; संसार में रहनेवाले दरपदी*-स्त्री० दे० 'द्रौपदी'। लोग, लोक; संसारका प्रपंच, संसारका झंझट । -दार- दुरपवाद-पु० [सं०] निंदा, कुत्सा । वि० संसारके धंधों में फंसा हुआ, संसारी; जो लोकव्यव-दुरबल*-वि० दे० 'दुर्बल'। हारमें कुशल हो, लोकचतुर । पु० गृहस्थ । -दारी- | दुरबार*-वि० दुनिवार्य, अटल । स्त्री० सांसारिक प्रपंच, संसारका जंजाल, व्यवहार कुश-दुरबास-स्त्री० बुरी गंध, दुगंध । लता; बनावटी व्यवहार । -साज़-वि० दिखावटी व्यव- दुरबेस*-पु० दरवेश, फकीर । हार करनेवाला, मक्कार, धूर्स । मु०-की हवा लगना- दुरभियोजन-पु० [सं०] (प्लॉट) किसीको हानि पहुँचाने सांसारिक बातोंकी जानकारी होना, संसारका अनुभव आदिकी दृष्टिसे की जानेवाली गुप्त काररवाई। होना; संसारके दूसरे लोगोंकी तरह आचरण करने लगना। दुरभिसंधि-स्त्री० [सं०] बुरे उद्देश्यसे की गयी गुप्त मंत्रणा, -भरका-बहुत अधिक । -से उठ जाना-मर जाना। कुचक्र । दुनियाई-वि० सांसारिक । स्त्री० संसार ।
दुरभेवी-पु० दुर्भाव खटका, आशंका। . दुनियावी-वि० [अ०] दुनियाका, संसार-संबंधी। दुरमुस-पु० सड़क आदिपर बिछाया गया कंकड़ पीटकर दुनी-स्त्री० दुनिया, संसार ।
बराबर करनेका एक औजार । दुनोना, दुनौना-अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'दुनवना'। दुरलभा-वि० दे० 'दुर्लभ'। दुबकना -अ० क्रि० दे० 'दबकना'।
दुरवस्थ-वि० [सं०] जो बुरी दशामें हो। दुबरा -वि० दुर्बल, कृश, क्षीण शरीरवाला, दुबला-पतला। दुरवस्था-स्त्री० [सं०] बुरी हालत, कष्टपूर्ण दशा दर्गति । दुबराई-स्त्री० दुर्बलता, क्षीणता, कृशता; शक्तिहीनता। दुरवाप-वि० [सं०] दे० 'दुष्प्राप्य' । दुबराना*-अ०क्रि० दुर्बल होना, कृश होना।
दुरस*-वि० दुरुस्त, सही, ठीक । पु० दे० 'दु-रस' । दुबला-वि० जिसका शरीर क्षीण हो, कृश ।
दुराउ*-पु० दे० 'दुराव' । दुबाइन-स्त्री० दुधेकी पत्नी।
दुराकृति-वि० [सं०] बदशकल । दुबिद*-पु० दे० 'द्विविद'।
दुरागमन-पु० दे० 'द्विरागमन' । दुबे-पु० ब्राह्मणोंका एक भेद, द्विवेदी।
दुरागौन-पु० दे० 'द्विरागमन' । दुम-स्त्री० [फा०] पूँछ, पुच्छ; दुमकी तरह पीछेकी ओर दुराग्रह-पु० [सं०] अनुचित रीतिसे किसी बातपर अड़ जुड़ी हुई वस्तु, पिछला हिस्सा; वह जो बराबर पीछे लगा रहे, पिछलग्गू; डिग्री, उपाधि (हास्य)। -ची-स्त्री० दुराग्रही(हिन्)-वि० [सं०] जो दुराग्रह करे, हठी, जिद्दी। घोड़ोंके साजमें दुमके नीचे रहनेवाला चमड़ा; पुट्ठोंके | दुराचरण-पु० [सं०] दे० 'दुराचार' । बीचकी हड्डी। -दार-वि० जिसके पूँछ हो जिसके पीछे दुराचार-पु० [सं०] निंद्य आचरण, कदाचार, कुकृत्य । पूँछकी तरह कोई वस्तु लगी या जुड़ी हो । मु०-के पीछे वि० कुत्सित आचरणवाला। फिरना-पीछे-पीछे घूमा करना, साथ लगा रहना। दुराचारी (रिन्)-वि० [सं०] निंद्य कर्म करनेवाला, -दबाकर भागना-मारे डरके इस तरह भागना जैसे कुत्सित आचरणवाला, कुकीं। कोई कुत्ता अपनेसे मजबूत कुत्ता देखकर भाग खड़ा होता दुरात्मा (त्मन)-वि० [सं०] जिसका अंतःकरण शद्ध है। -दबा जाना-डरकर भाग जाना; मारे डरके किसी न हो, हृदयका खोटा, नीच प्रकृतिका । कामसे पृथक् हो जाना। -में घुसना-लुप्त हो जाना। दुरादुरी-स्त्री० छिपाव, दुराव ।
-में घुसा रहना-खुशामदमें सदा पीछे लगा रहना। दुराधर्ष-वि० [सं०] जिसका लेशमात्र भी पराभव न हो दुमन-वि० अनमना, उदास, विषण्ण ।
सके; विकट, प्रचंड; उग्र । दुमाता, दुमाता-स्त्री० खराब माता; विमाता। दुराना-स० क्रि० दूर करना; आँखोंसे ओझल करना, दुरंत-वि० [सं०] जिसका परिणाम बुरा हो, जो उत्तर- छिपाना । * अ० क्रि० दे० 'दुरना'-'नाम लेत नियरात कालमें दुःख पहुँचाये, जिसका पार पाना कठिन हो, सुख दुख दुरात दरसात'-रसिकवि०। दुरतिक्रम प्रबल, प्रचंड; अति गंभीर, दुर्योय ।
दुराराध्य-वि० [सं०] जिसे संतुष्ट या प्रसन्न करना बहुत दुरजन*-पु० दे० 'दुर्जन'।
कठिन हो; जिसका आराधन कष्टसाध्य हो। दुरजोधन*-पु० दे० 'दुर्योधन'।
दरारोह-पु० [सं०] ताड़का पेड़ । वि० जिसपर चढ़ना दरतिक्रम-वि० सं० जिसका अतिक्रमण या उल्लंघन बड़ी कठिनाईसे हो सके; दुर्लध्य ।
दुरालाप-पु० [सं०] बुरी बातचीत, कुवार्ता दुर्वचन । दुरथल-पु० बुरा स्थान, कुठाँव ।
दुराव-पु० दुरानेकी क्रिया, छिपाव; छल; भेदभाव । दुरदाम*-वि० प्रबल; कठिन; निकट ।
दुराशय-पु० [सं०] कुत्सित विचारोंवाला व्यक्ति, दुष्टात्मा दुरदुराना-स० क्रि० तिरस्कार करना; अनादरपूर्वक दूर वि० जिसकी नीयत खराब हो, निंद्य विचारका, भगाना या हटाना।
दुराशा-स्त्री० [सं०] ऐसी आशा जिसका पूरा होना कठिन दरधिगम-वि० [सं०] जिसे प्राप्त करना कठिन हो, हो, झूठी आशा। दुष्प्राप्य; दुर्बोध ।
| दुरासद-वि० [सं०] जिसके पास पहुँचना कठिन हो,
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दुरासा-दुर्योधन दुर्गम; दुष्प्राप्य, दुर्लभः दुर्जयः अद्वितीय ।
करनेवाला । दुरासा*-स्त्री० दे० 'दुराशा'।
दुर्दर्शन-वि० [सं०] जो देखने में भद्दा हो, बदसूरत । दुरित-पु० [सं०] पाप, दुष्कृत, किल्विष; खतरा; संकट । दुर्दशा-स्त्री० [सं०] बुरी हालत, दुरवस्था, दुर्गति । दुरियाना-स० क्रि० दुरदुराना; दूर करना, हटाना। दुत-वि० [सं०] दे० 'दुर्दम' । । दुरुक्त-पु०, दुरुक्ति-स्त्री० [सं०] दुर्वचन ।
दुर्दिन, दुर्दिवस-पु० [सं०] बुरा दिन; मेघाच्छन्न दिन दुरुत्साहन-पु० [सं०] (एवेटमेंट) अपराधीको अपराध कर- धना अंधकार; वर्षण, वृष्टिः विपत्काल । नेमें सहायता या प्रोत्साहन देना।
दुर्दैव-पु० [सं०] फूटा हुआ भाग्य, दुर्भाग्य, बदकिस्मती । दुरुपयोग-पु० [सं०] अनुचित उपयोग, बुरा इस्तेमाल । दुर्धर-पु० [सं०] पारा; भिलावाँ । वि० दे० 'दुर्ग्रह'। दुरुपयोजन-पु० [सं०] (मिसऐप्रोप्रियेशन) (किसी सौंपी दुर्धर्ष-वि० [सं०] जिसका पराभव न मि हुई वस्तु, धन आदिका) दुरुपयोग करना, अनुचित काममें जिसे वशवतीं बनाना कठिन हो; उग्र, प्रबल । लगा देना।
दुर्नय-पु० [सं०] बुरी नीति, कुनीति; अविनय, औद्धत्य । दुरुस्त-वि० [फा०] जो अच्छी स्थितिमें हो, ठीक; जिसमें न)-पु० [सं०] बुरा नाम; दुर्वचन; घोंघा । कोई खामी न हो, दोषरहित; उचित; यथार्थ, युक्तियुक्त। दुनिरीक्ष्य-वि० [सं०] जो कठिनाईसे देखा जा सके। मु०-करना-दंड देकर ठीक रास्तेपर लाना, सुधारना। दुर्निवार, दुर्निवार्य-वि० [सं०] जिसका निवारण करना दुरुस्ती-स्त्री० [फा०] दुरुस्त करनेकी क्रिया, सुधारना। कठिन हो; जो सहसा रोका न जा सके। दुरूह-वि० [सं०] बहुत माथापच्ची करने पर भी जल्दी दुर्नीति-स्त्री० [सं०] नीतिविरुद्ध आचरण, कुनीति । समझमें न आनेवाला, कठिन ।
दुर्बल-वि० [सं०] शक्तिहीन, कमजोर क्षीणकाय, कृश । दुर-उप० [सं०] एक उपसर्ग जो संज्ञापदों और क्रियापदोंके दुर्बुद्धि-वि० [सं०]दुष्ट बुद्धिवाला, कुबुद्धि हतबुद्धिःमूर्ख । पहले इन अर्थो में जोड़ा जाता है-(१) सदोषता, (२)निंदा, दुर्बोध-वि० [सं०] जो शीघ्र समझमें न आये, गृढ़, क्लिष्ट । (३) निषेध, (४) दुःख या संकट ।
दुर्भक्ष-वि० [सं०] जिसे खाना कठिन हो; जिसका स्वाद दुर्गध-स्त्री० [सं०] बुरी गंध, बदबू । पु० काला नमक; । अच्छा न हो । पु० अकाल, दुर्भिक्ष । प्याज; आम | वि० बुरी गंधवाला।
दुर्भर-वि० [सं०] जिसे धारण करना, ढोना या निभाना दुर्ग-पु० [सं०] गढ़, किला, कोट। -पति-पु० दुर्गका | कठिन हो; भारी। स्वामी, दुर्गाध्यक्ष । -पाल-पु० दुर्गरक्षक ।
दुर्भाग्य-पु० [सं०] प्रतिकूल दैव, फूटी किस्मत, बंददुर्गति-स्त्री० [सं०] दुर्दशा; दरिद्रता; नरक ।
किस्मती । वि० भाग्यहीन, अभागा । दुर्गम-वि० [सं०] जहाँ पहुँचना कठिन हो, बीहड़, जो दर्भाव-पु० [सं०] बुरा भाव, कुभाव; तुच्छ विचार । शीघ्र समझमें न आये, दुर्बोध ।
दुर्भावना-स्त्री० [सं०] बुरी भावना, कुविचार । दुर्गाध, दुर्गाह्य-वि० [सं०] जिसकी बह जल्दी न मिल दुर्भिक्ष-पु० [सं०] अकाल, कहत । सके, जिसे थहाना कठिन हो, दुरवगाह्य ।
दुर्भिच्छ*-पु० दे० 'दुर्भिक्ष' । दुर्गाधिकारी(रिन्)-पु० [सं०] दे० 'दुर्गपति' । दुर्भेद, दुर्भेद्य-वि० [सं०] जो कठिनाईसे भेदा या छेदा दुर्गाध्यक्ष-पु० [सं०] दे० 'दुर्गपति' ।
जा सके, अति दृढ़ । दुर्गुण-पु० [सं०] बुरा गुण, दोष ।
दुर्मति-पु० [सं०] एक संवत्सरका नाम । स्त्री० दे० दुर्गेश-पु० [सं०] दे० 'दुर्गपति' ।
'कुमति' । वि० दुष्ट; मंदबुद्धि, मूर्ख । दुर्गोत्सव-पु० [सं०] दुर्गापूजा जो नवरात्र में होती है। दुर्भद-वि० [सं०] प्रमत्त; मदांध, मदोद्धत । दुर्ग्रह-वि० [सं०] जिसे पकड़ना कठिन हो; दुष्प्राप्य; ना(नस.)-वि० [सं०] दुष्ट हृदयवाला; उद्विग्न चित्तदुर्योध, दुर्शय; जिसे वशवती बनाना कठिन हो। वाला; उदास । दुर्घट-वि० [सं०] जिसका होना कठिन हो, दुःसाध्य । दुर्मित्र-पु० [सं०] बुरा मित्र, कुमित्र । दुर्घटना-स्त्री० [सं०] अशुभ घटना लशकर घटना। मल-वि० [सं०] अनमेल; कठिनतासे मिलनेवाला। दुर्जन-पु० [सं०] दुष्ट मनुष्य, खल ।
पु० एक मात्रिक छंद; एक प्रकारका सवैया । । वि० जो कठिनाईसे जीता दुर्मुख-पु० [सं०] धोड़ा; महिषासुरकी सेनाका एक सेन जा सके, जिसपर विजय पाना कठिन हो ।
पति रावणकी सेनाका एक भट; एक नाग; शिव; धृतराष्ट्रदुर्जर-वि० [सं०] जो देरमें या कठिनतासे पचे।
का एक पुत्र; एक संवत्सर, एक राक्षस: एक यक्ष रामका दुर्जीव-पु० [सं०] निंद्य जीवन, घृणित जीवन । वि० परान्न | एक गुप्तचर । वि० कटुभाषी, क.डुआ बोलनेवाला। खाकर निर्वाह करनेवाला, परान्नभोजी।
दुमूल्य-वि० [सं०] अधिक दामका, बहुमूल्य महँगा। दुर्जेय-वि० [सं०] दे० 'दुर्जय'।
दुर्मेधा(धस्)-वि० [सं०] भंदबुद्धि, मूर्ख । दुर्जेय-वि० [सं०] जो कठिनाईसे जाना जा सके, दुर्बोध । दुर्योग-पु०[सं०] दुर्भाग्यसूचक ग्रहयोग, ग्रहोंका बुरा फेर । दुर्दम, दुर्दमनीय, दुर्दम्य-वि० [सं०] जिसे दबाना या दुर्योध-वि० [सं०] जो भीषण युद्ध में भी डटकर लड़ता रहे। वशमें करना कठिन हो, प्रबल ।
__अजेय । दुर्दर*-वि० दे० 'दुर्धर'।
दुर्योधन-पु० [सं०] धृतराष्ट्रका ज्येष्ठ पुत्र । वि० दे० दुर्दर्श-वि० [सं०] जिसे देखना कठिन हो; चकाचौंध पैदा 'दुर्योध' ।
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दुर्लध्य-दुष्कर्मी दुर्लध्य-वि० [सं०] जिसे लाँघना या पार करना कठिन दुलरा*-वि०, पु० दे० 'दुलारा'।
हो,जिसका उल्लंघन या अतिक्रमण दुकर हो। | दुलराना*-अ० क्रि० लाड़ले बच्चोंके समान रूठना, मचदुर्लक्ष्य-पु० [सं०] बुरा उद्देश्य, बुरा ध्येय । वि० जो लना आदि । स० क्रि० लाड़-चाव करना, प्यारकी चेष्टाओं कठिनाईसे देखा जा सके।
द्वारा बच्चोंको बहलाना या प्रसन्न करना । दुर्लभ-वि० [सं०] जिसका मिलना कठिन हो, दुष्प्राप्य दुलरुवा-वि०, पु० दे० 'दुलारा'। प्रिय । -मद्रा-स्त्री० (हार्ड करेंसी) उस देशकी मुद्रा दुलहन, दुलहिन-स्वी० नवोढा स्त्री, नयी बहू; भ्रातृवधू, जिसका माल अन्य देशखरीदनातो चाहते हों, पर व्यापार- पुत्रवधू आदिका संबोधन (किसीकी) पत्नी । तुला उनके विपक्षमें होनेके कारण उक्त मुद्रा यथेष्ट संख्यामें दुलहा-पु० दे० दूल्हा'। प्राप्त करने में कठिनाईका अनुभव करें ।-मुद्रा-क्षेत्र-पु० | दुल हाई-स्त्री०विवाहका गीत । (हार्ड करेंसी एरिया) दुर्लभ मुद्रावाले देशोंका क्षेत्र। । दुलहिया*-स्त्री० दे० 'दुलहन। दुलेख्य-वि० [सं०] जिसकी लिखावट इतनी बुरी हो कि दुलही -स्त्री० दे० 'दुलहन'। पढ़ी न जा सके। पु० जाली कागज।
दुलाई-स्त्री० रुई भरा हुआ हलका ओढ़ना, हलकी रजाई । दुर्वच-पु० [सं०] कटूक्ति, कटु वचन; गाली। वि० जो |
| दुलाना*-स० क्रि० दे० 'डुलाना' । कठिनाईसे कहा जा सके।
दुलार-पु० दुलारनेकी क्रिया या भाव, लाड़-चाव, प्यार । दुर्वचन-पु० [सं] कटु वचन; गाली। ।
दुलारना-सक्रि० अनेक प्रकारकी स्नेहसूचक चेष्टाएँ करते । दुर्वह-वि० [सं०] जिसे ढोना कठिन हो; असह्य, दुःसह ।
हुए (बच्चों आदिको) प्यार करना, लाड़-चाव करना। दुर्वाक् (च)-पु० [सं०] दे० 'दुर्वचन'।
दलारा-वि० जिसका बहुत दुलार होता हो, लाड़ला। पु० दुर्वाद-पु० [सं०] अपयश, कुख्याति; स्तुतिके रूपमें कहा लाड़ला पुत्र । गया दुर्वचन, निंदित वाक्य ।
दुलारी-स्त्री० लाड़ली बेटी । वि० लाड़ली । दुर्वार, दुर्वार्य-वि० [सं०] दे० 'दुनिवार'।
दुलीचा*-पु० कालीन, गलीचा । दुर्वासना-स्त्री० [सं०] बुरी बासना, चित्तकी कुप्रवृत्ति | दुल्लभ*-वि० दे० 'दुर्लभ' ।
ओछी कामना; विषयोंका चित्तपर पड़ा हुआ कुसंस्कार । दुव-वि० दो। दुर्विनय-स्त्री० [सं०] अविनय, औद्धत्य, उदंडता । दुवन-पु० दुर्जन, दुष्ट, खल; शत्रु; राक्षस । दुर्विनीत-वि० [सं०] अविनीत, उदंड ।
दुवादस*-वि० दे० 'द्वादश' । -बानी-वि० खरा, दुर्विपाक-पु० [सं०] कुपरिणाम, दुष्परिणाम, कुफल । खालिस; कांतियुक्त (सोना)। दुर्वृत्त-पु० [सं०] निंदित आचरण । वि० जिसका आच-दुवादसी*-स्त्री० दे० 'द्वादशी'। रण बुरा हो, दुराचारी। -फलक-पु० (हिस्ट्रीशीट) दे० दुवाल-पु० [फा०] चमड़ेका तसमा; रिकाबका तसमाः 'वृत्तपत्रक' । -सूची-स्त्री० (ब्लैक लिस्ट) ऐसे व्यक्तियों- चपरास । -बंद-पु० तसमा बाँधनेवाला सिपाही । की सूची जो किसी अपराध या निंदनीय कार्य करनेके | दुविद*-पु० दे० द्विविद' । कारण कुप्रसिद्ध हो चुके हों और जो शांतिरक्षा आदिकी दुवो*-वि० दोनों। दृष्टिसे संदेहास्पद माने जाते हों।
दुशवार-वि० [फा०] कठिन, मुश्किल । दुवृत्ति-स्त्री० [सं०] बुरी वृत्ति, खराब पेशा; बुरा काम । दशवारी-स्त्री० [फा०] कठिनता, मुश्किल । दुष्टि -स्त्री० [सं०] अपर्याप्त वृष्टि, अनावृष्टि, सूखा । दुशाला-स्त्री० दे० 'दु'के साथ । दुर्व्यवस्था-स्त्री० [सं०] कुप्रबंध, बदइंतजामी ।
दुशासन-पु० दे० 'दुःशासन' । दर्व्यवहार-पु० [सं०] बुरा व्यवहार, बुरा बर्ताव; वह दश्चर-वि० [सं०] जिसे करना कठिन हो, जो कठिनाईसे मुकदमा जिसका राग-द्वेषादिके कारण उचित निर्णय न किया जा सके, कठिन, कष्टसाध्य । हुआ हो।
दुश्चरित-पु० [सं०] वुरा आचरण, कदाचार दुष्कृत, पाप । दुर्व्यसन-पु० [सं०] किसी हानिकर वस्तुके सेवनका वि० बुरे आचरणका, दुर्वृत्त । अभ्यास: बुरी लत, खराब आदत ।
| दुश्चरित्र-पु० [सं०] बुरा चाल-चलन । वि० जिसका दुहृदय-वि० [सं०] दुरात्मा, कुटिल, दिलका खोटा। चरित्र बुरा हो, चरित्रहीन, बदचलन । दलक(ख)ना-अ० क्रि० इनकार करना, मुकर जाना। दश्चिकित्स्य-वि० [सं०] जिसकी चिकित्सा करना बहुत दुलकी-स्त्री० घोड़ेकी कुछ-कुछ उछलते हुए मध्य गतिसे | कठिन हो; असाध्य । दौड़नेकी एक चाल ।
दुश्चेष्टा-स्त्री० [सं०] बुरी चेष्टा । दुलदुल-पु० [अ०] वह खच्चर जिसे इस्कंदरिया(मिस्र)के दुश्चेष्टि त-पु० [सं०] कुकृत्य, निंय कर्म, नीच काम । हाकिमने मुहम्मदको भेटमें दिया था। मुहर्रमके अवसरपर दुश्मन-पु० [फा०]शत्रु,बैरी,अहित चाहनेवाला,अपकारी। निकाला जानेवाला घोड़ेके आकारका ताजिया; बिना दुश्मनी-स्त्री० [फा०] शत्रुता, वैर ।। सवारका घोड़ा जो मुहर्रमके आठवें और नवें दिन अब्बास दुष्कर-वि० [सं०] जिसे करना कठिन हो, कष्टसाध्य । और हुसेनके नामसे निकाला जाता है।
दुष्कर्म(न)-पु० [सं०] बुरा काम; पाप । दुलना*-अ० क्रि० दे० 'डोलना'।
दुष्कर्मा(र्मन्)-वि० [सं०] कुकमी, पापी । दुलभ*-वि० दे० 'दुर्लभ'।
दुष्कर्मी-वि० कुकमी, बुरा कार्य करनेवाला ।
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दुष्काल-दूध दुष्काल-पु० [सं०] बुरा समय, ऐसा समय जिसमें लोगों- या देवताको पुकारना; शपथ, कसम दुहनेका काम; को तरह-तरहके कष्ट हों; प्रलय; दुर्भिक्ष शिव ।
दुहनेकी उजरत । दुष्कीर्ति-स्त्री० [सं०] अपयश, बदनामी ।
दुहाग-पु० दुर्भाग्य; वैधव्य । दुष्कुल-पु० [सं०] नीच कुल, तुच्छ धराना । वि० नीच | दहागिन*-वि०स्त्री० दुर्भाग्यवती, अभागिन, विधवा(स्त्री)। कुलमें उत्पन्न, नीच कुलका ।
दुहागिला-वि० अभागा, भाग्यहीन; शून्य, खाली। दुष्कुलीन-वि० [सं०] नीच कुलमें उत्पन्न, नीच कुलका । दुहागी*-वि० भाग्यहीन, अभागा। दुष्कृत-पु० [सं०] नीच कर्मः पाप ।
दुहाना-स० क्रि० दुहनेमें दूसरेको प्रवृत्त करना । दुष्कृति-स्त्री० [सं०] पाप । वि० नीचकर्म करनेवाला;पापी। दुहावनी-स्त्री० दूध दुहनेकी उजरत । दुष्ट-वि० [सं०] क्षतिग्रस्त; निकम्मा; दोषयुक्त, दूषित, दुहिता(7)-स्त्री० [सं०] पुत्री, कन्या। -()पतिसदोष; तर्कशास्त्र में व्यभिचार आदि दोषोंसे युक्त (हेतु); पु० जामाता। पित्त आदिके प्रकोपसे विकारग्रस्त (नेत्र आदि); खल, दुहिन*-पु० दे० 'द्रुहिण' । पिशुन, खोटा, नीच, बदमाश। -चेता (तस),- दुहेल*-पु० केश, संकट । धी,-बुद्धि-वि० खोटे हृदयका, दुष्ट स्वभावका ।-व्रण- दुहेला-पु० विकट खेल; कठिन कार्य कुशकर कर्म । वि० पु० वह घाव जो जल्दी अच्छा न हो; नासूर ।
दुःखमें पड़ा हुआ, दुःखी; कठिन, कष्टसाध्य । दुष्टा-स्त्री० [सं०] बुरी, असती स्त्री; वेश्या ।
दुहोतरा-पु० बेटीका बेटा । वि० दो और, दो अधिक । दुष्टाचार-पु० [सं०] दे० 'दुराचार' ।
दूँद-पु० दे० 'द्वद्व'। दुष्टाचारी (रिन्)-वि० [सं०] दे० 'दुराचारी'। दूँदना-अ० क्रि० द्वंद्व मचाना, झगड़ा करना । दुष्टामा (त्मन्), दुष्टाशय-वि० [सं०] दे० 'दुरात्मा'। दूँदि*-स्त्री० दे० 'दद्व' । दुष्पच-वि० [सं०] जो शीघ्र न पचे जो देर में पके। इजा-स्त्री० दे० 'दूज' । दुष्पार-वि० [सं०] जिसे पार करना कठिन हो; दुष्कर । । दृक-वि० दो-एक, कुछ। दुष्प्रकृति-स्त्री० [सं०] बुरा स्वभाव, खोटी आदत । वि० दुकान-स्त्री० दे० 'दुकान'। -दार-पु० दे० 'दुकानबुरे स्वभावका, नीच प्रकृतिका ।
दार'। -दारी-स्त्री० दे० 'दुकानदारी' । दुष्प्रवृत्ति-स्त्री० [सं०] बुरी प्रवृत्ति ।
दूखन-पु० दे० 'दूषण'। दुष्प्राप, दुष्प्राप्य-वि० [सं०] जिसका मिलना कठिन हो, दूखना*-अ० क्रि० दे० 'दुखना' । स० क्रि० दोषारोपण जो कठिनतासे प्राप्त हो सके, दुर्लभ ।
करना, दोष लगाना। दुष्प्रेक्ष्य-वि० [सं०] जिसे देखना कठिन हो, जिसकी ओर दूज-स्त्री. प्रत्येक पक्षकी दूसरी तिथि, द्वितीया । मु०-का
ताका न जा सके जिसकी ओर देखनेका साहस न हो। चाँद होना-बहुत कम दिखाई पड़ना। दुष्यंत-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध पुरुवंशी राजा जिनके पुत्र दूजा*-वि० दूसरा। भरतके नामपर इस देशका नाम भारत पड़ा।
दत-पु० [सं०] एक जगहसे दूसरी जगह चिट्ठी-पत्री, दुसराना*-स० क्रि० दुहराना ।
संदेश आदि पहुँचानेके लिए नियुक्त व्यक्ति, हरकारा; दुसरिहा*-वि० साथ रहनेवाला, सहाय; बराबरीका दावा । किसी राजा या राष्ट्रका वह प्रतिनिधि जो राजनीतिक करनेवाला, प्रतिद्वंद्वी।
कार्यसे अन्य राष्ट्र में भेजा गया हो या स्थायी रूपसे रहता दुसह*-वि० दे० 'दुःसह।
हो, राजदूत; प्रेमी-प्रेमिकाका संदेश एक दूसरेके पास दुसही*-वि० कठिनाईसे सहनेवाला; विद्वषी, डाह पहुँचानेवाला व्यक्ति । -कर्म(न)-पु० दूतका काम । करनेवाला।
दूतर*-वि० दुस्तर, कठिन ।। दुसासन-पु० दे० 'दुःशासन'।
दूतावास-पु० [सं०] राजदूतके रहनेका स्थान और उसका दुस्तर-वि० [सं०] जिसे पार करना कठिन हो, जो सर- | कार्यालय । लतासे पार न किया जा सके।
दृतिका, दती-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो प्रेमी और दस्त्यज-वि० [सं०] जिसे छोड़ा न जा सके जिसे छोड़ना प्रेमिकाको मिलाये या एककासंदेश दूसरेके पास पहुँचाये। कठिन हो।
दूदुह*-पु० दे० 'दुंदुभ'। दुस्सह-वि० [सं०] दे० 'दुःसह'।
दध-पु० स्त्री. गाय, भैस आदिके स्तनसे निकलनेवाला दुहना-स० क्रि० स्तनको उँगलियोंसे दबाकर दूध निका- सफेद रंगका प्रसिद्ध तरल पदार्थ जिसपर उनके बच्चे लना; निचोड़ना, सार भाग निकालना; (किसीका) धन अधिक दिनोंतक रहते हैं; अन्नके कच्चे दानों तथा कुछ अपहरण करना; (किसीको) चूसना । मु. दुह लेना- पौधोंके अंगोंमेंसे निकलनेवाला दूधके रंगका रस । सर्वस्व अपहरण कर लेना; किसीसे अधिकसे अधिक लाभ -चढ़ी-वि० स्त्री० जिसका दूध बढ़ गया हो, जिसके उठाना।
स्तनमें और अधिक दूध भर आया हो । -पिलाई-स्त्री० दुहनी-स्त्री० दूध दुहनेका पात्र, दोहनी।
विवाह-संबंधी एक रस्म जिसमें बरातके रवाना होनेके दुहरा-वि० दे० 'दोहरा'।
पहले वरके पालकी आदिपर चढ़ते समय उसकी माता दुहाई-स्त्री० घोषणा, मुनादी; रक्षाके लिए की गयी उसे दूध पिलानेकीसी मुद्रा करती है। इस कार्यके उपपुकार; आपत्तिके समय रक्षाके लिए किसी समर्थ व्यक्ति लक्ष्य में माताको दिया जानेवाला नेग। -पूत-पु० जन
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दूधा-भाती-दुलह धन । -फेनी-स्त्री० दूधके साथ खाया जानेवाला एक दूरदर्शी होनेका भाव, दूरदेशी। -दर्शी(शिन्)-वि० पकवान । -बहन-स्त्री० एक ही स्त्रीका दूध पीनेके दूरकी बात सोचनेवाला, दूरदेश, परिणामदशी । पु०गीध; नाते मानी जानेवाली बहन । -भाई-पु. ऐसे दो पंडित ।-दृष्टि-स्त्री० दूरदर्शिता, दूरदेशी।-प्रभावी,बालकों या व्यक्तियोंमेंसे एक जो सहोदर न हों पर एक । व्यापी-वि० (फार-रीचिंग) जिसका प्रभाव बहुत दूरतक ही स्त्रीका दूध पीकर पले हों। -महा-वि० जो अभी पड़े। -प्रहारी तोप,-मार-तोप-स्त्री० [हिं०] (लांगरेंज माताके दूधपर रहता हो; जिसके दूधके दाँत अभी न टूटे गन) दूरतक गोला फेंकनेवाली, लंबा निशाना मारनेवाली हों, अल्पवयस्क ।-मुख-विदे० 'दूधमुँहा' । मु०-उत- तोप। -भाष-पु०,-वाणी-स्त्री० (टेलीफोन) वह यंत्र रना-स्तनों में दूध आना। -का दूध और पानीका जिसमें, प्रायः बिजलीकी सहायतासे, दूरके शब्द या दृरकी पानी-ठीक-ठीक, सच्चा सञ्चा न्याय करना । -का | वाणी ज्योंकी त्यों सुनाई दे, टेलीफोन। -भाष, वाणीबच्चा-केवल दूधके आधारपर रहनेवाला बच्चा, अति मिलानकेंद्र-पु० (टेलीफोन एक्सचेंज) किसी नगर या शिशु । -की मक्खी-अत्यंत तुच्छ या घृणित वस्तु । जिलेका प्रधान दूरवाणी-कार्यालय जहाँ स्थानीय व्यक्तियोंसे -की मक्खीकी तरह निकालना या निकाल फेंकना- या बाहरके लोगोंसे दूरवाणी-यंत्रों द्वारा बातचीत करानेके अत्यंत तुच्छ वस्तुकी तरह एकदम अलग कर देना ।-के लिए दोनों ओरके यंत्रोंमें संबंध स्थापित करनेकी व्यवस्था दाँत-शैशवावस्था में निकले दाँत । -चढ़ना-स्तनोंमें की जाती है। -मुद्र-पु०(टेलीप्रिंटर) वह यंत्र ाजसमें तार कम दूध उतरना । -चढ़ाना-दुहनेके समय गाय द्वारा प्राप्त संदेश स्वयं टाइप हो जाता है। वर्ती(र्तिन)आदिका अपने स्तनों में कुछ दूध चुरा रखना । -छुड़ाना वि० दूरीपर रहनेवाला, जो दूर हो। -विक्षेपक-पु० -बच्चेको केवल दूधपर न रहने देना। -पड़ना-कच्चे (ट्रांसमिटर) एक स्थानपर उत्पन्न की गयी ध्वनि, गति दानोंमें रस भर आना । -पीता बञ्चा-एक दम आदिको विद्युत्तरंगों, प्रकाश-लहरी आदिकी सहायतासे नन्हा बच्चा । दूधी नहाना, पूतो फलना-धन-जनसे दूर-दूरतक फलानवाला यत्र ।-विक्षेपण-पु०(ट्रांसमिशन) खूब संपन्न होना।
एक स्थानपर उत्पन्न ध्वनि आदिको दूर-दूरतक फैलाने, दृधा-भाती -स्त्री० एक वैवाहिक प्रथा जिसमें वर-कन्या पहुँचानेकी क्रिया। -विक्षेपण केंद्र-पु० (ट्रांसमिटिंग एक दूसरेको अपने हाथों दूध-भात खिलाते है । स्टेशन) वह स्थान जहाँसे दूरविक्षेपण-यंत्र द्वारा कोई दूधिया-स्त्री० एक तरहका सफेद पत्थर; खरिया मिट्टी; ध्वनि (भाषण, नाटक, संगीत आदि) दूर-दूरतक फैलाने, एक सफेद घास । वि० दूध-संबंधी; दूध मिला हुआ दूधके पहुँचानेकी व्यवस्था हो।-विक्षेपण-यंत्र-पु०(ट्रांसमिटिंग रंगका, सफेद, कच्चा होनेके कारण जिसमें अभी दूध हो, एपैरेटस) दे० 'दूरविक्षेपक' ।-वीक्षण-पु०दे० 'दूरबीन' । बहुत कच्चा ।
-वीक्षण-यंत्र-पु०(टेलिस्कोप) वह यंत्र जिससे देखनेपर दून-स्त्री० दूनेका भाव । वि० दुगुना, दोहरा; [सं०] क्लांत; दूरकी वस्तुएँ निकटस्थ जैसी तथा आकारमें अपेक्षाकृत पीडित क्षुब्ध; उपतप्त । मु०-की लेना या हाँकना- बड़ी एवं स्पष्टतर दिखाई पड़ें। -स्थ,-स्थित-वि० जो डाँग मारना । -की सूझना-शक्तिसे बाहरकी बातका निकट न हो, असमीपस्थ । मु०-करना-हटाना; अलग मनमें आना।
करना; नष्ट करना। -की कहना-बड़े मार्केकी बात दूनर*-वि० जो झुककर दोहरा हो गया हो।
कहना, बड़ी सूझकी बात कहना। -की बात-असंभव दूना-वि० दुगुना, दोगुना ।
बात; मार्केकी या सूक्ष्म बात । -की सोचना-दूरदनी*-वि० दोनों।
देशीकी बात सोचना। -भागना-बहुत बचना, अपनेको दूब-स्त्री० एक प्रसिद्ध घास, दूर्वा ।
किसीसे बहुत अलग रखना। -होना-मिट जाना, बना दूबरा*-वि० दुर्बल, कृश दीनहीन; अशक्त ।
न रहना; हट जाना। दूबा -स्त्री० दूब।
दर-अ०,वि० [फा०] दे० 'दूर' (सं०)। -बीन-पु० एक दूभर-वि० भारी, बोझिल; कठिन; असह्या दुष्कर । यंत्र जिसके द्वारा दूरकी वस्तुएँ बड़ी और समीपस्थ दमना*-अ० क्रि० हिलना, डोलना।
दिखाई देती हैं। दूरंदेश-वि० [फा०] दे० 'दूरदर्शी ।
दूरबा-स्त्री० दूब। दरंदेशी-स्त्री० [फा०] दे० 'दूरदर्शिता' ।
दूरागत-वि० [सं०] दूरसे आया हुआ। दूर-अ० [सं०] देश-काल आदिकी दृष्टिसे अधिक अंतरपरः | दूरान्वय-पु० [सं०] कर्ता-क्रिया, विशेष्य-विशेषण आदिविशिष्ट स्थान-समय आदिसे बहुत हटकर, फासलेपर। का एक दूसरेसे दूर होना; रचनाका एक दोष (सा०)। वि० जो दूर हो, असमीपस्थ । -गामी (मिन्)-वि० दारि*-अ०, वि० दूर । दूरतक जानेवाला । -दर्शक-पु० पंडित, प्राज्ञ । वि० दूरी-स्त्री० अंतर, फासला । दूरतक देखनेवाला; जिसके द्वारा दूरतककी चीज देखी | दूरीकरण-पु० [सं०] दूर करना। जाय; दूरतक सोचनेवाला, बुद्धिमान् । -दर्शक यंत्र- दूर्वा-स्त्री० [सं०] दूब । -क्षेत्र-पु० (लॉन) किसी गृह,
न' । -दर्शन-पु० गीध; पंडित; दूरबीन। प्रासाद आदिके सामने, पीछे या बगलका वह खुला मैदान -दर्शन यंत्र-पु० (टेलीविजन) वह यंत्र जिससे व्यवधान जो दूर्वासे आच्छादित हो। रहते हुए भी दूरकी वस्तुएँ, घटनाएँ आदि स्पष्ट देखी जा| दलन-पु० दे० 'दोलन' । सकें ।-दर्शिता-स्त्री०दूरकी बात सोचनेका गुण या शक्तिः | दूलह-पु० दे० 'दूल्हा' ।
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दूलित-देखना
३६८ दूलित-वि० दे० 'दोलित' ।
बंदकर लेनेके बाद भी सामने विद्यमान-सा प्रतीत हो। दूल्हा-पु० वह व्यक्ति जिसका ब्याह होने जा रहा हो या | दृष्ट-वि० [सं०] देखा हुआ जाना हुआ।-कूट-पु० पहेली;
कुछ ही दिनों पहले हुआ हो, वर, नौशा; पति नायक। एक प्रकारकी पहेली जैसी दुरूह कविता जिसका अर्थ बहुत दूषक-पु० [सं०] दोषारोपण करनेवाला व्यक्ति, दोष लगाने सोच-सोचकर निकाला जाता है । या आक्षेप करनेवाला मनुष्य दुष्ट व्यक्ति।
दृष्टमान*-वि० दे० 'दृश्यमान'। दूषण-पु०[सं०] दोष, ऐव, खराबी, दुर्गुण; दोष लगानेका दृष्टांत-पु० [सं०] प्रस्तुत विषयको समझानेके लिए समान कार्य या भाव, दोषारोपण; अपराध; रावणका एक भाई । | धर्मवाली किसी दूसरी वस्तुका कथन, उदाहरण, मिसाल; * वि० विनाशकारी, संहारक ।
अर्थालंकारका एक भेद, जहाँ उपमेय वाक्य और उपमान दुषणारि-पु० [सं०] राम जिन्होंने दूषणको मारा था। वाक्यमें तथा उन दोनोंके धर्मों में 'बिब-प्रतिबिंब-भाव दुषणीय-वि० [सं०] जिसपर दोष लगाया जा सके, दोषा- दिखाया जाय । रोपणके योग्य ।
दृष्टार्थ-वि० [सं०] जिसका अर्थ या विषय स्पष्ट हो । दूषन*-पु० दे० 'दूषण'।
दृष्टि-स्त्री० [सं०] देखना, अवलोकन; देखनेकी शक्ति दूषना*-सक्रि० दोष लगाना; दूषित बनाना।
दीठ, नजर प्रकाश; ज्ञान; मत, विचार; उद्देश्य, अभिदूषित-वि० [सं०] दोषयुक्त, बुरा, गंदा, कलंकित । प्रायः सोचने-बिचारनेका पहलू । -कूट-पु० दे० 'दृष्टदूसना*-स० क्रि० दोष लगाना ।
कूट'। -कोण-पु० देखने-सोचने-विचारनेका पहलू । दूसर*-वि० दे० 'दूसरा'।
-क्रम-पु० चित्रित वस्तुओंमें वही सापेक्ष्य छोटाई-बड़ाई, दूसरा-वि० जो गिनतीमें दोके स्थानपर हो, पहलेके बाद- ऊँचाई-निचाई आदि दिखाई देना जो स्थानविशेषसे प्रत्यक्ष का; भिन्न, दीगर ।
दर्शनमें दिखाई देती है। -क्षेप-पु० दृष्टि डालनेकी दूहना-स० क्रि० दे० 'दुहना'।
क्रिया, अवलोकन । -गत-वि० जो देखने में आया हो, दहनी-स्त्री० दे० 'दोहनी' ।
जो देख पड़ा हो। -गोचर-वि० जिसका चाक्षुष प्रत्यक्ष दूहा*-पु० दे० 'दोहा'।
हो सके, जो देखा जाय, दिखाई पड़नेवाला । -दोषदृक (श)-पु० [सं०] आँख, दृष्टि; दोकी संख्या देखना; पु० नजरका बुरा असर; देखने में त्रुटि होना । -पथद्रष्टा; ज्ञान । -क्षेप-पु० किसी ओर दृष्टि डालना, दृष्टि- पु० नेत्रव्यापारका क्षेत्र । -पात-पु० दे० 'दृष्टिक्षेप' । पात। -पात-पु० दे० 'दृक्क्षेप' ।
-बंध-पु० नजरबंदी। -भ्रम-पु० (हेलूसिनेशन) ऐसी दृगंचल-पु० [सं०] पलक ।
किसी वस्तुका आभास होना जिसका वस्तुतः कोई बाध दृग-पु० आँख, दृष्टि; देखनेकी शक्ति। -मिचाव-पु० अस्तित्व न हो, आधारहीन या अस्तित्वहीन वस्तु देखनेआँखमिचौनी।
समझनेका धोखा, भ्रांति । -मांद्य-पु० आँखोंसे कम दृग्गोचर-वि० [सं०] दे० 'दृष्टिगोचर'।
दिखाई देना । -रोध-पु० देखनेकी क्रियाका रुकना या दृढ-वि० [सं०] जो विचलित न हो, जो डिग न सके, रोका जाना; देखनेके काममें होनेवाली रुकावट ।-विक्षेप धीर, कड़े दिलका; कसकर बँधा हुआ; अशिथिल; गाढ; -पु० तिरछी चितवन, कटाक्ष; दृष्टिपात । -विभ्रममजबूत, सबल, बलिष्ठ; पुष्ट; जिसमें कोई फेरफार न हो पु० प्रेमभरी चितवन, नेत्रविलास । मु०-फिरना-दे० सके पक्का, अटला कठिन; स्थूल, स्थायी, टिकाऊ।-कर्मा- | 'आँखें फिर जाना'। -फेरना-दे० 'आँख फेरना' । (मन्)-वि० दृढ़तापूर्वक अपने काममें लगा रहनेवाला । -बचाना-दे० 'आँख बचाना' । -बिछाना-दे० 'आँख -चेता(तस)-वि० कड़े दिल, पक्के इरादेवाला । प्रतिज्ञ बिछाना' । -भर देखना-तृप्तिपर्यंत देखना, जी भरकर -वि० जो प्रतिज्ञासे न डिगे, सत्यसंध, सत्यप्रतिज्ञ।-फल देखना । -मारी जाना-अंधा होना, नेत्रहीन होना । -पु० नारियल ।-मुष्टि-वि० जिसकी मुट्ठी जल्दी न खुल -मिलामा-देखा-देखी करना । -में समाना-दे० सके; कृपण, कंजूस । -व्रत-वि० संकल्पका पक्का, दृढ़- 'आँखोंमें समाना' । (किसीपर)-रखना-निगरानी प्रतिश। -संध-वि० दृढव्रत, दृढप्रतिज्ञ ।
करना, देखरेखमें रखना, देख-भाल करना। -लगाना दृढता-स्त्री०, दृढत्व-पु० [सं०] दृढ होनेका भाव मजबूती। -एकटक देखना; नेह जोड़ना, प्रीति लगाना। दृदाई*-स्त्री० दृढता, मजबूती।
दृष्टिवंत-वि० शानवान्, बुद्धिमान् दीठवाला। दृढ़ाना-अ०क्रि० एढ होना, पुष्ट होना; स्थिर होना। दे*-स्त्री० देवीका लघुरूप।
स० क्रि० ४ढ़ बनाना, मजबूत करना, पक्का करना। देई*-स्त्री० दे० 'देवी' । दृप्त-वि० [सं०] गर्वित; उन्मत्त हर्षयुक्त; तेजोयुक्ता दीप्त । | देउरी-पु० दे० 'देवर' । दृश्य-पु० [सं०] जो कुछ देखा जाय, वह सब कुछ जो देउरानी -स्त्री० दे० 'देवरानी' । दर्शकको दृष्टि-गोचर हो, नज्जारा; तमाशा । वि० देखने देख-भाल, देख-रेख-स्त्री.निगरानी, निरीक्षण, संरक्षण । योग्य, दर्शनीय; मनोरम, शोभन; जानने योग्य, ज्ञातव्य; देखनहारा-पु० देखनेवाला, दर्शक । जो दर्शकोंको अभिनय द्वारा दिखाया जाय (काव्य)। देखना-स० क्रि० नेत्रों द्वारा किसीका ज्ञान प्राप्त करना; दृश्यमान-वि० [सं०] जो देखा जा रहा हो।
तलाश करना, खोजना; परीक्षा करना, परखना; निगदृश्याभास-पु० [सं०] (स्पेक्ट्रम) देखी हुई किसी वस्तु । रानी करना या रखना; सम्हालना; प्रबंध करना; सोचनाकिंवा दृश्यका वह चित्र, प्रतिबिंब या आभास जो आँखें समझना निरीक्षण करना; अनुभव करना, भोगना पढ़ना,
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देखनि-देव बाँचना; संशोधन करना; प्रतीकार करना; निबटना; किसी लिए किये जानेवाले हवन-पूजनादि कृत्य; देवाऔर दृष्टि फेरना, ध्यान देना।
भिलपित कार्य । -काष्ठ-पु. देवदारु ।-गणिका-स्त्री० देखनि*-स्त्री० देखनेकी क्रिया या भाव ।
अप्सरा ।-गति-स्त्री० ऐसी सद्गति जिसे प्राप्त कर मृत देखराना-सक्रि० दे० 'दिखलाना।
व्यक्ति देवरूप हो जाता है। -गन*-पु० देवताओंका देखरावना*-स० क्रि० दे० दिखलाना।
समूह । -गिरा-स्त्री० देववाणी, संस्कृत । -गिरि-पु० देखाऊ-वि० जो केवल देखनेभरको हो, नकली, बनावटी। एक पर्वत; दक्षिण भारतका एक प्राचीननगर (दौलताबाद)। देखादेखी-स्त्री० एक दुसरेको देखनेकी क्रिया, साक्षात्कार। -गुरु-पु० कश्यप; बृहस्पति । -चर्या-स्त्री० देवताका अ० (किसीको) करते देखकर, अनुकरणके रूपमें ।
पूजन-अर्चन । -चिकित्सक-पु. अश्विनीकुमार; दोकी देखाना*-स० क्रि० दे० 'दिखाना'।
संख्या। -ठान -पु० दे० 'देवोत्थान'। -तरु-पु० देखाव-पु० दिखलानेका भाव या दंग; सज-धज, तड़क- देववृक्ष-इनके नाम है-मंदार, पारिजात, संतान, कल्पभड़क, बनाव-सिंगार।
वृक्ष और हरिचंदन; पीपल । -तर्पण-पु० देवताओंको देखावट-स्त्री० दे० 'देखाव' ।
जल देनेकी क्रिया ।-त्रयी-स्त्री०तीन देवताओंका-ब्रह्मा, देखावना-स० क्रि० दे० 'दिखाना'।
विष्णु और महेशका-समूह । -दत्त-पु० अर्जुनके देखौआ-वि० दे० 'देखाऊ'।
शंखका नाम; गौतम बुद्धका चचेरा भाई (यह उनका देग़-पु० [फा०] खाना पकानेका ताँबेका बड़ा बरतन । द्रोहीथा) । वि० देवताको समर्पित देवताका दिया हुआ।
-चा-पु० छोटा देग। -ची-स्त्री० छोटा देगचा । -दर्शन-पु० देवताका दर्शन; एक ऋषि, नारद । देदीप्यमान-वि० [सं०] चमकता हुआ, जाज्वल्यमान । -दार*-पु० देवदारु । -दारु-पु० एक प्रसिद्ध पहाड़ी देन-स्त्री० देनेकी क्रिया या भाव; दी हुई वस्तु । पु० [अ०] पेड़ जिसकी लकड़ी कड़ी, हल्की और पीले रंगकी होती है। कर्ज । -दार-वि० कर्जदार, ऋणी; आभारी। -लेन- -दास-पु० देवालयमें काम करनेवाला नौकर ।-दासी पु० सूदपर रुपया देनेका व्यवहार, महाजनीका व्यवसाय।। -स्त्री० नाच-गाकर देवता या देवालयकी सेवा करनेवाली -हार,-हारा*-वि० देनेवाला ।
स्त्री, देवमंदिरकी नर्तकी; वेश्या। -दीप-पु० देवताके देना-स० क्रि० किसी वस्तुपरसे अपना स्वामित्व हटाकर | निमित्त जलाया जानेवाला दीप; नेत्र, लोचन । -दतदूसरेको उसका स्वामी बनाना, प्रदान करना; समर्पित पु० देवता या ईश्वरका दूत, पैगंबर; फरिश्ता । -द्रम करना; सी पना; मिलाना, डालना; खींचना; लगाना; -पु० दे० 'देवतरु' । -धानी-स्त्री० इंद्रपुरी। -धाम रखना; मारना, रसीद करना; पैदा करना, जनना; -पु० तीर्थ स्थान |-धुनी-स्त्री० गंगा कोई पवित्र नदी । हवाले करना, थमाना अनुभव कराना; पहुँचाना । ( यह -धेनु-स्त्री० कामधेनु । -नदी-स्त्री० गंगा पुण्यतोया क्रिया अन्य क्रियाओंके साथ प्रायः संयोजिका क्रियाके नदी । -नागरी-स्त्री० एक प्रसिद्ध लिपि जिसमें संस्कृत, रूपमें प्रयुक्त होती है । ) पु० कर्न, ऋण ।
हिंदी, मराठी आदि भाषाएँ लिखी जाती हैं। -नायकदेमान*-पु० दे० 'दीवान'।
पु० इंद्र । -पति-पु० इंद्र। -पथ-पु० छायापथ, देय-वि० [सं०] देने योग्य, दातव्य । पु० देना, ऋण । आकाश । -पालित-वि० देवता द्वारा रक्षित । -पुरदेयादेय-फलक-पु० [सं०] (बैलेंस-शीट) किसी व्यापारिक पु०,-पुरी-स्त्री० इंद्रकी नगरी, अमरावती। -बधूसंस्था आदिका, समय-समयपर तैयार किया जानेवाला, स्त्री० देवांगना; अप्सरा। -भाग-पु. यज्ञादिमें देवसमस्त देयों और आदेयों (पावनों तथा संपत्ति) का संक्षिप्त विशेषको दिया जानेवाला भाग; संपत्तिका वह भाग जो लेखा जिससे उसकी आर्थिक स्थितिका पता चले, चिट्ठा। देवकार्यके लिए अलग कर दिया गया हो। -भाषादेयासिनि*-स्त्री० झाड़-फूक करनेवाली (विद्यापति)। स्त्री० संस्कृत। -भिषक(ज)-पु० अश्विनीकुमार । देर-स्त्री० [फा०] उचितसे अधिक समय, विलंब, कालाति- -भू-भूमि-स्त्री० स्वर्ग । -भोज्य-पु० अमृत । पात; समय, वक्त।
-मणि-पु० कौस्तुभ मणि; सूर्य। -माता-स्त्री० देवदेरानी*-स्त्री० देवरानी।
ताओंकी माता, अदिति । -मान-पु० काल गणनाका देरी-स्त्री० दे० 'देर'।
वह मान जो देवताओंके संबंध में काममें लाया जाता हैदेव-पु० [फा०] दैत्य, दानवः भीमकाय मनुष्यः [सं०] जैसे मनुष्यका एक सौर वर्ष देवताओंके एक दिनके बरास्वर्गमें विचरण करनेवाला दिव्य शक्ति-संपन्न अमर प्राणी, बर होता है। -मास-पु० गर्भका आठवाँ महीना देवता; परमात्मा; इंद्रा मेघ; राजा; भव्य शरीरवाला देवताओंका महीना जो तीस सौर वर्ष के बराबर होता व्यक्ति; ब्राह्यगोंकी एक उपाधि, पूज्य व्यक्तियों तथा है। -यज्ञ-पु. वह हवन जो गृहस्थोंके पाँच नेत्यिक राजाओंके लिए आदरसूचक संबोधन; * देवर-'देव जेठ । यशोंमेंसे एक है। -यानी-स्त्री० शुक्राचार्यकी कन्या जो सब संगिहु मानौ'-राम। -ऋण-पु. एक प्रकारका कचके शापवश ययातिको ब्याही गयी थी। -युग-पु० शास्त्रोक्त ऋण जिससे मुक्त होनेके लिए देवताओंके । सत्ययुग । -योनि-स्त्री० देवता-जाति; देवताओंकी निमित्त यश, उपवास, व्रत आदि करना विहित है। कोटिमें गिने जानेवाले विद्याधर, अप्सरा आदि दस उप-ऋषि-पु० नारद आदि देवकल्प ऋपि । -कन्यका, देव । -राज-पु० इंद्र राजा; बुद्ध । -रानी*-स्त्री० -कन्या-स्त्री० देवताकी पुत्री; (ला०) अत्यंत रूपवती | इंद्राणी; दे०क्रममें ।-राय*-पु० इंद्र ।-रिपु-पु०असुर। तरुणी। -कर्म(न),-कार्य-पु० देवताओंकी तुष्टिके -लोक-पु० देवताओंका लोक, स्वर्ग; भूः भुवः आदिः
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देवकी-देह सात लोक । -वक्त्र-पु० अग्नि (जो देवताओंके लिए देवालय-पु० [सं०] देवागार, देवस्थान, मंदिर । मुँहके तुल्य है)। -वधू-स्त्री. देवताकी स्त्री, देवी; देवाला-पु० दे० 'दिवाला' । अप्सरा। -वर्म(न्)-पु० आकाश। -वाणी-स्त्री० देवा-लेई-स्त्री० लेन-देन । संस्कृत भाषा; (ओरेकिल) किसी देवी, देवताके मुँहसे देवी-स्त्री० [सं०] देवताकी पत्नी; आद्या शक्ति, दुर्गा; सरनिकली समझी जानेवाली बात, आकाशवाणी ।-वाहन- स्वती सावित्री; द्विजोंकी विवाहिता स्त्रियोंकी एक उपाधि पु० अग्नि ( जो देवताओंके पास हव्य पहुँचाती है)। राजमहिषी, पटरानी; (ला०) सुशीलता, सदाचार आदिसे -वृक्ष-पु० दे० 'देवतरु' । -व्रत-पु०भीष्मपितामह ।। युक्त स्त्री। -शत्रु-पुल्दैत्य ।-शिल्पी(ल्पिन)-पु० विश्वकर्मा । देवेंद्र-पु० [सं०] देवताओंके अधिपति इंद्र । -शुनी-स्त्री० देवताके समान प्रभाववाली सरमा नामकी देव*-स्त्री० देवकी। कुतिया । -सदन-पु० स्वर्ग; पीपलका पेड़, मंदिर। देवया-वि० देनेवाला। -सरि,-सरित्-स्त्री० दे० 'देवनदी'। -सेना-स्त्री० देवोत्तर-पु० [सं०] देवताके लिए अलग की हुई जायदाद । देवताओंकी सेना; देवसेनापति स्कंदकी पत्नी । -सेना-देवोत्थान-पु०[सं०] विष्णुका कार्तिक शुक्ला एकादशीको पति,-सेना-प्रिय-पु० स्कंदा पीला मैंगरा । -स्थान- शेषकी शय्यासे सोकर उठना । पु० स्वर्ग; मंदिर । -स्व-पु० देवार्पित संपत्ति । देवोद्यान-पु० [सं०] देवताओंके उद्यान-नंदन, चैत्ररथ, देवकी-स्त्री० [सं०] वसुदेवकी पत्नी और कृष्णकी माता। वैभ्राज और सर्वतोभद्र।। -नंदन,-पुत्र,-सूनु-पु० कृष्ण ।
देश-पु० [सं०] स्थान; मुल्क क्षेत्र विभाग। -ज-वि० देवता-पु० [सं०] स्वर्गमें वास करनेवाला दिव्य शक्ति देशमें उत्पन्न; जो बोल-चालकी भापासे स्वतः उत्पन्न हो
संपन्न अमर प्राणी; देवप्रतिमा। -गृह-पु० देवालय । गया हो (वह शब्द)। -धर्म-पु० देशके अनुरूप धर्म, देवढ़ी-स्त्री० ड्योढ़ी; चौखट।
देशविशेषके लिए उचित धर्म: देशविशेपमें प्रचलित देवर-० [सं०] पतिका अनुजा पतिका भाई (जेठा आचार-विचार । -निकाला-पु० [हिं०] निर्वासनका या छोटा)।
दंड। -भक्त-पु० देशका हित एवं उन्नति चाहनेवाला, देवरा*-पु० साधारण देवता ।
देशानुरागी व्यक्ति । -भक्ति-स्त्री० देशहितकी कामना, देवरानी-स्त्री० देवरकी पत्नी ।
देशप्रेम । -रक्षक सेना-स्त्री० (मिलीशिया) दे० 'जानदेवर्षि-पु० [सं०] दे० 'देवऋषि' ।।
पद सैन्य'। देवल-पु० देवालय, मंदिर, [सं०] देवपूजाकी आयसे | देशांतर-पु० [सं०] दूसरा देश, विदेश उत्तर और दक्षिण
जीविका चलानेवाला ब्राह्मण देवर धार्मिक व्यक्ति । ध्रवको मिलानेवाली रेखासे पूर्व या पश्चिमकी दूरी। देवांगना-स्त्री० [सं०] अप्सरा; देवताकी स्त्री।
-गमन-पु० (ट्रांसमाइग्रेशन) बीचके देश या समुदादि देवांश-पु०[सं०] देवताका भाग; परमेश्वरका अंशावतार । लाँधकर अन्य देशमें चले जाना। देवागार-पु० [सं०] मंदिर, देवस्थान; स्वर्ग ।
देशाचार-पु० [सं०] देशविदेशमें प्रचलित रीति-रिवाज, देवाजीव, देवाजीवी (विन्)-पु० [सं०] पुजारी। आचार-व्यवहार । देवाधिदेव-पु० [सं०] विष्णु, शिव ।
देशाटन-पु० [सं०] भिन्न-भिन्न देशोंमें भ्रमण, पर्यटन । देवाधिप-पु० [सं०] परमेश्वर; इंद्र।
देशी-वि० स्वदेशमें उत्पन्न या बना हुआ; अपने देशका देवान-पु० दीवान, मंत्री राज-दरबार ।
स्वदेश-संबंधी; देशका । देवानांप्रिय-पु० [सं०] अशोककी उपाधि; बकरा। वि० देशीय-वि० [सं०] 'देशी' । देवप्रियः मूर्ख ।
देस-पु० 'देश'। -निकाला-पु० दे० 'देशनिकाला। देवाना*-वि० पागल ।
-वाल-वि० अपने देशका, स्वदेशी। देवानीक-पु० [सं०] देवसेना ।
देसावर-पु० विदेश, परदेश । देवानुग-पु० [सं०] देवताओंके पीछे-पीछे चलनेवाले | देसावरी-वि० देसावरका, विदेशी । विद्याधर, यक्ष आदि दस उपदेव देवताका सेवक । देसी-वि० दे० 'देशी'। देवानुचर-पु० [सं०] दे० 'देवानुग' ।
देहंभर-वि०,पु० [सं०] शरीरमात्रका पोषण करनेवाला; पेटू। देवान-पु० [सं०] अमृत; चरु ।
देह-स्त्री० [सं०] शरीर, तन; जीवन, जिंदगी। -जदेवायतन-पु० [सं०] दे० 'देवागार'।
पु० पुत्र । -जा-स्त्री० पुत्री। -त्याग-पु० मृत्यु । देवारण्य-पु० [सं०] देवताओंका उपवन, नंदनवन । -धारक-पु० अस्थि, हड्डी; शरीर ।-धारण-पु० शरीर देवाराधन-पु० [सं०] देवताको प्रसन्न करनेके लिए किया। धारण करना, जन्म लेना; प्राणरक्षा। -धारी(रिन्)जानेवाला पूजा-पाठ आदि ।
पु० वह जिसने शरीर धारण किया हो, शरीरी, प्राणी । देवारि-पु० [सं०] असुर, दैत्य ।
-पात-पु० देहांत, मृत्यु ।-भृत्-पु० दे० 'देहधारी'। देवारी, देवाली -स्त्री० दीपावली।
-यात्रा-स्त्री० जीवका शरीर छोड़कर दूसरे लोकमें जाना; देवार्चन-पु०, देवार्चना-स्त्री० [सं०] देवताका पूजन । शरीरत्याग; जीवन-यापन; भोजन ।-लक्षण-पु० शरीरदेवार्पण-पु०[सं०] देवताके निमित्त किसी वस्तुका उत्सर्ग। परका काला दाग, तिल । -सार-पु० मज्जा। मु० देवाल-पु० देनेवाला; (ला०) वेचनेवाला । * स्त्री० दीवार। -छूटना-मृत्यु होना । -छोड़ना-मरना। -धरना
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शरीर धारण करना । - बिसरना - सुध-बुध खोदेना, अपनेको भूल जाना ।
देह - पु० [अ०] गाँव । -कान-पु० ग्रामवानी; किसान; गँवार । - क्रानियत - स्त्री० गँवारपन; देहातीपन । देहरा - पु० देवालय, मंदिर; * मनुष्यशरीर । देहरि, देहरी* - स्त्री० दे० देहली' । देहलि, देहली - स्त्री० [सं०] दरवाजेकी चौखटमेंकी नीचेवाली लकड़ी जिसे लाँघकर घर में घुसते निकलते हैं । -दीप, - दीपक - पु० देहलीपर रखा हुआ दीया (जो बाहर-भीतर दोनों ओर प्रकाश फैलाता है); अर्थालंकारका एक भेद । दीपक न्याय - पु० एक तर्कप्रणाली जिसके अनुसार किसी वस्तुसे दो कार्य एक साथ उसी प्रकार सिद्ध हो सकते हैं। जिस प्रकार देहलीपर रखे दीपकसे बाहर-भीतर दोनों ओर उजाला हो जाता है ।
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देहवंत* - वि० शरीरवाला | पु० देहधारी ।
देहांत - पु० [सं०] मृत्यु, मरण ।
देहांतर - पु० [सं०] दूसरा शरीर । - प्रवेश - पु०, - प्राप्ति - स्त्री० (ट्रांसमाइग्रेशन) (आत्माका) एक देह या योनि त्यागकर दूसरी देह या योनि धारण कर लेना । देहात - पु० गाँव, गँवई ।
देहाती - पु० ग्रामवासी, ग्रामीण । वि० गाँवका; गाँवसंबंधी; गाँव में होनेवाला; गंवार | - पन- पु० देहाती होनेका भाव । देहात्मवाद - पु० [सं०] एक दार्शनिक सिद्धांत जिसके अनुसार देह ही आत्मा है, देहसे भिन्न आत्मा नामका कोई पदार्थ नहीं ।
देहात्मवादी ( दिन ) - पु० [सं०] देहात्मवादको मानने वाला, चार्वाक मतका पोषक ।
देहाध्यास - पु० [सं०] देहको आत्मा या देहधर्मको आत्माका धर्म समझनेका भ्रम ।
देहावरण - पु० [सं०] जिरह; वस्त्र ।
देहावसान - पु० [सं०] देहांत, मृत्यु |
देहियाँ, देही - स्त्री० शरीर ।
देही ( हिन्) - पु० [सं०] देहधारी जीव, शरीरी | दैउ* - पु० - आकाशः दैव ।
दैत्य - पु० [सं०] कश्यपके वे क्रूरकर्मा पुत्र जो उनकी पत्नी दिति के गर्भ से उत्पन्न हुए; भीमकाय और अत्यंत बलशाली मनुष्य । - गुरु- पु० शुक्राचार्य । - पुरोधा ( धस ), - पूज्य पु० शुक्राचार्य । - माता (तृ) - स्त्री० दिति । दैत्यारि - पु० [सं०] विष्णुः देवता ।
दैत्येंद्र - पु० [सं०] दैत्योंका राजा । दैनंदिन - अ० [सं०] दिनोंदिन प्रतिदिन । वि० प्रतिदिन होनेवाला, नित्यका ।
दैनंदिनी - वि० स्त्री० [सं०] दे० ' दैनंदिन' । स्त्री० रोजनामचा, डायरी |
दैन
[-पु० [सं०] दीनता; शोक; निर्बलता । वि० दिनसंबंधी; * देनेवाला । * स्त्री० देनेकी क्रिया; दी हुई वस्तु । दैनिक - वि० [सं०] प्रतिदिनका; प्रतिदिन होने या निक लनेवाला; दिन संबंधी - पंजी-स्त्री० (जर्नल) दैनिक घटनाओं (या लेन-धन, क्रय-विक्रय) आदिका विवरण लिखनेकी बही, दैनंदिनी, डायरी |
२४
देह-दो
दैनिकी - स्त्री० [सं०] (डेली रिपोर्ट) दिन-प्रतिदिन होनेवाली या प्रत्येक दिनकी घटनाओंका विवरण (डायरी) 'दैनंदिनी' ।
दैन्य- पु० [सं०] दीनता, दरिद्रता; कातरता; एक संचारी
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भाव ।
दैवत* - पु० दे० 'दैत्य' ।
दैया - पु० देव, दई । स्त्री० दाई मा । अ० एक आश्चर्य या शोकसूचक शब्द |
दैर्घ, दैर्घ्य - पु० [सं०] दीर्घता, लंबाई, विस्तार | दैव- पु० [सं०] पूर्व जन्ममें उपार्जित कर्म जिसका शुभा शुभ फल वर्तमान जन्ममें भोगते हैं, भाग्य, नियति, अष्ट देवता; ईश्वर; विधाताः आकाश; आठ प्रकारके विवाहों में से एक । वि० देवता-संबंधी; देवताका देवता द्वारा प्रेरित । - गति - स्त्री० ईश्वरीय प्रेरणा; भाग्यका फेर । - ज्ञ - पु० ज्योतिषी । - दुर्विपाक - पु० विधिकी प्रतिकूलता, भाग्यका बुरा फेर, दुर्भाग्य । -पर- वि० जो भाग्यकी दुहाई दे; जो भाग्य के भरोसे बैठा रहे, नियतिवादी । - योग- पु० संयोग, इत्तिफाक । वर्षपु० देवताओंका वर्ष जो १३१५२१ सौर दिनोंका होता है । -वश, - वशात् अ० संयोगसे, अकस्मात् । - वाणी- स्त्री० आकाशवाणी; संस्कृत भाषा । - वादी (दिन) - वि० दे० 'दैवपर' । - विद् - पु० ज्योतिषी । - विवाह - पु० वह विवाह जिसमें कन्या यज्ञ करानेवाले ऋत्विकको ब्याह दी जाय ।
दैवागत- वि० [सं०] आकस्मिक, जो दैवयोगसे हुआ हो । दैवात् - अ० [सं०] संयोगवश, दैवयोगसे | दैविक - वि० हुआ; देवकृत
[सं०] देवता-संबंधी; देवताके निमित्त किया
दैवी ( चिन्) - पु० [सं०] ज्योतिषी ।
देवी- वि० दैवीय, देवता-संबंधी; ईश्वरदत्तः संयोगसे होनेवाला ।
दैवोपहत- वि० [सं०] अभागा, मंदभाग्य । दैशिक - वि० [सं०] देश-संबंधी; देश-जनित | दैहिक - वि० [सं०] देह-संबंधी, शारीरिक; देह-जनित । दाँचना* - स० क्रि० दवाना; दबावमें डालना । दो - वि० एक और एक, एकसे एक अधिक; कुछ । पु० दो की संख्या, २ । - अमली - स्त्री० एक स्थानपर दो राजाओंका शासन, द्वैध शासन । - आब, - आबापु० दो नदियोंके बीचका भूखंड । - एक - वि० कुछ, थोड़े, संख्या में कम । -ग़ला - वि० वर्णसंकर । -गानापु० ( डूएट) वह गाना जिसका कुछ अंश एक व्यक्ति द्वारा और कुछ अन्य व्यक्ति द्वारा क्रम क्रमसे गाया या बजाया जाय । - गुना - वि० दे० 'दुगना' ।-चंद - वि० दुगना । - चार -अ० दे० 'दो एक' । - चित्ता - वि० जिसका ध्यान इधर-उधर बँटा हो । जीवा - स्त्री० गर्भिणी । -टूक- वि० खरा, साफ-साफ । -तरफ़ा - वि० दोनों ओरका; दोनों पक्षोंके अनुकूल । - तला, तल्ला - वि० दो तल्लोंवाला, दो मंजिला । - तारा- पु० एक तरहका दुशाला; दो तारोंवाला एक बाजा | - दस्ती - स्त्री० तलवारका दोहत्था वार; कुश्तीका एक पेंच । वि० दोनों
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दोउ - दोहगा
हाथोंका; दोनों हाथोंसे किया हुआ (वार) । -धारावि० जिसमें दोनों ओर धार हो । -नली - वि० स्त्री० जिसमें दो नालें हों । -पलिया, पल्ली- वि० स्त्री, जिसमें दो पल्ले हों । - पहर- पु०, स्त्री० पहरी । - स्त्री० दिनका वह समय जब सूर्य सिरपर आ जाता है, मध्याह्न । - पीठा- पु० कागज आदिका एक ओर छपने के बाद दूसरी ओर छपना; वि० दूसरी ओर भी छपा हुआ । - फसली - वि० जिसमें दो फसलें उपजायी जायँ । - बारा - अ० एक बार और । - मंजिला - वि० दो तल्लोंवाला । -मटस्त्री० बालू मिली हुई मिट्टी। -मुँहा - वि० जिसके दो मुँह हों । - मुँहा साँप - पु० एक साँप जिसकी दुम मोटी होनेके कारण दूसरे मुँहकीसी जान पड़ती है; वह मनुष्य जो दो तरह की बातें करे, कपटी मनुष्य । - रंगा - वि० दे० 'दुरंगा' । - रसा - वि० जिसमें दो प्रकार के रस हों । - रुखा - वि० कभी एक तरहका, कभी दूसरी तरहका ( व्यवहारादि); दोनों तरफ समान रंग या बेलबूटेवाला । - हत्थड़-पु० दोनों हाथोंसे मारा हुआ थप्पड़ | मु०आँखों देखना - समान दृष्टिसे न देखना । - दिनका- नावोंपर चढ़ना या पैर हालका; बहुत कम उम्रका । रखना- दो पक्षोंका अवलंबन करना; दो वस्तुओंका सहारा लेना । - सिर होना - मरनेको तैयार होना, मौतको न्यौता देना ।
दोउ, दोऊ - वि० दोनों ।
दोख* - पु० दे० 'दोष' ।
दोखना * - स० क्रि० दोषारोपण करना, दोषी ठहराना । दोखी* - पु० दे० 'दोषी' ।
दोगा - पु० एक तरहका छपा हुआ लिहाफ; पानी में घोला हुआ चूना ।
दोग्धा (ट) - पु० [लं०] दुहनेवाला, ग्वाला; बछड़ा; चारण । दोष * - स्त्री० संकट, कुश; असमंजस, पसोपेश; दबाव । दोचन * - स्त्री० दोच; दबाव डालना; दबावमें पड़ना । दोचना - स० कि दबाव डालना । दोज - स्त्री० दूज, द्वितीया तिथि ।
दोजख पु० [फा०] इस्लाम धर्मके अनुसार वह स्थान जहाँ कयामत के बाद पापी जायेंगे, जहन्नुम, नरक । दोज़खी - वि० [फा०] दोजख संबंधी; दोजखका, नारकीय; दोजख भेजने योग्य ( पापी ); बहुत बड़ा (पापी) । दोजग* - पु० दे० 'दोज़ख' ।
दोदना - स०क्रि० किसी के सामने कही हुई बात से मुकरना । दोन- पु० दोआबा; दो पहाड़ोंके बीचका भूभाग; दो नदियों का संगम दो वस्तुओंका मेल ।
दोना - पु० पत्तों का बना हुआ कटोरेकी शकलका पात्र; दीना । दोनिया, दोनी - स्त्री० छोटा दोना । दोनों - वि० पूर्वकथित या ऐसे दो जिनमें से एक भी छोड़ा
न जाय, उभय ।
दोबल* - पु० दोष, लांछन- 'दोबल देत सबै मोहीको उन पठयो मैं आयो' - सू० ।
दोबा* - पु० दुविधा, दो स्थितियोंके बीचकी अवस्था । दोय+ * - वि० दोनों ।
दोयम - वि० [फा०] दूसरे दर्जेका, दूसरे नंबरका ।
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दोल-पु० [सं०] झूला झूलना; दोलोत्सव, नंडोल, डोली । दोलन- पु० [सं०] झूलना । दोला- स्त्री० [सं०] झूला, हिंडोला; अनिश्चय; बड़ी डोली । - यंत्र - पु० झूला; अर्क उतारनेका भभका | दोलायमान- वि० [सं०] झूलता हुआ; अस्थिर, ढुलमुल । दोलायित, दोलित - वि० [सं०] झूलता हुआ; अस्थिर । दोलोत्सव- पु० [सं०] फाल्गुनकी पूर्णिमाको पड़नेवाला वैष्णव का एक उत्सव जिसमें हिंडोलेपर कृष्णकी प्रतिमाको झुलाते हैं।
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दोष-पु० [सं०] अपराध, कसूर; अवगुण, ऐत्र; विकार, खराबी; लांछन, पाप, कलुष; त्रुटि; अशुद्धि; बछड़ा; गोधूलि; किसी बात का खंडन; रसको अपकृष्ट बनानेवाली एक काव्यगत त्रुटि; शरीर में रहनेवाले बात, पित्त और कफ जिनके कोपसे शरीर व्याधिग्रस्त हो जाता है; इन दोषोंसे उत्पन्न विकार; राग-द्वेषादि जो मनुष्यको सुकर्म या दुष्कर्ममें प्रवृत्त करते हैं । - कर, - कारी (रिन), कृत् - वि० बुराई करनेवाला, अनिष्टकर -धन- पु० वात, पित्त और कफके दोषोंको शांत करनेवाली दवा । - ज्ञ - वि० विद्वान्, मनीषी । त्रय - पु० वात, पित्त और कफ - ये तीन दोष । - पत्र - पु० वह कागज जिसपर अपराधी के अपराधोंका ब्यौरा लिखा हो । - प्रमाणित - वि० (कॉनविक्टेड) जिसका अपराध न्यायालय में प्रमाणित हो गया हो, दे० 'अभिशंसित' । - वेचक - पु० ( सेंसर) वह सरकारी कर्मचारी जो पत्र, पुस्तक, फिल्म आदिका तथा सेना संबंधी सूच नाओं का परीक्षण कर आपत्तिजनक अंश निकाल देता है । -वेचन - पु० ( सेंसरशिप) पत्र पुस्तकादिसे उत्तेजक या आपत्तिजनक अंशोंका, निरीक्षणके बाद, हटा दिया जाना । - सिद्धू - वि० (कोन विक्टेड) जिसका दोष या अपराध प्रमाणित हो गया हो, दोषप्रमाणित, अभिशंसित । - सिद्धि - स्त्री० (कॉनविक्शन) दोष या अपराधका प्रमाणित हो जाना ।
दोषन* - पु० दोष, अपराध, दूषण । दोषना* - स० क्रि० दोप लगाना, ऐब लगाना । दोषा - स्त्री० [सं०] रात्रि भुजा । -कर- पु० चंद्रमा । दोषाकर- पु० [सं०] दोषों का समूह। वि० जो दोषों से युक्त हो ।
I
दोषारोपण - पु० [सं०] दोष लगाना । दोषावह - वि० [सं०] दोषपूर्ण, दोषोंसे भरा हुआ । दोषित* - वि० दोषयुक्त ।
दोषी (पिन्छ ) - पु० [सं०] अपराधी, अभियुक्त; ऐबी; पापी । दोस - * पु० दोष; + मित्र । दोसा* - स्त्री० दे० 'दोषा' |
दोस्त - पु० [फा०] मित्र, सुहृद् । -नवाज़ - पु० मित्रों के प्रति सहानुभूति रखनेवाला ।
दोस्ताना - वि० [फा०] दोस्तीका; मित्रोचित | पु० मित्रता; मित्रताका व्यवहार ।
दोस्ती - स्त्री० [फा०] मित्रता, सौहार्द + दो लोइयाँ एक साथ बेलकर तवापर सेंकी हुई रोटी ।
दोह - * पु० दे० 'द्रोह'; [सं०] दुहनेकी क्रिया, दोहन । दोहगा - स्त्री० दुभंगा; वह विधवा जिसे किसी दूसरेने रख
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लिया हो, उपपत्नी ।
दोहता - पु० लड़कीका लड़का, नाती । दोहद-पु० [सं०] गर्भ; लालसा; गर्भिणीकी इच्छा; कविसमय के अनुसार रमणियोंके स्पर्श, पदाघात, दृष्टिपात आदि जिनसे प्रियंगु, अशोक, तिलक आदि वृक्षों में फूल लगते हैं । दोहदaar - स्त्री० [सं०] वह गर्भिणी जिसे किसी वस्तुकी इच्छा हो ।
दोहन - पु० [सं०] दुहने का काम; दुग्धपात्र; (ला० ) चूसना । दोहनी - स्त्री० [सं०] दूध दुहनेका पात्र; दुहनेकी क्रिया । दोहरt - स्त्री० एक तरह की दोहरी चादर जिसमें मगजी लगायी जाती है।
दोहरना - अ० क्रि० दो परत होना, दोहरा होना; दुबारा होना । स० क्रि० दोहरा करना ।
दोहरा - वि० दो परतोंका; दुगना । पु० दोहा । दोहराना - स० क्रि० किसी बातको बार-बार कहना; पुनरावृत्ति करना; अशुद्धि दूर करनेके लिए एक बार और देख जाना; * दोहरा करना । दोहरी - वि० स्त्री० दो तह की हुई; दो परतोंकी; दुगनी ।
- बात - स्त्री० दो तरह की बात ।
दौः शील्य - ५० [सं०] बुरा स्वभाव; दुष्टता ।
दौ* - स्त्री० दव, वनाग्नि; आग; संताप । दौड़ - स्त्री० दौड़नेकी क्रिया या भाव; द्रुत गमन; उड़ान, गति, पहुँच, बुद्धिकी पहुँच, सवेग आक्रमण, जोरदार हमला किसी कार्यकी सिद्धिके लिए बहुत अधिक चक्कर लगाने की क्रिया; दौड़नेकी क्रिया; दौड़नेकी प्रतियोगिता । - धूप - स्त्री० बार-बार इधर से उधर आनाजाना, जोरदार कोशिश । मु०- मारना, लगाना- दूरतक जाना या पहुँचना; दूरतककी यात्रा करना । दौड़ना - अ० क्रि० अति वेगसे चलना, ऐसी द्रुत गतिने गमन करना कि कभी-कभी कोई भी पाँव पृथ्वीपर न जमे; बहुत तेजीसे चलना; किसी कामके लिए बार-बार इधरउधर आना-जाना, हैरान होना; फैलना; जाना । ater-cast- - स्त्री० त्वरा, जल्दीबाजी; दौड़धूप |
दौड़ान - स्त्री० दौड़ने की क्रिया, दौड़; दौड़नेका क्रम । दौड़ाना - स० क्रि० दौड़ने के काममें दूसरेको लगाना । दौत्य - पु० [सं०] दूतत्व, दूतका कार्य; संदेश | दौन - पु० दमन । वि० दमन करनेवाला । दौना- पु० एक पौधा जिसकी पत्तियों में विशेष प्रकारकी तीव्र सुगंध होती है; * दोना; द्रोणगिरि । * स० क्रि०
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दोहल - पु० [सं०] इच्छा; गर्भिणीकी इच्छा, दोहद । दोहा - पु० एक छंद जिसके प्रथम और तृतीय चरणमें १३-१३ तथा द्वितीय, चतुर्थ चरण ११-११ मात्राएँ होती हैं । दोहाई - स्त्री० गुहार, पुकार; * कविता । दोहाग* - पु० दुर्भाग्य, बदकिस्मती ।
दोहित - *पु० दौहित्र, लड़कीका लड़का | वि० [सं०] जिसे दौराना* - स० क्रि० दे० 'दौड़ाना' । दुहा गया हो ।
दौं*- * - अ० दे० 'धी" । स्त्री० दे० 'दो' । दौंकना - अ० क्रि० दे० 'दमकना' |
दौंचना* - स०क्रि० दवाव डालकर लेना; हठ पकड़कर लेना । दौर्बल्य - पु० [सं०] दुर्बलता । दौरी- स्त्री० देवरी, दाँय ।
दमन करना, दबाना; तपाना ।
दौनाचल-पु० दे० 'द्रोणगिरि' ।
दौर - पु० [अ०] फेरा, चक्कर, घुमाव; समयका फेर; चढ़ाई, आक्रमण; समय, युग; उन्नतिकाल; प्रभाव; पारी । स्त्री० छापामार पुलिस; दौड़; आक्रमण । - दौरा - पु० बोलवाला, चलती । मु० - चलना - शराबके प्यालेका बारी-बारी से पीनेवालोंके पास पहुँचाया जाना । दौरना*- * - अ० क्रि० दे० 'दौड़ना' ।
दौरा-1 पु० बाँस, बेत आदिका टोकरा; [अ० दौरः ] चारों ओर घूमना, चक्कर; इधर-उधर आना-जाना; गश्त, जाँचपड़ताल या निरीक्षण के लिए अफसरका अपने इलाके में घूमना; समय-समय पर होने या उभरनेवाली बीमारीका आक्रमण; जब-तब आना-जाना; हमला । -जज - पु० सत्र न्यायालयका मुख्य विचारपति । मु०- करना - जाँचपड़ताल या निरीक्षण के लिए अफसरका अपने इलाके में घूमना । - सिपुर्द करना- विचार या निर्णय के लिए अभियुक्त या मुकमेको सेशन जजके यहाँ भेजना । - सिपुर्द होना- विचार या निर्णय के लिए अभियुक्तका सेशन जज - के यहाँ भेजा जाना । ( दौरे ) पर रहना या होना - अपने हलकेके निरीक्षण आदिके लिए अफसरका सदरसे बाहर रहना या होना ।
दौरात्म्य - पु० [सं०] दुरात्मा होनेका भाव, दुर्जनता । दौrati*- * - स्त्री० दे० 'दौडादौड़ी' |
दौरान - पु० [अ०] चक्कर, दौर; जमाना; हेरफेर ; भाग्य ।
दोहता - थति
दौरी | - स्त्री० छोटा दौरा, छोटी टोकरी, चँगेरी । दौगंध्य - पु० [सं०] बुरी गंध, बदबू ) दौर्जन्य- पु० [सं०] दुर्जनता, दुष्टता ।
दौर्भाग्य - पु० [सं०] भाग्य की खोटाई, दुर्भाग्य । दौर्मनस्य - पु० [सं०] दुर्मना होनेका भाव; बुरा स्वभाव; मानसिक कष्ट ।
दौर्हार्द - पु० [सं०] दुर्हृद् होनेका भाव, शत्रुता । दौलत- स्त्री० [अ०] धन, संपत्ति । - ख़ाना - पु० वासस्थान, घर । इसका प्रयोग वार्तालाप में किसीका घर पूछते समय करते हैं । उत्तरदाता 'गरीबखाना' शब्दका प्रयोग करता है । मंद - वि० धनाढ्य, मालदार । दौलति* - स्त्री० दौलत |
दौवारिक - पु० [सं०] प्रतिहार द्वारपाल | दौवारिकी - स्त्री० [सं०] प्रतिहारिणी, द्वारपालिका । दौहित्र- पु० [सं०] बेटीका बेटा, नाती; कपिला गौका घृत । दौहित्री - स्त्री० [सं०] बेटीकी बेटी, नतिनी । द्याना द्यावना * - स० क्रि० दे० 'दिलाना' ।
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- पु० [सं०] दिन; स्वर्ग; आकाश । -ग-पु०पक्षी । वि० आकाश में गमन करनेवाला । -चर- पु० ग्रह; पक्षी । - निवासी (सिन्) - पु० देवता । - पथ - पु० आकाशमार्ग । - मणि - पु० सूर्य । - योषित् - स्त्री० अप्सरा । - लोक - पु० स्वर्ग लोक । -सरित् - स्त्री० मंदाकिनी ।
स्वर्गंगा,
द्युति - स्त्री० [सं०] शरीर की सहज कांति, छवि; चमक |
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तिमान- इंद
द्युतिमान ( मत्) - वि० [सं०] द्युतिवाला; प्रभायुक्त | घुमान् ( मत्) - वि० [सं०] कांतियुक्त । द्यूत - पु० [सं०] जुआ । -कर- पु० जुआ खेलनेवाला, जुआरी | - कार - कारक - पु० जुएका खेल करानेवाला, समिक; जुआरी । -क्रीड़ा - स्त्री० जुएका खेल । - दास - पु० जुरमें जीता हुआ दास । -फलक- पु० पासा बिछाने या खेलनेका तख्ता । - भूमि - स्त्री० जुआ खेलनेकी जगह । - मंडल, - समाज - पु० द्यूतकरोंकी मंडली । -वृत्ति - ५० वह जिसका जुआ खेलना पेशा हो गया हो; जुआ खेलानेवाला; स्त्री० जुए की लत । द्योतक - पु० [सं०] प्रकाश करनेवाला, प्रकाशक; सूचक । द्योतन - पु० [सं०] प्रकाश; प्रकाश करना, प्रकाशन; प्रकाशक: सूचित करना; दीपक; प्रभात । वि० प्रकाश शील, चमकनेवाला ।
द्योतित - वि० [सं०] प्रकाशित ।
धोतिरिंगण - पु० [सं०] खद्योत, जुगनू । घोस, द्यौस* - पु० दिन, दिवस | घोहरा* - पु० देवालय ।
द्यौ - स्त्री० [सं०] स्वर्ग; आकाश ।
दुग* - पु० हग, नेत्र ।
द्रढिमा ( मन ) - स्त्री० [सं०] दृढता ।
द्रव - पु० [सं०] तरल होना, पिघलना; तरल पदार्थ; तरल होकर बहनेकी क्रिया; क्षरण; किसी पदार्थका तरल रूपांतर; रस; आसव; पलायन; द्रवत्व नामक गुण । वि० तरल, पिघला हुआ; दौड़ता हुआ; चूता हुआ; बहता हुआ। - रसा - स्त्री० लाख; गोंद । - शील- वि० पिघलनेवाला ।
(मेल्टिंग पॉइंट) तापकी वह मात्रा पिघलने- ठोससे द्रव-रूप में परिणत
द्रवीभूत - वि० [सं०] पिघला हुआ; जो द्रव हो गया हो; दयार्द्र |
द्रव्य - पु० [सं०] पदार्थ, वस्तु; वह वस्तु जो गुण और क्रिया या केवल गुणका आश्रय हो; वह मूल वस्तु जिससे दूसरी वस्तुएँ तैयार की जाती हैं, उपादान, सामान, उपकरण; धन-दौलत; मद्य; लेप; विनम्रता; पण | - वाचक - वि० जिससे किसी द्रव्यका बोध हो । द्रव्यमय - वि० [सं०] किसी द्रव्यका बना हुआ; धनसंपत्तिसे परिपूर्ण ।
द्रव्यवान् (वत्) - वि० [सं०] द्रव्यवाला, धनी । द्रव्यार्जन - पु० [सं०] धन कमाना, धनोपार्जन | द्रष्टव्य - वि० [सं०] देखने या दिखाने योग्य, दर्शनीय; साक्षात्कार करने योग्य; विचारणीय; नयनाभिराम । द्वष्टा (ष्ट्र ) - पु० [सं०] देखनेवाला, दर्शक; साक्षात्कार करनेवाला |
द्राक्षा - स्त्री० [सं०] दाख, अंगूर; मुनक्का । -शर्करा
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द्रुम-पु० [सं०] वृक्ष, पेड़; पारिजात | दुमारि - पु० [सं०] हाथी । द्रुहिण - पु० [सं०] ब्रह्मा ।
द्रवण - पु० [सं०] पिघलनेकी क्रिया, तरल होना; बहना; द्रोण-पु० [सं०] दे० 'द्रोणाचार्य'; बत्तीस सेरकी एक
क्षरण; रिसना; भागना; दयार्द्र होना । द्रवणांक - पु० [सं०] जिसपर कोई वस्तु होने लगे ।
प्राचीन माप; लकड़ीका एक पात्र; डोमकौआ लकड़ीका रथः नाव; दोना । - गिरि- पु० एक वर्ष पर्वत । रामायणके अनुसार हनुमान् इसी पर्वतपर संजीवनी बूटी लाने के लिए भेजे गये थे ।
द्रवना* - अ० क्रि० तरल होना; दयार्द्र होना; पिघलना; पसीजना ।
द्रोणाचार्य - पु० [सं०] महाभारत के अनुसार प्रसिद्ध ब्राह्मण योद्धा जिन्होंने कौरवों और पांडवोंको धनुर्विद्याकी शिक्षा दी थी।
(ग्लूकोज) अंगूर के रससे बनी हुई चीनी । द्वाविमा ( मन ) - स्त्री० [सं०] दीर्घता, लंबाई । द्वाव-पु० [सं०] तरल होनेकी क्रिया, पिघलने, पसीनेकी क्रियाः गल या पिघलकर बहनेकी क्रियाः क्षरण; दया या करुणासे आर्द्र होनेकी क्रिया; अनुताप । द्रावक वि० [सं०] तरल बनानेवाला, द्रवीभूत करने - वाला; गलाने, पिघलानेवाला; दया, करुणाका भाव उत्पन्न करनेवाला ।
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द्रावण - पु० [सं०] द्रव बनानेकी क्रिया या भाव, गलाना, पिघलाना; (सॉल्यूशन) पानी, मद्यसार आदिमें किसी स्थूल ( या अन्य द्रव) पदार्थ के घुल-मिल जानेसे बना हुआ पारदर्शी और समरूप (होमोजीनस) मिश्रण, घोल । द्राविडी - वि० [सं०] द्रविडका; द्रविड-संबंधी । प्राणायाम - पु० आसानी और सीधे तरीकेसे किये जानेवाले कामको टेढ़ा बनाकर करना ।
द्रावित - वि० [सं०] द्रव किया हुआ; गलाया, पिघलाया हुआ; भगाया हुआ ।
द्रुत - वि० [सं०] जो द्रव हो गया हो, द्रवीभूत, गला या पिघला हुआ; शीघ्रतायुक्त; भागा हुआ; तीव्र गतिवाला, तेज । - गति - वि० तीव्र गतिवाला । स्त्री० तेज चाल । - गामी ( मिनू ) - वि० तीव्र गति से चलनेवाला । - विलंबित - पु० एक वर्णवृत्त ।
दुति - स्त्री० [सं०] द्रव होना; भागना; जाना | द्रुतै*- * - अ० शीघ्रतासे ।
द्रोणि, द्रोणी - स्त्री० [सं०] डोंगी; पानी रखनेका केलेकी छाल आदिका बना एक प्रकारका पात्र; कठवतः टब छोटा दोना; पर्वतों के बीच की भूमि; द्रोणाचार्यकी पली । द्रोन* - पु० द्रोण ।
द्रोह - पु० [सं०] दूसरेका अनिष्ट चाहना; हिंसा; अपराध; वैर; विद्रोह । - चिंतन-पु० अनिष्ट करनेका विचार या प्रयत्न करना । - बुद्धि-वि० बुराई करनेपर तुला हुआ । स्त्री० बुराई करनेकी नीयत ।
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द्रोही ( हिन्) - वि० [सं०] द्रोह करनेवाला, अहितचितन करनेवाला; विद्रोह करनेवाला । पु० वह व्यक्ति जो द्रोह करे ।
द्रौपदी - स्त्री० [सं०] पांडवोंकी पत्नी, पांचाली | द्रौपदेय - पु० [सं०] द्रौपदीका पुत्र ।
इंद - पु० [सं०] घंटा बजानेका घड़ियाल, युग्म, जोड़ा; दे० 'द्वंद्व' । * स्त्री० दुंदुभी ।
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इंदर* - वि० झगड़ा करनेवाला; उलझनेवाला । पु० संसार । द्वंद्व - पु० [सं०] युगल, युग्म, जोड़ा; दो व्यक्तियोंका परस्पर युद्ध, कलह, संघर्ष, झगड़ा; स्त्री-पुरुषका, नर-मादाका जोड़ा, मिथुन, समासका एक भेद ( व्या० ) । -चरपु० चकवा | वि० युग्मरूपमें चलनेवाला; जो सदा अपनी मादा के साथ रहे । -चारी (रिन् ) - पु० चकवा | - युद्ध - पु० दो व्यक्तियोंका पारस्परिक युद्ध द्वय - वि० [सं०] दो । पु० युग्म, जोड़ा (समासांत में) । द्वा- वि० [सं०] 'द्वि'का समासगत रूप । - दश- वि० बारह; वारहवाँ | -दशी - स्त्री० पक्षकी बारहवीं तिथि । - दस - वि० [हिं०] दे० 'द्वादश' । - दस बानी - स्त्री० दे० 'वारहवानी' |
द्वादशांग - पु० [सं०] गुग्गुल, चंदन, तेजपात आदि बारह वस्तुओं के योगसे बना हुआ एक हवनीय द्रव्य । द्वादशाक्षर - पु० [सं०] विष्णुका बारह अक्षरोंका मंत्र-ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
द्वादशाह - पु० [सं०] बारह दिनोंका समुदाय; बारह दिनों में समाप्त होनेवाला एक यश; मरण- तिथिसे बारहवें दिन किया जानेवाला श्राद्ध ।
द्वार - पु० [सं०] मकान, कमरे आदिको दीवार में बनाया हुआ भीतर-बाहर आने-जानेका विशेष प्रकारका छिद्र; वह मार्ग जिसके द्वारा इंद्रियाँ अपने विषयोंका ग्रहण करती हैं; माध्यम, साधन - कंटक - पु० दरवाजेकी किल्ली, सिटकिनी । कपाट-पु० दरवाजेका पल्ला । -चार - पु० [हिं०] विवाह के अवसरपर लड़कीवालेके दरवाजेपर होनेवाली एक रस्म । - छँकाई - स्त्री० [हिं०] एक वैवाहिक रीति जिसमें बहन कोहबर के द्वारपर विवाहोपरांत वधू सहित घर लौटे हुए भाईका मार्ग रोकती है; इस रीतिके उपलक्ष्य में बहनको मिलनेवाला नंग - ताल - पु० ( लॉकआउट ) दे० ' तालाबंदी | - नायक, -प-पु० द्वारपाल । -पटी-स्त्री० दरवाजेपर लगा हुआ परदा; चिक । - पाल, पालक - पु० ड्योढ़ी पर नियुक्त सिपाही या पहरेदार, द्वाररक्षक, ड्योढ़ीदार | - पूजा - स्त्री० विवाहके पहले दिनकी एक रीति जिसमें कन्यादान करनेवाला व्यक्ति बराऩके साथ द्वारपर आये हुए बरकी पूजा करता है। -स्थ- पु० द्वारपाल । मु०खुलना- किसी बातके जारी रहनेका रास्ता निकल आना । - खुला होना - प्रवेश आदिमें कोई हिचक या बाधा न होना ।
द्वारका, द्वारिका - स्त्री० [सं०] काठियावाड़की एक प्राचीन
जसे कृष्ण बसाया था। इसकी गणना चारों धामों में । - नाथ, पति - पु० कृष्ण; द्वारिकामें स्थित उनकी मूर्ति
द्वारकाधीश - पु० [सं०] दे० 'द्वारकानाथ' | द्वारवती, द्वारावती-स्त्री० [सं०] दे० 'द्वारका' । द्वारा - अ० साधक होनेसे या साधक बनानेसे, कर्तृत्वसे, जरिये, मारफत । * पु० दे० ' द्वार' |
द्वाराधिप - पु० [सं०] द्वारपाल । द्वारिक - पु० [सं०] द्वारपाल । द्वारी * - स्त्री० छोटा द्वार ।
२४-क
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इंदर - द्विरुक्ति
द्वि- वि० [सं०] दो । -ककार - पु० काक (कौआ); कोक चकवा ) । - ककुद् - पु० ऊँट । -कर्मक- वि० दो कर्मोंवाली (क्रिया) । -गु-पु० समासका एक उपभेद ( व्या० ) । वि० दो गायोंवाला । -गुण- वि० दुगना, दूना । - गुणित - वि० दुगना किया हुआ । -चक्रयान- पु० (बाइसिकल) रबड़ के टायरोंवाली दो पहियोंकी गाड़ी जो पैडल घुमानेसे चलती है, साइकिल, पैरगाड़ी । - ज - पु० दे० ' क्रममें' | - जन्मा (न्मन्) - ५० दे० 'द्विज' । - जाति - स्त्री० दे० 'द्विज' | - जिह्व - पु० सर्प सूचक, चुगलखोर; खल, दुष्ट । - दल - वि० दो दलोंवाला; दो पत्तोंवाला । पु० दो दलोंवाला अनाज-जैसे अरहर, मटर, चना आदि; दाल । - धातुता - स्त्री०, धातुत्व-पु० (बाइमेटलिज्म) सोने तथा चाँदी दोनों ही धातुओंकी मुद्राका समान विधिग्राह्य मुद्राके रूपमें प्रचलन । धात्वीय प्रणाली - स्त्री० (बाइमेटलिक सिस्टम) सोना, चाँदी दोनों धातुओंके सिक्कोंको निश्चित अनुपात के साथ, विधिग्राह्य मुद्रा माननेकी प्रणाली । - पक्षीय प्रसंविदा- स्त्री० (बाइलेटरल कांट्रैक्ट) दो पक्षोंके बीच होनेवाला इकरार या समझौता । -पदवि० दो पैरोंवाला; जिसमें दो चरण या पद हों । पु० दो पैरोंवाला जीव, मनुष्य आदि । - भाषी (पिन् ) - पु० दुभाषिया; दो भाषाएँ बोलनेवाला । - मातृ - मातृज - पु० गणेश; जरासंध । -रद- वि० जिसके दो दाँत हो । पु० हाथी । - रसन-पु० सर्प । वि० दो जीभोंवाला । -रेफ-पु० भ्रमर, भौंरा ( 'भ्रमर' शब्द में रकार दो बार आया है ) । - वचन - पु०व्याकरणमें दोका बोध करानेवाला वचन। - विध-वि० दो प्रकारका । -सदनात्मक - वि० (बाइमरल) विधानमंडल के दो सदनों (सभाओं) वाला। - सदस्य निर्वाची क्षेत्र - पु० (डबल मेंबर कांस्टिट्यूएंसी) वह निर्वाचन क्षेत्र जहाँसे दो सदस्य चुने जानेको हो । द्विज-पु० [सं०] संस्कृत ब्राह्मण; ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जिनका यज्ञोपवीत संस्कार दूसरे जन्म के समान माना जाता है; पक्षी आदि अंडज जीव; दाँत; चंद्रमा । वि० जिसने दो बार जन्म लिया हो । - पति-पु०ब्राह्मण; गरुड; चंद्रमा । -राज-पु० ब्राह्मण; श्रेष्ठ ब्राह्मण; चंद्रमा; गरुड; कपूर ।
द्विजेंद्र, द्विजेश- पु० [सं०] दे० 'द्विजराज' | द्विजोत्तम पु० [सं०] द्विजों में श्रेष्ठ, ब्राह्मण ।
द्विट् (प) - वि० [सं०] शत्रु-भाव रखनेवाला | पु० शत्रु | द्वितीय - वि० [सं०] दूसरा । पु० पुत्र ( जिसके रूपमें आत्मा ही दूसरी बार जन्म लेती हैं); मित्र । द्वितीया - स्त्री० [सं०] पक्षकी दूसरी तिथि; पत्नी । द्वितीयाश्रम - पु० [सं०] गृहस्थाश्रम | द्वित्व - पु० [सं०] दो अथवा दोहरा होनेका भाव । द्विधा - अ० [सं०] दो प्रकार से; दो भागों में । द्विरागमन - पु० [सं०] पुनरागमन; विवाह के बाद वधूका पति के घर आना, गौना ।
द्विरुक्त - वि० [सं०] जो दो बार कहा या लिखा गया हो,
दो बार कथित; जो दो प्रकार से कहा गया हो; अनावश्यक । द्विरुक्ति - स्त्री० [सं०] दो बार कहने या उल्लेख करनेकी क्रिया, दो बार कहना |
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द्विरूढा-धक्का द्विरूढा-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसने पूर्व पतिके मरने निक सिद्धांत जो जीव और ब्रह्म तथा भूत और चिच्छक्ति
आदिपर दूसरेको अपना पति स्वीकार कर लिया हो। में भेद मानता है । वेदांतको छोड़कर शेष पाँचों आस्तिक द्विविद-तु० [सं०] सुग्रीवका एक मंत्री।
दर्शन इसी सिद्धांतके पोषक हैं। -वादी(दिन)द्वीप-पु० [सं०] स्थलका वह भाग जिसके चारों ओर पानी पु० तिवादको माननेवाला।
हो। पुराणोंके अनुसार जंबू आदि बड़े भूभागोंमेंसे हर एक। द्वत्रिज्य-पु० [सं०] (सेक्टर ऑफ ए सरकिल) वह आकृति द्वीपांतरण-पु० [सं०] (ट्रांसपोटें शन) भारी अपराध करने- जो दो त्रिज्याओं और उनके बीच पड़नेवाले चापसे घिरी वाले किसी बंदीको समुद्रके उस पार किसी अन्य स्थान रहती है। या द्वीपमें रखनेके लिए भेज देना। (भारतमें ऐसे बंदी द्वैध-पु० [सं०] दो प्रकारका होनेका भाव; भिन्नता; परअब बाहर नहीं भेजे जाते।)
स्पर विरुद्ध होनेका भाव; राजनीति में दुरंगी नीति बरद्वेष-पु० [सं०] चित्तका वह भाव जो अप्रिय वस्तु या तनेका गुण:संदेह । -शासनप्रणाली-स्त्री० वह शासनव्यक्तिका नाश करनेकी प्रेरणा करता है, रागका विरोधी पद्धति जिसमें सत्ता दो वर्गों में विभक्त हो। भाव; शत्रुता, वैर ।
द्वैधीकरण-पु० [सं०] दो भागों में बाँटना । द्वेषी(पिन्)-वि० [सं०] द्वेष-भाव रखनेवाला । पु० शत्रु। द्वैधीभाव-पु० [सं०] दे० 'वैध'; निश्चयका अभाव । द्वेष्य-वि० [सं०] द्वष करने योग्य । पुरुषका पात्र; शत्रु । द्वैपायन-पु० [सं०] महाभारत, पुराणों आदिके रचयिता _ *-वि० दो दोनों।
वेदव्यास । इनका जन्म एक द्वीपमें हुआ था इसीसे इनका द्वैक*-वि० दो-एक ।
यह नाम पड़ा। द्वैगुणिक-वि० [सं०] जो दूना ब्याज ले । पु० शत-प्रति- द्वैमातुर-पु० [सं०] गणेश; जरासंध । वि०जिसके दो शत सूद लेनेवाला महाजन ।
माताएँ हों। द्वैज*-स्त्री० द्वितीया, दूज ।
द्वैराज्य-पु० [सं०] (कंडोमीनियम) दुराज, दो-अमली; द्वैत-पु० [सं०] दो होनेका भाव; जोड़ा, युगल; भेद- दो राजाओं में विभक्त देश । भावना दूतवाद; अशान, मोह । -वाद-पु. एक दार्श-! द्वी*--दोनों।
ध-देवनागरी वर्णमालाका १९वाँ व्यंजन वर्ण । (धउरहरी-पु० दे० 'धौरहर'। धंका-पु० धक्का; आघात, चोट ।
धक-स्त्री० हृदयका सवेग स्पंदन, दिलकी जोरकी धड़कन धंध*-पु० बखेड़ा, झंझट, झमेला ।
* उमंग, उल्लास । * अ० एक-ब-एक, सहसा । -पकधंधक-पु० जंजाल, झंझट ।
स्त्री० दे० 'धकधकी'; भय । अ० बरत हुए। धंधरक*-पु० दे० 'धंधक' । -धोरी-पु० दुनियाके धकधकना-अ० क्रि० दे० 'धकधकाना' । जंजालमें लगा रहनेवाला।
धकधकाना-अ० क्रि० भय, घबड़ाहट आदिके कारण धुंधला-पु० छल-कपट ढोंग ।
कलेजेका तेजीसे धड़कना; * धधकना; चमकना। धुंधलाना-अ० क्रि० ढोंग करना; छल करना ।
धकधकाहट-स्त्री० धकधकानेकी क्रिया, धड़कन । धंधा-पु० काम-काज; पेशा, रोजगार, व्यवसाय । | धकधकी-स्त्री० धड़कन; धुकधुकी; खटका, अंदेशा ।मु०धंधार*-स्त्री० ज्वाला।
धरकना*-दिल धड़कना, सहसा आशंका उत्पन्न होना। धंधारि*-स्त्री० दे० 'धंधारी'।
धकपक-स्त्री० धड़कन, भय । धंधारी-स्त्री० गोरखधंधा
धकपकाना-अ० क्रि० भय खाना; आतंकित होना। धंधोर-स्त्री० ज्वाला, आगकी लपट; होली ।
धकपेल-स्त्री० धक्कमधक्का, रेलपेल । धुवना*-स० कि० धौंकना।
धका*-पु० धक्का, झोका; आघात ।-धूम-स्त्री० रेलपेल; धंसन-स्त्री० फँसनेकी क्रिया या ढंग।
चढ़ाऊपरी। -पेल-स्त्री० दे० 'धकपेल'। धंसना-अ० क्रि० किसी कड़ी या नुकीली वस्तुका दबाव धकाना*-स० क्रि० जलाना, दहकाना । पाकर भीतर घुसना, गड़ना; पैठना, प्रवेश करना, भीतर धकारा*-पु० धकधकी; खटका, अंदेशा । घुसना; नीचेकी ओर दब जाना या बैठ जाना; उतरना; धकियाना-स० क्रि० धक्का देना, ढकेलना। नीचे खसकना; * नष्ट होना; तबाह होना।
धकेलना-स० क्रि० ढकेलना, धक्का देना । धंसनि*-स्त्री० दे० 'धंसन'।
धकैत-वि० धक्का देनेवाला। धंसान-स्त्री० धंसनेको क्रिया या ढंग; ऐसी धरती जिसमें धक्कमधक्का-पु० भारी भीड़में मनुष्योंका परस्पर बहुत पाँव फंसें, दलदल; ढालू जमीन ।
___ अधिक धक्का देना ठेलाठेल, रेलपेल । धंसाना-स० क्रि० किसी कड़ी या नुकीली वस्तुको जोर धक्का-पु० वह दबाव जो किसी वस्तु या व्यक्तिको किसी देकर भीतर घुसाना, गाड़ना; प्रविष्ट कराना, पैठाना; स्थानसे दूसरी ओर हटानेके लिए उसपर डाला जाय; दो नीचेकी और उतारना।
वस्तुओं या व्यक्तियों में एकके दूसरेसे या दोनोंके परस्पर धंसाव-पु० दे० 'धंसान' ।
वेगपूर्वक गमनक्रियासे छू जाने या टकरा जानेसे एक या
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दोनों के प्रति होनेवाला आघात, टक्कर; हानि, घाटा; विपत्तिः कष्टका आघात, मार्मिक पीड़ा। -मुक्की - स्त्री० वह लड़ाई जिसमें दो व्यक्ति एक दूसरेको धक्का दें और घूँसोंसे मारें । गु० - खाना धक्का सहना, अपमानित होना; भटकते रहना ।
धक्काड़ - वि० जिसकी धाक खूब जमी हो ।
धगड़-पु० उपपति, जार। -बाज़ - वि० स्त्री० कुलटा । धगड़ा- पु० उपपति, जार ।
धगड़ी - स्त्री० व्यभिचारिणी स्त्री ।
धगधागना * - अ० क्रि० (दिल) धड़कना ।
धगरिन - स्त्री० बच्चोंका नाल काटनेवाली स्त्री, चमाइन जो बच्चोंका नाल काटती है ।
धगरी* - स्त्री० व्यभिचारिणी या पतिकी मुँहलगी स्त्री । धगा * -- पु० धागा, डोरा, सूत । धचका- ५० धक्का, झोंका ।
धज - स्त्री० बनावसिंगार; तड़क-भड़का बैठने-उठने आदि का ढंग; मोहक चाल; शक्ल-सूरत । [ इसका प्रयोग प्रायः 'सज' शब्द के साथ होता है - (सजधज ) ] ।
धजा - स्त्री० दे० 'ध्वजा'; कपड़ेकी धज्जी; धज ।
धजीला - वि० धजवाला, सजीला ।
धजी - स्त्री० कपड़े, कागज आदिका लंबा, पतला टुकड़ा । मु० धज्जियाँ उड़ना-कट या फटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाना। - उड़ाना - चीर या फाड़के टुकड़े-टुकड़े कर देना; पूर्णत: खंडन करना ।
धड़ंग - वि० नंगा (प्रायः 'नंग' के साथ प्रयुक्त) | धड़ - ५० शरीरका कमर से गलेतकका भुजा-रहित भाग; सिर, हाथ, पैर, पूँछ और पंखको छोड़कर पशु-पक्षियोंके शरीरका शेष भाग; वृक्षका जमीन के ऊपर से वहाँतकका भाग जहाँसे शाखाएँ फूटती है, तना; 'घड़ की आवाज (इसका प्रयोग प्रायः 'से' के साथ होता है) । -से- 'धड़' शब्द के साथ; बेखटके; बिना रुके, जल्दी से । धड़क स्त्री० हृदयका स्पंदन; खटका, हिचक, रुकावट । धड़कन - स्त्री० हृदयका स्पंदन, कलेजे की धकधक । घड़कना - अ० क्रि० हृदयका स्पंदन करना; जीका 'धककरना; 'घड़-घड़' शब्द उत्पन्न करना । धड़का - पु० हृदयकी धड़कन; खटका, आशंका; गिरने आदिका शब्द चिड़ियोंको डराकर भगानेका पुतला | धड़काना - स०क्रि० धड़क पैदा करना; मनमें खटका या आशंका उत्पन्न करना; किसी भारी वस्तुको फेंक या गिराकर अथवा छोड़कर शब्द उत्पन्न करना । धड़बड़ाना-- अ० क्रि० 'घड़-घड़' शब्द उत्पन्न करना या होना । धड़ल्ला - पु० धड़ाका, वेंगसे गिरने आदिकी आवाज । - (ले) से - बेखटके, बेधड़क
घड़वाई - पु० घड़ा करनेवाला, तौलनेवाला ।
घड़ा - पु० बाट; वजन; चार या पाँच सेरकी एक तोल; तराजू; पसँग दल | बंदी - स्त्री० धड़ा करना या बाँधना; दलबंदी; युद्ध के लिए प्रस्तुत दो दलोंका अपना सैन्यवल बराबर करना । मु०-उठाना - तौलना । - करना - किसी वस्तुको बरतन सहित तौलनेके पूर्व तराजू के एक पलड़े पर बरतन और दूसरेपर बाट आदि
धक'
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धक्काड़-धन
रखकर पलड़ोंको बराबर करना । धड़ाका-पु० किसी चीजके जोरसे गिरने आदिसे उत्पन्न होनेवाला घोर शब्द । - (के) से फुर्ती से, चटपट । धड़ाधड़ - अ० लगातार 'घड़-धड़' शब्द करते हुए; जल्दीजल्दी, बिना रुके ।
धड़ाम - पु० जमीन, पानी आदिपर जोरसे गिरने, कूदने आदिकी आवाज । -से-एकबारगी ।
घड़ी - स्त्री० एक वजन जो पाँच सेर और कहीं-कहीं दस सेरका होता है; पाँच सौ रुपयेकी रकम; लकीर; होंठोंपर पड़नेवाली भिस्सी या पानकी लकीर; कपड़ेका किनारा या झालर | मु० - जमाना, - लगना - होंठोंपर मिस्सीकी तह जमना । - घड़ी ( करके ) लूटना - सब कुछ लूट लेना । ( घड़ियों - बहुतायतसे) ।
धत - स्त्री० बुरी आदत, लत । धतकारना - स० क्रि० दुतकारना; धिक्कारना ।
धता- वि० गया हुआ, छटा हुआ। मु०- करना - हटाना, भगाना। - बताना - चलता करना; टाल देना । धतूर* - पु० तुरहीकी तरहका एक बाजा, सिंगा; + दे० 'धतूरा' ।
धतूरा -५० एक प्रसिद्ध विषैला पौधा या उसका फल | मु० - खाये फिरना - पागल बना घूमना । धतूरिया - पु० पथिकों पर धतूरेका प्रयोग करनेवाला ठगों का
दल ।
धत्-अ० दुतकारने, धिक्कारनेका शब्द | धत्तूर, धत्तरक - पु०, धत्तरका - स्त्री० [सं०] धतूरा | aas - स्त्री० धधकनेकी क्रिया या भाव; लपट, लौ । धधकना - अ० क्रि० आगका इस प्रकार जलना कि उसमें से ऊँची लपटें उठें, धायँ धायें जलना । धधकाना - स० क्रि० आगमें लपट पैदा करना; दहकाना । धधाना। - अ० क्रि० दे० 'धधकना' |
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धनंजय - पु० [सं०] अर्जुन; शरीर में रहनेवाली पाँच वायुओं में से एक; अग्नि; अर्जुन नामक वृक्ष; विष्णु । धन* - वि० जिसमें (कुछ) जोड़ा जाय, (अमुक संख्या से ) युक्तः दे० 'धन्य' । स्त्री० युवती; स्त्री; नायिका । पु० [सं०] ऐहिक सुखके साधनभूत द्रव्य, भूमि आदि, वित्त, संपत्ति; पूँजी; गोधन; लूटका माल; पुरस्कार; प्रिय व्यक्ति, स्नेहभाजन; गणित में योगका चिह्न; कुंडली में लग्नसे दूसरा स्थान । - कुबेर- पु० वह व्यक्ति जो कुबेरके समान धनी हो, जिस व्यक्तिके पास प्रचुर धन हो । - तेरस - स्त्री० [हिं०] कार्त्तिक कृष्णा त्रयोदशी । -दवि० धन देनेवाला; उदार । पुण्उदार व्यक्ति; कुबेर । -ददिशा - स्त्री० उत्तर दिशा । -धान्य- पु० रुपया-पैसा, अन्न आदि । -धाम-पु० रुपया-पैसा और घर-बार । - धारी (रिन्) - पु०कुबेर; बहुत बड़ा धनी । - नाथ- पु० कुबेर । - पक्ष-पु० (क्रेडिट साइड) हिसाब या खातेका वह पक्ष (पार्श्व ) जिसमें बाहर से आनेवाले या बिक्री आदिके कारण अन्य लोगों से मिलनेवाले रुपयोंका ब्यौरा लिखा जाता है; रोकड़बही आदिके पृष्ठका जमावाला ( बायीं तरफका ) हिस्सा । - पति - पु० कुबेर; खजांची । -पिशाच पु० दे० 'अर्थ-पिशाच' । - प्रयोग - पु० लाभकी इच्छासे
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धनकुट्टी - धमधमाना
किसी व्यापार में धन लगाना; सूदपर रुपया देना । - प्रेषणादेश - पु० ( मनीआर्डर) डाकखानेका एक तरहका चेक या धनादेश जिसके जरिये अन्यत्र स्थित व्यक्तिके पास रुपया भेजा जाता मनीआर्डर । -मद- पु० धनका गर्व । - विद्युदणु - पु० (प्रोटॉन) धन विद्युत्शक्तिकी वह इकाई जो परमाणुका मध्य बिंदु मानी जाती है। और जिसके चारों ओर ऋण विद्युदणु चक्कर लगाते हैं । - विधेयक - पु० (मनी बिल) संसद या विधानसभा आदि में पुरःस्थापित किया जानेवाला वह विधेयक जिसका उद्देश्य राज्यकी आय बढ़ाना अथवा धन-संबंधी अन्य माँग स्वीकृत कराना हो; दे० 'वित्तविधेयक' । - शाली ( लिनू ) - वि० धनवाला, जिसके पास धन हो, धनी । - स्थान - पु० कुंडली में लग्नसे दूसरा स्थान । - स्वामी (मिन्) - पु० कुवेर । - हर - वि० धन हरण करनेवाला। ५० चोर; उत्तराधिकारी । -हीन- वि० निर्धन, दरिद्र । धनकुट्टी - स्त्री० धान कूटने की क्रिया; धान कूटनेका औजार । धनवंत * - वि० धनवान् ।
धनवान् (वत्) - वि० [सं०] धनवाला, धनी । धना - * स्त्री० युवती; वधू । + पु० धनिया । धनाढ्य - वि० [सं०] धनवान्, दौलतमंद | धनादेश - पु० [सं०] (चेक) किसी बैंक ( अधिकोष )को, जिसमें किसी व्यक्तिका हिसाब हो, दिया गया इस आशयका लिखित आदेश कि वाहकको या नामनिर्देशित व्यक्तिको आदेशमें उल्लिखित रकम, उसके हिसाब से, दे दी जाय; (मनीऑर्डर) दे० 'धनप्रेषणादेश' । धनाधिप - पु० [सं०] कुबेर । धनाध्यक्ष - पु० [सं०] कुबेर; खजांची । धनार्थी (र्थिन् ) - पु० [सं०] धन चाहनेवाला । धनि* - स्त्री० युवती; वधू । वि० धन्य । - धनि* - अ०
|
धन्य धन्य ।
धनिया - स्त्री० एक प्रसिद्ध मसाला । * युवती; वधू, स्त्री । धनी, धनीका - स्त्री० [सं०] युवती स्त्री । धनी (निन्)-वि० [सं०] धनवाला, दौलतमंद, कुशल, सिद्धहस्त - जैसे 'कलमका धनी' । पु० धनवान् मनुष्य; उत्तमर्ण; किसी वस्तुका स्वामी ( बातका धनी-दे० 'बात' में।) - मानी (निन्) - वि० धनवान् और प्रतिष्ठित । धनु - पु० [सं०] धनुष; धनुर्धर; मेष आदि बारह राशियोंमेंसे एक; एक लग्न | - कार* - पु० धनुर्धर । धनुआ - ५० रुई धुननेका औजार; धनुष् । धनुई+- - स्त्री० दे० 'धनुही' | धनुक * - पु० धनुष्; इंद्रधनुष् ।
धनुर् - पु० [सं०] 'धनुस' का समासमें प्रयुक्त रूप । -गुण- पु० प्रत्यंचा, धनुष्की डोरी । -धर- पु० धनुष धारण करनेवाला; वह व्यक्ति जो धनुर्विद्या जानता हो,
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तीरंदाज । - धारी (रिन् ) - वि० जो धनुष धारण करे । पु० दे० 'धनुर्धर' । - यज्ञ-पु० एक यज्ञ जिसे सीता के लिए वर चुननेके निमित्त जनकने किया था; एक यज्ञ जिसे कृष्णको धोखा देनेके लिए कंसने किया था । -विद्या- स्त्री० तीर चलानेकी विद्या, बाणविद्या, तीरंदाजी । - वेद- पु० यजुर्वेदका उपवेद जिसमें मुख्यतः धनुर्विद्याका और अंशत: अन्य शास्त्रोंका वर्णन है । धनुष (स् ) - पु० [सं०] तीर चलानेका एक प्रसिद्ध साधन । - आकार - वि०धनुष्के आकारका, आकार में धनुष जैसा । - कार - पु० धनुष बनानेवाला । -कोटि- पु० धनुष्का छोर; एक तीर्थ | -पाणि- वि० जिसके हाथमें धनुप् हो । धनुहाई * - स्त्री० धनुष्की लड़ाई, बाणयुद्ध । धनुहिया - स्त्री० दे० 'धनुही' |
धनुही* - स्त्री० छोटा धनुष् जिससे लड़के खेलते हैं । धनेश, धनेश्वर - पु० [सं०] कुबेर; खजांची; विष्णु । धनैषणा - स्त्री० [सं०] धनकी इच्छा ।
धनैषी (पिन) - वि० [सं०] धन चाहनेवाला | धोष्मा ( मन ) - स्त्री० [सं०] धनकी गरमी । धन्ना - पु० धरना, किसी बात के लिए अड़कर बैठना । धन्नासेठ - पु० बहुत धनी मनुष्य ।
धन्यं मन्य - वि० [सं०] अपनेको धन्य, भाग्यशाली मानने
वाला ।
धन्य- वि० [सं०] कृतार्थ; प्रशंसनीय; पुण्यात्मा, सुकृती; भाग्यशाली । अ० साधुवाद देनेके लिए बोला जानेवाला एक शब्द | -वाद- पु० 'धन्य धन्य' कहना, साधुवाद; वाहवाही; कृतज्ञताप्रकाश । अ० कृतज्ञता प्रकट करनेका एक शब्द |
धन्या - स्त्री० [सं०] धात्री; पली । वि० स्त्री० प्रशंसनीया, भाग्यशालिनी; पुण्यवती (स्त्री) ।
|
धनिक-वि० [सं०] धनवान्, धनी । पु० धनाढ्य मनुष्य ऋणदाता उत्तमर्ण; स्वामी, पति । - तंत्र - पु० ( प्लूटार्क) वह शासन व्यवस्था जिसमें धनिक वर्गका प्राधान्य हो । - लोकतंत्र - पु० ( प्लुटोक्रेटिक डिमोक्रेसी) वह 'लोकतंत्र' जिसमें शासनसत्ता प्रायः धनिकोंके ही प्रतिनिधियों के हाथ में हो ।
धन्वंतरि - पु० [सं०] देववैद्य जो चौदह रत्नोंमेंसे हैं । धन्वा ( न्वन् ) - पु० [सं०] चाप, धनुषु । धन्वाकार- वि० [सं०] धनुष्के आकारका । धन्वी ( न्विन् ) - वि० [सं०] जिसने धनुप् धारण किया हो; धूर्त ; विदग्ध । पु० धनुर्धर; अर्जुन; विष्णु शिव । धपना - अ० क्रि० वेगसे आगे बढ़ना, झपटना । धप्पा- पु० थप्पड़, तमाचा; टोटा, नुकसान | धब्बा - पु० किसी वस्तुपर पड़ा हुआ भद्दा और बेमेल चिह्न, दाग; कर्डक; ऐव, दोष | मु० - लगाना - कलंकित करना । धम - स्त्री० किसी भारी वस्तुके गिरने या पृथिवी, छत आदिपर दबाव डालते हुए चलनेसे होनेवाला शब्द । -से-दे० 'धड़ाम से ।
धमक- स्त्री० दे० 'धर्म'; भारी वस्तुके आधात या चलने, दौड़नेसे उत्पन्न कंप |
धमकना - अ० क्रि० 'धर्म' शब्द उत्पन्न करते हुए गिरना; रुक-रुककर पीड़ा देना; प्रहार करना; झपटना । स० क्रि० हथिया लेना । मु० धमक पड़ना ( या आ धम कना) - वेगसे आ पहुँचना, चटपट आ जाना | धमकाना - स० क्रि० धमकी देना, डराना, घुड़कना । धमकी- स्त्री० धमकानेकी क्रिया, घुड़की । धमधमाना - अ० क्रि०, स० क्रि० 'धम धम' शब्द होना
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या करना ।
धमधूसर - वि० मोटा और बेडौल (आदमी) । धमना - स० क्रि० धौं कना; हवा भरना ।
धमनि, धमनी - स्त्री० [सं०] नाडी, सिरा; गरदन; फुंकनी । धमसा - पु० दे० 'धौंसा' ।
धमाका - पु० भारी वस्तुके गिरनेका गंभीर शब्द । धमाचौकड़ी - स्त्री० उछल-कूद, कूद- फाँद |
धमाधम - अ० लगातार 'धम धम' शब्द के साथ । धमार, धमाल - पु० फागका एक भेद (संगीत) । स्त्री० उपद्रव; उछल-कूद; कलाबाजी । धमारिया - वि० उपद्रव, उछल-कूद मचानेवाला; कला बाज | पु० धमार गानेवाला ।
धमारी - वि० धमाचौकड़ी मचानेवाला । * स्त्री० होलीकी क्रीड़ा ।
धयना* - अ० क्रि० दौड़ना, धावा मारना - 'ये सुजानक संग धये धरि धीर हैं' - सुजानच० । धरता* - वि०, पु० धारण करनेवाला । घर - वि० [सं०] धारण करनेवाला, ग्रहण करनेवाला ( सभासमें) । पु० पर्वत; कूर्मराज; घड़, शरीर । स्त्री० [हिं०] धरने, पकड़नेको क्रिया; * पृथिवी । धर* - पु० दे० 'धराधर' । स्त्री० दे० ' घड़घड़' । - पकड़ - स्त्री० गिरफ्तारी ।
धमधूसर - धर्म
घरवाना - स० कि० 'धरना' का प्रेरणार्थक रूप । धरपना * - स० क्रि० दबाना, दमन करना, पराभव करना; राना; चूर्ण करना; फाड़ना । अ० क्रि० दब जाना । धरसना - अ० क्रि० दब जाना, आक्रांत हो जाना; डरना, सहम जाना । स० क्रि० दबाना; डाँटना । धरसनी* - स्त्री० दे० 'घर्षणी' ।
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धरहर* - स्त्री० बीचमें पड़कर लड़ने-झगड़नेवालोंको लड़ाईसे विरत करना; बचाव, रक्षा; धैर्य, धीरज । धरहरना * - अ०क्रि० 'घड़-घड़' शब्द करना, घड़घड़ाना । धरहरा - पु० मीनार, धौरहर । धरहरिया - पु० वह जो बीचमें पड़कर लड़ने-झगड़नेवालोंको लड़ाईसे विरत करे; बीच-बचाव करनेवाला; रक्षक; + बीच-बचाव; * दृढ विश्वास, निश्चित मति । धरा - स्त्री० धड़ा, चार सेरकी एक तौल; तौलकी बराबरी, वाट; [सं०] पृथ्वी, धरती, जमीन; गर्भाशय; मज्जा । - तल-पु० पृथ्वी की सतह; पृथ्वी क्षेत्रफल । -धरपु० शेषनाग पर्वत; विष्णुः राजा - धरन * - पु० दे० 'धराधर' । - धार - पु० शेषनाग । - पति-पु० राजा; विष्णु । - पुत्र- पु० मंगल ग्रह; नरकासुर । -शायी ( यिनू ) - वि० धरतीपर सोया, गिरा हुआ; युद्धमें निहत । - सुर- पु० ब्राह्मण |
।
धराऊ - वि० जो सुरक्षित रखा रहे और विशेष अवसरोंपर ही काममें लाया जाय ।
धरक * - स्त्री० दे० 'धड़क' |
धरकना* - अ० क्रि० दे० 'धड़कना' ।
धरका * - पु० दे० 'धड़का' |
धरकार - पु० बाँसकी डलिया आदि बनानेवाली एक जाति । धरणि, धरणी - स्त्री० [सं०] पृथ्वी; शहतीर; नस, नाड़ी । - ज, पुत्र, - सुत - पु० मंगल ग्रह; नरकासुर । -जापुत्री, सुता - स्त्री० जनककी पुत्री सीता। - घर - पु० महाकच्छपः शेषनाग पर्वत; विष्णुः राजा; एक हस्ती जो पृथ्वीका धारण करनेवाला माना जाता है। पति-पु० राजा । - भृत् - पु० शेषनाग पर्वत; विष्णु; राजा । धरता - पु० धारण करनेवाला; ऋणी, कर्जदार | धरती - स्त्री० पृथ्वी; भूमंडल, संसार । धरधरा* - पु० धकधकी, धड़कन । धरधराना - अ० क्रि० दे० 'घड़घडाना' । धरन - स्त्री० धरनेकी क्रिया या ढंग; गर्भाशय या उसका आधार; हट; शहतीर । पु० दे० 'धरना' | धरना-स० क्रि० पकड़ना, थामना; रखना, स्थापन करना; धारण करना, पहनना; पास रखना, (किसीकी) देखरेख में रखना; ग्रहण करना; सहायक बनाना, (किसीका) पल्ला पकड़ना; रखेलीकी भाँति रख लेना; गिरवी या बंधक रखना; पक्का करना, ठहराना । ५० प्रार्थना या माँग पूरी न होनेतक किसीके यहाँ अड़कर बैठना । धरनि - स्त्री० दे० 'धरणी'; + शहतीर ।
धरनी - स्त्री० दे० 'धरणी'; शहतीर; * टेक - 'हिये घर चातककी धरनी' - कविता० ।
धरनेत - पु० धरना देनेवाला ।
धरम * - पु० दे० 'धर्म' । -सार- ५०, स्त्री० धर्मशाला धतूर- पु० [सं०] धतूर । सदावर्त ।
धराक, धराका * - - पु० धड़ाकेकी आवाज । धरात्मज - पु० [सं०] मंगल ग्रह; नरकासुर । धरात्मजा - स्त्री० [सं०] सीता । धराधिप, धराधिपति-पु० [सं०] राजा, भूपति । धराधीश - पु० [सं०] राजा, भूपति । धराना-स० क्रि० पकड़ाना, थमाना; निश्चित कराना । धराहर- ५० दे० 'धरहरा' । धरित्री - स्त्री० [सं०] पृथ्वी ।
धरी - स्त्री० चार सेरकी एक तौल; उपपत्नी ।
धरुण - पु० [सं०] ब्रह्म स्वर्ग; पानी; मत, राय; वह स्थान जहाँ कोई वस्तु सुरक्षित रखी जाय; अग्नि; दूध पीनेवाला बछड़ा टेक, सहारा; हौज; ध्ढ़ धरती ।
धरेचा, धरेला - पु० उपपति, बिना ब्याह किये पतिरूपमें स्वीकार किया हुआ पुरुष ।
धरेजा - पु० किसी स्त्रीको रखेली बनाकर रखना । स्त्री० रखेली ।
धरेल, धरेली - स्त्री० रखेली, उपपत्नी । घरेश - पु० [सं०] राजा, भूपति । घरेस - पु० दे० 'धरेश' ।
धरैया । - ५० धरनेवाला, पकड़नेवाला; शेषनाग | धरोहर - स्त्री० वह वस्तु या द्रव्य जो कुछ समय के लिए किसी दूसरे के पास इस विश्वाससे रखा गया हो कि माँगनेपर पुनः उसी रूपमें मिल जायगा, थाती, अमानत । धरौवा - - पु० उपपत्नी रखनेकी चाल ।
धर्ता (ं) - पु० [सं०] धारण करनेवाला, टेकनेवाला ।
धर्म - पु० [सं०] अभ्युदय और निःश्रेयसका साधनभूत वेद
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धर्म- धर्माभास
विहित कर्म (जैसे यश ); एक प्रकारका अदृष्ट जिससे स्वर्गकी प्राप्ति होती है (मीमांसा); लौकिक, सामाजिक कर्तव्य; वह कर्म जिसे वर्ण, आश्रम, जाति आदिकी दृष्टिसे करना आवश्यक हो ( इसके पाँच भेद हैं- (१) वर्णधर्म, (२) आश्रमधर्म, (३) वर्णाश्रम धर्म, (४) गौण धर्म तथा (५) नैमित्तिक धर्म); उपमेय और उपमान दोनों में रहनेवाला साधारण गुण; ऋषि, मुनि या आचार्य द्वारा निर्दिष्ट वह कृत्य जिससे पारलौकिक सुख प्राप्त हो; किसी वस्तु या व्यक्तिमें सदा बनी रहनेवाली सहज वृत्ति, स्वभाव, प्रकृति; ईश्वर या सद्गतिकी प्राप्तिके लिए किसी महात्मा या पैगंबर द्वारा प्रवर्तित मतविशेष; आप्त, आचार्य, राजा या सरकार द्वारा निर्दिष्ट लोकव्यवहार-संबंधी नियम; पुण्य; निष्पक्षता; औचित्यः सत्संग; तरीका, ढंग; यमराज; आचार; याग; अहिंसा; उपनिषद्ः न्याय; धनुष्; सोमपायी; आत्मा; कुंडली में लग्न से नवाँ स्थान; [हिं०] ईमान । - क्षेत्र - पु० भारतवर्ष जो धर्मोपार्जनकी कर्मभूमि माना गया है; कुरुक्षेत्र । - ग्रंथ - पु० धर्मविशेषका आधारभूत ग्रंथ, वह ग्रंथ जिसमें किसी धर्मसे संबद्ध शिक्षाएँ दी गयी हो । - वड़ी - स्त्री० [हिं०] ऐसी जगह टॅगी घड़ी जिसे सभी लोग देख सकें । - चक्र - पु० धर्मसंघ; बुद्धदेव; बुद्धकी शिक्षा; एक अस्त्र जो प्राचीन कालमें प्रयुक्त होता था । - चरण - पु०, -चर्या - स्त्री० धर्मका पालन या आचरण । - चिंतन- पु०, चिंता - स्त्री० धार्मिक विषयोंका मनन । -ज-पु० प्रथम औरस पुत्र; युधिष्ठिर; एक बुद्ध । वि० धर्मसे उत्पन्न । - जन्मा ( न्मन् ) - पु० युधिष्ठिर । - ज्ञ-पु० बुद्धदेव । वि० जिसे धर्मके स्वरूपका ज्ञान हो । - तंत्र - पु० (थियोक्रेसी) वह शासनव्यवस्था जिसमें राज्यका कार्य ईश्वर या धर्मके नामपर पुरोहितों, धर्माध्यक्षों आदि द्वारा ही संचालित हो । - ध्वज, - ध्वजी ( जिन्) - ५० वह जिसने धार्मिकता का ढोंग रचा हो, पाखंडी । -नंदन- पु० युधिष्ठिर । - निरपेक्ष राज्य- पु० (सेक्यूलर स्टेट) वह राज्य जिसकी सरकारी नीति धर्मके मामलेमें निरपेक्ष या तटस्थ रहने की हो, असांप्रदायिक राज्य, लौकिक राज्य । - निष्ट-वि० जो धर्ममें आस्था रखता हो, धर्मपरायण । निष्ठा - स्त्री० धर्ममें आस्था, विश्वास । - पत्नी - स्त्री० धर्मशास्त्र के नियमोंके अनुसार ब्याही हुई स्त्री । - पर- वि० धर्मपरायण - परायण - वि० धर्म में निष्ठा रखनेवाला । -पितापु० (गॉड फादर) वह व्यक्ति जो बपतिस्मा लेनेपर किसी बच्चेको धर्मकी शिक्षा देनेकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ( ईसाई); पितृ - कर्तव्यका पालन करनेवाला या पितृतुल्य व्यक्ति । - पीठ-पु० धर्मका मुख्य स्थान; वह स्थान जहाँ धर्मकी व्यवस्था दी जाय; काशी । - पुत्र- पु० युधिष्ठिर; धार्मिक भावनासे उत्पन्न किया हुआ पुत्र - पुस्तक - स्त्री० 'धर्मग्रंथ' । - बुद्धि-स्त्री० धर्मकी और प्रवृत्त बुद्धि; धर्म-अधर्मका विवेक करनेवाली बुद्धि । वि० जिसकी बुद्धि धर्मकी और प्रवृत्त हो। -भगिनी - वि० वह स्त्री जो धर्मके नाते बहिन लगे; गुरुकन्या । - भीरुवि० जिसे धर्म छूटने का भय बना हो; जो अधर्मसे डरता हो । - युग - पु० सत्ययुग । - युद्ध - ५० वह युद्ध
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३८०
जिसमें किसी प्रकारका अन्याय या छल-कपट न हो, न्यायपूर्ण युद्ध । - राइ, राय* - पु० दे० 'धर्मराज' | - राज- ५० युधिष्ठिरः यमराजः बुद्धदेवः राजा । - लुप्तोपमा- स्त्री० उपमालंकारका एक भेद । -वत्सल - वि० जिसे धर्म प्यारा हो । - वाहन - पु० शिव; धर्मराजका वाहन - भैसा । - विद्- वि० धर्मश । - वीर- पु० वह जिसे धर्मपालनके प्रति इतना अदम्य उत्साह हो कि किसी भी स्थिति में अपने धर्म से न डिगे । - शाला- स्त्री० वह स्थान जहाँ धर्मार्थ अन्नादि बँटता हो, धर्मसत्र न्यायालय; यात्रियोंके निःशुल्क ठहरने के लिए बनवाया हुआ स्थान । - शास्त्र - पु० वह आप्त ग्रंथ जिसमें मनुष्य के कर्तव्याकर्तव्य, दायविधान आदिकी व्यवस्था हो (मनु, याज्ञवल्क्य आदिकी स्मृतियाँ) | - शास्त्री (त्रिन्) - पु० धर्मशास्त्रका पंडित । - शीलवि० जो धर्मके अनुसार आचरण करे; जो धर्मानुष्ठानमें बराबर लगा रहे । - संगीति- स्त्री० धर्म संबंधी वादविवादः बौद्धों का धर्मसम्मेलन जो बुद्धकी मृत्यु के बाद धार्मिक विषयोंपर विचार के लिए तीन बार हुआ था । -संहितास्त्री० वह ग्रंथ जिसमें धार्मिक विषयोंका प्रतिपादन हो । - सभा - स्त्री० न्यायालय, कचहरी । -सार-पु० उत्तम, पुण्य कर्म । - सारी* - स्त्री० धर्मशाला । - स्व-पु० (एंडामेंट्स) किसी मंदिरादिका खर्च चलाने या किसी धार्मिक कृत्यादिके निर्वाहार्थं स्थायी व्यवस्था करनेके उद्देश्य से दी गयी संपत्ति, धर्मोत्तरसंपत्ति । मु० - बिगाड़ना - किसीका धर्म नष्ट करना, किसीको धर्मच्युत करना; स्त्रीका सतीत्व नष्ट करना । - रखना- धर्मच्युत होनेसे बचना या बचा लेना ।
धर्मतः - अ० [सं०] धर्मके अनुसार; धर्मको साक्षी देकर । धर्मांतर - पु० [सं०] अन्य धर्म |
धर्मांध - वि० [सं०] स्वधर्म में अंधश्रद्धा और दूसरे धर्मोको प्रति द्वेषका भाव रखनेवाला; धर्मके नामपर लड़नेवाला । धर्माचरण - पु० [सं०] धार्मिक या पुण्य कार्य करना; धर्मके अनुसार आचरण करना ।
धर्माचार्य - पु० [सं०] धर्मकी शिक्षा देनेवाला गुरु । धर्मात्मज - पु० [सं०] युधिष्ठिर ।
धर्मात्मा (त्मन्) - वि० [सं०] धर्मनिष्ठ, धर्मशील, धार्मिक धर्मादा-पु० धर्मार्थ निकाला हुआ धन । धर्माधर्म-पु० [सं०] धर्म और अधर्म | धर्माधिकरण - पु० [सं०] न्यायालय; न्यायाधीश । धर्माधिकरणिक- पु० [सं०] धर्म-अधर्मका निर्णय करनेवाला राजकर्मचारी, न्यायाधीश, विचारक ।
धर्माधिकार - पु० [सं०] धार्मिक कृत्योंका निरीक्षण;न्यायव्यवस्था; न्यायाधीशका पद । धर्माधिकारी (रिन्) - ५० [सं०] दे० 'धर्माधिकरणिक' | धर्माधिकृत - पु० [सं०] दे० 'धर्माध्यक्ष' । धर्माधिष्ठान - पु० [सं०] न्यायालय | धर्माध्यक्ष-पु० [सं०] न्यायाधीश; विष्णु । धर्मानुष्ठान-पु० [सं०] दे० 'धर्माचरण' । धर्माभास-पु० [सं०] श्रुति स्मृति से भिन्न शास्त्रों द्वारा उक्त सद्धर्म ।
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धर्मार्थ-धात्वर्थ धर्मार्थ-अ० [सं०]धर्मके लिए, धर्म या परोपकारके निमित्त। खसना; घुसना, प्रवेश करना, गड़ना । धर्मावतार-पु० [सं०] एक आदरसूचक संबोधन परम धसमसाना*-अ० क्रि० धंसना, नीचेकी ओर बैठना; धर्मात्मा व्यक्ति; युधिष्ठिर ।
धरतीमें समाना। धर्मासन-प० [सं०] वह आसन जिसपर बैठकर धर्म-धसान-स्त्री० दे० 'धंसान' ।
अधर्मका निर्णय किया जाय, न्यायाधीशका आसन । धसाना-सक्रि० दे० 'धंसाना' । धर्मिणी-स्त्री० [सं०] पत्नी, जाया।
धसाय-पु० दे० 'फँमाव' । धर्मिष्ठ-वि० [सं०] अत्यंत धार्मिक, अत्यंत पुण्यात्मा । धागड़, धाँगर-पु० एक अनार्य जाति; इस जातिका धर्मी(मिन)-वि० [सं०] धर्म करनेवाला, पुण्यात्मा; आदमी; कुआँ आदि खोदनेका काम करनेवाली एक जाति । जिसमें कोई विशिष्ट धर्म या वृत्ति हो, धर्मविशेषसे युक्त; धाँधना-स० कि० बंद करना ट्रॅस-ट्रैसकर खा लेना। (किसी) मत या धर्मका अनुयायी । पु० वह जिसमें कोई | धाँधल-स्त्री० शैतानी; धूर्तता, दगा, छल; जल्दबाजी। धर्म या वृत्ति रहे; धार्मिक मनुष्य ।।
धाँधली-स्त्री०मनमाना व्यवहार अनीति,अत्याचार धोखा । धर्मोपदेश-पु० [सं०] धर्मका उपदेश, वह प्रवचन जिसमें धाँस-स्त्री० तंबाकू आदिकी गंधसे उठनेवाली खाँसी
धर्मकी शिक्षा दी गयी हो, धर्मकी शिक्षा; धर्मशास्त्र । खाँसी लानेवाली तेज गंध । धर्मोपदेशक-पु० [सं०] धर्मको शिक्षा देनेवाला, धर्मशिक्षक। धासना-अ० कि० घोड़े आदिका खाँसना । धर्म्य-वि० [सं०] धर्मसंगत; पुण्यकर; न्याय्य ।।
धा--पु० [सं०] ब्रह्मा, बृहस्पतिः धारण करनेवाला । अ० धर्षक-पु० [सं०] ढिठाई करनेवाला; अपमान करनेवाला; एक प्रत्यय जो संख्यावाचक विशेषणोंके पीछे 'प्रकार' या व्यभिचारी; नट, अभिनेता ।
'बार के अर्थ में जोड़ा जाता है-जैसे शतधा, बहुधा आदि । धर्षकारी (रिन्)-पु० [सं०] ढिठाई करनेवाला; अप-धाई-स्त्री० दे० 'धाय'। मान करनेवाला।
धा -पु० धव वृक्ष; * हरकारा । धर्षण-पु०[सं०] पराभव; अनादर, असहिष्णुता; औद्धत्य, धाक-त्री० दबदबा, आतंक; ख्याति, शोहरत । पु० ढाक, धृष्टता; सतीत्वहरण; रति हिंसा शिव ।
पलाश। धर्षणि, धर्षणी-स्त्री० [सं०] अमती, कुलटा ली। धाकना*-अ० कि० धाक जमाना। धव-पु० [सं०] एक वन्य वृक्ष जिसकी जड़, पत्ती, फूल | धाकर-पु० अकुलीन ब्राह्मण; राजपूतोंकी एक जाति ।
आदि दवाके काम आते हैं। पति, स्वामी; पुरुष । धागा-पु० डोरा, तागा । धवनी-स्त्री० भार्थी, धौंकनी ।
धाड़-मी० चिलाकर रोनेका शब्द, विलाप; दहाड़, दाढ़, धवर-पु० एक पक्षी । * वि० दे० 'धवल' ।
डाकुओंका धावा । मु०-मारना-चिल्ला-चिल्लाकर रोना । धवरहर, धधराहर-पु० दे० 'धरहर।।
धाड़ना-अ० क्रि० दहाड़ना। धवरा-वि० दे० 'धवल' ।
धाड़स-पु० ढाढ़स, तसल्ली । धवरी-स्त्री० सफेद रंगकी गाय; धवर पक्षाकी मादा । धाड़ी-पु० दे० 'ढाड़ी' । वि० स्त्री० सफेद रंगकी।
धात-स्त्री० दे० 'धातु'। धवल-वि० [सं०] श्वेत, सफेद; स्वच्छ, निर्मल; सुंदर । धातविक--वि० धातुसे बना; धातु-संबंधी। पु० सफेद रंग; धवका पेड़, बड़ा बैल; चीनिया कपूर । धाता(त)-पु० [सं०] ब्रह्मा, विष्णु; शिक; सप्तषि, आत्मा -गिरि-पु० हिमालयकी एक चोटी । -गृह-पु० चूना | रक्षक; उपपति । पुता हुआ मकान; प्रासाद । -पक्ष-पु० शुक्ल पक्ष; हंस । धातु-स्त्री० [सं०] सोना, चाँदी आदि खनिज पदार्थ; धवलना-स० क्रि० उज्ज्वल करना; विशद बनाना। रस, रक्त, मांस आदि सात शरीरस्थ पदार्थ; बात, पित्त धवला-वि० सफेद, उजला। स्त्री० [सं०] उजली गाय और कफ वीर्थ; शब्द आदि जो आकाशके गुण हैपंच
गौर वर्णकी स्त्री । वि० स्त्री० सफेद रंगकी, उजली । महाभूत; पदोंकी प्रकृति, शब्दोंका मूल रूप। -क्षयधवलाई*-स्त्री० सफेदी।
पु० शरीरके तत्त्वोंका क्षय; क्षयरोग। -पुष्टि-स्त्री० धवलित-वि० [सं०] सफेद किया या बनाया हुआ। धातुओंका पोषण । -भृत्-पु० पर्वत । -विज्ञानधवलिमा (मन्)-स्त्री० [सं० श्वेतता, सफेदी । पु० (मेटलजी) धातु तैयार करने, उन्हें परिष्कृत या धवली-स्त्री० [सं०] सफेद गाय, बालोंका एक रोग। | शुद्ध करने आदिका वर्णन करनेवाला शास्त्र । हा(हन्)धवा-पु० दे० 'धव' ।
पु० गंधक । धवाना*-स० क्रि० दौड़ाना-'यहि विधि देखत कहत धातुमय-वि० [सं०] जिसमें खनिज पदार्थोंका प्राचुर्य चार ते जात तुरंग धवाये'-रघुराज० ।
हो; खनिज पदार्थों से भरा हुआ। धस-पु० जल आदिमें पैठना; गोता, डुबकी।
धात्री-स्त्री० [सं०] धाय, उपमाता पृथ्वी; माता; आवला । धसक-स्त्री० सूखी खाँसी; दहलनेकी क्रिया; डर; ईर्ष्या -कर्म(न्)-पु० धायका काम । -पुत्र-पु० धायका धसकन-स्त्री० दहलने, डरनेकी क्रिया; दवना; जलन। बेटा; नट । -फल-पु० आँवला । -विद्या-स्त्री० प्रसव धसकना-अ० क्रि० नाचेकी ओर बैठना, दब जाना; डाह करानेकी विद्या । करना, ईष्या करना।
चारवर्थ-पु० [सं०] धातु (पद या शब्दकी प्रकृति) से घसना-अ० कि० ध्वस्त होना, नष्ट होना; नीचेको निकलनेवाला अर्थ ।
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धात्विक मूल्य-धा
धाविक मूल्य - पु० [सं०] ( इंट्रिजिक वैल) किसी सिक्के आदिका वास्तविक मूल्य- वह मूल्य जो बाजारभाव के अनुसार उसमें मिली हुई धातुका मूल्य हो और जो उसपर अंकित मूल्यसे कम या अधिक हो सकता है । धातवीय - वि० [सं०] धातु-संबंधी; धातु से बना हुआ । धान - पु० एक प्रसिद्ध अन्न जिसका चावल प्रधान खाद्यों में गिना जाता है, तुषयुक्त चावल, शालि; इसका पौधा । धाना* - अ० क्रि० दौड़ना; (ला० ) वेगसे चलना; दौड़धूप
करना ।
धानी - वि० धानकी हरी पत्ती के रंगका, जो रंग में धानकी हरी पत्ती जैसा हो, हलके हरे रंगका । स्त्री० धानकी हरी पत्तीके रंगका एक रंग, तोतई; एक रागिनी; * धान्य; भूना हुआ जौ; [सं०] आधार, पात्र; अधिष्ठान, स्थान ( जैसे राजधानी, यमधानी ) ।
धानुक - पु० धनुर्धर, कमनैत; धुनिया । धानुष्क- पु० [सं०] धनुर्धर, धन्वी, तीरंदाज ।
धान्य - पु० [सं०] अन्न; सतुप अन्न; धान; धनिया; चार तिलका एक प्राचीन परिमाण । - मुख- पु० चीर-फाड़ के कामका एक पुराना औजार ( सुश्रुत ) । -संग्रह - पु० अन्नका भंडार ।
धान्योत्तम - पु० [सं०] शालि, धान ।
धाप - पु० कोसका आधा, एक मं.ल; वह फासला जो एक साँसमें दौड़कर पार किया जा सके। स्त्री० तृप्ति, संतोष । धापना* - अ० क्रि० तेज' चलना; दौड़ना; तृप्त होना, अघाना - 'बातों के पकवानसे धापा नाहीं कोय' - साखी । स० क्रि० तृप्त करना, संतुष्ट करना ।
धाबा - पु० मकानकी हमवार छत; ऐसी छतवाला मकान; बासा, होटल ।
धाम (न्) - पु० [सं०] गृह, घर, वासस्थान, अधिष्ठान; किरण, तेज, प्रभा; प्रताप, प्रभाव; वह स्थान या लोक जहाँ किसी देवताका निवास हो; देवस्थान; पारिवारिक सदस्यः सेना, समूह; अवस्था; वर्ग; शरीर, तन; जन्म; परमेश्वर ।
३८२
बाई धार' - सू० । - दार- वि० धारवाला, जिसमें धार हो । मु०- बँधना - इस प्रकार गिरना कि धार बन जाय । - बाँधना - इस प्रकार गिराना कि धार बँध जाय; मंत्र आदिकी शक्तिसे किसी हथियारकी काटने की शक्तिको कुंठित कर देना ।
| धारक - वि० [सं०] धारण करनेवाला । पु० वह जो धारण करे; ऋण लेनेवाला, कर्जदार; वह वस्तु जिसमें कोई वस्तु रखी जाय, पात्र; कलश, घड़ा; संदूक आदि । धारण- पु० [सं०] किसी वस्तुको ग्रहण करना या उसका आधार बनना, पकड़ना, थामना या लेना, आधान; पहनना; ऋण या उधार लेना; अवलंबन, ग्रहण या स्वीकार करना; खाना या पीना; सुरक्षित रखना, बनाये रखना, रक्षण, पालनः स्मरण रखना ।
धारणा - स्त्री० [सं०] ग्रहण, रक्षण, पालन आदि करनेकी क्रिया; मस्तिष्क में कोई वस्तु धारण करनेकी शक्ति; विचार, निश्चित मति । - शक्ति - स्त्री० मस्तिष्क में ग्रहण करनेकी शक्ति ।
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धामक धूमक- स्त्री० धूम-धाम, ठाट-बाट । धामनिका, धामनी-स्त्री० [सं०] दे० 'धमनी' । धामस धूमस - स्त्री० धूम-धाम; जंजाल । धामिन - पु० एक तरहका साँप जिसकी पूँछ में विष रहता है। धायँ - स्त्री० गोला- गोली दगनेका शब्द । धायें - अ० लगातार 'धायें' की आवाज के साथ; इस प्रकार (जलना) कि लपटें ऊपर उठें (जैसे-चिता 'धायें धायें' जल रही है) । धाय - स्त्री० बच्चे को दूध पिलाने और उसकी देख-भाल करनेके लिए नियुक्त स्त्री, उपमाता, धात्री । पु० धत्र वृक्ष | धायना* - अ० क्रि० दौड़ना । धार - पु० [सं०] जमा किया हुआ वर्षाका जल जो बड़ा गुणकारी होता है; धाराके रूपमें जलका बरसना, जोरकी वर्षा ऋण । स्त्री० [हिं०] तलवार आदिका वह तेज किनारा जिससे कुछ काटते हैं, बाढ़; किसी द्रव पदार्थ के गिरने या बहने की परंपरा, प्रवाह, स्रोत; छापा, डाका; सेना, फौज; देवी या पवित्र नदी आदिको दिया जानेवाला अर्घ्यं । *अ० ओर, तरफ - 'महरि पैठत सदन भीतर छींक
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धारणावधि - स्त्री० [सं०] (टेन्यूर) वह समय या अवधि जबतक कोई पद, संपत्ति आदि धारण की जाय या उसका उपभोग किया जाय ।
धारणीय - वि० [सं०] धारण करने योग्य | पु० धरणीकंद | धारन* - पु० धारण करनेवाला, धारक । धारना* - स० क्रि० धारण करना; ऋण लेना । धारयिता (तृ) - पु० [सं०] धारणकर्ता धारण करनेवाला । धारा - स्त्री० [सं०] किसी द्रव पदार्थके बहने या गिरनेकी परंपरा, प्रवाह, धार; क्रम, सिलसिला । - घर - पु० बादल; तलवार । -निपात-पात-पु० जलधाराका गिरना; भारी वृष्टि । - प्रवाह - वि० धारारूप में अविराम गति से बहने या चलनेवाला ( भाषण इ० ) । अ० अविराम गतिसे; अविच्छिन्न रूपमें । - यंत्र - पु० फौवारा । - वाहिक - वाही (हिन्) - वि० अविच्छिन्न गतिवाला; लगातार होने या जारी रहनेवाला । धारा - स्त्री० ( सेक्शन ) किसी अधिनियम आदिका वह स्वतंत्र अंग या भाग जिसमें किसी एक विषयकी सब बातें या आदेश एक साथ सन्निविष्ट हों, दफा; क़ानून, विधान । - सभा - स्त्री० (लेजिस्लेटिव कौंसिल) व्यवस्थापिका सभा । धारि* - स्त्री० धार; समुदाय, झुंड; सेना ।
धारिणी - स्त्री० [सं०] पृथ्वी । वि० स्त्री० धारण करनेवाली; जिसपर किसीका ऋण हो, कर्जदार (स्त्री) ।
धारी- पु० एक वर्णवृत्त । स्त्री० कपड़े आदिपरको लकीर; * समूह; सेना । - दार- वि० जिसमें धारियाँ हो । धारी (रिन्) - वि० [सं०] धारण करनेवाला | धारोष्ण - वि० [सं०] तुरंतका दुहा हुआ (दूध ), ताजा और गरम ।
धार्तराष्ट्र- पु० [सं०] धृतराष्ट्रका वंशज; काली चोंच और काले पैरोंवाला हंस |
धार्मिक - वि० [सं०] धर्म संबंधी; धर्म करनेवाला; क्षमा, दया आदिसे युक्त, पुण्यात्मा, धर्मात्मा, धर्मशील | धार्य - वि० [सं०] धारण करने योग्य; सह्य
धा
- पु० [सं०] घृष्टता, ढिठाई, उद्दंडता, अविनय ।
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धावक - पु० [सं०] धोवी; दूत, हरकारा । धावन - पु० [सं०] दौड़ना; हमला करना; धोना; शुद्ध करना; वह वस्तु जिससे कोई चीज साफ की जाय; दूत, हरकारा; (रन) (क्रिकेटमें) गेंदपर प्रहार करनेके बाद बल्लेबाज तथा उसके साथीका एक ओरके यष्टित्रय से दूसरी ओरके यष्टित्रयतक, बिना बहिर्गत (आउट) हुए दौड़ लगानेकी क्रिया; इस प्रकार लगायी गयी दौड़की क्रमसंख्या । -मार्ग - पु० ( रनवे) दे० 'अवतरणपथ' । -स्थली - स्त्री० (पिच) क्रिकेट में दोनों ओर के यष्टित्रयोंके वीचकी भूमि जिसपर, गेंद पर प्रहार करनेके बाद, बल्लेबाज तथा उसका सहयोगी धावन करनेका उपक्रम करते हैं ।
धावना * - अ० क्रि० तेजीसे चलना, दौड़ना । धावनि* - स्त्री० तेजीसे चलने या दौड़नेकी क्रिया, धावा । धावर - वि० धवल, सफेद ।
धावरी* - स्त्री० धौरी, श्वेत वर्णकी गाय । वि० स्त्री० धौरी । धावल्य- पु० [सं०] श्वेतता, सफेदी | धावा - पु० किसीको जीतने, लूटने आदि के लिए बहुतसे लोगोंका एक साथ दौड़ पड़ना, चढ़ाई, हमला; दौड़कर जाना । मु० - करना - आक्रमण करना, चढ़ाई करना । - बोलना - अफसरका फौजको हमला करनेका हुक्म देना; हमला करना । - मारना- दूरतक चढ़ाई करना । धावित - वि० [सं०] दौड़ा हुआ; दौड़ता हुआ; मार्जित । धाह - * स्त्री० धाड़, चिल्लाकर रोना, विलाप, + आगकी गर्मीीं ।
धाही - * स्त्री० धाय; + आगकी गरमी; छाया । धिंग* - स्त्री० धींगाधींगी, उपद्रव, शरारत । धिंगाई * - स्त्री० ऊधम, उपद्रव, शैतानी, कुटिलता, खोटाई । धिंगावंगी - स्त्री० दे० 'घाँगाधीँगी' ।
धिआ + - स्त्री० बेटी, पुत्री; बालिका । धिआन* - पु० दे० 'ध्यान' | धिआना * - स० क्रि० दे० 'ध्याना' | धिक - अ० दे० 'धिक्' ।
धिकना * - अ० क्रि० तपना, गरम होना । धिकाना+सु० क्रि० गरम करना, तपाना । धिक - अ० [सं०] भर्त्सना, निंदा और घृणाके अर्थ में प्रयुक्त होनेवाला एक शब्द - कार - पु० 'धिक्' कहकर की गयी भर्त्सना, निंदा या घृणा । -कृत-वि० जिसकी भर्त्सना, लानत-मलामत की गयी हो । धिक्कारना - स० क्रि० अनुचित बात के लिए किसीके प्रति निंदा और घृणासूचक शब्दों का प्रयोग करना, लानतमलामत करना ।
धिग * - अ० दे० 'धिक्' ।
धिय* - स्त्री० बेटी, पुत्री; बालिका ।
धिया - स्त्री० पुत्री, कन्या ।
धिरयना * - स० क्रि० दे० 'धिरवना' - 'सूर नंद बलराम हिं धिरयो, सुनि मन हरष कन्हैया' - सू० ।
धिरवना* - सु० क्रि० धमकी देना, धमकाना; डाँटना । धिराना * - स० क्रि० धमकाना, डराना । अ० क्रि० धीमा होना; कम होना, घटना; धैर्य धारण करना । धींग - पु० दे० 'धीँगरा' ।
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धावक-धुधर
धींगड़ा -५० दे० 'घाँगरा' ।
धींगरा - पु० हृष्ट-पुष्ट मनुष्य; गुंडा, बदमाश । वि० दुष्ट, खल, पाजी ।
धींगा - वि० दुष्ट, पाजी । धीँगी, मुश्ती - स्त्री० शरा
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रत, दुष्टता ।
धी-स्त्री० बेटी, लड़की; [सं०] बुद्धि, प्रज्ञा; समझ; ज्ञान । धीआ-स्त्री० बेटी, लड़की ।
धीजना* - स० क्रि० विश्वास करना - 'उज्जल देखि न धीजिये, बग ज्यों माँडे ध्यान' -साखी; स्वीकार करना । अ० क्रि० धैर्य धरना; संतुष्ट होना । धीम* - वि० दे० ' धीमा' |
धीमर - पु० दे० 'धीवर' ।
धीमा - वि० कम वेगवाला, कम गतिवाला, मंद, मंथर; प्रखरता या तीव्रता से रहित, प्रचंडका उलटा; (स्वर) जो उच्च या तीव्र न हो, दबा हुआ; जो बढ़तीपर न हो । धीमान् ( मत्) - वि० [सं०] बुद्धिमान्, प्रशावान् । धीय, धीया - स्त्री० बेटी, लड़की ।
धीर - वि० [सं०] जो जल्दी विचलित न हो, धैर्ययुक्त, स्थिरचित्त; ; गंभीर; उत्साही; नम्र, विनीत । ५० * धैर्य, धीरज, चित्तकी दृढ़ता; संतोष । - चेता (तस् ) - वि० ढ़, स्थिरचित्त । -प्रशांत-शांत-पु० वह नायक जो वीर और शांत हो। -ललित - पु० वह नायक जो धीर और वीर होने के साथ ही क्रीड़ाप्रिय और चिंतारहित हो ।
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धीरक* - पु० धीरज, धैर्य ।
धीरज * - ५० दे० 'धैर्य' । -मान- वि० धैर्यवान् । धीरता - स्त्री०, धीरत्व- पु० [सं०] धीर होने का भाव या गुण; चित्तको अविचलता; धैर्य; गंभीरता; संतोष, सब । धीरा - स्त्री० [सं०] व्यंग्य द्वारा कोप प्रकट करनेवाली नायिका (सा० ); काकोली; मालकँगनी । धीराधीरा - स्त्री० [सं०] रुदन और मुखकी मुद्रा द्वारा . कोप प्रकट करनेवाली नायिका (सा० ) । धीरे- अ० मंद गतिसे; मंद स्वर से; चुपके । धीरोदात्त - पु० [सं०] आत्मश्लाघासे रहित, क्षमाशील, धीर, विनम्र और व्रत नायक- जैसे रामचंद्र, युधिष्ठिर । धीरोद्धत - पु० [सं०] क्रोधी, चपल, अहंकारी और विक त्थन नायक (सा० ) । ·
धीवर - पु० [सं०] मछुआ, मल्लाह; लोहा । धुआँ- पु० दे० ‘धुआँ' ।
धुँआरा - वि० धूमिल, जो धुएँ से मैला हो गया हो । धुँगार-स्त्री० बधार, छौंक
घुँगारना - स० क्रि० बघारना, छौंकना ।
धुंज - वि० अस्पष्ट, धुँधला; मंद ज्योतिवाला । धुंद - स्त्री० दे० 'धुंध' ।
धुंध - स्त्री० आकाश में बहुत अधिक गर्द छा जानेसे होनेवाला अँधेरा आँखका एक रोग जिसमें ज्योति मंद पड़ जानेसे चारों ओर धुंध जैसा दिखाई देता है । धुंधकार - पु० अंधकार; गर्जन ।
धुंधर, धुंधरि* - स्त्री० गर्द; धुएँ, धूल आदिके कारण होनेवाला अंधकार |
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धराना-धुर
धुँधराना, धुंधलाना* - अ० क्रि० धुंधला पड़ना; काला या धुक्कना* - अ० क्रि० दे० 'धुकना' ।
अंधकारयुक्त होना ।
धुँधला - वि० धुएँ के रंगका, हलका स्याह; अस्पष्ट, अँधेरा । - पन - पु० धुंधला होनेका भाव ।
धुँधलाई - स्त्री० धुँधलापन ।
धुँधली - स्त्री० अँधेरा; नजरकी कमजोरी । धुँधाना* - अ० क्रि० धुआँ देना । धुंधार* - वि० धूमिल; धुआँधार । धुंधि - स्त्री० दे० 'धुंध' । धुँधियारा* - वि० दे० 'धुँधला' । धुंधुकार - पु० धुंकार; अँधेरा, धुँधलापन ।
धुंधुरि* - स्त्री०धुएँ, धूल आदिके कारण छाया हुआ अंधकार । धुंधुरित - वि० धुँधला बनाया हुआ; जिसकी नेत्रज्योति
|
कम हो गयी हो, मंददृष्टि ।
धुंधुरी - स्त्री० धुंध, धुँधलापन; आँखका एक रोग | धुँधुवाना * - अ० क्रि० धुआँ देना; थोड़ा-थोड़ा करके जलना । धुँधेरी - स्त्री० दे० 'धुंधुरि' ।
धुँवाँ - पु० दे० 'धुआँ' । - कश-पु० दे० 'धुआँकश' । - दान-पु० धुआँ निकलनेका छिद्र । -धार- वि०, अ० दे० 'धुआँधार' |
धुअ* - पु० दे० 'ध्रुव' ।
धुआँ-पु० सुलगती या जलती हुई लकड़ी आदि से निकलनेवाला भाप जैसा हलका काला पदार्थ, धूम । - कश- पु० दे० 'स्टीमर'; धुआँ निकलनेके लिए छतमें बनाया गया छेद, चिमनी । - धार - वि० जोरदार, घोर, भीषण; धुएँसे भरा हुआ; काला । अ० लगातार और बड़े वेगसे, बड़े जोरसे । मु०-देना - धुआँ छोड़ना या निकालना; धुआँ पहुँचाना। - निकालना ( या काढ़ना) - लंबी चौड़ी बातें करना । - सा मुँह होना - चेहरेका रंग उतर जाना; अत्यंत लज्जित होना । -होना (किसी वस्तुका ) - एकदम काला हो जाना । (धुएँ) का धौरहर - क्षणस्थायी वस्तु । - के बादल उड़ाना-लंबी-चौड़ी बातें करना । धुआँना - अ० क्रि० धुएँ से बस जाना, अधिक घुइँवाली आँच से पकने के कारण धुएँकी गंधसे व्याप्त हो जाना । धुआँ- स्त्री० धुएँ जैसी गंध ।
|
धुआँ- पु० दे० 'धुआँकश' ।
धुआँसा - पु० धुएँकी कालिख, धुआँ लगनेसे पड़नेवाली कालिख | वि० धुआँया हुआ । धुकड़-पकड़ - पु० भय, शंका आदिले मनका डाँवाडोल होना, धकधकी ।
धुकधुकी - स्त्री० छाती और पेटके बीचका कुछ गहरा स्थान जहाँ धड़कन होती रहती है, कलेजा; धड़कन; गलेका एक गहना, पदिक ।
धुकना * - अ० क्रि० झुकना, नत होना; काँपना; टूट
पड़ना, झपटना ।
धुकान* - स्त्री० दे० 'धुकार' |
धुकाना * - स० क्रि० गिराना; नवाना, झुकाना; धुआँ देकर गरमी पहुँचाना । अ० क्रि० काँपना, डरना । धुकार - स्त्री० नगाड़ेकी आबाज; गड़गड़ाहट । धुकारी* - स्त्री० दे० 'धुकार' |
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धुक्कारना * - स० क्रि० दे० 'धुकाना' । धुगधुगी - स्त्री० दे० ' धुकधुकी' । धुज* - पु० दे० 'ध्वज' |
धुजा* - स्त्री० दे० 'ध्वजा' | धुजिनी* - स्त्री० ध्वजिनी, सेना, फौज ।
घुड़गा* - वि० नंगा (व्यक्ति); जिसके शरीर में धूल पुती
हो; धूलिधूसर और नंगा (व्यक्ति) ।
धुतकारना - स० क्रि० दे० 'दुतकारना' । धुताई * - स्त्री० धूर्तता ।
धुतारा* - वि० दे० 'धूर्त' ।
धुधुकार - स्त्री० 'धू-धू’की आवाज; घोर शब्द | धुधुकारी - स्त्री० दे० 'धुधुकार' |
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धुधुकी - स्त्री० दे० 'धुधुकार' ।
धुन - स्त्री० किसी कार्य में बराबर लगे रहनेका व्यसन, लगन मनकी लहर, मौज; विचार, चिंतन; स्वरके आरोहअवरोहकी दृष्टि से गानेका विशेष ढंग, स्वरभंगी; एक राग; दे० 'ध्वनि' । मु० - का पक्का - आरंभ किये हुए कामको पूरा करके छोड़नेवाला; फलोदयतक कर्म करनेवाला | धुनकना - स० क्रि० दे० 'धुनना' । धुनकी - स्त्री० धुनियोंका रुई धुननेका धनुष जैसा औजार, फटका; लड़कों के खेलनेका छोटा धनुषु ।
*
धुनना-स० क्रि० रुईको धुनकीसे इस प्रकार साफ करना कि बिनौले तथा गंदगी निकल जाय और वह फुलफुली हो जाय; बेतरह पीटना; निराशामें अपना सिर पीट लेना; बिना रुके कहना; बिना रुके कोई काम करते जाना । धुनवाना-स० क्रि० 'धुनना' का प्रेरणार्थक | धुनि - स्त्री० दे० 'ध्वनि'; [सं०] नदी । धुनियाँ - पु० रुई धुननेका काम करनेवाला | + स्त्री० धुनकी- 'सोनेकी धुनियाँ रेसमकी ताँत' - गीत । धुनी - वि० जिसे किसी बातकी धुन हो, जो किसी धुन में हो । * स्त्री० दे० 'ध्वनि'; दे० 'धूनी'; [सं०] नदी । चुपना * - अ० क्रि० धुलना । धुपाना+स० क्रि० धूप दिखाना, सूखने आदिके लिए धूप में रखना; धूपके धुएँसे सुवासित करना । धुपेली - स्त्री० पसीने से होनेवाली फुंसी । धुप्पस - स्त्री० डराने या धोखेमें डालने के लिए किया गया काम, झाँसापट्टी |
|
धुमिलना* - स० क्रि० धूमिल बनाना । धुमिला - वि० धुएँके रंगका, धुँधला । धुमैला-वि० धूमिल, धुएँके रंगका ।
धुरंधर - वि० [सं०] भार वहन करनेवाला; जोते जाने योग्य; जिसके ऊपर किसी कार्यका भार हो; किसी कामके होनेमें जिसका सबसे अधिक हाथ हो; उत्तम गुणोंसे युक्त; श्रेष्ठ; अग्रगण्यः प्रधान ।
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धुर- पु० [सं०] धुरा; गाड़ीका जूआ; भार, बोश; घुरेके छोर पर लगनेवाली कील; जमीनकी एक नाप, बिस्वांसी; * ऊँचा स्थान; किला - 'धीर धरती न फौज कुतुबके धुरकी' - भू०; मूल, आरंभ | वि० पक्का | अ० एकदम, (किसीकी) चरम सीमापर | - ऊपर - अ० [हिं०] एकदम ऊपर ।
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धुरजटी * - पु० दे० 'धूर्जटि' | धुरड्डी | -स्त्री० दे० 'धुरै डी' ।
धुरना* - स० क्रि० पीटना बजाना भूसा बनानेके लिए पयालको फिर से दाँना ।
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पहिया घूमा करता है, अक्ष; भार, बोझ । धुरियाना - स० क्रि० धूलसे ढकना ।
धुरी - स्त्री० छोटा धुरा । - देश, राष्ट्र- पु० ( एक्सिस - कंट्रीज) द्वितीय महायुद्धके पूर्व बनाया गया नात्सी जर्मनी तथा फासिस्ट इटलीका गुट, जिसमें बाद में जापान भी शामिल हो गया था ।
धुरपद - पु० दे० 'पद' ।
धुरवा * - पु० बादल ।
धुरा - पु० [सं०] लकड़ी या लोहेका वह डंडा जिसके सहारे धूनना-स० क्रि० ई साफ करना, धुनना; * देवता आदिके निमित्त धूप आदिको आगमें जलाना, धूनी देना । धूना - पु० एक पेड़ या उसका गोंद जो धूनी देने तथा वारनिश तैयार करने के काम आता है । धूनी-स्त्री० किसी देवताके आघ्रापणके निमित्त आग में डाले गये गुग्गुल आदिका धुआँ; ठंडसे बचने या शरीरको तपानेके लिए साधुओं द्वारा अपने पास जलायी जानेवाली आग | मु० - जगाना, - रमाना - साधुओंका तपके लिए आगको अपने पास जलाये रखना; योगी होना, विरक्त होना ।
धुरीण - वि० [सं०] अग्रगण्य, श्रेष्ठ, प्रमुख; धुरा धारण करनेवाला; जिसपर किसी कार्यका भार हो ।
धू* - वि० स्थिर । पु० ध्रुवः ध्रुवतारा ।
धूआँ - पु० दे० 'धुआं' ।
धुरीन* - वि० दे० 'धुरीण' ।
धुरंडी, धुलेंडी । - स्त्री० होलिका जलने के बाद होनेवाला | धूप-पु० [सं०] देवताके आघ्रापण के लिए या सुगंध के वसंतोत्सवका एक अंग, धूलिवंदन; मदनोत्सव |
निमित्त जलाये गये गुग्गुल आदिका धुआँ; गुग्गुल आदि गंधद्रव्य । ( इसके पाँच भेद हैं- (१) निर्यास, (२) चूर्णं, (३) गंध, (४) काष्ठ और (५) कृत्रिम ) । - दान-पु० [हिं०] धूप रखने या देनेका बरतन । -दानी - स्त्री० [हिं०] दे० 'धूपदान' । - पात्र - पु० दे० 'धूपदान' । - बत्ती - स्त्री० [हिं०] सुगंधके लिए जलायी जानेवाली एक प्रकारकी मसाला लगी हुई सींक । धूप-स्त्री० आतप, घाम, सूर्यका प्रकाश । - घड़ी - स्त्री ० एक यंत्र जिससे धूपके सहारे समयका ज्ञान होता है । - छाँह - स्त्री० एक तरहका कपड़ा जिसमें कई रंग दिखाई देते हैं । मु० - खाना - धूप में सूखना अथवा सुखाया या फैलाया जाना; धूपका सेवन करना । - खिलाना, - दिखाना- - धूप लगनेके लिए बाहर रखना । -निकलनासूर्यका प्रकाश फैलना ।
धुरेटना * - सु० क्रि० लगाना, पोतना; धूलसे ढकना । धुर्-स्त्री० [सं०] बैलों आदिके कंधेपर रखा जानेवाला जुआ; भार, बोझ; रथ आदिका अग्रभाग; चोटी | धुर्रा- पु० किसी वस्तुका चूर; कण मु० ( धुर्रे ) उड़ा देना - धज्जी उड़ाना, सर्वथा नष्ट कर देना । धुलना-अ० क्रि० पानी आदिके योगसे स्वच्छ किया जाना, धोया जाना; पानी पड़ने से कटकर बह जाना । धुलवाना - स० क्रि० दे० 'धुलाना' । धुलाई - स्त्री० धोनेकी क्रिया; धोनेकी उजरत । धुलाना - स० क्रि० धोने का काम दूसरे से कराना । धुव* - वि०, पु० दे० 'ध्रुव' ।
ध्रुवका - स्त्री० [सं०] गीतका पहला पद, टेक, स्थायी । धुवाँ - पु० दे० 'धुआँ' । - कश- ५० दे० 'धुआँकश ।' धार - वि०, अ० दे० 'धुआँधार' ।
धुवाँरा - पु० छतमें बना हुआ धुआँ निकलनेका छेद । धुवाँस-स्त्री० उरदका पिसान ।
धूपना- अ० क्रि० दौड़ना (समास में प्रयुक्त) । * स० क्रि० धूप देना, गंधद्रव्य जलाना; धूपसे बासना । धूपायित - वि० [सं०] दे० 'धूपित' ।
धुस्स - पु०ढहे हुए मकान की मिट्टी, ईंट आदिका ढेर;टीला; धूपित - वि० [सं०] धूपसे वासा हुआ; तप्तः थका हुआ । नदी आदिके किनारेका बाँध ।
धुस्सा- पु० ऊनका भारी कंबल ।
घूँघ* - स्त्री० दे० 'धुंध' ।
घूँघर, घूँधुर* - वि० धुँधला । पु० अँधेरा; उड़ती हुई धूलि - राशि |
धूम - पु० [सं०] धुआँ; कुहरा; धूमकेतु; अपचके कारण आनेवाली डकार । - केतन - पु०अग्नि (जिसके अस्तित्व के अनुमानका चिह्न धुआँ हैं); धूमकेतु । - केतु-पु० अग्नि; पुच्छल तारा; केतु ग्रह । - ध्वज - पु० अग्नि । -पटपु० (स्मोक स्क्रीन) दे० 'धूमावरण' -पान- पु० दंतरोग, नेत्ररोग, व्रण आदि में विशिष्ट वस्तुओं, ओषधियोंको चिलमपर चढ़ाकर गाँजे आदिकी तरह पीना; तमाकू, गाँजा आदि पीना। -पोत-पु० जहाज, अगिनबोट । - यान - पु० रेलगाड़ी । -योनि-पु० बादल । -लवि० धुएँ के रंगका, मटमैला ।
धूईं - स्त्री० दे० 'धूनी' |
धूकना - अ० क्रि० वेगसे आगे बढ़ना । स० क्रि० धुआँ पहुँचाकर केले आदिको पकाना ।
धूजट* - पु० दे० 'धूर्जटि' ।
धूजना * - अ० क्रि० हिलना, काँपना ।
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धुरजटी-धूमर
- कल्मष, पाप-वि० पापरहित, निष्पाप । धूतना* - स० क्रि० धूर्तता करना, दगा करना, छलना, वंचना करना ।
धूति - स्त्री० [सं०] हिलना; कंपन; हठयोगकी एक क्रिया । धूतुक, धूतू - पु० तुरही, नरसिंहा ।
धूधू- पु० आगके जोरसे जलनेका शब्द |
धूत- -* वि० धूर्त, छली, पाखंडी, वंचक; [सं०] हिलाया हुआ; कंपित; छोड़ा हुआ, दूर किया हुआ, त्यक्त; डाँटा हुआ, झिड़का हुआ, धमकाया हुआ, भत्सित; विचरित ।
धूम - स्त्री० तैयारी के साथ किये जानेवाले किसी बड़े काम या उत्सवका शोर; हल्लागुल्ला, उपद्रव; शुहरत, प्रसिद्धि; चर्चा; ठाट; तैयारी, समारोह । धड़क्का - पु०, -धामस्त्री० ठाट-बाट, चहल पहल, समारोह । धूमर* - वि० दे० 'धूमल' ।
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धूमवान्-धोना धूमवान(वत्)-वि० [सं०] जिससे धुआँ उठता या चोंचवाला हंस। -वर्मा(मन)-वि० जिसने कवच निकलता हो।
धारण किया हो। -व्रत-वि० जिसने कोई व्रत धारण धूमाभ-वि० [सं०] धुएँ के रंगका ।
किया हो। पु० इंद्र; वरुण, अग्नि । धूमायमान-वि० [सं०] धूमसे पूर्ण ।
ति-स्त्री० [सं०] धारण; ग्रहण; पकड़ना; ठहराव, स्थैर्य, धूमावरण-पु० [सं०] (स्मोक स्क्रीन) तोपें, टैंक तथा धैर्य; तुष्टि प्रीति; एक योग (ज्यो०); गौरी आदि सोलह सेनाकी गति-विधि आदि छिपानेके लिए फैलाये गये धुएँ- मातृकाओंमेंसे एक; मनकी धारणा (इसके तीन भेद हैके बादल।
(१) सात्त्विकी, (२) राजसी, (३) तामसी); एक व्यभिधूमित-वि० [सं०] जिसमें धुआँ लगा हो; जो धुआँ लगने- चारी भाव (सा०); दक्षकी एक कन्या जो धर्मकी पत्नी से धुंधला हो गया हो।
है; चंद्रमाकी एक कला। धूमिल-वि० दे० 'धूमल'।
धृतिमान(मत्)-वि० [सं०] धैर्यवाला, धीर संतुष्ट । धूम्र-पु० [मं०] ललाई लिये काला रंग; पाप; दुष्टता। पृष्ट-वि० [सं०] साहसी; लज्जारहित; ढीठ, उदंड; निर्दय । वि० ललाई लिये काले रंगका; धुंधला। -पान-पु० पु० अपराध करके निःशंक बना रहनेवाला नायक । (असाधु) दे० 'धूमपान'।
धृष्टता-स्त्री० [सं०] ढिठाई, उदंडता निर्लज्जता निर्दयता। धूम्रीकरण-पु० [सं०] (फ्यूमिगेशन) (रोगके कीटाणुओंसे धेनु-स्त्री० [सं०] सद्य प्रसूता गौ; दूध देनेवाली गाय मुक्त करने के लिए या हवाकी गंदगी दूर करनेके लिए) __ पृथ्वी । -मुख-पु० गोमुख नामक बाजा । किसी कमरे आदिमें सुगंधित धूम, संक्रमणनाशक गैस धेयना*-सक्रि० ध्यान करना। आदि प्रसारित करना।
धेरिया-स्त्री० लड़की, बेटी। धूर*-स्त्री० दे० 'धूल' । . अ० दे० 'धुर'। -धान-पु०, धेला-पु० दे० 'अधेला'। -धानी-स्त्री० धूलका ढेर ।
धेली-स्त्री० अठन्नी। धूरजटी*-पु० दे० 'धूर्जटि'।
धैना*-स्त्री० धंधा आदत, टेव । धूरत*-वि० दे० 'धूर्त'।
धैर्य-पु० [सं०] धीर होनेका भाव, धीरता; विकारोंके धूरा-पु० धूल; चूर्ण ।
कारणों के रहते हुए भी चित्तके विकृत न होनेका भाव, धूरि*-स्त्री० दे० 'धूल' ।
चित्तकी दृढ़ता, स्थिरता। धूरे*-अ० निकट, पास।
धौंकना*-अ० क्रि० काँपना-'सिद्धि कैंपी, ब्रह्मनायक धूर्जटि-पु० [सं०] शिव ।
धोंको'-सुदामा० । सक्रि० दे० 'धौ कना' । धूर्त-वि० [सं०] वंचक, दगाबाज, छल करनेवाला। धौधा-पु० मिट्टीका लोंदा; बेडौल शरीर । धूर्तता-स्त्री० [सं०] धूर्तका गुण, वंचना, प्रतारणा, छल । धोई-स्त्री० उड़द या मूंगकी दाल जिसका छिलका धोकर धूल-स्त्री० मिट्टी आदिका चूर, रज, रेणुः (ला०) अति अलग कर दिया गया हो । * 'पु० राजगीर । तुच्छ वस्तु ।-धानी-स्त्री० धूलका ढेर । मु० (कहीं)- धोका-पु० दे० 'धोखा'। उड़ना-तबाह या बरबाद होना, उजड़ जाना । -उड़ाते धोखा-पु० वस्तुस्थितिको छिपाकर दूसरोंको भ्रममें डालनेफिरना-मारा-मारा फिरना; जीविकाकी तलाश घूमना। का व्यापार, वंचना विश्वासघात, दगा; झूठी बात या -की रस्सी बटना-असंभव बातके लिए श्रम करना। नकली चीजमें विश्वास करनेसे होनेवाला भ्रम, भुलावा -चाटना-बहुत दीनता प्रकट करना । -झाड़ना
कुछको कुछ समझ लेनेका भाव, मिथ्या प्रतीति; भ्रममें हारकी लाज छोड़ देना । -फाँकना-जीविकाके अभावमें डालनेवाली वस्तु; भूल; खतरा, जोखिम खटका, अंदेशा, दीनावस्थामें इधर-उधर घूमते फिरना। -में मिलना
संशयः कसर, त्रुटि; चिड़ियोंको डराने के लिए खेतों में सर्वथा नष्ट होना, बरवाद होना। -में मिलाना-नष्ट खड़ा किया जानेवाला मनुष्यके आकारका लकड़ी, पयाल करना, मटियामेट करना, बरबाद करना।
आदिका पुतला, धूहा। (धोखे)बाज़-वि० धोखा धूलि-स्त्री० [सं०] धूल, गर्द, रज ।-धूसर,-धूसरित- देनेवाला, दगा करनेवाला, वंचक । -बाज़ी-स्त्री० धोखा वि० जो धूल लगनेसे भूरे रंगका हो गया हो।
देनेका काम, छल, प्रतारणा । मु०-खाना-छला जाना, धूसर-वि० [सं०] भूरे रंगका, मौलसिरीकेरंगका, मटमैला;
भुलावेमें पड़ना; कुछको कुछ समझ लेना; हानि सहना । धूलमें सना हुआ।
-देना-छलना, भुलावेमें डालना; विश्वासघात करना; धूसरा-वि० दे० 'धृसर' ।
(ला०) असमय मरकर या नष्ट होकर आशाओंपर पानी धूसरित-वि० [सं०] धूल में लिपटा हुआ; भूरे रंगका । फेर देना या बनती बात बिगाड़ देना । (धोखे)की टट्टीधसरी-स्त्री० [सं०] किन्नरीका एक भेद ।
वह परदा जिसकी आड़ में शिकारी किसी जानवरको धृसला*-वि० दे० 'धूसरा'।
मारता है; झूठ-मूठमें फँसा रखनेवाली चीज, मायाजाल । धहा-पु० दे० 'ढूह'; वह पुतला जो चिड़ियों आदिको -में आना-दे० 'धोखा खाना'। डरानेके लिए बनाया जाता है
धोटा-पु० दे० 'ढोटा'। धक, धृग-अ० दे० 'धिक'।
धोती-स्त्री० एक प्रसिद्ध अधोवस्त्र; दे० 'धौति' । मु०धृत-वि० [सं०] धारण या ग्रहण किया हुआ; पकड़ा हुआ; ढीली होना-हिम्मत छूटना भयभीत होना, डर जाना।
-पु० दुयोधनके पिता काले पर और धोना-स० क्रि० पानीके योगसे किसी वस्तुपरका मैल दूर
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धोप-ध्रव करना, जलसे स्वच्छ करना; दूर हटाना, छोड़ देना। | धीरे-अ० 'धोरे'। धोप*-स्त्री० तलवार ।
धौरेय-वि० [सं०] जो धुरा धारण करने योग्य हो, बोझ धोब-पु० धोये जानेकी क्रिया, धुलाई ।
ढोने योग्य । पु० गाड़ी खीचनेवाला बैल; घोड़ा। धोबना, धोविन-स्त्री० धोबीकी स्त्री; धोबी जातिकी स्त्री; धौ~-पु० [सं०] दे० 'धूर्तता'।। एक चिड़िया।
| धौल-स्त्री०सिर, कंधे या पीठपर किया जानेवाला घुसेकी धोबी-पु० कपड़ा धोनेका पेशा करनेवाला, रजक । तरहका भारी आघात; चपत; हानि । * पु० धौराहर । -पछाड़,-पाट-पु० कुश्तीका एक पेंच । मु०-का -धक्कड़-पु० उपद्रव, दंगा। -धक्का-पु. आघात, कुत्ता-उठल्लू आदमी। -का छैला-परायी वस्तुपर दबाव, चपेट । -धप्पड़,-धप्पा-पु० मारपीट; उपद्रव । गर्व करनेवाला आदमी।
-धूत*--वि० धवल धूर्त, पक्का धूर्त ।। धोम-पु० धूम,.धुआँ ।
धौलहर, धौलहरा*-पु० धरहरा। धोरी-पु० धुरा धारण करनेवाला, धुरंधर; गाड़ी आदिमें धौला-वि० 'धवल' । पु० धव वृक्ष; सफेद बैल ।-गिरि
जोते जानेवाले बैल आदि, धुर्य; अग्रणी, धुरीण । पु० दे० 'धवलगिरि'। धोरे*-अ० समीप, निकट, किनारे ।
ध्यातव्य-वि० [सं०] दे० 'ध्येय' । धोवत*-पु० धोबी।
ध्याता(त)-पु० [सं०] ध्यान करनेवाला । धोवती*-स्त्री० धोती।
ध्यान-पु० [सं०] किसीके स्वरूपका चिंतन विषय-विशेष में धोवन-पु० धोनेकी क्रिया या भाव; वह पानी जिसमें या| चित्तकी एकाग्रता, गौर, सोच, विचार, चिंतन, बुद्धि, जिससे कोई वस्तु धोयी गयी हो ।
समझ स्मृति, याद, खयाल; किसी एक विषयपर मनको धोवा*-पु० धोवन; जल।
स्थिर करनेकी क्रिया; चिंतन या धारण करनेकी वृत्ति धोवाना--स० क्रि० धुलाना । अ० कि० धुलना। ध्येय विषयके साथ चित्तके प्रत्ययकी एकतानता (योग)। धौ-अ० एक शब्द जो संशय, विकल्प, आदेश आदिमें -गम्य-वि० केवल ध्यानसे प्राप्त होनेवाला ।-तत्पर,प्रयुक्त होता है, न मालूम, न जाने, पता नहीं, कुछ निष्ठ,-पर-वि: ध्यानमें मग्न । -मग्न-वि० ध्यानमें ठीक नहीं, क्या मालूम या, अथवा, कि भला, तो। । लीन, ध्यानमें लगा हुआ, ध्यानरत । -योग-पु० धौंकना-स० क्रि० आगको तेज करनेके लिए उसपर भाथी, | ध्यानरूपी योग; वह योग जिसमें ध्यानकी प्रधानता हो। पंखा आदिके द्वारा हवाका झोंका पहुँचाना:भार डालना। -स्थ-वि० ध्यानमग्न, ध्यान करता हुआ। मु०धौंकनी-स्त्री सोनारोंकी आग दहकानेकी लोहे या बाँस- आना-स्मरण होना । -छूटना-चित्तकी एकाग्रता नष्ट की नली; भाथी।
होना ।-देना-चित्तको किसी ओर प्रवृत्त करना, खयाल धीकी-स्त्री० दे० 'धौ कनी' ।
करना । -धरना-किसीके स्वरूपका चिंतन करना; धौज-स्त्री० दौड़धूप; बेकली, परेशानी, उद्विग्नता । एकाग्रभावसे ईश्वर आदिका चिंतन करना।-पर चढ़नाधाँजना-सक्रि० रौदना, पावसे कुचलना। अ० कि० स्मरण होना, याद होना ।-बंधना-किसी ओर चित्तका दौड़-धूप करना।
लगा रहना, किसीके चिंतनमें चित्तका एकाग्र होना । धौस-स्त्री० डाँट-डपट, घुड़की, धमकी; झाँसा-पट्टी; धाक । -में न लाना-चिंता न करना; न बिचारना । -पट्टी-स्त्री० भुलावा, झाँसा पट्टी।।
-लगाना-दे० 'ध्यान धरना'।-से उतरना-भूलना, धौंसना-स० क्रि० डाँटना-डपटना, धमकाना, घुड़कना; विस्मृत होना। दंड देना; दबाना पीटना ।
ध्याना*-स० कि० ध्यान करना, बराबर स्मरण करना । धौंसा-पु० बड़ा नगाड़ा; बूता, सामर्थ्य ।
ध्यानावस्थित-वि० [सं०] ध्यानमें लगा हुआ, ध्यानमग्न । धाँसिया-पु० धौसा बजानेवाला; धोखेबाज धौंस जमाने ध्यानी(निन्)-वि० [सं०] ध्यान करनेवाला; जो वाला।
बराबर परमात्म-चिंतन किया करता हो, ध्यानशील । धौत-वि० [सं०] धोया हुआ, प्रक्षालित; धवल । पु० ध्येय-वि० [सं०] ध्यान करने योग्य; (वह विषय) जिसका चादी।
ध्यान किया जाय । पु० ध्यानका विषय; उद्देश्य, लक्ष्य । धौति, धौती-स्त्री० [सं०] हठयोगकी एक क्रिया जिसमें ध्रपद-पु० दे० 'ध्र व-पद' । कपड़ेकी चार अंगुल चौड़ी और पंद्रह हाथ लंबी गीली ध्रव-वि० [सं०] स्थिर, अचल; निश्चित; अटल, पक्का; पट्टीको निगलते और फिर बाहर निकालते हैं। इस क्रिया- सदा एकरूप रहनेवाला, नित्य, शाश्वत । पु० एक प्रसिद्ध में काम आनेवाली कपड़ेकी पट्टी।
बालतपस्वी जो विष्णुके वरसे उत्तर दिशामें अचल ताराके धौर-वि० धवल, सफेद । पु० एक पक्षी; सफेद कबूतर । | रूपमें मेरुके ऊपर प्रतिष्ठित हैं, ध्रुवतारा; पृथ्वीके उत्तरी धौरहर* -पु० दे० 'धौराहर'।
और दक्षिणी सिरे; आकाश ।-तारक-तारा-पु० उत्तर धौरा-वि० धवल, श्वेत, सफेद । पु० सफेद बैल; धव दिशामें मेरुके ऊपर सदा एक स्थानपर स्थित रहनेवाला वृक्ष; एक पक्षी।
एक तारा। -दर्शक-पु० एक दिशासूचक यंत्र जिसकी धौराहर-पु० दे० 'धरहरा'।
सुई बराबर उत्तर दिशाकी ओर रहती है, कुतुबनुमा । धौरिय*-पु० गाड़ीमें जोता जानेवाला बैल, धुर्य । -दर्शन-पु. ध्रुवकी ओर संकेत करनेकी एक प्राचीन धौरी-स्त्री० उजली गाय; धौरा पक्षीकी मादा।
वैवाहिक प्रथा। -पद-पु. एक तरहका गीत । २५
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ध्रुवक-नंदात्मजा
३८८ ध्रवक-पु० [सं०] गीतका वह आरंभिक अंश जो बराबर उठाकर-चढ़ाकर, झटकेके साथ फहराना (हॉइस्टिंग ऑफ दुहराया जाता है, टेक।
दि फ्लैग)। . ध्रवता-स्त्री०, ध्रवत्व-पु० [सं०] ध्रव होनेका भाव, ध्वनि-स्त्री० [सं०] शब्द, आवाज; ऐसा शब्द जिसका अचलता, स्थिरता, निश्चतता, नैश्चित्य ।
वर्णात्मक रूपमें ग्रहण न हो, मृदंग आदिसे उत्पन्न शब्द ध्वंस-पु० [सं०] नाशमकान या इमारतका ढहना। (न्या०); शब्दका स्फोट (व्या०); गीतका लया वह ध्वंसक-वि० [सं.] नाश करनेवाला; ढाहनेवाला। काव्य जिसमें व्यंग्यार्थ वाच्यार्थ से अधिक चमत्कारवाला ध्वंसावशेष-पु०[सं०] खंडहर (रेकेज) विमान, पोतादिके। हो (सा०); वह अर्थ जो सीधे शब्दोंसे न निकलता हो, टूटे-फूटे टुकड़े।
व्यंग्यार्थ; गूढ आशय स्वर । -काव्य-पु० व्यंग्य-प्रधान ध्वंसी (सिन)-वि० [सं०] नाश करनेवाला, ध्वंसक ।। काव्य, वह काव्य जिसमें व्यंग्यार्थ प्रधान हो। -क्षेपक ध्वज-पु० [सं०] सेना, रथ, देवता आदिका चिह्नभूत यंत्र-पु. (माइक्रोफोन) एक यंत्र जिसके द्वारा विद्युत्की पताकायुक्त या पताका-रहित बाँस, पलाश आदिका लंबा सहायतासे एक स्थानपर उच्चरित शब्द, वाक्य या ध्वनि डंडा; झंडा, पताका; निशान, चिह्न; ढोंग; दर्प, घमंड; दूर-दूरतक फैलायी जा सके। -तरंग-स्त्री० (साउंडवेव) पुरुषंद्रिय । -पात-पु० नपुंसकता, कीवता। -पोत- कोई शब्द बोलने या कोई ध्वनि होनेपर उठनेवाली पु० (फ्लैगशिप) बेड़ेका वह जहाज जिससे नौबलाध्यक्ष वह तरंग जो इवामें चारों ओर फैलकर सुननेवालेके कानों(नौसेनापति) यात्रा कर रहा हो और जिसपर उसका तक पहुँचती है जिससे उसे उस शब्द या ध्वनिका ज्ञान झंडा फहरा रहा हो। -भंग-पु० दे० 'ध्वजपात'। होता है। -वद्धका-विस्तारक-पु० (लाउडस्पीकर) -यष्टि-स्त्री. वह डंडा जिसमें पताका लगी रहती है। ध्वनि या आवाजकी तीव्रता बढ़ानेवाला यंत्र । -विक्षेपक -विस्फारण-पु० झंडेको सिकुड़ी हुई स्थितिसे निकाल- -पु० (ट्रांसमिटर) दे० 'दूरविक्षेपक'। -विक्षेपणकर खोलना, फैलाना (अनफलिंग, बेकिंग ऑफ दि पु० (ट्रांसमिशन) दे० 'दूरविक्षेपण' । -संग्राहक-पु० फ्लैग)। -स्तंभ-पु० (फ्लैग स्टाफ) वह खंभा या बाँस (साउंड रिकार्डर) दे० 'ध्वन्यभिलेखक'। जिसपर झंडा फहराया जाता है।
ध्वनित-वि० [सं०] जो ध्वनिके रूप में व्यक्त हुआ हो, ध्वजवान (वत्)-वि० [सं०] चिह्नविशेषसे युक्त, _जिसकी ध्वनि हुई हो, व्यंजित; शब्दित । जिसका कोई विशेष चिह्न हो; जिसके पास या हाथमें ध्वज ध्वन्यभिलेखक-पु० [सं०] (साउंड रिकार्डर) ध्वनिका हो, ध्वजवाला। पु० ध्वजवाहक; वह ब्राह्मण जो ब्रह्म- संग्रहण या अभिलेखन करनेवाला यंत्र अथवा साधन । हत्याके प्रायश्चित्तके रूप में मारे गये व्यक्तिकी खोपड़ी ध्वन्यात्मक-वि० [सं०] ध्वनिरूप, ध्वनिमय; (काव्य) लेकर तीर्थोंमें भिक्षाटन करता फिरे ।
जिसमें व्यंग्य प्रधान हो। ध्वजा-स्त्री० पताका, झंडा ।
ध्वन्यार्थ-पु० [सं०] वह अर्थ जिसका बोध व्यंजनावृत्तिसे ध्वजारोपण-पु० [सं०] झंडा लगाना या गाड़ना। होता हो। ध्वजी (जिन्)-वि० [सं०] ध्वजवाला, जिसके पास या ध्वस्त-वि० [सं०] ढहा हुआ, नष्ट; पतित; गलित ।
हाथमें ध्वज हो; जिसका कोई विशेष चिह्न हो । ध्वांत-पु० [सं०] अंधकार; एक नरक जहाँ सदा अँधेरा ध्वजोत्तोलन-पु० [सं०] झंडेको खंभे आदिको ऊँचाईतक | छाया रहता है।
न-देवनागरी वर्णमालाका २०वा, व्यंजन वर्ण ।
कुँवर-[हि०] कृष्ण । -कुमार-पु० कृष्ण । -नंद,नंग-पु० नंगापन, नग्नता । वि० नंगा; पाजी। -धडंग नंदन-पु० कृष्ण । -नंदिनी-स्त्री० योगमाया, दुर्गा ।
-वि. जो सिरसे पैरतक वस्त्ररहित हो, एकदम नंगा।। -पुत्री-स्त्री० योगमाया, दुर्गा । -रानी-[हिं०] स्त्री० नंगा-वि० जिसकी देहपर कोई कपड़ा न हो, जो कोई नंदकी पत्नी, यशोदा। -लाल-[हिं०] पु० कृष्ण । -
वस्त्र न धारण किये हो, विवस्त्र निर्लज्ज, बेहया; निराव- वंश-पु० मगधका एक प्रसिद्ध राजकुल जिसका विनाश रण । -झोरी, झोली-स्त्री० छिपायी हुई चीजका पता | चाणक्यने किया। लगानेके लिए किसीके कपड़ों आदिको टटोलकर या और नंदन-वि० [सं०] आनंद देनेवाला, हर्षप्रद । पु० इंद्रका तरहसे भली भाँति देखना, कपड़ोंकी तलाशी।-बुच्चा,- | उद्यान; आनंदित होना; आनंद, हर्प; पुत्र; २६ वाँ संवबूचा-वि० अकिंचन । -लुचा-वि० नंगा और लुच्चा, त्सर, मेघ । -कानन-पु० नंदन नामका इंद्रका उद्यान । पाजी, बदमाश।
-माला-स्त्री० एक प्रकारकी माला जिसे कृष्ण पहना नगियाना-स० क्रि० नंगा करना सब कुछ ले लेना। करते थे। -वन-पु० दे० 'नंदनकानन' । नग्याना, नँग्यावना*-सक्रि० दे० 'नँगियाना' । नंदना-स्त्री० [सं०] पुत्री । * अ० कि. आनंदित होना। नंद- स्त्री० पतिकी बहिन, ननद । पु० [सं०] हर्ष, पर- नंदा-स्त्री० [सं०] आनंद; दुर्गाका एक विग्रह; ननद । मेश्वर, विष्णु; गोकुलके प्रमुख गोप जिनके यहाँ कृष्णका -देवी-स्त्री० हिमालयकी एक चोटी । पालन हुआ था; मगधके एक प्राचीन राजा जिनसे नंदवंश नंदात्मज-पु० [सं०] कृष्ण । चला; मेढक नौकी संख्या। -किशोर-पु० कृष्ण । - नंदात्मजा-स्त्री० [सं०] योगमाया।
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३८९
नंदि-नवकाश
नंदि-पु० [सं०] आनंद; परमानंद-स्वरूप विष्णु; नंदि- नकटी-वि० स्त्री० (वह स्त्री) जिसकी नाक कटी हो या केश्वर; नाटकमें नांदीपाठ करनेवाला व्यक्ति; द्यत । जो बेहया हो । स्त्री० नाकका मैल । -ग्राम-पु. वह गाँव जहाँ भरतने रामके वनसे लौटने- नक़द-वि०, पु० दे० 'नवद' । तक निवास किया था। -घोष-पु० अर्जुनका रथा नकना*-अ० क्रि० दे० 'नकाना'; लाँधा जाना । स० हर्षध्वनि; मंगलघोषणा; वंदिजनका घोष ।।
क्रि० लाँधना, फाँदना; छोड़ना; नाकमें दम करना । नंदिकेश, नंदिकेश्वर-पु० [सं०] शिवका वाहन नंदी। । नक्रब-स्त्री० [अ०] सेंध । -जनी-स्त्री० सेंध लगाना । नंदित-वि० [सं०] आनंदयुक्त, हृष्ट, प्रसन्न; * बजता हुआ। नक़ल-स्त्री० [अ०] वह जो किसीसे रूप, बनावट आदिमें नंदिन-स्त्री० पुत्री।
हूबहू मिलता-जुलता हो, प्रतिरूप, अनुकृति; लेख आदिनंदिनी-स्त्री० [सं०] दुर्गा; पुत्री गंगा; कामधेनुकी पुत्री की प्रतिलिपि, कापी; किसीके वेश, वाणी आदिका यथाजिसके प्रसादसे दिलीपके यहाँ रघुका जन्म हुआ ननद ।। वत् अनुकरण, स्वाँग। -ची-पु० नकल करनेवाला । नंदी(दिन)-पु० [सं०] पुत्र; नाटक में नांदीपाठ करने -नवीस-पु. कागजातकी नकल करनेवाला कर्मचारी। वाला व्यक्ति शिवका वाहन; शिवका गणविशेष; विष्णु; -बही-स्त्री. वह बही जिसपर हुंडियों आदिकी नकल दागकर छोड़ा हुआ साँड़ । -गण-पु० शिवके द्वारपाल, की जाय। बैल; साँड़ । -पति-पु० शिव, शंकर ।
नकली-वि० [अ०] जो किसीका अनुकरणमात्र हो, अवानंदीमुख-पु० दे० 'नांदीमुख' ।
स्तव, असलीका उलटा; खोटा, जाली; झूठा, बना हुआ। नंदीश, नंदीश्वर-पु० [सं०] शिवः शिवके पाश्र्वचरोंका। नकशा-पु० दे० 'नक्शा'। -नवीस-पु० दे० 'नक्शाअधिपति ।
नवीस'। नंदेऊ*-पु० दे० 'नंदोई।
नकस-पु० दे० 'नवश'। -मार-पु० दे० 'नक्शमार'। नंदोई, नंदोसी-पु० ननदका पति, पतिका बहनोई । नकाना*-अ० क्रि० आजिज आना। स० कि० परेशान नंबर-पु० [अं०] संख्या, गिनती; अंक; ३६ इंचकी एक करना, नाकमें दम करना; लाँघने में प्रवृत्त करना । भाप ।-दार-पु० [हिं०] एक तरहका जमींदार ।-वार- नक़ाब-स्त्री०, पु० [अ०] मुँह ढकनेका सिरसे गलेतकका अ० [हिं०] क्रमानुसार, सिलसिलेवार ।
रंगीन या जालीदार कपड़ा, चूँघट । -पोश-वि० जिसने नंबरी-वि० नंबरवाला; मशहूर, कुख्यात ।:-गज-पु० नकाब धारण किया हो, जिसका चेहरा नकाबसे ढका हो। कपड़ा नापनेकी एक माप जो ३६ इंचकी होती है। सेर- नकार-पु० [सं०] 'न' अक्षर: निषेध या अस्वीकृति-सूचक पु० तौलका एक मान जो ८० रुपयेभर होता है।
शब्द; अस्वीकृति, इनकार । नंस*-वि० नष्ट ।
नकारना-अ० क्रि० अस्वीकृत करना, इनकार करना। न-अ० [सं०] एक निषेध, वितर्क आदिका सूचक शब्द, नकाराt-पु० नगाड़ा। वि०निकम्मा। नहीं, मत; कि नहीं, या नहीं।
नकाशना -स० क्रि० नक्काशी करना । नइहरी-पु० स्त्रियोंका पितृगृह, मायका ।
नकाशी-स्त्री० दे० 'नक्काशी'। नई-वि० स्त्री० नयाका स्त्री०। * वि० नीतिशा नीति- नकासा-पु० दे० 'नकाश'। पालक नीतिमान् । * स्त्री० नदी।
नकासी-स्त्री० दे० 'नक्काशी'। नउँजी*-स्त्री० लीची।
नकियाना -अ० क्रि० नाकसे बोलना; नाकोंदम होना। नउ*-वि० नया; नौ।
स. क्रि० आजिज कर देना, बहुत तंग करना। नउआ*-पु० नाऊ ।
नक्रीब-पु० [अ०] वह व्यक्ति जो राजाओं आदिकी नउका*-स्त्री० दे० 'नौका'।
सवारीके आगे-आगे उनके वंशका यश गाता चलता है, न उत*-वि० झुका हुआ, नत ।
बंदी, चारण । नउलि*-वि० नया, ताजा।
नकुड़ा, नकुरा-पु० नाक; नथना। नओढ़*-स्त्री० दे० 'नवोढा'।
नकुल-पु० [सं०] नेवला युधिष्ठिरके एक छोटे भाई । नक-स्त्री० नाकका संक्षिप्त रूप (प्रायः समासमें व्यवहृत)। नकेल-स्त्री० ऊँट, भालू आदिकी नाकमें पहनायी जाने
-कटा-वि० जिसकी नाक कट गयी हो; (ला०) जिसका वाली रस्सी जिसके सहारे उन्हें इधरसे उधर ले जाते हैं । बहुत अपमान हुआ हो; निर्लज्ज । -घिसनी-स्त्री० मु०-हाथमें होना-किसीका पूर्णतया वशमें होना । जमीनपर नाक रगड़ना; बहुत अधिक दीनता प्रकट करना। नका-पु० सुईका छेद, ताशका एक्का; कौड़ी।। -चढ़ा-वि० चिड़चिड़ा, तुनुकमिजाज। -छिकनी- नवकारखाना-पु० [फा०] नगाड़ा रखने और बजानेकी सी० एक धास जिसके फूलोंको सूचनेसे छींके आने लगती जगह, नौबतखाना। मु०-(न) में तूतीको आवाजहैं। -तोड़-पु० कुश्तीका एक पेच । -फूल-पु० नाक- दे० 'तृती'के साथ । में पहनेका फूलके आकारका गहना । -बेसर-स्त्री० दे० नकारची-पु० [फा०] नगाड़ा बजानेवाला। 'बेसर' । -मोती-पु० नाकमें पहननेका मोती । नकारा-पु० [अ०] नगाड़ा; डुगडुगी। मु०-बजाके-वानी*-स्त्री० नाकमें दम-..."हों आयो नकवानी'- खुलमखुल्ला। -(२)की चोट-खुल्लमखुल्ला। विनय० । -सीर-स्त्री० नाकसे खून निकलनेका रोग। नवकाल-पु० [अ०] नकल करनेवाला; स्वाँग बनानेवाला। नकटा-वि० दे० 'नककटा'। पु० एक प्रकारका गीत । नवकाश-पु० [अ०] लकड़ी आदिपर बेल-बूटे बनानेवाला।
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नवकाशी-नग
चित्रकार, रंगसाज ।
गड़नेसे पड़नेवाला चिह्न पुरुष द्वारा किये मर्दन, स्पर्श नवनाशी-स्त्री० [अ०] बेल-बूटे खोदने, चित्र बनाने आदिसे स्त्रीके स्तन आदिपर पड़नेवाला नखका चिह्न
आदिका काम, चित्रकारी रंगसाजी । -दार-वि० जिस- (सा०)। -चारी (रिन्)-पु० पंजेके बल चलनेवाला पर बेल-बूटे खुदे या चित्र बने हों।
प्राणी । -च्छत, छोलिया*-पु० दे० 'नखक्षत' । नक्की-स्त्री० एकका चिह्न; एकके चिह्नसे जीता जानेवाला -दारण-पु० नहरनी; बाज पक्षी । -निळंतन-पु०,दावँ । -पूर-पु०,-मूठ-स्त्री० कौड़ियोंसे खेला जानेवाला रंजनी-स्त्री० नहरनी। -रेख*-स्त्री० दे० 'नखक्षत' । एक जुआ।
-लेखक-पु० नख रँगनेवाला। -विष-पु. वह जीव नक्कू-वि० जिसकी नाक बड़ी हो, बड़ी नाकवाला; जिसकी। जिसके नाखूनों में विष हो-जैसे मनुष्य, कुत्ता, बंदर,
ओर सभी उँगली उठायें, दोषभाजन, दोषी ठहराया जाने- बिल्ली आदि । -व्रण-पु० नाखून गड़नेका चिह्न। वाला, बदनाम; सबके विपरीत आचरण करनेवाला। -शंख-पु० छोटा शंख। -शस्त्र-पु० नहरनी । नक्तंचर-वि० [सं०] रातको विचरनेवाला, रातको -शिख-पु० पैरके नाखूनसे लेकर सिरतकके अंग; इन निकलनेवाला । पु० राक्षस; चोर; उल्लू ; गुग्गुल । अंगोंका वर्णन (सा०)। नक्त-पु० [सं०] वह समय जब संध्या होने में केवल एक | नख-स्त्री० [फा०] रेशमका बटा हुआ तागा; पतंगकी डोर । क्षणकी देर हो; रात । -चारी(रिन् )-वि० रातमें नखत*-पु० दे० 'नक्षत्र' । -राज,-राय-पु० चंद्रमा । विचरण करनेवाला; रातको निकलनेवाला । पु० चौर; नखतर*-पु० दे० 'नक्षत्र' । बिल्ली; उल्लूराक्षस, शिव ।
नखतेस*-पु० चंद्रमा। नक्तांध-वि० [सं०] जिसे रातको दिखाई न दे।
नखत्र-पु० दे० 'नक्षत्र' । ननद-पु० [अ०] वह धन जो सिक्कोंके रूपमें हो; वह रकम नखना-स० क्रि० नष्ट करना; पार करन।। अ० क्रि० जो फौरन अदा की जाय। वि० प्रस्तुत; अच्छा। अ० डाँका जाना, पार किया जाना । तुरंत रुपये देकर।
नखबान*-पु० नाखून । ननदी-स्त्री० [अ०] रोकड़ । -चिट्ठा-पु० रोकड़बही। नखर-पु० [सं०] नख, पंजा; एक प्राचीन अस्त्र । नक्र-पु० [सं०] नाक नामक जलजंतु; घड़ियाल, मगर । नखरा-पु० [फा०] विलासचेष्टा, हाव-भाव; नाज-अदा; नक्श-पु० [अ०] तसवीर बनाना; तसवीर, चित्र; फूल- दिखावटी इनकार, बनना। -(२)बाज़-वि० नखरा पत्ती या बेल-बूटे आदिका काम; मुहर या ठप्पेका निशान; करनेवाला । -बाज़ी-स्त्री० नखरा करनेकी क्रिया। सिक्का; जुएका एक खेल जो ताशसे खेला जाता है; नखरायुध-पु० [सं०] दे० 'नखायुध । तावीज । वि० अंकित; चित्रित; लिखा हुआ। -दार- नखरोट*-स्त्री० नखक्षत । वि० जिसपर नक्श हो।-बंद-पु० नक्शा, चित्र बनाने- नखांक-पु० [सं०] नाखून गड़नेका चिह्न व्याघ्रनखी। वाला । -बंदी-स्त्री० नक्शा या चित्र बनानेका काम। नखाघात-पु० [सं०] दे० 'नखक्षत; युद्ध या लड़ाई में -मार-पु० ताशके पत्तोंसे खेला जानेवाला एक प्रकारका नख द्वारा किया गया आधात । जुआ। मु०-होना-अंकित हो जाना।
नखानखि-स्त्री० [सं०] वह लड़ाई जिसमें लड़नेवाले एक नक्शा -पु० [अ०] तसवीर, चित्र, प्राकृतिक या किसी और दूसरेपर नखसे आघात करें ।। तरहकी स्थिति सूचित करनेवाला पृथ्वीके किसी भाग या नखायुध-पु० [सं०] सिंह; बाध; मुर्गा । खगोलका चित्र; चेहरा-मोहरा, आकृति; मकान, सड़क नखास-पु० पशुओंका बाजार, घोड़ोंका बाजार; बाजार । आदिका चित्र; ढंग, तर्ज; स्थिति, दशा, अवस्था रूप-रंग, नखियाना*-स० क्रि० नाखूनसे खरोंचना; (किसीमें) बनावट, शक्कु । -नवीस-पु० दे० 'नक्शबंद' ।। नाखून फँसाना । -नवीसी-स्त्री० दे० 'नक्शबंदी'। -बंद-पु० साड़ियों | नखी(खिन्)-वि० [सं०] जिसके नाखून बड़े-बड़े हों; आदिके बेल-बूटेके नक्शे बनानेवाला।
कँटीला । पु० सिंह; बाध । नक्शी -वि० [अ०] जिसपर बेल-बूटे बने हों।
नखेद*-पु० दे० 'निषेध' ।। नक्षत्र-पु० [सं०] तारा; तारोंके अश्विनी, भरणी आदि | नखोटना*-स० क्रि० नाखूनसे खरोचना या नोचना । सत्ताईस समूह । -दान-पु. एक प्रकारका दान जिसमें नग-पु० अँगूठी आदिमें जड़ा जानेवाला बहुमूल्य पत्थर, भिन्न-भिन्न नक्षत्रोंमें भिन्न-भिन्न पदार्थोंके दानका विधान नगीना; काँचका टुकड़ा; संख्या, थान; [सं०] वि० पर्वत है। -नाथ,-पति-पु. चंद्रमा । -पथ-पु० नक्षत्रोंके वृक्ष; सूर्यः सर्प; सातकी संख्या । जो गमन न करता भ्रमणका मार्ग। -राज-पु० चंद्रमा । -लोक-पु० वह हो, न चलने-फिरनेवाला, अचल, स्थिर । -ज-वि० लोक जिसमें नक्षत्र स्थित हैं, नक्षत्रोंका लोक; आकाश। पर्वतसे उत्पन्न । पु० हाथी । -जा-स्त्री० पार्वती; क्षुद्र -विद्या-स्त्री० ज्योतिषविद्या ।
पाषाणभेदा नामक लता। -दंती-स्त्री० विभीषणकी नक्षत्री-वि० जो किसी अच्छे नक्षत्रमें उत्पन्न हुआ हो, पत्नी । -धर-पु० कृष्ण जिन्होंने गोवर्धन पर्वतको धारण भाग्यशाली।
किया था। -धरन*-पु० कृष्ण । -नंदिनी-स्त्री० नक्षत्रेश-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर ।।
पार्वती । -पति-पु० हिमालय; चंद्रमा ( जो पौधों नख-पु०[सं०] नाखून; एक गंधद्रव्य; २०की संख्या खंड, और ओषधिोका अधिपति है); शिव; सुमेरु । -भिदटुकड़ा । -कुट्ट-पु० नापित, नाई ।-क्षत-पु० नाखूनके पु० पत्थर तोड़नेका एक प्राचीन अस्त्र; कुठार; इंद्र;
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कौआ । - भू-वि० पहाड़पर या पहाड़से उत्पन्न । पु० पाषाणभेदा लता । - मूर्धा ( र्धन् ) - पु० पहाड़की चोटी । नगण - पु० [सं०] एक गण जिसमें तीनों अक्षर लघु हों । नगण्य - वि० [सं०] जो गणना में न आ सके, तुच्छ, निकृष्ट । नगद - वि०, पु० दे० 'नद' ; नागदमनी । नगदी - स्त्री० दे० 'नदी' |
|
नगन* - वि० नग्न, निरावरण ।
नगनी - स्त्री० वह कन्या जो रजोधर्मकी अवस्थाको न पहुँची हो; वह कम अवस्थाकी कन्या जो बिना ऊपरका शरीर ढके भी रह सकती हो; वस्त्रहीन स्त्री ।
नगफनी * - स्त्री० दे० 'नागफनी' ।
नग़मा - पु० [अ०] सुरीली आवाज; गान; राग । नगर - पु० [सं०] कस्बे से बड़ी और समृद्ध वस्ती जिसमें अनेक जातियों और पेशोंके लोग बसते हों, पुर, शहर । - आयोजन - पु० (टाउन प्लैनिंग ) सोच-विचारकर तैयार की गयी योजना के अनुसार चौड़ी सड़कों, उद्यानों, उपवनों (पार्क्स), विद्यालयों, खेलके मैदानों आदिसे युक्त नगर बसानेका आयोजन करना, नगर-निर्माण-योजना । - काक - पु० तुच्छ व्यक्ति । -कीर्तन - पु० नगर में घूम घूमकर किया जानेवाला कीर्तन; गाजे-बाजे के साथ किया जानेवाला धर्मप्रचार | -जन- पु० नगर में रहनेवाले लोग, नागरिक । - नायिका, - नारी, -मंडना - स्त्री० वारां गना, वेश्या । - निगम - पु० ( म्यूनिसिपल कारपोरेशन) राज्यके किसी बड़े नगरकी नगरपालिका जिसे ऋणादि लेनेका तथा कुछ अन्य अधिकार भी प्राप्त होते हैं । - निगमाध्यक्ष- पु० (मेयर) किसी नगर निगमका अध्यक्ष । - पाल - पु० वह जिसका काम सभी बाधाओं से नगरकी रक्षा करना हो । - पालिका - स्त्री० (म्यूनिसिप लटी) नगरकी सफाई, रोशनी, सड़कों, पानी आदिकी व्यवस्था करनेवाली संस्था जिसके सभी या अधिकतर सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं। - पिता-पु० (सिटीफादर) नगरपालिकाका सदस्य, नगर- शासक । - प्रांत-पु० उपनगर । - भवन- पु० ( टाउनहाल ) नगरका वह सार्वजनिक भवन जहाँ समवेत होकर किसी विषयपर विचार किया जाय या जहाँ सभाओं, भाषणों आदिका आयोजन किया जा सके। -भाग- पु० (वार्ड) स्थानीय प्रशासनकी सुविधाकी दृष्टिसे किये गये नगर के भागोंमेंसे कोई भाग, हलका । -मार्ग - पु० राजमार्ग, चौड़ी सड़क । -रक्षा-स्त्री० नगरकी देखभाल या शासनप्रबंध । - वासी (सिन् ) - - पु० नगर में रहनेवाला, नागर, पुरवासी । - वृद्ध - पु० (एल्डरमैन) नगर निगम का मेयर से छोटा पदाधिकारी ।
नगराई * - स्त्री० नागरिकता; चतुरता, चालाकी । नगराधिप- पु० [सं०] वह कर्मचारी जिसके ऊपर नगरकी रक्षा आदिका दायित्व हो ।
नगराधिपति - पु० [सं०] दे० 'नगराधिप' | नगराध्यक्ष - पु० [सं०] दे० 'नगराधिप' । नगरी - स्त्री० [सं०] नगर । नगरीय - वि० [सं०] नगर-संबंधी, नागरिक । नगरेतर क्षेत्र - पु० [सं०] (मोफसिल) केंद्रस्थ नगर के आस
२५-क
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नगण-नज़र
पासके स्थान ।
नगरोपांत - पु० [सं०] उपनगर । नगवास * - पु० नागपाश ।
नगवासी * - स्त्री० नागपाश ।
नगाड़ा - पु० डुगडुगीकी शकलका एक बड़ा बाजा । नगाधिप, नगाधिपति - पु० [सं०] हिमालय; सुमेरु । नगाधिराज - पु० [सं०] हिमालय; सुमेरु । नगारा - पु० दे० 'नगाड़ा' । नगारि-पु० [सं०] इंद्र | नगिचाना* - अ० क्रि० पास आना ।
नगी - स्त्री० रतः छोटा रत्न; पार्वती; पहाड़ी स्त्री । नगीच * - अ० दे० 'नज़दीक' ।
नगीना - पु० [फा०] शोभावृद्धिके लिए अँगूठी आदिमें जड़ा जानेवाला पत्थर या शीशेका रंगीन टुकड़ा । - गर - साज़- पु० नगीना बनाने या जड़नेवाला । नगेंद्र- पु० [सं०] हिमालय; सुमेरु | नगेश- पु० [सं०] दे० 'नगेंद्र' । नगेसरि* - पु० नागकेसर |
नग्न - वि० [सं०] जिसके शरीरपर एक भी वस्त्र न हो, विवस्त्र, नंगा, दिगंबर; जिसपर कोई आवरण न हो, निरावरण |
नग्नतावाद - पु० [सं०] ( न्यूडिज्म ) पश्चिममें प्रचलित सिद्धान्त जिसके अनुयायी धूप और खुली हवाके समुचित सेवनकी दृष्टिसे विवस्त्र रहते हैं ।
नग्ना - स्त्री० [सं०] वह कन्या जो रजोधर्मको प्राप्त न हुई हो; दस या बारह वर्ष से कम अवस्थाकी कन्या जो बिना ऊपर के शरीर को ढके भी घूम-फिर सकती हो; बेहया स्त्री । नग्मा - पु० दे० 'नग़मा' | नग्र* - पु० दे० 'नगर' |
नघना-स० क्रि० लांघना, पार करना । नघाना-स० क्रि० पार कराना, लाँधनेका काम कराना । नचना* - अ० क्रि० नाचना, नृत्य करना; इधर-उधर भटकना । वि० नाचनेवाला, जो नाचे; जो बराबर इधरउधर घूमा करे ।
नचनि* - स्त्री० नाचनेकी क्रिया या ढंग; नाच । नचनिया * - पु० नाचनेका पेशा करनेवाला; नाचनेवाला । नचवैया - पु० नाचनेवाला या नचानेवाला । नचाना-स० क्रि० नाचने में प्रवृत्त करना; हैरान करना; किसीसे तरह-तरह के काम कराना; गोलाई में घुमाना; इधर से उधर घुमाना या फेरना । नचीला* - वि० नाचता हुआ, चंचल |
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नचौँहा* - वि० जो इधर से उधर घूमा करे, चंचल, विलोल । नछत्र* - पु० दे० 'नक्षत्र' |
नछत्री* - वि० जिसने किसी अच्छे नक्षत्र में जन्म लिया हो, भाग्यशाली ।
नज़दीक - अ० [फा०] समीप, पास । नज़दीकी - वि० [फा०] निकटका । पु० निकटका संबंधी । नज़र - स्त्री० [अ०] दृष्टि, निगाह; कृपा, दया; निगरानी, देखभाल; कुष्ट, टोना; परख; ध्यान; उपहार, उपायन, भेंट; वह रुपया अशरफी आदि जिसे अधीनस्थ राजा या
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नजरना-नथनी
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प्रजावर्गके लोग राजाओं या बड़े जमीदारोंको दरबार, | नटखट-वि० उपद्रवी, चंचल, शरीर, पाजी। त्योहार या किसी अन्य विशिष्ट अवसरपर भेंट करते हैं; नटखटी-स्त्री० पाजीपन, शरारत । चढ़ावा। -अंदाजी-स्त्री० जाँच, परख । -बंद-वि० | नटता-स्त्री० [सं०] नटका भाव या कार्य । जो किसी स्थानमें कड़ी निगरानीमें रखा गया हो और नटन-पु० [सं०] नाचना; अभिनय करना। जिसे निश्चित सीमाके बाहर जानेकी आशा न हो, जिसे नटना*-अ० क्रि० अभिनय करना नजरबंदीकी सजा दी गयी हो। पु० नजरबंदीका खेल कहकर फिर इनकार करना, मुकरना; नष्ट होना । स० दिखानेवाला जादूगर । -बंदी-स्त्री. वह सजा जिसके क्रि० बिगाड़ना, नष्ट करना । अनुसार किसीको किसी स्थानमें कड़ी निगरानीमें रखते नटनि*-स्त्री० नर्तन, नृत्य; इनकार, मुकरना। हैं और निश्चित सीमाके बाहर जानेकी अनुमति नहीं | नटनी-स्त्री० दे० 'नटिन'। दी जाती; नजरबंद होनेकी स्थिति; जादूका खेल जिसे नटसाल*-पु० नष्टशल्य, बाणकी गाँसी जो शरीरमें ही जादूगर दर्शकोंकी नजर बाँधकर किया करता हैं । बाग़- रह गयी हो; काँटेका वह हिस्सा जो निकल न सका हो; पु० घरसे मिला हुआ बाग । -व नियाज-पु. भेंट- पुनः पुनः उठनेवाली पीड़ा, टीस-'उठ सदा नटसाल लौं उपहार । -सानी-स्त्री० सुधार या संशोधनके लिए सौतिनके उर सालि'-बि० ।। किसी कार्य या लेखको देखना । मु०-अंदाज करना- नटिन, नटिनी-स्त्री० नटकी स्त्री; नट जातिकी स्त्री। दृष्टि न डालना; नापसंद करना ।-आना-दिखाई देना। नटी-स्त्री० [सं०] नाट्य करनेवाली स्त्री, अभिनेत्री प्रधान -पर चढ़ना-(किसीका) कोपभाजन होना; पसंद आ अभिनेत्री, सूत्रधारकी स्त्री; नट, अभिनेताकी स्त्री; वेश्या; जाना । -बदलना-रुष्ट होना; इरादा बदलना। नट जातिकी स्त्री; एक रागिनीः नखो नामक गंधद्रव्य । -बाँश्ना-मंत्र-प्रयोग आदिके द्वारा किसीको दृष्टि भ्रम नटेश, नटेश्वर-पु० [सं०] शिव । उत्पन्न कर देना। -लगना-बुरी दृष्टिका असर होना।। नटैया*-स्त्री० गला; गरदन । -लगाना-टोना करना।
नठना*-अ० क्रि० नष्ट होना। नजरना*-अ०क्रि० देखना । स०क्रि० नजर लगाना । नदना*-स० क्रि० गूंथना, पिरोना; कसना । नजरानना*-स० क्रि० नजर करना, भेटमें देना, उपायन- नत-वि० [सं०] नम्रीभूत, झुका हुआ; टेढ़ा । पु०मध्यंदिनके रूपमें देना; नजर लगाना ।
रेखासे किसी ग्रहकी दूरी; तगरमूल । -द्रुम-पु० लतानज़राना-पु० भेटमें दी जानेवाली वस्तु; उपायन, उप- शाल नामक वृक्ष । -पाल-पु० शरणागतका पालन करने हार । अ० क्रि० नजर लग जाना। स० क्रि० नजर वाला, प्रणतपाल । -मस्तक-वि० जिसका सिर झुका लगाना।
हुआ हो। नजरि*-स्त्री० दे० 'नजर' ।
नत*-अ० दे० 'नतु'। नज़ला-पु० [अ०] जुकाम, प्रतिश्याय, सरदी।
नतइता-पु० दे० 'नतेत'। नज़ाकत-स्त्री० [फा०] सुकुमारता ।
नतर, नतरकी-अ० दे० 'नतरु' । नजात-स्त्री० [अ०] मुक्ति, छुटकारा ।
नतरु*-अ० नहीं तो, अन्यथा । नज़ामत-स्त्री० [सं०] नाजिमका पद नाजिमका महकमा | नतांग-वि० [सं०] जिसका बदन झुका हो। या दफ्तर प्रबंध, इंतजाम ।
नतांगी-स्त्री० [सं०] स्त्री, नारी। नज़ारत-स्त्री० [अ०] नाजिरका पदः नाजिरका महकमा नति-स्त्री० [सं०] नम्र होना, झुकना; नमन, नमस्कार; या दफ्तर ।
विनय, टेढ़ापन; झुकाव । नज़ारा, नज्जारा-पु० [अ०] दृश्य; नजर; देखना। नतिनी-स्त्री० बेटीकी बेटी। नजिकाना*-अ० क्रि० पास पहुंचना, निकट पहुँचना। । नतीजा-पु० [फा०] फल, परिणाम; परीक्षाफल । नजीक*-अ० समीप, पास ।
नतु*-अ० नहीं तो, अन्यथा । नज़ीर-स्त्री० [अ०] उदाहरण, दृष्टांत, मिसाल; किसी मुक- नतैता-पु० रिश्तेदार, नातेदार । दमेका वह फैसला जो उसी ढंगके दूसरे मुकदमे में मिसाल- | नतैनी*-स्त्री० नाता, संबंध, रिश्ता। के तौरपर पेश किया जाय ।
नतोदर-वि० [सं०] (कॉन्केव) जिसका ऊपरी हिस्सा चारों नजूम-पु० [अ०] ज्योतिष ।
__ ओरसे भीतरकी ओर झुका हुआ हो । नजूल-पु० [अ०] सरकारी जमीन ।
नत्थी-स्त्री० कागज या कपड़ेके बहुतसे टुकड़ोंको एकमें नट-पु० [सं०] नाट्य करनेवाला, अभिनेता; गा-बजाकर गूंथना; एकमें गुंथे हुए कागज या कपड़ेके टुकड़े; मिसिल । या तरह-तरहकी कसरतें या खेल-तमाशे आदि दिखाकर नथ-स्त्री० नाकमें पहननेका बालीकी शकलका एक गहना। जीवनयापन करनेवाली एक जाति । -राज-पु० कृष्ण; नथना-अ० क्रि० नत्थी होना, नाथा जाना छेदा जाना। शिवः कुशल नट । -वर-पु० प्रधान नट, सूत्रधार; अति पु० नाकके छेदोंका आगेकी ओरका ऊपरी पर्दा जो साँस कुशल नट; कृष्ण जो नाट्यके आचार्य माने जाते है । वि० खींचने और छोड़ने में पचकता और फूलता रहता है; चतुर, चालाक । -सार,-सारा*-स्त्री० दे० 'नाट्य- | शाला'। -सारी*-स्त्री० बाजीगरी।
नथनी-स्त्री. छोटी नथ, बैल, भैसकी नाकमें पहनायी नई-स्त्री० गला; गलेकी घंटी।
| जानेवाली रस्सी; तलवारकी मूठपरका छला; नथके
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नथिया-नमक आकारकी वस्तु ।
नपुत्री*-वि० दे० 'निपुत्री'। नथिया -स्त्री० दे० 'नथ'।
नप्ता(प्त)-पु० [सं०] नाती; पोता। नथुना -पु० दे० 'नथना' ।
नप्ती-स्त्री० [सं०] पुत्र या पुत्रीकी लड़की। नथुनी-स्त्री० छोटी नथ ।
नफर-पु० [अ०] मजदूर; नौकर सेवक (साखी)। नद-पु० [सं०] बड़ी नदी-जैसे सोन, ब्रह्मपुत्र, सिंधु नफरत-स्त्री० [अ०] किसी चीजसे भागना; घृगा। समुद्र; एक ऋषि। -पति,-राज-पु० समुद्र ।
-अंगेज़-वि० घृणा करने योग्य; घृणोत्पादक । नदना*-अ० कि० पशुओंका बोलना; आवाज करना। | नारी-स्त्री० [अ०] मजदूरकी दिनभरकी मजदूरी या काम । नदर-वि० [सं०] (देश) जो नदीके पास हो; निर्भय, निडर । नफा-पु० [अ०] फायदा, लाभ, हासिल । नदान* -वि० नादान, बेसमझ, अबोध ।
| नासत-स्त्री० [अ०] नफीस-उम्दा होनेका भाव, नदारद-वि० [फा०] खाली; गैरमौजूद; गायब, लुप्त । बढ़ियापन, सुंदरता। नदिया*-स्त्री० नदी।
नफीरी-स्त्री० [फा०] शहनाई, तुरही। नदी-स्त्री० [सं०] जलकी वह बड़ी प्राकृतिक धारा जो नीस-वि० [अ०] उम्दा, बढ़िया, सुंदर । किसी पहाड़, झील आदिसे निकलकर विशिष्ट मार्गसे नफ़्स-पु० [अ०] जान; आत्मा; व्यक्ति वासना; भोगेच्छा; बहती हुई दूसरी नदी, शील या समुद्र में जा मिली हो; स्वार्थ । -कुशी-स्त्री० वासनाओंका दमन । -परस्तीकिसी तरल पदार्थकी बड़ी धारा। -कूल-पु० नदीका| स्त्री० विलासिता, ऐयाशी; स्वार्थपरता । किनारा, तट । -घाटी-योजना-स्त्री० (रिव्हर व्हैली नबी-पु० [अ०] ईश्वरका दूत, पैगंबर । स्कीम) वह योजना जिसके अनुसार उपयुक्त स्थानोंपर नबेड़ना, नबेरना -स० कि० दे० 'निबेड़ना' । नदीका बाँध आदि बनाकर नहरों द्वारा सिंचाईकी व्यवस्था | नबेला-वि० दे० 'नवेला'। की जाय । -प्रवाह-विज्ञान-पु० (हाइड्रो-डाइनेमिक्स) | नब्ज़-स्त्री० [अ०] नाड़ी; हाथकी वह रग जिसपर उँगली नदी-प्रवाहके या जलादिके प्रवाहके नियंत्रण या उससे रखकर वैद्य रोगकी हालत समझते हैं। मु०-छूटना,उत्पन्न शक्ति-संबंधी विज्ञान । मु०-नाव संयोग-संयोग- | न रहना-नाड़ीकी गति रुक जाना। से थोड़ी देरके लिए होनेवाली भेंट।
नब्बे-वि० अरसी और दस । पु० नब्बेकी संख्या, ९०। नदीश-पु० [सं०] समुद्र, वरुण। -नंदिनी-स्त्री० लक्ष्मी। नभ-पु० [सं०] सावनका महीना; आकाश । -ग-पक्षी, नद्ध-वि० [सं०] बँधा हुआ; ढका हुआ मिलाया हुआ।। देवता इ० । वि० गगनगामी । -ग-नाथ-पु० गरुड़ । नथुत्सृष्ट-पु० [सं०] नदी द्वारा छोड़ी हुई भूमि, दरिया
स)-पु० [सं०] आकाश; सावनका महीना; बरार, गंगवरार।
मेध; जल; वर्षा; विषसूत्र; आश्रय; पास (नंददास) । नधना-अ० क्रि० नाधा जाना; जोता जाना; किसी कार्य-नभगामी-वि०, पु० दे० 'नभोगामी' ।
का आरंभ होनाकिसी काम में लगना या जुटना । नभगेश-पु० [सं०] गरुड़ । ननंद-स्त्री० [सं०] ननद, पतिकी बहन ।
नभचर-वि०, पु० दे० 'नभश्चर' । ननकारना*-अ० क्रि० अस्वीकार करना, इनकार करना। नभधुज*-पु० दे० 'नभोध्वज' । ननद-स्त्री० दे० 'ननंद' ।
नमध्वज-पु० दे० 'नभोध्वज'। ननदी -स्त्री० ननद ।।
नभश्चक्षु(सू)-पु० [सं०] सूर्य । ननदोई-पु० ननदका पति ।
नभश्चर-वि० [सं०] आकाशमें विचरनेवाला। पु० पक्षी, ननसार-सी० दे० 'ननिहाल'।
देवता, गंधर्व आदि जोआकाशमें बिचरते हैं; बादल; वायु । ननिभउरा, ननियाउर*-पु० दे० 'ननिहाल' । नभस्वान (स्वत्)-वि० [सं०] बादलों या कुहरेसे भरा ननिया ससुर-पु० पति या पत्नीका नाना ।
हुआ। पु० वायु। ननिया सास-स्त्री० पति या पत्नीकी नानी ।
नभोगामी(मिन्)-वि०, पु० [सं०] दे० 'नभश्चर' । ननिहाल-पु० नानाका घर ।
नभोध्वज-पु० [सं०] बादल । नन्हा-वि० छोटा।
नभोनदी-स्त्री० [सं०] आकाशगंगा । नन्हाई-स्त्री० छोटापन ।
नभोमंडल-पु० [सं०] मंडलाकार आकाश । नन्हैया*-वि० दे० 'नन्हा'।
नभोमणि-पु० [सं०] सूर्य । नपाई-स्त्री० नापनेकी क्रिया या भाव; नापनेकी उजरत। नभोवीथी-स्त्री० [सं०] दे० 'छायापथ' । नपाक-वि० दे० 'नापाक' ।
नम-पु० [फा०] तर, सीला, आई । नपुंस-पु० [सं०] क्लीव, हिजड़ा।
नमक-पु० [फा०] विशेष प्रकारके स्वादके लिए भोज्य नपुंसक-पु० [सं०] वह पुरुष जिसमें कामशक्ति न हो, वस्तुओंमें छोड़ा जानेवाला एक प्रसिद्ध क्षार पदार्थ, लवण हिजड़ा। वि० नामर्द कायर (शब्द) जो न स्त्रीलिंग लावण्य, सलोनापन । -ख्वार-वि० नमक खानेवाला । हो, न पुंलिंग।
-दान-पु० नमक रखनेका पात्र ।-हराम-वि० स्वामी नपुंसकता-स्त्री०, नपुंसकत्व-पु० [सं०] नपुंसक होनेका या पालकसे छल या द्रोह करनेवाला, कृतघ्न ।-हरामीभाव; नपुंसक होनेका रोग, नामदीं।
स्त्री स्वामी यां पालकसे छल या द्रोह करनेकी क्रिया नपुआ-पु० नापनेके काम आनेवाला बरतन, मापदंड । या दुर्गुण, कृतघ्नता ।-हलाल-वि०स्वामी या पालककी
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पूज्य ।
नमकीन-नर
३९४ यथोचित सेवा करनेवाला। हलाली-स्त्री० नमकहलाल वि० विनयी नीतिज्ञ । होनेका भाव या गुण। मु०-भदा करना-स्वामी या नयकारी*-पु० नर्तकोंका मुखिया । पालककी यथोचित सेवा करना, उसके प्रति अपना कर्तव्य नयन-पु० [सं०] ले जाना या नेतृत्व करना शासन करना; पूरा करना। (किसीका)-खाना-(किसीकी) कृपासे बिताना, यापन; आँख, दृष्टि । -गोचर-वि०१० निर्वाह करना, (किसीकी) सेवा करके जीविका चलाना। _ 'दृष्टिगोचर' । -च्छद-पु० पलक। -जल-पु० आँसू । (कटेपर)-छिड़कना-दुःखीको और दुःख देना। -पट-पु०पलका-वारि,-सलिल-पु०आँसू ।-विषय -फूटकर निकालना-नमकहरामीका कुफल मिलना। -पु० दृश्य वस्तु; क्षितिज; दृष्टिपथ ।। -मिर्च मिलाना-किसी बातको आकर्षक या प्रभावोत्पा- | नयना*-अ० कि० झुकना, नम्र होना; नमस्कार करना । दक बनाने के लिए उसमें अपनी ओरसे कुछ और जोड़ देना। पु० दे० 'नयन' । नमकीन-वि० [फा०] जिसमें नमक छोड़ा गया हो; नयनाभिराम-वि० [सं०] जो देखने में सुंदर हो, नेत्रप्रिय । जिसमें नमकका स्वाद हो; लावण्ययुक्त, सलोना, सुंदर। नयनू-पु० नवनीत, मक्खन; एक तरहकी बूटीदार मलमल।
पु० नमक डालकर तैयार किया गया व्यंजन या पकवान । नयनोत्सव-पु० [सं०] दीपक प्रियदर्शन वस्तु । नमदा--पु० [फा०] जमाया हुआ ऊनी कपड़ा। नयनोपांत-पु० [सं०] आँखकी कोर, अपांग । नमन-पु० [सं०] प्रणाम करना नमस्कार, प्रणाम; झुकने- | नयर*-पु० नगर। की क्रिया।
नया-वि० जिसका उत्पादन, निर्माण, प्रकाशन, वयन, नमना*-अ० क्रि० नत होना; प्रणाम करना।
प्रवर्तन, ज्ञान या आविष्कार कुछ ही समय पूर्व हुआ नमनि*-स्त्री० दे० 'नमन' ।
हो, नवीन, नूतन, ताजा, पुरानाका उलटा कम उम्रका; नमनीय-वि० [सं०] नमस्कार या प्रणाम करने योग्य, । जिससे पहले-पहल साक्षात्कार या परिचय हुआ हो; जो
कुछ ही समय पहले प्रकट हुआ, देखा गया, मिला या नमश-स्त्री० [फा०] दूधका थोड़ा जमा हुआ फेन जो। पाया गया हो; हालका बना या बसा हुआ; पहलेवालेका जाड़ेके दिनोंमें बिकता है।
स्थानापन्न जिसका उपयोग पहले-पहल किया जा रहा नमसकारना*-स० क्रि० नमस्कार करना ।
हो, जिससे किसी दूसरेने कभी काम न लिया हो; जिसका नमस्करण-पु० [सं०] नमस्क्रिया।
आरंभ या पुनरारंभ अभी हालमें हुआ हो। [स्त्री० 'नयी'] नमस्कार-पु० [सं०] किसीके प्रति विनय सूचित करनेके -पनं-पु० नया होनेका भाव, नवीनता। लिए सिर नवाना, हाथ जोड़ना आदि ।
नर-पु० [सं०] पुरुष, मर्द नरसिंहके शरीरके नरभागसे नमस्क्रिया-स्त्री० [सं०] दे० 'नमस्कार'।
उत्पन्न एक दिव्य महर्षि, अर्जुन विष्णु; घोड़ा; शतरंजका नमस्ते-अ० [सं०] एक वाक्य जिसका अर्थ है-'आपको मोहरा सेवक *पानी बहनेका नल | वि० पुरुष जातिका नमस्कार है।
(मर्द)। -कत*-पु. राजा, नृप । -कपाल-पु० नमाज-स्त्री० [फा०] मुसलमानोंकी ईश्वरोपासना ।-गाह मनुष्यकी खोपड़ी। -केशरी(रिन्),-केसरी-(रिन्)-पु०, स्त्री० मस्जिदमें नमाज पढ़नेकी जगह ।
पु०विष्णुके अवतार नृसिंह; सिंह जैसा पराक्रमी मनुष्य । नमाना*-स० क्रि० झुकाना; शमें लाना ।
-केहरी-पु० दे० 'नरकेशरी' । -तात-पु० राजा । नमित-वि० [सं०] झुका हुआ; झुकाया हुआ।
-दारा-पु० जनखा, नपुंसक । -देव-पु० राजा; नमी-स्त्री० [फा०] तरी, सीलन ।
ब्राह्मण । -द्विट् (प)-पु० राक्षस । - नाथ,-नायकनमूना-पु० [फा०] किसी वस्तुका वह छोटा या थोड़ा
पु० राजा। -नारायण-पु० नर और नारायण-अर्जुन अंश जिससे अंशीका गुण, स्वरूप आदि जाना जाय, और कृष्ण जिन्हें एक ही सत्त्वके दो रूप मानते है । बानगी; वह वस्तु जिससे उस ढंग या जातिकी अन्य -नारी-स्त्री० अर्जुनकी स्त्री द्रौपदी; पुरुप-स्त्री।-नाहवस्तुओंका गुण, स्वरूप आदि जाना जायः वह जिसका पु. राजा। -नाहर-पु० [हिं०] दे० 'नरकेशरी'। अनुकरण किया जाय, आदर्श खाका ।
-पति-पु० राजा । -पद-पु० दे० 'जनपद'।-पशुनम्य-वि० [सं०] जो झुक सके।
पु० पशुतुल्य मनुष्य । -पाल-पु० राजा।-पिशाचनम्यता-स्त्री० [सं०] (प्लायेविलिटी) मोड़े जाने या झुका पु० पिशाचकी तरह कर स्वभाववाला मनुष्य, बहुत बड़ा दिये जानेपर वैसा ही रह जानेका गुण ।
नीच मनुष्य । -पुंगव-पु० श्रेष्ठ मनुष्य । -बलिनम्र-वि० [सं०] झुका हुआ, नत; विनीत; वक। स्त्री० मनुष्योंकी बलि । -भक्षी (क्षिन),-भुक् (ज)नय-पु० [सं०] ले जाने या नेतृत्व करनेकी क्रिया; नीति पु० मनुष्योंको खानेवाला, राक्षस । -मेध-पु० मनुष्योंराजनीति; नम्रता; व्यवहार, बर्ताव; सिद्धांत, मत; दूर- की बलि । -यंत्र-पु० समय जाननेका एक प्रकारका दर्शिता; नैतिकता; योजना । वि० नेतृत्व करनेवाला; उप- प्राचीन यंत्र, धूपघड़ी। -यान,-रथ-पु० मनुष्य द्वारा युक्त, उचित । * स्त्री० नदी ।-कोविद,-ज्ञ-वि० नीति खींची या ढोयी जानेवाली सवारी (डोली, पालकी, जाननेवाला, नीतिनिपुण । -चक्षु(स्)-वि० दूरदशी, रिक्शा इ०)। -लोक-पु० मर्त्यलोक; मनुष्य जाति । नीतिज्ञ । -नागर-वि० नीतिनिपुण । -नेता(त)-पु० -वध-पु० नरहत्या। -वर-पु० श्रेष्ठ मनुष्य । बहुत बड़ा राजनीतिश ।-पीठी-स्त्री० शतरंजकी बिसात । -वाहन-पु० कुबेरदे० 'नरयान'। -ध्याघ्र-पु० -विद,-विशारद-पु० राजनीतिका ज्ञाता। -शील श्रेष्ठ पुरुष; एक जलजंतु जिसका ऊद्व भाग बाध
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३९५
नई-नर्म जैसा और अधोभाग मनुष्य जैसा होता है।
नराट-पु० राजा। पु० दे० 'नरव्याघ्र'। -शृंग-पु. एक अलीक कथन नराधम-पु० [सं०] नीच मनुष्य । (मनुष्यका सींग जिसका होना असंभव है)। -सिंघ- नराधिप, नराधिपति-पु० [सं०] राजा। पु० दे० 'नरसिंह' । -सिंह-पु० विष्णुका वह विग्रह नरायण-पु० [सं०] विष्णु । जिसे उन्होंने चौथे अवतार में धारण किया था। इसमें नरायन-पु० दे० 'नारायण' । विष्णुके शरीरका आधा भाग सिंह जैसा था और आधा नरिंद*-पु० नरेंद्र, राजा। मनुष्य जैसा । -हत्या-स्त्री० मनुष्यको मार डालना, नरिअर, नरियरी -पु० दे० 'नारियल' । नरवध । -हरि-पु० दे० 'नरसिंह' ।
नरिअरी -स्त्री० दे० 'नरेली' । नरई-स्त्री० भैस, घोड़े आदिको खिलानेके कामकी तालमें नरिया-स्त्री० एक तरहका अर्द्धवृत्ताकार लंबा खपड़ा। होनेवाली एक घास घास आदिका पोला डंठल । नरियाना -अ० कि० चिल्लाना । नरक-पु० [सं०] धर्मशास्त्रके अनुसार वह स्थान जहाँ नरी-स्त्री० [सं०] स्त्री [फा०] बकरी या बकरेका रँगा पापियोंकी आत्माओंको अपने कुकृत्योंका फल भोगनेके हुआ चमड़ा; नरई धास; नली, छुच्छी; सुनारोंकी बाँसलिए जाना पड़ता है। बहुत गंदी जगह; वह स्थान जहाँ की बनी फुकनी।। बहुत कष्ट हो। -गामी(मिन्)-वि० नरकमें जानेवाला। नरुवा -पु० अनाजवाले पौधोंका (पोला) डंठल । -चतुर्दशी-स्त्री० दिवालीके ठीक पहले पड़नेवाली नरेंद्र-पु० [सं०] राजा; विषवैध । -मंडल-पु० (प्रिंसेज चतुर्दशी।
चेंबर्स) अंग्रेजी राज्यके समय बनी देशी नरेशोंकी संस्था । नरकट-पु० पतली-लंबी पत्तियों तथा पतले-गाँठदार नरेली-स्त्री० छोटा नारियल नारियलकी खोपड़ी या उसका
डंठलवाला पौधा जिससे कलम, चटाई आदि बनाते हैं। बना हुक्का । नरकल, नरकुल-पु० नरकट ।
नरेश, नरेश्वर-पु० [सं०] राजा। नरकस-पु० नरकट ।
नरेस*-पु० राजा। नरकांतक-पु० [सं०] (नरकासुर नाशक) कृष्ण । नरों-अ०, पु० दे० 'नरसों। नरकारि-पु० [सं०] कृष्ण ।
नरोत्तम-पु० [सं०] श्रेष्ठ मनुष्य; विष्णु । नरकासुर-पु० [सं०] पृथ्वीके गर्भसे उत्पन्न एक असुर नर्क-पु० [सं०] नाक; * दे० 'नरक' । जिसका वध कृष्णने किया था ।
नर्कट-पु० दे० 'नरकट'। नरगिस-पु० [फा०] हलके पीले रंगका एक प्रसिद्ध फूल नर्गिस-पु० दे० 'नरगिस' ।
जो उर्दू-फारसी साहित्य में आँखका उपमान है। नर्त-वि० [सं०] नाचनेवाला । पु० नाच, नर्तन । नरतक*-पु० दे० 'नर्तक'।
नर्तक-पु० [सं०] नाचने या नृत्य करनेका पेशा करनेवाला; नरद-स्त्री० दे० 'नर्द' ।
अभिनेता शिव । नरदन-पु० दे० 'नर्दन'।
नर्तकी-स्त्री० [सं०] नाचने या नृत्य करनेका पेशा करनेनरदवा-पु० नाबदान ।
वाली स्त्री; अभिनेत्री; हथिनी; मोरनी। नरदा -पु. नावदान ।
नर्तन-पु० [सं०] नाच, नृत्य; नाचना या नृत्य करना । नरम-वि० दे० 'नर्म'।
-गृह-पु०,-शाला-स्त्री० नाचनेके लिए बनाया गया नरमट-स्त्री० मुलायम मिट्टीवाली जमीन ।
या केवल नाचके काममें आनेवाला घर, नाचघर । - नरमा-स्त्री० एक प्रकारकी कपास, सेमरकी रुई; एक तरह- प्रिय-वि० जिसे नाच अच्छा लगे । पु० शिव; मोर । का मुलायम कपड़ा।
नर्तना-अ० क्रि० नाचना, नृत्त करना । नरमाई*-स्त्री० दे० 'नमी' ।
नर्तयिता(त)-पु० [सं०] नाचनेवाला; नाचना सिखनरमाना-अ० कि० नरम होना, मुलायम होना; कम | लानेवाला । होना; शांत होना । स० क्रि० नरम करना; कम करना। नर्द-वि० [सं०] करने या गरजनेवाला । स्त्री० [फा०] नरमी-स्त्री० दे० 'नी' ।
चौसरकी गोटी। नरर्षभ-पु० [सं०] राजा।।
नर्दन-पु० सं०] गर्जन ऊँचे स्वरमें गुण-गान करना। नरसिंगा, नरसिंघा-पु० टेढ़े आकारका एक बाजा जो नर्दा-पु० दे० 'नरदा' फूककर बजाया जाता है।
नर्दी (र्दिन)-वि० [सं०] गरजनेवाला। नरसौं-अ० बीते हुए परसोंके पहले या आनेवालेके पीछे। नर्म(न)-पु० [सं०] हँसी, परिहास, विनोद । -दपु० बीते हुए परसोंके पहले या आनेवालेके पीछेका दिन । | वि० हेसानेवाला, परिहासजनक, विनोदकर । पु० नर्मनरहड़, नरहर-स्त्री० पिंडलीके ऊपरकी हड्डी।
सचिव, विदूषक। -सचिव,-सुहृद-पु० राजाको नरांतक-पु० [सं०] रावणका एक पुत्र ।
हँसाने, प्रसन्न रखनेके लिए उसके साथ रहनेवाला व्यक्ति, नराच-पु० बाण, तीरः [सं०] एक वर्णवृत्त ।
राजाका हँसी-परिहासका सखा, विदूषक । नराज-वि० दे० 'नाराज'।
नर्म-वि० [फा०] गुदगुदा, मुलायम, कोमल, आसान, नराजना*-स० क्रि० नाराज करना, क्रुद्ध करना, अप्रसन्न | सहल; सस्ता; जो तेज न हो, धीमा; विनम्र, विनययुक्त करना । अ० क्रि० नाराज होना, अप्रसन्न होना ।
खोटा, नीच, मंदा। -गर्म-वि० सस्ता-महँगा; बुरा
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नर्मठ - नवाज़
भला । -दिल- वि० कोमल हृदयवाला । नर्मठ - पु० [सं०] परिहास - कुशल मनुष्य, मसखरा; जार । नर्मदेश्वर - पु० [सं०] नर्मदा में पाया जानेवाला एक शिवलिंग |
नर्मी - स्त्री० [फा०] नर्म होनेका भाव ।
नल-पु० पानी, हवा आदिको एक स्थान से दूसरे स्थानतक ले जानेके लिए धातु, काठ आदिका बना इंडेके आकारका पोला लंबोतरा टुकड़ा; एकमें जोड़े हुए ऐसे बहुत से टुकड़े; वह नल जिसके द्वारा घरोंमें पानी पहुँचाया जाता है; पेशावकी नली; * आदमी; [सं०] निषध देशके एक प्राचीन और प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा जिनका विवाह विदर्भनरेश भीमकी कन्या दमयंती से हुआ था; रामकी सेनाका एक भट जिसने नीलके सहयोगसे समुद्रपर पत्थरका पुल बाँधा था । -कूप- पु० [हि० ] ( ट्यूबवेल) खेतों आदिमें जमीन के भीतर बैठाया गया नल, जिसका एक सिरा उस गहराईतक पहुँचता है जहाँ पानी रहता है । नलनी * - स्त्री० दे० 'नलिनी' । नलिका - स्त्री० छोटा और पतला नल, नली; [सं०] नली नामका_गंधद्रव्य; जुलाहों का कपड़ा बुननेका एक औजार; एक प्राचीन. अस्त्र ।
नलिन - पु० [सं०] कमल; कुमुद; सारस; नील; जल । नलिनी - स्त्री० [सं०] कमलिनी; वह जलाशय जिसमें कमलकी प्रचुरता हो; कमलोंका समूह; नली नामका गंधद्रव्य नदी ।
नली - स्त्री० छोटा और पतला नल; बंदूक में वह लंबा छेद जिसमें से होकर गोली बाहर आती है; नलके आकारको पतली हड्डी; [सं०] मैनसिल; नलिका नामक गंधद्रव्य । नलुआ-पु० पशुओं का एक रोग; छोटा नल; बाँसकी पोर । नलोपाख्यान - पु० [सं०] राजा नलकी कथा | नल्लिका - स्त्री० (पिपेट) किसी द्रव पदार्थका थोड़ा सा अंश एक पात्रसे निकालकर दूसरे पात्रमें डालने, गिरानेके लिए प्रयुक्त पतली छोटी नली (रसा० वि० ) । नव - वि० [सं०] नया, नूतन । जात-वि० तुरंतका पैदा हुआ, नया। ज्वर - ५० वह ज्वर जो अभी हाल में आरंभ हुआ हो, तरुण ज्वर । तन* - वि० नूतन, नया । - नी - स्त्री० ताजा मक्खन । -नीत- पु० दे० 'नवनी' । - प्रसूता - स्त्री० वह स्त्री जिसे हाल में ही बच्चा पैदा हुआ हो। मल्लिका - स्त्री० चमेली; नेवारी नामका फूल; इसका झाड़ । - यौवन- पु० नयी जवानी, चढ़ती जवानी । - यौवना - स्त्री० वह स्त्री जिसकी चढ़ती जवानी हो, तरुणी । रंग-वि० [हिं०] खिलते हुए सौंदर्यवाला, अभिनव छविसे युक्त; नवीन रूप या शोभासे युक्त । - रंगी - वि० [हिं०] नित्य नये रंगमें रँगा रहनेवाला, रँगीला । -वधू - स्त्री० नवविवाहिता स्त्री, नयी दुलहिन । - शिक्षित - वि० जिसने अभी हाल में कोई कला या विद्या सीखी हो; जिसने आधुनिक शिक्षा प्राप्त की हो । - संगम - पु० पति और पत्नीका प्रथम मिलन, प्रथम समागम । - सर* - वि० नयी उम्रका | दे० 'नव ( न् ) ' के साथ । - ससि* - पु० द्वितीयाका चंद्रमा । - सिखा - वि० [हिं०] दे० 'नौसिखुआ। ' ।
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नव (न्) - वि० [सं० ] नौ । पु० नौकी संख्या, ९ । - कुमारी - स्त्री० नवरात्र में पूजी जानेवाली नी कुमारियाँ । - खंड - पु० पृथ्वी के नौ विभाग - भारत, इलावृत्त, किंपुरुष, भद्र, केतुमाल, हरि, हिरण्य, रम्य और कुश । - ग्रह - पु० नौ ग्रह - सूर्य, चंद्र, भौम, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु । - दुर्गा - स्त्री० दुर्गा के नौ विग्रहशैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री | -द्वार - पु० शरीरके नौ छिद्र जो प्राणके निकलने के नौ मार्ग हैं- दो नेत्र, नाकके दोनों छिद्र, मुख, दो कान और दो गुप्तेंद्रियाँ । द्वीप - पु० बंगालका एक प्राचीन विद्याकेंद्र, नदिया | - धातु-स्त्री० नौ प्रकारकी धातुएँ । - निधि - स्त्री० कुबेरकी नौ निधियाँ - पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व । - रत्नपु० नौ प्रकारके रल - मोती, मानिक, वैदूर्य, गोमेद, हीरा, मूँगा, पद्मराग, पन्ना और नीलम; राजा विक्रमादित्य की सभा के प्रख्यातः नौ विद्वान् धन्वंतरि क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि, नौ प्रकारके रत्नोंवाला हार । - रस- पु० साहित्य में प्रसिद्ध नौ प्रकारके रस - शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शांत । -रात्र -५० नौ दिनोंमें समाप्त होनेवाला यज्ञ, व्रत, अनुष्ठान आदि; चैत्र और आश्विन में शुट्टा प्रतिपदासे नवमी तक के नौ दिन जिनमें दुर्गा की विशिष्ट पूजा की जाती है। -सत - वि०, पु० दे० 'नवसप्त' । -सप्तवि० सोलह । पु० सोलह शृंगार - सर- पु० [हिं०] नौ लड़का हार | मु० - सत सजना या साजना - सोलद्दों
शृंगार करना ।
नवक - पु० [सं०] नौ सजातीय वस्तुओंका समाहार । नवका* - स्त्री० नौका |
नवता - स्त्री०, नवत्व- पु० [सं०] नया होनेका भाव,
नयापन ।
नवति - वि० [सं०] अस्सी और दस । स्त्री० नब्बेकी संख्या | नवधा- अ० [सं०] नौ प्रकारसे नौ भागोंमें, नौ टुकड़ों या खंडोंमें। -भक्ति-स्त्री० नौ प्रकारकी या नौ प्रकार से की जानेवाली भक्ति - श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन । नवन * - पु० झुकना, नमन । नवना* - अ० क्रि० झुकना; नम्र होना ।
नवनि* - स्त्री० झुकनेकी क्रिया या भाव; नमन; नम्रता । नवम - वि० [सं०] नवाँ ।
नवमी - स्त्री० [सं०] पक्षकी नवीं तिथि ।
नवल - वि० नवीन, नया; रँगीला, सुंदर; नयी उम्रका, युवा । - किशोर - पु० कृष्ण । नववर, नववरि* - स्त्री० दे० 'न्योछावर' | नवाँ - वि० नवम, आठवेंके ठीक बादका । नवा - वि० नया ।
नवाई * - वि० नया । स्त्री० नम्रता ।
नवागत वि० [सं०] नया-नया या हालका आया हुआ । नवाज़ - वि० [फा०] कृपा करनेवाला, कुपालु, दयावान् ।
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नवाजना-नसीबा
नवाजना*-अ० क्रि० कृपा दिखलाना, रहम करना। नशीला-वि० नशा लानेवाला, जिसके सेवनसे नशा छा नवाज़िश-स्त्री० [फा०] कृपा, मेहरबानी।
जाय, मादक; जिसमें नशा छाया हो, मदभरा । नवाना-सक्रि० झुकाना; नम्र होनेके लिए प्रेरित करना। नशेड़ी-वि० नशेबाज । नवान-पु० [सं०] घरमें आया हुआ नया अन्न । नशोहर*:-वि० नाशक । नवाब-पु० [अ० नव्वाब मुसलमानों के राजत्व कालमें नश्तर-पु० [फा०] छुरे जैसा चीर-फाड़ करनेका आला । किसी बड़े प्रदेश या सूबेके शासनके लिए नियुक्त किया | मु०-देना-नश्तरसे फोड़ा या घाव चीरना ।-लगनाजानेवाला राजकर्मचारी; मध्यम श्रेणीके वर्तमान मुसल- | नश्तरसे फोड़े या घावका चीरा जाना। मान अधीश्वरोंकी एक उपाधि, मुसलमान रईसोंको अंग्रेजी नश्वर-वि० [सं०] नष्ट हो जानेवाला, नाशशील । सरकार द्वारा दी जानेवाली एक उपाधि । वि० बड़े ठाट- | नष*-पु० नाखून, नख ।-सिप-पु० दे० नख-शिख' । बाटसे रहनेवाला; फजूल खर्च, अपव्ययी। -जादा- | नपत* -पु० दे० 'नक्षत्र'। पु० नवाबका पुत्र; वेहद शौकीन आदमी।
नष्ट-वि० [सं०] जिसका अदर्शन या तिरोभाव हो गया हो, नवाबी-स्त्री० [फा०] नवाबका पद: नवाबका काम; नवाब तिरोहित; जिसकी सत्ता समाप्त हो चुकी हो, जिसकी होने की स्थिति; नवाबोंका शासनकाल; नवाबोंकासा शासन
स्थिति अब न हो, नाशप्राप्त नीच, अधम; बरबाद खराब, या ठाट-बाट; नवाबोंकासा रहन-सहन, बहुत अधिक चौपट; * व्यर्थ ।-चंद्र-पु० भाद्रपदके दोनों पक्षोंकी (अब अमीरी। मु०-करना-नवाबोंकी तरह शान-शौकतसे केवल शुक्ल पक्षकी) चौथका चाँद जिसका दर्शन निषिद्ध रहना।
है।-चेतन,-चेष्ट-वि० मूच्छित, बेहोश।-निधि-पु० नवासी-वि० अस्सी ओर नी । पु० नवासीकी संख्या,८९।। (बैंक्रप्ट) दिवालिया।-प्रभ-वि० आभारहित,तेजोरहित, नवाह-पु० [सं०] नौ दिन; नवा दिन नी दिनों में समाप्त कांतिहीन । -बुद्धि-वि० बुद्धिहीन, प्रशारहित । -भ्रष्ट किया जानेवाला (रामायण आदिका) अनुष्ठानरूप पाठ -वि० बरबाद, चौपट । -शल्य-पु० दे० 'नटसाल' । या यश; किसी सप्ताह, पक्ष आदिका प्रथम दिन ।
-संज्ञ-वि० दे० 'नष्टचेतन'। -स्मृति-वि० जिसकी नवीकरण-पु० [सं०] (रिनोवेशन) फिरसे नया कर देना, | स्मरणशक्ति नष्ट या क्षीण हो गयी हो। पुनः भली और चंगी स्थिति में ला देना ।
नष्टा-स्त्री० [सं०] वेश्या; व्यभिचारिणी। नवीन-वि० [सं०] अपूर्व नया; मौलिक ।
नसंक*-वि० निःशंक, निर्भय, निडर । नवीस-पु० [फा०] लिखनेवाला, लेखक (समासमें)। | नस-स्त्री० रग, पेशियोंको बाँधनेवाला तंतु; रुधिरवाहिनी नवेद-पु० निमंत्रण; निमंत्रण-पत्र ।
नलिका। -कट-वि० (खटिया) जिसकी अदवान नस नवेला-वि० नवीन, नया; नयी उम्रका, युवा ।
काटनेवाली हो।-कटा-पु० हिजडा, नामर्द ।-तरंगनवोढा-स्त्री० [सं०] नवविवाहिता स्त्री; लज्जा और भयके पु० शहनाईके ढंगका एक बाजा। मु०-चढ़ना-अपने मारे नायकके पास जानेमें सकुचानेवाली नायिका । स्थानसे हटनेके कारण नसका तन जाना ।-नस फड़क नवोत्थान-पु० [सं०] (रिनेसा) दे० 'पुनरुत्थान' । उठना-सारी देह में प्रसन्नताका संचार होना, बहुत अधिक नवोदक-पु० [सं०] पहली वर्षाका पानी; खोदते समय | हर्ष होना । --भड़कना-दे० 'नस चढ़ना' । -(नस) धरतीके भीतरसे पहले-पहल निकलनेवाला पानी।
ढीली करना-हीसला पस्त करना, बल तोड़ देना । नवोद्भाव, नवोद्भावन-पु० [सं०] (इनवेंशन) दे० -ढीली होना-हौसला पस्त होना, बल टूट जाना। 'उद्भावन'।
नसना*--अ० क्रि० नष्ट होना; खराब होना; भागना। नव्य-वि० [सं०] नया, नवीन स्तुत्य ।
नसल-स्त्री० दे० 'नस्ल'। नवाब-पु० [अ०] दे० 'नवाब' ।
नसवार-स्त्री० नास, सुँघनी । नशना*-अ० क्रि० नष्ट होना, बरबाद होना।
नसा-स्त्री० [सं०] नासिका, नाक । पु० दे० 'नशा' । नशा-पु० [अ०] भाँग, अफीम, शराब आदि मादक द्रव्योंके | नसाना-स० क्रि० नष्ट करना । अ० क्रि० दे० 'नसना'। सेवनसे उत्पन्न दशा जिसमें कभी-कभी इंद्रियाँ और बुद्धि नसीत*-स्त्री० दे० 'नसीहत' । काबूके बाहर हो जाती हैं; मादक द्रव्य, नशीली चीज; नसीनी-स्त्री० सीढ़ी, जीना । मद, गर्व । -खोर-पु० किसी मादक द्रव्यका बराबर नसीब-पु० [अ०] किस्मत, भाग्य, अदृष्ट । -जला-वि० सेवन करनेवाला व्यक्ति । -पानी-पु० नशीली चीजें जिसका भाग्य फूट गया हो, अभागा।-वर-वि० भाग्यखाना या पीना। (नशे)बाज़-वि० नशाखोर । मु०- शाली, भाग्यवान् । मु०-आजमाना-भाग्यके भरोसे उतरना-नशा दूर होना; गर्व नष्ट होना। -किरकिरा कोई काम करना ।-खुल जाना,-चमकना,-जागना, होना-किसी कारणवश नशेका मजा जाता रहना। -सीधा होना-भाग्यका उदय होना। -टेढा होना-चढ़ना-नशीली चीजका असर होना। -टूटना-दे० बुरे दिन आना ।-पलटना-अच्छेसे बुरा या बुरेसे अच्छा 'नशा उतरना।
दिन आना। -फूट जाना,-सो जाना-किस्मत बिगनशाना*-स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'नसाना' ।
ड़ना। -में लिखा होना-किस्मतमें बदा होना । - नशावन* -पु० नष्ट करना, नाशन । वि० नष्ट करनेवाला, | लड़ना-भाग्यका साथ देना। -होना-मिलना, प्राप्त नाशक (केवल समासमें प्रयुक्त)।
होना। नी, नशीन-वि० [फा०] बैठनेवाला (केवल समासमें) नसीबा -पु० दे० 'नसीब' ।
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नसीला-ना
३९८ नसीला -वि० नसोंवाला; नशीला।
नॉठना-अ० क्रि० नष्ट होना, खराब होना, बरबाद होना। नसीहत-स्त्री० [अ०] शिक्षा, उपदेश; अच्छी राय । नाँद-स्त्री० पशुओंको चारा-पानी देनेका मिट्टीका ( या नसूड़िया-वि० मनहूस ।
पीतल आदिका) गोल, गहरा और चौड़े मुँहका वरतन । नसूर-पु० दे० 'नासूर'।
नाँदना*-अ० क्रि० शब्द करना; गंभीर शब्द करना; नसेनी-स्त्री० सीढ़ी, जीना।
छींकना प्रसन्न होना। नस्तित-वि० [सं०] (वह बैल) जिसकी नाकमें नाथ पह-नांदी-स्त्री० [सं०] समृद्धि, धन-संपत्ति; अभ्युदयः वह नायी गयी हो; (ला०) नत्थी किया हुआ।-पत्रसमूह- मंगलात्मक श्लोक जिसका पाठ सूत्रधार नाटकके आरंभमें पु० (फाइल ) तार आदिमें नत्थी कर एक जगह रखे गये करता है। -घोष-पु० भेरी आदिका शब्द । -मुखकागज-पत्रोंका समूह।
पु० जन्म, उपनयन, विवाह आदि मांगलिक अवसरोंपर नस्तिपंजी-स्त्री० (फाइल रजिस्टर) तार, टीनकी पत्ती, किया जानेवाला एक आभ्युदयिक श्राद्ध कुएंका ढक्कन । क्लिप आदिमें फँसाकर कागज-पत्र एक जगह रखनेकी पंजी। -श्राद्ध-पु० दे० 'नांदीमुख' । नस्तिपत्री-स्त्री० (फाइल) वह पोथी या कापी जैसा ढाँचा नाय*-पु० नाम । अ० नहीं। जिसके भीतर महत्वके कागज-पत्र नत्थी करके रखे जाएँ ।
नजीकरवे जाण। नाव -पु० नाम । नस्य-पु० [सं०] नास, अँधनी; बैलोंकी नाकमें पहनायी नाह*-पु० दे० 'नाह'। जानेवाली रस्सी।
ना-अ० [सं०] एक निषेधसूचक शब्द। -कारी-पु० नस्याधार-पु० [सं०] नासदानी ।
(नोज) किसी प्रस्तावके विरोध में 'ना' कहनेवाले सदस्य । नस्ल-स्त्री० [अ०] वंश, कुल; जाति ।
ना-अ० [फा०] एक निषेध, अस्वीकृति या अभाव नस्वर*-वि० दे० 'नश्वर'।
मूचित करनेवाला शब्द, न, नहीं। -इत्तिफाक्री-स्त्री० नह, नहां-पु० नख, नाखून। -छ-पु० तेल-हलदीके मनमुटाव, विराध, बिगाड़ ।-इन्साफ-वि०जो न्याय न बादकी विवाहकी एक रस्म जिसमें वरकी हजामत बनती करे, अन्यायी। -इन्साफ्री-स्त्री० अन्याय, अत्याचार । है, नाखून काटे जाते हैं और महावर आदि लगाते हैं । -उम्मेद-वि० निराश। -उम्मेदी-स्त्री. निराश नहन, नहनि*-स्त्री० मोट खींचनेकी मोटी रस्सी। होनेका भाव, निराशा। -क़दर-कदरा-वि० कदर या नहना*-स० कि० नाधना, काममें लगाना ।
गुण न समझनेवाला, नालायक । -काबिल-वि० नहनी -स्त्री० दे० 'नहरनी'।
अयोग्य । -काम-वि० जो काम लायक न हो, खराब । नहर-स्त्री० यातायात या सिंचाईके लिए किसी नदी या -खुश-वि० अप्रसन्न, रुष्ट । -गवार-वि० जो गवारा जलाशयमेंसे निकाला गया जलमार्ग ।
न किया जा सके, असह्य; अप्रिय । -चार-वि० विवश, नहरनी-स्त्री० हज्जामोंका नाखून काटनेका प्रसिद्ध आला। बेबस गरीब; निराश; अपाहिज । अ० लाचार होकर । नहरी-स्त्री० नहरके पानीसे सींची जानेवाली जमीन । -चीज़-वि० नगण्य, तुच्छ । -जायज़-वि० अनुचित, नहरुआ, नहरुवा-पु० दे० 'नारू'।
जिसे करना, लेना, कहना आदि उचित न हो। -तजनहला-पु० नौ बूटियोंवाला ताशका पत्ता; नक्काशी आदि यंकार-वि० अनुभवहीन, अनाड़ी। -तमाम-वि० बनानेकी राजगीरोंकी छोटी करनी ।
अधूरा। -ताकत-वि० शक्तिहीन, अशक्त ।-ताक्रतीनहलाई-स्त्री० नहलानेकी क्रिया, नेग या मजदूरी। स्त्री० शक्तिहीनता, कमजोरी । -दान-वि० नासमझ, नहलाना, नहवाना-स० क्रि० स्नान कराना।
अबोध, मूर्ख। -दानी-स्त्री० नासमझी, मूर्खता ।-दारनहान-पु० नहानेकी क्रिया, स्नान स्नानका पर्व । वि० जिसके पास कुछ न हो, अकिंचन । -दिहंद-वि० नहाना-अ० क्रि० सिरसे पानी उँडेलकर, नदी आदिमें लेकर अदा न करनेवाला, जो ली हुई रकम न दे। गोता लगाकर या ऊपरसे गिरती हुई धारके नीचे बैठकर -देहंद-वि० दे० 'नादिहंद'। -पसंद-वि० जो पसंद मैल या थकान दूर करनेके लिए शरीरको मलकर धोना; न हो, जिसे जी न चाहे, अप्रिय । -पाक-वि० अपवित्र, सिरसे पैरतक किसी तरल पदार्थ से सराबोर हो जाना। अशुचि, मैला, गंदा। -पायदार-वि० जो टिकाऊ न नहार-वि. जो बासी मुँह हो, जो सबेरेसे बिना कुछ खाये हो, अस्थिर, क्षणस्थायी, कमजोर ।-बालिग़-वि० जिसने ही हो। -मुँह-अ० बासी मुंह । मु०-तोड़ना-जलपान होश न सँभाला हो, अवयस्क (प्रायः १८ वर्षकी अवस्थामें करना । -रहना-बिना कुछ खाये, निराहार रहना। आदमी बालिग होता है), बालिगका उलटा ।-बालिग़ीनहारी-स्त्री० सबेरेका हलका भोजन, जलपान, नाश्ता । स्त्री० नाबालिग होने की अवस्था या स्थिति । -बूद-वि० नहि, नहिँन*-अ० दे० 'नहीं'।
जिसकी सत्ता न हो, नष्ट । -मंजूर-वि० जो मंजूर न नहीं-अ० निषेध, अस्वीकृति या अभाव सूचित करनेवाला हो, मंजूरका उलटा, अस्वीकृत । -मर्द-वि० नपुंसक एक शब्द ।-तो-अ० यदि ऐसा न हुआ तो, ऐसा न डरपोक, कायर । -मर्दी-स्त्री० नपुंसकता; कायरता, होनेकी स्थिति में, अन्यथा ।
भीरता। -माकूल-वि० अनुपयुक्त; अनुचित; अयोग्य । नहसत-स्त्री० [अ०] मनहूसी।
-मालूम-वि० जो मालूम न हो, अज्ञाता-मुआफ्रिकनाउँ*-पु० नाम । -गाँउँ-पु० नाम और पता। वि० प्रतिकृल, खिलाफ, विरुद्ध, मुआफिकका उलटा । नाँगा-वि० दे० 'नंगा' । पु० नागा साधु।
-मुनासिव-वि० अनुचित, अयुक्त। -मुमकिन-वि० नाँघना*-स० क्रि० लाँघना।
__ असंभव । -मुराद-वि०जिसकी कामना पूर्ण न हुई हो।
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३९९
नाइक-नाग -मौज -वि० बेमेल । - याब-वि० जो मिलता न हो, करन।। -फटने लगना-दे० 'नाक न दी जाना। दुर्लभ । -राज-वि० ऋद्ध, अप्रसन्न, रुष्ट । -राज़गी- -बहना-नाकमेंसे श्लेष्मा निकलना।.-बैठना-नाक स्त्री० दे० 'नाराजी'।-राजी-स्त्री० नाराज होनेका भाव, चिपटी होना । -भी चढ़ाना या सिकोड़ना-क्रोध प्रकट अप्रसन्नता ।-लायक-वि० अयोग्य; नीच, अधम(हिं०)। करना, नाराज होना; घृणा प्रकट करना। -में तीर -वाकक्रियत-स्त्री० अनभिज्ञता। -वाकिफ-वि० करना या डालना-बहुत हैरान करना। -में दम अनभिज्ञ, वाकिफका उलटा । -वाजिब-वि० अनुचित, करना-खूब परेशान करना । -में बोलना-नकियाना । गैरवाजिब । -शाइस्ता-वि० नालायका नामौजू; -रख लेना-इज्जत बचाना। -रगड़ना-दीनता प्रकट अशिष्ट । -समझ-वि० जिसे समझ न हो, बुद्धिहीन, करना, गिड़गिड़ाना, आरजू-मिन्नत करना। -लगाकर मूर्ख । -हक-अ० अकारण, बेसबब व्यर्थ, बेमतलब । बैठना-बहुत इज्जतदार बनकर बैठना। -सिकोड़नानाइक*-पु० दे० 'नायक' ।।
घृणा प्रकट करना। (नाकौं) आना-आजिज आना, नाइन-स्त्री० नाईकी स्त्री नाई जातिकी स्त्री।
परेशान हो जाना। -चने चबवाना-खूब परेशान नाइब*-वि०, पु० दे० 'नायब' ।
करना, तंग कर मारना । नाई-अ० की भाँति, की तरह।
नाकड़ा-पु० नाकका एक रोग । नाई-पु० एक जाति जिसका व्यवसाय हजामत बनाना है; नाकना*-स० कि० लाँघना, डाँकना; प्रतियोगितामें बढ़ हज्जाम । * स्त्री० नाव ।
जाना, बढ़कर होना। नाउ*-पु० नाम।
नाका-पु० किसी नगर, बस्ती आदिमें पैठनेका प्रमुख नाउ*-स्त्री० नाव ।
स्थान, प्रवेशद्वार; रास्ते आदिका वह मोड़ जहाँसे दूसरी नाउन-स्त्री० दे० 'नाइन ।
ओर मुड़ें, निकलें या घुसें; दुर्ग आदिमें घुसने और बाहर नाडी-पु० दे० 'नाई।
निकलनेका भार्ग या द्वार; वह प्रमुख स्थान जहाँ पहरा नाक-पु० [सं०] स्वर्ग; अंतरिक्ष । -चर-पु० देवता। देने या किसी तरहका महसूल वसूल करने के लिए सिपाही
-नाथ,-नायक,-पति-पु० इंद्र । -वास-पु० स्वर्गमें नियुक्त हों; (सुईका) छेद; नाक नामका जलजंतु ।-बंदी, निवास ।
(नाके) बंदी-स्त्री० नाकेपर सिपाहियोंकी तैनाती, नाक-पु० मगर जैसा एक जलजंतु । स्त्री० वह दो छेदों- नाकेपर पहरा बैठाना; अवरोध । पु० नाकेपर तैनात वाला प्रसिद्ध अवयव जिससे साँस लेते और बाहर किया जानेवाला सिपाही। -दार-पु० नाकेपर तैनात निकालते हैं; चरखेमेकी वह लकड़ी जिसे पकड़कर उसे किया जानेवाला सिपाही । वि० छेदवाला। चलाते है; वह जिससे किसीकी प्रतिष्ठा बनी रहे, इज्जत | नाकेश-पु० [सं०] इंद्र ।। रखनेवाला; वह जो किसी समुदायमें प्रधान या सबसे नाक्षत्र-वि० [सं०] नक्षत्र-संबंधी; जिसका काल नक्षत्रबढ़कर हो; मान, मर्यादा, प्रतिष्ठा, इज्जत ।-बुद्धि-वि० चक्रके परिवर्तनके अनुसार निर्धारित हो। जो पशुओंकी तरह सुंधकर ही भक्ष्याभक्ष्य पहचान सके; नाक्षत्रिक-वि० [सं०] दे० 'नाक्षत्र'। महामूर्ख, तुच्छबुद्धि । मु०-इधर कि नाक उधर-हर नाखना*-स० क्रि० नष्ट करना; फेंकना; गिरानालाँधना। तरहसे एक ही बात । -ऊँची होना-इज्जत बढ़ना। ना.खुन, ना.खून-पु०[फा०] उँगलियोंके सिरेपरका कठिन -कटना-लाज या प्रतिष्ठा जाती रहना, बेइज्जती होना, और चिपटा आवरण; चौपायोंकी टाप था खुरकी बढ़ी हुई मान-मर्यादा नष्ट होना । -काटना-इज्जत उतार लेना, कोर । -तराश-पु० नाखून काटनेका आला, नहरनी। प्रतिष्ठा नष्ट करना, बेइज्जती करना । -का बाल-अत्यंत ना.खूना-पु० [फा०] एक नेत्ररोग जिसमें आँखोंमें सफेद अंतरंग या प्रिय ।-की सीधमें-ठीक सामने ।-घिसना- झिल्ली पड़ जाती है और धीरे-धीरे पुतलियोतकको ढाँक दे० 'नाक रगड़ना'।-चढ़ना-क्रोधवश नथनोंका ऊपरकी लेती है। लाल डोरे जो घोड़ोंकी आँखों में पड़ जाते हैं। ओर खिंच जाना । -चढ़ाना-क्रोधमें नथनोंका ऊपरकी नाग-पु० [सं०] मनुष्यके आकार के पातालवासी सर्प ओर खींचना; घृणा प्रकट करना । -छेदना-हैरान | जिनकी गणना देवयोनिमें है (इनमें मुख्य ये हैं-अनंत, करना, चें बुलवाना ।-तक खाना--स-टूंसकर खाना ।। वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कोटक और -तक भरना-(बरतन आदिको) ऊपरतक भरना; शंख); साँप; एक प्रकारका काला साँप जिसके सिरपर हँस-हँसकर खाना । -न दी जाना-असह्य दुर्गध | दो चरण-चिह्न होते हैं। पर्वत; हाथी; बादल; नागकेशर, मालूम होना, तीव्र दुर्गंध आना। -पकड़ते दम निक- पुन्नाग; शरीरका एक प्रकारका पवन; एक देशा उस लना-अति शक्तिहीन होना। (चाहे इधरसे)-पकड़ो देशमें बसनेवाली एक जाति; राँगा; सीसा; नागरमोथा; चाहे उधरसे-हर पहलूसे, हर तरहसे । -पर गुस्सा नागवल्ली; (ला०) कर मनुष्य; अश्लेषा नक्षत्र; खूटी होना-बहुत जल्द क्रोध आना । -पर दीया बालकर आठकी संख्या । -कन्यका-कन्या-स्त्री० नाग जातिआना-जीतकर या सफल होकर आना । ~पर मक्खी की कन्या (पुराणोंमें नागकन्याओंके सौंदर्यकी बड़ी प्रशंसा न बैठने देना-बहुत सतर्क रहना; किसीका थोड़ा भी की गयी है)। -कर्ण-पु० हाथीका कान; रेंड (जिसका कृतज्ञ न होना बहुत पाकसाफ रहना ।-पर रख देना- पत्ता हाथीके कानकी तरह होता है)। -कुमारिकामाँगनेके साथ ही दे देना या अदा कर देना। स्त्री० गुड़च; मजीठ। -केशर-स्त्री० सफेद, महकदार (किसीकी)-पर सुपारी तोड़ना-बहुत परेशान | फूलोंवाला एक सदावहार पेड़ जिसकी लकड़ी बहुत कड़ी
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नागमती-नाटिका होती है। -झाग*-पु० अहिफेन, अफीम । -दंत,- नागिनी-स्त्री० दे० 'नागिन'। दंतक-पु० हाथीदाँत; दीवारकी खूटी। -दमन-पु. नागेंद्र-पु० [सं०] बड़ा साँप; शेष आदिः प्रमुख नाग; नागदौनेका पौधा ।-दौन-पु० [हिं०] एक छोटा पहाड़ी महाकाय हाथी, गजराज; ऐरावत। पेड़ । -दौना-पु० [हिं०] एक पौधा जिसमें टहनियोंकी नागेश-पु० [सं०] शेष नाग; एक प्रसिद्ध वैयाकरण । जगह जड़के ऊपरसे केवल बड़ी-बड़ी पत्तियाँ लगती है; नागेश्वर-पु० [सं०] शेष नाग; ऐरावत; नागकेशर । एक तरहका क.दुवा और काँटेदार दौना। -द्रुम-पु० नागेसर* -पु० दे० 'नागेश्वर' । सेहुँड़; नागफनी। -धर-पु० शिव । -नगर-पु० नागौरी-वि० नागौरका (बैल, गाय इ०) । गजमुक्ता। -पंचमी-स्त्री० श्रावण शुक्ला पंचमी जिस | नाच-पु० ताल और लयपर आश्रित अंगविक्षेप; आनंदा. दिन सनातनी हिंदू नाग देवताकी पूजा करते है ।-पति- तिरेकमें मचायी जानेवाली उछल-कूद खेल, क्रीडा; कामपु० सर्पराज वासुकि हस्तिराज ऐरावत । -पाश-पु० धंधा ।-कूद-स्त्री० उछल-कूद; नाच-तमाशा ।-घरवरुणका अस्त्रभूत पाश; ढाई फेरेका फंदा; साँपोंका फंदा । महल-पु० दे० 'नर्तनशाला' । -रंग-पु० आमोद-पुर-पु. पाताल । -पुष्प-पु० चंपक; नागकेशर; प्रमोद । मु०-काछना-नाचनेको उद्यत होना ।-दिखाना पुन्नाग वृक्ष । -पुष्पिका-स्त्री० पीली जूही; नागदौना। -किसीके सामने उछल-कूद मचाना । -नचाना-परे-पुष्पी-स्त्री. नागदमनी; मेढासींगी। -फनी-स्त्री० शान करना; इच्छानुसार काम कराना। [हिं०] थूहरकी जातिका एक पौधा। -फाँस-स्त्री० नाचना-अ० कि० ताल और लयके अनुसार गात्रविक्षेप [हिं०] दे० 'नागपाश'। -फेन-पु० अफीम |-बंधक- करना, नृत्य करना; आनंदातिरेकमें उछलना-कूदना; पु० हाथी फँसानेवाला। -बल-पु० भीम (जिन्हें दस । प्रत्यक्षसा प्रतीत होना, झूलना; इधरसे उधर आना-जाना, हजार हाथियोंका बल था)। वि० जो हाथीकी तरह बल- दौड़-धूप मचाना; काँपना; क्रोधावेशमें उछलना कूदना। वान् हो। -भगिनी-स्त्री० वासुकि नागकी बहन जर- नाज*--पु० अनाज, अन्न खाद्य वस्तु, खाद्य पदार्थ । त्कारु। -भूषण-पु. शिव । -यज्ञ-पु. एक यश नाज़-पु० [फा०] हाव-भाव, विलास-चेष्टा गर्व, घमंड । जिसमें जनमेजयने नागोंका विनाश किया था ।-लोक- -नखरा-पु० हाव-भाव, मोहक चेष्टा । -नी-स्त्री. पु० पाताल । -वंश-पु० नागोंका वंश; शक जातिकी। रूपवती स्त्री; नाजुकबदन औरत, कोमलांगी। -बरदार एक शाखा । वि० नागवंशका नागवंशमें उत्पन्न ।-वल्लरी, -वि० नाज बरदाश्त करनेवाला, आशिक ।-बरदारी-वल्ली-स्त्री० पानकी बेल ।
स्त्री० नाज बरदाश्त करना । -व(ज़ो)अदा,-नखरानागमती-स्त्री० [सं०] एक लता।
पु० दे० 'नाज-नखरा'। नागर-वि० [सं०] नगर-संबंधी नगर में रहनेवाला; चतुर, नाज़िम-वि० [अ०] प्रबंध करनेवाला, प्रबंधकर्ता । चालाक; नगर-निवासियों-संबंधी। पु० नगरबासी, पौर; नाज़िर-वि० [अ०] देखनेवाला, दर्शक । पु० वह जो चतुर, सभ्य पुरुष ।
देख-भाल करे, निरीक्षक * स्त्री० अंतःपुरकी मुख्य परिनागरता-स्त्री० [सं०] नागरिकता, शहरातीपन; शिष्टता, |
चारिका। सभ्यता; चालाकी, चतुरता ।
नाज़क-वि० [फा०] कोमल, सुकुमार; महीन, बारीक नागरिक-वि० [सं०] नगर-संबंधी; नगरका; जो नगरमें जो जल्दी टूट जाय, फूट जाय या नष्ट हो जाय; सूक्ष्म रहे, शहराती। पु० नगरवासी, पौर । -उड्यनविभाग गंभीर; संकटपूर्ण, मार्मिक । -ख़याल-वि० अच्छे विचा-पु० (सिविल एवियेशन डिपार्टमेंट) नागरिकोंकी हवाई रोंवाला । -दिमाग़-वि० दे० 'नाजुक मिजाज' । - यात्रा आदिकी देखभाल करनेवाला विभाग। -शास्त्र- बदन-वि० कोमल शरीरवाला, कोमलांग, सुकुमार । पु० (सिविक्स) वह शास्त्र जिसमें व्यक्ति और देशके हितकी -मिजाज़-वि० जिसे कोई बात बहुत जल्दी लग जाय; दृष्टिसे उत्तम नागरिक जीवन व्यतीत करने आदिका बिवे- चिड़चिड़ा, तुनुकमिजाज; घमंडी। चन किया जाता हैं।
नाजो, नाजी*-स्त्री० नाजनी प्रियतमा। नागरिकता-स्त्री० [सं०] नागरिक होनेका भाव; नागरो- नाटक-पु० [सं०] दृश्य काव्य या रूपकके दस भेदोंमेंसे एक चित स्वत्व, आचार या शिष्टता; नागरिक जीवन । । जो प्रथम और सर्वप्रधान है। रूपक अभिनय दृश्य काव्य । नागरी-स्त्री० [सं०] नगर में रहनेवालीस्त्री, शहरकी औरत, -कार-पु० नाटक बनाने, लिखनेवाल।। -शालानगरवासिनी; चतुर स्त्री सेहुँडा संस्कृत और हिंदी भाषा• | स्त्री० वह स्थान या गृह जहाँ नाटक खेला जाता हो। की लिपि ।
नाटकिया-पु० अभिनेता; बहुरुपिया। नागा-पु० एक शैव संप्रदाय जिसमें साधु लोग नंगे रहते नाटकी-स्त्री० इंद्रकी सभा । पु० नाटक खेलनेवाला, अभिहै। इस संप्रदायका साधु; आसाममें बसनेवाली एक जंगली नेता। जाति; आसामका एक पहाड़; बराबर चलनेवाले काममें नाटकीय-वि० [सं०] नाटक-संबंधी; नाटक जैसा ।-ढंगसेपड़नेवाला अंतर, बीच । * वि० खाली; नंगा।
आश्चर्यमय या अकल्पित रूपसे । नागिन-स्त्री० सपिणी; नाग नामक साँपकी मादाजी बहुत नाटना-अ० क्रि० दे० 'नटना' । स० कि. अस्वीकार विषैली होती है; कर या दुष्ट स्वभाववाली स्त्री; पीठ या करना, इनकार करना। गरदनपरकी लंबी रोमावली; बैलोंकी पीठपर होनेवाली नाटा-विछोटे कदका। पु०छोटे कदका बैल (या आदमी)। साँपके आकारकी लंबी रोमराजि जिसकी गणना ऐबोंमें है। नाटिका-स्त्री० [सं०] उपरूपकका एक भेद ।
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४०१
नाट्य- नापित
या तागा पहनाना, नत्थी करना; एक सूत्र में बद्ध करना । नाद-पु० [सं०] शब्द, ध्वनि; अव्यक्त शब्द; वर्णोंके उच्चारणमें एक प्रकारका बाह्य प्रयत्न; संगीत: भारी शब्द, गर्जन; स्तुति करनेवाला |
नादना * - स० क्रि० बजाना । अ० क्रि० बजना; गरजना । नादिम-वि० [अ०] लज्जित, शर्मिंदा ।
नाव्य - पु० [सं०] नृत्य; नाटकादिका अभिनय, नृत्यकला; अभिनयकला; अभिनेताकी वेशभूषा । - कार - पु० नाटक करनेवाला, नट, नाटक लिखनेवाला । -मंदिर- पु० दे० 'नाटयशाला' । - शाला - स्त्री० नाटक खेलनेका घर या स्थान । - शास्त्र - पु० अभिनय आदि संबंधी शास्त्र । नाट्यागार - पु० [सं०] नाटयशाला । नाट्याचार्य - पु० [सं०] अभिनय, नृत्यादिकी शिक्षा देने नादिया - पु० नंदी; वह बैल जिसे साथ में लिये योगी भीख माँगते हैं । ( इसके एकाध अंग अधिक होता है ) । नादिर - वि० [अ०] अद्भुत, असाधारण । - शाह - पु० फारसका एक नृशंस शासक जिसने सन १७३८ में दिल्ली के तत्कालीन बादशाह मुहम्मद शाहको हराकर नगर में कतलेआम कराया था । - शाही - वि० नादिरशाह संबंधी; नादिरशाह के अत्याचार जैसा । स्त्री० निरंकुश शासन; पाशविक अत्याचार |
वाला ।
नाट्यांचित - वि० [सं०] अभिनय करने योग्य । नाठ* - पु० नाश; सत्ताका अभाव; लावारिस जायदाद । नाठना * - स० क्रि० नष्ट, ध्वस्त करना । अ० क्रि० नष्ट, ध्वस्त होना; हटना; भाग जाना ।
नाठा* - पु० वह जिसके आगे-पीछे कोई न हो । नाड़ - स्त्री० गर्दन ।
नाड़ा - पु० स्त्रियोंका घाँघरा या धोती बाँधनेकी सूतकी मोटी डोरी, नीबी; देवताओंको चढ़ाया जानेवाला लाल या पीले रंगका गंडेदार सूत ।
नातर, नातरु * - अ० 'नतम्' ।
नाता- पु० संबंध, रिश्ता । ( नाते) दार - पु० रिश्तेदार । वि० [सगा, संबंधी ।
नाडि - स्त्री० [सं०] नाही; नली । नाडी - स्त्री० [सं०] नली; शरीरकी रक्तवाहिनी शिराएँ; वे नयाँ जिनके द्वारा हृदयका शुद्ध रक्त शरीरके सब अंगों में पहुँचता है, धमनी; शरीरकी ज्ञानवाहिनी, शक्तिवाहिनी और श्वास-प्रश्वासवाहिनी नलियाँ ( हठयोग ); फोड़ेका छेद; किसी तृण या पौधेका पोला डंठल; पद्मदंड; ६ क्षणोंका एक कालमान, घड़ी; फूँककर बजाया जानेवाला वाद्य ( बाँसुरी आदि ); हाथ या पैरकी नब्ज; गंडदूर्वा, छल, छा; कल्पित चक्रों में पड़नेवाले नक्षत्र जिनके अनुसार वर-वधु की गणना बैठाते हैं ( ज्यो० ) । -चक्र - पु० नाभिप्रदेश में स्थित मुर्गी के अंडेके आकारका चक्रविशेष । - परीक्षा - स्त्री० (वैद्यका) नब्ज देखना । - यंत्र - पु० शरीरमें चुभी या धँसी हुई वस्तुको निकालनेका एक प्राचीन यंत्र ( सुश्रुत ) । व्रण - पु० वह पुराना घाव जिसमें भीतर ही भीतर छेद हो जाता और मवाद निकला करता है, नासूर । - संस्थान - पु० नाडियोंका जाल । नाडीकेल - पु० [सं०] नारियल | नात - स्त्री० (नअत), प्रशंसा; स्तुति-गीत । पु० संबंधी, नान्हा* - वि० दे० 'नान्ह' । पु० नन्हा बच्चा ।
रिश्तेदार; संबंध, नाता ।
नातिन - स्त्री० लड़कीकी लड़की; लड़केकी लड़की । नाती - पु० लड़कीका लड़का; लड़केका लड़का | नाते - अ० संबंधसे, रिश्ता होनेसे; लिए, वास्ते । नारसी - पु० [ज०] जर्मनीका एक राजनीतिक दल जो द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले बहुत प्रबल हो गया था । नाथ - स्त्री० बैल आदिकी नाक में पहनायी जानेवाली रस्सी; * दे० 'नथ' । पु० गोरखपंथी साधुओंकी एक उपाधिः सँपेरा; [सं०] प्रभु, अधीश्वर स्वामी; पति ।
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नाथता - स्त्री० [सं०] नाथ या स्वामी होनेका भाव, प्रभुता । नाथना - स० क्रि० बैल आदिको नाकको छेदकर उसमें नाथ पहनाना; कई वस्तुओं को एक साथ छेदकर उनमें रस्सी
नादी ( दिन्) - वि० [सं०] बजने वाला; गरजने वाला । नादेय - वि० [सं०] नदी संबंधी; नदीका; नदीमें उत्पन्न; ग्रहण न करने योग्य, अग्राह्य; जो अदेय न हो, देय । नाधना - स० क्रि० बैल, घोड़े आदिको रस्सी या तस्मेके द्वारा सवारी, हल आदिसे जोड़ना या बाँधना, जोतना; जोड़ना; आरंभ करना; ठानना; गूंथना, पिरोना; नाथना । नान - स्त्री० [फा०] रोटी, चपाती; तंदूर में पकायी जानेवाली एक प्रकारकी मोटी खमीरी रोटी । -ख़ताई - स्त्री० एक प्रकारको टिकिया की शकलकी मिठाई । - बाई - पु० रोटी और शोरवा बेचनेका पेशा करनेवाला । नानक - पु० सिक्खोंके आदि गुरु जिनका जन्म संवत् १५२६ में हुआ। पंथी-पु० नानक मतका अनुयायी । नाना - पु० माताका पिता, पितामह; [अ०] पुदीना । * स० क्रि० डालना; घुसाना; झुकाना । वि० [सं०] अनेक प्रकारके, कई तरहके, विविध । नानिहाल- पु० नानीका घर ।
नानी-स्त्री० नानाकी पत्नी, माताकी माता, मातामही ।
मु० - मर जाना - होश उड़ जाना, हौसला पस्त हो जाना । नान्ह* - वि० नन्हा, छोटा; नीच, अधम; बारीक, महीन । नान्हरिया * - वि० छोटा, नन्हा ।
नाप - स्त्री० किसी मानदंडके अनुसार स्थिर की गयी किसी वस्तुकी लंबाई, चौड़ाई, गहराई, ऊँचाई, मात्रा आदि, परिमाण, माप; किसी मानदंडके अनुसार किसी वस्तुकी लंबाई, चौड़ाई आदिका निर्धारण करनेकी क्रिया; लंबाईका मानदंड, वह स्थिर किया हुआ पैमाना जिसके अनुसार किसी वस्तुकी लंबाई निर्धारित की जाय; निश्चित लंबाईवाली वह वस्तु जिसके अनुसार किसी वस्तुकी लंबाईचौड़ाई आदि जानी जाय, मानदंड । -जोख, - तौलस्त्री० नापने और तौलनेकी क्रिया; नापकर या तौलकर निर्धारित की गयी मात्रा या परिमाण । नापना-स० क्रि० किसी मानदंडके अनुसार किसी वस्तु के विस्तार, परिमाण, मात्रा आदिका निर्धारण करना । नापसंद - वि० दे० 'ना' के साथ |
नापित-पु० [सं०] नाई, हज्जाम । -शाला, - शालिका - स्त्री० हज्जामकी दुकान, क्षौरालय (सैलून ) ।
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नाफा-नामक
४०२
नाफा-पु० [फा०] कस्तूरी मृगकी नाभिके भीतरकी कस्तूरी- नाम प्रकट कराना ।-निकालना-सुख्याति या कुख्याति की थैली।
फैलाना; तंत्र-मंत्रकी क्रिया द्वारा चोरका नाम प्रकट नाबदान-पु० घरके गलीज, गंदे पानी आदिके बहनेकी करना । (किसीके)-पड़ना-किसीके नामके सामने
नाली। मु०-मैं मुँह मारना-घृणित कार्य करना। लिखा जाना या लिखा रहना। (किसीके)-परनाभि-स्त्री० [सं०] पहियेके बीचोबीच बेलनके आकारका किसीके निमित्त, किसीकी स्मृतिमें; किसीके भरोसे । वह अंग जिसमें धुरी पहनायी जाती है, चक्रमध्य, पिंडिका -पैदा करना-ख्याति प्राप्त करना । -विकनाजरायुज जंतुओंके पेटके बीचोबीच भँवरीकी तरहका गड्ढा, प्रसिद्धिके कारण लोकमें बहुत अधिक सम्मान होना, ढोढ़ी, तुंदकूपी; कस्तूरी ।-ज,-जन्मा(न्मन्)पु० ब्रह्मा इतनी ख्याति होना कि नाम सुनने भरसे लोगोंके हृदयमें (जिनकी उत्पत्ति विष्णुकी नाभिसे है)। -पाक-पु० एक आदरका भाव जाग उठे। -बेचना-किसीका नाम लेकर
रोग जिसमें बच्चोंकी नाभि पक जाती है।-भू-पु०ब्रह्मा। दूसरोंकी सहानुभूति, भादर या कृपाका पात्र बनना। नाम-पु० [फा०] दे० 'नाम' (सं०); प्रसिद्धि; धाका इज्जत -मिट जाना-दे० 'नाम उठ जाना' । -मिटनानस्ल; कुल; लांछन; यादगार । -ज़द-वि० जिसका अस्तित्वका एक भी चिह्न न रहना, नामतक न बच नाम किसी बातके लिए निश्चित या अंकित किया गया रहना । -रखना-प्रतिष्ठाकी रक्षा करना। -लगनाहो। -ज़दगी-स्त्री० किमी कामके लिए चुनने या दोषी ठहराया जाना । -लगाना-दोषी ठहराना। निश्चित करनेकी क्रिया। -दार-वि० नामवर, प्रसिद्ध । -लिखना-भरती करना । -लिखाना-भरती होना। -निशान,-व निशान-पु० चिह्न, पता। -वर-वि० | (किसीका)-लेकर-(किसीके) नामके प्रभावसे; नामी, प्रसिद्ध, विख्यात । -वरी-स्त्री० ख्याति, (किसीका) कहलाकर; (किसीका) स्मरण करके । -लेनाप्रसिद्धि । मु०-आसमानपर होना-प्रसिद्धि होना । नाम पुकारना; याद करना; आदर, कृतज्ञताके भावसे -उछलना-अपयश फैलना, बदनामी होना । -उछा- स्मरण करना, तारीफ करना; चर्चा चलाना, विचार लना-अपयश फैलाना, बदनाम करना । -उठ जाना- करना । (किसीके)-से-किसीका नाम लेकर; नाम अस्तित्व न रह जाना, स्मृतितक बनी न रहना। कहने भरसे, नाम सुनते ही। -होना-ख्याति या -कमाना-दे० 'नाम करना। -करना-प्रसिद्धि पाना, यश फैलना; नाम लिया जाना । (नामोनिशान बाकी ख्याति प्राप्त करना । (किसीका)-करना-किसीको न रहना या मिट जाना-एकदम बरबाद हो जाना, दोषी ठहराना; किसीके मत्थे दोष मढ़ना । (किसी बात इस प्रकार नष्ट होना कि अस्तित्वका कोई चिह्न ही न का)-करना-नाम मात्रके लिए करना, कहने भरके लिए रह जाय। करना, जितना या जिस तरह चाहिये उतना या उस तरह | नाम(न)-पु० [सं०] वह शब्द जिससे किसी व्यक्ति वस्तु न करना। -का-नामवाला; नाममात्रके लिए, कहने- या समूहका बोध हो, वाचक शब्द, संज्ञा शब्द, आख्या, भरको। (किसीके)-का कुत्ता पालना-किसीका अत्य- अभिधान । करण-पु० नाम रखनेका संस्कार ।-कीर्तनधिक अपमान करना, किसीको अत्यंत नीच समझना । पु० गाने-बजानेके साथ या यों ही ईश्वरका नाम जपना । (किसीके)-किसीके पक्षमें; किसीके पास, किसीके प्रति -धराई-स्त्री० [हिं०] अपयश, कुख्याति । -धातु-स्त्री० सरकारी या अन्य प्रामाणिक कागजमें किसीके नामके संशापदसे बनायी हुई धातु । --धारक-वि० कहने भरको सामने (दर्ज); कानूनी, प्रामाणिक लेख द्वारा किसीके कोई नाम धारण करनेवाला, जिसका कोई विशिष्ट नाम पक्षमें । -के लिए केवल देखने या कहने-सुननेके लिए, लेने भर के लिए हो, जो अपने नामके अनुरूप कार्य न कहने भरको जरासा; किसी काम या उपयोगके लिए करता हो; विहित कर्म न करनेवाला (ब्राह्मण)।-निर्देशननहीं। -को-कहने भरको; केवल काम चलाने भरको, पत्र-पु० (नामिनेशन पेपर) दे० नामांकनपत्र ।-पटल,अपर्याप्त, अत्यल्प; ख्यातिके लिए। -को नहीं-कहने पट्ट-पु० (साइनबोर्ड) लकड़ी, लोहे आदिका वह पट्ट या भरको भी नहीं, थोड़ासा भी नहीं, एक भी नहीं। तख्ती जिसपर किसी व्यक्ति, संस्था, दूकान आदिका नाम -चलना-लोकमें स्मृति बनी रहना ।-चार को-कहने लिखा रहता है और जिसे प्रायः दूकान, मकान आदिके भरको, नाममात्रको। (किसीके)-डालना-(किसीके) सामने टाँग देते हैं । -पत्र-पु० (लेबल) किसी शीशीनामके सामने दर्ज करना । -डुबाना-मान-मर्यादा बोतल, डब्बे आदिपर लगा हुआ कागजका वह टुकड़ा मिटाना, कलंक लगाना। -डूबना-भान-मर्यादा नष्ट जिसपर उसके भीतरकी दवा आदिका नाम लिखा या छपा होना, कलंक लगना । (किसीका)-धरना-नामकरण | हो। -पत्रित-वि० (लेबल्ड) जिसपर नामपत्र (लेबल) करना; दोषारोपण करना, दोषी ठहराना; बदनामी लगा हुआ हो। -लेखनशुल्क-पु० (एनरोलमेंट फी) करना। -धराना-'नाम धरना'का प्रेर०।-न लेना- नाम लिखने, भरती करने, सदस्य बनाने आदिका शुल्क। स्मरणतक न करना, भय, घृणा, खिन्नता आदिके कारण -लेवा-पु० [हिं०] नाम लेनेवाला; उत्तराधिकारी । प्रसंगतक न छेड़ना; दूर भागना, बहुत अधिक बचना। - वाचक-वि० नाम बतलानेवाला। पु० व्यक्तिवाचक ("तो मेरा)-नहीं-तो मुझे गया-गुजरा समझना। संज्ञा । -शेष-वि० जिसका केवल नाम रह गया हो; -निकलना-किसी वातके लिए नाम प्रसिद्ध होना तंत्र- गत, मृत । -सत्य-पु० गुण न होते हुए भी गुणद्योतक मंत्रकी क्रिया द्वारा चौरका नाम प्रकट होना । -निकल- नामका कथन । वाना-अपकीति फैलाना तंत्र-मंत्रकी क्रिया द्वारा चोरका | नामक-वि० [सं०] नामका, नामवाला (समासांतमें)।
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४०३
नामांकनपत्र - पु० [सं०] (नॉमिनेशन पेपर) वह आवेदनपत्र जो विधान सभा, नगरपालिका आदिके चुनाव में उम्मेदवारकी हैसियत से खड़े होनेवाले व्यक्ति द्वारा अपनी अर्हता, नाम, प्रामाणिकता आदिका स्पष्टीकरण करते हुए चुनावके उपयुक्त अधिकारीके सामने उपस्थित किया जाय । नामांकित - वि० [सं०] जिसपर नाम लिखा या खुदा हो । नामांतर - पु० [सं०] दूसरा नाम, उपनाम । नामावली - स्त्री० [सं०] नामोंकी सूची; + कपड़ा जिसपर किसी देवताका नाम सर्वत्र अंकित हो, रामनामी । नामी - वि० नामवाला, नामकः प्रसिद्ध, विख्यात, मशहूर । -गिरामी - वि० प्रसिद्ध, मशहूर । नामोल्लेख- पु० [सं०] ( नेमिंग ) किसी कदाचरण या असंसदीय कार्यके लिए अध्यक्ष द्वारा सदनमें सदस्य के नामका उल्लेख किया जाना ।
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नाम्य - वि० [सं०] झुकाने योग्य; लचीला | नायँ * - * - पु० दे० 'नाम' । अ० नहीं ।
नायक - पु० [सं०] ले जाने या पहुँचानेवाला, राह दिखानेवाला; किसी समुदाय या जनताको विशिष्ट उद्देश्यकी कार्य सिद्धिका मार्ग-निर्देश करनेवाला प्रभावशाली व्यक्ति या अधिकारी, अग्रेसर; बीस हाथियों और घोड़ोंके दलका अध्यक्ष; प्रभु, अधीश्वर; हारका प्रधान मणि; श्रेष्ठ पुरुष, किसी समुदायका अग्रगण्य व्यक्ति; शृंगारका आलंबन रूपयौवन आदि से संपन्न पुरुष; वह पुरुष जिसके चरितको लेकर किसी काव्य या नाटक आदिकी रचना की गयी हो ।
नायका- स्त्री० नायिका; वेश्याकी माता, कुटनी । नायन - स्त्री० दे० 'नाइन' |
नायब- वि० [अ०] प्रतिनिधित्व करनेवाला, स्थानापन्न, सहायक | पु० सहायक, मुनीम ।
नायबी - स्त्री० [अ०] नायबका काम; नायबका पद । नायिका - स्त्री० [सं०] यौवन तथा रूप गुणसे संपन्न स्त्री; वह स्त्री जिसका चरित किसी काव्यमें मुख्य रूपसे वर्णित हो ।
नायिकाधिप- पु० [सं०] राजा । नारंगी - स्त्री० एक तरहका मीठा नीबू, संतरा । वि० नारंगी के रंगका । नार - वि० [सं०] नर-संबंधी, मनुष्य-संबंधी; आध्यात्मिक । पु० नरसमुदाय; जल; हालका पैदा हुआ बछड़ा; सोंठ । नार - स्त्री० गर्दनः स्त्री; जुलाहोंकी ढरकी । + पु० नाला; घाँघरा आदि बाँधनेकी सूतकी डोरी; मोटा रस्सा; आँवल । मु० - नवाना, नीची करना लज्जा, संकोच आदिके कारण सिर नीचा कर लेना । नारकी ( किन ) - वि० योग्य |
नारकीय - वि० [सं०] नरक-संबंधी; नरक-भोगीकी तरहका, अति निकृष्ट, अति अधम ।
नारना * - स० क्रि० ताड़ना, समझना, भाँपना । नारा - पु० पूजा या कथा आदिमें प्रयुक्त लाल रंगका डोरा, रक्षासूत्र; चोटीबंधन, इजारबंद; नवजात शिशुका नाल; पेटकी अंतड़ी; बरसाती पानीकी मोटी धारा या उससे
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नामांकन पत्र - नाव
बना हुआ गड्ढा, नाला- 'चहुँ दिस फिरेउ धनुष जिमि नारा' - रामा०; किसी माँग या शिकायतकी ओर ध्यान दिलाने के लिए बार-बार बुलंद की जानेवाली आवाज । स्त्री० [सं०] जल (मनु० ) ।
नाराइन* - पु० नारायण, विष्णु ।
नाराच - पु० [सं०] लोहेका बाण; बाण; एक वर्णवृत्त । नारायण - पु० [सं०] विष्णु, भगवान्, परमात्मा । नारायणी - स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; दुर्गा; कृष्णकी सेना जिसे उन्होंने कुरुक्षेत्र में दुर्योधनकी सहायता के लिए दिया था । नारि* - स्त्री० दे० 'नारी'; गरदन ।
नारिकेर, नारिकेल - पु० [सं०] नारियल | नारिदान - पु० पनाला ।
नारियल - पु० लंबोतरे और तिपहले फलोंवाला एक ताड़की तरहका पेड़ जो गरम देशोंमें समुद्रका किनारा लिये हुए होता है; इस पेड़में लगनेवाला फल ।
नारी - स्त्री०हरिसमें जूआ बाँधनेकी रस्सी या तस्मा; * दे० 'नाडी'; दे० 'नाली'; [सं०] स्त्री, औरत । नारू - पु० जूँ; अधिकतर गरम देशके लोगोंको होनेवाला एक रोग जिसमें विशेषकर शरीरके निचले भागमें फुंसियाँसी हो जाती हैं जिनमेंसे डोरकी तरहकी पतल पतली सफेद चीज निकलती है, नहरुवा ।
नाल - वि० [सं०] नरकुल-संबंधी या उससे बना हुआ । स्त्री० कमल आदिकी डंडी; पौधेका पोला तना, कांड; नली; नाडी बंदूकी नली । पु० आँवल; हरताल; मूठ; नाला; [[हिं०] कसरत करनेके लिए बना हुआ भारी गोल पत्थर । - कटाई - स्त्री० [हिं०] नाल काटनेका काम; नाल काटने की उजरत । मु० ( कहीँ पर ) - गढ़ा होना- किसी स्थानसे बहुत अधिक प्रेम होना; किसी स्थानपर स्वत्व होना । नाल - पु० [अ०] रगड़से बचाने के लिए घोड़ेकी टाप और जूतेकी एड़ी के नीचे लगाया जानेवाला लोहेका अर्द्धचंद्राकार टुकड़ा । - बंद - पु० वह जो घोड़ेकी टाप या जूतेकी एड़ीमें नाल जड़नेका काम करे । नालकी - स्त्री० एक तरहकी खुली पालकी ।
नाला - पु० दूरतक गया हुआ लंबा-चौड़ा गड्ढा या प्रणाली जिसमें होकर बरसातका पानी किसी नदी आदिमें पहुँचता है; उससे होकर बहनेवाली जलकी धार । नालिकेर - पु०, नालिकेली- स्त्री० [सं०] दे० 'नारिकेर' । नालिश - स्त्री० [फा०] किसी प्रकारकी क्षति या कष्ट पहुँचानेवालेके विरुद्ध ऐसे व्यक्ति या अधिकारीके निकट किया गया आवेदन जो दोषीको उचित दंड दे सके, फरियाद, अभियोग | मु० - दागना - नालिश करना । नाली - स्त्री० जल बहनेका मार्ग, मोरी । [सं०] नरकभोगी; नरकमें जाने नाव * - पु० नाम ।
नाव - स्त्री० जलके ऊपर तैरनेवाला काठ या टिनका लंबो तरा खुला यान जो नदी, नाला आदि पार करने, मछली मारने तथा जलयात्रा करने आदिके काम आता है, तरणि, वहित्र, नौका । -घाट- पु० वह घाट जहाँ नावें
या ठहरें । मु० (सूखे में ) - चलाना - असंभव कार्य करने चलना । - में धूल उड़ाना - एकदम झूठी बातें कहना, सफेद झूठ बोलना ।
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नावक-नि:शील
४०४ नावक-* पु० मल्लाह, केवटः [फा०] एक प्रकारका छोटा नास्तिक-पु० [सं०] वह जिसे ईश्वर, परलोक आदिमें तीर; मधुमक्खीका डंक।
| विश्वास न हो, वेद-निंदक, आस्तिकका उलटा । नावधिकरण-पु० [सं०] (एडमिरलटी) राज्यके जहाजी नास्तिकता-स्त्री०, नास्तिकत्व-पु०[सं०] नास्तिक होनेबेड़े, नौसेना आदिका संचालन करनेवाला अधिकारिवर्ग का भाव, ईश्वर, परलोक आदिमें अविश्वासबुद्धि । या उनका विभाग अथवा प्रधान कार्यालय ।
नास्तिक्य-पु० [सं०] दे० 'नास्तिकता'। नावना*-स० क्रि० झुकाना, नवाना; डालना; घुसाना। नास्तिमंत-वि० (हैव-नॉट) जिसके पास रुपया-पैसा कुछ नावर, नावरि*-स्त्री० नाव, नौका; नावकी क्रीड़ा-'जनु भी न हो, अकिंचन, गरीब, निःस्व । नावरि खेलहिं सर माहीं-रामा।
नास्य-वि० [सं०] नाकका; नासिकासे संबद्धः नासिकासे नाविक-पु० [सं०] कर्णधार, माझी, मल्लाह, पोतारोही। उत्पन्न । पु० (बैल आदिकी) नाथ, नकेल । नाव्य-वि० [सं०] (नेविगेबिल) नावसे पार करने योग्य नाह-पु० पहियेकी नाभि * नाथ, अधीश्वरः पतिः [सं०] प्रशंसनीय । पु० नावसे पार करने योग्य जल; नयापन, | बंधन, फंदा, पाश । नवीनता । -जलमार्ग-पु० (नेविगेबिल वाटरवेज़) वे | नाहक-अ० [फा०] दे० 'ना'के साथ । नदियाँ, नहरें आदि जिनमें नावों या जहाजों द्वारा यात्रा | नाहर-पु० शेर, सिंह। की जा सके।
नाहरू-पु० नहरुवा, नारू रोग; * नाहर, सिंह-'मारसि नाश-पु० [सं०] अस्तित्व न रहना; प्रध्वंस, लय, संहार, गाय नाहरू लागी'-रामा० । बरबादी; त्याग; अदर्शन, लोप। -कारी(रिन)-वि० नाहिन*-अ० नहीं। नाश करनेवाला।
नाहिनै*-[वाक्य नहीं है। नाशक-वि०सं०] नष्ट करनेवाला, मिटा देनेवाला नाही-अ० दे० 'नहीं'।
मारनेवाला, संहार करनेवाला; दूर करनेवाला । नित*-अ० नित्य, हमेशा । नाशन-पु० [सं०] नष्ट करना; हटाना; मृत्यु । वि० नष्ट | निंद-वि० दे० 'निद्य' । करने या करानेवाला।
निंदक-पु० [सं०] निंदा या बदगोई करनेवाला । नाशना*-स० क्रि० दे० 'नासना' ।
निंदना-स० क्रि० निंदा करना, शिकायत करना। नाशपाती-स्त्री० एक प्रसिद्ध फल; इसका पेड़। निंदनीय-वि० [सं०] निंदा करने योग्य, गर्हणीय । नाशवान (वत्)-वि० [सं०] जो नष्ट हो जाय, भंगुर, निदरना*-सक्रि० निंदा करना; निरादर करना । नश्वर, अशाश्वत ।
निदरिया-स्त्री० निद्रा, नींद । नाशी(शिन्)-वि० [सं०] नाशशील, नश्वर नाशक । | निंदा-स्त्री० [सं०] किसीके दोषका वर्णन; झूठमूठ किसीमें नाश्ता-पु० [फा०] जलपान, कलेवा ।
दोष निकालना; अपवाद,शिकायत, बदनामी। प्रस्तावनास-* पु० दे० 'नाश' । स्त्री० नाकसे सुरकी या सूधी । -पु. ( बोट ऑफ सें शर) शासन-संबंधी किसी नीति जानेवाली औषध; सँघनी । -दान-पु० सुँघनी रखनेका या कार्यके प्रति असंतोष प्रकट करने, उसकी निंदा करने पात्र ।
के उद्देश्यसे राज्यके प्रधान मंत्री या किमी संस्थाके सभा. नासना*-स० कि० नष्ट करना, बरबाद करना, मिटा देना पति, अध्यक्ष आदिके विरुद्ध लाया जानेवाला प्रस्ताव । मार डालना। अ० कि० नष्ट होना, दूर होना।
-स्तुति-स्त्री० निंदा और प्रशंसा; व्याजस्तुति, निंदाके नासा-स्त्री० [सं०] नाक; घ्राणेंद्रिय; दरवाजेके ऊपर लगायी व्याजसे की गयी प्रशंसा ।। जानेवाली आड़ी लकड़ी, भरेटा। -छिद्र-पु० नाकका निदाई-स्त्री० निरानेकी काम निरानेकी उजरत । छेद । -परिस्राव-पु० सीसे नाकका बहना । -पाक | निदाना-स० क्रि० दे० 'निराना' । -पु. नाक पक जानेका रोग। -पुट-पु० नथना । निंदासा-वि० जिसे नींद लग रही हो; अलसाया हुआ । -बेध-पु० नाकका वह छेद जिसमें कील या नथ पहनी | निंदित-वि० [सं०] जिसकी निंदा की गयी हो या की जाती है। -रंध्र-पु० नाकका छेद । -वंश-पु. नाक- | जाती हो, गहित, दूषित । की हड्डी। -विवर-पु० नाकका छेद । -शोष-पु० निंदिया-स्त्री० नांद, निद्रा। नाकका कफ सूखनेका एक रोग। -स्राव-पु० सदासे | निंद्य-वि० [सं०] निंदा करने योग्य, निंदनीय । नाकका बहना।
निब-पु० [सं०] नीमका पेड़ । नासाग्र-पु० [सं०] नाकका अग्र भाग, नाककी नोक । निबकौड़ी, निबकौरी-स्त्री० नीमका फल । नासिक-स्त्री० दे० 'नासिका'।
निंबू, निंबूक-पु० [सं.] कागजी नीबू । नासिका-स्त्री० [सं०] नाक; घ्राणेंद्रिय नाककी शकलकी! निःशंक-वि० [सं०] जिसे किसी प्रकारका खटका न हो, कोई चीज । -मल-पु० नाकसे निकलनेवाला श्लेष्मा। निडर । अ० बिना किसी खटके या डरके। नासी*-वि० दे० 'नाशी'।
निःशत्रु-वि० [सं०] शत्रुरहित ।। नासीर-वि० [सं०] आगे जानेवाला, अग्रेसर । पु० सेना- निःशब्द-वि० [सं०] शब्दरहित, जहाँ किसी प्रकारका का अग्र भाग, हरावल ।
शब्द न होता हो; जो किसी प्रकारका शब्द न करे । नासूर-पु० [अ०] पुराना घाव जिसमें लंबा छेद हो गया। निशरण-वि० [सं०] अरक्षित । हो और जिसमेंसे प्रायः मवाद बहा करता हो, नाडीव्रण। निःशील-वि० [सं०] दे० 'निश्शील'।
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४०५
निशेष-निकषण निःशेष-वि० [सं०] जिसमें कुछ बच न जाय, सारा, -वि० पासका, समीप रहनेवाला, जो दूर न हो; जिससे
समूचा जिसमें कुछ करनेको न रह गया हो, पूर्ण, समाप्त । नजदीकका नाता हो। -स्थ-वि० समीपस्थ, पासका, निःश्रेयस-पु० [सं०] मोक्ष कल्याण; मंगल; विद्या, विज्ञान; नजदीकी।
भक्ति प्रभाव; विशेष असर; शिव । वि० सर्वोत्तम । निकटता-स्त्री० [सं०] समीप होनेका भाव, समीपता । निःश्वसन-पु० [सं०] साँस बाहर फेंकना।
निकटपना-पु० दे० 'निकटता। निश्वास-पु० [सं०] प्राणवायुके नासिका द्वारा बाहर निकम्मा-वि० जिसका किया कुछ न हो, जिससे एक भी
निकलनेका व्यापार, साँसका बाहर निकलना; लंबी साँस। काम न सरे; जो एकदम बेकार हो, व्यर्थका । निःसंकोच-अ०, वि० [सं०] दे० 'निस्संकोच'। निकर-पु० [सं०] समूह, झुंड; राशि; निधिः सार; [अं०] निःसंख्य-वि० [सं०] अनगिनत, बेशुमार ।
घुटन्ना, जाँघिया। निःसंग-वि० [सं०] दे० 'निस्संग'।
निकरना*-अ० क्रि० दे० 'निकलना'। निःसंज्ञ-वि० [सं०] संज्ञाहीन, बेहोश ।
निकर्मा-वि० अकर्मण्य, जो कुछ न करे। निःसंतान-वि० [सं०] दे० 'निस्संतान' ।
निकलंक-वि० कलंकरहित, बेदाग, निर्दोष, लांछनहीन । निःसंदेह-वि० [सं०] दे० 'निस्संदेह' ।
निकलंकी-पु० कल्कि अवतार । वि० कलंकहीन । निःसंधि-वि० [सं०] संधिरहित, जिसमें छेद आदि न निकल-स्त्री० [अ०] एक धातु जो चाँदी जैसी सफेद हो; धना, कसा हुआ; मजबूत, ८ ।
होती है। निःसरण-पु० [सं०] बाहर आना, निकलना; धर आदिका निकलना-अ०कि.बाहर होना या आना, प्रकट होना;
निकास (द्वार); मरण बचनेका रास्ता, उपाय; निर्वाण । प्रवाहित होना,गिरना, बहना; उदय होना; व्याप्त या अन्य निसार-वि० [सं०] 'निस्सार'।
वस्तुओंके साथ मिली हुई वस्तुका पृथक् होना; जमना, उगना; निःसारण-पु० [सं०] बाहर करना, निकालना, बहि- | जड़ी या सटी हुई वस्तुका आधारसे पृथक होना; दल-बल करण; घर भादिका निकास ।
या बाजे-गाजेके साथ एक स्थानसे चलकर दूसरे स्थानतक निःसारित-वि० [सं०] निकाला हुआ, बाहर किया हुआ।। जाना; किसी ओरको बढ़ा होना; उत्पन्न होना; बीचसे निःसीम-वि० [सं०] दे० 'निस्सीम' ।।
होकर बाहर आ जाना या पहुँच जाना; पार होना शरीरनिःसृत-वि० [सं०] बाहर आया हुआ; निकला हुआ। पर उत्पन्न होना, उभर आना; पास होना, शिक्षा समाप्त निस्नेह-वि० [सं०] दे० 'निस्स्नेह' ।
करके पृथक् होना; स्थिर किया जाना, सोचा जाना, निःस्पंद-वि० [सं०] दे० 'निस्स्पंद' ।
ठहराया जाना दूर होना, जाता रहना, नष्ट होना; प्राप्त निःस्पृह-वि० [सं०] जिसे किसी वस्तुकी इच्छा न हो, होना, मिलना; व्यक्त होना, खुलना; सिद्ध होना, पूर्ण निरीह, आशारहित ।
होना; चलना, आरंभ होना, छिड़ना; अलग होना, पृथक निःस्व-वि० [सं०] दे० 'निस्स्व' ।
किया जाना हल होना; निर्मित होना, तैयार किया निःस्वादु-वि० [सं०] दे० 'निस्स्वादु' ।
जाना (नदी आदिका) उद्गत होना, बहना आरंभ करना; निःस्वामिक भूमि-स्त्री० [सं०] (नोमेंस लैंड) वह परती खोजा जाना, आविष्कृत या ईजाद होना; फंसा, बँधा या भूमि जो किसीके अधिकारमें न हो।
जुड़ा न रहना प्रचलित होना, जारी होना; प्रवर्तित निःस्वार्थ-वि० [सं०] दे० 'निरस्वार्थ' ।
होना; अपनेको दायित्वसे मुक्त करना, पृथक् होना, गला नि-उप० [सं०] एक उपसर्ग जो अधोभाव (निपात), समूह |
छोड़ाना; प्रकाशित होना; बिकना, खपत होना; सिद्ध (निकर), धनता (निकाम), आदेश (निदेश), नित्यता होना, साबित होना; बिना दंड पाये बच जाना, अपनेको (निवेश), कौशल (निपुण), बंधन (निबंध), सामीप्य मुक्त करना; पकड़, बंधन आदिसे मुक्त होना; हिसाब होने(निकट), अपमान (निकृति), दर्शन (निदर्शक), आश्रय । पर रकम जिम्मे आना, पावना होना;फटकर अलग होना; (निलय), अंतर्भाव (निपोत) आदिकी विशेषताका द्योतन पकड़ा जाना, बरामद होना, पाया जाना; समाप्त होना, करनेके लिए संज्ञा, क्रिया आदिके पूर्व जोड़ा जाता है।
बीतना, गुजरना; सवारो ढोने या जोताईके लिए शिक्षित निअर-* अ० समीप, निकट, पास I वि० समान । होना । मु. निकल जाना-चला जाना, पहुँच जाना; निअराना*-अ० क्रि० निकट, नजदीक आना, पास आना; कम हो जाना, घट जाना; जाता रहना, खो जाना; उपनिकट होना । स० क्रि० पास पहुँचना ।
योगमें न लाया जाना; छिन जाना; भाग जाना, पकड़में निआउ*-पु० दे० 'न्याय'।
न जाना; (स्त्रीका) अपना घर छोड़कर किसी प्रेमीके साथ निआन -अ० अंतमें, अंततोगत्वा। पु० निदान, परिणाम । चला जाना। निआमत-स्त्री० [अ०] दे० 'नेमत' ।
निकलवाना-स० क्रि० निकालनेका काम कराना । निआरा-वि० दे० 'न्यारा'।
निकष-पु० [सं०] कसौटी; कसोटीपर कसनेकी क्रिया निआर्थी*-स्त्री० अर्थहीनता, दरिद्रता, गरीबी ।
सान जिसपर चढ़ाकर हथियार तेज करते हैं; (ला०) निकंदन-पु० [सं०] नाश, संहार । वि. नाशकर्ता। कसौटीका काम करनेवाला; कसौटीपर सोना रगड़नेसे बनी निकंदना*-सक्रि० नाश करना।
हुई रेखा । निकट-अ० [सं०] पास, नजदीक । वि० पासका, समीप- निकषण-पु० [सं०] कसौटी, सानपर चढ़ानेकी क्रिया वती, नजदीकी, जो दूर या दूरका न हो । -वर्ती(र्तिन)| घिसना, रगड़ना।
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निकषा - निखद टू
निकषा - स्त्री० [सं०] (रावण आदि) राक्षसोंकी माता । अ० निकट |
निकषोपल - पु० [सं०] सोना कसने या सान चढ़ानेका पत्थर । निकस - पु० [सं०] दे० 'निकष' ।
निकसना * - अ० क्रि० दे० 'निकलना' ।
निकाई* - पु० दे० 'निकाय' । स्त्री० भलाई; अच्छापन, बढ़ियापन; सुंदरता ।
निकाज - वि० निकम्मा, बेकार ।
निकाना - स० क्रि० दे० 'निराना' ।
निकाम - वि० बेकाम, निकम्मा; खराब; [सं०] पर्याप्त, काफी; अभीष्ट; इच्छुक । अ० अत्यंत भूरि, बहुत, खूब । पु० अभिलाषा; आधिक्य ।
निकाय - पु० [सं०] समूह, समुदायः सजातीय प्राणियोंका समूह; वासस्थान; परमात्मा; शरीर; लक्ष्य; राशि; (बॉडी) समान उद्देश्य से काम करनेवाले व्यक्तियोंका समूह, संस्था; जनप्रतिनिधियोंकी वह स्थानीय संस्था जो नगर, जिले या तहसील आदिकी स्वच्छता, स्वास्थ्य आदि संबंधी बातोंकी देखभाल करती है। समाजवाद - पु० (गिल्ड सोशलिज्म) एक तरहका संघ-समाजवाद जो ब्रिटेन में प्रचलित था (इसका सिद्धांत था कि श्रमिक संघोंके निकाय बनाये जायँ और उन्हीं के हाथमें कारखानों आदिका नियंत्रण सौंप दिया जाय, पर सरकार के अन्य विभागोंका नियंत्रण राज्यकी संसदके ही अधीन रहे ) | निकार - पु० निकालनेका काम, बहिष्कार, निष्कासन; निकलनेका द्वार या मार्ग, निकास; [सं०] अनादर, अवशा; पराभव; अनाज ओसाना या फटकना; उठाना; मारण, वध; दुष्टता; द्वेष; विरोध | निकारण-पु० [सं०] मारण, वध ।
निकारना * - स० क्रि० दे० 'निकालना' |
निकालना - स० क्रि० बाहर करना या लाना; प्रकट करना; प्रवाहित करना, गिराना, बहाना; व्याप्त या अन्य वस्तुओं के साथ मिली हुई वस्तुको पृथक् करना; जमाना, उगाना; गड़ी या सटी हुई वस्तुको आधार से पृथक् करना; दल-बल या बाजे-गाजेके साथ एक स्थान से चलाकर दूसरे स्थान तक ले जाना; किसी ओरको बढ़ा हुआ करना; उत्पन्न करना, पैदा करना; बीचसे ले जाकर बाहर ले जाना या पहुँचाना, पार करना; शरीरपर उत्पन्न करना, उभारना; पास करना, शिक्षा समाप्त करके पृथक् करना; स्थिर करना, सोचना, ठहराना; दूर करना; नष्ट करना; प्राप्त करना; व्यक्त करना, खोलना; सिद्ध करना, पूर्ण करना; चलाना, आरंभ करना, छेड़ना; अलग करना, पृथक् करना; हल करना; निर्माण करना, तैयार करना; ( नदी आदिको ) उद्गत करना, बहाना आरंभ करना; खोजना, आविष्कार करना, ईजाद करना; फँसा, बँधा या जुड़ा न रहने देना; प्रचलित करना, जारी करना, प्रवर्तित करना; प्रकाशित करना; बेचना, खपत करना; सिद्ध करना, साबित करना; दंड पानेसे बचाना, मुक्त करना; पकड़, बंधन आदि से मुक्त करना;
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४०६
रकम जिम्मे ठहराना; फाड़कर अलग करना; बरामद करना; बिताना, गुजारना; सवारी ढोने या जोताई की शिक्षा देना ।
निकाला - पु० निकालनेकी क्रिया; बहिष्कार; निर्वासन । निकाश - पु० [सं०] क्षितिज; सामीप्य; सादृश्य ( समासांत में ); दृश्य ।
निकाय - पु० [सं०] खुरचना; रगड़ना ।
निकास - पु० निकलने, निकालने की क्रिया या भाव; द्वार, दरवाजा; निकलनेका मार्ग या स्थान; बाहर या सामनेकी खुली जगह, इर्दगिर्द का मैदान, सहन; उद्गम, मूलस्थान; गुजारेका रास्ता, निर्वाहका उपाय, सिलसिला; वंशका मूल स्रोत; त्राणका उपाय, बचावका रास्ता, रक्षाकी युक्ति; आयका रास्ता; आय, आमदनी | [सं०] दे० 'निकाश' | - पत्र- पु० जमा-खर्च और बचतके हिसाबकी बही । निकासना + - स० क्रि० दे० 'निकालना' । निकासी - स्त्री० निकलने या निकालनेकी क्रिया या भाव; प्रस्थान; आय, प्राप्ति; वह रकम जो मालगुजारी आदि बेबाक करने के बाद जमींदार के पास बचे, मुनाफा; मालकी रवानगी या लदाई; रवन्ना; चुगी; खपत । निकाह - पु० [अ०] मुसलमानोंकी विवाहपद्धति; उस पद्धति के अनुसार किया गया विवाह । -नामा - पु० वह कागज जिसमें निकाहकी शर्तें लिखी जाती हैं । निकाही - वि० स्त्री० निकाह करके लायी हुई; ( वह स्त्री ) जिसने स्वेच्छा से विवाह कर लिया हो । निकिष्ट* - वि० दे० 'निकृष्ट' ।
निकुंज - पु० [सं०] सघन वृक्षों और लताओंसे आवृत स्थान, लतामंडप |
निकृष्ट - वि० [सं०] हीन, नीच, अधम; तुच्छ । निकेत, निकेतक - पु० [सं०] घरं, वासस्थान, निवास; चिह्न ।
निकाल - पु० निकलने, निकालनेकी क्रिया या भाव; कुश्ती निकेतन - पु० [सं०] घर, वासस्थान; प्याज । का एक पेंच, पेंचका काट ।
निक्षिप्त- वि० [सं०] फेंका हुआ; रखा हुआ; डाला हुआ; धरोहर रखा हुआ; भेजा हुआ; परित्यक्त ।
निक्षेप - पु० [सं०] फेंकने, डालने, रखने, भेजने, चलाने, त्यागने या अर्पण करनेकी क्रिया या भाव; धरोहर, अमानत; धरोहर रखना । - निधि - स्त्री० (सिंकिंग फंड ) दे० 'ऋणपरिशोधकोष' । - निर्णय - पु० (टॉस) सिक्का आदि हवा में फेंककर उसके नीचे गिरनेकी स्थितिसे कोई निश्चय करना, जैसे कौन पक्ष पहली पालीका खेल आरंभ करेगा । निक्षेपक- पु० [सं०] निक्षेपकर्ता; धरोहर रखनेवाला; (डिपाजिटर) बैंक आदिमें रुपया जमा करनेवाला । निक्षेपण-पु० [सं०] फेंकना; डालना; रखना; त्यागना; चलाना; अर्पण करना; धरोहर रखना । निक्षेपी (पिन्) - वि० [सं०] निक्षेप करनेवाला; धरोहर रखनेवाला ।
निक्षेप्ता (प्तृ ) - पु० [सं०] दे० 'निक्षेपक' । निखंग* - पु० दे० 'निषंग' | निखंगी* - वि० दे० 'निषंगी' ।
निखट्ट - वि० जो कहीं न टिके, जो इधर-उधर मारा फिरे; सब जगह झगड़ा फसाद करनेवाला; जिससे कुछ करतेधरते न बने, निकम्मा ।
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४०७
निखनन-निचुड़ना निखनन-पु० [सं०] खोदना गाड़ना।
निगरानी-स्त्री० [फा०] देख-भाल, निरीक्षण । निखरना-अ.क्रि.निर्मल होना, साफ होना (किसी निगरु*-वि० जो गुरु अर्थात् भारी न हो, हलका ।
वस्तुपर ) और अधिक रंग चढ़ना; परिमार्जित होना। निगलन-पु० [सं०] निगलना, भक्षण । निखरवाना-स० क्रि० स्वच्छ कराना, साफ कराना। निगलना-सक्रि० गलेसे नीचे उतार देना, घोंट जाना निखरी-स्त्री० पक्की रसोई, 'सखरी'का उलटा ।
खा जाना; रुपया या धन हड़प लेना या दबा बैठना । निखर्व-वि० [सं०] दस हजार करोड़, ठिंगना, छोटे! निगह-स्त्री० [फा०] निगाह, दृष्टि । -बान-वि० देखकदका । पु० दस हजार करोड़की संख्या ।
रेख करनेवाला, रखवाला; रक्षक। निखवख*-अ० बिलकुल; केवल ।
निगाली-स्त्री० नैचेका वह भाग जो मुँह में रहता है। निखात-वि० [सं०] खोदा हुआ; जमाया हुआ; गाड़ा। निगाह-स्त्री० [फा०] दृष्टि, नजर दयादृष्टि, कृपा, मेहरहुआ। -निधि-स्त्री० (ट्रेजर ट्रोव) भूमिके भीतर गड़ी बानी; विचार, समझ चितवन, अवलोकन ध्यान; परख
हुई संपत्ति जो बाद में खोदकर निकाली गयी हो। निरीक्षण । -बान-वि० दे० 'निगहबान' । निखाद*-पु० दे० 'निषाद'।
निगिभ-वि० बहुत प्यारा, परम प्रिया अत्यंत गोप्य । निखार-पु० सफाई; सजावट ।
निगीर्ण-वि० [सं०] निगला हुआ; जिसका अंतर्भाव हो निखारना-म०क्रि० स्वच्छ करना, साफ करना, निर्मल गया हो या किया गया हो।
बनाना; पवित्र करना, शुद्ध करना, पापसे रहित करना। निगुण, निगुन, निगुना-वि० दे० 'निर्गुण'। निखालिसा-वि०बिना मिलावटका, विशुद्ध, पवित्र। निगुनी-वि० जो गुणी न हो, गुणीका उलटा, गुणहीन । निखिल-वि० [सं०] सारा, संपूर्ण, सब ।
निगुरा-वि० जिसने गुरुसे दीक्षा न ली हो, अदीक्षित । निखुटना, निखूटना*-अ० क्रि० घट जाना; समाप्त हो निगूढ-वि० [सं०] अति गुप्त रहस्यपूर्ण। जाना-बाती सूखी तेल निखूटा'-कबीर ।
निगृहीत-वि० [सं०] पकड़ा हुआ; वशमें लाया गया; निखेध*-पु० दे० 'निषेध' ।
दवाया हुआ विवादमें पराजित आक्रांत; पीडित । निधना*-सु० कि० निषेध करना, मना करना ।
निगोड़ा-वि० अभागा निराश्रयः जिसके कोई न हो, जो निखोट-वि० जिसमें किसी प्रकारका खोटापन न हो,
एकदम अकेला हो; निकम्मा; * दुष्ट, नीच । दोषरहित, निष्कलंक, विशुद्ध स्पष्ट, साफ । अनिःशंक निगोरा*-वि० दे० 'निगोड़ा'। होकर, बेखटके खुलमखुल्ला ।
निग्रह-पु० [सं०] रोकना, अवरोध; वशमें लाना; दंड निखोड़ना-स० क्रि० नाखूनसे नोचना ।
देना, दबाना, दमन; बंधन; अभ्यास और वैराग्य द्वारा निगंध*-वि० जिसमें गंध न हो, गंध-रहित ।
चित्तवृत्तिका निरोध । निगड-स्त्री० [सं०] बेड़ी, शृंखला; हाथी बाँधनेकी जंजीर । निग्रहना*-२० क्रि० पकड़ना; रोकना; दंड देना । निगडन-पु० [सं०] बेड़ी डालना; जंजीरसे बाँधना । निग्रही(हिन्)-वि० [सं०] निग्रह करनेवाला, दमन निगडित-वि० [सं०] बेड़ी या जंजीरसे जकड़ा हुआ। करनेवाला, दंड देनेवाला । निगद-पु० [सं०] भाषण, कथन; बोल-बोलकर किया हुआ निघंटु-पु० [सं०] वह ग्रंथ जिसमें शब्दोंके पर्यायोंका
जप, उल्लेख करना; बिना अर्थ समझे याद करना। संग्रह हो ( जैसे अमरकोश, हलायुध, वैजयंती इ०); निगदन-पु० [सं०] याद की हुई चीजका पाठ करना; वैदिक शब्दकोश जिसकी व्याख्या यास्कने अपने निरुक्त
कथन । निगदित-वि० [सं०] कहा हुआ, उक्त ।
निघटना*-अ० क्रि० घटना, कम होना-'निघटत नीर निगम-पु० [सं०] वेद; वेदका कोई अंश; पथ, मार्ग; मीनगन जैसे'-रामा०; बीतना । स० कि० मिटाना, नष्ट वणिकपथ, हाट, बाजार; मेला; कारवाँ; अनुमानके पाँच | करना। अवयवा मसे एक, निगमन (न्या०); बनजारा; निश्चयः | निघरघट-वि० बिना घर-घाटका, बिना घर-बारकां; जो (कारपोरेशन) वह निकाय या संस्था जो विधि (कानून)के | घूम-फिरकर एक ही जगह पर रहे और हटानेसे भी न हटे; अनुसार एक व्यक्तिकी तरह काम करने के लिए प्राधिकृत | बेशर्म, निर्लज । हो।-कर-पु०(कॉरपोरेशन टैक्स) व्यापारिक या औद्यो- निघरा-वि० बिना घर-बारका; निगोड़ा, कमीना, नीच । गिक निगमों( संस्थाओं )पर लगनेवाला कर । -निवासी | निघर्ष, निघर्षण-पु० [सं०] रगड़, घिसावट; पीसना । (सिन्)-पु० विष्णु, नारायण ।
निचय-पु० [सं०] समूह; संचय; निश्चय । निगमन-पु० [सं०] हेतु, उदाहरण और उपनयनके उप- निचल*-वि० अचल, अटल । रांत सिद्ध की गयी प्रतिशाका पुनः कथन (न्या०); वेदके निचला-वि० नीचेका, नीचेवाला; अचल, स्थिर, शांत । शब्दोंका उद्धरण; अंदर जाना।
निचाई-स्त्री० नीचा होनेका भाव, नीचापन, ऊँचाईका निगमागम-पु० [सं०] वेद और शास्त्र ।
उलटा; नीचेकी औरका विस्तार; नीचता, खोटाई। निगमित-वि० (इनकॉरपोरेटेड) निगमरूप में परिणत या | निचान-स्त्री० नीचापन; ढालुआँपन । संघटित ।
निचिंत-वि० दे० 'निश्चित'। निगर-* वि० सब, समस्त । पु० समूह [सं०] निगलना, निचड़ना-अ० कि० निचोड़ा जाना,गरना; सारहीन होना, भक्षण, भोजन होमका धुआ।
| बल या शक्ति निकल जानेसे क्षीण होना । २६-2
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निचुल-नित्यानंद
४०८ निचुल-पु० [सं०] ३त; ऊपरका वस्त्र, निचोल ।
(क्लिनिक) किसी डाक्टर आदिका वह निजी चिकित्सा-गृह निचै* -पु० दे० 'निचय' ।
जहाँ रोगियोंका निदान तथा उपचार किया जाता है; निचोड़-पु० निचोड़ने पर निकली हुई वस्तु, निचोड़ा हुआ निदानगृह ।
जल, रस आदि; सारांश, निष्कर्ष तत्त्व, सार। निजु-वि०, अ० दे० 'निज' । निचोड़ना-स० कि- दबाकर या ऐंठकर किसी गीली या | निजोर* --वि० बलहीन, कमजोर । रसवाली वस्तुमेंसे पानी या रस निकालना, गारना; किसी निझरना*-अ० कि० एकदम झड़ जाना; खाली हो जाना वस्तुमेंका तत्व निकाल लेना; किसीकी सारी पूँजी हर लेना, -'भुवपर एक बुंद नहिं पहुँची, निझरि गये सब मेह'किसीका सब कुछ ले लेना ।
सू०, सारहीन हो जाना; अपनेको निर्दोष बताना । निचोना*-स० क्रि० निचोड़ना।
निहि*-अ० दे० 'नीठि' । निचोर*-पु० दे० 'निचोड़।
निठल्ला, निठल्लू-वि०बिना काम-धंधेका, खाली बैठा निचोरना*-स० क्रि० दे० 'निचोड़ना' ।
हुआ, बेकार; अकर्मण्य । निचोल-पु० [सं०] वह कपड़ा जिससे कोई वस्तु ढकी निठाला-पु० बेकारीका समय आय या जीविकाका अभाव । जाय, आच्छादन-वस्त्र, ढकनेका कपड़ा; चदरा; बिछावन- | निठुर-वि० दे० 'निष्ठुर'। की चादर ओहार; उत्तरीया स्त्रियोंकी ओढ़नी। निठुरई -स्त्री० निष्ठुरता। निचोलक-पु० [सं०] सदरी; चोली; कवच, उरस्त्राण । निठरता*-स्त्री० निष्ठुरता, निर्दयता । निचोवना*-स० क्रि० दे० 'निचोड़ना'।
निठुराई-स्त्री० करता, दयाहीनता, निष्ठुरता। निचौहाँ-वि० नीचेकी ओर किया हुआ, नीचेकी ओर निठौर-पु० बुरा स्थान; कुदाँव, दुर्दशा-'जिनको पिय झुका या झुकाया हुआ; नीचा ।
परदेस सिधारो सो तिय परी निठौर'-सू० । निचौह-अ० नीचेकी ओर ।
निडर-वि० निर्भय, निभीक; साहसी; ढीठ । निछक्का-पु० निर्जन स्थान, एकांत स्थान ।
नि*-अ० निकट, पास-'कबिरा चंदनके निई नीब भी निछत्र-वि० जिसके सिरपर छत्र न हो, बिना छत्रका; चंदन होइ'-कबीर ।
राजचिह्नरहित; जिसमें क्षत्रिय न हों, क्षत्रियहीन । निढाल-वि० थककर चूर, शिथिल, श्रांत; पस्त । निछनियाँ*-अ० दे० 'निछान'।।
निढिल*-वि० जो ढीला न हो, कसा हुआ, तना हुआ; निछल*-वि० निश्छल, कपटरहित ।।
सख्त, कड़ा। निछाना-वि० जिसमें मिलावट न हो, विशुद्ध, खालिस, | नितंत-अ० दे० 'नितांत'।
केवल, एकमात्र । अ० एकदम, बिलकुल, पूर्णतः। नितंत्र अनुज्ञा-स्त्री. (वायरलेस लाइसेंस) बेतारका यंत्र निछावर-स्त्री० किसी वस्तुको किसीके सिर या शरीरके (रेडियो) रखनेकी अनुमति । ऊपरसे घुमाकर दान कर देने या कहीं रखने, आदिका नितंब-पु० [सं०] स्त्रियों के शरीरका कमरसे नीचेका एक टोटका; निछावर की जानेवाली वस्तु; नेग; बलि; भाग, कटिका अधोभाग, चूतड़ा कमर; पहाड़की ढाल; उत्सर्ग; इनाम । मु०-करना-समर्पण करना; त्यागना। कंधा। -बिंब-पु० मंडलाकार नितंब । -होना-समर्पित किया जाना; त्याग दिया जाना। नितंबिनी-वि०, स्त्री० [सं०] सुंदर और भारी नितंब(किसीका किसीपर)-होना-किसीके निमित्त प्राण वाली। स्त्री० सुंदर और भारी नितंबवाली स्त्री।
छोड़ देना, किसीके लिए जान देना, बलि जाना। नित-अ० नित्य, प्रतिदिन, सदा। -नित-अ० हर निछावरी-स्त्री० दे० 'निछावर'।
। रोज, अनुदिन। निछोह-वि० जिसमें प्रेम, दया न हो, निर्मम, निठुर। | नितराम्-अ० [सं०] बहुत अधिक, अत्यंत; एकदम निछोही-वि० दे० 'निछोह' ।
__ पूर्णतः निरंतर; हर हालत में; निश्चयपूर्वक । निज-वि० [सं०] अपना, स्वकीय, जो पराया न हो; खास, नितल-पु० [सं०] पातालके सात भागों मेंसे एक । प्रधान पक्का सच्चा । अ० बिलकुल; प्रधानतः, अधिकतर नितांत-अ० [सं०] अत्यंत एकदम, बिलकुल । यथार्थ में, निश्चयपूर्वक । -सचिव-पु० (प्राइवेट सेक्रेटरी) निति-अ० दे० 'नित'। किसी राज्यपाल, मुख्य मंत्री या अन्य बड़े आदमीके साथ | नित्य-वि० [सं०] सदा बना रहनेवाला, अक्षर, अनश्वर, रहकर उसके निजी कामोंकी देखभाल तथा पत्र-व्यव- शाश्वतप्रतिदिनका; जो नित्य किया जाय । अ० प्रतिहारादि करनेवाला सचिव । -स्व-पु० अपना भाग। दिन; सदा । -कर्म(न),-कृत्य-पु. प्रतिदिन किया -करके-निश्चित रूपसे, अवश्य । -का-खास अपना, जानेवाला विहित कर्म जिसके न करनेसे पाप होता है व्यक्तिगत।
(जैसे-संध्या, पंचयश, स्नान आदि)। -क्रिया-स्त्री० निजकाना*-अ० क्रि० पास पहुँचना, नजदीक आना दे० 'नित्यकर्म'। -नियम-पु० कभी भंग न होनेवाला या जाना।
नियम । -प्रति-अ० प्रतिदिन, हर रोज।। निजन*-वि० जनरहित, निर्जन, सुनसान ।
नित्यता-स्त्री०, नित्यत्व-पु० [सं०] नित्य होनेका भाव, निज़ाम-पु० [अ०] तरतीब बंदोबस्त, हैदराबादके नवाब- अविनाशिता, अक्षरता। की उपाधि प्रबंधक काव्यरचना ।
। नित्यशः-अ० [सं०] हर रोज, प्रतिदिन सदा, हमेशा । निजी-वि० निजका; व्यक्तिगत । -उपचारगृह-पु० नित्यानंद-पु० [सं०] वह आनंद जो सदा बना रहे ।
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४०९
निथंभ-निपात
वि० वह जो सदा आनन्दसे रहे ।
रही हो। निथंभ*-पु० स्तंभ, खंभा।
निद्रालु-वि० [सं०] सोनेवाला, निद्राशील । निथरना-अ० क्रि० धुले हुए मैल आदिके नीचे बैठ जानेसे निद्रित-वि० [सं०] सोया हुआ, सुप्त । जल आदिका स्वच्छ हो जाना।
निधड़क-अ० बेखटके, बेरोक बिना हिचक । निथारना, निथालना*-सक्रि० पानी या किसी अन्य निधन-पु० [सं०] नाश, मरण; अंत; कुंडलीमें आठवाँ तरल पदार्थको इस रूपमें लाना कि उसमें घुला हुआ। स्थान । वि०वित्तहीन, गरीब, दरिद्र ।-कारी(रिन)मैल आदि नीचे बैठ जाय ।
वि० घातक, नाशक । -क्रिया-स्त्री० अंत्येष्टिक्रिया। निदई*-वि० दे० 'निर्दय।
निधनी-वि० धनहीन, दरिद्र । निदरना*-स० क्रि० अपमान करना, अनादर करना; निधान-पु० [सं०] रखना; आधार, आश्रया आकर,
तिरस्कार करना, त्यागना; मात करना, नीचा दिखाना। खजाना; संपत्ति घर । निदर्शक-वि० [सं०] दिखलाने-बतलानेवाला ।
निधि-स्त्री० [सं०] किसी वस्तुका आधार; खजाना; वह निदर्शन-पु० [सं०] प्रदर्शन; उदाहरण, दृष्टांत ।
गड़ा हुआ धन जिसके स्वामीका पता न हो; कुबेरके नौ निदर्शना-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ दो पदार्थों में रत्न (पा, महापन, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील भिन्नता होते हुए भी उपमा द्वारा उनके संबंधकी कल्पना और खर्व); समुद्र; नौकी संख्या; वह धन जो किसी उद्देकी जाय।
श्यसे अलग रखा या जमा कर दिया जाय; बहुगुण-संपन्न निदलन*-पु० दे० 'निर्दलन'।
व्यक्ति (लोकस) किसी चलायमान बिंदुकी वह रेखा जिसनिदहना*-स० क्रि० जलाना।
पर उस बिंदुकी वे सब स्थितयाँ हों जो किसी दिये हुए निदाघ-पु० [सं०] गरमी; घाम; ग्रीष्म ऋतु, पसीना।
नियमका पालन करती हों।-नाथ,-प,-पति-पाल-कर-पु० सूर्य। -काल-पु० ग्रीष्म ऋतु ।
पु० कुबेर । निदान-पु० [सं०] आदि कारण; कारण रोगका कारण
| निधीश, निधीश्वर-पु० [सं०] कुबेर । रोगकी पहचान, लक्षणों द्वारा यह निर्णय करना कि कौन निधेय-वि० [सं०] रखने योग्य, स्थापन करने योग्य । रोग हुआ है। अ० अंतमें, आखिर । वि०निकृष्ट, तुच्छ, निनरा-वि० न्यारा, जुदा। गया-गुजरा। -गृह-पु० (क्लिनिक) वह स्थान जहाँ । निनाद-पु०[सं०] शब्द, गुंजार; रथके पहियेकी आवाज । रोगियोंका परीक्षण इत्यादि कर उन्हें चिकित्सा-संबंधी
निनादना*-स० क्रि० निनाद करना ।। उचित सलाह दी जाती है। -शास्त्री (स्त्रिन)-पु० निनान*-पु० अंत; लक्षण । अ० अंतमें, आखिर । वि० (पैथेलाजिष्ट ) रोगोंका निदान करनेवाला विशेषज्ञ । | आखिरी दजेंका, घोर; बुरा, तुच्छ । निदारुण-वि० [सं०] कठिन; निर्दय; असह्य ।
निनार, निनारा-वि० न्यारा, जुदा-'वे हरि जल हम निदाह*-पु० दे० 'निदाघ'।
मीन वापुरी कैसे जियहिं निनारे'-सू०, दूर। निदिध्यास, निदिध्यासन-पु० [सं०] अनवरत चिंतन, निनावाँ-पु० फुसीकी तरहके लाल दाने जो जीभ, मसूड़े बार-बार स्मरण करना।
तथा मुँहके भीतरी भागों में निकल आते है। निदेश-पु० [सं०] आज्ञा; शासन कथन; समीपता, निक-निनौना*-स० कि० नवाना, झुकाना । टता; पात्र, बरतन; (डाइरेक्शन) रास्ता या ढंग बतानेका निनौरा-पु० ननिहाल ।
काम, करने या किये जानेका आदेश देना, हिदायत । निन्नानबे-वि०, पु० दे० 'निन्यानबे' । निदेशक-पु० [सं०] (डाइरेक्टर) निदेश करनेवाला; चल- | निन्यानबे-वि० नब्बे और नौ। पु० निन्यानबेकी संख्या, चित्रों में पात्रोंकी वेशभूषा, कथोपकथन आदि निर्धारित | ९९ । मु०-का चक्कर का फेर-धन बढ़ानेकी धुन । करनेवाला (निर्देशक)।
निन्यारा*-वि० दे० 'निनारा। निदेशिका-स्त्री० [सं०] (डाइरेक्टरी) किसी नगर, प्रदेश निपंग-वि० पंगु, अपाहिज ।
आदिके प्रमुख नागरिकों, व्यापारियों आदिका नाम, पता| निपजना*-अ० कि० उपजना, उत्पन्न होना, जमना पुष्ट आदि बातोंका ब्यौरा देनेवाली पुस्तक ।
होना, परिपक होना निकलना; बनना। निदेशी (शिन्)-वि० [सं०] आज्ञा देनेवाला । निपजी*-स्त्री० उपज; फायदा, मुनाफा । निदेस*-पु० दे० 'निदेश' ।
निपट-अ० एकदम, बिलकुल, नितांत, निरा। निदोष-वि० दे. 'निर्दोष'।
निपटना-अ० क्रि० दे० 'निबटना'। निद्धि*-स्त्री० दे० 'निधि' ।
निपटारा-पु० दे० 'निबटारा' । निद्रा-स्त्री० [सं०] प्राणियोंकी वह अवस्था जिसमें संशावहा | निपटेरा-पु० दे० 'निबटेरा' । नाडियोंका काम रुक जाता है, आँखें बंद हो जाती, शरीर निपतन-पु० [सं०] नीचे आना, उतरना; गिरना, पतन । शिथिल पड़ जाता और चेतना जाती सी रहती है। आल- निपतित-वि० [सं०] नीचे उतरा हुआ; गिरा हुआ। स्था मीलन । -चार,-भ्रमण-पु० (सोमनैबलिज्म) | निपत्र-वि० जिसमें या जिसपर पत्ते न हों, पत्रहीन । निद्रा-ग्रस्त रहते हुए भी चलना-फिरना या अन्य कार्य निपाँगर-वि० पंगु, जिसके हाथ-पाँव बेकाम हो गये हों। करना। -भंग-पु० जागरण ।
निपात-पु० [सं०] गिरना, पतन, चलाना, फेंकना; निद्रायमाण-वि० [सं०] जो सो रहा हो, जिसे नींद आ विनाश; वह शब्द जो वर्णागम आदिके द्वारा किसी प्रकार
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निपातन-निबेड़ा
४१० बन जाता हो और व्याकरणके नियम(सूत्र)से निष्पन्न न निर्णय करना। होता हो (व्या०) । * वि० दे० 'निपत्र'।
निबटारा, निबटाव-पु० दे० 'निबटेरा' । निपातन-पु० [सं०] गिरानेका काम; मारना, पीटना; निबटेरा-पु० निबटनेका भाव या कार्य, फुरसत, अवकाश, नाश करना।
छुट्टी; समाप्ति, खातमा निर्णय, फैसला । निपातना*-स० कि.गिराना; नाश करना; वध करना, निबड़*-वि० दे० 'निविड'।
मार डालना काटकर गिराना; काट डालना।। निबड़ना*-अ० क्रि० दे० 'निबटना' । निपातित-वि० [सं०] गिराया हुआ; हत या नष्ट किया निबद्ध-वि० [सं०] बंधा हुआ; गुथा हुआ, ग्राथतालखा हुआ; अनियमित रूपसे बना हुआ।
हुआ, लिखित, प्रणीत, रचित; जुड़ा हुआ, संबद्ध; जड़ा निपाती*-वि०बिना पत्तोंका । (वृक्ष)
हुआ, खचित, जटित रोका हुआ, अवरुद्ध आवृत्त (रजि निपाती(तिन्)-वि० [सं०] गिरानेवाला; फेंकनेवाला; | स्टर्ड) (वह लेख, समझौता आदि) जो सरकारी पंजीमें मारनेवाला, नाशक ।
विधिवत् चढ़ा दिये जानेके कारण पक्का और प्रामाणिक हो निपीडक-वि० [सं०] बहुत अधिक पीडा पहुँचानेवाला; गया हो, पंजीबद्ध । निचोड़ने, पेरनेवाला; मलने या दबानेवाला ।
निबर*-वि० दे० 'निर्बल' । निपीडन-पु० [सं०] बहुत अधिक पीडा पहुँचाना; निचो- निबरना-अ० क्रि० बँधा, फँसा या लगा न रहना; छुटड़ना, गारना; पेरना; दबाना या मलना ।
कारा पाना, मुक्त होना; बचा रह सकना; फरागत होना, निपीडना-स्त्री० [सं०] दे० 'निपीडन' । *स० क्रि० पीडा फुरसत पाना; निभना; निबटना, तय होना; पृथक होना, पहुँचाना; दबाना, मलना; गारना; पेरना ।
उलझा न रहना, सुलझना; खत्म होना, मिट जानानिपीडित-वि० [सं०] बहुत अधिक पीडित; दबाया हुआ। 'जूझि कुँवर सब निबरे, गोरा रहा अकेल'-प० । निपीत-वि० [सं०] पान किया हुआ; शोषित । निबर्हण-पु० [सं०] मारने या नाश करनेकी क्रिया या निपुण-वि० [सं०] चतुर, प्रवीण, कुशल; ठीक; पूर्ण । भाव, मारण । वि० नाश करनेवाला । निपुणाई-स्त्री० चतुरता, प्रवीणता, कुशलता।
निबल*-वि० दे० 'निर्बल'। निपुत्री-वि० जिसे पुत्र न हो; संतानरहित ।
निबलाई*-स्त्री० निर्बलता, क्षीणता । निपुन*-वि० दे० 'निपुण' ।
निबह-पु० दे० 'निवह'। निपुनई*-स्त्री० निपुणता, दक्षता।
निबहना-अ० क्रि० बच निकलना, त्राण पाना, पार पाना; निपुनता*-स्त्री० निपुणता, कुशलता, प्रवीणता ।
छुट्टी पाना निर्वाह होना; ज्योंका त्यों बना रहना, कभी निपुनाई*-स्त्री० दे० 'निपुणाई' ।
भंग न होना; चालू रह सकना, निभाना; पूरा होना, निपूत-वि० जिसे पुत्र न हो, पुत्रहीन । [स्त्री० निपूती'।] पालन होना। निपूता-वि० दे० 'निपूत' ।
| निवहर*-वि० जहाँ पहुँचकर कोई लौट नसके (यमद्वार)। निपोड़ना-सक्रि० (दाँत) उधारना या दिखाना। निबहरा-वि० जो सदाके लिए चला जाय (गाली)। निफन*-वि० संपूर्ण, पूरा । अ० पूर्ण रूपसे, पूरे तौरसे। निबाह-पु० निबाहनेका काम या भाव; निर्वाह, खपत, निफरना-अ० क्रि० फँसकर आर-पार होना स्पष्ट होना, ! गुजारा; किसी स्थिति, संबंध आदिको बनाये या जारी साफ होना।
रखनेका काम, रक्षा, पालना पूर्ति त्राणका मार्ग, वचनेका निफल*-वि० दे० 'निष्फल' ।
रास्ता, बचाव । निबंध-पु० [सं०] बंधन; संलग्नता; संग्रह-ग्रंथ; लेख निबाहक*-वि० निर्वाह करनेवाला।
ब रुकनेकी बीमारी प्रतिबंध हथकड़ी: कारणः निबाहना-स०किनिर्वाह करना, ज्योंका त्यों बनाये नीम; वह वस्तु जिसे देनेकी प्रतिज्ञा की गयी हो; बाँधने रखना, कभी भंग न होने देना, किसी स्थिति, संबंध या जोड़नेकी क्रिया।
| आदिकी रक्षा किये जाना; चालू रखना, निभाना; पूरा निबंधक-पु० [सं०] (रजिस्ट्रार) दे० 'पंजीयक' । करना, पालन करना। निबंधन-पु० [सं०] बाँधनेकी क्रिया; बंधन रोकना; बंधन निबिड-वि० [सं०] घना, गहराकठिन ।
या लगावका आश्रय, आधार; संबंध; शासनपट्ट आदि। निबुआ*--पु० दे० 'नीबू' । (रजिस्ट्रेशन) दे० 'पंजीयन'।
निबुकनाt *-अ० कि० बच निकलना, मुक्त होना, छुटनिब-स्त्री० [अं०] अंग्रेजी कलमोंके होल्डरोंमें खोंसी जाने- कारा पाना, बंधनसे मुक्त होना; बंधनका ढीला होना,
वाली लोहे आदिकी नुकीली वस्तु जिससे लिखा जाता है। खिसकना संपन्न होना । निबकौड़ी, निबकौरी -स्त्री० नीमका फल या बीज। निबेड़ना-स० क्रि० बंधनरहित करना, मुक्त करना, निबटना-अ० क्रि० निवृत्त होना, छुटकारा पाना, फुरसत छुड़ाना एकमें मिली हुई वस्तुओंको पृथक्-पृथक् करना, पाना, फरागत होना; करनेको बाकी न रह जाना, समाप्त छाँटना; सुलझाना; निबटाना, फैसला करना; दूर करना, होना, खत्म होना, निःशेष होना निबटाया जाना, फैसल पृथक करना; पूरा करना, समाप्त करना। होना, तय होना; शौचक्रियासे निवृत्त होना।
निबेड़ा-पु० छुटकारा त्राण, बचाव; एकमें मिली वस्तुओंनिबटाना-स० क्रि० समाप्त करना, खत्म करना; पूरा के पृथक् होने या किये जानेका काम या भाव; सुलझाव अदा कर देना, चुका देना तय करना, फैसला करना, निबटारा, निर्णय; दूरीकरण , हटाव पूर्ति, पूरा करना ।
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४११
निबेरना-नियम निबेरना-म० क्रि० दे० 'निबेड़ना'; छोड़ना; वसूल करना निमीलन-पु० [सं०] आँखें मूंदना या झपकाना। -'ब्याज निबेरत ऊधो'-सू० ।
निमीलित-वि० [सं०] मुँदा हुआ, बंद (नेत्र); जो जड निबेरा-पु० दे० 'निवेडा'।
या सुन्न हो गया हो, अंधकाराच्छन्न; लुप्त । निबेहना*-स० क्रि० दे० 'निबेरना' ।
निमुँहा-वि० जिसे बोलनेका साहस न हो, जो दृढ़तानिबोधन-पु० [सं०] समझने या समझानेकी क्रिया। __ पूर्वक कुछ बोल न सके, चुप रहनेवाला । निबौरी*-स्त्री० दे० 'निमकौड़ी' ।
निमूंद-वि० बंद। निभ-वि० [सं०] प्रखर प्रकाशवाला; समान, सदृश (समा- निमेख*-पु० दे० 'निमेष' ।
सांतमें) । पु० प्रकाश; व्याज; छल-कपट; प्रकट होना। निमेट*-वि. जो मिट न सके, अमिट, जो बना रहे । निभना-अ० क्रि० दे० 'निबहना।
निमेष-पु० [सं०] दे० 'निमिष'; आँखोंके फड़कनेका निभरम*-वि० जिसे या जिसमें किसी प्रकारका खटका न रोग । * स्त्री० पलक-'निमेषै बिथकित भई'-कविता० । हो, भ्रमरहित । अ० बेखटके, निम्शंक।
निमोना-पु० चने या मटरके पिसे हुए कच्चे दानोंसे निभरमा-वि० जिसका भरम या विश्वास उठ गया हो; तैयार की हुई मसालेदार दाल । जिसकी पोल खुल गयी हो।
निम्न-वि० [सं०] गहरा; नीचा। -गा-स्त्री० नदी निभरोसी*-वि०जिसे कोई सहारा न रह गया हो, पहाड़ी झरना । वि०स्त्री० नीचे जानेवाली ।-लिखितअसहाय; आश्रयहीन ।
वि० नीचे लिखा हुआ। -सदन-पु. (लोअर हाउस) निभाउ, निभाव-पु० दे० 'निबाह' । वि० भावरहित । दे० 'अवरागार'। निभालन-पु० [सं०] देखना, दर्शन; मालूम करना। निम्नांकित-वि० [सं०] नीचे लिखा हुआ। निभृत-वि० [सं०] रखा या धरा हुआ; गुप्त, अंतहिंत; निम्नोन्नत-वि० [सं०] विषम, नीचा-ऊँचा, ऊबड़-खाबड़ ।
जो अस्त होने जा रहा हो; नम्र, विनीत; अचल, स्थिर; नियंता(त)-पु० [सं०] नियमन करनेवाला, नियंत्रणमें भरा हुआ; निर्जन, सूना; शांत; जो जोरदार न हो, धीमा, रखनेवाला; शासनकर्ता दंड देनेवाला; विशिष्ट नियमके मंद; बंद किया हुआ, आवृत; धीर, धैर्यवान् ।
अनुसार संचालन करनेवाला, संचालक चलानेवाला । निभ्रांत*-वि० दे०निभ्रांत'।
नियंत्रण-पु० [सं०] नियमोंमें बाँधकर रखना, वशमें निमंत्रण-पु० [सं०] किसी कार्य, उत्सव आदिमें या श्राद्ध, | रखना, स्वच्छंद न रहने देना, प्रतिबंधन; अपने अधिकार भोज आदिमें सम्मिलित होनेका निवेदन, बुलावा, न्योता। या देखरेख में रखकर व्यापारादि चलाना । -पत्र-पु. वह पत्र जिसमें किसी कार्य, उत्सव आदिमे नियंत्रित-वि० [सं०] नियंत्रणमें रखा हुआ, प्रतिबद्ध सम्मिलित होनेका निवेदन किया गया हो, निमंत्रणका पत्र। प्रतिबंध द्वारा जिसका व्यापार या कार्य सीमित कर दिया निमंत्रना*-स० क्रि० निमंत्रण देना, न्योता देना। गया हो। निमंत्रित-वि० [सं०] जो आमंत्रित किया गया हो,आइत। निय*-वि०निज । निमका-पु० दे० 'नमक' ।
नियत-स्त्री० दे० 'नीयत' । वि० [सं०] नियमबद्ध, बँधा निमकी-स्त्री० नीबूका अचार; नमकीन टिकिया। हुआ; नियुक्त; स्थिर किया हुआ, पक्का किया हुआ, निमकीड़ी-स्त्री० नीमका फल या उसका बीज ।
निश्चित, मुकर्रर ।-कालिक पलीता-पु० (टाइम फ्यूज) निमन्जन-पु० [सं०] डुबकी लगाना; डुबकी लगाकर स्नान वह पलीता जिसमें ज्वलनशील वस्तुएँ भरी हों या जो करना, अवगाहन।
उनमें डुबाकर, संलिप्त कर बनाया गया हो, अतः जो निमजना*-अ० क्रि० दृबकी लगाना, अवगाहन करना। निर्धारित समयके बाद जल उठे। -कालिक प्रस्फोटनिमज्जित-वि० [सं०] डूबा हुआ।
पु० (टाइम-बम) दे० 'सावधिक प्रस्फोट' । -भागीनिमता*-वि. जो माता हुआ या मत्त न हो; शांत । (गिन्)-पु० (एलॉटी) वह व्यक्ति जिसे कोई वस्तु निमाज-स्त्री० दे० 'नमाज' ।
या कोई हिस्सा निर्दिष्ट किया गया हो, दे० 'आवंट्य' । निमान*-पु० नीची जगह, ढाल, खाल; जलाशय । नियतांश-पु० [सं०] (कोटा) समूची राशिका वह अंश निमि-पु० [सं०] एक ऋषि जो दत्तात्रेयके पुत्र थे;इक्ष्वाकु- जो किसी व्यक्तिसे लेने या उसे देनेके लिए निर्धारित वंशके एक राजा जो मिथिलाके विदेहवंशके प्रवर्तक थे किया जाय। पलकोंका गिरना, निमेष ।-राज-पु० राजा जनक । | नियतात्मा(त्मन्)-पु० [सं०] अपने ऊपर नियंत्रण निमिख*-पु० दे० 'निमिष'।
रखनेवाला, संयमी, वशी। निमित्त-प० [सं०] कारण साधनभूत कारण चिह, लक्षण नियताप्ति-स्त्री० [सं०] नाटककी पाँच अवस्थाओं में से एक लक्ष्य, उद्देश्य, फल; शकुन; दिखावटी कारण, बहाना। जिसमें फलप्राप्तिका निश्चय होता है। -कारण,-हेतु-पु० समवायी और असमवायी कारणसे नियति-स्त्री० [सं०] नियत होनेकी क्रिया या भाव; नियभिन्न कारण-जैसे घटनिर्माणमें कुम्हार, चाक, दंड आदि | मन; अदृष्ट, भाग्य, भवितव्यता; आत्मसंयम । -वाद(न्या०)।
पु० दे० 'भाग्यवाद'।
| नियम-पु० [सं०] विधान या निश्चयके अनुकूल नियंत्रण उतना समय जितना एक बार पलक गिरने में लगे, क्षण। स्थायी कार्यक्रम, दस्तूर, निश्चित व्यवस्था रीति, पद्धति, निमिषांतर-पु० [सं०] पलभरका अंतर ।
कायदा; अनुशासन, नियंत्रण वह संकल्प जिसका सदा
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नियमन - निरंतर
निर्वाह किया जाय, प्रतिज्ञा; कार्यविशेषके संपादन या संचालन के लिए निश्चित सिद्धांत या आधार, विधि, विधान; योगके आठ अंगोंमें से एक जिसके अंतर्गत शौच, संतोष, तप आदि हैं; कवियोंकी एक वर्णन-पद्धति; अर्थालंकारका एक भेद; वह विधि जो अप्राप्त अंशका पूरण करे (मीमांसा); शर्त परमेश्वर ; परिभाषा, लक्षण । - निष्ठा - स्त्री० नियमों का कड़ाईके साथ पालन । पत्रपु० प्रतिज्ञापत्र, शर्तनामा ।-बद्ध - वि० नियमोंसे जकड़ा हुआ; नियमोंके अनुसार चलने या होनेवाला; नियमों के अनुकूल ।
नियमन - पु० [सं०] नियममें बाँधनेका कार्य, अनुशासन या वशमें रखना, नियंत्रण, शासन; निग्रह, दमन । नियमवती - स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका मासिक स्राव नियमित रूपसे होता हो ।
नियमापत्ति - स्त्री० [सं०] (पॉइंट ऑव ऑर्डर) किसी सभा-समिति में कार्यप्रणालीकी मानी हुई परंपरा या स्वीकृत नियमोंके विरुद्ध कोई बात होनेपर उठायी गयी या की गयी आपत्ति | नियमावली - स्त्री० [सं०] किसी संस्थाके संचालन, प्रवेश आदि-संबंधी नियमोंका संग्रह, सदस्यों या कार्यकर्ताओंके अनुशासन, पथ प्रदर्शन आदि संबंधी नियम | नियमित- वि० [सं०] बँधा हुआ, निश्चित; नियमोंसे जकड़ा हुआ, नियमबद्ध नियमके अनुसार, बाकायदा ! नियम्य - वि० [सं०] नियमन करने योग्य, शासन या निग्रह करने योग्य; नियमबद्ध होने योग्य । नियरा - अ० निकट, पास नियराई * -
- स्त्री० समीपता, निकटता ।
नियराना * - अ० क्रि० पास आना । स० क्रि० पास पहुँचना |
नियरे* - अ० दे० 'नियर' ।
नियाज़-पु० [फा०] इच्छा; आवश्यकता; प्रार्थना; भेंट, दर्शन । स्त्री० चढ़ावा; फातिहा; प्रसाद । -मंद- वि० कुछ चाहनेवाला; प्रार्थी; विनीत (वक्ता विनय प्रकाशनार्थ, विनयवश अपनेको कहता है) । मु० - हासिल करना - ( बड़ेसे) मिलना, दर्शन या परिचय होना । नियान * - पु० परिणाम । अ० दे० 'निदान' । नियामक - पु० [सं०] व्यवस्था करनेवाला, विधायक; नियमन करनेवाला, नियंता, अनुशासक; दूर करनेवाला, नाशक; सारथि; माँझी, मल्लाह । वि० नियंत्रण करनेवाला; दमन करनेवाला; शासन करनेवाला | नियामत - स्त्री० दे० 'नेमत' ।
नियार - पु० जौहरी या सुनारकी दुकानका कूड़ा-कतवार । नियारना* - स० क्रि० अलग करना, दूर करना । नियारा * - वि० पृथक्, जुदा ।
नियारिया - पु० एकमें मिली हुई वस्तुओंको छाँटनेवाला; नियारमेंसे माल निकालनेवाला; चतुर व्यक्ति । नियारे* - अ० दे० 'न्यारे' ।
नियाव* - पु० दे० 'न्याय' |
नियुक्त - वि० [सं०] लगाया हुआ; नियोजित; जिसे प्रेरणा दी गयी हो, प्रेरित; जो नियोग करे या जिससे नियोग
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४१२
कराया जाय; तैनात किया हुआ, जो किसी पदपर रखा गया हो, अधिष्ठापित, अधिकृत । नियुक्ति - स्त्री० [सं०] नियुक्त होने या करनेकी क्रिया, तैनाती, मुकर्ररी ।
नियोक्तव्य - वि० [सं०] नियोजित करने योग्य । नियोक्ता (क्तृ ) - पु० [सं०] लगाने या जोतनेवाला, नियोजित करनेवाला, नियुक्त करनेवाला; नियोग करनेवाला; (एम्प्लॉयर) वेतन, मजदूरी आदि देकर अपने कारखाने, मिल आदि में किसीको काम करनेके लिए नियुक्त करने -
वाला ।
नियोग- पु० [सं०] लगाना या जोतना; नियुक्त करनेकी क्रिया; प्रेरण; प्रवृत्त करना, प्रवर्त्तनः एक प्राचीन प्रथा जिसके अनुसार निःसंतान स्त्री पति के रोगी, नपुंसक या मृत होनेकी दशामें देवर या किसी अन्य गोत्रजके द्वारा संतान उत्पन्न करा सकती थी । नियोगी (गिन् ) - वि० [सं०] जो नियुक्त किया गया हो; जिसे कोई पद दिया गया हो; नियोग करनेवाला । नियोजक - पु० [सं०] नियोजित करनेवाला, प्रवृत्त करनेवाला; तैनात करनेवाला; (एम्प्लॉयर) दे० 'नियोक्ता' । नियोजन- पु० [सं०] नियुक्त करनेकी क्रिया, किसी कार्य में प्रवृत्त करना, प्रेरणा; तैनात या मुकर्रर करना; (एम्प्लॉ
मेंट) वेतन, मजदूरी देकर किसीको किसी कामपर नियुक्त करने या करानेका कार्य, सेवायोजना । - केंद्र- पु० (एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज) बेकार व्यक्तियोंके नाम पता आदिका ब्योरा पंजीबद्ध कर उन्हें उपयुक्त नौकरी, काम-धंधा आदि प्राप्त कराने में सहायता करनेवाला कार्यालय । नियोजनालय - पु० [सं०] (एम्प्लॉयमेंट ब्यूरो) लोगोंको काम या नौकरी दिलाने में सहायता करनेवाला दफ्तर, सेवा योजनालय कामदिलाऊ दफ्तर | नियोजित - वि० [सं०] नियुक्त किया हुआ; लगाया हुआ; प्रवृत्त किया हुआ, व्यापृत; तैनात; (एम्प्लॉयड) वेतन, मजदूरी आदिपर किसी काम में नियुक्त । पु० (एम्प्लॉई ) वह व्यक्ति जो वेतन या मजदूरीपर कारखाने आदिमें कामपर नियुक्त हो ।
निरंक धनादेश - पु० [सं०] (ब्लैंक चेक) वह धनादेश जिसपर रुपयेकी संख्या पहलेसे न लिखी गयी हो, वरन् पानेवाले द्वारा भरी जानेके लिए छोड़ दी गयी हो । निरंकार* - वि०, पु० दे० 'निराकार' ।
निरंकुश - वि० [सं०] जिसपर किसी तरहका दबाव न हो, मनमाना करनेवाला, स्वेच्छाचारी ।
निरंग - वि० बदरंग फीका; [सं०] बिना अंगका, अंगहीन; निरा, विशुद्ध । - रूपक - पु० रूपक अलंकारका एक भेद जहाँ उपमेय में उपमानका इस तरह आरोप हो कि उपमानके और संब अंगोंकी चर्चा न आये ।
निरंजन - वि० [सं०] जिसमें आँजन न हो, अंजनरहित; निर्दोष, मायासे रहित ।
निरंजनी ( निनू ) - वि० [सं०] निरंजनी संप्रदायका (साधु) । पु० साधुओं का एक संप्रदाय ।
निरंतर - वि० [सं०] जिसके बीच में कोई व्यवधान न हो, बिना अंतर या फासले का; देश-कालकी दृष्टिसे अविच्छिन्न,
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४१३
निरंतराभ्यास-निरर्गल अखंड, लगातार होनेवाला । अ०लगातार, बराबर, सर्वदा। निरपना*-वि० जो अपना न हो, परकीय, गैर । निरंतराभ्यास-पु० [सं०] सदा की जानेवाली (पाठकी) निरपराध-वि० [सं०] जिसने अपराध न किया हो,
आवृत्ति, बराबर किया जानेवाला अभ्यास; स्वाध्याय । वेकसूर । अ० बिना अपराध किये, बिना किसी कसूरके। निरंबर-वि० [सं०] नंगा, दिगंबर ।
निरपराधी*-वि० दे० 'निरपराध'। निरंश-वि० [सं०] जिसे अपना अंश प्राप्त न हुआ हो, जो निरपवाद-वि० [सं०] निर्दोष, अपकीर्तिसे रहित; कभी अपने भागसे वंचित रह गया हो।
अन्यथा न होनेवाला, जो ऐसा न हो कि कहीं लगे और निरकार* --वि०, पु० दे० 'निराकार' ।
कहीं न लगे, सर्वत्र एकसा लगनेवाला-जैसे निरपवाद . . निरक्ष-वि० [सं०] बिना पासेका; जो पृथ्वीके मध्य भागमें | नियम । हो। -देश-पु० विषुवत् रेखापरके देश ।
निरपेक्ष-वि० [सं०] किसी औरकी अपेक्षा न रखनेवाला; निरक्षन*-पु० दे० 'निरीक्षण'।
जिसे अपने अर्थका बोध करानेके लिए किसी दूसरे पद, निरक्षर-वि० [सं०] अपढ़ गँवार, मूर्ख ।
वाक्य आदिकी आवश्यकता न हो, जो स्वतः अपने अर्थनिरखना*-स० क्रि० देखना; निरीक्षण करना।
का सम्यक् बोध करा ले; जो अपने ही ऊपर अवलंबित निरग*-पु० दे० 'नृग'।
हो, केवल अपना भरोसा करनेवाला; आशा, तृष्णासे निरगुन-वि० दे० 'निर्गुण' । पु० एक पंथ ।
मुक्त, विरक्त; जो किसी बातकी परवा न करे, उदासीन । निरगुनिया-वि०, पु० 'निरगुन' पंथको माननेवाला। | निरपेक्षा-स्त्री० [सं०] उपेक्षा; उदासीनता। . निरगुनी*-वि० दे० 'निर्गुण' ।
| निरपेक्षित-वि० [सं०] जिसकी अपेक्षा न की गयी हो। निरग्नि-वि० [सं०] जिसने अग्निहोत्र त्याग दिया होनिरपेक्षी(क्षिन)-वि० [सं०] अपेक्षा करनेवाला; उदासीन । जो अग्निहोत्र न करता हो।
निरफल*-वि० दे० 'निष्फल' । निरच्छ*- वि० नेत्रहीन, अंधा ।
निरबंध-वि० बंधनरहित । पु० परमात्मा-'कर सेवा निरजर*-पु० देवता । वि. जो कभी जीर्ण न हो। निरबंधकी पलमें लेत छुड़ाय'-साखी । निरजोस-पु० निष्कर्प, सारांशा निर्णय ।
निरबंसी-वि० जिसे कोई संतान न हो, लावल्द । निरझर*-पु० दे० 'निझर'।
निरबर्ती*-वि०, पु० विरागी, त्यागी। निरझरनी*-स्त्री० दे० 'निर्झरिणी' ।
निरबल*-वि० दे० 'निर्बल'। निरझरी*-स्त्री० दे० 'निर्झरी'।
निरबहना-अ० कि० निर्वाह होना, निबहना । निरत-वि० [सं०] लगा हुआ, तत्पर, लीन । * पु० निरबान-पु० दे० 'निर्वाण' । नृत्य । * अ० निरंतर, लगातार ।
निरबाहना, निरवाहना-स० क्रि० 'निबाहना' । निरतना-अ० क्रि० नृत्य करना, नाचना ।
| निरबिसी*-स्त्री० दे० 'निर्विषी' । निरति-स्त्री० [सं०] विशेष रति या अनुराग; आसक्ति । | निरबेरा-पु० दे० 'निबेरा' । निरतिशय-वि० [सं०] जिससे बड़ा या बढ़कर दूसरा न | निरभय*-वि० दे० 'निर्भय'। हो, अद्वितीय । पु० परमेश्वर ।
| निरभर-वि० दे० निर्भर' । निरत्यय-वि० [सं०] बाधारहित, निरापदः निर्दोष । पु० निरभिमान-वि० [सं०] जिसमें अहंभाव न हो, गर्वरहित । बाधाका अभाव ।
निरभिलाष-वि० [सं०] जिसे किसी वस्तुकी चाह न हो, निरदई, निरदय*-वि० दे० 'निर्दय' ।
निरीह । निरदोषी-वि० दे० 'निर्दोष' ।
निरभ्र-वि० [सं०] जिसमें बादल न हों, मेघरहित । निरधातु-वि० दे० 'निर्धातु'।
निरमना*-स०क्रि० निर्माण करना, बनाना, रचना करना। निरधार*-पु० निश्चय करने या ठहरानेको क्रिया, निर्धा-निरमर, निरमल-वि० दे० 'निर्मल' । रण। वि० आधाररहित । अ० निश्चयपूर्वक-'ये रक्षा निरमली-स्त्री० दे० 'निर्मली'। करिहै सदा, यह जानौ निरधार'-छत्र ।
निरमान* -पु० दे० 'निर्माण' । निरधारना*-स० क्रि० निश्चय करना, तय करना; निरमाना*-स० क्रि० निर्माण करना, बनाना । सोचना, समझना।
निरमायल*-पु० दे० 'निर्माल्य' । निरध्व(न्)-वि० [सं०] जो रास्ता भूल गया हो। निरमित्र-वि० [सं०] जिसका कोई शत्रु न हो। निरनउ, निरनय-पु० दे० 'निर्णय' ।
निरमूल-वि० दे० 'निर्मूल' । निरनुनासिक-वि० [सं०] अनुनासिकसे भिन्न, जिसके निरमूलना*-स० क्रि० जड़से उखाड़ना, उन्मूलन करना; उच्चारणमें नाकका योग न हो (व्या०) ।
समूल नष्ट करना। निरनुमोदन करना-सक्रि० ( डिसऐप्रव) किसीके किये निरमोल-वि० दे० 'अनमोल'। हुए प्रस्ताव, कार्य या नीति आदिका समर्थन न करना, निरमोलिक, निरमोलिका-वि० अनमोल, बहुमूल्य ।
उसके संबंध अपनी सहमति या स्वीकृति न देना। निरमोही*-वि० दे० 'निर्मोही'। निरनै*-पु० दे० 'निर्णय'।
निरय-पु० [सं०] नरक । निरन्न-वि० [सं०] बिना अन्नका; जिसमें अन्नका सेवन निरयण-पु० [सं०] ज्योतिष में एक तरहकी गणना। न हो; जिसने अन्न न खाया हो, निराहार ।
निरर्गल-वि० [सं०] अर्गलारहित; जिसपर कोई रोक न
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निरर्थ - निराशा
हो, प्रतिबंधरहित; जिसकी गति, प्रवाह अवरुद्ध न हो, निरहेतु* - वि० दे० 'निर्हेतु' |
स्वच्छंद, अबाध; निर्विघ्न ।
निरर्थ - वि० [सं०] दे० 'निरर्थक' |
निरर्थक - वि[सं०] जिसका कुछ अर्थ न हो, बेमतलब; निष्प्रयोजन, निष्फल, व्यर्थ, बेकाम । निरवकाश - वि० [सं०] जिसे या जिसमें अवकाश न हो। निरवच्छिन्न- वि० [सं०] जिसका सिलसिला न टूटे, निरंतर ।
निरवद्य - वि० [सं०] दोषरहित, विशुद्ध; उत्कृष्ट; अनिंद्य । निरवधि-वि० [सं०] जिसकी कोई सीमा न हो, अपार, निःसीम |
निरवयव - वि० [सं०] अंगरहित, पूर्ण; निराकार । निरवलंब - वि० [सं०] जिसे कोई सहारा न हो, असहाय । निरवशेष - वि० [सं०] संपूर्ण, समग्र । निरवसाद - वि० [सं०] प्रसन्न, हृष्ट । निरवाना- स० क्रि० निरानेका काम दूसरेसे कराना । निरवारना * - स० क्रि० निवारण करना, हटाना; प्रतिबंधभूत वस्तुको दूर करना;मुक्त करना, छुड़ाना; खोलना, उलझी हुई वस्तुको सुलझाना; छितराना; अलग करना, तजना, त्यागना; तय करना, फैसला करना । निरवाह * - पु० दे० 'निर्वाह' । निरवाहना-स० क्रि० दे० 'निबाहना' | निरवेद* - पु० दे० 'निर्वेद' ।
निरशन - वि० [सं०] जिसने कुछ खाया पिया न हो । पु० भोजनका अभाव, उपवास । निरसंक* - वि० दे० 'निशंक' |
निरस - वि० [सं०] जिसमें रस न हो, स्वादहीन, फीका, बेमजा; जो आनंद न दे; रूखा-सूखा ।
निरसन - पु० [सं०] फेंकना, दूर हटाना, अपसारण; निवारण; खंडन, ( पहलेका आदेश ) रद्द करना, प्रत्याख्यान; वमन करना; दूर करना, निराकरण; नाश; वध; (रिपील) किसी विधि आदिको अधिकार पूर्वक या वैध रीतिसे रद्द कर देना ।
निरसित - वि० (रिपील्ड ) ( विधि, अधिनियम आदि ) जिसका निरसन कर दिया गया हो । निरस्त - वि० [सं०] दूर हटाया हुआ, निवारितः वमन किया हुआ; थूका हुआ; फेंका हुआ; अलग किया हुआ, त्यक्त; खंडित; जिसका नाश किया गया हो; जिसका उच्चारण शीघ्रताके साथ किया गया हो । निरस्त्र - वि० [सं०] जिसके पास हथियार न हो, बिना हथियारका निहत्था ।
निरस्त्रीकरण - पु० [सं०] (डिस-आर्ममेंट) अस्त्रविहीन करना;
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शस्त्रास्त्रोंकी संख्या घटाना । निरस्त्रीकृत - वि० [सं०] (डिम आर्ल्ड) जिसके हथियार छीन लिये गये हों, जो अस्त्रहीन कर दिया गया हो । निरस्थि - वि० [सं०] जिसमेंसे हड्डी निकाल दी गयी हो; बिना हड्डीका ।
|
निरहंकार, निरहंकृत, निरहंकृति - वि० [सं०] जिसमें अभिमान न हो; जिसमें शरीर, इंद्रिय आदिके प्रति 'यह मेरा है' यह भावना न हो ।
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निरहेल * - वि० जिसकी अवहेलना हो, जिसका आदर न हो, तुच्छ, निकृष्ट
निरा-दि० बिना मिलावटका, विशुद्ध; एकमात्र एकदम, कोरा, निपट |
निराई-स्त्री० निरानेको क्रिया; निरानेकी उजरत । निराकरण - पु० [सं०] दूर हटाना, निवारण; दूर करना, परिहार, खंडन, निरसन; ( एब्रोगेशन ) राजा, प्रधान शासक या अधिकारी द्वारा किसी विधि, अध्यादेश, संधि आदिका रद्द कर दिया जाना ।
निराकांक्ष - वि० [सं०] जिसे किसीकी अपेक्षा, इच्छा न हो; इच्छारहित, निरपेक्ष ।
निराकार - वि० [सं०] जिसका कोई आकार या रूप न हो, भद्दा, कुरूप; विनम्र | पु० परमात्मा । निराकुल- वि० [सं०] व्याप्त; भरा हुआ; जो घबराया न हो, धीर, शांत, * बहुत घबराया हुआ - 'व्याकुल बाहु, निराकुल बुद्धि - राम० ।
निराकृत - वि० [सं०] जिसका निराकरण किया गया हो । निराखर* - वि० दे० 'निरक्षर' ।
निराग (स्) - वि० [सं०] निष्पाप; निरपराध निराचार - वि० [सं०] आचारहीन | निराजी - स्त्री० जुलाहोंके करघेकी एक लकड़ी | निराट* - वि० निरा, कोरा; एकमात्र । अ० बिलकुल - 'कोउक होत निराट दिगम्बर' - सुंदर० ।
निराडंबर - वि० [सं०] जिसमें ढोंग न हो; बिना नगाड़ेका । निरादर - वि० [सं०] अपमानजनक; आदररहित । पु० आदरका अभाव; अपमान ।
निराधार - वि० [सं०] बिना आश्रयका, असहाय; बेबुनि याद, अयथार्थ, अमूल ।
निरानंद - वि० [सं०] आनंदरहित । पु० आनंदका अभाव; दुःख ।
निराना स० क्रि० पौधोंकी बढ़तीको रोकनेवाली अनावश्यक घास, तृण आदिको खुरपीसे खोदकर दूर करना । निरापद् - वि० [सं०] आपत्तिसे रहित, निर्विघ्न, सुरक्षित निराप, निरापुन - वि० जो अपना न हो, परकीय | निरामय - वि० [सं०] नीरोग; स्वस्थ; निर्दोष । निरामिष - वि० [सं०] मांसरहित; * मांस न खानेवाला । - भोजी ( जिन्) - वि० मांस न खानेवाला । निरायुध - वि० [सं०] जिसके पास हथियार न हो, निरख । निरार, निरारा* - वि० अलग, जुदा । निरालंब - वि० [सं०] दे० 'निरवलंब' । पु० ब्रह्म । निराला - पु० निर्जन स्थान, एकांत स्थान । वि० जहाँ कोई बस्ती या मनुष्य न हो, विजन, एकांत, जो अपने ढंगका अकेला हो, विलक्षण; बेजोड़, अनुपम, अद्वितीय । निरावना * - स० क्रि० 'निराना' । निरावरण- वि० [सं०] आवरणरहित, खुला हुआ । निरावृत्त - वि० [सं०] जो ढँका न हो । निराश - वि० [सं०] जिसे आशा न हो, हताश । निराशा - स्त्री० [सं०] आशाका अभाव, नाउम्मेदी | -वाद- पु० संसारको दुःखमय मानने तथा प्रत्येक वस्तु
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निराहार - वि० [सं०] जिसने कुछ खाया पिया न हो; _ जिसे करनेमें कुछ खाया न जाय (व्रत) । निरिंद्रिय - वि० [सं०] जो किसी इंद्रियसे रहित हो,
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को निराशामय दृष्टिकोण से देखनेका सिद्धांत । -वादी ( दिन ) - वि० जीवन के दुःखमय पहलू पर जोर देने वाला, संसारको निराशाकी दृष्टिसे देखनेवाला । निराश्रय - वि० [सं०] दे० 'निरवलंब' |
निरुत्सव - वि० [सं०] बिना उत्सवका । निरुत्साह - वि० [सं०] जिसमें उत्साह न हो, उत्साहरहित । पु० उत्साहका अभाव । निरुत्सुक - वि० [सं०] जो उत्सुक न हो; उत्सुकतारहित ।
निरास - पु० [सं०] दूर करना; प्रत्याख्यान, खंडन; वमन; निरुदक - वि० [सं०] जिसमें या जहाँ जल न हो । निरुद्देश्य - वि० [सं०] उद्देश्यरहित । अ० विना किसी उद्देश्यके ।
विरोध । * वि० दे० 'निराश' ।
निरासा * - स्त्री० दे० 'निराशा' |
निरासी* - वि० हताश, नाउम्मेद; विरक्त; उदास, कांति निरुद्ध-वि० [सं०] जिसका निरोध किया गया हो, विशेष हीन; जहाँ या जिसमें उदासी छायी हो । रूपसे रोका हुआ; विशेष रूपसे रुका हुआ, प्रतिबद्ध, रुँधा हुआ । पु० चित्तकी पाँच भूमियोंमें से एक (योग) । -कंठवि० जिसका गला रुँध गया हो । निरुद्यम - वि० [सं०] जो उद्यम न करे, चुपचाप बैठा रहनेवाला, आलसी, बेकार, निकम्मा । निरुद्योग - वि० [सं०] दे० 'निरुद्यम' | निरुद्वेग - वि० [सं०] उद्वेगरहित, शांत । निरुपजीव्याभूमि- स्त्री० [सं०] वह भूमि जिसकी उपज से गुजर न हो सके, अलाभकर जोत । निरुपद्रव - वि० [सं०] जिसमें या जहाँ कोई उत्पात न हो, शांतिमय, विघ्नरहित, सुरक्षित; जो किसी प्रकारकी बाधा या कष्ट न पहुँचाये; शुभ, मंगलकारी । निरुपधि - वि० [सं०] विशुद्ध, पवित्र सच्चा, निश्छल । निरुपम - वि० [सं०] बेजोड़, अतुलनीय | निरुपयोग - वि० [सं०] जिसका कोई उपयोग न हो, जो किसी काम न आये ।
जिसकी कोई इंद्रिय बेकाम हो; कमजोर । निरिच्छ - वि० [सं०] जिसे कोई चाह न हो, निरीह । निरिच्छन* - पु० दे० 'निरीक्षण' ।
निरिच्छना * - स० क्रि० निरीक्षण करना, ध्यानपूर्वक देखना | निरीक्षक - पु० [सं०] निरीक्षण करनेवाला; देखरेख करनेवाला (इंस्पेक्टर); परीक्षा भवनमें परीक्षार्थियोंकी निगरानी करनेवाला (इन् विजिलेटर) |
निरीक्षण - पु० [सं०] गौर से देखना; देखरेख करना; मुआइना करना, जाँच करना; चितवन । निरीक्षित - वि० [सं०] गौर से देखा हुआ; देखाभाला हुआ; जिसकी जाँच की गयी हो, मुआइना किया हुआ । निरीक्ष्यमाण- वि० [सं०] जिसका निरीक्षण किया जा रहा हो, जिसकी निगरानी की जा रही हो । निरीश्वरवाद - पु० [सं०] ईश्वरके अस्तित्वका खंडन करनेवाला सिद्धांत ।
निरीश्वरवादी ( दिन ) - ५०
माननेवाला ।
[सं०] निरीश्वरवादको
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निरुज * - वि० दे० 'नीरज' । निरुत्तर - वि० [सं०] जो कोई उत्तर न दे सके, जिसके पास कोई उत्तर न हो; जिसकी जबान बंद हो गयी हो ।
निराश्रय-निरोधन
निरुपयोगी (गिन् ) - वि० [सं०] बेकार, निरर्थक । निरुपाधि - वि० दे० 'निरुपधि' ।
निरुपाय - वि० [सं०] जो कोई उपाय करनेमें असमर्थ हो; जिसका कोई उपाय न हो, जिसका कोई प्रतिकार न किया जा सके ।
निरुवरना * - अ० क्रि० कठिनाई दूर होना, सुलझना । निस्वारना * - स० क्रि० दे० 'निरवारना' ।
निरूढ - वि० [सं०] अत्यंत रूढ, अधिक प्रसिद्ध; जिसका अधिक व्यवहार होता हो; अविवाहित । -लक्षणा - स्त्री० वह लक्षणा जिसमें शब्दका प्रसिद्ध अर्थ रूढ हो गया हो ।
निरीह - वि० [सं०] जिसे किसी वस्तुकी इच्छा न हो, इच्छा, तृष्णासे रहित, उदासीन, विरक्त'जो क्रियाशील न हो । निरीहता - स्त्री०, निरीहत्व - पु० [सं०] निरीह होनेका भाव, चेष्टाहीनता ।
निरुआ - पु० टालने या दूर करनेकी क्रिया; निस्तार; निरूप - वि० बिना रूपका, रूपरहित; बुरी शलका, कुरूप । त्राण, बचाव; निवटारा; सुलझाव ।
निरुभरना - स० क्रि० दे० 'निरवारना' | निरुक्त - वि० [सं०] जिसका निर्वचन किया गया हो; नियोग करानेवाला; नियोगमें प्रवृत्त किया हुआ | पु० वेद के छ अंगों में से एक; यास्क मुनि-रचित एक प्रसिद्ध ग्रंथ जिसमें वैदिक शब्दोंके निघंटुकी विशद व्याख्या की गयी है । - कार - पु० निरुक्त के रचयिता यास्क मुनि | निरुक्ति - स्त्री० [सं०] ऐसी व्याख्या जिसमें प्रकृति-प्रत्यय आदि अवयवोंका अर्थ समझाते हुए शब्दोंका अर्थ स्पष्ट किया गया हो; एक काव्यालंकार जहाँ किसीके नामका प्रसिद्ध अर्थ छोड़कर युक्तिपूर्वक कोई मनमाना अर्थ किया जाय ।
निरूपण - पु० [सं०] ढूँढ़ना, जाँचना, अन्वेषण; मौखिक रूपसे या लेख द्वारा किसी विषयको ठीक-ठीक समझा देना । निरूपना* - स० क्रि० निरूपण करना, स्पष्ट शब्दों में समझा देना; प्रतिपादन करना, वर्णन करना । निरूपित - वि० [सं०] जिसका निरूपण किया गया हो । निरेखना* - स० क्रि० देखना, निरखना । निरै* -- ५० निरय, नरक ।
निरोग, निरोगी । - वि० जिसे कोई रोग न हो, स्वस्थ | निरोध-पु० [सं०] रोक, रुकावट, प्रतिबंध; वशमें लाना, निग्रह; छेंकना, घेरना, अवरोध; नाश; चित्तकी वह अवस्था जिसमें सभी वृत्तियों और संस्कारोंका लय हो जाता है; (डिटेशन) दे० 'निरोधन' । निरोधक - वि० [सं०] निरोध करनेवाला, रोकनेवाला । निरोधन- पु० [सं०] दे० 'निरोध' ; पारेका छठा संस्कार (आ० ० ); (डिटेंशन ) किसी संदिग्ध या उपद्रवी व्यक्तिको
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निरोधा - निर्दिष्ट
अभिरक्षा आदिमें रोक रखना जिससे वह बाहर निकलकर किसी तरहका उपद्रव या अनिष्ट न कर सके ।-शिविरपु० ( कांसेंट्रेशन कैंप ) विरोधियों या शंकास्पद समझे जानेवाले व्यक्तियोंको सैकड़ों, हजारोंकी संख्या में एक ही स्थानपर नजरबंद रखनेका शिविर ( हिटलरने नात्सी विरोधियों के लिए जर्मनीमें और भारतमें अंग्रेजी सरकार ने १९४१ में देवली में ऐसा शिविर साम्यवादियोंके लिए खोला था), नजरबंदी शिविर ।
निरोधा - स्त्री० [सं०] (क्कारैनटीन) किसी ऐसे स्थान से, जहाँ संक्रामक रोग फैला हो, आनेवाले व्यक्तियों (या जहाजों) आदिके कुछ समयतक के लिए बिलकुल पृथक स्थान, घर आदिमें आबद्ध किये जानेका कार्य; वह स्थान जहाँ उन्हें इस प्रकार आबद्ध होकर रहना पड़े । निरोधाज्ञा स्त्री० [सं०] (इनजंकशन) वह आज्ञा जो कोई होता हुआ अन्यायपूर्ण कार्य रोकने के लिए किसी न्यायालय द्वारा दी जाती है ।
निर्ख - पु० [फा०] दर, भाव। दारोगा - पु० मुसलमानोंके शासनकाल में चीजोंके भावकी देखरेख करते रहनेके लिए नियुक्त किया जानेवाला एक प्रकारका दारोगा । -नामा - पु० मुसलिम शासनकालमें वह सूची जिसमें प्रत्येक विक्रेय वस्तुका भाव लिखा रहता था। -बंदीस्त्री० किसी चीजकी दर ठहरानेका कार्य । निर्गंध - वि० [सं०] जिसमें गंध न हो, गंधरहित । निर्गत वि० [सं०] जो बाहर आया हो, निकला हुआ, निःसृत, निष्क्रांत |
निर्गम - पु० [सं०] बाहर जाना, निकलना; निकास, निक लनेका मार्ग, द्वार । -द्वार - पु० बाहर जानेका रास्ता । - मूल्य - पु० ( इशू प्राइस) कोई सार्वजनिक ऋण लेते समय सरकार जिस मूल्यपर उसके हिस्से जारी करे वह मूल्य अथवा किसी बैंक, व्यापारिक संस्थाओं आदिके हिस्सोंका उनके जारी किये जानेके समयका मूल्य । निर्गमन - पु० [सं०] बाहर जाना, निकलना, निःसरण;
दरवाजा |
निर्गमना * - अ० क्रि० निकलना, बाहर आना । निर्गमित पूँजी - स्त्री० ( इशूड कैपिटल ) वह पूँजी जो कारखाने आदिकी आवश्यकताएँ पूरी करनेके लिए बाहर निकाली गयी हो ।
निर्गुण - वि० [सं०] जो सत्त्व, रज, तम - इन तीनों गुणोंसे परे हो, त्रिगुणातीत; जो गुणवान् न हो, गुणरहित; जिसमें डोरी न हो (धनुप् ) । पु० त्रिगुणातीत परमात्मा । निर्गुणिया, निगुर्निया* - वि० निर्गुण ब्रह्मकी उपासना
करनेवाला | निग्रंथ - वि० [सं०] मूर्ख; असहाय; विरक्त; वस्त्रहीन । निर्घात - पु० [सं०] ध्वंस, नाश; तूफान; हवा के झोंकों के टकरानेसे उत्पन्न शब्द; वज्राघात; प्रहार; भूकंप । निर्घृण - वि० [सं०] घृणारहित; निर्दय, निष्ठुर; निर्लज्ज । निर्छल * - वि० छल या कपटसे रहित । निर्जन - वि० [सं०] जहाँ कोई न हो, एकांत, सुनसान । पु० मरुभूमि; उजड़ी हुई या गैर-आबाद जमीन । निर्जनीकरण - पु० [सं०] ( डीपॉपुलेशन ) किसी स्थानका
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आबादी से रहित कर दिया जाना, किसी क्षेत्र में बसे हुए लोगोंको युद्धादिकी आवश्यकता के कारण वहाँ से हटा देना । निर्जर - वि० [सं०] जो कभी बुड्ढा न हो, सदा युवा बना रहनेवाला | पु० देवता; अमृत ।
निर्जल - वि० [सं०] जलरहित, जहाँ पानी न हो; जिसमें जलतक न ग्रहण किया जाय । निर्जलीकरण- पु० [सं०] (डीहाईड्रेशन) रासायनिक प्रक्रिया द्वारा वनस्पतियों आदिमेंसे जलका अंश निकाल लेना या उन्हें सुखा देना ।
निर्जित- वि० [सं०] जो अच्छी तरह जीत लिया गया हो । निर्जीव - वि० [सं०] जिसमें जान न हो, गतप्राणः शक्ति या उत्साह से रहित, मुर्दादिल ।
निर्झर - पु० [सं०] झरना, प्रपात; सूर्यका एक घोड़ा । निर्झरिणी, निर्झरी-स्त्री० [सं०] झरनेसे निकलनेवाली नदी ।
निर्झरी (रिन् ) - पु० [सं०] पहाड़ । वि० जिससे झरने झरते हों ।
निर्णय- पु० [सं०] किसी विषयपर अच्छी तरह विचार करके उसके दो पक्षोंमेंसे किसी एकको उचित ठहराना; किसी विषय के पूर्वपक्ष और उत्तरपक्षका विमर्श करके ठीक मत स्थिर करना; विचारपतिका किसी विवाद के विषय में अपना मत स्थिर करना; विचारपति द्वारा किसी विवाद के विषय में स्थिर किया गया मत, फैसला, निबटारा | निर्णयन- पु० [सं०] निश्चय या निपटारा करना । निर्णायक - पु० [सं०] निर्णय करनेवाला । -मत-पु० (कास्टिंग वोट) किसी सभा आदिके सभापतिका वह मत जो किसी प्रश्नके संबंध में मतदानके समय पक्ष-विपक्ष में समान मत आनेपर वह देता है और जिससे ही उसके स्वीकृत अस्वीकृत होनेका निर्णय होता है । निर्णीत वि० [सं०] जिसका निर्णय किया गया हो, फैसल ।
निर्णेता (त) - पु० [सं०] निर्णायकः विचारपति; साक्षी । निर्त* - पु० नृत्य, नाच |
निर्तक * - पु० नर्तक, नट; भाँड़ । निर्तना* - अ० क्रि० नाचना ।
निर्देत वि० [सं०] जिसे दाँत न हों, बिना दाँतका । निर्देभ- वि० [सं०] दंभर हित । निर्दई, निर्दयी* - वि० दे० 'निर्दय' ।
निर्दय - वि० [सं०] दयारहित, कठोर हृदयवाला, निष्ठुर । निर्दयता - स्त्री० [सं०] कठोरहृदयता, निष्ठुरता । निर्दल - वि० [सं०] पत्रहीन; दलहीन; दलबंदी से अलग | निर्दलन - ५० [सं०] नाश करना; भंग करना । वि० दलन करनेवाला |
निर्दहना* - स० क्रि० जला देना, दग्ध करना । निर्दिष्ट - वि० [सं०] जिसका निर्देश किया गया हो, बतलाया हुआ; वर्णित; निर्णीत |
निर्दिष्टि - स्त्री० [सं०] (एलोकेशन, एलाटमेंट) किसीके लिए कोई वस्तु या कोई हिस्सा निर्धारित (निर्दिष्ट) करनेकी क्रिया, निर्धारण; आवंटन, वह वस्तु या हिस्सा जो इस तरह निर्दिष्ट किया गया हो ।
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निर्दूपण-निर्मेध निर्दूषण-वि० [सं०] दे॰ 'निदोष' ।।
जहाँ या जिसमें कोई उपद्रव न हो, निरुपद्रव निर्जन । निर्देश-पु० [सं०] बतलाना, दिखाना, संकेत करना, निर्बाधित-वि० बाधारहित ।
जताना; नियत करना; आज्ञा, हुक्म, आदेश, हिदायत; निर्बुद्धि-वि० [सं०] बुद्धिहीन, मूर्ख, बेवकूफ कथन; उलेख; सामीप्य । -ग्रंथ-पु०,-पुस्तक-स्त्री० | निर्बोध-वि० [सं०] अज्ञान, नासमझ । (रेफरेंस बुक) वह पुस्तक जो साधारणतः अध्ययनके लिए निर्भय-वि० [सं०] जो किसीसे भय न खाय, निडर; न लिखी गयी हो, वरन् जिसका उपयोग विशेष अवसरों- निरापद् । पर कुछ बातोंकी जानकारी प्राप्त करनेके लिए किया जाय। निर्भर-वि० [सं०] अत्यंत, बहुत अधिक तीव्र, गाद भरा निर्देशक-वि० सं०] जो निर्देश करे। पु० ( डाइरेक्टर) हुआ; अवलंबित । दे० 'निदेशक'।
निर्भीक-वि० [सं०] दे० 'निर्भय'। निर्देशन-पु० [सं०] (रेफरेंस) किसी अन्य स्थानपर आयी। निर्धम-वि० सं०] भ्रमरहित, जिसमें या जिसे कोई भ्रम या कही हुई बातका उल्लेख या उसकी ओर संकेत करने- न हो। * अ० बेखटके, स्वच्छंद होकर । की क्रिया ।
निभ्रांत-वि० [सं०] दे० 'निर्धम'। निर्देशिका-स्त्री० [सं०] (डाइरेक्टरी) दे० 'निदेशिका'। । निर्मक्षिक-वि० [सं०] जहाँ कोई (एक मक्खीतक) न हो, निर्देष्टा (ष्ट)-पु० [सं०] निर्देश करनेवाला । निर्जन, एकांत । निर्दैन्य-वि० [सं०] सुखी।
निर्मद-वि० [सं०] अभिमानरहित; हर्षरहित; (वह हाथी) निर्दोष-वि० [सं०] जिसमें कोई दोष न हो, निष्कलंक, जिसके गंडस्थलसे मद न बहता हो, मदजलसे रहित । दोषरहित; निरपराध ।
निर्मना*-स० कि० बनाना, उत्पन्न करना। निर्दोषता-स्त्री० [सं०] दोपराहित्य, निष्कलंकता निर्मम-वि० [सं०] ममतारहित; निष्ठुर । निदोषी-वि० दे० 'निर्दोष' ।
निर्मल-वि० [सं०] जिसमें मल न हो, स्वच्छ, शुद्ध, पवित्र निद-वि० [सं०] दे० 'निद्व' ।
रागादि दोषोंसे रहित; अकलुष- पु० अभ्रक । निद्वंद्व-वि० [सं०] हर्ष-विषाद आदि द्वद्वांसे रहित; निर्मली-स्त्री० एक वृक्ष या उसका फल जो पानी साफ जिसका कोई विरोधी न हो; स्वच्छंद ।
करने और दवाके काम आता है। निर्धन-वि० [सं०] धनहीन, दरिद्र ।
निर्माण-पु० [सं०] बनाने या रचनेकी क्रिया, रचना; निर्धातु-वि० [सं०] जिसकी धातु क्षीण हो गयी हो; मापन; रूप; भवन; अंश; सार, मज्जा। -विद्या--स्त्री. वीर्यहीन ।
मकान आदि बनानेकी विद्या, वास्तुविद्या। निर्धार, निर्धारण-पु० [सं०] समान जाति, गुण, क्रिया निर्माणी-स्त्री० (मिल) वह निर्माणशाला जिसमें यंत्रोंकी
आदिवाले बहुतोंमेंसे एकको छाँटना, चुनना या अलग सहायतासे सूत, वस्त्र, रेशम आदि तैयार किया जाता है, करना; नियत करना; निर्णय करना; निर्णय, निश्चय । कारखाना। -अधिनियम-पु० (फैक्टरी-ऐक्ट) कारखानोंनिर्धारना-स० क्रि० निर्धारण करना ।
संबंधी कानून। निर्धारित-वि० [सं०] जिसका निर्धारण किया गया हो। निर्माता(त)-पु० [सं०] बनानेवाला, रचना करनेवाला, निर्धूत-वि० [सं०] हिलाया हुआ; फेंका हुआ, दूर किया। स्रष्टा । हुआ; त्यागा हुआ, परित्यक्त नष्ट किया हुआ, नाशित । निर्मात्रिक-वि० [सं०] मात्रारहित । पु० संबंधियों आदि द्वारा परित्यक्त व्यक्ति ।
निर्मान-वि० [सं०] अपार, असीम, अभिमानरहित । निर्धूम-वि० [सं०] धुएंसे रहित ।
निर्माना*-स० क्रि० बनाना, रचना करना पैदा करना । निर्धात-वि० [सं०] जो धुल गया हो; चमकाया हुआ। निर्मायल*-पु० दे० 'निर्माल्य'। निर्निमेष-वि० [सं०] जिसमें पलक न मारी जाय । अ० निर्मार्जन-पु० [सं०] धोना, साफ करना। बिना पलक गिराये, टकटकी लगाकर ।
निर्माल्य-पु० [सं०] किसी देवताको समर्पित किया हुआ निर्पक्ष*-वि० दे० 'निष्पक्ष।
पदार्थ । (विसर्जनके बाद देवार्पित वस्तुको ‘निर्मास्य' निल*-वि० दे० 'निष्फल'।
कहते हैं ।) निबंध-पु० [सं०] आग्रह, हठ; (रेस्ट्रिक्शन) रोक, रुका- निर्मित-वि० [सं०] बनाया हुआ, रचा हुआ, रचित । वट, बाधा । वि० बंधनरहित ।
निर्मिति-स्त्री० [सं०] दे० 'निर्माण' । निबंधन-पु० [सं०] (रेस्ट्रिक्शन ) शर्ते लगाकर किसी निर्मुक्त-वि० [सं०] विशेष रूपसे मुक्त, जो पूरी तौरसे बात, विपय, व्यक्ति आदिको नियंत्रित या क्षेत्रविशेषतक छुटकारा पा चुका हो; बंधनोंसे रहित । सीमित करना।
निर्मुक्ति-स्त्री० [सं०] मुक्ति; छुटकारा । निबंधित, निर्बद्ध-वि० [सं०] (रेस्ट्रिक्टेड ) जो रोका गया निर्मल-वि० [सं०] मूलरहित, बिना जड़का; जो मूल हो या जिसमें बाधा डाली गयी हो।
सहित उखाड़ दिया गया हो; जो मूल सहित नष्ट कर निर्बहण, निर्वहण-पु० [सं०] दे० 'निर्वहण' ।
दिया गया हो, सर्वथा नष्ट । निर्बल-वि० [सं०] शक्तिहीन, कमजोर ।
निर्मूलन-पु० सं०] मूलरहित होना या करना; विनाश । निर्बहना*-अ० क्रि० पार पाना, त्राण पाना; निभना। निर्मेघ-वि० [सं०] बादलोंसे रहित, निरभ्र । निधि-वि० [सं०] बिना बाधा या रोकका, प्रतिबंधरहित; निध-पु० [सं०] मूर्ख, बुद्धिहीन ।
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निर्मोक-निर्विकल्प
४१८ निर्मोक-पु० [सं०] साँपकी केंचुल; छोड़ना, त्यागना, -संघ,-समूह-पु० (एलेक्टरेट) निर्वाचकोंका समूह या मोचन; शरीरके ऊपरका चमड़ा, खाल; कवच; आकाश वर्ग ।-मण्डल-पु० (एलेक्टोरल कॉलेज) जनता द्वारा सावर्णि मनुके एक पुत्र ।
चुने गये प्रतिनिधियोंका वह दल या समूह जो बाद में निर्मोक्ष-पु० [सं०] पूर्ण मोक्ष ।
लोक-सभा आदिके निर्दिष्टसंख्यक सदस्योंका अप्रत्यक्ष निर्मोचन-पु० [सं०] मुक्ति, छुटकारा ।
निर्वाचन करे। -सची-स्त्री० (एलेक्टोरल रोल) निर्वानिर्मोल*-वि० अनमोल, बहुमूल्य ।
चनमें भाग लेनेकी अर्हता रखनेवाले मतदाताओंके नाम, निर्मोह-वि० [सं०] मोह या अज्ञानसे रहित; ममता, पेशे, उम्र आदिका ब्योरा बतानेवाली सूची।
दयासे शून्य, निष्ठुर, बेदर्द । पु० रैवत मनुके एक पुत्र । निर्वाचन-पु० [सं०] 'वोट' द्वारा चुनना, चुनाव । निर्मोहिया-वि० दे० 'निमोह' ।
-केंद्राध्यक्ष-पु० (प्रिजाइडिंग ऑफिसर) किसी एक निर्मोही-वि० दे० 'निर्मोह' ।
निर्वाचन केंद्र में मतदान आदिकी देखभाल तथा व्यवस्था निर्याण-पु० [सं०] निकलना, बाहर जाना, कूच, प्रस्थान करनेवाला अधिकारी। -क्षेत्र-पु० चुनावका हलका । (विशेषतः सेनाका); प्राणका निकलना; पशुओंको बाँधने -पदाधिकारी-पु० (रिटर्निग ऑफिसर) किसी निर्वा
या छाननेकी रस्सी; हाथीकी आँखका कोना; मोक्ष; लोहा । चन-क्षेत्रके निर्वाचनकी निगरानी, व्यवस्था आदि करने निर्यात- वि० [सं०] जो बाहर गया हो, जिसने प्रस्थान वाला तथा मतोंकी गणना कराकर उसका परिणाम प्रकट किया हो । पु० बेचनेके लिए बाहर भेजा जानेवालामाल; करनेवाला अधिकारी, चुनाव-अधिकारी। बाहर जाना या भेजना। -कर-पु० निर्यातपर लगाया निर्वाचित-वि० [सं०] जिसका निर्वाचन किया गया हो, जानेवाला कर।
'वोट' द्वारा चुना हुआ। निर्यातक-पु० [सं०] (एसपोर्टर ) व्यापारिक वस्तुएँ निर्वाच्य-वि० [सं०] न कहने योग्य निदोष; जिसपर विदेशोंको भेजनेवाला व्यापारी।
आपत्ति न की जा सके। निर्यातन-पु० [सं०] बदला लेना, प्रतिशोध; प्रतीकार, निर्वाण-वि० [सं०] बुझा हुआ (दीपक आदि); मृत; विनिमय किसीकी धरोहर उसे लौटा देना, प्रतिदान; ऋण जो अस्त हो गया हो, अस्तंगत; मुक्त; शांत; अचल, आदि चुकाना; मारण ।
स्थिर । पु० बुझना; अस्त होना, अस्तमन; (हाथीको) निर्याति-स्त्री० [सं०] प्रस्थान, गमन; मृत्यु; मोक्ष । नहलाना, धोना; गजमज्जन; मोक्ष, परम गति; शांति निर्यास-पु० [सं०] स्वतः या काटनेपर वृक्षों आदिमेंसे
विनाश; संगम; सुख, निर्वृति; एक मात्रागण (छंद); निकलनेवाला रस, गोंद; किसी वस्तुमेंसे निकलनेवाला
परम आनंद । पानी, रस आदि काढ़ा, काथ; अर्क।
निर्वात-वि० [सं०] जहाँ हवा न चलती हो, बायुसे निर्लज-वि० [सं०] लज्जारहित, बेशर्म, बेहया।
रक्षित; शांत। निलिंग-वि० [सं०] जिसमें कोई परिचायक चिह्न न हो। निर्वार्य-वि० [सं०] जो निःशंक होकर परिश्रमपूर्वक कर्म निर्मित-वि० [सं०] जो किसी विषय में लिप्त न हो। | करे जिसका निवारण न हो सके । निलेप-वि० [सं०] जिसपर कलई न की गयी हो; जो निर्वास, निर्वासन-पु० [सं०] देश निकाला; मारण, किसी वस्तु या विषयमें आसक्त न रहे, आसक्तिरहित; विमनः विमन uatus
जो किसीसे कुछ संबंध न रखे, उदासीन । पु० संत, ऋषि । निर्वासित-वि० [सं०] नगर, देशसे निकाला हुआ। निर्लोम-वि० [सं०] लोभरहित, संतोषी।
निर्वाह-पु० [सं०] किसी चली आती हुई वस्तुका बना निर्वश-वि० [सं०] जिसकी वंशपरंपरा उसीके शरीरसे
रहना; किसी कार्यको पूरा करना, निष्पादन; पूरा किया समाप्त हो जाय, जिसका वंश उच्छिन्न हो गया हो।
जाना, समाप्ति; (प्रतिज्ञा आदिको) पूरा करना, पालन, निर्वक्तव्य-वि० [सं०] दे० 'निर्वचनीय'।
निबाहना; गुजारा। -भृति-स्त्री० (लिविंग वेज) वह निर्वचन-वि० [सं०] मौन, चप; आपत्तिरहित निदोष ।
भृति या वेतन जिसपर कर्मचारी और उसका परिवार पु० निरुक्ति; उच्चारण; उक्ति, कहावत; शब्द-सूची; (इंटर- सुखसे जीवन-निर्वाह कर सके। -व्यय-पु० (कॉस्ट प्रेटेशन) किसी शब्द, पदसमूह या वाक्यादिका अपनी ऑफ मेनटेनेस) जीवन निर्वाहका-भोजन-वस्त्रादिकासमझके अनुसार अर्थ लगाना, व्याख्या करना।
व्यय । निर्वचनीय-वि० [सं०] जिसका निर्वचन किया जा सके, निर्वाहक-वि० [सं०] निर्वाह करनेवाला । जो लक्षण आदिके द्वारा समझाया जा सके ।
निर्वाहण-पु० [सं०] पूरा करना, निभाना; ऐसी वस्तुओंनिर्वसन-वि० [सं०] वस्त्रहीन ।
को नगरमें ले जाना जिनके आयातपर प्रतिबंध लगा हो । निर्वसु-वि० [सं०] दरिद्र ।
निर्वाहना*-स० क्रि० दे० 'निबाहना' । निर्वहण-पु० [सं०] समाप्ति निबाहना, निर्वाह; नाटककी निर्विकल्प-वि० [सं०] विकल्पसे रहित । पु० ज्ञाता ज्ञय प्रस्तुत कथाकी समाप्ति । -संधि-स्त्री० नाटकमें प्रयुक्त आदिके विभाग तथा विशेष्य-विशेषणके संबंधसे रहित वह होनेवाली पाँच संधियों में से एक ।
ज्ञान जिसमें केवल ब्रह्म और आत्माकी एकरूपताका निर्वाक(च)-वि० [सं०] मौन, चुप ।
अखंड बोध होता हो (वे०); एक प्रकारका प्रत्यक्ष ज्ञान निर्वाचक-पु० [सं०] निर्वाचन करनेवाला, वह जो निर्वा जिसमें किसी विषयका केवल इसी रूपमें ज्ञान होता है
चन करे, वह जिसे मताधिकार प्राप्त हो । -गण,-वर्ग, कि यह कुछ है, नाम, जाति आदिसे ससृष्ट रूपमें नहीं
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४१९
( न्या० ) । - समाधि-स्त्री० एक प्रकारकी समाधि जिसमें एक ही अभिन्न तत्त्व ब्रह्म दिखाई देता है और ज्ञाता, शेय तथा ज्ञानके विभेदका बोध नहीं रह जाता । निर्विकल्पक - वि० [सं०] दे० 'निर्विकल्प' | निर्विकार - वि० [सं०] विकाररहित, अपरिवर्तित; उदा सीन । पु० परब्रह्म ।
निर्विकास - वि० [सं०] जा खिला न हो, अविकसित । निर्विघ्न - वि० [सं०] विघ्नरहित, जिसमें कोई बाधा न हो । अ० बिना विघ्न-बाधा के ।
निर्विचार - वि० [सं०] विचारशून्य । पु० समाधिका एक प्रकार (योग) ।
निर्विण्ण- वि० [सं०] निर्वेदयुक्तः खिन्न; जिसे वैराग्य हो हो गया हो, विरक्तः नम्रः ज्ञात; निश्चित | निर्विद्य - वि० [सं०] विद्याविहीन, मूर्ख, अपढ़ । निर्विरोध - वि० [सं०] विरोधरहित । अ० बिना विरोधके । निर्विवाद - वि० [सं०] विवादरहित, जिसके विषय में कोई विवाद न हो, बिना झगड़े- बखेड़ेका । निर्विवेक - वि० [सं०] विवेकशून्य । निर्विशेष - वि० [सं०] समान, तुल्यः सदा एक रूप रहनेवाला (परब्रह्म ) | पु० अंतरका अभाव । निर्विषी - स्त्री० [सं०] एक प्रकारकी घास जिसके सेवन से साँप, बिच्छू आदिका विष दूर होता है । निर्वज - वि० [सं०] वीजरहित; कारणरहित; नपुंसक । -समाधि - स्त्री० समाधिकी एक अवस्था जिसमें वीज या आलंबन विलीन हो जाता है (योग) । निर्वीरा - स्त्री० [सं०] पति और पुत्रसे रहित स्त्री । निर्वार्य - वि० [सं०] वीर्यरहित, शक्तिहीन, निर्बल; नपुंसक । निर्वृति - स्त्री० [सं०] सुख; मोक्ष । निर्वृत्त - वि० [सं०] जो पूरा किया जा चुका हो, निष्पन्न । निर्वृत्ति - स्त्री० [सं०] निष्पत्ति ।
निर्वेग - वि० [सं०] वेगरहित, शांत । निर्वेतन - वि० [सं०] जिसे वेतन न मिलता हो, अवैतनिक, बिना वेतनका । अ० बिना वेतन लिये । निर्वेद - वि० [सं०] नास्तिक । पु० अपने प्रति अवज्ञा; वैराग्य; शांत रसका स्थायी भाव; खेद । निर्वेष्टन - पु० [सं०] सूत लपेटनेकी जुलाहोंकी नरी; ढरकी । निर्वैर - वि० [सं०] वैरभाव से रहित, जो वैरभाव न रखे। पु० वैर या शत्रुताका अभाव ।
निर्व्याज - वि० [सं०] छल-कपट से रहित, सच्चा, विशुद्ध । निर्व्याधि-वि० [सं०] व्याधिसे रहित, नीरोग । निर्हरण - पु० [सं०] मुर्देको घरसे बाहर निकालना या उसे श्मशान ले जाना; निकालना; नष्ट करना, नाशन । निर्धारक - पु० [सं०] वह जो मुर्दोंको घरसे बाहर निकाले या श्मशान ले जाय ।
निर्हेतु - वि० [सं०] अकारण, बिना कारणका । निलंब खाता- पु० ( सस्पेंस अकाउंट) दे० 'अनुलंब खाता' । निलंबन - पु० [सं०] (सस्पेंशन) किसी कर्मचारीके अपराधी या दोषी होनेका संदेह उत्पन्न होनेपर उसे तबतक के लिए अपने पद से हटा देना जबतक उस संबंध में यथोचित छानबीन या जाँच न हो ले; कोई नियम, अधिवेशन, कार्य
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निर्विकल्पक - निवारक
आदि कुछ समय के लिए उठा रखना, टाल देना या अप्रभावी कर देना, अनुलंबन |
निलंबित - वि० [सं०] ( सस्पेंडेड) ( वह कर्मचारी) जो अपने किसी तथाकथित अपराध या दोपके कारण, अंतिम निर्णय होनेतक अस्थायी रूपसे पदच्युत कर दिया गया हो; कुछ समय के लिए रोका हुआ, अनुलंबित, मुअत्तल 1: निलज | - वि० दे० 'निर्लज्ज' ।
निलजई, निलजता* - स्त्री० निर्लज्जता, बेशमी । निलजी - वि० स्त्री० दे० 'निर्लज' | निलज * - वि० दे० 'निर्लज्ज' |
निलय - पु० [सं०] वासस्थान, रहने की जगह; घर; माँद; घोंसला सर्वथा नष्ट या लुप्त हो जाना, लोप, अदर्शन । निलयन - पु० [सं०] वास करना, बसेरा लेना; वासस्थान;
आश्रयस्थान, घर; बाहर जाना; उतरना ।
निलहा - वि० जिसका संबंध नीलसे हो, नीलवाला; नीलका कारोबार करनेवाला (जैसे- निलहा साहब ) । निलाम - पु० दे० 'नीलाम' | निलीन - वि० [सं०] पिघला हुआ; छिपा हुआ; विशेष रूपसे या बहुत अधिक लीन; नष्ट; परिवर्तित । निवना* - अ० क्रि० नवना, झुकना । निवर्तक- वि० [सं०] लौटनेवाला; रुकनेवाला; दूर करने वाला; लोटानेवाला ।
निवर्तन- पु० [सं०] रोकना, निवारण; पीछे हटना या हटाना; लौटना |
निवर्ती (तिन) - वि० [सं०] लौटनेवाला; भाग जानेवाला । निवर्हण - पु०, वि० [सं०] दे० ' निर्वहण' | निवसना* - अ० क्रि० वास करना, रहना । निवह- पु० [सं०] समूह, समुदाय; सात वायुओं में से एक । निवाई* - वि० नवीन; अद्भुत ।
निवाज - वि० दया करनेवाला, रहम करनेवाला (यह सदा समास में उत्तरपदके रूपमें प्रयुक्त होता है ) । निवाजना* - स० क्रि० कृपा करना; कृपापात्र बनाना । निवाजिश - स्त्री० दे० 'नवाजिश' | निवाड़-स्त्री०, पु० दे० 'निवार' । निवाड़ा - पु० एक प्रकारकी छोटी नाव; नावमें बैठकर की जानेवाली एक प्रकारकी जलक्रीडा । निवाड़ी-स्त्री० जूही की जातिका एक पौधा या उसका फूल । निवान* - पु० पानी या कीचड़ से भरी रहनेवाली नीची जमीन; जलाशय ।
निवाना* - स० क्रि० दे० 'नवाना' । निवाप-पु० [सं०] दान; पितरोंके उद्देश्यसे किया जाने
वाला दान |
निवार-स्त्री० कुएँकी नीवमें दिया जानेवाला लकड़ी आदिका चक्का जिसके ऊपर से कोठीकी जोड़ाई की जाती है, जमवट | पु० [सं०] एक प्रकारका धान जिसका चावल व्रत आदिमें खाया जाता है, तिन्नी, पसही; निवारण; + एक तरहकी मोटी मूली । निवारक - वि० [सं०] निवारण करनेवाला, रोकनेवाला । -निरोध- अधिनियम- पु० (प्रिवेंटिव डिटेंशन ऐक्ट) वह अधिनियम जिसके अनुसार किसी तरहका समाजविरोषी
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निवारण- निशि
कार्य या उपद्रवादि करनेवाले व्यक्तियोंका या जिनके संबंधमें ऐसी आशंका हो उनका निरोध- उन्हें ऐसा करनेसे रोकने के लिए - किया जा सके ।
निवारण - पु० [सं०] रोकना; हटाना; दूर करना, मिटाना । निवारन * - पु० दे० 'निवारण' ।
निवारना * - स० क्रि० रोकना; हटाना; बरजना; बचाना; दूर करना; चुकाना - 'पिछलो देहु निवारि आज सुब पुनि दीजो जब जानो कालि' - सू० । निवाला - पु० [फा०] कवल, ग्रास, लुकमा । निवास - पु० [सं०] रहनेका भाव या कार्य, रहना; रहने
का स्थान; घर; आश्रयः रात्रि व्यतीत करना; पोशाक । निवासन - पु० [सं०] वर, गृह; कुछ कालके लिए ठहराना; काल- यापन |
निवासी (सिन्) - वि० [सं०] निवास करनेवाला, रहने
वाला; वस्त्र धारण करनेवाला । पु० रहने, बसनेवाला । निविड - वि० [सं०] घना; कसा हुआ; घोर; बड़े आकारका; स्थूल; भद्दा; चपटी या टेढ़ी नाकवाला ।
निविष्ट - वि० [सं०] स्थित; एकाग्र; घुसा हुआ; व्यवस्थित । निवृत - वि० [सं०] घिरा हुआ; वेष्टित । निवृत्त - वि० [सं०] लौटा हुआ; जो भाग आया हो; पूरा या समाप्त किया हुआ; हटाया हुआ; विरत; जो अवकाश या छुटकारा पा चुका हो, मुक्त | निवृत्तात्मा ( मन्) - वि० [सं०] विषयोंसे विरत | निवृत्ति - स्त्री० [सं०] निवृत्त होनेकी क्रिया; प्रवृत्तिका अभाव; छुटकारा, मुक्ति; लौटना; समाप्तिः विरत होना; हटना; विश्राम; (रिटायरमेंट) दे० 'अवकाश ग्रहण' । - पूर्व छुट्टी - स्त्री० [हिं०] ( लीव बिफोर रिटायरमेंट ) सेवासे अवकाश ग्रहण करनेके ठीक पूर्व ली गयी छुट्टी । - वेतन - पु० (पेंशन) वह वेतन या वृत्ति जो किसी कर्मचारीको कामसे अवकाश ग्रहणके बाद उसकी पूर्व सेवाके विचारसे जीवन निर्वाह के लिए मिले ।
निवेद* - पु० दे० ' नैवेद्य' ।
निवेदक - वि०, पु० [सं०] निवेदन करनेवाला । निवेदन- पु० [सं०] किसीसे कुछ कहना; प्रार्थना; समर्पित करना, समर्पण |
निवेदना* - स० क्रि० निवेदन करना; प्रार्थना करना; समर्पित करना ।
निवेदित - वि० [सं०] निवेदन किया हुआ; प्रार्थनारूप में कहा हुआ; अर्पण किया हुआ, समर्पित । निवेरना t * - स० क्रि० दे० 'निवेरना' । निवेश* - वि० चुना हुआ; नूतन; अद्भुत । निवेश - पु० [सं०] प्रवेश; आसन; स्थापना; पड़ाव डालना, सैन्य- विन्यासः पड़ाव डालनेको जगह; शिविर, खेमा; (प्रॉविजन) किसी विधि, अधिनियम आदि में कोई वाक्य खंड या उपधारा आदि रख देना, जोड़ देना, जो किसी विशेष स्थिति आदि में काम दे सके- (विधि-निवेश = प्रावी जन ऑफ लॉ) । निवेशन - पु० [सं०] निविष्ट करनेकी क्रिया; स्थापन; गृह; नगर पड़ाव, खेमा; घोंसला । निवेष्टन - पु० [सं०] ढकना ।
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४२०
निश* - स्त्री० रात । चर* - पु० दे० 'निशाचर' | निशांत-पु० [सं०] प्रातःकाल, तड़का | निशांध - वि० [सं०] जिसे रातको दिखाई न दे, रतौंधी रोगवाला ।
निशा - स्त्री० [सं०] रात, रात्रि; हल्दी । -कर-पु० चंद्रमा । -गृह- पु० शयनागार - चर - वि० रात में निकलने या घूमने-फिरनेवाला । पु०राक्षस; गीदड़; उल्लू; साँप; चोर; भूत; पिशाच; शिव; चक्रवाक; एक गंधद्रव्य । -चर- पति - पु० रावणः शिव । चरी - स्त्री० राक्षसी; कुलटा, पुंश्चली; अभिसारिका । - चारी- पु० दे० 'निशाचर' । - नाथ, - पति-पु० चंद्रमा । -मणि-पु० दे० 'निशानाथ' । - मुख - पु० संध्याकाल । निशाखातिर। - स्त्री० दिलजमई, तसल्ली । निशाट, निशाटन - पु० [सं०] उल्लू ; राक्षस । निशात - वि० [सं०] सानपर चढ़ाया हुआ, तेज किया हुआ; चमकाया हुआ ।
निशाद - पु० [सं०] रातको खानेवाला; नीच जातिका व्यक्ति, निषाद । निशाधीश - पु० [सं०] दे० 'निशानाथ' |
निशान - पु० [सं०] सानपर चढ़ाना, तेज करना; [फा०] वह लक्षण जिससे किसीकी पहचान की जा सके, परिचायक लक्षण, चिह्न; किसी पदार्थको सूचित करनेवाला उसका स्थानापन्न चिह्नविशेष; हस्ताक्षर के स्थानपर कागज आदिपर बनाया जानेवाला चिह्न; किसी प्राचीन या पूर्ववत पदार्थ या घटनाका परिचायक चिह्न; किसी विशेष कार्य या पहचान के लिए नियत किया जानेवाला चिह्न; यादगार; लक्ष्य; झंडा; पता, ठिकाना ।-बरदारपु० किसी राजा, सेना या दलके आगे उसका झंडा लेकर चलनेवाला व्यक्ति | मु० ( किसी बातका ) - उ या खड़ा करना- किसी आंदोलनका नेतृत्व करना । - देना - पता बताना; सम्मन तामील कराने आदिके लिए पहचान कराना ।
- उठाना
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निशाना - पु० [फा०] वह जिसको दृष्टिमें रखकर कोई अस्त्र चलाया जाय, लक्ष्यः निशाना साधनेक कामका मिट्टीका ढेर या कोई अन्य वस्तु; वह जिसके प्रति कोई चुटकुली बात कही जाय । मु०- बाँधना - अस्त्र आदिको इस तरह साधना कि वह चलानेपर ठीक लक्ष्यपर वार करे । - मारना या लगाना - लक्ष्यको दृष्टिमें रखकर अस्त्र आदिका वार करना । - साधना - दे० 'निशाना बाँधना'; निशाना मारनेका अभ्यास करना । निशानी - स्त्री० किसीकी याद करनेवाला चिह्न, यादगार; वह चिह्न जिससे किसी वस्तुकी पहचान हो सके । निशावसान - पु० [सं०] प्रातःकाल, निशांत । निशास्ता - वि० [फा०] जमाया हुआ; बैठा हुआ । पु० गेहूँ का गूदा; माँड़ी ।
निशि - अ० [सं०] रातमें । स्त्री० रात। -कर-पु० दे० 'निशाकर' । - चर - पु० दे० 'निशाचर' । -चर-राजपु० विभीषण। -दिन- अ० रात-दिन, सदैव । -नाथ, - नायक, - पति पु० दे० 'निशानाथ' । - पाल, - पालकपु० एक छंद, प्रहरी (जो रात में पहरा देता है) । -वासर
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निशित- निष्कारण
अ० रात-दिन, सदैव ।
रूप 'नि' है ।
निशित - वि० [सं०] सानपर चढ़ाया हुआ, तेज किया हुआ; निषादी ( दिन ) - पु० [सं०] पीलवान, महावत ।
तेज, तीक्ष्ण । पु० लोह ।
निषिक्त - वि० [सं०] अतिरिक्त; भीतर पहुँचाया हुआ । yo वीर्य से जनित गर्भ ।
निषिद्ध - वि० [सं०] निषेध किया हुआ, जिसपर रोक लगायी गयी हो, जिसे करना आदि मना हो । निषिद्धि - स्त्री० [सं०] मनाही, रोक; बचाव । निघूदन- वि० [सं०] मारनेवाला, वध करनेवाला; नाशक ( प्रायः समास में व्यवहृत) । पु० मारण, वध; मारनेवाला । निषेक- पु० [सं०] विशेष रूपसे सींचना; गर्भ रहना, गर्भाधान; चूना, टपकना ।
निषेचन - पु० [सं०] छिड़कना; सींचना | निषेध-पु० [सं०] निषिद्ध करनेका कार्य, मनाही, रोक
निशीथ - पु० [सं०] शयन-काल; आधी रात । निशीथिनी - स्त्री० [सं०] रात्रि, रात । निशीथिनीश - पु० [सं०] चंद्रमा कपूर । निशुंभ- पु० [सं०] वध; हिंसा करना, हिंसन; तोड़ना; झुकाना; एक असुर जो शुभका भाई था और जिसका वध दुर्गाने किया था । - मथनी, मर्दिनी - स्त्री० भगवती, दुर्गा।
निशेश - पु० [सं०] दे० 'निशानाथ' । निशोत्सर्ग - पु० [सं०] प्रभात, सवेरा । निश्चंद्र - वि० [सं०] चंद्रमासे रहित । निश्चक्षु ( सू ) - वि० [सं०] नेत्रहीन | निश्चय - पु० [सं०] संदेहरहित ज्ञान; दृढ़ विचार; विश्वास; निबटारा, निर्णय, फैसला; जाँच; एक अर्थालंकार जिसमें अन्य विषयका निषेध होकर यथार्थ विषयका स्थापन हो । निश्वयात्मक - वि० [सं०] संदेहरहित, जिसमें किसी प्रकार का संशय न हो ।
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निश्चला - स्त्री० [सं०] शालपणी; पृथ्वी । निश्चायक - पु० [सं०] निश्चय करनेवाला, निर्णायक । निश्चित - वि० [सं०] जिसे किसी प्रकारकी चिंता न हो, चितारहित, बेफिक्र ।
निश्चितई * - स्त्री० निश्चित होनेका भाव, बेफिक्री । निश्चित - वि० [सं०] जिसके बारेमें निश्चय किया जा
चुका हो, निश्चय किया हुआ; जो इधर-उधर न हो सके, जिसमें किसी प्रकारका हेर-फेर न हो सके, पक्का | निश्चेतन - वि० [सं०] संज्ञाहीन, बेहोश, मूच्छित ।
निश्चेष्ट - वि० [सं०] चेष्टारहित; अचेत, मूच्छित; अचल । निश्चै* - पु० दे० 'निश्चय' ।
निश्छल - वि० [सं०] छलरहित, शुद्ध हृदयवाला, सच्चा । निश्वास - पु० [सं०] बहिर्मुख श्वास, प्राणवायुके नाकसे बाहर आनेकी क्रिया; लंबी साँस । निश्शंक - वि० [सं०] दे० 'निःशंक' |
निश्शील- वि० [सं०] शीलरहित, दुष्ट स्वभावका । निश्शेष- वि० [सं०] दे० 'निःशेष' | निषंग - पु० [सं०] तरकश, तूणीर; तलवार । निषंगी (गिन् ) - वि० [सं०] जिसके पास तरकश हो; जिसने धनुष धारण किया हो; खड्ग धारण करनेवाला । निषण्ण- वि० [सं०] बैठा हुआ, स्थित, उपविष्ट । निषदन - पु० [सं०] बैठना; निवास करना; आसन; घर । निषेध - पु० [सं०] एक पर्वत; लवके भाई कुशका एक पौत्र; जनमेजयका एक पुत्र; एक प्राचीन देश जहाँके राजा नल थे; कुरुका एक पुत्र; निपाद स्वर ।
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निश्चल - वि० [सं०] जो चल न हो, थोड़ासा भी न निषेधाज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'निरोधाज्ञा' ।
हिलने-डुलने वाला, अचल, स्थिर |
निषाद- पु० [सं०] एक पुरानी अनार्य जाति (मनुके अनुसार इसकी उत्पत्ति ब्राह्मण पिता और शूद्रा मातासे है); एक प्राचीन देश जिसका उल्लेख रामायण आदिमें मिलता है; संगीतके सप्तकका अंतिम स्वर जिसका संक्षिप्त ।
लगाना, बरजना; रोक, बाधा, प्रतिबंध; विधिका विलोम; इनकार; वह आज्ञा या नियम जिसके द्वारा किसी बातकी मनाही की गयी हो । -पत्र - पु० वह लिखित आदेश जिसमें किसी बातकी मनाही हो ।
निषेधक- वि० [सं०] निषेध करनेवाला, रोकनेवाला । निषेधन - पु० [सं०] निषेध करनेकी क्रिया, मनाही, वर्जन ।
निषेधाधिकार - पु० [सं०] (वीटो ) दे० 'प्रतिषेधाधिकार' । निषेवण - पु० [सं०] विशेष रूपसे किया गया सेवन; विशेष प्रकारकी सेवा ; पूजा; अनुष्ठान; लगाव; लगन; रहना । निषेवित- वि० [सं०] पूजितः सेवित; अनुष्ठित । निषेवी (विन्) - पु० [सं०] विशेष रूपसे सेवन करनेवाला । निषेव्य - वि० [सं०] विशेष रूपसे सेवन करने योग्य । निष्कंटक - वि० [सं०] बाधा, आपत्ति आदिसे रहित, जिसमें किसी प्रकारका खटका या बखेड़ा न हो, निद्र । निष्कंप - वि० [सं०] जिसमें कंपन न हो, जो हिलता-डुलता
न हो, जो चंचल न हो, अचल, स्थिर । निष्क - पु० [सं०] सोनेका एक प्राचीन सिक्का जो प्रायः सोलह माशेका होता था; गलेका एक प्रकारका सोनेका आभूषण; ४ माशेके बराबर एक तौल । निष्कपट-वि० [सं०] छल-छद्मसे रहित, सच्चा, शुद्ध
हृदयवाला |
निष्करुण - वि० [सं०] निर्दय, कठोर हृदयवाला, निष्ठुर । निष्कर्म (न्) - वि० [सं०] दे० 'निष्कर्मा' | निष्कर्मा (न्) - वि० [सं०] जो लिप्त होकर कर्म न करे, आसक्तिरहित होकर कर्म करनेवाला । निष्कर्ष - पु० [सं०] तत्त्व, सारभूत अर्थ, निचोड़; निश्चय; किसी वस्तु के विषय में यह कैसा है और कितना है, इस प्रकारका विचार; नतीजा; बाहर करना, निःसारण । निष्कलंक - वि० [सं०] जिसमें कोई कलंक न हो, दोष, पाप आदि से रहित; बेदाग, विमल, विशुद्ध, बिना ऐबका । निष्काम - वि० [सं०] सब प्रकारकी कामना या आसक्तिसे रहित, जिसे किसी प्रकारकी कामना न हो, निरीह । - कर्म (नू ) - पु० फलप्राप्ति की इच्छा त्यागकर किया जानेवाला कर्म । निष्कामी * - वि० दे० 'निष्काम' ।
निष्कारण - वि० [सं०] कारणरहित, बिना किसी कारणका;
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निष्काश - निसबत
बिना किसी कारण के होनेवाला, अहेतुक । अ० विना किसी कारणके, अकारण - बंधु - पु० वह जो बिना किसी प्रकार के स्वार्थ के बंधुता रखे, स्वार्थरहित बंधु - वैरी (रिन् ) - पु० वह जो अकारण वैरभाव रखे । freera, निष्कास - पु० [सं०] बाहर करना, निकालना । निष्कासन - पु० [सं०] बाहर करना, निकालना, निःसारण । निष्कासित - वि० [सं०] बाहर किया हुआ, निकाला _हुआ, निःसारित; रखा हुआ; नियुक्त; विकसित । निष्किचन - वि० [सं०] दे० 'अकिंचन' | निष्किल्विष - वि० [सं०] पापरहित, निर्दोष । निष्कीटन - पु० [सं०] (स्टेरिलाइजेशन) रासायनिक प्रक्रिया आदिकी सहायता से किसी वस्तुको जीवाणुओं या कीटा ओंसे रहित कर देना; दे० 'वंध्यीकरण' | निष्कीटित - वि० [सं०] (स्टेरेलाइज्ड) किसी प्रक्रिया द्वारा जिसके कीटाणु नष्ट कर दिये गये हों; वंध्यीकृत । निष्कुल- वि० [सं०] जिसके कुलमें कोई न रह गया हो । निष्कुलीन - वि० [सं०] नीच कुलका ।
निष्कृत - वि० [सं०] निकाला हुआ; मुक्त; हटाया हुआ; निष्पाप - वि० [सं०] पापरहित ।
उपेक्षित; क्षमित । पु० प्रायश्चित्त मिलनस्थान । निष्कृति - स्त्री० [सं०] निस्तार, पाप आदि से मुक्ति, छुटकारा; उद्धार; प्रायश्चित्त; उपेक्षा; दुराचरण । -धन- पु० (रैनजम) किसीको छुटकारा या मुक्ति देनेके बदले दबाव डालकर वसूल किया जानेवाला धन । निष्कृप - वि० [सं०] जिसमें दया न हो, निर्दय, निष्ठुर । निष्क्रम - वि० [सं०] बिना क्रमका, अक्रम । पु० बाहर
निकलना; जातिच्युति । - पत्र- पु० ( पासपोर्ट ) दे० 'पारपत्र' | - मार्ग - ५० बाहर निकलने या जानेका रास्ता । निष्क्रमण - पु० [सं०] दे० 'निष्क्रम' | निष्क्रय - पु० [सं०] खरीद; वेतन, भृति; भाड़ा; किसी वस्तुके बदले में दी जानेवाली रकम या वस्तु, बदला; छुटकारे के लिए दिया जानेवाला द्रव्य ( कौ० ) । निष्क्रयण- पु० [सं०] छुटकारे के लिए दी जानेवाली रकम । निष्क्रांत - वि० [सं०] जिसका निष्क्रमण हो चुका हो; निर्गत ।
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निष्क्रांतों की संपत्ति - स्त्री० ( इवैकुई प्रापटी ) ( जान मालके संकट से बचने के लिए ) जो लोग अपना पूर्व-स्थान छोड़कर अन्यत्र चले गये हों उनके द्वारा अपने पीछे छोड़ी हुई संपत्ति ।
निष्क्रिय - वि० [सं०] जो कुछ भी न करे- धरे; विहित कर्मों को न करनेवाला; जिसमें या जिससे कार्य या व्यापार न हो, क्रियारहित । - प्रतिरोध-पु० शासककी ओर से होनेवाले दमनका प्रतिकार न कर उसकी अनुचित आज्ञा या कानूनका उल्लंघन (पैसिव रेसिस्टेंस) । निष्क्रियता - स्त्री० [सं०] निष्क्रिय होनेकी दशा या भाव। निष्ठ - वि० [सं०] ( समासांतमें) स्थित, निर्भर; संलग्न; तत्पर; में विश्वास करनेवाला ।
निष्ठा - स्त्री० [सं०] स्थिति; आधार; एकाग्रता, तत्परता; दृढ़ता; अनुराग; श्रद्धा; विश्वास; पूरा होना, निष्पत्तिः नाश; क्लेश; निर्वाह; याचना; व्रत; निश्चय । निष्ठावान् (वत्) - वि० [सं०] निष्ठावाला |
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४२२
निष्ठीव, निष्ठीवन- ५० [सं०] खखार आदिको मुँह से बाहर निकालना, थूकना; थूक
निष्ठुर - वि० [सं०] कड़ा, कठोर; परुषः कड़े दिलका; निर्दय, बेरहम |
निष्ठ्यत वि० [सं०] उगला हुआ; बाहर निकाला हुआ;
उक्त |
निष्ण, निष्णात - वि० [सं०] कुशल, प्रवीण, निपुण | निष्पंक - वि० [सं०] जिसमें पंक न हो, पंकरहित । निष्पंद - वि० [सं०] गतिहीन, स्थिर |
निष्पक्ष - वि० [सं०] जो किसी पक्षका न हो, जिसमें पक्षपात न हो ।
निष्पत्ति - स्त्री० [सं०] उत्पत्ति; पूरा किया जाना, समाप्ति; सिद्धिः परिपाक, नाद की अंतिम अवस्था (हठयोग); निर्वाह । निष्पत्र - वि० [सं०] पत्तोंसे रहित; बिना पंखका । निष्पन्न - वि० [सं०] जो पूरा किया जा चुका हो, समाप्त | निष्पादक - पु० [सं०] निष्पादन करनेवाला | निष्पादन - पु० [सं०] निष्पन्न करनेकी क्रिया, तामील ।
निष्पुत्र - वि० [सं०] पुत्रहीन, जिसके पुत्र न हो । निष्प्रभाव - वि० [सं०] जिसका कोई प्रभाव न रह गया हो, जिसका प्रभाव नष्ट या रुद्ध कर दिया गया हो, अप्रभावी ।
निष्प्रभ - वि० [सं०] जिसमें चमक न हो, द्युतिहीन; जिसमें तेज न हो, विवर्ण ।
निष्प्रयोजन - वि० [सं०] जिससे कोई प्रयोजन न सिद्ध हो, व्यर्थ; बिना किसी मतलबका । अ० वृथा, बिना किसी मतलब के ।
निष्प्रेही * - वि० दे० 'निस्पृह' ।
निष्फल - वि० [सं०] जिसका कुछ फल न हो; जिससे कुछ अर्थ न सिद्ध हो; बेकार, बिना फलका । निष्फला - स्त्री० [सं०] वह अधिक अवस्थावाली स्त्री जिसे रजोधर्म न होता हो, विगतार्तवा स्त्री । निसंक* - वि० दे० 'निःशंक' । निसंग* - वि० दे० 'निस्संग' | निसँठ - वि० धनहीन, दरिद्र । निसंस* - वि० दे० 'नृशंस' | निसँस* - वि० दे० 'निसाँसा' | निसँसना* - अ० क्रि० हॉफना ।
निस* - स्त्री० निशा, रात । -कर- पु० चंद्रमा । - द्योस - अ० दे० 'निसवासर' । -वासर-अ० रात-दिन, सर्वदा । पु० रात और दिन ।
निसक - वि० शक्तिहीन, कमजोर । निसचय, निसचै* - पु० दे० 'निश्चय' । निसत* - वि० असत्य, मिथ्या, झूठा ।
निखतरना* - अ० क्रि० निस्तार पाना, मुक्ति पाना, छुट
कारा पाना, चचना ।
निसतार* - पु० दे० ' निस्तार' ।
निसतारना * - स० क्रि० उद्धार करना, मुक्त करना । निसबत - स्त्री० [अ०] लगाव, संबंध, वास्ता; तुलना । अ० संबंध में ।
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४२३
निसाना - निस्पंद
निसयाना * - वि० जो आपे में न हो, बेहोश | निसरना* - अ० क्रि० बाहर आना, निकलना । निसराना * - स० क्रि० निकालना; निकलवाना । निसर्ग - पु० [सं०] प्रकृति, स्वभाव; सृष्टि स्वरूप देना, दान; मल त्यागः परित्यागः विनिमय । -ज-वि० प्राकृ तिक, सहज । - भिन्न - वि० स्वभावसे ही भिन्न । - सिद्ध - वि० स्वभावसिद्ध, स्वाभाविक, सहज । निसवादिल* - वि० बिना स्वादका, निःस्वाद । निसस * - वि० जिसकी श्वासक्रिया बंद हो गयी हो; मूर्छित । निसेष* - वि० दे० 'निःशेष' । निसहाय - वि० दे० 'निस्सहाय' । निसेस * - पु० निशेश, चंद्रमा । निसाँक - वि० दे० 'निशंक' | अ० बेखटके - 'मनो. अली निसोग * - वि० निःशोक; निश्चित, बेफिक्र । चंपक कली, बसि रस लेत निसाँक' - बि० । निसोच - वि० निश्चित, बेफिक्र । निसाँस* - स्त्री० लंबी साँस, निःश्वास । वि० बेहोश, मृत निसोत* - वि०शुद्ध, खालिस - 'रीझत राम सनेह निसोते'
उभय पक्षकी बातों को समझकर स्वयं उत्तर दे ले और कार्य निष्पन्न कर ले; धनके आय-व्यय तथा कृषि और वाणिज्यकी निगरानीके लिए नियुक्त किया जानेवाला कर्मचारी; स्वामी के कार्यको लगनसे करने तथा अपने पौरुषको प्रकट करनेवाला धीर और दृढमति पुरुष । - दूतिका, दूती - स्त्री०वह दूती जो नायक और नायिकाके मनोरथको समझकर अपनी बुद्धिसे कार्य सिद्ध करे । निसेनी, निसैनी - स्त्री० सीढ़ी, सोपान ।
प्राय ।
- रामा० ।
निसाँसा * - वि० जिसकी श्वास-प्रश्वास क्रिया बंद हो गयी निसोधु* - स्त्री० सुध, खवर, संवाद, संदेश ।
हो, बेदम मृतप्राय |
निसा - + पु० दे० 'नशा' । * स्त्री० तृप्ति, संतोष; इच्छा'निसा ज्यों होइ त्यों ही तोष की जै' - सुजान; दे० 'निशा' । - कर - पु० दे० 'निशाकर' । -चर- पु० दे० ' निशाचर' । - नाथ, - पति-पु० दे० 'निशानाथ' । निसाद* - पु० दे० 'निषाद '; भंगी । निसान* - पु० दे० 'निशान'; डंका, नगाड़ा | निसानन* - पु० रजनीमुख, प्रदोष । निसाना * - पु० दे० 'निशाना' । निसानी * - स्त्री० दे० 'निशानी' । निसाफ * - पु० इंसाफ, न्याय । निसार - पु० [सं०] समुदाय, समूह; [अ०] निछावर; मुगलकालका एक सिक्का जो चार आनेके बराबर होता था। * वि० सारहीन, निःसार ।
निसारना* स० क्रि० बाहर करना, निकालना । निसास - पु० दे० 'निःश्वास' |
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निसासी - वि० दे० 'निसाँसा' । निसि - स्त्री० * रात। -कर- पु० दे० 'निशाकर' । - चर - ५० दे० 'निशाचर' । चारी- वि० रातमें निक लने या घूमने-फिरनेवाला । पु० राक्षस । दिन- अ० रात-दिन, सर्वदा, हमेशा। - नाथ, नाह* - पु० चंद्रमा । - पति, - पाल, -मनि-पु० चंद्रमा । -मुख - पु० दे० 'निशामुख' । - यर - पु० चंद्रमा । - वासर - अ० रात दिन, सदा, हर समय । निसीठी - वि० सारहीन, निस्तत्त्व । निसीथ* - पु० दे० 'निशीथ' । निसुंभ* - पु० दे० 'निशुंभ' । निसु* - स्त्री० रात ।
निसुका* - वि० धनहीन, दरिद्र, निःस्वक, बेचारा । निसूदक - वि० [सं०] हिंसा करनेवाला, वध करनेवाला । निसूदन - पु० [सं०] मारना, वध करना । वि० मारने
वाला, वध करनेवाला ।
निस् - उप० [सं०] इसका प्रयोग वियोग (निःसंग), अत्यय ( निर्मेध ), आदेश (निर्देश ), अतिक्रम (निष्क्रांत), भोग (निर्देश ), निश्चय (निश्चित), निषेध (निर्मक्षिका) और साकल्य (निर्गत) का द्योतन करनेके लिए होता है । निस्केवल * - वि० बिना मिलावटका, निरा, विशुद्ध । निस्तंद्र, निस्तंद्वि- वि० [सं०] तंद्रारहित, जागरूक; आलस्यरहित ।
निस्तत्त्व - वि० [सं०] जिसमें कुछ तत्त्व न हो, सारहीन । निस्तब्ध - वि० [सं०] विशेषरूपसे स्तब्ध | निस्तर* - पु० दे० 'निस्तार' |
निस्तरण - पु० [सं०] पार जाना; निस्तार, उद्धार; उपाय । निस्तरना * - अ० क्रि० निस्तार पाना, छुटकारा पाना,
पार पाना, उबरना ।
निस्तल - वि० [सं०] तलरहित, अतल; चंचल, चल । निस्तार - पु० [सं०] पार जाना; पार पाना; मुक्ति; उद्धार; अभीष्टकी प्राप्ति; + (शौच, पेशाब के लिए) बाहर जाना; * सुविधा, निर्वाह, काम - 'यज्ञशालाएँ कुटीर साधुजन निस्तारकी' - पूर्ण० ।
निस्तारक - पु० [सं०] निस्तार करनेवाला; मुक्त करनेवाला । निस्तारण पु० [सं०] पार करना; मुक्त करना; उद्धार करना; विजय पाना, जीतना; (डिसपोजल) काम पूरा करने या निपटाने की क्रिया ।
निस्तारन* - वि० जो निस्तार करे; जो उद्धार करे । पु० दे० ' निस्तारण' |
निस्तारना * - सु० क्रि० पार करना; मुक्त करना; बचाना, उद्धार करना ।
निस्तारा * - पु० दे० 'निस्तार' |
निस्तीर्ण - वि० [सं०] जो पार जा चुका हो; जिसका उद्धार हो गया हो, जिसे छुटकारा मिल गया हो । निस्तुष - वि० [सं०] तुषरहित, जिसकी भूसी अलग कर दी गयी हो; विशुद्ध, निर्मल ।
निस्तेज (स.) - वि० [सं०] तेजोहीन, जिसमें तेजका अभाव हो; कांतिहीन, निष्प्रभ ।
निस्सृष्ट - वि० [सं०] त्यागा हुआ; भेजा हुआ, न्यस्त; दिया हुआ, प्रदत्त; बीच में पड़ा हुआ, मध्यस्थ ।
निस्तैल- वि० [सं०] बिना तेलका, जिसमें तेल न हो ।
निस्सृष्टार्थ - पु० [सं०] तीन प्रकारके दूतोंमेंसे वह दूत जो निस्पंद - वि० [सं०] स्पंदरहित, जिसमें कोई हरकत न हो।
२७ - क
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निस्पृह-नीच
४२४ निस्पृह-वि० [सं०] निर्लोभ, वासनारहित ।
जिसपर लोहा आदि धातुओंको रखकर पीटते हैं । निस्प्रेही-वि० है ० 'निस्पृह'।
निहाउ*-पु० दे० 'निहाई'। निस्फ-वि० [फा०] आधा ।
निहानी-स्त्री० खुदाईका महीन काम करनेकी रुखानी निस्बत-स्त्री०, अ० दे० 'निसबत' ।
निहाय, निहाव*-पु० दे० 'निहाई'। निस्पंद-पु० [सं०] क्षरण, चूना, रिसना; परिणाम । निहायत-अ० [अ०] अत्यधिक, बहुत ज्यादा। निस्यंदी(दिन)-वि० [सं०] बहनेवाला, रिसनेवाला । | निहार-*वि० निहाल, लठ्ठ-'पीत कमल इंदीवरपर मनु निस्र(सा)व-पु० [सं०] भातका माँड़, चूना, बहना। भोरहिँ भये निहार'-सू० । पु० [सं०] कुहरा; पाला; निस्व(स्वा)न-पु० [सं०] आवाज; बाणकी सरसराहट । । ओस । -जल-पु० ओस । निस्संकोच-वि० [सं०] संकोचरहित । अ०बिना संकोचके। | निहारना*-स० क्रि० गौरसे देखना, निरखना। निस्संग-वि० [सं०] संगरहित, विषया-तुराग शून्य एकाकी; निहारिका-स्त्री० [सं०] दे० 'नीहारिका' । निर्लिप्तः निष्काम ।
निहाल-वि० हर तरहसे तृप्त, जिसके सभी मनोरथ सिद्ध निस्संतान-वि० [सं०] जिसे कोई संतान न हो, संतानहीन। हो चुके हों। निस्संदेह-वि० [सं०] जिसमें किसी प्रकारका संदेह न हो, निहाली-स्त्री० [फा०] तोशक, गद्दा; * रजाई-"जैसे नर
संदेहरहित, असंदिग्ध । अ० बिना किसी संदेहके, बेशक । शीतकाल सोचत निहाली ओट'-सुंदर। निस्सरव-वि० [सं०] सत्त्वरहित, असार, शक्तिहीन, कम- निहिचय*-पु० दे० 'निश्चय'। जोर तुच्छ; प्राणियोंसे रहित ।
निहिचिंत*-वि० दे० 'निश्चित' । निस्सरण-पु० [सं०] निकलनेकी क्रिया या मार्ग । निहित-वि० [सं०] रखा हुआ, धरा हुआ, स्थापित । निस्सहाय-वि० [सं०] सहायरहित ।
-स्वार्थ-पु० (वेस्टेड इंटरेस्ट) व्यापार व्यवसाय, निस्सार-वि०सं०] असार, जिसमें कोई तत्त्व न हो। भूमि आदिमें रुपया लगाकर प्राप्त किया गया स्थिर निस्सीम-वि० [सं०] जिसकी सीमा न हो, अपार । | स्वार्थ । निस्स्नेह-वि० [सं०] स्नेहरहित । पु० एक प्रकारका मंत्र | निहुँकना-अ० क्रि० झुकना। (तंत्र)। -फला-स्त्री० सफेद भटकटैया।
निहुड़ना -अ० क्रि० दे० 'निहुरना' । निस्स्पंद-वि० [सं०] दे० 'निस्पंद'।
निहुरना*-अ० क्रि० झुकना, नत होना । निस्स्पृह-वि० [सं०] दे० 'निस्पृह' ।
निहुराई*-स्त्री० दे० 'निठुराई'। निस्स्व, निस्स्वक-वि० [सं०] दरिद्र, धनहीन । निहुराना -स० क्रि० झुकाना, नत करना । निस्स्वादु-वि० [सं०] स्वादरहित, बिनास्वादका, अस्वा- निहोर*-पु० दे० 'निहोरा' । दिष्ठ, बदमजा।
निहोरना*-स० क्रि० निहोरा करना, प्रार्थना करना; निस्स्वार्थ-वि० [सं०] बिना स्वार्थका, स्वार्थरहित, जिसमें | आराधन करना, मनाना; आभार स्वीकार करना । स्वार्थकी भावना न हो।
निहोरा*-पु० प्रार्थना, निवेदन; कृपा, उपकार, एहसान निहंग-वि०नि:संग, एकाकी; (वह साधु) जो स्त्री आदिसे | अवलंब, आसरा। संबंध न रखे नंगा: निर्लज्ज । पु. वह साधु जो किसीसे निहोरे*-अ० कारणसे, वजहसे; वास्ते । कुछ मतलब न रखे और एकदम अकेले रहे ।-लाडला- नींद-स्त्री० निद्रा। वि० जो अधिक लाड़-प्यारके कारण बिगड़ गया हो। नींदड़ी-स्त्री० निद्रा। निहंगम-वि० दे० 'निहंग'।
नींदना*-सक्रि० निंदा करना; निराना। निहंता(तृ)-वि० [सं०] हनन करनेवाला, मारने- | नीदर*, नींदरी-स्त्री० निद्रा, नींद । वाला; नाशक प्राण हर लेनेवाला।
नींबा-स्त्री० नीम। निहकर्मा, निहकर्मी-वि० दे० 'निष्कर्मा'।
नीव-स्त्री० दे० 'नी' । निहकलंक*-वि० दे० 'निष्कलंक' ।
नीअरी-अ० निकट। निहकाम, निहकामी*-वि० दे० 'निष्काम' ।
नीक*-वि० उत्तम, अच्छा,भला । पु० भलाई, अच्छापन । निहचय, निहचै*-पु० दे० 'निश्चय'।
नीका-वि० दे० 'नीक'। निहचल*-वि० दे० 'निश्चल' ।
नीके*-अ० अच्छी तरह, भली भाँति, सकुशल । निहचिंत*-वि० दे० 'निश्चित' ।
नीगने-वि० अगणित, बेशुमार-'मृगराज ज्यों वनराजमें निहत-वि० सं०] मारा हुआ; नष्ट किया हुआ । गजराज मारत नीगने-राम । निहतार्थ-पु० [सं०] किसी द्वयर्थक शब्दको उसके अप्र-नीच-वि० [सं०] जो जाति, गुण, कर्म आदिमें घटकर हो, सिद्ध अर्थमें प्रयुक्त करना।
अधम, निकृष्ट; खल, दुष्ट, खोटा; बौना (उच्चका उलटा)। निहत्था-वि० जिसके हाथमें कोई हथियार न हो, निरस्त्र। पु० नीच मनुष्य । -ऊँच-वि० [हिं०] छोटा-बड़ा; छोटे निहनना*-स० कि० मारना, वध करना।
या बड़े कुलका; भला-बुरा, उचित-अनुचित । पु० सुफलनिहपाप-वि० दे० 'निष्पाप'।
कुफल, भला या बुरा परिणाम, लाभालाभ, सुख-दुःख । निहफल*-वि० दे० 'निष्फल'।
-ग-वि० नीचेकी ओर जानेवाला, निम्नगामी खोटा, निहाई-स्त्री० एक विशेष आकारका लोहेका ठोस टुकड़ा। ओछा । -गा-स्त्री० नदी; नीच कुलवालेके साथ चली
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नीचट-नीराजना जानेवाली स्त्री।-गामी(मिन)-वि० दे० 'नीच'। नीति जाननेवाला। -विज्ञान-पु० दे० 'नीतिशास्त्र। नीचटी-वि० पक्का, दृढ़, मजबूत ।
-विद्-वि० दे० 'नीतिश'। -विद्या-स्त्री० राजनीतिनीचता-स्त्री०, नीचव-पु० [सं०] नीच होनेका भाव, शास्त्र; कर्तव्यशास्त्र । -शास्त्र-पु. राजनीति संबंधी ओछापन, खोटाई।
शास्त्र, वह शास्त्र जिसमें आचार संबंधी नियमोंका नीचा-वि० जिसकी सतह ऊँचाई में आसपासकी सतहसे | विधान हो। घटकर हो, जो ऊँचा न हो, निम्न, कम ऊँचाईवाला; | नीतिमान् (मत्)-वि० [सं०] नीतिके अनुसार आचनीचेकी ओर लटका हुआ, जो जमीनके अधिक समीप रण करनेवाला राजनीतिमें दक्ष चतुर, बुद्धिमान; आ गया हो; जो ऊँचाईपर न हो, झुका हुआ, जिसमें | सदाचारी। तीव्रता न हो, मंद, धीमा; जो ऊँचे दजेंका न हो, जो नीदना*-स० क्रि० निंदा करना। जाति, गुण, कर्म आदिकी दृष्टिसे न्यून हो (ऊँचाका | नीधना*-वि०निर्धन, दरिद्र । उलटा)। -ऊँचा-वि० दे० 'नीच-ऊँच'। (नीची) नीध्र-पु० [सं०] ओलती; वन; चंद्रमा पहियेका धेरा दृष्टि,-निगाह-स्त्री० लज्जासे झुकी हुई दृष्टि । मु०- रेवती नक्षत्र । खाना-अपमानित होना; पराजित होना।-दिखाना-नीप-पु० [सं०] कदमका पेड़ या फूल; बंधूक वृक्ष । अपमानित करना; पराजित करना; घमंड दूर करना । नीपजना*-अ० क्रि० उत्पन्न होना; बढ़ना, उन्नति करना। -देखना-दे० 'नीचा खाना'। (नीची) दृष्टि या नीपना*-स० क्रि० लीपना । निगाहसे देखना-घृणित या तुच्छ समझना। नीवरी-वि० दे० 'निर्बल'। नीचाशय-वि० [सं०] तुच्छ विचारवाला ।
नीबी-स्त्री० दे० 'नीवी' । नीचे-अ० नीचेकी तरफ, अधोभागमें, तलमें; घटकर नीबू-पु० खट्टे रसवाला एक प्रसिद्ध फल; इसका पेड़ । अधीनता ।-ऊपर-अ० ऐसे क्रमसे जिसमें एक दूसरेके | -निचोड़-वि० थोड़ा देकर बहुत लेनेवाला । पुनीबूको ऊपर हो ऐसी दशामें जिसमें नीचेका ऊपर और ऊपरका | दबाकर रस निकालनेका यंत्र । नीचे हो, व्यतिक्रांत रूपमें । मु०-गिरना-पतन होना, नीम-पु. एक प्रसिद्ध पेड़ जिसके सब अंग कड़वे होते अधोगतिको प्राप्त होना; पछाड़ा जाना। -गिराना- | है। मु०-की टहनी हिलाना-उपदंशसे पीडित होकर पतित बनाना, अधोगतिको प्राप्त कराना कुश्तीमें पछा- बैठना। इना, पटकना । -लाना-कुश्तीमें पटकना । -से ऊपर- |
-कश्ती में पटकना ।-से उपर- | नीम-वि० [फा०] आधा। -आस्तीन-स्त्री० आधी तक-सिरसे पाँवतक सभी अंगों या भागों में; एक सिरेसे | बाँहकी कुतीं। -चा-पु० छोटी तलवार, खाँड़ा। दूसरे सिरेतक।
-पुख्त,-पुख्ता-वि० आधा पका हुआ, अर्धपक्क । नीजन-वि० दे० 'निर्जन' । पु० एकांत स्थान ।
-रजा,-राज़ी-वि० आधा रजामंद । -हकीम-पु. नीझर*-पु० दे० 'निर्झर'।
अधकचरा हकीम, आयुर्विज्ञानकी बहुत कम जानकारी नीठ*-अ० दे० 'नीठि' । वि० दे० 'नीठा' ।
रखनेवाला चिकित्सक । मु०-हकीम खतरे जाननीठा*-वि० जो अच्छा न लगे, अप्रिय, अरुचिकर । अधकचरे वैद्यकी दवा करने में जान जानेका डर रहता है। नीठि-स्त्री० अरुचि । अ० किसी तरह, कठिनाईसे। नीमना-वि० उम्दा, बढ़िया; स्वस्थ जो खराब न हुआ हो।
-नीठि करके-किसी-किसी तरह, कठिनाईसे। नीमस्तीन, नीमास्तीन-स्त्री० दे० 'नीम के साथ । नीड-पु० [सं०] रहने या ठहरनेकी जगह, आश्रय नीयत-स्त्री० [अ०] इरादा, इच्छा, मंशा । मु०-डिगना,घोंसला; माँदा रथका एक अंग । -ज-पु० पक्षी । बद होना,-बिगड़ना, बुरी होना-विचार दूषित होना, नीडोनव-पु० [सं०] पक्षी, चिड़िया ।
मनमें बुरी बात पैदा होना, मनमें बेईमानीकी बात आना। नीत-वि० [सं०] ले जाया, पहुँचाया हुआ; बिताया हुआ।नीर-पु० [सं०] जल, पानी; फफोले आदिके अंदरका नीति-स्त्री० [सं०] ले जानेकी क्रिया; व्यवहारका ढंग, पानी; रस; नीमके पेड़से निकलनेवाला रस । -ज-वि० बर्तावका तरीका; वह आधारभूत सिद्धांत जिसके अनुसार जलीय, जलसे उत्पन्न होनेवाला । पु० ऊदबिलाव; उशीर; कोई कार्य संचालित किया जाय; लोकव्यवहारके निर्वाह- कमल; मोती। -द,-धर-पु. बादल |-धि,-निधिके लिए नियत किया गया आचार; लोकाचारकी वह पु० समुद्र । -पति-पु० वरुण । -रुह-पु. कमल । पद्धति जिससे अपना कल्याण हो और दूसरेको हानि न | नीरद-वि० [सं०] बिना दाँतका । पु० दे० 'नीर में । पहुँचे; किसी राज्य, राष्ट्र, संस्था या सरकार द्वारा अपने नीरना*-स० क्रि० बिखेरना । कार्यके संचालनके लिए नियत की गयी कार्य-पद्धति; कार्य- | नीरव-वि० [सं०] शब्दरहित, जिसमें ध्वनि न हो। विशेषकी सिद्धिके लिए काममें लायी जानेवाली युक्ति | नीरस-वि० [सं०] रसहीन; सूखा; वेस्वादका ।। चतुराईभरी चाल; राजनीति; औचित्य; योजना प्राप्तिः | नीराजन-पु० [सं०] देवताको दीप आदि दिखानेकी भेंट देना; संबंध; सहारा । -कुशल-वि० दे० 'नीतिज्ञ। पूजन विधि, आरती; विजययात्राके पहले हथियारोंकी -घोषणा-स्त्री० (मैनिफेस्टो) किसी दलके नेता या सफाई करनेका राजाओंका एक कृत्य जो आश्विन मासमें राज्यके प्रधान शासक आदि द्वारा अपनी नीति या लक्ष्य | हुआ करता था।
आदिके संबंध लिखित रूपमें की गयी सार्वजनिक | नीराजना-स्त्री० [सं०] दे० 'नीराजन' । * सक्रि० आरती 'घोषणा, लोक-घोषणा । -ज्ञ,-निपुण,-निष्ण-वि० । करना; हथियारोंकी सफाई करना।
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नीराज्यिक-नुमाइंदगी नीराज्यिक भूमि-स्त्री० [सं०] (नोमैन्स लैंड) दो देशोंकी नीलोफ़र-पु० [फा०] नील कमल कुई। सीमाओंके बीचमें पड़नेवाली वह भूमि जो दोमेंसे किसीके नीव, नीव-स्त्री॰नाली जैसा गहरा गड्ढा जिसमें से दीवार भी अधिकार में न हो; दे० 'निःस्वामिक भूमि'।
उठायी जाती है। इसमें की जानेवाली ईंट-पत्थरकी चुनाई नीरुक (ज), नीरोग-वि० [सं०] रोगरहित, स्वस्थ । या जमावट जिसके ऊपरसे दीवारकी जोड़ाई होती है, नीरुज-पु० [सं०] कुष्ठौषधि, कुट । वि० रोगरहित । मूल भित्ति, मूल आधार । मु०-जमाना-जड़ मजबूत नीरे*-अ० दे० 'नियरे'।
करना, आधार दृढ़ करना। -डालना-देना-दीवार नील-वि० [सं०] नीले रंगका, आसमानके रंगका । पु० उठानेके लिए नीवँ तैयार करना कोई कार्य आरंभ करना। नीला रंग; एक पौधा जिससे नीला रंग तैयार किया | -पड़ना-आरंभ होना, शुरू होना। जाता है; एक पर्वत, रामकी सेनाका एक वानर जिसने नीवार-पु० [सं०] तिन्नी धान । नलके साथ समुद्र में पुल बाँधा था; कुबेरकी एक निधि; नीवि-स्त्री० [सं०] दे० 'नीवी'। कलंक; बड़का पेड़, इंद्रनील मणि; यमराजका एक विग्रह; नीवी*-स्त्री० नी । एक तरहका पक्षी, मैना; काले-नीले रंगका बैल; काच- | नीवी-स्त्री० [सं०] धोतीकी वह गाँठ जिसे स्त्रियाँ नाभिके लवण; तूतिया; सौ अरबकी संख्या। -कंठ-वि० नीले नीचे या बगल में इजारबंदसे या यों ही बाँधती है। इसे कंठवाला । पु० मोर; शिव; नीले कंठ और डैनोंवाला बाँधनेकी सूतकी डोरी, इजारबंद, नारा; पूँजी, मूल धन । एक पक्षी जिसका विजयादशमीके दिन दर्शन करते हैं; नीसक-वि० अशक्त, असमर्थ । खंजन ।-कमल-पु० नीले रंगका कमल ! -कांत-पु० । नीसान* -पु० दे० 'निशान'। एक पहाड़ी पक्षी; नीलम मणि । -गाय-स्त्री० [हिं०] | नीहार-पु० [सं०] कुहरा; हिम। -जल-पु० ओस । एक बनैला जानवर जिसकी शकल गाय जैसी होती है। नीहारिका-स्त्री० [सं०] कुहरे या धुएँकी तरह आकाशमें -गिरि-पु० दक्षिणका एक पर्वत । -ग्रीव-पु० शिव । छाया रहनेवाला प्रकाशपुंज जो ग्रह-नक्षत्रोंका उपादान -पद्म-पु० दे० 'नीलकमल'। -मणि-पु० नीलम । माना जाता है। -रन-पु. नीलम । -वसन-वि० जो नीले रंगका नुकता-पु० [अ०] पतेकी बात, बारीक बात, दूरकी बात; वस्त्र पहने या पहने हो। पु० नीले रंगका वस्त्र बलराम ऐब, नुक्स, दोष, छिद्र; घोड़ेके मुँहपर लगाया जानेवाला शनैश्चर । -वासा (सस)-वि० दे० 'नीलवसन'। चमड़ा, सरबंद । -ची-वि० नुक्स या ऐब निकालनेपु० शनि ग्रह ।
वाला, छिद्रान्वेषी।-चीनी-स्त्री० दोष या ऐब निकालने नीलम-पु०[फा०] नीले रंगका एक प्रसिद्ध रत्न, इंद्रनील।। का काम, छिद्रान्वेषण । नीलांजन-पु० [सं०] तूतिया; नीला सुरमा।
नुकता-पु० [अ०] धब्बा, दाग; बिंदु लिखावटों अक्षरोंपर नीलांबर-वि० [सं०] जिसका वस्त्र नीला हो, जो नीले लगायी जानेवाली बिंदी; सिफर, सुन्ना ।
रंगका वस्त्र पहने हो । पु० नीला कपड़ा; बलराम । नुकती-स्त्री० एक तरहकी मिठाई । नीलांबुज-पु० [सं०] नील कमल ।
नुकना*-अ० क्रि० छिपना । नीला-वि० नीलकेसे रंगका, आसमानी रंगका।-थोथा- | नुकरा-पु० [अ०] चाँदी; घोड़ेका सफेद रंग । वि० सफेद पु० तूतिया । -पन-पु०, -हट-सी० नीला होनेका रंगका (घोड़ा)। भाव,नीलवर्णता । (नीली)घोड़ी-स्त्री० जामेके साथ नुकसान-पु० [अ०] कमी, न्यूनता; हानि, क्षति; ऐव, सिली हुई कागजकी घोड़ी जिसके कारण उक्त जामा दोष । म०-उठाना-क्षतिग्रस्त होना। -पहुंचनापहननेवाला घोड़ीपर चढ़ा हुआ-सा जान पड़ता है। हानि होना। -पहुँचाना-हानि करना। मु०-पड़ना-मारके दाग पड़ना। -पीला होना- नुकाना*-स० कि० छिपाना। क्रोध करना।
नुकीला-वि० नोकवाला, नोकदार; बाँका, तिरछा सुंदर । नीलाचल-पु० [सं०] नील गिरि ।
नुक्कड़-पु० नोक; मोड़, छोर; निकला हुआ कोना । नीलाम-पु० [पुर्त० लीलाम] विक्रीकी एक रीति जिसमें |
नुक्स-पु० [अ०] ऐब, दोष, खामी, त्रुटि । सबसे अधिक दाम बोलनेवालेके हाथ माल बेचा जाता है; नुचना-अ० क्रि० नोचा जाना । बोली बोलकर बेचना ।-घर-पु० वह धर या जगह जहाँ नुचवाना-स० क्रि० नोचनेका काम दूसरेसे कराना। वस्तुएँ नीलाम की जायँ। मु०-पर चढ़ना-नीलाम | नुत-वि० [सं०] जिसे प्रणाम किया गया हो, बंदित । किया जाना । -पर चढ़ाना-नीलाम करना।
नुत्फा -पु० [अ०] वीर्य, शुक्र संतान । नीलामी-वि० नीलाममें खरीदा हुआ, जो नीलाम किया नुनख(खा)रा-वि० नमककेसे स्वादवाला, नमकीन । जाय ।
नुनना-स० क्रि० तैयार फसलको काटना। नीलाश्म(न)-पु० [सं०] नीलम ।
नुनाई*-स्त्री० लावण्य, शोभा, सौंदर्य । नीलिका-स्त्री० [सं०] नीलका पौधा, नीला सिंदुवार; एक ननेरा-पु० नोना मिट्टी आदिसे नमक तैयार करनेका नेत्ररोग; (चोटका) नीला दाग।
पेशा करनेवाला; नोनिया। नीलिमा(मन्)-स्त्री० [सं०] नीलापन ।
नुमा-वि० [फा०] जाहिर करनेवाला; दिखानेवाला; नीलोत्पल-पु० [सं०] नील कमल ।
बतानेवाला; सदृश, मानिंद ( केवल समासमें व्यवहृत)। नीलोपल-पु० [सं०] नीला पत्थर नीलम ।
। नुमाइंदगी-स्त्री० [फा०] प्रतिनिधित्व ।
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४२७
नुमाइंदा-नेत नुमाइंदा-पु० [फा०] प्रकट करनेवाला प्रतिनिधि । पु० शिक; मोर । -शाला-स्त्री० नाचघर ।-स्थान-पु० नुमाइश-स्त्री० [फा०] दिखावा, प्रदर्शन; सूरत, शक्क रंगशाला। अनेक प्रकारकी अद्भुत वस्तुओंका प्रदर्शन; वह मेला नृप-पु० [सं०] ( मनुष्योंकी रक्षा करनेवाला) राजा । जहाँ भिन्न-भिन्न स्थानोंकी अनेक प्रकारकी कुतूहलवर्द्धक, -गृह-पु० राजभवन, राजमहल ।-द्रुम-पु० खिरनीका अद्भुत तथा सुंदर वस्तुओंका प्रदर्शन किया जाता है, पेड़, अमलतास । -नीति-स्त्री० राजनीति ।-वल्लभाप्रदर्शनी । -गाह-पु०, स्त्री० वह स्थान जहाँ नुमाइश स्त्री० रानी; केतकी। -सभा-स्त्री० राजाकी सभा ।
-सुत-पु० राजकुमार । -सुता-स्त्री राजकुमारी । नुमाइशी-वि० [फा०] दिखावटी तड़क-भड़कवालासंदर। नृपांश-पु०[सं०] राज-कर, उपजका छठा या आठवाँ भाग । नुसखा-पु० [अ०] लिखा हुआ कागज; नकल, कापी; वह नृपात्मज-पु० [सं०] राजकुमार (स्त्री० नृपात्मजा)। कागज जिसपर हकीम, डाक्टर या वैद्य दवा, उसके प्रयोग- नृपोचित-वि० [सं०] जो राजाके योग्य या अनुरूप हो। की विधि आदि लिखते हैं। किसी हकीम, डाक्टर या वैद्यके | नेअमत-स्त्री० [अ०] दे० 'नेमत'। द्वारा रोगविशेषके लिए निकाली गयी औषध, योग। नेइ, नेई*-स्त्री० दे० 'नीच' । मु०-बाँधना-नुसखेमें लिखी हुई दवाएँ देना । नेउछावरीि-स्त्री० दे० 'न्योछावर'। नुहरना*-अ० क्रि० दे० 'निहुरना।
नेउतना -स० कि० दे० 'नेवतना'। नूत*-वि० नया, नवीन ।
नेउतहरि, नेउतहरी*-पु० निमंत्रित व्यक्ति । नूतन-वि० [सं०] नया, नवीन, अभिनव अपूर्व, अद्भत । | नेउता-पु० दे० 'नेवता'। नूतनता-स्त्री०, नूतनत्व-पु० [सं०] नूतन होनेका भाव, | नेउला-पु० दे० 'नेवला'। नयापन, नवीनता।
नेक*-अ० जरा, थोड़ा। वि० जरा, थोड़ा-सा; [फा०] नूतनीकरण-पु० [सं०] (रिनोवेशन) दे० 'नवीकरण'। अच्छा, भला, उम्दा। -अजाम-वि० जिसका परिणाम नून- पु० नमक; एक लता । *वि०दे० न्यून'।-ताई*- भला हो। -अंदेश-वि० भलाई चाहनेवाला, हितैषी। स्त्री० न्यूनता, कमी ।-तेल-पु० गृहस्थीकी सामग्री। -स्वाह-वि० स्वामिभक्त, वफादार । -चलन-वि० नूपुर-पु० [सं०] पैरका एक गहना, धुंघरू ।
अच्छे चाल-चलनवाला, सदाचारी । -चलनी-स्त्री० नूर-पु० [अ०] ज्योति, प्रकाश धुति, कांति, छवि ईश्वर- अच्छा चाल-चलन, सदाचारिता । -दिल-वि० अच्छी का एक नाम (सूफी)। -चश्म-पु० प्यारा पुत्र । - नीयतवाला ।-नाम-वि० जो अच्छे कामके लिए प्रसिद्ध बाफ-पु० जुलाहा।
हो, जिसकी अच्छी ख्याति हो, सुख्यात, यशस्वी। - नूह-पु० [अ०] शामी या इबरानी मतोंके अनुसार बाबा नामी-स्त्री० नेकनाम होनेका भावया सद्गुण, मुख्याति, आदमसे दसवीं पीढ़ीमें उत्पन्न एक पैगंबर ।
सुप्रसिद्धि, सुकीर्ति । -नीयत-वि० अच्छी नीयतवाला, नृ-पु० [सं०] नर, मनुष्य; शतरंजका मोहरा । कपाल किसीकी बुराई न चाहनेवाला। -नीयती-स्त्री० नेक-पु० मनुष्यकी खोपड़ी। -केशरी(रिन)-पु० नर- नीयत होनेका भाव, भलमनसाहत ईमानदारी। सिंह अवतार सिंहकेसे पराक्रमवाला मनुष्य । -न- नेकी-स्त्री० [फा०] भलाई, उपकार, अच्छा काम, हित । वि० मनुष्यको मारनेवाला, मनुष्यघातक । -देव-पु० -बदी-स्त्री० भलाई-बुराई । मु०-और पूछ-पूछ?ब्राह्मण राजा। -प-पु० दे० क्रममें ।-पति-पाल- कहीं नेकी भी पूछ-पूछकर की जाती है ? जिसकी भलाई पु० राजा । -लोक-पु० मर्त्यलोक । -वंश-विज्ञान- करनी हो उससे पूछनेकी जरूरत नहीं। पु० (एनथ्रोपॉलॉजी) मानववंशकी उत्पत्ति, विकास आदि- नेकु-वि० थोड़ा, जरासा । अ० जरा, थोड़ा। का विवेचन करनेवाला शास्त्र, मानव विज्ञान । -शंस- नेग-पु० विवाहादि मांगलिक अवसरोंपर सगे-संबंधियों वि० मनुष्योंको सतानेवाला, कर, अत्याचारी। -शृंग- तथा पौनियोंको खुश करनेके लिए द्रव्य-वस्त्र आदि देनेपु० मनुष्योंके सींग जैसी असंभव वस्तु या बात ।-सिंह- की रस्म; इस ररमके निमित्त दिया जानेवाला द्रव्य-वस्त्र पु० सिंहरूपधारी विष्णु, विष्णुका चतुर्थ अवतार ( इसी आदि। • अवतारमें विष्णुने हिरण्यकशिपुका नाश किया था); नेगटी*-पु० नेग या रीतिका अनुसरण करनेवाला, प्रथासिंह जैसा पराक्रमी मनुष्य। -हरि-पु० नृसिंह । का पालन करनेवाला ।। नृग-पु० [सं०] एक महादानी पौराणिक राजा जो एक | नेगी-पु० नेग पानेवाला, वह जिसे नेग पानेका हक हो, ब्राह्मणके शापसे गिरगिट हो गये थे।
* संपत्ति आदिका प्रबंधक ।... नृतक*-पु० दे० 'नर्तक'।
नेछावरी-स्त्री० दे० 'निछावर' । नृतना, नृत्तना*-अ० कि० नाचना ।
| नेजा-पु० [फा०] भाला; राजाओंका निशान चिलगोजा । नृत्त-पु० [सं०] वह नाच जिसमें केवल अंगोंका विक्षेप -बरदार-पु० नेजा लेकर चलनेवाला । किया जाय।
नेजाल*-पु. भाला। नृत्य-पु० [सं०] ताल, लय और रसके अनुसार विलास- नेटा -पु० नाकके रास्ते निकलनेवाला कफ या मल । पूर्वक अंगोका विक्षेप करनेका एक व्यापार, ताल, लय नेठना*-अ० क्रि० दे० 'नाठना'। तथा रसके अनुसार किया जानेवाला नाच ( इसके दो नेड़े।-अ० निकट, समीप । प्रधान भेद हैं-(१) तांडव और (२) लास्य)।-प्रिय-नेत*-पु० किसी बातका निश्चित होना, निर्धारण, पक्का
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नेता - नैत्रिक
लगायी
स्त्री० दे० 'नेती', * दे०
इरादा, निश्चय; आयोजन, प्रबंध; मथानी में जानेवाली रस्सी; एक गहना । 'नीयत'; * एक प्रकारकी रेशमी चादर । नेता - पु० मथानीकी रस्सी । नेता (तृ) - पु० [सं०] दलविशेष या जनताको किसी ओर ले चलनेवाला, नायक, अगुआ, सरदार; पहुँचानेवाला । नेति - [सं०] ब्रह्म या ईश्वरकी अनंतता सूचित करनेवाला एक औपनिषद वाक्य जिसका अर्थ है 'अंत नहीं है' अर्थात् ब्रह्म या ईश्वरकी महिमा अपार है। * स्त्री० नीयत । नेती - स्त्री० मथानीकी रस्सी जिसे खींचनेसे वह घूमती है । नेतधौती - स्त्री० पेटमें कपड़ेका लंबी पतली पट्टी डालकर आँतें साफ करनेकी एक क्रिया ।
|
नेत्र - पु० [सं०] आँख; मथानी में लगायी जानेवाली रस्सी; दोकी संख्या ( ज्यो० ) । - कनीनिका - स्त्री० आँखकी पुतली । -च्छद-पु० पलक । -ज, - जल - पु० आँसू । - पिंड - पु० आँखका गोलक; बिलाव । -मलपु० आँखका कीचड़ । -रोग- पु० आँखका रोग -वारि- पु० आँसू । - विज्ञान- पु० (आप टिक्स) दृष्टि और प्रकाशके स्वरूप तथा नियमों-सिद्धांतों आदिका विवेचन करनेवाला विज्ञान, दृष्टिविज्ञान | नेत्रांत - पु० [सं०] आँखका बाहरी कोना । नेत्रां नेत्रांभ ( स ) - पु० [सं०] आँसू । नेत्रामय - पु० [सं०] आँखका रोग ।
नेब* - पु० सहयोग करनेवाला, सहकारी; मंत्री । नेबुआ - पु० दे० 'नीबू' । नेबू' - ५० दे० 'नीबू' । नेम+ - पु० बँधा हुआ क्रम, नियम, पाबंदी; धर्मकी भावना से किये जानेवाले व्रत, उपवास आदि; आचारका नियम; * प्रतिज्ञा; [सं०] छल, कैतव; अर्द्ध भाग; ऊपरका हिस्सा; सायंकाल; नृत्य; अन्न । वि० आधा । धरम[हिं०] पु० संध्यावंदन, पूजन आदि । नेमत - स्त्री० [अ०] ईश्वरकी देन; धन; स्वादिष्ट भोजन । नेमि - स्त्री० [सं०] पहियेका ढाँचा या घेरा; घेरा; कुएँकी जगत; जमवट; चरखी; कोर, किनारा। -घोष - पु०, - ध्वनि - स्त्री० पहियेकी 'घर घर' आवाज । नेमी - वि० नेमसे रहनेवाला, नेमका पालन करनेवाला । स्त्री० [सं०] दे० 'नेमि' । - वरमी - वि० नेम धरमसे रहनेवाला |
नेयार्थता - स्त्री० [सं०] एक काव्यदोष | नेरा* - अ० पास, नजदीक ।
नेरे, ने ₹* - अ० समीप, नजदीक ।
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नेव* - ५० दे० 'नेव' । स्त्री० दे० 'नीवें' । नेवग* - पु० नेग, दस्तूर । नेवगी* - पु० दे० 'नेगी' । नेवछाart - स्त्री० दे० 'निछावर' ।
नेवज - पु० देवताको अर्पित की जानेवाली भोज्य वस्तु, नैवेद्य |
नेवजा- पु० [फा०] चिलगोजा | नेवता - पु० दे० 'न्योता' । नेवतना* - स० क्रि० निमंत्रित करना । नेवतहरी - पु० दे० 'न्योतहरी' | नेवता - पु० दे० 'न्योता' | नेवना* - अ० क्रि० झुकना ।
नेवर- पु० नूपुर, घुँघरूः । स्त्री० दो पैरों के आपस में ठोकर या रगड़ खानेसे घोड़े के पैरमें होनेवाला घाव; घोड़े के दो पैरोंकी आपसकी रगड़ + वि० बुरा; न्यून 1 नेवरना * - अ० क्रि० निवारित होना, दूर होना ।
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नेवला - पु० लंबा 'भूरे रंगका जंतु जो साँपको मार डालता है ।
नेवाज - वि० दे० 'निवाज' ।
नेवाजना* - स० क्रि० दे० 'निवाजना' |
ले
नेत्री - स्त्री० [सं०] दलविशेष या जनताको किसी ओर चलनेवाली, रहनुमाई करनेवाली; नाडी; नदी; लक्ष्मी । नेत्र्य - वि० [सं०] नेत्र संबंधी; आँखोंके लिए हितकर । नेनुआ, नेनुवा - पु० एक तरकारी, धिवरा । नेपथ्य - पु० [सं०] वेश-भूषा; नटों की वेश-भूषा; रंगमंचके परदे के पीछेकी जगह जहाँ नटोंकी वेशरचना की जाती है। नेपुर* - पु० दे० 'नूपुर' । नेक्रा - पु० [फा०] पायजामे, लहँगे आदिका वह ऊपरी नेह* - पु० स्नेह, प्रेम, प्यार; तेल या घी । भाग जिसमें इजारबंद पिरोया जाता है ।
नेवाड़ा- पु० दे० 'निवाड़ा' । नेवादी - स्त्री० नेवारी |
नेवाना * - स० क्रि० झुकाना ।
नेवार - पु०, स्त्री० दे० 'निवार' | नेवारना * - स०क्रि० निवारण करना, दूर करना, हटाना। नेवारी स्त्री० जूही या चमेलीकी जातिका एक पौधा जिसमें छोटे और सफेद फूल लगते हैं ।
नेसुक* - वि० थोड़ा, अल्प, रंचमात्र । अ० जरा, थोड़ासा । नेस्त-वि० [फा०] जिसका अस्तित्व न हो, जो न हो । - नाबूद - वि० जड़-मूलसे नष्ट ।
नेही * - वि० स्नेही; प्रीति रखनेवाला, प्रेमी । नैःश्रेयस - वि० [सं०] कल्याणकारक; मोक्षदायक । नैः स्व-पु० [सं०] अकिंचनता, निर्धनता ।
नै - पु० दे० 'नय' । * स्त्री० नदी; [फा०] बाँसकी नली; निगाली; बाँसुरी ।
नैऋत, नैऋत्य * - वि० निर्ऋति-संबंधी, नैर्ऋत्य । पु० •मूलनक्षत्र; निशाचर; पश्चिम-दक्षिणका कोण । नैक, नैकु - वि०, अ० थोड़ा, अल्प, जरासा ।
नैक - पु० [सं०] निकट होनेका भाव, निकटता, सामीप्य । नैमिक - वि० [सं०] वेद-संबंधी; वेदोंसे निकला हुआ । नैचा- पु० [फा०] एकमें बाँधी हुई हुक्केकी दोनों नलियाँ; बहुत दुबला-पतला आदमी (हास्य) । - बंद - पु० नैचा बनाने या बाँधनेवाला ।
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नैची - स्त्री० मोट खींचते समय बैलोंके बार-बार आने और लौटने के लिए कुएँ के पास बनी हुई ढाल | नैतिक - वि० [सं०] नीति-संबंधी; नीतिका ।
नैक नैत्यिक- वि० [सं०] नियमित रूपसे होने या किया जानेवाला; अनिवार्य |
नैत्रिक - वि० [सं०] नेत्र-संबंधी, आँखोंका ।
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४२९
नैदाघ-नोनी नैदाघ-वि० [सं०] निदाघ संबंधी; निदाधका, ग्रीष्मका। नैसा*-वि० अनिष्ट, बुरा।। नैदाधिक, नैदाघीय-वि० [सं०] दे० 'नैदाघ' । नैसिक, नैसुक* -वि०, अ० दे० 'नेसुक' नैदानिक-वि० [सं०] जो रोगोंका निदान जानता हो। नैहर-पु० स्त्रीके पिताका घर, मायका। पु० रोगका निदान करनेवाला।
नोइनी, नोई-स्त्री० वह रस्सी जिससे दूध दुहनेके समय नैन*-पु० दे० 'नयन' ।-सुख-पु० एक तरहका चिकना गायकी पिछली टाँगें बाँधी जाती हैं। सूती कपड़ा।
नोक-त्री० [फा०] किसी वस्तुका उस ओरका अग्रभाग नैना-पु० नेत्र । अ० क्रि० नयना, झुकना।। जिस ओर वह पतली होती चली गयी हो; किसी चीजका नैनू-पु० एक तरहका बूटेदार सूती कपड़ा; * मक्खन । निकला हुआ बारीक सिरा; किसी ओर निकला हुआ नैपुण, नैपुण्य-पु० [सं०] निपुण होनेका भाव, निपुणता, कोना । -झाँक-स्त्री० सजधज, सजावट, अलंकरण; पटुता, चातुरी, कौशल; वह वस्तु जिसके लिए कौशल ताव, अभिमान; ताना, छींटाकशी, चुटीली बात; छेड़आवश्यक हो; समग्रता, पूर्णता ।
खानी संघर्ष विवाद । -दार-वि० नोकवाला, नुकीला नैमित्तिक-वि० [सं०] निमित्त या शकुनको जाननेवाला;
चुटाला, चुभनेवाला; सजधजका, ठाटका । निमित्त या शकुन-संबंधी शास्त्रको पढ़नेवाला; किसी नोकना*-अ० कि० ललचना; आकृष्ट होना। निमित्तसे किया जानेवाला, जो किसी निमित्तसे या नोकाझाँकी-स्त्री० छींटाकशी, तानाजनी, एक दूसरेको विशेष प्रयोजनको दृष्टिमें रखकर किया जाय (जैसे- चुटीली बातें कहना झगड़ा, विवाद । प्रायश्चित्तके रूपमें किया जानेवाला कर्म या पुत्रेष्टि यज्ञ); नोकीला -वि० दे० 'नुकीला' । आकस्मिक; विशेष कारणसे उत्पन्न ।
नोखा-वि० अनोखा, अद्भुत, अपूर्व । नैयमिक-वि० [सं०] नियमके अनुसार होने या किया नोच-स्त्री० नोचनेका काम या भाव; छीनने या बलपूर्वक जानेवाला।
लेनेका कार्य; किसीको परेशान या बेबस करके उससे बारनैया*-स्त्री० नाव ।
बार कुछ लेना; बहुतसे व्यक्तियोंका कई ओरसे एक साथ नैयायिक-पु० [सं०] न्यायशास्त्रका विद्वान् ।
माँगना । -खसोट-स्त्री० लूटपाट, छीनाझपटी । नैरंतर्य-पु० [सं०] निरंतरत्व, अविच्छिन्नता ।
नोचना-सक्रि० लगी या जमी हुई वस्तुको झटकेके साथ नैर*-पु० नगर, देश।
इस प्रकार खींचना कि वह अपने स्थानसे अलग हो जाय, नरपेक्ष्य-पु० [सं०] निरपेक्ष होनेकाभाव, उपेक्षा, तटस्थता। झटकेसे उखाड़ना या तोड़ना; नख, दाँत आदिसे किसी नैरी-पु० [सं०] निरर्थक होनेका भाव, निरर्थकता। वस्तुके कुछ अंशको खींचकर अलग करना; शरीरपर नख नैराश्य-पु० [सं०] निराश होनेका भाव, नाउम्मेदी; | या पंजेसे इस प्रकार आघात करना कि खरोच पड़ जाय;
आशा या इच्छाका अभाव । -वाद-पु० (पैसिमिज्म) किसीको बेबस करके बार-बार उससे कुछ लेना, किसीको संसारको दुःखमय मानने, प्रत्येक वस्तु या घटनाको फेरमें डालकर बार-बार उससे कुछ न कुछ वसूल करना; नैराश्यपूर्ण दृष्टिसे ही देखनेका सिद्धांत ।
इतना माँगना कि जी ऊब जाय । नैरुक्त, नरुक्तिक-पु० [सं०] निरुक्ति जाननेवाला। | नोचानाची-स्त्री० दे० 'नोचखसोट'। नैरुज्य-पु० [सं०] आरोग्य, स्वस्थता ।
नोचू-वि० नोचनेवाला; नोचखसोट करनेवाला । नैगुण्य-पु० [सं०] निर्गुण होनेका भाव, सत्व आदि गुणों- नोट-पु० [अं०] स्मरणके लिए लिख लेना, टाँकमा संक्षेप से रहित होनेका भाव, निर्गुणत्व; गुणराहित्य ।
छोटा पत्र या लिखा हुआ परचा; किसी घटना आदिके नैघृण्य-पु० [सं०] निर्दयता, निष्ठुरता ।
संबंधमें लिखित टिप्पणी; सरकार द्वारा रुपयेकी जगह नैर्मल्य-पु० [सं०] निर्मलता, स्वच्छता ।
चलाया गया वह कागज जिसपर उतने रुपयोंकी संख्या नैर्लज्य-पु० [सं०] लज्जाहीनता, बेहयाई।
लिखी रहती है जितनेका वह होता है। -पेपर-पु० नैवेद्य-पु० [सं०] देवताको समर्पित की जानेवाला भोज्य पत्र लिखनेका कागज । -बुक-स्त्री० वह पुस्तिका जिसमें
आवश्यक बातें स्मरणार्थ लिख ली जाती है। मैश, नैशिक-वि० [सं०] निशा-संबंधी निशाका। .नोटिस-स्त्री० [अं॰] सूचना; इश्तहार, विज्ञापन । नैश्चल्य-पु० [सं०] निश्चल होनेका भाव, स्थिरता। नोना-पु० नमक । -चा-पु० नमकीन अचार, आमका नैश्चित्य-पु० [सं०] निश्चित होनेका भाव; निश्चित | । एक प्रकारका अचार जो उसकी फाँकों में केवल नमक संस्कार ।
लगाकर तैयार किया जाता है। लोनी जमीन । -छीनैश्श्रेयस, नैश्य सिक-वि० [सं०] दे० 'नैःश्रेयस'। । स्त्री० लोनी मिट्टी। -हरामी*-वि० नमकहराम । नैष्टिक-वि० [सं०] निष्ठावाला; उपनयनसे लेकर मृत्युतक नोना-पु० सीड़के कारण दीवार या जमीन में लगनेवाला ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए गुरुकुलमें निवास करनेवाला नमकका अंश; लोनी मिट्टी । वि० जिसमें नमकका अंश (ब्रह्मचारी); किसी व्रतके अनुष्ठान में लगा हुआ; निश्चया- । हो, खारा; अच्छा; सुंदर । त्मक; स्थिर; पारंगत।
नोनाचमारी- स्त्री० एक मशहूर जादूगरनी। नष्ठूर्य-पु० [सं०] निठुराई, निर्दयता ।
नोनिया -पु. एक जाति जो लोनी मिट्टीसे नमक तैयार नैष्ठ्य-पु० [सं०] नियम-निष्ठा; दृढ़ता ।
करती है। स्त्री० एक भाजी जो स्वाद में नमकीन होती है। नैसर्गिक-वि० [सं०] निसर्ग-संबंधी; स्वाभाविक, सहज । नोनी-स्त्री० लोनी मिट्टी; नोनिया नामकी भाजी।
वस्तु ।
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नोर- नौबत
वि० [स्त्री० अच्छी; सुंदर ।
नोर* - वि० नया, नूतन । पु० आँसू | नोल* - वि० दे० 'नवल' । + स्त्री० चिड़ियाकी चोंच । नोवना* - स० क्रि० दुहने के समय गायकी पिछली टाँगोंको एक में बाँधना ।
नोहर* - वि० जिसका मिलना कठिन हो, जो बड़ी कठिनाईसे मिले, दुष्प्राप्य अपूर्व, अद्भुत । नौ- स्त्री० [सं०] नाव; जहाज । कर्ण-पु० जहाजकी पतवार । - कर्णधार - पु० पोतचालक । - कर्म (न्) - पु० मलाहकी वृत्ति, माझीका पेशा । -जीविक - पु० माझी । -तरण - पु० (नैविगेशन) दे० 'नौपरिवहन' । - तरणीय - वि० (नैविगेबिल) जिसमें नौका, जहाज आदि चल सकते हों ( वह नदी, तालाब आदि ); नौतार्य । - तार्थ - वि० जो नावसे पार किया जाय । -दंड० डाँड़ा। - नेता (तृ) - पु० वह जो जहाजकी पतवार पकड़े रहे, कर्णधार, नाविक । - परिवहन - पु० ( नैविगेशन ) जहाज आदिमें बैठकर जल-मार्ग से यात्रा करना । - परिवहनविषयक - वि० (नॉटिकल) समुद्र यात्रा, जहाज द्वारा ले जाने या जहाजों, नाविकों आदिसे जिसका संबंध हो । - प्रभार - पु० ( टनेज ) पोत या जहाजपर लाई जा सकने वाले मालका कुल भार; जहाजका खुद अपना भार या उस जलराशिका भार जो समुद्रादिमें संतरण किये जानेपर उसके द्वारा हटायी जाय । -बल-पु० (नेवी ) जलसेना, जहाजीं बेड़ा। - बलाध्यक्ष - पु० ( एडमिरल ) नौबल या नौसेनाका प्रधान सेनापति, नौसेनाका सबसे बड़ा अधिकारी । - विज्ञान - पु० (नॉटिकल साइंस) जहाजों, नाविकों या नौकानयन संबंधी विज्ञान । - साधन - पु० बेड़ा । - सेना - स्त्री० समुद्री लड़ाई लड़नेवाली सेना, जंगी जहाजों पर से लड़नेवाली सेना, जलसेना । -सेनापतिपु० नौसेनाका अध्यक्ष |
नौ - वि० आठ और एक, आठसे एक अधिक । पु० नौकी संख्या, ९ । - कड़ा - पु० प्रतिव्यक्ति तीन-तीन कौड़ियाँ लेकर तीन व्यक्तियों द्वारा खेला जानेवाला एक प्रकारका जुआ । - गरौँ, - गिरिही * - स्त्री० दे० 'नौगही' । -गही, - ग्रही - स्त्री० हाथका एक गहना । - दसी स्त्री० किसानोंकी जमींदारोंसे रुपया लेनेकी एक रीति जिसके अनुसार वे सालभर में ९) के बदले १०) देते हैं । स्त्री० नौ प्रकारकी भक्ति । -नगा-पु० नौ नगोवाला हाथमें पहननेका एक गहना । - मासा - पु० गर्भाधान से नवाँ, मास; इस मास में की जानेवाली रस्म जिसमें मिठाई आदि बँटती है। - रतन - पु० दे० 'नवरल'; नौनगा । स्त्री० खटाई, गुड़, मिर्च, केसर आदि नौ चीजोंसे तैयार की जानेवाली एक प्रकारकी चटनी । -रातर - पु०दे० 'नवरात्र' । - लखावि० जिसकी कीमत नौ लाख हो, नौ लाखका । - सत*पु० सोलहों शृंगार - 'नौसत साजे चली गोपिका गिरिवर पूजा हेतु' - सू० । - सरा- पु० नौ लड़ियोंवाली माला । - सरिया - वि० चालबाज, फरेबी, जालिया । मु० - दो ग्यारह होना - चंपत होना, भाग जाना । नौ* - वि० नव, नया।
बद* - वि० जो हाल में बुरी
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४३०
दशा से अच्छी दशाको प्राप्त हुआ हो। -रंग- पु० एक पक्षी; * औरंग-औरंगजेब - शब्दका एक विकृत रूप । - रस - वि० ताजा पका हुआ (फल); नौजवान ।-रूपपु० नीलकी पहली कटाई । - सिख, - सिखिया, - सिखुवा - वि० जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो, जिसने अभी हाल में ही सीखा हो ।
नौ - वि० [फा०] नया, हालका, ताजा । -आबाद - वि० हालका बसा हुआ, जहाँ लोग द्दालमें बसे हों । - आबादीस्त्री० नया बसा हुआ स्थान या देश, उपनिवेश । -जवानवि० चढ़ती जवानीवाला, नवयुवक । -जवानी - स्त्री० उठती जवानी चढ़ती युवावस्था । - निहाल - पु० नव• युवक। -बरार पु० वह जमीन जिसपर पहली बार मालगुजारी लगी हो । - बाला - स्त्री० वह लड़की जो हाल में बालिग हुई हो -मुसलिम - वि० जो हाल में ही मुसलमान हुआ हो। -रोज़-पु० ( पारसियोंका ) वर्षका पहला दिन; त्योहार या खुशीका दिन । -शहानावि० दूल्हा जैसा, दूल्हे के समान । - शा, शाह - पु० नौजवान शाह; दूल्हा, वर । -शी- स्त्री० दुलहिन, नववधू |
।
नौकर - पु० [फा०] वह कर्मचारी जो वेतन लेकर किसीका काम करे; छोटे-मोटे कामोंको करनेके लिए नियुक्त किया गया वैतनिक सेवक, भृत्य, खिदमतगार । शाही - स्त्री० कर्मचारियों द्वारा संचालित शासन प्रबंध, दफ्तरी हुकूमत । नौकराना - पु० दस्तूरी; वेतन या इनामके रूपमें नौकरको दी जानेवाली रकम; नौकर-खर्च ।
नौकरानी - स्त्री० टहल करनेवाली स्त्री, दासी, भृत्या । नौकरी-स्त्री० नौकरका काम या पेशा, सेवा, मुलाजमत । - पेशा- पु० नौकरी करके जीवन निर्वाह करनेवाला मनुष्य ।
नौका- स्त्री० [सं०] नाव; पोत । - दंड - पु० डाँड़ा। नौकाधिकरण- पु० [सं०] (एडमिरलटी) दे० 'नावधिकरण' । नौछावरी - स्त्री० दे० 'निछावर' |
नौज - अ० ऐसी नौबत न आये, भगवान् न करे; कुछ परवाह नहीं, बलासे (स्त्रि०) [अ० नऊज - हम पनाह माँगते * पु० दे० 'नौजा' । नौजा* - पु० बादाम; चिलगोजा । नौजी - स्त्री० लीची । नौतन* - वि० दे० 'नूतन' |
नौतम - वि० बिलकुल नया; ताजा - 'तुम सतगुरु मैं नौतम चेला' - कबीर । पु० नम्रता । नौता* - वि० नया । पु० दे० 'न्योता' । नौधा* - वि० नौ प्रकारकी (भक्ति) । नौन* - पु० नमक ।
नौना - अ० क्रि० नत होना, झुकना; नम्र होना । * वि० सुंदर ।
नौबत - स्त्री० [फा०] बारी; गत, दुर्दशा; स्थिति, योग; हालत, दशा, उत्सव, मंगल आदि सूचित करनेवाला बाजा; समय-समय पर बजने वाला बाजा; धौंसा, नगाड़ा । - खानापु० नौबत बजानेका फाटकके ऊपरका कमरा या स्थान । -नवाज़ - पु० नक्कारची । मु०-की टकोर - धाँसेकी
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नौसादर - पु० एक प्रकारका क्षार जो प्रायः जानवरों के
मलमूत्र से तैयार किया जाता है ।
न्यग्रोध- पु० [सं०] बड़, बरगद, शमीका पेड़ बाहु | न्यसन - पु० [सं०] किसी के पास जमा करना; रखना; देना; छोड़ देना ।
४३१
आवाज । - गुजरना - मौका जाता रहना । - झड़नानौबत बजना । - बजना - आमोद-प्रमोद होना, खुशी मनायी जाना । - बजाकर - सरेआम, गा-बजाकर । - बजाना - आमोद-प्रमोद करना, खुशी मनाना । नौबती - पु० [फा०] नौबत बजानेवाला; चौकीदार, पहरेदार; सजा हुआ, पर बिना सवारका घोड़ा, कोतल घोड़ा; भारी खेमा या तंबू । वि० बारीका (जैसे- नौबती बुखार)। -दार - पु० खेमेका चौकीदार; प्रहरी, द्वारपाल । नौमि - [सं०] प्रणाम करता हूँ।
न्यायतः-अ० [सं०] न्यायके अनुसार, न्याय से | न्यायाधिकरण - पु० [सं०] (ट्राइब्यूनल) किसी विवादग्रस्त विषय या विषयोंपर विचार कर न्यायिक निर्णय करनेवाला अधिकारी या इसी उद्देश्य से स्थापित विशेष न्यायालय ।
नौमी - स्त्री० दे० 'नवमी' । नौल * - वि० दे० 'नवल' |
नौशेरवाँ - पु० [फा०] ईसाकी छठी सदीका फारसका एक न्यायाधिपति -पु० [सं०] ( जस्टिस ) राज्य के मुख्य न्याया
अति न्यायप्रिय प्रतापी बादशाह ।
लय या देशके सर्वोच्च न्यायालयका न्यायाधीश, न्यायमूर्ति (इन न्यायाधीशों में जो प्रधान होता है उसे मुख्य न्यायाधिपति (चीफ जस्टिस ) कहते हैं) ।
न्यस्त - वि० [सं०] रखा या डाला हुआ छोड़ा हुआ, त्यक्त; भरा हुआ, निहित । - शस्त्र - वि० जिसने हथियार डाल दिये हों; निहत्था, अरक्षित । न्याहू, न्याउt - पु० दे० 'न्याय' । न्याति* - स्त्री० जाति ।
न्याय - पु० [सं०] उचित-अनुचितका विवेक, नीतिसंगत बात, इंसाफ; विवाद या मामलेमें दोनों पक्षोंकी सचाई - झुठाई आदि के अनुसार किया गया निबटारा, फैसला; विष्णु; सादृश्य; ६ आस्तिक दर्शनोंमेंसे एक जिसके प्रवर्तक गौतम ऋषि माने जाते हैं; प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण आदि ६ अंगोंवाला वाक्य जिससे पदार्थानुमान संपन्न होता है (न्या० ); लोक- शास्त्र में विशिष्ट प्रसंग में प्रयुक्त होनेवाला कहावतकी तरहका दृष्टांत वाक्य (जैसे- देहलीदीपन्याय) | * वि० ठीक, उचित; जैसा, समान । - कर्ता (र्तृ) - पु० न्याय करनेवाला, फैसला करनेवाला, विचारपति, निर्णायक । -ज्ञ-पु० ( जूरिस्ट) न्यायशास्त्रका ज्ञाता । - पथ - पु० न्यायका मार्ग, न्यायोचित मार्ग; मीमांसा दर्शन । - पर - वि० न्यायके अनुसार आचरण करनेवाला, न्यायी । - परता - स्त्री० न्यायपर होनेका भाव। -परायण - वि० दे० 'न्यायपर' । - परायणता - स्त्री० दे० 'न्यायपरता' । - पालिका - स्त्री० (जूडिशियरी ) देशके न्यायाधीशोंका समूह; देशका न्याय विभाग या न्यायव्यवस्था । - पीठ-पु० (बॅच) न्यायाधीशका आसन, धर्मासन । - प्रिय - वि० जिसे न्याय प्रिय हो, न्यायशील । - मूर्ति - पु० ( जस्टिस ) दे० 'न्यायाधिपति' । - वर्ती (र्तिन् ) - वि० न्यायानुसार आचरण करनेवाला । -वादी ( दिन) - वि० उचित बात कहनेवाला । विभ्रंशपु० (मिसकैरिज ऑफ जस्टिस ) न्यायका उचित मार्ग से भ्रष्ट हो जाना, न्यायके लक्ष्यकी सिद्धिसे बहक जाना, न्यायवैफल्य । - शास्त्र - पु० (जूरिसप्रुडेंस) न्याय या विधि-संबंधी शास्त्र । - शील- वि० दे० 'न्यायपर' | -शुल्क-पु० ब्यायालय में आवेदनपत्र देते समय लगने
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नौबती - न्यून
न्यायोचित ।
वाली फीस, कोर्ट फी । -संगत - वि० - सभा - स्त्री० अदालत, कचहरी, न्यायालय । सभ्यपु० (जूरी) फौजदारीके कुछ खास-खास मुकदमोंका विचार करते समय दौरा जजकी सहायता करनेके लिए नियुक्त सभ्यगण, जिनकी संख्या प्रायः ३ से ५ तक होती है (इनसे न्यायाधीशका मतभेद होनेपर मामला उच्च न्यायालय में भेज दिया जाता है ) ।
न्यायाधीश - पु० [सं०] ( जज ) विवाद या मामलेका निबटारा करनेवाला अधिकारी, न्यायकर्ता, विचारपति, । न्यायालय - पु० [सं०] वह स्थान जहाँ न्यायाधीश विवाद या मामलेका निर्णय करता है, अदालत, कचहरी । न्यायिक निर्णय - पु० (एडजुडिकेशन) न्यायासनपर बैठकर किसी मामले के संबंध में निर्णय देना या इस तरह दिया गया निर्णय |
न्यायिक प्राधिकारी - पु० ( जुडीशल अथॉरिटी) न्यायविभागका प्राधिकारी ।
न्यायिक मुद्रांक - पु० ( जुडीशल स्टांप ) न्यायालयके कागज पत्रोंपर लगायी जानेवाली मुहर या मुद्राकी छाप । न्यायी (यिन) - वि० [सं०] न्यायके अनुसार आचरण करनेवाला, न्यायके पथपर चलनेवाला । न्यायोचित - वि० [सं०] जो न्यायतः ठीक या उचित हो, जो न्यायके विरुद्ध न हो ।
न्याय्य - वि० [सं०] न्यायसंगत, न्यायोचित । न्यार* - वि० दे० 'न्यारा' । पु० तिनी धान, निवार । न्यारा - वि० जो दूर हो, दूरस्थ, दूरका; जो अलग हो; दूसरे प्रकारका, भिन्न, दीगर; अद्भुत, विचित्र, अपूर्व । न्यारिया - ५० वह जो सुनारोंकी दूकानकी राख आदि में से सोना-चाँदी निकाले ।
न्यारे - अ० दूर; अलग |
न्याव - पु० उचित-अनुचितका विवेक, इंसाफ; विवाद या मामलेका निर्णय, फैसला; आचारकी रीति । न्यास - पु० [सं०] रखना, स्थापना; उचित स्थानपर रखना; धरोहर, निक्षेप, अमानत; अर्पण; छोड़ना, तजना, त्याग; चिह्न, निशान; अंकन; स्वर मंद करना; (ट्रस्ट) किसी विशेष कार्य में लगाने के लिए विश्वासपूर्वक सौंपी हुई संपत्ति या इस प्रकार सौंपनेका कार्य । - धारी (रिन्) - ५० (ट्रस्टी) वह व्यक्ति जिसे ऐसी संपत्ति सौंपी जाय; धरोहर रखनेवाला ।
न्यासी (सिन्) - पु० [सं०] (ट्रस्टी) वह व्यक्ति जिसे किसी धन या संपत्तिका न्यास (विशेष उद्देश्य से विश्वासपूर्वक समर्पण) कर दिया गया हो; दे० 'न्यासधारी' । न्यून - वि० [सं०] जो घटकर हो; कम, थोड़ा; विकारयुक्त,
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न्यूनता
विकृत; हीन; नीच; निकृष्ट । कोण - पु० (एक्यूट एंगिल ) वह कोण जो एक समकोणसे छोटा हो । - कोणत्रिभुज - पु० (ऐक्यूट एंगिल्ड ट्राइएंगिल) वह त्रिभुज जिसके तीनों कोण न्यूनकोण हो । धी- वि० कमअक्कु, मूर्ख । -पोषण - पु० (मैन्यूट्रीशन) खाद्य वस्तुओंकी खरावी, कमी आदि के कारण पर्याप्त पोषणका न मिलना, कुपोषण; (अंडरनरिशमेंट) पोषणकी या पोषक तत्त्वोंकी कमी । न्यूनता - स्त्री० [सं०] न्यून होनेका भाव, कमी; हीनता । - बोधक - वि० (डिम्यूनिटिव) यह उससे न्यून या छोटा है, यह बोध करानेवाला (शब्द), ऊनवाचक, अल्पार्थक न्यूनन - पु० (एब्रिजमेंट) घटा देना, कम कर देना, छोटा कर देना, संक्षेपण |
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न्यूनांग - वि० [सं०] जिसका कोई अंग विकृत हो । न्यूनाधिक - वि० [सं०] कम-वेश; असम | न्यूनीकरण - पु० [सं०] ( अबेटमेंट) कम कर देना, घटा देना ।
प - देवनागरी वर्णमालाका २१वाँ व्यंजन वर्ण । पंक- पु० [सं०] कीचड़, दलदल; पाप; लेप । -क्रीड, - क्रीडन - पु० सूअर । -ज- वि० जो कीचड़ में उत्पन्न हो । पु० कमल; सारस पक्षी । -ज-जन्मा ( न्मन्) - पु० ब्रह्मा । -ज-नाभ - पु० विष्णु । -ज-राग- पु० पद्मराग मणि । -जात-पु० कमल । - रुह - पु० कमल । पंकजासन - पु० [सं०] ब्रह्मा ।
पंकजिनी - स्त्री० [सं०] कमलका पौधा; पद्म-राशि; कमलपूर्ण स्थान; कुमुद दंड |
पंकिल - वि० [सं०] पंकयुक्त, जिसमें कीचड़ मिला हो । पंकिलता - स्त्री० [सं०] कलुष; कालिमा; गंदगी । पंकेरुह - पु० [सं०] कमल; सारस ।
पंक्ति - स्त्री० [सं०] वह समूह जिसमें प्रायः सजातीय पदार्थ या व्यक्ति एक दूसरे के पीछे या बगल में क्रमके अनुसार स्थित हों, श्रेणी, कतार; पाँचका समाहारः दसकी संख्या; भोज में एक साथ खानेवालोंकी पाँत, पंगत । - च्युत - वि० (डिग्रेडेड) दे० 'कोटिच्युत', जो अपनी पंक्ति या कोटि ( दरजे) से नीचे हटा दिया गया हो। -पावन - पु० विद्या, तप आदिसे विशिष्ट ब्राह्मण जिससे श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मणोंकी पंक्ति पवित्र हो जाती है; वह ब्राह्मण जो पंक्तिदूषक द्वारा अपवित्र की गयी पंक्तिको पवित्र बना देता है (मनु०), पंक्तिदूषकका उलटा । बद्ध - वि० श्रेणीबद्ध |
पंख - पु० पर, डैना । मु० - जमना - भागने, खिसकने, कुमार्गपर चलने या प्राण गँवानेका लक्षण प्रकट होना । - लगाना - पक्षीकीसी गतिसे युक्त होना; उड़ान भरना । खड़ी - स्त्री० फूलका वह पत्ता जैसा अवयव जिसके संकोचसे वह मुकुलित रहता है और फैलावसे खिलता हैं, फूलकी पत्ती, पुष्पदल ।
पंखा- पु० वह वस्तु जिससे हवा की जाती है। -कुलीपु० पंखा खीचनेवाला नौकर । -पोश-पु० पंखेका
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४३२
न्यूनोन्नत क्षेत्र - पु० [सं०] (अंडर-डेवेलप्ड एरिया) वह भूभाग जो उद्योगों, खनिज द्रव्यों आदिको दृष्टिसे बहुत पिछड़ा हुआ हो, जिसकी बहुत कम उन्नति हुई हो । न्योछावर - स्त्री० दे० 'निछावर' | न्योजी* - स्त्री० लीची; चिलगोजा । न्योतना-स० क्रि० भोज आदिके लिए निमंत्रित करना । न्योतनी - स्त्री० विवाहादि अवसरोंपर होनेवाला भोज । न्योतहरी - पु० निमंत्रित व्यक्ति ।
न्योता - पु० निमंत्रण; भोज आदिका निमंत्रण, दावतः वह रकम या वस्तु जो न्योतहरी न्योता देनेवालेको देता या उसके यहाँ भेजता है ।
न्योरा* - पु० दे० 'नेवला'; बड़े दानोंका बँधरू । वैनी* - स्त्री० दे० 'नोई' ।
न्हवाना * - स० क्रि० नहलाना, स्नान कराना । न्हान* पु० स्नान ।
न्हाना * - अ० क्रि० नहाना ।
खोल । मु० - करना - पंखा डुलाकर किसी ओर इवाका झोंका देना; पंखा डुलाकर वायुका संचार करना । पँखिया * - स्त्री० भूसीके महीन टुकड़े; पँखड़ी । पंखी - पु० पक्षी; पाँखी । स्त्री० छोटा पंखा । पँखुड़ा, पंखुरा । - ५० दे० 'पखुरा' | पंखुड़ी, पँखुरी * - स्त्री० दे० 'पंखुड़ी' । पखेरू + - पु० दे० 'पखेरू' ।
पंग - वि० लँगड़ा; कुंठित; बेकाम; अवरुद्धः स्तब्ध | पंगत, पंगति- स्त्री० पंक्ति, कतार; भोज में एक साथ खानेवालोंकी पाँत; समाज; भोज ।
पंगा - वि० दे० 'पंगु' ।
पंगु - वि० [सं०] जो पाँवके बेकाम होनेसे चल-फिर न सकता हो; जो चल न सके, गतिहीन । पंगुता- स्त्री०, पंगुत्व - पु० [सं०] लँगड़ापन । पंगुल - वि० [सं०] पंगु ।
पंच (न्) - वि० [सं०] पाँच । कन्या - स्त्री० अहल्या, द्रौपदी, कुंती, तारा और मंदोदरी-ये पाँच स्त्रियाँ जो सदा कन्या रहीं । - कल्याण, - कल्याणक - पु० वह घोड़ा जिसके पैरों और मुँहका रंग सफेद हो ( ऐसा घोड़ा बहुत मांगलिक माना जाता है ) । - कवल- पु० भोजनके पहले पक्षियों आदि के लिए निकाला जानेवाला पाँच ग्रास अन्न । -काम- पु० पाँच प्रकारके कामदेव जिनके नाम ये हैं - काम, मन्मथ, कंदर्प, मकरध्वज और मीनकेतु । - कोण-पु० पाँच भुजाओंवाला क्षेत्र ( ज्या० ) । वि० पाँच कोनोंवाला । - कोसी - स्त्री० [हिं०] काशीकी परि क्रमा । -क्रोशी - स्त्री० पाँच कोसका फासला; काशीपुरी जो पाँच कोसोंमें बसी हुई है। -गंग-पु० गंगा, यमुना, सरस्वती, किरणा और धूतपापा-इन पाँच नदियोंका समादार | - गंगा ( घाट ) - पु० [हिं०] काशीका एक प्रसिद्ध स्थान जो कई नदियोंका संगमस्थान माना जाता है । -गय- पु० गायके दूध, दही, घी, गोबर और
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पंव-पंचमांगी मूत्रको एकमें मिलाकर तैयार किया जानेवाला एक पदार्थ ! और सीसा-ये पाँच धातुएँ; इन पाँचोंके योगसे जो बहुत पवित्र माना जाता है। -गुण-पु० शब्द, बनी धातु। -वक्त-पु० दे० 'पंचमुख'। -वक्तास्पर्श, रूप, रस और गंध-ये पाँच गुण । वि० पँचगुना। स्त्री० दुर्गा। -वटी-स्त्री० पीपल, बेल, बड़, हड़ और -गीड़-पु० उत्तरी भारतके पाँच प्रकारके ब्राधण- अशोक-इन पाँच वृक्षोंका समाहार । -वाण-पु० दे० सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल और औल्कल (उत्कल)। 'पंचबाण' । -वृक्ष-पु. पाँच देववृक्ष-मंदार, पारि-तत्त्व-पु० पृथ्वी, जल आदि पंचभूत; पंचमकार । जात, संतान, कल्पवृक्ष और हरिचंदन । -सरा*-पु० -तपा(पस्)-पु० पंचाग्निका ताप लेनेवाला ।-तरु- कामदेव । -सुगंधक-पु० कपूर, शीतलचीनी, लौंग, पु० मंदार, पारिजात, संतान, कल्पवृक्ष और हरिचंदन- सुपारी और जायफल -ये पाँच सुगंध पदार्थ । -सूनाका समाहार। -तिक्त-पु. पाँच कड़वी ओषधियों- स्त्री० गृहस्थके घर में निम्नलिखित पाँच वस्तुएँ जिनके गुरुच,भटकटैया, सोंठ, कुट और चिरायता-का समाहार ।। द्वारा छोटे-छोटे कीड़ोंकी हिंसा हो जाया करती है-चूल्हा, -दशी-स्त्री० पूर्णिमा; अमावस्या । -देव-पु० विष्णु, चक्की या सिलबट्टा, झाडू, ओखली और पानीका घड़ा। शिव, सूर्य, गणेश और दुर्गा-ये देवता जिनकी -स्नेह-पु० घी, तेल, चरबी, मज्जा और मोम-ये उपासना स्मार्त हिंदू करते हैं। -द्राविड़- पु. दक्षिण | पाँच चिकने पदार्थ । भारतके पाँच प्रकारके ब्राह्मण-महाराष्ट्र, तैलंग, पंच-पु० पाँच या अधिक मनुष्योंका समूह; सर्वसाधारण कर्णाकट, गुर्जर और द्राविड़। -नद-पु० पाँच | न्याय करनेवाली सभा; पंचायतका सदस्य(आर्बिट्रेटर ) नदियोंवाला देश, पंजाब; दे० 'पंचगंग'। -नाथ-पु० दो पक्षोंके बीचका झगड़ा निपटानेके लिए, दोनोंकी बदरीनाथ, द्वारकानाथ, जगन्नाथ, रंगनाथ और श्रीनाथ ।। स्वीकृतिसे नियुक्त कोई तटस्थ व्यक्ति, जिसका अभिनिर्णय -पान-पु. पाँच पात्रोंका समाहार; पूजनके कामका माननेके लिए दोनों बाध्य हों; जूरीका सदस्य।-नामागिलासके आकारका एक पात्र । -पिता-पु० [हिं०] पु० वह कागज जिसके द्वारा बादी और प्रतिवादी किसी दे० 'पंचपितृ'। -पितृ-पु० पाँच प्रकारके पिता-पिता, व्यक्ति या व्यक्तिसमूहको अपने मामलेका फैसला करनेका उपनेता, श्वशुर, अन्नदाता और भयत्राता । -प्राण-पु० अधिकार देते हैं। वह कागज जिसपर पंचोंने अपनी तजशरीर में संचरण करनेवाली वायुके पाँच भेदोंका समा- वीज लिखी हो । -निर्णय-पु० (आबिट्रेशन) पंच द्वारा हार-प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान । -बाण, किया गया निर्णय । -न्यायाधिकरण-पु० (आर्बिट्रल -शर-पु० कामदेव, कामदेवके पाँच प्रकारके बाग- ट्रिब्यूनल ) वह अदालत जिसमें मामलेका निपटारा पंचों सम्मोहन, उन्मादन, स्तंभन, शोषण और तापन | बाहु- द्वारा किया जाय ।मु०-की दुहाई-सहायताकी पुकार । पु० शिव । -भद्र-पु० एक प्रकारका सुलक्षण घोड़ा -परमेश्वर-पंचोंका कहना ईश्वरीय वाक्यके समान है। जिसके मुंह, पीठ, छाती, दोनों बगलोंपर एक धब्बा -बदना,-मानना-झगड़ेका फैसला करनेके लिए मध्यस्थ होता है। वि० पाँच गुणोंवाला (व्यंजन आदि); दुष्ट । बनाना। -भारी-स्त्री० [हिं०] द्रौपदी। -भूत-पु० पृथ्वी, पंच-वि० पाँचका समासमें व्यवहृत रूप । -तोरिया*जल, तेज, वायु और आकाश-ये पाँच तत्त्व ।-मकार- पु० एक तरहका बढ़िया कपड़ा। -तोलिया-पु. पाँच पु० वामाचारके अंतर्गत वे पाँच वस्तुएँ जिनके नामका तोलेका बाट; एक तरहका बढ़िया कपड़ा। -मेल-वि० प्रथम अक्षर 'म' है-मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन । जिसमें पांच प्रकारकी वस्तुओंका मेल हो; जिसमें कई -महापातक-पु० पाँच प्रकारके महापातक-ब्रह्महत्या, तरहकी चीजें मिली हों। -रंग,-रंगा-वि० पाँच रंगोंसुरापान, स्तेय, गुरुतल्प-गमन और उक्त चार महा- वाला; कई रंगोवाला; रंग-रबिंगा। -लड़ा-वि० पाँच पातकोंको करनेवालेका संसर्ग (मनु०)। -महायज्ञ
लड़ोंका (हार)। -लड़ी-स्त्री० पाँच लड़ोंवाली माला । पु० गृहस्थोंके लिए विहित वे पाँच कृत्य जिन्हें करनेसे -लरी-स्त्री० दे० 'पंचलड़ी' । -वाँसा-पु. गर्भरक्षाके पंचसूना संबंधी हिंसाके दोषसे छुटकारा मिलता है-ये
निमित्त प्रथम गर्भधानके पाँचवें महीने किया जानेवाला कृत्य निम्नलिखित है-(१) स्वाध्याय-ब्रह्मयज्ञ, (२) एक कृत्य । होम-देवयज्ञ, (३) बलिवैश्वदेव-भूतयज्ञ, (४) पिंड-पंचक-पु० [सं०] पाँचका समूह (समासमें); धनिष्ठा आदि क्रिया-पितृयज्ञ, (५) अतिथिपूजन-नृयश। -महा- पाँच नक्षत्र; इन नक्षत्रोंका योगफल जिसमें प्रेतदाह, व्याधि-स्त्री० अर्श, यक्ष्मा, कुष्ठ, प्रमेह और उन्माद- दक्षिणकी यात्रा आदि निषिद्ध है, पचखा; युद्धक्षेत्र । ये पांच दुःसाध्य व्याधियाँ। -मुख-पु. शिव; सिंह पंचता-स्त्री०, पंचत्व-पु०[सं०] शरीरके उपादानरूप पाँच पाँच नोकोंवाला बाण। वि० जिसके पाँच मुख हों। महाभूतोंका अपने अपने रूपको प्राप्त हो जाना; मृत्यु । -रन-पु० पाँच रत्न, पाँच प्रकारके रल-नीलम, हीरा, पंचम-वि० [सं०] पाँचवाँ दक्ष, चतुरः सुंदर । पु० संगीतके पद्मराग मणि, मोती और मूंगा; महाभारतके पाँच सप्तकका पाँचवाँ स्वर जो कोयलकी कूकके सदृश माना प्रसिद्ध आख्यान । -राशिक-पु० गणितकी एक जाता है; एक राग। क्रिया जिससे चार ज्ञात राशियोंके द्वारा पंचम राशि | पंचमांगी-पु० (फिफ्थ कालमिस्ट ) दूसरे देशसे गुप्त निकाली जाती है। -लवण-पु० दे० 'पंच क्षारगण' संबंध रखकर स्वदेशको हानि पहुँचानेवाला, देशद्रोही, पाँच प्रकारके लवण-काल, सैंधव, सामुद्र, विट और | भेदिया, जयचंद (स्पेनकी राजधानी मैड्रिडपर अधिकार सौवर्चल । -लौह-पु० सोना, चाँदी, ताँबा, राँगा करने के लिए चार फौजोंको साथ लेकर बढ़नेवाले जनरल
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पंचमी-पंजीयक
४३४ फ्रैंकोने पाँचवीं सेनाके रूपमें इन देशद्रोहियों या भेदियोंसे पुतली; एक प्रकारका.गीत शतरंज आदिकी बिसात । ही सहायता प्राप्त की थी, इसीसे इस तरहके लोग पाँचवीं पंचाशत-वि० [सं०] चालीस और दस । पु०५०की संख्या। सेनाके अंग या 'पंचमांगी' कहे जाने लगे।
पंचाशिका-स्त्री० [सं०] पचास वस्तुओं, व्यक्तियों या पंचमी-स्त्री० [सं०] चंद्रमाकी पाँचवीं कला पक्षकी पाँचवीं पद्योंका समूह । तिथि; द्रौपदी; अपादान कारक ।
पंचास्य-वि०, पु० [सं०] दे० 'पंचानन' । पंचांग-वि० [सं०] पाँच अंगोंवाला। पु० पाँचका समा-पंचाह-पु० [सं०] पाँच दिनोंका समूह । हार; पाँच अंग; किसी वृक्ष या पौधेके ये पाँच अंग-जड़, पंचेपु-पु० [सं०] कामदेव । छाल, पत्ता, फूल और फल; घुटना, सिर, हाथ तथा छाती- | पंचोपचार-पु० [सं०] पूजनके साधनभूत पाँच द्रव्य-गंध, को पृथ्वीसे सटाकर और आँखको देवताके चरणोंकी ओर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, इन पाँच द्रव्योंसे किया गया करके किया जानेवाला एक प्रकारका प्रणाम (तंत्र); पूजन । तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण-इन पाँच अंगोंसे | पंछा-पु० प्राणियोंके शरीर या पेड़-पौधों में कटने, छिलने युक्त तिथिपत्र, पत्रा (ज्यो०)। राजनीतिके ये पाँच अंग- आदिकी जगहसे निकलनेवाला एक प्रकारका पसेव घावसहाय, साधन, उपाय, देशकाल-भेद और विपत्-प्रतिकार का पसेव फफोले, चेचकके दाने आदिमें भरा हुआ पानी। पंचभद्र घोड़ा कछुवा ।-शुद्धि-स्त्री० तिथि, वार, नक्षत्र, पंछाला-पु० फफोला; फफोलेके भीतरका पानी। योग और करण इन पाँचकी निर्दोषता।
पंछी-पु० पक्षी, चिड़िया । पंचाक्षर-वि० [सं०] पाँच अक्षरोंवाला। पु० एक छंदः पंज-वि० [फा०] पाँच । -रोज़ा-वि० पाँच दिनोंका; शिवका पाँच अक्षरोंवाला मंत्र-'ॐ नमः शिवाय'। कुछ ही दिनोंतक रहनेवाला; अस्थायी, जो टिकाऊ न पंचाग्नि-स्त्री० [सं०] पाँच प्रकारकी अग्नियाँ-अन्वाहार्य, | हो। -हज़ारी-पु. पाँच हजार सैनिकोंका नायक । पचन, गाई पत्य, आहवनीय और आवरुथ्य; चारों ओर पंजर-पु०[सं०] हड़ियोंका हाँचा, कंकाल, पसली; पिजड़ा, जलती हुई चार अग्नियाँ तथा ऊपरसे सूर्यके तापका सेवन शरीर । -शुक-पु० पिजड़े में बंद तोता । करनेका ग्रीष्म ऋतुमें किया जानेवाला एक तप, चीता, पजरना*-अ० क्रि० दे० 'पजरना' ।। चिचड़ी, भिलावाँ, गंधक और मदार-ये पाँच बहुत गरम पंजा-पु० [फा०] पाँच सजातीय वस्तुओंका समाहार; गाही; तासीरवाली ओषधियाँ (आ० वे०)।।
पाँचों उँगलियोंके सहित हथेली; पैरका अगला भाग; पंचाट-पु० (अवार्ड) दे० 'परिनिर्णय।
अधखुली मुट्ठी जिसमें अँगूठा और उँगलियाँ इस स्थितिमें पंचात्मक-वि० [सं०] पाँच तत्त्वोंवाला (शरीर)। हों कि किसी वस्तुको पकड़ा या बकोटा जा सके; उँगलियोंपंचानन-वि० [सं०] पाँच मुँहोंवाला । पु० शिवः सिंह । के सहित हथेलीका अर्धसंपुट, जूतेका वह भाग जिसे पहपंचानबे-वि० नब्बेसे पाँच अधिक, जो सौसे पाँच कम हो। ननेपर वह पंजेको ढके रहता है। पीठ खुजलानेका पंजेकी पु० नब्बेसे पाँच अधिककी संख्या, ९५।।
आकृतिका बना एक आला; पंजा लड़ानेकी क्रिया या प्रतिपंचामृत-पु०[सं०] पाँच द्रव्योंकासमाहारदेवताओंके स्नान योगिता; पाँच बूटियोवाला ताशका पत्ता; आदमीके पंजेके कराने और चढ़ानेके कामका एक पेय पदार्थ जो गायके आकारका टिन आदिका वह टुकड़ा जिसे लंबे बास आदिमें दूध, दही, घी, मधु और चीनीके योगसे बनाया जाता है। लगाकर झंडेके रूपमें ताजियेके साथ ले चलते हैं। -तोड़ पंचाम्ल-पु० [सं०] बेर, अनार, अमलबेत, चक और बैठक-स्त्री०कुश्तीका एक पेंच । मु०-फेरना,-मोड़नाबिजौरा नीबू-ये पाँच खट्टे पदार्थ (आ० वे०)।
पंजेकी लड़ाईमें प्रतिद्वंद्वीको हराना।-फैलाना-बढ़ानापंचायत-स्त्री० पंचोंकी मंडली या सभा; किसी मामले या लेने या अधिकार में करनेकी चेष्टा करना। -मारना
झगड़ेके संबंधमें पंचों द्वारा किया जानेवाला विचार या झपट्टा मारना।-लड़ाना,-लेना-कसरत या बलपरीक्षानिवटारा कई आदमियोंका एकत्र होकर इधर-उधरकी के लिए उँगलियोंको फंसाकर जोर लगाना। (पंजे)मेंबातें करना, गपशप करना (व्यंग्य); जनता द्वारा चुने काबूमें। हुए प्रतिनिधियोंका मंडल ।
पंजाबी-वि० [फा०] पंजाबका; पंजाब-संबंधी। पु० पंजाब पंचायतन-पु० [सं०] पाँच देवताओंकी प्रतिमाओंका प्रांतका निवासी । स्त्री० पंजाबकी भाषा। समुदाय ।
पंजि, पंजी-स्त्री० [सं०] पूनी; बही; (रजिस्टर) वह पुस्तक पंचायती-वि० पंचायतका; जिसपर बहुतोंका अधिकार या बही जिसमें हिसाब, कार्य-विवरण, जन्म-मृत्युका लेखा, हो अनेक मनुष्योंका; जनताका; जनताके प्रतिनिधियों गृह, भूमि आदिकी अधिकृत बिक्री या हस्तांतरण आदिद्वारा संचालित, जिसका संचालन जनता द्वारा चुना का ब्यौरा लिखा या दर्ज किया जाय; पंचांग । -कार, हुआ प्रतिनिधिमंडल करे। -राज्य-पु० जनताके प्रति- -कारक-वि० लेखक; बही लिखनेवाला, कुर्क। -बद्धनिधियों द्वारा संचालित राज्य, गणतंत्र ।
वि०(रजिस्टर्ड) जो पंजी यारजिस्टर में चढ़ा दिया गया हो। पंचाल-पु० [सं०] हिमालय तथा चंबलसे सीमित एक पंजिका-स्त्री० [सं०] ऐसी टीका जिसमें प्रत्येक शब्दका अर्थ प्राचीन देश जो गंगाके दोनों ओर स्थित था (द्रपद यहींके समझाया गया हो, विशद टीका; पंचांग, तिथिपत्र; आय
राजा थे-म० भा०); इस देशका निवासी; यहाँका राजा। व्यय लिखनेकी बही; रजिस्टर; यमकी बही जिसमें पंचालिका-स्त्री० [सं०] कपड़े आदिकी पुतली; नटी। जीवोंके कर्म लिखे जाते है । पंचाली-स्त्री० पांचाली, द्रौपदी; [सं०] कपड़े आदिकी पंजीयक-पुक (रजिस्ट्रार) किसी लेख, इच्छापत्र आदिकी
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भुना हुआ चूरन ।
पंडल * - वि० पीला । पु० पिंड; शरीर ।
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प्रामाणिक प्रतिलिपि राजकीय पंजी में सुरक्षित रखनेका प्रबन्ध करनेवाला अधिकारी; किसी विश्वविद्यालय, उच्च न्यायालय, सहयोगसमितियों आदिका वह अधिकारी जो अपनी संस्था या विभागके सब प्रकार के महत्त्वपूर्ण लेख, कागज पत्रादि सुरक्षित रूपसे रखनेकी व्यवस्था करता है । पंजीयन - पु० ( रजिस्ट्रेशन) मकान, जमीन आदिकी बिक्री या हस्तांतरण आदिका ब्यौरा या किसी पारसल, चिट्टा आदिके सुरक्षित रूपसे भेजे जानेके लिए पानेवालेका नाम, पता आदि पंजी में चढ़ाकर अभिलेख के रूपमें रखा जाना; अभ्यर्थियों आदिकी नामसूची में नामका दर्ज कर लिया जाना ।
पँवाड़ा ( रा ) - पु० विस्तृत कथा; वीरगाथा; कीर्तिकथा । पँवार - पु० परमार, राजपूतोंका एक भेद; * प्रबाल ।
पंजीरी - स्त्री० धनियाँ, चीनी, सोंठ आदि मिलाकर घीमें पँवारना * - स० क्रि० फेंकना; दूर करना, हटाना ।
पंसरहट्टा - पु० वह बाजार जिसमें पंसारियोंकी दुकानें हों । पंसारी - पु० हल्दी, नमक, मसाले आदि तथा ओषधियाँ बेचनेवाला बनिया ।
पँड़वा- पु० भैसका बच्चा ।
पंडा - पु० तीर्थ, मंदिर या घाटपर पुजनेवाला ब्राह्मण, घाटिया; गंगापुत्र; रसोई बनाने का काम करनेवाला ब्राह्मण । स्त्री० [सं०] सत् असत्का विवेक करनेवाली बुद्धि; निश्चया त्मिका बुद्धि, ज्ञान; विद्या ।
पँड़ाइन - स्त्री० पाँडेकी स्त्री; पाँड़े जातिको स्त्री । पंडाल - पु० किसी संस्थाके अधिवेशन आदि के लिए बना हुआ बड़ा मंडप |
पंडित - पु० [सं०] शास्त्र के तात्पर्यको जाननेवाला विद्वान् वह जिसमें सत्-असत्का विवेक करनेकी शक्ति हो;ब्राह्मण ( लोक ); संस्कृतका विद्वान् । वि० विद्वान्; कुशल | - मंडल - पु०, - सभा - स्त्री० विद्वानोंकी मंडली । पंडितम्मन्य - वि० [सं०] जो अपनेको बहुत बड़ा विद्वान्
समझे ।
पंडिताइन । - स्त्री० दे० 'पंडितानी' ।
पंडिताई - स्त्री० पंडित होनेका भाव या गुण, विद्वत्ता । पंडिताऊ - वि० पंडितोंके ढंगका, पंडित जैसा ।
पंडितानी - स्त्री० पंडितकी स्त्री; ब्राह्मणी । पंडुक - पु०कबूतरकी जातिका एक हलके कत्थई रंगका पक्षी । पंडुर* - पु० जलसर्प |
पॅतीजना-स० क्रि० रुई ओटना ।
पँतीजी - स्त्री० रुई धुननेका औजार, धुनकी ।
पंत्यारी* - स्त्री० पंक्ति, कतार ।
पंथ - पु० मार्ग, रास्ता; रीति; धर्म, संप्रदाय । मु०गहना * - रास्ता पकड़ना । - देखना - निहारना, - सेना-वाट जोहना, प्रतीक्षा करना । पर लाना, पर लगाना - सुमार्गपर चलाना। - ( किसीके ) - )-लगनाअनुकरण करना; परेशान करना ।
पंथ की * - पु० यात्री, मुसाफिर ।
पंथान* - पु० रास्ता, मार्ग | पंथिक* - पु० पथिक ।
पंथी - पु० बटोही, यात्री; किसी मतका माननेवाला । पंदर (द्र) ह - वि० दस और पाँच । पु० १५ की संख्या । पंप-पु० [अ०] पानी आदि तरल पदार्थों को ऊपर खींचने या पहुँचाने तथा इधर-उधर ले जानेकी एक कल; ट्यूब आदिमें हवा भरनेकी एक कल; पिचकारी ।
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पंजीयन - पकना
पंपा - स्त्री० [सं०] दक्षिणकी एक नदी या इसके पासका एक पुराना नगर या झील ( रामा० ) । पंपाल* - वि० पापी ।
पँवर* - स्त्री० ड्योढ़ी; सामान । पँवरना* -
* - अ० क्रि० तैरना; थाह लेना, पता लगाना । पँवरि* - स्त्री० ड्योढ़ी; द्वार ।
पॅवरिआ (या) - पु० पौरिया, द्वारपाल पुत्रजन्म के अवसर पर मंगलगीत गानेका पेशा करनेवाला एक विशेष वर्ग, ढाढी । पँवरी - स्त्री० ड्योढ़ी; * खड़ाऊँ ।
पंसासार* - पु० पासेका खेल । पँसुरी, पँसुली - स्त्री० दे० 'पसली' । पंसेरी-स्त्री० पाँच सेरकी तौलका बाट ।
प - वि० [सं०] पीनेवाला; रक्षक (समासांत में ) । पु० हवा | पइग' - पु० दे० 'पैग' । पइठना-अ० क्रि० दे० 'पैठना' । पइसार* - पु० प्रवेश । परि* - स्त्री० ड्योढ़ी । पडनार - पु० पद्मनाल, कमलदंड | पउनी* स्त्री० दे० 'पौनी' ।
पडला - पु० वह खड़ाऊँ जिसमें खूँटीकी जगह रस्सी लगी रहती है ।
पकड़ - स्त्री० पकड़नेका काम या भाव, ग्रहण; पकड़नेका तर्ज; कुश्ती में एक बारकी भिड़ंत; भूल, अशुद्धि आदि खोज निकालनेकी क्रिया या भाव; समझ । - धकड़स्त्री० धर-पकड़ । मु० - जाना - बंदी बनाया जाना, दोषी ठहराया जाना। - में आना- पकड़ा जाना; काबू में किया जाना ।
पकड़ना - स० क्रि० किसी वस्तुको इस ढंगसे हाथमें लेना या दबाना कि वह इधर-उधर हट न सके; ग्रहण करना; धरना; गति या व्यापारसे निवृत्त करना; पता लगाना, गलती करने या बहकनेसे रोकना; किसी काममें आगे बढ़े हुएकी बराबरी में आ जाना; किसी वस्तुको अपने में व्याप्त होने देना; किसी वस्तु में व्याप्त होना; अपनाना; आक्रांत या वशीभूत करना; ग्रसना; गिरफ्तार करना; किसी वस्तुसे चिपकना; समझना ।
पकड़वाना - स०क्रि० पकड़ने में प्रवृत्त करना, सहायता देना । पकड़ाना - स० क्रि० पकड़नेमें प्रवृत्त करना । पकना - अ० क्रि० अनाज, फल आदिका उस अवस्थाको पहुँचना जिसके बाद वे झड़ने लगते हैं, परिणतावस्थाको प्राप्त होना; कच्चा न रहना; आँच खाकर कड़ा और लाल होना; आँच या गरमी खाकर गलना या नरम होना, सीझना, चुरना; सफेद होना; पक्का होना; फोड़ा-फुंसी, घावका मवाद भर आनेको अवस्थाको पहुँचना; गोटियोंका सब खानोंको पार करके अपने खाने में पहुँचना ( चौसर ) ।
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पकरना - पखवाड़ा
पकरना * - स० क्रि० दे० 'पकड़ना' ।
पकवान - पु० घी या तेलमें तली हुई भोज्य वस्तु 1: पकवाना - स० क्रि० पकाने में प्रवृत्त करना । पकाई - स्त्री० पकने, पकानेकी क्रिया, भाव या उजरत । पकाना - स०क्रि० अनाज, फल आदिको पकनेकी अवस्थाको पहुँचाना; आँच पहुँचाकर कड़ा और लाल करना; आँच या गरमी पहुँचाकर गलाना या नरम करना, सिझाना, चुराना; उबालना; सफेद करना या बनाना; फोड़ा, फुंसी या घावको मवाद भर आनेकी अवस्थाको पहुँचाना । पकाव - पु० पकनेका भाव; मवाद ।
पकावन* - पु० पकवान । पकौड़ा - पु० बड़ी पकौड़ी ।
पकौड़ी - स्त्री० घी, तेलमें तली हुई बेसन या पीठीकी बरी । पक्का - वि० पका हुआ, कच्चाका उलटा; जिसमें कोई कमी न रह गयी हो, पूर्णताको प्राप्त, पूरा; जिसमें हीर पड़ गया हो, परिपुष्ट; जो आँच पाकर कड़ा और लाल हो गया हो; मँजा हुआ, सिद्ध; सुडौल और एक जैसा जिसमें कहीं विषमता न हो; निपुण, निष्णात; आँचपर गलाया या नरम किया हुआ, जो सीझ चुका हो, राँधा हुआ; पूर्ण रूपसे पकाया और साफ किया हुआ; ठहराऊ, अचल, सुहृद; ईंट या पत्थरका बना हुआ; जिसमें सुरखी चूना आदिका उपयोग हो; जिसपर कंकड़-पत्थर बिछाया गया हो; घीमें पका हुआ, घृतपक्क (पक्की रसोई); उबाला हुआ, औटा हुआ; स्वास्थ्यवर्द्धक (पक्का पानी); जिसमें खालिस सोने-चाँदी के तार लगे हों, जो नकली न हो ( पक्का काम ) ; निश्चित; जो प्रमाणरूप माना जाय, टकसाली; जिसमें हेर-फेर न किया जा सके; जो हर तरहसे ठीक हो; जिसपर लिखी हुई बात कानूनके विरुद्ध न हो; जो कभी छूट न सके (पक्का रंग); अच्छी तरह जाँचा हुआ; जिसमें अच्छी तरह जाँचा हुआ हिसाब दर्ज किया गया हो (पक्की बही ) । - गाना - पु० शास्त्रीय संगीत ।
पक्खर* - स्त्री० दे० 'पाखर' । वि० पक्का, हढ़; प्रखर, तीक्ष्ण; प्रचंड; तेज |
पक्क - वि० [सं० ) पका हुआ; पकाया हुआ; अनुभवी; ढ़, पुष्ट; सफेद (बाल); पूर्णतः विकसित । पु० पकाया हुआ भोजन । -कृत-पु० नीम; पकानेवाला, पाककर्ता ।केश - वि० जिसके बाल पक गये हों । पक्कता - स्त्री०, पक्कत्व - पु० [सं०] पक्क होने का भाव । पक्कातिसार - पु० [सं०] अतिसारके पाँच भेदोंमेंसे एक । पक्काधान- पु० [सं०] पाचन संस्थानका वह भाग जहाँ आहार पचता है, आमाशय, जठर ।
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वादी या प्रतिवादीके संबंध में अनुकूलताकी स्थिति; चांद्र मासके दो भागों में से एकः वह वस्तु जिसमें साध्यकी स्थिति संदिग्ध हो (न्या० ) ; समूह (केवल समासमें - केश पक्ष ); वर्गविशेष, दलविशेषः अनुयायी; सहायक; अनुयायियों या सहायकों का दल; किसी विषय के संबंध में विभिन्न मत रखनेवालोंका विशिष्ट वर्ग या दल; वादियों या प्रतिवादियोंका दल; पंख, पर; बाणमें लगा हुआ पर; शरीरका अर्द्धभाग; दोकी संख्या; सेना; सखा; चूरहेका मुँह; शरीर; संबंध; हक; पक्षी; हाथका कड़ा। - ग्रहण - पु० दो पक्षों में से किसी एकको अंगीकार करना । - द्वार - पु० चोर दरवाजा। -पात-पु० न्याय-अन्यायका विचार त्यागकर किसीका पक्ष ग्रहण करना, तरफदारी, अधिक चाह; पंख या परका संचालन । - पातिता - स्त्री०, - पातित्व-पु० पक्षपाती होनेका भाव, तरफदारी, पक्षग्रहण - पाती ( तिनू ) - वि० पक्षपात करनेवाला, तरफदार ।
पक्ष ( सू ) - पु० [सं०] पंख; रथादिका पार्श्व; दरवाजेका पल्ला; सेनाका पार्श्वः अर्द्धभाग; मासार्द्ध; नदीका किनारा । पक्षांत-पु० [सं०] अमावस्या; पूर्णिमा । पक्षांतर - पु० [सं०] दूसरा पक्ष | पक्षाघात - पु० [सं०] एक वातरोग जिसमें शरीरका बायाँ या दाना भाग बेकाम हो जाता है, लकवा | पक्षिणी-स्त्री० [सं०] मादा पक्षी; पूर्णिमा । पक्षी ( क्षिन् ) - पु० [सं०] चिड़िया; बाण; शिव । वि० पंखवाला; पक्ष ग्रहण करनेवाला, तरफदार । -पतिपु० संपति, जटायुका भाई । - राज, सिंह, - स्वामी ( मिनू ) - ५० गरुड़ | - बालक, - शावक - पु० चिड़िया का बच्चा । - शाला - स्त्री० चिड़ियाखाना; घोंसला; पिंजड़ा |
पक्षीय - वि० [सं०] पक्ष-संबंधी; पक्षका (समासांत में ) । पक्ष्म ( न् ) - पु० [सं०] बरौनी; (फूलका) केसर; पर, पंख । - कोप, प्रकोप - पु० आँख गड़नेका एक रोग जो बरौनी के बालोंके आँख में घुसे रहने से होता है । पक्ष्मल- वि० [सं०] लंबी, सुंदर बरौनीवाला; बालदार । पखंड - पु० दे० 'पाखंड' |
पखंडी - वि० दे० पाखंडी' । * पु० कठपुतली नचानेवाला । पख - स्त्री० दे० 'पख' । पु० पाख । पख-स्त्री० [फा०] प्रतिबंध; शर्त; झगड़ा; ऐब; नुक्स; फसाद; रोक; अड़ंगा; बकवास । मु०-लगाना - शर्त या कैद लगाना; प्रतिबंध या रोक लगाना; रोड़ा अटकाना; अड़ंगा लगाना। -निकालना - दोष दिखाना, नुक्स निकालना ।
पक्कान्न - पु० [सं०] पकाया हुआ अन्न; पकवान ।
पक्काशय - पु० [सं०] दे० 'पक्काधान' |
|
पक्ष - पु० [सं०] किसी वस्तुका दायाँ या बायाँ भाग; सेना, मकान आदिका आगे की ओर बढ़ा हुआ दायाँ या बायाँ | भाग; पार्श्व, बगल; हाथी या घोड़ेका दाहिना या बायाँ पार्श्व; ओर, तरफ; किसी विषयका कोई अंग; किसी विषयके दो पहलुओंमें से कोई एक जिसका खंडन या मंडन किया जाय, विचारणीय विषयको कोई कोटि; किसी वस्तुके प्रति किसीकी अनुकूलता या समर्थनकी स्थिति; | पखवाड़ा। - पु० दे० 'पखवारा' |
पखड़ी - स्त्री० दे० 'खड़ी' । पखपान-पु० पाँवका एक गहना ।
पखरना * - स० क्रि० पखारना, धोना ।
पखरवाना - स० क्रि० पखारने में प्रवृत्त करना । पखराना * - स० क्रि० पखरवाना, धुलवाना | पखरैत - पु० वह घोड़ा, हाथी या बैल जिसपर पाखर डाली गयी हो ।
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४३७
पखवारा-पचास पखवारा-पु० महीनेका आधा भाग, पंद्रह दिनोंका समय। पगारना -स० क्रि० फैलाना । पखा*-पु० दाढ़ी।
पगिआना, पगियाना*-सक्रि० दे० 'पगाना'। पखाउजा-पु० दे० 'पखावज' ।
पगिया*-स्त्री० दे० 'पगड़ी' । पखान-पु० दे० 'पाषाण'।
पगुराना -अ० क्रि० जुगाली करना, पागुर करना । पखाना-* पु० कथा, उपाख्यान; + दे० 'पाखाना'। पघा-पु० ढोर बाँधनेकी रस्सी, गिराएँ । पखारना-स० क्रि० पानीसे धोना; धोकर साफ करना । पच-वि० पाँचका एक रूपांतर जिसका प्रयोग प्रायः समासपखाल-पु० मशक; धौंकनी; मुँह धोनेका पात्र ।
में होता है। -कल्यान-पु० दे० 'पंचकल्याण' ।-खना पखाली-पु० भिश्ती।
-वि० पाँच खंडोंवाला। -गुना-वि० जिसमें कोई राशि पखावज-पु० मृदंग।
या माप पाँच बार शामिल हो, पाँच गुना । -ग्रह-पु० पखावजी-पु० पखावज वजानेवाला ।
मंगल, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि-ये पाँच ग्रह।-तूरापखिया-पु० झगड़ा खड़ा करनेवाला । वि० व्यर्थका । पु० एक बाजा। -तोरिया-पु. एक तरहका कपड़ा। पखी*-पु० दे० 'पक्षी' ।
-मेल-वि० जिसमें कई या पाँच प्रकारकी वस्तुएँ मिली पखीरी-पु० दे० 'पक्षी' ।
हों। -रंग-पु० चौक पूरनेके कामकी अबीर-नुक्का आदि पखुड़ी, पखुरी -स्त्री० दे० 'पँखड़ी'।
पाँच वस्तुओंका समूह । वि० दे० 'पचरंगा'। -रंगापखुरा, पखुवा-पु० मनुष्यके शरीरमें कंधे और बाँहके वि० पाँच रंगोंवाला; पाँच रंगोंमें रँगा हुआ या पाँच जोड़के पासका भाग, भुजमूलके पासका भाग।
रंगोंके सूतोंसे बुना हुआ (कपड़ा); जो कई रंगोंका हो । पखेरू-पु० पक्षी, चिड़िया।
-लड़ी-स्त्री० पाच लड़ियोंवाला, माला जैसा एक पखोआ-पु० पंख।
गहना । -लोना-वि० जिसमें पाँच प्रकारके नमक मिले पखौटा-पु० पर, पंख; मछलीका पर ।
हों । पु० ऐसा मिश्रण; पंचलवण । पखौरा, पखौड़ा-पु० दे० 'पखुरा' ।
पचकना-अ० क्रि० दे० 'पिचकना'। पग-पु० पैर, डग ।-टुंडी-स्त्री० मनुष्यों के चलनेसे जंगल, पचकाना-स० क्रि० दे० 'पिचकाना'। खेत या मैदान में बना हुआ पतला रास्ता ।-तरी-स्त्री० पचखा-पु० दे० 'पंचक' । जूता ।-दासी-स्त्री० जूता खड़ाऊँ।
पचड़ा-पु० बखेड़ा, सँझट; एक तरहका गीत जिसे प्रायः पगड़ी-स्त्री० सिरपर लपेटी जानेवाली कपड़ेकी लंबी पट्टी, ओझा देवी आदिकी स्तुतिमें गाता है; लावनीकी तरहपाग, उष्णीप । मु. (किसीसे)-अटकना-किसीसे | का गीत जिसमें पाँच-पाँच चरणोंके खंड होते हैं। झगड़ा लगना।-उछलना-बेइज्जती होना; दुर्दशा होना। पचन-पु० [सं०] पकने या पकानेका कार्य; अग्नि । -उछालना-बेइज्जती करना; दुर्गत करना।-उतरना- पचना-स्त्री० [सं०] पकनेकी क्रिया। अ० कि० पचाया प्रतिष्ठा नष्ट होना, अपमान होना। -उतारना-अप- जाना हजम होना; खपना, अन्य वस्तुमें मिल जाना। मानित करना, बेइज्जत करना; लूटना। (किसीको), अधिक परिश्रमसे क्षीण होना। मु०पच मरना-जी-बंधना-मालिकाना मिलना; उत्तराधिकार प्राप्त होना; तोड़ मेहनत करना। उच्च अधिकार मिलना । (किसीको)-बाँधना-मालिक | पचपचा-वि० अधूरा पका हुआ (भोजन); जिसका पानी या सरदार बनाना; उत्तराधिकारी बनाना; उच्च अधिकार देना। -बदलना-मित्रता करना। -रखना-मान-पचपचाना-अ० क्रि० किसी वस्तुका अधिक गीला होना । मर्यादाकी रक्षा करना। (किसीके आगे या पैरोंपर) पचपन-वि० पचासऔर पाँच। पु० पचपनकी संख्या, ५५।
-रखना-सहायताकी गुहार करना; दयाकी भीख माँगना। पचवना*-स० क्रि० दे० 'पचाना'। पगना-अ.क्रि. किसी वस्तुका शीरे आदिमें इस प्रकार पचहत्तर-वि० सत्तर और पाँच । पु० पचहत्तरकी डूबा रहना कि वह उसमें अच्छी तरह भिन जाय; किसी संख्या, ७५ । तरल पदार्थके साथ इस प्रकार मिलना कि वह जज्ब हो | पचहरा-वि० पाँच स्तरों-परतोंवाला; पाँच गुना। जाय; रस आदिमें सन जाना, शराबोर होना; ओतप्रोत | पचाना-स० क्रि० जठराग्निकी क्रिया द्वारा खाये हुए होना; निमग्न होना; लिप्त होना।
पदार्थको रस आदिका रूप ग्रहण करनेकी स्थितिको पगनियाँ*-स्त्री० जूती।
पहुँचाना, हजम करना; पक्क बनाना; नष्ट कर देना; पगरा-पु० डग; सफर शुरू करनेका समय, प्रभात । बना न रहने देना; पराये मालको अनुचित रीतिसे आत्मपगरी-स्त्री० दे० 'पगड़ी' ।
सात् कर लेना, हड़प लेना; किसी बात या मामलेको इस पगला-वि० पागल; नासमझ ।
प्रकार दबा देना कि उसका भेद खुल न सके; बहुत अधिक पगहा-पु० दे० 'पधा'।
काम लेकर या कष्ट पहुँचाकर शरीर आदिको क्षीण बनाना; पगा*-पु० पगड़ी; डुपट्टा पघा; दे० 'पगरा' ।
किसी वस्तुको पूर्णतया लीन कर लेना; किसी वस्तुको पगाना-सक्रि० पागनेका काम दूसरेसे कराना; शराबोर अपने में एकदम छिपा लेना। कराना; निमग्न कराना; अनुरक्त करना ।
पचारना -सक्रि० ललकारना । पगार-पु० गारा, गिलावा हलकर पार करने योग्य नदी पचाव-पु० पचनेका कार्य या भाव । आदिः । वेतन; * दे० 'प्राकार'।
| पचास-वि० दसका पाँच गुना । पु० पचासकी संख्या, ५०॥
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पचासा-पट
४३८ पचासा-पु० पचास सजातीय वस्तुओंका समाहार; किसी- पछवाँ-वि० पश्चिमीय, पश्चिमका । स्त्री० पश्चिमकी ओरसे के जीवनके प्रथम पचास वर्षोंका समाहार; संकटके समय चलनेवाली हवा, पच्छिमी हवा । सब सिपाहियोंको थानेमें बुलानेके लिए बजनेवाला घंटा। पछाँह-पु० पश्चिमीय प्रदेश, पश्चिम दिशा। पचासी-वि० अस्सीसे पाँच अधिक । पु०८५ की संख्या। पछाँहिया, पछाँही-वि० पछाँहका । पचित-वि० पचा हुआ; * जड़ा हुआ, खचित । पछाड़-स्त्री० शोकसे मूर्छित होकर पीठ के बल गिर पड़ना; पचीस-वि०बीससे पाँच अधिक । पु०पचीसकी संख्या, २५ । विह्वल होकर खड़े-खड़े गिर पड़ना। पु० कुश्तीका एक दाँव। पचीसी-स्त्री० पचीस सजातीय वस्तुओंका समाहार; पछाड़ना--स० क्रि० कुश्ती या लड़ाई में पटकना या परास्त किसीके जीवनके प्रारंभिक पचीस वर्ष, पचीस वर्षांका करना; धोते समय कपड़ेको पटकना ।
समाहार; एक तरहकी चूतक्रीड़ा; इसकी बिसात । | पछाड़ी-स्त्री० दे० 'पिछाड़ी'। पचोतर-वि० जिसमें ऊपरसे पाँच और मिलाया गया हो, पछानना-स० क्रि० दे० 'पहचानना' । पाँच अधिक । -सौ-वि० एक सौ पाँच ।
पछारना*-स० क्रि० दे० 'पछाड़ना' । पचौनी-स्त्री० आमाशय, मेदा ।
| पछावर(रि)*-स्त्री० छाल आदिका बना हुआ एक पेय । पचौर*-पु० दे० 'पचौली' (पु०)।
पछाहँ-पु० दे० 'पछाँह' । पचौली -पु० गाँवका मुखिया । स्त्री० एक पौधा । | पछाहियाँ, पछाही-वि० दे० 'पछाँही' । पचौवर-वि० पचहरा।।
पछिआ(या)ना-सक्रि० अनुगमन करना पीछे लगना। पञ्चड़, पञ्चर-पु० वाँस आदिकी वह फट्टी या गुस्ली जिसे | पछिउँ-पु० दे० 'पश्चिम'। लकड़ीकी बनी चीजों में संधिकी दरार भरनेके लिए ठोंकते | पछिताना*-अ० क्रि० दे० 'पछताना'। या बैठाते हैं । मु०-अड़ाना-बाधा डालना, रोड़ा अट- पछितानि-स्त्री०, पछिताव-पु० दे० 'पछतावा' । काना। -ठौंकना-ऐसा कार्य करना जिससे किसीको पछियाउर, पछियावर-स्त्री० दे० 'पछावर'। भारी कष्ट पहुँचे या उसे बहुत हैरान होना पड़े। पछिलगा*-पु० दे० 'पिछलगा'। -मारना-होते हुए काममें बाधा डालना; बने हुए | पछिलनाt-अ० कि० दे० 'पिछड़ना' दे० 'पिछलना'। खेलको बिगाड़ देना।
पछिला -वि० दे० 'पिछला' । पच्ची-स्त्री० एक वस्तुको दूसरी वस्तुमें इस प्रकार खोदकर | पछि(छ)वाँ-वि० स्त्री० पश्चिमी । स्त्री० पश्चिमी हवा । जोड़ना कि दोनोंकी सतहें एक मेलमें आ जायँ और वे पछीत-स्त्री० मकानका पिछवाड़ा मकान के पीछेकी दीवार । परस्पर अंग और अंगी जान पड़ें; एक रंगके पत्थर पर | पछेलना -स० क्रि० पीछे छोड़ना या हटाना। दूसरे रंगके पत्थरका जड़ाव । -कार-पु० पच्ची करने-पछेला-पु० हाथमें पीछे पहननेका एक गहन।। वाला । -कारी-स्त्री० पच्ची करनेका काम या भाव। पछेली -स्त्री० छोटा पछेला । पच्छ-पु० दे० 'पक्ष' । -ताई*-स्त्री० दे० 'पक्षपात'। | पछेवड़ा-पु० पिछीरा, चद्दर । पच्छाघात-पु० दे० 'पक्षाधात'।
पछोड़ना -स० क्रि० सूपसे फटकना। पच्छिा -पु० दे० 'पक्षी' । -राज*-पु. गरुड़।
पछोरना*-स० क्रि० दे० 'पछोड़ना' । 'पच्छिउँ, पच्छिव*-पु० दे० 'पश्चिम' ।
पछयावर-स्त्री० दे० 'पछावर'। पच्छिनी*-स्त्री० चिड़िया।
पजरना*-अ० क्रि० जलना; सुलगना । पच्छिम-पु० दे० 'पश्चिम' ।
पजारना-स० क्रि० जलाना । पच्छी-पु० चिड़िया पक्ष ग्रहण करनेवाला ।
पजावा-पु० [फा०] इंटका भट्टा । पछड़ना-अ० क्रि० पछाड़ा जाना दे० 'पिछड़ना'। पजोखा-पु० मातमपुरसी। पछताना-अ० क्रि० कोई अनुचित कार्य करके बादमें | पज्झटिका-स्त्री० [सं०] एक मात्रिक छंद छोटी टी। उसके लिए दुःखी होना, पश्चात्ताप करना।
पटंबर*-पु० दे० 'पाटंबर'। पछतानि*-स्त्री० पछतावा ।
पट-पु० [सं०] वस्त्र, कपड़ा; चित्र खींचनेका कागज या पछतावां-पु० दे० 'पछतावा'।
कपड़ेका टुकड़ा; पर्दा; रंगमंचका पर्दा छाजन । -कारपछतावना*-अ० कि० पछताना ।
पु० जुलाहा; चित्रकार । -धारी (रिन्)-वि० जो वस्त्र पछतावा-पु० वह दुःख जो किसीके मनमें कोई अनुचित पहने हो। * पु० तोशाखानेका प्रधान अधिकारी। कार्य कर चुकनेपर होता है, किसी कार्यके अनौचित्यके -मंडप,-वेश्म(न)-पु० खेमा, तंबू । -वास-पु० बोधसे होनेवाली आत्मग्लानि, पश्चात्ताप ।
रावटी, खेमा धोती या साड़ीके नीचे पहननेका स्त्रियोंका पछना-अ० क्रि० पाछा जाना । पु० पाछनेका औजार । एक तरहका धाँधरा, साया। पछमन*-अ० पीछे।
पट-पु० जगन्नाथ, बदरीनाथ आदिका चित्र जिसे यात्री पछरना*-अ० कि० पछड़ना; लौटना ।
अपने साथ लाते हैं। किवाड़, पालकीका दरवाजा, सिंहापछरा*-पु० दे० 'पछाड़' ।
सन; कुश्तीका एक पेंच; तख्ता; किसी वस्तुकी चिपटी पछलगा, पछिलगा*-पु० दे० 'पिछलगा'।
और चौरस सतह; किसी छोटी वस्तुके गिरने, फटने पछलत्त-पु० पिछली टाँगों द्वारा प्रहार ।
आदिसे होनेवाला शब्द; दे० 'पट्ट' (हिंदी में समास आनेपछलागा*-पु० दे० 'पिछलगा'।
। वाला विकृत रूप)। अ० अति शीघ्र, तत्काल । वि. जो
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पटइन-पटाचा पेटके बल स्थित हो, औधा, चितका उलटा ।-रानी-स्त्री० तख्ता, छोटा पटरा; वह तख्ती जिसपर बच्चे लिखना वह रानी जिसके साथ राजा सिंहासनारूढ हुआ हो या सीखते हैं, पटिया; थपुआ; मेल; सड़क किनारेकी पैदल हो, राजाकी सबसे बड़ी रानी, पट्टमहिषी। मु०-उघड़ना चलनेकी थोड़ी ऊँची और पतली जगह नहरके किनारेका -दे० 'पट खुलना'। -खुलना-मंदिरका द्वार खुलना । रास्ता रविशा साड़ी-लहँगे आदिकी कोरपर टाँकनेका सोने -पड़ना-औधे पड़ना; मंद होना ।-बंद होना-मंदिर- या चाँदीके तारोंका फीता; एक प्रकारकी नक्काशी की हुई का द्वार बंद होना।
चौड़ी चूडी; जंतर, चौकी; लोहेके लंबे डंडे जिनसे बनी पटइना-स्त्री० पटवा जातिकी स्त्री।
लाइनपर रेलगाड़ी चलती है । मु०-बैठना-मन मिलना; पटकन*-स्त्री० पटकनेकी क्रिया या भाव; तमाचा; छड़ी। मेल खाना। पटकना-स० क्रि०किसी वस्तु या व्यक्तिको उठाकर झोंकेके पटल-पु० [सं०] छत, छाजन आवरणरूप वस्तु; तह, परत: साथ पृथ्वी आदिपर गिराना; उठायी या हाथमें ली हुई | आँखका एक रोग समूह, राशि; शरीरके किसी अंगपरका वस्तुको पृथ्वी आदिपर जोरसे गिराना; कुश्तीमें पछाड़ना चिह्न (जैसे-तिल); दलबल, लवाजमा; टोकरी; (टेबिल) या दे मारना । । अ० क्रि० 'पट' की आवाज करते हुए | मेज, टेबुल; तख्ता; पृष्ठभाग; अध्याय । -प्रांत-पु० दरकना या फटना; पचकना; सीलसे या भींगनेसे फूले | ओलती। हुए गेहूँ, चने आदिका सूखकर पचकना । (मु०किसीके पटली-स्त्री० [सं०] छाजन, छप्पर; * चौकी पंक्ति । ऊपर, किसीपर या किसीके सिर पटकना-किसीकी | पटवा-पु० गहना गूंथनेका पेशा करनेवाला । इच्छाके विरुद्ध कोई काम उसे सौपना।)
पटवाना-स० क्रि० पाटनेका काम कराना; भरवाकर बरापटकनिया -स्त्री० पटकने या पटके जानेकी क्रिया या बर कराना; छत तैयार कराना + सिंचवाना अदा करभाव; पछाड़।
वाना। पटकनी -स्त्री० दे० 'पटकनिया'।
पटवारगिरी-स्त्री० पटवारीका काम या पद । पटका-पु. कमरमें लपेटनेका कपड़ा; कमरबंद । मु०-- पटवारी-पु. गाँवकी जमीन और उसकी मालगुजारीका पकड़ना-किसीको किसी बातका उत्तरदायी ठहराते हुए लेखा रखनेवाला एक सरकारी कर्मचारी, लेखपाल । *
रोक रखना । -बाँधना-उद्यत होना, सन्नद्ध होना। | स्त्री० वस्त्र पहनानेवाली दासी। पटकान-स्त्री० पटकने या पटके जानेकी क्रिया या भाव। पटसन-पु० एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी छालके रेशे रस्सी, पटतर*-पु० बराबरो, तुलना, उपमा। वि० चौरस । बोरा आदि बनानेके काम आते हैं। इसकी छालके रेशे। पटतरना*-स० क्रि० तुलना करना, समान ठहराना। पटह-पु० [सं०] नगाड़ा, डंका; ढोल डुग्गी । -घोषक पटतारना-स० कि० ऊँची-नीची जमीनको समतल बनाना, -पु० डुग्गी पीटनेवाला। चौरस करना; * तलवार आदिको प्रहार करनेकी मुद्रामें पटहार-पु० पटवा । हाथमें लेना, शस्त्र सँभालना।
पटहारिन-पु० पटहारकी या पटहार जातिकी स्त्री। पटन*-पु० दे० 'पट्टन' (शहर)।
पटा-पु० तलवारके आकारका एक लोहेका हथियार जिसे पटना-अ० क्रि० पाटा जाना, भर जाना; मेल खाना खेल वगैरह में भाँजते हैं; * पीढ़ा; अधिकारपत्र, पट्टा, बनना; ते होना; (ऋण) पूरा-पूरा अदा किया जाना सनद; खरीद-बिक्री, सौदा चौड़ी धारी लगामकी मुहरी । सींचा जाना । पु० बिहारका एक नगर + धन ।
(पटे)बाज़-पु० पटा भाँजनेवाला, पटत । मु०-बांधन। पटनिया, पटनिहा-वि० पटनाका पटना-संबंधी।
-उच्च पदपर अधिष्ठित करना। पटनी-स्त्री० कोठेवाले घरमें नीचेका कमरा; वह जमीन पटाई-स्त्री० पाटनेका कार्य या भाव; पाटनेकी मजदूरी जिसका किसीके साथ स्थायी बंदोबस्त कर दिया गया हो। * पटानेका कार्य या भाव; पटानेकी उजरत । पटपटाना-अ० क्रि० भूख या गरमीसे तड़पना; 'पट-पटपटाका-पु० पट की आवाज; पटाकेकी आवाज दे० पटाखा
शब्द निकलना । स० क्रि० 'पट-पट' शब्द उत्पन्न करते तमाचा; थप्पड़ । हुए किसी चीजको बजाना या पीटना। . . पटाक्षेप-पु० [सं०] पर्दा गिरना या गिराना । पटपर-वि० चौरस, समतल । पु० समतल मैदान, उजाड़ पटाखा-पु० पटाका, एक तरहकी आतिशबाजी।
जगह; बरसातमें नदीके पानीसे डूबी रहनेवाली जमीन । पटाना-स० क्रि० पाटनेका काम कराना कोठेकी छत तैयार पटबंधक-पु० एक तरहका रेहन जिसमें रेहन रखी हुई कराना; ऋण चुकाना; मोल-भाव करके सौदेका दाम ते वस्तुके लाभसे सूदके सहित मूल धन अदा हो जानेपर। करना; + सींचना। अ० क्रि० चुप मारना, शांत हो रेहनदार उस वस्तुको लौटा देता है।
जाना। पटबीजना*-पु० जुगनू ।।
पटापट-स्त्री० 'पट-पट'की आवाज । अ० 'पटा-पट' आवाजपटरा-पु० लंबा, चौकोर और कम मोटा चीरा हुआ लकड़ी के साथ; तेजीसे। का समतल टुकड़ा; हेंगा; धोबीका पाट । मु०-कर देना पटापटी-स्त्री. वह चीज जिसमें रंग-बिरंगे फूल-पत्ते कढ़े -मारकर या काटकर गिरा देना; बरबाद कर देना। __ हों; रंग-बिरंगी वस्तु । -फेरना-पटेलेसे जमीन बराबर करना; ध्वस्त करना। पटार-स्त्री०पेटी, पिटारी; पिंजड़ा रेशमकी डोरी गोजर । -होना-मरकर या कटकर गिर जाना।
पटाव-पु० पाटनेका कार्य या भाव; पाटी हुई जगह; पाटपटरी-स्त्री० काठका लंबा, चौकोर और बहुत कम मोटा कर बनायी हुई छत; भरेठा ।
२८-क
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पटिया - पठाना
पटिया - स्त्री० चौकोर और समतल कटा हुआ पत्थरका लंबोतरा टुकड़ा; काठकी तख्ती; खाटकी पाटी; छोटा हेंगा; लंबा और कम चौड़ा खेत; * सिरके सँवारे हुए बाल । पटी - स्त्री० [सं०] यवनिकाः * कपड़ेकी पट्टी; कमरबंद । पटीर- पु० [सं०] खेलनेका गेंद; चंदन; कत्था; * बड़का पेड़ । पटीलना - स० क्रि० समझा-बुझाकर किसीको अपनी राय में करना; पीटना कमाना; काम पूरा करना । पटु - वि० [सं०] कुशल, प्रवीण, चतुर, चालाक; नीरोग । पटुता - स्त्री०, पटुत्व - पु० [सं०] दक्षता, कुशलता । पटुली - स्त्री० झूलेकी तख्ती; चौकी । पटुवा - पु० पटसन; करेमू । पटूका* - पु० दे० 'पटका' । पटेरा - पु० दे० 'पटेला'; दे० 'पटैला' ।
पटेल - पु० गाँवका मुखिया; गाँवका नंबरदार । पटेलना - स० क्रि० दे० 'पटीलना' |
४४०
पेटी; लिखना सीखने की लकड़ीकी लंबोतरी और चौरस पटरी, पटिया, तख्ती; सबक, सीख, शिक्षा; हानिकर शिक्षा (ला० ) ; बहकानेवाली सीख; खाटकी पाटी; कपड़ा, कागज या धातुका पतला और लंबा टुकड़ा; धाव आदिपर बाँधनेका कपड़ेका लंबा और पतला टुकड़ा; पत्थरका लंबा, पतला और कम मोटा टुकड़ा; छाजनके ठाट में लगायी जानेवाली लकड़ीकी लंबी बल्ली; कपड़े की किनारी; उन कई धज्जियों में से एक जिन्हें एक में मिलाने से टाट या कोई ( ऊनी कपड़ा (पट्टू आदि) बनता है; नावके बीचो-बीचका तख्ता; चने, तिल आदिको चाशनी में मिलाकर बनायी जानेवाली एक प्रकारकी पपड़ी; घुटने के नीचेसे लेकर टखनेतक पाँव में लपेटी जानेवाली सूती या ऊनी कपड़े की धज्जी; माँगके दोनों ओर कंघी से जमायी जानेवाली बालोंकी तह; पाँत; छाजनकी कड़ियोंकी पाँत; संपत्ति या मिलकियतका एक भाग, पत्ती; ऐसी जमींदारीका एक भाग जो कई हिस्सेदारोंकी संयुक्त संपत्ति हो; किसी एक पट्टीदार के हिस्सेकी जमींदारी; वह कर जिसे जमींदार किसी कार्य के लिए द्रव्य एकत्र करने के निमित्त असामियोंपर लगाता है। -दार पु० वह जो किसी संयुक्त संपत्ति के किसी भागका स्वामी हो; किसी संपत्ति में अपना हिस्सा रखनेवाला; किसी बात में किसीके बराबर अधिकार रखनेवाला व्यक्ति, बराबरका अधिकारी या हकदार । - दारी - स्त्री० पट्टियाँ होनेका भाव; किसी वस्तुका कई पट्टीदारोंकी संपत्ति होना; पट्टीदार होनेका भाव; समान अधिकार रखनेका भाव; संपत्ति या अधिकार में बराबरका अधिकारी होने का दावा; किसी विषय में दूसरे के बराबर अधिकार रखनेका दावा; कई पट्टीदारोंकी संयुक्त संपत्ति । मु० - जमाना - माँगके दोनों ओरके बालोंको इस प्रकार सँवारना कि उनकी तह बैठ जाय । - दारी करना - समान अधिकार रखनेका दावा करना; पट्टीदारीका प्रश्न खड़ा करके किसीके काम में बाधा पहुँचाना; बराबरी करना । - पढ़ाना - बहकानेवाली शिक्षा देना । - में आना- किसीकी धूर्ततापूर्ण बातों में फँस जाना । पट्ट - पु० एक प्रकारका ऊनी कपड़ा । पद्वैत- पु० पटैत; मूर्ख मनुष्य । पटुमान * - वि० पढ़ने योग्य ।
पटेला - पु० वह नाव जिसका बीचका भाग पटा हो; एक प्रकारकी घास; पटेरा; हेंगा; जमीन चौरस करनेका गोला, भारी पत्थर; कुश्तीका एक पेंच ।
पटेली - स्त्री० छोटा पटेला ।
पटैत- पु० पटेबाज |
पटैला - पु० पटेला; अर्गला, ब्योंड़ा ।
पटोर - पु० एक प्रकारका कपड़ा; रेशमी कपड़ा । पटोरी - स्त्री० रेशमी चादर या साड़ी । पटोल - पु० [सं०] एक प्रकारका कपड़ा; परवल । पट्ट - पु० 'पट' की आवाज; [सं०] पटिया, तख्ती, प्लेट; पीठ, पीढ़ा; शासन, दानपत्र आदि खुदवाने की ताँबे आदिकी पट्टी; मालिककी ओरसे असामी आदिको दिया जानेवाला भूमि आदिके उपयोगका अधिकारपत्र; घावपर Nath पट्टी, कपड़े आदिका लंबा पतला टुकड़ा; पगड़ी; चक्की; चौराहा; नगर; किसी चौरस चीजकी सतह; रेशम; दुपट्टा राजसिंहासन; सिल; एक पहनावा; बारीक या रंगीन कपड़ा; ढाल; पटसन । वि० मुख्य; औंधा । -कीटपालन - पु० (सेरिकल्चर) दे० 'कोशकीटपालन' । - देवी, महिषी, - राशी - स्त्री० पटरानी । - विलेख-पु० (लीजडीड) वह विलेख जिसमें किसी भूमि या संपत्ति के उप भोग-संबंधी अधिकार किसीको दिये जानेकी शर्तें, पट्टेकी शर्ते, विवरण आदि रहता है। -शाक-पु० पटुवा । पट्टक - पु० [सं०] तख्ती; राजाज्ञा खुदवानेका ताम्रादिका पट्ट घावपर बाँधने की पट्टी; दस्तावेज |
पट्टन - पु० [सं०] शहर ।
पट्टांशुक - पु० [सं०] रेशमी वस्त्र ।
पट्टा - पु० किसी स्थावर संपत्तिके उपयोगका अधिकारपत्र, सनद; पालतू कुत्ते, बिल्ली आदिके गलेमें लगायी जानेवाली पट्टी; पीढ़ा; चपरास; पुरुषोंके सिरके पीछेकी ओरके बराबर कटे बाल; चमड़ेका कमरबंद; वंक्षण । ( पट्टे ) - पछाड़ - पु० कुश्तीका एक पेंच । पट्टिका - स्त्री० [सं०] पटिया, तख्ती, प्लेट, कपड़ेका टुकड़ा या चीरा; रेशमी कपड़ेका टुकड़ा या चीरा; घावपर बाँधने की पट्टी । - लोध्र- पठानी लोध । पट्टी - स्त्री० पठानी लोध; ललाटका एक गहना; घोड़ेकी पठाना* - स० क्रि० भेजना ।
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पट्टा - पु० युवा, तरुण, चढ़ती जवानीवाला मनुष्य, पशु आदि; कुश्तीबाज जवान; लंबा और मोटे दलका पत्ता; मांसपेशियोंको एक दूसरीसे और हड्डियोंसे जुड़ी रखनेवाली मोटी नस; एक तरहका मोटा गोटा जो कुछ सुनहला और कुछ रुपहला होता है। -पछाड़ - वि० ( वह स्त्री) जो पट्टको भी पछाड़ दे, बहुत बलवती (स्त्री) । पट्टी-स्त्री० दे० 'पठिया' ।
पठन- पु० [सं०] पढ़नेकी क्रिया, पढ़ना; ( रीडिंग ) दे० 'वाचन'; वर्णन करना । - शील- वि० जो बहुत पढ़े । पठनीय - वि० [सं०] पढ़ने योग्य । पठनेटा-पु० पठानका बेटा ।
पठवाना * - स० क्रि० भेजवाना ।
पठान - पु० मुसलमानोंकी एक प्रसिद्ध उपजाति ।
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४४१
पठानिन-पण्याजीवक पठानिन-स्त्री० पठानकी या पठान जातिकी स्त्री। पड़िया-स्त्री० भैसका मादा बच्चा । पठानी-स्त्री० पठानकी या पठान जातिको स्त्री; पठानका | पडोnt-y० परवल खेखसा । स्वभाव; पठानपन । वि० पठानका; पठान-संबंधी। पड़ोस-पु० किसीके घरके पासके घर, प्रतिवेश; किसीके पठार-पु० दूरतक फैली हुई चौरस और ऊँची जमीन । । घरके आसपासकी जगह । पठावनि*-स्त्री० दे० 'पठावनी'।
पड़ोसी, पडौसी-पु० पड़ोसमें रहनेवाला । पठावनी-स्त्री० किसी कार्यके लिए किसीको कहीं भेजनापदंत-स्त्री०निरंतर पढ़ना; जादू । किसीको कहीं भेजने या पहुँचानेकी उजरत ।
पड़ता-वि०, पु० पढ़नेवाला। पठित-वि० [सं०] पढ़ा हुआ।
पढ़त-स्त्री० (रीडिंग) दे० 'वाचन' । पठिया-स्त्री० जवान और हृष्ट-पुष्ट औरत ।
पढ़ना-स० क्रि० लिखे हुए अक्षरों या शब्दोंका क्रमसे पठीना -सक्रि० पठाना, भेजना।
उच्चारण करना; पुस्तक या लेख आदिको इस प्रकार पठौनी-स्त्री० दे० 'पठावनी' ।
देखना कि उसमें लिखे हुए शब्द समूहका अर्थ या भाव पव्यमान*-वि० पढ़ने योग्य ।
समझमें आ जाय; मन ही मन जपना; बोल-बोलकर पड़छती, पढ़छत्री-स्त्री० पानीकी बौछारसे बचानेके लिए याद करना, धोखना; जादू करना; तोता-मैना आदिका
कच्ची दीवारपर रखी या लगायी जानेवाली छाजन या टट्टी। सिखाये हुए शब्दोंका उच्चारण करना; नयासबक सीखना; पड़ता-पु० किसी मालकी खरीद या तैयारीका खर्चा | सीखना । मु०-लिखना-शिक्षा प्राप्त करना। विक्रीके दामोंसे लागत छाँटकर होनेवाली बचत; औसत पढ़वाना-स० कि० किसीको पढ़ने में प्रवृत्त करना। दर; लगानकी दर । मु०-निकालना-फैलाना,- पढ़वयाt-पु० पढ़ने या पढ़ानेवाला । बैठाना-लागतका विचार कर भाव निश्चित करना। पढ़ाई-स्त्री० पढ़नेका काम, पठन पढ़नेका भाव; विद्योपड़ताल-स्त्री० पड़तालनेका काम या भाव; निरीक्षण, जाँच पार्जन, शिक्षा; पढ़ानेका काम, पाठन पढ़ानेका भाव (यह शब्द प्रायः 'जाँच' शब्दके साय ही प्रयुक्त होता है); पढ़ानेका तर्ज; अध्ययनका ढंग; पढ़ानेके बदले दिया पटवारी या कानूनगो द्वारा की जानेवाली खेतोंकी एक जानेवाला धन, पढ़ानेकी उजरत ।। विशेष प्रकारकी जाँच जिसमें बोयी हुई फसल, उसे बोने- पढ़ाना-स० वि० शिक्षा देना, शिक्षित बनाना, कोई वालेका नाम, सिंचाई आदिका ब्योरा लिखा जाता है। विषय या बात सिखाना तोता-मैना आदिको किसी शब्द पड़तालना-सक्रि० जाँच करना; छानबीन करना। या शब्द-समूहका उच्चारण करना सिखाना। पड़ती-स्त्री० दे० 'परती।
पढ्या-पु० पढ़ने या पढ़ानेवाला। पड़ना-अनि. गिरना; कहीं यकायक जा पहुँचना; असर पण-पु० [सं०] ११ या २० माशेके बराबर एक पुराना होना; खाली न जाना; आना; डाला था पहुँचाया जाना; | सिका, ताँबेका एक पुराना सिक्का जो अस्सी कौड़ियोंके बिछाया, रखा जाना; घटनाका रूप प्राप्त करना; घटित बराबर होता था; जुआ; बाजी; बाजी लगायी हुई चीज होना; ब्याहा जाना; स्थित होना; दखल देना; शरीक प्रतिज्ञा; इकरार; मजदूरी, पारिश्रमिक वेतन; मूल्य; होना; टिकना, ठहरमा, मुकाम करना; लेटना बीमार धन; बेचनेकी चीज, विक्रय वस्तु; न्यवहार । -क्रियाहोना; मिलना पड़ता खाना; आमदनी, लाभ आदिका | स्त्री० (बेटिंग) बाजी लगानेका कार्य, पणन। . पड़ता होना; प्रसंग प्राप्त होना; उपस्थित होना; राहमें पणन-पु० [सं०] खरीदने-बेचनेकी क्रिया; बाजी लगाना, मिलना; निकल आना, पैदा होना; होना; हो जाना; | शर्त लगाना; प्रतिज्ञा करना; इकरार करना, कौल करना। तीव्र इच्छा होना; धुन सवार होना; नियत किया जाना, पणव-पु०, पणवा-स्त्री० [सं०] छोटा ढोल; एक वर्णवृत्त । मुकर्रर होना; बन जाना। (किसीपर पड़ना-आफत पणवानक-पु० [सं०] नगाड़ा।
आना, विपत्ति आना । क्या पड़ी है-क्या मतलब है ?) पणांगना-स्त्री० [सं०] वेश्या । पड़पड़ाना-अ० क्रि० 'पड़-पड़' शब्द होना; मिर्च आदि पणासी*-वि० विनाशक-'हौं जव ही जब पूजन जात
तीखी वस्तुओंके स्पर्शसे जीभका जलनेसा लगना । पिता पद पावन पाप-पणासी'-राम । पड़पड़ाहट-स्त्री० पड़पड़ानेकी क्रिया या भाव ।
पणित-वि० [सं०] खरीदा या बेचा हुआ जिसकी बाजी पड़वा-स्त्री० दे० 'परिवा' । पु० दे० 'पड़वा'।
लगायी गयी हो; स्तुत । पु० बाजी। पडवी -स्त्री० वैशाख या ज्येष्ठमें बोयी जानेवाली एक पण्य-वि० [सं०] क्रय-विक्रयके योग्य व्यवहार या प्रकारकी ईख।
व्यापारके योग्य । पु० विक्रेय वस्तु, सौदा, रोजगार, पड़ा-पु० भैसका बच्चा, पँड़वा ।
व्यापार मूल्य, दाम, दुकान। -क्षेत्र-पु०,-भूमिपदापढ़-स्त्री. 'पड़-पड़' की आवाज। अ० 'पड़-पड़' की स्त्री० (मारकेट) वस्तुएँ बेचने-खरीदनेका स्थान, बाजार । आवाजके साथ।
-पति-पु० बहुत बड़ा व्यापारी। -पत्तन-पु० मंडी। पडाव-पु० सेना, काफिला या पथिकोंका रातभर या कुछ -योषित-विलासिनी-स्त्री० वेश्या । -वाहक नौका समयके लिए मार्गमें कहीं ठहरना; सेना या पथिकोंका | -स्त्री० (कारगो बोट) माल ढोनेवाली नाव । -वीथि,यात्राके बीचका अस्थायी ठहराव यात्रियोंके ठहरनेकी वीथिका-वीथी,-शाला-स्त्री० बाजार; दुकान । जगह, टिकान । मु०-मारना-पड़ाव डाले हुए काफिले | पण्यांगना-स्त्री० [सं०] वेश्या । या यात्री-दलको लूटना; कोई भारीसाहसका काम करना। पण्याजीवक-पु० [सं०] व्यापारी ।
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पतंग-पति
४४२
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पतंग-पु० [सं०] सूर्य, पक्षी, चिड़िया; शलभ, टिड्डी; पताई झोंकना या टालना। खेलनेका गेंद । स्त्री० [हिं०] बाँसकी कमानियोंके ढाँचेपर पताका-स्त्री० [सं०] ध्वजके ऊपरी सिरेपर पहनाया कागज मढ़कर बनाया जानेवाला खिलौना जिसे तागेसे जानेवाला वह तिकोना या चौकोना कपड़ा जिसपर प्रायः बाँधकर हवा चलते समय आसमानमें उड़ाते हैं, गुनी, । किसी राजा, राष्ट्र या संघ आदिका निजी चिह्न बना रहता कनकौवा। -बाज़-पु० पतंग उड़ाने, लड़ानेवाला । है; झंडा, पताका पहनानेका डंडा, ध्वज; चिह, निशान; -बाज़ी-स्त्री० पतंगबाज होनेका भाव; पतंग उड़ानेका | प्रतीका सौभाग्य; नाटकमें एक विशिष्ट स्थल,दे० 'पताकाहुनर ।
स्थानक'; तीर चलाने में उँगलियोंकी एक विशेष प्रकारकी पतंगम-पु० [सं०] पक्षी; शलभ, पतंगा।
मुद्रा प्रासंगिक कथावस्तुका एक भेद (ना०)। -दंडपतंगा-पु० उड़नेवाला कीड़ा, फतिंगा; चिरागका गुल; पु. पताका लगानेका डंडा । -शीर्षक-पु० (बैनर, चिनगारी ।
हेडलाइन) समाचार-पत्रके मुखपृष्ठपर एक सिरेसे दूसरे पतंचिका-स्त्री० [सं०] धनुषकी डोरी ।
सिरेतक, पताका रूपमें, दिया गया सर्वप्रधान शीर्षक, पत*-पु० पति; मालिका अधीश्वर, प्रभु । स्त्री० लाज; पृष्ठ(व्यापी)शीर्षक । -स्थानक-पु० नाटकमें वह स्थल . प्रतिष्ठा; इज्जत । -पानी-पु० प्रतिष्ठा, इज्जत; लाज। जहाँ किसी सोचे हुए विषय या प्रस्तुत प्रसंगसे मेल मु०-उतारना-किसीकी प्रतिष्ठा भंग करना; अपमान खानेवाला दूसरा विषय या प्रसंग उपस्थित हो जाय । • करना ।-रखना-प्रतिष्ठाकी रक्षा करना, इज्जत बचाना। मु० (किसीकी)-उड़ना या फहरना-एकाधिकार पतझड़-स्त्री० शिशिर ऋतु जिसमें पेड़ोंकी पत्तियाँ झड़ होना; सबसे बढ़कर होना; मूर्द्धन्य होना बेजोड़ होना। जाती हैं।
(किसीकी) गुण, विद्या आदिकी पताका उड़ना या पतत्प्रकर्ष-पु० [सं०] एक काव्यदोष जहाँ किसी अलं- फहरना-ख्याति होना। -उड़ाना या फहराना
कार या किसी रचनाकी उत्कृष्टताका निर्वाह न हो सके । | आधिपत्य स्थापित करना, विजय प्राप्त करना ।-गिरनापतन-पु० [सं०] ऊपरसे नीचे आना; गिरना; च्युत होना; पराजय होना, हार होना । अधोगति; संहार; नाश; मरण; नीचे जानेकी क्रिया या पताकिक-पु० [सं०] पताका धारण करनेवाला, झंडाभाव; बैठना; डूबना ( जैसे सूर्यका); जातिसे च्युत होना; बरदार । गर्भपात; पतित होना; -शील-वि० पतन जिसका पताकित-वि० [सं०] (फ्लैग्ड) पताकाओंसे सज्जित; जिसस्वभाव हो; जो सदा पतनोन्मुख रहे।
पर पताका लगायी गयी हो। पतनीय-वि० [सं०] पतनके योग्य पतित होने के योग्य । पताकिनी-स्त्री० [सं०] सेना । पतनोन्मुख-वि० [सं०] पतनकी ओर जानेवाला, पतनकी पताकी (किन)-वि० [सं०] पताकावाला; पताका ले
ओर प्रवृत्त, जो पतनकी राहपर हो; जो पतनके निकट हो। चलनेवाला । पु० झंडा ले चलनेवाला, झंडाबरदार; झंडा। पतर*-वि० पतला । पु० पत्ता; पनवारा।
पतार*-पु० दे० 'पाताल'; जंगल । पतरा-वि० पतला; झीना निर्बल ।
पताल-पु० 'पाताल'का एक विकृत रूप। -दंती-पु० पतराई-स्त्री० पतलापन ।
वह हाथी जिसका दाँत सीधे नीवेकी ओर बढ़ा हो । पतरी -स्त्री० पत्तल ।
पतावर-पु० सूखे पत्ते । पतरौल-पु० गश्त लगानेवाला व्यक्ति (अं० पैट्रोल)। पतिंग-पु० फतिंगा।। पतला-वि०जिसका फैलाव या घेरा कम हो जो मोटा न पतिंवरा-स्त्री० [मं०] स्वेच्छासे वर चुननेवाली कन्या हो; जिसका शरीर मोटा न हो, कृश; सँकरा; बारीक; जो वह कन्या जो अपना वर चुननेके लिए स्वयंवर-भूमिमें गाढ़ा न हो; जिसमें जलांशकी अधिकता हो; शक्तिहीन; उतरी हो। अबल । -पन-पु० पतला होनेका भाव । मु०-पढ़ना पति-स्त्री० दे० 'पत'; साख । पु० [सं०] किसी वस्तुका -दीन-हीन हो जाना; आपद्ग्रस्त होना।
स्वामी, अधीश, वह जिसका किसी वस्तुपर अधिकार हो; पतलून-पु० [अं० 'पैंटलून'] अंग्रेजी ढंगका पायजामा ।। किसी ब्याही हुई औरतका भर्ता, शौहर, कांत; शासक । पतवार-स्त्री० नाव में पीछेकी ओर लगी हुई वह तिकोनी। -कामा-वि०, स्त्री० पति चाहनेवाली (स्त्री); पतिसे
लकड़ी जिसके द्वारा नावको इधर-उधर घुमाते हैं, कर्ण। मिलनेकी इच्छा रखनेवाली (स्त्री)। -घातिनी,-नीपतवारी-स्त्री० ईखका खेत; पतवार ।
स्त्री० पतिको मार डालनेवाली स्त्री; वैधव्य योगवाली पता-पु० किसी वस्तु, स्थान या व्यक्तिका ऐसा परिचय स्त्री; एक हस्तरेखा जो यह सूचित करती है कि अमुक स्त्री
जो उसे पाने, ढूँढ़ने या उसके पासतक समाचार पहुँचाने पतिघातिनी होगी। -देवता,-देवा-स्त्री. वह स्त्री जो में सहायक हो; चिट्ठी आदिकी पीठपर लिखा जानेवाला अपने पतिको देवताकी तरह माने, पतिव्रता स्त्री-धर्मपानेवालेका नाम आदि जिसके सहारे वह उसके पास पु० पतिके प्रति स्त्रीका कर्तव्य। -प्राणा-स्त्री० पतिव्रता पहुँच जाती है। जानकारो; स्थितिसूचक चिह्न या लक्षण; स्त्री। -लोक-पु० वह उत्तम परलोक जिसमें पतिकी खोज, खबर; ठिकाना; भेद, तत्त्व, रहस्य । (पते)की,- आत्माका निवास हो। -धर्त*-पु० दे० 'पतिव्रत' । की बात-भेदभरी बात, तत्त्वकी बात ।
-वर्ता*-वि०, स्त्री० दे० 'पतिव्रता' ।-व्रत-पु० पतिके पताई-स्त्री० सूखी हुई पत्तियाँ या उनका पुंज । मु०- | प्रति एकांत प्रेम या भक्ति । -व्रता-वि०, स्त्री० पतिमें झौंकना,-लगाना-आगको तेज करनेके लिए उसमें अनन्य श्रद्धा, अनुराग रखनेवाली (स्त्री), साध्वी (नारी)।
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४४३
पतिआना-पत्थर -सेवा-स्त्री० पतिभक्ति ।
कोई खटका होना । -तोड़कर भागना-बेतहाशा पतिआना-स० क्रि० दे० 'पतियाना'।
भागना। -न हिलना-जरा भी हवा न चलना । - पतिवार, पतिआरा*-पु० विश्वास, प्रतीति ।
हो जाना-चटपट गायब हो जाना। पतित-वि० [सं०] गिरा हुआ; जाति, धर्म आदिसे च्युत पत्ति-पु० [सं०] पैदल चलनेवाला यात्री पैदल सिपाही, आचारभ्रष्ट; महापातकी, बहुत नीचा पराजित; अत्यंत पदाति; योद्धा, वीर । स्त्री०सेनाका सबसे छोटा विभाग। अपावन । -उधारन*-वि० पतितोंको तारनेवाला; जो -पाल-पु. पाँच या छः सिपाहियोंका सरगना या पतित जनोंको सुगति दे। पु० ईश्वर; सगुण ब्रह्म जो नायक । -व्यूह-पु० वह व्यूह जिसमें भागे कवचधारी
पतित जनोंको तारनेके लिए अवतीर्ण होता है।-पावन- सैनिक हों और पीछे धनुर्धर । -संहति-स्त्री०, सैन्य.वि. पतितको पवित्र करनेवाला; जो पतितका उद्धार पु० पैदल सेना। करे । पु० ईश्वर ।
पत्तिक-वि० [सं०] पैदल चलनेवाला । पतिनी-स्त्री० दे० 'पत्नी'।
पत्ती-स्त्री. छोटा पत्ता; साझेका हिस्सा, भाग; साझा पतिया-स्त्री० पत्री, चिट्टी।
पँखड़ी; भाँग पत्तीके आकारका कटा हुआ लकड़ी, धातु पतियाना*-स० क्रि० विश्वास करना; विश्वसनीय सम- आदिका टुकड़ा जो कहीं जड़ा, लगाया या लटकाया झना, सच्चा या ठीक मानना ।
जाय । -दार-पु. वह व्यक्ति जिसका किसी संयुक्त पतियारी-पु० विश्वास, एतवार । वि० विश्वसनीय ।। _संपत्ति या व्यवसायमें साझा हो, हिस्सेदार । पतियारा*-पु० विश्वास, एतबार ।
पत्ती(त्तिन)-पु० [सं०] पैदल सिपाही, प्यादा; पैदल पतिवंती*-वि० स्त्री० सधवा; जिसका पति जीवित हो।। चलने या यात्रा करनेवाला। पतीजना*-स० क्रि० विश्वास करना, पतियाना। पत्थ*-पु० दे० 'पथ्य' । पतीर*-स्त्री० पंक्ति, पाँत ।
पत्थर-पु० पृथ्वीका कड़ा स्तर; वह द्रव्य जिससे पृथ्वीका पतीला-वि० पतला।
कड़ा स्तर बना होता है। इसका कोई टुकड़ा; मीलकी पतीली-स्त्री० एक प्रकारकी पीतल आदिकी चौड़े मुँह और संख्या सूचित करनेके लिए सड़क किनारे गाढ़ा जाने. पेंदेकी चिपटी बटलोई।
वाला पत्थरका टुकड़ा, सीमा या हद निर्धारित करनेके पतुकी*-स्त्री० पतीली इंटी।
लिए गाड़ा जानेवाला पत्थरका टुकड़ा; भोला हीरापतुरिया -स्त्री० वेश्या, रंडी; कुलटा ।
जवाहर आदि; पत्थरकेसे स्वभाव या गुणसे युक्त वस्तु; पतूख, पत्खी *-स्त्री० दे० 'पतीखी' ।
वह बस्तु जो कठोरता, भारीपन आदिमें पत्थरके समान पतोखद, पतोखदी-स्त्री० किसी वृक्ष, पौधे या धास आदि- हो; कुछ नहीं, खाक (ला०) । -कला-स्त्री० एक प्रकारके फूल, पत्ते आदिसे बनी दवा, खरबिरई ।
की पुराने ढंगकी बंदूक, तोड़ेदार बंदूक । -चटा-पु० एक पतोखा-पु० पत्तेका बना दोना पत्तांसे बनी छतरी । प्रकारकी घास पत्थर चाटनेवाला एक प्रकारका साँप; एक पतोखी-स्त्री० छोटा पतोखा।
तरहकी मछली; कंजूस आदमी। -पानी-पु० आँधी. पतोहा, पतोहू-स्त्री० पुत्रवधू , पुत्रकी स्त्री।
पानी। -फोड़-पु० हुदहुद चिड़िया; एक तरहका छोटा पतीआ, पतौवा*-पु० पत्ता।
पौधा जो अधिकतर बरसातमें दीवारोंको फोड़कर निकपत्तन-पु० [सं०] नगर, शहर; मृदंग ।
लता है। -फोड़ा-पु० पत्थरका काम करनेवाला, संगपत्सर-पु० पीटकर पतला बनाया हुआ धातुका टुकड़ा जो। तराश। -बाज़-पु० पत्थर चलाकर मारनेवाला; वह कागजकी तरह किसी चीजपर चढ़ाया जाय; पत्तल । जिसे पत्थर या ढेला चलानेका अभ्यास हो । -बाज़ीपत्तल-स्त्री० थालीकी जगह उपयोगमें लानेके लिए बनाया स्त्री० पत्थर चलाकर मारनेकी क्रिया, ढेलवाही । मु०गया पत्तोंका पात्र पत्तलभर खाद्य सामग्री, परोसा पत्तल- का कलेजा या दिल-अति कठोर हृदय, ऐसा हृदय में रखी हुई खाद्य सामग्री। मु० (एक)-के खानेवाले | जिसमें करुणा, दया आदि कोमल भावोंका उदय न हो। -बहुत नजदीकी। -पढ़ना-खानेवालोंकेसामने पत्तलों- -का छापा-लीथोकी छपाई। -की छाती-घोर कष्ट का रखा जाना । -परसना-पत्तलपर खाद्य सामग्री या विषम परिस्थिमें भी न डिगनेवाला चित्त, मजबूत रखकर खानेवालेके सामने रखना। -बाँधना-कोई दिल । -की लकीर-न मिटनेवाली वस्तु, सदा बनी पहेली पूछकर उसे हल करनेके पहले भोजन न करनेकी
रहनेवाली वस्तु । -को जोक लगाना-असंभव या कसम देना । (किसीकी)-में खाना-किसीके साथ दुःसाध्य कार्य करना। -चटाना-पत्थरपर रगड़कर धार खान-पानका नाता जोड़ना या रखना । (जिस)-में तेज करना । -तलेसे हाथ निकलना-भारी कष्टसे खाना उसीमें छेद करना-उपकार करनेवालेका अप- छुटकारा मिलना। -तले हाथ आना या दबना-भारी कार करना, कृतघ्न होना ।
विपत्तिमें पड़ जाना । -निचोड़ना-किसी ऐसे व्यक्तिसे पत्ता-पु० कांड अथवा टहनीसे निकलनेवाला पेड़-पौधोंका कुछ प्राप्त करना या वसूल करना जिससे उसका मिलना वह हरा अवयव जिससे छाया होती है और जो सूख असंभव हो; किसीसे ऐसा कोई काम निकालना जो उसके जानेपर झड़ जाता है,पत्र; कानमें पहननेका एक गहना; स्वभावके विरुद्ध हो; असंभव कार्य करना। -पढ़े-मिट मोटे कागजका गोल या चौकोर टुकड़ा; पत्तर । वि० बहुत जाय, जाता रहे (गाली)। -पर दूब जमना-अनहलका (ला०)। मु०-खड़कना-किसीकी आहट मिलना, होनी बात होना । -पसीजना-निष्ठुर हृदयमें दयाका
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पत्थल- पथरौटी
संचार होना । - पिघलना - दे० 'पत्थर पसीजना' । -मारे भी न मरना - मृत्युका कारण रहते हुए भी न मरना; जल्दी न मरना । - सा खींच मारना या फेंक मारना - बहुत कड़ी बात कहना, दोटूक जवाब देना । पत्थल - पु० दे० 'पत्थर' ।
पत्री - स्त्री० [सं०] किसी पुरुषसे संबद्ध वह स्त्री जिसके साथ उसका ब्याह हुआ हो, परिणीता स्त्री, भार्या, जोरू । - व्रत - पु० विवाहिता स्त्रीके अलावा और किसी स्त्रीसे संबंध न रखनेका व्रत ।
पत्याना * - स० क्रि० दे० 'पतियाना' ।
पत्यारा * - पु० दे० 'पतियारा' ।
पत्रालयित - वि० (पोस्टेट) अन्यत्र भेजे जानेके लिए पत्रालय या पत्रपेटिका (डाकघर या लेटर बाक्स) में छोड़ा हुआ । पत्रालयीय प्रमाणपत्र - पु० [सं०] (पोस्टल सर्टीफिकेट) कोई पत्र, पैकेट आदि अन्यत्र भेजनेके लिए पत्रालयको अर्पित किया गया इसका प्रमाण-पत्र जो पत्रालय के संबद्ध कर्मचारी द्वारा दिया जाय, डाकीय प्रमाणपत्र । पत्रालाप-पु० [सं०] (नेगोशियेशन) चिट्ठी-पत्री आदिकी सहायता से समझौतेका रूप निश्चित करने या कोई बात तय करनेका कार्य |
पत्रावलि, पत्रावली - स्त्री० [सं०] गेरू; पत्तोंकी पंक्ति या श्रेणी: पत्रभंग ।
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पत्यारी * - स्त्री० पाँत, कतार । पत्र - पु० [सं०] पत्ता; चिट्ठी; कागज; लिखा या छपा हुआ कागज; वह कागज जिसपर कोई बात लिखी या छपी हो; किसी व्यवहार या घटनाके विषयका प्रमाणरूप लेख (पट्टा, दस्तावेज); समाचारपत्र, अखबार; पुस्तक, कापी आदिका कोई पन्ना, वर्क; किसी धातुकी पट्टी या पत्तर; पंख; तेजपत्ता; बाणका परकी तरह निकला हुआ हिस्सा यान, रथ; चंदन, कस्तूरी आदि गंधद्रव्यों से कपोल, कुच आदिपर बनाये जानेवाले विशेष प्रकारके चिह्न या बूटे आदि; कटार, तलवार आदिका फल; छुरा, कटार । - कार - पु० समाचारपत्रका संपादक या लेखक ।-कारीस्त्री० [हिं०] पत्रकारका पेशा । -चलार्थ- पु० (पेपरकरेंसी) छपे हुए कागज या नोटके रूपमें चलनेवाली मुद्रा, कागजी मुद्रा । - पाल-पु० (पोस्टमास्टर ) डाकखानेका प्रधान अधिकारी, डाकपति। -पुट-५० पत्तेका पात्र, दोना । - पुष्प-पु० रक्त तुलसी; मामूली भेंट, सत्कारकी मामूली चीजें । - पेटिका - स्त्री० (लेटरबाक्स) भेजी जानेवाली चिट्ठी या पैकेट छोड़नेका डब्बा; मकान के द्वारादिपर लगाया हुआ संदूक जिसमें बाहर से आयी हुई चिट्टियाँ आदि पत्र वितरक (डाकिया) द्वारा डाल दी जाती हैं । - भंग - पु० चंदन, कस्तूरी, केसर आदिसे कपोल, स्तन आदिपर बनाये जानेवाले विशेष प्रकारके चिह्न, बूटे आदि । रचना, - रेखा, - लेखा - स्त्री० पत्रभंग । - वलरी, - वल्ली - स्त्री० पत्रभंग । - वाह, - वाहकपु० पक्षी; चिट्टी ले जानेवाला; बाण। -वाहपंजिकास्त्री० ( प्यूनबुक) वह छोटी पंजी या बही जिसपर पत्रादिका ब्यौरा चढ़ा दिया जाता है और जिसे पत्र - वाहक पानेवालेसे हस्ताक्षर करानेके लिए अपने साथ ले जाता है । - वितरक - पु० ( पोस्टमैन ) बाहर से आये हुए पत्रों आदिको पानेवालों में बाँट आने, उनके पासतक पहुँचा देनेवाला पत्रालयका आदमी, डाकिया । - वियोजक - पु० (सॉर्टर) भेजे जानेवाले स्थानोंके अनुसार पत्रों आदि को पृथक्-पृथक् करनेवाला पत्रालयका कर्मचारी । - व्यव हार - पु० खत किताबत, लिखा-पढ़ी । - श्रेणी - स्त्री० मूसाकानी; पत्तोंकी पंक्ति । - श्रेष्ठ - पु० बेलका पेड़ । - सूचना-विभाग- ५० ( प्रेस इनफरमेशन ब्यूरो) समा चार पत्रोंके लिए सूचनाएँ और समाचार देनेवाला सर कारका, सेना, पुलिस या किसी संस्थाका कार्यालय अथवा विभाग |
पत्राहार- पु० [सं०] सिर्फ पत्तियाँ खाकर रहना । पत्रिका - स्त्री० [सं०] चिट्ठी; कागजका कोई टुकड़ा या पन्नाः पत्ती; पाक्षिक, मासिक आदि पत्र (हिं०) । पत्री (त्रिन्) - वि० [सं०] पंखदार; पत्तियों या पन्नोंवाला; रथवाला | पु० बाण; पक्षी; बाज; वृक्ष; पर्वत; रथः ताड़ ।
पथ- पु० [सं०] मार्ग, रास्ता कार्य या व्यवहारकी पद्धति; + दे० 'पथ्य' । - कर- पु० (टॉल) किसी सड़क या पुलपरसे जाने, माल ले जाने आदिके लिए लगनेवाला कर । - गामी ( मिनू ), - चारी (रिन् ) - पु० पथिक, राही । - दर्शक, प्रदर्शक - पु० राह दिखानेवाला, रहनुमा । - सुंदर - पु० एक पौधा -स्थ - वि० जो मार्ग में हो, मार्गस्थ |
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पत्रक - पु० [सं०] पत्ता; तेजपत्ता; पत्रभंग । पत्रा - पु० पंचांग; पन्ना । पत्राचार - पु० [सं०] (कारेस्पांडेंस) पत्रव्यवहार, खतकिताबत ।
पत्रालय - पु० [सं०] (पोस्ट आफिस) वह स्थान या कार्यालय जहाँसे चिट्ठी, पारसल, मनीआर्डर आदि बाहर भेजने तथा बाहर से आनेवाले पत्रों, पारसलों आदिको उपयुक्त व्यक्तियोंतक पहुँचानेका प्रबंध हो, डाकखाना, डाकघर ।
पत्रालयिक आदेश - पु० [सं०] (पोस्टल आर्डर ) पत्रालय ( डाकखाने) द्वारा रुपया लेकर जारी किया गया एक तरहका धनादेश (चेक) जो बैंकके चेककी ही तरह रेर्खाकित किया जा सकता है, पर जो पृष्ठांकित कर अन्य किसीके नाम हस्तांतरित नहीं किया जा सकता, डाकीयादेश |
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पथराना - अ० क्रि० सूखकर पत्थर जैसा कड़ा हो जाना; रसहीन और कठोर हो जाना; शुष्क हो जाना; चेतनाशून्य हो जाना, जड हो जाना, निजींव हो जाना । पथरी - स्त्री० पत्थरकी कुंडी, पत्थरकी मलिया; उस्तरे आदिकी धार तेज करनेका पत्थरका टुकड़ा, सिल्ली; चकमक पत्थर; पक्षियोंके पेटका वह भाग जहाँ पहुँचकर उनकी खायी हुई कड़ी चीजें पचती है; एक रोग जिसमें वृक्कों आदि में पत्थर के छोटे टुकड़े जैसे पिंड बन जाते हैं, अश्मरी । पथरीला - वि० जिसमें पत्थर के टुकड़े मिले हों । पथरौटा - पु० पत्थरका कटोरा जैसा पात्र । पथरौटी - स्त्री० पत्थरको कूड़ी, पथरी ।
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पथिक-पदार्थ पथिक-पु० [सं०] रास्ता चलनेवाला, राही, बटोही। वर्णकी चमत्कारपूर्ण आवृत्ति; दोसे अधिक पदोंकी एक पथिकाश्रय-पु० [सं०] पथिकोंके ठहरनेकी जगह, धर्म- दूसरेके अनुरूप स्थिति, अनुप्रास ।-मोचन-पु०(रिलीफ) शाला, सराय ।
किसी पदं या कर्तव्यसे मुक्त हो जाना, छुट्टी पा जाना, पथेय*-पु० दे० 'पाथेय'।
पृथक हो जाना या कर दिया जाना। -योजना-स्त्री. पथी(थिन)-पु० [सं०] पथिक ।
पदों या शब्दों को जोड़ना, पदों या शब्दोंको चुन-चुनकर पथीय-वि० [सं०] पथ-संबंधी पथका ।
रखना। -रिपु-पु० काँटा । -विग्रह,-विच्छेद-पु० पथौरा-पु० गोबर पाथनेकी जगह ।
दे० 'पदच्छेद' । -व्याख्या-स्त्री० (पार्सिंग) वाक्यमें आये पथ्य-वि० [सं०] लाभकर, हितकर (आहार, औषध आदि); हुए पदका शब्दभेद, लिंग, वचन आदि बतलाना । उचित; अनुकूल । पु० रोगीको दिया जानेवाला, रोगकी -शिक्षार्थी-वि०, पु० (ऐटिस) नौकरी पानेकी आशास्थितिके अनुकूल और हितकर आहार; रोगीके लिए हित- से बिना वेतन लिये काम सीखनेवाला, उम्मेदवार किसी कर वस्तु; कल्याण; हड़का पेड़; सेंधा नमक । मु०-से अनुभवप्राप्त व्यवसायी, कलाकार आदिकी देखरेख में व्यवरहना-कुपथ्य न,करना, वर्जित वस्तुओंसे परहेज करना, साय, कला आदिकी शिक्षा प्राप्त करनेवाला, शिक्ष्यमाण । परहेजसे रहना।
-सूचक चिह्न-पु० (इनसिग्निया) राजा या किसी बड़े पथ्यापथ्य-वि० [सं०] रोगकी अवस्थामें हितकर और अधिकारी आदिके पदकी पहिचान करानेवाला विशेष अहितकर ।
चिह्न (मुकुट, दंड, पट्टा इ०)। पद-पु० ईश-प्रार्थना-संबंधी गीत; भक्तिपरक गीत, भजन पदक-पु०पूजनके लिए बनायी हुई किसी देवताके चरणकी [सं०] पैर; डग, कदम, चरणचिह्न चिह्न, निशान; स्थान; प्रतिमूत्ति; बालकोंको पहनाया जानेवाला एक प्रकारका आधार; योग्यता या कार्यके अनुसार नियत स्थान, ओहदा, गहना जिसपर किसी देवताका चरण बना रहता है। कोई दर्जा; विषय पात्र; किसी छंद या पद्यका चरण या चौथा बहुत अच्छा या कमालका काम करनेपर किसीको उपहारभाग; विभक्ति, प्रत्ययसे युक्त शब्द, वाक्य आदिका कोई रूपमें दिया जानेवाला सोने-चाँदी आदिका सिक्के जैसा अंश । -कंज,-कमल-पु० कमलवत चरण |-कारणात् गोल या अन्य आकारका टुकड़ा जिसपर प्रायः देनेवालेका -अ० (एक्स ऑफिशियो) दे० 'पदेन'। -क्रम-पु० 'नाम अंकित रहता है। [सं०] स्थान; ओहदा; गलेका चलना, डग भरना; वेदमंत्रोंके पदोंको एक दूसरेसे अलग एक गहना। करनेका क्रम । -ग,-चर-पु० पैदल सिपाही ।-चारी- पदम-पु० एक पेड़, * दे० 'पभ' ।-काठ-पु० पद्मकाष्ठ । (रिन)-वि० पैदल चलनेवाला। -चिह्न-पु० पैरका पदमाकर*-पु० दे० 'पद्माकर'।। निशान । -च्छेद-पु० किसी वाक्य या वाक्यांशके पदवाना-स० क्रि० पदानेमें प्रवृत्त करना । पदोंको एक दूसरेसे अलग करना।-च्युत-वि० जो अपने | पदवि, पदवी-स्त्री० [सं०] मार्ग, रास्ता; चलन, प्रणाली, पद या दजेंसे हटा दिया गया हो, जिसका पद छीन लिया। पद्धति; स्थान; राज, संस्था आदिकी ओरसे किसीको दी गया हो। -ध्यति-स्त्री० पदच्युत होनेकी क्रिया या | जानेवाली आदर या योग्यतासूचक उपाधि, खिताब । दशा। -ज-वि० पैरसे उत्पन्न । पु० पैरकी उँगलियाँः पदांत-पु० [सं०] पदका अंतिम भाग; किसी श्लोक या शूद्र । -तल-पु० तलवा। -त्याग-पु० अपना पद या पद्यके चरणका अंतिम भाग। ओहदा छोड़ देना, अपने पद, ओहदेसे अलग हो जाना। | पदांतर-पु० [सं०] दूसरा पद या डग; एक डगकी दूरी । -वाण-पु० जूता, खड़ाऊँ आदि । -त्रान*-पु० दे० पदांभोज-पु० [सं०] दे० 'पदकंज'। 'पदत्राण' । -दलित-वि० पैरों तले कुचला हुआ। पदाक्रांत-वि० [सं०] पाँवोंसे कुचला हुआ, पामाल । -दारिका-स्त्री० बिवाई । -धारण-सुरक्षा-स्त्री० | पदाघात-पु० [सं०] पैरका प्रहार । (सीक्यूरिटी ऑफ टैन्यूर) किसी पदपर, नोकरी आदिपर पदाति, पदातिक-पु० [सं०] पैदल चलनेवाला; प्यादा, काम करते रहने या सुरक्षित रूपसे बने रहनेकी पक्की पैदल सिपाही। आशा । -न्यास-पु० पैर रखना, डग भरना।-पंकज, पदातिका*-स्त्री० पैदल सेना । -पद्म-पु० दे० 'पदकमल' ।-पद्धति-स्त्री० पदचिह्नोंकी पदाती(तिन्)-पु० [सं०] पैदल सिपाही । कतार । -पाठ-पु० वेदमंत्रोंका वह क्रम जिसमें उनमें पदाधिकारी(रिन)-पु० [सं०] वह जो किसी पदपर प्रयुक्त सभी पद विभक्त करके अपने मूल रूपमें अलग- नियुक्त हो, ओहदेदार । अलग रखे गये हों; वह ग्रंथ जिसमें वेदमंत्रोंका ऐसा संपा- पदाना-स० क्रि० पादने में प्रवृत्त करना हैरान करना, दन किया गया हो (संहिता-पाठका उलटा)। -पूरण- परेशान करना; (खेलमें) दौड़ाना। पु० किसी छंदकी पूर्ति करना। -बाधा-स्त्री०,-रोध पदाब्ज-पु० [सं०] दे० 'पदकंज' । (पदरोक)-पु०(लेग विफोर विकेट) (किसी बल्लेबाज द्वारा) पदारथ-पु० दे० 'पदार्थ' । टाँग अड़ाकर अर्थात् अनियमित रूपसे गेंदको यष्टियोंकी पदारविंद-पु० [सं०] दे॰ 'पदकंज' ।
ओर बढ़नेसे रोक देना ।-भ्रंश-पु०पदच्युति ।-मुक्त- पदार्य-पु० [सं०] अतिथिको पैर धोनेके लिए दिया जानेवि० (आउट गोइंग) अपना पद या स्थान छोड़कर अन्यत्र वाला जल । जानेवाला । -मूल-पु० तलवा; शरण, आश्रय (ला०)। पदार्थ-पु० [सं०] पद या शब्दका अर्थ; वह वस्तु जिसका -मैत्री-स्त्री० किसी छंद या पद्यमें एक ही शब्द या किसी शब्दसे बोध हो; उन विषयों में कोई एक जिनके
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पदार्पण - पधारना
नाम, रूप आदिका कथन न्याय, वैशेषिक आदि दर्शनों में किया गया है, कोई अभिधेय वस्तु (न्याय में १६, वैशेषिकमें ६ या ७, सांख्यमें २५, योग में २६ और दांत २ पदार्थ माने गये हैं); (मैटर) ऐसी वस्तु जिसका ज्ञान हम अपनी ज्ञानेंद्रियों से प्राप्त कर सकते हैं तथा जो स्थान घेरती, भार रखती और रुकावट पैदा करती है। -विज्ञानपु० (फिजिक्स) दे० भौतिक शास्त्र' । -विद्या - स्त्री० वह विद्या जिसमें पदार्थोंका निरूपण किया गया हो । पदार्पण -पु० [सं०] पैर रखना; आगमन (आदरसूचक) । पदावधि - स्त्री० [सं०] ( टेन्यूर) किसी पदपर काम करते रहने की अवधि |
पदावनत - वि० [सं०] पैरोंपर झुका हुआ, विनीत । पदावली - स्त्री० भजनों आदिका संग्रह; [सं०] पदों या शब्दोंकी परंपरा; किसी रचना में निबद्ध अनेक पद या शब्द; शब्दोंकी लड़ी; किसी कवि या लेखक द्वारा प्रयुक्त शब्द- समूह |
पदावास - पु० [सं०] (आफिसल रेजीडेंस) किसी पदाधि कारीका सरकारी निवास स्थान ।
पदास - स्त्री० पादनेका भाव; पादनेका शारीरिक वेग । पदासन - पु० [सं०] पादपीठ, पैर रखनेकी छोटी चौकी । पदासा - वि० जिसे पदास लगी हो ।
पदासीन - वि० सं०] (किसी विशेष ) पदपर आरूढ । पदाहत - वि० [सं०] पैर से ठुकराया हुआ । पदिक - वि० [सं०] पैदल । पु० प्यादा; पैरका अग्रभाग; * गलेका एक आभूषण जिसपर किसी देवताका चरण बना रहता है; गलेका एक गहना, जुगनू; रत्न; तमगा । - हार - पु० रत्नोंकी माला ।
पदी* - पु० प्यादा, पदाति ।
पदु - पु० दे० 'पद'; बदला ।
पदुम- पु० घोड़ेके शरीरपरका एक चिह्न; * दे० 'पद्म' | पदुमिनी * - स्त्री० दे० 'पद्मिनी' । पदेन - अ० [सं०] (एक्स ऑफिशियो) (व्यक्तिगत रूपसे नहीं,वरन्) किसी पदपर आरूढ़ रहने या काम करते रहनेके कारण, पदकी हैसियतसे ।
पदांड़ा - वि० जो बहुत पादे; कायर । पदोदक - पु० [सं०] वह जल जिससे पैर धोया गया हो,
चरणामृत ।
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पदोन्नति - स्त्री० [सं०] ( प्रमोशन) किसी कर्मचारी के पद में होनेवाली वृद्धि या उन्नति, पहलेसे अधिक ऊँचे पदपर नियुक्त होना या भेजा जाना, पदवृद्धि, तरक्की । पटिका - स्त्री० [सं०] एक मात्रिक छंद । पद्धति, पद्धती - स्त्री० [सं०] पथ, मार्ग, रास्ता, प्रथा, रीति, परिपाटी, प्रणाली; पंक्ति, पाँत ।
पद्म-पु० [सं०] कमल; वे बिंदियाँ जो हाथीकी सूँड़ आदिपर होती हैं; कुबेरकी नौ निधियोंमेंसे एक; १०० नीलकी संख्या; पदमकाठ; पैरमें होनेवाला एक भाग्यसूचक चिह्न (सामुद्रिक); एक आसन । कंद-पु० कमलकी जड़ । - काष्ट - पु० एक ओषधि, पदमकाठ । - कोश- पु० कमलका संपुट; कमलके भीतरका छत्ता जिसमें उसके बीज लगते हैं । -ज, जात-पु० ब्रह्मा । -नाभ, -
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नाभि - पु० विष्णु । - नाल - स्त्री० कमलकी डंडी । - निधि - स्त्री० कुबेरकी एक निधि । निमीलन- पु० कमलका संपुटित होना । - नेत्र - वि० जिसके नेत्र कमलके समान हों । पु० एक बुद्ध । -पत्र - पर्ण - पु० पुष्करमूल; पुरइन; कमलकी पँखड़ी । -पाणि- वि० जिसके हाथमें कमलका फूल हो । पु० ब्रह्मा विष्णु । - बंधपु० एक प्रकारका चित्रकाव्य या चित्रालंकार जिसमें अक्षर इस ढंग से लिखे जाते हैं कि उनसे कमलका फूल बन जाता है । - बंधु - पु० सूर्य; भ्रमर । - बीज, वीज-पु० कमलगट्टा । - भव, भू, योनि-पु० ब्रह्मा । -रागपु० एक प्रसिद्ध रत्न, लाल, मानिक । - रेखा - स्त्री० कमलके आकार की हस्तरेखा जो अति धनवान् होनेका लक्षण मानी जाती है । - लांछना - स्त्री० लक्ष्मी; सरस्वती; तारा देवी । - लोचन - वि० कमल जैसे नेत्रोंवाला । - वासा- स्त्री० लक्ष्मी । - व्यूह - पु० प्राचीन कालकी एक प्रकारकी मोर्चाबंदी जिसमें सैनिकोंको इस ढंग से खड़ा करते थे कि कमलपुष्पका आकार बन जाता था। -संभव - पु० ब्रह्मा ।
पद्मक - पु० [सं०] पद्मव्यूह; हाथीकी सुँइपरके दाग; पद्म वृक्षकी लकड़ी; कुट नामक औषधि; पद्मासन । पद्मा - स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; लौंग; मनसा देवी । पद्माकर - पु० [सं०] कमलोंसे युक्त जलाशय; कमल-राशि; हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि ।
पद्माक्ष - पु० [सं०] कमलगट्टा; सूर्य; विष्णु । वि० जिसके नेत्र कमलके समान हों ।
पद्माख - पु० दे० 'पद्मकाष्ठ' ।
पद्मालया - स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; लौंग |
पद्मावती - स्त्री० [सं०] मनसा देवी; एक प्राचीन नदी; एक सुरांगना; पटनाका एक पुराना नाम; उज्जयिनीका एक पुराना नाम ।
प्रद्मासन - पु० [सं०] एक प्रकारका आसन जिसमें पालथी मारकर तनकर बैठते हैं; ब्रह्मा; शिव; सूर्य । पद्मिनी-स्त्री० [सं०] कमलका पौधा, कमलकी नाल; कमलोंका समूह; कमलसे युक्त जलाशय; हथिनी; चार प्रकारकी स्त्रियों में से प्रथम श्र ेणीकी स्त्री (कोकशास्त्र); चित्तौरकी एक प्रसिद्ध रानी । - कांत, -वल्लभ-पु० सूर्य । पद्मशय- पु० [सं०] विष्णु ।
पद्मोद्भव - पु० [सं०] ब्रह्मा ।
पद्मोद्भवा - स्त्री० [सं०] मनमा देवी |
पद्य - वि० [सं०] पद संबंधी; पदोंवाला; शब्द-संबंधी | पु० चार चरणोंवाला छंद, छंदोबद्ध रचना, गद्यका उलटा । पद्यमय - वि० [सं०] पद्यरूप ।
पद्या - स्त्री० [सं०] पगडंडी; सड़क के किनारेकी पैदल चलनेकी पटरी ।
पद्यात्मक - वि० [सं०] दे० 'पद्यमय' । पधरना* - अ० क्रि० पधारना, आना ।
पधराना - स० क्रि० आदर के साथ लिवा जाना; आदरपूर्वक बैठाना; स्थापित करना । पधारना - अ० क्रि० पदार्पण करना; चला जाना । स० क्रि० पधराना !
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पन-पनी पन-प्र० एक प्रत्यय जो भाववाचक संज्ञा बनानेके लिए पनारा, पनाला-पु० नावदान; नाला; प्रवाह । । जातिवाचक तथा गुणवाचक संशाओं में जोड़ा जाता है पनारी-स्त्री० नाली, मोरी;* धारा,बहावापक भोज्य वस्तु । (जैसे-गँवारपन आदि)। पु० पण, प्रतिज्ञा आयुके | पनाली-स्त्री० मोरी, नाली । चार भागोंमेंसे कोई एक; 'पानी', 'पान' और 'पाँच पनासना -स० क्रि० पालना-पोसना । शब्दोंका समासगत रूप) -कटा-पु० खेतोंमें इधरसे | पनाह-स्त्री० [फा०] शत्रु आदिसे बचाव, परित्राण; शरण; उधर पानी ले जानेवाला आदमी ।-कपड़ा-पु० शरीरमें आड़; शरण लेनेकी जगह, शरण्य । मु. (किसीसे)कटने, छिलने आदिकी जगहपर बाँधा जानेवाला गीला -माँगना-किसी कष्टप्रद वस्तु या हानि पहुँचानेवाले कपड़ा। -घट-पु० पानी भरनेका घाट ।-चक्की-स्त्री० व्यक्तिके संसर्गसे बचना । लेना-शरणके लिए कहीं जाना। पानीकी शक्तिसे चलनेवाली चकी। -चोरा-पु० छोटे | पनि-पु० समासमें प्रयुक्त पानीका बिगड़ा हुआ रूप । मुँह और चौड़े पेटका बरतन । -डब्बा-पु० दे० 'पान- | -गर-वि० पानीदार । -घट-पु० दे० 'पनघट'। दान'।-डुब्बा-पु० गोताखोर; एक जलपक्षी जो पानीमें | -हार-पु० दे० 'पनहरा'। -हारी-स्त्री० पनहारिन । डूब-डूबकर मछलियाँ पकड़ता है। -डुब्बी-स्त्री० एक पनिच*--स्त्री० दे० 'पनच' । जलपक्षी जो पानी में डूब-डूबकर मछछियाँ पकड़ता है; पनियाँ-वि० पानीका; पानी में उत्पन्न । पु० पानी । पानीके भीतर-भीतर चलनेवाला एक प्रकारका जहाज -सोत-वि० बहुत गहरा । (सबमेरीन)।-बट्टा-पु०पानके बीड़े रखनेका एक प्रकारका पनियाना -स० क्रि० पानीसे सराबोर करना। अ० डिब्बा । -बिछिया,-बिच्छी-स्त्री० पानीमें रहनेवाला| क्रि० पानीसे चपचपाना । एक प्रकारका डंक मारनेवाला कीड़ा ।-बिजली-शक्ति- पनिहा-वि० जो पानी में रहे। पानीका; जिसमें पानीका स्त्रो० (हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर) जलशक्तिके संप्रयोगसे | मेल हो, जलयुक्त । पु० दे० 'पनहा। उत्पन्न होनेवाली बिजलीकी शक्ति, जलविद्युत्-शक्ति । पनी-पु० प्रण करनेवाला, कील करनेवाला । + स्त्री० -भता-पु० केवल पानीमें पकाया हुआ भात-भरा- पन्नी, सुनहला-रुपहला कागज । पु० पानी भरनेवाला नौकर ।-लगा-पु० दे० 'पनकटा। पनीर-पु० [फा०] फाड़े हुए दूधका थक्का, छेना; इससे -वाडी-स्त्री० पानका खेत, बरेजा। पु० तमोली |- | तैयार की जानेवाली एक प्रकारकी टिकिया जो खानेके वार*-पु०पत्तल ।-वारा-पु० पत्तल, पत्तलभर भोजन । काममें आती है। पानी निचोड़े हुए दहीसे तैयार किया एक प्रकारका साँप । -वारी-स्त्री०, पु० दे० 'पनवाड़ी। जानेवाला एक प्रकारका खाद्य पदार्थ । मु०-चटाना-सल्ला-पु० प्याऊ, पौसरा। -साखा-पु. पाँच कोई काम निकालनेके लिए किसीकी चापलूसी करना। बत्तियोंवाली मशाल । -साल,-साला-स्त्री० पीसरा । -जमाना-कोई ऐसा काम करना जिससे और भी कार्य -सइया-स्त्री० छोटी डोंगी जिसमें खेनेवाला दोनों ओरके | सिद्ध हो सकें। डाँडे चला सकता है। -सेरी-स्त्री० दे० 'पंसेरी'।पनीला-वि० जिसमें पानी मिला हो, जलसे युक्त। -हडा-५० पान या हाथ धोनेकी पानी रखनेकी तमो- पनुआँ-पु० गुड़के कड़ाहेका धोबन जिसे शरबतकी तरह लियोंकी हाँड़ी। -हरा,-हारा-पु० पानी भरनेवाला पीते हैं। वि० जिसमें आवश्यकतासे अधिक पानी पड़ नौकर, पनभरा।
गया हो, फीका। पनग*-पु० दे० 'पन्नग'।
पनीटी-स्त्री० पान रखनेकी पिटारी, बाँसका पानदान । पनगनि*-स्त्री० पन्नगी, सर्पिणी।
पन्न-वि० [सं०] गिरा हुआ, नीचे खसका हुआ; गया पनच-स्त्री० धनुधकी डोरी।
हुआ, गत । पु० नीचेकी ओर जाना, अधोगमन रेंगना। पनपना-अ० क्रि० पल्लवित होना; हराभरा होना; फूलना- -ग-पु० दे० क्रममें। फलना; फिरसे स्वस्थ होना।
पन्नई-वि० पन्नेक रंगका। पनपाना-स० क्रि० 'पनपना'का सकर्मक रूप, किसीके पन्नग-पु० [सं०] साँप (जो रेंगकर चलता है); सीसा%B पनपनेका कारण होना।
पदमकाठ; * पन्ना ।-केसर-पु० नागकेसर ।-नाशनपनव*-पु० दे० 'प्रणव'; एक बाजा।
पु० गरुड़। -पति-पु० शेषनाग । पनस-पु० [सं०] कटहल; काँटा ।
पन्नगारि, पन्नगाशन-पु० [सं०] गरुड़ । पनह*-स्त्री० पनाह ।
पन्नगिनि*-स्त्री० दे० 'पन्नगी' । पनहा-पु० कपड़े आदिकी चीड़ाई भेद; चोरी गये भालका | पनगी-स्त्री० [सं०] सर्पिणी, साँपिन; एक बूटी।
पता लगानेवाला या इसके लिए दिया जानेवाला पुरस्कार। पन्ना-पु० हरे रंगका एक प्रसिद्ध रत्न, जमुर्रद; पुस्तक पनहिया-स्त्री० दे० 'पनहीं'।
आदिके दो पृष्ठ, वर्क; जूतेका पान; भेड़ोंके कानका बह पनही*-स्त्री० जूता।
चौड़ा हिस्सा जहाँसे ऊन काटते हैं। आम आदिका पना। पना-पु० अपनेसे पके या आगमें पकाये हुए आम, इमली पन्नी-स्त्री० राँगे आदिका हलका पत्तर जिसके टुकड़ोंको
आदिके रस या गूदेसे तैयार किया जानेवाला एक प्रकारका दूसरी चीजोंपर सुंदरताके लिए चिपकाते हैं। वह कागज पेय पदार्थ, पानक, पन्ना ।
या चमड़ा जिसपर सोने-चाँदीका पानी चढ़ाया गया हो; पनाती-पु० नातीका बेटा ।
एक भोज्य वस्तु; * बारूदकी एक आध सेरकी तील । पनार*-पु० दे० 'पनारा'।
-साज-पु० पन्नी बनानेका पेशा करनेवाला ।-साजी
गा
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पपड़ा-पर
१४८ स्त्री० पन्नीसाजका काम, पन्नीसाजका पेशा।
पयोमुक्()-पु० [सं०] बादल; मोथा । पपड़ा-पु० लकड़ी आदिका सूखा छिलका रोटीका छिलका। परंच-अ० [सं०] और भी पर, लेकिन, तो भी । पपड़िया, पपरिया-वि० जिसमें पपड़ी हो, पपड़ीदार । परंजय-पु० [सं०] शत्रुको जीतनेवाला; वरुण । -कथा-पु० सफेद कत्था ।
परंतप-वि० [सं०] शत्रुको संतप्त करनेवाला, शत्रुतापक । पपड़ियाना-अ० क्रि० किसी चीजपर पपड़ी पड़ना; इतना परंतु-अ० [सं०] पूर्वकथित स्थितिसे वैपरीत्य या अंतर सूख जाना कि ऊपर पपड़ी पड़ जाय, बहुत अधिक दिखलानेके लिए प्रयुक्त किया जानेवाला एक शब्दसूख जाना।
मगर, लेकिन, किंतु । पपड़ी-स्त्री० छोटा पपड़ा; किसी वस्तुकी वह ऊपरी परत परंतक-पु० (प्रॉविजो) किसी अधिनियम, प्रलेख आदिकी जो उसके बहुत अधिक सूख जानेसे चिटककर अलगसी धाराके साथ लगी हुई कोई शर्त या उसके पूर्ण रूपसे हो गयी हो, सूखकर ऐंठी हुई ऊपरी परत; घावका पालन या कार्यान्वित किये जानेमें पड़नेवाली किसी खुरंट पत्तरके रूपमें जमायी हुई मिठाई; वृक्षकी सूखकर कठिनाईसे बचनेके लिए निकाला हुआ रास्ता । चिटकी हुई छाल।
परंद, परंदा-पु० दे० 'परिंदा'। पपड़ीला-वि० पपड़ीवाला, पपड़ीसे युक्त ।
परंपद-पु० [सं०] वैकुंठा मोक्ष; उच्च पद । पपनी -स्त्री० बरौनी।
परंपरया-अ० [सं०] परंपराके अनुसार परंपरासे । पपिहा -पु० दे० 'पपीहा'।
परंपरा-स्त्री० [सं०] अविच्छिन्न क्रम, चला आता हुआ पपीता-पु० एक फलदार वृक्ष, एरंट मेवा ।
अटूट सिलसिला; क्रमबद्ध समूह या पंक्ति प्रथा, प्रणाली पपीलि*-स्त्री० दे० 'पिपीलिका'।
पुत्र-पौत्र आदि, वंश, संतति; अनुक्रमः वध । पपीहरा-पु० दे० 'पपीहा'।
परंपरागत-वि० [सं०] सदासे चला आता हुआ क्रमागत । पपीहा-पु० हलके काले रंगका एक प्रसिद्ध पक्षी जो परंपरित-वि० [सं०] परंपरायुक्त; परंपरापर अवलंबित । वसंत और पावसमें मीठे बोल बोला करता है, चातक । -रूपक-५० वह रूपक जिसमें एकका आरोप किसी (कहा जाता है कि यह 'पी कहाँ'-'पी कहाँ की रट | दूसरेके आरोपका हेतु होता है। लगाया करता है और केवल स्वातीकी बूंदसे प्यास बुझाता | पर-अ० किंतु, तो भी, लेकिन; पीछे; * पास । वि० है); सितारका पक्का तार; पपैया ।
[सं०] अपनेसे भिन्न, अन्य, दूसरा, गैर; दूसरेका, पपैया -पु० सीटी; अमोलेका बना बाज।।
पराया; आगेका, बादका; जो जदा या अलग हो; पपोरना*-स० क्रि० बाहोंकों ऐंठकर उनकी पुष्टता देखना | अतिरिक्त; जो दूर या परे हो; जो किसी हदके बाहर हो; (बलाभिमानका सूचन)-'कंस लाज भय गर्व युत चल्यो जो सबसे आगे या ऊपर स्थित हो; सबसे बड़ा, श्रेष्ठ पपोरत बाँह'-सू०।
सर्वातीत; शत्रुतापूर्ण, विरोधी; लगा हुआ; लीन; निरत । पबना*-स० क्रि० पाना।
सर्व० दूसरा व्यक्ति । पु० अजनबी; चरम विदु; गौण पबारना*-स० क्रि० दे० 'पँवारना'।
अर्थ; शत्रु; केवल ब्रह्म; शिव; ब्रह्मा; मोक्ष । -काजपबि, पब्बि *-पु० दे० 'पवि' ।
पु० [हिं०] दूसरेका काम । -काजी-वि० [ हिं०] पब्बय-पु० पर्वत, पहाड़ा पत्थर ।
दूसरेका काम करनेवाला, परोपकारी। -क्रामणपमाना*-अ० क्रि० डींग मारना।
पु० (नेगोशियेशन) पूरे अधिकारों समेत (बंधपत्रादि) पमार-पु० राजपूतोंका एक भेद; चकड़ ।
दूसरेको हस्तांतरित करनेकी क्रिया । -क्राम्य-वि० पयःपान-पु० [सं०] दूध पीना।
(नेगोशियेबिल) (बह बंध-पत्रादि) जो दूसरेको, समस्त पय(स)-पु० [सं०] दूध, जल, शुक्र, वीर्यः अन्न, अधिकारों समेत हस्तांतरित किया जा सके। -क्षेत्र-पु०
आहार, ओज, शक्ति ।-द-पु० दे० 'पयोद'।-धि, दूसरेका शरीर; दूसरेका खेत; दूसरेकी स्त्री । -गाछा-निधि*-पु० पयोधि, पयोनिधि । -हारी-पु० पु० [हिं०] दूसरे पेड़ोंपर लगनेवाला पौधा, बंदाक । [हिं०] केवल दूध पीकर रहनेवाला साधु ।
-गाछी-स्त्री० [हिं०] अमरवेल । -च्छंदानुवर्तीपयस्विनी-स्त्री० [सं०] नदी; दूध देनेवाली गाय, धेनु । (तिन् )-वि० जो दूसरेकी इच्छाके अनुसार काम करे, पयादा-वि० पैदल । पु० दे० 'प्यादा' ।
पराधीन । -च्छिद्र (छिद्र)-पु० दूसरेका दोष । पयान-पु० प्रस्थान, गमन, रवानगी ।
-ज-वि० जिसका पालन-पोषण किसी दूसरेने किया पयाम-पु० [फा०] पैगाम, संदेश ।
हो । पु० [हिं०] एक राग।-जन-पु० पराया, स्वजनका पयार*-पु० दे० 'पयाल'।
उलटा; * दे० 'परिजन'। -जात-वि० अन्य द्वारा पयाल-पु० पके हुए धान, कोदो आदिके वे डंठल जिनसे | पालित; परावलंबी । पु० नौकर; [हिं०] दूसरी जातिका दाने अलग कर लिये गये हों। मु०-झाड़ना-व्यर्थ मनुष्य । स्त्री० दूसरी जाति । -जाति-स्त्री. दूसरी श्रम करना; ऐसे व्यक्तिकी सेवा करना जिससे कुछ | जाति । -जित-वि० दूसरेके द्वारा पाला पोसा हुआ प्राप्त न हो।
जिसे किसीने जीत लिया हो, विजित । पु० कोयल। पयोद-पु० [सं०] बादल ।
-तंत्र-वि० जो दूसरेके वशमें हो, पराधीन । -दारपयोधर-पु० [सं०] बादल; स्तन; मोथा, नारियल, रीढ़ ।। स्त्री० दूसरेकी स्त्री, परायी स्त्री; * लक्ष्मी, पृथ्वी । पयोधि, पयोनिधि-पु० [सं०] समुद्र ।
| -दारिक,-दारी (रिन्)-पु० व्यभिचारी । -देश
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४४९
पर-परचइ पु० अपने देशसे भिन्न देश, दूसरा देश। -देशी-वि० परई।-स्त्री० मिट्टीका बड़ा कसोरा । [हिं०] दूसरे देशका । पु० दूसरे देशमें रहनेवाला; परकना*-अ० क्रि० परचना किसी विषयमें ढीठ बनना। प्रवासी ।-द्रोही (हिन्),-द्वेपी (पिन्)-वि० दूसरेसे परक(ग)सना*-अ० कि० प्रकाशित होना; प्रकट होना। द्वष या शत्रुता करनेवाला । -धन-पु० दूसरेका धन, परकार-पु० [फा०] (डिवाइडस) वृत्तकी परिधि बनाने, परायी संपत्ति । -धर्म-पु० दूसरेका या दूसरा धर्म, | नापने आदिका दो भुजाओंवाला एक आला; *दे० प्रकार । अपने धर्मसे भिन्न धर्म ।-पक्ष-पु० शत्रुका पक्ष; विरोधी.
धम ।-पक्ष-पु० शत्रुका पक्ष; विरोधी परकाल-पु० दे० 'परकार'। का मतविरोधीकी दलील । -पक्षनाही-वि० (टर्नकोट) परकाला-पु० सीढ़ी; देहली; [फा०] टुकड़ा; शीशेका टुकड़ा; अपना दल या पक्ष छोड़कर दूसरा दल या पक्ष ग्रहण कर चिनगारी । [आफतका परकाला-गजब ढानेवाला।] लेनेवाला; अपने विश्वासों या सिद्धांतोंका परित्याग कर परकास*-पु० दे० 'प्रकाश' । दूसरे विचारों-सिद्धांतोंका अनुयायी बन जानेवाला। परकासना*-सक्रि० प्रकाशित करना; प्रकट करना। -पद-पु० दे० 'परमपद' । -पार-पु० दूसरा किनारा, अ० क्रि० प्रकाशित होना । दूसरा छोर । -पीड़क-वि० दूसरोंको पीड़ा पहुँचाने- परकिति, परकीति, परकीती*-स्त्री० दे० 'प्रकृति' । वाला, दूसरोंको सतानेवाला; * दूसरोंके दुःखसे दुःखी | परकीय-वि० [सं०] दूसरेका । होनेवाला । -पुरुष-पु० पतिसे भिन्न पुरुष; अजनवी; परकीया-स्त्री० [सं०] वह नायिका जो गुप्त रूपसे परपुरुषोत्तम विष्णु । -पुष्ट-वि० जिसका पालन-पोषण | पुरुपसे प्रेम करे। दूसरेने किया हो। पु० कोयल । -पुष्टा-स्त्री० वेश्या, परकीरति-स्त्री० दे० 'प्रकृति' । रंडी; वंदाक । -बस-वि० [हिं०] दे० 'परवश'। परकोटा-पु० गढ़ आदिकी रक्षाके लिए चारों ओर उठायी -बसताई*-स्त्री० परवशता । -ब्रह्म (न्)-पु० गयी दीवार; पानी आदि रोकनेका बाँध । निर्गुण और उपाधिरहित ब्रह्म । -भाग्योपजीवी परख-स्त्री० गुण, दोष आदिके निर्णयकी दृष्टिसे किसी (विन्)-वि० दूसरेकी कमाई या दूसरेका अन्न खाकर | वस्तुको देखनेकी क्रिया, परीक्षा किसीके गुण-दोषका पता निर्वाह करनेवाला ।-भाषा-स्त्री० संस्कृतसे भिन्न भाषा; लगानेकी शक्ति। -नली-स्त्री (टेस्टट्यूब) दे० 'परीक्षणदूसरी भाषा। -भुक्ता-वि० स्त्री० ( वह स्त्री) जिसका नलिका'। केसी दूसरेके साथ समागम हो चुका हो । -भृत-वि० परखचा-पु० टुकड़ा, खंड । मु०-(चे)उड़ाना-खंड-खंड जसका पालन दूसरेने किया हो। पु० कोकिल; * षडा- कर देना, धज्जियाँ उड़ाना। नन । -भृत्-पु० कौआ। -मर्मज्ञ-वि० दूसरेका भेद | परखना-स० क्रि० गुण-दोषके निर्धारणके लिए किसी जाननेवाला । -राष्ट्र-पु० अपने देशको छोड़कर अन्य व्यक्ति या वस्तुको भली भाँति देखना; भली भाँति देखकर राष्ट्र । -राष्ट्र-मंत्री-पु० विदेशी मामलोंकी देखरेख गुण-दोष जान लेना; किसीकी राह देखना । करनेवाला मंत्री, विदेशमंत्री। -लोक-पु० स्वर्ग आदि परखवाना-स० कि० दे० 'परखाना' । लोक जहाँ मृत्युके पश्चात् प्राणीकी आत्मा जाती है। परखवैया, परखैया-पु० परखनेवाला, परखानेवाला -लोकगमन,-लोकवास-पु० मृत्यु (आदराथेक)। परखाई-स्त्री० परखनेका काम; परखनेकी उजरत । (मु०परलोक बनना-मृत्युके पश्चात् सद्गति प्राप्त होना। परखाना-स० कि० किसीसे परखनेका काम कराना; सहे-बिगड़ना-मृत्युके पश्चात् अच्छी गतिको प्राप्त न होना। जवाना। -सिधारना-मरना।)-वश,-वश्य-वि० जो दूसरेके परखी-स्त्री० लोहेका पतला, लंबा आला जिसे गेहूँ, चावल वशमें हो, पराधीन । -वशता,-वश्यता-स्त्री० परवश आदिके बोरेमें घुसाकर परखनेके लिए नमूना निकाला होनेका भाव, पराधीनता ।-वाद-पु० अफवाह; दूसरेकी जाता है। निंदा प्रत्युत्तर, विरोधरूप उत्तर । -वादी (दिन)- परग-पु० डग, कदम । पु० वह जो किसीके विरोधमें कुछ कहे, प्रत्युत्तर देनेवाला, परगट*-वि० प्रकट, स्पष्ट । प्रतिवादी । -साल-अ० [हिं०] पिछले या अगले साल ।
परगटना*-अ० क्रि० प्रकट होना। स० क्रि० प्रकट करना। -स्त्री-स्त्री० परायी स्त्री। -स्व-पु० दूसरेका धन, परगन*-पु० दे० 'परगना'। दमरेकी संपत्ति । -स्व-हरण-पु० दूसरेका धन हर परगना-पु० [फा०] एक भूभाग जिसके अंतर्गत बहुतसे लेना। -हित-पु. दूसरेका कल्याण । वि० दूसरेका | | गाँव होते हैं । -दार-पु० परगनेका अफसर । कल्याण करनेवाला।
परगसना*-अ० क्रि० प्रकाशित होना; प्रकट होना। पर-पु० [फा०] पंख, डैना। -कट,-कटा-वि० जिसके परगाढ़-वि० दे० 'प्रगाढ' । पर या पंख कटे हों । मु०-कट जाना-अशक्त हो जाना। परगार-पु० [फा०] वृत्तकी परिधि बनानेका एक आला । -काट देना-अशक्त बना देना। -कैच करना-कबूतर परगास*-पु० दे० 'प्रकाश' । आदिके पंख काट देना । -जमना-पंख जमना; शरारत परगासना-स० क्रि० प्रकाशित करना । अ० क्रि० प्रका. सूझना । (जाते हुए)-जलना,-टूटना-गति या जाने शित होना । का साहस न होना। -न मारना-जान सकना ।
नहाना। -न मारना-जान सकना। परघट*-वि० दे० 'प्रकट'। -निकलना,-व बाल निकलना-नया पर निकलना; परचंड*-वि० दे० 'प्रचंड' । होशियार होना । -बाँध देना-बेबस करना ।
| परचइ -पु० दे० 'परिचय'।
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परचत-परदा
४५० परचत*-स्त्री० जान-पहचान ।
परे, आगे। परचना-अ० क्रि०किसीसे इतनी जान-पहचान हो जाना परत-स्त्री० तह, स्तर, पुट । कि उससे कोई खटका न रह जाय, हिल-मिल जाना; परतच्छ, परतछ*-वि० दे० 'प्रत्यक्ष' । चसका लगना; * पहचाना जाना; सुलगना । मु०-परच | परतल-पु० लदुवा घोड़ेकी पीठपर रखनेका बोरा या पड़ना-पहचानमें आना।
गोनी। -का टट्टू-लदुवा घोड़ा। परचा-पु० [फा०] कागजका टुकड़ा; कागजका वह टुकड़ा | परतला-पु०,.परतली-स्त्री० तलवार आदि रखनेकी जिसपर परीक्षार्थियोंके हल करनेके प्रश्न लिखे रहते हैं, चमड़ेकी वह पट्टी जो कंधेसे लटकायी जाती है। प्रश्नपत्र पुरजा, रुक्का; * परिचय-'कह कबीर परचा परता-पु० दे० 'पड़ता।। भया गुरू दिखाई बाट'-कबीरपरखा जाँच सबूत । मु० परताप-पु० दे० 'प्रताप' । -देना-किसीको पूर्ण परिचय देना। -माँगना-सबूत परताल-स्त्री० दे० 'पड़ताल' । देनेको कहना; किसी देवी-देवतासे अपनी शक्ति दिखाने- | परतिग्या, परतिज्ञा-स्त्री० दे० 'प्रतिशा'। की प्रार्थना करना (ओझा)।
परती-स्त्री० वह जमीन जो जोती-बोयी न जाती हो वह परचाना-स० क्रि० परचने देना; हिलाना-मिलाना; चसका चद्दर जिससे हवा करके अनाज ओसाते हैं । मु०-लेनालगाना; सुलगाना--'बिरही दमन काम क्वैला परचाये | ओसाना । हैं'-सेना० ।
परतीत, परतीति-स्त्री० दे० 'प्रतीति'। परचारना*-स० क्रि० दे० 'प्रचारना'।
परतेजना*-स० क्रि० स्यागना, छोड़ना । परचून-पु० आटा-चावल आदि भोजनकी सामग्री। परत्र-अ० [सं०] दूसरे स्थानमें; परलोकमें; उत्तरकालमें । परचूनी-पु० परचून बेचनेवाला; परचूनकी दूकान करने पु० परलोक । -भीरु-वि० जिसे परलोकके बिगड़नेका वाला । स्त्री० परचूनीका काम ।
भय हो, धार्मिक । परचे, परच-पु० दे० 'परिचय'।
परथना-पु० दे० 'पलेथन'। परछत्ती-स्त्री० घर या कोठरीके भीतर सामान रखनेकी | परद*-पु० दे० 'परदा'। पाटन; हलकी छाजन, टाँड़ हलका छप्पर ।
परदच्छिना, परदछिना*-स्त्री० दे० 'प्रदक्षिणा'। परछन-पु० स्त्रियोंका एक वैवाहिक लोकाचार जिसमें वे परदनिया*-स्त्री० धोती। वरको दही-अक्षतका टीका लगाती और मूसल तथा बट्टा | परदनी*-स्त्री० धोती; दक्षिणा; बख्शिश । उसपरसे घुमाती हैं; वरकी आरती उतारना।
परदा-पु० [फा०] किसी वस्तु, व्यक्ति आदिको हाष्टसे परछा-पु. कोल्हूके बैलकी आँखोंपर अधोटी बाँधनेका ओझल करनेके कामका कपड़ा, टाट आदि; ओट करने
कपड़ा, जुलाहोंकी एक सूत लपेटनेकी नली; बड़ी बटलोई । वाली वस्तु; घूघट; भेद; आड़, ओट; लोगोंकी दृष्टिसे अपनेपरछाई-स्त्री० किसीकी वह छाया जो उतनी दूर और को बचानेकी स्थिति विभाग या आड़ करने के लिए बनायी उस दिशामें पड़ती है जितनी दूर और दिशामें उसके जानेवाली दीवार प्रतिष्ठा; सतह, मंडल (दुनियाका परदा); बीचमें आ जानेसे प्रकाश फैल नहीं पाता, प्रतिच्छाया; रंगमंचपर लगाया जानेवाला वह आड़ करनेका कपड़ा जो जल, दर्पण आदि में पड़नेवाली किसीकी छायाकृति । मु० समय-समयपर उठाया और गिराया जाता है; चमड़ेकी -से डरना-मामूली बातसे भी डरना ।
वह शिल्ली जो कान आदिमें आवरणका काम देती है। परछालना*-स० क्रि० प्रक्षालन करना, धोना ।
अँगरखेका वह हिस्सा जो छातीके ऊपर पड़ता है; सितार, परजंक*- पु० दे० 'पर्यक'।
हारमोनियम आदिमें स्वर निकलनेका स्थान; बारह परजन्य*-पु० दे० 'पर्जन्य'।
रागों (स्वरों) मेंसे हर एक नावकी पतवार । -दार-वि० परजरना*-अ० क्रि० जलना, क्रुद्ध होना; खीज उठना; परदा करनेवाला, छिपानेवाला। दारी-स्त्री०ऐब छिपाना; ईर्ष्या करना, द्वेष करना ।
भेद छिपाना।-नशीन-वि० जो परदे में रहे । -पोशपरजवट-पु० दे० 'परजौट'।
वि० ऐब छिपानेवाला। -पोशी-स्त्री० ऐव छिपाना । परजा-स्त्री० प्रजा, रैयत; नाई-बारी आदि आश्रित जन; मु०-उठाना या खोलना-रहस्यकी बात प्रकट करना, असामी, जमींदारीमें बसनेवाला ।
भेदकी बात जाहिर करना। -डालना-छिपाना; प्रकट परजाता-पु० एक प्रसिद्ध फूल, हरसिंगार; इसका पौधा ।। होनेसे रोकना। (आँखपर)-पड़ना-दिखाई न देना । परजाय*-पु० दे० 'पर्याय'।
(बुद्धिपर)-पड़ना-समझ जाती रहना, अकृ खफ्त परजीट-पु० सालाना किरायेपर मकान उठानेकी, जमीन होना। -फटना*-इज्जत आबरू न बचना--'सेवकको लेने देनेकी रीति; मकान बनानेकी जमीनका सालाना परदा फटै तू समरथ सीले'-विनय० । -फाश करनाकिराया।
दोष प्रकट करना; भेद खोलना। -फाश होना-दोष परज्वलना*-स० क्रि० प्रज्वलित करना। अ० क्रि० प्रज्व- प्रकट होना; भेद खुलना। (किसीका)-रखना किसीकी लित होना।
बुराईको जाहिर न होने देना, प्रतिष्ठाकी रक्षा करना । परणना*-स० क्रि० ब्याहना ।
-रखना-अपनेको किसीकी दृष्टिसे बचाना; सामने न परतंचा, परतिंचा-स्त्री० दे० 'प्रत्यंचा'।
होना; दुराव-छिपाव रखना । (किसीको)-लगनापरतः (तस)-अ० [सं०] दूसरेसे; शत्रुसे; बादमें, पीछे । परदेमें रहनेका नियम होना। -होना-परदा रखने
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४५१
परदादा-परमार्थ या परदे में रहनेका नियम होना; दुराव-छिपाव होना। परभाइ-पु० दे० 'प्रभाव' । (परदे के पीछे-छिपे-छिपे। -परदे-गुप्त रीतिसे,छिपे- परभात*-पु० दे० 'प्रभात' । छिपे।-में छेद होना-परदेके पीछे व्यभिचार होना। परभाती-स्त्री० दे० 'प्रभाती'। -में रखना-स्त्रियोंको सबके सामने न होने देना; गुप्त परभाव-पु० दे० 'प्रभाव' । रखना। -में रहना-स्त्रियोंका घरसे बाहर न निक- परम-वि०[सं०] सर्वोत्कृष्ट; सर्वोच्च; मुख्य; सबसे पहलेका, लना; स्त्रियोंका सबके सामने न होना; छिपा रहना आद्य; अत्यधिक; अतिगूदा सबसे खराब हद दर्जेका । पु० बाहर न निकलना (व्यंग्य)।
ओंकार; शिवः विष्णु; वह जो मुख्य या सर्वोच्च हो। परदादा-पु० दादाका बाप, प्रपितामह ।
-गति-स्त्री० उत्तम गति, मुक्ति। -तत्त्व-पु० मूलपरदोस*-पु० दे० 'प्रदोष'; भारी दोष ।
तत्त्व, ब्रह्म । -धाम (न्)-पु० वैकुंठ । -पद-पु० परधान*-वि० दे० 'प्रधान' । पु० दे० 'परिधान'; मंत्री, | सबसे उच्च पद या स्थान; मुक्ति । -पिता (तृ)-पु० नायक; माया; बुद्धि।
परमेश्वर । -पुरुष,-पूरुष-पु० परमात्मा; विष्णु । परन-पु० मृदंग आदिके प्रधान बोलोंके बीचमें बजाये -ब्रह्म (न्)-पु० दे० 'परब्रह्म । -भट्टारक-पु० जानेवाले बोलोंके टुकड़े; * प्रण टेकपत्ता । * स्त्रीण्टेव, चक्रवती राजाओंकी एक प्राचीन उपाधि । -भट्टारिकाआदत । -कुटी-स्त्री०, -गृह-पु० झोपड़ी।
स्त्री० पटरानियों की एक प्राचीन उपाधि । -रस-पु० परना*-अ० क्रि० दे० 'पड़ना'।
तक्र, मट्ठा । -वीरचक्र-पु० भारतीय गणतंत्रमें शत्रुके परनाना-पु० नानाका पिता (स्त्री० परनानी)।
सम्मुख असाधारण वीरता प्रदर्शित करनेपर भारत-सेनाके परनामा-पु० दे० 'प्रणाम'।
किसी वीरको दिया जानेवाला 'विक्टोरिया क्रास'के ढंगका परनाला-पु० घरके गंदे पानी और गलीजके बहनेका । प्रथम श्रेणीका उपहार । -श्रेष्ठ-वि० (हिज़ एक्सलेंसी) मार्ग, नाबदान, मोरी।
दे० 'महामहिम', तत्रभवान् । -सत्ता-स्त्री० (ऐबसाल्यूट परनाली-स्त्री० छोटा परनाला; घोड़ोंकी पीठका कंधों और पावर) अनियंत्रित शक्ति या अधिकार, पूर्ण तथा अबाध पुट्ठोंकी अपेक्षा नीचा होना जो उनके तेज होनेका लक्षण | सत्ता। -हंस-पु. एक प्रकारका संन्यासी। माना जाता है।
परमांगना-स्त्री० [सं०] अच्छी स्त्री। परनि*-स्त्री० आदत, टेव ।
परमा-स्त्री० शोभा; सौंदर्य । + पु० प्रमेह रोग । परनीत-स्त्री० प्रणति, प्रणाम ।
परमाक्षर-पु० [सं०] ॐकार । परपंच*-पु० दे० 'प्रपंच'।
परमाणु-पु० [सं०] (ऐटम) पृथ्वी, जल, तेज और वायुका परपंचक*-वि० प्रपंच करनेवाला; फसादी; धूर्त ।
वह सबसे छोटा भाग जिसके और टुकड़े न हो सकें। परपंची*-वि० दे० 'परपंचक' ।
किसी पदार्थका वह सबसे छोटा टुकड़ा जिसके और टुकड़े परपट-पु० चौरस मैदान ।
न हो सकें।-बम-पु० [हिं०] यूरेनियमसे तैयार किया परपटी-स्त्री० दे० 'पर्पटी'।
जानेवाला एक महाविध्वंसक बम जिसका आविष्कार परपरा*-वि० चरपरा; 'पर-पर' आवाजके साथ टूटनेवाला। द्वितीय महायुद्धके समाप्तिकाल में हुआ (इसी बमके प्रहारपरपराना -अ० क्रि० मिर्च आदि तीखी वस्तुओंके स्पर्शसे से जापानने मित्र-सेनाओंके सामने घुटने टेक दिये)। जीभ आदिका जलनेसा लगना, चुनचुनाना ।
-वाद-पु० न्याय और वैशेषिक दर्शनका यह मत कि परपराहट-स्त्री० परपरानेकी क्रिया या भाव ।
संसारकी सृष्टि परमाणुओंसे हुई है। (ऐटमिज्म) परमाणुओंपरपूठा-वि० पक्का, दृढ़ ।
से वस्तुओंके निर्माण तथा परमाणुओंके कार्यों, प्रभावादिपरपोता-पु० पोतेका पुत्र, प्रपौत्र ।
का विवेचन करनेवाला सिद्धांत । -वादी(दिन)-पु० परफुल्ल, परफुल्लित*-वि० दे० 'प्रफुल्ल' ।
परमाणुवादको माननेवाला। परबंध*-पु० दे० 'प्रबंध'।
परमात्मा (स्मन्)-पु० [सं०] परमेश्वर । परब-पु० दे० 'पर्व' । स्त्री०किमी रत्नका छोटा टुकड़ा। परमाद्वैत-पु०[सं०] सभी भेदोंसे रहित परमात्मा विष्णु । परबत-पु० दे० 'पर्वत'।
परमाधिकार-पु०[सं०] (प्रेरोगेटिव) दे० 'विशिष्टाधिकार'। परबत्ता-पु० पहाड़ी तोता ।
परमानंद-पु० [सं०] उत्तम आनंद; उत्तम आनंदरूप परबल*-वि० दे० 'प्रबल' । पु० एक तरकारी। परमात्मा । परबाल-पु० पल कपर निकला हुआ वह अनावश्यक बाल | परमान-पु०प्रमाण, विश्वास परिमाण सत्य बात; अवधि । जो बहुत पीड़ा पहुँचाता है। * दे० 'प्रवाल'।
परमानना*-स० क्रि० प्रमाणरूपमें ग्रहण करना, प्रमाण परबी-स्त्री० पर्वका दिन; त्योहारी ।
मानना; अंगीकार करना; मानना, विश्वास करना । परबीन*-वि० दे० 'प्रवीण'।
परमायु (स)-स्त्री० [सं०] सर्वाधिक आयु । परबेस*-पु० दे० 'प्रवेश'।
परमार-पु० राजपूतोंका एक वंश। परबोध*-पु० दे० 'प्रबोध' ।
परमारथ*-पु० दे० 'परमार्थ'। परबोधना*-स० क्रि० प्रबुद्ध करना, जगाना; शानका | परमार्थ-पु० [सं०] उत्कृष्ट बस्तु; नित्य और अबाधित
उपदेश देना, समझाना-बुझाना, सांत्वना देना। पदार्थ; यथार्थ तत्त्व; सत्य; मोक्ष ब्रह्म ।-वादी(दिन)परभा*-स्त्री० दे० 'प्रभा'।
पु० वेदांती, तत्त्वज्ञ । -विद्-पु० ब्रह्मज्ञानी, दार्शनिक । २९
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परमार्थी - परहेज़
परमार्थी (र्थिन् ) - वि० [सं०] परमार्थको जानने या प्राप्त करनेका इच्छुक ।
परमावश्यक सेवाएँ - स्त्री० (इसेंशल सर्विसेज) सर्वसाधा रणको पानी, बिजली आदि देने तथा सार्वजनिक सफाई आदि-संबंधी कार्य ।
जिसने किसी ओर से मुँह मोड़ लिया हो,
परमिति * - स्त्री० परम सीमा; मर्यादा । परमुख* - वि० पराङ्मुख । परमेश - पु० [सं०] ब्रह्मा, विष्णु और महेश - इन तीन रूपोंवाला, सगुण ब्रह्म; शिव; विष्णुः चक्रवती राजा । परमेश्वर - पु० [सं०] दे० 'परमेश'; इंद्र |
परमेश्वरी - स्त्री० [सं०] दुर्गा |
परमेष्ठी ( ष्ठिन् ) - पु० [सं०] ब्रह्मा; शालग्रामका एक विग्रह; शिव; गुरु; गरुड़; अर्हत, जिन; अग्नि ।
परमेसर, परमेसुर - पु० दे० 'परमेश्वर' | परमेसरी* - स्त्री० दे० 'परमेश्वरी' |
परमोद * - पु० दे० 'प्रमोद' |
परमोधना* - स० क्रि० दे० 'परबोधना' - 'बात बनाई जग ठगा, मन परमोधा नाहि' - साखी ।
परयंक * - पु० दे० 'पर्यंक' |
परलउ * - पु० दे० 'प्रलय' ।
परलय * - पु० स्त्री० दे० 'प्रलय' ।
परला - वि० उस ओरका, दूसरी ओरका, उरलाका उलटा । (परले) दरजे, - सिरेका - परम कोटिका, हद दरजेका, अत्यधिक | मु० (परले) पार होना- हदतक पहुँचना, अंतिम सीमा तक पहुँचना; बहुत दूरतक पहुँचना; समाप्त होना, पूरा होना ।
परवर - + पु० दे० 'परवल'; आँखका एक रोग । वि०, पु० दे० 'प्रवर' । वि० [फा०] पालन-पोषण करनेवाला (समास में प्रयुक्त होता है) । - दिगार- पु० पालन-पोषण करनेवाला, पालक; ईश्वर, अल्ला । परवरिश - स्त्री० [फा०] पालन-पोषण; मेहरबानी । परवल - पु० एक प्रसिद्ध लता; इस लताका फल जो तर कारीके काम आता है; चिचड़ा ।
परवस्ती | - स्त्री० परवरिश, पालन-पोषण । परवा - पु० मिट्टीका बना एक तरहका कटोरा जैसा बरतन, कोसा । स्त्री० पक्षकी पहली तिथि, परिवा; एक घास [फा०] चाह, खाहिश; फिक्र, चिंता, किसी बातकी ओर मन लगाना, ध्यान, अवधान; अवलंब, सहारा, भरोसा,
खटका; गरज |
परवाई* - स्त्री० दे० 'परवा' ।
|
परवान* - पु० प्रमाण; अवधि, सीमा; जहाजका मस्तूल । परवानना* - स० क्रि० प्रमाणरूप मानना, ठीक समझना । | परवानगी - स्त्री० [फा०] इजाजत, आज्ञा, फरमान । परवाना - पु० [फा०] लिखित आज्ञा, आज्ञापत्र, अनुमति पत्र, हुक्मनामा, फरमान; बरी, चूना आदि नापनेका एक बड़ा पैमाना; जागीरका हुक्म; लाइसेंस; नौकरीका आज्ञापत्र, नियुक्तिपत्र; नायबके नाम भेजा जानेवाला आज्ञापत्र; शेरके आगे चलनेवाला जानवर; फलिंगा, पंखी । - गिरफ्तारी - पु० बंदी बनानेका आशापत्र । - तलाशी
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४५२
पु० खाना तलाशीका आशापत्र | -नवीस - पु० परवाना लिखनेवाला कर्मचारी, वह क्लर्क जो परवाना लिखे । - राहदारी - पु० दूसरे देशमें जानेका सरकारकी ओर से मिलनेवाला स्वीकृतिपत्र (पासपोर्ट) ।
परवाया - पु० चारपाईके पायोंके नीचे रखी जानेवाली वस्तु । परवाल * - पु० दे० 'प्रवाल' | परवास* - पु० आच्छादन; प्रवास | परवाह - स्त्री० दे० 'परवा' । परवीन* - वि० दे० 'प्रवीण' ।
परवेख* - पु० यदा-कदा चंद्रमाके चारों ओर बन जानेवाला बादलके टुकड़ेकी तरहका घेरा; दे० ' परिवेष' । परवेश* - पु० दे० 'प्रवेश' ।
परश - पु० [सं०] पारस पत्थर |
परशु - पु० [सं०] कुल्हाड़ीकी तरहका एक प्रसिद्ध अस्त्र, फरसा (यही परशुरामका प्रधान अस्त्र था); अस्त्र । -घरपु० परशु धारण करनेवाला; परशुराम; गणेश । - पलाशपु० फरसेका फल | - मुद्रा - स्त्री० उँगलियोंकी एक प्रकारकी मुद्रा । -राम- पु० जमदग्नि ऋषिके एक पुत्र जो विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं (इन्होंने २१ बार पृथ्वीको क्षत्रियोंसे रहित कर दिया था)। -वनपु० एक नरक ।
परसंग - पु० दे० 'प्रसंग' | परसंसा * - स्त्री० दे० 'प्रशंसा' ।
परस* - पु० स्पर्श, छूना। -पखान- पु० पारस पत्थर | परसन - पु० स्पर्श । * वि० प्रसन्न, खुश | परसना - स० क्रि० खानेवालोंके सामने भोज्य वस्तुएँ रखना; * छूना, स्पर्श करना । परसन्न * - वि० दे० 'प्रसन्न' |
परसर्ग-पु० [सं०] शब्द के आगे जोड़ा जानेवाला प्रत्यय । परसा- पु० फरसा, कुठार; पत्तल आदिमें रखा हुआ एक व्यक्तिके खानेभरका भोजन ।
परसाद* - पु० दे० 'प्रसाद' | परसादी - स्त्री० दे० 'प्रसाद' ।
परसाना - सु० क्रि० भोज्य वस्तु सामने रखवाना; * स्पर्श कराना, छुलाना; फैलाना - 'दलपर फन परसावति' -सू०| परसिद्ध* - वि० दे० 'प्रसिद्ध' । परसु* - पु० दे० 'परशु' । परसूत - वि० दे० 'प्रसूत' । परसेद - पु० दे० 'प्रस्वेद' |
परसों - अ० पिछले दिनसे एक दिन पहले; अगले दिनसे एक दिन आगे ।
परसोत्तम* - पु० दे० 'पुरुषोत्तम' । परसौहाँ * - वि० स्पर्श करनेवाला, छूनेवाला । परस्पर- अ० [सं०] एक दूसरे के साथ, आपसमें । परस्परोपमा - स्त्री० [सं०] उपमालंकारका एक भेद, उपमे योपमा ।
परहरना * - स० क्रि० त्यागना, छोड़ना, तजना । परहेज़-पु० [फा०] निषिद्ध वस्तुओंसे बचना; बीमारका हानिकर वस्तु न खाना, कुपथ्यसे बचना; खाने-पीने आदिका संयम दोष-पापसे बचना। -गार-पु० परहेज
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४५३
परिहेलना-परिकथा
करनेवाला; पापसे बचनेवाला, भगत । -गारी-स्त्री० या विषयादिके संबंधमें सलाह देनेवाली समिति । परहेज करनेका कार्य, संयम, पापसे बचनेका कार्य । परामर्शालय-पु० [सं०] (कन्सल्टिंग रूम) किसी चिकिपरहेलना*-स० क्रि० अवहेलना करना, अनादर करना, त्सक या वकील आदिसे परामर्श करनेका स्थान, कमरा तुच्छ समझना।
या गृह । परांग-पु० [सं०] दूसरेका अंग श्रेष्ठ अंग-भक्षी (क्षिन) परामृष्ट-वि० [सं०] पकड़कर खींचा हुआ स्पृष्टः विचारा वि० (पैरासाइट) दे० 'परोपजीवी' ।
हुआ; संबद्ध; जिसके विषयमें सलाह की या दी गयी हो। पराठा-पु० घी लगाकर तवेपर सेंकी जानेवाली चपाती। परायण-वि० [सं०] अति आसक्त, निरत; अवलंबित । परांत-पु० [सं०] मृत्यु । -काल-पु० मृत्युकाळ । परायत्त--वि० [सं०] पराधीन । परा-उप० [सं०] एक उपसर्ग जो अर्थ में प्रातिलोम्य (परा- पराया-वि० दूसरेका, बिराना; अपनेसे भिन्न । हत), प्राधान्य (परागत), आभिमुख्य (पराक्रांत), विक्रम परार*-वि० दूसरेका, पराया। पु० पयाल । (पराजित) आदिके यातनके लिए प्रयुक्त होता है। स्त्री० परारब्ध, परालब्ध-पु० दे० 'प्रारब्ध' । मूलाधार में स्थित रहनेवाली नाद रूपिणी वाणी; ब्रह्मविद्या परार्थ-पु० [सं०] दसरेका प्रयोजन, दूसरेका कार्य सबसे गंगा; * पंक्ति । वि० स्त्री० श्रेष्ठ । -गति-स्त्री० गायत्री। बड़ा लाभ । वि० जो दूसरेके निमित्त हो । -वाद-पु० पराइ*-वि० स्त्री० दूसरेकी।
(ऐलट्र इज्म) दूसरोंकी सेवा या भलाईके लिए ही जीवित पराकाष्ठा-स्त्री० [सं०] अंतिम सीमा, चरम कोटि या रहने या कार्य करनेका सिद्धांत। सीमा, हद ब्रह्माकी आधी आयु ।।
पराव, परावा*-वि० पराया,दूसरेका । पराकोटि-स्त्री० [सं०] दे० 'पराकाष्ठा' ।
परावत-पु० [सं०] फासला। पराक्रम-पु० [सं०] सामर्थ्य, बल; शौर्यविक्रम, उद्योग, परावन-पु० बहुतोंका एक साथ भागना, सामूहिक पलापुरुषार्थ; अभियान, आक्रमण; विष्णु । मु०-चलना- यन, भगदड़; * पर्वकाल-'पूरे पूरब पुन्यतें परयो परा• उद्योग किया जा सकना; शक्तिका साथ देना।। वन आज'-मति । पराक्रमी (मिन)-वि० [सं०] पराक्रमवाला; शूरः पुरुषार्थी। परावर-वि० [सं०] पहलेका और पीछेका; निकटका और पराग-पु० [सं०] फूलके भीतरकी धूल, पुष्परज; धूल दरका सर्वश्रेष्ठ; परंपरागत । पु० कारण और कार्य विश्व केसरका चूर्ण आदि जिसे नहानेके बाद लगाते हैं; उपराग; | अखिलता। चंदन; कपूरका चूरा; चंद्र या सूर्यका ग्रहण; ख्याति; एक परावर्त, परावर्तन-पु० [सं०] अदला-बदला, विनिमय पर्वत; स्वच्छंद गति । -केसर-पु० फूलोंके भीतरके वे लौटना, प्रत्यावृत्ति फैसला उलटना; ग्रंथोंको दोहराना, पतले लंबे डोरे जिनपर केसर लगा रहता है।
उद्धरणी (जैन)। -व्यवहार--पु० फैसला किये हुए परागना-अ० क्रि० प्रेमासक्त होना, प्रेममें पड़ना । मुकदमेपर फिर विचार करना, फैसलेका पुनर्विचार । पराडमख-वि० [सं०] जिसने किसी ओरसे मुँह मोड़ परावर्तित-वि० [सं०] लौटाया हुआ। लिया हो, विमुख प्रतिकूल ।।
परावृत्त-वि० [सं०] लौटा हुआ; लौटाया हुआ । पराजय-स्त्री० [सं०] हार, विजयका उलटा ।
परावृत्ति-स्त्री० [सं० लौटना, पलटना; लौटाया जाना, पराजित-वि० [सं०] जिसने हार खायी हो, हारा हुआ, पलटा जाना फैसला किये हुए मुकदमेपर फिरसे विचार हराया हुआ।
करना। परात-स्त्री॰थालीकी शकलका पीतल आदिका बड़ा बरतन, पराश्रय-पु० [सं०] दूसरेका सहारा या अवलंब । वि० थाल ।
दूसरेपर आश्रित । पराधीन-वि० [सं०] जो दसरेके अधीन हो, परवश । परासु-वि० [सं०] मरा हुआ, मृत । पराधीनता-स्त्री० [सं०] पराधीन होनेकाभाव, परवशता। परास्त-वि० [सं०] हराया हुआ; जिसका प्रभाव नष्ट हो परान-पु० दे० 'प्राण'।
गया हो; दबा हुआ; फेंका हुआ; अस्वीकृत । पराना*-अ० क्रि० पलायन करना, भागना।
पराह-पु० [सं०] दूसरा दिन । परान-पु० [सं०] दूसरेका अन्न; दूसरेका दिया हुआ पराहत-वि० [सं०] आक्रांत; खदेड़ा हुआ, हटाया हुआ;
भोजन। -भोजी(जिन्)-वि० दुसरेका दिया खाकर जोता हुआ; खंडित । पु० आघात । निर्वाह करनेवाला।
पराह्न-पु० [सं०] दोपहरके बादका समय, दिनका तीसरा परापर-वि० [सं०] पर और अपर; परत्व और अपरत्व पहर दोनों गुणोंसे युक्त (वैशेषिक)।
परिंदा-पु० [फा०] पक्षी, चिड़िया । पराभव-पु० [सं०] तिरस्कार, अनादर; हार, पराजय । | परि-उप० [सं०] एक उपसर्ग जोसमंततोभाव (परिक्रमण), पराभूत-वि० [सं०] जिसका पराभव हुआ हो; तिरस्कृत ।। व्याप्ति (परिणत), दोषकथन ( परिवाद ), भूषण (परिपराभूति-स्त्री० [सं०] दे० 'पराभव' ।
कार), आश्लेष (परिष्वंग), पूजन (परिचर्या), परामर्श-पु० [सं०] पकड़ना; खींचना; आक्रमण; बाधा; आच्छादन (परिच्छद) आदि अर्थोके द्योतनके लिए स्पर्श करना; रोगाक्रांत होना; विवेचना युक्ति; सलाइ । शब्दोंके पूर्व आता है। -कक्ष-पु० (कन्सस्टिग रूम) दे० 'परामर्शालय' ।- परिकप-पु० [सं०] कँपकँपी अत्यधिक भय । दात्री समिति-स्त्री० (ऐडवाइजरी कमिटी) किसी कार्य । परिकथा-स्त्री० [सं०] अनुकथा, वह छोटी कथा जो बड़ी
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परिकर - परिचारण
कथाके अंदर आयी हो ।
परिकर - पु० [सं०] परिवार; अनुचरवर्ग; कमरबंद; समारंभ, तैयारी; पलंग; समूह; विवेकः सहायक; सहकमी; एक अर्थालंकार जहाँ विशेष अभिप्राय से युक्त विशेषणका प्रयोग हो; बीज, भावी घटनाओंका संकेतरूपमें सूचन ( ना० ); निर्णय, फैसला ।
|
વર્ષ
पु० (सरकम्स्क्राइब्ड सरकिल) वह वृत्त जो त्रिभुजके तीनों शीर्षोंसे होकर गया हो ।
परिगम, परिगमन- पु० [सं०] घेरना, आवेष्टित करना; व्याप्त करना या होना; प्राप्त करना; जानना ।
परिगह * - पु० आश्रित जन; संबंधी । परिगहन - वि० [सं०] अति गइन ।
परिकरमा * - स्त्री० दे० परिक्रमा' ।
परिगहना * - स० क्रि० ग्रहण करना, अंगीकार करना ।
परिकरांकुर - पु० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ विशिष्ट परिगीत - वि० [सं०] जिसका बहुत अधिक वर्णन या अभिप्राय से युक्त विशेष्यका प्रयोग हो । परिकर्तन - पु० [सं०] काटना; गोलाकार काटना; शूल । परिकर्म (न्) - पु० [सं०] शरीर में केसर आदि लगाना; पैरको रँगना या उसमें महावर आदि लगाना; पूजन; सभारंभ; परिष्कार ।
कीर्तन किया गया हो । परिगृहीत- वि० [सं०] स्वीकृत; चारों ओरसे पकड़ा या घेरा हुआ; पकड़ा हुआ; धारण किया हुआ; ग्रहण किया हुआ; संरक्षित; प्राप्त किया हुआ; अनुसृत; विवाहित । परिगृहीता (तृ) - पु० [सं०] पति; सहायक; गोद लेनेवाला व्यक्ति ।
परिकर्मा (न्) - पु० [सं०] सेवक, अनुचर, परिचारक । परिकर्मा (र्मिन्) - पु० [सं०] सहायक, सेवक, दास । परिकल्पन - पु०, परिकल्पना - स्त्री० [सं०] मनमें गढ़ना; रचना, बनाना; आविष्कार करना; निर्णय, निश्चय करना; बाँटना; प्रस्तुत करना ।
परिकल्पित - वि० [सं०] मनमें गढ़ा हुआ; रचा हुआ; आविष्कृत; निणीत; विभक्त; मुहय्या किया हुआ । परिकीर्ण - वि० [सं०] चारों ओर फैला हुआ, व्याप्त । परिक्रम- पु० [सं०] (दूर) दौरा; चारों ओर घूमना, यात्रा करना; प्रदक्षिणा करना; टहलना; क्रम; प्रवेश । परिक्रमण-पु० [सं०] दे० 'परिक्रम' | परिक्रमा - स्त्री० फेरी, प्रदक्षिणा; किसी मंदिरादिमें प्रद क्षिणा करनेके लिए बनायी हुई जगह, फेरी देनेका मार्ग । परिक्रिया - स्त्री० [सं०] घेरना; खाई आदि से घेरना ।
परिग्रह - पु० [सं०] लेना, स्वीकार करना; ग्रहण करना; चारों ओर से घेरना, आवेष्टित करना; धारण करना; धन आदिका संचय; किसी दी हुई वस्तुको ग्रहण करना; किसी स्त्रीको भार्यारूप में ग्रहण करना, किसी स्त्रीसे ब्याह करना; पत्नी, स्त्री; पति; घर; परिवार; अनुचर; सेनाका पिछला भाग; राहु द्वारा सूर्य या चंद्रमाका ग्रसा जाना; शपथ, कसम; मूल; विष्णु; जायदाद; स्वीकृति, मंजूरी; दावा; स्वागत-सत्कार; आतिथ्य सत्कार करनेवाला; आदर; सहायता; दमन; दंड; राज्य; संबंध; योग, संकलन; शाप |
परिग्रहण-पु० [सं०] अच्छी तरह ग्रहण करना; पहनना, धारण करना ।
परिध - पु० [सं०] अर्गला; छड़; डंडा; रोक; बर्छा, भाला; लौहगदा; घड़ा; मकान; वध, नाश ।
परिक्कांत - वि० [सं०] बहुत अधिक थका हुआ ।
परिक्लिष्ट - वि० [सं०] जिसे बहुत अधिक क्लेश पहुँचा हो; परिचना * - अ० क्रि० दे० 'परचना' । स०क्रि० परीक्षा लेना ।
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करना ।
परिखा - स्त्री० [सं०] नगर या दुर्गको दुर्गम बनानेके लिए उसके चारों ओर खोदी जानेवाली खाई ।
थका हुआ।
परिक्केद - पु० [सं०] आर्द्रता, नमी, गीलापन ।
परिक्षय - पु० [सं०] बर्बादी, नाश, लोप । परिक्षा - स्त्री० दे० 'परीक्षा' | परिखन* - पु० देखभाल करनेवाला ।
परिखना * - स० क्रि० प्रतीक्षा करना; जाँच करना; गणना | परिचर - पु० [सं०] भृत्य, सेवक, खिदमतगार; रथकी
रक्षा के लिए नियुक्त सैनिक, रथरक्षक; अंगरक्षक; दंडनायक; आदर-सत्कार । वि० भ्रमणशील; चल; वहनशील । परिचरजा* - स्त्री० दे० 'परिचर्या' ।
परिचय - पु० [सं०] एकत्र करना; चारों ओर जमा करना;
पूरी जानकारी, जान-पहचान; अभ्यास । - पत्र - पु० (लेटर ऑफ इंट्रॉडक्शन) किसी व्यक्ति या अधिकारीका दिया हुआ वह पत्र जिसे कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति या अधिकारीको अपना परिचय देनेके लिए दिखलाता है ।
- जाति - स्त्री० (शेड्यूल्ड कास्ट) दे० 'अनुसूचित जाति' । परिगत - वि० [सं०] घिरा हुआ, आवेष्टित; पूर्णतः व्याप्त; जाना हुआ, ज्ञाता; स्मृतः प्राप्त किया हुआ; मरा हुआ, मृत; विस्मृत; अभिभूत; से पीड़ित; बाधित । - वृत्त
परिखात - पु० [सं०] परिखा; चारों ओर खाई खोदनेकी परिचरी - स्त्री० [सं०] सेविका, दासी ।
क्रिया; हराई, बांह |
परिखिन्न - वि० [सं०] कष्टग्रस्त, पीडित, परेशान । परिख्यात - वि० [सं०] बहुत अधिक प्रसिद्ध । परिगणन - पु०, परिगणना - स्त्री० [सं०] पूरी गणना करना; (शेड्यूल) दे० 'अनुसूची'; विधि तथा निषेधशास्त्रका विशेष रूपसे कथन । परिगणित - वि० [सं०] जिसका परिगणन किया गया हो ।
परिचर्या - स्त्री० [सं०] सेवा, खिदमत; रोगीकी सेवा । परिचायक - पु० [सं०] परिचय करानेवाला; जतानेवाला । परिचार - पु० [सं०] सेवा, खिदमत, टहलने, घूमनेकी जगह; सेवक | - गाड़ी - स्त्री० (एम्ब्यूलेंस कार ) घायल हुए या बीमार व्यक्तियोंको लाने-ले जानेवाली गाड़ी । परिचारक, परिचारिक, परिवारी (रिन् ) - पु० [सं०] सेवक, खिदमतगार; रोगीकी सेवा करनेवाला, तीमारदार । परिचारण- पु० [सं०] सेवा; ( सरक्यूलेशन ) सूचनाओं, विधेयक आदिका सदस्यों या अन्य लोगों में परिचारित किया जाना। -दल-पु० (एम्ब्यूलेंस कोर) दे० 'आहतोपचारी दल' |
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परिचारना-परितापी परिचारना*-स० क्रि० सेवा करना ।
व्यंग्यपूर्ण शब्दोंमें नायककी निर्दयता, शठता आदिका परिचारिका-स्त्री० [सं०] सेविका, टहल करनेवाली। वर्णन करना। परिचारित करना-स० क्रि० (टु सरक्यूलेट) कोई पत्र, परिज्ञप्ति-स्त्री० [सं०] अच्छी तरह जानना; पहचानना; विधेयक आदि विशिष्ट लोगोंकी राय जाननेके लिए चारों बातचीत, कथोपकथन । तरफ वितरित करना या घुमाना, परिपत्रित करना। परिज्ञात-वि० [सं०] भली भाँति जाना हुआ; पहचाना परिचालक-पु० [सं०] चारों ओर घुमानेवाला; चलाने- हुआ। वाला; हिलानेवाला; (कंडक्टर) परिचालन, नियंत्रण आदि- परिज्ञान-पु० [सं०] पूरी जानकारी, पूरा ज्ञान; सूक्ष्म का काम करनेवाला; ट्राम (रथ्यायान), बस, ट्रेन आदिमें | शान; पहचान।। यात्रियोंकी देखरेखका भार संभालनेवाला कर्मचारी । वि० परिणत-वि० [सं०] चारों ओरसे झुका हुआ बहुत झुका (कंडक्टर) ताप या विद्युत्को कणोंकी सहायतासे एक स्थान- हुआ, अत्यंत नत; परिणाम या रूपांतरको प्राप्तः पका से दूसरे स्थानतक पहुँचानेवाला; वह वस्तु जो विद्युत्को हुआ, पक्का; जिसकी पूरी वृद्धि हो चुकी हो; प्रीढ़ः पुष्ट, अपनेमेंसे होकर चला जाने दे। (बुरा परिचालक-दे० परिपक्का पचा हुआ; ढलता हुआ ( वय ); समाप्त । 'कुचालका' अच्छा परिचालक-दे० 'सुचालक')। परिणति-स्त्री० [सं०] चारों ओरसे झुका होना; पूरा परिचालन-पु० [सं०] चारों ओरसे चलाना; हिलाना- झुकाव; रूपांतरको प्राप्त होना; पकना; पूर्ण वृद्धि प्रौढ़ डुलाना; चारों ओर घुमाना; (कंडक्शन) गमी या बिजली- होना; परिणाम परिपाक, पचना; अंत, अवसान । के फैलनेकी वह रीति जिसमें गर्मी या बिजली एक कणसे परिणय-पु० [सं०] चारों ओर (विशेषकर विवाहमंडपमें दूसरे कणको मिलती है और कण स्वयं नहीं चलते। स्थापित अग्निके चारों ओर ) ले जाना; विवाह । परिचालित-वि० [सं०] जिसका परिचालन किया गया हो। परिणयन-पु० [सं०] ब्याहना, विवाह करना । परिचित-वि० [सं०] जिससे जान-पहिचान हो, जिसका परिणाम-पु० [सं०] एक अवस्थासे दूसरी अवस्थाको प्राप्त
परिचय प्राप्त हो; एकत्र किया हुआ ढेर लगाया हुआ। होना, रूपांतर होना, बदलकर दूसरे रूप, आकार, गुण परिचिति-स्त्री० [सं०] परिचय, जान-पहचान ।
आदिको प्राप्त होना; प्रकृतिका अन्यथा भाव (सांख्य०); परिचेय-वि० [सं०] जान-पहचानके योग्य; एकत्र करने । चित्त, इंद्रिय आदिका एक धर्म या संस्कारको प्राप्त योग्य; जानने योग्य; खोज करने योग्य ।
होना (योग); पचना, परिपाका पूर्ण वृद्धि, पूरा विकास परिचो*-पु० परिचय, जानकारी।
पकाव, पक्का होना; आयुका ढलना, वृद्ध होना; समय या परिच्छद-पु० [सं०] ढाँकनेकी वस्तु; ढाँकनेका कपड़ा। अवधिका समाप्त होना; फल, नतीजा; एक अर्थालंकार
आदि; आच्छादन, वस्त्र, पहनावा; राजाके साथ चलने- जहाँ उपमान उपमेयके साथ मिलकर कोई क्रिया करे । वाले अनु नर, सैनिक आदि; राजाके बाह्य उपकरण (छत्र, -दर्शी(शिन)-वि०किसी कार्य के भले या बुरे फलको चमर आदि ); यात्राके लिए आवश्यक सामान; माल, जाननेवाला, दूरदशी । -वाद-पु. यह सिद्धांत कि असबाब ।
कार्य कारणमें अव्यक्त रूपसे विद्यमान रहता है और इस परिच्छन्न-वि० [सं०] ढका हुआ, आवृत; परिच्छद अर्थात् | प्रकार अव्यक्त कार्य ही कारण है तथा व्यक्त कारण ही अनुचर आदिले युक्त छिपाया हुआ।
कार्य । -वादी(दिन)-पु० परिणामवादको माननेपरिच्छा*-स्त्री० दे० 'परीक्षा' ।
वाला । -शूल-पु० भोजनके पचते समय पेटमें उठनेपरिच्छिन्न-वि० [सं०] जिसकी सीमा या व्याप्ति निर्धा वाला शूल । रित की गयी हो जिसका चारों ओरका कुछ अंश छाँट परिणामी (मिन)-वि० [सं०] जो परिणामको प्राप्त होता दिया गया हो; अलग किया हुआ, विभक्त परिमित रहे, परिणामको प्राप्त होता रहना जिसका स्वभाव हो; उपचारित ।
(रिजल्टेंट) जो दो या दोसे अधिक कारणोंका संयुक्त परिपरिच्छेद-पु० [सं०] काट-छाँटकर अलग करना; अवधि, णाम हो, जो किसीके परिणामस्वरूप उत्पन्न हो या सीमा; अवधारण; निर्णय, निश्चय (जैसे सत्य और असत्य- सामने आये। का); विभाजन; परिभाषा; सटीक परिभाषा; उन कई परिणीता-स्त्री० [सं०] विवाहिता स्त्री। विभागोंमेंसे कोई एक जिनमें कोई ग्रंथ विषयके अनुसार परिणेतव्या,परिणेया-वि० स्त्री० [सं०] ब्याहने योग्य । विभक्त रहता है; किसी ग्रंथ या पुस्तकका वह भाग जिसमें परिणेता(त)-पु० [सं०] पति, स्वामी। किसी एक विषयकी चर्चा हो ।
परितः(तस)-अ० [सं०] चारों ओर चारों ओरसे । परिजंक-पु० दे० 'पर्यंक' ।
परितच्छ*-वि० दे० 'प्रत्यक्ष' । अ० देखते-देखतेआँखोंके परिजटन*-पु० दे० 'पर्यटन'।
समाने । परिजन-पु० [सं०] भरण-पोषणके लिए आश्रित लोग, स्त्री, | परितप्त-वि० [सं०] बहुत तपा हुआ, बहुत गरम; संतप्त । पुत्र, दास आदि; वे लोग जिनका कोई प्रतिपालन करे, परिताप-पु० [सं०] अत्यधिक ताप, बहुत गरमी; अत्यधिक राजा आदिके साथ-साथ चलनेवाले लोग, अनुचरगण । ।
ल लाग, अनुचरगण । दुःख, संताप; अति शोक, भय, कंप । परिजल्पित--पु० [सं०] सेवकका अपने स्वामीकी निर्दयता, परितापी(पिन)-वि [सं०] अति उष्ण, जलता हुआसा:
शठता आदिके वर्णनके द्वारा अव्यक्त रूपसे अपना कौशल, जिसे परिताप हो; संतापयुक्त; बहुत अधिक क्लेश पहुचानेउत्कर्ष आदि जताना; उपेक्षित या अवमानित नायिकाका | वाला । पु० सतानेवाला, अति दुःख देनेवाला ।
२९-क
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परितुष्ट-परिभाव्य धन
४५६ परितुष्ट-वि० [सं०] जिसे पूरा संतोष हो, पूर्ण संतुष्ट । पहननेका एक कपड़ा। परितुष्टि-स्त्री० [सं०] परितोष, प्रसन्नता ।
परिनय* -पु० दे० 'परिणय'। परितृप्त-वि० [सं०] पूरी तरह अधाया हुआ, संतुष्ट । परिनाम*-पु० दे० 'परिणाम'। परितृप्ति-स्त्री० [सं०] परितृप्त होनेका भाव, पूर्ण तुष्टि । | परिनिर्णय-पु० [सं०] (अवार्ड) अंतिम निर्णय, विशेषतः परितोष-पु० [सं०] संतोष; तृप्तिः किसी इच्छाकी पूर्तिसे पंच या पंचों द्वारा किया गया, पंचाट । होनेवाली प्रसन्नता दे० 'अनुतोषण' ।
परिपंच-पु० दे० 'प्रपंच'। परितोषक-पु० [सं०] परितुष्ट करनेवाला ।
परिपक्व-वि० [सं०] अच्छी तरह पका हुआ; अच्छी तरह परितोषण-पु० [सं०] परितुष्ट करनेका कार्य ।
पचा हुआ; जिसका पूरा विकास हो चुका हो, पीढ़ परितोस*-पु० दे० 'परितोष' ।
पूर्णतया कुशल; परिपाकको प्राप्त ( रस)। परित्यक्त-वि० [सं०] पूरी तौरसे त्यागा हुआ, एकदम परिपत्र-पु० [सं०] (सरक्यूलर) कुछ निश्चित बातों, सुझाव छोड़ा हुआ छोड़ा या चलाया हुआ (जैसे बाण)।
आदिकी सूचना देनेके लिए चारों तरफ, विभिन्न संस्थाओं, परित्यक्ता(क्त)-पु० [सं०] परित्याग करनेवाला। ब्यक्तियों आदिके पास भेजा जानेवाला पत्र, गश्ती चिट्टी। परित्यजन-पु० [सं०] परित्याग करनेकी क्रिया, त्यागना; परिपाक-पु० [सं०] सम्यक् पाक; अच्छी तरह पकना या (ऐबेंडनमेंट) पूर्णतः छोड़ देना, परित्याग ।
पकाया जाना; अच्छी तरह पचना पूर्ण विकास; परिणतिः परित्याग-पु० [सं०] पूरी तरह त्याग देना, एकदम छोड़ परिणाम पक्का होना (बुद्धि, अनुभव, ज्ञान आदि); देना, पूर्ण त्याग; यज्ञ; जुदाई; उदारता ।
कुशलता, निपुणता ।-तिथि-स्त्री० (डेट ऑफ मैच्यूरिटी) परित्यागना*-स० क्रि० परित्याग करना।
किसी हुंडी या बीमाकी पॉलिसीमें निर्धारित अवधि परित्यागी (गिन् )-वि० [सं०] जो परित्याग करे, पूरी (मीआद) समाप्त होनेकी तिथि ।। तरह छोड़ देनेवाला।
परिपाटी-स्त्री० [सं०] चला आता हुआ क्रम, अनुक्रम, परित्याज्य-वि० [सं०] पूरी तरह छोड़ने योग्य ।
सिलसिला रीति, ढंग; प्रथा, चाल (हिं०)। परिचस्त-वि० [सं०] अति वरत, बहुत डरा हुआ। परिपालन-पु० [सं०] रक्षा करना, रक्षण; पालन-पोषण । परित्राण-पु० [सं०] पूर्ण रक्षा, पूरा बचाव; अनिष्टमें प्रवृत्त परिपालनीय-वि० [सं०] परिपालन करने योग्य । व्यक्तिका निवारण; आत्मरक्षा; आश्रय, पनाह ।
परिपीडित-वि० [सं०] अति पीड़ित । परित्राता(त)-पु० [सं०] परित्राण करनेवाला। परिपुष्ट-वि० [सं०] जिसका पोषण अच्छी तरह किया परिदत्त पूँजी-स्त्री० (पेड अप कैपिटल ) प्रार्थित पँजीका गया हो, सम्यक् पोषित; अति पुष्ट, पूर्ण रूपसे पुष्ट । वह भाग जो संचालकों द्वारा माँगे जानेपर हिस्सेदारों | परिपूजित-वि० [सं०] अच्छी तरह पूजित । द्वारा जमा कर दिया गया हो।
परिपूत-वि० [सं०] पूर्णतया शुद्ध किया हुआ; अति परिदर्शन-पु० [सं०] सब ओरसे, अच्छी तरह देखना। | पवित्र; सूप आदिसे अच्छी तरह साफ किया हुआ (परिपरिदेव, परिदेवन-पु० [सं०] बहुत अधिक रोना-धोना, | पूत धान्य)। बिलखना, विलाप करना।
परिपूरक-पु० [सं०] परिपूर्ण करनेवाला; समृद्ध या पूर्णपरिदेवना-स्त्री० [सं०] (कंप्लेंट) वेदना या हानि पहुँचाये तया संपन्न बनानेवाला । जानेके विरोध किया गया अभ्यावेदन, शिकायतनामा, परिपूर्ण-वि० [सं०] अच्छी तरह भरा हुआ; पूरा किया फरियाद ।
हुआ संतुष्ट । परिधन*-पु० दे० 'परिधान'।
परिपृच्छक-पु० [सं०] प्रश्न करनेवाला, पूछनेवाला । परिधान-पु० [सं०] चारों ओरसे घेरना या आवृत करना; परिपृच्छा-स्त्री० [सं०] प्रश्न जिज्ञासा; पूछना; (इननाभिसे नीचेका पहनावा वस्त्र पहननेका कपड़ा; वस्त्र क्वाइरी) कोई बात जानने या किसी घटना आदिका पता आदि धारण करना । -गृह-पु० (रोबिंग रूम) कपड़े या लगानेके लिए की जानेवाली पूछताछ, परिप्रश्न ।-गृहपोशाक पहनने, बाल संवारने आदिका कमरा जिसमें पु० (इनक्वाइरी आफिस) पूछताछ करने, पता लगानेका प्रायः बड़ा शीशा भी लगा रहता है।
दफ्तर । परिधानीय-वि०] पहनने योग्य ।
परिपोषण-पु० [सं०] परिपुष्ट करना; वृद्धि करना। परिधावन-पु० [सं०] दौड़ना, भागना; किसीके चारों परिप्रश्न-पु०सं०] प्रश्न; जिज्ञासा; (इनक्वाइरी) दे० और या पीछे-पीछे दौड़ना।
'परिपृच्छा'; युक्तायुक्तताका प्रश्न । परिधावी(विन्)-वि० [सं०] किसीके चारों ओर यापीछे- परिप्लव-पु० [सं०] तैरना; नीका, पोत; बाढ़ा पाइन । पीछे दौड़नेवाला; चारों ओर बहनेवाला । पु०एक संवत्सर । परिप्लावित-वि० [सं०] दे० 'परिप्लुत'। परिधि-स्त्री० [सं०] लकड़ी आदिका घेरा या बाड़ा; | परिप्लुत-वि० [सं०] जल आदिसे आर्द्र या सिक्त, सराहलकी बदलीके कारण सूर्य वा चंद्रमाके चारों ओर बन वोर; जलसे आप्लावित, बाढ़ के पानीसे व्याप्त; अभिभूत । जानेवाला मंडल, परिवेष, प्रकाशमंडल; (सरकंफरेंस) वृत्त परिबृंहण-पु० [सं०] अभ्युदय वर्धन, बढ़ाना; पूरक ग्रंथ । बनानेवाली गोल रेखा; पहिये या गोल वस्तुका घेरा; परिभव-पु० [सं०] अनादर, तिरस्कार; पराजय । क्षितिज आवरण, पहनावा परिक्रमा करनेकानियत मार्ग। परिभावना-स्त्री० [सं०] विचार करना, बिचारना । परिधेय-वि० [सं०] पहनने योग्य । पु० नीचे या भीतर परिभाव्य धन-पु० [सं०] (काँशन मनी) सद्व्यवहार
टा
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४५७
परिभाषा-परिवहन आदिका निश्चय करानेके लिए जमानतके रूपमें पहलेसे | परिरक्षण-पु० [सं०] हर तरहसे रक्षा करना, पूरी तरह जमा किया गया धन ।
। रक्षण करना; देख-भाल; बचावः पालन, निभाना। परिभाषा-स्त्री० [सं०] किसीका ऐसा नपा-तुला परिचय परिरक्षित-वि० [सं०] जिसकी अच्छी तरह रक्षा की गयी जिससे उसके स्वरूप, गुण, वैशिष्ट्य आदिका यथार्थ ज्ञान हो; भली भाँति निभाया हुआ। हो जाय, लक्षण; ऐसी संज्ञा जिसका प्रयोग किसी शास्त्र, परिरक्षी (क्षिन्)-पु० [सं०] (पेट्रोल) चारों तरफ कला या विद्याके क्षेत्रमें विशिष्ट अर्थ में होता हो, किसी घूम-घूमकर, इधर-उधर गश्त लगाते हुए, रक्षाका कार्य शास्त्र, कला या विद्याके क्षेत्र में विशिष्ट अर्थमें प्रयुक्त होने करनेवाला। वाला शल्द अपने प्रयोगके लिए शास्त्रकारों द्वारा रची | परिरूप-पु०[सं०] (डिज़ाइन) किसी भावी कार्य या तैयार हुई विशिष्ट संशा; परिभाषाका शाब्दिक रूप, परिभाषाकी की जानेवाली वस्तुकी पहलेसे सोची हुई रूपरेखा; कपड़े इबारत, परिभाषाकी शब्दावली; आलाप; व्याख्या। | इत्यादिपर धारी, फूल, बूटी या ऐसी चीजें बनानेका परिभापित-वि० [सं०] स्पष्ट रूपसे कथित, समझाकर विशेष ढंग; किसी कलात्मक कृति या सजावट आदिके कहा हुआ, व्याख्यात; (टिफाइंड) जिसकी परिभाषा संबंधमें मनमें पहलेसे सोची-विचारी हुई परिकल्पना । की गयी हो।
परिरूपक-पु० [सं०] (डिज़ाइनर) परिरूप बनानेवाला, परिभोग-पु० [सं०] सेवन, उपभोग; स्त्री-प्रसंग परायी | रूपांकन करनेवाला । वस्तुओंको बिना अधिकारके काम में लाना।
परिलब्धि-स्त्री० [सं०] (परक्विजिट)निर्धारित वेतन या भृतिपरिभ्रमण-पु० [सं०] चारों ओर घूमना; इधर-उधर के ऊपर अलगसे दिया गया भत्ता या शुल्क, अनुलाभ ।
घूमना, पर्यटन, पहिये आदिका चक्कर खाना; परिधि। परिलाभ-पु० [सं०] (इमॉल्यूमेंट) किसी पदपर काम करके परिभ्रष्ट-वि० [सं०] गिरा हुआ, पतित; खोया हुआ, जो या सेवा आदिके कारण वेतन, पुरस्कार इत्यादिके रूपमें लापता हो गया हो; भागा हुआ; बहका हुआ, जिसका होनेवाला लाभ। साथ छूट गया हो; (किसी वस्तुसे) रहित किया हुआ। परिलेख-पु० [सं०] रेखा-चित्र, खाका रेखाएँ या चित्र परिभ्रामण-पु० [सं०] इधर-उधर धुमाना; चक्कर देना। खींचनेका आला, पूची, कलम आदि; [हिं०] वर्णन । परिमल-पु० [सं०] चंदन आदिको रगड़ना, कुमकुम, | परिलेखना*-स० क्रि० जानना, समझना । चंदन आदिके गर्दनसे उत्पन्न सुगंधिः सुवास ।
परिलोभन-पु० [सं०] (एंटिसमेंट) किसी तरहका प्रलोपरिमाण-पु० सं०] माप; तील; मात्रा आकार । __ भन या आश्वासन देकर या झूठी आशा उत्पन्न कर परिमान*-पु० दे० 'परिमाण ।
बहकाना, ललचाना। परिमार्जन-पु० [सं०] धोना साफ करना, स्वच्छ करना; परिवर्जन-पु० [सं०] त्यागना, त्याग रोकना । त्रुटियाँ या दोष दूर करना।
परिवर्जित-वि० [सं०] त्यागा हुआ, त्यक्त । परिमार्जित-वि० [सं०] धोया हुआ; साफ किया दुआ। परिवर्तक-वि० [सं०] घुमानेवाला, चक्कर देनेवाला परिमित-वि० [सं०] मापा हुआ तोला हुआ, जो परि-| चकर खानेवाला; परिवर्तन करनेवाला। भाणमें आवश्यकतासे न अधिक हो, न कम, जिसकी परिवर्तन-पु० [सं०] फेरा, चक्कर; चकर देना, परिभ्रमण, मात्रा कमन्बेशन हो; थोड़ा: मामूली, सामान्य सीमित । उलटना-पलटना; करवट लेना; अदल-बदल, हेर-फेर * अ० पर्यंत ।
होना, बदलना, एक स्थिति, रूप आदिसे दूसरी स्थिति, परिमिताहार-वि० [सं०] अल्पाहारी।
रूप आदिको प्राप्त होना। परिमिति-स्त्री० [सं०] परिमाण; अवधि सीमा; (पेरि-परिवर्तनीय-वि० [सं०] परिवर्तनके योग्य । मीटर) ऋजुभुजा (रेक्टीलीनियल) क्षेत्रकी भुजाओंकी परिवर्तित-वि० [सं०] जिभने चकर दिया हो; उलटालंबाइयों का योग; * मर्यादा, कान ।
पलटा हुआ; जिसका विनिमय किया गया हो; जिसमें परिमेय-वि० [सं०] मापने योग्य तौलने योग्य; कुछ। हेर-फेर हुआ हो या किया गया हो; बदला हुआ। परिमोहन-पु० [सं०] पूरी तरह मुग्ध कर देना; किसीकी परिवर्ती (तिन)-वि० [सं०] जो बदलता रहे, जिसमें मति हर लेना; (एंटिसमेंट) दे० 'परिलोभन' ।
परिवर्तन होता रहे; जो धूमता रहे। परियंक* -पु० दे० 'पर्यक' ।
परिवर्त्य-वि० [सं०] (कॉनवर्टिबिल) जो अन्य रूपमें बदला परियंत*-अ० दे० 'पर्यंत' ।
जा सके (ऋणपत्र, कंपनीके हिस्से आदि)। परिया-पु० दक्षिण भारतकी एक अस्पृश्य जाति। परिवर्धन-पु० [सं०] अच्छी तरह बढ़ना या बढ़ाया परियोजना-स्त्री० [सं०] (प्रोजेक्ट) मनमें सोचकर, आगे जाना, सम्यक वृद्धि ।। आनेवाली स्थितिका अनुमान लगाकर, तैयार की गयी परिवर्धित-वि० [सं०] जो अच्छी तरह बढ़ा हो या योजना या परिकल्पना ।
बढ़ाया गया हो; जिसमें पूर्ण वृद्धि की गयी हो; जिसमें परिरंभ, परिरंभण-पु० [सं०] आलिंगन करना। ऊपरसे कुछ और जोड़ दिया गया हो। परिरंभना*-स० क्रि० आलिंगन करना।
परिवहन-पु० [सं०] (ट्रांसपोर्ट) कोई वस्तु एक स्थानसे परिरक्षक-पु० [सं०] रक्षण करनेवाला, अभिभावक दूसरे स्थानतक उठाकर या होकर ले जाना, पहुँचाना । (क्यूरेटर ) किसी संग्रहालयकी देख-रेख या व्यवस्था । -बाधा-स्त्री० (बाटिलनेक) माल इत्यादिके एक स्थानसे करनेवाला अधिकारी (पेट्रोल) दे० 'परिरक्षी' ।
दूसरे स्थानतक पहुँचाये जानेमें रेलके डब्बों इत्यादिकी
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परिवा-परिसंघ
४५८ कमीके कारण पड़नेवाली बाधा। -व्यवस्थापक-पु० परिशिष्ट-वि० [सं०] जो छूट गया हो, बचा हुआ समाप्त। (ट्रैफिक मैनेजर) रेल-पथ द्वारा यात्रियों तथा माल- पु० किसी पुस्तक या लेखका पूरक अंश ।
असबाबके परिवहनकी व्यवस्था करनेवाला अधिकारी। परिशीलन-पु० [सं०] स्पर्श लगाव; किसी विषयपर पूरी परिवा-स्त्री० पक्षकी पहली तिथि ।
तरह विचार करते हुए उसे पढ़ना, सम्यक् अध्ययन । परिवाद-पु० [सं०] निंदा, शिकायत; (कांप्लेंट) दोषकथन, परिशुद्ध-वि० [सं०] पूर्णतया शुद्ध बिलकुल ठीक (एक्यूबुराई बताना दुखड़ा किसीमें ऐसे दोष दिखाना जिनका रेट); चुकाया हुआ; जो बरी कर दिया गया हो। अस्तित्व न हो, झूठी निंदा कुख्याति, अपवाद; आरो- परिशुद्धता-स्त्री० [सं०] (एक्कुरेसी) विलकुल ठीक, यथार्थ पित दोष, जुर्म।
या सटीक होनेका भाव । परिवादक-पु० [सं०] वादी, मुद्दई; निंदा करनेवाला; परिशुद्धि-स्त्री० [सं०] पूर्ण शुद्धि; रिहाई । वीणा बजानेवाला ।
परिशुष्क-वि० [सं०] अति शुष्क, एकदम सूखा हुआ; परिवादिनी-स्त्री० [सं०] सात तारोंवाली वीणा; निंदा मुरझाया हुआ; पिचका हुआ (कपोल आदि); नीरस । करनेवाली स्त्री।
परिशोध-पु० [सं०] सम्यक शुद्धि, पूरी सफाई; ऋण परिवादी (दिन)-वि० [सं०] निंदा करनेवाला, अपवाद | आदिका भुगतान, चुकता ।
करनेवाला; आरोप करनेवाला; शोर मचानेवाला। परिशोधन-पु० [सं०] पूर्णतया शुद्ध करनेकी क्रिया; भुगपरिवार-पु० [सं०] कुटुंब आदि; आश्रित जन, परिजन तान, चुकता करना; संशोधन ।
अनुचरोंका समूह, दल-बल; *वस्तुओंका समुदाय, समूह ।। परिशोष-पु० [सं०] दिलकुल शुष्क हो जाना। परिवारी-पु० परिवार में रहनेवाला कुटुंवी ।
परिश्रम-पु० [सं०] लांति; क्लेशकर आयास, मेहनत । परिवाह-पु० [सं०] पानीका उमड़कर चारों ओर बहना; परिश्रमी(मिन)-वि० [सं०] परिश्रम करनेवाला, जो बढ़े हुए पानीके बहनेका मार्ग; फालतू पानीका निकास।। परिश्रम करे। परिवृत्त-वि० [सं०] घुमाया हुआ; बदला हुआ; समाप्त परिश्रांत-वि० [सं०] विशेष रूपसे थका हुआ। घेरा हुआ, आवेष्टित । पु० (सरकम्स्क्राइब्ड सर किल) दे० परिश्रत-वि० [सं०] विख्यात, प्रसिद्ध । 'परिगतवृत्त'।
परिपद-स्त्री० [सं०] सगा; वेद-वेदांग, धर्मशास्त्र आदिमें परिवृत्ति-स्त्री० [सं०] धुमाव; घेरना, आवेष्टित करना; पारंगत ब्राह्मणोंकी वह सभा जिसे प्राचीन कालके राजा समाप्ति; विनिमय, अदला-बदला; एक शब्दके स्थान पर । धर्म आदिके मामलोंका निर्णय करनेके लिए यदा-कदा दूसरे शब्दको इस प्रकार रखना कि अर्थमें अंतर न पड़े, बुलाया करते थे; (काउंसिल) सलाह देनेवाले या विवाअर्थकी रक्षा करते हुए किसी शब्दके स्थानपर उसका दादिमें हिस्सा लेनेवाले सदस्योंकी सभा नगर या जिलेकी पर्यायवाची शब्द रखना (जैसे-'चरण-कमल'के स्थानपर स्थानीय प्रबंधसभा चुने हुए या मनोनीत किये हुए 'पाद-पम' रखना); एक अर्थालंकार जहाँ कुछ देकर कुछ सदस्यों की विशेष सभा; समूह, मंडली। लेनेका वर्णन हो (सा०); (कनवर्शन) एक तरहके ऋणपत्र, परिषेक-पु० [सं०] सींचना, छिड़काव; स्नान । प्रमंडलके हिस्सों आदिको दूसरी तरहके ऋणपत्रों या परिष्करण-पु० [सं०] बुराइयाँ या दोष दूर कर ठीक हिस्सों में बदलना; धर्म, विश्वास, मत आदिका बदलना । करना, संशोधन । परिवृद्धि-स्त्री० [सं०] पूर्ण वृद्धि, सम्यक् वृद्धि । परिष्कार-पु० [सं०] सजावट, सिंगार; पाक द्वारा सुस्वादु परिवेदन-पु० [सं०] भारी दुःख; छोटे भाईका बड़े भाईसे बनाना; संस्कार; भूषण, गहना, मार्जन आदि संस्कार, पहले ही विवाह करना या अग्निहोत्र ले लेना; विवाह सफाई; घरका उपयोगी सामान । व्यापक ज्ञान, पूरी जानकारी सर्वत्र स्थिति तर्क। परिष्कृत-वि० [सं०] जिसका परिष्कार किया गया हो; परिवेश, परिवेष-पु० [सं०] घेरना, वेष्टन; हलकी सजाया, सँवारा हुआ; पाक द्वारा सुस्वादु बनाया हुआ; बदलीके कारण सूर्य या चंद्रमाके चारों ओर बन जाने- साफ किया हुआ; शुद्ध किया हुआ। वाला एक प्रकारका मंडल, किरणोंका वह मंडल जो कभी- परिष्क्रिया-स्त्री० [सं०] सजाना, अलंकृत करना; शोधन । कभी सूर्य या चंद्रमाके चारों ओर बन जाता है, परिधि; परिष्यंद-पु० [सं०] प्रवाह, बहाव नदी द्वीप; आर्द्रता । आवेष्टित करनेवाली वस्तु; भोजन परसन।।
| परिसंख्या-स्त्री० [सं०] गिनती, गणना; एक अर्थालंकार परिवेष्टन-पु० [सं०] चारों ओरसे घेरना आवृत करनेवाली जहाँ किसी वस्तुका एक स्थानसे निषेध करके उसका दूसरे वस्तु, आवरण, आच्छादन घेरा, परिधि पट्टी।
स्थान में स्थापन हो; ऐसा विधान जिससे विहित वस्तुसे परिवेष्टित-वि० [सं०] चारों ओरसे घिरा हुआ; आवृत । भिन्न सभी वस्तुओंका निषेध हो जाय (मीमांसा)।। परिव्यक्त-वि० [सं०] अति स्पष्ट ।
परिसंख्यात-वि० [सं०] जिसकी परिसंख्या हुई हो, परिव्यय-पु० [सं०] (कॉस्ट) किसी वस्तुके उत्पादन, परिगणित; जिसका खास तौरसे उल्लेख किया गया हो। निर्माणादिमें लगनेवाला रुपया या खर्च, लागत; मसाले। परिसंख्यान-पु० [सं०] गणना सही अनुमान अनुसूची। परिव्रज्या-स्त्री० [सं०] चारों ओर घूमना(विशेषतःभिक्षुका); परिसंघ-पु० [सं०] (कानफेडरेशन) स्वतंत्र राजाओं, राज्यों तपस्या संन्यास ।
या राष्ट्रोंका ऐसा संघटन जो एक दूसरेकी सहायता करने परिवाज, परिव्राजक-पु० [सं०] वह जो घर-बार छोड़- और सामान्य रूपसे संबंध रखनेवाले वैदेशिक प्रश्नों कर चतुर्थ आश्रममें प्रविष्ट हो गया हो, संन्यासी । __ आदिके संबंध समान नीति निर्धारित करने के उद्देश्यसे
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४५९
बनाया जाता है ।
परिसंपद् - स्त्री० [सं०] ( असेट्स ) ( किसी महाजन या व्यापारिक संस्था आदिकी) वह संपत्ति तथा पावना आदि जिससे (उसका ) देय या ऋण चुकाया जा सके । परिसमापक - पु० [सं०] (लिक्विडेटर ) किसी प्रमंडल, व्यापारिक संस्था आदिका देना-पावना ले-देकर उसका कार बार समाप्त करनेवाला अधिकारी । परिसमापन - पु० [सं०] (लिक्विडेशन) किसी व्यापारिक संस्था, प्रमंडल आदिके देने-पावनेका हिसाब चुकाकर उसका कारबार समाप्त करना; ऋण आदि पूरी तरह चुका देना । परिसमाप्ति - स्त्री० [सं०] पूर्ण समाप्ति; ( टरमिनेशन) किसी चलते हुए काम, छुट्टी, रेलपथ आदिकी समाप्ति या अंत हो जाना ।
परिसर - पु० [सं०] (नदी, नगर, पर्वत आदिके) आसपासकी भूमि; विधान, नियम; स्थिति, मोका; मृत्युः एक देवता; इधर से उधर जाना, हिलना-डोलना । परिसरण - पु० [सं०] चारों ओर घूमना, पर्यटन | परिसीमन - पु० [सं०] (डीलिमिटेशन) किसी स्थान, क्षेत्र, प्रदेश आदिकी सीमा स्थिर करना । परिसीमा - स्त्री० [सं०] चौहद्दी; अवधि, हद, अंतिम सीमा । परिस्तरण - पु० [सं०] छितराना, फैलाना; आवरण । परिस्तान - पु० [फा०] परियोंका देश, परियोंका लोक । परिस्थिति - स्त्री० [सं०] आसपास, चारों ओरकी स्थिति,
अवस्था ।
परिस्पर्द्धा - स्त्री० [सं०] दे० 'प्रतिस्पर्द्धा' | परिस्पर्धी (नि) - वि० [सं०] दे० 'प्रतिस्पद्धीं' | परिस्फुट - वि० [सं०] सुस्पष्ट; अच्छी तरह विकसित । परिस्फुरण - पु० [सं०] कंपन; कलीयुक्त होना, कलीका निकलना ।
परिस्यंद - पु० [सं०] चूना, रिसना; दे० 'परिष्यंद' | परिस्राव - पु० [सं०] चारों ओरसे चूना, टपकना या रिसना; एक रोग जिसमें मलके साथ-साथ पित्त और कफ गिरता है ( आ० वे० ) ।
परिस्रावण - पु० [सं०] वह बरतन जिसमें से साफ किया जानेवाला पानी टपकाते हैं ।
परिसावी (विन्) - वि० [सं०] चूने, टपकने या रिसनेवाला; बहनेवाला | पु० एक प्रकारका भगंदर | परिस्त - वि० [सं०] टपका हुआ, रसा हुआ । परिस- पु० ईर्ष्या, डाह ।
परिहरण - पु० [सं०] त्यागना, तजना; दूर करना, निवारण; छीन लेना, अपहरण करना । परिहरणीय- वि० [सं०] परिहरणके योग्य | परिहरना* - स० क्रि० छोड़ना, त्यागना । परिहस* - पु० दे० 'परिहास'; दुःख । परिहस्त- पु० [सं०] हाथका छरुला । परिहार - पु० [सं०] ( एवॉइड ) त्याग करने, छोड़ देनेकी क्रिया; बचा जाने या प्रयोग न करनेकी क्रिया; (रेमीशन) अनावृष्टि आदि संकटके कारण दी जानेवाली कर या लगानकी माफी, छूट; ऋण या ढंड आदिमें की गयी कमी; दोष आदिको दूर करना, दोषका निराकरण; गाँवके चारों
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परिसंपद्- परीक्ष्यमाण
ओर जनता की ओरसे परती छोड़ी हुई जमीन (स्मृति); पराजित शत्रुसे छीनी हुई वस्तुएँ; अनादर, अवज्ञा; खंडन; किसी कुकृत्यका प्रायश्चित्त करना; राजपूतोंका एक वंश जो अग्निवंशके अंतर्गत माना जाता है ।
परिहारना * - स० क्रि० दूर करना; प्रहार करना, मारना । |परिहार्य - वि० [सं०] परिहार करने योग्य, त्यागने या निवारण करने योग्य ।
परिहास-पु० [सं०] हँसी, मजाक |
परी - स्त्री० घी, तेल निकालनेकी कलछी, पली; [फा०] पुरानी कथाओं के अनुसार अवश्य होने तथा जहाँ चाहे वहाँ जा सकने आदिकी शक्तिसे युक्त उड़नेवाली परम सुंदर स्त्रियाँ जिनका निवासस्थान कोहकाफ पहाड़ माना जाता है (फारसी-उर्दूकी कवितायें इन्हें सुंदर स्त्रियोंका उपमान बनाया गया है); अति रूपवती स्त्री (ला०) । - ख़ाना - पु० परियों या हसीनोंके रहनेका स्थान । -जाद - पु०परीका वच्चा । वि० हसीन, सुंदर, खूबसूरत । परीक्षक - पु० [सं०] परीक्षा करने या लेनेवाला, परखनेवाला, जाँचनेवाला ।
परीक्षण - पु० [सं०] परीक्षा करने या लेनेकी क्रिया, जाँच, परख; राजाके मंत्री, चर आदिके दोषादोषकी जाँच करना । -काल- पु० ( प्रोवेशन) कोई कर्मचारी कामके योग्य है या नहीं, इसकी जाँच या परख करनेका समय । - नलिका - स्त्रो० ( टेस्ट ट्यूब ) परीक्षणके काम आनेवाली शीशे (काँच) की नलिका, परखनली । परीक्षना* - स० क्रि० परीक्षा लेना । परीक्षा - स्त्री० [सं०] किसीके गुण, दोष, योग्यता, शक्ति आदिकी सच्ची जानकारी के लिए उसे अच्छी तरह देखनाभालना -परख या किसीके गुण, दोष, योग्यता आदिका पता लगानेके लिए किया जानेवाला काम, इम्तहान; तर्क, प्रमाण आदिके द्वारा किसी वस्तुके तत्त्वका निश्चय करना; किसी वस्तुका ऐसा प्रयोग जो उसके बारेमें कोई विशेष बात निश्चित करनेके लिए किया जाय; विद्यार्थियों या उम्मीदवारोंकी योग्यताकी वह विशेष प्रकारको जाँच जिसमें उनसे मौखिक या लिखित रूपमें प्रश्न पूछे जाते हैं; अभियुक्तकी सदोषता या निर्दोषता अथवा साक्षीकी सचाई या झुठाईका निर्णण करनेकी एक प्राचीन रीति । -काल - पु० परीक्षाका समय। - भवन- पु० ( इग्जामिनेशन हॉल) वह कमरा या घर जिसमें परीक्षार्थी परीक्षा देते समय बैठते हैं, परीक्षा देनेका स्थान । -शुल्क- पु० परीक्षा के निमित्त लिया जानेवाला द्रव्य । परीक्षार्थी (र्थिन् ) - पु० [सं०] ( इग्जामिनी) परीक्षा देने
वाला ।
परीक्षालय - पु० [सं०] (इग्जामिनेशन हॉल) वह भवन या स्थान जहाँ बैठकर परीक्षार्थियोंको परीक्षा देनी पड़े। परीक्षित - वि० [सं०] जिसकी परीक्षा ली गयी हो, जाँचा हुआ, आजमाया हुआ । पु० ( इग्जामिनी ) वह व्यक्ति जिसकी परीक्षा ली जाय या जो परीक्षा में बैठा हो । परीक्षित् पु० [सं०] पांडुकुलके एक प्रसिद्ध राजा जो अभिमन्युके पुत्र और अर्जुनके पौत्र थे । परीक्ष्यमाण - वि० [सं०] (प्रोवेशनर) (वह कर्मचारी) जिसकी
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परीखना-पर्णक
४६० नियुक्ति अभी पक्की न हुई हो, वरन् जो अभी परीक्षण- आदिसे पारसलके रूपमें अपना माल किसी अन्य स्थानमें कालमें हो।
रहनेवाले व्यक्तिके पास भेजे । परीखना*-स० क्रि० परखना, जाँचना ।
परेपणी-पु० (कॉनसाइनी) वह व्यक्ति जिसके पास कोई परीच्छित*-वि० दे० 'परीक्षित'। पु० दे० 'परीक्षित्'। माल रेलपार्सल द्वारा भेजा जाय । अ० अवश्य ही।
परेषित-वि० [सं०] (कॉनसाइंड) (वह माल) जो रेलगाड़ी परीछत*-पु० दे० 'परीक्षित् ।
इत्यादिसे पारसलके रूपमें अन्य किसीके पास भेजा गया हो। परीछना*-स० क्रि० परीक्षा लेना (मुद्रा०)।
परेस-पु० दे० 'परेश' । परीछा*-स्त्री० दे० 'परीक्षा'।
परौं*-अ० दे० 'परसों'। परीछित*-वि० दे० 'परीक्षित' । पु० राजा परीक्षित् । परोक्तदोष-पु० [सं०] न्यायालयमें ऊटपटाँग बयान देनेपरीत*-पु० दे० 'प्रेत'।
का अपराध । परीरंभ-पु० [सं०] आलिंगन ।
परोक्ष-वि० [सं०] जो आँखोंके सामने न हो; जो नेत्रका परीशान-वि० दे० 'परेशान' ।
विषय न हो, अप्रत्यक्ष अनुपस्थित छिपा हुआ, अलक्षित, परीसना*-स० क्रि० स्पर्श करना ।
गुप्त; अज्ञात । पु. वर्तमान न होनेकी स्थिति, अनुपरीहार-पु० [सं०] दे० 'परिहार' ।
पस्थिति पूर्ण भूतकाल (संस्कृत व्या०)। -निर्वाचनपरीहास-पु० [सं०] दे० 'परिहास' ।
पु० (इनडाइरेक्ट इलेक्शन) सीधे जनताके मतदान द्वारा परु-अ० पिछला या अगला साल ।
नहीं, वरन् निर्वाचन-मंडलों, नगर पालिकाओं आदि परुई।-स्त्री० भड़भूजेकी अनाज भूननेकी नाँद । द्वारा किया जानेवाला चुनाव । -भोग-पु० किसी परुख-वि० दे० 'परुष' ।
वस्तुका ऐसा भोग जो उसके स्वामीकी अनुपस्थिति में परुखाई*-स्त्री० परुषता, कठोरता ।
किया जाय । -वृत्ति-स्त्री० अज्ञात जीवन । वि० अज्ञात परुत्-अ० [सं०] गत वर्ष ।
रूपसे रहनेवाला। परुष-वि० [सं०] कठोर, कड़ा रूखा; कर्कश; बुरा लगने परोना*-स० क्रि० दे० 'पिरोना'। वाला; तीव्र, उग्र (वायु आदि); कठोर हृदयवाला,दयाहीन; परोपकार-पु० [सं०] दूसरेकी भलाई । नीरस, रसहीन; गंदा चितकबरा । पु० कड़ी बात,दुर्वचन। परोपकारी (रिन)-वि० [सं०] दूसरेकी भलाई करनेवाला।
-वचन-पु० कठोर वचन, कड़ी बात, अप्रिय बात। परोपजीवी (विन)-वि० [सं०] (पैरासाइ2) दूसरोंपर परुषाक्षर-वि० [सं०] जिसमें रूखे शब्दोंका प्रयोग हो । आश्रित रहकर जीवित रहनेवाला। पु० वह वनस्पति या
कड़े शब्दों में कहा हुआ; कड़े शब्द प्रयोगमें लानेवाला।। जंतु जो किसी अन्य विटप या जंतुके शरीरसे लिपटकर परुषावृत्ति-स्त्री० [सं०] काव्यकी तीन वृत्तियोंमेंसे एक उसका रस या रक्त चूसकर परिपुष्ट हो। जिसमें ट, ठ, ड, ढ वर्णों, लंबे समासों और ऐसे संयुक्त परोपदेश-पुं० [सं०] दूसरेको उपदेश देना। वर्णों की योजना होती है जो कठोर होते है।
परोरा-पु० परवल ।। परुषोक्ति-स्त्री० [सं०] निष्ठुर वचन, कड़ी या लगनेवाली परोस-पु० दे० 'पड़ोस । बात।
परोसना -स० कि० खानेवालोंको सामने भोज्य वस्तुएँ परसना*-स० क्रि० दे० 'परसना'।
रखना। परे-अ० उस ओर; और आगे बहुत दूर, ऊर्ध्व, ऊपर परोसा -पु० पत्तल या थाली में रखा हुआ एक व्यक्तिके
बाद; बाहर । मु०-बिठाना-परास्त करना,मात करना। खानेभरका भोजन जो भोजमें सम्मिलित न होनेवालेके परेई-स्त्री० परेवाकी मादा; पंडुकी ।
यहाँ भेजा जाता है। परेखना-स० क्रि० अच्छी तरह देखना-भालना, परीक्षा परोसी -पु० दे० 'पड़ोसी' । करना, जाँचना; * प्रतीक्षा करना ।
परोहन-पु०सवारी याबोझ लादनेके काम आनेवाला पश। परेखा*-पु० परीक्षा, जाँच; पश्चात्ताप; विश्वास । परी--अ० दे० 'परसों'। परेत-वि० [सं०] मरा हुआ, मृत । पु० दे० 'प्रत। परीठा-पु० दे० 'पराँठा'।
-भारत)-पु० यमराज ।-भूमि-स्त्री० श्मशान। पर्चा-पु० दे० 'परचा' । परेता-पु० सूत लपेटनेके कामका जुलाहोंका एक आला; पर्चाना-स० क्रि० दे० 'परचाना' । बाँसकी पतली, चपटी तीलियोंसे तैयार किया जानेवाला पर्जक*-पु० दे० 'पर्यक'। वह बेलन जिसपर पतंगकी डोर लपेटी जाती है। पर्जन्य-पु० [सं०] मेघ, बादल; वर्षा; इंद्र । परेर*-पु० आकाश।
पर्ण-पु० [सं०] पत्ता; पर; बाणका पंख पान; पलाशका परेवा-पु० कबूतर, पंडुक कोई तेज उड़नेवाला पक्षी; शीघ्र- पेड़ । -कार-पु० बरई, तंबोली। -कुटिका,-कुटी
गामी पत्रवाहक, तेज चलनेवाला हरकारा। [स्त्री० परेई'1] | स्त्री० पत्तोंकी बनी कुटिया। -भोजनी-स्त्री० बकरी । परेश-पु० [सं०] परमात्मा, परमेश्वर ।।
-शय्या-स्त्री० पत्तोंका बिस्तर, पत्तोंका बिछावन । परेशान-वि० [फा०] उद्विग्न, व्याकुल; हैरान । -शाला-स्त्री० पर्णकुटी। परेशानी-स्त्री० [फा०] उद्विग्नता, व्याकुलता। पर्णक-पु० [सं०] (लीफ्लेट) कागजका छपा हुआ टुकड़ा परेषक-पु० [सं०] (कॉनसाइनर) वह व्यक्ति जो रेलगाड़ी जो लोगों में प्रायः विना मूल्य वितरणके लिए हो ।
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४६१
पर्णिका-पलक पर्णिका-स्त्री० [सं०] (कूपन) वस्तुओंके सीमित वितरणकी आदि) करनेका समय या दिन; सूर्यग्रहण; चंद्रग्रहण, व्यवस्था में वह पुरजी, कागजका टुकड़ा या टिकट जिसपर अवसर, मौका; संधिस्थान, गाँठ, जोड़; पोर; शरीरके लिखा रहता है कि अमुक व्यक्तिको इतना कपड़ा, पेट्रोल अवयवोंका कोई जोड़; पुस्तकका कोई भाग (जैसे महाया अन्य वस्तु दी जाय; पैसा जमा करनेपर मिलनेवाला भारतका); निश्चित काल; चातुर्मास्यके अंतर्गत वैश्व, वह प्रमाणक जिसे अर्पित करनेपर कोई वस्तु (जैसे दुग्ध- वरुण, प्रधास आदि चार भाग । शालाका दूध) या कोई सेवा प्राप्त की जा सके मनीआर्डर पर्वक-पु० [सं०] घुटनेका जोड़। फार्म (धनप्रपादेश-प्रपत्र) का वह निचला भाग जिसमें पर्वणी-स्त्री० [सं०] पूर्णिमा प्रतिपदा; उत्सव, त्योहार । रुपया भेजनेवाला पानेवालेके नाम कोई संदेश आदि पर्वत-पु० [सं०] पहाड़, चट्टान; किसी वस्तुका पहाड़ लिख सकता है।
जैसा ऊँचा ढेर, सातकी संख्या दशनामी संन्यासियोंका पर्दनी*-स्त्री० धोती।
एक भेद । -जा-स्त्री० नदी; पार्वती । -नंदिनी स्त्री० पर्दा-पु० दे० 'परदा'।
पार्वती । -पति-पु० हिमालय । -माला-स्त्री० पर्पटी-स्त्री० [सं०] गोपीचंदन; पापड़, एक रसीषधि । पहाड़ोंकी श्रेणी। -राज-पु० बड़ा पहाड़, हिमालय । पर्ब-पु० दे० 'पर्व'।
-स्थ-वि० पर्वतपर स्थित । पर्बत-पु० दे० 'पर्वत' ।
पर्वतात्मज-पु० [सं०] मैनाक । पर्यक-पु० [सं०] पलंग; एक आसन, वीरासन (योग); पीठ पर्वतात्मजा-स्त्री० [सं०] पार्वती।
और घुटनोंको कपड़ेसे बाँधकर बैठने की एक मुद्रा; पालकी। पर्वतारि-पु० [सं०] इंद्र। पर्यत-अ० [सं०] तक । वि० सीमित । पु० अंतिम सीमा, पर्वतीय-वि० [सं०] पर्वत-संबंधी; पर्वतका पहाइपर किनारा; अंत, समाप्तिस्थान । -भू-भूमि-स्त्री० नदी, रहने या पैदा होनेवाला, पहाड़ी । पु० पहाड़ी ब्राह्मणोंकी नगर आदिके पासका भूभाग।
एक उपाधि । पर्यटक-पु० [सं०] भ्रमण करनेवाला ।
पर्वतेश्वर-पु० [सं०] हिमालय । पर्यटन-पु० [सं०] इधर-उधर घूमना, भ्रमण ।
पर्वतोद्धव-पु० [सं०] पारा; शिंगरफ। वि० पर्वतपर पर्यवलोकन-पु० [सं०] (सवें) किसी कामको या किसी उत्पन्न ।
क्षेत्रादिको आदिसे अंततक-एक छोरसे दूसरे छोरतक- पर्वरिश-स्त्री० दे० 'परवरिश' । स्थूल रूपसे देखना, जाँचना-समझना।।
पशु-पु० [सं०] आयुध; अस्त्र परशु, फरसा। -पाणिपर्यवसान-पु० [सं०] अंत, समाप्ति; अवधारण, निश्चय । पु० गणेश; परशुराम । पर्यवेक्षक-पु० [सं०] (सूपरवाइज़र) किसी काम आदिकी पशुका-स्त्री० [सं०] बगल की हड्डी, पसली । निगरानी करनेवाला, चारों तरफ नजर रखनेवाला, पर्पद-स्त्री० [सं०] सभा; धमोपदेशक पंडितोंका समाज । देखभाल करनेवाला।
पलं का*-स्त्री० दूरवतों स्थान । पु० पलंग। पर्यवेक्षण-पु० [सं०] (सूपरविजन) चारों तरफ नजर | पलंग-पु० बड़ी और बढ़िया चारपाई, अधिक लंबी-चौड़ी रखने, निगरानी करने आदिका काम, देखभाल ।
और सुन्दर चारपाई। -तोड़-वि० जो बिना कुछ काम पर्यसन-पु० [सं०] फेंकना; दूर करना; बाहर करना। किये यों ही पड़ा रहे, निकम्मा, आलसी। -पोश-पु० पर्यस्तापह्नति-स्त्री० [सं०] अपह ति अर्थालंकारका एक पलंगकी चादर । मु०-को लात मारकर खड़ा होनाभेद जहाँ किसी (उपमान) वस्तुका गुण छिपाकर किसी भली-चंगी होकर सौरीसे बाहर आना; किसी भारी बीमारीदूसरी वरतु (उपमेय) में उसकी स्थापना की जाय। से छुटकारा पाकर स्वस्थ होना। -तोड़ना-कोई काम पर्याप्त-वि० [सं०] जितना चाहिये उतना, पूरा, काफी । न करते हुए सोये या पड़े रहना, बेकार रहकर दिन पर्याय-पु० [सं०] अनुक्रम, सिलसिला; व्यतीत होना बिताना । -लगाना-पलंगपर ठीक तरहसे बिछावन (समय); समानार्थक शब्द, प्रकार, ढंग; एक अर्थालंकार | बिछाना। जहाँ एक वस्तुका क्रमसे अनेक आश्रय लेना दिखाया जाय पलँगड़ी-स्त्री० छोटा पलंग, चारपाई। या अनेक वस्तुओंका एकके ही आश्रित होना दिखाया। पल-पु० [सं०] मांस समयका एक लघु विभाग जो ६० जाय।-वाची(चिन)-वि० समानार्थक ।-सेवा-स्त्री० विपल अर्थात् २४ सेकेंडके बराबर होता है; ४ कर्षकी एक बारी-बारीसे सेवा करना ।
प्राचीन तौल; पयाल; * पलक । -गंड-पु० दीवारपर पर्यायोक्त-पु०, पर्यायोक्ति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार | पलस्तर करनेवाला मिस्त्री, राज । -प्रिय-पु० राक्षस जहाँ कोई बात घुमा-फिराकर कही जाय या किसी रम- कौआ । वि० जिसे मांस प्यारा हो, मांसप्रिय । णीय व्याजसे कार्यसाधन किये जानेका वर्णन हो। पलक-स्त्री० आँखको ढंकनेवाला चमड़ेका वह परदा जिसके पर्यालोचन-पु०, पर्यालोचना-स्त्री० [सं०] सम्यक् विवे गिरने और उठनेसे आँख क्रमसे बंद होती और खुलती चन, समीक्षण।
है; * क्षण, निमिष । * अ० क्षणभर । मु०-झपकते या पर्यपा सक-पु० [सं०] उपासना करनेवाला, सेवक । गिरते-देखते-देखते, क्षणभर में । -पसीजना-आँखोंमें पर्युपासन-पु० [सं०] उपासना, सेवा, पूजा ।
आँसू भाना; दयार्द्र होना । -बिछाना-किसीका बड़ी पर्व(न्)-पु० [सं०] उत्सव, त्योहार; कोई उत्सव या श्रद्धासे स्वागत करना । -भंजना-आँखका इशारा होना। त्योहार मनाने या कोई विशिष्ट धार्मिक कृत्य (स्नान | -भाँजना-आँखसे इशारा करना। -मारना--आँखसे
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पलका - पलेथन
इशारा करना; पलक गिराना । लगना - आँख बंद होना, नींद आना । —लगाना- आँख बंद करना; सोनेके लिए आँख बंद करना । - से पलक न लगना- टकटकी लगी रहना, नींद न आना । ( पलकों ) से ज़मीन झाड़ना या तिनके चुनना - बड़ी श्रद्धा से किसीकी सेवा करना । पलका * - पु० पलंग, शय्या । पलटन - स्त्री० [अ० लटून ] पैदल सैनिकोंका वह विभाग जिसमें २०० सैनिक हों; सैनिकों या लोगोंका दल जो समान उद्देश्य से कहीं एकत्र हुए हों, फौज । पलटना - अ० क्रि० उलट जाना; एकदम बदल जाना, पूर्णतया परिवर्तित हो जाना ( 'जाना' क्रियाके साथ ); अच्छी दशाको प्राप्त होना; पीछेकी ओर रुख करना, मुड़ना; वापस आना, लौटना । स० क्रि० उलटना, ऐसी स्थितिको पहुँचाना कि नीचेका भाग ऊपर हो जाय और ऊपरका नीचे; एकदम बदल देना, पूर्णतया परिवर्तित कर देना ( 'देना' या 'डालना' के साथ ); बार-बार उलटना; एक वस्तु के स्थानपर दूसरी वस्तु ग्रहण करना; बदलना; किसी वस्तुके बदले दूसरी वस्तु लेना या बदलना; बात उलट देना, मुकरना; * वापस करना, लौटाना । पलटनिया - वि० पलटनका । पु० पलटनमें काम करने वाला सैनिक |
पलटा - पु० पलटनेका कार्य या भाव; प्रतिफल; नावमें लगी हुई वह पटरी जिसपर खेवैया बैठता है; गवैयेका ऊँचे स्वरोंतक पहुँचकर बारीकीके साथ पुनः नीचेके स्वरोंकी ओर लौटना, अवरोह (संगीत); लोहे, पीतल या काठकी चपटी कलछी; कुश्तीका एक पेंच मु० - खाना-स्थितिका पूर्णतः परिवर्तित हो जाना ।
पलटाना - स० क्रि० वापस करना, लौटाना; बदलना । पलटाव-पु० पलटे जानेकी क्रिया ।
पलटावना - स० क्रि० दे० 'पलटाना'; * दबवाना । पलटे - अ० बदलेमें, प्रतिफलके रूप में ।
पलड़ा, पलरा-पु० तराजूका पल्ला । पलथी - स्त्री० दाहिने और बायें पैरोंके पंजोंको क्रमसे बायीं और दाहिनी जाँघोंके नीचे दबाकर बैठनेका ढंग । पलना - अ० क्रि० पालित होना, पाला-पोसा जाना; हृष्टपुष्ट होना, तैयार होना । पु० दे० 'पालना' | पलनाना * - स० क्रि० जोत या कसकर तैयार करना ( रथ,. घोड़ा ) ।
पलल - पु० [सं०] मांस, कीचड़, तिलकुट; राक्षस । ज्वर
पु० पित्त नामक धातु । - प्रिय- पु० राक्षसः डोम- कौआ । पलवrt - पु० ऊखका ऊपरी भाग; एक घास; * अंजलि । पलवाना - स० क्रि० किसीसे पालन कराना । पवैया - पु० पालन-पोषण करनेवाला ।
पलस्तर - पु० [अं० 'प्लास्टर'] चूना, कंकड़, सुखीं आदि मसाले से तैयार किया हुआ दीवार आदिपर चढ़ाया जानेवाला एक तरहका लेप । मु० ( किसीका ) - ढीला करना-पस्त करना । - ढीला होना- शिथिल होना; पस्त होना । (किसीका) - बिगड़ना या बिगड़ जाना -दे० 'पलस्तर ढीला होना' । (किसी का) - बिगाड़ना या बिगाड़ देना - दे० 'पलस्तर ढीला करना' ।
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पलहना * - अ० क्रि० दे० 'पलुहना' । पलहा - पु० जन्म-मृत्युकी सूचना; * पल्लव | पलांडु - पु० [सं०] प्याज |
पला- पु० ६० विपल, पल; बड़ी परी; * तराजूका पहला; आँचल, पल्ला, किनारा; डिब्बीके दो भागों में से कोई एक । पलाद, पलादन, पलाशन- पु० [सं०] राक्षस । वि० मांस खानेवाला, मांसाहारी ।
पलान- पु० घोड़े आदिकी पीठपर कसा जानेवाला जीन
या चारजामा ।
पलानना * - स० क्रि० ( घोड़े आदिपर ) पलान कसना; आक्रमण करनेकी तैयारी करना ।
४६२
पलाना * - अ० क्रि० भागना; तेजीसे जाना; गाय इत्यादिका पिन्हाना । स० क्रि० भगाना । पलानि * - स्त्री० जीन ।
पलानी - स्त्री० छप्पर; पंजेके ऊपर पहननेका स्त्रियोंका एक गहना; जीन ।
पलायक, पलायी (यिन् ) - पु० [सं०] भागनेवाला, भगोड़ा; (ऐब्सकांडर) दंडित होने या पकड़े जाने आदिके भय से भाग जाने, छिप जानेवाला व्यक्ति । पलायन - पु० [सं०] ( डरकर ) दूसरी जगह चले जाना,
भागना ।
पलायमान - वि० [सं०] भागता हुआ । पलायित - वि० [सं०] भागा हुआ ।
पलाश - पु० [सं०] पत्ता: पलास, टेसू ; पलासका फूल; राक्षस; मगध देश; हरा रंग; किसी तेज हथियारका फल | वि० हरा; निष्ठुर, कठोरहृदय; मांसाहारी । पलास - पु० मझोले आकारका एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसका फूल बहुत लाल होता है, किंशुक; एक मांसाहारी पक्षी; जंबूरे जैसा एक औजार । पलिका * - पु० दे० 'पलका' ।
पलित - वि० [सं०] वृद्ध, बुड्ढा; पका हुआ या सफेद (बाल) | पु० वृद्धावस्थाके कारण बालोंका पकना या सफेद होना; ताप, गरमी; कीचड़ ।
पली - स्त्री बड़े वरतनों में से घी, तेल आदि तरल पदार्थ निकालनेका लोहेका एक आला जो एक डंडी के सिरेपर छोटीसी कटोरी जोड़कर बनाया जाता है, परी । मु०पली जोड़ना - थोड़ा-थोड़ा करके संचय करना; कौड़ीकौड़ी जोड़कर धन बटोरना ।
पलीता - पु० यंत्र लिखा हुआ कागज जिसे बत्तीकी तरह बनाकर जलाते हैं; तोपके रंजक में आग लगानेकी बरोह आदिकी मोटी बत्ती; पनसाखेपर रखकर जलानेकी कपड़ेकी विशेष प्रकारकी बत्ती ।
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पलीद - वि० [फा०] अशुद्ध, अपवित्र; दुष्ट; खोटा, खराव । पलुहना* - अ० क्रि० हरा-भरा होना, पल्लवित होना । पलुहाना * - स०क्रि० हरा-भरा करना, पल्लवित करना'जरी जो बेल सींचि पलुहाई' - प० । पलेट - स्त्री० [अं॰ 'प्लेट'] पट्टी; कमीज, कुरते आदि में भीतर की ओर लगायी जानेवाली पट्टी । पलेड़ना * - स० क्रि० धक्का देना ।
पलेथन - पु० वह सूखा आटा जिसे लोईपर लगाकर रोटी
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४६३
पलोटना-पशु बेलते हैं । मु०-निकलना-खूब पीटा जाना, गहरी मार पवनारमज-पु० [सं०] हनूमान; भीमसेन । पड़ना। -निकालना-खूब पीटना परेशान करना। पवनाश, पवनाशन-पु० [सं०] साँप । वि० हवा पीकर पलोटना*-स० क्रि० (पैर) दबाना। अ०क्रि० लोट-पोट रहनेवाला।
करना; भारी शारीरिक कष्टसे तड़फड़ाना छटपटाना । पवनाशी(शिन्)-वि० [सं०] हवा पीकर रहनेवाला । पलोथन-पु० दे० 'पलेथन' ।
पु० साँप । पलोचना*-स० क्रि० (पैर) दबाना; सेवा-शुश्रुषा करना।। पवनास्त्र-पु० [सं०] एक प्रकारका अस्त्र जिसका प्रयोग पलोसना*-स० क्रि० साफ करना, धोना; फुसलाना। | करनेपर बहुत तेज हवा या आँधी चलने लगती थी, पल्लव-पु० [सं०] नया और कोमल पत्ता; घासकी पत्ती; | पवनबाण (पु०)। कली; कंकण, वलय। -ग्राही(हिन)-वि० जिसमें पवनी-स्त्री० [सं०] झाड़ + दे० पौनी । पल्लव लगे हों या लग रहे हों; अपूर्ण,अधूरा (शान); अधुरी पवमान-पु० [सं०] वायु, हवा; गार्हपत्य अग्नि । जानकारीवाला।
पवर*-वि० प्रवर । स्त्री० ड्योढ़ी। पल्लवना*-अ० कि० पल्लवित होना।
पवरिया*-पु० ड्योढ़ीदार, पौरिया । पल्लवाद-पु० [सं०] हिरन ।
पवरी-स्त्री० दे० 'पीरी'। पल्लवित-वि० [सं०] जिसमें पल्लव लगे हों; विस्तृत | पवर्ग-पु० [सं०] नागरीमें 'प'से 'म'तक पाँच अक्षरोंका बढ़ाया हुआ; लाखमें रँगा हुआ; रोमांचयुक्त।
समूह। पल्लवी(विन्)-वि० [सं०] जिसमें नये पत्ते निकले हों। | पवाँडा-पु० जी उबा देनेवाला लंबा आख्यान; बहुत बढ़ापु० वृक्ष।
कर कही हुई बात एक तरहका गीत । पल्ला-पु० कपड़ेका छोर, दामन; दूरी; दुपलिया टोपीका | पवारना, पवारना*-सक्रि० फेंकना छींटना, छितराना।
आधा हिस्सा; अन्न बाँधकर ले जानेका टाट या गोनी | पवारी -स्त्री० लोहा छेदनेका लोहारोंका एक आला । किवाड़; तराजूकी एक ओरकी डलिया, पलड़ा; कैचीके पवाना*-स० क्रि० खिलाना, भोजन कराना। दो हिस्सों में कोई एक तीन मनका बोझ। वि० दे० । पवि-पु० [सं०] बज्र वाणी; बाण । -धर-पु० इंद्र। 'परला। (पल्लेदार-पु० गल्ला ढोने या तौलनेवाला । पविताई*-स्त्री० पवित्रता, शुद्धता । -दारी-स्त्री० पल्लेदारका काम । मु०-छूटना- पवित्र-वि० [सं०] शुद्ध, निर्मल, स्वच्छ, पुनीत; व्रत, छुटकारा मिलना, पिंड छूटना। छुड़ाना-छुट्टी पा लेना, शौच आदिसे शुद्ध । पु० शुद्ध करनेवाली वस्तु, शुद्धतापिंड छुड़ाना ।-झुकना-किसी पक्षका अधिक बलवान् की साधनरूप वस्तु (छलनी आदि); कुश; कुशकी बनी होना। -पकढ़ना-सहारा लेना ।-पसारना-किसीके | हुई पवित्री जिसे धार्मिक कृत्य करते समय अनामिकामें सामने दामन फैलाना, किसीसे कुछ भीख माँगना ।। पहनते.हैं। -धान्य-पु० जौ। -पाणि-वि० जिसके -भारी होना-दे० 'पल्ला झुकना' । (पल्ले)पड़ना-हाथ | हाथमें कुश हो। लगना, मिलना । (किसीके)-बंधना-विवाहित होना, पवित्रात्मा (मन)-वि० [सं०] जिसकी आत्मा पवित्र न्याही जाना; सौंपा जाना (किसीके)-बाँधना- हो, जिसका अंतःकरण शुद्ध हो । ब्याहना; जिम्मे करना या लेना। -से वाँधना-जिम्मे | पवित्रारोप(ह)ण-पु०[सं०] यज्ञोपवीत धारण करना; भक्तों करना; ब्याह देना।
द्वारा विष्णु आदि देवताओंको यज्ञोपवीत पहनानेका कृत्य । पल्लि, पल्ली-स्त्री० [सं०] छोटा गाँव, पुरा, टोला; कुटी; | पवित्रित-वि० [सं०] शुद्ध किया हुआ । छिपकली।
पवित्री-स्त्री० [सं०] कुशकी बनी हुई अँगूठी जैसी वस्तु जिसे पल्लिका-स्त्री० [सं०] छोटा गाँव, टोला; छिपकली। धार्मिक कृत्य करते समय अनामिकामें पहनते हैं, पैंती। पल्ली*-पु० 'पलव'; अनाज बाँधनेका टाट आदि । पवित्रीकरण-पु० [सं०] पवित्र या शुद्ध करना। पल्वल-पु० [सं०] छोटा जलाशय, छोटा तालाब । पशम-पु० [फा० 'पश्म'] नरम बाल; बहुत उम्दा और पर्वरि*-स्त्री० ड्योढ़ी।
नरम ऊन जो अधिकतर पंजाब, कश्मीर और तिब्बतकी पवरिया*-पु० दे० 'पँवरिया।।
भेड़ोंसे प्राप्त होता है। पुरुष या स्त्रीकी जननेंद्रियपरके पव-स्त्री० दे० 'पौ' । पु० [सं०] वायु, हवा; सूप आदिसे | बाल; बहुत तुच्छ वस्तु । मु०-उखाड़ना-व्यर्थ समय अनाजकी भूसी आदि निकालना; शुद्धीकरण ।
बिताना थोड़ा भी नुकसान न पहुँचा सकना। -न पवन-पु० [सं०] हवा; वायुके अधिष्ठातृदेव; अनाज उखड़ना-कुछ भी करते-घरते न बनना । -न सम
आदि साफ करना; छलनी; कुम्हारका आवाँ पानी झना-कुछ भी न गुनना। .. विष्णुः गृह्याग्नि पाँचकी संख्या। वि० शुद्ध, निर्मल , | पशमीना-पु० कश्मीर में बननेवाला एक तरहका बहत -कुमार-पु० हनूमान् भीमसेन ।-चक्र-पु० बवंडर । | मुलायम ऊनका कपड़ा। -चक्की-स्त्री० [हिं०] हवाकी शक्तिसे चलनेवाली चक्की। पशु-पु० [सं०] चार पैरों और पूँछसे युक्त जानवर, - -ज,-तनय,-नंद,-नंदन,-पुत्र-पु० दे० 'पवन- चौपाया (जैसे-सिंह, बाघ, बैल, ऊँट, बकरा आदि) जंत. कुमार'। -पति-पु० वायुके अधिष्ठातृदेव ।-पूत-वि० | प्राणी; वह जंतु जिसकी यशमें बलि दी जाय, बलिपश; वायुसे पवित्र किया हुआ। * पु०दे० 'पवनपुत्र' ।-बाण मूर्ख, विवेकहीन मनुष्य । -कर्म (न)-पु०,-क्रिया-पु० दे० 'पवनास्त्र' । -सुत-पु० दे० 'पवनकुमार'। | स्त्री० पशुका बलिदान; मैथुन । -चर्या-स्त्री० पशु जैसा
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पशुता-पसारना
४६४ लज्जारहित आचार; मैथुन । -चिकित्सालय-पु० बंबई के पासकी एक पर्वतमाला । (वेटेरिनरी हॉस्पिटल) वह स्थान जहाँ घोड़े, गाय, बैल पश्चिमोत्तर-वि० [सं०] जो पश्चिम और उत्तर में स्थित आदि घरेलू पशुओंकी चिकित्साका प्रबंध हो। -जीवी- हो, उत्तरी-पश्चिमी । पु० वायुकोण । (विन्)-वि० पशुका मांस खाकर जीनेवाला ।-धन-पश्तो-स्त्री० एक प्राचीन आर्यभाषा जो भारतकी पश्चिमो. पु० (लिवस्टॉक) मनुष्य-परिवारके साथ रहने और उसके । त्तर सीमासे लेकर अफगानिस्तानतक बोली जाती है। काम आनेवाले पशु-गाय, बैल, घोड़े, भेड़ आदि । | पश्म-पु० [फा०] दे० 'पशम' । -नाथ-पु० शिव । -निरोधगृह-पु०,-निरोधिका- पश्मीना-पु० [फा०] दे० 'पशमीना' । स्त्री० (कैटिल पाउंड) इधर-उधर विचरते हुए किसी तरह- | पश्यंती-स्त्री० [सं०] वेश्या; वह शब्द जो मूलाधार में की क्षति करनेवाले पशुओंको रोक रखनेकी जगह, आवारा उत्पन्न होनेवाले सूक्ष्म शब्दकी उत्पत्तिके अनंतर वायुके पशुओंको निर्धारित शुल्क देकर छुड़ा ले जानेतक रोक संयोगसे नाभिदेशमें उत्पन्न होता है, परा वाक्को उत्पन्न रखनेका बाड़ा या धर। -प,-पाल,-पालक-पु० करनेवाली वायुके मूलाधारसे हटकर नाभिदेशमें पहुँचनेपशु पालनेवाला, वह जो जीविकाके लिए भेड़-बकरी | पर उत्पन्न होनेवाला शब्द-विशेष । आदि पाले। -पक्षिकानन-पु० (जू) वह वन या पश्यतोहर-पु० [सं०] वह जो देखते-देखते कोई चीज कानन जहाँ विभिन्न प्रकारके पशु तथा पक्षी प्रदर्शन चुरा ले (जैसे-सुनार)। आदिके लिए रखे जाते हैं, चिड़ियाघर, जंतुशाला। पषाण, पषान*-पु० पाषाण, पत्थर । -पति-पु० पशु पालनेका व्यवसाय करनेवाला; शिव । पषारना, पषालना-स० क्रि० पखारना, धोना । -पलवल-पु० केवटी मोथा । -पालन-पु० जीविकाके पसंग*-पु० दे० 'पासँग'। " निमित्त भेड़-बकरी आदि पालनेका काम । -पाश-पु० पसँगा-पु० दे० 'पासँग' । वि० बहुत थोड़ा। मु०बलि-पशुको बाँधनेकी रस्सी; पशुरूपी जीवोंका बंधन भी न होना-अति तुच्छ होना। (पाशुपत दर्शन)। -प्रक्षेत्र-पु० (लिवस्टॉक फार्म) गाय, पसंघा-पु० दे० 'पासँग' । भेड़, सूअर आदि पशुओंको रखने, पालनेका स्थान । | पसंती*-स्त्री० दे० 'पश्यंती' । -मैथुन-पु० पशुओंका संभोग; मनुष्यका बकरी आदि | पसंद-स्त्री० [फा०] रुचि, स्वीकृति, कबूलियत; तरजीह । पशुके साथ संभोग। -यज्ञ-याग-पु० वह यश जिसमें | वि० रुचिके अनुकूल; जो मनको जॅचे, मनोनीत । किसी पशुकी बलि दी जाय । -राज-पु० सिंह। पसंदीदा-वि० [फा०] पसंद किया हुआ; जो पसंद हो । पशुता-स्त्री०,पशुव-पु०[सं०] पशुका भाव, जानवरपन। पस-अ० [फा०] बाद; बादमें, पीछे आखिरकार, अंतमें; पश्चात्-अ० [सं०] पीछेसे, बादमें, पीछे, अनंतर; अंतमें। इसलिए, अतः; नि:संदेह, बेशक । -(सो)पेश-पु. पश्चिम दिशासे पश्चिम दिशाकी ओर। -कृत-वि० जो आगा-पीछा; बहाना, टालमटूल ।। पीछे छोड़ दिया गया हो, मात किया हुआ।-ताप-पु० पसनी-स्त्री० अन्नप्राशन, चटावन । कोई अनुचित कार्य करके बाद में उसके लिए दुःखी होना, | पसम*-पु० दे० 'पशम' । पछतावा, अनुशय ।
पसमीना*-पु० दे० 'पशमीना'। पश्चादक्त-वि० [सं०] (लैटर) जो बादमें कहा गया हो, पसर-पु० आधी अंजलि । * स्त्री० प्रसार, फैलाव; आक्रवाक्यादिमें जिसका प्रयोग किसी अन्य ( तद्वत् ) शब्दके | मण-'पहली पसर रनेही टूट्यो -छत्र० । बादमें किया गया हो।
पसरना-अ० क्रि० और अधिक दरीमें व्याप्त होना, फैलना पश्चाद्वाहबद्ध-वि० [सं०] जिसकी मुश्के पीछे की ओर!
आगे बढ़ना; बढ़ना; हाथ-पाँव फैलाकर सोना । बाँध दी गयी हों।
पसरहट्टा-पु० दे० 'सरहट्टा'। पश्चाद्भाग-पु० [सं०] पीछेका हिस्सा; पश्चिमी भाग। पसराना-स० कि० फैलवाना, किसीको पसारनेके काममें पश्चाद्वर्ती(तिन्)-वि० [सं०] पीछे रहनेवाला; अनु
प्रवृत्त करना। सरण करनेवाला।
पसरौहाँ*-वि० फैलनेवाला, जो फैले । पश्चाद्ध, पश्चाधं-पु० [सं०] पीछेवाला आधा भाग; अप- पसली-स्त्री० पाँजरकी हडियों में से कोई एक, पाइर्वास्थि । रार्द्ध, शेषाद्ध पश्चिमी भाग ।
मु०-फड़कना या फड़क उठना-मनमें उत्साह पैदा पश्चिम-वि० [सं०] सबसे पीछेका; अंतिमः पच्छिमका। होना, जीमें उमंग होना। (पसलियाँ) ढीली करना पु० उदय होते हुए सूर्यकी ओर मुँह करके खड़े होनेसे
| या तोड़ना-बेतरह पीटना । पीठके पीछे पड़नेवाली दिशा। -क्रिया-स्त्री. अंत्येष्टि
पसा -पु० अंजली। क्रिया। -वाहिनी-वि० स्त्री० पच्छिम दिशाकी ओर
पसाउ*-पु० प्रसाद, कृपा । बहनेवाली।
पसाना-सक्रि० पके हुए चावलमेंसे माँड़ निकालना, पश्चिमाचल-पु० [सं०] वह पर्वत जिसके पीछे सूर्य छिपता भातको माँड़से रहित करना; जलयुक्त पदार्थ से जलके है, अस्ताचल ।
अंशको बहा देना । * अ० क्रि० प्रसन्न होना। पश्चिमाद्ध, पश्चिमाध-पु० [सं०] पीछेवाला आधा भाग पसार-पु० पसरनेकी क्रिया या भाव, फैलाव, विस्तार अपराध ।
* मायाजाल, प्रपंच। पश्चिमी-वि० पश्चिम दिशाका, पछाँही। -घाट-पु० पसारना-स० क्रि० फैलाना, छितराना; आगेकी ओर
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करना या बढ़ाना ।
पसारा - पु० दे० 'पसार' |
पसाव - पु० वह वस्तु जो पसानेसे निकले, पसाकर निकाली जानेवाली वस्तु; * प्रसाद, अनुग्रह ।
पसावन - पु० पसानेपर निकलनेवाला पदार्थ, माँड़ आदि । पसाहनि* - स्त्री० 'अंगरांग' ( विद्यापति ) । पसित* - वि० बँधा हुआ, पाशबद्ध । पसीजना -- अ० क्रि० ताप या गरमीके कारण किसी ठोस चीजका ऐसी स्थितिको प्राप्त होना कि उसका जलांश रस- रसकर बाहर निकले या उसमेंसे पानी छूटे; खिन्न होना; दयासे आर्द्र होना ।
पसीना - पु० वह पानी जो श्रम करने या गरमी लगनेसे शरीर में से निकलता है, स्वेद, श्रमजल । (गाढ़े ) ( पसीने) की कमाई - बड़ी मेहनत और सचाईसे कमाया हुआ धन । मु० -पसीने होना- पसीने से तर-बतर होना । पसु* - पु० दे० 'पशु' ।
पसुरी, पसुली* - स्त्री० दे० 'पसली' । पसेउ* -- पु० प्रस्वेद, पसीना । पसेरी-स्त्री० पाँच सेरकी एक तौल ।
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पसेव- पु० वह पानी जो किसी वस्तु के पसीजने से उसमें से निकलता है; किसी वस्तुमेंसे रस-रसकर निकलनेवाला तरल पदार्थ या जलांश; सुखाते समय कच्ची अफीम में से निकलनेवाला द्रव पदार्थ; पसीना ।
पस्त - वि० [फा०] नीच, कमीना; छोटा, तुच्छ; हारा हुआ; शिथिलं ( बोलचाल ) । - क़द - पु० छोटा कद । वि० छोटे कदका, नाटा, बौना । - क़िस्मत- वि० भाग्यहीन । - ख़याल - पु० छोटा खयाल, तुच्छ विचार । वि० छोटे खयालवाला | - हिम्मत- वि० जिसकी हिम्मत टूट गयी हो, हतोत्साह | मु० - करना - दबा देना, हरा देना; ( हिम्मत) तोड़ देना । होना- हार जाना; पराजित होना; (हिम्मत) टूट जाना ।
पहँ
* - अ० पास; से ।
पह* - स्त्री० दे० 'पौ' । मु०- फटना - दे० 'पौ फटना' । पहचनवाना - स० क्रि० किसीसे पहचाननेका काम कराना । पहचान - स्त्री० पहचाननेकी क्रिया या भाव, कभीके देखे या जाने हुए व्यक्ति या पदार्थको दुबारा देखने पर उसे उसी रूप में जान लेनेकी क्रिया या भाव, पूर्व परिचित व्यक्ति या वस्तुको देखने से होनेवाला यह ज्ञान कि यह अमुक है; किसी पदार्थ की वस्तुस्थिति जाननेकी क्रिया या भाव, परख; वह वस्तु या बात जिससे यह जाना जाय कि यही अमुक पदार्थ है, निशान, चिह्न; परखने की शक्ति परिचय (क्क० ); विवेक ।
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पसारा- पहल
पहन * - पु० पत्थर, पाषाण ।
पहनना - स० क्रि० (कपड़े, गहने आदि ) शरीर या अंगविशेषपर धारण करना ।
पहनवाना - स० क्रि० किसीके द्वारा किसीको कपड़े, गहने आदि धारण कराना; किसीको पहनने या पहनाने में प्रवृत्त करना ।
पहनाई - स्त्री० पहननेकी क्रिया; पहनानेकी उजरत । पहनाना-स० क्रि० किसीको कपड़े, गहने आदि धारण
कराना ।
पहनावा - पु० पहनने के कपड़े, पोशाक, नीचे से ऊपर तक पहने जानेवाले कपड़े; वेश; विशेष प्रकारका वेश; किसी तरहका खास पहननेका वस्त्रः कपड़े पहननेका ढंग । पहपट - पु० एक प्रकारका स्त्रियोंका गीत; हल्ला, शोर; बदनामीका हल्ला; छिपे तौरसे की जानेवाली बदनामी; धोखा, दगाबाजी । -बाज़- वि० हल्ला मचानेवाला; ऊधमी, फसादी; धोखा देनेवाला, दगाबाज ।
पहर - पु० तीन घंटेका समय; समय, काल, जमाना । पहरना। - स० क्रि० पहनना ।
पहरा - पु० किसी व्यक्ति या वस्तुको उसी रूप या स्थिति में बनाये रखने के लिए एक या अनेक व्यक्तियोंका नियुक्त होना, चौकी, निगरानी, देखरेख; रक्षकदलके तैनात रहनेका समय; रक्षकदल; रक्षकदलका फेरा; गइतके समयकी बोली; हिरासत; * युग, जमाना । (पहरे) दारपु० पहरा देनेवाला, रक्षक । मु०- देना - रखवाली करना, निगरानी करना, किसीकी रक्षाके लिए तैनात रहना । - पड़ना - पहरा दिया जाना, रक्षाके लिए चौकीदार तैनात रहना । - बदलना -- एक रक्षक या रक्षकदलके स्थानपर दूसरेका नियुक्त होना । - बैठानाकिसीकी निगहबानीके लिए उसके आस- पास पहरेदार नियुक्त करना । ( पहरे ) मैं देना - निगहबानी के लिए पहरेदारों या सिपाहियों के सिपुर्द करना, हिरासत में करना । - मेँ रखना - हिरासत में रखना । - मेँ होना - हिरासत में
रखा जाना ।
पहराइत * - पु० पहरा देनेवाला - ' पहराइत घर मुसो सावको रच्छा करने लागो चोर' - सुन्द० । पहराना। - स० क्रि० पहनाना ।
पहरावनी - स्त्री० दान या खिलअत के रूपमें दी जानेवाली पोशाक ।
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पहरावा - पु० दे० 'पहनावा ' | पहरी- पु० पहरेदार |
पहरु, पहरू* - पु० पहरेदार | पहरुआ - पु० पहरेदार ।
पहचानना - स० क्रि० किसी पूर्वपरिचित व्यक्ति या वस्तु- पहल- पु० किसी ठोस या पोली चीजके तीन या अधिक को देखकर यह जान लेना कि वह अमुक है; किसी व्यक्ति कोरों या कोनोंके बीचकी चौरस सतह; धुनी हुई रुईकी या पदार्थको इस प्रकार जानना कि जब कभी देखे तब या उनकी मोटी और जमी हुई तह या परत; रजाई, यह ज्ञान हो जाय कि यह अमुक है अथवा नहीं; विवेक तोशक आदिके भीतरकी रुईकी परत; पुरानी रुईकी वह करना; किसीका गुण-दोष जानना, किसीके गुण-दोषसे जमी हुई तह जो रजाई, तोशक आदिमेंसे निकाली गयी अच्छी तरह परिचित होना । हो; किसी ऐसे कार्यका आरंभ जिसमें प्रतिकारस्वरूप पटना। - स० क्रि० भगाने या पकड़नेके लिए दौड़ना; दूसरे भी कुछ करें, छेड़; बगल; * पटल, परत । - दारपत्थर आदिपर रगड़कर धार तेज करना । वि० जिसमें पहल हों, पहलवाला । मु० - निकालना -
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पहलवान - पहुना
किसी चीज में पहल बनाना । पहलवान - पु० [फा०] कुश्ती लड़नेवाला मजबूत और कसरती आदमी, मल्ल, कुश्तीबाज; हृष्ट-पुष्ट और बलवान् आदमी ।
पहलवी - स्त्री० [फा०] ईरानकी एक पुरानी भाषा । पहला - वि० जो गणना या क्रमके अनुसार एकके स्थानपर पड़े, आदिमें पड़नेवाला, आद्य, प्रथम + पु० पुरानी रुकी जमी हुई तह |
पहलू - पु० [फा०] बगल, पाँजर; किसी पदार्थका दाहिना या बायाँ भाग, बाजू, पार्श्व; सेना या मकानका दाहिना या बायाँ भाग; किनारा कल, करवट दिशा; किसी ठोस चीज या नगीने आदिके कोरों या कोनोंके बीचकी चौरस सतह, पहल; किसी विषयका कोई अंग जिसपर विचार किया जाय, पक्ष; पड़ोस; गूढ़ अर्थ, व्यंग्यार्थ; रुख; तरकीब, बहाना । —दार - वि०जिसके कई पहलू हों; + बगल में रहनेवाला । मु०-आबाद होना- प्रेयसीका प्रेमीके पास बैठना, माशुकका आशिक के पास बैठना । (किसी का) - गरम करना- किसीका, विशेषकर प्रेयसीका प्रेमीसे सटकर बैठना, बहुत नजदीक बैठना । (किसीसे) - गरम कराना - प्रेयसीको अपने शरीर से सटाकर बैठाना। - दबाना - शत्रुकी सेना या नगरके दायें या बायें भागको आक्रांत कर देना; अपनी सेनाके दोनों पक्षोंमेंसे किसी एकको दूसरेसे पीछे रखते हुए आक्रमण में आगे बढ़ना । - बचाना - मुठभेड़का अवसर न आने देते हुए आगे बढ़ जाना, भिड़ंत बचाते हुए बगल से निकल जाना । - बसाना - पड़ोस में जा बसना । - मेँ बैठना- किसीसे सटकर या लगकर बैठना । - मेँ रहना- किसीसे सटकर, किसी के बहुत समीप बैठ रहना । पहले-अ० आदिमें, शुरूमें; देश, स्थिति या कालके अनुसार प्रथम, पूर्व में, पेश्तर आगे; पुराने जमाने में, प्राचीन कालमें, अतीत कालमें । -पहल- अ० सर्वप्रथम, सबसे पहले; पहली बार ।
पहलीँठा, पहलौठा - वि० सभी लड़कोंसे पहले पैदा हुआ;
•
पहलवानी - स्त्री० [फा०] कुश्ती लड़नेका काम या पेशा, पहार - पु० दे० 'पहाड़' | मल्लवृत्ति; पहलवान होनेका भाव ।
पहारू* - पु० पहरेदार |
पहिचान - स्त्री० दे० 'पहचान' |
पहित, पहिती * - स्त्री० पकायी हुई दाल | पहिनना। -स० क्रि० दे० 'पहनना' | पहिनाना - स० क्रि० दे० 'पहनाना' | पहिनावा- पु० दे० 'पहनावा ' | पहियाँ * - अ० पास ।
पहिया - पु० गाड़ी, कल आदिका वह गोलाकार अवयव जिसके धुरीपर घूमने से वह कल या गाड़ी चलती है, चक्र,
प्रथम जात ।
पहलौंठी, पहलौठी- - स्त्री० बच्चा जनने की पहली क्रिया, प्रथम प्रसव, आद्य गर्भमोचन ।
पहाड़ - पु० पत्थर, कंकड़, चूना, मिट्टी आदिकी चट्टानोंका वह प्राकृतिक पुंज जो जमीनकी सतह से बहुत ऊँचा होता है और बहुधा बरफ से ढका रहता है; किसी पदार्थका बहुत ऊँचा ढेर; कोई बहुत भारी वस्तु; वह जिससे जल्दी छुटकारा न मिल सके; बहुत कठिन कार्य, दुष्कर कार्य । मु० उठाना - भारी काम हाथ में लेना । - कटना - भारी कामका पूरा हो जाना। टूटना, टूट पड़ना - भारी संकट आ पड़ना । - से टक्कर लेना - बहुत बड़े बलवान्से भिड़ना ।
पहाड़ा - पु० किसी अंकको गुणन-सूची जिसे बच्चे याद करते हैं ।
पहाड़िया - वि० दे० 'पहाड़ी' |
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पहाड़ी - वि० पहाड़-संबंधी; पहाड़का; पहाड़पर या उसके आसपास रहनेवाला; पहाड़पर होनेवाला; जो पहाड़से निकले । स्त्री० छोटा पहाड़; पहाड़ी लोगोंके गानेकी एक तरहकी धुन; एक रागिनी; एक ओषधि ।
चक्का ।
पहिरना । - स० क्रि० दे० 'पहनना' | पहिराना। -स० क्रि० दे० 'पहनाना' | पहिरावना -स० क्रि० दे० 'पहनाना' | पहिरावनि, पहिरावनी* - स्त्री० दे० 'पहनावा' | पहिल* - वि० दे० 'पहला' | अ० पहले |
1- अ० दे० 'पहले' |
पहिला - 1 वि० दे० 'पहला'। * वि० स्त्री० जो पहले पहल ब्यायी हो । पहिले ।-उ पहिलौंठा, पहिलौठा - वि० दे० 'पहलौठा' | पहिलौंठी - स्त्री० दे० 'पहलौँ ठी' । पहीति - स्त्री० दाल ।
पहुँच - स्त्री० पहुँचनेकी क्रिया या भाव; पहुँचनेकी शक्ति; पासतक गमन; गति, पैठ, प्रवेश ( शास्त्र, विद्या आदि में ); पहुँच जाने की खबर या सूचना (जैसे पत्रकी पहुँच); समझनेकी सामर्थ्य; ग्रहण या धारणाकी शक्ति; जानकारी । पहुँचना - अ० क्रि० एक स्थानसे चलकर दूसरे स्थानको प्राप्त होना; आगे बढ़कर या फैलकर विशिष्ट स्थानको प्राप्त होना; किसी स्थान या पद आदिको प्राप्त होना; व्याप्त होना; समाना; किसी गूढ़ या मार्मिक बातको जान लेना, समझना, किसी विषयकी दूरकी बातें समझने की शक्ति रखना; गति या जानकारी रखना; फलके रूप में मिलना या प्राप्त होना; प्राप्त या अनुभूत होना; बराबरी में आना; समान होना, समता करना । पहुँचा हुआ - सिद्ध । पहुँचा पु० कुहनीसे नीचेका भाग । पहुँचाना-स० क्रि० किसी व्यक्ति या पदार्थ को एक स्थान से चलाकर या हटाकर दूसरे स्थानको प्राप्त कराना, ले जाना; आगे बढ़ाकर या फैलाकर किसी विशिष्ट स्थानको प्राप्त कराना; किसी स्थान या पद आदिको प्राप्त कराना; फैलाना; समवाना; फलके रूपमें प्राप्त कराना; अनुभव कराना; समकक्ष बनाना, बराबरी में लाना; तुल्य बनाना । पहुँची - स्त्री० हाथमें पहनेका स्त्रियोंका एक प्रसिद्ध गहना; कलाकी रक्षा के लिए पहना जानेवाला आवरण । पहुँन ई + - स्त्री० दे० 'पहुनाई' । पहुना - पु० दे० 'पाहुना' ।
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पहुनाई-पाँव पहुनाई-स्त्री० पाहुना होनेका भाव; पाहुना बनकर कहीं पंचाल देशपर शासन करनेवाला । पु० पंचाल नामक जाना या आना; + अतिथि-सत्कार
देश; पंचाल देशका राजा; पंचाल देशके निवासी; बढ़ई, पहुप-पु० फूल, पुष्प ।
जुलाहा, नाई, धोबी और मोची-इन पाँचोंका समाहार । पहुम, पहमी-स्त्री० पृथ्वी ।
पांचालिका-स्त्री० [सं०] कपड़े आदिकी बनी हुई गुड़िया, पहला-स्त्री० कुई ।।
पुतली। पहेरी, पहेली-स्त्री० किसीकी बुद्धिकी परीक्षा लेनेके पांचाली-स्त्री० [सं०] पंचाल देशकी स्त्री या रानी; पांडवोंकामका एक प्रकारका प्रश्न, वाक्य या वर्णन जिसमें किसी की पत्नी द्रौपदी जो पंचाल देशको राजकुमारी थी; पुतली, वस्तुका भ्रामक या टेढ़ा-मेढ़ा लक्षण देकर उसे बूझने या गुड़िया; काव्यकी एक प्रसिद्ध रचनाशैली । अभीष्ट वस्तुका नाम बतानेको कहते है, बुझौवल; कोई पाँच*-स्त्री० किसी पक्षकी पाँचवीं तिथि, पंचमी।। ऐसी बात या ऐसा विषय जो जल्दी समझमें न आये पाँजना-म० क्रि० लोहे, पीतल आदिकी वस्तुओंको टाँका ऐसी समस्या जो जल्दो हल न की जा सके। मु०- देकर जोड़ना, झालना। बुझाना-अपनी बातको ऐसे शब्दोंमें कहना कि वह पाँजर-पु० शरीरका काँख और कमरके वीचका पसलियोंजल्दी सुननेवालेकी समझमें न आये।
वाला भाग, पंजर, पाव । पाँ, पाँइ-पु० पैर, पाँव ।
पाँजी*-स्त्री० नदीमें पानीकी इतनी कमी होना कि लोग पाँइता*-पु० चारपाईका पैर रखनेकी ओरका हिस्सा, उसे हलकर पार कर सकें। पायताना।
पाँझ-वि० हलकर पार करने योग्य ( नदी)। पाँउ*-पु० पैर, पाँव ।
पांडर-पु० [सं०] सफेद रंग; दोना; कुंदका फूल; गेरू । पाँक*-पु० पंक, कीचड़ ।
वि० सफेद रंगका। पांक्त-वि० [सं०] पंक्ति-संबंधी; पंक्तिका ।
पांडव-पु०[सं०] पांडुके पुत्र-युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन आदि; पाँख-पु० पंख, पर, डैना ।
पंजाबका एक प्राचीन प्रदेश। -श्रेष्ठ-पु० युधिष्ठिर । पाँखड़ा -पु. एख, पर ।
पांडित्य-पु० [सं०] पंडिताई, विद्वत्ता। पाँखड़ी-स्त्री० दे० 'पँखड़ी'।
पांड-पु० [सं०] सफेद-पीला रंग; सफेद रंग; पीलिया . पाँखी*-स्त्री० दीपकपर जल मरनेवाली पाँखवाली कीड़ी, रोग; सफेद हाथी; पांडवोंके पिता; पांडुफल, परवल; फतिंगा, पक्षी, चिड़िया।
वि० पीलापन लिये हुए सफेद रंगका, सफेद-पीले रंगका; पाँखुरी-स्त्री० दे० 'पँखड़ी' ।
सफेद रंगका। -फल-पु. परवल । -मृत्(),पॉग-पु० गंगबरार, कछार ।
मृत्तिका-स्त्री० सफेद या पीले रंगकी मिट्टी; खड़िया । पाँगानोन-पु० समुद्र के पानीसे तैयार किया जानेवाला -रोग-पु० पीलिया। -लिपि-स्त्री० दे० 'पांडु-लेख'; नमक, समुद्री नोन ।
पुस्तककी हस्तलिखित प्रति । -लेख, लेख्य-पु० पट्टी, पाँगुर* -वि० पंगु, लँगड़ा । पु० लँगड़ा मनुष्य ।
कागज आदिपर अंकित वह लेख या रेखाचित्र जिसे पुनः पांगुल्य-पु० [सं०] पंगुल होनेका भाव, लंगड़ापन । काट-छाँटकर ठीक किया जाय, मसविदा । -लेखक-पु० पाँच-विचारसे एक अधिक, दसका आधा। पु० पाँचकी (लेख आदिकी) पाण्डुलिपि तैयार करनेवाला। संख्या, ५, * पाँच व्यक्ति बहुतसे लोग, जनता; जाति-पांडुर-पु० [सं०] पीलापन लिये हुए सफेद रंग, सफेदबिरादरीके नेता या सरदार । मु०-पाँचौँ या पाँचौँ पीला रंग; सफेद रंग, पांडु रोग; सफेद कोढ़ । वि० उँगलियाँ घी में होना-खूब फायदा उठाना।-सवारोंमें | पीलापन लिये हुए सफेद रंगका; सफेद रंगका । नाम लिखाना-पात्रता न होते हुए भी अपनेको बड़ोंमें पाँड़े-पु० श्राह्मणोंकी एक उपाधि; * अध्यापक रसोइया । सम्मिलित करना।
पांड्य-पु० [सं०] पांडु देशका निवासी; पांडु देशका पांचजन्य-पु० [सं०] कृष्णका शंख, अग्नि ।
राजा; दक्षिणका एक प्राचीन प्रदेश; इस प्रदेशका निवासी पांचनद-वि० [सं०] पंचनद-संबंधी; पंजाबका, पंजाबी। या राजा।
पु० पंचनद अथवा पंजाबका राजा या वहाँका निवासी। पाँत-स्त्री० पंक्ति, कतार, पंगत; समूह । पांचभौतिक-वि० [सं०] पृथ्वी, जल, तेज आदि पाँच पाँति-स्त्री० कतार एक साथ खानेवालोंका समूह, तड़; भूतों या तत्त्वोंका बना हुआ।
स्वजनवर्ग। पांचयज्ञिक-वि० [सं०] पंचयज्ञ-संबंधी। पु० पाँच महा-पांथ-प० [सं०] पथिक, राही; प्रवासी । -निवास-पु०, यज्ञों में से कोई।
-शाला-स्त्री० धर्मशाला, सराय, चट्टी। पाँचर-पु० कोल्हूके मुँहपर, जहाँ जाठ लगता है, जड़ा पाय *-पु० पैर, चरण ।-चा-पु० दे० 'पायँचा' ।-ताजानेवाला लकड़ीका टुकड़ा।
पु० दे० 'पाता। क- वि० [सं०] पाँच वर्षका । [स्त्री०पांचवर्षिकी'] पाँव-पु० वह अंग जिसके बल प्राणी चलते हैं, पैर । पाँचवाँ-वि० गिनती या क्रममें पाँचके स्थानपर पड़नेवाला।
गिनता या क्रमम पाचक स्थानपर पड़नेवाला। -चप्पी-स्त्री० पैर दबानेकी क्रिया।-पाँव-अ० पैदल । पाँचा -पु० भूसा बटोरनेके कामका किसानोंका एक बेंटदार म०-अहाना-किसी बातमें बेकार दखल देना। -उखड़ आला जिसमें पाँच दाँते होते हैं।
या उठ जाना-लड़ाई में ठहर न सकना । -उठाकर पांचाल-वि० [सं०] पंचाल देश-संबंधी; पंचाल देशका चलना-तेज चलना ।-कट जाना-आने-जानेकी शक्ति
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पाँवड़ा-पाई
४६८ नष्ट हो जाना; चल बसना ।-का खटका-पैरकी आहट । रजस्वला; पृथ्वी । -की जूती-तुच्छ सेवक। -की बेड़ी-जंजाल, झंझट । पाँस-स्त्री० राख, गोबर आदिकी खाद, खमीर । -गाड़ना-जमकर खड़ा रहना; लड़ाईमें डटा रहना। पाँसा-पु० दे० 'पासा'। -घिसना-चलते-चलते थक जाना ।-जमना-हढ़तापूर्वक पाँसी-स्त्री० रस्सीकी बनी हुई घास-भूसा रखनेको जाली। स्थित होना; स्थिति हद होना, ऐसी स्थितिमें होना कि गाँसुरी*-स्त्री० पसली-'मसककी पांसुरी पयोधि हटने या विचलित होनेकी नौबत न आये। -जमाना- पाटियतु है'-कविता। दृढ़तापूर्वक स्थित होना, अपनी स्थिति हद करना। पाही*-अ० पास, निकट । -डिगना-स्थिर न रहना।-तलेकीधरती खसकना- पा-पु० [फा०] पैर, पाँव कदम; वृक्षकी जड़ ।-अंदाज़बहुत अधिक घबरा जाना, होश उड़ जाना। -तलेकी पु० नारियलके छिलके, मुंज, ऊन आदिसे तैयार की धरती सरक जाना या मिट्टी निकल जाना-स्तब्ध रह जानेवाली एक प्रकारकी चटाई जो पैर पोंछनेके काममें जाना। -तोड़कर बैठना-कहीं आना-जाना बंद कर आती है। -खाना-पु० मल, गू; मलत्यागके निमित्त देना ।-तोड़ना-बहुत अधिक चलकर पैरोंको थका देना। बनाया हुआ विशेष प्रकारका स्थान या कमरा ।-जामाधरतीपर न पड़ना या न रखना-धमंडमें चूर रहना। पु० कमरसे लेकर टखनेतकका दो पायँचोंवाला एक प्रसिद्ध -धरना-पधारना। -धारना*-दे० 'पाँव धरना'। पहनावा । (मु०-जामसे बाहर होना या निकल पकड़ना-धोकर पीना-बहुत आवभगत करना; चरणामृत बहुत अधिक क्रुद्ध होना, क्रोध, आपेसे बाहर होना।) लेना। -पकड़ना-पैर छूना, बहुत अधिक दीनता और -जेब-पु. पाँवमें पहननेका एक धुंघरूदार गहना । विनय प्रकट करना। -पड़ना-चरणोंपर गिरना; दैन्य
-ताबा-पु० मोजा; तलेके आकारका चमड़ेका वह लंबा भावसे विनय करना। -पर पाँव रखकर बैठना- टुकड़ा जिसे जूतेको चुस्त करनेके लिए उसमें डालते हैं । बेखबर होना; कुछ काम न करना। (किसीके)-पर
-पोश-पु० जूता; मोजा। (मु०-पोशपर मारनापाँव रखना-किसीका पूरी तरह अनुगमन करना। कुछ भी परवा न करना; अति तुच्छ समझना।) -पलोटना-पाँव-चप्पी करना, पैर दबाना । -पसा- -बंद-वि० बँधा हुआ; गिरफ्तार, कैद; जो किसी रना-कब्जा करना ठाट-बाट करना। -पाँव चलना- नियम, वचन आदिका पूरी तरह पालन करे; जो किसी पैदल चलना। -पीटना-छटपटाना; परेशान होना। नियम, वचन आदिसे पूर्णरूपसे बद्ध हो, जो किसी -पूजना-बहुत अधिक आवभगत करना; विवाहमें कन्या- नियम, वचन आदिका पालन करनेके लिए विवश हो; दान करनेवालेका वरका पूजन करके उसे कन्या समर्पित | मजबूर, लाचार; कायम रहनेवाला (रहना, होनाके करना। -फूलना-भय आदिके कारण ठिठक जाना। साथ) । पु० बेड़ी, घोड़ेके पिछले पैरोंको बाँधनेके कामकी -फेरने जाना-दुलहिनका पहले पहल ससुराल जाना; रस्सी, पिछाड़ी। -बंदी-स्त्री० पाबंद होनेको क्रिया दुलहिनका ससुरालसे पहले पहल अपने मायके या किसी या भाव; नियम, वचन आदिका अनिवार्य पालन; मुमाऔर रिश्तेदारके यहाँ जाना; प्रसूताका कुछ समयके लिए नियत; मजबूरी। -बोस-वि० पाँव चूमनेवाला, प्रणाम अपने मायके या किसी और रिश्तेदारके यहाँ जाना । करनेवाला, आदाब बज़ानेवाला। पु० दे० 'पाबोसी' । --फैलाना-अधिक पानेके लिए प्रयत्न करना; अधिक -बोसी-स्त्री० पाँव चूमना या छूना, प्रणमन; खातिर, पानेका लोभ करना। -बढ़ाना-और अधिक वेगसे ताजीम । -माल-वि० पैरों तले रौंदा हुआ, पददलित; चलना; कब्जा करना । -भारी होना-गर्भवती होना । तबाह, बरबाद (करना, होनाके साथ)। -माली-स्त्री० (किसीसे)-भीन धुलवाना-अति तुच्छ समझना। पैरोंके नीचे रौंदना . या रौदवाना; तबाही, बरबादी । -में बेड़ी पड़ना-जंजाल में फंसना। -मैं मैंहदी -याब-वि०जो हलकर पार किया जा सके, कम गहरा । लगना-कोई काम करनेके लिए बाहर न जाना। -याबी-स्त्री० पायाब होना, उथलापन। -रोपना*-प्रण करना; बाजी लगाना। -लगना-पाइ-पु० पैर, पाँव ।। चरण छूकर प्रणाम करना। -समेटना-पैर सिकोड़ना पाइक*-पु० दे० 'पायक' । पृथक् रहना। -से पाँव बाँधकर रखना-सदा अपने पाइका-पु० [अं॰] एक प्रकारका छापेका टाइप जो १/६ पास या देखरेख में रखना, कभी पाससे या आँखोंके | इंच चौड़ा होता है। सामनेसे हटने न देना।
पाइट-पु० बाँस आदिका बना हुआ वह ढाँचा जिसपर पाँवड़ा-पु० वह कपड़ा जो किसी आदरणीय व्यक्तिके पाँव चढ़कर दीवार चुनी जाती है।
रखकर चलनेके लिए उसके मार्गमें बिछाया जाता है। पाहतरी*-स्त्री० पलंगका पैरकी ओरका भाग, पैताना । पाँवड़ी-स्त्री० खड़ाऊँ; * जूता; गोटा-पट्ठा बिननेका एक पाइप-पु० [अं०] नल; नली; पानीकी कल; एक बाँसुरी काठका आला।
जैसा बाजा; हुक्केकी निगाली। पाँवर*-वि० नीच; तुच्छ, क्षुद्रः मूर्ख । पु० दे० 'पाँवड़ा'। पाइमाल*-वि० दे० 'पामाल' । पाँवरी*-स्त्री० दे० 'पाँवड़ी'; सीढ़ी; ड्योढ़ी; बैठक । पाइल-पु० पायल, पाजेब । पांशु, पांसु-स्त्री० [सं०] धूल, धूलिकण; गोबरकी खादा पाई-स्त्री० घेरा बनाते हुए नाचने या घूमनेकी क्रिया पाँगा नमक।
बॉसकी तीलियों या बेंतका एक प्रकारका ढाँचा जिसपर पांशुला, पांसुला-स्त्री० [सं०] पुंश्चली, व्यभिचारिणी तानेका सूत फैलाकर जुलाहे उसे माजते है, टिकठी;
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४६९
पाउ-पाचक घोड़ेकी पैर सूजनेकी एक बीमारी; इकाईका चतुर्थांश सूचित पाकारि-पु० [सं०] इंद्र।। करनेवाली छोटी खड़ी रेखा, इकाईके चौथे भागके रूपमें पाकिस्तानी-वि० [फा०] पाकिस्तानका । पु० पाकिस्तानकिसी संख्याके आगे लगायी जानेवाली छोटी खड़ी का रहनेवाला।। लकीर; आकारकी मात्रा पूर्ण विराम सूचित करनेके लिए पाकेट-पु० [अं०] थैली, जेब। -मार-पु० वह जो चोरीवाक्यके अंतमें लगायी जानेवाली खड़ी लकीर; गहने से जेबमेंसे रुपया-पैसा आदि निकालने या जेब काटनेका आदि रखनेकी स्त्रियोंकी पिटारी; घिसा हुआ रद्दी टाइप; काम करे, जेबमें रखी हुई चीजें चुरा लेनेका काम करने एक कीड़ा; एक छाटा सिक्का जो एक पैसेके १/३ के बराबर वाला व्यक्ति । -मारी-स्त्री० पाकेटमारका पेशा । मु०होता है।
गरम करना-घूस देना, घूस लेना। पाउँ-पु० पाँव, पैर।
पाक्षपातिक-वि० [सं०] पक्षपात करनेवाला, फूट डालनेपाउंड-पु० [अं०] सोनेका एक अंग्रेजी सिका जो २० | वाला। शिलिंगके बराबर होता है; एक अंग्रेजी वजन जो आठ पाक्षिक-वि० [सं०] पक्ष-संबंधी; पक्षका पाख भर में होनेछटाँकसे कुछ कम होता है।
वाला प्रत्येक पक्षमें होनेवाला; चिड़ियोंसे संबंध रखनेपाउ*-पु० पाँव; चतुर्थांश ।
वाला । पु० बहेलिया। पाउडर-पु०[अं०] चुरा, बुकनी; सुंदरता बढ़ाने या अच्छी पाखंड-पु० [सं०] वेद-विरुद्ध आचरण करनेवाला; दिखारंगत लाने के लिए चेहरे आदिपर लगाया जानेवाला एक वटी उपासना या भक्ति, पूजा-पाठ आदिका आडंबर; प्रकारका चरा; चूर्ण की हुई दवा ( जैसे-टूथपाउडर )। ढकोसला, ढोंग; वंचना, छल । वि० जो वेदके विरुद्ध पाक-पु०[सं०] पकने या पकानेकी क्रिया या भाव; पकाया आचरण करे । -फंडी-वि० [हिं०] वेद-विरुद्ध आचरण हुआ अन्न, रसोई; पिंडदानके निमित्त दूधमें पकाया हुआ करनेवाला; भक्ति या उपासनाका ढोंग रचनेवाला; जो चावल पकवान; भोजनका पचना; फोड़े, फल आदिका केवल दूसरोंको ठगने या धोखा देनेके लिए पूजा-पाठ
व्रण, फोड़ा; वृद्धताके कारण बालोंका सफेद आदि करे; ठग धूर्त्त । मु०-फैलाना-दूसरोंको ठगनेके होना; बुद्धिका परिपक्व होना; परिणाम; एक दैत्य जिसे लिए विशेष प्रकारका स्वाँग बनाना। इंद्रने मारा था । वि० पका हुआ; अल्प; प्रशस्य, परिपक्क पाखंडी(डिन्)-वि० [सं०] दे० 'पाखंड' । बुद्धिवाला । -कर्म (न)-पु०,-क्रिया-स्त्री० पकानेकी पाख-पु. आधा महीना, पंद्रह दिनका समय, पखवाड़ा; क्रिया; पकाना। -हि ष)-पु० इंद्र। -पंडित- छाजनको ढालुवाँ बनानेके लिए कमरेकी चौड़ाईकी दीवारपु० वह जो रसोई बनाने में सिद्धहस्त हो। -यज्ञ-पु० का वह तिकोना ऊपरी भाग जिसपर 'बँडेर' रखते हैं; वृपोत्सर्ग आदिके अवसरपर किया जानेवाला होम जिसमें पाखवाली दीवार । चरुका हवन होता है।-रिपु-पु० इंद्र ।-शाला-स्त्री० पाखर-स्त्री० लड़ाईके हाथी या घोड़ेको रक्षाके लिए पहरसोईघर । -शासन-पु० इंद्र। -शासनि-पु० इंद्रका नायी जानेवाली लोहेकी झूल । पुत्र जयंत; बालि; अर्जुन |-शुक्ला-स्त्री० खड़िया मिट्टी। पाखरी-स्त्री० अनाज लादनेके लिए गाड़ीपर बिछाया -स्थली-स्त्री० पक्काशय । -स्थान-पु० रसोईघर जानेवाला टाट । आवाँ । -हंता (त)-पु० दे० 'पाकशासन'। पाखा-पु० पख पंख, * कोना । पाक-वि० [फा०] शुद्ध, पवित्र; निर्दोष, निष्कलंक साफ- पाखान*-पु० पाषाण, पत्थर । सुथरा; बिना मिलावटका, खालिस; बरी; बेबाक पाप या पाग-स्त्री० पगड़ी। पु० वह शीरा या किवाम जिसमें मिठाई
ला, परहेजगार ।-दामन,-दामाँ-वि० आदिको डुबाते हैं, चाशनी; चाशनी में डुबायी हुई पेठे शुद्ध, पवित्र आचरणवाला, निष्पाप । वि० स्त्री० सती आदिकी मिठाई; मधु, चीनी या मिसरीके शीरेमें सनी हुई (स्त्री) । -दिल-वि० शुद्ध अंत:करणवाला, पवित्र विशेष प्रकारकी औषध, अवलेह । विचारवाला। -नीयत--स्त्री० अच्छी नीयत, सद्विचार, | पागना-स० क्रि० पाग या शारेमें डुवाना, चाशनी में शुद्ध विचार । -परवरदिगार-पु० परमेश्वर ।-बाज़- डुबाना । * अ० क्रि० मग्न होना, शराबोर होना। वि० शुद्ध हृदयवाला, निष्पाप, सञ्चा, नेकनीयत । पु० पागल-वि० [सं०] जिसका दिमाग खराब हो गया हो, भाँग छाननेकी साफी। -बाज़ी-स्त्री० पाकबाज होनेका विक्षिप्त, सनकी; जो प्रेम, क्रोध आदिमें आपसे बाहर हो भाव । -साफ-वि० साफ-सुथरा, निर्मल; निर्दोष, गया हो; नासमझ, अबूझ। -खाना-पु० [हिं०] वह निष्कलंक, निष्पाप विशुद्ध ।
जगह जहाँ पागलोंकी देख-रेख और उपचार किया जाता पाकड़, पाकर-पु० बरगदकी जातिका एक प्रसिद्ध पेड़। पाकना*-अ० क्रि० पकना ।
पागलपन-स्त्री० पागल होनेका भाव; एक प्रकारकी पाकरी*-स्त्री० दे० 'पाकड़' ।
मानसिक व्याधि जिसमें विवेक नष्ट हो जाता है और पाकला-वि० पका हुआ।
रोगी नासमझीके काम करता है, उन्माद, नासमझी। पाका-पु० फोड़ा। वि० पका हुआ।
पागलिनी-स्त्री० पगली, विक्षिप्त स्त्री। पाकागार-पु० [सं०] रसोईघर ।
पागुर-पु० जुगाली। पाकातिसार-पु० [सं०] पुराना आमातिसार । पाचक-वि० [सं०] पकानेवाला; पचानेवाला । पु० रसोई पाकाभिमुख-वि० [सं०] जो पकने पर हो; विकासोन्मुख । बनानेका पेशा करनेवाला, रसोइया, सूपकारः अग्नि
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पाचन-पाठी
४७० पित्तके पाँच भेदोंमेंसे एक भोजनको पचानेवाली औषध । पाटविक-वि० [सं०] दक्ष, कुशल, पटु; धूर्त । पाचन-पु० [सं०] पकाने या पचानेकी क्रिया; अग्नि; पाटवी*-वि० पटरानीसे जनमा हुआ (राजकुमार); रेशमअम्लरस; भोजन पचानेवाली विशेष प्रकारकी औषध का बना हुआ, रेशमी । जठराग्नि द्वारा भोजनका पचाया जाना; घावको भरनेकी पाटहिक-पु० [सं०] नगाड़ा बजानेवाला । क्रिया; घावमेंसे मवाद आदि निकालनेकी क्रिया । वि० पाटा-पु०पीढ़ा; पत्थर या काठका वह बड़ा टुकड़ा जिसपर पकाने या पचानेवाला । -शक्ति-स्त्री० भोजनको पचा- धोबी कपड़े धोता है; आड़के लिए चौकेके पास उठायी नेकी शक्ति।
जानेवाली दीवार; दो दीवारों के बीच कड़ी, बाँस, पटरा पाचना*-स० क्रि० पकाना । अ० क्रि० मरना, गलना। आदि जड़कर बनाया जानेवाला आधार जिसपर चीजें पाच्य-वि० [सं०] जो अवश्य पक या पच जाय; पचाने रखते हैं; * पट्टा । स्त्री० [सं०] परंपरा, सिलसिला । या पकाने योग्य ।
पाटी-स्त्री० [सं०] परिपाटी, प्रणाली; रीति; अंकगणित; पाछ-स्त्री० पाछनेकी क्रिया या भाव; पाछनेसे पड़ने या बला नामक पौधा । -गणित-पु० गणितशास्त्र, गणित । लगनेवाला चीरा; वह चीरा जो अफीम निकालनेके लिए पाटी-स्त्री० विशेष प्रकारका लकड़ीका वह लंबोतरा टुकड़ा पोस्तेके डोंडेपर नहरनीसे लगाया जाता है; वह चीरा जो जिसपर बच्चोंको अक्षर लिखना सिखाया जाता है, तख्ती किसी वृक्षका रस या दूध निकालनेके लिए उसपर लगाया पाठ, सबका तेल, गोंद आदिकी सहायतासे माँगके दोनों जाता है। पु० पिछला भाग, पीछा-'आशा लुबधल न ओर सजाकर बैठाये जानेवाले बाल खाटके ढाँचेके दाहिनेतेजए रे कृपनक पाछु भिखारि'-विद्या० । * अ० पीछे । । बायें लगायी जानेवाली वे लकड़ियाँ जिनके मेलसे रस्सीकी पाछना-स० क्रि० खून, पंछा यारस अथवा दूध निकालने- बुनाई होती है; चटाई पत्थरकी पटिया। मु०-पढ़नाके लिए छुरे आदिके हलके आघातसे प्राणीके शरीरपर | पाठ पढ़ना; सबक सीखना, शिक्षा प्राप्त करना।-पढ़ाना या पेड़-पौधेपर चीरा लगाना।
-पाठ पढ़ाना; शिक्षा देना। पाछल, पाछिल, पाछिला*-वि०पिछला।
पाटीर-पु० [सं०] चंदन खेत, मैदान; बादल; छलनी । पाछा*-पु० पीछा।
पाठ-पु० [सं०] पढ़नेकी क्रिया या भाव; किसी धार्मिक पाछी, पाछ, पार्छ, पाछे*-अ० पीछेकी ओर, पीछे । या देवपरक पुस्तकको नियमित रूपसे पढ़ना; वेदपाठ, पाज*-पु० पाँजर, पार्थ ।
ब्रह्मयज्ञ; पढ़ी या पढ़ायी जानेवाली वस्तु; किसी पाठ्यपाजी-वि० दुष्ट, बदमाश । * पु० पैदल सिपाही, प्यादा; पुस्तकका वह अंश जो किसी एक विषय से संबद्ध हो, . पहरेदार, रक्षक-'सहस सहस तहँ बइठे पाजी'-प० । परिच्छेद; किसी विषयका उतना अंश जितना एक बार में -पन-पु० दुष्टता, बदमाशी ।
पढ़ाया जाय, सबक वाक्य, पद्य आदिका लिखित रूप । पाटंबर-पु० रेशमी कपड़ा।
-च्छेद-पु० पाट्य वस्तुके बीच में होनेवाला विराम, पाट-पु० [सं०] विस्तार, फैलाव; चौड़ाई; [हिं०] रेशम; यति । -दोष-पु. पाठ-संबंधी दोप (अठारह प्रकारके वस्त्र, बटा हुआ रेशम; एक तरहका रेशमका कीड़ा, पटसन पाठ-दीप गिनाये गये हैं, जैसे-विस्वर, विरस, विश्लिष्ट, सिंहासन, राजगद्दी; पीढ़ा पत्थरकी पटिया; धोधीका कपड़े काकस्वर आदि)। -निश्चय-पु० शुद्ध पाठका निश्चय धोनेके कामका पत्थर या काठका बड़ा टुकड़ा; चक्कीके दो करना । -भू-स्त्री. वह स्थान जहाँ वेदोका अध्ययन भागों से कोई एक; हाँकनेवालेके बैटनेके लिए कोल्हूमें किया जाय । -भेद-पु० दे० 'पाठांतर'। -मंजरी,लगाया जानेवाला तख्ता; कुएँपर रखी जानेवाली वह शालिनी-स्त्री० मैना, सारिका। -शाला-स्त्री. वह चपटी लकड़ी जिसपर एक पाँव रखकर पानी खींचते है। स्थान या संस्था जहाँ विद्यार्थियोंको, विशेषकर छोटी बैलोका एक रोग; * बालोंकी पटिया। -महादेई*,
कक्षाओंके विद्यार्थियोंको एक या अधिक विषयों की शिक्षा महिषी-रानी-स्त्री० पटरानी।
दी जाय, विद्यालय, स्कूल; वह विद्यालय जिसमें संस्कृत पाटन-स्त्री० पाटनेकी क्रिया या भाव; पटाव छतमकानकी पढ़ायी जाय, संस्कृत पढ़ानेका विद्यालय । पहली मंजिलसे ऊपरकी मंजिलें; नगर, पत्तन । पाठक-पु० [सं०] अध्यापक; कथावाचक गुरु; छात्र । पाटना-स० क्रि० किसी गड्ढेको या नीची भूमिको भरकर पाठन-पु० [सं०] पढ़ानेकी क्रिया, अध्यापन । -शैलीआस-पासकी जमीनके बराबर कर देना; भर देना; पूर्ण स्त्री० पढ़ानेका ढंग। कर देना; ढकना भरमार कर देना, ढेर लगा देना। पाटांतर-पु० [सं०] दूसरा पाठ, भिन्न प्रकारका पाठ पाटल-पु० [सं०] ललाई मिला हुआ उजला रंग; गुलाबी किसी पुस्तक या ग्रंथके किसी अंशका उसकी दूसरी प्रति रंग; पाढरका पेड़, इसका फूल । वि० ललाई लिये हुए | या प्रतियों में दूसरा रूप होना, पाठमें भिन्नता होना। उजले रंगका।
पाठा-पु० जवान और मोटा-ताजा आदमी; जवान बैल, पाटलक-वि० [सं०] लाल-पीले रंगका।
हाथी, भैंसा, बकरा आदि । पाटला-पु० एक तरहका सोना; पाढर; * पटल, पल्ला। | पाठावली-स्त्री० [सं०] पाठोंका संग्रह; वह पुस्तक जिसमें पाटलिपुत्र, पाटलिपुत्रक-पु० [सं०] अजातशत्रु द्वारा किसी विषयके पाठोंका संग्रह हो। बसाया हुआ मगधका एक प्राचीन नगर जो अब पटना | पाठिका-स्त्री० [सं०] पढ़नेवाली; पढ़ानेवाली; पाढ़ा। कहलाता है।
पाठित-वि० [सं०] पढ़ाया हुआ । पाटव-पु० [सं०] चातुरी; कौशल; आरोग्य; उत्साह। पाठी(ठिन)-पु० [सं०] वह जो अध्ययन समाप्त कर
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चुका हो; पाठ करनेवाला; पढ़नेवाला; चीतेका पेड़ । पाठीन पु० [सं०] एक प्रकारकी मछली; गूगलका पेड़ । पाठ्य-वि० [सं०] पढ़ने योग्य; पढ़ाने योग्य । -क्रम - पु० परीक्षा के लिए निर्धारित पुस्तकोंकी नामावली | - पुस्तक- स्त्री० किसी संस्था या परीक्षा समिति की ओर से किसी कक्षा के विद्यार्थियोंके पढ़नेके लिए निर्धारित पुस्तक, कोर्स की किताब |
पाड़-पु० धोती या साड़ीका किनारा, कोर; मचान; कुएँको ढकने के लिए लकड़ी अथवा फट्टियोंका बना विशेष प्रकारका ढाँचा; बाँध; दो दीवारोंके बीच कड़ी, बाँस, पटरा आदि जड़कर बनाया जानेवाला आधार जिसपर चीजें रखते हैं; वह तख्ता जिसपर मृत्युदंड पानेवाले अपराधीको फाँसी देनेके लिए खड़ा करते हैं ।
पाड़इ * - स्त्री० पाटल नामका वृक्ष । .पाड़ा - पु० टोला; महल्ला; + भैंसका नर बच्चा | पाढ़-पु० पीढ़ा; वह पोढ़ा जिसपर सुनार, लोहार आदि काम करते समय बैठते हैं; रखवालेके बैठने-सोनेके लिए खेत में बनाया जानेवाला मचान; कुएँपर रखा जानेवाला ढक्कनकी तरहका लकड़ीका ढाँचा; सुनारोंका नक्काशी करने के कामका एक आला । * स्त्री० किनारा । पादत * - स्त्री० पढ़ी जानेवाली वस्तु; मंतर, जादू | पाढर, पादर- पु० एक पेड़ जिसके पत्ते बेलके पत्तों के समान होते हैं और जिसमें लाल या सफेद फूल लगते हैं, पाटल | * वि० किनारदार ।
पाढ़ा - स्त्री० पाठा नामकी लता । * पु० हिरनका एक भेद । पाणि - पु० [सं०] हाथ गृहीती - स्त्री० पत्नी । ग्रह, - ग्रहण - पु० विवाह - ग्रहीता (तृ), - ग्राहक - पु० पति । - घ - पु० मृदंग, ढोल आदि ( हाथसे बजाये जानेवाले बाजे) बजानेवाला; दस्तकार । - घात - पु० घूँसा; घूँसेबाजी । घ्न- पु० दस्तकार; ताली बजाने वाला (वेद ); उँगलियोंको झटकारना । -ज-पु० नख । - तल-पु० हथेली । -पल्लव- पु० पल्लवरूपी कर; अँगुलियाँ - पात्र - वि० हाथमें लेकर पीनेवाला; जो हाथ या अंजलिसे पात्र या बरतनका काम ले । - पीडन - पु० पाणिग्रहण, विवाह; हाथ मलना । - पुट, - पुटक- पु० चुल्लू। -बंध- पु० पाणिग्रहण, विवाह । - भुक् ( ज् ) - पु० गूलरका पेड़ । - मुक्तवि० हाथसे फेंका जानेवाला (अस्त्र) । पु० भाला । - मुखवि० हाथसे खानेवाला । पु० पितर ( इसका प्रयोग बहुवचनमें ही होता है ।) - मूल - पु० कलाई - - रुट् (ह ),
- रुह-पु० नख, नाखून | पाणिनि - पु० [सं०] एक विख्यात मुनि जिन्होंने अष्टाध्यायी नामका प्रसिद्ध सूत्रवन्द्व व्याकरण-ग्रंथ बनाया । पात-पु० कानका एक गहना; * पत्ता; [सं०] गिरने की क्रिया या भाव; पतन; गिरानेकी क्रिया या भाव; उड़ना; उड़ान; उतरना; उतार; नाश, ध्वंस ( शरीरपात ); प्रहार (खड्गपात); डालना, ले जाना (दृष्टिपात); टूटकर गिरने या च्युत होनेका क्रिया या भाव ( उल्कापात ); राहु; चालन ( पक्षपात - पंख चलाना ); अशुभ स्थिति; अभिभावक । वि० रक्षित ।
३०-क
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पाठीन - पाथेय
-
पातक- पु० [सं०] पाप, अघ । पातकी (किन् ) - वि० [सं०] पापी, अधी; अपराधी । पातन - पु० [सं०] गिरानेकी क्रिया; झुकाना । पातनीय - वि० [सं०] गिराने योग्य; प्रहार करने योग्य । पातर! - स्त्री० पत्तल; वेश्या । वि० पतला, बारीक; दुर्बल, क्षीणकाय, क्षुद्र; नीच- 'जतिया के पातर' - ग्राम० । पातरि, पातरी - स्त्री० पत्तल । पातल* - स्त्री० दे० 'पातर' | पातव्य-वि० [सं०] रक्षा करने योग्य; पीने योग्य | पातशाह-पु० दे० 'पादशाह' । पाता * - पु० पत्ता ।
पाता (तृ) - पु० [सं०] रक्षक; पीनेवाला ।
पाताखत * - पु० पत्र और अक्षत; पूजनकी साधारण सामग्री; मामूली भेंट |
पाताबा - पु० [फा०] दे० 'पा' के साथ | पातार - पु० दे० 'पाताल' ।
पाताल - पु० [सं०] भुवनका अधोभाग; पृथ्वीके नीचे के सात लोकों में से सबसे नीचेका लोक ( पुराणोंमें सात प्रकारके पातालों का उल्लेख मिलता है-अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल); गुफा; पारा आदि शोधनेका एक यंत्र; गड्ढा; बड़वानल; कुंडली में उस घर से चौथा स्थान जिसमें सूर्य हों; छंदकी संख्या, मात्रा आदि निकालनेकी एक रीति (पिंगल ) । - गंगा - स्त्री० पाताल लोक में बहनेवाली गंगा । - वासी (सिन्) - पु० दैत्य, दानव, नाग। - यंत्र - पु० धातु गलाने, अर्क, तेल आदि तैयार करनेका एक यंत्र । पातिग* - पु० पातक ।
पातित- वि० [सं०] गिराया हुआ; फेंका हुआ । पातिव्रत- पु० दे० 'पातिव्रत्य' ।
पातिव्रत्य - पु० [सं०] पतिव्रता होनेका भाव; पतिव्रताका धर्म |
पाती* - स्त्री० चिट्ठी, पत्र; वृक्षके पत्ते; लज्जा; मर्यादा । पातुर, पातुरनी, पातुरि। - स्त्री० वेश्या, रंडी । पात्र - पु० [सं०] जल आदि पीनेका वरतन; बरतन, कुछ रखने या खाने-पीने आदिके कामका आधाररूप पदार्थ; खुवा आदि यज्ञके कामका कोई पदार्थ; कोई वस्तु पानेका अधिकारी व्यक्ति; अभिनेता; उपन्यासमें वर्णित वह व्यक्ति जिसका कथावस्तु में कोई स्थान हो (स्त्री० पात्रा); नदीका पेटा या पाट; राजाका मंत्री, अमात्य । पात्रता - स्त्री०, पात्रत्व - पु० [सं०] पात्र होनेका भाव या धर्म, योग्यता ।
पाथ पु० [सं०] अग्निः सूर्य; जल; * रास्ता, मार्ग | - नाथ, -निधि - पु० समुद्र F
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पाथना - स० क्रि० साँचेकी सहायतासे या यों ही हाथोंसे थोप-पीटकर किसी गीले उपादानसे बड़ी टिकिया या पटरी आदिकी तरहकी विशेष आकार की कोई वस्तु तैयार करना; * गढ़ना, बनाना; मारना, पीटना । पाथर* - पु० दे० 'पत्थर' |
पाथेय - पु० [सं०] वह भोज्य वस्तु जिसे पथिक राह में खाने के लिए अपने साथ ले जाता है, संबल राहखर्च |
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पाथोज - पान
। -निकेत
पाथोज - पु० [सं०] कमल; शंख । पाथोद, पाथोधर - पु० [सं०] बादल | पाथोधि, पाथोनिधि - पु० [सं०] समुद्र | पाद - पु० अपान वायु; [सं०] चरण, पैर, श्लोक, पद्य या मंत्रका चौथा भाग; किसी 'वस्तुका चौथा भाग, चतुर्थांश; किसी पुस्तक या अध्यायका चौथा भाग; वृक्ष या पौधेकी जड़; किसी वस्तुका निचला भाग; एक पैर या बारह अंगुलकी माप । -क्षेप-पु० पैर रखना, चरणन्यास । - ग्रंथि - स्त्री०टखना । - ग्रहण - पु० ऐसा प्रणाम जिसमें चरणका स्पर्श किया जाय, पैर छूकर प्रणाम करना । - चारी (रिन् ) - पु० पैदल चलनेवाला; पैदल सिपाही । - ज - पु० शूद्र । - जल - पु० वह जल जिसमें किसीका पैर खारा गया हो; वह मट्ठा जिसमें चतुर्थांश जल मिलाया गया हो। - टीका - स्त्री० पादटिप्पणी (फुटनोट) । - तलपु० तलव । । - - श्राण- पु० खड़ाऊँ, जूता, चट्टी आदि । वि० जिससे पैरकी रक्षा हो । दलित - वि० पैरोंके नीचे कुचला हुआ, रौंदा हुआ; बुरी तरहसे दबाया हुआ (ला० ) । -दारिका, - दारी - स्त्री० बिवाई नामका रोग । - धावन - पु० पैर धोनेकी क्रिया पु० पैर रखनेकी छोटी चौकी, पादपीठ । न्यास - पु० पैर रखना, कदम रखना। पंकज, पद्म-पु० दे० 'चरणकमल' | -प- पु०वृक्ष, पेड़, पादपीठ । -प-शाखपु० (पैलियो बोटैनी) लाख वर्ष पुराने उन पेड़-पौधोंका विवेचन करनेवाला शास्त्र जो अब पत्थर इत्यादिके रूपमें परिणत हो गये हैं । - पथ - पु० पगडंडी | -पद्धतिस्त्री० पगडंडी । - पीठ-पु० ऊँचे आसनके पास रखी जानेवाली छोटी चौकी या आधार जिसपर पैर रखते हैं, पैर रखने के कामकी चौकी। पूरण-पु० किसी लोक या पथके किसी चरणको पूरा करना; वह अक्षर जिसके द्वारा कोई चरण पूरा किया जाय। - प्रक्षालन- पु० पैर धोनेकी क्रिया । - प्रहार - पु० पैरसे किया गया आघात, चरणका आघात । -बंधन - पु० जानवरों के पैर छाननेकी रस्सी; जानवरोंको छाननेकी क्रिया; पशुधन । -मूलपु० टखना; तलवा; एड़ी; वह स्थान जहाँ से पहाड़का आरंभ होता है; चरणका सान्निध्य (नम्रता सूचित करने के लिए प्रयुक्त) । - रज (स्) - स्त्री० पैर की धूल | - रज्जु - स्त्री० हाथी के पाँव बाँधने की रस्सी या जंजीर । - रोह, - रोहण - पु० बड़का पेड़ -वंदन- पु० चरण छूकर प्रणाम करना । - शोथ- पु० पैरका फूल जाना । - शौच - पु० पैर धोना । - सेवन - पु०, सेवा - स्त्री० पैर छूना; सेवा-शुश्रूषा । - स्वेदन - पु० पैर में पसीना होना । -हत- वि० जिसपर पादप्रहार किया गया हो । -हीन- वि० जो अपने चतुर्थ भाग या चरणसे रहित हो; जिसके पैर न हों ।
पादना - अ० क्रि० अपान वायुको गुदामार्गसे बाहर निकालना, गोज करना ।
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पादरी - पु० ईसाई धर्मका पुरोहित या आचार्य । पादशाह - पु० [फा०] बादशाह, सम्राट् पादशाही - स्त्री० [फा०] बादशाही | पादांक - पु० [सं०] पैरका निशान ।
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पादांगद - पु० [सं०] नूपुर ।
पदांगुलि, पादांगुली - स्त्री० [सं०] पैरकी उँगली । पादांगुष्ठ-पु० [सं०] पैरका अँगूठा । पादांत - पु० [सं०] पैरका अग्रभाग; श्लोक या पद्यके किसी पदका अंतिम भाग या अवसान ।
पादांबु - पु० [सं०] पैर धोनेका पानी; चतुर्थांश जलवाला मट्ठा । पादाक्रांत - वि० [सं०] पैरों तले दबाया हुआ; रौंदा हुआ । पादाघात - पु० [सं०] पैरका प्रहार, लात मारना । पादाति, पादातिक - पु० [सं०] पैदल सिपाही । पादारघ* - पु० दे० 'पाद्यार्ध' । पादारविंद - पु० [सं०] चरण कमल । पादावर्त - पु० [सं०] रहट ।
पादाहत - वि० [सं०] जिसपर पैरसे प्रहार किया गया हो । पादुका - स्त्री० [सं०] जूता; खड़ाऊँ । - कार - पु० मोची; बढ़ई ।
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पादोदक - पु० [सं०] पैर धोनेका जल; वह जल जिससे किसीका पाँव पखारा गया हो, चरणामृत ।
पाद्य-वि० [सं०] पाद-संबंधी; चरणका, पैरका । पु० पैर धोनेका पानी ।
पाद्यार्ध, पाद्यार्ध्य - पु० [सं०] पाथ और अर्ध, पैर धोनेका पानी और दूब, अक्षत, जल आदि पूजाके उपकरण (अर्धमें जल, दूध, दही, घी आदि आठ वस्तुएँ दी जाती है); भेंट, नजर (केशव) । पाधा-पु० आचार्य; पंडित ।
।
पान-पु० [सं०] जल आदि पीनेकी क्रिया; पीनेका पात्र; शराब पीना; पेय द्रव्य ( शरबत, शराब ); शराब बेचनेवाला, शौडिक, कलवार; रक्षा करनेकी क्रिया, रक्षण; निःश्वास; उस्तरे तलवार आदिपर सान चढ़ाना, हाथयारोंकी धार तेज करना; नहर; चुंबन ('अधर पान') । - गोष्ठिका, -गोष्ठी - स्त्री० मद्य आदि पीनेके लिए एकत्र हुए लोगोंकी मंडली, शराबियोंकी मंडली; शराबकी दुकान । - दोष- पु० शराब पीनेकी कुटेव । प-वि० शराब पीनेवाला, मद्यप । पात्र, भांड, -भाजन - ५० शराब आदि पीनेका बरतन भू - भूमि- स्त्री० शराब पीनेकी जगह, वह स्थान जहाँ शराबी इकट्ठे होकर शराब पीयें । - मंडल - पु० मद्यपोंकी मंडली । -मत्त - वि० नशे में चूर । -मद- पु० शराबका नशा । विभ्रमपु० अधिक शराब पीने से होनेवाला एक प्रकारका विकार जिसमें वमन, मूर्छा, सिर में पीड़ा आदि केश होते हैं । पान - पु० एक लता जिसके पत्ते सुपारी, कत्था आदिके साथ मुखशुद्धिके लिए खाये जाते हैं; इस लताका पत्ता; * पत्ता; * पानी; वह चमक जो अत्रोंपर उन्हें आगमें तपाकर पानी आदिमें बुझानेसे आती है; * प्राणवायुः पौसरा; हारमें गूथा जानेवाला पानके आकारका तावीज; एक प्रकारका ताशका पत्ता जिसपर पानकी लाल-लाल आकृतियाँ बनी रहती हैं; * पाणि, हाथ । - दान-पु० पान के पत्ते और उसके मसाले रखने के कामका डिब्बा; पानके बीड़े रखनेका डिब्बा, पनडिब्बा । - पत्ता- पु० लगा हुआ पान; साधारण उपहार, तुच्छ भेंट। - फूल
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पु० तुच्छ भेंट; बहुत कोमल वस्तु । -बीड़ा - पु० विवाहकी बात पक्की करते समय भावी वरको पानका बीड़ा देने की रस्म । -सुपारी - स्त्री० किसी शुभ अवसर पर किया जानेवाला वह समारोह जिसमें पान-सुपारीसे आगत व्यक्तियों का सम्मान किया जाता है। मु०-खिलानाविवाह के विषय में वर-कन्या पक्षका परस्पर वचनबद्ध होना, सगाई करना। -चीरना-बिना कामका काम करना । - देना- किसी से कोई काम कर डालने की प्रतिज्ञा कराना; किसीको कोई काम अपने जिम्मे लेनेके लिए प्रेरित करना । - बनाना या लगाना-पानका बीड़ा तैयार करना ।
पानक- पु० [सं०] एक प्रकारका पेय जो पकाये हुए आम, इमली आदिके रसमें पानी, नमक, मिर्च आदि मिलाकर तैयार करते हैं, पना ।
पानरा * - पु० पनारा ।
पानस - वि० [सं०] कटहल से संबंध रखनेवाला । पु० कटइसे तैयार की जानेवाली एक प्रकारकी शराब । पानही * - स्त्री० जूता ।
पाना - स० क्रि० प्राप्त करना; फल या परिणाम के रूप में कुछ प्राप्त करना; दूसरे के हाथमें गयी हुई या खोयी हुई वस्तुको पुनः प्राप्त करना; समझ जाना, जान लेना; देखना; अनुभव करना; भोगना; वेतन या मजदूरी के रूपमें कुछ प्राप्त करना; किसीके पासतक पहुँचना; पकड़ना; बरावरी करना; भोजन करना, ग्रहण करना । अ० क्रि० सकना (इस अर्थ में 'पाना' का प्रयोग संयोज्य क्रियाके रूपमें होता है) । पु० दे० 'पावना' ।
पानागार - पु० [सं०] वह स्थान जहाँ बहुत से लोग एकत्र होकर मद्यपान करें, शराबखाना ।
पानि - पु० हाथ; पानी; आब, चमक । -ग्रहन- पु० दे० 'पाणिग्रहण' ।
पानिक - पु० [सं०] शराव बेचनेवाला, मद्यव्यवसायी । पानिप* - पु० कांति, आब, लावण्य; पानी । पानिय * - पु० पानी । वि० रक्षा करने योग्य, रक्षणीय । पानी- पु० नदी, कूप आदि जलाशयों और बादलसे मिलनेवाला एक शीत स्पर्शवाला प्रसिद्ध तरल द्रव्य जो चराचर सृष्टिके लिए अनिवार्य होता है (आधुनिक विज्ञानके अनुसार यह अम्लजन और उद्रजन नामकी दो गैसोंसे बनता है); जीम, आँख, घाव आदिसे निकलनेवाला जलीय पदार्थ; वह पानी जिसमें उसमें उबाली या भिगोयी हुई वस्तुका सारभाग मिला हो ( नीमका पानी); किसी हरी या सरस वस्तुके भीतर से निकलनेवाला रस या पानी जैसा तरल पदार्थ, नारियल, तरबूज आदि फलोंका रस; आब, कांति प्रतिष्ठा, मानमर्यादा, इज्जत; तलवार आदि अस्त्रोंकी धारका वह काला हलका रंग जिससे उनकी अच्छाई जानी जाती है; साल, वर्ष; कलई, मुलम्मा; आत्माभिमान; दंभ; जीवट; पानी जैसी ठंडी वस्तु; पानीकी तरह निःस्वाद पदार्थ; जलवायु । - दार- वि० जिसमें पानी, आब हो, आबदार, कांतिमान् ; प्रतिष्ठावाला; स्वाभिमानी । देवा - पु० तर्पण करनेवाला, जलदाता, पुत्रादि । - फल- पु०
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पानक- पानी
-उठाना -
सिंघाड़ा | मु० - आना-वर्षा होना । पानी खींचना; सोखना । - उतरना - बेइज्जती होना; अंडवृद्धि होना । - उतारना - बेइज्जती करना ।-करनासरल बना देना; क्रुद्ध व्यक्तिको शांत करना । -काटनापानीको रोकनेवाले बाँध या मेंड़को काट देना, पानीको एक नाली से दूसरी नाली में ले जाना । का बतासाक्षणस्थायी वस्तु । -का बुलबुला क्षणभंगुर वस्तु । - के मोल- बहुत सस्ता | - चलाना - * चौपट करना; + ढेंकली आदि पाकी खींचकर खेतों में फैलाना । - छानना - चेचक की बीमारी में रोगी के कुछ स्वस्थ होनेपर उसके सिर से कपड़ा छुलाकर उससे पानी छाननेका एक कृत्य । - छूना - आबदस्त लेना । -जाना - बेइज्जत होना; (प्रदरादिमें) पानी जैसा स्राव होना । - टूटनाकुएँ, ताल आदिके पानीका बहुत कम हो जाना; बारिश बंद हो जाना। - तोड़ना या काटना- तैरते या नाव खेते समय पानीको हाथ या डाँड़ेसे चीरना । - दिखानापशुओं के सामने पीने के लिए पानी रखना, चौपायोंको पानी पिलाना । —देना-तर्पण करना; सींचना। -न माँगना - तत्काल मर जाना। न रह जाना- इज्जत मिट्टी में मिलना | निकलना - वर्षा बंद होना । - पड़ना - वर्षा होना । -पढ़ना, - परोरना या फूँकना - जलको अभिमंत्रित करना। -पर नीव डालना - ऐसी वस्तुको आधार बनाना जो टिकाऊ न हो; किसी कामको इस प्रकार आरंभ करना कि वह बहुत जल्द बिगड़ जाय । - पर नीव होना- किसी काम या आयोजनका टिकाऊ न होना । -पानी करना - बहुत अधिक लजवाना; किसीका क्रोध शांत करना। -पानी होना- बहुत अधिक लज्जित होना, झेंपना; क्रोध शांत होना, ठंढा पड़ जाना । - पीकर जाति पूछना - कोई काम कर चुकनेपर उसके औचित्यका निर्णय करना । - पी-पीकर कोसना - इतनी देरतक कोसना कि गला सूख जानेके कारण बीच-बीचमें पानी पीना पड़े, बहुत अधिक और देरतक कोसना । ( किसी वस्तु या कृत्य पर ) - फिरना - बरबाद होना, चौपट होना । -फेर देना- चौपट कर देना । बचाना, - रखना - मर्यादाकी रक्षा करना । -बराना-सिंचाई में एक क्यारी भर जानेपर उस पानीको दूसरी क्यारीमें ले जाना। - बाँधना - बाँध या मेंड़ बनाकर पानीको रोक रखना; जादूके द्वारा पानीका बरसना रोक देना । - बुझाना - तपे हुए लोहे आदिको पानी में बुझाना | ( किसीके सामने या आगे ) - भरना - अति तुच्छ सिद्ध होना; फीका पड़ना । -भरी खाल- क्षणभंगुर शरीर । - मरना - बेइज्जती होना; पानी जज्ब होना । (किसीके सिर) - मारना - किसीको दोषी ठहराना। - मेँ आग लगाना - असंभव कार्य कर डालना; जहाँ झगड़ा होना संभव न हो, वहाँ भी झगड़ा लगा देना । - मेँ फेंकना या बहाना - बरबाद करना, नष्ट करना । लगनापानी जमा होना । ( कहीँका) - लगना - जल - वायुका अनुकूल न होना, स्थानविशेषके बुरे वातावरणका असर होना । - लेना - बेइज्जत करना । - से पतला - बहुत तुच्छ, बदनाम; आसान । -से पहले पुल, पाड़ या
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पानीय-पाया
४७४ बाँध बाँधना-किसी अनागत विपत्तिका पहलेसे ही प्रती! पापाचार-पु० [सं०] पापमय आचरण, पापसे भरा हुआ कार करने लगना, किसी संकटके आनेके पहले ही उसके कृत्य, दुराचार । वि० जिसका आचरण पापमय हो। निवारणका उपाय करने लगना । -होना-धातु आदिका पापात्मा(त्मन्)-वि० [सं०] जिसकी आत्मा सदा पापतरल अवस्थामें परिणत होना । (किसीका)-होना- में प्रवृत्त रहे, जो सदा पापमें प्रवृत्त रहे, पापी । क्रोध शांत होना।
पापिष्ठ-वि० [सं०] सबसे बड़ा पापी; अति पापी । पानीय-वि० [सं०] पीने योग्य; रक्षा करने योग्य । पु० पापी(पिन)-वि० [सं०] पाप करनेवाला, अघीनिष्ठुर,
जल; पेय, शराब (तंत्र)। -शाला-स्त्री० पौसरा, प्याऊ ।। निर्दय । पु० वह जो पाप करे, पाप करनेवाला मनुष्य । पानूस-पु० दे० 'फानूस' ।
| पाबंद-वि० [फा०] दे० 'पा'के साथ । पानौरा*-पु० पानके पत्तेकी पकौड़ी।
पाम(न्)-पु० [सं०] एक चर्मरोग, विचिका खुरंड । पान्यो-पु० पानी-'ज्यों झख पायो पान्यो'-सू० । -न-पु० गंधक । -घ्नी-स्त्री० कुटकी । पाप-वि० [सं०] निकृष्ट; खोटा, बुरा; अशुभ; नीच; दुष्टः | पामड़ा, पामरा*-पु० दे० 'पाड़ा' । (प्रायः समासमें प्रयुक्त-'पापकर्म', 'पापग्रह' आदि) । पु. पामर-वि० [सं०] नीच, दुष्ट; मूर्खः निर्धन; असहाय । बुरे कामोंसे उत्पन्न होने वाला वह अदृष्ट जिससे मनुष्य पामरी*-स्त्री० दुपट्टा, उपरना; पाँवड़ी। बुरी गतिको प्राप्त होता है। ऐसा अदृष्ट उत्पन्न करनेवाला पामारि-पु० [सं०] गंधक । कृत्य, कुकृत्य, अधार्मिक कृत्य (जैसे-हिंसा, चोरी पाय*-पु० पैर, पाँव । -चा-पु० पाजामेके उन दो आदि); अनिष्ट; अपराध, जुर्भ; पापी, पातकी व्यक्ति भागों मेंसे कोई एक जो उसके पहने जानेपर टाँगोको ढके * संकट, कठिनाई । -कर-वि० दे० 'पापकारक। रहते हैं। -जेहरि-स्त्री० पायजेव । -ता-पु०,-कर्म(न)-पु० ऐसा कर्म जिसे करनेसे पाप लगे, ती-स्त्री० चारपाई या पलँगका उधरका भाग जिधर सोनेधर्म-विरुद्ध कर्म, खोटा काम । -कर्मा(मन)-वि० वालेका पैर रहता है, पैताना सोनेवालेके पैरकी ओरकी पापी । -कारक,-कारी(रिन्),-कृत्-वि० पाप दिशा। कमानेवाला, पापी । -क्षय-पु०पापका नाश। -ग्रह- पायंदाज-पु० दे० 'पा-अंदाज' । पु० अशुभ ग्रह (जैसे मंगल, शनि)। -घ्न-वि० पापको पाय-पु० [फा०] 'पा'का समाप्समें, इजाफत लगनेसे नष्ट करनेवाला । पु० तिल (जिसके दानसे पापका नाश मिलनेवाला रूप। -कार-पु० बनानेवालेसे माल होता है)। -घ्नी-स्त्री० तुलसी । -चर-चारी(रिन्) खरीदकर दुकानदारोंके हाथ बेचनेवाला, एजेंट, खुर्दा-वि० पापाचरण करनेवाला । -चेता(तस)-वि०
फरोश, बिसाती । -खाना-पु० दे० 'पाखाना' । जिसके मनमें सदा पाप बसे, नीच, दुष्ट, दुरात्मा। -दृष्टि -जामा-पु० दे० 'पाजामा'।-जेब-पुण्दे० 'पाजेब'। -वि० जिसकी दृष्टि पवित्र न हो; जिसके देखनेसे किसी. -जेहरि*-स्त्री० पाजेब'। -तख्त-पु० राजधानी । का अमंगल हो।-धी-वि० दुर्बुद्धि, दुरात्मा ।-नाशक -तन*-पु० दे० 'पायँता'।-दान-पु० सवारी गाड़ीमें -वि० पापोंका नाश करनेवाला । -नाशन-वि० पाप- बाहरकी ओर लगाया हुआ तख्ता या लोहेका चौकोर को दूर करनेवाला । पु० विष्णुः शिव । -फल-वि० बुरे टुकड़ा जिसपर पैर रखकर गाड़ीपर चढ़ते हैं। -दारपरिणामवाला, अशुभ । -बुद्धि-वि० जिसका मन सदा! वि० मजबूत, टिकाऊ । -दारी-स्त्री० मजबूती, टिकाऊपापकी ओर प्रवृत्त रहे, दुरात्मा। -मोचन-पु० पापको पन । -पांश-पु० दे० 'पापोश'। -बंद-वि० दे० दूर करने या नष्ट करनेकी क्रिया, पापका निराकरण । | 'पाबंद'। -बंदी-स्त्री० दे० पाबंदी'। -माल-वि० -शील-वि० पाप करना जिसका स्वभाव हो, जो सदा 'दे० 'पामाल'। पाप किया करे, पापमें निरत रहनेवाला । -हर-वि० पायक-पु० दूत; सेवक पैदल सिपाही; * महल; पटेबाजा पापोंको हरनेवाला, पापनाशक । -हा(हन्)-वि० पताका। पापोंका नाश करनेवाला, पापनाशक । मु०-उदय पायड़ा-पु० दे० 'पायरा'-'हर घोड़ा, ब्रह्मा कड़ी, होना-पूर्वकृत पापका फल मिलने लगना। -कटना-- विस्तू पीठ पलान । चंद सूर दोइ पायड़ा, चढ़सी संत प्रायश्चित्त आदिसे पापका अंत होना; बाधा सुजान'-साखी । आदिका दूर होना । -कमाना-बटोरना-पापमय पायरा-* पु० रकाव; एक तरहका कबूतर । कार्य करना, ऐसे दुष्कार्य करना जिनका परिणाम बुरा पायल-स्त्री० पैर में पहननेका एक धुंघरूदार गहना, पाजेब । हो। -पड़ना-दे० 'पाप लगना'; * कठिन होना। पायस-वि० [सं०] दूध या जलसे संबद्ध दूध या जलका -मोल लेना-जान-बूझकर बखेड़े में पड़ना ।-लगना- बना हुआ। पु० दूधमें पकाया हुआ चावल, खीर । पापका भागी होना।
(स्त्री० भी)-'परम दिब्य पायस सो पूरित रजत पात्र ते पापड़-पु० उड़द या मूंगकी पीठीसे तैयार की जानेवाली ढाँपी'-रघु० । एक प्रकारकी बारीक मसालेदार. चपाती जिसे तेल या पायसा -पु. पड़ोस । घीमें तलकर अथवा आगपर सेंककर व्यंजनके रूपमें खाते पाया-पु० [फा०] चारपाई, कुरसी, तख्ते आदिके उन हैं । वि० कागजसा पतला; सूखा । मु०-बेलना-घोर टंडोंके आकार के निचले अंगोंमेंसे कोई एक जिनके बल वे परिश्रम करना; बहुत कष्ट झेलना ।
स्थित रहते हैं, पावा, गोड़ा; खंभा, टेक बुनियाद, नी; पापडाखार-पु० केलेके पेड़से तैयार किया जानेवाला क्षार । सीढ़ी दर्जा, पद, घोड़ों के पैरका एक रोग। मु०-बुलंद
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पायिक-पारस्पर्य होना-दर्जा बढ़ना।
पारणक-पु० (पास) किसी स्थान, सिनेमा-भवन, सभापायिक-पु० [पं०] पैदल सिपाही; दूत ।
गृह आदिके भीतर या बाहर जानेका लिखित अनुमतिपायी(यिन् )-पु० [सं०] पीनेवाला (समासमें)। पत्र; रेल आदि द्वारा बिना किराया दिये यात्रा करनेका पारंगत-वि० [सं०] दे० 'पारगत'।
अनुमतिपत्र । पारंपरीण-वि० [सं०] परंपरागत, क्रमागत ।
पारणा-स्त्री० [सं०] व्रतके बादका भोजन; भोजन । पारंपरीय-वि० [सं०] परंपरागत ।
पारतंत्र्य-पु० [सं०] पराधीनता । पार-पु० [सं०] नदी-समुद्र भादिका दूसरी ओरका किनारा; पारत्रिक-वि० [सं०] परलोक-संबंधी; परलोकका; परलोक किसी वस्तुका दूसरा किनारा; किसी दूरतक फैली हुई बनानेवाला, जिससे परलोक बने । वस्तुका अंतिम भाग, प्रांतभाग; किसी दूर तक फैली हुई पारथ*-पु० दे० 'पार्थ'; पारथी। वस्तुके दो किनारों में से कोई एक अंत, हृद; पारा । अ० | पारथिव*-पु० राजा; मिट्टीका शिवलिंग। वि० मिट्टीपरे, दूर ।-ग-वि० पार जानेवाला; पार पहुँचानेवाला; | संबंधी; मिट्टीका बना हुआ। जिसने किसी वस्तुका पार पा लिया हो; जिसने किसी | पारद-पु० [सं०] पारा; एक प्राचीन असभ्य जाति । विद्या या शास्त्रका पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया हो (वेदांत- पारदारिक-पु० [सं०] परस्त्रीगामी, लंपट । पारग')। -गत-वि० पारतक पहुँचा हुआ, जिसने पार पारदेशिक-वि० [सं०] दूसरे देशका, विदेशी । पु० दूसरे पा लिया हो; जिसने किसी विद्या या शास्त्रका पूर्ण शान | देशका निवासी; यात्री। प्राप्त कर लिया हो, पवित्र ।-गामी(मिन्)-वि० पार | पारधि*-पु० दे० 'पारधी' ।-पति-पु० धनुर्धरों में श्रेष्ठ, जानेवाला । -दर्शक-वि० पारको या दूसरे किनारेको | कामदेव । दिखानेवाला; जिसके आर-पार देखा जा सके।-दर्शिता | पारधी-पु० बहेलिया, चिड़ीमार; शिकारी हत्यारा । -स्त्री० (ट्रांसपेरेंसी) पदार्थों के आर-पार देखे जा सकनेकी पारन-* पु० दे० 'पारण'। क्षमता या गुण, पारदशी होनेका गुण |-दर्शी(शिन)- पारना-स० क्रि० जमीनपर डाल देना; गिराना; साँचेमें विदूरदशी,परिणामदशी; बहुश,पंडित ।-दर्शि-किरण- या और किसी चीजमें जमाकर कुछ तैयार करना; * स्त्री० (एक्सरे) दे० 'क्ष किरण।-नेता(त)-वि० पार ले सुलाना; पछाड़ना; रखना; सम्मिलित करना; पहनना; जानेवाला किसी विषयका पूरा ज्ञान करानेवाला ।-पत्र ढाना डालना पालन करना। अ० क्रि० सकना, करने में -पु० (पासपोर्ट) समुद्र-पार जानेका वह अनुशापत्र जिसमें समर्थ होना। यात्रा की संरक्षाका भी अभिवचन सन्निविष्ट रहता है। पारबती-स्त्री० दे० 'पार्वती'। मु०-उतर जाना-दे० 'पार उतरना'; कोई प्रयोजन पारमार्थिक-वि० [सं०] परमार्थ-संबंधी; अविकारी और सिद्ध करके अलग हो जाना। -उतरना-तैरकर या| सत्य; स्वाभाविक (जैसे-पारमार्थिक सत्ता); परमार्थका नाव आदिके द्वारा नदी आदिके उस पार जाना; किसी प्रेमी; परमार्थकी ओर दृष्टि रखनेवाला; अति उत्तम । कार्यको समाप्त करके उससे छुट्टी पाना; किसी कार्यमें पारमार्थ्य-पु० [सं०] परम सत्य । सफलता प्रास करना; भवबंधनसे मुक्त होना, संसारसे पारमिता-स्त्री० [सं०] पूर्णता, उत्कृष्टता (यह छः प्रकारकी छुटकारा पाना । -उतारना या करना-नदी, समुद्र मानी गयी है, दान, शील, शांति आदि)। आदिके दूसरे किनारे पहुँचाना उद्धार करना।-पाना- पारलौकिक-वि० [सं०] परलोक-संबंधी; परलोकका। किसी वस्तुके अंततक पहुँचना । (किसीसे)-पाना- पारवश्य-पु० [सं०] पराधीनता, परवशता । परास्त करना। -बसाना*-वश चलना। -लगना- पारशव-वि० [सं०] परशु-संबंधी; लोहेका बना हुआ। किनारे पहुँचना । (किसीका बेड़ा)-लगना-गुजारा पु० लोहा; परस्त्रीसे उत्पन्न पुत्र; ब्राह्मण और शूद्रासे होना, निर्बाह होना। (किसीसे बेड़ा)-लगना-किया उत्पन्न एक वर्णसंकर जाति । जा सकना हो सकना । -लगाना-नदी आदिके दूसरे पारपद-पु० [सं०] दे० पारिषद' या 'पार्षद'। किनारे पहुँचाना उद्धार करना। (किसीका बेडा)- पारस-पु० एक प्रकारका पत्थर जिसके स्पर्शसे लोहा सोना लगाना-निर्वाह करना। -होना-दूसरे किनारे या | हो जाता है, स्पर्शमणि; बहुत लाभ पहुँचानेवाला पदार्थ, उस पार पहुँचना; काम पूरा कर लेना।
पारस जैसा उत्तम पदार्थ, परसा हुआ भोजन; वह पत्तल पारई*-स्त्री० बड़ा कसोरा।।
जिसमें एक आदमीके खाने भरका भोजन रखा गया हो; पारख-स्त्री० दे० 'परख' । पु० दे० 'पारखी'।
ईरान देश। पारखद-पु० दे० 'पार्षद'।
| पारसव-वि०, पु० दे० 'पारशव' । पारखी-पु० परखनेवाला, वह जिसमें परखनेकी शक्ति है। पारसी-पु० एक अग्नि पूजक जाति । स्त्री० [सं०] फारस पारजात*-पु० दे० 'पारिजात'।
देशकी भाषा। पारण-पु० [सं०] किसी व्रत या उपवासके बादका पहला पारसीक-पु० [सं०] फारस देश; फारस देशका घोड़ा; भोजन (पारण उपवासका अंग माना जाता है); बादल; | फारस देशका निवासी। तृप्ति, संतोष पूरा करना; व्रत या उपवासके बादका भोजन | पारस्परिक-वि० [सं०] आपसका, आपसी । करनेकी क्रिया; पढ़ना, अध्ययन; पुस्तकका सारा विषय । पारस्पर्य-पु० [सं०] (रेसीप्रॉसिटी) व्यवहार में एक दूसरेका वि० पार करनेवाला; उद्धार करनेवाला ।
| खयाल रखना; परस्पर रिआयत करने या सुविधा देनेका
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पारस्य-पाव
१७६ सिद्धांत ।
जहाँ लोग हवाखोरीके लिए जाया करते हैं। पारस्य-पु० [सं०] पारस या फारस देश ।
पार्टी-स्त्री० [अं॰] दल, मंडली; फरीक, वादी या प्रतिपारा-पु० एक प्रसिद्ध धातु; बड़ी परई; टुकड़ा। मु०'पिलाना-किसी क्रिया द्वारा भारी बनाना ।
पार्थ-पु० [सं०] युधिष्ठिर, अर्जन और भीम (विशेषतः पारापत-पु० [सं०] कबूतर ।
अर्जुन) । -सारथि-पु० कृष्ण । पारापार-पु० [सं०] दोनों किनारे, उभय तट; समुद्र । | पार्थक्य-पु० [सं०] पृथक् होनेका भाव, भेद, जुदाई । पारायण-पु० [सं०] किसी ग्रंथका आद्यंत पाठ; संपूर्णता पार्थव-पु० [सं०] पृथु होनेका भाव, विशालता, स्थूलता। पार जाना।
वि० पृथु-संबंधी; पृथुका । पारायणिक-पु० [सं०] पारायण करनेवाला, पुराणादिका पार्थिव-वि० [सं०] पृथ्वी-संबंधी; पृथ्वीका, पृथ्वीसे उत्पन्न पाठ करनेवाला; छात्र ।
मिट्टीका बना हुआ; राजोचित, राजसी । पु० पृथ्वीपर पारायणी-स्त्री० [सं०] सरस्वती; मनन, चिंतन । रहनेवाला प्राणी; राजा; मृत्तिका-निर्मित शिवलिंग। - पारावत-पु० [सं०] कबूतर, पंडुक; बंदर पर्वत । कन्या-सुता-स्त्री० राजकुमारी । -दूरबीन-सी० पारावार-पु० [सं०] दे० 'पारापार'।
[हिं०] (टेरेरिट्रयल टेलिस्कोप) पृथ्वीपर रखी हुई दूरकी पाराशर-पु० [सं०] पराशरके पुत्र वेदव्यास ।
वस्तुओंको देखनेके काम आनेवाली दूरबीन । पारि*-स्त्री० दिशा, ओर; नदी, समुद्र आदिका किनारा पार्थिवी-स्त्री० [सं०] सीता, लक्ष्मी। मेंड़, सीमा।
पार्थी-पु० मिट्टीका बनाया हुआ शिवलिंग । पारिख*-पु०पारखी, परखनेवाला । स्त्री० दे० 'परख'। | पार्लमेंट, पार्लिमेंट-स्त्री० [अं०] राष्ट्रकी, विशेषतः ब्रिटेनकी, पारिजात-पु० [सं०] पाँच देववृक्षों मेंसे एक हरसिंगार । निर्वाचित विधान-सभा। पारिजातक-पु० [सं०] एक देववृक्ष; हरसिंगार फरहद । पार्वण-वि० [सं०] जो किसी पर्वपर या अमावस्याके दिन पारिणामिक-वि० [सं०] पचनेवाला, किसीके परिणाम किया जाय (श्राद्ध)। स्वरूप होनेवाला।
पार्वत-वि०[सं०] पर्वतपर होनेवाला; पर्वतपर रहनेवाला। पारित-वि० (पास्ट) (प्रस्ताव, विधेयक आदि) जो किसी पार्वती-स्त्री० [सं०] शिवकी अर्धांगिनी गौरी जो हिमालय
सभा, विधानसभा आदिमें विधिपूर्वक स्वीकृत हो चुका हो। की पुत्री है, उमा, भवानी। -कुमार,-नंदन-पु० पारितोषिक-वि० [सं०] संतुष्ट करनेवाला प्रसन्न करने कात्तिकेय; गणेश। वाला । पु० पुरस्कार, इनाम ।
पार्वतीय-वि० [सं०] पर्वतपर रहनेवाला; पहाड़ी। पु० पारिपंथिक-पु० [सं०] लुटेरा; चोर ।
वह जो पर्वतपर रहे, पहाड़ी। पारिपावक, पारिपाश्चिक-पु० [सं०] अनुचर, सेवकः पाशुका-स्त्री० [सं०] पसली । नाटकके स्थापकका एक सहायक नट ।
पार्श्व-वि० [सं०] निकट, पासका। पु० कक्षके नीचेका पारिभाग्य-पु० [सं०] प्रतिभू या जामिन होनेका भाव ।
या छातीके दायें-बायेंका भाग, पाँजर; अगल-बगलकी -धन-पु० (कॉशन मनी) जमानत या प्रतिभूतिके रूप
जगह सामीप्य; गाडीके धुरेके छोर । -ग,-गम-वि० में अथवा सद्व्यवहार या सदुपयोगका निश्चय करानेके
साथ रहनेवाला । पु० परिचारक, सेवक, नीकर । लिए पहलेसे जमा की या करायी गयी रकम । '
-टिप्पण-पु० (मार्जिनल नोट) पुस्तक, कापी आदिके पारिभाषिक-वि० [सं०] परिभाषा-संबंधी; जिसका प्रयोग पृष्ठपर किनारेकी तरफ लिखे गये विचार, ज्ञातव्य बातें किसी विशिष्ट अर्थ में किया जाय, जो कोई विशिष्ट अर्थ
आदि ।-नाथ-पु० जैनोंके तेईसवें तीर्थकर ।-नायकसूचित करे, लाक्षणिक | -शब्दावली-स्त्री० (ग्लॉसरी पु० (विंग कमांडर) वायु-सेनाके दो-तीन दस्तोंकी बनी ऑफ टैक्निकल वर्ड ज) विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होनेवाले
टुकड़ीका नायक (ग्रप-कप्तान तथा रकाड्रन लीडरके बीच. शब्दोंकी सूची।
का अधिकारी) । -परिवर्तन-पु० करवट बदलना। पारिश्रमिक-पु० [सं०] परिश्रमके बदले दिया जानेवाला
-प्रसारण-पु. (इनडेंट) टाइपके अक्षर बैठाते समय धन या पारितोषिक (रिम्यूनरेशन)।
नये अनुच्छेदकी पहली पंक्तिके पूर्वका हाशिया (पाश्र्व) पारिषद-वि० [सं०] परिषद्-संबंधी; परिषद्का । पु०
बढ़ा देना या किसी उद्धरण आदिकी पंक्तियोंके एक ओर परिषद् या सभामें बैठनेवाला, सभासद् (काउंसिलर) अथवा दोनों ओरका हाशिया अधिक चौड़ा कर देना। परिषद्का सदस्य; अनुचर वर्ग ।
-रक्षक सेना-स्त्री० (फ्लैकगार्ड) पावकी रक्षा करने. पारी-स्त्री० बारी, ओसरी; + गुड़ आदिका जमाया हुआ वाली सेना। -वर्ती (तिन)-वि० साथ रहनेवाला; बड़ा ढोंका।
बगल में या आसपास रहनेवाला। पु० परिचारक, सेवका पारीक्षित-पु० [सं०] राजा परीक्षित् ; उनका वंशधर, सहचर । -शीर्षक-पु० (मार्जिनल हेडिंग) किसी छपे जनमेजय ।
हुए या छपनेवाले लेख, पुस्तकके अध्याय आदिमें विषय पारीछत*-पु० दे० 'पारीक्षित'।
आदिकी ओर संकेत करनेवाला वह शीर्षक जो बीचमें न पारुष्य-पु० [सं०] परुष होनेका भाव (बात या व्यवहार- दिया जाकर पार्श्व में, किनारेकी तरफ दिया जाय । में); कठोरता; रुखाई; दुर्वचन ।
-शूल-पु० (प्लूरिसी) ठंढ आदि लग जानेसे पाश्र्वपार्क-पु० [अं०] नगरके अंदरका वह सार्वजनिक उपवन देशमें होनेवाली सूजन जिससे छाती या पसलीमें पीड़ा
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४७७
पाश्विक-पावर
होती है और ज्वरादिके लक्षण भी देख पड़ते हैं। स्थ- निर्देशके लिए बनाया जानेवाला मिट्टीकी मेंड़ या धुस; वि० जो बगल में हो, समीपस्थ । पु० सहचर, साथी।। वह धुस जो कबड्डीके खेलमें इदके निशानका काम देता पाश्चिक-वि० [सं०] पार्श्व-संबंधी; किसी एक पार्श्वमें है; अनाज रखनेके कामका एक प्रकारका मिट्टीका गोला, होने या रहनेवाला । पु० पक्षपाती, तरफदार; सहचर, कच्चा और बड़ा बरतन, डेहरी; अखाड़ा; वह स्थान जहाँ साथी।
दस-पाँच आदमी उठे-बैठे। मु० (किसीसे)-पड़नापार्षद-पु० [सं०] सभासद् पारिचारक, सेवक; किसी | साबिका होना, काम पड़ना। देवताका अनुचर ।
पालागन, पालागी-स्त्री० प्रणाम, नमस्कार । पाणि-स्त्री० [सं०] एड़ी; पृष्ठ, पिछला भाग; सेनाका पालि-स्त्री० [सं०] कानकी लौ किनारा; पंक्ति सीमा । पृष्ठ भाग; जीतनेकी इच्छा, जिगीषा; पदाघात, ठोकर । पालिका-स्त्री० [सं०] कानकी लौ तलवार आदिकी धार; -घात--पु० पादप्रहार, ठोकर ।
पालन करनेवाली। पार्सल-पु० [अं०] डाक या रेल द्वारा भेजे जानेवाले | पालित-वि० [सं०] पाला हुआ; रक्षित । मालका पुलिंदा या पैकेट ।
पालिनी-स्त्री० [सं०] पालन करनेवाली; रक्षा करनेवाली। पालंग-पु० पलंग।
पालिश-स्त्री० [अं०] चिकनाई और रौनक जो एक वस्तुपाल-पु० [सं०] रक्षा करना; रक्षा करनेवाला, रक्षका | पर दूसरी वस्तुके रगड़नेसे पैदा होती है। वह मसाला प्रधान अधिकारी (जैसे राज्यपाल ); [हिं०] आम, केला जिसके लगानेसे किसी वस्तुपर चिकनाई और रौनक आदि पकानेकी एक विधि जिसमें उन्हें पत्तोंपर रखकर | पैदा होती है। मु०-करना-विशेष प्रकारका मसाला पुनः पत्तोंसे ही ढक देते हैं; नावके मस्तूलके सहारे लगाकर चिकना और रौनकदार बनाना। ताना जानेवाला वह कपड़ा जिसमें हवाके भरनेसे नाव | पाली-स्त्री० तीतर, बटेर आदि लड़ानेकी जगह; परई; चलती है। बंगालियोंकी एक उपाधि; बंगालका एक प्रसिद्ध (शिफ्ट; इनिंग्ज) कारखानों आदिमें श्रमिकोंके एक दलके राजवंश; गाड़ी या पालकी आदिका ओहार; धूप आदिसे लिए बँधा हुआ काम करनेका समय जिसकी समाप्तिपर बचावके लिए चॅदोवेकी तरह टाँगा जानेवाला टाट, दूसरा दल काम शुरू करता है। हाकी, क्रिकेट आदि कपड़ा आदि; * बाँध, मेंड़-'टूट पाल सरवर बह खेलों में खेलाड़ियोंके किसी दलका पहिली या दूसरी बार लागे'-१०; ऊँचा किनारा, कगार ।-वंश-पु० बंगाल- खेलना, पारी, बारी; वह प्रसिद्ध प्राचीन भाषा जिसमें का एक प्रसिद्ध राजवंश ।
बुद्धने अपने धर्मका उपदेश दिया था और जिसमें बौद्धोंके पालउ*-पु० पल्लव, पत्ता।
धर्मग्रंथ लिखे हुए हैं। [सं०] दे० 'पालि'; बटलोई । पालक-पु० एक प्रसिद्ध साग; [सं०] रक्षक, पालन करने- | पालू-वि० पालतू ।
वाला; राजा;* पलंग-'ता दिन पालकते न उठावै'-राम पाले-अ० वशमें, चंगुलमें। मु० (किसीके)-पड़नापालकी-स्त्री० एक तरहकी सवारी जिसे आदमी कंधेपर चंगुल में फंसना, काबूमें आना । ढोते हैं, खड़खड़िया, शिविका।
पार्व-पु० दे० 'पाँव'। पालट-वि० गोद लिया हुआ लड़का। स्त्री० पटेबाजीका | पावड़ा-पु० दे० 'पाँवड़ा'। एक वार ।
पावड़ी-स्त्री० दे० 'पाँवड़ी'। पालड़ा-पु० दे० 'पलड़ा'।
पावर*-वि० दे० 'पाँवर' । पालतू-वि० पाला हुआ; जो पाला जा सके।
पावरी-स्त्री० दे० 'पाँवड़ी'। पालथी-स्त्री० बैठनेका एक आसन जिसमें दाहने और बायें | पाव-पु० चौथा भाग, एक चौथाई; चार छटाँककी एक
पैरोंके पंजे क्रमसे बायीं और दायीं जाँघके नीचे दबे रहते हैं। तोल + पैर । -दान-पु० 'पायदान'। पालन-पु० [सं०] रक्षा करना; रक्षण; निर्वाह करना, पावक-पु० [सं०] अग्नि, आग; अग्निदेव सूर्य; वरुण; परवरिश; निभाना (जैसे प्रतिज्ञापालन)।
सदाचार । वि० शुद्ध करनेवाला, पवित्र करनेवाला। पालना-स० क्रि० भोजन-वस्त्र आदि देकर बड़ा करना, पावती-स्त्री० रसीद; दे० 'पावती पत्र'। -पत्र-पु० भरण-पोषण करना, परवरिश करना; जीविका या मनो. (एकनॉलेजमेंट) रुपया या अन्य वस्तु मिल जानेका प्रमाणरंजनके निमित्त पशु-पक्षी आदिको आहार आदि देकर पत्र, प्राप्ति-स्वीकार-पत्र, रसीद । अपने यहाँ रखना; उल्लंघन न करना, न टालना, निबा- पावन-वि० [सं०] शुद्ध करनेवाला, पवित्र करनेवाला; हना (आशा, वचन) । पु० बच्चोंका एक प्रकारका छोटा । शुद्ध, पवित्र । पु० आग्न; वेदव्यास; विष्णु; शुद्धि; जल; झूला या हिंडोला।
गोबर, रुद्राक्ष । पालनीय-वि० [सं०] पालन करने योग्य ।
पावना*-स० क्रि० प्राप्त करना, पाना; महसूस करना; पालयिता(त)-पु० [सं०] पालन करनेवाला ।
समझना; जीमना, खाना । पु० दूसरेसे रुपया आदि पालव*-पु० पलव, पत्ता; नया और कोमल पत्ता। पानेका अधिकार; वह रुपया या द्रव्य जो दूसरेसे पाला-पु० हवामें मिले हुए भापके सूक्ष्म कण जो अधिक पाना हो। ठंढक पड़नेपर सफेद तहके रूपमें जमीनपर जम जाते हैं, | पावर-पु० [अं॰] वह शक्ति जिसके बलसे मशीनें चलायी हिम, तपार, बर्फः ठंढक, सरदी; किसी प्रकारके व्यवहार- जाती है, यंत्रशक्ति (जैसे विद्यत्); अधिकार, शक्ति । का अवसर, साबिका ('पड़ना के साथ);सदर मुकाम; सीमा- । -लूम-पु० यंत्रशक्तिसे चलनेवाला करघा । -स्टेशन,
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पावस- पिंजड़ा
- हाउस - पु० वह स्थान जहाँ वितरणके लिए बिजली तैयार की जाती है, बिजलीघर ।
पाषान* - पु० दे० 'पाषाण' ।
पासँग, पासंग - पु० [फा०] तराजूकी डाँड़ी बराबर करनेके लिए हलके पलडेकी ओर रखी जानेवाली वस्तु; डाँड़ीका ऊपर नीचे होना । मु० (किसी का) - भी न होनाकिसी के मुकाबले में कुछ भी न होना ।
पावस- पु० वर्षा ऋतु ।
पासनी * - स्त्री० अन्नप्राशन, चटावन ।
पावrt - पु० दे० 'पाय'; गोरखपुर से उत्तर-पश्चिम में स्थित एक प्राचीन गाँव जहाँ बुद्ध कुछ समयतक ठहरे थे । पाश - पु० [सं०] सरकनेवाली गाँठोंका, रस्सी, तार आदि | 'का विशेष प्रकारका घेरा जिसमें फँसनेसे प्राणी बँध जाता है, फाँस (प्राचीन कालमें युद्ध में भी आयुधके रूपमें पाशका प्रयोग किया जाता था); पशु-पक्षियोंको फँसानेका जाल; पासा; किसी बुनी हुई चीजका छोर; फँसानेवाला पदार्थ, बंधन (समासमें पाश शब्द समूह, शोभा और अपकर्ष आदि सूचित करता है, जैसे- केशपाश, कर्णपाश, वैद्यपाश) । - जाल - पु० संसाररूपी जाल | पाशव - वि० [सं०] पशु-संबंधी; पशुका । पाशविक - वि० दे० 'पाशव' |
पासा - पु० चौसर के खेल में फेंका जानेवाला वह चौपहला लंबोतरा हड्डीका या लकड़ीका बना टुकड़ा जिसपर बिंदियाँ बनी होती हैं; पासोंसे खेला जानेवाला खेल, चौसर; गुल्ली; सुनारोंके कामका पीतल या काँसेका चौकोर लंबा ठप्पा जिसपर गोल गड्ढे बने होते हैं। -सार- पु० पासेकी गोटी; पासेका खेल | मु० ( किसीका ) - पड़ना - पासेका इस रूप में गिरना जिससे किसीकी जीत हो; विरोधीको हरानेवाला दाँव पड़ना; भाग्य खुलना । -पलटनाचौसर में जीत या हारका दाँव पड़ना; अच्छे या बुरे दिन आना, भाग्यका अनुकूल या प्रतिकूल होना । - फँकनाभाग्यकी परीक्षा करना, किस्मतकी आजमाइश करना । पासि* - पु० फंदा, बंधन | पासिक* - पु० फंदा; जाल |
पाशुपत - वि० [सं०] पशुपति संबंधी; शिव-संबंधी या शिवका; शिवका दिया हुआ । पु० पशुपति या शिवका उपा सक; एक प्रसिद्ध दार्शनिक मतः इस मतको माननेवाला । पाशुपतास्त्र - पु० [सं०] एक भीषण अस्त्र जिसे अर्जुनने शिवसे प्राप्त किया था ।
पासिका * - स्त्री० फंदा, बंधन; जाल ।
पाश्चात्य - वि० [सं०] पश्चिमका, पच्छिमी; पच्छिमका पासी- पु० बहेलिया; एक अस्पृश्य जाति जिसका पेशा रहनेवाला; बादका पिछला ।
सूअर पालना या ताड़ी उतारना है । पासुरी* - स्त्री० पसली ।
पापंड - पु०, वि० [सं०] दे० 'पाखंड' |
पाषंडक, पाषंडिक, पापंडी (डिन् ) - पु० [सं०] धार्मि- पाहँ* - अ० पास, समीप, प्रति, से
कताका आडंबर फैलानेवाला व्यक्ति ।
पापर* - स्त्री० दे० 'पाखर' |
पाषाण - पु० [सं०] पत्थर, शिला । भेदक, -भेदनपु० एक पौधा, पखानभेद । - युग - पु० ( स्टोन एज ) दे० 'प्रस्तरयुग' । - हृदय - वि० जिसका दिल पत्थर की तरह कड़ा हो, निष्ठुर, निर्दय ।
पाषाणी - स्त्री० [सं०] पत्थरका बटखरा; भाला । वि० स्त्री० पाहीँ * - अ० दे० 'पाहिँ ।
कठोर, पत्थरका दिल रखनेवाली ।
*
पास - अ० समीप, नजदीक, दूरका उलटा; अधिकार में; पले; (किसी के) प्रति, निकट जाकर, से । * पु० ओर, तरफ; पासा; फाँस भेड़ के बाल कतरनेवाली कैचीका दस्ता । - पास - अ० एक दूसरेके करीब, एक दूसरेके निकट । - मान, वान * - पु० पास रहनेवाला, सेवक - 'जिनके धनद समान पेखियत पासवान-भू० । -वर्ती * - दे० 'पार्श्ववती' । - सार* - पु० दे० 'पासासार' । मु० ( किसीके ) - जाना - समागम करना। -तक न फटकना-दूर ही रहना । - फटकना - समीप जाना। - बैठनेवाला - साथी, हेली मेली; सहवासी । पास-पु० [अ०] कहीं जानेकी लिखित आज्ञा या अनुमति; वह टिकट या आज्ञापत्र जिसे दिखाकर रेल आदि द्वारा बेरोक-टोक भ्रमण कर सकें । वि० जिसने पार किया हो;
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जो किसी परीक्षा में सफल हो चुका हो, उत्तीर्ण; स्वीकृत, मंजूर । - पोर्ट- पु० विदेश जानेके लिए सरकारी अनुमतिपत्र, राहदारीका परवाना। -बुक - स्त्री० बंकसे मिलनेवाली वह किताब जिसमें रुपया जमा करने आदिका हिसाब रहता है ।
पाहत पाहात - पु० [सं०] ब्रह्मदारु, शहतूत का पेड़ । पाहन * - पु० पत्थर ।
पाहरू - पु० पहरू, पहरेदार । पाहिँ* - अ० पास, समीप, प्रति, से ।
४७८
पाहि- (क्रियापद) [सं०] रक्षा करो; बचाओ | पाहिरक्षा करो - रक्षा करो; बचाओ-बचाओ ।
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पाही - स्त्री० बस्ती से दूरका या दूसरे गाँवका स्थान । - काश्त - पु० दूसरे गाँव में खेती करनेवाला असामी । - खेती - स्त्री० वह खेती जो दूरवर्ती स्थान या अन्य गाँव में हो ।
पाहुँच * - स्त्री० दे० 'पहुँच' ।
पाहुना, पाहुना पु० अतिथि, मेहमान; दामाद । कुछ ही समय बाद चला जाने, चल बसनेवाला । पाहुनी - स्त्री० स्त्री अतिथिः उपपत्नी; अतिथि सत्कार । पिंग - वि० [सं०] ललाई लिये भूरा, दीपशिखाके रंगका ।
० ललाई लिये भूरा रंग, पिंग वर्ण; हरताल । - स्फटिक - पु० गोमेद | पिंगल - वि० [सं०] पिंग वर्णका, ललाई लिये भूरे रंगका । पु० पिंग वर्ण, ललाई लिये भूरा रंग; *एक पक्षी, पपीहा, - 'पिंगल पि पि करै ताको काल न खाय' - साखी । पिंगला- स्त्री० [सं०] शरीर के दक्षिण भागकी एक प्रसिद्ध नाड़ी; एक पक्षी; लक्ष्मी; एक वेश्या जो अपनी धर्मनिष्ठाके लिए प्रसिद्ध थी । पिंगलाक्ष-पु० [सं०] शिव । पिंजड़ा - पु० दे० 'पिंजरा' ।
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४७९
पिंजन-पिछलना पिंजन-पु० [सं०] रुई धुननेकी क्रिया; धुनकी । पिअ*-पु० दे० 'प्रिय' । वि० प्यारा सुंदर । पिंजर-वि० [सं०] ललाई लिए पीले रंगका; पोला। पु० | पिअर-वि० पीला।
ललाई लिये पीला रंग सोना; पिंजरा ठठरी, कंकाल । | पिअरवा -पु० पति, स्वामी । वि० प्यारा। पिंजरा-पु० लोहे, बाँस आदिकी तीलियोंका बना हुआ पिअराई*-स्त्री० पीलापन । एक प्रकारका शाबा जिसमें पालतू पक्षी या पशु रखे जाते | पिअरी-स्त्री० हल्दी या पीले रंगमें रँगी हुई धोती; हैं। बहुत सँकरी जगह; सँकरा घर या कमरा (ला०)। पीलिया रोग । * वि० स्त्री० पीली । . -पोल-पु० गोशाला।
पिउ*-पु० प्रियतम, कांत । पिंजरिमा(मन)-स्त्री० [सं०] ललाई लिये भूरा या पिउनी -स्त्री० पूनी। पीला रंग।
पिक-पु० [सं०] कोकिल, कोयल । -बंधु-पु० आमका पिंजल-वि० [सं०] व्याकुल, बहुत घबराया हुआ; आतं- पेड़। -बांधव-पु० वसंत ऋतु । कित । पु० हरताल; कुशका पत्ता, कुशपत्र ।
पिकांग-पु० [सं०] चातक । पिंड-पु० [सं०] गोलक; गोला; किसी द्रव्यका ठोस गोला पिघरना -अ० क्रि० 'पिघलना'। (जैसे मृत्पिड, अयःपिंड); ढेला; ग्रास, पके हुए चावल, | पिघलना-अ० क्रि० तापसे द्रवीभूत होना; दयासे आर्द्र पायस आदिका गोला जिसे श्राद्ध में पितरोंको अर्पित करते __ होना, पसीजना। हैं; देह; भिक्षा राशि, समूह कोई गोली और ठोस वस्तु; पिघलाना-स० क्रि० गरमी पहुँचाकर किसी ठोस पदार्थराशि, धन (अंकगणित)।-खजूर-पु०,-खजूरिका,- को तरल बनाना; दयासे आर्द्र करना । खर्जूरी-स्त्री० छोहाड़ा; छोहाड़ेका पेड़ ।-ज-पु० पिंडके पिचकना-अ० क्रि० फूले या उभरे हुए तलका भीतरकी रूप में पैदा होनेवाला जीव, जरायुज ।-दान-पु० पितरों ओर दबना; फुलाव या उभारसे रहित होना, बैठ जाना। के निमित्त पिंडा पारनेका काम, पिंड देनेका काम । | पिचकाना-स० क्रि० फूले या उभरे हुए तलको नीचा -राशि-स्त्री० (लंप सम) किस्तके रूपमें नहीं, वरन् एक करना। ही बार में पूरीकी पूरी दी जानेवाली रकम । -लेप-पु० पिचकारी-स्त्री० एक प्रसिद्ध पोला यंत्र जिसके निचले पिंडेका वह अंश जो पिंडदान करते समय हाथमें सटा | सिरेपर एक या अनेक छोटे छेद होते हैं और जिसके द्वारा रह जाता है। मु०-छूटना-छुटकारा मिलना । पानी या अन्य किसी तरल पदार्थको खींचकर बाहर पिंडरी*-स्त्री० दे० पिंडली' ।
फेंकते हैं। मु०-छूटना-किसी तरल पदार्थका किसी पिंडली-स्त्री० टाँगका पीछेकी ओरका मांसल भाग । स्थानसे पिचकारी द्वारा फेंके जानेवाले जलकी तरह बाहर पिंडवाही*-स्त्री० एक तरहका कपड़ा।
निकलना । -छोड़ना-किसी द्रव पदार्थको पिचकारीमें पिंडा-पु० गोला; ठोस या गीले पदार्थका गोला; पके हुए भरे पानीकी तरह वाहर निकालना।
चावल या पायसका वह हाथसे गढ़ा हुआ गोला जिसे | पिचकी*-स्त्री० पिचकारी । पितरोंको श्राद्धमें अर्पित करते हैं। शरी। -पानी-पु० पिचपिचा-वि०चिपचिपा गुलगुल । श्राद्ध और तर्पण । मु०-पानी देना-श्राद्ध और तर्पण पिचपिचाना-अ० क्रि० घाव आदि मेंसे पंछा निकलना, करना।
घाव आदिका आर्द्र होना। पिंडाकार-वि० [सं०] गोल ।
पिचपिचाहट-स्त्री० पिचपिचानेका भाव । पिंडारी-पु० दक्षिणमें रहनेवाली एक मुसलमान जाति । पिचलना-सक्रि० 'कुचलना' । अ०क्रि० कुचल जाना। पिंडाश, पिंडाशी(शिन्)-पु० [सं०] भिक्षुक । पिचास-पु० दे० 'पिशाच'-'हरि बिच डारै अंतरा पिडि, पिंडी-स्त्री० [सं०] गोलका गोला; पहियेके बीचो- माया बड़ी पिचास-साखी। बीच वह बेलनके आकारका पोला अवयव जिसमें धुरी | पिचुक्ता, पिचूका-पु० पिचकारी; गोलगप्पा । पहनायी जाती है, चक्रनाभि, चक्रमध्य; पिंडली; कद्दू | पिचोतरसो-वि० सौसे पाँच अधिक, १०५ । छोहारा, घर, मकान, पीठ, पीढ़ा; वह पीठिका जिसपर पिच्छल-वि० [सं०] फित्तलानेवाला, चिकना + पिछला । देव-मूर्तिकी स्थापना की जाती है।
पिच्छिल-वि० [सं०] फिसलनवाला, चिकना; पूँछवाला । पिंरिका-स्त्री० [सं०] दे० 'पिंडि'; गोलाकार शोथ,गिलटी। पिछ-पु० पीछा'का लघुरूप (समासमें)। -लगा-पु० पिडित-वि० [सं०] जिसे पिंडका रूप दिया गया हो, पीछे-पीछे चलनेवाला; अनुगमन करनेवाला, अनुयायी; पिंडाकार बनाया हुआ; जो लपेटकर पिंडाकार बनाया आश्रय में रहनेवाला; सेवक। -लगी-स्त्री० पिछलगा गया हो; गिना हुआ, गणित; मिश्रित ।
होनेका भाव; अनुगमन । -लगू,-लग्ग-पु० दे० पिंडितार्थ-पु० [सं०] सारांश, मथितार्थ ।
'पिछलगा। -लत्ती-स्त्री० घोड़े, गधे आदिका पीछेकी पिंडी(डिन)-वि० [सं०] पिंडेका भागी, पिंडा प्राप्त करने- ओर लात मारना। -वाई-स्त्री० पीछेकी ओर लगाया वाला (पितर); शरीरधारी । पु० भिक्षुक; पिंडदान जानेवाला परदा । -धाड़ा,-वारा-पु० मकानका करनेवाला।
पिछला भाग, घरके पीछेकी जमीन । पिंडीकरण-पु० [सं०] पिंडाकार बनाना।
पिछड़ना-अ० क्रि० पीछे रह जाना, बराबरीमें या आगे पिंडरी, पिंडली*-स्त्री० दे० 'पिंडली' ।
न रहना। पिंडक-पु० पंडुका उल्लू ।
| पिछलना -10 क्रि० पीछे हटना या मुड़ना (क०)।
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पिछला-पित्त
४८० पिछला-वि० पीछेकी ओर पड़नेवाला, जो पीछेकी ओर पितामह-पु० [सं०] दादा; ब्रह्मा, पितर । हो, 'अगला'का उलटा; जो क्रममें किसीके पीछे पड़े पितामही-स्त्री० [सं०] दादी । या हो; जिसके आगे और कोई हो; जो अंतमें हो या | पितिया -पु० चाचा। -ससुरी-पु० चचिया ससुर । पड़े बादका, परवतीं बीता हुआ, व्यतीत; पुराना; जो -सासा-स्त्री० चचिया सास । किसी वस्तुके अंतिम भागसे संबद्ध हो; अंतिम भागका; पितियानी -स्त्री० चाची।। ठीक पीछेका।
पितु*-पु० पिता । -मातु*-पु० पिता और माता । पिछाड़ी-स्त्री० पृष्ठभाग, पीछेका भाग; घोड़ेके पिछले पैरों- पितृ-पु० [सं०] दे० 'पिता'; मरे हुए पुरखे प्रेतत्वसे मुक्त को खू टेसे बाँधनेकी रस्सी ।
पूर्वज । -ऋण-पु० एक प्रकारका शास्त्रोक्त ऋण जिससे पिछानां-स्त्री० दे० 'पहचान' ।
मनुष्य पुत्र उत्पन्न करनेपर मुक्त होता है।-कर्म(न),पिछानना*-सक्रि० दे० 'पहचानना' ।
कार्य, कृत्य-पु० श्राद्ध, तर्पण आदि जो पितरोंके निमित्त पिछारी+-स्त्री० दे० 'पिछाड़ी' ।
किये जाते हैं । -कल्प-पु० श्राद्धादिक कृत्य । वि० जो पिछेलना-स० कि० (धक्का देकर) पीछे कर देना। पिताके समान हो, पितृतुल्य । -कुल-पु० पिताके वंशपिछीह *-अ० पीछेकी ओर; पीछेकी ओरसे ।
के लोग । -क्रिया-स्त्री० दे० 'पितृकर्म'। -गृह-पु० पिछौरा*-पु० दुपट्टा, उत्तरीय ।
मायका, नेहर; श्मशान । -घात-पु० पिताकी हत्या पिछौरी*-स्त्री० स्त्रियोंकी ओढ़नी; ऊपरसे ओढ़ा जानेवाला करना 1-घातिक,-घाती (तिन)-पु० पिताका वध कोई वस्त्र, ओढ़नी।
करनेवाला। -तंत्र-पु० ( पैट्रिआर्की) समाजकी वह पिटत-स्त्री० पीटनेकी क्रिया, मार, पिटाई ।
प्राचीन व्यवस्था जिसमें घरका कोई बड़ा-बूढ़ा आदमी या पिटक-पु० [सं०] पिटारा; फुड़िया, वस्त्र, आभूषण आदि गृह-स्वामी ही समस्त परिवारका प्रबंधक होता था और रखनेकी पिटारी, झाँपी; विशेष प्रकारकी रचनाओंका उसीके अनुशासनमें वंश या परिवारकी विभिन्न शाखाओं, संग्रह (सुत्तपिटक, विनयपिटक)।
उपशाखाओंके सदस्योंको रहना पड़ता था । -तर्पण-पु० पिटका-स्त्री० [सं०] फुड़िया पिटारी।
पितरोंके निमित्त किया जानेवाला तर्पण; अँगूठे और पिटना-अ० क्रि० पीटा जाना;मार खाना; बजाया जाना तर्जनीके बीचका स्थान जिसके द्वारा तर्पण समर्पित करने बजना । पु. पीटनेका औजार, थापी ।
का विधान है। तिल; श्राद्धके समय दान की जानेवाली पिटवाना-स० क्रि० किसीके पीटे जानेका कारण होना; वस्तुएँ । -तिथि-स्त्री० अमावस्या। -दाय,-द्रव्यकिसीको पीटने में प्रवृत्त करना ।
पु० पितासे प्राप्त संपत्ति, मौरूसी जायदाद । -नाथ,पिटाई-स्त्री० पीटनेकी क्रिया; पीटनेकी उजरत ।
पति-पु० यमराज। -पक्ष-पु० आश्विनका कृष्ण पक्ष पिटारा-पु० बाँस, बेंत आदिकी तीलियोंसे बना हुआ | जिसमें पितृकृत्य करना प्रशस्त माना गया है; पिताका डिब्बेकी शकलका पात्र ।
कुल, पितृकुल; पितृकुलका मनुष्यः पिता, पितामह और पिटारी-स्त्री० छोटा पिटारा; पानदान । -का ख़र्च- प्रपितामह । -प्राप्त-वि०पितासे मिला हुआ।-बंधुस्त्रियोंका पानदानका खर्च, जेबखर्च; किसी स्त्रीकी व्यभि- पु० वह जिससे पिताके संबंधसे रिश्ता हो (जैसे पिताके चारकी कमाई।
मामाका पुत्र)। -भक्त-पु० पिताका भक्त, पिताकी पिट्टस-स्त्री० शोक-विह्वल होकर छाती पीटना ।
यथोचित सेवा करनेवाला । -भक्ति-स्त्री० पिताके प्रति पिट्ट-वि० जिसपर प्रायः मार पड़े।
आदर और यथोचित सेवाका भाव । -भोजन-पु० पिट्ट-पु० पीछे-पीछे चलनेवाला, अनुगामी (निंदा); सहा- | पितरोंका भोजन; पितरोंका भोज्य पदार्थ, उड़द । लोकयक, समर्थक; खुशामदी; साथ-साथ खेलनेवाला, खेलका पु० वह लोक जिसमें पितर निवास करते हैं, पितरोंका साथी; किसी खिलाड़ीका वह कल्पित साथी जिसके स्थान- लोक । -वंश-पु० पिताका कुल ।-वन,-सद्म(न)पर वह अपनी बारी समाप्त कर फिर खुद ही खेलता है। पु० श्मशान । -विसर्जन-पु० आश्विन कृष्ण अमापिठौरी-स्त्री० पीठीसे तैयार की हुई पकौड़ी आदि । वास्याके दिन पितरोंकी 'बिदाई'का कृत्य ।-वेश्म (न्)पिडक-पु०, पिडका-स्त्री० [सं०] फुड़िया, फुसी। पु० पिताका घर, मायका । -श्राद्ध-पु० पितरोंके पिड़किया-स्त्री० गुझिया नामक पकवान ।
निमित्त किया जानेवाला श्राद्ध । -सत्तात्मक-वि० पितंबरी-पु० दे० 'पीतांबर'।
(पैट्रिआर्कल) (वह प्रथा या पद्धति) जिसमें पिता या पितपापड़ा-पु० एक क्षुप जो दवाके काम आता हैं। गृह-स्वामीकी ही सत्ता सर्वोपरि मानी जाती रही हो। पितर-पु० मृत पूर्वजप्रतत्वसे छूटे हुए पूर्वज जिन्हें पिंडा- | -स्थान, स्थानीय-पु. वह जो पिताके स्थानपर हो, पानी दिया जाता है । -पति-पु० यमराज ।
अभिभावक, संरक्षक । -हा (हन्)-पु. पिताकी पितराधि, पितराई।-स्त्री० वह कसाव जो पीतल के बर- हत्या करनेवाला। तनमें खटाई रख देनेसे या अधिक देरतक भोज्यवस्तु रख पितृव्य-पु० [सं०] चाचा। देनेसे उसमें उत्पन्न हो जाता है।
पित्त-पु० [सं०] शरीरके तीन प्रसिद्ध दोषोंमेंसे एक (यह पिता(त)-पु० [सं०] किसीके संबंधमें वह व्यक्ति जिसके नीलापन लिये पीले रंगका और कड़वा होता है)।-करवीर्यसे उसकी उत्पत्ति हुई हो, जनक, वाप; दे० 'पितृ। वि. जो पित्त उत्पन्न करे, बढ़ाये। -कोष-पु. पित्तकी -पुत्र-पु० पिता और पुत्र, बाप और बेटा ।
थैली, पित्ताशय । -क्षोभ-पु.पित्तका प्रकोप। -ज
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पित्तल-पिलकना वि०पित्तके प्रकोपसे होनेवाला। -ज्वर,-दाह-पु० पिनपिनाना -अ०कि. 'पिन:पिन' शब्द करना; बच्चेका पित्तके प्रकोपसे होनेवाला ज्वर । -द्रावी (विन्)- नकियाकर और अस्पष्ट स्वरमें रुक-रुककर रोना। वि०पित्तको पिघलानेवाला । पु० मीठा नीबू ।-नाडी- पिनाक-पु० [सं०] शिवका धनुष् , अजगव; धनुष्; स्त्री० एक तरहका नाड़ी-व्रण । -नाशक-वि०पित्तका त्रिशूल । -गोता(प्त),-त्,-पाणि-पु० शिव ।' नाश या शमन करनेवाला। -पांडु-पु. पित्तविकारसे पिनाकी(किन्)-पु० [सं०] शिव । उत्पन्न होनेवाला एक रोग जिसमें नेत्र आदि पीले हो पिन्ना -वि. जो बराबर रोया करे, रोनेवाला। पु० जाते है । -पापड़ा-पु० [हिं०] पितपापड़ा।-प्रकोप- धुनकी । पु० पित्तका बढ़ जाना या कुपित हो जाना। -भेषज- पिन्हाना-स० कि. 'पहनाना'। अ० क्रि० दे० पु० मसूरकी दाल । -रक्त-पु० 'रक्तपित्त' नामक रोग। | ‘पेन्हाना'। -विसर्प-पु० विसर्प रोगका एक भेद ।-व्याधि-स्त्री० पिपरमिंट-पु० [अं०] पुदीनेकी जातिका एक विदेशी पित्तके प्रकोपसे उत्पन्न रोग।-शमन,-हर-वि० पित्तके | पौधा जो प्रायः दवाके काम आता है। इसका सत । प्रकोपको दूर करनेवाला । -शूल-पु० पित्तके प्रकोपसे पिपरामूल-पु० पीपलकी जड़, पिप्पलीमूल । उत्पन्न होनेवाला शूल रोग। -शोथ-पु० पित्तज शोथ। | पिपास*-स्त्री० पिपासा, प्यास ।। -संशयन-पु० चंदन, लालचंदन, नेत्रबला आदि पित्त- पिपासा-स्त्री० [सं०] पीनेकी इच्छा, प्यास, तृषा; लालच । नाशक औषधियोंका समूह । -स्थान-पु० दे० 'पित्त- | पिपासित-वि० [सं०] जिसे प्यास लगी हो, प्यासा । कोष' ।-हा (हन्)-वि०पित्तको मारनेवाला। मु. पिपासु-वि० [सं०] पीनेकी इच्छा रखनेवाला, प्यासा । -उबलना या खौलना-बहुत अधिक क्रोध आना। | पिपीलिका-स्त्री० [सं०] चींटी। (किसीका)-गरम होना-क्रोधी स्वभाव होना। | पिप्पल-पु० [सं०] पीपलका पेड़ बंधन-रहित रखा हुआ पित्तल-वि० [सं०] जिसमें पित्तकी अधिकता हो, पित्त- पक्षी; पक्षी; आस्तीन, चूचुक, चूची; पीपलका गोदा।। बहुल । पु० पीतल; भोजपत्र; हरताल ।
पिप्पली-स्त्री० [सं०] पीपल नामकी ओषधि । -मूलपित्ता-पु० पित्ताशय; साहस; रुतबा । -मार-वि० | पु० पीपरकी जड़, पिपरामूल । नीरस और दुष्कर (काम) । मु०-उबलना या खीलना- पिय*-पु० प्रियतम, कांत, पति । बहुत क्रोध आना । -पानी करना-घोर परिश्रम करना। | पियर*-वि० पीला। -मरना-क्रोधशीलता दूर होना क्रोध जाता रहना। | पियरई, पियराई-स्त्री० पीलापन । -मारना-क्रोधका शमन करना, क्रोधके वेगको रोकना; | पियरवा -पु० प्रियतम, कांत । जीको ऊबने न देना।
पियराना*-अ० क्रि० पीला होना, पीला पड़ना। पित्तातिसार-पु० [सं०] पित्तके प्रकोपसे होनेवाला पियरी*-वि० स्त्री० पीली । स्त्री० पीली धोती; पीलापन । अतिसार।
पियल्ला*-पु० दुधमुँहाँ बच्चा । पित्तारि-पु० [सं०] पितपापड़ा।
पिया-पु० दे० 'पिय'। पित्ताशय-पु० [सं०] पित्तकी थैली, पित्तकोष । पियारा*-वि० प्यारा। पित्ती-स्त्री० पित्तकी अधिकता या रक्तके अधिक उष्ण | पियास*-स्त्री० प्यास । होनेसे उत्पन्न होनेवाला एक रोग जिसमें शरीरपर लाल पियासी*-स्त्री० एक मछली। चकत्ते पड़ जाते हैं। पु० चाचा, काका ।
पियुख, पियूष-पु० दे० 'पीयूष' । पिथीरा-पु० दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज । पिरकी-स्त्री० फुड़िया, फुसी। पिदारा*-पु० पिद्दीका नर ।
पिरथी -स्त्री० दे० 'पृथ्वी'।-नाथा-पु० दे० पृथ्वीनाथ'। पिदा-पु० पिद्दीका नर; गुलेलेकी डोरीमें निवाड़ आदिकी | पिराई*-स्त्री० पीलापन, जदी।
वह गद्दी जिसपर रखकर गोली चलायी जाती है। पिराक-स्त्री० गोझिया जैसा एक पकवान । पिही-स्त्री० बयाकी जातिकी एक छोटी चिड़िया; अति | पिराना*-अ० क्रि० दर्द करना; दर्द का अनुभव करना; तुच्छ प्राणी।
किसीके दुःखसे दुःखी होना । पिधान-पु० किवाड़ [सं०] ढकने या आच्छादित करने- पिरारा*-पु० डाकू, लुटेरा ।
की क्रिया अपवारण; आवरण; ढकना, ढकनः म्यान ।। पिरीतम*-पु० प्रियतम । पिधानक-पु० [सं०] कोप, भ्यान; ढकन ।
पिरीता*-वि० प्यारा। पिधायक, पिधायो(यिन)-वि० [सं०] ढकने, छिपाने पिरीति-स्त्री० प्रीति । वाला।
पिरोजा-पु० हरापन लिये नीले रंगका एक बहुमूल्य पत्थर, पिनकना-अ० क्रि० अफीमके नशे में आगेकी ओर झुक- | फीरोजा । झुक पड़ना, पीनक लेना; नीदके मारे आगेकी ओर झुक- पिरोना-स० क्रि० सुईके छेद में धागा डालना किसी बारीक झुक जाना, ऊँधना।
छेदमें कोई चीज डालना; डोरेमें मनका आदि पहनाना। पिनकी-पु० पीनक लेनेवाला, अफीमची।
पिरोहना*-स० कि० दे० 'पिरोना' । पिनपिनहाँ-वि० 'पिन-पिन' करनेवाला, जो सदा पिलकना-स० क्रि० गिराना; ढकेलना । अ० क्रि० चिढ़ना; पिनपिनाया करे।
| चिढ़कर भागना।
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पिलकिया - पीछे
पिलकिया * - स्त्री० एक पीलीसी छोटी चिड़िया । पिलना- अ० क्रि० किसी ओर वेगसे प्रवृत्त होना; घुस पड़ना; झुक पड़ना; तत्पर होना; जी-जान से लग जाना (किसी काम में ); * किसी ओर वेगसे झपटना; प्रेरा जाना । पिलपिल+ - वि० दे० 'पिलपिला' | पिलपिला - वि० बहुत नरम, पिचपिचा ।
पिलपिलाना - स० क्रि० चारों ओरसे इस प्रकार दबाना कि पिलपिला हो जाय और भीतरका रस या गूदा बाहर निकल पड़े |
पिलपिलाहट - स्त्री० पिलपिला होनेका भाव । पिलवाना - स० क्रि० किसीको पिलानेमें प्रवृत्त करना, पिलानेका काम कराना; पेलने या पेरनेका कार्य कराना । पिलाना - सु० क्रि० पीनेमें प्रवृत्त करना; पान कराना; पीने को देना; किसी तरल पदार्थको किसी छेद में डालना; भीतर भरना । (कोई बात पिलाना - दिलमें बैठाना ।) पिल्ला - पु० कुत्तेका नर बच्चा + कुत्ता । पिल्लू - पु० एक प्रकारका सफेद लंबा कीड़ा, ढोला । पिव-पु० प्रियतम, कांत ।
पिवानrt - स० क्रि० दे० 'पिलाना' ।
पिशाच - पु० [सं०] एक निम्न देवयोनिः प्रेत; दुष्ट मनुष्य (ला० ) । - न - वि० पिशाचोंका नाश करनेवाला । पु० पीली सरसों (इसका उपयोग प्रायः ओझा करते हैं) । - पति-पु० शिव । - बाधा - स्त्री० पिशाच द्वारा आविष्ट होना । - भाषा-स्त्री० पैशाची प्राकृत जिसका प्रयोग संस्कृतके नाटकों में मिलता है । पिशित- पु० [सं०] कच्चा मांस; छोटा टुकड़ा | पिशिताश, पिशिताशन- पु० [सं०] राक्षस, नरभक्षक; भेड़िया ।
पिशुन - पु० [सं०] चुगली खानेवाला, चुगलखोर । वि० नीच; चुगलखोर; छली; मूर्ख ।
पिष्ट-वि० [सं०] पिसा हुआ, चूर्ण किया हुआ; निचोड़ा हुआ; गुँथा हुआ । - पेषण - पु० पिसे हुएको पीसना | निरर्थक कार्य करना; एक ही बातको बार-बार कहना; निरर्थक श्रम ।
पिसनहारी - स्त्री० आटा पीसनेवाली ।
पिसना - अ० क्रि० पीसा जाना, चूर्ण किया जाना; दबकर चिपटा हो जाना; बहुत अधिक कष्ट पाना; घोर परिश्रम करना; घोर परिश्रम से थककर चूर होना ( 'जाना' के साथ) |
पिसवाज - स्त्री० दे० 'पेशवाज' । पिसवाना-स० क्रि० पीसनेमें प्रवृत्त करना, किसीसे पीसनेका काम कराना ।
पिसाई - स्त्री० पीसने की क्रिया या भाव; आटा पीसनेका पेशा; पीसनेकी उजरत; घोर परिश्रम |
पिसाच * - पु० दे० 'पिशाच' ।
पिसानी - पु० आटा ।
पिसाना - सु० क्रि० पीसनेका काम दूसरेसे कराना । + अ० क्रि० पिसना ।
पिसी, पिस्सी । - स्त्री० सफेद गेहूँ । पिसुन* - पु० पिशुन, चुगलखोर ।
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पिसौनी-स्त्री० पीसनेका काम; आटा पीसनेका पेशा; पीसने की उजरत; घोर परिश्रम । पिस्तई - वि० पिस्तेके रंगका । पिस्ता- पु० एक प्रसिद्ध मेवा; इसका पेड़ । पिस्तौल - स्त्री० बंदूककी तरह गोली दागनेका एक छोटा हथियार |
पिस्सू - पु० मच्छड़ जैसा उड़ने और काटनेवाला एक छोटा कीड़ा । पिहकना - अ० क्रि० पक्षियोंका बोलना ।
कोयल, पपीहे आदि मीठे गलेवाले
पिहान+ - पु० पिधान, ढकना, ढक्कन । पिहानी * - स्त्री० ढक्कन; छिपानेवाली बात ।
पिहित- वि० [सं०] ढका हुआ, आच्छादित, आवृत । पु० एक अर्थालंकार जहाँ किसीके मनका भाव जानकर किसी क्रिया द्वारा अपना भाव प्रदर्शित किये जानेका वर्णन हो । पौजना - सु० क्रि० (रुई) धुनना । पाँजर* - पु० पिंजरा; अस्थिपंजर । पीजरा* - पु० दे० 'पिंजरा' |
पीड* - पु० शरीर; पेड़का तना; पिंडखजूर । पौडी - स्त्री० दे० 'पिंडी' |
पौंडुरी* - स्त्री० दे० 'पिंडुली' |
पी - पु०* प्रियतम; कांत । स्त्री० पपीहेकी बोली । -कहाँपु० पपीहेकी बोली । -खग-पु० पी-पी करनेवाला पक्षी, पपीहा ।
पीक- स्त्री० पानका थूक थूकनेका विशेष पात्र, उगालदान ।
पीकना - * अ० क्रि० पपीहे या कोयलका बोलना, पिहकना; + अंकुर निकलना |
मु० - फूटना - पलव
पीका* - पु० नया, कोमल पत्ता । निकलना, पल्लवित होना । पीच स्त्री० माँड़; + दे० 'पीक' | पीछा - पु० किसी वस्तु या व्यक्तिका पिछला भाग, आगाका उलटा; किसी घटना के बादका समय; पीछे लगा रहना, पिछलगी | मु० - करना- किसी को पकड़ने, भगाने या मारनेके लिए उसके पीछे-पीछे जाना, खदेड़ना । - छुड़ाना- किसी अप्रिय व्यक्ति या वस्तुसे पिंड छुड़ाना । - छूटना - किसी अप्रिय व्यक्ति या वस्तुसे छुटकारा मिलना । - छोड़ना - पीछा करनेके कार्यसे विरत होना, किसीके पीछे लगे रहनेका कार्य बंद करना; किसी प्रयो 'जनकी सिद्धिके लिए किसीके पीछे-पीछे फिरना बंद करना । - दिखाना - भाग खड़ा होना । - देना- साथ छोड़ देना । - पकड़ना- किसी आशासे किसीका साथ करना । पीछू* - अ० दे० 'पीछे' ।
पीछे - अ० पीठकी ओर, पृष्ठ देशमें, आगेका उलटा; देशकालके अनुसार किसीके पश्चात्, अनंतर, वाद; अंतमें, बाद में; इस लोकसे विदा होनेपर, मर जानेपर; लिए, वास्ते, खातिर; वजहसे, बदौलत । मु० ( किसीके) - चलना- किसी बात में किसीका अनुगमन करना या अनुयायी होना । (किसी के) - छूटना - किसीकी स्थिति, कार्य आदिका पता देनेके निमित्त उसकी निगरानीके लिए
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दान-पु० पानकी पीक
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पीटना-पीत नियुक्त किया जाना; किसीको पकड़नेके लिए तैनात किया उत्तेजित करना, बढ़ावा देना। -दिखाना-भाग खड़ा जाना ।-छूटना-पिछड़ जाना (जाने के साथ) । (किसी. होना ।-देना-भाग खड़ा होना साथ छोड़ देना; लेटना। के)-छोड़ना-किसीकी स्थिति, कार्य आदिका पता देने के -पर हाथ फेरना-बढ़ावा देना, शाबाशी देना। -पर निमित्त उसकी निगरानीपर नियुक्त करना; किसीको पक- होना-मददगार होना ।-फेरना-दे० 'पीठ दिखाना' । ड़ने के लिए नियुक्त करना । (किसीके)-पड़ना-किसी (किसीकी)-लगना-कुश्ती में चित किया जाना,पछाड़ा वस्तुको मिटा देनेके लिए तुल जाना; किसी व्यक्तिको जाना । (घोड़े, बैल आदिकी)-लगना-पीठपर जख्म हैरान करने या उसे हानि पहुँचानेके लिए निरंतर यत्न होना, पीठका क्षत होना। (किसीकी)-लगाना-कुश्तीकरना ।-लगना-किसी प्रयोजनकी सिद्धिके लिए किसी में चित कर देना, पछाड़ देना । का आश्रय लेना; किसी कार्यकी सिद्धिके लिए किसीके | पीठा-पु० आटेकी लोई में उर्द या चनेकी पीठी भरकर पीछे-पीछे फिरना; किसी अप्रिय या हानिकर वस्तुका पीछा बनायी जानेवाली विशेष प्रकारकी भोज्य वस्तु; * पीढ़ा। न छोड़ना।
पीठासीन-वि० [सं०] (प्रिजाइडिंग) जो अध्यक्षके स्थानपर पीटना-स० क्रि० किसी वस्तुपर आघात करना, चोट पहुँ- आसीन हो । मु०-होना-अध्यक्षता करना, अध्यक्षका चाना; किसी प्राणीपर हाथ, डंडे आदिसे आघात करना, स्थान ग्रहण करना। मारना; किसी वस्तुपर डंडे आदिसे लगातार आघात पीठि*-स्त्री० पीठ । करना; सोने-चाँदी आदिके टुकड़ेको बढ़ाने या फैलानेके पीठिका-स्त्री० [सं०] धातु, पत्थर या काठका विशेष प्रकारलिए उसपर हथौड़े आदिसे आघात करना; किसी तरह का आसन (जैसे पीढ़ा, चौकी); वह आधार जिसपर किसी समाप्त करना, जैसे-तैसे पूरा करना; जैसे-तैसे कमा लेना, देव-प्रतिमाकी स्थापना की गयी हो, देवमूर्तिका आधार किसी भी तरह उपार्जित करना। पु० रोना, धोना, पिट्टसः | मूर्ति, खंभे आदिका आधार; पुस्तिकाका विशिष्ट अंश या विपत्ति, भारी संकट।
विभाग; पृष्ठभूमि; (चेयर) किसी अध्यापकका पद या पीठ-पु० [सं०] लकड़ी, पत्थर या धातुका आसन-पीढ़ा, | कार्य (वृत्ति)। चौकी आदि व्रतियोंके बैठनेका आसन (जैसे-कुशासन); | पीठी-स्त्री० पानीमें भिगोकर पिसी हुई उ या मूंगकी वह आधार जिसपर :किसी देव-प्रतिमाकी स्थापना हो, दाल जिससे पकौड़ी आदि बनाते हैं। सिंहासन मूत्ति आदिका आधार उन प्रसिद्ध स्थानोंमेंसे | पीढ़ -स्त्री० एक प्रकारका शिरोभूषण; पीड़ा। कोई एक जो विष्णुके चक्रसे कटे हुए सतीके शवके अंगोंके पीढक-पु० [सं०] पीड़ा देनेवाला, पीडित करनेवाला; गिरनेके कारण सिद्धिदायक माने जाते हैं; बैठनेका एक दबानेवाला, चाँपनेवाला; पेरनेवाला। ढंग; एक प्रकारका आसन; (चेयर) सभापति आदिका पीडन-पु० [सं०] दबाना, चाँपना; मलना; पीड़ा पहुँआसन; (सीट) न्यायाधीशका आसन (न्यायपीठ); (बेंच)
चाना, दुःख देना, सताना पेरना; निचोड़ने या पेरनेका विधानसभा आदिमें विभिन्न दलोंके बैठनेके लिए निर्धारित औजार, अनाजके डंठलसे अन्नको अलग करनेके लिए आसन या पंक्तियाँ (सरकारी पीठ, विरोधी पीठ-बहु०); रौंदना या रौदवाना मीजना, मसलना; ग्रहण करना, (सेंटर) स्थान,केंद्रादि (विद्यापीठ); शांकरमठ (जैसे-शारदा- हाथमें लेना, पकड़ना (जैसे-करपीड़न); पीप निकालनेके पीठ); -गर्भ-विवर-पु० मूर्तिके आधारमेंका वह लिए फोड़ेको दबाना । गढ़ा जिसमें वह जमायी जाती है। -मर्दिका-स्त्री० पीडनीय-वि० [सं०] पीड़नके योग्य; दबानेके काम आनेवह स्त्री जो नायकको रिझाने में नायिकाकी सहायता वाला । पु० बिना मंत्री और सेनाका राजा; शत्रुका एक करती है (सा०)। -स्थविर-पु० (रजिस्ट्रार) विश्वविद्यालय, विद्यापीठ, गुरुकुल आदिका वह (वृद्ध) पदाधिकारी जो पीडा-स्त्री० [सं०] शारीरिक या मानसिक कष्ट, व्यथा; संस्थाके कागज-पत्र, छात्रों-संबंधी विवरण इत्यादि रखता | दर्द; बाधा; रोग। -कर-वि० दुःख देनेवाला, कष्ट पहुँ
और उनकी शिक्षा-दीक्षाका प्रबंध करता है; कुलसचिव ।। चानेवाला। पीठ-स्त्री० किसी प्राणीके शरीरका कमरसे लेकर गरदन- पीडिका-स्त्री० [सं०] फुड़िया, फुसी। तकका पीछेका भाग जिसके बीचोबीच रीढ़ रहती है, पृष्ठ पीडित-वि० [सं०] जिसे पीड़ा पहुँचायी गयी हो, सताया किसी वस्तुका ऊपरी भाग, पृष्ठ-भाग। -पीछे-अ० अनु
हुआ; दबाया हुआ, चाँपा हुआ; असा हुआ, ग्रस्त; ध्वस्त; पस्थिति में, मौजूद न रहनेपर। -का,-परका-किसी
| बँधा हुआ; मला हुआ, मसला हुआ; पेरा हुआ। सहोदरके पीछे जनमा हुआ। -का कच्चा-(वह घोड़ा) पीडरी-स्त्री० दे० 'पिंडली'। जो एक आसनसे सवारको देरतक न ले जा सके; (वह पीटा-प० काठ, पत्थर या धातुका चौकी जैसा आसन । घोड़ा) जिसपर सवारी या लदाई करनेसे उसकी पीठ पीढ़ी-स्त्री०किसी कुल, जाति या व्यक्तिके किसी वंशधरकी छिल जाय। -का मोजा-कुश्तीका एक दाँव ।-का | गणना और पदके अनुसार विशिष्ट स्थान; किसी पीढ़ीके सच्चा-(वह घोड़ा) जो सवारी करने पर अच्छी चाल चले। _ अंतर्गत आनेवाले व्यक्तियोंका समुदाय । और किसी तरहकी बदमाशी न करे। मु०-चारपाईसे
[ कर। मु०-चारपाईसे पीत-वि० [सं०] पीला; पिया हुआ; जिसने पिया हो। लगना-बीमारका अशक्तताके कारण उठने-बैठनेमें अस
| पु० पीला रंग; पुखराज, हरताल; गंधक; चंपक । मर्थ हो जाना ।-ठौँकना-कोई अच्छा काम करनेपर -धातु*-स्त्री० गोपीचंदन । -यासा(सस)-वि० शाबाशी देना; प्रशंसा करके कोई कार्य करनेके लिए पीले वस्त्रवाला । पु० कृष्ण ।
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पीतम-पुंडरीक
१८४ पीतम-पु० प्रियतम, कांत ।
पीरोजा-पु० दे० 'फीरोजा'। पीतल-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध उपधातु जो मुख्यतः ताँबे | पील-पु. कीड़ा; पीलूका पेड़ [फा०] हाथी; शतरंजका और जस्तेके योगसे तैयार की जाती है।
एक मोहरा जो तिरछे चलता और तिरछे ही मारता पीतांबर-पु० [सं०] पीला वस्त्र विशेष प्रकारको रेशमी है (ऊँट)। -ख़ाना-पु० हस्तिशाला। -पाँव-पु० धोती जिसे हिंदू पूजा-पाठ तथा संस्कार आदिके समय [हिं॰] एक प्रसिद्ध रोग जिससे प्रायः पाँवका घुटनेसे धारण करते हैं; कृष्ण; विष्णु । वि० पीले वस्त्रवाला। नीचेकी ओरका भाग सूज जाता है (अधिक सूजनेपर पाँव पीतातंक-पु० [सं०] (येलो पेरिल ) यह भय कि चीन, हाथीके पाँवकी तरह मोटा हो जाता है)।-पा-पु० दे० जापान आदि देशोंकी पीली जातियाँ अपनी शक्ति बढ़ा- 'पीलपाँव' । -पाया-पु० थूनी, टेक । -पाल-पु. कर कहीं सारे संसारपर छा न जाय ।
महावत, हाथीवान । -बान-पु० हाथी हाँकनेवाला, पीताब्धि-पु० [सं०] अगस्त्य मुनि (जिन्होंने समुद्र-सोख महावत, हाथीवान |-वान-पु० [हिं०] दे० 'पीलबान'। लिया था)।
पीलसोज*-पु० दीवट । पीताभ-वि० [सं०] पीले रंगका ।
पीला-वि० हल्दीके रंगका, जर्द तेज या आभासे रहित, पीतिमा(मन्)-स्त्री० [सं०] पीलापन ।
निष्प्रभ, फीका । मु०-पड़ना-तेज या आभासे रहित पीती*-स्त्री० दे० 'प्रीति'।
होना । (पीली) फटना-पौ फटना। पीन-वि० [सं०] स्थूल, मोटा; परिपुष्ट; भारी; भरापूरा। पीलिमा*-स्त्री० पीलापन । पीनक-स्त्री० पिनकनेकी क्रिया, अफीमके नशेसे ऊँघना। पीलिया-पु० पांडु रोग। पीनता-स्त्री० [सं०] स्थूलता, मोटाई; परिपुष्टता; भारीपन। पीलु-पु० [सं०] एक वृक्ष, पीलू; हाथी; ताड़के वृक्षोंका पीनस-स्त्री० फ़ीनस, पालकी । पु० [सं०] नाकका जुकाम समूह; फूल; बाण । जिसमें गंधग्रहणकी शक्ति नष्ट हो जाती है।
पीलू-पु० एक वृक्ष या उसका फल; एक राग दे० 'पिल्लू'। पीना-स० कि० किसी द्रव पदार्थको घुट-घुट करके पेटमें पीव-* पु० प्रियतम । । स्त्री० दे० 'पीब' । पहुँचाना, पान करना; किसी बातको सह लेना; (क्रोधको) पीवना*-स० क्रि० दे० 'पीना'। भीतर ही भीतर दबा देना, प्रकट न होने देना; शराब पीवर-वि० [सं०] स्थूल, मोटा; भरा-पूरा । पीना गौरसे सुनना, ध्यानसे सुनना; हुक्के, सिगरेट पीसना-सक्रि० रगड़कर या दबाव पहुँचाकर किसी कड़ी आदिका धुआँ खींचना; सोखना, जज्ब करना ।
वस्तुको चूरेके रूपमें बदलना, चूर्ण करना; किसी वस्तुको पीप-स्त्री० घाव या फोड़ेका मवाद ।
जल या किसी अन्य तरल द्रव्यके योगसे रगड़कर बारीक पीपरी-पु० दे० 'पीपल'। -पर्न*-पु० पीपलका पत्ता | बनाना; किसी सरस वस्तुको रगड़कर या दबाव पहुँचाकर एक गहना।
बारीक बनाना; कुचल देना; तंग करना; दबाकर चिपटा पीपरामूल,पीपलामूल-पु०एक प्रसिद्ध ओषधि,पिप्पलीमूल । कर देना; घोर परिश्रम करना; (दाँत) कटकटाना। पु० पीपल-पु० बरगदकी जातिका एक पेड़ जिसे हिंदू पवित्र वह वस्तु जो किसीको पीसनेके लिए दी जाय । मानते है, अश्वत्थ । स्त्री० एक प्रसिद्ध लता।
पीहर-पु० मायका। पीपा-पु० काठ या लोहेका ढोलके आकारका बना एक पुंख-पु० [सं०] बाणका पिछला भाग जिसपर कभी-कभी बड़ा पात्र जिसमें तेल आदि द्रव पदार्थ रखे या बंद करके पर लगाये जाते थे; बाज पक्षी । बाहर भेजे जाते हैं।
पुखित-वि० [सं०] पंखयुक्त (बाण) । पीब-स्त्री० दे० 'पीप'।
पुंगफल-पु० सुपारी। पीय*-पु. स्वामी, पति ।
पुंगव-पु० [सं०] साँड़ बैल; (समासांतमें) किसी वर्ग या पीयरी-वि० पीला।
समुदायका श्रेष्ठ व्यक्ति (नरपुंगव)। पीया-पु० पति, स्वामी।
पुंगीफल-पु०सुपारी। पीयूख-पु० दे० 'पीयूष' ।
पुंछल्ला-पु० दे० 'पुंछाला' । पीयूष-पु० [सं०] अमृत; दूध; गायका ब्यानेके बाद पहला | पुंछार*-पु० मोर ।
या सात दिनतकका दूध । -भानु-पु० चंद्रमा। छाला-पु० पुछल्ला, पूँछकी तरह लगी रहनेवाली वस्तु पीर-स्त्री० पीड़ा, व्यथा, दुःख, दर्द, प्रसवपीड़ा (ठेठ); पिछलगा। [फा०] बूढ़ा आदमी, बुजुर्ग; महात्मा, सिद्ध धर्मगुरु । पुंज-पु० [सं०] समूह राशि, ढेर, अटाला । वि० वृद्ध, बूढ़ा; चालाक, धूर्त । -जादा-पु० पीर या पुंजि-स्त्री० [सं०] धर्मगुरुका पुत्र ।
पुंजित-वि० [सं०] राशीकृत, ढेर लगाया हुआ। पीरना*-स० क्रि० पेरना-'तेली ह तन कोल्हू करिहौं पुंजी*-स्त्री० दे० 'पूँजी'। पाप-पुन्नि दोउ पीरौं'-कबीर ।
पुंजोत्पादन-पु० [सं०] (मास प्रॉडक्शन) कारखाने पीरा-स्त्री० दे० 'पीड़ा'। वि० दे० 'पीला'।
आदिमें किसी वस्तुका बड़ी संख्यामें या बड़े पैमानेपर पीरानी-स्त्री० [फा०] पीरकी पत्नी ।
किया गया उत्पादन, समूहोत्पादन । पीरी-स्त्री० [फा०] बुढ़ापा; चेला पूँड्नेका व्यवसाय; पुंडरीक-पु०[सं०] श्वेत कमल; कमल; श्वेत छत्र; अग्निचालाकी, धूर्तता; इजारा, अधिकार हुकूमत । | कोणका दिग्गज; बाध; अग्नि; तिलक; एक कोषकार ।
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पुंडरीकाक्ष-पुटित -नयन,-लोचन-वि० कमल-नयन ।
पुछल्ला-पु० लंबी पूँछ, पूँछकी भाँति साथमें या पीछे जड़ी पुंडरीकाक्ष-वि० [सं०] जिसकी आँखें कमलके समान वस्तु; वह जो सदा किसीके पीछे लगा रहे, पिछलगा। हो । पु० विष्णु।
पुछवैया-पु० दे० 'पुछैया'। पुंड-पु० [सं०] एक तरहकी ईख, पौड़ा; कमल; श्वेत- पुछार*-पु० पूछनेवाला, खोज-खबर लेनेवाला; मोर कमल; एक दैत्य; एक प्राचीन देश ।
-'जान पुछार जो भा बनबासी'-प० । पुंलिंग-वि० [सं०] पुरुषवाचक (शब्द-व्या०)। पुछया-पु० पूछनेवाला, खोज-खबर लेनेवाला । पुंवत्, पुंसवत्-अ०, वि० [सं०] पुरुष जैसा । पुजना-अ०कि.+ पूजित होना, पूजा जाना; अत्यधिक पुंश्चली, पुंश्चलू-स्त्री० [सं०] कुलटा, वेश्या ।
सम्मानित होना; * पूरा होना। पुंश्चलीय-पु० [सं०] वेश्याका पुत्र ।
पुजवना*-स० क्रि० पूरा करना; सफल करना। पुंश्चिह्न-पु० [सं०] शिश्न ।
पुजवाना--स० कि..किसीसे पूजनेका काम करवाना, पूजा पुंस*-पु० पुरुष ।
कराना; शिष्यों या भक्तोंसे अपनी सेवा-शुश्रूषा कराना पुंसवन-पु० [सं०] द्विजातियोंका दूसरा संस्कार जी। और भेंट चढ़वाना। गर्भाधानके तीसरे मास होता है। दूध ।
| पुजाई-स्त्री० पूजनेकी क्रिया या भाव; पजनेकी उजरत: पुंसत्व-पु० [सं०] पुरुषभाव, पुरुषत्व पुरुषकी कामशक्ति पूरा करनेकी क्रिया या भाव; पूरा करनेकी उजरत ।
पुंलिंगत्व (व्या०); शुक्र, वीर्य । -दोष-पु० नामदी। पुजाना-स० कि० दे० 'पुजवाना'; पूरा करना; कमीकी पुआ-पु० मैदे या आटेके मीठे घोलसे तैयार किया जाने- पूर्ति करना। वाला एक प्रसिद्ध पकवान ।
पुजापा-पु० देवपूजनके उपकरण, पूजनकी सामग्री; वह पुआल-पु० दे० 'पयाल'।
झोली या पात्र जिसमें पूजनकी सामग्री रखी जाती है। पुकार-स्त्री० किसीका नाम लेकर बुलानेकी क्रिया या पुजारी-पु० पूजा करनेवाला; किसी देवताकी नियमित भाव; रक्षा या बचावके लिए किसीको आर्त स्वरसे बुलाना, रूपसे पूजा करनेवाला। टेर, दुहाई; किसी कष्टके निवारणके लिए किसी अधिकारी- पुजाही-स्त्री. वह झोली या पात्र जिसमें पूजनकी सामग्री के प्रति की गयी प्रार्थना, फरियाद; चिल्लाहट; आवाज; रखते हैं । कचहरीके चपरासीका मुकदमा पेश होनेपर वादी और । पुजेरी-पु० दे० 'पुजारी। प्रतिवादीका नाम लेकर इजलासपर बुलाना।
पुजेला-पु० पुजेरी। पुकारना-स० क्रि० किसीको नाम लेकर बुलाना; नामका पुजैया -पु० पूजा करनेवाला; भरने या पूरा करनेवाला । बार-बार उच्चारण करना; जोर-जोरसे कहना, चिल्लाना; | स्त्री० दे० 'पुजाई'; दे० 'गंगापुजैया'। रक्षा या बचावके लिए किसीको आर्त स्वरसे बुलाना, पुजौरा-पु० पूजन, पूजा; पूजनमें देवताको अर्पित की दुहाई देना; किसी कष्टको निवारणके लिए किसी अधिकारी- जानेवाली सामग्री। से प्रार्थना करना, फरियाद करना; अभिहित करनापुट-पु० किसी तरल पदार्थका वह छींटा जो किसी वस्तुनिर्देश करना।
पर उसे आई करने या हलका मेल देनेके लिए डाला पुख* -पु० दे० 'पुष्य'।
जाय; किसी वस्तुको हलके मेलके लिए रंग या किसी पुखर, पुखराज-पु० पोखरा, तालाब ।
तरल पदार्थमें डुबाना, बोर, हलका मेल, साधारण मिश्रण, पुखराज-पु० पीले रंगका एक प्रसिद्ध रत्न ।
थोड़ीसी मिलावट; [सं०] रिक्त स्थान; विवर ( जैसे-कर्णपुख्ता-वि० [फा०] मजबूत; पक्का; सख्त; टिकाऊ । पुट); ढकनेवाली वस्तु, आच्छादन; कोष; मंजूषा; दोना; पुगाना-स० क्रि० पूरा करना ।
दोने या कटोरेकी तरहका कोई पात्र; एक दूसरेपर ढकनकी पुचकार-स्त्री० वह चूमनेकासा शब्द जिसे किसीके प्रति तरह रखकर एकमें जोड़े हुए दोनेके आकारके दो पात्र या
लाड़ प्रकट करनेके लिए ओठोंसे उत्पन्न करते हैं, चुमकार ।। मिट्टी आदिके दो कपाल; इस प्रकारका औषध पकानेके पुचकारना-स० क्रि० ओठोंसे चूमनेकासा शब्द उत्पन्न कामका पात्र-विशेष । -पाक-पु० ओषधियोंको पकानेकी करते हुए किसीके प्रति लाड़-चाव प्रकट करना।
एक बिया जिसमें उन्हें जामुन, बरगद आदिके पत्तोंसे पुचकारी-स्त्री० दे० 'पुचकार'।
लपेट और ऊपरसे गीली मिट्टी लगाकर आगमें पकाते हैं; पुचारना-स० क्रि० पोतना, पुचारा देना।
कटोरेके आकार के दो बरतनोंसे पुटित की हुई दवाको विशेष पुचारा-पु. किसी वस्तुपर गीला कपड़ा फेरनेकी क्रिया | आकारके गड्ढे में उपलेकी आँचमें पकानेकी एक क्रिया। चूने भादिका हलका लेप; पुचारा देनेका कपड़ा; वह पुटकी-स्त्री० पोटली; आकस्मिक मृत्यु; भारी आफत, वज्रवस्तु जो किसी वस्तुपर पुचारा देनेके लिए पानीमें घोली | पात; वह आटा या बेसन जो तरकारीके रसे में उसे गाढ़ा गयी हो; वे प्रिय वचन जो किसीको मनानेके लिए उसके करनेके लिए मिलाया जाता है। प्रति कहे जाय; खुशामद; उत्साहवर्धक वचन ।
पुटरिया, पुटरी -स्त्री० पोटली । पुच्छ-पु० [सं०] पूँछ; अंतिम या पिछला भाग ।
पुटिका-स्त्री० [सं०] पुड़िया; इलायची। पुच्छल-वि० पूँछवाला, दुमदार । -तारा-पु० यदा-पुटित-वि० [सं०] रगड़ा या पीसा हुआ; फाड़ा हुआ; बद कदा उगनेवाला एक विशेष प्रकारका तारा जिसके पीछे किया हुभा (कैपसूल्ड) जो पुटीके रूप में बना हो, जो पुटीझाड़ के आकारका भापकासा पदार्थ जुड़ा दिखाई देता है। के रूपमें किसी आवरणके भीतर हो।
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पुटियाना - पुनर
पुटियाना ** - स० क्रि० फुसलाना, समझा-बुझाकर राजी करना या अपने पक्षमें लाना ।
पुटी - स्त्री० [सं०] छोटा दोना; कौपीन; गड्ढा; पुड़िया । पुटीन - पु० किवाड़ों, खिड़कियों आदिमें शीशे जड़ने और लकड़ीकी चीजोंके छेद आदि भरने के कामका तीसी के तेल और खरिया मिट्टी से तैयार किया जानेवाला एक प्रकारका
मसाला ।
पुट्ठा-पु० चूतड़का ऊपरी मांसल भाग; चौपायोंका, विशेषकर घोड़ोंका चूतड़; किताबकी जिल्दका उस ओरका भाग जिधर सिलाई की गयी रहती है । पुठवार* - अ० पृष्ठभाग में, पीछे ।
पुठवाल - पु० भले-बुरे काममें साथ देनेवाला, पृष्ठपाल । पुड़ा - पु० बड़ी पुड़िया; ढोल मढ़नेका चमड़ा | पुड़िया - स्त्री० वह कागज या पत्ता जिसमें कोई दवा या अन्य वस्तु लपेटकर रखी गयी हो; पुड़िये में लपेटी हुई एक खुराक दवा; खान, घर (जैसे- आफतकी पुड़िया) । पुड़ी - स्त्री० ढोल मदनेका चमड़ा; पूरी, सुहारी; * पुड़िया ।
पुण्य - वि० [सं०] पवित्र, शुद्ध; शुभ, भला; प्रिय; सुंदर । पु० शुभ अष्टवाला कृत्य, शुभ फल देनेवाला कार्य; सुकृत । - कर्ता (र्तृ ) - पु० पुण्य करनेवाला । -कालपु० ऐसा समय जिसमें स्नान, दान आदि करनेसे पुण्य हो । - कृत् - वि० पुण्य करनेवाला । - कृत्य-पु० ऐसा कार्य जिसे करनेसे पुण्य हो । - क्षेत्र - पु० तीर्थ; आर्यावर्त । - दर्शन - वि० जिसका दर्शन शुभ फल देनेवाला हो; सुंदर । पु० पवित्र स्थानोंका दर्शन । - पुरुष - पु० धर्मात्मा मनुष्य । - भूमि - स्त्री० आर्यावर्त । - शील- वि० पुण्य करना जिसका स्वभाव हो, धर्मपरायण । - श्लोक - वि० उत्तम यशवाला, जिसका चरित्र पावन हो । पु० विष्णु; युधिष्ठिर; नल । -स्थान- पु० तीर्थस्थान | पुण्याई - स्त्री० पुण्यका प्रताप । पुण्यात्मा (त्मन्) - वि० [सं०] पुण्य करना जिसका स्वभाव हो, पुण्यशील, धर्मात्मा ।
पुण्योदय - पु० [सं०] शुभ अष्टका उदय होना, सौभाग्यका उदय ।
पुतना - अ० क्रि० पोता जाना, चुपड़ा जाना । पुतरा* - पु० दे० 'पुतला' ।
पुतरि, पुतरिका * - स्त्री० दे० 'पुत्तलिका' | पुतरिया * - स्त्री० दे० 'पुतली' ।
पुतरी* - स्त्री० दे० 'पुतली' । पुतला - पु० लकड़ी, धातु, कपड़े आदिकी बनी हुई पुरुषकी प्रतिमा जो विशेषकर खिलौने के काम आती है; किसी व्यक्तिकी सरपत आटे आदिकी बनायी हुई वह प्रतिमा जो उसके शव के अभाव में अंत्येष्टि करनेके लिए या उसका मरण मनानेके लिए जलायी जाय । मु० (किसी का) - बाँधना- किसीका अपयश फैलाना, किसीकी बदनामी करना ।
पुतली - स्त्री० लकड़ी, धातु, कपड़े आदिकी बनी हुई स्त्रीकी प्रतिमा जो विशेषकर खिलौने के काम आती है, गुड़िया; आँख के बीच का वह काला भाग जिसके मध्य में रूप ग्रहण
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करनेवाली इंद्रिय होती है; कपड़ा बुननेका यंत्र । - घर - पु० कपड़ेकी मिल । मु० - फिर जाना-आँखें पथरा जाना; घमंड होना ।
पुताई - स्त्री० पोतनेकी क्रिया या भाव, लेप; दीवार आदिपर मिट्टी, गोवर, चूने आदिका लेप करना; इस कामकी
उजरत ।
पुतारा - पु० किसी वस्तुपर पानी, रंग आदिसे तर कपड़ा फेरनेका काम; पानी, रंग आदिसे तर कपड़ा जो किसी वस्तुपर फेरा जाय ।
पुत्त* - पु० दे० 'पुत्र' ।
पुत्तरी* - स्त्री० दे० 'पुत्री'; दे० 'पुत्तली' | पुत्तलिका, पुत्तली- स्त्री० [सं०] पुतली ।
पुत्र - पु० [सं०] बेटा; प्यारा बच्चा। -लाभ - पु० पुत्रकी प्राप्ति, पुत्र उत्पन्न होना । - वधू - स्त्री० पुत्रकी पत्नी, पतोहू ।
पुत्रवती - वि० स्त्री० [सं०] पुत्रवाली (स्त्री) । पुत्रार्थी ( र्थिन् ) - वि० [सं०] पुत्र चाहनेवाला, पुत्रप्राप्तिकी इच्छा रखनेवाला ।
पुत्रिका - स्त्री० [सं०] बेटी; पुतली, गुड़िया, पुत्रहीन व्यक्ति वह कन्या जिसे उसने पुत्ररूप मान लिया हो; आँखकी पुतली ।
पुत्रिणी- वि० स्त्री० [सं०] पुत्रवाली । पुत्री - स्त्री० [सं०] कन्या, बेटी; दुर्गा ।
पुत्रेष्टि, पुत्रेष्टिका - स्त्री० [सं०] पुत्रलाभकी इच्छा से किया जानेवाला यज्ञविशेष ।
पुत्रैषणा - स्त्री० [सं०] पुत्रप्राप्तिकी कामना । पुदीना - पु० एक प्रसिद्ध छोटा पौधा जिसकी पत्तियाँ अच्छी गंधवाली होती हैं और चटनी आदि में पीसकर खायी जाती हैं ।
पुनः ( नर ) - अ० [सं०] फिर दुबारा - पुनः - अ० बारबार । - प्राप्ति - स्त्री० कोई वस्तु फिरसे प्राप्त होना । - संस्कार - पु० द्विजातिका वह उपनयन संस्कार जो गोमांसभक्षण, सुरापन आदिके प्रायश्चित्तके रूपमें दुबारा हो । -स्थापन - पु० फिरसे स्थापित करना । पुनरबस, पुनरबसु * - पु० दे० 'पुनर्वसु ' । पुनर - अ० [सं०] एक बार और, फिर, दुबारा । - अपिअ० फिर भी; बार-बार । -अधिनियमन - पु० दे० 'पुनर्विधायन' (री-इनेक्टमेंट) । - अस्वीकरण - पु० (री-आर्भमेंट) पुनः अस्त्र-संभार बढ़ाना, सेनाको नये-नये आधुनिक शस्त्रास्त्रों से सज्जित करना; किसी देशकी अस्त्रविद्दीन की गयी सेनाओंको पुनः अस्त्रादिसे युक्त करना । - आगतवि० फिरसे आया हुआ, लौटा हुआ । -आगम, - आगमन - पु० फिरसे आना, लौटना । -आनयन - पु० लौटा लाना, पुनः ले आना । - आवर्त - पु० लौटना; फिरसे जन्म ग्रहण करना। -आवर्तक- वि० पुनःपुनः आनेवाला (ज्वर) । - आवर्ती ( तिनू ) - वि० फिरसे या बार-बार जन्म ग्रहण करनेवाला । - आवृत्तवि० दोहराया हुआ; संसार में फिर से आया हुआ; लौटा हुआ । - भावृत्ति - स्त्री० दोहराना फिरसे आना या कोई बात फिर से करना। -आवेदन- पु० (अपील) दे०
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पुनर् - पुरबिया
पु० ( री-इनैक्टमेंट) फिरसे कोई विधान, अधिनियम आदि बनाना, पुनरधिनियमन । - विभाजन - पु० जिसका एक बार विभाजन हो चुका हो, उसका फिरसे विभाजन करना । - विलोकन - पु० ( रिव्यू) दंडादेश आदिपर फिर से विचार करना; बीती हुई घटनाओं की संक्षिप्त आलोचना । - विवाह - पु० दूसरा ब्याह । पुनश्चर्वण - पु० [सं०] पागुर करना । पुनि* - अ० पुनः फिरसे । - पुनि - अ० बार-बार । पुनिम* - स्त्री० पूर्णिमा ।
पुनी * - वि० पुण्य करनेवाला, पुण्यात्मा । स्त्री० पूर्णिमा । अ० पुनः, फिर ।
पुनीत - वि० [सं०] पवित्र किया हुआ; शुद्ध, पाक । पुन* - पु० दे० 'पुण्य' ।
'पुनर्याय प्रार्थना' | - आहार- पु० दुबारा भोजन करना; दुबारा किया हुआ भोजन । - ईक्षण - पु० ( रिवीजन) संशोधन या भूलसुधार आदिकी दृष्टिसे मुकदमेकी फाइल, लेख, पुस्तक आदिकी सामग्री, आय-व्ययके आँकड़े आदि फिरसे देखना या पढ़ना। - ईक्षित- वि० (रिवाइज्ड) संशोधन या सुधारकी दृष्टिसे जो फिरसे देख लिया गया हो । - ईक्षित-पाठ - पु० (रिवाइज्ड वर्शन ) वह विवरण, वक्तव्य आदि जो फिरसे भली भाँति देख लिया, जाँच लिया गया हो। -उक्त-वि० दुबारा या बार-बार कहा हुआ । - उक्तवदाभास-पु० एक शब्दालंकार, जिसमें शब्द सुनने से पुनरुक्तिसी जान पड़े, पर वास्तव में पुनरुक्ति न हो। - उक्ति- स्त्री० किसी बातको दुहराना या एक ही बातको बार-बार कहना ( साहित्य में यह एक दोष माना जाता है) । - उज्जीवन पु० (रिवाइवल ) पुनः जीवन दान देना; फिरसे उन्नतिकी ओर ले जाना । - उत्थान - पु० पुनः उठना; पुनः उन्नति; (रिनेसाँ) कला और साहित्यका पुनर्जन्म या नये रूपसे होनेवाली उन्नति, नवोत्थान । - उत्पत्ति - स्त्री० फिर उत्पन्न होना । - उत्पादन- पु० पुनः उत्पादन करना; पुनः निर्माण करना । - उद्धार - पु० फिरसे ठीक करना, बचाना, मरम्मतः आदि करना। -गमन-पु० दुबारा जाना । - जन्म (न्) - पु० मरनेके बाद फिरसे उत्पन्न होना, दुबारा शरीर धारण करना । - जन्मा ( न्मन् ) - पु० ब्राह्मण । - जात - वि० फिर जनमा हुआ। -नवास्त्री० शाककी जातिका एक बरसाती पौधा, गदहपूरना । - नियुक्ति - स्त्री० ( री-इंस्टेटमेंट) किसी पद या कामपर फिरसे नियुक्त कर दिया जाना। - न्यायप्रार्थना - स्त्री० (अपील) पुनर्विचार के लिए कोई मामला उच्चतर न्यायालय में रखना, अपील । - न्यायप्रार्थी - पु० (एपेलेंट) वह जो अपना व्यवहार (मामला) पुनर्विचार के लिए किसी ऊँचे न्यायालय में रखे । भव-पु० फिरसे शरीर धारण करना, दुबारा उत्पन्न होना; नाखून; एक तरहकी पुन नवा । वि० जो फिरसे उत्पन्न हुआ हो। -भाव - पु० दूसरा जन्म । - भू-स्त्री० वह स्त्री जो पहले पतिके मरनेपर किसी दूसरे पुरुषसे ब्याही गयी हो । भोगपु० पूर्वकर्मके फलके रूपमें सुख या दुःखका पुनः भोग । - मुद्रित - वि० ( री-प्रिंटेड ) जो फिरसे छापा गया हो । -मूल्यन - पु० ( री-वैल्यूएशन) फिरसे मूल्य आँकना या लगाना; मुद्रा आदिका फिरसे मूल्य निश्चित करना, ठहराना। -युक्त कोण-पु० ( रीफ्लेक्स एंगिल) वह कोण जो दो समकोणों से बड़ा, किंतु चार समकोणोंसे छोटा हो । - वसु - पु० सत्ताईस नक्षत्रों में से सातवाँ नक्षत्र; विष्णु | - वार- अ० दुबारा । -वास - पु० ( रीहैबिलिटेशन) जिनका घर-बार नष्ट हो गया हो या जो उद्वासित हो गये हों उन्हें फिरसे बसाना। -विचारन्यायाधिकरण - पु० ( अपेलैट ट्रिब्यूनल ) मामलों, मुकदमोंपर पुनः विचार करनेवाली अदालत | -विचारन्यायालय - पु० ( कोर्ट ऑफ अपील ) छोटी या मातहत अदालतों में निर्णीत मामलोंपर पुनः विंचार करनेवाला न्यायालय । -विचार प्रार्थी - पु० (एपेलेंट) दे० : 'पुनन्ययप्राथी' । - विधायन -
३१ - क
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पुनाग - पु० [सं०] एक बड़ा सदाबहार पेड़; श्रेष्ठ पुरुष । पुन्य* - पु० दे० 'पुण्य' । - ताई* - स्त्री० दे० 'पुण्य' । पुरंदर - पु० [सं०] इंद्र; शिव, विष्णु; अग्नि । पुरंधि, पुरंध्री-स्त्री० [सं०] पतिपुत्रवती स्त्री; ( सम्मानित ) स्त्री । पुरःस्थापन - पु०, पुरः स्थापना - स्त्री० [सं०] (इंट्रोडक्शन) पुरःस्थापित करनेकी क्रिया ।
पुरःस्थापित करना - स० क्रि० (टू इंट्रोड्यूस ) ( सभा आदिमें ) औपचारिक रूपसे रखना या सामने लाना । पुर- पु० [सं०] बाजार; खाई; नगर; कोट, किला; गृह; शरीर अंतःपुर; भंडारघर; राशि, ढेर; त्रिपुरासुर । वि०भरा हुआ, पूर्ण । -जन- पु० पुरवासी लोग । - त्राण - पु० प्राचीर, शहरपनाह । -द्वार - पु० नगरका प्रवेशद्वार । -नारीस्त्री० वेश्या । - पाल, - पालक-पु० नगरपाल; आत्मा । - भिद् - पु० शिव । - मथन, - मथिता (तृ) - पु० शिव । - रोध- पु० नगरका घेरा डालना । - लोक - पु० पुरजन । -वधू - स्त्री० दे० 'पुरनारी' । - वासी (सिन्) - पु० नगर में रहनेवाला, पौर, नागरिक। -शासन - पु० शिव, विष्णु । - हा ( हन्) - पु० विष्णु शिव । पुर+पु० मोट, चरसा । - वट-पु० मोट, चरसा ।-हापु० वह व्यक्ति जो मोट चलते समय उसका पानी ढालने या छीननेके लिए कुएँपर नियुक्त रहता है। पुर- वि० [फा०] भरा हुआ, पूर्ण । -अमन - वि० शांतिमय। - खुमार - वि० नशेसे भरा हुआ। जोर- वि० जोरदार ; ओजःपूर्ण । -जोश- वि० जोशसे भरा हुआ । पुरइन* - स्त्री० कमलका पत्ता; कमल; जरायु, अपरा । पुरइया * - पु० तकुआ; ताना । पुरखा-पु० बापसे ऊपर की किसी पीढ़ी में उत्पन्न कोई पुरुष, पूर्वपुरुष (जैसे- दादा परदादा ); बड़ा-बूढ़ा (व्यंग्य) । पुरचक- स्त्री० पुचकार; बढ़ावा, उभाड़नेकी क्रिया । पुरज़ा - पु० [फा०] कागजका टुकड़ा; खंड, टुकड़ा; अवयव, अंग; चिड़ियाका बारीक पर; रुक्का । मु० ( पुरज़े) पुरजे उड़ना या होना-टुकड़े-टुकड़े होना । - पुरज़े उड़ाना या करना - टुकड़े-टुकड़े करना । पुरट - पु० [सं०] स्वर्ण, सोना । पुरतः - अ० [सं०] समक्ष, आगे ।
पुरवला; पुरबिला, पुरबुला* - वि० पहलेका; पूर्वजन्मका । पुरबिया - वि० पूरबका । पु० पूरबी देशका निवासी ।
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पुरबी-पुरुषाधम
पुरबी | - वि० दे० 'पूरबी' ।
पुरवइया - स्त्री० पूरब की ओरसे बहनेवाली हवा, पुरवा । पुरवना* - स० क्रि० भरना, पुजाना; पूर्ण करना, पूरा करना । अ० क्रि० पूरा होना; पर्याप्त होना । पुरवा - स्त्री० पूरबकी ओर से बहनेवाली हवा | पु० बैलोंका एक रोग जो पुरवा हवा लगनेसे होता है; मिट्टीका गिलास जैसा बरतन, कुल्हड़; * छोटा गाँव, टोला, खेड़ा । पुरवाई - स्त्री० पुरवा हवा ।
पुरवैया - स्त्री० दे० ' पुरवइया' ।
पुरश्चरण-पु० [सं०] आरंभिक कृत्य; हवन करते हुए किसी देवताका नाम या मंत्र जपना; गुरुसे प्राप्त किये हुए मंत्रका वह सविधि जप जो उसे सिद्ध करनेके लिए किया जाय । पुरश्चर्या स्त्री० [सं०] दे० 'पुरश्चरण' । पुरषा* - पु० दे० 'पुरखा' ।
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पुरस, पुस - वि० [फा०] पूछने या खोज-खबर लेनेवाला । पुरसा - पु० ऊँचाई, गहराईकी एक माप जो मानमें हाथ उठाकर खड़े हुए मनुष्य के बराबर होती है । पुरस्- अ० [सं०] सामने, समक्ष; आगे, पहले ।- करण० पुरस्कृत करनेकी क्रिया, आगे करना या रखना; पूरा करना; दे० 'पुरस्कार' । - कार - पु० आगे करना या रखना; आदर, सम्मान; पूजन; स्वीकार; उपहार भेंट; पारितोषिक, इनाम (बँ०, हिं० ); पारिश्रमिक (हिं०) । - कृत - वि० आगे किया हुआ या रखा हुआ; आहत, सम्मानित; पूजित; स्वीकार किया हुआ, स्वीकृत, जिसे पुरस्कार दिया गया हो या मिला हो ( बँ०, हिं० ) । - क्रिया- स्त्री० आरंभिक कृत्य; आदर करना, सम्मान करना । - सर - वि० आगे चलनेवाला, अग्रगामी; सहित, उपेत (समास में) । पु० नेता, अग्रणी, अगुआ; अनुचर । पुरस्तात् - अ० [सं०] अगे, सामने; पहले, आरंभ में । पुरहूत* पु० पुरुहूत, इंद्र ।
पुरा- पु० बस्ती, गाँव । अ० [सं०] प्राचीन काल में, पहले; अबतक । - कथा - स्त्री० प्राचीन कथा, इतिहास । -कृतवि० पहलेका किया हुआ; पूर्वजन्ममें किया हुआ । पु० पूर्वजन्मका कर्म । - तत्व - पु० पुरानी बातोंके अनुसंधान तथा अध्ययन से संबंध रखनेवाली विशेष प्रकारकी विद्या । - लिपि - स्त्री० पुरातन काल में प्रचलित लिपि । - लेख - पु० ( आरकाइब्ज) पुराने सरकारी अभिलेख | - लेख - पाल - पु० ( आर्काइविस्ट ) राज्यके पुराने अभिलेखों आदिको सुरक्षित रूप से रखनेवाला अधिकारी । -वसु-पु०भीष्म । -विद् - वि० पुरानी बातोंको जाननेवाला; प्राचीन इतिहास जाननेवाला । - वृत्त-पु० प्राचीन वार्ता; इतिहास | वि० प्राचीन, पुराना ।
पुराण - वि० [सं०] प्राचीन, पुराना; जीर्ण-शीर्ण । पु०प्राचीन वृत्तांत; हिंदुओंके विशिष्ट धर्मग्रंथ जिनमें संसारका सृष्टिसे लेकर प्रलयतकका इतिहास वर्णित है, सृष्टि, लय, मन्वंतरों तथा प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वंशों तथा चरितोंके वर्णनसे युक्त प्रसिद्ध हिंदू धर्मग्रंथ (जो अठारह हैं); कार्षापण; अठारहकी संख्या; शिव । - पुरुष - पु० वृद्ध मनुष्यः विष्णु । पुरातन - वि० [सं०] प्राचीन, पुराना; जो सबसे पहिले
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हुआ हो, आद्य (जैसे- पुरातन पुरुष ) । - पुरुष - पु० विष्णु । पुराधिप, पुराध्यक्ष - पु० [सं०] नगर के शासन, रक्षण आदिका प्रबंध करनेवाला प्रधान अधिकारी । पुराना - वि० दे० 'पुराना' । पु० दे० पुराण' । पुराना - वि० जिसकी सत्ता बहुत पहले से हो, बहुत दिनोंका, नयाका उलटा; बीता हुआ; जो बहुत पहले बीत चुका हो; प्राचीन, विगत कालका; बहुत पहले बीते हुए समयका; जो दिनी होने के कारण अच्छी दशामें न हो, जीर्ण; जिसे किसी बातका पूरा अनुभव हो, पूर्ण अनुभवी; परित-बुद्धि, पक्का; सधा हुआ, मँजा हुआ; सिद्ध (पुराना हाथ ); जिसका रिवाज उठ गया हो; जिसका समय अब न हो; समयका । स०क्रि० किसीसे पूरनेका काम कराना; पूरा कराना; भरवाना; * पालन कराना; पूरा करना, भरना; * सिद्ध कराना, पूर्ण कराना; * आटे, अबीर आदिसे (चौक) बनवाना; इस प्रकार बाँटना कि कोई बिना पाये न रहे, अँटाना । पुराराति, पुरारि - पु० [सं०] शिव । पुराल* - पु० दे० 'पयाल' |
पुरिखा, पुरिषा* - पु० पूर्वपुरुष, पुरखा । पुरिया - स्त्री० बाना फैलानेकी नरी; ताना; + पुड़िया । पुरिष* - पु० दे० 'पुरीष' |
पुरी - स्त्री० [सं०] नगरी, शहर; नदी; शरीर; किला । पुरीष-पु० [सं०] विष्ठा, गू; कूड़ा; जल (निघंटु) । पुरीषण - पु० [सं०] विष्ठा; मलत्याग करना । पुरीषोत्सर्ग - पु० [सं०] मलत्याग |
पुरु- पु० [सं०] देवलोक, स्वर्ग; एक दैत्य जिसे इंद्रने मारा था; राजा ययातिका कनिष्ठ पुत्र जिसने अपने पिताको अपना यौवन समर्पित कर दिया था। वि० प्रचुर । -हूत - पु० इंद्र |
पुरुख* - पु० पुरुष । पुरुखा- पु० दे० 'पुरखा' |
पुरुष-पु० [सं०] मर्द, नर, स्त्रीका उलटा; मानव जाति; सूर्य; आत्मा; सांख्यके अनुसार वह मुख्य तत्त्व जिसके संयोगसे प्रकृति विश्वकी सृष्टि करती है; परमात्मा; विष्णु; संसारका आदि कारणभूत परम पुरुष ( पुरुषसूक्त); शिव; जीव; कर्मचारी ( राजपुरुष ); ऊँचाई या गहराई की एक प्राचीन माप जो पुरुष या १२० अंगुलके बराबर होती थी; * पूर्वपुरुष, पुरखा। - कार - पु० पुरुषार्थ, पौरुष, उद्योग । - केशरी (रिन् ), - केसरी (रिन् ) - पु० वह जो पुरुषोंमें सिंहके समान हो, सिंहके समान पराक्रमी पुरुष; विष्णुका नृसिंहावतार। -घ्नी- वि० स्त्री० पतिकी हत्या करनेवाली । - द्वेषिणी - स्त्री० अपने पति - से बैर रखनेवाली स्त्री । - द्वेषी ( पिन्) - वि० मनुष्य से द्वेष करनेवाला । - पुर-पु० गांधारको प्राचीन राजधानी, वर्तमान पेशावर । व्याघ्र - शार्दूल - पु० वह जो पुरुषों में सिंहके समान हो, सिंहके समान पराक्रमी पुरुष । पुरुषत्व - पु० [सं०] पुरुषका भाव । पुरुषांग - पु० [सं०] पुरुषकी लिंगेंद्रिय । पुरुषाद, पुरुषादक- पु० [सं०] नरभक्षक, राक्षस । पुरुषाधम- पु० [सं०] नीच मनुष्य ।
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पुरुषायुष-पुष्कराक्ष पुरुषायुष-पु० [सं०] मनुष्यकी आयु । -पुरुषायुषजीवी पुलकावलि-स्त्री० [सं०] प्रेम या हर्षजन्य रोमांच ।
(विन्)-वि० जो मनुष्यकी पूरी आयुभर जीये। पुलकित-वि० [सं०] जिसे रोमांच हुआ हो; हृष्ट, प्रसन्न । पुरुषारथ*-पु० दे० 'पुरुषार्थ' ।
पुलटिस-स्त्री० हलवेकी तरह पकायी हुई अलसी आदि पुरुषार्थ-पु० [सं०] मनुष्यके जीवनका प्रधान उद्देश्य, जो घावपर उसे पकाने, फोड़नेके लिए बाँधते हैं। वह वस्तु या प्रयोजन जिसकी प्राप्ति या सिद्धिके लिए पुलपुला-वि०पिलपिला, जो भीतरसे नरम और ढीला हो। मनुष्यको उद्योग करना चाहिये (पुरुषार्थ चार माने गये पुलपुलाना-स० क्रि० किसी पुलपुली चीजको दबाना; हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष); उद्योग, उद्यम । दबाकर चूसना। पुरुषंग-पु० [सं०] राजा; श्रेष्ठ पुरुष ।
पुलस्त*-पु० दे० 'पुलस्ति'। पुरुषोत्तम-पु० [सं०] श्रेष्ठ पुरुष, विष्णुः कृष्ण; नारायण; पुलस्ति, पुलस्त्य-पु० [सं०] एक प्राचीन ऋषि जो ब्रह्माजगन्नाथ ।-क्षेत्र-पु० जगन्नाथपुरी।-मास-पु. अधिक के मानस पुत्रोंमेंसे थे और सप्तर्षियों तथा प्रजापतियोंमें मास, मलमास।
गिने जाते हैं (ये रावणके पितामह थे); शिव । पुरूरवा( वस्)-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध सोमवंशी राजा पुलहना*-अ० कि० दे० 'पलुहना' । जिसका विवाह उर्वशीसे हुआ था (पर अंतमें दोनों बिछुड़ पुलाक-पु० [सं०] कदन्न पैया; भातभातका माँड़। गये); एक विश्वेदेव ।
पुलाव-पु० मांस और चावल एकमें पकाकर तैयार किया पुरैन, पुरैनि-स्त्री० दे० 'पुरइन' ।
जानेवाला विशेष प्रकारका व्यंजन । पुरोगंता(त), पुरोगामी (मिन्)-वि० [सं०]दे० 'पुरोग'। पुलिंदा-पु० लपेटे हुए कागजका बंडल । पुरोग-वि० [सं०] आगे-आगे चलनेवाला, अगुआ प्रधान। पुलिन-पु० [सं०] नदीका किनारा रेतीला किनारा । पुरोगत-वि० [सं०] जो सामने हो; जो पहले गया हो। पुलिनवती-स्त्री० [सं०] नदी। पुरोजन्मा(न्मन्)-वि० [सं०] जिसका जन्म पहले पुलिस, पुलीस-स्त्री० [अं०] जनताके जान-माल और हुआ हो।
शांतिकी रक्षाका प्रबंध करनेवाला सरकारी महकमा; इस पुरोडाश(श)-पु० [सं०] जौ, चावल आदिके आटेकी महकमेके कर्मचारी । -मैन-पु. पुलिस विभागका कर्मटिकिया जिसे कपालमें रखकर अग्निमें हवन करते हैं। चारी। हविः हुतशेषः पुरोडाश या हवि देते समय पढ़ा जाने- पुलिहोरा*-पु० एक पकवान ।। वाला मंत्र; सोमरस ।
पुलोमा(मन)-पु० [सं०] एक दैत्य जो इंद्रकी पत्नी पुरोद्यान-पु० [सं०] नगरके अंदरका उद्यान, (पाक)। शचीका पिता था; एक राक्षस । (पुलोम)जा-स्त्री० पुरोधा(धस्), पुरोधानीय-पु० [सं०] पुरोहित। शची। -जित्,-द्विट (प),-भि-पु० इंद्र। - पुरोहित-पु० [सं०] धार्मिक कृत्य करानेवाला ।-तंत्र-पु० पुत्री-स्त्री० शची। (हायरैरकी) (रोमन कैथालिकोंमें) पुरोहितोंकी शासन- पुश्त-स्त्री० [फा०] पीठ; पीढ़ी; सहारा; मददगार रक्षक । व्यवस्था कैथालिक पादरियोंके क्रमानुगत अधिकारियोंका -दर-पुश्त,-ब-पुश्त-अ० कई पीढ़ियोंसे; पीढ़ी दर वर्ग।
पीढ़ी। -नामा-पु० वह कागज जिसपर किसी वंश या पुरोहिताई-स्त्री० पुरोहितका भावः पुरोहितका पेशा। कुलके लोगों के नाम यथाक्रम लिखे हों, कुरसीनामा । पुरोहितानी-स्त्री० पुरोहितकी पत्नी ।
-वानी-स्त्री० [हिं०] वह लकड़ी जो किवाड़ या तख्तेके पुरोहिती-स्त्री० पुरोहिताई ।
पीछे उसकी मजबूतीके लिए लगायी जाती है । पुरी*-पु० पुरवट ।
पुश्ता-पु० [फा०] किसी दीवारकी मजबूतीके लिए उससे पुर्तगाल-पुथ्यूरोपके दक्षिण-पश्चिममें स्थित एक छोटा देश।
सटाकर बनवाया जानेवाला मिट्टी, ईट, पत्थर आदिका पुर्तगाली-वि०पुर्तगाल-संबंधी; पुर्तगालका । पु० पुर्तगालमें | धुस्सा बाँध पानीकी रोकके लिए बँधवाया जानेवाला बाँध
रहनेवाला, पुर्तगाल-निवासी । स्त्री० पुर्तगालकी भाषा। । किताबकी जिन्दका पीछेकी ओरका चमड़ा या कपड़ा, पुर्तगीज़-पु० [अं०] पुर्तगाल-निवासी । स्त्री० पुर्तगालकी पुढा, एक ताल । -बंदी-स्त्री० पुश्ता बाँधनेका काम । भाषा।
पुश्तापुश्त-अ० [फा०] कई पीढ़ियोंसे । पुर्बला-वि० दे० 'पुरबला'।
पुश्तैनी-वि० [फा०] जो कई पीढ़ियोंसे चला आता हो; पुल-पु० [फा०] नदी, सोता, खाई आदि पार करनेका | जो कई पीढ़ियोंतक चला जाय । वह साधन जो नाव पाटकर अथवा खंभोंपर पटरियाँ पुष्कर-पु० [सं०] जलाशय, सरोवर; जल; आकाश; आदि बिछाकर या पक्की जोड़ाई करके बनाया जाता | हाथीकी सँड़का अग्रभाग; कमल; तलवारकी धार; बाण; है, सेतु । मु० (किसी बातका)-बाँधना-भरमार | एक तीर्थ जो अजमेरके पास है; जंबू आदि द्वीपोंमेंसे एक करना, झड़ी लगाना।
(पु०); नलके छोटे भाई जिन्होंने नलको जुएमें हराकर पुलक-पु० [सं०] हर्ष-भय आदिके कारण रोंगटे खड़े होना, उनका राज-पाट ले लिया था; पिंजड़ा; सूर्य । -तीर्थलोमहर्षण, रोमांच, त्वक्-स्फुरण ।
पु० पुष्कर नामक तीर्थ। -बीज-पु. कमलका बीज । पुलकना*-अ० कि० पुलकित होना; हर्षविह्वल होना।
-मुख-पु० Vड़के मुँहपरका छेद । वि० सूंडके मुख जैसे पुलकाई*-स्त्री० पुलकित होनेका भाव, पुलक । मुखवाला (पात्र)। -मूल-पु. कमलकी जड़। पुलकालि*-स्त्री० दे० 'पुलकावलि'।
पुष्कराक्ष-वि० [सं०] कमलके समान नेत्रोंवाला। पु०
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पुष्करिणी-पूछना विष्णु।
पुष्पाकर, पुष्पागम-पु० [सं०] वसंत ऋतु । पुष्करिणी-स्त्री० [सं०] हथिनी एक प्रकारका जलाशय; | पुष्पाजीव, पुष्पाजीवी(विन)-पु० [सं०] माली ।
कमलोंका समूह; कमलका पौधा; कमलयुक्त जलाशय । पुष्पापीड-पु० [सं०] सिर पर धारण की जानेवाली फूलकी पुष्कल-वि० [सं०] श्रेष्ठ; अति शोभन; पूर्ण, भरपूर |
र; | माला आदि । प्रचुर, बहुत; पर्याप्त ।
पुष्पायुध-पु० [सं०] कामदेव । पुष्ट-वि० [सं०] जिसका पोषण किया गया हो, पोषित; पुष्पाराम-पु० [सं०] फुलवारी । मोटा-ताजा, तगड़ा; पोढ़ा, पक्का; पूर्ण।
पुष्पासव-पु० [सं०] मधु; फूलोंसे बनी हुई शराब । पुष्टई-स्त्री० बलवर्द्धक औषध, ताकत बढ़ानेवाली दवा । पुष्पित-वि० [सं०] खिला हुआ, विकसित; जिसमें फूल पुष्टता-स्त्री० [सं०] पुष्ट होनेका भाव;बलिष्ठता, तगड़ापन । लगे हों। पुष्टि-स्त्री० [सं०] पोषण; वृद्धि तगड़ापन; अभ्युदयः पुष्पोद्यान-पु० [सं०] फुलवारी । सहारा समर्थन हढीकरण । -कर,-कारक-वि० पोषण पुष्पोपजीवी(विन्)-पु० [सं०] माली। करनेवाला, पुष्ट बनानेवाला, बलवर्द्धक । -मार्ग-पु० पुष्य-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध नक्षत्र, पूसका महीना; कलि. वल्लभाचार्य द्वारा प्रवर्तित एक वैष्णव संप्रदाय, वल्लभ- काल; फूल (वेद)। -मित्र-पु० शुंगवंशका पहला राजा संप्रदाय ।
जो अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथको मारकर ई० पू० १८५ में पुष्टीकरण-पु० [सं०] किसी कथन या कृत्यको ठीक मान- मगधके सिंहासनपर आरूढ हुआ था। कर उसका समर्थन करना; (रैटिफिकेशन); दे० 'अनु- पुष्यार्क-पु० [सं०] एक योग जो सूर्य के पुष्य नक्षत्र में होनेसमर्थन।
पर होता है (ज्यो०)। पुष्प-पु० [सं०] फूल, कुसुम; स्त्रीका रज; कुबेरका पुष्पक पुसाना*-अ० क्रि० पूरा पड़ना; उचित जान पड़ना। विमान, आँखका एक रोग; विकसित होना, खिलना । पुस्तक-स्त्री० [सं०] हाथकी लिखी या छपी हुई पोथी, ग्रंथ, -काल-पु. वसंत ऋतु: स्त्रियोंका ऋतुकाल | -कीट- किताब । -मुद्रा-स्त्री० हाथकी एक मुद्रा (तंत्र)। पु० फूलका कीड़ा; भ्रमर, भौंरा ।-केतन-पु० कामदेव। | पुस्तकाकार-वि० [सं०] जो आकारमें पुस्तकके समान -केतु-पु० कामदेवः पुष्पांजन। -चय,-चयन-पु० या पुस्तकके रूपमें हो, पुस्तकके आकारका । फूल लोदना । -चाप,-धनु,-धन्वा(न्वन्)-पु० पुस्तकागार, पुस्तकालय-पु० [सं०] वह स्थान जहाँ कामदेव । -जीवी (विन)-पु० माली । -दंत-पु० विभिन्न विषयोंकी पुस्तकें संगृहीत हों, (लाइब्ररी)। शिवका एक अनुचर; विष्णुका एक अनुचर; एक गंधर्व पुस्तकाध्यक्ष-पु० [सं०] (लाइब्रोरियन) दे०'ग्रंथागारिक' । जिसने महिम्नस्तोत्र रचा है; एक विद्याधर; एक नाग । पुस्तकास्तरण-पु० [सं०] किताब था पोथीका बेठन । -दाम(न)-पु० फूलोंकी माला; एक छंद । -द्रुम-पु० पुस्तकी-स्त्री० [सं०] छोटा ग्रंथ ।। पुष्पप्रधान पौधा, वह पौधा जो केवल फूलके लिए हो। पुस्त-ढाक-पु० (बुकपोस्ट) छपी हुई पुस्तकें, संवादपत्र या -ध्वज-पु० कामदेव । -निर्यास-पु० फूलका रस, उसमें छपनेके लिए भेजे जानेवाले लेख, समाचार आदि मकरंद ।-पुर-पु० पटनेका एक प्राचीन नाम । -बलि डाक-विभाग द्वारा निर्धारित विशेष रियायती दरसे भेज. -स्त्री०फूलोंकी भेंट या चढ़ावा-बाण,-वाण,-विशिख नेकी रीति । -पु० कामदेव । -रज (स)-स्त्री० पराग। -रथ- | पुस्तिका-स्त्री० [सं०] छोटी पुस्तक । पु० यात्रा, हवाखोरीके काम आनेवाला रथ ।-रस-पु० पुहकर, पुहकर*-पु० दे० 'पुष्कर' । फूलका रस, मकरंद । -राग,-राज-पु० पुखराज। | पुहना*-अ० क्रि० पोहा जाना, Dथा जाना । -रेणु-स्त्री० पराग ।-वर्ग-पु० कचनार,सेमल, अगस्त्य पुहमी*-स्त्री० पृथ्वी।। आदिके फूलोंका एक विशिष्ट समाहार (आवे०)।-वर्षण पुहाना-स० कि० गुथवाना, पिरोनेका काम कराना। -पु० पुष्पवृष्टि। -वाटिका-वाटी-स्त्री० फुलवारी। पुहुप*-पु० फूल, पुष्प । -राग-पु० पुष्पराग, पुखराज । -वृष्टि-स्त्री० फूलोंकी वर्षा । -शय्या-स्त्री० फूलोंका | -रेनु-स्त्री० पुष्परेणु, पराग। बिछौना। -शर-शरासन-पु. कामदेव ।-समय- पुहमी*-स्त्री० भूमि, पृथ्वी । -पति-पु० राजा। पु० वसंत ऋतु । -सायक-पु. कामदेव । -सार,- पुहुधी*-स्त्री० भूमि, पृथ्वी । स्नेह,-स्वेद-पु. मकरंद या मधु । -हास-पु० | पूँगी -स्त्री० एक तरह की बाँसुरी। फूलोंका खिलना विष्णु । -हीन-वि० फूलोंसे रहित, पूछ-स्त्री० पशु-पक्षी आदिके शरीरका वह रीढ़से लगा (वह पौधा या पेड़) जिसमें फूल न लगें। पु० गूलरका अंग जो प्रायः गुदाके ऊपर-ऊपर दूरतक लंबा चला जाता पेड़ । -हीना-स्त्री० गतार्तवा स्त्री।
है। किसी पदार्थका पिछला भाग, सदा पीछे लगा रहनेपुष्पक-पु० [सं०] फूल; पीपल; कुबेरका विमान; मिट्टी- वाला, पुछल्ला; पूँछकी तरह जुड़ी हुई वस्तु । मु. का चूल्हा या अँगीठी; लोहेका कटोरा, रसौत; दाँतका (किसीकी)-पकड़कर चलना-आँख मूंदकर किसीका मैल; एक तरहका साँप, एक पर्वत ।
अनुगमन करना; किसीकी सहायतासे कोई काम करना। पुष्पवती-स्त्री० [सं०] रजस्वला स्त्री मस्त (उठी हुई) गाय । पूछा-स्त्री० दे० 'पूछ' । -ताछ,-पाछ-स्त्री० दे० पुष्पांजलि-स्त्री० [सं०] अंजलीभर फूल; अंजली में रखे हुए 'पूछताछ' ।
| छना-स० क्रि० दे० 'पूछना'।
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४९१
पूंछलतारा-पूपला पूंछलतारा-पु० दे० 'पुच्छलतारा'।
हो, पूज्य । पूजी-स्त्री० किसी व्यवसायमें लगाया हुआ धन, वह धन | पूजयितव्य-वि० [सं०] पूजा करने योग्य । जिससे कोई व्यवसाय आरंभ किया गया हो; मूल धन; | पूजयिता(त)-वि०, पु० [सं०] पूजा करनेवाला । जोड़ा, बटोरा हुआ धन, संचित धन; रुपया-पैसा, द्रव्यः पूजा-स्त्री० [सं०] पत्र, पुष्प, गंध आदिके समर्पणके साथ किसी विषयका शान, विद्या-बुद्धि; * समूह, ढेर । ईश्वर या विशिष्ट देवताका ध्यान, स्मरण आदि करनेका -गतव्यय-पु० (कैपिटल एक्सपेंडिचर) उत्पादक कार्यों- कृत्य, अर्चन; सत्कार, आवभगत, संभावना; घूस देना, के लिए-जैसे रेलों, नहरों इत्यादिके निर्माणार्थ-किया जेब गरम करना (ला०);ताड़न, पिटाई (व्यंग्य)।-करजानेवाला व्यय । -दार-पु० दे० 'पूँजीपति' ।-पति- वि, पु० पूजा करनेवाला। -गृह-पु० मंदिर, देवालयः पु० वह धनी व्यक्ति जो उद्योग और व्यवसायमें पूँजी उपासना-मंदिर । लगाकर अपनी जीविका चलाता हो, कारखानेदार; धनी | पूजाई-वि० [सं०] पूजाके योग्य, पूजनीय; सत्कारके व्यक्ति । -वाद-पु. वह व्यवस्था जिसमें धनियोंका। | योग्य, मान्य । वर्ग उत्पादनके साधनोंपर अधिकार कर श्रमिकोंका शोषण पूजित-वि० [सं०] जिसकी पूजा की गयी हो, अचिंत; करता है (कैपिटलिज्म)। -वादी-वि० पूँजीवादके जिसका सत्कार किया गया हो, सत्कृत; माना हुआ, सिद्धातोंका प्रयोग करनेवाला ।
स्वीकृत। पूआ-पु० दे० 'पुआ'।
पूजितव्य-वि० [सं०] पूजाके योग्य, पूजनीय । पूग-पु० [सं०] सुपारीका पेड़ या उसका फल; कटहलका | पूजोपकरण-पु० [सं०] देवताकी पूजाके लिए आवश्यक पेड़ या फल; संघ; समूह राशि स्वभाव, प्रकृति ।-पात्र-| वस्तुएँ। पु० पीकदान; पानदान । -पुष्पिका-स्त्री० विवाह-संबंध पूज्य-वि० [सं०] पूजा करने योग्य; सत्कारके योग्य; पक्का होनेपर दिया जानेवाला पान-फूल । -पोट-पु० | मान्य, आदरणीय । -पाद-वि० जिसके चरण पूजनीय सुपारीका नया पेड़। -फल-पु० सुपारी। -रोट-पु० | हों, अति पूज्य । हिंतालका पेड़ । -वैर-पु. वह विरोध, शत्रुता जो बहुत- | पूज्यमान-वि० [सं०] जो पूजित हो रहा हो, पूजा जाता से लोगोंसे हो।
हुआ । पूगना*-अ० क्रि० पूरा होना-'साई संग साध नहिं पूठि*-स्त्री० पीठ । पूगी'-कबीर।
पूड़ी-स्त्री० तबले या मृदंगके मुँहपर मदा हुआ चमड़ा; पूगी-स्त्री० [सं०] सुपारीका पेड़ सुपारी। -फल-पु० दे० 'पूरी'। सुपारी। -लता-स्त्री० सुपारीका पेड़।
पूत-पु० पुत्र, बेटा; [सं०] सत्य; शंख, श्वेत कुश कठेर पूछ-स्त्री० पूछने, पूछे जानेका भाव या क्रिया; खोज | नामका पेड़ । वि० पवित्र किया हुआ, शुद्ध साफ किया कद्र, आदर; माँग (वस्तुके लिए)। -गछ-स्त्री० दे० | हुआ (अन्न); बदबूदार; आविष्कृत ।। 'पूछताछ' । -ताछ,-पाछ-स्त्री० किसी बातकी पकी पूतड़ा-पु० छोटे बच्चेका छोटा बिस्तर।। जानकारीके लिए उसके विषयमें अनेक व्यक्तियोंसे कई पूतन-पु० [सं०] भूतयोनिकी एक जाति या भेद, बेताल । प्रकारके प्रश्न पूछना।
पूतना-स्त्री० [सं०] एक प्रसिद्ध राक्षभी जिसे कंसने कृष्णको पूछना-सक्रि० किसी वस्तुके संबंधमें किसीसे कोई प्रश्न मारनेके लिए नंदके घर भेजा था; बालकोंका एक क्षुद्र करना, किसी बातकी जिज्ञासासे कोई प्रश्न करना; किसी- रोग। की कुशल आदिके विषयमें प्रश्न करना; खोज-खबर लेना; पूतनारि-पु० [सं०] कृष्ण । कद्र करना; टोकना; जवाब तलब करना ।
| पूतरा*-पु० दे० 'पुतला'; पुत्र, बेटा । पूछरी*-स्त्री० पूँछ पिछला भाग; गोवर्धन पहाड़का अंतिम पूता-स्त्री० [सं०] दुर्गा । पु० बेटा, पुत्र । भाग।
पूतात्मा(त्मन्)-वि० [सं०] शुद्ध अंत:करणवाला । पूछाताछी, पृछापाछी-स्त्री० पूछताछ करनेकी क्रिया। पु० विष्णु; संत । पूजक-पु० [सं०] पूजा करनेवाला, उपासक । पूति-स्त्री० [सं०] पवित्रता, शुद्धता; दुर्गंध, बदबू; रोहिष पूजन-पु० [सं०] पूजनेकी क्रिया, अर्चन; सत्कार ।। तृण; गंधमार्जार; गंदा पानी; पूय ।। पूजना-स० क्रि० पत्र, पुष्प, गंध, फल, जल आदि सम- | पूती-स्त्री० गाँठदार जड़, लहसुनकी गाँठ । पित करके ईश्वर या किसी विशिष्ट देवताका ध्यान, | पून-वि० [सं०] नष्ट; * पूर्ण । स्मरण, स्तवन आदि करना, ईश्वर या किसी देवताका पूनव-स्त्री० दे० 'पूनो'। अर्चन, आराधन करना; सत्कार करना, आवभगत करना; | पूनिउँ*-स्त्री० दे० 'पूनो' । घस देना, जेब गरम करना (ला०)। अ० क्रि० पूरा पूनी-स्त्री० धुनी हुई रुईकी मोटी बत्ती जो सूत कातनेक होना; घाव, गड्ढेका भरकर बराबर होना; बराबरीका | काम आती है। या समतुल्य होना-'सेरसाहि सरि पूज न केऊ'-प० पूनो*-स्त्री० पूर्णिमा। बेबाक किया जाना, चुकता होना।।
पून्यो-स्त्री० दे० 'पूनो'। पूजनीय-वि० [सं०] पूजा करने योग्य; आदरके योग्य । पूप-पु० [सं०] पूआ ।-शाला-स्त्री० नानबाईकी दकान । पूजमान-वि० पूजित होनेवाला, जिसकी पूजा की जाती | पूपला, पूपलिका, पूपली, पूपाली, पूपिका-स्त्री० [सं०]
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पूय-पूर्ति
एक तरह की मीठी पूरी ।
पूय - पु० [सं०] पीप या पीब, मवाद । प्यारि- पु० [सं०] नीमका पेड़ ।
पूर- पु० किसी पकवानके भीतर भरा जानेवाला मसाला; [सं०] जलराशि; प्रवाह; बाढ़; जलाशय; घावको साफ करना या भरना; व्रणशुद्धि; । * वि० पूर्ण, पूरा 1 पूरक - वि० [सं०] पूरा करनेवाला, पूर्ति करनेवाला; तुष्ट करनेवाला । पु० एक प्रकारका प्राणायाम जिसमें नाकके बायें छेद से प्राणवायुको धीरे-धीरे भीतर पहुँचाते हैं; किसी की कमी पूरी करने के लिए ऊपरसे मिलाया जानेवाला अंश ।
पूरण - पु० [सं०] पूर्णं या पूरा करनेकी क्रिया; भरने याभरे जानेकी क्रिया; एक प्रकारकी रोटी; भरना; गुणन ( गणित ) । पूरन - पु० उबाले जानेके बाद सिलपर पिसी हुई मटर या चनेकी दाल । वि० दे० 'पूर्ण' | - काम* - वि० दे० 'पूर्णकाम' | - परब * - पु० पूर्णिमा, पूनो । - पूरी - स्त्री० वह पूरी जिसमें पूरन भरा गया हो, पूरन भरी हुई पूरी। -मासी | - स्त्री० दे० 'पूर्णमासी' | पूरना - +स० क्रि० पूरा करना, पूर्ति करना; सिद्ध करना, पूर्ण करना (मनोरथ के साथ); * आच्छादित करना, ढक देना, व्याप्त कर देना; त्योहारों, मांगलिक अवसरोंपर अबीर, चौरेठे आदिसे पृथ्वीपर विशेष आकारके क्षेत्र बनाना (चौक पूरना); बटना; * बजाना । अ० क्रि० व्याप्त होना, ओत-प्रोत होना; रमना; छाना । दूरनिमा * - स्त्री० दे० 'पूर्णिमा' | पूरब-पु० सूरजके निकलनेकी दिशा; पश्चिमके सामने की दिशा । * वि० दे० 'पूर्व' । * अ० पहले, पूर्व । पूरबल * - पु० प्राचीन काल, पुराना जमानाः पूर्वजन्म | पूरबला * - वि० प्राचीन समयका, पुराना; पूर्वजन्मका । पूरबली * - स्त्री० पूर्व जन्मका कर्म । पूरबिया - पु० पूरवी देशका निवासी । वि० दे० 'पूरबी' । पूरबी - वि० पूरव संबंधी; पूरबका । स्त्री० एक राग । पूरयिता (तृ) - पु० [सं०] पूर्ण करनेवाला; विष्णु । वि० पूरा करनेवाला; संतुष्ट करनेवाला ।
पूरा - वि० भरा हुआ, परिपूर्ण, खालीका उलटा; जो अपने सभी अंशों, अगोंसे युक्त हो, समूचा, अन्यून, सकल; जिसमें कोई कोर-कसर न हो; जिसमें किसी प्रकारकी न्यूनता न हो; यथेष्ट, पर्याप्त, जितना चाहिये उतना; जो अधूरा न हो, समाप्त, पूर्ण; सिद्ध, सफल; पक्का; ठीक, सही | मु० (कोई काम ) - उतरना - भली भाँति संपन्न होना । (किसी का) - पड़ना - अँट जाना; कमी न होना । (दिन) ( पूरे) करना- किसी तरह समय बिताना । (दिन) - होना - अंतिम समय निकट आना । पूरानीत भूमि- स्त्री० [सं०] ( एल्यूबिअल सॉइल ) दे० 'जलोढ भूमि' ।
पूरित - वि० [सं०] पूरा किया हुआ; भरा हुआ; गुणा किया हुआ, गुणित; तृप्त ।
पूरी - स्त्री० घी या तेल में छानी हुई रोटी; तबले आदिके मुँहपरका चमड़ा; * घास आदिका पूला । पूरुख* - ५० दे० 'पुरुष' ।
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पूरुष - पु० [सं०] पुरुष; आत्मा ।
पूर्ण - वि० [सं०] भरा हुआ; समूचा, अखंड, समग्र पूरा किया हुआ, सिद्ध; समाप्त, संपन्न; जिसे किसी बातकी अपेक्षा न हो, आप्तकाम; यथेष्ट, पर्याप्त; बीता हुआ, अतीत; तृप्तः शब्दकारी; सशक्त; स्वार्थी; झुकाया हुआ (धनुष ) । - काम - वि० जिसकी सभी इच्छाएँ पूरी हो चुकी हों, जिसकी कोई इच्छा पूरी होनेको बाकी न हो, परितुष्ट | - कुंभ - पु० जल आदिसे भरा हुआ कलसा; एक प्रकारका युद्ध | गर्भा - वि० स्त्री० जिसका गर्भ पूरी तरह वृद्धिको प्राप्त हो चुका हो, जो शीघ्र बच्चा जननेवाली हो । -चंद्र- पु० पूर्णिमाका चंद्रमा । प्रज्ञ, - बोध - वि० परम ज्ञानी । -मासी - स्त्री० शुक्ल पक्षकी अंतिम तिथि जिसमें चंद्रमा अपनी सोलहों कलाओंसे युक्त हो जाता है, पूनो । विराम - पु० वाक्यकी समाप्तिका सूचक चिह्न |
पूर्णतः, पूर्णतया अ० [सं०] अच्छी तरह, पूर्ण रूपसे । पूर्णांक - पु० [सं०] पूरी संख्या अविभक्त संख्या ( गणित ); किसी प्रश्नपत्र के लिए निर्धारित अंक । पूर्णाधिकारप्राप्त दूत-पु० [सं०] ( मिनिस्टर प्लेनीपोर्टशिअरी) वह दूत जिसे स्वविवेक से काम लेते हुए यथावश्यक निर्णय करनेका पूरा अधिकार दिया गया हो । पूर्णाधिवेशन - पु० [सं०] (प्लीनरी सेशन) किसी सभा, संस्था आदिका पूरा अधिवेशन - वह अधिवेशन जिसमें उसके सभी सदस्य सम्मिलित हो सकें । पूर्णायु (स् ) - स्त्री० [सं०] सौ वर्ष की आयु ( मनुष्यकी पूरी आयु सो वर्षकी मानी गयी है) । वि० सौ वर्षकी आयुवाला | पु० एक गंधर्व । पूर्णावतार - पु० [सं०] वह अवतार जिसमें ईश्वर अपनी सभी कलाओंसे युक्त होकर अवतीर्ण हुआ हो, विष्णुका चौथा, सातवाँ और आठवाँ अवतार । पूर्णाश - वि० [सं०] जिसकी आशा पूरी हो चुकी हो । पूर्णाहुति - स्त्री० [सं०] वह आहुति जिससे होमकर्म समाप्त .किया जाता है, होमकर्मकी अंतिम आहुतिः किसी कार्यका "वह अंग जिससे वह पूर्णताको प्राप्त हो । पूर्णिमा - स्त्री० [सं०] शुक्ल पक्षकी अंतिम तिथि, पूनो । पूर्णेदु - पु० [सं०] सोलहों कलाओंसे युक्त चंद्रमा । पूर्णोपमा स्त्री० [सं०] उपमालंकारका वह भेद जिसमें उपमेय, उपमान, वाचक और साधारण धर्म, ये चारों अंग उक्त हों ।
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पूर्त - वि० [सं०] पूरा किया हुआ, पूरित; ढका हुआ, छन्न, व्याप्त; पालित; रक्षित । पु० पूरा करना; पालन; कुआँ, तालाब खोदवाने, मंदिर बनवाने आदिका धार्मिक कृत्य; पुरस्कार | -विभाग- ५० वह सरकारी विभाग जिसके जिम्मे सड़क, नहर, पुल आदि बनवानेका काम रहता है, तामीरातका मुहकमा (पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट) । - संस्थास्त्री० ( चैरिटेबिल इंस्टिट्य ूशन) कुआँ, तालाब आदि धर्मार्थ बनवानेवाली संस्था |
पूर्ति - स्त्री० [सं०] पूरा करनेकी क्रिया, पूरण; संतुष्टि, तृप्ति; गुणा करना, गुणन; उपभोक्ताओंकी आवश्यकता पूरी करनेके लिए उन्हें चीजें देना, जुटाना, समायोग (सप्लाई ) ।
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पूर्त्यधिकारी-पूर्वाभिमुख पूर्त्यधिकारी(रिन् )-पु० [सं०] (सप्लाई ऑफिसर) नायिकामें श्रवण, दर्शन आदिके कारण मिलनसे पहले जनताको आवश्यकताको कतिपय वस्तुओं-लोहा, सीमेंट, उत्पन्न होनेवाला अनुराग । -रूप-पु० पहलेवाला रूप, कपड़ा आदि-के समुचित वितरणकी व्यवस्था करनेवाला वह रूप जो पहले रहा हो, ऐसा लक्षण जिससे किसी अधिकारी।
भावी वस्तुके आगमकी सूचना मिले; रोगका आरंभिक पूर्व-वि० [सं०] पूरबी; पहला, प्रथम, आध; पहलेका, लक्षण; आसार; एक अर्थालंकार जहाँ किसीके विनष्ट गुण, आगेका प्राचीन, पुराना पिछला; पूरबमें स्थित; पहले रूप आदिके फिरसे आ जाने या उस वस्तु अथवा व्यक्तिके कहा हुआ; बहुत दिनोंसे चला आता हुआ(रिवाज आदि)। पुनः अपने पूर्व रूपमें आ जानेका वर्णन होता है ।-वर्तिता, पु० सूरजके निकलनेकी दिशा, पूरब अग्रभाग। अ० -स्थानीयता-स्त्री० (प्रेसीडेंस) समय या स्थान आदिकी पहले, पेश्तर । -कर्म(न)-पु० प्रथम कार्य पूर्व जन्मका दृष्टिसे पहले रखे जाने, विचार किये जाने आदिका भाव । कर्म तैयारी ।-काल-पु० प्राचीन काल पहलेका समय, -वर्ती(तिन्)-वि० पहले होनेवाला, पहलेका ।-वाद-- बीता हुआ समय । -कालिक,-कालीन-वि० पूर्वकाल- पु० वादीका अभियोग या दावा,मुद्दईकी नालिश।-वादी संबंधी, पुराना, प्राचीन पहलेका। -कालिक क्रिया- (दिन्)-पु० मुद्दई, वादी। -विद्-वि० जिसे पुरानी स्त्री० वह क्रिया जिसे पूरा कर कर्ता दूसरा कार्य करे (जैसे बातें मालूम हों, पुराविद् ।-वृत्त-पु०पुराना वृत्तांत; इतिवह 'खाकर' पढ़ने लगा)। -कृत-वि० जो पहले किया | हास; पहलेका चरित्र या आचरण ।-संचित-वि० पहले गया हो। पु० पहलेका कर्म; पूर्वजन्मका कर्म । -क्रयका एकत्र किया हुआ।-सम्मोदन-पु० (प्रीवियस सैकशन) अधिकार-पु० (राइट ऑफ प्री-एंपशन ) कोई संपत्ति किसी आदेश, नियमादिके संबंधमें उच्चाधिकारियोंसे पहलेआदि औरोंसे पहले खरीद सकनेका विधिक अधिकार, से ही प्राप्त कर ली गयी स्वीकृति या पुष्टि। -स्थितिहकशुफा । -गंगा-सी० नर्मदा नदी। -ग-वि० स्त्री० पहलेकी दशा। -स्थिति-स्थापन-पु० (रेस्टिपहले जानेवाला; पहलेका, आगेका, पूर्ववती । -गामी- ट्य शन) (लचीलेपन आदिके कारण) पुनः पूर्वस्थितिको वि० दे० 'पूर्वग' । -ज-वि० जिसकी उत्पत्ति पहले हुई प्राप्त हो जाना, प्रत्यास्थापन । हो, पहले जनमा हुआ। पु० बापसे पहलेकी पीढ़ी में उत्पन्न पूर्वक-अ० [सं०] साथ, सहित (संशाके साथ प्रयुक्त, जैसेपुरुष, पुरखा; बड़ा भाई, अग्रज; मनुष्यों के पूर्व पुरुष, कृपापूर्वक) । वि० पहलेका पहला । सबसे बड़ा लड़का । -जन्म(न)-पु. वर्तमान जन्मसे पूर्वतः (तस्)-अ० [सं०] पहले, प्रथमतः, सामने । पहलेका जन्म, पिछला जन्म । -जन्मा(न्मन)-पु० | पूर्वतन-वि० [सं०] पहला, पुराना। जेठा भाई। -जा-स्त्री० बड़ी बहन । -ज्ञान-पु० पूर्व पूर्वता-स्त्री० [सं०] दे० 'पूर्ववर्तिता' । जन्ममें उपार्जित शान । -तिथित-वि० (एंटीडेटेट) (वह पूर्ववत्-अ० [सं०] पहलेकी तरह ।-करण-पु० (रेस्टोप्रलेखादि) जिसमें वास्तविक तिथिसे पहलेकी तिथि दी रेशन) पहलेकी स्थिति में ला देना, पहुँचा देना; फिर गयी हो। -दिन-पु० दिनका मध्याह्नसे पहलेका भाग। चालू कर देना, प्रभावी बना देना। -देहिक,-दैहिक-वि० पूर्व जन्ममें किया हुआ। पूर्वा-स्त्री० [सं०] प्राची, पूरव । -फाल्गुनी-स्त्री० सत्ता-धारणा-स्त्री० (प्रेजूडिस) किसीके पक्ष या विपक्ष में | ईस नक्षत्रों मेंसे ग्यारहवाँ नक्षत्र । -भाद्रपदा-स्त्री० पहलेसे स्थिर की गयी धारणा, कायम कर ली गयी राय। सत्ताईस नक्षत्रोंमेंसे पचीसवाँ नक्षत्र । -धारणान्वित,-धारणायुक्त-वि० (प्रेजूडिस्ड) जिसने पूर्वाचल, पूर्वाद्रि-पु० [सं०] उदयाचल । पहले ही किसीके पक्ष या विपक्षमें मत स्थिर कर लिया। पूर्वाधिकारी (रिन्)-पु० [सं०] पहलेका अधिकारी। हो; (वह कथन) जो पूर्वधारणाके आधार पर किया गया हो। पूर्वानिल-पु० [सं०] पूरबी हवा, पुरवा । -निश्चित-वि० जिसका निश्चय पहलेसे हो चुका हो। पूर्वानुमान-पु० [सं०] (फोरकास्ट) निकट भविष्यमें -पक्ष-पु० अगला हिस्सा शास्त्र-विचारमें किसी संशय- होनेवाली वर्षा, ठंड, पैदावार या किसी संभावित घटना वाले स्थलके संबंधमें उठाया गया प्रश्न; किसी विषयके आदिके संबंध पहलेसे किया गया अनुमान। विमर्शकी वह कोटि जिसमें सिद्धांतके विरुद्ध तर्क उपस्थित | पूर्वानुमति निष्कर्ष-पु० [सं०] (फोरगौन कॉनक्लूजन) किये जाते हैं। विवाद या अभियोगमें वादीकी प्रतिज्ञा या वह निष्कर्ष या नतीजा जिसका अनुमान पहलेसे ही कर नालिश, मुद्दईकी फरियाद कृष्ण पक्ष । -पद-पु० समास- लिया गया हो। में पहला पद; पहला स्थान । -पीठिका-स्त्री० पहली | पूर्वानुराग-पु० [सं०] दे॰ 'पूर्वराग'। पीठिका, भूमिका । -पुरुष-पु. पुरखा, दादा-परदादा | पूर्वापर-वि० [सं०] अगला और पिछला; परब और . आदि । -प्रज्ञा-स्त्री० अतीतका शान, स्मृति ।-प्लाव- | पच्छिमका । पु० आगा-पीछा प्रमाण और प्रमेय । निक-वि० ( एंटी डाइलूवियल) प्रलयके समयकी बाढ़के | पूर्वापराधी (धिन)-पु०[सं०] (हिस्ट्रीशीटर) वह मुलजिम पहलेका । -फाल्गुनी-स्त्री० एक नक्षत्र । -भाग-पु० या कैदी जो पहले कई बार अपराध (जुर्म) कर चुका हो । अगला या ऊपरका भाग ।-भाद्रपदा-स्त्री० एक नक्षत्र । | पूर्वापर्य-पु० [सं०] पूर्वापरका भाव ।। -मीमांसा-स्त्री० मीमांसा दर्शनका वह भाग जिसमें पूर्वाभिनय-पु० [सं०] (रिहर्सल) शीघ्र खेले जानेवाले किसी कर्मकांडका तात्त्विक विवेचन किया गया है। -रंग-पु० नाटकका या निर्धारित समयपर किये जानेवाले हमले विघ्नशांतिके लिए अभिनयके आरंभमें किये जानेवाले | आदिका पहलेसे किया गया पूरा अभिनय या अभ्यास । कृत्य-नांदी-पाठ आदि । -राग-पु० नायक और पूर्वाभिमुख-वि० [सं०] जिसका रुख पूरबकी ओर हो।
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पूर्वाभिषेक
अ० पुरबकी ओर ।
पूर्वाभिषेक - पु० [सं०] पहलेका स्नान; एक मंत्र । पूर्वाभ्यास - पु० [सं०] पहले किया हुआ अभ्यास; पहलेका
अभ्यास ।
पूर्वार्जित - वि० [सं०] पहलेका उपार्जन किया हुआ । पूर्वार्द्ध, पूर्वार्ध - पु० [सं०] दो बराबर भागों में से पहला भाग, उत्तरार्द्धका उलटा ।
पूर्वावधानता - स्त्री० [सं०] ( प्रीकाशन ) अनिष्ट या हानिकर परिणामकी संभावनाका खयाल कर पहलेसे सावधान हो जानेकी क्रिया ।
पूर्वाषाढ़ा - स्त्री० [सं०] सत्ताईस नक्षत्रों में से बीसवाँ नक्षत्र । पूर्वाह्न - पु० [सं०] दिन के पहले दो प्रहर । पूर्वाह्निक- वि० [सं०] पूर्वाल-संबंधी । पु० दिनके पहले भागमें किया जानेवाला कृत्य ।
पूर्वी - वि० पूरबका, पूरबी । पूर्वेतर - वि० [सं०] पश्चिमी । पूर्वोक्त-वि० [सं०] जिसका कथन पहले हो चुका हो, पहले कहा हुआ ।
पूर्वोत्तर - वि० [सं०] उत्तरी - पूरबी । पूर्वोदाहरण- पु० [सं०] ( प्रेजीडेंट ) पहलेकी कोई घटना या मामला जो बादकी वैसी ही घटनाओंके लिए उदाहरण या नजीरका काम दे; किसी न्यायालयका वह अभिनिर्णय या कार्यविधि जो आदर्श या नजीरका काम दे; मजीर । पूर्वोपाय- पु० [सं०] ( प्रीकाशन ) अनिष्ट या हानिकी संभावना रोकने के लिए पहलेसे किया गया उपाय । पूल, पूलक - पु० [सं०] तृण आदिका ढेर, पूला । पूला- पु० तृण आदिका बँधा हुआ मुट्ठा । पूलिका - स्त्री० [सं०] एक प्रकारकी मीठी पूरी । पूली - स्त्री० छोटा पूला ।
धूषण, पूषन* - पु० सूर्य ।
पूस - पु० पौष मास ।
पृच्छक - पु० [सं०] पूछनेवाला, जिज्ञासु ।
पृथकू - अ० [सं०] अलग, जुदा, बिना, भिन्न । -करणपु०, - क्रिया - स्त्री० अलग करनेका काम; विश्लेषण | - शय्या - स्त्री० अलग सोना । -शायी (यिन् ) - वि० अकेले या अलग सोनेवाला ।
पृथक्ता - स्त्री०, पृथक्त्व-पु० [सं०] पृथक् होनेका भाव, भिन्नता, अलहदगी; चौबीस गुणोंमेंसे एक ( वैशेषिक ) । - कूतावादी नीति - स्त्री ( आइसोलेशनिज्म ) ( द्वितीय महायुद्ध के पूर्व ) अमेरिकाके कतिपय राजनीतिज्ञों तथा राजनेताओं का यह मत कि अमेरिकाको यूरोपीय झगड़ोंसे पृथक् रहना चाहिये ।
पृथग्रूप - वि० [सं०] अनेक रूपोंवाला, नाना प्रकारका । पृथग्वासन नीति- स्त्री० [सं०] ( एपारथाइड पालिसी) कुछ लोगोंको अन्य लोगोंसे- दक्षिण अफ्रीका में भारतीयोंको यूरोपियनों से पृथक बसानेकी नीति । पृथवी - स्त्री० [सं०] दे० 'पृथ्वी' ।
पृथा - स्त्री० [सं०] पांडुपली कुंती । - तनय, - सुत - पु० युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम (विशेषतः अर्जुन) । पृथिका - स्त्री० [सं०] गोजर ।
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पृथिवी - स्त्री० [सं०] दे० 'पृथ्वी' । - कंप-पु० भूडोल । - तल-पु० पृथ्वी की सतह, धरातल । -नाथ, - पतिपु० राजा ।
पृथी* - स्त्री० दे० 'पृथ्वी' । - नाथ- पु० राजा । पृथु - वि० [सं०] चौड़ा; मोटा; महान्, विशाल; प्रभूत, बहुसंख्यक; चतुर; विशिष्ट । पु० अग्नि; शिव; विष्णु; वेणुके पुत्र जो प्रथम राजा माने जाते हैं (इन्होंने ही गोरूपधारिणी पृथ्वी से औषधियोंका दोहन किया था ) । -ग्रीव - वि० मोटे गलेवाला ।
पृथुल - वि० [सं०] स्थूल, मोटा, विस्तीर्ण, विशाल | -लोचन - वि० बड़ी आँखोंवाला । - वक्षा (क्षस् ) - वि० जिसका सीना चौड़ा हो। विक्रम - वि० बहुत वीर, पराक्रमी । पृथुलाक्ष - वि० [सं०] बड़ी आँखोंवाला । पृथूदर - वि० [सं०] बड़े पेटवाला । पु० मेढ़ा । पृथ्वींद्र - पु० [सं०] राजा ।
पृथ्वी - स्त्री० [सं०] सौरमंडलका वह प्रसिद्ध ग्रह जिसपर मर्त्यलोककी स्थिति है, पाँच महाभूतोंमेंसे एक; पृथ्वीका तल, भूमि, धरती । - तनया - स्त्री० सीता । - घर - पु० पर्वत । - नाथ, पति -पाल- पु० राजा । - पुत्रपु० मंगल ग्रह । - भुक् (ज् ), - भृत् - पु० राजा । पृथ्वीश - पु० [सं०] राजा ।
पृष्ट-वि [सं०] पूछा हुआ; जिससे पूछा गया हो; सिक्त । पृष्ठ - पु० [सं०] पीठ; किसी वस्तुका पिछला भाग; किसी वस्तुका ऊपरी भाग, तल; पुस्तक के पन्नेका एक ओरका भाग, सफा । - देश - पु० पीछेका भाग। -पोषक - पु० सहायक। -पोषण - पु० सहायता करना। -भागपु० पिछला भाग। -भूमि- स्त्री० मकानकी ऊपरकी मंजिल या छत; पीछेकी भूमि या पीछेका दृश्य, पृष्ठिका; पहले की बातें | - मांसाद-पु० पीठका मांस खानेवाला; चुगुली करनेवाला, चुगुलखोर । - मांसादन - पु० पीठका मांस खानेकी क्रिया; चुगली खाना । यानपु० सवारी करना (घोड़े आदिकी) । -रक्षक युद्ध - पु० ( रेयर गार्ड ऐक्शन) पीछे हटती हुई सेनाके पृष्ठभाग, पिछले "हिस्से की रक्षा करनेवाली टुकड़ियों द्वारा शत्रुसे किया गया युद्ध, अनुबलका संघर्ष । -रक्षण - पु० पृष्ठ भागकी रक्षा । - लग्न - वि०पीछे-पीछे चलनेवाला, अनुयायी । - वंश - पु० रीढ़ शीर्षक - पु० ( बैनर हेडलाइन) दे० 'पताकाशीर्षक' | पृष्ठतः ( तस ) - अ० [सं०] पीछे पीछेसे पीठकी ओरसे । पृष्ठांकन - पु० [सं०] (एंडोर्समेंट) किसी लेख, पत्र, धनादेश आदिकी पीठपर हस्ताक्षर करना, समर्थन आदि के रूपमें कुछ लिख देना या किसीको कुछ दिये जाने आदिका लिखित आदेश देना ।
पृष्ठांकित - वि० [सं०] (एंडार्ड) जिसपर या जिसकी पीठपर हस्ताक्षर कर दिया गया या कुछ लिख दिया गया हो । पृष्ठास्थि - स्त्री० [सं०] रीढ़ |
पृष्टिका - स्त्री० [सं०] पोछेकी भूमि तथा दृश्यादि; घटनाके पहले की बातें या परिस्थियाँ (बैकग्राउंड) | पँग - स्त्री० झूलने के समय झूले या हिंडोलेका आगे-पीछे जाना । + पु० एक पक्षी । मु०-मारना - झूलेको वेगसे
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पंच-पेटा और दूरतक झुलानेके लिए उसपर और पहुँचाना; जोरसे झनवाला, जो जल्दी हल न हो सके, कठिन, टेढ़ा । झुलाना या झूलना।
पेचीला-वि० दे० 'पेचीदा'। पैच-पु० दे० 'पेच'।
पेट-पु० शरीरका वह प्रसिद्ध खोखला अंग जिसमें भोजनपठ-स्त्री० दे० 'पैंट'।
का पाक होता है, उदर पेटके भीतरकी वह थैली जिसमें पे दुकी -स्त्री० पंडुक, फाखता; सोनारोंकी कनी खायी हुई वस्तु जमा होती है, आमाशयः छातीके नीचेसे गुझिया नामक पकवान ।
लेकर कमरतक फैला हुआ अंग; गर्भ, हमल, मन, दिल; पे दा-पु. किसी गहरी वस्तुका निचला भाग जिसके बल- किसी खोखली वस्तुका भीतरका भाग; बंदूक या तोपमें
पर वह स्थित होती है। किसी गहरी वस्तुका तला । गोली या गोला भरनेकी जगह; जीवनयात्रा, जीविका पेदी-स्त्री० पेंदा'का अल्पा०'; किसी गहरी वस्तुका तला । एकमें जुड़े हुए चक्कीके पाटोका भीतरी भाग; सिलका
मु०(बिना)-का लोटा-वह मनुष्य जो किसो निश्चित ऊपरी भाग जिसपर रखकर कोई वस्तु पीसी जाती है। सिद्धांतका न हो; वह मनुष्य जो कभी इस पक्षमें मिल रोटीका वह भाग जिधरसे वह पहले सेंकी जाती है। जाय, कभी उस पक्षमें ।
--चोट्टी-स्त्री. वह स्त्री जो गर्भिणी होते हुए भी बाहरी पेंशन-स्त्री० [अं०] वह मासिक या वार्षिक वृत्ति जो लक्षणोंसे वैसी न जान पड़े। -पाँछना-पु० अंतिम किसी व्यक्ति या उसके उत्तराधिकारियोंको उसकी पूर्व- संतान । मु०-काटना-पैसा बचानेके लिए कम खाना, सेवाओं के पुरस्कारके रूपमें नियोक्ता या स्वामीकी ओरसे द्रव्य-संचय करनेके लिए खाने में कंजूसी करना। -का मिलती है। -याफ्ता-वि० जिसे पेंशन मिलती हो। गहरा-भेद प्रकट न करनेवाला। -का धंधा-वह पेशा पेंसिल-स्त्री० [अं॰] एक प्रकारकी लेखनी जो लकड़ी या जिससे गुजारा हो, जीविका । -का पानी न पचनाकिसी धातुके पोले लंबोतरे टुकड़े में विशेष प्रकारके मसाले
कोई बात कहे, पूछे बिना न रहा जाना। -का पानी की सलाई बैठाकर तैयार की जाती है।
न हिलना-थोड़ासा भी श्रम न पड़ना । -का हलकापेउश, पेउसी-पु० दे० 'पेउसी'।
जो गंभीर न हो, गंभीरतासे रहित । -का हाल-मनकी पेउसी-स्त्री. गाय या भैसका ब्यानेके दिनसे सात
बात, तहेदिलकी बात । -की आग-भूख । -की आग दिनोंतकका दूध; इस दूधमें पकाया हुआ सोंठ, शकर
बुझाना-कुछ खाकर या खिलाकर भूख शांत करना, आदिका पाक, इन्नर ।
भूख मिटाना। -की बात-मनकी बात; भेदकी बात, पेखक*-पु० प्रक्षक, देखनेवाला, दर्शक ।
रहस्यभरी बात । -की मार मारना-आहार न देना, पेखन*-पु. प्रेक्षण; तमाशा, दृश्य ।
भूखा रखना। -खलाना-पेट पचकाकर भूखा होनेका पेखना-सक्रि० देखना।
संकेत करना; अत्यधिक दीनता प्रकट करना ।-गदरानापेच-पु० [फा०] लपेट, चकरा शंशट, झमेला; मरोड़, गर्भका लक्षण प्रकट होना। -गिरना-गर्भपात होना । कुश्तीका दाँव पेटका दर्द एक प्रकारकी कील जिसमें | -गिराना-गर्भपात कराना । -चलना-दस्त जारी चूड़ियाँ बनी रहती है, स्क्र; मुश्किल, कठिनाई; धोखा; होना । -छंटना-पेटका मल-रहित होना । -छटनाफरेब, चाल; पगड़ीकी लपेट-'रहे पेच कर में पड़े परे पेचमें दस्त होना। -जलना -भरपेट भोजन न मिलना । स्याम'-वि०; एक आभूषण जो पगड़ीपर आगेकी ओर -दिखाना-पेट दिखाकर भूखे होनेका संकेत करना। बाँधा जाता है, सिरपेच; एक प्रकारका आभूषण जो कानों. -देना-किसीको अपनी गुप्त बात बताना, किसीसे भेदकी पर धारण किया जाता है; कल, मशीन; मशीनका कोई बात कहना। -पानी होना-पतले दस्त आना। पुरजा; किसी यंत्रका वह अंग या पुरजा जिसे घुमाने, -पालना-किसी प्रकार निर्वाह करना, उदर-पूर्तिमात्र दबाने आदिसे उसमें हरकत पैदा होती है; लड़ाई जाने- करते हुए निर्वाह करना। -पीठ एक हो जाना-बहुत वाली पतंगोंकी डोरोंका एक दूसरेसे उलझना; युक्ति, दुर्बल हो जाना। -पीठसे लगना-दे० 'पेट पीठ एक उपाय । -कश-पु० बढ़इयों, लोहारोंका वह आला हो जाना। -फूलना-किसी बातको कहने, जानने जिससे वे पेचोंको घुमा-धुमाकर जड़ते या निकालते हैं; आदिके लिए बेचैन हो उठना; गर्भ रहना। -मारकर वह चक्करदार आला जिससे बोतलका काग निकाला मरना-आत्महत्या करना।-में घुसना-भेद जाननेजाता है। -दार-वि० लपेटवाला; चकरदार; जिसमें के लिए घनिष्ठ मित्र बनना। -मे चूहे कूदना या कोई यंत्र लगा हो; जिसमें कोई उलझन या झमेला हो, दौड़ना-जोरकी भूख लगना, भूखसे व्याकुल होना । उलझनवाला । -व ताब, (पेचो)ताब-पु. बेचैनी; -मे डालना-खा जाना, हड़प जाना। -मेंदादी कुढ़न; फिका अंदेशा; गुस्सा; गम; कहर और गजब । होना-छोटी उम्रमें ही बहुत अधिक बुद्धिमान होना । -वान-पु. फरशीमें लगायी जानेवाली बड़ी सटका ! -रहना-गर्भ रहना।। बड़ा हुका।
पेटल-वि० बड़े पेटवाला, तोंदल। पेचक-स्त्री० [फा०] बटे हुए तागेकी गोली, रील । पेटा-पु० किसी गहरी वस्तुका तलभाग; किसी वस्तुका पेचिश-स्त्री० [फा०] आमाशयमें मरोड़की बीमारी जिसमें | भीतरी भाग, गर्भ घेरा, चक्कर; नदीके भीतरकी जमीन आँव गिरता है।
जिसपरसे पानी बहता है; उतनी धरती जितनीसे होकर पेचीदगी-स्त्री० [फा०] पेचीदा होने का भाव ।
नदी बहती है; बहीका ब्योरे या तफसीलका खाना; उड़ते पेचीदा-वि० [फा०] पेच या लपेटवाला; चकरदार; उल- हुए कनकौएकी डोरका वह भाग जो ढीला पड़कर नीचेकी
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पेटागि- पेशाब
ओर लटका रहता है, ढील; पशुओंकी अँतड़ी । पेटागि* - स्त्री० पेटकी आग, भूख । पेटार* - पु० दे० 'पिटारा' ।
पेटारा* - पु० दे० 'पिटारा' | पेटारी* - स्त्री० दे० 'पिटारी' |
पेटार्थी, पेटा - वि० जो सदा खानेकी फिक्रमें रहे । पेटिका - स्त्री० [सं०] छोटा पिटारा, पिटारी । पेटी - स्त्री० तोंदकी झोल; वह तत्समा जिससे पतलून, पैंट आदि पहनने पर कमरको कसते हैं, बेल्ट; चपरास; नाइयोंका लोहखर; वह तागा जो बुलबुलको उँगलीपर बैठानेके लिए उसकी कमर से बाँधते हैं; [सं० ] छोटा
पिटारा, पिटारी; लघु मंजूषा, छोटा संदूक । पेटीकोट - पु० [अ०] घाँघरेकी तरहका एक हलका पहनावा जिसे स्त्रियाँ साड़ीके नीचे और लड़कियाँ कुर्ती, फ्राक के साथ पहनती हैं, साया ।
पेटू - वि० जिसे सदा खानेकी चिंता लगी रहे; बहुत अधिक खानेवाला, दीर्घाहारी ।
पेट्रोल - पु० [अ०] एक प्रकारका खनिज तेल जिससे उत्पन्न शक्तिसे मोटर गाड़ियाँ, बसें आदि चलती हैं । पेठा - पु० सफेद कुम्हड़ा या उससे बनी मिठाई । पेड़-पु० वृक्ष, दरख्त | पेड़ा - पु० चकईके आकारकी एक मिठाई जो खाँड़ मिले हुए खोयेसे तैयार की जाती है; गुँधे हुए आटेकी लोई । पेड़ी - स्त्री० ऊपर-ऊपर काट लिये गये वृक्ष या पौधे के तनेका जड़ सहित बचा हुआ भाग; पेड़ या पौधेका तना'बिरिछ उचारि पेड़िसों लेहीं' - रामा०; ऊखका वह खेत जो ऊखके कट जाने के बाद रबीकी फसलके लिए जोता जाय पानकी पुरानी बेल; पुरानी बेलसे उतारा हुआ पान; फलवाले वृक्षों पर लगाया जानेवाला कर । पेडू - पु० शरीरका नाभि और उपस्थके बीचका भाग । पेन्हाना - स० क्रि० दे० 'पहनाना' । अ० क्रि० गाय-भैंस आदिके थनमें दूध उतर आना ।
पेम* - पु० दे० 'प्रेम' ।
पेमचा * - पु० एक तरहका रेशमी कपड़ा ।
पेय - वि० [सं०] पीने योग्य; जो पिया जाय । पु० पीने योग्य या पिया जानेवाला पदार्थ; जल; दूध; शरबत | पेयूष - पु० [सं०] अमृत; ताजा घी; गायका ब्यानेके दिन से सात दिनोंतकका दूध ।
पेरना - स० क्रि० किसी घूमनेवाले पदार्थं या यंत्र के द्वारा किसी वस्तुपर ऐसा दबाव पहुँचाना कि उसका रस या स्नेह निचुड़ जाय; बहुत अधिक केश पहुँचाना, सताना; किसी कामको बहुत दिनोंतक लगाये रहना, किसी काम के करने में बहुत ढिलाई करना; * प्रेरित करना । पेरोल - पु० दे० 'पैरौल' ।
पेलना - स० क्रि० दबाकर भीतर पहुँचाना, जोर से भीतर घुसेड़ना; प्रेरित करना; फेंकना; उल्लंघन करना, टालना - 'आयउ तात वचन मम पेली' - रामा०; ढकेलना, ठेलना; बलप्रयोग करना; आक्रमण करनेके लिए प्रेरित करना; आगे बढ़ाना ।
पेलव - वि० [सं०] कोमल; कृश, क्षीण; विरल ।
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पेलवाना - स० क्रि० किसीको पेलनेमें प्रवृत्त करना । पेला- पु० पेलनेकी क्रिया या भाव; * बहाना बताना, दुराव- छिपाव; नकल; चढ़ाई; झगड़ा; अपराध, कसूर । पेलू - ५० पेलनेवाला | पेवँ*-पु० प्रेम ।
पेवस, पेवसी - स्त्री० दे० 'पेउसी' ।
पेश - अ० [फा०] सामने, आगे, समक्ष पहले, कब्ल । - कश - स्त्री० नज़र, भेंट । - कार - पु० पेश करनेवाला; आगे रखनेवाला; अदालतका वह कर्मचारी जो हाकिमके सामने मुकदमेकी मिसिल पेश करता है, मिसिलख्वाह; किसी दफ्तर या दरबारका वह कर्मचारी जो हाकिम या मालिक के सामने कागजात पेश करके उनपर उसका आदेश लिखवाता है । -कारी - स्त्री० पेशकारका काम या पद । - खेमा - ५० वह खेमा जो अगली मंजिल पर पहले ही भेज दिया जाता है; सेनाका वह भाग जो आगे-आगे चलता है, सेनाका अगला भाग, हरावल । -गाह-पु०, स्त्री० इजलास; दरबार, सदरमजलिस ।-गी - स्त्री० किसी वस्तुके मूल्य या किसी कार्यके पारिश्रमिकका वह अंश जो करनेवालेको उसके पूरा होनेके पहले ही दे दिया जाता है; किसी के वेतन या पुरस्कारका वह भाग जो उसे नियत तिथिके पहले ही दे दिया जाता है, अगौड़ी, अग्रिम । - गोई-स्त्री० दे० 'पेशीनगोई' । - तर - अ० पहले, पूर्व । - दस्ती - स्त्री० वह काररवाई जिससे कोई झगड़ा शुरू हो, पहल | - दामन - पु० खिदमतगार, नौकर । - बंदी - स्त्री० बचावकी युक्ति जो पहलेसे की जाय; दूरदर्शिता, दूरदेशी । - राज - पु० [हिं०] वह मजदूर जो पत्थर ढो ढोकर मेमारके पास लाता है; दीवार आदिकी चुनाई करनेवाला कारीगर, राज । - व पस, (पेशी) पस - पु० आगा-पीछा । मु०-आना - सलूक करना, बर्ताव करना । -करना- आगे रखना, सामने रखना; हाजिर करना । - चलना या जाना-दे० ' वश चलना' । (किसी से ) - पाना - मात करना, जीतना, विजय पाना । पेशल - वि० [सं०] कोमल, ऋजु; क्षीण; सुंदर; दक्ष । पेशवा - पु० [फा०] नेता, सरदार, मुखिया; मराठोंके प्रधान मंत्रियोंकी उपाधि ।
पेशवाई - स्त्री० पेशवाका काम या पद; [फा०] अगवानी । पेशवाज़ - स्त्री० [फा०] वेश्याओं, नर्तकियोंका घाघरा जिसपर प्रायः जरीका काम रहता है ।
पेशा- पु० [फा०] वह व्यवसाय या धंधा जिससे किसीकी जीविका चलती हो, पेटका धंधा । वर- ५० कोई पेशा करनेवाला | मु० - कमाना या करना - वेश्याका काम करना, वेश्या बनकर जीविका चलाना । पेशानी - स्त्री० [फा०] ललाट, माथा; किस्मत, भाग्य; कागज के ऊपरका खाली हिस्सा । - का ख़त - भाग्यरेखा । मु०- पर बल आना या पड़ना - क्रोधसे ललाटपर के चमड़ेका ऊपर की ओर खिंच जाना, त्योरी चढ़ना । पेशाब- पु० [फा०] मूत्र, भूत । खाना - पु० पेशाब करनेके लिए बनायी हुई जगह । मु०-करना - कुछ भी न गुनना, अत्यंत हेय समझना; लानत भेजना । (किसीके) - का चिराग़ जलना - बहुत प्रतापी होना ।
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४९७
पेशि-पैमाइश पेशि-स्त्री० [सं०] मासपिंड; पुट्ठा।
पैग*-पु० पग, डग-'तीन पैग वसुधा करी तऊ बावनै पेशी-स्त्री० [सं०] दे० 'पेशि'; [फा०] पेश होने या किये नाम-रहीम। जानेकी क्रिया या भाव; न्यायाधीशके सामने मुकदमेका | पैग़ाम-पु० [फा०] संदेसा, संवाद । -बर-पु० सँदेसा पेश होना; मुकदमे की सुनवाई ।-का मुहरिर-पेशकार ।। पहुँचानेवाला, एलची, दूत । पेशीनगोई-स्त्री० [फा०] होनेवाली बातको पहले ही बता पैग़ामी-पु० [फा०] दूत, संदेशवाहक । देना, भविष्यवाणी।
पैज*-स्त्री० टेक, पण, प्रतिज्ञा होड़ । पेश्तर-अ० [फा०] दे० 'पेशतर'।
पैजनिया -स्त्री० दे० 'पैजनी'। पेषण-पु० [सं०] पीसनेकी क्रिया, पिसाई (पिष्ट-पेषण); | पैजनी-स्त्री० पैरका पोला कड़ा जिसमें बजनेके लिए कुछ खरल ।
कंकड़ियाँ डाल दी जाती है। पेषणि, पेषणी-स्त्री० [सं०] सिल; चक्की खरल । पैजामा-पु० दे० 'पाजामा'। पेषना*-स० कि० देखना पीसना ।
पैज़ार-पु० [फा०] जूता । पेष्टा(ष्ट)-पु० [सं०] पीसनेवाला ।
पेठ-स्त्री० पैठनेकी क्रिया या भाव, प्रवेश; पहुँच, गति । पेस*-अ० दे० 'पेश' । -कस-स्त्री० दे० 'पेशकश' । पैठना-अ.क्रि प्रवेश करना, घुसना चुभना । पैंजना-पु. एक तरहका पैरका कड़ा।
पैठाना-सक्रि० प्रवेश कराना, भीतर पहुँचाना, घुसाना। पैजनियाज-स्त्री० दे० 'पैजनिया'।
पैठार*--पु. प्रवेश प्रवेश करनेका मार्ग, द्वार । पंजनी-स्त्री० दे० 'पैजनी' ।
पैठारी-स्त्री० प्रवेश, पैठ; पहुँच । पैंट-पु० [अं०] पायजामे जैसा अंग्रेजी पहनावा, पतलून। पैड-पु० [अं॰] सोख्ते, पत्र लिखने आदिके काम आने. पैठ-स्त्री० खोयी हुई हुंडीके स्थानपर लिखी गयी दूसरी वाले कागजकी गद्दी।
हुंडी; * बाजार, हाट; दुकान; बाजारका दिन । पैड़ी-स्त्री० सीढ़ी; मोट खींचते समय बैलोंके बार-बार पैठौर*-पु० दुकान, हाट ।
कुएं के पासतक आने और लौटने के लिए बना हुआ ढालवाँ पैड़-पु० डगराह, रास्ता ।
रास्ता वह जगह जहाँ कुएँ आदिसे निकाला हुआ सिंचाईपैंडा-पु० राह, रास्ता, पथ; रीति, चलन; घुड़सार । मु. का पानी ढाला जाता है। (4)पड़ना*-पीछे पड़ना।
पैतरा-पु० कुश्ती, पटेबाजी आदिमें प्रतिद्वद्वियोंका भिड़ने पत*-स्त्री० पासा; दाव, घात ।
या वार करनेके पहले एक दूसरेसे बचते हुए कलापूर्ण पैतरा-पु० कुश्ती लड़ने, हथियार चलाने आदिमें पैर। ढंगसे घूम-फिरकर विभिन्न मुद्राओंमें स्थित होना; चरणरखनेका ढंग।
चिह्न । (पैतरे)बाज़-वि० चालवाज |-बाज़ी-स्त्री० पैतरी*-स्त्री० जूती।।
चालबाजी । मु०-बदलना-कुश्ती, पटेबाजी आदिमें पैंतालीस-वि० चालीससे पाँच अधिक । पु० चालीससे धूम-फिरकर विविध मुद्राओं में स्थित होना; नयी चाल पाँच अधिककी संख्या, ४५ ।।
चलना; नया हाथ दिखाना। पती-स्त्री० दे० 'पवित्री'; ताँबे आदिकी बनी मुंदरी जिसे पैसाना-पु० दे० 'पायँता'। पवित्रताकी दृष्टिसे अनामिकामें पहनते हैं ।
पैतामह, पैतामहिक-वि० [सं०] पितामह-संबंधी; पितापैंतीस-वि० तीससे पाँच अधिक । पु० तीससे पाँच अधिक- महसे प्राप्त । की संख्या, ३५।
पैतृक-वि० [सं०] पिताका; पितासे प्राप्त; पूर्वजोंका; पूर्वजोंपैयाँ*-स्त्री० पैर, पाँव ।
से प्राप्त, मौरूसी। पैसठ-वि० साठसे पाँच अधिक । पु० साठसे पाँच अधिक- | पैत्त, पैत्तिक-वि० [सं०] जो पित्तके प्रकोपसे हुआ हो, की संख्या , ६५ ।
पित्तजनित । पै*-अ० परंतु, लेकिन अवश्य पश्चात् , बाद पासओर, पैदल-वि० पाँव-पाँव चलनेवाला, बिना सवारीके चलनेतरफ । प्र० ऊपर, पर से । स्त्री० ऐब, दोष । पु०दे० पय'। वाला । अ० पा-प्यादे, पाँव-पाँव । पु० पा-प्यादे चलना -हारी-पु० केवल दूधपर रहनेवाला साधु ।
पा-प्यादे चलनेवाला सिपाही; शतरंजका एक मुहरा जो पैकरमा*-स्त्री० दे० 'परिक्रमा ।
सीधे चलता है और आड़े मारता है। पैका-पु. [अं॰ 'पाइका'] एक विशेष आकारका छापेका पैदा-वि० [फा०] उत्पन्न; जो खड़ा हुआ हो; घटित, प्रादुटाइप; * पैसा 'पैका-पैका जोड़ता जुड़सी लाप करोडि'- भूत; कमाया हुआ, उपार्जित । । स्त्री० आमद, आय । कबीर ।
-वार-स्त्री० खेतीकी उपज । पैकार-पु० [फा०] फुटकर माल बेचनेवाला व्यापारी। पैदाइश-स्त्री० [फा०] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव ।। पैकारी-पु० दे० 'पैकार'।
पैदाइशी-वि० [फा०] जन्मजात, सहज, कुदरती । पैखाना-पु० दे० 'पायखाना'।
पैना-वि० जिसकी धार बहुत तेज हो, तीक्ष्ण; (ला०) पैगंबर-पु० [फा०] ('पैगामवर'का अल्पार्थक) मनुष्योंके भीतग्तक जानेवाला; जो भीतरतककी वस्तुको देख सके। पास ईश्वरका सँदेसा पहुँचानेवाला, ईश्वरका दूत, नबी। पु० बैल हाँकनेकी छड़ी; अंकुश । पैगंबरी-वि० [फा०] पैगंबरका । स्त्री० पैगंबरका काम | पैनाना-स० कि० छुरी आदिकी धार तेज करना, टेना । या पद।
पैमाइश-स्त्री० [फा०] मापनेकी क्रिया; जमीन मापनेकी
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पैमाना-पौंछना
४९८ क्रिया।
पैला*-वि० परला (पहला); दूसरा । पैमाना-पु० [फा०] वह साधन जिसमे कोई वस्तु मापी पैवंद-पु० [फा०] कपड़े आदिका वह टुकड़ा जिसे टाँककर जाय, मानदंड।
अंगरखे आदिका छेद बंद किया जाता है, चकती; किसी पैमाल-वि० दे० 'पामाल' ।
पेड़को फलके आकारको बढ़ाने या उसके स्वादमें विशेषता पैयाँ*-स्त्री० पैर, पाँव ।
लानेके लिए उसकी टहनीमें दूसरे सजातीय पेड़की टहनी पेया-पु० सारहीन अन्न, अनाजका वह दाना जिसमें बीज- काटकर बाँध देनेकी क्रिया; सगा-संबंधी, स्वजन ।-कारभाग न हो; अकिंचन मनुष्य * पहिया।
पु० पैवंद लगानेवाला । -कारी-स्त्री० पैवंद लगानेकी पैर-पु० शरीरका वह प्रसिद्ध अंग जिसके बलपर जंगम क्रिया। प्राणी स्थित होते और चलते हैं, चरण; पैरका निशान । पैवंदी-वि० [फा०] पैवंद लगाकर तैयार किया हुआ, -गाड़ी-स्त्री० पैरसे चलायी जानेवाली गाड़ी (साइकिल | कलमी; दोगला । धु० शफतालू । आदि)।मु०-उखड़ जाना-टिक न सकना, पराजित | पैवस्त-वि० [फा०] पूरी तरह व्याप्त, भिदा हुआ या जज्ब । होना। -उठाना-रवाना होना; तेजीसे चलना। -का पैशाच-वि० [सं०] पिशाच-संबंधी; पिशाचका; पिशाचनाखन न देखना-सूरत न देखना ।-छना-पाँव पड़ना कृत; पिशाचोचित । पु० एक प्रकारका हीन विवाह जिसमें दीनता प्रकट करना ।-जमना-स्थिर होना, दृढ़ होना। किसी सोयी हुई या प्रमत्त कन्याका कौमार हरण करने-डालना-दखल देना।-तोड़कर बैठना-कहीं जाना- वाला उसके पतित्वका अधिकारी हो जाता है (स्मृति) । आना बंद करना। -तोड़ना-चलते-चलते थक जाना; पैशाचिक-वि० [सं०] पिशाच-संबंधी; पिशाचका; करता.. दौड़-धूप करना । -धरना,-रखना-कदम रखना, | पूर्ण, घोर (ला०)। चलना । (धरतीपर)-न रखना-इतराना ।-निका- | पैशाची-स्त्री० [सं०] प्राकृत भाषाका एक भेद । लना-पीछा छुड़ाना ।-पकड़ना-पैर छना; कहीं जानेसे , पैशुन्य-पु० [सं०] पिशुनता, चुगलखोरी; दुष्टता। रोकना ।-पसारना,-फैलाना-आरामसे लेटना; आडं- पैष्ट-वि० [सं०] आटेका बनाया हुआ, आटेसे तेयार बर फैलाना ।-फंसाना-अपने आपको संकट में डालना। किया हुआ। -बढ़ाना-चलना; सीमोलंघन करना। -भर जामा- पैष्टिक-वि० [सं०] आटेका बना हुआ । पु० एक प्रकारकी थक जाना। -भारी होना-गर्भ रहना ।-से पैर बाँध- सुरा।। कर रखना-साथ रखना, कहीं जाने न देना । पैरौं | पैसना-अ० क्रि० घुसना, प्रविष्ट होना । चलना-पैदल चलना।
पैसरा*-पु० झमेला, झंझट । पैरना-अ० क्रि० तैरना।
पैसा-पु० ताँबेका वह सिक्का जो आनेके चौथे और रुपयेके पैरवी-स्त्री० [फा०] पीछे-पीछे जाना, अनुगमन; मुकदमे- चौसठवें भागके बराबर होता है; द्रव्य, धन । ( की देखरेख कोशिश; खुशामद (हिं०)। -कार-पु० वाला-वि० धनी, मालवर, सर्राफ । पैरवी करनेवाला।
पैसा-पु० प्रवेश, पैठ; घुसने-पैठनेका मार्ग । पैरा-पु० रखे हुए चरण, कदम आगमन; पैर में पहननेका पैसेंजर-पु० [अं०] यात्री। -गाड़ी-स्त्री० [हिं०] सवारी एक प्रकारका कड़ा; लकड़ी आदिका बना हुआ आरोहण- ढोनेवाली रेलगाड़ी। मार्ग ।
पैहम-स्त्री० [फा०] निरंतर, लगातार । पैराई-स्त्री० पैरनेकी क्रिया या भाव; तैरनेका हुनर पौं-स्त्री० भोंपा भोंपेकी आवाज; अपानवायु निकलनेका तैरनेकी उजरत।
शब्द । पैराउ*-पु० दे० 'पैराव'।
पौंकना -अ० क्रि० पतला पाखाना फिरना; बहुत अधिक पैराक-पु० तैरनेवाला, तैराक ।
डरना । पु० चौपायोंकी दस्तोंकी बीमारी । पैराना-स० कि० किसीको तैरने में प्रवृत्त करना, तैराना। पौंगरा*-पु० बालक, बच्चा (कबीर)। पैराव-पु० नदी आदिमें वह स्थान जो केवल तैरकर पार | पौंगली-स्त्री० बाँस, नरकट आदिकी चोंगी। किया जा सके।
पौंगा-पु० बाँसकी नली; टिन आदिका चोंगा। वि. पैरी-स्त्री० काँसे आदिका पैरका एक चौड़ा गहना जिसे खोखला; अश, मूर्ख। -पंथी-स्त्री० मूर्खतापूर्ण कार्य, निम्न जातिकी स्त्रियाँ पहनती हैं। दाँनेके लिए फैलाये हुए ढोंग । वि० मूर्खतापूर्ण, ढोंगी। अनाजके पौधे दाँनेकी क्रिया; * सीढ़ी; पीढ़ी, पुश्त । पौगी-स्त्री० छोटी नली; जुलाहोंका एक नरसलका आला पैरेखना*-स० क्रि० दे० 'परेखना।
जिसपर सूत लपेटकर वे ताना, भरना करते हैं; बाँसकी पैरोकार-पु० दे० 'पैरवीकार'।
छोटी नली जो बेनेकी डाँडीमें उस ओर पहनायी रहती है पैरोल-पु० [अं॰] वर्जित कार्य न करने, नियत समयपर जिधरसे पकड़कर उसे डुलाते हैं। बाँस आदि पोली और फिर हाजिर होने आदिकी प्रतिज्ञा जिसके आधारपर राज- गांठदार वस्तुओंका दो गाँठोंके वीचका भाग; * तुमड़ी। मंदी दंडकी अवधि पूरी होनेके पहिले भी विशेष कारणवश पौंछ*--स्त्री० दे० 'पूँछ' ।। कुछ समयके लिए मुक्त कर दिया जाता है।
पौंछन-स्त्री. किसी लगी, सटी हुई वस्तुका पोंछनेसे पैलगी -स्त्री० पालागन, चरणस्पर्शके साथ किया हुआ | निकला हुआ भाग। प्रणाम; प्रणाम ।
पौंछना-सक्रि० किसी वस्तुपर हाथ, कपड़ा आदि फेरकर
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पोआ-पोदीना उसपर लगा हुआ तरल पदार्थ उठा लेना या धूल आदि । (शिप-बिल्डिग इंडस्ट्री) जहाज बनाने, तैयार करनेका साफ कर देना । पु० पोंछनेके काम आनेवाला कपड़ा। । उद्योग या व्यवसाय। -भंग-पु० जहाजका चट्टानसे पोआ-पु० साँपका छोटा बच्चा, सँपोला ।
टकराकर ध्वस्त हो जाना। -संतरण-पु. (लॉचिंग ए पोआना-स० क्रि० किसीसे पोनेका काम कराना; रोटी शिप) किसी नये बने हुए जहाजको पानीमें उतारना या गढ़-गढ़कर पकानेवालेको देना।
तैराना। पोइया-स्त्री० घोड़ेकी सरपट चाल ।
पोत-पु० कपड़ेकी बुनावट; ढंग, तरीका; लगान; बारी, पोइस*-स्त्री० सरपट ।
अवसर । स्त्री० काँचका छोटा दाना। -दार-पु. वह पोई-स्त्री० एक लता जिसमें पानके आकारकी मोटे दल- जिसके पास लगानका रुपया रखा जाता है, खजानची वाली पत्तियाँ लगती है; अँखुआ; ईखका कल्ला; गेहूँ, खजाने में रुपये परखनेका काम करनेवाला कर्मचारी, ज्वार आदिका नरम पौधा।
पारखी। मु०-पूरा करना-जैसे-तैसे कोई काम पूरा पोख-पु० पालन-पोषण करनेका संबंध ।
करना। पोखना*-स० क्रि० पालन-पोषण करना, पोसना। अ० पोतड़ा-पु० छोटे बच्चोंके चूतड़के नीचे बिछाया जानेवाला कि गाय-भैस आदिका ब्यानेका समय समीप आनेपर कपड़ा, गॅड़तरा । (पोतडौँ)के अमीर (रईस)-खानबदन ढीला पड़ना।
दानी अमीर, रईस, ऐसा अमीर जिसका बाप भी अमीर पोखरा-पु० तालाब + पैखाना ।
रहा हो। पोखरी-स्त्री० छोटा तालाब ।
पोतन-वि० [सं०] पवित्र, शुद्ध पवित्र करनेवाला । पोगंड-पु० [सं०] पाँवसे दस (किसी-किसीके मतसे १६) पोतनहरी-स्त्री० चौका लगानेकी घोली हुई मिट्टी और बरसतककी उम्रका लड़का; वह जिसका कोई अंग छोटा-बड़ा पोतना रखनेके काम आनेवाला बरतन । या न्यूनाधिक हो । वि०अल्पवयस्क,जो अभी जवान न हो। पोतना-स० क्रि० किसी तरल वस्तुको अन्य वस्तुपर पांच-वि० नीच, अधम; तुच्छ । स्त्री० खोटाई, नीचता। | फैलाकर लगाना, चुपड़ना; किसी वस्तुपर किसी गीले पोची*-स्त्री० खोटाई नीचता।
या सूखे पदार्थको इस प्रकार लगाना कि उसपर उसकी पाट-स्त्री० गठरी, मोटरी राशि, ढेर, पुंज ।
तह जम जाय, लेप करना; मिट्टी, गोबर आदिसे लीपना। पोटना*-स० क्रि० समेटना; अपने हाथमें करना । पु० पोतनेके काम आनेवाला कपड़ा। पोटरी*-स्त्री० दे० 'पोटली'।
पोतला-पु. पराठा। पोटल, पोटलक-पु०, पोटलिका-स्त्री० [सं०] पोटली।पोता-पु० बेटेका बेटा, पौत्र, अंडकोष; लगान; पोतनेका पोटला-पु० बड़ी गठरी ।
कपड़ा; पोतने के लिए तैयार की गयी मिट्टी; चूना फेरनेके पोटली-स्त्री० छोटी गठरी; छोटेसे वनमें कसकर बाँधी काम आनेवाली कूची; * कलेजा, बूता, सामर्थ्य । मु०हुई थोडीसी वस्तु।
फेरना-दीवारपर चूने आदिकी पोताई करना; बरबाद पोटा-पु० पेटकी थैली; आँखकी पलक; उँगलीका सिरा कर देना, चौपट करना। हिम्मत, मजाल, कूबत; चिड़ियाका वह बच्चा जिसे अभी पोता(त)-पु० [सं०] सोलह प्रकारके ऋत्विजों में से एक । पर न निकले हों; नाकका मल । स्त्री० [सं०] पुरुषके | पोताई-स्त्री० पोतनेका काम; पोतनेकी उजरत ।। लक्षणोंसे युक्त स्त्री; दासी; वह मनुष्य या जानवर जिसमें पोताच्छादन-पु० [सं०] वस्त्रकुटीर, खेमा, रावटी। नर और मादा दोनोंके लक्षण हों।
पोताधिरोध-पु० [सं०] (एंबागों) किसी देशके नौ-सेनापोटाश-पु० [अं॰] एक क्षार जो खानसे निकलता है विभाग द्वारा बंदरगाहोंपर अन्य देशके जहाजोंके आने और लकड़ीकी राखसे भी तैयार किया जाता है।
या वहाँसे जानेपर कुछ समयके लिए लगाया गया पोटी-स्त्री० पेटकी थैली कलेजा।
प्रतिबंध। पोहलिका, पोट्टली-स्त्री० [सं०] पोटली।
पोतारा-पु० दे० 'पुतारा। पोढ़-वि० दे० 'पोढ़ा।
पोतारी-स्त्री० पोतनेके काम आनेवाला कपड़ा। पोढ़ा-वि० दृढ़, मजबूत; कड़ा, कठिन ।
पोतिका-स्त्री० [सं०] पोई नामकी लता; वस्त्र। पोढ़ाना -अ० क्रि० दृढ़ होना, मजबूत होना, पुष्ट होना। पोतिया-पु० तंबाकू, चूना आदि रखनेकी थैली जिसे इन स० क्रि० दृढ़ बनाना, पुष्ट बनाना।
वस्तुओंका सेवन करनेवाले साथमै लिये रहते हैं। एक पोत--पु० [सं०] जानवरका बच्चा, पशुशावक; दस वर्षकी | तरह का खिलौना पहनकर नहानेका कपड़ेका टुकड़ा। उम्रका हाथी; नाव, जहाज, वस्त्र, कपड़ा; घर या मकान-पोती-स्त्री० बेटेकी बेटी, पौत्री; हँडियाको कड़ी आँचसे की नी; कोंपल; वह भ्रूण जिसपर अभी झिल्ली न पड़ी बचानेके लिए उसकी पेंदीपर किया जानेवाला मिट्टीका हो । -घाट-पु० [हिं०] (पीर) पत्थर, लोहे या लकड़ी- लेप; अर्क, मद्य चुआते समय भबकेपर फेरा जानेवाला का बना वह चबूतरा जैसा ढाँचा जो समुद्रकी तरफ फैला पानीका पुतारा पुतारा फेरनेकी क्रिया; * गुरिया । हो और जिसपर जहाजसे उतरने में आसानी हो। पोथा-पु० कागजकी बड़ी गडी; बड़ी पोथी। -धारी(रिन्)-पु० जहाजका मालिक । -ध्वज-पु० | पोथी-स्त्री० पुस्तक, ग्रंथ; लहसुनकी गाँठ । (एनसाइन) जहाजपर फहरानेवाला राष्ट्रविशेष या नौदल- पोदना-पु. एक छोटी चिड़िया; नाटा आदमी। विशेषका परिचायक ध्वज। -निर्माण उद्योग-पु.पोदीना-पु० दे० 'पुदीना'।
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पोद्दार-पीनार
५०० पोहार-पु० मारवाड़ी वैश्योंकी एक उपाधि; पोतदार। पोष्टा(ष्ट)-वि० [सं०] पोषण करनेवाला । पोना-स० कि० लोईसे रोटी गढ़ना; (रोटी) पकाना; पोष्य-वि० [सं०] पोषणके योग्य, पालने योग्य; अभ्युदय गूंथना, पिरोना।
करनेवाला; प्रभूत । -पुत्र-सुत-पु० 'वह जो पुत्रकी पोप-पु० [अं०] ईसाइयोंके रोमन कैथोलिक संप्रदायका तरह पाला गया हो, दत्तक । प्रधान धर्माचार्य ।-लीला-स्त्री० [हिं०] धर्मका आडंबर | पोस-पु. पोसनेकी क्रिया या भावः पालनेका नाता; फैलाना।
पालनेका उपकार । पोपला-वि० जिसमें पोल हो, जो भीतरसे खाली हो पोसती-पु० अफीमची । बिना दाँतका (मुँह); जिसके मुँहमें दाँत न हों। पोसन*-पु० दे० 'पोषण' । पोपलाना-अ० क्रि० पोपला होना।
पोसना-स० क्रि० आहार आदि देकर बड़ा करना, पालन पोपली-स्त्री० अमोलेकी जड़में लगी हुई आमकी गुठलीको करना; ढाँकना, छिपाना-'मोरि मुखै करसों कुच पोंसे' घिसकर बनाया जानेवाला बाजा जिसे लड़के बजाते हैं। -सुधानिधिः पोंछना । पोया-पु० कोंपल; सँपोला; नन्हा बच्चा।
पोस्ट-स्त्री० [अं॰] स्थान, जगह पद नौकरी; खंभा: डाक; पोयाबोई-स्त्री० छलकपटकी बातें ।
पत्रवाहक । -आफिस-पु० डाकघर, डाकखाना, पत्रापोर-स्त्री० उँगलीकी गाँठ; उँगलीका दो गाँठोंके बीचका लय । -कार्ड-पु० डाकखानेसे खरीदा जानेवाला वह
भाग ईख, बाँस आदिमें दोगाँठोंके बीचका भाग; * पीठ। मोटे कागजका टुकड़ा जो पत्र व्यवहारके काम आता है। पोल-स्त्री० किसी वस्तुके भीतरकी खाली जगह, अवकाश -बाक्स-पु० किसीकी डाक या चिट्ठियाँ सुरक्षित रखनेनिःसारता, खोखलापन (ला०); प्रवेशद्वार । -दार-वि० के लिए विशेष रूपसे रखी गयी पेटी । -मास्टर-पु० पोला, खोखला । मु. (किसीकी)-खुलना-किसीका डाकघरका प्रधान कर्मचारी, पत्रपाल । -मास्टर जेनरल छिपा हुआ दोष प्रकट होना। (किसीकी)-खोलना- -पु० किसी प्रांतके डाक विभागका सबसे बड़ा अधिकारी। किसीके छिपे हुए दोपको प्रकट करना।
-मैन-पु० डाकखानेका वह कर्मचारी जो लोगोंके यहाँ पोला-वि. जो भीतरसे खाली हो, खोखला, निसार, उनकी चिट्ठियाँ पहुँचाता है, डाकिया, पत्र-वितरक । निस्तत्त्व; जिसका भीतरी भाग कड़ा या ठोस न हो, जो पोस्टर-पु० [अ०] किसी कागजपर बड़े अक्षरोंमें छपी हुई दबाव पड़नेसे दब या पचक जाय, पुलपुला । पु० परेती- वह नोटिस जो जनताकी जानकारीके लिए जगह-जगह पर सूत लपेटनेसे तैयार होनेवाला लच्छा + एक पेड़।। दीवार आदिपर चपका दी जाती है। पोलिका, पोली-स्त्री० [सं०] एक प्रकारकी पूरी, पूआ। पोस्त-पु० [फा०] खाल, चमड़ा, छिलका; छाल; तह, पोलिया-स्त्री० औरतोंका पैर में पहननेका एक पोला गहना। परत; अफीमका पौधा; इस पौधेका डोंड़ा। पु० पौरिया।
पोस्ता-पु० एक पौधा जिसके डोंडेसे अफीम निकलती है, पोलो-पु० [अं०] गेंदका एक खेल जो घोड़ेपर चढ़कर | अफीमका पौधा। खेला जाता है, चौगान ।
पोस्तीन-पु० [फा०] पामीर, तुर्किस्तान और मध्य एशियापोवना*--स० क्रि० दे० 'पोना।
के लोगोंका एक प्रकारका पहनावा जो समूर आदि जानपोश-पु० [फा०] पहननेकी चीज, कपड़ा; पहननेवाला, वरोंके बालदार चमड़ेसे बनाया जाता है। बालदार चमड़े
ढकनेवाला (नकाबपोश, पलंगपोश) (समासांतमें)। का कोट । पोशाक-स्त्री० [फा०] पहनावा, लिबास । मु०-बढ़ाना- | पोहना -स० कि. गूंथना, पिरोना; भेदना, छेदना; कपड़े उतारना।
चढ़ाना, लगाना; जमाना, बैठाना । पोशीदगी-स्त्री० [फा०] गुप्त होनेका भाव, छिपाव । पोहमी*-स्त्री० पृथ्वी। पोशीदा-वि० [फा०] गुप्त, छिपा हुआ।
पौंड-पु० दे० 'पाउंड' । -पावना-पु० (स्टर्लिंग बैलेंसेज) पोष-पु० [सं०] पोसनेकी क्रिया, पालन; पुष्टि; वृद्धि (अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यादिके परिणामस्वरूप) ब्रिटेनमे किसी * संतोष ।
देशके पावनेकी बह रकम जो बैंक आफ इंग्लैंडमें जमा पोषक-पु० [सं०] पोषण करनेवाला; बढ़ानेवाला, वर्दूक, रहती है और जो उसके साथ हुए समझौतेकी शोंके
सहायक । -तत्व-पु० (विटामिन) दे० 'खाद्योज'। अनुसार क्रमशः चुकायी जाती है। पोषण-पु० [सं०] पोसनेकी क्रिया, पालन; वर्द्धन । पौंडरीक-वि० [सं०] कमल-संबंधी; कमलका; कमलका पोषना*-स० क्रि० पोषण करना, पालना।
बना हुआ। पु० स्थलपद्म; एक प्रकार कु.ष्ठ । पोषयिता(त)-वि०, पु० [सं०] पोषण करनेवाला। पौड़ा, पौदा-पु० मोटे छिलके और अधिक रसवाली एक पोषिका-स्त्री० [सं०] (एलिमेंटर! कैनाल ) गलेके नीचेसे प्रकारकी लंबी और मोटी ईख । शुरू होनेवाली नली जिससे भोजन पेटमें पहुँचता है और पौंड-पु० [सं०] एक प्राचीन देश; इस देशका निवासी या जो आगे छोटी तथा बड़ी अंतड़ियोंसे मिल जाती है। राजा; एक प्रकारको ईख, पौड़ा; भीमसेनका शंख, सांप्रदापोषित-वि० [सं०] जिसका पोषण किया गया हो, पाला यिक चिह्न एक संकीर्ण जाति (मनु०)। हुआ।
पौड्क-पु० [सं०] पौड़ा, ईख; एक संकर जाति । पोषिता(त)-वि०, पु० [सं०] पोषण करनेवाला, पोषक । पौंदना-अ० कि० दे० 'पौढ़ना। पोषी(पिन)-वि०, पु० [सं०] पोषण करनेवाला, पोषक ।। पौनार-स्त्री० दे० 'पीनार'।
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पीतवापचार - पु० [सं०] कम तौलना, डाँड़ी मारना (को०)। पौतिक- वि० [सं०] दुर्गंधवाले द्रव्यका बना हुआ; (सेप्टिक) ( वह व्रण) जिसमें दुर्गंध या सड़न पैदा हो गयी हो । पौत्र - वि० [सं०] पुत्रसंबंधी; पुत्रका | पु०बेटेका बेटा, पोता। पौत्रिक - वि० [सं०] पुत्र-संबंधी ; पौत्र-संबंधी | पौत्रिकेय - पु० [सं०] पुत्रके स्थानपर माना हुआ कन्याका पुत्र ।
पौत्री - स्त्री० [सं०] पोती; दुर्गा ।
पौद - स्त्री० छोटा पौधा; एक स्थान से उखाड़कर दूसरे स्थानपर लगाने लायक छोटा पौधा; संतान; उपज; * पाँवड़ा । [नयी पौद - नयी पीढ़ी ।]
५०१
पौरना + - अ० क्रि० तैरना । परि, पौरी* - स्त्री० पौरी । परिया* - पु० दे० 'पौरिया' । पौंश्चलीय - वि० [सं०] कुलटा-संबंधी; कुलटाका | पाँसरा--पु० दे० 'पौसला' । पौ - स्त्री० प्रातःकालका प्रकाश; पौसला, प्याऊ; पासेका एक दाँव । * पु०जड़; पाँव । मु०-फटना - तड़का होना । - बारह पढ़ना - पासे में जीतका दाँव पड़ना; लाभका मौका मिलना । - बारह होना- पासेमें जीतका दाँव पड़ना; विजय होना; लाभ ही लाभ होना; खूब बन आना । पौआ-पु० सेरका चौथा हिस्सा मिट्टी या धातुका वह बरतन जिसमें पावभर दूध, पानी आदि अँटे । पौगंड - पु० [सं०] पाँच से दस (किसी-किसी के मत से सोलह ) वर्षतककी अवस्था, पोगंडावस्था । वि० बालोचित; बालकों जैसा ।
पीठ - स्त्री० जमीनका एक तरहका बंदोबस्त जिसमें खेत हर साल नये काश्तकारको जोतनेके लिए दिया जाता है। पौड़ना * - -अ० क्रि० दे० 'पौढ़ना' ।
पौड़ना - अ० क्रि० लेटना; झूलना ।
पौढ़ाना - स० क्रि० सुलाना, लेटाना; झुलाना ।
पौतवाध्यक्ष - पु० [सं०] मालकी तौलकी देखरेख करने पौराण - वि० [सं०] प्राचीन कालका; पुराण-संबंधी; पुराणका;
वाला अधिकारी (कौ० ) ।
पौदर - स्त्री० पैरका निशान, चरणचिह्न; लोगों के पैदल चलनेसे बनी हुई राह, पगडंडी; कोल्हूके चारों ओरका वह मार्ग जिससे होकर उसे खींचनेवाला बैल घूमा करता है; मोट खींचनेवाले बैलोंके कुएँके पासतक बार-बार आने जानेका ढालवाँ रास्ता । पौदा - पु०दे० 'पौधा'; बुलबुलकी कमर में बाँधा जानेवाला फुंदना । -गाह - पु०, स्त्री० वह जगह जहाँ छोटे पौधे लगे हों ।
|
पौध-स्त्री० उपज, पैदाइश ।
पौधा - पु० छोटा पेड़; नया पेड़ । पौधि* - स्त्री० दे० 'पौद' ।
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परना - पौला
पौना- पु० पौनका पहाड़ा; गोल और चिपटे सिरेकी छेददार या बिना छेदवाली लोहे आदिकी कलछी । पौनार - स्त्री० कमलकी नाल । पौनारि - स्त्री० दे० 'पौनार' |
पौनी-स्त्री० नाई, बारी आदि जिन्हें विवाह आदि मांगलिक अवसरों पर इनाम दिया जाता है; छोटा पौना । पौने - वि० जो किसी संख्याका तीन चौथाई हो (संख्यावाचक शब्दों के साथ - जैसे पौने तीन - २१) । पौमान* - पु० दे० 'पवमान'; जलाशय । पोरंध्र - वि० [सं०] स्त्री-संबंधी ।
पौर- *स्त्री० ड्योढ़ी । वि० [सं०] पुर-संबंधी; नगरका; जो नगर में पैदा हुआ हो । पु० पुरवासी, नागरिक । -कार्यपु० नगर-संबंधी कार्य; जनताका कार्य । -जन-पु० नागरिक । -जनपद-वि० नगर और जनपदका । - मुख्यपु० नगरका प्रमुख व्यक्ति । वृद्ध-पु० प्रमुख नागरिक । - सख्य- पु० एक नगरका नागरिक होना, सहनागरिकता । पौरना - अ० क्रि० तैरना ।
पौरव - वि० [सं०] पुरु-संबंधी; पुरुका; पुरुके गोत्र में उत्पन्न । पौरांगना - स्त्री० [सं०] नगरकी स्त्री, नागरी । पौरा+ - पु० रखे हुए चरण, कदम, आगमन ।
जिसका कथन या उल्लेख पुराण में हो । पौराणिक - वि० [सं०] दे० 'पौराण'; पुराणोंका जानकार । पु० पुराणका जानकार व्यक्ति; पुराणवाचक | पौरिक - पु० [सं०] नागरिक; नगरका शासक | पौरिया - पु० ड्योढ़ीदार, द्वारपाल ।
पोरी - स्त्री० मकानका वह कोठरी या गलीकी तरहका भीतरी भाग जो प्रवेश करते ही पड़ता है, ड्योढ़ी; खड़ाऊँ । पौरुष - वि० [सं०] पुरुष संबंधी; : पुरुषका । पु० पुरुषका भाव, पुरुषत्व; पुरुषार्थ; शुक्रः उद्यमः पराक्रमः ऊँचाई या गहराई की एक नाप, पुरसा; एक आदमीके ले जानेभरका बोझ ।
पौरुषेय - वि० [सं०] पुरुष संबंधी; पुरुषका; मानवीय, मनुष्यका बनाया हुआ मनुष्यकृत । पौरुष्य - पु० [सं०] साहस, मरदानगी । पौरोहित्य- पु० [सं०] पुरोहितका पद या कर्म । पौर्णमासिक - वि० [सं०] पूर्णिमा-संबंधी पूर्णिमा के दिन होनेवाला ।
पौर्णमासी - स्त्री० [सं०] पूर्णिमा,पूनो । पौर्णमी, पौर्णिमा - स्त्री० [सं०] पूर्णिमा, पूनो । पौर्व - वि० [सं०] पहलेका; पूरबी ।
पौर्वापर्य - पु० [सं०] पूर्वापरका भाव, पूर्वापरत्व; अनुक्रम । पौर्वाह्निक- वि० [सं०] पूर्वाह्न संबंधी ; पूर्वाह्न में किया जानेवाला ।
पौल-स्त्री० रास्ता; सिंहद्वार । पौलना* - स० क्रि० काटना |
पौनःपुनिक- वि० [सं०] बार-बार होनेवाला । पौनःपुन्य- पु० [सं०] अनेकशः आवृत्ति, बार-बार होना । पौन - पु०, स्त्री० हवा, वायु; जीव, प्राण, भूत, प्रेत । वि० तीन-चौथाई, पूर्णसे चतुर्थांश कम । पौनरुक्त, पौनरुक्त्य - पु० [सं०] दुबारा उक्त होनेका भाव, पौला - पु० एक प्रकारकी खड़ाऊँ जिसमें खूँटीकी जगह आवृत्ति ।
पौलस्त्य - वि० [सं०] पुलस्त्य-संबंधी; पुलस्त्य के गोत्र में उत्पन्न । पु० रावण; कुबेर; विभीषण; चंद्रमा ।
रस्सी लगी रहती है ।
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पौलिया - प्रकाश
पीलिया - पु० दे० 'पौरिया' ।
पौली - स्त्री० पौरी, ड्योढ़ी; पैरका एड़ीसे पंजेतकका भाग । पौलोमी - स्त्री० [सं०] इंद्रकी पत्नी शची, इंद्राणी । पौवा - पु० सेरका चौथा भाग; पावभरका बाट; एक पाव दूध, तेल आदि अँटने भरका बरतन ।
पौष - पु० [सं०] पूसका महीना; एक त्यौहार; युद्ध | पौष्कल्य- पु० [सं०] प्रचुरता; परिपूर्णता; पूर्ण वृद्धि । पौष्टिक - वि० [सं०] पुष्टिकर, शक्तिवर्धक । पौष्प - वि० [सं०] पुष्प-संबंधी; फूलों का बना हुआ, फूलोंसे तैयार किया हुआ ।
पौसरा, पौसला - पु० वह स्थान जहाँ प्यासोंको धर्मार्थ पानी पिलाया जाता है, सबील । पौहारी - वि० दे० 'पैहारी' ।
प्यास - स्त्री० शरीरकी वह आवश्यकता जो पानी पीने से शांत होती है, पानी पीनेकी इच्छा, तृषा; किसी वस्तुकी प्रबल चाह, उत्कट इच्छा । मु०-बुझाना-पानी पीकर प्यास दूर करना; किसी उत्कट इच्छाकी पूर्ति करना । प्यासा - वि० जिसे प्यास लगी हो, पिपासार्त । प्यूनी - स्त्री० दे० ' पूनी' ।
प्यो* - पु० पति, स्वामी ।
प्यो सर* - पु० हालकी ब्यायी हुई गायका दूध । प्योसार* - ५० स्त्रीका पितृगृह, मायका । यदा - पु० पैबंद; धिगली; वृक्षोंकी लगायी जानेवाली
कलम ।
प्योर* - पु० प्रियतम, पति, कांत ।
प्रकट - वि० [सं०] जो सामने हो, प्रत्यक्ष जाहिर, स्पष्ट; जिसका प्रादुर्भाव हुआ हो, प्रादुर्भूत; जो गुप्त न हो, व्यक्त । * अ० प्रकाश्य रूपमें, सबके सामने । प्रकटना* - अ०क्रि० प्रकट होना । स० क्रि० प्रकट करना । प्रकटित - वि० [सं०] प्रकाशित, प्रकट किया हुआ । प्रकटीकरण - पु० [सं०] प्रकट करनेकी क्रिया, प्रकट करना ।
प्याऊ - पु० दे० 'पौसला' ।
प्याज - पु० [फा०] उत्कट गंधवाला एक प्रसिद्ध मूल जो | प्रकटीभवन- पु० [सं०] प्रकट होनेकी क्रिया, प्रकट होना । तरकारी, मसाले और दवा के काम आता है ।
प्याज़ी - वि० [फा०] प्याजके रंगका, हलका गुलाबी । प्यादा - पु० [फा०] पैदल चलनेवाला सिपाही, पैदल सिपाही; दूत; शतरंजका एक मोहरा जो सीधे चलता है और आड़े मारता है, पैदल ।
प्रकरण - पु० [सं०] निर्माण, रचना, वर्णन, प्रतिपादन; प्रसंग, संदर्भ; किसी ग्रंथ या पुस्तकका वह भाग जिसमें किसी एक विषयका प्रतिपादन हो, परिच्छेद; वह ग्रंथ जिसमें किसी शास्त्र के सिद्धांतका प्रतिपादन हो; एक प्रकारका शृंगारप्रधान नाटक ।
प्यार - पु० प्रेम, प्रीति, मुहब्बत प्रेमसूचक स्पर्श, चुंबन प्रकरिका - स्त्री० [सं०] आगेकी घटनाएँ स्पष्ट करने के लिए आदि; लालन, लाड़-चाव ।
प्यारा - वि० जिसे प्यार किया जाय, जो प्रेमका पात्र हो, प्रिय; अच्छा लगनेवाला; जिसे त्यागनेका जी न चाहे, जिसके प्रति बहुत अधिक ममता हो; * महँगा । प्याला- पु० [फा०] पीनेका बरतन, पान-पात्र; जल, दूध, मद्य आदि पीनेका एक बिना गलेका छोटा चिपटा वरतन जिसका ऊपरी भाग पेंदेसे अधिक चौड़ा होता है, छोटा कटोरा, जाम; जुलाहोंका नरी भिगोनेका मिट्टीका बरतन; तोप या बंदूक में रंजक रखनेकी जगह; खप्पर जिसमें भिक्षुक भीख माँगते हैं । मु०- देना - शराब पिलाना । - पीना या लेना- शराब पीना । बहना - गर्भपात होना । - भरना - आयु पूरी होना; पराकाष्ठा हो जाना । प्यावना* - स० क्रि० दे० 'पिलाना' ।
बीच में रखी जानेवाली घटना, प्रासंगिक कथावस्तु । प्रकरी - स्त्री० [सं०] एक तरहका गान; आँगन; चौराहा; एक तरहकी प्रासंगिक कथावस्तु ( ना० ) । प्रकर्ष - पु० [सं०] उत्कर्ष; उत्तमता; अतिरेक, अधिकता; खींचनेकी क्रिया; शक्ति; विस्तार; विशेषता । प्रकर्षण- पु० [सं०] अशांत करना; खींचना; हल चलाना । प्रकला - स्त्री० [सं०] कला (समय) का साठवाँ भाग । प्रकांड - पु० [सं०] वृक्ष; वृक्षका तना, शाखा । वि० उत्तम, प्रशस्त; सर्वश्रेष्ठ; बहुत बड़ा ।
प्र-उप० [सं०] एक उपसर्ग जो शब्दोंके पहले लगकर आरंभ (प्रयाण), शक्ति (प्रभु), आधिक्य (प्रवाद, प्रच्छाय), उत्पत्ति (प्रपौत्र), वियोग (प्रोषित), उत्कर्ष (प्राचार्य), शुद्धि (प्रसन्न - जल), इच्छा (प्रार्थना), शांति (प्रशम), पूजा ( प्रांजलि)
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५०२
आदिका द्योतन करता है ।
प्रकंप - पु० [सं०] कँपकँपी, थरथराहट ।
प्रकंपन - वि० [सं०] कँपानेवाला; हिलानेवाला । पु० प्रचंड वायु, तेज हवा; एक नरक; कँपकँपी; जोरसे हिलनेकी क्रिया ।
प्रकंपित - वि० [सं०] काँपता हुआ; हिलता हुआ; कँपाया या हिलाया हुआ ।
प्रकच - वि० [सं०] जिसके बाल खड़े हों ।
प्रकाम - वि० [सं०] यथेष्ट, काफी; जिसमें कामवासनाकी अधिकता हो ।
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प्रकार - पु० [सं०] भेद, किस्म, रीति, ढंग; सादृश्यविशेषता; * प्राकार, परकोटा । प्रकाश-पु० [सं०] ज्योतिष्मान् पदार्थोंसे उत्पन्न होनेवाली वह शक्ति जो ईथर या आकाशद्रव्यके द्वारा चारों ओर फैलती है, (लाइट) वह भौतिक शक्ति जिसके द्वारा हमें वस्तुएँ दिखाई देने लगती हैं, तेज, आलोक, धोत, उजेला, अंधकार का उलटा; आतप, धूप, विकास, अभिव्यक्ति; स्पष्ट होना; प्रकट होना, आविर्भाव; किसी ग्रंथ या पुस्तकका कोई विभागः प्रसिद्धि, ख्यातिः अट्टहास; पीतल । वि० प्रकाशयुक्तः स्फुट; स्पष्ट; प्रकट; वृक्षा दिसे रहित; अति प्रसिद्ध । कर्ता (तृ) पु० सूर्य । -कामवि० ख्यातिका इच्छुक । क्रय- पु० खुलेआम होनेवाली खरीद । - नारी-स्त्री० वेश्या । - परावर्तकपु० ( रीफ्लेक्टर) शीशे आदिका वह टुकड़ा या आला जो कहीं से प्रकाश ग्रहण कर उसे अन्य दिशामें प्रक्षेपित करे, वह यंत्र जो किसीकी छाया या प्रतिबिंब ग्रहण कर दूसरी ओर प्रतिफलित करे, प्रकाश प्रतिफलक, प्रतिक्षेपक । - प्रक्षेपक - पु० ( सर्चलाइट) दे० 'अन्वेषक प्रकाश' ।
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५०३
प्रकाशक-प्रक्षेप
-वियोग-पु. ऐसा वियोग जो सवपर प्रकट हो। की उत्पत्ति विकास आदिकी मीमांसा की जाय ।-सिद्ध-स्तंभ-पु० (लाइट हाउस) समुद्र में बनाया गया वह वि० सहज, स्वाभाविक । -सुभग-वि० स्वभावसे ही स्तंभ या मीनार जिसपर रातमें जहाजोंको चट्टानों या सुंदर, जिसमें सहज सौंदर्य हो । -स्थ-वि० जो अपने अन्य खतरोंसे बचानेके लिए तेज रोशनी की जाती है। स्वभाव या स्वरूपमें स्थित हो,क्षोभ,विकारसे रहित,स्वस्थ । रातमें विमानोंका पथ-प्रदर्शन करनेके लिए हवाई अड्डेपर प्रकृया-अ० [सं०] स्वभावसे, स्वभावतः । दायें-बायें घूमनेवाला आकाश-दीप; (ला०) मार्ग-प्रदर्शक । प्रकृष्ट-वि० [सं०] खींचा हुआ; बढ़ाया हुआ; प्रकर्षयुक्त, प्रकाशक-वि० [सं०] चमकीला प्रकाश करनेवाला; अभि- | उत्कृष्ट, उत्तम प्रधान, मुख्य । व्यक्त करनेवाला; प्रकट करनेवाला; प्रसिद्ध । पु० पुस्तक प्रकोप-पु० [सं०] अत्यधिक कोप; उत्तेजना विद्रोह;
आदिको छपवाकर प्रकट करनेवाला (पब्लिशर); सूर्य । आक्रमण; किसी बीमारीका जोर; शरीरकी धातुओंका प्रकाशन-पु० [सं०] आलोकित करना; प्रकट करना; ! बिगड़ जाना। छपवाकर प्रकट करना या जनताके सामने रखना (पब्लि- प्रकोपन-पु० [सं०] प्रकोपित करना । वि० प्रकुपित शिंग); वह पुस्तकादि जो छपवाकर प्रकाशित की गयी | करनेवाला। हो (पब्लिकेशन); सबको सूचित करना, विज्ञापन प्रकोष्ठ-पु० [सं०] बाँहका कलाईसे लेकर कुहनीतकका विष्णु । वि० प्रकाशित करनेवाला।
भाग, पहुँचा; महल या भवनके सदर फाटकके पासका प्रकाशमान-वि० [सं०] चमकता हुआ, द्योतमान प्रसिद्ध । कमरा; इमारतके भीतरका आँगन; इमारतोंसे घिरा हुआ प्रकाशवान(वत्)-वि० [सं०] प्रकाशयुक्त ।
सहन; (लॉबी) विधानसभा आदिके बाहरका कमरा, बराप्रकाशित वि० [सं०] प्रकाशयुक्त; प्रकट किया हुआ | मदा, प्रांगण या अन्य स्थान जहाँ वैठकर सदस्यगण निजी
आलोकित किया हुआ; छपवाकर प्रकट किया हुआ; तौरपर बातचीत करते और पत्रकारों आदिसे मिलते है, विज्ञापित ।
सभाकक्ष ।-वार्ता-स्त्री० (लॉबी टॉक) संसद् या विधानप्रकाश्य-वि० [सं०] प्रकाशित करने योग्य प्रकाशनके सभाके बाहर किसी स्थानपर की जानेवाली बातचीत । योग्यः प्रकट । पु० प्रकाश ।
प्रकोष्टक-पु० [सं०] प्रासादके मुख्य द्वारकेपासका कमरा । प्रकास*-पु० दे० 'प्रकाश' ।
प्रक्खर-वि० [सं०] अति तीक्ष्ण । पु० घोड़े या हाथीका प्रकासना*-अ० क्रि० प्रकाशित होना ।
कवच पाखर कुत्ता; खच्चर । प्रकीर्ण-वि० [सं०] फैलाया हुआ, बिखेरा हुआ; मिश्रित प्रक्रम-पु० [सं०] कदम क्रम, तरतीब, सिलसिला (स्टेज) अस्त-व्यस्त किया हुआ; फुटकल । पु० किसी पुस्तक या प्रगति या विकासके सिलसिले में (बीचमें) पड़नेवाला कोई ग्रंथका कोई परिच्छेद, प्रकरण; अनेक प्रकारकी वस्तुओंका स्थान या कालभाग; यात्रा आदिके क्रमकी विशेष स्थिति मिश्रण; बिखेरना; विस्तार; फुटकल वस्तुओंका संग्रह । या कुछ समयतक ठहरनेका स्थान, मंजिल; आरंभ -लेखा-पु० (मिसेलेनियस अकाउंट) फुटकर आय या | उपक्रम; अवसर, मौका। -भंग-पु० एक काव्यदोष, व्ययका हिसाव।
दे० 'भग्नप्रक्रम'। -विरुद्ध-वि० जो आरंभ करते ही प्रकीर्णक-पु० [सं०] चवर घोड़ेके सिरपर लगायी जाने | रोका गया हो। वाली कलगी, घोड़ा; फुटकल वस्तुओंका संग्रह; वह परि- प्रक्रमण-पु० [सं०] आरंभ करना; कदम बढ़ाना; अधिक च्छेद या प्रकरण जिसमें फुटकल बातें दी गयी हों; प्रकरण, भ्रमण । अध्याय । वि० छितराया, फैलाया हुआ; फुटकल । प्रक्रांत-वि० [सं०] आरंभ किया हुआ, आरब्ध; जिसका प्रकीर्तन-पु० [सं०] प्रशंसा, यशका गान; घोषणा। प्रसंग छिड़ा हो या चल रहा हो, प्रकरणप्राप्त । प्रकीर्ति-स्त्री० [सं०] ख्याति, यश; घोषणा।
प्रक्रिया-स्त्री० [मं०] प्रकरण; क्रिया, अमल; किसी चीजके प्रकपित-वि० [सं०] विशेष रूपसे कुपित, अति ऋद्ध। । बनने, निकलने आदिकी रीति या विधि (प्रोसेस);संस्कारः प्रकृत-वि० [सं०] जिसका प्रसंग छिड़ा हो, प्रकरणप्राप्त उच्च पद; ग्रंथका अध्याय; पुस्तकका आरंभिक अध्याय पूरा किया हुआ; नियुक्त इच्छित; शुद्ध; असल; वास्तविक, । विशेषाधिकार तरकीब, विधि; शब्द या प्रयोगका साधन; सच्चा; अविकृत; महत्त्वका ।
राजाओंका छत्र आदि धारण करना। प्रकृतार्थ-पु० [सं०] यथार्थ अभिप्राय । वि० असल । प्रक्षालन-पु० [सं०] पानीसे साफ करना, धोना; साफ प्रकृति-स्त्री० [सं०] स्वभाव,मिजाज; वह मूल तत्व जिसका करना; वह पानी जिससे कोई वस्तु धोयी जाय । -गृह परिणाम जगत् है, जगत्का उपादान कारणरूप मूल तत्त्व । -पु. (लैवेटरी) हाथ मुंह आदि धोनेका प्रकोष्ठ; दे० . (सांख्य ); माया; परमात्मा; पंच महाभूत; स्वामी, 'शौचालय' भी। अमात्य, सुहृद आदि राज्यांग; प्रजा; सदा बना रहने- प्रक्षालित-वि० [सं०] धोया हुआ; साफ किया हुआ; वाला मूल गुण या धर्म; योनिमलिंग; स्त्री; माता; एक छंद; जिसका प्रायश्चित्त किया गया हो। वह मूल शब्द जिसमें प्रत्यय लगाये जाते हैं; आकार- प्रक्षिप्त-वि० [सं०] फेंका हुआ, डाला हुआ; क्षेपकके रूपमें प्रकार; गुणक (गणित); चराचर संसार ।-ज-वि०सहज, निविष्ट किया हुआ, पीछेसे जोड़ा या मिलाया हुआ। स्वाभाविक । -मंडल-पु० स्वामी, अमात्य, सुहृद, कोष, प्रक्षेप-पु० [सं०] फेंकना, डालना; ऊपरसे मिलाना; राष्ट्र, दुर्ग और दल-ये सात राज्यांग; प्रजावर्ग ।-शास्त्र- ऊपरसे मिलायी जानेवाली वस्तु; पुस्तक या ग्रंथमें वह पु० प्रकृति-संबंधी शास्त्र, वह शास्त्र जिसमें चराचर जगत्- मलसे भिन्न अंश जो बादमें जोड़ा या मिलाया गया हो,
३२-क
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प्रक्षेपण-प्रजल्पन
क्षेपक ।
प्रक्षेपण - पु० [सं०] फेंकना, डालना; ऊपरसे मिलाना । प्रखर - वि० [सं०] तीक्ष्ण, तेज; प्रचंड, उग्र । पु० प्रक्खर । प्रखरता - स्त्री० [सं०] तीक्ष्णता, तेजी, प्रचंडताः उग्रता । प्रख्यात - वि० [सं०] विशेष रूपसे ख्यात, बहुत प्रसिद्ध
करना ।
प्रख्यापित - वि० [सं०] ( प्रोमलगेटेड ) ( वह अध्यादेश, आइप्ति, राज्यादेश आदि) जो सर्वसाधारणको विज्ञापित कर दिया गया हो, जिसकी विघोषणा कर दी गयी हो । प्रगंड - पु० [सं०] बाँह या कुहनीसे कंधेतकका भाग । प्रगट - वि० दे० 'प्रकट' । अ० प्रकट रूपसे । प्रगटन - पु० प्रकट करने या होनेकी क्रिय! | प्रगटना * - अ० क्रि० प्रकट होना; जन्म लेना । स० क्रि० प्रकट करना ।
प्रचंड - वि० [सं०] अति तीव्र, प्रखर; बहुत क्रोधी; प्रबल; घोर, भीषण; अति तेजस्वी; प्रतापी; असह्य; बड़ा ।
प्रसन्न, सुखी ।
प्रख्याति - स्त्री० [सं०] विशिष्ट ख्याति, अधिक प्रसिद्धिः प्रचय, प्रचाय- पु० [सं०] फूल या फल तोड़ना; प्रशंसा; इंद्रियग्राह्यता ।
समूह, पुंज ।
प्रख्यापन-पु० [सं०] प्रसिद्ध करना, प्रचार करना; सूचित प्रचरण - पु० [सं०] घूमना-फिरना, विचरण; प्रचारित होना ।
प्रचरना* - अ० क्रि० प्रचारित होना, फैलना; चलना । प्रचरित - वि० [सं०] जिसका प्रचार हो, प्रचलित; अभ्यस्त । प्रचलन - पु० [सं०] हिलना; चलना-फिरना; चलन, प्रचार प्रचलित - वि० [सं०] हिला हुआ; गतिशील; जिसका चलन हो; चलता हुआ, जारी; जो चल चुका हो । प्रचार - पु० [सं०] घूमना-फिरना; प्रयोग; चलाना; प्रकट होना; किसी वस्तुका व्यापक व्यवहार; आचरण; चलन, रवाज; खेल-कूदका मैदान; चरागाह; गति; मार्ग; किसी वस्तुको प्रसिद्ध करने या फैलानेका कार्य (हिं०) -कार्य० प्रचारका काम (प्रोपेगैंडा ) ।
प्रचारक - वि०, पु० [सं०] प्रचार करनेवाला; फैलानेवाला । प्रचारना * - स०क्रि० प्रचार करना, फैलाना; ललकारना । प्रचारित - वि० [सं०] चलाया हुआ; जिसका प्रचार किया गया हो; फैलाया हुआ ।
प्रचारी (रिन्) - वि० [सं०] घूमने-फिरनेवाला प्रकट होनेवाला; बर्ताव करनेवाला । प्रचालन- पु० [सं०] चलानेकी क्रिया । प्रचालित - वि० [सं०] जो चलाया गया हो, प्रचलित किया हुआ ।
प्रचित - वि० [सं०] (पुष्प आदि) जिसका चयन हुआ हो,
प्रगटाना * - स० क्रि० प्रकट करना । प्रगति - स्त्री० [सं०] आगे बढ़ना, उन्नति । -रोध- पु० (सेट बैक) प्रगति या उन्नति में बाधा पड़ना, प्रगतिका रुक जाना। - वाद-पु० समाज, साहित्य आदिकी निरंतर उन्नतिपर जोर देनेका सिद्धांत । - शील- वि० जो प्रगति करता रहे, आगेकी ओर बढ़ता रहे । प्रगर्भ* -- वि० दे० 'प्रगल्भ' | प्रगल्भ - वि० [सं०] प्रतिभावान्; जिसकी बुद्धि अवसर के अनुसार काम कर जाय, प्रत्युत्पन्नमति, साहसी, हिम्मत वर; धृष्ट, ढीठ; बोलने में संकोच न करनेवाला; प्रौढ़; कुशल, दक्ष, उद्दंड, उद्धत; निर्लज्ज; अभिमानी; ख्यात । प्रगल्भता - स्त्री० [सं०] प्रगल्भ होनेका भाव; प्रतिभाशालिता; उत्साह; औद्धत्य; धृष्टता; कुशलता, दक्षता; प्रौढ़ता; निःशंकता; प्रसिद्धि; अध्यवसाय ।
प्रगल्भा - स्त्री० [सं०] नायिकाका एक भेद, प्रौढा नायिका । प्रगसना * - अ० क्रि० प्रकट होना, व्यक्त होना । प्रगाढ - वि० [सं०] डुबाया हुआ, तर किया हुआ; अत्यधिक; ; गहरा, घनाः कठिन । पु० कष्ट; तपश्चर्या । प्रगासना * - सु० क्रि० प्रकाशित करना; प्रज्वलित करना । प्रगुणता अर्गल - पु० [सं०] (एफिशेंसी बार ) ( सरकारी या अर्द्धसरकारी नौकरी में वेतनवृद्धिके मार्ग में आनेवाली वह बाधा जो आवश्यक योग्यता या दक्षता के अभावसे उत्पन्न हो, दक्षता अर्गल |
प्रगृहीत- वि० [सं०] अच्छी तरह ग्रहण किया हुआ । प्रग्रह - पु० [सं०] ग्रहण करना, पकड़ना; नियमन; सूर्यग्रहण अथवा चंद्रग्रहणका आरंभ; बागढोर; तराजू में लगी हुई रस्सी; कोड़ा; किरण भुजा; कैद, बंधन; बंदी, • कैदी; नेता ।
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५०४
दरवाजेके सामनेका स्थान या छज्जा; ताम्रपात्र; लोहेकी गदा या मुदर ।
प्रघोर - वि० [सं०] अति धोर ।
प्रघोष - पु० [सं०] ऊँची ध्वनि, प्रचंड शब्द ।
चुना हुआ; एकत्र किया हुआ; भरा हुआ; अनुदात्त । प्रचुर - वि० [सं०] बहुत अधिक, प्रभूत; बहुत बड़ा; पूर्ण । - पुरुष - वि० घना बसा हुआ, जनाकीर्ण | प्रचुरता स्त्री०, प्रचुरत्व- पु० [सं०] प्रचुर होनेका भाव, आधिक्य ।
प्रच्छन्न- वि० [सं०] ढका हुआ, आच्छन्न; छिपा हुआ, गुप्त | पु० चोर दरवाजा; खिड़की । - चारी (रिन्) - वि० गुप्त रूपसे कार्य करनेवाला । प्रच्छादन - पु० [सं०] ढकने, आवृत करनेकी क्रिया या भाव; छिपाने की क्रिया या भाव; उत्तरीय, ओढ़नी । प्रच्छादित- वि० [सं०] ढका हुआ, आवृत; छिपाया हुआ । प्रच्छाय- पु० [सं०] घनी छाया; छायादार जगह | प्रच्छालना * - स० क्रि० धोना । प्रछालना* - मु० क्रि० धोना । प्रजंक * - पु० पलंग | प्रजंत* - अ० दे० 'पर्यंत' ।
प्रजनन - पु० [सं०] संतान उत्पन्न करना; जन्म; संतान | प्रजनयिता (तृ) - पु० [सं०] उत्पन्न करनेवाला |
प्रघट* - वि० दे० 'प्रकट' |
प्रघटना* - अ० क्रि० प्रकट होना ।
प्रघट्टक * - वि० प्रकट करनेवाला ।
प्रघण, प्रघन, प्रघाण, प्रधान- पु० [सं०] मकानके बाहरी प्रजल्पन- पु० [सं०] इधर-उधर की बात करना; गप करना ।
प्रजरना * - अ० क्रि० बहुत जलना । प्रजल्प - पु० [सं०] इधर-उधर की बात, गप ।
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५०५
प्रजल्पित - वि० [सं०] कहा हुआ । पु० जो बात कही गयी हो; वार्तालाप |
प्रजवन - वि० [सं०] वेगवान्, तीव्र गतिवाला, तेज । जी (वि) - वि० [सं०] अधिक वेगवाला, वेगवान् ; तेज । पु० दूत, हरकारा ।
प्रजांतक - पु० [सं०] यम ।
प्रजा - स्त्री० [सं०] प्रजनन; संतति, औलाद, शुक्र, वीर्य, प्राणी; किसी राजा द्वारा शासित जनता, किसी राज्य या राष्ट्रकी जनता । - काम - वि० संतान चाहनेवाला, संतानेच्छु । पु० संतानकी कामना । - कार - पु० प्रजा उत्पन्न करनेवाला, सृष्टिकर्ता, ब्रह्मा । -क्षोभ - पु० ( इन सरजेंसी) राजसत्ता के विरुद्ध प्रजामें व्याप्त क्षोभया विद्रोह की भावना । - गुप्ति-स्त्री० प्रजाकी रक्षा । - तंतु-पु० वंशपरंपरा; वंश, संतान । तंत्र- पु० प्रजा या प्रजाके प्रतिनिधियों द्वारा परिचालित शासन व्यवस्था । वि० प्रजा या प्रजाके प्रतिनिधियों द्वारा परिचालित (शासनव्यवस्था ) । - तीर्थ - पु० जन्मका शुभ काल | -दानपु० संतानोत्पत्ति; चाँदी । -नाथ- पु० ब्रह्मा; मनु; दक्ष; राजा । - पति-पु० सृष्टिका रचयिता, सृष्टिका अधि छाता देवता, सृष्टिकर्ता, ब्रह्मा; दक्ष आदि दस लोककर्ता जिन्हें ब्रह्माने सृष्टिके आदि में उत्पन्न किया था; विश्वकर्माः सूर्य; अग्निः विष्णु; यज्ञ; राजा; जामाता; पिता, जनक; लिंगेंद्रिय । - पाल, -पालक - पु० राजा । - पालन - पु० प्रजाका पालन । - वृद्धि - स्त्री० संतानकी बढ़ती, संतानकी बहुलता । - व्यापार - पु० प्रजाकी देखभाल, प्रजाका हितचिंतन |- सत्ता-स्त्री० दे० 'प्रजातंत्र' । -सत्ताक, - सत्तात्मक - वि० ( शासन व्यवस्था) जिसमें शासन-सूत्र प्रजा या उसके प्रतिनिधियों के हाथमें हो ।
प्रजाता - स्त्री० [सं०] प्रसूता स्त्री । प्रजाति - स्त्री० [सं०] प्रजा, संतान, संतान उत्पन्न करना प्रजनन; प्रजनन शक्ति; पौत्रकी उत्पत्ति ।-गत भेदभाव पु० (रेशियल डिस्क्रिमिनेशन) एक प्रजातिको अन्य प्रजातियंसि श्रेष्ठ मानकर उनमें भेदभाव करना, भिन्न-भिन्न प्रजातियोंके प्रति समानताकी नीति न बरतकर उनमें अंतर करना । - संहार - पु० (जेनोसाइड) किसी देशकी सरकार द्वारा एक सुनियोजित नीतिके अनुसार राज्यसीमा के भीतर रहनेवाली किसी अल्पसंख्यक जाति या वर्ग के विनाशका कार्य ।
प्रजारना * - स० क्रि० भली भाँति या पूरी तरह जलाना; उद्दीप्त करना ।
प्रजावती स्त्री० [सं०] भाईकी स्त्री; बड़े भाई की स्त्री । वि० स्त्री० गर्भवती; संतानवाली ।
प्रजुरना* - अ० क्रि० प्रज्वलित होना; प्रकाशित होना । प्रजुरित, प्रजुलित * - वि० दे० 'प्रज्वलित' ।
प्रजेश, प्रजेश्वर - पु० [सं०] प्रजापति; राजा । प्रजोग* - पु० दे० 'प्रयोग' |
प्रजल्पित-प्रणाशी
भाव, सूचना; बुद्धि; संकेत, इशारा; प्रतिज्ञा, कौल । प्रज्ञा स्त्री० [सं०] बुद्धि, विवेक, समझ; मति; सरस्वती । - चक्षु (स् ) - पु० बुद्धिरूपी नेत्र; धृतराष्ट्र | वि० अंधा (जिसके लिए उसकी बुद्धि ही आँखका काम देती है); बुद्धिमान् । - वृद्ध - वि० जो बुद्धिमें बढ़ा-चढ़ा हो, अधिक बुद्धिमान्, ज्ञान-वृद्ध । - हीन - वि०निर्बुद्धि, मूर्ख । प्रज्ञात- वि० [सं०] अच्छी तरह जाना हुआ; स्पष्ट; विवेचित; प्रसिद्ध ख्यात, विश्रत । प्रज्ञापन- पु० [सं०] जताना, सूचित करना । प्रज्ञावान् ( वत् ) - वि० [सं०] चतुर, बुद्धिमान् । प्रज्वलन - पु० [सं०] दहकना, जोरसे जलना । प्रज्वलित वि० [सं०] जलता हुआ, बलता हुआ; जला हुआ, दहका हुआ; चमकीला ।
|
प्रण- पु० दृढ़ निश्चय, पण, प्रतिज्ञा । प्रणत- वि० [सं०] विशेष रूपसे झुका हुआ; जो प्रणाम कर रहा हो; विनीत, नम्रः शरणागत । काय - वि० जिसका शरीर झुका हो । - पाल, पालक- पु० शरणागतकी रक्षा करनेवाला ।
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प्रणति - स्त्री० [सं०] झुकनेकी क्रिया या भाव; प्रणाम विनय, नम्रता; शरण में जाना, शरणागति । प्रणदन-पु० [सं०] जोरकी आवाज, गर्जन । प्रणमन - पु० [सं०] झुकना; प्रणाम करना । प्रणमना - * स० क्रि० प्रणाम करना । प्रणम्य - वि० [सं०] प्रणाम करने योग्य, वंध
प्रणय-पु० [सं०] प्रेम, प्रीतिः प्रीतियुक्त प्रार्थना; विश्वास । - कलह - पु० नायक और नायिकाका आपसी झगड़ा या प्रीतिभंग; नायक-नायिकाका एक दूसरेसे रूठ जाना । - कुपित्त - वि० जो प्रणय- कलहके कारण रूठ गया हो, प्रणय- कलह से रूठा हुआ । - कोप- पु० नायिकाका नायक से रूठ जाना, मान। -भंग - पु० मैत्री न रहना; विश्वासघात । - वचन-पु० प्रेमपूर्ण वचन । - विमुख - वि० प्रेम या मैत्रीकी ओर जिसकी प्रवृत्ति न हो । प्रणयन- पु० [सं०] लाना; ले जाना; निबद्ध करना, लिखना; रचना; निर्माण; वितरण; (दंड) देना, लगाना । प्रणयिनी - स्त्री० [सं०] प्रेम करनेवाली, प्रेमिका; कांता । प्रणयी ( यिन् ) - वि० [सं०] प्रेम करनेवाला, अनुरागी, प्रणययुक्त; चाहनेवाला, इच्छुकः घनिष्ठ (संबंध ) । पु० मित्र; प्रेमी; पति; प्राथी; सेवक; उपासक । प्रणव- पु० [सं०] ओंकार; परमेश्वर; ढोल । प्रणवना* - स० क्रि० प्रणाम करना । प्रणष्ट - वि० [सं०] जो लुप्त हो गया हो; विनष्ट; मृत । प्रणाम - पु० [सं०] झुकना, नत होना; अपनी लघुता या विनय सूचित करने के लिए किसीके सामने झुकने, हाथ जोड़ने आदिका कार्य, नमस्कार, अभिवादन । प्रणामांजलि - स्त्री० [सं०] हाथ जोड़कर किया जानेवाला प्रणाम, करबद्ध प्रणाम ।
प्रज्ञ - वि० [सं०] प्रकृष्ट बुद्धिवाला, बुद्धिमान्, विद्वान् । प्रणाली - स्त्री० [सं०] पानी बहनेका कृत्रिम नाला, परपु० बुद्धिमान् मनुष्य; पंडित, विद्वान् । नाला परंपरा, प्रथा; दो बड़े जलमार्गोंको मिलानेवाला छोटा जलमार्ग; रीति, ढंग (हिं०) ।
प्रज्ञता - स्त्री० [सं०] बुद्धिमत्ता, विद्वत्ता ।
प्रज्ञप्ति - स्त्री० [सं०] जनाने या ज्ञात करानेकी क्रिया या प्रणाशी (शिन्) - वि० [सं०] नाश करनेवाला |
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प्रणिधान-प्रतिज्ञा
५०६
प्रणिधान-पु० [सं०] रखना, रखा जाना; व्यवहार, | प्रतिकूल-वि० [सं०] विरूद्ध पक्षका अवलंबन करनेवाला; उपयोग; अभिनिवेश, आग्रह एक प्रकारकी समाधि (योग); जो अनुकूल न हो, विपरीत, विरुद्ध । -कारी(रिन्), भक्तिविशेष; अर्पण; चित्तकी एकाग्रता ।
-कृत,-चारी(रिन)-वि. विरुद्ध आचरण करने प्रणिधि-पु० [सं०] भेद लेना विशेष कार्यसे भेजा जाने- वाला, विरोधी। वाला दूत; गुप्त रूपसे काम करनेवाला दूत या एजेंट | प्रतिकूलिक-वि० [सं०] विरोधी, शत्रुता रखनेवाला। (सीक्रेट एजेंट)।
ग्रतिकृत-वि० [सं०] जिसका प्रतिकार या प्रतिशोध किया प्रणिपतन, प्रणिपात-पु० [सं०] प्रणाम करना; चरणोपर गया हो। पु० प्रतिकार, विरोध । गिरना।
प्रतिकृति-स्त्री० [सं०] प्रतिरूप, प्रतिमा बदला, प्रतिकार; प्रणीत-वि० [सं०] बनाया हुआ, निर्मित, रचा हुआ; सादृश्य, प्रतिबिंब प्रतिनिधि ।
सादृश्य, प्रतिाबब; प्राता निबद्ध; फेंका हुआ; अलग किया हुआ; प्रिया लाया प्रातक्रम-पु० [स] उल
प्रतिक्रम-पु० [सं०] उलटा क्रम । हुआ; प्रवेशित; विहित ।
प्रतिक्रिया-स्त्री० [सं०] दे० 'प्रतिकार'; किसी कार्यके प्रणेता(7)-पु० [सं०] पथप्रदर्शन करनेवाला, नेता;
परिणामके रूप में या विरोधमें होनेवाला कार्य; (रिऐक्शन) बनानेवाला, निर्माता; ग्रंथका रचयिता ।
सुधार, उन्नति या क्रांतिके विरुद्ध होनेवाली क्रिया या प्रणोदित-वि० [सं०] जिसे प्रेरणा की गयी हो, प्रेरित । गति । -वादी(दिन)-पु० (रिऐक्शनरी) वह जो प्रतंचा*-स्त्री० रोदा, धनुष्की डोरी।
उन्नति या क्रांतिका विरोधी हो। प्रतक्ष*-वि० दे० 'प्रत्यक्ष' ।
प्रतिक्रियात्मक सहयोग-पु० [सं०] (रेस्पांसिव कोऑपप्रतच्छ*-वि० दे० 'प्रत्यक्ष।
रेशन) सहयोगके जवाबमें या उसके प्रतिक्रियास्वरूप किया प्रतति-स्त्री० [सं०] विस्तार; लता, वल्ली।
जानेवाला सहयोग। . प्रतनु-वि० [सं०] अति क्षीण; अति सूक्ष्म; बहुत पतला प्रतिक्षण-अ० [सं०] प्रत्येक क्षणमें, हरदम, निरंतर । अत्यल्प; तुच्छ।
प्रतिक्षेपक-पु० [सं०] दे० प्रकाश परावर्तक' (रीफ्लेक्टर) । प्रतप्त-वि० [सं०] विशेष रूपसे तपाया हुआ; पीड़ित ।। प्रतिगमन-पु० [सं०] लौटना। प्रतान-पु० [सं०] फैलाव, विस्तार; लता; लतातंतु ।
प्रतिगृहीत-वि० [सं०] ग्रहण किया हुआ; अंगीकार किया प्रताप-पु० [सं०] राजाका कोष, दंड-जनित तेज; वीरता हुआ; ब्याहा हुआ।
प्रभुत्व, पराक्रम आदिका आतंक फैलानेवाला प्रभाव । प्रतिग्या*-स्त्री० दे० 'प्रतिज्ञा'। प्रतापवान्(वत्)-वि० [सं०] प्रतापी; तेजस्वी । प्रतिग्रह-पु० [सं०] ग्रहण करना, स्वीकार करना; विधिप्रतापी(पिन)-वि० [सं०] प्रतापवाला; दुःख देनेवाला।
पूर्वक दान की जानेवाली वस्तुको स्वीकार करना; दान प्रतारक-पु० [सं०] वंचक, ठग; धूर्त ।
लेना जो ब्राह्मणोंके ६ कर्मोंके अंतर्गत है; लेनेवाला; प्रतारण-पु० [सं०] वंचना, ठगी ।
उपहार, भेट; पत्नीके रूप में ग्रहण करना, ब्याहना; सेनाप्रतारणा-स्त्री० [सं०] दे० 'प्रतारण'।
का पिछला भाग। प्रतारित-वि० [सं०] जो ठगा गया हो, वंचित । प्रतिग्रहण-पु० [सं०] स्वीकार करना; दान लेना; पत्नीके प्रतिंचा-स्त्री० दे० 'प्रत्यंचा' ।
रूपमें ग्रहण करना, ब्याहनाः (एटैचमेंट) जुरमाने, ऋणकी प्रति-स्त्री० नकल; बहुतसी पुस्तकों आदिमेंसे एक, अदद
रकम आदिके बदले में न्यायालयके आदेशसे किसीकी (जैसे-इस पुस्तकी सभी प्रतियाँ बिक गयी)। उप० [सं०]
संपत्ति आदिपर अधिकार कर लेना। एक उपसर्ग जो शब्दोंके पहले आकर विरोध, विपरीतता प्रतिग्रही(हिन)-वि०, पु० [सं०] दान लेनेवाला। (प्रतिकार, प्रतिबल), बदला (प्रतिदान, प्रतिफल), वीप्सा प्रतिग्रहीता(7)-पु० [सं०] दान लेनेवाला; पति । (प्रतिदिन, प्रतिगृह), सादृश्य (प्रतिदेवता, प्रतिमूर्ति), प्रतिग्राहक, प्रतिग्राही(हिन्)-वि०, पु० [सं०] दान सामना, साम्मुख्य (प्रत्यक्ष), खंडन (प्रतिवाद), मुकाबला, लेनेवाला; (रिसीहर) झगड़े में पड़ी हुई संपत्तिसे या जो जोड़ (प्रतिभट) आदिका द्योतन करता है । अ० ओर, व्यक्ति दिवालिया हो गया हो उसकी संपत्तिसे होनेवाली तरफ; संबंधमें, विषयगे; मुकाबले में।
आमदनी लेने और उसकी निगरानी करनेवाला अधिकारी। प्रतिकर-पु० [सं०] विस्तीर्ण होनेका भाव, विस्तीर्णता; प्रतिग्राह्य-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य, स्वीकार करने प्रतिशोध; (कंपेनसेशन) जिस भूमि, संपत्ति आदिपर अधि
योग्य। कार कर लिया गया हो उसके बदले में, मुआवजेकी तरह, ग्रतिघात-पु० [सं०] निवारण; आघातके बदले किया दी जानेवाली रकम, क्षतिपूर्ति, हरजाना।
| गया आघात; मारण, वध; रुकावट, बाधा। प्रतिकर्ता(त)-वि०, पु० [सं०] अपकारका बदला लेने- प्रतिघातक-वि०, पु० [सं०] प्रतिघात करनेवाला। वाला, प्रत्यपकारका प्रतिकार करनेवाला ।
प्रतिच्छा*-स्त्री० दे० 'प्रतीक्षा'। ' प्रतिकार-पु० [सं०] वैर निकालना, बदला चुकाना; वह प्रतिच्छाया-स्त्री० [सं०] प्रतिरूप; प्रतिमा प्रतिबिंब, परछाई। अपकार जो किसी अपकारके बदले किया जाय चिकित्सा, प्रतिच्छेद-पु० [सं०] बाधा, विरोध; प्रतिरोध । इलाज; किसी बातके जवाबमें किया जानेवाला कार्य । प्रतिछाँई, प्रतिछाँह, प्रतिछाँही-स्त्री० परछाई, प्रतिबिंब । प्रतिकारक-वि०, पु० [सं०] प्रतिकार करनेवाला। प्रतिजिह्वा, प्रतिजिबिका-स्त्री० [सं०] गलेके भीतरकीघंटी। प्रतिकारी(रिन)-वि०,पु० [सं०] प्रतिकार करनेवाला। प्रतिज्ञा-स्त्री० [सं०] किसी कार्यको करने-न करने आदिका
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दृढ़ संकल्प वादा शपथ; अभियोग, दावा । - पत्रपत्रक - ५० वह पत्र या कागज जिसमें लेखरूपमें कोई प्रतिज्ञा की गयी हो, इकरारनामा, शर्तनामा; (कॉवेनेंट) दे० ' प्रतिश्रुतिपत्र' । - पत्र मुद्रा - स्त्री० (प्रोमिसरी नोट) वह लेख या पत्र जिसमें कोई व्यक्ति यह प्रतिज्ञा करता है कि मैं अमुक तिथिको या जब कभी भी माँगनेपर अमुक व्यक्तिको या इसके वाहकको इतना रुपया दूँगा, वचनपत्र । - पालन - पु० प्रतिज्ञा पूरी करना, प्रतिज्ञाका निर्वाह । -भंग - पु० प्रतिज्ञा तोड़ देना, प्रतिज्ञा न निभाना । प्रतिज्ञात- वि० [सं०] जिसकी या जिसके विषय में प्रतिशा की गयी हो, स्वीकार किया हुआ । प्रतिदान - पु० [सं०] किसी ली हुई वस्तुके बदले में दूसरी वस्तु देना, बदला, विनिमय; निक्षेप या धरोहरको वापस करना ।
प्रतिदिन - अ० [सं०] प्रत्येक दिन, हर रोज, नित्य । प्रतिदेय- वि० [सं०] जो बदला या लौटाया जाय, बदलने या लौटाने योग्य | पु० खरीदकर लौटायी हुई चीज । प्रतिद्वंद्विता - स्त्री० [सं०] प्रतिद्वंद्वीका भाव; बराबरवालों की लड़ाई |
प्रतिज्ञात- प्रतिपालक
प्रतिपक्ष - पु० [सं०] विरोधीका पक्ष, विपक्ष; शत्रु, विरोधी; प्रतिवादी, मुद्दालेह | - नेता - पु० ( लीडर ऑफ दि अपोज़िशन) संसद या विधानसभा में सरकारी पक्षका विरोध करनेवाले मुख्य दलका नेता । प्रतिपक्षी ( क्षिन् ) - पु० (सं०] शत्रु, विरोधी । प्रतिपच्छ-पु० दे० 'प्रतिपक्ष' । प्रतिपच्छी - पु० दे० 'प्रतिपक्षी' । प्रतिपत्ति - स्त्री० [सं०] पाना, प्राप्ति; ज्ञान, बोध; बुद्धि, प्रज्ञा; स्वीकृति; कर्तव्यका ज्ञान; आदर, सम्मान; गौरव; उन्नति;ढ़ निश्चय, संकल्पः प्रसिद्धि; कार्यारंभ; संवाद; तरीका, ढंग प्रयोग; प्रतिपादन; प्रमाण । प्रतिपत्रक - पु० [सं०] ( काउंटर फॉइल ) चेककी किताब, चालानबद्दी, रसीद बही आदिमें लगा रहनेवाला वह टुकड़ा, जो देनेवाले या भेजनेवालेके पास ही रह जाता है और जिसपर किसीको दिये हुए दूसरे टुकड़ेको प्रतिलिपि या संक्षिप्त विवरण लिखा रहता है। प्रतिपत्री- पु० [सं०] (प्रॉक्सी) दे० 'प्रतिपुरुष' । प्रतिपद - अ० [सं०] पग-पगपर । प्रतिपदा, प्रतिपदी-स्त्री० [सं०] पक्षकी पहली तिथि, परिवा ।
प्रतिद्वंद्वी (द्विन्) - पु० [सं०] विपक्षी, विरोधी, शत्रु । वि० मुकाबला करनेवाला, प्रतिपक्षी ।
प्रतिध्वनन - पु० [सं०] (इकोइंग) ध्वनिलहरीके सामनेकी किसी वस्तुसे टकराकर वापस आनेकी क्रिया, ध्वनिके प्रत्यावर्तित होकर सुनाई देनेकी क्रिया । प्रतिध्वनि - स्त्री० [सं०] किसी शब्दका वह प्रतिरूप जो उसके किसी बाधक पदार्थसे टकरानेपर उत्पन्न होता है और मूल शब्दके उपरांत सुनाई पड़ता है, किसी शब्द के उपरांत सुनाई पड़नेवाला उसीसे उत्पन्न तदनुरूप शब्द, गूँज । प्रतिध्वनित - वि० [सं०] गूँजा हुआ ।
|
प्रतिनंदन - पु० [सं०] आशीर्वाद के साथ अभिनंदन करना; धन्यवाद देना; बधाई देना; प्रसन्नतापूर्वक स्वागत करना । प्रतिनायक - पु० [सं०] नायकका प्रतिद्वंद्वी (सा० ) । प्रतिनाह - पु० [सं०] झंडा, निशान । प्रतिनिधि - पु० [सं०] प्रतिरूप, प्रतिमा; वह व्यक्ति जो किसीके स्थानपर उसका कार्य करे, किसीका स्थानापन्न व्यक्ति किसी वैदिक कृत्य या औषधके काम आनेवाले द्रव्य के अभाव में उसके स्थानपर प्रयुक्त होनेवाला द्रव्य; प्रतिभू, जामिन । - पत्र - पु० (पावर ऑफ ऐटनी) प्रति निधिरूपमें कार्य करनेका अधिकारपत्र, 'मुखतारनामा' । प्रतिनिधित्व - पु० [सं०] प्रतिनिधिका भाव; प्रतिनिधिका कार्य ।
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प्रतिपरिषद्विपत्र - पु० [सं०] ( रिवर्स काउंसिल बिल ) (ब्रिटिश शासनकाल में ) लंदन स्थित भारतमंत्री के नाम जारी की गयी इंडियाँ जिनका भुगतान इंग्लैंड में (विदेशों में) होता था । ( व्यापारसंतुलन भारतके प्रतिकूल होनेपर इनकी आवश्यकता पड़ती थी । इन्हें 'उलटी हुडियाँ' भी कहते थे ।)
प्रतिपरीक्षण -पु० [सं०] ( क्रास एग्जामिनेशन ) गवाह आदिका बयान हो चुकनेपर सत्यासत्यका या छिपायी गयी बातोंका पता लगाने के लिए उल्टे-सीधे प्रश्न करना, साक्षिपरीक्षा ।
प्रतिपर्ण - पु० [सं०] ( काउंटर फॉइल) दे० 'प्रतिपत्रक' । प्रतिपादक - वि०, पु० [सं०] देनेवाला; निरूपण करनेवाला; उत्पादक; व्याख्या करनेवाला; उन्नायक; पूरा करनेवाला ।
प्रतिपादन - पु० [सं०] ज्ञान कराना, बोधन; किसी विषय - का सप्रमाण कथन, निरूपण; दान; किसी विषयका स्थापन; लौटाना, प्रत्यर्पण; आरंभ करना, उपक्रम करना । प्रतिपादित - वि० [सं०] प्रदत्तः निरूपित, प्रमाणित; उत्पादित; घोषित, कथित ।
प्रतिपाद्य - वि० [सं०] जिसे प्रमाणित किया जाय; जिसका स्पष्टीकरण किया जाय; देय ।
प्रतिनिनाद - पु० [सं०] (रीवरबरेशन) निनाद या शब्दका प्रतिपान- पु० [सं०] पीना; पीनेका पानी | टकराकर वापस आना, प्रतिध्वनि । प्रतिनियुक्त - वि० [सं०] ( डेप्यूटेड ) अधिकार या कार्य सौंपकर जो किसी दूसरेके स्थानपर काम करनेके लिए नियुक्त किया गया या भेजा गया हो । प्रतिनियुक्ति - स्त्री० [सं०] (डेप्यूटेशन) किसीके स्थानपर किसी अन्य व्यक्तिको नियुक्त करना; दूसरेके स्थानपर कुछ समयतक काम करना; किसीको किसी विशेष कार्यके लिए नियुक्त करके भेजना ।
प्रतिपाप - वि० [सं०] अपकार के बदले अपकार करनेवाला, जो बुराईका बदला बुराईसे ले । पु० बुराईके बदले बुराई करना ।
प्रतिपापी (पिन) - वि० [सं०] दे० 'प्रतिपाप' | प्रतिपार* - पु० पालन करनेवाला; रक्षण, पालन । प्रतिपारना* - स० क्रि० पालन करना, रक्षा करना । प्रतिपाल- पु० दे० 'प्रतिपालक'; 'प्रतिपालन' । प्रतिपालक - पु० [सं०] पालन करनेवाला, पालक; रक्षक ।
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प्रतिपालन- प्रतिभूति
- अधिकरण- पु० (कोर्ट ऑफ वार्डस) अल्पवयस्कों या अयोग्य व्यक्तियोंकी संपत्तिका प्रबंध तथा रक्षण करनेवाला सरकारी विभाग |
प्रतिपालन - पु० [सं०] पालन करना; रक्षा करना । प्रतिपालना* - स० क्रि० पालन करना, पालना; रक्षा करना ।
प्रतिपालनीय - वि० [सं०] दे० 'प्रतिपाल्य' ।
प्रतिपालित - वि० [सं०] जिसका पालन किया गया हो, पालित; जिसकी रक्षा की गयी हो, रक्षित । प्रतिपाल्य - वि० [सं०] पालन करने योग्य; रक्षा करने प्रतिबाहु - पु० [सं०] बाहुका अग्रभाग; अक्रूरका एक भाई । योग्य । प्रतिबिंब, प्रतिबिंब - पु० [सं०] परछोई, प्रतिच्छाया; प्रतिमा, प्रतिमूर्ति; चित्र, तसवीर। -वाद-पु० जीवको ईश्वरका प्रतिबिंब माननेका सिद्धांत (वेदांत) । प्रतिबिंबक, प्रतिबिंबक - पु० [सं०] छायाकी तरह अनुगमन करनेवाला |
प्रतिपीडन - पु० [सं०] कष्ट देना, पीड़ा पहुँचाना; (रोप्राइजल) (शत्रु द्वारा की गयी) हानिके बदले हानि पहुँचाना, संपत्ति आदिपर अधिकार कर लेना या छीन लेना । प्रतिपुरुष, प्रतिपूरुष - पु० [सं०] वह मनुष्य जो किसीका स्थानापन्न होकर काम करे (डेपुटी); (प्रॉक्सी) वह व्यक्ति जिसे किसी सभा आदि में किसीके प्रतिनिधिरूप में काम करने, वोट देने आदिका अधिकार दिया जाय; प्रतिनिधि; साथी; पुतला; आदमीका पुतला जिसे चोर घर में स्वयं घुसने के पहले यह जानने के लिए फेंका करते थे कि कोई जगा तो नहीं है। -पत्र - पु० (प्रॉक्सी) वह पत्र जिसके द्वारा किसी व्यक्तिको किसीके बदले कुछ काम करने, वोट डालने आदिका अधिकार दिया जाय । प्रतिपोषक - पु० [सं०] सहायक; समर्थक | प्रतिप्रत्त - वि० सं० बदले में दिया हुआ, प्रत्यर्पित । प्रतिप्रहार - पु० [सं०] प्रहारके जवाब में किया जानेवाला
प्रहार ।
प्रतिप्रेषण करना - स० क्रि० (रेफर) कोई आवेदन-पत्रादि स्वीकृति या आवश्यक काररवाईके लिए किसी ऊँचे प्राधिकारी के पास भेजना; कोई विवादास्पद या संदेहयुक्त विषय उलझन दूर करने, संशय मिटानेके लिए किसी विशेषज्ञ या जानकार के पास भेजना ।
प्रतिफल - पु० [सं०] प्रतिबिंब, प्रतिच्छाया; किसीके किये हुएका अनुरूप प्रतीकार; परिणाम, नतीजा; पुरस्कार, वह जो बदलेमें दिया जाय ।
• प्रतिफलक - पु० [सं०] अक्स डालने, वस्तुको प्रतिफलित करनेका यंत्र; (रोफ्लेक्टर) दे० 'प्रकाशपरावर्तक' । प्रतिफलन - पु० [सं०] दे० 'प्रतिफल' |
प्रतिफलित - वि० [सं०] प्रतिबिंबित; जिसका बदला लिया गया हो, प्रतिकृत ।
प्रतिबंध-पु० [सं०] बाँधनेकी क्रिया या भाव, बंधन; रुका वट, बाधा, अवरोध; (एंबाग) विदेशोंको कोई विशेष माल भेजने, ऋण देने आदिपर लगायी गयी रोक; कोई समाचार आदि निर्धारित समय से पूर्व प्रकाशित करनेकी मनाही; (प्राविजो ) किसी अधिनियम आदिकी धारामें या किसी प्रलेख आदि में पड़नेवाली कठिनाई से बचने के लिए लगायी गयी शर्त या बतलाया गया उपाय, परंतुक प्रतिरोध; सदा बना रहनेवाला संबंध; नैराश्य । प्रतिबंधक - पु० [सं०] बाँधनेवाला; रोकने या बांधा डालनेवाला; प्रतिरोधक, शाखा, टहनी ।
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५०८
प्रतिबंधु - पु० [सं०] वह जो बंधुके समान हो; वह जो पद आदि में समान हो ।
प्रतिबद्ध - वि० [सं०] बँधा हुआ; जमाया हुआ; जड़ा हुआ; जिसपर प्रतिबंध हो, जिसमें रुकावट डाली गयी हो, अटका हुआ; जो किसीसे इस प्रकार संबद्ध हो कि अलग न किया जा सके ।
प्रतिबाधित- वि० [सं०] ( प्रीक्लूडेड) जिसमें पहले से ही बाधा डाल दी गयी हो, जो पहलेसे रोक दिया या रोक रखा गया हो ।
प्रतिबिंबन, प्रतिबिंबन- पु० [सं०] प्रतिबिंबित होना; अनुकरण; तुलना । प्रतिबिंबना* - अ० क्रि० प्रतिबिंबित होना । प्रतिबिंबित, प्रतिबिंबित-वि० [सं०] जिसका प्रतिबिंब पड़ा हो, दर्पण आदि में प्रतिफलित । प्रतिबोध - पु० [सं०] 'जागरण, ज्ञान; स्मृति; होशमें
आना ।
प्रतिबोधक - वि० [सं०] जगानेवाला; ज्ञान करानेवाला । प्रतिबोधन - पु० [सं०] जगानेकी क्रिया; ज्ञान कराना । प्रतिभट - पु० [सं०] विरोधी, शत्रु; शत्रुपक्षका योद्धा; प्रतिद्वंद्वी ।
प्रतिभा - स्त्री० [सं०] दीप्ति, प्रभा, चमक; बुद्धि, समझ; विलक्षण बौद्धिक शक्ति; उपयुक्तता । -क्षय- पु०, - हानि - स्त्री० शक्तिका हास; प्रकाशका नाश । - मुख - वि० कुशाग्रबुद्धि; प्रगल्भ । - शाली (लिन् ) वि० जिसमें प्रतिभा हो, प्रतिभायुक्त । -संपन्न - वि० दे० 'प्रतिभाशाली' । प्रतिभात - वि० [सं०] प्रभायुक्त, चमकदार; ज्ञात, अवगत । प्रतिभावान् (वत्) - वि० [सं०] जिसमें प्रतिभा हो, प्रति
भायुक्तः प्रगल्भ; दीप्तियुक्त । पु० सूर्य; अग्नि; चंद्रमा । प्रतिभाव्य - वि० [सं०] (बेलेबिल) दे० 'प्रतिभूमोच्य' । प्रतिभास-स्त्री० [सं०] प्रकाश; आभास; भ्रमः मिथ्याज्ञान । प्रतिभासन - पु० [सं०] चमकना; दीख पड़ना, दिखाई देना ।
प्रतिभू - पु० [सं०] ( इयूरटी) कसीकी जमानत करनेवाला, उसकी ओर से - अदालतमें हाजिर होने, रकम चुकाने या कोई प्रतिक्षा पूरी करने के लिए - अपने आपको वचनबद्ध करनेवाला, जामिन । -पत्र - पु० ( बांड ऑफ ड्यूटी ) दे० जमानतनामा' । - मोच्य - वि० ( बेलेबिल ) ( वह अपराध) जिसमें किसीके जामिन बन जाने या जमानत देनेपर अभियुक्त मामलेका निपटारा होनेतक रिहा कर दिया जाता है, प्रतिभाव्य । प्रतिभूति - स्त्री० [सं०] (बेल, सिक्यूरिटी) प्रतिभू द्वारा की गयी जमानत कोई काम या वचन पूरा करने आदिके लिए दिया गया निश्चित आश्वासन या उसके बदले जमा की गयी वस्तु या धन ऋण आदिके प्रमाण-स्वरूप जारी
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५०९
किया गया सरकारी कागज, साखपत्र ।
प्रतिभेद - पु० [सं०] विभाग करना, विभाजन; रहस्य प्रकट करना, भेद खोलना ।
प्रतिभेद-प्रतिवादिता
प्रवर्ग आदिकी वह इकाई जो गुण, स्वरूप आदि में समस्त जाति या प्रवर्गका प्रतिनिधित्व कर सके या जिससे उस जाति या ढंगकी अन्य वस्तुओंका गुण, स्वरूप आदि जाना जाय; किसी वस्तुका वह थोड़ा अंश जिससे अंशीके गुण, स्वरूप आदिका यथेष्ट परिचय मिल जाय, नमूना, बानगी; चित्र, अनुकृति; प्रतिनिधिः एक दानव । वि० एक ही जैसे रूपवाला; सुंदर; उपयुक्त ।
प्रतिरोध - पु० [सं०] रोक, रुकावट, बाधा; प्रतिबंध; तिरस्कार; डाका; चोरी; घेरा डालना; विरोधी । प्रतिरोधक, प्रतिरोधी ( धिन् ) - वि०, पु० [सं०] प्रतिरोध करनेवाला; रोकनेवाला; डाकू; चोर; घेरा डालनेवाला; विरोधी; बाधा पहुँचानेवाला |
प्रतिभेदन - पु० [सं०] विदीर्ण करना, चीरना- फाड़ना; (आँख आदि) निकाल लेना; विभाग करना । प्रतिमंडल - पु० [सं०] सूर्य आदिके चारों ओरका घेरा, परिवेष |
प्रतिमंत्रित - वि० [सं०] अभिमंत्रित, मंत्र द्वारा पवित्र किया हुआ ।
प्रतिमल - पु० [सं०] कुश्तीका जोड़; वह जो मुकावलेमें लड़े, प्रतियोद्धा ।
|
प्रतिमा - स्त्री० [सं०] मिट्टी आदिकी बनायी हुई देवता आदिकी मूर्ति; पत्थर आदिकी बनी हुई देवताकी मूर्ति जिसकी पूजा की जाती है, अनुकृति; चित्र, तसवीर; प्रति बिंब, परछाई; सादृश्य (समासांत में प्रतिम-सादृश्य के अर्थमें); परिमाण, माप; चिह्न; हाथी के सिरका, दाँतों के बीच का एक भाग । गत- वि० जो प्रतिमा या चित्रमें स्थित हो । पूजा - स्त्री० मूर्तिपूजा । प्रतिमान - पु० [सं०] परछाई; प्रतिमा, प्रतिमूर्ति; चित्र; नमूना; हाथी के कुंभस्थलका निचला भाग; हाथीके दोनों दाँतों के बीच का स्थान; बाट, मापने या योग्यतादिका निर्धारण करनेके लिए स्थिर किया हुआ मानदंड (स्टैंडर्ड); बटखरा; विरोधी, प्रतिद्वंद्वी (वै०); सादृश्य, समता । प्रतिमूर्ति - स्त्री० [सं०] पत्थर, धातु आदिकी बनायी हुई देवता आदिकी मूर्ति; अनुकृति, चित्र, प्रतिमा । प्रतियोगिता - स्त्री० प्रतियोगी होनेका भाव, विरोध, प्रतिद्वंद्विता, छोड़; शत्रुता । - परीक्षा - स्त्री० किसी काम या पदके उम्मेदवारोंकी वह परीक्षा जो उनकी योग्यता की जाँच के लिए ली जाती है और जिसमें उत्तीर्ण होनेवाले उसके लिए चुने जाते हैं ।
प्रतियोगी (गिन् ) - पु० [सं०] विरोधी, शत्रु प्रतिद्वंद्वी, जोड़; बाधक; वह जिसका अभाव हो; वह जिसका किसीसे प्रतिकूल संबंध हो (जैसे-घट घटाभावका प्रतियोगी हैन्या० ) ; हिस्सेदार; वह वस्तु जो किसी अन्य वस्तुपर आश्रित हो । वि० विरोधी; बराबरीका । प्रतियोध, प्रतियोधी ( धिन् ), प्रतियोद्धा ( ट ) - पु० [सं०] मुकाबले में लड़नेवाला, प्रतिद्वंद्वी । प्रतिरक्षण - पु० [सं०] रक्षा, हिफाजत । प्रतिरक्षा - स्त्री० [सं०] (डिफेंस) किसीके आक्रमणसे अपनी रक्षा करनेका कार्य या व्यवस्था; लगाये गये अभियोगसे अपना बचाव करने या अपनी निर्दोषिता दिखानेका प्रयत्न, सफाई । - व्यय - पु० (डिफेंस एक्सपेंडिचर) किसी देशकी प्रतिरक्षा आदि के लिए किया जानेवाला व्यय । प्रतिरथ- पु० [सं०] मुकावलेमें लड़नेवाला, प्रतियोद्धा (रथी)। प्रतिरव-पु० विवाद, झगड़ा; प्रतिध्वनि । प्रतिरुद्ध - वि० [सं०] रोका हुआ, अवरुद्ध; जिसे या जिसमें बाधा पहुँचायी गयी हो; (नगर, दुर्ग आदि) जो घेर लिया गया हो ।
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प्रतिरूप - पु० [सं०] वह जो रूप या आकृतिमें किसीके समान हो; प्रतिमा, प्रतिमूर्ति (स्पेसिमेन) किसी जाति,
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प्रतिरोधन- पु० [सं०] प्रतिरोध करनेकी क्रिया । प्रतिरोधित - वि० [सं०] जिसका प्रतिरोध किया गया हो । प्रतिरोपित - वि० [सं०] जो (पौधा) पुनः रोपा गया हो । प्रतिलब्धि-स्त्री० [सं०] ( रिकव्हरी ) किसीको पहले दी हुई ( या खोयी हुई) वस्तु पुनः प्राप्त करना । प्रतिलिपि - स्त्री० [सं०] किसी लिखी हुई चीजकी नकल । प्रतिलिपिक - पु० [सं०] (कॉपीइस्ट) किसी लेख, पत्रादिकी प्रतिलिपि या नकल करनेवाला । प्रतिलिपित - वि० (कॉपीड ) जिसको प्रतिलिपि कर ली गयी हो ।
प्रतिलेखक - पु० [र्स०] (कॉपीइस्ट) दे० 'प्रतिलिपिक' । प्रतिलेखन-पु० [सं०] ( ट्रांसक्रिप्शन ) किसी पत्र, पुस्तक आदि से कोई चीज ज्योंकी त्यों उतारना या फिर उसी तरह लिखना ।
प्रतिलोम - वि० [सं०] विपरीत, उलटा, अनुलोमका उलटा; नीच, अधम अप्रिय; प्रतिकूल; बायाँ । पु० अप्रिय या हानिकर कार्य । - विवाह - पु० ऐसा विवाह जिसमें वर नीच वर्णका हो और कन्या उच्च वर्णको । प्रतिवक्ता (क्तृ) - पु० [सं०] उत्तर देनेवाला; ( कानूनकी ) व्याख्या करनेवाला ।
प्रतिवचन - पु० [सं०] उत्तर, जवाब; प्रतिध्वनि । प्रतिवनिता - स्त्री० [सं०] सौत, सपत्नी । प्रतिवर्ती ( तिनू ) - वि० [सं०] (रिवर्शनरी) (लाभादिकी रकम) जो मृत्यु के बाद प्राप्य हो; जो उत्तराधिकार के रूप में भोग्य हो । - अधिलाभांश- पु० (रिवर्शनरी बोनस ) बीमा पत्रक आदिपर मिलनेवाला वह अभिलाभांश ( बोनस ) जो मृत्यु के बाद ही उसके उत्तराधिकारियोंको प्राप्त हो सके ।
प्रतिवस्तु-स्त्री० [सं०] वह वस्तु जो रूप आदिमें किसी वस्तु के समान हो, सदृश वस्तु; किसी वस्तुके बदले दी जानेवाली वस्तु; उपमान । प्रतिवस्तूपमा स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ उपमेय और उपमान वाक्य में एक ही साधारण धर्म, शब्दभेदसे, कहा जाय ।
प्रतिवाक्य - पु० [सं०] उत्तर, जवाब | वि०उत्तर देने योग्य | प्रतिवाद - पु० [सं०] वादीकी बात के विरोध में कही जानेवाली बात, वादीकी बातका उत्तर; विरोध, खंडन । प्रतिवादिता - स्त्री० [सं०] प्रतिवादीका भाव या कार्यं ।
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प्रतिवादी-प्रतिसारण प्रतिवादी(दिन्)-पु० [सं०] प्रतिवाद करनेवाला; प्रतिषेधक-पु० [सं०] प्रतिषेध करनेवाला । वादीकी बातका उत्तर देनेवाला; खंडन करनेवाला, विरोध प्रतिषेधाधिकार-पु० [सं०] ( पावर ऑफ वीटो) किसी करनेवाला; वह जिसपर दावा किया गया हो, मुद्दालेहा | देशके राष्ट्रपति या प्रधान शासकका विधानसभा द्वारा विरोधी, शत्रु ।
स्वीकृत प्रस्तावको अमान्य ठहरानेका अधिकार, सुरक्षाप्रतिवासी (सिन्)-पु० [सं०] पड़ोस में रहनेवाला, परिषद द्वारा स्वीकृत किसी प्रस्तावको न मानने या पड़ोसी । [स्त्री० 'प्रतिवासिनी'।]
कार्यान्वित होनेसे रोक देनेका पाँच महान् राष्ट्रोंमेंसे प्रतिविधि-स्त्री० [सं०] प्रतिकार ।
प्रत्येकको प्राप्त विशेषाधिकार ।। प्रतिवेदन-पु० [सं०] (रिपोर्ट) किसी घटना, कार्य, योजना प्रतिष्ठा-स्त्री० [सं०] स्थिति, ठहराव; स्थापन, देवप्रतिमाआदिके संबंध छानबीन, पूछताछ आदि करनेके बाद की स्थापना किसी पदपर प्रतिष्ठित किया जाना; घर; तैयार किया गया विवरण जो किसी अधिकारी या सभा आधार, सम्मान, गौरव, मान-मर्यादा; सीमा; पैर स्थिरता आदिके सामने प्रस्तुत करनेको हो, आख्या ।
ख्याति, प्रसिद्धि; अभीष्टकी सिद्धि । -पत्र-पु० दे० प्रतिवेदी(दिन)-वि० [सं०] अनुभव करनेवाला, जानने- 'मानपत्र'। समझनेवाला।
प्रतिष्ठान-पु० [सं०] आधार, स्थान; नगर-स्थापन प्रतिवेश-पु० [सं०] पड़ोस पड़ोसो।
स्थापित की गयी वस्तु, संस्था या समिति; विश्रामालय प्रतिवेशी(शिन)-पु० [सं०] पड़ोसी।
पैर ।-पत्र-पु० (मेमोरेंडम ऑफ असोसियेशन) किसी प्रतिव्यक्ति कर-पु० [सं०] (कैपिटेशन टैक्स) प्रतिव्यक्तिके व्यापारिक संस्था या प्रमंडलका नाम, उद्देश्य आदिहिसाबसे लगाया गया कर ।।
का ब्यौरा देनेवाला वह प्रलेख जो उसकी संस्थापनाके पूर्व प्रतिशयन-पु० [सं०] किसी अभीष्टकी सिद्धि के लिए | सार्वजनिक रूपमें प्रकाशित किया जाय और विधिवत् दाना-पानी छोड़कर किसी देवताके सामने पड़े रहना। । जिसका पंजीयन किया जाय । प्रतिशयित-वि० [सं०] प्रतिशयन करनेवाला, जो प्रति- प्रतिष्ठापन-पु० [सं०] स्थापित करनेका काम; देवप्रतिमाशयन करे।
की स्थापना पदासीन करना। प्रतिशाप-पु० [सं०] शापके बदले में दिया जानेवाला शाप। प्रतिष्ठापयिता(त)-पु० [सं०] प्रतिष्ठापन करनेवाला। प्रतिशासन-पु० [सं०] नौकर या किसी छोटेको बुलाकर प्रतिष्ठापित-वि० [सं०] जिसका प्रतिष्ठापन किया गया हो। कहीं भेजना या किसी काममें नियुक्त करना; विरोधी या प्रतिष्ठित-वि० [सं०] जिसकी प्रतिमा की गयी हो, स्थापित किसी औरका शासन ।
पदाभिपिक्त पूरा किया हुआ; निश्चित, निर्धारितविवाप्रतिशिष्ट-वि० [सं०] जो कहीं भेजा या किसी काम में हिता प्रयुक्त जानकारी प्राप्त; विख्यात, प्रसिद्धः सम्मानियुक्त किया गया हो ( नौकर आदिके लिए); जिसका नित, इज्जतदार । पु० विष्णु । निराकरण किया गया हो, निराकृत; अस्वीकृतः प्रसिद्ध । प्रतिसंहरण-पु. ( रिवोकेशन) किसी आशप्ति, आदेश, प्रतिशुल्क-पु० [सं०] (काउंटरवेलिंग ड्य टो) आयात माल- अनुशा, वचन आदिको वापस लेना, रद्द कर देना। पर इस उद्देश्यसे लगाया गया कर जिसमें वह स्वदेशमें प्रतिसंहार-पु० [सं०] समेट लेना; त्यागना । प्रस्तुत की गयी वस्तुओंसे अधिक सस्ता न बिक सके प्रतिसचिव-पु० [सं०] (डिप्टी सेक्रेटरी) सचिवकी अनुविदेश द्वारा पहलेसे लगाये गये किसी शुल्कका अनिष्टकारी पस्थितिमें उसके स्थानपर काम करनेवाला । प्रभाव व्यर्थ करनेके लिए लगाया जानेवाला आयात-कर । प्रतिसर-पु० [सं०] सेनाका पिछला भाग; वह कंकण जो प्रतिशोध-पु० सं०] प्रतिकार, बदला।
ब्याके पहले दूल्हा तथा दुलहिनकी कलाई पर बाँधा जाता प्रतिश्यान, प्रतिश्याय-पु० [सं०] जुकाम, सरदी। है। कंकण नामका आभूषण; एक प्रकारका मंत्र; राखी; प्रतिश्रत-वि० [सं०] जिसकी प्रतिज्ञा की गयी हो, प्रति- माला; घावका भरना, व्रणशुद्धि; सेवक, रहलू; रक्षक, ज्ञात; सुना हुआ।
रखवाला; प्रभात । वि० अधीन, परतंत्र । प्रतिश्रति-स्त्री० [सं०] प्रतिज्ञा प्रतिध्वनि, गूंज ।-पत्र- प्रति-सरकार-स्त्री० (पैरेलल गवर्नमेंट) किसी देशमें प्रतिष्ठित पु० (कॉवेनेंट) वह पत्र या प्रलेख जिसमें किसी बातकी सरकारकी प्रतिस्पर्धा या विरोधमें स्थापित अन्य सरकार प्रतिज्ञा की गयी हो; कोई बात करने या न करने के संबंध जो उक्त सरकारके साथ-साथ ही कुछ भागोंपर शासन आपसमें किया गया लिखित समझौता ।
करने आदिका प्रयत्न करे, समकक्ष सरकार ।। प्रतिषिद्ध-वि० [सं०] जिसका प्रतिपेध किया गया हो, प्रतिसरण-पु० [सं०] किमीके सहारे उठघनेकी क्रिया । निषिद्ध जिसका खंडन किया गया हो।
प्रतिसव्य-वि० [सं०] प्रतिकृल, विरुद्ध आचरण करनेवाला, प्रतिषेध-पु० [सं०] निवारण; निषेध, मनाही; खंडन; विरुद्धाचारी। एक अर्थालंकार जहाँ किसी प्रसिद्ध निषेध या अंतरका प्रतिसाम्य-पु० [सं०] (सिमेट्री) शरीरके या किसी रचना इस प्रकार वर्णन किया जाय जिससे उसका कोई विशेष अथवा किसी वस्तुके विभिन्न अंगों में आकार प्रकार, बनावट अभिप्राय सूचित हो। -लेख-पु. (रिट ऑफ प्रोहि- आदि संबंधी वह उचित अनुपात जो उसे सुंदर और विशन) किसी मामलेकी सुनवाई बंद कर देनेका उच्च मनोरम बनाने में सहायक हो। न्यायालय द्वारा छोटी मातहत अदालतको दिया गया। प्रतिसारण-पु० [सं०] दूर हटाना, दूरीकरण, अपसारण लिखित आदेश।
| (ड्रेसिंग), घावकी मरहम-पट्टी करना (सुश्रुन); मरहम
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प्रतिसारित-प्रत्यक्ष लगानेका एक औजार, 'चूर्ण, कल्क आदिकी सहायतासे | प्रतीक्षण-पु० [सं०] प्रतीक्षा करना; प्रतीक्षा। दाँत, जीभ आदिको उँगलीसे रगड़ना (सुश्रुत)।
प्रतीक्षा-स्त्री० [सं०] आसरा देखना, इंतजार करना । प्रतिसारित-वि० [सं०] (ड्रेस्ड) जिसकी मरहम-पट्टीकी
-गृह-पु० (वेटिंग रूम) रेलगाड़ी, बस, विमानादिके गयी हो।
आगमनतक प्रतीक्षा करनेवाले यात्रियोंके बैठनेका कमरा प्रतिसेना-स्त्री० [सं०] शत्रुकी सेना ।
या छायादार स्थान; किसी अधिकारी, बड़े आदमी आदिसे प्रतिस्नेह-पु० [सं०] प्रेमके बदले किया जानेवाला प्रेम, मिलनेवालोंके लिए बैठकर प्रतीक्षा करनेका कमरा या प्रेमका प्रतिदान।
घर। प्रतिस्पर्धा, प्रतिस्पर्धा-स्त्री० [सं०] होड़ ।
प्रतीक्षालय-पु० [सं०] दे० 'प्रतीक्षागृह'। प्रतिस्पर्धी(र्द्धिन), प्रतिस्पर्धी(धिन् )-पु० [सं०] | प्रतीघात-पु० [सं०] दे० 'प्रतिघात' ।
प्रतिस्पर्धा करनेवाला, होड़ लगानेवाला प्रतिद्वंद्वी। प्रतीची-स्त्री० [सं०] पश्चिम दिशा। -पति-पु० वरुण । प्रतिस्राव-पु० [सं०] नाकसे पीला और गाढ़ा कफ निक- प्रतीचीन-वि० [सं०] पश्चिम दिशाका, पश्चिमी, पछाहीं; लनेका एक रोग।
पिछला। प्रतिहंता(त)-पु०[सं०] रोकनेवाला; निवारण करनेवाला। प्रतीच्य-वि० [सं०] पश्चिमका, पश्चिमी, पछाहीं। प्रतिहत-वि० [सं०] रोका हुआ, अवरुद्ध दूर किया हुआ, | प्रतीत-वि० [सं०] जाना हुआ, ज्ञात, मालूम प्रसिद्ध, निरस्त; निराश किया हुआ; पराभूत किया हुआ। मशहूर हृष्ट, प्रसन्न; (-होना=जान पड़ना)। प्रतिहनन-पु० [सं०] आघातके जवाबमें आधात करना । प्रतीति-स्त्री० [सं०] ज्ञान, बोध, प्रसिद्धि हर्ष, विश्वास । प्रतिहरण-पु० [सं०] निवारण; परित्याग हटाना। प्रतीप-वि० [सं०] प्रतिकूल, उलटा, विलोम; अप्रिय प्रतिहा(त)-पु० [सं०] सोलह प्रकारके ऋत्विजोंमेंसे एक हठी बाधक; विरोधी । पु० एक अर्थालंकार जहाँ प्रसिद्ध हटानेवाला; नाश करनेवाला।
उपमानको उपमेय बना दिया जाय या उपमेयसे उपमान प्रतिहस्त, प्रतिहस्तक-पु० [सं०] प्रतिनिधि, सहायक । का निरादर आदि कराया जाय।-ग-वि० विरुद्ध जाने. प्रतिहस्ताक्षरित-वि० [सं०] (काउंटरसाइंड) (वह प्रलेख वाला प्रतिकूल । -गति-स्त्री०,-गमन-पु० पीछेकी आदि) जिसपर पहलेसे किये गये हस्ताक्षरके सामने किसी ओर जाना । -गामी(मिन)-वि०विरुद्धाचरण करनेअन्य अधिकारी आदिके हस्ताक्षर किये गये हों; जिसपर। वाला। किसीके हस्ताक्षरोंको साक्षीकृत करनेके लिए हस्ताक्षर किये प्रतीपोक्ति-स्त्री० [सं०] खंडन, प्रतिकूल वचन । गये हों।
प्रतीयमान-वि० [सं०] जिसकी प्रतीति हो रही हो, जान प्रतिहस्तापन-पु० [सं०] (सब्स्टि -टयूशन) कोई काम पड़ता हुआ; ( वह अर्थ) जो व्यंजना द्वारा प्रकट हो करने या चलानेके लिए. एकः आदमी या एक वस्तुके | रहा हो। बदले में, स्थानमें, दूसरा आदमी या दूसरी वस्तु रखना।। प्रतीवेशी(शिन्)-पु० [सं०] दे० 'प्रतिवेशी' । प्रतिहार-पु० [सं०] निवारण; द्वारपाल, ड्योढ़ीदार; द्वार, | प्रतीहार-पु० [सं०] दे० 'प्रतिहार' । दरवाजा; ऐंद्र जालिक, बाजीगर; बाजीगरी; उद्गाता द्वारा प्रतीहारी-स्त्री० [सं०] दे० 'प्रतिहारी। गाये जानेवाले सामका एक अवयव । -भूमि-स्त्री० | प्रतोद-पु० [सं०] कोई काम करनेको विवश करना; अंकुश ड्योढ़ी। - रक्षी-स्त्री० द्वारपालिका।
चाबुक; पैना; कोंचनेका एक आला । प्रतिहारी-स्त्री० [सं०] द्वारपालका काम करनेवाली स्त्री, | प्रतोषना*-स० क्रि० संतुष्ट करना; समझाना-बुझानाद्वारपालिका।
'राम प्रतोषी मातु सब कहि बिनीत बरबैन'-रामा० । प्रतिहारी(रिन्)-पु० [सं०] द्वारपाल ।
प्रत्न-वि० [सं०] पुराना, पुरातन परंपरागत । -तत्त्वप्रतिहास-पु० [सं०] हँसनेके जवाबमें हँसना कनेर । पु० दे० 'पुरातत्त्व' । -तत्त्वविद-पु० पुरातत्ववेत्ता । प्रतिहिंसा-स्त्री० [सं०] हिंसाके बदले में की जानेवाली हिंसा। प्रत्यंकन-पु०[सं०] (ट्रेसिंग) अंकित की हुई किसी आकृति प्रतिहित-वि० [सं०] रखा हुआ, जमाया हुआ ।
आदिकी ज्योंकी त्यों प्रतिकृति तैयार करना, विशेषकर प्रतीक-वि० [सं०] प्रतिकूल, विरुद्ध विलोम, उलटा । पु० उसके ऊपर पारदशी पतला कागज या मसिपत्र रखकर । अंग, अवयव अंश, भाग; वह पदार्थ जिसपर किसीका | प्रत्यंग-पु० [सं०] शरीरका कोई गौण अंग (जैसे नाक)। आरोप किया गया हो, प्रतिरूप; प्रतिमा; किसी वाक्य, | प्रत्यंचा-स्त्री० धनुष्की डोरी। पद, मंत्र आदिके कुछ अक्षर जिनसे पूरेका बोध हो; मुँह, प्रत्यंत-वि० [सं०] जो सन्निकट हो, प्रत्यासन्न । चेहरा किसी चीजका आगेका हिस्सा । -न्यूनन-पु० | प्रत्यक्ष-वि० [सं०] जो आँखोंके सामने हो, जो आँखोंसे (टोकन कट) (अपना विरोध या असंतोष प्रकट करनेके | दिखाई दे, परोक्षका उलटा; जिसका ग्रहण किसी ज्ञानेंलिए) आय-व्ययकी किसी मदमें केवल प्रतीकके रूपमें | द्रियसे हो सके; स्पष्ट, साफ । पु० एक प्रकारका शान जो नाम मात्रकी कमी करानेका प्रस्ताव, लाक्षणिक न्यूनन । इंद्रिय और अर्थके सन्निकर्षसे उत्पन्न होता है और चार -वाद-पु० (सिंबालिज्म) किसी वस्तु या विषयको प्रकारके प्रमाणोंके अंतर्गत माना जाता है। किसी ज्ञानेंकिसीके प्रतीकके रूपमें वर्णन करने या माननेका सिद्धांत । द्रिय द्वारा वस्तु विशेषका ग्रहण । अ० स्पष्टतः, साफप्रतीकार-पु० [सं०] दे० 'प्रतिकार' ।
साफ-ज्ञान-पु० इंद्रिय और विषयके सन्निकर्षसे उत्पन्न प्रतीक्ष, प्रतीक्षक-वि० पु० [सं०] प्रतीक्षा करनेवाला । । ज्ञान । -दर्शन,-दी(शिन)-पु. वह जिसने कोई
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प्रत्यक्षता- प्रत्याशा
घटना साक्षात् देखी हो, साक्षी, गवाह । - वादी ( दिन ) - पु० चार्वाक जो प्रत्यक्षके अतिरिक्त और किसी प्रमाणको नहीं मानता; वह जो केवल प्रत्यक्ष प्रमाण माने । - सिद्ध-वि० जो प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा सिद्ध हो, जिसकी सिद्धिके लिए प्रत्यक्षके अतिरिक्त किसी और प्रमाणकी आवश्यकता न हो ।
प्रत्यक्षता - स्त्री० [सं०] प्रत्यक्ष होनेका भाव । प्रत्यक्षीकरण - पु० [सं०] स्वयं अपनी आँखोंसे देखनेकी क्रिया; किसी इंद्रिय द्वारा ग्रहण करनेकी क्रिया । प्रत्यक्षीभूत - वि० [सं०] जो प्रत्यक्ष हो चुका हो । प्रत्यनीक - पु० [सं०] शत्रु शत्रुसेना; विघ्न; प्रतिवादी ; एक अर्थालंकार जहाँ शत्रुको न जीत सकनेके कारण उसके पक्ष के किसी व्यक्तिसे वैर निकालनेका वर्णन किया जाय या किसी मित्रकी भलाई के बदले उसके किसी संबंधी आदिके प्रति कोई अच्छा काम करना दिखलाया जाय । वि० विरोधी, विपक्षी ।
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प्रत्यपकार - पु० [सं०] अपकार के बदले किया जानेवाला
अपकार ।
प्रत्यभिज्ञा - स्त्री० [सं०] कभीके देखे हुए व्यक्ति या पदार्थको फिर देखनेपर होनेवाला यह ज्ञान कि यह अमुक व्यक्ति या पदार्थ है, पहचान; यह ज्ञान कि परमेश्वर और जीवात्मा एक हैं ।
प्रत्यभिज्ञात - वि० [सं०] पहचाना हुआ | प्रत्यभिज्ञान- पु० [सं०] पहचान; वह वस्तु या चिह्न जिससे कोई पहचान जाय ।
प्रत्यभियोग - पु० [सं०] अभियुक्त या प्रतिवादीकी ओर से वादीपर लगाया जानेवाला अभियोग । प्रत्यभिवाद, प्रत्यभिवादन - पु० [सं०] प्रणाम करनेवाले को दिया जानेवाला आशीर्वादः प्रणामके बदले प्रणाम
करना ।
प्रत्यय - पु० [सं०] ( ऋण चुकानेकी क्षमता में ) विश्वास; साख (क्रेडिट); ज्ञान; शपथ; आचार; छिद्र; निश्चयः प्रसिद्धि, ख्याति; सहकारी कारण (बौद्ध); कारण; बुद्धि; स्वाद; अभ्यास; प्रयोग; साधन; ध्यान; छंदोंकी संख्या जाननेकी एक रीति; आश्रित जन; सहायक; विष्णु; वह उपसर्ग जैसा शब्द जो किसी धातु या मूल शब्द के अंत में कोई संज्ञापद, क्रियापद, अव्यय या विशेषण बनानेके लिए लगाया जाता है (व्या० ) । -पत्र - पु० (लेटर ऑफ क्रेडिट) किसी व्यापारी, महाजन आदि द्वारा किसी व्यक्तिको दिया गया वह पत्र जिसमें लिखा रहता है कि आवश्यकता पड़ने पर इसे इतना धन हमारे (व्यापारी या महाजनके) खातेमेंसे या ऋणस्वरूप दिया जाय । - प्रतिभू-पु० वह प्रतिभू या जमानतदार जो ऋण लेने वालेके प्रति महाजनको यह विश्वास दिलाता है कि 'मैं इसे जानता हूँ, यह भला आदमी है ।' प्रत्यर्पण - पु० [सं०] ली हुई वस्तुको उसके अधिकारी या किसी दूसरेको देना, गृहीत वस्तुका पुनर्दान; (एक्सट्रैडिशन) किसी देशसे भागकर आये हुए अपराधी को पुनः उस देशके उपयुक्त अधिकारीके हाथ सौंप देना; (रिफंड) पहले ली हुई या वसूल की हुई रकम लौटाना ।
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५१२
प्रत्यर्पित - वि० [सं०] लौटाया हुआ ।
प्रत्यवाय - पु० [सं०] हास; बाधा; संध्योपासन आदि विहित नित्यकर्म न करनेसे होनेवाला पाप; दुष्कृत, पाप; विरुद्ध आचरण (मनु० ); नैराश्य; परिवर्तन; सत्तावाली वस्तुका लोप; जो नहीं है उसका आविर्भाव न होना । प्रत्यवेक्षण - पु०, प्रत्यवेक्षाय - स्त्री० [सं०] किसी बात के पूर्वापरका विचार करना, देखभाल, निगरानी । प्रत्याख्यात - वि० [सं०] अस्वीकृत, इनकार किया हुआ; खंडित; मना किया हुआ; सूचित किया हुआ; निवारित; प्रसिद्ध, मशहूर ; अतिक्रांत ।
प्रत्याख्यान - पु० [सं०] इनकार; खंडन, निराकरण; उपेक्षा । प्रत्यागत- वि० [सं०] वापस आया हुआ, लौट आया हुआ । प्रत्यागतासु - वि० [सं०] जिसके प्राण लौट आये हों, जो फिर से जी गया हो ।
प्रत्यागति - स्त्री० [सं०] लौट आना, वापस आना । प्रत्यागम, प्रत्यागमन - पु० [सं०] लौट आना, वापस आना ।
प्रत्याघात - पु० [सं०] आघातके उत्तर में किया जानेवाला
आघात ।
प्रत्यादान - पु० [सं०] फिरसे लेना या प्राप्त करना । प्रत्यादिष्ट - वि० [सं०] निराकृत; लांछित; घोषित; निर्देश किया हुआ; अस्वीकृत; पृथक् किया हुआ; चिताया हुआ । प्रत्यादेश - पु० [सं०] निराकरण, खंडन; वह जो किसीको लज्जित करे या नीचा दिखाये; चेतावनी, हिदायत; आशा; अस्वीकृति, इनकार 1
प्रत्यानयन - पु० [सं०] लौटा लाना, वापस लाना; (रेस्टिट्यूशन) पुनः लौटा दिया जाना, हृतप्रतिदान | प्रत्याभूति - स्त्री० [सं०] (गारंटी) किसी संविदा आदिकी शर्तों के पालन के लिए जमानतके रूपमें दी गयी वस्तु; इस बातकी लिखित या अलिखित जिम्मेदारी कि कोई बात, घटना आदि सच्ची, साधार और विश्वसनीय है । प्रत्याय- पु० [सं०] राजस्व, कर, टैक्स । स्त्री० (रिटर्न) बदले में मिलनेवाली आमदनी या लाभ, प्रतिफल । प्रत्यायक- पु० [सं०] विश्वास दिलानेवाला; व्याख्याता; प्रमाणित करनेवाला ।
प्रत्यायुक्त - वि० [सं०] (डेलीगेटेड) जो प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया हो या जिसे विशेष कामके लिए कुछ अधिकार प्रदान किया गया हो । प्रत्यायोजन - पु० [सं०] (ऐक्ट ऑफ डेलीगेटिंग) अपने कर्तव्य, शक्तियाँ आदि किसी दूसरे व्यक्तिको सौंपना या दे देना ।
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प्रत्यारंभ - पु० [सं०] पुनरारंभ; निषेध |
प्रत्यारोप-पु० [सं०] (काउंटर चार्ज) वह आरोप जो किसी आरोपके जवाब में किया जाय । प्रत्यावर्तन - पु० [सं०] लौट आना, वापस आना । प्रत्यावेदन - पु० [सं०] (काउंटर स्टेटमेंट) किसी वक्तव्य, कथन आदिके जवाब या विरोधमें कही गयी बात । प्रत्याशा - स्त्री० [सं०] आशा । - मेँ - अ० ( इन एंटिसिपेशन) किसी बातका होना पहलेसे ही पूर्ण निश्चित मान लेने की स्थिति या प्रतीक्षामें ।
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५१३
प्रत्याशित - वि० [सं०] (एंटिसिपेटेड ) जिसकी आशा या अपेक्षा पहले से की गयी हो, जिसका पहलेसे अनुमान किया गया हो (आय, घटी, वृद्धि आदि) । - उत्तराधिकारी(रिन्) - पु० (एयर एक्सपेक्टेस) वह जिसके उत्तराधिकारी बननेकी आशा हो ।
प्रत्याहार - पु० [सं०] पीछे खींचना, हटाना; (विथड्राल ) आदेश, प्रस्ताव, वचन, शब्दादिका वापस ले लिया जाना; इंद्रियोंको विषयोंसे हटाना; अष्टांग योगके अंतर्गत एक बहिरंग साधन जिसमें इंद्रियोंको उनके विषयोंसे हटाकर चित्तके समान निरुद्ध करते हैं; प्रलय ।
प्रत्याहूत - वि० [सं०] वापस बुलाया हुआ ।
प्रत्याहत - वि० [सं०] पीछे खींचा हुआ, हटाया हुआ; जिसका निग्रह किया गया हो ।
प्रत्यायन - पु० [सं०] (रिकॉल) किसी स्थान या पदसे किसी अधिकारी या विदेश गये हुए प्रतिनिधिको वापस बुला लेना ।
प्रत्युक्ति - स्त्री० [सं०] उत्तर, जवाब |
प्रत्युत - अ० [सं०] इसके विपरीत, बल्कि, वरन् । प्रत्युत्तर - पु० [सं०] उत्तर पानेपर दिया गया उत्तर, ( रिजॉइंडर) वह जवाब जो किसी उत्तरके उत्तर में दिया
जाय ।
प्रत्युत्थान - पु० [सं०] किसी बड़ेके आनेपर उसके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए अपने आसन से उठ जाना, अभ्युत्थान; विरोधीका सामना करनेके लिए उठ खड़ा होना; युद्ध या किसी कार्यके लिए तैयारी करना । प्रत्युत्पन्न - वि० [सं०] जो फिरसे उत्पन्न हुआ हो; जो तत्काल उत्पन्न हुआ हो; उपस्थित । -मति - वि० जिसे उचित उत्तर या उपाय तत्काल सूझ जाय, प्रतिभाशाली; साहसी ।
प्रत्युदाहरण- पु० [सं०] प्रतिकूल उदाहरण, किसी उदाहरणके विरोध में दिया गया उदाहरण ।
प्रत्युपकार - पु० [सं०] किसी उपकार के बदले में किया हुआ उपकार, भलाई के बदले में की हुई भलाई । प्रत्युपकारी (रिन् ) - पु० [सं०] प्रत्युपकार करनेवाला । प्रत्युपदेश - पु० [सं०] उपदेशके बदले में दिया हुआ उपदेश; रायके बदले में दी हुई राय ।
प्रत्यूष - पु० [सं०] प्रातःकाल; आठ वसुओंमेंसे एक; सूर्य । प्रत्येक - वि० [सं०] दो या दो से अधिक में से एक-एक,
अलग-अलग, हर एक ।
प्रथम - वि० [सं०] गणना या क्रममें जिसका स्थान पहला हो, पहला, अव्वल; जो सबसे बढ़कर हो, श्रेष्ठ; प्रधान, मुख्य; पहलेका । अ० पहले, आगे - कारक- पु० कर्ता कारक (व्या० ) । - दर्शन-पु० पहलेपहल देखना । - दृष्टितः (तस ) - अ० ( प्राइमार्फसी) प्रथम बार देखनेपर | - दृष्टिसिद्ध - वि० ( प्राइमा फेसी) पहली बार देखनेसे उत्पन्न या सिद्ध जान पड़नेवाला । - पुरुष - पु० वह व्यक्ति जिसके विषय में कुछ कहा जाय ( व्या० ) । - यौवन- पु० चढ़ती जवानी ।
प्रथमतः - अ० [सं०] पहले, सबसे पहले । प्रथमा - स्त्री० [सं०] कर्ता कारक (सं० व्या० )
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प्रत्याशित- प्रदीपक
प्रथमाक्रमण - पु० [सं०] ( ऐग्रेशन) आक्रमणका आरंभ या पहला कार्य, लड़ाईकी पहल । - कर्ता ( र्तृ ), - कारी(रिन् ) - पु० ( ऐग्रेसर ) आक्रमण में पहल लेनेवाला, आक्रमणात्मक कार्य आरंभ करनेवाला । प्रथमा, प्रथमार्ध - पु० [सं०] दो समान भागो में से पहला, पूर्वार्द्ध ।
प्रथमाश्रम - पु० [सं०] ब्रह्मचर्याश्रम | प्रथमी * - स्त्री० पृथ्वी ।
प्रथमेतर - वि० [सं०] पहले के बादका, दूसरा । प्रथमोपचार - पु० [सं०] (फर्स्ट एड ) किसी घायल या आहत व्यक्तिका उपयुक्त चिकित्सककी सहायता प्राप्त होनेके पूर्व किया गया उपचार, प्राथमिक उपचार |
-केंद्र - पु० ( फर्स्ट एड पोस्ट) वह स्थान जहाँ प्राथमिक उपचार किया जाय ।
प्रथा - स्त्री० [सं०] प्रसिद्धि, ख्याति, रीति, परिपाटी (हिं०) । प्रथित - वि० [सं०] प्रसिद्ध, विख्यात, लंबा-चौड़ा, फैला हुआ । प्रद - वि० [सं०] देनेवाला (जैसे- हर्षप्रद) । प्रदक्षिणा - स्त्री० [सं०] श्रद्धा-भक्तिके भावसे देवता आदिके चारों ओर इस प्रकार घूमना कि दाहिना अंग बराबर उसकी ओर पड़े, परिक्रमा, फेरी । प्रदग्ध - वि० [सं०] बहुत जला हुआ । प्रदच्छिन* - पु० दे० 'प्रदक्षिणा' । प्रदत्त - वि० [सं०] दिया हुआ ।
प्रदर- पु० [सं०] विदीर्ण होने या फटने का भाव; दरार; छिद्र बाण; सेनाका तितर-बितर होना; स्त्रियोंका एक रोग जिसमें उनके गर्भाशय से सफेद या लाल रंगका लसदार पदार्थ बहता है ।
प्रदर्शक - पु० [सं०] दिखाने वाला; गुरु, पैगंबर । प्रदर्शन - पु० [सं०] दिखानेकी क्रिया, दिखाना; सिखलाना; जुलूस तथा नारों आदि द्वारा किसी मामलेमें अपना असंतोष प्रकट करना (डिमांस्ट्रेशन); खेल, प्रयोग आदि करके दिखलाना ।
प्रदर्शनी - स्त्री० [सं०] वह स्थान जहाँ तरह-तरहकी वस्तुएँ प्रदर्शित की जायें, नुमाइश ।
प्रदर्शित - वि० [सं०] जो दिखाया गया हो; प्रदर्शनी में रखा हुआ ।
प्रदाता (तु) - पु० [सं०] देनेवाला, दाता; कन्यादान करनेवाला; इंद्र |
प्रदान - पु० [सं०] देना, दान; दिया जानेवाला धन । प्रदायक, प्रदायी (यिन् . ) - पु० [सं०] देनेवाला, प्रदान करनेवाला ।
प्रदाह-पु० [सं०] दाह, जलन; भस्मसात् होना, ध्वंस | प्रदिशा-स्त्री० [सं०] दो मुख्य दिशाओंके बीचकी दिशा, विदिशा, कोण |
प्रदिष्ट - वि० [सं०] दिखाया हुआ, बताया हुआ; नियत किया हुआ, ठहराया हुआ; आदिष्ट ।
प्रदीप - पु० [सं०] दीपक, चिराग; वह जो प्रकाश करे अथवा किसी विषयको स्पष्ट करें (जैसे- काव्यप्रदीप ) | प्रदीपक- वि० [सं०] प्रकाश करनेवाला; स्पष्ट करनेवाला । पु० छोटा दीपक प्रकाश करनेवाला; स्पष्ट करनेवाला ।
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प्रदीपति-प्रफुल्ल प्रदीपति*-स्त्री० दे० 'प्रदीप्ति' ।
प्रनवना* --स० क्रि० प्रणाम करना । प्रदीपन-पु० [सं०] प्रकाश करना; जलाना; चमकाना; प्रनष्ट-वि० [सं०] लुप्त; बुरी तरह नष्ट भगा हुआ,पलायित। उत्तेजित करना, जगाना।
प्रनाम* -पु० दे० 'प्रणाम' । प्रदीपिका-स्त्री० [सं०] छोटा दीपक; अर्थ या विषय स्पष्ट प्रनामी-स्त्री० गुरु, ब्राह्मण आदिको प्रणाम करते समय करनेवाली छोटी पुस्तक ।
दी जानेवाली दक्षिणा या भेंट । पु० प्रणाम करनेवाला । प्रदीप्त-वि० [सं०] जलाया हुआ (आग आदिके लिए); | प्रनिपात*-पु० दे० 'प्रणिपात'। प्रकाशित; जलता हुआ, जगमगाता हुआ; उत्तेजित, जगाया प्रपंच-पु० [सं०] विस्तार, फैलाव; संसार, भवचक्र जगत्हुआ (भूख आदिके लिए); दीप्तियुक्त, चमकीला।
का जंजाल, भवजाल (हिं०); छल, धोखा भिन्नता राशि प्रदीप्ति-स्त्री० [सं०] प्रकाश प्रभा, चमक ।
प्रतिकूलता; विश्लेषण; झमेला, बखेड़ा (हिं०)। -बुद्धिप्रदुमन*-पु० दे० 'प्रद्यम्न' ।
वि० चालबाज, धोखेबाज । प्रदेय-वि० [सं०] देने योग्य, दान करने योग्य । प्रपंचक-वि० [सं०] विस्तार करनेवाला; व्याख्या करनेप्रदेश-पु० [सं०] किसी देशका वह बड़ा भाग जो भाषा, | वाला।
रीति, आबहवा आदिकी दृष्टि से उसी देशके अन्य भागोंसे प्रपंचित-वि० [सं०] जिसका विस्तार किया गया हो, भिन्न हो, प्रांत; स्थान, जगह; अँगूठेके सिरेसे लेकर तर्जनी | विस्तारित; जो ठगा गया हो, प्रतारित जिससे भूल हुई हो। के सिरेतककी दूरी।
| प्रपंची(चिन्)-वि० [सं०] प्रपंच रचनेवाला; छलिया, प्रदेशनी, प्रदेशिनी-स्त्री० [सं०] गूठेके बादकी उँगली, धोखेबाज, बखेड़ा खड़ा करनेवाला। तर्जनी।
प्रपंजी-स्त्री० [सं०] (लेजर) किसी बैंक, व्यापारिक संस्था प्रदेशीय-वि० [सं०] प्रदेश-संबंधी प्रदेशका ।
आदिकी वह मुख्य पंजी (रजिस्टर) जिसमें व्यापारिक लेनप्रदोष-पु० [सं०] भारी दोष; अव्यवस्था; सायंकाल; रात- देन, आय-व्यय आदिका ब्यौरा लिखा रहता है।-पृष्ठका पहला पहर; त्रयोदशी व्रत जिसमें दिनभर उपवास पु० (लेजर फोलियो) प्रपंजीका वह पृष्ठ (वस्तुत: आमनेकरते और सायंकाल शिवकी पूजा करके भोजन करते हैं। सामने के पृष्ठद्वय) जिसपर किसीके रुपया या माल इत्यादि प्रद्युम्न-पु० [सं०] कामदेव, कृष्णके बड़े पुत्र ।
जमा करने या निकालनेका ब्यौरा दिया रहता है। प्रद्योत-पु० [सं०] प्रकाश; किरण; दीप्ति, प्रभा । प्रपतित-वि० [सं०] जो उड़ गया हो; नीचे गिरा हुआ; प्रद्योतन-पु० [सं०] चमकना; दीप्ति, प्रभा; सूर्य । जिसका क्षय हो गया हो; मृत । प्रधान-वि० [सं०] सबसे बड़ा; मुख्य । पु० प्रकृति प्रपत्र-पु० [सं०] (फार्म) किसी परीक्षा या स्थान आदिके (सांख्य०); बुद्धितत्त्व (सांख्य०); परमात्मा; सचिव, मंत्री; लिए आवेदनपत्र देने, कोई विवरण प्रस्तुत करने या शपथ किसी दल,समाज आदिका प्रमुख व्यक्ति, मुखिया,सेनापति ग्रहण करने आदि-संबंधी पत्रोंका वह बँधा हुआ रूप जिसमें महावत । -कार्यालय-पु० किसी व्यापारिक या अन्य आवश्यक जानकारी देनेके लिए रिक्त स्थान, कोष्ठक संस्थाका केंद्रीय या मुख्य कार्यालय जहाँसे शाखा कार्या- आदिकी व्यवस्था रहती है। लयोंका नियंत्रण किया जाता है। -मंत्री(त्रिन्)-पु० प्रपथ-पु० [सं०] चौड़ी सड़क । वि० विश्रांत । किसी देश या राज्यका सबसे बड़ा मंत्री। -सेन्यावास- प्रपात-पु०[सं०] पहाड़ या चट्टानका ऊँचा खड़ा किनारा; व्यवस्थापक-पु० ( कारटर मास्टर जनरल ) सेनाके | बहुत ऊँचे स्थानसे गिरनेवाली जलकी धारा; झरना, किसी विभागका वह प्रधान अधिकारी जो सैनिकोंके निर्झर; किनारा, तट; गिरना; धड़ामसे नीचे गिरना ।
आवास, साजसज्जा, रसद आदिका प्रबंध करता है, प्रधान | प्रपितामह-पु० [सं०] परदादा; परब्रह्म । रसद-व्यवस्थापक ।
प्रपितामही-स्त्री० [सं०] परदादी। प्रधानतः(तस)-अ० [सं०] मुख्य रूपसे ।
प्रपितृव्य-पु० [सं०] दादाका चाचा, चचेरा परदादा । प्रधानता-स्त्री० [सं०] प्रधान होनेका भाव, मुख्यता। प्रपीड़क-पु० [सं०] दबानेवाला; सतानेवाला। प्रधानाध्यापक-पु० [सं०] किसी विद्यालयका मुख्य प्रपुत्र-पु० [सं०] पौत्र, पोता। अध्यापक ।
प्रपूरक-वि० [सं०] पूरा करनेवाला; भरनेवाला; तृप्त प्रधानामात्य-पु० [सं०] प्रधान मंत्री, महामात्य । करनेवाला। प्रधानी*-स्त्री० प्रधानका पद या कार्य ।
प्रपूरित-वि० [सं०] विशेष रूपसे पूरा किया हुआ; अच्छी प्रध्वंस-पु० [सं०] विनाश; किसी पदार्थकी अतीतावस्था । तरह भरा हुआ। प्रन*-पु० दे० 'प्रण'।
प्रपौत्र-पु० [सं०] पोतेका बेटा, परपोता। प्रनत*-वि० दे० 'प्रणत' ।
प्रपौत्री-स्त्री० [सं०] पोतेकी बेटी। प्रनति*-स्त्री० दे० 'प्रणति'।
प्रफुलना*-अ० क्रि० खिलना, फूलना। प्रनप्ता(प्त)-पु० [सं०] पनाती, नातीका लड़का । प्रफुला*-स्त्री० कुमुदिनी, कुई, कमलिनी । प्रनमन*-पु० दे० 'प्रणमन'।
प्रफुलित-वि० खिला हुआ; अति प्रसन्न, प्रमुदित । प्रनमना*-स० क्रि० प्रणाम करना ।
प्रफुल्ल-वि० [सं०] खिला हुआ, विकसित; जिसमें फूल प्रनय*-पु० दे० 'प्रणय'।
लगे हों, फूला हुआ प्रसन्न।-नयन, नेत्र-वि० जिसकी प्रनव-पु० दे० 'प्रणव' ।
आँखें प्रसन्नतासे फैली हुई हों। -बदन-वि० जिसका
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प्रबंध-प्रभु मुख प्रसन्न दीखता हो।
सूर्य-बिब; दुर्गा; कुबेरकी पुरी; सूर्यकी एक पत्नी; एक प्रबंध-पु० [सं०] प्रकृष्ट बंधन; ( अविच्छिन्न) क्रम; ग्रंथ, अप्सरा नहुषकी माता; एक वृत्त । -कर-पु० सूर्य कथा आदिकी रचना; निबंध; आयोजन, व्यवस्था । शिव; अग्नि, चंद्रमा, समुद्र मदारका पौधा; मीमांसाके -अभिकर्ता--पु० ( मैनेजिंग एजेंट्स ) वह कंपनी या एक प्रसिद्ध आचार्य जो 'गुरु' नामसे विख्यात है।-कीट व्यावसायिक संस्था जो निर्धारित वेतन या पारिश्रमिक -पु० जुगनू । -मंडल-पु० देवताओं, महात्माओं लेकर किसी अन्य संस्था, कारखाने आदिके प्रबंधका आदिके मुखके चारों तरफका वह दीप्तिमंडल जो चित्रों काम, उसके संचालकोंके विधिविहित निश्चयके अनुसार, या मूत्तियों में देख पड़ता है। ग्रहण करे। -कर्ता (तू)-पु० प्रबंध करनेवाला । | प्रभाउ*-पु० दे० 'प्रभाव' । -कारिणी-वि० स्त्री० किसी सभा, संघ इत्यादिके प्रभाग-पु० [सं०] भागका भाग, टुकड़ेका टुकड़ा; भिन्नका निश्चयोंको कार्यरूप देनेवाली या उसकी ओरसे प्रबंधकार्य भिन्न (जैसे-१/३ का १/५)। करनेवाली (समिति)। -काव्य-पु० (मुक्तकका उलटा) प्रभात-पु० [सं०] सबेरा, प्रातःकाल प्रभासे उत्पन्न सूर्यका वह काव्य जिसमें किसीके जीवनकी विशेष घटनाओंका पुत्र । -फेरी-स्त्री० [हिं०] कोई उत्सव मनाने या किसी क्रमबद्ध चित्रण किया गया हो। -संपादक-पु० बातका प्रचार करनेके उद्देश्यसे जुलूस बनाकर विशेष (मैनेजिंग एडिटर) संपादकीय विभागकी व्यवस्था आदिकी प्रकारके नारे लगाते हुए भोर में वस्तीमें धूमना । देखभाल करनेवाला संपादक। -समिति-स्त्री०किसी प्रभाती-स्त्री० सबेरे गाया जानेवाला एक प्रकारका गीत । सभा या संस्थाका प्रबंध करनेवाली समिति ।
प्रभार-पु० [सं०] (चाज) किसी विभागादिके कार्यका भार प्रबंधक-पु० [सं०] दे० 'प्रबंधकर्ता'।
या जिम्मेदारी । प्रबल-वि० [सं०] प्रकृष्ट बलवाला, बहुत बली; प्रचंड, प्रभारी(रिन)-वि० [सं०] (इनचार्ज) जिसके ऊपर उग्र, जोरका; भारी, महान् ।
किसी विभागादिके कार्यका भार या उत्तरदायित्व हो । प्रबलिहका, प्रवलिहका-स्त्री० [सं०] पहेली।।
-राजदूत-पु० ( शाहें डफेयर.) अस्थायी रूपसे राजप्रबाल-पु० [सं०] नया कोमल पत्ता, नव-पल्लव; मूंगा; दूतका काम संभालनेवाला व्यक्ति उप-राजदूत, छोटे देशोंवीणाकी लकड़ी, वीणादंड । -पद्म-पु० लाल कमल । में नियुक्त राजदूत । -सदस्य-पु० (मेंबर इनचाज) वह -भस्म (न्)-पु० मूंगेका भस्म ।
सदस्य जिसपर किसी कार्य या पदका भार (उत्तरदायित्व) प्रबास*-पु० दे० 'प्रवास' ।
डाला गया, सौंपा गया हो। प्रबाह*-पु० दे० 'प्रवाह'।
प्रभाव-पु० [सं०] उद्भव, उत्पत्ति सामर्थ्य, शक्ति, विक्रम प्रबाह-पु० [सं०] हाथका अगला भाग ।
सूर्यका एक पुत्र सुग्रीवका एक मंत्री; राजकीय शक्ति, प्रषिसना*-अ० क्रि० प्रवेश करना, घुसना।
राजाका कोश और दंडसे उत्पन्न तेज, प्रताप; फल, परिप्रबीन -वि० दे० 'प्रवीण' । स्त्री० अच्छी वीणा ।
णाम; असर; दबाव; विस्तार । -कर-वि० असर डालनेप्रबीर*-वि० दे० 'प्रवीर'।
वाला। -शाली(लिन)-वि० अधिक प्रभाववाला। प्रबद्ध-वि० [सं०] जागा हुआ, जाग्रत् प्रवोधयुक्त पंडित, प्रभाववान(वत्), प्रभावी (विन)-वि० [सं०] शक्तिज्ञानी; खिला हुआ, विकसित; ( जादू आदि) जिसका शाली; प्रतापी, (प्रभावी होना = लागू होना।) असर पड़ने लगा हो; सजीव ।
प्रभावान् वत्)-वि० [सं०] दीप्तियुक्त ।। प्रबोध-पु० [सं०] जागना, जागरण; सचेत होना (ला०); प्रभावान्वित-वि० [सं०] प्रभावसे युक्त प्रभावित ।
यथार्थ शान, तत्त्वज्ञान; सांत्वना, ढाढ़सा सतर्कता। प्रभावित-वि० [सं०] जिसपर प्रभाव पड़ा हो। प्रबोधक-पु०[सं०] जगानेवाला; सचेत करनेवाला (ला०), प्रभास-पु० [सं०] दीप्ति, प्रकाश; एक प्राचीन तीर्थ, शानदाता; ढाढ़स बंधानेवाला; राजाको प्रातःकाल जगाने- सोमतीर्थ; एक वसु । वाला, स्तुतिपाठक।
प्रभासना*-अ० क्रि० भासित होना, प्रतीत होना, दिखाई प्रबोधन-पु० [सं०] जगना; जगाना; सचेत होना तत्त्व- पड़ना।
ज्ञान; बोध कराना, समझाना; गंधको फिर तेज करना। प्रभिन्न-वि० [सं०] भिन्न; जो अलग हो; विभक्त जो प्रबोधना-स० क्रि० जगाना; सचेत करना; समझाना- टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गया हो; बहुत अधिक भेदवाला;
बुझाना कोई बात सिखाना; ढाढस बँधाना, तसल्ली देना। परिवर्तित; विकृत; ढीला किया हुआ; भिदा हुआ; खिला प्रबोधनी-स्त्री० [सं०] दे० 'प्रबोधिनी' ।
हुआ; मतवाला (हाथी)। पु. वह हाथी जिसके गंडस्थलसे प्रबोधिनी-स्त्री० [सं०] देवोत्थान एकादशी; दुरालभा।
मद चू रहा हो, मतवाला हाथी। -करट-वि० (वह प्रभंजन-पु० [सं०] तोड़-फोड़, वायु, हवा, प्रचंड वायु हाथी) जिसके फटे हुए कुंभस्थलसे दान बह रहा हो। वि० तोड़-फोड़ करनेवाला । -सुत-पु० हनूमान् । प्रभीत-वि० [सं०] बहुत डरा हुआ। प्रभव-पु० [सं०] उत्पत्ति, जन्म; उत्पत्तिका कारण प्रभु-पु० [सं०] अधीश्वर, स्वामी; अन्नदाता; शासक; उत्पत्तिका स्थान; मूल, जड़, साठ संवत्सरोंमेंसे एक।
सर्वशक्तिमान् , ईश्वर विष्णु; शिवः ब्रह्मा; इंद्रा राजा, प्रभविष्णु-वि० [सं०] प्रभावशाली, शक्तिशाली।
स्वामी या श्रेष्ठ पुरुषका संबोधन । वि० शक्तिशाली; योग्य, प्रभविष्णुता-स्त्री० [सं०] प्रभावोत्पादकता ।
दक्ष प्रचुर, स्थायी मुकाबलेका । -भक्त-वि० जो अपने प्रभा-स्त्री० [सं०] तेज, चमक, दीप्ति प्रकाश किरण; स्वामीका सच्चा सेवक हो, जो अपने स्वामीमें अनुरक्त हो,
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प्रभुता-प्रमाप वफादार । -शक्ति-स्त्री० कोश और सेनाका बल, पूर्ण- रोकी श्रेणी या वर्ग; वाद-विवादमें वह युक्ति जो प्रमाण प्रभुत्व, परम सत्ता। -सत्ता-स्त्री० (साव्हरेनटी) देश मानी जाती है। -ज्ञ-वि० प्रमाण-अप्रमाणको जाननेया राज्य पर ऐसी अखंड सत्ता जिसके ऊपर और किसीकी वाला पंडित। -पत्र-पु० वह पत्र या लेख जो किसी सत्ता या अधिकार न हो, पूर्ण सत्ता।
बातका प्रमाण माना जाय ।-भूत-वि० जो किसी बातप्रभुता-स्त्री०, प्रभुत्व-पु० [सं०] प्रभुका भाव; गौरव, ! का प्रमाण हो या माना जाय, प्रमाणरूप । -वचन,महत्त्व अधिकार, स्वामित्व वैभव, ऐश्वर्य ।
पाक्य-पु. न्यायसंगत वाक्य । -शास्त्र-पु० न्यायप्रभुताई*-स्त्री० दे० 'प्रभुता'।
शास्त्र, तर्कशास्त्र । -सूत्र-पु. वह सूत जिससे कोई वस्तु प्रभू*-पु० दे० 'प्रभु'।
नापी जाय । प्रभूत-वि० [सं०] जो हुआ हो, भूत; उत्पन्न, उद्गत; | प्रमाणक-वि० [सं०] (समासांतमें)......परिमाण या बहुत अधिक, प्रचुर उन्नत पूर्ण पक्क ।
विस्तारका । पु० (वाउचर) किसी रकमके आय-व्ययके प्रभूति-स्त्री० [सं०] उत्पत्ति स्थान; आधिक्य, प्रचुरता।। खातेमें चढ़ाये जानेकी संपुष्टि या प्रमाणके रूप में साथमें प्रभृति-अ० [सं०] इत्यादि, वगैरह ।
नत्थी किया गया हिसाबके ब्यौरेका पुरजा प्रमाणपत्र । प्रभेद-पु० [सं०] भेद, प्रकार, अंतर; स्फोटन; विभाग। प्रमाणतः(तस्)-अ० [सं०] प्रमाणके अनुसार । प्रभेदक-वि० [सं०] फाड़ने, चीरनेवाला; अंतर करने- प्रमाणन-पु० [सं०] (सर्टिफिकेशन) किसी लेख, कथन या वाला।
बातका ठीक और प्रामाणिक होनालिखकर स्वीकार करना । प्रभेव*-पु० दे० 'प्रभेद'।
प्रमाणना*-स० कि० दे० 'प्रमानना'। प्रमंडल-पु० [सं०] पहियेके बाहरी हिस्सेका खंड, चक्के प्रमाणिक-वि० [सं०] जिसके लिए कोई प्रमाण हो, प्रमाण का खंड (कंपनी) मिल-जुलकर कोई काम करने, विशेष- सिद्ध; जो किसी बातका प्रमाण हो, प्रमाणरूप (दि०)। कर व्यापारादिके लिए बनाया गया व्यक्तियोंका संघ या प्रमाणित-वि० [सं०] प्रमाण द्वारा सिद्ध, प्रमाणसिद्ध । समूह ।
प्रमाणीकरण-पु० [सं०](आथेंटिकेशन)किसी बातकी सत्यता प्रमत्त-वि० [सं०] नशे में चूर, मतवाला; पागल, विक्षिप्त प्रमाणित करना, किसीकी विश्वसनीयताकी पुष्टि करना । असावधान, प्रमादयुक्त संध्या-पूजा न करनेवाला; भूल- प्रमाणीकृत-वि० [सं०] जो प्रमाण ठहराया गया हो।
चूक करनेवाला । -चित्त-वि० लापरवाह, प्रमादी। प्रमाता(त)-पु० [सं०] प्रमारूप शानको प्राप्त करनेवाला, प्रमत्तता-स्त्री० [सं०] प्रमत्त होनेका भाव, मतवालापन; वह जो प्रमाण द्वारा किसी वस्तुका ज्ञान प्राप्त करे द्रष्टा । पागलपन; लापरवाही।
प्रमातामह-पु० [सं०] परनाना । प्रमथ-पु० [सं०] शिवके एक प्रकारके अनुचर; घोड़ा। प्रमातामही-स्त्री० [सं०] परनानी । -नाथ,-पति-पु० शिव ।।
प्रमात्रा-स्त्री० [सं०] (क्वानटम) यथेष्ट मात्रा, उतनी मात्रा प्रमथन-पु० [सं०] मथना; मार डालना, वध; नष्ट करना; जितनी आवश्यक हो; हिस्सा, भाग, राशि जो आवश्यक, कष्ट देना, उत्पीडन, क्षति पहुँचाना।
वांछित या स्वीकृत हो। प्रमथित-वि० [सं०] अच्छी तरह मथा हुआ; जिसे कष्ट प्रमाथ-पु० [सं०] मथना, मथन; बलपूर्वक हरण करना; पहुँचाया गया हो, उत्पीडित रौंदा हुआ।
बलात्कार; बहुत अधिक दुःख देना, उत्पीडन । प्रमद-वि० [सं०] प्रमत्त; जिसमें बहुत मद हो; उग्रः प्रमाथी(थिन् )-वि० [सं०] मथनेवाला; बलपूर्वक हरण लापरवाह; विवेकहीन । पु० धतूरेका फल; हर्ष, मोद; एक करनेवाला; पीडा पहुँचानेवाला; मारने, नष्ट करनेवाला; दैत्य । -कानन,-वन-पु. वह उद्यान जिसमें राजा | क्षुब्ध करनेवाला । पु० एक राक्षस; एक संवत्सर । अपनी रानियोंके साथ विहार करता है, क्रीडोद्यान, प्रमाद-पु० [सं०] कर्तव्यको अकर्तव्य समझकर उससे प्रमोदवन ।
निवृत्त होना और अकर्तव्यको कर्तव्य समझकर उसमें प्रमदा-स्त्री० [सं०] रूपवती युवती सुंदर स्त्री-कानन,/ प्रवृत्त होना, अनवधानता; भूल-चूक, गफलत; नशा -वन-पु० दे० 'प्रमदकानन'।
उन्माद । प्रमदित-वि० [सं०] नष्ट ध्वस्त; रौंदा हुआ।
| प्रमादवान (वत्)-वि० [सं०] प्रमाद करनेवाला, प्रमादप्रमा-स्त्री० [सं०] चेतना, बोध; किसी वस्तुका यथार्थ युक्त बिना बिचारे काम करनेवाला; मतवाला; पागल । ज्ञान (न्याय०); माप ।
प्रमादिका-स्त्री० [सं०] वह कन्या जिसका कौमार्य किसीप्रमाण-पु० [सं०] वह साधन जिसके द्वारा किसी वस्तुका ने नष्ट कर दिया हो; लापरवाह स्त्री । यथार्थ शान हो, प्रमाका साधन (न्या०); वह साधन प्रमादी(दिन)-वि० [सं०] जो बराबर प्रमाद करे, जिसके सहारे कोई बात सिद्ध की जाय,सबूत; वह जिसका प्रमादशील; मत्त विक्षिप्त । वचन या निर्णय यथार्थ या आप्त माना जाय; माप; परि- प्रमान*-पु० दे० 'प्रमाण' । माण, मात्रा, इयत्ता, सीमा; एक अर्थालंकार धर्मशास्त्र प्रमानना*-स० क्रि० प्रमाण मानना, ठीक माननाः मूल धन; मर्यादा; हेतु, कारण नियमः [हि०] यथार्थता, । प्रमाणित करना, सिद्ध करना । सत्यता; निश्चय, पक्का इरादा ठिकाना, भरोसा; मानने प्रमानी*-वि० प्रामाणिक, मान्य । या आदर करने योग्य वस्तु; आज्ञापत्र, आदेश । १० प्रमाप-स्त्री. (स्टैंडर्ड) वह स्थिर की हुई एवं बहुमान्य तक, पर्यत । -कोटि-स्त्री०प्रामाणिक वस्तुओं या आधा- माप या मान जिसके आधारपर अन्य माप) या मानाका
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निश्चय किया जाय; योग्यता, श्रेष्ठता आदि परखने, नापनेका सुनिर्धारित स्तर या क्रम ।
प्रमापक - वि० [सं०] प्रमाणित करनेवाला । पु० प्रमाण । प्रमार्जक - वि० [सं०] धोने, साफ करनेवाला; पोंछनेवाला । प्रमार्जन - पु० [सं०] साफ करना; पोंछना; दूर करना । प्रमित- वि० [सं०] जिसका यथार्थ ज्ञान हुआ हो; ज्ञात, अवगत; परिमित, अल्प; मापा हुआ ।
प्रमीलित - वि० [सं०] जिसकी आँखें मुँदी हों । प्रमुक्त- वि० [सं०] जिसका बंधन खोल दिया गया हो; परित्यक्त; प्रक्षिप्त |
प्रमुख - अ० इत्यादि, वगैरह । वि० [सं०] प्रथम; मुख्य, प्रधान; श्रेष्ठ सम्मान्य, प्रतिष्ठित । पु० ( स्पीकर) दे० 'अध्यक्ष' । - सभा - स्त्री० (सिनेट) प्रमुख या प्रख्यात व्यक्तियों की सभा |
प्रयान* - पु० दे० 'प्रयाण' ।
प्रमीलन - पु० [सं०] आँखें बंद करना ।
प्रयास - पु० [सं०] प्रयत्न, कोशिश, श्रम, आयास ।
प्रमीला - स्त्री० [सं०] तंद्रा; शिथिलता, कृांति; अर्जुनकी प्रयुक्त - वि० [सं०] जोता हुआ; जिसका प्रयोग किया गया एक भार्या ।
हो, लगाया हुआ; किसी काममें लगाया हुआ; जोड़ा हुआ, एक में मिलाया हुआ; समाधिस्थ; सूदपर दिया हुआ (धन); प्रेरित; (अस्त्र, मंत्र आदि) जिसका किसीपर प्रयोग किया गया हो; गतिमान् किया हुआ । -संस्कार - वि० साफ कर चमकाया हुआ (रत्नादि) ।
प्रयुत वि० [सं०] युक्त, सहित अस्पष्ट; ध्वस्त; दस
प्रमुग्ध - वि० [सं०] मूच्छित, अचेत; हतबुद्धि; बहुत सुंदर । प्रमुदित - वि० [सं०] अति प्रसन्न, हर्षित |
प्रमूढ - वि० [सं०] घबड़ाया हुआ, चकराया हुआ; मूर्ख । प्रमेय - वि० [सं०] प्रमा या यथार्थ ज्ञानके योग्य, जिसका किसी प्रमाण द्वारा यथार्थ ज्ञान प्राप्त किया जाय । पु० वह जो प्रमा या यथार्थ ज्ञानका विषय हो सके या जिसका किसी प्रमाण द्वारा यथार्थ ज्ञान प्राप्त किया जाय । प्रमेह - पु० [सं०] एक रोग जिसमें शरीरकी धातुएँ अनेक रूपोंमें पेशाबके रास्ते गिरा करती हैं । प्रमेही ( हिन्) - वि० पु० [सं०] प्रमेहका रोगी । प्रमोद - ५० [सं०] प्रकृष्ट हर्ष, आनंद; कार्त्तिकेयका एक अनुचर; एक नाग; एक संवत्सर । -कर-पु० (एंटरटेनभेंट टैक्स) नाटक, चलचित्रोंके प्रदर्शन तथा मनोरंजनके ऐसे ही अन्य प्रकारोंपर लगनेवाला कर, मनोरंजन कर । -गोष्टी-स्त्री० (पिकनिक पार्टी) मित्रमंडलीका नगरादिके बाहर जाकर किसी खुले स्थान, उद्यान आदिमें खानपान, मनोरंजन आदिका आयोजन करना । प्रमोदित - वि० [सं०] प्रमोदयुक्त, प्रसन्न | पु० कुबेर । प्रमोदी ( दिन) - वि० [सं०] प्रसन्न करनेवाला, प्रमोदजनक; प्रसन्न |
प्रमोह - पु० [सं०] मोह; जड़ता; संज्ञाहीनता, मूर्च्छा । प्रमोहन - पु० [सं०] मोहित करना; वह अस्त्र जिसके प्रयोगसे शत्रुदल संज्ञाहीन हो जाय ।
प्रमोहित- वि० [सं०] स्तब्ध, चकराया हुआ । प्रयंक* - पु० दे० ' पर्यंक' |
प्रयंत* - अ० दे० 'पर्यंत' । प्रयत्न- पु० [सं०] किसी कार्य या उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जानेवाला व्यापार, प्रयास, कोशिश, अध्यवसायः जिह्वा, कंठ आदिका वह व्यापार जिसके सहारे वर्णोंका उच्चारण होता है (व्या० ) । - शील- वि० प्रयत्न में लगा हुआ, जो प्रयत्न कर रहा हो ।
प्रयत्नवान् (वत्) - वि० [सं०] प्रयत्ल में लगा हुआ, सचेष्ट । प्रयाग - पु० [सं०] हिंदुओंका एक प्रसिद्ध तीर्थ; इंद्र ||
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प्रमापक- प्रयोगार्थ
-वाल - पु० [हिं०] प्रयागका पंडा । प्रयाण - पु० [सं०] गमन, प्रस्थान; यात्रा; युद्धके लिए किया गया प्रस्थान, चढ़ाई; आरंभ; संसारसे बिदा होना, मरना । -काल, - समय - पु० प्रस्थान करनेका समय । - परह - ५० कूचका का युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय बजाया जानेवाला नगाड़ा ।
लाख | पु० दस लाख की संख्या, १०,००,००० 1 प्रयोक्ता ( क ) - पु० [सं०] प्रयोग करनेवाला, प्रयोगकर्ता; किसी काममें लगानेवाला, प्रेरक ऋण देनेवाला, उत्तमर्ण, महाजन; नाटकका सूत्रधार; कमनैत; पाठ करनेवाला, बाचक |
प्रयोग- पु० [सं०] किसी काम में लाना या लाया जाना, व्यवहार, इस्तेमाल; अनुष्ठान, साधन; (अस्त्र-शस्त्र) चलाना या छोड़ना, शस्त्रपात; ज्ञानको अमल में लाना या बरतना, अमल, प्रक्रिया - शास्त्रका उलटा; नाटकका खेला जाना, अभिनय; मारण- मोहन आदि तांत्रिक अभिचार; वह ग्रंथ जिसमें यज्ञ-संबंधी क्रियाओंकी विधि बतायी गयी हो, पद्धति; योजना; साधन; पाठ; आरंभ; परिणाम; संबंध; भूत-प्रेत आदिके उच्चाटन के लिए किया जानेवाला मंत्रीचारण; सूदपर रुपया देना; उदाहरण, दृष्टांत साम, दाम आदिका अवलंबन | पु० (एक्सपेरिमेंट) किसी सिद्धांतकी सत्यता प्रमाणित करने या किसी अज्ञात बातका पता लगाने, जाँच करने आदिकी दृष्टिसे की गयी प्रक्रिया या कार्य । - ज्ञ, - निपुण - वि० जिसे अभ्यासजन्य अनुभव प्राप्त हो । - पत्र - पु० (टिकट) यात्रा के लिए रेलगाड़ीके डब्बे, मोटर बस आदिका कुछ समयतक प्रयोग करनेका अधिकार प्रदान करनेवाला पत्र जिसपर प्रायः . गंतव्य स्थानका नाम, तारीख, किराया आदि लिखा रहता है । - पत्र - कार्यालय - पु० ( बुकिंग ऑफिस) रेलगाड़ीके डब्बे, मोटर - बस आदिमें यात्रा करनेके लिए प्रयोगपत्र जारी करने, बेचनेका कार्यालय, टिकटघर । -विधि - स्त्री० प्रयोगज्ञापक विधि ( मीमांसा ) । - शाला - स्त्री० ( लेबोरेटरी) वह स्थान जहाँ पदार्थविज्ञान, रसायनशास्त्र आदि विषयक तथ्यों को समझाने, जानने या नयी बातोंका पता लगानेकी दृष्टिसे विविध प्रयोग किये जाते हों । प्रयोगतः ( तस ) - अ० [सं०] प्रयोग द्वारा; परिणामरूपमें; अनुसार; कार्यतः । प्रयोगातिशय- पु० [सं०] वह प्रस्तावना जिसमें प्रस्तुत प्रयोग के अंतर्गत दूसरा प्रयोग उपस्थित हो जाता है और उसपर पात्र प्रवेश करते हैं (ना० ) । प्रयोगार्थ - पु० [सं०] मुख्य कार्यकी सिद्धिके लिए किया
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प्रयोगाह-प्रवर
जानेवाला गौण कार्य।
जड़ता। प्रयोगाई-वि० [सं०] प्रयोगके योग्य, जिसका प्रयोग किया प्रलुब्ध-वि० [सं०] जो लालचमें पड़ गया हो। जा सके।
प्रलुब्धा-वि० स्त्री० [सं०] (वह स्त्री) जिसे किसीसे अनुप्रयोगी (गिन)-पु० [सं०] प्रयोग करनेवाला, प्रयोग- चित प्रेम हो गया हो। कर्ता प्रेरक जिसके सामने कोई उद्देश्य हो।
प्रलून-वि० [सं०] काटा हुआ। पु० एक तरहका कीड़ा। प्रयोजक-पु० [सं०] प्रयोग करनेवाला, प्रयोगकर्ता; जोड़ने- प्रलेख-पु० [सं०] (डाक्यूमेंट) वह कायज या लिखित पत्र वाला, एकमें मिलानेवाला; प्रेरणा करनेवाला [व्या०]; जिसमें किसी बातका प्रमाण या कोई प्रामाणिक बात दर्ज सूदपरः रुपया देनेवाला, महाजन; ग्रंथ-लेखक संस्थापक; | हो और जो विधिक दृष्टिसे किसी पक्ष या व्यवहारधर्मशास्त्री । वि०प्रेरक नियुक्त करनेवाला,जो कारण बने। (मामले)के समर्थनमें उपस्थित किया जा सके। प्रयोजन-पु० [सं०] प्रवृत्तिका कारणभूत उद्देश्य, वह प्रलेखीय चलचित्र-पु० [सं०] (डाक्यूमेंटरी फिल्म) वह उद्देश्य जिसकी पूर्ति के लिए कोई किसी काममें प्रवृत्त हो, चलचित्र जिसमें किसी महत्त्वपूर्ण घटना, पुरातत्त्व, अर्थ, अभिप्राय, गरज, उपयोग, इस्तेमाल, काम; हेतु; औद्योगिक प्रगति आदिका चित्रण किया गया हो, समासाधन, उपाय; लाभ ।
चार-फिल्म । प्रयोजनवतीलक्षणा-स्त्री० [सं०] वह लक्षणा जिसके द्वारा प्रलेप-पु० [सं०] लेप, घाव या फोड़ेपर कोई मलहम जैसी किसी विशिष्ट प्रयोजनकी सिद्धिके लिए वाच्यार्थसे भिन्न गीली दवा चढ़ाना; पाव या फोड़ेपर चढ़ानेका मलहम । अर्थ निकाला जाय।
प्रलेपक-पु० [सं०] प्रलेप करनेवाला एक प्रकारका मंद प्ररोचना-स्त्री० [सं०] स्तुति; नाटककारकी प्रशंसा द्वारा ज्वर । नाटकके प्रति दर्शकों में रुचि उत्पन्न करना; आगे आने- प्रलेपन-पु० [सं०] लेप करनेकी क्रिया। वाली बातका इस प्रकार कथन करना कि दर्शकोंकी रुचि प्रलोठन-पु० [सं०] उछलना; लुढ़कना। या औत्सुक्य बढ़ जाय (ना०)।
प्रलोप-पु० [सं०] नाश, विलय । प्ररोह-पु० [सं०] अंकुरित होना; उत्पत्ति आरोह, चढ़ाव: प्रलोभ-पु० [सं०] अधिक लोभ, लालच; प्रलोभन ।
अंकुर संतान प्रकाश-किरण; नया पत्ता या टहनी। प्रलोभक-पु० [सं०] प्रलोभन देनेवाला, लालच उत्पन्न प्ररोहण-पु०[सं०] उगना, जमना; उत्पत्ति अंकुर टहनी। करनेवाला । प्रलंब-वि० [सं०] लटकता हुआ, लटका हुआअधिक लंबा प्रलोभन-पु० [सं०] ललचानेवाली वस्तु; लालच देना; सुस्त । पु० लटकनेकी क्रिया; लटकनेवाली चीज।-बाह- लालच देकर बहकाना, फुसलाना, अपनी ओर कर लेना वि० जिसकी बाहें अधिक लंबी हों, आजानुबाहु ।
या किसी कार्यसे विरत करना (ऐल्यूरमेंट)। प्रलंबित-वि० [सं०] लटका हुआ।
प्रलोभित-वि० [सं०] प्रलोभनमें पड़ा हुआ, प्रलुब्ध । प्रलंबी(बिन्)-वि० [सं०] लटकनेवाला सहारा लेनेवाला। प्रलोभी(भिन)-वि० [सं०] ललचनेवाला, लालची, प्रलपन-पु० [सं०] वार्तालाप; अनर्थक वचन, प्रलाप, बक- प्रलोभनमें पड़नेवाला। वास; दुखड़ा रोना।
प्रवंचक-वि०, पु० [सं०] ठग, धूर्त । प्रलयंकर-वि० [सं०] प्रलय करनेवाला।
प्रवंचन-पु० [सं०] ठगना, धोखा देना । प्रलय-पु० [सं०] लयको प्राप्त होना, नष्ट होना, न रह | प्रवंचना-स्त्री० [सं०] ठगी, धोखेबाजी, धूर्तता । जाना; विनाश, संहार; संसारका अपने मूल कारण प्रकृति-प्रबंचित-वि० [सं०] जो ठगा गया हो, जिसे धोखा दिया में सर्वथा लीन हो जाना, सृष्टिका सर्वनाश; मृत्युः मूर्छा, गया हो। बेहोशी; एक सात्त्विक भाव जिसमें सुख या दुःखके कारण प्रवक्ता(क्त)-पु० [सं०] अच्छा वक्ता; वेद आदिका मनुष्य जड़ हो जाता है (सा०); भारी या व्यापक संहार। अच्छी तरह प्रवचन करनेवाला; सरकार या किसी संस्था -कर-कारी(रिन्)-वि० दे० 'प्रलयंकर'।-काल-पु० आदिकी ओरसे आधिकारिक रूपसे बोलनेवाला प्रतिनिधि प्रलयका समय ।-जलधर-पु०प्रलयके समयका बादल । (स्पोक्समैन)। प्रलाप-पु० [सं०] बातचीत; अंड-बंड बकना, निरर्थक | प्रवचन-पु० [सं०] विशेष रूपसे कहना, अर्थ समझाते बात, बकवास; दुखड़ा रोना; ज्वराधिक्यसे बेहोश होकर हुए कहना; वेद, पुराण आदिका उपदेश करना ।-पटुअंड-बंड बकना।
वि० बोलने में कुशल, वाग्मी । प्रलापक-पु० [सं०] बकवास करनेवाला; एक तरहका प्रवण-वि० [सं०] ढालुवाँ टेढ़ा; किसी वस्तुकी ओर झुका सन्निपात रोग जिसमें रोगी प्रलाप करता है।
हुआ, प्रवृत्त नम्र; आसक्त क्षीण; दीर्घ । प्रलापी(पिन्)-वि० [सं०] प्रलाप करनेवाला, अनाप- प्रवणता-वि० [सं०] प्रवृत्ति, झुकाव । शनाप बकनेवाला।
प्रवत्स्यत्पतिका, प्रवत्स्यत्प्रेयसी-स्त्री० [सं०] वह प्रलाभी-वि० (लूकोटिव) लाभ देनेवाला, जिसके करनेमें नायिका जिसका नायक परदेश जानेवाला हो। विशेष लाभ हो (पद या काम)।
प्रवरस्यदर्तृका-स्त्री० [सं०] दे० 'प्रवत्स्यत्पतिका'। प्रलिप्त-वि० [सं०] चिपका हुआ, लिपटा हुआ, लिप्त। प्रवर-वि० [सं०] प्रधान, श्रेष्ठ, योग्यता, अधिकार आदिमें प्रलीन-वि० [सं०] विलीन; लुप्त प्रलयको प्राप्त, विनष्ट। बड़ा । पु० आह्वान संतति; गोत्र; किसी गोत्रके प्रवर्तक प्रलीनता-स्त्री० [सं०] प्रलीन होनेका भाव; चेष्टानाश, | मुनियों से कोई एक विशेषज्ञ । -समिति-खी०
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प्रवर्ग-प्रवेशिका (सिलेक्ट कमिटी) किसी विषयकी छानबीन करने और स्थगित कर देना या उसमें विलंब करना। विचार-विमर्श के बाद निश्चित मत प्रकट करनेके लिए प्रविष्ट-वि० [सं०] घुसा हुआ, अंदर गया हुआ।रोगी
बनायी गयी चुने हुए. विशेषश सदस्योंकी समिति । पु० (इनडोर पेशेंट) वह रोगी जो चिकित्सालयमें ही प्रवर्ग-प० म०टेगरी) कई भागों, वर्गों या श्रेणि- रखकर चिकित्सा करनेके उद्देश्यसे भरती कर लिया गया योंमेंसे एक ।
हो, अंतर्वासी रोगी। प्रवर्तक-पु० [सं०] प्रवृत्त करनेवाला, किसी काममें लगाने प्रविष्टि-स्त्री० [सं०] (एंट्री) खाते, पुस्तक आदिमें लिखने, वाला; चलानेवाला, आरंभ करनेवाला, जारी करनेवाला , चढ़ाने, दर्ज करनेकी क्रिया; वह चीज जो इस प्रकार आविष्कार करनेवाला; उसकानेवाला, उभारनेवाला; | लिखी या दर्ज की गयी हो। किसी पात्रका प्रवेश (ना०); मध्यस्थ, पंच ।
प्रविसना*-अ० कि० प्रवेश करना, घुसना । प्रवर्तन-पु० [सं०] प्रवृत्त करना, किसीको किसी बातमें | प्रवीण-वि० [सं०] निपुण, कुशल । लगाना; आरंभ करना, चलाना, जारी करना; उसकाना, प्रवीणता-स्त्री० [सं०] निपुणता, कौशल । उभारना आविष्कार करना (हिं०)।
प्रवीन*-वि० दे० 'प्रवीण' । स्त्री० अच्छी वीणा। प्रवर्तित-वि०सं०] आरब्ध, चालित; स्थापित, उत्तेजित । प्रवीर-पु० [सं०] अच्छा वीर, सुभट । वि० उत्तम बली। प्रवर्द्धन, प्रवर्धन-धु० [सं०] बढ़ती, वृद्धि ।
प्रवृत्त-वि० [सं०] प्रवृत्तियुक्त, लगा हुआ, रत; जिसका प्रवर्षण-पु० [सं०] वर्षा, बारिश; किष्किचाके पासका आरंभ हुआ हो, आरब्ध; निश्चित निर्दिष्ट निर्बाध । एक पर्वत ।
प्रवृत्ति-स्त्री० [सं०] प्रवाह, बहाव; मनका किसी विषयप्रवह-पु० [सं०] बहाय; वायुः सात प्रकारकी वायुओंमेंसे की ओर झुकाव; वार्ता, वृत्तांत; आरंभ; उत्पत्ति आचारएक जिसके सहारे नक्षत्र परिभ्रमण करते हैं ।
व्यवहार अध्यवसाय; भाग्यशब्दोंके अर्थका बोध करानेप्रवहमान-वि० [सं०] प्रवाहशील, बहनेवाला। . की एक शक्ति; इंद्रिय आदिका अपने-अपने विषयमें निरत प्रवात-पु० [सं०] स्वच्छ वायु, ताजी हवा; जोरकी हवा, । होना, सांसारिक विषयोंके प्रति आसक्ति, निवृत्तिका
हवादार जगह । वि. जिसमें तेज हवा लगती हो। उलटा। -मार्ग-पु० संसारके धंधों में संलग्न रहना। प्रवाद-पु० [सं०] बोलना; व्यक्त करना; लोगों में प्रचलित प्रवृद्ध-वि० [सं०] बहुत अधिक बढ़ा हुआ; प्रौढ घमंडी; बात, जनश्रुति, किवदंती; बातचीत, वार्तालाप; चुनौती। उग्र विशाल । प्रवादक-वि० [गं०] वाद्य बजानेवाला (संगीत)। प्रवेग-पु० [सं०] अधिक वेग; (टेपो) हिलने, चलने, काम प्रवादी(दिन)-पु० [सं०] प्रवाद करनेवाला । करने आदिकी तीव्र गति; घटनाओं आदिका जल्दी-जल्दी प्रवान -पु० दे० 'प्रमाण' ।।
और तेजीसे होना; (वेलॉसिटी) किसी वस्तुके तेजीसे प्रचारण-पु० [सं०] निषेध, मनाही; प्रतिरोध; स्वेच्छासे आगे बढ़ने, नीचे गिरने आदिकी रफ्तार । किया जानेवाला दान, काम्यदान; उत्तम वस्तु(जैसे हाथी, प्रवेणि, प्रवेणी-स्त्री० [सं०] वेणी, चोटी; जल आदिका घोड़ा आदि)का दान महादान; इच्छा पूर्ण करना । प्रवाह; हाथीकी झूल; एक नदी ।। प्रवाल-पु० [सं०] दे० 'प्रबाल'।
प्रवेश-पु० [सं०] भीतर जाना, घुसना; पैठ, पहुँच, प्रवास-पु० [सं०] परदेशमें रहना, विदेशवास; परदेश रसाई; किसी पात्रका रंगमंचपर आना (ना०); किसी
जाना। -गत,-स्थ,-स्थित-वि० परदेश गया हुआ। विषय, शास्त्रकी जानकारी, अभिशता; द्वार; किसी कार्यमें प्रवासन-पु० [सं०] बाहर रहना; देशनिष्कासन; बध । संलग्न रहना। -द्वार-पु० भीतर जानेका द्वार या प्रवासी(सिन्)-वि० [सं०] परदेशमें रहनेवाला । रास्ता। -पत्र-पु० (टिकट) किसी सिनेमा, नाट्यशाला, प्रवाह-पु० [सं०] बहनेकी क्रिया या भाव, बहाव; जल संगीत-सम्मेलन आदिमें प्रवेशका अधिकार प्रदान करने
आदिक धारा; किसी वस्तुका अटूट क्रम, बँधा हुआ तार, वाला पत्र ।-रोधन-पु०(पिवोटिंग) अधिकारियों आदिसे अखंड परंपरा घटनाक्रम ।
अपनी माँगें पूरी कराने के लिए या लोगों को कोई अनुचित प्रवाहक-वि० [सं०] अच्छी तरह वहन करनेवाला । पु० काम करनेसे रोकनेके लिए कार्यालय, दुकान आदिके राक्षस ।
सामने अड़कर बैठ जाना जिससे उनके प्रवेशमें बाधा प्रवाहिका-स्त्री० [सं०] ग्रहणी रोग; * बहनेवाली धारा, पड़े, धरना। -शुल्क-पु० प्रवेश पानेका अधिकार नदी-'मधुर लालसाकी लहरोंसे यह प्रवाहिका स्पंदित | प्राप्त करनेके लिए दिया जानेवाला धन । होती'-कामायनी।
प्रवेशक-पु० [सं०] प्रवेश करनेवाला; नाटक में दो अंकोंके प्रवाहित-वि० [सं०] बहाया हुआ; ढोया हुआ। बीचका एक प्रकारका अंक जिसमें नीच पात्र न दिखायी प्रवाहिनी-स्त्री० [सं०] नदी।
हुई तथा भावी घटनाओंकी सूचना देते है।। प्रवाही(हिन)-वि० [सं०] बहनेवाला, प्रवाहयुक्ता ले प्रवेशन-पु० [सं०] प्रवेश कराना; प्रवेश; सदर दरवाजा। जानेवाला; चलानेवाला ।
प्रवेशना*-अ० क्रि० प्रवेश करना। स० क्रि० प्रवेश प्रविधि-स्त्री० [सं०] (टेकनीक) कोई (कलात्मक) कार्य कराना । करनेका विशेष ढंग, विशेष विधि या विशेष कौशल। प्रवेशिका-स्त्री० [सं०] प्रवेश-पत्र या प्रवेश-शुल्क; (प्राइ. प्रविध्वस्त-वि० [सं०] फेंका हुआ, क्षुब्ध ।।
मर) किसी विषय में प्रवेश करानेवाली प्रारंभिक पुस्तक । प्रविलंब करना-स० क्रि० (रीप्रीव्ह) सजाकी काररवाई | -परीक्षा-स्त्री० (एंट्रेस इग्जामिनेशन) उच्च शिक्षाका
३३-क
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प्रवेशित-प्रष्टा प्रारंभ होनेके पहलेकी एक छोटी परीक्षा ।
भूसंपत्तिका प्रबंध करनेवाला कर्मचारी आचार्य,उपदेष्टा । प्रवेशित-वि० [सं०] घुसाया हुआ; पहुँचाया हुआ। प्रशासन-पु० [सं०] शिष्य आदिको दी जानेवाली कर्तव्यकी प्रवेष्टा(ष्ट)-वि०, पु० [सं०] प्रवेश करने या करानेवाला।। शिक्षा (ऐडमिनिस्ट्रेशन) राज्यके शासन या परिचालनका प्रव्रजन-पु० [सं०] संन्यास लेना; (माइग्रेशन) किसी प्रबंध ।-पत्र-पु० (लेटर ऑफ ऐडमिनिस्ट्रेशन) न्यायाएक देश या प्रदेशादिसे अन्य देश या प्रदेशादिगे, वहाँ लय द्वारा जारी किया गया वह आदेश-पत्र जिसके अनुबस जानेकी गरजसे, चले जाना।
सार इच्छा-पत्रहीन संपत्तिका प्रबंध करने के लिए प्रशासकप्रवज्या-स्त्री० [सं०] संन्यास; संन्यासाश्रम । -ग्रहण- की नियुक्ति हो ।-भंग-पु० (अकडाउन ऑफ ऐडमिनिपु० संन्यास लेना।
ट्रेशन) आंतरिक उपद्रव, आर्थिक संकट आदिके कारण प्रशंस*-स्त्री० प्रशंसा, स्तुति । वि० प्रशंसाके योग्य । शासन-व्यवस्थाका ठप हो जाना। प्रशंसक-वि०, पु० [सं०] प्रशंसा करनेवाला ।
प्रशासनीय कृत्य-पु० [सं०] (ऐडमिनिस्ट्रेटिव फंक्शंस) प्रशंसन-पु० [सं०] प्रशंसा करना, गुणोंका बखान । । । राज्यके प्रशासनसे संबंध रखनेवाले काम । प्रशंसना-स्त्री० [सं०] दे० 'प्रशंसन'। * स० क्रि० प्रशंसा प्रशिक्षण-पु० (ट्रेनिंग) किसी व्यवसाय, कला,शिल्पादिकी करना, तारीफ करना, सराहना।।
या कुश्ती, दौड़ आदिकी व्यावहारिक रूपमें लगातार कुछ प्रशंसनीय-वि० [सं०] प्रशंसा करने योग्य, स्तुत्य । समयतक दी जानेवाली शिक्षा। -महाविद्यालय-पु० प्रशंसा-स्त्री० [सं०] गुणोंका बखान करना, गुणकीर्तन, (ट्रेनिंग कालेज) वह महाविद्यालय जिसमें अध्यापकों तारीफ, बड़ाई ख्याति । -घोष-पु. (एप्लॉज) किसी आदिके प्रशिक्षणकी व्यवस्था हो।-विद्यालय-पु०(नार्मल वक्ताके भाषण करते समय उसके किसी कथन या प्रस्ता- स्कूल) अध्यापनकलाकी शिक्षा देनेवाला विद्यालय । वादिके अनुमोदनमें श्रोताओं द्वारा की गयी प्रशंसासूचक प्रशिक्षणार्थी(र्थिन्)-पु० [सं०] (ट्रेनी) वह जो प्रशिक्षण ध्वनि।
पा रहा हो। प्रशंसित-वि० [सं०] जिसकी प्रशंसा की गयी हो। प्रशिक्षित-वि० (टेंड) जिसने किसी व्यवसाय, कला प्रशंसोपमा-स्त्री० [सं०] उपमाका एक भेद जिसमें उप- | आदिकी क्रियात्मक शिक्षा पायी हो।
मेयकी प्रशंसाके द्वारा उपमानका उत्कर्ष दिखाया जाता है। प्रशुल्क-वि० [सं०] ( टैरिफ) आयात-निर्यात-वस्तुओंपर प्रशंस्य-वि० [सं०] प्रशंसाके योग्य; अपेक्षाकृत अच्छा।। लगनेवाला कर ।-मंडल-पु० (टैरिफबोर्ड) किन वस्तुओंके प्रशम-पु० [सं०] शांत करना, शमन, निवृत्ति शांति । आयात या निर्यातपर कितना कर लगाया जाय, इस प्रशमन-पु० [सं०] शांत करना, दबाना, शमन नीरोग संबंधमें समुचित विचार कर सरकारको सलाह देनेवाली करना; रक्षण; विनाश ।
विशेषज्ञोंकी समिति । प्रशस्त-वि० [सं०] जिसकी प्रशंसा की गयी हो प्रशंसाके प्रशोप-पु० [सं०] सूखना, खुश्क होना। योग्य, स्तुत्य; श्रेष्ठ, उत्तम; शुभ; विस्तृत, लंबा-चौड़ा प्रश्न-पु० [सं०] सवाल पूछ-ताछ पृछी जानेवाली बात; साफ-सुथरा (हिं०)।
भविष्य-संबंधी जिज्ञासा; विचारणीय विषय, समस्या । प्रशस्ति-स्त्री० [सं०] प्रशंसा, तारीफ, बड़ाई; वर्णन | -पत्र-पु. वह परचा जिसपर उत्तर देनेके लिए प्रश्न किसीकी प्रशंसामें लिखी गयी कविता आदि राजाका वह अंकित हो। -वादी (दिन)-पु० ज्योतिषी, देवश । आशापत्र जो पत्थर आदिपर खोदा जाता था और जिसमें प्रश्नावली-स्त्री० [सं०] (इग्जांपिल्स, एक्सरसाइज) पाठ्यराजवंश तथा उसकी कीर्ति आदिका वर्णन रहता था; पुस्तकों में छात्रों के अभ्यासके लिए एकत्र दिये हुए. प्रश्न वह प्रशंसासूचक वाक्य जो पत्रके आदिमें लिखा जाता लोगोंका मत जाननेके लिए अधिकृत रूपसे भेजी गयी है, सरनामा प्राचीन ग्रंथ या पुस्तकका वह आदि और प्रश्न सूची; प्रश्नावली-पत्रक । -पत्रक-पु० (क्वेश्चनेयर) अंतवाला अंश जिससे उसके रचयिता, काल, विषय किसी व्यवसायादिकी स्थिति या अन्य विषयकी जानकारी आदिका शान होता है। -गाथा-स्त्री० प्रशंसात्मक गीत। प्राप्त करनेके लिए उससे संबंध रखनेवाले विभिन्न व्यक्तियों-पट्ट-पु० आज्ञापत्र, लेखपत्र ।
के पास लिखित रूपमें भेजा जानेवाला संबद्ध प्रश्नोंका समूह प्रशस्य-वि० [सं०] प्रशंसाके योग्य, स्तुत्य, प्रशंसनीय जिनका उत्तर देनेका उनसे अनुरोध किया जाता है। (इसका अतिशयार्थक रूप श्रेष्ठ है)।
| प्रश्नोत्तर-पु० [सं०] सवाल-जवाब; एक अलंकार जिसमें प्रशांत-वि० [सं०] शांत किया हुआ; शांत; सधाया हुआ, | प्रश्न और उत्तर दोनों रहते हैं। वशमें किया हुआ, मृत । पु० एशिया और अमेरिकाके प्रश्नोत्तरी-स्त्री० [सं०] (कैटेकिज्म) वह पुस्तक जिसमें कोई बीचका एक महासागर (पैसिफिक)। -काम-वि० विषय प्रश्नों तथा उनके उत्तरोंके रूपमें समझाया गया हो । जिसकी इच्छाएँ पूरी हो गयी हो, संतुष्ट ।-चित्त,-धी- प्रश्रय, प्रश्रयण-पु० [सं०] आश्रय, टेक, सहारा। वि० जिसका मन शांत हो।
प्रश्लिष्ट-वि० [सं०] सुसंबद्ध, युक्तियुक्त; (स्वर-वर्ण) जिनमें प्रशांतात्मा(मन)-वि० [सं०] दे० 'प्रशांतचित्त'। संधि हुई हो। प्रशांति-स्त्री० [सं०] शांति विश्राम; शमन ।
प्रश्वास-पु० [सं०] साँस बाहर निकालना; बाहर निकली प्रशाखा-स्त्री० [सं०] शाखासे निकली हुई शाखा टहनी। हुई साँस । प्रशासक-पु० [सं०] शासन करनेवाला; (एडमिनिस्ट्रेटर) प्रष्टव्य-वि० [सं०] पृछने योग्य, जो पूछा जाय । राज्यका प्रशासन या प्रबंध करनेवाला अधिकारी या प्रष्टा (ष्ट)-पु० [सं०] पूछनेवाला, प्रश्नकर्ता।
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प्रसंग - पु० [सं०] प्रकृष्ट संग; संबंध, लगाव; व्याप्तिरूप संबंध; विषयका तारतम्य, प्रकरण; अवैध संबंध; स्त्री पुरुषका संयोग, समागम; अनुरक्ति, आसक्ति; प्राप्ति; सिलसिला, अवसर, मौका; * बात, विषय | प्रसंसना* - स० क्रि० प्रशंसा करना । प्रसक्त-वि० [सं०] जो प्रसंगका विषय हो, प्रसंग प्राप्त; संबद्ध, लगा हुआ; आसक्त, निरत; बराबर बना रहने वाला, नित्य, स्थायी; प्राप्तः निकट, लगा हुआ; स्फुटित । प्रसज्य - वि० [सं०] जो संबद्ध किया जाय; जो प्रयोगमें लाया जाय; संभव । - प्रतिषेध-पु० वह निषेध जिसमें प्रतिषेधकी प्रधानता रहती है और विधिकी अप्रधानता । प्रसन्न वि० [सं०] निर्मल; प्रसादयुक्त; स्वच्छ; शांत; संतुष्ट; हर्षयुक्त, खुश; उचित, युक्तः कृपालु । - जल, - सलिल - वि० जिसका पानी साफ हो ।-मुख, - वदनवि० जिसके चेहरे से प्रसन्नता प्रकट होती हो । प्रसन्नता - स्त्री० [सं०] प्रसन्न होनेका भाव; स्वच्छता । प्रसन्नित* - वि० प्रसन्न, खुश ।
प्रसर- पु० [सं०] आगे बढ़ना, बढ़ाव, फैलाव, विस्तार; वेग; प्रवाह; प्रलय; समूह; बढ़ावा; साहस; युद्ध । प्रसरण - पु० [सं०] आगे बढ़ना, सरकना; पलायन; फैलना, प्रसार; सेनाका चारों ओर फैलकर शत्रुको घेरना । प्रसारित - वि० फैला हुआ; आगे बढ़ा हुआ । प्रस (पिन) - वि० [सं०] सरकनेवाला, आगे जानेवाला; रेंगनेवाला ।
प्रसव-पु० [सं०] बच्चा जनना, गर्भमोचन; उत्पत्ति; उत्पत्ति स्थानः फल; फूल; अपत्य, संतति । -गृह- पु० बच्चा जननेका घर, सोरी । वेदना, व्यथा - स्त्री० प्रसवकी पीड़ा, बच्चा जनते समय होनेवाली पीड़ा । प्रसवना * - स० क्रि० जन्म देना । अ० क्रि० उत्पन्न होना । प्रसवावकाश - पु० [सं०] (मैटरनिटी लीव ) किसी स्त्रीको
प्रसवकाल के समय दी जानेवाली छुट्टी, प्रसूत्यवकाश । प्रसविता (तृ) - पु० [सं०] उत्पन्न करनेवाला, पिता, जनक । प्रसवित्री - स्त्री० [सं०] माता ।
प्रसविनी - वि० स्त्री० [सं०] जन्म देनेवाली, उत्पन्न करने वाली ।
|
प्रसवी (विन्) - वि० [सं०] जन्म देनेवाला | प्रसवोत्तरकाल - पु० [सं०] (पोस्टनेटल पीरियड) शिशुको जन्म दे चुकने के बादकी जननीकी स्थिति या समय । प्रसाद - पु० [सं०] निर्मलता, स्वच्छता; अनुग्रह, कृपा; देवताको चढ़ायी गयी वस्तु; हर्ष, प्रसन्नता; मानसिक शांति स्वभावकी सरलता; महात्मा या गुरुकी जूठन या उनके खा चुकने पर बची हुई भोज्य वस्तु; काव्यके तीन गुणोंमेंसे एक, किसी काव्य या रचनाका विशेष रूप से सरल और सुबोध होना; भोजन (भक्त, साधु); * दे० 'प्रासाद' । - पट्ट - पु० राजाकी ओर से सम्मानार्थ दिया जानेवाला शिरोवस्त्र । - पराङ्मुख - वि० प्रतिकूल, अप्रसन्न; किसीकी कृपाकी परवा न करनेवाला । - पर्यंतअ० (ड्यूरिंग दि प्लेजर ऑफ) (राष्ट्रपति आदि) जबतक चाहें तबतक जबतक इच्छा या खुशी हो तबतक । प्रसादन - पु० [सं०] निर्मल बनानेवाला; (प्रॉपिशियेशन)
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प्रसंग - प्रसूति
प्रसन्न या संतुष्ट कर अपने अनुकूल बनाना । प्रसादना - स्त्री० [सं०] सेवा, पूजा; स्वच्छ करना । * स० क्रि० प्रसन्न करना ।
प्रसादनीय - वि० [सं०] प्रसन्न करने योग्य | प्रसादित - वि० [सं०] शांत, प्रसन्न किया हुआ; आराधित; स्वच्छ किया हुआ ।
प्रसादी - स्त्री० किसी देवताको चढ़ायी हुई वस्तु; महात्मा, गुरु या किसी मान्य व्यक्ति द्वारा दी गयी वस्तु । प्रसादी ( दिन ) - वि० [सं०] निर्मल बनानेवाला; प्रसन्न करनेवाला; प्रसादयुक्त, प्रसन्न ।
प्रसाधक - पु० [सं०] श्रृंगार करनेवाला, भूषक; राजाका वह सेवक जो उसे वस्त्र, भूषण आदि पहनाता है; सिद्ध या निष्पन्न करनेवाला, साधनकर्ता, निष्पादक | प्रसाधन - पु० [सं०] (टाइलेट) बालोंको सजाने, साबुन लगाने, ओठ या गोड़ रँगने आदिकी क्रिया, शृंगार, बनाव; शृंगार की सामग्री, भूषण, कंधी आदि जिससे श्रृंगार किया जाता है; निष्पादन, सिद्धि । द्रव्य - पु०, - सामग्री - स्त्री० (टाइलेट) शृंगार या प्रसाधन में काम आनेवाली वस्तुएँ |
प्रसाधनी - स्त्री० [सं०] कंधी |
प्रसाधिका - स्त्री० [सं०] शृंगार करनेवाली, प्रसाधनकर्त्री; तिनी धान ।
प्रसाधित - वि० [सं०] जिसका प्रसाधन या बनाव-शृंगार किया गया हो, अलंकृत; निष्पादित, संपादित; प्रमाणित । प्रसार -५० [सं०] फैलानेकी क्रिया, फैलाव, पसार; फैलने या व्याप्त होनेकी क्रिया, संचार; इधर-उधर जाना, फिरना ।
प्रसारक - वि० [सं०] फैलानेवाला ।
प्रसारण - पु० [सं०] फैलाने की क्रिया, फैलाना, पसारना; आगे करना; बढ़ाना; फैलकर शत्रुको घेर लेना; (विक्रयके लिए) खोलकर दिखलाना; (ब्रॉडकास्टिंग) कोई समाचार, भाषण, गायन आदि दूर-दूरके लोगोंको सुनानेके लिए आकाशवाणी द्वारा चारों ओर फैलाना ।
प्रसारना * - स० क्रि० पसारना, फैलाना । प्रसारिणी - वि०, स्त्री० [सं०] फैलनेवाली । प्रसारित - वि० [सं०] फैलाया हुआ; (विक्रय के लिए) प्रदशित; (ब्राडकास्ट) दूर-दूरके लोगोंको सुनानेके लिए आकाशवाणी द्वारा चारों ओर फैलाया हुआ । प्रसाविका - स्त्री० [सं०] ( भिडवाइफ) प्रसव कराने, बच्चा जनानेवाली स्त्री ।
प्रसिद्ध - वि० [सं०] जिसकी प्रसिद्धि हो, ख्यात, मशहूर । प्रसिद्धि - स्त्री० [सं०] ख्याति, शोहरत; सफलता, सिद्धि । प्रसुप्ति-: - स्त्री० [सं०] गहरी नींद; संज्ञाहीनता; निश्चेष्टता । प्रसू-स्त्री० [सं०] उत्पन्न करनेवाली (वीर-प्रसू ); लता; अँखुआ; कोमल तृण ।
प्रसूत - वि० [सं०] प्रसव किया हुआ, उत्पन्न, संजात | प्रसूता - स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसे कुछ ही काल पूर्व बच्चा पैदा हुआ हो, जच्चा |
प्रसूति स्त्री० [सं०] प्रसवः उत्पत्ति; संतान । - कल्याणकार्य - पु० (मैटरनिटी वेलफेयर वर्क) शिशु-जननकी
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प्रसूतिका-प्रस्वीकृति
५२२ सुविधा तथा जच्चा-बच्चाकी भलाई संबंधी कार्य, भातृ- कथन में दूसरे वांछित प्रस्तुतका द्योतन किया जाय । कल्याणकार्य । -गृह,-भवन-पु० बच्चा जननेका घर, प्रस्तुतांगगृह-निर्माणशाला-स्त्री० [सं०] (प्रीफैब्रिकेटेड सौरी । -ज्वर-पु० प्रसवके कुछ काल बाद होनेवाला हाउस फैक्टरी) वह कारखाना जहाँ मकानके अलग-अलग ज्वर ।
हिस्से पहलेसे तैयार किये जायें ताकि बादमें उन्हें किसी प्रसूतिका-स्त्री० [सं०] प्रसूता, जच्चा ।
भी स्थानपर एकत्र कर पूरी इमारत आसानीसे खड़ी की प्रसूत्यवकाश-पु० [सं०] (मैटरनिटी लीव) दे० 'प्रसवा- जा सके। वकाश'।
प्रस्थान-पु० [सं०] गमन, रवानगी; जिगीषुकी युद्धप्रसून-वि० [सं०उत्पन्न, संजात । पु० फूल; फल । यात्रा, कूच, प्रेषण; मार्ग; एक प्रकारका नाटक (सा०); -बाण,-शर-पु० कामदेव ।
विधि, पद्धति; मृत्यु, मरण; उपदेशका साधन (जैसेप्रसृति-स्त्री० [सं०] आगे बढ़ना; फैलाव; अर्धांजलि, उपनिषद , गीता और ब्रह्मसूत्र); वस्त्र आदि जो यात्राके पसर; दो पलका एक मान ।
पहले गंतव्य स्थानकी दिशामें कहीं रख दिया जाता है प्रसृष्ट-वि० [सं०] त्यागा हुआ, परित्यक्त ।
(हिं०)। -त्रयी-स्त्री० उपनिषद्, गीता और ब्रह्मसूत्र । प्रसृष्टा-स्त्री० [सं०] फैलायी हुई उँगली; युद्धका एक दाँव। प्रस्थानी*-वि० जानेवाला, प्रस्थान करनेवाला। प्रसेक-पुं० [सं०] सींचना, आसिंचन, चूना, क्षरण; प्रस्थापक-पु०[सं०] (प्रपोजर) (विधानसभा आदिमें) कोई मुँहसे पानी छूटना या नाकसे पानी गिरना; वमन । प्रस्ताव रखने या सामने लानेवाला । प्रसेद-पु० प्रस्वेद, पसीना।
प्रस्थापन-पु० [सं०] प्रकृष्ट स्थापन; प्रस्थान करना; प्रस्तर-पु० [सं०] पत्थर: पत्तों आदिका बिछावन बिस्तरा, भेजनादौत्यमें लगाना प्रमाणित करना; प्रयोगमै लाना । बिछावन; चौरस मैदान; ग्रंथका अध्याय: अनुच्छेद । प्रस्थापना-स्त्री० [सं० (प्रपोजल) (विधानसभा आदिमें) -भेद-पु० पखानभेद, हड़जोड़ नामक वृक्ष । -मुद्रण- कोई प्रस्ताव लाना; वह प्रस्ताव जो प्रस्थापक द्वारा सभा पु० (लिथोग्राफ) विशेष प्रकारके पत्थरपर लिखकर या आदिमें रखा जाय । खोदकर छापनेका कार्य । -युग-पु० वह ऐतिहासिक प्रस्थापित-वि० [सं०] विशेष रूपसे स्थापित; भेजा हुआ, काल जब लोग पत्थरके हथियारोंसे काम लेते थे, पाषाण- | प्रेषित; आगे बढ़ाया हुआ।-करना-सक्रि० (टु प्रपोज) युग (स्टोन एज)।
| (विधानसभा आदिमें) कोई प्रस्ताव रखना। प्रस्तार-पु० [सं०] फैलाना; ढकना; घासका जंगल; पत्तों | प्रस्थित-वि० [सं०] जिसने प्रस्थान किया हो, विशेष रूपसे
आदिका बिछावन; बिछावन, बिस्तरा; चौरस मैदान; स्थित, दृढ़। (परम्यूटेशन) वस्तुओं, अक्षरों, अंकों आदिको भिन्न-भिन्न प्रस्तुत-वि० [सं०] टपकाने, बहानेवाला ।-स्तनी-स्त्री० प्रकारसे पंक्तियों या कतारों में रखना; छंदोंके भेद जानने- वह स्त्री जिसके स्तनोंसे वात्सल्य प्रेमके कारण दूध टपक की एक विधि।
रहा हो। प्रस्ताव-पु० [सं०] प्रकृष्ट स्तुति; अवसर, मौका; प्रसंग, | प्रस्फुटित-वि० [सं०] फूटा या खिला हुआ, विकसित । प्रकरण; आरंभ; नाटककी प्रस्तावना; सभाके सामने | प्रस्फुरण-पु० [सं०] निकलना; चमकना स्पष्ट होनाकंपन। विचारके लिए रखी हुई बात (आधु०) । -विवाद-नियं- प्रस्फुरित-वि० [सं०] काँपता हुआ, हिलता हुआ। व्रण-पु० (गिलोटिन ए मोशन) किसी विधेयक आदिके प्रस्फोट-पु० [सं०] (बम) विस्फोटक पदार्थोंसे भरा हुआ संबंधमें विरोधियों द्वारा अनावश्यक बाधा डाली जानेपर | लोहेका गोला जो हवाई जहाजसे गिराया जाता और अध्यक्षका समय निर्धारित कर उसे इस प्रकार नियंत्रित हाथसे तथा तोपमें भरकर भी फेंका जाता है। करना जिसमें समय बीतनेके पहले ही उसके स्वीकृत या | प्रस्फोटन-पु०[सं०] विशेष रूपसे फूटना या विदीर्ण होना; अस्वीकृत होनेका निश्चय हो जाय ।
फूट निकलना विकसित होना या करना; ताड़ना सूप; प्रस्तावक-पु० [सं०] प्रस्ताव करनेवाला।
(अन्न आदि) फटकना । प्रस्ताबना-स्त्री० [सं०] आरंभ; (प्रीएंबिल) किसी विधान, प्रस्रवण-पु० [सं०] जल आदिका लगातार चूना था प्रलेख आदिका प्रारंभिक भाग; किसी भाषण, लेख आदि- | बहना; पसीना; स्तनसे निकलता हुआ दूध, पेशाब करना; के आरंभका अंश, प्राकथन; नाटकके आरंभमें सूत्रधारका वह स्थान जहाँसे पानी गिरता या बहता है। शरना । नटी, विदूषक या पारिपाश्चिकके साथ होनेवाला संलाप | प्रस्राव-पु० [सं०] चूनेकी क्रिया, क्षरण, बहाव; मूत्र; जिसमें प्रस्तुतका परिचय आदि रहता है।
उबलते हुए चावलका ऊपरसे बहता हुआ माँड़। प्रस्तावित-वि० [सं०] आरंभ किया हुआ, आरब्धः प्रत्रत-वि० [सं०] क्षरित; झड़ा हुआ। वर्णित, कथित; जिसका प्रस्ताव किया गया हो, जो प्रस्वापन-पु० [सं०] सुलाना; एक अस्त्र जिसका प्रयोग प्रस्ताव रूप में रखा गया हो (आधु०)।
करनेपर, कहा जाता है, विपक्षीको नींद आ जाती है। प्रस्तुत-वि० [सं०] जिसकी चर्चा चल रही हो, प्रकरण- प्रस्वीकृत-वि० [सं०] (रिकॉगनाइज्ड) जिसे अधिकृत रूपसे प्राप्त, प्रासंगिकउपस्थित प्रयत्नसे किया हुआ; घटित | मान लिया हो; जिसे औपचारिक रूपसे मान्यता (संबद्ध उद्यत, तैयार: आरब्ध । पु० छिड़ा हुआ विषय, प्रकरण- होने आदिकी स्वीकृति दे दी गयी हो। प्राप्त विषय; उपमेय; एक काव्यालंकार ।
प्रस्वीकृति-स्त्री० [सं०] (रिकॉगनिशन) प्रधान या केंद्रीय प्रस्तुतांकुर-पु० [सं०] एक काव्यालंकार जहाँ प्रस्तुतके संस्था द्वारा अन्य छोटी संस्था या संस्थाओंका अस्तित्व,
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प्रस्वेद-प्राक् प्रामाणिकता आदि मान लिया जाना, मान्यता; किसी प्रांजलि-वि० [सं०] जो हाथ जोड़े हो, बद्धांजलि । वस्तुकी यथार्थता, विशेषता, दावे आदि मान लेना। प्रांत-पु० [सं०] अंत, शेष भाग; सिरा, छोर; किनारा; प्रस्वेद-पु० [सं०] पसीना ।
कोण; सीमा, हद; पृष्ठ-भाग; किसी देशका कोई बड़ा प्रस्वेदन-पु०[सं०] (फोमेंटेशन) पसीना लाने, गरम जलसे भाग, प्रदेश (जैसे-उत्तरप्रदेश, आधु०)। -पति-पु० सेंकने आदिकी क्रिया, सेंक, वाष्प-तापन ।
प्रांतका सर्वोच्च अधिकारी, गवर्नर (राज्यपाल)। प्रस्वेदित-वि० [सं०] जिसे पसीना आ गया हो। प्रांतर-पु० [सं०] लंबा रास्ता; छाया आदिसे रहित मार्ग प्रहर-पु० [सं०] एक दिनका आठवाँ भाग, याम, पहर । । वन पेड़का खोखला भाग, कोटर । प्रहरखना*-अ० कि० प्रसन्न होना ।
प्रांतिक-वि० [सं०] दे० 'प्रांतीय' । प्रहरण-पु० [सं०] छीनना; हटाना; आघात; आक्रमण; प्रांतीय-वि० [सं०] प्रांत-संबंधी; प्रांतका। -सरकार
युद्ध, दम, दमन, अस्त्र; (अग्निमें तृणादि) फेंकना । स्त्री० [हिं०] प्रांतका शासन चलानेवाली सरकार । प्रहरी(रिन)-पु० [सं०] पहरेदार, घड़ियाली।
-स्वराज्य-पु० (प्राविंशल ऑटोनॉमी) प्रांतों या किसी प्रहर्ष-पु० [सं०] अत्यधिक प्रसन्नता ।
संघराज्यमें सम्मिलित राज्योंको प्राप्त स्वराज्य जिसके प्रहर्पण-पु० [सं०] हर्ष, प्रसन्नता हर्षजन्य रोमांच अभीष्ट- अनुसार उन्हें आंतरिक विषयों-संबंधी निर्णय करने या
की प्राप्ति; बुध ग्रह; एक काव्यालंकार जहाँ बिना परिश्रम- नीति निर्धारित करनेकी स्वतंत्रता होती है । के ही कार्य सिद्ध होने या अभीष्टसे भी अधिक सफलता प्रांतीयता-स्त्री० [सं०]अपने प्रांतके प्रति मोह या पक्षपात । मिलनेका वर्णन किया जाय अथवा जहाँ यह दिखलाया प्रांश-वि० [सं०] ऊँचा; लंबा । पु. लंबा आदमी । जाय कि जिस बातके लिए यत्न आरंभ किया गया था, | -प्राकार-वि० जिसका परकोटा बहुत ऊँचा हो । वह बीच में ही प्राप्त हो गयी। वि० पुलकित करनेवाला, -लभ्य-वि० लंबे मनुष्यको प्राप्य । प्रसन्न करनेवाला।
प्राइवेट-वि० [अं॰] व्यक्तिविशेषसे संबद्ध व्यक्तिविशेषका प्रहसन-पु० [सं०] जोरकी हँसी; परिहास, दिल्लगी; निजी; जो औरोंसे छिपाया जाय, गुप्त, आपसी; गैरभाणकी तरहका हास्यरस प्रधान रूपक (सा०)।
सरकारी (जैसे-प्राइवेट सर्विस)। -सेक्रेटरी-पु० किसी प्रहसित-पु० [सं०] एक बुद्ध जोरसे हँसना । वि० हँसता बड़े आदमीका वह निजी सहायक जो पत्र-व्यवहार तथा हुआ, प्रसन्न ।
अन्य व्यक्तिगत कार्यों में उसकी सहायता करता है, प्रहाण-पु० [सं०] परित्याग; ध्यान; चेष्टा, उद्योग । खास-नवीस। प्रहाणि-स्त्री० [सं०] परित्याग; कमी, अभाव; हानि । प्राकट्य-पु० [सं०] प्रकट होनेका भाव, प्रकटता । प्रहान*-पु० दे० 'प्रहाण' ।
प्राकाम्य-पु० [सं०] आठ सिद्धियोंमेंसे एक जिसके प्राप्त प्रहानि*-स्त्री० दे० 'प्रहाणि' ।
हो जानेपर मनुष्य जो चाहता है वह हो जाता है। प्रहार-पु० [सं०] आघात, वार; मारण; कंठहार । प्राकार-पु० [सं०] नगर या किलेके चारों ओर रक्षाके प्रहारक-वि० [सं०] प्रहार करनेवाला ।
लिए बनायी जानेवाली दीवार, परकोटा ईट, लकड़ी प्रहारना*-स० क्रि० प्रहार करना, वार करना, मारना; आदिका बनाया हुआ घेरा। (अस्त्र) फेंकना या चलाना ।
प्राकारीय-वि० [सं०] प्राकारके योग्य परकोटेसे घिरा प्रहारित*-वि० जिसपर प्रहार किया गया हो।
हुआ। प्रहारी(रिन्)-वि० [सं०] प्रहार करनेवाला; आक्रमण प्राकाश्य-पु० [सं०] प्रकाशका भाव, प्रकटता प्रसिद्धि । करनेवाला; नष्ट करनेवाला ।
प्राकृत-वि० [सं०] प्रकृति-संबंधी; प्रकृतिका; असंस्कृत, प्रहास-पु० [सं०] अट्टहास, ठहाका; तिरस्कार; व्यंग्योक्ति । उज; नीचा स्वभाव-सिद्ध, स्वाभाविक; साधारण, प्रहासक-पु० [सं०] हंसानेवाला, मसखरा ।
सामान्य । स्त्री० प्रांतकी बोली; एक प्राचीन भाषा जिसका प्रहासी(सिन)-पु० [सं०] ठहाका लगानेवाला, जोरसे प्रयोग संस्कृतके नाटकों आदिमें तथा अन्य ग्रंथाभ मिलता हँसनेवाला; भाँड़ विदूपक; चमकनेवाला ।
है। -मित्र-पु. प्राकृत शत्रुके देशके ठीक बादवाले प्रहृष्ट-वि० [सं०] अति प्रसन्न, प्रमुदित खड़ा (रोम)।। देशका राजा । -शत्रु-पु. वह राजा जिसका देश -चित्त,-मना(नस)-वि० बहुत प्रसन्न । -मुख- किसी अन्य राजाके देशसे लगा हुआ हो। . वदन-वि० जिसका चेहरा प्रसन्न हो।-रोमा(मन)- प्राकृतिक-वि० [सं०] प्रकृतिसे उत्पन्न; प्रकृति-संबंधी; वि० जिसके बाल खड़े हों।
प्रकृतिका, कुदरती; लौकिक असार । -चिकित्सा-स्त्री० प्रहेलि, ग्रहोलिका-स्त्री० [सं०] पहेली।
मुख्य रूपसे प्राकृतिक उपायॊपर आधारित चिकित्साप्रहारहा)द, प्रह्लाद-पु० [सं०] अतिशय आनंद, अत्यधिक | पद्धति । -भूगोल-पु० भूगोल-विद्याका वह भाग जिसमें प्रसन्नता विष्णुका एक प्रसिद्ध भक्त जो हिरण्यकशिपुका समुद्र, पर्वत, नदी आदिकी प्राकृतिक विशेषताओंका पुत्र था।
अध्ययन किया जाता है। प्रांगण-पु० [सं०] आंगन; छोटा ढोल, पणव ।
प्राक(च)-वि० [सं०] सामनेका, अगला; पूरबका, प्रांजल-वि० [सं०] सरल, सुबोध; खरा, ईमानदार; स्वच्छ पूरबी; पहलेका । अ० पहले; आगे। -कथन-पु० समतल, बराबर ।
भूमिका, प्रस्तावना। -कलन-पु० (एस्टिमेट) संभावित प्रांजलता-स्त्री० [सं०] अर्थकी सरलता।
व्यय या लागतका पहलेसे अमुमान लगाना या लगाया
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प्राक्तन-प्राण
५२४ गया अनुमान । -काल-पु. पहलेका समय, बीता। मूलाधारमें रहनेवाली वायु; वह जो प्राणों के समान प्रिय हुआ समय, प्राचीन काल । -कालिक,-कालीन-बि० हो; वैवस्वत मन्वंतरके सप्तर्षियोंमेंसे एक काव्यका आत्मापहलेका, पुराना, प्राचीन ।
रूप रस; एक गंधद्रव्य, गंधरस । -अधार*-पु. वह प्राक्तन-वि० [सं०] पहलेका, प्राचीन; पूर्व जन्मका । जिसपर जीवन अवलंबित हो, जीवनका सहारा पति, प्राखये-पु० [सं०] प्रचंडता, प्रखरता, तीक्ष्णता ।
खाविंद प्रेमी, प्रियतम । -कष्ट-पु० मरनेके समय होनेप्रागनुराग-पु० [सं०] पूर्वानुराग ।
वाला कष्ट । -कृच्छ-पु० प्राणका संकट, जान जोखिम । प्रागल्भ्य-पु० [सं०] प्रगल्भ होनेका भाव, प्रगल्भता; -घात-पु० मार डालना, मारण। -घातक-पु० मार साहस घमंड; दक्षता विकासावाग्मिता ठाट-बाट; दृढ़ता; डालनेवाला, प्राण हर लेनेवाला। -न-वि० जो प्राण प्रबलता; स्त्रीका भयसे रहित होना (सात्त्विक भाव)। हर ले, घातक । -च्छेद-पु० बध, हत्या। -जीवन प्रागुक्ति-स्त्री० [सं०] पूर्वकथन ।
-पु. विष्णु जो प्राणोंका स्थापन और पोषण करते हैं; प्रागैतिहासिक-वि० [सं०] इतिहासमें वर्णित कालके प्राणाधार । -त्याग-पु० मृत्यु; आत्महत्या। -दंडपूर्वका ।
पु० मौतकी सजा। -द-वि० जान डालनेवाला । प्राग्ज्योतिष-पु० [सं०] कामरूप देश। -पुर-पु० -दयित-पु० पति । वि० प्राणप्यारा।-दा-स्त्री० हड़, प्राग्ज्योतिष देशकी राजधानी जिसका आधुनिक नाम हरीतकी; एक प्रकारकी गुटिका (आवे०)।-दाता(त)गोहाटी है।
पु० किसीकी जान बचानेवाला। -दान-पु० प्राण देना; प्राग्देश-पु० [सं०] पूरबी देश ।
किसीकी प्राण-रक्षा करना। -धन-पु. वह जो प्राणके प्रारद्वार-पु० [सं०] पूरबका द्वार ।
समान प्यारा हो, अत्यंत प्रिय व्यक्ति ।-धार-वि०जिसमें प्राग्विभाजन-भुगतान-पु० (प्री-पाटींशन पेमेंट्स ) प्राण हो,जीवित । पु०प्राणी ।-धारण-जीवन पु० धारण भारतका विभाजन होनेके पहले किया गया ऋण आदिका करनेकी क्रिया, जीवन-शक्ति; जीवनका सहारा ।-धारीभुगतान।
(रिन्)-पु० प्राणी, जीव । -नाथ-पु० पति, स्वामी; प्राची-स्त्री० [सं०] पूर्व दिशा, पूरब । -पति-पु० इंद्र। प्रेमपात्र, प्रियतम, यम; एक महात्मा जिन्होंने 'परिणामी' प्राचीन-वि० [सं०] पूरबका, पूरबी; पहलेका, पुराना ।। संप्रदाय चलाया। -नाथी-पु० [हिं०] महात्मा प्राणप्राचीनता-स्त्री० [सं०] प्राचीन होनेका भाव, पुरानापन । नाथके संप्रदायका अनुयायी; प्राणनाथका चलाया हुआ प्राचीर-पु० [सं०] नगर, किले आदिके चारों ओर रक्षाके संप्रदाय । -नाश-पु० मृत्युः वध। -नाशक-वि० लिए बनायी गयी दीवार, परकोटा, चहारदीवारी । जान लेनेवाला प्राणहारक। -निग्रह-पु० प्राणायाम । प्राचुर्य-पु० [सं०] प्रचुर होनेका भाव, आधिक्य, बहु- -पण-पु० जानकी बाजी। -पति-पु० पति; प्रेमपात्र, तायत ।
प्रियतम वैद्य आत्मा। -प्यारा-पु० [हिं०] वह जो प्राचेतस-पु० [सं०] वाल्मीकि मुनि प्रचेताका पुत्र; मनु । प्राणों के समान प्रिय हो, अत्यंत प्रिय व्यक्ति पति; प्रियप्राच्छित*-पु० दे० 'प्रायश्चित्त'।
तम ।-प्रतिष्ठा-स्त्री. देवप्रतिमाका एक प्रकारका संस्कार प्राच्य-वि० [सं०] पूरबका, पूरबी; पहलेका, पुराना; जिसमें मंत्रों द्वारा देवताका प्रतिमामें आवाहन करते हैं,
सामनेका, अगला । -भाषा-स्त्री० पूरबी भाषा । मंत्रों द्वारा किसी देवताका उसकी प्रतिमामें निवास प्राजापत्य-वि० [सं०] प्रजापतिसे उत्पन्न प्रजापति संबंधी। कराना ।-प्रद-वि० प्राण देनेवाला, प्राणदायका प्राणोंपु० आठ प्रकारके विवाहोंमेंसे एक जिसमें कन्याका पिता की रक्षा करनेवाला; बलकारक। -प्रिय-पु० प्रियतम, वर और कन्यासे गार्हस्थ्य धर्मका पालन करनेकी प्रतिज्ञा पति । वि० जो प्राणोंके सभान प्रिय हो। -बाधा-स्त्री० करानेके अनंतर दोनोंकी पूजा करके कन्यादान करता है। [हिं०] दे० 'प्राणकृच्छ्र' । -भक्ष-वि० जो केवल प्राज्ञ-वि० [सं०] बुद्धिमान् ; चतुर, दक्ष । पु० चतुर
हवा पीकर रहता हो। -भय-पु० जान जानेका मनुष्यः एक तरहका तोता; कल्किदेवके बड़े भाई (पु०); खतरा। -भृत्-वि० प्राणवान् , जीवित । पु० प्राणी; जीवात्मा (वे०)।-मन्य,-मानी(निन)-वि० अपनेको विष्णु। -यम-पु० प्राणायाम । -यात्रा-स्त्री० बहुत बुद्धिमान् माननेवाला ('प्राशम्मन्य'भी)।
प्राणकी श्वास-प्रश्वास-क्रिया; भोजन आदि जिनसे उक्त प्राज्ञा-स्त्री० [सं०] बुद्धि; बुद्धिमती स्त्री।
क्रियाका निर्वाह होता है। जीवन-निर्वाह । -रंध्र-पु० प्राज्ञी-स्त्री० [सं०] विदुषी; विद्वान्की स्त्री; सूर्यकी एक मुँह नाक । -रोध-पु० प्राणायाम, जानका खतरा एक पत्नी।
नरक । -वल्लभ-वि० 'प्राणप्रिय' । [स्त्री०-'वल्लभा'।] प्राज्य-वि० [सं०] जिसमें खूब धी पड़ा हो; प्रचुर, प्रभूत -वायु-स्त्री० प्राणरूपी वायु, प्राणा-विनाश,-विप्लव विशाल; ऊँचा; दीप।।
-पु० मृत्यु, मौत ।-वियोग-पु० मृत्यु ।-वृत्ति-स्त्री. प्राडविवाक, प्राविवेक-पु० [सं०] न्याय करने के लिए प्राणका श्वास-प्रश्वास आदि व्यापार-व्यय-पु० प्राणत्याग, राजाकी ओरसे नियुक्त विचारक, न्यायाधीश ।
जीवनोत्सर्ग । -शरीर-पु० परमेश्वर (जिसका प्राणाप्राण-पु० [सं०] वायुः शरीरके भीतरकी जीवनाधाररूपी त्मक रूपमें ध्यान किया जाता है)। -शोषण-पु० वायु (इसके पाँच भेद माने गये हैं-प्राण, अपान, व्यान, बाण । -संकट,-संदेह,-संशय-पु० ऐसा संकट जो उदान और समान), श्वास, साँस; बल; जीव; जीवन, जानपर आ जाय, जान जानेका भय, जानजोखों । जान; घ्राण; ज्ञानेंद्रिय पाचन; कालका मानरूप श्वास -सम(न्)-पु० शरीर । -सम-पु० पति प्रियतम ।
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५२५
प्राणमय-प्रायमिकता वि० प्राणाप्रेय ।-समा-स्त्री०पत्नी।-हर,-हारी(रिन्) और सूर्योदयके पहलेका तीन मुहूर्तका समय । अ० सवेरे, -वि० प्राण हरनेवाला, जान लेनेवाला; बलनाशक । तड़के। -कालिक,-कालीन-वि० प्रातःकालका, प्रात:-हारक-वि० जान लेनेवाला, घातक । पु० वत्सनाभ काल-संबंधी । -संध्या-स्त्री० प्रातःकालकी संध्या, नामक विप। -हानि-सी० प्राणनाश । -हीन-वि० रातका अंतिम एक दंड और दिनका पहला एक दंड; निजीव । मु०-आना-भय कम होना। -उड़ जाना प्रातःकाल किया जानेवाला संध्याकर्म । -स्नान-पु० या सूख जाना-बदहवास हो जाना बहुत अधिक घबरा सबेरेका स्नान । -स्नायी(यिन् )-वि० सवेरे स्नान जाना; बहुत डर जाना। -गलेतक आना-मरणासन्न करनेवाला।स्मरण-पु० प्रातःकाल देवताका स्मरण । होना ।-छोड़ना,-त्यागना-मरना।-जाना,-छूटना -स्मरणीय-वि. जो प्रातःकाल स्मरण करने योग्य या निकलना-मरना, देहावसान होना। -डालना- हो, पुण्यचरित । जीवनका संचार करना, सजीव बनाना ।-देना-मरना; प्रात*-पु० सबेरा, प्रातःकाल । * अ० सबेरे, तड़के । अधिक कष्ट पानाकिसीको बहुत चाहना ।-पयान होना* -नाथ*-पु० सूर्य । -मरना। -बचाना-जान बचाना, पिंड छुड़ाना। प्रातर-अ० [सं० सवेरे, तड़के। -अशन-पु० कलेवा। -मुँहको आना-बहुत अधिक दुःख होना, दुःखसे -अह्न-पु० सबेरेसे दोपहरतकका समय, पूर्वाह्न । व्याकुल होना। -मुहीमें या हथेलीपर लिये रहना- -आशी(शिन)-वि० सुबह कलेवा करनेवाला। मरनेको तैयार रहना । -रखना-जिलाना। -लेना- -आहति-स्त्री० प्रात:काल दी जानेवाली आहुति मार डालना ।-से हाथ धोना-मर जाना । -हरना- अग्निहोत्रका द्वितीयांश । -गेय-पु० स्तुतिपाठक, बंदी। मार डालना बहुत अधिक कष्ट पहुँचाना। -हारना*- वि० जो सबेरे गाया जाय। -भोजन-पु. सबेरेका मर जाना; हतोत्साह होना । (प्राणों)पर आ पड़ना- हलका भोजन, कलेवा । प्राण संकट में पड़ना, जानजोखों होना। -पर खेलना- प्रातिकूल्य-पु० [सं०] प्रतिकूल होनेका भाव, प्रतिकूलता। जानकी बाजी लगा देना, जान जोखों में डालना। -पर प्रातिनिधिक-पु० [सं०] प्रतिनिधि । वि० प्रतिनिधिमूलक । बीतना-प्राण संकट में पड़ना।
प्रातिपक्ष्य-पु० [सं०] विरोध, प्रतिकूलता; शत्रुता । प्राणमय-वि० [सं०] जिसमें प्राण हों, प्राणयुक्त । -कोश प्रातिपथिक-वि० [सं०] यात्रा करनेवाला; रास्तेसे जाने
-पु० वेदांतके अनुसार शरीरके पाँच कोशोमेंसे दूसरा वाला । पु० यात्री। पाँच कर्मेंद्रियोंके सहित प्राण, अपान आदि पाँच प्राण । प्रातिपद-वि० [सं०] जो प्रतिपदाको उत्पन्न हुआ हो; प्राणवत्ता-स्त्री० [सं०] प्राणवान् या जीवित होनेका भाव। प्रतिपदा-संबंधी; प्रतिपदाका; आरंभका। प्राणांत-वि० [सं०] मृत्यु, मौत ।
प्रातिपदिक-पु० [सं०] अग्नि; धातु, प्रत्यय और प्रत्यप्राणांतक -पु० [सं०] प्राण लेनेवाला ।
यांतसे भिन्न अर्थवान् शब्द, वह अर्थवान् शब्द जो धातु प्राणाचार्य-पु० [सं०] राज्य वैद्य ।
और प्रत्ययसे भिन्न हो और जिसमें प्रत्यय न लगा हो, प्राणाधार-पु० [सं०] जीवनका अवलंब या सहारा; पति; जैसे 'राम' (सं० व्या०)। प्रियतम।
प्रातिभ-वि० [सं०] प्रतिभा संबंधी प्रतिभाका प्रतिभायुक्त । प्राणाधिनाथ-पु० [सं०] पति ।
प्रातिभाव्य-पु० [सं०] प्रतिभूका भाव, प्रतिभूत्व, जामिनप्राणायाम-पु० [सं०] श्वास-प्रश्वासको गतिका विच्छेद, दारी; वह धन जो प्रतिभू या जामिनको देना पड़े। श्वास-प्रश्वासकी वायुओंका नियमन ।
-ऋण-पु० किसीकी जमानतपर लिया गया ऋण । प्राणायामी(मिन)-वि० [सं०] प्राणायाम करनेवाला। प्रातिभासिक-वि० [सं०] जो वास्तव न हो, पर भ्रमवश प्राणावरोध-पु० [सं०] श्वासका अवरोध ।
विशेष प्रकारका भासित होता हो, अवास्तव (जैसे-मोतीप्राणाहुति-स्त्री० [सं०] भोजनके आरंभमें पाँच ग्राम में चाँदीका भान)। 'प्राणाय स्वाहा', 'अपानाय स्वाहा' आदि मंत्र पढ़कर प्रातिरूपिक-वि० [सं०] उसी रूपका नकली। पाँचों प्राणोंके निमित्त खाना।
प्रातिलोमिक-वि० [सं०] विरुद्ध, विपरीत, अप्रिय । प्राणित-वि० [सं०] जिसमें जीवनकासंचार किया गया हो। प्रातिलोम्य-पु० [सं०] क्रमविरुद्धताः विरुद्धता वैपरीत्य । प्राणी(णिन)-वि० [सं०] जिसमें प्राण हों, प्राणवान् । प्रातिवेशिक, प्रातिवेश्मक, प्रातिवेश्यक-पु० [सं०] पु० जीव-जंतु, मनुष्य; व्यक्ति (हिं०)।-घाती(तिन)- पड़ोसी। वि० जीवोंकी हत्या करनेवाला ।-वध-पु० जीवहत्या। प्रातिवेश्य-पु० [सं०] पड़ोस पड़ोसी, वह जिसका घर -हिंसा-स्त्री० जीवोंको कष्ट देना या मारना ।
अपने घर के सामने या बाद हो। ' प्राणेश, प्राणेश्वर-पु० [सं०] पति, स्वामी; प्रियतम । प्रातिहारिक-पु० [सं०] बाजीगर द्वारपाल । प्राणेशा, प्राणेश्वरी-स्त्री० [सं०] पत्नी प्रियतमा । प्रात्यहिक-वि० [सं०] प्रति दिनका, दैनिक । प्राणोत्क्रमण, प्राणोत्सर्ग-पु० [सं०] मृत्यु ।
प्राथमिक-वि०[सं०] पहला, आदिम पहलेका प्रारंभिक, प्रातः(तर)-पु० [सं०] सबेरा, तड़का । अ० सबेरे, पहली बार घटित होनेवाला । तड़के। -कर्म(न),-कार्य,-कृत्य-पु० प्रातःकाल | प्राथमिकता-स्त्री० [सं०] (प्रायारिटी) प्राथमिक होनेका किया जानेवाला कर्म (ईशप्रार्थना आदि)। -काल,- भाव; किमीको औरोंसे पहले स्थान या अवसर मिलना। क्षण,-समय-पु० सबेरेका समय, प्रभात रातो अंत -सूची-स्त्री० (प्रायॉरिटी लिस) विषयों आदिको सूची
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प्रादुर्भाव-प्राभियोक्ता
५२६
जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तथा आवश्यक प्रश्नोंको प्रथम प्रापना*-स० क्रि० प्राप्त करना, पाना। स्थान, प्राथमिकता, देनेका विशेष ध्यान रखा गया हो। प्रापयिता(त)-वि०, पु० [सं०] प्राप्त करानेवाला । प्रादुर्भाव-पु०[सं०] प्रकट होना,प्रकाश उत्पत्ति, अस्तित्व- प्रापित-वि० [सं०] प्राप्त कराया हुआ; पहुँचाया हुआ। ग्रहण; देवताका पृथ्वीपर प्रकट होना।
| प्रापी(पिन)-वि० [सं०] प्राप्त करनेवाला; पहुँचनेवाला प्रादुर्भूत-वि० [सं०] जिसका प्रादुर्भाव हुआ हो, जो प्रकट | (समासांतमें)। हुआ हो; उत्पन्न ।-मनोभवा-स्त्री० एक प्रकारकी मध्या प्राप्त-वि० [सं०] पाया हुआ, जो मिला हो, लब्ध; जो नायिका जिसके मनमें कामका पूरा प्रादुर्भाव होता है। आ पड़ा हो, उपस्थित स्थापित; पूरा किया हुआ; उचित प्रादेश-पु० [सं०] अँगूठेके सिरेसे तर्जनीके सिरेतककी जहाँ कोई पहुँचा हो, आसादित । -काल-वि० जिसे दूरी; प्रदेश, प्रांत; स्थान ।
करनेका समय उपस्थित हो,समयोचित । पु० उचित समय, प्रादेशन-पु० [मं०] दान ।
किसी बातका उपयुक्त अवसर; मृत्युका समय ।-जीवन-वि० प्रादेशिक-वि० [सं०] प्रदेश-संबंधी, प्रदेशका; अर्थद्योतक । जिसकी जान लौट आयी हो, जो मरते-मरते बच गया प्रसंगगत । पु० किसी प्रदेशका शासक, सूबेदार ।-सेना- हो। -मनोरथ-वि० जिसका मनोरथ पूर्ण हो गया स्त्री० (टेरिटोरियल आमी) किसी विशेष प्रदेश या क्षेत्र- हो। -यौवन-वि० जिसकी जवानी आ गयी हो । में स्थानीय सुरक्षाको दृष्टिसे तैयार की जानेवाली (नाग- -व्यवहार-वि० बालिग। रिकोंकी) सेना।
प्राप्त -स्त्री० [सं०] वह लड़की जोरजस्वला हो गयी हो। प्रादेशिनी-स्त्री० [सं०] तर्जनी ।
प्राप्तव्य-वि० [सं०] पाने, मिलने योग्य । प्राधान्य-पु० [सं०] प्रधानका भाव, प्रधानता; श्रेष्ठता | प्राप्ताधिकार-पु० (प्रिविलेज) वह विशेष अधिकार जो मूल कारण।
कुछ ही लोगोंको प्राप्त हो; किसी व्यक्ति, वर्ग, संस्था प्राधिकरण-पु० [सं०] (अथॉरिजेशन) किसीको कोई काम आदिको उसकी विशेष स्थितिके कारण प्राप्त विशेष अधि
करने, आदेश देने आदिका अधिकार प्रदान करना। कार या सहूलियत । प्राधिकार-पु० [सं०] (अथॉरिटी) कोई काम करने, आदेश प्राप्तानुज्ञ-वि० [सं०] (लाइसेंस्ड) जिसे किसी वस्तुके देने आदिका अधिकार; इस तरहका वह अधिकार जो बेचने या कोई काम करनेका अनुज्ञापत्र दिया गया हो। किसी पदाधिकारीको अपने पदके कारण प्राप्त हो। पु० (लाइसेंसी) वह व्यक्ति जिसे इस तरहका अनुज्ञापत्र प्राधिकारी(रिन)-पु० [सं०] ( अथॉरिटी) बह जिसे | दिया गया हो। प्राधिकार प्राप्त हो । (प्राधिकारिवर्ग= अथारिटीज।) प्राप्तावसर-वि० [सं०] दे० 'प्राप्तकाल'। प्राधिकृत-वि० [सं०] जिसे विधिविहित अधिकार प्राप्त प्राप्ति-स्त्री० [सं०] पाया जाना, मिलना, लाभ; पहुँच; हो; जो विधिविहित अधिकारी द्वारा स्वीकृत हो ।-अभि- | उपार्जन, उदय, अनुमिति; हिस्सा; भाग्य; संहतिः पूर्वकर्ता-(र्तृ)पु० (अथोराइज्ड एजेंट) वह अभिकर्ता जिसे कमौका फल, फलागम (ना०), आठ सिद्धियों में से एक प्रतिनिधिरूपमें कोई काम करनेका विधिविहित अधिकार जिसके द्वारा प्रत्येक अभीष्ट पदार्थ मिलता है; आय, धना. प्राप्त हो । -पूँजी-स्त्री० [हिं०] (अथॉराइज्ड कैपिटल) गम; फायदा, लाभ, जरासंधकी एक पुत्री जो कंससे व्याही कारखाने आदिमें लगानेके लिए हिस्सेदारोंसे ली जाने- थी; कामदेवकी एक पत्नी; चंद्रमाका ग्यारहवाँ स्थान वाली वह जी जिसकी स्वीकृति विशेष प्राधिकारीसे | (फो० ज्यो०)।-कर्ता(र्तृ)-पु०(रीसिपियेंट) वह जिसे ली गयी हो।
कोई वस्तु प्राप्त हो। प्राध्यापक-पु० [सं०] (लेक्चरर, प्रोफेसर) वह अध्यापक प्राप्त्याशा-स्त्री० [सं०] प्राप्तिकी आशा, मिलनेकी आशा।
जो अपने विषयका अच्छा विद्वान् हो; किसी महाविद्या-प्राप्य-वि० [सं०] प्राप्त करने योग्य; जहाँतक पहुच हो लय आदिका उच्च श्रेणीका अध्यापक ।
सके जो मिल सके, मिलने योग्य । प्रान*-पु० दे० 'प्राण'।
प्राप्यक-पु० (बिल) किसीके हाथ बेचे हुए माल या किसीके प्रानी -पु० दे० 'प्राणी' ।
लिए किये हुए काम आदिका ब्योरा और प्राप्य मूल्य प्रानुमतिपत्र-पु० [सं०](परमिट) वह पत्र जिसमें कोई ऐसा | दिखानेवाला पत्र । माल, जिसपर किसी तरहका नियंत्रण हो, सीमित मात्रा- प्राबल्य-पु० [सं०] प्रबलता; प्रधानता; शक्ति । में खरीदनेकी विशेष अनुमति दी गयी हो; माल उतारने प्राभिकर्ता(त)-पु० [सं०] (एटनी) वह व्यक्ति जिसे या हटाने-बढ़ानेकी विशेष अनुमति प्रदान करनेवाला पत्र। किसी अन्य व्यक्ति या संस्थाकी ओरसे प्रतिनिधि-रूपमें प्रानेस* -पु० दे० 'प्राणेश' ।
कार्य करनेका विधिविहित अधिकार प्राप्त हो; वह जिसे प्रापक-पु० [सं०] प्राप्त करने या करानेवाला; पहुँचाने- मुकदमे मामले में किसीकी ओरसे देख-रेख करने आदिका वाला; (पेयी) जिसे रुपया-पैसा आदि दिया जाय, विधिविहित अधिकार दिया गया हो। चुकाया जाय, पानेवाला ।
प्राभियोक्ता (क्त)-पु० [सं०] (प्रॉसीक्यूटर) किसीके विरुद्ध प्रापण-पु० [सं०] प्राप्त करना या कराना; पहुँचाना, कोई मामला चलानेवाला । -पक्ष-पु० ( प्रॉसीक्यूशन) ले जाना; वाला।
वह पक्ष जिसकी ओरसे किसीके विरुद्ध कोई मामला न्याप्रापणिक-पु० [सं०] व्यापारी, सौदागर ।
यालयमें चलाया गया हो। (राजकीय प्राभियोक्ताप्रापति*-स्त्री० प्राप्ति; एक सिद्धि ।
पु० (गवर्नमेंट प्रॉसीक्यूटर) राज्यका वह विधिक अधिकारी
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प्राभियोजन - प्रावृषेय
जो सार्वजनिक हितकी दृष्टिसे किसीपर कोई अभियोग | प्रारूप-५० [सं०] (ड्रॉफ्ट) किसी प्रस्ताव, योजना, विधेयक चलाये ।)
प्राभियोजन - पु० ( प्रॉसीक्यूशन) किसीके विरुद्ध कोई अभियोग या मामला चलाना ।
प्रामंडलिक- वि० [सं०] ( डिवीजनल ) प्रमंडलका या प्रमंडल-संबंधी |
प्रामाणिक - वि० [सं०] जो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे सिद्ध हो, शास्त्र- सिद्ध; मानने योग्य; प्रमाण-संबंधी; जो मान, परिमाणका काम दे; जो किसी बातका प्रमाण हो, प्रमाणरूप; शास्त्रश । पु० प्रमाणोंको माननेवाला; वह जो प्रमाणोंको जानता हो, प्रमाणवेत्ता, न्यायशास्त्री । प्रामाण्य - पु० [सं०] प्रमाणत्व, शास्त्रसिद्ध होना; विश्वसनीयता; प्रमाण ।
आदिका वह प्राथमिक रूप जो शीघ्रतामें तैयार कर लिया जाता है, किंतु जिसमें बाद में कुछ काटछाँट या संशोधनकी आवश्यकता पड़ती है, मसौदा, खर्रा, प्रालेख । -कारपु० ( ड्राफ्ट्समैन) प्रारूप या मसौदा तैयार करनेवाला । प्रार्थन - पु० [सं०] माँगना, याचना करना, याचन । प्रार्थना-स० क्रि० प्रार्थना करना । स्त्री० [सं०] किसी से कुछ माँगना; किसी बात के लिए किसीसे विनयपूर्वक कहना, नम्र निवेदन, यांचा इच्छा, चाह । - पत्र - पु० वह पत्र या लेख जिसमें किसीसे किसी बात के लिए प्रार्थना की गयी हो, अरजी । -भंग-पु० प्रार्थनाकी अस्वीकृति । - समाज - पु० ब्रह्मसमाज जैसा एक नवीन संप्रदाय | - सिद्धि - पु० इच्छाकी पूर्ति । प्रार्थनीय - वि० [सं०] जिसके लिए प्रार्थना की जाय, प्रार्थना करने योग्य । प्रार्थयिता(तृ) - पु० [सं०] प्रार्थना करनेवाला, याचक; प्रणयाकांक्षी ।
प्रामिसरी - वि० [अ०] जिसमें किसी बातकी प्रतिज्ञा की गयी हो। - नोट-५० वह लेख या पत्र जिसमें कोई व्यक्ति यह प्रतिज्ञा करता है कि मैं अमुक मितिको या जब कभी भी माँगनेपर अमुक व्यक्तिको या इस पत्रके वाहकको इतना रुपया दूंगा; वह कागज या ऋणपत्र जिसमें सरकार प्रजासे कुछ ऋण लेकर यह प्रतिज्ञा करती है कि अमुक व्यक्ति इतना ऋण लिया गया और इसका सूद इस हिसाब से ऋणदाताको दिया जायगा । प्रायः (स्) - वि० [सं०] लगभग, करीब-करीब । अ० अधिकतर, अकसर ।
प्रार्थित - वि० [सं०] जिसकी या जिसके लिए प्रार्थना की गयी हो, याचित; आक्रांत; अवरुद्ध; आहत; हत; जिसकी चाह, तलाश हो । ५० इच्छा । - पूँजी - स्त्री० [हिं०] ( सब्स्क्राइब्ड कैपिटल ) किसी कारखाने आदिके लिए प्राधिकृत पूँजीका वह अंश जिसके लिए संभाव्य हिस्सेदारों के प्रार्थनापत्र प्राप्त और स्वीकृत हो चुके हों । प्रार्थी ( र्थिन् ) - वि० [सं०] प्रार्थना करनेवाला; चाहनेवाला, इच्छुक; आक्रमण करनेवाला ।
प्रार्थ्य - वि० [सं०] प्रार्थना करने योग्य, जिसके लिए प्रार्थना की जाय ।
प्रालंब - वि० [सं०] विशेष रूपसे लटकनेवाला | पु० सीनेतक लटकनेवाली माला; एक तरहकी मोतियोंकी माला । प्रालंबक - पु० [सं०] सीनेतक लटकनेवाली माला । प्रालंबिका - स्त्री० [सं०] एक तरहका सोनेका हार । प्रालेख - पु० [सं०] (ड्राफ्ट) दे० 'प्रारूप' |
वाला, सामान्य ।
प्रायोगिक - वि० [सं०] जिसका नित्य प्रयोग होता हो, प्रालेय- पु० [सं०] हिम, बर्फ । वि० प्रलय संबंधी । - भूधर, जिसका नित्य प्रयोग किया जाय । -शैल-पु० हिमालय । -रश्मि-पु० चंद्रमा; कपूर । प्रालेयांशु - पु० [सं०] चंद्रमा कपूर । प्रालेयाद्वि-पु० [सं०] हिमालय ।
प्रावरण-पु० [सं०] ओढ़नेका वस्त्र, उत्तरीय, चादर । प्राविधिक - वि० [सं०] (टेकनिकल) किसी कला, शिल्प आदिकी विशेष कार्यविधि, प्रक्रिया आदि-संबंधी । -आपत्ति - स्त्री० (टेकनिकल आब्जेक्शन) नियम, प्रविधि आदिके अनुपालन के आधारपर की गयी आपत्ति । प्राविधिज्ञ-पु० ( टेकनीशियन) किसी कला, शिल्प आदिकी विशेष कार्यविधि, प्रक्रियाओं आदिका जानकार । प्रावीण्य - पु० [सं०] कुशलता, निपुणता । प्रावृट् (ष) - पु० [सं०] वर्षाऋतु, पावस । - ( द ) काल५० वर्षाका मौसम |
प्रावृत - वि० [सं०] विशेष रूपसे आवृत घिरा हुआ; ढका हुआ। पु० ओदनेका वस्त्र, उत्तरीय ( रैपर ) । प्रावृप पु०, प्रावृषः - स्त्री० [सं०] वर्षाकाल, पावस | प्रावृषेय - वि० [सं०] वर्षाऋतु में होनेवाला ।
प्राय-पु० [सं०] मृत्यु; अनशन द्वारा होनेवाली मृत्यु, अनशन मृत्यु; बाहुल्य, आधिक्य । वि० तुल्य, समान; पूर्ण (जैसे- ' कष्टप्राय') ।
प्रायद्वीप - पु० दे० 'प्रायोद्वीप' |
प्रायश: ( स ) - अ० [सं०] अधिकतर, बहुधा, अकसर । प्रायश्चित्त- पु० [सं०] वह शास्त्रविहित कर्म जो पापका मार्जन करनेके लिए किया जाय; शोधन | प्रायिक - वि० [सं०] जो अधिकतर होता हो, प्रायः होने
प्रायोज्य - वि० [सं०] प्रयोजनके योग्य, ( वह वस्तु) जो किसी के विशेष प्रयोजनकी हो (जैसे- पंडित के लिए पुस्तक आदि । शास्त्र के अनुसार ऐसी वस्तुओंका बँटवारा और वस्तुओंकी भाँति नहीं हो सकता) । प्रायोद्वीप - पु० [सं०] स्थलका वह भाग जो तीन ओर से
|
पानीसे घिरा हो और एक ओर स्थलसे लगा हो । प्रायोपवेश, प्रायोपवेशन- पु० [सं०] जान देने के लिए दाना-पानी छोड़कर पड़ रहना, मृत्युके लिए किया जाने
वाला अनशनव्रत ।
प्रायोवाद - पु० [सं०] लोकोक्ति, कहावत । प्रारंभ - पु० [सं०] आरंभ; कार्य, प्रयत्न ।
|
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प्रारंभण- पु० [सं०] आरंभ करना, शुरू करना । प्रारंभिक - वि० [सं०] आरंभका, आरंभ में होनेवाला । प्रारब्ध - वि० [सं०] आरंभ किया हुआ । पु० तीन प्रकारके कर्मों में से वह कर्म जिसका फल भोगा जा रहा हो; भाग्य, | किस्मत; वह जो शुरू किया गया हो ।
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प्राव्रज्य-प्रेत
५२८ प्राव्रज्य-पु० [सं०] दे० 'प्रावाज्य' ।
| प्रीणन-पु० [सं०] प्रसन्न करना; प्रसन्न करनेवाला । प्राशन-पु० [सं०] खाना खिलाना; भोजन; चखना प्रीणित-वि० [सं०] प्रसन्न; संतुष्ट । (अन्नप्राशन)।
प्रीत-वि० [सं०] प्रीतियुक्ता प्रसन्न, हृष्ट । * श्री प्रेम, प्राश्निक-पु० [सं०] प्रश्न करनेवाला, प्रश्नकर्ताः (पेपर | प्रोति। सेटर ) छात्रोंकी किसी परीक्षाके लिए किसी विषयके प्रश्न | श्रीतम-पु० प्रियतम, पति, स्वामी; किसी नायिकाका छाँटने या चुननेवाला, प्रश्नपत्र तैयार करनेवाला; प्रेमिक, आशिक । पंच, मध्यस्थ ।
प्रीति-स्त्री० [सं०] हर्ष, प्रसन्नता, आमोद; तृप्तिः प्रेम, प्रासंगिक-वि० [सं०] जिसका प्रसंग हो, प्रसंगप्राप्त; प्यार; कृपा, कामदेवकी एक पत्नी; विष्कुंभ आदि २७ प्रसंगोचित संयोगसे होने या आ जानेवाला।
योगोंमेंसे दूसरा योग (फ० ज्यो०)। -कर-वि० हर्ष प्रासविक विज्ञान-पु० [सं०] गर्भवती नारियोंको प्रसव | या प्रेम उत्पन्न करनेवाला। -कर्म(न)-पु. प्रेमकरानेकी कलाका विवेचन करनेवाला विज्ञान ।
पूर्ण कार्य, मैत्रीपूर्ण कार्य । -कारक,-कारी(रिन)प्रासाद-पु० [सं०] राजभवन, महल; देवालयः विशाल वि०दे० 'प्रीतिकर'।-दत्त-वि० प्रीतिपूर्वक दिया हुआ। भवन, आलीशान इमारत ।
पु० वह धन जो कन्याको विवाहमें माता, पिता आदिसे प्रासादिक-वि० [सं०] कृपायुक्त, अनुकूल; सुंदर; जो मिले ।-दान,-दाय-पु० प्रेमवश दिया हुआ पदार्थ या प्रसादके रूपमें दिया जाय ।
द्रव्य, प्रेमोपहार । -धन-पु०प्रेमवश दिया हुआ धन । प्रासादीय-वि० [सं०] प्रासाद-संबंधी; प्रासादका। -पात्र-पु. वह जिसके प्रति प्रेम हो, प्रेमभाजन । प्रासूतिक-वि० [सं०] प्रसूति-संबंधी।
-भोज-पु. वह भोज जिसमें मित्र तथा सगे-संबंधी प्रास्ताविक-वि० [सं०] प्रस्तावक रूपमें काम आनेवाला; सद्भावसे सम्मिलित हों (आधु०)।-वद्धन, वर्धन-पु० प्रसंगोचित समयोचित ।
विष्णु । वि० प्रीति बढ़ानेवाला। -वाद-पु० मैत्रीपूर्ण प्रास्थानिक-वि० [सं०] जो प्रस्थानके समय आवश्यक वाद । -विवाह-पु० प्रेम-संबंधके कारण होनेवाला या उचित हो।
विवाह । -सम्मेलन-पु० (सोशल गैदरिंग) विद्यालय प्रिंसिपल-पु० [अं०] किसी कालेज या बड़े विद्यालयका आदिके वार्षिकोत्सबके समय नये-पुराने छात्रोका एकत्र सर्वोच्च अध्यापक या अधिकारी; वह धन जो सूदपर दिया होकर एक दूसरेसे मिलना, साथ खेलना, जलपान, गया हो, मूल धन।
नाटकादिमें सम्मिलित होना, स्नेह-सम्मेलन ।-स्निग्धप्रिथिमी*-स्त्री० पृथ्वी, धरती।
वि० प्रेमके कारण आर्द्र (आँखें)। प्रियंकर-वि० [सं०] प्रसन्नकारक ।
प्रीत्यर्थ-अ० [सं०] प्रसन्नताके लिए, प्रसन्न करनेके लिए। प्रियंवद-वि० [सं०] प्रिय बोलनेवाला।
प्रफ-पु० [अं०] प्रमाण, सबूत; किसी छपनेवाली वस्तुका प्रिय-वि० [सं०] जिसके प्रति प्रेम हो, प्यारा; अच्छा वह नमूना जो उसकी छपाईके पहले अशुद्धियाँ ठीक करने लगनेवाला; जो छोड़ा न जा सके; मनोहर । पु० पति के लिए तैयार किया जाता है; वस्तुविशेषके प्रभावसे प्रेमी; अच्छी लगनेवाली बात; हित । -कांक्षी- वचनेका साधन, वस्तुविशेषका प्रतिरोधक (जैसे-'वाटर(क्षिन् )-वि० भला चाहनेवाला। -कारक,-कारी- प्रूफ')।-रीडर-पु० प्रूफकी अशुद्धियाँ ठीक करनेवाला । (रिन्)-वि० हित करनेवाला । पु० मित्र । -जन- प्रखण-पु० [सं०] झूलनेकी क्रिया, झूलना; झूला। पु० स्नेहपात्र व्यक्ति; सगा-संबंधी। -दर्शन-वि० जो प्रेखित-वि० [सं०] कंपित; झूला हुआ । देखने में भला लगे, सुदर्शन, सुंदर । पु० तोता। -दर्शी- प्रेक्षक-पु० [सं०] देखनेवाला, दर्शक । (शिन्)-वि० सबको स्नेहकी दृष्टिसे देखनेवाला । पु० प्रेक्षण-पु० [सं०] देखनकी क्रिया, देखना; आँख । सम्राट अशोकका एक नाम । -पात्र-पु० प्रेमका अधि- प्रेक्षणक-पु० [सं०] तमाशा देखनेवाला। कारी। -भाव-पु० प्रेम ।-भाषी(पिन)-वि०प्रिय प्रेक्षणीय-वि० [सं०] देखने योग्य; सुंदर दृष्टिगोचर । बोलनेवाला, मीठी बात कहनेवाला। -वचन-पु० प्रेक्षा-स्त्री० [सं०] देखना; दृश्य किसी बातकी अच्छाई अच्छी लगनेवाली बात, मधुर वचन । वि० मधुसी मीठी । और बुराईका विवेक; किसी प्रकारका अभिनय, तमाशा बात कहनेवाला, मधुरभाषी। -वादी(दिन)-पु० आदि। -कारी (रिन्)-वि० सोच-समझकर काम : प्रिय बोलनेवाला, मधुर-भाषी चापलूस ।
करनेवाला । -गृह,-स्थान-पु० राजाओंका मंत्रणाप्रियतम-वि० [सं०] सबसे अधिक प्यारा । पु० पति, गृह रंगशाला । स्वामी प्रेमी, आशिक ।
प्रेक्षागार-पु० [सं०] दे० 'प्रेक्षागृह' । प्रियतमा-वि० स्त्री० [सं०] सबसे अधिक प्यारी। स्त्री० प्रेक्षावान (वत्)-वि० [सं०] सोच-समझकर काम पत्नी प्रेमिका, माशूका ।
करनेवाला, चतुर । प्रियता-स्त्री०, प्रियस्व-पु०[सं०] प्रिय होनेका भाव; प्रेम । प्रेक्षित-वि० [सं०] देखा हुआ। प्रिया-स्त्री० [सं०] पत्नी, भार्या प्रेमिका; स्त्री, नारी। प्रेक्षिता (तृ)-पु० [सं०] देखनेवाला, दर्शक । प्रियाल-पु०[सं०] चिरोंजीका पेड़ या फल, पियाल । प्रेक्षी(क्षिन्)-वि० [सं०] देखनेवाला गौरसे देखनेवाला। प्रियाला-स्त्री० [सं०] दाख ।
प्रेक्ष्य-वि० [सं०] दे० 'प्रेक्षणीय' । प्रियोक्ति-स्त्री० [सं०] चापलूसीकी बात, चाटु-वाक्य । प्रेत-वि० [सं०] मरा हुआ, मृत । पु० मृतात्मा; वह योनि
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५२९
जिसमें मनुष्य मरनेके उपरांत सपिंड होनेतक रहता है; इस योनि में पड़ी हुई मृतककी आत्मा; एक प्रकारकी देवयोनिः भयंकर आकारवाला आदमी; नरक में रहनेवाला प्राणी; अथक परिश्रम करनेवाला आदमी । - कर्म (न्), - कार्य, - कृत्य - पु० मृतकके निमित्त किया जानेवाला दाद आदि से लेकर सपिंडीकरणतकका कृत्य । -गृह, - गेह - पु० श्मशान । तर्पण -पु० प्रेतके निमित्त किया जानेवाला तर्पण । - दाह-पु० शवको जलानेकी क्रिया । - देह - स्त्री०, - शरीर - पु० वह शरीर जो मृतककी आत्माको मरनेके बादसे लेकर सपिंडीकरणतक प्राप्त रहता है । - नदी - स्त्री० वैतरणी नदी । -नाथ- पु० यमराज । -नाह - पु० [हिं०] दे० 'प्रेतनाथ' । -पक्ष-स्त्री० पितृपक्ष । - पटह - पु० प्राचीन कालका एक प्रकारका बाजा जो शवदाह के समय बजाया जाता था। पति-पु० यमराज | - पावक - पु० रातके समय श्मशान, कत्रि - स्तान, जंगल आदि सूनी जगहों में दिखाई देनेवाला चलता हुआ प्रकाश जिसे लोग प्रेतलीला समझते हैं। -पिंडपु० वह पिंडा जो दाहसे लेकर सपिंडीकरणके दिनतक प्रेतके निमित्त पारा जाता है। -पुर- पु०, पुरी - स्त्री० यमपुरी । - बाधा - स्त्री० प्रेत द्वारा पहुँचायी गयो बाधा या पीड़ा । - भाव - पु० मृत्यु । - भूमि- स्त्री० श्मशान। - मेघ - पु० मृतकके निमित्त किया जानेवाला श्राद्ध - राज - पु० यमराज । - लोक-पु० यमलोक । -वाहित वि० जिसपर भूत सवार हो, भूताविष्ट । - शिलास्त्री० गयातीर्थ स्थित वह शिला जिसपर श्राद्ध करनेसे मृतक प्रेतयोनि से छुटकारा पाता है ( गरुडपुराण ) | -शुद्धि - स्त्री० मरणाशौचके दोषसे रहित होना । -शौचपु० दे० 'प्रेतशुद्धि'; मृतकका एक प्रकारका संस्कार | -श्राद्ध-पु० दाइकी तिथिसे लेकर एक बरसतक मृतकके | निमित्त किये जानेवाले श्राद्धों में से कोई एक । प्रेतता - स्त्री०, प्रेतत्व-पु० [सं०] मरण; प्रेतकी अवस्था या धर्म ।
।
प्रेतावास - पु० [सं०] श्मशान |
प्रेताशीच पु० [सं०] मृत्युके कारण होनेवाला अशौच । प्रेतेश, प्रेतेश्वर - पु० [सं०] यमराज |
'प्रेतोन्माद - पु० [सं०] प्रेतबाधा के कारण होनेवाला उन्माद | प्रेप्सा - स्त्री० [सं०] प्राप्त करनेकी इच्छा, पानेकी इच्छा । प्रेम (न्) - पु० [सं०] प्यार, मुहब्बत, अनुराग; कृपा; क्रीड़ा, केलि । - कलह - पु० प्रेमवश या प्रेममें किया जानेवाला कलह । - गर्विता - स्त्री० वह नायिका जिसे अपने पति प्रेमका गर्व हो । -जल-नीर- पु० प्रेमके कारण आँखोंसे निकलनेवाले आँसू, प्रेमाश्रु । - पात्र - पु० वह जिसके प्रति प्रेम हो । -पाश-पु० प्रेमका फंदा या बंधन । - पुलक - पु० प्रेमके कारण होनेवाला रोमांच । - बंध, - बंधन - पु० प्रेमका बंधन | -भक्ति-स्त्री० प्रेमभावसे की जानेवाली विष्णुभक्ति (वैष्णव ) । - भगति *
|
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प्रेतता - प्रेषिती
- स्त्री० दे० 'प्रेम-भक्ति' । - भाव-पु० प्रेमका भाव । -वारि- पु० प्रेमके कारण आँखोंसे निकलनेवाले आँसू । प्रेमाक्षेप - पु० [सं०] एक प्रकारका आक्षेप अलंकार जिसमें प्रेमका वर्णन करते समय उसमें व्याघात भी दिखलाया जाता है (केशव) ।
प्रेमालाप - पु० [सं०] प्रेमपूर्वक की जानेवाली बातचीत; एक दूसरे से प्रेम करनेवाले दो या अधिक व्यक्तियों की आपसी बातचीत | प्रेमालिंगन - पु० [सं०] प्रेमके साथ या प्रेमके आवेश में गले लगाना; नायक-नायिकाका परस्पर आलिंगन । प्रेमाश्रु - पु० [सं०] प्रेमके कारण आँखोंसे झड़नेवाले आँसू, प्रेमके आँसू ।
प्रेमी ( मिनू ) - पु० [सं०] प्रेम करनेवाला | वि० प्रेमयुक्त ।
|
प्रेय ( स ) - वि० [सं०] अधिकतर प्यारा, प्रियतर । पु० सांसारिक सुख; एक प्रकारका अलंकार * प्रेमी;- 'तइँ प्रतीप उपमा कइत भूषण कविता प्रेय' - भू० । प्रेयसी - स्त्री० [सं०] पत्नी; प्रियतमा । प्रेयान् (यस ) - पु० [सं०] पतिः प्रियतम । प्रेरक-पु० [सं०] प्रेरणा करनेवाला, प्रयोजक; भेजनेवाला । प्रेरण - पु० [सं०] किसीको किसी कार्य में प्रवृत्त करना, प्रेरणा करना; फेंकना; भेजना; आदेश; चेष्टा ।
|
प्रेरणा-स्त्री० [सं०] किसीको किसी कार्य में प्रवृत्त करनेकी किया, किसीको किसी काममें लगाना; उसकानेकी क्रिया; फेंकना भेजना |
प्रेरणार्थक क्रिया - स्त्री० [सं०] क्रियाका वह रूप जिससे यह बोध हो कि उसका व्यापार किसी अन्यकी प्रेरणासे कर्ता द्वारा संपन्न हुआ है। प्रेरणीय - वि० [सं०] प्रेरणा करने योग्य, जिसे किसी कार्य में प्रवृत्त किया जाय; फेंकने योग्य; भेजने योग्य । प्रेरना* - सु० क्रि० प्रेरणा करना; फेंकना, चलाना; भेजना । प्रेरित - वि० [सं०] किसी कार्यमें प्रवृत्त किया हुआ; फेंका हुआ, चलाया हुआ; भेजा हुआ; आदिष्ट । प्रेषक- पु० [सं०] भेजनेवाला ।
प्रेतनी - स्त्री० प्रेतकी स्त्री ।
प्रेताधिप - पु० [सं०] यमराज |
प्रेतान्न- पु० [सं०] प्रेतोंके निमित्त पारा जानेवाला पिंडा; प्रेषण- पु० [सं०] प्रेरणा करना, भेजना; वह वस्तु जो कहींघृतहीन भोजन |
से भेजी जाय । - कर्मी (मिन्) - पु० (डिस्पैचर ) चिट्ठी, पैकेट आदि पंजी में चढ़ाकर बाहर भेजनेका काम करनेवाला कर्मचारी, डाक-प्रेषक । - पुस्तक- स्त्री० (डिस्पैचबुक) वह पुस्तक या वही जिसमें भेजी गयी चिट्ठियों, पारसलों आदि का व्योरा लिखा जाता है ।
प्रेषणादेशपत्र - पु० (आर्डर फार्म ) वह पत्र जिसमें कोई वस्तु या माल किसी स्थानसे भेजनेका आदेश लिखा हो । प्रेषणीय- वि० [सं०] भेजने योग्य । प्रेषना* - सु० क्रि० भेजना ।
प्रेषित - वि० [सं० [ प्रेरणा किया हुआ, नियोजित; भेजा हुआ; निर्वासित | पु० स्वर साधनेकी एक रीति । प्रेषितव्य - वि० [सं०] प्रेरणा करने योग्य, नियोज्य; भेजने योग्य, जिसे भेजा जाय ।
प्रेषिती पु० वह जिसके नाम कोई वस्तु प्रेषित की जाय, पानेवाला (ऐड्रेसी) ।
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प्रेष्य- फंद
प्रेष्य- वि० [सं०] दे० 'प्रेषितव्य' । पु० नौकर चाकर, टहलू ; दूत; सेवा । - वस्तु-आलेखन- पु० (बुकिंग ) (रेलके मालगोदाम आदिसे) भेजे जानेवाले मालका विवरण आदि रजिस्टर में चढ़ाना और उसकी रसीद काटना | प्रेस - पु० [अ०] वह कल जिससे कोई चीज दबायी या पेरी जाय; छापनेकी कल; वह स्थान या कार्यालय जहाँ छपाईका काम होता हो, छापाखाना। - ऐक्ट- पु० प्रेससंबंधी कानून, वह कानून जिसके द्वारा छापेखानेवालोंके अधिकारों आदिका नियंत्रण किया जाता है। -गैलरी - स्त्री० असेंबली आदि में अखवारोंके रिपोर्टरोंके बैठनेकी जगह । - रिपोर्टर- पु० वह व्यक्ति जो पत्रके लिए समाचार एकत्र करता है । मु० (किसी चीजका ) - में होना-छपनेकी स्थिति में होना ।
प्रोक्त-वि० [सं०] कहा हुआ, उक्त, कथित । प्रोक्ति - स्त्री० [सं०] दूसरेकी उक्ति जो कही उद्धृत की जाय (कोटेशन) ।
प्रोग्राम - पु० [अ०] किसी व्यक्ति या आयोजनका कार्यक्रम; वह पत्र या कागज जिसपर कोई कार्यक्रम लिखा हो । प्रोत - वि० [सं०] सिला हुआ, गूंथा हुआ; पिरोया हुआ । प्रोफुल्ल - वि० [सं०] अच्छी तरह खिला हुआ, पूर्ण रूप से विकसित । प्रोत्साहक-पु० [सं०] उत्साह बढ़ानेवाला, पीठ ठोंकने
वाला ।
प्रोत्साहन - पु० [सं०] उत्साह या हिम्मत बढ़ाना | प्रोत्साहित - वि० [सं०] जिसका उत्साह बढ़ाया गया हो, जिसको बढ़ावा दिया गया हो ।
प्रोद्धरण - पु० [सं०] (साइटेशन) किसी लेख, पुस्तक आदिसे कोई अंश पढ़कर सुनाना या उद्धृत करना; इस तरह लिया हुआ अंश ।
प्रोद्भूत होना - अ० क्रि० ( टु एक ) ( पूँजी पर ब्याज आदि) निकलना, किसीके स्वाभाविक परिणाम या परि लाभ आदिके रूप में सामने आना, दिखाई देना । प्रोनोद-पु० [अ०] वह रुक्का जो कर्ज लेनेवाला शर्तोंके साथ रसीद के तौर पर लिखता है, हैंडनोट । प्रोफ़ेसर - पु० [अ०] किसी विश्वविद्यालय या बड़े विद्यालयका अध्यापक; वह जो सिखलाने या द्रव्योपार्जनके लिए कला-संबंधी विशिष्ट कार्य करे । प्रोषित - वि० [सं०] जो परदेश गया हो, प्रवासी । - पतिका, प्रेयसी, भर्तृका - स्त्री० वह स्त्री जिसका पति परदेश गया हो । मोहित* - पु० दे० 'पुरोहित' ।
फ - देवनागरी वर्णमालाका बाईसवाँ व्यंजन वर्णं । फंक * - स्त्री० फाँक, चीरा हुआ टुकड़ा । फॅकनी - स्त्री० दे० 'फंकी' ।
फंका - पु० उतना दाना या चूर्ण जितना एक बार फाँका या खाया जाय; * फाँक, टुकड़ा। मु० - करना - नष्ट | करना । - मारना - फॉकना ।
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५३०
प्रौढ - वि० [सं०] जिसकी पूरी वृद्धि हो चुकी हो, जो पूरा बढ़ चुका हो, प्रवृद्ध; जिसकी उम्र अधिक हो चली हो, तीस और पचास के बीच की अवस्थावाला, पुष्ट, परिपक्व; जिसमें पूर्णता आ गयी हो (जैसे प्रौढ़ विद्वान् ); निपुण, दक्ष; जिसे किसी बातका पूरा अनुभव हो, अनुभवी, परितबुद्धि; गाढ़ा, घना; प्रगल्भ; उग्र ।
प्रौढता - स्त्री०, प्रौढत्व - पु० [सं०] प्रौढ़ होने का भाव । प्रौढा - वि० स्त्री० [सं०] 'प्रौढ' का स्त्रीलिंग । स्त्री० वह स्त्री जिसकी उम्र अधिक हो चली हो, तीससे लेकर पचास या पचपनके बीच की अवस्थावाली स्त्री; सब प्रकारकी रतिमें निपुण तथा कम लज्जा और प्रचुर कामवासनावाली अधिक अवस्थाको नायिका (सा० ) । - अधीरास्त्री० वह प्रौढा नायिका जो अपने नायकमें परस्त्री-संभोगके चिह्न देखकर अधीर हो उठे। - धीरा- स्त्री० नायिकाका एक भेद । - धीराधीरा - स्त्री० नायिकाका एक भेद | प्रौढोक्ति - स्त्री० [सं०] प्रबल उक्ति; एक काव्यालंकार | प्रौद्योगिक शिक्षा-स्त्री० [सं०] ( टेक्नीकल एजुकेशन ) किसी विशेष कला या व्यवसाय संबंधी शिक्षा । लवंग - पु० [सं०] वानर; हिरन; पाकड़का पेड़ । लवंगम - पु० [सं०] मेढकः वानर | गेंद्र - पु० [सं०] हनूमान् ।
लवन - पु० [सं०] तैरनेकी क्रिया, तैरना; उछलना, कूदना; उड़ना; महाप्लावन; दाल, उतार ।
प्लावन - पु० [सं०] जल आदिका उमड़कर बहना; गोता लगाना; प्रलयकालीन भारी बाढ़; बाढ़, सैलाब । लावनिक - वि० [सं०] ( डाइलूवियल) महाप्लावन या प्रलय से संबंध रखनेवाला ।
प्लावित - वि० [सं०] जिसपर पानी चढ़ आया हो, जो जलमें डूब गया हो; जल आदि से व्याप्त । पु० बाढ़ | प्लीहा - स्त्री० [सं०] तिल्ली, बरवट | प्लीहोदर - वि० [सं०] तिल्ली रोग ।
प्लुत - वि० [सं०] जल आदिसे व्याप्त, तराबोर | पु० तीन मात्राओंवाला स्वर या वर्ण ।
प्लेग - पु० [अ०] कोई भयानक संक्रामक रोग; एक भयानक संक्रामक रोग जिसमें गिलटी निकलती है और बहुत तेज बुखार आता है, ताऊन ।
लैटफार्म - पु० [अ०] कोई चौकोर और चौरस चबूतरा, विशेषतः वह जिसपरसे भाषण या उपदेश किया जाय, मंत्र; रेलवे स्टेशनोंपरका वह लंबा-ऊँचा चबूतरा जिसके सामने ट्रेन लगती है और जिसपर से होकर लोग उसपर सवार होते या उससे उतरते हैं ।
फंकी - स्त्री० फाँकी जानेवाली दवा; रेचन चूर्ण; + छोटी फाँक ।
फंग* - पु० फँदा, बंधन - 'मति कोई प्रीतिके फंग परै' -सू०; अधीनता; प्रेम, अनुराग ।
फंद* - पु० फंदा, फाँस, बंधन; मायाजाल; छल, कपट; दुःख । - वार- वि० फंदा लगानेवाला, फँसानेवाला ।
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५३१
फँदना, फंदना * - अ० क्रि० फंदे में पड़ना, फँसना; मुग्ध होना । सु० क्रि० लाँचना, फांदना | फंदा - पु० सरकोली गाँठवाला रस्सी, तार आदिका विशेष प्रकारका घेरा जिसमें फँसनेसे प्राणी बँध जाता है, रस्सी तागे आदिका घेरा जिसमें किसीको फँसाया जाय, फाँस; पशु-पक्षियोंको फँसानेका जाल; फँसानेवाली वस्तु, बंधन, जाल; छल, प्रपंच, धोखा, दुःख, कष्ट । मु० - छुड़ाना - कैद से रिहा करना । - देना-गिरह देना; फंदा लगाना । (किसी पर) - पड़ना - रचा हुआ प्रपंच सफल होना । -मारना - जाल में फँसाना । (फंदे ) मैं आना या पड़नाजाल में फँसना । - मेँ पड़ना - वशमें होना । - मेँ लानाजाल में लाना, फरेब में लाना ।
ऊपर उठना ।
फँसना - अ० क्रि० फंदे में पड़ना, पकड़ में आना; उलझना; अवैध संबंध होना । फँसाना-स०क्रि० फंदे में लाना; उलझाना; काबू करना । फँसाव, फँसावा - पु० फँसनेका भाव; वह चीज या बात जिसमें आदमी फँस जाय, अटकाव | फँसिहारा * - पु० फँसानेवाला, ठग । फँसौरि* - बां० जाल, फंदा
फजिहतिताई* - स्त्री० फजीहत करानेवाली बात । फ़ज़ीता-पु० दे० 'फजीहत' | फ़ज़ीती - स्त्री० दे० 'फ़ज़ीहत' । फ़ज़ीलत - स्त्री० [अ०] गौरव, महत्ता । - का वक्त वह वक्त जिसमें प्रार्थना करनेका महत्त्व हो । -की पगड़ीविद्वत्ताका प्रमाणरूप चिह्न, सबसे बड़ी सनद । फ़ज़ीहत- स्त्री० [अ०] अपमान, बेइज्जती; दुर्दशा; बदनामी । फ़ज़ीहती - स्त्री० दे० 'फ्रज़ीहत' ।
फँदाना - स०क्रि० किसी से फाँदनेका काम कराना, किसीको
फाँइने में प्रवृत्त करना; * फंदे में लाना, फँसाना । फँदावना - स० क्रि० दे० 'फँदाना' । फँफाना - अ० कि० हलकाना; खौलते हुए दूध आदिका फ़ज़्ल - पु० [अ०] अनुग्रह, दया; विद्या; महत्ता ।
फजूल - वि० दे० 'फुजूल' । - खर्च - वि० दे० फुजूलखर्च' । - खर्ची - स्त्री० दे० 'फुजूल खर्ची' ।
फ - पु० [सं०] कटु वचन; फुत्कार; निष्फल वचन; झंझावात | फक - वि० स्वच्छ, शुभ्र, फीका, बदरंग । मु० (रंग)पड़ जाना था हो जाना - डरके मारे स्तब्ध हो जाना, बहुत अधिक घबरा जाना; विवर्ण हो जाना । फ़क़त - वि० [अ०] अकेला, केवल । अ० एकमात्र, सिर्फ । फका * - पु० फाँक, टुकड़ा ।
फ़कीर - पु० [अ०] भीख माँगनेवाला, भिखारी; वह जो शरीररक्षा भरके लिए मांग खाकर ईश्वरका भजन करता हो, साधुः मुसलमान साधु; अकिंचन मनुष्य । फकीरनी - स्त्री० भीख माँगनेवाली औरत । फ़कीराना - वि० [अ०] फकीरोंकासा, फकीरों जैसा । पु० वह भूमि जो फकीरोंके निर्वाहके लिए दान की गयी हो । फ़कीरी - स्त्री० फकीरका भाव, भिखारीपन; साधुता, अकिंचनता । वि० फकीर संबंधी, फकीरका । -लटकापु० साधु- फकीर की बतायी हुई दवा, जड़ी-बूटी । फक्कड़ - पु० गाली-गुफ्ता, दुर्वचन; वह व्यक्ति जो अकिंचन होते हुए भी मस्त बना रहे; उच्छृंखल व्यक्ति । -बाज़वि० गाली-गुफ्ता बकनेवाला । बाज़ी - स्त्री० गालीगुफ्ता बकनेकी क्रिया ।
फख़र- पु० दे० 'फल' |
फ़त्र - पु० [फा०] गर्व, घमंड; नाज ।
फ़स्त्रिया - अ० [फा०] गर्वसे घमंड के साथ |
फग* - पु० जाल, फंदा |
फगुआ - पु० दे० 'फाग' ; * फागके उपलक्ष्य में दिया जानेवाला उपहार ।
फगुनाहट - स्त्री० फागुन के महीने में चलनेवाली धूल, पत्तों
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फँदना-फटकारना
आदिसे युक्त जोरकी हवा; फागुन में होनेवाली बारिश । फगुहरा, फगुहारा - पु०फाग खेलनेवाला; फाग गानेवाला । फ़जर-स्त्री० [अ०] प्रभात, तड़का | फ़ज़ल-पु० [अ०] दे० 'फल' | जिर-स्त्री० दे० 'फ़जर' |
फट - स्त्री० किसी चौड़ी, कड़ी, हलकी तथा पतली चीजपर आघात करने अथवा उसके किसी दूसरी कड़ी वस्तुपर गिरने या जोरसे हिलनेसे उत्पन्न होनेवाला शब्द; लकड़ी, बाँस आदिके फटने से उत्पन्न होनेवाला शब्द |-फट-स्त्री० 'फट' ध्वनिकी आवृत्ति ।-से-अति शीघ्र, तत्काल । फटक* - पु० स्फटिक, बिल्लौर । अ० तत्काल, तुरंत । फटकन - स्त्री० अन्न आदिको फटकनेसे निकलनेवाला सारहीन पदार्थ ।
फटकना - पु० गुलेलका फीता जिसपर रखकर गुलता फेंका जाता है । स० क्रि० सूप आदिके द्वारा अन्न आदिको साफ करना, झाड़ना;* इस प्रकार हिलाना कि 'फट-फट' शब्द उत्पन्न हो; फेंकना, चलाना। अ० क्रि० आना; चल जाना; पहुँचना; पृथक् होना; तड़फड़ाना; श्रम करना । मु०-पछोरना - अन्न आदिको सूप या छाज द्वारा साफ करना; अच्छी तरह देखना -भालना, परखना (ला० ) । फटकने देना - आने देना ।
फटकरना * - स० क्रि० फटकना, साफ करना; फेंकना । फटकरी - स्त्री० दे० 'फिटकरी' । फटकवाना - स० क्रि० किसीको फटकनेमें प्रवृत्त करना, किसीसे फटकनेका काम कराना ।
फटका - पु० धुनियोंकी धुनकी; काव्यके गुणसे रहित कविता, निरी तुकबंदी; तड़फड़ाहट; फाटक; चिड़ियोंको उड़ानेके लिए फले हुए पेड़ में रस्सीके सहारे बाँधी जानेवाली लकड़ी जिसे हिलाकर 'फट-फट' शब्द उत्पन्न करते हैं । फटकाना * - स० क्रि० फेंकना; फटकदाना; फटफटाना । फटकार-स्त्री० फटकारनेकी क्रिया या भाव; किसीको लज्जित करने या उसका तिरस्कार करनेके लिए क्रोधके आवेश में कही जानेवाली कड़ी बात, लानत-मलामत | फटकारना - स० क्रि० किसीको लज्जित करने या उसका तिरस्कार करनेके लिए क्रोधपूर्वक कड़ी बातें कहना, लानतमलामत करना; झटका देकर छितराना या खुला रखना ( चुटिया फटकारना ); उपार्जन करना, पैदा करना (रुपया फटकारना); कपड़ेको साफ करते समय पत्थर आदिपर पटकना, पछारना, * फेंकना;* चलाना, प्रहार
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फटना-फदफदाना
५३२ करना।
करना पंख आदिको इस प्रकार हिलाना कि उससे 'फड़फटना-अ० क्रि० किसी प्रकारके दबाव या आघातसे किसी फड़' शब्द उत्पन्न हो, फटफटाना । अ० क्रि० 'फड़-फड़' वस्तुका दो या अधिक खंडों में विभक्त हो जाना या उसमें शब्द होना; छटपटाना; उत्सुक होना । दरार पड़ जाना, विदीर्ण होना; किसी पैनी या नुकीली | फड़वाना-स० क्रि० किसीको फाड़ने में प्रवृत्त करना, किसीचीजके संयोगसे किसी वस्तुमें दरार पड़ जाना या उसका से फाइनेका काम कराना। कोई भाग अलग हो जाना; आवरणके रूपमें फैले हुए फड़िया-पु० फुटकर माल बेचनेवाला बनिया; जुपके अनु. पदार्थका छिन्न-भिन्न हो जाना (जैसे-बादल फटना, अंध- | का मालिक, सभिक । कार फटना); पृथक हो जाना दूध आदिका इस प्रकार फड़ी-स्त्री० ईंट, पत्थर आदिका एक गज चौड़ा, एक गज विकृत होना कि उसका जलभाग सारभागसे अलग हो | ऊँचा और तीस गज लंबा ढेर । जाय; किसी वस्तुकी अधिकता होना (पड़नाके साथ); फ.डई, फ.डही -स्त्री० फरबी, लाई, छोटा फावड़ा। घोड़ेका सवारके आदेशके विरुद्ध चलना ।
फण-पु० [सं०] साँपका फन; नासापुट, नथना। -करफटफटाना-सक्रि० किसी वस्तुसे 'फट-फट' शब्द उत्पन्न पु० साँप । -धर-पु० साँप; शिव ।-धरधर-पु०शिव । करना; बकवास करना; दौड़-धूप करना । अ० क्रि० 'फट- -भृत्-पु० साँप; नौकी संख्या । -मंडल-पु० फट' शब्द होना।
साँपका फन जो फेंटी मारनेसे गोलाकार हो गया हो, फटहा-वि० फटा हुआ; अंड-बंड बकनेवाला।
कुंडलीकृत फण। -मणि-पु० सर्पके फनपर स्थित फटा-स्त्री० [सं०] साँपका फन । वि० [हिं०] जो फट मणि । गया हो, जिसमें फटाव या दरार हो गया-गुजरा। पु० फणवान (वत्)-पु० [सं०] सर्प । छेद । (फटी)आवाज़ -स्त्री०भर्रायी हुई आवाज ।(फटे)- फणा-स्त्री० [सं०] दे० 'फण' । -कर-पु० सर्प ।-धरहाल-वि० जिसके पास कुछ न हो।-हालौँ-अ० अर्कि
जिसक पास कुछ नहा। हाला-अ० आक- पु० साँप; शिव। चनताकी स्थिति में, मुफलिसीकी हालत में । मु०-(किसी- फणावान(वत्)-पु० [सं०] सर्प ।
से पाँव अडाना या देना-जान-बूझकर फणींद-५० [सं०] शेषनाग; वासुकि पतंजलि मुनि । किसीके झगड़े में पड़ना,किसीकी बला अपने सिर लेना। फणी(णिन)-पु० [सं०] सर्प; राहुः पतंजलि; राँगा या फटाका-पु० 'फट'की बुलंद आवाज | पटाखा । ___टीन । -पति-पु० बड़ा सर्प, शेष या वासुकि पतंजलि । फटाटोप-पु० [सं०] साँपका फन फैलाना, फनका फैलाव। | फणीश-पु० [सं०] दे० 'फणींद्र'। फटाटोपी(पिन)-पु० [सं०] साँप ।
फतवा-पु० [अ०] किसी कर्मके उचित या अनुचित होनेके फटाव-पु० फटनेकी क्रिया; फटनेसे पड़ी दरार; फटने संबंधमें मुफ्ती या मुला (धर्माचार्य) द्वारा शास्त्रके अनुसार जैसी पीड़ा।
दी गयी व्यवस्था। फटिक-पु० दे० 'स्फटिक' ।
फतह-स्त्री० [अ०] विजय, जीत; सफलता, कामयाबी । फट्ठा-पु० चीरे हुए बाँसका लंबा टुकड़ा।
-नसीब,-मंद,-याब-वि० जिसे विजय प्राप्त हुई हो, फट्टी-स्त्री० पतला फट्टा।
विजयी; सफल, कामयाब । -नामा-पु० जीतकी खुशीफड़-स्त्री० जुएका दाँव जुआड़ियोंके जुआ खेलनेका स्थान, | में की जानेवाली रचना। जुएका अड्डा; दुकानमें वह स्थान जहाँ बैठकर दुकानदार फतिंगा-पु० कोई परदार कीड़ा, विशेषकर वह जो दीपक माल बेचता है; पंख आदिके हिलनेसे उत्पन्न होनेवाला । या प्रकाशपर झुकता है, पतंग, परवाना। शब्द; * दल, पंक्ति । पु० गाड़ीका हरसा; वह गाड़ी तीला-पु० [अ०] दीपकी बत्ती; रुईकी मोटी बत्ती; जिसपर तोप चढ़ी रहती है, चरख । -फड़-स्त्री० दो वंदूक या तोपमें दी जानेवाली बत्ती, पलीता । या अधिक बार उत्पन्न 'फड़' शब्द, 'फड़' शब्दकी अनेक फतुही-स्त्री० दे० 'फ़तूही' । बार आवृत्ति । -बाज़-पु० जुआ खेलनेवाला, जुआड़ी। फतूर-पु० दे० 'फतूर'। -बाज़ी-स्त्री० फड़बाजका काम, जुआ खेलना। मु०- | फतूरिया-वि०, पु० दे० 'फ़तूरिया' । रखना,-लगाना-दाँव लगाना।
फतूह*-स्त्री० [अ० 'फुतूह'-फतहका बहु०] विजय, फड़क-स्त्री० फड़कनेकी क्रिया या भाव, स्पंदन, स्फुरण । जीत; लूटका माल । फड़कन-स्त्री० दे० 'फड़क'।
फतूही-स्त्री० [अ०] कमरतककी एक प्रकारकी बिना फड़कना-अ० कि० रुक-रुककर या अचानक चलायमान | आस्तीनकी कुरती जिसमें सामनेकी और बटन या धुंडी होना, थोड़ा-थोड़ा कंपित होना; शरीरके किसी अंग या | लगायी जाती है। भागका रुक-रुककर गतियुक्त होना या सिकुड़ना और | फते*-स्त्री० फतह, विजय । फैलना, स्फुरित होना हिलना-डुलना या गतियुक्त होना । | फतेह*-स्त्री.विजय, जीत । मु० फड़क उठना-प्रसन्न होना।
फदकना-अ० क्रि० 'फद-फद' शब्द करना; भात, रस फड़काना-स० क्रि० किसीको फड़कनेमें प्रवृत्त करना आदिका पकते समय 'फद-फद' शब्द करना; * दे० उत्सुकता उत्पन्न करना (ला०) ।
'फुदकना। फड़नवीस-पु० मराठोंके शासन-प्रबंधमें एक उच्च पद । फदफदाना-अ० क्रि० शरीर में अधिक फुसियाँ या गरमीफड़फड़ाना-सक्रि० किसी वस्तुसे 'फड़-फड़' शब्द उत्पन्न । के दाने निकल आना; वृक्ष या पीधेमें बहुतसी शाखाएँ
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५३३
फन-फरमान या टहनियाँ निकल आना + उबलते समय 'फद-फद' फबना-अ०क्रि० शोभा देना, सजना, भला मालूम होना। शब्द करना।
फबाना-स० क्रि० ऐसे स्थानपर लगाना जहाँ सजे या .. फन-पु० साँपका सिर उस स्थितिमें जब वह फैलकर छत्रके | सुंदर जान पड़े। आकारका हो गया हो; दे० 'फन'।
फबि*--स्त्री० शोभा, सुंदरता, छबि। फ्रन, फन्न-पु० [अ०] गुण, हुनर; खूबी, विशेषता फबीला-वि० शोभा देनेवाला, सजनेवाला, सुंदर । विद्या, इत्म; जौहर, कौशल; कारीगरी; धोखा, फरेब, | फ़रंग, फरंज-पु० [फा०] दे० 'फिरंग'। छल, चालाकी, मकारी। [हर-मन-मौला-हर काममें | फर-*पु० दे० 'फल'; दे० 'फड़'; विछावन; युद्ध, रण,होशियार, प्रत्येक कार्यमें निपुण । ]
'फरमें फते बुंदेलन पाई-छत्र० [सं०] फलक, ढाल । फनकना-अ० क्रि० 'फन-फन' शब्द करना; सनसना- फरक-पु० दे० 'फ़र्क । * स्त्री० दे० 'फड़क' । हटके साथ चलना।
फरक-पु० [अ०] दे० 'फर्क' । फनगना -अ० क्रि० कला फूटना, पनपना।
फरकन*-स्त्री० फड़कनेकी क्रिया या भाव, फड़कना । फनगा-पु० फतिंगा; अंकुर, कल्ला ।
फरकना*-अ० क्रि० दे० 'फड़कना'। फनना -अ० कि० कामका आरंभ होना, ठाना जाना। फरका* --पु० बड़ेरपर रखा जानेवाला छप्पर; दरवाजेपर फनफनाना-अ० क्रि० 'फन-फन' शब्द करना; तेजीसे | लगाया जानेवाला टट्टर-'चोरी करत उघारत फरको'हिलना।
सू० । फनस-पु० पनस, कटहल ।
फरकाना*-स० क्रि० दे० 'फड़काना'; अलग करन।। फना-स्त्री० [अ०] विनाश, अस्तित्व नष्ट होना, मिटना; फरचा-वि० जो जूठा न हो, साफ, शुद्ध । मृत्यु, भीत; परमात्मा और जीवात्मा या उपास्य और फरजंद-पु० [फा०] देटा। उपासकका अभेद होना (सूफी मत)। वि० नष्ट; मृत । फरजंदी-स्त्री० [फा०] पुत्रभाव, बाप-बेटेका नाता। फनाना-स० क्रि० आरंभ कराना तैयार कराना। फरज-स्त्री० [अ०] दरार,शिगाफ; फैलाव । पु० दे० 'फर्ज'। फ्रनिंग-पु० सर्प, नाग ।
फरजानगी-स्त्री० [फा०] बुद्धिमानी। फनिंद-पु० दे० 'फणींद्र' ।
फरजाना-वि० [फा०] बुद्धिमान् । फनि* --पु० दे० 'फणी'; दे० 'फण' । -धर-पु० साँप । फरजी-पु० [फा०] शतरंजका वजीर जो सबसे महत्त्वका -पति,-राज-पु० दे० 'फणिपति'।
मोहरा होता है। -बंद-पु० पैदलके जोरपर पड़नेवाली फनिक, फनिग-पु० साँप; फतिंगा ।
वजीरकी शहा वजीरके जोरपर बैठा हुआ मोहरा । मु०फनी*-पु० दे० 'फणी' । स्त्री० दे० 'फण' ।
बनाना-पैदलका वजीरके खाने में पहुँचकर वजीर वन फनूस*-पु० दे० 'फ़ानूम'।
जाना। फनी-स्त्री० पञ्चर; कपड़ा बुननेका एक औजार, राछ । फरजी-पु० दे० 'फरजी वि० 'जी' । फपक-स्त्री० वृद्धि, बाढ़ ।
फरद-स्त्री० दे० 'फर्द'। फफकना-अ० क्रि० रुक-रुककर रोना ।
फरना*-अ० कि० दे० 'फलना'। फफदना -अ० क्रि० गोबर आदिका विकारविशेषके कारण फरफंद-पु० छल-कपट, फरेब, दाव-पेंच; नखरा । बढकर फैलना; दाद आदिका वृद्धिको प्राप्त होना या फरफंदी-वि० फरेबी, चालबाज । फैलना।
फर-फर-स्त्री० [फा०] जल्दी, तेजी। अ० जल्दी-जल्दी, फफसा -पु० फेफड़ा। वि० जो भीतरसे खाली हो, पोला; । धड़ाधड़ । मु०-उड़ाना-जल्दी-जल्दी पढ़ना । स्वादरहित, फीका।
फरफराना-अ० क्रि० दे० 'फड़फड़ाना'। फफूद-स्त्री० भुकड़ी। -विज्ञान-पु. (माइकोलाजी) फरफूंदा-पु० फतिंगा। भुकड़ी लगनेके कारणों, निरोधक उपायों आदिपर सम्यक फरमा-पु० [अ० 'फ्रेम'] ढाँचा; वह ढाँचा जिसपर मोची रूपसे विचार करनेकी विद्या ।
जूता बनाता है; [अं॰ 'फार्म', फा'] कंपोज किया और फर्फ दी*-स्त्री० सूतकी डोरी जिससे स्त्रियाँ साड़ी या धोती- चेसमें कसा हुआ छपनेके लिए तैयार मैटर; पुस्तक आदिकी गाँठ बाँधती है, नीवि, नारा; फल, लकड़ी आदिपर, का एक बार में छपा हुआ अंश, जुज । म०-देना-चेसबरसातमें या सीलके कारण जमनेवाली काईकी तरहकी में कसकर मैटरको छापनेके लिए तैयार कर देना। सफेद वस्तु, भुकड़ी।
फरमाइश-स्त्री० [फा०] आशा, आशारूपमें कुछ माँगना; फफोला-पु० जलने, रगड़ खाने आदिसे शरीरपर होने कोई चीज भेजनेकी आशा (आर्डर)। वाला उभार जिसके भीतर चेप या पानी भरा रहता है, फरमाइशी-वि० [फा०] जिसकी फरमाइश की गयी हो, छाला, झलका, आबला । मु०-(दिलके) (फफोले) फरमाइश करके बनवाया, मँगवाया हुआ बढ़िया । फोड़ना-जली-कटी सुनाना ।
फरमान-पु० [फा०] आज्ञा; राजकीय आशा या आज्ञाफबती-स्त्री. प्रसंगानुकूल उक्ति; ऐसी बात जो किसीपर पत्र; अस्थायी कानूनके रूपमें निकली हुई राजकीय आशा ठीक-ठीक घटे, चुटीली बात । मु०-उड़ाना या कसना आर्डिनेस) । (फरमा)गुज़ार-पु० हाकिम, बादशाह । -चुटीली बात कहना, चुटकी लेना।
वि० आशा करनेवाला । -बरदार-वि० अधीन, आशाफबन-स्त्री० फबनेका भाव; शोभा, सौंदर्य ।
कारी, सेवक । -बरदारी-स्त्री० फरमाबरदार होनेका
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फरमाना-फर्श भाव।
नाँद । फरमाना-स० कि० कहना, आज्ञा करना (आदरार्थक फरियाद-स्त्री० [फा०] जुल्मकी शिकायत, अन्यायप्रयोग)।
अत्याचारसे बचानेकी प्रार्थना, दुहाई नालिश। फरयाद-स्त्री० दे० 'फरियाद'।
फ़रियादी-वि० [फा०] फरियाद, नालिश करनेवाला । फरलांग-पु० [अं॰] दूरीकी एक माप, २२० गज । पु० अभियोक्ता, मुस्तगीस । मु०-होना-नालिश फरिफरवी-स्त्री० भूना हुआ चावल, लाई।
याद करना। फरश-पु० दे० 'फ़र्श'। -बंद-पु० फर्शके रूपमें बना फरियाना -स० क्रि० चावल आदिका कचरा धोकर साफ हुआ (समतल) ऊँचा स्थान ।
करना; निर्णय करना। अ० क्रि० साफ होना; निति फरशी-स्त्री० [फा०] तंग मुँह और चौड़े पेंदेका बरतन
होना। जिसके मुँह पर हुक्का नैचा बैठाया जाता है, गुड़गुड़ी; फ़रिश्ता-पु० [फा०] दे० 'फिरिश्ता'। बंदूकका एक पुरजा जिसमें गज रखते हैं। वि० फर्शका; फरी-स्त्री. चमड़ेकी ढाल जिसपर गतवकी मार रोकी फर्श-संबंधी। -जूता-पु० फर्शपर या घरमें पहननेका । जाती है-'लैके खड्ग फरी गहि हाथा'-सवलसिंह; फड़ । जूता।-पंखा-पु० छतमें लटकानेका पंखा ।-सलाम- | रीक-पु० [अ०] जुदा करनेवाला; जमात, पक्ष मुकपु० वह सलाम जिसमें सिर फर्शके साथ लग जाय, दमेमें वादी, प्रतिवादी या वादी प्रतिवादी पक्षका कोई बहुत झुककर किया जानेवाला सलाम ।
व्यक्ति । -औवल-पु० मुद्दई । -बंदी-स्त्री० गुटबंदी, फरस-पु० दे० 'फर्श'; * दे० 'फरसा'।
तरफदारी। -सानी-पु० मुद्दालेह । फरसा-पु० फावड़ा; परशु ।
फरीकैन-पु० [अ०] वादी-प्रतिवादी दोनों, उभयपक्ष फरसी-स्त्री०, वि० दे० 'फरशी'।
(द्विवचन)। फ्ररहंग-पु० [फा०] कोशा टीका, व्याख्या, कुंजी। फरुई-स्त्री० दे० 'फरवी'। फरहत-स्त्री० [अ०] प्रसन्नता, प्रफुल्लता। -बख्श-वि० फरुहरी-स्त्री० फड़कनेकी क्रिया, स्पंदन । फरहत देनेवाला।
| फरुही-स्त्री० छोटा फावड़ा; खेतीके काम आनेवाला एक फरहद-पु. एक वृक्ष जिसकी गणना पंच देवतरुओंमें है, औजार; दे० 'फरवी'। पारिभद्र ।
फरेंदा-पु० दे० 'फलंदा'। फरहरना*-अ० कि० फड़कना; फहराना।
फरेब-पु० [फा०] छल, धोखा । वि० (समासके अंतमें) फरहरा-पु० पताका। वि० अलग-अलग; शुद्ध प्रसन्न ।
ठगने, लुभानेवाला (दिलफरेब, नज़रफ़रेब)।
ठगन, लुभानवाला दलका फरहराना-अ० कि० दे० 'फरहरना'।
फरेबिया-वि० दे० 'फरेबी' । फरहरी*-स्त्री० फल; जंगली फल ।
फरेबी-वि० [फा०] फरेब करने, धोखा देनेवाला । फरहाद-पु० [फा०] 'शीरी -फरहाद' कहानीका नायक | फरेरा*-पु० झंडा, पताका । जिसने शीरी से मिलनेके लिए कोहे वेसितूनसे शीरी के फरेरी -स्त्री० दे० 'फरहरी'। महलतक नहर खोदकर लानेकी शर्त पूरी की। फरोख्त-स्त्री० [फा०] बिक्री, बेची। फरा-पु० भापसे पकाया हुआ पीठा।
फरोख्ता-वि० [फा०] बेचा हुआ, बिका हुआ। फराक*-वि० दे० 'फ़राख'। पु० लंबी-चौडी खली जगह, रोश-वि० [फा०] (समासमें) बेचनेवाला (मेवाफरोश)। मैदान; दे० 'फाक'।
फर्क-पु० [अ०] अंतर, दूरी; बिलगाव, भेद, भिन्नता । फराकत*-वि० दे० 'फ़राख' । स्त्री० दे० 'फरारात'। फर्ज-पु० [अ०] ईश्वरादिष्ट अवश्य कर्तव्य कर्म, (मुसल०) फरान-वि० [फा०] चौड़ा, विस्तृत, कुशादा । -दस्त,- शास्त्रविहित कर्म, कर्तव्य; जिम्मेदारी; कल्पना । मु०दामन-वि० धनी; उदार। -हौसला-वि० ऊँची | अदा करना-कर्तव्यका पालन करना । -करनाहिम्मतवाला; धैर्यवान् ।
मानना, कल्पना करना। फरात्री-स्त्री० [फा०] फराख होना, फैलाव खुशहाली। फर्जी-वि० [अ०] फर्ज किया हुआ, खयाली, काल्पनिक । फ़राग़त-स्त्री० [अ०] छुटकारा, बेफिक्री; मलत्याग । फर्द-वि० [अ०] एक, अकेला; बेजोड़ । स्त्री० सूची, फिह
-खाना-पु० शौचालय, पाखाना । मु०-जाना-शौच रिस्त; निमंत्रितोंकी सूची, बंद; चिट्ठा, चादर, शाल, जाना । -पाना-छुटकारा पाना, फुरसत पाना। रजाईका ऊपरका पल्ला । पु० व्यक्ति, अकेला आदमी फरामोश-वि० [फा०] भूला हुआ, विस्मृत ।
गंजीफेका वरक ।-जुर्म-स्त्री० वह कागज जिसपर अभिफरामोशी-स्त्री० [फा०] विस्मृति, भूल-चूक ।
युक्तका अपराध और दफा लिखी जाती है, अभियोगसूची। फरार*-पु० फलाहार; फैलाव ।
फर्दन्-फर्दन्-अ० अलग-अलग, हर आदमीसे। फरार-वि० भागा हुआ। पु० [अ०] भागना, गायब होना। फर्दी-वि० जिसमें एक हो । स्त्री० फर्द, सूची। फरारी-वि० [अ०] भागा हुआ। पु० अपराधी जो भाग फर्राटा-पु० तेजी । मु०-भरना-मारना-तेजीसे दौड़ना। गया हो या भागता फिरे ।
फर्राश-पु० [अ०] फर्श बिछानेवाला; खेमा लगानेवाला, फरासीसी-पु० फ्रांसका रहनेवाला । वि० फ्रांसका । स्त्री० झाड़ देनेवाला। फ्रांसकी भाषा, फ्रेंच ।
फर्राशी-स्त्री० फर्राशका काम -पंखा-पु०छतका पंखा। फरिया-स्त्री० एक तरहका लहँगा ओढ़नी। पु० मिट्टीकी फर्श-पु० [अ०] वह चीज जो जमीनपर बिछायी जाय
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५३५
(दरी, कालीन, जाजिम इ० ); बिछावन; धरातल; कंकर आदि कूटकर पक्की की हुई जमीन, गच । फर्शी - वि० फर्शका | स्त्री० दे० 'फरशी' । - जूता - पु० फर्श पर या घर में पहननेका जूता; स्लीपर, चप्पल | - सलाम - पु० वह सलाम जिसमें सिर फर्शके साथ लग जाय, बहुत झुककर किया जानेवाला सलाम । - हुक्का - पु० चौड़े पेंदेका हुक्का ।
|
फलंक * - पु० फलाँग; आकाश । फल-पु० [सं०] पेड़ पौधोंका गूदेदार बीजकोश; शस्य; संतान; कर्मपरिणाम, नतीजा; बदला; कर्मसे प्राप्त होनेवाला सुख-दुःख-रूप भोग; व्याज, नफा; गणितक्रिया से प्राप्त अंक; उद्देश्य, प्रयोजन; तीर बरछी आदिका अग्रभाग; तलवार आदिकी धार; ढाल; फाल; आर्तव; जायफल, गिरी । -कंटक - पु० कटहल । -काम - वि० फलकी कामना करनेवाला । -ग्रह, -ग्राही (हिन्) - वि० फल ग्रहण करने, लाभ उठानेवाला । - दाता (तृ), - प्रदवि० फल देनेवाला; लाभदायक -दान- पु० ब्याह पक्का करने के लिए फल, रुपये आदि देनेकी रस्म ।-दार - वि० [हिं०] फलनेवाला; फलयुक्त । - परिणति - स्त्री०, - परिणाम, - पाक - पु० फलका अच्छी तरह पक जाना । - परिरक्षण - पु० (प्रिजर्वेशन ऑफ फ्रूट्स ) रासायनिक साधनों या अन्य उपायों द्वारा फलोंको क्षतिग्रस्त होने, सड़ने आदिसे बचाना। -पुच्छ-५० गाजर - शलजम आदिके वर्गकी वनस्पति । - प्राप्ति-स्त्री० अभीष्ट - सिद्धि, सफलता । - फलहरी, - फलारी - स्त्री० [हिं०] कई तरह के फल, मेवे - फूल - पु० [हिं०] फल और फूल । - भाकू ( ज ), - भागी (गिन् ) - वि० फल भोगने या पानेवाला । - भुक्कू ( ज ) - वि० फलभोजी । पु० बंदर । - भूमि - स्त्री० कर्मफल भोगनेका स्थान ( स्वर्ग या नरक ) । - भोग- पु० कर्मफल ( सुख-दुःख ) का भोग; लाभादिका अधिकार । भृत्-वि० जिसमें फल लग रहे हों, फलोंसे भरा हुआ । -योग- पु० फलप्राप्ति, वेतन पुरस्कार; नाटक में नायककी उद्देश्य सिद्धिका स्थान । -राज-पु० तरबूज | -लक्षणा- स्त्री० प्रयोजनवती लक्षणा (सा०) । - वंध्य - वि० (वृक्ष) जिसमें फल न लगे । वति स्त्री० घाव में भरनेकी मोटी बत्ती । -वृक्ष - पु० फलनेवाला वृक्ष - वृक्षक-पु० कटहल | - शाक - पु० तरकारीके काम आनेवाला फल, शाकके ६ भेदों में से एक । - श्रेष्ठ - पु० आम । - सिद्धि - स्त्री० फलप्राप्ति । - हारी। - वि० जिसमें अन्न न पड़ा हो । हीन - वि० फलरहित, निष्फल । मु० - आना - ( पेड़ में ) फल लगना, फलना । - खाना - श्रम, सत्कर्मका फल भोगना । - पाना- नतीजा मिलना, कियेकी सजा मिलना । - लाना - फल लगना, फलना; (कर्मका) फलजनक होना । फलक-पु० [सं०] लकड़ीका तख्ता, पट्टी, ताँबे, हाथीदाँत, दफ्ती आदिका पट्ट जो लेख या चित्रके आधारका काम दे; चौकी; नितंब; हथेली; फल; परिणाम; लाभ; आर्तव; कमलका बीजकोष; ललाटकी अस्थि; धोबीका पाट; ढाल; फल, तीरकी गाँसी ।
फलक - पु० [अ०] आकाश; * स्वर्ग
३४-क
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फर्शी - फलित
फलकना * - अ० क्रि० छलकना; फरकना । फलका - पु० फफोला, झलका । फलतः ( तस् ) - अ० [सं०] फलस्वरूप, इसलिए । फलना -- अ० क्रि० ( पेड़ में फल आना, फलयुक्त होना; फल देना, फलजनक होना; संतानवती होना; बहुतसे दानों या फुंसियोंका निकल आना । मु०-फूलना - फल युक्त होना; बालवच्चोंवाला होना, सुख-सौभाग्ययुक्त होना । फलकंद * - पु० दे० 'फरकंद' |
फलवान् (वत्) - वि० [सं०] फलयुक्त; फल देने या उत्पन्न करनेवाला; जिसमें नाटकका फल हो । पु० फलदार वृक्ष । फलश, फलस - पु० [सं०] कटहल |
फलसफा - पु० [अ०] तर्कविद्या, दर्शनशास्त्र; शान, विद्या । फलाँ - वि० [अ०] कोई आदिष्ट (व्यक्ति या वस्तु), अमुक पु० लिंग | - फलाँ - वि० अमुक-अमुक ।
फलाँग - स्त्री० छलाँग; छलाँग में ते की जानेवाली दूरी । फलाँगमा * - अ० क्रि० कूदना, छलाँग मारना । फलाकना - स० क्रि० छलाँग मारकर पार करना । फलाकांक्षा- स्त्री० [सं०] फलकी कामना । फलागम - पु० [सं०] फल आना; फल आनेका काल; कथावस्तुकी वह अवस्था जिसमें फलकी प्राप्ति होती है ( ना० ); शरद् ऋतु । फलाढ्य - वि० [सं०] फलोंसे भरा हुआ । फलाट्या - स्त्री० [सं०] जंगली केला । फलादन- वि० [सं० [ फल-भक्षक । पु० तोता । फलादेश - पु० [सं०] फल कहना, विशेषतः ग्रहादिका । फलाना - वि० दे० 'फलाँ' । स० क्रि० फलनेका कारण या प्रेरक होना ।
फलानुमेय - वि० [सं०] जो फलसे जाना जा सके । फलान्वेषी ( धिन् ) - वि० [सं०] फलका आकांक्षी । फलापेक्षा - स्त्री० [सं०] फलको अपेक्षा, फलाशा । फलाफल - पु० [सं०] कर्म-विशेषका शुभ-अशुभ फल । फलाम्ल - पु० [सं०] खट्टे फलवाला पेड़; अम्लवेत; इमली | - पंचक- पु० बेर, अनार, इमली, अम्लवेत और बिजौराका समाहार ।
फलार - पु० फलाहार । फलाराम - पु० [सं०] फलोंका बाग |
फलार्थी ( र्थिन् ) - वि० [सं०] फलकी कामना करनेवाला | फलालैन- पु० [अं० 'फ्लैनेल '] एक तरहका मुलायम ऊनी कपड़ा ।
फलाशी ( शिन् ) - वि०, पु० [सं०] फल खाकर रहनेवाला, फलाहारी ।
फलासव - पु० [सं०] दाख, खजूर आदिसे बनाया हुआ
आसव ।
फलाहार - पु० [सं०] फल-मूलका आहार । फलाहारी (रिन् ) - वि० [सं०] फलाहार करनेवाला । फलाहारी - वि० दूध आदिसे निर्मित, अन्न-रहित ( मिठाई आदि ) । फलित-वि० [सं०] फला हुआ, सफल; फलीभूत । - ज्योतिष - पु० ज्योतिषका वह अंग जो ग्रह-नक्षत्रोंकी गति से शुभाशुभ अष्ट बताता है ।
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फली-फागुनी
५३६ फली-स्त्री० लंबोतरे पतले फल जिनमें एक साथ कई दाने रूपमें विभाजित अंश जो छिलकेके अंदर होता है। या बीज होते हैं, मटर, सेम, केवाँच आदि ।
फाँकना-सक्रि० चूर या दानेकी शकलवाली चीजको फलीकृत-वि० [सं०] माँड़ा या कूटा हुआ; फटककर साफ हाथको होंठसे सटाये बिना मुँह में डाल लेना, फंका मारना। किया हुआ।
| फाँका-पु० फाँकनेकी क्रिया, फंका; उतनी चीज जितनी फलीता-पु० [अ० 'फतीला'] बत्ती; ताबीजकी बत्ती ___एक बार में फाँकी जाय; * फाँक । जिसकी धूनी प्रेतबाधावाले रोगीको देते है; वह बत्ती फाँकी-स्त्री० दे० 'फॉक'; फाँकनेकी चीज । जिससे बंदूक या तोपकी बारूदको आग देते हैं । मु०- फाँग, फागी*-स्त्री० एक तरहका साग । दिखाना-आग लगाना; बंदूक या तोपको दागना। फाँड़-स्त्री० दे० 'फाँड़ा'; * कमर- 'फाड़े सोहै गुजराती -सुंघाना-ताबीज या यंत्रकी धूनी देना।
फेटा'-ग्राम। फलीभूत-वि० [सं०] फलरूपमें परिणत, फलित, सफल । फाँडा-पु० धोतीका कमरमें बाँधा हुआ भाग, फेंटा । फलंदा-पु० जामुनका एक भेद जिसके फल अधिक गूदे मु०-पकड़ना-फेंटा पकड़कर भागनेसे रोकना; किसी दार और मीठे होते हैं ।
स्त्रीका किसी पुरुषको भरण-पोषणके लिए जिम्मेदार ठहफलेंद्र-पु० [सं०] बड़ा जामुन, फले दा।
राना । -बाँधना-कमर कसना, तैयार होना । फलोत्पत्ति-स्त्री० [सं०] फलकी उत्पत्ति लाभ । फाँद-स्त्री० उछाल, छलाँग फंदा, जाल । फलोदय-पु० [सं०] फलोत्पत्ति; लाभ; हर्ष; दंड; स्वर्ग। फाँदना-अ० कि० उछलना, छलाँग भरना । स० कि. फलोद्भव-वि० [सं०] जो फलसे उत्पन्न हुआ हो। कूदकर लाँघना; * फंदे में फाँसना। फलोपजीवी(विन)-वि०, पु० [सं०] फलका व्यवसाय | फाँदा-पु० फंदा। करनेवाला।
| फाँस-स्त्री० पाश, फंदा; बाँस आदिका कड़ा रेशा जो फल्ग-वि० [सं०] साररहित निरर्थक क्षुद्र शक्तिहीन । काँटेकी तरह चभ जाय, किरिचः मनमें चभने-खटस्त्री० वह नदी जिसके किनारे गया आबाद है।
कनेवाली बात (चुभना, निकलना, निकालना); बास फसकड़ा-पु० चूतड़ टेककर और टाँगें फैलाकर बैठनेका आदिकी पतली तीली । मु०-निकलना-कोटा निकलना; दंग । मु०-मारना-उक्त प्रकारसे बैठना।
चित्तमें तुभनेवाली वस्तुका दूर होना। फसडी*-वि० दे० 'फिसद्धी'।
फाँसना-स० कि० फंदेम कसना (रस्सी में डोल); फंदेमें फसल-स्त्री० खेतीकी पैदावार, उपज; किसी चीजके उप- फसाना; दाँव-पेंच में बाँधना; बसमें, हाथमें करना । जने, फल नेका काल, मौसम । -की चीज़-ऋतुविशेषमें फाँसी-स्त्री० ररसोका फंदा जिससे गला घुटकर जान पैदा होनेवाले फल, शाक आदि ।
निकल जाय; वह टिकटिकी या फंदा जिसपर प्राणदंड पाये फसली-वि० फसलका, मौसमी । पु० हैजा । -कौआ- हुए अपराधीको लटकाते है। इस रातिमे दिया जानेवाला पु० पहाड़ी कौआ । वि० मतलबका यार। -बुखार- प्राणदंड । मु०-चढ़ना-फांसी चढ़ाया जाना ।-चढ़ाना, पु० मौसमी बुखार, जूड़ी, मलेरिया। -सन,-साल- -देना-फदेसे गला घोंटकर मौतकी सजा देना ।-पड़नापु० अकबर द्वारा हिजरी सन्में कुछ परिवर्तन कर चलाया। फाँसीकी सजा पाना । -लगना-फंदेसे गला कराना। हुआ सन् जिसका उपयोग जमीन, लगान, मालगुजारी फाइल-स्त्री० [अं०] नुकीला तार जिसपर जरूरी कागज आदिका हिसाब रखने में किया जाता है।
नत्थी किये जाते है; सिलसिलेवार रखे हुए कागज,मिसिल; फ्रसाद-पु० [अ०] बिगाड़, खराबी; बखेड़ा झगड़ा, लड़ाई। अखबार आदिके सिलसिलेसे नत्थी किये हुए अंक । मु०फ्रसादी-वि० [अ०] फसाद करनेवाला, उपद्रवी । करना-नत्थी करना; मिसिल में शामिल करना। फसाना-पु० [फा०] कहानी, आख्यायिका ।-नवीस,- नाना-पु० [अ०] भूखा रहना, उपवास, अनाहार । निगार-पु० कहानीकार ।
-कश-वि० फाका करनेवाला, क्षुधापीड़ित । - कशीफस्द-स्त्री० [अ०] रगको काट या छेदकर रक्त निकालना। स्त्री० भूखों मरना, लगातार कई दिनोंतक अन्न न मु०-खोलना,-लेना-रगपर नश्तर देना।
मिलना । (फाक)मस्त-वि० मुफलिसी में भी मस्त रहने, फ्रस्ल-स्त्री० [अ०] खेतीकी पैदावार; किसी चीजके उप- चिंता-परवाह न करनेवाला । -मस्ती-स्त्री० तंगदस्तीकी
जनेका काल; अंतर, बिलगाव; परदा; पुस्तकका परिच्छेद । हालतमें भी मस्त रहना । मु० (फानो)का मारा-जो फस्ली -वि०, पु० [अ०] दे० 'फसली' ।
फाके करते करते दुबला, कमजोर हो गया हो।-मरनाफ़स्साद-पु०[अ०फस्द खोलनेवाला, नश्तर लगानेवाला। भूखों मरना। फहरना-अ० कि० फहराना, हवामें उड़ना।
फाखताई-वि० फाखता(पेंडुकी)के रंगका, सुखीमायल, फहरान-स्त्री० फहरानेका भाव ।
खाकी रंगका । पु० सुखीमायल, खाकी रंग। फहराना-अ० क्रि० हवामें हिलना, झोंके खाना, लहराना ! फाखता-स्त्री० [अ०] पेंडकी, पंडुक; कुमरी । (पताका फहराना)। स० क्रि० किसी चीजको इस तरह फाग-पु० फागुनमें होनेवाला रागरंग, होली; फागुनमें खड़ा करना कि हवामें हिले-लहराये, उड़ाना ।
गाया जानेवाला गीत। फहरानि*-स्त्री० दे० 'फहरान' ।
फागुन-पु. माधके बाद आनेवाला महीना जिसमें होली फाँक-स्त्री० फल आदिका चाकू आदिसे लंबाईमें तराशा होती है, फाल्गुन । हुआ टुकड़ा, खंड; नारंगी, चकोतरे आदिका प्राकृतिक | फागनी-वि० फागुनका ।
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५३७
फ्राज़िल-फिकैती फ्राज़िल-वि० [अ०] बढ़ा हुआ, आवश्यकतासे अधिक जिसमें वैज्ञानिक ढंगसे खेती की जाय । हिसाबसे बढ़ा या खर्चसे बचा हुआ; विद्वान् , गुणी। फाल-स्त्री० कटी हुई सुपारी। पु० डग; एक डगका -बाकी-स्त्री० देने-पावने या आमद-खर्वके हिसाबके फासला; [सं०] हलकी अँकड़ीमें लगाया जानेवाला बाद निकलने या फाजिल रहनेवाली रकम ।
नुकीला लोहा जिससे जमीन खुदती है, कुसी; एक दिव्य फाटक-पु०बड़ा दरवाजा, सिंहद्वार तोरण; मवेशीखाना, या दैवी परीक्षा माँगकी पट्टी, सीगंत भाग; गुलदस्ता; काँ जीहौस; * फटकन-'फाटक देकर हाटक माँगत'-सू०। । एक तरहका फावड़ा; ललाट; सूती वस्त्र, जोती हुई -दार-पु० काँजी हाउसका प्रबंधक ।
जमीन । वि० सूती । -कृष्ट-वि० जुता हुआ। फाटका-पु० सट्टा, सट्टेया जुआ। (फाटके)वाज-पु० फालतू-वि० आवश्यकतासे अधिक, फाजिल; बेकार, सट्टेबाज।
निकम्मा। फाटना*-अ० क्रि० दे० 'फटना'।
फालसई-वि० फालसेके रंगका । पु० फालसेके रंगसे फाड़न-पु० फाइनेसे निकला हुआ टुकड़ा, छेनेका पानी। मिलता हुआ रंग । फाड़ना-स० क्रि० चीरना, विदीर्ण करना; टुकड़े करना; फालसा-पु० [फा०] गरमीके दिनोंमें होनेवाला एक छोटा फैलाना, बाना, (आँख, मुँह); खटाई आदिक योगसे दूधके फल जिसके खड़ा (शर्बती) और मीठा (शकरी) दो भेद जलीय और ठोस भागको अलग-अलग कर देना। फाड़- होते हैं। खाऊ-वि० फाइखानेवाला, बिगडैल । मु० फाड़ खाना फालिज-पु० [अ०] पक्षाघात रोग, आधे अंगका सुन्न हो -भेटिये आदिका किमीको चीरकर खा जाना; दालाना, जाना, लकवा । काटने दौड़ना।
फालूदा-पु० [फा०] एक तरहकी सेवई जो मैदे के बारीक फातिमा-स्त्री० [अ०] मुहम्मदकी बेटी जो अलीको ब्याही टुकड़े दूध, शकरमें डालकर तैयार की जाती है। गयी, हसन-हुमैनकी माता।
फाल्गुन-पु० [सं०] फागुनका महीना; अर्जुन अर्जुन वृक्ष। फातिहा-स्त्री०, पु० [अ०] आरंभ; कुरानकी पहली सूरत फाल्गुनी-स्त्री० [सं०] फाल्गुनकी पूर्णिमा, पूर्वा फाल्गुनी परलोकगत आत्माकी सद्गतिके लिए सूरए फातिहा, वरूद या उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र । आदि पढ़े जानेकी रस्म । -स्वानी-स्त्री० फातिहा पढ़ने- फावड़ा-पु० चौड़े फलकी कुदाल, वेलचा। -(३)से की रस्म । मु०-पढ़ना-निराश होना।
दाँत-चौड़े, बदशकल दाँत । मु०-बजाना-खोदकर फादर-पु० [अं०] पिता; पादरियोंकी उपाधि ।
गिराना, ढाना। फानना-स० क्रि० (रुई) धुनना; + किसी कामको शुरू फावड़ी-स्त्री० छोटा फावड़ा; काठकी कुदाल जिससे घोड़े. करना।
की लीद आदि हटाते हैं। फ़ानी-वि० [अ०] फना होनेवाला, मरने-मिटनेवाला, फाश-वि० [फा०] खुला हुआ, प्रकट, सरीह । मु. नाशवान् ।
(परदा)-करना-गुप्त बात प्रकट कर देना। फानूस-पु० [फा०] एक तरहका शमादान जिसपर बारीक फासफरस-पु० [अं॰] एक ज्वलनशील मौलिक पदार्थ कपड़े या कागजका ग्लोबसा बना होता है, एक तरहका जो साधारण तापमानमें खुला रखनेसे धीरे-धीरे जलता बड़ा कंदील शीशेका गिलास जिसमें मोमबत्ती जलायी और अँधेरे में दीप्तिमान दिखाई देता है। जाती है।
फासला-पु० दे० 'कासिला'। फाउँदा*-पु० फतिंगा।
तासिद-वि० [अ०] फसाद करनेवाला, खराबी, बिगाड़ फाय*-स्त्री० फबन, शोभा।
पैदा करनेवाला, बुरा, खोटा। फाबना*.-अ० कि० दे० 'फवना' ।
फ़ासिला-पु० [अ०] दूरी, अंतर ।। फायदा-पु० [अ०] लाभ, नफाप्राति प्रयोजनकी सिद्धि फाहा-पु० धी-तेल आदिमें तर की हुई रुई या कपड़ा,
नतीजा; गुण । -(दे)मंद-वि० लाभ जनक; गुणकारी । मरहम चुपड़ी हुई पट्टी। फाया-पु० दे० 'फाहा'।
फ्राहिशा-स्त्री० [अ०] दुश्चरित्र स्त्री, पुंश्चली । फार*-पु० दे० 'फाल'।
फिकरना-अ० क्रि० गीदड़का बोलना। फारना*-स० कि० दे० 'फाइना'।
फिकवाना-स० क्रि० फेंकनेका काम दूसरेसे कराना। फ्रारम-पु० दे० 'फार्म'।
फ्रिकर-स्त्री० दे० 'फिक्र'। फारस-पु० [अ०] ईरान, पारस ।
फिरा-पु० [अ०] उद्देश्य-विधेययुक्त पदसमूह, वाक्य, फारसी-स्त्री० फारसकी भाषा। वि० फारसका । पु० फारस- । जुमला; रीदकी हड्डी, फरेबकी बात, चकमा, झाँसा ।
का रहनेवाला, ईरानी। -दा-वि० फारसी पढ़ा हुआ। -बंदी-स्त्री० तुकबंदी। (फ्रिकरे)बाज़-वि० चकमा फ़ारिश-वि० [अ०] जो फरागत हो चुका हो, कार्यसे देनेवाला, धोखेबाज ।-बाज़ी-स्त्री० चकमा देना, धोखेनिवृत्त, निश्चित । मु०-होना-निवृत्त होना शौचजाना। बाजी । मु० (फिकरे)जड़ना-फबती, आवाजा कसना । फार्म-पु० [अं॰] आकृति, नकशा, नमूना साँचा; दर्खास्त -जोड़ना-झूठी बात बनाकर कहना। आदिका छपा हुआ नमूना कंपोज किया और चेसमें कसा | फिकवाना-स० क्रि० दे० 'फिकवाना' ।
के लिए तैयार मैटर; पुस्तक आदिका एक बार-फिकैत-पु० गतका-फरी, पटा-बनेठीका खिलाड़ी, पटेबाज। में छपा हुआ अंश, जुज; बड़े रकबेका खेत, खासकर | फिकैती-स्त्री० गतके-पटे आदिकी कुशलता, पटेबाजी ।
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फ्रिक-फ्री
५३८ फ़िक्र-स्त्री० [अ०] सोच, चिंता; अंदेशा; काव्य-रचनाके फिरकैयाँ-स्त्री० चक्कर । लिए किया जानेवाला चिंतन; परवाह; यत्न । -मंद- फिरगाना*-पु० यूरोप-निवासी; अंग्रेज । वि० जिसे किसी बातकी चिंता लगी हो, चितित । फिरता-वि० वापस । पु० वापसी; अस्वीकार । फिटकरी-स्त्री. एक मिश्र खनिज पदार्थ जो स्फटिककी फिरना-अ० क्रि० कभी इधर, कभी उधर जाना, घूमना, तरह सफेद होता और दवा, रँगाई आदिके काम आता | भ्रमण करना; चक्कर खाना; मंडलाकार घूमना; लौटना, है, स्फटिक।
पलटना, मुड़ना; बदलना; मुकरना; लौटाया जाना, फिटकार-स्त्री० लानत, धिक्कार; शाप
फिराया जाना प्रसिद्ध याप्रचारित होना; फेरा या चलाया चेहरेपर)-बरसना-चेहरेका मलिन, उतरा हुआ होना। जाना (छुरी फिरना): पोता जाना। फिरकर-मुड़कर फिटकारना-स० क्रि०धिकार-फटकार बताना।
पलटकर। फिटकिरी-स्त्री० दे० 'फिटकरी'।
फिरनी-स्त्री० [फा०] पिसे हुए चावलकी खीर । फिटकी-स्त्री० छोटा; कपड़ेकी बुनावटमें निकले हुए फुचरे फिरवाना-म० क्रि० फिराने या फेरनेका काम दूसरेसे * फिटकरी।
- कराना। फिटाना*-स० फि० हटा देना, भगा देना।
फिराऊ-वि० जो फिरता हो सके, जाकड़ (माल)। फिट्टा-वि० (फटकार, अपमानसे) उतरा, खिसियाया हुआ फिराका-पु० फेर, चिंता टोह । (चेहरा)।
| फिराक-पु० [अ०] वियोग, जुदाई। (फ़िराके)यारफितरत-स्त्री० [अ०] स्वभाव पैदाइश; सृष्टि; चाल चालाकी। पु० प्रियतम, प्रेमपात्रसे बिछोह । फ़ितरतनू-अ० [अ०] प्रकृतिसे, स्वभावतः । | फिराकिया-वि० [अ०] वियोगात्मक, जिसका विषय वियोग फितरती-वि० [अ०] प्रकृतिगत, पैदाइशी (इस अर्थ में हो।-नज्म-स्त्री० वह काव्य जिसमें विरहका वर्णन हो।
अब फ़ितरी चलता है); शरारती, चालबाज़ । फिराद, फिरादि-स्त्री० फरियाद । फितरी-वि० [अ०] पैदाइशी, प्रकृतिगत; प्रकृतिक । फिराना-स० क्रि० इधर-उधर चलाना, धुमाना, भ्रमण या फितूर-पु० दे० 'फतूर'।
सैर कराना; चकर खिलाना; साथ लिये फिरना; मोड़ना, फितूरी-वि० दे० 'फुतूरी' ।
लौटाना; औरका और करना। फिदधी-वि० दे० 'फ़िद्दवी' ।
फिरार-पु० [अ०] भाग जाना, पलायन करना । फिदा--वि० [अ०] मुग्ध, आसक्त; किसीपर जान देने-फिरारी-वि० [अ०] भागा हुआ, पलायित (अभियुक्त इ०)। वाला । मु०-होना-आशिक होना; किसीके लिए जान फिरि*-अ० दे० 'फिर'। देना।
फिरिकी*-स्त्री० दे० 'फिरकी' । फिदाई-वि० [अ०] प्राण निछावर करनेवाला । फिरियाद, फिरियादि*-स्त्री० दे० 'फरियाद' । फ़िहवी-वि० [अ०] फिदा होनेवाला; किसीको लिए जान फिरियादी-वि०, पु० दे० 'फरियादी'। देनेवाला । पु० सेवक, दास (प्रार्थना-पत्रमें)।
फ़िरिश्ता-पु० [फा०] देवता; मुसलमानोंके विश्वासानुसार फिनिया*-स्त्री० कानमें पहननेका एक गहना।
ज्योतिसे निर्मित एक दिव्य योनि, देवदूत । फिफरी*-स्त्री० पपड़ी-'उड़िगे बदनकी लालिमा फिफरी फिरिहरी -स्त्री० दे० 'फिरकी' । परी अधरान'-रघु०।
फिर्का-पु० [अ०] दे० 'फिरका'। फ़िरंग-पु० यूरोप; यूरोपीय; गरमीकी बीमारी । * स्त्री. फिलहकीक़त-अ० हकीकतमें, सचमुच । विलायती तलवार-'चमकती चपला न फेरत फिरंग भट' फिलहाल-अ० तत्काल, अभी, इस समय । भू०।-रोग-पु० (वेनेरियल डिजीज) दे०रतिज रोग'। फिस-वि० सारहीन; कुछ नहीं । मु०-हो जाना-बेकार फिरंगिस्तान-पु० यूरोप ।
सिद्ध होना; कुछ न रह जाना । फिरंगी-पु० यूरोपियन । वि० यूरोपीय, विलायती । स्त्री० फिसड़ी-वि० पीछे रह जाने, काममें पिछड़ा रहनेवाला; विलायती तलवार ।
निकम्मा। फिरंट-वि०फिरा हुआ, विरुद्ध नाराज ।
फिसफिसाना-अ० कि० फिस होना; ढीला, कमजोर हो फिर-अ० पीछे, अनंतर दूसरे समय; तब पुनः, दोबारा जाना। इसके अलावा । -फिर-अ० बार-बार । -भी-अ० फिसलन-स्त्री० फिसलनेकी क्रिया; फिसलाहट, रपटन; तब भी।
फिसलनेको जगह । फिरकना-अ० क्रि० थिरकना, नाचना।
फिसलना-अ० कि० चिकनाईकी अधिकतासे पाँवका न फ़िरका-पु० [अ०] जमात, समुदाय, जाति, संप्रदाय । टिकना, सरकना (ला०) लुभाना, मनका झुकाव होना;
-बंदी-स्त्री० जमात बनाना, गरोहबंदी। -बार-अ० चूकना, धर्म या नीतिसे डिगना । वि० फिसलनवाला । फिरके, संप्रदायके अनुसार। -वाराना-वि० सांप्रदा- फिसलाहट-स्त्री० फिसलनेका भाव, फिसलना पिच्छलता। यिक।
| फ़िहरिस्त-स्त्री० [अ०] सूची, फर्द । फिरकी-स्त्री० चकई फिरहरी; तकलेमें लगा हुआ चमड़ेका फाँचना-सक्रि० कचारना । टुकड़ा; मालखंभकी एक कसरता कुश्तीका एक पेंच फ्री-स्त्री० दोष, त्रुटि, खोट । अ० [अ०] में, बीच से; धागा लपेटनेकी रील ।
प्रति, हर, पीछे।-कस-अप्रति व्यक्ति, आदमी पीछे ।
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५३९
- साल - अ० प्रति वर्ष । - सैकड़े-अ प्रति शत ।
फीका - वि० सीठा, बेमजा; जो शोख या चटकीला न हो, हलका (रंग); कांतिहीन; * बेअसर, व्यर्थं ।
।
फ़ीता - पु० [पुर्त०] सूत या रेशमकी पतली पट्टी जो गोटेकिनारों की तरह कपड़ोंके हाशियेपर लगायी जाती हैं; निवाड़की पतली धज्जी जिससे कागज आदि बाँधते, अंग्रेजी ढंगके जूतोंको कसते हैं ।
- अ० सैकड़े पीछे,
फ़ीरोज़ा - पु० [फा०] नगके काम आनेवाला एक कीमती पत्थर जिसका रंग नीला या हरा होता है । फ़ीरोज़ी - स्त्री० [फा०] विजयः सफलता; भाग्योदय । वि० फीरोजेके रंगका ।
फीरनी - स्त्री० दे० 'फिरनी' ।
फ़ीरोज़ - वि० [फा०] विजयी; सफल; सौभाग्यशाली । फुटका - पु० छाला, फफोला; धान आदिका लावा । - मंद - वि० सफल, सौभाग्यशाली । फुटकी - स्त्री० छोटी अंठी, दूध आदिके जमे हुए कण; गाढ़ी चीजका छींटा ।
फ़ील - पु० [अ०] हाथी । - खाना - पु० हाथियोंका अस्तबल, हस्तिशाला । - पा-पु० एक रोग जिसमें एक या दोनों टाँगें और पाँव सूज जाते हैं, श्रीपद । - पाया-पु० जोड़ाई करके बनाया हुआ भोटा खंभा । - बान-पु० हाथीवान, महावत ।
फीली - स्त्री० पिंडली - 'रोवाँ बहुत जाँघ अरु फीली' - प० । फ़ीस - स्त्री० [अ०] शिक्षा शुल्क; प्रवेश शुल्क डाक्टर, वकील आदिका मेहनताना ।
फुंकना - अ० क्रि० फूंका जाना, भस्म होना, जलना; नष्ट होना; व्यर्थ खर्च होना । ५० दे० 'फुकना' । फुंकनी - स्त्री० दे० 'फुकनी' ।
फुंकरना - अ० क्रि० फुफकारना, फूत्कार करना । फुंकवाना, फुंकाना - स० क्रि० फूंकने या जलाने का काम दूसरे से कराना ।
फुंसी - स्त्री० छोटी फुड़िया ।
फुआ - स्त्री० पिताकी बहन, बूआ
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फीका-फुर
- खर्ची - स्त्री० अनावश्यक व्यय करना, अपव्यय । फुट - पु० [अ०] लंबाईकी एक माप जो १२ इंचकी होती है; [सं०] साँपका फन | वि० फटा हुआ; स्फुटित; [हिं० ] बिना जोड़ेका, अकेला; जो किसीके साथ या किसी श्रेणीसिलसिले में न हो । मत-पु० मतभेद |
फुटकर, फुटकल - वि० फुट, अकेला, अलग, भिन्न; जो किसी श्रेणी, सिलसिले में न हो; जिसमें कई तरह की चीजें हों, विविध; थोड़ी मात्रा में तोड़कर होनेवाली (विक्री), खुर्दा । पु० रेजगारी |
फुचड़ा - पु० (दरी आदिमें) बुनावट से बाहर निकला हुआ सूत या रेशा ।
फुजला - पु० [अ०] बचा हुआ अंश; सीठी; मैल | . फुज़ल - वि० [फा०] ज्यादा; बेकार, अनावश्यक । - खर्च - वि० अनावश्यक व्यय करनेवाला, अपव्ययी ।
फुटबाल - पु० [अ०] चमड़ेका बड़ा गेंद जिसके भीतर रबड़की थैली में हवा भरी रहती है; उस गेंद से खेला जानेवाला खेल | फुटेहरा - पु० मटर आदिका भूना हुआ दाना जिसका छिलका फट गया हो ।
फुटेल - वि० दे० 'फुट्टेल' |
फुट्टेल - वि० जिसका जोड़ा न हो; झुंडसे अलग रहनेवाला ( जानवर ) ; हतभाग्य |
फुतकार - पु० फुफकार |
. कुतूर - पु० [अ०] फसाद, झगड़ा; शरारत; घटना; कमजोरी; खरावी ।
फुंकार - पु० फुफकार |
फुंकारना - अ० क्रि० फुफकारना, साँपका गुस्से में मुँह से फुनकार - पु० दे० 'फुंकार’।
हवा छोड़ना ।
फुंकैया - पु० फूँकनेवाला |
फुंदकी - स्त्री० गाँठ; बिंदी |
फुंदना -५० सूत, ऊन आदिका फूल या गुच्छा, झब्बा । फुंदिया - स्त्री० झब्या, फुंदना ।
फुंदी* - स्त्री० बिंदी - 'सारी लटकति पाटकी विलसति कुँदी लिलार' - मति०; गाँठ ।
. फुतूरिया, फुतूरी - वि० [अ०] फुतूर करनेवाला । फुत्कार - पु० [सं०] दे० 'फूत्कार' |
फुत्कृत - वि० [सं०] फूंका हुआ; चिल्लाया हुआ । पु० फूँकसे बजने वाले वाद्यको ध्वनि; चीत्कार । फुदकना - अ० क्रि० ( मेढक, छोटी चिड़ियों, चिड़ियों के बच्चोंका ) उछलते हुए चलना, कूदना; हर्ष के अतिरेक से
उछलना ।
फुदकी - स्त्री० एक छोटी चिड़िया जो फुदकती हुई चलती है ।
फुप्फुस - पु० [सं०] फेफड़ा । - प्रदाह - पु० (न्यूमोनिया) एक या दोनों फेफड़ोंमें इलेष्मा के जमा हो जानेसे होनेवाला शोध या प्रदाह ।
फुफँदी - स्त्री० साड़ी कसनेकी डोरी या साड़ीके दो छोरोंकी गाँठ जो स्त्रियाँ सामनेकी ओर लगाती हैं, नौबी । फुफकाना* - अ० क्रि० फुफकारना ।
फुआरा - पु० फुहारा ।
फुकना - पु० मसाना, मूत्राशय; बड़ी फुकनी । अ० क्रि० फुफकार - स्त्री० क्रुद्ध साँपके मुँह से हवा निकालनेपर होनेदे० 'फुंकना' । वाली आवाज, फूत्कार ।
फुकनी - स्त्री० बाँस आदिकी नली जिसके छेद में फूँक मार फुफकारना - अ० क्रि० साँपका गुस्से में मुँह से जोरके साथ कर आगको हवा देते हैं । हवा निकालना, फुंकार करना । फुफी* - स्त्री० दे० 'फूफी' ।
फुनगी - स्त्री० वृक्ष या शाखाका सिरा; शाखा के अंतकी कोमल पत्तियाँ और टूसा ।
फुनफुनी * - अ० पुनः पुनः, बार बार - 'हरि भगति बिना दुख फुनकुनी' - कबीर ।
फुफू* - स्त्री० दे० 'फूफी' ।
फुफेरा - वि० फूफा या फूफी के नातेका (भाई, बहिन इ० ) । फुर-स्त्री० छोटी चिड़ियोंके उड़ने में होनेवाली परोंकी आवाज (फुरसे उड़ जाना) । * वि० सत्य । - फुर- स्त्री० बार-बार
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५४०
फुरकना-फूंद होनेवाली 'फुर'की आवाज ।
फुलाव-पु० दे० 'पुलावट', स्फीति । फुरकना -स० क्रि० मुँहसे सुरकना (कढ़ी आदि)। फुलावट-स्त्री० फूल नेका भाव; फैलाव, उभार, स्फीति । फुरती-स्त्री० तेजी; चुस्ती; जल्दी।
फुलाचा-पु० चोटी या जूड़ा बाँधनेकी फुदनेदार डोरी। फुरतीला-वि० तेज चुस्त; फुरतीसे काम करनेवाला । फुलिंग-पु० दे० 'रफुलिंग'। फुरना*-अ० क्रि० स्फुटित होना; उद्भूत होना, निकलना फुलिया-स्त्री० छत्राकार सिरेवाला काँटा; कानमें पहनने(शब्द); चमक पड़ना; सत्य होना; फलदायक होना; की लौंग ।। असर करना; पकड़ना।
फुलेरा-पु० फूलोंसे बनायी हुई छतरी । फुरनी दाना-पु० तला हुआ मसालेदार चूड़ा।
फुलेल-पु० खुशबूदार तेल । फुरफुराना-अ० क्रि० इस तरह उड़ना कि परों या डैनोंसे फुलेली-स्त्री० फुलेल रखनेका बरतन । 'फुर-फुर'की आवाज हो। स० क्रि० फुरेरी फिराना; फुलेहरा* -पु० सूत या रेशमका बना बंदनवार; फुलेरा। पंख आदि फड़फड़ाना।
फुलौरा-पु० बेसनकी बड़ी पकौड़ी। फुरफुरी-स्त्री० उड़नेके लिए पंख फड़फड़ाना ।
फुलौरी-स्त्री० बेसनकी पकीड़ी। फुरमान*-पु० दे० 'फरमान' ।
फुल-वि० [सं०] खिला हुआ, विकसित; प्रसन्न । पु० फुरमाना*-स० क्रि० दे० 'फरमाना।
फूल । -नेत्रा-लोचन-वि० जिसकी आँखें हर्षसे खिल .फुरसत-स्त्री० [अ०] अवकाश, खाली वक्त; छुट्टी; इत- रही हैं। मीनान रोगसे मुक्ति।
फुस-स्त्री० बहुत धीमी, अस्फुट आवाज । -फुस-स्त्री० फुरहरना-अ० क्रि० स्फुरित होना; प्रकट होना; फर- बहुत धीमी, साफ सुनाई न देनेवाली आवाज; ऐसे स्वरमें हरना; हिलना; फड़क उठना ।
कही जानेवाली बात, कानाफूसी। पु० फुप्फुस । मु०फुरहरी-स्त्री० परों आदिकी फड़फड़ाहट कंपदे० 'पुरेरी'। फुस करना-सुनाई न देनेवाले स्वर में बोलना । -सेमु०-लेना-काँपना।
बहुत धीमी आवाजसे, चुपकेसे । फुराना-अ० कि० सत्य होना, फुरना। स० क्रि० सत्य फुसकारना*-अ० क्रि० फुफकारना; फूंक मारना। करना, सत्य सिद्ध करना।
फुसकी-स्त्री० बिना आवाजके निकलनेवाली अपान वायु । फुरेरी-स्त्री० सींक या तिनकेके सिरेपर लपेटी हुई रुई। फुसफुसा-वि० जल्दी टूट जानेवाला, कमजोर । जिसपर इन, तेल आदि चुपड़ा जाय; कँपकँपी, कंपयुक्त | फुसफुसाना-अ० क्रि० धीमी, अस्फुट आवाजमें बोलना, रोमांचा फड़कनेका भाव । मु०-लेना-कंपके साथ रोमांच फुसफुस करना । होना; हिलना; सतर्क हो जाना।
फुसलाना-सक्रि० मीठी बातोंसे बहलाना, भुलावा देना। फुर्ती-स्त्री० दे० 'फुरती'।
फुहर*-वि० दे० 'फूहद' । फुर्सत-स्त्री० दे० 'फुरसत'।
फुहार-स्त्री० नन्हीं-नन्हीं बूंदोंकी झड़ी; झांसी, जलकण । फुल-पु० 'फूल'का केवल समासमें व्यवहृत रूपा-कारी- फुहारा-पु० बारीक धार या फुहारके रूपमें पानी ऊपरको स्त्री० गुल-बूटेका काम, गुलकारी; एक कपड़ा जिसपर | फ्रेंकनेवाला यंत्र; इससे निकलनेवाली पारीक धार । रंगीन रेशमसे फूल कढ़े होते है। -चुही-स्त्री० एक फुही-स्त्री० फुहार । छोटी चिड़िया जो फूलोंपर उड़ा और उनका रस चूसा फॅक-स्त्री० होठोंको मिलाकर मुखके मध्य भागसे जोरके करती है।-झड़ी-स्त्री० एक तरहकी आतिशबाजी जिसे साथ निकाली हुई हवा, दम, साँस; किसीपर मंत्रका जलानेपर चिनगारियाँ झड़ती है। झगड़ा लगानेवाली बात प्रभाव डालने के लिए मुँहसे छोड़ी हुई हवा; गाँजे आदि(फुलझड़ी छोड़ना); झगड़ा कराने लगानेवाली स्त्री। का कश। -सा-वि० बहुत कमजोर, दुबला-पतला -वर-पु० एक कपड़ा जिसपर रेशमसे फूल बने होते है। (आदमी) । मु०-निकल जाना-दम निकल जाना, मर -वाई,-वाड़ी-स्त्री० दे० 'फुलवारी' । -वार-वि० जाना ।-मारना-किसीपर फूंककी हवा छोड़ना, फूंकना। प्रफुल्ल, प्रमुदित । पु० रंगीन कागजके बने हुए फूल-पौधे फंकना-स० वि० होठोंको मिलाकर मुखके मध्य भागसे जिन्हें सजावटके लिए बरातके साथ ले जाते हैं । -वाड़ी,
हवा छोड़ना, फूंक गारना; मंत्र पढ़कर मुखी हवा -बारी-स्त्री० फूलोंका (छोटा) बाग, पुष्पवाटिका । छोड़ना; फूंककर बजाना; फू ककी हवासे प्रज्वलित करना, -सुधी-स्त्री० फुलचुही चिड़िया ।
जलाना; भस्म करना; कुश्ता वरना (धातु); बरबाद फुलका-पु० हलकी-पतली रोटी, चपाती; * फफोला ।
करना; फैलाना। मु० फूक-ताप डालना-उड़ा देना, फुलफुला-वि० फूला-फूलासा ।
बरबाद कर देना । फूंक-फूंककर कदम या पाँव फुलाई-स्त्री० सूखेकी बीमारी; बबूलका एक भेद । फुलानेकी | रखना-बहुत सावधानतासे, हर तरहके खतरेसे बचते क्रिया या उजरत ।
हुए काम करना। फुलाना-स० कि० किसी चीजको हवा भरकर फैलानाः | फूका-पु० फूक मारनेकी क्रिया; गायके थनपर लगनेवाली मोटा करना; चापलूसी करके किसीका दिमाग चढ़ाना, दवाएँ लगाकर नलीसे फूंक मारना; फूका मारनेकी गर्व बढ़ाना फूलनेका कारण होना, पुष्पित करना । अ० नली; फोड़ा। क्रि० फूलना।
| पूँद-स्त्री०, फूंदा*-पु० दे० 'फूंदना' । (.द)फुदाराफुलायल*-पु० दे० 'फुलेल'।
| वि० जिसमें फुदना लगा हो।
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फू-फेण
फू-स्त्री० फूकनेकी आवाज ।
लोढ़ना-फूल चुनना। -चुनना-फूल तोड़कर एकत्र फूई-स्त्री० फुहार, फफूदी।
करना । -झड़ना-मुँहसे मीठे शब्द निकलना । फूट-स्त्री० फूटनेकी क्रिया; एकाका उलटा, बिगाड़, विरोध -पड़ना-बत्तीके मुँहपर गुल बनना । -सूंघकर जीना एक तरहकी ककड़ी जो पकनेपर फट जाती है।
या रहना-बहुत थोड़ा खाना, अल्पाहारी होना। फूटन-स्त्री० फूटकर अलग हुआ टुकड़ा; शरीरकी संधियों में (फूलौं)की सेजपर सोना-सुखचैनकी जिंदगी बसर होनेवाली पीड़ा।
करना। -के काँटेमें तुलना-बहुत सुकुमार होना; फूटना-अ० कि० चोट या धक्का खाकर टूटना, भग्न होना; राजसिक सुख भोगना। फटना, त्वचा या सतहको भेदकर बाहर आना, तोड़ या फलना-अ० क्रि० (पेड़-पौधेमें) फूल आना, कुसुमित फोड़कर निकलना; (शब्दका मुंहसे ) निकलना; खराब, होना; कलीका खिलना; गर्वसे इतराना अति प्रसन्न होना; निकम्मा हो जाना ( आँख, तकदीर); उगना, अंकुरित हवा भरनेसे तन जाना, फैलना; मोटा होना, सूजन। होना; शाखारूपमें निकलना; खिलना; अलग, वियुक्त ढीला, शिथिल होना (हाथ-पाँव फूलना); रूठना, नाराज होना; बिखरना; विपक्षसे जा मिलना; फुसियों, दानों होना; सुनहले प्रकाशसे युक्त होना । मु० फूलकर आदिके रूपमें होनेवाले रोगका प्रकट होना (गरमी, कोढ़); कुप्पा हो जाना-अत्यधिक हर्ष या गर्व होना; बहुत स्याहीका रसकर कागजकी दूसरी ओर निकलना; जोड़ोंमें ! मोटा होना जाना। फूलना-फलना-धन-धान्य और दर्द होना; फोड़ा जाना ( उँगलियाँ) । मु० फूट-फूटकर वाल-बच्चोंसे सुखी होना। -फालना*-प्रसन्न होना। रोना-बिलख-बिलखकर रोना।
फूला-फूला फिरना-आनंदमें मग्न होकर या गवसे फूटा-वि० फूटा हुआ; खराब, बिगड़ा हुआ। पु० खेतमें इतराते हुए विचरना । फूले न समाना-खुशीमें आपेसे टूटकर गिरी हुई बाले संधियों में होनेवाली पीड़ा ।(फूटी)- बाहर हो जाना। कौड़ी-स्त्री० निकम्मी कौड़ी। मु० (फूटी) आँखका फूला-पु० खील; आँखकी फूली। तारा-कई बेटों में से बचा हुआ अकेला बेटा, बहुत प्यारा फूली-स्त्री० आँखकी पुतलीपर पड़ा हुआ सफेद दाग जिससे बेटा। -आँखाँ न देख सकना-देखकर जलना, देखना दृष्टि मंद हो जाती और मारी भी जाती है। भी सद्य न होना ।-आँखों न भाना-अति अप्रिय होना, फस-प० सूखी घास जो छप्पर बाँधने, इंधन आदिके काम तनिक भी अच्छा न लगना। -कौड़ी (पासमें)न| आये; जीर्ण-शीर्ण वस्तु । होना-कुछ न होना, बिलकुल नादार होना। (फूटे) फूहड़-वि० भद्दे ढंगसे काम करनेवाला, बेशऊर, भद्दा, मुंहसे न बोलना, बात न करना-बिलकुल ही उपेक्षा गंदा (-गाली) । स्त्री० बेशऊर स्त्री। -पन-पु० बेढंगाकरना, एक बात भी न करना।
पन, भद्दापन । फूत्कार--पु० [सं०] १ क, फुफकार; साँपकी फुफकार; फहर-स्त्री० दे० 'फूहड़' । सिसकना चीत्कार ।
फूही-स्त्री० फुहार, झीसी। फूत्कृति-स्त्री० [सं०] दे० 'फुत्कार'।
फैकना-स० क्रि० किसी चीजको हाथसे ऐसी हरकत देना फूफा-पु० फूफी या बुआका पति ।
कि कुछ दूर जा गिरे, जमीनपर गिराना पटकना; उछाफूफी-स्त्री. बापकी बहिन ।
लना; ले जाकर दूसरी जगह डालना (कूड़ा); डालना फूफू-स्त्री० दे० 'फूफी'।
(कौड़ी, पासा); इधर-उधर बखेर देना; चलाना (तीर); फूर-पु० फूल ।
सरपट दौड़ाना (घोडा); छोड़ना, गँवाना परित्याग करना फूरना-अ0 क्रि० पुष्पित होना।
अपव्यय करना; घुमाना, भाँजना (पटा) । फूल-पु० पौधोंका जननेंद्रिय रूप या फलोत्पादक अंग जो फैकरना*-अ० क्रि० दे० 'फेकरना' । सुंदरता और सुकुमारताका प्रतीक बन गया है, खिली हुई फकाना-स० क्रि० फेंकनेका काम दूसरेसे कराना। कली, पुष्प, फूलकी शकलका बेल-बूटा, आभूषण इत्यादि; फैट-स्त्री० दे० 'फेटा'; लपेट फेंटनेकी क्रिया। मु०बत्तीका जला हुआ अंश; श्वेत कुष्ठका दाग; सत्त; स्त्रियोंका कसना,-बाँधना-कटिबद्ध होना । -धरना-पकमासिक स्राव, रज; गर्भाशय; शवदाहके बाद रहनेवाला इना-जानेसे रोकना। अस्थि-अवशेष; मुसलमानों में तीसरे या पाँचवें दिनका फेटना-स० क्रि० हाथ या उँगलियोंकी हरकतसे मिलाना फातिहा; सार; पहली बार खींची हुई शराब; ताँबे और (पीठी, इ०); अच्छी तरह मिलाना, गड्डमड करना (ताश)। राँगेके मेलसे प्रस्तुत एक मिश्र धातु; घुटनेकी गोल हड्डी। फेटा-पु. कमरका घेरा; कमरपर लपेटा हुआ कपड़ा, * स्त्री० फूलनेका भाव, उमंग, आनंद । -कारी-स्त्री० कमरबंद धोतीका वह भाग जो कमर पर लपेटा गया हो; बेल-बूटे बनाना, गुलकारी। -गोभी-स्त्री० गोभीका सिरपर लपेटा हुआ कपड़ा, छोटी पगड़ी; सूतकी बड़ी अंटी। एक भेद जिसका फूल तरकारीके रूपमें खाया जाता है। फेकरना*-अ० क्रि० (सिरका) अनावृत होना; गीदड़ या -झरी*-स्त्री० दे० 'फुलझड़ी'। -दान-पु० गुलदस्ता स्यारका चिलाना; फूट-फूटकर रोना, फेंकरना। रखनेका पात्र । -दार-वि० फूलोंवाला; जिसपर फूल- फेकारना*-स० क्रि० (सिरको) खोलना, अनावृत करना। पत्ते या बेल-बूटे बने हों। -सा-वि० बहुत सुकुमार । फेकैत-पु० फेंकनेवाला पहलवान । (फूलौं)की सेज-पुष्पशय्या, सुख और चैनभरी फेज-पु० ऊँची दीवारकी तुकी टोपी। स्थिति । मु०-आना-फूल लगना। -उतारना,- फेण, फेन-पुं० [सं०] झाग, बुलबुलोंका समूह ।
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फेणक- फोरमैन
फेणक, फेनक - पु० [सं०] फेन, एक मिठाई, बतासफेनी । फेद* - पु० फेंटा ।
फेनिल - वि० [सं०] फेनयुक्त, झागदार । फेनी - स्त्री० [सं०] धीमें छाना हुआ मैदेका लच्छा जिसे दूध में भिगोकर और शक्कर मिलाकर खाते हैं, सुधाफेनी | फेफड़ा - पु० छातीके नीचे स्थित थैलीके आकारका अवयव जिससे रीढ़वाले अधिकांश प्राणी साँस लेते हैं, फुप्फुस । फेफड़ी-स्त्री० खुश्कीसे होंठों पर पड़नेवाली पपड़ी । फेफरी * - स्त्री० दे० 'फेफड़ी' । फेरंड - पु० [सं०] सियार, गीदड़ ।
फेर - पु० घुमाव, रास्तेका घुमाव, चक्कर; परिवर्तन, बदलना; भ्रम; विपरीतता (समझका फेर); फर्क, अंतर; उलझन; बहकावा; उपाय; नुकसान; प्रेतबाधा; अदला-बदला । * अ० ओर, तरफ (चहुँ फेर); दे० 'फिर' । - पलटापु० गौना । - फार - पु० उलट-फेर, चक्कर । - बदल - पु० तबदीली । मु० - खाना - चक्कर काटना, घुमावके रास्ते जाना। - बँधना - सिलसिला लगना। पड़ना - नुकसान उठाना; उलझन, कठिनाई में पड़ना । - लगाना - युक्ति लगाना ।
मे
फेरना - स० क्रि० घुमाना, दिशा बदलना; लौगना; वापस लेना; बदलना; पलटना; घुमाना, भाँजना (मुग्दर, पढा); क्रम बदलना; अभ्यास करना; चाल सिखानेके लिए चक्कर देना, निकालना (घोड़ा); इस बलसे उस बल करना; उलटना-पलटना (पात्र); जपना ( माला); पोतना, लेप | करना; फिराना, धीरे-धीरे इधर-उधर ले जाना; प्रचारित करना ( डौंडी ) | ( मु० हाथ फेरना - सहलाना; उड़ा लेना ) ।
फेरवट - स्त्री० घुमाव, पेच; अंतर; धूर्तता । फेरा - पु० लपेट; चौगिर्दा घुमाव परिक्रमा, चक्कर, भोवर; बार-बार आना-जाना, गश्त पुनरागमन; ( भिक्षुकको ) लौटा देना । - फेरी - स्त्री० उलट पुलट क्रम बदलना । मु०-देना - भिक्षुकको बिना कुछ दिये लौटा देना । फेरि* - अ० फिर, पुनः ।
फेल - वि० [अ०] विफल; (परीक्षा में) अनुत्तीर्ण ।
फेहरिस्त - स्त्री० दे० 'फिहरिस्त' ।
फैंसी - वि० [अ०] सुंदर; भड़कदार, जिसपर काम किया हुआ हो ।
और- पु० बंदूक, तमंचे या तोपका दागा जाना; इनका एक बार दगना (लगातार चार फेर किये ) ।
फैल * - पु० फेल, काम; खेल; नखरा, बनावट, राशि फैलाव, विस्तार |
|
फैलना - अ० क्रि० अधिक स्थान घेरना, आकारका बढ़ना, पसरना; डीलका बढ़ना, मोटा होना; अधिक दूरतक जाना;
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५४२
प्रसिद्ध या प्रचारित होना; वृद्धि होना; बिखरना; पूरा तनना (हाथ फै०); मचलना; हट करना | फैलाना - स० क्रि० पसारना, विस्तार करना, बिछानाः आयोजन करना; बिखेरना; बढ़ाना; खोलना, तानना; प्रचार करना; प्रसिद्ध करना; हिसाबकी पूरी प्रक्रिया दिखाना, प्रस्तार करना (ब्याज फॅ०); गुणा-भागकी जाँच
पड़ताल करना ।
फैलाव - पु० लंबाई-चौड़ाई; विस्तार, प्रसार; प्रचार । फैलावट - स्त्री० फैलाव ।
फ़ैशन - पु० [अ०] ढंग, तर्ज; कपड़े आदिका प्रचलित ढंग;
प्रथा ।
फ़ैसला - पु० [अ०] निर्णय, निबटारा; निश्चय । फाँक - पु० तीरका पीछे की ओरका सिरा । फाँदा* - पु० दे० 'फुंदना' । फोफर - वि० पोला; निस्सार । फाँफी - स्त्री० चोंगी; फुकनी; हूँछी । फोक - पु० फुजला; सीठी; भूसी; नीरस पदार्थ । फोकट - वि० मूल्यरहित; निरर्थकः निःसार- 'अलि चलि और ठौर दिखावहु अपनो फोकट ज्ञान' - सू० । -कामुफ्त मे मुफ्त में । फोकला - पु० छिलका | फॉकली-स्त्री० दे० 'फोकला' । फोका* - पु० बुद्बुद (विद्या० ) । फोट* - पु० दे० 'स्फोट' | फोटक* - वि० दे० 'फोकट' ।
फेरी - स्त्री० फेरा, चक्कर, भाँवर; गश्त खुर्दाफरोशका सौदा बेचने के लिए गली-कूचों में घूमना; रस्सीपर ऐंठन देनेकी चरखी । - वाला - पु० फेरी करके, घूम-फिरकर चीजें बेचनेवाला । सु० - पड़ना - भाँवर होना । फेरु- पु० [सं०] सियार ।
फेरौरी | - स्त्री० टूटे खपरैलोको निकालकर उनकी जगह नये फोड़िया - स्त्री० छोटा फोड़ा ।
रखनेकी क्रिया ।
फोटा - पु० बूँद, बिंदी, टीका- 'ललाट पावक नहिं सिंदुरक फोटा' - विद्या० ।
फ़ोटो- पु० [अ०] छायाचित्र, अक्स | -ग्राफर- पु० फोटो, छायाचित्र उतारनेवाला, अक्कास । फोड़ना - स० क्रि० तोड़ना, टुकड़े करना; विदीर्ण करना; कड़े छिलके, त्वचा आदिको तोड़ना (फोड़ा, नारियल ); शरीर में जगह-जगह फोड़े या घाव पैदा कर देना; शाखा निकालना; छेद करना, सेंध लगाना ( दीवार); खराब, अंधा करना (आँखें); बहका, फुसलाकर अपनी ओर कर लेना ( गवाह ) ; प्रकट करना, खोल देना (भंडा) । फोड़ा - पु० शरीर में स्थानविशेषपर होनेवाला पीड़ाकारक शोथ, जिसके पक जानेपर भीतर से पूय निकलता है, व्रण, बड़ी फुंसी ।
फ़ोता - पु० [अ०] थैली, कोष, अंडकोष लगान, पोत । ( फ़ोते ) दार - पु० खजांची, तहवीलदार | फोनोग्राफ - पु० [अ०] एक यंत्र जो ध्वनिको अंकित करता या लाखकी चूड़ियों में भरता और कुंजी देकर चूड़ियों को घुमानेपर पुनः उसे उसी रूप में प्रकट कर देता है, ग्रामोफोन ।
फोया - पु० दे० 'फोहा' ।
फोरना* - सु० क्रि० दे० 'फोड़ना' ।
फोरमैन - पु० [अ०] छापेखाने, कारखाने आदि में काम करनेवालोंका मुखिया या उनपर निगरानी रखनेवाला कर्मचारी |
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फोहा-बंद फोहा-पु० रुईका गाला जो किसी चीजसे तर किया गया फौत-स्त्री० [अ०] मरना, गुजर जानाखो जाना (होन।)। हो; फाहा।
-शुदा-वि० मृत, मरा हुआ। फोआरा-पु० [अ०] फुहारा ।
फौती-वि० मृत्यु-संबंधी। स्त्री० मृत्युकी सूचना ।-नाम, फौज-स्त्री० [अ०] सेना; जनसमूह, मजमा ।-दार-पु० -रजिस्टर-पु० वह सूची या रजिस्टर जिसमें मृतजनोंकी सेनानायक; बादशाह आदिकी सवारीमें हाथीपर आगे| मृत्युतिथि और उनका नाम-पता लिखा जाता है। बैठनेवाला, कोतवाल । -दारी-स्त्री० फौजदारका पद फौरन-अ० [अ०] अभी, तुरत, झटपट । मारपीट, लड़ाई । -दारी-अदालत-स्त्री० अपराधोंका फौलाद-पु० कड़ा और बढ़िया लोहा जिसके हथियार और विचार, निर्णय करनेवाली अदालत, दंड-व्यवस्था करने तेज धारवाले औजार बनाये जाते हैं । वाला न्यायालय।
फौलादी-वि० फौलादका बना हुआबहुत कड़ा, फौजी-वि० फौजसे संबंध रखनेवाला। पु० सैनिक। सुदृढ़। -कानून-पु० सैनिक शासन-संबंधी वे कड़े कानून जो फौवारा-पु० दे० 'फौआरा'। असाधारण स्थिति उत्पन्न हो जानेपर सामान्य नागरिकोंके फाक-पु० [अं०] ढीली, छोटी आस्तीनका लंबा कुरता जो लिए लागू कर दिये जाते हैं।
। बच्चे और स्त्रियाँ भी पहनती है।
ब-देवनागरी वर्णमालाका तेईसवाँ व्यंजन वर्ण । बंछनीय *-वि० दे० 'वांछनीय' । बंक-वि० * टेढ़ा, वक्र + तिरछा; वीर; * विकट, दुर्गम || बंछित*-वि० दे० 'वांछित' । * अ० तिरछी निगाहसे । -नाल-स्त्री० वह नली, बंजर-पु० खेतीके अयोग्य जमीन, वह जमीन जिसे खेत जिससे सुनार जुड़ाई करते समय चिरागकी लौ फूंकते हैं। न बना सकें, ऊसर । बंक-पु० [अ० 'बैंक'] वह कार्यालय जो लोगोंका रुपया बंजारा-पु० दे० 'बनजारा । जमानतके रूपमें जमा करता और माँगने पर सूद के साथ बंजुल, बंजुलक-पु० दे० 'वंजुल' । उन्हें वापस देता है, अधिकोष ।
बंझा -विन फलनेवाला (पेड़, पौधा), वंध्य । वि० बंकट*-वि० टेढ़ा, वक्र ।
स्त्री० वंध्या । स्त्री० बंध्या स्त्री। बंका-वि० दे० 'बंक'; बढ़िया।
बँटना-अ० कि० बाँटा जाना; भाग किया जाना। बंकाई-स्त्री० बंक होनेका भाव, बाँकपन ।
बँटवाई-स्त्री० बाँटनेकी क्रिया या उजरत । बंकिम-वि० टेढ़ा।
बँटवाना-स० कि० बाँटनेका काम दूसरेसे कराना। बंकुर *-वि० दे० 'बंक'।
बँटवारा-पु० बाँटनेका काम; विभाजन, अलगोझा । बंकुरता* -स्त्री टेढ़ापन ।
बंटा-पु० पान आदि रखनेका डल्ला। वि० छोटे कदका । बकैअन*-अ० घुटनोंके बल ।
बटाई-स्त्री० बाँटनेका काम; बाँटनेकी उजरत; जमीन बंदोबंग--पु० बंगाल, चंग; * एक दवा जो ताकत बढ़ाती है; बस्तकी वह रीति जिसमें मालिकको लगानके रूपमें उपज* बाँग।
का नियत भाग मिले, बटाई। बंगला-वि० बंगालका । स्त्री० बंगालकी भाषा, बंगभाषा । | बंटाधार-वि० ची पट, सत्यानास (कर देना)। पु० खुली जगहमें बना सुंदर छोटा हवादार मकान बंटाना-स० क्रि० बटवारा कराना; अपना हिस्सा अलग
सबसे ऊपर की छतका हवादार कमरा बंगालका पान ।। करा लेना; शामिल, शरीक होना। बँगली --स्त्री. एक गहना जो चरियों के साथ पहना जाता बँटावन*-वि० बँटानेवाला। है, बँगुरी।
बँटया-पु. बँटानेवाला। बंगसार-पु० जहाजपर चढ़ने के लिए पुल जैसा बना हुआ बंडल-पु० [अं०] छोटी गठरी, पुलिंदा; गट्टा, पूला । चबूतरा।
बंडा-पु० अरुईकी जातिका एक कंद जो तरकारीके काम बंगा-वि० टेढ़ा; नटखट, उपद्रवी; अज्ञान ।
आता है। बड़ी बखारी । वि० पुच्छहीन । बंगाल-पु० भारतका एक पूरबी प्रांत, वंग देश; एक राग । | बडी-स्त्री० फतुही; बगलबंदी। बंगाली-पु० बंगालका रहनेवाला, बंगदेशीय । स्त्री० । बड़ेरा-पु० छाजनके बीचोबीच लगाया जानेवाला बल्ला बँगला भाषा।
जिसपर ठाटका बोझ रहता है। बंगरी -स्त्री० दे० 'बँगली'।
बड़े -स्त्री० दे० 'बँडेर'। बंचक-पु० दे० 'वंचक'।
बंद-पु० [फा०] बाँध, मेंड, कैद, बंधन, गिरह, गाँठ; अंगोंबंचकता, बंचकताई*-स्त्री० दे० 'वंचकता' ।
का जोड़; जंजीर, सिला हुआ फीता जिससे अंगरखा, बंचन-पु० दे० 'वंचन'।
अँगिया आदिके पल्ले बाँधते हैं,तनी; कुश्तीका पेंच युक्ति, बंचना*-स० क्रि० ठगना । स्त्री० दे० 'वंचना'।
उपाय: पाँच या छ मिसरोंके उर्दू-फारसी पद्यका टुकड़ा बचवाना-स० क्रि० पढ़वाना ।
सूची; कागजका लंबा टुकड़ा; लाखकी चपटी चूड़ी। वि. बंछना*-स० क्रि० वांछा करना, चाहना ।
रुका हुआ, बँधा हुआ; कसा, जकड़ा हुआ; धरा या पकड़ा
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बंदगी-बंधाना
५४४ हुआ, कैद; कुंडी, ताला लगा हुआ, भिड़ा हुआ; जो खुला बंदोबस्त-पु० [फा०] प्रबंध, इंतजाम; जभीनका प्रबंध, न हो; जो चलता न हो; जिसकी गति, क्रिया रुद्ध हो खेतका लगान ठहराकर किसीको जोतने-बोनेके लिए देना; (समासके अंतमें) बाँधनेवाला (नालबंद)।-गोभी-स्त्री० जमीनकी नाप और लगान-मालगुजारी ते करनेका काम करमकल्ला । -बंद-पु० जोड़-जोड़, गाँठ-गाँट (टूटना)। (सेटिलभेंट)। -अफसर-पु० बंदोबस्तका काम करनेवाले -वान*-पु० कारागारका रक्षक, जेलर ।-साल-स्त्री० महकमेका प्रधान अधिकारी। -इस्तमरारी-पु० स्थायी बंदीगृह, कैदखाना । मु०-बंद ढीले कर देना-थका | बंदोबस्त । देना, पस्त कर देना।
बंध-पु० [सं०] बंधन बाँधनेका साधन; बाल पाँधनेकी बंदगी-स्त्री० [फा०] सेवा; वंदना, अराधना नमस्कार । चोटी; जंजीर, वेड़ी; बाँधकैद; गाँठ पकड़ना, बाँधना; बंदन-पु० दे० 'वंदन'; ** सिंदूर, रोली; बंदनवार । निर्माण व्यवस्था; संयोगपट्टी; सामंजस्य, प्रदर्शन; बंदनधार-पु० सुंदर पत्तों, फूलों आदिकी झालर जो मंगल- | जीवका बंधन (मुक्तिका उलटा); परिणाम; बंधक रखी हुई
अवसरोंपर दरवाजे, मंडप आदिपर बाँधी जाती है। वस्तु । -करण-पु० कैद करना। -तंत्र-पु० पूरी बंदना-स्त्री० दे० 'वंदना' । स० कि० * वंदना करना, सेना (जिसमें उसके सारे अंग हों)। -पत्र-पु० (बौंड) प्रणाम करना।
सरकार द्वारा या किसी सार्वजनिक संस्था (नगर-निगम बंदनी-स्त्री० सिरपर पहननेका एक गहना, सिरबंदी । * आदि) द्वारा जारी किया गया वह ऋणपत्र जिसमें इस वि० स्त्री० वंदनीया (समासमें)।
बातकी लिखित प्रतिज्ञा की जाती है कि निर्धारित अवधि बंदनीमाल-स्त्री० पैरोतक लटकनेवाली माला ।
समाप्त होनेपर ऋण ली गयी सारी रकम अदा कर दी बंदर-पु० एक स्तनपायी पशु जिसकी कुछ बातें मनुष्यसे जायगी; कही हुई बात पूरी न होनेपर किसीको कुछ रुपया मिलती हैं और जिसमें बुद्धि कुछ विकसित होती है, | या हरजाना आदि देनेका प्रतिज्ञापत्र; किसी पदपर मर्कट, कपि । -घुड़की-स्त्री० महज डरानेके लिए दी | नियुक्ति होने के पूर्व नियुक्त व्यक्ति या नियोजक द्वारा जानेवाली धमकी। मु०-का घाव-वह धाव जो कभी लिखा गया वह प्रतिज्ञापत्र जिसमें इस बातका निश्चय सूखे नही (बंदरका घाव जब सूखने लगता है तो वह दिलाया गया हो कि निर्दिष्ट अवधिके पूर्व नियुक्त व्यक्ति खुजलाकर उसे छील देता है)।
अपने पदसे न हटेगा अथवा न हटाया जायगा । -मोचबंदर-पु० [फा०] जहाजके रुकने ठहरनेकी जगह, बंदर- निका,-मोचनी-स्त्री० एक योगिनी। -स्तंभ-पु० गाह । -गाह-पु० समुद्रकिनारे बसा हुआ नगर जहाँ हाथी आदि बाँधनेका खूटा।। जहाज ठहरते हों, पोर्ट।
बंधक-पु० [सं०] बाँधने, पकड़नेवाला; रस्सी; बाँध; बंदरिया, बँदरी-स्त्री० मर्कटी, वानरी ।
गिरवी; अंगन्यास; वादा; भंग करनेवाला; बंधन; कैद; बंदा-पु० [फा०] सेवक, दास; वशवती (वक्ता विनय विनिमय ।-कर्ता(त)-पु० (मार्टगेजर) अपना घर, खेत दिखानेके लिए अपने आपको कहता है)।
आदि किसीके पास रेहन रखनेवाला । -गृहीता(त)बंदारु-वि० दे० 'वंदारु'; पूजनीय, वंदनीय ।
पु० (मार्ट गेजी) वह महाजन आदि जिसके पास कोई बंदि-स्त्री० [सं०] बंधन, कैद । पु० कैदी; चारण। चीज रेहन रखी गयी हो, रेहनदार । -छोर*-पु० दे० 'बंदीछोर'।
बंधन-पु० [सं०] बाँधना; जंजीर, बेड़ी, रस्सी; पकड़ना; बंदिश-स्त्री० [फा०] बाँधनेका भाव; रोक, प्रतिबंध; गाँठ; कैद; कैदखाना; निर्माण, संयोग; रोक क्षति पहुँचाना;
शब्दयोजना, रचना; उपाय, पेशबंदी; साजिश। डंठल; पेशी; स्नायुः पट्टी बाँध; पुल; धातुओंका मिश्रण; बंदी-स्त्री० [सं०] कैद; [हिं०] सिरका एक गहना, बंदनी; दमन । -कारी (रिन्)-पु० बाँधनेवाला; आलिंगन दूकानों, कामकाज आदिका बंद रहना; [फा०] बाँधना, करनेवाला । -स्तंभ-पु० हाथी आदि बाँधनेका खूटा। बंद करना; कैद करना; बाँदी; लागत ।-खाना,-धर- -स्थान-पु० तबेला, अस्तबल । पु० कैदखाना। -छोर*-पु० बंधनसे छुड़ानेवाला। बंधना-अ० क्रि० बाँधा जाना, कसा-जकड़ा, लपेटा जाना; -वान*-पु० कैदी।
कैद होना; मुग्ध होना; फैसना; गठना; पाबंद होना; बंदी (दिन)-पु०[सं०] चारण कैदी।-कोष्ट,-खाना- निश्चित होना; मोरचा नियत होना । पु० बंधन; बाँधनेपु० (लॉक अप) न्यायालय में मामलेपर विचार होनेतक | का साधन (रस्सी, डोर आदि); * दे० 'बधना' । बंदियोको तालेमें बंद कर या पहरेमें रखनेकी जगह, हवा- | बंधनागार-पु० [सं०] कारागार । लात । -प्रत्यक्षीकरण-पु० (हैवियस कॉर्पस) बंदीको बंधनालय-पु० [सं०] कारागार ।। न्यायाधीशके सामने उपस्थित करनेका लिखित आदेश। बंधनि*-स्त्री० बंधन; बाँधने, फंसानेवाली चीज । बंदक-स्त्री[फा०] एक प्रसिद्ध आग्नेयास्त्र, लकड़ीके कुंदेमें बंधनीय-५०[सं०] वाँध वि० बाँधने योग्यःरोकने योग्य। लगी लोहेकी लंबी नली जिसमें गोली भरकर बारूदकी बंधव-पु० दे० 'बांधव'। सहायतासे दागी जाती है।-ची-पु.बंदूक चलानेवाला | बंधवाना-स० क्रि० बाँधनेका काम दूसरेसे कराना। सिपाही। मु०-छतियाना-भरी हुई बंदूकको छातीसे बंधान-पु० बँधा हुआ क्रम, परिपाटी; दस्तूरी; बाँध; लगाकर निशाना बाँधना। -दागना-बंदूक चलाना। | तालका सम । बंदूखा-स्त्री० दे० 'बंदूक' ।
बँधाना-स० क्रि० बाँधनेका काम दूसरेसे कराना; धारण बँदेरी-स्त्री० दासी, बाँदी।
कराना कैद कराना।
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५४५
बंधित-बक़र. बंधित-वि० [सं०] बँधा हुआ, बद्ध;जो कैद किया गया हो। -ज़रिया,-ज़रीया-अ० (-के) जरीये, (-के) द्वारा। बंधी -स्त्री० बंधेज; बंधी व्यवस्था, निश्चित प्रबंध । -जा-वि० जो अपनी जगह पर हो, ठीक, उचित । बंधु-पु० [सं०] स्वजन, आत्मीय, शाति, सगोत्र; भाई; -जाय-अ० (-के) स्थानपर, बदले । -जिंस-अ० दे० मित्र; पति; पिता बंधुजीव नामक फूल; संबंध 1-काम- 'बजिसहू'। -जिंसहू-अ० हूबहू, ठीक-ठीक; कुल; वि० भाई-बंद, स्वजनों, संबंधियोंसे स्नेह रखनेवाला। ज्योंका त्यों । -तौर-अ० (-के) तरीकेपर; द्वारा, -जन-पु० आत्मीय, निकट संबंधियोंकी समष्टि, भाई- मारफत । -दस्त-अ० (-के) हाथसे, द्वारा, मारफत । बंद । -जीव,-जीवक-पु० गुलदुपहरिया। -दग्ध- -दस्तूर-अ० साधारण अभ्यासके अनुसार, यथानियम; वि० संबंधियों द्वारा परित्यक्त। -बांधव-पु० स्वजन- यथापूर्व, पहलेकी तरह । -दौलत-अ० (-2) सहारे, संबंधी, भाई-बंद । -भाव-पु. बंधुता, भाईचारा। द्वारा; (-की) कृपासे; (-के) कारण। -नाम-अ०
-हीन-वि०जिसका कोई अपना न हो, असहाय । (-के) नामसे, नामपर; (-) प्रति, विरुद्ध (मुकदमेमेंबंधुआ, बँधुवा-पु० कैदी।
रघुवीर सिंह बनाम रामधनी)। -निस्बत-अ० अपेक्षा, बंधुक-पु० [सं०] दे० 'बंधु-जीव'; जारज संतान । मुकाबलेभे । -मुकाबला-अ० (-के) मुकाबले में, तुलनाबंधुता-स्त्री० [सं०] रिश्ता, संबंध; भाईचारा; बंधुवर्ग । में ।-मुश्किल-अ० कठिनाईसे, मुश्किलसे ।-मूजिबबंधुत्व-पु० [सं०] भाईचारा; संबंध, स्नेह ।
अ० (-के) अनुसार, मुताबिक । -राह-अ० (-की बंधुमान(मत्)-वि० [सं०] जिसके मित्र और संबंधी हों। राहसे; (-के) तौरपर । -शर्ते कि-अ० इस शर्तसे कि, बंधुर-पु० [सं०] मुकुट; गुलदुपहरिया; भग; हंस, बगला। अगर ।-सबब-अ०(-के) कारण ।-सूरत-अ० सूरतमें, बंधुरा-स्त्री० [सं०] कुलटा; वेश्या ।
स्थितिमें, बहालत ।-हुक्म-अ०आशासे, आदेशानुसार। बंधुल-पु० [सं०] कुलटाका पुत्र; वेश्या-पुत्र ।
-हैसियत-अ० (-के) रूपमें, नाते; (-की) स्थितिमें । बंधूक-पु० [सं०] गुलदुपहरिया ।
बइर*-पु० वैर, शत्रुता । वि० बहरा। बंधूप-पु० दे० 'बंधक' ।
बउर*-पु० दे० 'वीर'। बंधूलि-पु० [सं०] दे० 'बंधूक' ।
बउरा*-बि० दे० 'बावला' बंधेज-पु० बंधान प्रतिबंध; स्तंभन ।
बउराना-अ० क्रि० पागल होना, उन्मत्त होना। बंध्या-स्त्री० [सं०] बाँझ स्त्री या गाय; योनिका एक रोग; बक-पु० [सं०] बगला; बंचक, ठग; ढोंगी; कुबेर; भीमके एक गंधद्रव्य । -कर्कटी-स्त्री० कड़वी ककड़ी। -तनय, हाथों मारा गया एक राक्षस; कृष्णके हाथों मारा गया
-पुत्र,-सुत-पु० बाँशका बेटा, अलीक, अनहोनी बात । एक राक्षस । * वि. बगले जैसा सफेद । -जित्-पु० बंपुलिस-स्त्री० म्युनिसिपलिटीकी ओरसे बना हुआ वह भीम; कृष्ण । -ध्यान-पु० बगले जैसी ध्यानमग्न होनेपाखान। जो सर्वसाधारणके काम आता हो।
की दिखाऊ मुद्रा, साधुताका ढोंग। -ध्यानी(निन)बंब-पु० डंका; 'बम-बम' शब्द ।
वि० बगलाभगत, बकध्यान लगानेवाला । -निषूदनबंबा-पु० पानीकी कल; पानी बहानेका नल; सोता। पु० कृष्ण भीम। -मौन-पु० बकध्यान । वि० बकबँबाना-अ० क्रि० गाय-बैलका रँभाना।
ध्यानी । -यंत्र-पु० एक आयुर्वेदोक्त यंत्र जो अर्क आदि बंबू-पु० चंडू पीनेकी बाँसकी नली ।
खींचनेके काम आता है। -रिपु-पु० भीम । -वृत्तिबंस-पु० वंश, कुल; बाँस; * बाँसुरी। -कार*-पु० वि० बगलाभगत, ज्ञान-ध्यानका ढोंग कर लोगोंको ठगनेबाँसुरी । -लोचन-पु० दे० 'वंशलोचन' ।
वाला । स्त्री० बगलाभगत होनेका भाव, पाखंड । -वती. बस -स्त्री० दे० 'सी'।
(तिन्)-वि० 'बक-वृत्ति'। बसवाड़ी-स्त्री. वह स्थान जहाँ बाँसकी बहुत-सी | बक-स्त्री० बकनेकी क्रिया, बकवास । -झक,-बककोठियाँ हों।
स्त्री० बकवास, बेकार बात |-वाद-स्त्री० निरर्थक वार्ता, बंसी-स्त्री० बाँसुरी; मछली फंसानेका काँटा, विष्णु, कृष्णा- बकवास । -वादी-वि० बकवाद करनेवाला, बक्की। दिके चरणचिह्न। -धर-पु० कृष्ण ।
-वास-स्त्री० बेकार बात जो लगातार कुछ देरतक कही बँसोड़, बँसार-पु० बाँसके टोकरे आदि बनानेवाली जाय, बकबक; बकनेकी क्रिया । -वासी-वि० बकवास जाति, धरकार।
करनेवाला। बहगी-स्त्री० दे० 'बहेंगी।
बकचा-पु० दे० 'बकुचा'। बहुटा-पु० दे० 'बहुँटा'।
बकतर--पु० [फा०] जिरह, लोहेके जालका बना हुआ बँहोल*, बँहोली -स्त्री० आस्तीन ।
कवच । -पोश-वि० जो बकतर पहने हो, कवचधारी। ब-पु० [सं०] वरुण; जल; घट; समुद्र बुनना; ताना। बकता, बकतार*-पु० दे० 'वक्ता'। अ० [फा०] साथ, से; लिए, वास्ते; पर (दिन- बकना-स० कि० बोलना, मुँहसे निकालना (गालियाँ)। दिन)। -कौल-अ०...के कथनानुसार। -खुद- अ०.क्रि० बड़बड़ाना, बकवास करना। मु०-झकनाअ० अपनेसे (-आपको)। -खूबी-अ० अच्छी तरह, बड़बड़ाना, गुस्से में बोलना, बिगड़ना । भली भाँति, सम्यक् रीतिसे। -खैर-अ० कुशल- बकर-पु० [अ०] गाय, बैल; कुरानकी एक सूरत । -ईद पूर्वक, अच्छी तरह, भलाईसे। -खेरियत-अ० खैरि- (रीद)-स्त्री० मुसलमानोंका एक त्योहार जिस दिन यतके साथ, कुशलपूर्वक । -गैर-अ० बिना, सिवा ।। ईश्वरके प्रीत्यर्थ पशुबलि करना फर्ज माना जाता है।
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बकरना - बख़्श
- कसाब - पु० चिक, कमाई ।
बकुल - पु० [सं०] मौलसिरी; शिव ।
बकरना - अ० क्रि० अपना दोष, अपराध स्वीकार करना; बकुला - पु० दे० ' वगला' | बड़बड़ाना ।
।
बकरम - पु० [अ०] 'बकरम'] गोंद आदि से कड़ा किया हुआ कपड़ा जो कपड़ों के कालर, आस्तीन आदि में दिया जाता है । बकरवाना - स०क्रि० किसीसे दोष अपराध स्वीकार कराना । बकरा- पु० एक प्रसिद्ध पालतू चौपाया, छाग, अज । [स्त्री० 'बकरी' ।] मु० (बकरे ) की माँ कबतक ख़ैर मनायेगीदोषी, अपराधी कबतक बच सकता है ? बकरीद - स्त्री० [अ०] दे० ' बक़र-ईद' | बकलस - पु० [अं० 'बकल्स'] लोहे, पीतल आदिका चौकोर छला जिसमें तसमें आदिको फँसाते हैं, बकसुआ ।
बकला - पु० छिलका, छाल । बकवाना - स० क्रि० किसीको बकनेमें प्रवृत्त करना । बकस - पु० [अ० 'बॉक्स'] कपड़े आदि रखनेका छोटा संदूक; गहने आदि रखनेका डब्बा ।
बकसनrt - स० क्रि० दे० 'बख्शना' |
बकसवानrt बकसाना* - स० क्रि० दे० 'बख्शवाना' । बकसीस * - स्त्री० दे० 'बख्शिश' ।
बकसुआ, बकसुवा- पु० दे० 'बकलस' | बकाइन - पु० दे० 'वकायन' ।
बकाउ * - स्त्री० दे० 'बकावली' ।
बकाउर - स्त्री० दे० 'बकावली' ।
बकाना * - स० क्रि० कहलाना; बकवाना | बकायन - पु० नीमकी जातिका एक पेड़ जिसके फल, फूल, बखरैत - पु० हिस्सेदार ।
पत्तियाँ आदि दवाके काम में लाते हैं, महानिंब । बकाया - वि० [अ०] बचा हुआ, बाकी, अवशिष्ट ('बक्रीया'
बकावर * - स्त्री० दे० 'गुलबकावली' | बकावरी * - स्त्री० दे० 'गुलबकावली' | बकावली - स्त्री० दे० 'गुलबकावली' । बकासुर - पु० [सं०] वक नामका दैत्य जो कृष्णके हाथों मारा गया ।
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बकूल- पु० [सं०] दे० 'बकुल' । बकैयाँ - पु० घुटनोंके बल चलना; ऐसी चाल । बकोट - स्त्री० बकोट नेकी क्रिया; बकोटने की मुद्रामें हाथकी उँगलियाँ; वस्तुकी वह मात्रा जो बकोटनेसे चंगुल में आये । बकोटना-स० क्रि० पंजे या नाखूनों से नोचना । बकोटा-पु० बकोटनेकी क्रिया; बकोटने की मुद्रा; वस्तुकी वह मात्रा जो चंगुल या मुट्टीमें आ जाय, वुकटा । बकोरी, बकौरी* - स्त्री॰ बकावली, गुलबकावली । बक्कल-पु० छिलका, छाल ।
बक्काल - पु० [अ०] आटा, दाल आदि बेचनेवाला, बनिया । बक्की - वि० बकबक करनेवाला, बकवादी । बक्कुर+ - पु० मुँह से निकला हुआ शब्द बोल । बक्खर - ५० गाय-बैल बाँधनेका बाड़ा; दे० 'बाखर' । बक्षोज * - पु० उरोज ।
बकिनव* - पु० दे० 'बकायन' ।
बकी - स्त्री० [सं०] मादा बगला; बकासुरकी बहन, पूतना । बकीया - वि० [अ०] बाकी बचा हुआ अवशिष्ट । बकुचन * - स्त्री० हाथ जोड़ना; मुट्टी या पंजे में पकड़ना । बकुचना * - अ० क्रि० सिमटना, सिकुड़ना । वकुचा - पु० गठरी; * ढेर, गुच्छा; जुड़ा हुआ हाथ । बकुची - स्त्री० छोटी गठरी; एक छोटा पौधा जो चर्मरोग में | लाभदायक होता है । मु० - बाँधना, - मारना - हाथ-पैर
|
समेटकर गठरी जैसा बन जाना ।
बकुचीँ हाँ* - वि० बकुचे जैसा ।
बकुर - वि० [सं०] भयंकर । पु० बिजली, वज्र । बकुरना* - अ० क्रि० दे० 'बकरना' । बकुराना * - स० क्रि० कबूल कराना ।
५४६
बक्स - पु० बक्स, संदूक ।
बखत* - पु० दे० 'वक्त'; 'बख्त' - 'वंस सम बखत, बखत सम ऊँची मन' - ललित० ।
बखतर - पु० दे० 'बकतर' ।
बखसीस - स्त्री० दे० ' बख्शिश' । बखसीसना* - स० क्रि० दे० 'बख्शना' । बखान- पु० वर्णन; बड़ाई, गुण-कथन ।
का बहु० ) । पु० बाकी बची हुई चीज; बचत; बाकी पड़ी हुई रकम । -लगान-पु० बाकी पड़ा हुआ लगान । बकारि - पु० [सं०] भीम; कृष्ण । बकारी - स्त्री० मुँह से निकलनेवाला शब्द | मु०- फूटना - बखार-पु० अनाज रखनेके लिए बनाया हुआ बड़े कोठले मुँह से शब्द, बात निकलना ।
बखानना- सु० क्रि० वर्णन करना, सराहना, बड़ाई करना; गालियाँ देना, कोसना (सात पुरखा बखानना) ।
बखरा - पु० दे० 'बाखर'; दे० 'बखरा' |
बखरा - पु० [फा०] हिस्सा, भाग, टुकड़ा ।
बखरी + - स्त्री० ( गाँवके साधारण धरोंकी दृष्टिसे ) बड़ा, अच्छा मकान; जमींदारका मकान ।
जैसा घेरा ।
बख़िया - पु० [फा०] दुहरे टाँकोंकी सिलाई, महीन और मजबूत सिलाईका एक प्रकार । - गर- पु० बखिया करनेवाला । मु० - उधेड़ना - सीवन खोलना; भंडा फोड़
करना ।
बखियाना - स० क्रि० बखिया करना ।
aarat - स्त्री० ईखका रस या गुड़-चीनी देकर पानी में पकाया हुआ चावल |
बख़ील - वि० [अ०] कंजूस, कृपण । बख़ीली - स्त्री० [अ०] कंजूसी ।
बखेड़ा - पु० झगड़ा; झंझट, झमेला; कठिनाई, परेशानी । बखेड़िया - वि० बखेड़ा उठानेवाला, झगड़ालू । बखेरना-स० क्रि० चीजोंको छितराना, फैलाना । बखोरना* - स० क्रि० छेड़ना, टोकना । वख़्त- पु० [फा०] भाग; भाग्य; सौभाग्य | बख्तर - पु० दे० 'वकतर' |
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बख्तावर - वि० [फा०] भाग्यशाली, ऊँचे नसीबवाला । बख्तियार - वि० [फा०] भाग्यवान्, सौभाग्यशाली । बख़्श - वि० [फा०] (संज्ञापदसे समस्त होकर) बख्शनेवाला,
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५४७
बरदशना-बचना
देनेवाला (नामोंके अंतमें) बख्शिश, देन, प्रसाद (गुरु- करनेवाला। बख्श, करीमबख्दा)।-नामा-पु० दे० 'बख्शिशनामा'। बगलौहा*-वि० तिरछा। बख्शना-स० कि० देना, दान करना; क्षमा करना । बगसना*-म०क्रि० दे० 'बख्शना'। वरस्शवाना, बशाना-सक्रि० दिलाना; माफ कराना। बगा*-पु० जामा; बागा; बगला । बदिशश-स्त्री० [फा०] दान; देन; इनाम; क्षमा । बगाना-स० क्रि० घुमाना-फिराना; सैर कराना । अ० -नामा-पु० हिब्बानामा, दानपत्र ।
क्रि० भागना, दौड़ना; घूमना-फिरना । बरशी-पु० [फा०] तनखाह बाँटनेवाला कर्मचारी, खजांची। बगा+-पु० गायोंको बाँधनेकी जगह । बख्शीशा-स्त्री० दे० 'बख्शिश।
बगारना*-स० क्रि० दे० 'बगराना' । बग-पु० बगला; 'वाग'का लधु और समासमें व्यवहृत बग़ावत-स्त्री० [अ०] बागी होना; राज-विद्रोह, विप्लव रूप । -छुट,-टुट-अ० सरपट, बेतहाशा । -मेल-अ० अराजकता, बदअमली । मु०-का झंडा उठाना या बुलंद बाग मिलाये हुए । पु० पंक्तिबद्ध होकर धावा बोलना करना-विद्रोह करना, विद्रोहकी घोषणा करना । बराबरी।
बगिया-स्त्री० छोटा बाग, बाटिका । बगई।-स्त्री० एक घास जिसकी पत्तियाँ पुड़िया आदि | बगीचा-पु० बाग; छोटा बाग । बाँधने और बान बनानेके काम आती है; कुकुरमाछी। बगीची-स्त्री० छोटा बाग । बगदना-अ० क्रि० बिगड़ना; गुस्से में अंड-खंड बकना; बगला-पु० दे० 'बगला'। -भगत-वि० दे० 'बगलागिर पड़ना, लुढ़क जाना; भूलना, बहकना ।
भगत'। बगदहा।-वि० बिगड़नेवाला; लड़नेवाला।
बगूरा*-पु० दे० 'बगूला'। बगना*-अ० कि० धूमना-फिरना; दौड़ना, भागना । बगूला-पु० [फा०] भँवरकी तरह घूमती हुई हवा, बवंडर । बगर-पु० महल; मकान सहन; गाय बाँधनेका बाड़ा। बगेदना*-स० कि० धक्का देकर गिरा देना, हटा देना। * स्त्री० दे० 'बग़ल'।
बगेरी-स्त्री० गौरैयासे मिलती-जुलती एक छोटी चिड़िया, बगरना-अ० क्रि० फैलना, बिखरना ।
भरद्वाज । बगराना*-स० वि० बखरना, फैलाना । अ० क्रि० बग्गी, बग्घी-स्त्री० चार पहियेकी घोड़ा-गाड़ी, जोड़ी। फैलना, बिग्घरना।
बघंबर-पु० दे० 'वाधंबर' । बगरी*--स्त्री० बखरी, मकान ।
बघ-पु० बाघ'का समासमें आनेवाला लघु रूप ।-छालाबगरूरा-पु० बगूला, बवंडर ।
पु० दे० 'बाघंबर'। -नला-पु० उँगलीमें पहननेका बग़ल-स्त्री० [फा०] मोके नीचेका गढ़ा, काँख; पहलू , एक हथियार जिसमें बाघके नखकी शकलके काँटे निकले पाव; समीपवर्ती स्थान; कपड़ेका टुकड़ा जो अँगरखे-कुरते होते हैं, शेरपंजा; बच्चोंको पहनानेका एक गहना। आदि में कंधेकनीचे लगाया जाता है, बगली। -बंदी- -नहाँ*-पु० दे० 'बधनखा। -नहियाँ*-स्त्री० दे० स्त्री० एक मिरजई जिसमें बगलमें बंद बाँधे जाते हैं। 'बघनखा'। -बार-पु० बाधकी मूंछका बाल । -का फोड़ा-काँखमें होनेवाला फोड़ा, कँखौरी । -का बधना*--पु. एक गहना जिसमें बाघ नख लगे होते हैं। घुसा-दे० 'बराली धूसा'। -मैं-पासमें, एक ओर । बघरूरा-पु० दे० 'बगूला'। मु०-गरम करना-(स्त्रीका) साथ सोना, बगल में सोना। बघार-पु० बघारनेकी क्रिया; वह चीज या मसाला जी -म ईमान दबाना-बेइमानी करना, ईमान छोड़कर | वधारनेके काममें लाया जाय, छौंक; बघारकी गंध । बोलना ।-में दबाना, मे दाबना-काँख में छिपा लेना; बघारना-स० क्रि० हींग, जीरा, प्याज आदि धीमें कड़कब्ज में कर लेना। (बग़ले)झाँकना-निरुत्तर होना; कड़ाकर दाल, तरकारी आदिमें डालना, छौंकना, तड़का बचावका रास्ता ढूँढ़ना ।-बजाना-बगल में हथेली दबाकर देना; पांडित्य दिखानेके लिए किसी विषयकी चर्चा करना, आवाज निकालना; अति प्रसन्नता प्रकट करना।
छाँटना (वेदांत बघारना)। बगला-पु. एक पक्षी जो मछलियों आदिका शिकार बघूरा*-पु० दे० 'बगूला' । करता और जो अपनी कपटवृत्तिके लिए प्रसिद्ध है, बक। बघेलखंड-पु० मध्यभारतका एक प्रदेश जिसमें रीवा, मैहर -भगत-वि० साधुका ढोंग कर दुनियाको ठगनेवाला, आदि शामिल हैं। पाखंडी।
बच-स्त्री० एक पौधा जिसकी जड़ दवाके काम आती है। बगला, बगलामुखी-स्त्री० दे० 'वगला'।
* पु० दे० 'वचन'। बगलियाना-अ०क्रि० बगलसे होकर जाना, अलग हटकर बचका-पु० आलू , लौकी आदिका पतला, चिपटा, लंबा जाना । स० कि० अलग करना, बगलभं करना ।
टुकड़ा जिसपर बेसन लपेटकर घी या तेल में तलते हैं। बग़ली-वि० [फा०] बगलका, एक ओरका । स्त्री० अंगरखे बचकाना-वि० बच्चोंके लायक; बच्चोंकी नापका, छोटा ।
आदि में कंधेके नीचे लगाया जानेवाला टुकड़ा; वह थैली बचत-स्त्री० बचनेका भाव, बचाव; जो खर्चसे वच जाय, जिसमें दी सुई, तागा रखते है। बगल में रखनेका तकिया बची हुई चीज, रकम लाभ, नफा । दरवाजेकी बगल में मारी जानेवाली सेंध; मुगदरकी एक बचन-पु० दे० 'वचन'। कसरत । -घूसा-पु० बगलसे मारा जानेवाला घुसा; बचना-अ० कि० बाकी रहना, खर्चसे उबरना; रक्षा, छिपकर किया जानेवाला वार; दोस्त बनकर दुश्मनी बचाव होना (खतरे, बिपत, सांघातिक रोग आदिसे);
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बचपन - बटना
प्राण-रक्षा होना; अलग रहना, परहेज करना । * स० क्रि० बोलना, कहना ।
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बच्चा - पु० नवजात शिशुः शिशुः वत्स, लड़का । वि० कमउम्र, नादान; अनुभवहीन । कश- वि० स्त्री० बहुत बच्चे जननेवाली, बहुप्रसवा (स्त्री) । - कशी - स्त्री० बारबार बच्चे देना । -दानी - स्त्री० गर्भाशय । ( बच्चे )कच्चे - पु० बाल-बच्चे छोटे बच्चे । -वाली- स्त्री० वह स्त्री जिसकी गोदमें बच्चा हो, जच्चा । मु०-देना- गायभैस आदिका बच्चा जनना । ( बच्चों ) का खेल - बहुत
आसान काम ।
बच्ची - स्त्री० पायजेबका घुँघरू; बच्चाका स्त्री० ।
बच्छ* - ५० दे० 'वत्स'; ढाल; वक्ष, सीना । बच्छल * - वि० दे० 'वत्सल' |
बच्छस - पु० दे० 'वक्ष'
बच्छा - पु० दे० 'बाछा'; 'बछड़ा' ।
बचपन - पु० लड़कपन, बालावस्था । बचवैया* - पु० बचानेवाला, रक्षक | बचा* - पु० दे० 'बच्चा' ।
बजरी - स्त्री० कंकड़ी; ओला; छोटा कंगूरा; बाजरा ।
बचाना - स० क्रि० रक्षा करना; बाकी रखना, खर्च न बजवाई - स्त्री० बाजा बजानेकी उजरत । होने देना; अलग रखना; छिपाना । बजवाना - स० क्रि० बजानेका काम दूसरे से कराना ।
सफाई (अभियोग से) ।
बचाव-पु० बचने या बचानेका भाव, रक्षा; आत्मरक्षा; बजवैया - पु० बाजा बजानेवाला | बजागि* - स्त्री० वज्राग्नि, बिजली । बजागिन * - स्त्री० वज्राग्नि, बिजली | बज़ाज़ - पु० [अ०] कपड़ा बेचनेवाला, वस्त्र-वणिक् । बजाजा - पु० कपड़ोंका बाजार, वह स्थान जहाँ वजाजोंकी दुकानें ।
बछ* - पु० बछड़ा । स्त्री० बच । - नाग-पु० एक स्थावर
विष ।
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काला गोला बीज जिसकी माला छोटे बच्चोंको नजर लगने से बचाने के लिए पहनायी जाती है ।
बजट - पु० [अ०] आय व्ययका तख्मीना, आय-व्ययक | बजड़ा - पु० दे० 'बजरा' ।
बजना - अ० क्रि० ध्वनि उत्पन्न होना; ध्वनि उत्पन्न करनेवाला आघात होना; बाजेसे आवाज निकलना; बजाया जाना; चलना (लाठी, तलवार आदिका); प्रसिद्ध होना; * हठ करना ।
बनियाँ, बजनिहाँ+ - पु० बाजा बजानेवाला । बजबजाना+ - अ० क्रि० सड़े हुए गंदे पानी आदि में बुलबुले उठना ।
बजमारा* - वि० वज्रका मारा हुआ, जिसपर बिजली गिरी हो (स्त्रियों द्वारा शापरूपमें प्रयुक्त) ।
बजरंग - वि० जिसका शरीर वज्र जैसा दृढ़ हो । पु० हनूमान् । -बली - पु० हनूमान् ।
बजर* - पु० दे० 'वज्र' । -बटटू - पु० एक पेड़के फलका
बजरा - पु० बड़ी और पटी हुई नाव; + दे० 'बाजरा' । बजरागि* - स्त्री० वज्राग्नि, बिजली |
बज़ाज़ी - स्त्री० बजाजका व्यवसाय |
बजाना - स० क्रि० आघात से आवाज पैदा करना; बाजेसे आवाज निकालना; आवाज निकालकर जाँचना, परखना (रुपया आदि); मारना, चलाना (लाठी, तलवार ); पूरा करना | बजाकर - अ० डंका पीटकर, खुले खजाने ।
बजार* - ५० दे० 'बाज़ार' |
बजारी* - वि० दे० 'बाज़ारी' । बजारू - वि० दे० ' बाजारू' ।
बजूखा- पु० दे० 'बिजूखा' । बज्जना* - अ० क्रि० दे० 'बजना' |
बज्जात * - वि० दे० 'बदज़ात' ।
बज्र - पु० दे० 'वज्र' ।
बज्री- पु० दे० 'वज्री' ।
बझना * - अ० क्रि० फँसना, उलझना; बँधना; हठ करना ।
बछड़ा, बछरा* - पु० गायका बच्चा, वत्स ।
बछरू * - पु० दे० 'बछड़ा' ।
बछल* - वि० दे० 'वत्सल' ।
बछवा, बछा* - पु० दे० 'बछड़ा' ।
बझाउ * - पु० दे० 'बझाव' |
बछिया - स्त्री० गायका मादा बच्चा । मु० - का ताऊमोंदू; मूर्ख, अज्ञान ।
बझान - स्त्री० बझने, फँसनेकी क्रिया ।
बछेड़ा
- पु० घोड़ेका बच्चा ।
बझाना - स० क्रि० फँसाना, उलझाना | बझाव - पु० उलझाव, फँसाव ।
बछेरू* - पु० बछड़ा; बच्चा - 'केसोदास मृगज बछेरू चोषै बझावना * - स० क्रि० दे० 'बझाना' । बाघिनीन' - राम०
बजंत्री- पु० बाजा बजानेवाला, बजनियाँ; बाजा बजानेवालोंका गिरोह; मुसलमानोंके राज्यकालमें पेशेवर गानेबजानेवालोंसे लिया जानेवाला कर ।
बट - पु० दे० 'वट'; बाट, वजन; रास्ता (बाटका लघु रूप); बट्टा बड़ा; किसी चीजका गोला; * हिस्सा । स्त्री० रस्सीकी ऐंठन, बटन । - परा* - पु० दे० 'बटमार' । - पारपु० दे० 'बटमार' | - पारी - स्त्री० दे० 'बटमारी' ।-मारपु० राह में लूट लेनेवाला, राहजन । -मारी - स्त्री० वट मारका काम, पेशा । -वार-पु० रास्तेपर पहरा देनेवाला रास्तेका कर वसूल करनेवाला । बटखरा- पु० बाट, तौलनेका लोहे आदिका टुकड़ा । बटन - स्त्री० बटनेकी क्रिया या भाव; रस्सी आदिकी ऐंठन; बादलेका एक तरहका तार । पु० [अ०] सीप सींग आदिकी छेददार या बिना छेदकी घुंडी जिसे काजमें अटकाकर कपड़े के दो भाग या पहले परस्पर मिलाये जाते हैं, बुताम; बिजली आदिका स्विच या घुंडी जिससे रोशनीका बल्ब जलाया बुझाया पंखा आदि खोला बंद किया जाता है । बटना - स०क्रि० सूत, धागेके रेशों आदिको तागा, डोरी, रस्सी आदि बनानेके लिए मिलाकर ऐंठना । अ० क्रि० पिसना, पिसा जाना । पु० रस्सी बटनेका आला; उबटन । मु०-खेलना-ब्याह के अवसर पर परिहासार्थ एक दूसरेको
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बटला-बड़ा उबटन मलना।
बट्टी-स्त्री० छोटा बट्टा, (साबुन आदिकी) टिकिया; गुड़की बटला-पु० बड़ी बटलोई।
छोटी भेली। बटली-स्त्री० बटलोई।
बटटू-पु० बजरबट्टू धारीदार चारखाना; * बटा, गोला। बटलोई-स्त्री० चावल, दाल आदि पकानेके काम आने-बड़गा-पु० बँडेर । वाला, हाँडीकी शकलका बरतन, पतीला, स्थाली । बड़-वि० 'बड़ा'का समासमें व्यवहृत रूप। -दंता-वि० बटवाना-स० क्रि० बाँटनेका या बटनेका काम दूसरेसे बड़े दाँतोंवाला। -दुमा-पु० लंबी पूँछवाला हाथी । कराना।
-पेटा-वि० बड़े पेटवाला। -बेरी-स्त्री० झड़बेरी ?)। बटा*-पु० गोल वस्तु; गेंद; रोड़ा; बटोही ।
-बोल, बोला-वि० डींग मारनेवाला, बड़े बोल बोलनेबटाई-स्त्री० बटनेकी क्रिया, बटन; बटनेकी उजरत बाँटने वाला। -भाग-वि० दे० 'बड़भागी'। -भागी-वि० की क्रिया, बाँट, विभाजन; जमीनके बंदोबस्तकी वह बड़े भाग्यवाला, खुशनसीब । -मुँहा-वि० बड़े, अधिक व्यवस्था जिसमें मालिकको लगानके रूपमें पैदावारका | लंबे मुँहवाला। नियत भाग मिले।
बड़-पु० वट वृक्ष । स्त्री० बकवाद, डींग। -बड़-स्त्री. बटाऊ*-पु० बटोही, पथिक ।
व्यर्थ बकनेकी क्रिया। बटाक*-वि० बड़ा, ऊँचा।
बड़प्पन-पु० बड़ाई, महत्ता, गौरव । बटालियन-पु० [अं०] पैदल सेनाका एक विभाग जिसमें बड़बड़ाना-अ० क्रि० बकबक करना; डींग मारना। कई कंपनियाँ होती है।
बड़बड़िया-वि० बड़बड़ानेवाला । बटिका-स्त्री० दे० 'वटिका' ।
बड़रा*-वि० बड़ा। [स्त्री. 'बड़री'।] बटिया-स्त्री० छोटा, गोल, चिकना, अकसर लंबोतरा पत्थर | बड़राना-अ० क्रि० दे० 'बर्राना' । (शालग्रामकी बटिया);छोटा बट्टा,लोदिया; * मार्ग,रास्ता। बडवा-स्त्री० [सं०] घोड़ीअश्विनी । बटी-स्त्री० गोली, वटी; एक पकवान, बड़ी; * वाटिका । बडवागि-स्त्री० दे० 'बडवाग्नि'। बटु-पु० दे० 'वटु'।
बड़वाग्नि-स्त्री० [सं०] समुद्रस्थित कालानल । बटुआ-पु० छोटा खानेदार थैला जो मुँहपर लगी डोर बड़वानल-पु० [सं०] बड़वाग्नि ।
खींचनेसे खुलता-बंद होता है। बड़ी बटलोई । बड़वार*-वि० बड़ा। बटुई-स्त्री० छोटी बटलोई।
बड़वारी*-स्त्री० प्रशंसा; बड़प्पन । बटुरना -अ० क्रि० इकट्ठा होना; सिमटना।
बड़हनी-पु० एक तरहका धान । वि० बड़ा। बटुला-पु० चावल आदि पकानेका बड़े मुँहका पात्र। बड़हर(ल)-पु० एक खट-मिट्ठा फल; उसका पेड़ । बटुवा-पु० दे० 'बटुला', 'बटुआ'; * एक तरहका मांस । | बड़हार-पु० ब्याह के बाद कन्यापक्षकी ओरसे होनेवाली बटेर-स्त्री० तातरसे मिलती-जुलती एक चिड़िया जो अकसर बरातियोंकी ज्योनार । लड़ानेके शौकके लिए पाली जाती है। -बाज़ी-स्त्री. | बड़ा--वि० जिसका टील, फैलाव अधिक हो, लंबा-चौड़ा, बटेर पालना, लड़ाना; इसका व्यसन ।
छोटेका उलटा; उम्र में अधिक; पद, प्रतिष्ठा, अधिकार बटोरन--स्त्री० झाड़ने-बुहारनेसे इकट्ठा होनेवाला कूड़ा; आदिमें अधिक; भारी महत्त्ववाला; कठिन; विस्तार, झाड़-बटोरकर लगाया हुआ वस्तुओंका ढेर, बटोरकर एकत्र परिमाणवाला (इतना, कितना बड़ा); ऊँचा, विशाल, किये जानेवाले खेतमें पड़े दाने।
(बड़े हौसिलेका); अधिक, बहुत (बड़ा भारी)। [स्त्री. बटोरना-स० क्रि० समेटना; इकट्ठा करना, जमा करना; 'बड़ी'] | पु० उरदकी पीठीकी घी या तेलमें तली हुई बिखरी हुई चीजोंका इकट्ठा करना, चुनना ।
टिकिया; बुजुर्ग, गुरुजन; बड़ा आदमी, अधिक शक्ति, बटोही-पु० पथिक, राही ।
प्रभाववाला पुरुष। -आदमी-पु० धनी, बड़े पद, बट्ट-पु० गोला, बटा; गेंद; शिकन ऐंठन; बाट । प्रतिष्टावाला । -काम-पु० भारी काम, कठिन काम । बट्टा-पु. वह रकम जो रुपये, नोट, हुंडी आदि भुनाने, - कुलंजन-पु० मोथा। -घर-पु० अमीरका घर; जेलबदलने या बेचनेपर उसके मूल्यमेंसे काट ली जाय,दस्तूरी, खाना। -घराना-पु. ऊँचा घराना। -दिन-पु. दलाली; कमी; घाटा, नुकसान । -खाता-पु० हानि या लंबा दिन २५ दिसंबरका दिन (क्रिसमस डे)। -बाबूघाटेका खाता; वह खाता जिसमें डूबी हुई रकमें लिखी पु० हेड कुर्की-बूढ़ा-पु० बुजुर्ग, गुरुजन । -साहबजायँ । मु०-लगना-बट्टेसे चलना, पूरा मूल्य न मिलना; पु० प्रधान अधिकारी (यूरोपीय); कलेक्टर रेजीडेंट । (इज्जत,नाम आदि में बट्टा लगना) कमी होना,दाग लगना। (बड़ी)इलायची-स्त्री० बड़े दानेकी इलायची जिसका -सहना-घाटा, नुकसान उठाना।
छिलका हलके कत्थई रंगका होता है। -बी-स्त्री० बट्टा-पु० गोल, लंबोतरा पत्थर जिससे पीसने-कूटनेका वृद्धाका सम्मानसूचक संबोधन । -माता-स्त्री० चेचक, काम लिया जाय, लोढ़ा पत्थरका चिकना, छोटा गोला; शीतला । (बड़े)बड़े-वि० बड़े नाम, प्रतिष्ठा, शक्ति, बाजीगरका प्याला; वह गोला जिसे बाजीगर कमानपर अधिकारवाले (लोग)। -लाट-पु० (ब्रिटिश चलाते हैं। पान, रत्न आदि रखनेका डिब्बा । -ढाल- भारतका ) गवर्नर जेनरल । मु०-(बड़ी) बड़ी बातें वि० खूब चौरस और चिकना । (ब)बाज़-पु. बाजी- करना-दूनकी लेना, डींग मारना । -(बड़े) बरतनकी गर, नजरबंदीके खेल करनेवाला । वि० धूर्त, चालाक। । खुरचन-धनी, बड़े आदमीकी जूठन ।-बापका बेटा
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बड़ाई
-बद
बड़े नाम, प्रतिष्ठावालेका बेटा, बड़े घरानेका आदमी । - बोलका सिर नीचा- घमंडीको नीचा देखना पड़ता है। बढ़ाई - स्त्री० बड़ा होना; विस्तार, डील; बड़प्पन, महत्ता प्रशंसा |
बड़ी - स्त्री० उरदकी पीठीमें पेठा, मसाला आदि मिलाकर बनायी और सुखायी हुई टिकिया, कुम्हड़ौरी; पकौड़ी | धडूजा * - पु० दे० 'विडौजा' |
बड़ेरर* - पु० बगूला, बवंडर ।
बड़ेरा - * वि० दे० 'बड़ा' | + पु० दे० 'बँड़ेर' । बड़ेरी - स्त्री० दे० 'बड़ेरा' |
बड़ौना* - पु० बड़ाई, प्रशंसा ।
बढ़ती - स्त्री० दे० 'बढ़ती' |
बढ़ई - पु० एक हिंदू जाति जो लकड़ीका काम करती है । - गिरी - स्त्री० बढ़ईका धंधा |
बढ़ती - स्त्री० बढ़नेका भाव, वृद्धि, अधिकता । बढ़ना - अ० क्रि० डील, आकार, फैलाव, संख्या, मात्रा आदिका अधिक होना, लंबा ऊँचा होना, वृद्धि होना; धन-धान्य की वृद्धि होना; आगे जाना; दूसरेसे आगे निकल जाना; लाभ होना; महँगा होना; चिरागका बुझाया जाना; दुकानका बंद किया जाना । बढ़कर - अधिक अच्छा श्रेष्ठ | मु० बढ़कर बोलना- दूसरोंसे अधिक दाम लगाना, बड़ी बोली बोलना । बढ़-बढ़कर बोलना | - डींग मारना; ढिठाई, गुस्ताखी करना । बदनी - स्त्री० झाड़, बुहारी; पेशगीके रूपमें लिया जानेवाला अन्न या रुपया । बढ़वारि - स्त्री० बढ़नी । बढ़ाना - स० क्रि० आकार, विस्तार, संख्या, परिमाण आदिमें वृद्धि करना; पहलेसे अधिक लंबा-चौड़ा, ऊँचा करना, ऊपर उठाना; धन, मान आदिकी वृद्धि करना; तरक्की देना, उन्नति करना; ऊँचा, महँगा करना (भाव); आगे करना; आगे निकालना, ले जाना (घोड़ा); मरा हना, बढ़ावा देना; समेटना, उठाना (दुकान, दस्तरख्वान ); बुझाना (दिया); उतारना (चूड़ियाँ, गहने) । * अ०क्रि० चुकना, समाप्त होना ।
|
बढ़ाव - पु० बढ़नेकी क्रिया या भाव; बढ़ना; आगे जाना (सेनाका), फैलाव |
बढ़ावा - पु० हिम्मत बढ़ानेवाली बात; प्रोत्साहन, उत्तेजन । बढ़िया - वि० अच्छा, उमदा, अच्छी किस्मका । स्त्री० एक तरह की दाल; * बाढ़ - 'जिन्हहि छाँड़ि बढ़िया माँ आये, ते विकल भये जदुराय' -सू० ।
बढ़या - 1 पु० बढ़ानेवाला; * बढ़ई ।
बढ़ोतरी - स्त्री० बढ़ती; बढ़ाया हुआ अंश, क्षेपक । बणिक ( ) - पु० [सं०] बनिया, बनिज व्यापार करनेवाला; विक्रेता ( शाकवणिक् ) ।
arraत्ति - स्त्री० [सं०] व्यापार, कारवार । बत- स्त्री० 'बात' का समासमें व्यवहृत लघु रूप । - कहाव -५० बातचीत; विवाद । कही * - स्त्री० बातचीत । - चल* - वि० बकवादी । -बढ़ाव - पु० बातका बढ़ जाना, झगड़ा, विवाद । -रस-पु० बातचीतका सुख,
मजा ।
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बतख - स्त्री० हंसकी जातिका एक जलपक्षी । बतर* - वि० बदतर ।
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बतरान* - स्त्री० बातचीत |
बतराना * - अ० क्रि० बातचीत करना । स० क्रि० वतलाना ।
बतरौहाँ * - वि० बातचीत करनेका इच्छुक । बतलाना-स० क्रि० दे० 'वताना' |
बताना - स० क्रि० कहना, बयान करना; जताना, समझाना; सूचित करना, प्रकट करना; गाने नाचने में उँग लियोंसे गान या नृत्यके भावोंको प्रकट करना; (ला० ) खबर लेना, मरम्मत करना (आने दो तो बताता हूँ) । बताशा - पु० दे० 'बतासा' ।
बतास * - स्त्री० वायुः वातरोग ।
बतासा - पु० खालिस शकरकी बनी हुई एक मिठाई, शर्कपुष्प; एक आतिशबाजी; बुलबुला ।
बतिया - पु० कुछ ही दिनोंका लगा हुआ छोटा फल | बतियाना। - अ० क्रि० बात करना । बतियार* - स्त्री० बातचीत ।
बतीसा- पु० बत्तीस दवाओं और मेवोंके योगसे बनाया हुआ लड्डू या हलवा जो प्रसूताको पुष्टिके लिए खिलाया जाता है; । दाँत काटनेका घाव, चिह्न | बतीसी - स्त्री० नीचे ऊपर की दंतपंक्ति, बत्तीसों दाँत; बत्तीस चीजों का समूह। मु० - खिलना - खुलकर हँसना । - झड़ना - दाँतोंका गिर जाना ।-दिखाना-दाँत दिखाना; हँसना । - बजना -अधिक जाड़ा लगना । वतू * - पु० कलाबत्त ।
बतोला- पु० धोखा देनेकी बात, भुलावा, झाँसा । बतौर - अ० [फा०] दे० 'ब' के साथ | बतौरी - स्त्री० उठा हुआ मांस, सूजन, ददौरा | बत्तक-स्त्री० दे० ' बतख' । बत्तिस - वि०, पु० दे० 'बत्तीस' |
बत्ती - स्त्री० रुई, पुराने कपड़े आदिकी ऐंठ या वटकर बनायी हुई पतली पूनी जिसे तेलमें डालकर दिया जलाते हैं; बुना हुआ, निवाड़ जैसा, फीता जिसे लंपोंमें डालकर जलाते हैं; कपड़े की कड़ी ऐंठी हुई धज्जी जो घावके भीतर भरी जाती है; मोमवती; फलीता; सींक आदिपर गंधद्रव्य लपेटकर बनायी हुई बत्ती जो पूजन आदिमें जलायी जाती है; चीरेका ऐंठा हुआ कपड़ा; चिराग; छाजन में लगानेका कास आदिका पूला । मु०-दिखाना - रोशनी दिखाना। - देना - दागना ( तोप आदि ) । - लगाना - जलाना, आग लगाना ।
बत्तीस - वि० तीस और दो । ५० बत्तीसकी संख्या, ३२ । बत्तीसा- पु० दे० 'बतीसा' |
बत्तीसी - स्त्री० दे० 'बत्तीसी' |
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बथुआ - पु० एक तरहका साग । बद-स्त्री० गिलटी; चौपायोंका एक रोग; बदला, एवज | वि० [फा०] बुरा; दुष्ट, खोटा; अशुभ। - अंदेशवि० बुरा चाहनेवाला, बदख्वाह । - अंदेशी - स्त्री० बदख्वाही । - अमनी - स्त्री० अशांति, उपद्रव । - अमलीस्त्री० अव्यवस्था, कुशासन - इंतज़ामी - स्त्री० कुप्रबंध ।
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५५१
- कार - वि० कुकमी; व्यभिचारी, दुश्चरित्र । -कारीस्त्री० कुकर्म, दुराचार; व्यभिचार, परस्त्री गमन । - क़िस्मत- वि० अभागा । -ख़त वि० जिसके अक्षर खराब हों | -ख़ती-स्त्री० बुरी लिखावट -ख़्वाहवि० बुरा चाहनेवाला, दुश्मन। -ख़्वाही - स्त्री० द्वेष, शत्रुता । - गुमान - वि० दूसरेके विषयमें बुरी धारणा रखनेवाला; संदेह करनेवाला; शक्की । -गुमानी - स्त्री० कुधारणा; शक । - गोई-स्त्री० बुराई, निंदा। -चलन - वि० दुश्चरित्र, व्यभिचारी । -ज़बान - वि० अपशब्द, गाली-गलौज करनेवाला; मुँहफट । - ज्ञात- वि० खोटा, नीच, कमीना | जायका - वि० जिसका स्वाद खराब हो, कुस्वाद । - तमीज़ - वि० जिसे तमीज, सलीका न हो, गँवार, अशिष्ट, गुस्ताख । - तमीज़ी - स्त्री० अशिष्टता, गुस्ताखी । -तर- वि० अधिक बुरा, ज्यादा खराब । -तरीन - वि० तुरे से बुरा, निहायत खराब । - तहज़ीब - वि० असभ्य, अशिष्ट; उजड्ड । - तहज़ीबी - स्त्री० अस भ्यता, अशिष्टता, उजड्डपन । - दयानस - वि० जिसकी नीयत दूसरे की जमा मार लेनेकी हो, बेईमान, बदनीयत । - दयानती - स्त्री० खयानत, बेईमानी । - दु (दु) आ - स्त्री० शाप, अहित कामनाका उद्गार । नज़र - वि० बुरी नजरवाला | स्त्री० बुरी निगाह, कुदृष्टि । - नसीब - वि० अभागा, बदकिस्मत । -नसीबी-स्त्री० दुर्भाग्य । - नस्ल - वि० बुरी नस्लका, नीच, कमीना । -नामवि० लोग जिसकी निंदा करते हों, जिसकी बुराईको प्रसिद्धि हो । - नामी स्त्री० लोकनिंदा, अपकीर्ति । - निगाह - वि०, स्त्री० दे० 'बदनजर' । नीयत - वि० बुरी नीयतवाला, बेईमान । नीयती स्त्री० इरादेका खोटा होना, बेईमानी । -नुमा - वि० जो देखने में बुरा लगे, भद्दा, कुरूप | - परहेज़ - वि० कुपथ्य करनेवाला । - परहेज़ी - स्त्री० कुपथ्य, अयुक्त आहार-विहार । - फेलवि० कुकर्मी, व्यभिचारी । -बख़्त-वि० अभागा, बदनसीब । - बू- स्त्री० दुर्गंध, कुबास । -मज़गी - स्त्री० बदमजा होना, कटुता, विगाड़। -मज्ञा - वि० जिसका स्वाद अच्छा न हो, कुस्वाद, फीका । मस्त - वि० शराब के नशे में चूर, मतवाला, मदहोश; कामुक । -मस्ती - स्त्री० मतवालापन; कामुकता । - मा ( आ ) श - वि० दुष्कर्म से जीविका करनेवाला; बुरे चाल-चलनका, दुर्वृत्त, दुष्ट, लुच्चा | पु० गुंडा, दुर्वृत्तजन । - मा ( मआ ) शीस्त्री० बदचलनी, खुटाई, दुष्टता। -मिज़ाज-वि० बुरे, तीखे स्वभाववाला, चिड़चिड़ा, बिगडैल । -मिज़ाजीस्त्री० स्वभावका तीखा होना, चिड़चिड़ापन । -रंगवि० बुरे रंगका, जिसका रंग उड़, बिगड़ गया हो, फीका । पु० जिस रंगको चाल हो उससे भिन्न रंग ( ताश ); भिन्न रंगको गोट ( चौसर ) । -राह-वि० बुरे चलनवाला, कुचाली, दुष्ट, खोटा । - रिकाब - वि० (घोड़ा) जो सवार होते समय शरारत करे। रोबी - स्त्री० रोब बिगड़ना; अप्रतिष्ठा । रौँह * - वि० दे० 'बदराह' । - लगाम - वि० मुहँ जोर, सरकश ( घोड़ा ); मुहँफट । -शकल, - शक्लवि० कुरूप, भोंड़ा। शगून- वि० अशुभ, मनहूस । - सलीकगी - स्त्री० बेशऊरी, फूहड़पन; बदतमीज़ी
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३५-क
बद-बदलाना
- सलीक़ा - वि० बेशऊर, बदतमीज ।-सलूकी - स्त्री० दुर्व्यवहार । - सूरत - वि० कुरूप, भोंदा, बुरी शकलका । - हज़मी - स्त्री० अपच, अजीर्ण । - हवास - वि० जिसका होश- हवास ठिकाने न हो, घबराया हुआ, उद्विग्न । -हवासी - स्त्री० होश- हवासका ठिकाने न होना, घबरा हट । - हाल - वि० जिसका हाल बुरा हो, दुर्दशाग्रस्त | बदन - पु० दे० 'वदन'; [फा०] शरीर, देह । मु० - जलनाबुखार की तेजी होना । - टूटना - जोड़ों में हलका दर्द, तनाव होना । - तख़्ता होना-बदन अकड़ जाना । - दुहरा होना - बदन झुक जाना। - फलना-बदनपर फोड़े-फुंसियाँ निकलना । - मेँ आग लगना- बहुत क्रोध होना । - साँचे में ढला होना- हर एक अंगका सुंदर और मुनासिब होना । सूखकर काँटा हो जानाबहुत दुबला हो जाना। -हरा होना- बदनका तर और ताजा होना ।
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बदना - स० क्रि० ठहराना; नियत, पक्का करना (कुश्ती, उसका दिन, स्थान आदि); शर्त लगाना; गिनना, समझना (वह किसी को कुछ बदता नहीं); मानना ( गवाह बदना ) | बदकर - अ० शर्त लगाकर, पूरे जोर के साथ | बदना* - स० क्रि० कहना, वर्णन करना - 'विप्र बदत बहु बढ़ि बढि बाता' - रघु० ।
बदमाश - वि० [फा०] दे० 'बद' के साथ ।
बदर - पु० [सं०] बेरका पेड़ या उसका फल; कपास । बदरा - स्त्री० [सं०] कपासका पौधा । * पु० बादल । बदराई * - स्त्री० बदली ।
बदरिका- स्त्री० [सं०] बेरका पेड़ या फल; गंगाका एक उद्गम स्थान तथा उसका निकटवर्ती आश्रम स्थान । बदरी - * स्त्री० बादल; [सं०] कपासका पौधा; दे० 'बदरिका' । - नाथ- पु० बदरिकाका मंदिर। -नारायणपु० बदरिकाश्रम प्रतिष्ठित नारायण-प्रतिमा; बदरिका नामक स्थान । - फल- पु० बेरका फल |
बदल - पु० [अ०] फेरफार, परिवर्तन; एवज, बदला । बदलना - अ० क्रि० एकसे दूसरी स्थितिमें जाना, भिन्न होना, रंग-रूप दूसरा हो जाना; एककी जगह दूसरा हो जाना, दूसरी जगह भेजा जाना, नियुक्त होना, तबादला होना; ( मत, विचार, स्वभावका ) दूसरा हो जाना ( अब वे बिलकुल बदल गये हैं ); बात से हटना, मुकरना । स० क्रि० दूसरा रंग-रूप देना, फेरफार करना; एकको छोड़कर या एकके बदले में दूसरी चीज लेना, काम में लाना ( कपड़ा, मकान ); एक चीज देकर दूसरी चीज लेना, बदला करना । बदलवाना - स० क्रि० बदलनेका काम दूसरे से कराना । बदला- पु० बदलनेकी क्रिया, अदल-बदल; एकके बदले दूसरी चीज देना, लेना; वह चीज जो किसी चीजके बदले में दी-ली जाय, मुआवजा; वह काम जो किसी कामके बदले में, जवाब में किया जाय, पलटा, प्रतिकार (चुकाना, लेना) ।
बदलाई - स्त्री० बदलनेकी क्रिया; बदले में ली या दी जानेवाली चीज; बदलने में ऊपर से लगनेवाली रकम ।
बदलाना - स० क्रि० दे० 'बदलवाना' ।
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बदली-बनना
५५२ बदली-स्त्री० छाये हुए बादल, घटा ।
बधूरा*-पु० बगूला, बवंडर । बदली-स्त्री० ('बदलना'से) एकके स्थान पर दूसरेका रखा, बधैया*-स्त्री० दे० 'बधाई। भेजा या लगाया जाना, तबादला ।
बध्य-वि० दे० 'वध्य' । बदलौवला-स्त्री० बदलनेकी क्रिया।
बन-पु० जंगल; बगीचा; कपास, दे० 'वन'; * घर । बदा-वि० नियत, भाग्यमें लिखा हुआ।
-आलू-पु० जमीकंदकी जातिका एक पौधा जिसकी जड़बदाबदी-स्त्री० होड़, प्रतियोगिता । अ० बढ़कर, प्रति- को बनवासी अकसर खोदकर खाते है। -कंडा-पु० योगिता-पूर्वक।
अपने आप सूखा हुआ गोबर जो इंधनका काम दे । बदाम-पु० दे० 'बादाम'।
-कटा-वि० जंगली (लकड़ी)। -कपासी-स्त्री० एक बदामी-वि० दे० 'बादामी' ।
पीधा जिसके रेशेसे रस्सी बटते हैं । -कर-पु० जंगलकी बदि-स्त्री० बदला, एवज । अ० बदले, एवजमें । पैदावारपर लिया जानेवाला कर।-खंड- पु० बनका बदी-स्त्री० कृष्ण पक्ष, अँधेरा पाख[फा०] चुराई, अपकार । कोई भाग, वनस्थली। -खंडी-स्त्री. बनखंड । पु० बदूख*-स्त्री० दे० 'बंदूक' ।
बनवासी। -खरा-स्त्री० वह जमीन जिसमें कपासकी बदूर, बदूल*-पु० दे० 'बादल'।
फसल बोयी गयी रही हो। -गरी*-स्त्री० एक मछली । बदौलत-अ० [फा०] दे० 'ब'के साथ ।
--चर-पु० दे० 'वनचर'। -चरी-स्त्री० एक जंगली बद्ध-वि० [सं०] बंधा हुआ; बांधा हुआ; भव बंधन में फंसा घास । -चारी-वि०, पु० दे० 'वनचारी' ।-चौर,हुआ, अमुक्त (जीव); जुड़ा हुआ (बद्धांजलि); जमा हुआ चौरी-स्त्री० सुरागाय । -ज,-जात-वि०, पु० दे० रचित; बंद किया हुआ प्रदर्शित, प्रकटित । -कोष्ठ-वि० 'वनज', 'वनजात'। --तुलसी-स्त्री० एक पौधा जिसकी जिसे कोष्ठबद्धताका रोग हो, कब्जसे पीड़ित । -दृष्टि,- पत्तियाँ और मंजरी तुलसीसे मिलती है, बर्बरी । -दनेत्र,-लक्ष्य-वि० जो किसी चीजपर ऑग्में गड़ाये, पु० बादल, वनद । -दाम-पु० वनमाला। -देव,जमाये हो। -परिकर-वि०जिसने कमर बांध ली हो, देवता-पु० दे० 'वनदेवता'।-देवी-स्त्री० दे० वनदेवी'। तैयार । -प्रतिज्ञ-वि० वनबद्ध ।-मुष्टि-वि० जिसकी -धातु-स्त्री० गेरू, रंगोन मिट्टी।-निधि-पु० समुद्र । मुट्ठी दानके लिए न खुले, कंजम; जिसकी मुट्ठी बंधी हो।। -नीबू-पु० एक सदाबहार क्षुप। -पट-पु० पेड़ोंकी
-मूल-वि० जिसने जड़ पकड़ ली हो, दमूल । छालका बना कपड़ा। -पति-पु० सिंह । -पथ-पु० बद्धांजलि-वि० [सं०] सम्मान-प्रदर्शनके लिए जिसके । जंगलसे होकर गया हुआ रास्ता। -पाती-स्त्री० वनहाथ जुड़े हों।
स्पति । -पाल-पु० बगीचेका रक्षक माली । -बसनबद्धी-स्त्री० बाँधने का साधन, डोर, रस्सी; गले में पहनने- पु० छालका बना हुआ कपड़ा। -बारी-स्त्री वनकन्या; का एक गहना।
* पुष्पोद्यान । -बास-पु० वनमें बसना; घर छोड़कर बध-पु० [सं०] दे० 'वध' ।
अधिक कष्टके स्थानमें रहनेको विवश किया जाना। बधना-स० क्रि० वध करना, मार डालना । पु० टोटीदार ! -बासी-पु० इनमें रहनेवाला, जंगली । -बाहन-पु० पात्र जिससे मुसलमान प्रायः लोटेका काम लेते है। नौका, जलयान । -बिलाव-पु० बिल्लीकी जातिका एक बधाई-स्त्री० बधावा, उत्सव; मंगलाचार; खुशीके मौके- वन्य जंतु । -मानुस-पु० बिना पँटका बंदर जिसकी परका गाना बजाना; इष्ट-मित्रके हर्ष, सफलतापर किया शकल आदमीसे कुछ अधिक मिलती है; निरा जंगली, जानेवाला हर्ष प्रकाश, मुबारकबाद; मुकारकबादका गीत, असभ्य मनुष्य ।-माल,-माला-स्त्री० दे० 'वनमाला'.। शुभ अवसरपर दिया जानेवाला उपहार । मु०-बजना- -माली-पु० दे० 'वनमाली' । -मुरगा-पु० जंगली पुत्र-जन्म आदिपर बाजा, खासकर शहनाई, बजना। मुरगा। -मूंग-पु० मोठ ।-रखा-पु० वनकी रखवाली बधाना*-स० क्रि० वध कराना।
करनेवाला; बहेलियोंकी एक जाति ।-राज-पु० जंगलका बधाया*-पु० बधाई।
राजा, सिंह; बहुत बड़ा वृक्ष ।-राय-पु० दे० 'बनराज'। बधावना, बधावरा*-पु० दे० 'बधावा' ।
बनउरी-पु० बिनौला; ओला । बधावा-पु० बधाई; मंगलाचार; पुत्रजन्म आदिके अवसर बनक*-स्त्री० बाना, भेष बनावट; बनकी उपज । पर भेजा जानेवाला उपहार ।
बनज़-पु० दे० 'बनिज'; दे० 'बन'में । बधिक-पु० बध करनेवाला, जल्लाद; व्याध, बहेलिया। बनजना*-स० क्रि० व्यापार करना । बधिया-पु० बैल, घोड़ा, बकरा आदि जिसका अंडकोश बनजारन, बनजारी-स्त्री० बनजारेकी स्त्री। कुचल या निकाल दिया गया हो, आखता बैल(?)।मु०- बनजारा-पु० जो बैलोंपर अनाज लादकर बेचनेको ले बैठना-चलते हुए बेलका बैठ जाना; घाटा होना ।
जाय, टाँडा लादनेवाला; बनिज, व्यापार करनेवाला। बधियाना -स० क्रि० वधिया करना।
बनजी*-पु० व्यापारी । स्त्री० व्यापार-कोइ खेती कोइ बधिर-पु० [सं०] बहरा ।
बनी लागे'-सुंदर। बधिरता-स्त्री० [सं०] बहरापन ।
बनत-स्त्री० बनावट, मेल; सलमे सितारेकी बेल जिसके बधू-स्त्री० दे० 'वधू'।
दोनों ओर हाशिया हो।। बधूक-पु० दे० 'बंधूक' ।
बनताई*-स्त्री० बनकी भयंकरता। बधूटी-स्त्री० दे० 'वधूटी' ।
बनना-अ० कि० बनाया जाना, निमित, रचित, तैयार
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नारा
५५३
बननि-बबुआ होना नया रूप मिलना; दूसरी स्थितिमें जाना, आसीन, बनावना*-स० क्रि० दे० 'बनाना। नियुक्त होना; सुधरना दुरुस्त होना; सिद्ध, सफल होना | बनावरि-स्त्री० बाणोंकी अवलि, पंक्ति । (काम, बात); सजना, सँवारना; बनावट करना, जो बात बनासपाती*-स्त्री० दे० 'वनस्पति'-'नासपाती खाती अपने में न हो उसका प्रदर्शन करना; फटका जाना, साफ | वे बनासपाती खाती है'-भू० । होना (अनाज); बेवकूफ बनाया जाना; मालदार होना; बनि*-स्त्री० अन्नके रूपमें दी जानेवाली दैनिक मजदूरी। पटना, मेल होना हो सकना, शक्य होना । मु०बन -हार-पु० बनीपर काम करनेवाला; खेतीके काममें आना-संयोग मिलना, अभीष्ट-सिद्धिका अवसर मिलना। किसानकी सहायता करनेवाला स्वतंत्र मजदूर । बनना-टनना-बनाव-सिंगार करना, सजना-सँवारना। बनिक-पु० दे० 'वणिक' ।। बन पड़ना-हो सकना, शक्य होना । बन-बनाकर बनिज-पु० दे० 'वाणिज्य'। -ब्योपार-पु० वाणिज्य-बनकर, पूरी तरह बनकर। बना रहना-कायम रहना,
___ व्यापार। मौजूद रहना।
बनिजना-स० क्रि० व्यापार करना; क्रय करना। बननि*-स्त्री० बनाव, सिंगार, बनावट ।
बनिजारा-पु० दे० 'बनजारा'। बनप्रशई-वि० [फा०] बनफ्शेके रंगका ।
बनिजारिन, बनिजारी-स्त्री० बनजारेकी स्त्री। बनरा-पु० दूल्हा; (लड़के) ब्याह में गाया जानेवाला बनित*-पु० बाना; सजावट । एक गीत; * बंदर।
बनिता-स्त्री० स्त्री पत्नी । बनरी-स्त्री० दुलहिन, नववधू ; मर्कटी ।
बनिया-पु० व्यापार करनेवाली एक हिंदू जाति, वैश्य बनयना*-स० कि० बनाना।
आटा-दाल आदि बेचनेवाला। बनवाना-स० क्रि० बनानेका काम दूसरेसे कराना। | बनियाइन-स्त्री. गंजी जैसी कुरती जो बुनी होती है। बनवारी-पु० वनमाली, कृष्ण ।
बनियेकी स्त्री। बनवैया -पु० बनानेवाला; बनवानेवाल।।
बनी-स्त्री० अन्नके रूपमें मिलनेवाली दैनिक मजदूरी बनसपती -स्त्री० दे० 'वनस्पति' ।
वनस्थली; वाटिका; दुलहिन; वधू, नायिका। * पु० बनाइ*-अ० दे० 'बनाय' ।
वणिक , बनिया। बनाउ* -पु० दे० 'बनाव' ।
बनीर* -पु. बेत, वानीर । बनाउरि-स्त्री० बाणावली।
बनेटी-स्त्री० पटेबाजीके अभ्यासमें काममें लायी जानेवाली बनागि*-स्त्री० दावानल ।
वह लाठी जिसके दोनों सिरोंपर लटटू लगे रहते हैं। बनाग्नि-स्त्री० दावानल ।
बनैला-वि० जंगली, वन्य । बनात-स्त्री० एक रंगीन ऊनी कपड़ा।
बनोबास*-पु० दे० 'वनवास' । बनाना-स० कि० रचना, निर्माण करना, तैयार करना बनौआ, बनौवा-वि० बनावटी। वस्तुको काममें लाने लायक रूप देना; नया रूप देना, बनौटी-वि० कपासके फूलके रंगका, कपासी। दूसरी वस्तुमें बदल देना (सबसे शकर, दोस्तसे दुश्मन बनौरी -स्त्री० ओला, उपल । इ०); गढ़ना, रचना (वात, बहाना); साफ करना,विनना- बन्नी-स्त्री० अन्नके रूपमें मिलनेवाली दैनिक मजदूरी फटकना (अनाज); काट-छीलकर दुरुस्त करना; सँवारना; बनरी, दुलहिन । किसी पदपर नियुक्त, आसीन करना; सुधारना, मरम्मत बन्हि-पु० दे० 'वहि' । करना कमाना, पैदा करना (रुपया बनाना), व्यंग्य द्वारा बप-पु० बाप, पिता। -भार-पु० वापकी हत्या करने उपहास करना, व्याज-निंदा द्वारा लजवाना। बना. वाला। कर-अ० अच्छी तरह । मु०-पछोड़ना-पाटकना,साफ बपतिस्मा-पु० [अं० 'बैपटिम'] ईसाई धर्मकी दीक्षाके करना। -बिगाड़ना-अच्छी या बुरी हालत में पहुँ- समय किया जानेवाला एक संस्कार । चान।। बनाये रखना-जिंदा रखना, कायम रखना। | बपना*-सक्रि० बीज बोना, वपन । बनाबंत, बनाबनत*-पु० वर-कन्याकी जन्मपत्रियोंका
न्मपत्रियोका बपु, बपुख*-पु. शरीर; रूपअवतार । मिलान ।
बपुरा*-वि० बेचारा, दीन, अशक्त । बनाय*-अ० अच्छी तरह; बहुत ज्यादा; बिलकुल। बपौती-स्त्री० बापकी छोड़ी हुई जायदाद, पैतृक संपत्ति । बनाव-पु० बनावट बनना-सँवरना; युक्ति, उपाय; मेल । बप्पा -५० बाप (प्रायः संबोधनरूपमें प्रयुक्त)। -सिँगार-पु० बनना-सँवरना।
बफारा-पु. भाप; दवा मिले हुए पानीकी भापसे शरीर बनावट-स्त्री० बनानेका भाव, रचना, गठन रूप; बनने. | या अंगविशेषको सेंकना (देना, लेना)। का भाव, आडंबर, दिखावा, नुमाइश ।
बफौरी-स्त्री० भापसे पकायी हुई बरी। बनावटी-वि० दिखाऊ कृत्रिम, नकली।
बबकना-अ० क्रि० उत्तेजित होकर पोलना, बमकना * बनावनो-पु. अनाज बनानेपर निकलनेवाली मिट्टी, उछलना। कंकड़ी, कचरा आदि।
बबर-पु० [फा०] अफ्रीकामें पाया जानेवाला शेर, सिंह । बनावनहार, बनावनहारा*-पु० बनानेवाला, रचयिता; / बबा*-पु० दे० 'बाबा' । सुधारनेवाला।
| बबुआ-पु० बड़ा जमींदार, बाबू; पुत्र, दामाद, देवर
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बबुई-बरछी
५५४ आदिका स्नेहसूचक संबोधन ।
काट लेता है। साई । * अ० कि० बड़बड़ाना । बबुई।-स्त्री० बड़े जमींदार, बाबूकी बेटी; बेटी; छोटी ननद। बयाबान-पु० [फा०] जंगल, उजाइखंड । बबुरी-पु० दे० 'बबूल'।
बयार, बयारि*-स्त्री. हवा, वायुः शीतल-मंद वायु । बबूल-पु० एक प्रसिद्ध कँटीला पेड़, कीकर ।
मु०-करना-पंखा झलना, पंखेसे हवा करना। बबूला-पु० दे० 'बगूला'; दे० 'बुलबुला' ।
बयारी-स्त्री० ब्यालू दे० 'बयार'। बभनी-स्त्री० जोंकके आकारका छिपकली जैसा एक जंतु । बयाला*-पु. वह छेद जो बाहरका दृश्य देखने या गोली बम-पु. शिवकी प्रसन्नताके लिए कहा जानेवाला एक चलानेके लिए. दीवार में बना हो; ताखा, आला। शब्द; एक्के, बैलगाड़ी आदिमें आगेकी ओर निकला हुआ बयालीस-वि० चालीस और दो। पु० ४२ की संख्या । बाँस या लकड़ी जिसमें घोड़े जोते जाते हैं। शहनाईके बयासी-वि० अस्सी और दो। पु० ८२'की संख्या। साथका छोटा नगाड़ा। -भोला-पु० शिव । मु०- बर-पु० दूल्हा । -काज*-पु० व्याह । -का पानीबोलना-समाप्त हो जाना (शक्ति, पूँजी, सामग्री आदि- नहछुके. समय बरका नहाया हुआ पानी जो कन्याको का), दिवाला हो जाना।
नहलानेके लिए उसके यहाँ भेजा जाता है। - नेत-स्त्री० बम-पु० [अं॰ 'बॉम'] लोहेका लंबोतरा गोला जिसमें बारूद व्याहकी एक रस्म ।
और छिटकनेवाली चीजें भरी होती है और जो हवाई बर*-पु० दे० 'बल'-'देख्यो मैं राजकुमारनको पर'जहाजसे गिराया जाता या हाथसे तथा तोपमें भरकर राम० । -जोर-वि० जोरदार, जबर्दस्त । -जोरीभी फेंका जाता है। -कांड-पु० बमका प्रहार, विस्फोट। स्त्री० जबर्दस्ती । अ० बलात् । -गोला-पु० बमका गोला। -बाज़-पु० दुश्मनपर बम बर*-पु० बरगद बरदान, आशीर्वाद । अ० बल्कि । वि० बरसानेवाला (हवाई जहाज)। -बाजी,-बारी-स्त्री० श्रेष्ठ । -गंध-पु० सुगंधित मसाला । बम-वर्षा । -वर्षक,-वर्षी-पु० (बमर ) प्रस्फोटी(बमो) बर-अ० [फा०] अपर, पर बाहर । पु० फल; क्रोड, बगल; की वर्षा करनेवाला हवाई जहाज ।
देह । प्र० ले जानेवाला, ढोनेवाला (दिलबर इत्यादि)। बमकना-अ० क्रि० आवेशमें अपने बल-पौरुषकी डींग -करार-वि० स्थिर, कायम, बहाल; दृढ़ जीवित; बना मारना; उछलना; फूटना।
हुआ । -खास,*-खा(ख्वा)रत-वि० उठा हुआ, बमचख-स्त्री० शोरगुल (मचान।)।
विसर्जित (जलसा आदि); समाप्त; नौकरीसे अ.ग किया बमना*-स० क्रि० वमन करना ।
हुआ, बरतरफ । -खास्तगी-स्त्री. समाप्ति; बरतरफी। बमीठा-पु० बाँबी, वल्मीक ।
-खिलाफ--वि० विरुद्ध, प्रतिकूल । अ० (के) विरुद्ध । बम्हनी-स्त्री० दे० 'बभनी'; आँखका एक रोग, बिलनी; -तरफ-वि० नौकरीआदिसे अलग किया हुआ, मौकूफ।
हाथीकी पूँछ सड़नेका एक रोग; लाल रंगकी जमीन। -दाश्त-स्त्री० सहना, उठाना; जानवरों की देखभाल, बयँ हत्था-वि० (लैफ्ट हैंडर) कामकाजमें बायें हाथका ही रखरखाव ।-पा-वि० खड़ा,उपस्थित । [मु०-पा होना विशेष रूपसे प्रयोग करनेवाला; बायें हाथसे गेंद फेंकने- -खड़ा होना, मचना (फसाद बरपा होना)।]-वादवाला, वामहस्तिक।
वि० फेंका हुआ, नष्ट; तबाह (जाना, होना)। -बादीबब-पु०, स्त्री० दे० 'वय' । स्त्री० जुलाहोंका एक औजार, स्त्री० नाश; तबाही, खराबी। -वक्त-अ० समयपर, कंधी।
मौकेपर। बयन*-पु० दे० 'बैन ।
बरई-पु० तमोली । बयना*-स० क्रि० बीज बोना; वर्णन करना। अ० क्रि० | बरकंदाज़-पु. लंबी लाठी या बंदूक लेकर चलनेवाला बहना, लगना, आरोपित होना । पु० मित्रों तथा संव- सिपाही; चौकीदार । धियोंके यहाँ भेजा जानेवाला पकवान ।
बरकत-स्त्री० [अ०] वृद्धि, बढ़ती; सौभाग्य; लाभ; बहुबयर*-पु० दे० 'बैर'।
तायत; बढ़ती करनेका गुण, प्रभाव, प्रसाद । बयस-स्त्री० दे० 'वय (स। -वाला*-वि० वयस्क, बरकना -अ०क्रि० घटित न होना; टलना; बचना युवा । -सिरोमनि*-स्त्री० जवानी, यौवन ।
अलग रहना । स० क्रि० रोकना, मना करना । बया-पु० गौरेयासे मिलती-जुलती एक चिड़िया जो अपना बरकाना*-स० क्रि० निवारण करना; हटाना; बचाना घोंसला बड़े कौशलसे बनाती है; आदतों आदिमें माल | पीछा छुड़ाना।। तौलनेका काम करनेवाला।
बरख*-पु० दे० 'वर्ष'। बयाई-स्त्री० बयाका धंधा तौलनेकी उजरत, तौलाई। बरखना-अ० कि० बरसना । स० क्रि० बरमाना । बयान-पु० [अ०] कथन, वचन, उक्ति; वर्णन; वक्तव्यः | बरखा*-स्त्री० वर्षा; वर्षा ऋतु । तथ्योंका विवरण जो अदालतमें वादी या प्रतिवादी द्वारा | बरखाना*-स० क्रि० दे० 'बरसाना'। लिखकर या जबानी प्रस्तुत किया जाय । -तहरीरी- बरग-पु० दे० 'वर्ग'; दे० 'बर्ग'। पु० लिखा हुआ बयान जो प्रतिवादी अरजी दावेके जवाब- बरगद-पु० बड़का पेड़, वटवृक्ष । में दाखिल करता है।
बरच्छा -स्त्री० दे० 'बरेच्छा'। बयाना-पु० वह रकम जो सौदा पक्का करनेके लिए खरी- | बरछा-पु० भाला। दार बेचनेवालेको पेशगी देता और पीछे वस्तुके मूल्यमेंसे | बरछी-स्त्री० छोटा बरछा।
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बरतन - पु० मिट्टी, धातु आदिका पात्र जो खासकर खाने पीने की चीजें रखने या पकाने के काममें लाया जाय, भाँड़ा । बरतना - स० क्रि० काममें लाना, इस्तेमाल करना; बर्ताव करना ।
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बरवै - पु० एक मात्रिक छंद ।
बरछैत* * पु० बरछा रखने, चलानेवाला । बरजना * - स० क्रि० मना करना, रोकना । बरजनि * - स्त्री० मनाही, रोक ।
बरपना* - अ० क्रि०, स० क्रि० दे० 'बरसना' । बरषा* - स्त्री० दे० 'वर्षा' |
बरत - पु० दे० 'व्रत' । स्त्री० रस्सी; वह रस्सी जिसपर बरपाना* - स० क्रि० दे० 'बरसाना' । चढ़कर नट खेल करता है ।
बरतनी - स्त्री० शब्दका वर्णक्रम, वर्त्तनी, हिज्जे । बरताना - स० क्रि० बाँटना, वितरण करना । ५० पुराने कपड़े, उतारा ।
बरताव - पु० बरतनेका ढंग, व्यवहार । बरती - वि० दे० ' व्रती' । स्त्री० बत्ती । बरतोर+ - ५० दे० 'बलतोड़' । बरद, बरदा* - पु० दे० 'बरधा ' । बरदाना - अ० क्रि० गाय, भैंस आदिका जोड़ा खाना, गाभिन होना । स० क्रि० गाभिन कराना । बरदिया, बरधिया* - पु० चरवाहा । बरध, बरधrt - पु० दे० 'बैल' ।
बरधाना - अ० क्रि०, स० क्रि० दे० 'बरदाना' । बरन* - ५० रंग । अ० बल्कि ।
बरनन * - ५० दे० 'वर्णन' ।
बरनना * - स० क्रि० वर्णन करना ।
बरना * - स० क्रि० वरण करना, चुनना; ब्याहना; वारण करना; मना करना; नियुक्त करना; निमंत्रित करना । अ० क्रि० जलना ।
बरफ - स्त्री० दे० 'ब' ।
बरफ़ानी - वि० दे० 'बर्फानी' ।
बरफी - स्त्री० एक मिठाई जो चीनीकी चाशनी में खोया, पेठा, बेसन आदि मिलाकर बनायी जाती है । बरफ़ीला - वि० दे० 'बफला' ।
बरबंड * - वि० दे० 'बरिबंड' ।
बरबट * - अ० बरबस, हठात् ।
बरबर - पु० उत्तरी अफ्रीकाका सहाराके उत्तर और मिस्र तथा भूमध्यसागरको बीचका भूखंड, बर्बर, हब्श । वि० असभ्य, जंगली, बर्बर । * स्त्री० दे० 'बड़बड़' । बरबरियत - स्त्री० बर्बरता, जंगलीपन । बरबस - अ० जबर्दस्ती, बलपूर्वक; अकारण, व्यर्थ । बरम * - पु० दे० 'वर्म' ।
बरमा - पु० लकड़ी में छेद करनेका औजार; ब्रह्मदेश । बरमी - पु०बरमावासी । स्त्री०बरमाकी भाषा; छोटा बरमा । बरम्हा* - पु० ब्रह्मा; बरमा । बरम्हाउ * - पु० दे० 'बरम्हाव' |
बरम्हाना, बरम्हावना * - स० क्रि० आशीर्वाद देना । बरम्हाव * - पु० ब्राह्मणत्व; आशीर्वाद |
बरराना - अ० क्रि० दे० 'बना' । बररे - पु० बरे, भिड़ |
बरवट - स्त्री० तिल्ली । बरवा - पु० दे० ' बरवै' ।
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बरछै-बराटिका
बरषासन - पु० दे० 'वर्षाशन' |
बरस-पु० कालका वह मान जिसमें पृथ्वी सूर्यकी एक बार परिक्रमा करती है, ३६५ दिन ५ घंटे ४८ मिनट ४६ सेकेंड का समय, वर्ष । - गाँठ - स्त्री० जन्मदिवस, सालगिरह; जन्मदिवसका उत्सव । दिनका दिन, - बरसका दिन- खुशीका दिन, त्योहार जो सालभर के बाद आये । बरसना - अ० क्रि० वायुमंडलके जलांशका घनीभूत होकर बूँदोंकी शकल में नीचे आना, वर्षा होना; बूँदोंकी तरह गिरना, झड़ना (फूल, रुपये ); इफरातसे मिलना; साफ झलकना, टपकना । स० क्रि० बरसाना । मु० बरस पड़ना - बहुत क्रुद्ध होकर अनाप-शनाप बकना,
फटकारना ।
बरसाइत - स्त्री० जेठ बदी अमावस्या, वट सावित्री व्रत; * वर्षाऋतु ।
बरसाऊ - वि० बरसनेवाला (बादल) । बरसात - स्त्री० वर्षाके दिन, वर्षाऋतु, मोटे हिसाब आषाढ़से आश्विनतकका समय ।
बरसाती - वि० बरसातका; बरसात में होनेवाला | पु० मोमजामे या दूसरे वाटरप्रूफ कपड़ेका बना हुआ ओवरकोट; वाटरप्रूफ; बरसात में सोने लायक सबसे ऊपरकी मंजिल पर बना हुआ हवादार कमरा या बरामदा; मकानके आगे बना हुआ छतदार फाटक जिसमें घोड़ा गाड़ी आदि जाकर रुकती हैं; घोड़ोंका एक रोग; बरसात में पैर आदिमें होनेवाले फोड़े ।
बरसाना - स० क्रि० वर्षा करना; वर्षाकी बूँदोंकी तरह गिराना; बड़ी संख्या, मात्रा में फेंकना, बसेरना (फूल) । पु० गोकुलके समीपका प्रसिद्ध गाँव जो वृपभानुकुमारी राधाका जन्मस्थान माना जाता है ।
बरसात - स्त्री० शुभ-मुहूर्त्त; दे० 'बरसाइत' । बरसी - स्त्री० मृत्युके एक बरस बादका श्राद्ध । बरसीला* - वि० बरसानेवाला । बरस हा * - वि० बरसनेवाला । बरहमंड - ५० दे० 'ब्रह्मांड' |
बरहा - पु० मोटा रस्सा; खेतोंकी सिंचाईके लिए बनी हुई नाली ।
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बरही - स्त्री० प्रसूताका शिशु जन्मके १२ दिनका स्नान; उस दिनका उत्सव; * जलानेकी लकड़ीका गट्ठा; मोटी रस्सी । पु० मोर; वर्हि, आग।-पीड़-पु०मोरके पंखोंका मुकुट | - मुख* - पु० अग्निमुख, देवता । बरहीँ * - पु० जन्मके बादका बारहवाँ दिन । वरांडा - पु० दे० 'बरामदा ' |
बरांडी - स्त्री० 'ब्रांडी' नामक शराब ।
बरा - पु० दे० 'बड़ा' ; * वटवृक्ष; बाहुपर पहननेका एक गहना । बराई * - स्त्री० दे० 'बड़ाई' ।
बराक- पु० दे० ' वराक' । वि० शोचनीय; बेचाराः तुच्छ । बराटिका - स्त्री० दे० ' वराटिका' ।
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-अर्जना
बरात -
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बरात - स्त्री० वरके साथ कन्यापक्षके यहाँ जानेवाले लोग, जनेत; दूल्हाकी सवारीका जुलूस, भीड़, मजमा । मु०करना - बरात में शामिल होना ।
बराती - वि० बरातसे संबंध रखनेवाला, वरपक्षकी ओरसे कन्यापक्षको यहाँ जानेवाला । पु० बरात में आये हुए लोग । बराना - स० क्रि० परहेज करना, बचाना, अलग रखना; टालना; रक्षा करना; चुनना, छाँटना; * जलाना । अ क्रि० जलना - 'नैन दीठ नहिं दिया बराही' - प० । बराबर - वि० [फा०] समान, तुल्य; मध्शः समतल, हमवार: बल, दरजे आदि में समान, समकक्ष । अ० लगातार; एक पंक्ति में; साथ; सदा; तक। -का-विवल, वय आदिमें समान जोड़का; सामनेका ( बराबर के मकान में) । - बराबर - अ० साथ-साथ, एक पाँत; समान भाग में, आधे आध | मु० - करना - समतल करना; परिमाण, ऊँचाई आदि समान करना; खतम कर देना, बाकी न छोड़ना (सारी कमाई खा-पीकर बराबर कर दी ) । -- (पर) छूटना - कुस्ती, बटेरों आदिकी लड़ाई लड़नेवालोंका विना हारे-जीते अलग हो जाना, किसीकी जीत-हार न होना । - से निकलना - पाससे निकलना । बराबरी - स्त्री० समानता, प्रतिस्पर्द्धा; गुस्ताखी । बरामद-पु० [फा०] बाहर आना, निकलना, प्रकट होना; निकास; मालकी रवानगी; नदीके हटनेसे निकलनेवाली जमीन, गंगबरार ( बर + आमद = ऊपर, बाहर आना) । मु०-करना-छिपी छिपायी हुई चीजको बाहर लाना, प्रकट करना (चोरीका भाल, खजानेसे रुपया ) । - होना - बादर आना, प्रकट होना ।
|
बरामदगी - स्त्री० [फा०] बरामद होना । बरामदा - पु० [फा०] मकान या बालाखानेकी दीवार से लगाकर बनाया हुआ सायबान जिसकी छत या छाजन खंभों पर टिकी हो ।
बराय - अ० [फा०] वास्ते लिए। ख़ुदा- अ० खुदा के बास्ते, ईश्वर के नामपर । -नाम- अ० नामके लिए, दिखानेको ।
वरीस* - पु० दे० 'वरस' ।
वरीसना* - अ० क्रि० दे० ' बरसना' । बरु* - अ० बल्कि; भले ही ।
बरुआ, बरुवा - पु० ब्राह्मणकुमार जिसका उपनयन हो रहा हो; उपनयन; वह गीत जिसे गाकर भिक्षुक वृत्तिवाले ब्राह्मण उपनयनको निमित्त भीख माँगते हैं । बरुक* - अ० द० 'ब' । वरुणालय-५० समुद्र । बरुन * - पु० दे० 'वरुण' |
बरुनी - स्त्री० पलकके किनारे के बाल, बरौनी । वरूथ-पु० दे० 'वरूथ' ।
बरेड़ा - पु० ठाठके नीचे लंबाई में दिया जानेवाला गोला बल्ला ।
बड़ी - स्त्री० छोटा बडा ।
|
बरे - अ० ऊँची आवाजसे; बलपूर्वक बदले में । बरेखी, बरेपी- स्त्री० ब्यादकी ठहरौनी, मँगनी; बाँहपर पहनने का एक गहना । बरेच्छा - स्त्री० व्याद्दकी टहरौनी । बरेज, बरंजा - पु० पानकी बाड़ी | बरंट, बरेठा -५० धोबी ।
वरत * स्त्री० मथानीकी रस्सी । बरेदी - ५० वरवादा |
बरेड़ा-पु० दे० 'बरे' |
बरोक - पु० वह धन जो कन्यापक्षकी ओर से वरपक्षको इसलिए दिया जाता है कि ब्याइकी बातचीत पक्की समझी जाय, फळदान [बर - रोक ] । अ० बलपूर्वक -- 'होट सो बेलि जेहि बारी आनद्दि सबै बरोक' - ५० |
बरायन* - पु० विवाह के समय दूल्हे को पहनाया जानेवाला बरोठा, बरौठा - पु० डेवढ़ी; बेठक । ( बरोठे ) का चारलोहेका छल्ला; विवाहक समयका कलश |
द्वारपूजा ।
बरार - पु० एक जंगली जानवर; मध्यप्रदेशका एक भाग । बराव - ५० वरानेका भाव, बचाव, परहेज |
बराह - पु० दे० 'वराह' । अ० दे० 'ब' में
बरिआई * - स्त्री० जबर्दस्ती । अ० बलपूर्वक ।
वरिआत * - स्त्री० दे० 'बरात' |
बरिआार* - वि० बलवान् - ' तपवल विप्र सदा बरिआर।'
- रामा० ।
बरिच्छा - स्त्री० वरेच्छा, फलदान ।
बरिबंड* - वि० बलवान प्रचंड, दुर्धर्ष ।
बरिया + - स्त्री० बटिका, गोली । वि० दे० 'बरियार' | बरियाई* - स्त्री० अ० दे० 'बरिआई' | बरियात - स्त्री० दे० 'वरात' ।
बरियार - वि०बलवान्, शक्तिशाली । पु० दे० ' बरियारा'। बरियारा - पु० एक पौधा जिसकी जड़ दवा के काम आती है । बरिषना* - अ० क्रि० 'बरसना' ।
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५५६
वरिपा* - स्त्री० दे० 'वर्षा' । बरिस-पु० दे० 'बरस' |
बरी - * वि० वली; [अ०] आजाद, रिहा; फारिंग; निर्दोष । स्त्री० [हिं०] फेंका हुआ कंकड़, कंकड़का चूना दे० 'बड़ी' | - का चूना - कंकड़का चूना जो पलस्तर आदिके काम आता है ।
बरोरु* - वि० दे० ' वरोरु' ।
बरोह - ५० बरगदकी डालियोंसे निकलनेवाली प्रशाखा जो धीरे-धीरे जमीनतक पहुँचकर जड़ पकड़ लेती है, बरगद की
जटा ।
बरौली - स्त्री० सूअर के बालोंकी कुँची जिससे सुनार गहना साफ करनेका काम लेते हैं ।
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बरौनी-स्त्री० पलकके किनारे के बाल; पानी भरने आदिका काम करनेवाली टहलनी, कहारिन । बरौरी * - स्त्री० वही |
बर्फी - वि० बिजलीका; बिजलीकी शक्तिसे चलनेवाला । बर्खास्त - वि० दे० 'बरखास्त' ।
बर्ग - पु० [फा०] पत्ता; लड़ाईका हथियार | बर्छा - पु० दे० 'वरछा' ।
बर्ज* - वि० दे० 'वर्य' ।
बर्जना - स० क्रि० दे० 'बरजना' ।
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५५७
वर्णन - पु० दे० 'वर्णन' ।
वर्णना * - स० क्रि० वर्णन करना । स्त्री० दे० 'वर्णना' | बर्तन, बर्त्तना-स० क्रि० दे० 'बरतना' |
बर्ताव - पु० दे० ' बरताव' ।
बर्तुल - वि० दे० 'वर्तुल' । बर्द - पु० बैल |
बर्न * - पु० दे० 'वर्ण' ।
बर्नना* - सु० क्रि० वर्णन करना । स्त्री० दे० 'वर्णना' । बर्फ़ - स्त्री० [फा०] जमा हुआ पानी; वायुमंडलकी भाप जो सरदीसे घनीभूत होकर रुईके गालेकी शकल में जमीनपर गिरती और फिर जमकर कड़ी हो जाती है; बर्फमें रखकर जमाया हुआ दूध, फलोंका रस आदि । वि० बर्फ : जैसा ठंढा; बर्फसा सफेद ( होना, हो जाना ) । की नदीहिमानी, ग्लेशियर |
|
बर्फानी - वि० [फा०] बर्फका; बर्फसे ढका हुआ ( - पहाड़) | बर्फी - स्त्री० दे० 'बरफी' ।
बर्फीला - वि० बर्फ से युक्त; बर्फ से ढका हुआ ।
बर्बटी - स्त्री० [सं०] राजमाष; वेश्या ।
बर्बर - वि० [सं०] असभ्य, जंगली, उजड्ड; अनार्य; धुँधराले | पु० घुघराले बाल, जंगली, असभ्य आदमी; एक कोड़ा; एक मछली; एक सुगंधित तृण; हथियारोंकी आवाज; एक तरहका नृत्य |
|
बरी (रि) - वि० [सं०] धुंघराले वालोवाला | बरी - पु० भिड़ |
बर्राना - अ० क्रि० सपना देखते हुए आदमीका बोलना;
बलंदी - स्त्री० दे० 'बुलंदी' |
बल - पु० [सं०] शरीरकी शक्ति, ताकत; ( फोर्स ) वह शक्ति जो स्थिरता अथवा चालको दशाओंको बदल दे या बदलने की प्रवृत्ति पैदा कर दे; स्थूलता; सेना; शुक्र; बलराम इंद्रके हाथों मारा गया एक राक्षस भरोसा, सहारा (हिं०); बलका गर्व; अधपका जौ; कौआ; वरुण वृक्ष । - कर, - कारक - वि० बल देनेवाला । -द-पु० बैल; जीवक; गृह्णाग्निका एक भेद । वि० बल देनेवाला । - दर्प - पु० बलका घमंड - दाऊ - पु० दे० 'बलदेव' । -देव-पु० बलराम; वायु । - द्विट् ( प ) - पु० इंद्र | - नाशन - पु० इंद्र । पति-पु० सेनापति इंद्र | - परीक्षण - पु० (शो-डाउन) परस्पर-द्वेषी दलों द्वारा (अंततोगत्वा) एक दूसरे की शक्ति या बलकी परीक्षा लेने के लिए किया जानेवाला प्रयत्न, अंतिम परीक्षा । - बीर,वीर* - पु० कृष्ण (बलरामके भाई) । - बूता - पु० [हिं०] ताकत, जोर। -भद्र- पु० बलवान् पुरुषः बलराम; नीलगाय; अनंत; लोध । -मद-पु० बलका घमंड ।
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वर्णन -
- राम - पु० कृष्णके बड़े भाई जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, बलदेव, हलधर । -वर्धी ( धिन् ) - वि० बल बढ़ानेवाला । - शाली (लिन् ) - वि० बलयुक्त, बली । - शील* - वि० बलशाली । -सूदन ५० द्र | मु० (किसी के) - पर कूदना - किसीके भरोसे इतराना | बल - पु० पहलू, बगल, करवट, ऐंठन; शिकन; फेरा; टेढ़ापन; लचकः फर्क; घाटा । मु० - आना-शिकन पड़ना; फर्क आना । -उतरना शिकन दूर होना । - खाना- नाराज होना; टेढ़ा होना; लचकना; घाटा सहना । - देना - ऐंठना, मरोड़ना पड़ना-घाटा
होना; फर्क होना; शिकन आना ।
-बला
बलकना, बलगना - अ० क्रि० उमगना, जोश में आना; इतराकर बोलना, बलबलाना ।
बलम * - पु० प्रियतम । बलमीक - पु० बॉबी ।
बलय* -- पु० दे० 'वलय' । बलया * स्त्री० दे० 'वलय' ।
बड़बड़ाना, प्रलाप करना ।
बरें + - पु० भिड़, ततैया एक पौधा जिसका बीज तेलहनके बलथंड - वि० दे० 'बलवंत' । काम आता है । बलवंत - वि० बलवान् ।
बर्हण - वि० [सं०] शक्तिशाली; फाड़ने या खींच लेनेवाला; चकाचौंध पैदा करनेवाला । पु० पन्ना खीचने, फाड़ने की क्रिया ।
बही ( हिन्) - पु० [सं०] दे० 'वहीं' |
बलंद - वि० दे० 'बुलंद' |
बलकल * - पु० दे० 'वल्कल' ।
बलकाना - स० क्रि० उबालना; उमगाना, उसकाना । बलराम पु० [अ०] कफ, श्लेष्मा ।
बल, बलतोड़ - पु० बाल टूटने से होनेवाला फोड़ा । बलना - अ० क्रि० जलना, दहकना । बलबलाना - अ०
क्रि० ऊँटका बोलना; बड़बड़ाना;
उफनना ।
बलवलाहट - स्त्री० बलबलानेका भाव; ऊँटकी बोली | बलभी- स्त्री० सबसे ऊपरकी छतपरकी कोठरी ।
बलवत्ता - स्त्री० [सं०] बलवान् होनेका भाव, शक्तिमत्ता । बलवा - पु० दंगा फसाद, उपद्रवः विप्लव, बगावतः पाँचसे अधिक आदमियोंका मिलकर एक या अधिक आदमियोंको मारना (का० ) 1
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बलवाई - पु० बलवा करनेवाला, विद्रोही, बागी । बलवान् (वत्) - वि० [सं०] शक्तिशाली, बली, ताकतवर । बलवार* - वि० बलवान् ।
बला- स्त्री० [सं०] बरियारा; एक मंत्र जिसके प्रयोगसे योद्धाको भूख-प्यास नहीं लगती; पृथ्वी; दक्षकी एक कन्या; [अ०] कष्ट, आपत्ति, आफत; प्रेतबाधा; रोगव्याधि; बहुत कष्ट देनेवाली वस्तु, व्यक्ति । कश-वि० मुसीबतें उठानेवाला । ( बलाये ) आसमानी - स्त्री० अचाक आनेवाली विपत, दैवकोप । -जान - स्त्री० जीका जंजाल, शंशय । मु० - उतरना - विपत आना, देवकोप होना । (किसीकी) - (कुछ) करे, या करने जाय- नहीं करना । -का- गजवका, हद दरजेका ! (मेरी) - जानेमैं न जानता हूँ, न जाननेकी गरज है। - टलना-कष्ट से, परीशानीसे या तंग करनेवाले आदमीसे छुटकारा मिलना । - पीछे लगना- बखेड़ा साथ होना । - मोल लेना - जान-बूझकर झंझट - इझमेले में पड़ना । (मेरी) - से कुछ परवा नहीं, (मेरी) जूतीकी नोकसे । बलायें लेना- किसीकी बला, रोग-व्याधि अपने ऊपर लेना ।
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बलाइ - बसंती
बलाइ* - स्त्री० दे० 'बला' [अ०] । बलाक - पु० [सं०] बगला; एक पुराण वर्णित राजा । बलाका - स्त्री० [सं०] प्रिया; कामुकी स्त्री; बगली; वकपंक्ति । बलाढ्य - वि० [सं०] बलवान् । पु० उरद | बलात् - अ० [सं०] बलपूर्वक, जबर्दस्ती । - कार - पु० स्त्रीकी इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक किया जानेवाला संभोग; बलपूर्वक, जबर्दस्ती कुछ करना; बलप्रयोग; अन्याय । - सत्तापहरण - पु० (कूडेटा) दे० 'शासनिक विपर्यय' । बलादवतरण - पु० [सं०] (फोर्ड लैंडिंग) इंजनकी खराबी आदि के कारण हवाई जहाजका हठात् भूमिपर उतर पड़ना । बलादवतरित - वि० [सं०] (फोर्ड लंडेड) जो इंजनकी खराबी आदि के कारण भूमिपर उतर पड़नेको बाध्य हो गया हो ( विमान) ।
बलाद्ग्रहण - पु० [सं०] ( एग्जैक्शन ) रुपया-पैसा आदि किसी से बलपूर्वक ले लेना; धन-संबंधी अनुचित माँग । बलाधिकृत - पु० [सं० ] ( मार्शल ) सेनाका सर्वोच्च पदाधिकारी ।
बलाधिक्य - पु० [सं०] बलकी अधिकता | बलाध्यक्ष - पु० [सं०] सेनापति ।
बलाबल - पु० [सं०] बल और बलाभाव: (दो पक्षों आदिका) तुलनात्मक बल और निर्बलता, महत्त्व और महत्त्व - हीनता ।
बलाय-स्त्री० दे०‘बला’[अ०] । मु० - लेना-दे० 'बलायें लेना' ।
बलाराति - पु० [सं०] इंद्र |
बलाहक - पु० [सं०] बादल; मोथा ।
बलिंदम - पु० [सं०] विष्णु ।
बलि - स्त्री० [सं०] देवताको चढ़ायी जानेवाली चीज, चढ़ावा, नैवेद्यः पूजा; बलिपशु; जमीनकी उपजका भाग जो राजाको मिले, राजकर; पंच महायज्ञोंके अंतर्गत चौथा, भूतयश बल, सिकुड़न, पेटमें नाभिके ऊपर पड़नेवाली रेखा; बवासीरका मस्सा; गुदावर्तके पास होनेवाला एक फोड़ा । सखी | पु० विरोचनका पुत्र दैत्यराज जिसे पुराणों के अनुसार विष्णुने वामनरूप धरकर छला; चैवरका दंड । - कर्म (न्) - पु० भूतयज्ञ; पूजा; राजकर देना। - दान-पु० देवताको पूजन-सामग्रीका अर्पण; देवता के उद्देश्य से पशुवध करना, कुरबानी । - द्विट् ( ) - पु० विष्णु । - ध्वंसी (सिन्) - पु० विष्णु । -नंदन, - पुत्र, - सुत-पु० बाणासुर ।-पशु-पु० वह पशु जिसका किसी देवता के प्रीत्यर्थ वध किया जाय । - पुष्ट, - भुक् ( ज्) - पु० कौआ । - भोज, -भोजन-पु० कौआ । मु०चढ़ना - बलिदान होना, मारा जाना। - चढ़ाना - बलि देना । - जाना - निछावर होना ।
बलित* - वि० बलि चढ़ाया हुआ, मारा हुआ; दे० ' वलित'। बलिवर्द - पु० [सं०] दे० 'बलीवर्द' ।
बलिष्ठ - वि० [सं०] सबसे अधिक बली, अतिशय बलवान् । बलिष्ठातिजीवन - पु० [सं०] ( सर्वाइवल ऑफ दि फिटेस्ट) सामाजिक और प्राकृतिक जीवन-संघर्ष में सबसे योग्यों या बलिष्ठोंका जीवित बचे रहना । बलिहारना * - स० क्रि० निछावर करना ।
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५५८
बलिहारी - स्त्री० निछावर होना, कुर्बान जाना । मु०जाना - निछावर होना ।
बली - स्त्री० त्वचापर शिकनसे पड़ी हुई रेखा, बलि;*लता । बली (लिन्) - वि० [सं०] वलवान्, ताकतवर । बलीमुख * - पु० बंदर | बलीवर्द- पु० [सं०] साँड़; बैल |
बलुआ - वि० जिसमें बालू अधिक मिला हो, रेतीला । पु० बलुई जमीन |
बलूची - पु० बलूचिस्तानका निवासी । स्त्री० बलूचिस्तानकी
भाषा ।
बलूला-पु० पानीका बुलबुला |
बलैया * - स्त्री० दे० 'बला' । मु० - लेना-दे० 'बलायें लेना' । बल्कल - पु० दे० 'वल्कल' |
बल्कि अ० [फा०] किंतु, प्रत्युत; अच्छा हो कि । बल्ब - पु० [अ०] शीशेकी नलीका अधिक चौड़ा भाग; पतले शीशेका खोखला लट्ठ जिसके भीतर बिजलीकी बत्ती होती है।
बल्लभ - वि०, पु० दे० 'वल्लभ' । बल्लभी - स्त्री० प्रिया; दे० 'वल्लभी' ( गोपिका ) । बल्लम- पु० डंडा; भाला; चाँदी या सोनेका पत्तर चढ़ा हुआ सोंटा जिसे राजाओं, दूल्हों आदिकी सवारी के अगलबगल चार आदमी लेकर चलते हैं, सोंटा । -बरदारपु० बल्लम लेकर चलनेवाला, अनुचर । बल्लमटेर- पु० स्वयंसेवक (वालंटियर) | बल्लरी - स्त्री० दे० 'वल्लरी' |
बल्लव - पु० [सं०] चरवाहा, ग्वाला; रसोइया, पाचक; विराट के यहाँ पाचकका काम करते समय भीमका नाम । बल्लवी - स्त्री० [सं०] ग्वालिन, गोपी ।
बल्ला - पु० लकड़ीका लंबा, सीधा लट्ठा; नाव खेनेका डाँड़ा; गेंद मारने का चपटा डंडा, बैट | बल्लेबाज - पु० (बैट्समैन) क्रिकेट या गेंद बल्लेके खेल में वह खिलाड़ी जो अपनी ओर आते हुए गेंदपर प्रहार करता है और अवसर देखकर 'रन' बनाने के लिए एक विकेट से दूसरे विकेटकी ओर दौड़ता है। बल्लेबाजी - स्त्री० (बैट्समैनशिप ) ( गेंद बल्लेके खेल में ) बल्लेसे गेंद पर प्रहार करनेकी क्रिया या कला । बवंडर - पु० बगूला, अंधड़ । बवंडा* - पु० बवंडर | बव-पु० [सं०] ज्योतिपके करणों से पहला । बवघूरा - पु० बगूला ।
बवन* - पु० दे० 'वमन' |
बवना* - स० क्रि० बोना; बिखेरना । अ० कि० विखरना । पु० बौना ।
बवरना - अ० क्रि० दे० 'बौरना' ।
बवासीर - स्त्री० [अ०] एक रोग जिसमें गुदा में मस्से पैदा हो जाते हैं, अर्श ।
बशिष्ठ - पु० [सं०] दे० 'वसिष्ठ' ।
बशीरी- पु० एक तरहका बारीक रेशमी कपड़ा । बसंत - पु० दे० 'वसंत'; एक पौधा ।
बसंती - वि० बसंतका; बसंती रंगका । पु० हलका पीला
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५५९
बसंदर-बहनेली रंग पीला कपड़ा।
जगह जहाँ चिड़ियाँ रात बितायें, धांसला; रहना, टिकना; बसंदर-पु० दे० 'वैश्वानर' ।
रहनेवाला। मु०-करना,-लेना-रातमें टिकाना, बसना । बस-पु० वश, शक्ति, काबू । अ० [फा०] काफी, अलम्; बसेरी*-पु० बसने-टिकनेवाला । बहुत; इतना ही; (आशा अर्थ में) ठहरो, रुको। -करो- बसैया*-पु० बसनेवाला। ठहरो, रुक जाओ, खतम करो।
बसोबास*-पु० बासस्थान । बसति-स्त्री० दे० 'वस्ती'।
बसौंधी-स्त्री० सुवासित और लच्छेदार रबड़ी। बसन-पु० दे० 'वसन'।
बस्तर-पु० दे० 'वस्त्र' । -मोचन-पु० किसीके बदनपर बसना-अ० कि० स्थायी रूपसे रहना; टिकना, ठहरना; लँगोटीतक न रहने देना, सब कुछ छीन लेना।
आबाद होना; मनुष्योंका रहने लगना; * बैठना-'प्यार बस्ता-वि० [फा०] बँधा हुआ (दस्त-बस्ता, कमर-बस्ता); पगी पगरी पियकी बसि भीतर आपने सीस सँधारी'-देव तह किया हुआ । पु० वह कपड़ा जिसमें किताबें या कागजबसाया जाना, सुगंधसे दासा जाना । पु. बेठन, थैली; पत्र बाँधे जायँ, बेठन; बेठनमें बँधी हुई पुस्तकें, कागजपत्र । रुपये रखनेकी जालीदार थैली; + बरतन ।
मु०-बाँधना-कागजपत्र समेटना, (दफ्तर, मदरसेसे) घर बसनि*-स्त्री० वास, रहाइश ।
जानेकी तैयारी करना। बसनी -स्त्री०रुपये रखकर कमरमें बाँधनेकी लंबीसी थेली। बस्ती-स्त्री० बसनेका भाव; आबादी, आबाद धरोंका समूह, बसर-स्त्री० [फा०] गुजर, निर्वाह (करना, होना)। गाँव, कसबा १० स्थानविशेषमें बसनेवाले लोग, आबादी -औकात-पु० निर्वाह, जीवन-यापन ।
(छोटी, बड़ी वस्ती, दस हजारकी वस्ती): वसवार*-पु० तड़का, छोक । वि० सोधा ।
बस्त्र-पु० दे० 'वस्त्र'। बसवास*-पु० बास, रहना; रहनेका ठिकाना; रहने
बस्य-वि० अधीन, वशमें आनेवाला । पु० अधीनस्थ का ढंग।
व्यक्ति सेवक । बसह*-पु० बेल।
बहँगा-पु० बड़ी बहँगी। बसाँधा*-वि० वासा हुआ, सुवासित ।
बहँगी-स्त्री० बाँसके फट्टेके दोनों छोरोंपर छोका लटकाकर बसा-स्त्री० दे० 'वसा'; * बरें, भिड़।
बनाया हुआ, बोझ ढोनेका साधन, काँवर । बसात-स्त्री० दे० 'विसात' ।
बहक-स्त्री० बहकनेका भाव, पथभ्रष्टता; बढ़-बढ़कर या बसाना-स० कि० बसनेको प्रेरित करना; वसनेका प्रबंध अंडबंड बोलना, बड़।। करना; आवाद करना; टिकाना; बासना, सुवासित करना; बहकना-अ० कि० ठीक रास्तेसे हटकर गलत रास्तेपर * बिठाना। अ० क्रि० बस चलना-'तनमन हारे हू जाना, पथ भ्रष्ट होना; चूकना; भुलावेमें आना, धोखा हसे, तिनसौं कहा बसाय'-बि०, बसना; गंध देना। खाना; नशे में ड-बंट या धमंडमें बढ़-बढ़कर बोलना बसिआना, बसियाना-अ० कि० वासी हो जाना। * उछलना । मु० बहकी-बहकी बातें करना-मदोन्मत्तकी बसिऔरा, बसियौरा-पु० रातमें होनेवाले कुछ पूजनोंका | तरह अंड-बंड बकना बढ़-बढ़कर बोलना । अगला दिन जब घरके सब लोग रातका पका हुआ वासी बहकाना-स० क्रि० ठीकसे गलत रास्तेपर ले जाना, पथही खाना खाते हैं। बासी भोजन ।
भ्रष्ट करना; बुरे, हानिकर कामके लिए प्रेरित करना; बसिया-वि० बासी । पु० बासी भोजन ।
भुलावा देना, भरमाना; बहलाना (बच्चोंको)। बसिष्ट-पु० दे० 'वसिष्ठ' ।
बहकावट-स्त्री० बहकानेकी क्रिया। बसीकत*-स्त्री० बस्ती; बसनेकी क्रिया, निवास । बहकावा-पु० बहकानेवाली बात, भुलावा । बसीकर-वि० दे० 'वशीकर'।
बहतोल*-स्त्री० पानी बहनेकी नाली। बसीकरन*-पु० दे० 'वशीकरण' ।
बहत्तर-वि० सत्तर और दो। पु० ७२ की संख्या। बसीठ-पु० दूत, संदेशवाहक ।
बहन-स्त्री० दे० 'बहिन' । * पु० (वायुका) बहना, झोंका। बसीठी-स्त्री० दूतका काम, दौत्य ।
बहना-अ० क्रि० तरल पदार्थका नीचेकी ओर जाना, बसीत्यो*-पु. वस्ती, निवासस्थान ।
धाराके रूप में प्रवाहित होना; धारा या बहावके साथ बसीना*-पु० निवास, रहाइश ।
आगे जाना; हवाका चलना; चूना, स्रवित होना; फूटना, बसीला-वि० बासबाला, गंधयुक्त दुगंधयुक्त ।
मवाद निकलना; अपनी जगहसे हट जाना; चरित्रभ्रष्ट बसु-पु० दे० 'वसु' । -देव-पु० दे० 'वसु में ।
होना; नष्ट होना डूब जाना; बहुत सस्ता बिकना; * बसुधा-स्त्री० दे० 'वसुधा'।
उठना; चलना । स० कि. वहन करना, ढोना; धारण बसुमती-स्त्री० दे० 'वसुमती' ।
करना, निभाना। मु० बहती गंगामें हाथ धोनाबसुरी -स्त्री० बाँसुरी।
ऐसी चीजसे फायदा उठाना जिससे सब उठा रहे हों। बसूला-पु० एक औजार जिससे बढ़ई लकड़ी काटता- बहनापा-पु० बहिनका नाता । छीलता है, तक्षणी।
बहनी*-स्त्री० दे० 'वह्नि' । बसूली-स्त्री० छोटा बसूला; वह औजार जिससे राज ईटें बहनु*-पु० वाहन, सवारी । गढ़ता-छीलता है।
बहनेली-स्त्री० वह स्त्री जिसके साथ बहनका नाता जोड़ा बसेरा-पु० रात बितानेका स्थान, टिकनेका ठिकाना; वह मया हो, मुँहबोली बहन ।
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झाँसा।
बहनोई-बहिर्यात्रा
५६० बहनोई-पु० बहिनका पति, भगिनीपति ।
फूल; एक रागिनी । -गुर्जरी-स्त्री० एक रागिनी। - बहनौता-पु० बहिनका बेटा, भांजा ।
नशाख-पु० एक राग । (बहारे)दानिश-स्त्री० फारसीबहनीरा-पु० बहिनकी ससुराल ।
का एक प्रसिद्ध कहानी-संग्रह । -हुस्न-स्त्री० रूपकी बहम-पु० दे० 'वहम'।
छटा, यौवनश्री । मु०-पर आना,-पर होना-जवानीबहर*-अ० बाहर-'गावत बधाई सूर भीतर बहरके'- सू०। पर आना, खिलना, पूर्ण विकास होना । स्त्री०, पु० दे० 'बहू'।
बहारना -स० क्रि० झाड़ना, झाडू. लगाना। बहरा-वि. जिसे सुनाई न दे, श्रवणशक्तिहीन; ऊँचा बहारी, यहारू-स्त्री० बढ़नी, झाडू. । सुननेवाला; अनसुनी करनेवाला, ध्यान न देनेवाला बहाल-अ० [फा०] असली हालतपर, पूर्ववत् । वि० ज्यों(-बन जाना) । मु०-पत्थर-बहुत ज्यादा बहरा। का त्यों प्रसन्न, खुश तंदुरुस्त कायम । बहराना-स० क्रि० दे० 'बहलाना'; * बाहर करना । * बहाली-स्त्री० पुननियुक्ति; भुलावा देनेवाली बात,
अ० क्रि० बाहर होना; बह जाना; उड़ जाना। बहरियाज-वि० दे० 'बाहरी' । पु० मंदिरका सेवक जो बहाव-पु० बहनेका भाव या क्रिया, प्रवाह, धारा । बाहर रहे (वल्लभसंप्रदाय)।
बहिः(हिस्)-अ० [सं०] बाहर, भीतरका उलटा बाहर बहरियाना -स० क्रि० बाहर करना; अलग करना । अ० से, अलग। -शाला-स्त्री० बाहरका कमरा । -शीतवि० बाहर या बाहरकी और जाना; अलग हो जाना। वि० जो वाहर टंढा हो। -सद्-वि० बाहर बैठनेवाला। बहरी-स्त्री० बाजसे मिलती-जुलती एक शिकारी चिड़िया। -स्थ-वि० बाहरका । -स्पर्शी-वि० (सूपरफीशियल) वि० बही, दरियाई, समुद्री।
भीतरतक न जानेवाला, ऊपरी, दिखाऊ । बहल-स्त्री० छतरीदार बैलगाड़ी, बहली।
बहिक्रम*-पु० उम्र, अवस्था । बहलना-अ० क्रि० मनका दुःख, क्लेश देनेवाली बातसे बहित्र-पु० दे० 'वहित्र' । हटकर प्रसन्नताजनक व्यापारमें लगना, मनोरंजन होना। | बहिन-स्त्री० पिताकी पुत्री, भगिनी । बहलाना-स० कि० मनको दुःख, केश देनेवाली बातसे | बहिनापा-पु० दे० 'बहनापा' । हटाकर प्रसन्नताजनक विषय, व्यापारमें लगाना, दिल | बहियाँ*-स्त्री० बाँह । खुश करना, मनोरंजन करना; भुलावा देना, बहकाना । बहिया-स्त्री० बाढ़, प्लावन । बहलाव-पु० मनका बहलना, किसी प्रसन्नताजनक विषय, बहिरंग-वि० [सं०] बाहरी, अंतरंगका उलटा, बाहरवाला । व्यापार में लग जाना।
पु० बाहरी भाग, अंग । बहली-स्त्री० दे० 'बहल' ।
बहिर, बहिरा*-वि० बहरा, बधिर । बहल्ला*-पु० आनंद ।
बहिरत* --वि० बाहर। बहल्ली-स्त्री० कुश्तीका एक पेंच ।
बहिरर्थ-पु० [सं०] बाह्य उद्देश्य । बहस-स्त्री० [अ०] सवाल-जवाब; वाद-विवाद, खंडन- | बहिराना-स० वि० बाहर निकालना। अ० क्रि० बाहर मंडन, हुज्जत, झगड़, मुकदभेमें पक्षविशेषके वकीलका | होना; बहरा होना। अपने पक्षको युक्ति-प्रमाणके साथ प्रस्तुत करना; मतलब, | बहिर्गत-वि० [सं०] बाहर गया हुआ; जो बाहर हो; लगाव (मुझे दूसरेसे कोई बहस नहीं); * होड़। -मुबा- अलग; (आउट) (गेंद-बल्ला आदिके खेल में वह खेलाड़ी) हिसा-पु० बाद-विवाद, शास्त्रार्थ ।
जो गेंदके आघातसे यष्टियोंके ऊपरकी गुल्लीके गिर जाने, बहसना*-अ० क्रि० बहस करना; होड़ लगाना। पदबाधा या गेंदके लोक लिये जाने आदिके कारण बल्लेबहादर*-वि० दे०'बहादुर' । पु० सैनिक, सिपाही-'आये | बाजी करते रहनेके अधिकारसे वंचित हो गया हो; जो बीर बादर बहादर मदनके'-भृ० ।
घरमें या कार्यालय आदिमें न हो, बाहर गया हो; जो बहादुर-वि० [फा०] शूर-वीर; साहसी, निडर ।
पदासीन या अधिकारारूढ़ न रह गया हो; जो प्रकट या बहादराना-अ० [फा०] वीरतापूर्वक, वीरोचित प्रकारसे ।। प्रकाशित हो गया हो। वि० वीरोचित, वीरतासूचक ।
बहिर्गमन-पु० [सं०] बाहर जाना।-द्वार-पु० (एग्ज़िट) बहादुरी-स्त्री० [फा०] वीरता, भरदानगी।
(किसी सिनेमा, नाट्यशाला आदिके) प्रकोष्ठ या भवनसे बहाना-स० क्रि० बहनेका कारण, कर्ता होना, जल या| बाहर निकल नेका रास्ता । दूसरे प्रकार के द्रव पदार्थको किसी दिशामें प्रवाहित करना; बहिर्गामी(मिन)-वि० [सं०] बाहर जानेवाला । वहनेके लिए धारामें डालना; बूंदों या धाराके रूपमें बहिर-पु० [सं०] बाहरी दरवाजा, तोरण । गिराना, ढालना (आँसू बहाना); सस्ता बेचना; उड़ाना; | बहिनिःसारण-पु० [सं०] बाहर निकालना। बरबाद करना । पु० [फा०] किसी कामके करने या न | बहिर्भूत-वि० [सं०] जो बाहर हो या हो गया हो, बहिकरनेका झूठा, बनावटी हेतु, मिस, हीला निमित्त, व्याज। गत । (बहाने)बाज़ी-स्त्री० बहाने बनाना।
बहिर्मनस्क-वि० [सं०] जिसका मन किसी और जगह हो। बहाने-अ०.""के बहानेसे;""के हेतु, निमित्त बनाकर। बहिर्मुख-वि० [सं०] जिसका मन बाहरी विषयों में उलझा, बहार-स्त्री० [फा०] वसंत ऋतु; खिलती हुई जवानी; आसक्त हो, विमुख । पु० देवता । विकास; शोभा आनंद, लुत्फ, मजा, तमाशा; नारंगीका बहिर्यात्रा-स्त्री०, बहिर्यान-पु० मिं०] बाहर जाना,
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५६१
बहिर्लापिका-बहुत विदेश-यात्रा।
वि० जिसमें बहुतसी प्रतिज्ञाएँ या दावे हों; (मुकदमा) बहिर्लापिका-स्त्री० [सं०] एक तरहकी पहेली जिसमें जिसमें अनेक अभियोग या दावे हों। -प्रद-वि० बहुत उसका उत्तर पहेलीके शब्दोंके बाहर रहता है, भीतर देनेवाला, महादानी। -प्रसू-स्त्री० बहुतसे बच्चों की मा।
-बाहु-पु० रावण । -भक्ष-वि० बहुत खानेवाला । बहिर्लोम, बहिर्लोमा(मन)-वि० [सं०] जिसके बाल -भाग्य-बि० बड़े भाग्यवाला, बड़भागी ।-बहुभाषाज्ञ बाहरकी ओर निकले हों।
-पु० (पालीग्लॉट) बहुत-सी भाषाएँ, जानने या बोलनेबहिर्वास(स)-पु० [सं०] कौपीनके ऊपर पहननेका वाला । -भाषी(पिन)-वि० बहुत बोलनेवाला ।-भुज कपड़ा।
-वि० अनेक भुजाओंवाला। पु० (पॉलीगॉन) वह समक्षेत्र बहिर्वासी रोगी-पु० [स०] (आउटडोर पेशेंट) वह रोगी | जो चारसे अधिक रेखाओंसे घिरा हो। -भुज-क्षेत्र-पु०
जो चिकित्सागृहके बाहर रहते हुए इलाज कराता हो चारसे अधिक रेखाओंसे घिरा हुआ क्षेत्र (ज्यामिति)। (अंतर्वासी या प्रविष्ट रोगीका उलटा), बाह्य रोगी। -भुजा-स्त्री० दुर्गा।-भोक्ता(क्त.)-वि० बहुत खानेबहिर्विकार-पु० [सं०] गरमीकी बीमारी, आतशक । । वाला ।-भोग्या-स्त्री० वेश्या । -भोजी(जिन)-वि० बहिर्व्यसनी (निन्)-वि० [सं०] लंपट, व्यभिचारी। पेट्र। -मत-वि० अति सम्मानित, बहुमानयुक्त; कई बहिष्करण-पु० [सं०] बाहर करना, अलग करना; बहि- रायें रखनेवाला । पु० अधिकतर, बहुसंख्यक लोगोंका मत, ष्कार, प्रयोग करना; बहिरिंद्रिय, अंतःकरणका उलटा। कसरतराय (हिं०); अनेक मत, कई तरहकी रायें । बहिष्कार-पु० [सं०] बाहर करने, अलग करनेका भाव; -मानी(निन्)-वि० बहुत आदरणीय । -मान्यसंबंध-त्याग, विरादरीसे बाहर करना; वरतु विशेष(वर्ग | वि० आदरणीय, सम्मानित । -मार्गी-स्त्री० वह स्थान या देश-विशेषके माल, संस्था आदि)का सामूहिक व्यव- जहाँ कई रास्ते मिलें । -मुख-वि० कई तरहकी बातें हार-त्याग (बायकाट)।
कहनेवाला; 'वसेंटाइल) जो अनेक विषयोंका जानकार बहिष्कृत-वि० [सं०] जिसका बहिष्कार किया गया हो, हो; अनेक दिशाओं में जानेवाला । (बहुमुखी प्रतिभा निकाला हुआ; परित्यक्त ।
वसेंटाइल जीनियस ।) -मूत्र-वि० मधुमेह रोगसे बहिष्क्रिया-स्त्री० [सं०] बाहरी क्रिया; बाह्य संस्कार । पीड़ित । पु० मधुमेह । -मूल्य-वि० अधिक मूल्यका, बही-स्त्री० हिसाब-किताब लिखनेकी पुस्तक, महाजनों, बेशकीमत । -याजी(जिन)-वि० जिसने बहुत यश व्यापारियों आदिके हिसाबका रजिस्टर; सिली हुई मोटी किये हों। -रंग-वि. अनेक रंगोंवाला, रंग-बिरंगा । कापी जो हिंदुस्तानी ढंगसे हिसाब लिखनेके काम आती -रंगी-वि० [हिं०] जो बहुतसे रंग बदले; बहुरुपिया। है। -खाता-पु० किसी महाजन, व्यापारी आदिकी -रस-वि० जिसमें बहुत रस हो; तरह-तरह के स्वादबहियाँ, हिसाबकी किताबें । मु०-पर चढ़ना या टॅकना वाला। -रिपु-वि० जिसके बहुतसे शत्रु हों ।-रुपिया-बहीपर लिख लिया जाना।
वि०, पु० [हिं०] अनेक रूप धरनेवाला। -रूप-वि० बहीर*-स्त्री. भीड़-'जेहि मारग गये पंडिता तेई गई अनेक रूपोंवाला, बहुरुपिया। पु० शिव; विष्णु, ब्रह्मा बहीर'-बीजक; सेनाके साथ चलनेवाला सेवक समुदाय सूर्य; कामदेव गिरगिट; केश; तांडव नृत्यका एक भेद । फौजी सामान-'अब बहीर चलती करी काल्हि पहुँचनो -रूपक-वि० अनेक रूपोंवाला। पु० एक जीव । कोल'-सुजान । * अ० बाहर ।
-रूपदर्शक-पु० (कैलीडोस्कोप) एक लंबी नली जिसमें बहटा-पु० बाँहका एक गहना।
रंगीन काँचके टुकड़े इस तरह डाल दिये जाते हैं कि बह-वि० [सं०] दोसे अधिक, अनेक, बहुत, ज्यादा। उसे इधर-उधर हिलानेसे कई तरहकी सुंदर और कलापूर्ण -कंटक-वि. बहुत काँटोंवाला । पु० क्षुद्र गोक्षुर; जवासा शकलें दिखाई देती है। -वचन-पु० संशा, क्रिया हिंताल । -कालीन-वि० बहुत दिनका, पुराना ।-गंध आदिका वह विकार जिससे बहुत या एकसे अधिकका -वि० तीव्र गंधवाला।-गंध-दा-स्त्री० कस्तूरी ।-गुण- वोध हो। -विद्-वि० बहुत बड़ा विद्वान् । -विद्यवि० कई तारों या मूतोवाला; जिसमें बहुतसे गुण हों। वि० (क्सेंटाइल) जो अनेक विद्याएँ जानता हो, जो -गुना-[हिं०] पु० खुले मुँह के डब्बेके आकारका पीतल- विभिन्न विषयोंपर लेखादि लिख सकता हो या भाषण का बरतन जो बटलोई, कड़ाही आदिका काम देता है। कर सकता हो, बहुमुख ।-विध-वि० अनेक प्रकारका । -जल्प-वि० बहुत बोलनेवाला, वाचाल । -ज्ञ-वि० अ० अनेक प्रकारसे, बहुत तरहसे । -विवाह-पु. एक बहुत जाननेवाला, बहुत विपयोंका जानकार ।-तंत्रीक- पलीके रहते अनेक स्त्रियोंसे विवाह करना (पॉलिगैमी)। वि० जिसमें बहुतसे तार हो (वाद्य)। -दर्शी(शिन्)- -विस्तार-पु० बहुत अधिक फैलाव । वि० विस्तृत । वि० जिसने बहुत देखा-सुना हो, बहुश; दूरदशी ।-धंधी -व्ययी(यिन् )-वि० फुजूलखर्च, उड़ाऊ । -व्रीहि-वि० [हिं०] जो एक साथ बहुतसे कामों में अपनेको वि० जिसके पास बहुत धान हो । पु० व्याकरणके चार फंसाये रखता हो।-धन-वि०जिसके पास बहुत धन हो । मुख्य समासोंमेंसे एक । -श्रुत-वि० जिसने बहुतसे -नामा(मन्)-वि० जिसके बहुतसे नाम हों। -पद, शास्त्र गुरुसे पढ़े हों; विद्वान् ; जिसने अनेक शास्त्रोंकी -पाद-वि० बहुतसे पैरोंवाला । पु० बरगद ।-प्रकार- बातें सुनी हों, बहुज्ञ। -संख्य,-संख्यक-वि० बड़ी अ० अनेक प्रकारसे । वि० बहुविध । -प्रज-वि० जिसके संख्यावाला, जो गिनती में बहुत हो। अधिक बाल-बच्चे हों। पु० सूअर चूहा; मूंज ।-प्रतिज्ञ- बहुत-वि० अधिक, ज्यादा (मात्रा या संख्यामें); काफी,
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बहुतक-बाँधना
५६२ पूरा । अ० अधिक मात्रामें, ज्यादा ।-अच्छा-(स्वीकृति बाँकड़ी, बाँकुड़ी-स्त्री० साड़ी आदिपर टाँकनेका सुनहला सूचक) बेहतर है, ऐसा ही होगा। -करके-अधिकतर, या रुपहला फीता । प्रायः, बहुत संभव है। -कुछ-काफी, थोड़ा नहीं। बाँकना*-स० क्रि० टेढ़ा करना । अ० कि० टेढ़ा होना। -खूब-बहुत अच्छा ।
बाँका-वि० टेढ़ा, तिरछा, वक्रासज धजका, शौकीन, छलबहुतक*-वि० बहुतसे ।
छबीला शोख वीर, साहसी; गुंडा । पु० एक अर्धचंद्राकार बहुता-स्त्री०, बहुत्व-पु० [सं०] बहुतायत, आधिक्य ।। औजार जिससे बाँसका काम करनेवाले बाँस छीलतेबहुताइत-स्त्री० दे० 'बहुतात'।
काटते हैं। बहुतात, बहुतायत-स्त्री० अधिकता, ज्यादती, इफरात । बाँकिया-पु० नरसिंहा नामका बाजा । बहुतेरा-वि० बहुतसा । अ० बहुत-बहुत तरहसे । बाँकुरा*-वि० टेढ़ा, बाँका; चतुर, वीर, साहसी पैना । बहुतेरे-वि० बहुतसे, अनेक ।
बाँग-स्त्री० [फा०] आवाज, बोली;मुगेकी आवाज; अजान । बहुधा-अ० [सं०] अनेक प्रकारसे; बहुत करके, अकसर । बाँगड़-पु० हिसार, रोहतक और करनाल जिले । बहरना-अ० क्रि० लौटना, वापस आना, फिर मिलना । बाँगड़ -स्त्री० बाँगड़ देशकी बोली । वि० मूर्ख, उजड़ । बहरि*-अ० फिर पीछे, अनंतर ।
बाँगर-पु० ऊँची जमीन, वह जमीन जो बाढ़ में न डूबे; बहुरिया-स्त्री० दुलहिन, नयी बहू ।
एक तरहका बैल । बहरी*-अ० दे० 'बहुरि'।
बाँगुर-पु० चिड़ियाँ फँसानेका जाल, फंदा-'तुलसिदास बहुल-वि० [सं०] बहुत, अनेक; बहुतसा, प्रचुर; काला। __ यह विपति बाँगुरो तुमहिंसों बने निबेरे'-विनय० । बहुलता-स्त्री० [सं०] बहुतात, प्रचुरता।
बाँचना-स० कि० पढ़ना; * बचाना; चुनना, चयन बहला-स्त्री० [सं०] इलायची; गाय; नीलका पौधा, एक करना । अ० क्रि० बचना, बाकी रहना; रक्षा पाना। देवी; चंद्रमाकी बारहवीं कला। -चौश-स्त्री० [हिं०] | बाँछना* -स्त्रा० दे० 'बांछा' । * स० कि. चाहना; भाद्र-कृष्णा चतुर्थी । -वन-पु० वृंदावनके ४४ वनी- दे० 'बाछना' । मेंसे एक।
बांछा*-स्त्री० दे० 'बांछा। बहुलालाप-वि० [सं०] वकवादी ।
बांछित*-वि० दे० 'वांछित' । बहली*-स्त्री० इलायची।
बांछी*-वि० वांछा करनेवाला । बहलीकृत-वि० [सं०] बढ़ाया हुआ, वधित; प्रकट किया बाँझ-वि० जिससे संतान या फल उत्पन्न न हो। स्त्री० हुआ।
बंध्या स्त्री, गाय आदि । -पन,-पना-पु० बाँझ होना, बहुशः(शस्)-अ० [सं०] बहुत बार, बहुत तरहसे । । वंध्यत्व। बहुँटा-पु० बाँहपर पहननेका एक गहना ।
बाँट-स्त्री० बाँटनेकी क्रिया, बटवारा ताश आदिके पत्तोंका बहू-स्त्री० पुत्रवधू; दुलहिन; पत्नी।
बाँटा जाना; हिस्सा, बाँटा-'याहूमें कछु बाँट तुम्हारो'बहुपमा-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार-उपमेयके एक ही सू० दे० 'बाट' । -बूंट-स्त्री० बटवारा, हिस्साबखरा । धर्मके लिए अनेक उपमानोंका कथन ।
मु०-पड़ना-दे० 'बाँटेमें आना। बहेड़ा-पु० एक जंगली पेड़।
बाँटना-स० क्रि० हिस्से करना, कई भाग कर देना; बहेतू-वि० जो इधर-उधर मारा-मारा फिरे, आवारा। बहुतोंको थोड़ा-थोड़ा देना, वितरण करना; * पीसना, बहेरा-पु० दे० 'बहेड़ा'।
घोंटना। बहेलिया-पु० चिड़ियाँ फँसानेवाला, चिड़ीमार । बाँटा-पु० बाँटनेकी क्रिया; हिस्सा, वखरा; बाटे में मिलनेबहोर*-पु० बहोरनेका भाव, लौटाना; वापसी । अ० दे० वाली वस्तु । मु. (बाँटे)में आना या पड़ना-हिरसे में 'बहुरि'।
आना। बहोरना*-स० क्रि० लौटाना, वापस करना ।
बाँड़-पु० दो नदियोंके संगमके बीचकी जमीन । + वि० बहोरि*-अ० दे० 'बहुरि'।
बाड़ा। बह्र-स्त्री० [अ०] छंद, शेरका वजन । पु० महासमुद्र बाँड़ा-वि० (पशु) जिसकी पूंछ कट गयी हो; (पुरुष) समुद्र; बड़ा दरिया, नद; उदार व्यक्ति; तेज घोड़ा; जिसके आगे-पीछे कोई न हो, असहाय । जहाजोंका बेड़ा।
बाँद*-पु० दास, टहलू ; बंधन, फंदा । बाँक-पु० टेढ़ापन, वक्रता; गन्ना छीलनेका सरौतेकी बाँदर*-पु० बंदर।।
शकलका औजार; एक तरहकी टेढ़ी छुरी; एक तरहका बाँदा-पु. एक तरहका पौधा जो आम आदिके वृक्षोंमें शिकंजा जिसमें किसी चीजको दबाकर रेतते हैं; दे० लगकर उनके रससे पुष्ट होता है । 'बाँका'; बाजूपर पहननेका एक गहना; पैरका एक गहना; | बाँदी-स्त्री० दासी, लोड़ी। एक तरहकी चौड़ी चूड़ी, बाँक लड़नेकी कला; नदीका बाँदू*-पु० बंदी, बंधुआ। धुमाव; धनुप् । वि० दे० 'बाँका' । -पन,-पना-पु. बाँध-पु. पानी रोकनेके लिए बनायी हुई कची या पक्की टेढ़ापन, वक्रता; सुंदरता, छवि; छबीलापन, शौकीनी मेंड़, बंद । शोखी, अदा।
बाँधना-स० क्रि० ररसी, जंजीर आदिमे लपेटकर कसना, बाँकड़ा-वि० वीर, साहसी।
गाठ देना, बंधन में लाना; रस्सी आदिमें फंसाकर खूटे
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बाँधनीपौरि-बाग़ आदिसे अटकाना लपेटना (पगड़ी, पट्टी); लपेटकर कसना, अदबके साथ, विनयपूर्वक । -असर-वि० असर रखनेसमेटना (गठरी, विस्तर ); बाँधकर धारण करना (घड़ी, वाला, प्रभावशाली।-आबरू-वि० आबरूदार, प्रतितलवार); जोड़ना (हाथ ); कैद करना; नियम, वचन ठित । अ० इज्जतके साथ। --इस्तियार-वि० अधिकार आदिसे बंधनमें डालना, पाबंद करना; मेंड़ या बाँध रखनेवाला। -ईमान-वि० ईमानदार । अ० ईमानके बनाकर रोकना; गतिहीन करना; कीलना, शक्ति, प्रभाव साथ। -कार-वि० जो कुछ करता हो, बैठा-ठाला, नष्ट कर देना; जमाना (निशाना); नियत करना (हद, बेकार न हो। -कायदा-वि० नियमित । अ० कायदेके गुजारा, बारी आदि); चूर्ण, चाशनी आदिको गोली, साथ, नियमानुसार ।-ग़रज़-वि० गरजमंद । जाब्तालड्डू आदिका रूप देना ठीक करना (धड़ा); व्यवस्थित, अ० जाबतेसे, नियमानुसार । वि० नियमयुक्त, बाकायदा। क्रमयुक्त करना; जोड़ना, बटोरना (दल, गोल ); बनाना -मज़ा-वि० मजेदार, स्वादिष्ठ । -मरोवत-वि० (मोरचा); लगातार करना, लगाना (झड़ी, ताँता); मुरौवतवाला । -वजूद-अ० होते हुए, यद्यपि, अगरचे । सोचना (खयाल, मंसूबा ); भावको गद्य या पद्य-रचनाका -वा-वि० वफादार प्रीति निभानेवाला वचन पालक । रूप देना, निबंधन ।
-शऊर-वि०शऊरदार, सलीकादार, चतुर । -सलीक़ाबाँधनीपौरि*-स्त्री० पशुशाला।
वि० जिसे काम करनेका सलीका, ढंग आता हो। बाँधन-पु० मंसूबा, बंदिश मनमें बनायी हुई योजना | बाइ*-स्त्री० दे० 'बाई'। खयाली पुलाव; झूठी तोहमत; लहरियादार रंगाईमें बाइनि*-स्त्री० वयना। कपड़ेको जगह-जगह बाँध देना; इस तरह बाँधकर रँगा| बाइबिल-स्त्री० ईसाइयोंकी इलहामी धर्मपुस्तक, इंजील । हुआ कपड़ा।मु०-बाँधना-मंसूबा बाँधना।
बाइस-वि०, पु०दे० वाईस' । पु०[अ०] कारण,सबब,हेतु। बांधव-पु० [सं०] भाई-बंधु; स्वजन, निकट-संबंधी, मित्र । बाइसिकिल-स्त्री० [अं॰] दो पहियोंकी गाड़ी जो सवारके बाँबी, बॉमी-स्त्री० दीमकोंका भीटा,बमीटा सापका बिल। पाँवोंकी हरकतके ही सहारे चलती है,साइकिल, पैरगाड़ी। बाँभन*-पु० ब्राह्मण ।
| बाई-स्त्री० वायु; वातव्याधि । मु०-चढ़ना-सन्निपात बाँस-पु० तिनकेका जातिका एक लंबा, सीधा, गिरहदार होना; मिजाज बिगड़ना। -पचना-बातकोपका शांत पौधा जो बहुतसे काम में आता है, वंश; भूमिकी एक होना; घमंड टूटना। माप; नावकी लग्गी। -पूर-पु० एक बारीक कपड़ा। बाई-स्त्री० स्त्रियोंके लिए आदरसूचक शब्द; प्रतिष्ठित मु०-पर चढ़ना-लदनाम होना । -पर चढ़ाना-बद- महिला; वेश्या। -जी-स्त्री० वेश्या: नायिका । नाम करना। -बजना-लाठी चलना, मारपीट होना। बाईस-वि० बीस और दो। पु० बाईसकी संख्या, २२ । -बजाना-लाठी चलाना, मार-पीट करना ।-बराबर- बाउ*-पु० वायुः अपान वायु । बहुत लंबा । (बाँसी)उछलना-बेहद खुश होना; बहुत बाउर-* वि० बावला; मूर्ख; गूंगा; + खराब, बुरा । उछल-कूद करना।
बाउरी -स्त्री० दे० 'वावली'। बाँसली-स्त्री० दे० 'बाँसुरी'।।
बाऊ*-स्त्री० दे० 'वायु'। बाँसा-पु० नाकके बीचकी उभरी हुई हड्डी; रीढ़ पिया- बाक-* पु० वाक्य, वचन, शब्द; [सं०] बगलोंका समूह । वामा; बीज गिरानेके लिए हलके साथ लगा हुआ बाँसका -चाल*-वि० वाचाल, बातूनी । नल । -गड़ा-पु० कुश्तीका एक पेंच। मु०-फिर बाकना-अ० क्रि० 'बकना' । जाना-नाककी हड्डीका टेढ़ा होना ( मृत्यु-निकटताका बाकल*-पु० बकला, छाल । सूचक)।
बाकला-पु० एक छोटा फसली पौधा जिसकी फलियाँ बाँसी*-स्त्री० बाँसुरी।
तरकारीकी तरह खायी जाती हैं। बाँसुरी-स्त्री० पतले पोले बाँसका बना एक वाजा जो मुँहसे बाका*-स्त्री० वाणी, वाकशक्ति । फूंककर बजाया जाता है, वंशी।।
बाकी*-अ० लेकिन, मगर । स्त्री० एक धान । बाह-स्त्री. हाथका कंधेमे हथेलीतकका भाग, बाहु, भुजा बाकी-वि० [अ०] बचा हुआ, अवशिष्ट; जो सदा वना (ला०) बल; भरोसा; शरण; आस्तीन; एक कसरत । रहे; मीजूद, विद्यमान; देय, न चुकाया हुआ (पावना)। -तोड़-पु० कुश्तीका एक पेंच । -बोल-पु० रक्षा ग स्त्री० एक संख्याको दूसरीमेंसे घटानेका गणित,व्यपकलन सहायता करनेका वचन । -मरोड़-पु० कुश्तीका एक (निकालना ); घटानेसे निकलनेवाली संख्या। -दारपेंच । मु०-की छाँह लेना-शरणमें आना ।-गहना- वि० जिसके यहाँ लगान या पावना बाकी हो। पकड़ना-भरण रक्षणका भार उठाना; अपनाना; विवाह बाकुल-पु० वल्कल, छाल, वाकल । करना । -चढ़ाना-लड़नेको तैयार होना, आस्तीन बाखरी-पु० एक तृण । चढ़ाना; कोई काम करनेके लिए तैयार होना।-टूटना-बाखरि*-स्त्री० दे० 'बखरी' । सबसे बड़े सहायकका उठ जाना; भाईका मरना ।-देना- बाग-स्त्री० लगाम, रास । -डोर-स्त्री. लगाममें बाँधी सहारा, सहायता देना।
जानेवाली रस्सी । मु०-उठाना-चल पड़ना । (किसी बा-* पु० पानी, बार, दफा। स्त्री० [गुजराती माता। ओर)-मोड़ना-घुमाना, ले जाना ।-हाथसे छूटनाअ० [फा०] पास, साथ ( संज्ञापदसे मिलकर युक्तताका | बेकाब होना; मौका हाथसे जाता रहना । अर्थ देता है।)-अदब-वि० अदबवाला, विनीत । अ० | बाग़-पु० [फा०] जमीनका टुकड़ा जिसमें फल-फूलके
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बागना-बाटी
५६४ पेड़-पौधे करीनेसे लगाये गये हों, बाटिका, उपवन; लगाये में बेचे-खरीदे जानेका भाव, प्रचलित दर। मु०-करना हुए पेड़ोंका झंड, बाड़ी। -बाग़-वि० अति प्रसन्न, प्रमु- -चीजें खरीदने या बेचनेके लिए बाजार जाना । -का दित (होना)। -बान-पु. बागकी देखरेख करनेवाला, गन-वह आदमी जो इधर-उधर मारा-मारा फिरे ।-की माली । -बानी-स्त्री० बागवानका काम या पद । मिठाई-आसानीसे मिलनेवाली चीज; वेश्या। -गरमबागना*-अ० क्रि० बोलना; चलना, घूमना ।
(गर्म)होना-बाजारमें खूब खरीद-बिक्री, चहल-पहल बागर-पु० नदी किनारेकी ऊँची जमीन जहाँतक उसका । होना । (किसी चीजका)-गरम(गर्म)होना-जोर, पानी बादमें भी न पहुँचता हो, (बाँगर ); * जाल, फंदा; अधिकता, प्रबलता होना (रिश्वत,गिरफ्तारियोंका बाजार०)। रस्सी; सूखी मरुमय भूमि-'बागर देश लुअनका घर है'- -गिरना-भाव घटना, मंदी होना । -तेज़ होना-भाव कवीर।
चढ़ना, बहुत माँग होना। -भाव देना या पीटना-खूब बागल*-पु० बगला ।
पीटना, पूरी मरम्मत करना।-मंदा होना-किसी वस्तुबागा-पु० एक पुराना लंबा पहनावा ।
का दाम घटना; कम बिक्री होना। -में आग लगनाबाग़ी-पु० अ०] बगावत करनेवाला, विद्रोही; न दबने- चीजोंके दाम चढ़ जाना। -लगना-बाजारमें चीजोंका वाला, सरकश।
बिक्रीके लिए रखा, लगाया जाना; दुकानें खुलना; चीजोंबाग़ीचा-पु० [फा०] छोटा बाग ।
का ढेर,अंबार लगना; भीड़ होना। -लगाना-चीजोंको बागुर*-पु० जाल, फंदा ।
इधर-उधर फैला देना भीड़ लगाना। बाघंबर-पु० बाघकी खाल; एक तरहका रोयेंदार कंबल । बाज़ारी-वि० बाजारका मामूली, साधारण लोगों में प्रचदाध-पु० सिंह के समान बल-विक्रम रखनेवाला लंबाई में | लित; अशिष्ट (प्रयोग, मुहाविरा)।-औरत-स्त्री०वेश्या। उससे कुछ छोटा एक हिंस्र जंतु, व्याघ्र । -नख-पु० -गप-स्त्री० अविश्वसनीय बात । बघनखा।
बाज़ारू-वि० दे० 'बाजारी'। बाधी-स्त्री० जाँधके जोड़में होनेवाली एक तरहकी गिलटी। बाजि-पु० दे० 'बाजी' । वि० चलनेवाला । बाच*-वि० वाच्य, वर्णनीय ।
बाजी-स्त्री० बड़ी बहन । पु० घोड़ा; * बजनिया। बाचना-स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'बाँचना । बाज़ी-स्त्री० [फा०] खेल; करतब, तमाशा दा, शर्त; बाचा*-स्त्री० वचन; वाक्य; बोलनेकी शक्ति प्रतिज्ञा । ताश-शतरंज आदिका एक पूरा खेल; एक खिलाड़ीके -बंध-वि० प्रतिज्ञाबद्ध ।
खेलनेका समय, बारी; धोखा, चालाकी। -गर-पु० बाछ-पु. बाछनेकी क्रिया, छंटाई; चंदे, मालगुजारी जाद के खेल करनेवाला, नट । [स्त्री० 'बाजीगरनी' ।
आदिका आनुपातिक (रसदी) पड़ता; बाछा । स्त्री० मुखका -गरी-स्त्री० बाजीगरका काम; धोखा, चालाकी।-चाप्रांतभाग जहाँ दोनों होठ जुड़ते हैं । मु. (बाछे) पु० खेल, खिलवाड़ । मु०-आना-ताश-गंजीफेकी बाँटखिलना-अति प्रसन्न होना, खुशीसे खिल जाना। में अच्छे पत्ते मिलना । -बदना-शर्त वदना (लगाना)। बाछा -पु० बछड़ा; * बच्चा, वत्स ।
-मारना-जीतना। -ले जाना-आगे बढ़ जाना, बाछी-स्त्री० बछिया।
जीतना। बाज-*पु०घोड़ा,बाजि; दे० 'बाजा'। अ० बिना, छोड़कर- बाजु*-अ० बिना; (-के) सिवा । 'को उठाइ बैठारै बाज पियारे जीउ'-५० ।
बाज़-पु० [फा०] बाहँ, भुजा; सेनाका दाहिना या बायाँ बाज़-पु० [फा०] एक प्रसिद्ध शिकारी चिड़िया। अ० भाग, पक्ष; चिडियाका डैना; चीखटेके दाहिने बार्येकी फिर, दोबारा। वि० वंचित; कोई-कोई, कुछ विशिष्ट । खड़ी लकड़ी, बाजूबंद । -बंद-पु० बाहपर पहननेका प्र० संशापदसे संयुक्त होकर खेलनेवाला, करनेवालाका एक गहना, भुजबंद । मु०-टूटना-बाहँ टूटना, गतबल अर्थ देता है (कबूतरबाज, पतंगबाज़)। -दावा-पु० हो जाना। दावा उठाना, छोड़ना; स्वत्वका त्याग, दस्त-बरदारी। बाझ*-अ० बगेर, बिना। म०-आना-लौटना; छोड़ना, त्यागना; बचना, दूर |
बाझन*-पु० फंसाव, बझाव; उलझन: लड़ाई। रहना ।-रखना-रोकना, मना करना ।
बाझना*-अ० क्रि० दे० 'बझना'-'ते सुअटा पंडित होइ बाजड़ा-पु० दे० 'बाजरा'।
कैसे बाझा आई'-५०।। बाजन*-पु० बाजा।
बाट-पु० पत्थर, लोहे आदिका टुकड़ा जो चीजें तौलनेके बाजना*-अ०क्रि० लड़ना; लगना, बैठना (चोट आदिका); | काम आये, वजन, बटखरा । स्त्री०ऐंठन, बल; राह, मार्ग । पहुँचना-'साह आइ चितउरगढ़ बाजा'-५० दे० 'बजना'। मु०-करना*-रास्ता करना । -का रोड़ा-बाधक। बाजरा-पु० एक मोटा अनाज; उसका पौधा ।।
-जोहना,-देखना-इंतजार करना। -परना-डाका बाजा-पु० बजानेका यंत्र, वाध । -गाजा-पु० अनेक पड़ना । -पारना-रास्तेमें लूट लेना, डाका डालना। प्रकारके एक साथ बजनेवाले बाजे धूमधाम ।
बाटकी*-स्त्री० बटुली। बाज़ार-पु० [फा०] वह स्थान जहाँ साधारण आवश्यकता- बाटना-स० कि० पीसना, घोंटना; * बटना, ऐंठना । की वस्तुएँ या कोई खास चीज बेची-खरीदी जाय, हाट, बाटिका-स्त्री० दे० 'बाटिका' । मंडी; खरीद-बेचीके लिए जमा हुए लोगः भावः बाजार बाटी-स्त्री० उपलोंकी आग या अंगारोंपर सेंकी हुई छोटी, लगनेका दिन, समय 1-भाव-पु० किसी चीजके बाजार- मोटी रोटी, अंगाकड़ी; गोती; तसला; छिछला कटोरा;
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बाड़-बात * वाटिका।
सँदेसा, इच्छा, कामना । -चीत-स्त्री० दो या अधिक बाड़-स्त्री० फसलकी रक्षाके लिए बनाया हुआ काँटे-बाँस आदमियोंका आपसमें बातें करना, वार्तालाप, गुफ्तगू। आदिका घेरा, झाड़बंदी, टट्टी, दे० 'बाद'।
-फरोश-वि०, पु० बातें बनानेवाला, झूठी बातें आदि बाडव-पु० [सं०] बडवाग्नि ब्राह्मण; घोड़ियोंका झुंड । करनेवाला; चापलूस । मु०-आँचलमें बाँधना-दे० बाड़ा-पु० इहाता, धेरा पशुशाला।
'बात गाँठ बाँधना' । -आना-चर्चा छिड़ना । (किसीबादि*-स्त्री० टट्टर में बाड़ी।
पर)-आना-दोषारोप होना। -आ पड़ना-प्रसंग बाडी-स्त्री० फलोंका बागा वाटिका; घिरी जगह; घर । आना; संयोग उपस्थित होना। -उठना-चर्चा चलना, बाड़ी*-पु० दे० 'बाडव' ।
जिक्र होना ।-उठाना-चर्चा चलाना; बात न मानना । बाढ़-स्त्री०बढ़नेकी क्रिया या भाव, वृद्धि विकास बहुतायत, -उड़ना-चर्चा फैलना । -उड़ाना-बात टालना । अधिकता; नफा; नदी आदिके जलका बढ़ना, फैलना; -उलटना-बात पलटना विरुद्ध बात कहना ।-कहतेअतिवृष्टिसे धरतीका जलमग्न होनाबहुतसी तोपों,बंदूकोंका तुरत, झट । -का ओर-छोर-बातका मतलब, बातका एक साथ दगना; तलवार आदिकी धारकोर सान; सिर-पैर । -काटना-बीचमें बोलना, टोकना, बातका किनारा । मु०-का डोरा-तलवारकी धारकी रेखा ।- खंडन करना। -का धनी,-का पूरा-जो कहे वह पर चढ़ाना-सान देना; उकसाना, भड़काना ।-मरना- करनेवाला । -का बतंगड़ करना या बनाना-छोटीसी (रोगादिसे) बाढ़का रुक जाना।
बातको बहुत बड़ी बना देना, तिलका ताड़ बनाना। - बाढ़ना*-अ० कि० दे० 'बढ़ना।
की तह-असल मतलब, तात्पर्य । -की पुड़िया-बहुत बादि*-स्त्री० बाद, वृद्धि ।
बातूनी। -की बातमें-छन भर में, तुरत । -खुलनाबाढ़ी-स्त्री० बाढ़; उधार दिये हुए अन्नके ब्याजरूपमें छिपी बातका प्रकट हो जाना। -गढ़ना-झूठी बात मिलनेवाला अन्न; नफा ।
कहना। -गाँठ बाँधना-बात दिल में बैठा लेना, अच्छी बाढ़ीवाना-पु० धार तेज करनेवाला, सान चढ़ानेवाला । तरह याद कर लेना। -धूंट जाना-दे० 'बात पी बाण-पु० [सं०] लोहेका फल लगा हुआ नरसल या जाना' । -चबा जाना-बातको कहते-कहते बीच में उड़ा पतली सीधी लकड़ीका टुकड़ा जिसे धनुष्पर चढ़ाकर | देना; बातका रुख दूसरी ओर कर देना । -जाना-साख मारते हैं, तीर, शर; बाणका फल, गाँसी; निशाना सर- जाना, एतबार उठना । -टलना-बातका अन्यथा होना, पत; गायका थन; ५ की संख्या बाणासुर; बाणभट्टाअग्नि । कहे मुताबिक न होना । -टालना-बात न मानना; -गंगा-स्त्री. गंगाकी एक सहायक नदी जो कहा जाता सुनी अनसुनी करना। -दुहराना-दूसरेकी बातको है कि एक पहाड़में रावणके बाण मारनेसे निकली है। उलटकर जवाब देना । (मुँहसे)-न आना-मुँहसे बोल -मुक्ति-स्त्री०,-मोक्षण-पु० तीर छोड़ना । -वर्षण- न निकलना । -न करना-धमंडको मारे न बोलना। पु० दे० 'बाणवृष्टि'। -वर्षी(र्षिन्)-वि० वाणोंकी -न पूछना-खोज-खबर न लेना; तुच्छ समझना । वर्षा करनेवाला। -विद्या-स्त्री० बाण चलानेकी विद्या, -निकलना-चर्चा चलना। -नीचे डालना-अपनी तीरंदाजी। -वृष्टि-स्त्री० बाणोंकी वर्षा । -संधान- बातको कट जाने देना, अपनी बातका आग्रह त्याग देना। पु० बाणको धनुषपर चढ़ाना। -सुता-स्त्री. उषा, -पकड़ना-कथनमें गलती, असंगति बताना; नुक्ताचीनी अनिरुद्धकी पत्नी । -हा(हन्)-पु. विष्णु ।
करना। -पचना-सुनी हुई बातको दूसरोंसे न कहना। बाणाभ्यास-पु० [सं०] बाण चलानेका अभ्यास, तीरंदाजी। -पर आना-अपनी बातका पक्ष, हठ करना । -पर बाणावलि-स्त्री० [सं०] बाणोंकी पंक्ति ।
जाना-किसीके कहे पर विश्वास कर लेना, बात मानना। बाणाश्रय-पु० [सं०] तरकश ।
-पर बात कहना-जबाब देना। -पर बात निकलना बाणासन-पु० [सं०] धनुष ।
-चर्चा या प्रसंग, दूसरेके कुछ कहनेके कारण किसी बाणासुर-पु० [सं०] राजा बलिक सौ बेटों में सबसे बड़ा बातका कहा जाना । -पलटना-बात बदलना । -पी जिसके, पुराणोंके अनुसार, हजार हाथ थे और जिसकी जाना-बातको अनसुनी करना, बातको सह लेना। बेटी उषासे कृष्णके पोते अनिरुद्ध का ब्याह हुआ।
-पूछना-खोज-खबर लेना, ध्यान देना; * कद्र करना । बाणि, बाणी-स्त्री० [सं०] दे० 'वाणि', 'वाणी'।
-फेरना-बात पलटना । -फैलना-चर्चा फैलना। बाणिज्य-पु० [सं०] दे० 'वाणिज्य' ।
-बढ़ना-बातका बहस या झगड़ेका रूप ले लेना; मामबात-पु०दे०'वात' । स्त्री० कथन, वचन वार्ता, बातचीत लेका तूल खींचना; साख, मान-प्रतिष्ठा बढ़ना। -बढ़ाना वक्तव्य (भेरी बात तो सुन लो); चर्चा,प्रसंग, कौल, वचन; -बहस, झगड़ा करना; मामलेको तूल देना। -बदलना विषय, मामला; घटना; संयोग, प्रसंग; बहाना, बनावट -बातपर कायम न रहना, दूसरी बात कहना; बातका गूढ़ अर्थ, भेद, मर्म; कथनमात्र; कड़ी बात, डाँट, भर्त्सना विषय, पहलू बदलना। -बनना--काम बनना; मान, (-सहना, सुनना); बातका विश्वास, साख (वात जाना); साख बढ़ना। -बनाना-बहाना करना; काम सँभाल तात्पर्य, मतलब; खूबी, प्रशंसाकी बात काम; लगाव लेना, बिगड़ने न देना। -बातमें-हर बातमें । - चीज, वस्तु; आदत, गुण ( अच्छी, बुरी बातें); स्थिति बिगड़ना-काम बिगड़ना; साख नष्ट होना । -मारना हालत; मोल, दाम (एक बात); रास्ता, उपाय ( मेरे लिए | -असल बात छिपा लेना; व्यंग्य बोलना। -महपर एक ही बात रह गयी है); आदेश (बड़ोंकी बात मानो) लाना-बात बोलना। -में फर्क आना-बात झूठी ठह
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बाती-बानत रना। -में बात निकालना-बातमें बारीकी निकालना, बादाम-पु० [फा०] एक प्रसिद्ध भेवा जिसकी गिरी खायी बालकी खाल खोचना । -रखना-कहा मान लेना, जाती और बहुत पुष्टिकर होती है। उसका पेड़ ।-पाकबातका आदर करना; मान रखना; अपने वचनका पालन पु० एक प्रसिद्ध पुष्टिकर पाक । करना; दुराग्रह करना । -रहना-वचनका पालन होना; | बादामी-वि० [फा०] बादामके रंगका बादामकी शकलप्रतिष्ठा बनी रहना। -लगना-बातसे आहत होना । का बादामका बना हुआ। पु० बादामके छिलकसे मिलता (बाते)छाँटना-बढ़-बढ़कर बोलना ।-बनाना-बना हुआ रंग। -आँख-स्त्री० बादामकी शकलकी छोटी वटी बातें, बहाना करना; चापलूसी करना। -सुनना | आँख । -कड़ी बातें सुनना । (बातौँ)बातों में-बातोंके सिल-वादि*-अ० व्यर्थ, बेकार । सिले में, बातचीतके दरमियान । -में आना-बातका बादित*-वि० जो बजाया गया हो। विश्वास कर लेना, धोखा खाना । -में उड़ाना-इधर- बादी-पु० दे० 'वादी'। वि० वातकारक, वातज । स्त्री० उधरकी बात या हँसी में टालना।
वातविकार । -पन-पु० वायुविकार; वातकारक होना। बाती*-स्त्री० बत्ती।
-बवासीर-स्त्री० बवासीरके दो भेदोंमेंसे एक जिसमें बातुल-वि० दे० 'वातुल' ।
मस्सेसे खून नही आता। बातूनी-वि० बहुत बोलनेवाला, बक्की ।
बादीगर*-पु. बाजीगर । बाथ*-पु० गोद, अंक ।
बादुर*-पु. चमगादड़-'ते विधना बादुर रचे रहे उरध बाद-अ० बेमतलब, फजल, बेकार । पु० दे० 'वाद';
मुख झूल'-साखी। बहस, हुज्जत; शत, बाजी । मु०-मेलना* --शर्त बदना।
बाध-पु० [सं०] प्रतिरोध; रोक, प्रतिबंधकष्ट, पीड़ा बाद-पु० दस्तूरी; अतिरिक्त मूल्य जो पीछे काट दिया
बाधा देनेवाला; + पूँजकी ररसी । जाता है । वि० छोड़ा हुआ । मु०-करना-देना-अलग
बाधक-पु० [सं०] बाधा करनेवाला, रुकावट डालनेवाला; कर देना, काट देना।
विघ्नकारक, कष्ट देनेवाला ।। बाद-अ० [अ० पीछे, अनंतर । -को-में-पीछे।
बाधन-पु० [सं०] बाधा डालना विरोध करना; कष्ट देना। बाद-पु० [फा०] हवा, वायु; घोड़ा। -कश-पु० छतसे
बाधना*-स० क्रि० रुकावट डालना; विघ्न करना। लटकानेका पंखा; धौंकनी। -गीर-पु० झरोखा । -
बाधा-स्त्री० [सं०] अड़चन, रुकावट, विघ्न; पीड़ा, कष्ट; नुमा-पु० वायुकी दिशा बतानेवाला आला । -बान
भय (प्रेतबाधा)। -हर-वि० बाधा दूर करनेवाला। पु० पाल।
बाधित-वि० [सं०] जिसमें रुकावट पड़ी हो; असंगत; बादना-अ० क्रि० बहस करना, झगड़ा करना; लह
ग्रस्त; आभारी। कारना।
बाध्य-वि० [सं०] पीड़ित रोका हुआ विवश । बादर-* पु० बादल।
बान-पु० बाण; एक तरहकी आतिशबाजी ऊँची लहर बादरायण-पु० [सं०] बेदांत-सूत्रके रचयिता ऋषिविशेष,
रुई धुननेका धुंबददार डंडा, मुठिया; बाध; * कांति; वेदव्यास । -संबंध-पु० बहुत दूरका, खींच-तानकर
चमक । स्त्री० सजधज; आदत । जोड़ा हुआ संबंध ।
बानइत*-पु० दे० 'बानैत'। बादल-पु० वायुमंडल में संचित और घनीभूत भाप जो
बानक*-स्त्री० बाना, भेस; एक तरहका रेशम । मेहके रूपमें धरतीपर आती है, मेध, अब्र; एक तरहका
बानगी-स्त्री० थोड़ीसी चीज जो ग्राहकको देखने के लिए दूधिया रंगका पत्थर । मु०-उठना,-चढ़ना-बादलोंका
दी जाय, नमूना। फैलना, छाना, घटा उठना।-गरजना-बादलोकसंघपसेबानना*-स०वि०बनाना । घोर ध्वनि उत्पन्न होना। -घिरना-मेघोंका छाना।
बानबे-वि० नब्बे और दी। पु० ९२ की संख्या। -छंटना,-फटना-घटाका विखरना। -में थिगली बानर-पु० दे० 'बंदर'। लगाना-कठिन काम करना । (बादलौँ)से बाते। बाना-पु० पहनावा, भेस; बुनावट; तानेमें भरा जानेवाला करना-आकाशसे बातें करना, बहुत ऊँचा होना।
आड़ा सूत; एक तरहका बारीक तागा; भाले जैसा एक बादला-पु० चाँदीका चपटा तार जो गोरा बुनने या कला | हथियार जिसका ऊपरी हिरसा दुधारी तलवारकासा बत्त बनानेके काम आता है, जरबफ्त ।
होता है; रीति, चाल, पहली जुताई; * निशान; वर्ण, बादशाह-पु० [फा०] राजा, सुलतान; सरदार; स्वतंत्र | रंग । स० क्रि० फैलाना, प्रसारित करना (मुँह बाना)। प्रकृतिका पुरुष; शतरंजका एक मुहरा; ताशका एक | बानावरी*-स्त्री० बाणावली; बाणविद्या (१)। पत्ता । -जादा-पु० बादशाहका बेटा, राजकुमार । बानि*-स्त्री० बान, आदता सजधज; चमक वचन, वाणी। बादशाहत-स्त्री० [फा०] राज्य, हुकूमत; बादशाहका बानिक*-स्त्री० भेस, बाना । पदा राजत्व ।
बानिन, बानिनि-स्त्री० बनियेकी स्त्री। बादशाही-वि० [फा०] बादशाहका राजोचित, शाहाना। बानिया-पु० दे० 'बनिया' । स्त्री० राज्य, शासन; मनमाना व्यवहार । -खर्च-पु० बानी*-स्त्री० दे० 'बाणी'; * वर्ण; चमक* वाणिज्य । शाहाना खर्च, भारी फुजूलखर्ची । -फरमान, हुक्म- *पु० बनिया। पु० राजाज्ञा।
बानैत-पु० बाना फेरनेवाला; बाण चलानेवाला; योद्ध।।
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५६७
बाप- पु० पिता, जनक। -का-वि० पैतृक, मौरूसी । - दादा - पु० पुरखे, पूर्व पुरुष । - रे, रे बाप- अ० दुःख या गय सूचित करनेवाला उद्द्वार । मु०- की चीज़ समझना - अपनी मिलकीयत समझना । - दादाका नाम डुबाना-कुलकी प्रतिष्ठा मिटाना। - दादा बखा नना - बाप-दादाको बुरा-भला कहना, गाली देना । - दादा से पीढ़ियोंसे । - बनाना - अति सम्मान करना; चापलूसी करना ।
बापी - स्त्री० दे० 'वापी' |
बापुरा - वि० गरीब, बेचारा; तुच्छ, नगण्य |
बापू | - पु० दे० 'बाप'; पिता या अन्य गुरुजनका संबोधन । बाप्पा - पु०मेवाड़ के राजवंशका आदिपुरुष (जन्म७६९ वि० ) । बाफ़ता, बाफ़्ता - पु० [फा०] एक तरहका रेशमी कपड़ा । बाब- पु० [अ०]द्वार, दरवाजा; दरबार; पुस्तकका अध्याय । बाबत - स्त्री० [फा०] विषय; जरीया । (किसीकी बाबत - किसी के विषय, बारेमें) ।
बावरची- पु० दे० 'बावरची' ।
बाबा- पु० [फा०] बाप दादा; बूढ़ा, पके बालोंवाला आदमी; साधु-संन्यासी; साधु-संन्यासियों के लिए प्रयुक्त एक आदरसूचक शब्द; बच्चोंके लिए प्यारका शब्द । बाबी* - स्त्री० साधुनी ।
बाबुल - पु० बाप, पिता, बाबू ।
बाबू - पु० बड़ा क्षत्रिय जमींदार; ठाकुर; शिक्षित, प्रतिष्ठित जन; क्लर्क (बड़े बाबू हेड शर्क ); दे० 'बाबूजी' । -जीपु० पिता पिता या अन्य आदरणीय जनका संबोधन । - साहब - पु० आदरणीय जनके लिए प्रयुक्त शब्द । बाबूना - पु० दवा के काम आनेवाला एक पौधा । बाम - वि० दे० 'वाम' |
बामा - वि०, स्त्री० दे० 'वामा' |
बामी - स्त्री० बाँबी । वि० वाममार्गी ।
बाम्हन - पु० दे० 'ब्राह्मण' ।
बायँ*-वि० दे० 'बायाँ’; चूका हुआ । मु० -देना - तरह देना; फेरा देना |
बाय * - स्त्री० वायुः वातका प्रकोप - 'भटा एकको पित करै, करे एकको बाय'-; वापी, बावली ।
बायक* - पु० वाचक; दूत ।
बायन - पु० मित्रों, संबंधियं के यहाँ भेजी जानेवाली मिठाई आदि (बाँटना); + दे० 'बयाना' । मु० -देनाछेड़छाड़ करना (भले घर बायन दिया) । बायवी - वि० बाहरी, गैर, अजनबी। वायव्य - वि०, पु० दे० 'वायव्य' । बायलर - पु० [अ० 'ब्वायलर'] बड़ा बरतन जिसमें कोई चीज उबाली जाय; इंजनका वह भाग जहाँ भाप तैयार करनेके लिए पानी खौलाया जाता है । वायला - वि० वातकारक । वायली* - वि० दे० 'वायत्री' | बायस * - पु० दे० 'वायस' । बायस्कोप - पु० [अ०] परदेपर चलते-फिरते चित्र दिखलानेवाला एक यंत्र ।
बायाँ - वि० पूरबकी ओर मुँह होनेपर उत्तरकी ओर पड़ने
३६-क
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बाप- वारह
वाला (अंग), दाहनाका उलटा, वाम; विरुद्ध, प्रतिकूल । [स्त्री० 'वाय' ।] पु० बायें हाथसे बजाया जानेवाला तबला । सु० - कदम लेना-दे० 'बायाँ पाँव पूजना' । - देना - कतरा जाना; त्याग देना। -पाँव या पैर पूजना -- गुरु मानना; हार मानना; उस्तादीका कायल होना । ( बायें हाथका काम, खेल-बहुत आसान काम । - हाथसे गिनवा या रखवा लेना - जबरदस्ती लेना, धरवा लेना ।
बायु - स्त्री० दे० 'वायु' ।
बायें - अ० बायीं ओर; प्रतिकूल (होना) । मु० - होना - प्रतिकूल होना ।
बारंबार - अ० फिर-फिर, कई बार ।
बार - पु० द्वार (घर-बार); जनसमूह; टट्टर, घेरा; किनारा; धार; * केश, बाल; * बालक; ठिकाना; * वारि, जल । स्त्री० समय दे दफा, मर्तबा । -तिय, -बधू, - बधूटी* - स्त्री० दे० 'वारवधू' । - मुखी* - स्त्री० वारवधू । - बार- अ० पुनः पुनः, अनेक बार ।
बार - पु० [फा०] बोझ, भार; ऋणभार; फल; वृक्षशाखा; गर्भ, भ्रूण; दरबार, इजलास; दखल, पहुँच । स्त्री० दफा, मर्तबा । -गह, -गाह - स्त्री० दरवा; कचहरी; शाही खेमा । - दान, दाना-पु० वह चीज जिसमें कुछ रखा जाय, बोरा, थैला आदि; रसद; टूटे-फूटे सामान । -बरदार - वि० बोझ ढोनेवाला । पु० मोटिया, मजदूर । -बरदारी - स्त्री० बोझ सामान ढोनेका काम; ढुलाई, ढोनेकी उजरत; दुलाईका साधन, वाहन । -हा-अ० अनेक वार |
बारजा - पु० बालाखानेके सामने पाटकर बनाया हुआ खुला या छतदार बरामदा ।
बारण- पु० दे० 'वारण' । बारता * - स्त्री० दे० 'वार्ता' |
बारना - सु० क्रि० रोकना, निवारण करना; न्योछावर करना; जलाना ।
बारनिश - स्त्री० [अं० 'वारनिश'।] लकड़ी चमड़े आदिपर चमक लाने के लिए लगाया जानेवाला रोगन | बारह - वि० दससे दो अधिक । पु० दस और दोकी संख्या, १२ । - खड़ी - स्त्री० व्यंजनोंके बारहों स्वरोंसे युक्त रूप । - दरी - स्त्री० वह कमरा जिसमें सब ओर बारह या अधिक दरवाजे हों । - पानीका बारह बरसका ( सूअर ) । - बान, - बाना - वि० दे० 'बारहबानी' । - बानी - वि० खरा, खालिस (सोना); निर्दोष, बेऐव; पूरा, कामिल । - मासा - पु० वह पद्य या गीत जिसमें बारहों महीनों की प्राकृतिक विशेषताओंका वर्णन हो । -मासी - वि० बारहों महीने फलने-फूलनेवाला, सदाबहार; जो बारहों महीने रहे, काम करे । - मुकाम पु० ईरानी संगीतके बारह परदे । - वफात - स्त्री० रवीउल - औवलकी १२ वीं तिथि जो मुहम्मदकी निधन तिथि है । - सिंगा, -सिंघा - पु० हिरनका एक भेद जिसके नरके सींगों में अनेक शाखाएँ होती हैं। मु० बाट करना - तितर-बितर करना, बरबाद, नष्ट-भ्रष्ट करना । - बाट छालना* - दे० 'बारह बाट 'करना' । - बाट जाना या होना - तितर-बितर होना;
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बारह-बालकताई
बरबाद, नष्ट-भ्रष्ट होना ।
बारहाँ - वि० बारहवाँ | अ० दे० 'बार-हा' | बारा - वि० बालक, किशोर; कोमलवय, कमसिन । पु० बेटा; बालक । बारते * - बचपन से ।
बारा - पु० [फा०] समय, बार; विषय । ( बारेमें के विषय में) ।
बारात - स्त्री० दे० 'बरात' ।
बाराती - पु० दे० 'बराती' । बारादरी - स्त्री० दे० 'बारहदरी' |
बारानी - वि० [फा०] वर्षापर अवलंबित, सींची न जा सकनेवाली (फसल, जमीन ) । स्त्री० वह जमीन जिसमें केवल वर्षासे सिंचाई हो, कुएँ आदिका सुभीता न हो; बिना सींचे होनेवाली फसल; बरसाती कोट । बाराह - पु० दे० 'वाराह' ।
बारि* - पु० दे० 'वारि' । ( -ज-द-आदि भी ) । - बाह- पु० बादल ।
बारिगर* - पु० हथियारोंपर सान रखनेवाला । बारिगह * - स्त्री० दे० 'बारगह' ( तम्बू) - 'चितउर सौह बारिगह तानी' - प० ।
बारिश - स्त्री० [फा०] वर्षा, मेह; बरसात ।
बारी - स्त्री० अनेक व्यक्तियोंमेंसे प्रत्येकको मिलनेवाला यथा क्रम अवसर, पारी; पारीके बुखारका दिन । -काबारी से आनेवाला (ज्वर) । - बारीसे - एकके बाद दूसरा । बारी - वि० स्त्री० कमसिन (लड़की) । स्त्री० किशोरी, बालिका; नवयुवती; बड़े पेड़ोंका बाग; किनारा; धार; छोर; औंठ; दे० 'बाली'; दे० 'बाड़'; घर; खिड़की । पु० एक हिंदू जाति जो दोने-पत्तल आदि बनानेका धंधा करती है ।
बारीक - वि० [फा०] महीन, बहुत पतला; सूक्ष्म; समझनेमें कठिन, गूढ़ |
बारीकी स्त्री० [फा०] बारीकपन; सूक्ष्मता; खूबी, सूक्ष्म गुण-दोष
बारीस * - पु० दे० 'वारीश' |
बारुणी, बारुनी* - स्त्री० दे० 'वारुणी' | बारू* - स्त्री०, पु० दे० 'वालू' । बारूद-स्त्री॰ शोरे, गंधक और कोयलेका बारीक चूर्ण जो अग्निके संयोगसे भड़क उठता और आतिशबाजी तथा . तोप बंदूक चलाने में काम आता है । खाना-पु० बारूद या गोली बारुदका भंडार ।
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५६८
स्त्री० बच्चों का खेल, बालक्रीडा । -क्रीडन - पु० बच्चों की क्रीडा । - क्रीडनक - पु० खिलौना । -क्रीडा-स्त्री० दे० 'बालकेलि' ।-खंडी - [हिं०] पु० ऐबी हाथी । -खोरापु० [हिं०] बाल झड़नेका रोग, गंजापन । -गोपालपु० बालक कृष्ण; बाल-बच्चे । -ग्रह- पु० बालकोंको पीड़ा पहुँचानेवाला उपग्रह या पिशाच ( इनकी संख्या ९ बतायी गयी है); बालरोगविशेष । -चंद्र- पु० दूजका चाँद । -चर- पु० बालकों में चारित्र्य, लोकसेवा और स्वावलंबनका भाव लाने के लिए स्थापित संघका सदस्य ( ब्वायस्काउट ) । -चरित - पु० बाललीला, बचपनके काम । -चर्या स्त्री० बच्चों का रख-रखाव, शिशु पालन । -तोड़ - पु० [हिं०] बाल टूट जानेसे होनेवाला फोड़ा । -धि-स्त्री० पूँछ । - धी* - स्त्री० दे० 'बालधि' । - बच्चे - पु० [हिं०] लड़के वाले, संतान । - बराधर - अ० [हिं०] बहुत बारीक; जरासा, रत्तीभर । - बाँधा गुलामपु० [हिं०] हर आज्ञाका पालन करनेवाला, इशारे पर काम करनेवाला सेवक । -बाल - अ० पूरा; सिर से पैरतक; हरएक; जरासा । - बुद्धि-स्त्री० बालोचित बुद्धि; नासमझी, कम अकली । वि० लड़कोंकीसी अकल रखनेवाला; अल्पबुद्धि । - बोध - वि० बालकोंकी समझमें आनेवाला, आसान । - ब्रह्मचारी (रिन् ) - पु० बचपन से ब्रह्मचर्य रखनेवाला आजन्म ब्रह्मचारी । -भाव-पु० बचपन; बालरूप । - भोग - पु० [हिं०] प्रातःकालका ( कलेवारूप) नैवेद्य । - भोज्य- पु० चना । - मुकुंद - पु० बालक कृष्ण । -रोग - पु० बच्चोंको होनेवाला रोग ।-लीला - स्त्री० बालचरित, बालक्रीडा । - विधवा स्त्री० छोटी उम्र में ही विधवा हो जानेवाली स्त्री । विधु -पु० दूजका चाँद, बालचंद्र | - विवाह - पु० बचपनका, छोटी उम्रका व्याह । - सखा (खि) - पु० बचपन का दोस्त, बच्चोंका दोस्त । -सफ़ा[हिं०] [वि० बाल सफा करने, उड़ानेवाला (साबुन, दवा) । - सूर्य - पु० उगता हुआ सूर्य । - स्थान - पु० बचपन | - हठ-पु० बच्चेका हठ, जिद । मु०- का कंबल बनाना, - की भेड़ बनाना - अतिरंजना करना, तिलका ताड़ बनाना । —की खाल खींचना या निकालना - बहुत छान-बीन करना । - खिचड़ी होना- स्याहसे सफेद बाल अधिक हो जाना। - धूप में पकाना - बूढ़ा हो जानेपर भी शान, अनुभवसे कोरा रहना । (किसी काम में) - पकाना - (कुछ करते हुए) बूढ़ा होना; अनुभव प्राप्त करना । - बाँका होना- कष्ट, चोट पहुँचाना; हानि, अनिष्ट होना । - बाँधा निशान उड़ाना-पक्का, अचूक निशाना लगाना। - बाल गुनहगार होना - हर तरहसे, सिरसे पैरतल, अपराधी होना । - बाल दुश्मन होना- हर एक, का दुश्मन होना, सभीका शत्रु हो जाना ।-बाल बचना - विपद् में पड़ते-पढ़ते बच जाना, पड़ने में तनिकसी ही कसर रहना, साफ बचना । - बाल बँधना या बँधा होना - ( किसीके ऋण - उपकार से ) बहुत अधिक बँधा, दबा होना ।
बालक - पु० [सं०] बच्चा, लड़का; बछेड़ा; नाबालिग, अनजान, नासमझ आदमी; मोथा; हाथीका बच्चा ।
बारे - अ० [फा०] अंतमें, आखिरकार; लेकिन; खैर | बारोठा - पु० द्वार; ब्याहकी एक रस्म द्वारपूजा । बाल-स्त्री० जौ, गेहूँ आदिका वह भाग जिसमें दाने गुछे होते हैं, खोशा । पु० [सं०] बच्चा, बालक; वह जिसकी उम्र सोलह वर्ष से ऊपर न हो; केश, रोम; शीशे आदिकी चीजोंमें पड़ी हुई दरार । वि० जो पूरी बाढ़को न पहुँचा हो; नवोदित; नासमझ, मूर्ख । * स्त्री० बाला, तरुणी । -कमानी - स्त्री० [हिं०] घड़ीके बैलेंसमें लगायी जानेवाकी बारीक कमानी । -कांड-पु० रामायणका पहला खंड जिसमें रामचंद्रके जन्म, बाललीला, विवाह आदिका वर्णन है । -काल- पु० बचपन, बाल्य ।-केलि, केली- | बालकताई * - स्त्री० लड़कपन, नासमझी ।
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५६९
बालकपन-बासी बालकपन-पु० बचपन; नासमझी।
बालेंदु-पु० [सं०] दूजका चाँद । बालकीय-वि० [सं०] बालक-संबंधी; बालकोंका। बालेय-वि० [सं०] बालकोंके लिए हितकर; बलिके योग्य बालटी-स्त्री० लोहे, पीतल आदिका बना डोल ।
मृदु, मुलायम; बलिसे उत्पन्न । पु० बलिका बेटा; गदहा । बालटू-पु० पेचको दूसरे सिरेसे कसनेवाला पेचदार छल्ला । बालोपचार-पु० [सं०] बच्चोंका इलाज । बालना-स० क्रि० जलाना।
बाल्य-पु० [सं०] बचपन, बालकाल; १६ बरसतककी बालपन-पु० बचपन ।
अवस्था नासमझी। -काल-पु० बचपन । बालम-पु० पति प्रेमी ।-खीरा-पु० एक तरहका खीरा। बाल्हक, बाल्हिक, बाल्हीक-पु० [सं०] बलखदेश; बाला-पु. कान में पहननेका एक गहना, बड़ी बाली; गेहूँ- बलखका रहनेवाला; बलखका घोड़ा; केसर; हींग । जौकी फसल में लगनेवाला एक कीड़ा । स्त्री० [सं०] लड़की, बाव*-पु० दे० 'वायु'; अपानवायु, वातदोष । बालिका १६ बरससे कम उम्रकी युवती; युवती। वि० बावड़ी-स्त्री० दे० 'बावली'। [हिं०] कमसिन; बालस्वभाव, भोला। -जोबन-पु. बावन-वि० पचास और दो। पु० पचास और दोकी संख्या, उठती जवानी। -पन-पु० लड़कपन । -भोला-वि० ५२ + दे० 'वाभन'।-तोले पाव रत्ती-बिलकुल ठीक । सीधासाधा, सरल।
-बीर-बहुत चतुर और बहादुर । बाला-वि० [फा०] ऊपरका; ऊँचा। पु० डील; लंबाई- बावर*-वि० दे० 'बावला'। ऊँचाई ।-खाना-पु० ऊपरकी मंजिलका कमरा,अटारी। बावरची-पु० खाना पकानेवाला, रसोइया (मुसल०)। -नशीन-पु० बैठनेकी ऊँची जगह । वि० सबसे अच्छा,
-खाना-पु० रसोई, पाकशाला। बढ़िया। -बाला-अ० ऊपर-ऊपर बाहर-बाहर । -य बावरा*-वि० पागल । ताक-वि० अलग, दूर (रखना)।
बावरि, बावरी-स्त्री० दे० 'बावली' । बालाई-वि० [फा०] ऊपरका (हिस्सा)। स्त्री० मलाई । बावला-वि० वातरोगी; पागल, सिड़ी।-पन-पु० पागल
-आमदनी-स्त्री० ऊपरकी आमदनी, वेतन या बँधी पन; सनक, सिड़। वृसिके अतिरिक्त मिलनेवाली रकम ।
बावली-स्त्री. चौड़ा कुआँ जिसमें नीचे जानेके लिए बालातप-पु० [सं०] सबेरेकी धूप ।।
सीढ़ियाँ बनी हों; छोटा सोपानयुक्त तालाब । बालादित्य-पु० [सं०] नवोदित सूर्य ।
बावा-वि० दे० 'बायाँ'। बालाध्यापक-पु० [सं०] बच्चोंको पढ़ानेवाला ।
बाशिंदा-पु० [फा०] बसनेवाला । बालामय-पु० [सं०] बच्चोंका रोग।
बाष्प-पु० [सं०] आँसू भाप लोहा ।-कंठ-वि.जिसका बालार्क-पु० [सं०] बालसूर्य; कन्याराशिमें स्थित सूर्य । | गला भर आया हो। -मोचन-पु० आँसू बहाना । बालावस्था-स्त्री० [सं०] बचपन ।
-सलिल-पु० अश्रुजल । बालि-* स्त्री० मंजरी । पु० [सं०] दे० 'बाली'। -हंता- बाप्पांबु-पु० [सं०] अश्रुजल । (त),-हा(हिन्)-पु० राम । -कुमार-अंगद । बासंतिक-वि० 'वासंतिक', वसंत-संबंधी। पु० विदूषक । बालिका-स्त्री० [सं०] छोटी लड़की; बेटी; बाली।-विद्या- बास-पु० निवास वासस्थान, वस्त्र, * दिन । स्त्री० गंध लय-पु. लड़कियोंका मदरसा ।
वासना; आग; एक हथियार । -फूल-पु० एक सुगंधित बालिग़-वि० [अ०] वयःप्राप्त, सयाना। पु० सयाना | धान । -मती-पु० एक खुशबूदार चावल । आदमी।
बासकसजा-स्त्री० दे० 'वासकसज्जा' । बालिग़ा-स्त्री० सयानी, १५ वर्षसे अधिक उम्रकी लड़की । बासठ-वि० साठ और दो। पु० ६२की संख्या । बालिश-वि० [सं०] बालोचित बालबुद्धि, नासमझ; बासन*-पु० बरतन, वस्त्र । लापरवाह । पु० शिशुः मूर्ख व्यक्तिः [फा०] तकिया,
बासनवारा*-पु० सुगंधित करनेवाला । मसनदा बढ़ती।
बासना-स० क्रि० बसाना, सुवासित करना; स्त्री० दे० बालिश्त-पु० [फा०] अँगूठेके सिरेसे छिंगुनीके छोरतक- | 'वासना'; गंध । की लंबाई, बित्ता।
बासर*-पु० दे० 'वासर'। बालिस*-वि०, पु० दे० 'बालिश' ।
बासव-पु० इन्द्र। बाली--स्त्री० सोने या चाँदीके तारका छल्ला जो कानमें
बाससी*-स्त्री० कपड़ा, वस्त्र । पहना जाता है। गेहूँ-जौ आदिकी बाल, खोशा। बासा-पु० अडूसा; एक पक्षी; भोजनालय * निवासबाली(लिन्)-पु० [सं०] सुग्रीवका बड़ा भाई । -कुमार, | स्थान । वि० बासी। -तनय-पु० अंगद ।
बासिग*-पु० 'वासुकि नाग । बालुका-स्त्री० [सं०] बालू , रेत ।
बासित*-वि० वासित, सुगंधित किया हुआ। कपड़ेसे बालू-स्त्री०, पु० रेत ।-दानी-स्त्री० वह डिबिया जिसमें | ढका हुआ। स्याही सुखानेके लिए बालू रखी जाती है।-शाही-स्त्री० | बासी-वि०, पु० रहनेवाला । वि० देरका पका हुआ, दूसरे एक प्रसिद्ध मिठाई ।-की घड़ी-शीशेका अंडाकार पात्र | जून या रातका बचा हुआ (खाना); पिछले दिनका जिसमें भरी हुई रेत उसके छेदसे एक घंटेमें नीचे के पात्र में तोड़ा, रखा हुआ (फल, पानी); सूखा, कुम्हलाया हुआ। गिर जाती है। -की भीत-क्षणभंगुर वस्तु ।
-ईद-स्त्री० ईदका दूसरा दिन । -तिबासी-वि० कई
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बाह-बिखम
५७० दिनोंका। -मुहँ-वि० जिसने सबेरेसे कुछ खाया न ग्रहण करना आरंभ होता है । हो। अ० बिना कुछ खाये, खाली पेट । मु०-कढ़ीमें बिंदुरी, बिदुली-स्त्री० बिंदी, टिकली। उबाल आना-बुढ़ापेमें जवानीका जोश जगना; समय बिंध-पु० दे० 'विंध्याचल'। बीत जानेपर कुछ करनेकी इच्छा होना।
| बिँधना-अक्रि० बींधा जाना; उलझना । सक्रि० छेदना। बाह*-पु० प्रवाह निकास, उपाय । स्त्री० खेतकी जुताई, बिब-पु० [सं०] अकस, प्रतिच्छाया; कमंडलु; सूर्य या जोत । वि०ढ़, सशक्त।
चंद्रमाका मंडल; कुंदरू; गिरगिट झलक मंडल जैसा कोई बाहक-पु० दे० 'वाहक'; * सवार ।
तल; उपमेय; आईना; * बाँबी । -फल-पु. कुंदरू। बाहकी-स्त्री० पालकी ढोनेवाली कहारिन ।
बिंबक-पु० [सं०] चंद्रमा या सूर्य का भंडल; कुंदरू । बाहन-पु० दे० 'वाहन'; एक पेड़ ।
बिंबा, बिंबी-स्त्री० [सं०] कुंदरकी लता। बाहना-* स० क्रि० ढोना; हाँकना; फेंकना; मारना; खेत | बिंबित-वि० [सं०] प्रतिबिंबित । जोतना + गाय आदिको गाभिन कराना। अ० क्रि० बिंबोष्ट, बिंबोष्ट-वि० [सं०] जिसके होठ कुंदरकी तरह बहना।
लाल हो । पु० कुंदरू जैसा लाल होठ । बाहनी*-स्त्री० नदी; सेना ।
बि, बिअ*-वि० दो। बाहर-अ० स्थान या वस्तुविशेषकी सीमाके उस पार; बिआजी-पु० सूद; बहाना । अंदरका उलटा; अलग; दूर, अन्यत्र;-से अधिक (बूतेसे | विआधा-पु. व्याधा । स्त्री० व्याधि । बाहर)। पु० बाह्य रूप, ऊपरी भाग परदेश ।-का-वि० बिआधि*-स्त्री० दे० 'व्याधि' । जो धरका न हो, गैर; ऊपरका । -जामी*-पु० ईश्वरका बिआना-सक्रि० जनना । अनि पशुका बच्चा जनना। सगुण रूप । -बाहर-अ० ऊपर-ऊपर; दूर-दूर । बिआहना*-स० क्रि० ब्याह करना । -भीतर-अ० अंदर और बाहर । -वाला-पु० भंगी। बिकट-वि० दे० 'विकट' । वि० बाहरी । -वाली-स्त्री. भंगिन । -से-ऊपरसे, बिकना-अ०वि० बेचा जाना, दाम लेकर दिया जाना; जाहिरा; दूसरे स्थान, परदेशसे । मु०-करना-निकाल | * मुग्ध होना। देना, अलग करना, बहिष्कृत करना । -की हवा | बिकरम* -पु० दे० 'विक्रम'; दे० 'विक्रमादित्य' । लगना-बाहरवालोंका असर पड़ना; आवारा होना। बिकरार*-वि० बेकरार, विकल; दे० 'विकराल' । बाहरी-वि० याहरका पराया; अजनबी; दिखाऊ । बिकराल-वि० भयंकर, भीषण । बाहाँजोरी*-१० हाथसे हाथ मिलाये हुए ।
बिकल-वि० विकल, बेचैन । बाहिज*-अ० बाहरसे, ऊपरसे ।
बिकलाई, बिकलाई*-स्त्री० विकलता, बेचैनी। बाहिनी-स्त्री० सेना; सवारी।
विकलाना*-अ०क्रि० व्याकुल होना । सक्रि० व्याकुल बाहिय*-अ० बाहर ।
करना। बाह-स्त्री० [सं०] बाँह, भुजा । -ज-पु० क्षत्रिय तोता। बिकवाना-स० कि० बेचनेका काम दूसरेसे कराना -त्र-त्राण-पु० बाहुपर बाँधा जानेवाला वर्म-दंड- बिकने में सहायता करना। पु० भुजदंड । -पाश-पु० बाँहोंको फैलाकर हथेलियोंको बिकसना-अ० क्रि० खिलना, फूलना; प्रसन्न होना; मिला लेनेसे बननेवाला घेरा, आलिंगन करते समय फूटना, फटना। बाहुओंकी मुद्रा। -प्रलंब-वि० जिसकी भुजाएँ बहुत बिकसाना-स० क्रि० विकसित करना; प्रसन्न करना। लंबी हो। -बल-पु. भुजबल, शरीरवल; पराक्रम । * अ० क्रि० दे० 'बिकसना' । -भूषण-पु०,-भूषा-स्त्री० भुजबंद, केयूर । -मूल- | बिकाऊ-वि० जो बेचा जानेवाला हो । पु० कंधे और बाँहका जोड़।-युद्ध-पु० कुश्ती, भिड़त । बिकाना-अ० कि० बिकना; वश होना। स० क्रि० -लता-स्त्री० लता जैसी बाँह सुकुमार बाहु । हजार*- खरीदना। पु० दे० 'सहस्रबाहु ।
बिकार-पु० दे० 'विकार' । * वि० विकृत । बाहुरना*-अ० क्रि० मुड़ना, लौटना, वापस आना। बिकारी-स्त्री० मन, सेर, रुपये आदिके चिह्नरूप टेढ़ीपाई। बाहुल्य-पु० [सं०] बहुतायत, इफरात; बहुरूपता । वि० दे० 'विकारी'। बाह्य-अ० बाहर, परे । वि० [सं०] बाहरी; गैर, बेगाना; बिकास-पु० दे० 'विकास'। बहिर्गत, बहिष्कृत, ऊपरी, दिखाऊ ।-रति-स्त्री० आलिं- | बिकासना*-स० कि.विकसित करना, खोलना । अ० गन, चुबन आदि ।-रांगी-पु० दे० 'बहिर्वासी रोगी'। क्रि० विकसित होना; प्रकट होना । बाह्याचरण-पु० [सं०] ढकोसला।
बिकुंठ*-पु० वैकुंठ । बिंजन* -पु० दे० 'व्यंजन'।
बिक्ख*-पु० विष। बिंद*-पु० विदु, बूंद; भ्रमध्य; बिंदी ।
बिक्रम-पु० दे० 'विक्रम'। बिंदा-पु० बड़ी बिंदी। स्त्री० दे० 'वृंदा'।
बिक्रमी-वि० दे० 'विक्रमी' । बिंदी-स्त्री० सुन्ना, सिफर; नुक्ता; गोल टीका । बिक्री-स्त्री० देचा जाना, विक्रय विक्रीकी आय । बिंदु-पु० [सं०] बूंद; बिदी; शून्य; अधरक्षत; भ्रमध्य; | बिख*-पु० दे० 'विष' । नाटकका बह स्थल जहाँ गौण घटनाओंका विस्तृत रूप | बिखम-वि० दे० 'विषम' ।
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बिखय-बिछुड़न बिखय*-अ० विषयमें, संबंध ।
जाना । स० क्रि० दबोचना । बिखरना-अ०क्रि० चीजोंका बेतरतीबीसे इधर-उधर फैलना, बिगूतना*-अ० क्रि० दे० 'बिगूचना। तितर-बितर होना; फैल जाना।
बिगोना*-स० क्रि० बिगाड़ना; गँवाना, व्यर्थ बिताना; बिखराना-स० क्रि० दे० 'बिखेरना।
छिपाना; बहकाना हैरान करना । बिखाद*-पु० दे० 'विषाद'।
बिग्यान*-पु. दे० 'विशान' । बिखान*-पु० दे० 'विषाण' ।
बिग्रह-पु० दे० 'विग्रह'। बिखीला*-वि० विपैला ।
बिघटन-पु० दे० 'विघटन'। बिखे*-अ० दे० 'बिखय'।
बिघटना*-स० क्रि० तोड़ना, विघटित करना; बिगाड़ना । बिखेरना-सक्रि०तितर-बितर करना, फैलाना,छिटकाना। विधन*-पु० विघ्न, बाधा; बड़ा हथौड़ा, अभ्यास करना। बिगंध*-स्त्री० दुगंध, बदबू ।
-हरन* --पु० दे० 'विघ्नहरण'। बिग*-पु० वृक, भेड़िया।
बिधार* --पु० बाघ । बिगड़ना-अ०क्रि० गुण-रूप आदिमें विकार होना; खराब विच*-अ० दे० 'बीच'। होना; काम देने लायक न रहना; अच्छीसे बुरी दशामें बिचकना-अ०क्रि० चौंकना, भड़कना । वि० चौकनेवाला। आना; टूट-फूट जाना; बेकार खर्च होना; बुराईके रास्ते-बिचकाना-सक्रि० भड़काना; मुहँ बनाना, मुहँ चिढ़ाना । पर जाना बद्ध होना; डाँटना; हाथी-घोड़े आदिका सवार बिचच्छन-वि० दे० 'विचक्षण' प्रकाशमान । आदिके काबूमें न रह जाना; बिगाड़ अनबन होना बिचरना-अ० क्रि० घूमना-फिरना, स्वच्छंद भ्रमण करना। विद्रोह करना; नष्ट होना, गलना-सड़ना (फल आदि)। बिचलना-अ० क्रि०विचलित होना, इटना; मुकरना। बिगड़े दिल-वि० बदमिजाज; लड़ाका ।
बिचला-वि० बीचका, मध्यम । बिगडैल-वि० क्रोधी, हठी, कुमार्गगामी ।
बिचलाना-सक्रि० विचलित करना; तितर-बितर करना । बिगर* -अ० दे० 'बौर'।
बिचवई-पु. बीच-बिचाव करनेवाला, मध्यस्थ । स्त्री० बिगरना*-अ० क्रि० दे० 'बिगड़ना।
मध्यस्थता। बिगराइल, बिगरायल, बिगरैल*-वि० दे० 'बिगळ'। बिचवान, बिचवानी-पु० मध्यस्थ । विगलित-वि० दे० 'विगलित'।
बिचहुत*-पु० अंतर दुविधा। बिगसना*-अ० कि० दे० 'विकसना'। स० कि० देना, | विचार-पु० विचार, खयाल; इरादा। -मान*-वि. वकसना।
विचारवान् विचारणीय । बिगसाना*-सक्रि० दे० 'विकसाना'। अ० क्रि० दे० | बिचारना-सक्रि० विचार करना,सोचना; इरादा करना। 'विकसना'।
बिचारा-वि० दे० 'बेचारा'। बिगाड़-पु० बिगड़नेका भाव, खरावी; अनबन, झगड़ा।
बिचारी-वि०विचारवान्, विचार करनेवाला । बिगाडना-स० क्रि० दोष-विकार उत्पन्न करना, खराब बिचाल*-पु० विचलित करनेका भाव; अंतर । करना टेढ़ा, विकृत करना(मुंह); बुराईकी ओर ले जाना बिचुकना*-वि० चौंकनेवाला । बहकाना बुरी आदत लगाना; सतीत्व नष्ट करना; बरबाद बिचेत*-वि० अचेत, बेहोश । करना; तोड़-फोड़ देना।
बिचौहाँ*-वि० बीचका, बीचवाला। बिगाना-वि० दे० 'बेगाना।
बिच्छित्ति-स्त्री० दे० 'विच्छित्ति' । बिगार-* पु० दे० 'बिगाड़' । । स्त्री० दे० 'बेगार'। बिच्छी-स्त्री० दे० 'बिच्छू'। बिगारि, बिगारी*-स्त्री० दे० 'बेगार' ।
बिच्छ-पु० एक जहरीला जंतु जिसके डंक मारनेसे बहुत बिगास*-पु० दे० 'विकास'।
पीड़ा होती है, वृश्चिक; एक तरहकी घास । बिगासना*-स० क्रि० विकसित करना ।
बिच्छेप-पु० दे० 'विक्षेप' । बिगिर*-अ० दे० 'बगर'।
बिछना-अ० क्रि० बिछाया-फैलाया जाना। बिगुन -वि० विगुण, गुणरहित, निर्गुण ।
बिछलन-पु० फिसलन । बिगुर*-वि० जिसने गुरुसे शिक्षा या दीक्षा न ली हो, | बिछलना, बिछलाना-अ० कि० फिसलना; डगमगाना। निगुरा।
बिछवाना-सक्रि० बिछानेका काम किसी औरसे कराना। बिगुरचन, बिगुरचिन -स्त्री० दे० 'बिगूचन' । बिछाना-स० क्रि० आसन-बिस्तर आदिको जमीन, चारबिगुरचना*-अ० क्रि० दिक्कतमें पड़ना।
पाई आदिपर फैलाना; बिखेरना; मारकर गिरा देना। बिगुरदा*-पु० पुराने वक्तका एक हथियार ।
बिछायत*--स्त्री० बिछानेकी चीज, बिछावन । बिगुल-पु० [अं०] सेना या पुलिसमें सिपाहियों को एकत्र बिछावन-पु० दे० 'बिछौना' । करनेके लिए बजाया जानेवाला तुरहीके ढंगका बाजा। बिछिप्त*-वि० दे० 'विक्षिप्त'। मु०-बजना-कृच करने आदिका आदेश होना, डंका बिछिया-स्त्री० पाँवकी उँगलियोंमें पहननेका एक गहना। बजना।
बिछुआ, बिछुवा-पु० पाँवका एक गहना; एक तरहकी बिगूचन* -स्त्री० उलझन, असमंजस; कठिनाई । छुरी (कटार)। बिगूचना*-अ० कि० उलझन, असमंजसमें पड़ना; दबाया बिछड़न*-स्त्री० बिछुड़नेका भाव, वियोग, जुदाई ।
श्री० विछानवरना मारकर जमीन, चार
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बिछुड़ना-बितीतना
बिछुड़ना - अ० क्रि० साथ छूटना; वियोग होना । बिछुरंता * - पु० बिछुड़नेवाला; वह जो बिछुड़ा हुआ हो। बिछुरना* - अ० क्रि० दे० 'बिछुड़ना' । बिछुरनि* - स्त्री० दे० 'बिछुड़न' | बिछूना * - वि० बिछुड़ा हुआ । बिछोई* - वि० दे० 'बिछोही' । बिछोड़ा * - पु० बिछुड़न, वियोग । बिछोय * -- पु० दे० 'बिछोह' ।
बिछोह - पु० वियोग, जुदाई । बिछोही - वि० बिछुड़ा हुआ, वियुक्त । बिछौना - ५० वह कपड़ा जिसे चारपाई आदिपर बिछाकर
सोया जाय, बिस्तर ।
बिजहन - वि० जिसका बीज नष्ट हो गया हो, हतवीर्य । बिजाती - वि० दे० 'विजातीय', दूसरी जातिका । बिजान * - वि० ज्ञानरहित, अनजान ।
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बिझुकना * - अ० क्रि० दे० 'बिचकना'; तनना । बिझुका* - पु० दे० 'बिजूका' (धोखा) । बिझुकाना * - स०क्रि० चौंकाना; डराना; चंचल कर देना । बिट - पु० विदूषक; वेश्यागामी; वैश्य । स्त्री० बीट | बिटप - पु० वृक्ष; झाड़ी; वृक्षादिकी नयी शाखा | बिपी - पु० दे० 'विटपी' ।
बिटरना* - अ० क्रि० घोला जाना ।
बिटारना* - स० क्रि० घघोलना, गंदा करना । बिटिनिया+ - स्त्री० दे० 'बिटिया' । बिटिया - स्त्री० बेटी, बच्ची । बिटौरा * - पु० उपलोंकी राशि |
बिजन * - ५० व्यजन, पंखा । वि० दे० 'विजन' - 'बिजन
बिल - ५० विष्णुका एक नाम; पंढरपुर (सोलापुर) में स्थापित देवमूर्ति |
डुलाती ते वै बिजन डुलाती हैं' - भू० ।
बिठलाना - स० क्रि० दे० 'विठाना' । बिठाना - सु० क्रि० बैठाना ।
बिजना * - पु० पंखा ।
बिजय - स्त्री० दे० 'विजय' । - घंट- पु० मंदिरों में लटकाया बिठालना-स० क्रि० दे० 'बिठाना' । जानेवाला बड़ा घंटा ।
बिडंब* - पु० आडंबर |
बिजयी - वि० दे० 'विजयी' |
बिडंबना - स्त्री० दे० 'विडंबना' ।
बिड- पु० बीट; दे० 'विट'; [सं०] एक तरहका नमक, खारी नमक ।
बिड़ई - स्त्री० गेंडुरी, हँडुरी ।
बिड़र- वि० अलग-अलग, जो सटा न हो; * निडर; ढीठ । बिड़रना* - अ० क्रि० तितर-बितर होना; भागना; डरना, चौकना ( जानवरोंका ) ।
बिजली - स्त्री० रगड़, रासायनिक क्रिया या चुंबकीय शक्तिसे उत्पन्न शक्ति- विशेष, विद्युत्, एकसे दूसरे बादलमें या बादल से धरती की ओर बिजलीका विसर्जन; इस विसर्जन से उत्पन्न प्रकाश, तड़ित; विसर्जन; कान में पहननेका एक गहना; गले में पहननेका एक गहनाः आमकी गुठलीके भीतरका गूदा । वि० बहुत तेज, अति चंचल द्रुतगामी । - घर - पु० वह स्थान जहाँ बिजलीकी शक्ति उत्पन्न करके नगर या क्षेत्र विशेष में वितरित की जाय । - बचाव - पु० ऊँची इमारतोंपर बिजली से बचाने के लिए लगा हुआ नोंकदार लोहा | मु० - गिरना - बिजलीका आकाशसे धरतीकी ओर आना; किसी चीजका बिजली के रास्ते या निशाने में पड़ना, वज्रपात होना ।
बिज्जुल * - स्त्री० दे० 'बिजली' । पु० छिलका, त्वचा । बिज्जू - पु० एक वन्य जंतु जिसकी शकल बिल्लीसे मिलती है। बिझकना* - अ० क्रि० दे० 'बिझुकना' ।
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बिड़राना-स० क्रि० तितर-बितर करना; भगाना | बिड़वना* - स० क्रि० तोड़ना ।
बिड़ा * - पु० वृक्ष - 'कबिरा चंदनका बिड़ा बैठा आक पलास' - कबीर ।
बिड़ारना - स० क्रि० तितर-बितर कर देना; विपक्षी दलको डराकर भगा देना - ' मारीचं बिटारो, जलधि उतारथो'राम०; नष्ट करना ।
बिडाल - पु० [सं०] मार्जार, बिलाव; एक दैत्य; आँखका डेला ।
बिजायठ - पु० बाजूबंद ।
बिडालाक्ष - वि० [सं०] जिसकी आँखें बिल्लीकी-सी हों । बिडालिका - स्त्री० [सं०] छोटी बिल्ली; हरताल |
बिजुरी* - स्त्री० दे० 'बिजली' ।
बिजूका, बिजूखrt - पु० पक्षियों आदिको भगानेके लिए | बिडाली - स्त्री० [सं०] बिल्ली; आँखका एक रोग ।
बिड़ी - स्त्री० दे० 'बीड़ी' | बिढ़तो* - पु० कमाई; लाभ |
खेत में बनाया हुआ पुतला आदि, धोखा, घृहा ।
बिजे* - स्त्री० 'विजय', जीत ।
बिजोग * - पु० दे० 'वियोग' |
बिजोना* - स०क्रि० अच्छी तरह देखना; देख-रेख करना ।
बिदवना, बिढ़ाना * - स० क्रि० कमानाः संचय करना । बित* - पु० दे० 'वित्त' ।
बिजोरा - पु० दे० 'बिजौरा' । वि० निर्बल । बिजौरा - पु० नीबूके वर्गका एक फल जो आकार में बड़ी नारंगी के बराबर होता है, बीजपूर; तिलके मेलसे
बितताना * - अ० क्रि० विकल होना । स० क्रि० दुःख देना, सताना ।
बनी
हुई एक तरह की चपटी वरी ।
बितना* - पु० वित्ता। अ० क्रि० दे० 'बीतना' । बितरना* - स० क्रि० वितरण करना, बाँटना । बितवना* - स० क्रि० विताना ।
बिजौरी - स्त्री० एक प्रकारकी बरी ।
बिज्जु* - स्त्री० दे० 'विजली' । -पात* - पु० विजली बिताना - स० क्रि० गुजारना, व्यतीत करना । * अ० गिरना, वज्रपात । क्रि० बीतना - 'भयो द्रोपदीको वसन बासर नहीं बिताय' - रसराज ।
बितावना* - स० क्रि० दे० 'विताना' ।
बितीसना * - अ० क्रि० बीतना, गुजरना । स० क्रि०
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बितुंड-बिनौला बिताना।
बिधवाना-स० क्रि० छेद कराना। बितुंड-पु० दे० 'वितुंड'।
बिधाँसना*-सक्रि० विध्वंस करना, नष्ट करना। बित्त-पु० वित्त, धन-दौलत हैसियत बूता, सामर्थ्य । बिधाई*-पु० विधायक । बित्ता-पु० अँगूठेके सिरेसे छिगुनीके छोरतककी लंबाई, बिधान-पु० दे० 'विधान' । बालिश्त ।
बिधाना-अ० क्रि० वेधा जाना । बिथकना-अ० क्रि० थकना; मुग्ध होना; चकित होना। बिधानी -पु० विधान करनेवाला, विधायक । बिथरना, बिथुरना-अ० क्रि० बिखरना; अलग-अलग | बिधि-स्त्री०, पु० दे० 'विधि' । होना; खिलना।
बिधिना* -पु० ब्रह्मा । बिथराना, बिथुराना*-स० कि. बिखेरना, छिटकाना । | बिधुतद-पु० दे० 'विचंतद' । बिथा*-स्त्री० दे० 'व्यथा' ।
बिधुंसना*-स० क्रि० विध्वंस करना, नष्ट करना । बिथारना*-सक्रि० बिखेरना, छितराना ।
बिधुर-वि० दे० 'विधुर'। बिथित*-वि० दे० 'व्यथित' ।
बिन*-अ० दे० 'बिना'। बिथुरित*-वि० बिखरा हुआ।
बिनई*-वि० दे० 'विनयी' बिथोरना*-स० कि० दे० 'बिथराना' ।
बिनउ*-स्त्री० दे० 'विनय' । बिदकना-अ० कि० चौकना, भड़कना; फटना; घायल बिनठना-अ० क्रि० नष्ट होना; बिगड़ना । होना।
बिनता-स्त्री० दे० 'विनता'। बिदकाना*-म०क्रि० चौंकाना; फाइना; घायल करना । | बिनति*-स्त्री० दे० 'बिनती' । बिदरन*-स्त्री.विदीर्ण होना; दरार । वि० विदीर्ण करने- बिनती-स्त्री० प्रार्थना, अर्ज। वाला।
बिनन-स्त्री०बिननेकी क्रिया बीनकर निकाली हुई चीज बिदरना*-अ० क्रि० फटना, विदीर्ण होना।
(कूड़ा-करकट ); बुननेकी क्रिया। बिदलना-अ० क्रि० दलित करना ।
बिनना-स० कि० चुनना, छाँटना; डंक मारना; दे० बिदहना -स० क्रि०धान आदिको छीटकर जुताई करना।। 'बुनना'। बिदहनी -स्त्री० बिदहनेकी क्रिया।
बिनय-स्त्री० दे० 'विनय' । बिदा-स्त्री० रवानगी, रुखसत; जानेकी इजाजत; गौना। | बिनयना*-स० क्रि० विनय, प्रार्थना करना। बिदाई-स्त्री० रुखसती, रवानगी; बिदा करते समय दिये बिनवट-स्त्री० रूमाल या रस्सी में पैसा आदि बाँधकर बनेठी जानेवाले रुपये आदि, रुखसताना।
भाँजनेकी कला। बिदारना*-सक्रि० फाड़ना, विदीर्ण करना नष्ट करना। बिनवना*-सक्रि० विनय करना । बिदारी-पु० दे० 'विदारी'।-कंद-पु० दे० 'विदारीकंद'। बिनवाना-स० क्रि० चुनवाना दे० 'बुनवाना'। बिदिसा*-स्त्री० दे० 'विदिशा'।
बिनशना, बिनसना*-अ० क्रि० नष्ट होना। स० क्रि० बिदीरना*-स० क्रि० विदीर्ण करना; आहत करना। विनाश करना। बिदुराना*-अ० क्रि० मुस्कराना।
बिनसाना-सक्रि० विनाश करना,मिटाना । अ० क्रि० बिदुरानि*-स्त्री० मुस्कराहट ।
नष्ट होना। बिदखना, विदूषना*-स० क्रि० दोष देना, लगाना; | बिना-अ० बगैर, छोड़कर । स्त्री० [अ०] नीव, बुनियाद; बिगाड़ना।
जड़, कारण। बिदूरित-वि० दूर किया हुआ ।
बिनाई-स्त्री० बीनने(चुनने)की क्रिया या भाव; बीननेकी बिदेस-पु० 'विदेश', परदेश ।
मजदूरी; दे० 'बुनाई। बिदेसी-वि० 'विदेशी', अन्य देशका परदेशी। बिनाती*-स्त्री० दे० 'विनती' । बिदोख*-पु० बैर, विद्वेष ।
बिनाना-स० कि० वुनवाना। बिदोरना*-स० क्रि० चलाना; फैलाना-खाय के पान | बिनानी-वि० नाप्तमझ,-'रोवन लागे कृष्ण बिनानी'बिदोरत ओठ हैं, बैठि सभामें बने अलबेला'- ।
सू०, विज्ञानी । स्त्री० विचार । बिहत-स्त्री० बुराई; दुर्दशा; अत्याचार ।
बिनावटा-स्त्री० दे० 'बुनावट'। बिद्ध-वि० बिंधा हुआ, छेदा हुआ।
बिनास*-पु० दे० 'विनाश'; नाकसे खून जाना। बिधंसना*-स० क्रि० विध्वंस करना, नष्ट करना। बिनासना -स० क्रि० विनाश करना। बिध-स्त्री०, पु० दे० 'विधि' । पु० हाथीका चारा या बिनासी-वि०विनाशी, नष्ट होनेवाला, नश्वर ।
रातिब, जमाखर्चका हिसाब । मु०-मिलाना-आय- बिनाह*-पु० दे० 'विनाश'-'साकत संग न कीजिये जाते व्ययका हिसाव ठीक करना।
होइ बिनाह'-कबीर । बिधना-पु० विधि, ब्रह्मा । अक्रि० बेधा जाना, बिंधना। बिनि, बिनु -अ० दे० 'बिना'। * स० कि० फसाना।
बिनूठा*-वि० अनूठा। बिधवपना-पु. वैधव्य ।
बिनै*-स्त्री० दे० 'विनय' । बिधवा*-स्त्री० 'विधवा' बेवा, मृतभर्तृका ।
| बिनौला-पु० कपासका बीज ।
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बिपक्ष-विरहा
बिपक्ष-पु० दे० 'विपक्ष' । बिपक्षी - वि०, पु० दे० 'विपक्षी' । बिपच्छ*-५० शत्रु, विरोधी पक्ष । वि० प्रतिकूल, विमुख ।
बिपच्छी - वि०, पु० दे० 'विपक्षी' । बिपत बिपता * - स्त्री० दे० 'विपत्ति' । बिपति, बिपत्ति-स्त्री० दे० 'विपत्ति' । बिपथ - पु० गलत रास्ता, कुमार्ग । बिपद, विपदा* - स्त्री० विपत्ति, मुसीबत, आफत | बिपर* - पु० दे० 'विप्र' | बिपाक-पु० दे० 'विपाक' |
बिपाशा, बिपासा - स्त्री० व्यास नदी । बिपोहना-स० क्रि० दे० 'विपोहना' । बिफर* - वि० दे० 'विफल' ।
बिफरना* - अ० क्रि० भड़कना; नाराज होना; मचलना; विद्रोह करना; चमकना, उछलना (घोड़ेका) । बिबछना - अ० क्रि० विपक्षी, विरोधी होना; उलझना । बिबर - पु० दे० 'विवर' ।
बिबरन* - वि० दे० 'विवर्ण' । पु० दे० 'विवरण' । बिबस * - वि० दे० 'विवश' । अ० लाचार होकर । बिबसाना * - अ० क्रि० विवश होना। बिबहार* - पु० दे० 'व्यवहार' | बिबाई - स्त्री० दे० 'विवाई' । बित्राक* - वि० दे० 'वाक' | बिबाकी * - स्त्री० दे० 'बेबाक़ी' ।
बिबादना* - अ० क्रि० विवाद करना, झगड़ना । बिबाहना * - स० क्रि० ब्याह करना । बिबि* - वि० दो ।
बिब्बोक - पु० [सं०] गर्वपूर्ण उपेक्षा; रूपादिके गर्व से
प्रियकी उपेक्षा (सा० ) ।
बिभचारी* - वि० दे० 'व्यभिचारी' |
बिभाना * - अ० क्रि० चमकना, शोभित होना । विभावरी - स्त्री० दे० 'विभावरी' ।
बिभिचारी * - वि० दे० 'व्यभिचारी' ।
बिभिनाना * - स० क्रि० भिन्न, अलग करना ।
मुग्ध करना ।
बिय* - वि० दो; दूसरा । पु० बीज । बियत - पु० आकाश; * एकांत स्थान ।
बिभीषक - वि० [सं०] भयकारक, त्रास उत्पन्न करनेवाला । बिरधाई * - स्त्री० बुढ़ापा | बिभीषिका- स्त्री० [सं०] दे० 'विभीषिका' । बिभु* - पु० दे० 'विभु' ।
बिभौ * - पु० ऐश्वर्यः प्राचुर्य ।
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बिया - * वि० दूसरा । + पु० बीज | बियाजा - पु० सूद; वहाना । बियाध, वियाधा* पु० दे० 'व्याघ' । बियाधि - स्त्री० दे० 'व्याधि' ।
बियाना । सु० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'ब्याना' । वियापना* - अ० कि० 'व्यापना', व्याप्त होना । बियाबान - पु० दे० 'वयावान' |
बियारी, बिया, बियालू - पु० दे० 'ब्यालू' | बियाल * - पु० साँप; शेर ।
बियाहना * - स० क्रि० ब्याह करना । बियोग - पु० दे० 'वियोग' |
बिरंग - वि० बेरंग; कई रंगोंवाला । बिरंचि* - पु० ब्रह्मा ।
बिरंजी - स्त्री० छोटी कील । वि० [अ०] पीतलका | विरई * - स्त्री० छोटा पौधा ।
बिरकत * - वि० दे० 'विरक्त' - 'बैरागी बिरकत भला ग्रेही चित्त उदार' - साखी ।
बिरखभ, बिरपभ - पु० दे० 'वृषभ' |
बिरचना * - स० क्रि० रचना, बनाना; सजाना । अ० क्रि० उचटना |
बिरछ* - पु० दे० 'वृश्च' ।
बिरछिक, बिरछीक - पु० दे० 'वृश्चिक' | बिरज - वि० निर्मल, निर्दोष; गुणरहित । बिरझना * - अ०क्रि० उलझना; मचलनाः क्रुद्ध होना । विरझाना * - अ० क्रि० क्रुद्ध होना । बिरतंत, विरतांत* - पु० दे० 'वृत्तांत' | बिरता - पु० बूता, शक्ति ।
बिरताना * - स० क्रि० वितरण करना, बाँटना । बिरति* स्त्री० दे० 'विरक्ति' ।
बिरथा* - वि० व्यर्थ । अ० अकारण, निष्प्रयोजन | बिरग* - पु० मृदंग |
बिरद - पु० नाम, बड़ाई, यश ।
बिरद्वैत - वि० बड़े नामवाला, विख्यात । पु० नामी योद्धा । विरध* - वि० दे० 'वृद्ध' ।
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बिमन * - वि० उदास, विमनस्क । अ० बिना मनके । बिमर्दना * - स०क्रि० मर्दन करना, मसलना; नष्ट करना । बिमान - पु० वायुयान; अनादर । बिमानी * - वि० मानरहित । -कृत-वि० जो मानरहित किया गया हो, या जिसने विमान बनाया हो । बिमूढ़ - वि० दे० 'विमूढ' ।
बिमोचना * - स० क्रि० टपकाना; छोड़ना, मुक्त करना । बिमोट, बिमोटा - पु० बाँबी, वल्मीक । बिमोहना * - अ० क्रि० मुग्ध, आसक्त होना । स० क्रि० बिरस - वि० दे० 'विरस' । पु० बिगाड़ |
बिरसना* - अ० क्रि० दे० 'विलसना' ।
विरधापन - पु० बुढ़ापा ।
बिरमना * - अ०क्रि० रुकना, अटकना; देर करना; विश्राम करना; प्रेम में बँधना ।
बिरमाना* - मु० क्रि० रोक रखना; मोह लेना; बिताना । अ० क्रि० ठहरना, विश्राम करना; भुलाना । विरल - वि० दे० 'विरल' ।
| बिरला - वि० बहुतों में से कोई एक । विरले - वि० (बहु० ) इने-गिने, बहुत थोड़े । बिरवा* - पु० पौधा, वृक्ष ।
बिरवाई, बिरवाही - स्त्री० छोटे पौधोंका समूह; वह स्थान जहाँ बहुतसे छोटे पौधे उगे हों।
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बिरह - पु० दे० 'विरह |
बिरहा - पु० एक तरहका लोकगीत जिसे खास तौर से
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अहीर गाते हैं; दे० 'विरह' | बिरहाना * - अ०क्रि० विरह व्यथाका अनुभव करना - 'राधा विरह देखि बिरहानी, यह गति बिन नंदनंद' - सू० । बिरही - वि०, ५० दे० 'विरही' । बिराग- पु० दे० 'विराग' |
बिरागना * - अ० क्रि० विरक्त होना ।
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बिराजना - अ०क्रि० शोभित होना; बैठना, आसीन होना । बिरादर - पु० [फा०] भाई, बंधु भाई-बंद, सजातीय । -कुशी - स्त्री० बंधुवध । - जादा पु० भतीजा । बिरादराना - वि० [फा०] भाईकासा, भाईके अनुरूप । बिरादरी - स्त्री० [फा०] भाईचारा; जाति, गोत्र । मु० - से ख़ारिज, बाहर होना - जातिच्युत होना । बिरान* - वि० वेगाना, पराया ।
बिराना* - वि० पराया । + स० क्रि० (मुँह) चिढ़ाना । बिराल - पु० दे० 'बिडाल' ।
बिरावना * - स० क्रि० दे० 'बिराना' |
बिरास * - पु० दे० 'विलास' । बिरासी * - वि० दे० 'विलासी' | बिरिख * - पु० दे० 'वृक्ष'; दे० 'वृष' |
बिरिछ* - ५० वृक्ष ।
बिरिध* - वि० दे० 'वृद्ध' |
बिरियाँ* - स्त्री० वेळा, समय; बार, दफा | बिरी* - स्त्री० पानका बीड़ा; गठरी; मिस्सी । बिरुझ (झा) ना* - अ० क्रि० उलझना; झगड़ना;मचलना । बिरुद - ५० दे० 'विरद' |
बिरुदैत - वि०, पु० दे० 'बिरद्वैत' ।
बिरुधाई * - स्त्री० बुढ़ापा |
बिरूप * - वि० कुरूप, भा; दे० 'विरूप' | बिरोधना * - अ० क्रि० विरोध करना । बिरोलना* - स० क्रि० दे० 'विलोड़ना' । बिलंद* - वि० दे० 'बुलंद' |
बिलंब - पु० दे० 'विलंब' ।
बिलंबना* - अ० क्रि० देर करना; रुकना; लटकना ।
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बिरहाना -बिलोन
बिलछना * - अ० क्रि० लखना, ताड़ना । बिलटी-स्त्री० रेलसे भेजे जानेवाले मालकी रसीद जिसे दिखाने पर भेजा हुआ माल मिलता है ।
बिलनी - स्त्री० आँख की पलकपरकी फुंसी; एक कीड़ा, भृंगी । बिलपना * - अ० क्रि० विलाप करना ।
बिलफेल - अ० दे० 'बिल' में |
बिलबिलाना - अ० क्रि० दुःख, पीड़ा आदिसे विकल, विह्वल होना, रोना-चिल्लाना; गिड़गिड़ाना; कीड़ोंका कुलबुलाना । बिलम* - पु० दे० 'विलंब' |
बिलमना * - अ० क्रि० देर करना; रुकना, अटकना; प्रेममें बँधकर रुक जाना ।
बिलमाना* - स० क्रि० रोकना, अटकाना; प्रेम में फँसाना । बिललाना* - अ० क्रि० बिलखना, विलाप करना - 'बिललात परे इक कटे गात' - सुजानः घबड़ाना | बिलल्ला - वि० खेल-कूद, आवारगी में समय बितानेवाला; बेशऊर, महामूर्ख ।
विलसना* - अ० क्रि० सजना, शोभित होना । स० क्रि० बरतना, भोगना ।
बिलसाना* - स० क्रि० बरतना, भोगना; दूसरेको बरतनेमें प्रवृत्त करना ।
बिलस्त | पु० बित्ता ।
बिलहरा - पु० बाँसको तीलियों का बना पान रखनेका डिब्बा । बिला - अ० [अ०] बिना, बगैर । - तकल्लुफ़न-अ० निस्संकोच, बिना रुके अटके । -नागा- अ० प्रति दिन, हर रोज । - वजह - अ० अकारण। -शक, - शुभा - अ० निस्संदेह, निश्चयपूर्वक । - शर्त - अ० बिना किसी शर्त के । बिलाई - स्त्री० विल्ली; सिटकिनी; कुएँमें गिरी हुई चीजें निकालने का काँटा; कद्दूकश ।
बिलाना - अ० नष्ट होना; छिन्न-भिन्न होना; लुप्त होना । बिलाप - पु० दे० 'विलाप' |
बिलापना* - अ० क्रि० विलाप करना ।
बिलायत - पु० दे० 'वलायत' । * वि० बहुत । बिलारt - पु० बड़ी बिल्ली ।
बिलारी - स्त्री० बिल्ली । बिलाव - पु० बड़ी बिल्ली, मार्जार ।
बिलंबित - वि० दे० 'विलंवित' | बिल - पु० [सं०] जमीन या दीवार में बनाया हुआ लंबा छेद; इस तरहका छेद जिसमें कोई जंतु (चूहा, साँप आदि ) रहता हो; इंद्र का घोड़ा । -कारी (रिन् ) - पु० चूहा। -शय- -शायी (यिन) - वि० बिल में रहनेवाला । पु० ऐसा जंतु | मु० -- ढूँढ़ना - बचावकी जगह ढूँढ़ना । - मे घुसना - छिप जाना, घर में बैठ रहना । बिल - ५० [अ०] बेचे हुए माल या किये हुए कामके पावनेका पुरजाः कानूनका मस्विदा, विधेयक | बिलकुल - अ० दे० 'बिल्’में |
बिलावल - पु० एक राग । स्त्री० पत्नी, स्त्री; प्रेमिका । बिलास - पु० दे० 'विलास' । बिलासना* - स० क्रि० बरतना, भोगना । बिलासिनी - स्त्री० वेश्या ।
बिलासी - वि० दे० 'विलासी' । पु० एक पेड़ । बिलिया - स्त्री० कटोरी । बिलुठना* - अ० क्रि० लोटना । बिलूर* - पु० दे० 'बिलौर' ।
बिलखना - अ० क्रि० विलाप करना; * ताड़ जाना । बिलखाना * - अ० क्रि० दे० 'बिलखना' । स० क्रि० दुःख देना, रुलाना ।
बिलेशय- पु० [सं०] बिलमें सोनेवाला, साँप आदि । बिलैया । - स्त्री० बिल्ली; कद्दूकश; दरवाजेकी सिटकिनी । बिलोकना* - सु० क्रि० देखना, अवलोकन करना । बिलोकनि* - स्त्री० चितवन, दृष्टि । बिलोचन - पु० नेत्र ।
बिलग - वि० अलग, जुदा । * पु० बिलगाव; रंज; बुराई । मु० - मानना - बुरा मानना; दुःखी होना ।
बिलगाना - अ०क्रि० अलग होना । स०क्रि० अलग करना। बिलोड़ना * - स० क्रि० मथना; गड्डमड्ड करना । बिलच्छन * - वि० दे० 'विलक्षण' ।
बिलोन * - वि० अलोना; बदसूरत ।
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बिलोना-बिसेख बिलोना-स० क्रि० मथना; डालना, गिराना (आँसू)- | बिसमउ, बिसमव*-पु० दे० 'बिसमय'। 'तुलसी मैंदोवे रोइ-रोइकै बिलौवै आँसु'-कविता। वि० | बिसमय*-पु० विस्मय, आश्चर्य संदेह गर्वः विषाद । दे० 'बिलोन'।
बिसमरना*-स० क्रि० भूलना। बिलोरना*-स० कि० दे० 'बिलोड़ना' ।
बिसमिल-वि० जबह किया हुआ घायल । बिलोल-वि० चंचल, सुंदर ।
बिसमिल्ला-पु० 'बिस्मिल्ला'। बिलोलना*-अ० कि० हिलनाडोलना।
बिसयक*-पु० प्रदेश, विषय; राज्य । बिलोवना*-स० क्रि० दे० 'बिलोना' ।
बिसरना-स० क्रि० भूल जाना। बिलीटा-पु० बिल्लीका बच्चा ।
बिसरात*-पु० खच्चर । बिलौर-पु० दे० 'बिल्लौर'।
बिसराना-स० क्रि० भुला देना। बिल-अ० [अ०] से, साथ; लिए; द्वारा। -कुल-अ० | बिसराम*-पु० दे० 'विश्राम'। सारा, तमाम निपट । -फेल-अ० अभी, सरेदस्त, बिसरामी*-वि० विश्राम देनेवाला, सुखद-'सुआ सो फिलहाल ।
राजाकर बिसरामी'-प० । बिल्ला-पु० नर बिल्ली; पद या संस्थाविशेषकी सदस्यता- | बिसरावना*-स० क्रि० दे० 'बिप्सराना' । सूचक पट्टी, बैज।
बिसवास*-पु० दे० 'विश्वास' । बिल्लाना-अ० क्रि० चीखें मारकर रोना, विलाप करना। बिसवासिनि*-वि० स्त्री० विश्वासघात करनेवाली । बिल्ली-स्त्री० शेर, चीते आदिकी जातिका एक मांसाहारी बिसवासी-वि०विश्वासी; अविश्वसनीय-'पै यह पेट छोटा जंतु जो पालतू और जंगली दोनों तरहका होता | महा बिसवासी'-प० । है; सिटकिनी। मु०-का रास्ता काटना-बिल्लीका बिससना-स० कि.. विश्वास करना, पतियाना; वध सामनेसे निकल जाना (अपशकुन)।
करना; चीर-फाड़ करना। बिल्लीर-पु० शीशेके जैसा सफेद पारदर्शक पत्थर, स्फटिक । बिसहना*-स० वि० दे० 'बिसाहना'। बिल्लौरी-वि०बिल्लौरका बना हुआ; बिल्लौरकीसीचमकवाला। बिसहर*-पु० विषधर, सर्प । बिल्व-पु० [सं०] बेलका पेड या फल ।
बिसा*-पु० दे० 'बिस्वा । बिवछना*-अ० कि० दे० 'बिबछना'।
बिसाइंध-स्त्री०, वि० दे० 'विसायँध । बिवरना*-स० क्रि० सुलझाना। अ० क्रि० सुलझना बिसाख*-स्त्री० दे० 'विशाखा' । -'नीक सगुन विवरहि झगर'-रामाशा ।
बिसात-स्त्री० [अ०] फैलाव फैलायी, बिछायी जानेवाली बिवराना-सक्रि० (बालोंको) सुलझाना सुलझवाना। चीज, दरी, चटाई आदि; वह कपड़ा जिसपर चौसर या बिवसाइ-पु० दे० 'व्यवसाय'।
शतरंज खेला जाय; पूँजी; हैसियत; हस्ती; शक्ति, सामर्थ्य । बिवाई-स्त्री० पाँवके चमड़ेका फटना।
-खाना-पु० बिसातीकी दुकान ।-बाना-पु० विसातीबिवान*-पु० विमान, रथ ।
की दुकानमें बिकनेवाला सामान (स्टेशनरी)। बिवेचना*-सक्रि० विवेचन करना।
बिसाती-पु० फुटकर चीजें बेचनेवाला, लिखने-पढ़ने, बिशाखा-स्त्री० राधाकी एक सखी।
शृगार, सीने-पिरोने, आदिका सामान बेचनेवाला । बिष-पु० दे० 'विष'।
बिसाना-* अ०कि० दे० 'बसानाविधका असर होना। बिषया-स्त्री० विषय-वासना ।
बिसायँध-स्त्री० दुगंध; मांस, मछलीकी गंध । वि० ऐसी बिषान*-पु० सींग।
गंधवाला। बिषारा*-वि० विषाक्त ।
बिसारद-पु० दे० 'विशारद' । बिषिया*-स्त्री० दे० 'विषया'।
बिसारना-स० कि० भुला देना, याद न रखना। बिसंच*-पु. संचयका अभाव, अपव्यय; लापरवाही; । बिसारा*-वि०विषैला, विषयुक्ता, 'विषारा'-'मैन बानसे विघ्न डर।
बिसारे न बिसारे विसरत हैं'-ललित। बिसंभर-पु० दे० 'विश्वंभर' । वि० जो सँभाला न जा | बिसास*-पु० दे० 'विश्वास'। सके बेखबर।
बिसासिन, बिसासिनि*-वि० स्त्री० विश्वास-घातिनी। बिसँभार*-वि० जो सम्हाला न जा सके; बेमुध, अचेत । | बिसासी*-वि० विश्वासघाती, छली। बिस-पु० दे० 'विष'; [सं०] मृणाल ।
बिसाह-पु० बिसाहनेकी क्रिया, खरीद । बिसकरमा*-पु० दे० 'विश्वकर्मा' ।
बिसाहना -स० क्रि० मोल लेना, खरीदना । पु० सौदा। बिसखपरा-पु० गोहकी जातिका एक जहरीला जंतु।। बिसाहनी. --स्त्री० खरीदी जानेवाली चीज, सौदा, क्रय । बिसखापर, बिसखोपरा-पु० दे० 'बिसखपरा'। बिसाहा*-पु० सौद।। बिसतरना*-सक्रि० विस्तार करना । अ० क्रि० फैलना। बिसियर-वि०विर्षला । पु० सर्प । बिसतार*-पु० दे० 'विस्तार' ।
बिसुरना*-अ० क्रि० दे० 'बिसूरना'। बिसद-वि० दे० 'विशद' ।
बिसूरना-अ० क्रि० दुःखित होना, सोच करना; चुपकेबिसन-पु० व्यसन; पतन दुर्भाग्य; दोष ।
चुपके रोना । स्त्री० सोच, चिता। बिसनी-वि० दे० 'व्यसनी' ।
बिसेख, बिसेस*-वि० दे० 'विशेष' ।
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बिसेखता-बीजुरी बिसेखता*-स्त्री० दे० 'विशेषता'।
बिहोरना*-अ० क्रि० बिछुड़ना। बिसेखना*-अ० क्रि० विशेष रूपसे, विस्तारसे कहना बाँदना*-स० कि.. अनुमान करना; दे० 'बीनना' । विशेष रूपसे प्रतीत होना।
बौंधना-सक्रि० छेदना, बेधना । अ०क्रि०दे० 'बि धना'। बिसेसर-पु० दे० 'विश्वेश्वर'।
बी-स्त्री० प्रतिष्टित महिला, बीबी। बिसैंधा-वि० जिसमें मांस-मछलीकी गंध हो। बीका-वि० दे० 'बाँका' । बिसोक-वि० शोकरहित । पु० अशोक वृक्ष । बीख-पु० डग, कदम, दे० 'विष' । बिस्कुट-पु० आटा, आरारोट आदिकी बनी मीठी, नमकीन बीग*-पु० भेड़िया। टिकिया।
बीघा-पु० बीस बिस्वेका रकबा (एक जरीब लंबी और एक बिस्तर-पु० [फा०] बिछीना।
जरीब चौड़ी जमीन)। बिस्तरना*-अ०कि विस्तृत होना । सक्रि० विस्तार बीच-पु० किसी वस्तु, क्षेत्र आदिका मध्य भाग, दरमियान, करना।
वस्त; दो चीजोंके मध्यका फासिला, अंतर, फर्क; * अवबिस्तरा*-पु० दे० 'बिस्तर'।
सर, अवकाश-'पायो बीच इंद्र अभिमानी, हरि बिन बिस्तार-पु० दे० 'विस्तार' ।
गोकुल जान्यो'-सू० । अ० बीचमें, दरमियान; अरसे में । बिस्तारना-स० क्रि० विस्तार करना, फैलाना।
-बिचाव-पु० मध्यस्थता, बिचवई । -बीचमें-थोड़ीबिस्तुइया-स्त्री० छिपकली।
थोड़ी देरपर । बीचोबीच-ठीक मध्यमें । मुक-करनाबिस्मिल्ला, बिस्मिल्लाह-स्त्री० [अ०] 'अल्लाहके नामके बिचवई करना। -खेत-खुलमखुला, डंकेकी चोट । - साथ'; आरंभ; विद्यारंभ । मु०-ही ग़लत होना-शुरूमें पड़ना-(दशा आदिमें) फर्क होना। -पारना-भेद, ही गलती होना, 'प्रथमग्रासे मक्षिकापातः' ।
बिलगाव करना। -मैं कूदना-दखल देना, टाँग अड़ाना। बिस्राम* -पु० दे० 'विश्राम'।
-में डालना-मध्यस्थ बनाना। -में पड़ना-बिचवई बिस्वा-पु० बोधेका बीसवाँ भाग ।-दार-पु० पट्टीदार ।। करना; जिम्मेदार बनना ।-रखना-भेद करना; छिपाना। बिस्वास-पु० दे० 'विश्वास' ।
बीचि-स्त्री० दे० 'वीचि' । बिहँग-पु० दे० 'विहंग' ।
बीछना*-स० क्रि० छाँटना, चुनना। बिहंडना-स० क्रि० काटना, टुकड़े करना, नष्ट करना । बीछी*-स्त्री०, बीछू-पु० दे० 'बिच्छू' । बिहँसना*-अ० क्रि० मुस्कराना।
बीज-पु० [सं०] फूलवाले पेड़-पौधेका गर्भाड, वह दाना या बिहँसाना-स० क्रि० हँसाना । अ० क्रि० मुस्कराना; गुठली जिससे पेड़-पौधेका अंकुर उगे, तुख्म, बीया; शुक्रा खिलना।
मूल कारण, जड़ कथावस्तुका मूल; बीजगणित; मंत्रका बीज बिहँसीहा-वि० हसता हुआ।
रूप; अक्षर या ध्वनि; मंत्रका मूल भाग; मज्जा । * स्त्री० बिह-वि० [फा०] दे० 'बेह' । -तर-वि० दे० 'बेहतर'।। बिजली । -कोश, कोष-पु० फूलका वह भाग जिसमें बिहग-पु० दे० 'विहंग' ।
बीज रहता है, बीजाधार । -क्रिया-स्त्री० बीजगणितकी बिहद, बिहहा-वि० दे० 'बेहद' ।
क्रिया । -गणित-पु. गणितका एक भेद जिसमें संख्याबिहबल*-वि० दे० 'विह्वल'; शिथिल ।
की जगह अक्षरका प्रयोग करते हैं। -पुरुष-पु० कुलका बिहरना*-अ० क्रि० बिचरना; विहार करना,-'जमुना | आदि पुरुष ।-पूर,-पूरक-पु० बिजौरा नीबू ।-मंत्र
जल बिहरत बजारी'-सू०% * विदीर्ण होना, फटना। पु० किसी देवताके लिए निश्चित मंत्र; गुर। बिहराना*-अ० क्रि० फटना ।
बीजक-पुं० [सं०] बिजौरा नीबू । सूची; भेजे जानेवाले बिहान-पु० सबेरा, भोर; अंत । आनेवाला कल । मालकी सूची जो दाम और खर्चके हिसाबके साथ खरीबिहाना -सक्रि० त्यागना । अ० क्रि० बीतना। दारके पास भेजी जाती है। कबीरदासके पदोंका एक बिहार-पु० दे० "विहार' ।
संग्रह। बिहारना*-अ० क्रि० विहार करना।
बीजन, बीजना*-पु० व्यजन, पंखा । बिहारी-पु० बिहारका रहनेवाला । वि० दे० 'विहारी'। बीजरी*-स्त्री० दे० 'बिजली'। बिहाल*-वि० दे० 'बेहाल' ।
बीजल-वि० [सं०] बीजदार । बिहि-पु० विधि, ब्रह्मा ।।
बीजांकुर-पु० [सं०] अंकुर । -न्याय-पु० बीजसे अंकुर बिहिश्त--पु० [फा०] स्वर्ग, वैकुंठ, जन्नता स्वर्गापम स्थान । | और अंकुरसे बीजकी उत्पत्तिका अनादि प्रवाह । -का जानवर-मोर । -का मेवा-अनार ।
बीजा-पु० बीज । * वि० दूसरा । बिहिश्ती-पु० [फा०] बिहिश्तका रहनेवाला; (मशकसे) बीजाक्षर-पु० [सं०] मंत्रका प्रथम अक्षर । . पानी भरनेवाला, भिश्ती।
बीजी-स्त्री० गिरी, मींगी, गुठली। बिही-पु० [फा०] नाशपातीकी शकलका एक फल; उसका बीजी(जिन्)-वि० [सं०] बीजवाला । पु० पिता क्षेत्रज पेड़, अमरूद । -दाना-पु० बिहीका वीज ।
संतानका असल बाप (क्षेत्रीसे भिन्न); सूर्य । बिहीन-वि० दे० 'विहीन' ।
बीजु*-स्त्री० बिजली-'चमकहिं दसन बीजुकै नाई बिहरना*-अ० क्रि० दे० 'बिथुरना' । स० क्रि० छोड़ना। ५०।-पात-पु० वज्रपात । बिहन*-वि० दे० 'विहीन'।
| बीजुरी*-स्त्री० बिजली।
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बीजू-बुज़
५७८ बीजू-वि० बोजसे उत्पन्न; जो कलमी न हो (-आम)। | बीरना-पु० भाई, बीर; वीरण, खस । पु० दे० 'बिज्जू'।
बीरबहूटी-स्त्री० किलनीकी जातिका, गहरे लाल रंगका बीझ, बीझा*-वि० बीहड़, जनशून्य ।
एक बरसाती कीड़ा, इंद्रवधू । बीझना*-अ० कि० फँसना, उलझना।
बीरा*-पु० दे० 'बीड़ा'; प्रसादस्वरूप दिये जानेवाले बीट-स्त्री० चिड़ियोंका मैला।
फल-फूल आदि । बीड़-स्त्री० गुल्लीकी शकलमें रखे हुए रुपये।
बीरी*-स्त्री० पानका बीड़ा, मिस्सी; कानका एक गहना; बीड़ा-पु. पानकी गिलौरी; म्यानके मुँहके पास बँधी पत्तेसे बना हुआ सिगरेट । डोरी । मु०-उठाना-किसी कामका भार लेना, करनेकी बीरौ-पु०दे० विरवा'-'जस अशोक बोरी तर सीता'-५०। प्रतिज्ञा करना। -डालना,-रखना-किसी कठिन वील-वि० पोल । पु० नीची जमीन जहाँ पानी जमा कामका भार उठाने के लिए सामंतों, सरदारोंके सामने हो जाय; * मंत्र; बेल । पानका बीड़ा रखना। -देना-नाचने-गानेवालों आदि-| बीवी-स्त्री० [फा०] बीबी, स्त्री, पत्नी, गृहिणी । को साई देना।
बीस-वि० दसका दूना, उन्नीससे एक अधिक; बढ़कर, बीड़ी-स्त्री० छोटा बीड़ा; गठड़ी; पत्ते लपेटकर बनाया श्रेष्ठ । पु० बीसकी संख्या, २०; * विष । -बिस्वे-अ० हुआ सिगरेट; मिस्सी।
निश्चयपूर्वक, यकीनन; बहुत करके । बीतना-अ० क्रि० गुजरना, कटना; दूर होना; घटित बीसरना-अ० क्रि० स० क्रि० भूल जाना। होना पड़ना।
बीसी-स्त्री० वीसका समूह, कोड़ी; साठ संवत्सरोंके तीनबीता-पु० दे० 'बित्ता'।
मेंसे कोई विभाग; जमीनकी एक नाप । बीती-स्त्री० किसीके ऊपर बीती गुजरी हुई बात, घटित बीह-वि० दे० 'बीस'--'साँचहु मैं लबार भुजबीहा'घटना वृत्तांत ।
रामा। बीथि, बीधी-स्त्री० दे० 'वीथी' ।
बीहड़-वि० ऊबड़-खाबड़ विकट; विभक्त, जुदा । बीथित*-वि० दे० 'व्यथित' ।
बुंद-स्त्री०, पु० बूंद, वीर्य । बीधना*-अ०क्रि०दे० 'बि धना'। सक्रि०दे० 'बी धना' । बुंदकी-स्त्री० छोटी बिंदी या दाग । -दार-वि० जिसपर बीन-स्त्री० वीणा । -कार-पु० वीणावादक ।
बहुतसी बुंदकियाँ बनी हो । बीनना*-स० क्रि० चुनना; बुनना।
बुंदा-पु० टिकली; टिकलीके आकारका गोदना; कानका बीना-स्त्री० दे० 'वीणा'।
एक गहना; * बूंद । बीफै।-पु० बृहस्पतिवार ।
बुंदिया-स्त्री० 'बूंदी' नामक मिठाई । बीबी-स्त्री० भले घरकी स्त्री, कुलांगना; पत्नी; बेटी, स्त्री बुंदीदार-वि० जिसपर बिंदियाँ हों।
और छोटी ननदका आदरार्थक संबोधन; फातिमा। बुंदेलखंड-पु० बुंदेलोंका देश, भारतका वह भूभाग जिसमें बीभत्स-वि० [सं०] घृणा उत्पन्न करनेवाला; सड़ा-गला | उत्तर प्रदेशके उत्तर-पश्चिमके कुछ जिले और पन्ना, (मांसादि); पापी । पु० साहित्यके नौरसोंमेंसे एक जिसका छतरपुर आदिका क्षेत्र पड़ता है। स्थायी भाव जुगुप्सा है; घृणोत्पादक वस्तु; अजुन। बुंदेलखंडी-वि० बुंदेलखंडका । पु० बुंदेलखंडका निवासी । बीमा-पु० [फा०] मृत्यु, दुर्घटना, मालके रास्ते खो स्त्री० बुदेलखंडकी भाषा। जाने आदिको हानि भर देने, उसके बदले में नियत धन बुंदेला-पु० राजपूतोंका एक भेद जो बुंदेलखेडमें रहता है। देनेकी जिम्मेदारी (इंश्योरेंस)।-दार-पु. बीमा कराने- बँदौरी-स्त्री० बुंदिया नामकी मिठाई । वाला (पालिसी होल्डर) । -पत्रक-पु. (इंश्योरंस | बुआ-स्त्री० दे० 'बूआ'। पालिसी) बीमा करनेवाली संस्था और बीमा करानेवाले बुक-स्त्री० एक बारीक कपड़ा जो बकरमकी तरह कड़ा व्यक्ति या व्यक्तियोंके बीच हुए समझौतेका लिखित पत्र । होता है। पु० [सं०] हास्य । मु०-करना-क्षतिपूर्तिकी जिम्मेदारी लेना। (बीमे)की | बकचा-पु० [फा०] कपड़ेकी गठरी। पालिसी-बीमेका इकरारनामा ।
बुकची-स्त्री० छोटा बुकचा; दजियोंकी थैली जिसमें वे बीमार-पु० [फा०] वह व्यक्ति जिसे रोग हुआ हो,मरीज ।
° [फा०] वह व्यक्ति जिस राग हुआ हा मरोज।। सुई, तागा आदि रखते हैं। वि० रोगी; आशिक । -दारी-स्त्री० रोगीको सेवा, बुकटा, बुकट्टा-पु० दे० 'बकोटा'। तीमारदारी।
बुकनी-स्त्री० चूर्ग, सफूफ; चूर्णरूप रंग । बीमारी-स्त्री० [फा०] रोग, मर्ज; लत; झंझट । बुकवा -पु० उबटन। बीय, बीया-वि० दूसरा । पु० बीज ।
बुकुना*-पु० बुकनी; पाचक । वीर-वि० वीर, बहादुर । पु० वीर पुरुष; भाई; एक तरह- बुक्क-पु० [सं०] हृदय; हृदयस्थ अग्रमांस, बकरा; समय । का प्रेत । * स्त्री० सखी-'फिरत कहा है बीर बावरी वुक्कन-पु० [सं०] कुत्ते आदि जानवरोंका बोलना। भईसी'-हठी; कलाईका एक गहना; कानका एक गहना; बुक्का-पु० अभ्रकका चूर्ण । चरागाह; चरानेका कर ।
बुखार-पु० [अ०] भाप; ज्वर; भड़ास, दिलका गुबार । बीरउ*-पु० दे० 'बिरवा'।
बुग़चा-पु० [तु.] कपड़ोंकी गठरी, बुकचा । बीरज*-पु० दे० 'वीर्य' ।
बुज़-पु०, स्त्री० [फा०] बकरा, बकरी। -कसाब-पु०
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बुजुर्ग-बुनियादी कसाई, बूचड़ । -दिल-चि० डरपोक, भीरु ।-दिली- पू०४४७)। -गया-स्त्री० गयाके :पासका स्थान जहाँ स्त्री० कायरपन, भीरता।
बुद्धको बुद्धत्व प्राप्त हुआ। -धर्म-पु० बौद्ध धर्म । - बुज़र्ग-वि० [फा०] बड़ा, वृद्ध; आदरणीय । पु० गुरुजन | पुराण-पु० पराशररचित ललितलघुविस्तर । संत, महात्मा पुरखा, बाप-दादा ।
बुद्धव-पु० [सं०] बुद्धपद। बुजर्गाना-वि० [फा०] बुजुर्गके अनुरूप, गुरुजनोचित । बुद्धागम-पु० [सं०] बौद्ध धर्मके सिद्धांत । बुज़र्गी-स्त्री० [फा०] बड़प्पन, बड़ाई ।
बुद्धि-स्त्री० [सं०] जानने, समझने और विचार करनेकी बुझना-अ०क्रि० (आग, दीपक आदिका) जलना बंद होना, शक्ति, समझ, अक्कु; अंतःकरणकी निश्चयात्मिका वृत्ति शांत होना; जलती चीजका ठंढा होना; बुझाया जाना; (वे.); प्रकृतिका पहला परिणाम, महत्तत्त्व । -कौशलशांत होना, मिटना (प्यास); (चित्तका) सुस्त, उदास पु० चतुराई । -गम्य,-ग्राह्य-वि. जो समझमें आ होना।
सके। -चक्षु(स)-पु० प्रज्ञाचक्षुः धृतराष्ट्र । -जीविबुझाई-स्त्री० बुझानेकी क्रिया या उजरत; बूझनेकी क्रिया। वर्ग-पु० (इंटेलिजेंशिया) बुद्धिसे जीविका प्राप्त बुझाना-स० क्रि० आग या जलती हुई चीजको ठंढा करना, करनेवाले, दिमागी काम करनेवाले लोगोंका समुदाय । जलनेका अंत करना, गुल करना; जलती हुई चीजको -दोष-पु० समझकी कमी, खराबी ।-पर-वि० बुद्धिकी पानी में डालकर ठंढा करना; तलवार आदिको जहर मिले पहुँचके बाहर । -पुरस्सर-पूर्वक-अ० इरादा करके, हुए पानीमें डालकर ठंढा करना; शांत करना, मिटाना | इच्छा पूर्वक, सोच-समझकर । -बल-पु० बुद्धिका बल । (प्यास); समझाना; बूझनेका काम दूसरेसे कराना, पहेली -भ्रंश-पु० एक दोष या रोग जिसमें बुद्धि ठिकानेसे
का उत्तर पृछना । * अ० क्रि० शांत होना; बुझना। काम नहीं करती। -योग-पु० झानयोग। -वादबुझीवल-स्त्री० किसी वस्तुका ऐसा अनोखा वर्णन जिसके पु० अन्य विषयोंकी तरह धर्ममें भी बुद्धि ही सर्वोपरि
आधारपर उसका अर्थ बूझने, उत्तर देने या वस्तुका नाम प्रमाण है-यह मत (रैशनलिज्म)। -वादी(दिन)बताने में बहुत सोच-विचार करना पड़े, पहेली।
वि० बुद्धिवादको माननेवाला। -विलास-पु० कल्पना । बुट*-स्त्री० दे० 'बूटी' ।
-वैभव-पु. बुद्धि की प्रखरता, बुद्धिबल। -शक्तिबुटना*-अ० कि० हटना, भागना ।
स्त्री० बुद्धिबल । -शाली(लिन)-वि० बुद्धिमान् । बुड़की*-स्त्री० डुबकी।
-हीन-वि० निर्वृद्धि, नासमझ । बुड़ना*-अ० क्रि० बना।
बुद्धिमत्ता-स्त्री० [सं०] बुद्धिमानी, समझदारी । बुदभस-स्त्री० बूढोंकी दिर्स, बुढ़ौतीमें जवानीकी उमंग।। बुद्धिमानी-स्त्री० दे० 'बुद्धिमत्ता' । बुड़ाना*-स० क्रि० दे० 'डुबाना'।
बुद्धिमान्(मत्)-वि० [सं०] चतुर । बुड़बुड़ाना-अ० कि० कुड़बुड़ाना।
बुद्धिवंत-वि० अक्लमंद, समझदार । बुड्ढा -वि० बूढ़ा।
बुबुद-पु० [सं०] बुलबुला । बुढ़ाई-स्त्री० बुढ़ापा, वृद्धावस्था ।
बुधंगड़ -वि० मूर्ख। बुढ़ाना-अ० कि० बूढ़ा होना।
बुध-पु० [सं०] पंडित, विद्वान सौरमंडलका एक ग्रह जो बुढ़ापा-पु० बूढ़ा होनेकी अवस्था, वार्धक्य, बुढ़ौती। पुराणोंके अनुसार चंद्रमाका बृहस्पतिकी पत्नी ताराके बुढ़िया-स्त्री० वृद्धा स्त्री, बूढ़ी।
गर्भसे उत्पन्न पुत्र है; देवता; कुत्ता। -जन-पु. पंडित, बुढ़ौती-स्त्री० बुढ़ापा ।
विद्वान् । -जायी*-पु० बुधके पिता, चंद्रमा । -रत्नबुत-पु० [फा०] मूर्ति, प्रतिमा प्रेमपात्र, माशूक । वि. पु० पन्ना। -वार,-वासर-पु० मंगलवार और गुरुवारमूर्तिकी तरह जड़, निश्चेष्ट । खाना-पु० मंदिर। के बीचका दिन । -तराश-पु० मूर्तियाँ बनानेवाला । -परस्त-पु० मूर्ति बुधवान-पु० बुद्धिमान् । की पूजा करनेवाला। -परस्ती-स्त्री० मूर्ति-पूजा । - बुधि*-स्त्री० दे० 'बुद्धि' । शिकन-पु० मूर्तिको तोड़ने फोड़नेवाला, मूर्तिभंजक । बुध्य-वि० [सं०] जानने योग्य । मु०-बन (हो) जाना-मूर्तिकी तरह स्थिर और मौन बुनकर-पु० कपड़ा बुननेवाला । हो जाना।
बुनना-स० क्रि० धागेसे कपड़ा बनाना, तानोंके सूतोके बुतना-अ० कि० बुझना; शांत होना ।
बीच बानेका सूत भरना; ऊन आदिके धागोंसे सलाईके बुताना-स० कि० बुझाना; शांत करना । अ० क्रि० दे० द्वारा मोजा, गुलूबंद आदि बनाना सुतली, बान, बेतके 'बुतना'।
छिलके आदिसे जाली बनाकर चारपाई, कुरसी आदिकी बुताम-पु० बटन।
खाली जगह भरना। बुत्त-वि० दे० 'बुत'।
बुनवाना-सक्रि० वुननेका काम दूसरेसे कराना। बुत्ता-पु. झाँसा, दम।
बुनाई-स्त्री० बुननेकी क्रिया; बुनावट; बुननेकी मजदूरी । बुदबुदा-पु० बुलबुला।
बुनावट-स्त्री० बुननेका हंग, ताने-बानेका धना-झीना बुद्ध-वि० [सं०] जगा हुआ; ज्ञानी; पंडित विकसित । होना। पु० बौद्धधर्मके प्रवर्तक गौतम बुद्ध जो विष्णुके नवें अवतार | बुनियाद-स्त्री० [फा०] जड़, नी, आधार; आरंभ । माने जाते हैं, सिद्धार्थ (जन्म ई० पू० ५५७, निर्वाण ई० । बनियादी-वि० [फा०] मूलगत; नीवका कार्य देनेवाला,
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बुबुकना - बृष
आधाररूप ।
बुबुकना - अ० क्रि० डाढ़ मारकर, जोर-जोर से रोना । बुबुकारी - स्त्री० डाढ़ मारकर रोना । बुभुक्षा - स्त्री० [सं०] खानेकी इच्छा, भूख । बुभुक्षित, बुभुक्षु - वि० [सं०] भूखा, क्षुधित | बुर - स्त्री० भग, योनि (प्रायः गाली-गलौज में प्रयुक्त) । बुरकना-स० क्रि० चूर्ण जैसी वस्तुको छिड़कना । बुरक़ा - पु० [अ०] लंबा पहनावा जिससे बाहर निकलनेके वक्त मुसलमान स्त्रियाँ अपना सारा शरीर ढक लेती हैं, नकाब | - पोश- वि० जो बुरका ओढ़े हो । बुरा - वि० खराब, दूषित; हानिकर; खोटा, कुचाली । पु० बुराई; हानि, अनिष्ट । - भला- पु० अच्छा-बुरा, हानिलाभ (सोचना); गाली-गलौज, अपशब्द ( कहना, सुनना ) । - वक़्त - पु० कष्टका समय, विपत्काल | -हाल - पु० दुर्दशा; अधिक कष्टको स्थिति; तबाही । ( बुरी ) खबरस्त्री० मौतकी खबर । गत-गति - स्त्री० दुर्दशा । - घड़ी - स्त्री० मुसीबतकी घड़ी, विपत्काल । -तरहअ० बहुत ज्यादा; कसकर नजर, निगाह - स्त्री० बुराईकी निगाह, पापकी दृष्टि । -बला - स्त्री० भारी बला, बहुत कष्ट देनेवाली चीज; बिपद । (बुरे ) दिनपु० कष्टके दिन, विपद्काल । मु० ( बुर ) करना - अनुचित काम करना, हानिकर कार्य करना; नुकसान पहुँचाना। - कहना - निंदा करना, बदनाम करना । - चाहना - बुराई चाहना - मानना - दुःखी होना; नाराज होना । —लगना - नागवार लगना । - हाल होना- घोर कष्टमें होना; (रोगीकी) हालत बिगड़ना । मु० (बुरी ) गत करना - बहुत मारना । -तरह पेश आना-दुर्व्यवहार करना ।
बुराई - स्त्री० बुरा होना, खराबी, दोष, खुटाई, दुष्टता; अनिष्ट; निंदा; दुश्मनी । - भलाई - स्त्री० नेकी बदी । मु० - आगे आना- बुरे कामका फल मिलना । बुरादा - पु० [फा०] लकड़ीका चूरा; कोयलेका चूरा I बुरुश - पु० [अं० 'ब्रश'] बाल या तारकी कूँची जो गर्द झाड़ने, दाँत माँजने, बाल सँवारने आदिके काममें लायी जाती है; तसवीर बनाने, रंग-रोगन करनेके काम आने वाली बालोंकी कूँची ।
बुर्ज - पु० गड़गज; मीनार; गुंबद, कलस; राशि । - तोप - स्त्री० ( टरेट गन) (चारों तरफ घूमनेवाले) बुर्जमें लगायी गयी तोप ।
बुर्जी - स्त्री० छोटा बुर्ज ।
बुलंद - वि० [फा०] ऊँचा । - इक़बाल - वि० भाग्यवान्, सौभाग्यशाली | - हिम्मत, हौसिला - वि० ऊँची हिम्मत, हौसिलावाला ।
झुलंदी - स्त्री० [फा०] ऊँचाई; उत्कर्ष । बुलबुल - स्त्री० [अ०] एक छोटी चिड़िया जिसकी बोली बहुत मधुर होती है और जो फारसी-उर्दू काव्य में फूलोंकी आशिक मानी गयी है । -बाज़ - पु० बुलबुल पालनेवाला । बुलबुला - पु० पानीका बुला, बुदबुद; क्षणभंगुर वस्तु । बुलघाना - स० क्रि० बुलानेका काम दूसरेसे कराना; बोलने में प्रवृत्त करना ।
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५८०
बुलाक - पु० [तु०] नाककी बिचली हड्डी; उसमें पहनने का
एक गहना ।
बुलाकी - पु० घोड़ेकी एक जाति ।
बुलाना - स०क्रि० पुकारना, पास आनेको कहना; किसीको बोलने में प्रवृत्त करना ।
बुलावा - पु० बुलानेका भाव, न्योता । बुलौआ, बुलौart - पु० दे० 'बुलावा' । बुल्ला* - पु० दे० 'बुलबुला' । बुहारना - स० क्रि० झाडू देना, झाड़ना । बुहारी - स्त्री० झाड़ू, बढ़नी ।
बूँद - स्त्री० पानी या दूसरे तरल पदार्थका बहुत छोटा अंश, कतरा, बिंदु वीर्य; एक रंगीन कपड़ा । बूँदा - पु० बड़ी टिकली, बुंदा । बूँदा बाँदी - स्त्री० हलकी वर्षा ।
बूँदी - स्त्री० एक तरहकी मिठाई, चुँदिया; वर्षा के जलकी बूँद । बू-स्त्री० [फा०] गंध; सुगंध; दुर्गंध; (ला० ) ठसका, आनबान ( नवाबीकी बू ); ढंग | बूआ - स्त्री० पिताकी बहिन, फूफी ।
बूकना - स० क्रि० चूर करना, पीसना; छाँटना (अंग्रेजी बूकना) ।
बूचड़-पु० कसाई, मांस विक्रेता । -ख़ाना - पु० कसाई
खाना ।
बूचा - वि० कनकटा; नंगा | बूजना * - स० क्रि० धोखा देना । बूझ - स्त्री० बूझनेका भाव; समझ ।
बूझना - स० क्रि० समझना; जानना; * पूछना । बूट- पु० हरा चना; चनेका पौधा; * पेड़; [अ०] मोटे तल्लेका अंग्रेजी जूता जिससे टखनेसे कुछ ऊपरतक पॉव ढक जाता है ।
बूटना * - अ० क्रि० भागना- 'कहूँ बाजि स्यौ साजके जात बूटे' - सुजान० ।
बूटनि* - स्त्री० वीरबहूटी ।
बूटा-पु० छोटा पौधा; फूलका छोटा पौधा; कपड़े आदिपर बनी हुई फूल-पत्ती ।
बूटी-स्त्री० जड़ी; भंग; कपड़ेपर बने हुए छोटे बेल-बूटे; ताश के पत्तोंपर बनी हुई बिंदी ।
बूड़ना * - अ० क्रि० डूबना, लीन होना । बूढ़ - * पु० लाल रंग; बीरबहूटी । + वि० बुड्ढा । बूढ़ा - वि० बड़ी उम्रका, जो बुढ़ापेकी अवस्था में हो, वृद्ध । + स्त्री० वृद्ध स्त्री । - खुर्राटा - पु० चालाक, अनुभवी व्यक्ति । - पॉंग- पु० बूढ़ा बेवकूफ । - फूस, -फूस - पु० अति वृद्ध । मु० ( बूढ़े ) तोतेको पढ़ाना - पढ़नेसीखने की उम्र बीत जानेपर सिखाना-पढ़ाना | बूता - बल, शक्ति; बस, सामर्थ्य । बूरना* - अ० क्रि० दे० 'बूड़ना' । बूरा - पु० कच्ची चीनी; चीनी; चूर्ण । वृंद - पु० दे० 'वृंद' |
बूक- पु० भेड़िया; गीदड़ । बृच्छ* - पु० दे० 'वृक्ष' ।
वृष - पु० दे० 'वृष' | -केतु,- ध्वज-पु० शिव ।
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वृषभ-बे
बृषभ-पु० दे० 'वृषभ'।
स्त्री० बेचैनी। -कस-वि. असहाय, दीन, विवश । बृहत्-वि० [सं०] बड़ा, विशाल लंबा-चौड़ा; शक्तिशाली -कसी-स्त्री० असहाय-स्थिति; दीनता, विवशता । ऊँचा (स्वर)। -कथा-स्त्री० गुणाढ्य रचित कहानियों- -कहा-वि० जो किसीका कहना, दाब न माने, की पुस्तक । -फथा मंजरी-स्त्री० क्षेमेंद्र-रचित कहा- स्वच्छंद । -कानूनी-वि० गैरकानूनी, नियमविरुद्ध । नियोंकी पुस्तक । -काय-वि० बड़े डील-डौलका । -काबू-वि. जिसका बस न चले, विवश, लाचार । बृहत्तर-वि० [सं०] और अधिक बड़ा; मूल पदार्थ, देश -काम-वि० दे० 'बेकार'। -कायदगी-स्त्री० बेफा
आदिसे अधिक आकार या विस्तारका (जिसमें आस-पासके यदा होना, अनियमितता; अनियम। -कायदा-वि० कुछ और पदार्थ या देश सम्मिलित हों), जैसे वृहत्तर नियम विरुद्ध, अनियमित । -कार-वि० जिसके पास भारत।
कोई काम न हो, निठल्ला; निकम्मा; बेरोजगार; निरबृहन्नला-स्त्री० [सं०] अर्जुनका विराट के यहाँ स्त्री-रूप में र्थक । -कारी-स्त्री० बेकार होना; बेरोजगारी ।-कुसूररहते समयका नाम।
वि०निरपराध, निदोष । -खटक,-खटके-अ० बिना बृहस्पति-पु० [सं०] सौर मंडलका पाँचवाँ और सबसे डर-संकोचके, बेधड़क । -खबर-वि० जिसे (किसी बड़ा ग्रह एक ऋषि जो देवताओंके गुरु माने जाते हैं। बातकी) जानकारी न हो; असावधान, लापरवा; बेसुध । एक स्मृतिकार । -चार-पु० गुरुवार ।
-खबरी-स्त्री० बेखबर होना। -खुदी--स्त्री० आत्मबेग*-पु. मेढक ।
विस्मृति मदहोशी। -खौफ-विनिडर ।-ख्वाबीबैंच-स्त्री० [अं०] लकड़ी-लोहे आदिकी लंबी, कम चौड़ी स्त्री० नींद न आना, जागरण । -ग़म-वि०जिसे कोई चौकी; जजका आसन, पद न्यायालय; न्यायालय-विशेष- सोच-फिक्र न हो। -गाना-वि० गैर, पराया; अनके विचारकर्ता, आनरेरी और स्पेशल मजिस्ट्रेटोंका इज- जान । -गुनाह-वि० निरपराध, बेकुसूर । -घरलास बिधानसभामें पक्ष-विशेषके बेठनेका स्थान ।
घरा-वि० गृहहीन, जिसका कोई घर-बार न हो। बेट, बैंठा-स्त्री० मूठ, दस्ता ।
-चारगी-स्त्री. बेचारापन, दीनता, विवशता ।-चाराबेड-स्त्री० चाँड़, टेक ।
वि० दीन, असहाय, विवश । -चिराग़-वि० जहाँ दीया बेड़ना-स० क्रि० बंद करना; घेरना ।
न जलता हो; गैर-आवाद । -चैन-वि० बेकल, बेकरार। बे डा*-वि० आड़ा; कठिन । पु० ब्योड़ा।
-चैनी-स्त्री० बेकली, घबराहट । -चोबा-पु० बिना बेडी-स्त्री० पानी उलीचनेकी बाँसकी छिछली टोकरी। खंभेका खेमा। -जड़-वि० बिना जड़का, निर्मूल । बेत-पु. एक लता जिसका डंठल मजबूत और लचीला -ज़बान-वि० न बोलनेवाला, मूक (जानवर); जो होता है और टोकरे आदि बनानेके काम आता है; बेंतकी अपनी दशा खुद न कह सके; दीन । -जा-वि. जो
छड़ी। मु०-की तरह काँपना-डरसे बहुत काँपना। अपनी जगह पर न हो, बेमौका; अनुचित। -जानबेदा-पु० बड़ी टिकली; माथेपरका एक गहना; टीका, वि० निष्प्राण, मुर्दा दुर्बल । -जाबिता-जातातिलक।
वि० जो नियमानुकूल न हो, बेकायदा ।-ज़ार-वि० बेदी-स्त्री० बिंदी; टिकली; सुन्ना; माथेपरका एक गहना।। नाराज; दुःखी; परीशान । -जारी-स्त्री. नाराजगी बेवड़ा-पु० ब्योड़ा, अरगल ।
परीशानी। -जोड़-वि०बिना जोड़का, अखंड; लाजबे वता-स्त्री० दे० 'थ्यो त'।
वाब बेमेल । -ठिकाना-वि० जिसका कुछ ठीक न हो; बे वताना-स० कि० ब्योंतनेका काम दूसरेसे कराना। अविश्वसनीय । -ठिकाने- वि० जो अपनी जगहपर न बे-अ० अरे, अवे; [फा०] बिना, बगैर, सिवाय ।-अंत:- हो, असंगत; बगैर पते या निशानके। अ० बेमौके।-डौल वि० अथाह, जिसका अंत न हो। -अकल,-अल- -वि० भद्दा, कुरूप । -ढंगा-वि० बुरे ढंगवाला,बेशकर वि० नासमझ, निर्बुद्धि । -अकली-स्त्री० नासमझी। भद्दा अव्यवस्थित। -ढब-वि०निराले ढंगवाला टेढ़ा, -अदब-वि० अशिष्ट, अविनीत, गुस्ताख। -अदबी- हठी खतरनाक । अ० बुरी तरह, बहुत ज्यादा। -तकस्त्री० अविनय, ढिठाई। -आब-वि० जिसमें आब- ल्लत-वि० जिसमें बनावट न हो, सरल; दिखाऊ शिष्टाचमक न हो। -आबरू-वि० बेइज्जत, प्रतिष्ठारहित । चार न बरतनेवाला; संकोच-रहित, घनिष्ठ (मित्र)। अ० -आबरूई-स्त्री० बेइज्जती ।-इंसाफी-स्त्री० अन्याय, निस्संकोच, बेधड़क । -तकल्लुफ्री-स्त्री० संकोचका नाइंसाफी। -इज़त-वि० प्रतिष्ठारहित, जलील; अप- अभाव; सरलता; आजादी; घनिष्ठता। -तमीज़-वि० मानित ।-इजती-स्त्री० अप्रतिष्ठा, अपमान ।-इल्म- बदतमीज, उजड्ड । -तरतीब-वि० क्रमरहित, गड्डमड्ड, वि० अपढ़, विद्यारहिता -ईमान-वि० धर्मको न अव्यवस्थित । -तरह-अ० बुरी तरह, बहुत ज्यादा । माननेवाला, बेदीन; बदनीयत; झूठा, नमकहराम । -तरीक्त-अ० अनुचित रूपसे। -तहाशा-अ० बहुत -ईमानी-स्त्री० बेदीनी; बद्दयानती बदनीयती; झुठाई । तेजीसे, बदहवास होकर (भागना); बिना सोचे-बिचारे । -उज्र-वि० जिसे किसी बातके मानने करने में कोई -ताब-वि० बेचैन, विकल, अधीर । -ताबी-स्त्री० उज्र-आपत्ति न हो । अ० बिना किसी उज्रके । -कद्र- बेचैनी, अधीरता ।-तार-वि० बिना तारका । -तारका वि० जिसकी कोई पूछ न हो। -क़द्री-स्त्री. आदर- तार-पु० बिना तारके विद्युत्यंत्रसे भेजा जानेवाला तार मानका अभाव, बेइज्जती; पूछ न होना। -करार-वि० (वायरलेस)।-तुका-वि० बेमेल, असंगत; बेमौका (बात); विकल, बेचैन । -कल-वि० बेचैन, विकल । -कली- बेतुकी बात कहनेवाला । -तुकी-वि० स्त्री० असंगत
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(बात)। [मु.बेतुकी हाँकना-असंगत, बेतुकी बात वि० बेमजा, बेलुत्क । -रहम-वि० जिसमें रहम न हो, बकना।] -दखली-बी० कब्जेका हटाया जाना, निर्दय । -रहमी-स्त्री० निर्दयता, बेददी । -राह-वि० असामीका खेतसे बेदखल कर दिया जाना। -दम-वि० पथभ्रष्ट कुचाली।-रुख-वि० बेमुरौवत रुष्ट, प्रतिकूल । बेजान, मुर्दा; शिथिल । -दर्द-वि० निठुर, निर्दय, -रुखी-स्त्री० उपेक्षा प्रतिकूलता; बेमुरौवती । -रोकजालिम । -दर्दी-स्त्री० निर्दयता, बेरहमी। * वि० टोक-अ० बिना किसी रुकावटके, बेखटके।-रोज़गारदे० 'बेदर्द' -दाग़-वि० निष्कलंक, निर्दोष ।-दाना- वि० जिसके पास जीविकाका साधन न हो; नौकरीसे वि० बिना दानोंका; मूर्ख। पु० अनारका एक बढ़िया भेद अलग किया हुआ, बेकार । -रोज़गारी-स्त्री० बेरोजगार जिसके दाने में नामकी ही सीठी होती है। एक तरहका होनेका भाव, बेकारी । -रौनक-वि० जिसकी शोभा, शहतूत बिहीदाना। -दानिशी-सी० नासमझी, बे- चहल-पहल चली गयी हो, उदास । -लगाम-वि० मुँहअकली। -दाम-वि० मुफ्त, बिना दामका। -दिल- जोर, सरकश, दाब न माननेवाला। -लज्जत-वि० वि० उदास, भग्नहृदय । -धड़क-अ० निर्भय होकर, बेमजा, स्वादरहित; निष्फल । -लाग-वि० किसीकी बिना सोचे-अटके। वि० निर्भय । -धीर*-वि० धैर्य- रू-रिआयत न करनेवाला, खरा; दोटूक (बात)। रहित । - नज़ीर-वि० बेजोड़, अनुपम । -नाम-वि० -लिहाज़-वि० बेसुरौवत; निर्लज्ज । -लुफ-वि० गुमनाम । -नामोनिशान-वि० बेपता । -निमून*- बेमजा, रसरहित। -लुत्फ्री -स्त्री० रसभंग, बदमजगी, वि० अद्वितीय, बेजोड़। -नियाज़- वि० जिसे किसी आनंद न आना । -लौस-वि० खरा; किसीका लिहाज, चीजकी चाह या आवश्यकता नको, बेपरवा।-नूर-वि० मुरौवत न करनेवाला । -लौसी-स्त्री० खरापन, निष्पजिसकी ज्योति चली गयी हो (आँख)।-पता चिट्ठीघर क्षता । -वाक्षत,-वक़त-वि० प्रतिष्ठारहित, तुच्छ, -पु. (डेड लेटर ऑफिस) दे० 'लापता 'चिट्रीघर' । नगण्य । -वकूफ़-वि०निर्बुद्धि, नासमझ । -वक्त-पनाह-वि० जिससे वचाव न हो सके; निराश्रय । अ० असमय, बेमौके, कुसमयमें। -वततकी रागिनी -परदगी,-पर्दगी-स्त्री० परदेका हट जाना; भेदका (शहनाई)-बेमौका बात । -वना-वि० वचनका प्रकट हो जाना; बेइज्जती। -परदा-वि० परदेसे बाहर पालन, प्रीतिका निर्वाह न करनेवाला; कृतघ्न; मित्रको जिस(स्त्री)का मुँह खुला हो; प्रकट, खुला। -परवा- धोखा देनेवाला । -वफ़ाई-स्त्री० बेवफा होनेका भाव; परवाह-वि० जिसे किसी बातकी फिक्र न हो, निर्द्वद्व । बेमुरोवती; कृतघ्नता। -शऊर-वि० बेसलीका, फूहड़, -परवाई, परवाही-स्त्री० बेफिक्री, लापरवाई ।-पाइ* बेअकल ।-शक-अ० निस्संदेह, जरूर । -शरम,-शर्म-वि०निरुपाय, भौचक । -पीर-वि० निर्दय, दूसरोंका वि०निर्लज्ज ।-शर्मी-स्त्री० निर्लज्जता ।-शुमार-वि० दुख-दर्द न समझनेवाला; निगुरा। -फसल,-फस्ल- अगणित; बेहिसाब । -सँभर*-वि० बेहोश।-सबबवि० बेमौसम बेवक्त । -फायदा-वि० जिससे कोई अ० अकारण, बिलावजह । -सबरा-वि० दे० 'बसन' । लाभ, फल न हो, बेकार । -फ़िक्र-वि० चितारहित, -सबरी-स्त्री० अधैर्य ।-सब्र-वि० जिसमें सब, धीरज बेपरवा, निर्दछ । -फ्रिक्री-स्त्री० निश्चितता। -बस- न हो, अधीर । -सबी-स्त्री० अधीरता। -समझवि० विवश, असहाय ।-बसी-स्त्री०विवशता, लाचारी। वि० नासमझ । -सर*-वि० आश्रयरहित । -सरा,-बाक-वि० निडर, ढीठ । -बान-वि० जिस(हिसाब- सिरा-वि० जिसके सिरपर कोई न हो, स्वच्छंद । खाते)में कुछ बाकी न हो, चुकाया हुआ; जिसने पूरा | -सरोसामान-वि० जिसके पास कोई सामग्री न हो। पावना चुका दिया हो।-बाकी-स्त्री० निर्भयता,धृष्टता । -सलीका-वि० बेशऊर, फूहड़ । -सामान-वि० -बाकी-स्त्री० बेबाक होना, चुकता, पूरी सफाई ।-बुनि- जिसके पास माल-असबाब या जरूरी औजार आदि न याद-वि० बिना जड़का, निर्मूल; मनगढ़ंत । -ब्याहा- हो, उपकरणहीन । -सिलसिला-वि० क्रमरहित, वि० अविवाहित ।-मज़ा-वि० स्वादरहित; बदजायका । अव्यवस्थित ।-सिलसिले-अ० बिना क्रम, सिलसिलेके । -मतलब-अनिष्प्रयोजन, बेकार । वि. निरर्थक । -सुध-वि० अचेत, बेहोश; आत्मविस्मृत । -सुर-वि० -मनका-जिसमें मन न लगता हो। -मरम्मत-वि० जिसका स्वर ठीक न हो। -सरा-वि० जो शुद्ध स्वर में जिसकी मरम्मत न हुई हो, टूटा-फूटा। -मसरा- न गा सके; स्वरदोषयुक्त, अशुद्ध स्वर में गाया जानेवाला वि. अनुपयोगी, निकम्मा। -मानी-वि० अर्थरहित (गाना)।-सूद-वि० बेफायदा, व्यर्थ ।-सोचे समझेबेकार । -मालूम-वि० जिसका पता न लगे, अशात । अ० बिना सोच-विचार किये, झट । -स्वाद-वि० स्वाद-मिलावट-वि० खालिस, शुद्ध । -मुनासिब- रहित, बदजायका । -हकीकत-वि० तुच्छ, उपेक्षणीय । वि० अनुचित । -मुरीवत-वि. जिसमें लिहाज, -हद-वि० असीम; बहुत अधिक ।-हया-वि० निर्लज्ज, मुरौवत न हो, तोताचश्म । -मुरौवती-स्त्री० बेशर्म । -हयाई-स्त्री० निर्लज्जता। [मु०-हयाईका बेमुरौवत होना, तोताचश्मी। -मेल-वि० जो मेल न जामा पहन लेना या बुरका ओढ़, मुँहपर डाल खाता हो, अनमिल, बेजोड़। -मौका-वि० जिसका लेना-नितांत निर्लज्ज हो जाना।। -हाल-वि० कष्टसे अवसर न हो; अयुक्त, नामुनासिब । -मौत-अ० अस- व्याकुल, जिसका हाल बुरा हो। -हिजाबी-स्त्री. मय, बिना अवसरके। -मौत-अ० बिना मौत आये, बेपर्दगी; निर्लज्जता । -हिम्मत-वि० जिसमें हिम्मत न बिना कालके (मरना)।-मौसिम-वि० जिसका मौसिम | हो, डरपोक । -हिसाब-वि० बेहद, अमित; बहुत न हो, असामयिक । अ०बिना उचित समयके ।-रंग- ज्यादा। -हुनर,-हुनरा-वि० जिसे कुछ आता न हो,
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अनाड़ी, बेशऊर । - हूदगी - स्त्री० बेहूदापन; अशिष्टता, असभ्यता । - हूदा - वि० असंगत, बेतुका; अशिष्ट, भद्दा । - हैफ़ * - वि०" बेफिक्र, निश्चित -होश-वि० जिसे
होश न हो, अचेत । - होशी - स्त्री० अचेतपन, मूर्च्छा । मु०- परकी उड़ाना-बेतुकी हाँकना, गप मारना । - परके कबूतर उड़ाना - चतुराईके बलसे अनहोनी बात कर लेना; हवामें गिरह बाँधना । - पँदीका लोटा ( बधना ) - जो किसी बातपर स्थिर न रहे, जिसका मत बदलता रहे, ढुलमुल ।
बेइलि* - पु०, स्त्री० दे० 'बेला' तथा 'वेल' ।
बेकारयो* - ५० जोर से बुलाने की आवाज । बेख* - ५० दे० 'वेष' ।
बेग - पु० दे० 'वेग' ; [तु०] अमीर, सरदार | [अं० 'बेग'] किरमित्र, चमड़े आदिका लंबोतरा, बकसका काम देनेवाला थैला । - पाइप - पु० बैंड के साथ बजाया जानेवाला एक बाजा, मशकवीन ।
बेगड़ी - ५० जौहरी; नगीने तराशनेवाला । बेगना * - अ० क्रि० वेगपूर्वक करना, जल्दी करना । बेगम - स्त्री० [तु० 'बेगुम'] बड़े आदमीकी बीबी, खातून; रानी रानीकी शकलवाला ताशका पत्ता ।
बेगर - वि० पृथक्, भिन्न । बेगार - स्त्री० [फा०] जबर्दस्ती, बिना उजरत दिये कराया जानेवाला काम; बेभनका काम । मु० टालना - बिना मन लगाये, बेगारकी तरह काम करना । बेगारी - स्त्री० दे० 'वेगार' |
बेगि * - अ० जल्दी, वेगपूर्वक, झटपट ।
बेचक* - पु० बेचनेवाला ।
बेचना - स० क्रि० दाम लेकर देना, बिक्री करना; पैसेके बदले में देना ( धर्म, ईमान इ० ) । मु० बेच खानानष्ट कर देना; उड़ा डालना ।
बेचवाना, बेचाना-स० क्रि० दे० 'विकवाना' | बेचवाल - ५० दे० 'वेचू’। बेची - स्त्री० विक्री, विक्रय । बेचू - ५० बेचनेवाला | बेझ* - पु० दे० 'बेझा' ।
बेश- पु० जौ, चना, मटर आदिकी मिली हुई फसल; ऐसा अनाज |
बेझना * - स० क्रि० निशाना लगाना, बेधना । बेझा* - पु० बेध, निशाना ।
बेटकी * - स्त्री० दे० 'बेटी' |
बेटला, बेटवा * - ५० दे० 'बेटा' |
बेटा - पु० पुत्र, लड़का; स्नेहका संबोधन, बच्चा । -बेटीस्त्री॰ बाल-बच्चे, संतान | ( बेटे ) वाला - पु० बरका पिता । बेटी - स्त्री० लड़की, पुत्री; बड़े की ओरसे बालिका या युवती का स्नेहसूचक संबोधन । -वाला- पु० कन्याका पिता । - व्यवहार - पु० विवाह संबंध | मु०-देना- बेटी
ब्याहना । - लेना- किसीकी बेटी से ब्याह करना । बेटन - ५० पुस्तक आदिको गर्दसे बचाने के लिए उसपर लपेटा जानेवाला कपड़ा, खोल ।
बेड़ - स्त्री० बाड़, थाला ।
३७-क
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बेइलि - बेलंद
बेड़ना-स० क्रि० बाड़ लगाना, थाला बनाना । बेड़ा - पु० लट्ठों या तख्तोंको बाँधकर और उनपर बाँसका टट्टर रखकर बनायी हुई नाव; नावों या जहाजका समूह; नाव | मु० - डूबना - काम बिगड़ना, नष्ट, तबाह होना । - पार होना - संकट कटना, काम हो जाना । बेदिन, बेड़िनी - स्त्री० नाचने-गानेका पेशा करनेवाली स्त्री, नटिनी ।
बेड़ी - स्त्री० कैदियों, हाथी-घोड़ों आदिके पाँवों में पहनायी जानेवाली लोहे की जंजीर, निगड (कटना, पड़ना); बंधन; छोटा बेड़ा, नाव; दे० 'बेंड़ी' |
बेढ़ - पु० घेरनेका कार्य; नाश; अंकुरित बीज ।
बेदई - स्त्री० पीठी भरकर बनायी हुई रोटी या पूरी । बेदना - स० क्रि० बाड़ बनाना, रूघना; ढोरोंको घेरकर लेजाना ।
बेदा- पु० एक तरहका कडा; मकान की बारी; घेरा । बेणी - स्त्री० दे० 'वेणी' । - फूल - पु० सीसफूल । बेत - पु० दे० 'त' । - पानि - वि० जिसके हाथमें बेत या दंड हो । मु० -की तरह काँपना-बहुत डरना । बेतना* - अ० क्रि० जान पड़ना । बेताल - पु० दे० 'बेताल' ; * चारण । बेद - पु० दे० 'वेद' ; [फा०] बेत | बेदन* स्त्री० दे० 'वेदन' । बेदना - स्त्री० दे० 'वेदना' ।
बेदार - वि० [फा०] जागता हुआ, जागरूक; चौकन्ना । - बख्त - वि० भाग्यशाली ।
बेदारी - स्त्री० [फा०] जागरण, जागरूकता ।
बेध-५० छेद; मोती, मूँगे आदिमें किया हुआ छेद; दे० 'वेध' ।
बेधक - वि० वेधनेवाला ।
बेधना-स० फि० छेद करना; धाव करना ।
बेधिया - ५० वेधनेवाला; अंकुश ।
बेन* - ५० दे० 'वेणु'; मद्दुवर ।
बेना- पु० बाँसके छिलकेका बना हुआ पंखा एक गहना; * खस; बॉस ।
बेनी-स्त्री० स्त्रियोंकी चोटी; त्रिवेणी; किवाड़ के पल्लेके किनारे लगायी जानेवाली वह लकड़ी जो दूसरे पल्लेको खुलने से रोकती है।
बेनु- ५० दे० 'वेणु' |
बेनौरा - पु० दे० 'बिनौला' ।
बेनौरी - स्त्री० विनोलेके समान छोटे छोटे ओले, बनौरी । बेमौसम - वि० दे० 'वे' के साथ ।
बेर-पु० एक प्रसिद्ध फल; उसका पेड़ । स्त्री० देर, समय; बार, दफा ।
बेरवा - पु० कलाई में पहननेका कड़ा ।
बेरा - स्त्री० समय; सबेरा; दफा, बार। * पु० बेड़ा, नाव; पोत- समूह |
बेरामा - वि० दे० 'बीमार' |
बेरिआ, बेरियाँ - स्त्री० बेला, समय । बेरी* - स्त्री० दे० 'बेड़ी'; नौका । बेलंद* - वि० बुलंद, ऊँचा ।
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बेलव- बैगनी
बेलंब * - पु० बिलंब, देर । बेल - पु० एक प्रसिद्ध वृक्ष या उसका फल, बिल्व, श्रीफल । - गिरी - स्त्री० बेलके फलका गूदा । - पत्ती - स्त्री०, - पत्र - पु० बेलका पत्ता । -पात-पु० बेलपत्ता । बेल - स्त्री० जमीन, दीवार, पेड़ आदिपर फैलनेवाला बिना तनेका पौधा, लता; वंश; कागज, कपड़े आदिपर रंग, रेशम आदि से बनाये हुए लताकी शकल के फूल-पत्ते; कपड़ेपर टाँका जानेवाला फीता जिसपर जरीके तारोंसे फूलपत्तियाँ बनी हों; दाग-बेल; * बेला । - बूटा-पु० कागज, कपड़े आदिपर बनाये जानेवाले फूल-पत्ते । मु० - बढ़नावंश बढ़ना । - मँढे चढ़ना- कामका पूरा होना । बेल- पु० एक तरहकी कुदाल । -चा-पु० छोटी कुदाल, लंबा खुरपा । - दार - पु० फावड़ा चलानेवाला मजदूर । - दारी - स्त्री० बेलदारका काम । बेलड़ी, बेलरी* - स्त्री० बेल । बेलम - पु० काठका बना लंबा, गोला दस्ता जिससे चकलेपर रोटी, पूरी आदि बेलते हैं; पत्थर, लोहेका भारी गोला जिससे सड़क आदि दबाकर बराबर करते हैं (रोलर); छापने, ईख पेरनेकी कल आदिका बेलनकी शकुका पुरजा । बेलना - स० क्रि० चकलेपर बेलनसे रोटी, पूरी आदि बनाना | पु० दे० ' बेलन' | बेलवाना-स० क्रि० बेलनेका काम दूसरेसे कराना; वेलने में साथ देना ।
बेलसना* - अ० क्रि० मौज करना, विलास में लिप्त रहना । बेला- पु० एक सुगंधित फूल; उसका पौधा; समुद्रतट; मोगरा; कटोरा; सारंगी जैसा एक बाजा । स्त्री० दे० 'वेला'। बेलि - स्त्री० दे० 'बेल' ।
बेली - पु० साथी, सहायक । बेवट* - स्त्री० विवशता, संकट । बेवपार* - पु० दे० 'व्यापार' | बेवपारी* - पु० दे० 'व्यापारी' ।
बेवरा* - पु० दे० 'ब्योरा' (बेवरे ) वार- वि० तफसील के
साथ |
बेवसाउ* - पु० दे० ३ 'व्यवसाय' ।
बेवस्था * - स्त्री० शास्त्रीय विधान; प्रबंध; स्थिति । बेवहरना * - स० क्रि० व्यवहार करना, बरतना । बेवहरिया* - पु० महाजन, साहूकार; मुनीम | बेवहार* - पु० दे० 'व्यवहार' |
बेवा - स्त्री० [फा०] विधवा, राँड़ ।
बेवाई - स्त्री० दे० 'बिवाई' ।
बेवान* - पु० दे० 'विमान' |
बेश - वि० [फा०] ज्यादा, अधिक । क़ीमत- वि० बहुमूल्य, दामी । - क्क़ीमती - वि० दे० 'बेशक़ीमत' । बेशी-स्त्री० अधिकता, वृद्धि; नफा । बेसंदर* - पु० वैश्वानर, अग्नि ।
बेसँभर, बेस भार* - वि० बेसुध, बेहोश | बेस - पु० दे० 'वेश' ।
बेसन - पु० मटर या चनेकी दालका आटा । बेसनी - वि० बेसनका बना हुआ । स्त्री० बेसनकी बनी
हुई पूरी
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बेसर - स्त्री० नाकका एक गहना, एक तरहका बुलाक । पु० गधा, खच्चर; एक अंत्यज जाति । * वि० दे० 'बे' में । बेसरा* - पु० एक शिकारी चिड़िया;खच्चर । वि० निराश्रय । बेसart - स्त्री० वेश्या, रंडी । पन- ५० वेश्यावृत्ति । बेसहना * - स० क्रि० खरीद करना, मोल लेना । बेसा* - स्त्री० वेश्या, रंडी ।
बेसारा* - वि० बैठनेवाला; रखने, जमानेवाला । बेसाहना * - स० क्रि० मोल लेना, खरीदना | बेसाहनी * - स्त्री० सौदा; खरीद | बेसाहा* - पु० सौदा; खरीदी हुई चीज । बेस्वा* - स्त्री० वेश्या ।
बेहँसना * - अ० क्रि० दे० 'विहँसना' |
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बेह - *पु० छेद । वि० [फा०] अच्छा, भला । -तरवि० अधिक अच्छा । अ० बहुत अच्छा, अच्छी बात है ( स्वीकृति सूचित करता है) । - तरी - स्त्री० भलाई, हित । - बूद, - बूदी - स्त्री० भलाई, हितः खुशहाली । बेहड़ - + वि० दे० ' बीहड़' । * पु० जंगल आदि विकट स्थान । बेहना - पु० धुनिया, जुलाहोंकी एक उपजाति । बेहर* - वि० स्थावर; विलग, जुदा । पु० बावली । बेहरना-अ० क्रि० फटना, दरार पड़ना । बेहरा* - वि० अलग, जुदा ।
बेहराना * - अ० क्रि० विदीर्ण होना, फटना । स० क्रि० फाड़ना, विदीर्ण करना ।
बेहरी । - स्त्री० चंद्रा ।
बेहु - पु० दे० 'बेह' ।
बेहून * - अ० बिना, बगैर । वि० विहीन ।
बैंक - पु० [अ०] लोगोंका रुपया जमा करने और माँगनेपर ब्याजसहित लौटा देनेका कारबार करनेवाली कोठी । बैंकर - पु० [अ०] महाजन ।
बैंगन - पु० दे० 'वेगन' ।
बैंगनी, बैजनी - वि० ३० 'बेगनी' । स्त्री० एक पकवान जो बैगनका टुकड़ा बेसनमें लपेटकर तेल में तलनेसे तैयार होता है ।
बेड़ा * - पु० दे० 'बेडा' ।
बैत, बैता* - पु० दे० 'चैत' |
बै - स्त्री० जुलाहोंकी कंघी; दे० 'वय' । - संधि - स्त्री० वयःसंधि |
-स्त्री० [अ०] खेत आदिकी ऐसी बिक्री जिसमें खरीदनेवालेका उस चीजपर स्थायी और पूर्ण अधिकार होता है । - नामा - पु० वह कागज जो बेचनेवाला खरीदनेवालेको लिखता है।
बैकना * - अ० क्रि० बहकना ।
बैकुंठ - पु० दे० 'वैकुंठ' |
बैखरी - स्त्री० दे० 'वैखरी' (वाक्शक्ति: चिल्लाहट) । बैखानस - पु० दे० 'वैखानस' |
बैग - पु० [अ०] बेग, थैला, बोरा । - पाइप - पु० मशकबीन । बैगन- पु० एक पौधा जिसका फल तरकारीके काम आता है, भंटा ।
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बैगनी - वि० बैगनके रंगका । पु० बैगनके रंगसे मिलता हुआ रंग । स्त्री० दे० 'बैंगनी' ।
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बैजंती-बोझ बैजंती, बैजयंती-स्त्री० दे० 'वैजयंती'।
बैदई-स्त्री० वैद्यका पेशा । बैज-पु० [अं॰] बिला।
बैदाई*-स्त्री० चिकित्सा, उपचार । बैट-पु० [अ०] गेंद खेलनेका बला ।
बैदेही-स्त्री० दे० 'वैदेही। बैटरी-स्त्री० [अं०] तोपखाना; रासायनिक पदार्थोंके योग- बैन*-पु० वचन, बोल। से विद्युत् उत्पन्न करनेका एक यंत्र ।
बैनतेय-पु० दे० 'वैनतेय', गरुड़ । बैठक-स्त्री. बैठनेका कमरा, चौपाल; बैठनेकी चीज, बैना-पु० दे० 'बायन'; दे० 'दा'। * स० क्रि० बोना। आसन; पेंदा; बैठनेका ढंग; बहुतसे लोगोंका किसी खास बैपारी-पु० दे० 'व्यापारी' । कामके लिए इकट्ठा बैठना, जमाव; जलसा, अधिवेशन; बैयर*-स्त्री० स्त्री। उठना-बैठना, सुहबत; मूर्ति या खंभेके नीचेका आधारबैयाँ*-अ० घुटनोंके बल । उठने-बैठनेकी कसरत; एक पेंच; बैठकी; एक तरहकी बैया*-पु० बैसर, कंघी; 1 छोटी ननद ।। पूजा, नियाज। -खाना-पु० बैठने, मिलने-जुलनेका बैरंग-वि० [अ० 'बेयरिंग'] (चिट्टी, पारसल आदि) जिसका कमरा । -बाज़-वि० धूर्त, शरारती।
महसूल भेजनेवालेने न चुकाया हो। मु०-लौटनाबैठका-पु० बैठने या मित्रोंसे मिलने-जुलनेका कमरा । । बिना काम हुए, विफल लौटना । बैठकी-स्त्री० उठने बैठनेकी कसरत; आसन; मेजपर रख· | बैर-पु० 'बेर' नामक फल; शत्रुभाव, दुश्मनी; विरोध, कर जलानेका लैप (टेबुल लैंप) ।
बुराई । मु.-काढ़ना,-लेना-बदला लेना ।-ठाननाबैठन-स्त्री० बैठनेकी क्रिया; बैठनेका ढंग, आसन । शत्रुता करना। -पढ़ना-कष्ट देना। बैठना-अ० क्रि० इस तरह स्थित होना कि चूतड़ जमीन | बैरक-पु० [अ०] झंडा, निशान ।
या किसी आसनपर टिका रहे और कमरसे ऊपरका धड़ बैरख*-पु० दे० 'बैरक'। उसके बल सीधा रहे, आसीन होना; चढ़ना, सवार रन, बैरिन-स्त्री० शत्रु स्त्री सौत । होना; इजलास करना; अपनी जगह पर ठीक आना, बैराखी-स्त्री. एक गहना, बरेखी । छोटा-बड़ा न होना (चूल, नग); (नस, जोड़का) बैराग, बैराग्य-पु० दे० 'वैराग्य' । अपनी जगह पर आ जाना; अँटना; धंसना, दबना | बैरागर*-पु० खानि ।। गिरना, ढहना (घर); तह में जमना; तौलमें ठहरना; बैरागी-पु० वैष्णव साधुओंका एक भेद । लगना, खर्च होना पड़ना, लगना (लाठी, डंडा); बैराना*-अ० क्रि० बातग्रस्त होना; दे० 'बौराना'। (स्त्रीका) रखेली बनना, घरमें पड़ना; बेकार रहना बैरी-वि०, पु० दुश्मन, विरोधी । डूबना, अस्त होना; काम बिगड़ना; सधना, मॅजना | बैल-पु० गो-जातिका नर जो अनेक देशों में कृषिका मुख्य (हाथ); अंडे सेना; (चावलका) सील खाकर थकासा हो आधार है । वि० मूर्ख, निर्बुद्धि (ला०)। ~गाड़ी-स्त्री० जाना । बैठा-ठाला-वि० बेकार, निठला। बैठा-भात- बैल द्वारा खींची जानेवाली गाड़ी। पु० पानी और चावलको एक साथ आगपर चढ़ाकर | बैसंतर, बैसंदर*-पु० वैश्वानर, अग्नि । पकाया हुआ भात । बैठी रोटी-स्त्री० बिना मेहनतकी बैस-स्त्री० वयस, उम्र, जवानी । मु०-चढ़ना-जवानी आमदनी (पेंशन आदि)। बैठे-बिठाये, बैठे-बैठे-अ० आना । अकारण; मुफ्त में अचानक ।
बैसना*--अ० क्रि० दे० 'बैठना'। बैठनि*-स्त्री. बैठनेकी क्रिया या तरीका ।
बैसर-पु० जुलाहोंका एक औजार, कंधी। बैठवाना-सक्रि० बिठाने, रोपनेका काम दूसरे से कराना। बैसवाडी-स्त्री० बैसवाड़की बोली, अवधीका एक भेद । बैठाना-स० वि० किसीको भूमि या आसनपर स्थित बैसाख-पु० चैतके बाद पड़नेवाला महीना, वैशाख । कराना, बैठनेको कहना स्थापित कराना; अपनी जगहपर -नंदन-पु० 'वैशाखनंदन', गधा। स्थित करना; सवार कराना; जमाना, जड़ना; अपनी बैसाखी-स्त्री० वह लाठी जिसे टेककर लँगड़े चलते हैं। जगहपर लाना (नस, जोड़); दबाना, पिचकाना (फोहा); वैशाखकी पूर्णिमा। रोपना, गाड़ना; घरमें डाल लेना; बेकार बना देना।
बैसाना, बैसारना -स० क्रि० दे० 'बैठाना' । बैठारना*-म० क्रि० दे० 'बैठालना'।
बैसिक-पु० दे० 'वैशिक' (वेश्यागामी)। बैठालना-स० वि० दे० 'बैठाना' ।
बैहर*-स्त्री० 'वायु'। * वि० डरावना। बैडाल-वि० [सं०] बिडाल-मंबंधी। -प्रतिक,-व्रती- बाँगना-पु० एक बरतन, बहुगुना। (तिन)-वि० धर्मका आडंबर करनेवाला, ढोंगी।
बौंडा-पु० बारूदमें आग लगानेकी रस्सी। बैढ़ना*-स० क्रि० दे० 'वेदना' ।
पोआई-स्त्री० बोनेका काम; बोनेकी उजरत । बैत-स्त्री० [अ०] शेर, पद्य । -बाज़ी-स्त्री० पद्य-पाठकी | बोआना-स० क्रि० बोनेका काम दूसरेसे कराना । प्रतियोगिता; अंत्याक्षरी ।
बोक*-पु० बकरा। बैतरनी-स्त्री० दे० 'वैतरणी' ।
बोझ-पु० भार, वजन; भारी लगनेवाली चीज; गठरी, बैताल-पु० वेताल; स्तुतिपाठक, भाट ।
गट्ठा; उतना भार, सामान जितना एक आदमी, बैल, बैतालिक-पु० दे० 'वैतालिक'।
घोड़ा आदि एक बारमें उठा सके, खेप; भारी लगनेवाला बैद-पु० दे० 'वैद्य'।
काम, आदमी; कार्यभार, जिम्मेदारी। मु०-उठाना
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बोझना - बौखलाना
कोई कठिन काम करनेका भार लेना । - उतरना - किसी कठिन कामसे फुरसत पाना; जी हलका होना । बोझना - स० क्रि० लादना, बोझ रखना । बोझल, बोझिल - वि० भारी, वजनदार । बोझा - पु० दे० 'बोझ' । बोझाई - स्त्री० बोझनेका काम; बोझनेकी उजरत । बोटी - स्त्री० मांसका छोटा टुकड़ा । मु०- बोटी फड़कना - अंग-अंग फड़कना, बहुत चुलबुलापन होना । बोड़ना * - स० क्रि० डुबाना |
बोड़ा - पु० अजगर; एक पतली, लंबी फली जो तरकारी बनाने के काम आती है, लोबिया, बरबटी (छत्तीस० ) । बोड़ी-स्त्री० दमड़ी; बहुत ही छोटी रकम; बौंडी । बोतल - स्त्री० काँचका बरतन जिसकी गरदन लंबी, पतली होती है। -वासिनी - स्त्री० शराब । मु० की बोतल चढ़ा जाना - बोतलको सारी शराब पी जाना । बोतली - स्त्री० छोटी बोतल । वि० बोतलके रंगका । बोदर* - स्त्री० लचीली छड़ी ।
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बोदा - वि० मोटी अलका, गावदी; दब्बू; सुस्त । पनपु० मोटी अक्लका होना; दब्बूपन ।
बोध - पु० [सं०] ज्ञान; जानकारी; जताना; सांत्वना, तसल्ली । - गम्य - वि० समझमें आने लायक । बोधक- वि० [सं०] बोध करानेवाला, जतानेवाला, सूचक । पु० शृंगार रसका एक हाव ।
बोधन - पु० [सं०] ज्ञान कराना, जताना; जगाना; उद्दीपन । बोधना* - स० क्रि० समझाना-बुझाना; जताना । बांधनीय - वि० [सं०] जताने, जगाने योग्य । बोधि - स्त्री० [सं०] समाधिका एक भेद; पीपलका पेड़ । - तरु, द्रुम, - वृक्ष - पु० गया में अवस्थित पीपलका पेड़ जिसके नीचे बुद्धको बुद्धत्व की प्राप्ति हुई । -सत्व - पु० बुद्धत्व प्राप्तिका अधिकारी जो अभी उस पदपर पहुँच न पाया हो, युद्धविशेष |
बोधि-वि० [सं०] जिसे बोध कराया गया हो । बोधितव्य - वि० [सं०] जताने योग्य; समझाने योग्य । बोध्य - वि० [सं०] जानने योग्य; जताने योग्य । बोना - स० क्रि० बीज जमीन में डालना, बिखेरना । बोनी - स्त्री० बोनेकी क्रिया; बोनेका मौसम । बोबा* - पु० स्तन; गठरी; घरकी चीज वस्तु । बोय * - स्त्री० दे० 'बू' ।
बोर+ - स्त्री० बोरने, डुबानेकी क्रिया, डोब ।
बोरका, बोरिकrt - पु० दावात ।
बोरना* - स० क्रि० डुवाना; डुबाकर तर करना; रँगना; मिलावट करना; चौपट करना, नाश करना (कुल प्रतिष्ठा) । बोरसी + - स्त्री० अँगीठी ।
बोरा - पु० टाटका बना बड़ा थैला जिसमे अनाज आदि रखते या भरकर अन्यत्र भेजते, ले जाते हैं; घुँघरू । बोरिया - स्त्रो० छोटा बोरा । पु० [फा०] खजूर के पत्तोंकी चटाई। मु० - बँधना उठाना या समेटना - चल देना, रास्ता लेना । - सम्हालना - चलनेकी तैयारी करना । बोरी - स्त्री० छोटा बोरा । बोर्ड - पु० [अ०] लकड़ीका तख्ता; दफ्ती; कमेटी, मंडल;
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५८६
कार्य- विशेषके लिए स्थापित (सरकारी) मंडल, विभाग (रेलवे बोर्ड); म्युनिसिपल बोर्ड; जिला बोर्ड ।
बोल - पु० वचन, जो कुछ बोला जाय, बात; शब्द; गीतका • टुकड़ा जो गाया या बजाया जाय; किसी बाजेकी ध्वनि; ताना; संख्याः प्रतिज्ञा । - चाल-स्त्री० बातचीत; साधारण व्यवहारकी भाषा, रोजके बोलनेका ढंग; बातचीतका संबंध ( - बंद होना ) । पट ५० वह चित्रपट जिसमें पात्रोंके बोलने, गाने आदिकी आवाज सुनाई दे, सवाक चित्र | मु० - बाला होना - बढ़ती चढ़ती होना; मानप्रतिष्ठा अधिक होना । - मारना - ब्यंग्य करना । बोलता - वि० बोलता हुआ; वाचाल; सजीव, सप्राण । पु० प्राण; आत्मा ।
बोलती - वि० स्त्री० बोलती हुई । स्त्री० बोलनेकी शक्ति । मु० - बंद होना - बोल न सकना; लज्जा या दुःख के अतिरेक से मुँह से बोल न निकलना । बोलनहार* - पु० आत्मा, बोलता ।
बोलना - अ० क्रि० मुँहसे शब्द, आवाज निकालना; शब्द करना (वाजे, पेट आदिका); चटखना (लकड़ी); रोक-टोक करना; भाषण करना । स० क्रि० कहना; आज्ञा देना; जवाब देना; * बुलाना, पुकारना; बुलवाना; * जानना; छेड़छाड़ करना । मु० बोल जाना-खतम हो जाना; जवाब देना, कामके लायक न रहना; हिम्मत हार देना । बोलि पठाना* - बुला भेजना । बोलवाना-स० क्रि० कहवाना; दे० 'बुलवान!' | बोलसर - पु० मौलसिरी; एक तरहका घोड़ा । बोलाचाली | - स्त्री० बातचीत; बातचीतका संबंध । बोलावा - पु० दे० 'बुलावा' ।
बोली- स्त्री० बोल, वचन, भाषा, बोलचाल; नीलामकी आवाज, खरीदारकी ओर से लगाया गया चीजका दाम; व्यंग्य, फबती; पशु-पक्षियोंकी आवाज । - ठोली- स्त्री० व्यंग्य, कटाक्ष (-मारना) । - दार पु० वह असामी जिसे खेत बिना लिखा पढ़ी के दिया गया हो । मु०कसना - दे० 'बोली मारना' । -बोलना- व्यंग्य करना, फबती कसना; नीलाम में चीजके दाम लगाना। -मारना - ताने देना, आवाजें कसना ।
बोवाई - स्त्री० दे० 'बोआई' ।
बोवाना - स० क्रि० बोआना, बोनेका काम दूसरे से कराना । बोह* - स्त्री० डुबकी ।
बोहनी - स्त्री० पहली बिक्री ।
बोहित, बोहिथ * - पु० नाव, जहाज । बोहित्थ - पु० दे० 'वोहित्थ' ।
बाँड़ * - स्त्री० लंबी टहनी; लता ।
बाँड़ना * - अ० क्रि० टहनी फेंकना; दूरतक फैलना; आगे बढ़ना; लिपटना ।
बौंडर* - पु० दे० 'बवंडर' ।
बड़ी - स्त्री० कच्चा, छोटा फल, ढोढी; फली; दमड़ी, छदाम । बौआना। - अ० क्रि० सपने में प्रलाप करना । बौखल - वि० बदहवास, विक्षिप्त ।
बौखलाना - अ० क्रि० होश- हवास में न रहना, विक्षिप्तकेसे काम करना; क्रोधसे पागल हो उठना ।
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बौखलाहट-ब्रह्म बौखलाहट-स्त्री० बदहवासी, विक्षिप्तता; क्रोधावेश । ब्याली-स्त्री० सर्पिणी। वि० सर्पधारण करनेवाला । पु० बौछाड़-स्त्री० दे० 'बौछार'।
शिव । बौछार-स्त्री० हवाके झोंकेसे तिरछी होकर गिरनेवाली | ब्यालू-पु० रातका भोजन ।
बँदें; वर्षा, झड़ी; भरमार । (करना, पड़ना, होना)। ब्याव*-पु० ब्याह । बौड़ना-अ० क्रि० मतवाला होना।
ब्याह-पु. विवाह, पाणिग्रहण । बौड़म-वि० मूर्ख, नासमझ पागल | पु० पागल आदमी। ब्याहता-वि० विवाहित; जिसके साथ ब्याह हुआ हो। बौड़हा-वि०, पु० दे० 'बौड़म' ।
वी० विवाहिता पत्नी। बौद्ध-वि० [सं०] बुद्धि-संबंधी; बुद्ध-संबंधी। पु० बुद्ध- | ब्याहना*-स० कि. किसीको विधिवत् पति या पत्नी प्रवर्तित धर्मका अनुयायी । -धर्म,-मत-पु० बुद्ध द्वारा बनाना; ब्याह करना (बेटे या बेटीका)। प्रवर्तित धर्म।
ब्योच-स्त्री० मोच । बौना-पु० बहुत छोटे या ठिंगने कदका आदमी, वामन । | ब्याँचना-अ० क्रि० हाथ, पैर आदिके एकाएक मुड़ जानेसे बोर-पु० आमकी मंजरी, मौर।
नसका हट जाना, मोच आना। बौरई।-स्त्री० पागलपन ।
ब्यौत-स्त्री० कपड़ेकी काट, काट-छाँट; ढंग, ढब; युक्ति, बोरना-अ० क्रि० आममें बौर लगना, आमका फूलना। उपाय; प्रबंध; योजना; किफायतसारी; * वृत्तांत, हाल बौरहा*-वि०, पु० बौड़म, पागल ।
--'बलि वामनको ब्योंत सुनि को बलि तुमहिं पत्याय'-बि०। बौरा-वि० पागल; भोला-भाला; गूंगा।
मु०-बनना-उपाय होना, हौल निकलना। बोराई*-स्त्री० बावलापन ।
ब्यातना-सक्रि० सिलाईके लिए कपड़ेको नापसे काटना। बौराना*-अ० कि० बावला, पागल हो जाना । स० क्रि० ब्योतना-स० कि० दे० 'ब्यों तना' । उन्मत्त करना; बहकाना।
ब्योताना-स० क्रि० कपड़ेको नापके अनुसार (दरजीसे) बौराह-वि० दे० 'बावला'।
कटवाना। बौरी*-वि० स्त्री० बावली, पगली
व्योपार-पु. व्यापार । बौलसिरी-स्त्री० मौलसिरी ।
व्योपारी-पु० व्यापारी। बौहर-स्त्री० वधू, दुलहिन ।
ब्योरन*-स्त्री० ब्योरने अर्थात् बालोंको सुलझाने, सँवारनेव्यंग-पु० चुटकी, ताना; गूढार्थ ।
की क्रिया या ढंग। ब्यंजन-पु० दे० 'व्यंजन'
ब्योरना* - स० क्रि० गुंथे हुए बालों, तारों आदिको अलगब्यक्ति-स्त्री०, पु० दे० 'व्यक्ति'।
अलग करना, सुलझाना-'बैठी ब्यौरति बार'-बि०। ब्यजन-पु० दे० 'व्यजन'।
ब्योरा-पु० एक-एक बातको अलग-अलग कहना, विवरण, व्यतीतना-*---अ० कि० व्यतीत होना, गुजरना । तफसील; हाल; अंतर । (ब्योरे)वार-अ० तफसीलके व्यथा-स्त्री० दे० 'व्यथा'।
साथ, विस्तारपूर्वक । ब्यलीक-वि०, पु० दे० 'व्यलीक' ।।
व्योसाय-पु० दे० 'व्यवसाय' । ब्यवहरिया-पु० व्यवहार, लेन-देन करनेवाला। ब्योहर-पु० रुपयेका देन-लेन, व्यवहार । मु०-चलनाव्यवहार-पु० व्यवहार, बर्ताव रुपयेका लेन-देन; मुकदमा; महाजनीका कारबार होना। शादी-गमीमें शरीक होनेका संबंध ।
ब्योहरा, ब्योहरिया-पु० रुपयेका देन-लेन करनेवाला, ब्यवहारी-वि० व्यवहार, देन-लेन करनेवाला; व्यापारी महाजन । जिसके साथ मैत्री-संबंध हो।
ब्योहार, ब्यौहार-पु० दे० 'व्यवहार' । ब्यसन-पु० दे० 'व्यसन'।
ब्योहरिया-पु० दे० 'ब्यवहरिया। व्याज-पु० सूद; दे० 'व्याज'। -खोर-पु० सूद खाने- बंद*-पु० वृंद, समूह । वाला । -बट्टा-पु० नफा-नुकसान ।
ब्रज-पु० दे० 'व्रज' । -भाषा,-मंडल,-राज-दे० ब्याजू-वि० सूदपर दिया हुआ (रुपया)।
'व्रज' में। ब्याध, व्याधा-पु० दे० 'व्याध ।
ब्रजना*-अ० क्रि० जाना, गमन करना। ब्याधि-स्त्री० दे० 'व्याधि' ।
ब्रह्मड-पु० ब्रह्मांड। व्याना-सक्रि० (पशुका) जनना । अ० क्रि० बच्चा देना। ब्रह्म(न)-पु० [सं०] सच्चिदानंदस्वरूप जगत्को मूल व्यापक-वि० दे० 'व्यापक' । * स्त्री० व्यापकता । तत्त्व हिरण्यगर्भ; वेद; सत्या तत्त्वा प्रणव ब्रह्मा (समासब्यापना-अ० क्रि० व्याप्त होना। स० क्रि० पकड़ना, में); ब्राह्मण; तपस्या; ब्रह्मचर्य। -कन्यका,-कन्याग्रसना ।
स्त्री० सरस्वती; ब्राह्मी बूटी । -कर्म(न्)-पु० ब्राह्मणके ब्यापार-पु० दे० 'व्यापार'।
कर्तव्य कर्म; वेदविहित कर्म । -कल्प-पु० ब्रह्माकी ब्यापारी-पु० दे० 'व्यापारी'।
आयु । वि० ब्रह्माके तुल्य । -गाँठ-स्त्री० [हिं०] जनेऊब्यार, ब्यारि-स्त्री० हवा, 'बयारी'।
की मुख्य गाँठ। -ग्रह-पु० ब्रह्मराक्षस । -घातक,ब्यारी-स्त्री० दे० 'ब्यालू'।
घाती(तिन्)-पु. ब्राह्मणकी हत्या करनेवाला । ब्याल-पु० दे० 'व्याल' (साँप हाथी; दुष्ट)।
-घातिनी-वि०, स्त्री० ब्राह्मणकी हत्या करनेवाली।
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ब्रह्म-ब्राह्मी
५८८ स्त्री० ऋतुके दूसरे दिन रजस्वलाकी संज्ञा । -घोष-पु० ब्रह्मण्य-वि० [सं०] ब्रह्म-संबंधी; ब्राह्मणनिष्ठ; ब्राह्मणोंके वेदपाठ; वेद । -धन-पु० ब्रह्महत्या करनेवाला ।-चर्य- योग्य; धार्मिक । पु० ब्रह्मतेज; नारायण; कार्तिकेय । पु० अष्टविध मैथुनसे बचनेका व्रत, वीर्यरक्षा; उपनयनके ब्रह्मत्व-पु० [सं०] ब्रह्मभाव; ब्राह्मणत्व । अनंतर गुरुकुलमें रहकर द्विज बालकके वेदाध्ययनका ब्रह्मर्षि-पु०[सं०] वसिष्ठ आदि मंत्रद्रष्टा ऋषि प्राह्मण ऋषि । काल; वर्णाश्रमी हिंदू के लिए विहित चार आश्रमों से ब्रह्मांड-पु० [सं०] अंडाकार भुवनकोप जिससे मनुस्मृति पहला; ब्रह्मके साक्षात्कारकी साधना। -चारिणी-स्त्री० आदिके अनुसार, पितामह ब्रह्माकी उत्पत्ति हुई, विश्वब्रह्मचर्य धारण करनेवाली; दुर्गा; ब्राह्मी बूटी। -चारी- गोलक, संपूर्ण विश्व; खोपड़ीके ऊपरका बीचवाला भाग। (रिन्)-पु० ब्रह्मचर्य व्रत धारण करनेवाला; गुरुकुलमें ब्रह्मा (मन्)-पु० [सं०] हिंदूधर्ममें माने हुए त्रिदेवमेंसे रहकर ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए वेदाध्ययन करनेवाला। प्रथम जिसे सृष्टि-रचनाका काम सौंपा गया है, विरंचि । -ज्ञ-वि• ब्रह्मको जाननेवाला, शानी। -ज्ञान-पु० | ब्रह्माणी-स्त्री० [सं०] ब्रह्माकी शक्ति; ब्रह्माकी पली; ब्रह्मको जानना, परमतत्त्वका ज्ञान । -ज्ञानी(निन्)- सरस्वती। वि० ब्रह्मको जाननेवाला। -तस्व-पु० ब्रह्मका सच्चा ब्रह्मानंद-पु०[सं०] ब्रह्मस्वरूपके साक्षात्कारका आनंद । शान । -तेज(स)-पु० ब्रह्मका तेज; ब्राह्मणका तेज; ब्रह्माभ्यास-पु० [सं०] वेदाध्ययन । ब्रह्मचर्य या ब्रह्मज्ञानका तेज । -दंड-पु. ब्राह्मणका ब्रह्मार्पण-पु० [सं०] परमात्माको सर्वकर्मफलका समर्पण । अभिशाप; ब्रह्मचारीका डंडा ।-दूषक-वि० वेदकी निंदा |
| ब्रह्मावर्त-पु० [सं०] सरस्वती और दृपद्धती नदियोंके करनेवाला । -देय-पु० ब्राह्मणको दान की हुई चीज । बीचका देश । -दोष-पु० ब्रह्महत्या ।-द्रोही(हिन्)-वि० ब्राह्मण- | ब्रह्मासन-पु० [सं०] ब्रह्मके ध्यानके उपयुक्त माना जाने. द्रोही । -द्वार-पु० ब्रह्मरंध्र । -द्विट(प), द्वेषी- वाला एक आसन । (पिन् )-वि० ब्राह्मणद्वेषी; वेदनिंदक । -द्वेष-पु० | ब्रह्मास्त्र-पु० [सं०] ब्रह्मशक्तिसे परिचालित अमोघ माना बाह्मण या वेदके प्रति द्वेष । -नाम-पु० विष्णु । जानेवाला एक अस्त्र । -निष्ठ-वि• ब्रह्मचिंतन में डूबा रहनेवाला। -पद- ब्रह्मोपदेश-पु० [सं०] वेद, ब्रह्मज्ञानकी शिक्षा। पु० ब्रह्मत्व, मुक्ति; ब्राह्मणका पद । -पारायण-पु० बात*-पु० दे० 'व्रात्य' । संपूर्ण वेदोंका अध्ययन संपूर्ण वेद । -पाश-पु० ब्रह्म- ब्राह्म-वि० [सं०] ब्रह्मा-संबंधी; ब्रह्मा-संबंधी; ब्राह्मण-संबंधी; शक्तिसे परिचालित पाश । -पिशाच-पु० ब्रह्मराक्षस ।। वैदिक; जिसके अधिष्ठाता ब्रह्मा हों (-मुहूर्त )। पु० -पुत्र-पु० ब्रह्माका पुत्र (नारद, वसिष्ठ, मनु, मरीचि, स्मृत्युक्त आठ प्रकारके विवाहोंमेंसे एक जिसमें कन्या सनकादि); एक नद जो मानसरोवरसे निकलकर बंगाल- वस्त्राभूषण सहित वरको, उससे कुछ लिये बिना, दान की की खाड़ीमें गिरता है। -पुत्री-स्त्री० सरस्वती; सरस्वती जाती है, कन्यादान-विवाह । -धर्म-पु० राजा रामनदी। -पुर-पु० ब्रह्मलोक; हृदय; शरीर। -पुराण- मोहन रायका चलाया हुआ एकेश्वरवादी धर्म ।-पुराणपु०१८ महापुराणोंमेंसे एक । -पुरी-स्त्री० वाराणसी; पु. ब्रह्मपुराण । -मुहूर्त-पु० रातके पिछले पहरके ब्रह्मलोक । -फाँस-स्त्री० [हिं०] ब्रह्मपाश। -बल- अंतिम दो दंड । -विवाह-पु० कन्यादान विवाह । पु० तपस्या आदिसे प्राप्त शक्ति। -भाव-पु० ब्रह्म में -समाज-पु० राजा राममोहन रायका चलाया हुआ लय होना। -भूत-वि० जो ब्रह्ममें लीन, ब्रह्मरूप हो एकेश्वरवादी पंथ । गया हो। -भोज-पु० ब्राह्मणभोजन । -मुहर्त-पु० ब्राह्मण-पु० [सं०] हिंदू धर्मके माने हुए चार वर्णों या दे० 'ब्राह्ममुहूर्न'। -यज्ञ-याग-पु० वेद पढ़ना- लोक-विभागों में से पहला; उस वर्णका जन, अग्रजन्मा; पढ़ाना। -रंध्र-पु० मस्तकके मध्य में माना जानेवाला। पुरोहित वेदका मंत्र या संहितासे भिन्न विभाग। एक छेद जिससे होकर प्राण निकलनेसे ब्रह्मलोककी प्राप्ति -द्वेषी(पिन)-वि. ब्राह्मणसे द्वेष करनेवाला । - होना माना जाता है। -राक्षस-पु. प्रेतयोनि प्राप्त प्रिय-पु० विष्णु । -भोजन-पु० अनेक ब्राह्मणोंको करनेवाला ब्राह्मण; शिवका एक गण । -रेखा,-लेखा- एक साथ निमंत्रित कर खिलाना। -वध-पु० ब्राह्मणकी स्त्री० जीवके मस्तकपर ब्रह्मा द्वारा लिखित भाग्य
हत्या। लेख । -लिखित,-लेख-पु० भाग्यलेख। -लोक- ब्राह्मणक-पु० [सं०] ब्राह्मणके कर्म न करनेवाला, कुत्सित पु० ब्रह्माका लोक । -वादी (दिन)-वि० वेद । ब्राह्मण; ऐसा ब्राह्मण कुल । पढ़ने पढ़ानेवाला; वेदांती । -विद्-वि० ब्रह्मको | ब्राह्मणव-पु० [सं०] ब्राह्मणपन या ब्राह्मणका पद, भाव जाननेवाला; वेदार्थज्ञाता । -विद्या-स्त्री० ब्रह्मशान, या धर्म । अध्यात्मविद्या; दुर्गा। -वेत्ता (त्त)-वि० ब्रह्मविद् , ब्राह्मणी-स्त्री० [सं०] ब्राह्मणकी पत्नी, ब्राह्मण स्त्री; बुद्धि ब्रह्मज्ञानी । -वेदी (दिन)-वि० ब्रह्मविद् ।-शासन- छिपकलीकी जातिका एल छोटा जंतु, बम्हनी । पु० वेदका अनुशासन, आशा ब्राह्मणकी आशा।-समाज- ब्राह्मण्य-पु० [सं०] ब्राह्मणका धर्म, ब्राह्मणत्व ब्राह्मणोंका पु० दे० 'ब्राह्मसमाज' -सुता-स्त्री० सरस्वती।-स्व- समूह शनि ग्रह । वि० ब्राह्मणके योग्य, अनुरूप । पु० ब्राह्मणका धन । -स्वहारी(रिन)-वि० ब्राह्मणका । ब्राह्मी-स्त्री० [सं०] ब्रह्माकी शक्ति सरस्वती, वाणी; दुर्गा; धन चुरानेवाला। -हत्या-स्त्री० ब्राह्मणका वध जिसे रोहिणी नक्षत्र; ब्राह्मविधिसे विवाहिता स्त्री; वह प्राचीन मनुने महापातक बताया है।
लिपि जिससे देवनागरी और अन्य आधुनिक भारतीय
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ब्रिटिश-भंवरी लिपियोंकी उत्पत्ति हुई; एक प्रसिद्ध बूटी जो आयुर्वेदमें | ब्रीड़ना*-अ० क्रि० लज्जित होना। बुद्धिवर्द्धक मानी गयी है।
ब्रीवियर-पु० [अं०] छापेके अक्षरों (टाइप)का एक भेद । ब्रिटिश-वि० [अं०] ब्रिटेनका, अंग्रेजी । -राज-पु० ब्रेक-पु०[अं०] पहिये या गतिचक्रकी गति रोकनेवाला यंत्र; अंग्रेजी हुकूमत ।
(गार्डका ) डब्बा जिसमें ब्रेक लगा हो। मु०-लगाना ब्रिटेन-पु० [अं॰] इंग्लैंड, वेल्स और स्काटलैंड ।
-गाड़ी आदिको रोकनेके लिए ब्रोकको दबाना । ब्रीड़-पु०, ब्रीड़ा-स्त्री० दे० 'नीट' ।
ब्लाउज-पु० [अं०] विलायती ढंगकी जनाना कुरती ।
भ-देवनागरी वर्णमालाका चौबीसवाँ व्यंजन वर्ण । भंटा-पु० बैगन । भंकार-धु० भीषण शब्द भनभनाहट ।
भंड-पु० [सं०] भाँड़, अश्लील बातें बकनेवाला; * पात्र । भंग-पु० [सं०] टूटना, खंडित होना; खंड,विघटनध्वंस, वि० अश्लील बातें कहनेवाला; पाखंडी। नाश (राज्यभंग, सत्त्वभंग); पराजय; संकोच; लहर; | भँढताल, मँडतिल्ला-पु० नाचके साथ होनेवाला एक झुकाव अस्वीकार ग्रास; टेढ़ापन; छल; कुटिलता; बाधा; तरहका गाना। भय; सोता; लकवा । स्त्री० [हिं०] भाँग। -घुटना-पु० भंडना-स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'भाँड़ना' । भाँग घोटनेका सोंटा। -फरोश-पु० भाँग बेचनेवाला। मंडरिया-स्त्री० दीवार में बनी हुई छोटी आलमारी। भंगड़-वि० बहुत भाँग पीनेवाला, भंगड़ी।
मँडरिया-पु० दे० 'भर' । वि० पाखंडी; धूर्त । -पनभंगना-अ० क्रि० टूटना; पराजित होना। स० क्रि० पु० धूर्तता, पाखंड । तोड़ना; नष्ट करना।
भंडसार भड़साला-स्त्री० खत्ती। भैंगरा-पु० एक बूटी, भंगरैया; दे० 'भँगेरा।
भंडा-पु० भाँडा, बरतन; रहस्य । -फोड़-पु० भेद, भंगराज-पु० एक चिड़िया; भंगरा।
छिपी बातका प्रकट हो जाना । मु०-फूटना-भेद खुलना। भैगरैया-स्त्री० मुंगराज ।
भंडाना*-स० कि० चीजोंको तोड़ना-फोड़ना; उछल-कूद भंगार-पु० दे० 'भगाड़' । स्त्री० कूड़ा-करकट, कतवार,- मचाना हूँढ़ना । 'बाहर भेष बनाइया भीतर भरी भँगार'-साखी । | भंडार-पु० ढेर, खजाना; वह स्थान जहाँ घरका अन्नादि भंगि, भंगी-स्त्री० [सं०] टेढ़ापन, कुटिलता; लहर रखा जाय, कोठार; पाकशाला; पेट; अग्निकोण । विच्छेद दंगा वेश-विन्यास; बहाना; छल; व्यंग्य; विनय । | भंडारा-पु० साधुओंका भोज; पेट; भंडार; * समूह । भंगिमा(मन्)-स्त्री० [सं०] वक्रता, कुटिलता। मु०-खुल जाना-पेट फटकर आँतोंका बाहर निकल भंगी-पु० मेले, कूड़ा-करकटकी सफाई करनेवाली एक आना। जाति; उस जातिका व्यक्ति; दे० 'भंगि' । वि० भाँग भंडारी-पु. भंडारका अध्यक्ष, तोशाखानेका दारोगा; छाननेवाला।
रसोइया; * खजांची। स्त्री० दीवार में बनी छोटी आलभंगी(गिन्)-वि० [सं०] भंग हो जानेवाला, नाश- | मारी; छोटी कोठरी; * कोश, खजाना । वान् ; * भंग करनेवाला।
भैडिहा*-पु० चोर। भंगुर-वि० [सं०] भंग होनेवाला; अधिक दिन न टिकने- भेंदुआ-पु० दे० 'भडुआ' । वाला; टेढ़ा, कुटिल; छली।
भँडेरिया*-पु० दे० 'मँडरिया' (पु०); पंडेका नौकर । भगेड़ी-वि० भाँग पीनेका आदी, बहुत भाँग पीनेवाला। मैंडीआ-पु. हास्यरसकी भद्दी कविता, भाँडोंके गानेका भंगेरा, भगेला-पु० भाँगके रेशेका बना हुआ कपड़ा। । गीत । भंजक-वि०, पु० [सं०] भंग करनेवाला, तोड़नेवाला। मभाना-पु० गाय, बैल आदिका जोरसे बोलना, रंभाना । भंजन-पु० [सं०] भंग करना; तोड़ना; ध्वंस, नाश करना; | भभीरी-स्त्री० एक तरहवा फतिंगा: फिरैरी, फिरकी। दंतक्षय । वि० भंग करनेवाला; पीड़ा देनेवाला ।-शील- भंभेरि*-स्त्री० भय, डर । वि० (ब्रिटिल) (ठोस) जो गिर जानेपर या पीटे जानेपर | भँवना-अ० क्रि० घूमना चक्कर लगाना, मँडराना। टूट जाय, टुकड़े-टुकड़े हो जाय । -शीलता-स्त्री० भँवर-पु० भ्रमर; जलावर्ती गड्ढा । -कली-स्त्री० कील(ब्रिटिलनेस) गिर जानेपर टुकड़े-टुकड़े हो जानेका ठोस में जड़ी हुई वह कड़ी जो सब ओर घूम सके (यह प्रायः पदार्थों का गुण या क्रिया, दरकीलापन ।
पशुओं के गलेकी जंजीर में लगायी जाती है)। -जालभंजना-स्त्री० [सं०] टूटना, बिखरना, नाश; पीड़ा; बाधा पु० सांसारिक झंझट । -भीख-स्त्री० घूम-फिरकर माँगी डालना । * स० क्रि० तोड़ना।
जानेवाली भीख, मधुकरी । मु०-मैं पड़ना-चक्कर, भंजना-अ० कि० भँजाया जाना: भाँजा जाना; बटा जाना।। बखेड़ेमें पड़ना, घबड़ा जाना। भैजाई-स्त्री० भाँजनेकी क्रिया या उजरत; नोट आदि | भवरा-पु० भ्रमर, भौरा; लटटू ।। भुनानेके लिए दी जानेवाली रकम ।
भंवरी-स्त्री० जलका चक्कर, भँवर, सिर, डाढी तथा भैजाना -स०नि० तुड़वाना; भुनाना (सिक्केका); मैंज- पशुओंकी पीठ आदिपर बालोंका एक केंद्रपर घुमाव; वाना (रस्सी आदिका)।
भॉवर, परिक्रमा गश्त; घूम-घूमकर सौदा बेचना।
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भवाना-भगेड़
५९० भवाना-स० क्रि० घुमाना; फेरमें डालना, भ्रममें भक्षित-वि० [सं०] खाया हुआ। -शेष-पु० जूठन । डालना।
भक्षी (क्षिन)-वि० [सं०] खानेवाला । भँवारा*-वि० घूमनेवाला, भ्रमणशील ।
भक्ष्य-वि० [सं०] खाने योग्य । पु. वह जो खाया जाय, भ-पु० [सं०] नक्षत्र; ग्रह; शुक्राचार्य; राशि: शुक्र । आहार ।
कक्षा-स्त्री० नक्षत्रोंका गमनमार्ग।-कूट-पु० राशियों- भक्ष्याभक्ष्य-वि० [सं०] खाद्य-अखाद्य (पदार्थ)। का समूह जिससे विवाहकी गणनामें वर-कन्याका शुभा- भख*-पु० भक्ष्य, आहार । शुभ जाना जाता है। -गण-पु० छंदःशास्त्र में माना भखना*-सक्रि० खाना, भक्षण करना। हुआ एक गण जिसमें आदि वर्ण गुरु और अंतके दो लधु भगंदर-पु० [सं०] गुदावर्तके किनारे होनेवाला फोड़ा जो होते हैं; राशिचक्र । -गोल-पु० नक्षत्रोंका गमनमार्ग। फूटनेपर नासूर हो जाता है। -चक्र-पु० राशिचक्र; नक्षत्रचक्र । -मंडल,-वर्ग- | भग-पु० [सं०] सूर्य, चंद्रमा; द्वादश आदित्योंमेंसे एक पु० दे० 'भचक्र'।
ईश्वरकी ६ विभूतियाँ-ऐश्वर्य (अणिमादि); सौभाग्य; माहाभहया-पु० भाई; बड़े भाई या बराबरवालेका संबोधन । | त्म्य; इच्छा; कांति; मोक्ष; योनि । -जी-पु० नौकर मालिकके सामने बेटे या नवयुवक भगत-वि० भक्त, भगवद्भजनमें लगा रहनेवाला; निरामालिकको इस शब्दसे संबोधित करते हैं।
मिषभोजी । पु० वैष्णव साधु; राजपूतानेकी एक जाति, भउजाई-स्त्री० दे० 'भौजाई।
भगतिया होलीमें बनाया जानेवाला एक तरहका स्वाँग । भकभकाना-अ० क्रि० 'भक-भक' शब्द करके जलना या | -बछल*-वि० दे० 'भक्तवत्सल'। रह-रहकर चमकना।
भगति, भगती*-स्त्री० दे० 'भक्ति। भकाऊँ-पु० डरावनी चीज, होआ(बच्चोंको डरानेके लिए)। भगतिया-पु० राजपूतानेमें बसनेवाली एक जाति जो भकुआ, भकुवा-वि० मूढ, हतबुद्धि, जिसकी अकिल गुम | गाने-बजानेका पेशा करती है। हो गयी हो।
भगदड़, भगदर-स्त्री० बहुतसे लोगोंका बदहवास होकर भकुआना, भकुवाना-अ० क्रि० भकुआ बनना; चिढ़ना।। एक साथ भागना (पड़ना, मचना) । स० कि० चकपका देना।
भगन* --वि० दे० 'भग्न' । भकूट-पु० [संध] दे० 'भ'के साथ ।
भगना-पु० भानजा। अ० कि० दे० 'भागना'। भकोसना-स० कि० भक्षण करना; जल्दी-जल्दी खाना, भगनी-स्त्री० दे० 'भगिनी' । हूँसना ।
भगर*-पु० दे० 'भगल'। भकोसू-वि० भकोसनेवाला ।
भगरना-अ० कि० खत्तेमें रखे हुए अनाजका गरमीसे भक्त-वि० [सं०] अनुरागी, वफादार; अनुगत; भक्तियुक्त | सड़ने लगना। विभाजित; चाहा हुआ; पूजित पकाया हुआ। पु० भगल*-पु० छल, धोखेवाजी बाजीगरी; जादू । भोजन; अन्न; भात; भाग; उपासक, सेवक । -कार-पु० | भगली-वि० छली, बाजीगर । रसोइया । -दास-पु. वह दास जिसे श्रमके बदले में भगवंत*-वि० दे० भगवान्। मालिकसे केवल भोजन मिलता रहे । -बच्छल*-वि० भगवती-स्त्री० [सं०] दुर्गा, लक्ष्मी देवी; सम्मान्य स्त्री। दे० 'भक्तवत्सल'। -मंड,-मंडक-पु० भातका माँड़। भगवदीय-पु० [सं०] भगवद्भक्त । वि० भगवानसंबंधी । -वत्सल-वि० भक्तको प्यार करनेवाला, भक्तके प्रति भगवद्भक्ति-स्त्री० [सं०] भगवान्की भक्ति। स्नेहयुक्त। -शाला-स्त्री० भोजनशालाधर्मोपदेशका भगवा-पु० एक रंग, कषाय; इस रंगमें रंगा हुआ वस्त्र । स्थान ।
भगवान (वत्)-वि० [सं०] ऐश्वर्यादि षड्भगयुक्त भक्ताई*-ली. भक्ति।
पूज्य । पु० परमेश्वर; विष्णु, शिव; बुद्ध; जिन; पूज्य, भक्ति-स्त्री० [सं०] सेवा, आराधना; ईश्वर या पूज्य व्यक्ति- महिमाशाली पुरुष। के प्रति अत्यनुराग श्रद्धा विभाग विभागरेखा ।-गम्य- भगाई-स्त्री० भागनेकी क्रिया। वि० सेवासे प्राप्य (शिव)। -पूर्वक-अ० भक्तिसहित । भगाड-पु० जमीन धंसने या कुआँ बैठ जानेसे बना गढ़ा। -प्रवण-वि० भक्तिमें लीन। -भाजन-वि० भक्तिके | भगाना-स० क्रि० डरा-धमकाकर भागनेको विवश करना, योग्य, श्रद्धेय । -मार्ग-पु० मोक्षप्राप्तिके तीन मार्गों में से | खदेड़ना, दुतकारना; स्त्री, बच्चे आदिको बहकाकर साथ एक। -योग-पु० भक्तिरूप योग, भक्तिके द्वारा भगा ले जाना । अ० क्रि० भागना। वान्को पानेकी साधना।
भगिनिका-स्त्री० [सं०] बहिन । भक्तिमान् (मन्)-वि० [सं०] भक्तियुक्त । . भगिनी-स्त्री० [सं०] बहिन, सहोदरा; भाग्यवती स्त्री। भक्ष-पु० [सं०] भोजन; खाना, भक्षण । -कार-पु० -पति-भर्तात)-पु० बहनोई ।-सत-पु० भांजा। हलवाई रसोइया ।
| भगीरथ-पु० [सं०] सूर्यवंशी राजा दिलीपके पुत्र जो भक्षक-वि० [सं०] खानेवाला, भक्षण करनेवाला; पेटू ।। कहा जाता है कि घोर तप करके गंगाको स्वर्गसे पृथ्वीपर भक्षण-पु० [सं०] खाना भोजन करना ।
लाये । -कन्या-स्त्री. गंगा ।-प्रयत्न-पु० महाप्रयास, भक्षणीय-वि० [सं०] भक्षण करने योग्य ।
असाधारण प्रयत्न । -सुता-स्त्री० गंगा। भक्षना-सक्रि० भक्षण करना, खाना ।
भगेड, भगेलू-वि० दे० 'भगोड़ा'।
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भगोड़ा-भड़भड़ाना
भगोड़ा-वि० भागा हुआ, फरार; रणभूमिसे भागनेवाला, सामना या भेंट होना। डरपोक ।
भटई-स्त्री० झूठी तारीफ, चापलूसी, भाटपन । भगोष्ट-पु० [सं०] भगके बाहरी हिस्सेका किनारा । | भटकटाई, भटकटैया-स्त्री० एक वनौषधि, कंटकारी । भगौती*-स्त्री० दे० 'भगवती'।
भटकना-अ० क्रि० रास्ता भूलना; रास्ता भूलकर इधरभगौहाँ-वि० भगोड़ा; भगवा रंगमें रँगा हुआ, गेरुआ। उधर फिरना; व्यर्थ घूमना; तलाशमें फिरना; भ्रममें भग्गुल*-वि० रणभूमिसे भागा हुआ, भगोड़ा।
पड़ना; * चूक जाना। भग्गू-वि० खेलमें हारकर भागनेवाला, भगोड़ा। भटका -पु० व्यर्थ घूमनेकी क्रिया; चक्कर-'द्वार न पावै भग्न-वि० [सं०] टूटा हुआ, खंडित; चूर किया हुआ, | सबदका फिरि फिरि भटका खाय'-साखी। नष्ट; रोका हुआ; हराया हुआ; हताश । -क्रम-वि० भटकाना-सक्रि० गलत रास्ता बताना, बहकाना । जिसका क्रम भंग हो गया हो।-चेत्त-वि० भग्नहृदय, भटकैया*-वि० भटकनेवाला। निराश । -चेष्ट-वि० विफल होकर चेष्टासे विरत हो भटकौहाँ*-वि० भटकानेवाला । जानेवाला । -दंष्ट्र-वि० जिसके दाँत टूट गये हों।-दर्प भटबास, भटवासा-स्त्री० एक लता। -वि० जिसका घमंड तोड़ दिया गया हो, गलितगर्व । भटा-पु० भंटा, बैगन । -प्रक्रम-पुरचनाका क्रम बिगड़ जाना, काव्यका एक भटू *-स्त्री० सखी, अलि (बरावरीकी स्त्रीका संबोधन)। दोष । --प्रतिज्ञ-वि०जिसने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी भट्ट-पु० [सं०] भाट, पंडित; दाक्षिणात्य ब्राह्मणोंकी एक हो। -मना(नस)-वि० भग्नहृदय, हतोत्साह । उपाधि; स्वामी (नाटकादिमें राजाओंका संबोधन) । -मनोरथ-वि० विफल-मनोरथ, जिसका मनोरथ भंग भट्टाचार्य-पु० [सं०] दर्शनशास्त्रका पंडित, सम्मानित हो गया हो, नाकाम ।-व्रत-वि० जिसका व्रत टूट गया। अध्यापक (पदवीरूपमें प्रयुक्त)। हो। -श्री-वि० गतसौंदर्य ।
भट्टारक-वि० [सं०] पूज्य, माननीय । पु० राजा (ना०); भग्नांश-पु० [सं०] मूल द्रव्यका कोई अंशः समान विभागों- मुनि पंडित सूर्य देवता । -वार-पु० रविवार । मेंसे कुछ अंश ।
भट्टारिका-स्त्री० [सं०] सम्मान्य स्त्री, देवी । भग्नावशेष-पु० [सं०] बँडहर ।
भट्टा-पु० बड़ी भट्ठी; ईटें आदि पकानेका पजावा; बड़ा भग्नाश-वि० [सं०] हताश ।
चूल्हा जिसपर कड़ाह चढ़ाकर गुड़, भोजके लिए पूरियाँ भग्नोत्साह-वि० [सं०] जिसका उत्साह नष्ट हो गया हो। __ आदि पनाची जायें। भग्नोद्यम-वि० [सं०] जिसका प्रयत्न विफल हो गया हो। भट्ठी-स्त्री० खास कामोंके लिए बना हुआ बड़ा चूल्हा भचक-स्त्री० भचकनेका भाव ।
मद्य बनानेका स्थान; * माँद । भचकना-अ० कि० लँगड़ाते हुए चलना।
भठियारखाना-पु० भठियारीका घर, वह जगह जहाँ बहुत भच्छ*-पु० दे० 'भक्ष्य'।
शोरगुल होता हो; कमीने, असभ्य लोगोंकी बैठक । भच्छक-वि० दे० 'भक्षक' ।
भठियारन, भठियारिन, भठियारी-स्त्री० भठियारेकी भच्छन -पु० दे० 'भक्षण' ।
स्त्री; लड़ाकी औरत । मु०(भठियारिनों) की तरह भच्छना-स० क्रि० खाना, भक्षण करना ।
लड़ना-चिल्लाते, उगलियाँ आदि चमकाते और गंदी भजन-पु० [सं०] सेवा, आराधना; भगवान् या उपास्य | गालियाँ बकते हुए लड़ना । देवताका नाम जपना, स्मरण; भगवान् या किसी देवताकी भठियारपन-पु० भठियारोंकी तरह लड़ना, कमीनापन । स्तुतिमें रचित पद (हिं०); विभाजन । -पूजन-पु० भठियारा-पु० सरायमें यात्रियोंके टिकने, खाने-पीनेका पूजा-उपासना।
. प्रबंध करनेवाला । भजना-स० क्रि० सेवा, भक्ति करना; उपास्य देवताको भठिहारिन-स्त्री० भठियारिन । याद करना; जपना; * आश्रय लेना । *अ०क्रि० भागना; | भड़क-स्त्री० चमक, दमक, भड़कीलापन; भड़कनेका भाव, पहुँचना।
झिझक । -दार-वि० चमक-दमकवाला। भजनानंद-पु० [सं०] भजनका, भगवानको याद करनेका भड़कना-अ० कि० प्रज्वलित होना, बल उठना, जोरसे आनंद । वि० भजनमें तल्लीन रहनेवाला।
जलने लगना; क्रुद्ध होना, चौंकना, बिदकना । भजनानंदी-वि० भजनानंद, भगवद्भजनमें मस्त रहने | भड़काना-स० क्रि० आगको तेज करना, प्रज्वलित करना; वाला।
उत्तेजित करना, बढ़ावा देना; बहकाना; चौंकाना, भजनी-वि० भजन गानेवाला ।
डराना। भजनीक, भजनोपदेशक-पु० भजन गाकर उपदेश करने- भड़कीला-वि० चमक-दमकवाला, भड़कदार; भड़कनेवाला।
वाला । -पन-पु० चमक-दमक भड़कीला होनेका भाव । भजाना*-स० क्रि० भगाना । अ० क्रि० भागना । भड़कैल-वि० भड़कनेवाला, चौंकने, बिदकनेवाला। भजियाउर*-स्त्री. धी, दही आदिके साथ पकाया हुआ | भड़भड़-स्त्री० बड़े ढोल, पोली चीज आदिकी आवाज चावल।
किसी चीजके जोरसे गिरनेकी आवाज; बकवास । भट-पु० [सं०] योद्धा; सैनिक; एक वर्णसंकर जाति; दासः भड़भड़ाना-स० कि. 'भड़-भड़' आवाज पैदा करना । कूबर । -भेरा*-पु० मुठभेड़, भित; टक्कर, अचानक । अ० क्रि० 'भड़-भड़' आवाज होना ।
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भड़भडिया-भर भड़भडिया-वि० बक्की, डींग मारनेवाला।
भनित*-वि० स्त्री० दे० 'भणित'। भड़भाँड़-पु० एक कँटीला पौधा ।
भनिति*-स्त्री० दे० 'भणिति'; रचना । भड़ जा-पु. एक हिंदू जाति जो दाना भूनने और भाड़ भबका-पु० अर्क खींचनेका यंत्र । झोंकनेका काम करती है, भुजवा ।
भबकी-स्त्री० झूठी धमकी, बंदर-घुड़की । भड़वा-पु० दे० 'भडुआ'।
भब्भड़, भम्भड़-स्त्री० भीड़-भाड़, धक्कम-धक्का । भड़साई, भड़साय -स्त्री० भाड़ ।
भभक-स्त्री० भभकनेका भाव, भड़क उठना; तेज बदबू । भड़हर-पु० भाँडा, बरतन ।
भभकना-अ० क्रि० जोरसे जल उठना; भड़कना । भडार*-पु० दे० 'भंडार'।
भभका-पु० दे० 'भबका'। भड़ास-स्त्री० दिलमें भरी हुई बातें,गुबार,दिलका बुखार । भभकी-स्त्री० दे० 'भबकी' । भडिहा-पु० चोर ।
भभरना-अ० क्रि० डरना; घबराना; * भरमना, भ्रममें भडिहाई*-स्त्री० चोरी । अ० चोरकी तरह-'इतउत चित पड़ना, भूलना। चला भडिहाई'-रामा० ।
भभीरी*-स्त्री० झींगुर दे० 'मैंभीरी'; 'भारी'। भ.दुआ-पु० सफरदाई; रंडियोंकी दलाली करनेवाला। भभूका-पु० लपट, शोला; चिनगारी । भड़ेरिया-पु० दे० 'भँडेरिया' (भड्डर) ।
भभूखा-पु० दे० 'भभूका'। भइर-पु० ब्राह्मणोंकी एक जाति जो यात्रियोंको देवदर्शन भभूत-स्त्री० वह भस्म जिसे शिवभक्त शरीरपर लगाते हैं, आदि कराती या भविष्य बतलाती है।
यज्ञकुंड, धूनी आदिकी राख । मु०-रमाना-वैराग्य भणन-पु० [सं०] कहना, कथन; वर्णन ।
धारण करना, साधु हो जाना।। भणना*-स० क्रि० कहना, वर्णन करना।
भभूदर-स्त्री० दे० 'भूभल' (गरम राख) । भणित-वि०[सं०] कहा हुआ, कथित । पु० कथन; वर्णन।भमीरी*-स्त्री० झींगुर-'बरषा भये तें जैसे बोलत भमीरी भणिति-स्त्री० [सं०] कथन; वार्ता ।
स्वर'-सुंदर। भतवान-पु० ब्याहके संबंधमें होनेवाली कच्ची ज्योनार । भयंकर-वि० [सं०] डरावना, भयोत्पादक । भतार*--पु० दे० 'भार'।।
भय-पु० * अ०क्रि० हुआ। [सं०] विपद् या अनिष्टकी भतीजा-पु० भाईका बेटा । (स्त्री० भतीजी।)
संभावनासे उत्पन्न दुःखजनक भाव, डर, खौफ; खतरा भत्ता-पु० कोई बँधी रकम जो कर्मचारीको सफर-खर्च भयानक रस ।-कर,-जनक-वि०भय उत्पन्न करनेवाला, आदिके लिए वेतनके अतिरिक्त मिले ।
डरावना, खतरनाक । -त्रस्त-वि० बहुत डरा हुआ। भदंत-वि० [सं०] सम्मानित संन्यस्त । पु० बौद्ध भिक्षु । -नाता(त)-पु० भयसे छुड़ानेवाला। -द-दायी भदई।-वि० भादोंमें होनेवाला । स्त्री० भादोंमें होनेवाली (यिन्)-वि० भय उत्पन्न करनेवाला। -नाशन-वि०
भयका नाश करनेवाला । पु० विष्णु । -प्रद,-प्रदायीभदेस*-वि० भोंड़ा, बेढंगा ।
(यिन)-वि० डरावना। -भीत-वि० डरा हुआ।भदोह-वि० दे० 'भदौहाँ।
मोचन-वि० भयसे छुड़ानेवाला । -विह्वल-वि० डरसे भदीहाँ-वि० भादोंमें होनेवाला (आम, अमरूद इ०)। । जिसकी बुद्धि ठिकाने न हो, भयाकुल । -शील-वि० महा-वि० बेढंगा, भोंड़ा, बेडौल, अशिष्ट, अयुक्त ।-पन- डरपोक । -शून्य-वि० निर्भय । -हरण,-हर्ता(त), पु० बेढंगापन; अशिष्टता; अयुक्तता।
-हारक, हारी(रिन्)-वि० भय दूर कर देनेवाला । भद्र-वि० [सं०] भला, साधु; शुभ, मंगलकारी; श्रेष्ठ | भया*-अ० क्रि० हुआ। सुंदर; * जिसके सिर, दाढ़ी आदिका मुंडन हुआ हो- | भयाकुल-वि० [सं०] डरसे घबराया हुआ, भय-विह्वल । ..."सूर प्रभु पूछत भद्र भये क्यों भाई'-सू० । पु० मंगल, भयाक्रांत-वि० [सं०] भयसे अभिभूत । सुख-सौभाग्य; सोना; लोहा; शिव; * सिर, दाढ़ी-मूंछ | भयातुर-वि० [सं०] दे० 'भयाकुल'। आदिका मुंडन, भद्राकरण । -जन-पु० भला आदमी, भयान*-वि० भयानक-'यह भूमि भई भारी भयान'शिष्ट जन । -पुरुष-पु० दे० 'भद्रजन'।
सुजा। भद्रा-वि० स्त्री० [सं०] भद्र । स्त्री० आकाशगंगा; फलित भयानक-वि० [सं०] भय उत्पन्न करनेवाला, डरावना । ज्योतिषका शुभ कार्यके लिए एक निषिद्ध योग; सुभद्रा पु० काव्यके नौ रसोंमें से एक जिसका स्थायी भाव भय दुर्गा; गाय; हल्दी; पृथ्वी। मु०-लगना-विघ्न पड़ना, है (सा०)। बाधा उपस्थित होना।
भयाना*-अ० क्रि० डरना । सक्रि० डराना। भनक-स्त्री० धीमी, अस्पष्ट ध्वनि; उड़ती हुई खबर भयारा*-वि० भयानक । (पड़ना)।
भयार्त-वि० [सं०] डरा हुआ। भनकना*-सक्रि० बोलना।
भयावन*-वि० दे० 'भयावना' । भनना*-सक्रि० कहना।
भयावना-वि० डरावना । भनभनाना-अ० क्रि० 'भन-भन' आवाज करना; गुंजार | भयावह-वि० [सं०] भयजनक, खतरनाक । करना।
भरंत-स्त्री० भरनेकी क्रिया, भराई; *भ्रांति, भ्रम, शंका । भनभनाहट-स्त्री० धीमी आवाज; गुंजार ।
भर-पु० एक हिंदू जाति । वि० सब, पूरा; (वजन, नाप
फसल ।
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५९३
भर-भर्ता आदिमें किसीके) बराबर । *अ० के बल, द्वारा ।-पाई- होना । स्त्री० भ्रांति, भूल । स्त्री० भर पाने, चुकता हो जानेका भाव; भर पाने, भरमाना-स० क्रि० भ्रम में डालना; बहकाना, धोखा देना; बेबाकीकी रसीद। -पूर-वि० पूरी तरह भरा हुआ, व्यर्थ घुमाना । * अ० क्रि० भटकना चकित होना। परिपूर्ण । अ० पूरे तौरसे । -पेट-अ० जी भरकर, पेट | भरमार-स्त्री० बहुतायत, आधिक्य, बाहुल्य । भरकर ।-सक-अ० शक्तिभर, जितना हो सके । मु०- भरराना-अ० कि० यकबारगी गिर पड़ना, अरराना; टूट पाना-पूरा पावना वसूल हो जाना; कियेका फल पाना। पड़ना । स० क्रि० 'भरर' शब्दके साथ गिराना; किसीको भर-पु० [सं०] भार; ढेर, समूह; आधिक्य, अतिरेक टूट पड़ने में प्रवृत्त करना। पीनता । वि० (समासांतमें) भरण करनेवाला।
भरवाई-स्त्री० भरवानेकी क्रिया या उजरत बोझ उठानेकी भरकना*-अ० क्रि० दे० 'भड़कना' ।
टोकरी। भरकाना*-स० क्रि० दे० 'भड़काना'।
भरवाना-सक्रि० भरनेका काम दूसरेसे कराना। भरण-पु० [सं०] पालन पोषण; धारणा उत्पादन भृति । | भरसन, भरसना*-स्त्री० दे० 'भर्त्सना'। भरणी-स्त्री० [सं०] २७ नक्षत्रोंमेंसे दूसरा घियातरोई। | भरसाई-स्त्री० भाड़।। भरत-पु० काँसा भरी हुई चीज, भराव; एक तरहका | भरहरना, भरहराना-अ० क्रि० दे० 'भहराना'। लवा; [सं०] शकुंतलासे उत्पन्न दुष्यंतका पुत्र जिसके भराति*-स्त्री० दे० 'भ्रांति'। नामपर इस देशका नाम भारतवर्ष पड़ा; कैकेयीके गर्भसे भरा-वि० भरा हुआ, पूर्ण; आबाद; संपन्न (घर); पुष्ट, उत्पन्न दशरथ पुत्र; एक मुनि जो नाट्यशास्त्रके प्रवर्तक | मांसल (अंग, देह); क्रोध, क्षोभ, खीझसे भरा हुआ, माने जाते है। -खंड-पु० भारतवर्ष ।
जिसका क्षोभ बाहर निकला ही चाहता हो। [स्त्री० भरता-पु० आलू-बैगन आदिको भून और मसलकर बनाया 'भरी' ।] -पूरा-वि० संपन्न, धन-धान्य, बाल-बच्चोंसे हुआ सालन, चोखा।
सुखी। -भरा-वि० आबाद; मांसल, मोटा। (भरी) भरताग्रज-पु० [सं०] राम ।
जवानी-चढ़ी जवानी, जिस जवानोका उतार आरंभ भरतार*--पु० पति; स्वामी ।
न हुआ हो। मु०(भरी) गोद या गोदी खाली होनाभरती-स्त्री० एक चीजका दूसरीमें भरा, बैठाया जाना, | संतानका मर जाना। थाली में लात मारना-लगी नौकरी, भराव भीतर भरी हुई चीज पच्चीकारी; प्रवेश, दाखिला, | मिलती रोजीको छोड़ देना। -सभा या मजलिसमेंलिया जाना (सेना, पुलिस, स्वयंसेवकदल आदिमें)। सबके सामने। भरथ-पु० रामानुज 'भरत'।
भराई-स्त्री० भरनेकी क्रिया या उजरत । भरथ-पु० [सं०] लोकपाल, राजा; * रामानुज 'भरत'। भराव-पु० भरनेका भाव; भरती; कशीदेमें पत्तियों आदिभरथरी-पु० दे० 'भर्तृहरि' ।
का काम। भरदूल-पु० भरत (पक्षी)।
भरित-वि० [सं०] भरा हुआ;"से पूर्ण; पोषित; हरा । भरद्वाज-पु० [सं०] एक गोत्र-प्रवर्तक और मंत्रकार ऋषि | भरी-स्त्री० एक रुपये या दस माशे भरकी तौल । भरत पक्षी; एक अग्नि; एक अर्हत।।
भरु*-पु० भार, बोझ । भरना-स० कि० खाली बरतन आदिमें कोई चीज डालना, भरुआना -अ० क्रि० भारी होना, भार अनुभव करना। खाली जगहको किसी चीजसे पूर्ण करना; ढालना; छेद, | भरुहाना*-अ० कि. गर्व करना। स० क्रि० बहकाना; अवकाशको बंद करना तोप, बंदूक आदिमें गोला, गोली बढ़ावा देना; भ्रममें डालना-'तुमको नंद महर भरुहाये' आदि डालना; चुकाना (ऋण); पूर्ति करना (नुकसानकी); पदपर नियुक्ति करना; सींचना; कुएँ आदिसे घड़े आदिमें भरुही-स्त्री० एक तरहकी किलिक; एक पक्षी, भरत । पानी लाना; शिकायत करना; बरगलाना;चिलमपर नंबाकू भरेठ-पु. दरवाजेके ऊपर दीवारका बोझा सम्हालनेके
और आग रखना; भेटना; * गुजर करना सहना; देह में | लिए दी हुई लकड़ी। पोतना । अ० कि० भरा जाना, पूर्ण होना; धावका पूरा भरता-पु० किरायेदार । होना; मनका क्रोध, क्षोभ आदिसे पूर्ण होना पुष्ट, मोटा । भरैया-पु* भरनेवाला; भरण करनेवाला, पालक । होना (देह); गर्भवती होना (गाय, कुतिया आदिका)।
भरोस*-पु० दे० 'भरोसा'। भरनि*-स्त्री० पहनावा, वेशभूषा ।
भरोसा-पु० पक्की आशा; सहारा, आसरा विश्वास । भरनी-स्त्री० करघेकी ढरकी; छलँदर, मोरनी; एक जंगली (भरोसे)का-विश्वसनीय । बूटी; सर्पका विष उतारनेका मंत्र; * दे० 'भरणी' ।
| भर्ग-पु० [सं०] भूनना; शिवः ब्रह्मा; तेज, ज्योति । भरभराना-अ० कि० फूलना; रोमांच होना; घबड़ाना। भर्ता(तू)-पु० [सं०] भरण करनेवाला; स्वामी; पतिः भरभराहट-स्त्री० सूजन; घबड़ाहट ।
नायक विष्णु ।-नी-स्त्री० पतिघातिनी स्त्री।-दारकभरभेटा*-पु० सामना, मुठभेड़ ।
पु० युवराज, राजकुमार (ना०)। -दारिका-स्त्री० राजभरम-पु० भ्रम; भेद; साख, प्रतिष्ठा (खुलना, खोना, कुमारी (ना०)।-देवता,-दैवता-स्त्री० पतिको देवतागँवना )-'संपति भरम गँवाइकै बसे रहे कछु नाहि'- रूपमें माननेवाली । -व्रत-पु० पतिव्रत । -हरि-पु० रहीम ।
शृंगार-शतक, नीति-शतक, वैराग्य-शतकके कर्ता जो महाभरमना*-अ० क्रि० फिरना; भटकना; बहकना; गुमराह | राज विक्रमादित्यके सौतेले बड़े भाई थे; वाक्यप्रदीपके कर्ता
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भार-भविष्य
५९४ वैयाकरण कवि ।
'भवभूषण'। -भूषण-वि० जगत्के भूषणरूप। पु० भर्तार-पु. कांत, पति, स्वामी ।
शिवका भूषण, राख आदि । -भोग-पु० लौकिक सुखभर्तृमती-स्त्री० [मं०] सधवा स्त्री।
का उपभोग। -मांचन-पु. भवबंधनको काटनेवाला, भर्सन-पु०, भर्त्सना-स्त्री० [सं०] निंदा, लानत- परमेश्वर । -शूल-पु० भौतिक दुःख । -शेखर-पु० मलामत ।
चंद्रमा । -सागर,-सिंधु-पु० समुद्ररूप संसार । भर्म*-पु० दे० 'भ्रम' ।
भवदनुगत-वि० [सं०] (युअर्स ओबिडिएंटली) आपकी भर्मन*-पु० दे० 'भ्रमण' ।
आशा माननेवाला,आपके आदेशानुसार चलनेवाला.(किसी भर्य-पु० [सं०] भरण पोषणका खर्च, गुजारा (को०)।
मातहत कर्मचारी द्वारा अथवा पुत्र या छोटे भाई द्वारा भर्रा-पु० एक चिड़िया, दम, चकमा ।
उच्च कर्मचारी, पिता या बड़े भाईको लिखे गये आवेदनभर्राना-अ० क्रि० 'भर्र-भरी' शब्द निकलना ।
पत्र, कुशलपत्रादिके अंतमें, हस्ताक्षर करनेके ठीक पहले भर्सन*-पु० दे० 'भर्त्सन'।
प्रयुक्त विशेषण)। भल*-वि०, पु० दे० 'भला'
भवदनुरत-वि० [सं०] (युअर्स सिनसियरली) आपसे स्नेह, भलका*-स्त्री० गाँसी।
मित्रता या सद्भाव रखनेवाला (किसी मित्र या सामान्य भलपति-पु० भाला धारण करनेवाला ।
परिचित व्यक्तिको लिखे गये पत्रके अंतमें लेखक द्वारा भलमनसाहत, भलमनसी-स्त्री० भलामानुसपन, सज्ज- स्वयं अपने लिए प्रयुक्त विशेषण ।) नता, शराफत ।
भवदीय-वि० [सं०] आपका (स्त्री० भवदीया)। भला-वि० अच्छा, नेक,साधुः सुंदर (लगना) । पु० भलाई, भवन-पु०[सं०] होना, भाव; जन्म, उत्पत्ति घर, मकान हित । अ० अच्छा, खूब प्रश्नवाचक वाक्यों में 'नहीं'का स्थान, क्षेत्र । -निर्माण-विज्ञान-पु० ( आर्किटेक्चर ) अर्थ देता है-'भला कहीं बालूसे तेल निकल सकता है ?', मकान आदि बनानेकी कलाका विवेचन करनेवाला शास्त्र । धमकीके अर्थ में-"भला बच्चा"। -आदमी-पु० भला भवना*-अ० कि० दे० 'भँवना'। मानस, नेक, शरीफ आदमी।-चंगा-वि० स्वस्थ, तंदुरुस्त, भवनापचरण-पु० [सं०] (हाउस-ट्रेसपास) किसीके अच्छा-खासा । -बुरा-वि० अच्छा और बुरा; सख्त- मकान में अवैध रूपसे प्रवेश करना । सुस्त, खरी-खोटी (कहना, सुनाना)। -मानस-पु० | भवनी*-स्त्री० गृहिणी; स्त्री। दे० 'भला आदमी'; (व्यं०) दुष्ट । (भले)मानुसोंका भवन्निष्ठ-वि० [सं०] ( फेथफुल्ली युअर्स ) आपमें विश्वास समझौता-पु० (जटिलमेंस ऐग्रीमेंट) एक तरहका अनौप- रखनेवाला (अंग्रेजी ढंगके व्यापारिक पत्रों या सामान्य चारिक समझौता जो केवल जबानी बातचीत या सामान्य कार्यके लिए प्रायः कम परिचित व्यक्तियोंके नाम लिखे पत्रालापके आधारपर किया गया हो, कोई पक्की लिखा- गये पत्रोंके अंत में, हस्ताक्षरके ठीक पहले, प्रयुक्त होनेवाला पढ़ी न की गयी हो।
समस्तपद)। भलाई-स्त्री० भलापन, अच्छाई; नेकी; हित, खैरियत । | भवाँ*-पु० फेरा। भले-अ० खूब, अच्छा (भले आये)। -ही-अ० ऐसा | भवाँना*-स० क्रि० घुमाना। हो तो हुआ करे, हो तो परवाह नहीं (भले ही तुम बुरा | भवांबधि-पु० [सं०] दे० भवसागर' । मानो)।
भवा-स्त्री० पार्वती। भलेरा*-पु० दे० 'भला'।
भवात्मज-पु० [सं०] कात्तिकेय गणेश । भल्ल-पु० [सं०] भाला; भालू ; शिव; भिलावाँ ।-नाथ, | भवानी-स्त्री० [सं०] दुर्गा, पार्वती। -कांत,-पति-पति-पु० जांबवान् ।
-वल्लभ-पु० शिव । -नंदन-पु० गणेश कात्तिकेय । भल्लक-पु० [सं०] भालू भिलावाँ एक (प्राचीन) जनपद। भवाब्धि -पु० [सं०] दे० 'भवसागर'। भल्लात, भल्लातक-पु० [सं०] भिलावाँ ।
भवि*-वि० दे० 'भव्य'। भल्लुक-पु० [सं०] भालू ।
भवितव्य-वि० [सं०] होनहार, अवश्यंभावी । भल्लूक-पु० [सं०] भालू ; कुत्ता।
भवितव्यता-स्त्री० [सं०] जिसका होना अटल हो, होनी; भवंग, भवंगा -पु० सर्प ।
भाग्य। भवंगम*-पु० सर्प।
भविष*-पु० दे० 'भविष्य'। भवंत-पु० [सं०] वर्तमान काल । * सर्व० आपका। भविष्य-पु० [सं०] आनेवाला काल । वि० होनेवाला, भवना-अ० क्रि० घूमना, चक्कर खाना ।
भावी । -काल-पु० क्रियाके तीन कालों में से एक, अनाभवर-पु० दे० 'भँवर'।
गत काल (व्या०)।-गुप्ता-स्त्री० सुरतिगुप्ता नायिकाका भव-* पु०; भय [सं०] उत्पत्ति, जन्म; होना; संसृतिः | एक भेद । -ज्ञान-पु० होनेवाली बातोंकी जानकारी । प्राप्ति; संसार, अग्नि; शिव; कुशल । (समासमें 'से -निधि-स्त्री० (प्रॉविडेंट फंड) किसी सरकारी, अर्द्धउत्पन्न' का अर्थ देता है)। -चाप-पु. शिवका धनुषु । सरकारी या व्यापारिक संस्था आदिमें काम करनेवाले -भय-पु० बार-बार जन्म लेने और मरनेका भय, कष्ट। कर्मचारीको कार्यसे अवसर ग्रहण कर लेनेपर भरण-पोषण-भामिनी,-वामा-स्त्री० पार्वती । -भीति-स्त्री. में सहायक होनेकी दृष्टिसे दी जानेवाली वह सहायता जन्म-मरणका भय, संसृतिका भय । -भूष-वि० दे० | जो उसके वेतनमें से कटनेवाले उसके अपने अंशके साथ
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५९५
भविष्यत्-भाऊ साथ नियोजकों द्वारा निधिके रूपमें जमा की जाती है, भांजा-पु० दे० 'भानजा'। संचित कोष, संचित निधि, संभरणनिधि ।
भाँजी-स्त्री० बहकाने, रुष्ट करनेवाली बात; चुगली । भविष्यत्-वि० [सं०] होनेवाला, भावी। पु० आनेवाला मु०-मारना-बाधा डालना। काल; जल; एक फल । -काल-पु० दे० 'भविष्यकाल'। भाँट-पु० दे० 'भार'। भविष्यद्वक्ता(क्त),-भविष्यद्वादी(दिन)-पु० [सं०] भांड-पु० [सं०] भाँड़ा, बरतन; घी,तेलका कुप्पा; दुकानवह जो आगे होनेवाली बातोंको पहले बता दे, ज्योतिषी। का माल, सामान । -शाला-स्त्री० भंडार । भविष्यद्वाणी-स्त्री० [सं०] भविष्यकथन, पेशीनगोई । भाँड-पु० दे० 'भाँडा'; * उपद्रव; हँसी, भंडाफोड़-'इहाँ भवीला*-वि० चाववाला; आनबानवाला।
कपटकर होइहि भाँड'-५०; मसखरा; महफिलोंमें हँसीभवेश-पु० [सं०] संसारका स्वामी, शिव ।
मजाककी नकलें आदि करनेका पेशा करनेवाला; वह भव्य-वि० [सं०] विद्यमान; होनेवाला, भावी; योग्य, | जिसके पेट में बात न पचे निर्लज्ज व्यक्ति। -भगतिये
उपयुक्त सुंदर शानदार शांत, प्रसन्न; शुभः सत्य । पु० नाचने-गाने आदिका पेशा करनेवाले । भष*-पु० भक्ष्य, आहार ।
भाँड़ना-स० क्रि० बिगाड़ना, नष्ट करना; बदनाम करते भषना*-स० क्रि० दे० 'भखना'।
फिरना; * घूम-घूमकर देखना । अ० क्रि० भटकना। भसना -अ० क्रि० तैरना; डूबना; धंसना ।
भाँडा-पु० बरतन; * भाँड़पन । मु०-(भाँड़े) भरनाभसमंत*-वि० जला हुआ।
पछताना; फूट-फूटकर रोना । -मैं जी देना-किसीपर भसम-पु० दे० 'भस्म'।
दिल लगा होना। भसाना-पु० दुर्गा आदिकी प्रतिमाको पूजनोपरांत नदीमें | भांडागार-पु० [सं०] भंडार; गोदाम, खजाना। प्रवाहित करना।
भांडागारिक-पु० [सं०] भंडारी खजांची। भसाना-स० क्रि० तैराना; डुबाना; धंसाना ।
भांडार-पु० [सं०] भंडार । -पाल-पु० (स्टोरकीपर) भसिँड, भसीड-पु० कमलनाल ।
विविध वस्तुओंके संग्रह या भांडारकी रक्षा, देखरेख भलँड-पु० हाथी।
करनेवाला कर्मचारी। भसुर-पु० पतिका बड़ा भाई, जेठ ।
भांडारिक, भांडारी(रिन)-पु० [सं०] भंडारी, भंडारभसूड़-पु० हाथीकी गुंड़।
का रक्षक, अध्यक्ष दे० स्कांधिक (स्टाकिस्ट)। भस्म(न)-पु० [सं०] राख, चिताकी राख; दवाके काम- भाँड़यो*-पु० भाँड़पन । के लिए फूकी हुई धातु आदि, कुश्ता। -चय,-पुंज- भात-स्त्री० दे० 'भांति' । पु० भस्मराशि। -प्रिय-पु. शिव । -राशि-स्त्री० भाँति-स्त्री० तरह, प्रकार, रंग; * मर्यादा। -भाँतिकेराखका ढेर। -सात-वि० जो भस्मरूप हो गया हो, तरह-तरहके, रंग-बिरंगके । भस्मीभूत । -स्नान-पु० सारी देहमें भस्म मलना। भॉपना-स० क्रि० रंग-ढंगसे जान लेना, ताड़ना। भस्मावशेष--वि० [सं०] जो राखमात्र रह गया हो, जो भापू-वि० भाँप जानेवाला, ताड़ जानेवाला ।
जलकर राख हो गया हो। पु० राखके रूपमें बचा अंश । भाय-भाय-पु० सन्नाटेमें होनेवाली आवाज । भस्मासुर-पु० [सं०] एक दैत्य जिसने शिवसे यह वर-भावना-स० कि० खरादपर घुमाना; * गढ़कर सुंदर दान प्राप्त किया था कि वह जिसके सिरपर हाथ रखेगा। बनाना। वह जल जायगा।
भाँवर-स्त्री० परिक्रमा विवाहके समय की जानेवाली अग्निभस्मित-वि० जला या जलाया हुआ।
की परिक्रमा खेत जोतते समय एक बार चारों ओर घूम भस्मीभूत-वि० [सं०] जो जलकर राख हो गया हो, नष्ट। आना । * पु० भौरा । मु०-भरना-परिक्रमा करना। भस्सड़-वि० मोटा, बेडौल (मनुष्य)।
भावरा-पु० परिक्रमा। भस्सी-स्त्री० चूने, कोयले आदिका चूरा।
भाँवरि, भाँवरी*-स्त्री० चक्कर, परिक्रमा । भहराना-अ० क्रि० यकबारगी गिरना टूट पड़ना। भाँसा-स्त्री० आवाज, स्वर, शब्द । भाँई-पु० खरादी।
भा-* अ० चाहे, या। * अ० क्रि० हुआ। स्त्री० [सं०] भाँउर, भाँउरि*-स्त्री० दे० 'भाँवर'।
चमक, दीप्ति किरण; कांति । भाँऊँ*-पु० दे० 'भाव' ।
भाइ*-पु० भाव; प्रेमा विचार । स्त्री० रीति, प्रकार, चालभाँग-स्त्री० गाँजेकी जातिका एक पौधा जिसकी पत्तियाँ ढाल । नशा पैदा करती है। इसकी पत्तियाँ इन पत्तियोंको घोंट- | भाइप*-पु० भ्रातृत्व, भाईचारा। कर बनाया हुआ पेय । मु०-खा जाना-नशेमें होने- भाई-पु० एक ही माँ-बापका बेटा, भ्राता, सहोदर; शातिकीसी बातें करना। -छानना-भाँग पीना। (घरमें बंधु; बराबरवाले(प्रियजन)का संबोधन । -चारा-पु. मुंजी)-न होना-दरिद्र होना।
भाईका नाता या भाव, बंधुत्व । -दूज-स्त्री० भैयादूज । भाँज-स्त्री० भाँजनेकी क्रिया या भाव; मोड़, तह भुनाई, -बंद-पु. कुल-कुटुंबके लोग, ज्ञाति-जन, भाई । - बट्टा।
बिरादर-पु० भाई-बंद । भाँजना-स० क्रि० तह करना; डोर आदिकी कई लड़ोंको भाउ*-पु० दे० 'भाव' । एकमें मिलाकर बटना; घुमाना (मुगदर आदि)। भाऊ*-पु० भाव, प्रेम, स्वभाव, रूप, प्रभाव, वृत्ति
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भाएँ - भानमती
महिमा; अस्थवा; भाई । भाएँ * - अ० ( किसीकी) समझमें । भाकसी- स्त्री० भाड़, भट्टी ।
भाकुर - पु० एक तरहकी मछली ।
भाखना* - अ० क्रि० स० क्रि० कहना, बोलना । भाखा* - स्त्री० दे० 'भाषा' |
भाग - पु० [सं०] हिस्सा, अंश; बँटवारा; चौथाई; परिधिका ३०वाँ भाग; राशिचक्रका ५०वाँ भाग; राशि या संख्याविशेषको कई अंशों में बाँटनेकी क्रिया, तकसीम ( गणित ) । - धेय - पु० भाग; भाग्य; सौभाग्य; राजाको दिया जाने वाला कर; भाग पानेका अधिकारी । -फल-पु० भाज्यको भाजकसे भाग देनेपर प्राप्त संख्या, लब्धि । -हरवि० हिस्सेदार । - हारी ( रिन्) - वि० हिस्सेदार | पु० उत्तराधिकारी ।
भाग - पु० भाग्य, तकदीर; ललाटः पार्श्व; प्रातःकाल । -भरा - वि० भाग्यवान् । -वंत*, - वान - वि० भाग्यवान्, खुशनसीब । मु० - खुलना, - जागना - तकदीर
खुलना, भाग्योदय होना । -फूटना - बुरे दिन आना । भागड़ - स्त्री० बहुत से लोगोंका आतंकित होकर एक साथ भागना, भगदड़
भागना - अ० क्रि० किसी जगह से हट जाने के लिए दौड़ना,
पलायन करना; चल देना; जान बचाना, हारकर पलायन करना ।
भागवत - पु० [सं०] अठारह पुराणोंमेंसे एक जिसमें मुख्यतः कृष्णकी कथा वर्णित है; देवीभागवत; भगवद्भक्त । वि० भगवत्संबंधी ।
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५९६
सिद्धान्त । - विधाता (तृ) - पु० तकदीर बनानेवाला, अदृष्टका नियंता । - विपर्यय- पु० भाग्यका उलट-फेर, दिनका फेर । - विप्लव - पु० दुर्भाग्य । -शाली (लिन्) - वि० भाग्यवान् । - संपत्-स्त्री० सौभाग्य । -हीनवि० अभागा, बदनसीब | भाग्यवान् (वत्) - वि० [सं०] भाग्यशाली, खुशकिस्मत | भाग्योदय- पु० [सं०] भाग्यका खुलना, जागना । भाजक - पु० [सं०] भाग करनेवाला, विभाजक, वह संख्या जिससे किसी राशिको भाग दें ।
भाजन- पु० [सं०] बरतन, पात्र; योग्य अधिकारी; आधार; एक तौल, आढक; विभाग करना । भाजना* - अ० क्रि० दे० 'भागना' | भाजित - वि० [सं०] भाग किया हुआ, विभक्त । भाजी - स्त्री० [सं०] माँड़; साग आदि ।
भाज्य - वि० [सं०] भाग करने योग्य, विभाज्य । पु० वह अंक जिसमें भाग दिया जाय ।
भाट - पु० राजाओं आदिके यश, वंश, चरितका गान करनेवाला, वंदी; एक जाति जो अपने जजमानोंका वंशचरित सुनाने, स्तुतिपरक तुकबंदी आदि करनेका पेशा करती है; झूठी बड़ाई करनेवाला, चापलूस । स्त्री० नदी के किनारों के बीचकी जमीन, पेटा, नदीको धारा । भाटक- पु० [सं०] भाड़ा; ( रेंट ) मकान या जमीनका किराया, लगान । - राशि - स्त्री० ( रेंटल) किराये से होनेवाली समस्त आय, किराये के रूपमें प्राप्त धनराशि । भाटा - पु० समुद्रके पानीके नियतकालिक चढ़ावका उतार, ज्वारका उलटा; पथरीली जमीन | भाट्यौ*
* पु० भाटका कार्य, स्तुतिपाठ ।
भागाभाग - स्त्री० भागनेकी हलचल, भागड़ । भागिता - स्त्री० [सं०] ( पार्टनरशिप) किसी कारबार में भाठ - स्त्री० नदीको बादमें बहकर आनेवाली मिट्टी जो साझा होना, साझेदारी, हिस्सेदारी ।
भागिनेय - पु० [सं०] भानजा ।
किनारे की जमीनपर जम जाती है; धारा । भाठा - पु० दे० 'भाटा'; गढा ।
भागी (गिन्) - वि० [सं०] जिसमें भाग हिस्से हों; हिस्से दार; शामिल, शरीक (पापभागी); मालिक, अधिकारी; गौण | पु० हिस्सेदार ।
भाठी स्त्री० भाटा; * दे० 'भट्टी'; शराब बनानेकी जगह । भाड़-पु० भट्टभूजेकी भट्ठी जिसमें बालू गरमकर वह दाना भूनता है। मु०-झौंकना - तुच्छ काम करना; निरर्थक श्रम करना - मेँ जाय-चूल्हे में जाय । - मेँ झौंकना, - मेँ डालना - चूल्हे में डालना, नष्ट करना; त्यागना ।
भागीरथ - वि० [सं०] भगीरथ संबंधी । * पु० दे० 'भगीरथ' ।
भागीरथी - स्त्री० [सं०] गंगा; गंगाकी वह शाखा जो बंगाल भाड़ा-पु० वह रकम जो किसी चीजको इस्तेमाल करने के में बहती है ।
बदले दी जाय, किराया; गाड़ी आदिका किराया । (भाई)का टट्टू - उजरतपर काम करनेवाला; वह आदमी जिसे पैसा देकर जो चाहे काम ले ।
|
भाग्य - वि० [सं०] विभाज्य; भाग, हिस्सेका अधिकारी । पु० शुभाशुभसूचक कर्मजन्य अष्ट, नियति, तकदीर; सौभाग्य । -क्रम - पु० भाग्यका क्रम, फेर । दास्त्री० (लॉटरी) घुड़दौड़ आदिका परिणाम देखकर या चिट्ठी निकालकर टिकट खरीदनेवालों में इनाम बाँटने की पद्धति । - दोष-पु० भाग्यका दोष, तकदीरको खराबी । - पत्रक - पु० ( लॉट) वह चिट्ठी या कागजकी गोली आदि जिसे फेंककर या उठाकर किसी मालके बँटवारे, किसीको नियुक्ति, चुने जाने आदिका विनिश्चय किया जाता है। -बल-पु० भाग्यका बल, तकदीर । - लिपि - स्त्री० तकदीरकी लिखावट, अष्ष्ट रेखा । -वशःवशात् - अ० भाग्यके बल, किस्मत से । -वाद-पु०
|
|
भानना* - स० क्रि० तोड़ना; काटना; नष्ट करना ।
भाग्यके अनुसार ही शुभाशुभकी प्राप्ति माननेका | भानमती - स्त्री० जादूके खेल करनेवाली, जादूगरनी ।
भाण-पु० [सं०] रूपक (दृश्यकाव्य) का एक भेद | भात-पु० उबाला हुआ चावल; ब्याहकी एक रस्म, वरके पिताका कन्या के पिताके घर जाकर कच्ची रसोई खाना । भाथा - पु० तीर रखनेकी थैली, तरकश; बड़ी भाथी । भाथी-स्त्री० चमड़ेकी धौंकनी ।
भादों, भादौं - पु० सावन के बादका महीना, भाद्रपद | भाद्र, भाद्रपद - पु० [सं०] भादोंका महीना । भान-पु० * सूर्य; [सं०] प्रकाश; दीप्ति; ज्ञान; प्रतीति । भानजा - पु० बहिनका पुत्र ।
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५९७
भानवी-भार्या -का कुनबा-जहाँ-तहाँसे लिये हुए बेमेल उपादानोंसे -वाही(हिन्)-वि० दे० भारवाहक' । -शंकु-पु. बनी वस्तु । -का पिटारा-वह जिसमें तरह-तरहकी ! लटकन, लिवर ।-सह-वि० भारी बोझ उठाने में समर्थ । चीजें मौजूद हों।
पु० गधा । -हर-पु० बोझ उठानेवाला ।-हानि-स्त्री० भानवी*-स्त्री० यमुना।
(लॉस ऑफ वेट) भार या वजनमें होनेवाली कमी । भानवीय-वि० [सं०] सूर्य-संबंधी । पु० दाहिनी आँख।। -हारी(रिन)-पु० विष्णु; कृष्ण । मु० (किसीका)भाना-अ० कि० रुचना, अच्छा लगना; फबना, * भान उठाना-दायित्व ग्रहण करना। -उतरना-किसी होना, जान पड़ना । स० कि० खराद पर चढ़ाना; कठिन कर्तव्यका पूरा होना; ऋणसे मुक्ति मिलना। चमकाना।
-देना-बोझ डालना। भानु-पु० [सं०] सूर्य प्रभा; किरण राजा; स्वामी; विष्णुः | भारत-पुं० [सं०] भरतवंशमें उत्पन्न जन; भारतवर्ष, हिंदु. शिव । -ज-पु० शनि; यम । -जा-तनया-स्त्री० | स्तान; (भरतवंशका चरितरूप ग्रंथ) 'महाभारत; नाट्ययमुना। -दिन,-वार-पु० रविवार । -पाक-पु० शास्त्र (भरतकृत); नट; संग्राम (हिं०)।-"घरी एक भारत औषधको धूपमें रखकर तैयार करने या पकानेकी क्रिया । भा, भा असवारन्ह मेल'-५०।-खंड-पु० दे० 'भरत-प्रताप-पु० रामायण में वर्णित एक राजा जो कहा खंड' । -महासागर-पु० भारतवर्ष के दक्षिणमें अवस्थित जाता है कि ब्राह्मणों के शापसे दूसरे जन्म में रावण हुआ। महासमुद्र ।-माता(४)-स्त्री० भारतवासियोंकी जननी. -मुखी-स्त्री० सूर्यमुखी। -सुत-पु० यम; शनि । रूप भारतभूमि । -वर्ष-पु० जंबदीपके ९ वर्षों से एक, -सुता-स्त्री० यमुना।
हिंदुस्तान । -वासी(सिन्)-पु० भारतमें बसनेवाला, भानुमती-स्त्री० [सं०] गंगा; दुर्योधनकी पत्नी; विक्रमा- हिंदुस्तानी । -संतान-स्त्री० भारतमें उत्पन्न जन, दित्यकी रानी जो इंद्रजाल विद्याकी पंडिता थी।
भारतवासी। भानुमान (मत्)-वि० [सं०] तेजोमय, दीप्तिमान; सुंदर। भारतवर्षीय-वि० [सं०] भारतवर्ष-संबंधी । पु० सूर्यः कृष्णका एक पुत्र ।
भारति*-स्त्री० दे० भारती । भाप, भाफ-स्त्री० पानीको खौलानेसे निकलनेवाला भारती-स्त्री० [सं०] वाणी; वाणीकी अधिष्ठात्री, सरस्वती वाष्पीय रूप, खौलते हुए जलसे ऊपर उठनेवाला सूक्ष्म | एक वृत्ति या वर्णनशैली (सा०); भारतमाता।। जलकण, वाष्प; ठोस या तरल पदार्थका अधिक तापसे भारतीय वि० [सं०] भारत-संबंधी । पु० भारतवासी। होनेवाला गैस रूप ।
भारतीयीकरण-पु० [सं०] भारतीय बनाना; संस्था या भाभरा*-वि० लाल रंगका।।
विभागविशेषके कर्मचारियोंमें भारतीयोंकी प्रधानता कर भाभी-स्त्री० बड़े भाईकी स्त्री, भावज ।
देना। भाम-पु०[सं०]दीप्ति, चमकसूर्यक्रोध; * स्त्री० भामिनी। भारथ*-पु० युद्ध; अर्जुन; दे० 'भारत' । भामक-पु० [सं०] बहनोई ।
भारथी-पु० सिपाही। भामता*-पु० भावता, प्रियतम ।
भारद्वाज-वि० [सं०] भरद्वाजके गोत्र या वंशमें उत्पन्न । भामती*-स्त्री० भावती, प्रियतमा।
पु. द्रोणाचार्य; अगस्त्य; मंगल ग्रह; भरदूल पक्षी । भामा-स्त्री० [सं०] क्रोधी स्त्री; सत्यभामा; * स्त्री। भारना*-स० क्रि० बोझ लादना दवाना। भामिन*-स्त्री० दे० 'भामिनी'।
भारा*-वि० भारी विशाल; अधिक असह्य। पु० भाड़ा; भामिनी-स्त्री० [सं०] क्रोध करनेवाली स्त्री सुंदरी स्त्री। दे० 'भार'। भामी (मिन्)-वि० [सं०] क्रोधी; क्रुद्ध; सुंदर ।। भाराक्रांत-वि० [सं०] बोझसे दबा हुआ। भाय*-पु० भाई भाव; इच्छा प्रेम, परिमाण दर ढंग। भारी-वि० कठिन; बड़ा; बहुत ज्यादा गहरा देर में पचनेभायप-पु० भाईचारा।
वाला; भाररूप, कष्टकर ।-पन-पु० भारी होनेका भाव; भाया*-वि० जो अच्छा लगता हो, प्यारा।
बोझ, गरिष्ठता। -भरकम-वि० बड़े डील-डौलका। भारंगी-स्त्री० [सं०] एक पौधा।
मु०-रहना-चुप रहना। (.."पर)-होना-जबर्दस्त भार-पु० [सं०] बोझ, गुरुत्व; राशि, ढेर; जिम्मेदारी पड़ना, (-से) प्रबल होना (अकेला दसपर भारी है)। मँभाल; कठिन कार्य २ हजार पलका एक वजन; बहँगी-भारोद्वह-पु० [सं०] बोझ ढोनेवाला, मोटिया। का वोझा बहँगी; विष्णु; ढोल बजानेका एक ढंग; * भार्गव-वि० [सं०] भृगु-संबंधी या भृगुसे उत्पन्न । पु० आश्रय; भाड़ । वि० बोझसा लगनेवाला, कठिन, कष्टरूप। भृगुके वंशमें उत्पन्न पुरुष, शुक्राचार्य, परशुराम; मार्क-केंद्र-पु० गुरुत्वकेंद्र, भारका मध्यबिंदु । -क्षम-वि० डेय; जमदग्नि; शिव; एक प्राचीन जनपद; धनुर्धारी भार वहन करने में समर्थ (पोतादि)। -ग्रस्त संपदा- कुम्हार; ज्योतिषी; हाथी; एक हिंदू जाति । -प्रिय-पु० स्त्री० (एनकंबई एस्टेट) वह संपत्ति या जायदाद जिसपर हीरा। ऋणका भार हो गया हो। -जीवी(विन्)-पु० भार- भार्गवी-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; पार्वती; देवयानी; दूब । वाहक ।-तुला-स्त्री० रतंभके नौ भागों से बीचका भाग। भार्गवीय-वि० [सं०] भृगु-संबंधी। -दंड-पु० बहँगी।-भृत्-वि० भार वहन करनेवाला। भार्गवेश-पु० [सं०] परशुराम ।। -यष्टि-स्त्री० बहँगी। -वाह-वाहक,-वाहिक-पु० | भार्या-स्त्री० [सं०] विवाहिता स्त्री, पत्नी।बोझ ढोनेवाला, मोटिया । वाहन-पु०लदू पशु ; गाड़ी ।। -वि० पत्नीके प्रति द्वेष-भाव रखनेवाला।
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भार्याटिक - भाषना
भार्याटिक - वि० [सं०] स्त्रीके शासन में रहनेवाला । भार्यात्व - पु० [सं०] पत्नीत्व |
भाल - पु० भाला; गाँसी; भालू ; [सं०] माथा, ललाट; तेज, अंधकार । -चंद्र- पु० शिव; गणेश । -नयन, - नेत्र. - लोचन - पु० शिव ।
भालका* - स्त्री० दे० 'भलका' ।
भालना स० क्रि० भली भाँति देखना; तलाश करना (केवल 'देखना ' के साथ प्रयुक्त) ।
भाला - पु० बरछा, नेजा । -बरदार- पु० भाला धारण करने, चलानेवाला |
भालूक, भाल्ळूक - पु० [सं०] रीछ । भावंता* - पु० प्रेमपात्र; होनहार ।
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'भाव' में |
भावता * - वि० जो मनको भाये, अच्छा लगे । पु० प्रेमपात्र, प्रियतम । (भावती = प्रियतमा । )
५९८
भावन - पु० [सं०] निमित्त कारण; स्रष्टा; चिंतन, कल्पना; किसी चूर्णको रससे तर करके घोटना; सुवासित करना; अनुभूति । * वि० भाने, अच्छा लगनेवाला । भावना - * अ० क्रि० दे० 'भाना' । स्त्री० [सं०] चिंतन, ध्यान, खयाल, कल्पना; उत्पादन; रुचिवर्धन; इच्छा, इरादा; स्मरण; प्रमाण; कौआ; जल; चूर्ण आदिको रस, काथ आदि के साथ बारबार तर करके घोटना । भावनामय - वि० [सं०] भावनायुक्त; काल्पनिक | भावनि* - स्त्री० जो जीमें आये, जो कुछ सोचा हो । भावनीय - वि० [सं०] चिंतनके योग्य, सोचने-विचारने या कल्पनाके योग्य ।
भालि * - स्त्री० बरछी; शूल ।
भाली - स्त्री० भालेकी गाँसी; शूल ।
भालु - पु० भालू; [सं०] सूर्य ।
भालुक, भाल्लुक - पु० [सं०] रीछ, भालू ।
भालू - पु० एक वन्य हिंस्र जंतु जिसके शरीरपर लंबे-लंबे भावांतर - पु० [सं०] मनकी अवस्था दूसरी हो जाना; बाल होते हैं, रीछ ।
अर्थातर |
भावानुग - वि० [सं०] भावका अनुसरण करनेवाला । भावाभास - पु० [सं०] बनावटी भाव; अनुपयुक्त स्थान में भावका दिखलाया जाना (सा० ) । भावार्थ- पु० [सं०] वह अर्थ जिसमें प्रत्येक शब्दका अर्थ
देकर समूचे वाक्यका आशय दे दिया जाय, मतलब, तात्पर्य । भाविक - वि० [सं०] भावनाप्रधान, भावुकः स्वाभाविक; * मर्मश | पु० एक अर्थालंकार-भूत या भविष्यकी घटनाओंका इस तरह वर्णन करना मानो वे आँखोंके सामने घटित हो रही हों ।
भावित - वि० [सं०] सोचा हुआ, चिंतित; जाना हुआ; प्रमाणित; प्राप्त; शोधित; जिसमें किसी रस आदिको भावना दी गयी हो; वासित; मिश्रित; व्यक्त किया हुआ । भावी - स्त्री० होनी होनेवाली बात ।
भावी (विन्) - वि० [सं०] होनेवाला, होनहार ; भविष्यत् । भावुक - वि० [सं०] भावी; जो जल्दी भावों, विशेषतः कोमल, करुण भावोंके अधीन हो जाय, कोमलचित्त; सहृदय, रसज्ञ; मंगलयुक्त । भावुकता - स्त्री० [सं०] भावुक होना, भाव-प्रवणता । भावै* - अ० दे० 'भाव' |
भाव - पु० दर, निर्ख; [सं०] जन्म, उत्पत्ति; होना, सत्ता, अभावका उलटा; चित्तमें उत्पन्न होनेवाला विकार, हर्ष, शोकादि मनोविकार; भावना; जो कुछ मनमें सोचा जाय, खयाल; शब्द या वाक्यका अर्थ, आशय; राग, प्रेम; भावसूचक अंगचेष्टा, भंगी; अवस्था, दशा; हैसियत, रूप (दासभाव ); स्वभाव; श्रद्धा भक्ति; जन्मकुंडलीके विभिन्न स्थान (तनु, धन आदि); गीतका भाव बतानेवाली अंगचेष्टा । - गम्य-वि० मनसे जानने योग्य । -ग्राही( हिन्) - वि० भाव, तात्पर्य को समझनेवाला, रसज्ञ । -ज-पु० काम, कामदेव -ज्ञ वि० मनोभाव समझनेवाला । - प्रधान - वि० जिसमें भावकी प्रधानता हो; जिसकी भावानुभूति अधिक तीव्र हो, भाविक । - प्रवण - वि० भावप्रधान, भावुक - प्रवणता - स्त्री० भावप्रधान होना; भावोंके वश, भावसे परिचालित होनेकी प्रवृत्ति; भावुकता । -बोधक- वि० भाव बताने या प्रकट करनेवाला। -भक्ति-स्त्री० श्रद्धा-भक्ति, आदर - मैथुन - पु० मनमें मैथुनका विचार रखना ( जैन ) । - बाचक - वि० किसी चीजका भाव, धर्म गुण आदि बतानेवाला । - वाच्य - पु० क्रियाका वह रूप जिसमें वाक्यका उद्देश्य कर्ता या कर्म न होकर भाव होता है । -व्यंजक- वि० भावबोधक | - शबलतास्त्री० एक अलंकार जिसमें भावोंकी संधि होती है । - शांति - स्त्री० एक प्रकारका वर्णन जिसमें एक भावकी शांतिके साथ दूसरेका उदय होता है और शांति ही चमत्कार होता है । -शुद्धि-स्त्री० भावकी सचाई, नेक नीयती । - शून्य - वि० अनासक्त । - संधि - स्त्री० वह स्थिति जब मनमें एक साथ कई प्रबल भाव उत्पन्न हों । भावइ* - अ० मनमें आये, जी चाहे तो । भावक - * अ० थोड़ा । वि० [सं०] भावना करनेवाला; प्रेमी; उत्पादक; श्रेयस्कर; रसज्ञ; * भावभरा; भक्त । पु० भाव, मनोविकार | भावज - स्त्री० बड़े भाईकी स्त्री, भौजाई । पु० [सं०] दे० | भाषना* - स० क्रि० बोलना, कहना ।
भावोदय - पु० [सं०] एक प्रकारका वर्णन जिसमें एक भावकी शांति और दूसरेका उदय हुआ हो और उदयमें ही चमत्कार हो (सा० ) | भावोद्दीपक- वि० [सं०] भावोंको उत्तेजित करनेवाला | भावोन्मत्त - वि० [सं०] भावविह्वल । भावोन्मेष - पु० [सं०] भावका उदय ।
भाव्य- वि० [सं०] होनेवाला, भावी; भावना करने योग्य, सिद्ध करने योग्य | पु० होनी । भाष - पु० भाषा, वाणी ।
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भाषक - पु० [सं०] कहने, बोलनेवाला (समासांत में ) । भाषण - पु० [सं०] बोलना, कथन; व्याख्यान; कृपापूर्ण शब्द | - प्रतियोगिता - स्त्री० विषय विशेष पर बोलनेकी प्रतियोगिता ।
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भाषांतर-भिच्छु भाषांतर-पु० [सं०] अनुवाद, उलथा, तर्जुमा । -कार- भिंग-* पु० दे० 'भंग'; बिलनी ।। स्त्री० बाधा ।-राजपुल उलथा करनेवाला, अनुवादक।
पु० दे० 'भृगराज'। भाषा-स्त्री० [सं०] भाव प्रकट करनेका साधन; किसी भिंगाना-सक्रि० तर, सिक्त करना। विशेष देश या जन-समाजमें प्रचलित शब्दावली और उसे भिंजाना -सक्रि० दे० 'भिगोना' । बरतनेका ढंग, बोली; प्रादेशिक भाषा या बोली; हिंदी; भिंजोना, भिँजोवना*-स० क्रि० दे० 'भिगोना'। व्यक्तिविशेषके लिखने-बोलनेका ढंग; परिभाषा; शैली; | भिंड-पु० [सं०] भिंडी। सरस्वती; अर्जीदावा; एक रागिनी। -ज्ञान-पु० शब्द, भिडिपाल-पु० दे० 'भिदिपाल' । शब्दार्थ और व्याकरणका ज्ञान।-तत्त्व-पु०भाषा-विज्ञान । भिडी-स्त्री० [सं०] एक क्षुप जिसकी फली तरकारीके काम -बद्ध-वि० भाषामें लिखित ।-विज्ञान,--शास्त्र-पु० आती है, रामतरोई।। वह विज्ञान जिसमें भापाकी उत्पत्ति, रूपपरिवर्तन आदि भिंदपाल, भिदिपाल-पु० [सं०] हाथसे फंका जानेवाला विषयोंका विचार किया गया हो। -विद्-पु० भाषा या छोटे डंडे जैसा अस्त्र ढेलवाँस । भाषाओंका अच्छा शाता। -सम-पु० एक शब्दालंकार- भिसार-पु० सबेरा, उषाकाल । शब्दोंकी ऐसी योजना जिससे वाक्य कई भाषाओंकामाना भिआ-पु० भाई। जा सके।
भिक्षण-पु० [सं०] भीख माँगना । भाषित-वि० [सं०] कथित, उक्त । पु० कथन, बोली। भिक्षा-स्त्री० [सं०] माँगना, याचना, भीख; सेवा; भृति, भाषिता(त)-पु० [सं०] बोलने, बात करनेवाला । मजदूरी; भिक्षु, संन्यासीको भोजनार्थ दिया जानेवाला भाषी(पिन्)-वि० [सं०] (समासके अंतमें ) बोलनेवाला (सिद्ध ) अन्न ( करना, कराना )। -चर-पु० भिक्षक । (हिंदीभाषी, बँगलाभाषी)।
-चर्या-स्त्री. भीख माँगना, भिक्षावृत्ति । -जीवी भाष्य-पु० [सं०] बोलना; भापामें लिखित कोई ग्रंथ सूत्र (विन्)-पु० भीख माँगकर जीविका चलानेवाला । - या मूल ग्रंथकी व्याख्या, विवृति; व्याख्या। वि. कहने पात्र-पु० भीख माँगनेका बरतन, कपाल; भिक्षाका अधियोग्य । -कार-कृत्-पु० भाष्य लिखनेवाला।
कारी। -भांड-पु० भीख माँगनेका बरतन । -भाजन भासंत-वि० [सं०] प्रकाशमान; मुंदर । पु० सूर्य चंद्र -पु० दे० 'भिक्षापात्र' । -वृत्ति-स्त्री० भीख माँगकर नक्षत्र ।
गुजर करना, भिखारीका जीवन । भासंती-स्त्री० [सं०] तारा।
भिक्षाटन-पु० [सं०] भीख माँगनेके लिए फिरना। भास-पु० [सं०] चमक, दीप्ति; कल्पना; गोष्ठ; गीध | भिक्षान-पु० [सं०] भिक्षा में प्राप्त अन्न । मुर्गाः स्वप्नवासवदत्ता आदिके कर्ता, कालिदाससे पूर्ववर्ती भिक्षार्थी(थिन्)-वि०, पु० [सं०] भीख माँगनेवाला, (संस्कृत) महाकविः शकुंत पक्षी ।
भिखारी। भासक-पु० [सं०] चमकानेवाला, प्रकाशक । भिक्षाह-वि० [सं०] भिक्षा देने योग्य । भासना*-अ० क्रि० प्रतीत होना; प्रकाशित होना, बना, भिक्षित-वि० [सं०] भिक्षारूप में प्राप्त । धसना-'यह मत दें गोपिन कह आवहु बिरह नदी में भिक्षी (क्षिन)-वि० [सं०] भाख मागनवाला । भासति'-सू०। सक्रि० बोलना, कहना।
भिक्ष-पु० [सं०] भीख माँगनेवाला; संन्यासी; बौद्ध भासमंत*-वि० चमकदार ।
संन्यासी । -चर्या-स्त्री० भिक्षावृत्ति । -रूप-पु० महाभासमान-वि० [सं०] जान पड़ता हुआ दिखाई देता | देव । -संघ-पु० बौद्ध संन्यासियोंका संघ ।-संघातीहुआ । * पु० सूर्य ।
स्त्री० भिक्षुकके कपड़े, चीवर, गुदड़ी। -सूत्र-पु० बौद्ध भासित-वि० [सं०] प्रकाशित, चमकीला ।
भिक्षुओंके लिए बने हुए नियमोंका संग्रह । भासी(सिन)-वि० [सं०] चमकनेवाला ।
भिक्षक-पु० [सं०] भीख माँगनेवाला, भिखारी। भासुर-वि० [सं०] चमकीला, दीप्तिमान् ; भयंकर । पु० भिक्षुकी-स्त्री० [सं०] भिक्षुक स्त्री। वीर; स्फटिक कुष्ठौपध ।
| भिक्षुणी-स्त्री० [सं०] बौद्ध संन्यासिनी । भास-स्त्री० [सं०] चमक, दीप्तिः किरण; आभास प्रति- भिखमंगन, भिखमंगिन-स्त्री० भिखारिन, भिक्षुकी। बिंब; इच्छा। -कर-पु० सूर्यः वीर, सिद्धांतशिरोमणिके | भिखमंगा-पु० भीख माँगनेवाला। कर्ता प्रसिद्ध ज्योतिपी (११ वी-१२ वीं शती)। -कर- भिखारिणी-स्त्री० दे० 'भिखारिन'।
कर-प्रिय-पु० लाल। -करि-पु० भिखारिन, भिखारिनी-स्त्री० भिक्षुकी, भिखमंगन । शनि ग्रह ।
भिखारी-पु० भीख माँगनेवाला, भिक्षुक । वि० कंगाल, भास्कर-पु० धातु, पत्थर आदिको खोद, छीलकर मूर्ति अकिंचन। आदि बनानेवाला; दे० 'भास'में।
भिखिया*-स्त्री० भीख । भास्कर्य-पु० धातु, पत्थर आदिकी मूर्ति बनानेकी कला। भिखियारी -पु.भिखारी। भास्वर-वि० [सं०] दीप्तिमान्, चमकीला। पु० सूर्य भिगाना-सक्रि० दे० 'भिगोना' । दिन; अग्नि ।
भिगोना-स० क्रि० पानी आदिसे तर करना। भास्वान (स्वत्)-वि० [सं०] दीप्तिमान्, चमकता हुआ। भिच्छा*-स्त्री० दे० 'भिक्षा'। -पु० सूर्य वीर दीप्ति ।
भिच्छु*-पु० दे० 'भिक्षु'। ३८-क
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भिच्छुक भीत
६०० भिच्छक-पु० दे० 'भिक्षुक' ।
भिन्नार्थ-वि० [सं०] भिन्न उद्देश्यवाला; स्पष्ट अर्थवाला । भिजवना*-स० क्रि० भिगानेका क
ना; भिन्नोदर-पु० [सं०] सौतेला भाई । भिगोना।
भियना*-अ० क्रि० डरना, भीत होना। भिजवाना-स० क्रि० भेजनेका काम दूसरेसे कराना। भिया-स्त्री० [सं०] भय । * पु० दे० 'भिआ' (भाई)। भिजाना, भिजोना*-स० क्रि० दे० 'भिगोना' । भिरंग-पु० दे० 'भुंग' । भिटनी-स्त्री० स्तनका अग्रभाग, चूचुक ।
भिरना*-अ० कि० दे० 'भिड़ना। भिड़त-स्त्री० मुठभेड़, टकर।
भिरिंग*-पु० दे० 'भृग' । भिड़-स्त्री० ततैया, बरें । -का छत्ता-ऐसा कुल, कुटुंब | भिलनी-स्त्री० दे० 'भीलनी'। जिसके एक आदीको छेड़िये तो सब लड़नेको अमादा भिलावाँ-पु० एक जंगली पेड़ जिसका फल दवाके काम हो जायँ ।
__ आता है और उससे तेल भी निकाला जाता है। भिड़ना-अ० क्रि० टकराना; सटना; लड़ना; गुथना। मिल्ल-पु० [सं०] भील । -भूषण-पु० घुघची। भितरिया -वि० भीतर रहने, आने-जानेवाला, अंतरंग। भिल्ली-स्त्री० [सं०] लोध ।।
पु० वल्लभ-कुलके मंदिरों में भीतर रहनेवाला पुजारी। भिश्त*-पु० दे० बिहिश्त'। भितल्ला-पु० कपड़ेके भीतरका पल्ला, अस्तर । वि० भिश्ती-पु० मशकसे पानी ढोनेवाला, सका । भीतरी।
भिषक(ज)-पु० [सं०] वैद्य, चिकित्सक दवा, उपचार । भितल्ली-स्त्री० चक्की के नीचेका पार; दे० 'भितल्ला'। -पाश-पु० अताई वैद्य । -निया-स्त्री० गु.दुच । भिताना*-अ० कि० डरना, भीत होना ।
भिषग्विद-पु० [सं०] चिकित्सक, वैद्य । भित्ति-स्त्री० [सं०] भीत, दीवार; नीव चित्राधार; भेद, भिष्टा, मिसटा -स्त्री० मल, विष्ठा । दरार खंड टूटी हुई वस्तु; चटाई; दोष अवसर । -चित्र भिसत*-स्त्री० बिहिश्त, स्वर्ग । -पु० दीवारपर बना हुआ चित्र । -चौर-पु० सेंध | भिस्ती-पु० दे० 'भिश्ती' । मारनेवाला चोर ।
भिस्स-स्त्री कमलकी जड़। भित्तिक-वि० [सं०] तोड़नेवाला। पु० दीवार । भौगना-अ० कि० दे० 'भीगना' । भित्तिका-स्त्री० [सं०] दीवार; छिपकली ।
भीगी-पु० दे० 'मुंगी'। भिद*-पु० भेद, अंतर ।
भींचना* --स. क्रि० खींचना, दबाना बंद करना (आँख)। भिदना-अ० कि. छिदना, बिद्ध होना; घुसना, पैवस्त भीजना*-अ० कि० भीगना; स्नान करना; प्रविष्ट होना; होना।
मेल-जोल बढ़ाना; गद्गद होना। भिदर-पु० [सं०] भिदना, फटना; नष्ट होना; पाकरका भौंट-पु० दे० 'भोट' । स्त्री० दीवार । पेड़ वज्र; हाथी बाँधने की जंजीर । वि० छेदने, फाइने- भी-अ० अवश्य; तक; अधिक । स्त्री० [सं०] भय, भीति वाला; तुनुका मिश्रित ।
आशंका। -कर-वि० भयोत्पादक । भिद-वि० [सं०] (समासांतमें) तोड़ने, नष्ट करनेवाला। भीउ*-पु० दे० 'भीम'। स्त्री० खंडन, अंतर; प्रकार ।
भीख-स्त्री० भिक्षा, याचना; माँगनेसे प्राप्त अन्नादि, खैरात। भिद्य-वि० [सं०] भेदनीय । पु० एक नदी; करारोंको भीखन-वि० दे० 'भीषण'। काटती हुई बहनेवाली नदी।
भीखम* --पु० वि० दे० 'भीष्म' । वि० दे० 'भीषण' । भिनकना-अ० कि० भक्खियोंका भिनभिनाना; किसी भीगना-अ०, क्रि० पानासे तर होना, गीला होना । (गंदी) चीजपर मक्खियोंके झुंडका बैठना; बहुत गंदा __ -(भीगी) बिल्ली-भय या स्वार्थ से अति नम्र, दीन बना होना धिन लगना।
हुआ। -रात-आधी रातके बादकी रात जो अधिक भिनमिनाना-अ०कि. मक्खियोंका 'भिन्न भिन्न करना। ठंडी होती है। भिनसार, मिनुसार*-पु० प्रातःकाल, भोर ।
भीजना*-अ० कि० 'भीगना'। भिनही -अ० सबेरे, तड़के ।
भीट-पु०दे० 'भीटा'। भिन्न-वि० [सं०] अलग, जुदा छिन्न, खंडिता प्रस्फुटित; भीटा-पु० टीला, दूह; टीलकी शकलकी जमीन; पानकी दूसरा ढीला किया हुआ मिश्रित परिवर्तित मस्त(हाथी)। बेल चढ़ाने के लिए बनाया हुआ टीला । पु० वह संख्या जो पूर्ण संख्यासे कम हो (गणित); भीड़-स्त्री० आदमियों का जमाव, मजमा, जनसमूह; संकट रत्नका एक दोष; जख्म; फूल। -क्रम-वि० क्रमभंग (कटना, पड़ना)-भड़का-पु० दे० 'भीड़-भाद' । -भाड़ दोषयुक्त । पु० क्रमभंग । -देशीय-वि० दूसरे देशका। -स्त्री० भीड़, मजमा; धकमधक्का । -भिन्नात्मा(त्मन्)-पु० चना। मतावलंबी(बिन्)- भीड़न*-स्त्री. मलनेकी क्रिया । पु० दूसरे मत, मजहबको माननेवाला। -रुचि-वि० भीडना*-स० कि० मलना; भिड़ाना; मिलाना । जिसकी रुचि भिन्न हो। -हृदय-वि. जिसका हृदय भीड़ा*-वि० तंग, संकीर्ण । छिद गया हो।
भीडी*-स्त्री० भिंडी। भिन्नता-स्त्री० [सं०] भिन्न होनेका भाव, भेद, बिलगाव । भीत-वि० [सं०] डरा हुआ, भयग्रस्त । स्त्री० [हिं०] भिनाना-अ० क्रि० चकराना।
दीवार; छत । मु०-में दौड़ना-शक्तिसे बाहर, असंभव
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६०१
भीतर-भुकाना कार्य करने में प्रवृत्त होना ।
भीरू-वि० स्त्री० [सं०] भीरु स्वभाववाली (स्त्री)। भीतर-अ० अंदर; घरके अंदर; मध्यमें । पु० अंतर, अंतः- भीरे*-अ० पास, नजदीक । करण; जनानखाना। -का-अंदरका मनका; अप्रकट, | भील-पु० मध्यभारत, राजपूताना आदिमें पायी जानेमनमें रहनेवाला। -ही भीतर-मन ही मन ।
वाली एक जंगली जाति । - भूषण-पु० धुंघची। भीतरि*-अ० भीतर।
भीलनी-स्त्री० भीलकी स्त्री। भीतरिया-पु० दे० 'भितरिया'।
भीलु-वि० [सं०] भीरु, डरपोक । पु० भालू । भीतरी-वि० भीतरका, अंदरूनी; मनका; अप्रकट । भीलुक, भीलूक-पु० [सं०] भालू । वि० भीरु । भीति-स्त्री० [सं०] भय, डर कंप।-कर,-कारी(रिन्)- भीव*-पु० भीम। वि० भयंकर । -कृत्-वि० भयोत्पादक ।
भीष*-स्त्री० दे० 'भीख' । भीती-स्त्री० भय; दीवार ।
भीपज*-पु. भिषक , वैद्य । भीन-पु० भोर, भिनसार ।
भीषण-वि० [सं०] भय उपजानेवाला, डरावना । पु० भीनना-अ० क्रि० भीगना; पैवस्त होना, जज्ब होना; भयानक रस; शिव कुंदरू; हिताल । भर जाना।
भीषणता-स्त्री० [सं०] डरावनापन । भीनी-वि० स्त्री० हलकी, मीठी (खुशबू )।
भीपणाकार-वि० [सं०] डरावनी शकलवाला। भीम-वि० [सं०] डरावना, भय उपजानेवाला; विशाल• भीपन*-वि० दे० 'भीषण। काय । पु० भयानक रस; शिव, परमेश्वर; पाँचों पांडवों- भीषम --वि० दे० 'भीम' । पु० देवव्रत, गांगेय । भेमे दूसरे जो वायुके पुत्र माने जाते हैं, भीमसेन; भीषा-स्त्री० [सं०] राना, भयप्रदर्शन; भय । दभयंती के पिता विदर्भनरेश; बुभवार्णका बेटा। -कर्मा भीष्म-वि० [सं०] भयानक, भीषण । पु० भयानक रस; (मन)-वि० हराबने काम करनेवाला; महा पराक्रमी। | रुद्रागंगाके गर्भसे उत्पन्न शांतनुके पुत्र, देवव्रत, गांगेय । -कुमार-पु० घटोत्कच । -दर्शन-वि० डरावनी -जननी,-सू-स्त्री० गंगा ।-पंचक-पु० कार्तिक शुक्ला शकलवाला, भीमरूप । -द्वादशी-स्त्री० माघ शुक्ला एकादशीसे पूर्णिमातकके पाँच दिन जिनमें व्रत रखनेका द्वादशी। -नाद-वि० डरावनी आवाजवाला । पु० विधान है। -पितामह-पु. भीष्म । डरावनी आवाज; शेर; प्रलयकालमें प्रकट होनेवाले सात भीष्मक-पु० [सं०] रुक्मिणीके पिता, विदर्भ-नरेश । बादलों से एक । -पराक्रम,-विक्रम-वि० जिसका
पराक्रमा-विक्रम-वि० जिसका -सुता-स्त्री० रुक्मिणी। पराक्रम दूसरोंके दिल में भय पैदा करे, महाबली। भीष्माष्टमी-स्त्री० [सं०] माध-शुक्ला अष्टमी जिस दिन --पूर्वज-पु० युधिष्ठिर । -रथी-स्त्री० ७७३ वर्षके भीष्मने प्राणत्याग किया। ७ मासकी ७वीं रात जिसे पार करना बहुत कठिन माना भीसम-वि०, पु० दे० 'भीष्म' गया है; एक पुराणोक्त नदी । -रूप-वि० डरावनी भुइ-स्त्री० 'भुई', भूमि । शकलवाला। -विग्रह-वि. भयानक शरीर, शकल-भुंजना*-स० क्रि० जलाना, भूनन।। वाला। -वेग-वि० भयानक वेगवाला । -शासन-पु० जना-अ० क्रि० भूना जाना; झुलसना । यम ।-सेन-पु० पाँचों पांडवों में से दूसरे, भीम, दमयंतीके पिताका नाम; भीमसेनी कपूर । -सेनी-वि० [हिं०] भुंजवा --पु० भड़ जा। भीमसेन-संबंधी। पु० भीमसेनी कपूर ।-सेनी एकादशी-भंडा-वि०बिना सींगका (बैल आदि); दुष्ट, बदमाश स्त्री० ज्येष्ठ-शुका एकादशी, निर्जला एकादशी। -सेनी -'कयो न मानै भुंडी रॉड़'-सुंदर। कपूर-पु० एक तरहका कपूर जो अधिक सुगंधित होता भुअंग भुअंगम-* पु० दे० 'भुजंग', 'भुजंगम'। है, बरास । मु०-के हाथी-न लोटनेवाली वस्तु । भु -स्त्री० भी। भीमता-स्त्री० [सं०] डरावनापन ।
भुअन*-पु० दे० 'भुवन'। भीमराज-पु० शृंगराज पक्षी ।
भुअना*-अ०क्रि० भूलना, बहकना। भीमा-वि० स्त्री० [सं०] डरावनी, भीषण रूप, आकार- भुआ-पु० दे० 'भूआ'। वाली। स्त्री० रोचना नामका गंधद्रव्य; दुर्गा; चाबुक
भुआर, भुआल*-पु० भूपाल, राजा। दक्षिण भारतकी एक नदी।
भुइँ-स्त्री० दे० 'भूमि' । - आँवला-पु. एक धास जो भीर-* स्त्री० दे० 'भीड़'; आधिक्य-'उर न समात प्रेमकी दवाके काम आती है। -कंप-पु० दे० 'भूकंप'।-चाल, भीर'-गीता०। वि० * भीत भीरु [सं०] डरानेवाला,
-डोल*-पु० भूकंप । -तरवर-पु० सनायकी जातिभय प्रदर्शित करनेवाला।
का एक पेड़। -धरा-पु० तहखाना; आवाँ लगानेकी भीरना*-अ० क्रि० डरना ।
एक रीति । -हरा*-पु० तहखाना। -हारी-पु० दे० भीरु-वि० [सं०] डरपोक (-से) डरनेवाला (पापभीरू)। 'भूमिहार'; एक जंगली जाति । पु० सियार पाध; कनखजूरा; एक तरहका ऊख । स्त्री० भुक*-पु० भोजन, आहार; अग्नि । सतावर; भटकटैया; डरपोक स्त्री; चाँदीबकरी; छाया। भुकड़ी -स्त्री० फफूंदी। भीरता-स्त्री० [सं०] भयशीलता, बुजदिली।
भुकराँद, भुकरायँध-स्त्री० सइनेसे उत्पन्न दुर्गध । भोरुताई-स्त्री० दे० 'भीरुता'।
भुकाना-स० कि० भूकने, बकवाद करने में प्रवृत्त करना।
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भुक्कड़-भुरता
६०२ भुक्कड़-वि० दे० 'भुक्खड़'।
मोर नेवला ।-ग-राज-पु० शेषनाग ।-च्छाया-स्त्री० भुक्खड़-वि० भूखा, पेटू; जिसके पास कुछ न हो, कंगाल।। निरापद् आश्रय । -दंड-पु० दंड-रूप हाथ; लंबा हाथ भुक्त-वि० [सं०] खाया हुआ; भोगा हुआ; जो भोगा जा |
बाहमें पहननेका तीन फेरेका एक गहना। -दल-पु० रहा हो। पु० भोजन (सं०)। -पूर्व-वि० जो पहले हाथ ।-पाश-पु० गलबाही । -बंद-पु० [हिं०] बाजूभोगा जा चुका हो। -भोग-वि० जो भोग चुका हो । बंद |-बंध-पु० केयूर ।-बंधन-पु० भुजपाश, बाहोंके जो भोगा गया हो। -भोगी-वि० [हिं०] जो किसी भीतर भर लेना। -बल-पु. बाहुबल । -बाथ*चीजका दुःख-सुख उठा चुका हो, कृतभोग। -शेष-पु० पु० अँकवार । -मध्य-पु० कोड। -मूल-पु० कंधा । खानेसे बचा हुआ अन्नादि, उच्छिष्ट ।
-यष्टि-स्त्री० भुजदंड। -लता-स्त्री० लता जैसी भुक्ति-स्त्री० [सं०] भोजन; भोग; आहार; कब्जा, दखल; कोमल कमनीय बाँह । -वीर्य-पु० भुजबल । ग्रहकी दैनिक गति सीमा। -पान-पु० खानेका बर- भुजगांतक-पु० [सं०] गरुडा मोर नेवला । तन, थाल आदि ।
भुजगाशन-पु० [सं०] मोर, गरुड़ । भुक्तोच्छिष्ट-पु० [सं०] जूठन ।
भुजगी-स्त्री० [सं०] सर्पिणी; अश्लेषा नक्षत्र । भुखमरा-वि० भूखों मरनेवाला, भुक्खड़ ।
भुजगेंद्र, भुजगेश-पु० [सं०] शेषनाग, वासुकि । भुखमरी-स्त्री० भूखों मरनेकी स्थिति पोषणके अभावमें भुजपात*-पु० दे० 'भूर्जपत्र'। क्षीण होना।
भुजरिया*-स्त्री० जरई। भुखाना-अ० क्रि० क्षुधित होना।
भुजवा -पु० भड़ जा । भुखालू*-वि० भूखा।
भुजा-स्त्री० [सं०] बाहु, भुजा; सर्पकी कुंडली (आर्म) भुगत-स्त्री* बिसात; * दे० 'भुक्ति' ।
कोण वनानेवाली दो सरल रेखाओंमेंसे कोई भी एक । भुगतना-स० क्रि० भोगना, सहना । अ० क्रि० बीतना, -मूल-पु० कंधा, बाहुमूल । मु०-उठाकर कहना,पूरा होना। मु० भुगत लेना-निबट लेना, समझ | टेकना-प्रतिज्ञा करना। लेना।
भुजाली-स्त्री० एक तरहका टेढ़ा छुरा, खुखरी। भुगतान-पु० भुगतानेकी क्रिया, कीमत या देनका चुकता भुजिया-पु० उबाले हुए धानका चावल । किया जाना; गाहकको खरीदा हुआ माल देना (डेलि-भुजेना-पु० चबैना। वरी); निबटारा। -तुला-स्त्री० (बैलेंस ऑफ पेमेंट)। भुजीना*-पु० भुना हुआ अन्न; भुनाईमें दिया जानेहिसाबकी वे मदें (व्यापारकी वस्तुएँ, पूँजी, सूद, बीमाशुल्क, जहाजका किराया आदि) जिनके संबंधमें एक भुट्टा-पु० मक्केकी हरी बाल; जुआर या बाजरेकी बाल । देशको दूसरे देशोंसे कुछ पावना हो या दूसरे देशोंको भुतनी-स्त्री० स्त्री प्रेत; दे० 'भूतिनी'। देना हो।
भुनगा-पु० उड़नेवाला छोटा कीड़ा, फतिंगा; तुच्छ, भुगताना-स० क्रि० चुकाना, अदा करना; समाप्त करना; नगण्य प्राणी। बिताना; पहुँचाना (मेरी सारी बातें वहाँ भुगता दी); भनगी-स्त्री० ईखकी फसलको लगनेवाला एक कीड़ा । भुगतनेके लिए बाध्य करना।
भुनना-अ० क्रि० भूना जाना, सिकना; रुपये आदिका भुगाना-सक्रि० भोग कराना, भोगवाना ।
छोटे सिक्कों में बदला जाना । भुगुत-स्त्री० बिसात; * दे० 'भुक्ति' ।
भुनभुनाना-अ० क्रि० 'भुन-भुन' करना, अस्पष्ट स्वरमें भुगुति-स्त्री० दे० 'भुक्ति'-'चला भुगुति माँगै कहँ कुढ़न प्रकट करना। साधि कथा तप जोग'-५०।
भुनवाई, भुनाई-स्त्री० भुनानेके बदलेमें दी जानेवाली भुग्गा-वि० बुद्धू , मूर्ख ।
रकम, भाँज; भूननेकी उजरत । भुच्च, भुच्चड़-वि० मूर्ख, जड़मति ।
भुनाना-सक्रि० नोटको रुपयों या किसी बड़े सिक्केको भुजंग-पु० [सं०] साँप; जार; पति; सीसा; अश्लेषा छोटे सिक्कोंमें बदलवाना; भूननेका काम दूसरेसे कराना। नक्षत्र, आठकी संख्या विदूषक । -घातिनी-स्त्री० भबि*-स्त्री० दे० 'भूमि' । काकोली। -भक(ज)-पु० गरुड; मोर। -भोगी-भूमिया-पु० दे० 'भूमिया' (जमींदार)। (गिन)-पु० मोर, गरुड । -भोजी(जिन)-पु० भुरकना-सक्रि०छिड़कना, बुरकना । अ० क्रि० भुरभुरा मोर, गरुड; एक तरहका साँप। -शत्रु-पु० गरुड । होना; * भूलना, बहक जाना । भुजंगम-पु० [सं०] साँप: सीसा; राहु, आठकी संख्या। भुरकस-पु० दे० 'भुरकुस' । भुजंगिनी-स्त्री० [सं०] सर्पिणी; एक छंद ।
भुरकाना -स० क्रि० भुरभुराना, छिड़कना; * भुलावा भुजंगी-स्त्री० [सं०] सर्पिणी, नागिन; एक वर्णवृत्त । देना। भुजंगेश-पु० [सं०] दे० 'भुजगेश'।
भुरकुन-पु० चूर्ण। भुज-पु० [सं०] बाहु; बाजू; हाथ; हाथीकी सुंडा डाली; भुरकुस-पु० चूर्ण; वह वस्तु जो चूर-चूर हो गयी हो। रेखागणितके किसी क्षेत्रकी सीमारेखा, बाहु; त्रिभुजका | मु०-निकलना-चूर-चूर होना; पीटकर भरता बना आधार; छायाका मूल । -कोटर-पु० काँख । -ग- दिया जाना। पु० साँप ।-ग-दारण,-ग-भोजी(जिन)-पु० गरुडा | भुरता-पु० दे० 'भरता'।
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भुरभुरा-भू भुरभुरा-वि० चूर्णरूप; जो झट टूटकर चूर्णरूप हो जाय । जमीन -हट-स्त्री० भुरभुरापन ।
मूंसना-अ० क्रि० पूँकना । भुरवना*-स० क्रि० भुलावा देना, बहकाना ।
भू-स्त्री० [सं०] भूमि, धरती, जमीन; स्थानयज्ञाग्नि भुरसना*-अ० कि०, सक्रि० भुलसना ।
एकका संकेत; पदार्थ । वि० (समासांतमें ). "से उत्पन्न भुरहरा*-पु० भोर, तड़का ( भुरहरी बेर - प्रातःकाल)। होनेवाला (स्वयंभू , मनोभू)। -कंप-पु. भूगर्भ में भुराई*-स्त्री० भोलापन ।
होनेवाली उथल-पुथलसे धरतीकी ऊपरी सतहका हिलना, भुराना*-अ० क्रि० भुलावे में आना । स० क्रि० भुलवाना, | भूचाल । -कंप-मापक,-कंप-सूचक यंत्र-पु० (साइजबहकाना; भूल जाना।
मोमीटर, साइजमोग्राफ) भूकंपके धक्के, भूकंपके केंद्रकी भुरावना-अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'भुराना। दूरी,प्रवेग आदि सूचित करनेवाला यंत्र ।-कंप-विज्ञानभु(रिका, भुर्भुरी-स्त्री० [सं०] एक तरहकी मिठाई । पु० (साइजमोलॉजी) भूकंपके कारणों तथा स्वरूप आदिका भुर्रा-वि० बहुत काला । पु० विशेष प्रकारसे बनायो विवेचन करनेवाला विज्ञान ।-कर्ण-पु० पृथ्वीका व्यास । हुई एक तरहकी चीनी।
-कर्मी(मिन)-पु० (ग्राउंडस्टाफ) हवाई अड्डेके वे भुलक्कड़-वि० बहुत भूलनेवाला, विस्मरणशील । कर्मचारी जिन्हें उड़नेवाले विमानके साथ रहकर नहीं, भुलना -वि०विस्मरणशील । पु० एक तरहकी धास।। वरन् भूमिपर ही काम करना पड़ता है। -खंड-पु० भुलवाना-स० क्रि० भूलनेको प्रेरित करना; बहकाना; भूभाग।-गर्भ-पु०धरतीका भीतरी भाग ।-गर्भ-गृहभुलाना।
पु० तहखाना । -गर्भ-विद्या-स्त्री० दे० 'भूगर्भशास्त्र' । भुलसना-अ० क्रि० स० क्रि० गरम राखमें झुलसना । -गर्भशास्त्र-पु. वह शास्त्र जिससे भूमिकी भीतरी भुलाना-स० क्रि० भूलना; दे० भुलवाना । अ० क्रि० बनावटका ज्ञान हो। -गृह,-गेह-पु० तहखाना । भुलावे में पड़ना; बहकना; विस्मरण होना।
-गोल-पु०भूमंडल; भूगोलशास्त्र।-गोल-विद्या-स्त्री०, भुलावा-पु० बहकानेकी युक्ति, धोखा, चकमा ।
-गोल-शास्त्र-पु. पृथ्वीके बाह्य रूप, प्राकृतिक विभाग भुवंग*-पु० दे० 'भुजंग'।।
आदिका ज्ञान करानेवाली विद्या या शास्त्र । -गोलकभुवंगम*-पु० दे० 'भुजंगम' ।
पु. भूमंडल। -चर-वि० स्थलचर । पु० स्थलचर प्राणी भुव-पु० [सं०] भुवोका अग्नि । * स्त्री० भूमि; भौं।। शिव । -चरी-स्त्री० योगकी एक मुद्रा। -चर्या,
-पति-पु० राजा । -पाल*-पु० दे० 'भूपाल'। च्छाया-स्त्री०, धरतीकी छाया; अंधकार । -चालभुवन-पु० [सं०] जगत् , लोक (तीन या चौदह); जन, | पु० [हिं०] भूकंप । -छाया-स्त्री० (अंबा) सूर्यग्रहण प्राणी; आकाश; जल; समृद्धि; चौदहकी संख्या (संकेत)। या चंद्रग्रहणके समय सूर्य अथवा चंद्रमाके बिंबपर पड़ने-त्रय-पु० स्वर्ग, मर्त्य और पाताल । -पावनी-स्त्री० वाली छाया। -जंतु-पु० हाथी; एक तरहका घोंधा । गंगा । -भर्ता (त)-पु० जगत्का धारण-पोषण करने- -जंबु-पु० गेहूँ बनजामुन।-जात-पु० वृक्षा-डोलवाला। -माता (त)-स्त्री० दुर्गा। -मोहिनी-वि० पु०[हिं०] भूकंप।-तत्त्व-पु०धरतीकी बनावटका विज्ञान । स्त्री० जगत्को मोहनेवाली।-विदित-वि० जगत्प्रसिद्ध । -तत्त्व-विज्ञान-पु०,-तत्त्व-विद्या-स्त्री० भूगर्भशास्त्र । भुवनेश्वर-पु० [सं०] राजा शिव; उड़ीसाके अंतर्गत एक -तत्त्व-विद्-पु. भूगर्भशास्त्रका पंडित । -तल-पु. प्रसिद्ध तीर्थ, वहाँ स्थापित शिवलिंग ।
जमीनकी सतह, धरातल, भूपृष्ठ ।-ताली-स्त्री०भूपाटली; भुवनेश्वरी-स्त्री० [सं०]दस महाविद्याओंके अंतर्गत एक देवी। मुघली। -तुंबी-स्त्री० एक तरहकी ककड़ी। -तृणभुवनौका (कस्)-पु० [सं०] देवता ।
पु० रूसा नामकी घास । -दान-पु० घर, जमीन, खेत भुवर्लोक-पु० [सं०] अंतरिक्ष लोक ।
आदिका दान, भूमिहीन वर्गमें भूमिका वितरण करनेके भुवा-पु० घुआ; रुई।
लिए चलाये गये आन्दोलनमें सहयोग करते हुए खेतों, भुवाल, भुवार*--पु० दे० 'भूपाल'।
बाग-बगीचों आदिका दान करना। -दार-पु० सूअर । भुवि*-स्त्री० दे० 'भूमि'।
-दृश्य-पु० (लैंडस्केप) भूमिका वह दृश्य जो किसी ओर भुशंडि-पु० [सं०] काकभुशुडि । स्त्री० एक अस्त्र । दृष्टि डालनेपर दूर-दूरतक दिखाई दे, किसी भूभागमें भुस-पु० भूसा।
स्थित पेड़ों, पहाड़ों, नदियों आदिका दृश्य। -देव-पु० भुसी*-स्त्री० दे० 'भूसी' ।
ब्राह्मण ।-धन-पु० राजा ।--धर-पु० पहाड़ शेषनाग भुसुंड-स्त्री० सैंड।
रस आदि बनाने के काम आनेवाला एक यंत्र; कृष्णशिव भुसुंडी* -पु० दे० 'भुशंडि' ।
सातकी संख्या। -धर-राज-पु० हिमालय । -नागभुसौरा-पु. भूसा रखनेका घर ।
पु० भूमिनाग, केंचुआ । -निब-पु० चिरायता। भुक्ना-अ० क्रि० कुत्तेका भौं-भौं करना; व्यर्थ बकना । । -नेता(त)-पु० राजा। -प-पु० राजा। -पटलअॅजना -स० क्रि० पकाना; सताना; * भोगना-'राज | पु० पृथ्वीकी ऊपरी सतह । -पति-पु० राजा; शिव; कि भूजब भरत पुर नृप कि जियहिं बिनु राम'-रामा । इंद्र। -पतित-वि० पृथ्वीपर (घायल आदि होकर) मूंजा -पु० भड़भूजा; भूना हुआ अन्न, चबैना।
गिरा, पड़ा हुआ। -परिधि-स्त्री० पृथ्वीकी परिधि । भुंड-स्त्री० बालू मिली हुई भुरभुरी मिट्टी।
-परिमाप-स्त्री. (लैंड सर्वे) भूमिके किसी टुकड़े या मँडरी-स्त्री० नाऊ, बारी आदिको माफी मिलनेवाली देश, राज्यादिकी भूमिकी नाप-जोख। -पवित्र-पु०
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भूआ - भूमयी
गोवर । - पाल - पु० राजा; [हिं०] मध्य भारतका भोपाल राज्य; उसकी राजधानी । - पुत्र- पु० मंगल ग्रह; नरकासुर । पुत्री - स्त्री० सीता । भर्ता (तृ) - पु० राजा । - भाग - पु० भूखंड, प्रदेश । - भार - पु० धरतीपर होनेवाले पापका भार ।-भार-हारी (रिन् ) - पु० परमेश्वर । - भुक ( ज ) - पु० राजा । भृत्पु० पहाड़ राजा; विष्णुः सातकी संख्या । - मंडल - पु० धरती, भूगोल | - मध्यसागर - पु० यूरोप और एशियाके बीच अवस्थित समुद्र । - महेंद्र - पु० राजा । -मापन - पु० (सर्वे) सीमा आदि निर्धारित करनेकी दृष्टिसे किसी खेत, भूमिके टुकड़े या देश-प्रदेश आदिकी नाप-जोख ( पैमाइश ) करना । -रह- पु० वृक्ष अर्जुन वृक्ष । - रुहा - स्त्री० दूव । - लता - स्त्री० केचुआ । -लोड़पु० मर्त्यलोक | - लोटन - वि० [हिं०] धरतीपर लोटनेवाला । - वलय- पु० पृथ्वीकी परिधि । -वल्लभपु० राजा । - शक्र पु० राजा । -शय-पु० विष्णु; बिल में रहनेवाला जंतु । - शय्या - स्त्री० जमीनपर सोना । - शायी (यिन) - वि०जमीनपर सोनेवाला; भूमिपर गिरा हुआ; गृत । -संपत्ति - स्त्री० जमीन के रूपमें संपत्ति (खेत, जमींदारी) । - संस्कार - पु० यज्ञके लिए भूमिको लीपना, नापना, रेखाएँ खींचना आदि । -सुत - पु० मंगल; नरकासुर - सुता - स्त्री० सीता । - सुर-पु० ब्राह्मण । - स्पृक् (श्) - पु० मनुष्य !- स्फोट - पु० कुकुरमुत्ता । - स्वर्ग पु० धरतीपर स्वर्गरूप स्थान; सुमेरु पर्वत । - स्वामी ( मिनू ) - पु० जमीनका मालिक, जमींदार | - हरा* - पु० दे० 'भुइँहरा' ।
।
भूआ - पु० रुई । वि० सफेद । * स्त्री० बुआ ।
भूई - स्त्री० रुईका छोटा गाला ।
भूक- स्त्री० भूख ।
भूकना - अ० क्रि० दे० 'भूँकना' । भूख - स्त्री० आहारकी आवश्यकता से उत्पन्न विकलता, भोजनकी इच्छा, क्षुधा; इच्छा । - हड़ताल - स्त्री० बंदियों आदिका विरोध में खाना न खाना । मु०-मर जानाक्षुधाका नष्ट हो जाना; भूख न लगना । (भूखाँ ) मरनाक्षुधा कष्टसे पीड़ित होना, निराहार रहना ।
भूखण, भूखन- पु० दे० 'भूषण' | भूखना - * स० क्रि० सजाना, भूषित करना । अ० क्रि०
उपवास करना ।
भूखा - वि० जिसे भूख लगी हो, क्षुधित; किसी चीजको चाह रखनेवाला, इच्छुक; भुक्खड़ । -नंगा - वि० अन्नवस्त्र के कष्ट से पीड़ित, दीन, दरिद्र । मु०-रहना - उपवास करना; व्रत रखना ।
भूटानी पु० भूटानका निवासी; भूटानका घोड़ा । स्त्री० भूटानकी भाषा । वि० भूटान संबंधी; भूटानका । भूटिया - वि० भूटानका । पु० भूटानका रहनेवाला । भूड़ - स्त्री० बलुई जमीन; कुएँका सोता । भूत - वि० [सं०] जो हो चुका हो, अतीत, बीता हुआ; वस्तुतः घटित; उत्पन्न; सत्य; प्राप्त; युक्त; रूप या अव स्थाविशेषको प्राप्त ( घनीभूत, पुंजीभूत ); सध्श । पु० पंचमहाभूतों- पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश मेंसे
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६०४
कोई एक तत्त्व; प्राणी; प्रेत, पिशाच; बीता हुआ समय, भूत काल | -काल-पु० गत काल । -कालिक - वि० भूत काल-संबंधी - खाना- पु० [हिं०] गंदा घर । - ग्रस्त - वि० जिसे भून लगा हो। - दया- स्त्री० संपूर्ण प्राणियों के प्रति दयाभाव - नाथ- पु० शिव । - नायिका - स्त्री० दुर्गा । - नाशन- पु० रुद्राक्ष; सरसों; भिलावाँ; हींग । - पूर्व- वि० जो पहले हो चुका है, पूर्ववर्ती, पहला । प्रेत- पु० भूत-पिशाच आदि । - भावन- पु० भूतोंके स्रष्टा, ब्रह्मा शिव विष्णु । - भाषा - स्त्री०, - भाषित - पु० प्रेतोंकी भाषा, पैशावी । - वाद - पु० भौतिकवाद | -वाहन- पु० शिव। -विद्या - स्त्री० आयुर्वेदका वह विभाग जिसमें पिशाच आदिकी बाधासे उत्पन्न रोगोंका इलाज बताया गया है। - सिद्ध - वि० जिसने भूत-प्रेत आदिको वशमें कर लिया है। सृष्टिस्त्री० भूर्तीकी राष्टि; भूतावेशसे उत्पन्न भ्रांति । - हत्या - स्त्री० जीववध | मु०-उतरना - पागल कर देनेवाले गुस्सेका उतर जाना; खन्तका दूर हो जाना । का पकवान, - की मिठाई - भ्रमवश दिखाई देनेवाला पदार्थ, जल्द नष्ट हो जानेवाला पदार्थ । चढ़ना, - सवार होना- गुस्से में पागलसा हो जाना। -बनकर लगनाबुरी तरह पीछे लगना। -बनना - नशेमें चूर होना; क्रोधाभिभूत होना; किसी काममें भिड़ जाना । (किसी बातका ) - सवार होना- किसी चीज के पीछे पड़ जाना, उसका हठ पकड़ लेना ।
भूतनी - स्त्री० स्त्रीप्रेत, भुतनी; दे० 'भूतिनी' । भूतांतक - पु० [सं०] यमः रुद्र ।
भूतात्मा (मन्) - पु० [सं०] परब्रहा हिरण्यगर्भः विष्णु; शिव; जीवात्मा; देह |
भूताधिपति - पु० [सं०] शिव । भूतानुकंपा - स्त्री० [सं०] जीवदया | भूताविष्ट - वि० [सं०] जिसे भूत लगा हो । भूतावेश- पु० [सं०] भूत लगना, प्रेतबाधा ! भूति - स्त्री० [सं०] होना, उत्पत्ति; संपत्ति, वैभव; अणिभादि अष्ट सिद्धियाँ; भभूत । - भूषण, वाहन - पु० शिव । - वर्धन- वि० ऐश्वर्य बढ़ानेवाला । भूतिनी - स्त्री० भूतयोनिप्राप्त स्त्री; डाकिनी । भूतेश-५० [सं०] शिव । भूतेश्वर - पु० [सं०] शिव ।
भूतोन्माद - पु० [सं०] प्रेतबाधा उत्पन्न उन्माद । भून* - ५० दे० 'भ्रूण' ।
भूनना - स० क्रि० आगपर रखकर इस तरह पकाना कि छिलका कड़ा हो जाय; धी-तेल में तलना; गरम रेत में डालकर अन्नादिको पकाना; जलाना; बहुत कष्ट देना; बंदूकों की बाढ़ या मेशीनगनकी गोलियोंसे बहुतोंका एक
साथ वध करना ।
भूपेंद्र - पु० [सं०] राजाओं में श्रेष्ठ, सम्राट् । भूभल- स्त्री० गरम रेत या धूल; गरम राख । भूभुर, भूभुरि-स्त्री० दे० 'भूभल' | भूमय - वि० [सं०] मिट्टीका बना हुआ । भूमयी - स्त्री० [सं०] सूर्यपत्नी, छाया ।
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भूमि-भुंगी भूमि-स्त्री० [सं०] जमीन, धरती; स्थान, क्षेत्र; देश भूरा-पु० स्याह और सफेदके बीचका रंग, खाकी रंग; (भारतभूमि); जींदारी भूमिका (ना०); विस्तार, जीभ, कधी चीनी; चीनी । वि० भूरे रंगका, कपासी ।-कुम्हड़ा एककी संख्या; आधार मंजिल, तला (सप्तभूमिक प्रासाद); -पु०पेठा। योगीके चित्तकी एक अवस्था; उत्पत्तिस्थान (वीरोंकीभूमि)। भूरि-वि० [सं०] प्रचुर, बहुत ज्यादा; बड़ा । पु० ब्रह्मा -अवाहि-अधिनियम-पु० (लैंड ऐक्विजिशन ऐक्ट) किसी विष्णुः शिव; इंद्रा सोना । अ० बहुत अधिक प्रायः । सार्वजनिक कामके निमित्त या राज्यादिकी कोई विशेष -द-वि० बहुत देनेवाला, महादानी । -दा-वि० आवश्यकता पूरी करने के लिए दूसरेकी भूमि खरीदने, ले बहुत बड़ा दानी । -भाग्य-वि बड़भागी। लेनेकी अधिकार प्रदान करनेवाला अधिनियम । -कंप, भूरिता-स्त्री० [सं०] आधिक्य, बाहुल्य । -कंपन-पु० भूकंप, भूवाल ।-कदंब-पु० एक तरहका भूर्ज-पु० [सं०] भोजपत्रका पेड़। -पत्र-पु० भोजपत्र । कदंब । -कुष्मांड,-कूष्मांड-पु. जमीनपर होनेवाला | भूलोक-पु० [सं०] मर्त्यलोक; विषुवत् रेखाके दक्षिणका कुम्हड़ा, भुइँकुम्हड़ा। -गृह-पु० तहखाना । -जा- देश । स्त्री० सीता। -जीवी (विन्)-पु० जमीनसे जीविका भूल-स्त्री० भूलनेका भाव, भ्रम; चूक; दोष; गलती, करनेवाला, कृषक ।-तल-पु० जमीनकी सतह ।-दान अशुद्धि । -चूक-स्त्री० भूल, भ्रम; गलती। -चूक -पु. जमीनका दान। -देव-पु० ब्राह्मण । -धर- लेनी-देनी-हिसाबमें भूलचूक हो तो लेन-देनकी कमीपु० पर्वत शेषनाग; भूमिपर विशेष अधिकार रखनेवाला वेशी ठीक कर ली जाय (पुरजे, बिल, बीजक आदिपर किसान (आ०)। -नाग-पु० कंचुआ। -प-पु० लिखा जाता है)। -भुलैया-स्त्री. वह इमारत जिसका राजा । -पक्ष-पु० बहुत तेज घोड़ा। -पति,-पाल- रास्ता ऐसा चक्करदार हो कि आदमी जल्दी वाहर न पु० राजा क्षत्रिय । -भुक(ज)--पु० राजा। भृत्- निकल सके। -से-भृलकर, गलतीसे । पु० राजा । -रुज --पु० वृक्ष ।-रुह-पु० वृक्ष ।-रहा भूलक-वि० भूल करनेवाला। -स्त्री० दूब । -लवण-पु० शोर।।- लाभ-पु० मृत्यु। | भूलना-अ० कि० याद न रहना, विसरना; गलती करना; -लेपन-पु० धरती लीपना; गोवर । -शयन-पु०,- भटकना, गलत रास्तेपर जाना; धोखा खाना, भुलावे में शय्या-स्त्री० जमीनपर सोना। -संभव-पु. मंगल पड़ना; बेखबर, अचेत होना; इतराना; खो जाना । स० ग्रह नरकासुर ।-संभवा-स्त्री० सीता। -संरक्षण- कि० याद न रखना, भुला देना । । वि. विस्मरणशील । पु. (साँइल कंसवेंशन) कटाव आदिसे भूमिका बचाव । | भूलकर-अ० भूलसे, गलतीसे (भी)। मु० भूलकर -सत्र-पु० भूमिदानरूप यश । -सुत-पु० दे० 'भूमि- नाम न लेना-कभी याद न करना। भूला-भटकासंभव'। -सर-पु. बाहाण। -स्वामी(मिन)-पु० जो रास्ता भूलकर, साथियोंसे बिछुड़कर भटक रहा हो। राजा। -हस्तांतर अधिनियम-पु. (लैंड एलियनेशन | भूले-भटके-कभी-कभी। ऐक्ट) भूमिका स्वत्व या स्वामित्व हस्तांतरित करनेग | भूवा-पु०, वि*-दे० 'भूआ'। संबंध रखनेवाला अधिनियम। -हार-पु० मध्यदेशमें ! भूपण-पु० [सं०] गहना, जेवर; सजावट, शोभाजनक बसनेवाली एक हिंदू जाति जो अपनेको ब्राह्मण कहती है। वस्तु; विष्णु । -पेटिका-स्त्री० रत्नमंजूषा । भूमिका-स्त्री० [सं०] धरती तला; वक्तव्य विषयकी पूर्व- भृषणीय, भूष्य-वि० [सं०] अलंकृत करने योग्य । सूचना, ग्रंथादिकी प्रस्तावना, तमहोद लिखनेका तख्ता भूपन -पु० दे० 'भूषण' । योगसिद्धिकी दृष्टिसे योगीके चित्तकी कोई विशेष अवस्था भूषना*-स० क्रि० सजाना, भूपित करना। (योग); नटकी वेशभूषा अभिनेताका पार्ट । -गत-प० भूषा-स्त्री० [सं०] गहना, भूषण; सजावट, शृंगार। नाटकीय वस्त्र पहननेवाला। मु०-बाँधना-किसी बातको ! भूषाचार-पु० [सं०] ( फैशन) कपड़े आदि पहननेका सीधे-सीधे थोडेमें न कहकर उसे कहने के लिए इधर-उधरसे विशिष्ट ढंग समाजके उच्च वगों में प्रचलित या आरत ढंग, बहुत-सी बातें लाकर जोड़-तोड़ भिड़ाना।
रीति, तौर-तरीका। भूमिया-पु० जमींदार देवता।
भूषित-वि० [सं०] सजाया हुआ, अलंकृत । भूमीश्वर-पु० [सं०] राजा।
भुसन*-पु० दे० 'भूषण'। भूयः(यस्)-अ० [सं०] पुनः; और अधिक साधारणतः। | भूसना*-अ० क्रि० दे० 'भू कना'। भूयशः (यस)-अ० [सं०] अधिकतर, बहुत करके। । भूसा-पु० गेहूँ, जौ आदिका टुकड़े-टुकड़े किया हुआ डंठल भूयसी-वि० स्त्री० [सं०] वन अधिका-दक्षिणा-स्त्री० | जो पशुओंको खिलाया जाता है। धर्मकृत्यके अंतमें उपस्थित ब्राह्मणोंको दी जानेवाली थोड़ी- | भूसी-स्त्री. धान, चने, मटर आदिका छिलका । थोड़ी दक्षिणा।
भुंग-पु० [सं०] भौरा: बिलनी; लंपट, भेंगरा; मुंगराज भूयोभूयः-अ० [सं०] पुनः पुनः, बार-बार ।
पक्षी। -ज-पु० अगर; अभ्रक । -जा-स्त्री० भारंगी। भूर*-वि० दे० 'भूरि' । पु० रेत । रू० भूल ।
-पर्णिका-स्त्री. छोटी इलायची। -राज-पु० बड़ा भूरज*-पु० दे० 'भूज' । -पत्र-पु० दे० 'भूर्जपत्र'। भौंरा एक पक्षी; भगर। नामक क्षुप । भूरपूर*-वि० भरपूर।
भुंगावली-स्त्री० [सं०] भौरोंकी पाँत । भूरसी दक्षिणा-स्त्री० दे० 'भूयसी दक्षिणा'; बड़े खर्चके मुंगि-पु० [सं०] शिवका एक अनुचर । बाद होनेवाले छोटे खर्च।
| भुंगी-स्त्री० [सं०] भौरी; बिलनी नामक कीड़ा-'डरि
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भुंगी-भेली यत मुंगी कीट लौ मत वहई ह जाति'-बि०; अति- माना जाता है, दिमाग, मगज; चंदा; * मेढक । मु०विषा; भाँग।
खाना,-पकाना-बकबक करके खोपड़ी खाना । शृंगी(गिन् )-पु० [सं०] शिवका एक गण; बरगद । भेटना-स० क्रि० दे० 'भेटना'। शृंगीश-पु० [सं०] शिव ।
| भेड-स्त्री० [सं०] बकरीकी जातिका एक चौपाया जो दूध, भृकुटि(टी)-स्त्री० [सं०] भ्रभंग, भी चढ़ाना; भौं (हिं०)। रोयें और मांसके लिए भी पाला जाता है, मेष, बहुत भृगु-पु० [सं०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि जो ब्रह्माके पुत्र | सीधा, बेवकूफ आदमी। माने जाते हैं; जमदग्निः शुक्राचार्यः शुक्र ग्रह शुक्रवार । भेड़-स्त्री० दे० 'भेड'। -चाल-स्त्री० भेड़ियाधसान । -ज,-तनय-पु० शुक्राचार्यः शुक्र । -तुंग--पु० | भेड़िया धसान-पु० अंध अनुकरणकी प्रवृत्ति । हिमालयकी एक चोटी । -नंदन-पु. परशुरामा शुक्र । भेड़ा-पु० मेढ़ा, मेष ।। -नाथ,-नायक-पु० परशुराम । -पति-पु. परशु- भेड़िया-पु० कुत्तेकी जातिका एक हिंस्र जंतु जो प्रायः राम ।-पुत्र-पु० शुक्र । -रेखा,-लता-स्त्री० विष्णुकी| भेड़-बकरियोंका शिकार किया करता है, बृक । छातीपर पड़ा हुआ भृगुके लात मारनेका चिह्न । -वार,- भेडी-स्त्री० [सं०] मेषी। -वासर-पु० शुक्रवार । -श्रेष्ठ,-सत्तम-पु० परशु-| भैतव्य-वि० [सं०] जिससे डरा जाय । राम । -सुत,-सूनु-पु० शुक्र परशुराम ।
भेत्ता(त्त)-वि० [सं०] भेदन करनेवाला विघ्न डालनेभृत-वि० [सं०] प्राप्त; वहन किया हुआ; भरा हुआ वाला; भेद खोलनेवाला; षड्यंत्र रचनेवाला। पोषित, पाला हुआ; मजदूरी या किरायेपर लिया हुआ। भेद-पु० [सं०] छेदना; दारण; बिलगाव, अंतर तादात्म्यपु० वेतन लेकर काम करनेवाला दास, नौकर ।
का अभाव क्षति, चोट परिवर्तन; द्रोह; पराजय; कोष्ठभृतक-वि० [सं०] मजदूरी या वेतनपर रखा हुआ। पु० | शुद्धि, रेचन छिपी हुई बात, रहस्य; मर्म; प्रकारफूट वेतनपर काम करनेवाला नौकर ।
खुलना, प्रकट होना (रहस्यभेद); राजनीतिके चार भृतकाध्यापक-पु० [सं०] वेतन लेकर शिक्षणकार्य उपायोंमेंसे एक, शत्रुपक्षमें फूट डालना। -कर,-कारक, करनेवाला।
-कारी(रिन),-कृत-वि० भेद करनेवाला। -दीभृति-स्त्री० [सं०] ले जाना; लाना; भरण; भरणका साधन, (शिन्),-दृष्टि-वि० विश्वको परब्रह्मसे भिन्न समझनेवेतन, मजदूरी; भोजन । -कर्मकर-पु० मजदूर, वेतन | वाला, द्वैतवादी । -नीति-स्त्री० फूट डालनेकी नीति । लेकर काम करनेवाला नौकर । -भोगी(गिन)-वि० -बुद्धि-स्त्री० अंतर करनेवाली दृष्टि, द्वैतभाव । वि० (मसीनरी) वेतन लेकर अवसर विशेषपर किसीके लिए भी द्वैतवादी । -भाव-पु० दो व्यक्तियों, वर्गों के साथ दो काम करने या लड़नेवाला, केवल रुपयेके लालचसे किसीकी तरहका व्यवहार, फर्क-वादी(दिन)-वि० द्वैतवादी। सेवा करनेवाला, किरायेका या भाडेका (सैनिक)। भेदक-वि० [सं०] भेद करनेवाला; छेदन करनेवाला; भृत्य-वि० [सं०] भरण करने योग्य । पु० सेवक । नष्ट करनेवाला; अन्तर करनेवाला; रेचक ।
-भारत)-पु० नौकरोंका पालन करनेवाला; गृह- भेदकातिशयोक्ति-स्त्री० [सं०] अतिशयोक्ति अलंकारका स्वामी। -भाव-पु. सेवाभाव, पराश्रय । -वर्ग-पु० एक भेद जिसमें 'और ही', 'न्यारा' आदि शब्दों द्वारा दास-समूह ।-वृत्ति-स्त्री० सेवकोंका पालन । -शाली- उपमानसे उपमेयको भिन्न कहा जाय ।। (लिन् )-वि० जिसके बहुतसे सेवक हों।
भेदन-पु० [सं०] छेदन; फाड़ना; बिलगाना; भेद, अंतर भृत्या-स्त्री० [सं०] दासी; भृति ।
करना; रेचन, दस्त लाना। भृश-वि० [सं०] अतिशयः प्रचंड; शक्तिशाली। अ० भेदित-वि० [सं०] छेदा, फाड़ा, बिलगाया हुआ। अत्यधिक । -कोपन-वि० बहुत क्रोधी । -दुःखित,- | भेदिया-पु० भेद जाननेवाला; जासूम । पीडित-वि० अत्यधिक कष्टग्रस्त ।
भेदी(दिन)-वि० [सं०] भेदकारक; भेद जाननेवाला; भैट-स्त्री० मिलन, मुलाकात; नजर ।
भेद लेनेवाला। पु० अम्लबेत । भेटना*-स० कि० मिलना; गले लगना या लगाना; छूना। भेदीसार-पु० छेद करनेका औजार, बरमा । भैना,#वना*-स० क्रि० तर करना।
भेद-पु० भेद जाननेवाला, मर्मश ।। भेइ, भेउ*-पु० दे० 'भेद'।
भेद्य-वि० [सं०] भेदन करने योग्य । पु० विशेष्य।-रोगभेक-पु० [सं०] मेढक मेघ; डरपोक आदमी। -भुक- पु०वह रोग जिसकी चिकित्सा चीर-फाड़के जरिये की जाय।
(ज)-पु० साँप । -रव-पु. मेढकोंका टर्राना। भेना*-स० कि० भिगोना। भेकी-स्त्री० [सं०] मेढकी; मंडूकपणी ।
भेय-वि० [सं०] दे० 'भेतव्य' । भेख-पु० दे० 'भेस'।
भेर-पु० [सं०] नगाड़ा, डंका। भेखज* -पु० दे० 'भेषज'।
भेरा-पु० एक तरहकी नाव, मेला। भेजना-स० क्रि० अन्य स्थानके लिए रवाना करना, भरि, भेरी-स्त्री० [सं०] दे० 'भेर'। -कार-पु. भेरी पहुँचाये जानेका प्रबंध करना, प्रेषण करना ।
बजानेवाला। भेजवाना-स० क्रि० भेजनेका काम दूसरेसे कराना। भेला-पु० भेट; भिड़त, भिलावाँ; एक ही लकड़ीमें बनी भेजा-पु० रीढ़वाले प्राणियोंकी खोपड़ीके अंदर रहनेवाला नाव,उडुप; + गुड़ आदिका बड़ा पिंड । भूरा गूदा जो नाडी-मंडल और मनकी क्रियाओंका केंद्र भेली-स्त्री० गुड़ आदिकी पिंडी; गुड़ ।
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६०७
भव-भोगली भेव*-पु० दे० 'भेद'; बारी ।
भैहा*-वि० भयग्रस्त, डरा हुआ; जिसपर किसी प्रेत भेवना*-स० क्रि० भिगोना ।
आदिका आवेश होता हो। भेष-पु० दे० 'भेस'।
भौंकना-स० क्रि० शरीरमें नुकीली चीज (भाला, छुरा भेषज-पु० [सं०] दवा; उपचार ।
आदि) घुसेड़ना । अ० क्रि० भूकना । भेषजांग-पु० [सं०] दवा खानेके साथ या बाद खायी भोंगाल-पु० आवाजको दूरतक पहुँचानेके लिए काममें जानेवाली चीज, अनुपान ।
लाया जानेवाला भोंपा। भेषजागार-पु० [सं०] दवाकी दुकान ।
भौचाल-पु० भूकंप । भेषना*-सक्रि० भेस बनाना।
भोंडर-पु० दे० 'भोडर'। भेस-पु० बाह्य रूप, पहनावा; वेश-भूषा, पहनावे आदिसे भौड़ा-वि० भद्दा, बदशकल, बेडौल; * मूर्ख। -पन-पु० बदला हुआ रूप (बनाना, बदलना)।
भद्दापन; अशिष्टता। भेसज*-पु० दे० 'भपज'।
भौंतरा, भौँतला-वि० जिसकी धार तेज न हो । भेसना*-स० कि. भेस बनाना।
भौंद-वि० मूर्ख, बुद्ध । भैंस-स्त्री० गोजातीय एक मादा पशु जिसका दूध गायके भौंपा, भाँपू-पु० एक तरहकी तुरही; इंजिनमें लगा हुआ
दूधसे अधिक गाढ़ा और स्नेह-युक्त होता है, महिषी। । वह साधन जिसके द्वारा ऊँची आवाज पैदा की जाती है। भैसा-पु० भैसका नर, महिष ।
ऐसी आवाज, सीटी। भै*-पु० दे० 'भय'। -जन*-वि० दे० 'भयजनक'। | भौं-भो-पु० भूकनेकी आवाज । -दा*-वि० स्त्री० भयोत्पादक ।
भो-अ० [सं०] हे, अहो (संबोधन); * दे० 'भया' । भक्ष-पु० [सं०] भिक्षा; भिक्षामें प्राप्त वस्तु, भीख । वि० । भोकस -वि० भूखा। पु० राक्षस-'कीन्हेसि भोकस देव भिक्षाजीवी । -काल-पु० भिक्षाका समय । -चर्या- दईता'-प० । स्त्री० धूम-घूमकर भीख माँगना। -जीविका-स्त्री० भोक्तव्य-वि० [सं०] भोगने योग्य । भिक्षापर जीवन व्यतीत करना। -भुक (ज)-वि० भोक्ता (क्त)-वि० [सं०] भोग करनेवाला; भोजन करनेभिक्षाजीवी । -वृत्ति-स्त्री० दे० 'भक्ष जीविका'। वाला; सहन करनेवाला; शासन करनेवाला। पु० पति भैक्षान-पु० [सं०] भीखमें मिला हुआ अन्न ।
राजा विष्णु। भक्ष्य-पु० [सं०] भीख ।
भोक्तृत्व-पु० [सं०] भोग अधिकार अनुभूति । भचक, भैचक्क* -वि० दे० 'भौचक' ।
भोग-पु० [सं०] सुख-दुःखादिका अनुभव सुख, दुःख, भैन, भैना, भैनी -स्त्री० बहिन ।
संभोग; भूमि आदिका फल भोगना, भुक्ति, कब्जा भैने-पु० भांजा।
वेश्याका शुल्क संपत्ति शासन; चीजको काममें लाना; भैया-पु० भाई बराबरवाले या छोटेका संबोधन ।-चार, पाप-पुण्यका फल; भोजन; लाभ, आय; देवताके आगे -चारा-पु० भाईचारा । -चारी-स्त्री० भाईचारा । रखा जानेवाला मिष्टान्न आदि, नैवेद्य; सूर्यादिका राशि-दूज-स्त्री० कात्तिक शुक्ला द्वितीया। .
विशेपमें गतिकाल; साँपका ( फैला हुआ) फन; कुंडली भैरव-वि० [सं०] मेरव-संबंधी;भयानक, डरावना; दुःखी। पंक्तिबद्ध सेना; साँप; देह । -जात-वि० भोग या कष्टसे पु० शिवके अवताररूप माने जानेवाले शिवके अंगविशेष; उत्पन्न । -तृष्णा-स्त्री० भोगकी बलवती इच्छा।-देहशिव; भय; भयानक रस; एक नद; एक राग; तालका स्त्री० मृत्युके बाद जीवात्माको पाप-पुण्यका फल भोगनेके एक भेद; गीदड़, एक पर्वत। -कारक-वि० भयावना।। लिए मिलनेवाला सूक्ष्म शरीर ।-धर-पु० साँप ।-नाथभैरवी-स्त्री० [सं०] दुर्गा; दस महाविद्याओंमेंसे एक; एक पु० पालन करनेवाला । -पति-पु. प्रदेशविशेषका रागिनी; एक नदी; शैवसंन्यासिनी । वि० स्त्री० डरावनी। शासक। -पाल-पु० साईस । -पिशाचिका-स्त्री० -चक्र-पु० तांत्रिक (वाममार्गी) साधकों, पंचमकारकी भूख । -बंधक-पु. वह बंधक या रेहन जिसमें रुपया विधिसे उपासना करनेवालोंकी चक्ररूपमें बैठी हुई मंडली; | देनेवालेको ब्याजके बदले बंधक रखी चीजको काममें मद्यपों आदिका समूह । -यातना-स्त्री० वह यातना जो लानेका अधिकार हो । -भुक (ज)-वि० भोग करने काशीखंडके अनुसार काशी में प्राणत्याग करनेवालोंको मरते वाला । -भूमि-स्त्री० भारतवर्षसे भिन्न देश (भारतवर्ष समय पापोंसे शुद्धिके लिए भैरव द्वारा दी जाती है। कर्म-भूमि कहा गया है)। -भृतक-पु० केवल भोजनभैरवीय-वि० [सं०] मेरव-संबंधी ।
वस्त्र लेकर काम करनेवाला नौकर ।-लाभ-पु० अनाजभैरवेश-पु० [सं०] विष्णु; शिव ।
का ब्याज, डेढ़िया, सवाई। -लिप्सा-स्त्री० भोगकी भैषज-पु० [सं०] औषध; लवा पक्षी।
तृष्णा । -विलास-पु० शारीरिक या इंद्रियजन्य सुखोंभैषजिक विद्यालय-पु०(मेडिकल कॉलेज) रोगोंके निदान, का अधिक भोग, मौज, ऐश। -शील-वि० भोगी। उपचार आदिकी शिक्षा प्रदान करनेवाला विद्यालय । -सद्म (न्)-पु० जनानखाना, अंतःपुर । -स्थानभैषज्य-पु० [सं०] औषध, चिकित्सा; भिषापुत्र; आरोग्य- पु० शरीर; अंतःपुर।। दायक शक्ति । -रत्नावली-स्त्री० आयुर्वेदका एक प्रसिद्ध भोगना-स० क्रि० सुख-दुःखका अनुभव करना; सहना, चिकित्साग्रंथ।
भुगतना लुत्फ उठाना; संभोग करना। भैष्मकी-स्त्री० [सं०] भीष्मककी कन्या, रुक्मिणी। | भोगली -स्त्री० नली; नाककी लौंगकानमें पहननेकी
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भोगवती - भौतिक
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तरकी; लौंग आदिको अटकानेके लिए उसमें लगायी जाने | भोना* - अ० क्रि० रँगना; अनुरक्त होना; पैवस्त होना । वाली कील ।
भोपा - पु० दे० 'भोपा' । भोमि* - स्त्री० दे० 'भूमि' ।
भोर- पु० रात बीतने के बाद और सूर्योदय होनेके पहलेका समय, तड़का, प्रभात; एक सदावहार वृक्ष; एक पक्षी; * भूल; भ्रम । * वि० भोला; चकित - 'सूर प्रभुकी निरखि सोभा, भई तरुनी भोर'-सू०
भोगवती - स्त्री० [सं०] पाताल गंगा; नागिन; नागपुरी । भोगवना* - स० क्रि० दे० 'भोगना' | भोगवाना - स० क्रि० दे० 'भोगाना' |
भोगवान् (वत्) - वि० [सं०] भोगयुक्त । पु० साँप; नाट्य । भोगाधिकार - पु० [सं०] ( आकुपेंसी राइट ) खेत, भूमि आदिके भोगका स्थायी अधिकार जो प्रायः उसपर निर्धारित अवधितक काबिज रहनेके बाद किसीको प्राप्त होता है । भोगाना - स० क्रि० दूसरेको भोग कराना । भोगाई - वि० [सं०] भोगोपयोगी । पु० धन-संपत्ति । भोगावास - पु० [सं०] अंतःपुर | भोगींद्र - पु० [सं०] शेष; वासुकि पतंजलि । भोगी (गिन् ) - वि० [सं०] भोग करनेवाला; विषयासक्त, भोग-विलास में रत; कुंडलीयुक्त; फणदार । पु० साँप जमींदार; राजा; नाई ।
भोग्य - वि० [सं०] भोग करने योग्य । पु० भोग्य वस्तु, धन-संपत्ति, भोगबंधक रखी हुई चीज ।
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भोग्या - स्त्री० [सं०] वेश्या । भोज-पु० बहुत से लोगोंका साथ बैठकर खाना, ज्योनार; [सं०] भोजपुर; राजा दुह्युका एक पुत्रः कान्यकुब्ज में नवीं शती में हुआ एक प्रतापी नरेश; मालवाका पर मारवंशी राजा जो बड़ा पंडित, कवि और गुणी जनोंका आदर करनेवाला था (१०-११ वीं शती), राजा भोज । - देव - पु०. कान्यकुब्ज- नरेश भोजराज । -पति- पु० भोजराज; कंस । -पुर- पु० भोजकट नामका जनपद । -पुरिया - वि० [हिं०] भोजपुरका | पु० भोजपुरका निवासी । - पुरी - वि० [हिं०] भोजपुरका | पु० भोजपुरका निवासी । स्त्री० भोजपुर प्रदेशकी बोली । -राजपु० राजा भोज । -विद्या- स्त्री० इंद्रजाल ।
भोजक - पु० [सं०] भोजन करनेवाला; ज्योतिषी । वि० खानेवाला; भोजन देनेवाला; * भोगी; विलासी । भोजन- पु० [सं०] ठोस आहारको गलेके नीचे पहुँचाना, खाना; खानेकी चीज, खाद्य; खिलाना; भोगना; धन; एक पर्वत । -काल- पु० खानेका समय। - खानी* - स्त्री० रसोई । - गृह - पु० रसोईघर, भोजनशाला । त्यागपु० आहारका त्याग, उपवास । - भट्ट - पु० [हिं०] पेटू । - भूमि- स्त्री० भोजन करनेका स्थान । - चत्र- पु० खाना कपड़ा । - वेला - स्त्री०, - समय पु० दे० 'भोजनकाल' | - व्यय - पु० खाने-पीनेका खर्च । - शाला - स्त्री० भोजन करनेका स्थान; रसोई । भोजनार्थी (र्थिन् ) - वि० [सं०] भोजनका इच्छुक, भूखा । भोजनालय - पु० [सं०] भोजनशाला; होटल । भोजनीय - वि० [सं०] खाने योग्य, भोज्य । पु० आहार । भोजी (जिन्) - वि० [सं०] (समासांतमें) भोजन करनेवाला भोज्य-वि० [सं०] खाने योग्य, भोजनीय । पु० भोजन, खाद्य । -काल- पु० भोजनका समय । भोटिया - पु० भूटानका निवासी । स्त्री० भूटानको भाषा । भोडर, भोडल * - पु० अभ्रक, बुक्का । भोथर, भोथरा - वि० जिसकी धार कुंद हो गयी हो ।
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भोरा* - वि० दे० 'भोला' । [स्त्री० 'भोरी' । ] - नाथ* -
पु० दे० 'भोलानाथ' । पन* - पु० भोलापन, सिधाई । भोराई * - स्त्री० भोलापन, सिधाई ।
भोराना* - स० क्रि० बहकाना, भुलाना । अ० क्रि० भ्रममें पड़ना; मुलावे में आना ।
भोलना* - स० क्रि० बहकाना, भुलावा देना । भोला- वि० सीधा, सरल, जिसमें बनावट, छल-कपट न हो; मूर्ख, बुधू । - नाथ- पु० शिव । वि० सीधा-सादा । - पन - पु० सिधाई; मूर्खता । - भाला - वि० सीधा-सादा, निष्कपट |
भोहरा* - ५० भुइँहरा; खोह ।
भाँ-स्त्री० आँखके ऊपरकी हड्डीपर धनुष्के आकार में जमे हुए बाल, भ्रुकुटि । मु० - चढ़ाना, - तानना-रोप प्रकट करना, नाराज होना ।
भौंकना - अ० क्रि० दे० 'भूकना' ।
भौचाला - पु० भूकंप | भाँड़ा। - वि० दे० 'भोड़ा' ।
भतुवा - पु० प्रायः हाथमें होनेवाला एक तरह का वातज शोथ रोग; एक छोटा कीड़ा; तेलीका बैल | भार - पु० भ्रमर; जलावर्त ।
भौंरा-५० काला परदार कीड़ा जो फूलोंका प्रेमी माना जाता है, भ्रमर; बड़ी मधुमक्खी; पहियेको नाभि; रद्दटकी खड़ी चरखी; * एक खिलौना, लट्टू हिंडोलेमें ऊपर लगी हुई लकड़ी; तहखाना ।
भी राना * - स० क्रि० घुमाना, भाँवर फिराना । भौराला * - वि० घुँघराले (बाल) । भौंरी-स्त्री० चक्राकार में उगे हुए बाल या रोयें जो शुभाशुभसूचक माने जाते हैं; भाँवर; भँवर; एक तरहका भौरा । भौंह - स्त्री० दे० 'भीँ" ।
भौ हरा* - पु० दे० 'भुइँहरा' |
भौ* - पु० दे० 'भव'; दे० 'भय' । - जल, जलि* - पु० भवजाल, भवसागर - 'मैं बहुरि न भौजलि आउँगो' - कबीर । भौगोलिक - वि० [सं०] भूगोल-संबंधी |
भौचक, भौचक्का - वि० भय या आश्चर्य से हतबुद्धि, हक्काबक्का, हैरान ।
भौजंग - वि० [सं०] सर्प-संबंधी; सर्प जैसा । भौज* - स्त्री० दे० 'भावज' |
भौजाई, भौजी - स्त्री० भावज, बड़े भाईकी स्त्री । भौत - वि० [सं०] भूत-संबंधी; भूतनिर्मित, भौतिक, पैशाचिक; भूताविष्ट । पु० देवल, पुजारी; भूतपूजकः भूतयज्ञ; भूतोंका समूह ।
भौतिक - वि० [सं०] भूत-संबंधी, पंचमहाभूतों या किसी एक भूत से बना हुआ, पार्थिव, माद्दी; शरीर-संबंधी ; प्रेत
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६०९
भौन-भ्राम संबंधी, पिशाचकृत । -वाद-पु. पंचभूतोंके आधारपर भ्रमरी-स्त्री० [सं०] मादा भौंरा; पार्वती; जंतुका लता। बना हुआ सिद्धांत ।-विज्ञान,-शास्त्र-पु० (फिजिक्स) भ्रमात्मक-वि० [सं०] धोखेमें डालनेवाला, संदिग्ध । वह विज्ञान जिसमें तत्त्वोंके गुण आदिका विवेचन किया भ्रमाना*--स० क्रि० धुमाना; बहकाना, भ्रममें डालना । गया हो । -विद्या-स्त्री० जादूगरी ।
भ्रमासक्त-पु० [सं०] तलवार आदि साफ करनेवाला। भौन*-पु० दे० 'भवन' ।
भ्रमि-स्त्री० [सं०] चक्कर, कुम्हारका चाक; खराद: भंवर भौना-अ० कि० चक्कर लगाना; घूमना ।
बगूला भ्रम, भूल; सेनाका चक्राकार व्यूह । भौम-वि० [सं०] भूमि संबंधी; भूमिसे उत्पन्न । पु० मंगल | भ्रमित-वि० [सं०] घूमता, चक्कर खाता हुआ; धुमाया, ग्रह नरकासुर जल । -प्रदोष-पु. मंगलवारको पड़ने चक्कर खिलाया हुआ। -नेत्र-वि० ऐंचा-ताना । वाला प्रदोष । -रत्न-पु० मूंगा। -वार,-वासर- भ्रमी(मिन्)-वि० [सं०] घूमने, चक्कर खानेवाला; पु० मंगलवार।
भ्रमयुक्त। भौमासुर-पु० [सं०] नरकासुर ।
भ्रमीन*-वि० भ्रमण करनेवाला । भोमिक-वि० [सं०] भूमि-संबंधी भूमिका । पु० भूस्वामी, | भ्रष्ट-वि० [सं०] नीचे गिरा हुआ; बिगड़ा हुआ दूषित जमींदार ।
आचारवाला; क्षीण नष्ट;...से च्युत ।-निद्र-वि. निद्राभौमी-स्त्री० [सं०] भूमिसुता, सीता।
से वंचित । -मार्ग-वि० जो मार्ग भूल गया हो। भौम्य-वि० [सं०] भूमि-संबंधी; पृथ्वीपरका ।
-श्री-वि० भाग्यहीन । भोर*-पु. भौरा, भँवर घोड़ोंका एक भेद ।
भ्रष्टा-स्त्री० [सं०] पतित स्त्री, दुश्चरित्रा। नंगी-पु० गुंजार करनेवाला एक फतिंगा ।
भ्रष्टाचार-वि० [सं०] जिसका आचार बिगड़ गया हो। भ्रंश, भ्रस-पु० [सं०] नीचे गिरना, पतन, हास; नाश | पु० दृपित आचार-बेईमानी, घूसखोरी इ० । मार्गसे विचलित होना; परित्याग ।
भ्रांत-वि० [सं०] भूला हुआ; भ्रमयुक्त हैरान, परेशान भ्रंशन, भंसन-पु० [सं०] नीचे गिरना, पतन, भ्रष्ट भ्रमता, चक्कर खाता हुआ । पु० मतवाला हाथीधतूरा, होना । वि० नीचे गिरानेवाला।
भ्रमण, चक्कर; भूल । भ्रंशित-वि० [सं०] नीने गिराया हुआ वंचित । भ्रांतापहनुति-स्त्री० [सं०] अपह्न ति अलंकारका एक भेद, भ्रंशी(शिन)-वि० [सं०] भ्रष्ट होनेवाला छीजनेवाला; जहाँ किसीको किसी पदार्थ में अन्य पदार्थका भ्रम हो भटकनेवाला; बरबाद करनेवाला।
जानेपर सच्ची बात कहकर उसका निराकरण किया जाय। भ्रंशोद्धार-पु० (सैलवेज) डूबे हुए या ध्वस्त किये हुए भ्रांति दूर करनेके लिए सची बात कहना । जहाजका समुद्रगर्भसे उद्धार करना ।
भ्रांति-स्त्री० [सं०] अयथार्थ ज्ञान, भ्रम; चक्कर; अस्थिरता; भ्रकुटि-स्त्री० [सं०] दे० 'भ्रकुटी' ।
संदेह घबड़ाहट; एक अर्थालंकार जहाँ उपमानके सदृश भ्रमंत-पु० [सं०] छोटा मकान ।
उपमेयको देखने पर उपमानका निश्चयात्मक भ्रम हो । भ्रम-पु० [सं०] घूमना, चक्कर; भूल; भटकना; मिथ्या, -कर-वि० भ्रमजनक । -नाशन-वि० भ्रम, भ्रांतिका अयथार्थ ज्ञान (जैसे रस्सीको साँप समझना); घबड़ाहट; नाश करनेवाला । पु० शिव । -हर-वि० भ्रांतिका जलावर्त; चकाचौध; उत्स, सोता; चक्करका राग; चाका नाश करनेवाला । चकी; खराद, भ्रांति अर्थालंकार; * भरम, प्रतिष्ठा । भ्रांतिमान(मत्)-वि० [सं०] भ्रमयुक्त; चकर खाता -कारी(रिन्)-वि० भ्रमोत्पादक । -जार*-पु० हुआ । पु० 'भ्रांति' नामक अर्थालंकार । भ्रमजाल । -जाल-पु. मोहपाश । -मूलक-वि० भ्राजक-वि० [सं०] चमकानेवाला। भ्रमसे उत्पन्न, भ्रमजनित । “वात-पु० ऊपर ही ऊपर भ्राजना*-अ० क्रि० शोभित होना; चमकना । चलती रहनेवाली वायु । -संशोधन-पु० भूलसुधार। | भ्राजमान-वि० शोभायमान । भ्रमण-पु० [सं०] घूमना, फिरना; यात्रा; अस्थिरता; भ्राजि-स्त्री० [सं०] चमक, दीप्ति । चक्कर; चकाचौंध । -कारी(रिन)-वि० धूमनेवाला, भ्रात*-पु० दे० 'भ्राता। घुमक्कड़। -वृत्तांत-पु० यात्राका वर्णन, पर्यटनकी भ्राता(त)-पु० [सं०] सगा भाई। -ज-पु. भाईका कहानी।
पुत्र । -जा-स्त्री० भाईकी पुत्री । -जाया-स्त्री० भ्रमन*-पु० दे० 'भ्रमण'।
भावज। -द्वितीया-स्त्री० कात्तिक शुक्ला द्वितीया, भैयाभ्रमना*-अ० क्रि० घूमना, भ्रमण करना; भ्रममें पड़ना, दूज । -पुत्र-पु० भतीजा । -भाव-पु० भाईकासा भूलना; भटकना।
स्नेह, भायप, भाईचारा। -वधू--स्त्री० भावज । - भ्रमनि*-स्त्री० दे० 'भ्रमण' ।
श्वशुर-पु० जेठ, पतिका बड़ा भाई। भ्रमर-पु० [सं०] भौरा, मधुप, उद्धव कामी; चाक; वटु, | भ्रातुष्पुत्र-पु० [सं०] भतीजा । लड़का चकाचौंध । -कीट-पु. एक तरहकी भिड़ । भ्रातुष्पुत्री-स्त्री० [सं०] भतीजी। -गीत-पु. वह गीत-संग्रह जिसमें भ्रमरको संबोधित | भ्रात्रीय-वि० [सं०] भ्राता-संबंधी। पु० भतीजा। कर गोपियों ने उद्भवको उलाहना दिया है।-निकर-पु० । भ्रात्रेय-१० [सं०] भतीजा । वि० भ्राता-संबंधी । मधुमक्खियोंका झुंड । -प्रिय-पु. एक तरहका कदंब । भ्राम-वि० [सं०] भ्रमयुक्त घूमनेवाला । पु० भूल, धोखा; भ्रमरावली-स्त्री० [सं०] भौरोंकी पंक्ति ।
। भ्रम, मिथ्या ज्ञान (यशोधरा)।
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भ्रामक - मंजरीक
भ्रामक - वि० [सं०] भ्रमजनक; धूर्त; बहकानेवाला । पु० सियार; चुबक; ठग | भ्रामर - वि० [सं०] भ्रमर-संबंधी । पु० भौरोंका इकट्ठा किया हुआ शहद, चुंबक |
भ्रष्ट्र - पु० [सं०] आकाश; वह अथरी जिसमें भड़भूजे दाना भूनते हैं ।
भ्रात्रिक- पु० [सं०] शरीरकी एक नाड़ी |
श, कंस, कंश, भ्रकंस - पु० [सं०] स्त्रीके वेश में काम करनेवाला नेट ।
भ्रुकुटि, भ्रुकुटी - स्त्री० [सं०] भ्रूभंग; भौं ।
भ्रव - स्त्री० भौंह |
भ्र - स्त्री० [सं०] भौं । कुटि, कुटी - स्त्री० भ्रूभंग ।
म
मंगला - स्त्री० [सं०] पार्वती; पतिव्रता स्त्री; सफेद दूब । मंगलाचरण - पु० [सं०] शुभ कार्यके आरंभ में मंगलकामना से की जानेवाली देवस्तुति; ग्रंथारंभ में लिखा ।
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६१०
- कुटी मुख - पु० एक साँप । -क्षेप - विक्षेप - पु० भौं टेढ़ी करना, भ्रूभंग | -भंग, -भेद - पु० भौं टेढ़ी करना, भौं चढ़ाकर रोष प्रकट करना । - मध्य-पु० दोनों भवोंके बीचका स्थान । - लता - स्त्री० मेहराबदार भौं । -विक्रिया - स्त्री० भ्रूभंग । - विलास - पु० भवोंका मोहक संचालन, भंगी ।
भ्रूण - पु० [सं०] गर्भस्थ शिशु । -न-पु० भ्रूणहत्या करनेवाला । - हत्या - स्त्री० गर्भपात द्वारा गर्भस्थ शिशुकी हत्या करना । - हा ( हन् ) - पु० भ्रूणहत्या करने
वाला ।
ष - पु० [सं०] नाश; गमन; डर । भ्वहरना * - अ० क्रि० भीत होना, डरना ।
म- देवनागरी वर्णमालाका पचीसवाँ व्यंजन वर्ण । मंखी - स्त्री० बच्चों के गलेमें पहनानेका एक जेवर । मंग - स्त्री० माँग, सीमंत ।
मँगता, मंगन - पु० भिखमंगा, याचक | मँगनी - स्त्री० माँगनेका भाव; माँगकर, काम हो जानेपर लौटा देनेका वचन देकर, पायी हुई चीज; ब्याह पक्का करनेकी रस्म । -की चीज़- पुनः लौटा देने की शर्तपर ली हुई वस्तु ।
मंगल - पु० [सं०] शुभ, कल्याण; सौभाग्य; अभीष्ट अर्थकी सिद्धि; सौरमंडलका एक ग्रह जो पृथ्वीका पुत्र माना जाता है; मंगलवार; विष्णु; अग्निका एक नाम । वि० कल्याण कारी, शुभ, शुभ लक्षणयुक्त; संपन्न; वीर । - कलशपु० दे० 'मंगलधट' | - काम - वि० मंगलकी कामना करनेवाला, शुभचिंतक । -कामना - स्त्री० कल्याणकी कामना । - कारक, -कारी (रिन्) - वि० कल्याणकारी | - कार्य - पु० शुभ कार्य, ब्याह, जन्म आदिका उत्सव | -काल-पु० शुभ घड़ी । -गान - पु० मंगलके अवसरपर होनेवाला गाना बजाना । -गीत- पु० मंगल अवसर पर गाया जानेवाला गीत । - ग्रह - पु० शुभ ग्रह; मंगल नामक ग्रह । - घट, पात्र- पु० शुभ कार्यों में देवता के सामने रखा जानेवाला जलपूर्ण घट । - वाद्य - पु० शुभ अवसरपर बजाये जानेवाले बाजे । - पाठक- पु० बंदीजन स्तुतिपाठक | -प्रद - वि० कल्याणकारी । - प्रदा- स्त्री०हल्दी; शमीका पेड़ । -वार, वासर - पु० सोमवार के बादका दिन, भौमवार ।-सूत्रपु० हल्दी में रँगा सूत जो ब्याइके समय वर-कन्याके हाथमें बाँध दिया जाता है; सधवा स्त्रियों द्वारा गलेमें पहना जानेवाला पवित्र सूत्र । -स्नान - पु० मांगलिक अवसरपर या मांगलिक पूजनके लिए किया जानेवाला स्नान । मंगलमय - वि० [सं०] कल्याणमय, मंगलरूप |
मँगेतर - स्त्री० लड़की जिसकी किसी के साथ मँगनी हुई हो। मंगोल - पु० मनुष्योंकी चार मूल जातियों में से एक जो तिब्बत, चीन, जापान आदि में बसती है और जिसका रंग हलका पीला तथा नाक चिपटी होती है । मंच - ५० [सं०] खाट, मचिया; मचान; सिंहासन; रंगभूमि । - मंडप - पु० फसलकी रखवाली के लिए या विवाहादिके अवसरपर बनाया हुआ मचान । मंचिका - स्त्री० [सं०] चिया । मंछर* - पु० दे० 'मत्सर'; 'मच्छर' ।
मंजन-पु० दाँत साफ करनेके लिए औषधियोंका बना चूर्ण; स्नान ।
मँजना - अ० क्रि० माँजा जाना; अभ्यास होना, अनुभव से दक्षता प्राप्त होना ।
मंज़र-पु० [अ०] दृष्टिका आश्रय; दृश्य; नज्जारा; देखने योग्य वस्तु; स्थान; झरोखा |
मंजरित - वि० [सं०] मंजरियोंसे लदा हुआ ।
मंगला - वि० मंगली (पुरुष); मंगलको पैदा होनेवाला । मंजरी - स्त्री० [सं०] कला, कोंपल, सीके में लगे हुए छोटे,
- मुखी - स्त्री० वेश्या ।
घने फूल; मोती; लता; तुलसी । चामर-पु० मंजरीकी शकलका चवँर |
मंजरीक - पु० [सं०] तुलसी; तिलक वृक्ष; बेत; अशोक वृक्ष; मोती ।
जानेवाला मांगलिक पद आदि ।
मंगलाचार - पु० [सं०] मंगलकृत्यके पहले होनेवाला मंगलगान; शुभानुष्ठान ।
मंगलाष्टक - पु० [सं०] वे मंत्र जिनका पाठ विवाहके समय वर-वधू के कल्याणार्थ किया जाता है।
मंगली - वि० (स्त्री या पुरुष) जिसकी कुंडली में चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में मंगल पड़ा हो; (ऐसी कुंडली) जिसके चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में मंगल हो । स्त्री० इलदी ( कविप्रि० ) ।
मंगलेच्छु - वि० [सं०] मंगल चाहनेवाला, हितेच्छु । मंगलोत्सव - पु० [सं०] मांगलिक उत्सव । मंगल्य - वि० [सं०] मंगलकारक; सुंदर । पु० चंदन; सोना । मँगवाना, मँगाना - स०क्रि० किसीसे कोई चीज लाने या भेजने के लिए कहना ।
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मॅजाई-मंत्र मंजाई-स्त्री० माँजनेकी क्रिया; माँजनेकी उजरत । मंडल-पु० [सं०] गोल घेरा, हलका, कुंडली; सूर्य-चंद्रका मंजारी*-स्त्री० बिल्ली।
बिंब; सूर्य-चंद्र के इर्द-गिर्द देख पड़नेवाला घेरा, परिवेश मंजिका-स्त्री० [सं०] वेश्या ।
गोल; समूह, मंडली; समिति; एक प्रकारका सैन्य-व्यूह मंजिमा (मन्)-स्त्री० [सं०] सुंदरता, मनोहरला। चाक; ऋग्वेदका प्रत्येक खंड; ग्रहोंका गतिपथ, कक्षा मंज़िल-स्त्री० [अ०] उतरने या ठहरनेकी जगह, पड़ाव, क्षितिज जिला, प्रदेश, ग्राम-समूह एक तरहका साँप । मुकाम; एक दिनका सफर; मकान; पांथशाला; मकानका | -नृत्य-पु० मंडलाकार घूमते हुए नाचना । दरजा या छत; वह स्थान जहाँ डाकके घोड़े बदले जायँ । | मंडलाकार, मंडलाकृत-वि० [सं०] मंडलके आकारका, -गाह-पु०स्त्री० उतरनेकी जगह । (मंजिले)मकसूद- गोला । स्त्री० असल मुराद । -हस्ती-स्त्री० जिदगी। मु०- मंडलान-पु० [सं०] वह तलवार जिसकी नोक कुछ उठाना-मकान बनाना। -भारी होना-यात्रा पूरी झुकी हो, खंजर । करना कठिन होना। -मारना-यात्रा पूरी करना; मंडलाधिप-पु० [सं०] दे० 'मंडलेश्वर'। मुश्किल हल करना।
मंडलाधीश-पु० [सं०] दे० मंडलेश्वर'। मंजिष्ठा-स्त्री० [सं०] मजीठ । -मेह-पु० एक प्रकारका मंडली-स्त्री० छोटा मंडल, जमात, समुदाय, दूब गुड़च । प्रमेह (सुश्रुत)। -राग-पु० मजीठका रंग; मजीठके रंग मंडली(लिन्)-वि० [सं०] मंडल, हलका बनानेवाला । जैसा पक्का, स्थायी अनुराग ।
पु० साँप; साँपका एक भेद; बिल्ली; सेंधुआर नामका जंतु; मंजीर-पु० [सं०] धुंधरू, नूपुर ताल ।
सूर्य मंडलाधिपति; बरगद । मॅजीरा-पु० दे० 'मजीरा' ।
मंडलीक-पु० [सं०] मंडलका राजा करद राजा। मंजु-वि० [सं०] सुंदर, मनोहर । -केशी (शिन्)-पु० | मंडलीकरण-पु० [सं०] मंडल या कुंडली बनाना, कुंडली कृष्ण । वि० सुंदर बालोंवाला। -गति,-गमना-वि० मारना। स्त्री० मनोहर गतिवाली। स्त्री० हंसिनी। -घोषा-स्त्री० मंडलेश-पु० [सं०] देशका शासक, नरेश । एक अप्सरा, कोयल । -भाषिणी-वि० स्त्री० मधुर- मंडलेश्वर-पु० [सं०] एक मंडलका शासक, राजा, चार भाषिणी। -भापी(षिन)-वि० मधुरभाषी।
सौ योजन रकबेवाले प्रदेशका राजा । मंजुल-बि० [सं०] सुंदर, मनोहर ।
मड़वा-पु० मंडप, शामियाना। मंजूर-वि० [अ०] पसंद किया हुआ, स्वीकृत ।
मंडार, मॅडारा-पु० झावा, टोकरा; गढा (पमा०)। मजूरी-स्त्री० [अ०] स्वीकृति, मंजूर होना ।
मंडित-वि० [सं०] सजाया हुआ, भूषित ।। मंजूषा-स्त्री० [सं०] पिटारी; वह तश्तरी आदि जिसमें मंडी-स्त्री० (किसी खास चीजकी) थोक बिक्रीका बाजार, रखकर अभिनंदनपत्र भेंट किया जाता है ।
बड़ा बाजार, बाजार । मु०-लगना-बाजार लगना। मंजूसा-स्त्री० दे० 'मंजूषा' ।
मंडील-पु० कामदार कपड़ेका मुरेठा, मंदील । मॅझला-वि० दे० 'मझला'।
म.दुआ-पु. एक मोटा अनाज । मंझा-पु० दे० 'माँझा'; अटेरनके बीचको लकड़ी; चरखेका मंडूक-पु० [सं०] मेढक; एक ताल; एक नृत्य ।
मुँडला (चक्र); खटिया । * वि० मझला, बीचका। | मंडूर-पु० [सं०] लोहेका मैल, कीट जो दवाके काम मझियाना-स० क्रि० धंसकर पार करना; नाव खेना। | आता है। मॅझोला-वि० दे० 'मझोला'।
मंढा-पु० कमख्वाब बुननेवालोंका एक औजार । मंड-पु० [सं०] माँड़, सारमलाई सुरा; एरंड। -प- मंतव्य-वि० [सं०] मानने योग्य, माननीय । पु० मत । वि० माँड़ पीनेवाला। -हारक-पु० मद्य बनानेवाला, मंत्र-पु० [सं०] गुप्त वार्ता, कानमें कही जानेवाली बात, कलाल।
सलाह, मंत्रणा; वह शब्द या शब्द-समूह जिससे किसी मंडन-पु० [सं०] सजाना, शृंगार करना; आभूषण युक्ति- | देवताकी सिद्धि या अलौकिक शक्तिकी प्राप्ति हो; वेदका प्रमाणसे पक्ष-विशेषकी पुष्टि करना। -प्रिय-वि० अलं- संहिताभाग, कार्यसिद्धिका गुर (मूल मंत्र)। -कार-पु० कार-प्रेमी। -मिश्र-पु. सुप्रसिद्ध मीमांसक जो कहा मंत्र रचनेवाला, मंत्रद्रष्टा । -कुशल-वि० मंत्रणामें पटु । जाता है कि शंकराचार्यसे शास्त्रार्थमें पराजित हुए थे। -गृह-पु० मंत्रणागृह । -जल-पु० अभिमंत्रित जल । मंडना*--स० क्रि० सजाना, सँवारना; दे० 'मॉड़ना'। .. -ज्ञ-वि० मंत्रणाकुशल । पु० मंत्री गुप्तचर तंत्र-मंत्र मंडप-पु० [सं०] छाया हुआ, पर चारों ओरसे खुला जाननेवाला। -द-दाता(त)-पु० गुरु । -दीहुआ बैठनेका स्थान, मॅडवा; कुंज (जैसे लतामंडप) । वि० (शिन्)-पु. वेदमंत्रोंका साक्षात्कार करनेवाला, दे० 'मंड' में।
मंत्रद्रष्टा ।-देवता-पु० मंत्र-विशेष द्वारा आवाहित मंडपिका-स्त्री० [सं०] छोटा मंडप ।
देवता ।-इष्टा-पु. मंत्रदशी। -पाठ-पु. वेदमंत्रोंका मंडपी-स्त्री० छोटा मंडप मढ़ी।
पाठ । -पूत-वि० मंत्रों द्वारा पवित्र किया हुआ। मंडर*-पु० दे० 'मंडल'।
-प्रयोग-पु०,-प्रयुक्ति-स्त्री० मंत्रसे काम लेना। मॅडरना*-अ०क्रि० मंडल बाँधना सब ओरसे घेर लेना। -बल-पु० मंत्रकी शक्ति । -बीज,-वीज-पु० मॅडराना-अ० क्रि० मंडलाकारमें चक्कर देते हुए उड़ना; मंत्रका पहला पद । -भेद-पु. गुप्त वार्ताका प्रकट किसीके आस-पास चक्कर काटना, घूमते रहना।
कर दिया जाना। -मुग्ध-वि. मंत्रसे मोहित, वश
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मंत्रणा - मकफ़ल
किया हुआ; जडवत् । -वादी ( दिन ) - पु० मंत्रका उच्चारण करनेवाला, मंत्रश; जादूगर । - विद् - वि० मंत्र । - विद्या - स्त्री० तंत्र-मंत्रकी विद्या । -शक्तिस्त्री० मंत्रका प्रभाव । -संहिता - स्त्री० वेदोंका मंत्रभाग । - साधन - पु० मंत्रको सिद्ध करनेका यत्न करना । - सिद्धि - स्त्री० मंत्रका सिद्ध होना, मंत्रका प्रभावकर होना । - हीन - वि० बिना मंत्रका; अदीक्षित । मंत्रणा - स्त्री० [सं०] मश्विरा करना; सलाह । -कारपु० ( ऐडवाइज़र) सलाह या मंत्रणा देनेवाला, वह जिससे बहुधा सलाह ली जाती हो । परिषद् - स्त्री० (ऐडवाइजरी कौंसिल) किसी विषय के संबंध में सलाह देनेवाली परिषद् ।
|
मंत्रालय - पु० (मिनिस्ट्री) राज्यके किसी मंत्री विभागका कार्यालय; मंत्री, उसके सचिव तथा चारियों का समूह (मंत्री और उसका विभाग) मंदी - स्त्री० मंद होनेका भाव, तेजीका उलटा, सस्ती । मंत्रित - वि० [सं०] जिसका मंत्र द्वारा संस्कार किया गया मंदोदरी स्त्री० [सं०] रावणकी पत्नी जो मय दानवकी हो, अभिमंत्रित । कन्या और पंचकन्याओं में से एक मानी जाती है । वि० स्त्री० छोटे, तंग पेटवाली ।
तथा उसके अन्य कर्म
मंत्रित्व - पु० [सं०] मंत्रीका पद या कार्य ।
मंत्री (त्रिन्) - पु० [सं०] जिसके साथ एकांत में मश्विरा किया जाय, सचिव; सलाह देनेवाला; राज्यके किसी विभागका वह प्रधान अधिकारी जिसकी सलाहसे उस विभागका कार्य संचालन हो । - परिषद् - स्त्री० ( कैबिनेट कौंसिल ) राज्यके मंत्रियों की सभा जिसमें प्रशासन संबंधी विविध प्रश्नोंपर बातचीत, विचार-विमर्श आदि किया जाता है । - मंडल - पु० ( कैबिनेट ) किसी (लोकतंत्र) राज्य के मंत्रियों का समूह जो शासन के विभिन्न विभागों की देख-भाल करता है ( अमात्यमंडल) । मंत्रेला * - पु० मंत्र जाननेवाला (कबीर) | मंथ - पु० [सं०] मंथन; क्षोभ; मथानी; सूर्य ।
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६१२
मंदाकिनी - स्त्री० [सं०] गंगाकी स्वर्ग में बहनेवाली धारा, आकाशगंगा; संक्रांतिका एक भेद; एक वर्णवृत्त । मंदाक्रांता - स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त । मंदाग्नि-स्त्री० [सं०] पाचनशक्तिका दुर्बल हो जाना, हाजमेका बिगड़ जाना ।
मंदात्मा (त्मन्) - वि० [सं०] मूर्ख, नीच मंदाना * - अ० क्रि० मंद पड़ना । मंदानिल- पु० [सं०] हलकी, सुखद, वायु । मंदार पु० [सं०] नंदनकाननके पाँच वृक्षों में से एक, पारिभद्रः मदार; धतूरा; हाथी; मंदारपुष्प । -माला - स्त्री० मंदारके फूलोंकी माला ।
मंदारक - पु० [सं०] दे० 'मंदार' |
मंदिर - पु० [सं०] घर; देवालय; नगर; शिविर । मंदिल * - पु० मंदिर; घर ।
मँदो वै* - स्त्री० मंदोदरी । मंदोष्ण- वि० [सं०] थोड़ा गरम, कुनकुना ।
मंद्र - पु० [सं०] गंभीर ध्वनि; संगीतके तीन स्वरसप्तकों(मंद्र, मध्य, तार) मेंसे पहला; एक बाजा, मृदंग; एक तरहका हाथी । वि० गंभीर; प्रसन्न; आह्लादकारी, मंदा । मंद्राज - पु० मद्रास ।
मंशा, मंसा - स्त्री० मनशा, इच्छा, इरादा, आशय । मंसूख - वि० दे० 'मनसूख' । मँहगा - वि० दे० 'महँगा' | मँहगी - स्त्री० दे० 'महँगी' ।
म पु० [सं०] शिव; ब्रह्मा विष्णुः चंद्रमा; यम । -गणपु० पिंगलका एक गण जिसमें तीनों वर्ण गुरु होते हैं । महका* - पु० दे० 'मैंका' | ममंत* - वि० दे० 'मैमंत' ।
मई - स्त्री० [अ० 'मे'] ईसवी सन्का पाँचवाँ महीना जो प्रायः वैशाख में पड़ता है ।
मंथन - पु० [सं०] मथना, बिलोना; तत्त्वबोधके लिए किसी विषयको बार-बार पढ़ना, सोचना; मथानी; रगड़से आग पैदा करना । - घट-पु० दही मथनेका मटका । मंथर - वि० [सं०] सुस्त, मंद; जड़मति; स्थूल; नीच; टेढ़ा; बड़ा, चौड़ा; गंभीर । -गति - स्त्री० मंद गति, धीमी चाल । वि० धीमी चालवाला ।
मंथरा - स्त्री० [सं०] कैकेयोकी कुबड़ी दासी ।
मंद - वि० [सं०] सुस्त, धीमा; गंभीर; मृदु; मूर्ख; हलका; थोड़ा, छोटा (मंदोदरी); दुर्बल ( मंदाग्नि ); नीच । - कांति - पु० चंद्रमा । -ग- वि० मंदगामी । पु० शनि। - गति - वि० धीमी चालवाला । - चेता ( तस ) - वि० मंदबुद्धि । - धी, बुद्धि - वि० मोटी अक्लवाला, अल्पबुद्धि । - भागी (गिन् ), - भाग्य - वि० अभागा, वदनसीब । -मति - वि० मोटी या खोटी अक्कुवाला । - समीर - पु० हलकी, सुखद वायु - स्मित- हास्यपु० हलकी हँसी ।
मंदर - पु० [सं०] वह पर्वत जो पौराणिक कथाके अनुसार समुद्र मथने में मथानी बनाया गया था; मंदार; स्वर्ग । मंदला - पु० एक तरहका बाजा । मंदा - वि० मंद, धीमा; ढीला; जिसकी माँग कम हो, नीचे मकना - पु० दे० 'मकुना' । भावपर बिकनेवाला (सौदा); खराब ।
मउनी - स्त्री० दे० 'मौनी' । मउर - पु० दे० 'मौर' । छोराई।- - स्त्री० विवाहसमाप्तिके बाद मौर अलग करनेकी रस्म । मउलसिरी* - स्त्री० दे० 'मौलसिरी' | मउसी - स्त्री० माँकी बहिन । मकई - स्त्री० ज्वार ।
मकड़ा - पु० बड़ी मकड़ी; एक घास ।
मकड़ाना - अ० क्रि० मकड़ीकी तरह चलना, अकड़कर चलना, इतराना ।
मकड़ी - स्त्री० एक कीड़ा जो अपने पेटसे एक तरहका लुआब निकालकर जाला बुनता है और उसमें फँस जानेवाली मक्खियों आदिको खा जाता है।
मकतब - पु० [अ०] लिखने-पढ़नेका स्थान; पाठशाला । मकदूर - पु० [अ०] शक्ति, सामर्थ्य, बस; धन ।
मकफ़ल - वि० [अ०] बीमा किया हुआ (आ०), बंधक
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मकबरा-मगन रखा हुआ, जमानतमें दिया हुआ।
मक्का-पु० मकई, बड़े दानेकी ज्वार; [अ०] अरबका एक मकबरा-पु० [अ०] वह इमारत जिसमें किसीकी कब्र हो, प्रधान नगर जो मुहम्मदका जन्मस्थान और मुसलमानोंका समाधि, मजार।
सर्वप्रधान तीर्थ है। मक्रबजा-वि० [अ०] जिसपर कब्जा किया गया हो, मक्कार-वि० [अ०] मन करनेवाला, छली । अधिकृत (वस्तु, संपत्ति)।
मकारी-स्त्री० [अ०] मक्र, कपट, धोखेबाजी। मकबूल-वि० [अ०] कबूल किया गया, माना हुआ, मक्खन-पु० दूध या दहीकी चिकनाई जो मथनेसे निकप्रिय । (मकबूले).खुदा-वि० खुदाका प्यारा। लती है, कच्चा घी, नवनीत । मकबूलियत-स्त्री० [अ०] (किसीका) प्रिय या प्यारा | मक्खी-स्त्री० सर्वत्र पाया जानेवाला एक परदार कौड़ा, होना; लोकप्रियता।
मक्षिका; मधुमक्खी; बंदूक, तमंचेका वह निशान जिससे मकरंद-पु० [सं०] फूलोंका रस, मधु; फूलोंका केसर । लक्ष्यका निशाना ठीक किया जाता है। -चूस-वि० मकर-पु० [सं०] मगर, घड़ियाल, मछली, बारह राशियों- भारी कंजूस ( दाल आदिमें पड़ी मक्खीतकको चस जानेमेंसे दसवीं; कुबेरकी नौ निधियों में से एक । -कुंडल- वाला)। -मार-वि० मक्खियाँ मारनेवाला, घिनौना । पु० मकराकृत कुंडल । -केतन,-केतु-पु. कामदेव । पु० एक छोटा जंतु । मु०-छोड़ना, हाथी निगलना-क्रांति-स्त्री० निरक्ष रेखासे २३ अंश दक्षिणमें स्थित छोटे दोषसे बचना और बड़ा करना । -पर मक्खी अक्षरेखा । -ध्वज-पु० कामदेव; अहिरावणका द्वारपाल मारना-बेसमझे, पूरी नकल करना । मक्खियाँ जिसकी उत्पत्ति हनूमान्का पसीना एक मछलीके पी मारना-बेकार बैठा रहना, कुछ न करना। लेनेसे बतायी गयी है। आयुर्वेदका एक प्रसिद्ध रस, रममक्र-पु० [अ०] बनावट, धोखा, छल, कपट, फरेब । सिंदूर । -लांछन-पु० कामदेव । -वाहन-पु० वरुण। -चाँदनी-स्त्री० पिछली रातकी चाँदनी जिससे सबेरा -व्यह-पु० मकरके आकारमें की हुई सैन्यरचना। होनेका धोखा होता है धोखा देनेवाली चीज। -संक्रांति-स्त्री० माघ मासकी संक्रांति जिस दिन सूर्य | मक्षिका-स्त्री० [सं०] मक्खी ।-मल-पु. मोम । मु०उत्तरायण होते हैं।
स्थाने मक्षिका-पूरी और बेसोचे-समझे नकल । मकर-पु० दे० 'मक' ।-चाँदनी-स्त्री० दे० 'मक्रचाँदनी'। मक्षिकासन-पु० [सं०] मधुमक्खियोंका छत्ता। मकरतार-पु० बादलेका तार ।
मख-पु० [सं०] यज्ञ । -त्राता (त)-पु० (विश्वामित्रके मकराकृत-वि० [सं०] मकर या मछलीके आकारका । यशकी रक्षा करनेवाले) राम-द्विट (प)-वि० यशद्वेषी। -कुंडल-पु० मछलीके आकारका कुंडल ।
पु० राक्षस । -शाला-स्त्री० यशशाला । -हा (हन्)मकरालय-पु० [सं०] समुद्र।।
पु० इंद्र: शिव । मकराश्व-पु० [सं०] वरुण ।
मनजन-पु० [अ०] खजाना, भंडार, जमा करनेकी जगह । मकरी-स्त्री० [सं०] मादा मगर, मछली, मकड़ी; + जोतकी मखतूल-पु० काला रेशम ।
कीलके ऊपर लगायी जानेवाली एक लकड़ी (ग्रामगी०)। मखतूली-वि० मखतूलका बना हुआ, काले रेशमका। मकसद-पु० [अ०] इरादा, मतलब, उद्देश्य अभीष्ट । मखन*-पु० मक्खन । मकसूद-वि० [अ०] अभीष्ट, उद्दिष्ट । पु० उद्देश्य, मतलब। | मखनिया-पु० मक्खन बनाने, बेचनेवाला । वि० मक्खन मकाई-स्त्री० दे० 'मकई'।
निकाला हुआ (मखनिया दूध)। मकान-पु० [अ०] रहनेका स्थान, घर । -दार-वि० मखमल-स्त्री० [अ०] एक मोटा रेशमी कपड़ा जो ऊपरकी मकानवाला। पु० मकानका मालिक। मु०-हिला| ओर बहुत नरम और रोयेंदार होता है। देना-बहुत शोरगुल मचाना ।
मखमली-वि० [अ०] मखमलका बना; मखमलप्सा । मकाम-पु० [अ०] दे० 'मुकाम' ।
मखाग्नि-स्त्री०, मखानल-पु०[सं०] यशमें संस्कृत अग्नि । मकु*-अ० चाहे; बरिक, शायद ।
मखान-पु० [सं०] यशान्न तालमखाना। मकुट-पु० [सं०] मुकुट ।
मखी*-स्त्री० दे० 'मक्खी'। मकुना-पु० बिना दाँतका या बहुत छोटे दाँतोंवाला (नर) मखौल-पु० मजाक, ठट्ठा। हाथी; मुच्छविहीन पुरुष ।
मखौलिया-वि० मखौल करनेवाला । मकुनी-स्त्री० आटेमें बेसन मिलाकर या भरकर बनायी मग*-पु० रास्ता, मागे; मगध ।-दा*-वि० मार्गदर्शक । हुई बाटी।
मगज-पु० दे० 'मग्ज'। -चट-वि० मगज चाटनेवाला, मकूनी*-स्त्री० दे० 'मकुनी' ।
बकवादी । -चट्टी-स्त्री० मगज चाट जाना, बकवास । मकूला-पु० [अ०] उक्ति, वचन, कौल; कहावत ।
-पञ्ची-स्त्री० माथापच्ची। मकोई*-स्त्री० दे० 'मकोय' ।
मग़ज़ी-स्त्री० [फा०] मिर्जई, रजाई आदिपर लगायी जाने. मकोड़ा-पु० छोटा कीड़ा (कीड़ाके साथ प्रयुक्त) ।
वाली गोट । मकोय-स्त्री० एक क्षुप जिसके फल, पत्ते आदि दवाके काम मगद, मगदल-पु० मूंग या उरदके बेसनका लडडू ।
आते हैं। इसका फल; रसभरीका पौधा या फल । मगदूर*-पु० दे० 'मकदूर'। मकोरना*-स० कि० दे० 'मरोड़ना'।
मगध-पु० [सं०] दक्षिणी बिहार,कीकट देश भाट, मागध । मकर-पु० दे० 'मक'।
मगन-वि० मग्न, डूबा हुआ; अति प्रसन्न, आनंदित ।
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मंगना - मजमा
मगना * - अ० क्रि० प्रसन्न होना; डूबना, लीन होना । मगर - पु० एक हिंस्र जलजंतु, मकर, घड़ियाल; कानमें पहनने का एक गहना । -मच्छ-पु० मगर; बहुत बड़ी मछली ।
मगर - अ० [फा०] लेकिन, पर ।
मग़रिब - पु० [अ०] सूरज डूबनेकी दिशा, पच्छिम । -की नमाज़ - शामकी नमाज ।
मग़रिबी - वि० [अ०] पश्चिमका, पश्चिमी ।
मग़रूर - वि० [अ०] गरूरवाला, घमंडी | मगसिर - पु० दे० ' मार्गशीर्ष' ।
मगह + - पु० दे० 'मगध' । - पति-पु० जरासंध । मगहय, मगहर* - पु० मगध देश ।
मगही - वि० मगधका; मगध में उपजनेवाला ।-पान - पु० मगध में होनेवाला पान जो पानकी सबसे बढ़िया किस्म
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माना जाता मगु* - पु० दे० 'मग'
मग्ग* - पु० दे० 'मग' |
मरज - पु० [अ०] मींगी, गूदा, गिरी; भेजा, दिमाग; सार भाग । -चट - वि० मग्ज चाट जानेवाला, बक्की । चट्टी-स्त्री० मग्ज चाट जाना, बकबक करके खोपड़ी खा जाना। -पच्ची - स्त्री० माथा-पच्ची, सिर खपाना । मु० - के कीड़े उड़ाना - बकवाससे खोपड़ी खा जाना । -खा जाना, - खा लेना,-चाट जाना - बक बक करके खोपड़ी खाली कर देना । - पिलपिला करना - मारकर भरता बना देना ।
मग्न - वि० [सं०] डूबा हुआ; तन्मय; हर्ष-मग्न । मघवा (न्) - पु० [सं०] इंद्र | - जित्-पु० मेघनाद | मघा - स्त्री० [सं०] २७ नक्षत्रों में से दसवाँ; एक औषध । मघोनी * - स्त्री० इंद्राणी ।
मघौना- पु० नीले रंगका कपड़ा; * दे० 'मघवा' । मचकना - अ० क्रि० लकड़ी, चमड़े आदिकी चीजका दबकर 'मच-मच' आवाज करना, लचकना । स०क्रि० (दबाकर 'मच-मच' शब्द उत्पन्न करना ।
मचका - पु० मचक, झोंका; झूलेकी पेंग । मचकाना - स० क्रि० लचकाना, हिलाना ।
मचमचाना-स० क्रि०, अ० क्रि० इस तरह लचकाना या लचकना कि 'मच-मच' की आवाज निकले ।
मचलना - अ० क्रि० किसी चीजको लेने या न देनेका हठ पकड़ लेना, किसी चीजके लिए रोना-धोना । मचला - वि० मचलने वाला, हठी । पु० बाँसकी बनी डिविया । मचलाना - अ० क्रि० मतली मालूम होना । मचली - स्त्री० मतली, वमनकी प्रवृत्ति ।
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कनेसे होनेवाली आवाज ।
मचिया- स्त्री० छोटी, चौकोर चौकी जो खाटकी तरह सुतली आदिसे बुनी गयी हो । मचिलई * - स्त्री० मचलनेका भाव, छठ ।
मच्छ - पु० दे० 'मत्स्य'; बड़ी मछली । - घातिनी-स्त्री० बंसी ।
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मच्छड़ - पु० दे० 'मच्छर' ।
मच्छर- पु० एक उड़नेवाला कीड़ा जो आम तौर से बरसात में पैदा होता और आदमियों जानवरोंका खून पीता तथा कई रोगोंके फैलनेका कारण होता है । -दानीस्त्री० मच्छरोंसे बचनेके लिए लगाया जानेवाला जालीदार परदा । मु०- पर तोप लगाना- छोटे आदमीको दबाने, दंड देनेके लिए भारी तैयारी करना ।
मच्छर* - पु० दे० 'मत्सर' । - ता* - स्त्री० मत्सर । मच्छी- स्त्री० दे० 'मछली' । - काँटा - पु० एक तरहकी सिलाई । भवन - पु० राजाओंके महलों, चिड़ियाघर आदि में मछलियाँ पालनेके लिए बना तालाब या हौज । -मार - पु० मछुआ, मल्लाह । मच्छोदरी* - स्त्री० व्यासकी माता सत्यवती । मछली - स्त्री० एक प्रधान जलजीव जिसकी छोटी-बड़ी अगणित जातियाँ होती हैं और जो फेफड़ेके बदले गलफड़ेसे साँस लेता है, मत्स्य; मछलीकी शकलका लटकन । -दार- पु० दरीकी एक बुनावट । -मार - पु० मछुआ । मळवा - पु० मछलीका शिकार करनेकी नाव । मछुआ, मछुवा - पु० मछलियाँ पकड़नेका पेशा करनेवाला, मल्लाह । - जहाज - पु० ( ट्रॉलर) मछलीका शिकार करनेकी नाव या जहाज ।
जाय ।
मज़दूर- पु० [फा०] उजरत, मजदूरीपर काम करनेवाला; मोटिया; बनिहार; शरीरश्रमसे जीविका करनेवाला । - दल - पु० संघटित श्रमिकवर्ग - संघ- पु० श्रमिकों या व्यवसाय विशेष के मजदूरोंका संघ ।
-
मचना - अ० क्रि० होना; जारी, बरपा होना; ( शोर, मज़दूरी - स्त्री० [फा०] शरीरश्रम, बोझ ढोने आदिका हलचल ) फैलना । काम; उजरत, पारिश्रमिक । - पेशा- वि० मेहनत-मजदूरीका पेशा करनेवाला |
मज़कूर - वि० [अ०] जिसका जिक्र किया गया हो, कथित । मजकूरी- पु० समन आदि तामील करनेका काम करनेवाला; अवैतनिक चपरासी जिसे तलबानेसे उजरत दी
मजना * - अ० क्रि० डूबना, निमग्न होना । मजनू - वि० [अ०] पागल, बावला; सिड़ी; आशिक, किसी पर मरनेवाला । पु० अरबीकी प्रसिद्ध प्रेमकथा लैलामजनूका नायक, कैस; बहुत दुबला-पतला आदमी । मज़बूत - वि० [अ०] दृढ़, पक्का, टिकाऊ; पुष्ट, बलयुक्त । मज़बूती - स्त्री० [अ०] ढ़ता, टिकाऊपन; सबलता । मजबूर - वि० [अ०] जिसपर जब किया गया हो, विवश,
लाचार ।
मचवा - पु० खाट; मचिया ।
मचान - पु० खंभोंपर बाँसके फट्टे आदि बाँधकर बनाया हुआ आसन, मंच |
मजबूरन् - अ० [अ०] मजबूर होकर, लाचारीसे ।
मचाना - स० क्रि० मचनेका कर्ता, साधक होना; कराना; मजबूरी-स्त्री० [अ०] विवशता, लाचारी ।
जारी या बरपा करना ।
मचामच - स्त्री० 'मच-मच' की आवाज, किसी चीज के लच
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मजमा - पु० [अ०] लोगोंके जमा होनेकी जगह; भीड़,
जमाव ।
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मजमूआ - वि० [अ०] जमा किया हुआ, संगृहीत । मज़मून - पु० [अ०] लेखादिका विषय, लेखादिमें निवद्ध भाव, विषय, लेख, निबंध । -नवीस- पु० लेख लिखने वाला, निबंधकार | मु० - बाँधना- किसी भावको लेख या पद्य में व्यक्त करना । मजलिस-स्त्री० [अ०] जलमेकी, बैठनेकी जगह; सभा, परिषद्, जलसा |
मज़लूम - वि० [अ०] जिसपर जुल्म किया गया हो, पीड़ित । मज़हब- पु० [अ०] रास्ता; पंथ, धर्म, संप्रदाय; दीन । मज़हबी - वि० [अ०] मजहब, धर्मविशेषसे संबंध रखने वाला । - आजादी - स्त्री० अपने धर्मके आचरणकी स्वतंत्रता ।
मज़ा - पु० [अ०] स्वाद, रस, जायका; चसका; सुख, आनंद, लुत्फ; तमाशा; सजा, कर्मफल । - (ज़े) दारवि०स्वादि, बढ़िया, जिसमें लुत्फ, आनंद आये । -कामजेदार; ठिकानेका; उपयुक्त; काम चलाऊ, उपयोगी । -की बात- तमाशेकी, लुत्फकी बात । -से-सुखपूर्वक, मौजसे । मु० - किरकिरा होना - रसभंग होना, कार्यका
आनंद न मिलना । - चखना, - पाना - लुत्फ उठाना; दंड, फल भोगना । चखाना-कियेका फल चखाना, दंड देना । - लूटना - सुख भोगना, लुत्फ उठाना । मज़ान - पु० [अ०] चखनेकी चाह; स्वाद, जायका; रुचि, मनका झुकाव हँसी, दिल्लगी । - पसंद- वि० हँसोड़ । - का आदमी - हँसोड़, परिहासप्रिय जन । मु० - उड़ाना - परिहास करना । मज़ाक़न् - अ० [अ०] हँसी में |
मज़ाकिया - वि० [अ०] हँसोड़, विनोदी | अ० मजाकमें । मजाज़ - वि० [अ०] अवास्तविक, कल्पितः अधिकार प्राप्त । मज़ार पु० [अ०] जियारतकी जगह, दरगाह; कब । मजारी * - स्त्री० बिल्ली, मार्जारी ।
मजाल - स्त्री० [अ०] शक्ति, सामर्थ्य, मक़दूर ।
मजिल - स्त्री० दे० 'मंजिल' ।
मजूर - + पु० दे० 'मज़दूर'; * दे० 'मयूर' | मजूरी | - स्त्री० दे० 'मजदूरी' |
मजेज * - स्त्री० गर्व, घमंड | मज्ज * - स्त्री० दे० 'मज्जा' ।
डंठलको
न इधर जा सके, न उधर । मझला - वि० बीचका, दरमियानी । मझाना * - अ० क्रि० पैठना, प्रवेश करना | स० क्रि० प्रवेश कराना, घुसाना ।
मझार* - अ० बीच में, मध्य में ।
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मझावना* - अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'मझाना' | मझियाना * - अ० क्रि० नाव खेना; मध्यसे निकलना । मझियारा* - वि० मझला, बीचका । मझु* - सर्व ० मैं; मेरा । मझोला - वि० मझला; न बहुत बड़ा, न छोटा । मझोली - स्त्री० मोचियोंका एक औजार; एक तरहकी बैलगाड़ी |
मजमूआ - मठाधीश
.
मज्जन- पु० [सं०] डूबना, गोता मारना; नहाना; मज्जा । मज्जना* - अ० क्रि० नहाना; गोता लगाना । मज्जा - स्त्री० [सं० ] नलीकी हड्डीके भीतर भरा स्नेहरूप पदार्थ; पेड़-पौधोंका सारभाग । -रस- पु० शुक्र, वीर्य । मज्झ* - पु० दे० 'मध्य' ।
मझ* - वि० मध्य, बीच। - धार स्त्री० बीच धारा । मु० - धार मेँ छोड़ना - कोई कार्य अपूर्ण अवस्था में ही छोड़ देना; किसीको ऐसी असहाय स्थितिमें छोड़ देना जब वह
|
३९--क
मट* - पु० मटका ।
मटक- स्त्री० मटकनेका भाव, नखरेका भाव, लचक | मटकना - अ० क्रि० चलने में हाथ, आँख, भौं आदिको नाजनखरेकी अदासे हिलाना, इठलाकर चलना; हिलना । मटकनि* - स्त्री० दे० 'मटक' | मटका - पु० बड़े मुँहका घड़ा,
मटकाना - स० क्रि० किसी विशेष अंगसे मटकनेकी क्रिया करना, उसे नखरेकी अदासे हिलाना, चमकाना | मटकी - स्त्री० छोटा मटका; मटक । मटकीला - वि० मटकनेवाला । मटकौअल - स्त्री० मटकानेका काम, मटक | मटमँगरा - पु० व्याह के कुछ पहले होनेवाली एक रस्म । मटमैला - वि० मिट्टी के रंगका, खाकी ।
मटर- पु० एक द्विदल अन्न जिसकी दाल और रोटियाँ भी खायी जाती हैं । - गश्त - पु०, स्त्री० टहलना; आवारा फिरना । - गश्ती - स्त्री० दे० 'मटरगश्त' । -चूड़ा-पु० मटर के हरे दानों के साथ चूड़ा मिलाकर बनायी हुई घुघरी । मटिया - वि० मटमैला । स्त्री० मिट्टी; शव । मटियाना - स०क्रि० मिट्टी मलकर धोना (हाथ, बरतन ३०) । मटियाफूस - वि० जरासी ठेसमें बिखर जानेवाला, अति दुर्बल
मजीठ - स्त्री० एक लता जिसकी जड़ और उबालकर लाल रंग निकाला जाता है । मनीठी - वि० मजीठके रंगका, गहरा सुखे । मजीर* -स्त्री० दे० 'मंजरी' (फूलों का गुच्छा) ।
मजीरा - पु० काँसेकी कटोरियोंकी जोड़ी जिसे ताल देनेके मटुक - + पु० मुकुट ( ग्रामगी०) । लिए बजाते हैं ।
मटुका - पु० दे० 'मटका' ।
मटुकिया, मटुकी * - स्त्री० छोटा मटका ।
मटियामसान - वि० मटियामेट, नष्ट ।
मटियामेट - - वि० मिट्टी में मिला हुआ, नष्ट | मटियाला - वि० मटमैला ।
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मट्टी - स्त्री० दे० 'मिट्टी' ।
महर - वि० सुस्त, धीमा ।
मट्ठा - पु० पानी मिलाकर मथा हुआ दही जिससे मक्खन निकाल लिया गया हो, छाँछ ।
मठ - पु० [सं०] छात्रावास; साधु-संन्यासियोंके रहनेका स्थान, आश्रम; देवालय । - धारी (रिन् ) - पु० मठका प्रधान साधु-संन्यासी ।
मठरी - स्त्री० दे० 'मठली' |
मठली-स्त्री० मैदेकी बनी एक तरहकी नमकीन टिकिया । मठा-पु० दे० 'मट्टा' |
मठाधीश - पु० [सं०] महंत |
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मडिया-मतिमाह मठिया-स्त्री० छोटा मठ फूलकी बनी हुई चूड़ियाँ । वालोंके संबंध निर्वाचकों द्वारा मतदानकी व्यवस्था हो । मठी-स्त्री० [सं०] छोटा मठ ।
दान-पत्र-पु० (बैलट) वह पत्र जिसपर चुनावमें खड़े मठी(ठिन)-पु० सं०] मठाधीश ।
होनेवाले व्यक्तिका नाम और उसका विशेष चिह्न अंकित मठोठा-पु. कुएँकी जगत ।
रहता है और जिसपर मतदाता कोई चिह्न बनाकर मठोर-स्त्री० दही मथनेकी मटकी; नील बनानेका माठ । किसीके पक्षमें अपना मत देता है। -दानपेटिका,मड़ई-स्त्री० लकड़ी आदिके खंभोंपर छप्पर रखकर बनायी पेटिका-स्त्री० (बैलट बॉक्स) वह पेटी जिसमें मतदाताओं हुई कुटी, झोपड़ी।
द्वारा मतपत्र छोड़े या डाले जाते हैं।-देय-पु०(वोटेबिल) मडराना, मडलाना-अ०क्रि० दे० 'मँडराना'।
वह विषय या व्ययकी वह मद जिसपर सदस्योंका मत मड़वा-पु० दे० 'मंडप'।
लिया जा सके ।-पत्र-पु० दे० 'मतदान-पत्र' ।-भेदमड़हट -पु० दे० 'मरघट' ।
पु० मतकी भिन्नता, राय न मिलना । -संग्रह-पु० मड़ा-पु० 'माड़ा' नामक नेत्ररोग; प्रकोष्ठ, कमरा । प्रश्नविशेषपर मतप्रकाशके अधिकारियोंकी रायोका इकट्ठा म.डुआ-पु० एक मोटा अनाज ।
किया जाना।-स्वातंत्र्य-पु० मत, विचारकी स्वतंत्रता । मईया-स्त्री० मड़ई, झोपड़ी।
मतना*-अ० क्रि० मत स्थिर करना; बिचारना-'मत मढ़-पु० मठ । वि० जो एक जगह बैठ जानेपर वहाँसे । बैठि बादल औ गोरा'-प० । मतवाला होना। जल्दी हटे नहीं।
मतलब-पु० [अ०] अभिप्राय, आशय अर्थगरज, स्वार्थ मढ़ना-स० क्रि० ऐसी चीज जड़ना, लगाना जिससे पूरी प्रयोजन; वास्ता, सरोकार । -का आशना,-का यारवस्तु ढक जाय (तसवीरपर शीशा, चौखटा मेजपर कपड़ा); । गरज निकालनेके लिए दोस्ती करनेवाला, खुदगर्ज । बाजेके मुँह पर चमड़ा लगाना; थोपना (दोष)। | मतलबी-वि० [अ०] अपनी गरज देखनेवाला, स्वाथीं । मढ़वाना-स० कि मढ़नेका काम दूसरेसे कराना। मतवार, मतवारा*-वि० दे० 'मतवाला'। मढ़ाई-स्त्री० मढ़नेका काम; मढ़नेकी मजदूरी।। मतवाला-वि० (शराबके) नशेमें चूर, मस्त; बदमस्त मढ़ी-स्त्री० छोटा मठ; छोटा मंदिर, कुटी।
(बलादिक) गर्वसे इतराता हुआ । [स्त्री० 'मतवाली'] पु० मया -पु० मढ़नेवाला।
किलेकी दीवारसे शत्रुपर लुढ़काया जानेवाला भारी पत्थर। मणि-पु०, स्त्री० [सं०] बहुमूल्य और कांतियुक्त पत्थर, मतांतर-पु० [सं०] दूसरा मत, भिन्न मत । रत्न, जवाहिर श्रेष्ठ जन; बकरीके गलेकी थैली; लिंगका मता, मतो*-पु० सलाह, उपदेश, सम्मति । अग्रभाग; योनिका अग्रभाग; कलाई, मणिबंध; घड़ा। मताधिकार-पु० [सं०] (फ्रैंचाइज़) लोकसभा, विधान-कंकण-पु० रत्नजटित कंकण । -कांचन-योग-पु० सभा, नगरपालिका आदिके लिए सदस्य चुननेका, मत रत्न और सोने जैसा शोभा-सुंदरता बढ़ानेवाला संयोग। प्रदान करनेका, अधिकार । -कुंडल-पु० रत्न-जटित कुंडल । -दीप-पु० रत्नजटित | मताधिकारी(रिन)-पु० [सं०] मत देनेका अधिकारी दीप; दियेका काम देनेवाला मगि। -दोष-पु० रत्नका (वोटर)। दोष ।-धर-पु. साँप । -बंध-पु० कलाई ।-माला- मतानुयाचक-पु० [सं०] (कैनवैसर) वह जो किसी क्षेत्रके स्त्री० मणियोंकी माला, लक्ष्मी ।
मतदाताओंके पास जाकर अपने पक्षमें मत देनेका मतंग-पु० [सं०] हाथी; बादल । -ज-पु० हाथी। अनुरोध करे। मतंगी*-पु० हाथीका सवार ।
मतानुयायी (यिन्)-वि० [सं०] मतविशेषका अनुगमन मत-अ० न, नहीं (निषेधात्मक, जैसे-मत करो)। स्त्री० करनेवाला। दे० 'मति' । वि० [सं०] सम्मत, अभिप्रेत, माना हुआ; | मतारी -स्त्री० माता। अचिंत; सोचा-विचारा हुआ; सम्मानित; बराबर किया मतार्थी(र्थिन्)-बि० [सं०] ( कैडिडेट) मत देनेके लिए हुआ। पु० राय, सम्मति; विचार, सिद्धांत; धर्ममत, पंथ; | प्रार्थना करनेवाला, उम्मेदवार । -घटक-पु० (पोलिंग अभिप्राय, मंशा; चुनावमें, प्रस्ताव आदिके पक्ष-विपक्षमें, एजेंट ) मतदान केंद्रपर मता की ओरसे काम करने निर्धारित विधिसे प्रकट किया हुआ मत, वोट, राय वाला, उसके हितों और अधिकारोंकी रक्षाका ध्यान ( आ०)। -गणना-स्त्री० मतों, वोटोंकी गिनती। रखनेवाला व्यक्ति ।। -दाता-सूची-स्त्री० (वोटर्स लिस्ट) किसी नगर, जिले मतावलंबी(बिन्)-वि० [सं०] मत या धर्मविशेषका आदिके उन बालिग व्यक्तियोंकी सूची जिन्हें मतदानका अवलंबन करनेवाला । अधिकार प्राप्त हो । -दान-पु. चुनाव आदिमें मति-* अ० दे० 'मत' । वि० सदृश । स्त्री० [सं०] बुद्धि, विधिवत् मतप्रकाश। -दानकक्ष,-दानकोष्ठ-पु० समझा राय; इच्छा; अभिप्राय । -द्वेध-पु० मतभेद । (पोलिंग बूथ) मतदानकेंद्रका वह कमरा, घर या घेरा -भ्रंश-पु० बुद्धिनाश; पागलपन। -भ्रम-पु० बुद्धिका जहाँ किसी विशेष मुहल्ले या मुहल्लोंके मतदाताओं भ्रम, अलका उलटफेर । -मंद-वि०मंदबुद्धि, कमसमझ । या किसी एक संख्यासे किसी अन्य विशेष संख्या- | -हीन-वि० निर्बुद्धि । मु०-मारी जाना-बुद्धिभ्रंश तकके निर्वाचकों या केवल स्त्रियों द्वारा मतदानकी होना, अलका मारा जाना। व्यवस्था हो।-दानकेंद्र-पु० (पोलिंग स्टेशन) वह स्थान मतिमान (मत्)-वि० [सं०] बुद्धिमान् , समझदार। जहाँ विधानसभा आदिकी सदस्यताके लिए खड़े होने-मतिमाह*-वि० दे० 'मतिमान् ।
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३१७
मती-मद्य मती-स्त्री० दे० 'मति' । अ० दे० 'मत'।
जिसकी आँखें नशेसे बंद सी हो रही हों। मतीर, मतीरा-पु० तरबूज ।
मदक-स्त्री० अफीमके सत्त और पानके योगसे बननेवाला मतेई*-स्त्री० सौतेली माँ।
एक नशीला पदार्थ जिसे तंबाकूकी तरह पीते हैं।-चीमतैक्य-पु० [सं०] किसी विषयपर सब या कुछ लोगोंकी वि० मदक पीनेवाला। एक ही राय होना, ऐकमत्य ।
मदद-स्त्री० [अ०] सहायता; कुमक ।-गार-वि० सहायक । म कुण-पु० [सं०] खटमल; मकुना हाथी।
मदन-पु० [सं०] कामदेव काम; प्रेम, वसंतकाल; भ्रमर मत्त-वि० [सं०] मतवाला, मस्त; उन्मत्त; घमंडी। खंजन । -कंटक-पु० सात्त्विक अनुराग-जनित रोमांच । मत्तता-स्त्री० [सं०] मस्ती, मतवालापन ।
-कदन-पु०शिव ।-कलह-पु०प्रेमकलह ।-गोपालमत्तताई*-स्त्री० दे० 'मत्तता'।
पु० कृष्ण । -दमन-पु० शिव । -दहन-पु० कामको मत्था-पु० माथा, ललाट सिर; सामनेका या ऊपरका जला देनेवाले, शिव । -दिवस-पु. मदनोत्सव । हिस्सा । मु०-टेकना-नमस्कार करना, वंदना करना। -पक्षी (क्षिन्)-पु० खंजन । -फल-पु० मैनफल । मत्थे-अ० माथेपर, सिरपर; के ऊपर ।
-मस्त-पु० [हिं०] चंपेकी जातिका एक तीब्र गंधवाला मत्सर-पु० [सं०] डाह, जलन; क्रोध, द्वेष ।
पुष्पवृक्ष । -महोत्सव-पु० आधुनिक होलीसे मिलतामत्सरी (रिन्)-वि० [सं०] मत्सरयुक्त, जलनेवाला; द्वेषी। जुलता एक प्राचीन उत्सव जो चैत्र-शुक्ला द्वादशीसे मत्स्य-पु० [सं०] मछली; विराट् देश; मत्स्य नरेश । चतुर्दशीतक होता था; होली। -मोहन-पु० कृष्ण । -गंधा-स्त्री. व्यासकी माता सत्यवती। -घाती- -रिपु-पु.शिव । (तिन्)-पु० मछुआ।-जीवी(विन्)-पु० मछुआ। मदनांतक-पु० [सं०] शिव । -देश-पु० विराट् देश ।-वेधनी-स्त्री० बंसी, कँटिया। मदनातुर-वि० [सं०] कामातुर । मत्स्यावतार-पु० [सं०] विष्णुके दस अवतारोंमेंसे पहला। मदनारि-पु० [सं०] शिव । मत्स्येंद्रनाथ-पु० [सं०] मध्यकालके एक प्रसिद्ध हठयोगी मदनोत्सव-पु० [सं०] मदन-महोत्सव होली। जो गोरखनाथके गुरु थे।
मदनोद्यान-पु० [सं०] प्रमोदवन । मत्स्योपजीवी(विन)-पु० [सं०] मछुआ।
मदर*-पु० चढ़ाई, हमला । मथन-पु० [सं०] मथनेकी क्रिया या भाव, विलोडन:वध । मदरसा-पु० [अ०] पढ़ानेकी जगह, पाठशाला । मथना-स० क्रि० आलोडन करना, दूध, दहीको मथानी मदहोश-वि० मतवाला; हैरान; भीरु बेहोश ।
आदिसे बिलोना; किसी बातको बार-बार सोचना, बिचा-मदांध-वि० [सं०] जो मस्ती या बल आदिके गवसे अंधा रना; छान डालना; दलन करना । * पु० मथानी। हो रहा हो। मथनिया-स्त्री० दे० 'मथानी'।
मदानि*-वि० स्त्री कल्याणकारिणी। मथनी-स्त्री० दही मथनेका मटका; मथनेकी क्रिया; मदार-पु० आक । [सं०] मस्त हाथी; सूअर, कामुक । मथानी।
मदारिया, मदारी-पु० बाजीगर, बंदर भालू नचानेवाला। मथवाह-पु० हाथीवान, महावत; मस्तक-पीड़ा-“जनु मदालु-वि० [सं०] जिससे मद झरता हो; मस्त । मथवाह रहे सिर लागे'-१०।
मदिर-वि० [सं०] नशा, मस्ती पैदा करनेवाला; मदभरा । मथानी-स्त्री० दूध, दही मथनेका डंडा जिसके एक सिरेपर | मदिरा-स्त्री० [सं०] मद्य, शराब । कटावदार खोरिया लगी होती है।
मदिराक्षी-वि० स्त्री० [सं०] मस्त, मदभरी आँखोंवाली। मथित-वि० [सं०] मथा हुआ, पीडित दलित ।
मदिरालय-पु० [सं०] शराबखाना । मथी(थिन)-पु० [सं०] मथानी ।
मदीय-वि० [सं०] मेरा। मथुरिया-वि० मथुराका।
मदीला*-वि० नशेमें चूर, मत्तनशा लानेवाला। मथूल*-पु० मस्तूल (रत्नाकर)।
मदोन्मत्त-वि० [सं०] मतवाला; मदांध । मध्य-पु० दे० 'माथा'।
मदोवै*-स्त्री० मंदोदरी । मद-स्त्री० [अ०] दे० 'मद्द' । * वि० मत्त । पु० * दे० मह-स्त्री० [अ०] आड़ी लकीर जिसे खींचकर नीचे लेखा 'मद्य' । [सं०] मद्यके सेवनसे मनमें होनेवाला विकार, या लेख लिखना आरंभ करते हैं; लेखकी समाप्ति पर नशा; मस्ती; मस्त हाथीकी कनपटीसे झरनेवाला जल; खींची जानेवाली लकीर; शीर्षक; विभाग खाता; खाना। उन्माद, हर्ष गर्व । -कर-वि० नशा पैदा करनेवाला। (मह) नज़र-वि० जो निगाहके सामने हो; उद्दिष्ट, -कल-वि० मस्त, मदोन्मत्त, धीरे-धीरे, अस्पष्ट | लक्ष्यः । -फ्राजिल-स्त्री० बेकार मद्द, बेकार चीज । बोलनेवाला; मस्तीमें भूला हुआ; बावला। -गंध*- | महत*-स्त्री० दे० 'मदद। पु० छितवन, मद्य ।-गल-वि० दे० 'मदकल' ।-नी
कल' ।-नी- महा-वि० दे० 'मंदा'। स्त्री० पोय, पूतिका। -जल-पु० मस्त हाथीकी कनपटी- मद्धिम-वि० मध्यम कम अच्छा; मंदा । से झरनेवाला जल, दान । -ज्वर-पु० कामज्वरः बल मद्धे-अ० बीचमें; मद, खातेमें, हिसाबमें । आदिका मद, नशा। -मत्त-वि० मस्त, मतवाला, मद्य-पु० [सं०] महुए आदिकी पाँससे खींचा हुआ मादक मदोन्मत्त । -माता-वि० [हिं०] मस्त, मदमत्त कामुक। अर्क, सुरा, शराब । -प-वि० मद्य पीनेवाला, शराबी । [स्त्री 'मदमाती' ।]-मुकुलिताक्षी-स्त्री० वह स्त्री -पान-पु० शराब पीना । -पायी(यिन्)-वि०
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मद्यपाशन-मध्यांतर रेखा
६१८ मद्यप, शराबी । -भांड-पु. शराब रखनेका घड़ा, मधुरी*-स्त्री० दे० 'माधुरी' । वि० स्त्री० मीठी, रुचिकर । मधुघट ।
मधूक-पु० [सं०] महुएका पेड़ या फूल; भ्रमर । मद्यपाशन-पु० [सं०] गजक, चाट ।
मधूत्सव-पु० [सं०] वसंतोत्सव । मद्र-पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद: मद्र-नरेश । -सुता मध्य-पु० [सं०] वस्तुका बीचका भाग, केंद्र; देहका मध्य -स्त्री० माद्री।
भाग, कमर; वस्तुका भीतरी भाग; बीचकी अवस्था मध, मधि-वि० दे० 'मध्य' । अ० में।
संगीतमें बीचका सप्तक; नृत्यमें मध्यम गति । वि० मधु-पु० [सं०] शहद; मधपुष्परस; वसंत ऋतु; चैतका बीचका, दरमियानी; अंतर्वती; मध्यस्थ । * अ० बीचमें । महीना; जल; सोमरस; दूध; मुलेठी; शर्करा; अशोक; -ग-पु० (ब्रोकर) वह व्यक्ति जो कमीशन लेकर खरीविष्णुके हाथों मारा गया एक दैत्य । वि० मीठा । -कंठ दनेवाले और बेचनेवालेके बीच में पड़कर सौदा पटा देनेका -पु० कोयल । -कर-पु० भौंरा; रसिक व्यक्ति; एक काम करे, दलाल । -गत-वि०बीचमें स्थित, बीचका । तरहका चावल । -करी-स्त्री० भ्रमरी; पके अन्नकी भिक्षा -जन-पु०(मिडिलमैन) दो पक्षों या दलोंमें संपर्क स्थापित जो संन्यासीके लिए विहित है। -कोश,-कोष-पु० | करानेवाला आदमो; वह व्यक्ति जो उत्पादकों तथा उपशहदका छत्ता । -घाप-पु० कोयल । -चक्र-पु० भोक्ताओंके बीचमें पड़कर मालके वितरण, खरीद-बिक्री शहदकी मक्खियोंका छत्ता । -ज-पु० मोम । -जा- | आदिमें सहायता करता है। -दिन-दिवस-पु० दोपहर । स्त्री० मिसरी पृथ्वी ।-वय-पु. तीन मीठी चीजें-शहद, -देश-पु.हिमालय और विध्य तथा कुरुक्षेत्र और घी और शर्करा । -द्रुम-पु० महुएका पेड़; आमका पेड़।। प्रयागके बीचका देश; बीचका भाग । -पूर्व-पु० युरो-प-पु० मधुकर, भ्रमर * उद्धव । वि० शराबी (कवि- पियोंकी दृष्टिसे एशियाका दक्षिण-पश्चिमी तथा अफ्रिकाका प्रि०)-पटल-पु० शहदकी मक्खियोंका छत्ता । -पति | उत्तर-पूर्वी भाग (मिडिल ईस्ट)।-युग-पु० प्राचीन और -पु० कृष्ण। -पर्क-पु० दही, घी, शहद, जल और अर्वाचीन कालके बीचका समय; भारतके इतिहासमें राजशकरका योग जो देवता और अतिथिके सामने रखा जाता पूतकालसे मुगलकालतकका समय; यूरोपके इतिहास में है। -पुर-पु०,-पुरी-स्त्री० मथुरा । -बन-पु० ६०० से १५०० ईसवीतकका काल । -युगीन-वि० [हिं०] दे० 'मधुवन' । -बाला-स्त्री० भ्रमरी । -मक्खी (मिडीव्हल) इतिहासके मध्ययुगसे संबंध रखनेवाला । -स्त्री० [हिं०] शहदकी मक्खी। -मक्षिका,-मक्षी- मध्ययुगका। -रात्र-पु०,-रात्रि-स्त्री० आधी रात ।स्त्री० शहदकी मक्खी। -मास-पु० चैतका महीना । लोक-पु० मर्त्यलोक, भूलोक ।-वय (स.)-स्त्री०अधेड़ -मेह-पु० पेशावके साथ शकर आनेका रोग, शर्करा- उम्र । वि० अधेड़ उम्रवाला ।-वर्ती (तिन्)-वि० बीचमें प्रमेह । -मेही(हिन)-वि० मधुमेहका रोगी। -यष्टि, | स्थित, केंद्रवती। -वित्त-वि० मध्य श्रेणीका, न अमीर, -यष्टिका-स्त्री० मुलेठी । -रस-वि० मधुर रसवाला, न गरीब । -वित्तवर्ग-पु० (बू ) सभाजके उन मीठा । पु० ईख ताड़ । -राज*-पु० भौंरा । -रिपु- लोगोंकी श्रेणी जो न अमीर कहे जा सकते हैं और न पु० कृष्ण । -लिट(ह),-लेह-लोलुप-पु० भौंरा । गरीब तथा जो प्रायः बुद्धिजीवी होते हैं। -स्थ-पु० -वन-पुथ्वह वन जिसमें मधु दैत्य रहता था और जहाँ (मीडियेटर) वह व्यक्ति जो दो पक्षोंके बीचमें पड़कर, शत्रुघ्नने मथुरा नगरी बसायी; किष्किधाका वह वन दोनोंको समझा-बुझाकर उनका आपसी झगड़ा या विरोध जिसमें सुग्रीव रहते थे कोयल । -वल्ली-स्त्री० मुलेठी। दूर करनेका प्रयल करे । बिचुआ तटस्थ, उदासीन । वि० -शर्करा-स्त्री० शहदसे बनायी हुई शकर । -शिष्ट,- मध्य में स्थित । -स्थल-पु० मध्यभाग; कमर । शेष-पु० मोम । -सख,-सहाय,-सारथि-पु० काम- मध्यम-वि० [सं०] बीचका, मँझला; मैंझोला; न बढ़िया, देव । -सुहृद्-पु० कामदेव । -सूदन-पु० मधु दैत्य- न घटिया। पु० सात स्वरों मेंसे चौथा; तीन प्रकारके को मारनेवाले कृष्ण । -हा(हन)-पु० विष्णु ।। नायकोंमेंसे एक (सा०); एक राग। -पदलोपी (पिन)मधुक-पु० [सं०] महुआ मुलेठी । वि० मीठा सुरीला । पु० वह समास जिसमें पूर्व पदसे उत्तर पदका संबंध मधुर-वि० [सं०] मीठा; प्रिय; सुंदर; कोमल; कानोंको जोड़नेवाला पद लुप्त हो (स्वर्णकलश-सोनेका बना हुआ प्रिय लगनेवाला; मनोरम; सौम्य ।-भाषी (षिन)- कलश, छायातरु )। -पांडव-पु० अर्जुन । -पुरुषवि०जिसकी बोली में मिठास हो।
पु० पुरुषवाचक सर्वनामके तीन भेदोंमेंसे एक, वह पुरुष मधुरई*-स्त्री० मिठास, माधुर्य ।
जिससे बात की जाय। -लोक-पु० मर्त्यलोक, भूलोक, मधुरता-स्त्री०, मधुरत्व-पु० [सं०] मिठास, माधुर्य । धरती। -वय (स)-स्त्री० अधेड़ उम्न । -वयस्कमधुराई*-स्त्री० मधुरता, मिठास ।
वि. अधेड़ वयवाला। मधुराना*-म०कि० मिठास पैदा होना, मीठा होना। मध्यमा-स्त्री० [सं०] बीचकी उँगली; वह स्त्री या लड़की मधुरान-पु० [सं०] मिष्टान्न ।
जिसे रजोदर्शन हो चुका हो; नायकके प्रेम या दोषके मधुरिका-स्त्री० [सं०] सौफ ।
अनुसार उसका आदर-मान करनेवाली स्त्री। मधुरिन-स्त्री० (ग्लिसरीन) बिना रंगका एक मीठा-सा मध्यस्थता-स्त्री० [सं०] बिचवई; तटस्थता। द्रव पदार्थ जो प्रायः दवाके काम आता है तथा विस्फो- मध्यांतर रेखा-स्त्री० [सं०] (मेरीडियन) वह कल्पित रेखा टकोंके निर्माणमें भी प्रयुक्त होता है।
जो दोनों ध्र वोंसे होती हुई किसी स्थानके पाससे पृथ्वीके मधुरिमा (मन्)-स्त्री० [सं०] मिठास, माधुर्य । चारों ओर गयी हो।
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६१९
मध्या - पु० [सं०] रजःप्राप्त स्त्री; विचली उँगली; वह नायिका जिसमें काम और लज्जा समान हों। मध्यावकाश - पु० [सं०] (रिसेस) दे० 'अल्पावकाश' । मध्याह्न - पु० [सं०] दोपहर |
मध्याह्नोत्तर - पु० [सं०] तीसरा पहर, दोपहर के बादका
समय ।
मध्ये - अ० दे० 'मद्वे' ।
मध्व - पु० एक संप्रदाय प्रवर्तक और वेदांत सूत्रों पर भाष्य लिखनेवाले वैष्णव आचार्य । -संप्रदाय - पु० मध्व द्वारा प्रवर्तित वैष्णव संप्रदाय |
मनः- पु० 'मनस्' का समासगत रूप । - कल्पित - वि० मनगढ़ंत, फर्जीीं । -क्षेप- पु० मनका क्षोभ । - प्रसादपु० चित्तकी प्रसन्नता । - प्रसूत - वि० मनःकल्पित । - शक्ति - स्त्री० मनोबल । - संताप - ५० ग्लानि । - संस्कार - पु० मनपर पड़नेवाला प्रभाव; मनका परिष्कार । मन - पु० चालीस सेरका वजन; * दे० 'मणि' | मन(स्) -पु० [सं०] ज्ञान, संवेदन, संकल्प आदिकी साधनरूप अंतरिंद्रिय, चित्त; अंतःकरणको संकल्प - विकल्प करनेवाली वृत्ति (वे०); इच्छा, जी । ['मन' शब्द से बने हुए नीचे लिखे सामासिक शब्दों का प्रयोग केवल हिंदी में होता है ।] - कामना - स्त्री० दे० 'मनोकामना' । - गढ़ंत - वि० मनका गढ़ा हुआ, कल्पित ।-घडंत - वि० दे० ' मनगढ़ंत ' | - चला - वि० साहसी, हौसलेवाला; निडर; मनमौजी । - चाहा - वि०मनका चाहा हुआ, मनोभिलषित। - चीता - वि० सोचा हुआ, चाहा हुआ, मनभाया । - जात-पु० मनोभव, कामदेव । - बांछित - वि० दे० 'मनोवांछित' । - भाया - वि० मनको भानेवाला, मनोनुकूल, प्रिय । - भावना - भावन* - वि० जो मनको भाये, प्रिय लगे, प्यारा । - मथन- पु० कामदेव । - माना- वि० जो मनको भाये, रुचे; जो मनमें आये, जो जी चाहे । अ० यथेच्छ, जितना जी. चाहे । -मानीस्त्री० मनमाना काम । -मानी घरजानी- स्त्री० स्वेच्छापूर्ण काररवाई। - मुखी* - वि० मनमौजी ।मुटाव - ० मनमें मैल या बुराई आ जाना, वैमनस्य । - मोदक - पु० मनका लड्डू, खयाली पुलाव | - मोहन- वि० मनको मोहनेवाला, प्यारा । पु० कृष्ण । - मौजी - वि० अपनी मौजसे, अपने इच्छानुसार काम करनेवाला, स्वच्छंद । - रंज*-५० दे० 'मनरंजन' । - रंजन* - वि० मनोरंजक | पु० दे० 'मनोरंजन' । - रोचन* - वि० मन लुभानेवाला । -लाडू * - पु० मनमोदक । -हरवि० दे० 'मनोहर' | पु० घनाक्षरी छंद -हरण- वि० मनोहर | पु० मनको हरने, मोहनेकी क्रिया; एक वर्णवृत्त । - हरन - वि, पु० दे० 'मनहरण' । - हार, -हारिवि० दे० 'मनोहारी' | मु० ( किसीसे ) - अटकना, - उलझना - किसीसे दिल फँसना, प्रेम होना। (किसी पर) - आना- किसीपर दिल आना । कच्चा करना - दिल छोटा करना, हिम्मत हारना । -करना-इच्छा होना, जो चाहना । -का कच्चा - कमजोर दिलका । -का मारा - खिन्नहृदय । -का मैल - वैर; दुर्भावना । - का मैला - खोटा, बुरे दिलका । -की मनमें रहना
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मध्या-मनसूखी
इच्छा पूरी न होना । की मौज-मनकी लहर । के लड्डू खाना-न होनेवाली बातकी आशा करके प्रसन्न होना, खयाली पुलाव पकाना ।-चलना -जी चाहना, इच्छा होना। डोलना-इच्छा होना, ललचना; ( मनका) विचलित होना । - देना- मन लगाना । - धरना* - ध्यान देना ।-फटना - चाह प्रीति न रहना, विरक्ति हो जाना। -बढ़ना - हौसला बढ़ना, उत्साहित होना । - बढ़ाना - उत्साह बढ़ाना, बढ़ावा देना ।-भरना - तृप्ति होना, अघाना; तुष्टि, समाधान होना। -भाना - रुचना, अच्छा लगना । - मानना - संतोष होना; निश्चय होना; भाना; दिल मिलना, प्रीति होना; अक्कु ठिकाने लगना । -मारना- इच्छाओं को दबाना, मनोनिग्रह करना । - मारे ( हुए ) - खिन्नचित्त, उदास । -मिलना - रुचि, प्रवृत्ति में समानता होना; प्रीति होना। - में आना - खयाल उठना, इच्छा होना । - में मैल आना - ( किसीके विषय में) मनमें बुराई, दुर्भाव पैदा होना । - मैला करना- उदास होना; मनमें दुर्भाव लाना। - मैला होना- किसीके बारेमें खयालका खराब हो जाना, खिन्न होना । - मोहना-मन लुभाना । - लाना * - मन लगाना। -से उतरना - मनमें अनादर या तिरस्कार हो जाना। हरना-भन मोहना । -ही मन-अंदर ही अंदर, चुपचाप । -होना-इच्छा होना । मनई + - पु० आदमी, मानव ।
मनकना - अ० क्रि० हिलना, हाथ-पाँव आदि से कोई चेष्टा करना - '... जापता करन हारे नेकहू न मनके' - भू० । मनका पु० माला, सुमिरनी आदिका दाना, गुरिया | मनकूला- वि० स्त्री० [अ०] चर, चल, जिसे दूसरी जगह ले जा सकें । -जायदाद - स्त्री० चल संपत्ति । मनन- पु० [सं०] सोचना, समझने के लिए बार-बार विचार करना; अनुमान । - शील- वि० जिसे मनन करनेकी आदत हो, विचारशील ।
मननीय - वि० [सं०] मनन करने योग्य । मनवाना - स० क्रि० माननेको प्रेरित करना; मनानेका काम दूसरे से कराना ।
मनशा पु० [अ०] इच्छा, इरादा; भाव, विचार । मनश्चक्षु पु० [सं०] मनकी आँख, अंतर्दृष्टि । मनसना * - स० क्रि० इच्छा, इरादा करना । मनसब - पु० [अ०] पद, उहदा; अधिकार; दरजा; सेवा; वंशपरंपरा से मिलनेवाली वृत्ति । -दार - पु० अधिकारी; मनसब (वृत्ति) पानेवाला ।
मनसा - * वि० मनसे उत्पन्न, मानस । स्त्री० मन; इच्छा; अभिलाष; इरादा; अभिप्रायः बुद्धि; [सं०] जरत्कार मुनिको पत्नी और वासुकि नाग की बहिन । अ० मनसे, मनके द्वारा (मनसा, वाचा, कर्मणा ) । मनसाना - अ० क्रि० उत्साहित होना, उमंगमें आना; दे० ' मनुसाना' |
मनसायन - पु० चहल-पहल |
मनसिज - पु० [सं०] कामदेव; काम; चंद्रमा । मनसुख - वि० [अ०] रद्द किया हुआ, काटा हुआ । मनसुखी-स्त्री० [अ०] मनसुख होनेका भाव ।
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मनसूषा-मनो
६२० मनसुबा-पुण्योजना, तजबीज; जोड़-तोड़,युक्ति इरादा। मनुजाधिप-पु० [सं०] राजा।
-बाज़-पु० योजना बनानेवाला, युक्ति सोचनेवाला। मनुजेंद्र, मनुजेश्वर-पु० [सं०] राजा। मनसूर-पु० [अ०] ९वीं शतीका एक प्रसिद्ध मुसलमान मनुजोत्तम-पु० [सं०] वह जो मनुष्योंमें श्रेष्ठ हों।
सूफी जो 'अनलहक़' (अहं ब्रह्मास्मि) कहा करता था। | मनुष-पु० दे० 'मनुष्य'। मनस-पु० [सं०] दे० 'मन(स)| -कांत-वि० | मनुष्य-पु० [सं०] आदमी, मानव, इनसान । -कृतप्यारा, मनको प्रिय लगनेवाला। -काम-पु० मनोरथ, | वि० मनुष्यका किया, बनाया हुआ। -गणना-स्त्री० मनकी इच्छा । -ताप-पु० मनका ताप, दुःख, अनु- मर्दुमशुमारी। -लोक-पु० मृत्युलोक, धरती। ताप। -तुष्टि-स्त्री० मनका संतोष । -तृप्ति-स्त्री.
मनुष्यता-स्त्री० [सं०] मनुष्योचित भाव, गुण, दया, मनकी तृप्ति ।
धर्मबुद्धि, सौजन्य आदि, इनसानियत । मनस्वी(स्विन)-वि० [सं०] अच्छे, ऊँचे मनवाला, ' मनुसा-पु० मनुष्य; जवान, मर्द ।
बुद्धिमान् । स्थिरचित्त, दृढनिश्चय । (स्त्री० मनस्विनी।) मनुसाई*-स्त्री० पुरुषार्थ, मर्दानगी । मनहु*-अ० मानों।
मनुसाना-अ० क्रि० पुरुषत्वका अभिमान, मर्दानगीकी मनहूस-वि० [अ०] अभागा; अशुभसूचक; उदासीसे | भावना जगना । भरा हुआ (मनहूस सूरत)।
मनुहार-पु० मनानेके लिए की जानेवाली बिनती, मनानेमनहसी-स्त्री० [अ०] मनहूस होनेका भाव, उदासी। का यत्न; बिनती, खुशामद । -नीति-स्त्री० मनाने, मना-पु० [अ०] रोकना,निषेध । वि०निषिद्ध, अविहित।
प्रसन्न करनेकी नीति । मनाई-स्त्री० दे० 'मनाही' ।
मनुहारना*-स० क्रि० मनुहार करना, मनाना । मनाक(ग)-अ० [सं०] थोड़ासा, जरासा धीरे-धीरे। मनूरी-स्त्री. मुरादाबादी कलई करने में काम आनेवाला मनादी-स्त्री० दे० 'मुनादी'।
एक चूरा। मनाना-स० क्रि० रूठे, बिगड़े हुएको प्रसन्न करना, राजी | मने-पु०, वि० दे० 'मना'। करना; किसी बातके होनेकी ईश्वरसे प्रार्थना करना; मनौँ*-अ० दे० 'मानों'। प्रार्थना करना, मनुहार करना।
| मनो-पु०[सं०] 'मनस्' का समासगत रूप ।-कामनामनार-पु० [अ०] मीनार, ज्योतिस्तंभ, मसजिदका वह स्त्री० [हिं०] मनकी कामना, अभिलाष ।-गत-वि० मनमें
स्तंभ जिसपर खड़ा होकर मुअज्जिन अजाँ देता है। भरा, छिपा हुआ । पु० इच्छा; विचार । -गति-स्त्री० मनावनो-पु० मनानेकी क्रिया।
इच्छा ; मनकी गति ।-ज-पु०कामदेव ।-ज्ञ-वि० सुंदर, मनाही-स्त्री० मुमानियत, निषेध ।
मनोहर । [स्त्री० 'मनोज्ञा'।] -दंड-पु० मनोनिग्रह । मनि-पु०,स्त्री० दे० 'मणि' । -धर-पु० दे० 'मणिधर'। -दाह-पु० मनका केश, पीडा, मनस्ताप । -नयनमनिका*-पु० दे० 'मनका'।
पु० पसंद करना, चुनना । -निग्रह-पु० मनकी मनिया-स्त्री० मनका, गुरिया ।
इच्छाओं, वृत्तियोंको वशमें रखना। -नियोग,-निवेशमनियार*-वि० चमकता हुआ; सुंदर, शोभायुक्त । पु० मन लगाना । -नीत-वि० पसंद किया हुआ; चुना मनियारा-पु० जौहरी; दे० 'मनिहार' ।।
हुआ।-भंग-पु० उदासी, विषाद, नैराश्य । -भवमनिहार-पु० चूड़ी, टिकली, सिंदूर आदि (फेरी करके) पु० कामदेव । -भाव-पु० मनका भाव, वृत्ति ।बेचनेवाला।
मालिन्य-पु० मनमें मैल आना, मनमोटाव । -योगमनिहारन, मनिहारिन, मनिहारी-स्त्री. चूड़ी बेचने पु० मनको किसी विषयमें एकाग्र करके लगाना ।-रंजक या पहनानेवाली स्त्री, चुड़िहारिन ।-लीला-स्त्री० मनि- -वि० मनोरंजन करनेवाला। -रंजन-पु० मनबहहारिन बनकर राधाको चूड़ी पहनानेकी कृष्णकी लीला । लाव, दिलका खुश होना। -रंजन-कर-पु० (एंटरटेनमनीआर्डर-पु० [अं॰] डाकखानेका चेक जिसके जरिये मेंट टैक्स) दे० 'प्रमोदकर'। -रथ-पु० मनकी कामना, अन्यत्र स्थित जनके पास रुपया भेजा जाता है।
अभिलाष। -रम-वि० सुंदर, मन लुभानेवाला। -रमा मनीजर-पु० [अं० 'मैनेजर] किसी कार्यालय, संपत्ति -स्त्री० गोरोचना; कार्तवीर्यार्जुनकी पत्नी। -राज्यआदिका प्रबंधकर्ता।
पु० कल्पनासृष्टि, जागतेका सपना, खयाली पुलाव । - मनीषा-स्त्री० [सं०] बुद्धि; इच्छा; विचार; स्तुति (वै०)।। रोगचिकित्सक-पु० (साइकिएट्रिस्ट) मानसिक रोगोंका मनीषिका-स्त्री० [सं०] बुद्धि, मनीषा, इच्छा।
उपचार करनेवाला । -लीला-स्त्री० (फैनटम) मनमें ही मनीषी(षिन)-वि० [सं०] बुद्धिमान् ; पंडित, विचार-| विद्यमान कल्पनाकी वस्तु जिसका वस्तुतः कोई अस्तित्व
शील । पु० बुद्धिमान् मनुष्य, पंडित, विचारशील पुरुष । न हो, भ्रांति, सत्य-सी प्रतीत होनेवाली कोई छाया। मनु-पु० अ० मानों । [सं०] ब्रह्माके मानसपुत्र स्वायंभुव -बांछा-स्त्री. मनकी अभिलाषा, इच्छा । -वांछितमनु जो आदि प्रजापति और मनुस्मृतिके कर्ता माने जाते वि० मनका चाहा हुआ, अभिलषित । -विकार-पु० हैं ।-ज,-जात-पु० मनुसंतान, मनुष्य । -जा-स्त्री० मनकी भावना या मनका आवेग । -विज्ञान-पु० मनस्त्री। -संहिता-स्त्री० मनुस्मृति । -स्मृति-स्त्री० की प्रकृति, वृत्तियों आदिका विवेचन करनेवाला विज्ञान, आदि मनुका बनाया धर्मशास्त्र ।
मानसशास्त्र । -विश्लेषण-पु० मनके विचारोंकी समीक्षा, मनुजाद-पु० [सं०] नरभक्षी, राक्षस ।
चित्तविश्लेषण । -वृत्ति-स्त्री० मनका विकार, चित्त
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६२१
वृत्ति । - वेग-पु० मनका विकार, मनका आवेग । - वैज्ञानिक - वि० मनोविज्ञान संबंधी । पु० मनोविज्ञानका ज्ञाता । -व्याधि-स्त्री० मानस रोग । -हर- वि० मनको हरने, चुरानेवाला, सुंदर । पु० छप्पय छंदका एक भेद । - हारी (रिन्) - वि० मन हरनेवाला, सुंदर | मनोमय - वि० [सं०] मनोरूप, मानस । - कोष-पु० आत्मा के आवरणरूप पंचकोषों में से तीसरा । मनोरा - पु० गोबर से बने चित्र । मनोरा झूमक - पु० एक गीत । मनोसर* - पु० मनोविकार ।
मरूर - वि० [अ०] भागा हुआ (अपराधी ) ( ' राबन') । मम सर्व० [सं०] मेरा, मेरी ।
ममता - स्त्री०, ममत्व - पु० [सं०] किसी चीजको अपनी समझना; अपनापन; स्नेह; अहंकार; बच्चे के प्रति माँका स्नेह; मोह |
ममरखी + - स्त्री० मुबारकबादी, बधावा | ममाखी* - स्त्री० [० 'मौमाछी'] मधुमक्खी । ममिया - वि० ममेरा, मामाके दरजेवाला । -ससुर - पु० पति या पत्नीका मामा । - सास-स्त्री० पति या पत्नीकी मामी ।
ममोला - पु० एक छोटी चिड़िया, धोबिन । मयंक - पु० चंद्रमा ।
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मनोमय-मरणोन्मुख
- ख़ाना - पु० मदिरालय । - कश-वि० शराब पीनेवाला । - कशी - स्त्री० शराब पीना, मद्यपान । - परस्त - वि० शराबी, मदिराभक्त । -फ़रोश- पु० शराब बेचनेवाला ।
मनोहरता - स्त्री० [सं०] सुंदरता । मनोहरता ई * - स्त्री० मनोहरता, सुंदरता । मनौती - स्त्री० मनावन; कार्यसिद्धि होनेपर किसी देवता की विशेष पूजा करनेकी प्रतिज्ञा, मानता, मन्नत मन्नत - स्त्री० किसी कार्यकी सिद्धि या अनिष्टके निवारणपर किसी देवता की पूजा करनेका संकल्प, मनौती । मु० - उतारना - मन्नत पूरी करना । - मानना - मनौती
मयूख - पु० [सं०] किरण; शिखा; दीप्ति; शोभा; कील । मयूर - पु० [सं०] मोर; एक पर्वतका नाम । - नृत्य - पु० एक तरहका नाच । -पुच्छ-पु० मोरकी पूँछ । मयूरी - स्त्री० [सं०] मोरनी । मरंद - पु० [सं०] मकरंद |
मानना ।
मन्मथ - पु० [सं०] कामदेव; कैथका पेड़ ।-प्रिया - स्त्री रति । मन्मथालय - पु० [सं०] आमका पेड़; भग । मन्य - वि० [सं०] (समासांत में) अपने आपको मानने, मरकज़ी - वि० [अ०] केंद्रीय, प्रधान ( कमेटी, हुकूमत ) | समझनेवाला (पंडितम्मन्य लघुम्मन्य ) |
मरक - पु० [सं०] मरी, महामारी । * स्त्री० इशारा, शह, बढ़ावा - 'अर टरत न बर परे, दई मरक मनु मैन'- बि० मरकज़ - पु० [अ०] वृत्त या दायरेका मध्यबिंदु, केंद्र; सदर मुकाम, मुख्य स्थान ।
मरकत - पु० [सं०] पन्ना ।
मरकना - अ० क्रि० दबकर टूटना; दबना ।
मन्यु - पु० [सं०] क्रोध, अहंकार; उत्साह; दैन्य; शोक । मन्युमान् ( मत्) - वि० [सं०] क्रोध, अहंकार या दैन्य इत्यादिसे युक्त ।
मरकहा | - वि० (सींगसे) मारनेवाला (बैल, भैंसा इ० ); हथछुट । [स्त्री० 'मरकही' ।]
मन्वंतर - पु० [सं०] (मनु + अंतर) मनुका अधिकारकाल, मरकाना - स० क्रि० दबाकर तोड़ना ।
इकहत्तर चतुर्युगी; दुर्भिक्ष ।
मरखना - वि० मरकहा, सींगसे मारनेवाला । मरगजा - वि०, पु० दे० 'मलगजा' |
मरघट - पु०मुर्दे जलानेका स्थान, मसान ।- का भुतनामसानका भूत; डरावनी शकलका आदमी ।
मरचा - पु० दे० 'मिरचा' ।
मरज - पु० दे० 'मर्ज़' ।
मयगल * - पु० मस्त हाथी, मद्गल । मयन * - पु० मदन, कामदेव |
मयमंत, मयमत्त* - वि० मदमत्त मस्त । मयस्सर - वि० [अ०] दे० 'मुयस्सर' | मया* - स्त्री० माया; मोह; संसार; प्रेम-बंधन; दया, कृपा । मयार - वि०दयालु, कृपायुक्त । स्त्री०हिंडोलेके बीचका डंडा । मयारी - स्त्री० धरन ।
मरजाद, मरजादा - स्त्री० दे० 'मर्यादा' । मरजिया- पु० पानी में डूबकर चीजें निकालनेवाला, गोताखोर - 'जो मरजिया होइ त सो पावै वह सीप' - प० । वि० जो मरकर जिया हो; जो मरते-मरते बचा हो; अधमरा; मरनेको उद्यत ।
ममियौरा - पु० मामाका घर ।
ममीरा - पु० हलदीकी जातिका एक पौधा जो आँखके मरजीवा - पु० दे० 'मरजिया' ।
रोगोंकी उत्तम औषधि माना जाता है ।
मरज़ी - स्त्री० [अ०] खुशी; स्वीकृति; इच्छा; रुचि ।
मरण - पु० [सं०] मरना, मृत्यु; बछनाग । - गति - स्त्री० (डेथरेट) आबादी के प्रतिसहस्र व्यक्तियोंके पीछे होनेवाली मृत्युओंकी संख्या । - धर्मा (र्मन्), - शील- वि० मरनेवाला, मर्त्य । - शुल्क - पु० ( डेथड्यूटी ) किसीकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्तिपर लगनेवाला वह कर जो उसके उत्तराधिकारी से वसूल किया जाय । मरणांतक - वि० [सं०] जिसका अंत मृत्यु हो, जानलेवा । मरणाशौच-पु० [सं०] मृत्युके कारण ज्ञातिजनोंको लगनेवाला अशौच ।
मद* - पु० मृगेंद्र सिंह ।
मय-प्र० [सं०] जिस शब्द में लगता है उससे बना हुआ ( कनकमय), भरा हुआ (जलमय), युक्त (दयामय) आदि अर्थं उत्पन्न करता है । पु० दानव-शिल्पी जिसने इंद्र प्रस्थ में युधिष्ठिर के लिए अद्भुत सभागृह बनाया; खच्चर; घोड़ा; ऊँट मेक्सिको (अमेरिका) में पुराने जमाने में बसनेवाली एक जाति । - तनया- स्त्री० मंदोदरी ।
मरणीय - वि० [सं०] मरनेवाला, मर्त्य ।
मय - अ० [अ०] दे० 'मैं' । स्त्री० [फा०] शराब । -कदा, | मरणोन्मुख - वि० [सं०] जो मर रहा हो, आसन्न-मरण ।
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मरतबा-मरु
६२२ मरतबा-पु० दे० 'मर्तबा'।
संबंधी। मरतबान-पु० रोगन किया हुआ मिट्टीका बरतन जिसमें मरवाना-स० क्रि० मारनेका काम दूसरेसे कराना, मारनेअचार, मुरब्बा आदि रखते हैं ।
को उकसाना। मरता-वि० मरता हुआ; दुर्बल । मु०-क्या न करता- मरसा-पु० बरसातमें होनेवाला एक साग। जीवनसे निराश व्यक्ति सब कुछ करनेको तैयार हो जाता | मरसिया-पु० [अ०] करुण रसकी कविता जिसमें किसीकी है। -(ते)को मारना-दुखियाको और सताना। मृत्यु या वीरगतिका वर्णन हो; करबलाके शहीदोंके विषय-जीते-किसी तरह, ज्यों-त्यों करके। -दमतक- में रचित इस प्रकारका काव्य; मृत व्यक्तिकी गुणावली; आखिरी वक्ततक, जिंदगीभर । -मरते-मरते समय मातम, सियापा । (कहना, पढ़ना।) मौतके पास पहुँचकर।
मरहट*-पु० दे० 'मरघट' । मरद*-पु० दे० 'मर्द'।
मरहटा, मरहठा-पु० दे० 'मराठा'। मरदई-स्त्री० मरदानगी, वीरता।
मरहठी-वि० मरहठोंसे संबद्ध । स्त्री० मराठी। मरदना-स० क्रि० मसलना; माँड़ना; रौंदना, तहस-नहस | मरहम-पु० [अ०] घावपर लगानेका लेप; धावकी दवा । करना।
-पट्टी-स्त्री० धावपर मरहम लगाकर पट्टी बाँधना; मरदनिया-पु० मालिश करनेवाला टहलू ।
जख्मका इलाज। मरदानगी-स्त्री० दे० 'मर्दानगी'।
| मरहला-पु० [अ०] यात्रियोंके टिकनेकी जगह, पड़ाव मरदाना-वि०, अ० दे० 'मर्दाना'।
किलेके इर्द-गिर्द बनी हुई इमारत जिसपर बैठकर सैनिक मरदूद-वि० [अ०] रद्द किया हुआ; बहिष्कृत; तिरस्कृत युद्ध करते हैं; कठिन काम, झमेला; दर्जा । निकम्मा; नीच।
मरहन-वि० [अ०] रेहन किया हुआ। मरन-पु० दे० 'मरण ।
मरहना-वि० स्त्री० [अ०] बंधक रखी हुई (संपत्ति)। मरना-अ० क्रि० जीता न रहना, जीवन-क्रियाका बंद मरहम-वि० [अ०] वख्शा हुआ; स्वर्गवासी । हो जाना, मृत्यु होना; सूखना, मुरझाना; मृतप्राय हो | मराठा-पु. महाराष्ट्र देशका निवासी; महाराष्ट्र देशका जाना, गड़ जाना (शर्मसे मर जाना); अति श्रम, अति । अब्राहाण निवासी।। कष्ट करना, खपना बुझना, प्रभावरहित हो जाना (चूना, । मराठी-स्त्री० महाराष्ट्रकी भाषा। वि० मराठोंसे संबंध सुहागा); दब जाना, नष्ट हो जाना (भूख, प्यास, पाखाने- रखनेवाला; मराठोंका । की हाजत इ०); तबाह हो जाना; भस्म, कुरता हो जाना मरातिब-पु० [अ०] पद, दरजा ('मरतबा'का बहु०); (धातु इ० का); भीतर जाना, सोखना (पानी); डूबना, पताका; मकानका खंड । वसूल न होना (पावना, रुपया); पिटना, मारा जाना. मराना-स० क्रि० दे० 'मरवाना' । (गोट, मोहरा); खेलनेका अधिकारी न रहना; आसक्त, मरायल* - वि० मारा, पीटा हुआ; मार खानेवालामोहित होना (किसीपर मरना)। मु० मरकर जीना- 'सठहु सदा तुम मोर मरायल'-रामा०; हराया हुआ; मरते-मरते बचना। मर-खप जाना-मरकर नष्ट हो| मरियल । जाना । मरना-जीना-जीवन-मरण; जीवन-मरणका मरार-पु० काछी (छत्तीसगढ़में); [सं०] अन्नभंडार । चक्र; शादी-गमी। -पचना-अति श्रम करना; अति | मराल-पु० [सं०] राजहंस, कारंडव; बादल; काजल कष्ट सहना; जान तोड़कर मेहनत, कोशिश करना। घोड़ा। मर-पिटकर-बड़ी कठिनाईसे। मर-मरकर-बड़ी मेह- मरिंद*-पु० दे० 'मलिंद'; मरंद । नतसे, जान तोड़कर। -(ने) तककी फरसत न | मरिखम-पु० दे० 'मलखंभ' । होना-दम मारनेको फुरसत न मिलना, कामकी भारी | मरिच-स्त्री० [सं०] काली मिर्च । भीड़में होना। मर मिटना-मरकर मिट जाना, जान | मरिचा-पु० दे० 'मिरचा'। दे देना; तबाह हो जाना।
मरियम-स्त्री० [अ०] ईसाकी माता; कुमारी । मरनि*-स्त्री० दे० 'भरनी' ।
मरियल-वि० बहुत दुबला, कमजोर, बेदम । मरनी-स्त्री० मौत; अंत्येष्टि; मृत्युशोक, गमी।
मरी-स्त्री० बबाई बीमारी, महामारी; प्रेतोंका एक भेद; मरभखा-वि० पेटू; भूखों मरता, कंगाल ।
सागूदानेका पेड़। मरम-पु० दे० 'मर्म।
मरीचि-पु० [सं०] ब्रह्माके दस मानसपुत्रोंमें सबसे बड़े मरमर-पु० [यू०] एक तरहका पत्थर जो बहुत चिकना जिनकी गणना सप्तर्षियोंमें है; किरण; ज्योति; मरीचिका । होता और रगड़नेसे खूब चमकता है, संगमरमर ।
-जल-पु० मृगतृष्णा । -माली(लिन् )-पु० सूर्य । मरमराना-अ० क्रि० 'मर-मर'की आवाज करना; डाल | वि० जो किरणोंकी माला धारण किये हुए हो । आदिका दबकर टूटना।
मरीचिका-स्त्री० [सं०] मृगतृष्णा। . मरम्मत-स्त्री० [अ०] टूटी-फूटी चीजको फिरसे दुरुस्त मरीची(चिन)-वि० [सं०] किरणोंवाला । पु० सूर्य । करना, सुधार, दुरुस्ती; (ला०) मार, पिटाई, शारीरिक मरीज़-वि० [अ०] जिसे रोग हो, रोगी। दंड । -तलब-वि० दे० 'मरम्मती' ।
मरु-पु० [सं०] मरुभूमि, रेगिस्तान, मारवाड़, पर्वत मरम्मती-वि० [अ०] मरम्मत करने लायक; मरम्मत- कुरुवक वृक्ष; मरुआ नामक पौधा। -देश-पु० रेगि
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६२३
मरुआ-मल स्तान । -द्वीप-पु० मरुभूमिमें स्थित हरित स्थान, मर्दी-स्त्री० मर्दानगी; पुंस्त्व । नखलिस्तान । -भूमि-स्त्री० रेगिस्तान, जलरहित मर्दुआ-पु० तुच्छ पुरुष; गैर मर्द पति (स्त्रि०)। रेतीला मैदान | -स्थल-पु० रेतीला मैदान, रेगिस्तान । मर्दुम-पु० [फा०] मनुष्य; जनसाधारण; आँखकी पुतली । मरुआ-पु० बबरी जैसा एक पौधा; वह लकड़ी जिससे -खोर-पु. नरभक्षी। -शिनास-वि० आदमीको हिंडोला लटकाया जाता है। बड़ेर ।
पहचाननेवाला। -शुमारी-स्त्री० देशमें रहनेवालोंकी मरुत्-पु० [सं०] प्राण; वायुः देवता; वायुका अधिष्ठाता गिनती कराना, मनुष्यगणना । देवता, सोना; मरुआ। -तनय-पु० हनूमान् ; भीम । | मर्दुमी-स्त्री० [फा०] मर्दानगी; पुंस्त्व । -पट-पु० बादबान । -पति-पु० इंद्र।
मर्म(न्)-पु० [सं०] शरीरका वह नाजुक भाग जहाँ चोट मरुत्वान (स्वत्)-पु० [सं०] इंद्र हनूमान् ।
लगनेसे अधिक पीड़ा हो या तुरत मृत्यु हो जाय, जीवनमरुद्वाह-पु० [सं०] धुआँ आग ।
स्थान; संधिस्थान; तात्पर्य; रहस्य, तत्त्व; गूढार्थ । मरुरना*-अ० क्रि० मरोड़ा जाना, बल खाना ।
-कील-पु० पति । -ग-वि० मर्मभेदी, तीन घातीमरुवक-पु० [सं०] मरुआ; व्याघ्र राहु ।
(तिन्)-वि० मर्मपर आघात करनेवाला । -नमरू*-वि० कठिन । -करि*-अ० कठिनाईसे । वि० अत्यंत कष्टदायी। -च्छिद-वि० दे० 'मर्ममरूरा-पु० मरोड़, ऐंठन ।
च्छेदी'। -च्छेदी(दिन)-वि० मर्मभेदी। -ज्ञ-वि० मरोड़-स्त्री० ऐंठन, बल; आँवके रोगभे आँतों में होनेवाली तत्त्व, गूढार्थको जाननेवाला, रहस्यश। -पीडा,ऐंठन, पेचिश; * क्षोभ घमंड। -फली-स्त्री० पेचिशमें व्यथा-स्त्री० हृदयमें होनेवाली तीव्र वेदना । -प्रहारलाभ करनेवाली एक फली।
पु० मर्मस्थानपर किया गया आघात ।-भेद-पु० रहस्यमरोड़ना-स० क्रि० ऐंठना, बल देना; उमेठना (कान); का उद्घाटन; हृदयका भेदन । -भेदन-पु० बाण ।
मसलना; पीड़ा देना; गरदन मरोड़कर मार डालना। -भेदी(दिन)-वि० मर्मस्थलको छेदनेवाला; अति मरोड़ा-पु० ऐंठन, मरोड़ा पेचिश ।
दुःखद; दिलको लगनेवाला । पु० बाण । -वचन-पु० मरोड़ी-स्त्री० मरोड़, ऐंठन गीले आटे आदिकी बत्ती जो दिलको लगनेवाली बात; गूढ़ बात । -वाक्य-पु० भेदहाथोंको मलनेसे बन जाती है।
की बात, गूढ बात । -विद-वि० मर्मश । -वेधीमरोर-स्त्री० ऐंठन, क्रोध बेचैनी, अफसोस-'यो मनमाँह (धिन्)-वि० मर्मभेदी ।-स्थल,-स्थान-पु० शरीर
मरोर करै जिमि चोर भरे घर पैठ न पायो'-सुधानिधि । की नाजुक जगह, जीवनस्थान । -स्पर्शी(शिन्),मर्कट-पु० [सं०] बंदर; मकड़ा।
स्पृक-वि० दिलको लगनेवाला, मर्मभेदी। मर्कटी-स्त्री० [सं०] बानरी मकड़ी, अजमोदा।
मर्मर-पु० [सं०] पत्तों या पेड़के हिलनेसे होनेवाली मर्ज-पु० [अ०] रोग, व्याध, बीमारी आदत, लत । आवाज, पत्तोंकी खड़खड़ाहट । -ध्वनि-स्त्री० खड़मर्जी-स्त्री० [अ०] दे० 'मरजी'।
खड़ाहट । मर्तबा-पु० [अ०] दरजा; पद: बार, दफा ।
मर्मरित-वि० [सं०] जिससे मर्मर ध्वनि हो रही हो। मर्तबान-पु० दे० 'मरतबान'।
मांतक-वि० [सं०] हृदयको छेदनेवाला। मवं-वि० [सं०] मरणशील, नश्वर । पु० मनुष्य ।-धर्मा- मर्माघात-पु० [सं०] मर्मस्थलपर आघात, हृदयपर गहरी (मन)-वि० मरणशील । -लोक-पु० मनुष्यलोक, चोट लगना। भूलोक।
मर्माहत-वि० [सं०] जिसके हृदयको कड़ी चोट पहुँची हो। मर्द, मई-पु० [सं०] मर्दन ।
मर्मी-वि० मर्मज्ञ, रहस्य जाननेवाला । मर्द-पु० [फा०] पुरुष, नरः मनुष्यः वीर पुरुषः पति। मर्मोद्धाटन-पु० [सं०] रहस्यका प्रकट होना। -आदमी-पु. भला आदमी; बहादुर, मरदाना । मर्याद*-स्त्री० दे० 'मर्यादा'। -बच्चा-पु० वीर, बहादुर ।
मर्यादा-स्त्री० [सं०] सीमा; नदी, समुद्रका किनारा मर्दक-पु० [सं०] मर्दन करनेवाला।
अवधि; सीमाका चिह्ना न्याय्य पथमें स्थिति, सदाचार; मर्दन-पु० [सं०] मलने, रौंदने या कुचलनेकी क्रिया आचारकी शास्त्र, परंपरा आदि द्वारा निर्धारित सीमा; करना; धोटना; नाश करना।
प्रतिष्ठा (हिं०)। मर्दना-स० कि० मर्दन करना, मालिश करना; रौंदना, । मर्षण-पु० [सं०] सहना, क्षमा करना।
कुचलना; Dधना, माँड़ना; चूर्ण करना नाश करना। मर्षणीय-वि० [सं०] क्षमा करने योग्य । मर्दल-पु० [सं०] मृदंगसे मिलता-जुलता एक प्राचीन | मर्षित-वि० [सं०] सहा हुआ, क्षमा किया हुआ। बाजा।
मलंग-पु० मुसलमान फकीरोंका एक भेद; सफेद रंगका मर्दानगी-स्त्री० [फा०] बहादुरी; पुरुषत्व, मर्दानापन ।। बड़ा बगला। मर्दाना-वि० [फा०] पुरुष-संबंधी, 'मौका; पुरुषोचित मल-पु० [सं०] मैल, गंदगी; शरीरसे निकलनेवाला मेलबहादुर जवाँमर्द । पु० मर्दाना बैठक । अ० मर्दोकी | मूत्र, पुरीष, कफ, पसीना, खूट आदि विष्ठा, गू; लौह तरह, पुरुषोचित प्रकारसे ।
आदिका कीट; पाप; बुराई; विकार; वात, पित्त, कफ। मर्दित-वि० [सं०] मर्दन किया हुआ, मला,रौंदा, कुचला वि० दुष्ट; गंदा; क्षुद्र । -द्वार-पु० गुदा । -धात्रीहुआ।
स्त्री० बच्चेका मल-मूत्रादि धोने, गंदे कपड़े आदि साफ
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मलखंभ - मवेशी
करनेवाली धाय । - पृष्ठ - पु० पुस्तकका पहला या बाहरी पृष्ठ । - भुक ( ज्) - पु० कौआ । - युग - पु० कलियुग । - रोधक - वि० जो मलको रोके, काबिज, कब्ज करने वाला । - वाहनपद्धति - स्त्री० ( कॉनसर्वेसी सिस्टम) नगरका कूड़ा-करकट, मल आदि बाहर हटवा देनेकी पद्धति । - विसर्जन - पु० मलत्याग, पाखाना फिरना । -शुद्धि-स्त्री० पेटका साफ हो जाना, कोष्ठशुद्धि । मलखंभ - पु० लकड़ीका खंभा जिसके सहारे एक खास कसरत की जाती है; मलखंभपर की जानेवाली कसरत । मलखम - पु० दे० 'मलखंभ ' ।
मलखाना - पु० आल्हा ऊदलका चचेरा भाई जो वत्सराजका पुत्र था । वि० * मलभक्षी ।
मलगजा * - वि० मला, दला हुआ, मरगजा । पु० लंबोतरे टुकड़ोंकी पकौड़ी ।
मलता - वि० घिसा हुआ ।
मलाह - पु० दे० 'मल्लाह' । मलिंद - पु० भ्रमर ।
मलिक - पु० [अ०] बादशाह, सुलतान; सरहद और पंजाबके मुसलमानों की एक सम्मानजनक उपाधि । मलिका - स्त्री० [अ०] महारानी; [सं०] दे० 'मल्लिका' । मलिक्ष, मलिच्छ * - पु० दे० ' म्लेच्छ' ।
मलिन - वि० [सं०] मैला, मलयुक्त; काला; धूमिल; उदास; पापमें रुचि रखनेवाला; क्षुद्र; खोटा । - मुख - वि०उदास । मलिनाई * - स्त्री० मलिनता । मलिनाना* - अ० क्रि० मलिन, मैला होना । मलिनावास - पु० [सं०] ( स्लम्ज) मजदूरों या गरीबोंकी गंदी बस्तियाँ ।
मलना - स० क्रि० मसलना; मालिश करना; मरोड़ना । मलबा - पु० कूड़ा करकट; गिरे हुए मकानके ईंट-पत्थर, मिट्टी आदि ।
मलियामेट - वि० मिट्टी में मिला हुआ, तहस-नहस ।
मलमल - स्त्री० भारतका एक बारीक, सफेद सूती कपड़ा मलीदा - पु० चूरमा; कश्मीर में बननेवाला ऊनी कपड़ा जो जो बहुत पुराने जमानेसे प्रसिद्ध था । मला जानेके कारण अधिक नरम और गरम होता है । मलीन-वि० मैला, मलिन; क्षुद्र; उदास । मलीनता - स्त्री० मलिनता ।
मलूक - पु० एक चिड़िया; एक कीड़ा । वि० सुंदर । मलेच्छ-पु० दे० ' म्लेच्छ' ।
मलमलाना - स० क्रि० बार-बार खोलना, खोलना बंद करना (आँख, पलक); * बार-बार आलिंगन करना । मलय - पु० [सं०] दक्षिण भारतका एक पर्वत जो सात कुलपर्वतों के अंतर्गत है और जिसपर चंदनके वृक्षोंकी बहुलता है; पश्चिमी घाटका मैसूर के दक्षिण और त्रिवांकुरके पूर्व में पड़नेवाला भाग; मलावार देश; उद्यान; नंदनकानन । - गिरि- पु० मलय पर्वत; * चंदन । -जपु० चंदनः राहु | द्रुम-पु० चंदन; मदन वृक्ष । - समीर - पु० मलय पर्वतकी ओरसे आनेवाली हवा, दक्षिणी वायु ।
मलेरिया- पु० [अ०] जाड़ा देकर आनेवाला ज्वर, जूड़ी । मलैया । - पु० जाड़ेके दिनों में दूधको रातभर ओसमें रखने के बाद उसमें शकर, केशर, इलायची आदि मिलाकर मथनेसे निकला हुआ फेन, नमश । मलोत्सर्ग - पु० [सं०] मलत्याग ।
मलोल * - स्त्री० मलोला, मलाल - राधे अहो हरि भावतेको भरि के भुज भेंटिये मेटि मलोलें' - देव । मलोलना। - अ० क्रि० दुःखित होना, पछताना | मलोला - पु० अरमान; दुःख |
-
मल्ल - पु० [सं०] कुश्ती लड़नेवाला, पहलवान; एक प्राचीन व्रात्य क्षत्रिय जाति । - क्रीडा - स्त्री० मल्लयुद्ध । भूमि - स्त्री० अखाड़ा । - युद्ध - पु० कुश्ती, बाहुयुद्ध । -- विद्या - स्त्री० कुश्ती । - शाला- स्त्री० अखाड़ा |
बैगने के
मलने की क्रिया; मलनेकी मजदूरी ।
मलाट - पु० मोटा, घटिया कागज जो कागजकी गाँठोंपर
लपेटा रहता है ।
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मलाल - पु० [अ०] दुःख, विषाद । मु०- आना- किसीकी ओर से चित्तका खिन्न हो जाना, मनमें मैल आ जाना । मलावरोध - पु० [सं०] कब्ज ।
मलाशय - पु० [सं०] बड़ी आँतोंका निचला भाग जहाँ मल रहता है ।
मलयगिरि, मलयाचल-पु० [सं०] दे० 'मलयगिरि' । मलयानिल- पु० [सं०] मलय-समीर | मलयालम - पु० दक्षिण भारतका एक प्रदेश, वहाँकी भाषा । मलयोद्भव - पु० [सं०] चंदन |
मलवाना - स० क्रि० मलनेका काम दूसरे से कराना । मलसा - पु० एक तरहका कुप्पा जिसमें घी इ० रखा जाय । मलहम - पु० दे० ' मरहम' |
मलाई - स्त्री० दूध या दहीकी साढ़ी, बालाई, सार भाग; मल्लार - पु० [सं०] एक राग, मलार ।
मल्लाह - पु० [अ०] केवट, माझी ।
मल्लाही - वि० मल्लाह-संबंधी । स्त्री० मल्लाहका पेशा । मल्लिका - स्त्री० [सं०] बेलेकी जातिका एक सफेद और सुगंधित फूल; एक वर्णवृत्त ।
मल्हराना, मल्हाना, मल्हारना * - स० क्रि० चुमकारना, स्नेहसे हाथ फेरना ।
मवक्किल - पु० दे० 'मुवक्किल' |
मवाद - पु० [अ०] मसाला, सामग्री; पीब । मवास-पु० गढ़, दुर्ग; आश्रय स्थान; किलेके परकोटे आदिपर लगे बाँस ।
मलान- वि० दे० ' म्लान' | मलानि - स्त्री० दे० 'ग्लानि' । मलाबार - पु० दक्षिण भारतका अरब सागर के तटपर बसा हुआ प्रदेश । - हिल- पु० बंबईकी एक पहाड़ी जहाँ धनिकका निवास है ।
मलामत - स्त्री० [अ०] झिड़की, फटकार, भर्त्सना; गंदगी । मलाया - पु० बर्माके दक्षिण में स्थित एक प्रायद्वीप ।
मलार - पु० एक राग जो वर्षा ऋतुमें गाया जाता है, मवासी - स्त्री० छोटा गढ़ । पु० किलेदार, नायक ।
मलार ।
मवेशी - पु० ढोर, डंगर, दूध देने या बोझ ढोनेके काम
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मशक-मसाला आनेवाला चौपाया । खाना-पु० मवेशी रखनेका मजाक पसंद करनेवाला, परिहासप्रिय व्यक्ति; विदूषक । बाड़ा, पशुशाला; वह बाड़ा जिसमें दूसरेका खेत चरनेवाले -पन-पु० ठट्टेबाजी, हँसोड़पन । मवेशी बंद किये जायें।
मसखरी-स्त्री० मसखरापन; हँसी। मशक-स्त्री० [फा०] भेड़ या बकरीकी खालको सीकर | मसखवा-वि० माँस खानेवाला । बनाया हुआ थैला जिससे भिश्ती पानी ढोते हैं । पु० मसजिद-स्त्री० [अ०] सिजदा करनेकी जगह, उपासना[सं०] मच्छड़, मस्सा। -हरी-स्त्री० मसहरी ।
स्थल, वह इमारत जिसमें मुसलमान इकट्ठा होकर नमाज मशनकत-स्त्री० [अ०] श्रम, मेहनत कठोर श्रम । पढ़ते हैं । मु०-मैं चिराग जलाना-मन्नत पूरी करनेके मशनकती-वि० [अ०] मशक्कत करनेवाला, मेहनती । लिए मसजिदके ताकोंमें दिये जलाना । मशगूल-वि० [अ०] किसी शगल या काममें लगा हुआ, मसनद-पु० [अ०] गद्दी; बड़ा तकिया। -नशी-वि० कार्यरत ।
मसनदपर बैठनेवाला । पु० राजा; बादशाह अमीर । मशरिक-पु० [अ०] पूरब ।
मसनवी-स्त्री० [अ०] उर्दू-फारसीका वह प्रबंध-काव्य मशरू-पु० रेशम और सूत मिलाकर बुना जानेवाला जिसके हर शेरके दोनों मिसरोंका काफिया एक, पर हर एक धारीदार कपड़ा।
शेरका काफिया जुदा हो। मशवरा-पु० [अ०] मंत्रणा, सलाह साजिश । मसमुंद*-पु० धक्कमधक्का । मशविरा-पु० दे० 'मशवरा'।
मसयारा*-पु० मसाल । मशहर-वि० [अ०] जिसकी शुहरत हुई हो, प्रसिद्ध ।। मसरत-पु० [अ०] सर्फ (खर्च) करनेकी जगह, मौका मशाल-स्त्री० [अ०] लंबी गोल लकड़ीके सिरे या लोहे की काम; उपयोग। सलाखपर कपड़ा लपेटकर बनायी हुई मोटी बत्ती जिसे | मसरू-पु० दे० 'मशरू' (एक रेशमी कपड़ा)। तेलसे तर कर ब्याइ-बरात आदिमें जलाते हैं । -ची- मसल-स्त्री० [अ०] कहावत, लोकोक्ति मिसाल । पु० मशाल दिखानेवाला। मु०-लेकर इदना-साव. मसलति-स्त्री० दे० 'मसलहत'-बैठे इकले जाइ करन धानीसे ढूँदना, अच्छी तरह तलाश करना।
मसलति भली'-सुजान। मशीन-स्त्री० [अं०] यंत्र, कल । -गन-स्त्री० चक्राकार | मसलना-स० क्रि० किसी नरम चीजको दबाकर मलना, वंदूक जिससे लगातार सैकड़ों गोलियों छूटती है । -मैन । रगड़ना; भाँड़ना। पु० मशीन चलानेवाला कर्मचारी प्रेसमैन ।
मसलन-अ० [अ०] मिसालके तौर पर, उदाहरणरूपमें । मरत-पु० [अ०] किसी कामका अभ्यास, रब्त, कुशलता- मसलहत-स्त्री० [अ०] हितकर सलाह; हित, भलाई; प्राप्तिके लिए किसी कामको वार-बार करना।
हितकी दृष्टि, नीति । -अंदेश-वि० मसलहत सोचनेमष-पु० दे० 'मख'।
वाला, हितका विचार करनेवाला । मषि-स्त्री० [सं०] दे० 'मसि' ।
मसलहतन्-अ० [अ०] (मसलहत-हित) लाभकी दृष्टिसे। मष्ट*-वि० चुप, मौन (करना, मारना) ।
मसला-पु० [अ०] सवाल, प्रश्न; पूछने योग्य बात; मस-स्त्री० मूछोंका आरंभिक, रोमावलीवाला रूप; + दे० विषय (मजहबी मसले), समस्या। मु०-हल होना'मसि' । मु. ( भीगना-मूंछोंका उगना, निकलने उलझन, कठिनाईका दूर हो जाना। लगना।
मसवारा-पु० प्रसूताका प्रसवके एक महीने बादका स्नान। मस-पु० दे० मशक' । -हरी स्त्री० जालीदार कपड़ेका मसवासी-पु० साधु-संन्यासी जो एक जगह एक महीनेसे परदा जो मच्छरोंसे बचनेके लिए मसहरीके ऊपर लगाया | अधिक न रहे। स्त्री० एक पुरुषके साथ एक महीनेसे जाता है। वह पलंग जिसके पायों में मसहरी लगानेके अधिक न रहनेवाली स्त्री, वेश्या । लिए डंडे लगे हों।
मसविदा-पु० दे० 'मसौदा'। मसक-पु०, स्त्री० दे० 'मशक'।
मसहार*-पु०, वि० दे० 'मांसाहारी'। मसकत-स्त्री० दे० 'मशक्कत' । पु० अरब देशका एक | मसा-पु० दे० 'मस्सा'; मच्छड़ । नगर या वहांसे आनेवाला अनार ।।
मसान-पु० मुरदे जलानेका स्थान, श्मशान, मरघट मसकना--अ० क्रि० दबाव या तनावसे दरकना; कपड़ेका | बच्चोंको होनेवाला सूखा रोग; * रणभूमि । मु०इस तरह फटना कि ताने-बानेमेंसे किसीके तार साबित जगाना-शवसाधन करना । न रहें; (चित्तका) मसोसना, विवशताकी पीड़ा अनुभव मसानिया-पु० मसान जगानेवाला; ओझा; डोम । करना । स० क्रि० दबाकर या तानकर फाड़ना, दरार मसानी-वि० मसान जगानेवाला । स्त्री० मसान में रहनेडाल देना; मसलना।
वाली पिशाचिनी इ० । मसकरा*-वि०, पु० दे० 'मसखरा। ।
मसाल-स्त्री० दे० 'मशाल'।-ची-पु० दे० 'मशालची' । मसाला-पु० [अ०] सिकलीगरोंका एक औजार । मसालहत-स्त्री० [अ०] सुलह करना, मेल-मिलाप, मसका-पु० मक्खन; दहीका पानी; * मच्छड़-'मसका | समझौता। कहत मेरी सरबरि कौन उहै'-सुंद० ।
मसाला-पु० वह सामग्री जिससे कोई चीज बनायी जाय, मसकीन*-वि० दे० 'मिस्कीन'।
किसी कार्यकी साधनरूप वस्तु या सामग्री (मकान वनानेमसखरा-वि० [अ०] हँसोड़, परिहासप्रिय । पु० हँसी- का मसाला, अखबारका मसाला, बरतन जोड़नेका मसाला
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मसाहत - महतु
इ० ); गुण, स्वाद आदि बढ़ानेवाली सामग्री (दाल, तर कारी, पान आदिका मसाला), धनिया, लौंग, मिर्च इ०; साधन, सामान (दिल्लगीका मसाला) । - (ले) दारवि० जिसमें मसाला पड़ा हो ( - तरकारी ) ।- का तेलसुगंधित द्रव्यों के योगसे बनाया हुआ तेल । मसाहत - स्त्री० [अ०] नापना, पैमाइश; क्षेत्रमिति । मसाहति* - स्त्री० दे० 'मसाइत' । मसि - स्त्री० [सं०] स्याही, रोशनाई; कालिख; काजल; निर्गुडी; * मूछोंका आरंभिक रूप । - धान- पु०, - धानी - स्त्री० दवात । - जीवी ( विनू ) - पु० लेखनकार्य द्वारा जीविका चलानेवाला, लेखक । - पत्र-पु० (कार्बन- पेपर) वह कागज जिसपर कोयले आदिकी कालिख चढ़ा दी ( फैला दी गयी हो (इसे दो कागजोंके बीचमें रखकर लिखने या टाइप करनेसे ऊपरकी लिखी या टाइप की हुई सामग्री, ज्योंकी-त्यों, नीचे भी उतर आती है ) । - पात्र - पु० दवात । - बिंदु - पु० दिठौना । मसियर, मसियार - पु० मशाल । मसियारा* - पु० मशालची ।
मसी - स्त्री० [सं०] दे० 'मसि' |
मसीत, मसीद* - स्त्री० मसजिद ।
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मसीही - वि० मसीहका । पु० ईसाई |
मसुरिया - स्त्री० दे० 'मसूरिका' | मसुरी - स्त्री० दे० 'मसूर' । मसू* - स्त्री० कठिनाई |
मसूड़ा, मसूढ़ा -पु० दाँतोंके नीचे ऊपरका माँस । मसूर - पु० [सं०] दालके काम आनेवाला एक अन्न जो बीकी फसल में बोया जाता है ।
मसूरिका - स्त्री० [सं०] चेचकका एक भेद जिसके दाने बड़ी मातासे छोटे, मसूरकी दालके बराबर होते हैं । मसूरी - स्त्री० [सं०] मसूरिका ।
मह* - अ० में |
मसीह - पु० [अ०] ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा ।
महँगा - वि० जिसके दाम अधिक या उचितसे अधिक हों । महँगाई - स्त्री॰ महँगी; महँगीका भत्ता ।
मसीहा - पु० [फा०] मसीह; मुर्देको जिला देनेकी शक्ति महँगी - स्त्री० महँगा होना; आवश्यक वस्तुओंकी दुर्लभता । रखनेवाला ।
महंत - पु० मठाधीश, साधु-संघका मुखिया; मुखिया । महंती - स्त्री० महंतका पद या कार्य ।
मह* - वि० महत्, बड़ा । अ० दे० 'मह' । महक-स्त्री०गंध, वास । - दार - वि०महकनेवाला, खुशबूदार । महकना - अ० क्रि० मद्दक देना, वास आना । महकनि* - स्त्री० महक ।
महकमा - पु० [अ०] हुक्म करनेकी जगह; कचहरी; बिभाग | महकान - स्त्री० गंध, वास । महकीला - वि० महकदार |
महज़ - वि०, अ० [अ०] खालिस, निरा; केवल, सिर्फ सरासर । महज़र - पु० [अ०] हाजिर होनेकी जगह । -नामा - पु० किसी हत्या आदिके संबंध में लिखाया गया साक्ष्यपत्र या शहादतनामा जिसपर आस-पास के बहुत से लोगों के हस्ताक्षर हों ।
मसूस, मसूसन* - स्त्री० मन मसोसनेका भाव, अंतर्व्यथा । मसूसना - अ० क्रि० दे० 'मसोसना' |
मसृण- वि० [सं०] चिकना; मुलायम; चमकदार । मसेवरा * - पु० मांसकी बनी चीजें ।
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आया हुआ, कामवश, जिसकी संभोगेच्छा प्रबल हो रही हो ।
मस्तक - पु० [सं०] सिर, माथा । - शूल-पु० सिर-दर्द । मस्ताना - वि० मस्तीसे भरा हुआ, मस्तकी तरह (चाल); मस्त । अ० क्रि० मस्त होना, मस्तीपर आना । मस्तिष्क - पु० [सं०] भेजा, दिमाग | मस्ती - स्त्री० मस्त होनेका भाव, मतवालापन, नशा; जवानीका नशा; काम, संभोगेच्छा की प्रबलता; गर्व; वह पानी जो हाथी, ऊँट आदि के मस्त होनेपर उनकी कनपटी, गरदन आदिसे टपकता है, मद; कुछ वृक्षोंसे विशेष अवस्थाओं में टपकनेवाला पानी । मु० - झड़ना-मस्ती उतरना, दूर होना, अक्ल ठिकाने आना । - झाड़ना - मस्ती ( नशा, गर्व) दूर कर देना । - पर आना - मस्त होना । मस्तूल - पु० [पुर्त०] नाव, जहाजके बीच में गाड़ा हुआ लंबा लट्ठा जिसमें पाल बाँधा जाता है ।
मस्सा - पु० शरीरपर दानेके रूपमें उभरा हुआ मांसपिंड; बवासीर की बीमारी में गुदाके बाहर और भीतर निकल आनेवाला दाना ।
महजिद - स्त्री० दे० ' मसजिद' ।
|
महजन - पु० [सं०] (महत् + जन) दे० 'महाजन' । महत* - पु० महत्त्व । स्त्री० प्रतिष्ठा - 'बचन कठोर कहत, कहि दाहत अपनी महत गँवावत' - सू० ।
मसोसना - अ० क्रि० दबाना, मरोड़ना; दुःख, आकांक्षा आदिको (किसी विवशतावश ) भीतर ही भीतर दबा रखना, मन ही मन दुःख करना, ऐंठना । मसोसा- पु० मसोसनेका भाव, दुःख, कुढ़न । मसौदा - पु० [अ० 'मसव्वदा '] दुहरानेके लिए लिखित - अशोधित - लेख, खर्रा, पुस्तकादिका मूल लेख; मनसूबा । -नवीस- पु० मसौदा बनानेवाला । - ( दे ) बाज़वि० युक्ति सोचनेवाला, चालाक । मु०- गाँठना-मजमून बनाना; मनसुबा बाँधना ।
मस्करी - स्त्री० दे० 'मसखरी' (अपढ़) | मस्खरा - वि०, पु० [अ०] दे० 'मसखरा' | मस्त - वि० नशे में चूर, मत्त, मतवाला; बेफिक्र, बेपरवा; | प्रसन्न ; जिससे मस्ती टपके, मदभरा (आँखें); मस्ती पर
महता - पु० गाँवका मुखिया, महतो; मुंशी, मुहर्रिर । * स्त्री० अपनेको बड़ा मानना; गर्व ।
महताब - स्त्री० [फा०] चाँदनी; मद्दताबी । पु० चाँद । महताबी - स्त्री० [फा०] एक तरहकी आतिशबाजी जिसके छूटनेपर सफेद रोशनी निकलती है; चाँदनीका आनंद लेने के लिए बनाया गया चबूतरा, (नहर आदि के किनारे) बारहदरी आदि ।
महतारी + - स्त्री० माता ।
महती - वि०स्त्री० [सं०] दे० 'महत्' । स्त्री० नारदकी वीणा । महतु - पु० महत्त्व, बड़ाई - 'वृंदावन ब्रजको महतु कापै
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महतो-महा बरन्यो जाइ'-सू० ।
परदा जायज न हो-पति, देवर इ० । स्त्री० अगियाकी महतो-पु० गाँवका मुखिया; कुछ कुलोंकी उपाधि । । कटोरी; अँगिया। -(मे)राज-वि० भेदी । महत्-वि० [सं०] बड़ा, बृहत् श्रेष्ठ, ऊँचा; भारी तीव्र | महरा-पु० कहार । वि० बडा: मखिया। प्रधान । -तत्त्व-पु० प्रकृतिका प्रथम विकार; बुद्धितत्त्व महराई -स्त्री० महरापन, प्रधानता । (सांख्य०)।
महराज, महराजा-पु० दे० 'महाराज'। महत्तम-वि० [सं०] सबसे बड़ा। -समापवर्तक-पु० महराना-पु० महरोंकी बस्तो, गाँव नंदके रहनेकी जगह; वह बड़ीसे बड़ी संख्या जिसका भाग दो या अन्य संख्या- | दे० 'महाराणा'। ओंमें पूरा-पूरा जा सके।
महराब*-स्त्री० दे० 'मेहराब' । महत्तर-वि० [सं०] (दो पदार्थों आदिमें) अधिक बड़ा। महरि-स्त्री० स्त्रीके लिए आदरसूचक उपाधि (व्रज); यशोदा; महत्ता-स्त्री० [सं०] बड़प्पन; महिमा गुरुता; उच्च पद । गृहस्वामिनी; ग्वालिन पक्षी। महत्त्व-पु० [सं०] बड़प्पन, महत्ता; गुरुता; वजन, अधिक महरी-स्त्री० कहारिन, टहलनी; ग्वालिन पक्षी। परिणाम-जनक, अधिक आवश्यक होना; श्रेष्ठता। महरूम-वि० [अ०] रोका गया, वर्जितः निषिद्ध वंचित
-पूर्ण,-युक्त,-शाली (लिन्)-वि० महत्त्ववाला। हीन (किसी वस्तुसे); बेनसीब नाकाम । महत्त्वाकांक्षा-स्त्री० [सं०] बड़ा बनने, महत्त्व प्राप्त करने महरूमी-स्त्री० [अ०] महरूम होना; बेनसीबी नाकामी। की अभिलाषा।
महरेटा-पु० महरका बेटा कृष्ण । महदाशय-वि० [सं०] ऊँचे मन, विचारवाला । महरेटी-स्त्री० महरकी बेटी, राधिका । महदी-पु० [अ०] पथ प्रदर्शक, रहनुमा मुसलमानोंके | महर्घता-स्त्री० [सं०] दे० 'महार्घता'।
बारहवें इमाम जो प्रलयकालके कुछ पहले प्रकट होंगे। महर्लोक-पु० [सं०] ऊपरके सात लोकोंमेंसे चौथा। महदद-वि० [अ०] जिसकी हद बाँध दी गयी हो, सीमित महर्षि-पु० [सं०] बहुत बड़ा ऋषि, परमर्षि (व्यास, नारद नियत ।
आदि); ब्रह्माके दस मानस पुत्र (मरीचि आदि)। महन*-पु० दे० 'मथन'।
महल-पु० [अ०] उतरनेकी जगह; बड़ा मकान; राजामहना -स० कि० दे० 'मथना'।
रसका मकान, प्रासाद; मौका, वक्त; पत्नी, बेगम (दूसरे महनिया-पु० मथनेवाला ।
महलसे दो बेटे हैं)। -दार-पु. महलका प्रबंधक और महनीय-वि० [सं०] पूजनीय, सम्मान्य; महिमा-मंडित । रक्षक । -सरा-पु० जनानखाना, अंतःपुर ।-(ले)ख़ास महनु*-पु० मथन करनेवाला; नाश करनेवाला ।
-पु० बड़ी बेगर, पटरानी। महफिल-स्त्री० [अ०] आदमियोंके जमा होनेकी जगह; महल्ला-पु० [अ०] शहर या कसबेका एक भाग; टोला जलसा, सभा; नाच रंगका जलसा ।
महल्लेके लोग। -(ल्ले)दार-पु० महल्लेका चौधरी । महफज-वि० [अ०] जिसकी हिफाजत की गयी हो, महसिल*-पु० [अ० 'मुहसिल' ] वसूल करनेवाला। रक्षित, निरापद ।
महसूल-पु० [अ०] कर, राजस्व मालगुजारी; किराया। महबूब-वि० [अ०] प्यारा, प्रेमपात्र ।
महसूली-वि० [अ०] जिसपर महसूल लगे; बैरंग । महबूबा-वि० स्त्री० [अ०] प्यारी, प्रेमिका ।
महसूस-वि० [अ०] ज्ञानेंद्रियोंमेंसे किसीके द्वारा अनुभूत महमंत*-वि० मदमत्त-'मन कुंजर महमंत था, फिरता। (विषय); शात; प्रकट । मु०-करना,-होना-अनुभव गहिर गभीर'-साखी।
करना, होना। महमद* -पु० दे० 'मुहम्मद' ।
महाँ*-अ० दे० 'महँ'। महमदी-वि०, पु० दे० 'मुहम्मदी' ।
महांग-वि० [सं०] महाकाय, भारी-भरकम । महमह-अ० महकते हुए, सुवास सहित ।
महांधकार-पु० [सं०] निविड़ अंधकार; घोर अशान । महमहा-वि० महकता हुआ, खुशबूदार ।
महा-* पु० मट्टा; वि० [सं०] महत् शब्दका कर्मधारय महमहाना*-अ० क्रि० महकना, सुगंध बखेरना ।
और बहुब्रीहि समासोंके आदिमें लगनेवाला रूप; बड़ा, महमा*-स्त्री० दे० 'महिमा'।
शेठ भारी । -अहि*-पु० शेषनाग । -कवि-पु० महमेज़-स्त्री० [अ०] सवारोंके जूतेकी एड़ीपर लगा हुआ बहुत बड़ा कविः महाकाव्यका रचयिता; शुक्राचार्य । एक तरहका काँटा जिससे घोड़ेको एड़ लगाते है ।
-काय-वि० भारी-भरकम शरीरवाला। पु० शिवका महर-वि० सुगंधित, महकता हुआ। पु० मुखिया; ब्रज- एक अनुचर; हाथी। -कात्तिकी-स्त्री० कात्तिकी मंडलमें प्रयुक्त एक आदरसूचक उपाधि नंद; एक पक्षी पूर्णिमा। -काल-पु. अखंड, अनंत काल; शिवका कहारः [अ० ] वह धन या संपत्ति जो मुसलमान वर संहारकारी रूप, रुद्र उज्जैन में स्थापित प्रसिद्ध शिवलिंग निकाहके समय कन्याको देता या देनेका वचन देता है। जो १२ ज्योतिर्लिगोंमेंसे एक है; शिवका एक अनुचर । मु०-बख्शवाना-पतिका कह सुनकर पत्नीसे महर माफ -काली-स्त्री० दुर्गाका एक भयानक रूप, रुद्राणी । करा लेना। -बाँधना-महरकी रकम नियत करना । -काव्य-पु. बड़ा काव्य; आठ या इससे अधिक महरम-वि० [अ०] भेद जाननेवाला, आमिरा । पु० साँवाला वह प्रबंध-काव्य जिसमें विविध ऋतुओं, निकट संबंधी जिससे (मुसलमान कन्या या स्त्रीका) ब्याह श्यों आदिका वर्णन हो और जिसमें सभी रसों तथा जायज न हो-बाप, भाई, चाचा इ०; वह पुरुष जिससे विविध छंदोंका समावेश हुआ हो।-कुमार-पु०राजाका
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महा
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सबसे बड़ा बेटा, युवराज ।-कोशल-पु० दक्षिण कोशल, __ महाब्राह्मण महामंत्री । -पाप-पु० महापातक ।-पुरआधुनिक मध्यप्रदेशका हिंदीभाषी भाग। -क्रतु-पु० । पु० दुर्ग आदिसे रक्षित नगर। -पुराण-पु० व्यासबड़ा यश-अश्वमेध, राजसूय आदि । -खर्व-पु० १०० रचित अठारह महापुराणों मेंसे कोई एक । -पुरुष-पु० खर्वकी संख्या ।-गणनाध्यक्ष-पु० (अकाउंटेंट-जनरल) श्रेष्ठ जन, महिमाशाली पुरुष; नारायण; दुष्ट, हजरत दे० 'महा-लेखापाल' ।-जन-पु० श्रेष्ठजन, बड़ा आदमी (व्यंग्य)। -प्रज्वलन-पु० (कानफ्लेग्रेशन) विशाल जाति या श्रेणी-विशेषका मुखिया; जनसमूह, जनता; और भयावह अग्निकांड जिसमें आगकी लपटें बहुत दूरदेन-लेन करनेवाला, साहूकारः ऋणदाता, पावनेदार । दूरतक पहुँचें और जिससे भारी क्षति होनेकी संभावना -जनी-स्त्री० [हिं०] दे० क्रममें । -ज्ञानी हो। -प्रभ-पु० परमेश्वर; राजा; इंद्रा चैतन्य महाप्रभु (निन्)-वि० बहुत बड़ा ज्ञानी। -तत्त्व -पु० वल्लभाचार्य; कोई बड़ा साधु-संन्यासो। -प्रलय-पु० दे० :'महत्तत्त्व'। -तपा(पस)-वि० कठोर तप ब्रह्माकी आयु शेष होनेपर होनेवाला संपूर्ण सृष्टिका नाश । करनेवाला। पु० विष्णु । -तल-पु० नीचेके सात -प्रसाद-पु. भगवान् या किसी बड़े देवताका प्रसाद लोकोंमेंसे पाँचवाँ। -तिक्त-पु० नीम । -त्याग,- जगन्नाथजीको चढ़ाया हुआ भात; देवीको बलि किये हुए त्यागी(गिन्)-वि० अति त्यागशील । -दंड-पु० बकरेका मांस । -प्रस्थान-पु० महायात्रा, मृत्यु । लंबी भुजा; भारी दंड, सजा ।-दंत-पु० बड़े दाँतोंवाला -प्राज्ञ-वि० परमशानी; महापंडित । -प्राण-वि० हाथी; शिव । -दंष्ट्र-पु० शिव; एक राक्षस । -दशा- अधिक बल, सत्ववाला । पु. प्रत्येक वर्गका दूसरा और स्त्री० मनुष्यके जीवन में ग्रहविशेषका निर्धारितः भोग्य- चौथा अक्षर (कवर्गमें 'ख','घ' और चवर्गमें 'छ', 'झ' इ०); काल । -दान-पु० बड़ा दान; उन सोलह दानों में से कोई काला कौआ। -प्राभिकर्ता(न)-पु० (ऐटनी-जनरल) जिनका फल स्वर्ग माना गया है (तुलापुरुष, सोनेकी वह विधिक अधिकारी जो राज्य-संबंधी मुकदमों-मामलों में गौका दान, गजदान, कन्यादान इ०)।-दारु-पु० देव- सरकारकी ओरसे व्यवस्थादि करने के लिए प्राधिकृत किया दारु । -देव-पु.शिव। :-देवी-स्त्री० दुर्गा, पार्वती;
गया हो।-बन-पु० [हिं०] वृंदावनके अंतर्गत एक वन । सबसे बड़ी रानी, पट्टरानी। -देश-पु० भूमंडलका कोई -बल-वि० अतिबली । पु० वायु सीसा; बुद्ध ।-बलामुख्य भाग जिसके अंदर कई देश हों, बरें आजम । धिकृत-पु० (फील्ड मार्शल) सैन्य-मंत्री; सबसे बड़ा सैनिक -द्वार-पु० बड़ा या मुख्य दरवाजा। -द्वीप-पु० अधिकारी । -बाह-वि० लंबी बाँहवाला; बलवान् । पृथ्वीका वह बड़ा भाग जिसमें कई देश हों, जैसे एशिया,
पु० विष्णु; धृतराष्ट्रका एक पुत्र । -ब्राह्मण-पु. वह यूरोप, महादेश; पुराणानुसार पृथ्वीके ये सात मुख्य ब्राह्मण जो प्रेतकर्म कराता और उसमें किया जानेवाला विभाग-जंबु, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौच, शाक और दान लेता हो, महापात्र ।-भाग,-भागी(गिन्)-वि० पुष्कर ।-नवमी-स्त्री० आश्विन शुक्ला नवमी।-नाटक अति भाग्यवान्। सुविख्यात; पुण्यात्मा ।-भागवत-पु० पु० दस अंकोंवाला नाटक । -नाद-पु० बहुत जोरकी परम वैष्णव, मनु, सनकादि १२ महाभक्त श्रीमद्भागवत
आवाज; हाथी; गरजनेवाला बादल, बड़ा ढोल, शंख, (पुराण) । -भारत-पु० व्यासरचित इतिहास-ग्रंथ सिंह । -निंब-पु. बकायन । -निद्रा-स्त्री० मृत्यु । जिसमें भरतवंशका चरित और कौरव-पांडवोंमें हुए महा. -निर्वाण-पु० व्यष्टि सत्ताका पूर्ण नाश, परिनिर्वाण । संग्रामका वर्णन है। कुरु-पांडव-युद्ध; महायुद्ध महाग्रंथ । -निशा-स्त्री० रात्रिका दूसरा और तीसरा पहर; दुर्गा; -भाष्य-पु. (पाणिनिकृत व्याकरण-सूत्रपर पतंजलिप्रलयरात्रि । -नीच-पु० रजक । -नील-वि० गहरा लिखित) बृहद्-भाष्य । -भिक्षु-पु० बुद्धदेव । -भीतानीला । पु० एक तरहका नीलम । -नृत्य-पु० शिव । स्त्री० लजालू । -भीम-वि० अति भयंकर । पु० शिवका -नेत्र-पु० शिव । -न्यायवादी (दिन)-पु० (एटनी- अनुचर भुंगी; राजा शांतनु । -भीरु-पु० ग्वालिन जनरल) दे० 'महाप्राभिकर्ता' । -पंचविष-पु० सिंधिया नामका कीड़ा। -भूत-पु. पंचभूत या उनमेंसे कोई (शृंगी),कालकूट, मोथा, बछनाग और शंखकर्णी-इन पाँच एका परमेश्वर । -भैरव-पु० शिव । -मंडल-पु० विषोंका समूह । -पत्रपाल-पु० (पोष्टमास्टर-जनरल) बड़ा, प्रधान, केंद्रीय मंडल या संघ ।-मंत्र-पु. वेदमंत्र; राज्यकी राजधानीमें रहनेवाला डाक-विभागका सबसे बड़ा अति शक्तिशाली मंत्र; उत्तम सलाह ।-मंत्री (त्रिन)-पु० अधिकारी। -पथ-पु० राजपथ; महाप्रस्थानका पथ, प्रधान मंत्री । -मणि-पु. अधिक मूल्यवान् मणि, रत्न । मृत्युः हिमालयके उत्तरका वह रास्ता जिससे युधिष्ठिर | -मति-वि० अति बुद्धिमान् ; उदाराशय । -मनाआदिने स्वर्गारोहण किया था; एक नरक। -पद्म-पु० (मनस)-वि० ऊँचे दिलवाला, उदारचित्त ।-महिमश्वेत कमल; सौ पनकी संख्या दक्षिण दिशाका दिग्गज; वि० (हिज़ एक्सेलेसी) जिसकी बड़ी महिमा हो (राज्यकबेरकी नौ निधियों मेंसे एक; एक नंदवंशी राजाका पालादिके सम्मानार्थ प्रयुक्त शब्द), महामहिमायुक्त नाम। -पद्मनंद-पु० नंदवंशका अंतिम राजा। अति महत्त्वशाली । -महोपाध्याय-पु. बहुत बड़ा -पवित्र-पु० विष्णु । -पातक-पु० बहुत बड़ा पाप; उपाध्याय, अध्यापक महापंडित संस्कृतके महापंडितोंकी स्मृतिवर्णित ये पाँच महापाप-ब्रह्महत्या, सुरापान, चोरी, एक उपाधि । -मांस-पु. नरमांस गोमांस । -माईगुरुपलीगमन और इन पाप करनेवालोंका संसर्ग । स्त्री० [हिं०] काली, देवी। -मान्य-वि० (हिज़ मैजेस्टी) -पातकी(किन)-वि० महापातक करनेवाला।-पात्र- अत्यंत माननीय (किसी स्वतंत्र नरेश या सम्राट के लिए पु० प्रेतकर्म कराने और उसका दान लेनेवाला ब्राह्मण, प्रयुक्त सम्मानका शब्द)। -माया-स्त्री० जगत्की
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महा-महार्बुद कारणभूता अविद्या; जगत्की अधिष्ठात्री दुर्गा; बुद्धदेवकी गये । निर्वाणकाल ५२७ ई०)। -धीर-चक्र-पु० स्वतंत्र माता। -मारी-स्त्री० बबाई बीमारी, मरी। -मुनि- भारतमें सेनाके किसी वीरको रणभूमिमें असामान्य पु० मुनिश्रेष्ठ; व्यास; अगस्त्य; बुद्धदेव । -मृग-पु० वीरता दिखानेपर दिया जानेवाला एक विशेष पदक जो बड़ा पशुः हाथी । -मृत्युंजय-पु० शिवका एक प्रसिद्ध परमवीर चक्रसे छोटा माना जाता है। -व्रण-पु० दुष्ट मंत्र जो अकालमृत्यु-निवारक माना जाता है। -यज्ञ- व्रण । -व्रत-पु० बहुत बड़ा कठिन व्रत। -शंख-पु० पु० गृहस्थके लिए नित्य कर्तव्य पंचकर्म-वेदाध्ययन, बड़ा शंख; ललाट; सौ शंखकी संख्या; कुबेरकी एक निधि । अग्निहोत्र, तर्पण, अतिथि पूजन और भूतबलि ।-यान- -शक्ति-स्त्री० महती शक्ति; दुर्गा। -श्मशान-पु० पु० बौद्ध धर्मके तीन मुख्य संप्रदायों में से एक ।-युद्धपोत- काशी नगरी, वाराणसी । -श्रमण-पु० बुद्धदेव । पु० (कैपिटल शिप) भारी रण-पोत, जंगी जहाज ।-योगी- -संस्कार-पु० अंत्येष्टि ।-सत्त्व-वि० अति बलशाली; (गिन् )-पु० महान् योगी; शिव, विष्णु, मुर्गा । महामना । पु० बुद्धदेव; कुबेर । -सभा-स्त्री० बड़ा -रत्न-पु० बहुमूल्य रत्न-हीरा, मोती, वैदूर्य, पद्मराग, जलसा; महासंघ; हिंदू महासभा । -सभाई-वि० [हिं०] गोमेद, पुखराज, पन्ना, नीलम और मूंगा। -रथ-पु० हिंदू महासभाका अनुयायी। -समुद्र-पु० बड़ा समुद्र, भारी योद्धा; वह योद्धा जो अकेला दस सहस्रधनुर्धरोंसे महासागर ।-सर्ग-पु० महाप्रलयके बाद होनेवाली नयी लड़ सके। -रथी(थिन)-पु० दे० 'महारथ' ।-रस- सृष्टि । -सांधिविग्रहिक-पु० परराष्ट्रमंत्री। -सागरपु० ईख खजूर; काँजी; कसेरू, पारा; अभ्रक; सोना
पु० महासमुद्र । -सारथि-पु० अरुण । -साहस-पु. मक्खी; कांतिसार लोहा। -राज-पु० बड़ा राजा,
अति साहस बलात्कार; जबरदस्ती छीन लेना, डकैती। बादशाह; राजा, ब्राह्मण, साधु-संत आदिका सम्मान
-साहसिक-वि० अति साहसी। पु० बलात्कार करनेसूचक संबोधन । [स्त्री० महाराशी।] -राजाधिराज
वाला; बलपूर्वक हरण करनेवाला । -सिद्धि-स्त्री० एक पु० राजाओंका राजा, सम्राट ।-राणा-पु०[हिं०] मेवाड़
तरहका जादू। -सुख-पु० शृंगार रति; बुद्धदेव । और धौलपुरकेराजाओंकी उपाधि ।-रात्र-पु०अर्धरात्रि।
| महाई-स्त्री० मथनेका काम; मथनेकी उजरत । -रात्रि-स्त्री० महाप्रलय; आधी रातके बाद दो मुहूर्तका
महाउत*-पु० दे० 'महावत' । रात्रिकाल । -रावण-पु० अद्भत रामायण में वर्णित
महाउर*-पु० दे० 'महावर'। रावण जो जानकीजीके हाथों मारा गया। -रावल-पु०
महाचार्य-पु० [सं०] प्रधान आचार्य । [हिं०] जैसलमेर और दूंगरपुरके राजाओंकी उपाधि । महाजनी-स्त्री० महाजनका पेशा, रुपयेके लेन-देन, हुंडी-राष्ट्र-पु. दक्षिण-पश्चिम भारतका एक प्रदेश; उस पुरजेका काम। प्रदेशका निवासी; बड़ा राष्ट्र ।-राष्ट्री-स्त्री० मध्यकालकी
महाढ्य-वि० [सं०] अति धनी; परम संपन्न । या दूसरी प्राकृतोंमेंसे एक मुख्य भाषा; महाराष्ट्र देशकी
महातम*-पु० दे० 'माहात्म्य' । भाषा, मराठी।-राष्ट्रीय-वि० महाराष्ट्र-संबंधी; महाराष्ट्र | महात्मा (मन)-पु० [सं०] जिसकी आत्मा या स्वभाव देशवासी। -रुद्र-पु० शिव । -रेता (तस्)-पु० ! महान हो, उच्चाशय; संत, योगी सिद्ध पुरुषः परमात्मा । शिव । -लक्ष्मी-स्त्री० नारायणकी शक्ति, लक्ष्मी । महाधिकारपत्र-पु० [सं०] (मैग्ना कार्टा) वैयक्तिक तथा -लिंग-पु० शिव ।-लेखापाल-पु०(अकाउंटेंट-जनरल)
राजनीतिक स्वतंत्रता प्रदान करनेवाला वह प्रसिद्ध अधिसरकारके रेल विभाग, डाक विभाग आदि सार्वजनिक |
कारपत्र जो ब्रिटेनके राजा जॉनसे - सन् १२१५ ई० में विभागोंका प्रधान लेखापाल, महा-गणनाध्यक्ष ।-लौह
लिखाया गया था। पु० चुवक । -घरा-स्त्री० दूब । -वराह-पु० विष्णुका महानता-स्त्री० महत्ता, बड़प्पन । वराह अवतार । -वाक्य-पु० महदर्थ-प्रकाशक वाक्य
महानुभाव-पु० [सं०] ऊँचे मन, आशयवाला,महाशय । 'अहं ब्रह्मास्मि', 'तत्त्वमसि', 'अयमात्मा ब्रह्म' आदि महान (हत्)-वि० [सं०] बड़ा, ऊँचा, महत् । उपनिषदाक्य । -वाणिज्यदत-पु० (कौंसल जनरल)
महापगा-स्त्री० [सं०] बड़ी नदी। किसी देशका वह वाणिज्यदूत जो किसी अन्य देशकी राज- महाभियोग-पु० [सं०] (इंपीचमेंट) राज्यके प्रधान या धानीमें नियुक्त किया गया हो और जो उस देशमें स्थित | राज्यके किसी बड़े अधिकारीपर, किसी जघन्य अपराध अपने देशके इतर वाणिज्यदूतोंका प्रधान हो।-वात- या बहुत ही अनुचित आचरणके कारण, चलाया गया पु० तूफानी हवा, अंधड़ ।-वादी (दिन)-वि० शास्त्रार्थ अभियोग। करने में प्रबल ।-वायु-स्त्री०दे० 'महावात' ।-वारुणी- महामात्य-पु० [सं०] प्रधान मंत्री। स्त्री० गंगास्नानका एक विशेष योग जो चैत्र कृष्णा त्रयो- महाय*-वि० महा, बहुत अधिक । दशीको शतभिषा नक्षत्र और शनिवार होनेसे पड़ता है। महारंभ-वि० [सं०] बड़े काम उठानेवाला; बड़ा। पु० -विद्या-स्त्री. तंत्रोक्त दस देवियाँ-काली, तारा आदि । बड़ा काम । -विद्यालय-पु०उच्च शिक्षा देनेवाला विद्यालय (कालेज)। | महारण्य-पु० [सं०] भारी जंगल । -वीर-वि० बहुत बड़ा वीर, योद्धा। पु० सिंह वज्र; | महार्घ-वि० [सं०] महँगा दामी । विष्णु, गरुड, हनूमान्; जैनोंके चौबीसवें और अंतिम महार्घता-स्त्री० [सं०] महँगी, महँगापन । तीर्थंकर (त्रिशूलाके गर्भसे उत्पन्न महाराज सिद्धार्थ के पुत्र महार्णव-पु० [सं०] महासमुद्र शिव । जो युवावस्था में ही राज-पाट छोड़कर तप करने वनमें चले | महाबुद-पु० [सं०] एक अरब या १० अर्बुदकी संख्या ।
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महार्ह-महोरस्क
६३० महाह-वि० [सं०] बहुमूल्य । पु० सफेद चंदन । लॅबी । स्त्री० दे० 'महुअरी'। महाल-पु० [अ०] महल्ला; वह जमींदारी जिसमें कई महुअरी -स्त्री० महुआ मिलाकर पकायी हुई रोटी। पट्टियाँ हों; विभाग।
महुआ, महुवा-पु० एक प्रसिद्ध पेड़ जिसके फूल, फल महालया-स्त्री० [सं०] आश्विन कृष्णा अमावस्या । खाने और लकड़ी ईधनके तथा इमारती कामों में आती है, महावट-स्त्री० जाड़ेकी वर्षा ।
मधूक । महावत-पु० हाथीवान ।
महुआरी-स्त्री० महुएका बाग । महावर-५० लाखका रंग जिससे स्त्रियाँ पाँव रँगती हैं। । | महुकम*-वि० दे० 'मुहकम' । महावरा-पु० दे० 'मुहावरा'।
महुर्छा*-पु० महोत्सव । महावरी-स्त्री० महावरकी गोली।
महुलिया-पु० महुवा (ग्राम०) । स्त्री० महुवेकी शराब । महाशन-वि० [सं०] बहुत खानेवाला, अतिभोजी।। महुवरि-स्त्री० दे० 'महुअर'। महाशय-वि० [सं०] उच्चाशय, महामना, उदार | पु० | महूख-पु० दे० 'मधूक' । ऊँचे मन, आशयवाला पुरुष, समुद्र, पत्रालाप, संभाषण महूरत-पु० दे० 'मुहूर्त'।
आदिमें किसीके लिए प्रयुक्त सामान्य आदरसूचक शब्द । महष-पु० महुवा; शहद (कविप्रि०)। महाष्टमी-स्त्री० [सं०) आश्विन शुक्ला अष्टमी। महेंद्र-पु० [सं०] विष्णु; इंद्र; एक कुलपर्वत । महास्पद-वि० [सं०] उच्चपदस्थ शक्तिशाली।
महर-स्त्री० दे० 'महेरा'; झगड़ा, अड़चन । महि*-अ० दे० 'महँ' ।
महेरा-पु० मट्टेमें नमक या मीठा डालकर पकाया हुआ महि-स्त्री० [सं०] महिमा; पृथ्वी; महत्तत्व । -देव-पु० | भात; मठा। ब्राह्मण । -सुता-स्त्री० सीता । -सुर-पु० ब्राह्मण । महेरि*-स्त्री० दे० 'महेरा' । महिखर-पु० दे० 'महिष'।
महेरी-स्त्री० उबाली हुई ज्वार दे० 'महेरा'। वि० बाधा महिमा(मन)-स्त्री० [सं०] बड़ाई, बड़प्पन; महत्ता डालनेवाला। माहात्म्य अष्ट सिद्धियोंमेंसे एक, अपनी देहका चाहे जितना महेलिका-स्त्री० [सं०] महिला, स्त्री। विस्तार कर लेनेकी शक्ति ।-मंडित-वि० महिमायुक्त । महेश-पु० [सं०] शिव; परमेश्वर । महिमामयी-वि० स्त्री० [सं०] महिमाशालिनी। महेशानी-स्त्री० पार्वती (पूर्ण०)। महियाँ*-अ० में-'प्रगटे भूतल महियाँ'-सू० । महेश्वर-पु० [सं०] शिव; परमेश्वर । महियाउर*-पु. महेरा।
महेश्वरी-स्त्री० [सं०] दुर्गा । महिला-स्त्री० [सं०] स्त्री; भद्र स्त्री; मदमत्त स्त्री। महेस-पु० दे० 'महे श' । -दीर्घा-स्त्री० (लेडीज़ गैलरी) महिलाओंके बैठनेका महसी*-स्त्री पार्वती । लंबोतरा स्थान ।
महेसुर*-पु० दे० 'महेश्वर' । महिष-पु० [सं०] भैसा; महिषासुर ।
महोक्ष-पु० [सं०] बड़ा बैल । महिषाक्ष-पु० [सं०] भैसा; गुग्गुल ।
महोख-पु० दे० 'महोखा' । महिषासुर-पु० [सं०] एक असुर जो दुर्गाजीके हाथों महोखा-पु० एक चिड़िया जिसकी बोली बहुत तेज होती है। मारा गया। -घातिनी-मर्दिनी-स्त्री० दुर्गा । महोगनी-पु० एक सदाबहार पेड़ जिसकी लकड़ी मेज, महिषी-स्त्री० [सं०] भैस अभिषिक्ता रानी, 'पटरानी'। कुरसी आदि बनाने के काम आती है। महिषेश-पु० [सं०] महिषासुर ।
महोच्छव*-पु० दे० 'महोत्सव' । मही-स्त्री० मट्ठा, छाछ; [सं०] धरती; मिट्टी; भूसंपत्ति, महोत्सव-पु० [सं०] बड़ा उत्सव, समारोह । देश ।-ज-पु० मंगल ग्रह; अदरक ।-जा-स्त्री० सीता। महोदधि-पु० [सं०] समुद्र । -धर-पु. पर्वत; विष्णु । -प,-पाल-पु० राजा। महोदय-वि० [सं०] अति समृद्ध गौरवशाली। पु० महा-पुत्र-पु० मंगल; नरकासुर । -पुत्री,-सुता-स्त्री० नुभाव; कान्यकुब्ज देश । सीता ।-भुक (ज),-भृत्-पु०राजा ।-रुह-पु०वृक्ष । महोदया-स्त्री० [सं०] नागबला; महाशया। -सुत-पु० मंगल ग्रह नरकासुर ।-सुर-पु. ब्राह्मण । महोदर-वि० [सं०] बड़े पेटवाला । पु० धृतराष्ट्रका एक महीन-वि० बारीक पतला ।
पुत्र; एक राक्षस। महीना-पु० वर्षका बारहवाँ भाग, ३० दिनका समय, | महोदार-वि० [सं०] अतिशय उदार । मास; दरमाहा; मासिक धर्म । मु०-(ने)से होना-महोद्यम-वि० [सं०] अतिशय उद्यम, उत्साहवाला। ऋतुमती होना।
महोन्नत-वि० [सं०] अतिशय उन्नत, ऊँचा । महीयान्( यस्)-वि० [सं०] अधिक बड़ा, महान् । महोपाध्याय-पु० [सं०] बड़ा अध्यापक, पंडित । महीर-स्त्री० दे० 'महेरा'; खौलानेपर मक्खनके नीचे बैठा महोबा-पु० हमीरपुर जिलेका एक कसबा जो हिंदूकालमें मैल ।
चंदेल राजाओंकी राजधानी था और आल्हा-ऊदलका महीश-पु० [सं०] पृथिवीपति, राजा।
वासस्थान होनेके कारण बहुत प्रसिद्ध है । महँ*-अ० दे० 'महँ'।
महोबिया, महोबी-वि० महोबेका। महअर-पु० मदारियों द्वारा बजाया जानेवाला एक बाजा, महोरस्क-वि [सं०] चौड़ी छातीवाला।
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६३१
महोला * - पु० बहाना, छल । महौघ - वि० [सं०] जिसकी धारा प्रखर हो । महौजा (जस) - वि० [सं०] अति ओज, तेजवाला, परम तेजस्वी ।
माँ - स्त्री० माता, जननी । - जाया - पु० सगा भाई वि० [मातृ-पितृतुल्य ( सरकार) । माँख * - ५० दे० 'माख' । माँखना * - अ० क्रि० क्रोध करना, नाराज होना । माँग- स्त्री० वालोंको सँवारकर बनायी हुई रेखा । -चोटी - स्त्री० माँग-पट्टी, बनाब सिंगार - टीका - पु० माथेपर पहनने का एक गहना । - फूल - पु० दे० 'माँगटीका' । मु० - उजड़ना- विधवा होना ।
|
माँग - स्त्री० माँगनेकी क्रिया, भाव; याचना; चाह; तलब; अधिकाररूप में की हुई याचना (आ० ) । -जाँचकर, ताँगकर - अ० इधर-उधर से लेकर ।
माँगन * - पु० माँगना, माँग; दे० 'मंगन' | माँगना - स० क्रि० याचना करना, कुछ देनेकी प्रार्थना करना; चाहना; प्रार्थना करना; बुला मँगाना - 'चौं आजु मांगों घरि केसा' - प० । * पु० भिक्षुक । मांगलिक - वि० [सं०] मंगलजनक, मंगलसूचक | [स्त्री० मांगलिकी ।] पु० नाटकमें मंगलपाठ करनेवाला पात्र | मांगल्य - वि० [सं०] मंगलकारी । पु० मंगलका भाव, मांगलिकता
- जाई - स्त्री० सगी बहन । - बाप-पु० माता-पिता ।
माँचना* - अ० क्रि० फैलना, प्रसिद्ध होना - 'कीरति जासु
सकल जग माँची' - रामा०; शुरू होना ।
माँजना - स० क्रि० रगड़कर साफ करना; रगड़कर चमकाना; माँझा देना । अ० क्रि० मश्क करना । माँजा - पु० पहली वर्षाका फेन ।
मांजिष्ठ- वि० [सं०] मजीठके रंगका, लाल । पु० लाल रंग । माँझ * - अ० मध्य, भीतर ।
माँझा - पु० पतंग की डोरपर, उसे कड़ा और मजबूत करने - के लिए, मला जानेवाला मसाला; हलदी चढ़ाने के बाद वर-कन्याको पहनाये जानेवाले पीले कपड़े; नदीकी धाराके बीच छोटा टापू । मु० - ढीला होना - कमजोरी मालूम होना । - (झे ) का जोड़ा - हलदीकी रस्म के बाद वरकन्याको पहनाये जानेवाले कपड़े । - बैठना - वर-कन्याका ब्याह के दो-तीन दिन पूर्व पीले कपड़े पहनकर एकांत वास करने लगना ।
माँझिल * - वि० दे० 'मँझला' ।
माँझी- पु० नाव खेनेवाला, मल्लाह; * मध्यस्थ । माँट - पु० मटका |
माँठ- पु० मटका; नील घोलनेका मटका; बड़ी मठली । माँड़ - पु० पकाये हुए चावलका पानी, मंड, पसाव । माँड़ना - स० क्रि० रौंदना; मसलना; गूंधना; अनाजकी बालोंको कुचलवाकर दाने निकालना;* लगाना, पोतना; सजाना; पूजा या सेवा करना; ठानना, शुरू करना - 'हौं तुमसे फिर युद्धहिं माँडौं' - राम० ।
मांडलिक - पु० [सं०] मंडलका राजा, मंडलाधीश । माँडव* - पु० मंडप |
४०-क्र
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महोला-माई
मांडवी - स्त्री० [सं०] कुशध्वजकी कन्या जो भरतको ब्याही गयी ।
माँड़ा - पु० आँखका एक रोग; उसपर पड़नेवाला सफेद जाला; लुन्नुई, एक तरहका पराठा; मंडप
माँड़ी - स्त्री० मॉड कपड़े या सूतपर दिया जानेवाला कलफ । माडी * - पु० मंडप; विवाहमंडप । माँड्यो * - पु० मंडप, अतिथिशाला ।
माँत * - वि०मत्त, उन्मत्त; फीका, माँद; मात, हारा हुआ । माँतना * - अ० क्रि० मत्त, उन्मत्त होना । माँता * - वि० मत्त, मतवाला ।
मांत्रिक- वि० [सं०] मंत्र संबंधी । पु० मंत्रवेत्ता, वेदमंत्रोंका पाठ करनेमें कुशल; जंतर-मंतर जानने, करनेवाला । माँथ + - पु० दे० 'माथा' - बंधन-पु० सिरके बाल बाँधनेकी डोरी; सिरपर लपेटनेका कपड़ा | मांथर्य - पु० [सं०] मंथरत्व, धीमापन; सुस्ती । माँद-स्त्री० खूँखार जानवरोंके रहनेकी जगह, गुफा । वि० फीका, बेआव, धूमिल । मु०-पड़ना - फीका पड़ना, बेआब होना ।
माँदगी - स्त्री० [फा०] रोग; थकावट ।
माँदा - वि० [फा०] बीमार; थका हुआ; बचा हुआ, छूटा हुआ (बाकी माँदा ) |
मांद्य - पु० [सं०] मंदता; दुर्बलता । माँपना - अ०क्रि० मतवाला होना, नशेसे प्रभावित होना । मांस-पु० [सं०] प्राणियोंके शरीरका मुलायम, चिकना, रक्त वर्णका वह अंश जो हड्डी, चमड़े, नस आदिसे भिन्न होता है, आमिप, गोइत; मछलीका मांस; फलका गुदारा भाग। - ग्रंथि - स्त्री० मांसकी गाँठ जो शरीर में यत्रतत्र निकल आती है। -ज-पु० चरबी । -प-पु० पिशाच, दैत्य । - पिंड - पु० शरीर। - पेशी - स्त्री० शरीरके भीतर एक दूसरेसे जुड़े हुए मांसपिंड, ८वें दिनसे १४वें दिनतकका भ्रूण । भक्ष, भक्षी ( क्षिन् ) - वि० मांस खानेवाला । - भेत्ता (त), भेदी (दिन ) - वि०, पु० जो मांस काटता हो । - भोजी (जिन्) - वि० दे० 'मांसभक्ष' । - रस - पु०मांसका रसा, शोरबा । -विक्रयपु० मांसकी बिक्री | -विक्रयी (यिन् ) - पु० कसाई; धनके लिए पुत्र या पुत्रीको बेचनेवाला । - वृद्धि - स्त्री० मांसका बढ़ जाना । —सार, स्नेह - पु० चरबी । मांसल - वि० [सं०] गुदारा, स्थूल; पुष्ट, बलवान् । मांसाद, मांसादी (दिन) - वि० [सं०] मांस खानेवाला । मांसाशी (शिन् ) - पु० [सं०] मांसाहारी; राक्षस । मांसाहारी (रिन्) - पु० [सं०] मांसका आहार करनेवाला । मांसोदन - पु० [सं०] मांसके साथ पकाया गया चावल, पुलाव |
मांसोपजीवी (विन्) - पु० [सं०] मांस बेचकर जीवननिर्वाह करनेवाला, कसाब । माँहीँ - अ० दे० 'माहँ' ।
मा - अ० [सं०] निषेधार्थक- नहीं, मत । स्त्री० लक्ष्मी; माता; मान, मा । - धव-पु० दे० क्रममें । माइँ, माई - स्त्री० छोटे पुआ जैसा मीठा या नमकीन पकवान जो विवाह के समय बनाया जाता है; मामी; कुलदेवी ।
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माई-मात्रा माई-स्त्री० माता, माँ वृद्धा, आदरणीया स्त्रीका संबोधन मातना*-अ० क्रि० मत्त होना, नशेमें होना । किसी भी स्त्रीका संबोधन-हे सखी। -का लाल-मातबर-वि० दे० 'मोतवर'। हिम्मतवाला, वीर, उदार, दानी।
मातबरी-स्त्री० विश्वसनीयता। मानल-वि० [सं०] अक्कमें आनेवाला, बुद्धिग्राह्य ठीक, मातम-पु० [अ०] मृत्युशोक; रोना-पीटना, स्यापा । अच्छा; समझदार; शिष्ट; वादमें पराजित, कायल । -पुरसी-स्त्री. मृत व्यक्तिके घर जाकर समवेदना-पसंद-वि० उचित बातको मान लेनेवाला, समझदार।। प्रकाश । माख*-पु० अप्रसन्नता, रोष; गर्व-'तिनमहुँ रावन कवन मातमी-वि० [अ०] मातम-संबंधी; शोक-सूचक । नै सत्य बदहि तज माख'-रामा।
-लिबास-पु० शोक-सूचक पहनावा, काला या नीले माखन-पु० दे० 'मक्खन' । -चोर-पु० माखन चुराने रंगका कपड़ा। वाला, कृष्ण ।
मातरिपुरुष-पु० [सं०] वह जो माताके सामने या उसके माखना*-अ० क्रि० रोष करना, अप्रसन्न होना।
ऊपर ही मर्दानगी दिखाये, गेहेशूर । माखी*-स्त्री० मक्खी; सोनामक्खी ।
मातलि-पु० [सं०] इंद्रके सारथिका नाम । मागध-वि० [सं०] मगधका; मगधमें उत्पन्न । पु० मगध- मातहत-वि० [अ०] आज्ञाधीन; नीचे काम करनेवाला । नरेश; भाटका पेशा करनेवाली एक वर्णसंकर जाति; पु० अधीन कर्मचारी, सहकारी। * जरासंध ।
| मातहती-स्त्री० [अ०] मातहत होनेका भाव, अधीनता । मागधी-स्त्री० [सं०] मगधकी भाषा; चार मुख्य प्राकृतों- माता(त)-स्त्री० [सं०] माँ, जननी; आदरणीया, वयोमेंसे एक; मगधकी राजकुमारी ।
वृद्ध स्त्रीका संबोधन; गाय; धरती; लक्ष्मी; दुर्गा; मातृका; माघ-पु० [सं०] फाल्गुनके पहलेका महीना: संस्कृतके | शीतला, चेचक । प्रसिद्ध कवि ।
माता(त)-वि० [सं०] मापनेवाला, मापक । माघी-वि० माघका । स्त्री० [सं०] माघकी पूर्णिमा । माता-वि० मतवाला, नशे में चूर । माच*-पु० दे० 'मचान' ।
मातामह-पु० [सं०] नाना। माचना*-अ.क्रि० दे० 'मचना'।
मातामही-स्त्री० [सं०] नानी । माचल*-वि० मचलनेवाला, हठो।
मातुल-पु० [सं०] मामा; धतूरा। माचा -पु० बड़ी मचिया; पलंग; मचान ।
मातुला, मातुलानी, मातुली-स्त्री० [सं०] मामी। माची -स्त्री० मचिया, कुरसी, हलके साथ व्यवहार में | मातुलेय-पु० [सं०] मामाका बेटा। लाया जानेवाला जुआ; गाड़ीवानके बैठनेकी जगह । मात-स्त्री० [सं०] 'माता' शब्दका समासमें व्यवहृत रूप । माछ*-पु० मछली।
-कल्याणगृह-पु० (मैटरनिटी वेलफेयर सेंटर) वह स्थान माछर*-पु० मच्छर।
जहाँ शीघ्र ही माता बननेवाली या पहलेसे मातृत्वको माछी -स्त्री० मक्खी।
प्राप्त स्त्रियोंकी देख-भाल, चिकित्सा, शिशुजन्म आदिका माजरा-पु० [अ०] घटना; वृत्त, हाल ।
विशेष प्रबंध रहता है । -गण-पु० अष्ट (या सप्त) मातृमाजू-पु० सरोंकी शक्लका एक झाड़। -फल-पु० माजूके काएँ। -गामी (मिन)-पु० माताके साथ संभोग करनेझाड़का गोंद ।
वाला। -गोत्र-पु० माताका गोत्र, कुल । -घातक,माजून-स्त्री० [अ०] चाशनीमें उबालकर बनायी हुई दवा। घाती(तिन)-पु० माताकी हत्या करनेवाला । -देवमाट-पु० दही रखनेका मटका; वह मटका जिसमें रंगरेज पु० माताको देवता मानने, पूजनेवाला । -पक्ष-पु० रंग रखता है।
मातृकुल, नाना, मामा आदि । -पितहीन-वि० बिना माटा-पु० चीटोंकी शकलका एक कीड़ा ।
माँ बापका, अनाथ । -पूजन-पु० माताकी पूजा; मातृमाटी*-स्त्री० मिट्टी; धूल; शरीर; शव ।
कापूजन। -भाषा-स्त्री. अपने जन्मस्थानकी, अपने माठ-पु० मैदेकी मोयनदार मोटी पूड़ी जो चाशनीमें पाग घरमें बोली जानेवाली भाषा, स्वभाषा। -भूमि-स्त्री० ली गयी हो, मटकी।
जन्मभूमि । -श्री-स्त्री० माताजी (आदरार्थ प्रयुक्त)। माड़ना-स० क्रि० धारण करना; सजाना; पूजना; * -हवसा-स्त्री० मासी।-सत्तात्मक-वि० (मैट्रिआर्कल) ठानना।
(वह प्रथा या पद्धति) जिसमें माता या गृहस्वामिनीकी माड़वा-पु० मंडप ।
ही सत्ता सर्वोपरि मानी जाती रही हो। -हंता(त)माढा-पु० दूसरी मंजिलकी बैठक मचिया।
पु० माताकी हत्या करनेवाला। माढी*-स्त्री० दे० 'मढ़ी'; मचिया।
मातृका-स्त्री० [सं०] माता; धायसौतेली मा; वर्णमाला; माणिक, माणिक्य-पु० [सं०] गुलाबी या लाल रंगका | ब्राह्मणी, माहेश्वरी, इंदाणी आदि देवियाँ । एक रत्न ।
मातत्व-पु० [सं०] संतानवती होना; माताका पद । मातंग-पु० [सं०] हाथी; चांडाल; किरात; एक ऋषि ।। मात्र-अ० [सं०] केवल, सिर्फ । मात-* स्त्री० माता; [अ०] हार (शतरंज आदिमें) । वि० मात्रा-स्त्री० [सं०] परिमाण; हस्व वर्णके उच्चारणमें लगने. पराजित, हारा हुआ।
वाला काल; (संगीत) स्वरका स्थितिकाल, एक स्वरके मातदिल-वि० दे० 'मोतदिल'।
उच्चारणमें लगनेवाला काल; अक्षर में लगायी जानेवाली
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नाहका।
६३३
मात्रिक-मानता स्वर-सूचक रेखा; औषधका एक बार सेवन करने योग्य | माधुरई*-स्त्री० मिठास, माधुरी । परिमाण, खूराक।
माधुरता*-स्त्री० दे० 'मधुरता'। मात्रिक-वि० [सं०] मात्रा-संबंधी मात्राओंकी गणनावाला माधुरिया*-स्त्री० दे० 'माधुरी' । (छंद)। -छंद-पु० वह छंद जिसमें मात्राओंकी गणना माधुरी-स्त्री० [सं०] मधुरता, मिठास; शराब । की जाय।
माधुयें-पु० [सं०] मिठास; लावण्य, सहज सुंदरता; मात्सर्य-पु०[सं०] दूसरेका उत्कर्ष देखकर जलना, कुढ़न । दयालुता; काव्यका एक गुण जिसमें टवर्ग और संयुक्कामात्स्य-वि० [सं०] मत्स्य-संबंधी; मछलीका । -न्याय- क्षरोंका अभाव, सानुस्वार वर्णोंके प्रयोग तथा मृदु पु० बलवान् द्वारा निर्बलको उदरस्थ कर जाना (जैसे समासोंका व्यवहार होता है। शब्दावली में मनको मोह बड़ी मछली छोटी मछलीको हड़प जाती है)।
लेनेका गुण । माथ*-पु० दे० 'माथा' ।
माधैया*-पु० दे० 'माधव' । माथना*-सक्रि० दे० 'भवना'।
माधो, माधौ-धु० दे० 'माधव' । माथा-पु० मस्तक, ललाट, पेशानी; वस्तुका अग्रभाग। माध्य-वि० [सं०] मध्यका, बिचला । मु०-कूटना-सिर पीटना । -घिसना-अनुनय-विनय माध्यम-वि० [सं०] मध्यका, बिचला, मध्ववतीं । पु० करना; भूमिसे सिर लगाकर प्रणाम करना । -टेकना- वह भाषा जिसके द्वारा शिक्षा दी जाय; कार्यविशेषकी भूमिसे सिर लगाकर-प्रणाम करना। -ठनकना-किसी वाहनरूप वस्तु (मीडियम); साधन, जरीया । अनिष्टकी पहलेसे आशंका होना। -पच्ची करना-देर- माध्यमिक-वि० [सं०] मध्यका, बिचला। -शिक्षातक सोचना-समझना; विशेष परिश्रमसे समझाना, सिर स्त्री० (सेकंडरी एजुकेशन) प्रारंभिक शिक्षाके बादकी तथा खपाना । -मारना-सिर मारना, माथापच्ची करना। उच्च शिक्षाके पूर्वकी शिक्षा, प्रारंभिक शिक्षाकी समाप्तिसे -रगड़ना-दे० 'माथा घिसना' । -(थे)पर बल लेकर मैट्रिक (कहीं-कही इंटर)तककी शिक्षा । पड़ना-चेहरेसे रोष, अप्रसन्नता प्रकट होना ।
माध्यस्थ्य-पु०[सं०] मध्यस्थता, बीवबिचाव; निष्पक्षता । माथुर-वि० [सं०] मथुराका । पु० मथुरावासी; चौबे माध्याकर्षण-पु०[सं०] पृथ्वीकी वह आकर्षणशक्ति जिससे कायस्थोंकी एक उपजाति ।
ऊपर उछाली हुई चीज फिर नीचे आती है,गुरुत्वाकर्षण । माथे-अ० माथेपर; भरोसे । मु०-चढ़ाना-शिरोधार्य माध्याहिक-वि० [सं०] मध्याह्नका । करना । -टीका होना-(किसी बातका) किसीके नाम माध्यिका-स्त्री. (मीडियन) वह सरल रेखा जो त्रिभुजके ठीका होना, खास तौरसे किसीके जिम्मे होना ।- मढ़ना- | किसी शीर्षसे सामनेवाली भुजाके अर्धक बिंदुतक खींची गले लगाना, सिर थोपना ।
गयी ही। मादक-वि० [सं०] नशा पैदा करनेवाला; हर्षजनक । माध्व-वि० [सं०] मधुनिमित; मीठा मध्वप्रवर्तित मध्वमादकता-स्त्री० [सं०] नशीलापन ।
का अनुयायी। -संप्रदाय-पु० मध्वाचार्य प्रवर्तित द्वैतमादन-पु० [सं०] मत्तता; कामदेव; धतूरा; लौंग । वि० वादी वैष्णव संप्रदाय।। मादक।
माध्वी-स्त्री० [सं०] मधु आदिसे बनायी हुई शराब । मादर-स्त्री० [फा०] माँ। -जाद वि० जन्मका, पैदा- | मान-पु० [सं०] आदर, प्रतिष्ठा; आत्म-सम्मान; अभिइशी; सहोदर।
मान; नायकके किसी अपराधसे नायिकाकारूठना (सा०); मादरिया*-स्त्री० दे० 'मादर' (मा)-'भादरिया घर क्रोध, परिमाण; पैमाना, मानदंड; नाप, तौल, प्रमाण; बेटी आई'-कबीर।
तालका एक विराम । -कलह,-कलि-पु० मानजनित मादरी-वि० [फा०] माँका; पैदाइशी, जन्मसिद्ध । कलह । -गृह-पु० कोपभवन । -चित्र-पु० नक्शा । -जबान-स्त्री. भातृभाषा।
-दंड-पु० नापनेका डंडा, काठा; पैमाना ।-देय-पु० मादा-स्त्री० [फा०] स्त्री स्त्री प्राणी, नरका उलटा। (ऑनॉरेरियम, हॉनॉरेरियम) किसी काम या सेवाके लिए मादिक*-वि० दे० 'मादक' । स्त्री० मदिरा।
स्वेच्छापूर्वक दिया जानेवाला पारिश्रमिक । -धन-वि० माहा-पु० [अ०] वह पदार्थ जिससे कोई वस्तु बनी हो मानका धनी, प्रतिष्ठा ही जिसका धन हो। -पत्र-पु० या बनायी जाय; जड़ पदार्थ; शब्दका मूल, धातु; समझ; अभिनंदनपत्र ।-परेखा*-पु० भरोसा, विश्वास, आशा। योग्यता; मवाद ।
-भंग-पु० मानहानि; (नायिकाके) मानका टूटना । माद्रवती-स्त्री० [सं०] माद्री जो नकुल-सहदेवकी माता -मंदिर-पु० वेधशाला; कोपभवन । -मनौती-स्त्री० थी; परीक्षितकी पत्नी।
[हिं०] रूठना-मनाना; मन्नत । -मरोर*-पु० बिगाड़। माद्री-स्त्री० [सं०] पांडुकी दूसरी पत्नी। -नंदन,- -मोचन-पु० मान छुड़ाना, रूठे हुए प्रियको मनाना। सुत-पु० नकुल-सहदेव ।
-हानि-स्त्री० अपमान, बेइज्जती। मु०-रखना-बात माद्य-पु० [सं०] माद्रीके पुत्र-नकुल और सहदेव । रखना, (किसीके) बड़प्पनका सम्मान करना (उन्होंने इस माधव-पु० [सं०] विष्णुः कृष्णः वसंतवैशाख, महुएका कृत्यसे मेरा मान रख लिया)। पेड़ । वि० मधुनिर्मित वासंतिक।
मानकंद-पु० एक तरहका मीठा कंद । माधवी-स्त्री० [सं०] एक सुगंधित फूलोंवाली लता, वासंती मानक-पु० मानकंद; (स्टैंडर्ड) दे० 'प्रमाप' । शहदसे बनी शराब; मधुशर्करा ।
| मानता-स्त्री० मनौती।
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मानना - माया
मानना - स० क्रि० स्वीकार, कबूल करना; आदर, मान करना; गुण, योग्यताका कायल होना; ( किसीपर) श्रद्धा करना; तिथि, पर्व आदि स्वीकार और उस दिनके विशेष कर्तव्योंका पालन करना, मनाना; मन्नत करना; समझना, खयाल करना । अ० क्रि समझना, फर्ज करना; राजी होना ।
माननीय - वि० [सं०] मान करने योग्य, आदरणीय । मानव - पु० [सं०] मनुष्यकी संतान, मनुष्य । वि० मनुसंबंधी; मनुष्योचित । - धर्मशास्त्र- पु० मनुस्मृति । - पणन, व्यापार - पु० ( ट्रैफिक इन ह्यूमन बीइंग्ज़) मनुष्यों को बेचने खरीदनेका काम । - विज्ञान - पु० (एनथ्रोपॉलॉजी) दे० 'नृवंशविज्ञान' | मानवता - स्त्री० [सं०] मनुष्यता । मानवती - वि० स्त्री०, स्त्री० [सं०] मानिनी (नायिका) । मानवी - वि० मानवका; मनुष्य-संबंधी । स्त्री० [सं० ] नारी, स्त्री ।
मानवीय - वि० [सं०] मानव-संबंधी, इनसानी । मानवेंद्र - पु० [सं०] राजा; नरश्रेष्ठ । मानस-पु० * मनुष्य - 'मनु अनेक मानस उपजाये'छ० [सं०] मन, चित्त; मानसरोवर; रामचरितमानस । वि० मनसे उत्पन्न; मनःकृत । - चारी ( रिन्) - वि० मानसरोवर में रहनेवाला | पु० हंस । - जन्मा (न्मन्) - पु० कामदेव । - देव* - पु० मानवेंद्र, राजा । - पुत्रपु० (ब्रह्माके) संकल्पमात्र से उत्पन्न पुत्र । - पूजा-स्त्री० बाह्योपचारके बिना मनसे की जानेवाली पूजा । -शास्त्रपु० मनकी प्रकृति, क्रियाओं, वृत्तियों आदिका विवेचन करनेवाला शास्त्र, मनोविज्ञान । - शास्त्री (त्रिन्) - पु० मानसशास्त्रका पंडित ।
मानसिक - वि० [सं०] मन-संबंधी ।
मानसी - स्त्री० [सं०] एक विद्यादेवी । वि० स्त्री० मनसे उत्पन्न, मनःकृत ( - सृष्टि, - पूजा ) ।
* - अ० दे० 'मानो' ।
अटना, समाना ।
मानिंद - वि० [फा०] सदृश, समान ।
मानिक- पु० एक प्रसिद्ध रत्न, माणिक्य, लाल । - चंदी -स्त्री० साधारण सुपारी । - रेत स्त्री० मानिकका चूरा । मानित - वि० [सं०] सम्मानित |
मानिता - स्त्री०, मानित्व - पु० [सं०] मानी होनेका भाव, अभिमान, गौरव ।
मानिनी - वि० स्त्री० [सं०] मान, अभिमान करनेवाली, मानवती । स्त्री० नायकके किसी अपराधसे रूठी हुई नायिका (सा० ) ।
मानी - पु० [अ०] अर्थ, मतलब, अभिप्राय; हेतु (बहुवचन में) । मानी (निन्) - वि० [सं०] मान करनेवाला; मानयुक्त, प्रतिष्ठित; स्वाभिमानी; रूठा हुआ (नायक) । मानुख* - पु० दे० 'मनुष्य' । मानुष - वि० [सं०] मनुष्य-संबंधी, मानव । पु० मनुष्य । मानुषिक - वि० [सं०] मनुष्य-संबंधी । मानुषी - वि० मनुष्यका । स्त्री० [सं०] स्त्री, नारी;
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विकित्सा के तीन भेदों- आसुरी, मानुषी, देवी-मेंसे एक । मानुष्य, मानुष्यक - पु० [सं०] मनुष्यताः मानवदेह; मनुष्य जाति । वि० मनुष्य संबंधी; मनुष्यका । मानुस* - पु० मनुष्य, आदमी । माने- पु० मानी, मनलब, अर्थ । मानौँ, मानो - अ० जैसे, गोया । मानौं * - अ० दे० 'मानोँ' ।
मामा पु० माँका बाई, मातुल । स्त्री० [फा०] माता; वृद्धा; खाना पकानेवाली, पाचिका; सेविका, नौकरानी ।
मान हुँ*
माना* - स० क्रि० मापना, नाप-तौल करना । अ० क्रि० मामी - स्त्री० मामाकी पत्नी, मातुलानी; अपना दोष न
मान्य - वि० [सं०] मानने योग्य, आदरणीय, पूज्य । मान्यता- स्त्री० (किसी सिद्धान्त आदिका) मान्य होना; किसी संस्थाको स्वीकृति देना, प्रामाणिक मान लेना । माप-स्त्री० मापनेकी क्रिया या भाव; नाप; परिमाण । मापक - पु० [सं०] मापनेवाला; पैमाना; बाट; अनाज तौलनेवाला, वया (कौ० ) ।
मापन - पु० [सं०] नापना; तराजू ।
मापना-स० क्रि० वस्तुका विस्तार, घनत्व या वजन मालूम करना, नापना, पैमाइश करना। * अ० क्रि० मत्त, मतवाला होना, मातना ।
माफ़ - वि० [अ० ' मुआफ'] क्षमा किया हुआ, बख्शा गया । - करो - क्षमा करो; रास्ता लो; जान छोड़ो । माफिक - वि० अनुकूल, अनुसार । माफी - स्त्री० क्षमा, माफ किया जाना; वह जमीन जिसकी मालगुजारी या लगान माफ हो; लाखिराज जमीन । - दार - वि० जिसके पास माफी जमीन हो । माम* - पु० ममता, अहंता ।
मामलत - स्त्री० [अ० ' मुआमिलत' ] मामला; झगड़ा, विवाद । - दार - पु० तहसीलदार (म० प्र० ) । मामला, मामिला - पु० [अ०] काम-काज, धंधा; देन-लेन, खरीद-बेची; काम; घटना, बात; विवाद, मुकदमा । मु० - करना - तै करना, समझौता करना । -पटाना-सौदा करना ।
मानना । मु० - पीना-अपनी गलती पर ध्यान न देना । मामूँ - पु० मामा, भातुल । मासूर - वि० [अ०] भरा हुआ; आबाद; समृद्ध मामूल - वि० [अ०] अमल किया हुआ; जिसपर अ किया जाय । पु० वह बात जो रोज की जाय, नित्य नियम; अभ्यास; रीति, दस्तूर; दस्तूरी । -के दिनरजोधर्मका समय ।
मामूली- वि० [अ०] रोज होनेवाला, साधारण । माय* - अ०मध्य, बीच । स्त्री० विवाह-समयका छोटा पुआ । माय - स्त्री० माता, माँ; दे० 'माया' । अ० दे० 'मह' | मायक* -- पु० माया करनेवाला । मायका - पु० पीहर |
मायन* - पु० विवाह में मातृकापूजनका दिन; उस दिनका
कृत्य ।
मायनी * - स्त्री० मायाविनी ।
माया - स्त्री० [सं०] धोखा, कपट; इंद्रजाल, जादू; परमेश्वरको अव्यक्त बीजरूप शक्ति जो प्रपंचकी कारणभूता
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मायावान
६३५
मायामय-मार्च है; प्रकृति, अविद्या; जीवको बाँधनेवाले चार पाशोंमेंसे । मारतील-पु० एक तरहका बड़ा हथौड़ा। एक (शैवागम); मोहकारिणी शक्ति; लक्ष्मी, दुर्गाः प्रज्ञा मारना-स० क्रि० पीटना, प्रहार करना; चोट पहुँचाना, (वे०); कृपा, बुद्ध की माताका नाम; लीला, करामात किसी चीजसे आघात करना; ठोंकना (मेख); पटकना (यह सब उन्हींकी माया है); धन-दौलत (हिं०); ममता, (सिर); पछाड़ना; जान लेना, हत्या करना; काटना, (हिं०) संसारासक्ति, पुत्र कलत्रादिमें राग। -कार-पु० उड़ाना (गरदन); जीतना (मैदान, कुश्ती); नाश करना, जादूगर, इंद्रजाल करनेवाला ।-जाल-पु० माया, मोह- बरबाद करना; पकड़ना मछलियाँ); शिकार करना; का फंदा; घर-गृहस्थीका जंजाल । -जीवी(विन)- दबाना (गुस्सा, पित्ता); सहना (भूख, प्यास), प्रभावपु० दे० 'मायाकार'। -पटुः-वि० मायावी। -पति- रहित कर देना (जहरको मारना); भस्म, कुश्ता करना पु० ईश्वर । -पाश-पु० मायाकी फाँस, फंदा ।-पुरी- (धातु); लगाना (गोता, चक्कर)। स्त्री० हरिद्वार । -मृग-पु. सीताजीको छलनेके लिए | मारफत-स्त्री० [अ०] जरीया, वसीला; शानः अध्यात्ममारीच राक्षस द्वारा धृत स्वर्णमृगका रूप । -युद्ध-पु० | शान; अध्यात्म-विषयक रचना । मायावलसे किया जानेवाला युद्ध । -वाद-पु० संसार-मारवाड़ी-वि० मारवाड़ देशका । स्त्री० मारवाड़की भाषा। को मिथ्या माननेका सिद्धांत । -वादी(दिन)-पु० मारा-वि० मारा हुआ; ग्रस्त, पीडित । * स्त्री० माला मायावादको माननेवाला ।
-टूट आँसु जनु नखतन्ह मारा-प० । मु०-मारा मायामय-वि० [सं०] मायायुक्त ।
फिरना-दुर्दशाग्रस्त होकर जहाँ-तहाँ भटकना; दर-दरकी मायावती-स्त्री० [सं०] कामदेवकी स्त्री रति ।
ठोकरें खाना। (वत्)-वि० [सं०]दे० 'मायावी' । पु० कंस । मारात्मक-वि० [सं०] घातक, संहारकारी। मायावी(विन्)-वि० [सं०] भाया करने, जाननेवाला, मारामार-स्त्री० इफरात, बहुतायत; हलचल, भगदड़ जादूगर; छलनेवाला, फरेबी।
दौड़-धूप; मारपीट । अ० बहुत जल्दी। मायिक-वि० [सं०] मायावाला; मायाकृत, बनावटी । मारि-स्त्री० [सं०] महामारी, मरी; मारण, वध । पु० जादूगर, माजूफल ।
मारिष-पु० [सं०] नाटकका सूत्रधार; नाटकादिमें किसी मायी(यिन्)-वि० [सं०] मायावाला; मायाविशिष्ट ।। सम्मानित व्यक्तिके संबोधनका शब्द: मरसा नामका साग ।
पु० जादूगर छलिया; परमेश्वर कामदेव अग्नि शिव । | मारी-स्त्री० [सं०] मरी, महामारी चंडी। मायूर-वि० [सं०] मयूर-संबंधी; मयूरपंखका बना। मारीच-पु० [सं०] एक राक्षस जिसने सीता-हरणके समय मायूस-वि० [अ०] निराश, भग्नहृदय ।
सोनेका मृग बनकर रामको ललचाया था; बड़ा हाथी । मायूसी-स्त्री० [अ०] नैराश्य, नाउम्मेदी।
मारुत-पु० [सं०] वायुः वायुके अधिष्ठाता देवता; श्वास । मार-पु० [सं०] मारण, वध; मृत्युः कामदेव विघ्न प्रेम, -तनय,-सत-पु० हनूमान् । राग; ललचाने, बहकानेवाली शक्ति (बौद्ध); धतूरा। मारुतात्मज-पु० [सं०] हनूमान् । -जित्-पु. शिव; बुद्ध ।
मारुति-पु० [सं०] हनूमान् भीम । मार-स्त्री० * दे० 'माला'; मारनेकी क्रिया, चोट, मार-मारू-पु० युद्ध में गाया-वजाया जानेवाला एक राग; डंका; पीट, लड़ाई; निशाना (तोपकी मार); कष्ट, क्लेश (गरीबीकी मरुदेशवासी। वि० काट करनेवाला (मारू नयन); मार)। -काट-स्त्री० हरबे-हथियारकी लड़ाई, युद्ध युद्धोत्साह, रणरंग जगानेवाला (मारू बाजा)। खू रेजी। -धाड़,-पीट-स्त्री० लड़ाई, एक दूसरेको | मारे-अ०."के कारण, वजहसे। मारना।
मार्ग--पु०[सं०] रास्ता, पथ भ्रमणपथ (ग्रहका)।-तोरणमारक-वि० [सं०] मारनेवाला, जान लेनेवाला; नाशक पु० (अभिनंदन आदिके लिए) रास्तेमें बनाया हुआ तोरण दमन या शमन करनेवाला। -स्थान-पु० कुंडली में | या फाटक ।-दर्शक-पु० रास्ता दिखानेवाला, रहनुमा । लग्नसे सातवाँ और दूसरा स्थान ।
-रक्षक-पु० (एस्कट) वह (सशस्त्र) व्यक्ति या व्यक्तिमारका-पु० [अं'मार्क'] चिह्न, निशान; [अ०] युद्धस्थल; समूह जो किसी अन्य व्यक्तिकी रक्षाके लिए मार्गमें उसके युद्ध; लड़ाई-झगड़ा; हंगामा। -(के)का-भारी, महत्त्व- साथ-साथ चले किसी जहाज या जहाजी बेड़ेकी रक्षाके पूर्ण (मारकेकी बात) । मु०-सर करना-युद्ध में जयलाभ | लिए साथ साथ चलनेवाला हवाई जहाज, विध्वंसक पोत करना।
आदि ।-शोधक-पु० रास्ता साफ करनेवाला, अग्रणी। मारकीन-पु० एक मोटा, कोरा कपड़ा।
मार्गण-पु० [सं०] अन्वेषण, खोज; जाँच; याचना बाण । मारकेश-पु० [सं०] मृत्युकी संभावना उपस्थित करनेवाला | मार्गणा-स्त्री० [सं०] अन्वेषण; याचना । ग्रहयोग।
मार्गन*-पु० दे० 'मार्गण', (बाण, तीर)। मारग*-पु० दे० 'मार्ग'।
मार्गशिर, मार्गशीर्ष-पु० [सं०] अगहनका महीना । मारगन-पु० दे० 'मार्गण', (बाण)-'राम मारगन-गन मागित-वि० [सं०] अन्वेषित । चले लहलहात जनु ब्याल'-रामा० ।
मार्गी (गिन)-पु०[सं०] आगे बढ़कर रास्ता बतानेवाला; मारजन-पु० दे० 'मार्जन'।।
पथप्रदर्शक रास्तेपर चलनेवाला (समासमें)। मारण-पु० [सं०] मारना, जान लेना; शत्रुताके लिए मार्च-पु० [अं०] ईसवी सन्का तीसरा महीना सैनिकों का किया जानेवाला तांत्रिक अभिचार: भस्म करना । । नपी तुली चालसे चलना सेनाका प्रस्थान, कूच ।
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मार्जन-मावा
६३६ मार्जन-पु० [सं०] धो-माँजकर साफ करना; शोधन मीठो मुगंध होती है। चाँदनी; युवती । शरीरकी अंतर्वाह्य शुद्धिके लिए मंत्र पढ़ते हुए कुशादिसे मालपूआ-पु० एक पकवान जो आटेको चीनीके रसमें जल छिड़कना; दोषक्षालन ।
घोलकर और मेवे डालकर धीमें पूरीकी तरह छान लेनेसे मार्जनी-स्त्री० [सं०] झाड़ । (गात्रमार्जनी-तौलिया)।। तैयार होता है। मार्जनीय-वि० [सं०] मार्जन करने योग्य ।
मालय-वि० [सं०] मलय-संबंधी; मलयगिरिपर उत्पन्न । मार्जार-पु० [सं०] बिलाव । -कंठ-पु० मोर ।
पु० चंदन । मार्जारी-स्त्री० [सं०] मादा बिल्ली; गंधनाकुली; कस्तूरी। मालव-पु०[सं०] मालवा मालवाका निवासी एक राग । मार्जित-वि० [सं०] शोधित ।
मालवीय-वि० [सं०] मालव-संबंधी; मालवाका । पु० मातेंड-पु० [सं०] सूर्यः शूकर; आक ।
मालवाका रहनेवाला; ब्राह्माणोंकी एक उपजाति । मार्तिक-वि० [सं०] मिट्टीसे बना हुआ, मृत्तिकासे निर्मित। माला-स्त्री० [सं०] पंक्ति, श्रेणी, हार, माल्या लड़ी समूह । पु० सकोरा, पुरवा।
-कर,-कार-पु० माली, माला बनानेवाला । -दीपक माय॑-वि० [सं०] मर्त्य, मरणशील | पु० मरणशीलता।। -पु० दीपक अलंकारका एक भेद जहाँ पूर्व-पूर्व कथित मार्दव-पु० [सं०] मृदुता; चित्तकी कोमलता; नरमी वस्तु उत्तर-उत्तर कथित वस्तुके उत्कर्षका कारण हो (यह परायेका दुःख देखकर दुःखी होना।
दीपक और एकावलीके मेलसे बनता है)। मु०-फेरनामात-स्त्री० [अ०] दे० 'मारफत'।
जप करना, भगवद्भजन करना । मार्मिक-वि० [सं०] मर्मज्ञ, खूबी-बारीकी समझनेवाला; मालामाल-वि० [अ०] धन-धान्यसे भरा हुआ, समृद्ध मर्मस्पी ।
भरपूर । माल-स्त्री० चरखेके चक्रपर लपेटा जानेवाला सूत या मालिक-पु० [अ०] स्वामी, अधिपति ईश्वर; पति । डोरी जो तकुएको धुमाती है; दे०'माला'। पु० दे० मल्ल'। मालिका-स्त्री० [सं०] पंक्ति माला, हार, चंद्रमल्लिका । [अ०]असबाब, सामान; बहुमूल्य वस्तु; धन-दौलत वस्तु, मालिकाना-पु० [अ०] जमींदारीका हक जो काश्तकार सामग्री; वाणिज्य-सामग्री; मालगुजारी, राजस्व स्वादिष्ठ जमींदारको देता है। स्वामित्व । वि० मालिक जैसा । और तर भोज्य पदार्थ; रेल आदिसे भेजा जानेवाला मालिकी-स्त्री० स्वामित्व; मालिकाना हक मिलकियत । सामान; वह चीज जिसपर चिट्टी डाली जाय; उपादान-मालित-वि० [सं०] जिसे माला पहनायी गयी हो; जो भूत वस्तु; वर्गका घात; सड़कके आसपासकी कच्ची भूमि घेर लिया गया हो। ('अणिमा'में); हकीकत, हस्ती (कुछ माल न समझना)। मालिन-सी० मालीकी स्त्री; भालीका काम करनेवाली स्त्री। -अदालत-स्त्री. लगान, मालगुजारी आदिके मुकदमे मालिनी-स्त्री० [सं०] मालिन; चंपा नगरी; दुर्गा मंदासुननेवाली अदालत । -खंभ-पु. वह खंभा जिसपर किनी विभीषणकी माता; विराटके महल में गुप्त वास तरह-तरहकी कसरत की जाती है। -खाना-पु०माल- करते समय द्रौपदीका नाम; एक नदी जिसके तट पर शकुंअसबाब रखनेका स्थान, गोदाम । -गाड़ी-स्त्री० माल तलाका जन्म हुआ; एक छंद । ढोनेके काम आनेवाली ट्रेन। -गुजार-पु. मालगुजारी मालिन्य-पु० [सं०] मलिनता; अपवित्रता; अंधकार । अदा करनेवाला, जमींदार (मध्यप्रदेश)। -गुज़ारी- मालियत-स्त्री० मूल्य धन, दौलत । स्त्री० भूमिकर, जमीनका महसूल जो जमीदार सरकारको | मालिया-पु० [अ०] मालगुजारी; मालियत । अदा करता है। -गोदाम-पु० बड़े व्यापारीका माल- मालिश-स्त्री० [अ०] मलनेका भाव या काम, मर्दन । खाना, व्यापारकी वस्तुएँ रखनेका स्थान; रेल, जहाज माली-वि० [अ०] मालका, आर्थिक । आदिसे आने-जानेवाला माल रखनेका स्थान । -टाल- | माली(लिन)-वि० [सं०] जो माला पहने हो; युक्त, पु० रुपया-पैसा, माल-मत्ता ।-दार-वि० धनी।-मंत्री मंडित (अंशुमाली)। पु० माला बनाने, फूल बेचनेवाला; -पु० (रेवेन्यू मिनिस्टर) दे० 'राजस्वमंत्री' । -मताभ- बागवान । पु० धन-दौलत, असबाब । -मस्ती-स्त्री. धनमद । मालीखूलिया-पु० [यू०] विषाद रोग, चित्तका स्वभा. -महकमा-पु० राजस्वका प्रबंध करनेवाला सरकारी वतः उदास, सशंक रहना। विभाग। मु०-उड़ाना-तर माल खाना; रुपये खर्च | मालूम-वि० [अ०] जाना हुआ, शात; प्रकट; प्रसिद्ध । करना या गायब करना । -काटना-दूसरेका पैसा | मालोपमा-स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद (इसमें हथियाना; नाजायज तौरसे रुपया पैदा करना; चलती | एक उपमेयके अनेक उपमान कहे जाते हैं)।। ट्रेन आदिसे माल चुराना। -मारना-दूसरेका धन | माल्य-पु० [सं०] माला, हार, पुष्प । -जीवक-पु. हथियाना, रिशवत, खयानत आदिसे पैसा पैदा करना। माली। -न समझना-हकीकत न समझना, कुछ न गिनना। माल्यवान(वत्)-वि० [सं०] जो माला धारण किये हो। मालकगनी-स्त्री० एक लता जिसके दानोंका तेल दवाके | पु० पुराणों में वर्णित एक पर्वत; एक राक्षस । काम आता है।
मावत*-पु० दे० 'महावत' । मालकोश-पु० [सं०] संपूर्ण जातिका एक राग । मावस*-स्त्री० दे० 'अमावस' । मालति*-स्त्री० दे० 'मालती'।
मावा-पु० सत्त; माँड़, खोया; चंदनका इत्र, तंबाकूमें मालती-स्त्री० [सं०] एक प्रसिद्ध लता जिसके फूलों में बड़ी डाला जानेवाला सुगंधित खमीर, मसाला । स्त्री० मा।
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६३७
माश-मिटिया माश-पु० [फा०] उरद । मु०-मारना-उरदके दानोंपर माहाँ*-अ० दे० 'महँ'; 'माह'। मंत्र पढ़कर किसीपर फेंकना, जादू करना ।
माहा*-पु० कपड़ा, पट (कबीर)। माशा-पु. आठ रत्तीका वजन, तोलेका बारहवाँ भाग । माहात्म्य-पु० [सं०] महात्मता, महिमा, गौरव; किसी मु०-तोला होना-चित्तका स्थिर न होना, छन-छनमें व्रत, स्नान, पूजनका पुण्यजनक फल । बदलना।
माहि*-अ० मध्य, भीतर । माशाअल्लाह-अ० जो अल्लाह चाहे; क्या कहना है। माहिर-वि० [अ०] कुशल,निपुण; अच्छा जानकार चतुर । माशूक-वि० [अ०] जिसपर कोई आशिक हो, प्रेमपात्र, माहिला*-पु० माँझी। प्यारा; सुंदर, मोहक ।-(के)हकीक़ी-पु०ईश्वर, खुदा । माहिष-वि० [सं०] भैसका (दूध, दही)। माशूका-स्त्री० [अ०] प्रेयसी, प्रेमिका।
माहिष्मती-स्त्री० [सं०] हैहय क्षत्रियोंकी राजधानी जो माशूकाना-वि० [अ०] माशूकों जैसा । -अंदाज़,-अदा नर्मदाके तटपर बसी थी-(आधुनिक मंडला ?) -स्त्री० मन लुभानेवाली अदा, हाव-भाव ।
माही-स्त्री० [फा०] मछली। -मरातिब-पु० राजाओं, माशुनी-स्त्री० [अ०] माशूकपन, मोहक रूप, हाव-भाव ।। बादशाहोंकी सवारीके आगे चलनेवाले मछली, ग्रहों माष-* पु० क्रोध, गर्व-तुम्हरे लाज, न रोष, न माषा' | आदिकी आकृतियोंवाले, सात झंडे ।
-रामा० [सं०] उरद; माशा; मस्सा; महामूर्ख । -पर्णी माहुरी-पु० जहर । -स्त्री० जंगली उरद । -योनि-पु. पापड़ ।
माहेन्द्र-वि० [सं०] इंद्र-संबंधी; इंद्रकी पूजा करनेवाला । माषना*-अ० कि०.दे० 'माखना'।
पु० यात्राके लिए शुभ माना जानेवाला एक योग । मास-पु० [सं०] वर्षका बारहवाँ भाग, महीना: १२ की मिडाई-स्त्री० मींडनेकी क्रिया मींडनेकी मजदूरी। संख्या ।-कालिक-वि० महीने भर रहनेवाला ।-जात | मित*-पु० मित्र, दोस्त । -वि० एक महीनेका (शिशु)। -देय-वि० जिसे महीने मिआद-स्त्री० दे० 'मीआद'। भरमें चुकाना हो। -प्रवेश-पु० महोनेका आरंभ। मिआन*-पु. पालकी। वि० छोटे डीलडौलका, दे० -फल-पु० मास-विशेषका शुभाशुभ फल । -मान- 'मियाना'। पु० वर्ष । -स्तोम-घु० एक यज्ञ।
मिकदार-स्त्री० [अ०] परिमाण; माप-तौल; मात्रा। मासना*-अ.क्रि० मिलना । स० कि० मिलाना। मिचकाना -सक्रि० (पलके) झपकाना। मासांत-पु० [सं०] महीने का अंत; अमावस्या; संक्रांति ।। मिचना-अ० क्रि० (आँखोंका) बंद होना। मासावधिक-वि० [सं०] एक महीने बना रहने या महीने | मिचराना-अ० क्रि० अरुचिसे थोड़ा-थोड़ा खाना । भर में होनेवाला।
मिचलाना-अ० क्रि० मतली आना । मासिक-वि० [सं०] मास-संबंधी प्रतिमास होनेवाला; मिचौनी, मिचौली-स्त्री० मीचने, मूंदनेकी क्रिया (केवल माहवार, महीने में एक बार निकलनेवाला (पत्र, पुस्तक)। 'आँखमिचौली में प्रयुक्त)। पु० प्रतिमास निकलनेवाला पत्र, माहनामा; मासिक मिछा*-वि० दे० 'मिध्या' । श्राद्ध । -धर्म-पु० ऋतु, रजोधर्म ।
मिज़राब-स्त्री० [अ०] तारका बना छल्ला जिसकी नोकसे मासी-स्त्री० मौसी, माकी बहन ।
आघात कर सितार, तानपूरा आदि बजाते हैं। मासूम-वि० [अ०] निष्पाप; निर्दोष; कलुष-रहित । मिज़ाज-पु० [अ०] मिलावट, पंचमहाभूतों(यूनानी और मास्टर-पु. [अं०] मालिक; गृहस्वामी; शिक्षक; व्यापारी अरब दार्शनिकोंने चार ही तत्त्व माने हैं)के मिश्रणसे उत्पन्न जहाजका कप्तान विषयविशेषमें निष्णात, उस्ताद । -की होनेवाली अवस्था; तबीयत; प्रकृति; स्वभाव; आदत; गर्व, -स्त्री० वह कुंजी जिससे अलग-अलग कुंजियोंसे खुलने- घमंड । -पुरसी-स्त्री० मिजाज पूछना, तबीयतका हाल वाले बहुतसे ताले खुल जायँ ।
पृछना (करना)। -मुबारक-दे० 'मिजाजशरीफ' । मास्टरी-स्त्री० मास्टरका भाव या काम, अध्यापक-वृत्ति । -वाला-वि० घमंडी, मिजाजदार । -शरीफ-मिजाज मास्य-वि० [सं०] महीने भरका; महीने भर बना रहनेवाला। कैसा है ? तबीयत ठीक है तो? मु०-न मिलना-धमंडमाह *-अ० मध्य, बीच, में।
के मारे किसीसे बात न करना, इतराना ।-पहचाननामाह-*पु० दे० 'माघ'; [फा०] चाँद; महीना, मास । किसीके रुचि-स्वभावको समझना। -पाना-मिजाज, -ताब-पु० चाँदनी; चाँद । -ताबी-स्त्री० एक आति- स्वभाव पहचान लेना ।-पूछना-तबीयतका हाल पूछना, शबाजी छत या चबूतरा जिसपर बैठकर चाँदनीका आनंद कुशल-प्रश्न करना । -में आना-दिलमें आना। ले सकें; चकोतरा। -नामा-पु० मासिक पत्र ।-बमाह । -सातवे आसमानपर होना-घमंड बहुत बढ़ जाना, -अ० हर महीने, माहवार । -चार-अ० हर महीने, गर्वसे पाँव सीधे न पड़ना। -होना-धमंड होना। प्रति मास । वि. मासिक । -वारा-पु० मासिक वेतन, मिज़ाजी-वि० [अ०] धमंडी, मिजाजवाला । तनखाह । -वारी-अ० दे० 'माहवार' । स्त्री० मासिक | मिटना-अ० क्रि० चिह्न, दाग आदिका दूर होना, लुप्त वेतन, भृति; मासिकधर्म, रजोदर्शन ।
होना; नष्ट होना; बरबाद होना। माहत*-स्त्री० महत्ता, महिमा ।
मिटाना-स० क्रि० दाग, निशान आदि दूर करना; नष्ट, माहना*-अ० क्रि० उमड़ना, उमंगमें आना। | लुप्त करना; बरबाद करना रद्द करना। माहली-पु० महलका, अंतःपुरका सेवक सेवक (कविता०)। मिटिया-स्त्री० मिट्टीका छोटा पात्र । वि० मिट्टीके रंगका;
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मिटियाना- मिथ्यारोपण
६३८
मिट्टीका । - महल - पु० मड़ई, झोपड़ी (व्यं० ) । - साँप - मिताहार - वि० [सं०] थोड़ा खानेवाला; नपी-तुली खुराक पु० मिट्टी के रंगका साँप । खानेवाला । पु० परिमित आहार । मिटियाना - स० क्रि० मिट्टी लगाकर या मिट्टी रगड़कर मिति - स्त्री० [सं०] मान; सीमा; विज्ञान; समयकी सीमा । साफ करना । मिती - स्त्री० तिथि, तारीख; हुंडी आदि चुकानेकी तिथि; दिन । -काटा-पु० गणितकी रीति जिससे मुंडीकी मुद्दत और ब्याज जोड़ते हैं । मु० - काटना- सूद काटना । - पूजना- हुंडीकी अवधि पूरी होना । मितोपभोग योजना - स्त्री० [सं०] (आस्टेरिटी स्कीम) दे० 'अल्पभोग योजना' | मित्त* - पु० दे० 'मित्र' ।
मिट्टी - स्त्री० धरती की उपरी सतह जो टूटी हुई चट्टानों के चूरकी बनी होती है और जिसपर पेड़-पौधे उगते हैं; जमीन; धूल, खाक; भरम, कुश्ता; शरीरको बनावट; शरीर; प्रकृति; खमीर; लाश । -का तेल - एक प्रसिद्ध खनिज द्रव जो लैपों आदि में तेलकी तरह जलाया जाता है | मु० - उठना- लाश, जनाजा उठना । -करनाखराब, बरबाद करना । - का पुतला - मनुष्य (ला० ) । - की मूरत - मानवशरीर । - के माधव - मूर्ख, भोंदू । - के मोल - बहुत सस्ते दामों (विकना) । - खराब (वार) होना - अंत्येष्टि क्रिया-कर्म ठिकानेसे न होना । - ठिकाने लगना- अंत्येष्टि समुचित प्रकारसे होना । - ठिकाने लगाना - समुचित प्रकार से (किसीकी) अंत्येष्टि करना । - डालना - ऐबपर परदा डालना । - देना - लाशको दफन करना; लाशको कब में सुलाने के बाद उपस्थित जनोंका उसपर थोड़ी-थोड़ीसी मिट्टी डालना (मुसल०) ।-पलीद होना- दुर्दशा होना; जलील होना; क्रिया-कर्म ठिकानेसे न होना । - मेँ मिलना - नष्ट, बरबाद हो जाना । मिट्टी - स्त्री० चुंबन | मिट्टू - वि० मधुरभाषी; चुप्पा | पु० तोता । मिठ-वि० मीठाका समासगत लघु रूप । - बोला- वि० मधुरभाषी । - लोना - वि० जिसमें नमक कम पड़ा हो । मिठाई - स्त्री० मिठास; मिष्टान्न, शीरीनी (लड्डू, पेड़ा, इमरती आदि) । मु० - चढ़ाना - मन्नत पूरी होनेपर किसी देवी-देवताको मिठाई अर्पित करना । - बाँटनाकिसी सफलता या अभीष्ट सिद्धिकी खुशी में मिठाई बाँटना । मिठाना * - अ० क्रि० मीठा होना । मिठास - स्त्री०, पु० मीठापन, माधुर्य । मिठोरी - स्त्री० उरद या चनेकी बरी ।
मिडिल - वि० [अ०] बीचका, मध्यवर्ती । -ची- वि० मिडिल पास (तिरस्कार सूचक) । -कास-पु० आठवीं कक्षा; मध्यम श्रेणी ।
मिदुलिया+ - स्त्री० मढ़िया, कुटी ( ग्राम० ) |
मितंग* - पु० हाथी ।
।
मित - * स्त्री० मिति, सीमा- 'ममकृत दोस लिखे बसुधा भर तक नहीं मित नाथ' - सू० वि० [सं०] नपा-तुला, परिमित; थोड़ा; क्षिप्त । - भाषी ( षिन् ) - वि० कम बोलनेवाला; नपे-तुले शब्दोंमें अपनी बात कहनेवाला - भुक्त, - भोजी ( जिन्) - वि० थोड़ा खानेवाला, मिता हार -मति - वि० अल्पबुद्धि । -व्ययिता - स्त्री० किफायत- शिआरी । - व्ययी ( यिन् ) - वि० कम खर्च करनेवाला, किफायत-शिआर ।
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मित्र - पु० [सं०] दोस्त, बंधु, सखा, साथी; युद्धादिमें साथ देनेवाला राष्ट्र; सूर्य; बारह आदित्यों में से पहला । -कर्म(नू ) - पु० मित्रोचित कार्य । -घ्न-वि० विश्वासघाती, दोस्तको दगा देनेवाला । -द्रोह - पु० मित्रका अहित, अनिष्ट करना । - द्रोही ( हिन्) - वि० मित्रका द्रोह करनेवाला । - पंचक- पु० घी, शहद, घुँघची, सुहागा और गुग्गुल - इन पाँचोंका योग। -भाव-पु० मित्रता, दोस्ती | -भेद-पु० दोस्तीका टूट जाना । राष्ट्र - पु०, - शक्ति - स्त्री० (एलाइड पॉवर) मित्रतापूर्ण संबंध रखनेवाला देश या राज्य । -लाभ - पु० मित्रकी प्राप्ति, किसी से दोस्ती होना ।
मित्रता - स्त्री०, मित्रत्व - पु० [सं०] दोस्ती । मित्राई* - स्त्री० मित्रता । मित्रावरुण - पु० [सं०] मित्र और वरुण । मिथः ( स ) - अ० [सं०] परस्पर, अन्योन्य | मिथिला- स्त्री० [सं०] विदेहकी राजधानी। पति -पु०
जनक |
मिथुन - पु० [सं०] नर-मादा, स्त्री-पुरुषका जोड़ा; संयोग; मैथुन; बारह राशियों में से तीसरी ।
मिथुनीकरण - पु० [सं०] नर-मादाको इकट्ठा करना, जोड़ा मिलाना ।
मिथुनीभाव - पु० [सं०] मैथुन, जोड़ा खाना । मिथ्या - वि० [सं०] झूठ, असत्यः व्यर्थ । -चर्या स्त्री० कपटाचरण, मक्कारी । -जल्पित-पु० असत्य भाषण, झूठी चर्चा । -ज्ञान- पु० भ्रम । - नाम- पु० (मिसनोमर) ऐसा नाम या ऐसा शब्द जो किसी व्यक्ति, कार्य, वस्तु आदि के लिए उपयुक्त न हो। - पुरुष - पु० दे० 'छायापुरुष' । - प्रतिज्ञ - वि० प्रतिशाका पालन न करनेवाला । -वचन - वाद-पु० झूठी बात, असत्य कथन । - वादी ( दिन) - वि० झूठा, मिथ्याभाषी । मिथ्याचार - पु० [सं०] कपटाचरण, मक्कारी । मिथ्यात्व - पु० [सं०] मिथ्यापन, झुठाई । मिध्याध्यवसिति - स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ कोई झूठी कही हुई बात साबित करनेके लिए दूसरी झूठी बात कही जाय ।
मिथ्यापवाद- पु० [सं०] झूठी तुहमत, आरोप ।
मिताई+ - स्त्री० मित्रता, दोस्ती । मिताक्षरा - स्त्री० [सं०] याज्ञवल्क्य स्मृतिकी विज्ञानेश्वर - मिथ्याभियोग- पु० [सं०] झूठा अभियोग, झूठा इलजाम कृत टीका ।
लगाना ।
मितार्थ - वि० [सं०] परिमित अर्थवाला । पु० चतुराई के मिथ्यारोपण - पु० [सं०] (विलिफिकेशन) आधारहीन साथ थोड़ी बातें कहकर ही काम साधनेवाला दूत । या झूठे आरोप लगाकर बदनाम करना ।
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६३९
मिथ्याहार - पु० [सं०] अयुक्त, प्रकृतिविरुद्ध आहार | मिथ्योपचार - पु० [सं०] गलत इलाज । मिनकना - अ० क्रि० डरते-डरते या धीरेसे कुछ बोलना । मिनकी+ - स्त्री० विल्ली - मूसा इत उत फिरै, ताकि रही मिनकी' - सुंद० ।
मिनट - पु० [अ०] घंटेका साठवाँ भाग, ६० सेकंड । मिनमिनाना - अ० क्रि० 'मिन मिन' करना । मिनहा - पु० [अ०] घटाव, मुजरा, कटौती (करना, होना) । वि० जो काट लिया गया हो, जो घटा लिया गया हो । मिनहाई - स्त्री० [अ०] मिनहा होना, कटौती । मिन्नत - स्त्री० [अ०] बिनती, आजिजी; चापलूसी; उपकार; कृतज्ञता । -गुजार - वि० कृतज्ञ । मिमियाना - अ० क्रि० 'में में' करना, बकरी या भेड़का बोलना ।
मियाँ - पु० [फा०] सरदार; मालिक; पति; शिक्षक, उस्ताद; अमीरजादा, मालिकका बेटा; मुसलमान; सम्मानित जनका संबोधन । - बीबी, - बीवी - पु० पति-पली । - - मिटठूवि० मधुरभाषी, भोला, बुद्ध । पु० बच्चा; तोता । मु० की जूती मियाँका सर - जिसकी चीज हो, उसीके विरुद्ध उसका प्रयोग करना । (अपने मुँह) - मिटठू बनना - (अपने मुँह) अपनी तारीफ करना। -मिटठू बनानातोते की तरह रटाना, विना समझाये पढ़ाना । मियान - पु० [फा०] मध्य भाग । स्त्री० तलवार आदिका खोल या गिलाफ |
मियाना - वि० [फा०] बीचका, मझोला । पु० एक तरह की पालकी; गाड़ीका बम ।
मियानी - स्त्री० [फा०] पाजामे में दोनों पायँचोंके वीचका कपड़ा, रूमाल |
मिरग* - पु० दे० ' मृग' । - चिड़ा - पु० एक छोटी चिड़िया । -छाला - पु० दे० 'मृगछाला' ।
मिरगी - स्त्री० एक मानस रोग, अपस्मार ।
मिरचा -५० लाल मिर्च |
मिरजई - स्त्री० [फा०] कमरतकका बंददार अँगरखा । मिरज़ा - पु० [फा०] अमीरजादा, शहजादा; मुगलोंकी उपाधि ।
मिरजान - पु० [फा०] मूँगा ।
मिरदंग- ५० दे० 'मृदंग' |
मिरवना * - स० क्रि० मिलाना ।
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मिलकी * - पु० दे० 'मिल्की' । मिलता-जुलता - वि० लगभग समान, एक-सा । मिलन - पु० [सं०] मिलना, भेंट इकट्टा होना; मिश्रण । मिलनसार - वि० जो सबसे प्रेमके साथ मिलता, मेल-जोल रखता हो, सुशील ।
मिथ्याहार -मिल्कीयत
मिलनसारी - स्त्री० मिलनसार स्वभाव, सुशीलता । मिलना - अ० क्रि० संयोग होना, जुड़ना, सटना; एक होना; मिश्रित होना; भेंट होना; भेंटना, गले मिलना; भिड़ना, छूना समान होना, एकसा होना; पाना ( पता, नफा); लाभ होना; सुरोंका मेल होना; पक्षमें हो जाना, अनुकूल हो जाना; * दूध दुहना । मिल-जुलकर - अ० इकट्ठे होकर, मेलके साथ - (ना) जुलना - पु० भेंटमुलाकात, राहोरस्म | मु० मिल-बाँटकर खाना - सबको बटकर, नफे आदिमें दूसरोंको शामिल करके खाना या उपभोग करना ।
मिलवाना - स० क्रि० दूसरेको मिलने या मिलाने के लिए प्रेरित करना; मिलन कराना । मिलाई-स्त्री० मिलानेकी क्रिया; मिलानेकी उजरत; भेंट, मिलन (कैदी के साथ); मिलनी । मिला-जुला - वि० मिश्रित, गड्डमड्ड । मिलान- पु० मिलानेकी क्रिया; मिलाकर जाँचना; तुलना; * पड़ाव - 'ओहि मिलान जौ पहुँचै कोई' - प० ।-केंद्रपु० (एक्सचेंज) नगर या जिलेका मुख्य दूरवाणी-कार्यालय जिससे वहाँ के सभी दूरवाणी-यंत्र संबद्ध होते हैं और जहाँ स्थानीय लोगोंसे या अन्य नगरवालोंसे दूरभाष करनेके लिए परस्पर संबंध मिला देनेकी व्यवस्था की जाती है । मिलाना - स०क्रि० एक चीजका दूसरी चीज में योग करना, मिलावट करना; इकट्टा करना, संयोग करना; सटाना, जोड़ना; भेंट कराना, एक व्यक्तिको दूसरेके पास पहुँचाना; स्त्री-पुरुषका संयोग कराना; मेल कराना; मिलाकर देखना, तुलना करना; मिलान करना; किसीको अपनी ओर करनाः दूसरे पक्ष से फोड़ना; (बाजेके) स्वरोंका मेल करना । मिलाप - पु० मेल; भेंट, प्रेम, दोस्ती । मिलाव - पु० दे० 'मिलावट' ।
मिरिच - स्त्री० दे० 'मिर्च' ।
मिरियासि* - स्त्री० बपौती, पैतृक संपत्ति- 'यह तो संबुक मिलावट - स्त्री० मिलाया जाना, मिश्रण; बढ़िया चीजमें
मलिन सर करटनकी मिरियासि' - दीनद० ।
घटिया चीजका मेल ।
मिर्गी - स्त्री० दे० 'मिरगी' |
मिर्च - स्त्री० काले रंगका गोल, कटुतीक्ष्ण स्वादवाला दाना जो मसालोंके रूपमें व्यवहृत होता है; लाल मिर्च, मिरचा । मु०- ( ) लगना - बहुत बुरा लगना, असह्य होना । मिल स्त्री० [अ०] आटा आदि पीसनेकी कल या कारखाना; कपड़ा बुनने, लकड़ी चीरने आदिकी कल । मिलक* - स्त्री० दे० 'मिल्क' | मिलकना * - अ० क्रि० जलना - 'तब फिर जरनि भई नख मिल्कीयत-स्त्री० [अ०] वह चीज जिसपर मालिकाना हक सिखतें, दिया बाति जनु मिलकी' - सू० ।
मिलित- वि० [सं०] युक्त, लगा हुआ, मिला हुआ । मिलौनी - स्त्री० मिलावट, मेल; मिलनीकी रस्म । मिल्क- स्त्री० [अ०] अधिकारमुक्त वस्तु, माल, जायदाद । मिल्कियत - स्त्री० दे० 'मिल्कीयत' । मिल्की - पु० [अ०] मिल्कवाला, जमींदार, जागीरदार ।
हो, जायदाद, जमींदारी ।
मिलनी - स्त्री० व्याहकी एक रस्म, कन्यापक्षवालोंका वरपक्षवालोंसे गले मिलना और उन्हें रुपये देना । मिलवना* - स० क्रि० दे० 'मिलाना' । मिलवाई - स्त्री० मिलवानेकी क्रिया या भाव; मिलवानेके बदले दिया जानेवाला धन ।
मिलिंद - पु० [सं०] भौंरा । मिलिक-स्त्री० दे० 'मिल्क' |
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मिल्लत-मीठा
६४० मिल्लत-स्त्री० मेल-जोल, मिलनसारी; [अ० मजहब, मिस्कोट-पु० खाना, भोजन; एक मेज या दस्तरखानपर दीन, संप्रदाय; जाति, फिर्का।।
बैठकर खाना खानेवाले, गुप्त मंत्रणा (कर्मभू०)। मिशन-पु० [अं०] विदेश भेजा हुआ प्रतिनिधिमंडल; | मिस्टर-पु० [अं०] नाम या पद-बोधक संशाके साथ लगाया भिन्नधर्मियोंको ईसाई बनाने के लिए भेजे हुए धर्मोपदेशकों- जानेवाला सम्मानसूचक शब्द, महाशय, जनाब ।
का मंडल । -री-पु० (ईसाई) धर्मोपदेशक, पादरी। मिस्तरी-पु० कुशल कारीगर; कल-पुरजेके काम जाननेमिश्र-पु० दे०'मिस्र'। वि० [सं०] जिसमें कोई चीज मिली वाला । -खाना-पु. लोहार, बढई आदिके मिलकर
हो या मिलायी गयी हो, कई चीजोंके संयोगसे बना हुआ काम करनेकी जगह ।। संयुक्त । पु० श्रेष्ठ, सम्मानित जन; ब्राह्मणोंकी एक उप- | मिस्मिरेज़म-पु० दूसरेकी इच्छाशक्तिपर असर डालकर जातिकी उपाधि; हाथियोंकी एक जाति । -गुणा-पु० । उसे अचेत कर लेनेकी विद्या, सम्मोहनविद्या । [हिं०] आने-पाई, मन-सेर आदिका गुणा । -धातु-स्त्री० मिस्र--पु० [अ०] उत्तर-पूर्वी अफ्रीकाका एक प्राचीन देश । (एलॉय) दो या दोसे अधिक धातुओंके परस्पर मिला दिये मिस्री-स्त्री० एक तरहकी जमाई हुई चीनी, मिसरी । जानेसे बनी धातु; बढ़िया धातुके साथ घटियाके मिला (दे० मिसरी) । वि० [अ०] मिस्रका । पु० मिस्रनिवासी। दिये जानेसे बनी धातु । -धान्य-पु० वह धान्य जिसमें । स्त्री०मिस्रकी भाषा । कई अनाज मिले हों, बेझड़। -भाग-पु० आने-पाई, मिस्ल वि० [अ०] सहश, तुल्य, मानिंद । मन-सेर आदि का भाग। -वर्ण-वि० दोरंगा; बहुरंगा। मिस्सा-पु० मूंग, मोठ आदिका भूसा कई तरह की दालोंको -शब्द-पु० खच्चर ।
एक साथ पीसकर बनाया हुआ आटा । मिश्रण-पु० [सं०] मिलावट, दो या अधिक चीजोंको एकमें मिस्सी-स्त्री० एक मंजन जिसे स्त्रियाँ सिगारके लिए मिलाना।
लगाती है और जिसके लगानेसे दाँतोपर स्थाद रंग चढ़ मिश्रित-वि० [सं०] मिला या मिलाया हुआ, मिलावट- जाता है । -काजल-पु० बनाव-सिंगार । -की घड़ीवाला।
मिस्सीको तह जो स्त्रियाँ ओठोंपर जमाती है । -दानमिश्री-स्त्री० दे० 'मिस्री'।
पु०, -दानी-स्त्री०मिरप्सी रखनेका पात्र । -सरमामिष-पु० [सं०] छल; बहाना स्पर्धा, होड़ ।
पु० बनाव-सिंगार। मिष्ट-वि० [सं०] मीठा, स्वादिष्ठ; सिक्त, तर । पु०मिठास, मिहचना*-२० क्रि० मीचना, बंद करना । मिठाई । -भाषी(षिन् )-पु० मधुरभाषी।
मिहानी-स्त्री० मथानी । मिष्टान-पु० [सं०] मिठाई, मीठा पकवान ।
मिहिचना, मिहीचना*-स० क्रि० दे० 'मीचना'। मिस-पु० बहाना; ढोंग। -हा*-वि०, पु० बहानेबाज, | मिहिर-पु० [सं०] सूर्य, चंद्रमा; बादल । छली ।
मिहीँ*-वि० दे० 'महीन'। मिस-पु० [फा०] ताँबा । -गर-पु० कसेरा । | माँगनी-स्त्री० दे० 'मैंगनी' । मिसकीन-वि० [अ०] दे० 'मिस्कीन' ।
माँगी-स्त्री० गिरी, गग्ज । मिसकीनता-स्त्री० मिस्कीनी, दीनता ।
मींजना-सक्रि० मसलना, दबाना, हाथसे मलना या मिसना* --अ० क्रि० मिलाया जाना; मला जाना। रगड़ना, मर्दन करना। मिसरा-पु० [अ०] दरवाजेका एक पट, किवाड़; शेर या| मीडक* --पु० दे० 'म ढक'।
बैतका आधा भाग । -तर-पु० बढ़िया, चुस्त मिसरा । मीडना*-स० कि० मीजना, मसलना, हाथसे मलना। मिसरी-वि० मिस्र देशका । पु० मिस्र देशमें बसनेवाला । मीआद-स्त्री० [अ०] कार्यविशेषके लिए नियत काल, स्त्री० मिस्र देशकी भाषा; साफ करके कुजे या थालमें | अवधि, मुद्दत; दंडकी अवधि । म०जमायी हुई चीनी। -का कूजा-पूजे में भरकर जमायी बीत जाना । -बोलना-कैद की सजा सुनाना (को०)। हुई मिसरी। -की डली-बहुत मीठी चीज ।
मीआदी-वि० [अ०] मीयादवाला, जिसका काल नियत मिसरोटी-स्त्री० कई तरहकी दालोंके पीसे हुए आटेकी | हो (बुखार, हुंडी); सजायाफ्ता, जो दंड भुगत चुका बनी मोटी रोटी, बाटी।
हो। -बुखार-पु० सान्निपातिक ज्वर जो ७२, १४ वें, मिसल-स्त्री० दे० 'मिसिल'।
२१ वें या २८ वें दिन जाता है (टायफायड)। मिसहा*-वि०, पु० दे० 'मिस'के साथ ।
| मीच(चु)*-स्त्री० मृत्यु, मौत। मिसाल-स्त्री० [अ०] नजीर, दृष्टांत, नमूना; चित्र, प्रति- मीचना-स० क्रि० (आँख) मूंदना, बंद करना। कृति; फरमान; स्वप्नजगत् (सूफी०)।
मीजना*-स० क्रि० मलना, भसलना । मिसिल-स्त्री० [अ०] मुकदमेकी काररवाईके कागजातमीज़ान-पु० [अ०] जोड़, जमा; तराजू। -(ने)कुल
जो इकट्ठा करके नत्थी कर दिये गये हों; छपे हुए फार्म जो पु० कुल रकमों या संख्याओंका जोड़ (ग्रैड टोटल)। सिलसिलेसे लगाकर रखे गये हों; फौजका एक टुकड़ा। मु०-मिलना-जमा-खर्चका मीजान बराबर होना। मिसिली-वि० [अ०] जिसके बारेमें कोई मिसिल बन चुकी मीटर-पु० [अं०] खर्च हुए पानी, बिजली आदिके नापनेहो, सजायाफ्ता।
का यंत्र । मिस्कीन-वि० [अ०] कंगाल, अकिंचन भूखा, दीन । मीठा-वि० जिसमें मिठास हो, मधुर रसवाला; स्वादिष्ठ, मिस्कीनी-स्त्री० [अ०] मिस्कीनपन, कंगाली; दीनता। मजेदार प्रिया हलका तीव्रतारहित; मंदा, धीमा मधुर
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मीठी-मुंडिया भाषी; हिजड़ा, जनखा । पु० मिठास; गुड़, मीठी वस्तु, फौजके पहुँचनेके पहले पड़ावपर पहुँचकर वहाँका प्रबंध मिठाई । -कददू-पु. कुम्हड़ा। -चावल-पु० चीनी करना होता था। -मजलिस-पु० सभापति । या गुड़ डालकर पकाया हुआ चावल, मीठा पुलाव । मीरजा*-पु० दे० 'मिरजा' । दे० 'मीर-जा'। -ठग-वि० मीठी-मीठी बातें करके ठगनेवाला, बनावटी मीरास-स्त्री० [अ०] मृत व्यक्तिकी छोड़ी हुई संपत्ति जो दोस्त । -तंबाकू-पु० वह तंबाकू जिसमें गुड़ कुछ अधिक उसके उत्तराधिकारियोंको मिले, तरका, बपौती। डाला गया हो। -तेल-पु० तिलका तेल । -नीम- मीरासी-पु० [अ०] एक मुसलमान जाति जो गानेपु० एक छोटा पेड़ जिसके पत्ते और फल नीमके जैसे होते | बजानेका पेशा करती है। हैं। -पानी-पु० लेमोनेड । -बरस-पु० स्त्रीका अठा-मील-पु० [अं॰] दूरीकी एक नाप, १७६० गज । रहवाँ बरस (स्त्रियाँ इसे मनहूस समझती हैं)। -भात- मीलित-वि० [सं०] मुंदा हुआ सिकोड़ा हुआ, संकुचित । पु० दे० 'मीठा चावल'। -मीठा-वि० हलका-हलका, पु० एक अर्थालंकार जहाँ रूपादिका सादृश्य होनेके कारण थोड़ा-थोड़ा (दर्द)।
उपमान-उपमेयमें भेद न जान पड़े, दोनों एकमें मिले हुएमीठी-वि० स्त्री० मिठासयुक्त, प्रिय, मधुर । -गाली- से जान पड़ें। स्त्री० वह गाली जो बुरी न लगे, ससुरालमें मिलनेवाली मुंगरा-पु० गोल, मुठियादार लकड़ी जो ठोंकने-पीटनेके गाली। -री-वि० दोस्त बनकर गला काटनेवाला, काम आती है। विश्वासघाती। -तूंबी-स्त्री० कद्दू। -नजर-स्त्री० | मुंगरी-स्त्री० छोटा मुँगरा । प्रेमभरी दृष्टि । -नींद-स्त्री० सुखकी नींद, निश्चितताकी मुंगौछी*-स्त्री० [गका बना एक पकवान । नांद। -मार-स्त्री. वह मार जिसकी चोट ऊपर न | मँगौरी-स्त्री० मँगकी दालकी बरी। दिखाई दे प्रेमकी मार । -लकड़ी-स्त्री०गुलेटी। मु०- मुंचन*-पु० दे० 'मोचन'। छुरी चलाना-दोस्तीके परदे में गला काटना । मुंचना*-स० क्रि० मुक्त करना, छोड़ना । मीड़-स्त्री० एक स्वरसे दूसरे स्वर पर जानेका सुंदर ढंग मुंज-पु० [सं०] मूंजराजा भोजका चचा जो अपभ्रंशका (संगीत)।
कवि था। -मणि-पु० पुखराज । -मेखला-स्त्री० मीता-पु० दे० 'मित्र'।
पूँजकी बनी मेखला। मीन-पु० [सं०] मछली; बारह राशियों से अंतिम । मुंड-पु० [सं०] सिर, मूंड, मस्तक कटा हुआ सिर; मुंडा -केतन-पु. कामदेव ।-गंधा-स्त्री० मत्स्यगंधा, सत्य- हुआ सिर । -कर-पु० (पॉल टैक्स) प्रत्येक व्यक्तिपर वती। -ध्वज-पु. कामदेव । मु०-मेख निकालना- लगनेवाला कर, फी आदमी पीछे वसूल किया जानेवाला दोष निकालना, छिद्रान्वेषण करना ।
कर । -माला-स्त्री० कटे हुए सिरों या खोपड़ियोंकी मीना-पु० [फा०] नीला रंग, रंगविरंगा शीशा; शीशे माला। -माली(लिन)-पु० मुंडोंकी माला धारण
और सोने-चांदीपर बनाया जानेवाला रंगीन काम; शराबकी बोतल, सुराही; (ला०) शराब । -कार-पु० मानेका मुंडकरी-स्त्री० घुटनों के बीच में सिर रखकर बैठनेकी मुद्रा। काम करनेवाला। कारी-स्त्री० मीनेका काम।-बाज़ार- मुंड़चिरा-पु० एक तरहके मुसलमान फकीर जो अपने पु० जौहरी बाजार सुंदर चीजोंका बाजार; वह बाजार सिर, चेहरे आदिपर छुरेसे घाव करके भीख माँगते हैं। जिसमें स्त्रियाँ ही सब चीजें बेचती हों।
मँडचिरापन-पु० लेनदेन आदिमें झगड़ा और हठ । मीनार-स्त्री० [अ० 'मनार'] स्तंभरूपमें बनी हुई, अधिक मुंडक-पु० [सं०] [ड़नेवाला, नाई; सिर । ऊँची इमारत; घड़ी लगाने, मस्जिद में अजान देने, मुंडन-पु० [सं०] मूंड़ना; द्विजादिके लिए विहित एक जहाजोंको रास्ता दिखानेके लिए बने हुए स्तंभ ।
संस्कार, बालकके सिरके बाल पहली बार मूडनेकी रस्म । मीनालय-पु० [सं०] समुद्र ।
मुड़ना-अ० कि० मूंड़ा जाना, ठगा जाना । मीमांसक-पु० [सं०] मीमांसा करनेवाला।
मैंडला-पु०चरखेके मध्यका भाग, मंझा एक जंगली जाति । मीमांसा-स्त्री० [सं०] विचारपूर्वक तत्त्वनिर्णय, विवेचना मुंडा-वि० मुंडित; गंजा; बिना सींगका (बैल, बकरा); करना; ६ दर्शनों में से एक जिसमें यज्ञादि वैदिक कर्मकांडका ठ। पु० बिना नोकका जूता; एक आदिवासी जाति जी निरूपण और मंत्रोंकी अर्थविषयक शंकाओंका समाधान छोटा नागपुर, राँची, मिरजापुर आदिके जंगली भागोंमें किया गया है, जैमिनीय दर्शन (इसे विशेषतः पूर्वमीमांसा बसती है। स्त्री० मुँडला लोगोंकी भाषा जिसके अंदर
और वेदांतदर्शनको उत्तरमीमांसा कहते हैं )। -कार- खरवार, संथाली, मुँडारी, कोरवा आदि अनेक बोलियाँ पु० मीमांसासूत्रके रचयिता जैमिनि ऋपि ।
आती हैं; [सं०] मुंडिता स्त्री; संन्यासिनी, बैरागिन; मीयाद-स्त्री० [अ०] दे. 'मीआद' ।
गोरखमुंडी। मीर-पु० [सं०] समुद्री जल सीमा |-जा-स्त्री० लक्ष्मी। -स्त्री० ग्रँडनेका काम; मूडनेकी मजदूरी। मीर-पु० [फा०] ('अमीर'का लघु रूप) सरदार; प्रधान | मुंडाना-स० क्रि० दे० 'मुड़ाना' । अधिकारी; नेता; मुखिया; ताश या गंजीफेके बादशाहका मुँडासा-पु० (मुँड + साफा) सिरपर बाँधनेका साफा । पत्ता प्रतियोगितामें जीतने, औवल होनेवाला ।-मुंशी- मुंडित-वि० [सं०] मूंड़ा हुआ। पु० लोहा । पु० प्रधान लेखक, पेशकार । -(२)मंज़िल-पु० मुसल- मुंडिया -स्त्री० दे० 'मुड़िया' । पु० सिर मुंडाकर बना मानी राज्यकालका एक कर्मचारी जिसका काम शाही हुआ साधु, संन्यासी ।
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मुंडी-मुँह
६४२ मुंडी-स्त्री. वह स्त्री जिसका सिर मुंड़ा हुआ हो; बेवा बात करना)। -माँगा-वि० अपना माँगा हुआ (दाम); औरत; गोरखमुंडी।
मनका माँगा हुआ, मनोभिलषित (मुँहमाँगी मुराद)। मुंडी(डिन्)-वि० [सं०] जिसके सिरके बाल मूंड़ दिये -लगा-वि० ढीठ, शोख, सिरचढ़ा। मु०-आँसुओं
गये हों; बिना सींगका । पु० नाई; शिव; संन्यासी। से धोना-बहुत रोना । -आना-मुँहमें छाले पड़ना । मुड़ेर-स्त्री० खेतकी मेंड़, दे० 'मुँडेरा'।
-इतना-सा निकल आना-चेहरा धंस जाना, बहुत मुँडेरा-पु० छतके चारों ओरकी मेंड़ जैसी दीवार पुश्ता। दुबला हो जाना; लज्जित हो जाना । -उजला होनामुंडेरी-स्त्री० छोटा मुंडेरा।
इज्जत रह जाना, बेआबरूईसे बच जाना। -उठाकर मुंडो-स्त्री० सिरमुँड़ी स्त्री; राँड़ ।
कहना-बेसोचे-समझे बोलना, जो जीमें आये बक देना। मुंतज़िम-पु० [अ०] इंतजाम करनेवाला, प्रबंधक । -उठाये चले जाना-बेधड़क, बिना इधर-उधर देखे मुंतज़िर-पु० [अ०] इंतजार करनेवाला ।
चले जाना। -उतरना-मुंहपर तेज, कांति न रहना मुंदना--अ० क्रि० आँखका बंद होना, पलक लगना चेहरेसे सुस्ती, उदासी प्रकट होना ।-औंधा कर पड़ना ढकना, बंद होना; छिपना, तिरोहित होना।
या लेटना-दुःख, रोष या मानसे अलग जाकर पड़ना । मुदरी-स्त्री० छल्ला, अँगूठी ।
-करना-फोड़ेका फूटना । (किसी ओरको)-करनामुंशियाना-वि० मुंशियों जैसा; मुंशीके उपयुक्त ।
किसी ओर जानेका विचार करना ।-का कच्चा-जिसके मुंशी-पु० [अ०] मजमून सोचने, लिखनेवाला; लेखक; पेटमें बात न पचे जिसकी बातका भरोसान हो; लगामका सुंदर भाषा, सुंदर अक्षर लिखनेवाला; किरानी; मुहरिर; झटका न सहनेवाला (घोड़ा)। -का कड़ा या सख़्तउर्दू-फारसी पढ़ानेवाला। -ख़ाना-पु० उर्दू-फारसीका मुँह जोर लगामका अंकुश न माननेवाला (घोड़ा)। -का दफ्तर । -गिरी-स्त्री० लेखनवृत्ति, मुहरिरी।
कौर या निवाला-बहुत आसान काम 1-का निवाला मुंसरिम-पु० [अ०] प्रबंध करनेवाला; जजी, कलेक्टरी | छीनना-किसीकी रोटी छीनना, मिलती हुई वस्तुसे आदिके दफ्तरका प्रधान ।
वंचित करना। -का मीठा-ऊपरसे भला, पर दिलका मुंसिफ-पु० [अ० ] इंसाफ करनेवाला, न्यायाधीश खोटा; चिकनी-चुपड़ी बातें करनेवाला ।-काला करनान्याय विभागका एक अधिकारी जिसका पद सब-जजसे (अपना) मुँहमें कालिख पोतना; व्यभिचार, बुरे कर्म छोटा होता है।
करना; दूर होना, फिर मुँह न दिखाना (जा अपना मुँह मुंसिफी-स्त्री० [अ०] न्यायशीलता; मुंसिफका पद; काला कर); (दूसरेका) बेइज्जती करना; दूर करना, फेंकना; मुंसिफकी अदालत ।
लानत भेजना (मुँहकाला करो ऐसी चीजका)। (किसीमह-पु० प्राणिदेहके शिरोभागमें स्थित वह छिद्र जिसमें का)-काला हो-मुँहमें कालिख लगे नाश हो (शाप)।
आहारग्रहण और बोलनेके साधनरूप अवयव होते हैं, -काला होना-मुँहमें कालिख लगना, बेइज्जत होना; मुख; चेहरा; छेद, सूराख; बरतन आदिका वह छेद दूर होना; नष्ट होना। -का सच्चा-बातका धनी, जिससे कोई चीज अंदर डाली जाय; बाढ़, धार; किनारा; वादेका पक्का । -किलना-मुँह कील दिया जाना, जबान योग्यता, लियाकत, सामर्थ्य हिम्मत; मजाल । अ० की बंद हो जाना। -की खाना-थप्पड़ खाना, पिटना; ओर, दिशामें (पूरब मुँह, किस मुँह वैठे हो ?)। -अंधेरे कियेका फल पाना; बुरी तरह हारना, जलील होना। या उजाले-अ० बहुत सबेरे, तड़के। -अखरी*-वि० -की या मुँहसे बात छीनना-एक आदमी जो बात जबानी, मौखिक ।-चंग-पु० एक बाजा ।-चटौवला- कहना चाहता हो दूसरेका उससे पहले कह देना। स्त्री० चूमाचाटी; बकवाद । -चोर-वि. जो दूसरोंसे -कील देना-मंत्र-बलसे जबान बंद कर देना, चुप करा मुँह छिपाये, दूसरोंके सामने जानेसे बचनेवाला; झेंपू । देना; घूससे मुँह बंद कर देना। -के कौए उड़ जाना-चोरी-स्त्री० मुँहचोर होना । -छुआई-स्त्री० पूछने
चेहरेपर हवाइयाँ उड़ने लगना; हवास गायब हो जाना। की रस्म अदा करना। -छट-वि० मुँहफट । -ज़ोर- -के बल गिरना-किसी वस्तुकी प्राप्ति के लिए आतुर वि० बहुत बोलनवाला; लड़ाका, कल्लादराज; लगामको हो जाना; धोखा खाना। -खुलना-(फोड़े आदिका) न माननेवाला (घोड़ा)। -ज़ोरी-स्त्री० लड़ाकापन, मुँह बड़ा हो जाना; बोलने में ढीठ हो जाना, बदजबानीकी कल्लादराजी; बदलगामी। -दर-मुह-अ० सामने, दू
आदत लगना। -खुलवाना-बोलनेको लाचार करना; बदू । -दिखाई-स्त्री० दुलहिनका मुंह देखनेकी रस्म गुस्ताख बनाना। -खुश्क होना-दे० 'मुँह सूखना' । वह धन, आभूषण आदि जो दुलहिनका मुँह देखकर -खोलकर रह जाना-कुछ कहते-कहते चुप हो जाना। उसे दिया जाय । -देखा-वि०बिलकुल ऊपरी, दिखाऊ -चपड़ा कर देना-कल्लेपर जोरका तमाचा लगाना। मुँह ताकता रहनेवाला। -पातर-वि० मुँहका हलका, -चलाना-खाना; घोड़ेका काटना;जबानदराजी करना। बकनेवाला । (रत्नाव०)। -फट-वि० जो मुँह में आये -चाटना-प्यार करना; खुशामद करना ।-चिढ़ानावह बक देनेबाला, जबान-दराज, बदजबान । -बंद- किसीकी मुखाकृति, बोलनेके ढंग आदिकी नकल (चिढ़ानेके वि०जिसका मुँह खुला न हो; बिनखिला ।-बंधा-पु० लिए) मुँह बिगाड़कर करना। -चूम लेना-किसीकी मुँहपर कपड़ा बाँध रखनेवाला जैन साधु । -बोला- शक्ति, योग्यताका कायल हो जाना, अपनेसे बहुत बड़ा वि० मुँहसे कहकर बनाया हुआ, माना हुआ, अवास्तविक मान लेना (कोई कठिन काम करनेकी चुनौती देनेका (भाई, बेटा)।-भर-अ० अच्छी तरह, दिलसे (बोलना, भाव होता है-तुम अमुक काम कर सके तो तुम्हारा मुँह
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चूम लूंगा)।-छिपाना या छुपाना-लज्जावश सामने न हो जाना ।-बनाना-चेहरेकी शकल बिगाड़ना; चेहरेसे आना; लज्जित होना। -छूना-दिखानेके लिए ऊपरी रोष प्रकाश करना; मुँह चिढ़ाना। -बाना-दे० 'मुँह मनसे कहना । -जहर हो जाना-मुँहका बहुत कड़आ फैलाना' । -बिगाड़ देना-मारकर चेहरा खराब हो जाना । -जुठारना या जूठा करना-खानेका नाम कर देना ।-बिगाड़ना-मुँह बनाना, चेहरेसे नाराजगी करना, जरा-सा खाकर छोड़ देना। -जोड़ना-काना- प्रकट करना; मुंहका स्वाद बिगड़ जाना । -भर आनाफूसी करना । -झुलसना-मुँहको आग लगाना; लानत मुँहमें पानी आना, मतली होना। -भरके-लबालब भेजना। -डालना-चौपायेका चारेमे मुँह लगाना, भरपूर; यथेच्छ ।-भरना-मुँह में कौर डालना घूस देना, खाना। -तकना या ताकना-किसीसे आस लगाये मुँह बंद करना । -मारना-चारेपर मुँह डालना बैठे रहना; चकित, हतबुद्धि होकर किसीकी ओर देखना। काटनेको मुँह चलाना, काटना; बढ़ जाना, मात करना । -ताक करके रह जाना-चकित होकर चुप रह जाना। -मीठा करना-मिठाई खाना, खिलाना; घूस, इनाम -तोड़ जवाब-निरुत्तर कर देने, चुप करा देनेवाला आदिके में कुछ देना। -मीठा होना-किसीसे कुछ जवाब । -थकना-बकवाससे मुँह दुखने लगना । मिलना; मँगनी होना। -मे आना-जबानपर आना। -दिखाना-सामने आना । -देखकर उठना-सबेरे | -में कालिख पुतना या लगना-भारी बदनामी होना, आँख खुलते ही किसीपर निगाह पड़ना । (किसीका)- कलंकका टीका लगना।-में खाक-मुँह में खाक पड़े (अशुभ देखकर-(किसीका) लिहाज करके (किसीको) प्रसन्न करने या ढिठाईकी बात अपने या दूसरेके मुँह से निकलने पर कहते के लिए. (बच्चोंका मुंह देखकर सब सह रही हूँ)।-देखकर है)। -में खून लगना-चसका लगना।-में गुड़-घी बात कहना-चापलूसीकी बातें करना। -देखना- या घी-शकर-तुम्हारा मुँह मीठा हो (किसीके कोई हर्षका दे० 'मुँह तकना'। -देखी करना-किसीकी इच्छा या समाचार सुनानेपर कहते हैं)। -मे घुनघुनियाँ भर खुशीका खयाल रखकर व्यवहार करना, पक्षपात करना । लेना-चुप्पी साध लेना, मूक बन जाना ।-मे जबान -देखी बात-लिहाज, मुरौवत, तरफदारी, चापलूसीकी रखना या होना-बोलने में समर्थ होना, वाशक्ति बात। -देखेकी-ऊपरी, दिखाऊ (-प्रीति, चाह)। रखना (हम भी मुँह में जवान रखते हैं)। -मे ज़बान -देना-बैल, घोड़े आदिका चारेपर मुँह डालना । न रखना-गूंगा होना; बेजबान होना। -मे जाना-धो रखो-इस चीजकी आशा न करो, अपना मुँह | खाया जाना, भक्ष्य बनना । -में तिनका लेना-अति देखो। -पकड़ना-बोलनेसे रोकना ।-पड़ना-हिम्मत दीन बनना, दाँतोंमें तिनका दाबना । - में थूकनाहोना। -पर-सामने, दू-बदू, होठोंपर, जबानपर; जलील,बेइज्जत करना ।-मे दाँत, न पेटमें आँत-अति चेहरेपर ।-पर जाना-लिहाज, मुरौवत करना ।-पर वृद्ध होना। -में पढ़ना या बोलना-इतनी धीमी ठीकरी रख लेना-बेमुरोवत हो जाना। -पर ताला
आवाज में पढ़ना या बोलना कि दूसरोंको सुनाई न दे। लग जाना-जबान बंद हो जाना; चुप्पी साध लेना।।
-में पानी भर आना-राल टपकना, ललचाना ।-में -पर थूकना-अत्यधिक घृणाप्रकाश या तिरस्कार करना; लगाम न होना-जबानपर अंकुश न होना, जो मनमें अपमानित करना ।-पर न थूकना-अति हेय समझना, आये, बक देना। -में लूका लगाना-मुँह झुलसना; उसकी ओर देखना तक नहीं। -पर नाक न होना
मुँह काला करना। -मोड़ना-बेरुखी करना, ध्यान न निर्लज्ज होना ।-पर फेक देना,-पर फेंक मारना- देना; अलग हो जाना; इनकार करना; हराना; पीछे बहुत खफा होकर कोई चीज देना या लौटा देना ।-पर ढकेल देना ।-लगना-हुज्जत करना, उलझना; ढिठाईसे महताब छूटना-चेहरा पीला हो जाना, चेहरेपर हवाइयाँ बोलना; चस्का लगना। -लगाना-होंठोसे छुवाना, उड़ना । -पर मुहर लगना या हो जाना-चुप्पी साध
चखना; ढीठ, गुस्ताख बनाना।-लटकाना-मुँह फुलाना, लेना, एक शब्द भी न कहना। -पर रखना-चखना,
मुखाकृतिसे रोष, नाराजगी प्रकट करना ।-लपेटकर पड़ खाना (तोप आदिको) सामने निशाने पर रखना । -पर रहना-दुःख या रोषमें मुँह ढककर पड़ रहना। -लाल लाना-कहना, बयान करना। -पर हवाइयाँ उड़ना
होना-क्रोधसे चेहरेका लाल हो जाना। (अपनासा)-भय, घबराहट आदिसे चेहरेका पीला या सफेद हो लेकर रह जाना-लज्जित होकर चुप हो जाना, खिसियाजाना।-पसारकर दोढ़ना-कोई चीज पानेके लिए | कर रह जाना। -शकरसे भर देना-(हर्ष-समाचार लपकना । -पसारना-मुँह फैलाना; (कुछ) पाने के लिए | सुनानेवालेका) मुँह मीठा करना ।-सँभालना-जबानको आगे बढ़ना; अधिक दाम माँगना । -पाना-रुख या काबूमें रखना, सोच-समझकर बोलना (मुँह सँभालकर बातें मर्जी पाना, भावानुकूल दिखना ।-पेट चलना-कै-दस्त करो)। -सीना-चुप्पी लगा लेना । -सूखना-गला, दोनों होना । -फटना-सरदी, खुश्कीके कारण होठों, जबानका सूखना; मनमें भय भर जाना, घबरा जाना। कपोलोंकी त्वचा सूखकर फटना। -फुलाना-नाराज -से-जबानी, ऊपरसे (-कहना)1-से दूध टपकना,होना, रूठना। -कना-मुँहको आग लगाना, लानत दूधकी बू आना-बच्चा, नादान, नासमझ होना। भेजना । -फेर लेना-बेरुख या नाराज हो जाना। -से निकलना-कहा जाना । -से फूल झड़ना-बोल -फैलाना-अधिक दाम माँगना; अधिक लोभ करना। या बातों में बहुत मिठास होना ।-से बात न निकलना-बंद कर देना-चुप करा देना; घूस देकर अपने विरद्ध डर या गुस्सेके मारे मुँहसे आवाज न निकलना। -से कुछ करने, कहनेसे रोक देना। -बंद कर लेना-चुप राल (लार) टपकना-किसी वस्तुके लिए लालायित
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मुँहाचही-मुक्त
६४४ होना, मनमें अति लोभ होना। -से लाल उगलना- मुकरर-वि० [अ०] ठहराया हुआ, ते किया हुआ, नियत; मुँहसे बहुत मीठे शब्द निकलना, फूल झड़ना। -स्याह| नियुक्त। होना-दे० 'मुँह काला होना'। -ही मुंहमें-चुपके- मुकलाना*-स० कि० खोलना। चुपके (-कहना, बातें करना)।
| मुकाबला-पु० [अ०] बराबरी करना; बराबरी; आमनामहाचही -स्त्री० डींग मारना-'महाचही सेनापति सामना; मुठभेड़; लड़ाई; विरोध; मिलाकर जाँचना, कीन्हीं सकटासुर मन गर्ब बढ़ायो'-सू० ।
मिलाना । मु०-(ले) पर (मे ) आना-लड़नेके मुँहामुंह-पु० मुँहतक, बिलकुल ऊपरतक ।
लिए सामने आना; सामना करना। महासा-पु० युवावस्थामें चेहरेपर निकलनेवाली एक मकाबिल-वि० [अ०] मुकाबला, बराबरी करनेवाला; तरहकी फुसी।
प्रतिस्पर्धी सामनेका । अ० आमने-सामने । मुअज्ज़म-वि० [अ०] पूज्य, बुजुर्ग; महान् ।
मुक्राम-पु० [अ० 'मकाम'] ठहरने, खड़ा होनेकी जगह, मुअज्ज़िन-पु० [अ०] अजाँ देनेवाला, नमाजके लिए स्थान पड़ाव ठहराव बासस्थान, घर, मौका । आह्वान करनेवाला।
मुकामी-वि० [अ० ] स्थानीय, स्थानविशेषसे संबद्ध मुअत्तल-वि० [अ०] खाली, बेकार, काम न देनेवाला (लोकल)। -अफसर-पु० स्थानीय अधिकारी। खबर( अंग); कामसे कुछ अरसेके लिए अलग किया हुआ, स्त्री० स्थानीय समाचार । अस्थायी रूपसे पदच्युत (कर्मचारी)।
मुकियाना -स० क्रि० मुक्की लगाकर शरीरको मालिश मुअत्तली-स्त्री० [अ०] मुअत्तल होनेका भाव ।
करना; (हलके) चूंसे लगाना । मुमल्लिम-पु० [अ०] इल्म देनेवाला, शिक्षक । मुकुंद-पु० [सं०] विष्णु; कृष्ण। . मुआ-वि० मरा हुआ, मृत निगोड़ा।
मुकुंदक-पु० [सं०] प्याज; साठी धान । मुआइना, मुआयना-पु० [अ०] अबलोकन, निरीक्षण
मुकुट-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध शिरोभूषण जो ताजकी जाँच-पड़ताल ।
तरह धारण किया जाता था, किरीट । -धर-धारीमुआत-वि० [अ०] दे० 'माफ'।
(रिन)-वि० मुकुट धारण करनेवाला (राजा)। मुआफ्रिक-वि० दे० 'मुवाफ्रिक'।।
मुकुताहल*-पु० मोती। मुआफ्रिक्रत-स्त्री० अनुकूलता; मेल-जोल ।
मुकुर-पु० [सं०] दर्पण, आईना; मौलसिरी । मुआमला-पु० [अ०] दे० 'मामला।
मुकुल-पु० [सं०] कली; वह कली जिसका मुँह जरा-जरा मुआवजा-पु० [अ०] वह चीज जो किसीके बदले में दी ।
। बदलभ दी खुल रहा हो; शरीर; आत्मा । जाय, बदला, पलटा; वरतुका मूल्य; तावान, हर्जाना। मुकलित-वि० [सं०] मुकुलविशिष्ट; अधखिला; अधमुँदा। मुकट-पु० दे० 'मुकुट'।
मुक्का-पु० चूंसा, मारनेके लिए. बाँधी हुई मुट्ठी। -(के) मुकतई*-स्त्री० मुक्ति, मोक्षपद ।
बाजी-स्त्री० सेबाजी, घूसोंकी लड़ाई। मुकता-* पु०, स्त्री० दे० 'मुक्ता'। वि० बहुत (बुंदेल०) मुक्की-स्त्री० घुसेवाजी; मालिशके लिए शरीरपर धीरे-धीरे -'मुकती साँठि गाँठि जो करै'-प० ।
मुक्के लगाना। मुकतालि*-स्त्री० मोतियोंकी लड़ी, मुक्तावली । मुक्केस*-पु० दे० 'मुबकैश' । मुकति*-स्त्री० मुक्ति।
मुक्तश--पु० सोने-चाँदीका तार, बादला; सोने-चाँदीके मुकदमा-पु० [अ० 'मुकद्दमा'] अदालत में गया हुआ तारोंका बना कपड़ा, ताश । मामला, व्यवहार; दावा, नालिश। -(मे)बाज़-वि० मक्तशी-वि. सोने चाँदीके तारोंका बना, जरी या मुकदमा लड़नेवाला, जिसे मुकदमा लड़नेका शौक हो। ताशका बना हुआ। -गोखरू-पु० तारोंका बना -बाज़ी-स्त्री० मुकदमा लड़ना ।
महीन गोखरू । मुकद्दम--वि० [अ०] पहला, आला; जो पहले हो चुका मक्त-वि० [सं०] मोक्षप्राप्त, भवबंधनसे मुक्त; बंधनरहित,
हो, पुराना; फर्ज, अवश्य कर्तव्य । पु० गाँवका चौधरी। खुला हुआ; छूटा हुआ; क्षिप्त, फेंका हुआ। -कंचुकमुक़दमा-पु०[अ०] आरंभ, प्रस्तावना; सिरनामा; घटना; वि० (वह साँप) जिसने केंचुल उतार दी हो। -केशअदालतमें गया हुआ मामला, व्यवहार ।
वि. जिसके बाल बैंधे, गुथे न हों। -केशी-स्त्री० मुकहर-पु० [अ०] भाग्यलेख, भाग्य, तकदीर । -आज- काली । वि० स्त्री० खुले बालोंवाली। -चेता(तस)माई-स्त्री० भाग्यकी परीक्षा करना।
वि० जिसका चित्त संसारकी आसक्तिसे, जिसकी आत्मा मुकना-अ० क्रि० मुक्ति, छुटकारा पाना; चुकना। भवबंधनसे, मुक्त हो चुकी हो। -द्वार-वि० जिसका मुकम्मल--वि० [अ०] समाप्त; संपूर्ण, अखंड । दरवाजा खुला हो, निर्बाध । -द्वारनीति-स्त्री. देसा। मुकरना-अ०क्रि० कही हुई बातसे हटना, नटना, इनकार वरसे आनेवाले मालपर बाधक कर न लगानेवाली करना।
वाणिज्यनीति । -वसन-वि० निर्वस्त्र। पु० दिगंबर मुकरामा*-सक्रि० मुक्त कराना: मुकरने में प्रवृत्त करना। जैन । -वाणिज्य,-व्यापार-पु० (फ्री ट्रेड) विदेशोंके मुकरी-स्त्री० वह कविता जिसमें पहले कही हुई बातका साथ होनेवाले आयात-
निर्यात-संबंधी बाधाओं या करोंसे अंतमें खंडन-सा किया जाय, पहेली जैसी कविता। मुक्त व्यापार ।-व्यापारनीति-स्त्री० (फ्री ट्रेड पॉलिसी) मुकर्रम-वि० [अ०] सम्मानित; पूज्य । [स्त्री मुकरमा'।] | बाहरसे आनेवाले मालपर बाधक कर न लगाने, किसी
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मुक्ता-मुस्तसरन् एक देशके साथ विशेष रियायत न करनेकी वाणिज्य- बलपूर्वक किसीका मुँह बंद कर देना, बोलने या भाषण नीति । -हस्त-वि० जिसका हाथ खुला हो, दानी, करनेपर प्रतिबंध लगा देना। -लेप-पु० सौंदर्य के लिए उदार । मु०-कंठसे-खुलकर; निस्संकोच रूपमें । मुखपर लगाया जानेवाला लेप। -वाद्य-पु० मुँहसे मुक्ता-स्त्री० [सं०] मोती। -कलाप-पु० मोतियोंका बजाया जानेवाला बाजा । -वास-पु० गंध तृण कपूर, हार। -गुण,-दाम(न)-पु० मोतियोंकी लड़ी। लौंग, आदि मुखको सुगंधित करनेबाली चीजें। -शुद्धि-फल-पु० मोती; कपूर । -लता-स्त्री० मोतियोंकी स्त्री० दातुन आदिकी सहायतासे मुख साफ करना; माला । -हल*-पु० मुक्ताफल, मोती।
भोजनके बाद पान, इलायची आदि खाकर मुख शुद्ध मुक्तागार-पु० [सं०] सीप ।
करना । -शोथ-पु० मुखकी सूअन । -शोष-पु० मुँह मुक्तावली-स्त्री० [सं०] मोतियोंकी लड़ी।
सूखना; प्यास । -श्री-स्त्री० मुँहकी शोभा, कांति । मुक्ति-स्त्री० [सं०] छुटकारा, मोक्ष, जन्म-मरण-रूप -नाव-पु० लार, लाला; थूक, लारका बहना। बंधनसे छुटकारा मिलना, आत्माका जन्म-मरणसे मुक्त मुखड़ा-पु० चेहरा, मुख । हो जाना; आजादी । क्षेत्र-पु० काशी।-धाम(न्)
मुखतार-पु० [अ०] अधिकार प्राप्त व्यक्तिविशेषके पु० मुक्ति देनेवाला स्थान, तीर्थ। -पत्र-पु० छुटकारेका प्रतिनिधिरूपमें कार्य करनेका अधिकारी; एजेंट; कानूनपरवाना। -प्रद-वि० मुक्ति देनेवाला । -फौज-स्त्री० पेशावर्गका एक भेद जोवकीलसे छोटा होता है।-नामा[हिं०] ईसाइयोंका एक सेवा और धर्मप्रचारकार्य करने पु० वह लेख जिसके जरीये कोई आदमी मुखतार बनाया वाला संघटन (सालवेशन आरमी)। -मंडप-पु० विश्व- जाय, मुखतारका अधिकार-पत्र । -(३)आम-पु० वह नाथमंदिर (काशी)। -मार्ग-पु० मुक्ति पानेका मार्ग, व्यक्ति जिसे किसीकी ओरसे कोई कार्य करनेका अधिकार साधन । -युद्ध-पु० (वार ऑफ लिबरेशन) दूसरे राष्ट्र- दिया गया हो। -खास-४० वह जिसे किसी मुकदमेकी की अधीनता, दासतासे अपने देशको स्वतंत्र करने, छुट
पैरवी या और कोई खास काम करनेका अधिकार दिया कारा दिलानेके लिए किया जानेवाला संघर्ष । -लाभ- गया हो। पु० मुक्ति, छुटकारा मिलना। -स्नान-पु० ग्रहणकी मुखतारी-स्त्री० [अ०] मुखतारका काम या पेशा। समाप्ति, मोक्षके बाद किया जानेवाला स्नान । मुखनस-वि० [अ०] हिजड़ा, नपुंसक । मुख-पु० [सं०] मुँह दरवाजा, निकलने-पैठनेका रास्ता।।
lion :वाजा. निकलने का रास्ता। मखबिर-पु० [अ०] खबर देनेवाला, जासूस; वह मुल-कमल-पु० कमल जैसा मुख । -कांति-स्त्री० जिम जो अपराध स्वीकार कर सरकारी गवाह बन जाय चेहरेकी आब, सौंदर्य। -चित्र-पु. मुखपृष्ठपर छपा
तथा जिसे माफी दे दी जाय । हुआ चित्र । -चूर्ण-पु० चेहरेपर मलनेका सुगंधित मुखबिरी-स्त्री० [अ०] जासूसी। पाउडर । -च्छद-पु० (मास्क ) चेहरेको छिपानेके | मुखर-वि० [सं०] अधिक बोलनेवाला, वाचाल; अप्रियलिए पहना जानेवाला कपड़ा, नकाब । -ज-वि० | मुखसे उत्पन्न । पु० ब्राह्मण । -दूषण-पु० प्याज । मुखरित-वि० [सं०] ध्वनित, शब्दायमान । -दूषिका-स्त्री० चेहरेपर होनेवाली फुसी। -धावन- मुखाकृति-स्त्री० [सं०] चेहरा। पु० मुंह धोना । -पट-पु० बुरका घुघट । -पत्र-पु० मुखागर,* मुखाग्र-वि० [सं०] कंठस्थ, जबानी याद । (आर्गन) किसी दल या संस्था द्वारा प्रकाशित वह मुखातब-[अ०] जिससे बात-चीत की जाय, संबोध्य । सामयिक पत्र जिसमें उसके सिद्धांतों, उद्देश्यों आदिकी मुखातिब-वि० [अ०] खिताब या संबोधन करनेवाला, चर्चा की जाती है। -पाक-पु० मुँह पकना, बैलों, बात करनेवाला; मतवज्जह । घोड़ों आदिको होनेवाला एक रोग -पात्र-पु० (स्पोक्स- मुखापेक्षी(क्षिन् )-वि० [सं०] (दूसरेका) मुँह जोहने. मैन) सरकार या किसी संस्था आदिकी तरफसे आधिकारिक | वाला, पराश्रित । रूपसे कोई कथन करनेवाला, दे० 'प्रवक्ता'। -पिंड- मुखामय-पु० [सं०] मुखरोग । पु० ग्रास मृत व्यक्तिके उद्देश्यसे अंत्येष्टिके पूर्व दिया | मुखारी-स्त्री० मुखाकृति; ऊपर या सामनेका भाग; जानेवाला पिंड । -पिडिका-स्त्री० मुँहासा। -पृष्ठ
आ° मुहासा । -पृष्ठ- दतुअन । पु० पुस्तक, मासिक पत्र आदिका आवरण-पृष्ठ ।-प्रक्षा-मुखालफत-वि० [अ०] विरोध; शत्रुता। लन-पु० मुँहको धोना, साफ करना। -प्रसाद-पु० मुखालिफ़-वि० [अ०] विरोध करनेवाला; शत्रु; उलटा। मुखकी प्रसन्नता, मुखकी प्रसन्न मुद्रा। -प्रिय-वि. जो मुखासव-पु०[सं०] थूक राल । खाने में अच्छा लगे, सुस्वादु । पु० नारंगी; ककड़ी; लवंग। मुखिया-पु० प्रधान व्यक्ति, अगुआ; वह व्यक्ति जिसका -बंध,-बंधन-पु० पुस्तककी प्रस्तावना, भूमिका कर्तव्य गाँवमें होनेवाले अपराधों, दुर्घटनाओं आदिकी -भूषण-पु० पान । -मंडल-पु० चेहरा ।-मार्जन- सूचना थाने में भेजवाना हो; वल्लभकुलके मंदिरों में मूर्तिके पु० मुँह साफ करना, मुखप्रक्षालन । -रुचि-स्त्री० मुख- पूजन, भोग लगाने आदिका काम करनेवाला। कांति । -रोग-पु० गले, मसूड़े, जीभ आदिमें होनेवाला मुखिल-वि० खलल डालनेवाला, बाधक ('गबन')। रोग। -रोधक (मुखावरोधक) अधिनियम-पु० मुख्तलिफ़-वि० [अ०] भिन्न, जुदा, विसदृश; कई तरहका। (गैगिंग ऐक्ट) मुख बंद कर देने, भाषण करनेपर प्रतिबंध महतसर-वि० [अ०] संक्षिप्त साररूप; लगा देनेवाला अधिनियम । -रोधन-पु० (गैगिंग) मख्तसरन-अ० [अ०] थोड़े में, संक्षेपमें ।
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मुख्तार - मुड़हर
मुख्तार - पु० [अ०] दे० 'मुखतार' | मुख्य - वि० [सं०] मुख-संबंधी, प्रधान, प्रथम, जो गौण न हो; श्रेष्ठ | पु० मुखिया, अगुआ; यज्ञादिमें शास्त्रोक्त प्रथम कल्प | - निर्वाचन आयुक्त-पु० ( चीफ इलेक्शन कमिश्नर ) वह प्रधान अधिकारी जिसे सारे देशके निर्वा चन-कार्यका आयोजन तथा संचालन करने और चुनावसंबंधी याचिकाओं पर विचार करनेके लिए विशेष न्यायाधिकरण नियुक्त करने आदिका भार सौंपा गया हो । - न्यायाधिपति - पु० ( चीफ जस्टिस ) दे० 'न्याया धिपति' के साथ । - न्यायाधीश- पु० ( चीफ जज ) किसी लघुवाद न्यायालयके या अन्य न्यायालय के न्यायाधीशों में जो प्रधान हो वह । - मंत्री (त्रिन्) - पु० (चीफ मिनिस्टर) भारतीय गणतंत्र के किसी राज्य (प्रांत)का सबसे बड़ा मंत्री । मुख्यतः ( तस् ) - अ० [सं०] प्रधानत, खास तौर से । :- पु० ० [सं०] शब्दका प्रधान अर्थ ।
मुख्यालय - पु० [सं०] ( हेड क्वार्टर ) प्रधान कार्यालय या मुख्य निवास ।
मुख्याधिष्ठाता (तृ) - पु० [सं०] ( रेक्टर) दे० 'अधिशिक्षक; विश्वविद्यालयकी व्यवस्था करनेवाला मुख्य ( निर्वाचित ) अधिकारी, प्रधान नियामक । मुगदर - पु० गावदुम मुगरी जो व्यायामके काममें लायी जाती है, जोड़ी (फेरना, हिलाना) । मुगरा - पु० दे० 'मुँगरा' ।
मुग़ल - पु० [फा०] एक प्रसिद्ध लड़ाकू तातारी जाति । मुग़लई, मुग़लाई - वि० [फा०] मुगलोंकासा, मुगली । - टोपी-स्त्री० एक तरहकी ऊँचे गोशोंवाली टोपी । मुगलानी - स्त्री० [फा०] मुगल स्त्री; अंतःपुरकी दासी । सिलाईका काम करनेवाली स्त्री ।
मुगलिया - वि० [फा०] मुगलोंका |
मुग़ली - वि० [फा०] मुगलोंका; मुगलोंका-सा । -घुट्टीस्त्री० मुगल बच्चों को दी जानेवाली एक विशेष घुट्टी । मुग़ालता - पु० [अ०] धोखा; भ्रम । मुगुध - वि० दे० 'मुग्ध' ।
मुग्ध - वि० [सं०] मोहित; मूढ़; भोला; सुंदर । -करवि० मुग्ध, मोहित करनेवाला । - बुद्धि - वि० मूर्ख; नासमझ; भोला ।
मुग्धा - स्त्री० [सं०] यौवनप्राप्त सरल स्वभाववाली नायिका । मुचकुंद - पु० [सं०] एक पेड़ जिसकी छाल और फूल दवा के काम आते हैं; दे० 'मुचुकुंद' |
मुचना * - स० क्रि० दे० 'मुंचना' ( सू० ) । मुचलका - पु० [तु०] कोई खास काम न करने या नियत तिथिपर हाजिर होनेका प्रतिज्ञापत्र जिसका पालन न होनेपर प्रतिज्ञा करनेवाला निर्धारित अर्थदंड देना स्वीकार करता है (देना, लिखना) ।
मुचुकुंद - पु० [सं०] सूर्यवंशी राजा जो मांधाताका बेटा था और जिसकी निद्रा भंग करनेके कारण कालयवन जलकर भस्म हो गया; मुचकुंदका पेड़ ।
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मुछाकड़ा, मुछियल, मुछैल - वि० बड़ी मूँछोंवाला । मुज़क्कर - पु० [अ०] नर, पुरुष; पुंलिंग (व्या० ) । मुजमिल - वि० [अ०] संक्षेपमें कथित; जिसमें ब्योरा न हो; इकट्ठा किया हुआ । * पु० जुमला, योग (स० ) । मुजरा - वि० [अ०] जारी किया हुआ; हिसाब में लिया ( या मिनहा किया हुआ । पु० कटौती, मिनहाई; अदबसे सलाम करना; राजाओं आदि के सामने जाकर सलाम करना; वेश्याका महफिल में बैठकर गाना। -गाह-पु०, स्त्री० शाही दरबार में वह स्थान जहाँ खड़े होकर लोग मुजरा अर्ज करें। मु० - करना - मिनहा करना; अदबसे सलाम करना; वेश्याका बैठकर - बिना नाचके - गाना | मुजरिम - पु० [अ०] जुर्म करनेवाला, अपराधी । मुजाविर- पु० [अ०] मसजिद में रहनेवाला; दरगाह आदि में झाड़ू आदि लगानेवाला । मुज़ायका - पु० [अ०] अड़चन; परवा | मुजाहिद - पु० [अ०] कोशिश करनेवाला; जिहाद करनेवाला ।
मुझे - सर्व० 'मैं' का कर्म और संप्रदान कारकका रूप । मुटका - पु० एक मोटा रेशमी कपड़ा जो पूजन आदिमें धोतीकी जगह पहना जाता है ।
मुटरी - स्त्री० दे० 'गठरी' |
मुटाई - स्त्री० मोटापन; पुष्टि घमंड | घमंड बढ़ना ।
मु० - चढ़ना
मुटाना - अ० क्रि० मोटा होना; घमंडी हो जाना । मुटासा - वि० जो पैसेवाला हो जाने के कारण घमंडी और लापरवाह हो गया हो ।
मुटिया - पु० बोझ ढोनेवाला ।
मुद्दा - पु० घास-फूस, सरपत आदिका मुट्टी में आने लायक पूला, पुलिंदा; दस्ता; मुठिया ।
मुट्ठी - स्त्री० बँधी हुई हथेली, मुश्त, मुष्टि; मुट्ठी में आनेभर वस्तु; मुट्टीकी चौड़ाईकी माप; पकड़, कब्जा ( - में आना, होना); चुसनी; मुट्टीभर अन्न जो दानके लिए निकाला जाय, चुटकी । मु०- गरम करना - हाथमें चुपकेसे रुपये धर देना, घूस देना । - मे आना, होना - कब्जे, काबूआना, होना । - हवा बंद करना - अनहोनी बात करने की कोशिश करना ।
मुठभेड़इ-स्त्री० भिड़ंत; सामना ( - होना) । मुठिका** - स्त्री० मुट्टी; घूँसा ।
मुठिया - स्त्री० कब्जा, दस्ता; धुनियोंका बेलन जिससे वे ताँ पर मारते हैं ।
मुठी* - स्त्री० दे० 'मुट्टी' ।
मुटुकी * - स्त्री० काठका बना एक तरहका घुनघुनी । मुड़कना - अ० क्रि० मुरकना ।
मुड़ना - अ०क्रि० सीधी चीजका झुकना; खम होना, अगलबगल या पीछे की ओर घूमना, गतिकी दिशा बदलना । मुड़ला* - वि० गंजा ।
मुडवरियाँ, मुड़वारी । - स्त्री० सिरहाना; मुँडेरा | मुड़वाना - स० क्रि० मोड़ने का काम दूसरे से कराना ।
मुछंदर - पु० बड़ी मूँछोंवाला; भोंड़ी शकलवाला और भोंदू । मुड़हर | - स्त्री० साड़ी या चादरका सिरके ऊपर रहनेवाला मुछमुंडा - वि० जिसने मूँछें मुँड़ा ली हों ।
भाग ।
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मुड़ाना-मुद्रा मुड़ाना-स० कि. सिरके बाल उस्तरेसे बनवाना । अकस्मात् पूरी हो जानेसे प्रसन्न होती है। मड़िया-पु० जिसका सिर मुंड़ा हुआ हो; संन्यासी बैरागी। मुदिर-पु० [सं०] मेघ-'मुदिरसे मेदुर मुदित मतवारे स्त्री० मोड़ी लिपि, महाजनी लिपि ।
हैं'-मति० कामुक व्यभिचारी मेंढक ।। मुतअल्लिक-वि० [अ०] तअल्लुक, लगाव रखनेवाला, | मुद्गर-पु० [सं०] मुगदर हथौड़ा मुंगरा; एक प्राचीन अस्त्र। संबद्ध संयुक्त ।
मुद्दई-पु० [अ०] दावा करनेवाला, वादी, दावेदार । मुतअल्लिम-पु० [अ०] इल्म सीखनेवाला, शिक्षार्थी । . मुद्दत-स्त्री० [अ०] अरसा लंबा अरसा; अवधि, मीआद । मुतक्का-पु. कोठे या बरामदेके किनारे रेलिंगका काम | मुद्दती-वि० [अ०] मीआदवाला, सावधि । देनेके लिए खड़ी की हुई, पतली, नीची दीवार; [अ०] मुहालेह-पु० जिसपर दावा किया गया हो, प्रतिवादी। तकिया लगानेकी जगह, तकियागाह ।
मुद्ध*-वि० दे० 'मुग्ध' । मुतफन्नी-वि० [अ०] चालबाज, फरेबी, फसादी। मुद्धा-पु० टखना। मुरफ़रिकात-स्त्री० [अ०] फुटकल चीजें; फुटकल खर्चीकी मुद्धी-स्त्री० रस्सी, डोरीकी खिसकनेवाली गाँठ । मद।
मुद्र-पु० (टाइप) छपाईके काममें प्रयुक्त होनेवाले सीसे मुतबन्ना-वि० [अ०] गोद लिया हुआ। पु० दत्तक पुत्र । आदिके अक्षर, टाइप। -लिख-पु० (टाइपराइटर) मुतलक-वि० [अ०] बंधनरहित; निपट, निरा। अ० । कागजपर टाइपके अक्षर छापनेकी मशीन । -लेखकबिलकुल, कतई ।
पु० (टाइपिस्ट) मुद्रलिखकी सहायतासे कागजपर टाइपमुतलाशी-वि० हूंढ़नेवाला-'जो देखो वह हुआ नौकरी के अक्षर छापनेवाला ।-लेखनयंत्र-पु० दे० 'मुद्रलिख। का मुतलाशी'-पूर्ण ।
मुद्रक-पु० [सं०] छापनेवाला (प्रिंटर) । मुतव जिह-वि० [अ०] तवज्जुह करनेवाला, ध्यान मुद्रण-पु० [सं०] मुहर करना; छापना; छपाई । - देनेवाला।
यंत्र-पु० किताब इत्यादि छापनेकी कल। -स्वामुतवल्ली-पु० [अ०] मस्जिद या वक्फ संपत्तिका प्रबंध तंत्र्य-पु० (फ्रीडम ऑफ प्रेस) सरकारी अधिकारीको करनेवाला; वली, संरक्षक ।
दिखाये बिना या उसकी अनुमति लिये बिना किसी मुतसद्दी-पु० [अ०] लेखक, मुंशी; हिसाब लिखनेवाला। समाचार-पत्र में किसी विषयपर लेख लिखने, टीका करने मुतसिरी*-स्त्री० मोतियोंकी कंठी ।
या किसी पुस्तकादिमें उसकी चर्चा करनेकी स्वतंत्रता । मुताबिक़-वि० [अ०] सदृश, अनुरूप । अ० अनुसार । मुद्रणालय-पु० [सं०] छापाखाना, प्रेस । मुतालबा-पु० [अ०] माँगना, माँग पावना ।
मुद्रांकन-पु० [सं०] मुद्रा, मुहरसे छापना; छपाई । मुतास-स्त्री० पेशाबकी हाजत ।
मुद्रांकित-वि० [सं०] छपा हुआ; (सील्ड ) जिसपर मुताह-पु० [अ०] मीयादी, अस्थायी निकाह जो मुसल- | (नाम, पद आदिकी) मोहर लगा दी गयी हो, जो मोहर मानांके शीया संप्रदायमें जायज है।
लगाकर बंद कर दिया गया हो। मताही-स्त्री० अ०] वह स्त्री जिससे मुताह किया गया। मद्रा-स्त्री० [सं०] नामकी मुहर, सिका नाम खुदी हुई हो; रखेली।
अँगूठी; मुखचेष्टा; शरीरपर छपवाये हुए विष्णुके आयुधोंमुतिलाडू*-पु० मोतीचूरका लड्डू ।
शंख, चक्र आदिके चिह्नः देवपूजनमें हाथकी उँगलियोंका मुतेहरा-पु० कलाई पर पहननेका एक गहना।
विशेष विन्यास (तंत्र); हठयोगके आसन; परवाना-राहमुत्तला-वि० [अ०] जिसे इत्तिला दी गयी हो, सूचित, दारी; सीसेके ढले हुए अक्षर जो छापनेके काम आते हैं आगाह ।
(टाइप); काँच या स्फटिकका बना कुंडल जो गोरखपंथी मुत्तहिदा-वि० [अ०] इकट्टा, संयुक्त।
कानमें पहनते हैं; एक अलंकार जहाँ प्रस्तुत अर्थके मुद-पु० [सं०] हर्प, उमंग ।
सिवा अन्य अर्थ भी इंगित हो। -कार-पु. मुहर मुर्रिस-पु० [अ०] शिक्षा (दर्स) देनेवाला, अध्यापक । बनानेवाला । -बाहुल्य,-विस्तार-पु० (इनफ्लेशन) मुदरिंसी-स्त्री० [अ०] मुदरिसका काम, अध्यापकी। दे० 'मुद्रास्फीति' । -यंत्र-पु० छापनेकी कल, प्रेस मुदवंत*-वि० हर्षयुक्त, मुदित ।
(आ०)। -रक्षक-पु० वह अधिकारी जिसके पास राजमुदा-स्त्री० [सं०] हर्ष, मोद । * अ० मतलब यह कि । कीय मुहर रहे। -लिपि-स्त्री० छाप । -विज्ञान,लेकिन ।
शास्त्र-पु० मुद्रातत्त्व पुराने सिक्कोंके आधारपर इतिहासका मुदाखलत-स्त्री० [अ०] दखल देना, हस्तक्षेप रोक-टोक । विवेचन करनेवाला शास्त्र (न्यूमिसमैटिक्स)।-विस्फीति
-बेजा-स्त्री० दूसरे के घर या जमीनमें उसकी इजाजतके स्त्री०(डीफ्लेशन) मुद्राके प्रचलनमें हुई असाधारण वृद्धिको बिना चला जाना।
घटाना या सामान्य स्थितिमें लाना, मुद्राके अत्यधिक मुदाम-अ० [अ०] सदा, नित्य ।
विस्तारमें कमी करना, मुद्रासंकोच । -संकोच-पु० मुदामी-वि० [अ०] सदा रहनेवाला।
(डीफ्लेशन) दे० 'मुद्राविस्फीति' । -स्फीति-स्त्री० मुदित-वि० [सं०] मोदयुक्त, आनंदित ।
(इनफ्लेशन) किसी राज्यमें कागजी मुद्राका चलन असामुदिता-स्त्री० [सं०] हर्ष, आनंद; चित्तकी वह अवस्था धारण रूपसे बढ़ जाना, जिससे वस्तुओंके दाम बहुत चढ़ जिसमें दूसरेका सुख देखकर सुख होता है (योग); परकीया जाते हैं, मुद्राबाहुल्य, मुद्राविस्तार ।-स्फीति-रोधक-वि० नायिका जो परपुरुषकी प्रीति पानेको अपनी इच्छा | (ऐंटी इनफ्लेशनरी) मुद्रास्फीति रोकनेवाला (उपाय इ०)।
४१-क
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मुद्राध्यक्ष-मुरदा मुद्राध्यक्ष-पु० [सं०] अन्य राज्यमें जानेका परवाना मुबाहसा-पु० [अ०] बहस, वाद; वाद-विवाद करना। (पासपोर्ट) देनेवाला अधिकारी (हि. का०)। मुब्तला-वि० [अ०] पकड़ा हुआ फँसा हुआ, लगा हुआ। मुद्रिक*-स्त्री० दे० 'मुद्रिका' ।
-ए-बला-वि० मुसीबत में फँसा हुआ, विपद्ग्रस्त । मुद्रिका-स्त्री० [सं०] मुहर; नाम खुदी हुई अँगूठी; अँगूठी। मुमकिन-वि० [अ०] जो हो सके, होनेवाला, संभाव्य । मुद्रित-वि० [सं०] मुहर किया हुआ; छापा हुआ; मुँदा मुमानित, मुमानियत-स्त्री० [अ०] रोक,निषेध,मनाही। हुआ, बंद; बिनखिला।
मुमुक्षा-स्त्री० [सं०] मोक्षकी कामना । मुधा-अ० [सं०] व्यर्थ, बेफायदा । * पु० झूठ । मुमुक्षु-वि० [सं०] मोक्षका अभिलाषी। मुनक्का-पु० [अ०] सुखाया हुरा अंभूर, द्राक्षा।
मुमूर्षा-स्त्री० [सं०] भरनेकी इच्छा । मुनहसर-वि० दे० 'मुनहसिर'।
मुमूर्षु-वि० [सं०] जो मर रहा हो, आसन्न-मरण; मुनहसिर-वि० [अ०] धरा हुआ; अवलंबित; आश्रित । मरणका इच्छुक । मुनादी-पु० [अ०] पुकारनेवाला; ढिंढोरा पीटनेवाला। मयस्सर-वि० [अ०] आसानीसे मिलनेवाला; उपलब्ध
स्त्री० ढिंढोरा, ढोल पीटकर किसी बातकी घोषणा करना। प्रस्तुत । मुनाफ़ा-पु० [अ०] नफा, लाभ ( शुद्ध 'मनाफा' )। मुरंडा, मुरंदा-पु० भूने गेहूँ का लड्डू लडडू (प०) । मुनार, मुनारा-पु० दे० 'मनार'-'मुल्ला मुनारे क्या मुर-पु० [सं०] एक दैत्य जो विष्णुके हाथों मारा गया; चढहि साई न बहरा होइ'-कबीर ।
| बेठन । -जित्,-दर-रिपु-पु० मुरारि, कृष्ण । मुनासिब-स्त्री० [अ०] वाजिब, ठीक, उचित ।
-हा (हन्),-हारी (रिन्)-पु० विष्णुः कृष्ण । मनि-वि० [सं०] मननशील । पु० मौनव्रती, वाक्संयमी, मई-स्त्री० दे० 'मली। ऋषि; तपस्वी; जिन; बुद्धः सातकी संख्या ।-कुमार-पु० | मुरक-स्त्री० मुरकनेकी क्रिया या भाव । अल्पवयस्क मुनि ।-भक्त-भोजन-पुतिन्नीका चावल । | मुरकना-अ० क्रि० मुड़ना; मोच खाना; लौटना; * हिचमुनियाँ-स्त्री० लाल पक्षीकी मादा।
कना; नष्ट होना। मुनींद्र-पु० [सं०] मुनिश्रेष्ठ; बुद्धदेव ।
मुरकाना-स० कि० मुरकनेका कारण होना; मोड़ना; मुनी-पु० दे० 'मुनि'।
फेरना; नष्ट करना। मनीम-पु० हिसाब-किताब रखनेवाला कर्मचारी।
मरकी-स्त्री० कानमें पहननेकी छोटीसी बाली। मुनीमी-स्त्री० हिसाब-किताब रखनेका काम ।
मुरखाई*-स्त्री० मूर्खता। मुनीश, मुनीश्वर-पु० [सं०] मुनिश्रष्ठ; बुद्धदेवः विष्णु। मुरगा-पु० एक पालतू पक्षी जिसके नरके सिर पर कलगी मुन्ना, मुन्नू-पु० छोटे बच्चोंका प्यारका संबोधन । होती है, नर मुरगी, मुर्ग। मु०-बनाना-किसीको मुन्यन्न-पु० [सं०] तिन्नीका चावल ।
उकड़ बैठाकर और घुटनोंके बीचसे दोनों हाथ निकलवामुफलिस-वि० [अ०] गरीब, कंगाल, निर्धन ।
कर कान पकड़वाना, यंत्रणादंडका एक प्रकार । मुफलिसी-स्त्री० [अ०] गरीबी, निर्धनता।
मुरगाबी-स्त्री० [फा०] मुर्गाबी, एक जलपक्षी जो कदमें मुफसिद-पु० [अ०] फसाद करनेवाला; झगड़ालू झगड़ा| मुरगीके बराबर होता है, जलकुक्कुट ।। लगानेवाला।
मुरगी-स्त्री० मादा मुरगा, कुक्कुटी। -का-मुरगीका मुफस्सल-वि० [अ०] तफसीलवार, विस्तृत । अ० खोल- |
जना ( गाली)। -का गू-निकम्मी चीज । -वालाकर, ब्योरेवार । पु० केंद्रस्थ नगरके इर्द-गिर्दके स्थान ।।
पु० मुरगियाँ बेचनेवाला । वि० मुरगीका जना । मु०मुफ्रीद-वि० [अ०] फायदा करने, देनेवाला, लाभकारी। बिठाना-मरगीको अंडेपर बिठाना । मत-वि० [अ०] बिना दामका, सेंतमें मिला हुआ। अ०
मामला हुआ। अ० मुरचंग-पु० दे० 'मुँहचंग। बिनदामों। -खोर-वि०बिना मेहनत किये, दूसरेकी
मुरचा-पु० दे० 'मोरचा' । कमाई खानेवाला। -खोरा-वि० दे० 'मुफ़्तखोर'।
मुरछना*-अ० क्रि० मूच्छित होना । -का-विना दिये प्राप्त, सेंतका; व्यर्थका; बेफायदा। मरछल-पु० दे० 'मोरछल' । -में-बिनदामों; व्यर्थ, बेकार ।
मुरछा-स्त्री० दे० 'मूर्छा'। -वंत-वि० 'मूच्छित'। मुफ्ती-पु० [अ०] फतवा देनेवाला; इसलामी कानूनके मुरछाना-अ० क्रि० मूच्छित होना । अनुसार दंडाज्ञा करनेवाला, शरहे हाकिम ।
मुरछित-वि० दे० 'मूच्छित' । मुबलग़, मुबलि-वि० [अ०] कुल; थोड़ासा; परखा
मुरज-पु० [सं०] पखावज, मृदंग । हुआ। पु० मात्रा; रकम, रुपयेकी संख्या (मुबलिग |
मुरझना-अ० क्रि० कुम्हलाना । पाँच रुपये)।
मुरझाना-अ० क्रि० फूल-पत्तोंका सूखने लगना, कुम्हमुबारक-वि० [अ०] जिसमें बरकत दी गयी हो; बरकतका लाना; चेहरेसे शुष्कता, उदासी आदि प्रकट होना । हेतु; सौभाग्यशाली; शुभ; भला। स्त्री० खुशखबरी। मुरदा-वि० [फा०] मरा हुआ, मृत; मृतवत् बेजान, अति -बाद-स्त्री० बधाई, शुभकामना; मुबारक हो, खुदा । दुर्बल; सूखा, मुरझाया हुआ; मारा हुआ (धातु), कुश्ता। बरकत दे, बधाई । -बादी-स्त्री० दे० 'मुबारकबाद'; पु० मृतक, शव, लाश। -खोर-वि० मुरदा खानेवाला। बधाईके गीत।
-दिल-वि० जिसकी तबीयत मरी हुई हो, निरुत्साह । मुबारकी-स्त्री० [अ०] मुबारकबादी, बधाई ।
-दिली-स्त्री० मुरदादिल होना। -संख-पु० दे०
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मुरदार-मुलहा 'मुरदासंग'। -संग-पु० सीसा और सेंदुरका मिश्रण यो मुकुतन दुति पाइ'-बि० दे० 'मुँडासा' । जो दवाके काम आता है।-सन-पु० दे० 'मुरदासंग'। | मुरीद-पु० [अ०] चेला, शिष्य; अनुगमन करनेवाला । मु०-उठना-जनाजा उठना; मरना (शाप-उसका मुरीदी-स्त्री० [अ०] शिष्यत्व, शागिदी। मुरदा उठे) । -उठाना-मुरदेको दाह या दफन करने- मुरु*-पु० दे० 'मुर'। -सुत-पु० वत्सासुर । के लिए ले जाना । (किसीका)-निकले-मर जाय, मुरुआ-पु० पैरका गट्ठा। जनाजा उठे (शाप)।-(दे)की कब (गोर) पहचानना- मुरुख-वि० दे० 'मूर्ख' । दूसरेकी चालाकी, छल-छमको अच्छी तरह समझना मुरुखाई*-स्त्री० मूर्खता। अति चतुर होना। -की नींद सोना-बेखबर होकर मुरुझना*-अ० कि० दे० 'मुरझाना। सोना, खुर्राटे भरना।
मुरेठा-पु० साफा। मुरदार-वि० [फा०] मरा हुआ; बेजान; अपवित्र, नापाक। मुरेर-स्त्री० दे० 'मरोड़। पु० लाश; अपनी मौत मरा हुआ जानवर । -खोर- मुरेरना*-स० क्रि० दे० 'मरोड़ना' । पु० मरे हुए जानवरका मांस खानेवाला। -माल-पु० | मुरेरा-पु० दे० 'मुँडेर'; दे० 'मरोड़' । हराम माल।
| मरौवत-स्त्री० [अ०] उदारता सौजन्य; दूसरोंका लिहाज%B मुरधर*-पु० मरुस्थल, मारवाड़।
मुलाइजा। मुरना*-अ० क्रि० दे० "मुड़ना।
मुरोवती-वि० मुरौवतवाला। मुरब्बा-पु० [अ०] फलोंका पाक जो उन्हें उबालकर और मुर्ग-पु० [अ०] चिड़िया; भुरगा। -बाज़-पु० मुरगे चाशनी में डालकर तैयार किया जाय । -फरोश-पु. लड़ानेवाला । -बाज़ी-स्त्री० मुरगे लड़ाना। मुरब्बे बेचनेवाला।
| मुर्गाबी-स्त्री० [फा०] एक जल-पक्षी जो मुरगीके बराबर मुरब्बा(ब्बअ)-पु० [अ०] चतुष्कोण क्षेत्र जिसके चारों होता है, जलकुक्कुट ।
भुज बराबर और कोण समकोण हों । वि० वर्ग, वर्गीकृत।। मुर्दनी-स्त्री० [फा०] मृत्युके चिह्न जो चेहरेसे प्रकट हों; मुरमुरा-पु० भुने मक्केकी टुरी; भुने हुए चावल, लाई भारी भय या गहरी चिंताकी छाया (-छाना)।
आदि। -(रों)का थैला-मोटा-ताजा आदमी। मुर्दा-वि०, पु० [फा०] दे० 'मुरदा'। मुररिया-स्त्री० मुरीं, ऐंठन ।।
मुर्रा-पु० मरोड़फली; मरोड़, फरवी। स्त्री० भैसोंकी एक मुरला-स्त्री० [सं०] नर्मदा नदी; मुरली ।
जाति जो अधिक दुधार होती है । मुरलिका-स्त्री० [सं०] मुरली।
मरी-स्त्री. ऐंठन, धागों आदिके दो सिरोंको जोड़ने के मुरलिया*-स्त्री० भरली ।
लिए बट देना; धोतीको लपेटकर कमरपर डाला हुआ मुरली-स्त्री० [सं०] चंशा, बाँसुरी। -धर-पु. मुरली बल; कपड़ेकी धज्जी आदिको बटकर वनायी हुई बत्ती।
धारण करनेवाले, कृष्ण । -मनोहर-पु. कृष्ण । -दार-वि० गाँठदार; ऐंठनदार । मुरवा -पु० पेरका गट्टा, मोर ।
मुर्वी-स्त्री० [सं०] धनुष्की डोरी । मुरवी-स्त्री० धनुषकी डारी ।
मुलक-पु० दे० 'मुल्क' । मरशिद-पु० [अ०] सीधी राह (सन्मार्ग) दिखानेवाला; मुलकना*-अ० क्रि० पुलकित होना; भंद-मंद हँसना, गुरु, पीर ।
मुस्कराना। मुरहाँ-पु० सिर ।
मुलकित*-वि० जो मंद-मंद हँस रहा हो। मुरहा-वि० मूल नक्षत्र में जनमा हुआ (बालक); नटखट; मुलज़म, मुलज़िम-वि० [अ०] जिसपर कोई इलजाम, शैतान । पु० दे० 'भुर' में।
दोष लगाया गया हो। पु० वह व्यक्ति जिसपर किसी मुराड़ा*-पु० लुआठी-'हम घर जाल्या आपना लिया जुर्मका इलजाम लगाया जाय, अभियुक्त । मुराडा हाथ'-कबीर ।
मुलतवी-वि० [अ०] दे० 'मुल्तवी' । मुराद-स्त्री० [अ०] भतलब, अभीष्ट; कामना, मनोरथ । मुलतानी-वि० मुलतानका । पु० मुलतानका रहनेवाला। मु०-पाना-बर आना-कामना पूरी होना, मनोरथ | स्त्री० एक रागिनी। -मिट्टी-स्त्री० एक तरहकी चिकनी सिद्ध होना । -(दी)के दिन-युवावस्था ।
मिट्टी जो सिर मलने, रँगाईमें अस्तर देने आदिके काम मुरादी-वि० [अ०] मुराद रखनेवाला, जिसकी कोई आती है। कामना हो।
मुलना*-पु० दे० 'मुल्लाना' । मुराना-स० क्रि० चुभलाना; चबाना दे० 'मोड़ना'। । मुलमची-पु० मुलम्मा करनेवाला। मुराफा-पु० [अ०] ऊँची अदालतमें पुनर्विचारकी प्रार्थना, मुलम्मा-वि० [अ०] चमकाया हुआ; चाँदी या सोनेका अपील ।
पानी चढ़ाया हुआ। पु० चाँदी, सोनेका पानी जो दूसरी मुरार-पु० कमलकी जड़ जिसकी तरकारी बनती है, धातुपर चढ़ाया जाय; गिलट; कलई; मुलम्मेका काम; भसींडा दे० 'मुरारि'।
दिखावा, टीमटाम । -गर,-साज़-पु० मुलम्मा करनेमुरारि-पु० [सं०] (मुर दैत्यको मारनेवाले) कृष्ण; विष्णु । मुरायठा-पु० मुरेठा, पगड़ी (ग्राम०) ।
मुलहठी-स्त्री० दे० 'मुलेठी'। मुरासा*-पु० तरकी, कर्णफूल-'लसै मुरासा तिय स्रवन मुलहा*-वि० 'मुरहा', शैतान; मूल नक्षत्र में उत्पन्न ।
वाला।
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मुला-मुसम्मात
६५० मुलाँ-पु० मुल्ला।
मुश्की-वि० [फा०] कस्तूरीके रंगकी, स्याह । पु० स्याह मुलाकात-स्त्री० [अ०] एक दूसरेसे मिलना, भेंट मिलना- रंगका घोड़ा।
जुलना, हेल-मेल; जान-पहचान साहब-सलामत । मुश्त-पु० [फा०] मुद्री; घुसा, मुक्का । वि० मुट्ठीभर मुलाक़ाती-पु० [अ०] मिलनेवाला, मित्र; परिचित। थोड़ासा। एकमुश्त-एक साथ या एक ही बार में मुलाज़मत-स्त्री० [अ०] गैकरी, सेवा। -पेशा-पु० दिया जानेवाला (धन)। नौकरीसे जीविका करनेवाला।
मुश्तरका-वि० [अ०] जिसमें कोई शरीक हो, साझेका, मुलाज़िम-पु० [अ०] नौकर, सेवक कर्मचारी। संयुक्त ।-खानदान-पु० संयुक्त परिवार ।-जायदादमुलायम-वि० [अ०] नरम, कोमल, सुकुमार; अनुकूल । स्त्री० संयुक्त संपत्ति, साझेकी चीज । मुलायमत-स्त्री० [अ०] मुलायमपन, नरमी, कोमलता। | मुश्ताक-वि० [अ०] इच्छुक, आकांक्षी,शौक रखनेवाला। मुलायमी-स्त्री० मुलायमत ।
मुषल-पु० [सं०] मूसल । मुलाहजा-पु० [अ०] देखना, निरखना लिहाज, मुरौवत । मुपली(लिन)-पु० [सं०] बलराम (मूसल जिनका एक मुलुक-पु० दे० 'मुल्क' ।
अस्त्र है)। मुलेठी-स्त्री० गुंजा लताकी जड़ जो दवाके काम आती मुषित-वि० [सं०] चुराया हुआ; वंचित । है, यष्टिमधु, जेठीमधु ।
मुषुर*-स्त्री० गुंजार । मुल्क-पु० [अ०] देश; राज्यप्रदेश। -गीरी-स्त्री० मुष्टि-* वि० मष्ट, मौन-"मिले असंत मुष्टि करि रहियेदूसरे देशोंको जीतना और उनपर शासन करना, राज्य- कबीर । स्त्री० [सं०] मुट्ठी; मुट्ठीभरकी मात्रा; धूंसा; मूंठ । विस्तार । -दारी-स्त्री० शासन ।
-चूत-पु. एक तरहका जुआ जिसमें मुट्ठोके भीतरकी मुल्की-वि० [अ०] मुल्कका, देशी; शासन-प्रबंध-संबंधी, चीजका नाम, उसकी संख्या सम (जुफ्त) है या विषम असैनिक । -लाट-पु० गवर्नर-जेनरल ।
(ताक) आदि पूछा जाता है। -द्वंद्व-पु० (बॉक्सिग) वह मुल्तवी-वि० [अ०] देर करनेवाला, आगेके लिए टालने आपसका द्वंद्व जिसमें गद्दीदार (गुलगुले) दस्तानोंसे एक
वाला; रोका या आगेके लिए टाला हुआ, स्थगित । दूसरेपर मुक्कोंका प्रहार किया जाय । -बंध-पु० मुट्टी मुल्लह-पु० दे० 'कुट्टा'।
बाँधना। -भिक्षा-स्त्री० मुट्ठीभर चावलकी भिक्षा । मल्ला-पु० [अ०] मौलवी; मसजिद में रहने या नमाज -मेय-वि० मुट्ठीसे नापने योग्य; मुट्ठीभर; थोड़ा। पढ़ानेवाला; मसजिद या मकतबमें बच्चों को पढ़ानेवाला । -युद्ध-पु० घुसेबाजी (बाक्सिग)। मुल्लाना-पु० मुल्ला (तिर०); मसजिदकी रोटियाँ खाने- मुष्टामुष्टि-स्त्री० [सं०] घुसोंकी लड़ाई, घुसेबाजी। वाला; कट्टर मुसलमान (मौलानाका हिंदुस्तानी रूप)। मुष्टिक-पु० [सं०] कंसके दरबारका एक पहलवान जो मुल्लानी-स्त्री० मुल्लाकी पत्नी।।
बलरामके हाथों मारा गया; घुसा सुनार । मुवकल-पु० [अ०] वह जिसे कोई काम सौंपा गया हो मुष्टिकांतक-पु० [सं०] बलराम । रखवाला; कार्यविशेषपर नियुक्त फरिश्ता ।
मुष्टिका-स्त्री० [सं०] मुट्टी; चूसा। मुवक्किल-पु० [अ०] वकील करनेवाला काम सौंपनेवाला। मुसकनि, मुसकनिया*-स्त्री० दे० 'मुसकान'। मुवज्ज़िन-पु० [अ० ] दे० 'मुअज्ज़िन' ।
मुसकराना-अ० कि० इस तरह हँसना कि न शब्द हो, मुवना*-अ० क्रि० मरना।
न दाँत दिखलाई दें, होंठोंमें हँसना, मंद-मंद हँसना । मुवानिक-वि० [अ०] अनुकूल, अनुसार: तुल्य, सदृश, मुसकराहट-स्त्री० मुसकरानेकी क्रिया, मंद हास । मिलता-जुलता; योग्य, उचित ।
मुसकान, मुसकानि*-स्त्री० दे० 'भुसकराहट'। मुशजर-वि० [अ०] बूटेदार, बेल-बूटेवाला । पु० बूटेदार मुसकाना-अ० क्रि० दे० 'मुसकराना'। कपड़ा।
मुसकिराना, मुसकुराना-अ० क्रि० दे० 'मुसकराना'। मुशल-पु० [सं०] धान इत्यादि कूटनेका मोटा डंडा, | मुसकिराहट, मुसकुराहट-स्त्री० दे० 'मुसकराट'।
मुसक्यान*-स्त्री० दे० 'मुसकान'। मुशली(लिन)-पु० [सं०] मुशलधारी बलराम । मुसक्याना*-अ० क्रि० दे० 'मुसकराना। मुशाइरा-पु० [अ०] शायरोंका इकट्ठा होकर शेर पढ़ना, मुसजर*-पु० दे० 'मुशज्जर' । कवितापाठकी मजलिस।
मुसटी-स्त्री० चुहिया। मुशाहरा-पु० [अ०] मासिक वेतन, वजीफा। मुसना*-अ० क्रि० छीना या चुराया जाना । स० क्रि० मुश्क-पु० [फा०] कस्तूरी । स्त्री० कंधे और कोहनीके | दे० 'मूसना'। बीचका हिस्सा, बाँह । -बिलाव-पु० गंधबिलाव । मसन्ना-पु० [अ०] असल(लेख)की ठीक नकल, दूसरी मुश्किल-वि० [अ०] कठिन, कष्टसाध्या लिष्ट, कठिनाईसे प्रति; रसीदका अद्धा जो देनेवालेके पास रह जाता है। समझमें आनेवाला; स्त्री० कठिनाई; कष्ट । -पसंद- मुसब्बर-पु० घीकुआरका जमाकर सुखाया हुआ रस जो पु० रचनामें क्लिष्ट शब्दावली रखनेवाला, क्लिष्टताप्रिय ।। दवाके काम आता है। मु०-आसान होना कठिनाई दूर होना, संकट कटना । मुसमुंद, मुसमुंध-वि० ध्वस्त, ढहा हुआ। मुश्की-वि० [फा०] कस्तूरीके रंगका, स्याह; कस्तूरीकी मसम्मात-वि० स्त्री० [अ०] नामवाली, नामधेया। स्त्री. गंधवाला; जिसमें कस्तूरी मिली हो।
स्त्री (वो०)।
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मुसल-मुहर्रम मुसल-पु० [सं०] मूसल । -धार-अ० दे० 'मुसलाधार'। मुस्तकिल-वि० [अ०] स्थिर, स्थायी; पक्का, दृढ़, पदमुसलमान-पु० [अ०] इसलाम मजहबको माननेवाला । विशेषपर स्थायी रूपसे नियुक्त । -जगह-स्त्री० स्थायी मुसलमानी-वि० [अ०] मुसलमान-संबंधी । स्त्री० मुसल- पद । -मिजाज-वि० स्थिरचित्त । मान होना, मुसलमान बच्चेकी लिंगेंद्रियके अग्रभागकी मुस्तग़ीस-पु० [अ०] इस्तगासा दायर करनेवाला, फरित्वचाका काटा जाना, खतना मुसलम न स्त्री।
यादी, अभियोक्ता। मुसलाधार-अ० मोटी धारसे, बड़ी-बड़ी बूंदोंसे (मेंह बर- मुस्तनद-वि० [अ०] सनद मानने लायक, प्रामाणिक,
सना)। मु०-मैंह बरसना-देरतक जोरोंकी वर्षा होना।। टकसाली, विश्वसनीय । मुसलायुध-पु० [सं०] बलराम ।
मस्तसना-वि० [अ०] अलग किया हुआ, अपवादभूत । मुसलिम-पु० [अ०] मुसलमान । -लीग-स्त्री० हिंदु-मुस्तैद-वि० [अ० 'मुस्तइद'] तैयार, आमादा; तत्पर स्तानके संप्रदायवादी मुसलमानोंका प्रतिनिधित्व करने चुस्त, तेजीसे काम करनेवाला। वाली संस्था (१९०६ में स्थापित)।
मुस्तैदी-स्त्री० [अ०] तैयारी; तत्परता चुस्ती, तेजी। मुसली-स्त्री० [सं०] एक वनस्पति जिसकी जड़ दवाके मुहकम-वि० [अ०] पक्का, मजबूत, टिकाऊ । काम आती है।
मुहक्रमा-पु० [अ०] दे० 'महकमा। मुसली(लिन्)-पु० [सं०] मूसल धारण करनेवाले, मुहतमिम-पु० [अ०] इहतिमाम करनेवाला, प्रबंधक । बलराम ।
मुहताज-वि० [अ०] जिसे किसी चीजका अभाव और मुसल्लम, मुसल्लमा-वि० [अ०] तसलीम किया हुआ, आवश्यकता हो, हाजतमंद; चाह रखनेवाला; गरीब माना हुआ; अखंडित, पूरा निर्विवाद ।
किसी बातके लिए दूसरेपर आश्रित ( ईश्वर किसीका मुहमुसल्ला-पु० [अ०] वह दरी या बोरिया जिसपर नमाज ताज न करें); विवश । -खाना-पु० वह स्थान जहाँ पढ़ी जाय, जानभाज; नमाज पढ़नेकी जगह, ईदगाह गरीबोंको भोजन आदि दिया जाय । * मुसलमान ।
मुहताजी-स्त्री० [अ०] मुहताज होना। मुसव्विर-पु० [अ०] तसवीर बनानेवाला, चित्रकार; बेल- मुहब्बत-स्त्री० [अ०] चाह, प्रीति, प्रेम, इश्क, स्नेह, बूटे बनानेवाला।
मित्रता। मुसधिरी-स्त्री० [अ०] मुसव्विरका काम या पेशा मुहब्बती-वि० [अ०] प्रेमी, स्नेहशील ।। नक्काशी, चित्रकारी।
मुहम्मद-वि० [अ०] बहुत सराहा हुआ, अति प्रशंसित । मुसहर-पु० एक जंगली (आदिवासी) जाति जो दोने, पु० इसलाम धर्मके प्रवर्तक जिन्हें मुसलमान ईश्वरका पत्तलें बनाने आदिका काम करती है।
दूत और संदेशवाहक (रसूल, पैगंबर) मानते है ।-गोरीमुसाफ़िर-पु० [अ०] सफर करनेवाला, यात्री; परदेशी। पु० शहाबुद्दीन मुहम्मदगोरी जिसने सन् १९९३ में महा
-खाना-पु० मुसाफिरोंके ठहरनेकी जगह, सराय राज पृथ्वीराजको पराजित किया। रेलवे स्टेशनपर (तीसरे दरजेके) मुसाफिरोंके ठहरनेके मुहम्मदी-वि० [अ०] मुहम्मदसे संबद्ध; मुहम्मदका । पु० लिए बना हुआ सायबान । -गाड़ी-स्त्री० यात्रियों को मुहम्मदका अनुयायो, मुसलमान । ले जानेवाली रेलवे ट्रेन, पैसेंजर ट्रेन ।
मुहय्या-वि० [अ०] दे० 'मुहैया' । मुसाफ़िरत, मुसाफिरी-स्त्री० [अ०] सफर, प्रवास महर-स्त्री० किसी चीजपर खुदा हुआ नाम, पद या प्रतीक परदेश।
जिसे हस्ताक्षरके बदले या उसकी प्रामाणिकताके लिए मुसाहबत-स्त्री० [अ०] साथ उठना-बैठना, मुसाहिबी। छाप सकें, मुद्रा; इस प्रकार छापा हुआ नाम आदि, छाप; मुसाहिब-पु० [अ०] साथ उठने-बैठनेवाला, साथी, सुह- अँगूठी; अशी । -बरदार-पु. (राजा या शासककी) बती; राजा-नवाबोंके वे दरबारी जिनका खास काम | मुहर रखनेवाला अधिकारी। -शाही-स्त्री० बादशाहकी बातचीतसे उनका दिल बहलाना होता है।
मुहर, राजकीय मुद्रा। मु०-करना-मुहर लगाना । मुसाहिबी-स्त्री० [अ०] मुसाहिबका पद या काम । -लगना-(आशा आदिका) पक्का हो जाना प्रामाणिकता. मुसीबत-स्त्री० [अ०] कष्ट, दुःख, संकट; विपद् , आफत । की छाप लग जाना। -लगाना-पक्का कर देना; प्रामा
-ज़दा-वि० विपद्ग्रस्त, दुखिया । -का मारा- णिकताकी सनद दे देना। विपद्ग्रस्त, अभागा । -के दिन-दुर्दिन, कष्टकाल । मुहरा-पु० सामना, आगा; बरतन आदिका मुँह मार, मुसुकाना*-अ० क्रि० दे० 'मुसकराना' ।
निशाना धोड़ेके मुँहपर पहनानेका एक साज; सेनाका मुसुकाहट-स्त्री० दे० 'मुसकराहट' ।
अग्रभाग । मु०-लेना-मुकाबला करना ।-(२)पर खड़ा मुसौवर-पु० दे० 'मुसब्बिर' ।
करना-तोप आदिकी मारके सामने खड़ा करना। मुस्कराना-अ० क्रि० दे० 'मुसकराना।
महरा-पु० [फा०] कौड़ी, सीप, शंख; शीशे या मँगेका मुस्कराहट-स्त्री० दे० 'मुसकराहट'।
दाना, मनका; शतरंज या चौसरकी गोट; कागज आदि मुस्क्यान*-स्त्री० दे० 'मुसकान'।
घोंटनेका आला, घोंटना ।-बाज़ी-स्त्री०ऐयारी,बाजीगरी। मुस्टंडा-वि० मोटा-ताजा, तगड़ा; बदमाश ।
मुहरी-स्त्री० दे० 'मोहरी', 'मोरी'। मुस्त, मुस्तक-पु० [सं०] नागरमोथा।
महर्रम-वि० [अ०] हराम ठहराया हुआ, निषिद्ध । पु० मुस्तकबिल-वि० [अ०] भावी । पु० भविष्यत्काल । | मुसलमानी सालका पहला महीना जिसकी दसवीं तारीख
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मुहर्रमी-मूढ
६५२ को इमामहुसैन शहीद हुए शोककाल । मु०-की पैदा- होता है और जो रत्न माना जाता तथा दवाके भी काम इश-सदा खिन्न, उदास रहने, रोनी शकल बनाये आता है, प्रबाल; रेशमका एक भेद । रखनेवाला।
मुंगिया-वि० मूंगके रंगका, हरा। पु० हरे रंगका भेद । महर्रमी-वि० [अ०] मुहर्रमका रोनी सूरतवाला; शोक- मूंछ-स्त्री० ऊपरके होंठपर उगे हुए बाल जो पुरुषका व्यंजक ।
चिह्न है; कुत्ते, बिल्ली, शेरके नथनोंके अगल-बगल उगनेमहर्रिर-पु० [अ०] लिखनेवाला, लेखक, मुंशी।
वाले लंबे विरल बाल । मु०-का बाल-जिसका किसीके मुहर्रिरी-स्त्री० [अ०] मुहरिरका काम या पेशा।। यहाँ बहुत मान-जान, प्रभाव हो ।-नीची होना-लज्जित मुहलत-स्त्री० [अ०] अवकाश, फुरसत; कार्य-विशेषके | होना, बेइज्जत होना ।-(छ) उखड़वाना-मूंछोंके बाल लिए मिलनेवाला समय ।
चुनवा लेना; जलील करना, गर्व चूर करना । -उखामुहल्ला-पु० दे० 'महल्ला'।
ड़ना-गर्व नष्ट करना, कड़ी सजा देना। -मरोड़नामहसिन-पु० [अ०] भलाई करनेवाला, हितैषी (सेवा०)। दे० 'मूंछोंपर ताव देना' । -मुंडवाना-हार मान लेना, मुहसिल*-पु० दे० 'मुहस्सिल'; प्यादा।
पुरुषत्वका दावा त्याग देना (यह बात हुई तो मूछे मुंड़वा मुहस्सिल-पु० [अ०] महसूल वसूल करनेवाला, तहसील- दूंगा)।-(छौँ) पर ताव देना-मूंछोंके सिरोंके बालोंको दार, तहसीलका सिपाही।
मरोड़ना, अपनी बड़ाई करना ।। मुहाफिज़-पु० [अ०] हिफाजत करनेवाला, रक्षक । मूंज-स्त्री० एक तृण जिसके छिलकेकी बान बटते और उप-खाना-पु० कचहरीके अंतर्गत वह स्थान जहाँ निणींत नयनके समय ब्रह्मचारीको जिसकी मेखला पहनाते हैं । मामलोंकी मिसलें रखी जाती है। -दफ्तर-पु० मुहा- मूंडा-पु० सिर, कपाल । -कटा-पु० गला काटनेवाला; फिज खानेका निरीक्षक (रेकर्डकीपर)।
भारी नुकसान पहुँचानेवाला। मु०-चढ़ाना-सिर मुहार-स्त्री० [अ०] ऊँटकी नकेल ।
चढ़ाना। -मुड़ाना-संन्यास लेना। मुहाल-वि० [अ०] कठिना नामुमकिन, अनहोनी। पु० मूंडन-पु. मुंडन-संस्कार । -छेदन-पु० मुंडन और दे० 'महाल' ।
कनछेदन। मुहावरत-स्त्री० [अ०] परस्पर बातचीत करना । | मूंड़ना-स० क्रि० सिरके बाल उस्तुरेसे बनाना; हजामत मुहावरा-पु० [अ०] बोलचाल, बातचीत; लाक्षणिक या बनाना चेला मुंडना ठगना।
कचित् व्यंग्यार्थ में रूढ वाक्य या प्रयोग; अभ्यास । मूंडी-स्त्री० सिर। -काटा-वि० सिरकटा, मरने योग्य, मुहासबा-पु० [अ०] हिसाब; हिसाबकी जाँच, हिसाबके वध्य (पुरुषों के लिए स्त्रियोंकी एक गाली)। -बंध-पु.
बारेमें पूछताछ । मु०-तलब करना-हिसाब माँगना। कुश्तीका एक पंच। मुहासरा-पु० [अ०] चारों ओरसे घेर लेना, घेरा(करना)। मूंदना-स० क्रि० बंद करना, ढकना; रुद्ध करना । मुहासिब-पु० [अ०] हिसाब जानने, करने, लेने या मूंदर*-स्त्री० मुंदरी, अँगूठी। जाँचनेवाला।
मूक-वि०, पु० [सं०] गूंगा। -बधिर-वि०, पु० गूंगामुहासिल-पु० [अ०] मालगुजारी, राजस्व, पैदावार; बहरा ।-बधिर-विद्यालय-पु. Dगों-बहरोंका विद्यालय । आय; नफा (महसूलका बहु०)।
मूकना*-स० क्रि० त्यागना बंधनमुक्त करना। मुहि-सर्व० दे० 'मोहि।
मूका*-पु० भोखा; दे० 'मुक्का'। मुहिब्ब-पु० [अ०] मुहब्बत करनेवाला, प्रेमी; मित्र ।। मूखना*-स० कि० दे० 'मूसना'। -(ब्बे)वतन-पु० देशभक्त, स्वदेश-प्रेमी ।
मूचना*-स० क्रि० दे० 'मोचना'। मुहिम-स्त्री० [अ०] कठिन या भारी काम; युद्ध, चढ़ाई। मुछ-स्त्री० दे० ' छ।
मु०-सर करना-लड़ाई जीतना कठिन काम करना। मुज़ी-वि०, पु० [अ०] ईजा देने, पीडा पहुँचानेवाला, मुहीम*-स्त्री० दे० 'मुहिम' ।
जालिम; दुष्ट । -का चंगुल-जालिमका पंजा । महः(हुस्)-अ० [सं०] वार-बार, पुनः-पुनः। मूठ-स्त्री० कब्जा, दस्ता; मुट्ठी; मुट्ठीभर चीज; एक तरहका मुहर्त-पु० [सं०] १२ क्षणका समय; २ दंड या ४८ जुआ जो कौड़ियोंको मुट्ठी में बंद करके खेला जाता है; मिनटका समय; विवाह, यात्रा आदिके लिए फलित एक तरहका मंत्रप्रयोग । मु०-करना-बटेरको मुट्टीमें ज्योतिषके अनुसार शुभाशुभ काल ।
पकड़कर लड़ाई के लिए तैयार करना। -मारना-मंत्र मुहैया-वि० [अ०] तैयार, प्रस्तुत; आमादा; मौजूद । पढ़कर शत्रुकी ओर कोई चीज फेंकना, टोना करना। मुह्यमान-वि० [सं०] मूञ्छित होता हुआ, मोहयुक्त । मूठना*-अ० कि० नष्ट होना । मूंग-स्त्री० दालके काम आनेवाला एक द्विदल अनाज। मूठा-पु० दे० 'मुट्टा'। मु०-की दाल खानेवाला-बेदम; डरपोक।
मूठि*-स्त्री० दे० 'मूठ', दे० 'मुट्टी'। मुंगफली-स्त्री० एक क्षुप जिसके फल खाने और तेल | मूठी*-स्त्री० दे० 'मुट्ठी'। निकालनेके काम आते हैं, चीनियाबदाम ।
मूड़-पु० दे० 'मँड' । मूंगरी-स्त्री० एक तरहकी तोप।।
मूढ-वि० [सं०] मुग्ध; हक्का-बक्का, हैरान; मूर्ख, जड़बुद्धि । मूंगा-पु० चूनेके तत्त्वसे निर्मित कई रंगोंवाला एक कठोर -गर्भ-पु० मृत या बिगड़ा हुआ गर्भ । -ग्राह-पु. पदार्थ जो समुद्र में रहनेवाले एक तरहके कीड़ोंका घर | गलत धारणा; नासमझके मनमें जमी हुई बात, खन्त ।
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६५३
मूढता-मूलिक -चेता,-बुद्धि,-मति-वि० मूर्ख, नासमझ ।
मृर्तता, ठोसपन। -कला-स्त्री० मूर्ति गढ़नेकी कला । मूढता-स्त्री० [सं०] मूर्खता, नासमझी।।
-कार-पु० मूर्ति बनानेवाला। -प,-पूजक-पु० मूढात्मा(त्मन्)-पु० [सं०] मूर्ख भौचक ।
मूर्तिकी पूजा करनेवाला, पुजारी, बुतपरस्त । -पूजामूत-पु० मूत्र, पेशाब।
स्त्री० देवप्रतिमाका पूजन । -भंजक-पु० मूर्तियोंको मूतना-अ० क्रि० पेशाब करना ।
तोड़नेवाला, बुतशिकन । मूत्र-पु० [सं०] रक्तसे गुर्दोके द्वारा सवित पीतवर्ण द्रव जो | मूर्तिमान(मत्)-वि० [सं०] मूतिविशिष्ट, साकार । मूत्राशय (मसाना)में जमा रहता है और मूत्रमार्गसे | पु० शरीर । बाहर निकलता है, पेशाब। -कृच्छु-पु० शक्कर और
पु०सं०] मूर्धाका समासमें व्यवहृत रूप। कष्टके साथ पेशाब आनेका रोग । -ग्रंथि-स्त्री० मूत्राघात -खोल-पु० [हिं०] छतरी, छत्र । -ज-वि• सिरसे रोगका एक भेद ।-जठर-पु० मूत्राघातके कारण उत्पन्न उत्पन्न होनेवाला । पु० केश। -वेष्टन-पु० पगड़ी। विकार ।-दोष-पु० पेशाबमें कोई खराबी होना प्रमेह । (द)धन्य-वि० [सं०] मूर्धासे उत्पन्न; मूर्धासे उच्चरित; -निरोध,-रोध-पु० पेशाब रुक जानेकी बीमारी। श्रेष्ठ, शीर्षस्थानीय । -वर्ण-पु० देवनागरी वर्णमालाके -पथ-पु० मूत्रमार्ग, मूत्रनली । -परीक्षा- मूर्धासे उच्चरित वर्ण ('ऋ', 'ऋ', टवर्ग और 'ष')। स्त्री० पेशाबकी जाँच, मूत्रके दोषोंको मालूम करना। मूर्द्धा(ईन्), मूर्धा(धन)-स्त्री० [सं०] शिर । -ल-वि० अधिक पेशाब लानेवाली (दवा)। -वृद्धि- मू( )र्धाभिषिक्त-वि० [सं०] जिसके सिरपर अभिषेक स्त्री० मूत्रका प्रचुर परिमाणमें उत्पन्न होना।-शुक्र-पु० किया गया हो; श्रेष्ठ, सर्वमान्य (मत, नियम)। मूत्रके साथ वीर्य निकलनेका रोग। -शूल-पु. मूत्र मूद्धाभिषेक, मूर्धाभिषेक-पु० [सं०] राजाओंके राज्यानली में होनेवाला शूल (यूरिनरी कालिक)।
रोहणक समय सिरपर किया जानेवाला अभिषेक । मूत्राघात-पु० [सं०] पेशाब बंद हो जानेका रोग। मूल-पु० [सं०] जड़, कंद; आदि कारण; उत्पत्तिस्थान; मूत्राशय-पु० [सं०] पेडू में स्थित थैली जिसमें पेशाब आरंभ; ग्रंथकारकी मूल शब्दावली (टीका, व्याख्यासे इकट्ठा होता है, मसाना।
भिन्न); मूल धन; हाथ-पाँव आदिका आदि भाग (भुजमूल, मूत्रित-वि० [सं०] मूत्रके रूप में निकला हुआ; जो पेशाब पादमूल); वस्तुका निचला भाग, पादप्रदेश (पर्वतमूल); लग जानेके कारण गंदा हो गया हो।
चरण; २७ नक्षत्रोंमेंसे उन्नीसवाँ गुणित राशिका मूल; मूर-पु० उत्तर-पश्चिम अफ्रीकामें बसनेवाली एक मुसलमान निकुंज; सूरन । वि० आद्य, प्रधान । -कर्म(न)-पु० जाति; * मूल; मूल नक्षत्र; जड़ी; मूल धन ।
उच्चाटन, वशीकरण आदिका प्रयोग जी मंत्र और जड़ीमूरख-वि० दे० 'मूर्ख' । -ताई*-स्त्री० मूर्खता। बूटियोंकी जड़से किया जाय, टोना। -कार-पु० मूल मूरछना*-स्त्री० दे० 'मूर्च्छना' । अ० क्रि० मूच्छित ग्रंथकर्ता। -कारण-पु० आदि कारण, प्रधान हेतु । होना।
-ग्रंथ-पु० मूल ग्रंथकारकी रचना, असल किताब मूरछा*-स्त्री० दे० 'मू.'।
(जिसकी टीका, व्याख्या की गयी हो)। -च्छेद,मूरत-स्त्री० दे० 'मूर्ति'।
च्छेदन-जड़से उखाड़ देना, समूल नाश। -धन-पु० मूरति-स्त्री० दे० 'मूर्ति' । -वंत-वि० मूर्तिमान् । व्यापार आदिमें लगायी हुई पूँजी ।-धातु-स्त्री० मज्जा। मूरध-स्त्री० दे० 'मूर्धा' ।
-पदार्थ-पु. भौतिक जगत्का उपादानभूत अयोगिक मूरि, मूरी-स्त्री० मूल, जड़ी बूटी।
पदार्थ, तत्त्व । -पाठ-पु० (टेक्स्ट] किसी लेखक, विधामूरुख-वि० दे० 'मूर्ख' ।
यक या प्रस्तावकके वे मूल शब्द जिनका प्रयोग उसने मूर्ख-वि० [सं०] मूढ, नासमझ, अश। -पंडित-वि० स्वयं ही अपने लेख, विधेयक, प्रस्ताव आदि में किया हो। पढ़ा-लिखा मूर्ख ।-मंडल-पु०,-मंडली-स्त्री० मूलंकी -पुरुष-पु. वंशका आदि पुरुष । -प्रकृति-स्त्री० टोली, दल।
प्रपंचकी कारणरूप शक्तिः सत्त्व, रज, तमकी साम्यामूर्खता-स्त्री०, मूर्खत्व-पु० [सं०] मूढता, नासमझी। वस्था, प्रधान (सांख्य)। -भूत-वि० मूल, आधाररूप, मूर्खिनी*-स्त्री० मूर्खा, मूर्ख स्त्री।
जड़का काम देनेवाला, बुनियादी। -मंत्र-पु० कुंजी, मूर्छन-पु० [सं०] मूच्छित होना या करना; पारेका | मूल तत्त्व । -वित्त-पु० मूल धन । -व्याधि-स्त्री०
तीसरा संस्कार बेहोश करनेका मंत्र; दे० 'मृहना।। मुख्य रोग, असल मर्ज। -व्रती(तिन्)-पु० केवल मूच्र्छना-स्त्री० [सं०] मूर्छा; संगीतमें ग्रामका सातवाँ जड़ें-कंद, मूल खाकर रहनेवाला । -स्थान-पु० आदि भाग, सातों स्वरोका क्रमसे आरोहण-अवरोहण ।
स्थान, बाप-दादोंका वासस्थान; परमेश्वर; राजधानी मूच्र्छा-स्त्री० [सं०] बेहोशी, संशालोप, सम्मोह मूर्च्छन; मुलतान नगर । -स्रोत(स)-पु० झरने, नदी आदिवृद्धि; व्याप्ति । -रोग-पु० बेहोशीकी बीमारी, हिस्टी- का उद्गम-स्थान; मुख्य धारा। रिया रोग।
मूलक-वि० [सं०] (समासके अंतमें) मूलवाला मूलसे उत्पन्न मूञ्छित-वि० [सं०] मूर्छायुक्त, बेहोश संस्कार किया (पापमूलक, भ्रांतिमूलक)मूल नक्षत्रमें उत्पन्न । पु० मूली । हुआ (सोना, लोहा आदि धातु)।
मूलतः(तस्)-अ० [सं०] मूल रूपमें; आदिमें, प्रथमतः । मूर्त-वि० [सं०] मूतियुक्त, साकार ठोस, कठिन । मूलिक-वि० [सं०] मूलगत; मौलिक; प्रधान, मुख्य; जो मर्ति-स्त्री० [सं०] शरीर स्वरूप या शकल, प्रतिमा अभी प्रथम बार हुआ हो।
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मूलिका-मृडा मूलिका-स्त्री० [सं०] जड़; जड़ोंका ढेर जड़ी।
सींग, अनहोनी बात। मली-स्त्री० एक पौधा जिसकी जड़ और पत्ते शाककी तरह मषिका-स्त्री० [सं०] चहिया; कुल्हिया।।
खाये जाते हैं । मु०-गाजर समझना-तुच्छ समझना। | मूस-पु० चूहा। -दानी-स्त्री० चूहा फंसानेका संदूक मूल्य-पु०[सं०] वस्तुके बदले में दिया जानेवाला धन, कीमत, या पिंजड़ा। दाम वेतन, पारिश्रमिक; उपयोगिता ।-तल,-स्तर-पु० मूसना-स० क्रि० चुराना चुराकर ले जाना। (लेवल ऑफ प्राइसेज़) मूल्योंकी ऊपरी रेखा या सतह । मूसर*-पु० दे० 'मूसल'। -नियंत्रण-पु० (प्राइस कंट्रोल) वस्तुओंके मूल्य में अनु- मूसल-पु० लकड़ीका मोटा डंडा जिससे धान कूटते हैं, चित वृद्धि न होने देनेकी दृष्टिसे किया जानेवाला नियंत्रण मुघल । -चंद-पु० मुस्तंडा; धींगड़ा । -धार-अ० दे० या प्रतिबंधन । -निरूपण-पु० (वैलुएशन) किसी वस्तु, 'मुसलाधार'। मु०-(लौं) ढोल बजाना-बहुत खुशी संपत्ति या किसीकी योग्यता आदिका मूल्य निश्चित मनाना, अत्यंत प्रसन्नता प्रकट करना। करना, किसी जानकार द्वारा किसी वस्तु आदिके मूल्यका मसली-स्त्री० एक पौधा जिसकी जड़ दवाके काम आती है। अनुमान लगाया जाना । -रहिता-हीन-वि० जिसका मूसा-पु० चहा; यहूदी धर्मके प्रवर्तक जो पैगंबर या कुछ मूल्य न हो, निकम्मा । -वृद्धि-स्त्री० दाम बढ़ना। । ईश्वरके संदेशवाहक माने जाते हैं। -सूचनांक-पु० ( इंडेक्स नंबर) खाद्यान्न, वस्त्र तथा | मृग-पु० [सं०] पशु, जंगली जानवर; हिरन; कपोत; अन्य वस्तुओंका विभिन्न समयोंका मूल्य बतलानेवाला मृगशिरा नक्षत्र, मार्गशीर्ष मास; चंद्रमाका लांछन कामअंक । (सामान्य स्थितिके समयका मूल्य प्रायः१०० मान शास्त्रमें माने हुए पुरुषके चार भेदोंमेंसे एक । -काननलिया जाता है । इससे बढ़ते या घटते हुए अंक आपेक्षिक पु० उद्यान; शिकारके जानवरोंसे भरा हुआ वन । महँगी या सस्तोके परिदर्शक होते हैं ।)-हास कोष-पु० -चर्म (न)-पु० हिरनकी खाल जो पवित्र मानी जाती (डेप्रीशियेशन फंड) यंत्र, सामान, उपकरणों आदिके घिस है। -छाला-पु० [हिं०] दे० 'मृगचर्म' । -छौना-पु० जाने, पुराने तथा बेकाम हो जाने के कारण उनके मूल्य में । [हिं०] मृगशावक, हिरनका बच्चा।-जल-पु० मृगतृष्णा । क्रमशः होनेवाली घटी पूरी करनेके उद्देश्यसे स्थापित -जल-स्नान-पु० मृगजल में स्नान, अनहोनी बात । कोष या निधि ।
-तृषा,-तृष्णा,-तृष्णिका-स्त्री० कड़ी धूप में रेतीले मूल्यन-पु० [सं०] (वैलुएशन) दे० 'मूल्य-निरूपण'। मैदानों में होनेवाली जलधाराकी मिथ्या प्रतीति । -दावमूल्यवान् (वत्)-वि० [सं०] मूल्यवाला, दामी, कीमती। पु० शिकारके जानवरोंसे भरा हुआ बन; सारनाथ । मूल्यांकन-पु० [सं०] मूल्य निर्धारित या निश्चित करनेकी -धर-पु० चंद्रमा ।-नयना,-नयनी-वि०स्त्री० हिरन क्रिया (वैलुएशन) मूल्य-निरूपण।
या मृगशावककीसी आँखोंवाली (स्त्री)।-नाभि-पु० कस्तूरी; मूल्यादेय वस्तुएँ-स्त्री० (वैल्युपेयेबिल आर्टिकिल्स) डाक- कस्तूरीमृग । -पति-पु० सिंह । -मद-पु० कस्तूरी । खाने द्वारा भेजी गयी वे वस्तुएँ, (या रेल द्वारा भेजे गये -मास-पु० मार्गशीर्ष मास । -मेद* --पु० मृगमद, मालकी बे) रसीदें, बिल्टियाँ आदि जो पानेवालेके हाथ कस्तूरी । -राज-पु० सिंह; व्याघ्र ।-राट (ज)-पु० उनपर अंकित मूल्य लेकर ही अर्पित की जा सकती है। सिंह । -रोचना-स्त्री० पीला अंगराग। -लांछन-पु० मूल्याधिरोह-पु० [सं०] (एप्रीशियेसन) दे० 'मूल्योत्कर्ष' । चंद्रमा । -लेखा-स्त्री० चंद्रमाका धब्बा, मृगांक । मूल्यानुपाती कर (शुल्क)-पु० [सं०] (ऐड वैलोरिम | -लोचना,-लोचनी-वि० स्त्री० मृगनयनी । -वारिड्यूटी) किसी वस्तुपर उसके मूल्यके अनुसार लगनेवाला पु० मृगजल |-शाव,-शावक-पु० मृगछौना, हिरनका कर या शुल्क ।
सुकुमार बच्चा । -शिर (स)-पु०,-शिरा-स्त्री० २७ मूल्यापकर्ष-पु० [सं०] (टेप्रोशियेशन) मुद्रा, सरकारी नक्षत्रोंमेंसे पाँचवाँ । -शीर्ष-पु० मृगशिरा नक्षत्र मार्गऋणपत्रों, कारखानों में प्रयुक्त यंत्रादिके मूल्यमें कमी हो शीर्ष मास । -श्रेष्ठ-पु० व्याघ्र । जाना, उतार आ जाना, मूल्यहास, मूल्यावरोहण । मृगया-स्त्री० [सं०] शिकार; आखेट ।-वन-पु० शिकारमूल्यावपात-पु० [सं०] (स्लंप) वस्तुओंके मूल्यमें एकाएक तथा तेजीसे होनेवाली कमी, अर्घपतन, सस्ती।। | मृगांक-पु० [सं०] चंद्रमा, चंद्रमाका धन्या; कपूर; वायु मूल्यावरोहण-पु० [सं०] (डेप्रीशियेशन) दे० 'मूल्यापकर्ष'। एक प्रसिद्ध रसौषध । मूल्योत्कर्ष-पु० [सं०] (एप्रीशियेशन) मुद्रा, सरकारी ऋण- मृगांतक-पु० [सं०] चीता। पत्रों आदिके सापेक्ष मूल्यमें वृद्धि होना, मूल्याधिरोह। मृगाक्षी-वि० स्त्री० [सं०] मृगनयनी। मूश-पु० [फा०] चूहा। -दान-पु. चूहा फँसानेका मृगाजिन-पु० [सं०] मृगचर्म । संदूक या पिंजड़ा।
मृगादन-पु० [सं०] शेर, चीता। मप-पु० [सं०] चूहा, मूसनेवाला; गवाक्ष, मोखा; सोना- मृगाश, मृगाशन-पु० [सं०] सिंह । चाँदी गलानेकी कुल्हिया।
मृगी-स्त्री० [सं०] हिरनी स्त्रियोंका एक भेद । मूषक-पु० [सं०] चूहा; चोर । -वाहन-पु० गणेश। मृगेंद्र-पु० [सं०] सिंह; व्याघ्र । मूषण-पु० [सं०] मूसना, चुराना ।
मृग्य-वि० [सं०] जिसका पीछा या अन्वेषण किया जाय । मूषिक-पु० [सं०] चूहा; चोर, सिरसका पेड़, एक प्राचीन मृड-पु० [सं०] शिव । जनपद । -रथ-पु० गणेश। -विषाण-पु० चूहेका मृडा, मृडानी-स्त्री० [सं०] पार्वती, दुर्गा ।
| गाह।
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मृडालिनी - स्त्री० [सं०] कमलका पौधा, कमलिनी; कमलसमूह; कमलों से भरा हुआ स्थान ।
मृडाली - स्त्री० [सं०] कमलनाल | मृणाल - पु० [सं०] कमलनाल, कमलकी जड़; खस । मृणालिनी - स्त्री० [सं०] कमलनी; कमलका समूह; कमल से युक्त सर ।
मृण्मय - वि० [सं०] मिट्टीका बना हुआ । मृत - वि० [सं०] मरा हुआ, मुर्दा; मृतवत्; मारा हुआ, कुश्ता (धातु) । - कल्प - वि० मृतप्राय, मरा हुआ-सा । -गृह- पु० कम । - वेल- पु० मुरदे के ऊपर डाला गया कपड़ा । - दार- वि०, पु० रँडुआ । निर्यातक-पु० मुर्दों को श्मशान पहुँचानेका पेशा करनेवाला । भर्तृका - स्त्री० वह स्त्री जिसका पति मर चुका हो, राँड । - लेखा - पु० ( डेड अकाउंट ) ( डाकघर के सेविंग्स बैंकका) वह लेखा जिसमें लंबे अरसे से कोई रकम जमा न की गयी हो अथवा न निकाली गयी हो, और इस कारण जो चालू न रह गया हो । - वत्सा - स्त्री० वह स्त्री जिसकी संतान जीवित न रहती हो । -संजीवनी - वि० स्त्री० मुर्देको जिलानेवाली ( औषधि ) । स्त्री० मुर्देको जिलानेकी विद्या, मंत्र । - स्नान- पु० किसी व्यक्तिके मरनेपर किया जानेवाला स्नान; मृतकका स्नान । मृतक - पु० [सं०] मुर्दा, शव; मरणाशौच । मृतकांतक - वि० [सं०] गीदड़, सियार । मृताशौच - पु० [सं०] मृत्युका सूतक । मृति - स्त्री० [सं०] मृत्यु, मौत । मृत् (द्) -स्त्री० [सं०] मिट्टी । - पात्र - (द्) भांड - पु० मिट्टीका बरतन । - पिंड - पु० मिट्टीका ढेला, लोंदा । मृत्तिका - स्त्री० [सं०] मिट्टी । - लवण - पु० लोना । मृत्युंजय - वि० [सं०] मौतको जीतनेवाला । पु० शिव; शिवका एक अकालमृत्युनिवारक मंत्र ।
मृत्यु - स्त्री० [सं०] प्राणवियोग, मरण, मौत । पु० यम; ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक । -कर- वि० मरणकारक । पु० किसीकी मृत्यु होनेपर उसकी संपत्तिके संबंध में लगनेवाला कर | - काल - पु० मौतकी घड़ी । दूत-पु० मौतकी खबर लानेवाला । - पत्र - पु० वसीयतनामा । -पाशपु० यमका फंदा । - योग- पु० ग्रह-नक्षत्रोंका मृत्युकारक योग । - लेख - पु० (टेस्टेमेंट) मृत्यु के समय या मृत्युके कुछ पहले संपत्ति के विभाजन, दान आदिके संबंध में अपनी इच्छा प्रकट करनेके लिए लिखा गया लेख या पत्र | - लोक-पु० यमलोक; मर्त्यलोक 1 - शय्या - स्त्री० वह शय्या जिसपर रोगी की मृत्यु हो, मरनसेज; ऐसे रोगी की शय्या जो दो-चार दिनका मेहमान हो या जिसकी मृत्यु निश्चित हो ।
मृत्सा, मृत्स्ना - स्त्री० [सं०] अच्छी, चिकनी मिट्टी; मिट्टी । मृथा * - अ० वृथा, व्यर्थ । वि० दे० 'मृषा' । मृदंग-पु० [सं०] ढोलकी तरहका एक बाजा, मुरज । मृदंगी (गिन् ) - पु० [सं०] मृदंग बजानेवाला । मृदा - स्त्री० [सं०] मिट्टी ।
मृति - वि० [सं०] कुचला, मसला, चूर किया हुआ । मृदु - वि० [सं०] कोमल, मुलायम; दयायुक्त, जो तीखा न
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मृडालिनी - मेघ
हो, मधुर (स्वर, वचन); मंद (गति) । -कोष्ठ - वि० नरम कोठेवाला, जिसे हलके विरेचनसे दस्त आ जाय । -भाषी( चिन् ) - वि० मधुरभाषी । - स्पर्श- वि० जो छूने में मुलायम हो । पु० कोमल स्पर्श, बहुत हलके हाथों से छूना । मृदुता - स्त्री० [सं०] नरमी, कोमलता; मंद- मधुर होना । मृदुल - वि० [सं०] कोमल, मृदु । मृदुलाई * - स्त्री० मृदुलता, नरमी ।
मृदूकरण- पु० (मिटिगेशन) नरम या हलका बना देना; तीक्ष्णता कम कर देना; शमन ।
मृनाल * - पु० दे० 'मृणाल' । मृषा - अ० [सं०] झूठमूठ, झूठे तौरपर; वृथा । वि० झूठ, मिथ्या । -ज्ञान- पु० अज्ञान । - भाषी ( षिन् ) - वि० झूट बोलनेवाला । -वाद-पु० झूठ; मिथ्या वाक्य; चापलूसी । - वादी ( दिन ) - वि० झूठा, मिथ्याभाषी । मृष्ट-वि० [सं०] शोधित, साफ किया हुआ; विचारित । मेँ - प्र० अधिकरण कारकको विभक्ति । स्रं ० बकरीकी बोली । - मे - स्त्री० बकरीकी बोली । मँगनी - स्त्री० ३० 'मेगनी' । मँड़-स्त्री० खेतको हदबंदी, सिंचाई आदिके लिए उसके इर्द-गिर्द बनाया हुआ मिट्टीका घेरा, डाँड़ा; प्रतिष्ठा । - बंदी - स्त्री० हदबंदी, मेंड़ बनाना ।
मँडरानrt - अ० क्रि० मँडराना, - 'राजपंखि तेहिपर मेंडराही' - प० ।
मेंढक - पु० दे० 'मेढक' ।
मेढकी - स्त्री० दे० 'मेढकी' ।
मेंबर - पु० [अ०] सदस्य, सभासद् ।
- पु० वर्षा, झड़ी ।
मेहदी - स्त्री० दे० 'मेहंदी' ।
मेकल - पु० [सं०] अमरकंटक पर्वत । - कन्या, -सुतास्त्री० नर्मदा नदी ।
मेन - स्त्री० [फा०] खूँटा; खूँटी; कील | मु० - ठोंकना - हाथ-पाँव में कीलें ठोंक देनेकी सजा देना; हराना, दबा लेना । - मारना - कील ठोंकना; बाधक होना । मेखड़ा - पु० झावेके मुँहपर बाँधनेका बाँसकी फट्टीका घेरा । मेखल - * स्त्री० दे० 'मेखला' | पु० [सं०] दे० 'मेकल' । मेखला - स्त्री० [सं०] करधनी, किंकिणी; धागे आदिकी करधनी, कटिसूत्र; तीन लड़वाली मुंज-मेखला जो उपनयनकाल में ब्रह्मचारीको धारण करनी पड़ती है; तलवार बाँधनेका कमरबंद; पहाड़को ढाल, शैल - नितंब । मेखली - स्त्री० रामलीला आदि में व्यवहृत एक पहनावा; * करधनी ।
मेगनी - स्त्री० भेड़-बकरी आदिकी लेंड़ी ।
मेघ - पु० [सं०] वादल; छः मुख्य रागोंमेंसे एक । -कालपु० वर्षाऋतु । -गर्जन- पु०, गर्जना - स्त्री० बादलोंका गरजना । -- जाल - पु० मेघसमूह, घनघटा । - जीवन - पु० चातक । - ज्योति ( स ) - स्त्री० बिजली । - डंबरपु० बादलों का गरजना । - दीप-पु० बिजली । - दूतपु० महाकवि कालिदासका एक खंडकाव्य जिसमें एक विरही पक्षने अपनी प्रेयसीके पास अपना सँदेसा भेजने के लिए मेघको दूत बनाया है । - नाद - पु० मेघका गर्जन;
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मेघांत-मेवा
रावणका बेटा इंद्रजित् । -माला-स्त्री० वादलोंकी पंक्ति। मेध-पु० [सं०] यश, हवि । -योनि-पु० कुहरा धुआँ । -रेखा,-लेखा-स्त्री० मेधा-स्त्री० [सं०] धारणाशक्ति, बुद्धि । मेघपंक्ति । -वाई*-स्त्री० मेघमाला, बादलोंका समूह। मेधावान(वत्)-वि० [सं०] मेधावी । -वाहन-पु० इंद्र । -व्रती(तिन् )-पु० चातक । मेधावी (विन्)-वि० [सं०] मेधायुक्तबुद्धिमान् ; पंडित । -सार-पु० चीनिया कपूर ।
मेध्य-वि० [सं०] स्मृति, बुद्धि बढ़ानेवाला; पवित्र; यशमेघांत-पु० [सं०] वर्षाका अंत; शरत्काल ।
संबंधी; यशके योग्य । पु० जौ खदिर; बकरा । मेघा-पु. मेंढक (ग्रामगीत)।
मेनका-स्त्री० [सं०] एक अप्सर। जिसके गर्भसे शकुंतलामेघागम-पु० [सं०] बर्षाकाल वर्षाका आरंग। की उत्पत्ति हुई; हिमवान्की पत्नी, मेना। मेघाच्छन्न-वि० [सं०] बादलोंसे ढका हुआ।
मेनकात्मजा-स्त्री० [सं०] शकुंतला; पार्वती । मेघाडंबर-पु० [सं०] बादलोंका गरजना ।
मेना-स्त्री० [सं०] हिमवान्की पत्नी, मेनका । मेघानंद-पु० [सं०] वक; मयूर ।
मेम-स्त्री० विवाहिता अंग्रेज या यूरोपीय स्त्री ताशका पत्ता मेधारि-पु० [सं०] वायु ।
जिसे 'रानी' भी कहते है । -साहबा-स्त्री० प्रतिष्ठित मेघावरि*-स्त्री० धनघटा ।
अंग्रेज या यूरोपीय महिला मेमकी तरह रहनेवाली स्त्री। मेधोदय-पु० [सं०] घटाका उठना ।
मेमना-पु० भेड़का बच्चा; * घोड़ेकी एक जाति । मेचक-वि० [सं०] काला, कृष्णवर्ण । पु० कालिमा, अंध- मेमार-पु० [अ०] इमारत वनानेवाला, राज, थवई । कार मेध ।
मेर*-पु० दे० 'मेल'। मेचकता-स्त्री० [सं०] श्यागता, स्याही ।
मेरवना*-स० कि० दे० 'मिलाना'। मेचकताई-स्त्री० मेचकता।
मेरा-सर्व० 'मैं'का संबंधकारक रूप, मदीय । * पु० दे० मेज़-स्त्री० [फा०] लकड़ी, संगमरमर आदिकी बनी ऊँची 'मेला'। चौकी जो खाना खाने, लिखने आदिमें आधारके रूपमें मेराउ, मेराव-पु० मिलाप, मेल, भेंट-'गहन छूट काममें लायी जाती है, टेबुल । -पोश-पु० मेजपर | दिनअरकर ससिसो भयेउ मेराउ'-५०। बिछानेका कपड़ा। -बान-पु० आतिथ्य करनेवाला, मेराना -सक्रि० मिलाना। भोजनका निमंत्रण देनेवाला । -बानी-स्त्री० अतिथि- मेरु-पु० [सं०] सुमेरु पर्वत जपमालामें सबसे ऊपर रहनेसत्कार, मेहमानदारी।
वाला प्रधान मनका; हारका मध्यमणि लघु-गुरुके विचारसे मेजा-पु. मेढक ।
छंदोंकी संख्या जाननेकी प्रक्रिया (पिंगल); उत्तर ध्रुव । मेट-पु० कुलियों, मजदूरोंका मुखिया, जमादार । -दंड-पु० रीढ़ एकसे दूसरे ध्र वको जानेवाली कल्पित मेटक-पु० मिटाने, नाश करनेवाला ।
सरल रेखा। मेटनहार*-पु० मिटाने, अन्यथा करनेवाला ।
मेल-पु० प्रीति, मनका मिलन; मित्रता; अनुकूलता, मेटना*-स० कि० दे० 'मिटाना' ।
संगति मिलावट; जोड़ या. टक्कर; तरह, किस्म । [सं०] मेटा*-पु० भाँडा, घड़ा-'औ अमृत गुरंब भरे मेटा'--५०। मिलन, मिलाप; संग; मेला। -जोल,-मिलाप-पु. मेड़िया-स्त्री० मढ़ी।
[हिं०] प्रीति-संबंध, राहोरस्म, घनिष्ठता। मु०-खाना,मेढक-पु. एक छोटा जंतु जो जल-स्थल दोनोंमें रह सकता बैठना-पटना, अनुकूलता होना; संगतिक उपयुक्त होना। है, मंडूक ।
मेलन-पु० [सं०] मिलन; संग मुठभेड़, मिलाना;मिलावट । मेढकी-स्त्री० मादा मेढक, मंडूकी । मु०-को जुकाम मेलना*-स० क्रि० मिलाना डालना, उँडेलना; पहनाना होना-छोटे आदमीमें बड़ोंकी बराबरी करनेका हौसला -'मेली कंठ सुमनकी माला-रामा०; फेंकना, चलाना होना।
-'जापै मेलत सूल वह सुनिये त्रिभुवन राय'-राभ०% मेढ़ा-पु० नर भेड़, मेष ।
ढकेलना । अ०कि.मिलना, समागम होना; पहुँचना । मेढ़ियाँ-स्त्री० मढ़ी, घर ।
मेला-पु. भीड़, जमाव; चीजोंकी खरीद-बिक्री, देवदर्शन, मेढी-स्त्री० तीन लड़ियोंवाली चोटी।
तीर्थस्थान, सैर-तमाशे आदिके लिए नियत तिथि और मेथिका-स्त्री० [सं०] मेथी।
स्थानमें होने वाला लोगोंका जमाव । स्त्री० [सं०] मिलन, मेथी-स्त्री० एक पत्रशाक जिसके दाने मसाले और दवाके | समागम; जमाव । -ठेला,-तमाशा-पु० [हिं०] मेला, भी काम आते हैं।
सैर-तमाशा । मु०-लगना-जमाव होना,भीड़ लगना । मेथौरी-स्त्री० मेथीका साग मिलाकर बनायी हुई वरी। मेलान*-पु० मंजिल, पड़ाव; डेरा डालना-'सागर तीर मेद(स)-पु० [सं०] मांससे उत्पन्न एक धातु, चवीं; ची | मेलान पुनि करिहैं रघुकुल नाह'-राम ।
या मोटाई बहुत बढ़ जानेका रोग । * स्त्री० दे० 'मेदा'। मेलापक-पु० [सं०] मिलाने, इकट्ठा करनेवाला; ग्रहोंका मेदस्वी(स्विन)-वि० [सं०] मोटा, जिसके बदनमें संयोग, भीड़, जमाव । अधिक चबी हो।
मेली-वि०अधिक लोगोंसे हेल-मेल रखनेवाला,मिलनसार । मेदा-पु० [अ०] आमाशय, पेट ।
पु० मित्र, संगी।-मुलाकाती-पु० संगी-साथी, मित्र । मेदिनी-स्त्री० [सं०] पृथ्वी, धरती; मेदा; एक शब्दकोष। मेवा-पु० [फा०] फल; सुखाया हुआ फल (चिलगोजा, मेदर-वि० [सं०] अतिशय चिकना, मोटा।
| बादाम आदि)।-फरोश-पु० ताजे या सुखाये हुए फल
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मेवाटी-मैमत बेचनेवाला।
-परस्ती-स्त्री० मद्यपानका व्यसन, शराबकी लत । मेवाटी-स्त्री० मेवा भरकर बनाया जानेवाला एक पकवान। -फरोश-पु० शराब बेचनेवाला, मद्य-विक्रेता । मेवासा*-पु० दे० 'मवास' ।
मैका-पु० दे० 'मायका'। मेवासी-पु० दे० 'मवासी', गृहस्वामी ।
मैगल*-वि० दे० 'मदगल'। मेष-पु० [सं०] भेड़, मेढ़ा; बारह राशियों से प्रथम । मैजल-स्त्री० दे० 'मंजिल'। -पाल,-पालक-पु० गड़ेरिया । -संक्रांति-स्त्री० | मैढ़*-स्त्री० मेंड, प्रतिष्ठा (छत्र०)। सूर्यके मेषराशि में प्रवेश और सौर वर्ष के प्रारंभका दिन । मैत्रावरुण, मैत्रावरुणि-पु० [सं०] अगस्त्य; वसिष्ठ । मेहंदी-स्त्री० एक झाड़ी जिसकी पत्तियाँ पीसकर स्त्रियाँ मैत्री-स्त्री० [सं०] मित्रता, दोस्ती । हाथ-पैर रेंगनेके काम में लाती है ।
मैत्रेयी-स्त्री० [सं०] याज्ञवल्क्यकी पत्नी; अहल्या । मेह-पु० वर्षाः झड़ी (पड़ना, बरसना)। दे० 'मेघ'; [सं०] मैत्र्य-पु० [सं०] मित्रता । मूत्र, प्रमेह मेष, मेढ़ा; बकरा। मु०-की आँख न | मैथिल-वि० [सं०] मिथिलाका । पु० मिथिलानिवासी: खुलना-लगातार गहरी वर्षा होना।
मिथिलानरेश (जनक)। -कवि-कोकिल-पु० विद्यामेहतर-पु० [फा०] भंगी, मैला साफ करनेवाला । पति। मेहतरानी-स्त्री० [फा०] भंगिन ।
मैथिली-स्त्री० [सं०] सीता मिथिलाकी भाषा । मेहनत-स्त्री० [अ०] श्रम; कोशिश, उद्योग, कष्ट । -कश मैथुन-पु० [सं०] जोड़ा खाना, स्त्री-पुरुषका समागम, -वि०, पु० मेहनत करनेवाला, मजदूर कष्ट उठानेवाला। रतिक्रिया; विवाह । -ज्वर-पु० कामज्वर । -मजदूरी-स्त्री० शारीरिक श्रमका काम, उजरतपर की मैथुनिक-वि० [सं०] (सेक्शुअल) संभोग-क्रिया या संभोगजानेवाली मजदूरी मु०-ठिकाने लगना-श्रम सफल | वासनासे संबंध रखनेवाला; स्त्री और पुरुषसे, उनके पारहोना।
स्परिक व्यवहारादिसे जिसका संबंध हो। मेहनताना-पु० पारिश्रमिक, मजदूरी वकीलकी फीस । मैदा-पु० [फा०] बहुत बारीक आटा । -(दे)की लोईमेहनती-वि० [अ०] मेहनत करनेवाला, परिश्रमी। | बहुत मुलायम (पेट)। मेहमान-पु० [फा०] जो दूसरेके घर जाकर टिके, अतिथि, मैदान-पु० [फा०] चौड़ी-चकरी समतल जमीन; घुड़दौड़, पाहुना; भोजनके लिए निमंत्रित जन । -खाना-पु० खेल आदिका स्थान; रणक्षेत्र, अखाड़ा; कलमकी तराश अतिथिशाला; मुसाफिरखाना । -दार-पु० अतिथि- । विस्तार क्षेत्र (गजलका मैदान)।-(ने) जंग-पु० युद्धसत्कार करनेवाला, मेजवान। -दारी-स्त्री० अतिथि- क्षेत्र, रणभूमि । मु०-करना*-युद्ध करना।-छोड़नासत्कार, मेहमानोंकी खातिर-तवाजा । -नवाज़-वि० जगह छोड़ना; रणक्षेत्रसे भागना। -जाना-शौचके मेहमानोंकी खातिर-तवाजा करनेवाला, खिलाने-पिलाने- लिए बस्तीके बाहर जाना। -जीतना,-मारना-लड़ाई का शौकीन । -नवाजी-स्त्री० मेहमानदारी ।
जीतना, विजय-लाभ करना। -बदना-लड़ने, बलमेहमानी-स्त्री० मेहमानदारी; किसीके यहाँ मेहमान होना, परीक्षाके लिए दिन, स्थान नियत करना। -में आनापहुनाई।
लड़ने, मुकाबलेके लिए सामने आना। -में उतरनामेहर-स्त्री० दे० 'मेह' । --बान-वि० दे० 'मेहबान' । कुश्तीके लिए अखाड़ेमें आना; कार्यक्षेत्रमें आना । -साफ मेहरा-पु० जनखा, स्त्रीण खत्रियोंका एक अल्ल । कर देना-विघ्न-बाधाओंको दूर कर देना; सबको मार मेहराब-स्त्री० [अ०] मसजिदमें वह धनुषाकार स्थान जहाँ भगाना । -साफ होना-रास्तेमें कोई विघ्न-बाधा न इमाम खड़ा होकर नमाज पढ़ाता है। डाटवाला गोल दर- होना; (किसी-का) अकेला होना । -हाथ रहना-लड़ाई वाजा; दरवाजेके ऊपरकी धनुषाकार बनावट, कमान । जीतना। -दार-वि० मेहराबवाला, धनुषाकार ।
मैदानी-वि० मैदानका; मैदानमें काम आनेवाला; सममेहराबी-वि० [अ०] मेहराबदार । स्त्री० एक तरहकी तल । स्त्री० वह लालटेन जो आँगनमें लटकायी या गाड़ी खमदार तलवार ।
जाय; आटे या मैदेका खमीरदार घोल । मेहरारू-स्त्री० स्त्री, औरत ।
मैन-पु० मोम; राल में मिलाया हुआ मोम-'मैन तुरंग मेहरी-स्त्री० स्त्री, नारी; पत्नी।
चढ़े पावक बिच नाहीं पिघरि परेंगे'-नागरी० दे० मेह-पु० [फा०] सूर्य । स्त्री० प्रेम, प्रीति; कृपा, दया । 'मयन'। -फल-पु० एक कँटीला वृक्ष; इसका फल जो -बान-वि० कृपालु, अनुग्रहकर्ता, प्रीति रखनेवाला।। दवाके काम आता है। -मय*-वि० कामातुर । -बानी-स्त्री० कृपा, अनुग्रह प्रीति ।
मैनसिल-पु. एक खनिज द्रव्य जिसे शोधकर दवाके मैं-सर्व० उत्तम पुरुषका कर्ताका रूप, अहम् ।
काम लाते हैं। मैंड-स्त्री० दे० 'में', प्रतिष्ठा (छात्र०)।
मैना-स्त्री० एक चिड़िया जो अपनी बोलकी मिठासके लिए मै-* प्र० दे० 'मय' । अ० [अ०] साथ, सहित (मैखर्च, प्रसिद्ध है, सारिका पार्वतीजीकी माताका नाम । मैसूद)। स्त्री० [फा०] मद्य, शराब । -कदा-खाना- | मैनाक-पु० [सं०] एक पर्वत जिसके पंख इंद्रके हाथों पु० शराबखाना, मदिरालय । -कश, ज्वार-नोश- | काटे जानेसे बच गये हैं। एक दानव । पु० शराब पीनेबाला, मद्यपा-कशी,-स्वारी,-नोशी- मैमंत*-वि० मदमत्ता गीला । स्त्री० शराबखोरी, मद्यपान ।-परस्त-वि० मधव्यसनी। मैमत*-स्त्री० ममता ।
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६५८
मैया-मोड़ना मैया-स्त्री० माता।
मोची (चिन्)-पु० [सं०] मुक्त करनेवाला, छुड़ानेवाला । मैर-स्त्री० सर्प-विषकी लहर।
मोच्छ*-पु० दे० 'मोक्ष'। मैल-पु० शरीर, कपड़े आदिसे चिपका हुआ मल, गर्द | मोज़ा-पु०[फा०] पाँवमें पहननेका एक बुना हुआ कपड़ा, इ० मैला करनेवाली चीज, मल; विकार; किसीकी ओरसे | पायताबा पाँवका टखने और पिंडलीके बीचका भाग । मनमें संचित दुःख-दुर्भाव । -खोरा-वि० जो मैलको मोट-स्त्री० गठरी । पु० पुर, चरसा । * वि० दे० मोटा' । छिपा सके, गर्दखोरा (रंग)। पु. वह कपड़ा जो दूसरे मोटक-पु० [सं०] पितृतर्पणमें व्यवहृत दुहरा किया हुआ कपड़ोंको मैला होनेसे बचानेके लिए नीचे पहना जाय; कुशत्रय । नमदा । मु०-काटना-मैल दूर करना।
मोटर-स्त्री० [अं०] गतिशक्ति देनेवाला यंत्र; ऐसे यंत्र मैला-वि० मैलवाला, समल, गंदा । पु० कूड़ा; गू। | (आंतरिक दहनसे परिचालित इंजन) द्वारा चालित सवारी -कुचैला-वि० बहुत मैला।।
गाड़ी, मोटरकार । -कार-स्त्री० मोटर, हवागाड़ी। मैहर*-पु० मायका।
-खाना-पु० मोटरकार रखनेका स्थान (मोटर गैरेज)। मौ*-प्र० दे० 'में' । सर्व० दे० 'मो'।
-ड्राइवर-पु० मोटर चलानेवाला। -बस-लारीमाँगरा-पु० दे० 'अँगरा' तथा 'मोगरा' ।
स्त्री० आदमी या माल ढोनेवाली गाड़ी जो मोटर-इंजनसे माँछ-स्त्री० दे० 'मूंछ'।
परिचालित हो । बोट-स्त्री० मोटर-इंजनसे चालित नाव । मोड़ा-+ पु० लड़का, बालक ।
-साइकिल-स्त्री० मोटर-इंजनसे चलनेवाली साइकिल, मौदा-पु० बाँस, बेंत आदिका तिपाई जैसा गोलाकार 'फटफटिया। आसन ।
मोटा-वि०जिसकी देहमें मांस-मेद अधिक हो, स्थूलकाय; मो*-सर्व० 'मैं'का एक रूप जो व्रज और अवधीमें विभक्ति मांसल बड़े घेरेवाला; गाढ़ा, दबीज (कपड़ा, कागज); जो लगनेसे हो जाता है, मेरा ।
पतला या बारीक न हो (सूत, अक्षर, आटा); भारी मोक-पु० [सं०] केंचुल ।
घटिया; सूक्ष्मका उलटा, स्थूल (बुद्धि, बात); भद्दा; * मोकना-स० क्रि० छोड़ना; फेंकना-'रोक्यो तही जोर | बलवान् , जबर्दस्त । -असामी-पु० मालदार असामी। नाराच मोक्यो'-राम।
-काम-पु० जिसमें अधिक बुद्धि या कुशलताकी आवमोकळ*-वि० बंधनरहित, स्वच्छंद ।
श्यकता न हो। -झोटा-वि० घटिया, मामूली (अनाज, मोकला*-वि० दे० 'मोकल'।
कपड़ा)।-ताजा-वि० हृष्ट-पुष्ट, तगड़ा।-(टी)अकल,मोक्ष-पु०[सं०] तुलना, बंधनसे छूटना, छुटकारा जीवका समझ-स्त्री० सूक्ष्म, पेचदार बातोंको समझने में असमर्थ
जन्म-मरणके बंधनसे छूटना, मुक्तिः गिरना, झड़ना वुद्धि । -आवाज़-स्त्री० भारी, भद्दी आवाज ।-बात(आँसू , पत्ते); फेंकना (बाण); पाटलिका पेड़ । -दा- स्त्री०सुली, सबकी समझमें आने लायक बात ।-(टे)मलवि० स्त्री० मोक्ष देनेवाली। स्त्री. मार्गशीर्ष-शुका एका. पु० अधिक मोटा, ढीले बदनवाला आदमी। -हिसाबदशी। -दात्री-दायिनी-वि० स्त्री० मोक्ष देनेवाली। अ० अंदाजन, लगभग, कुछ कमोबेश । -तौरपरमोक्षक-पु० [सं०] मुक्ति या छुटकारा देनेवाला । साधारण या स्थूल रूपसे । मु०-(टा)खाना-पहननामोक्षण-पु० [सं०] खोलना, छोड़ना; गिराना; फेंकना। सस्ता, घटिया अन्न-वस्त्र खाना-पहनना। मोक्ष्य-वि० [सं०] मोक्षके योग्य, मुक्तिका अधिकारी। | मोटाई-स्त्री० मोटा होना, स्थूलता; धन या बलका गर्व । मोखा-पु० रोशनदान, झरोखा; एक वृक्ष, मुस्कक । मु०-चढ़ना-घमंडी, शरारती हो जाना। -झड़नामोगरा-पु० बड़े और अधिक सुगंधित फूलवाला बेला । घमंड या शरारत दूर होना। मोगल-पु० दे० 'मुगल'।
| मोटाना-अ० क्रि० मोटा होना; पैसेवाला होना; घमंडी मोघ-वि० [सं०] निरर्थक, व्यर्थ जानेवाला । पु० बाड़ा। हो जाना। मोच-स्त्री० हाथ-पाँवके किसी जोड़की नसमें चोट आदिसे मोटापा-पु० मोटाई, स्थूलता; घमंड । शोथ और पीड़ा होना या उसका अपनी जगहसे हट मोटिया-पु० बोझ ढोनेवाला, कुली; गाढ़ा, गजी । जाना (आना)।
मोहायित-पु. [सं०] एक हाव-प्रियकी चर्चा चलनेपर मोचक-वि० [सं०] छुटकारा दिलानेवाला, मुक्तिकारक । | नायिकाके अनुरागका, छिपानेकी चेष्टा करते हुए भी, पु० विरागी; मोक्ष केला; सहिजन ।
प्रकट हो जाना। मोचन-पु० [सं०] बंधन, कष्ट आदिसे छुड़ाना, छुटकारा | मोठ-पु० दालके काम आनेवाला एक मोटा अन्न, बनमूंग । देना, दिलाना; हरण (वस्त्र-मोचन) । वि० (समासमें) मोठस*-वि० चुप ।। छुड़ानेवाला (संकटमोचन)।
मांड़-पु० मुड़नेका भाव, घुमाव; रास्तेका घुमाव, वह मोचना-* सक्रि० गिराना (आँसू); छुड़ाना । पु० वह जगह जहाँसे रास्ता दूसरी दिशाकी ओर गया हो; कागज
औजार जिससे नाई मूंछ आदिके पके बाल उखाड़ता है। आदिका मुड़ा हुआ कोना या वह लकीर जहाँसे वह लुहारोंका एक औजार ।
मोड़ा गया हो। -तोड़-पु० घुमाव । मोचयिता (त)-वि० [सं०] छुटकारा दिलानेवाला । मोड़ना-स० क्रि० घुमाना; झुकाना टेढ़ा करना; दिशा मोचरस-पु० [सं०] सेमलका गोंद ।
बदलना; लौटाना, पीछेकी ओर फिराना कागज इत्यादिमोची-पु० जूते सीनेवाला, चमड़ेका काम करनेवाला । को किसी स्थानपर उलटकर दबा देना या दोहरा कर देना।
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मोड़ी-मोर्चा मोड़ी-स्त्री० मराठी भाषाकी एक लिपि ।
नाक-अस्थिरचित्त व्यक्ति, जिससे जो बात चाहो मनवा मोतदिल-वि० [अ०] जिसमें एतदाल (समता) हो, न लो।-की मरियम-अति सुकुमार स्त्री। मु०-होनागरम न तर, समशीतोष्ण; औसत दरजेका ।
पिघलना, नरम होना; कठोर हृदयका दयासे द्रवित हो मोतबर-वि० [अ०] एतबार करने लायक, विश्वसनीय । जाना। मोतियदाम-पु० एक वर्णवृत्त ।
मोमिन-वि० [अ०] ईमानदार, सच्चा । पु० सच्चा मुसलमोतिया-पु० बेलेका एक भेद; एक तरहका सलमा। स्त्री० मान; मुसलमान जुलाहा; शीया । एक चिड़िया। वि० मोतीके जैसा; छोटे गोल दानोंवाला। मोमिया-स्त्री० [फा०] मसाला लगाकर रखी हुई सूखी -बिंद-पु० आँखों में पानी उतरनेका रोग जो प्रायः लाश; वह मसाला जिसे सड़नेसे बचाने के लिए लाशपर बुढ़ापे में होता है।
लगाते थे। मोती-पु० एक बहुमूल्य रत्न जो सीपीमेंसे निकलता है, मोमियाई-स्त्री० [फा०] एक तरहका शिलाजतु । मुक्ता। * स्त्री० बाली। -चूर-पु० छोटी बँदियोंका मोमी-वि० मोमका, मामका बना हुआ। -छाँट-स्त्री० लड्ड। -झिरा-पु० छोटे दानोंकी चेचक । -बेल*- एक तरहकी बहुत मुलायम छींट । -मोती-पु० एक स्त्री० मोतिया बेला । -भात*-पु० एक तरहका भात । तरहका नकली मोती। -(तियौँ)का झाला-कानमें पहननेका एक आभूषण । मोयन-पु० खस्तेपनके लिए गूंधते समय आटेमें घी देना । मु०-उगलना-मुँहसे सुंदर मधुर शब्दावली निकालना। -दार-वि० जिसमें मोयन दिया गया हो। -गरजना-मोतीमें बल पड़ जाना ।-ठंढा होना-मोती- मोरंग-पु० नेपालका पूर्वी भाग। का टूट जाना या बेआब हो जाना। -धूलमें कोलना-मोर-पु० एक बड़ा पक्षी जो अपनी सुंदरता और नृत्यके सुंदर, बहुमूल्य वस्तुकी बेकदरी करना। -पिरोना- लिए प्रसिद्ध है, मयूर । [स्त्री०-'मोरनी'।]-चंदा*-पु० मोतियोंकी लड़ी बनाना; बहुत सुंदर अक्षर लिखना; सुंदर, दे० 'मोरचंद्रिका' ।-चंद्रिका-स्त्री० मोरपंखके ऊपर बनी ललित शब्दावली लिखना, बोलना। -रोलना-मोती हुई चंद्राकार बूटियाँ । -चाल-पु० एक तरहकी कसरत । बटोरना; बिना मेहनतके धन कमाना। -(तियों)से -छल-पु० मोरकी पूँछके परोंका चँवर । -छली-पु० माँग भरना--माँगमें मोती पिरोना ।-से मुँह भरना- मोरछल हिलानेवाला । -छाँह-स्त्री० दे० 'मोरछल'। खुशखबरी या सुंदर बातसे रीझकर निहाल कर देना। -ध्वज-पु० एक राजा जो कृष्णके कहनेसे अपनी देह मोतीसिरी*-स्त्री० मोतियों की माला ।
आरेसे चिरवानेके लिए तैयार हो गया था। -पंखीमोथरा*-वि० भोथरा, कुंद ।
वि० मोरके पंखके रंगका । स्त्री०वह नाव जो मोरके पंखमोथा-पु. नागरमोथा।
के आकारकी हो; एक तरहका पंखा जो खोलनेसे मंडलामोद-पु० [सं०] हर्ष, आहाद; सुगंध ।
कार हो जाता है ।-पखा*-पु० मोरका पंख, मोरपंखमोदक-पु० [सं०] लड्ड; मिठाई; एक वर्णसंकर जाति । की कलगी। -मुकुट-पु० मोरपंखका मुकुट जिसे बाल-कार-पु० हलवाई।
लीलाके समय कृष्ण धारण किया करते थे। मोदन-पु० [सं०] हर्प; आनंद देना; सुगंध बिखेरना। मोरचा-पु० [फा०] किलेके रक्षार्थ उसके चारों ओर खोदी मोदना*-अ.क्रि० आनंदित होना, प्रसन्न होना; सुगंध हुई खाई; युद्धके सुभीतेके लिए खोदी हुई खाई आदि; फैलाना-'फूल फूलतरु फूल बढ़ावत । मोदत महामोद मोरचेपर या उसके भीतर रहनेवाली सेना।-बंदी-स्त्री० उपजावत'-राम० । स० क्रि० प्रसन्न करना।
खाई, धुस आदिसे शत्रुसेनाकी मारसे बचते हुए लड़नेका मोदित-वि० [सं०] मुदित, हर्षयुक्त ।
प्रबंध करना। मु०-बाँधना-मोरचाबंदी करना । मोदी-पु० दाल, चावल आदि बेचनेवाला, परचूनिया। -मारना,-लेना-मोरचा जीतना। मोधू-वि० भोंदू, मूढ़ ।
मोरचा-पु० [फा०] नमी पहुँचनेसे लोहे पर जमनेवाली मोन*-पु० दे० 'मोना'।
पीलापन लिये हुए लाल तह जो उसको धीरे-धीरे खा मोना-* सु० वि० भिगोना । पु० झाबा, पिटारा।। डालती है,जंग; आईनेपर जमा हुआ मेल । मु०-खानामोनिया-स्त्री० छोटा मोना।
जंग लगना; काम न लेनेसे गुण-शक्तिका घटना, छीजना। मोनो-टाइप-मशीन-स्त्री० [अं०] कंपोज करनेवाली वह मोरन*-स्त्री० सिखरन । मशीन जिसमें एक-एक अक्षर ढलता और कंपोज होता मोरना*-स० क्रि० दे० 'मोड़ना'; दहीसे मक्खन चलता है।
निकालना। मोपला-पु० भलाब रमें बसनेवाली एक मुसलमान जाति। मोरनी-स्त्री० मादा मोर; नथमें लटकानेका टिकरा । मोम-पु० हलके पीले रंगका पिघलनेवाला पदार्थ जिससे | मोरवा-पु० एक वृक्ष, मुष्क; * मोर, मयूर ।
शहदकी मक्खियाँ अपना छत्ता बनाती है; जमाया हुआ मोराना*-स० कि० फिराना; पत्थर के कोल्हू में ईखकी मिट्टीका तेल । -गर्द-पु० मोमकी चीजें बनानेवाला। अँगारियाँ डालना। -जामा-पु० मोमका रोगन चढ़ाया हुआ कपड़ा जिसपर मोरी-स्त्री० नाली; गंदे पानीकी नाली; * बागडोरपानी फिसल जाता है। -दिल-वि० नरम दिलवाला, | 'आयो चोर तुएँग मुसि लै गयोमोरी राखत मुगध फिरै'दयाचित्त । -बत्ती-स्त्री० भोटे धागेपर मोम चढ़ाकर कबीर: मोरनी। बनायी हुई बत्ती जिसे रोशनीके लिए जलाते हैं। -की मोर्चा-पु० दे० 'मोरचा'।
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मोल - मौजूँ
मोल - पु० मूल्य, दाम । - तोल, -भाव-पु० दाम ठह राने, सौदा पटानेकी बातचीत (करना, होना) । मु० - करना - चीजके दाम तै करना; उचितसे अधिक दाम माँगना । - बढ़ाना - दाम चढ़ाना । —लेना - खरीद लेना मनुष्यको धन देकर खरीदना, दास बनाना । मोलना * - पु० मौलाना, मौलवी । मोलवी - पु० दे० 'मौलवी' ।
मोलाई * - स्त्री० मोल- तोल ।
मोवना - स० क्रि० दे० 'मोना' ।
मोष - पु० [सं०] चोरी; लूट; चोरीका माल; चोर; * मोक्ष - 'मोहूँ दीजै मोष, ज्यों अनेक अधमन दयो' - बि० । मोषक - पु० [सं०] चोर; वध करनेवाला |
मोषण - पु० [सं०] चुराना; लूटना; काटना; वध । मोषयिता (तृ) - पु० [सं०] चोरी या लूट करानेवाला । मोह-पु० [सं०] मूर्च्छा; अज्ञान; अविद्या; देहादिमें आत्मबुद्धि; ममता; भ्रांति; (मोहजनित) दुःख; ३३ संचारी भावों में से एक; * स्नेह । -निद्रा-स्त्री० अज्ञान और अंधविश्वास में डूबा रहना । - निशा - स्त्री० मोहरात्रि । -भंग - पु० भ्रांति-निवारण, अज्ञानका तिरोभाव । - मंत्र - पु० मोह में डालनेवाला मंत्र । - रात्रि-स्त्री० ब्रह्माके ५० वर्ष बीतनेपर होनेवाला प्रलय; भाद्र कृष्णा अष्टमीको रात ।
मोहक - वि० [सं०] मोहजनक; मुग्ध कर लेनेवाला । मोहड़ा - पु० बरतन आदिका मुहँ; वस्तुका अगला या ऊपरका भाग; दे० 'मोहरा' |
मोहताज - वि० दे० 'मुहताज' ।
मोहन - वि० [सं०] मोहनेवाला; मोहकारक | पु० मोहना, लुभाना; कामदेव के पाँच बाणों में से एक; कृष्णका एक नाम; सुरत, संभोग; ( शत्रुको) बेसुध कर देनेवाला मंत्र, एक अभिचार; धतूरेका पौधा । - भोग- पु० [हिं०] एक तरहका हलवा | माला - स्त्री० सोनेके दानोंकी बनी हुई माला ।
मोहना - स० क्रि० लुभाना; छलना - 'मायापति दूतहिं चह मोहा' - रामा० । अ० क्रि० मुग्ध होना । मोहनात्र- पु० [सं०] मंत्रबलसे चालित एक अस्त्र जो शत्रुको मूच्छित कर देता था ।
मोहनी - स्त्री० [सं०] माया; पोईका साग; मोहक प्रभाव, वशीकरण; एक तरह की जूही । वि० स्त्री० दे० 'मोहिनी' । मु० - डालना - मन मोह लेना, जादू करना । मोहब्बत - स्त्री० दे० 'मुहब्बत' ।
मोहर - स्त्री० दे० 'मुहर' ।
मोहरा - पु० बरतन आदिका मुँह; किसी चीजका ऊपरका या सामनेका हिस्सा; सेनाका बढ़ाव; सेनाका अग्रभाग; पशुओं के मुँहपर बाँधी जानेवाली जाली; अँगियाका बंद या तनी; बाहर निकलनेका छेद या द्वार ; [फा०] शतरंजकी गोटी ।
मोहरी - स्त्री० पाजामेका नीचेकी ओरका मुहँ, पायँचा; बरतन आदिका छोटा मुँह; + वह रस्सी जो मरकडे पशुओं के मुँहपर लगाकर पगहेसे जोड़ दी जाती है । मोहर्रिर - पु० [अ०] दे० 'मुहर्रिर ' ।
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मोहलत स्त्री० [अ०] दे० 'मुहलत' । मोहल्ला - पु० दे० 'मुला' | मोहार- पु० शहदकी मक्खियों का छत्ता; मुहरा, मुँह, द्वार । मोहाल - पु० दे० 'महाल' । वि० दे० 'मुहाल' | मोहिं, मोहि* - सर्व० मुझे, मुझको (ब्रज और अवधी) । मोहित-वि० [सं०] मोहप्राप्त, मुग्ध; लुभाया हुआ । मोहिनी - वि० स्त्री० [सं०] मोहने, मन लुभानेवाली । स्त्री० एक अप्सरा विष्णुका वह नारी रूप जो समुद्रमंथन के समय उन्होंने दैत्योंको छलनेके लिए धारण किया था ।
मोही (हिन्) - वि० [सं०] मोहकारक; मोहयुक्त; स्नेह करनेवाला; लोभी ।
माँगा - वि० पु०, माँगी * - वि० स्त्री० चुप, मौन | मौंज - वि० [सं०] मूँजका बना हुआ । मौंजी- स्त्री० [सं०] मूँजकी बनी हुई तीन लड़ोंकी मेखला। - बंध, - बंधन - पु० मूँजकी करधनी धारण करना,
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उपनयन ।
माँड़ा। - पु० लड़का |
मौक़ा पु० [अ०] घटित होनेका स्थान, घटनास्थल; स्थित होनेका स्थान ( मकानका मौक़ा ); उपयुक्त काल, अवसर । - बेमौका - अ० चाहे जब, अवसर अनवसरका विचार किये बिना । मु० - तकना, देखना- अनुकूल अवसरकी राह देखना, घातमें रहना । - देना - अवसर, अवकाश देना । - (क्रे) पर - ऐन वक्तपर, आवश्यकता के समय । - से - उपयुक्त समयपर, यथावसर । मौकूफ़ - वि० [अ०] रोका, ठहराया हुआ; रद्द किया हुआ; छोड़ा हुआ; नौकरीसे छुड़ाया हुआ; वक्फ किया हुआ; अवलंबित, मुनहसर । पु० वह अक्षर जिसपर और जिसके पहले के अक्षरपर हरकत (जेर, जवर, पेश) न हो । मौकूफ़ी - स्त्री० [अ०] काम या नौकरीसे अलग किया जाना, बरतरफी ।
मौक्तिक - पु० [सं०] मोती । - दाम (न्) - ५० मोतियोंकी लड़ी; एक छंद । - सर-पु० मोतियोंका हार या लड़ी। मौक्य - पु० [सं०] मूकता, मौन ।
मौख - वि० [सं०] मुख-संबंधी । पु० मुखसे होनेवाला पाप (अभक्ष्य भक्षण, अवाच्य कथन इ० ) । मौखर्य - पु० [सं०] मुखरता ।
मौखिक - वि० [सं०] मुख-संबंधी, जबानी। -परीक्षास्त्री० (व्हाइव्हा व्होसी) लिखकर नहीं, जबानी ली जानेवाली छात्रों, पदार्थियों आदि की परीक्षा । मौग्ध्य - पु० [सं०] मुग्धता ।
मौज-स्त्री० [अ०] बहर, हिलोर; मनकी लहर, तरंग; उमंग में दिया हुआ दान - 'जाँचि निराखर हू चलै लै लाखनकी मौज' - वि० सुख, आनंद; समृद्धि । मु०मारना - सुख भोगना, ऐश करना; लहरें उठना । - मेँ आना - मन में उठना, मनमें आना; किसीको कुछ देने आदिकी इच्छा होना । मौजा- पु० [अ०] स्थान, रखनेकी जगह; गाँव । मौजी - वि० जो मनमें आये वह कर बैठनेवाला; आनंदी । मौजूँ - वि० [अ०] वजन किया हुआ, तुला हुआ; ठीक,
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६६१
मौजूद-म्युनिसिपलिटी उपयुक्त, यथायोग्य; छंदोबद्ध, छंदके नियमसे शद्ध (पद्य)। योग्य मूर्वाकी मेखला । मौजूद-वि० [फा०] उत्पन्न, सृष्ट; स्थित, विद्यमान; सामने मौलवी-पु० [अ०] इसलामी धर्मशास्त्र(शरा)का पंडित, खड़ा, उपस्थित; तैयार; उपलब्ध ।
अरबी-फारसीका आलिम, धर्मनिष्ठ (मुसलमान); अरबीमौजूदगी-स्त्री० [अ०] उपस्थिति, हाजिरी ।
फारसी पढ़ानेवाला। -गिरी-स्त्री० मौलवीका काम, मौजूदा-वि० [अ०] वर्तमान, हालका। -जमाना-पु०
अध्यापकी। वर्तमान काल ।
मौलसिरी-स्त्री० एक सदाबहार पेड़ जिसके फूल बड़ी मौड़ा-पु. लड़का।
मधुर गंधवाले होते हैं, बकुल । मौदय-पु० [सं०] मूढता ।
मौला-पु० [अ०] मालिक परमेश्वर, बादशाह; आजाद मौत-स्त्री० [फा०] मृत्यु, मरण; शामत, मुसीबत । -का किया हुआ गुलाम; सहायक; पड़ोसी। -दौला-वि. ढलका-आसन्नमरण रोगीकी आँखोंसे पानी बहना। भोलाभाला; बेपरवाह बड़ा दानी। -का तमाचा-मौतकी याद दिलानेवाली बात । -का | मौलाना-पु० [अ०] अरबीका बहुत बड़ा विद्वान् । पसीना-रोगीके माथेसे छूटनेवाला पसीना जो मृत्युका | मौलि-पु० [सं०] चोटी; मस्तक; किरीट, मुकुट, अशोक लक्षण माना जाता है। -का सामना-भारी खतरा, वृक्ष । -मणि-पु० मुकुटमें जड़ा हुआ मणि । प्राणभय ।-की घड़ी-मृत्युकाल । मु०-आना-शामत, मौलिक-वि० [सं०] मूल-संबंधी, मूलगत; मुख्या अकुलीन; आफत आना । -का घर देख जाना (लेना)-बार-बार | जो किसीकी छाया, उलथा, अनुकृति आदि न हो। पु० मृत्यु आनेकी आशंका होना। -का सिरपर खेलना- कंदमूल खोदने, बेचनेवाला । मौत करीब होना, मरनेके दिन आना। -के घाट उता- मौलिकता-स्त्री० [सं०] मौलिक होनेका भाव । रना-मार डालना। -के दिन पूरे करना-कष्टसे दिन मौली (लिन्)-वि० [सं०] जिसके सिरपर चोटी या काटना, कठिनाईसे जीना। -के मुँहम जाना-खतरेमें मुकुट हो । पड़ना, जानकी जोखिम लेना। -माँगना-कष्ट, कठि- | मौष्टा-स्त्री० [सं०] यूँसेबाजी, घूसोंकी लड़ाई, मुष्टिवंद्र । नाइयोंसे ऊबकर मौत मनाना ।
| मौष्टिक-पु० [सं०] ठग, धूर्त । मौदक-वि० [सं०] मोदक, मिठाई-संबंधी ।
मौसम-पु० दे० 'मौसिम' । मौदकिक-पु० [सं०] मोदक-विक्रेता, हलवाई । मौसर*-वि० दे० 'मुयस्सर'। मौदलि-पु० [सं०] कौआ।
मीसा-पु० माँकी बहिन अर्थात् मौसीका पति । मौद्गल्य-पु० [सं०] मुद्गल मुनिका पुत्र ।
मौसिम-पु० [अ०] काल, समय; ऋतु ।-(मे) खिजाँमौद्गल्यायन-पु० [सं०] गौतमबुद्धके एक प्रमुख शिष्य ।
पु० पतझड़। -गुल,-बहार-पु० वसंत ऋतु । मौद्रिक-वि० [सं०] (मॉनेटरी) मुद्रा-संबंधी ।
मौसिमी-वि० [अ०] जिसका मौसिम हो, (वर्तमान)ऋतुमौन-पु० [सं०] मुनिभाव; न बोलना, चुप्पी; * मोयन, का; मौसिमके कारण होनेवाला (बुखार इ०)। -फलघीका मेल । -भंग-पु० मौन तोड़ना, चुप्पी त्यागकर | पु० ऋतुफल । -बुखार-पु. चैत या भादों कुआरके बोलना ।-मुद्रा-स्त्री०चुप्पी, मौन-भाव ।-व्रत-पु० न | महीनों में होनेवाला जूड़ी-बुखार, मलेरिया । बोलनेका व्रत ।-व्रती (तिन)-वि० मौनव्रतधारी। । मौसिया -पु० 'मौसा' । वि० दे० 'मौसेरा'। मौना-पु० टोकरा, पिटारा ।
मौसी-स्त्री० मासी, माँकी बहन । मौनी (निन्)-वि० [सं०] मौनव्रतधारी । पु० मनि | मौसम-वि० [अ०] वस्त किया हुआ, वणित प्रशंसित । मौनव्रतधारी साधु ।
मौसूम-वि० [अ०] नाम रखा हुआ, नामधारी। [स्त्री० मौनी-+ स्त्री० छोटा मौना, पिटारी [सं०] मौनी अमा- 'मौसूमा। वास्या । -अमावास्या-माधकी अमावास्या । मौसेरा-वि० मौसीके नातेवाला, मौसीसे संबद्ध या उससे मौर-पु० एक तरहका मुकुट जो व्याहके अवसरपर वरको उत्पन्न (-भाई, बहिन इ०)। पहनाया जाता है; * गरदनका पीठकी ओरका भाग:बौर, मौहूर्तिक-वि० [सं०] मुहूर्तसे उत्पन्न । पु० मुहूर्तवेत्ता, मंजरी। वि०(समासमें) श्रेष्ठ, शिरोमणि (सिरमौर)। ज्योतिषी; दक्षकी कन्या मुहूर्तासे उत्पन्न एक देवगण । मौरना-अ० कि० बौर लगना।।
म्याँव-स्त्री० बिल्लीकी बोली । -की ठोर-बिल्लीका मुँह । मौरसिरी*-स्त्री० दे० 'मौलसिरी'।
मु०-धीरेसे पकड़ना-सबसे अधिक खतरेका काम मौरी-स्त्री० छोटा मौर ।
करना ।-म्याँव करना-डरके मारे धीमे स्वर में बोलना। मौरूसी-वि० [अ०) विरसे में मिला हुआ, बाप-दादाका; म्यान-पु० [फा०] तलवार आदि रखनेका कोष या (स्त्री) छोड़ी हुई (जायदाद), पैतृक । -काश्तकार-पु० गिलाफ, खड्गकोष; * शरीर ।। वह काश्तकार जिसकी जमीनपर उसके वारिसोंको भी | म्याना*-स० कि० (तलवार आदिको) म्यानमें करना, वही हक हासिल हो।
रखना। * पु० दे० 'मियाना' । वि० बीचका, मझोला%B मौर्य-पु० [सं०] मूर्खता।
मोटा-'लाँबी है न गनी न पातरीन म्यानी है'-सुंद। मौर्य-पु० [सं०] भारतका एक प्राचीन राजवंश जो चंद्र- म्यानी-स्त्री० दे० 'मियानी'। गुप्तसे आरंभ हुआ।
म्युनिसिपलिटी-स्त्री० [अं०] स्थानीय आत्मशासनका मौर्वी-स्त्री० [सं०] धनुष्की डोरी; क्षत्रियोंके धारण करने | अधिकारप्राप्त नगर या कसबा; ऐसे नगरका प्रबंध करने
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म्याँ-यकृत
६६२ वाली कमेटी, नगरसभा, नगरपालिका ।
म्लायी (यिन्)-वि० [सं०] कुम्हलाता, सूखता, छीजता म्यौं-स्त्री० दे० 'म्याँव' ।
हुआ। म्रक्षण-पु० [सं०] तेल, स्नेहन, लेपन मिलाना, मिश्रण । म्लेच्छ-पु० [सं०] जो संस्कृत न बोलनेवाला हो, अनार्य म्रजाद-स्त्री० मर्यादा-'लाज नजाद मिली औरनको, विदेशी; आर्य-सदाचारका पालन न करनेवाला; हिंगुल, मृदु मुसकनि मेरे बट आई'-नारा० स्वामी।
शिंगरफ । वि. पापरत; नीच। -कंद-पु. लहसुन । म्रदिमा(मन)-स्त्री० [सं०] मृदुता।
-जाति-स्त्री० अनार्य, असंस्कृत भाषी जाति । -देशम्रदिष्ट-वि० [सं०] अतिशय मृदु ।
पु० अनार्य देश, चातुर्वर्ण्य व्यवस्था आदिसे रहित देश । नियमाण-वि० [सं०] मरता हुआ; मरा हुआसा, मृतप्राय।। -भाषा-स्त्री० अनार्य भाषा; विदेशी भाषा ।-भोजनम्लात-वि० [सं०] कुम्हलाया हुआ, म्लान ।
पु० गेहूँ; यावक । -मंडल-पु० म्लेच्छ देश । -मुखम्लान-वि० [सं०] कुम्हलाया, मुरझाया हुआ; दुर्बल; पु० ताँबा ।
मलिन, गंदा। -मना(नस)-वि०खिन्नचित्त, उदास । म्लेच्छाश-पु० [सं०] गेहूँ। म्लानि-स्त्री० [सं०] म्लानता, कांतिक्षय, मलिनता; म्लच्छित-पु० [सं०] म्लेच्छ भाषा; अपभापा; परभाषा । उदासी।
म्हारा*-सर्व० हमारा।
य-देवनागरी वर्णमालाका छब्बीसवाँ व्यंजन, अंतस्थ वर्ण। | हुआ; जकड़ा हुआ, बंद किया गया। यंत, यंता(त)-पु० [सं०] संचालक, शासक; सारथी; यंत्री(विन)-पु० [सं०] नियंत्रण करने, बाँधनेवाला, महावत।
बलबलानेवाला तांत्रिक; (मेकानिक) यंत्रादिकी सहायतायंत्र-० [सं०] अंक या अक्षरोंसे युक्त विशेष आकार या से काम करनेवाला, कारीगर; यंत्र बनाने या मरम्मत कोष्ठ जिनमें देवताओंका वास माना जाता है (तंत्र), करनेवाला, यंत्रक, यंत्रश; यंत्रका प्रयोग करनेवाला। जंतर औजार, कल, मशीन; ताला; वीणा; बाजा; वाद्यसे य-पु० [सं०] यश, संयम भाग । -गण-पिंगलका एक उत्पन्न संगीत । -गृह-पु० वेधशाला; यंत्रणागृह (प्राचीन गण जिसमें पहला वर्ण लघु और शेष दोनों गुरु होते हैं। कालमें अपराधियोंके लिए होते थे); स्थान या घर जहाँ यक-वि० [फा०] एक; अकेला। -चश्म-वि० काना; कल, औजार, मशीनसे काम होता हो, कारखाना। एक रुखका (तसवीर आदि)। -चश्मी-वि० सबको -चातुर्य-पु० (टेकनीक) यंत्रादि चलाने, कल-पुरजे एक निगाहसे देखनेवाला एक रुखी (तसवीर)।-ज़बानआदि ठीक करने आदिकी विशेष योग्यता, चतुरता । वि०बातका पक्का; एक भाषाभाषी । (मु०-जवान होकर -जात-पु० (मशीनरी) विभिन्न यंत्रोंका समूह । -ज्ञ- कहना-मिलकर एक बात कहना।) -जा-वि० इकट्ठा पु० दे० 'यंत्री' । -पुत्रक-पु० (रोबॉट) यंत्रादिकी मिले-जुले। -जान-वि० खूब धुलामिला हुआ, एकसहायतासे हाथ-पाँव हिलानेवाला पुतला । -मंत्र- दिल । -तरफा राय-स्त्री. वह राय जो दूसरे पक्षका पु० टोना-टोटका । -मातृका-स्त्री० चौसठ कलाओंमेंसे विचार किये बिना दी या कायम की जाय। -र्दी या एक जिसमें यंत्रका बनाना और उसका व्यवहार करना फसली-वि. जो सालमें एक ही फसल पैदा करे शामिल है । -विद्-पु० (एंजिनियर) यंत्रविद्या जानने- (जमीन)।-बयक-अ० एकाएक, अचानक ।-बारगीवाला, यंत्रशास्त्रका ज्ञाता । -विद्या-स्त्री०,-शास्त्र-पु० अ० अकस्मात् , सहसा, अचानक । -मुश्त-अ०इकट्टा, (पंजिनियरिंग) यंत्र, एंजिन आदि बनाने, चलाने तथा एक बारमें। -रंग-रंगा,-रंगी-वि० एक रंगका, रेलका पुल आदि निर्मित करनेकी विद्या ।-शाला-स्त्री. अंदर-बाहरसे एक। -रुरखा,-रुखी-वि० एकतरफा, वेधशाला; वह स्थान जहाँ मशीनें, कलें और औजार एक रुखका। -लाई-स्त्री. छोटे अर्जकी, एक पाटकी आदि हों। -सज-वि० तोपों, टैको तथा शस्त्रास्त्रोंसे चादर नकाब; चोगा। वि० फर्दी (साड़ी या धोती)। सज्जित (सेना)। -सज्ज (सज्जित) सेना-स्त्री० (मेके -लौता-वि० एकमात्र (पुत्र)। -सर-वि० अकेला नाइज्ड आमी) टैंकों, कवचित गाड़ियों, मोटरगाड़ियों तथा इकट्टा, कुल । -साँ-वि० एकसा; एक प्रकारका । टेलीफोन आदि आधुनिक यंत्रोंका प्रयोग करनेवाली एवं -सानियत,-सानी-स्त्री० सशता, यकसाँ होना। उनसे लैस सेना। -समुच्चय-पु० (प्लांट) किसी कार- -सार-वि० एक जैसा। -साला-वि० एक सालका । खाने आदिमें बैठाये गये समस्त यंत्रों, उपकरणों आदिका ! मु०-जान दो कालिब-अभिन्नहृदय मित्र । -न शुद समूह; उद्योग-यंत्रावली ।-सूत्र-पु० कठपुतली नचानेका| दो शुद-एक बला तो थी ही, दूसरी और पीछे पड़ी। धागा, सूत ।
यकीन-पु० [अ०] विश्वास प्रतीति (आना, करना)। यंत्रक-पु० [सं०] (मेकानिक) दे० 'यंत्री।
यकीनन-अ० [अ०] अवश्य; निःसंदेह; विश्वासपूर्वक । यंत्रणा-स्त्री० [सं०] यातना, पीड़ा, क्लेश ।
यकीनी-वि० [फा०] असंदिग्ध । यंत्रालय-पु० [सं०] यंत्रशाला; छापाखाना, प्रेस । यकम-स्त्री० [फा०] महीनेकी पहली तारीख,तिथि, एक्कम । यंत्रिका-स्त्री० [सं०] छोटी साली; छोटा ताला । यकृत-पु० [सं०] पेटमें दायीं ओर एक थैली जिसमें यंत्रित-वि० [सं०] ताला लगाया हुआ; यंत्रयोगसे बँधा भोजनको पचानेवाला रस रहता है, जिगर ।
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६६३
यक्ष-यत्
यक्ष-पु० [सं०] एक देवयोनि; कुबेरके सेवक; कुबेर प्रेत, -मुख-पु० यज्ञका आरंभ। -यूप-पु० यशका बलिभूत । -कर्दम-पु० कपूर, अगर, कस्तूरी और कंकोलके पशु बाँधनेका खंभ, यूपकाष्ठ, यशरतंभ ।-रस-पु०सोम । संयोगसे बना हुआ अंगराग (राम)। -ग्रह-पु० एक -राज-पु० चंद्रमा। -वराह-पु० शूकरावतार (विष्णु, कल्पित ग्रह; प्रेतबाधा ।-नायक,-प,-पति-पु०कुबेर । यशरूप बराह)। -वाह-पु० यज्ञ करनेवाला । -वाहन -पुर-पु० यक्षोंका नगर, अलकापुरी। -रस-पु० -पु० यश करनेवाला; ब्राह्मण; विष्णु; शिव । -वाहीफूलोंके रससे तैयार की हुई शराब । -राज-पु० कुबेर । (हिन्)-पु० यज्ञका सब काम करनेवाला । -वेदीयक्षाधिप, यक्षाधिपति-पु० [सं०] कुबेर ।
स्त्री० यशकी वेदिका। -शत्रु-पु० राक्षस, असुर। - यक्षिणी, यक्षी-स्त्री० [सं०] यक्षकी स्त्री कुबेरकी सी। शाला-स्त्री० यज्ञ करनेका स्थान, यशमंदिर । -सदनयक्ष्म, यक्ष्मा(क्ष्मन्)-पु० [सं०] क्षयरोग, तपेदिक । पु० यज्ञमंडपका स्थान, यज्ञभूमि । -स्थाणु-पु० दे० यक्ष्मनी-स्त्री० [सं०] दाख, अंगूर ।।
'यज्ञयूप'। -होता(तृ)-पु० यज्ञमें देवताओंका आवायक्ष्मी (क्ष्मिन्)-पु० [सं०] क्षयरोगी।
हन करनेवाला; मनुका एक पुत्र । यखनी-स्त्री० [फा०] शोरबा, उबले हुए मांसका रसा। यज्ञक-पु० [सं०] यशकर्ता यश । यगाना-वि० [फा०] आत्मीय, स्वजन; अकेला; अद्वितीय । | यज्ञांग-पु० [सं०] यज्ञ-सामग्री; गूलर, खैर विष्णु । यग्य*-पु० दे० 'यश'।
यज्ञागार-पु० [सं०] यशस्थान, यज्ञशाला। यच्छ*-पु० दे० 'यक्ष' ।
यज्ञामा(स्मन्)-पु० [सं०] विष्णु । यच्छिनी*-स्त्री० दे० 'यक्षिणी'।
यज्ञारि-पु० [सं०] शिव; राक्षस । यजन-पु० [सं०] यश करना ।
यज्ञिय-वि० [सं०] यज्ञ संबंधी या यज्ञके उपयुक्त यशका यजमान-पु० [सं०] यश करनेवाला; दक्षिणा आदि देकर मंगलकर्ता, कर्मकांडके लिए उपयोगी पवित्र । पु० देवता। ब्राह्मणीसे धार्मिक कृत्य करानेवाला।
-देश-पु० होमादिके लिए उपयुक्त देश, भारतवर्ष यजमानी-स्त्री० यजमानोंका वासस्थान; यजमानका भाव या धर्म; विवाह आदिके अवसरोंपर पुरोहित, नाई, बारीके यज्ञीय-वि० [सं०] यश-संबंधी; यशका । काम करनेका अधिकार; पुरोहिती।
यज्ञेश्वर-पु० [सं०] विष्णु । यजुविद,यजुर्वेदी(दिन)-पु०[सं०] यजर्वेद जाननेवाला। यज्ञेष्ट-पु० [सं०] रोहित घास । यजुर्वेद-पु० [सं०] चारों वेदोंमेंसे एक; वह वेद जिसमें यज्ञोपवीत-पु० [सं०] यज्ञ द्वारा संस्कार किया हुआ यजुओं(गद्य मंत्री)का संग्रह है, इसमें विशेषतया यशकी उपवीत, यशसूत्र, जनेऊ । -संस्कार-पु० उपनयनक्रियाओं और उसके भेद-प्रभेदोंका विवरण और प्रति- संस्कार, जनेऊ पहनानेका संस्कार (द्विज-ब्राह्मण, क्षत्रिय पादन है।
और वैश्योंका । भिन्न-भिन्न वर्गों के लिए भिन्न-भिन्न वयःयजुर्वेदी-वि० दे० 'यजुर्वेदीय'।
काल निर्धारित किया गया है)। यजुर्वेदीय-वि० [सं०] यजुर्वेदका शाता; यजुवेंदके अनु- | यज्य-पु० [सं०] यजन करने योग्य, पूजनीय ।
सार कृत्य करनेवाला (ब्राह्मण); यजुर्वेद-संबंधी। यज्वा(ज्वन)-पु० [सं०] यश करनेवाला। यज्ञ-पु० [सं०] हवन-पूजनयुक्त एक वैदिक कृत्य, ऋतु, यतन-पु० [सं०] यत्न करना । मख, याग; लोकहितके विचारसे की हुई पूजा; अनुष्ठान, यतनीय-वि० [सं०] यल करने योग्य । होम, यश-देवता । -काल-पु० यशका शास्त्रनिर्दिष्ट | यतमान-पु० [सं०] यत्न करता हुआ, कोशिशमें लगा ममय; पूर्णमासी । -कुंड-पु० हवन करनेका कुंड, हुआ, चेष्टाशील । अनलकुंड । -कृत्-वि० यज्ञ करने, करानेवाला। यतात्मा(त्मन्)-वि० [सं०] संयतमना, संयमी। -घ्न,-द्रुट (ह)-पु० यशविध्वंसका राक्षस ।-तुरंग- यति-पु० [सं०] जितेंद्रिय, विरक्त होकर मोक्षके लिए पु० यशका घोड़ा । -वाता ()-पु० यशरक्षक विष्णु । प्रयत्न करनेवाला; संन्यासी; योगी; श्वेतांबर जैन साधु -दक्षिणा-स्त्री० शुल्क, यश करानेके उपलक्ष्य में ब्राह्मणों- ब्रह्माका एक पुत्र; नहुषका एक पुत्रा ब्रह्मचारी; छप्पयका को दिया हुआ धन ।-द्वेषी (पिन)-पु० यशविरोधी। एक भेद । स्त्री० छंदोंमें विश्रामका स्थान; रोक, रुकावट; -द्रव्य-पु० यज्ञकी सामग्री । -धर-पु० यशधारणकर्ता | मनोविकार; विधवा; शलक रागका एक भेद, संधि; पुरुष, विष्णु । -धूम-पु. होमका धुआँ। -पति-पु० मृदंगका एक प्रबंध । -धर्म-पु० संन्यास । -पात्र-पु० यजमान; विष्णु । -पत्नी-स्त्री० यशकी स्त्री, दक्षिणा । यतिका भिक्षापत्र । -भंग-पु० छंददोष जिसमें यति -पशु-पु० यशका बलिपशु (घोड़ा, वकरा)। -पात्र- निश्चित स्थान पर न हो। -भ्रष्ट-पु. यतिभंग दोषसे भांड,-भाजन-पु० यशके कामोंके लिए बने हुए काठके युक्त छंद ।-सांतपन-पु० पंचगव्य और कुश-जल पीकर बरतन । -पुरुष-पु० विष्णु । - फलद-पु० यशका फल पोलन किया जानेवाला तीन दिनोंका एक व्रत । देनेवाले विष्णु । -भाग-पु० यशका अंश; (यशांश पाने | यती(तिन्)-पु० [सं०] दे० 'यति' ।। वाले) देवता । -भूमि-स्त्री० यज्ञका स्थान । -भूपण- यतीम-पु० [अ०] बे माँ बापका बच्चा, अनाथ। वि० बिना पु० कुश । -भृत्-वि० यज्ञका आयोजन करनेवाले माँ बापका (बच्चा); बेजोड़ । -खाना-पु. अनाथालय । विष्णु । -भोक्ता(क्त)-पु० विष्णु ।-मंडप-पु० यज्ञ-यत्-सर्व० [सं०] जो। -किंचित्-अ० थोड़ासा, कुछ का मंडप । -महोत्सव-पु० यज्ञका विशाल समारोह ।। बहुत कम । -परो नास्ति-जिससे उत्तम नहीं है,
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यत्र-यम
६६४ बेहद, नितांत, अतिशय ।
जिस रूप में दिखाई दें, उसी रूपमें उनका वर्णन करना यत्र-पु० [सं०] उद्योग, उपायः सार-सम्हालरोगशांतिका चाहिये (आदर्शवादका उलटा ); यह दार्शनिक सिद्धांत उपाय, उपचार ।-पर-वि० दे० 'यत्नवान्'। -पूर्वक- कि भौतिक जगत्की स्वतंत्र सत्ता है ।-वादी(दिन्)अ० चेष्टापूर्वक, उपाय द्वारा। -शील-वि० सचेष्ट, वि० (रीयलिस्ट) यथार्थवादका अनुयायी। आग्रही, अध्यवसायी।
यथार्थतः(तस्)-अ० [सं०] वस्तुतः, यथानुरूप । यत्नवती-वि० स्त्री० [सं०] यत्नमें लगी हुई।
यथावकाश-अ० [सं०] जैसा अवकाश मिले । यत्नवान् (वत्)-वि० [सं०] प्रयत्नशील, यत्नमें लगा हुआ। यथावत्-वि० [सं०] ज्योंका त्यों, हू-बहू । अ० जैसा यत्र-अ० [सं०] जहाँ।-तत्र-अ० जहाँ-तहाँ; जगह-जगह।। चाहिये उसी तरह । यथांश-वि० [सं०] भागके अनुकूल; यथायोग्य । यथावसर-अ० [सं०] अवसरके अनुसार, जैसा अवसर यथा-अ० [सं०] जिस प्रकार, जैसे ।-कथित-वि० जैसा हो उसीके अनुरूप । पहले कहा गया हो।-कर्तव्य-अ० कर्तव्यके अनुकूल। यथेच्छ-वि० [सं०] इच्छानुसार, मनमाना। -कर्म(न)-अ० कर्मानुसार । -काम-अ० यथेच्छ, | यथेच्छाचार-पु० [सं०] स्वेच्छाचार, मनमाना काम मनमाने।-कामी(मिन्),-कारी(रिन)-वि० स्वेच्छा- करना। चारी, मनमाना करनेवाला । -काम्य-अ० इच्छा- | यथेच्छाचारी(रिन् )-वि० [सं०] स्वेच्छाचारी, अपने नुकूल । -कार्य-अ० कार्यके अनुकूल, जैसा करना मनकी करनेवाला। चाहिये । -काल-अ० उचित समयपर ।-कुल-वि० | यथेप्सित-वि० [सं०] यथेच्छ । कुलानुसार। -तथा-तथ्य-वि० ज्योंका त्यों, हुबहू, यथेष्ट-वि० [सं०] जितना चाहिये उतना। जैसा हुआ हो । -तृप्ति-अ० जी भरकर । :-दृष्ट-वि० | यथेष्टाचरण, यथेष्टाचार-पु० [सं०] स्वेच्छाचार, मनजैसा देखा हो।-नियम-वि० नियमानुसार ।-निर्दिष्ट माना आचरण करना, जैसा पसंद हो वैसा आचरण -वि० जैसा निर्देश दिया गया हो। -पूर्व-वि० पहले- करना। का-सा, ज्योंका त्यों। -प्रयोग-अ० प्रयोगके अनुरूप। यथेष्टाचारी(रिन)-वि० [सं०] मनमाना काम करने -भाग-वि० जितना भाग है उतना, यथोचित । | वाला। -मति-वि० समझके अनुसार । -मूल्य-वि० मूल्यके | यथोक्त-वि० [सं०] जैसा कहा गया हो, कथनानुसार । अनुसार । -यथ-अ० यथोचित रूपसे । वि. जैसा यथोचित-वि० [सं०] जैसा जाहिये वैसा, समुचित । उचित है, वैसा (साकेत)। -योग्य-वि० जैसा चाहिये, यथोपयुक्त-वि० [सं०] यथायोग्य, यथोपयोगी । उपयुक्त ।-रीति-वि० प्रचलित प्रथाके अनुसार । -रुचि | यदपि*-अ० दे० 'यद्यपि' । -वि० इच्छाके अनुरूप । अ० इच्छानुसार । -लब्ध- यदा-अ० [सं०] जब, जिस समय; जहाँ। -कदा-अ० वि० प्राप्तिके अनुसार, यथालाभ संतोषवाली (वृत्ति)।। जब-तब, कभी-कभी। -लाभ-वि० जो मिले उसीके अनुरूप। -विधि-अ० यदु-पु० [सं०] राजा ययातिका ज्येष्ठ पुत्र; यदुवंश । विधिपूर्वक, जैसी विधि हो उसीके अनुसार । -विहित- -कुल-पु० दे० 'यदुवंश'। -नंदन,-नाथ,-पति,वि०विधानके अनुसार, शास्त्रानुमोदित । -शक्ति-अ० भूप,-राज-पु० कृष्ण । -राई*-पु० यदुराज, कृष्ण । शक्तिके अनुसार, शक्तिभर ।-शक्य-वि० भरसक, जहाँ- -वंश-पु० राजा यदुका कुल । -वंशी(शिन्)-पु० तक हो सके वहाँतक। -शास्त्र-अ० शास्त्रानुसार । वि० यदुकुलमें उत्पन्न पुरुष, यादव ।-वर-वीर-पु० कृष्ण । जैसा शास्त्र में दिया हो वैसा। -शीघ्र-अ० जितनी | यदृच्छा-स्त्री० [सं०] स्वेच्छाभाव, मनमानापन; आकजल्दी संभव हो, उतनी जल्दी ।-श्रति-वि० वेदानुसार। स्मिक संयोग स्वतंत्रता । -लब्ध-वि० दैवयोगसे उप-संख्य-पु. एक अर्थालंकार, जहाँ कुछ वस्तुओंका| लब्ध, अनायास प्राप्त । वर्णन एक क्रमसे हो और आगे चलकर उनसे संबंधित यदृच्छया-अ० [सं०] मनमाने तौरपर, बिना किसी नियम वस्तुओंका वर्णन भी उसी क्रमसे किया जाय। -संभव, या कारणके अकस्मात् , दैवयोगसे । -साध्य-अ० जो हो सके, भरसक, सामर्थ्यभर ।-समय | यद्यपि-अ० [सं०] अगरचे, यदि चेत्, गो कि । -अ० निश्चित समयपर। वि० समयके अनुसार । यद्वातद्वा-अ० [सं०] कमी-कभी, जब-तब । पु० टालमटोल । -स्थान-अ० उचित स्थानपर। -स्थिति-अ० ( ऐज यम-पु० [सं०] मृत्युके देवता, यमराज; जुड़वाँ संतान, दि केस मे बी) जैसी स्थिति हो उसीके अनुसार ।-स्थिति यमज; संयम, निग्रह; एक मंत्रद्रष्टा ऋषि कौआ, शनि समझौता-पु० [हिं०] (स्टडस्टिल ऐग्रीमेंट) वर्तमान या विष्णुः वायुः दोकी संख्या ।-कात,-कातर-पु० यमका विद्यमान स्थितिको ज्योंका त्यो बनाये रखनेवालासमझौता। छुरा, खाँडा; एक प्रकारकी तलवार । -कीट-पु० यथानुपूर्वक-वि० [सं०] परंपराके अनुकूल ।
केंचुवा । -घंट-पु. दीपावलीका दूसरा दिन, कात्तिक यथारथ*-वि० दे० 'यथार्थ' ।
शुक्ला प्रतिपदा; एक दुष्ट योग जिसमें शुभ काम वर्जित यथार्थ-वि० [सं०] सत्य, प्रकृत, उचित । -में-अ० है। -चक्र-पु० यमराजका शस्त्र। -ज-पु० जुड़वाँ दरअसल, वस्तुतः। -वाद-पु० (रीयलिज़्म) जो बात बच्चे वह सदोष घोड़ा जिसका एक ओरका अंग हीन, या वस्तु जिस रूपमें हो, उसी रूपमें उसका वर्णन करना दुर्बल और दूसरी ओर वही अंग ठीक हो; अश्विनीकुमार । या ग्रहण करना; साहित्यका यह सिद्धांत कि हमें वस्तुएँ -जातना*-स्त्री० दे० 'यमयातना'। -जित्-पु०
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मृत्युको जीतनेवाला, मृत्युंजय । - तर्पण -पु० यमकी तृप्तिके निमित्त किया जानेवाला एक यज्ञ । -दंडपु० यमराजका दंड, कालदंड; मनुष्य के मस्तकपरकी दो प्रकारकी रेखाओं में से एक । दंष्ट्रा - स्त्री० यमकी दादः रोग और मृत्युके विशेष भययुक्त कार, कातिक और अग इन महीनोंके कुछ दिन (वैद्यकमत) । - दुतिया * - स्त्री० दे० 'यमद्वितीया' । - दूत, - दूतक - पु० कौआ; यमके दूत । - द्वार - ५० यमराजके घरका दरवाजा । - द्वितीया - स्त्री० कार्तिक शुक्ला द्वितीया, भैयादूज । -घर,- धारस्त्री० दोनों ओर धारवाली तलवार या कटारी ।-नक्षत्रपु० भरणी नक्षत्र | - नाह*, - नाथ- पु० यमोंके स्वामी, धर्मराज | - पुर- पु० यमका स्थान, यमलोक । -पुरीस्त्री० यमनगरी, यमलोक | ( मु० - पुरी पहुँचाना - मार डालना, प्राण ले लेना) । - पुरुष - पु० यमराज, यमके दूत । - भगिनी - स्त्री० यमुना नदी । - यातना - स्त्री० नरककी पीड़ा; अंतकालकी पीड़ा । - रथ, -वाहन- पु० भैंसा । - राज - पु० यमोंका स्वामी, धर्मराज । राज्य, - राष्ट्र - सदन - पुण्यमलोक । - ल - वि०, पु० ' जुड़वाँ' । - वरा - वि० स्त्री० आजन्म अविवाहिता, चिरकुमारी । - व्रत - पु० यमके समान निष्पक्ष राजधर्म, राजाका दंड, नियम । - सभा - स्त्री० यमराजकी कचहरी । -सूर्यपु० ऐसे दो कमरोंवाला मकान जिनमें एक कमरेका रुख उत्तर हो और दूसरेका पश्चिम । स्तोम-पु० एक दिन में होनेवाला एक यज्ञ । - हंता (तृ) - पु० कालका नाश करनेवाला |
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यमक - पु० [सं०] एक शब्दालंकार जिसमें एक ही शब्द या शब्दखंड- अगर सार्थक हो तो भिन्न अर्थों में- एक ही में अनेक बार प्रयुक्त होता है; एक वृत्त; सेनाका एक व्यूह; यमज; संयम ।
यमदग्नि - पु० [सं०] एक ऋषि, परशुरामके पिता । यमन - पु० [सं०] निरोध करना; बंधन; विराम देना, रोकना; यमराज; [अ०] अरबका एक प्रदेश | यमनिका - स्त्री० दे० 'यवनिका' |
यमनी - स्त्री० एक कीमती पत्थर, रत्न ( यमनकी) । यमला - स्त्री० [सं०] हिचकीका रोग, दुहरी हिचकी; एक नदी; एक तांत्रिक देवी |
यमलार्जुन - पु० [सं०] गोकुलको दो पौराणिक अर्जुन वृक्ष । यमानुजा - स्त्री० [सं०] यमराजकी छोटी बहन, यमुना । यमालय - पु० [सं०] यमका घर, यमपुर । यमी - स्त्री० [सं०] यमकी बहन, यमुना नदी । यमी ( मिनू ) - पु० [सं०] संयमी ।
यमुना - स्त्री० [सं०] यमुना नदी; यमकी वहन; दुर्गा । - भिद् - पु० यमुनाके दो भाग करनेवाले, बलराम । यमुनोत्तरी - स्त्री० हिमालयकी एक चोटी जो यमुनाका उद्गम स्थान है ।
ययावर* - पु० दे० 'यायावर' |
यव - पु० [सं०] जौ; एक जौकी तौल; लंबाईकी एक नाप, तिहाई इंच; वह वस्तु जो दोनों ओर उन्नतोदर हो । - क्षार - पु० जौके पौधोंको जलाकर निकाला हुआ खार, जवाखार । - द्वीप - पु० जावा द्वीपका पुराना नाम ।
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यमक - यह
यवन - पु० [सं०] वेग; तेज घोड़ा; यूनानका निवासी; मुसलमान । - प्रिय- पु० मिर्च |
यवनानी - स्त्री० [सं०] यूनानकी भाषा; यूनानकी लिपि । यवनिका - स्त्री० [सं०] नाटकका पर्दाः कनात । यवनी - स्त्री० [सं०] यवन जातिकी स्त्री; यवनकी स्त्री । यवास, यवासक - पु० [सं०] जवासा नामका पौधा । यवासा - स्त्री० [सं०] एक तृण ।
यश ( स ) - पु० [सं०] कीर्ति, सुख्याति, सुनाम; प्रशंसा । मु०-गाना - प्रशंसा करना; कृतज्ञ होना । -मानना - कृतज्ञ होना; निहोरा मानना ।
यशब- पु० [अ०] एक प्रकारका हरा पत्थर जो बिजली से बचानेवाला और रोग दूर करनेवाला माना जाना है, संगे यशब ।
यशस्कर - वि० [सं०] कीर्तिजनक । यशस्काम - वि० [सं०] यशोलिप्सु । यशस्वती - स्त्री० [सं०] कीर्तिमती । यशस्वान् ( स्वत्) - वि० [सं०] यशस्वी, कीर्तिमान् । यशस्विनी - स्त्री० [सं०] बनकपास; महाज्योतिष्मती; गंगा । वि० [स्त्री० ( वह स्त्री ) जिसे यश प्राप्त हो । यशस्वी ( स्विन्) - वि० [सं०] सुख्यात, जिसका खूब यश फैला हो ।
यशी - वि० यशस्वी । यशील* - वि० कीर्तिमान् ।
यशुमति - स्त्री० दे० 'यशोदा' ।
यशोगाथा - स्त्री० [सं०] कीर्तिगान, गौरवकथा | यशोदा- स्त्री० [सं०] नंदकी पत्नी; दिलीपकी माताका नाम; एक वर्णवृत्त । - नंदन - पु० कृष्ण ।
यशोधन - वि० [सं०] यश ही जिसका धन है, यशस्वी । यशोधरा - स्त्री० [सं०] गौतम बुद्धकी पत्नी । यशोधरेय - पु० [सं०] यशोधराका पुत्र, राहुल । यशोमति, यशोमती-स्त्री० [सं०] दे० 'यशोदा' । यष्टि - स्त्री० [सं०] लाठी, छड़ी; पताकाका डंडा; टहनी, डाल; जेठी मधु, मुलेठी; मोतियोंका एक प्रकारका द्वार; लता; बाँध; ताँत । त्रय- पु० (विकेट्स) धावनस्थली के दोनों सिरों पर खड़े किये जानेवाले वे तीन डंडे जिनके सामने खड़ा होकर बल्लेबाज दूसरी ओरसे फेंके हुए गेंदपर प्रहार करनेका प्रयत्न करता है और जिनके पीछे यष्टि-रक्षक या गोलंदाजका स्थान रहता है । - मधु - पु० मुलेठी, जेठीमधु । - यंत्र - पु० वह धूपघड़ी जिसमें गड़ी हुई छड़ीकी छायासे समयका ज्ञान प्राप्त हो । रक्षक - पु० (विकेटकीपर) यष्टित्रय (विकेट्स) के ठीक पीछे खड़ा रहने - वाला वह क्षेत्ररक्षक जो बल्लेबाज के प्रहार से उछाले गये गेंदको लोकने अथवा घावन करनेवाले खेलाड़ीके अपने स्थानपर न पहुँच पानेकी हालत में वापस मिले हुए गेंद से उनपर प्रहार करनेका प्रयत्न करता है । यष्टिका - स्त्री० [सं०] छड़ी, लाठी; जेठी मधु; वापी, बावली; हार, यष्टी ।
यष्टी - स्त्री० [सं०] मुलेठी; मोतियोंकी माला ।
यह सर्व० निकटस्थ वस्तुका निर्देशक सर्वनाम (वक्ता और श्रोताको छोड़कर शेष सभी जीवों और पदार्थोंके लिए
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यहाँ-यामिनी
६६६ व्यवहृत होता है)। वि० जब 'यह' के साथ कोई संज्ञा होती यात्रा-स्त्री० [सं०] जानेकी क्रिया प्रस्थान; चढ़ाई, युद्धहै तब वह विशेषणका काम करता है-'जैसे 'यह आदमी'। यात्रा; उपाय, व्यवहार, जीवन निर्वाह; उत्सवः नृत्य-गान यहाँ-अ० इस स्थानमें, इस जगहपर ।
युक्त, रासलीलाके ढंगका बंगालमें प्रचलित एक अभिनय । यहि*-सर्व०'यह'का विभक्ति लगनेके पहलेका पुराना रूप। यात्राधिदेय-पु० [सं०] (ट्रैवलिंग अलाउंस) यात्रा करने में यही-अ० [यह+ही निश्चित रूपसे यह, यह ही। होनेवाले खर्चके बदले मिलनेवाला भत्ता। यहूदिन-स्त्री० यहूदीकी स्त्री।
यात्रावाल-पु०तीर्थ यात्रियोंको देवदर्शन करानेवाला,पंडा। यहदी-पु० यहद देशका निवासी एक शामी जाति । यात्रिक-प० [सं०] यात्रीः राहखर्च. यात्राकी सामग्री: यांचा-स्त्री० याच्ना, माँगना; याचना करना ।
तीर्थयात्री; वह जो जीवन-धारणके उपयुक्त हो; यात्राका यांत्रिक-पु०[सं०](मशीनिस्ट) मशीनों,यंत्रोंको चलानेवाला, उद्देश्य; उत्सव; उपाय । वि० यात्रा संबंधी; रीतिके अनुउनके कल-पुरजोंका रहस्य जाननेवाला; मशीनें बनाने सार, प्रथानुकूल । वाला। वि०(मेकानिकल)यंत्र-संबंधी; यंत्रवत् चलनेवाला। यात्री(त्रिन)-पु० [सं०] यात्रा करनेवाला, गुसाफिर; या-सर्व०वि० ब्रजभाषामें विभक्तिमें जोड़ा जानेवाला 'यह'
का रूप । [फा०] संदेह, विकल्पसूचक शब्द, अथवा, वा, याथातथ्य-पु०[सं०] यथार्थता, असलियत, तथ्यानुरूपता। किंवा संबोधनसूचक हे, ऐ। -अली,-इलाही-पु० ऐ याथार्य-पु०[सं०] यथार्थ होनेका भाव, यथार्थता,सत्य ।
खुदा (दुआ माँगने, आश्चर्य प्रकट करनेके लिए)। याद-स्त्री० [फा०] स्मृति, स्मरणशक्ति स्मरण करनेकी याक-पु० [तिब्ब० 'ग्या', सं० 'गावक'] हिमालयपर क्रिया ।-गार-पु०,-गारी-स्त्री० स्मारक, स्मृतिचिह्न । मिलनेवाला एक जंगली बैल जिसकी पूंछके बालसे चँवर -दाश्त-स्त्री० स्मरणशक्ति, स्मृति स्मरणार्थ लिखा हुआ बनता है । वि० एक (बैसवाड़ी)।
लेख । मु०-करोगे-स्मरण करोगेपछताओगे। -किया याकूत-पु०[अ०] लाल रंगका एक बेशकीमत पत्थर, लाल। है-बुलाया है। -फरमाना-बादशाह या उच्च पदाधियाग-पु०[सं०] यश ।-संतान-पु० इंद्रपुत्र जयंतका नाम। कारीका किसीको बुलाना। याचक-पु० [सं०] माँगनेवाला, भिखारी ।
यादव-पु० [सं०] यदुका वंशज; कृष्ण; गोधन । याचकता-स्त्री० [सं०] भीख माँगनेकाकाम,भिखमंगीका पेशा। यादवी-स्त्री० [सं०] यदुकुलकी स्त्री; दुर्गा; कुहिनी; सुरा याचन-पु० [सं०] दे० 'याचना' (स्त्री०)।
गृहयुद्ध (आ०)। याचना-स० क्रि० प्रार्थना करना, माँगना । स्त्री० [सं०] | यादवीय-वि० [सं०] यादव-संबंधी । पु० गृहयुद्ध । माँगनेकी क्रिया।
यादृश-वि० [सं०] जैसा, जिस प्रकारका । [स्त्री० 'याशी'] याचमान-वि० [सं०] याचना करनेवाला, याचक । यान-पु० [सं०] सवारी, घोड़ा-गादी इत्यादि वाहन; याचिका-स्त्री० [सं०] (पिटीशन) आवेदनपत्र, प्रार्थनापत्र, गमन, जाना अभियान, आक्रमण । -भत्ता-पु० [हिं०] अजी।
सवारी रखने तथा सवारीसे आने-जानेके खर्चके रूपमें याचित-वि० [सं०] प्रार्थित, माँगा गया ।
मिलनेवाला भत्ता, यानाधिदेय । याचिता (त)-पु०[सं०] भिखारी प्रार्थी ।
यानांतरण-पु० [सं०] (ट्रांशिपमेंट) यात्रियों अथवा मालयात्रा-स्त्री० [सं०] दे० 'यांचा'।
असबाबका एक पोत या एक यानसे उतारकर दूसरे पोत याच्य-वि० [सं०] याचना करने योग्य, माँगने योग्य ।। या दूसरे यानमें पहुँचाया जाना । याज-पु० [सं०] अन्न; यज्ञ करनेवाला; एक ऋषिका नाम । यानाधिदेय-पु० [सं०] (कनवेयस अलाउंस) किसी कर्मयाजक-पु० [सं०] यज्ञ करने या करानेवाला ।
चारीको साइकिल, इक्का आदि सवारी रखने के लिए याजन-पु० [सं०] यज्ञ करने, करानेका कार्य ।
मिलनेवाला अधिदेय (भत्ता)। याजि-स्त्री० [सं०] यश। पु० यश करनेवाला ।
यानी-अ० [अ०] अर्थात्, मतलब यह है। याजी (जिन्)-पु० [सं०] यज्ञ करनेवाला ।
यापन-पु० [सं०] बिताना; चलाना; व्यवहार करना। याज्ञवल्क्य-पु० [सं०] प्रसिद्ध ब्रहावादी ऋषि, राजा | याता-वि० [फा०] पाया हुआ (जैसे 'सनदया ता')। जनकके गुरु, मैत्रेयी और गार्गीके पति; वैशंपायनके शिष्य याब-पु०[फा०] पानेवाला (जैसे 'कामयाब', 'फतहयाब')। एक ऋषि; याशवल्क्य स्मृतिके रचयिता ।
याम-पु० [सं०] पहर, तीन घंटेका समय, काल, समय । याज्ञसेनी-स्त्री० [सं०] यशसेन (द्रुपद)की पुत्री, द्रौपदी। वि० यम-संबंधी । * स्त्री० रात ।-घोष-पु० पहर-पहरयाज्ञिक-पु० [सं०] यज्ञ करने, करानेवाला ।
पर बोलने, शब्द करनेवाला; शृगाल; मुर्गा; घड़ी। याज्य-वि० [सं०] यज्ञ कराने योग्य; जो यशभे दिया या यामाता(त)-पु० [सं०] दामाद, दे० 'जामाता'।
चढ़ाया जानेवाला हो; जो यज्ञ करनेसे प्राप्त हो (दक्षिणा)। यामि, यामी-स्त्री० [सं०] यामिनी, रात; कुलवधू । यात-वि० [सं०] गत; व्यतीत ।
यामिक-पु० [सं०] पहरुआ, पहरेदार । वि० याम-संबंधी। यातना-स्त्री० [सं०] अति कष्ट, पीड़ा।
यामित्र-पु० [सं०] लग्नराशिमें सातवाँ स्थान; दे० यातायात-पु० [सं०] आना-जाना, गमनागमन (ट्रैफिक)। 'जामित्र'।। किसी पथसे होनेवाला मालका तथा थात्रियों आदिका | यामिन, यामिनि*-स्त्री० दे० 'यामिनी' । गमनागमन ।
यामिनी-स्त्री० [सं०] रात हल्दी; कश्यपकी एक स्त्री। यातुधान-पु० [सं०] राक्षस ।
-चर-पु० राक्षस, उल्लू पक्षी; गुग्गुल ।
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याम्या - स्त्री० [सं०] दक्षिण दिशा; भरणी नक्षत्र रात्रि । याम्योत्तर रेखा - स्त्री० [सं०] एक ऐसी कल्पित रेखा जो किसी स्थान से चलकर सुमेरु-कुमेरुके चारों ओर मानी गयी है । भारतके ज्योतिषी उज्जयिनी या लंकासे इसका प्रारंभ मानते थे । आजकल इस रेखाका केंद्र प्रायः ग्रीन विच (इंग०) माना जाता है ।
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यायावर - पु० [सं०] खानाबदोश, वह जिसका कोई निय मित स्थान न हो; संन्यासी, परिव्राजक; अश्वमेधका घोड़ा । वि० सदा घूमनेवाला ।
(न्) - पु० [सं०] जानेवाला |
यार - पु० [फा०] मित्र; प्रेमी; परस्त्रीसे प्रेम करनेवाला; साथी; सहायक; हिमायती ।
युगावतार - वि० [सं०] युगका अवतारी महान् पुरुष |
याराना - पु० [फा०] मैत्री; अनुचित प्रेम (स्त्री-पुरुषका) । युग्म - ५० [सं०] जोड़ा; अन्योन्याश्रय संबंधयुक्त वस्तुएँ, वि० मित्रकासा, मित्रताका ।
बातें ; मिथुन राशि | वि० दोकी संख्यावाले (व्यक्ति, पदार्थ आदि) । - चारी (रिन् ) - वि० जोड़ेमें चलने, घूमनेवाले । - ज - पु० जुड़वा बच्चे, यमज, यमल । युग्मक - पु० [सं०] जोड़ा, युग्म; ( डबल्स ) टेनिस या asfiers खेल में दो-दो पुरुष खेलाड़ियों या दो-दो स्त्री खेलाड़ियों का जोड़ा ।
यास - पु० [सं०] प्रयास, चेष्टा; लाल जवासा 1 यासु* - सर्व० दे० 'जासु' ।
युक्त वि० [सं०] जुड़ा हुआ, जकड़ा हुआ; उचित, तर्क संगत; संयुक्त सहित नियुक्त; मिलित; निपुण, चतुर । - मना (नस) - वि० दत्तचित्त ।
यारी - स्त्री० [फा०] मैत्री, मित्रभाव ।
याल - स्त्री० [तु०] घोडेकी गर्दनपरके बाल, अयाल । याचक - पु० [सं०] जौ; जौका सत्तू ; जौकी बनी हुई वस्तु लाख; अलक्तक, आलता, महावर; साठी धान । यावज्जीवन - अ० [सं०] जीवनपर्यंत, आजीवन | यावत् वि० [सं०] जितना; सब | अ० जहाँतक; जबतक । युग्मेच्छा - स्त्री० [सं०] संभोगकी इच्छा |
यावनी - वि० यवन-संबंधी; मुसलमानी ।
यावास - पु० [सं०] जवासेकी शराब |
युक्ताक्षर - पु० [सं०] संयुक्त वर्ण, मिलित वर्ण । युक्ताहार - पु० [सं०] उचित आहार | वि० उचित आहार करनेवाला |
युक्ति - स्त्री० [सं०] योग, मिलन; तर्क, ऊहा; दलील, उचित विचार; हेतु, कारण; न्याय, नीति; कौशल, चातुर्य; अनुमान; उपाय, योजना; चाल, रीति; एक अलंकार । - कर, - पूर्ण - वि० तर्कके अनुकूल; विचारपूर्ण । -मूलक- वि० ( रैशनल ) युक्ति या तर्कपर आधारित, तर्कसंगत, बुद्धिसंगत। -युक्त - वि० युक्तिपूर्ण, उचित; चतुर; प्रमाणित सिद्ध । -संगत - वि० युक्ति या तर्कके अनुकूल ।
युक्त्याभास - पु० [सं०] (सोफिस्ट्री ) देखने में बुद्धिमत्तापूर्ण, किंतु वास्तव में तथ्यहीन तर्क ।
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या युद्धापराधी
निधि, श्रेष्ठतम पुरुष । -युग- अ० बहुत दिनोंतक । - ल - पु० जोड़ा, युग्म । वि० वह जो दोकी संख्या में हो । युगति* - स्त्री० दे० 'युक्ति' । युगम* - पु० दे० 'युग्म' |
युगलक - पु० [सं०] जोड़ा; पद्योंका वह जोड़ा जिसका एक साथ अन्वय हो ।
युगांत-पु० [सं०] युग समाप्तिः प्रलय । युगांतक - पु० [सं०] प्रलय; प्रलयकाल । युगांतर - पु० [सं०] अन्य युग; दूसरा समय | मु०करना - आमूल परिवर्तन कर देना; समय, प्रथा, बदल देना ।
युगंधर - पु० [सं०] रस, कूबर; गाड़ीका बम । युग-पु० [सं०] युग्म, जोड़ा; बिसातपर चली जानेवाली पासेकी गोल गोटियाँ; पासेके खेलकी वे दो गोटियाँ जो साथ ही एक घर में आ जायें; समय, काल; पुराणमतसे कालका सुदीर्घ परिमाण - सत्य, त्रेता, द्वापर, कलियुग; ( गाड़ीका) जूआ । वि० दोकी संख्यावाला । - चेतना स्त्री० कालविशेषकी विशिष्ट प्रवृत्ति । - धर्म - पु० समया नुकूल आचरण, व्यवहार ।-पत्-अ० एक जूएमें, अगलबगल; साथ-साथ, एक साथ, एक समय । - पुरुष - वि० युगका महान्, श्रेष्ठ पुरुष । - प्रतीक- पु० युगका प्रति
युग्य - ५० [सं०] जोड़ी, वह गाड़ी जिसमें दो घोड़े या बैल "तें; दो पशु जो एक साथ गाड़ी में जुतें; जोड़ी । वि。जोता जाने योग्य; जोता जानेवाला ।-वाह-पु० गाड़ीवान । युत - वि० [सं०] युक्त, मिला हुआ; सहित ।
युद्ध - पु० [सं०] परस्पर अभिघात के लिए शस्त्र प्रहारका कर्म, संग्राम, लड़ाई, रण । -कारी (रिन् ) - पु० योद्धा । वि० युद्ध करनेवाला । -काल- पु० युद्धका समय । - क्षेत्र -५० दे० 'युद्धभूमि' । - परिषद् - स्त्री० ( वारकौंसिल ) युद्धका संचालन करने के लिए ( मंत्रिमंडल के कतिपय सदस्यों से ) निर्मित विशेष समिति । -पोत- पु० लड़ाई में काम आनेवाला जहाज, रणपोत । -बंदी - स्त्री० दे० 'लड़ाईबंदी' । पु० लड़ाईका कैदी । -भू-भूमिस्त्री० रणक्षेत्र, जिस स्थान पर युद्ध हो । - मंत्री (त्रिन्) - ५० युद्धविभागका संचालन करनेवाला मंत्री । - मार्ग-पु० युद्धकी पद्धति । - रंग- पु० युद्धस्थल; षडानन, कार्त्तिकेय । - रत, - लिप्स - वि० (बेलिजरेंट) (वह राष्ट्र या दल) जो नियमित रूपसे किसीके विरुद्ध लड़ाई ठानकर युद्धकार्यों में लगा हुआ हो। -विद्या- स्त्री०, - शास्त्र - पु० युद्धका शास्त्र, विज्ञान । - वीर - पु० युद्ध करनेवाला पराक्रमी व्यक्ति, वीर रसके नायकका एक भेद । - शक्ति - स्त्री० युद्ध करनेकी शक्ति, बल । -शाली ( लिनू ) - वि० युद्धप्रेमी, युद्ध पसंद करनेवाला । -सार- पु० घोड़ा । - स्थगन - पु० (सीज फायर) युद्ध में स्थायी या अस्थायी संधि होनेके पहले लड़ाई बंद कर देनेकी स्थिति । युद्धक - पु० [सं०] योद्धा; युद्ध; युद्धकारी विमान | युद्धमय - वि० [सं०] युद्धप्रिय; युद्ध-संबंधी । युद्धाचार्य - पु० [सं०] युद्ध विद्याकी शिक्षा देनेवाला । युद्धापराधी ( धिन् ) - पु० [सं०] (वारक्रिमिनल ) वह जिसने युद्ध-संबंधी कोई अपराध - शत्रुके हाथ कोई उपयोगी सामग्री, समाचार, भेद आदि बेच देना - किया हो ।
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युद्धोतर अर्थव्यवस्था-योग
युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था - स्त्री० [सं०] (पोस्टवार एकॉनॉमी) युद्धसमाप्ति के बादकी स्थिति देखकर उसके अनुरूप तैयार की गयी आर्थिक समस्याओंके निपटारेकी व्यवस्था या योजना |
युद्धोत्तेजक - वि० [सं०] (वारमंगर) ऐसी नीतिका अनुसरण करनेवाला जिससे युद्ध छिड़ जाने की संभावना हो । युद्धोत्तेजन - पु० [सं०] (वारमंगरिंग) अपने भाषणों, वक्तव्यों, नीति आदिसे युद्धको उत्तेजन देनेका कार्य | युद्धोन्मत्त - पु० [सं०] एक राक्षस, महोदर । वि० युद्धके लिए पागल युद्ध में आत्मविस्मृत । युद्धोपकरण- पु० [सं०] (आरमेमेंट्स) गोला-बारूद, तोपें आदि युद्धकी सामग्री ।
युधिष्ठिर - पु० [सं०] कुंती से उत्पन्न पांडुके सबसे बड़े पुत्र, धर्मराज, धर्मपुत्र ।
युध्य - वि० [सं०] युद्ध के योग्य, जिससे युद्ध किया जा सके। युयुत्सा - स्त्री० [सं०] युद्धकी इच्छा; शत्रुता । युयुत्सु - वि० [सं०] युद्धका इच्छुक, लड़ने की इच्छा रखनेवाला ।
युवक - पु० [सं०] तरुण, जवान, सोलहसे तीस वर्षकी अवस्थाका पुरुष |
वि०
युवति, युवती - स्त्री० [सं०] जवान स्त्री; हलदी । स्त्री० प्राप्त यौवना, जवान (स्त्री) । युवा (न्) - वि० [सं०] तरुण, जवान । -गंड - पु० हाँस । - पिडिका- स्त्री० मुँहासा । - राई * - स्त्री० युवराजका पद । पु० दे० 'युवराज' । -राज-पु० राज्यका उत्तराधिकारी राजकुमार । - राजी - स्त्री० [हिं०] युवराजका पद । - राज्ञी - स्त्री० युवराजकी पत्नी । - रानी * - स्त्री० 'युवराज्ञी' ।
युष्मदीय - वि० [सं०] तुम लोगोंका | यूँ - अ० दे० 'यो' ।
यूथ - पु० [सं०] सजातीय जीवोंका समूह, समुदाय, झुंड; सेना, फौज । - चारी (रि) - वि० झुंडमें चलनेवाले (बंदर, हाथी, हिरन आदि) । - नाथ- पु० झुंडका स्वाभी, नेता; सेनाध्यक्ष | -प, पति-पु० सेनापति; सरदार | - पाल - ५० दे० 'यूथपति' । - बंध-पु० सेनाकी एक टुकडी, समूह । - भ्रष्ट - वि० यूथसे निकला या निकाला हुआ । - मुख्य- पु० सेनाकी किसी टुकड़ीका प्रधान । यूथक - पु० [सं०] दे० 'यूथ' ।
यूथिका, यूथी - स्त्री० [सं०] जूही (फूल, पौधा) । यूनानी - पु० यूनानका नागरिक । स्त्री० यूनानकी भाषा; यूनानकी चिकित्सा प्रणाली, हकीमी । वि० यूनान देशका; यूनान -संबंधी ।
यूनियन - स्त्री० [अ०] संघ, सभा । यूनिवर्सिटी - स्त्री० [अ०] विविध विषयोंके शिक्षण, परीक्षण या दोनोंकी व्यवस्था के लिए स्थापित शिक्षा-संस्था जो प्रायः कालेजों आदिका भी नियमन करती है, विद्यापीठ, विश्वविद्यालय |
यूप- पु० [सं०] यशका खंभा जिससे बलिपशु बाँधा जाता है; स्तंभ जो यज्ञकी समाप्तिका चिह्न हो, विजयस्तंभ | यूरेनियम - पु० [अ०] एक भारी और शुभ धातु-तत्त्व ।
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यूरोप- - पु० [अ०] पूर्वी गोलार्द्धका सबसे छोटा महाद्वीप जिसके उत्तर आर्कटिक, पश्चिम अतलांतक, दक्षिण भूमध्यसागर तथा पूर्व में काकेशस और यूराल पर्वत हैं । यूरोपियन - पु० [अ०] यूरोपके किसी देशका नागरिक । वि० यूरोपका यूरोप-संबंधी । यूरोपीय - वि० यूरोपका; यूरोप-संबंधी । यूष-पु० [सं०] दाल इत्यादिका पानी, जूस, शोरबा; शहतूतका पेड़ ।
यूह * - पु० समूह, झुंड, सेना । ये सर्व ० 'यह' का बहुवचन । येई* - सर्व० यही ।
येऊ * - सर्व० यह भी । येतो। - वि० इतना |
येन सर्व० [सं०] जिससे । केन प्रकारेण - जिस किसी भी तरह से ।
येहू* - अ० यह भी ।
याँ - अ० इस प्रकार ।
यो। सर्व० यह ।
-
योक्तव्य - वि० [सं०] जोड़ने योग्य; नियुक्त करने योग्य । योक्ता (तृ) - पु० [सं०] जोड़ने, मिलाने या बाँधने वाला; गाड़ीवान; उभाड़नेवाला, उत्तेजक ।
योक्त्र- पु० [सं०] रस्सी; वह रस्सी जिससे गाड़ीका बैल जूएमें बँधा हो; रस्सी बाँधनेका पेच, औजार |
योग - पु० [सं०] जोड़नेका कार्य (गणित); संयोगः मिलाना, संबंध, संपर्क, युक्ति, उपाय; लाभ; घन; व्यवसाय; औषध; ध्यान; संगति; छल, विश्वासघात; शत्रुनाशके लिए आयोजित यंत्र, मंत्र, पूजा, छल, कपट आदि युक्तियाँ; दूत; सुभीताः सुयोग; चित्तवृत्तिका निरोध; मोक्षका उपाय; प्रेम; प्रयोग; मेल-मिलापः वैराग्य; शुभ काल; साम आदि चार प्रकार के उपाय; सहयोगिता; ज्योतिष में प्रधान नक्षत्र, युक्ति, प्रयोग, आभिचारिक अनुष्ठान जो बारह हैं, जोग, उतारा पतारा; उत्सव, पर्व (स्नान आदिका); संपत्तिलाभ और वृद्धि; एक छंद; युक्ति; चंद्र-सूर्यकी विशेष स्थिति के कारण होनेवाले फलित ज्योतिषके विशिष्ट काल; विशिष्ट तिथियों, वारों और नक्षत्रोंका निश्चित नियमसे पड़ना; अष्टांग योग जिसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार धारण, ध्यान और समाधिका अंतर्भाव है; हठयोग । - कन्या- स्त्री० यशोदाकी कन्या । -क्षेम - पु० अलब्ध वस्तुका लाभ और लब्ध वस्तुकी रक्षा करना; राष्ट्रका सुप्रबंध; लाभ; कल्याण, मंगल; निर्वाण, शांति; दूसरेकी धन-संपत्तिकी रक्षा; वह वस्तु जो उत्तराधिकारियोंमें न बँटे । - गामी ( मिनू ) - वि० योगबल से जानेवाला (वायुमार्ग से ) । - दर्शन - पु० महर्षि पतंजलिकृत योगसूत्र । - दान-पु० सहयोग करना, हाथ बँटाना। - निद्रा - स्त्री० समाधि-निद्रा, अर्द्ध समाधि और निद्रा; योगकी समाधि; युद्ध क्षेत्र में वीरोंकी: मृत्यु । - फलपु० जोड़नेसे प्राप्त फल । -बल-पु० तपोबल; योगसाधनसे अर्जित अलौकिक शक्ति । भ्रष्ट- पु० वह योगी जिसका योग पूर्ण न हुआ हो, योगमार्ग से च्युत । - माया - स्त्री० सूक्ष्म समाधिकी अलौकिक शक्तिः विष्णुकी शक्ति,
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भगवती; यशोदाको कन्या । - रूदि - स्त्री० दो शब्दोंक योगसे बना शब्द जिसमें युक्त शब्द सामान्य अर्थ छोड़कर विशेष अर्थ देते हैं- जैसे पंचबाण (कामदेव ) । - विद् - पु० योगका ज्ञानी; शिव; ओषधियोंके योगसे औषध बनाने वाला, बाजीगर, ऐंद्रजालिक । - वृत्ति - स्त्री० योगद्वारा प्राप्त चित्तकी शुभ वृत्ति । -शक्ति-स्त्री० योगसाधनसे प्राप्त शक्ति, तपोबल । - शब्द-पु० सामान्य अर्थ देनेवाला, यौगिक शब्द । - शास्त्र- पु० पतंजलि ऋषिकृत योग विषयक ग्रंथ; छः शास्त्रों में से एक । - शास्त्री (त्रिन्) - पु० योगशास्त्रका ज्ञाता । - सिद्ध- पु० योगी, जिसका योग पूरा हो चुका हो । सिद्धि-स्त्री० योगकी सफलता । - सूत्र - पु० पतंजलि प्रणीत सूत्रोंका संग्रह | योगवान् (वत्) - पु० [सं०] योगी । [स्त्री० 'योगवती' ।] योगांग-पु० [सं०] योगके अंग (ये आठ हैं- यम, नियम,
आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान और समाधि) । योगांजन- पु० [सं०] सिद्धांजन ( कहा जाता है कि इसके लगाने मे भूगर्भस्थ वस्तुओं का दर्शन होता है); नेत्र रोगोंको दूर करनेवाला अंजन, प्रलेप ।
योगाभ्यास - पु० [सं०] योगसाधन, योगके अंगों का यथाविधि अभ्यास ।
योगाराधन - पु० [सं०] योगाभ्यास करना, योग-साधन । योगासन - पु० [सं०] योगनिर्दिष्ट बैठने की विधि । योगिनी - स्त्री० [सं०] रणपिशाचिनी; दुर्गाकी सखी, चौसठ देवियाँ; तपस्विनी, योगाभ्यासिनी; योगमाया । योगींद्र - पु० [सं०] सर्वश्रेष्ठ योगी । योगी (गिन् ) - पु० [सं०] अलौकिक शक्ति-संपन्न पुरुष आत्मज्ञानी, सुख-दुःखादिमें सम रहनेवाला; योगसिद्ध, सिद्ध पुरुष । - राज - पु० दे० 'योगींद्र' | योगीश, योगीश्वर - पु० [सं०] योगिराज, सर्वश्रेष्ठ योगी; याज्ञवल्क्यका नाम; शिव ।
योगीश्वरी - स्त्री० [सं०] दुर्गा |
योगेश, योगेश्वर - पु० [सं०] योगीश्वरः कृष्णः शिव । योगेश्वरी - स्त्री० [सं०] दुर्गाका विशेष रूप; दुर्गा । योग्य - वि० [सं०] पात्र, अधिकारी, लायक; श्रेष्ठ, शीलवान् ; उचित; जोड़ने लायक; सुंदर; आदरणीय; जोतने लायकः समर्थ; निपुण । योग्यता - स्त्री० [सं०] उपयुक्तता; क्षमता; बुद्धिमानी; प्रतिष्ठा; औकात; अनुकूलता; वाक्यके तीन तात्पर्यबोधक गुणों में से एक; शब्द-अर्थ- संबंधकी संभवनीयता । योजक - पु० [सं०] पृथिवीका वह पतला भाग जो दो बड़े भूखंडों को मिलाये । वि० संयुक्त करनेवाला, संयोजक, जोड़नेवाला ।
योजन - पु० [सं०] एकत्रीकरण, मिलान, योग; परमात्मा; दूरीका मानविशेष (दोसे आठ कोसतक) । -गंधा,गंधिका - स्त्री० सत्यवती, शांतनुपत्नी ।
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योगवान् - रंग
योजना - स्त्री० [सं०] व्यवस्था, आयोजन; कोई काम करनेका विचार, भावी कार्यपद्धतिकी पूर्व कल्पना, स्कीम जोड़, मिलान, बनावट, रचना; घटना; व्यवहार; प्रयोग । योजनीय - वि० [सं०] योजना करने योग्य; मिलाने, जोड़ने योग्य ।
योज्य - वि० [सं०] व्यवहार योग्य; जोड़ने योग्य । पु० संख्याएँ जिनका योग किया जाय ।
योद्धा (ट) - पु० [सं०] युद्धकर्ता, रणकुशल व्यक्ति । वि० युद्ध करनेवाला |
योनि - स्त्री० [सं०] उत्पत्तिस्थान, जहाँसे कोई वस्तु पैदा हो; स्त्रियोंकी जननेंद्रिय; देह; गर्भाशय; जन्म; प्राणिविभाग (पुराणमत से इनकी संख्या ८४ लाख है, कुछ २१ लाख मानते हैं) । - ज - पु० योनिसे उत्पन्न जीव (जरायुज और अंडज) । - दोष-पु० उपदंश, गरमी । - फूल - [[हिं०] पु० योनि के अंदरकी गांठ जिसमें एक छेद होता है और जिससे होकर वीर्य गर्भाशय में जाता है ।-भ्रंशपु० एक योनिरोग जिसमें गर्भाशय अपने स्थान से हट जाता , -मुक्त-पु० गुक्त, मोक्षप्राप्त व्यक्ति जो आवागमनसे छूट गया हो। - मुद्रा - स्त्री० तांत्रिकोंकी एक मुद्रा जिसमें उँगलियोंसे योनिका आकार बनाते हैं । - शूल - पु० योनिकी पीड़ा, स्त्रियोंका एक रोग । - संभव - पु० वह जो योनिसे पैदा हो, जरायुज अंडज । योषणा- स्त्री० [सं०] पुंश्चली, दुश्चरित्रा स्त्री; नवयुवती । योषा - स्त्री० [सं०] स्त्री, नारी । योषिता, योषित्-स्त्री० [सं०] स्त्री, नारी । यौ* + - सर्व० 'यह'का बैसवाड़ेका रूप |
यौक्तिक - पु० [सं०] नर्म सखा । वि० युक्तियुक्त, तर्कसंगत। यौगिक- वि० [सं०] मिला हुआ; योग संबंधी । पु० शब्दों के तीन भेदों में से एक; (कंपाउंड) दो या अधिक तत्त्वोंसे बना हुआ पदार्थ (जैसे जल जो ओषजन तथा जलजनसे बनता है) । यौतक, यौतुक - पु० [सं०] विवाह- कालका मिला हुआ धन, दहेज; वह संपत्ति जो कन्याके पितृवर्गकी ओरसे वरपक्षको दी जाती है; चढ़ावा; उपहार । यौथिक- वि० [सं०] यूथका; झुंड में रहनेवाला । यौद्धिक - वि० [सं०] युद्धका; युद्ध-संबंधी । यौन- वि० [सं०] योनिका ; योनि-संबंधी; लैंगिक । -रोग - पु० (वेनेरियल डिज़ीज) दे० 'रतिज रोग' । यौवन- पु० [सं०] बाल्यावस्था के बादकी अवस्था जिसकी स्थिति १६ से ३०-३५ वर्षतक मानी जाती है, जवानी; युवतियोंका दल; दे० 'जोबन' | - कंटक, - पिडक - पु० मुहाँसा । - लक्षण - पु० लावण्य, सुंदरता; स्तन । यौवराजिक- वि० [सं०] युवराजका; युवराज-संबंधी । यौवराज्य- पु० [सं०] युवराजका पद युवराजत्व । यौवराज्याभिषेक - पु० [सं०] राज्यके उत्तराधिकारी राजकुमारका अभिषेक कर्म ।
र - देवनागरी वर्णमालाका सत्ताईसवाँ व्यंजन वर्ण ।
पु० निर्धन व्यक्ति; भिक्षुकः कृपण मनुष्य ।
रंक - वि० [सं०] निर्धन, गरीब, कृपण, कंजूस, मंद, सुस्त । रंग - पु० [सं०] राँगा धातु; सोहागा; नाट्यस्थान; क्रीडा
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रंग-रंगाजीव
गार; रंगमंच सभाभवन, नाचघर; रणभूमि, युद्धक्षेत्र; नृत्य; क्रीडा, वर्ण, किसी पदार्थका वह गुण जिससे वह सूर्य किरणोंके कुछ रंगोंको वर्तित और कुछको परावर्तित कर आँखपर डालता तथा कुछको सोख लेता है; वह बुकनी आदिका घोल जिसमें या जिससे कोई चीज रँगी जाय (दे० 'रंग' - फा० ); मिश्रित रंग; शरीरका वर्ण । - क्षेत्र- पु० अभिनय स्थल; समारोहका स्थान । -गृहपु० नाट्य, अभिनयका स्थान । - जीवक-पु० चित्रकार; अभिनेता । - द्वार - पु० रंगमंचका प्रवेशद्वार; नाटककी प्रस्तावना । - पीठ-पु० नृत्यशाला । - प्रवेश - पु० अभि नय के लिए किसी पात्रका रंगमंचपर आना । -बिरंग, - बिरंगा - वि० [हिं०] अनेक रंगोंवाला, भाँति-भाँतिका । -भरिया - पु० [हिं०] रंगसाज, रंग करनेवाला; किवाड़, दीवार आदिपर चित्र बनानेवाला । - भवनपु० आमोद-प्रमोद, विलास - विहारका स्थान, रंगमहल | -भूमि- स्त्री० अभिनय, नाटक खेलनेका स्थान, नाट्यशाला; युद्धक्षेत्र; क्रीडास्थान, आक्रोड, उत्सवका स्थान । - मंच - पु० वह स्थान जहाँ नाटकादिका अभिनय, नृत्य, खेल, जलसा इत्यादि हो (स्टेज) । - मंडप - पु० रंगभूमि, नाट्यशाला । - महल - पु० [हिं०] भोग-विलासका स्थान, प्रमोदभवन; अंतःपुरः रंगभूमि, रंगशाला; रंगमंच, अभिनयका स्थान । -माता, मातृका - स्त्री० लाख | - रस- पु० आनंद-क्रीडा, आमोद-प्रमोद । - रसियापु० [हिं०] मौजी, विलासी पुरुष । - रूप - पु० सूरत, शकल | - विद्याधर - पु० अभिनेता; नृत्यप्रवीण, कुशल व्यक्ति; तालके मुख्य साठ भेदोंमेंसे एक ( संगीत ) । - शाला - स्त्री० वह स्थान जहाँ नाटक खेला जाय, नाट्यशाला; (स्टूडियो) उद्यान, जलाशय, ध्वन्यभिलेखनयंत्रादिसे सज्जित प्रकोष्ठ तथा अन्य उपकरणोंसे युक्त वह लंबा-चौड़ा छाता जहाँ चित्रपटके लिए चलचित्र तैयार किये जाते हैं; आकाशवाणी केंद्रका वह प्रकोष्ठ जहाँसे किसी ध्वनिक्षेपक यंत्र द्वारा भाषण, सामयिक वार्ता, रूपक, कविसम्मेलन आदिका प्रसारण होता अथवा जहाँ उनका ध्वन्यभिलेखन किया जाता है। मु०-आना, - चढ़ना - भली भाँति रंग लग जाना, रंग खुलना । - उड़ना, - उतरना - धूल, जल आदिके कारण रंगका हल्का पड़ना, उड़ जाना । - खेलना, - डालना, - फेंकना - पानी में घुला रंग हाथ, पिचकारी आदिसे किसीपर डालना । - निखरना - रंग चटकीला होना । - फीका पड़ना या होना - दे० 'रंग उतरना' । - भरना - चित्र में रंग पूरना; रँगना । - मचना - रणक्षेत्र में उत्साह पूर्वक भीषण युद्ध करना । - मचाना - खूब युद्ध करना; धूम मचाना | रंग-पु० शोभा, सौंदर्य; धाक, आतंक, यौवन; आनंद, मौज, ठाट-बाट, साज-सामान, टीम-टाम; चाल, ढब - ‘तिनको दान लेत हैं हमसों, देखहु इनको रंग' - सू० प्रकार, तरह; असर, प्रभाव; यौवन; सौंदर्य; हालत; अद्भुत दृश्य; व्यापार (विशेषतः समृद्धि आदि के प्रदर्शन में ईश्वर स्वामी के प्रति कृतज्ञता के लिए - जैसे लक्ष्मीकी यह अतुल कृपा उन्हींका रंग है ); प्रेम, राग, अनुरागः तरंग, मौज -ढंग - पु० हाल, दशा, स्थिति; तौरतरीका; व्यवहार,
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चलावा; चिह्न, लक्षण । - तरा-पु० बड़ी मीठी नारंगी, संतरा । - रली - स्त्री० आनंद, मौज, खेल । मु० आनाआनंद आना । - उखड़ना - दूसरों पर प्रभाव, रोव, धाक न रहना; प्रतिकूल स्थिति होना; आनंदका घट जाना, नाश हो जाना । — उजड़ना, - उतरना - शोभा, रौनक, घटना । - काछना * - चाल चलना, ढंग पकड़ना, ग्रहण करना । - चढ़ना - हर्षित होना; रंजित होना; प्रभाव, असर पड़ना । - चूना, - टपकना - जवानी आना, जवानी उमड़ना, यौवनका विकास होना । -जमना - धाक, रोब प्रभाव, अनुकूल स्थिति होना; खूब आनंद, मजा होना । - जमाना - प्रभाव स्थापित करना, धाक बैठाना, बाँधना । - पकड़ना, - पर आना - रौनक, बहारपर आना । - बँधना - रोब जमना, धाक बँधना । - बदलना - स्थिति में परिवर्तन होना; अच्छी दशा में होना । -बरसनारौनक, शोभाकी वृद्धि होना । - बाँधना - महत्त्व, प्रभाव स्थापित करना; रोब गाँठना । - बिगड़ना - रोब, प्रभाव कम होना, नष्ट होना । - बिगाड़ना - रोग, महत्त्व घटाना, नष्ट करना; शेखी किरकिरी करना । - मेँ ढलनाकिसी के प्रभाव, असर में आना; किसीके अनुकूल चलना, आचरण करना । - मेँ भंग करना-बना-बनाया खेल बिगाड़ना; आनंद, हर्पके क्षण में उपद्रव करना । - मेँ रँगना - तन्मय होना; अनुकूल होना; किसीका अनुकरण करना । - रचाना-उत्सव, जशन करना । - रलना - क्रीडा, प्रमोद करना । - लाना-असर दिखाना; विशेषता प्रकट करना; स्थिति, अवस्था उत्पन्न करना ।
रंग-पु० [फा०] वर्ण; वह बुकनीदार चीज जो बाजारों में मिलती और कपड़ा, लकड़ी आदि रँगने के काम आती है; किरणों का रंग ( इसका प्रभाव आँखोंपर पड़ता है, और जो रंग किसी पदार्थ द्वारा परावर्तित होता है वही उसमें दिखाई देता है); दृश्य ढंग तरीका; खेल; उल्लास, आनंद, दशा, हालत; रौनक, खूबसूरती; ट्रंप, तुरुप (ताशके खेल में ); चौपड़की खास रंगकी आठ गोटियाँ । - पाशी-स्त्री० होलीका उत्सव -मारपु० ताशका एक खेल । -साज़-पु० रंग बनानेवाला; दीवार, मेज आदिपर रंग चढ़ानेवाला । - साज्ञी - स्त्री० रंगसाजका काम |
रंगत - स्त्री० हालत, दशा; आनंद, मजा; रंग । रँगना-स० क्रि० रंग देना (दीवार, चित्र आदि में ); रंगमें डुबोना ( कपड़ा ) |
रंगबाति* - स्त्री० सुगंधित द्रव्यकी बनी बत्ती (मति० ) । रंगरूट - पु० [अ०] 'रिक्रूट' ] नया सिपाही; नौसिखिया । रँगरेज़ - पु० [फा०] कपड़ा रँगनेका काम करनेवाला | रँगरेली - स्त्री० दे० 'रंगरली' । रँगवाई - स्त्री० दे० 'रँगाई' । रँगवाना-स० क्रि० दे० 'रंगाना' । रंगांगण - पु० [सं०] रंगभूमि |
रँगाई - स्त्री० रँगनेका काम या भाव; रँगनेकी मजदूरी । रंगाजीव, रंगाजीवी (विन्) - पु० [सं०] रँगाईसे गुजर करनेवाला, रंगसाज |
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गाना - सु० क्रि० रँगनेका काम दूसरे से कराना | रंगालय - पु० [सं०] रंगस्थल, रंगशाला । रँगावट - स्त्री० रँगाई |
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रंगावतारक- पु० [सं०] अभिनेता; रंगसाज । रंगावतारी (रिन् ) - पु० [सं०] अभिनेता | रंगिणी - स्त्री० [सं०] शतमूली; कैवर्तिका लता । वि० स्त्री० रंगवाली; विनोदिनी, परिहास करनेवाली । रंगी (गिन् ) - वि० [सं०] विनोदी, मौजी, परिहास करनेवाला; रंगवाला; रँगनेवाला; अनुरक्त; अभिनय करनेवाला ।
रंगीन - वि० [फा०] रँगा हुआ; चमत्कारपूर्ण; विलासप्रिय, ऐशपसंद; सुखद कल्पना से युक्त ।
रंगीनी - स्त्री० [फा०] रंगीन होना; शृंगार, सजाव; रँगीलापन, विलासप्रियता ।
रँगीला - वि० मौजी; सुंदर; प्रेमी ।
रंगोपजीवी (विन्) - पु० [सं०] अभिनय द्वारा रोजी कमानेवाला, नट ।
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रगाना -रक्रम
रंदा -५० लकड़ीको चिकनी और सम बनानेका औजार | रंधक - पु० [सं०] रसोइया, राँधनेवाला । रंधन - पु० [सं०] रसोई, भोजन बनाना; नष्ट करना । रंध्र- पु० [सं०] छेद; दोष; भग; लग्नसे आठवाँ स्थान । रंभ - पु० [सं०] गर्जन, घोर शब्द - 'माथे रंभ समुद जस होई' - प०; रेणु; केला (रघु० ) । रंभण - पु० [सं०] रंभाना; आलिंगन । रंभन* - पु० दे० 'रंगण' ।
रंभा - पु० लोहेका मोटा, बड़ा डंडा जो दीवार आदि में छेद करने के काम आता है । स्त्री० [सं०] केला; एक अप्सराका नाम; गायका रंभाना, चिल्लाना; गौरी। - पति - पु० इंद्र | - फल- पु० केला । रँभाना - अ० क्रि० गायका बोलना |
रंभित - वि० [सं०] शब्द, ध्वनि किया हुआ; बजाया हुआ । रंभोरु - वि० स्त्री० [सं०] कदलीस्तंभ के समान जाँघोंवाली, सुंदर (स्त्री) ।
रहटा - पु० इच्छापूर्ति की हविस, लालच, लोभ । रहट - पु० दे० 'रहेंट' ।
र- पु० [सं०] अग्नि; कामाग्नि; ताप । - गण - पु० तीन वर्णोंका शब्द जिसमें पहला, तीसरा गुरु और दूसरा लघु हो ।
रअय्यत - स्त्री० [अ०] रिआया, प्रजा; काश्तकार, असामी; नौकर; मुलाजिम, बिना किराया दिये मकान में रहनेवाला आदमी । - आज़ार - वि० प्रजाको पीड़ा देनेवाला । -दार - पु० हाकिम, शासक। - दारी - स्त्री० हुकूमत, सल्तनत, राज्य, शासन ।-निवाज़ - वि० प्रजाकी सहायता, रक्षा करनेवाला ( शासक, स्वामी) । - परवर - वि० प्रजापालक । - वारी- वि० एक-एक काश्तकार के साथ, अलग-अलग । स्त्री० एक बंदोबस्त जिसमें काश्तकार सीधे सरकारको मालगुजारी देता है । रइकौ* +- अ० राई भर भी, जरा भी । रइनि * +- स्त्री० रजनी, रात, रैन ।
रई - स्त्री० खैलर, मथनी, दही मथनेकी लकड़ी; गेहूँका दरदरा आटा, सूजी, चूर्ण [रवाका अल्पार्थक रूप] । *वि० स्त्री० अनुरक्त, पगी हुई, डूबी हुई; सहित, युक्त । रईस - पु० [अ०] ताल्लुकेदार, सरदार ( राजा, नवाब, सेनापति, शाहजादा, हाकिम, उच्च वर्गका आदमी, अमीर, धनी); शरीफ, शिष्ट, प्रतिष्ठित मनुष्य । - जादा - पु० रईसका लड़का |
रंच, रंचक- वि० थोड़ा, जरा, किंचित् ।
रंज - पु० [फा०] दुःख; शोक; दर्द; अफसोस; पछतावा । रंजक - पु० [सं०] रँगरेज; रंगसाज; ईंगुर; मेहदी; भिलावाँ । वि० रँगनेका काम करनेवाला; मनोरंजक, हर्मकारक | स्त्री० [फा०] बंदूक, तोपकी बारूदकी प्याली; बारूद जो इस प्याली में रखी जाय; उत्तेजक बात । मु०उड़ाना - बंदूक, तोपकी प्याली में बारूद रखकर जलाना । - चाट जाना-तोप, बंदूककी प्यालीकी बारूदका यों ही जलकर रह जाना, गोली, गोला न छूटना । - पिलाना- तोप, बंदूककी प्याली में रंजक रखना । रंजन- पु० [सं०] रँगनेका काम, रँगना; मन प्रसन्न करना । वि० हर्षित करनेवाला, रंजक कारी साहित्यपु० ( लाइट लिटरेचर) ऐसी पुस्तकें, कहानियाँ आदि जिन्हें लोग मनबहलाव के लिए पढ़ते हैं और जिन्हें पढ़ने समझने में विशेष आयास नहीं करना पड़ता । रंजना* - स० क्रि० हर्षित करना; भजन करना; रँगना । रंजित - वि० [सं०] रँगा हुआ; हर्षित; अनुरक्त । रंजिश, रंजीदगी - स्त्री० [फा०] नाराजगी; अनबन, वैमनस्य ।
रंजीदा - वि० [फा०] नाराज; दुःखी । रंड - वि० [सं०] धूर्त; बेचैन; विफल । पु० निस्संतान मरनेवाला मनुष्य; अफल वृक्ष ।
रंडा - स्त्री० [सं०] राँड़, विधवा ।
रईसी - स्त्री० अमीरी, धनसंपन्नता । रउताई * + - स्त्री० प्रभुता, स्वामित्व ।
ढ़ापा - पु० वैधव्य |
|
रंडी - स्त्री० नाचने-गानेका व्यवसाय करनेवाली और धन लेकर संभोग करानेवाली स्त्री, वेश्या । - बाज़ - पु० वेश्यागामी । - बाज़ी - स्त्री० वेश्यागमन । रँडुआ - पु० वह पुरुष जिसकी पली मर गयी हो, मृतस्त्रीकरकतांक* - पु० मूँगा; केसर, कुंकुम; लाल चंदन ।
रउरे। - सर्व० मध्मम पुरुषका आदरसूचक संबोधन, आप । रकत * - पु० लहू, रुधिर । वि० लाल | - कंद * - पु० मूँगा, विद्रुमः रतालू ; राजपलांडु |
रकबा - पु० क्षेत्रफल, लंबाई-चौड़ाईका गुणा करनेसे प्राप्त गुणनफल; घिरी हुई जमीन, घेरा, अहाता ।
रंता (तृ) - वि० [सं०] रमण, आनंद करनेवाला; *अनुरक्त । रंति - स्त्री० [सं०] क्रीड़ा; विराम । -देव-पु० एक परम दानी और यज्ञकर्मा पौराणिक राजा; विष्णु । रँदना - स० क्रि० रंदा फेरना, चलाना; रंदासे लकड़ीकी सतह चिकनाना ।
रक्कम स्त्री० [अ०] धन, नियत संख्या के रुपये; मूल्यवान् वस्तु; गहना, जेवर; धनराशि पूरी संख्या, जोड़; प्रकार, भाँति, ढंग ।
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रकमी-रक्षण
६७२ रकमी-वि०कीमती निशान किया हुआ,लिखा हुआ। पु० | वाला । -पल्लव-पु. अशोक वृक्ष। -पा-स्त्री०
एक तरहका किसान जिसके साथ रिआयत की जाती है।। जोक; डाकिनी । -पात-पु० रक्त गिरना, बहना, रकाब-स्त्री० [अ०] लोहेका पावदान जो जीनमें दोनों ओर रक्तस्राव; प्रहार जिससे किसीका रक्त बहे; खूनखराबी, रस्सी या तस्मेसे लटकता रहता है और जिसपर पैर रखकर मारकाट । -पायी(यिन)-वि० रक्त पान करनेवाला, घोड़ेपर चढ़ते हैं। बादशाहों, अमीरोंकी सवारीका घोड़ा। खून पीनेवाला। पु० खटमल, मत्कुण । -पारद-पु. -दार-पु० घोड़ेपर चढ़ानेवाला नौकर, साईस वह नौकर ईगुर, हिंगुल; शिंगरफ। -पाषाण-पु० लाल पत्थर, जो अमीर आदमीके घोड़ेके साथ दौड़ता है; खासा गेरू । -पित्त-पु. एक रोग जिसमें मुँह, नाक, कान, बरदार, बादशाहोंके साथ खाना लेकर चलनेवाला | गुदा, योनि आदि इंद्रियोंसे रक्त गिरता है।, -पुष्प-- सेवक; अचार, चटनी, मिठाई वगैरह बनाकर बेचनेवाला पु० कनेर, करवीर; अनारबंधूक पुन्नाग; अड़हुल । आदमी, हलवाई; रकाबियोंमें खाना लगाकर रखनेवाला । -प्रदर-पु. प्रदरका एक भेद जिसमें स्त्रीकी योनिसे मु०-थामना-घोड़ेपर किसीके चढ़ते समय साईसका । रक्त प्रवाह होता रहता है। -ग्रमेह-पु० पुरुष-रोग, रकाब पकड़ना। -में-सहयात्रा, हमराह । -में पाँव इसमें खूनकासा दुर्गंधपूर्ण पेशाब होता है। -फूल-पु० रखना-घोड़ेपर सवार होना । -में पाँव रहना-हर अड़हुल, पलाश। -मोचन-पु० शीर, फस्द, शरीरका वक्त चलनेको तैयार रहना।
खून निकालना। -रोग-पु० रक्तको दूषित करनेवाला रकाबत-स्त्री० [अ०] एक प्रेमिकाके कई प्रेमी होना; प्रणय- रोग, जैसे कुष्ठ। -लोचन-पु. कबूतर; दे० 'रक्तनेत्र' । की प्रतियोगिता।
-वसन-पु० संन्यासी। -वीज-पु. लाल बीजका रकाबी-स्त्री० तश्तरी, चीनी मिट्टी इत्यादिकी बनी थाली; अनार, बेदाना; रीठा; एक राक्षस जिसके धरतीपर गिरनेछिछली छोटी थाली जिसकी दीवार बाहर मुड़ी हो; घोड़े- वाले रक्तके विंदु-विंदुसे राक्षस तैयार हो जाते थे, इसका की बगल में लटकनेवाली तलवार । -चेहरा-पु० चौड़ा वध चंडिकाने किया था (देवीभागवत)। -वृष्टि-स्त्री० मुँह, गोल मुँह।
आकाशसे लाल रंगके पानीकी वर्षा। -व्रण-पु० वह रक्त-पु० [सं०] लहू, रुधिर; लाल रंग; ताँबा पुराना फोड़ा जिससे मवादकी जगह रक्त निकले ।-संबंध-पु०
आँवला; कुंकुम, कमल; लाल चंदन; सिंदूर, ईगुर; गुल- बंशगत ऐक्य, वंश, कुलका संबंध। -साध-पु० खून दुपहरिया, बंधूक । वि० अनुरक्त, आसक्त रँगा हुआ बहना, निकलना, गिरना । सुर्ख, लाल, विलासी। -आमातिसार-पु० एक रोग | रक्तता-स्त्री० [सं०] लालिमा, ललाई, सुखी । जिसमें लहके दस्त आते हैं, रक्तातिसार। -कंठ-वि० रक्तांबर-वि० [सं०] लाल वस्त्र धारण करनेवाला । पु० लाल कंठवाला, सुरीली आवाजवाला । पु० कोयल। लाल कपड़ा (विशेषकर रेशमी); संन्यासी । -कुमुद-पु० कुई । -कुष्ठ-पु० विसर्प रोग। -क्षय- रक्तांबु-पु० [सं०] (सीरम) रक्तका पतला, पारदशी भाग; पु० रुधिर बहना, रक्तस्राव । -क्षेपण-पु० (ब्लडट्रांस- वह रस जो अभी रक्त के रूपमें लाल न हुआ हो, चेप, फ्यूजन) एक व्यक्ति या प्राणीकी धमनियोंसे रक्त निकाल- | सौम्य । कर किसी अन्य व्यक्ति या प्राणीकी धमनियों में पहुँचाना। रक्तात-वि० [सं०] रक्तसे रंगा या चुपड़ा दुआ; लाल -ग्रीव-पु. कबूतर राक्षस । -चंचु-पु० तोता, सुआ। रंगका। -चंदन-पु. लाल चंदन । -चाप-पु० (ब्लडप्रेशर) | रक्ताक्ष-वि० [सं०] लाल नेत्रोंवाला, भयंकर । पु० कबूतर हृदय द्वारा प्रक्षेपित रक्तका धमनी आदिकी दीवारपर सारस चकोर; भैस साठमेंसे अट्ठावनवाँ संवत्सर । पड़नेवाला दबाव जो उचित मात्रासे कम या अधिक होने- रक्तातिसार-पु० [सं०] वह अतिसार, जिसमें खूनके दस्त पर रोग या विकृतिका सूचक होता है। -चूर्ण-पु० | आते हैं। सेंदुर; कमीला। -ज-वि० रक्तसे उत्पन्न; रक्तविकारसे रक्ताधरा-स्त्री० [सं०] किन्नरी । वि०स्त्री० लाल ओठवाली। होनेवाला। -जवा-स्त्री० देवीफूल, जवाकुसुम, अड़- रक्ताभ-पु० [सं०] बीरबहूटी। वि० रक्त जैसी आभाका । हुल । -जिह्व-पु० शेर, सिंह । वि० लाल जीभवाला। रक्तार्श (स्)-पु० [सं०] खूनी बवासीर; दे० 'बवासीर'। -तुंड-पु० तोता, सुआ। वि० जिसका मुँह लाल हो। रक्तिम-वि० [सं०] ललाई लिये हुए, लालिमायुक्त । -दान बैंक-पु० [हिं०] (ब्लडबैंक) युद्ध में घायल होने रक्तिमा (मन् )-स्त्री० [सं०] लाली, ललाई । या अन्य कारणोंसे जिनकी धमनियोंमें रक्तकी नितांत | रक्तोत्पल-पु० [सं०] लाल कमल; सेमल । कमी हो गयी हो उनके शरीर में रक्तका निक्षेपण करनेके रक्तोपल-पु० [सं०] गेरू, लाल नामक रत्न । लिए पहलेसे ही स्वस्थ व्यक्तियोंकी देहसे लिया गया रक्त | रक्ष-पु० [सं०] रक्षा करनेवाला, रक्षक; रक्षा । संचय करनेवाली संस्था । -दूषण-वि० रक्त दूषित करने रक्ष (सु)-पु० [सं०] राक्षस, असुर, दैत्य । वाला, खून खराब करनेवाला। -दृग(क)-वि० रक्षक-पु० [सं०] पहरा देनेवाला; पालन करनेवाला; लाल आँखोंवाला । पु० कोयल; कबूतर चकोर । -धातु- रक्षा करनेवाला; सुरक्षित रखनेवाला । -पोत-पु० स्त्री० गेरू, ताँबा ।-नयन-पु० कबूतर चकोर; कोयल।। (एस्कर्ट वेसल) व्यापारिक बेड़े आदिकी रक्षाके लिए उसके -नेत्र-पु० सारस, कोयल; चकोर, कबूतर । वि० लाल साथ-साथ चलनेवाला पोत । आँखोंवाला । -प-पु० राक्षस । वि० रक्तपायी, रक्त रक्षण-पु० [सं०] सुरक्षित रखना; रक्षा करना; रखवाली पीनेवाला । -पट-पु० श्रमण । वि० लाल कपड़े पहनने- करना; पालन-पोषण । कर्ता (त)-पु० रक्षा करनेवाला।
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६७३
रक्षणीय-रगड़ रक्षणीय-वि० [सं०] रखने योग्य; रक्षा करने योग्य । रखला-पु० दे० 'रहकला' । रक्षन*-पु० दे० 'रक्षण' ।
रखवाई-स्त्री० पहरेदारी, चौकीदारी रखवालीकी मजदूरी रक्षना*-स० क्रि० रक्षा करना; सँभालना।
रखनेकी क्रिया या ढंग; रखनेकी उजरत; चौकीदारीका रक्षस*-पु० राक्षस, असुर ।
टैक्स; खेत रखाना। रक्षा-स्त्री० [सं०] ( कष्ट, अनिष्ट, आपत्तिसे) बचानेकी रखवाना-स० क्रि० रखनेका काम दूसरेसे कराना। क्रिया, रखवाली; रखना; सुरक्षा; कपास, रेशमका सूत्र रखवार*-पु० रखवाला; चौकीदार, पहरेदारः रक्षा जो विशेष अवसरपर कलाई पर बाँधा जाता था। -गृह- करनेवाला। पु० चौकी; विश्राम-भवन; सौरी, सूतिकागृह । -दल- रखवारी-स्त्री० दे० 'रखवाली' । पु० ( होमगार्ड ) पुलिसके सहायक रूपमें काम करने-रखवाला-पु० रक्षा करनेवाला, रक्षक; चौकीदार । वाला नागरिकोंका संघटन । -प्रदीप-पु० दीपक जो रखवाली-स्त्री० रक्षाकार्य; हिफाजत, सुरक्षा । भूत-प्रेतसे बचनेके लिए जलाया जाय (तंत्र)।-बंधन-रखाई-स्त्री० रक्षा करनेकी क्रिया; रक्षा करनेका भाव; पु० सलूनो नामका त्योहार जो श्रावणको पूर्णिमाको होता धन जो रक्षा करने के बदले दिया जाय । है (इस अवसरपर बहनें अपने भाइयोंकी और पुरोहित रखान-स्त्री० रखौना, चराईकी भूमि, चर । अपने यजमानोंकी कलाईमें कपास या रेशमका अभि- | रखाना-सक्रि० रखवाना, रक्षा करना, रखवाली करना। मंत्रित रक्षासूत्र बाँधते हैं)। -भूषण-पु. भूषण, जंतर, | रखिया-वि० रखनेवाला, रक्षक । कवच जो भूत-प्रेतादिसे बचने के लिए पहना जाता है। | रखियाना-स० क्रि० राखसे माँजना (बर्तन आदि)। -मणि,-रत्न-पु० मणि, रल जो ग्रहकोपसे बचनेके रखीसर-पु० ऋषीश्वर (कबीर) । विचारसे धारण किया जाय ।
रखेड़िया-पु० ढोंगी साधु, राख रगड़कर बना हुआ साधु । रक्षाइद*-स्त्री० राक्षसपन ।
रखेली-स्त्री० रखैल, रखनी, बैठाली, उपपत्नी (जो बिना रक्षित-वि० [सं०] जिसकी रक्षा की गयी हो; रखा हुआ विवाह किये घरमें रखी जाय)। प्रतिपालित; सुरक्षित ।
रखैया-पु० रक्षा करनेवाला; रखनेवाला । रक्षी (क्षिन् )-पु० [सं०] पहरेदार, चौकीदार; रक्षा रखैल-स्त्री० दे० 'रखेली'। करनेवाला, रक्षक; * राक्षसोपासक ।
रखौत, रखौना-पु० चर, चरी, चरनेके लिए रखायी रक्ष्य-वि० [सं०] रक्षणीय, रक्षा करने योग्य ।
हुई, सुरक्षित भूमि । रक्ष्यमाण-वि० [सं०] जिसकी रक्षा हो रही हो रक्षित ! रग-स्त्री० [फा०] नस, नाड़ी; फूल, पत्तेका रेशा आँखका होनेवाला।
डोरा; तार, तागा; नस्ल, जात; दूध पिलानेवालीका रख, रखा-स्त्री० चर, पशुओंके चरनेके लिए सुरक्षित प्रभाव; बुरी आदत हठ, जिद । -रगमे -हर रगमें; भूमि, रखौना, रखायी हुई चरभूमि या जंगल ।
सारे शरीरमें । मु०-उतरना-आँत उतरना; जिद रखना-स० क्रि० धरना; टिकाना; ठहराना; बचाना, दूर होना; क्रोध उतरना ।-का खुल जाना-फरद खुलरक्षा करना (अपनी चीज रखना सीखो); निर्वाह, पालन वानेपर बेहद खून निकलना । -खड़ी होना-नस फूल करना (बात रखना); हिफाजत करना, नष्ट न होने देना जाना। -खुलना-रगसे बहुतसा खून निकलना । (इज्जत रखना); एकत्र करना (जोड़-जोड़कर धन रखना); -चढ़ना-किसी नसका अपनी जगहसे हटना; क्रोध सौंपना, सिपुर्द करना; रेहन, बंधक करना; अपने हाथ- आना; हटके वश होना। -दबना-डरना; दबाव में, अधिकारमें करना; पालन-पोषण, व्यवहारके लिए मानना, किसीके प्रभाव, अधिकारमें होना। -पहिअपने अधिकार में लेना (घोड़ा, गाय, पहलवान रखना); चानना-भेद, रहस्य जानना । -फड़कना-रगका नियुक्त करना, तैनात करना (कामके लिए आदमी हरकत करना; अनिष्टकी शंका होना, माथा ठनकना। रखना); रोक लेना; चोट पहुँचाना (मुक्का, थप्पड़ रखना); -फूलना-खूनके दबावसे रगफा मोटा हो जाना। मुल्तबी करना, दूसरे दिनपर टालना (यह बात कलपर -मिलना-फस्द खोलनेके लिए टटोलने पर रगका पता रखो); उपस्थित न करना, बचना (यह जहमत अलग लगना । -मे दौड़ जाना-असर करना। -रग रखो); आरोप करना; जिम्मे लगाना, थोपना (सब कुछ फड़कना-अधिक उत्साह, आवेशके लक्षण प्रकट होना । मेरे सिर रखो); ऋणी, कर्जदार होना (पैसा न रखना); -रगसे वाकिफ होना-पूरी तरह जानना । (मनमें) अनुमान, धारणा करना (विश्वास रखना); डेरा -(गे)निकल आना-बहुत दुबला होना ।-मरनाकराना, ठहराना ( उन्हें धर्मशालामें रख दिया है); नसोंकी ताकत जाती रहना; नामर्द हो जाना; कमजोर स्त्री-पुरुषसे संबंध करना (औरत, मर्द रखना); संभोग हो जाना। करना (बाजारू); गर्भ धारण कराना (पेट रखना); रगड-स्त्री० घर्षण, घिसनेकी क्रिया या भाव; चिह्न जो (चिड़ियोंका) अंडे देना (बतक सालमें कितने अंडे रखती घर्पणसे हो जाय; कड़ा परिश्रम हठा झगड़ा; द्वेष, हलकी है); बचाना (महीनेमें खा-पीकर क्या रखते हो)।
चोट जिसमें चमड़ा छिल जाय। मु०-खाना-धक्के खाना। रखनी-स्त्री० रखेल, रखी हुई स्त्री, उपपत्नी।
-देना-पीस डालना; तंग करना। -पड़ना-अधिक रख-रखाव-पु० देखरेख करते हुए बनाये रखने, चालू परिश्रम पड़ना (उसे बहुत रगड़ पड़ी, इसीसे थक गया)। रखनेकी क्रिया; पालन-पोषण ।
-लगना-छिल जाना, हलकी चोट आना।
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रगड़ना-रजवंती
६७४
रगड़ना-स० क्रि०धिसना, घर्षण करना; पीसना(मसाला, दे० 'रचवाना' । अ० कि० मेहँदी, अलक्तक आदिसे हाथभाँग); कोई काम बार-बार करना कोई काम जल्दी और पैर रँगाना; (मेहंदी) लगाना। परिश्रमपूर्वक करना (यह काम तो दस दिनोंमें रगड़ रचित-वि० [सं०] निर्मित, बनाया हुआ । डालोगे); तंग करना, परेशान करना । अ० कि विकास रचिपचि-अ० परिश्रम करके, गढ़ गढ़कर (सू०)। न करना, जहाँका तहाँ रहना; अत्यधिक परिश्रम करना । | रच्छ-पु० दे० 'रक्ष'। रगड़वाना-स० क्रि० रगड़नेमें प्रवृत्त करना, रगड़नेका रच्छक* -पु० दे० 'रक्षक' । काम दूसरेसे लेना।
रच्छन*-पु० दे० 'रक्षण'। रगड़ा-पु० रगड़, घर्षण; अति परिशमा झगड़ा; जल्दी रच्छस*-पु० दे० 'राक्षस' । अंत न होनेवाला झगड़ा। -झगड़ा-पु. लड़ाई-झगड़ा; | रच्छा*-स्त्री० दे० 'रक्षा' । बखेड़ा । मु०-देना-घिसना, रगड़ना ।
रज*-पु० चाँदी, रजत; धोबी, रजक ।-कण-पु० [हिं०] रगड़ान-स्त्री० रगड़ा, रगड़नेकी क्रिया या भाव । धूलिकण, रजःकण, गर्द । रगड़ी-वि० रगड़ा करनेवाला, झगड़ालू, उलझनेवाला। | रज(स्)-पु० [सं०] स्त्रियोंका मासिक रक्तस्राव, ऋतु, रगद*-पु० रक्त, रुधिर (कबीर) ।
कुसुम, आर्तव; तीन गुणों मेंसे दूसरा (सांख्य); जल; रगदना-स० क्रि० दे० 'रगेदना'।
स्त्री० धूल, गर्द; पराग । रगर*-स्त्री० दे० 'रगड़' ।
रजक-पु० [सं०] धोची। रगरा-पु० दे० 'रगड़ा'।
रजतंत*-स्त्री० वीरता, शूरता । रगवाना*-स० क्रि० चुप कराना; बहलाना (बच्चोंको)। रजत-वि० [सं०] शुभ्र, धवल, उज्ज्वल, चाँदीके रंगका; रगाना-अ० क्रि० चुप शांत होना । सक्रि० चुप कराना। चाँदीका बना हुआ। पु० चाँदी, रूपा सोना; मुक्ताहार; रगी-स्त्री० मैसूर में होनेवाला एक मोटा अन्न ।
धवल रंग। -जयंती-स्त्री० (सिलवर जबिली) किसी रंगीला-वि० जिद्दी, हठी, पाजी, बदजात ।
व्यक्ति या संस्था आदिके जीवनकालके २५ वर्ष समाप्त रगेद-स्त्री० दौड़ाने, भगानेकी क्रिया; संभोग-प्रवृत्ति । होनेपर मनाया जानेवाला उत्सव । -पट-पु० (सिलवर रगेदना-स० क्रि० भगाना, खदेड़ना, दौड़ाना ।
स्क्रीन) वह सफेद परदा जिसपर चलचित्र (सिनेमा)के रघु-पु० [सं०] सूर्यवंशोत्पन्न राजा दिलीप और रानी। चित्र दिखाये जाते हैं। -पर्वत-पु० चाँदीका पहाड़ । सुदक्षिणाके पुत्र, अजके पिता । -कुल-पु० रघुका वंश। -पात्र,-भाजन-पु० चाँदीका बरतन । कुल-गौरव,-कुल-चंद्र-कुल-तिलक, कुल-मणि-पु० | रजतमय-वि० [सं०] चाँदीका बना हुआ। रामचंद्र ।-नंदन-पु० रामचंद्र । -नाथ-पु० रघुओंके | रजताई*-स्त्री० सफेदी। स्वामी, रामचंद्र ।-नायक-पु०रघुकुल में प्रधान, रामचंद्र। | रजताकर-पु० [सं०] चाँदीकी खान । -पति-पु० रघुकुलके स्वामी, रामचंद्र । -राइ,- | रजताचल-पु० [सं०] रजताद्रि, कैलास; चाँदीका पहाड़। राय*-पु. रघुकुलके राजा रामचंद्र । -रैया*-दे० | रजतोपम-पु० [सं०] रूपामाखी । 'रघुराय' । -वंश-पु० रघुका वंश, खानदान; कालि- रजधानी*-स्त्री० दे० 'राजधानी'; राज्य-'हमको लिखदास-निर्मित एक महाकाव्य । -वंश-मणि-रघुवंशके लिख जोग पठाबत आपु करत रजधानी'-सू० । मणि, रामचंद्र । -वशी(शिन्)-पु. वह जो रघुके | रजन-वि० [सं०] रँगनेवाला । पु० रंगनेका काम किरण । वंशमें उत्पन्न हो; क्षत्रियोंकी एक उपजाति (ये रघुके वंशमें स्त्री० [अं० 'रेज़िन'] राल; एक प्रकारका गोंद । उत्पन्न कहे जाते है)।-वर-वीर-श्रेष्ठ-पु०रामचंद्र । रजना*-अ० क्रि० रँगा जाना; रंगमें डुबोया जाना । रघूत्तम-पु० [सं०] रघुश्रेष्ठ, रामचंद्र ।
स० क्रि० रँगना; रंगमें डुबाना। रचना-स० क्रि० सिरजना, निर्माण करना; निश्चित रजनी-स्त्री० [सं०] रात नीली, नील; जतुका, एक पहाड़ी करना, विधान करना; ग्रंथ आदि लिखना; उत्पन्न करना; लता, हल्दी; दारु हल्दी; शाल्मली द्वीपकी एक नदी ठानना, करना; आयोजन करना; जाल रचना; कल्पना (पु०); लाइ, लाख। -कर-पु. चंद्रमा। -गंधाकरना, काल्पनिक सृष्टि करना; शृंगार करना; क्रमसे स्त्री० हुसना नामक पुष्पवृक्ष । -चर-पु० राक्षस रखना, सजाना रंगना, रंजित करना । अ० क्रि० आसक्त चंद्रमा । वि. जो रातको चलता, घूमता-फिरता हो। या अनुरक्त होना; रँगा जाना, रंग चढ़ना । स्त्री० [सं०] -जल-पु० ओस, कुहरा पाला, नीहार । -पति-पु० निर्माण, बनानेकी क्रिया निर्माणको प्रक्रिया; व्यवस्था, चंद्रमा । -मुख-पु० सायंकाल, प्रदोषकाल । -रमणप्रबंध; तैयारी; उत्पादन; नवसृष्टिः निर्मित वस्तु (घर, पु० रात्रिका स्वामी, चंद्रमा । मूर्ति, ग्रंथ, कविता आदि), सृष्टि विन्यास सँवारना (बाल, | रजनीश-पु० [सं०] चंद्रमा । वेश आदि); उद्यम, उद्योग ।
रजपूत*-पु० दे० 'राजपूत' । रचयिता(त)-वि० [सं०] निर्माता, प्रणेता, रचनेवाला।। रजपूती*-स्त्री० राजपूतपन, क्षत्रियत्व शूरता, वीरता । पु० ग्रंथकार ।
रजब-पु० [अ०] मुसलमानोंके सालका सातवाँ चांद्रमास । रचवाना-स० कि० (किसी औरसे) रचना कराना,रचनाके रजबहा-पु० नदी या नहरसे निकाला हुआ बड़ा नल ।
लिए किसीको प्रेरित करना; मेहँदी आदि लगवाना। रजवंती, रजवती-वि० वह स्त्री जिसे रजस्राव हो रहा रचाना-सक्रि० आयोजन, संभार, समारोह करना; हो, रजस्वला ।
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रजवाड़ा-रतनावली रजवाड़ा-पु० देशी रियासत, राज्य राजा ।
वि० जिसके गले में रस्सी लगी या बंधी हो। रजवार*-पु० राजद्वार; राजाका दरबार ।
रटंत-स्त्री० रटनेकी क्रिया या भाव, रटाई। रजस्वला-वि० स्त्री० [सं०] ऋतुमती । स्त्री० वह स्त्री रट-स्त्री०किसी शब्दका बार-बार उच्चारण करना; कौवोंजिसका रज प्रवाहित हो रहा हो।।
की बोली। रजा-स्त्री० [अ०] मर्जी; इजाजत, अनुमति खुशी, प्रस- | रटन-स्त्री० रटनेकी क्रिया या भाव । * पु० जोर-जोरसे नताकी स्थिति; खुशनूदी; रुखसत, छुट्टी; स्वीकृति । | कहना, वोलना। -कार-वि० खुश । पु० स्वयंसेवक, वालंटियर । रटना-स० क्रि० किसी शब्द, पद, वाक्यकी बार-बार -जोई-स्त्री० दूसरेको खुश करनेकी कोशिश । -पट्टी- | आवृत्ति करना; कंठाग्र करनेके लिए किसी अंश, पद, स्त्री० वर्षकी छुट्टियोंकी सूची। -मंद-वि० राजी, वाक्यका बोलकर पाठ करना, घोखना । अ० कि० बारसहमत । -मंदी-स्त्री० राजी-खुशी मंजूरी।
बार दाद करना; बजना । स्त्री० रटनेकी क्रिया,धुन,रट । रजाइस, रजायस, रजायसु-स्त्री० आशा,हुक्म अनुमति । रढना*-स० क्रि० दे० 'रटना' । रजाई-स्त्री० राजापन, राजा होनेका भाव; *दे० रजाय' ।। रण-पु० [सं०] युद्ध, लड़ाई, संग्राम । -कर्म(न)रजाई-स्त्री० [फा०] रंगीन कपड़ेकी रुईदार दुलाई, छोटा पु० युद्ध, संघर्ष । -कामी( मिन्)-वि० युद्धलिप्सु, लिहाफ।
संग्राम चाहनेवाला । -कारी(रिन्)-वि० युद्ध करनेरजाना*-स० क्रि० राज्यसुख भोग कराना (राज्य, राजके वाला। -कोष-पु० युद्ध-कोष, युद्धकी सहायताके लिए साथ ही प्रयुक्त होता है)।
विशेष रूपसे इकट्ठा किया गया धन । -क्षेत्र-पु० युद्धरजाय*-स्त्री० आशा,हुक्म; मजी, इच्छा; दे० 'रजा'। का स्थान, मैदान, स्थल । -खेत*-पु० दे० 'रणक्षेत्र' । रजिया-स्त्री० डेढ़ सेरका एक मान जिससे अनाज नापा | -छोड़-पु० [हिं०] कृष्ण (जरासंधकी लड़ाई में रणक्षेत्र जाता है काठका बरतन जिसमें डेढ़ सेर अनाज आता है। छोड़कर द्वारका जानेसे यह नाम पड़ा)। -दुंदुभी,रजिस्टर-पु० [अं॰] सादे पन्नोंकी बड़ी किताब, बही भेरी-स्त्री० लड़ाईका विशेष बाजा तुरही।-नीति-स्त्री० जिसपर खानेवार, सिलसिलेवार किसी मदका आय-व्यय, (स्ट्रैटेजी) आक्रमण करने, युद्ध चलाने तथा सेनाका व्यूहन किसी विषयका ब्योरेवार विवरण लिखा जाता हो; करने आदिका ढंग या नैपुण्य ।-पंडित-विकरणमें कुशल, दफ्तर, याददाश्त, हाजिरीकी किताब-पंजी।
प्रवीण, दक्ष । -पोत-पु० (वारशिप) युद्धके काम आनेरजिस्टर्ड-वि० [अं॰] दे० 'रजिस्ट्रीशुदा'; पंजीबद्ध । वाला जहाज । -प्रिय-वि० युद्धप्रेमी । -भू-भूमिरजिस्ट्रार-पु० [अं॰] वह व्यक्ति जो रजिस्टर में दर्ज करे, स्त्री० युद्धस्थल । -मत्त-पु० हाथी। -रंग-पु० युद्धजो रजिस्ट्री करे वह (पंजीयक); सरकारी कर्मचारीका एक क्षेत्र युद्ध, संग्राम; लड़ाईका उत्साह । -लक्ष्मी-स्त्री० पद दे० 'पीठस्थविर' ।।
युद्धकी देवी जो विजय देनेवाली मानी जाती है, विजयरजिस्ट्री-स्त्री० [अं०] डाकघरमें महसूल देकर पत्र आदि लक्ष्मी । -वंदी(दिन)-पु० (कैप्टिव) युद्ध में पकड़ा रजिस्टर में दर्ज कराकर भेजनेका कार्य; इस नियमसे भेजी गया शत्रुका सैनिक, युद्धवंदी। -वाद्य-पु० युद्धका जानेवाली चिट्टी रजिस्ट्रारके रजिस्टर में कोई बात दर्ज बाजा। -शिक्षा-स्त्री० युद्ध-विद्या या युद्ध-कौशलकी कराना; कोई लिखित प्रतिज्ञापत्र कानूनके अनुसार शिक्षा। -संकुल-पु० तुमुल युद्ध, घनघोर युद्ध । सरकारी रजिस्टरों में दर्ज करानेका काम । -शुदा-वि० -सज्जा-स्त्री० युद्धकी तैयारी। -सहाय-पु० युद्ध में जिसकी रजिस्ट्री करायी गयी हो; रजिस्टर में दर्ज किया। सहायक, मित्र । -सिंघा,-सिंहा-पु० [हिं०] तुरही, हुआ, पंजीबद्ध पको लिखा-पढ़ीवाला ।
नरसिंघा। -स्थल-पु० रणक्षेत्र । रजिस्ट्रेशन-पु० [अं०] रजिस्टर में दर्ज करना (करना, रणकार-पु० [सं०] झनझनाहट, शब्द, गुंजन । कराना, होना), पंजीयन ।
रणांगण-पु० [सं०] युद्धक्षेत्र, लड़ाईका मैदान । रज़ील-वि० [अ०] कमीना, पाजी; छोटी जातिका । रत-वि० [सं०] अनुरक्त, प्रेममें पड़ा हुआ; लीन, लगा रजु-स्त्री० दे० 'रज्जु'।
हुआ। पु० संभोग; लिंग; योनि प्रेम । रजोकुल*-पु० राजपरिवार, राजवंश।
रतजगा-पु० रात्रिजागरण; वह उत्सव जो रातभर जागरजोगुण-पु० [सं०] प्रकृतिका धर्मविशेषतीन गुणोंमेंसे कर होः भाद्र कृष्णा द्वितीया जब स्त्रियाँ कजली गाती है । एक जिसके कारण भोग, विलास, प्रदर्शनकी रुचि पैदा रतन-पु० दे० 'रत्न'। -जोत-स्त्री० मणिविशेष; एक होती है (सांख्य)।
औषधोपयोगी पौधा, बृहहती। रजोदर्शन, रजोधर्म-पु० [सं०] रजस्वला होना, स्त्रियोंका रतनाकर*-पु० दे० 'रत्नाकर', 'रतनजोत'। मासिक धर्म ।
रतनागर-पु० समुद्र, सागर । रजोविरति-स्त्री० [सं०] (मेनोपॉज) स्त्रीके जीवनका वह रतनार-वि० दे० 'रतनारा'। परिवर्तन जिसमें रजःस्राव अंतिम रूपसे बंद हो जाता है। रतनारा-वि० किंचित् लाल, ललछू लाल । रज्जाक-वि० [अ०] रोजी, खूराक देने, पहुँचानेवाला। रतनारी-पु० एक विशेष धान । स्त्री० लाली, ललाई, पु० ईश्वर, खुदा।
सुखी । वि० स्त्री० दे० 'रतनारा'। रज्जु-स्त्री० [सं०] रस्सी, डोर, जेवरी वागडोर, लगामकी रतनालिया*-वि० दे० 'रतनारा' । डोरी; स्त्रियोंके सिरकी चोटी । -कंठ-पु० एक आचार्य । | रतनावली-स्त्री० दे० 'रत्नावली' ।
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रस मुँहाँ - रद
रतमुँहाँ* - वि० लाल मुँहवाला | पु० बंदर | रताना * - अ० क्रि० रत होना । स० क्रि० अपने में रत करना ।
रति - * अ० दे० 'रती' । स्त्री० [सं०] दक्षप्रजापतिकी कन्या, कामदेवकी पत्नी; प्रेम, अनुराग, प्रीति, आसक्ति; संभोग, मैथुन, सौंदर्य, शोभा; शृंगार रसका स्थायी भाव; वह कर्म जिसके उदयसे मन प्रसन्न हो; रहस्य, गुप्त भेद; सौभाग्य । - कर - वि० आनंदवर्द्धक; प्रेमवर्द्धक । पु० एक समाधि । - कलह - पु० संभोग, मैथुन । -कांतपु०कामदेव । - कुहर - पु० योनि, भग। केलि, क्रिया - स्त्री० संभोग । -ज-रोग-पु० ( वेनीरियल डिजीज ) संभोग से उत्पन्न या संक्रमित रोग । ज्ञ- पु० वह जो रतिक्रिया में प्रवीण हो; स्त्री में अपने प्रति प्रेम उत्पन्न करनेमें दक्ष पुरुष । -दान-पु० प्रसंग, संभोग | - नाथ, नायक, पति-पु०कामदेव । - नाह* - पु० कामदेव । - प्रिय-पु० कामुक । -बंध- पु० संभोगका ढंग, प्रकार, आसन ।-बंधु-पु० पति; नायक - भवन, - मंदिर - पु० प्रेमी-प्रेमिकाका रति-क्रीड़ागृह | - भाव - पु० स्त्री-पुरुषका परस्पर अनुराग, दांपत्यभाव (शृंगारका स्थायी भाव); प्रीति, अनुराग । - भौन* - पु० दे० 'रतिभवन' | - राइ* - पु० कामदेव । -शक्तिस्त्री० संभोगशक्ति |
रतिक* +- अ० थोड़ासा, जरासा, रत्तीभर । रतिवंत* - वि० खूबसूरत, सुंदर ।
रती - * स्त्री० रति, कामदेवकी पत्नी; छवि, शोभा; संभोग; दे० 'रति'; + ढाई जौ या आठ चावलका मान घुँघची, गुंजा | अ० थोड़ा कम, जरा, जरासा, रत्तीभर, किंचित् । रतीकौ * - अ० रत्तीभर भी, जरा भी - 'केहू न छाँडत भूमि रतीकौ' - राम० ।
रतीश - पु० [सं०] कामदेव |
रतोपल* - पु० लाल कमल; गेरू; लाल सुरमा । रतौंधी - स्त्री० एक नेत्र रोग जिसमें रोगीको रात के समय नहीं सूझता ।
रत्त* - पु० दे० 'रक्त' ।
रक्तक- पु० कुछ-कुछ लाल रंगका एक पत्थर ।
रत्ती - स्त्री० ढाई जौ या आठ चावलका एक मान; घुँघची; * सौंदर्य, शोभा ।
रत्थी - स्त्री० लकड़ी, बाँसका ढाँचा, संदूक आदि जिसपर रखकर शवको अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हैं, टिकठी, अरथी, विमान ।
रत्न- पु० [सं०] बहुमूल्य और चमकीले पदार्थ विशेषतः खनिज पत्थर जिन्हें आभूषणों में जड़ते हैं, हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, लाल, जवाहर, नगीना आदि (मुख्य रत्न नौं हैं - माणिक, नीलम, लहसुनिया, हीरा, पन्ना, पुखराज, मूँगा, मोती, गोमेद); अपने वर्गमें, जाति में उत्कृष्ट वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक चारित्र्य (जैन० ) । -कर्णिका - स्त्री० कानोंका एक जड़ाऊ आभूषण ( प्रा० ) । - गर्भा - स्त्री० पृथ्वी । - गिरि - पु० बिहारका एक पहाड़ ( इसपर राजगृह | राजधानी स्थित थी) । -गृह-पु० स्तूपके मध्यकी कोठरी
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जिसमें धातु रखी जाती थी (बौद्ध) । - च्छाया - स्त्री० रत्नोंकी छाया, कांति, चमक। -दीप-पु० कल्पित रत्नविशेष ( कहा जाता है, पातालमें इसीके कारण प्रकाश रहता है ); रत्नका या रत्नजटित दीपक । - निचय - पु० रत्नोंकी राशि । - निधि-पु० समुद्र; सुमेरु पर्वत; विष्णु । - परीक्षक- पु० रत्नपारखी, जोहरी । - पर्वत - पु० सुमेरु पर्वत । - पारखी पु० रत्न परखने, पहचाननेवाला | प्रदीप-पु० रत्नविशेष जिसमें दीपकासा प्रकाश हो ।
रत्नाकर - पु० [सं०] समुद्रः वाल्मीकि मुनिका पूर्व नाम; खान, मणियोंके निकलनेका स्थान; रत्नसमूह | रत्नागिरि - पु० दे० 'रत्नगिरि' | रत्नाचल-पु० [सं०] रत्नोंका ढेर या राशि; रलोंका कृत्रिम पहाड़ जिसे दानके लिए बनाते हैं ( पु० ) । रत्नाधिपति - पु० [सं०] कुबेर ।
रत्नाभूषण - पु० [सं०] रलजटित आभूषण, जड़ाऊ गहना । रत्नावली - [सं०] मणियोंकी माला, श्रेणी; एक रागिनी; . एक अर्थालंकार जहाँ प्रस्तुत अर्थ निकलने के साथ-साथ उचित क्रमसे कुछ अन्य वस्तुओं या तत्त्वों का उल्लेख होता है; एक प्रकारका हार । रत्नेश- पु० [सं०] कुबेर; समुद्र |
रथ - पु० [सं०] वाहन, गाड़ी, यान (घोड़ों आदिमे वाहित युद्ध, विहारका यान जिसमें दो या चार पहिये होते थे और दो या चार पशु नावे जाते थे); पैर, चरण; शरीर - क्षोभ-पु० रथका हिलना-डुलना । -चरण, -पादपु० रथका पहिया चकवा, चकवाक । पति-पु० रथी, रथका नायक । - महोत्सव - पु० रथयात्रा उत्सव दे० ' रथयात्रा' । - यात्रा - स्त्री० आषाढ़ शुक्ला द्वितीयाको पुरीमें होनेवाला पर्व, उत्सव जिसमें सुभद्रा, बलराम, जगन्नाथकी मूर्तियाँ रथपर निकालते हैं । - वाह-पु० सारथि; घोड़ा ।
- वाहक - पु० सारथि । -शाला - स्त्री० रथ रखनेको जगह, गाड़ीखाना। -शास्त्र- पु०, -विद्या- स्त्री० रथ चलानेकी विद्या । - सूत-पु० सारथि, रथचालक । रथवान् (वत्) - पु० [सं०] सारथि, रथ हाँकनेवाला । रथांग - पु० [सं०] रथका पहिया; चक्र, एक अस्त्र; चकवा । -पाणि- पु० चक्रपाणि, विष्णु ।
रथिक - पु० [सं०] रथका सवार, रथी ।
रथी (थिन्) - वि० [सं०] रथपर चलनेवाला । पु० योद्धा । रथोत्सव- पु० [सं०] रथयात्राका उत्सव | रथोद्धता - स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त । रथ्य-पु० [सं०] चक्र; पहिया; रथमें जुतनेवाला घोड़ा; सारथि ।
रथ्या - स्त्री० [सं०] रथका मार्ग, लीक; राजमार्ग, सड़क, प्रशस्त पथ; २०, २१ हाथ चौड़ी सड़क (प्रा० ); चौक, चौराहा; वह स्थान जहाँ कई मार्ग मिलें । यान- पु० ( ट्राम) सड़कों पर बिछायी गयी लोहेकी पतली पटरियों पर बिजली आदि की सहायता से चलनेवाली बड़ी सवारी गाड़ी ।
रद-पु० [सं०] दाँत । - च्छ्द-पु० ओष्ठ, अधर ।-छद* - पु० ओठ; दाँतोंका चिह्न (विशेषतः रतिकालका ) ।
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रद-रमनीक दान-पु. दाँतोंका चिह्न डालना। -पट-पु० ओठ, -जमाना-स्त्री० जमानेकी गर्दिश, गति, चाल ।-(२) अधर।
मस्ताना-स्त्री० मस्तानी चाल, झूम-झूमकर चलना; रद-वि० [अ०] खराब, रद्दी; तुच्छ, हीन; फीका । - नखरोंकी चाल ।
बदल-पु० परिवर्तन, उलट-पुलट, अदल-बदल । रफ्ता-रफ्ता-अ० क्रमशः शनैः-शनैः, धीरे-धीरे । रदन-पु० [सं०] दाँत । -च्छद-पु० ओठ, अधर । रब-पु० [अ०] ईश्वर, मालिका परवरदिगार; इसलामरदी(दिन)-पु० [सं०] हाथी ।
'दोहाई फेरी रबकी'-भू०। रह-वि० [अ०] काटा, छाँटा हुआ; तोड़ा, बदला हुआ; रबड़-पु० एक वृक्षके रस या निर्यासको पकाकर बनाया खराब, निकम्मा। पु० झुठलाना; गलत साबित करना जानेवाला लचीला पदार्थ; रबड़की बनी हुई चीज; एक न मानना; फेर देना। -बदल-पु. फेरफार, उलट- वृक्ष । -छंद-पु० मात्राओं आदिके बंधनोंसे मुक्त छंद । फेर, परिवर्तन ।
रबड़ी-स्त्री० औटाकर गाढ़ा किया हुआ चीनी मिश्रित दूध, रहा-पु०तह,खंड, स्तर चारों ओर एक बार में उठायी जाने- बसौंधी। वाली मिट्टीकी दीवारका अंश विशेष; पूरी दीवारकी लंबाईमें रबाना-पु० एक छोटा डफ जिसमें मजीरे भी लगे रहते हैं। एक इंटकी जोड़ाई मिठाइयोंका चुनाव (थाली में); गरदन- | रबाब-पु० [अ०] एक तरहको सारंगी। पर कुहनी और कलाईके बीचकी हदीसे आघात करना रबाबिया-पु० रबाब बजानेवाला। (कुश्ती); चमड़ेकी मोहरी (विशेषकर भालुओंके मुँहपर रबी-पु० [अ०] मौसम बहार, वसंत वसंत ऋतुमें काटी बाँधनेकी) । मु०-जमाना-आरोप करना, इलजाम । जानेवाली फसल, चैती। लगाना । -रखना-एक तहपर दूसरी तह रखना; इल- रख्त-पु० [अ०] अभ्यास, मस्क संबंध, रिश्ता मेल-जोल । जाम रखना; खानेपर खाना ।
-जब्त-पु० मेल-जोल, राह-रस्म आमद-रफ्त । रद्दी-वि० [फा०] निकम्मा, बेकार । स्त्री० बेकार फेंके हुए रब्ब-पु० [अ०] दे० 'रब'। कागज आदि । -ख़ाना--पु. वह स्थान जहाँ खराब, रभस-पु० [सं०] औत्सुक्य आवेशा वेग, त्वरा (जल्दबाजी रद्दी चीजें फेंकी, रखी जायँ ।
-बुरे भावमें), पूर्वापरका अविचार, शोक, पछतावा; रन*-पु० युद्ध जंगल, वन । -छोर-पु० दे० 'रणछोड़। मिलन; हर्ष रंग; रहस्य प्रेमोत्साह; प्रबल कामना क्रोध । -बंका-पु० शूर-वीर योद्धा, बहादुर। -बाँकुरा-पु० | रमक-स्त्री० लहर, तरंग पेंग (झूलेकी)। पु० [सं०] योद्धा, वीर।
प्रेमी; कांत । रनकना-अ० क्रि० (धुंघरू आदिका) मंद-मंद शब्द होना। रमकना-अ० क्रि० हिंडोलेपर झूलना, पेंग मारना-'झोटा रनना*-स० क्रि० शब्द करना; झनकार करना । बढ़े रमकत दोऊ दिसि डार परसत जाय'-हरि० झूमते, रनवास, रनिवास-पु० रानियोंका महल, अंतःपुर । इतराते हुए चलना। रनित*-वि० झंकार करता हुआ, बजता हुआ ध्वनित। रमजना-घु० दे० 'रामजना' । रनी*-पु० योद्धा, वीर ।
रमझोला-पु० नूपुर, धुंधरू । रपटा-स्त्री० आदत, अभ्यास, बान, 'रब्त'; फिसलन; रमण-वि० [सं०] रमनेवाला; प्रिय, मनोहर । पु० केलि, ढाल, उतार; दौड़, इत्तला, सूचना, 'रिपोर्ट।
विलास, क्रीडा संभोग, मैथुन; विचरण करना, घूमना रपटना-अ० क्रि० नीचे या आगेकी ओर फिसलना, सर- कामदेव पति; गधा; जघन; अंडकोश; सूर्यका सारथि, कना, जम न पानातेनीसे चलना।
अरुण; एक वर्णवृत्त; एक वन । -गमना-स्त्री० [हिं०] रपटाना-सक्रि० सरकाना, फिसलाना ।
वह नायिका जिसका नायक तो संकेत-स्थानपर पहुँच गया रपट्टा-पु० फिसलन, फिसलाव; चपेट, झपट्टा; दौड़-धूप। हो पर वह स्वयं न उपस्थित हो पाये। रफ-वि० [अ०] कच्चा या जल्दी में किया हुआ, नमूनेके रमणा-स्त्री० [सं०] सुंदर स्त्री पत्नी, प्रिया; एक वृत्त ।
तौरपर बना हुआ; जो साफ, ठीक न बना हो; खुरदरा। रमणी-स्त्री० [सं०] स्त्री; सुंदर स्त्री; एक गंधद्रव्य, बाला । रफते रफते-अ० दे० 'रफ्ता-रफ्ता।
रमणीक-वि० सुंदर, मनोहर । रफल-पु० ऊनी चादर, 'रैपर'। स्त्री० एक प्रकारकी रमणीय-वि० [सं०] सुंदर, रुचिर, रम्य । बंदूक, 'राइफल'।
रमणीयता-स्त्री० [सं०] सुंदरता, मनोहरता; क्षण-क्षणमें रना-पु० [अ०] उठाना; निकालना; दूर करना; पूरा । नया रूप धारण करनेवाला माधुर्य । करना समाप्त करना; फैसला करना।
रमता-वि० धुमक्कड़, एक जगह स्थिर रूपसे न रहनेवाला। रफ़-पु० [अ०] जले, फटे कपड़ेके छोटे सुराखमें तागे भर- | रमन-वि०, पु० 'रमण' ।।
कर बराबर करना, जाली लगाना।-गर-पु० रफू करने- रमना-अ० क्रि० विहार करना; भोग-विलास, रतिक्रीडा वाला। मु०-करना-असंबद्ध, विपरीत बातोंमें सामंजस्य करना; व्याप्त होना; अनुरक्त होना; घूमना-फिरना; जोड़ना। -खुलना-रफूके तागे टूट जाना। -चक्कर | चलता होना, चल देना; अदृश्य हो जाना; चैन करना, होना-चंपत, गायब, फरार होना; खिसक जाना। दिल बहलाना; सैर करना; बसना; समाना । पु० चरारतनी-स्त्री० [फा०] गमन, जाना; बिक्रीके लिए माल | गाह घेरा, हाता; बाग, सुंदर, रमणीक स्थान । बाहर भेजना, मालकी निकासी, निर्यात ।
रमनी*-स्त्री० दे० 'रमणी' । रफ्तार-स्त्री० [फा०] गति, चाल; चलनेका ढंग, भाव । रमनीक*-वि० दे० 'रमणीक' ।
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रमनीय-रस
रमनीय * - वि० दे० 'रमणीय' ।
रमल - पु० [अ०] फलित ज्योतिषका प्रकार- विशेष जिसमें पासे फेंककर उसके बिंदुओंके अनुसार फलका अनुमान करते हैं (भारत में इस विद्याका प्रवेश मुसलमानों द्वारा हुआ) ।
रमसरा - पु० ऊखके खेतका एक पौधा । रमा - स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; पत्नी; सौभाग्य; संपत्ति; वैभव; शोभा । -कांत - धव-पु० विष्णु । - नरेश* - पु० विष्णु । - निकेत, - निवास - पु० विष्णु । पति, - रमण - पु० विष्णु ।
रमाना- स० क्रि० लगाना, जोड़ना ( रास ); पोतना; मुग्ध करना, मोहित करना; अनुरक्त बनाना; रोकना, ठहराना; अनुकूल बनाना । रमित* - वि० मुग्ध, लुभाया हुआ । रमेश, रमेश्वर - पु० [सं०] विष्णु । रमैती - स्त्री० काम लेकर बदले में काम करनेकी प्रथा ('हूँड़ या पैठ'); ऐसे काम में लगने वाला दिन । रमैनी - स्त्री० बीजकका दोहों-चौपाइयोंसे युक्त भाग । रमैया * - पु० रामः ईश्वर ।
रम्माल - पु० [अ०] रमल फेंककर फलित कहनेवाला, ज्योतिषी, नजूमी |
रम्य - वि० [सं०] सुंदर, मनोहर, रमणीय, मनोरम । रम्हाना - स० क्रि० गायका बोलना, रँभाना, घाड़ना । - पु० [सं०] वेग, तेजी; प्रवाह; * धूल, रज । रयन * - स्त्री० दे० 'रथनि' ।
रयना* - अ० क्रि० बोलना, रव करना; अनुरक्त होना, प्रेममग्न होना; रँगना, रंगसे भींगना; मिलना । रयनि* - स्त्री रजनी, रात ।
रयत - स्त्री० दे० 'रयत' ।
रवकना - अ० क्रि० झपटना, लपकना; उछलना, उमगना । रचण-पु० [सं०] रव, शब्द; कोयल; ऊँट; विदूषकः भाँड़; काँसा; * रमण । वि० शब्द करता हुआ; गरम, तप्त अस्थिर, चंचल | - रेती - स्त्री० [हिं०] यमुनातटकी रेतीली भूमि, कृष्णका विहार-स्थल । रखताई - स्त्री० रावत (राजा) होनेका भाव, प्रभुता,
स्वामित्व |
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६७८
रवन * - वि० रमण करनेवाला । पु० पति, भर्ता, स्वामी;
रमण ।
रखना * - अ० क्रि० शब्द करना, बोलना; रमना; क्रीडा, रमण करना । पु० रावण ।
रवनि, रवनी * - स्त्री० रमणी, सुंदरी, स्त्री ।
रवन्ना - पु० रवाना होनेका, राहदारीका परवाना, जानेवाली चीजके साथ रहनेवाली चुंगीकी रसीद, प्रमाणपत्र; कागज जिसपर रवाना किये हुए मालका विवरण हो; घरेलू काम-काज करने या सौदा लानेवाला ड्योढ़ीदार | रवा - पु० छोटा टुकड़ा, कण, दाना (चाँदी, चावल, चीनी, मिश्रीका रवा ); घुँघुरुका छर्रा; बारूदका दाना; सूजी । -दार - वि० दानेदार, खेवाला । -भर-अ० जरासा, बहुत थोड़ा ।
रवा - वि० [फा०] उचित, ठीक; प्रचलित; पूरा करनेवाला (समास में) । - दार - वि० हितैषी, शुभचितक; संबंध, लगाव रखनेवाला । - रवी - स्त्री० जल्दी; भाग-दौड़ । रवाज - पु० [फा०] चलन, रीति, प्रथा, परिपाटी । रवानगी - स्त्री० [फा०] प्रस्थान, प्रयाण | रवाना - वि० [फा०] प्रस्थित, चला हुआ; भेजा हुआ । | रवाब- पु० दे० 'रवाव' |
रवाबिया - पु० लाल, बलुआ पत्थर; दे० 'रवाबिया' । रवायत - स्त्री० [अ०] कहानी; कहावत । रवि - पु० [सं०] सूर्य; अग्निः सरदार; आक, मदार; लाल अशोक; पहाड़; धृतराष्ट्रका एक पुत्र; बारहकी संख्या । - कर- पु० सूर्यकिरण । -कांतमणि-पु० सूर्यकांत मणि - कुल - ५० सूर्यवंश | -कुलमणि - पु० राम । -जपु० शनि दे० 'रवितनय' । -जा- स्त्री० यमुना । - तनय, - नंद, - पुत्र - पु० सावर्णि मनुः वैवस्वत मनुः यमराज; शनि; अश्विनीकुमार; सुग्रीव; कर्ण । - तनया, - तनुजा, - नंदिनी - स्त्री० यमुना । - पूत* - पु० दे० 'रवितनय' । - बिंब - पु० सूर्यका मंडल; माणिक्य । - मंडल - पु० सूर्यके चारों ओर दिखाई देनेवाला लाल मंडल, सूर्यका बिंब । मणि, रत्न- पु० सूर्यकांतमणि । - वार, - वासर - पु० इतवार, आदित्यवार । -वंशी( शिन् ) - पु० सूर्यवंशमें उत्पन्न पुरुष, सूर्यवंशी । - सारथि - पु० अरुण । -सुअन* - पु० दे० 'रवितनय' । - सुत, - सूनु - पु० दे० 'रवितनय' ।
रर* - स्त्री० रट, रटन ।
ररना* - अ० क्रि० रटना, बार-बार एक ही बात कहना । स० क्रि० पुकारना - 'कब जननी कहि मोहि ररै' - सू० । ररिहा * - वि० ररनेवाला; गिड़गिड़ाकर माँगनेवाला, माँगनेकी धुन लगानेवाला । पु० उल्लूकी जातिका एक पक्षी, रुरुआ, रटुआ ।
रलना* - अ० क्रि० एकमें मिलना । मु० - मिलना - घुलना-मिलना, एक हो जाना ।
रलाना* - स० क्रि० एकमें मिलाना, सम्मिलित करना । रली - स्त्री० क्रीडा, विहार; खुशी, प्रसन्नता; + एक प्रकारका अन्न, चेना ।
रविश - स्त्री० [फा०] बगीचेकी क्यारियोंके बीच चलने के लिए पतला रास्ता; चाल, रफ्तार; ढंग, तौर; रस्म; रवैया ।
रल* - पु० रेला, धक्कमधक्का; धावा; हल्ला |
रवैया - पु० चलन, प्रथा; तौर तरीका |
रव - पु० [सं०] ध्वनि; शब्द; शोर, भनभनाहट, गुंजार; रशना - स्त्री० [सं०] कांची, करधनी; रस्सी; जिह्वा; लगाम | * रवि, सूर्य; + जहाजकी चाल, गति । रशनोपमा - स्त्री० [सं०] दे० 'रसनोपमा' |
रश्क- पु० [फा०] जलन, डाह, कुढ़न, ईर्ष्या, हसद । रश्मि - स्त्री० [सं०] किरण; रस्सी, डोरी; घोड़े की लगाम । रस - पु० [सं०] स्वाद, रसनेंद्रियका ज्ञान, संवेदन ( इनकी संख्या ६ है - मधुर, अम्ल, लवण, कटु, कषाय और तिक्त); ६ की संख्या (न्या० ) ; खाये हुए अन्नका प्रथम परिणाम; तत्त्व, सार; मन में उत्पन्न होनेवाला वह भाव जो काव्यपाठ, अभिनय दर्शन आदि से होता है, विभाव, अनुभाव
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रस-रसायन और संचारीके योग द्वारा व्यंजित स्थायी भावसे उत्पन्न | बाँधना और भस्म करना 1-संस्कार-पु० पारेका बंधन, चित्तवृत्ति-विशेष, आनंद (सा०): नौकी संख्या (सा); मूर्छन, मारण आदि अठारह संस्कार । -सार-पु० आनंद, प्रेम; द्रव, तरल पदार्थ; जल; शराब; वेग जोश; मधु । -सिंदर-पु० पारे, गंधकके योगसे निर्मित एक इच्छा; केलि, कामक्रीड़ा; गुणः फलों, वनस्पतियोंका रसौषध । जलीय अंश जो कूटने, दबाने या निचोड़नेसे निकलता रसद-पु० [फा०] अनाज, खानेका सामान; भत्ता, राशन; है। शोरबा, रसा; शरबत; ईखसे निकाला जानेवाला रस; हिस्सा, बखरा सेनाके लिए खाद्य सामग्री। वृक्षका निर्यास; लासावीर्य; राग; विष; दूध; अमृत रसना-* अ० क्रि० रसमग्न होना; प्रफुल्ल होना; तन्मय गंधरस; शिलारस; पारा; हिंगुल; शिंगरफ, धातुओंको होना; पूर्ण होना; + धीरे-धीरे बहना, टपकना । स० क्रि० फूंककर तैयार किया हुआ भस्म । -कर्म (न्)-पु० कोई द्रव पदार्थ धीरे-धीरे छोड़ना, टपकाना । स्त्री० [सं०] पारे द्वारा रस तैयार करनेकी क्रिया (आ०वे०)।-कैलि- जीभ, रसस्वाद (न्या०); एक ओषधि, रास्ना मेखला, स्त्री० विहार, क्रीडा; हँसी, दिल्लगी। -खीर-स्त्री० करधनी रस्सी; लगाम चंद्रहार । -रव-पु० पक्षी (दाँत [हिं०] मीठा भात । -गंध,-गंधक-पु० रसौत; शिंग- न होनेसे जीभसे ही बोलनेवाला)। रफ; बोल नामक गंधद्रव्य । -गुनी -पु० रसश, काव्य, | रसनीय-वि० [सं०] स्वाद लेने या चखने योग्य; स्वादिष्ठ । संगीतका ज्ञाता। -गुल्ला-पु० [हिं०] छेनेसे बनायी रसनेंद्रिय-स्त्री० [सं०] रसना, स्वादकी इंद्रिय, जीभ । जानेवाली एक मिठाई । -न-पु० सुहागा। -ज-पु० रसनोपमा-स्त्री० [सं०] उपमाका एक भेद जिसमें उपगुड़, रसौत; शराबकी तलछट । -जात-पु० रसौत । माओंकी एक श्रृंखला रहती है और उपमेय उपमान होता -ज्ञ-वि० रसका शाता; कुशल, निपुण; काव्यमर्मश । | जाता है। -ज्ञा स्त्री० जीभ, गंगा। -ज्येष्ठ-पु० शृंगार रस | रसमसा-वि० दे० 'रस'के साथ । मधुर, मीठा रस। -द-वि० सुखद, आनंददायका स्वा- | रसमि*-स्त्री० रश्मि, किरण, प्रकाश, आभा । दिष्ठ । पु० चिकित्सक । -दार-वि० [हिं०] जिसमें रस | रसरी*-स्त्री० रस्सी, डोरी। हो, शोरबेदार; रसवाला (आम, नीबू आदि); स्वादिष्ठ । रसवंत*-वि० रसभरा, रसीला । पु० रसिक प्रेमी; रसज्ञ । -धातु-स्त्री० पारा; शरीरकी सात धातुओं में से एक । | रसवंती-स्त्री० रसौत । -धेनु-स्त्री० दानके निमित्त निर्मित गुड़की गाय ।। रसवत-स्त्री० दे० 'रसौत'। -नाथ-पु० पारा । -नायक-पु० पारा; शिव । रसवत्ता-स्त्री० [सं०] रसीलापन, रसयुक्त होना; माधुर्य, -पति-पु. पारा शृंगार रस राजा पृथ्वी; चंद्रमा। मिठासः सुंदरता । -पर्पटी-स्त्री० पारेको शोधकर बनाया जानेवाला एक रसवान (वत)-वि० [सं०] रसवाला, जिसमें रस हो। रस (आवे०)। -प्रबंध-पु० नाटक; प्रबंधकाव्य, वह रसाँ, रसा-वि० [फा०] पहुँचानेवाला, दूर जानेवाला कविता जिसमें एक विषय अनेक परस्पर असंबद्ध पद्यों में | (जैसे-चिट्ठीरसौं)। हो। -भरी-स्त्री० [हिं०] एक फल, मकोय ।-भस्म- रसांजन-पु० [सं०] रसौत ।। पु० पारेका भस्म । -भीना-वि० [हिं०] आनंदमें मग्न | रसा-स्त्री० [सं०] भूमि, पृथ्वी; नदी; जिह्वा । -तल-पु० आर्द्र, तर । -मसा*-वि० आनंदमग्न, रंगमें मस्त | पृथ्वीके नीचेके सात लोकोंमेंसे छठा। मु०-तल पहूँ। -'गोपी औ गोपालको अति रसमसो समाज'-हरिश्चंद्र चाना-बरबाद कर देना, मटियामेट करना ।। पसीनेसे भरा, श्रांत; तर, गीला। -माता*-स्त्री० दे. रसा-पु० शोरबा, झोल (तरकारी आदिका)। -दार'रसमातृका'। -मातृका-स्त्री० जीभ । -मारण-पु० वि० झोल, शोरबेवाला । पारा मारने, शुद्ध करनेकी क्रिया। -मुंडी-स्त्री० [हिं०] | रसाइन-पु० दे० 'रसायन' । एक बँगला मिठाई। -मैत्री-स्त्री० दो रसोंका उपयुक्त | रसाइनी*-पु० रसायनी, रसायन विद्या जाननेवाला, मेल (जैसे-कडुआ-तीता, तीता-नमकीन, शृंगार-हास्य | कीमियागर । इ०)। -राज-पु. शृंगार रस; रसीत; पारा; ताँबेके | रसाई-स्त्री० [फा०] पहुँच; दाखिला । भस्म, गंधक, पारे आदिके योगसे बनायी जानेवाली एक रसात्मक-वि० [सं०] रसयुक्त; सुंदर । औषधि । -राय-पु० दे० 'रसराज'। -वाद-पु० रसाध्यक्ष-पु० [सं०] मादक द्रव्योंकी जाँच-पड़ताल तथा रसालाप, प्रेम, आनंदकी बातचीत; छेड़छाड़, झगड़ा; विक्रयकी व्यवस्था करनेवाला राजकर्मचारी। बकवाद । -वाहिनी-स्त्री० भोजनसे बने रसको फैलाने- | रसाना*-अ० क्रि० आनंद लूटना--'राधा ब्रज मिश्रित वाली नाडी (आ००)। -विक्रयी (यिन)-पु० मधु- जस रसनि रसाइये'-नागरी। विक्रेता, शराब बेचनेवाला ।-विरोध-पु० रसोंका अनु- रसाभास-पु० [सं०] किसी रसका अनुचित प्रकरण या चित मेल (जैसे-तीता-मीठा, कडुआ-मीठा इ०-आश्वे०); स्थानपर वर्णन; एक अलंकार । एक पद्यमें दो प्रतिकूल रसोंकी स्थिति (जैसे-शृंगार-रौद्र, रसायन-पु०[सं०] पदार्थोंका तत्त्वगत ज्ञान, दे० 'रसायनहास्य-भयानक इ०-सा०)।-शार्दूल-पु. एक आयुर्वेदोक्त शास्त्र'; जराव्याधिनाशक औषधि ( जैसे-विडंगरस, रस जो प्रसूताके लिए उपयोगी है। -शास्त्र-पु० रसा- ब्राह्मीरस इ०); ताँबेसे सोना बनानेका कल्पित योग यन-शास्त्र । -शोधन-पु० सुहागा पारेको शुद्ध करना। धातुओंको भस्म करने, एक धातुको दूसरी धातुमें परि-संरक्षण-पु० पारेको शुद्ध करना, मूच्छित करना, वर्तित करनेकी विद्या ।-ज्ञ-पु० रसायनविद्याका जानने
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रसायनिक-रहना
६८० वाला । -विज्ञान-पु० दे० 'रसायन' ।-शास्त्र-पु० लत-पु० कानूनन सरकारी न्यायके लिए मुकदमा दायर पदार्थों में मिलानेवाले तत्त्वोंका विवेचन करनेवाला और करते समय दिया जानेवाला धन, कोर्ट फीस, स्टांप । तत्त्वगत परमाणुओंमें परिवर्तन होनेपर पदार्थोंकी नयी रसूल-पु० [अ०] पैगंबर, ईश्वरका दूत। स्थितिका निरूपण करनेवाला शास्त्र । -श्रेष्ठ-पु० पारा। रसेंद्र-पु० [सं०] जीरा, धनिया, पीपल, त्रिकुट, शहद, रसायनिक-वि०,पु०दे० 'रासायनिक'। पु० कीमियगर ।। रससिंदूरके योगसे बननेवाली एक रसौषध, पारा । रसायनी-पु. रसायनज्ञ । स्त्री० [सं०] बुढ़ापेको दूर रसे रसे-अ० धीरे-धीरे, शनैः शनैः । करनेवाली औषधि; गोरखदुद्धी, अमृतसंजीवनी; गुडुच; रसेश्वर-पु० [सं०] पारा; एक रसौषध । महाकरंज; मकोय ।
रसेस*-पु० कृष्ण; नमक । रसार*-वि०, पु० दे० 'रसाल'
रसोइया-पु० रसोई बनानेवाला, सूपकार । रसाल-वि० [सं०] रसीला मीठा, मधुर स्वादिष्ठ; सुंदर रसोई, रसोई-स्त्री० पकाया हुआ खाद्य पदार्थ, भोजन; शुद्ध, मार्जित । पु० आम; कटहल, ईख; * राजस्व, भोजन बनानेका घर, स्थान ।-खाना,-घर-पु० भोजन कर, इरसाल; दे० 'रिसाल'। -शर्करा-स्त्री० ईखके
पकानेका स्थान, पाकशाला । -दार-पु० रसोइया, रसकी चीनी।
भोजन पकानेवाला । -दारी-स्त्री० भोजन पकानेका रसालय-पु० [सं०] रसशाला, रसनिर्माणका स्थान; काम या पद । -बरदार-पु० भोजन ले जानेवाला। आमोद-प्रमोदका स्थान; आमका पेड़ ।
रसोदर-पु० [सं०] शिंगरफ, हिंगुल । रसाला*-पु० 'रिसाला'।
रसोद्भव-पु० [सं०] ईंगुर, शिंगरफ; रसौत । रसाली(लिन् )-पु० [सं०] पौढ़ा, गन्ना; चना । रसोद्त-पु० [सं०] रसौत। रसाव-पु० रसनेकी क्रिया या भाव; जोतकर तथा हेंगा रसोय*-स्त्री० रसोई, भोजन । चलाकर खेतको यों ही रहने देना।
रसौत, रसौत-स्त्री० एक प्रसिद्ध औषधि, अग्निसार, रसावर, रसाचल-पु० दे० 'रसौर।।
कृतक, बालभैषज्य, रसगर्भ, रसनाभि । रसाष्टक-पु० [सं०] पारा, लोहा, ईगुर आदि आठ महा-रसौर-पु० ईखके रसमें पका चावल, रसिआउर । रसोंका समाहार।
रस्ता -पु० दे० 'रास्ता '। रसास्वादी(दिन)-वि० [सं०] रसका आस्वादन करने- रस्म-स्त्री० [अ०] प्रथा,चलन, रिवाज बरताव, मेल-जोल। वाला, रस चखनेवाला; आनंद लेनेवाला। पु० भ्रमर। रस्मि-स्त्री० दे० 'रश्मि'। रसिआउरी-पु० ईख या गुड़के रसमें पकाया हुआ चावल, रस्मी-वि० रस्म-संबंधी, जो रस्म या मान्य रीतिके अनुबखीर; नववधू द्वारा प्रस्तुत रसियाउर जीमते समय गाया| सार हो। जानेवाला गीत ।
रस्सा-पु० अनेक मोटे तागोंसे बनायी हुई मोटी रस्सी। रसिक-वि० [सं०] रस, स्वाद लेनेवाला; आनंदी, मौजी, रस्सी-स्त्री० डोरी, रज्जु । -बाट-पु० रस्सी बटने, क्रीडाप्रेमी; रसयुक्त, स्वादिष्ठ; सुंदर, मनोहर । पु० बनानेवाला। प्रेमी; सहृदय; रसिया, विलासी; काव्यमर्मज्ञ; विषय- रहकला-पु. एक हलकी गाड़ी; तोप लादनेकी गाड़ी विशेषका पारखी, पंडित । -विहारी(रिन)-शिरो- रहकले पर लदी छोटी तोप । मणि-पु० कृष्ण ।
| रहँचटा*-पु० चसका, लिप्सा; मनोरथपूर्तिकी आकांक्षा । रसिकता-स्त्री० [सं०] रसिकपन सुरुचि हँसी-मजाक। रहॅट-पु० कुएँसे पानी निकालनेका यंत्र विशेष । रसिकाई*-स्त्री० रसिकता।
रहँटा-पु० सूत कातनेका चर्खा । रसित-वि० [सं०] रसयुक्त; ध्वनि करता, बजता, बोलता रहा(स)-पु० [सं०] एकांत, निर्जन स्थान; आनंदमय
हुआ; मुलम्मा किया हुआ; जरा-जरा रसता, बहता हुआ। लीला; यथार्थता; गुप्त भेद, रहस्य, गूढ तत्त्व, गुप्त बात । रसिया-पु० रसिक, रस लेनेवाला; फागुनका एक गीत रह-स्त्री० [फा] राहका संक्षिप्त रूप। -जन-पु० डाकू, जिसके गानेका रवाज व्रज तथा बुंदेलखंड में है।
लुटेरा। -जनी-स्त्री० डकैती, लुटेरापन । -नुमा-पु० रसियाव-पु० ईखके रसमें पका चावल, बखीर ।
पथप्रदर्शक । -नुमाई-स्त्री० पथप्रदर्शन । रसी-पु० दे० 'रसिक'।
रहचटा-पु० दे० 'रहचटा'। रसीद-स्त्री० [फा०] पहुँच, प्राप्ति; किसी चीजके मिलनेका | रहचह*-स्त्री० चहचहाहट, चिड़ियोंकी बोली। प्रमाणपत्र; खबर, पता । मु०-करना-(चाँटा, थप्पड़ | रहठा-पु० अरहरका सूखा पौधा, डंठल ।
आदि) लगाना, देना ।-काटना-रसीद लिखकर देना। रहन-पु० [अ०] गिरवी रखना (माल, जमीन आदि), दे० रसील*-वि० दे० 'रसीला'।
'रेहन' । स्त्री० [हिं०] रहना; रहनेका ढंग, व्यवहार । रसीला-वि० रसयुक्त, रसपूर्ण; स्वादिष्ठ, मजेदार; रस, -सहन-पु०,स्त्री० तौर-तरीका, ढंग, आचरण; चलावा;
आनंद लेनेवाला; व्यसनी, विलासी; बाँका, छैला ।-पन जीवननिर्वाहका ढंग । -पु० रसीला होना।
रहना-अ० क्रि० ठहरना, स्थित होना; थम जाना, रुकना रसूम-पु० [अ०] (रस्मका बहुवचन) रस्म; नियम, | बसना विद्यमान होना; जीवित, जिंदा रहना; नौकरी, कानून; नेग, प्रथानुसार दिया जानेवाला धन; नजराना, काम करना; स्थापित, स्थित होना (पेट रहना); रखेली भेंट (विशेषतः किसानों की ओरसे जमींदारोंको) -अदा- बनकर रहना; बचना, छटना ।
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६८१
रहनि, रहनी * - स्त्री० रहनेकी क्रिया या ढंग, रहन; चालढाल, आचरण; लगन, प्रेम- 'जो पै रहनि राम सों नाही'- विनय० ।
रहम-पु० [अ०] करुणा, दया, कृपाः बच्चादानी, जरायु । - दिल - वि० दयालु ।
रहमत - स्त्री० [अ०] मेहरबानी, दया ।
रहमान - वि० [अ०] परम कृपालु । पु० परमात्मा । रहर, रहरी + - स्त्री० दे० 'अरहर' |
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रहल - स्त्री० [अ०] रवानगी; सफर; रहनेकी जगह; लकड़ीका बना ढाँचा जिसपर पुस्तक रखकर पढ़ते हैं । रहस* - पु० आमोद-प्रमोद, आनंद । बधावा - पु० विवाहको एक रीति (वर नववधूको जनवासे लाता है, जहाँ गुरुजन मुख देखते और उपहार देते हैं) । रहसना * - अ० क्रि० प्रसन्न, आनंदित होना - 'बोलेउ राउ रहसि मृदुबानी' - रामा० ।
रहसि* - स्त्री० एकांत, गुप्त स्थान ।
रहस्य - पु० [सं०] गुप्त भेद, गोपनीय विषयः मर्म, भेद; निर्जन, एकांत में घटित वृत्त; दुर्योध्य तत्त्व; हँसी-मजाक । -बाद- पु० चिंतन, मनन द्वारा ईश्वरसे प्रत्यक्ष संपर्क स्थापनकी प्रवृत्ति । - वादी ( दिन ) - पु० रहस्यवादका अनुयायी । वि० रहस्यवाद-संबंधी ।
रहा-सहा - वि० बचा-बचाया, बचा खुचा ।
रहाइश - स्त्री० स्थिति, सकूनत; बरदाश्त; गुंजाइश । रहाई* - स्त्री० रहना; आराम, चैन ।
रहाना * - अ० क्रि० होना; रहना ।
रहित- वि० [सं०] हीन, शून्य । रहिला - पु० चना |
रहीम - वि० [अ०] रहम करनेवाला, कृपालु | पु० अब्दुल रहीम खानखानाका काव्यनामः परमात्मा ।
रॉक, रॉकब#* - वि० दे० 'रंक' |
गड़ी+ - पु० एक प्रकारका चावल |
राँगा - पु० एक प्रसिद्ध धातु - रंग, बंग, त्रपु, नाग, चक्र । राँच* - वि० दे० 'रंच' । अ० जरा भी । राँचना * - अ० क्रि० प्रेम करना, अनुरक्त होना, रंग पकड़ना । स० क्रि० रँगना, रंग चढ़ाना । राँजना+ - अ० क्रि० आँखमें काजल लगना । स० क्रि० रँगना; राँगेसे जोड़ना, टाँका लगाना (फूटे बरतन आदि में) । राँert - पु० टिटिहरी, टिट्टिभ; दे० 'रहँटा' |
राँड़ - स्त्री० बेवा, विधवा, जिस स्त्रीका पति मर चुका हो । राँध - अ० पास, निकट - 'राँध न तहवाँ दूसर कोई' - प०; पड़ोस | वि० परिपक्क बुद्धिवाला (प० ) । - पड़ोस - अ० आस-पास, अड़ोस-पड़ोस |
राभा* - पु० राजा ।
राहू - पु० राय, सरदार. छोटा राजा ।
राइता - पु० दे० 'रायता' ।
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रहनि - रचना
राइफल - स्त्री० [अ०] एक तरहकी बंदूक । राई स्त्री० एक छोटी सरसों; अल्प परिमाण; * राजसी, राजा होना। -भर- अ० बहुत थोड़ा। मु०-काई करना या होना - टुकड़े-टुकड़े करना, होना । -नोन उतारना - नजराये बच्चे के सिरके चारों ओर राई- नमक घुमाकर आग में डालने का टोटका । -से पर्वत करनाजरासी बातको बहुत बढ़ाना; हीनको महान् बनाना । राउ* - पु० राजा ।
राउत - पु० राजवंशीय व्यक्तिः क्षत्रिय; वीर पुरुष; सरदार |
राउर* - पु० अंतःपुर, जनानखाना ( राजाओं का ) - 'गे सुमंत तब राउर माहीं' - रामा० + सर्व ० आपका, श्रीमान्का ।
राउल * - पु० राजकुलोत्पन्न पुरुष; राजा । राकस * - पु० राक्षस ।
राकसिन, राकसी* - स्त्री० राक्षसी ।
राका - स्त्री० [सं०] पूर्णिमाकी रात; पूर्णिमा; पहले-पहल रजस्वला होनेवाली स्त्री । - पति-पु० चंद्रमा । राकेश- पु० [सं०] चंद्रमा ।
राक्षस- पु० [सं०] दैत्य, निशाचर; दुष्ट, दुर्वृत्त व्यक्ति; उनचासवाँ संवत्सर । विवाह - पु० वह विवाह जिसमें
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युद्ध द्वारा कन्या प्राप्त की जाय । राक्षसी - स्त्री० [सं०] राक्षसकी स्त्री; राक्षस स्त्री; दुष्ट, क्रूर स्वभाववाली स्त्री ।
राख - स्त्री० जले पदार्थका शेष, भस्म । राखना* - स० क्रि० बचाना, रक्षा करना; रखवाली करना ( बाग-बगीचे, फसल आदिकी); कपट करना, छिपाना; रोक रखना, जाने न देना, ठहराना; आरोप करना; दे० रखना ।
राखी - स्त्री० रक्षाबंधनका डोरा, रक्षा, मंगलसूत्र (जो ब्राह्मण तथा बहनें श्रावणी पूर्णिमाको बाँधती है); + राख,
भस्म ।
राग - पु० [सं०] रंजन, मनको प्रसन्न करना; प्रीति, अनुराग; आकर्षण (प्रिय वस्तु, सांसारिक सुख-संबंधी ); पंचकेशों में एक (योग); कष्ट, क्लेश; ईर्ष्या, द्वेष, सुगंधित लेप, अंगराग (चंदन, कपूर, कस्तूरी आदिसे निर्मित); अलक्तक, आलता; रंग (विशेषतः लाल); स्वरों, वण, स्वरांगों से युक्त, विशिष्ट ताल-लय-युक्त ध्वनि । रागना * - अ० क्रि० रँग जाना; अनुरक्त होना; निमग्न होना । स० क्रि० गाना, अलापना ।
राँधना - स० क्रि० पकाना (भोजन), पाक करना ।
राँपी । - स्त्री० मोचियोंका चमड़ा छीलने, तराशनेका एक रागी (गिन् ) - पु०
औजार ।
भना - अ० क्रि० बँबाना, बोलना, चिल्लाना (गाय, बैल, आदिका) ।
रागिनी -स्त्री० [सं०] रागकी पत्नी (कुल छत्तीस रागिनियाँ मानी जाती है - संगीत ) ।
रागी* - स्त्री० रानी, राजाकी स्त्री ।
[सं०] प्रेमी; अशोक वृक्ष; मडुआ; मकरा;छ मात्राओंके छंद । वि० रँगा हुआ, रंजित; लाल, अरुण; विषयासक्त; रंजन करने, रँगनेवाला ।
राघव - पु० [सं०] रामः रघुकुलका व्यक्ति; दशरथ; अज; एक बहुत बड़ी समुद्री मछली ।
रचना * - स० क्रि० रचना । अ० क्रि० रचा जाना; रँगा जाना; प्रेम करना, अनुरक्त होना; लीन, मग्न होना;
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राछ-राज
२८२
शोभा देना, फबना प्रसन्न होना ।
मार्ग; (पालिटी) नागरिक शासनका प्रकार, राजशासनकी राछ-पु० कारीगरोंका औजार तानेका तागा उठाने- प्रणाली। -पुत्र-पु० राजकुमार । -पुत्रा-स्त्री० राजगिरानेका जुलाहोंका औजार, लकड़ीके भीतरका साल, माता, जिस स्त्रीका पुत्र राजा हो। हीर; जुलूस बरात हथौड़ा, चक्कीके बीचका खूटा। मु० कन्या; राजपूत बाला । -पुरुष-पु. राजकर्मचारी -घुमाना,-फिराना-वरको पालकीपर चढ़ाकर कुएँ (स्टेटसमैन) राज्यके शासन, प्रबंध आदिमें प्रमुख रूपसे आदिकी परिक्रमा कराना।
भाग लेनेवाला अथवा उसकी कला या नीतिका जानकार, राछस*-पु० दे० 'राक्षस' ।
राजनेता, राष्ट्र-नायक । -पूत-पु० [हिं०] राजपुत्र; राज(न्)-पु० [सं०] राजाका समासमें व्यवहृत रूप (यह (राजपूतानाके क्षत्रिय)। -प्रमुख-पु० मैसूर, त्रिवांकुर अनेक शब्दोंके साथ प्रयुक्त होकर बड़ाई, श्रेष्ठता आदिका आदि राज्यों या मध्यभारत आदि राज्य-संघोंमें राज्यअर्थ प्रकट करता है)। -कदंब-पु० बड़े, स्वादिष्ठ फलों- पालका स्थान ग्रहण करनेवाला प्रमुख राजा। -प्रासादवाला कदंब । -कन्या-स्त्री० राजपुत्री; केवड़ेका फूल । पु० राजगवन । -बाड़ी-स्त्री० [हिं०] राजबाटिका, -कर-पु० राजस्व, खिराज । -कर्ता(तू)-वि० राजा राजाका उद्यान । -बाहा-पु० [हिं०] बड़ी नहर । बनानेवाला, किसी भी व्यक्तिको राज्यासनपर प्रतिष्ठित -भंडार-पु० राजकोश, राजाका खजाना । -भक्तकरने, उतारनेकी शक्ति रखनेवाला । -कुँअर*-पु० वि० राज्य या राजामें भक्ति रखनेवाला ।-भक्ति-स्त्री० राजकुमार। -कुमार-पु० राजाका पुत्र । -कुमारी- राज्य या राजाके प्रति प्रेम । -भवन-पु० राजमहल, स्त्री० राजाकी पुत्री। -कुल-पु० राजवंश; राज
प्रासाद; (गवर्नमेंट हाउस) राजधानीका वह सरकारी दरबार राजप्रासाद ।-कुष्मांड-पु० बैगन । -कोषीय- भवन जहाँ राज्यपाल या उपराज्यपाल निवास करता है। नीति-स्त्री. (फिस्कल पॉलिसी) सरकारी कोष या -भाषा-स्त्री० देशकी वह भाषा जो राजकार्यों तथा आयसंबंधी नीति । -गही-स्त्री० [हिं० ] राजसिंहासन न्यायालयों आदिमें प्रयुक्त हो। -भोग-पु० [हिं०] एक राज्याधिकार राज्याभिषेक ।-गृह-पु० राजाका महल;
महीन धान । -मंडल-पु० राज्यके आस-पासके चारों बिहार में एक ऐतिहासिक स्थान । -चिह्न-पु० (इनसि
ओरके राज्य(नीति-शास्त्र में बारह राजमंडल माने गये हैं)। ग्निया) राजाओंके अधिकारसूचक चिह्न-जैसे छत्र, दंड
-महल-पु० [हिं०] राजाका भवन; बंगालका एक समुद्रआदि, दे० 'पदसूचक चिह'। -तंत्र-पु० वह शासन
तटवती पहाड़। -महिषी-स्त्री० पटरानी। -माता प्रणाली जिसका अधिपति राजा हो। -तिलक-पु० (तृ)-स्त्री० राजा या राज्यशासककी माता ।-मार्गराज्याभिषेक; नये राजाके राज्यारोहणका उत्सव ।-दंड- पु० मुख्य सड़क, राजपथ । -मुद्रा-स्त्री० राजाके नामपु० राजशासन; राजाशा, विधानसे दिया हुआ दंड। की या सरकारी मुहर । -मुनि-पु० राजपि ।-यक्ष्मा-दंत-पु० चौका, सामनेके नीचे और ऊपरके दो-दो (क्ष्मन)-पु० क्षयरोग, तपेदिक ।-यक्ष्मी (क्ष्मिन)बड़े दाँत ।-दया-स्त्री० (क्लीमेंसी) प्राणदंड आदिकी सजा वि० क्षयरोगी। -यान-पु० राजाकी सवारी; राजाका पाये हुए बंदीके प्रति राजा या प्रधान शासक द्वारा
जुलूस, सवारी निकालना; पालकी। -योग-पु० योगक्षमाप्रदान, दंडन्यूनन आदिके रूपमें दिखायी गयी दया । शास्त्रोक्त एक योग, अष्टांगयोग; किसीके जन्मके समय -दूत-पु० किसी राज्य या राजाका संदेश (संधि, ग्रहोंका ऐसा सन्निपात जिसके प्रभावसे उसके राजा या विग्रह, नैतिक कार्यादि-संबंधी) लेकर किसी अन्य राज्यमें
राजाके समान हो जानेकी संभावना रहती है। -रथजानेवाला व्यक्ति (एंबैसेडर) किसी अन्य देशकी राज- पु० राजाका रथ । -राज-पु० कुबेर चंद्रमा; सम्राट् । धानीमें अपनी सरकारके प्रतिनिधि-रूपमें रहनेवाला -राजेश्वर-पु० एक रसौषध (दाद, कुष्ठादिमें उपयोगी); प्रतिनिधि ।-दूतावास-पु० (एंबैसी) राजदूतका निवास- राजाधिराज । -राजेश्वरी-स्त्री० दस महाविद्याओं में स्थान । -द्रोह-पु० राज्य या राजाके विरुद्ध आचरण, एक महारानी। -रोग-पु० असाध्य रोग; क्षय रोग । बगावत, विद्रोह । -द्रोही (हिन्)-वि० राजद्रोह -लक्षण-पु० वे चिह्न जिनके होनेसे मनुष्य राजा होता करनेवाला, बागी -द्वार-पु० राजाका द्वारन्याया- है (सामुद्रिक)।-लक्ष्मी-स्त्री० राजश्री,राजवैभध; राजाकी लय । -धर्म-पु० राजाका धर्म, कर्तव्य (शांतिस्थापन, शक्ति और शोभा। -वंश-पु० राजाका कुल । -वर्म प्रजापालन आदि); महाभारतके शांतिपर्वका राजकर्तव्य- (मन)-पु० राजमार्ग; बड़ी चौड़ी सड़क । -वल्लभविषयक अंशविशेष ।-धानी-स्त्री० मुख्य नगर, शासन- पु० बड़ा आम खिरनी; पेउँदी बेर एक रसौषध । -विद्या केंद्र राजा, शासकके रहनेका नगर । -नय-पु० राज- -स्त्री० राजनीति । -विद्गोह-पु० राजद्रोह, बगावत । नीति । -नीति-स्त्री० राज्यकी रक्षा और शासनको दृढ़ -विद्रोही(हिन्)-वि० राजद्रोह करनेवाला, बागी । करनेका उपाय बतानेवाली नीति । -नीतिक-वि० -वीथी-स्त्री० राजमार्ग । -वैद्य-पु० राजाओंके यहाँ राजनीति-संबंधी । -पंखी-पु० बड़ा पक्षी (दे० रहनेवाला वैद्य, कुशल चिकित्सक। -श्री-स्त्री० राजाका मेंडराना)।-पटोल-पु. परवल ।-पत्नी-स्त्री० रानी वैभव राजाकी शोभा। -संसद्-स्त्री० राजसभा, दरपीतल ।-पत्रित-वि० (गॅजेटेड) (वह अधिकारी) जिसकी बार न्यायालय, धर्माधिकरण जिसमें राजा हो। -सत्ता नियुक्ति, पदवृद्धि, स्थानांतरण, छुट्टीपर जाने आदिकी -स्त्री० राजशक्ति; राजतंत्र (आधु०); देशविशेषकी प्रजा, सूचना सरकारी गजटमें छपती हो। -पथ-पु० बड़ी | जनताके भरण-पोषणके लिए स्थापित शासन-व्यवस्था । सड़क, मुख्य मार्ग । -पद्धति-स्त्री० राजनीति; राज- -सभा-स्त्री० दरबार, राजाकी सभा; राजाओंकी सभा ।
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राज-राज्याभिषेक -समाज-पु. राजसभा, राजमंडली, राजागण । - राजि-स्त्री० [सं०] पंक्ति, कतार रेखा, लकीर राई । साक्षी(क्षिन)-पु० (ऐप्रवर) अपराधियोंमेंसे वह व्यक्ति राजिका-स्त्री० [सं०] पंक्ति, श्रेणी; क्यारो रेखा, काली जो क्षमा याचना कर सरकारी गवाह बन जाय और अपने सरसों म.डुआ; कठगूलर; छोटी फुसियोंका रोग।। पहलेके साथियोंका अपराध प्रमाणित कराने में पुलिसकी | राजित-वि० [सं०] शोभित, शोभायमान; उपस्थित । सहायता करे, इकबाली गवाह । -सिरी*-स्त्री० दे० | राजिव*-पु. कमल । 'राजश्री'। -सूय-पु० यज्ञविशेष जिसे करानेसे किसी | राजी-* स्त्री० रजामंदी; [सं०] कतार, श्रेणी, काली राजाको 'सम्राट' कहलानेका अधिकार प्राप्त हो जाता है। सरसोंराई। -स्थान-पु० राजपूताना। -स्व-पु० (रवेन्यू) राज्यकी राज़ी-वि० [अ०] अनुकूल, सहमत; नीरोग खुश सुखी; या सरकारकी भूमिकर आदिसे होनेवाली आय । -स्व- संतुष्ट । -नामा-पु० वादो-प्रतिवादीके मतैक्यसे मुकदमा मंत्री(त्रिन्)-पु० (रेवेन्युमिनिस्टर ) 'मालमंत्री । उठाने, इच्छित निर्णय देनेके लिए दिया हुआ लेख । -हंस-पु० सोना पक्षी (इसकी चोंच और पैर लाल राजीव-पु० [सं०] कमल; नील कमल । होते हैं); एक संकर राग ।
राजेंद्र-पु० [सं०] राजाधिराज । राज-पु० राज्य, शासित देश; जनपदः प्रजापालनकी राजेश्वर-पु० [सं०] महाराज, राजाधिराज, सम्राट । व्यवस्था, शासन; अधिकारकाल (बाप-दादोंका राज); राजोपकरण-पु० [सं०] राजचिह्न (झंडा, निशान इ०)। प्रभाव, पूरा अधिकार सुव्यवस्थित राजनीतिक इकाई। राजोपजीवी(विनू)-पु० [सं०] राजकर्मचारी, राजाकी -काज-पु० राज्यप्रबंध, व्यवस्था । -पाट-पु० शासन, सेवा करके जीविका अर्जन करनेवाला व्यक्ति । राजसिंहासन; देश, जनपद (एक राजा, राज्यके अधीन)। राज्ञी-स्त्री० [सं०] रानी; सूर्यकी पत्नी, संज्ञा । मु०-देना-शासनभार देना। -पर बैठना-राजाका, राज्य-पु० [सं०] शासन; एक राजा या राज्य-पद्धतिका राजकीय अधिकार पाना।
देश (जैसे-ईरान, रूस आदि); मंडल, राष्ट्र, देश, विषय । राज-पु० मकान बनानेवाला, थबई । -गीर-पु० मकान -कर्ता(त)-पु. शासक, अधिकारी, राजा। -क्षेत्राबनानेवाला । -गीरी-स्त्री० राजगीरका काम या पद। तीत अधिकार-पु० (एक्सट्रा टेरिटोरियल राइट) एक राज-पु० [फा०] रहस्य, भेद, गुप्त बात ।
राज्यके क्षेत्रके भीतर न्याय आदिके मामले में विदेशियोंको राजकीय-वि० [सं०] राजा या राज्यसे संबंध रखनेवाला । अपने ही देशके अधिकार प्राप्त होना। -च्युत-वि० -पक्ष-पु. (भऑफिशल पार्टी) वह दल जिसके हाथमें राजसिंहासनसे हटाया हुआ, राज्यभ्रष्ट (राजा)।-च्युतिदेशका शासनसूत्र हो, जो राज्यका संचालन कर रहा हो, स्त्री० राजाका राजसिहासन, राज्याधिकारसे वंचित किया सरकारी दल । -प्राभियोक्ता-पु० ( गवर्नमेंट प्रासीक्यू- जाना । -तंत्र-पु० शासनका ढंग, प्रणाली, पद्धति । टर) दे० 'प्राभियोक्ता के साथ ।
-त्याग-पु० राज्य करनेका, शासनका, अधिकार छोड़ राजता-स्त्री०, राजत्व-पु० [सं०] राजाका भाव या कर्म, देना । -धुरा-स्त्री० राज्यका शासनभार, शासनकी राजपद ।
जिम्मेदारी। -परिषद-स्त्री० राज्योंसे चुने हुए प्रतिराजना*-अ० कि० बिराजना; रहना; शोभित होना। । निधियोंकी वह उच्च परिषद् जो निम्नसदनके निर्णयोंपर राजन्य-पु० [सं०] राजा क्षत्रिय, अग्नि, खिरनीका पेड़ । पुनर्विचार करती है, राजसभा। -पाल-पु० (गवरनर) राजर्षि-पु० [सं०] राजवंश, क्षत्रिय कुलमें उत्पन्न ऋषि । किसी प्रदेश (भारतमें 'क' श्रेणीके किसी राज्य) का सर्वोच्च राजस-वि० [सं०] रजोगुणसे उत्पन्न । पु० आवेश, क्रोध । पदाधिकारी और शासक जिसकी नियुक्ति प्रायः राष्ट्रपति राजसिक-वि० [सं०] रजोगुणसे उत्पन्न, राजस ।
अथवा सर्वोच्च राजसत्ताकी स्वीकृतिसे होती है। -भंगराजसी-वि० राजाओंकासा; राजाके योग्य । वि० स्त्री० | पु० राज्यका नाश, ध्वंस । -लक्ष्मी-स्त्री० विजयगौरव [सं०] रजोगुणमयी।
राज्यश्री। -लोभ-पु० राज्यका लोभ, राज्यप्राप्तिकी राजस्व-पु० [सं०] दे० 'राज'में।
आकांक्षा; भारी लोभ । -व्यवस्था-स्त्री० राज्यका राजांक-पु० [सं०] (इनसिग्निया) दे० 'राजचिह्न' ।। नियम, नीति, विधान, कानून । -संचालनपरिषद्राजा(जन)-पु० [सं०] किसी देश, मंडल, जातिका स्त्री. (रीजेंसी काउंसिल) राजाकी अल्पवयस्कता, लंबी शासक और नियामक, नरेश, महीप, नृपति, नरेंद्र बीमारी आदिके समय राज्यका संचालन करनेके निमित्त अधिपति, स्वामी; अंग्रेजी शासनके समयकी एक उपाधि नियुक्त कतिपय व्यक्तियोंकी परिषद् । -संरक्षक-पु. धनी; प्रिय, प्रेमपात्र (बाजारू)।
(रीजेंट) वह व्यक्ति जिसे राजाकी अल्पवयस्कता, दीर्घराजाज्ञा-स्त्री० [सं०] राजाकी आज्ञा ।
कालीन रुग्णता आदिके समय राज्यकी देख-रेख, व्यवस्था राजाधिदेय-पु० [सं०] (प्रिवी पर्स) राजा या शासकको | आदिका भार सौंपा गया हो। -सभा-स्त्री. (कौंसिल निजी खर्चके लिए सरकारी खजानेसे दी जानेवाली बँधी | ऑफ स्टेट) दे० 'राज्यपरिषद' ।-स्थायी(यिन)-पु० हुई रकम ।
शासक, राजा। राजाधिराज-पु० [सं०] राजाओंका राजा, सम्राट । राज्यांग-पु० [सं०] प्रकृति, राज्यके साधक अंग (राजा, राजाधिष्टान-पु० [सं०] वह नगर जहाँ राजाका भवन अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोष, बल, सुहृत् )। हो, राजधानी।
राज्याभिषेक-पु० [सं०] राज्यारोहण,राजगद्दी पर बैठानेराजासन-पु० [सं०] सिंहासन, तख्त ।
की रीति (वेदमंत्रसे पवित्र तीर्थोंके जल और औषधियोंसे
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राठ-राय
६८४ अभिषेक कराया जाता है); राजसूय यज्ञके बाद राजाका स्त्री० रेणुका, कौशल्या; रोहिणी । -जना-पु० [हिं०] तीर्थजलादिसे अभिषेक ।
जिस व्यक्तिके पिताका पता न हो; वर्णसंकर; जातिविशेष राठ*-पु० राज्य राजा।
(इस जातिकी लड़कियाँ वेश्यावृत्ति करती है)। -जनीराठवर*-पु० दे० 'राठौर'।
स्त्री० [हिं०] रामजना जातिकी स्त्री; जिस स्त्रीके पिताका राठौर-पु० राजस्थानका एक प्रसिद्ध राजवंश; राजपूतोंकी पता न हो; वेश्या । -जमनी-पु० [हिं०] एक बारीक एक उपजाति।
चावल । -तरोई-स्त्री० भिंडी। -तारक-पु० रामोराणा-पु० राजा (राजपूतानाके कुछ राजाओं तथा नेपाल- पासकोंका मंत्र, रां रामाय नमः। -दल-पु० रामकी के सरदारोंके लिए प्रयुक्त)।
बानरी सेना; बड़ी और अजेय सेना ।-दाना-पु०[हिं०] रात-स्त्री० संध्यासे सबेरेतकका समय जब सूर्यका प्रकाश बड़े सफेद दानोंवाला मरसेकी जातिका पौधा उसके बीज;
नहीं मिलता, रात्रि, रजनी । -दिन-अ० सदा, सर्वदा । एक धान । -दास-पु. हनूमान् ; समर्थ रामदास, रातना*-अ० क्रि० अनुरक्त होना, मुग्ध होना; रँगा शिवाजीके गुरु । -दूत-पु० हनूमान् । -धाम(न)जाना; लाल हो जाना; लाल रंगसे रँगा जाना।
पु० साकेत लोक । -नवमी-स्त्री० चैत्र-शुशा नवमी, राता-वि० रँगा हुआ; लाल, सूर्ख, किरमिजी।
रामका जन्म-दिवस । -नामी-स्त्री० [हिं०] चादर, राति*-स्त्री० दे० 'रात'। -चर-पु० राक्षस, निशाचर । दुपट्टा जिसमें राम-नामकी छाप लगी हो सोनेका कंठहार। रातिब-पु० [अ०] पशुओंका दैनिक आहार हाथियोंका -पुर-पु० अयोध्या; स्वर्ग । -फटाका-पु० रामानंदी खाद्य (विशेषतः अन्न)।
तिलक । -फल-पु० सीताफल, शरीफा । -बॉसरात्रिंचर-वि० [सं०] रातमें घूमनेवाला । पु० राक्षस, पु० [हिं०] एक मोटा बाँस ( इससे नालकीका डंडा निशाचर।
बनाते है) । -बान-पु० [हिं०] दे० 'रामवाण' । रात्रि-स्त्री० [सं०] रात, निशा। -कर-कार-पु० -भोग-पु० [हिं०] एक तरहका आम; एक तरह का चंद्रमा कपूर । -चर-चारी(रिन)-वि०, पु० दे० चावल । -मंत्र-पु० दे० 'रामतारक'। -रज-स्त्री० 'रात्रिंचर'। -पाठशाला-स्त्री. वह विद्यालय जहाँ [हिं०] एक प्रकारकी पीली मिट्टी। -रस-पु० [हिं०] दिनमें काम करनेवालोंके लिए रातमें पढ़ाईका प्रबंध हो। नमक । -राज्य-पु० रामका शासन; सुशासन, रामका-पुष्प-पु० रातमें खिलनेवाला पुष्प, कुंई। -मणि- सा प्रजा-सुखकारी शासन ।-राम-पु० [हिं०] नमस्कार, पु० चंद्रमा।
प्रणाम । स्त्री० भेंट, मुलाकात । अ० घृणा, आश्चर्य आदि राध्यंध-पु० [सं०] रतौंधीका रोगी; रातको देख सकने में सूचक शब्द, छिः, वाह ।-रौला-पु० [हिं०] व्यर्थका असमर्थ पशु-पक्षी (बंदर, कौआ आदि)।
शोरगुल । -लवण-पु० साँभर नमक । -लीला-स्त्री० राधना*-स० क्रि० पूजा, आराधना करना; पूरा, सिद्ध रामके चरित्रका अभिनय, रामके चरित्रके अभिनयके करना; साधना, काम निकालना।
लिए होनेवाला समारोह । -वाण-पु० अजीर्णके लिए राधा-स्त्री० [सं०] वैशाखकी पूर्णिमा, अनुराग, प्रीति उपयोगी एक रसौषध । वि० शीघ्र गुणकारी, उपयोगी, वृषभानुकन्या, कृष्णकी प्रेमिका; विद्युत् ; विशाखा नक्षत्र; अमोघ (औषध)। -शर-पु० ईखके आकार-प्रकारका एक
आँवला; एक वर्णवृत्तः अधिरथकी पत्नी जिसने कर्णका | नीरस पौधा। -शिला-स्त्री० गयाकी एक पहाड़ी। पालन किया था।-कांत,-वल्लभ-पु० कृष्ण। -वल्लभी -सखा-पु० सुग्रीव । -पु० [हिं०] एक वैष्णव संप्रदाय । -स्वामी-पु० एक रामचंगी-स्त्री० एक तरहकी तोप (हिम्मत०)। मतप्रवर्तक आचार्य; एक संप्रदाय ।
रामति*-स्त्री० भिक्षाके लिए धूमना-फिरना । राधाष्टमी-स्त्री० [सं०] भाद्रपद-शुक्ला अष्टमी।
रामना*-अ० क्रि० बिचरना, घूमना-फिरना । राधिका-स्त्री० [सं०] राधा, वृषभानुकन्या ।
रामा-स्त्री० [सं०] सुंदरी बाला, सी; गान कलाकुशल राधेय-पु०[सं०] कर्ण (राधा-अधिरथकी पत्नीका अपत्य)। स्त्री रुक्मिणी; राधा; सीता; लक्ष्मी। -तुलसी-स्त्री० राध्य-वि० [सं०] आराधनाके योग्य ।
सफेद डंठलवाली तुलसी। रान-स्त्री० [फा०] जाँध ।
रामायण-स्त्री० [सं०] रामचरित्र-संबंधी वाल्मीकि मुनिराना-पु० दे० 'राणा' । अ० कि० अनुरक्त होना-'कौन | रचित आदि काव्यग्रंथ र अन्य कई ग्रंथ भी इसी नामसे कली जो भौर न राई'-प० ।
परिचित है-जैसे अध्यात्म रामायण, अग्निवेश रामायण, रानी-स्त्री० राजाकी स्त्री स्वामिनी प्रेमिकाके लिए आदर- तुलसीदासका रामचरितमानस इ०)। युक्त संबोधन; स्त्रियों के लिए सम्मानसूचक शब्द ।-काजर रामायणी-वि० रामायण-संबंधी; रामायणका । पु० रामा-पु० एक धान ।
यणका पाठ करनेवाला; रामायणका पंडित । राब-स्त्री० खाँड़, सीरेसे गाढ़ी चीज ।
रामायन-पु० दे० 'रामायण' । राबड़ी-स्त्री० रबड़ी, बसौंधी।
रामायुध-पु० [सं०] धनुष । राम-पु० [सं०] परशुराम; बलराम; दाशरथि राम (दे० राय-पु० राजा; सरदार; मुस्लिम कालमें हिंदुओंको दी 'रामचंद्र'); तीनकी संख्या ईश्वर ।-कजरा-पु० [हिं०] जानेवाली एक उपाधि; भाट । -करौंदा-पु. बड़ा एक धान । -चंगी-स्त्री० दे० क्रममें। -चंद्र-पु० करौदा। -भोग-पु० राजभोग धान । -मुनिया,कौशल्याक गर्भसे उत्पन्न राजा दशरथके पुत्र ।-जननी- मुनी-स्त्री० लाल पक्षीकी माँदा ।-रासि*-स्त्री० राज
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कोश, राजाका खजाना - साहब - पु० संपन्न हिंदू राजभक्तोंको मिलनेवाली ब्रिटिश कालकी उपाधि । राय - स्त्री० [फा०] मत; परामर्श, सलाइ; समझ, विचार; सुझाव, तदवीर । मु० - कायम करना - निर्णय करना, एक निश्चयपर पहुँचना ।
रायता - पु० उपले साग, कद्दू, कुम्हड़ा, चुँदिया को नमक, मिर्च, जीरा आदि मसाले मिलाकर तथा दही, मट्ठेमें डालकर तैयार किया हुआ एक भोज्य पदार्थ । रायल - स्त्री० [अ०] कागजकी २० इंच चौड़ी और २६ इंच लंबी नाप; इस नापका कागज छापनेवाली मशीन । रायसा - पु० डिंगलमें लिखित किसी राजाका चरित्रविषयक काव्य ग्रंथ, रासो (जैसे- पृथ्वीराज रासो) । रार-स्त्री० झगड़ा, तकरार |
राल - स्त्री० दक्षिणी भारतके जंगलों में मिलनेवाला एक सदाबहार पेड़; इस पेड़का निर्यास, गोंद (काला, सफेद), धूप; पतला, लसदार थूक; पशुओंका एक रोग ।
राव - पु० [सं०] शब्द, गुंजार, आवाज; [हि०] राजा; दरबारी सरदार; राजाओं की पदवी ( कच्छ, राजपूताना के कुछ भागों में); धनी, अमीर, बंदीजन भाट, चारण । - - बहादुर - पु० ब्रिटिश कालकी एक उपाधि | रावचाव - पु० राग-रंग, नाच-गाना; प्यार-दुलार । रावटी - स्त्री० कपड़े आदिका घर, छोलदारी; बारहदरी । रावण - वि० [सं०] हाहाकार करानेवाला । पु० लंकाका प्रसिद्ध राजा जिसका वध रामने युद्ध में किया, दशानन । रावणारि - पु० [सं०] राम ।
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रावण - पु० [सं०] रावणका पुत्र ( मेघनाद ) | रावत- पु० सरदार, सामंत; छोटा राजा; शूर, वीर; योद्धा । रावन - पु० दे० 'रावण' । -गढ़ * - पु० लंका । रावना * - स० क्रि० दूसरोंको रुलाना । रावर* - पु० अंतःपुर, रनिवास । सर्व० आपका |
रावरा - सर्व० दे० 'रावर' |
रावल - पु० राजा; कुछ राजाओंकी उपाधि; सरदार; आदर सूचक संबोधन ( संपन्न क्षत्रियों के लिए ); * अंतःपुर, रनिवास ।
राशन- पु० [अ०] रसद, सिपाहियोंकी खुराक; नियंत्रित
मूल्य तथा मात्रा में वस्तुओंके वितरणकी व्यवस्था । राशि - स्त्री० [सं०] समान जातिकी बहुतसी वस्तुओंका ढेर; क्रांतिवृत्त में आनेवाले विशेष तारासमूह (मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धन, मकर, कुंभ और मीन ) । -चक्र- पु० ग्रहोंके चलनेका मार्ग, वृत्त, राशियोंका चक्र, मंडल । - नाम (न्) - पु० जन्मकालकी राशिके अनुसार रखा हुआ नाम । -पपु० किसी राशिका स्वामी, अधिपति देवता । -भागपु० भग्नांश, किसी राशिका भाग, अंश -भोग- पु० किसी ग्रहकी किसी राशि में स्थिति; किसी ग्रहकी किसी राशिमें स्थितिका काल । मु०-आना - अनुकूल होना । - बैठना - दत्तक पुत्र होना, गोद बैठना । -मिलनामेल मिलना; दो व्यक्तियोंकी एक राशिमें उत्पत्ति होना । राष्ट्र - पु० [सं०] देश; राज्य; जाति, एक राज्यका समस्त जनसमूह ( नेशन) । कूट- पु० एक क्षत्रिय राजवंश
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राय-रासभ
राठौर । पति-पु० राष्ट्रका स्वामी; (प्रेसीडेंट ) गणतंत्रका निर्धारित अवधितक के लिए चुना गया प्रधान (सर्वोच्च पदाधिकारी) । -पति भवन - पु राष्ट्रपतिका ( भारत में दिल्लीस्थित ) सरकारी निवासस्थान । - भाषा-स्त्री० किसी राष्ट्रकी वह मुख्य प्रचलित भाषा जिसका प्रयोग उस राष्ट्रके अन्य भाषा-भाषी नागरिक भी सार्वजनिक कार्यों में करें। -भेद-पु० शत्रुराज्य में विप्लव, विद्रोह उत्पन्न कराने की नीति । - मंडल - पु० (कामनवेल्थ ऑफ नेशन्स) ऐसे राष्ट्रोंका समूह जिसमें सबका पद समान हो और जो सामूहिक हितकी दृष्टिसे ऐक्यबद्ध होकर काम करनेका प्रयत्न करें। -वाद- पु० (नैशनलिज्म) अपने राष्ट्रके हितोंको सर्वाधिक महत्त्व देनेका सिद्धांत; देशवासियोंमें राष्ट्रीयताकी भावना के दृढ़ीकरण, राष्ट्रीय परंपराओंका गौरव अक्षुण्ण बनाये रखने तथा राजनीतिक एकता स्थापित करने या पराधीनतासे मुक्ति आदि के लिए किया जानेवाला आंदोलन | -वादी (दिन) - पु० ( नैशनलिस्ट) राष्ट्रके हितको सर्वाधिक महत्त्व देनेतथा उसकी एकता, सम्पन्नता आदिके लिए प्रयत्न करनेवाला । - विप्लव - पु० समूचे राष्ट्रका बलवा, विद्रोह । - संघ- पु० विश्वके राष्ट्रोंका संघ जो प्रथम महायुद्ध के बाद राष्ट्रों के आपसी झगड़े शांतिपूर्वक हल करनेके उद्देश्य से बनाया गया था (लीग ऑफ नेशन्स) ।
राष्ट्रिक - पु० [सं०] राजा; प्रजा; किसी राष्ट्रका निवासी या सदस्य (नेशनल) | वि० राष्ट्र-संबंधी; राष्ट्रका । राष्ट्रिय, राष्ट्रीय - वि० [सं०] राष्ट्र-संबंधी; राष्ट्रका । राष्ट्रीयकरण - पु० (नैशनैलिज़ेशन) मुआवजा देकर या बिना मुआवजाके देशके विशेष उद्योगों, भूमि आदिपर सरकारका अधिकार कर लेना और समूचे राष्ट्रके हितकी दृष्टिसे उनकी व्यवस्था करना ।
राष्ट्रीयता - स्त्री० [सं०] किसी राष्ट्रका नागरिक होनेका भाव; राष्ट्रप्रेम, देशभक्ति ।
रास-पु० [सं०] शब्द, ध्वनि; कोलाहल, नृत्यक्रीडा (माना जाता है कि इसका प्रवर्तन कार्त्तिको पूर्णिमाको कृष्णने किया); कृष्ण-लीलाका अभिनययुक्त नाटक; एक लोकगान, रसिया; नर्तकोंका समाज । - धारी (रिन् ) - पु० कृष्णचरितका अभिनय करनेवाला व्यक्ति या समाज ( इनका अभिनय गीत, नृत्य, वाद्यसे युक्त रहता है ) । -भूमि- स्त्री० रासक्रीडाका स्थान । - मंडल - पु० रासक्रीडा करनेवालोंका वृत्ताकार समूह; रासधारीजनोंका अभिनय; रासधारियोंका समाज ।-मंडली - स्त्री० रासधारियोंकी टोली । - लीला - स्त्री० कृष्णका गोपियोंके साथ कृत नृत्य, क्रीड़ा; रासधारियोंका कृष्णलीला संबंधी अभिनय । - विहारी (रिन् ) - पु० कृष्ण । रास-स्त्री० लगाम, बाग; ढेर, राशि; मेषादि राशि; चौपायोंका समूह; जोड़; ब्याज । पु० एक छंद; लास्य नामक नृत्य; एक स्थान; गोद, दत्तक । -चक्र- पु० दे० 'राशिचक्र' । - नशीन- पु० वह जो गोद लिया गया हो, मुतबन्ना । सु० - बैठाना, - लेना - गोद लेना । रासक - पु० [सं०] दृश्य काव्यका एक भेद । रासभ - पु० [सं०] गधा ।
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रासभी - रिझकवार
रासभी - स्त्री० [सं०] गधी । रासायनिक- वि० [सं०] रसायनशास्त्र या तत्त्वसंबंधी । पु० रसायनशास्त्री । - परीक्षक- पु० (केमिकल एग्जामिनर) किसी वस्तु के रासायनिक तत्त्वोंका विश्लेषण कर मिलावट आदिका पता लगानेवाला ।
रासि - स्त्री० दे० 'राशि' । रासु * - वि० ठीक; सीधा ।
रासो- पु० डिंगल भाषा या पुरानी हिंदीमें लिखित काव्यग्रंथ (इसमें किसी राजाका चरित्र, युद्ध, वीरता, प्रेम-विष यक वर्णन रहता है - जैसे पृथ्वीराज रासो, खुमान रासो) । रास्त - वि० [फा०] उचित; अनुकूल; दुरुस्त, ठीक, सही; सीधा सच्चा । - बाज़- वि० सच्चा, ईमानदार | रास्ता - पु० [फा०] राह; चाल, प्रथा; उपाय । मु०काटना - चलनेवाले के आगे होकर एक ओरसे दूसरी ओर निकल जाना (अपशकुनसूचक - बिल्ली आदिके लिए प्रयुक्त) । - देखना - बाट जोहना, प्रतीक्षा करना । -बताना टालना, हटाना। - ( रते ) पर लाना-ठीक करना; उचित मार्गपर लाना ।
राह - * पु० दे० 'राहु' । स्त्री० [फा०] रास्ता, बाट, मार्ग; रीति-रिवाज, प्रथा । - खर्च - पु० मार्गव्यय । गीर
पु० पथिक, मुसाफिर - चलता - पु० रास्ता चलनेवाला; पथिक; साधारण आदमी; अजनवी । - चाह-स्त्री० रंगढंग | -ज़न - पु० लुटेरा, डाकू । -ज़नी-स्त्री० लूट, डकैती । - दानी -स्त्री० पारपत्र (पासपोर्ट ) । - दारी स्त्री० राह, सड़कका महसूल, कर; चुंगी । ( - दारीका परवाना - आज्ञापत्र जिसके द्वारा किसी मार्गसे जाने, माल ले जानेका अधिकार दिया गया हो, परवाना राहदारी | ) - रस्म - पु०, रीति- स्त्री० व्यवहार, लेनदेन; परिचय | - ( है ) खुदा-अ० खुदाके लिए, खुदाके नामपर | पु० ईश्वर प्राप्तिका साधन, मार्ग । मु०- देखना, - ताकना - प्रतीक्षा करना । - पड़ना * - लूट, डाका पड़ना । - लगना - काम देखना; रास्ते जाना । राहत - स्त्री० [अ०] आराम, चैन, संतोष, सुख, करार । राहना - स० क्रि० चक्कीके पाटों या रेती आदिको खुरदरा करना । अ० क्रि० रहना ।
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रिंद - पु० [फा०] धार्मिक बंधनोंको न माननेवाला, स्वच्छंद, मनमौजी आदमी (सुंद०) ।
रिआयत - स्त्री० [अ०] रहम, नरमी; बचाव; मिहरवानी, ध्यान, लिहाज; साधारण नियमोंकी कड़ाई छोड़कर कृपापूर्ण बरताव तरफदारी |
रिआयती - वि० [अ०] रिभायत किया हुआ । - छुट्टीस्त्री० ग्यारह महीने का काम करनेके बाद एक महीनेतककी सवेतन मिलनेवाली छुट्टी । रिआया- स्त्री० [अ०] प्रजा ।
रिकवँछ । - स्त्री० बेसन या उरदकी पीठी और अरुईके पत्तों आदिसे बनाया हुआ खाद्य पदार्थ ।
रिकशा - पु० [अ०] दो पहियोंकी एक छोटी गाड़ी जिसे आदमी खींचता है; साइकिलके ढंगकी गाड़ी जिसमें तीन पहिये होते हैं ।
रिकाब - स्त्री० दे० 'रकाब' । रिकाबी - स्त्री० दे० 'रकाबी' |
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रिक्त - वि० [सं०] शून्य, खाली; निर्धन । -स्थान- पु० (वैकेंसी) दो या अधिक स्थानोंके बीचको खाली जगह; दे० 'रिक्ति' ।
राहर+ - पु० अरहर ।
राहि* - स्त्री० राधा ।
राहित्य - पु० [सं०] रहित होनेका भाव, न होना । राहिन - पु० [अ०] रेहन, बंधक रखनेवाला | राही - *स्त्री० राधा ( कबीर ) | पु० [फा०] यात्री, मुसाफिर । मु० - करना - टालना, चलता करना । - होना - चल देना। राहु-पु० एक मछली, रोहू; [सं० ] नौ ग्रहों में से एक, विप्रचित्ति और सिंहिकाका पुत्र । - ग्रसन, -ग्रास, - स्पर्श-पु० ग्रहण, उपराग, सूर्य-चंद्रका राहु द्वारा ग्रस्त होना । राहुल - पु० [सं०] यशोधरासे उत्पन्न गौतम बुद्धका पुत्र । रिंगण - पु० [सं०] रेंगना, दबककर धीरे-धीरे चलना । रिंगन* - स्त्री० दे० 'रिंगण' । रिंगाना* - अ० क्रि० रेंगना । स० क्रि० घुमाना फिराना, धीरे-धीरे चलाना; परिश्रमपूर्वक दौड़ाना (बच्चों के लिए) ।
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रिक्तता - स्त्री० [सं०] शून्यता, खाली होना; (वैकेंसी) किसी पद, नौकरी या स्थानका खाली होना, किसी कार्यालय आदि में कोई जगह (पद) रिक्त होना ।
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रिक्ता स्त्री० [सं०] चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी तिथियाँ । रिक्ति - स्त्री० [सं०] (वैकेंसी) वह पद या स्थान जिसपर अभी किसी अधिकारी या कार्यकर्त्ता की नियुक्ति न हुई हो, रिक्तता, दे० 'रिक्तस्थान' |
रिक्थ पु० [सं०] उत्तराधिकार में प्राप्त धन; ( एस्टेट) भूसंपत्ति, धन; (एसेट्स) कारबार में लगी वह पूँजी जो संपत्ति, सामान आदिके रूपमें हो । - पत्र - पु० (विल) वह पत्र जिसमें रिक्थ (अर्थात् उत्तराधिकार में मिलनेवाले धन) के अमुक-अमुक प्रकारसे बँटवारे के संबंध में इच्छा प्रकट की गयी हो, इच्छापत्र । - हारी (रिन् ) - पु० उत्तराधिकार में धन पानेवाला व्यक्ति; मामा । रिक्थी (थिन् ) - पु० [सं०] दे० 'रिक्थहारी' | रिक्शा - पु० दे० 'रिक्शा' ।
रिक्ष- पु० दे० 'ऋक्ष'। पति-पु० दे० 'ऋक्षपति' । रिखभ* - पु० दे० 'ऋषभ' । रिखि* - पु० ऋषि |
रिग* - पु० दे० 'ऋक्' । रिचा* - स्त्री० दे० 'ऋचा' ।
रिचीक* - पु० दे० एक प्राचीन जनपद और उसका निवासी; तृणविशेष ।
रिच्छ*-पु० भालू ।
रिज़क़-पु० [अ०] खुराक; रोजी, जीविका; खाना- 'तेरो तो रिजक तेरे घर बैठे आइहै' - सुंद० । रिजाली * - स्त्री० निर्लज्जता ।
रिजु - वि० दे० 'ऋजु' ।
रिक्क - पु० [अ०] रोजी; खूराक ।
रिझकवार* - पु० रीझनेवाला; विशेषता या गुणपर प्रसन्न होनेवाला ।
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रिझवना-रीस रिझवना-स० क्रि० दे० 'रिझावना' ।
रिसहा-वि० क्रोधी,बात-बातपर बिगड़नेवाला,चिड़चिड़ा। रिझवारी, रिझवैया-पु. (गुण, विशेषता, रूप आदिपर) रिसाना -अ० क्रि० ऋद्ध, नाराज, गुस्सा होना । स० प्रसन्न होनेवाला; अनुरागी, प्रेमी ।
क्रि० बिगड़ना, क्रोध करना। रिझाना-स० कि० अपने ऊपर किसीको प्रसन्न या तुष्ट रिसानि*, रिसानी*-स्त्री० क्रोध, रिस-'घोर धार भृगुकरना; लुभाना, मोहित करना ।
नाथ रिसानी'-रामा० । रिझायल*-वि० प्रसन्न होने, रीझनेवाला ।
रिसाला-पु० अन्य स्थानोंसे वसूल करके राजधानी भेजा रिझाव-पु० प्रसन्न होना, रीझना ।।
जानेवाला कर। रिझावना*-स० क्रि० दे० 'रिझाना।
रिसालदार-पु० [फा०] रिसाले, घुड़सवार सेनाका अफरित, रितु*-स्त्री० दे० 'ऋतु'। -वंती-स्त्री. ऋतुमती | सर रिसाल, राजकर ले जानेवालोंका मुख्य संचालक । या रजस्वला स्त्री।
रिसाला--पु० [अ०] छोटी किताब; पत्र (मासिक, आदि); रितना*-अ० क्रि० खाली होना।
सौ सवारोंका दस्ता; अश्वारोही सेना । रितवना*-सक्रि० खाली करना।
रिसि*-स्त्री० दे० 'रिस'। रिद्धि*-स्त्री० दे० 'ऋद्धि'।
रिसिआना, रिसियाना-अ० कि० ऋद्ध, कुपित होना । रिन*-पु० दे० 'ऋण' । -बंधी-वि. कर्जदार । सक्रि०किसीपर बिगड़ना, क्रोध करना । रिनिआँ, रिनियाँ*-वि० ऋणी।
रिसिक*-स्त्री० खड्ग, तलवार । रिनी -वि० ऋणी, कर्जदार ।
रिसाहा -वि० किंचित् कुपित, क्रुद्ध । रिपु-पु० [सं०] शत्रु, वैरी; लग्नसे छठा स्थान । -घाती-रिहन-पु० [अ०] गिरवी; गिरवी रखना। -नामा-पु०
(तिन्),-धन,-सूदन-वि० शत्रुओंका नाशक । रेहनकी दस्तावेज। रिपुता-स्त्री० [सं०] शत्रुता, वैर।।
रिहल-स्त्री० [अ०] पोथी रखकर पढ़नेके लिए काठकी बनी रिपोर्ट-स्त्री० [अं०] सूचनार्थ घटनाविशेषका विस्तृत एक प्रकारकी खुलने और बंद होनेवाली तख्ती। वर्णन; प्रतिवेदन; कार्यका विवरण (संस्था, आंदोलन, रिहा-वि० [फा०] छूटा हुआ, मुक्त (बंधन, कारा आदिसे); आदिका); ज्ञातव्य बातोंका विवरण ।
उबरा, बचा हुआ (संकट आदिसे)। रिपोर्टर-पु० [अं०] संवाददाता (समाचारपत्रका); अदा- रिहाई-स्त्री० [फा०] मुक्ति, छुटकारा। लत, कौंसिल आदिकी रिपोर्ट लिखनेवाला सरकारी
रीधना-स० कि० पकाना, उबालना, राँधना । आदमी।
री-अ० एरी, अरी (सखियोंके लिए संबोधन)। रिमझिम-स्त्री० फुहार पड़ना, छोटी-छोटी बूंदें पड़ना। रीछ-पु० भालू । -पति,-राज*-पु० जामवंत । रियासत-स्त्री० [अ०] राज, शासन, हुकूमत; रईसकी रीझ-स्त्री० रीझना, प्रसन्न होना; मुग्ध होना ।
हुकूमतमें रहनेवाला इलाका रईस होना, अमीरी। रीझना-अ० क्रि० प्रसन्न होना; किसीके गुण आदिपर रियासती-वि० [अ०] रियासतका; रियासत-संबंधी। मुग्ध होना; चुरना, पकना (ग्राम०)। रियाह-स्त्री० [अ०] हवाएँ, अफरा ।
रीठ*-स्त्री० तलवार; युद्ध । वि० खराब; अशुभ । रिर*-स्त्री० जिद, हठ ।
रीठा-1 पु० चूना बनानेके लिए कंकड़ फूंकने भट्ठा; रिरना-अ० कि० दीनता प्रकट करना, गिड़गिड़ाना । [सं०] करंज, करंजको जातिका वृक्षा करंजका फल, रिरिहा -पु० गिड़गिड़ाकर, रट लगाकर माँगनेवाला । फेनिल (इसके फलको भिगोकर मलनेसे फेन निकलता रिलना-अ० क्रि० घुसना; मिल जाना, एक हो जाना । है जिससे ऊनी कपड़े साफ किये जाते है)। रिवाज-पु० [अ०] रीति, प्रथा, चलन ।
रीठी-स्त्री० दे० 'रीठा। रिवाल्वर-पु०[अं०] एक तरहका तमंचा जिसमें एक साथ रीढ़-स्त्री० मेरुदंड, गर्दनसे कटितक जानेवाली एक अस्थि
कई गोलियाँ भरी और एक-एक कर छोड़ी जाती है । शृंखला; आधार भूत अंग या तत्त्व । रिश्ता-पु० [फा०] संबंध, नाता । -(श्ते)दार, मंद- | रीत-स्त्री० दे० 'रीति' । पु० संबंधी। -दारी-स्त्री० संबंध ।
रीतना*-अ० क्रि०रिक्त, खाली होना। रिश्वत-स्त्री० [अ०] लाँच, घूस, उत्कोच, नियम-विरुद्ध रीता-वि० रिक्त, शून्य, खाली। काम करानेके लिए किसी अफसरको धन आदि देना। रीति-स्त्री० [सं०] क्षरण, झरना; ढंग, ढब, प्रकार रवाज,
-खोर-पु० घूस खानेवाला ।-खोरी-स्त्री० घूस लेना। चलन, परिपाटी नियम, कायदा विशिष्ट पदरचना जिसके रिषभ-पु० दे० 'ऋषभ'।
कारण ओज, माधुर्य, प्रसादकी स्थिति हो (इसके तीन भेद रिषि-पु० दे० 'ऋषि' ।
हैं-वैदी, गौडी और पांचाली-सा०)। -काल-पु० रिष्ट-पु० [सं०] मंगल; हानि । वि० घायल; नष्ट; * प्रसन्न हिं० सा० का वह काल जब रीति-ग्रंथ रचनेकी विशेष मोटा-ताजा।
प्रवृत्ति थी (१६वीं से १९वीं सदीतक)।-ग्रंथ-पु० ओज, रिस-स्त्री० क्रोध, कोप । मु०-मारना-क्रोधको दबाना । माधुर्य आदि गुणोंके प्रयोगका (पिंगल, अलंकार आदिका) रिसना-अ० क्रि० नन्हें नन्हें छेदोंसे तरल द्रव्य (पानी, विवेचन करनेवाले ग्रंथ ।। तेल, घी आदि) निकलना।
रीम-स्त्री० [अं०] बीस दस्ते कागजकी गड्डी । रिसवाना -स० क्रि० दे० 'रिसाना'।
रीस-स्त्री० दे० 'रिस'; * डाइ, स्पर्धा, बराबरी-'देवन
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रीसना-रुद्रारि
६८८ सीस चदाइ कौन तव रीस करैगो'-दीन ।
रुखीहा-वि० रुखासा, रुखाई लिये हुए । रीसना*-अ० क्रि० क्रुद्ध या खफा होना।
रुग्ण-वि० [सं०] बीमार, अस्वस्थ झुका हुआ। रुंज-पु० एक प्रकारका बाजा।
रुग्णतावकाश-पु०[सं०] (मेडिकल लीव) बीमारीके कारण रुंड-पु० [सं०] धड़ जिसमें सिर न हो, कबंध; बिना हाथ- _ ली गयी छुट्टी। पाँवका शरीर ।
रुच*-स्त्री० दे० 'रुचि'। -रुच*-अ० मनोयोगपूर्वक । रुंदवाना-स० क्रि० पैरोंसे कुचलवाना, खंदवाना। रुचना-अ.क्रि.प्रिय, अच्छा जान पड़ना, पसंद आना। रुंधती*-स्त्री. अरुंधती, वसिष्ठकी पत्नी ।
रुचा-स्त्री० [सं०] दीप्ति, प्रकाश; इच्छा, शोभा, सुंदरता। रुधना-अ० कि० रुकना मार्ग न मिलनेसे रुकना फँसना, रुचि-स्त्री० [सं०] इच्छा; अनुराग प्रवृत्ति, पसंद किरण; उलझना; घिरना; किसी काममें लगना ।
शोभा, सुंदरता; भूख, खानेकी इच्छा; स्वाद । -कररु*-अ० 'अरु'का संक्षिप्त रूप, और ।
वि.प्रिय, अच्छा लगनेवाला; स्वादिष्ठ । -कारक-वि० रुआ*-पु० रोआँ, शरीरके छोटे बाल ।
रुचि पैदा करनेवाला; स्वादिष्ठ । -कारी(रिन्)-वि० रुआना*-स० क्रि० दे० 'रुलाना' ।
सुस्वादु; मनोहर; रुचिकारक। -वर्द्धक-वि० रुचि रुआबो-पु० दबदबा, धाक, रोव; आतंक, भय ।
बढ़ानेवाला; भूख बढ़ानेवाला । रुई-स्त्री०कपासको ढोंढ़ी, कोशका भीतरी घूआ, रेशा,तूल। रुचिता-स्त्री० [सं०] रुचि होना; रोचकता; शोभा । वि० रुईके समान नरम, मुलायम (कोई चीज)।-दार- रुचिमती-स्त्री० [सं०] देवकीकी माता, उग्रसेनकी पत्नी । वि०जिसमें रुई भरी हो। -सा-रुईके समान नरम । | रुचिर-वि० [सं०] चमकीला, सुंदर, मनोहर, मीठा, रुकना-अ० क्रि० थमना, ठहरना; आगे न बढ़ना; कार्यमें | मधुर भूख बढ़ानेवाला। बाधा होना; आगापीछा करना; बंद होना (साथियों | रुचिराई*-स्त्री० सुंदरता, मनोहरता। बिना काम रुका है); क्रम टूटना (बादका रुकना)।-रुक-रुच्छ-वि. ऋद्ध रूखा; कठोर । पु० दे० 'रूख' । रुककर-ठहर-ठहरकर ।
रुज-पु० रोग ( रुज); धाव; कष्ट । -अस्त-वि० रोगी। रुकवाना-स० कि० रोकनेका काम दूसरेसे कराना। रुजाली-स्त्री० [सं०] रोग, पीडाका समूह । रुकाव-पु० अवरोध, अटकाव; मलावरोध, कब्ज स्तंभन । रुजी-वि० रोगी, बीमार । रुकावट-स्त्री० रोक, बाधा, अड़चन, प्रतिबंध । रुजू-वि० [अ० रजूअ] प्रवृत्त । रुक्का -पु० [अ० रुक्कअ] पुर्जा, चिट, छोटा पत्र; कर्जदार- रुझना*-अ० क्रि० भरना, पूजना (धाव आदिका); दे० की ओरसे महाजनको लिखा हुआ कागज ।
'अरुझना', 'उलझना' । रुक्ख*-पु० रूख, पेड़।
रुझान-पु० झुकाव, किसी और प्रवृत्त होना। रुक्मिणी-स्त्री० [सं०] कृष्णकी प्रथम पत्नी, विदर्भनरेश ठ-पु० क्रोध, गुस्सा । भीष्मककी पुत्री।
रूठना -अ०क्रि० दे० रूठना' वि० रूठने, मचलनेवाला। रुक्ष-वि० [सं०] रूखा; नीरस; कठोर ।
रुठाना-स०क्रि० नाराज, असंतुष्ट करना । रुक्षता-स्त्री० [सं०] रूखापन, रुखाई ।
रुणित-वि० [सं०] बजता, झनकारता, शब्द करता हुआ। रुख-पु० [फा०] चेहरा, मुख, गाल, कपोल; चेहरेका रुत-पु० [सं०] कलरव ध्वनि, शब्द । * स्त्री० दे० 'ऋतु'। भाव; कृपादृष्टि; आगेका भाग; शतरंजका एक मोहरा। रुतबा-पु० [अ०] ओहदा, दरजा, मर्तबा; इज्जत ।-दारअ० तरफ, ओर; सामने ।
वि० शरीफ, प्रतिष्ठित । रुखसत-स्त्री० [अ०] छुट्टी, तातील; परवानगी, इजाजत; रुदन-पु० रोदन, रोना, विलाप, बदन । बिदाई, प्रस्थान, रवानगी; मुहलत, अवकाश ।
रुदराछ-पु० दे० 'रुद्राक्ष' । रुखसताना-पु० [फा०] बिदाईके समय दिया जानेवाला रुदित-वि० [सं०] जो रो रहा हो । पु० रुदन । धन, बिदाई राजा-रईसके यहाँसे रुखसतके समय दिया रुद्ध-वि० [सं०] रोका हुआ, घेरा हुआ; रुका हुआ जानेवाला धन ।
मुँदा हुआ; जिसकी गति रोक दी गयी हो। -कंठरुखसती-वि० जिसे छुट्टी मिली हो। स्त्री० बिदाई (दुल- वि० जिसका गला रँधा और बोलने में असमर्थ हो। हिनकी); बिदाईके समय दिया जानेवाला धन, बिदाई । रुद्र-पु० [सं०] एक प्रकारके गणदेवता (इनकी संख्या रुखसार-पु० [फा०] कपोल, गाल ।।
ग्यारह मानी जाती है); ग्यारहकी संख्या; शिवका एक रुखाई-स्त्री० रूखापन, रूखा होनेकी क्रिया या भाव; उग्र रूप; रौद्र रस । वि० रोनेवाला; भयंकर । -पति
शुष्कता; बेमुरौवती, शीलका त्याग, व्यवहारकी कठोरता। पु० शिव । -पत्नी-स्त्री० दुर्गा । -प्रिया-स्त्री० पार्वती रुखाना*-अ० कि० रूखा होना, चिकना न रहना | हर्र। -भूमि-स्त्री० श्मशान, मरघट । -विंशति
सूखना । सक्रि० रूखा करना की तरफ रुख करना।। स्त्री० रुद्रबीसी, प्रभवादि ६० वर्षों मेंसे अंतिम बीस साल । रुखानी-स्त्री० बढ़इयोंका एक औजार (जिससे लकड़ी रुद्राक्ष-पु० [सं०] एक बड़ा वृक्ष जिसके दानोंकी माला
छीलते, काटते और उसमें छेद करते हैं); संगतराशोंकी जपनेके लिए परम पवित्र मानी जाती है और शैवों में टाँकी; तेलीका घानी चलानेका औजार ।
जिसका अत्यंत समादर है । वि० लाल आँखोंवाला। रुखावट, रुखाहट-स्त्री० रुखाई ।
रुद्राणी-स्त्री० [सं०] रुद्रपत्नी, पार्वती। रुखिता*-स्त्री० क्रोध करनेवाली नायिका, मानवती। रुद्रारि-पु० [सं०] कामदेव ।
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६८९
रुद्रावास-रूप रुद्रावास-पु० [सं०] काशी कैलास; श्मशान ।
बेटा । वि० वीर, बहादुर, छिपा हुआ गुणी । रुधिर-पु० [सं०] रक्त, खून, लहू लाल वर्ण, मंगल ग्रह। रुहठि*-स्त्री० रूठना। -पायी(थिन् )-वि० खून पीनेवाला। पु० राक्षस । रुहिर*-पु० रक्त, लहू, रुधिर । -पित्त-पु० रक्तपित्त ।
रुहेलखंड-पु० अवधके पश्चिम-उत्तरवाला प्रदेश । रुधिराशन-वि० [सं०] रुधिर पीनेवाला । पु० राक्षस । रुहेला-पु० रुहेलनिवासी; पठानोंकी एक जाति । रुनझुन-स्त्री० नूपुर आदिकी झनकार ।
रूँदना-स० कि० दे० 'रौंदना'। रुनाई-स्त्री० लालिमा, सुखी ।
बैधना-स० क्रि० (रक्षाके लिए) काँटेदार पौधों आदिसे रुनित -वि० बजता, झनकार करता हुआ।
घेर देना, बारी या घेरा बना देना; रास्ता बंद कर देना। रुनुक-झुनुक-स्त्री. नूपुर आदिकी लगातारकी झनकार । रू-पु० [फा०] चेहरा, मुँह; शकल, सूरत; सामनेका रुनुझुनु*-स्त्री० नूपुर आदिकी झनकार ।
हिस्सा, आगा; ऊपरी भाग, सिरा; कारण, वजह ध्यान; रुपना-अ० क्रि० जमना लगाया, गाड़ा या रोपा जाना; बहाना, हीला, टालमटोल । अड़ना, डट जाना।
रूई-स्त्री० दे० 'रुई। रुपमनी-वि० स्त्री० रूपवती, सुंदर-"एकसों एक चाहि | रूक्ष-वि० [सं०] जो कोमल, चिकना न हो। पु० वृक्ष । रुपमनी'-प०।
रूख-पु० वृक्ष, पेड़ । * वि० रूखा। रुपया-पु० भारतका मुख्य सिक्का (चाँदीका बना); धन- रूखना*--अ० क्रि० रूठना, नाराज होना । संपदा । -पैसा-पु० धन-दौलत । -वाला-वि० धनी, | रूखरा-पु० वृक्ष । वि० दे० 'रूखा'। अमीर । मु०-उठाना-रुपया खर्च करना । -उड़ाना- रूखा-वि० जिसमें चिकनापन न हो ( जैसे-रूखे बाल); रुपया खर्च, बरबाद करना ।-ठीकरी करना-अनावश्यक बिना तेल-घीका बना हुआ, अरुचिकर, स्वादहीन (भोजन;) खर्च करना। -पानीमें फेंकना-पैसा बरबाद करना। नीरस, शुष्क; खुरदरा; स्नेहहीन, प्रेमशून्य; कठोर; रुपहला-वि० चाँदीके रंगका, चाँदी जैसा ।
विरक्त, उदासीन । -पन-पु. रुखाई, रूखा होना; रुपैया -पु० दे० 'रुपया।
नीरसता; कड़ाई, कठोरता; स्वादहीनता; उदासीनता । रुबाई-स्त्री० [अ०] चार मिसरोंका एक उर्दू-फारसी छंद । -सुखा-वि० बिना घी और मसालेका बना, सादा रुमंच-पु० दे० 'रोमांच' ।
(भोजन)। मु०-पड़ना-शील-संकोच-रहित होना, रुमांचित-* वि० दे० 'रोमांचित' ।
बेमुरौवत होना; तीखा पड़ना, नाराज होना। रुमा-स्त्री० [सं०] सुग्रीवकी पत्नी ।
रूचना*-अ० क्रि० दे० 'रुचना'। रुमाल-पु० दे० 'रूमाल'।
रूज-पु० [अं०] कलई करनेकी एक बुकनी। रुमावली*-स्त्री० दे० 'रोमावली' ।
रूझना*-अ०क्रि० दे० 'अरुझना', 'उलझना'। रुराई*-स्त्री० सौंदर्य, शोभा।
रूठ, रूठन-स्त्री० रूठना, नाराज होना, क्रोध । रुरु-पु० [सं०] काला हिरन; एक ऋपि; एक वृक्ष । रूठना-अ०क्रि० अप्रसन्न, नाराज होना। रुरुआ-पु० एक प्रकारका बड़ी जातिका उल्लू ।
रूठनि*-स्त्री० दे० 'रूठन' । रुरुक्षु-वि० [सं०] रूखा, रुक्ष, जो चिकना न हो। रूड़, रूड़ो*-वि० उत्तम श्रेष्ठ । रुलना -अ० क्रि० इधर-उधर फिरना, हिलना-डुलना; रूढ-वि० [सं०] उत्पन्न, संजात प्रचलित, प्रसिद्ध अविदबा रह जाना--'मनकी मसूमें मन हीमें रुलि जाति | भाज्य, अकेला; (वह संख्या) जो विभक्त न हो; चढ़ा हैं'-रला।
हुआ, आरूढ़; *गँवार, उजड्ड; कठोर, कड़ा। पु० वह रुलाई-स्त्री० रोना; रोनेकी इच्छा या प्रवृत्ति ।
शब्द जो समुदायशक्तिसे अर्थबोधक हो, जिसका खंड न रुलाना-स० क्रि० किसीको रोने में प्रवृत्त करना; भटकाना, हो (यौगिकका विलोम-जैसे घट, गौ इ०); प्रकृति प्रत्ययफिराना; बरबाद करना ।
युक्त अर्थके स्थानपर दूसरे अर्थका प्रकाशक शब्द । रुवाई-स्त्री० दे० 'रुलाई।
-यौवना-स्त्री० एक प्रकारकी मध्या नायिका । रुष्ट-वि० [सं०] क्रुद्ध, कुपित, नाराज ।
रूढा-स्त्री० [सं०] प्रचलित अर्थ में विनियुक्त लक्षणा(सा०)। रुष्टता-स्त्री० [सं०] रुष्ट होनेका भाव, अप्रसन्नता। रूढि-स्त्री० [सं०] जन्म, उत्पत्ति प्रसिद्धि, ख्याति प्रथा, रुसना*-अ० कि० दे० 'रूसना' ।
चाल; चढ़ाई, चढ़नेका भावः वृद्धि उभार, उठान; शब्दरुसवा-वि० [फा०] निंदित; जलील, लांछित; अपमानित की शक्ति जो यौगिक न होने पर भी अर्थ स्पष्ट करती है। बदनाम । * पु० बदनामी।
रूप-पु० [सं०] आकार; सूरत, शकल; दृश्य पदार्थ, वस्तु रुसवाई-स्त्री० [फा०] फजीहत; बेइज्जती; बदनाम।। (विशेष वर्णसे भिन्न); प्रकृति, स्वभाव; वेश; सौंदर्य; शरीर रुसित*-वि० रुष्ट, अप्रसन्न ।
विभक्ति, प्रत्ययके योगसे बना शब्दका रूपांतर, स्वरूप; रुसूम-पु० दे० 'रसूम'।
देश-कालका भेद, दशा; लक्षण, चिह्न, आकार; विकार, रुसुल-पु० [अ०] खुदाकी तरफसे पैगाम लानेवाला व्यक्ति, भेद, रूपक; * रूपा, चाँदी। वि० समान, अनुरूप; रूप. पैगंबर, रसूल ।
वान्-'समय समय सुंदर सबै रूप-कुरूप न कोइ'-बि० । रुस्ट*-वि० दे० 'रुष्ट'।
-गर्विता-स्त्री० नायिका जिसे अपने रूपका गर्व हो । रुस्तम-पु० [फा०] फारसका प्रसिद्ध पहलवान, जीलका -जीविनी-स्त्री० वेश्या ।-जीवी(विन)-पु० बहुरुपिया।
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रूपक-रेखा -भेद-पु० (माडिफिकेशन) अर्थ या स्वरूप आदिमें | रूरा-वि० अच्छा, उत्तम । आंशिक परिवर्तन करना,इधर-उधर बदल देना ।-माला रूल-पु० [अं०] नियम, कायदा; रेखा, लकीर खींचनेका -स्त्री० एक मात्रिक छंद । -रेखा-स्त्री० किसी कार्य या डंडा; सतर, कागजपर सीधी खींची हुई लकीर । योजनाका स्थूल रूप; वह चित्र जो अभी केवल रेखाओंके रूलर-पु० [अं॰] रेखा, लकीर, सतर खींचनेका डंडा । रूपमें हो; किसी आकृति या चित्रका रेखामय रूप। रूलना-सक्रि० दबा देना । अ० कि० दे० 'रुलना' । -शाली(लिन्)-वि० रूपवान्, सुंदर।।
रूष-पु० दे० 'रूख'। रूपक-पु० [सं०] (रूपका आरोप करना) अभिनय-प्रद- रूपा*-वि० दे० 'रूखा'। र्शन-युक्त दृश्य काव्य (इसके दस भेद और अठारह उप- रूसना-अ० क्रि० रोष करना, नाराज होना, रूठनाभेद उपरूपक हैं); एक अर्थालंकार (अभेद और तद्रपरूपक- 'रूसेउ नागर नाह'-प०। दो भेद, उपमेय उपमान रूपमें हो तो तद्रप और रूसा-पु० असा, वासक वृक्ष (मति०)। अभेदता हो तो अभेद रूपक । ); मूर्ति, प्रति कृति चाँदी; रूसी-स्त्री०सिरपर जमा हुआ मैल; [फा०] रूसकी भाषा । रुपया। -कार्यक्रम-पु० (फीचर प्रोग्राम) आकाशवाणी वि० रूसका; रूसमें उत्पन्न । पु० रूसनिवासी। द्वारा प्रसारित नाटक, प्रहसन आदि-संबंधी कार्यक्रम । रूह-स्त्री० [अ०] आत्मा; दिल, जी; आभ्यंतरिक इच्छा रूपकातिशयोक्ति-स्त्री० [सं०] अतिशयोक्तिका एक भेद सत, सार (जैसे-रूहगुलाब)। जिसमें उपमेय, वाचक धर्मादिका लोप कर केवल उपमान- रूहना*-अ० कि० उमड़ना; चढ़ना; छा जाना, घेरना । का उल्लेख किया जाता है।
रूहानी-वि० आत्मा-संबंधी, आत्मिक । रूपमनी*-वि० स्त्री० रूपवती ।
रेकना-अ०वि० गदहेका बोलना; भद्दे प्रकारसे गाना । रूपमय-वि० [सं०] परम सुंदर ।
रे गटा-पु० गदहेका बच्चा । रूपवंत, रूपव-पु० सुंदर, रूपवान्-'रूपव कौन अधिक रेगना-अ० क्रि० कीड़ों, सरीसृपोंका चलना; धीरे-धीरे सीतातें जन्म वियोग भरे'-सू०।
चलना। रूपवान्-वि० [सं०] सुंदर, खूबसूरत ।
रेगनी-स्त्री० भटकटैया। रूपांकक-पु० [सं०] (डिजाइनर) भावी कार्य या तैयार रेगाना-स० क्रि० पेटके बल या धीरे-धीरे चलाना। की जानेवाली वस्तु आदिकी रूप-रेखा, वनावट-बुनावट रेट-पु० नाकका मल । थादिका ढंग निश्चित करने या सोचनेवाला।
रेड-पु० औषध और जलाने आदिके काम आनेवाला एक रूपांकन-पु० [सं०] (डिजाइनिंग) किसी भावी कार्य या लघु आकारका वृक्ष, एरंड। -खरबूजा-मेवा-पु० तैयार की जानेवाली वस्तु आदिकी रूप-रेखा बनाना, पपीता, रेंड्रफल, अंडकाकुनी। मनमें किसी योजना आदिका रूप निश्चित करना, | रेडी-स्त्री० रेंड़के बीज । बनावट-बुनावट आदिका कोई विशेष ढंग या तर्ज सोचना, रे-अ० [सं०] संवोधनका शब्द, अरे, ए, ओ। निर्धारित करना।
रेउड़ी-स्त्री० दे० 'रेवड़ी'। रूपांतर-पु० [सं०] (ट्रांसफॉरमेशन) किसी वस्तुका बदला रेख-स्त्री० रेखा, लकीर; चिह्न, निशान; गिनती, गणना; हुआ रूप।
मस भीनना; निकलती हुई मूंछे। मु.-आना-भीजना,रूपांतरण-पु० [सं०] (ट्रांसफॉरमेशन) किसी वस्तुके रूप, | भीनना-मूछे निकलना शुरू होना। -खाँचना,आकार आदिका बदल दिया जाना, उनमें परिवर्तन
खींचना-रेखा अंकित करना; कोई बात जोर देकर हो जाना।
कहना। रूपांतरित-वि० [सं०] (ट्रांसफार्ट) जिसका रूप, रेखता-पु० [फा०] अरबी-फारसी-मिश्रित हिंदीका गाना,
आकार आदि बदल गया हो या बदल दिया गया हो। गजल; उर्दू का आरंभिक नाम । रूपा-पु. चाँदी; घटिया चाँदी; सफेद बैल या घोड़ा। रेखना*-स० कि० रेखा, लकीर खींचना; चिह्न करना; रूपाजीवा-स्त्री० [सं०] वेश्या, रंडी।
खरोंचना। रूपाध्यक्ष-पु० [सं०] टकसालका प्रधान अफसर, नैष्ठिक । रेखा-* स्त्री० कण, टुकड़ा [सं०] (लाइन) विंदुकी गति रूपी(पिन्)-वि० [सं०] रूपवाला, रूपधारी; समान, जिसमें लंबाई हो, चौड़ाई, मोटाई न हो, लकीर; सूचक सदृश सुंदर, रूपवान् ।
चिह्न (किसी पदार्थ, वस्तु आदिका-जैसे कर्म, भाग्यरेखा); रूपोपजीविनी-स्त्री० [सं०] वेश्या ।
गणना; आकार, सूरत; हाथ, तलवे आदिकी लकीरें (इनरूपोपजीवी(विन्)-पु० [सं०] बहुरुपिया।
के आधार पर भविष्यकथन, शुभाशुभ-निर्णय किया जाता रूप्यक-पु० [सं०] रुपया।
है); हीरेके बीचकी दोषपूर्ण लकीर । -गणित-पु० रूम-पु० [फा०] तुकी ।
(ज्यामेट्री) वह गणित जिसमें रेखाओं, कोणों, वृत्तों आदिरूमना-स० क्रि० झूमना; झूलना।
का विवेचन होता है। -चित्र-पु० (स्केच) किसी व्यक्ति रूमाल-पु. [फा०] हाथ-मुँह पोंछनेका कपड़ेका चौकोर , या वस्तुका केवल रेखाओंसे बना हुआ चित्र; (चार्ट) दे० टुकड़ा; चिकन, चौकोन शालका टुकड़ा; मियानी, 'रेखापत्र'। -पत्र-पु० (चार्ट) विशेष सूचना या जानपाजामेकी मोहरियोंको जोड़नेवाला चौकोर टुकड़ा। कारी प्रदान करनेवाला, मुख्य रूपसे रेखाओंका बना रूरना*-अ० कि० जोर-जोरसे शब्द करना, चिल्लाना। वह चित्र जिसमें मुख्य-मुख्य बातें यथास्थान दिखायी
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रेखित-राँव गयी हों; खाने बनाकर तालिकाओं आदिके रूपमें दिया अ० क्रि० अधिक होना, खूब भरा होना। गया विवरण; नाविकों, जहाजके कप्तानों आदिके पास रेला-पु० धावा, चढ़ाई, आक्रमण भीड़भाड़ाजलका बहाव; रहनेवाला वह समुद्री नक्शा जिसमें समुद्रतट, चट्टानें, तोड़ा अधिकता समूह । खतरेके स्थान आदि दिखाये गये रहते हैं। वस्तुओंके रेवड़-पु० भेड़ोंका समूह, गल्ला । उत्पादन एवं मूल्यादि-संबंधी तथा तापमानके घटने-बढ़ने | रेवड़ी-पु० चीनी या गुड़की चाशनीसे फेटकर बनायी हुई आदि-संबंधी परिवर्तन ऊपर-नीचे चढ़ने-उतरनेवाली | टिकियाँ जिनपर तिल जमाया होता है। रेखाओं द्वारा दिखलानेवाला पत्र।
रेवतक-पु० पारेवत वृक्ष, एक तरहका खजूर । रेखित-*वि० अंकित, लिखित, खिंचा हुआ; लकीर खींचा | रेवती-स्त्री० [सं०] सताईसवाँ नक्षत्र; गाय; एक बालग्रह; हुआ |-धनादेश-पु० (क्रास्ट चेक) वह धनादेश जिसमें | बलरामकी पत्नी। -रमण-पु० बलराम । बायीं ओर नीचे से ऊपरतक दो समानांतर रेखाएँ खींच रेवा-स्त्री० [सं०] नर्मदा नदी; कामदेवकी स्त्री, रति । दी गयी हों (इसका रुपया किसीके बैंक खाते में जमा | रेशम-पु० [फा०] उम्दा, मजबूत और चमकीला रेशा होनेके बाद ही निकाला जा सकता है)।
जिसे रेशमका कीड़ा कोया, कोश बनानेके लिए निर्मित रेग-स्त्री० [फा०] बालू ।
करता है; रेशमका सूत; रेशमका कपड़ा। -के लच्छे रेगिस्तान-पु० बालूका मैदान, मरुस्थल ।
-रेशमके धागोंका गुच्छा; एक मिठाई जो रेशमके धागोंरेचक-वि० [सं०] दस्त लानेवाला, दस्तावर । पु० प्राणा- की तरह होती है।
यामकी एक क्रिया (खींची हुई साँसको बाहर निकालना)। | रेशमी-वि० [फा०] रेशमका रेशमसे बना हुआ रेशमसा रेचन-पु० [सं०] दस्त लाना, कोठा शुद्ध करना; जुलाब । मुलायम या चिकना, बहुत ही नरम । रेचना*-सं० कि० वायु, मल बाहर निकालना। रेशा-पु० [फा०] सुतड़ा, सूतकीसी इकहरी चीज । -दार रेजगारी-स्त्री० दे० 'रेज़गी'।
-वि० रेशेवाला। रेज़गी-स्त्री० [फा०] खुर्दा, छुट्टा; इकनी-दुअन्नी आदि | रेष-पु० [सं०] हानि, क्षति । * स्त्री० दे० 'रेख'।
छोटे सिक्क; सोना-चाँदीके तारका छोटा टुकड़ा। रेह-स्त्री० खारमिश्रित धूल जैसी मिट्टी; रेखा-'लसत रेजा-पु० [फा०] बहुत छोटी चीज, छोटा टुकड़ा, खंडा| कसौटीमें मनो तनक कनककी रेह'-मति०। मजदूर लड़का ( बड़े राजगीरोंके साथ काम करनेवाला); रेहन-पु० [फा०] ऋण देनेवालेको कुछ धन-संपत्ति उस सुनारोंका एक औजार नग, थान, अदद ।
समयतकके लिए देना जबतक उसका हिसाब चुका न रेणु-स्त्री० [सं०] धूल; बालू ; कणिका ।
दिया जाय, बंधक, गिरवी । -दार-पु० जिसके पास रेणुका-स्त्री० [सं०] बालू धूल; परशुरामकी माता; *पृथ्वी। कोई जायदाद बंधक रखी हो। -नामा-पु. वह कागज रेत-स्त्री० बालू बलुई भूमि ।
जिसपर रेहनकी शौकी लिखा-पढ़ी की गयी हो। रेत (स्)-पु० [सं०] वीर्य; जल; पारा ।
रेहल-स्त्री० [अ०] पेचदार तख्ती (जिसपर पढ़ते समय रेतना-स० कि० रेतीसे रगड़कर काटना, चिकना करना; किताब रखते है ), दे० 'रिहल'।
औजारकी धार रगड़ना धीरे-धीरे रगड़कर काटना। रेहआ-वि. रेहवाला, जिसमें रेह अधिक हो। रेता-स्त्री० बालू ; धूल, मिट्टी। पु० बलुई भूमि । रैअति-स्त्री० दे० 'रैयत'। रेती-स्त्री० एक औजार जिससे रगड़कर कोई वस्तु काटी रैतवा-पु० दे० 'रायता' । या चिकनी की जाती है। नदी, समुद्रतटकी बलुई भूमि | रैदास-पु० रामानंदका शिष्य और कबीर आदिका समनदीका द्वीप, पानी घटनेसे धाराके बीच निकली रेतीली कालीन चमार भक्त चमार । भूमि।
रैन*-स्त्री० रात रेणु । रेतीला-वि. बलुआ, बालुकामय ।
रैनि*-स्त्री० रात। रेनु*-स्त्री० दे० 'रेणु' ।
रैनी-स्त्री० तार खींचनेकी चाँदी-सोनेकी गुल्ली। रेनुका*-स्त्री० दे० 'रेणुका'।
रैमनिया-स्त्री० लाल चिड़ियाको मादा; एक अरहर । रेफ-पु० [सं०] 'र' अक्षर 'र'का किसी वर्णके पहले आने- रैयत-स्त्री० [अ०] प्रजा, रिआया । पर हलंत, मस्तकस्थ रूप (जैसे-दर्पमें)।
रैयाराव-पु० छोटा राजा; एक पुरानी पदवी जो राजा रेरुआ, रेरुवा-पु. घुग्घू, बड़ा उल्लू ।
अपने सरदारोंको प्रदान करते थे। रेल-स्त्री० बहाव, धारा; भीड़ बहुतायत । -ठेल,-पेल- रैल*-स्त्री. राशि, समूह-'विघनकी रैलपर लंबोदर स्त्री० भीड़भाड़ा धक्कमधक्का; अधिकता, बहुतायत ।
लेखिये-भू०। रेल-स्त्री० [अं०] लोहेकी शहतीर, सलाख जोड़ी हुई वत-५० [सं०] एक पर्वत एक साममंत्र; शिव; एक दैत्य लाइन जो जमीनपर बिछी रहती है, लोहेकी पटरी| जिसकी गणना बालग्रहमें है । (जिसपर रेलगाड़ी चलती है); रेलगाड़ी। -गाड़ी-स्त्री० -५० दे० 'रोयाँ'। [हिं०] लोहेकी पटरियोंपर चलनेवाली गाड़ी (रेलवे ट्रेन । रौंगटा-पु० रोयाँ, लोम । मु०-(टे) खड़े होना-मंत्री-पु० [हिं०] मंत्रिमंडलका वह सदस्य जिसके | रोमांच होना। जिम्मे रेलका मोहकमा हो ।
| रौंगटी-स्त्री० बेईमानी करना ( खेलमें ) । रेलना-सक्रि० धक्का देना, ढकेलना; अधिक खा लेना। रॉव*-पु० रोआँ ।
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रोआब-रोना
६९२ रोआब-पु० दबदबा, प्रभाव, 'रुआब' ।
रोचिष्णु-वि० [सं०] चमकदार, दीप्तिमय । रोक-पु० [सं०] नकद रुपया, रोकड़ । वि० नकद । स्त्री० रोज-पु० रोना-धोनाविलाप, रोना-पीटना। [हिं०] अटकाव, रुकाव, छेक; रोकनेवाली चीज; प्रतिबंध | रोज़-पु० [फा०] दिन; वक्त । अ० प्रति दिन, हर रोज, मनाही, निषेध । -झोंक,-टोक-स्त्री० बाधा, अवरोध, नित्य । -नामचा-पु. वह किताब जिसमें दैनिक प्रतिबंध; मनाही । -थाम-स्त्री० रोकटोक, अवरोध ।। विवरण लिखा जाय (डायरी); बही जिसमें रोजका रोकड़-स्त्री० नकद रकम, रुपया; जमा, पूँजी। -बही- हिसाब लिखा जाय; वह रजिस्टर या किताब जिसमें स्त्री० वह बही जिसमें नकद रुपयोंके लेन-देनका हिसाब पटवारी अपना हर रोजका काम लिखता है। पुलिस थानेहो। -बिक्री-स्त्री. वह बिक्री जो नकद दामपर की गयी का रजिस्टर न०१ जिसमें पुलिसके दैनिक कार्योंका विवहो । मु०-मिलाना-आय-व्ययका हिसाब लगाकर । रण लिखते हैं। -ब-रोज़-अ० प्रति दिन, हर रोज; रकमके घटने-बढ़नेका पता लगाना।
क्रमशः, लगातार । -मर्रा-अ० नित्य, प्रति दिन, हर रोकड़िया-पु० रोकड़ रखनेवाला, मुनीम, खजांची । रोज । पु० अहले जबानकी भाषा, उनकी बोल-चालके रोकना-स० क्रि० गति, चाल बंद करना; जानेसे मना शब्द और मुहावरे । करना; किसी काम, बातका क्रम बंद करना; बाधा, | रोज़गार-पु० [फा०] जीविका कारबार, व्यापारव्यवसाय । अड़चन डालना; मना करना; ऊपर न आने देना (लाठी, रोज़ा-पु० [फा०] एक मजहबी फर्ज जिसमें प्रातःकाल तलवार आदिका प्रहार); वश, काबू में रखना, संयत एक घड़ी रातसे संध्याके एक घड़ी बादतक बिलकुल नहीं रखना; सामना करना (आक्रमण रोकना); छेकना। खाते (मुसलमानों में); उपवास, अनाहार; रोजेका दिन; रोख*-पु० दे० 'रोष'।
रोजेका महीना, रमजान । -दार-पु. वह जो रोजा रोग-पु० [सं०] शरीरकी विकारपूर्ण अवस्था, अस्वास्थ्य, रखता है। बीमारी कोई बीमारी (हैजा, प्लेग, चेचक इ०)।-कारक- रोज़ाना-अ० [फा०] नित्य, हर रोज । वि० बीमारी पैदा करनेवाला। -ग्रस्त-वि० बीमार, रोजी-स्त्री० [फा०] खूराक; जीविका । -दार-वि० जिसे रोगसे पीड़ित ।-नाशक-वि० बीमारी दूर करनेवाला। खर्च के लिए नित्य कुछ दिया जाय। -निदान-पु० रोगके मूल कारण, उसके लक्षणोंकी पह| रोज़ीना-पु० [फा०] दैनिक वेतन, मजदूरी (जो रोजाना चान करना। -निरोधक द्रव्य-पु० (प्रोफिलैक्टिक मिले); खूराक (जो रोजाना दी जाय); पेंशन, वजीफा। ड्रग) रोगोंकी उत्पत्ति तथा प्रसार रोकनेवाली दवा। रोझो-स्त्री. नीलगाय (पु० भी) 'हम भी पाहन पूजते -प्रतिबंधनिरोधा-स्त्री० (कारैनटान) दे० 'निरोधा'। होते बनके रोश'-साखी।
। [फा०] कोई चिकनी चीज, तेल, घी इ० रोट-पु.बहत मोटी रोटी; शरबत, महएके रसमें बनायी एक पतला लेप, वार्निश, पालिश (जूते, लकड़ी आदिपर हुई मोटी मीठी रोटी लिट्ट, हाथियोंका रातिब । चमक लानेके लिए प्रयुक्त); लाख आदिका बना मसाला | रोटिका-स्त्री० [सं०] फुलकी, हलकी-छोटी रोटी । (मिट्टीके बरतनोंपर चढ़ाया जाता है); बरके तेलका बना रोटिहा-पु. रोटियोंके बदलेमें काम करनेवाला नौकर । मसाला (चमड़ेको मुलायम करनेके लिए)। -दार-वि० रोटी-स्त्री० [धे आटेकी तवेपर या आगपर सिंकी गोल रोगन चढ़ाया हुआ, चमकीला ।
टिकिया, चपाती, फुलका; खाना, आहार, भोजन । रोग़नी-वि० [फा०] तेल, घी लगा या चुपड़ा हुआ -कपड़ा-पु० खाना-कपड़ा, गुजर-बसरकी सामग्री । वार्निश किया हुआ।
मु०-कमाना-जीविका, रोजी चलाना । रोगाक्रांत-वि० [सं०] रोगी, रोगसे पीड़ित ।
रोठाt-पु. एक तरहका बाजरा (प०)। रोगातुर-वि० [सं०] रोगसे घबराया हुआ, पीड़ित । रोड़ा-पु० कंकड़, ईट-पत्थरके टुकड़े; बाधा । रोगार्त-वि० [सं०] रोगसे दुःखी, ब्याकुल ।
रोदन-पु० [सं०] रोना, विलाप करना। रोगिणी-वि० स्त्री० [सं०] रोगसे पीड़ित (स्त्री)। रोदसी-स्त्री० [सं०] पृथ्वी, स्वर्ग । रोगिया, रोगिहा-पु० बीमार, रोगी।
रोदा-पु० धनुषकी डोरी, प्रत्यंचा बारीक, सूक्ष्म ताँत । रोगी(गिन)-वि० [सं०] अस्वस्थ, व्याधिग्रस्त, बीमार। रोध-पु० [सं०] रोक, निषेध, बाधा; धेरतीर, किनारा।
-वाहक गाड़ी-स्त्री० (एंबूलेंसकार) दे० 'परिचारगाड़ी'। रोधक-पु० [सं०] रोकनेवाला ।। रोगोत्तर स्वास्थ्यलाभ-पु० [सं०] (कनवेलेसेंस) रोग रोधन-पु० [सं०] बुध ग्रह रोक, अवरोध; दमन । अच्छा हो जानेके बाद स्वास्थ्यकी पूर्वस्थिति तथा पूर्वबल रोधना-स० कि० रोकना। प्राप्त करनेकी क्रिया।
रोना-अ० कि० शोक, कष्टजनित विकलताके कारण कुछ रोचक-वि० [सं०] रुचनेवाला, प्रिय; मनोरंजक । कह उठना; कुछ विशेष प्रकारके स्वर निकलना और आँसू राचन-वि० [सं०] प्रिय, अच्छा लगनेवाला शोभावान् बहना; चिल्लाना तथा आँसू बहाना, रुदन या विलाप दीप्तियुक्त । पु० काला सेमर; सफेद सहिजन, प्याज; करना, आँसू बहाना; शिकायत करना; अफसोस करना; गोरोचन रोचना,रोली; कामदेवके पाँच वाणोंमेंसे एक।। शोक करना; कुढ़ना; वावैला करना; फरियाद करना; रोचना-स्त्री० [सं०] रक्त कमल; वंशलोचन, उज्ज्वल दुःख बयान करना; पछताना। वि० रोनेवाला; चिड़आकाश काला सेमर; गोरोचन; सुंदर स्त्री।
चिड़ा। पु० रुदन, कुहराम; मातम; अफसोस, गम; रोचि(स)-स्त्री० [सं०] प्रभा, चमक, कांति; किरण।। शिकायत तकलीफ; फरियाद, वावैला; कुढ़न ।-मु०
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६९३
रोनी-रौशन आना-दिल भर आना, अफसोस होना। -पड़ना- रोला-पु० शोरगुल, कोलाहल; घोर युद्ध; एक छंद । मातम होना, कुहराम मचना । -पीटना-चिल्लाकर, रोली-स्त्री० हलदी-चूनेकी बनी लाल बुकनी, श्री। छाती पीटकर रोना।
रोवनहार*-वि०, पु० रोनेवाला; मृत्युका शोक करनेरोनी-धोनी-वि० रोनेधोनेवाली, मुहर्रमी। स्त्री० रुदन, । वाला। विलापकी प्रवृत्ति; मनहूसी।
रोवना-वि०, पु० बहुत जल्दी रोनेवाला,बुरा माननेवाला; रोपक-वि० [सं०] जमाने, लगाने, स्थापित करनेवाला । चिढ़नेवाला खेल, हँसीमें बुरा माननेबाला । * अ.क्रि. रोपण-पु० [सं०] लगाना, बैठाना (पीज, पौधा); स्थापित
| रोना। करना; ऊपर रखना; खड़ा करना, उठाना।
रोवनिहारा*-वि०, पु० दे० 'रोवनहार'। रोपना-स० क्रि० लगाना, जमाना; एक जगहसे दूसरी रोवनी-धोवनी-स्त्री० दे० रोनी-धोनी' । जगह गाड़ना; स्थापित करना, रखना ठहराना, टिकाना; रोवा-पु० दे० 'रोयाँ'। बीज बोना; रखना; पसारना ।
रोवासा-वि० रोनेको तैयार, रोनेका इच्छुक । रोपनी-स्त्री० रोपाई, रोपनेका काम ।
रोशन-वि० [फा०] जलता हुआ; प्रकाशित; प्रकाशपूर्ण, रोपित-वि० [सं०] जमाया, लगाया हुआ; उठाया, खड़ा चमकदार; प्रसिद्ध, प्रख्यात, मशहूर प्रकट । -चौकीकिया हुआ; रखा हुआ, स्थापित भ्रांत ।
स्त्री० एक किस्मके बाजेवालोंकी चौकी, शहनाई, नफीरी। रोब-पु० [अ० 'रुआब'] धाक, दबदबा तेज, प्रताप; -ज़मीर,-दिमाग़-वि० अकलमंद, सुबुद्ध । -दान
आतंक।-दाब-पु० तेज; आतंक ।-दार-वि० तेजस्वी | पु० मोखा, झरोखा। प्रभावशाली । मु०-मैं आना-धाक, प्रभाव मानना। रोशनाई-स्त्री० [फा०] स्याही, मसि, प्रकाश, रोशनी । रोमंथ-पु० [सं०] जुगाली, पागुर ।
रोशनी-स्त्री० [फा०] प्रकाश, उजाला; चिराग, दिया रोम(न)-पु० [सं०] रोयाँ, रोंगटा, शरीरपरके बाल, दीपमालाका प्रकाश, दीपोत्सव; ज्ञान, शिक्षाका प्रकाश । पर । -कूप,-द्वार-पु० त्वचाके के छोटे-छोटे छेद जिनसे रोष-पु० [सं०] क्रोध; विद्वेष, चिढ़ लड़नेका जोश। रोथें निकलते हैं। -राजी,-लता-स्त्री० रोमावली, | रोस-पु० दे० 'रोष' । स्त्री० दे० 'रोस'। रोमोंकी श्रेणीनाभिसे ऊपरके बाल । -हर्ष-पु० रोयें, | रोसनाई-स्त्री० दे० 'रोशनाई। रोंगटे खड़े होना, रोमांच । -हर्षण-पु० रोंयोंका खड़ा रोसनी-स्त्री० दे० 'रोशनी' । होना (हर्ष, शोक, भय आदिके कारण)। वि० रोंगटे खड़े रोह-पु० [सं०] चढ़ाई; चढ़ना; अंकुर + नील गाय । करनेवाला,भयंकर, भीषण । मु०-रोममे"-सारे शरीरमें, | रोहक-पु० [सं०] चढ़नेवाला; सवार । अंग-अंगमें । -रोमसे-पूर्ण हृदयसे, तन-मनसे । । रोहण-पु० [सं०] चढ़ना; उगना; ऊपरकी ओर बढ़ना । रोमांच-पु० [सं०] रोयोंका उभरना, खड़ा होना (आनंद, रोहना-अ० क्रि० चढ़ना ऊपरको बढ़ना; सवार होना। भय आदिसे), पुलक ।
| स० कि० चढ़ाना धारण करना; सवार कराना। रोमांचित-वि० [सं०] पुलकित, हृष्टरोमा, जिसके रोयें | रोहिणी-स्त्री० [सं०] गायबिजली; नववर्षीया कन्या खड़े हों।
बसुदेवकी स्त्री, बलरामकी माता; सत्ताईस नक्षत्रोंमेंसे रोमाग्र-पु० [सं०] रोयेंका सिरा, नोक ।
चौथा । -पति,-वल्लभ-पु० चंद्रमा वसुदेव । रोमानी-वि० जिसमें मुख्य रूपसे शारीरिक प्रेमका रोहिणीश-पु० [सं०] चंद्रमा; वसुदेव । वर्णन हो।
रोहित-वि० [सं०] लाल रंगका, लोहित । पु० लाल रंग रोमाली, रोमावलि, रोमावली-स्त्री० [सं०] रोमोंकी रक्त, खून; इंद्रधनुष , केसर कुंकुम । पंक्ति नाभिसे ऊपरकी ओर जानेवाली रोमपंक्ति । रोहिनी*-स्त्री० दे० 'रोहिणी' । रोमिल-वि० रोमयुक्त, रोयेंवाला (गुलाब) ।
रोही(हिन)-वि० [सं०] चढ़नेवाला । पु० वट वृक्ष; एक रोयाँ-पु० लोम, रोम, रोंगटा । मु०-खड़ा होना-रोमांच | मृग रोहू मछली; * एक अस्त्र । होना ।-टेढ़ा न होना-कुछ न बिगड़ पाना । रोह-पु०,स्त्री० एक मछली जो बहुत अच्छी मानी जाती है। रोर-स्त्री० रौला, कोलाहल, हल्ला; बहुतसे लोगोंकी एक रौंट-स्त्री० खेल-हँसीमें बुरा मानना; बेईमानी करना। साथ निकली हुई समवेत ध्वनि; रोने-चिल्लानेका शब्द;
रौंद-स्त्री. रौंदनेका भाव या काम; चक्कर, गश्त, 'राउंड' हलचल, धूमधाम; उपद्रव; निर्धनता, गरीबी-'रोरके (सिपाही)।मु०-पर जाना-गश्तके लिए निकलना। जोरते सोर घरनी कियो...'-सू०; विपत्ति । वि० दर्द- रौंदन-स्त्री० रौंदनेकी क्रिया या भाव, मर्दन । मनीय, प्रचंड; उद्धत; दुष्ट, अत्याचारी ।
रौंदना-स. क्रि० पैरोंसे कुचलना, पददलित करना; बररोरा-पु० गाँजेका चूर; दे० 'रोर'।
बाद, तहस-नहस करना; लातोंसे मारना-पीटना। रोरी -स्त्री० हलदी-चूनेकी बनी लाल रंगकी बुकनी,रोली रौंस-पु० घट्ठा, निशान-'रामहिं राम पुकारतो जिभ्या (इसका तिलक लगाते है); *धूम, चहल-पहल, कोलाहल
__ परिगो रौंस-बीजक । -'रोरि परी गोकुलमें जहँ तह गाइ फिरत पय दोहनको' | री-* पु०दे० रव' । स्त्री० [फा०] चाल, गति; वेग पानीका -सू० । वि० स्त्री० रुचिर, सुंदर।
बहाव, तोड़, रेला; ढंग, चाल; धुन, खयाल; जोश । रोल-पु० पानीका रेला, तोड़, बहाव; रुखानी जैसा एक रौक्ष्य-पु० [सं०] रूखापन, रुखाई । औजार । स्त्री० हल्ला, कोलाहल; शब्द, ध्वनि ।
रोगन-पु० [अ०] चिकनी चीज, तेल, घी आदि; लाख
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रौनी-लंतरानी
आदिसे निर्मित पक्का रंग ।
रौग़नी - वि० [अ०] तेलका; रौगन फेरा हुआ । रौनिक - वि० गोरोचनसे रँगा हुआ ।
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[सं०] रोली, गोरोचन संबंधी; रोली, रौर* - पु० रोर, कुहराम ।
लिए एक आदरसूचक संबोधन; + कहारिन । रौताई - स्त्री० राव, रावत होना; ठकुराई, सरदारी । रौद्र-वि० [सं०] रुद्र-संबंधी; रुद्रका; भयंकर; क्रोधपूर्ण । पु० काव्यके नौ रसों में से एक जिसका स्थायी भाव क्रोध है; क्रोध; धूप, घाम; यमराज; एक केतु; साठ में से चौवनवाँ संवत्सर । रौद्रता - स्त्री० [सं०] भयंकरता; प्रचंडता, उग्रता । रौद्री - स्त्री० [सं०] रुद्रकी पत्नी, गौरी । रौन* - पु० रमण करनेवाला, पति । रौनक - स्त्री० [अ०] चमक, ताब; खूबी; ताजगी; चहलपहल; बहार । - दार- वि० बहारदार; सजा हुआ । रौनी* - स्त्री० दे० 'रमणी' ।
रौरव - वि० [सं०] डरावना, भयंकर; कपटी, धूर्त । पु० एक भीषण नरक ।
रौजा - पु० [अ०] बाग; मकबरा, समाधि । रौताइन - स्त्री० राव, रावतकी पत्नी, ठकुराइन; स्त्रियों के रौरा - पु० दे० 'रौला' । सर्व० रावरा, आपका रौराना। - स० क्रि० बकना, हल्ला, प्रलाप करना ! रौरे। - सर्व० आदरसूचक संबोधन, आप । रौल* - स्त्री० दे० 'रौलि' । रौला - पु० इल्ला, हुल्लड़; ऊधम, हलचल | रौलि। स्त्री० धौल, तमाचा, झापड़ | रौशन - वि० दे० 'रोशन' । रौशनी - स्त्री० दे० 'रोशनी' ।
ल
। ।
ल- देवनागरी वर्णमालाका अठाईसवाँ व्यंजन, अंतस्थ वर्ण लंक* - स्त्री० कमर; लंका नामक द्वीप, रावणकी वासभूमि । - नाथ, - नायक, - पति-पु० रावणः विभीषण । लंकलाट - पु० [अं० 'लांगक्लाथ' ] एक मजबूत मोटा सूती
कपड़ा ।
लंका - स्त्री० [सं०] भारतके दक्षिणका एक द्वीप, सिंहल; एक झील | - नाथ, पति - पु० रावण; विभीषण | लंकाधिपति, लंकाधिराज - पु० [सं०] रावणः विभीषण। लंकूर* - पु० दे० 'लंगूर' ।
लंकेश, लंकेश्वर - पु० [सं०] रावण; विभीषण ।
वि०
लंग - स्त्री० लाँग, काछ । लँगड़ापन |
[फा०] लँगड़ा | पु०
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रौप्य - वि० [सं०] चाँदीका; चाँदीका बना हुआ । पु० चाँदी, रूपा ।
लंगड़ - वि० लँगड़ा | पु० लंगर | लँगड़ा - वि० जिसका एक पैर टूटा, बेकार हो । ५० एक प्रसिद्ध कलमी आम ।
लँगड़ाना - अ० क्रि० लँगड़ाकर चलना ।
लंगर - पु० [फा०] लोहेका बहुत भारी काँटा जिसे नाव या जहाजको खड़ा करनेके लिए रस्सी या जंजीर से बाँध कर नदी या समुद्र में गिरा देते हैं; मोटा रस्सा या जंजीर; वह स्थान जहाँ गरीबोंको पका खाना बाँटा जाय, पके खानेका सत्र; पहलवानोंका लँगोट; वखिया करनेके पहले कपड़े में भरे जानेवाले टाँके; हरहाई गायके गले में बाँधा जानेवाला खूँटा; घड़ियों आदि में तार आदिके सहारे लटकायी जानेवाली भारी चीज; कमरके नीचेका हिस्सा; पैर में पहननेका चाँदीका तोड़ा; * बागडोर । वि० वजन दार; शरारती, ढीठ; लँगड़ा । - खाना-पु० पके खानेका सत्र । - गाह - पु०, स्त्री० लंगर करने, जहाजोंके ठहरनेका स्थान । मु० - उठाना - रुके हुए जहाजका रवाना होना । - करना - जहाजका ठहरना, पड़ाव करना; शरारत करना । -डालना - जहाजके लंगरको
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रौस - स्त्री० गति, हरकत, चाल; रंग-ढंग; बागकी क्यारियोंके बीच का रास्ता; मकानकी ऊपरवाली मंजिल में (आँगनके ऊपरका) चारों तरफका पतला रास्ता । रौहिणेय - पु० [सं०] रोहिणीपुत्र, बलराम; बुध ग्रह ।
नदी या समुद्र में फेंकना, जहाजको खड़ा करना । - बाँधना - पहलवानी करना; लड़नेको प्रस्तुत होना; ब्रह्मचर्य धारण करना ।
लँगरई, लँगराई * - स्त्री० शरारत, ढिठाई । लँगरानाt - अ० क्रि० दे० 'लँगड़ाना' | लॅगरी* - स्त्री० शरारत ।
लँगरैया * - स्त्री० शरारत, धृष्टता । लंगूर-पु० लांगूली, काले मुँहका बंदर; दुम ( बंदरकी) । लँगोट, लँगोटा-पु० कमरपर बाँधनेका वस्त्रविशेष (इससे उपस्थ और नितंब आवृत रहते हैं) । - ( 2 ) बंद - वि० ब्रह्मचारी; लँगोट बाँधनेवाला । लँगोटिया यार - पु० बालमित्र । लँगोटी - स्त्री० छोटा लँगोट, कोपीन । मु०- पर फाग खेलना-थोड़ा साधन होनेपर विलासकी ओर दौड़ना । - बँधवाना - दरिद्र बना देना । - बाँध लेना-दरिद्र होना; सांसारिक सुखोंका त्याग करना । मे मस्तगरीबीकी हालत में खुश रहनेवाला । लंघक - वि० [सं०] लाँघनेवाला; नियम तोड़नेवाला । लंघन - पु० [सं०] अनाहार, उपवास; डाँकना, लाँघना | लंघनक - पु० [सं०] लाँघने, पार जानेका साधन; पुल | लंघना - *वि० जिसने लंघन किया हो, भूखा । स० क्रि० लाँघना, डाँकना । स्त्री० [सं०] उपेक्षा, अवमानना । लंघनीय- वि० [सं०] लाँघने के योग्य; उल्लंघन करने योग्य ।
लँघाना-स० क्रि० पार उतारना या करना । लंघित- वि० [सं०] लाँधा हुआ; उल्लंघित; उपेक्षित । लंजिका स्त्री० [सं०] वेश्या । लंठ - वि० मूर्ख; असभ्य, उजड्ड । लँडूरा - वि० दुम कटा (पक्षी) । लंतरानी - स्त्री० [अ०] डींग, आत्मप्रशंसा ।
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लंदराज - पु० एक तरह की मोटी चादर ।
लंप - पु० [अं० 'लै५'] चिराग, दीपक । लंपट - वि० [सं०] कामी, विषयी । पु० कामी पुरुष । लंपटता - स्त्री० [सं०] कुकर्म; कामुकता ।
लंब - पु० [सं०] किसी सरल रेखाके आधारपर समकोण बनानेवाली रेखा ( पर पेंडीक्यूलर ); विषुव रेखाकी समानां तर एक रेखा (ज्यो०) । वि० लंबा । *स्त्री० दे० 'विलंब ' । - कर्ण - वि० जिसके कान बड़े हों । पु० बकरा; हाथी; गधा; खरगोश; बाज । -केश-वि० जिसके बाल लटकते हों । -ग्रीव-पु० ऊँट - जठर- वि० तोंदवाला | -तड़ंग - वि० [हिं०] ताड़सा लंबा | लंबन - पु० [सं०] झूलनेकी किया; अवलंब, आश्रय; कोई काम कुछ समय के लिए टल जाना, रुक जाना ( अबेथेंस ) । लंबमान - वि० [सं०] दूरतक गया या फैला हुआ । लंबर - पु० दे० 'नंबर' । - दार- पु० दे० 'नंबरदार' | लंबा - वि० जिसके दोनों सिरे एक दूसरेसे दूर हों, जिसका विस्तार चौड़ाईसे अधिक हो ( जैसे लंबा बाँस, रास्ता, सफर ); जो अधिक ऊँचा हो ( लंबा आदमी, पेड़ ); अधिक विस्तारवाला ( समय कालमानके लिए-जैसे गरमी के दिन और जाड़ेको रातें लंबी होती हैं); दीर्घ, परिमाण में अधिक (जैसे लंबा खर्च ) । -चौड़ा - वि० विस्तृत । - सफर - पु० दूरकी यात्रा; मृत्यु । मु० - करना - किसीको चलता या चित करना; दराज करना । - बनना, - होना - चल देना, भाग जाना। - (बी) चौड़ी हाँकना - डींग मारना । - तानकर सोना- बेफिक्र होकर सोना । - तानना-बेफिक्री से सो जाना; बेखबर होकर देर तक सोना । - साँस भरना या लेना-शोक-दुःखसे साँस लेना, आहें भरना ।
लंबाई - स्त्री० लंबा होनेका भाव; लंबानका परिमाण । लंबान - स्त्री० लंबाई | -चौड़ान - स्त्री० लंबाई-चौड़ाई । लंबायमान- वि० [सं०] बहुत लंबा; लेटा हुआ । लंबित - वि० [सं०] लटकता हुआ; अवलंबित; धँसा, डूबा हुआ; (पेंडिंग) ( वह कार्य, मामला आदि) जिसके संबंध में अभी कोई निर्णय या अंतिम निश्चय न हुआ हो, जो अनिश्चित ( या अनिश्चयकी ) अवस्था में हो । लंबू - वि० लंबी टाँगोंवाला (आदमी, - व्यंग्य में) । लंबोतरा - वि० कुछ-कुछ लंबा, लंबाई लिये हुए । लंबोदर - पु० [सं०] गणेश । वि० बड़ी तोंदवाला; पेटू । लंबोष्ट- पु० [सं०] ऊँट । वि० लंबे ओठवाला । ल - पु० [सं०] इंद्र; पृथ्वीबीज (तंत्र) । लउ * - स्त्री० लौ, लगन ।
लउआ - पु० लौआ ।
लडकी - स्त्री० लौकी ।
लउटी * - स्त्री० लकुटी ।
लकड़दादा - पु० परदादासे बड़ा दादा | लकड़बग्घा - पु० भेड़ियेकी जातिका एक जंगली जानवर | लकड़हारा - पु०जंगल आदिसे लकड़ियाँ तोड़कर बेचनेवाला । लकड़ा - पु० लकड़ीका बड़ा और मोटा कुंदा | लकड़ाना - अ० क्रि० सूखकर लकड़ीकी तरह सख्त हो जाना; बिना मांसका हो जाना, हाड़-छाड़ हो जाना,
४४-क
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लंदराज - लक्षण
बिलकुल दुबला हो जाना ।
लकड़ी - स्त्री० पेड़का कोई भी सूखा हुआ भाग, शाखा, टहनी आदि; मेज, कुर्सी आदि बनाने या जलानेके लिए काटकर सुखाया हुआ पेड़; ईंधन; लाठी, बैसाखी ; गतका; पटा, बिनवट । सु० - चलना - लाठी चलना, मार-पीट होना । - देना - मुरदा जलाना। -सा-बहुत दुबला । - होना -दुबला और कमजोर होना ।
लकदक - पु० [फा०] चटियल मैदान, बीरान बंजर, वह मैदान जहाँ पेड़-पौधे और घास न हो ।
लक़ब - पु० [अ०] गुण, योग्यता या पद सूचक नाम, पदवी । लक़लक़ - पु० [अ०] लंबी टाँग और गर्दनका एक जल-पक्षी, सारस । वि० लंबी टाँगोंवाला, दुबला-पतला (आदमी) । लकवा - पु० [अ०] एक बीमारी जिसमें मुँह टेढ़ा हो जाता है और अन्य अंगपर भी इसका असर होता है; एक नाडी-संबंधी रोग जिसके कारण प्रभावित अंग निश्चेतन और शक्तिहीन हो जाता है, पक्षाघात, फालिज । मु०मारना - लकवा रोग से ग्रस्त होना । लकसी स्त्री० एक प्रकारकी लग्गी ।
लकीर-स्त्री० कागज, स्लेट आदिपर खींचा हुआ लंबा निशान, रेखा; जमीनपर उँगली आदिसे बनायी हुई लंबी रेखा; साँपकी गतिका चिह्न; धारी; छकड़ों और गाड़ियों के पहियों का निशान; कतार, क्रम; पंक्ति | मु० - का फकीर - पुरानी रीतियों पर आँख मूँदकर चलनेवाला । - पर चलना - पुराने तरीके पर चलना । -पीटना - पुरानी प्रथाओं पर चलना; पछताना | लकुच - पु० [सं०] बड़हर; * दे० 'लकुट' | लकुट - पु० एक पेड़; [सं०] छड़ी; लाठी | लकुटिया, लकुटी* - स्त्री० छड़ी ।
लकुरी* - स्त्री० लकुटी, लकड़ी । लक्कड़ - पु० दे० 'लकड़ा' ।
लक्का - पु० [फा० 'लका'] चील; गिद्ध; एक कबूतर जिसकी पूँछ पंखे की तरह और ऊपर उठी होती है तथा गर्दन पीछेको झुकी होती है। - कबूतर - पु० नाचकी एक मुद्रा जिसमें नर्तक कमर के बल बगलसे झुककर सिरको जमीन के समीपतक ले जाता है; दे० 'लक्का' । लक्खी - पु० घोड़ोंका एक भेद; लखपती । वि० लाखके रंगका ।
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लक्तक- पु० [सं०] अलक्तक, महावर; लत्ता, चिथड़ा । लक्ष - वि० [सं०] सौ हजार । पु० सौ हजारकी संख्या, १०००००; निशान, चिह्न; पैर; मोती; बहाना; अस्त्रका संहार- विशेष; दे० 'लक्ष्य' । -पति-५० लखपती । - वेधी ( धिन्) - वि० निशानेका वेध करनेवाला । लक्षण - पु० [सं०] विशेषता-सूचक शब्द; शरीरस्थ रोगसूचक चिह्न; शुभाशुभकी सूचना देनेवाले अंगस्थित चिह्न (सामुद्रिक); शरीर पर स्थित विशेष प्रकारका काला दाग, लच्छन; निर्धारित दर; लक्ष्य, उद्देश्य; प्रस्तुत विषय; नाम; दर्शन; परिभाषा; चाल-ढाल; दे० 'लक्ष्मण'; सारस पक्षी । वि० बतलानेवाला, सूचक । - कर्म (नू ) - पु० गुणों का वर्णन; परिभाषा । ज्ञ-वि० शरीरपरके चिह्नोंको जाननेवाला । भ्रष्ट-वि० अच्छे चिह्नोंसे वंचित,
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लक्षणा-लगना
६९६ भाग्यहीन । -लक्षणा-स्त्री० लक्षणाका एक भेद जिसमें लखलखा-वि० [अ०] अंबर, कस्तूरी, अगर आदिका एकका लक्षण दूसरेको प्राप्त हो जाता है।
योग जो बेहोशी दूर करनेके काम आता है; वह पात्र लक्षणा-स्त्री० [सं०] वह शब्दशक्ति जो सामान्य अर्थसे | जिम में यह चीज रखी जाती है। भिन्न अर्थ प्रकट करती है, अभिप्रेत अर्थ प्रकट करनेवाली लखाइ-स्त्री० पहचान । शब्दशक्ति लक्ष्य, उद्देश्य हंसी; सारसी ।
लखाउ*-पु० दे० 'लखाव'। लक्षणी(णिन्)-वि० [सं०] चिह्न या लक्षणवाला; लक्षणों- लखाना*-अ०क्रि० दिखाई देना। स० क्रि० दिखाना का पारखी, जोननेवाला ।
सुझाना, अनुमान कराना। लक्षना*-अ० क्रि० दिखाई पड़ना। स० क्रि० देखना । | लखाव*-पु० पहचान, चिह्न निशानी, पहचानकी चीज । स्त्री० दे० 'लक्षणा'।
लखिमी*-स्त्री० लक्ष्मी। लक्षिा -स्त्री० दे० 'लक्ष्मी' । पु० दे० 'लक्ष्य' ।
लखिया*-पु० लखनेवाला । लक्षित-वि० [सं०] देखा हुआ; अनुमानतः समझा, जाना| लखी-पु० लाखके रंगका घोड़ा, लाखी । हुआ; लक्षण, चिह्नवाला। -लक्षणा-स्त्री० लक्षणाका लखुआ, लखुवा -पु० गेहूँ का एक रोग, लाखा, लाही । एक भेद ।
लखेदना*-स० क्रि० खदेड़ना । लक्षिता-स्त्री० [सं०] वह नायिका जिसका परपुरुष-प्रेम | लखेरा-पु० लाखकी चूड़ियाँ बनानेवाला। प्रकट हो गया हो।
लखौट*-स्त्री० लाखकी चूड़ियाँ । लक्षितार्थ-पु० [सं०] लक्षणाशक्ति द्वारा प्राप्त अर्थ । लखोटा-पु० लिखावट; लेख-पत्र; * सिंदूरकी डिबिया; लक्षी (क्षिन्)-वि० [सं०] अच्छे चिह्नोंवाला।
एक सुगंधित लेप; लाखकी चूड़ी। लक्ष्म(न)-पु० [सं०] चिह्न दाग, विशेषता ।
लखोरी-स्त्री० भँवरीका घर पुराने ढंगकी छोटी और लक्ष्मण-पु० [सं०] सुमित्रासे उत्पन्न दशरथके पुत्र; चिह्न । पतली ईट; किसी देवताको उसके प्रिय तरुका पत्ता, फूल लक्ष्मणा-स्त्री० [सं०] एक पुत्रदा जड़ी, श्वेत कंटकारी। | एक लाखकी संख्यामें चढ़ाना। लक्ष्मी-स्त्री० [सं०] एक देवी जो धनकी अधिष्ठात्री मानी लग-अ० तक, पर्यंत; समीप, पास; लिए, वास्ते संग, जाती है (समुद्रमंथनसे प्राप्त १४ रत्नों में एक यह भी साथ; के समान । स्त्री प्रेम, लगन ।। थी); महालक्ष्मी, कमला,श्री, लोकमाता; सुंदरता, शोभा लगन-स्त्री० मन, प्रवृत्तिका किसी और लगना, झुकना, प्रभुशक्ति चंद्रमाकी ग्यारहवीं कला; अभ्युदयः सौभाग्यः लो, धुन, प्यार, प्रेम । पु० विवाहका मुहूर्त, लग्न सफलता; वीरांगना; गृह-स्वामिनी । -कांत-पु. विष्णु; सहालग, जिन दिनों विवाह आदि होते है वे दिन नरेश। -नाथ-पु० विष्णु । -निधि-पु० जनकका [फा०] मोमबत्ती जलानेकी एक थाली; आटा गूंधने, पुत्र। -पति-पु० विष्णु; राजा। -पुत्र-पु० धनी मिठाई आदि रखनेकी थाली। -पत्री-स्त्री० विवाहआदमी। -पूजा-स्त्री० लक्ष्मीके पूजनका त्योहार जो तिथि-सूचक चिट्ठी (जिसमें विवाहका दिन, मुहूर्त निश्चित दीपावलीके दिन होता है। -फल-पु० श्रीफल, बेल। किया जाता है)। मु०-धरना-विवाहका मुहूर्त ठहराना। -रमण,-वल्लभ-पु० विष्णु।
लगनवट*-स्त्री० प्रेम, लगन । लक्ष्मीवान (वत्)-वि० [सं०] धनवान् , संपत्तिमान् । लगना-* पु० एक मृग । अ० क्रि० जड़ना, किसी चीजमें लक्ष्मीश-पु० [सं०] विष्णु; आमका पेड़, संपन्न व्यक्ति । । दूसरी चीजका जोड़ा जाना; सटना; जड़ा जाना, सिया लक्ष्य-पु० [सं०] निशाना लगानेकी वस्तु (विंदु, निश्चित जाना; रगड़ खाना;"से मारा-पीटा जाना; भिड़ना; स्थान, पशु या अन्य कोई जीव जिसपर निशाना लगाया रगड़से छिल जाना, कट जाना; गड़ना, धसना, चुभना; जाय); निशाना; अभीष्ट वस्तु, उद्देश्य अनुमानका विषय, बंद होना; तल पर पहुँचना; पकड़ना, संयोग होना; चाट, अनुमेय; लक्षणाशत्ति से प्राप्त अर्थव्याज, बहाना ।-भेद- चस्का पड़ना; हुज्जत करना; प्रभाव, असर करना; पु० स्थिर या गतिशील लक्ष्यका (जैसे-दौड़ते हुए मृग, हानिकर प्रभाव होना;"का असर करना; अनुभव होना, उड़ते हुए पक्षीका) भेदन करना ।-वेध-पु० दे० 'लक्ष्य. जान पड़ना'का पीछा करना;"का आतंक होना;"का भेद'। -वेधी(धिन)-पु० उड़ते या दौड़ते जीवोंका बंसी में फँसना; पीछा करना, साथ धरना; पद, संबंध, लक्ष्यभेद करनेवाला। -सिद्धि-स्त्री० उद्देश्यकी प्राप्ति । रिश्ता होना; काम आना, खर्च होना; सो जाना; प्रेम -हा(हन्)-पु० बाण ।
होना; दिलचस्पी होना; जलन, चुनचुनाइट करना; लक्ष्यार्थ-पु०[सं०] शब्दको लक्षणा-शक्ति द्वारा प्राप्त अर्थ । आरंभ होकर जारी रहना; कमजोर, कृश होना; नशीली लखघर, लखाघर-पु० दे० 'लाक्षागृह' ।
चीजोंका दिलोदिमागपर तेज असर होना; फल आदिका लखन*-पु० रामानुज लक्ष्मण । स्त्री० देखनेका भाव ।। सड़ना; फलीभूत होना; छूना, समीप जाना; छेड़छाड़ लखना-स० क्रि० देखना; समझना; ताड़ जाना। करना; बदले में जाना; छोर, ठिकानेपर पहुँचना; पौधोंका लखपती-पु० लाखों रुपयोंका मालिक बहुत धनी आदमी। उगना, जमना; फलना; काममें लाना; दुहा जाना, दूध लखपेड़ा-वि० लाख, अधिक पेड़ोंवाला (साग)।
देते रहना; बाजी, दाँव रखना; छपना, निशान होना; लखराउँ, लखराव-पु० लाख पेड़ोंवाला बाग, बहुत निश्चित कार्य, स्थानपर पहुँचना होना; लेप किया जाना बड़ा बाग।
सन जाना, लिपट जाना; बिछना; जारी होना; दरकार, लखलुट*-वि० लाखों लुटा देनेवाला, अपव्यय करनेवाला।। आवश्यक होना; सजना व्यवस्था होना; सफेद होना;
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पानी जल जानेके बाद पकनेवाले पदार्थका तहमें सटकर जल जाना; मिलना; में लोगोंका उपस्थित होना; देयका निश्चित होना; आरोप किया जाना; जलना; रोशनी होना; ठीक बैठना (कुंजी ) ; हिसाब होना; का ठहराव करना; ताक में रहना; जानवरोंका जोड़ा लगना; प्रवृत्त होना । लगती बात-चुभने, अखरनेवाली बात, चुटीली बात । लगे हाथ, हाथों-साथ ही, इसी सिलसिले में । लगनि* - स्त्री० दे० 'लगन' ।
लगभग - अ० करीब-करीब ।
लगर* - पु० एक शिकारी चिड़िया, बाज |
लगलग * - वि० कमजोर, दुबला-पतला, लकलक | लगव* - वि० बेकार, झूठ ।
लगवाना - स० क्रि० लगानेका काम दूसरे से कराना । लगवार* - पु० यार, उपपति ।
लगातार - अ० निरंतर, बराबर, बिना रुके हुए, सिलसिले से । लगान - पु० राजा, सरकार, जमींदारको मिलनेवाला भूमिकर, पोत, राजस्व, वह स्थान जहाँ वोझिया बोझ रखकर सुस्ताये; नावोंके ठहरनेका स्थान; लगने, लगानेकी क्रिया । लगाना - स० क्रि० जोड़ना, दो चीजोंको जोड़ना; एकमें करना, संलग्न करना; सजाना, सिलसिले से रखना; रोपना; सटाना; कोई चीज पोतना, मलना; कायम करना, व्यवस्था करना; अनुभव करना; किसीमें नयी आदत डालना; सड़ाना; भीड़, मजमा कर लेना; अपराधी बनाना; दातव्य ठहराना; गाड़ना, ठोकना; नियुक्त करना; दूध दुहना; अपने साथ पीछे किसीको ले चलना; हिसाब करना; संबद्ध करना; चुगली करना; बंद करना; बाजी, दाँवपर रखना; अपने आपको किसी विषयमें बढ़ चढ़कर समझना; धारण करना, ओढ़ना; छुलाना, संपर्क कराना; ध्यान देना; पास पहुँचाना; नियत स्थानपर पहुँचाना; धार तेज करना, सान धरना; दाम कूतना, तय करना, ठहराना; बदले में देना, करना; चिह्नित करना; फैलाना, बिछाना; करना; खर्च करना; विचार करना । - (ने) वाला - वि० चुगलखोर, इधर की उधर करनेवाला |
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या उलझनेकी क्रिया । लगाव-पु० संबंध, ताल्लुक । लगावट - स्त्री० संबंध, प्रेम, प्यार; रब्त जब्त । लगावन - स्त्री० रोटी के साथ खायी जानेवाली चीज, सालन; * लगाव, संबंध |
लगि* - अ० दे० 'लग' । स्त्री० लगनः दे० 'लग्गी' | लगी- स्त्री० मेल, प्रेम; ख्वाहिश; भूख; आग; *दे० 'लग्गी'। लगुड, लगुर, लगुल- पु० [सं०] लाठी; दंड । लगूर, लगूल* - स्त्री० दुम ।
लगाँहाँ - वि० लगनेवाला, रिझवार ।
लग्गा - पु० अंकसीदार लंबा-पतला बाँस; नाव चलानेका बाँस; काम शुरू करना, काममें हाथ डालना । लग्गी-स्त्री० छोटा लग्गा ।
लग्घड़-पु० बाज; एक तरहका चीता, लकड़बग्घा । लग्घी - स्त्री० दे० 'लग्गी' |
लग्न - पु० [सं०] राशिविशेषके उदयकालका दिनांश (ज्यो० ); किसी कामको करनेका शुभ मुहूर्त ( ज्यो०); विवाहका समय; व्याह । वि० लगा हुआ, जुड़ा हुआ । - कुंडली - स्त्री० जन्मपत्री, जन्मकुंडली । - पत्र - पु०, - पत्रिका - स्त्री० वह पत्र जिसमें विवाहकर्म और उसकी तिथि आदिका उल्लेख हो । लग्नक - पु० [सं०] प्रतिभू, जामिनः रागविशेष । लग्नेश- पु० [सं०] लग्नका स्वामी ग्रह (ज्यो० ) । लघिमा ( मन ) - स्त्री० [सं०] एक सिद्धि जिसके प्रभाव से सिद्ध पुरुष यथेष्ट छोटा, हलका हो सकता है; लघुत्व । लघु - वि० [सं०] फुर्तीला हलका; छोटा; निर्बल; तुच्छ, क्षुद्र; कम, अल्प; निस्सार; अस्थिरचित्त; स्वस्थ; हस्व, एक मात्रावाला | पु० एक मात्रा के स्वर - अ, इ, उ, ऋ ( व्या० ); एक मात्रा (छंद) । - काय - पु० बकरा । वि० छोटे शरीरवाला । - गति - वि० तेज चलनेवाला । - चेता (तस् ) - वि० नीच, नीचाशय। -पाक-वि० सुपाच्य; जल्द पकनेवाला । - लिपि-स्त्री० ( शार्ट हैंड ) दे० 'शीघ्रलिपि' । - वाद न्यायालय - पु० (स्माल कॉज़ कोर्ट) छोटे वादों ( मामलों, मुकदमों ) पर विचार कानेवाली लगाम - स्त्री० [फा०] लोहेका दाँतेदार छड़ जो घोड़े के अदालत । - शंका - स्त्री० पेशाब करना । - हस्त - वि० मुँह में लगा रहता है; इस छड़के सिरोंपर बँधी रस्सी, तेजीसे बाण चलानेवाला । पु० अच्छा धनुर्धर । रास, बाग। मु० - कड़ी करना - घोड़ेकी चाल धीमी लघुतम - वि० [सं०] सबसे छोटा । - समापवर्त्य - पु० करना; कार्यादिका नियंत्रण करना । - ढीली करना- वह सबसे छोटी संख्या जो दो या अधिक संख्याओंसे घोड़ेको मनचाही चाल चलने देना; कार्यादिका नियंत्रण पूरी-पूरी बँट जाय । न रखना । (किसी चीज़ की ) - हाथमें लेना -संचालन- लघूकरण- पु० (कम्यूटिंग) कड़ी सजा घटाकर इलकी कर सूत्र हाथ में लेना । देना, दंडादेशको कुछ मुलायम कर देना । लगाय * - स्त्री० प्रेम, लगन- 'तिनसों क्यों कीजिये लध्वी स्त्री० [सं०] बेर नामक फल; असबरग; छोटा रथ; लगाय' - सू० । कोमल अंगोंवाली पतली स्त्री । लगायत - अ० [अ०] अंततक ( वाक्य में 'से', 'तक' का अर्थ | लच - स्त्री० लचकन, लचन; किसी वस्तुके दबने, झुकनेका देता है) । गुण ।
लचक, लचकन- स्त्री० लचकनेका भाव या क्रिया । लचकना - अ० क्रि० लंबी चीजका दवाव आदि से झुकना; स्त्रियोंकी कमरका नखरे - नजाकत से झुकना; चलते समय स्त्रियोंका प्रायः झुक-झुककर चलना ।
लगार* - स्त्री० सिलसिला, क्रम; लगन, प्रेम; घनिष्ठ संबंधी; भेद लेनेवाला; लगाव, संबंध; बराबर कोई काम करते जाना, बँधेज; वह स्थान जहाँ जुआरियोंको निश्चित ठिकानेका पता मिले । लगालगी- स्त्री०लाग, प्यार; मेल-जोल; लगने, लगाने | लचकनि* - स्त्री० लचक; लचीलापन ।
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लगनि - लचकनि
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लचकाना-लटा
लचकाना-स० क्रि० झुकाना, लचाना।
लजीला-वि० शर्मीला, लज्जाशील । लचकीला-वि० दबने या लचनेवाला, लचकदार । लजुरी -स्त्री० रस्सी, डोर, लेजुर (कुएँ से पानी भरनेकी)। लचकहाँ*-वि० लचकीला, लचकनेवाला, झुका हुआ। लजोर*-वि० लज्जाशील । लचन, लचनि-स्त्री० दे० 'लचक' ।
लजोहा*-वि० लज्जाशील, शर्मीला । लचना-अ० क्रि० दे० 'लचकना'; लपना ।
लजौना*-वि० शमीला; लज्जित करनेवाला । लचलचा-वि० लचकदार ।
लजौहाँ*-वि० लज्जाशील । लचाना-स० कि० लचकाना ।
लज़्ज़त-स्त्री० [अ०] स्वाद, मजा, सुख। -दार-वि० लचार*-वि० दे० 'लाचार' ।
स्वादिष्ठ, जायकेदार। लचारी*-स्त्री० दे० 'लाचारी';+ ग्रामगीतोंका एक भेद; लजा-स्त्री० [सं०] स्वभाव या अपने किसी अनुचित आच* बड़ोंको दी जानेवाली भेंट, उपायन, नजर ।
रणके कारण हुई मनकी संकोचपूर्ण अवस्था, नीडा; मान, लचीला-वि० लचनेवाला, जो आसानीसे मुड़ सके। प्रतिष्ठा । -कर,-कारी (रिन्),-प्रद, वहलच्छ-पु० बहाना, ब्याज; निशानेके लिए निश्चित स्थान, | वि० लज्जाजनक, शर्मिदा करनेवाला। -शील-वि०
वस्तु; सौ हजारकी संख्या, लाख । स्त्री० दे० 'लक्ष्मी'। । शमीला विनम्र । -शून्य,-हीन-वि० जिसमें लज्जा लच्छण, लच्छन*-पु० लक्षण, चिह्न लक्ष्मण ।
न हो, निर्लज्ज । लच्छना*-स्त्री० दे० 'लक्षणा'। स० कि० अच्छी तरह लजालु-पु० [सं०] लजालू नामका पौधा, वि० लज्जाशील । देखना।
लज्जावंत-वि० लजीला । पु० लजालू, लाजवंती। लच्छमी-स्त्री० दे० 'लक्ष्मी' ।
लज्जावान(वत्)-वि० [सं०] लज्जाशील । लच्छा-पु० तरतीबदार तार, डोरेका गुच्छा, झुप्पा । लजित-वि० [सं०] लजाया हुआ, लज्जायुक्त, शर्मिदा । (रेशम, सूत आदिका लच्छा); लंबे, पतले, बारीक कटे लट-स्त्री० नीचे लटकनेवाले सिरके लंबे बालोंका एक गुच्छा; हुए टुकड़े; लच्छेके ढंगकी बनायी हुई कोई चीज; मैदेसे उलझे हुए बालोंका गुच्छा; एक बेंत । * लपट।-जीराबनी एक मिठाई जो सूतसी लंबी और रेशेदार होती है। पु० चिचड़ा। पाँवका एक गहना। -(च्छे)दार-वि० जिसमें लच्छे | लटक-स्त्री० लटकन झुकाव; सुंदर चाल, अंग-भंगी। पड़े हों (कोई खानेकी चीज); मजेदार (बात)।
लटकन-पु० लटकनेकी क्रिया; लटकनेवाली चीज; सुंदर लच्छि*-पु० लाख, एक लाखकी संख्या । स्त्री० लक्ष्मी। चाल; नाकका एक गहना; सिरपेचमें लगा हुआ रत्नगुच्छ । -नाथ,-निवास-पु० विष्णु।
लटकना-अ० क्रि० ऊँची जगहके आश्रयसे नीचेकी ओर लच्छित*-वि० लक्ष्य, चिह्नित किया हुआ; लक्षणयुक्त; अवलंबित होना; ऊँची जगहसे किसी चीजका आधारच्युत आलोचित ।
होकर झूलना; टैंगना; कुछ चल-विचल होना; किसीके लच्छिमी*-स्त्री० दे० 'लक्ष्मी' ।
आसरे में रहना काम पूरा न होना, देर होना । लटलच्छी-पु० घोड़ोंका एक भेद । स्त्री० अंटी, ऊन, कलाबत्त, कती चाल-बल खाती हुई सुंदर चाल । सूत आदिका लपेटा हुआ गुच्छा; * दे० 'लक्ष्मी'-'लच्छी-| लटकवाना-सक्रि० लटकानेका काम दूसरेसे कराना । सी जहँ मालिन बोलै'-सू० ।
लटका-पु० टोटका; रोग आदिका छोटा नुसखा; गति, लछन*-लक्षण; लक्ष्मण ।
ढव; बात-चीतका बनावटी ढंग; एक तरहका चलता गाना। लछमन-पु० दे० 'लक्ष्मण' । -झूला-पु० ररसों, तारों- लटकाना-सक्रि० लटकने में प्रवृत्त करना; टाँगना; किसी
का लटकनेवाला पुल; ऋषिकेशके पासका एक पुल । खड़ी वस्तुको किसी ओर झुकाना; इंतजार कराना। लछमी, लछिमी*-स्त्री० दे० 'लक्ष्मी' ।
लटकीला-वि० बल खानेवाला, लचकनेवाला,झूमता हुआ। लछारा*-वि० लंबा; बड़ा।
लटकौआ, लटकौधा-वि० लटकनेवाला। लज*-स्त्री० लज्जा, शर्म ।
लटना-अ० क्रि० थककर गिरना; रोग, परिश्रम आदिसे लजना*-अ० क्रि० शर्मिंदा, लज्जित होना।
कमजोर पड़ जाना; ढीला, सुस्त पड़ना; व्याकुल होना; लजवाना-स० क्रि० लज्जित, शर्मिदा करना ।
* इच्छा करना, ललचाना; अनुरक्त, आसक्त होनालजाधुरी-वि. शीला, बहुप्त लजानेवाला ।
'केहरि कोटि लट कटि ऊपर'-भाववि० । लजाना-अ० क्रि० अपने अनुचित, भदे आचरणका अनु- | लटपट-वि० दे० 'लटपटा'। भव करके संकुचित होना, शर्माना । स० कि. लज्जित लटपटा-वि० गिरता-पड़ता; ढीला-ढाला, सरका हुआ करना।
टूटा-फूटा (शब्द); अंट-संट, जो व्यवस्थित न हो; शिथिल लजारू*-पु० दे० 'लजालू'।
बेबस थका हुआ; न बहुत गाढ़ा, न पतला, लुटपुटा; लजालू-पु० स्पर्शसे सिकुड़ जानेवाला एक पौधा ।
मला-मसला, गीजा हुआ, सलवटदार (कपड़ा)। लजावनहारा*-पु. लज्जित करनेवाला ।
लटपटाना-अ० क्रि० कमजोरी, नशे आदिके कारण सीधे लजावना*-स० कि० दे० 'लजवाना'।
न चल पाना, लड़खड़ाना, गिरना-पकड़ना; विचलित, लजियाना*-अ० क्रि० दे० 'लजाना'। स० क्रि० लज- अस्थिर होना; चूक जाना, ठीक न चल सकना; मोहित वाना, लजित करना।
हो जाना; अनुरक्त, आसक्त होना। लज़ीज़-वि० [अ०] स्वादिष्ठ, लज्जतदार प्यारा । | लटा*-वि० दुबला; लुच्चा; पतित; तुच्छ; लंपटा पुरा
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- " (चाँदनी) लगे चोर चितमें लटी घटि रद्दीम मन आई' - रहीम |
टापटी - स्त्री० लटपटाना; लड़ाई-झगड़ा; भिड़ंत; मिश्रण । लटापोट* - वि० 'लहालोट', मुग्ध, आसक्त लटिया - स्त्री० लच्छी, आँटी ।
लटी - स्त्री० गप, झूठी बात - 'अरु झूठनके बदन निहारत भारत फिरत लटी' - सू०; बुरी बात; वेश्या; साधुनी । लटुआ*-पु० दे० 'लट्टू' ।
लटुरी* - स्त्री० दे० 'लटूरी' । लहू* - पु० दे० 'लट्टू' ।
लदूरी* - स्त्री० सिरके बालोंका लटकनेवाला गुच्छा, अलक । लट्टू - पु० लकड़ीका चढ़ाव उतारदार एक प्रकारका गोल बट्टा जिसे जमीनपर फेंककर नचाते हैं; बिजलीका बल्ब । मु० - होना- मोहित, मुग्ध होना ।
लट्ठ - पु० मोटी लाठी | बंद-पु० लठैत, लाठी बाँधनेवाला आदमी । - बाज़-वि० लाठी चलानेवाला; लाठी बाँधनेवाला । - मार - वि० कठोर, कड़ी (वात) । मु०लिये फिरना - लाठी लेकर चलना; किसी वस्तु, सिद्धांत, व्यक्तिका बराबर विरोध करना; विरुद्ध आचरण करना (जैसे- अक्ल के पीछे लट्ठ लिये फिरना) । लट्ठा - पु० जमीन नापनेका बाँस जो साढ़े पाँच हाथ लंबा होता है; लकड़ीका लंबा टुकड़ा, शहतीर; लकड़ी का खंभा; छाजन, पाटन में लगा बला; गाढ़ा मोटा कपड़ा, गफ मारकीन ।
लठिया । - स्त्री० लाठी, डंडा ।
लठैत - वि० लाठी चलाने में कुशल, लट्ठबाज ।
लड़ंत - स्त्री० भिड़ंत; मुकाबला । लड़-स्त्री० किसी वस्तुकी क्रमबद्ध - गोल, लंबाई में संलग्न पंक्ति; रस्सी के एक में मिलाकर बटे हुए तारों में से कोई एक; पंक्ति, कतार, क्रम; फूलों, बौरोंका छड़ीके ढंगका गुच्छा । लड़क- पु० 'लड़का' का समासमें व्यवहृत रूप । -खेल, - खेलवाड़ - पु० बच्चोंका खेल; मामूली बात, आसान काम । -पन-पु० बालावस्था; बच्चोंकीसी चंचलता । - बुद्धिस्त्री० बच्चों जैसी बुद्धि, अपरिपक्क मति । लड़कई+ - स्त्री० लड़कपन; नादानी; चिलबिलापन । लड़का - पु० बालक ( जो सोलह वर्ष से कम वयका हो ); पुत्र । - बाला - पु० संतान, औलाद, परिवार, पुत्र-कलत्रादि । - (काँ) का खेल - आसान या महत्त्वहीन काम । लड़काई + - स्त्री० दे० 'लड़कई' । लड़किनी । - स्त्री० दे० 'लड़की' । लड़की-स्त्री०बालिका (जिसकी अवस्था १६ वर्ष से कम हो); पुत्री, बेटी । - वाला - पु० कन्याका पिता; कन्यापक्ष । लड़कोर, लड़कौरी - वि० स्त्री० ( वह स्त्री) जिसकी गोद में बच्चा हो ।
लड़कैयाँ । - स्त्री० लड़कपन | लड़खड़ाना - अ० क्रि० डगमगाना, हिलना-डुलना; झोंका
खाकर गिर पड़ना; विचलित होना; चूक जाना । लड़खड़ी - स्त्री० लड़खड़ाहट, डगमगाहट । लड़ना - अ०क्रि० एक पदार्थ, व्यक्तिका दूसरे पदार्थ व्यक्तिसे टक्कर खाना, भिड़ जाना; कुश्ती करना, एक दूसरेको
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लटापटी - लताड़ना
पटकनेका प्रयत्न करना; एक दूसरेपर प्रहार करना; झगड़ा, वाग्युद्ध करना; बहस करना; प्रतिपक्षकी चालोंको बेकार करनेके लिए कानूनी कोशिश करना; मेल खाना, पूरा पड़ना, अनुकूल पड़ जाना; संयुक्त होना । लड़बावरा (ला) - वि० दुर्ललित, दुलरुआ; उजड्डु और नासमझ लड़कपन (बुरे अर्थ में) से भरा हुआ; गँवार । लड़बौरा - वि० दे० 'लड़बावरा' ।
लड़ाई - स्त्री० प्रहार, चोट करनेवालेपर प्रहार, चोट करना, युद्ध; दो सेनाओं, राज्योंका एक दूसरेपर आक्रमण, संग्राम; कुश्ती, मल्लयुद्ध; झगड़ा, कलह; बहस; टक्कर; कानूनी दाँव-पेच करना; वैर, अनबन । - बंदी - स्त्री० युद्ध या लड़ाईका आपसके समझौते से बंद कर दिया जाना । लड़का - वि० लड़नेवाला, झगड़ालू, पु० सैनिक, योद्धा । लड़ाना - स० क्रि० एक दूसरेमें लड़ाई कराना; झगड़े, कलह में लगाना; फेंकना, डालना; फँसाना, उलझाना; सफलता के लिए सोच-विचार करना; एक चीजको दूसरी चीज से सवेग भिड़ाना; प्यार, दुलार करना; * प्रेमसे देना ।
लड़ायता * - वि० लड़ैता, प्यारा ।
लड़ी - स्त्री० कतार, पंक्ति; छड़ी के रूपका गुच्छा; एक साथ मिलाकर बटे हुए रस्सी, गुच्छेके तार; एक सीध में गुँथी, लगी हुई किसी चीज की माला, पंक्ति । लड़ीला - वि० लाड़ला, प्यारा ।
ल. डुआ, लडुवा - पु० लड्डू | लड़ैता - वि० लड़नेवाला, लड़ाका; लाड़ला । लड्डु, लड्डुक-पु० [सं०] दे० 'लड्डू | लड्डू - पु० पिंडीके आकारको बनी हुई एक मिठाई, मोदक | मु० ( मन ) - खाना - ऐसे लाभकी कल्पना करना जिसका होना कठिन हो । लड्याना * - स० क्रि० अधिक लाड़-प्यार करना । लगा* - पु० बैलगाड़ी - 'जातहिं देहैं लदाय लढ़ा भरि'सुदामा ।
लढ़िया । - स्त्री० छोटी बैलगाड़ी ।
लत - स्त्री० बुरी आदत, बान, टेब; 'लात' का समास में व्यवहृत रूप । - खोर.-खोरा - वि० हमेशा लात खानेवाला, नीच । पु० दास; चौखट, देहली; पायंदाज, दरवाजेपर रखा हुआ पैर पोंछनेका कपड़ा आदि । -हावि० लात मारनेवाला (घोड़ा, बैल आदि ) । लतड़ी - स्त्री० दे० 'लतरी' ।
लतरी - स्त्री० मोट, केसारी; एक तरहकी चप्पल । लता - स्त्री० [सं०] जमीन या किसी आधारपर फैलनेवाला पौधा, बेल; कोमल शाखा, कांड, माधवी, जूही, जाती; इ० । - कुंज-पु० लतासे घिरा, छायामय स्थान | - गृह, - भवन - पु० लताओंसे मंडपकी तरह निर्मित स्थान - पता - पु० [हिं० ] लता और पत्ते, पेड़-पौधे; हरियाली; जड़ी-बूटी । - मंडप पु० लताओंको सघन करके बनाया हुआ घर, स्थान । - वितान - पु० लताओंसे बना हुआ मंडप |
लताड़ - स्त्री० दे० 'लधाड़' ।
लताड़ना - स० क्रि० रौंदना, कुचलना; लातसे मारना;
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लतिका - लबझना
फटकारना; हैरान करना, थकाना ।
लतिका - स्त्री० [सं०] बेल, छोटी लता; मोतियोंकी लड़ी। लतियर, कतियल - वि० लतखोर ।
लतियाना - स० क्रि० रौंदना; लातोंसे खूब मारना । लतीफ़ - वि० [अ०] बारीक; साफ-सुथरा जायकेदार; बढ़िया; सुपाच्य । -मिज़ाज - वि० खुशमिजाज । लतीफ़ा - पु० [अ०] चुटकुला, हास्यरसकी लघु कहानी; हँसी-मजाककी बात; अनूठी बात । -बाज़-वि० चुटकुले छोड़नेवाला, विनोदी |
लत्ता - पु० फटा-पुराना कपड़ा; कपड़ेका टुकड़ा । लत्ती - स्त्री० मारनेके लिए चलाया हुआ पैर (घोड़े, बैल आदिका); लात मारना; कपड़ेकी लंबी धज्जी । लथपथ - वि० तर, भीगा हुआ; सना हुआ, लिपटा हुआ । लथाड़ - स्त्री० पटककर घसीटना; पराजय; हानि; झिड़की । लथाड़ना - स० क्रि० कीचड़ आदि पोतकर गंदा करना; पछाड़ना; झिड़कना; रौंदना ।
लथेड़ना-स० क्रि० कीचड़ आदि लपेटना, सानना; गंदा करना; पटककर भूमिपर घसीटना, रगड़ना; पटकना, पछा ड़ना, थकाना, हैरान परेशान करना; डाँटना-डपटना । लदना - अ० क्रि० भारयुक्त होना; किसी चीजसे किसी
चीजका ढक, भर जाना; किसी भारी चीजका दूसरी चीजपर रखा जामा; सामान ले जानेवाली सवारियोंपर असबाब रखा जाना; कैद होना; मर जाना; गत होना, समाप्त होना । वि० बोझ ढोनेवाला । लदवाना - स० क्रि० लादनेका काम दूसरे से कराना । लदाउ, लदाऊ * - पु० लदाव, भराव | लदान - स्त्री० (माल) लादनेकी क्रिया । लदाना - स० क्रि० 'लदवाना' ।
लदाव- पु० लादनेका काम; बोझ; छत आदिका पटाव; बिना कड़ी, धरनके ठहरनेवाली ईंटकी जोड़ाई | लदावना* - स० क्रि० लदवाना; माल लादकर ले जाना । लदुआ, लदुवा - वि० बोझ ढोनेवाला, लदुआ । लद्दू - वि० बोझ ढोनेवाला ।
लद्धड़ - वि० सुस्त, काहिल । - पन - पु० ढिलाई, सुस्ती । लद्धना * - स० क्रि० पाना, भेंटना ।
लप - पु० लचीली छड़ीको तेजी से हिलानेसे उत्पन्न शब्द; तलवार आदिकी चमककी चाल, तेजी; अंजलि अंजलिभर कोई वस्तु । - झप - वि० चंचल, अस्थिर; अधीर; तेज, फुर्तीला । स्त्री० तेजी; चंचलता; हाथकी सफाई । लपकना - अ० क्रि० झटपट चल पड़ना; तेजीसे जाना;
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फँसना, उलझना; * लथपथ होना । लपटौआँ - वि०लिपटनेवाला; सटा हुआ । पु०दे० 'लपटौना ' | लपटौना + - ५० एक तरहकी घास जिसकी बाल कपड़ेसे चिपक जाती है । वि० दे० 'लपटौआँ' ।
७००
लपना - अ० क्रि० पतली, लचीली छड़ी आदिका घुमानेसे लचना; झुकना; तेजीसे चलना; * ललचना; + हैरान, परेशान होना ।
लपलपाना - अ० क्रि० लचीली छड़ी आदिका घुमानेसे झुकना; हिलना-डुलना; तलवार आदिका चमकना । स० क्रि० तलवार आदिको घुमाकर झुकाना; लंबी, पतली चीजको हिलना-डुलाना; तलवार आदिको निकालकर
चमकाना ।
लपलपाहट - स्त्री० किसी पतली, लचीली वस्तुके दबाव या झोंकसे झुकनेकी क्रिया; चमक ।
लपसी - स्त्री० थोड़ा घी डालकर बनाया हुआ आटेका पतला हलवा ; लपटा लेई । लपाना-स० क्रि० लचनेवाली चीजको तेजी से घुमाकर झुकाना आगे बढ़ाना ।
लपेट - स्त्री०लपेटने की क्रिया; फेरा; किसी चीजकी मोटाईका विस्तार; बल, ऐंठन; कपड़ेकी तह जो गठरी बाँधनेमें लगती है; चक्कर, उलझन; पकड़; कुश्तीका एक दावें । लपेटन-स्त्री० लपेट; घुमाव, फेरा; उलझन, फँसाव; मरोड़, ऐंठन । पु० लपेटनेवाली चीज, बाँधने, घेरनेके काम आनेवाली चीज; वह चीज जो पैर में उलझे । लपेटना - स०क्रि० सूत, कपड़े आदिको किसी चीजके चारों ओर फेरा, घेरा देकर लगाना, बाँधना; किसी चीजको तह लगाकर मोड़ना, समेटना; बेठन आदिमें बाँधना; समस्त शरीरको बटोरकर घेरना; काबू, पकड़ में करना; चाल, गति बंद करना; झंझट, उलझन में डालना, फँसाना; गाढ़ी, गीली, चिपकनेवाली चीजको मलना या पोतना । लपेटवाँ - वि० लपेटी हुई; लपेटने योग्य; लपेटकर बनी हुई; चाँदी सोनेके तार लपेटकर बनायी हुई; जिसका अर्थ गूढ़ हो; घुमाव - फिराववाला, चक्करदार । लप्पड़-पु० दे० 'थप्पड़' ।
लफंगा - वि० [फा० 'लफंग'] आवारा, शोहदा; बदमाश । लफन * - अ० क्रि० दे० 'लपना' । लफलफानि* - स्त्री० लपलपानेकी क्रिया; चमक । लफाना* - स० क्रि० दे० 'लपाना' ।
लफ्ज़ - पु० [अ०] शब्द; बात ।-ब-लग्नज - अ० शब्दशः । लफ्ज़ी - वि० [अ०] शाब्दिक, वाच्य । -मानी - पु० शब्दार्थ, वाच्यार्थ ।
किसी पर झपटना, टूट पड़ना, आक्रमण करना; कोई चीज पानेके लिए हाथ बढ़ाना ।
लपट - स्त्री० आगकी लौ, ज्वाला; तपी हुई हवा, आँच
गरमी; गंध; गंधपूरित वायुका झोंका; * झलक | लपटना-अ० क्रि० आलिंगन करना; सटना, लग्न होना; घिरना; लगा रहना; सूत आदिका लपेटा जाना । लपटा - पु० गीली और गाढ़ी चीज; कढ़ी; लेई । लपटाना+-स० क्रि० लिपटाना, चिपटाना; आलिंगन करना, गले लगाना; घेरना; सूत, डोर जैसी चीज से फेरे डालकर घेरना, लपेटना । अ० क्रि० सटना लगना; लबझना * - अ० क्रि० फँसना, उलझना ।
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लफ्फाज़ - वि० [अ०] लच्छेदार बातें करनेवाला, अतिरंजना करनेवाला, बातूनी ।
लब - पु० [फा०] ओठ, होंठ, किनारा, तट । - (बे) सड़कअ० सड़क के किनारे । - (बो) लहजा - पु० बोलनेका ढंग; उच्चारण और स्वराघातकी विशेषता । मु०- खोलना - बोलना, बात करना। -पर आना - होंठों पर आना, कहा जाना । - (बाँ) पर जान (दम) आना - मरणासन्न होना ।
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लबड़धौधौँ-ललाना लबड़धाँधों-स्त्री० व्यर्थका गुलगपाड़ा, हल्ला-गुल्ला; अंधेर, लरखराना*-अ० क्रि० दे० 'लड़खड़ाना'। अव्यवस्था; अनीति; अन्याय, बेईमानी ।
| लरजना*-अ० क्रि० काँपना, हिलना-डुलना; दहल लबड़ना*-अ० क्रि० झूठ बोलना; गप मारना।
जाना, भयभीत होना; झेंपना । लबनी -स्त्री० लंबी हाँड़ी जिसमें ताड़ी चुलायी जाती है। लरज़ा-पु० [फा०] कँपकँपी; भूडोल, जूड़ी-बुखार । लबरा*-वि० गप्पी, झूठा, झूठा बोलनेवाला।
लरझर*-वि० बहुत अधिक मात्रामें उपलब्ध प्रचुर । लबलबी-स्त्री० बंदूकके घोड़ेकी कमानी।
लरना*-अ० क्रि० दे० 'लड़ना। लबादा-पु० [फा०] एक लंबा, ढीला-ढाला पहनावा, | लरनि*-स्त्री० लड़ाई; होड़-'बदन बिधु जित्यो लरनि'चोंगा; रुईदार चोंगा।
गीता; लड़नेका तरीका। लबाब-वि० [अ०] खालिस, बेमेल। पु० सारांस,खुलासा; लराई*-स्त्री० दे० 'लड़ाई'। गूदा; मग्ज ।
लराका*-वि०, पु० दे० 'लड़ाका। लबारी-वि० झूठा, गप्पी, बकी।
लरिकई-स्त्री० दे० 'लरिकाई' । लबारी-स्त्री० झूठ बोलना। * वि० चुगलखोर; झूठा। ल रेकसलोरी*-स्त्री० लड़कोंका खेल, शरारत-'सूरदास लबालब-अ० मुँह या किनारेतक (भरा हुआ)।
प्रभु करत दिनहिं दिन ऐसी लरिकसलोरी'-सू० । लबेद-पु० रूदि, रीति, लोकाचार, परंपरा ।
लरिका*-पु० दे० 'लड़का'। लबेदी-स्त्री० छोटा, पतला डंडा; जबरदस्ती।
लरिकाई*-स्त्री० बचपन, बाल्यावस्था; नादानी। लब्ध-वि० [सं०] प्राप्त, मिला हुआ; भाग करनेसे प्राप्त | लरिकिनी*-स्त्री० लड़की । (फल-गणित); अजित । -काम-वि० जिसकी वांछा | लरिया-पु० दुपट्टा (ग्राम)। पूरी हो गयी हो। -कीर्ति,-नामा(मन्),-प्रतिष्ठ- लरी*-स्त्री० दे० 'लड़ी। वि० प्रसिद्ध, यशस्वी। -चेता(तस),-संज्ञ-वि० ललक-स्त्री० बलवती इच्छा, गहरी लालसा । होश में आया हुआ । -विद्य-वि० विद्वान् । -सिद्धि- ललकना-अ० क्रि० किसी चीजके लिए अत्यधिक उत्सुक वि० जिसको सिद्धि प्राप्त हो गयी हो।
होना, गहरी लालमा होना; उमंगसे भर जाना। लब्धि-स्त्री० [सं०] लाभ, प्राप्ति; भाज्यको भाजक द्वारा ललकार-स्त्री. लड़नेके लिए प्रतिपक्षीको चुनौती देना, विभक्त करनेसे प्राप्त भागफल (गणित)।
प्रचारणा; किसीको लड़ने के लिए बढ़ावा देनेकी क्रिया । लभनी-स्त्री० दे० 'लबनी।
ललकारना-स० क्रि० विपक्षीको लड़नेकी चुनौती देना; लभ्य-वि० [सं०] पाने योग्य उचित, न्याय्य ।
किसीको किसी आदमीसे लड़नेका बढ़ावा देना, उभाड़ना। लम-वि० 'लंबा'का समासगत रूप । -गोड़ा,-टंगा- | ललकित-वि० गहरी चाहसे प्रेरित । वि० लंबी टाँगवाला । -घिचा-वि० लंबी गरदनवाला। ललचना-अ०कि. किसी अभिलषित वस्तुकी प्राप्तिके लिए -छड़-पु० लंबी बंदूक (पुराने ढंगकी); भाला, साँगा। उत्सुक, अधीर होना; लुब्ध होना; लालसा करना। वि० लंबा और पतला। - आ--वि० लंबोतरा।। ललचाना-सक्रि०किसीको कुछ पानेकी आशा बँधाकर -तडंग-वि० लंबा-तगड़ा (आदमी)।
अधीर करना; कोई लुभावनी चीज दिखाकर पानेके लिए लमकना* --अ० क्रि० उत्सुक, उत्कंठित होना; लपकना। आकुल, व्यग्र, करना । अ० क्रि० दे० 'ललचना' । लमधी-पु० समधीका पिता।
ललचौहाँ*-वि० ललचाया हुआ। लमाना* -स० क्रि० लंबा करना; दूरतक बढ़ाना। अ० ललन-वि० [सं०] क्रीड़ाशील । पु० क्रीड़ा प्यारा बच्चा क्रि० दूर बढ़, निकल जाना।
* नायकके लिए प्रेमव्यंजक शब्द । लय-स्त्री० स्वर; गानेकी धुन, शैली; सम (संगीत)। ललना-स्त्री० [सं०] स्त्री कामिनी जीभ । -प्रिय-पु. पु० [सं०] मिलना, एक वस्तुका दूसरीमें विलीन कदंबका पेड़ एक गंधद्रव्य; बेर । वि. जीभको प्रिय होना; ध्यानका एकाग्र होना; कार्यका कारणमें लीन | लगनेवाला, स्वादिष्ठ, रमणीको प्रिय लगनेवाला । होना प्रकृतिका विपरिणाम, सृष्टिका प्रलयावस्था में अव्यक्त | ललनी*-स्त्री० बाँसकी नली। हो जाना; लोप; क्रीड़ा; गाने और बाजेके स्वरोंका मेल; | ललरी-स्त्री० कानकी लोलकी। स्थैर्य, विश्राम; विश्रामस्थल; मानसिक निष्क्रियता; ललही छठ-स्त्री० हल-षष्ठी (भाद्र कृष्ण)। आलिंगन ।
लला-पु. लड़कोंका सामान्य संबोधन; लड़का (जो प्यारा, लर*-स्त्री० दे० 'लई'।
दुलारा हो); प्रेमी, नायकका संबोधन । लरकई*-स्त्री० लड़कपन, नादानी ।
ललाई-स्त्री० सुखी, लाली। लरकना-अ० क्रि० लटकना झुकना; तिरछा होना। ललाट-पु० [सं०] माथा; भाग्य । -तट-पु० ललाटकी लरका*-पु० दे० 'लड़का'।
ढाल या तल । -पटल,-पट्ट,-फलक-पु० माथेका लरकाना-स० क्रि० लटकाना; झुकाना; तिरछा करना; तल, विस्तार । -रेखा-लेखा-स्त्री० मस्तककी रेखाएँ; हटाना, जरा इधर-उधर स्थित करना ।
भाग्यलेख । मु०-का लिखा-भाग्यका लेख । -में लरकिनी-स्त्री० लड़की।
होना-भाग्य, तकदीर में होना । लरखरना*-अ० कि० दे० 'लड़खड़ाना'।
ललाटाक्ष-पु० [सं०] शिव । लरखरनि*-स्त्री० डगमगाहट; लड़खड़ाहट ।
ललाना*-अ० कि० किसी चीजपर मोहित, लुब्ध होना,
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ललाम-लसित
७०२
किसी चीजके लिए ललचना, पानेके लिए अधीर होना। समुद्र-पु० खारे पानीका समुद्र । ललाम-वि० [सं०] चिह्नवाला; सुंदर, रमणीय; श्रेष्ठ, लवणांतक-पु० [सं०] लवणासुरको मारनेवाले, शत्रुघ्न । उत्तम । पु० भूषण; रत्न तिलक ।
लवणालय-पु० [सं०] समुद्र मधुपुरी (लवणासुरकी बसायी ललामी-स्त्री० सुंदरता; लाली।
पुरी, आधुनिक मथुरा)। ललित-वि० [सं०] सुंदर, रमणीय; सरल; निर्दोष; ईप्सित, लवणिमा(मन)-स्त्री० [सं०] सलोनापन, सौंदर्य । प्रिय; दोलायमान, हिलता-डोलता हुआ । पु० शृंगार लवणोदधि-पु० [सं०] लवणसागर । रसका एक कायिक हाव; एक अलंकार जहाँ वर्ण्य वस्तुके लवन-पु० [सं०] काटना; खेतकी कटाई, लुनाई। संबंधमें जो कुछ कहना हो, उसे न कहकर उसका प्रति- | लवना-स० क्रि० फसलको काटकर बटोरना । * विनमबिंबरूप कथन किया जाय, जैसे-'लिखत सुधाकर लिखिगा कीन; सुंदर । राहू',-राज्य देना था, दे दिया वनवास नृत्यमें हाथोंकी लवनाई*-स्त्री० सुंदरता। एक विशेष मुद्रा; एक राग; एक विषम वर्णवृत्त क्रीड़ा; लवनि-स्त्री० लवन, पकी खेती काटना; खेत काटनेकी सौंदर्य ।-कला-स्त्री० सौदर्यके आश्रयसे व्यक्त होनेवाली | मजदूरी। कला (संगीत, काव्य आदि)। -पद-वि० सुंदर पद, लवनी-* स्त्री० नवनीत, मक्खन; दे० 'लवनि'; [सं०] शब्दवाला । पु० एक मात्रिक छंद, सार, दोवै ।-पुराण- शरीफेका पेड़ या फल; काटनेकी क्रिया; काटनेकी उजरत; पु० ललितविस्तर, बुद्धका चरित्रग्रंथ । -लोचन-वि० सुंदर नेत्रोंवाला । -विस्तर-पु० दे० 'ललितपुराण'। | लवनीय, लव्य-वि० [सं०] काटने योग्य । ललितई*-स्त्री० दे० 'ललिताई'।
लवर-स्त्री० आँच, ज्वाला, लपट । ललिता-स्त्री० [सं०] एक मूर्च्छना; पार्वती; कामिनी; लवली*-स्त्री० हरफारेवड़ीका वृक्ष या उसका फल । राधाकी सखी (पद्म, ब्रह्मवै० पु०); कस्तूरी; एक नदी। लवा-पु. एक पक्षी; + लाजा, लावा, खील । वि०स्त्री० सुंदरी।-पंचमी-स्त्री० आश्विन-शुका पंचमी। लवाई-वि०स्त्री० सद्यः प्रसूता, हालकी ब्यायी हुई (गाय)। ललिताई*-स्त्री० सुंदरता।
स्त्री० लवनी, खेतकी कटाई खेत काटनेकी मजदूरी। ललितोपमा-स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक उपभेद | लवाजिमा-पु० [अ०] जरूरी सामान; यात्रा आदिमें जहाँ उपमेय-उपमानमें सादृश्य दिखलानेके लिए इव, साथ रहनेवाला सामान । लौ, सम आदिवाचक शब्दोंका प्रयोग न कर ईल, | लवारा-पु० बछड़ा । वि० आवारा। निरादर, बराबरी आदिके सूचक पद रखे जायें।
लवासी*-वि० गप्पी, बक्की; लंपट । लली-स्त्री० लड़कियोंके संबोधनका शब्द, प्यार, दुलारसे लशकर-पु० [फा०] सेना, सशस्त्र दल (खासकर सरहदी
पली लड़की नायिकाके लिए प्रेमव्यंजक संबोधन । पठानोंका); छावनी । -गाह-पु०, स्त्री० छावनी, ललौहाँ*-वि० ललाई लिये हुए, आतान ।
शिविर । -नवीस-पु. सेनामें तनखाह बाँटनेवाला लल्ला-पु० लड़कोंके लिए प्यारका संबोधन, प्यार, दुलार- कर्मचारी, फौजका बख्शी। का लड़का; नौजवानोंका स्नेहपूर्ण संबोधन ( वयस्काओं लशुन, लशून-पु० [सं०] लहसुन । द्वारा), 'लाला'।
लश्करी-पु० [फा०] सैनिक; जहाजपर काम करनेवाला । लल्लो-स्त्री० जीभ । -चप्पो,-पत्तो-स्त्री० चाटुकारिता, वि० सेना संधी; जहाजी । स्त्री० जहाजियोंकी भाषा । ठकुर-सुहाती, चिकनी-चुपड़ी बात ।
-बोली-स्त्री० फौजवालोंको बोली जो आमतौरसे खिचड़ी लवंग-पु०[सं०] लौंग, लौंगका पेड़ ।-लता-स्त्री० लौंग- होती है।
का पेड़ाराधिकाकी एक सखी; [हिं०] एक तरहकी मिठाई। लषन-पु० दे० 'लखन' । लव*-स्त्री० दे० 'लो'। -लीन-वि० तन्मय, मन।
लपना-स० क्रि० दे० 'लखना'। लव-पु० [सं०] अल्प मात्रा, थोड़ा अंश; कालका एक मान, लषित-वि० [सं०] इच्छित्त । ३३ निमेषका समय; लवा पक्षी; काटना; विनाश; वह जो लस-पु० चिपकनेका गुण; चिपकानेवाली चीज, गोंद, काटा जाय; ऊन, बाल; काटा हुआ अंश; सुरा गायकी __ लासा; आकर्षण । -दार-वि० लसवाला। पँछके बाल; जायफल; लवंग; रामके एक पुत्रका नाम । | लसकर, लसगरी-पु० दे० 'लशकर'। -लेश-पु० स्वल्पमात्रा; थोड़ा संबंध । -लेस*-पु० लसना-अ० क्रि० चमकना, झलकना स्थित होना, दिखाई दे० 'लवलेश'।
देना, विराजना; नाचना । स० क्रि० चिपकाना, सटाना। लवकना -अ०क्रि० चमकना, कौंधना दिखाई देना। लसनि*-स्त्री० शोभित होना; बिराजना, उपस्थिति । लवका-स्त्री० चमक, कौंध; बिजली ।
लसम-वि० खोटा, निकम्मा ( सोना आदि)। लवण-वि० [सं०] नमकीन, सुंदरकाटनेवाला । पु० लसलसा-वि० चिपचिपा, गोंदकी तरह चिपकनेवाला । (सॉल्ट ) वह यौगिक जो किसी धातु तथा अम्लकी क्रिया लसलसाना-अ० क्रि० चिपचिपाना, चिपकना । द्वारा बने (नमक, नीलाशोरा, कसीस, नौसादर); लसलसाहट-स्त्री० चिपचिपाहट । लोन, नमक; काटनेका औजार, हँसिया, छरी आदि । लसा-स्त्री० [सं०] हल्दी; केसर । -वय-पु० सैंधव, विट और सचल नामक तीन नमकों- लसिका-स्त्री० [सं०] थूक, लाला पेशी। का समुच्चय । -भास्कर-पु० एक पाचक चूर्ण । - लसित-वि० [सं०] सुशोभित; प्रकट; क्रीडाशील ।
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७०३
लसी-लहू लसी-स्त्री० लस, चिपक आकर्षण; संसर्ग, संबंध; लोभ उमंग पैदा होना; साँपके काटनेपर बदनमें लहर उठना । दूध या दही और बर्फके मेलसे बना.शरबत ।
-उठना-मौज आना, जोश होना, उमंग उठना । लसीका-स्त्री० [सं०] लाला; मांस और चमड़ेके बीच रहने -देना या मारना-रह-रहकर कष्ट या पीड़ा होना; वाला रस ईखका रस ।
सीधा न चलकर मुड़ते हुए जाना। -लेना-लहर में लसीला-वि० चिपचिपा, लसदार, आकर्षक, सुंदर । नहाना; दरियाका मौज मारना । -(रे) गिननालसुनिया-पु० एक बहुमूल्य पत्थर ।
बकार रहना। लसोड़ा-पु० एक वृक्ष या उसका फल जो झड़बेरी जैसा | लहरना-* अ०क्रि० दे० 'लहराना; परचना । छोटा और लसदार होता है।
लहरा-पु. लहर; मजा, आनंद; बाजोंकी गत जिसमें लसीदा-पु. दे० 'लसोड़ा' ।
ताल-स्वरोंकी केवल लय होती है। बादलोंका कुछ देर लसौटा-पु. बहेलियोंका चिड़िया फँसानेके लिए लासा | जोरसे बरसना, झड़। रखनेका बाँसका चोंगा, गोंददानी ।
लहराना-अ० कि० हवाके झोंकेसे हिलना-डुलना, थरलस्टमपस्टम-अ०किसी-किसी तरह, ज्यों-त्यों करके। थराना; हवाका चलना; पानीका हवाके झोंकेसे हलकोरा लस्त-वि० थका हुआ, ढीला; अशक्त, कमजोर।
लेना; काले-काले बादलोंका उमड़ना; टेढ़ी-मेढ़ी चाल लस्सी-स्त्री० चिपचिपाहट, लस; मठा (पश्चिम); दूध या चलना; उमंग, उल्लासमें हो जाना; उत्कंठित होना, लपदही और बर्फ के योगसे बनाया हुआ शरबत ।
कना (किसी वस्तुके लिए); दहकना, भड़कना (आगका); लहंगा-पु० स्त्रियोंका कमरसे नीचेका घेरादार एक पह- बिराजना, शोभायमान होना । स० क्रि० हिलाना-डुलाना
नावा जो कमरमें नारेसे बाँधा जाता है, घाँघरा । (वायुके प्रवेगमें); टेढ़ा-मेढ़ा चलाना। लहक-स्त्री० आगकी लपट; चमक; शोभा।
लहरिया-पु० टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओंका समूह, श्रेणी; गोटे, लहकना-अ० क्रि० हवाका चलना, झोंके देना; लहराना, लचके आदिकी लहरदार टँकाई; रंगीन साड़ी, कपड़ा हिलना-डुलना (हवाके जोरसे पेड़ पौधेका); आगका जिसपर टेढ़ी रेखाएँ बनी हों; जरीके कपड़ेके किनारेपर जगना, जल उठना, धधकना लोभ, चाहसे कोई चीज बने हुए बेल-बूटे; एक कपड़ा। * स्त्री० लहर । -दारपाने, देखनेके लिए बढ़ना, लपकना चाहसे अधीर होना। वि० लहरिया बना हुआ, लहरदार; बेल-बूटोंवाला । लहकाना-स० क्रि० झोका खिलाना; आगे बढ़ाना; बढ़ावा | लहरी-स्त्री० [सं०] लहर, तरंग ।। वि० मनमौजी ।
देना; लपकाना ताव दिलाना, उभाड़ना (किसीके विरुद्ध)। लहलहा-वि० डहटहा, हरा-भरा, प्रफुल्ल भानंदमय । लहकारना-स० क्रि० उभाड़ना, ताव दिलाना; प्रोत्सा- लहलहाना-अ० कि० हरा-भरा, सरसब्ज होना; खुशीसे हित करना; कुत्तेको सनकारना (शिकार आदिपर)। भर जाना; सूखे, मुरझाये पौधे, पेड़में विकासके लक्षण लहकौर, लहकीरि*-स्त्री० दूल्हे और दुलहिनका कोहबर में आना, पनपना मोटाना, हृष्ट-पुष्ट होना। एक दूसरेको अपने हाथ से कुछ खिलाना।
लहसुन-पु० एक पौधा जिसकी जड़ पंक्तिबद्ध जवोंसे लहजा-पु० [अ०] बोलने या शब्दोंके उच्चारणका खास बनी होती है (इसकी गंध प्याजकी तरह उग्र होती है); ढंग बोलचाल; लय ।
माणिकका एक दोष, अशोभक । लहज़ा-पु० [अ०] पल, छन निमेष ।
लहसुनिया-पु० धूमिल रंगका एक कीमती पत्थर जो लहनदार-पु० महाजन, ऋणदाता; पावनेदार ।
लाल, पीले, हरे रंगका भी होता है । लहना-* स० क्रि० पाना; लाभ करना। पु० उधार, लहा*-पु० दे० 'लाह'। ऋण दिया हुआ धन; कामके बदले मिलनेवाला धन; लहाछेह-पु० नाचकी एक गति; नाच, नृत्यकी द्रुत गति । भाग्य, तकदीर । मु०-चुकाना,-पटाना-ऋण दे देना, लहालह*-वि० हरा-भरा, प्रफुल्ल । कर्ज अदा करना।
लहालोट-वि० हँसीसे लोटता हुआ; प्रसन्न; उल्लसित; लहबर-पु. लंबी और ढीली पोशाक, चोगा, लबादा मुग्ध; लुब्ध, लट्टू । एक तरहका तोता; छड़ी; झंडा, निशान ।
लहासी-स्त्री० नाव, जहाज बाँधनेकी मोटी रस्सी रस्सी। लहमा-पु० क्षण, पल, मिनट, अत्यल्प काल ।
लहि*-अ० तक, पर्यंत । लहर-स्त्री० वायुकी गति और स्पर्शसे पानी में होनेवाली लहु*-अ० पर्यंत, तक । वि० लघु, छोटा । चढ़ाव-उतारदार हरकत, हिलकोर, हिलोरा; जोश, उमंग लहुरा*-वि० लघु, छोटा, कनिष्ठ । वेगमयी भावना, मनकी मौज; किसी विजातीय द्रव्यके | लह-पु० खून, रक्त ।-लुहान-वि० खूनसे तर । मु०संसर्गसे शरीर में रह रहकर बेहोशी, पीड़ा आदिका अनु- उबलना-सख्त गुस्सा आना। -उभर आना-किसी भव करना; आनंद, हर्ष, उल्लासका वेग; वायुमें होने जगहसे लहू थोड़ा-थोड़ा करके निकलना। -औंटनावाला स्वरकंप, Dजा मोड़ लेती हुई टेढ़ी चाल; वक्र, कुटिल क्रोध या गमसे जोश पैदा होना। -का चूंट पीकर रह रेखा; हवाका झोंका; कसीदेकी धारी। -दार-वि० जाना-गुस्सा सह लेना। -का प्यासा-जानी दुश्मन । लहरोंवाला; वक्रगतिसे जानेवाला; लहरियादार ।-पटोर -पसीना एक करना-पानी एक करना-सख्त मुसी-पु०,-पटोरी-स्त्री० लहरियादार रेशमी कपड़ा । बत उठाना । -पानी एक होना-गुस्सेके मारे खाना-बहर-स्त्री० आनंद और सुख । मु०-आ जाना-धुन | पीना अंग न लगना । -पी जाना-कत्ल करना।-पीबँधना; इच्छाका जोर मारना। -आना-मौज उठना, पीकर रह जाना-गुस्सा चुपचाप बरदाश्त कर लेना।
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लॉक-लाज -बिगड़ना-खूनका खराब होना। -बोलना-हत्याका लाक्षणिक-वि० [सं०] लक्षणोंको प्रकट करनेवाला; लक्षणस्वयं प्रकट होना। -में नहाना-क्षत-विक्षत होना। संबंधी; लक्षणोंको जाननेवाला; लक्ष्यार्थवाला; गौण; -लगा(मल)कर शहीद होना-थोड़ा काम करके बड़ा | पारिभाषिक । पु० लक्षण पहचानने, जाननेवाला । काम करनेवालों में अपनी गणना करना। -सफेद हो | लाक्षा-स्त्री० [सं०] एक तरहका लाल रंग लाख, लाह जाना-सहानुभूति या दयाका न रहना।
एक कीड़ा जिससे लाल रंग तैयार किया जाता है। लाक*-स्त्री० लंक, कमर, कटि; तुरंतकी कटी हुई फसल । -गृह-पु० लाखका घर जिसे दुर्योधनने पांडवोंको लाँग-स्त्री० धोतीका वह सिरा जिसे जंघोंके बीचसे पीछे जीवित जला देनेके लिए वारणावतमें बनवाया था।
ले जाकर कमरमें बंधे हुए फेटेमें खोंसते हैं, काछ। -रस-पु० महावर, अलक्तक । लाँघना-स० क्रि० डाँक जाना, नाँधना, पार करना । लाख-वि० लक्ष, सौ हजार बहुत अधिक । पु. सी हजारलाँचो-स्त्री० घूस, रिश्वत ।
की संख्या । अ० बहुत, हदसे ज्यादा। स्त्री० पीपल लांछन-पु० [सं०] धब्बा; निशान, चिह्न दोष, कलंक । आदि वृक्षोंपर लगनेवाले एक तरहके कीड़ोंसे बना हुआ लांछना-स्त्री० [सं०] दोष, कलंक; निंदा ।
पदार्थ-विशेष; लाल रंगके छोटे-छोटे की जिनसे लाह छांछनित*-वि० दे० 'लांछित'।
निकलती है। -पती-पु. लखपती । मु०-टकेकी लांछित-वि० [सं०] दोषयुक्त, कलंकित; अलंकृत। बात-बहुत उपयोगी बात । -से लीख होना-सब कुछ लाबा*-वि० दे० लंबा'।
खो बैठना। ला-स्त्री० [सं०] लेने या देनेकी क्रिया। अ० [अ०] न, | लाखना*-सक्रि० लाखसे फूटे बर्तनका छेद बं नहीं, बिना। -इलाज-वि०जिसका इलाज, उपाय न | जान लेना, समझ लेना। हो, असाध्य । -इल्म-वि० विद्यारहित; अनभिज्ञ लाखा-पु० लाखसे बना हुआ एक रंग जिससे स्त्रियाँ बेखबर । -खिराज-वि० (जमीन) जिसपर लगान या होंठ रँगती है; गेहूँ के पौधोंका एक रोग। -गृह-पु० मालगुजारी न देनी पड़े । स्त्री० माफी जमीन । -चार- | दे० 'लाक्षागृह' । वि० विवश, मजबूर; अशक्त, दीन, असहाय । अ० लाखी-वि० मटमैला, धुंधला लाल, लाखके रंगका । पु० लाचार होकर, मजबूरन । -चारी-स्त्री० लाचार होना, लाखकासा, मटमैला लाल रंग; इस रंगका घोड़ा। विवशता, अशक्तता। -जवाब-वि० निरुत्तर; वादमें लाग-* अ० तक, पर्यंत । स्त्री० संबंध, लगाव; प्रेम; हारा हुआ बेजोड़ । -तादाद-वि० अगणित, बेहिसाब । सहारा लगन, धुन, लगावट; उपाय, तरकीब चढ़ा-पता-वि० जिसका पता न हो।-पता चिट्ठीघर-पु० ऊपरी; कौशलपूर्ण स्वाँग (इसमें छुरी,कटारीको पेट,गर्दनमें (डेड लेटर ऑफिस) डाक विभागका वह कार्यालय जहाँ धंसी हुई, आरपार दिखाते हैं); वैर, दुश्मनीजादू, टोना; ऐसे पत्रादि, जिनपर पता लिखना छूट गया हो या जिन- टीका लगानेका चेप, लोशन; भस्म, धातुको फूंककर पर गलत या अपर्याप्त पता लिखा गया हो, खोलकर पढ़े तैयार किया हुआ रस; नेग, नियत धन (जो भाट, नाई, जाते है और उन्हें यथासंभव भेजनेवालेके पास लौटा देनेका ब्राह्मणको दिया जाता है); लगान, भूमिकर; नृत्यका एक प्रयत्न किया जाता है।-परवा,-परवाह-वि० बेपरवा, | भेद; * रसद । -डाँट-स्त्री० होड़ दुश्मनी । बेफिक्र । -परवाई-स्त्री० बेपरवाई। -मज़हब-वि० लागत-स्त्री० किसी चीजकी तैयारीमें लगनेवाला खर्च । जिसका कोई धर्म, मजहब न हो, बेदीन; नास्तिक । | लागना*-अ० क्रि० दे० 'लगना'। -मिसाल-वि० अद्वितीय, बेजोड़। -वबाली-वि०, लागि*-अ० तक, पर्यंत; से, जरिये; हेतु; निमित्त । स्त्री०, पु० दे० क्रममें । -वल्द-वि० निस्संतान, | लागुडिक-वि० [सं०] जो डडेसे लैस हो । पु० प्रहरी । बेऔलाद । -वारिस-वि० (व्यक्ति) जिसका कोई लागू-वि० लगनेवाला; संगत, चरितार्थ होनेवाला। वारिस, उत्तराधिकारी न हो, निगोड़ा, निपूता; लागे*-अ०लिए, वास्ते । (माल) जिसका कोई अधिकारी या दावेदार न हो। लाघव-पु० [सं०] छोटा होना, लघुता; फुर्ती, त्वरा, तेजी; -वारिसी-वि० लावारिस (माल)। -सानी-वि०
अल्पता, कम होना; आरोग्य; नपुंसकता; अविवेक बेजोड़, जिसका सानी न हो। -हल-वि० जो इल न महत्त्वहीनता । * अ० फुर्ती, जल्दीसे; सहज ही। हो सके, कठिन, असाध्य ।
लाधवी*-स्त्री० फुती, जल्दी । लाइ*-स्त्री० अग्नि प्रेमकी लगन ।
लाची-स्त्री० दे० 'इलायची' । -दाना-पु० इलायचीके लाइन-स्त्री [अं०] सतर, पंक्ति; कतार; रेखा; रेलकी
योगसे चीनीकी बनी हुई मिर्च के आकारकी एक मिठाई। सड़क सिपाहियोंका आवास, बारिक ।
लाछन*-पु० लांछन, कलंक । लाई-स्त्री० धानका लावा; भुजिया चावलका लावा | लाछी*-स्त्री० लक्ष्मी।
चुगली, निंदा। -लुतरी-स्त्रीचुगली; चुगलखोरी। लाज-स्त्री० लज्जा, शर्म; प्रतिष्ठा। -वंत-वि० लज्जालाकड़ी, लाकरी*-स्त्री० दे० 'लकड़ी' ।
वान् , हयादार । -वंती,-वती-स्त्री० लजालू । मु० लाकुटिक-वि० [सं०] डंडा धारण करनेवाला। पु० -रखना-आबरू बचाना । -से गठरी होना-लज्जावश पहरेदार सेवक ।
सिकुड़ जाना। -से गड़ जाना या गड़ना-बहुत लॉकेट-पु० [अं०] जंजीर आदिमें शोभाके लिए लगाया ज्यादा शर्मिंदा होना । जानेवाला लटकन ।
| लाज-पु० [सं०] धानका लावा, खील; खस; पानीमें
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लाजक-लार भीगा चावल । -भक्त-पु० रोगियोंको पथ्य दिया जाने- सनकादि न पावत सो सुख गोपिन लाधो-सू०। वाला खोईका भात ।
लानत-स्त्री० [अ०] फटकार, धिक्कार, भर्त्सना। -मलालाजक-पु० [सं०] धानका लावा।
मत-स्त्री० भर्त्सना, धिक्कार, झिड़की। मु०-का तीज़लाजना*-अ०कि. लजाना, लज्जित होना। स० क्रि० (गलेमें) पड़ना-बदनाम, बेइज्जत होना । का मारालजित करना।
धृणित, कुत्सितअभागा ।-की बौछार-लगातार, अत्यलाजवर्द-पु० [फा०] नीले रंगका एक पत्थर जिसकी | धिक भर्त्सना। -बरसना-चेहरेपर उदासी, मनहूसी गणना रत्नोंमें है, राजवर्तक ।
होना लानतकी बौछार होना। -भेजना-धिक्कारना; लाजवर्दी-वि० [फा०] लाजवर्दके रंगका, नीला । कोसना; घृणापूर्वक त्याग देना। लाजा-स्त्री० [सं०] चावल; धानका लावा, खील । लाना-स० क्रि० ले आना, कहींसे कोई वस्तु लेकर आना; लाज़िम-वि० [फा०] लगा हुआ, जो अलग न किया जा उपस्थित करना, सामने रखना पैदा करना (पेड़ोंका फल सके फर्ज, अवश्य कर्तव्य ।
आदि); * आग लगाना; लगाना । लाज़िमी-वि० [अ०] दे० 'लाजिम' ।
लाने*-अ.लिए, वास्ते । लाट-स्त्री० मोटा ऊँचा खंभा (यह पत्थर, लकड़ी या किसी लापसी*-स्त्री० दे० 'लपसी'। धातुका होता है, जैसे अशोककी लाट, तालाबकी लाट)। | लाबर-वि० झूठ बोलनेवाला, लबार । पु० [अं० 'लार्ड'] प्रांत या देशका सबसे बड़ा शासक, लाभ-पु० [सं०] प्राप्ति, लब्धि; फायदा, नफा; भलाई, गवर्नर; [सं०] एक शब्दालंकार जिसमें शब्द-अर्थ एक उपकार; अनुभूति, ज्ञान, विजय । “कर,-कारक,रहते हैं, अन्वय करनेपर वाक्यार्थ बदल जाता है। पानी- कारी(रिन् ),-दायक-वि० जिससे लाभ हो । -कर के बहावको रोकनेके लिए बनाया हुआ बाँध; गुजरातके जीत-स्त्री० [हिं०](एकॉनॉमिक होल्डिंग) काश्तकार द्वारा एक भागका प्राचीन नाम; लाटका निवासी।
जोती-बोयी जानेवाली वह भूमि जिसकी उपज आर्थिक लॉटरी-स्त्री० [अं०] रुपये या सामानके रूपमें पुरस्कार | राष्टिसे लाभकर या भरण-पोषणके लिए पर्याप्त हो । देनेकी एक व्यवस्था जिसमें चिट्टी डालकर या टिकटके -लिप्सा-स्त्री० लाभकी प्रबल इच्छा। -विभाजनसहारे विजेताका नाम निश्चित किया जाता है। योजना-स्त्री० (प्रॉफिट शेयरिंग स्कीम) किसी व्यापालाटानुप्रास-पु० [सं०] एक शब्दालंकार (दे० 'लाट')। । रिक संस्था आदिमें होनेवाले लाभका नियोजकों तथा लाटिका-स्त्री० [सं०] छोटे-छोटे पद और समासवाली नियुक्तोंमें-मालिकों और श्रमिकोंमें-उचित ढंगसे वितरण रचनारीति (तीन और रीतियाँ हैं-वैदी, गौडी, करनेकी योजना। -स्थान-पु० जन्मकुंडली में लग्नसे पांचाली)।
ग्यारहवाँ स्थान (जो धन, विद्या आदिका द्योतक होता है)। लाटी-* स्त्री० थूक और ओठ सूखनेकी दशा-'सूखहिं लाभांश-पु० [सं०] (डिविडेंड) कारखाने आदिमें लगी अधर लागि मुह लाटी'-रामा० ।
हुई पूँजीपर मिलनेवाले ब्याज या लाभकी रकमका वह लाठालाठी-स्त्री० लाठीसे परस्पर प्रहार करना।
हिस्सा जो वितरित किये जाने पर हिस्सेदारको मिले । लाठी-स्त्री० डंडा, बाँसकी लंबी लकड़ी (जो गाँठोंको छील- लाभालाभ-पु० [सं०] हानि-लाभ । कर बनायी जाती है और टेकने, मारपीट आदिके काम लाम-पु० फौजका दस्ता (जिसमें पैदल, सवार और आती है)। मु०-चलना-लाठीसे मार-पीट होना। तोपखाना होता है ), ब्रिगेड; समूह (लोगोंका, सेनाका)। -चलाना-लाठीसे मार-पीट करना। -बाँधना-लाठी मु०-पर जाना-लड़ाईके मोर्चे पर जाना । -बाँधनासाथ रखना, लिये रहना।
सामान और बहुतसे लोगोंको एकत्र करना। लाड़-पु० लालन, प्यार, दुलार। -चाव-पु० प्यार- लाम-+ अ० दूर । पु० [अ० ] अरबी वर्णमालाका एक
दुलार । -लड़ेता-वि०बड़े प्यारके साथ पला हुआ। वर्ण। -काफ-पु० बेहूदा बातें; खरी-खोटी, अपशब्द । लाडला-वि० प्यारा, दुलारा।
लामन-* पु० लटकना हिलना; + लहँगा। लाडू*-पु० लड्डू।
लामा-पु० [ति०] तिब्बत और मंगोलियाके बौद्धोंका लात-स्त्री०पर,पद; पाद-प्रहार । मु०-खाना-मार खाना
धर्माध्यक्ष और शासक । वि० लंबा । पैरकी ठोकरसे मारा जाना ।-चलाना-लातसे मारना। लामी-अ० दूर । -मारना-किसी वस्तुको तुच्छ समझकर छोड़ देना; लाय*-स्त्री० लपट, ज्वाला; अग्नि । उपेक्षा, घृणा करना।
लायक*-पु० लाजक, धानका लावा । लाद-स्त्री० चीजें दूसरी जगह ले जानेके लिए ऊँट, बैल, | लायक-वि० [अ०] योग्य; गुणवान् । अधिकारी उपयुक्त, गाड़ी आदिपर बोझना, लदाई; आँत, अंतही; पेट। मुनासिब। लादना-स० क्रि० अनेक चीजोंको एकपर एक रखना; लायकी-स्त्री० [अ०] योग्यता। ढोनेके लिए बोझा भरना; किसीपर जिम्मेदारी, भार लायची-स्त्री० इलायची। डालना।
लार-स्त्री० कोई चीज खाते समय मुँहसे निकलनेवाला लादिया-पु० बोझ लादकर ले जानेका काम करनेवाला । लसदार तरल द्रव्य, लाला; कतार लुआब । मु०-आना, लादी-स्त्री० धोबियोंकी गठरी; लदा हुआ बोझा।
-टपकना-किसी चीजको पानेका लोभ होना। लाधना*-स० क्रि० पाना, प्राप्त करना-'जो सुख शिव | लार*-अ० साथ, पीछे । मु०-लगाना-फँसाना ।
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लारी-लासा लारी-स्त्री० [अं०] माल और मुसाफिरोंको ढोनेके काम | धनका शब्द: * दे०-'लालो', अ.फत-'लाला प्राननको आनेवाली बड़ी मोटर गाड़ी।
परत लहत न कोऊ त्राण'-कलस० [फा०] एक प्रसिद्ध लारू*-पु० लड्डू।
फूल । वि० लाल रंगका । स्त्री० [सं०] मुखस्राव, राल, लाल-वि० माणिक, रक्त आदिके रंगका; अत्यधिक ऋद्ध लसदार थूक ।-प्रमेह,-मेह-पु०प्रमेह रोगका एक भेद बीचके खानेमें पहुँची हुई (चौसरकी गोटी)-'परो दाव | जिसमें रालकी तरह पेशाब निकलता है। -स्राव-पु० तेरो खरो करि लै सारी लाल'-दीन; जिसकी सब राल, थूक बना। गोटियाँ बीचके खाने में पहुँच गयी हों (चौसरका खेलाड़ी); लालायित, लालालु-वि० [सं०] लार टपकाता हुआ; सबसे पहले सफल होनेवाला (खेलाड़ी); साम्यवादका | लुब्ध, ललचाया हुआ प्यारा; दुलारा। अनुसरण करनेवाला (लाल चीन)।-अंगारा,-भभूका-लालित-वि० [सं०] प्यार, दुलार किया हुआ। वि० निहायत सुर्ख गुस्सेकी वजहसे लाल, क्रोधसे तम- लालित्य-पु० [सं०] ललित होनेका भाव, सौंदर्य, रमतमाया हुआ। -चंदन-पु० रक्त चंदन । -फीता- णीयता; सरसता। पु० सरकारी कागजपत्रों, फाइलोंको बाँधनेमें काम आने लालिमा-स्त्री० लाली, सुखी । वाला लाल फीता, सरकारी कार्यों में,जाब्तेके बहुत अधिक | लाली-स्त्री० लालिमा, सुखी; इज्जत, आबरू, पीसी हुई अनुसरणसे, होनेवाली देरी, दीर्घसूत्रता (रेडटेपिज्म)। ईट, सुरखी प्रताविष्ट होना * लाड़ली लड़की, लली। -बुझक्कड़-पु० बिना मर्म जाने अटकलसे मतलब लगाने-लाले-पु० अरमान, इविस । मु०-पढ़ना-किसी चीजको वाला, अगम्य बातोंको समझनेका दावा करनेवाला। पाने, देखनेके लिए तरसना, लालायित होना। -मन*-पु० कृष्ण; एक तरहका तोता। -शकर-स्त्री लालो*-पु० दे० 'लाले'; संकट ।। बिना साफ की हुई चीनी, खाँड़। -समुद्र-पु० दे०लाल्य-वि० [सं०] लालन, प्यार करने योग्य | लाल सागर । -साग-पु० मरसा । -सागर-पु० | लाल्हा*-पु. लाल रंगका एक साग । अरब और अफ्रीकाके मध्य स्थित एक समुद्र जिसका पानी लाव-पु० लौ, लगन; प्रीति । *स्त्री० आँच, आग; + रस्सी; लाल दिखाई देता है। -सिखा,-सिखी-पु० मुर्गा- + बंधक रखी हुई चीजपर दी जानेवाली रकम; एक 'भानु आगमन जानिकै लाल सिखा धुनि कीन'-रघु। चरसेसे एक दिनमें सींची जाने योग्य भूमि । -दार-पु० -सेना-स्त्री० साम्यवादी देशको सेना जिसके झंडेका तोपमें बत्ती लगानेवाला । वि० दागनेके लिए तैयार रंग लाल हो। मु०-पड़ना या होना-क्रोध करना। (तोप)। -लश्कर-पु०सामग्री, सामान, असबाब ।
-पीला होना-क्रोध करना । -होना-निहाल होना। मु०-चलाना-चरसेसे पानी निकालकर खेत सींचना । लाल-स्त्री० लाला, थूक, राल; * लालसा, इच्छा; । पु० लावक-पु० [सं०] लवा पक्षी; काटनेवाला, विभाजक । भूरापन लिये लाल रंगकी छोटी चिड़िया चौपायोंकालावणिक-वि० [सं०] लवण-संबंधी; नमकका । पु० लवणएक रोग प्यारा बच्चा, पुत्र, लड़का प्रिय, प्यारा व्यक्ति विक्रेता। प्रणयी प्रेमी आदमी; * लालन, प्यार, दुलार, [फा०] | लावण्य-पु० [सं०] लवणत्व, नमकीनी; सुंदरता; सुशीमाणिक; सुर्ख रंग । मु०-उगलना-अच्छी, प्यारी, लता। -लक्ष्मी,-श्री-स्त्री० अत्यधिक सुंदरता । महत्त्वकी बातें कहना।
लावनता*-स्त्री० लावण्य, सुंदरता । लालच-पु० कोई चीज पानेकी बहुत बढ़ी हुई इच्छा, लोभ। लावना*-स०कि. 'लाना'। लालचहाँ*-वि० जिसे बहुत अधिक लोभ हो, लालची। लावनि*-स्त्री० लावण्य, सुंदरता । लालची-वि० लोभी, लोलुप ।
लावनी-स्त्री० एक गीत-छंद; एक तरहका चलता गाना। लालटेन-स्त्री० [अ० 'लैटर्न'] हाथमें लटकाने लायक -बाज़-वि० लावनीका शौकीन लावनी गानेवाला। चिमनीदार लेप ।
ला-चबाली-वि०निडर, बेफिक्र । स्त्री० आवारगी, बेफिकी लालड़ी-स्त्री० नथ और बालियों में मोतीके दोनों ओर शोखी । पु. आवारा या वेफिक आदमी। लगाया जानेवाला लाल रंगका एक नगीना।
लावा-पु. लवा पक्षी; लाजा, खील । -परछन-पु० लालन-पु. बालक, प्यारा बच्चा प्रिय व्यक्ति [सं०] प्यार एक वैवाहिक रीति । मु०-मेल देना*-मंत्रसे उच्चाटन करना; बहुत अधिक लाड़ करना; प्यार । वि० प्यार करना । करनेवाला।
लाविक-पु० [सं०] भैसा । लालना*-स० क्रि० प्यार करना; इच्छा करना । लाश-स्त्री० [फा०] मृत देह, शव । लालनीय-वि० [सं०] प्यार करने योग्य ।
लाष*-स्त्री० लाख, लाह । वि० सौ हजार (दे० पैका में)। लालरी-स्त्री० लालड़ी, लाल रंगका नगीना।
लाषना*-सक्रि० लाइसे छेद बंद करना। लालस-वि० [सं०] चंचल, लोलुप, उत्सुक ।
लास-पु० [सं०] उछल कूदा नृत्य; रास स्त्रियोंका कोमल लालसा-स्त्री० [सं०] किसी चीजके पाने के लिए अत्य- भावमय नृत्य; जूस, रसा; लार । धिक इच्छा, अभिलाषा; औत्सुक्य; गर्भिणीकी इच्छा। लासक-पु० [सं०] मयूर नाचनेवाला; अभिनेता। लालसी*-वि० इच्छुक, उत्सुक, इच्छा करनेवाला । लासकी-स्त्री० [सं०] नर्तकी; अभिनेत्री । लाला-पु० आदर-सूचक संबोधन; कायस्थ या खत्री जाति-लासा-पु० लसदार, चिपचिपी चीजफँसानेवाली चीज, का सूचक शब्द: देवर या छोटे, प्रिय व्यक्तिके लिए संबो- गोंद, चेप । मु०-लगाना-झगड़ा कराना; फाँसना ।
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लासि-लिफ़ाफ़ा
लिखनी । स्त्री० लेखनी, कलम; लिखनेकी क्रिया; होनी । लिखवाई - स्त्री० दे० 'लिखाई' | लिखवाना-स० क्रि० दे० 'लिखाना' । लिखवार* - पु० दे० 'लिखधार' |
लाह* - स्त्री० लाक्षा, लाख, लाही; चमक । पु० लाभ । लाहल * - पु० दे० 'लाहौल' ।
लाही | - स्त्री०लाख पैदा करनेवाला लाल, कीड़ा; फसल के लिए हानिकर एक कीड़ा जो विशेषकर गेहूँ - जौमें लगता है । वि० मटमैलापन लिये लाल, लाइके रंगसे मिलता हुआ ।
लिखाई - स्त्री० लिखनेका काम; लिखनेको मजदूरी; लिखावट; लेख, लिपि । - पढ़ाई - स्त्री० विद्योपार्जन | लिखाना -स० क्रि० लिखनेका काम किसी अन्यसे कराना। मु० - पढ़ाना- शिक्षा देना; लिपिबद्ध कराना । लिखापढ़ी - स्त्री० किसी ठहराव, शर्तको कागजपर लिखकर पक्का करना; पत्र-व्यवहार, चिट्ठियों का आदान-प्रदान । लिखावट - स्त्री० लिखनेका ढंग; लिपि, लेख । लिखित - वि० [सं०] लिखा हुआ । पु० लिखी बात, लेख; प्रमाणपत्र, दस्तावेज; रचना, पुस्तक | - पाठक - पु० हस्तलिखित लेख आदि पढ़नेवाला ।
लाहौरी नमक- पु० सेंधा नमक |
लाहौल- पु० [अ०] शैतान या प्रेतात्माओंको भगानेके लिए प्रयुक्त, 'लाहौलवलाकूवत इलाबिल्ला'का पहला शब्द जो घृणा, विरक्ति प्रकट करनेके लिए बोलते हैं । लिंग - पु० [सं०] चिह्न, किसी वस्तु, पदार्थकी पहचानका साधन; नकली चिह्न प्रमाण; कारण, अनुमान, साधक हेतु (न्या० ); प्रधान, मूल प्रकृति (सांख्य ० ); पुरुषकी जननेंद्रिय, शिश्न; शिवलिंग; देवमूर्ति; व्याकरणके शब्दोंका पु०, स्त्री० आदिका भेद । - देह-स्त्री०, शरीरपु० सूक्ष्म देह, मृत्यु के बाद फलभोगके लिए जीवात्मा के साथ लगा रहनेवाला सूक्ष्म शरीर । -धर-वि० केवल चिह्न धारण करनेवाला, ढोंगी । - धारी (रिन् ) - वि० चिह्न धारण करनेवाला। - प्रतिष्ठा - स्त्री० शिवलिंगको स्थापना । - वृत्ति - पु० वेश बनाकर जीविका अर्जन करनेवाला; नकली साधु । वि० ढोंगी । लिंगार्चन - पु० [सं०] शिवलिंगका पूजन | लिंगिनी - स्त्री० [सं०] धर्मका आडंबर करनेवाली स्त्री; लिपड़ी - स्त्री० लेईकी तरह गीला पदार्थ; कपड़ा-लत्ता । लिपना - अ०क्रि० गीली चीजसे पोता जाना; रंग आदिका फैल जाना । लिपापुता - वि० साफ, स्वच्छ; जिसपर रंग या और कोई चीज फैल गयी हो । लिपवाना - स० क्रि० लीपनेका काम दूसरे से कराना । लिपाई - स्त्री० लीपनेकी क्रिया या उजरत । लिपाना - स० क्रि० लेप कराना, पुताना, गोवर, मिट्टी आदिकी तह चढ़वाना |
लिखितव्य - वि० [सं०] लिखने, चित्रित करने योग्य । लिख्या - स्त्री० [सं०] दे० 'लिक्षा' । लिच्छवि-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक राजवंश ( इसका शासन नेपाल, मगध, कोशलमें था । बुद्ध, महावीर इसी वंश में हुए थे) । लिटाना-स० क्रि० पौढ़ाना, किसीको लेटने में प्रवृत्त करना । लिट्ट पु० मोटी रोटी (विशेषकर आगपर सेंकी हुई) । लिट्टी - स्त्री० आगपर सेंककर तैयार की जानेवाली बाटी । लिडार - पु० गीदड़ । * वि० डरपोक, कायर । लिपटना- अ० क्रि०सट जाना, चिपकना; आलिंगन करना; किसी काम में मनोयोगपूर्वक लग जाना । लिपटाना - स० क्रि० सटाना, चिमटाना; गले लगाना ।
लासि, लासु* - पु० दे० 'लास्य' । लासिका - स्त्री० [सं०] नर्तकी; वेश्या; उपरूपकका एक भेद । लास्य - पु० [सं०] नृत्य; वह नृत्य जिसमें वाद्य और गीत का योग हो; स्त्री-नृत्य; नर्तक, अभिनेता ।
एक लता ।
लिंगी (गिन् ) - पु० [सं०] ब्रह्मचारी; वेशभूषासे जीविका चलानेवाला; हाथी; शिवलिंग पूजनेवाला; ढोंगी । लिंगेंद्रिय - स्त्री० [सं०] शिश्न, पुरुषकी मूनेंद्रिय । लिंफ - पु० [अ०] टीका लगाने के काम में आनेवाला चेचक का चेप |
लिए निमित्त, प्रयोजन आदिके सूचनके लिए प्रयुक्त होनेवाली संप्रदान कारककी विभक्ति ।
लिक्खाड़- पु० बहुत बड़ा लेखक (व्यंग्य में) । लिक्षा - स्त्री० [सं०] लीख, जूँका अंडा; एक परिमाण जो बहुत छोटा, आठ त्रसरेणुके बराबर होता है । लिक्षिका- स्त्री० [सं०] लीख ।
लिख - वि०, पु० [सं०] लिखनेवाला ।
लिखत- स्त्री० दे० 'लिखित' । पु०; (इंस्ट्रूमेंट) वह लिखित पत्र जिसमें दो पक्षोंके बीच हुए किसी समझौते की शर्तें · आदि दी गयी हो, विलेख । -पढ़त - स्त्री० लिखा-पढ़ीका कागज ।
लिखधार* - पु० लेखक, मुहर्रिर । लिखना - स० क्रि० कोई बात लिपिबद्ध करना, कागज आदिपर उतारना; रेखाएँ, चिह्न खींचना; चित्र बनाना; ग्रंथ रचना। मु०-पढ़ना - अध्ययन करना, विद्यार्जन करना। [किसीके नाम लिखना- किसीके जिम्मे पावना दिखलाना ।]
४५
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लिपि - स्त्री० [सं० ] लिखावट; लिखनेकी पद्धति ( जैसे रोमन, नागरी, अरबी लिपि); पत्र, लेख आदि । -कर, - कार - पु० लेखक, क्लार्क । -कर्म (न्) - पु० चित्रकारी | - ज्ञान, - शास्त्र - पु० लिखनेकी कला । फलक-पु० पत्थर, धातुपत्र, तख्ती, पत्र आदि । - बन्द - वि० लिखा हुआ । - सजा - स्त्री० लिखनेका साधन । लिपिक - पु० [सं०] कार्यालय में लिखापढीका काम करने वाला ( क्लार्क ), किरानी । - विभ्रम- पु० (क्लेरिकल मिस्टेक) लिपिक या लेखक द्वारा की गयी भूल | लिप्त - वि० [सं०] किसी चीजसे पुता हुआ, चर्चित; आसक्त; ढका हुआ; फँसा हुआ, व्यसनादिमें डूबा हुआ; लीन ।
लिप्सा - स्त्री० [सं०] पानेकी इच्छा; इच्छा । लिप्सु - वि० [सं०] पानेकी इच्छा रखनेवाला, इच्छुक लिफ़ाफ़ा-पु० [अ०] खोल; कागजका थैला; कागजका चौकोर थैला जिसमें चिट्ठियाँ इ० रखकर भेजते हैं; पह
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लिफ़ाफ़िया - लुंडा
नावा; (ला० ) आडंबर, ठाटवाट; (ला० ) जल्दी टूटनेफटनेवाली चीज । मु० - खुल जाना-भेद प्रकट होना । - बदलना - ठाट बदलना, नयी वेश-भूषा धारण करना । - बनाना - ठाट बनाना । लिनानिया - वि० कमजोर, चंदरोजा (गहने इ० ); दिखाऊ । लिबड़ना - अ० क्रि०लथपथ होना, सनना (कीचड़ आदि में) । लिबड़ी - स्त्री० लुगड़ी, कपड़ा-लत्ता । -बरताना, - बारदाना -- पु० गुजर, निर्वाहका सामान; असबाब । लिबास - पु० [अ०] पहनने के कपड़े, पोशाक । लियाकत - स्त्री० [अ०] योग्यता, बुद्धिमत्ता, पात्रता; गुण । लिलाट* - पु० दे० 'ललाट' ।
लिलार* - पु० माथा; कुऍसे सटकर मोटका पानी उलटनेका जरा गहरा बना हुआ स्थान ।
लिलोही * - वि० लालची, लोभी ।
लिव* - स्त्री० लौ, लगन ।
लिवाना - स० क्रि० घमाना, पकड़ाना; लानेका काम कराना; साथ लाना ।
लिवाल - पु० खरीदार, लेनेवाला ।
लिवैया - पु० लेनेवाला; लानेवाला । लिसोड़ा - पु० दे० 'लसोड़ा' ।
लिहाज़ - पु० [फा०] ध्यान से देखना; ध्यान, खयाल; खास खयाल; रिआयत, मुलाहजा; संकोच, अदब । लिहाज़ा - अ० [अ०] इसलिए, अतः निदान ।
लिहाड़ा - वि० नीच, खराव; निकम्मा ।
लीक - स्त्री० लंबी रेखा; गाड़ी, सर्प आदिके चलने से बनी हुई रेखा; पगडंडी; मर्यादा; लोकरीति, रस्म-रिवाज; गणना प्रतिबंध; लांछन, दाग; जूँ का अंडा । -करकेलीक खींचकर | मु० - खींचना -ढ़ निश्चय करना । - पीटना - पुरानी रस्मपर चलते जाना । लीक
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लिहाड़ी | - स्त्री० हँसी, निंदा । मु०- लेना- निंदा करना । लीलाब्ज, लीलारविंद-पु० [सं०] दे० 'लीलाकमल' | लिहान - पु० [अ०] मोटी रजाई; घोडेकी झूल | लिहित* - वि० चाटता हुआ ।
लीची-स्त्री० एक वृक्ष या उसका फल जो मीठा होता है । लीढ - वि० [सं०] चाटा, खाया हुआ; आस्वादित | लथोग्राफ - पु० [अ०] पत्थरका छापा ( इसमें एक विशेष प्रकार के कागज पर हाथसे लिखकर गरम किये हुए विशेष पत्थर पर छाप उतारते हैं । यह उलटा रहता है । बाद में कागज पर छापने पर अक्षर सीधे हो जाते हैं । ) लीद - स्त्री० गधे, घोड़े, खच्चर आदि पशुओंका मल । लीन-वि० [सं०] विलीन; तन्मय; तत्पर; किसीके सहारे टिका हुआ; छिपा हुआ; ध्यानमग्न; संलग्न; अभिशोषित । लीनता - स्त्री० [सं०] संलग्नता; तल्लीनता; निःसंगता । लीपना - स०क्रि० पोतना; सफाईके लिए जमीन, दीवार पर मिट्टी, गोबर चढ़ाना, पोतना । मु०-पोतना-सफाई करना । लीप-पोतकर बराबर करना - काम बिगाड़ना,
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चौपट करना ।
लीवर* - वि० मैल, कीचड़ आदिसे भरा हुआ - 'अँखियाँ लीवर बेसवै नासै' - ग्राम० पु० कीचड़, गंदगी, मैलापन | लीमू* - पु० नीबू |
लीर* - स्त्री० पतला टुकड़ा, धज्जी - ' बागाको दावन फट गयो और लीर झाड़ पै रह गयी' - अष्टछाप । लील* - वि० नीले रंगका । पु० नील। -कंठी - पु० दे० 'नीलकंठ' । - गऊ - गाय - स्त्री० दे० 'नील गाय' । - गर+ - पु० दे० 'रंगरेज़' । लीलना* - स० क्रि० निगलना । लीलया - अ० [सं०] खेलमें; सहज ही । लीलहिँ ** - अ० खेल में, अनायास - 'अति उतंग तरु सैल गन लीलहिं लेद्दि उठाइ' - रामा० । लीलांबुज - पु० [सं०] दे० 'लीलाकमल' | लीला - * पु० गोदना; काला घोड़ा । * वि० नीला । स्त्री० [सं०] क्रीड़ा, केलि; विलास, विहार; सौंदर्य; शृंगारचेष्टा; प्रेमीका अनुकरण; अवतारोंके चरित्रका अभिनय; रहस्यपूर्ण कार्य; एक मात्रावृत्त; एक वर्णवृत्त । - कमल, - पद्म-पु० विनोद या क्रीड़ाके लिए हाथमें लिया हुआ कमल । - कलह-पु० क्रीड़ाके लिए किया जानेवाला कलह, प्रणयकलह - गृह, - गेह, वेश्म (न्) - पु० क्रीड़ा भवन । - चतुर - वि० क्रीड़ामें कुशल | - साध्य - वि० सहज ही संपन्न होनेवाला । -स्थलपु० क्रीड़ाका स्थान ।
लीलाभरण - पु० [सं०] केवल क्रीड़ाके लिए पहना हुआ भूषण ( जैसे कमलका कंकण आदि) । लीलामय - वि० [सं०] क्रीड़ायुक्त; क्रीड़ा-संबंधी । लीलायित - वि० [सं०] क्रीड़ा करनेवाला; अभिनय करनेवाला | पु० क्रीड़ा; सहजसिद्ध कार्य ।
चलना - रास्ते पर चलना; पुरानी रस्मपर चलना ।
लीलावती - वि० स्त्री० [सं०] क्रीड़ा, विलास करनेवाली । स्त्री० दुर्गाका एक नाम; सुंदर स्त्री; भास्कराचार्यकी पुत्री और उसकी बनायी हुई गणितकी प्रसिद्ध पुस्तक लीलावान् (वत्) - वि० [सं०] सौंदर्यमय, रमणीय; क्रीड़ाशील ।
लीख - स्त्री० जँका अंडा; एक बहुत छोटी तौल । लीग - स्त्री० [अ०] सभा, संघ ।
लीचड़, लीचर - वि० सुस्तः चिपटनेवाला; लेन-देन साफ लीलोद्यान - पु० [सं०] वह उद्यान जिसमें क्रीड़ा की जाय । न रखनेवाला |
| लुगाड़ा - वि० लुच्चा, बदमाश ।
लुंगी - स्त्री० छोटी धोती, तहमत; कपड़ेका टुकड़ा; खारुवा । लुंचन-पु० [सं०] काटने, नोचने, छीलने आदिकी क्रिया । लुंचित - वि० [सं०] नोचा, उखाडा, काटा, छोला हुआ। - केश, - मूर्धज - पु० जैन यति ( जिसके सिरके बाल चे हों ।
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लुंज - वि० बिना हाथ-पैरका, लँगड़ा लुला | पु० बिना पत्तों का पेड़, ठूंठ |
लुंठन - पु० [सं०] चोरी, लूट; लुढ़कन । लुंठित - वि० [सं०] लुढ़का हुआ; लूटा या चुराया हुआ । लुंड* - पु० रंड, कबंध । - मुंड - वि० बिना सिर-पैर हाथ का (धड़); लँगड़ा-लूला; हूँठ; गठरीकासा लपेटा हुआ । लुंडा- वि० पुच्छ - पंखहीन (पक्षी); (बैल आदि ) जिसकी पूँछ पर बाल न हों । लपेटे हुए सूतकी पिंडी ।
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लुंडिका - स्त्री० [सं०] गेंद, गोल पिंड । लुड़ियाना + - स० क्रि० पिंडीके रूपमें लपेटना | लुंडी - वि०स्त्री०जिसकी पूँछ था पर झड़ गया हो (चिड़िया) । स्त्री० [पिंडी, गोली ( लपेटे हुए सूतकी) । लुंबिनी - स्त्री० [सं०] कपिलवस्तुके निकट एक वन जहाँ बुद्धका जन्म हुआ था; एक राजकुमारी ।
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लुआठ-पु० दे० 'लुआठा' ।
लुआठा-पु० जलती हुई या अधजली लकड़ी ।
लुआठी-स्त्री० छोटा लुआठा ।
लुआब - पु० [अ०] थूक; लसदार रस । - दार- वि० जिससे लुआब निकले; लसदार ।
लुआर* - स्त्री० लू, गरम हवा - 'कैधों यह ग्रीषमकी लुटेरा - पु० लूटनेवाला, डाकू ।
भीषम लुआर है' - रला० ।
लुक - पु० एक रोगन जिसे मिट्टी के बरतनों पर चमक लानेके लिए लगाते हैं; आगकी लपट, चिनगारी । - दार- वि० जिसपर लुक फेरा गया हो। -साज़ - पु० लुक फेरनेका काम करनेवाला |
लुटना* - अ०क्रि० भूमिपर लोट जाना, लोटना; लुढ़कना ।
लुकंजन * - पु० एक अंजन जो लगानेवालेको अदृश्य कर लुठाना* - स० क्रि० लोटाना; लुढ़काना । देता है । लुठित-वि० [सं०] लुढ़का, गिरा या लोटा हुआ । लड़कना, लुढ़कना - अ० क्रि० चक्कर खाते हुए आगे बढ़ना या गिरना, नीचे ऊपर होते हुए घिसटना, रपटना । लुड़काना, लुढ़काना - स० क्रि० कोई चीज इतनी तेजी से फेंकना, ढकेलना कि चक्कर खाती हुई बढ़े |
लुढ़ना* - अ० क्रि० लुढ़कना; गिरना; पुष्पादिका तोड़ा
जाना ।
लुकना - अ० क्रि० छिपना, आड़में हो जाना । मु० लुकछिपकर - बहुत ही गुप्त रूपसे ।
लुकमा - पु० [अ०] कौर, ग्रास ।
लुकमान - पु० [अ०] कुरानमें वर्णित एक हकीम जो अपनी बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध है । मु० - के पास दवा नहीं - रोगका असाध्य होना । लुका-छिपी - स्त्री० लुकने-छिपनेका एक खेल |
लुकाट - पु० एक वृक्ष या उसका फल | लुकाठ* - पु० दे० 'लुआठ'; 'लुकाट' ।
लुकोना* - स० क्रि० छिपाना ।
लुकायित - वि० [सं] छिपा हुआ, अदृश्य, अंतर्हित | लुगड़ा - पु० कपड़ा; ओढ़नी ।
लुत्थ* - स्त्री० लोध, लाश ।
लुत्फ़ - पु० [अ०] रस, मजा; आनंद; खूबी; अनुग्रह । लुनना-स० क्रि० फसल काटना; नष्ट करना; हटाना ।
लुकाना - स० क्रि० छिपाना । अ० क्रि० छिपना, लुकना । लुनाई - स्त्री० सुंदरता, सलोनापन; फसल काटने की क्रिया लुकार* - स्त्री० अग्नि, जलानेवाली शक्ति ।
लुकेठा* - पु० जलती हुई लकड़ी, लुआठी ।
लुग़त - स्त्री० [अ०] शब्द; भाषा; शब्दकोश | लगदा - पु० गीली चीजका गोला, लोंदा । लुगदी स्त्री० पीसी हुई गीली वस्तुका पिंड | लुगरा * - पु० कपड़ा; ओढ़नी, छोटी चादर; फटा कपड़ा ।
पीठ पीछे किसीका
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लुंडिका-लुका
लुटकना * - अ० क्रि० दे० 'लटकना' । लुटना - अ० क्रि० डाकुओं आदि द्वारा लूटा जाना; बर बाद, तबाह होना; लोटना; निछावर होना । लुटरना - अ० क्रि० लोटना; लुढ़कना । लुटरा- वि० घुँघराला ।
लुटाना - स० क्रि० डाकुओं या दूसरों को धन लूटने देना; उचितसे कम दामपर कोई चीज ग्राहकको दे देना; बरबाद करना; अंधाधुंध, बेरोक दान या खर्च करना । लुटावना* - स० क्रि० दे० 'लुटाना' । लुटिया - स्त्री० छोटा लोटा । मु०-डुगाना-अपयशका काम करना; काम चौपट करना ।
लुगरी - स्त्री० फटी-पुरानी धोती; दोष कहना, चुगली ।
लुगाई - स्त्री० स्त्री; पत्नी । लुगात - पु० [अ०] शब्दावली; शब्दकोश | लुगी* - स्त्री० लुंगी; फटी धोती; लहँगेका किनारा | लुग्गा * - पु० कपड़ा ।
लुचवाना-स० क्रि० नोचवाना ।
लुचुई* - स्त्री० (मैदेकी) नरम और पतली पूरी । लुच्चा - वि०कोई चीज लुचककर भागनेवाला, चाई, कमीना; बदमाश; दुराचारी, लंपट ।
लुच्ची - स्त्री० दे० 'लुचुई' । वि० स्त्री० दे० 'लुच्चा' । लुटंत* - स्त्री० लूट |
लुढ़ाना * - स० क्रि० दे० 'लुढ़काना' । लुदियाना - स० क्रि० गोल तुरपना, गुलना । लुतरा - वि० झगड़ा लगानेवाला, निंदक, चुगलखोर; शरारती; बदमाश ।
या मजदूरी
लुनेरा -५० फसल काटनेवाला; एक जाति जो शोरा आदि बनाने का काम करती है, नोनिया ।
लुपना * - अ० क्रि० लुकना, छिपना ।
लुप्त - वि० [सं०] छिपा हुआ; अदृश्य; नष्ट; जिसका लोप हो गया हो; जिसका प्रयोग न होता हो ।
लुप्तोपमा- स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद जिसमें उसका एक या एकाधिक अंग लुप्त होते हैं । लुबधना * - अ० क्रि० लुब्ध होना ।
लुबुध* - वि० लुब्ध, लुभाया या ललचाया हुआ । लुबुधना - अ० क्रि० लुब्ध, मोहित होना । लुब्ध - वि० [सं०] आसक्त; लुभाया हुआ; मोहित । लुब्धक - पु० [सं०] लोभी व्यक्ति; लंपट; बहेलिया; एक
प्रकाशमान तारा ।
लुब्धना * - अ० क्रि० लुब्ध होना ।
लुब्ब-पु० [अ०] सार भाग, गूदा; खुलासा ।-लुबाबपु० सारका सार, निचोड़; इत्र ।
लुभाना - अ० क्रि० आकृष्ट या मोहित होना; लालच में पड़ना । स० क्रि० मोहित करना, रिझाना । लुरकनrt - अ० क्रि० झूलना, लटकना । लुरका - पु० झुमका ।
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लरकी-लेखा
७१० लुरकी-स्त्री० कानका झुमका, कानकी बाली।
लूमना*-अ० क्रि० झूलना, लटकना । लुरना*-अ० क्रि० लटकना, झूलना; झुक पड़ना; हिलना- | लूरना*-अ० कि० दे० 'लुरना'। डोलना; एक बारगी आ जाना; मुग्ध, आकृष्ट होना। लूला-वि० बिना हाथका; बेकाम; असहाय । लुरियाना*-अ० क्रि० एकाएक आ आना; प्रवृत्त होना; लूही-स्त्री० लू । प्रेमपूर्वक स्पर्श करना, लपटना-झपटना-'बाघनके लेरुवा लूहर*-स्त्री० लू; पु० लूका, लूघर । लरत लुरियात हैं'-रत्ना० ।
लड़-पु० बधा हुआ मल जी बत्तीके रूप में निकलता है। लुरी-स्त्री० हालकी ब्यायी गाय ।
लैंडी-स्त्री० बकरी आदिका गोल बैंधा हुआ मल । लुलना*-अ० क्रि० लहराना, लटकते हुए झूलना। | लेहड़ा-पु० (चौपायोंका) समूह, झुंड । लुलित-वि० [सं०] लटकता, झूलता हुआ; अशांत; बिखरा | ले हड़ी-स्त्री० (भेड़ों, बकरियों आदिका) झुंड । हुआ। -कुंडल-वि०जिसके कुंडल हिलते हों। लेई-स्त्री० लपसी चिपकानेके कामके लिए घोलकर पकाया लुवार*-स्त्री० गरम और तपी हुई हवा, लू ।
हुआ आटा; ईंटोंकी जोड़ाई के लिए गाढ़ा घोला हुआ लहना*-अ० क्रि० मोहित होना; ललचना ।
सुरखी मिश्रित बरीका चूना ।-पूजी-स्त्री० सारी जमा। लुहार-पु० लोहेका काम करनेवाला लोहेका काम करने- लेख-* वि० लिखने या लेखा करने योग्य । * स्त्री० पक्की वाली एक जाति । [स्त्री० 'लुहारिन'।]
बात; रेखा । पु० [सं०] पंक्ति लिपि; लिखावट; लिखी लुहारी-स्त्री० लोहेका काम; लुहारकी स्त्री।
बात, लिखकर प्रकट किये गये विचार पत्र लेखा, लूंबरी*-स्त्री० लोमड़ी।
हिसाब-किताब । -पद्धति,-प्रणाली-स्त्री० लिखनेकी लू-स्त्री० तपी हुई वायु या उसका झोंका । मु०-मारना, शैली। -पाल-पु० दे० 'पटवारी'। -हार,-हारक
-लगना-तप्त हवा लगनेसे ज्वर आदिका हो जाना। | पु० पत्रवाहक । -हारी (रिन)-वि० पत्र ले जानेवाला। लूक-पु. टूटा हुआ तारा, उल्का; आगकी लपट, ज्वाला; लेखक-पु० [सं०] लिपिकार; लिखनेवाला, कुर्क; चित्रजलती लकड़ी (जिसका कोई छोर जल रहा हो)-'यक कार; ग्रंथ रचयिता; पत्रादिके लिए लेख लिखनेवाला। लूक लीन्हों बार'-रघु। स्त्री० गरमीकी तपी हुई हवा,लू । -प्रमाद-पु० लिपिकारकी भूल । लूकट*-पु० आग; लुआठी।
लेखन-पु० [सं०] लिखनेका काम; लिखनेकी कला लूकना*-स० कि० आग लगाना, जलाना। अ० क्रि० चित्रकारी कूतना, लेखा लगाना। -सामनी-स्त्री. छिपना।
(स्टेशनरी) कागज, कलम, स्याही आदि सामग्री जो लूका-पु० आगकी लपट चिनगारी; लकड़ी जिसका सिरा लिखनेका कार्य करते समय आवश्यक हो । जलता हो। मु०-लगाना-आग लगाना, जलाना । लेखनहार-वि० लिखनेवाला, लेखक । (मुहमे)-लगाना-मुँह जलाना, तिरस्कार करना। | लेखना*-स०नि० लिखना चित्र बनाना हिसाब लगाना लूखा*-वि० दे० 'रूखा'।
सोचना, समझना । मु०-जोखना-अंदाज लगाना; लूगड़-पु० कपड़ा; चादर, ओढ़नी।
कूतना, जाँच करना।। लूगा-पु० वस्त्र धोती।
लेखनिका-स्त्री० [सं०] तूलिका। लूघर*-पु० लुआठ, जलती हुई लकड़ी।
लेखनी-स्त्री० [सं०] लिखने, अक्षर बनानेका साधन, लूट-स्त्री० लूटनेकी क्रिया, डकैती; अपहृत, लूटा हुआ कलम । -कर्मरोधन-पु. (पेनडाउन स्ट्राइक ) किसी माल । -क*-पु० लुटेरा, डाकू; मुंदरतामें बढ़नेवाला। कार्यालयके कर्मचारियोंका अधिकारियोंके किसी आदेश, -खसोट--स्त्री० लूटमार; आर्थिक शोषण । -खूद,- व्यवहारादिका विरोध करने के लिए लिखने-पढ़नेका काम पाट,-मार-स्त्री० लोगोंको शारीरिक यंत्रणा देकर उनका स्थगित कर अपने स्थानपर चुपचाप बैठ रहना । -जिह्वा धन छीनना।
-स्त्री० (निब) अंग्रेजी ढंगकी कलमोंके सिरेपर खोंसी जानेलूटना-स० क्रि० जबरदस्ती छीनना; बरबाद, तबाह | वाली लोहे, ताँबे आदिकी बनी वह नोकदार वस्तु जिससे करना; धोखे, अन्याय, अनुचित ढंगसे किसीका धन ले | लिखा जाता है । मु०-उठाना-लिखना शुरू करना। लेना उचितसे अधिक दाम लेना, ठगना, वशीभूत करना। | लेखनीय-वि० [सं०] लिखने योग्य । लूटि*-स्त्री० दे० 'लूट' ।
लेखा-स्त्री० [सं०] रेखा; चित्रण; लिपि; चिह्नः किनारा लूत-* स्त्री० मकड़ी। वि० [सं०] खंडित, विभक्त। शरीरपर चंदनादिसे रेखाएँ बनाना । लूता-स्त्री० [सं०] मकड़ी; फफोले जैसी फुसियाँ (कहा लेखा-पु० हिसाब; आय व्ययका ब्योरा; अंदाज; गणना; जाता है, ये मकड़ीके मूतनेसे होती हैं); चींटी ।
विचार । -कर्म-पु० (अकाउंटेंसी) हिसाब-किताब रखनेलूतामय-पु० [सं०] मकड़ी नामक रोग।
का कार्य, मुनीमी । -छलयोजन-पु. (मैनिपुलेशन लूती-स्त्री० लुआठी । मु०-लंगाना-झगड़ा लगाना। ऑफ अकाउंट्स) हिसाब तैयार करने में चालबाजी करना। टूनना*-स० कि० (फसल) काटना।
-पत्तर-पु०,-बही-स्त्री० हिसाब-किताबका कागज; लूम-पु. एक राग (सभी शुद्ध स्वरोंका), मेघ रागका रोकड़वही। -परीक्षक-पु. ( ऑडिटर ) आय-व्ययकी पुत्र; [सं०] पूँछ, लांगुल; चक्कर, फेरा। -विष-पु० जाँच-पड़ताल करनेवाला । -परीक्षण-पु. (ऑडिट) पूँछसे डंक मारनेवाला जीव (बिच्छु आदि)।
हिसाबकी जाँच-पड़ताल |-पाल-पु० (अकाउंटेंट) हिसाब लूमड़ी -स्त्री० लोमड़ी।
(लेखा) रखने या लिखनेवाला, जो लेखा रखने में चतुर
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७११
लेखाध्यक्ष-लैला हो, मुनीम । मु०-डेवढ़ करना-हिसाब साफ करना; | ले रखना-खरीदकर रख छोड़ना। चौपट करना। -पूरा या साफ करना-हिसाब चुकता लेप-पु० [सं०] लेपने, पोतनेकी क्रिया; पोतनेके काम करना।
आनेवाली कोई गीली चीज; उबटन; मरहम लगाव । लेखाध्यक्ष-पु० (अकाउंटें) दे० 'लेखापाल'।
लेपक-पु० [सं०] लेप करनेवाला; सफेदी करनेवाला । लेखिका-स्त्री० [सं०] छोटी रेखा; लेख या ग्रंथ लिखनेवाली। लेपन-पु० [सं०] लेपनेकी क्रिया, लेप चढ़ाना; उबटन । लेखित-वि० [सं०] लिखवाया हुआ; लिखा हुआ । लेपना-स० क्रि० गीली चीज पोतना, चुपड़ना । लेखे-अ० विचारानुसार, समझमें।
लेमू-पु० [फा०] नीबू । -निचोड़-पु० वह आदमी जो लेख्य-वि० [सं०] खरोंचने योग्य लिखने योग्य; जो हर एकके साथ खानेमें शामिल हो जाय । लिखनेके लिए हो । पु० लेख-लिखनेकी कला; चित्र पत्र; | लेरुआ-* पु० बछड़ा; लड्डू । दस्तावेज(डाकूमेंट) दे० 'प्रलेख'। -कृत-वि. जो | लेलिहान-वि० [सं०] चखने, बार-बार चाटनेवाला; लिखा-पढ़ी करके पक्का किया गया हो। -पत्र,-पत्रक- | लुब्ध, ललचाया हुआ। पु० लेख पत्र; दस्तावेज ताड़का पत्ता।
लेव-पु० घाव आदिपर लगानेकी दवा; आँचसे बचानेके लेख्यारूढ-वि० [सं०] लिखा-पढ़ी किया हुआ, दस्तावेजी। | लिए हंडी आदिकी पेंदीपर लगाया जानेवाला राख या लेज़म-पु० [फा०] एक तरहकी कमान जिसमें ताँतकी मिट्टीका लेप दीवारपर लगानेका गिलावा। जगह लोहकी जंजीर लगी होती है और जिसके सहारे | लेवा-वि० लेनेवाला (यौगिक रूपमें प्रयुक्त-जैसे नामलेवा)। कसरत की जाती है; नरम और लचीली कमान जिसपर पु० कह गिल, गिलावा; वर्षाके पानी में मिट्टीका घुल जाना। तीरंदाजीका अभ्यास किया जाता है।
लेवादेई-स्त्री० लेन-देन ।। लेजिम-पु० दे० 'लेजम'।
लेवाल-पु० लेने, खरीदनेवाला । लेजुर*-स्त्री० रस्सी कुएँसे पानी निकालनेकी रस्सी। लेश-पु० [सं०] अणु; सूक्ष्म अंश, अल्पता; समयका एक लेटौ-स्त्री० लेटने, पौढ़नेकी क्रिया; चूने-सुरखी आदिका मान; एक अर्थालंकार जहाँ गुणको दोषके समान और बिछाया हुआ मसाला।
दोषको गुणके सदृश दिखानेका प्रयत्न किया जाय । लेटना-अ० कि. किसी आधारपर पड़ रहना; पौढ़ना; लेष* -पु० दे० 'लेश', 'लेख'। आराम करना; किसी चीजका झुककर गिरना।
लेषना*-स० कि० दे० 'लखना', 'लिखना। लेटरबक्स-पु० [अ०] भेजी जानेवाली चिट्टी डालनेका | लेषनी*-स्त्री० दे० 'लेखनी' । संदूक; आनेवाली चिट्ठी छोड़नेका, मकानके द्वारपर लगा लेषे*-अ० दे० 'लेखे। हुआ संदूक।
लेस-* पु० दे० 'लेश+ गिलावा, कहगिल; पानीमें लेटाना-स० क्रि० दे० 'लिटाना' ।
घोलकर गाढ़ी बनायी हुई चीज, लस। -दार-वि० लेडी-स्त्री० [अं॰] महिला, भले घरकी स्त्री; अंग्रेजी फैशन- | लसीला, लसदार। वाली स्त्री । -डॉक्टर-स्त्री० स्त्री डॉक्टर।
लेसना-सक्रि० जलाना, प्रज्वलित करना; पोतना, लेन-पु० लेनेकी क्रिया; प्राप्य धन, लहना, पावना। | चिपकाना; दीवार पर मिट्टी आदि पोतना चुगली खाना। -दार-पु० महाजन, लहनेदार, उत्तमर्ण । -देन-पु० | लेहन-पु० [सं०] चाटनेकी क्रिया । लेना-देना, आदान-प्रदान; ऋण लेने-देनेका काम, महा-लेहाज़ा-अ० दे० 'लिहाजा' । जनी। -हार*-पु० लइनेदार, लेनेवाला। मु०-देन लेहाड़ा-वि० दे० 'लिहाड़ा'। न होना-सरोकार-संबंध न होना।
लेहाड़ी-स्त्री० दे० 'लिहाड़ी। लेना-स० क्रि० प्राप्त करना, पकड़ना, थामना; खरीदना; लेहाफ-पु० दे० 'लिहाफ'। जीतना, अधिकार, कब्जे में करना; उधार, कर्ज ग्रहण लेह्य-वि० [सं०] चाटने योग्य । पु० चाटने योग्य चीज, करना; भागते हुएको पकड़ना; अगवानी करना; किसी । चटनी। कामका भार उठाना; किसीको स्वीकार, धारण करना | लैंग-वि० [सं०] लिंग-संबंधी (व्या०) । (पूजाके लिए फूल लेना); सेवन करना; संभोग करना। लैंगिक-वि० [सं०] लिंग, चिह्नोंसे प्राप्त (प्रमाण); लिंगले आना-लाना । लेना-देना-पु० लेन-देन । मु० ले संबंधी; स्त्री-पुरुषकी जननेंद्रियसे संबंध रखनेवाला; यौन उड़ना-कोई चीज लेकर भाग जाना बिना समझे बातका (सेक्सुअल)। बतंगड़ करना । ले डालना-नष्ट, खराब करना; इराना | लैंप-पु० [अं०] चिराग, दीपक, लालटेन । पूरा करना, निबटाना (कोई काम)। ले ड्रबना-अपने | लै*-अ० तक, पर्यंत । साथ दूसरोंको भी नष्ट करना । ले-देकर-जोड़-जाड़करः | लैटिन-स्त्री० इटलीकी पुरानी भाषा जो रोमनकालमें प्रचकठिनाईसे । ले दे करना-हुज्जत करना; अत्यधिक यत्न | लित थी, लातीनी। करना। लेना एक न देना दो-कोई प्रयोजन, मतलब | लैन-स्त्री० [अ० 'लाइन'] रेखा, सीमा-रेखा पंक्ति पैदल न होना। लेनेके देने पड़ना-लाभके बदले हानि होना। सेनासिपाहियोंका निवासस्थान, बैरक । ले बैठना-बोझ सहित डूब जाना (नाव आदिका); अपने लैरु-पु० बछड़ा, छोटा बच्चा । साथ नष्ट करना; किसी कारबारका पूँजी सहित नष्ट हो लैला-स्त्री० [सं०] लैला-मजनूँ की प्रेम-कहानीकी नायिका जाना । ले मरना-अपने साथ बरबाद करना।। और मजनूंकी प्रेमिका प्रेयसी; सुंदरी; श्यामा ।-मजनूं
४५-क
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लैसंस-लोकायत
७१२ पु० लैला और मजन: आशिक-माशूक ।
लोगोंको प्रिय लगे, रुचे। -बंधु-बांधव-पु. शिव; लैसंस-पु० [अ० 'लाइसेंस'] विशेष अधिकारका प्रमाण- सूर्य । -बाह्य-वि० दुनियासे भिन्न; सनकी, समाजसे पत्र, सनद ।
बहिष्कृत । -भर्ता(त)-पु० संसारका भरण-पोषण करनेलैस-वि० तैयार, कीलकाँटेसे दुरुस्त, सजा हुआ; * वाला । -भावन,-भावी (विन्)-पु० लोककी निमग्न । पु० फीता (कपड़ेपर चढ़ानेका); एक तरहका भलाई करनवाला; लोक-रचना करनेवाला । -मत-पु० सिरका; कमानी; * एक तरहका बाण ।
जनताकी राय । -यात्रा-स्त्री० लोकव्यापार; आचारण, लौं*-अ० समान; तक ।
व्यवहार । -रंजन-पु. जनताको संतुष्ट कर उसका लौंड़ी-स्त्री० कानकी लौ।
विश्वास प्राप्त करना। -रव-पु० अफवाह, जनश्रुति । लौंदा-पु. किसी गीली वस्तुका पिंड ।
-लीक-स्त्री० [हिं०] लोक मर्यादा।-लोचन-पु. सूर्य । लोह*-पु० लोग । स्त्री० चमक लौ, ज्वाला ।
-वचन-पु० अफवाह । -बाद-पु०,-वार्ता-स्त्री. लोइन*-पु० नमकीनपन; नमक, सौंदर्य लोचन, नेत्र ।। अफवाह । -वाहन-पु० ( पब्लिक कैरियर) जनताका लोई-स्त्री. रोटी बनानेके लिए साने हुए आटेकी गोली सामान ढोनेके लिए प्रयुक्त मोटर ट्रक । -विज्ञात-वि० एक तरहका ऊनी कंबल | * पु० लोग।
लोकप्रसिद्ध । -विरुद्ध-वि० जनमतके विरुद्ध; सबसे लोकंजन*-पु० दे० 'लुकंजन'।
भिन्न मत रखनेवाला। -विश्रत-वि. जगद्विख्यात । लोकंदा*-पु. पहली बार ससुराल जानेवाली लड़कीके -व्यवहार-पु. लोकाचार । -शिक्षण-संचालक-पु० साथ दासीका जाना।
(डायरेक्टर ऑफ पब्लिक एजुकेशन) सार्वजनिक शिक्षालोकंदी-स्त्री० पहली बार ससुराल जानेवाली लड़कीके | विभागके प्रधान अधिकारी। -श्रुति-स्त्री० लोकख्याति; साथ जानेवाली दासी।
अफवाह । -संग्रह-पु. लोककल्याण; लोगोंकी भलाई लोक-पु० [सं०] विश्वका एक विभाग, भुवन (साधारणतः चाहनामानवसंपर्कसे प्राप्त अनुभव; लोकोंका संग्रह, स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल-ये तीन लोक माने जाते हैं, सारा विश्व । -सत्ता-स्त्री० वह शासन-व्यवस्था जिसमें पर विशेष विभागके अनुसार १४ माने जाते हैं-७ ऊपर, सत्ता जनताके हाथमें हो। -सत्तात्मक-वि. जनता ७ नीचे); संसार पृथ्वी; मानवजाति, समाज; (पब्लिक) | द्वारा संचालित (शासन)। -सभा-स्त्री. (हाउस ऑफ प्रजा, सामान्य लोग, जनता; समूह; भूभाग, प्रांत पीपुल) लोकतंत्रवादी राज्यों में विधान आदि बनानेवाली निवासस्थान; दिशा; सांसारिक व्यवहार । -कंटक,- जनप्रतिनिधियोंकी सभा; भारतीय गणराज्यकी संसदका पौडक-वि० (पब्लिक न्यूसैस) सर्वसाधारणको तंग करने निम्न सदन । -सेवक-पु० (पब्लिक सर्वेट) जनताकी वाला, सतानेवाला, हानि पहुँचानेवाला । -कथा-स्त्री० सेवा-संबंधी कार्यों में नियुक्त सरकारी कर्मचारी ।-सेवाजन-समाजमें प्रचलित कथाएँ। -कर्ता(त)-पु० ब्रह्मा स्त्री० (पब्लिक सर्विस) जनताके हितकी दृष्टिसे किया जानेविष्णु, महेश । -कार्य-पु० (पब्लिक अफेयर्स) लोक वाला कार्य राज्यकी या सरकारकी नौकरी जिससे जनताया सर्वसाधारणसे संबंध रखनेवाले कार्य। -गीत-पु. की सेवा या कष्ट निवारण हो। -सेवा-आयोग-पु. साधारण जनतामें प्रचलित गीत। -घोषणा-स्त्री० (पब्लिक सर्विस कमीशन) प्रशासन कार्य चलानेके लिए (मेनिफेस्टो) दे० 'नीतिघोषणा'। -जित्-वि० लोक- उच्च श्रेणीके लोक-सेवकोंका परीक्षादि द्वारा चुनाव करने में विजयी। पु. ऋषि; बुद्ध । -तंत्र-पु. वह शासन- सहायता देनेवाला आयोग । -सिद्ध-वि० लोक या प्रणाली जिसमें शासनाधिकार जन-प्रतिनिधियोंके हाथमें समाज द्वारा स्वीकृत प्रचलित ।-स्वास्थ्य-पु० (पब्लिक हो। -तंत्रीकरण-पु० (डिमॉक्रेटिजेशन) किसी राज्य, हेल्थ) जनताका स्वास्थ्य । -हित-५० (पब्लिक गुड) शासनपद्धति आदिको लोकतंत्रका रूप देना, उसे लोक- सर्वसाधारणका हित या लाभ । तांत्रिक-सिद्धांतोंके अनुरूप बनाना । -त्रय-पु०,- लोकटी*-स्त्री० लोमड़ी। प्रयी-स्त्री० तीनों लोक-आकाश, पाताल और मर्त्य- लोकना-सक्रि० किसी चीजको गिरनेसे पहिले ही हाथोंसे । लोक ।-धुनि*-स्त्री० लोकध्वनि, अफवाह, जनश्रति ।। पकड़ लेना; रास्तेमें ही उड़ा लेना। -नाथ-पु० ब्रह्मा, विष्णु, शिव; राजा; बुद्ध ।-नायक- लोकांतर-पु० [सं०] परलोक ।-गमन-पु० स्वर्गवास । पु. लोकोंका नयन करनेवाला (सूर्य)। -निर्माण- लोकांतरित-वि० [सं०] परलोक गया हुआ, मृत । विभाग-पु० (पब्लिक वर्स डिपार्टमेंट) सार्वजनिक लोकाचार-पु० [सं०] संसारका व्यवहार, चलन । भवन, सड़कें इत्यादि तैयार करनेवाला विभाग ।-नृत्य- लोकाट-पु० एक वृक्ष या उसका फल जो बेरके बराबर पु. (फोक डांस) सामान्य जनतामें प्रचलित नृत्यकी और पकनेपर पीला और मीठा होता है। प्रथा । -नेता(त)-पु० शिव । -प,-पाल-पु० दिक- लोकाधिप-पु० [सं०] लोकपाल; बुद्ध; नरेश । पालनरेश। -पति-पु० ब्रह्मा, विष्णु; नरेश ।-पथ-लोकाना -सक्रि० कोई चीज उछालना; किसीको कोई पु०,-पद्धति-स्त्री० दुनियाका तरीका। -प्रत्यय-पु० चीज उछालकर देना (जैसे गेंद आदि)। वह जो संसारमें सर्वत्र प्रचलित हो (प्रथा आदि)। लोकानुग्रह-पु० [सं०] लोगोंका कल्याण । -प्रवाद-पु. सर्वसाधारणमें प्रचलित बात । -प्रवाही. लोकापवाद-पु० [सं०] लोकनिंदा, बदनामी । (हिन्)-वि० दुनियाके साथ बहनेवाला ।-प्रसिद्ध- लोकाभ्युदय-पु० [सं०] संसारकी उन्नति । वि०विश्व-विख्यात, सर्वज्ञात । -प्रिय-वि० जो बहुतसे लोकायत-पु० [सं०] इसी लोकपर आस्था, विश्वास
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लोकायतिक-लोम रखनेवाला व्यक्ति चार्वाकका अनुयायी; चार्वाक दर्शन | लोटिया-स्त्री० छोटा लोटा। (परोक्ष, परलोकवादका खंडन करनेवाला नास्तिक मत)। लोडम-पु० [सं०] हिलाने-डुलाने, क्षुब्ध या प्रशांत लोकायतिक-पु० [सं०] नास्तिक चार्वाकका अनुयायी। करनेकी क्रिया, मंथन । लोकेश्वर-पु० [सं०] लोकका स्वामी; ईश्वरः बुद्ध । लोड़ना*-स० क्रि० चाहना, जरूरत महसूस करना। लोकैषणा-स्त्री० [सं०] उत्कर्ष, सम्मान आदिकी कामना लोडित-वि० [सं०] मथित, क्षुब्ध किया हुआ। सुखकी अभिलाषा।
लोढ़ना-सक्रि० ओटना साफ करना; * (फूल) तोड़ना। लोकोक्ति-स्त्री० [सं०] कहावत; एक अलंकार (इसमें * अ० क्रि० लोटना, जमीनपर घसिटना। लोकोक्तिका प्रयोग किया जाता है)।
लोढ़ा-पु० सिलपर पीसनेके लिए बना हुआ पत्थरका लोकोत्तर-वि० [सं०] लोकमें प्राप्त पदार्थों से उत्तम, श्रेष्ठ, | गोल, लंबा टुकड़ा, बट्टा। असाधारण, विलक्षण ।
| लोढ़िया-स्त्री० छोटा लोढ़ा । लोकोपकार-पु० [सं०] सार्वजनिक लाभका काम । लोथ-स्त्री० शव, लाश ।-पांथ-वि० लथपथ, थका हुआ। लोकोपयोगी(गिन)-वि० [सं०] लोगोंके लिए उपयोगी, लोथड़ा-पु० मांसका बड़ा टुकड़ा। जनताके कामका। -सेवा-स्त्री० (पब्लिक यूटिलिटी | लोथरा*-पु० दे० 'लोथड़ा'। सर्विस) वह सेवा, कार्य या व्यवस्था जो जनताके लिए लोथि*-स्त्री० दे० 'लोथ' । विशेष उपयोगी या कामकी हो ( जैसे नगरकी जलकल- लोन*-पु० लवण, नमक; सुंदरता, लावण्य । हरामी*व्यवस्था, बिजली, सफाई आदिका काम)।
वि० नमकहराम, कृतघ्न ( मुहावरे ) नमकके साथ । लोखड़ी -स्त्री० लोमड़ी।
लोना-वि० नमकीन; सलोना, सुंदर। पु० क्षार, नोना; लोखर-पु. नाई, बढ़ई आदिके लोहेके औजार किसबत ।। एक साग, अमलोनी । स्त्री० एक जादूगरनी। स० क्रि० लोग-पु० मनुष्य (बहुवचनमें प्रयुक्त)।-बाग-पु० सर्व | लुनना, काटना। • साधारण, जनता।
लोनाई*-स्त्री० सुंदरता। लोगाई-स्त्री० दे० 'लुगाई।
लोनिया-पु० नमक बनाने और बेचनेका व्यवसाय करनेलोच-स्त्री० लचीलापन, लचका कोमलता, मृदुता; अच्छा वाली एक जाति, नोनियाँ । स्त्री० लोनी साग । ढंग; * रुचि, अभिलाषा; लुंचन, नोचना; उखाड़ना। लोनी-स्त्री० एक साग, अमलोनी, चनेकी पत्तियोंपर लोचन-वि० [सं०] चमकानेवाला । पु० आँख, देखनेकी | मिलनेवाला खार, क्षार; शोरा या नमक निकालनेकी क्रिया । -गोचर,-पथ,-मार्ग-पु० दृष्टिपथ, दृष्टिके मिट्टी; लोना; * सुंदर नायिका । * पु० नवनीत । अंदर पड़नेवाला क्षेत्र।
लोप-पु० [सं०] नाश; अभाव; छिपना; शब्दमेके किसी लोचनांचल-पु० [सं०] आँखका कोना ।
अक्षरका लुप्त होना ।-विभ्रम-पु०(एरर्स एंड ओमिशन्स) लोचना -स० क्रि० रुचि, हविस पैदा करना; इच्छा | (हिसाब, ब्यौरे आदिमें हुई) भूल और छूट, भूल-चूक । करना; * प्रकाशित करना । अ० क्रि० चाहना, ललचना लोपना*-सक्रि० मिटाना, लुप्त करना; भंग करना; बिराजना | + पु० कन्याके संतानवती होनेपर पितृगृहसे छिपाना । अ० क्रि० लुप्त होना; छिपना । भेजा जानेवाला मांगलिक उपहार जिसमें सोंठ, गुड़ आदि लोपांजन-पु० [सं०] एक अंजन जिसे लगानेवाला अश्य चीजें रहती हैं।
__ हो जाता है। लोट-स्त्री० लुढ़कना, लोटनेकी क्रिया । पु० घाट; *बिवली। लोबान-[अ०] एक वृक्षका निर्यास जिसे सुगंधके लिए -पोट-स्त्री० आराम करना, लेटना । वि० हँसीके प्रवेगसे आगपर जलाते हैं और दवाके भी काममें लाते हैं। अधीर । मु०-पोट होना-अधिक हँसनेके कारण गिर | लोबानी-वि० [अ०] जिसमें लोबान हो या जिससे पड़ना । -लगाना-लुढ़कना; लेट जाना; किसी चीजपर | लोबान निकले लोबान जैसा, सफेद ।। आशिक होना; जिद करना। -हो जाना-होना- लोबिया-पु० बोड़ेका एक भेद जिसकी तरकारी बनाते हैं रीझना; व्याकुल होना।
| और बीजोंसे दाल और दालमोठ तैयार करते हैं । लोटन-पु. भूमिपर लुढ़कनेवाला एक कबूतर; गहरी लोभ-पु०[सं०] दूसरेकी कोई वस्तु लेनेकी इच्छा, लालच; जोताई करनेका एक हल; रास्तेपरका कंकड़। -सज्जी- लालसा, आकांक्षा अधीरता कंजुसी। स्त्री० एक तरहकी सज्जी।
लोभना*-अ० क्रि० आसक्त, लुब्ध होना। स० क्रि० लोटना-अ०क्रि० नीचे-ऊपर होते हुए जाना, लुढ़कना| लुभाना, मुग्ध करना। करवटें बदलना, छटपटाना; आराम करना, लेटना। लोभनीय-वि० [सं०] लुभानेवाला, मनोहर, आकर्षक। --पोटना-अ० क्रि० लेटना, सोना। मु० लोट जाना- लोभाना*-स० क्रि० मोहना, मुग्ध करना । अ० क्रि० लुढ़कना; संज्ञाहीन होना या मर जाना । लोटता मोहित, मुग्ध होना। फिरना-तड़पता फिरना, व्याकुल होना । लोट-पोटकर लोभार*-वि० लुभाने, मुग्ध करनेवाला । उठ खड़ा होना-बीमार होकर अच्छा हो जाना। लोभित-वि० [सं०] मुग्ध, लुब्ध । लोटपटा*-पु० विवाह में वर-वधूका पीढ़ा बदलनेकी रीति | लोभी(भिन)-वि० [सं०] किसी वस्तुका लोभ रखनेउलट-फेर ।
वाला, लालची; लुब्ध । लोटा-पु० जल रखनेका धातुका एक छोटा पात्र । लोम(न)-पु० [सं०] शरीरपरके बाल, रोम; "छ,
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लोमड़ी लौटना
* लोमड़ी। -कीट-पु० जूं। -कूप,-गत,-रंध्र,- लोहा-पु० एक प्रसिद्ध धातु हथियार, लौहनिर्मित वस्तु विवर-पु० रोएँकी जड़मेंका छेद । -न-पु० बालोंको धोबीका इस्तरी; युद्ध-'दुऔ अनी सनमुख भई लोहा नष्ट करनेवाला रोग, गंजापन । -राजि-स्त्री० लोमा भयेउ असूझ-१०; धाक । मु०-करना-देना-इस्तरी वली। -हर्ष-पु० रोमांच । -हर्षक-वि० रोमांच- करना। -गहना -युद्ध करना; युद्धके लिए तैयार कारी। -हर्षण-पु० रोमांच । वि० अत्यधिक भय, होना । -बजना-युद्ध होना। -बरसना-घमासान हर्ष आदि द्वारा रोएँ खड़े कर देनेवाला (दृश्य, वृत्त युद्ध चलना । (किसीका)-मानना-(किसीका) प्रभाव, आदि)।
प्रभुत्व मानना । (किसीसे)-लेना-लड़ना, साहसलोमड़ी-स्त्री० गीदड़की जातिका एक जानवर ।
पूर्वक सामना करना। -(हे)का दिल-निष्ठुर दिल । लोमा-स्त्री० [सं०] बच ।
-का पानी-तलवार आदिपर चढ़ाया जानेवाला पानी। लोमालि, लोमाली, लोमावली-स्त्री० [सं०] सीनेसे -के चने चबाना-बहुत कठिन कार्य करना। नाभितक उगे हुए धने बाल ।
लोहाना-अ० क्रि० लोहेके पात्र में रहनेके कारण किसी लोय*-पु. लोक, लोग; आँख । स्त्री० ज्वाला, लौ- वस्तुमें उसका स्वाद या रंग आना। 'करनी बिसकी लोय'-साखी । अ० दे० 'लौ'। लोहार-पु. लोहेका काम करनेवाली एक जाति । लोयम-पु० लोचन, आँख ।
-खाना-पु० लोहारके काम करनेका स्थान । म०लोर*-वि० लोल, चंचल, उत्कंठित, उत्सुक । पु० कानकः खानेमें सेवइयाँ बेचना-बेवकूफीका काम करना । लोलकी, ललरी; कानका कुंडल; लटकन, झुमका; आँसू- | लोहारी-स्त्री० लोहारका काम या व्यवसाय । 'चारु आनन लोरधारा बरनि कापै जाय'-सू० । लोहिका-स्त्री० [सं०] लोहेका तसला ।। लोरना*-अ० क्रि० चंचल होना; झुक जाना, झुकना; | लोहित-वि० [सं०] लाल; ताँबेका बना हुआ । पु. लाल लपकना, ललकना; लोटना; लिपटना; तैरना ।
रंग; मंगल ग्रह सर्प, ताँबा रक्त । -ग्रीव-पु० अग्नि । लोरवा -पु० आँसू (ग्राम०)।
-नयन-वि०जिसकी आँखें (क्रोधसे) लाल हों। लोरी-स्त्री० बच्चोंको सुलाते समय गानेका गीत । लोहिया-पु. लोहेका कारबार करनेवाला; मारवाड़ी लोल-वि० [सं०] चंचल, हिलता-डोलता; क्षुब्ध, अशांता बनियोंकी एक जाति; लाल बैल; लोहेको गोली। वि० अस्थिर बदलनेवाला; उत्सुक लोभी। -चक्षु(स),- | लोहेका लाल रंगका (जानवर आदि)। नयन,-नेत्र,-लोचन-वि० जिसकी आँखें चारों तरफ लोही-स्त्री. प्रत्यूषकी लाली-'होत भोर लोही लागत दौड़ती हों। -जिह्व-वि० लालची । पु० सर्प ।
कुस के जनम भये'-ग्राम; लोई; * चुगली । मु०लोलक-पु० [सं०] नथ आदिका लटकन; घंटेका लटकन; फटना-पौ फटना। लोलकी।
लोहू-पु० रक्त, लहू। लोलकी-स्त्री० कानका निचला भाग, ललरी ।
लौं*-अ० तक, पर्यंत; समान, बराबर । लोलना*-अ० कि० हिलना-डोलना; चंचल होना। लौकना-अ० क्रि० चमकना; चकाचौंध होना; सूझना, स० क्रि०हिलाना।
दिखाई देना। लोला-स्त्री० [सं०] जीभ, लक्ष्मी चंचला स्त्री; एक वर्ण- | लौंग-स्त्री० एक प्रकारका वृक्ष या उसकी कली; नाकवृत्त बिजली; एक विशेष प्रकारकी नाव ।
| कानका एक आभूषण । -लता-स्त्री० एक बैंगला मिठाई। लोलाक्षिका, लोलाक्षी-स्त्री० [सं०] चंचल नेत्रोंवाली स्त्री। | लौंडा-पु० छोकरा, लड़का । वि० नादान । -पन-पु० लोलिनी-स्त्री० [सं०] चंचला स्त्री।
लौंडा होना; लड़कपन; छिछोरपन । -(डे)बाज़-पु० लोलुप-वि० [सं०] लालची, लोभी; कोई वस्तु पानेके बालकोंसे प्रेम और अप्राकृतिक संबंध करनेवाला । वि० लिए अधीर, उत्सुक; चटोर ।
स्त्री० किशोरवयके बालकोंसे अनुचित संबंध रखनेवाली लोलुपता-स्त्री०, लोलुपत्व-पु० [सं०] लालची लालसा । प्रौढ़ा (स्त्री)। -बाज़ी-स्त्री. लौंडेबाज होना, लौडोंसे लोवा-स्त्री० लोमड़ी । पु० लवा नामका पक्षी ।
अनुचित संबंध रखना। लोष्ट-पु० [सं०] ढेला।।
लौड़ी-स्त्री० दासी, टहलनी, मजदूरनी। लोहड़ा*-पु. लोहेका पात्र, तसला आदि ।
लौंद-पु० मलमास । लोह-वि० [सं०] ताँबेके रंगका, लाल; लोहेका बना । लौंदरा-पु० पहली वर्षा ।
रक्त हथियार ।-कार-पु. लोहार ।-किट्ट- | लौ-स्त्री० लपट, ज्वाला; दीपशिखा; लोलकी; चाह, धुन । पु० लोहेका मैल । -चून-पु० [हिं०] दे० 'लोहचूर्ण'। लौआ-पु. लौकी, कद् । -चूर्ण-पु० लोहे ? मैल, मोरचा; लोहेका बुरादा । | लौकना -अ० क्रि० देख पड़ना; चमकना ।
| लोकायतिक-पु० [सं०] चार्वाकका अनुयायी, नास्तिक । मोरचा ।-लंगर-पु० [हिं०] जहाजका लंगर कोई बहुत लौकिक-वि० [सं०] लोकका, सांसारिका व्यवहार-संबंधी, भारी चीज । -सार-पु. फौलाद ।
व्यावहारिक; सामान्य । लोहबान-पु० दे० 'लोबान'।
लौकी-स्त्री० धिया, कद्दु । लोहाँगी-स्त्री० वह लाठी जिसमें किसी सिरेपर लोहा लौटपटा-पु० दे० 'लोटपटा। लगा हो।
लौटना-अ०क्रि० वापस आना, फिरना पीछे मुँह फेरना;
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७१५
लौटाना-वंश स्वीकृत बातको अस्वीकार करना । स० क्रि० उलटना- | ताँबेका बना हुआ; लाल ।-आवरण,-पट-पु० (आयर्न पलटना, इधरसे उधर करना। लौट-पीट-स्त्री० दोरुखी करटेन) ऐसा आवरण या प्रतिबंध-व्यवस्था जिसकी आड़में छपाई; उलटने-पलटनेका काम दे० 'लोटपोट' । लौट- होनेवाली बातें दूसरों पर प्रकट न होने पायें (विशेषकर फेर-पु० भारी परिवर्तन, उलट-फेर ।
आधुनिक रूसकी स्थितिके लिए प्रयुक्त)। -कार-पु० लौटाना-स० क्रि० वापस करना; फेरना, बदलना; उलटे लोहार । -ज-पु० मोरचा। -दीवार-स्त्री० [हिं०] पैर वापस करना; उलट-पुलट करना ।
(आयर्न करटेन) दे० 'लौहपट' । -बंध-पु. लोहेकी लौटानी-अ० लौटती बार ।
जंजीर; हथकड़ी । -भांड-पु. लोहेका पात्रा लौन*-पु० लवण, नमक ।
(हार्डवेयर) लोहे ताँबेके बने पात्र तथा अन्य वस्तुएँ । लोना -पु० जानवरोंका अगला और पिछला पैर साथ। -मल-पु. लोहेका मैल । -युग-पु० लोहेके प्राथमिक बाँधनेकी रस्सी; फसलकी कटाई; ईधन । * वि० सुंदर । प्रयोगका ऐतिहासिक काल ।-विहीन-वि० (नॉन-फेरस) लौनी-स्त्री० फसलकी कटाई; अँकवारमें अमानेवाला कटा दे० 'लौहेतर'। -सार-पु० लौहनिर्मित एक नमक । हुआ डंठल । * पु० नवनीत, मक्खन।
लौहित्य-पु० [सं०] लाल सागर लाल रंग। लौरी*-स्त्री० बछिया-'सो सुनि राधिका काँपि गई डरि लौहतर-वि० [सं०] (नॉन-फेरस) (वह धातु) जिसमें दौरिकै लौरिहि सी लपटानी'-सुधानिधि ।
लोहेका मेल न हो, लोहेको छोड़कर अन्य (धातु)। लौल्य-पु० [सं०] चंचलता, अस्थिरता; लोभ ।
ल्याना, ल्यावना*-स० कि० दे० 'लाना' । लौस-पु० [फा०] लिप्त होना; मिलावट; धब्बा (बेलौस) । ल्यौ*-स्त्री० लौ, धुन । लौह-पु० [सं०] लोहा; शस्त्रास्त्र, हथियार । वि० लोहे या ल्वारि*-स्त्री० लू ।
जा करने योग्य।
व-देवनागरी वर्णमालाका उनतीसवाँ व्यंजन, अंतस्थ वर्ण । वंदित-वि० [सं०] पूजितः पूज्य । वंक-वि० [सं०] टेढ़ा, झुका हुआ। -नाली-स्त्री० वंदितव्य-वि० सं०] पूज्य, पूजा करने योग्य सुपुम्ना नाडी।
वंदी (दिन)-पु० [सं०] बंदी, चारण; कैदी। -जनवंकट-वि० टेढ़ा; विकट ।
पु० चारग, भाट ।-पाल-पु० कैदियोंका रक्षक, जेलर । वंकिम-वि० कुछ-कुछ टेढ़ा ।
वंद्य-वि० [सं०] आदरणीय, पूजनीय। वंक्षण-पु० [सं०] पेडू और जाँधके बीचका भाग; ऊरु- वंध्य-वि० [सं०] अनुत्पादक निष्फल; सदोष । संधि ।
वंध्या-स्त्री० [सं०] वह स्त्री या गाय जिसे बच्चा न होता वंग-पु० [सं०] बंगाल; राँगा; राँगेका भस्म ।
हो; एक गंधद्रव्य । -तनय,-पुत्र-सुत,-सूनु-पु० वंगीय-वि० [सं०] बंगालका; बंगाल-संबंधी ।
कोई अनहोनी वस्तु, खयाली चीज । वंचक-वि० [सं०] ठग; धूर्त, खल ।
वंध्यीकरण-पु० (स्टेरिलाइज़ेशन) विशेष प्रक्रिया द्वारा वंचकता-स्त्री० [सं०] ठगी; धूर्तता।
(भूमिको) अनुत्पादक या (स्त्रीको) वंध्य बना देना, वंचन-पु० [सं०] ठगी; धूर्तता, प्रतारणा ।
उत्पादनक्षमता या पुंस्त्वसे रहित कर देना। वंचना-स्त्री० [सं०] छल; ठगी; नष्ट काल या श्रम । * स० वंश-पु० [सं०] वाँस, बाँसकी गाँठ; ईख शहतीर; बँड़े क्रि० ठगना, धोखा देना; + पढ़ना, बाँचना।
बाँसुरी; मेरुदंड; नाककी ऊपरकी हड्डी; कोई लंबी पोली वंचित-वि० [सं०] ठगा, धोखा खाया हुआ, प्रतारित हड्डी; कुल, परिवार जाति; संतान; एक ही जैसी वस्तुरहित, विमुख ।
ओंका समूह । -कपूर-पु० [हिं०] दे० 'वंशकर्पूर'। वंजुल-पु० [सं०] तिनिश; अशोक वेतस; स्थल पभ । -कर्पूर-पु. बंसलोचन । -कर्म (न्)-पु० बाँसकी वंटन-पु० [सं०] हिस्सा लगाना, बाँटना; (एलॉटमेंट) टोकरी आदि बनानेका काम । -ज-वि० बाँसका बना दे० 'आवंटन'।
हुआ;"के वंशमें उत्पन्न । -जा-स्त्री०वंसलोचन कन्या। वंटनीय-वि० [सं०] जो बाँटा जाय, बाँटने योग्य । -तंडुल-पु० बाँसका चावल । -तालिका-स्त्री० वंशवंटित-वि० [सं०] बँटा हुआ, विभाजित ।
वृक्ष ।-तिलक-पु० एक छंद ।-धर,-धारी (रिन्)वंटितांश-पु० [सं०] (कोटा) वह अंश या हिस्सा जो पु० बाँस धारण करनेवाला; कुलका रक्षक; संतान । किसीको वंटित या किसीके लिए निर्धारित किया गया -नाडिका,-नाडी,-नालिका-स्त्री० बाँसकी नली; हो, नियतांश ।
बाँसुरी। -नाथ-पु. कुलका मुखिया । -राज-पु० वंदन-पु० [सं०] स्तुतिः पूजन; नमस्कार; सिंदूर । बहुत लंबा बाँस ।-रोचना-स्त्री० बंसलोचन।-लोचन
-माला,-मालिका-स्त्री० बंदनवार । -वार-पु० पु० बाँसके पोले भागमें बननेवाला सफेद पदार्थ । [हिं०] दे० 'बंदनवार'।
-वर्धन-वि० कुलकी उन्नति करनेवाला। पु० वंशकी वंदना-स्त्री० [सं०] स्तुति प्रणामः पूजन । सक्रि० बंदना'। उन्नति करना। -वृक्ष-पु. बाँसका पेड़; किसी कुलके वंदनीय-वि० [सं०] वंदना, सम्मानके योग्य ।
पूर्वपुरुषों तथा वर्तमान सदस्योंकी वृक्षके ढंगपर बनायी वंदारु-पु०[सं०] स्तोत्र; चारण । वि० विनम्र, वंदनशील । | हुई तालिका, कुरसीनामा। -वृद्धि-स्त्री० कुलोन्नति ।
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प्रतिष्ठा, सार
से मुकदमेको फा०] वकीलका
प्रतिनिधि, वाला वकालत कसकी ओरसे मुकदमोही
वंशागत-वच्छ
७१६ -स्थ-पु० एक वृत्त । -हीन-वि० निर्वंश, जिसके । (करना)। -नामा-पु. वह लेख जिसके द्वारा कोई वंशमें कोई न हो; संतानहीन ।
चीज वक्फ की जाय । वंशागत-वि० [सं०] वंशपरंपरासे प्राप्त उत्तराधिकार में प्राप्त। वक्र-वि० [सं०] टेढ़ा, झुका हुआ; तिरछा, चालबाज; वंशावली-स्त्री० [सं०] वंशतालिका।
बेईमान; निर्दय, कार । -गति-वि० उलटी गतिवाला वंशिका-स्त्री० [सं०] बाँसुरी; अगर, पिप्पली ।
(ग्रहादि); बेईमान; कुटिल । स्त्री० उलटी, टेढ़ी चाल । वंशी-स्त्री० [सं०] बाँसुरी। -धर-पु. कृष्ण । -रव- -गामी(मिन्)-वि० दे० 'वक्रगति' । -ग्रीव-पु. पु० वंशीकी ध्वनि ।-वट-पु. वह बरगदका पेड़ जिसके | ऊँट । -चंचु-पु० तोता। -तुंड-पु० तोता; गणेश । नीचे कृष्ण बंसी बजाते थे।-वादन-पु० बंसी बजाना । -दृष्टि-स्त्री० टेढ़ी निगाह; क्रोधपूर्ण दृष्टि; मंद दृष्टि । व-अ० [फा०] और भी (संयोजक अव्यय, द्वंद्व समास -धर*-पु. शिव (जो दूजके वक्र चाँदको धारण करते बनाने में व्यवहृत-पूर्वाक्षरके अकारसे मिलकर 'ओ' हो है)। -नासिक-पु० उल्लू । वि. टेढ़ी नाकवाला । जाता है-जैसे कमोबेश ।)
-पाद-वि० जिसका पैर टेढ़ा हो। -बुद्धि-मतिवक-पु० [सं०] दे० 'बक' (समास भी)।
वि०धूर्त, बेईमान । स्त्री०धूर्तता; बेईमानी ।-रेखा-स्त्री० वक्रअत(वक्रत)-स्त्री० [अ०] इज्जत, प्रतिष्ठा साख । (कर्ल्ड लाइन) वह रेखा जो सरल या सीधी न होकर वकालत-स्त्री० [फा०] वकीलका काम, पेशा दूसरेको ओर- टेढ़ी, घुमावदार हो।
से मुकदमेकी पैरवी करना; प्रतिनिधित्व। -नामा- | वक्रता-स्त्री०, वक्रत्व-पु० [सं०] टेढ़ापन; कुटिलता; पु० किसी मुकदमेमें वकील होनेका प्रमाणपत्र, वह लेख पीछेकी ओर हटना। जिसके जरिये किसी वकीलको किसी मुकदमेकी पैरवीका | वक्री(क्रिन)-वि० [सं०] कुटिल; गरदन टेढ़ी करने, अधिकार दिया जाय ।
झुकानेवाला; पीछेकी ओर गमन करनेवाला (ग्रह); बेई. वकील-पु० [अ०] प्रतिनिधि; दूसरोंकी औरसे मुकदमोंकी | मान; धूर्त । पैरवी करनेवाला; वकालत करनेका अधिकारी, राज-वक्रोक्ति-स्त्री० [सं०] एक अलंकार जिसमें कावु या शेष
के बलपर भिन्न अर्थ किया जाता है; चमत्कारपूर्ण उक्तिः घकीली -स्त्री० वकालत ।
काकु उक्ति। वकुल-पु० [सं०] दे० 'बकुल'।
वक्षःस्थल, वक्षस्थल-पु० [सं०] सीना, हृदय । वक्त-पु० [अ०] समय, काल; अवकाश; मौका; नियत | वक्ष(स)-पु० [सं०] पेट और गलेके बीचका हिस्सा, काल, मौतकी घड़ी; मुसीबतका वक्त, मुश्किल; वर्त- छाती बैल। मानकाल, ऋतु । -का-वर्तमानकालिक, जमानेका । | बक्षश्छद-पु० [सं०] कवच । -का पाबंद-जी सब काम नियत समयपर करता हो; | वक्षोज, वक्षोरुह-पु० [सं०] कुच, स्तन । समयपालक। -की ख़बी-कालका प्रभाव; दुर्भाग्यकी वक्ष्यमाण-वि० [सं०] वक्तव्य जो कहा जा रहा हो, देन ।-की चीज़-सामयिक वस्तु; काल या ऋतु विशेषके जो कथनका विषय हो । अनुरूप राग, रागिनी। -नावक्त-दे० 'वक्त-बेवक्त'। वगला, वगलामुखी-स्त्री० [सं०] दस महाविद्यालयों मेंसे -बेघवत-समय कुसमय किसी समय, हमेशा । मु०- एक। आ जाना-नियतकाल, मौतकी घड़ी आ जाना । | वगैरह-अ० [अ०] इत्यादि । -गुज़ारना-समय नष्ट करना, दिन काटना । -तंग वचन-पु० [सं०] बोलनेकी क्रिया; आदमीके मुँहसे निकले होना-कालका प्रतिकूल होना।-देना-किसीसे मिलने, हुए सार्थक शब्दोंका समूह, बात, वाणी; कही हुई बात बातचीत आदिके लिए समय नियत कर देना। -पड़ना शास्त्रादिका वाक्या आदेश; घोषणा; उच्चारण; शब्दका -मुसीबत आना, कठिनाई में पड़ना।-पड़ेपर-मुसीबतके अर्थ या भाव; राय, शिक्षा; एक, अनेकका बोध करानेवक्त । -पर-मौकेपर; काम पड़नेपर, गाढ़े वक्तपर । वाला व्याकरणका विशेष विधान । -कार-कारी: -बेवक़्त काम आना-जरूरतके समय काम आना। (रिन)-वि० आशापालक । -पटु-वि० बोलने में वक्तन फवक्तन-अ० [अ०] जबतब, समय-समय पर ।। कुशल । -पत्र-पु० (प्रामिसरी नोट) वह ऋणपत्र जिसमें वक्तव्य-वि० [सं०] कहने योग्य निंदनीय । पु० कथन, सरकार प्रजासे कुछ ऋण लेकर यह प्रतिशा करती है कि वचन; किसी विषय में कथनीय बात ।
अमुक व्यक्तिसे इतना ऋण लिया गया और उसका सूद वक्ता(क्त)-वि० [सं०] कहने, बोलनेवाला; भाषणकलामें इस हिसाबसे ऋणदाताको दिया जायगा दे० 'प्रतिशा
प्रवीण, विद्वान् । पु० कथा कहनेवाला पुरुप, व्यास। पत्र-मुद्रा। -बंध-पु० (एंगेजमेंट) किसीसे मिलने या वक्तृता-स्त्री०, वक्तृत्व-पु० [सं०] भाषण वाकौशल, भविष्य में कोई काम करने आदिका आपसी निश्चय या वाग्मिता।
वचन देना । -बद्ध-वि० जिसने कोई वादा किया हो, वक्त्र-पु० [सं०] मुख, थूथन, चोंचा दंत। -ज-पु० | प्रतिश्रत । -विदग्धा-स्त्री० वह परकीया नायिका जो ब्राह्मण दाँत ।
वाक्चातुर्यसे किसीको वशीभूत करे। वक्त्रासव-पु० [सं०] राल, लाला ।
वचसा-अ० [सं०] वचन द्वारा। वक्फ-पु० [अ०] ठहराव; खुदाके नामपर छोड़ी हुई | वचस्वी (स्विन)-वि० [सं०] भाषणपटु । चीज, देवोत्तर संपत्ति लोकोपकारार्थ दी हुई वस्तु | वच्छ *-पु० वक्ष, छाती; वत्स, बच्चा।
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वज़न-वधालय वज़न-पु० [अ०] तौलनेकी क्रिया; तौल; भार; छंदके -क्रिया-स्त्री० बनियेका पेशा, सौदागरी । -सार्थ-पु० वर्णों या मात्राओंकी माप (उर्दू फारसी); वकअत, महत्त्व | व्यापारियोंका गिरोह, कारवाँ। मान, प्रतिष्ठा । -कश-पु० तौलनेवाला । -दार-वि० वणिग्ग्राम-पु० [सं०] व्यापारियोंका मंडल । बोझवाला, भारी महत्त्वयुक्त, वकअत रखनेवाला। वतन-पु० [अ०] जन्मस्थान; मूल वासस्थान, स्वदेश । वज़नी-वि० वजन रखनेवाला, भारी; महत्त्वयुक्त । -परस्ती-स्त्री० देशभक्ति । वजह-स्त्री० [अ०] कारण, सवबा जरिया।
वतनी-वि० [अ०] अपने देशका, स्वदेशी; स्वदेशवासी। वज़ा (वजन)-पु० [अ०] रखना; तरतीब देना; बनाना; वतीरा-पु० [अ०] तरीका, दस्तूर, चलन, राह । बनावट; ढंग रीति-नीति वेशभूषाका प्रचलित ढंग,फैशन | वत्-अ० [सं०] सादृश्य या समानतासूचक एक शब्द जो प्रसवः मिनहाई ।-दार-वि० सजधजका, शौकीन, तरह- संशा या विशेषणके अंतमें जोड़ा जाता है। दार; सुंदर; फैशनका खयाल रखनेवाला; जो अपनी वत्स-पु० [सं०] बछड़ा, गायका बच्चा:संतान पुत्र (प्रायः वजापर कायम रहे, अपनी रीति-नीतिका त्याग न करे ।। प्यारका सूचन करनेके लिए संबोधन में प्रयुक्त); वर्ष वज़ारत-स्त्री० [अ०] वजीरका काम या पद।।
वत्सासुर; वक्ष, छाती; एक देश। -कामा-स्त्री० बच्चोंको वजाहस-स्त्री० [अ०] सुंदरता भव्यता; बड़प्पन । प्यार करनेवाली; बच्चेकी चाह करनेवाली (स्त्री या गाय)। वज़ाहत-स्त्री० [अ०] खोलकर कहना, विस्तारसे बताना । -दंत-पु० एक तरहका बाण । -नाम-पु० एक विषैला वजीफा-पु० [अ०] नित्यपाठकी प्रार्थना, दैनिक वृत्तिः । पौधा, एक तेज जहर, बछनाग (औषधोपयोगी)। -पाल, मासिक वेतन पेंशन; छात्रवृत्ति।
-पालक-पु० बछड़ोंकी देखभाल करनेवाला कृष्ण, बलवजीर-पु० [अ०] मंत्री। -(२) आज़म-पु. प्रधान राम । -पीता-स्त्री. वह गाय जो बछड़ेको दूध पिला मंत्री।-खारजा-पु० परराष्ट्रमंत्री। जंग-पु० युद्धमंत्री। चुकी हो। -राज-पु० वत्स देशका राजा, उदयन ।
-तालीम-पु० शिक्षामंत्री ।-माल-पु० राजस्वमंत्री। वत्सतरी-स्त्री० [सं०] तीन सालकी बछिया, कलोर । वज़ीरी-पु० सरहदी पठानोंका एक कबीला या जाति । वत्सर-पु० [सं०] वर्ष, साल । स्त्री० दे० 'वजारत'।
वत्सल-वि० [सं०] पुत्र-प्रेमसे युक्त छोटोंके प्रति पुत्रसा घज़-पु० दे० 'वुजू'।
प्रेम करनेवाला। वजूद-पु० [अ०] विद्यमानता, मौजूदगी, जिंदगी। वसिमा(मन)-स्त्री०सं०] बचपन । (बावजूद-इतना होने पर भी)। .
वदंती-स्त्री० [सं०] बात, कथन; कथा । वजूहात, वुजूह-स्त्री० [अ०] 'वजह'का बहु० ।
वदतोव्याघात-पु० [सं०] कथनका दोष, पहले कही हुई। वज्र-वि० [सं०] बहुत कठोर; भीषण; अनौदार, काँटे. बातके विरुद्ध कहना। दार । पु० इंद्रका अस्त्र, कुलिश, अशनि; विजली; कोई वदन-पु० [सं०] चेहरा, मुखड़ा; मुख, शकल; भाषण, घातक अस्त्र; भाला; हीरा आदि छेदनेका औजार। कथन; अग्रभाग; त्रिभुजका शीर्ष। -पवन, मारुत-पु० -घोप-पु० बिजलीकी कड़क जैसी आवाज । -तुंडपु० गणेश; गरुड़ गीध; मच्छर सेहुँ । -पाणि-पु० वदनामय-पु० [सं०] मुखका रोग। इंद्र। -पात-पु. वज्रका या वसा गिरना; भारी वदन्य, वदान्य-बि० [सं०] उदार; अत्यंत दानशील; विपत्ति ।-लेप-पु० एक पलस्तर, दीवार आदि पर लगाने वाग्मी; मधुरभाषी, बातसे संतुष्ट करनेवाला। का एक मसाला । -सार-पु. हीरा। -हृदय-वि० वदाम-पु० [सं०] बादाम नामक फल । बहुत कड़े दिलका।
वदि-अ० [सं०] कृष्ण पक्षमें (महीनेके नामके अंतमें जोड़ा वज्रांग-पु० [सं०] हनूमान् साँप ।
जाता है)। वज्रायुध-पु० [सं०] इंद्र।
वदी-अ० दे० 'यदि'। वज्री (ज्रिन्)-पु० [सं०] इंद्र।
वदुसाना-स० क्रि० भला बुरा कहना, दोषारोप करना। वज्रोली-स्त्री० [सं०] उंगलियोंकी एक विशेष स्थिति । वद्य-वि० [सं०] कहने योग्य, अनिंद्य । पु० बात, कथन; वट-पु० [सं०] बरगदका वृक्ष कौड़ी; गोली; वटिका। कृष्ण पक्षके दिन । -पक्ष-पु० कृष्ण पक्ष । वटक-पु० [सं०] बड़ा, पकौड़ा; वट्टा गोली; आठवध-पु० [सं०] मार डालना, नाश, हनन; मृत्यु या मासेकी तोल ।
शारीरिक दंड; आघात; लकवा; विलोप; गुणनक्रिया वटिका-स्त्री० [सं०] गोली; बरी; शतरंजकी गोटी। मारनेवाला। -कर्माधिकारी(रिन)-पु. जल्लाद । वटी-स्त्री० [सं०] गोली; रस्सी ।
-जीवी(विन्)-पु० वधका काम करके रोजी कमानेवटु-पु० [सं०] ब्रह्मचारी; बालक ।
वाला-कसाई, जल्लाद, व्याधा आदि । -दंड-निग्रह घटुक-पु० [सं०] भैरव-विशेष; बालक; ब्रह्मचारी ।
-पु० फाँसीको सजा। -भूमि-स्त्री०, -स्थान-पु० वट्टक-पु० [सं०] गोलो, वटिका ।
वह स्थान जहाँ प्राणदंड दिया जाय, वधस्थल । वडवा-स्त्री० [सं०] घोड़ी; अश्विनी नक्षत्र; दासी ।-मुख- वधक-वि० [सं०] हत्या करनेवाला; धातक । पु० जल्लाद। पु० वडवानल; शिव । -सुत-पु. अश्विनीकुमार । वधार्ह-वि० [सं०] वधके योग्य । वणिक (ज)-पु० [सं०] व्यापार करनेवाला; बनिया। वधालय-पु० [सं०] (स्लॉटर हाउस) पशुओंके वध -(क)कटक-३० वणिकसार्थ' । -कर्म (न्)-पु०, करनेका स्थान ।
साँस।
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वधिक - वर
वधिक - पु० दे० 'बधिक ; [सं०] कस्तूरी | वधिर - वि० [सं०] दे० 'बधिर' ।
|
वधु वधुका - पु० [सं०] पुत्रवधू; दुलहिन; युवती । वधू- स्त्री० [सं०] दुलहिन; पत्नी; पतोहू; स्त्री । -गृहप्रवेश - पु० स्त्रीका पतिके घर में प्रवेश करनेकी एक विधि । -धन- पु० स्त्रीका निजी धन ।
वधूटी - स्त्री० [सं०] नवयुवती; पुत्रवधू ।
|
वधूत* - पु० दे० 'अवधूत' । वधोपाय- पु० [सं०] मारनेका हथियार या उपाय । वध्य - वि० [सं०] हंतव्य, मार डालने योग्य; दंड्य । पु०वह जिसका वध या सजा की जानेवाली हो । - घातक, -घ्नवि०, पु० प्राणदंड पाये हुए व्यक्तिका वध करनेवाला । - भूमि - स्त्री०, - स्थल, -स्थान- पु० दे० 'वधभूमि' । वन- पु० [सं०] (फॉरेस्ट) जंगल; बाग, उपवन; जल; घर । - कदली- स्त्री० जंगली केला । - कुंजर, - गज-पु० जंगली हाथी । - गमन - पु० संन्यास ग्रहण । -चर- पु० वनमें भ्रमण करनेवाला आदमी; जंगली आदमी; पशुः एक जीव; : शरभ । - चारी (रिन्) - पु० वनचर । -ज, - जात-पु० जंगल में रहनेवाला; हाथी; कमल; मोथा; जंगली विजौरा नीबू । - जीवी (विन्) - पु० लकड़हारा ; बहे - लिया । - द - पु० बादल । - देव, देवता- पु० जंगलका अधिष्ठाता देवता । - देवी - स्त्री० जंगलकी अधिष्ठात्री देवी । - नाशन - पु० ( डीफॉरेस्टेशन ) किसी क्षेत्रको जंगल या जंगलोंसे रहित कर देना । - पाल-पु० ( रेंजर) जंगल या वनकी देख-भाल करनेवाला अधिकारी । - प्रस्थ - वि० तपस्वी । - मातंग - पु० वनकुंजर | - मानुष - पु० बंदर और आदमी दोनोंसे मिलता-जुलता एक तरहका जंगली प्राणी । -माला - स्त्री० बनके फूलोंकी माला; घुटनोंतक लंबी ऋतु कृसुमोंकी माला (कृष्णकी) । - माली (लिन् ) - वि० वनमाला पहनने वाला | पु० कृष्ण । -रक्षक, संरक्षक - पु० (कनसवेंटर ऑफ फॉरेस्ट्स) वनोंका संरक्षण करनेवाला, उन्हें हानि या विनाश से बचानेवाला । -राज-पु० सिंह । - राजि, - राजी - स्त्री० वन, जंगल, वृक्षसमूह; जंगलकी पगदंडी | - रुह - पु० कमल । -रोपण - पु० (एफॉरेस्टेशन) किसी भूमिको वन या जंगल के रूपमें परिणत करनेका काम । - लक्ष्मी - स्त्री० वनकी शोभा केला । - वास-पु० वनमें रहना । - वासी (सिन्) - वि० वनमें रहनेवाला । पु० वनमें रहनेवाला व्यक्ति । -विज्ञान- पु० (सिलवी कलचर) वृक्षारोपण आदि संबंधी विज्ञान । - व्रीहि - पु० तिनी । - स्थ- पु० वनवासी व्यक्ति; वानप्रस्थ; मृग । - स्थली - स्त्री० वनकी भूमि, जहाँ वन हो । -हास
० काँस; एक फूल, कुंद ।
वनस्पति - स्त्री० [सं०] बिना फूलोंके वृक्ष ( गूलर, पीपल, पाकर आदि - मनु० ); पेड़-पौधे; दे० 'वनस्पति घी' ।-धी (तेल) - पु० [हिं०] बिनौले, मूँगफली आदिका जमाया हुआ तेल । - शास्त्र - पु० पेड़, पौधों आदिके विषय में सांगोपांग विवेचन करनेवाला विज्ञान, वनस्पति विज्ञान | वनांत - पु० [सं०] वनकी भूमि; वनका सीमांत भाग । वनांतर - पु० [सं०] अन्य वनः वनका भीतरी भाग ।
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७१८
वनाग्नि - स्त्री० [सं०] वनमें लगनेवाली आग, दावानल | वनिता - स्त्री० [सं०] स्त्री; प्रिया, प्रेयसी ।
वनी - स्त्री० [सं०] छोटा वन ।
वनोत्सर्ग-पु० [सं०] मंदिर, कूप आदि बनवाकर सार्वजनिक उपयोगके लिए दान करना ।
वनौषधि - स्त्री० [सं०] जंगली जड़ी-बूटी |
वन्य- वि० [सं०] वनमें पैदा होनेवाला; जंगली । वन्या - स्त्री० [सं०] सघन वन; वनोंका समूह; जल-प्लावन । वपन - पु० [सं०] बीज बोना; केश- मुंडन । वपित - वि० बोया हुआ ।
वपु - पु० [सं०] शरीर ।
वधुमान - वि० वपुष्मान्, सुंदर और पुष्ट देवाला । वपुष्मान् ( मत्) - वि० [सं०] शरीरी, मूर्त; सुंदर । वप्ता (तृ) - पु० [सं०] पिता, जनक; बीज बोनेवाला । वप्र- पु० [सं०] भीटा, दूहा, मिट्टीका स्तूप; साँड़ आदिका सींगसे दूह आदिकी मिट्टी कुरेदना । - क्रिया, -क्रीड़ास्त्री० साँड़ आदिका ढूहकी मिट्टी कुरेदना ।
वफ़ा - पु० [अ०] वचनका पालन; (प्रीति मित्रता आदिका ) निर्वाह; कर्तव्यपालन; कृतज्ञता । -दार - वि० वचनपालक; प्रीति, मित्रता आदिका निर्वाह करनेवाला; स्वामिभक्त, राजभक्त । - दारी - स्त्री० वफादार होना । वनात - स्त्री० [अ०] मृत्यु, मौत । मु० - पाना - मर जाना । वन्द - पु० [सं०] दूतमंडल, प्रतिनिधि-मंडल ( डेपुटेशन) । वबा - स्त्री० [अ०] मरी, महामारी । - ई - वि० महामारीरूप, छुतही (बीमारी) ।
वबाल - पु० [अ०] कठिनाई; बोझ, भार; बला, अभिशाप । वमन - पु० [सं०] उलटी, कै करना; बाहर निकालना । वमना* - स० क्रि० कै करना ।
मित- वि० [सं०] वमन किया हुआ; वमन कराया हुआ । वयःपरिणति - स्त्री० [सं०] अवस्थाकी प्रौढ़ता । वयःसंधि - स्त्री० [सं०] बाल्य और तारुण्यके बीचका काल | वयःस्थ - वि० [सं०] जवान; बली; प्रौढ़ । पु० समसामयिक व्यक्ति; समवयस्क मित्र ।
वय ( स ) - पु० [सं०] उम्र, अवस्था । वयन - पु० [सं०] बुनना, बुननेकी क्रिया । वयस - पु० अवस्था, उम्र; [सं०] पक्षी ।
वयस्क - वि० [सं०] उम्र, अवस्थाका ( समस्तरूप में प्रयुक्त, जैसे अल्पवयस्क, समवयस्क); सयाना, बालिग । -मताधिकार - पु० ( ऐडल्ट सफरेज ) विधानसभा आदिके प्रतिनिधि चुननेका वह अधिकार जो राज्य के सभी वयस्क नागरिकों को, बिना किसी भेद-भावके, प्राप्त होता है । वयस्य - वि० [सं०] समवयस्क; हमजोली । पु० मित्र, साथी । वयस्या - स्त्री० [सं०] सहेली; अंतरंग सखी । वयोवृद्ध - वि० [सं०] बूढ़ा |
वरंच - अ० [सं०] बल्कि, अपितु; लेकिन ।
वर - पु० [सं०] चुनाव; पसंद; इच्छा; देवता या गुरुजनों से इच्छा पूर्ति के लिए की जानेवाली प्रार्थना या उनकी कृपासे मिलनेवाला फल; दूल्हा; प्रेमिक । वि० श्रेष्ठ । - ज - वि० बड़ा, ज्येष्ठ, अग्रज । - द - दाता (तृ) - वि० वर देनेवाला । - दक्षिणा- स्त्री० कन्यापक्षकी ओरसे
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७१९
वरन-वर्ण
विवाहके समय बरको दिया जानेवाला धन, दहेज । वरुणात्मजा-स्त्री० [सं०] वारुणी, शराब । -दान-पु० देवता गुरुजनका प्रसन्न होना; किसीको इष्ट वरुणालय-पु० [सं०] समुद्र। वस्तु देना; किसीकी कृपासे प्राप्त वस्तु ।-दानी (निन्)- वरुणाचास-पु० [सं०] समुद्र । वि० वर देनेवाला; वरप्राप्त (वीर)। -दायक-वि० वर वरूथ-पु० [सं०] बख्तर, सन्नाहा बचाव; रथपरका घेरा; देनेवाला । -पक्ष-पु० बराती। -यात्रा-स्त्री० च्याहके ढाल; सेना समूह। -प-पु० दलनायक; सेनापति । समय वरका बाजे-गाजे के साथ कन्याके घर जाना; बरात । वरूथिनी-स्त्री० [सं०] सेना।। वरक-पु० [अ०] कटा हुआ कागज, पुस्तकका पन्ना; सोने, वरेण्य-वि० [सं०] मुख्य पूजनीया सर्वोत्कृष्ट । चाँदीका पत्तर; फूलकी पँखड़ी।-साज़-पु० चाँदी सोने- वरोरु, वरोरू-वि० स्त्री० [सं०] उत्तम जाँघोंवाली; सुंदरी । का पत्तर बनानेवाला । मु०-उलटना-पुस्तकको उलट- वर्ग-पु० [सं०] स्वजातीय या समान-धर्मियोंका समूह; पलटकर देखना, पुस्तकपर सरसरी निगाह डालना; भारी दल; एक स्थानसे उच्चरित होनेवाले वर्षों का समूह; ग्रंथका परिवर्तन, क्रांति होना ।-स्याह करना-बहुत लिखना। विभाग, अध्याय; समान अंकोंका घात; ( स्क्वेयर ) वह वरज़िश-स्त्री० [फा०] अभ्यास, शारीरिक श्रम कसरत । समानांतर चतुर्भुज जिसकी चारों भुजाएँ बराबर और सब वरण-पु० [सं०] चुनना याचना करना; घेरना; ढकना; कोण समकोण हो । -पद-पु० वर्गमूल, वह संख्या रक्षण पतिका चुनाव; * रंग। -स्वातंत्र्य-पु० (फ्रीडम जिसके घात, गुणनसे वर्गका अंक प्राप्त हो । -पहेलीऑफ चॉइस) वरण करने, चुननेकी स्वतंत्रता ।
स्त्री० [हिं०] (क्रॉसवर्ड पजल) वह पहेली जिसमें दिये हुए वरणी-स्त्री० किसी धार्मिक कार्यके लिए वस्त्र, पात्रादि द्वारा संकेतोंके अनुसार खड़े और पड़े स्तंभोंके रिक्त खानोंमें, पुरोहितादिका सम्मान ।
जिनकी संख्या दोनों ओरसे (लंबाईके बल चाहे चौड़ाईवरणीय-वि० [सं०] चुनने योग्य; ग्रहण करने योग्य; के बल) बराबर होती है, उपयुक्त अक्षर बैठाकर शब्द प्रार्थना करने योग्य (वरके लिए)।
बनाने पड़ते है तथा जहाँ एकसे अधिक शब्द बननेकी वरदी-स्त्री० [अं॰] किसी विभागके कर्मचारियोंके लिए गुंजाइश हो वहाँ स्वविवेकसे सोंचित शब्दका चुनाव निर्धारित विशेष पहनावा।
करना पड़ता है। -फल-पु० समान राशियोंका गुणनवरना-* स० क्रि० चुनना, वरण करना;पतिरूपमें स्वीकार फल । -मूल-पु. वह संख्या जिससे वर्गीक बनता है ।
करना । पु० ऊँट । अ० [फा०] नहीं तो, फिर । वर्गलाना-सक्रि० उकसाना; बहकाना; किसीको उकवान-अ० वरम्, बल्कि, ऐसा नहीं (क०)।
साकर कोई काम कराना। वरम-पु० कवच, [अ०] शोथ, सूजन ।
वाँक-पु० [सं०] वह अंक जो किसी संख्याका वर्ग हो। वरही* -पु. मोर ।
वर्गीकरण-पु० [सं०] वर्गके अनुसार वस्तुओंका विभाग वरांग-पु० [सं०] मस्तक भग, योनि मुख्य भाग। करना। वरांगना-स्त्री० [सं०] सुंदर स्त्री।
वर्गीय-वि० [सं०] वर्ग-विशेषसे संबद्ध । पु० एक ही वर्गवराक-पु०[सं०] शिव युद्ध । वि० दीन दयनीय; भाग्य- | का सदस्य, अक्षर आदि । हीन; दुःखी; हीन, बुरा।
वर्चस्व-पु० तेज, प्रभाव; श्रेष्ठता (असाधु) । वराट-पु० [सं०] कौड़ी; रस्सी।
वर्चस्वान्(स्वत्)-वि० [सं०] शक्तिशाली; तेजोमय । वराटक-पु० [सं०] कोड़ी रस्सी; कमलगट्टा ।
वर्चस्वी(स्विन्)-बि० [सं०] तेजस्वी; उत्साही । वराटिका-स्त्री० [सं०] कौड़ी; नागकेसर तुच्छ वस्तु । वर्जक-वि० [सं०] छोड़नेवाला; निषेध करनेवाला । वरानना-स्त्री० [सं०] सुमुखी, सुंदर स्त्री।
वर्जन-पु० [सं०] निषेध; छोड़ना, त्याग; हिंसा, बध । वरान्न-पु० [सं०] उत्तम अन्न ।
वर्जना*-स० क्रि० निषेध करना, रोकना। वरार्थी(र्थिन)-वि० [सं०] वर चाहनेवाला।
वर्जित-वि० [सं०] त्यक्त, छोड़ा हुआ; अग्राह्यः निषिद्ध । वरासत-स्त्री० [अ०] वारिस होना; उत्तराधिकार मृत वर्य-वि० [सं०] वर्जनीय; निषिद्ध ।
संपत्ति, तरका, रिवथ। -की सनद- वर्ण-पु० [सं०] रंग; रँगने, लिखनेके काम आनेबाला वारिस होनेका प्रमाण-पत्र । -नामा-पु० उत्तराधिकार- रंग; जाति; भेद; अक्षर; शब्द; स्वर; ख्याति, यश; पत्र।
अच्छा गुण प्रशंसा: बाह्य रूप; पोशाक; एककी संख्या वरासतन-अ० [अ०] उत्तराधिकाररूपमें ।
सोना; धार्मिक कृत्य; अंगरागलेपन केसर । -क्रम-पु० वरासन-पु० [सं०] दूल्हेके बैठनेका पीढ़ा; उत्तम आसन । रंगोंका क्रम । -खंडमेरु-पु० छंदःशास्त्रकी एक क्रिया वराह-पु० [सं०] सूअर; भेड़ा; साँड़।
जिसके अनुसार बिना मेरुके निश्चित वर्गों के वृत्तों आदिवरिष्ठ-वि० [सं०] पूजनीय; सबसे अच्छा; बहुत भारी । की संख्या मालूम हो जाती है। -गत--वि०रँगा हुआ, वरीयता-स्त्री० (प्रेफरेंस) किसी वस्तुको दी गयी तरजीह, वणित; बीजगणित-संबंधी ।-च्छटा-स्त्री० (स्पेक्ट्रम) दे० अधिमान्यता।
'वर्णपट' ।-नाश-पात-पु० किसी अक्षरका शब्दमेंसे वरीयान् (यस्)-वि० [सं०] बड़ा, श्रेष्ठ; अधिक मान्य । लुप्त हो जाना।-पट-पु० (स्पेक्ट्रम) किसी छिद्र या दरारवरुण-पु० [सं०] एक आदित्य; एक देवता जो जलके से आनेवाले प्रकाशके त्रिपार्वकाच(प्रिज्म )पर पड़नेसे अधिपति और पश्चिमके दिक्पाल कहे गये हैं; जल, समुद्र दिखाई देनेवाले सात रंगोंकी पट्टी, वर्णच्छटा (ये रंग वे ही एक ग्रह (नेपच्यून)।
होते हैं जो इंद्रधनुष्के होते हैं)। -पताका-स्त्री० छंद--
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वर्णक-वर्षक
शास्त्रकी एक विधि जिससे वर्णवृत्तोंके भेदों में आनेवाली वर्तमान-वि० [सं०] जो इस समय चल रहा हो, चालू लघु और गुरु मात्राओंकी संख्या मालूम हो जाती है। उपस्थित, विद्यमान; साक्षात् ; आधुनिक, हालका। पु० -परिचय-पु० संगीतका शान; अक्षरोंका शान या यह व्याकरणका एक काल जिससे सूचित होता है कि क्रिया करानेवाली पुस्तिका । -प्रत्यय-पु० वर्णवृत्तोंके कुल भेद | मौजूदा समय में हुई या हो रही है। तृत्तांत । जाननेकी छंदःशास्त्रकी विशेष प्रक्रिया। -प्रस्तार-पु० वर्ति-स्त्री० [सं०] कोई लपेटी हुई वस्तु, बत्ती; अंजन; निश्चितसंख्यक वर्गों के भेद-उपभेद और स्वरूप प्रकट करने | घावमें भरनेकी बत्ती; धावपर बाँधनेकी एक तरहकी पट्टी। वाली छंदःशास्त्रकी विशेष प्रक्रिया। -भेद-पु० रंग या -ग्रह-पु० (बर्नर) किसी दीपक, लैंप आदिका वह भाग जातिके कारण होनेवाला भेदभाव । -मर्कटी-स्त्री० | जिसमें बत्ती पड़ी रहती है तथा जो उसकी लौका नियंत्रण छंदःशास्त्रकी एक विशेष प्रक्रिया जिससे निश्चितसंख्यक करता है (कुछ लोग इसे 'दग्धक' भी कहते हैं)। वर्गों के संभाव्य वृत्तों आदिका पता लगता है।-माला,- | वर्तिका-स्त्री० [सं०] बत्ती; सलाई, शलाका; तूलिका। राशि-स्त्री० अक्षरोंकी यथाक्रम सूची, स्वर-व्यंजन सहित वर्तित-वि० [सं०] धुमाया, चलाया हुआ; संपादित । सभी अक्षर । -विकार-पु० किसी वर्णका दूसरे वर्णका वर्ती-स्त्री० [सं०] दे० 'वति' । रूप ग्रहण करना (निरुक्त)। -विचार-पु० वर्णोंके | वर्ती(र्तिन)-वि० [सं०] बरतनेवाला; स्थित रहनेवाला आकार, उच्चारण और संधिके नियमोंसे युक्त व्याकरणका (पदांतमें-जैसे दूरवी आदि); करनेवाला । एक भाग । -विद्वेष-पु० (कलर प्रेजुडिस) (अश्वेत) वर्ण | वर्तुल-वि० [सं०] गोल, वृत्ताकार । पु० गाजर; मटर । या रंगके कारण किसी व्यक्ति या व्यक्ति-समूहसे विद्वेष | वर्तलाकार, वर्तलाकृति-वि० [सं०] गोल । करनेकी प्रवृत्ति ।-विपर्यय-पु० वर्णोंका उलट-फेर होना | वर्म(न)-पु० [सं०] मार्ग; लीक; प्रथा; पलक; औंठ, (निरुक्त)। -वृत्त-पु० वह छंद जिसके चरणोंमें लघु गुरु | बारी, किनारी; आधार, आश्रय । यथाक्रम और वर्णसंख्या समान हो। -व्यवस्था,- | वर्दी-स्त्री० दे० 'वरदी' । व्यवस्थिति-स्त्री०हिंदू समाजके चार वर्णा में विभाजित | वर्द्धक, वर्धक-वि० [सं०] बढ़ानेवाला पूर्तिकारक । किये जानेकी परिपाटी वर्णविभाग। -संकर-पु० दो | वर्द्धकी(किन्), वर्धकी(किन)-पु० [सं०] बढ़ई। भिन्न जातियोंके स्त्री-पुरुषके सहवाससे उत्पन्न व्यक्ति। वर्द्ध (ध)न-पु० [सं०] काटना, छीलना; पाल-पोसकर वर्णक-पु० [सं०] नकाब, अभिनेताकी पोशाक।
बड़ा करना; बढ़ाना; अभ्युदय करनेवाला; बढ़ानेवाला; वर्णन-पु० [सं०] चित्रण; रंगना; लिखना; कोई बात | दूसरे दाँतपर जमनेवाला दाँत । व्योरेवार कहना, बयान प्रशंसा, गुणकथन ।
वर्द्ध(ध)मान-वि० [सं०] बढ़ता हुआ; वृद्धिशील । वर्णना-स्त्री० [सं०] ब्योरेवार कुछ कहना; प्रशंसा, गुण- | वर्द्ध(ध)यिता(त)-पु० [सं०] बढ़ानेवाला । कथन ।
वर्द्धित, वर्धित-वि० [सं०] बढ़ा हुआ; कटा हुआ; वर्णनातीत-वि० [सं०] जिसका वर्णन न किया जा सके। भरा हुआ। वर्णनीय-वि० [सं०] चित्रण या वर्णनके योग्य । वद्धिष्णु, वर्धिष्णु-वि० [सं०] वृद्धिशील । वर्णातर-पु० [सं०] भिन्न जाति, दूसरी जाति ।
वर्म(न)-पु० [सं०] बख्तर, कवच, आश्रयस्थान; बचाव । वर्णाध-वि० [सं०] (कलर ब्लाइंड) जिसे रंगोंका ज्ञान न | -धर-हर-वि० कवच धारण करनेवाला, कृतसन्नाह । हो, जो रंगोंमें भेद न कर सके।
वर्मा(र्मन्)-पु० [सं०] एक उपाधि जिसका क्षत्रिय, वर्णानुक्रमसे-अ० (एलफाबेटिकली) वर्णों के अनुक्रमसे। | कायस्थ आदि प्रयोग करते है। वर्णाश्रम-पु० [सं०] जाति और आश्रम । -धर्म-पु० वर्वट-पु० [सं०] बोड़ा, लोबिया ('बरबटी' छत्तीस०) वर्ण और आश्रम-संबंधी कर्तव्य ।।
वर्वर-पु० [सं०] एक देश; नीच जाति; वर्वर देशका वर्णिक-पु० [सं०] लेखक । वि० वर्ण-संबंधी। -वृत्त-पु० निवासी (धुंधराले बालवाला); मूर्ख । दे० 'वर्णवृत्त'।
| वर्य-वि० [सं०] श्रेष्ठ; चुनने योग्य; प्रधान ( पदांत में वर्णिका-स्त्री० [सं०] चित्र या चित्र-शैली में व्यवहृत विशिष्ट प्रयुक्त-जैसे 'पंडितवर्य')। पु० कामदेव । वर्गों, रंगोंका समवाय; स्याही, मसि ।
वर्ष-पु० [सं०] वर्षा; एक काल परिमाण, साल (सौर, वर्णित-वि० [सं०] कथित; वर्णन किया हुआ; चित्रित । चांद्र, नाक्षत्र और सावन); पृथ्वीका खंड; भारत ।-गाँठ वर्ण्य-पु० [सं०] प्रस्तुत विषयः उपमेय । वि० वर्णन या -स्त्री० [हिं०] दे० 'बरसगाँठ'। -न-वि० वर्षा रोकने चित्रणके योग्य ।
या वर्षासे बचानेवाला ।-त्र-त्राण-पु० छाता ।-पति वर्तका, वर्तकी-स्त्री० [सं०] मादा बटेर।।
-पु० वर्षका अधिपति (ग्रह)। -प्रवेश-पु० नये सालवर्तन-पु० [सं०] चकर खाना; घुमाना; फेर-फार; व्यव- का आरंभ। -प्रिय-पु० चातक । -फल-पु० वर्षभरहार, आचरण; (कमोशन) एजेंट या दलालको किसी सौदे- का शुभाशुभ, इष्टानिष्ट सूचित करनेवाली कुंडली।-बोध पर मिलनेवाली छूट या रकम, दस्तूरी। -अभिकर्ता- -पु० (ईयर बुक) प्रतिवर्ष प्रकाशित होनेवाली वह पुस्तक (1)-पु० ( कमीशन एजेंट) कमीशन या दलाली लेकर जिसमें वर्षभरकी मुख्य घटनाओं, सामाजिक और राजकिसी बड़े व्यवसायी या व्यापारिक संस्थाके प्रतिनिधि, नीतिक हलचल तथा विशेष जानकारीकी बातोंका संकलन अभिकर्ता(एजेंट)का काम करनेवाला।
किया गया हो। वर्तनी-स्त्री० [सं०] मार्ग; पिसाई तकला, रहना; हिज्जे। वर्षक-वि० [सं०] बरसानेवाला; वर्षा करनेवाला ।
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वर्षण-वसी वर्षण-पु० [सं०] वृष्टि ।
अपने अनुकूल करानेकी शक्ति; अधिकार में करना । वि० वर्षांग-पु० [सं०] महीना।
अधीन; आशाकारी; मुग्ध । -कर-वि० वशमें करने वर्षा-स्त्री० [सं०] वृष्टि; बरसात । -काल-पु० बरसात । वाला । -गा-स्त्री० आशामें रहनेवाली स्त्री। -वर्ती-प्रिय-पु० चातक । -बीज-पु० ओला।
(तिन् )-वि० जो किसीके वशमें हो । मु०-कावर्षागम-पु० [सं०] वर्षाका आरंभ ।
जिसपर जोर या अधिकार हो। -चलना-कुछ करनेकी वर्षाधिप-पु० [सं०] वर्षका अधिपति (ग्रह)।
शक्ति होना । -मैं होना-अधिकार, आज्ञामें होना। वर्षाशन-पु० [सं०] वर्षभरके भोजनके रूपमें दिया जाने | वशा-स्त्री० [सं०] स्त्री; गाय; हथिनी कन्या; ननद । वाला अन्नदान।
वशानुग-पु० [सं०] आशाकारी, दास । वि० वशीभूत । वर्षीण, वर्षीय-वि० [सं०] .."सालका ।
वशिता-स्त्री०, वशित्व-पु०[सं०] अधीनता; सम्मोहन । वर्षेश-पु० [सं०] दे० 'वर्षाधिप'।
वशिष्ठ-पु० [सं०] दे० 'वसिष्ठ' । वर्षोपल-पु० [सं०] ओला ।
वशी(शिन)-वि० [सं०] शक्तिशाली संयमी, अपनेको वई-पु० [सं०] मोरका पंख, पत्ता ।
वशमें रखनेवाला। वहीं(हिन्)-पु० [सं०] मोर ।
वशीकर-वि० [सं०] वशमें करनेवाला । वलन-पु० [सं०] घूमना, चक्कर खाना क्षोभ ग्रह आदि-वशीकरण-पु० [सं०] वशमें लाना मंत्रादिके प्रयोगसे का मार्गसे विचलित होकर चलना, वक्रगति ।
किसीको वशीभूत करना । वसभि, बलभी-स्त्री० [सं०] वड़भी, चंद्रशाला; घरकी | वशीकृत्-वि० [सं०] वशमें किया हुआ; मंत्र द्वारा वशमें चोटी छाजन सौराष्ट्र की एक पुरानी नगरी ।
किया हुआ। वलय-पु० [सं०] कंकण; छल्ला, अंगूठी कटिबंध; घेरा।| वशीभूत-वि० [सं०] अधीन, जो वशमें हो गया हो। वलयित-वि० [सं०] घिरा हुआ, चेष्टित; चक्कर खाता वश्य-वि० [सं०] वशमें किये जाने योग्य या किया जानेदुआ; गोल मुड़ा हुआ।
वाला; वशमें किया हुआ । पु० दास आश्रित । वलाक-पु० [सं०] बक, बगला।
वश्यका-स्त्री० [सं०] आशामें रहनेवाली स्त्री। वलायत-स्त्री० [अ०] वली होना; दे० 'विलायत'। वश्यता-स्त्री० [सं०] अधीनता । चलाहक-पु० [सं०] दे० 'बलाहक'।।
वश्या-स्त्री० [सं०] वशीभूता स्त्री लगाम, गोरोचन । वलि-स्त्री० [सं०] सिकुड़न, झुरी; चंदनादिसे शरीरपर घसंत-पु० [सं०] छ ऋतुओंमेंसे एक जो चैत्र-वैशाखमें बनी हुई रेखा; पेट में पड़नेवाला बल; कतार ।
होती है (वसंत देवरूपमें कामदेवका सहचर माना जाता वलित-वि० [सं०] बल खाया हुआ; मोड़ा, झुकाया हुआ;
है); अतिसार, मसूरिका । -काल-पु. वसंत ऋतु । धेरा हुआ; संबद्ध युक्त सिकुड़नदार; लिपटा हुआ। -घोष,-घोपी(पिन्)-पु० कोकिल । -तिलकवली-पु० [अ०] स्वामी; संरक्षक; अलाइका प्यारा सिद्ध पु०,-तिलका-स्त्री० एक वर्णवृत्त । -पंचमी-स्त्री० पुरुष; नाबालिगकी जायदादकी रक्षाके लिए जिम्मेदार माघशुक्ला पंचमी और उस दिन होनेवाला त्योहार । आदमी । स्त्री० [सं०] दे॰ वलि'; तरंग।-मुख-पु०बंदर। -बंधु-पु० कामदेव । -महोत्सव-पु. होलिकोत्सव । वलीवर्द-पु० [सं०] बैल ।
-यात्रा-स्त्री. वसंतोत्सव । -व्रण-स० मसूरिका । वल्कल-पु० [सं०] पेड़की छाल; पेड़की छालका कपड़ा। -सख-पु० कामदेव मलयानिल । वल्द-पु० [अ०] बेटा; पुत्र ।
वसंती-पु० सरसोंके फूल जैसा एक हलका पीला रंग । वल्दीयत-स्त्री० [अ०] माँ-बापका नाम, वंश-परिचय । वि० वसंती रंगका । स्त्री० वासंती लता। वल्मी-स्त्री० [सं०] चींटी, दीमक । -कूट-पु० बिमौट । वसंतोत्सव-पु० [सं०] होलिकोत्सव । वल्मीक-पु० [सं०] दीमक, चींटी आदिकी चाली हुई वसअत-स्त्री० [अ०] फैलाव कुशादगी गुंजाइश आराम । मिट्टीका ढेर, विमौट; इलीपद नामक रोग ।
वसति, वसती-स्त्री० [सं०] वास, रहना; घर; शिविर वल्लकी-स्त्री० [सं०] वीणा; सलईका पेड़ ।
आबादी, वस्ती; आधार। वल्लभ-वि० [सं०] प्रिय, प्यारा । पु० प्रियजन; नायक वसन-पु० [सं०] वस्त्र ढकनेकी वस्तु, आवरण, निवास । पति अध्यक्ष स्वामी।
वसवास-पु० [अ०] भुलावा; भ्रम; शंका, संदेह । वल्लभा-स्त्री० [सं०] प्रियतमा, प्रेयसी । वि० प्यारी। वसवासी-वि० [अ०] भुलावेमें डालनेवाला; शक करनेवल्लभी-स्त्री० [सं०] गुजरातका एक राजनगर; गोपिका। वल्लरि, वल्लरी-स्त्री० [सं०] लता मंजरी ।
वसह*-पु० बैल । वल्लवी-स्त्री० [सं०] गोपिका।
वसा-सी० [सं०] मेद, मेद या चरबीवाला पदार्थ; भेजा। वल्लाह-अ० [अ०] खुदा कसम, सचमुच ।
वसित-वि० [सं०] पहना हुआ; बसा हुआ; जमा किया वल्ली -स्त्री० [सं०] लता।
हुआ। पु० वस्त्र, वास-स्थान; वशंकर-वि० [सं०] वश में करनेवाला।
वसितव्य-वि० [सं०] पहनने, धारण करने योग्य । वशंवद-वि० [सं०] वशवतीं; आशाकारी।
वसिष्ठ-पु० [सं०] एक ऋषि; सप्तर्षिमंडलका एक तारा; वश-पु०[सं०] किसीका प्रभाव, शक्ति जिससे दूसरेसे कोई एक स्मृतिकार । काम करा लिया जाय, काबू, इच्छा, चाह; किसी बातको वसी-पु० [अ०] वह व्यक्ति जिसको वसीयत की गयी हो
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वसीअत-वाक्रिया
७२२
या जिसके नाम वसीयतनामा लिखा गया हो।
शब्द; दूरस्थ, परोक्ष पदार्थों का संकेत (विशेषणके रूप में वसीअत, वसीयत-स्त्री० [अ०] मृत्यु या लंबी यात्राके भी प्रयुक्त होता है-जैसे वह लड़का)। वि० [सं०] ले अवसरपर मृत्यु के बाद अपनी संपत्तिके प्रबंध, उपभोग | जानेवाला, वहन करनेवाला (जैसे 'भारवह')। आदिके विषय में किया हुआ आदेश। -नामा-पु. वहन-पु० [सं०] बेड़ा, नाक खीचकर, लादकर कहीं ले मृत्युके बादके कर्तव्योंका आदेश-पत्र, मृत्युपत्र ।
जाना; सिर, कंधेपर लेना, धारण करना, उठाना; (कॉनवसीका-पु० [सं०] कौल-करार; इकरारनामा; दस्तावेज; वेक्शन) ताप या विद्युत्के एक स्थानसे दूसरे स्थानको ऋणपत्र । -दार-वि०, पु० जिसके हकमें वसीका लिखा जानेकी वह रीति जिसमें पदार्थ के कण घनत्वमें अंतर गया हो; महाजन ।
होनेके कारण एक स्थानसे हटकर दूसरे स्थानपर पहुँचते वसीला-पु० [अ०] जरिया सहारा; सहायता ।
हैं और ताप या बिजली देते हैं । वसुंधरा-स्त्री० [सं०] पृथ्वी; देश; राज्य ।
वहनीय-वि० [सं०] उठा या खींचकर ले जाने योग्य; वस-पु० [सं०] धन; रत्न; सोना; जल; पदार्थ; आठ | धारणीय, ऊपर लेने योग्य । देवताओंका एक वर्ग; आठकी संख्या कुबेरशिव; अग्नि; वहम-पु० [अ०] शक; शंका; कल्पना; भ्रममूलक, गलत सूर्य । स्त्री. प्रकाश, दीप्ति प्रकाश-रश्मि; अमरावती; खयाल । -का पुतला-वहमी। अलका । -देव-पु० कृष्णके पिता । -धा-स्त्री० पृथ्वी, | वहमी-वि० [अ०] भ्रमजनित; वहम करनेवाला । क्षिति; राज्य लक्ष्मी । -धा-धर-पु० पहाड़; विष्णु । वहशत-स्त्री० [अ०] वहशीपन, आदमियोंसे भड़कनेका -श्रेष्ठ-वि० वसुओंमें श्रेष्ठ (कृष्ण)।
भाव; घबराहट, चित्तकी अति चंचलता, भय, सनक । वसुमती-स्त्री० [सं०] पृथ्वी; देश; राज्य ।
वहशियाना-वि० [अ०] वहशीकी तरह, जंगली जानवर वसूल-वि० [अ०] मिला हुआ, प्राप्त ।
या आदभीके अनुरूप । वसूली-स्त्री० [अ०] वसूल करनेकी क्रिया; उगाही। वहशी-वि० [अ०] जंगली, आदमियोंकी सुहवतसे घबराने, वस्तव्य-वि० [सं०] रहने, ठहरने योग्य ।
भागनेवाला; उजड्डु, असभ्य । वस्ति-स्त्री० [सं०] पेड़ , नाभिके नीचेका भाग; मूत्राशय वहाँ-अ० उस जगह (दूरके लिए)। पिचकारी निवास कपड़ेका छोर ।।
वहिल-पु० [सं०] पोत; एक तरहका रथ । -कर्म(न)-पु० लिंग, गुदा आदिमें पिचकारी देना। वहिरंग-वि०, पु० [सं०] दे० 'बहिरंग'। -कोश-पु० मूत्राशय ।
वहिर्गत-वि० [सं०] दे० 'बहिर्गत'। वस्ती-वि० [अ०] दरमियानी, बीचका।
वहिर्देश-पु० [सं०] गाँव या नगरके बाहरका स्थान; वस्तु-स्त्री० [सं०] वह पदार्थ जिसकी स्थिति, सत्ता हो; | परदेश, बहिर्देश। सत्य चीज, पदार्थ; व्यावहारिक पदार्थ, वृत्तांत, इतिवृत्त वहिार-पु० [सं०] दे० 'वहिर'। नाटककी कहानी, घटना, कथा-वस्तु । -जगत्-पु० | वहिर्मख-वि०, पु० [सं०] दे० 'बहिर्मुख' । दृश्यमान जगत् । -ज्ञान-पु० वस्तुकी पहचान; तत्त्व- | वहिापिका-स्त्री० [सं०] दे० 'बहिर्लापिका'। शान, मूल तत्त्वका बोध । -निर्देश-पु० वह मंगला- वहिर्विकार-पु० [सं०] दे० 'बहिर्विकार' । चरण जिसमें कथाका कुछ संकेत, आभास रहता है। | वहिष्कार-पु० [सं०] दे० 'बहिष्कार'। सूची। -प्रेपणादेश-पु. (इनडेंट) माल भेजनेके लिए वहिष्कृत-वि० [सं०] दे० 'बहिष्कृत' । (देशके बाहरसे) दिया गया लिखित आदेश । -वाद- | वहीं-अ० उसी जगह (दूर, परोक्षके लिए)। पु० एक दार्शनिक सिद्धांत जिसमें दृश्य जगतको यथारूप | वही-सर्व० पूर्ववणित व्यक्ति, निर्दिष्ट व्यक्ति, दूसरा नहीं। सत् मानते हैं, भूतवाद । -विनिमय-पु. वस्तुओंका | वहै*-सर्व० वह ही, वही । अदल-बदल । -स्थिति-स्त्री. वास्तविक स्थिति । वति-पु० [सं०] अग्नि; जठराग्नि; पाचन क्षुधा। -कुंद वस्तुतः(तस्)-अ० [सं०] यथार्थतः, असल में ।
-पु० आग रखनेके लिए बना हुआ गडढा । -जायावस्तूत्प्रेक्षा-स्त्री० [सं०] उत्प्रेक्षा अलंकारका एक भेद । स्त्री० स्वाहा । -मित्र-पु० वायु । -मुख-पु० देवता। वस्तूपमा-स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद । -शिखा-स्त्री० आगकी लपट; कलिकारी; धातकी । वस्त्र-पु० [सं०] कपड़ा; पोशाक। -गृह-पु० खेमा । | वांछनीय-वि० [सं०] चाहने योग्य, अभिलषणीय । -ग्रंथि-स्त्री० इजारबंद, नीबी। -दशा-स्त्री० कपड़े. वांछा-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाह । की किनारी । -धारणी-स्त्री० अलगनी। -पुत्रिका- | वांछित-वि० [सं०] इच्छित, चाहा हुआ । पु० इच्छा। स्त्री० गुड़िया। -पूत-वि० कपड़ेसे छाना हुआ।-बंध-वांछितव्य, वांछच-वि० [सं०] अभिलषणीय । पु० नीबी, नारा। -भवन-पु० खेमा । -भेदक- | वा-अ० [सं०] या, अथवा । * सर्व०'वह'का विकृत रूप । भेदी(दिन)-पु. दीं। -विलास-पु० वेष-भूषा- वाइ* -सर्व० उसको । स्त्री० वापी । प्रियता। -वेश्म(न)-पु० खेमा ।
वाइदा-पु० [अ०] दे० 'वादा। वस्त्रांचल, वस्त्रांत-पु० [सं०] कपड़ेका छोर ।
वाक-पु० [सं०] वाक्य; बगलोंका झुंड । * स्त्री० वाणी, वस्त्रागार-पु० [सं०] कपड़ेकी दुकान ।
सरस्वती। वस्ल-पु०[अ०] मिलन, प्रेमी-प्रेमिकाका मिलन; संभोग । | वाक़ई-अ० [अ०] वस्तुतः, सचमुच । वह-सर्व बातचीतमें दूरस्थित, परोक्ष व्यक्ति के संकेतका | वाकि(क)आ-पु० [अ०] घटना वृत्तदुर्घटना, हादिसा।
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वाकिआती-वाच्यावाच्य -नवीस,-निगार-पु. खबरें लिखनेवाला, वृत्त- व्यक्ति जो बोलने में विशेष कुशल हो। -वैदग्ध्य-पु० लेखक ।
भाषण, कथोपकथनमें चतुरता; अलंकार और चमत्कारवाकिआती-वि० [अ०] घटनामूलक, परिस्थितिसे प्राप्त । मयी उक्तियों में दक्षता, प्रवीणता ।
-शहादत-स्त्री० (घटनाकी) परिस्थितिसे मिलनेवाली | वाग्मिता-स्त्री०, वाग्मित्व-पु० [सं०] पांडित्य; भाषण(अप्रत्यक्ष) शहादत ।
पटुता। वाकिफ-वि० [अ०] जानकार, जानने, समझनेवाला। वाग्मी(ग्मिन्)-वि० [सं०] भाषण-पटु, अच्छा बोलनेअभिश । -कारी-स्त्री० जानकारी, परिचय ।
वाला; बहुत बोलनेवाला; पंडित । पु० बृहस्पति विष्णु । वाकिफीयत-स्त्री० [अ०] जानकारी, अभिशता, परिचय । | वाङ्मय-वि० [सं०] वाक्यात्मक वाक्य, वचन-संबंधी; वाने(वानेअ)-वि० [अ०] होनेवाला, घटित होनेवाला, | वचन, वाणीसे किया हुआ (जैसे-वाङ्मय पाप); पठनसामने आनेवाला; असली । मु०-होना-घटित होना । पाठन-संबंधी.। पु० गद्य-पद्यरूपमें लिखित वाक्य; वाक्यवाकोचाक्य-पु० [सं०] कथोपकथन, बातचीत; तर्क। । समूह; ग्रंथ, ग्रंथ-समूह; साहित्य । वाक् (च)-स्त्री० [सं०] शब्द; वाणी, वाक्य कथन वाङ्मुख-पु० [सं०] भाषणका आरंभिक अंश, भूमिका । वादा; बोलने की इंद्रिय; सरस्वती । -कलह-पु० झगड़ा, वाचक-वि० [सं०] सूचक, बतानेवाला; मौखिक । पु० कहासुनी। -केलि-स्त्री० हँसी-मजाक । -चपल-वि० पाठक, बोलनेवाला; दूत; महत्त्वपूर्ण शब्द; उपमासूचक बड़बड़िया। -छल-पु. बहाना, टालमटूलवाली बात; शब्द संज्ञा, संकेत, नाम । -धर्मलुप्ता-स्त्री. वह उपमा काकुके सहारे वितंडा खड़ा करना। -पद-वि० बात
जिसमें वाचक और साधारण धर्मका लोप हो। -पदकरने में चतुर । -पति-पु० बृहस्पति पुष्य नक्षत्र
पु० साभिप्राय शब्द, सार्थक शब्द । -लुप्ता-स्त्री. वह भाषणकुशल व्यक्ति, वाग्मी । -पाटव-पु० भाषण
उपमा जिसमें उपमावाचक शब्द न हो। पटुता ! -पारुष्य-पु० कर्कशता, अपशब्द आदि । - वाचकोपमानधर्मलुप्ता-स्त्री० [सं०] वह उपमा जिसमें प्रतोद-पु० ताना । -शलाका-स्त्री० लगनेवाली बात ।। वाचक, उपमान और धर्म लुप्त हों। -स्तंभ-पु० अवाक रह जाना, बोल न निकलना।
वावकोपमानलुप्ता-स्त्री० [सं०] वह उपमा जिसमें वाचक वाक्य-पु० [सं०] पदोंका वह समह जिससे वक्ताका| और उपमान न हों। अभिप्राय स्पष्टतः समझमें आ जाय; कथन; आदेशः वाचकोपमेयलुप्ता-स्त्री० [सं०] वह उपमा जिसमें वाचक साक्ष्य; तर्क। -खंडन-पु० तर्कका खंडन । -पद्धति
__ और उपमेयका लोप हो । स्त्री० वाक्य बनानेका नियम । -रचना-स्त्री० वाक्य वाचन-पु० [सं०] पढ़नेकी क्रिया, पठन; उच्चारण,बाँचना; बनाना, वाक्यका निर्माण । -विन्यास-पु० पदोंका (रीडिंग) विधानसभा या लोकसभामें किसी विधेयकके यथास्थान रखा जाना (व्या०)।-विशारद-वि० भाषण- रखे जानेपर उसका विचार, बहस आदिके लिए पहली, पद।
दूसरी या तीसरी बार पढ़ा जाना, जिसके बाद ही वह वागना*-अ० कि० दे० 'बागना';चलना-'मुकि ठुमुकि । आतम रूपस स्वाकार +
| अंतिम रूपसे स्वीकार किया जा सकता है। वाग कौसिलाके आँगनमें'-रघु०।
वाचनालय-पु० [सं०] वह स्थान जहाँ समाचारपत्र और वागीश-पु० [सं०] कविः वक्ता; ब्रह्मा, बृहस्पति । वि० पत्रिकाएँ पढ़नेके लिए रखी हों। अच्छा बोलनेवाला।
वाचस्पति-पु० [सं०] बृहस्पति विद्वान् सुवक्ता । वागीशा, वागीश्वरी-स्त्री० [सं०] सरस्वती; वाणी। वाचा-अ० [सं०] वचनसे, वचन द्वारा। स्त्री० वचन, वागीश्वर-पु० [सं०] कवि; ब्रह्मा; वृहस्पति एक बोधिसत्त्व । शब्द वाणी; शपथ; सरस्वती। -बंध-वि० प्रतिज्ञावागीसा-स्त्री० दे० 'वागीशा', वाणी-'तदपि देवि मैं देव बद्ध । -वंधन-पु० प्रतिशामें बँधना ।-बद्ध-वि०वादे,
असीसा । सफल होन हित निज वागीसा-रामा। प्रतिशासे विवश ।-विरुद्ध-वि० जो कथनके योग्य नहो। वागुरा-स्त्री० [सं०] फंदा, जाल ।
वाचाट-वि० [सं०] बकवादी, बातूनी; डींग मारनेवाला । वागुरिक-पु० [सं०] हिरन फैमानेवाला व्याधा। वाचाल-वि० [सं०] बोलने में तेज, पटु; बकवादी; डींग वाग-स्त्री० [सं०] 'वाक(च)का समासगत रूप ।-जाल- | मारनेवाला; शब्दमय। पु० बातोंकी लपेट । -दंड-पु. डाँट-फटकार, भर्त्सना। | वाचालता-स्त्री० [सं०] बहुभाषण, बातचीतकी निपुणता। -दत्त-वि० जिसको देनेकी बात कह दी गयी हो । वाचिक-वि० [सं०] वाणी-संबंधी; मौखिक, वाणी द्वारा -दत्ता-स्त्री. वह कन्या जिसके विवाहको ठहरौनी व्यक्त । पु० अभिनयका एक भेद जिसमें केवल वाणीके किसीके साथ हो चुकी हो। -दान-पु० किसीके साथ आश्रयसे अभिनय किया जाता है। कन्याका विवाह संबंध तय करना । -देवता-पु० | वाची(चिन)-वि० [सं०] वाक्ययुक्त, बोलता हुआ; स्त्री० सरस्वती। -देवी-स्त्री० सरस्वती। -दोष-पु० | बोधक, सूचक (पदांतमें)। बोलनेकी त्रुटि; व्याकरण-संबंधी दोष । -युद्ध-पु०वाच्य-वि० [सं०] कहने योग्य; जिसका अभिधाशक्तिसे शब्दोंका युद्ध, झगड़ा। -विदग्ध-वि. पंडित वार्ता- बोध हो; निंद्य। पु०अभिधेयार्थ; क्रियाका एक रूप (व्या०)। कुशल । -विभव-पु० वर्णनशक्ति; भाषाका विशेष वाच्यार्थ-पु० [सं०] मूल अर्थ, शब्दका नियत अर्थ, झान-विरोध-पु० कहासुनी। -विलास-पु० मौज, | अभिधेयार्थ । दिलबहलावके लिए बातचीत करना। -वीर-१० वह वाच्यावाच्य-पु० [सं०] कहने-न-कहने योग्य बात ।
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वाजपेयी-वानप्रस्त वाजपेयी(यिन)-पु० [सं०] वह व्यक्ति जिसने वाजपेय। वात्सल्य रसको दसवाँ रस मानते हैं)। यज्ञ किया हो ब्राह्मणोंकी एक उपाधि ।
वाद-पु० [सं०] बातचीत; किसी तत्त्व, सिद्धांत आदिपर वाजिब-वि० [अ०] जरूरी उचित; करणीय ।
विचार-विमर्शके लिए होनेवाली बातचीत; तक बहस वाजिबी-वि० [अ०] उचित; आवश्यक ।
विवरण, व्याख्या सिद्धांत; किसी शास्त्रके विशेषशों द्वारा वाजी (जिन्)-पु० [सं०] घोड़ा; अडूसा।
निश्चित मूलभूत तत्त्वों या सिद्धान्तोंका समाहार, ध्वनि; वाजीकरण-पु० [सं०] औषध द्वारा शक्तिवर्द्धन या | ध्वनि करना; अफवाह; उत्तरदावा। -अस्त-वि० कामोद्दीपन।
अनिश्चित, अनिणीत, विवादास्पद । -पत्र-पु० (प्लेंट) वाट-पु० [सं०] बाड़ा, घेरा; सड़क, मार्ग।
वादी द्वारा किसीके विरुद्ध न्यायालयमें उपस्थित किया वाटिका-स्त्री० [सं०] बगीचा; उद्यान ।
गया लिखित आरोप। -पद-पु० ( इशू) न्यायालयके वाडब, पाडव-वि० [सं०] घोड़ी-रबंधी। पु० समुद्रके | सामने रखा गया वह विषय जो उभय पक्षोंके
अंदरकी आग ब्राह्मण, घोड़ा या घोड़ियोंका समूह । बीचके झगड़ेका मूल कारण हो। -प्रतिवाद-पु० वाडवाग्नि-स्त्री० [सं०] समुद्र के अंदरकी आग ।
बहस, उत्तर-प्रत्युत्तरशास्त्रीय तत्त्वविचारमें होनेवाला वाडवानल-पु० [सं०] दे० 'वाडवाग्नि' ।
कथोपकथन । -मूल-पु० (कॉज ऑफ ऐक्शन) वाण-पु० [सं०] दे० 'बाण' ।
कोई व्यवहार या मुकदमा न्यायालयमें उपस्थित किये वाणिज्य-पु० [सं०] व्यापार; (कॉमर्स) बड़े पैमानेपर जानेका कारण वह झगड़ा जिसके कारण न्यायालयमें किया जानेवाला व्यापार जिसमें बैंकोंका कारबार, कंप- मामला चलाया जाय । -युद्ध-पु० झगड़ा; बहस । नियोंके हिस्सोंकी खरीद-बिक्री, बीमा-संबंधी उद्योग आदि -विषाद-पु. झगड़ा; बहस । -विषय-पु० (मैटर भी सम्मिलित हैं। -दूत-पु० किसी देशका वह प्रति- फॉर डिसकशन, सबजेक्ट मैटर ) वह विषय जिसके संबंधनिधि जो अन्य देशमें स्वदेशके व्यापारिक हितोंकी रक्षाके | में विवाद या चर्चा की जाय, विचारणीय विषय । - लिए नियुक्त हो।
व्यय-पु. (कारटम ) वाद या मुकदमेका व्यय जो वाणिज्यालय-पु० [सं०] (एंपोरियम) वाणिज्यका मुख्य न्यायालय द्वारा जीतनेवाले पक्षको दिलाया जाय । - स्थान, बाजार; बड़ी दुकान ।
समाप्ति-स्त्री० (अबेटभेंट ऑफ सूट ) मामले या मुकवाणी-स्त्री० [सं०] सरस्वती; सार्थक शब्द, वचन बोली। दमेका खारिज कर दिया जाना । -हेतु-पु० (इशू) वात-पु० [सं०] वायुः पवनदेवः शरीरसे निकली हुई | झगड़ेका विषय जो न्यायालयके सामने उपस्थित हो और हवा; शरीरस्थ वायुके प्रकोपसे होनेवाले रोग, गठिया जिसके तंबंधमें न्यायाधीशको निर्णय करना हो; दे० आदि । -चक्र-पु० ज्योतिषमें एक योग ( इसमें वायुकी 'वादमूल'। दिशासे फलाफलका विचार किया जाता है); बवंडर । वादक-पु० [सं०] शास्त्रार्थ करनेवाला; बजानेवाला। -ज-वि० वायुसे उत्पन्न । -ज्वर-पु० वात कुपित
-दल,-वृंद-पु० (आरकेस्ट्रा) नाट्यशालामें विशेष होनेसे उत्पन्न होनेवाला एक ज्वर ।-प्रकोप-पु० वायुकी
स्थानपर समवेत होकर बाजा बजानेवालोंका दल या समूह । अधिकता ।-व्याधि-स्त्री० गठिया । सख-पु० अग्नि।।
वादन-पु० [सं०] बाजा बजाना । वातात्मज-पु० [सं०] हनूमान् ; भीम ।
वादा-पु० [अ० 'वायदा'] वचन, प्रतिज्ञा, करार; कर्ज वातापि-पु० [सं०] एक राक्षस (कहते हैं यह भेड़ बन
अदा करनेका वक्त । -खिलाफ-वि. वचन भंग करनेजाता था और उसका भाई आतापि इसे मारकर ऋषियों
वाला, जो वादोंको पूरा न करे। -खिलाफ़ी-स्त्री० को खिला देता था और फिर नाम लेकर पुकारता तो यह
वचन-भंग । -शिकन-वि० वादोंको तोड़नेवाला। पेट फाड़कर निकल आता। ऐसे ही एक अवसरपर अगस्त्य
|वादानुवाद-पु० [सं०] शास्त्रार्थ, तर्क-वितर्क । इसे पचा गये ।)-द्विट (प),-सूदन,-हा (हन्)- वाटिन-पु० [सं०] बाजा; संगीत । -लगुड-पु० नगाड़ा पु० अगस्त्य ।
आदि बजानेकी लकड़ी। वातायन-पु० [सं०] झरोखा, खिड़की।
वादी(दिन)-पु० [सं०] बोलनेवाला, वक्ता; पूर्ववक्ता, वातारि-पु० [सं०] एरंड; शतमूली; शेफालिका, सूरन । | अदालतमें कोई अभियोग, मुकदमा चलानेवाला, मुदई; वातावरण-पु० [सं०] पृथ्वीके चतुर्दिक स्थित वायुः परि- गायक; बाजा बजानेवाला; रागका मुख्य स्वर । स्थिति, जीवनको प्रभावित करनेवाली परिस्थिति ।
वाद्य-पु० [सं०] बाजा, बाजेका स्वर बजाना; कथन, वातावर्त-पु० [सं०] बवंडर ।
भाषण । वि. जो कहा या बजाया जानेको हो।-संगीत वाताश, वाताशी (शिन्)-पु० [सं०] साँप ।
-पु० (इंस्ट्र मेंटल म्यूजिक) वाद्य-पत्रों द्वारा उत्पन्न की वातास*-स्त्री० बयार, हवा ।
गयी मधुर ध्वनि । -स्थान-पु. (आरकेस्ट्रा) नाट्यवातुल-वि० [सं०] वातग्रस्त, गठिया रोगसे पीड़ित वायु
शाला या वाद्यभवनका वह स्थान जहाँ सामूहिक रूपसे प्रकोपसे जिसकी बुद्धि ठिकाने न हो; पागल ।
बाजा बजानेवाले बैठते हैं। वात्या-स्त्री० [सं०] बवंडर; अंधड़ । -चक्र-पु० बवंडर।वाद्यमान-वि० [सं०] जो बजने या बोलने में प्रवृत्त किया वात्सरिक-वि० [सं०] वार्षिक । पु० ज्योतिषी ।
जाय । पु० वाघ संगीत ।। वात्सल्य-पु० [सं०] प्रेम, स्नेहा संतानके प्रति माता
, स्नहीं सतानक प्रात माता | वानप्रस्थ-पु० [सं०] आर्योंके चार जीवन-विभागों, आश्रपिताका स्नेह । -रस-पु० एक भाव (कुछ आचार्य मोमेंसे तीसरा, इस आश्रममें प्रविष्ट व्यक्ति, उदासी
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वानप्रस्थ्य-वारंट संन्यासी।
वामागम, वामाचार-पु० [सं०] एक तांत्रिक मत (इसमें वानप्रस्थ्य-पु० [सं०] वानप्रस्थकी अवस्था ।
पंचमकारोंके आश्रयसे उपास्यकी पूजा की जाती है)। वानर-पु० [सं०] बंदर । -केतन,-केतु,-ध्वज-पु० वामाचारी(रिन्)-पु० [सं०] तांत्रिक मतका अनुयायी, अर्जुन।
वाममार्गी । वानरी-स्त्री० [सं०] केवाँच; मर्कटी, बंदरी; * बंदरोंकी सेना | वामावर्त-वि० [सं०] बायीं ओरको घूमा हुआ; बायी
-'करिहौं महि विनु वानरी बाढ़ी मन यह जोम'-रघु०।। भोरसे घूमकर की जानेवाली (परिक्रमा)। पु० वह शंख वानरेंद्र-पु० [सं०] सुग्रीव या हनूमान् ।
जिसमें बायीं ओरका धुमाव हो। वानस्पतिक खाद-स्त्री० (कंपोस्ट) गोबर, मल, पौधों | वामी-स्त्री० [सं०] घोड़ी; गधी; गीदड़ी।
आदि(के मिश्रण)से निर्मित खाद, कूड़े आदिसे बनी खाद । वामी(मिन्)-वि० [सं०] वामाचारी वमन करनेवाला। वानस्पत्य-वि० [सं०] वृक्ष-संबंधी; वृक्षसे प्राप्त या प्रस्तुत वामेक्षणा-स्त्री० [सं०] दे० 'वामनयना' । होनेवाला; वृक्षके नीचे होनेवाला (यज्ञादि); वृक्षके नीचे | वामोरु, वामोरू-स्त्री० [सं०] सुंदर उरु-जाँघोंवाली स्त्री रहनेवाला (शिव) । पु० पौधा; फूल-फल देनेवाला वृक्ष, सुंदरी स्त्री।
आम, जामुन आदि किसी वृक्षका फल; वृक्षोंका समूह । वाय-* स्त्री० वापी; वायु । * सर्व वाहि, उसको । पु० वाना-स्त्री० [सं०] बटेर ।।
[सं०] बुनना; सीना तागा; पक्षी; नायक । -दंडवानिक-वि० [सं०] जंगल में रहनेवाला ।
पु० करधा। -रज्जु-स्त्री० करघेकी बै। वानीर-पु० [सं०] बेत या सरकंडा; चित्रक । -गृह- वायक-पु० [सं०] जुलाहा। पु० सरकंडेका मंडप।
पायन-पु० [सं०] देवपूजाके लिए या विवाहादिके अवसरवानीरक-पु० [सं०] मुंज।।
पर बननेवाली मिठाई। वापस-वि० [फा०] लौटा हुआ लौटाया, फेरा हुआ। | वायव-वि० [सं०] वायु-संबंधी; पश्चिमोत्तर । वापसी-वि० फेरा, लौटाया हुआ। स्त्री० वापस होने, | वायवी-स्त्री० [सं०] उत्तर-पश्चिमका कोण । करनेका भाव । -किराया-पु० वापसी यात्राका वायवीय-वि० [सं०] वायु-संबंधी। किराया। -टिकट-पु. वापसी यात्राके लिए मिलने-वायव्य-वि० [सं०] वायु-संबंधी । पु० पश्चिमोत्तर कोण । वाला टिकट । -मुलाकात-स्त्री० मुलाकातके बदले में वायव्या-स्त्री० [सं०] पश्चिमोत्तर दिशा। की जानेवाली मुलाकात । -यात्रा-स्त्री०,-सफर-पु० वायस-पु० [सं०] अगर तारपीन कौवा । प्रस्थानके स्थानको लौटनेकी यात्रा लौटानीकी यात्रा। वायसाराति, वायसारि-पु० [सं०] उल्लू । वापि-स्त्री० [सं०] तालाब ।
वायसी-स्त्री० [सं०] कौवेकी मादा; काकमाची, छोटी वापिका-स्त्री० [सं०] चौड़ाकुआँ, बावली; छोटा तालाब। मकोय; सफेद धुंधची। वापी-स्त्री० [सं०] तालाब; बावली।
वायु-स्त्री० [सं०] हवा ( पाँच तत्त्वों में से एक); साँस । वाम-* स्त्री० स्त्री, वामा। वि० [सं०] बायाँ; विरुद्ध | -ग्रस्त-वि. गठिया या उन्माद रोगसे आक्रांत ।-घट टेढ़ा; नीच; बुरा; कठोर, निर्दयः सुंदर; प्रिय । -दृशी- -पु. (गैसजार) बेलनकी शक्लका शीशेका लंबासा विशेष स्त्री० दे० 'वामनयना'। -देवी-स्त्री० दुर्गा सावित्री । पात्र जिसमें ओषजन आदि वायव्य द्रव्य भरकर विविध -नयना,-लोचना-स्त्री० सुंदर नेत्रोंवाली स्त्री-पंथी, प्रयोग किये जाते हैं। -तनय,-नंदन,-पुत्र,-सुत, -पक्षी-पु. (लेफ्टिस्ट) राजनीति भादिमें उग्र विचारों- -सूनु-पु० हनूमान्; भीम। -पंचक-पु० शरीरस्थ का अनुयायी ।-भ्र-स्त्री० सुंदर भौंओंवाली स्त्री बायीं पाँच वायुओंका समाहार । -पथ,-मार्ग-पु० (एयरभौं। -मार्ग-पु. वेदविरुद्ध तंत्रमत (इसमें मद्य, मांस, वेज) आकाशमें वायुयानोंके आने-जानेका-विमान-यात्रामैथुन आदि निषिद्ध बातोंका विधान है)। -मोष-पु० का-मार्ग। -भक्ष,-भोजन-वि० वायु पीकर रहने बहुमूल्य वस्तुओंकी चोरी। -रथ-पु. एक गोत्रकार वाला । पु० साँप; योगी, तपस्वी। -भक्षक-वि०, पु० ऋषि, वामरथ्य गोत्रके मूल पुरुष । -शील-वि० बुरे हवा पीकर रहनेवाला । -भक्ष्य-वि० हवा पीकर रहनेस्वभावका । -स्वभाव-वि० अच्छे स्वभावका । वाला । पु० सर्प । -भारमापक यंत्र-पु० (बैरोमीटर) -हस्तिक-वि० (लेफ्ट हैडर) दे० 'बयँहत्था'। वायु-मंडल में हवाका दबाव या भार नापनेका यंत्र । वामक-वि० [सं०] वमन करनेवाला प्रतिकूल; निष्ठुर । । -भुक्(ज)-वि०, पु० दे० 'वायुभक्ष' । -मंडल-पु. पु० एक संकर जाति; एक भावभंगी।
आकाशा वातावरण बवंडर ।-यान-पु० हवाई जहाज । वामन-वि० [सं०] बौना, बहुत छोटे डील-डीलका हस्व, -लोक-पु० एक लोक (पु०)।-वर्म(न)-पु० आकाश ।
खर्व, नीच । पु० बौना आदमी; विष्णुका एक अवतार ।। -वाह-पु० धुआँ वाष्प । -वाहन-पु० धुआँ विष्णु; वामनक-वि० [सं०] छोटे कदका, बौना । पु० छोटे कद- शिव ।-संभव-पु० हनूमान्ः भीम ।-सख,-सखिका आदमी, बौना; एक पहाड़, ठिंगनापन।
पु० अग्नि । वामांगिनी, वामांगी-स्त्री० [सं०] पत्नी ।
वारंट-पु० [अं॰] वह आज्ञापत्र जिससे किसीको कोई धामा-स्त्री० [सं०] स्त्री; दुर्गा, गौरी लक्ष्मी, सरस्वती विशेष कार्य करनेका अधिकार दिया जाय ।-गिरफ्तारीएक वर्णवृत्त; स्कंदकी एक अनुचरी।
पु० [हिं०] सरकारी कर्मचारीको किसीको गिरफ्तार करनेके वामाक्षी-स्त्री० [सं०] दे० 'वामनयना'।
लिए दिया गया अधिकार-पत्र । -तलाशी-पु० [हिं०]
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वारंवार - वार्डर
किसी सरकारी कर्मचारीको किसी स्थान या व्यक्तिकी तलाशी लेनेके लिए दिया गया अधिकारपत्र । - रिहाईपु० [हिं०] अदालतका आज्ञापत्र जिसके अनुसार सरकारी कर्मचारी बंदीको मुक्त कर सके या कुर्क जायदाद वापस कर सके ।
वारंवार - अ० दे० 'बारंबार' |
वार - पु० आक्रमण; आघात; नदी आदिका इधरका किनारा; [सं०] रोक; ढक्कन; द्वार; घिरा हुआ स्थान; नियत समय; बारी, दफा दिन (सोम, भौम आदि); अवसर ; जनसमूह; बाणः शिवः मदिरापात्र, पानपात्र; एक कृत्रिम विप; कुंज वृक्ष; जलराशि । कन्यका, कन्या, नारी, -मुखी, - युवती, - योषित् - स्त्री० वेश्या । -तिय* - स्त्री० वेश्या । - पार पु० [हिं०] नदी आदिके दोनों किनारे | अ० इस ओरसे उस ओरतक। -पार करनापूरी मोटाई बेधकर दूसरी ओर निकलना । मु० - पार होना - पूरा विस्तार तै करना ।] -वधू - वनिता, - वाणी, विलासिनी, - सुंदरी, - स्त्री - स्त्री० वेश्या । - सेवा - स्त्री० कसब, वेश्यावृत्ति । मु०-खाली जानाआघातका निशाने पर न लगना, युक्तिका सफल न होना । वारक - पु० [सं०] रोकनेवाला, प्रतिरोधक | वारण-पु० [सं०] निवारण; प्रतिरोध; निषेध; हाथी; अंकुश कवच, प्रतिरोधका साधन । -शाला - स्त्री० हस्तिशाला ।
वारणीय - वि० [सं०] निषेध करने योग्य, मना करने लायक । वारद* - पु० बादल ।
वारदात - स्त्री० दे० 'वारिदात' ।
वारन * - स्त्री० निछावर | पु० बंदनवार; हाथी । वारना - स० क्रि० बलि जाना; उत्सर्ग करना; राई, नोन
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७२३
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- त्रा - स्त्री० छाता । - दु-पु० मेघ; नागरमोथा । वि० जल देनेवाला । - दुर्ग-वि० जलके कारण दुर्गम । -धर - वि० जल धारण करनेवाला | पु० बादल । - धानी - स्त्री० जलाधार । - धारा- स्त्री० जलकी धारा - वर्षा । - धि - निधि - पु० समुद्र । - नाथ- पु० बादल; वरुण; समुद्र; नागलोक -प-वि० जल पीनेवाला; जलकी रक्षा करनेवाला । - पथिक - वि० जलके मार्ग से गमन करनेवाला । - पर्णी, पूर्णी, - पृश्नी - स्त्री० जलकुंभी, पानीकी काई । प्रवाह पु० जलधारा; जलप्रपात । - बंधन - पु० बाँध बाँधकर जलको रोकना । - बालक - पु० एक गंधद्रव्य । -भव- पु० रसांजन । - मुकू (च्) - पु० बादल । -मूली-स्त्री० दे० 'वारिपण' । - यंत्र - पु० पानी खींचनेका यंत्र फौवारा । - रथ- पु० नाव । -राज-पु० वरुण । - राशि - पु० समुद्र । - रुह - पु० कमल - वदन- पु० पानी- आमला । - वर- पु० करौंदा । वर्त - पु० एक मेष । वल्लभास्त्री० विदारी । वह - वि० पानी ले जानेवाला | वाहपु० मेघ; मोथा । वि० जल ले जानेवाला । - वाहन - पु० मेघ । - वाही ( हिन्) - वि० जल ढोनेवाला । - विहारपु० जलक्रीड़ा । -श-पु० विष्णु । -शय-वि० जलमें सोनेवाला । - शास्त्र - पु० गर्गप्रणीत फलित ज्योतिषका एक ग्रंथ (इससे वृष्टिके स्थान और समयका पता लगाया जाता है) । -संभव - पु० लौंग; एक तरहका सीसा; उशीर ।
वारित - वि० [सं०] जिसका निवारण किया गया हो, रोका हुआ; मना किया हुआ; छिपाया हुआ, ढका हुआ। - साहित्य - पु० (प्रोस्क्राइब्ड लिटरेचर ) वह प्रकाशित पुस्तक, लेख आदि जिसे पढ़ने या पासमें रखनेकी सरकार द्वारा मनाही कर दी गयी हो । वारिद-पु० [सं०] दे० 'वारि' में ।
वारिदात - स्त्री० घटना; दुर्घटना; हाल, वृत्त; जुर्म, चोरीडकैती इत्यादि ।
आदि उतारना । मु० वारने जाना - निछावर होना । वारनिश - स्त्री० [अ० 'वार्निश' ] लकड़ी आदिपर चमक लाने के लिए लगाया जानेवाला एक रोगन । वारांगणा - स्त्री० [सं०] वेश्या ।
वारीफेरी - स्त्री० किसी प्रिय जनकी बाधा दूर करने के लिए उसके सिरके चारों ओर घुमाकर कोई वस्तु उत्सर्ग करना । वारीश - पु० [सं०] समुद्र ।
वारा - पु० बचत, किफायत; लाभ; नदी आदिका इधरका किनारा । वि० सस्ता; उत्सर्गीकृत, जो निछावर हुआ हो। -न्यारा - पु० फैसला, निपटारा मु०-पड़ना, बैठनाबचत होना । - होना - निछावर होना । वाराणसी - स्त्री० [सं०] काशी, बनारस । वाराणसेय - वि० [सं०] काशीमें उत्पन्न या बना हुआ । वाराह - वि० [सं०] शूकर-संबंधी; वराह अवतार - संबंधी । पु० विष्णुका एक अवतार; शूकरांकित ध्वजा । वाराही - स्त्री० [सं०] शूकरी; वाराह रूपधारी विष्णुकी शक्ति । वारि - पु० [सं०] जल; वर्षा । स्त्री० सरस्वती; हाथी बाँधनेकी जंजीर; हाथी फँसानेका गड्ढा या फंदा; हाथी बाँधनेका स्थान; [हिं०] निछावर । -चर- पु० पानीके जीव-जंतु; मछली; शंख । - चामर - पु० सेवार । -चारी (रिन्) - वि० जल में रहनेवाला (जंतु) । -जपु० कमल; मछली; शंख; घोंघा; द्रोणी लवण; कौड़ी; उत्तम, खरा सोना; लौंग; एक साग । वि० जलमें उत्पन्न | - जात-पु० दे० 'वारिज' । -जीवक - वि० जलसे जीविका चलानेवाला | -तस्कर - पु० सूर्य; बादल । | वार्डर- पु० [अ०] रक्षक, रक्षा करनेवाला; जेल के भीतर
वारुणी - स्त्री० [सं०] पश्चिम दिशा; शराब, मदिरा वरुणकी स्त्री या पुत्री; दूब; इँदारुन; हथिनी । वारुणीश- पु० [सं०] विष्णु ।
वार् पु० [सं०] जल; रक्षक | -आसन - पु० जलाधार ।
- धानी - स्त्री० घड़ा । धारा- स्त्री० जलकी धारा । -धि-पु० समुद्र । - धेय-पु० समुद्री नमक । - वाहपु० बादल ।
वार्ड- पु० [अ०] बड़े नगरों में कई मुद्दों का समूह, इलका (प्रबंध आदि की सुविधा के विचारसे बनाया जाता हैं); अलग कमरा, विभाग (जेल, अस्पताल में) ।
वारियाँ - स्त्री० निछावर, बलि ।
वारिस-पु० [अ०] उत्तराधिकारी, मृत जनकी संपत्तिका अधिकारी; मालिक; खोज-खबर लेनेवाला; रक्षक । वारींद्र - पु० [सं०] समुद्र |
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वार्तमानिक-वासुकि रहनेवाला पहरेदार ।
-वृष्टि-स्त्री०आँसुओंकी वर्षा ।-शील-वि० (वोलेटाइल) वार्तमानिक-वि० [सं०] वर्तमानकाल-संबंधी; जो विद्य- जो शीघ्रतापूर्वक वाष्प बनकर उड़ जाय; अस्थिर (ला०)। मान हो।
वाष्पाकुल-वि० [सं०] जो आँसुओंके कारण धुंधला हो वार्ता-स्त्री० दे० 'वार्ता'।
गया हो। वार्ता-स्त्री० [सं०] जनश्रुति, अफवाह घटना; वृत्तांत, वाष्पीकरण-पु० [सं०] ( इवैपोरेशन) किसी पदार्थका, हाला विषय, प्रसंग; बातचीत; वृत्ति, जीविका (कृषि, विशेषकर द्रवपदार्थका, वाष्परूपमें परिणत होना या वाणिज्य आदि); दुर्गा; भंटा, अन्य द्वारा खरीदा-बेचा किया जाना, भाफ बन जाना या बनाया जाना। जाना । -वह-पु० संदेश ले जानेवाला-दूत । -हर,- वासंतिक-पु० [सं०] विदूषक, भाँड़; नर्तक; अभिनेता; हर्ता(१),-हार-पु० दूत ।।
वसंतोत्सव । वि० वसंत-संबंधी; वसंतकालीन । वार्तालाप-पु० [सं०] बातचीत ।
वासंतिकता-स्त्री० [सं०] वसंतका आनंद । वाविह-पु० संदेश पहुँचानेवाला, दूत ।
वासंती-स्त्री० [सं०] जूही; माधवी; नेवारी गनियारी । वार्तिक-पु० [सं०] व्याख्या ग्रंथ (कात्यायन आदिका); | वास-पु० [सं०] निवास, रहना; घर, मकान; कपड़ा, किसान; व्यवसायी; वैद्य; व्याख्या विवाहका भोजन पोशाक; अवस्थिति, स्थान; असा; सुगंध; गंध; एक आचारशास्त्रका अध्ययन करनेवाला; दूत, चर, जासूस; दिनकी यात्रा; पत्रक -गृह,-गेहा-भवन, वेश्म(न) भंटा । वि० व्यवसाय कुशल समाचार-संबंधी; व्याख्या- पु. अंतःपुर, शयनागार । -यष्टि-स्त्री० पालतू पक्षियों के स्मक ! -कार-पु० कात्यायन ।
लिए बनी हुई छतरी । -व्यवस्था-स्त्री. (ऐक्कोमोडेशन) वार्धक्य-पु० [सं०] बुढ़ापा ।
रहने या ठहरनेका स्थान, सुविधा या प्रबंध । वार्षभ-वि० [सं०] वृष, बैल-संबंधी।
वासक-पु० [सं०] वस्त्र; गंध; अडूसा; वासर, दिन । वार्षिक-वि० [सं०] वर्ष-संबंधी प्रति वर्ष होनेवाला; वर्षा- वि० वासने, सुगंधित करनेवाला; रहनेके लिए प्रेरित कालमें होनेवाला; एक वर्ष टिकनेवाला । -वित्तविवरण | | करनेवाला । -सज्जा,-सजिका-स्त्री० श्रृंगार करके -पु० (एन्नुअल फाइनैनशल स्टेटमेंट) राज्यकी या नायककी प्रतीक्षा करनेवाली नायिका । किसी संस्थाकी वर्ष भरकी वित्तीय स्थितिका विवरण। वासतेय-वि० [सं०] रहने, वसने योग्य । वार्षिकी-स्त्री० [सं०] प्रति वर्ष दी जानेवाली छात्रवृत्ति | वासन-पु० [सं०] बासना, सुगंधित करना; वस्त्र, वास; वर्ष में नियमित रूपसे होनेवाली पूजादिः (एन्नुइटीज) बसाना; ज्ञान; जलपात्र; संदूक मंजूषा । वार्षिक रूपसे मिलनेवाली वृत्ति, लाभांश, अनुदान | वासना-स० क्रि० दे० 'बासना' । स्त्री० [सं०] संस्कार आदि।
भावना, कल्पनाइच्छा, कामना; अज्ञान, भ्रम, मिथ्यावार्हस्पत्य-वि० [सं०] वृहस्पति-संबंधी । पु० वृहस्पतिका । संस्कार, स्मृतिहेतु; प्रमाण । शिष्य; नास्तिक; अग्नि ।
वासयिता(त)-पु०[सं०] वस्त्राच्छादित करनेवाला; रक्षा वालंटियर-पु० [अं०] पुरस्कार या वेतन न लेकर सेना | करनेवाला। आदिमें काम करनेवाला व्यक्ति, स्वयंसेवक ।
वासर-पु० [सं०] दिन; एक नाग, नवदंपतीका पहली वाल-पु० [सं०] ( घोड़े आदिकी) पूँछके बाल । -धि- रातका शयनमंदिर; बारी । वि० प्रातःकाल-संबंधी। - पु० पूँछ; एक मुनि भैसा। -प्रिय,-मृग-पु० गायकी | कन्यका-स्त्री० रात्रि। -कृत्-मणि-पु० सूर्य ।
जातिका एक जानवर जिसकी पूँछका चँवर बनता है। । वासराधीश, वासरेश-पु० [सं०] सूर्य । वालि-पु० [सं०] एक वानर, सुग्रीवका भाई; एक मुनि ।। वासव-पु० [सं०] इंद्र । वि. वसु-संबंधी; इंद्र-संबंधी। वालिका-स्त्री० [सं०] मुहरकी अँगूठी, मुद्रा; बालू दे. -चाप-पु० इंद्रधनुष् । -ज-पु० अर्जुन; जयंत; 'बालिका'।
बालि । -दिक(श)-स्त्री० पूर्व दिशा। वालिद-पु० [अ०] बाप, पिता।
वासा-स्त्री० [सं०] असा माधवी लता। वालिदा-स्त्री० [अ०] माँ।
वासागार-पु० [सं०] दे० 'वासगृह' । वालिदैन-पु० [अ०] माँ-बाप ।
वासित-वि० [सं०] बसाया, सुगंधित किया हुआ; मसाला वालुका-स्त्री० [सं०] रेत, बालू चूर्ण; कपूर ककड़ी। डाला हुआ; कपड़ेसे ढका, वस्त्राच्छादित; ठहराया हुआ, वालुकाब्धि, वालुकार्णव-पु० [सं०] रेगिस्तान ।
रोका हुआ; किसी स्थानपर बसाया हुआ। वाल्कल-वि० [सं०] छालका बना हुआ। पु० छालका | वासिल-वि० [अ०] जुड़ा, मिला हुआ; जो वसूल हो बना वस्त्र।
चुका हो । -नवीस-पु० तहसीलका कर्मचारी जो वाल्मीकि-पु० [सं०] रामायणके प्रणेता एक मुनि । वसूलशुदा और बाकी मालगुजारीका हिसाब रखता है। वाल्मीकीय-वि० [सं०] वाल्मीकि-संबंधी; वाल्मीकिप्रणीत । -बाकी-स्त्री० वसूल हो चुकी और बाकी रकमें ऐसी वाल्लभ्य-पु० [सं०] प्यार; प्रिय होनेका भाव लोकप्रियता। रकमोंका हिसाब। पावैला-पु० [अ०] रोना-पीटना, कंदन (-मचाना)। वासी(सिन)-वि० [सं०] रहनेवाला, अधिवासी । वाष्प-पु० [सं०] भाफ; आँसू ; उष्मा, भटकटैया लोहा।। वासुकि-पु० [सं०] एक देवता; तीन प्रमुख नागराजों -कंठ-वि० जिसका कंठ वाष्पसे भर आया हो।-पूर- मेंसे एक (समुद्र मंथनमें इसका रज्जुके रूप में उपयोग पु० आँसुओंकी बाढ़ ।-मोक्षा-मोक्षण-पु० अश्रुपात । किया गया था)।
४६-क
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वासुकी - विंशति
वासुकी - पु० दे० 'वासुकि' ।
वासुदेव-पु० [सं०] वसुदेव-पुत्र, कृष्ण; अश्वत्थ वृक्ष (बो०)। वास्कट - स्त्री० [अं० 'वेस्टकोट' ] फतूही, बिना आस्तीनका परिधान जिसे कोटके नीचे और कमीजके ऊपर पहनते हैं ।
वास्तव - वि० [सं०] यथार्थ, सत्य, निश्चित । पु० असल तत्त्व, परमार्थभूत वस्तु । - मेँ - सत्यतः, यथार्थतः,
सचमुच ।
वास्तविक - वि० [सं०] सत्य, परमार्थभूत; यथार्थ, ठीक। वास्तव्य - वि० [सं०] किसी स्थानपर छोड़ा हुआ (निकम्मा समझकर ); बसा हुआ, आबाद; रहनेवाला; वास योग्य । वास्ता - पु० [अ०] संबंध, लगाव; नाता; जरिया; काम, सरोकार; विचुआ, मध्यस्थ । मु-देना- बीचमें डालना; दुहाई देना । - पड़ना - काम पड़ना, सरोकार होना । वास्तु-पु० [सं०] मकान बनाने योग्य स्थान; गृह, भवन; मकान की नीव; कमरा; एक वसु; बथुआ; पुनर्नवा; एक अन्न । -कर्म(न्)-पु० गृहनिर्माण । कर्मकार, कर्मज्ञ - पु० (आर्किटेक्ट) इमारत, पुल आदि बनानेकी कला जाननेवाला । -काल- पु० गृहनिर्माणके लिए उपयुक्त समय । - विद्या - स्त्री०, - शास्त्र- पु० गृहनिर्माणसंबंधी विद्या ।
वास्ते - अ० [अ०] लिए, हेतु, कारण ।
वास्तोष्पति -पु० [सं०] इंद्र |
वाह - अ० [फा०] साधु, धन्य, शाबाश ( प्रशंसासूचक अव्यय । कभी-कभी आश्चर्य और व्यंग्य में निंदाका भाव भी प्रकट करता है) । - वाह-अ० साधु-साधु, धन्य धन्य, क्या कहना है ! - वाही - स्त्री० वाह-वाह होना, बहुतों के मुँह से वाह-वाह निकलना, साधुवाद | वाहक- वि० [सं०] ढोने, ले जानेवाला; बहानेवाला; गति प्रदान करनेवाला । पु० बोझ ढोनेवाला, भारवाहक; सारथि या आरोही; एक विषैला कीड़ा । - धनादेश - पु० (बेयरर चेक ) वह धनादेश (चेक) जिसका रुपया किसी भी ऐसे व्यक्तिको दिया जा सकता है जो उसे ले जाकर बैंक के सामने उपस्थित करे। -नलिका - स्त्री० (जाइनिंग ट्यूब ) एक पात्रसे दूसरे पात्र में ले जाने, पहुँचानेवाली नलिका ।
संख्या; खुदाका एक नाम ।
• वाहिदिया- पु० मुसलमानोंका एक संप्रदाय । वाहिनी - स्त्री० [सं०] सेना; सेनाका एक विभाग (८१ हाथी, ८१ रथ, २४३ घोड़े, ४०५ पैदल ); नदी । - निवेश - पु० सेनाका पड़ाव, शिविर । पति -पु० सेनानायक; (ब्रिगेडियर ) वह सेनानायक जो वाहिनी (ब्रिगेड ) का नेतृत्व करे; समुद्र ।
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वाहिनीश - पु० [सं०] सेनानायक । वाहियात - वि० [फा०] 'वाहीयत' का बहु०, बेहूदा, निकम्मी (बातें) । स्त्री० खुराफात; बदमाशी आवारगी । वाही - वि० [अ०] टूटा-फूटा हुआ; कमजोर; निकम्मा; - बेहूदा, बेसिर-पैर की (बात); आवारा, बदचलन । - तबाही - वि० निरर्थक बेहूदा (बातें) (-बकना, हाँकना ) । वाही ( हिन्) - वि० [सं०] वहन करनेवाला ढोनेवाला; बहनेवाला; बहानेवाला ।
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वाहु-स्त्री० [सं०] दे० 'बाहु' । वाह्य-पु० [सं०] यान, सवारी; घोड़ा, हाथी आदि भारवाहक पशु । वि० खींचा, ढोया या चढ़ा जानेवाला; दे० 'बाह्य' ।
वाहन - पु० [सं०] घोड़ा, रथ या अन्य कोई सवारी; ढोना; •ले जाना; सवारीके काम आनेवाला या माल ढोनेवाला जानवर; प्रयल, उद्योग करना । - कार - पु० रथादि बनानेवाला । - श्रेष्ठ - पु० घोड़ा । वाहना- स्त्री० [सं०] सेना । * स क्रि० दे० ' बाहना' । वाहिता (तृ) - पु० [सं०] चलानेवाला, नायक । वाहिद - वि० [अ०] एक, अकेला, अद्वय । पु० एककी बिंबा, विंबी - स्त्री० [सं०] दे० 'बिंबा' ।
विध्याटवी स्त्री० [सं०] विंध्य पर्वतपरका जंगल । विध्याद्रि - पु० [सं०] विंध्य पर्वत । विध्यारि- पु० [सं०] अगस्त्य मुनि । विंबक - पु० [सं०] दे० 'बिंबक' | विंब - पु० [सं०] दे० 'बिंब' |
वाह्यांतर - वि० [सं०] बाहर-भीतरका । अ० बाहर-भीतर । वायेंद्रिय - स्त्री० [सं०] बाह्य विषयोंका ग्रहण करनेवाली पाँच ज्ञानेंद्रियाँ (आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा) । बिंदक- पु० [सं०] प्राप्त करनेवाला; *जाननेवाला, वेत्ता । बिंदु-पु० [सं०] एक बूँदका परिमाण; हाथीके शरीरपर बनायी हुई रंगकी बिंदी; अनुस्वारका चिह्नः शून्य; जलाने से बना हुआ बिंदी जैसा चिह्न; भौंहोंके बीच बनी हुई बिंदी; रलका एक दोष; छोटा टुकड़ा; मूँजका धुआँ; (पाइंट) रेखागणित में वह अत्यंत छोटा कल्पित स्थान जिसमें केवल स्थिति हो, किंतु लंबाई, चौड़ाई, मोटाई न हो; दे० 'बिंदु' । - पातक - पु० (ड्रॉपर) आँख, कान आदिमें दवा छोड़ने की शीशेकी वह नलिका जिसमें ऊपरकी ओर रबड़ लगा रहता है (इसे दबानेसे एक-एक बूँद टपकाने में आसानी होती है) । विंदुर-पु० बुँदकी, वेंदी | विध* - पु० विंध्याचल |
विंध्य - पु० [सं०] भारतके मध्य में स्थित एक पर्वतश्रेणी जो उत्तर भारतको दक्षिणसे अलग करती है। -कूट, - कूटक, कूटन - पु० अगस्त्य मुनि । - गिरि, पर्वत, - शैल - पु० विध्यश्रेणी । - निवासी (सिन्) - पु० दे० 'विंध्यवासी' । - वासिनी स्त्री० देवीको एक मूर्ति । - वासी (सिन्) - वि० विंध्यपर रहनेवाला । विंध्याचल-पु० [सं० ] विंध्य पर्वतः विंध्य पर्वतकी एक शाखापर स्थित एक बस्ती जहाँ विंध्यवासिनी देवीका मंदिर है।
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विंबित - वि० [सं०] दे० 'बिंबित' । बिष्ट, विष्ट - वि० [सं०] दे० 'बिंबोष्ठ' | विंश- वि० [सं०] बीसवाँ । पु० बीसवाँ भाग । विंशति - वि० [सं०] बीस; बीसकी संख्याका । स्त्री०बीसकी संख्या; वीसकी संख्याका सूचक अंक, २०; एक प्रकारका व्यूह । - बाहु, - भुज-पु० रावण । - वार्षिक - वि० बीस वर्ष टिकनेवाला ।
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विंशोत्तरी-विचित
विंशोत्तरी-स्त्री० [सं०] मनुष्यका शुभाशुभ जाननेकी लेकर कहा जाय कि या तो यही बात होगी नहीं तो विशेष रीति (ज्यो०)।
वह-या काम पूरा करूँगा, या शरीर छोड़ दूंगा। वि-उप० [सं०] एक उपसर्ग जो शब्दोंके पूर्व लगनेपर | विकल्पन-पु० [सं०] अनिश्चय, संदेह मानना; दो या पार्थक्य (वियोग), कार्यवैपरीत्थ (विक्रय, विस्मरण), दोसे अधिक विषयोंमेंसे किसी एकको मानना। भाग या अंशीकरण (विभाग), अंतर (विशेष), कम | विकल्पित-वि० [सं०] व्यवस्थित विभक्त; अनिश्चित, (विधा), प्रतिकूलता (विरोध), आधिक्य (विध्वंस), संदिग्ध; अनियमित । निषेध या राहित्य (विमल), परिवर्तन (विकार) | विकसन-पु० [सं०] खिलना, प्रस्फुटन ।
भादिका सूचन करता है। पु० घोड़ा; अन्न; आकाश आँख। विकसना-अ० क्रि० खिलना, प्रस्फुटित होना। विकंपन-पु० [सं०] एक राक्षस (सूर्यका) काँपना; गति । । विकसाना-सक्रि० दे० 'बिकसाना' । विकंपित-वि० [सं०] काँपता हुआ, अस्थिर ।
विकसित-वि० [सं०] प्रस्फुटित, प्रफुल्ल प्रसन्न । चिकंपी(पिन्)-वि० [सं०] काँपता हुआ, हिलता हुआ। विकस्वर-वि० [सं०] खुला हुआ; प्रफुल्ल, विकासशील; विकच-पु० [सं०] ध्वजा; एक धूमकेतु; एक दानव साफ सुनाई देनेवाला (शब्द); निष्कपट । पु० एक बालोंका समूह, लट । वि०खिला हुआ, विकसित; फैला काव्यालंकार ( इसमें विशेष बातकी पुष्टि सामान्य बातसे हुआ, केशहीन, बिना बालोंका ।
की जाती है)। विकचित-वि० [सं०] खुला हुआ; खिला हुआ । विकार-पु० [सं०] रूप; धर्म आदि स्वाभाविक अवस्थाका विकट-वि० [सं०] भद्दा विशाल; भयंकर; दुर्गम; बड़ा, परिवर्तित होना; परिवर्तन रोग; दोष, विचार, उद्देश्य विस्तृत; टेढ़ा मुश्किल।
आदिमें परिवर्तन होना; भावना; वासनाः क्षोभ आकृति, विकटाकृति-वि० [सं०] भयावनी शकलवाला ।
शकलका विकृत होना; व्याकरणके नियमोंसे शब्दका विकटाक्ष-वि० [सं०] डरावनी आँखोंवाला।
रूप बदलना। विकत्थन-वि० [सं०] डींग मारनेवाला । पु० डीग मारना; विकारी(रिन)-वि० [सं०] परिवर्तनशील; विकारयुक्त, व्यंग्य; मिथ्या श्लाघा प्रशंसा।
विकारवाला; क्रोध आदि दुष्ट मनोविकारोंवाला; आसक्ता विकथा-स्त्री० [सं०] डींग प्रशंसा मिथ्या प्रशंसा व्यंग्य । विकारग्रस्त, परिवर्तित । पु० एक संवत्सर । विकरार*-वि० विकराल, भयंकर विकल, व्याकुल । विकाल, विकालक-पु० [सं०] दिनांत, संध्या उपयुक्त विकराल-वि० [सं०] भीषण, भयंकर ।।
समय बीत जानेके बादका समय, अतिकाल । विकर्ण-पु० [सं०] (डायेगोनल) वह सरल रेखा जो चतु- विकाश-पु० [सं०] प्रदर्शन, प्रकाश; विस्तार, फैलाव र्भुजके आमने-सामनेके कोणोंके शीर्षोंको मिलाती है। खुलना; खिलना, प्रस्फुटन; एक काव्यालंकार । (कर्ण = हाइपॉटेन्यूस) । वि० बड़े कानोंवाला; कर्णरहित; | विकाशित-वि० [सं०] दे० 'विकासित' । बहरा।
विकाशी (शिन)-वि० [सं०] चमकने या देख पड़नेविकर्म (न्)-पु० [सं०] निषिद्ध, अनुचित कर्म विभिन्न वाला खुलने या खिलनेवाला, विकासशील । प्रकारके कार्य कामसे अवसर ग्रहण करना। वि० दुरा- विकास-पु० [सं०] खिलना; खुलना (मुख आदिका); चारी, कर्मभ्रष्ट कर्म न करनेवाला।
प्रसन्नता, आनंद; फैलाव; बाढ़। -वाद-पु० डविन विकल-वि० [सं०] भीत; बेचैन, व्याकुल; क्षुब्ध; इतो. द्वारा प्रतिपादित एक सिद्धांत जिसमें यह माना जाता त्साह अपूर्ण खंडित; अपंग; घटा हुआ, न्यून ।
है कि प्राणियोंका प्रादुर्भाव एक ही मूल तत्त्वसे हुआ है विकलन-पु० [सं०] (डेबिट) किसीको ऋणादिके रूपमें दी और वेकमशः विकसित होते हुए वर्तमान रूपमें पहुंचे हैं। गयी रकम, या दिये गये माल आदिके मूल्यरूपमें प्राप्य विकासक-वि० [सं०] खोलने या (बुद्धि) बढ़ानेवाला। धन, खातेमें उसके नाम लिखना; किसीके खातेमें खर्चको विकासन-पु०[सं०] प्रदर्शन; खिलाना फैलानाखोलना। ओर कोई रकम लिखना।
विकासना*-सक्रि० विकसित करना; प्रकट करना; विकलांग-वि० [सं०] अधिक अंगवाला; अंगहीन, न्यूनांग। निकालना । अ० क्रि० प्रकट या विकसित होना। विकला-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका स्राव बंद हो गया विकासित-वि० [सं०] प्रकाशित; प्रदर्शित; प्रस्फोटित
हो; समयका एक बहुत छोटा मान, कलाका ६०वाँ भाग। विस्तारित ।। विकलाना*-अ० कि० व्याकुल होना।
विकिर-पु० [सं०] पक्षी; कुआँ; बिखेरना। विकलित-वि० व्याकुल, बेचैन; दुःखी, पीड़ित । विकिरण-पु० [सं०] छितरानेकी क्रिया, तितर-बितर विकलीकृत-वि० (डिसेबिल्ड) जो विकलांग ( लँगड़ा, करना; चारों ओर फैलना या फैलाना; (रैडियेशन) एक लूला आदि) हो जानेके कारण अपना काम करने में | स्थान या केंद्रसे ताप, प्रकाश आदिका सीधी रेखाओं में असमर्थ हो गया हो।
चलकर इधर-उधर फैलना; किरणोंका एकत्रीकरण (जैसे विकल्प-पु० [सं०] विभिन्नता; उपाय; भेदयुक्त ज्ञान; आतिशी शीशेमें); एक समाधि ।
अनिश्चय, संदेहः भूल; अशाना वक्तव्य, कथन; भ्रांत विकीर्ण-वि० [सं०] छितराया, फैलाया हुआ; भरा हुआ; धारणा; गणना; चिंतन; संबंध; एक समाधि; अवांतर मशहूर । -कारी-वि० [हिं०] फैलानेवाला । -केशकल्प वैचित्र्य; कई नियमों आदिमेंसे एकका ग्रहण, एक मूर्धज-वि. जिसके बाल बिखरे हों। अर्थालंकार जहाँ दो समान बलवाली विरुद्ध बातोंको विचित-स्त्री० [सं०] सिकुड़ा हुआ, मुड़ा हुआ।
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विकुंठ-विगति विकुंठ-वि० [सं०] तेज धारवाला; जो कुंठित न हो; बेचने के लिए रखा गया कर्मचारी ।
जो रोका न जा सके; बहुत भोथरा । पु० विष्णु; विष्णु- विक्रयी(यिन)-पु० [सं०] विक्रेता, बेचनेवाला। लोक, वैकुंठ।
विक्रिया-स्त्री० [सं०] परिवर्तन, विकार; उत्तेजना क्रोध विकुंठित-वि० [सं०] भोथरा; निर्बल ।
अप्रसन्नता; बुराई अस्वस्थता । विकृत-वि० [सं०] परिवर्तित विकारयुक्त, बिगड़ा हुआ | विक्री-स्त्री० बेचनेकी क्रिया; बेचनेसे मिला हुआ धन । असंस्कृत भद्दा, कुरूप; बीभत्स; अस्वाभाविक अधूरा विक्रीत-वि० [सं०] बेचा हुआ। अपूर्ण अराजक, विद्रोही रोगी; भावाविष्ट । -टंक-पु० विक्रेतव्य, विक्रय-वि० [सं०] बिकनेवाला, बिकने (डिफेस्ड कॉइन) वह सिक्का जो घिसकर बदशकल-सा हो| योग्य ।। गया हो और जिसकी लिखावट पढ़ने में भी कठिनाई हो। विक्रेता(त)-पु० [सं०] बेचनेवाला । -दर्शन-वि०जिसकी सूरत बदल गयी हो। -दृष्टि-विक्रोध-वि० [सं०] क्रोधरहित । वि० ऐंचाताना।
विकांत-वि० [सं०] हतोत्साह; श्रांत, थका हुआ। विकृति-स्त्री० [सं०] विकार, परिवर्तन; असाधारण या | विक्षत-वि० [सं०] आहत, घायल, चोट खाया हुआ।
आकस्मिक घटना; रोग; उत्तेजना, क्षोभ; भावावेश; परि- विक्षिप्त-वि० [सं०] फेंका, बिखेरा हुआ; त्यक्त, छोड़ा वर्तित रूप ।
हुआ पागल; व्यग्र, व्याकुल । पु० योगकी पाँच अवविकृष्ट-वि० [सं०] खींचा हुआ, आकृष्ट; पृथक किया स्थाओंमेंसे एक जिसमें चित्तवृत्ति प्रायः अस्थिर हो हुआ फैलाया हुआ; लुटा हुआ ध्वनित ।
जाती है। विकेंद्रीयकरण-पु. ( डिसेंट्रलिजेशन) केंद्र में प्रस्थापित | विक्षिप्तता-स्त्री० [सं०] पागलपन, उन्माद । सत्ता, अधिकार आदिको आस-पासके अंगों, अधीन राज्यों | विक्षिप्तालय-पु० [सं०] (लूनैटिक असाइलम) पागल या आदि में बाँटना।
विक्षिप्त मनुष्योंके रहनेका वह स्थान जहाँ उनकी देख-रेख विक्टोरिया-स्त्री [अं०] फिटनसे मिलती-जुलती एक तरह- तथा उपचारादिकी व्यवस्था हो। की घोड़ा-गाड़ी।
विक्षुब्ध-वि० [मं०] अशांत; जिसका मन शांत न हो। विक्रम-पु० [सं०] बल, तेज आदिकी अधिकता; वीरता विक्षेप-पु० [सं०] बिखेरना; फेंकना हिलाना; चिल्ला
शक्ति; दे० 'विक्रमादित्य' । * वि० श्रेष्ठ, उत्तम । चढ़ाना; असंयम; वक्त बर्बाद करना; अनवधानता; घबविक्रमाजीत-पु० दे० 'विक्रमादित्य' ।
राहट; भय चित्तकी अस्थिरता; तर्कका खंडन बाधा। विक्रमादित्य-पु० [सं०] उज्जयिनीका एक प्रतापी राजा विक्षेपण-पु० [सं०] फेंकना, बिखेरना; भेजना हिलाना,
(यह विक्रम नामक संवत्का प्रवर्तक माना जाता है)। । झटका देना; धनुष्की डोरी खींचना; विघ्न, बाधा । विक्रमाब्द-पु० [सं०] विक्रमादित्य द्वारा प्रवर्तित संवत्, | विक्षोभ-पु० [सं०] मनका आवेग, क्षोभ; घबराहट विक्रम संवत् ।
आतंक; उथल-पुथल । विक्रमी-वि०विक्रमादित्य-संबंधी।
विखंडन-पु० [सं०] (ऐब्रोगेशन) दे० 'उत्सादन'। विक्रमी(मिन)-वि० [सं०] बल, पराक्रमवाला, वीर । | विखंडित-वि० [सं०] टुकड़ोंमें कटा हुआ विघटित किया पु० शूरः विष्णु; शेर ।
हुआ; अंग-भंग किया हुआ; दो भागोंमें बँटा हुआ, क्षुब्ध विक्रय-पु० [सं०] दाम लेकर कोई चीज देना, बेचना। जिसका खंडन किया गया हो (तक)।
-कला-स्त्री० माल बेचनेकी चतुराई । -धन-पु० | विख*-पु०विष, जहर । -हा*-पु० दे० 'विषहा। (टर्नओवर) व्यापारी द्वारा की गयी एक दिन, एक सप्ताह | विखाद-पु. * दे० 'विषाद'। आदिकी बिक्रीसे प्राप्त कुल धनराशि। -पंजी-स्त्री० विखान*-पु० दे० 'विषाण' । (सेल्स जर्नल ) प्रति दिनकी विक्री आदिका विवरण विखार्यध-स्त्री० जहरकीसी, कड़वी गंध । लिखनेकी पंजी, बिक्री-बही । -पत्र-पु. बह कागज | विख्यात-वि० [सं०] प्रसिद्ध, मशहूर, सर्वविदित । जिसमें किसी चीजका नाम, दाम और ग्राहक तथा विक्रेता- | विख्याति-स्त्री० [सं०] प्रसिद्धि, शोहरत । का विवरण रहता है। नगदी चिट्ठा (कैश मेमो)। - | विख्यापन-पु० [१०] प्रसिद्ध करना; घोषणा करना। प्रपंजी-स्त्री० (सेल्स लेजर) वह खाता-बही जिसमें | विगत-वि० [सं०] अतीत, बीता हुआ; बीते हुएसे पूर्वका; विभिन्न तिथियोंको बेची गयी विभिन्न वस्तुओंका ब्यौरा, | मृत; नष्ट; अनुपस्थित मुक्त, विहीन, रहित (समस्त पदोंप्रत्येकका पृथक्-पृथक्, लिखा रहता है। -लेख-पु० में)। -कल्मष-वि० जो पापमुक्त हो गया हो।-ज्ञान( सेलडीड ) वह कागद या लेख-पत्र जिसमें खेत, घर वि० जिसकी समझ मारी गयी हो। -नयन-वि० जिसके आदिकी बिक्रीका पूरा ब्यौरा (नाम, पता, शर्ते, मूल्य नेत्र न हों, अंधा । -भय,-भी-वि० निर्भीक ।-रागआदि) लिपिबद्ध कर दिया गया हो तथा जिसका विधि- वि० जिसमें राग न रह गया हो। वत् पंजीयन करा दिया गया हो, बैनामा ।
विगतार्तवा-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका मासिक विक्रयक-पु० [सं०] बेचनेवाला।
स्राव बंद हो गया हो, जो गर्भधारणकी अवस्था पार कर विक्रयण-पु० [सं०] बिक्री, बेचना।
गयी हो। विक्रयिक-पु०[सं०] बेचनेकी कलामें चतुर व्यक्ति, विक्रता; विगतास-वि० [सं०] मृत । (सेल्समैन) दूकानपर बैठकर ग्राहकोंके हाथ सौदा | विगति-स्त्री० [सं०] दुर्दशा, दुर्गति ।
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विगद-विचेष्ट विगद-वि० [सं०] रोगरहित, नीरोग ।
स्थान या प्रतिज्ञासे डिगा हुआ; घबराया हुआ। विगर्हणीय-वि० [सं०] निंदनीय; दुष्ट ।
विचार-पु० [सं०] निर्णय तत्त्व-निर्णय: तत्व-परीक्षा विगहित-वि० [सं०] निंदिता कुत्सित, बुरा; निषिद्ध । किसी विषयपर गंभीरताके साथ सोचना; कार्य-विधि विगलन-पु० [सं०] नाश; पिघलना; गलना; रिसना स्थान परिवर्तन; संदेह; हिचक; वाद-विवाद, चुनाव
बह जाना; गायब होना; घुल जाना; शिथिल होना। विशता अभियोग आदिका निर्णय । -कर्ता(त)-पु० विगलित-वि० [सं०] बहा हुआ; पिघला हुआ; टपककर, सोचने विचारनेवाला; अभियोगका निर्णय करनेवाला,
रिसकर निकला हुआ; ढीला पड़ा हुआ, शिथिल । न्यायाधीश । -ज्ञ-वि० विचार करनेमें कुशल, प्रवीण । विगुण-वि० [सं०] निर्गुण; बुरा; जिसमें डोरी न हो। पु० न्यायाधीश, जज 1-धारा-स्त्री० (आइडिऑलॉजी) विग्रह-पु० [सं०] अलगाना; फैलाना; विस्तार विभाग किसी जाति या संप्रदाय-विशेषकी विचारशैली; किसी पार्थक्य; समस्त पदके खंडोंको अलग करना (न्या०); राजनीतिक या आर्थिक सिद्धांत-परंपराके मूल में रहनेकलह युद्ध; शरीर रूप; फूट पैदा करना; खंड, भाग। । वाली विचारसरणी। -पति-पु० मुकदमेका फैसला विघटन-पु० [सं०] अलग करना; तोड़ना; छिन्न-भिन्न करनेवाला, जज । -मूढ़-वि० जिसे सोचने-समझनेकी करना; नाश, बरबादी।
शक्ति न हो। -शक्ति-स्त्री० विचार करनेकी शक्ति । विघटिका-स्त्री० [सं०] समयका एक लघु मान ।
-शास्त्र-पु० मीमांसा शास्त्र । -शील-पु० सोचविघटित-वि० [सं०] तोड़ा, पृथक् किया हुआ विभक्त । विचार करनेकी शक्तिवाला।-शीलता-स्त्री० बुद्धिमानी, नष्ट किया हुआ।
समझदारी। -सरणी-स्त्री० विचार करनेकी पद्धति । विघन-पु० दे० 'विघ्न' ।
-स्थल-पु० किसी विषयपर विचारका स्थान; न्यायाविधात-पु० [सं०] चोट, आघात; टुकड़े-टुकड़े करना | लय, अदालत; तर्क । -स्वातंत्र्य-पु० विचार प्रकट निवारण रोका तोड़ना-फोड़ना; नाश; हत्या; ब्याकुलता।
काडनात नाशा हत्या: व्याकुलता। करनेकी स्वतंत्रता । विधाती(तिन्)-वि० [सं०] हत्याकारी; चोट पहुँचाने-विचारक-पु० [सं०] विचार करनेवाला, दार्शनिक आदि वाला विरोध करनेवाला, बाधक ।
जज, न्यायाधीश नेता, पथप्रदर्शक; गुप्तचर । विघूर्णन-पु० [सं०] धुमाना, चक्कर देना।
विचारणीय-वि० [सं०] विचार करने योग्य; चित्य विर्णित-वि० [सं०] घुमाया या चक्कर दिलाया हुआ। | संदिग्ध । विघोषण-पु० [सं०] ऊँची आवाजमें घोषित करनेकी विचारना-स० क्रि० गौर करना; खोज करना, हँढ़ना। क्रिया, चिल्लाना।
विचारवान(वत्)-वि० [सं०] विचारशील, सोचनेविघ्न-पु० [सं०] बाधा, अड़चन, कठिनाई; विरोध । विचारनेवाला ।
-कर-कर्ता(त),-कृत्-वि० बाधा उपस्थित करने-विचाराध्यक्ष-पु० [सं०] प्रधान विचारक, जज । वाला। -कारी(रिन्)-वि० दे० 'विघ्नक'; देखनेमें | विचारालय-पु० [सं०] न्यायालय ।
भयानक । -जित्,-नाशक,-हरण-पु० गणेश । विचारित-वि० [सं०] विचार किया हुआ, सोचा-समझा विध्नक-वि० [सं०] अड़चन, बाधा डालनेवाला। हुआ; विचाराधीन । विघ्नांतक-पु० [सं०] गणेश ।
विचारी(रिन)-वि० [सं०] विचरण करनेवाला; विचार विघ्नेश-पु० [सं०] गणेश । -कांता-स्त्री० सफेद दूब । करनेवाला। -वाहन-पु० चूहा ।
विचार्य-वि० [सं०] विचार-योग्य, विचारणीयः संदिग्ध । विचकित-वि० [सं०] घबराया हुआ, भौचक । विचिकित्सा-स्त्री० [सं०] संदेह; अनिश्चयः भूल । विचक्षण-वि० [सं०] विद्वान् ,दूरदशी,चतुर पारंगत; दक्ष । विचित्त-वि० [सं०] अचेत; कर्तव्यविमूढ़ । विचच्छन-वि० दे० "विचक्षण' ।
विचित्ति-स्त्री० [सं०] विभ्रम चित्त ठिकाने न रहना। विचय, विचयन-पु० [सं०] इकट्ठा करना परीक्षा करना; विचित्र-वि० [सं०] कई प्रकारके रंगों, वर्णीवाला; असासिलसिलेवार, तरतीबसे रखना; तलाश करना।
धारणा विस्मित करनेवाला; सुंदर; मनोरंजक चित्रित विचरण-पु० [सं०] घूमना-फिरना, भ्रमण करना,पर्यटन। रँगा हुआ। पु. एक अर्थालंकार (इसमें फलसिद्धिके लिए विचरन*-पु० दे० 'विचरण' ।
उलटा प्रयत्न दिखाया जाता हैं)। -वीर्य-पु. शांतनुविचरना-अ० क्रि० इतस्ततः घूमना।
सत्यवतीके द्वितीय पुत्र (ये निःसंतान मरे । द्वैपायनने विचरनि*-स्त्री० दे० 'विचरण' ।
इनकी पलियोंसे नियोग द्वारा धृतराष्ट्र और पांडुको पैदा विचर्चिका-स्त्री० [सं०] खुजली नामक रोग ।
किया था)। विचल-वि० [सं०] निरंतर घूमने या हिलनेवाला; विचित्रता-स्त्री० [सं०] रंगवैभिन्न्य; अनोखापन ।
अस्थिर; स्थानसे हटा हुआ; प्रण, प्रतिशासे हटा हुआ। विचित्रांग-पु० [सं०] मयूर व्याघ्र । विचलना*-अ०क्रि० स्थानभ्रष्ट होना प्रतिज्ञासे डिगना विचंबित-वि० [सं०] विशेष रूपसे चूमा हुआ; स्पर्श विचलित होना।
किया हुआ। विचलाना*-स० क्रि० विचलित करना, घबड़ाहटमें | विचूर्णित-वि० [सं०] अच्छी तरह पीसा हुआ। डालना।
विचेतन-वि० [सं०] संज्ञाहीन, अचेत; मूर्ख, विवेकरहित । विचलित-वि० [सं०] अस्थिर, चंचल; डगमगाया हुआ; विचेष्ट-वि० [सं०] निश्चेष्ट, चेष्टाहीन; गतिहीन, अचल ।
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विच्छित्ति-विट्ठल विच्छित्ति-स्त्री० [सं०] काटकर अलग करना, भंग करना | विजुभक-पु० [सं०] एक विद्याधर । विनाशः पार्थक्य; रोक, बाधा; कमी, त्रुटि; वेषभूषा| विज भण-पु० [सं०] अँभाई लेना खुलना खिलना। आदिकी लापरवाही, बेढंगापन; एक हाव (शोभा बढ़ाने-विज भा-स्त्री० [सं०] अँभाई। वाले साधारण शृंगारसे ही पुरुषको मुग्ध करनेका प्रयत्न)। विजेता (त)-पु० [सं०] जय प्राप्त करनेवाला; वह जिसने विच्छिन्न-वि० [सं०] काटकर अलग किया हुआ, विभक्त | जय प्राप्त की हो।
जुदा, अलग; जिसका अंत किया जा चुका हो कुटिल। विजेय-वि० [सं०] जीतने योग्य । विच्छेद-पु० [सं०] काटकर अलग करना; क्रम टूटना विजे*-स्त्री० जीत, विजय ।
अलग, टुकड़े-टुकड़े करना क्षति नाश निषेध; अलगाव। विजोग*-पु० वियोग । विछलना*-अ० कि० फिसलना, स्थानभ्रष्ट होना। विजोगी*-वि०वियोगी। विछेद-पु० विच्छेद, वियोग।
विजोर-पु० बिजौरा नीबू । वि० कमजोर, निर्बल । विछोई*-वि०वियोगी, जिसका प्रियसे वियोग हुआ हो। विज्जु*-स्त्री० बिजली-लता*-स्त्री० विद्युल्लता बिजली। विछोह -पु० वियोग, प्रियसे पृथक् होना।
विज्ञ-वि० [सं०] जानकार; समझदार, विद्वान् । पु० विछोही*-वि०, पु० वियोगी।
चतुर मनुष्य। विजन-वि० [सं०] जनशून्य, एकांत । पु० निर्जन या विज्ञता-स्त्री०, विज्ञत्व-पु० [सं०] जानकारी बुद्धिमत्ता । एकांत स्थान; * दे० 'विजना'।
विज्ञप्त-वि० [सं०] सूचित, जनाया हुआ। विजनता-स्त्री० [सं०] एकांतता, जनशून्य होना । विज्ञप्ति-स्त्री० [सं०] सूचित करनेकी क्रिया; इश्तहार, विजना-पु० पंखा, वीजन ।
विज्ञापन निवेदन, प्रार्थना । विजय-स्त्री० [सं०] बहस, युद्ध आदिमें होनेवाली जीत । विज्ञात-वि० [सं०] जाना, समझा हुआ; प्रसिद्ध ।
-चिह्न-पु. (ट्रॉफी) दे० 'विजयोपहार'। -दुंदुभि- विज्ञान-पु० [सं०] ज्ञान, समझ, प्रशा; विवेक, निश्चयास्त्री० विजयके समय बजाया जानेवाला नगाड़ा।-पताका त्मिका बुद्धि; दक्षता, कार्यकुशलता; अनुभवजन्य ज्ञान -स्त्री० जीतके समय फहरायी जानेवाली ध्वजा; विजय
कारबार; संगीत; चौदहों विद्याओंका ज्ञान; किसी विषयका सूचक चिह्न । -यात्रा-स्त्री० विजय, जीतकी कामनासे क्रमबद्ध और व्यवस्थित शान; कर्म; आत्मा,मोक्ष आदिका की जानेवाली यात्रा। -लक्ष्मी,-श्री-स्त्री. विजयकी। शान; भौतिक तत्त्वों, विकारों आदिका शास्त्रीय विवेचन
अधिष्ठात्री देवी । -शील-वि० सदा जीतनेवाला। करनेवाली विद्या (आ०)।-वादी(दिन)-वि० विज्ञानविजया-स्त्री० [सं०] दुर्गा; दुर्गाकी एक सखी; एक विद्या वादका सिद्धांत माननेवाला आधुनिक विज्ञानका पक्षपाती । जिसे विश्वामित्रने रामको सिखलाया था; विजयोत्सव विज्ञानमय-वि० [सं०] प्रशायुक्त ।-कोश,-कोष-पु. भाँग; एक वर्णवृत्त । -दशमी-स्त्री० आश्विन शुक्ला ज्ञानेंद्रियों के साथ बुद्धि । दशमीको होनेवाला हिंदुओं, विशेषतः क्षत्रियोंका एक विज्ञानी (निन)-वि० [सं०] किसी विषयका उत्तम ज्ञाता, त्योहार।
| किसी विज्ञानमें निष्णात वैज्ञानिक; महान् ज्ञानी । विजयार्थी (र्थिन)-वि० [सं०] विजय चाहनेवाला। विज्ञापक-पु० [सं०] समझाने, बतलानेवाला; इश्तहार विजयास्त्र-पु० [सं०] (ट्रंपकार्ड) विजय दिलानेवाला अस्त्र या साधन ।
विज्ञापन-पु० [सं०] समझाना; सूचना देना; इश्तहार, विजयी (यिन)-वि० [सं०] जिसकी जीत हुई हो। पु० निवेदन, प्रार्थना ।-दाता(त)-पु०(ऐडवरटाइजर) पत्रों विजेता, जीतनेवाला।
आदिमें विज्ञापन छपवानेवाला । -पत्र-पु० विज्ञापनका विजयोत्सव-पु० [सं०] विजयादशमीका उत्सव, विजय अखबार । -पुस्तिका-स्त्री. वह किताब जिसमें विक्रय प्राप्त करनेपर मनाया जानेवाला उत्सव ।।
वस्तुओंका परिचय दिया रहता है, सूचीपत्र । विजयोपहार-पु० [सं०] (ट्रॉफी) युद्ध में हुई जीत या हॉकी, विज्ञापित-वि० [सं०] विज्ञप्त, बतलाया हुआ; सूचित, क्रिकेट आदिके खेल में प्राप्त विजयके स्मृतिस्वरूप रखी| इश्तहार किया हुआ। जानेवाली कोई वस्तु (शील्ड, कप आदि)।
विज्ञेय-वि० [सं०] जानने, समझने, सीखने योग्य । विजल-वि० [सं०] मिर्जल, जलरहित । पु० अवर्षण । विट-पु० [सं०] कामुक, कामी; वेश्याप्रेमी, वेश्या रखनेविजाति-स्त्री० [सं०] भिन्न जाति या वर्ग।
वाला; वैशिक; धूर्त; विदूषककी श्रेणीका एक नाटकीय विजातीय-वि० [सं०] भिन्न जाति या वर्गका ।
पात्र, नायकका सखा; धूर्त नायक; साँचर नमक; एक विजानना*-स० क्रि० विशेष रूपसे जानना ।
खनिज द्रव्य । -प-पु० दे० क्रममें । विज़ारत-स्त्री० [अ०] वजीरका पद या कार्य; वजीरका विटप-पु० [सं०] पेड़; कोंपल; झाड़ी। दफ्तर, मंत्रिमंडल।
विटपी(पिन्)-वि० [सं०] शाखाओंवाला । पु० वृक्ष । विजिगीषा-स्त्री० [सं०] विजयकी कामना ।
विट.(श)-पु० [सं०] प्रवेश; वैश्य, बनिया; मनुष्य । विजिगीषु-वि० [सं०] विजयका इच्छुक ।
स्त्री० कन्या प्रजा; जाति परिवार । -पति-पु० नरेश विजित-वि० [सं०] जीता हुआ, जिसपर विजय हुई हो। वैश्योंका मुखिया; जामाता; प्रधान व्यापारी । विजुली -स्त्री० विद्युत्, बिजली।।
विट्ठल-पु० [सं०] एक देवता जो विष्णुके अवतार माने विज़भ-पु० [सं०] सिकोड़ना (भौं); अँभाई।
जाते है ( कहा जाता है कि पंढरपुरके पुंडरीक नामक
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विडंब-विदग्ध ब्राह्मण में विष्णुका बहुत कुछ अंश आ गया था, उनकी | चंदोवा। मूर्ति वहीं स्थापित है और विष्णुके प्रतीकके रूपमें पूजी | वितानना*-स० कि० शामियाना, तंबू आदि तानना; जाती है। -कवच-पु० एक प्रसिद्ध कवच ।
तानना, चढ़ाना (धनुष् आदि)-'जिन रघुनाथ पिनाक विडब-पु० [सं०] नकल, चिढ़ाना; हेय समझना; कष्ट वितान्यो तोरयो निमिष मही'-सू० । देना; खिन्न करना, कुदाना; छेड़खानी।
वितिक्रम*-पु० व्यतिक्रम, क्रमभंग । विडंबन-पु०, विडंबना-स्त्री० [सं०] नकल उतारना; वितीत*-वि० व्यतीत, बीता हुआ। चिढ़ाना; छेड़खानी करना; कष्ट देना; निंदा करना। वितुंड-पु० हाथी। निराश करना, छलना; उपहासका विषय; लज्जाकी बात । वितुष-वि०[सं०]जिसका छिलका निकाल दिया गया हो। विडंबनीय-वि० [सं०] नकल करने योग्य; उपहास्य । वितृष्ण-वि० [सं०] तृष्णारहित, उदासीन, निस्पृह । विडंबित-वि० [सं०] जिसकी नकल उतारी गयी हो, वितृष्णा-स्त्री० [सं०] तृष्णाका अभाव; संतुष्टिः विरक्ति । विकृत किया हुआ, जो परेशान किया गया हो; नीच; विस-वि० [सं०] प्राप्त । पु० धन-संपत्ति अधिकारी शक्ति दीन; धोखा खाया हुआ; निराश ।।
(फाइनेंस) किसी राज्य या संस्था आदिके आय-व्ययके विडंबी(विन्)-पु० [सं०] विडंबना करनेवाला। साधन, राज्यकी सार्वजनिक पूँजी या धन; राज्यकी वित्तविड-पु० [सं०] काला नमक; नोनहा नमक टुकड़ा। संबंधी व्यवस्था । -काम-वि० धनका इच्छुक; लोभी। विडरना*-अ० क्रि० चौंकना; डरना; भागना; तितर- -जाय-वि. विवाहित, जिसने पत्नी प्राप्त की है। -द बितर होना।
-वि० धन देनेवाला; सहायक । -नाथ-पु० कुबेर । विडराना*-स० कि० चौंकाना; भगाना; तितर-बितर -निचय-पु० धनकी बहुत बड़ी राशि । -प-वि० धन करना; नष्ट करना।
की रक्षा करनेवाला। पु० कुबेर । -पति,-पाल-पु० विडारना*-स० क्रि० दे० 'विडराना'।
कुबेर ।-प्रबंधक-पु० (फाइनैशियर) सरकारी आय या विडाल-पु० [सं०] दे० "बिडाल' ।
धनका प्रबंध करनेवाला अधिकारी । -मंत्री(विन)-पु० विडालाक्ष-वि० [सं०] दे० 'बिडालाक्ष।
(फाइनेंस मिनिस्टर) राज्यके धन, आय-व्ययके साधनों विडाली-स्त्री० [सं०] बिल्ली; बिदारीकंद ।
आदि-संबंधी विभागकी देख-रेख करनेवाला मंत्री ।-विधेविडोजा(जस), विडोजा (जस)-पु० [सं०] इंद्र। यक-पु० (फाइनेंस बिल) पु० संसद या विधानसभामें वितंडा-स्त्री० [सं०] अपने पक्षकी स्थापना; निरर्थक दलील, पुरःस्थापित किया जानेवाला आय-व्ययक-संबंधी विधेयक ।
हुज्जत । -वाद-पु० निरर्थक दलीलका सहारा लेना। -साधन-पु० (फाइनेंसेज़) राज्य या संस्था आदिके धन वितंत*-पु० बिना तारका बाजा।।
प्राप्त करनेके जरिये। वित*-वि० कुशल; जानकार, वेत्ता । पु० धन; शक्ति। वित्तवान् (वत्)-वि० [सं०] धनवान् । वितत-वि० [सं०] विस्तृत, चौड़ा; फैला हुआ; खींचा वित्तागम-पु० [सं०] धनकी प्राप्ति या प्राप्तिका साधन ।
हुआ (धनुष का गुण); झुकाया हुआ (धनुष )। वित्ताव्य-बि० [सं०] बहुत धनी । वितताना*-अ० कि० अधीर होना, बेचैन होना । वित्ताप्ति-स्त्री० [सं०] धनकी प्राप्ति । वितति-स्त्री० [सं०] विस्तार, फैलाव; आतिशय्य । वित्तीय-वि० [सं०] वित्त संबंधी; वित्तकी व्यवस्थाके वितथ-वि० [सं०] मिध्या; व्यर्थ, निरर्थक ।
विचारसे चलनेवाला (वर्ष)। वितन*-वि०, पु० दे० 'वितनु' ।
वित्तेश, वित्तेश्वर-पु० [सं०] कुबेर । वितनु-वि० [सं०] अति सूक्ष्म शरीररहित; सारहीन । वित्तेहा, वित्तैषगा-सी० [सं०] धनकी इच्छा, लालच । पु० कामदेव ।
विग्रप-वि० [सं०] बेहया, निर्लज्ज । वितपन्न*-वि० व्युत्पन्न, कुशल, प्रवीण विकल । वित्रस्त-वि० [सं०] डरा हुआ, भीत । वितरक-पु० वितरण करने, बाँटनेवाला।
विथकना*-अ० क्रि० थकना, शिथिल पड़ना; मुग्ध या वितरण-पु० [सं०] अर्पित करना, देना; बाँटना।
चकित होनेपर कुछ बोल न सकना। वितरन*-पु० बाँटना; बाँटनेवाला ।
विथकित*-वि० थका हुआ, जो मुग्ध या चकित होनेके वितरना*-स० क्रि० वितरण करना, बाँटना।
कारण कुछ बोलने में असमर्थ हो। वितरिक्त*-अ० व्यतिरिक्त, सिवा ।
विथराना, विथारना*-सक्रि० फैलाना, छितराना । वितरित-वि० [सं०] बाँटा हुआ।
विथा-स्त्री० व्यथा, पीड़ा, कष्ट । वितरेक-अ० व्यतिरिक्त, सिवा । पु० दे० 'व्यतिरेक' । विथित*-वि० व्यथित, दुःखित, कष्ट में पड़ा हुआ । धितर्क-पु० [सं०] विचार; संदेह; संदेहका विषय; अनु- विथुर-पु० [सं०] क्षय, नाश; चोर । वि० थोड़ा; दुःखी । मान; किसी तर्कके विरुद्ध कही गयी बात या पेश की गयी | विथुरा-स्त्री० [सं०] पतिवियोगिनी, विरहिणी; विधवा । दलील; एक अर्थालंकार ।
विदंत-वि० [सं०] दंतहीन (हस्ती)। वितल-पु० [सं०] सात अधोलोकों में से एक ।
विदग्ध-वि० [सं०] निपुण; पंडित; रसिक, रसश; जला वितस्ता-स्त्री० [सं०] झेलम नदी ।
हुआ, जठराग्निसे पका हुआ, पचा हुआ; नष्ट, गला विताडन-पु० [सं०] दे० 'ताडन'।
हुआ; जो जला या पचा न हो; सुंदर, भद्रतापूर्ण । पु० वितान-पु० [सं०] फैलाव, विस्तार, प्राचुर्य; यश तंबू चतुर या धूर्त आदमी; एक घास ।
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विदग्धक-विद्यार्जन
७३४
विदग्धक-पु० [सं०] जलती हुई लाश (बौद्ध)।
होती थी); मसखरा; चार नायकोंमेंसे एक । वि० दूषित विदग्धता-स्त्री० [सं०] विद्वत्ता; कुशलता; रसिकता। | या गंदा करनेवाला; मजाक करनेवाला; परनिंदक । विदग्धा-स्त्री० [सं०] चतुरतासे परपुरुषको अपने में अनु-विदूषण-पु० [सं०] निंदा करगा; दोषारोप करना। रक्त करनेवाली नायिका ।
विदूषना-सक्रि० सताना, कष्ट देना दोषी ठहराना। विदमान-वि० विद्यमान, उपस्थित, मौजूद । अ० मौजू- अ० कि० दुःखी होना। दगीमें, सामने।
विदेश-पु० [सं०] दूसरा देश, परदेश, देशांतर ।-गतविदरना*-अ० क्रि० फटना। स० क्रि० विदीर्ण करना, वि० प्रवसित, परदेश गया हुआ। -गमन-पु० परदेश फाड़ना।
जाना। -ज-वि० दूसरे देशमें उत्पन्न । -वास-पु० विदर्भ-पु० [सं०] आधुनिक बरार; एक राजा; एक ऋषिः दूसरे देशमें रहना। -वासी(सिन्)-वि० परदेशमें मसूढेका एक रोग; दाँत हिलना। -जा-स्त्री० अगस्त्य रहनेवाला । -स्थ-वि० परदेशमें रहने या घटित पत्नी, लोपामुद्रा दमयंती; रुक्मिणी ।-तनया-सुभ्र-| होनेवाला। स्त्री० दमयंती। -राज-पु० विदर्भका राजा, भीष्मक । विदेशी-वि० दे० 'विदेशीय' । पु० परदेशका रहनेवाला। विदलन-पु०[सं०] मलने, दबाने, दलनेकी क्रिया टुकड़े- विदेशीय-वि० [सं०] परदेशी, दूसरे देशका । टुकड़े करना; दमन; फाड़ना; फटना ।
विदेह-वि० [सं०] शरीररहित; अचेत, बेसुध; मृत; विदलना*-स० क्रि० दलित, नष्ट करना ।
बिरागी; दैहिक चिंताओंसे रहित; जिसकी उत्पत्ति माताविदलित-वि० [सं०] दला, रौंदा, मला हुआ; टुकड़े पितासे न हो (देवता आदि)। पु० राजा जनक; निमि; टुकड़े किया हुआ।
मिथिला; मिथिलाके निवासी; शरीररहित व्यक्ति । विदा-स्त्री० [सं०] शान; समझ विद्याः [अ० 'विदा'] | -कुमारी,-जा-स्त्री० सीता ।
बिदाई, रुखसती; दुलहिनकी मैकेसे विदाई । वि० प्रस्थित । | विदेहत्व-पु० [सं०] शरीर न होनेका भाव । विदाई-स्त्री० बिदा होनेकी क्रिया; बिदा होनेकी अनुमति; | विद-वि० [सं०] ज्ञाता, जानकार; पंडित (समासांतमें)। जानेके समय दी जानेवाली रकम ।
| विद्ध-वि० [सं०] छेदा हुआ; आहत विदीर्ण आबद्ध । विदार-पु० [सं०] युद्ध, प्लावन, जलाशयके पानीका विद्यमान-वि० [सं०] उपस्थित, वर्तमान; यथार्थ । ऊपरसे बहना दे० 'विदारण' ।
विद्यमानता-स्त्री० [सं०] उपस्थिति, मौजूदगी। विदारक-वि० [सं०] फाड़ने, विदारण करनेवाला। विद्या-स्त्री० [सं०] ज्ञान-विज्ञान; किसी विषयका विशेष विदारण-पु० [सं०] टुकड़े करना, फाइना रौंदना युद्ध, ज्ञान; गुण जादू-दाता(त)-पु० पढ़ानेवाला शिक्षक । लड़ाई; मुँह खोलना; जंगल आदि काटकर साफ करना; -दान-पु० विद्या पढ़ाना; ग्रंथ, पुस्तक आदि देना। कष्ट देना; वध करना।
-धन-पु० विद्या द्वारा अर्जित धन; विद्यारूपी धन । विदारना*-स० क्रि० फाड़ना।
-धर-वि० विद्यावाला, जादूगर । पु० एक देवयोनि विदारिका-स्त्री० [सं०] एक डाकिनी; कड़वी तूंबी। (गंधर्व, किन्नर आदि)। -धरी-स्त्री० विद्याधर जातिकी विदारित-वि० [सं०] फाड़ा हुआ।
स्त्री। -पति-पु० राजदरबारका सबसे बड़ा विद्वान् एक विदारी-स्त्री० [सं०] शालपर्णी; भूमिकुष्मांड; एक कंठ- प्रसिद्ध मैथिल कवि । -पीठ-पु० शिक्षाकेंद्र; बड़ा विद्या
रोग; बगल या पट्टेकी सूजन; कानका एक रोग । -कंद- लय । -बल-पु० जादूकी शक्ति विद्या, शास्त्रज्ञानका पु० भूमिकुष्मांड ।
बल । -भाक(ज)-वि० विद्वान् ।-मंदिर-पु० विद्याविदारी(रिन)-वि० [सं०] फाड़नेवाला; काटनेवाला।
लय । -मठ-पु० महाविद्यालय; साधुओंका विद्यालय । विदित-वि० [सं०] जाना हुआ, अवगत, शात ।
-लाभ-पु० विद्याकी प्राप्ति। -विक्रय-पु० धन लेकर विदिशा-स्त्री० [सं०] दो दिशाओंके बीचकी दिशा; एक पढ़ाना। -विद-वि० विद्वान् । -विहीन-वि० मूर्ख । प्राचीन नगरी (वर्तमान भेलसा)।
-वृद्ध-वि० विद्या या ज्ञानमें बढ़ा हुआ। -व्रत-पु० विदिसा-स्त्री० दे० 'विदिशा'।
गुरुके पास रहकर विद्योपार्जन करना। -हीन-वि० विदीर्ण-वि० [सं०] फाड़ा हुआ; चीरा हुआ; निहत; अशिक्षित, मूर्ख । मु०-चलना-चतुराई, करतब (बाजीफैला हुआ खुला हुआ। -मुख-वि० जिसका मुख गरोंका), धूर्तताका सफल होना। -झूठी पड़ना-चतुखुला हो। -हृदय-वि० जिसका दिल फट गया हो, राई, करतब (बाजीगरी), धूर्तताका नाकामयाब होना। मर्माहत ।
-फलना-विद्याका फलीभूत, सफल होना । -लगनाविदुर-वि० [सं०] चतुर; जानकारः कुशल । पु० चतुर | दे० 'विद्या चलना'] व्यक्ति पड्यंत्रकारी; धृतराष्ट्र और पांडुके भाई जो व्यास | विद्यागम-पु० [सं०] विद्या, शानकी प्राप्ति । और अंबिकाकी दासीके पुत्र थे।
विद्याधिराज-पु० [सं०] श्रेष्ठ विद्वान, पूर्ण पंडित । विदुष*-पु० पंडित, विद्वान् ।
विद्यानुसेवन-पु० [सं०] विद्याध्ययन । विदुषी-स्त्री० [सं०] पंडिता स्त्री।
विद्याभ्यास-पु० [सं०] विद्याध्ययन । विदर-वि० [सं०] सुदूरवती । पु० दूरस्थ देश, प्रदेश। विद्यारंभ-पु० [सं०] विद्याकी पढ़ाई आरंभ करनेका विदूषक-[सं०] नकल आदि करके हँसानेवाला (पुराने | संस्कार। समयमें राजाओंके मनोरंजनके लिए इनकी नियुक्ति विद्यार्जन-पु०सं०] विद्याकी प्राप्ति; ज्ञान या शिक्षा द्वारा
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TA
विद्यार्जित-विधान कुछ प्राप्त करना।
वाला राज्यका अनिष्ट करनेवाला, क्रांतिकारी । विद्यार्जित-वि० [सं०] विद्याके द्वारा प्राप्त ।
विद्वज्जन-पु० [सं०] विद्वान् , चतुर आदमी; ऋषि । विद्यार्थी (र्थिन)-पु० [सं०] विद्या पढ़नेवाला, छात्र, विद्वत्ता-स्त्री०, विद्वत्व-पु० [सं०] पांडित्य, बुद्धि,शान । शिष्य । वि० विद्याका इच्छुक ।
विद्वान (दूस)-वि० [सं०] विद्याविशिष्ट अत्यधिक शिक्षित, विद्यालय-पु० [सं०] वह स्थान जहाँ अध्ययन किया | पंडित; तत्त्ववेत्ता, तत्त्वश । पु० पंडित, चतुर व्यक्ति । जाता है, विद्यागृह ।
विद्विट (ष), विद्विष-वि० [सं०] द्वेष, शत्रुता रखनेविद्यावान्(वत्)-वि० [सं०] विद्वान् ।
वाला । पु० शत्रु । विद्यञ्चालक-वि० [सं०] (वह पदार्थ) जिसके एक सिरेसे विद्वेष-पु० [सं०] शत्रुता, वैर घृणा। स्पर्श होते ही विद्युत् दूसरे सिरेतक चली जाय ( ताँबा | विद्वेषक-पु० [सं०] विद्वेष करनेवाला, शत्रु । आदि)।
विद्वेषण-पु० [सं०] वैर; दो जनोंमें वैर करा देना। विद्युत्-स्त्री० [सं०] विजली; वज्र । -कंप-पु० बिजली- विद्वेषणी-स्त्री० [सं०] कोपना स्त्री; द्वेष करनेवाली स्त्री।
का काँधना । -पात,-प्रपतन-पु० बिजलीका गिरना, विद्वेष्य-वि० [सं०] घृणा, द्वेष, वैरका पात्र । वज्रपात ।
विधंस*-वि० विध्वस्त, नष्ट । पु० विध्वंस, नाश। विद्युदणु-पु० [सं०] ( इलेक्ट्रॉन, प्रोटान ) दे० 'ऋण- विधंसना*-स० क्रि० विध्वस्त करना, नष्ट करना । विद्युदणु' तथा 'धनविद्युदणु'।
विध-पु० [सं०] तरीका; * ब्रह्मा । विद्यदुन्मेष-पु० [सं०] बिजलीकी कौंध ।
विधना-*पु० देव, ब्रह्मा। स० क्रि० फंसाना; बेधना; विद्युद्घात-पु० [सं०] (इलेक्ट्रोक्यूशन) विद्युत्का संस्पर्श प्राप्त करना । अ० कि० बेधा जाना; फंसाया जाना । कराकर दिया जानेवाला प्राणदंड; बिजलीके संस्पर्शसे विधनुष्क, विधवा(न्वन्)-वि० [सं०] जिसके पास होनेवाली मृत्यु ।
धनुष न हो। दर्शक यंत्र-पु० [सं०] (इलेक्ट्रॉसकोप) कोई दी हुई। विधर्म-वि० [सं०] बुरा, अन्याय्य निर्गुण । पु० अन्याय वस्तु:विद्युन्मय है या नहीं, यह बतलानेवाला यंत्र। | परधर्म । विद्युद्दाम (न)-पु० [सं०] बिजलीकी चमक या उसकी विधर्मी( मिन्)-पु० [सं०] स्वधर्मके विरुद्ध आचरण रेखा।
करनेवाला, धर्मभ्रष्ट; परधर्मका अनुयायी । विद्युयोत-पु० [सं०] बिजलीकी चमक ।
विधवा-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसके पतिकी मृत्यु हो विद्यदधारक-पु. ( लाइटनिंग अरेस्टर) बिजली गिरते गयी हो, मृतभर्तृका, बेवा, राँड़। -गामी(मिन्)समय टेलीफोन, रेडियो आदिके यंत्रोंको क्षतिग्रस्त होनेसे वि.विधवासे यौन संबंध रखनेवाला । -विवाह-पु० बचाने के लिए लगाया जानेवाला साधन ।
विधवासे विवाह करना। विद्यमापक-पु० [सं०] बिजलीकी शक्ति, गति आदिकी विधवापन-पु० वैधव्य, रँडापा। दिशा मालूम करनेका यंत्र ।
विधवाश्रम-पु० [सं०] वह स्थान जहाँ विधवाओंके भरणविद्युन्माला-स्त्री० [सं०] बिजलीका समूह; एक छंद । - पोषण आदिका प्रबंध हो। विद्यल्लता-स्त्री० [सं०] बिजलीकी टेढ़ी मेढ़ी रेखा। विधाँसना*-स० कि० विध्वस्त करना, बरबाद करना । विद्यल्लेखा-स्त्री० [सं०] बिजलीकी लीक एक वर्णवृत्त । विधाता(त)-वि० [सं०] व्यवस्था करनेवाला; विभाग विद्योतक, विद्योती (तिन)-वि० [सं०] प्रकाशमान करनेवाला । पु० विभाग, व्यवस्था करनेवाला; बनानेकरनेवाला।
वाला; देनेवाला; ब्रह्मा प्रारब्ध, विष्णु, शिव । विद्योपार्जन-पु० [सं०] ज्ञानार्जन, अध्ययन । विधात्री-स्त्री० [सं०] रचने, विधान करनेवाली; जननी; विधि-स्त्री० [सं०] फोड़ा, विशेषकर अंदरका । व्यवस्था करनेवाली; पीपल, पिप्पली । विद्रावक-वि० [सं०] भगानेवाला; पिघलानेवाला। विधान-पु० [सं०] कार्यका आयोजना प्रबंध, व्यवस्था विद्रावण-वि० [सं०] भगानेवाला; घबड़ाहट में डालने नियंत्रण आदेश; काम करनेका ढंग, प्रणाली निर्माण
वाला । पु० भगाना पराभूत करना; पलायन पिघलाना। साधन; संपादन(लेजिस्लेशन) राज्यके विधानमंडल विद्रावित-वि० [सं०] पराभूत किया हुआ; भगाया हुआ; द्वारा स्वीकृत कोई अधिनियम, व्यवस्था या विधि जैसा तितर-बितर किया हुआ; पिघलाया हुआ।
प्रभाव रखनेवाला विनिश्चय । -ज्ञ-वि०विधान जानविद्रावी (विन)-वि० [सं०] भागनेवाला; भगानेवाला; नेवाला । पु० शिक्षक, आचार्य । -परिषद्-स्त्री० वह पिघलनेवाला।
परिषद्, सभा जो व्यवस्थाको सुचारु रूपसे चलानेके लिए विद्रुत-वि० [सं०] गला हुआ पिघला हुआ; भागा हुआ;
कानून बनाये (लेजिस्लेटिव कौंसिल) (भारतके) जिस डरा हुभा, घबराया हुआ; नष्ट । पु० युद्धका एक ढंग।
राज्यमें विधानमंडलके दो सदन हों उसका वह दूसरा विद्वम-पु० [सं०] प्रवाल, मूंगा। वि० वृक्षरहित । ( अर्थात् विधानसभाको छोड़कर अन्य) सदन जिसके विद्रोह-पु० [सं०] हानि पहुँचानेके विचारसे किया हुआ | सदस्य नगरपालिकाओं, विश्वविद्यालयके स्नातकों तथा कार्य; किसी राज्य, सरकारको उलटने के लिए किया शिक्षा-संस्थाओंके अध्यापकोंके बने निर्वाचनमंडलों द्वारा जानेवाला बलवा, उपद्रव, क्रांति ।।
और विधानसभाके सदस्यों द्वारा निर्वाचित किये जायें । विद्रोही (हिन)-वि० [सं०] विद्रोह, द्वेष, वैर करने -मंडल-पु० (लेजिस्लेचर ) राज्यके लिए विधान बना
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विधानक - विध्यनुकूल
नेवाले व्यक्तियोंका समूह - भारतके जिन राज्यों में दो सदन हैं, वहाँ उन दोनों ( और जिनमें एक ही सदन है उनमें उक्त सदन ) तथा राज्यपालको संयुक्त रूपसे यह नाम दिया गया है । - सभा - स्त्री० ( लेजिस्लेटिव असेंबली) जनप्रतिनिधियोंकी वह सभा जो राज्यके लिए विधान बनाती, आय-व्ययक स्वीकार करती तथा शासनकार्योंका नियंत्रण करती है । विधानक - वि० [सं०] व्यवस्था करनेवाला; विधान जानने
वाला ।
विधायक - वि० [सं०] कार्य करनेवाला; बनानेवाला; व्यवस्था देनेवाला; रचनात्मक कानून बनानेवाला ( आधु० ); सुपुर्द करनेवाला | पु० संस्थापक, निर्माता; ( लेजिस्लेटर ) विधानसभाका सदस्यः विधान संहिताके निर्माणका कार्य करनेवाला ।
विधायन - पु० [सं०] विधान करना या बनाना; विधानसभा आदि द्वारा विधान, अधिनियम आदिका निर्माण । विधायी (त्रिन्) - वि० [सं०] व्यवस्था देनेवाला; बनाने, पूरा करनेवाला; रचनात्मक; सुपुर्द करनेवाला । -कार्य - पु० ( लेजिस्लेटिव बिजनेस ) ( विधान सभा आदिमें ) विधान निर्माणका कार्य ।
विधारा - पु० एक लता जो उपदंश, क्षय आदि रोगों में बहुत गुणकारी होती है ।
विधावन - पु० [सं०] इधर-उधर दौड़ना । विधावित- वि० [सं०] विभिन्न दिशाओं में पलायित, तितर-बितर ।
विधि - स्त्री० [सं०] कार्य करनेका ढंग; संगति, मेल; प्रयोग; शास्त्रसम्मत व्यवस्था; (लाँ) मनुष्यों के हितों, अधिकारों आदिकी रक्षा के लिए राजा, मंत्रिमंडल या विधानसभा आदि द्वारा निर्मित वे विधान या अधिनियम जिनका पालन करना प्रत्येक व्यक्तिके लिए अनिवार्य होता है और जिनकी अवहेलना करनेपर उसे दंड मिलता या मिल सकता है; धर्मग्रंथ, शास्त्र द्वारा निश्चित कर्तव्य-निर्देश; क्रियाका वह रूप जिसमें किसीको काम करनेका आदेश किया जाता है ( व्या० ); एक : अर्थालंकार जिसमें सिद्ध विषयका फिर विधान होता है; कार्य; भाग्य; एक देवी; चाल-ढाल, आचार-व्यवहार । पु० सृष्टिकी रचना करने वाला, ब्रह्मा; विष्णु । -ग्राह्य मुद्रा - स्त्री० (लीगल टेंडर (मनी) वह मुद्रा जिसका प्रयोग ऋण चुकानेके लिए करना विधिविहित हो । धन- वि० नियमोल्लंघन करनेवाला । - ज्ञ - पु० (लॉयर) विधि-विधान जाननेवाला । निषेधपु० कोई काम करने या न करनेका शास्त्रीय निर्देश । - परामर्शी (शिन्) -पु० (लीगल रिमेम्ब्रेसर ) सरकारको विधि (कानून) - संबंधी सलाह देनेवाला पदाधिकारी । - पालक - वि० (लॉ अबाइडिंग) राज्यकी विधियों( कानूनों) का पालन करते हुए जीवन-यापन करनेवाला ( नागरिक ) । - पूर्वक, - वत् भ० नियमानुसार । - प्रयोग - पु० नियमका प्रयोग। -भंग-पु० (ब्रीच ऑफ लॉ) विधि- (कानून) की उपेक्षा करना, विधिविरोधी कार्य द्वारा विधिका उल्लंघन । -रानी-स्त्री० [हिं०] दे० 'विधिवधू' । - लोक - पु० ब्रह्मलोक, सत्यलोक ।
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- लोप - पु० नियमोल्लंघन । - वधू- स्त्री० ब्रह्माकी पत्नी, सरस्वती । -वशात्-अ० दैवयोगसे, भाग्यवशात् । - वाहन - पु० हंस । -विज्ञान, - शास्त्र - पु० ( ज्यूरिस प्रूडेंस) नियम, विधियों, सिद्धांतों आदिका विवेचन करनेवाला शास्त्र । - विपर्यय- पु० भाग्यकी प्रतिकूलता। -विहित-वि० नियम या शास्त्र के अनुसार प्रतिष्ठापित; शास्त्रानुमोदित । - सचिव - पु० (लीगल सेक्रेटरी) विधि-संबंधी प्रश्नोंमें सलाह देने या पत्रव्यवहारादि करनेवाला सचिव । - स्नातक- पु० (बैचलर ऑफ लॉज) वह व्यक्ति जिसने विधि ( कानून ) की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उपाधि प्राप्त की हो। होन- वि० अनियमित, अविहित | मु० - बैठना - मेल खाना; इच्छानुकूल कार्य होना ।
विधिक - वि० (लीगल) विधि (कानून) - संबंधी; जो विधिके _अनुकूल या अनुरूप हो । विधुंत* - पु० दे० 'विधुंतुद' ।
विधुंतुद - पु० [सं०] चंद्रमाको कष्ट देनेवाला, राहु | विधु -पु० [सं०] चंद्रमा कपूर; ब्रह्मा । -क्षय - पु० चंदमाका क्षीण होना; असित पक्ष । -दार - स्त्री० चंद्रमाकी स्त्री, रोहिणी । - प्रिया - स्त्री० रोहिणी; कुमुदिनी । - बंधु - पु० कुमुदका फूल। - बैनी* - स्त्री० दे० 'विधुमुखी' । - मंडल - पु० चंद्रमंडल । -मणि-पु० चंद्रकांत मणि । - मुखी, - वदनी - स्त्री० सुंदरी स्त्री, चंद्रमा के समान मुखवाली स्त्री ।
विधुर - वि० [सं०] दुःखी; वियोगी; वंचित; व्याकुल; असमर्थ; असहाय । पु०वह पुरुष जिसकी स्त्री मर गयी हो । विधुरा - स्त्री० [सं०] कानके पासकी एक ग्रंथि; दहीकी लस्सी ।
विधूत - वि० [सं०] कँपाया या हिलाया हुआ; काँपता हुआ; अस्थिर; परित्यक्त; हटाया, दूर किया हुआ । -कल्म, - पाप्मा ( मन ) - वि० पापमुक्त । - केश - वि० जिसके बाल बिखरे या लहरा रहे हों । विधूनन- पु० [सं०] हिलाना; कंपन; अनिच्छा, विकर्षण । विधूनित - वि० [सं०] हिलाया हुआ; कंपित; उत्पीड़ित । विधूम - वि० [सं०] धूमरहित (अग्नि) । विधूम्र - वि० [सं०] धूसर, मटमैला ।
विधेय - वि० [सं०] देने योग्य; प्राप्य करने योग्य; स्थापनाके योग्य; प्रदर्शित करने योग्य; प्रज्वलित करने योग्य; अधीन, वशवर्ती; विनम्र शासित करने योग्य । पु० कर्तव्य कर्म; आवश्यकता; वाक्यका वह अंश जो किसीके संबंध में कहा गया हो । ज्ञ - वि० कर्तव्य समझनेवाला । विधेयक- पु० [सं०] किसी विधान, अधिनियम आदिका वह प्रारूप (मसौदा ) जो पारित होनेके लिए लोकसभा, विधानसभा आदि में रखा जाय (बिल) | विधेयता - स्त्री० [सं०] विधिके योग्य होना; अधीनता । विधेयत्व - पु० [सं०] उपयोगिता; निर्भरता; अधीनता । विध्य- वि० [सं०] छिदने योग्य; जिसे बेधना, छेदना हो । विध्यनुकूल - वि० [सं०] (वैलिड) विधि (कानून) की दृष्टि से जिसमें कोई त्रुटि न हो; जिसमें विधिक आवश्यकताओंका भली भाँति पालन या अनुसरण किया गया हो ।
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७३७
एक
विध्यलंकार - पु०, विध्यलंक्रिया - स्त्री० [सं०] काव्यालंकार, जहाँ किसी सिद्ध बातका, विशेष अभिप्रायसे, पुनः विधान किया जाय । विध्याभास - पु० [सं०] एक अर्थालंकार | विध्वंस - पु० [सं०] विनाश; क्षति; वैमनस्य; अनादर । विध्वंसक - वि० [सं०] नाशक; लंपट | पु० विनाशक रण-पोत ।
विध्वंसन पु० [सं०] नाश, बरबाद करना; अपमान करना । वि० नाश करनेवाला; सतीत्व नष्ट करनेवाला । विध्वंसित - वि० [सं०] नष्ट किया हुआ । विध्वंसी (सिन्) - वि० [सं०] नष्ट होनेवाला; नाशक । विध्वस्त- वि० [सं०] नष्ट; बरबाद किया हुआ । विन* - अ० बिना, बगैर ।
विनत - वि० [सं०] झुका हुआ, नमित; विनम्र । विनतड़ी* - त्रो० दे० 'विनती' । विनता - स्त्री० [सं०] कूबड़वाली लड़की; दक्ष प्रजापतिकी पुत्री, कश्यपकी पत्नी, गरुड़की माता । -नंदन, - सुत,
[सूनु - पु० गरुड़; अरुण । विनति - स्त्री० [सं०] झुकाव, नम्रता; विनती, प्रार्थना । विनती - स्त्री० प्रार्थना ।
विनष्ट - वि० [सं०] ध्वस्त; विलुप्त; मरा हुआ; विगड़ा हुआ, विकृतः भ्रष्ट । पु० शव । - वक्षु ( स ) - वि० जिसकी आँख नष्ट हो गयी हो। -दृष्टि-वि० जिसकी दृष्टि नष्ट हो गयी हो । - धर्म - वि० जिसके विधान भ्रष्ट हों (देश)। विनष्टि - स्त्री० [सं०] नाश; पतन; लोप । विनसना * - अ० क्रि० नष्ट होना ।
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विध्यलंकार - विनियमके
गणेश; नायक; गरुड़; बुद्धदेव; देवीका एक स्थान; गुरु, आचार्य; विघ्न । - केतु-पु० गरुडध्वज, कृष्ण । - चतुर्थी - स्त्री० गणेशचौथ, माघ सुदी चौथ ।
विनम्र - वि० [सं०] झुका हुआ; विनीत, विनयी, सुशील । विनिद्र - वि० [सं०] निद्रारहित, जाग्रत्; जागकर बिताया - कंधर - वि० जिसकी गरदन झुकी हो । विनय - स्त्री० [सं०] अनुशासन; भद्रता; शिष्टता; नम्रता; आचरण; प्रार्थना । - कर्म (न्) - पु० शिक्षण । - पिटकपु० अनुशासन संबंधी नियमोंका संग्रह (बौद्ध) । -प्रमाथी (थिन्) - वि० अनुशासन भंग करनेवाला । - वाक् (च) - वि० मधुरभाषी । - शील- वि० विनम्र । विनयन - पु० [सं०] त्रिनय; शिक्षण; निराकरण । विनयवान् (वत्) - वि० [सं०] नम्र, शिष्ट । विनयावनत - वि० [सं०] विनम्र । विनयी (यिन) - वि० [सं०] विनम्र |
विनवना* - स० क्रि० प्रार्थना, अनुरोध करना । विनशन - पु० [सं०] हानि, नाश; लोप । विनशना * - अ० क्रि० नष्ट होना, बरबाद होना । विनशाना * - स० क्रि० नष्ट करना, बरबाद करना । अ० क्रि० नष्ट होना ।
विनश्वर - पु० [सं०] नष्ट होनेवाला, नाशवान्; जो चिर स्थायी न हो, अनित्य ।
विनश्वरता - स्त्री०, विनश्वरत्व - पु० [सं०] अनित्यता,
नश्वरता ।
विनसाना* - अ०क्रि० नष्ट होना । स०क्रि० नष्ट करना । विना - अ० [सं०] न होनेपर, अभाव में, बगैर | विनाती* - स्त्री० विनती, प्रार्थना ।
विनाश - पु० [सं०] अस्तित्व न रहना, नाशः क्षयः लोप; बिगड़ जाना । धर्मा (न्), - धर्मी (मिंन्) - वि० नश्वर, नष्ट होनेवाला; क्षणभंगुर - हेतु-पु० विनाश या मृत्युका कारण । विनाशक - वि० [सं०] नाश करनेवाला; बिगाड़नेवाला । विनाशन- ५० [सं०] नाश करना; लुप्त करना; हटाना । विनाशयिता (तृ) - वि०, पु० [सं०] नाश करनेवाला । विनाशी (शिन्) - वि० [सं०] नश्वर; नाश करनेवाला । विनाशोन्मुख - वि० [सं०] नाशकी ओर प्रवृत्त विनास - वि० [सं०] नासिकाहीन । * पु० दे० 'विनाश' । विनासक, विनासिक - वि० [सं०] नासिकाहीन | विनासन - पु० दे० 'विनाशन' |
विनासना * - स० क्रि० नष्ट करना, बरबाद करना; खराब करना ।
विनिंदक - वि० [सं०] निंदा करनेवाला ।
विनिंदित - वि० [सं०] जिसकी बहुत निंदा की गयी हो, लांछिन ।
विनियंत्रण- पु० [सं०] (डी-कंट्रोल) युद्ध स्थिति या उपलब्धिकी कमी आदि के कारण किसी वस्तुपर लगायी गयी मूल्य या वितरण संबंधी नियंत्रण व्यवस्थाका उठा लिया जाना । विनियताहार - वि० [सं०] जिसका आहार संयत हो, मिताहारी, अधिक खानेसे परहेज करनेवाला । विनियम - पु० [सं०] रोक; संयम; नियंत्रण; शासन; (रेगुलेशन) वह विशेष नियम जो किसी संस्था आदिके प्रबंध या नियंत्रणके लिए प्राधिकृत आदेशसे या विशेष निश्चयके अनुसार बनाया गया हो ।
. विनायक - वि० [सं०] ले जानेवाला; हटानेवाला । पु० | विनियमक - वि० ( रेगुलेटर ) ( पंखे आदिकी ) गति या
हुआ; खिला या फैला हुआ ।
विनिद्रता - स्त्री०, विनिद्रत्व - पु० [सं०] प्रबोध, जागरूकता; निद्राका अभाव; जाग्रत् अवस्था । विनिपतित-वि० [सं०] नीचे गिरा हुआ । विनिपात - पु० [सं०] पतन; ध्वंस, विनाश; संकट; मृत्यु; वध, इत्या; अनादर, अवमान असफलता । विनिपातक - वि० [सं०] विनाशकारी; गिरानेवाला । विनिपातित-वि० [सं०] गिराया हुआ; नष्ट किया हुआ । विनिमय - पु० [सं०] अदल-बदल, प्रतिदान; बंधक; वर्णपरिवर्तन | - अधिकोष-पु० (एक्सचेंज बैंक) वह अधिकोष (बैंक) जहाँ एक देशकी मुद्राके बदले दूसरे देशकी मुद्रा देने या बाहर प्रेषित करने आदिका काम होता है । विनिमीलन- पु० [सं०] बंद होना, मुँदना ( आँख, फूल आदिका ) ।
विनिमीलित - वि० [सं०] जो बंद हो गया हो, मुँदा हुआ । विनिमीलितेक्षण - वि० [सं०] जिसने आँखें बंद कर ली हों या जिसकी आँखें बंद हो गयी हों । विनिमेष, विनिमेषण- पु० [सं०] पलकोंका गिरना;
पलक मारना ।
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अधिक
-पु०
सं०]
माया, जहाजमा
या
विनियमन-विपरिधान
७३८ वेगका नियंत्रण करनेवाला आला ।
होना, दिखलाया जाय । विनियमन-पु० [सं०] (रेगुलेशन, रेगुलेटिंग) नियमादि विनोद-पु० [सं०] मनोरंजन मनोरंजक बात; परिहास; बनाकर नियंत्रित करना, गति, वेग, विस्तार आदि अधिक क्रीडा प्रसन्नता, प्रमोद ।। न बढ़ने देना, आवश्यकतानुसार घटाना-बढ़ाना या विनोदन-पु० [सं०] क्रीडा करना; मन बहलाना। ठीक करना।
| विनोदी(दिन)-वि० [सं०] क्रीड़ाशील; मौजी। विनियम्य-वि० [सं०] रोक-थाम करने योग्य; संयत, विन्यस्त-वि० [सं०] रखा हुआ; जमाया, जड़ा हुआ; नियंत्रित करने योग्य ।
डाला हुआ; प्रवृत्त किया हुआ; व्यवस्थित अर्पित; जमा विनियुक्त-वि० [सं०] काममें लगाया हुआ, नियोजित किया हुआ।
अर्पित; आदिष्ट प्रेरित कार्यसे मुक्त किया हुआ। विन्यास-पु० [सं०] रखना, स्थापन करना; जड़ना; विनियोक्ता (क्त)-वि०,पु० [सं०] नियुक्त करनेवाला। धारण करना; सुपुर्द करना; व्यवस्थित करना; [एरेंजमेंट) विनियोग-पु० [सं०] विभाग, बँटवारा नियुक्ति, कार्य- | सिलसिलेसे रखने, क्रम ठीक करने आदिका काम; अंगोंकी भार प्रयोग संबंध; ( ऐप्रोप्रियेशन) (कोई वस्तु या धन)। स्थिति; फैलाना; प्रदर्शन; आधार संग्रह, समूह । अधिकार में ले लेना या अपने प्रयोगमें ले आना, उपयो- | विपंच-पु. ( अंपायर ) पंचोंके बीच मतभेद होनेपर जन ।-विधेयक-पु० (ऐप्रोप्रियेशन बिल) वह विधेयक अभिनिर्णयके लिए आमंत्रित अन्य व्यक्ति । जिसमें इस बातका भी ब्यौरा दिया रहता है कि राजस्वका विपंचिका, विपंची-स्त्री० [सं०] एक तरहकी वीणा कितना अंश किस मदमें खर्च किया जायगा ।
क्रीड़ा, केलि । विनियोजित-वि० [सं०] नियुक्त, लगाया हुआ; अर्पित विपक्ष-पु० [सं०] विरोधी पक्ष; शत्रु, विरोधी प्रतिवादी प्रेरित।
किसी बातके विरोधमें कुछ कहना किसी नियमके विरुद्ध विनियोज्य-वि० [सं०] काममें लगाया जानेवाला | व्यवस्था, बाधक नियम, अपवाद (व्या०); वह पक्ष जिसमें प्रयोगमें लाया जानेवाला।
साध्यका अभाव हो (न्याय); निष्पक्षता; वह दिन जब विनिर्गत-वि० [सं०] बाहर निकला हुआ मुक्त व्यतीत । पाख बदले । विनिर्दिष्ट-वि० [सं०] विशेष रूपसे निर्दिष्ट ।
विपक्षी(क्षिन)-पु० [सं०] विरुद्ध पक्षका व्यक्ति; शत्रु । विनिर्देश-पु[सं०] (स्पेसिफिकेशन) निश्चित रूपसे कोई विपज्जनक-वि० [सं०] संकट पैदा करनेवाला। बात कहना या निर्देश करना; इस प्रकार कही हुई बातः | विपणि, विपणी-स्त्री० [सं०] हाटा दुकान; बिक्रीका विशेषताओं-संबंधी विवरण ।
माल; व्यापार, विक्रो। विनिर्मल-वि० [सं०] अत्यधिक स्वच्छ, जिसमें जरा भी विपणी(णिन्)-पु० [सं०] व्यापारी, दुकानदार । मल न हो।
विपत्काल-पु० [सं०] संकटके दिन, दुर्दिन । विनिर्मित-वि० [सं०] ...से बना हुआ रचित मनाया। विपत्ति-स्त्री० [सं०] संकट, आफत; मृत्यु नाश; यातना। हुआ (उत्सव); निर्धारित, निश्चित ।
-कर-वि० संकट उत्पन्न करनेवाला । -काल-पु० कष्टविनिर्मक्त-वि० [सं०] छोड़ा हुआ; बंधनरहित निकला के दिन । मु०-उठाना,-झेलना-तकलीफ सहना । हुआ।
-काटना-दुःखके दिन बिताना। -ढहना-किसीपर विनिवर्तित-वि० [सं०] लौटाया हुआ पलटा हुआ। सहसा भारी दुःख पड़ना । -भोगना-कष्ट सहना । विनिवृत्त-वि० [सं०] लौटा हुआ; इटा हुआ; समाप्त;
-मैं डालना-किसीको दुःख देना। -में पड़नामुक्त लुप्त ।
संकटग्रस्त होना। -मोल लेना-जान-बूझकर संकटमें विनिवृत्ति-स्त्री० [सं०] विराम, अंत; छुटकारा।
पड़ना। -सिरपर लेना-व्यर्थ झंझट, दिक्कतमें पड़ना। विनिवेदित-वि० [सं०] घोषित, जनाया हुआ ।
विपत्र-पु० [सं०] (बिल) किसी महाजन, बैंक, खजाने आदि विनिश्चय-पु० [सं०] (डेसीज़न) कोई काम करने आदिके द्वारा दिया गया वह पत्र जिसमें लिखा हो कि इसमें निर्दिष्ट संबंधमें किसी सभा आदि में विशेष रूपसे कुछ निश्चय रकम अमुक तिथितक चुका दी जायगी, हुंडी; खरीदे किया जाना, किसी प्रश्नका निपटारा ।
या मँगाये गये मालका मूल्य चुकानेके लिए जारी किया विनिषिद्ध व्यापार-पु० [सं०] (कंट्रावैड ट्रेड ) उन | गया वह लिखित पत्र या साधन जो ऋण चुकानेके लिए वस्तुओंका व्यापार जिनके आयात या निर्यातकी मनाही दोनों पक्षों द्वारा स्वीकार किया गया हो, विनिमयपत्र । कर दी गयी हो या जिन्हें युद्धग्रस्त देशोंके हाथ बेचना विपथ-पु० [सं०] भिन्न मार्ग; गलत रास्ता । -गा-वि० तटस्थ राष्ट्रोंके लिए अनुचित ठहराया गया हो।
स्त्री० कुमार्गपर जानेवाली; स्त्री० नदी।-गामी(मिन)विनीत-वि० [सं०] हटाया हुआ, ले गया हुआ; नम्र, वि० कुमार्गगामी। विनयी; जानकार, ज्ञान रखनेवाला; जितेंद्रिय । -वेष-विपदा-स्त्री० [सं०] विपत्ति, दुःख । पु० सादी पोशाक।
विपद-स्त्री० [सं०] आफत, संकट; मृत्युः नाश । विनीतता-स्त्री०, विनीतत्व-पु० [सं०] नम्रता, शिष्टता। -आक्रांत-वि० संकट-ग्रस्त । -ग्रस्त-वि० संकटापन्न । विनु*-अ०बिना।
विपन्न-वि० [सं०] मृत; नष्ट; संकटग्रस्त । विनोक्ति-स्त्री० [सं०] एक काव्यालंकार, जहाँ किसी एक | विपरिधान-पु० [सं०] (यूनीफार्म) सेना, पुलिस आदिके वस्तुके बिना अपर वस्तुका शोभित होना, या शोभित न । कर्मचारियों के लिए निर्धारित विशेष पहनावा, जो प्रायः
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विपरीता - स्त्री० [सं०] दुश्चरित्रा, पुंश्चली | विपरीतार्थ - वि० [सं०] उलटे अर्थवाला | विपर्णक - वि० [सं०] विना पत्तोंका । पु० पलाशका पेड़ । विपर्यय - पु० [सं०] व्यतिक्रम; विपरीतता, प्रतिकूलता; चक्कर; पलायन; समाप्ति; परिवर्तन ( स्थान, वस्त्रादिका ); हानि; विनाश; विनिमय; भूल; संकट; शत्रुता; विरोध । - से भी- अ० (वाइस वर्सा) दे० 'विपरीततः भी' । विपर्यस्त - वि० [सं०] परिवर्तितः अस्त व्यस्त; उलटापलटा हुआ; औरका और समझा हुआ । विपर्याय - पु० [सं०] (एंटोनिम ) किसी शब्दका विलकुल विरोधो अर्थ प्रकट करनेवाला शब्द ।
७३९
सबके लिए एक-सा होता है, समपरिधान । विपरीत - वि० [सं०] उलटा; प्रतिकूल; नियमविरुद्ध असत्य; विरुद्ध; बेमेल; अशुभ; भिन्न । पु० एक अर्थालंकार - 'जहाँ कार्यसिद्धि में स्वयं साधकका ही बाधक होना दिखलाया जाय' - (केशव); एक रतिबंध । -कर,कारक, - -कारी (रिन् ), - कृत् - वि० विरुद्ध काम करनेबाला । - गति - वि० उलटी दिशा में जानेवाला । -चेता( तस ), बुद्धि, मति - वि० जिसका दिमाग फिर गया हो। -रति--स्त्री० रतिका एक प्रकार ।-लक्षणास्त्री० व्यंग्य में उलटी बात कहना । विपरीततः भी- अ० ( वाइस वर्सा ) ( पहले कहे हुएके) उलटे प्रकार या क्रमसे भी, विपर्यय से भी । विपरीतता - स्त्री०, विपरीतत्व - पु० [सं०] विपर्यय, विप विप्रच्छन्न- वि० [सं०] छिपा हुआ, गुप्त । रीत होनेका भाव | विप्रणाश- पु० [सं०] नाश, लोपः मृत्यु | विप्रतारित - वि० [सं०] जो छला गया हो । विप्रतिकृत - वि० [सं०] जिसका विरोध या प्रतिशोध किया गया हो ।
कृष्ण |
विपुत्र - वि० [सं०] पुत्रहीन |
विपुल - वि० [सं०] बृहत्, बड़ा; विस्तृत अधिक, प्रचुर;
गहरा, अगाध ।
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विपरीत- विप्लव
मिला हो ।
विपोहना * -स० क्रि० पोहना, छेदना; पोतना; संहार
विपुलता - स्त्री, विपुलत्व - पु० [सं०] आधिक्य; प्राचुर्य; विस्तार |
करना ।
विप्र- पु० [सं०] ब्राह्मणः पुरोहित; चतुर आदमी । - चरण, -पद-पु० विष्णुके हृदयपर अंकित भृगुका चरणचिह्न । - समागम - पु० ब्राह्मणोंसे मेल-जोल रखना । - स्व-पु० ब्राह्मणकी संपत्ति । विप्रकृत - वि० [सं०] अपकृत, अनाहत, क्षतिग्रस्त । विप्रकृति-स्त्री० [सं०] अपकार; परिवर्तन; क्षति; विरोध; प्रतिशोध ।
विप्रकृष्ट - वि० [सं०] खींचकर हटाया हुआ, दूर किया हुआ; दूरवर्ती; बहुत दूर; फैलाया हुआ ।
विपर्यास - पु० [सं०] परिवर्तन; विपरीतता, प्रतिकूलता विप्रमत्त-वि० [सं०] प्रमादरहित । विप्रमोहित-वि० [सं०] हतबुद्धि | विप्राण- पु० [सं०] चल देना; पलायन | विप्रयुक्त - वि० [सं०] अलग किया हुआ; वियुक्त; मुक्त किया हुआ; वंचित, विहीन ।
उलट-पुलट, भ्रम, भूल, मिथ्या ज्ञान । विपल - पु० [सं०] समयका एक बहुत छोटा मान, पलका साठवाँ भाग ।
विप्रयोग- पु० [सं०] वियोग (विशेषकर प्रियसे), विच्छेद | विप्रयोगी (गिन्) - वि० [सं०] (प्रिय आदिसे) वियुक्त, जो अलग हो ।
विपलायन - पु० [सं०] भागना; विभिन्न दिशाओं में भागना । विपाक - पु० [सं०] पकना; पूर्ण दशाको प्राप्त होना; पचना; परिणाम; कर्मका फला अवस्था परिवर्तन | विपाटक- वि० [सं०] फाड़ने, फोड़ने, उखाड़नेवाला । विपाटन - पु० [सं०] उखाड़ने, फोड़नेकी क्रिया । विपादिका - स्त्री० [सं०] पैरका एक, रोग, पादस्फोट, बेवाई । विपादित - वि० [सं०] नष्ट किया हुआ; बध किया हुआ । विपाशा - स्त्री० [सं०] व्यास नदी । विपिन - पु० [सं०] जंगल, वन; उपवन । -चर- पु० वनचर; जंगली आदमी; पशु, पक्षी आदि । - पति-पु० सिंह । - विहारी (रिन् ) - - पु० वनमें विहार करनेवाला;
विप्रतिपत्ति - स्त्री० [सं०] विरोध; मतभिन्नता; दो नियमोंका परस्पर विरुद्ध होना; भ्रांत धारणा; संदेह; विरोधी भाव; पारस्परिक संबंध; घबराहट; अभिशता; अपकीर्ति; विकृति |
विप्रतिपद्य - वि० [सं०] जिसका विरोध किया जाय; विभिन्न प्रकार से सिद्ध किया जानेवाला । विप्रनष्ट-वि० [सं०] जो पूर्णतः नष्ट हो गया हो; लुप्त; निष्फल, बेकार |
विप्रलंभ - पु० [सं०] छल, धोखा, बहकावा; नैराश्य; प्रेमियोंका वियोग विच्छेद; कलह । - श्रृंगार - पु० वियोगशृंगार जिसमें विरह-वर्णन होता है । विप्रलंभन - पु० [सं०] छल करना, धोखा देना । विप्रलब्ध - वि० [सं०] वंचित; छला हुआ; निराश; क्षतिग्रस्तः विरही ।
विप्रलब्धा - स्त्री० [सं०] संकेत-स्थल में प्रियके न मिलने से दुःखी नायिका |
विप्रलाप - पु० [सं०] बेमतलब बकना; परस्पर खंडनमंडन करना; विवाद ।
विशेषक- पु० [सं०] ( रेमिटर ) किसी दूर रहनेवाले व्यक्ति के पास रुपया-पैसा या अन्य वस्तु भेजनेवाला । विप्रेषण- पु० [सं०] (रेमिटेंस ) किसी दूरस्थ आदमीके पास रुपया-पैसा आदि भेजना; वह वस्तु जो दूर भेजी जाय । विप्रोषित - वि० [सं०] परदेशमें रहनेवाला; निष्कासित । -भर्तृका - स्त्री० वह स्त्री जिसका पति विदेश में हो ।
विपुला - स्त्री० [सं०] पृथ्वी; एक छंद; आर्या छंदका भेद । विपुलाई * - स्त्री० दे० 'विपुलता' ।। विपुलेक्षण - वि० [सं०] बड़ी आँखोंवाला ।
विपुष्ट-वि० [सं०] जो पुष्ट न हो, जिसे पूरा पोषण न | विप्लव - पु० [सं०] प्लावन; उपद्रव, अशांति; हल्ला-गुल्ला;
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विप्लवी-विभाव विद्रोह नाश, बर्बादी क्षति; आईनेपरका धब्बा; नियम | विभक्ता (क्त)-वि० [सं०] व्यवस्था करनेवाला; विभाग आदिका भंग।
करनेवाला। विप्लवी(विन)-वि० [सं०] क्षणभंगुर, अस्थायी; विप्लव, विभक्ति-स्त्री० [सं०] बँटवारा, विभाग; उत्तराधिकार में क्रांति करनेवाला।
प्राप्त हिस्सा; पार्थक्य कारकका चिह्न (व्या०) । विप्लावक-पु० [सं०] विप्लव, उपद्रव करनेवाला, बलवाई, | विभज्य-वि० [सं०] जिसका विभाग करना हो; जिसका
विद्रोही, क्रांतिकारी बाढ़ लानेवाला; फैलानेवाला । भेद दिखलाना हो। विप्लावित-वि० [सं०] बहाया हुआ घबराहटमें डाला | विभव-पु० [सं०] धन, संपत्ति, ऐश्वर्य; महत्ता उच्च पद; हुआ; नष्ट किया हुआ।
उदाराशयता प्रभाव; अनावश्यक, भोगविलासकी वस्तु विप्लुत-वि० [सं०] बिखरा हुआ अस्त-व्यस्त; घबराया मोक्ष; एक संवत्सर; प्रलय (बौद्ध)। -मद-पु० ऐश्वर्यका हुआ; भटका हुआ; नष्ट-भ्रष्ट; जो धुंधला हो गया हो। मद । -शाली (लिन)-वि० दे० 'विभववान्। (नेत्र); भग्न (प्रतिज्ञा आदि); उत्तेजित; आचारहीन; विभववान (वत्)-वि० [सं०] धनी, ऐश्वर्यशाली; जिसका उपचार गलत हुआ हो; कुटिल प्रतिकूल; जल- शक्तिशाली। प्लावित । पु० फटन, स्फोट । -नेत्र,-लोचन-वि० विभवी (विन्)-वि० [सं०] दे० 'विभववान् । जिसकी आँखें अश्रुपूर्ण हों। -भाषी(पिन्)-वि० विभाँति-स्त्री० भेद, प्रकार, किस्म । वि० कई तरहका । अस्पष्ट बोलनेवाला।
| अ० कई तरहसे । विप्लुति-स्त्री० [सं०] हलचल, अशांति; नाश, बर्बादी। विभा-स्त्री० [सं०] प्रभा, कांति; किरण सौंदर्य । -करविप्सा-स्त्री० क्रम, सिलसिला दे० 'वीप्सा'।
पु० सूर्य; आक; अग्नि; राजा; चंद्रमाका सूर्य द्वारा प्रकाविफल-वि० [सं०] बिना फलका, फलहीन (वृक्ष); व्यर्थ, शित अंश ।-वसु-पु० अग्नि; सूर्यचंद्रमा; एक तरहका
बेकार, निरर्थक असफल हताश, निराश; अंडहीन । । हार; एक वसुः एक दानव । विनाक-पु० [अ०] अनुकूलता; संघ ।
विभाग-पु० [सं०] बँटवारा; पैतृक संपत्तिका हिस्सा विबंधन-वि० [सं०] कब्ज करनेवाला । पु० दोनों ओरसे किसी वस्तुका कोई भाग; भिन्नका अंशः पार्थक्य अध्याय बाँधनेकी क्रिया (पीठ आदिका फोड़ा)।
व्यवस्था मुहकमा। -कल्पना-स्त्री० हिस्से बैठाना। विबंधु-वि० [सं०] बंधुहीन; जिसके कोई संबंधी न हो; -धर्म-वि० बँटवारा-संबंधी कानून । -पत्रिका-स्त्री० असहाय ।
वह दस्तावेज जिसमें बँटवारेका ब्योरा दिया गया हो। विबल-वि० [सं०] बलहीन, निर्बल; विशेष बलवान् । -रेखा-स्त्री० सीमा-रेखा। विबाधा-स्त्री० [सं०] कष्ट, पीड़ा, यंत्रणा ।
विभागक-पु० [सं०] बँटवारा करनेवाला, व्यवस्था करनेविबुध-वि० [सं०] विद्वानोंसे रहित । पु० विद्वान्, चतुर | वाला। व्यक्ति देवता; चंद्रमा ।-गुरु-पु० बृहस्पति । तटिनी,- विभागतः (तस्)-अ० [सं०] हिस्से के मुताबिक । नदी-स्त्री० आकाशगंगा ।-तरु-पु० कल्पवृक्ष । -हिट- विभागशः(शस)-अ० [सं०] हिस्सेके हिसाबसे । (प),-रिपु, शत्रु-पु० दैत्य ।-धेनु-स्त्री० कामधेनु । विभागाध्यक्ष-पु० [सं०] किसी विभागका अध्यक्ष या -पति-पु० इंद्र। -प्रिया-स्त्री० देवांगना; एक वृत्त । प्रधान अधिकारी (डिपार्टमेंटल हेड)। -बेलि-स्त्री० [हिं०] कल्पलता। -मति-वि० चतुर । विभागी(गिन)-पु० [सं०] विभाग, बँटवारा करने-राज-पु० इंद्र ।-वन-पु० नंदनवन ।-विलासिनी- वाला; हिस्सेदार। स्त्री० अप्सरा ।-वैद्य-पु० अश्विनीकुमार ।-सद्म (न्)- | विभाजक-पु० [सं०] बाँटनेवाला; वह संख्या जिससे पु० स्वर्ग । -स्त्री-स्त्री० देवांगना; अप्सरा ।
भाग दिया जाय, भाजक । वि० बाँटनेवाला; टुकड़े करनेविबुधाचार्य-पु० [सं०] बृहस्पति ।
वाला। विबुधाधिप, विबुधाधिपति-पु० [सं०] इंद्र । विभाजन-पु० [सं०] बाँटना, विभाग करना; बँटवाना। विबुधापगा-स्त्री० [सं०] आकाशगंगा ।
-घंटी-स्त्री० [हिं०] (डिवीजनबेल) संसद् या विधानविबुधावास-पु० [सं०] देवमंदिर ।
सभामें किसी प्रस्ताव आदि-संबंधी विवाद समाप्त हो जानेविबुधेश्वर-पु० [सं०] इंद्र।
पर सभाका मत जाननेके लिए सदस्योंको अपना-अपना विबोध-वि० [सं०] अनवधान । पु० जागरण; अनुभूति स्थान ग्रहण कर दो पृथक-पृथक् समूहोंमें विभक्त होनेके प्रशा, समझ; एक विभाव (सा०); अनवधानता; उद्देश्य- लिए तैयार रहनेकी सूचना देनेवाली घंटी। सिद्धि में गुणों या शक्तिका व्यक्त होना (ना.)। | विभाजित-वि० [सं०] बँटवाया हुआ; विभक्त । विबोधन-पु० [सं०] जागना; जगाना; समझाना; विभाज्य-वि० [सं०] जिसका बँटवारा किया जाय; भाग तसल्ली देना।
करने योग्य । पु० वह संख्या जिसमें किसी संख्यासे भाग विबोधित-वि० [सं०] जगाया हुआ; सिखलाया, सम- दिया जाय । झाया हुआ विकासित ।
विभाति-स्त्री० [सं०] चमक; शोभा, सुंदरता (दीनद०)। विब्बोक-पु० [सं०] दे० 'बिब्बोक' ।
विभाना*-अ० क्रि० चमकना; शोभा देना। विभक्त-वि० [सं०] बँटा हुआ विभाग किया हुआ; अलग विभारना-अ० क्रि० चमकना । किया हुआ; भिन्न ।
विभाव-पु० [सं०] भावके तीन अंगों मेंसे एक-बह वस्तु
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- कांत - पु० चंद्रमा । -मुख- पु० संध्या । विभावरीश- पु० [सं०] चंद्रमा । विभावसु-पु० [सं०] दे० 'विभा' के साथ | विभाषा - स्त्री० [सं०] विकल्प, चुनाव, पसंदकी स्वतंत्रता; व्याकरणका वह स्थान जहाँ अपवाद और विधान दोनों पाये जायँ ।
089
या अवस्था जो मनमें किसी भावको उत्पन्न या उद्दीप्त करे; भावोदय या भावोद्दीपनका कारण (सा० ) । विभावन - पु० [सं०] कल्पना; चिंतन; अनुभूति; तर्क; परीक्षण; वह मानसिक व्यापार जिसके द्वारा काव्यके नायकादिके साथ श्रोता या पाठकका तादात्म्य होता है, साधारणीकरण (सा० ) । विभावना-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ (१) कारणके बिना या ( २ ) अपर्याप्त कारणसे अथवा (३) कारणका प्रतिबंध करनेवाली वस्तुके रहते हुए भी कार्यकी उत्पत्ति हो या (४) जहाँ अहेतुसे या (५) विपरीत हेतुसे कार्यकी उत्पत्ति दिखायी जाय या फिर (६) कार्य से ही कारणकी उत्पत्तिका वर्णन हो । विभावरी - स्त्री० [सं०] रात; तारोंवाली रात; हल्दी । विभोर - वि० निमग्न, तल्लीन ।
विभूति - स्त्री० [सं०] ऐश्वर्य; शक्ति; अलौकिक शक्ति महत्ता; अभ्युदय, समृद्धि; उच्च पद; धन; प्राचुर्य; गोबरकी राख; शक्ति प्रदर्शन; प्रभुता; लक्ष्मी; एक श्रुति (संगीत) । विभूतिमान् ( मन ) - वि० [सं०] शक्तिशाली; अलौकिक
शक्तिसंपन्न; भस्म धारण किया हुआ । विभूषण - वि० [सं०] अलंकृत करनेवाला । पु० सजाना; अलंकार; मंजुश्री ; सौंदर्य; कांति ।
विभूषना* - स० क्रि० अलंकृत करना, सजाना; शोभित
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विभावन - विमला
छेदने, काटनेवाला; अंतर करनेवाला; फूट डालनेवाला । विभेदक - वि०, पु० [सं०] काटने, छेदनेवाला; भेद दिखानेवाला; अंतर डालनेवाला ।
विभेदन- पु० [सं०] काटने, फाड़ने आदिकी क्रिया; धँसना; _फूट डालना; पृथक करना ।
विभेदना * - स० क्रि० काटना; छेदना; प्रवेश करना । विभेदी ( दिन) - वि० [सं०] काटने, छेदनेवाला; दूर, नष्ट करनेवाला; छेदकर प्रवेश करनेवाला; फर्क करनेवाला | विभेदीकरण- पु० [सं०] (डिसक्रिमिनेशन) करारोपण या व्यवहारादिमें एककी तुलना में दूसरेसे विभेद करना, विभेद या पार्थक्यका ध्यान रखना (अनुपालन करना) । विभेद्य - वि० [सं०] काटने, छेदने योग्य |
करना ।
विभूषित - वि० [सं०] अलंकृत सजाया हुआ; गुणादिसे युक्त; शोभित ।
विभेंटन* - पु० भेंटनेकी क्रिया, आलिंगन । विभेद - पु० [सं०] तोड़ना, खंडित करना; विभाग करना; छेदना; पार्थक्य; संकोच; बाधा; परिवर्तन; मतभिन्नता, फूट अंतर प्रकार; विरोध, खंडन । -कारी (रिन्) - वि०
विभ्रांत वि० [सं०] घूमा हुआ; चक्कर खाता, घूमता हुआ; चारों ओर फैला हुआ; भ्रममें पड़ा हुआ, घबड़ाया हुआ । - मना (नस) - वि० हतबुद्धि ।
विभाषित - वि० [सं०] वैकल्पिक ।
विभास - पु० [सं०] चमक; सात सूर्योमेंसे एक; एक राग । विभ्रांति - स्त्री० [सं०] चक्कर खाना; जल्दबाजी, घबड़ाहट; विभासना * - अ० क्रि० चमकना, झलकना । विभासित- वि० [सं०] दीप्त; चमकाया हुआ; प्रकाशित । विभिन्न - वि० [सं०] काटा, तोड़ा हुआ; छिदा हुआ; आहत; कई तरहका; मिश्रित ।
विभिन्नता - स्त्री० [सं०] विभिन्न होना, अलगाव । विभीषण- वि० [सं०] अति भयानक, बहुत डरावना; देशद्रोही (आ० ) । पु० रावणका एक भाई जो रामका पक्ष लेकर रावणसे लड़ा ! विभीषिका - स्त्री० [सं०] डरवाना; आतंक; भयंकर कांड । विभु - वि० [सं०] सर्वव्यापकः शक्तिशाली; योग्य, सक्षम; जितेंद्रिय; स्थायी; विस्तृत; महान् । पु० स्वामी, प्रभुः ईश्वर ।
विभुता - स्त्री०, विभुत्व - पु० [सं०] स्वामित्व, प्रभुत्व; ऐश्वर्य; शक्ति; व्यापकता ।
विभ* - पु० दे० 'विभव' (ऐश्वर्य, धन, प्रभुत्व ) । विभ्रम-पु० [सं०] इतस्ततः भ्रमण करना; चक्कर खाना; लुढ़कना; अस्थिरता; घबड़ाहट; संदेह; भ्रांति; सौंदर्य, शोभा; प्रणय केलि; एक हाव (सा० ) ।
भूल, भ्रम ।
विभ्राजित - वि० [सं०] चमकाया हुआ । विभ्राट - पु० बखेड़ा, गड़बड़ी; आफत | विमंडन - पु० [सं०] सजाना, अलंकरण; अलंकार । विमंडित - वि० [सं०] सजाया हुआ, भलंकृत; से युक्त । विमत- वि० [सं०] भिन्न या विरुद्ध मतका । पु० विपरीत मत; शत्रु ।
विमति टिप्पणी - स्त्री० [सं०] (मिनिट ऑफ डिसेंट) किसी विषयकी जाँच, अध्ययन आदिके बाद तैयार किये गये प्रतिवेदनमें बहुमतने जो सम्मति दी हो, उससे अपना मतभेद प्रकट करनेके लिए एक या एकाधिक सदस्यों द्वारा अलग से जोड़ी गयी टिप्पणी या वक्तव्य । विमद - वि० [सं०] मदरहित; निरानंद, जो मस्त न हो (हाथी) ।
विमन - वि० खिन्न, उदास, अनमना । विमनस्क - वि० [सं०] खिन्न, उदास; व्याकुल; अधीर । विमर्द - पु० [सं०] रगड़ना, पीसना रौंदना; संघर्ष ; नाश । विमर्दक- वि० [सं०] मलने, रौदने, नष्ट करनेवाला । विमर्दित - वि० [सं०] पीसा, रौंदा हुआ; रगड़ा हुआ । विमर्श - पु० [सं०] विचार, विवेचन; परीक्षण; समीक्षा; तर्क; शान । - वादी (दिन्) - वि० तर्क करनेवाला । विमर्शन-पु० [सं०] तर्क-वितर्क; परीक्षण; समीक्षा । विमर्शी (शि) - वि० [सं०] विचार करनेवाला; समीक्षक । विमर्ष - पु० [सं०] विचारणा, विवेचन; आलोचना; उद्वेग; व्याकुलता; क्षोभ ।
विमल- वि० [सं०] साफ, बेदाग; विशुद्ध; निर्दोष; स्पष्ट; पारदर्शक; श्वेत; सुंदर ।
विमला - स्त्री० [सं०] सिद्धिकी दस भूमियों, अवस्थाओं में से एक; चाँदीका मुलम्मा; सरस्वती । - पति-पु० ब्रह्मा ।
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विमांस-वियोजक
७४३
विमांस-पु० [सं०] (कुत्ते आदिका) अखाद्य मांस। विमूल-वि० [सं०] जड़से उखाड़ा हुआ; मूलहीन; नष्ट । विमाता(त)-स्त्री० [सं०] सौतेली माँ। -ज-पु० | विमूलन-पु० [सं०] मूलोच्छेद करना नाश करना। सौतेला भाई।
विमृश्य-वि० [सं०] जिसपर विवेचन या विचार करना विमान-वि० [सं०] असम्मानित । पु० असम्मान; देव- हो; जिसकी समीक्षा करनी हो। यान, वायुयान, राजप्रासाद; देवमंदिर; सजी हुई अरथी; विमोक्ता(क्त)-वि० [सं०] मुक्त करनेवाला । रामलीला आदिमें काम आनेवाला एक तरहका यान । - विमोक्ष-पु० [सं०] छुटकारा; मुक्ति, निर्वाण; आजाद कर्मी (र्मिन्)-पु० (एअर क्र) विमानमें काम करनेवाला करना; दान; (बाण) चलाना; ग्रहणका अंत । कर्मचारी । -गृहा-घर-पु० ( हैंगर) वायुयान रखनेका विमोक्षण-पु० [सं०] विमोचन, बंधनमुक्त करना; परिघर । -चारी(रिन्)-वि० विमानसे यात्रा करने त्यजन; (बाण आदिका) चलाना। वाला। -चालक-पु. वायुयान चलानेवाला (पाय- | विमोघ-वि० [सं०] व्यर्थ, बेकार, निष्फल; अमोध । लट। -चालन-पु० (ऐवियेशन) हवाई जहाज विमोचक-वि० [सं०] मुक्त करनेवाला; गिरानेवाला; चलानेकी विद्या या क्रिया, उड्डयन । -चालनविज्ञान- | छोड़नेवाला। पु० (एरोनॉटिक्स) विमान चलाने आदिकी विद्या । | विमोचन-पु० [सं०] दूर करना; मुक्त करना; सबूतके -वाहक पोत-पु० (एअरक्राफ्ट कैरियर) विमानोंको अभावमें अभियोगसे बरी होना; (रि. पशन) मूल्य चुकाढोकर ले जानेवाला जहाज | -वेधी तोप-स्त्री० [हिं०] कर वापस लेना या बंधनादिसे छुड़ाना; बंधन या कैदसे (एंटी एअरक्राफ्ट गन) विमानोंपर गोले बरसाकर उन्हें छूटना: जुएसे हटाना; निकालना फेंकना गिराना; शिव । नष्ट कर डालनेवाली तोप । -सेनाधिकारी(रिन)- विमोचना*-स० क्रि० बंधन-मुक्त करना छोड़ना गिराना। पु० (विंग कमांडर) विमान-सेनाकी टुकड़ीका नायक। विमोचनीय-वि० [सं०] छोड़ने योग्य । विमानना-स्त्री० [सं०] अनादर, तिरस्कार ।
विमोचित-वि० [सं०] खोला हुआ, मुक्त किया हुआ। विमानास्थान-पु० [सं०] ( एअरबेस) हवाई जहाजोंके विमोह-पु० [सं०] मतिभ्रंश; भ्रम; अशान; आसक्ति । ठहरने, रखे जाने आदिका स्थान या केंद्र।
विमोहक-वि० [सं०] भ्रममें डालनेवालाक्षुब्ध करनेवाला। विमानित-वि० [सं०] अनाहत, तिरस्कृत ।
विमोहन-पु० [सं०] भ्रम; बुद्धिभ्रंश; उच्चाटन; लुभाना । विमानीकृत-वि० [सं०] निराहत; विमान बनाया हुआ। | -शील-वि० भ्रममें डालनेवाला; मुग्ध करनेवाला । विमार्ग-पु० [सं०] कुमार्ग; झाड़ना । -गामी(मिन्)- विमोहना*-अ० कि० मुग्ध होना; धोखा खाना। स०
वि० बुरे रास्तेपर जानेवाला । -गा-स्त्री० पुंश्चली। क्रि० मुग्ध करना, लुभाना प्रभावित कर वशीभूत करना; विमार्जन-पु० [सं०] धोना, साफ करना; पवित्र करना। भ्रांत करना। विमुक्त-वि० [सं०] मुक्त किया हुआ, छोड़ा हुआ; स्वतंत्र विमोहित-वि० [सं०J लुब्ध, मुग्ध; बसुध, मृच्छाग्रस्त । परित्यक्त; फेंका, चलाया हुआ; वंचित धीर, शांत,...से | विमोही(हिन्)-वि० [सं०] मुग्ध करनेवाला; भ्रममें सवित; बचा हुआ; बरी किया हुआ। -कंठ-वि० जोरसे | डालनेवाला; अचेत करनेवाला । चिल्लाने या रोनेवाला। -शाप-वि०जिसे शापसे छट- | विमोट-पु० बमीठा, बाँबी। कारा मिल गया हो।
वियंग*-पु० दो अंगोंवाले, महादेव । विमुक्ति-स्त्री० [सं०] रिहाई, छुटकारा पार्थक्य; मोक्ष विय-वि० दो दूसरा।
अभियोगसे बरी होना। -पथ-पु० मोक्षका मार्ग। वियत्-पु० [सं०] आकाश, वायुमंडल । वि० गतिशील । विमुख-वि० [सं०] बहिर्मुखः विरत प्रतिकूल; वंचित | -पताका-स्त्री० बिजली ।
हताश परहेजगार; उदासीन; मुखहीन छिद्ररहित । | वियदंगा-स्त्री० [सं०] आकाशगंगा। विमुग्ध-वि० [सं०] हतबुद्धि, घबड़ाया हुआ; भ्रममें पड़ा वियन्मणि-पु० [सं०] सूर्य । हुआ; भीत; मोहित; मत्त । -कारी(रिन्)-वि०वियुक्त-वि० [सं०] अलग किया हुआ, परित्यक्ता रहित, मोहनेवाला; भ्रममें डालनेवाला ।
वंचित; जिसका किसीसे पार्थक्य हुआ हो, जुदा। विमुग्धक-पु० [सं०] मोहनेवाला; अभिनयका एक भेद। वियो*-वि० दूसरा ।। विमुद-वि० [सं०] निरानंद, खिन्न ।
वियोग-पु० [सं०] विच्छेदः पार्थक्य; विरह अभाव; छुटविमुद्रीकरण-पु०[सं०] (डीमॉनेटाइजेशन) किसी सिका, कारा; व्यवकलन, घटाव । -शृंगार-पु० श्रृंगाररसका नोट आदिका मुद्राके रूपमें चलन बंद कर देना, उसका वह विभाग जिसमें प्रेमियोंके विरहका वर्णन होता है। विधि-ग्राह्य न रह जाना, (किसी धातु आदिका मुद्राके वियोगांत-वि० [सं०] जिसके कथानकका अंत वियोगमें रूपमें) व्यर्थीकरण ।
हो, दुःखांत (नाटकादि)। विमूढ-वि० [सं०] घबड़ाया हुआ; मूर्ख बेसुध; मोहित वियोगावसान-वि० [सं०] जिसका वियोगमै अंत हो। चतुर । -गर्भ-पु० वह गर्भ जिसमें बच्चा मर गया हो वियोगिन-स्त्री० दे० 'वियोगिनी'।
और प्रसवमें कष्ट हो। -चेता(तस),-धी-वि०वियोगिनी-स्त्री० [सं०] प्रेमीसे बिछुड़ी हुई स्त्री, विरहिणी। मूर्ख, नासमझ । -भाव-पु० बेसुध होनेकी अवस्था । वियोगी(गिन्)-वि० [सं०] प्रियासे बिछुड़ा हुआ,विरही। विमूढक-पु० [सं०] एक तरहका प्रहसन (ना.)। पु० विरही पुरुष; चक्रवाक । विमर्छ-वि० [सं०] जिसकी मूर्छा दूर हो गयी हो। वियोजक-पु० [सं०] पृथक् करनेवाला; घटायी जानेवाली
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७४३
वियोजन-विरुद्धता छोटी संख्या।
विरहाग्नि-स्त्री० [सं०] दे० 'विरहानल'। वियोजन-पु० [सं०] पृथक् करना; जुदाई; व्यवकलन। | विरहानल-पु० [सं०] विरहकी अग्नि । वियोजित-वि० [सं०] पृथक् किया हुआ; वंचित, रहित । विरहिणी-स्त्री० [सं०] पति, प्रियसे बिछुड़ी हुई नायिका। वियोज्य-वि० [सं०] अलग करने योग्य, जिसे पृथक करना विरहित-वि० [सं०] शून्य, विना परित्यक्ता रहित ।
हो । पु० वह संख्या जिसमेंसे कोई संख्या घटायी जाय । विरही(हिन्)-वि० [सं०] प्रियाके वियोगसे दुःखी विरंग-वि०जिसका रंग अच्छा न हो, बदरंगकई रंगोंका। प्रियासे वियुक्त एकाकी। विरंच, विरंचि-पु० [सं०] ब्रह्मा ।
विरहोत्कंठिता-स्त्री० [सं०] नायकके किसी कारणसे न विरंजन-पु० [सं०] (ब्लीचिंग) रंग उड़ानेका गुण या कार्य, ___ आनेसे दुःखी नायिका।। रंगोंसे रहित बना देना।
विराग-पु० [सं०] रंगका परिवर्तन; रागका अभाव विरंजित-वि० [सं०] जिसका प्रणय, आसक्ति मंद पड़ असंतोष, अरुचि विकर्षण; विरक्ति । गयी हो, रंगोंसे रहित बनाया हुआ।
विरागी (गिन्)-वि० [सं०] चाह, अनुरागरहित, उदा. विरक्त-वि० [सं०] जिसके रंग, स्वभाव आदिमें परिवर्तन | सीन; विरक्त, निर्विषय । हो गया हो; अननुरक्त; उदासीन; खिन्न; आसक्त । पु० विराजना-अ० क्रि० शोभित होना; बैठना रहना । ताल देनेके काम आनेवाले बाजे।
विराजमान-वि० [सं०] प्रकाशयुक्त, चमकता हुआ; विरक्ति-स्त्री० [सं०] भाव आदिका परिवर्तन; विराग वर्तमान, विद्यमान बैठा हुआ। अनासक्ति; उदासीनता; खिन्नता ।
विराजित-वि० [सं०] उपस्थित; सुशोभित; प्रकाशित । विरचन-पु० [सं०] सजानेकी क्रिया; धारण करना; विराट-पु० [सं०] मत्स्य देश ( अलवर, जयपुर आदिका निर्माण, रचना।
भूभाग); मत्स्य देशका राजा; बुद्ध एक ताल (संगीत)। विरचना*-स० क्रि० निर्माण करना, सजाना। भ.क्रि.विराट् (ज)-पु० [सं०] आदि पुरुष, सौंदर्य; कांति; विरक्त होना, उदासीन होना।
क्षत्रिय; शरीर । वि० बहुत बड़ा। विरचयिता(त)-पु० [सं०] निर्माण, रचना करनेवाला। चिराम-पु० [सं०] ठहराव, अंत; विश्राम; वाक्यांश, वाक्य विरचित-वि० [सं०] निर्मित पूरा किया हुआ लिखित । आदिके बाद रुकनेका स्थान । -काल-पु० थोड़ी देर विरजस्-वि० [सं०] दे० 'विरजा (जस्)।
आराम करनेके लिए मिलनेवाली छुट्टी । -संधिविरजस्का-स्त्री० [सं०] गतार्तवा स्त्री।
स्त्री० (ट्रस) किसी विशेष स्थितिमें दोनों पक्षोंकी स्वीकृतिसे विरजा(जस)-वि० [सं०] धूलिरहित, स्वच्छ; विरक्त ।। कुछ समयके लिए युद्ध बंद रखनेकी संधि । स्त्री० गतार्तवा स्त्री।
विरामण-पु० [सं०] ठहराव । विरत-वि० [सं०] निवृत्त जिसने हाथ खींच लिया हो। विराल-पु० [सं०] बिल्ली। कार्य, पद आदिसे हटा हुआ; विरक्त ।
विराव-पु० [सं०] शब्द; चिल्लाहट; हल्ला, शोर विरति-स्त्री० [सं०] विराम; मनका हट जाना, विराग । विरास*-पु० दे० 'विलास' । विरथ-वि० [सं०] रथ रहित ।
| विरासत-स्त्री० दे० 'वरासत' । विरद-पु० प्रसिद्धि, नाम, यश, कीर्ति । वि० [सं०] | विरासी -वि० दे० 'विलासी' । दंतहीन ।
विरिंच, विरिंचन, विरिचि-पु० [सं०] ब्रह्मा, विष्णु; विरदावली-स्त्री० कीर्तिकथा, गुणवर्णन ।
शिव । विरदैत*-वि० नामवर, यशस्वी ।
विरिक्त-वि० [सं०] खाली किया हुआ; निकालकर साफ विरमण-पु० [सं०] रुकना, ठहरना; हाथ खींच लेना, किया हुआ जिसे दस्त कराये गये हों। त्याग करना; रमना।
विरुज-वि० [सं०] पीड़ा देनेवाला; नीरोग । विरमना*-अ० क्रि० रमना, मन लगाना; ठहरना; मुग्ध विरुझना-अ० क्रि० उलझना । होकर रुक जाना; देर लगाना ।
विरुझाना*-स० कि. उलझाना। अ० कि. मचलना; विरमाना*-स० क्रि० मुग्ध करना; फँसा रखना; भ्रममें | उलझना । डाले रखना।
विरुत-वि० [सं०] चिल्लाया हुआ; गूंजता हुआ, शब्दायविरल-वि० [सं०] अवकाश द्वारा पृथक किया हुआ, धना | मान । पु० चिल्लाहटा शोर; गान; गुंजन; कलरव ।
नहीं; कम मिलनेवाला; बारीक थोड़ा, ढीलापतला। विरुद-पु० [सं०] कीर्ति-गाथा, वह कविता आदि जिसमें विरलित-वि० [सं०] जो घना न हो।
किसीके यश आदिका वर्णन किया गया हो; प्रशंसासूचक विरव-वि० [सं०] बिना शब्दका, नीरव ।
पदवी; चिल्लाहट; घोषणा । विरस-वि० [सं०] नीरस स्वादहीन; अप्रिय; जी उबाने- विरुदावली-स्त्री० [सं०] विस्तृत यशोगान ।
वाला; कष्टकर । पु० कष्ट; काव्यके रसका अभाव । विरुद्ध-वि० [सं०] बाधित, रोका हुआ; जिसका प्रतिरोध विरह-पु० [सं०] जुदाई, वियोग; अभाव; अविद्यमानता; | किया गया हो; अवरुद्ध संदिग्ध; खतरनाक; विरोधी, परित्याग । -ज,-जनित,-जन्य-वि० वियोगसे उत्पन्न । प्रतिकूल; शत्रुतापूर्ण; अप्रिय; जो अनुकूल न पड़े (आहार-ज्वर-पु० विरह जन्य ताप ।
आदि); जो मेलमें न हो; असंगत । विरहागि*-स्त्री० दे० 'विरहाग्नि' ।
| विरुद्धता-स्त्री० [सं०] प्रतिकूलता, वैपरीत्य ।
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७४४
विरुद्धाचरण-विलसना विरुद्धाचरण-पु०[सं०] प्रतिकूल या बुराआचरण, बुरा कर्म । प्रस्ताव-पु० (डाइलेटरी मोशन) विधानसभा आदिके विरुद्धाशन-पु० [सं०] निषिद्ध या वर्जित आहार । सामने उपस्थित किसी विषयकी काररवाई समाप्त होने में विरुद्धोक्ति-स्त्री० [सं०] प्रतिकूल वचन, कलह ।
अधिकसे अधिक विलंब लगे, इसी उद्देश्यसे प्रस्थापित किया विरुक्ष-वि० [सं०] रूखा, कड़ा, कर्कश (वचन)।
जानेवाला प्रस्ताव । -शुल्क-पु० (डेमरेज) पारसल विरूढ-वि० [सं०] अंकुरित; उत्पन्न; चढ़ा हुआ।
आदि अधिक देरसे छुड़ानेपर लगनेवाला अर्थदंडा रेलका विरूप-वि० [सं०] बदशकल, भद्दा; जिसकी आकृति | डब्बा या जहाज निर्दिष्ट अवधिके बाद भी रोक रखनेपर विकृत हो गयी हो; कदाकार; विभिन्न प्रकारका परि- हरजानेके रूप में ली जानेवाली रकम ।। वर्तित; विरुद्ध । पु० पांडु रोग; शिवः कुरूपता; रूप- विलंबन-पु० [सं०] लटकना देर होना; सुस्ती, दीर्घभिन्नता भद्दी शकल ।
सूत्रता। विरूपक-वि० [सं०] कुरूप; भयंकर; अनुचित । | विलंबना-अ० कि० देर करना; रम जाना; लटकना; विरूपता-स्त्री० [सं०] कुरूपता; विभिन्नता, बहुरूपता। __ अवलंब लेना। विरूपाक्ष-वि० [सं०] जिसकी आँखें कुरूप हों । पु. शिव; विलंबित-वि० [सं०] लटकता हुआ; आश्रित; अवलंबित शिवका एक गण।
जिसमें देर हुई हो; धीमी लयवाला, द्रुतका उलटा विरेचक-वि० [सं०] सारक, दस्त लानेवाला।
(संगीत)। -करना-सक्रि० (पोस्टपोन) (कोई प्रश्न विरेचन-पु० [सं०] दस्तावर दवा, जुलाब; दस्त लाना।। कार्य, विचारादि) किसी भावी तिथि या समयके लिए विरोचन-वि० [सं०] प्रकाशित करनेवाला। पु० सूर्य टाल देना, निश्चित या अनिश्चित कालतक रोक रखना। चंद्रमा; अग्नि; अर्क।
विलंभ-पु० [सं०] भेट; दान; उदारता । विरोद्धा(दर)-वि० [सं०] विरोध करनेवाला ।
विलक्षण-वि० [सं०] अलौकिक, असाधारण; भिन्न चिह्नोंविरोध-पु० [सं०] बाधा; प्रतिरोध; विपक्षता; अवरोध वाला; जिसमें कोई विशेष लक्षण न हो; वह अवस्था
रोक, प्रतिबंध; सामंजस्यहीनता विपरीतता; वैर, शत्रुता; जिसका कारण न जान पड़े; अशुभ चिह्नोंवाला। कलह संकट; एक अर्थालंकार, विरोधाभास, कथावस्तुकी विलक्षित-वि० [सं०] अचिह्नित; जो गौरसे देखा, समझा प्रगतिमें पड़नेवाली बाधा । -कारक-वि० कलह पैदा गया हो; हतबुद्धि, चकराया हुआ; कुढ़ा हुआ; जिसका करनेवाला । -कारी(रिन)-वि०कलह बढ़ानेवाला। भेद न किया गया हो, पार्थक्य न दिखलाया गया हो। -कृत्-वि०विरोध करनेवाला । पु० शत्रु । -क्रिया- विलक्ष्य-वि० [सं०] जिसका कोई लक्ष्य न हो; निशाना स्त्री० झगड़ा, संघर्ष ।-परिहार-पु० विरोधका दूर होना, चूक जानेवाला (बाण)। सामंजस्य स्थापित होना।
विलखना-अ.क्रि० दुःखी होना;ताड़ जाना, भाँप लेना। विरोधक-वि० [सं०] कलह पैदा करनेवाला; बाधक। विलखाना*-सक्रि० कष्ट देना, दुःख देना । अ० क्रि० विरोधन-वि० [सं०] विरोध करनेवाला; लड़नेवाला । पु० दुःखित होना। बाधा, रोका कलह, संघर्ष, प्रतिरोध; क्षतिग्रस्त करना; विलग-वि० अलग । पु० अंतर, भेद । असामंजस्य अवरोध; नाश ।
विलगाना -सक्रि०अलग करना । अ०क्रि०अलग होना। विरोधना*-स० कि० वैर, विराध करना।
विलग्न-वि० [सं०] आबद्ध, संबद्ध, संलग्न; अवलंबित; विरोधाभास-पु० [सं०] विरोधका आभास; एक अर्था- लटकता हुआ पतला, नाजुक । -मध्या-स्त्री० पतली लंकार, जहाँ वास्तविक विरोध न होकर विरोधका आभास कमरवाली स्त्री। मात्र हो।
विलच्छन*-वि० दे० "विलक्षण' । विरोधित-वि० [सं०] जिसका विरोध किया गया हो। विलज-वि० [सं०] निर्लज्ज, बेहया। विरोधिता-स्त्री० [सं०] विरोधी होनेका भाव; नक्षत्रोंकी विलजित-वि० [सं०] लजाया हुआ, शर्मिदा । प्रतिकूल दृष्टि (ज्यो०)।
विलपन-पु० [सं०] विलाप करना; गप-शप करना; तेल विरोधी(धिन)-वि०विरोध करनेवाला; बाधक अव- आदिका नीचे बैठा हुआ मैल ।
रोध करनेवाला; हटानेवाला; वैरी; अनुकूल न पड़नेवाला विलपना-अ.क्रि० रोना, विलाप करना। (आहार); प्रतिकूल; बेमेल; प्रतिस्पर्धा करनेवाला; झग-विलपाना-स० क्रि० रुलाना, विलाप कराना। डालू । पु० विरोध करनेवाला; शत्रु, विपक्षी ।
विलपित-वि० [सं०] रोया, विलाप किया हुआ। पु० विरोपित-वि० [सं०] रोपा हुआ; भरा हुआ (घाव)। विलाप । -व्रण-वि० जिसका घाव भर गया हो।
विलय-पु० [सं०] द्रवण, विगलन; विलीन होना; (मर्जर) विरोमा(मन)-वि० [सं०] बिना रोयेंका, रोमरहित । । किसी छोटे राज्यका पड़ोसके बड़े राज्य में मिलकर एक विलंघना-स्त्री० [सं०] लाँघना; पराजित करना । हो जाना, इस तरह संयुक्त हो जाना कि उसकी पृथक् विलंघनीय-वि० [सं०] लाँघने, पराभूत करने योग्य । सत्ताका विलोप हो जायः लोप मृत्यु, नाशप्रलय । विलंध्य-वि० [सं०] पार करने योग्य (नदी आदि); परा- विलयन-पु० [सं०] द्रवण, विगलन; विलय क्षय होना; भूत करने योग्य सहन करने योग्य ।
हटाना, दूर करना क्षय करना; क्षय करनेवाला पदार्थ । विलंब-पु० [सं०] लटकना, झूलना; देरदीर्घसूत्रता. विलसन-पु० [सं०] चमकना; क्रीड़न । सुस्ती; एक संवत्सर । वि० लटकनेवाला। -कारी विलसना*-अ० क्रि० शोभित होना; विलास करना,
।
गया
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विलसाना-विलोहित मौज, आनंद करना।
करनेवाला; लसदार; चिपका हुआ, साथ लगा हुआ। विलसाना*-स० क्रि० भोगना; भोगने में प्रवृत्त करना। विलेप्य-वि० [सं०] जिसका लेप या पलस्तर किया जाय विलसित-वि० [सं०] चमकता हुआ; शोभित; व्यक्त (गारा आदि)। विनोदी।
विलेवासी(सिन्)-पु० [सं०] सर्प । विलाप-पु० [सं०] रोना; शोक करना।
| विलेशय-पु० [सं०] पिलमें रहनेवाला जीव, सर्प, चूहा, विलापना*-अ.क्रि.विलाप करना ।
गोह, खरहा आदि । विलापी (पिन् )-वि० [सं०] रोने, विलाप करनेवाला। विलोकन-पु० [सं०] :देखना; विचार करना; तलाश विलायत-स्त्री० [अ०] विदेश; ईरान-अफगानिस्तान | करना; जानकारी हासिल करना; ध्यान देना, अध्ययन । ब्रिटेन यूरोप।
विलोकना*-स० क्रि० देखना । विलायती-वि० विलायतका; ईरानी; यूरोपीयः विदेशी। | विलोकनि*-स्त्री० देखनेकी क्रिया ।
-डाक-स्त्री० यूरोपसे आनेवाली चिट्टियाँ, अखबार आदि। विलोकनीय-वि० [सं०] देखने योग्य; समझने योग्य -बैंगन,-भंटा-पु. एक तरहका सफेद बैंगन; टमाटर । | सुंदर। विलास-पु० [सं०] चमकना; व्यक्त होना; क्रीड़ा; प्रणय-विलोकी (किन्)-वि० [सं०] देखनेवाला; जानकारी क्रीड़ा, हाव-भाव; सजीवता; लंपटता; सौंदर्य; आनंद हासिल करनेवाला । सुखोपभोग किसी चीजका सुंदर :ढंगसे हिलना-डुलना | विलोचन-पु० [सं०] आँख; नजर ।-पथ-पु० दृष्टिपथ । अंगभंगी; एक वृत्त ।-कोदंड,-चाप,-धन्वा (न्वन्)- | विलोचनांबु-पु० [सं०] आँसू । पु० कामदेव ।-गृह,-भवन,-मंदिर-पु० प्रमोदगृह । विलोडक-पु० [सं०] चोर । विलासक-वि० [सं०] इतस्ततः भ्रमण करनेवाला; नृत्य विलोडन-पु० [सं०] मथना हिलाना; इधर-उधर करना। करनेवाला।
विलोड़ना-स० क्रि० मथना क्षुब्ध करना; हिलाना। विलासन-पु० [सं०] क्रीड़ा प्रेमालिंगन विमोहन । विलोडित-वि० [सं०] हिलाया हुआ; क्षुब्ध, मथित । विलासिनी-स्त्री० [सं०] सुंदरी युवती कामुक स्त्री वेश्या।। विलोना-स० क्रि० दे० 'बिलोना'। विलासी (सिन)-वि० [सं०] सुखभोगमें डूबा रहने विलोप-पु० [सं०] अपहरण, लेकर भाग जाना; बाधा वाला, क्रीड़ाशील; कामी; आरामतलब ।
(ओमीशन) किसी वाक्य, रचना आदिसे कुछ अंश निकाल विलिखित-वि० [सं०] खरोंचा हुआ; लिखा हुआ। देनेकी क्रिया: (कैसेलेशन) रद कर देना, काट देना, विलीक*-वि० व्यलीक, अनुचित ।
निकाल देना। विलीन-वि० [सं०] संबद्ध, संलग्न; जड़ा हुआ; छिपा विलोपन-पु० [सं०] भंग करना; नष्ट करना; काटकर या हुआ; लुप्त नष्ट।
तोड़कर अलग करना; लूटना; लुप्त करना; (ओमीशन; विलीयन-पु० [सं०] पिघलना, धुलना ।
कैसेलेशन) दे० 'विलोप' । विलुंठन-पु० [सं०] लूटना; चोरी करना; लोटना । विलोपना*-सक्रि० लोप करना; लेकर भागना; बाधा विलुटित-वि० [सं०] जो लूटा गया हो; लोटा हुआ। डालना। विलुप्त-वि० [सं०] भंग किया हुआ; क्षीण; नष्ट; गायब | विलोपित-वि० [सं०] भंग किया हुआ; नष्ट किया हुआ
अपहृत लूटा हुआ। -वित्त-वि० जिसका धन लूट | लुप्त किया हुआ। लिया गया हो।
विलोपी(पिन्)-पु० [सं०] नाश, विलोप करनेवाला; विलुलित-वि० [सं०] हिलता हुआ, लहराता हुआ | भंग करनेवाला। अस्थिर क्षुब्ध; अस्त-व्यस्त ।
विलोपीकरण-पु० [सं०] ( रिपील) विलुप्त कर देना, विलेख-पु० [सं०] खरोंचना; फाड़ना; आहत करना; रद या अप्रभावी कर देना ।। (डीड) वह लिखित या मुद्रित साधनपत्र जिसमें किसी विलोप्य-वि०[सं०] तोड़ने, भंग करने, नष्ट करने योग्य । समझौते, संविदा, विक्रय आदिका विवरण दिया गया हो विलोभन-पु० [सं०] भ्रममें डालना; बहकाना; प्रलोभन ।
और जिसपर निष्पादकने विधिवत् हस्ताक्षर किये हों विलोम-वि० [सं०] उलटा, विपरीत, क्रम या रीतिविरुद्ध (तथा उसे दूसरे पक्षके पास भेज दिया हो), संलेख। उलटे क्रमसे उत्पन्न; पीछेका । पु० उलटा क्रम; सर्पः कुत्ता; विलेखन-पु० [सं०] खरोंचना; खोदना; उखाड़ना; चिह्न वरुण; पानी निकालनेका एक यंत्र स्वरका अवरोह । बनाना; चीरना; नदीका मार्ग; विभाग करना । वि० विलोमा(मन्)-वि० [सं०] उलटी ओर मुड़ा हुआ खरोंचनेवाला।
केशरहित। विलेप-पु० [सं०] लेप, चुपङमेकी चीज; अंगराग, गारा, | विलोमित-वि० [सं०] उलटा हुआ। पलस्तर; लेपना; गारा लगाना ।
विलोमी-स्त्री० [सं०] आँवला । विलेपन-पु० [सं०] अंगराग लगाना; लगाने, लेप करने- विलोल-वि० [सं०] चंचल, अस्थिर; क्षुब्ध; ढीला; अस्तका पदार्थ, अंगराग।
व्यस्त; बिखरे हुए (बाल); सुंदर । -तारक-वि०चंचल विलेपनी-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसे अंगराग लगा हो । आँखोंवाला। -लोचन-वि०जिसके नेत्र अश्रुपूर्ण हो । सुवेशा स्त्री; माँड़ ।
-हार-वि० जिसका हार हिल रहा हो। विलेपी (पिन)-वि० [सं०] लेप करनेवाला; पलस्तर विलोलित-वि० [सं०] घुमाया,हिलाया हुआ;क्षुब्ध किया
नागा
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| मुकदमेवा (सं०] गृहवासित कर
विलोलुप-विवृत्त
हुआ। -दृक् (श)-वि० जिसकी आँखें चंचल हों। विवस्वान्(स्वत्)-पु० [सं०] सूर्यः सूर्यका सारथि अरुण । विलोलुप-वि० [सं०] तृष्णारहित, जिसे किसी वस्तुकी विवाद-पु० [सं०] बहसः झगड़ा; खंडन; मुकदमा । - इच्छा न हो।
निवारक समिति-स्त्री. (कंसीलियेशन बोर्ड ) श्रमिकों विल्व-पु० [सं०] दे० 'बिव'।
तथा कारखानेदारों आदिके बीच चलनेवाले झगड़ोंको विवंधक-पु० [सं०] रोकनेवाला, कब्ज करनेवाला । निपटानेका प्रयत्न करनेवाली समिति । -शमन-पु० विव*-वि० दूसरा दो।
झगड़ा तै करना । मु०-उठाना-बहस शुरू करना; विवक्का(क्त)-वि० [सं०] कहनेवाला; व्याख्याता सुधार झगड़ा खड़ा करना। करनेवाला।
विवादासप्रस्ताव-पु० [सं०] (मोशन आफ क्लोजर) विवक्षा-स्त्री० [सं०] कहने, व्यक्त करनेकी इच्छा; इच्छा; (संसद या विधानसभा आदिमें ) विवाद समाप्त करनेके अभिप्राय, आशयसंदेह हिचक ।
लिए पूरी सभा द्वारा किया गया प्रस्ताव, समापनप्रस्ताव । विवक्षित-वि० [सं०] कथनीय; कथित, उक्ता अभिप्रेत, । विवादार्थी(र्थिन् )-पु० [सं०] वादी, मुद्दई; मुकदमा इच्छित, अभिलषित; अपेक्षित प्रधान, प्रिया शाब्दिक।। लड़नेवाला । पु० अभिप्राय; उद्देश्य आशय, अर्थ; जोकहनेकी इच्छाहो। विवादास्पद-पु० [सं०] विवादका विषय, विवाद-वस्तु । विवक्षु-वि० [सं०] बोलनेकी इच्छा रखनेवाला । वि. जो विवादका विषय हो, विवादके योग्य (हिं०)। विवदना*-अ० क्रि० झगड़ा, विवाद करना ।
विवादी(दिन)-वि० [सं०] कलह करनेवाला, झगड़ालू विवर-पु० [सं०] बिल; गडढा; गुफा, अवकाश; एकांत मुकदमेबाज । स्थान; छिद्र, दोष; अंतर ।
विवास-पु० [सं०] गृहत्याग निर्वासन; पार्थक्य । विवरण-पु० [सं०] व्याख्या; वर्णन; ब्योरा । -पत्रिका | विवासन-पु० [सं०] निर्वासित करना। -स्त्री० (प्रास्पेक्टस) किसी विद्यालय या किसी परीक्षा | विवासित-वि० [सं०] निर्वासित । आदिकी नियमावली, पाठ्यक्रम तथा अन्य विवरण देने | विवाह-पु० [सं०] शादी, दांपत्यसूत्रमें आबद्ध होनेकी एक वाली पुस्तिका ।
प्रथा। -काम-वि० विवाहेच्छु । -काल,-समयविवरणिका-स्त्री० [सं०] किसी घटना या संस्था आदिकी पु० ब्याह करनेका उचित समय । -विच्छेद-पु० पति
काररवाईका क्रमवद्ध विवरण जो किसीके लिए तैयार पत्नीका विवाह-संबंध तोड़ना, तलाक । -संबंध-पु० किया जाय।
विवाहके द्वारा होनेवाला संबंध । विवरणी-स्त्री० [सं०] (रिटर्न) आँकड़ों आदिके साथ तैयार | विवाहना*-स० क्रि० दे० 'ब्याहना'।
की गयी पैदावार आदिकी (सरकारी) रिपोर्ट जो उच्चाधि- विवाहित-वि० [सं०] ब्याहा हुआ। कारियोंके पास भेजी जाय ।
विवाहिता-वि० स्त्री० [सं०] जिस(स्त्री)का पाणिग्रहणविवरना*-स० क्रि० स० क्रि० दे० 'बिवरना।
संस्कार हो चुका हो, ब्याही हुई। विवर्जन-पु० [सं०] त्याग, परहेज; उपेक्षा निषेध । । विवाही*-वि० स्त्री०विवाहिता, ब्याही हुई । विवर्जित-वि० [सं०] मना किया हुआ परित्यक्ता वंचित । | विवि-वि०दो दूसरा । विवर्ण-वि० [सं०] वर्णहीन; बदरंग; बेआब; नीच श्रीहत। विविक्त-वि० [सं०] वियुक्त, पृथक् किया हुआ; अकेला; पु० एक भाव जिसमें भय आदिके कारण चेहरेका रंग अकेले में गुप्त रूपसे किया जानेवाला (विचार); गंभीर । फीका पड़ जाता है।
पु० एकांत स्थान; एकाकीपन । विवर्त-पु० [सं०] घूमना, गोलाईमें चक्कर लगाना; चक्र, विविध-वि० [सं०] विभिन्न प्रकारका, कई तरहका । भँवर रूपांतर; भ्रम ।
विविर-पु० विवर, गुफा, खोह बिल; दरार । विवर्तन-पु० [सं०] घूमना, चक्कर खाना पीछेकी और विवीत-पु० [सं०] घिरा हुआ स्थान, विशेष कर गोचर घूमना; नीचेकी ओर लुढ़कना ।
भूमि । -भर्ता(त)-पु० गोचर भूमिका स्वामी । विवर्तित-वि० [सं०] घूमा या धुमाया हुजा; चक्कर खाया | विवृत-वि० [सं०] व्यक्त; स्पष्ट, प्रत्यक्षा खुला हुमा
हुआ परिवर्तित; निवारित; स्थानभ्रष्ट; खंडित उन्मीलित। घोषित; जिसकी व्याख्या की गयी हो; फैला हुआ; विस्तृत विवर्धन-पु० [सं०] बाद, वृद्धि अभ्युदय विभाग, खंडित नग्न तरहीन । -द्वार-वि० जिसका द्वार खुला हो;
करना । वि० बढ़ानेवाला; वृद्धि, अभ्युदय करनेवाला। । अनियंत्रित; असीम । -भाव-वि० निष्कपट, स्वच्छविवर्धित-वि० [सं०] बढ़ा या बढ़ाया हुआ; उन्नत किया हृदय । हुआ संतुष्टः प्रसन्न ।
विवृतानन-वि० [सं०] जिसका मुँह खुला हो। विवश-वि० [सं०] शक्तिहीन; लाचार; अधीन जिसका विवृति-स्त्री० [सं०] भाष्य, टीका; प्रकटीकरण; स्पष्टीअपनेपर वश न हो।
करणके लिए दिया गया वक्तव्य । विवशता-स्त्री० [सं०] लाचारी; असहायावस्था। विवृतोक्ति-स्त्री० [सं०] स्पष्ट कथन; एक अर्थालंकार, जहाँ विवस-वि० दे० 'विवश'।
श्लेषसे छिपायी हुई बात कवि द्वारा स्वयं प्रकट कर विवसता*-स्त्री० दे० 'विवशता'।
दी जाय। विवसन-वि० [सं०] वखहीन, नग्न । पु० दिगंबर जैन । विवृत्त-वि० [सं०] ऐठा हुआ; चलित; चक्कर खाता हुआ विवस्त्र-वि० [सं०] वस्त्ररहित, नंगा ।
। भ्रमणशील; लौटा हुआ; अनावृता प्रदर्शित ।
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विवृत्ति-विशेष
विवृत्ति-स्त्री० [सं०] फैलाव, विकास; चक्कर खाना (धूमकेतु) । पु० बाण, भाला; एक तरहका सरकंडा । लुढ़कना।
विशिष्ट-वि० [सं०] विशेषतायुक्त; असाधारण, प्रसिद्ध विवृद्धि-स्त्री० [सं०] बाढ़, वृद्धि, उन्नति, तरक्की, समृद्धि । उत्तम,...में सर्वश्रेष्ठ, युक्त विशेष रूपसे शिष्ट, भद्र। -कर-वि० उन्नत करनेवाला।
-कुल-वि० सद्वंशजात । पु० उत्तम कुल । -जनीन विवेक-पु० [सं०] यथार्थ ज्ञान, विचार, छान-बीन, भले- मतसंग्रह-पु. (गैलप-पाल ) सर्वसाधारण जनताका बुरेकी पहचान; वस्तुओं में उनके गुणके अनुसार भेद प्रतिनिधित्व कर सकनेवाले विशिष्ट जन समूह द्वारा किसी करनेकी शक्ति । -रहित-वि० शानहीन । -विरह- विषयपर प्रकट किये गये मतोंका संग्रह, जिसकी व्यवस्था पु० अज्ञान । -विशद-वि० स्पष्ट, बोधगम्य :-विश्रांत- प्रायः किसी समाचारपत्रादि या मतसंग्रह करानेवाली वि० मूर्ख, शानहीन ।
संस्थाओं द्वारा की जाती है । विवेकवान(वत्)-वि० [सं०] ज्ञानी, विचारवान् ।। विशिष्टता-स्त्री० [सं०] विशेषता । विवेकाधीन-वि० [सं०] (इन दि डिसक्रीशन) (किसीकी) | विशिष्टांग-पु० [सं०] (फीचर्स) किसी वस्तु, नाटक, लेख, विवेक बुद्धिके अधीन या उसपर अवलंबित ।
समाचारपत्र आदिकी मुख्य विशेषताएँ। विवेकित्ता-स्त्री० (सं०] विवेकी, ज्ञानी होनेका भाव, विशिष्टाद्वैत-पु० [सं०] रामानुज द्वारा प्रवर्तित एक मत विचार-शीलता।
जिसमें प्रकृति और पुरुषको भिन्न और सत्य मानते हुए विवेकी(किन्)-वि० [सं०] भले-बुरेकी पहचान करने भी दोनोंको अभिन्न मानते है। -वादी(दिन)-वि०
वाला; ज्ञानी, विचारवान् । छान-धीन करनेवाला। विशिष्टाद्वैत मतका अनुयायी। विवेचक-वि० [सं०] जो विवेचन, भले-बुरेका भेद कर | विशिष्टाधिकार-पु० [सं०] (प्रीरोगेटिव) राजा या प्रधान सके; चतुर, ज्ञानी।
शासकका वह विशिष्ट अधिकार जिसपर सिद्धांततः किसी विवेचन-पु० [सं०] विवेक, सदसत्का निर्णय अनुसंधान | तरहका प्रतिबंध न हो ( परमाधिकार ); वह विशेष मीमांसा परीक्षण ।
अधिकार जिसका और कोई भागीदार न हो; किसीके विवेचनीय-वि० [सं०] विवेचन करने योग्य । विशेष पद, स्थिति आदिसे उद्भूत होनेवाला विशेष विवेचित-वि० [सं०] निश्चित, ते किया हुआ; विवेचन | अधिकार।
किया हुआ जिसका अनुसंधान किया गया हो। विशिष्टीकरण-पु० [सं०] (स्पेशलाइज़ेशन) विशिष्ट लक्षणों के विवोक-पु० [सं०] दे० 'बिब्बोक' ।
अनुसार किसी वस्तुको पृथक या स्वतंत्र करना; विशेषताविशंक-वि० [सं०] शंकारहित, निर्भय; निरापद् । सूचक (विशिष्ट) रूप देना; किसी विषयका विशेष ज्ञान विशद-वि० [सं०] साफ, स्वच्छ; बेदाग; श्वेत; चमकीला प्राप्त करना, विशिष्ट अध्ययन करना, विशेषता प्राप्त सुंदर; स्पष्ट; प्रकट; शांत; चिंतारहित ।
करना। विशल्य-वि० [सं०] कष्टरहित; काँटेसे मुक्त जिसका | विशीर्ण-वि० [सं०] क्षीण, भग्न बिखरा हुआ, जो तितरबाणका घाव भर गया हो। -करण-वि० बाणका घाव बितर हो गया हो (सैन्य); गिरा हुआ (दंतादि); अपव्यय भरनेवाला।
किया हुआ, उड़ाया हुआ (खजाना); नष्ट, ध्वस्त; शुष्क । विशल्या-स्त्री० [सं०] गुडूची; अग्निशिखा देती। विशुद्ध-वि० [सं०] साफ किया हुआ; पवित्र; निष्पाप; विशसिता (त)-पु०[सं०] काटने, चीरनेवाला; चांडाल । बेदाग; ठीक; धर्मात्मा; विनम्र; चमकता हुआ सफेद; विशस्त-वि० [सं०] काटा हुआ; उजड्डु, धृष्टः प्रशंसित।। सुनिश्चित सर्फ, खर्च किया हुआ (खजाना)।-चरित्रविशस्त्र-वि० [सं०] शत्रहीन ।
वि० शुद्ध चरित्रवाला। विशांपति-पु० [सं०] राजा; जामाता; ब्यापारियोंका विशुद्धात्मा (स्मन्)-वि० [सं०] जिसका आचरण मुखिया।
पवित्र हो। विशाखा-स्त्री० [सं०] एक नक्षत्र पूर्वा; श्वेत पुनर्नवा; विशुद्धि-स्त्री० [सं०] पवित्रता, शुद्धता; संदेह आदि दूर एक प्राचीन जनपद।
करना; (वैर, ऋणका) परिशोध; भूलसुधार, पूर्ण ज्ञान; विशारद-वि० [सं०] अनुभवी, कुशल, विद्वान् । चतुर । सारश्य । -चक्र-पु. एक चक्र जिसका स्थान गले में विशाल-वि० [सं०] बृहत् , बड़ा विस्तृत भव्य प्रख्यात | माना जाता है। -बाद-पु० (प्यूरिटैनिज्म) विशुद्ध या शक्तिशाली।
कठोर धार्मिक जीवनको प्रधानता देनेवाला प्रोटेस्टैंट विशालता-स्त्री० [सं०] महत्ता, गुरुता विस्तार, ख्याति। ईसाइयोंका सिद्धांत, कठोरतावाद; कठोर जीवन । विशाला-स्त्री० [सं०] इंद्रवारुणी; उज्जयनी नगरी; उपो- विशूचिका-स्त्री० दे० 'विसूचिका' ।
दकी; महेंद्रवारुणी; एक तीर्थ; दक्षकी एक कन्या। विशून्य-वि० [सं०] पूर्णतः रिक्त । विशालाक्ष-वि० [सं०] बड़ी आँखोंवाला । पु० एक तरह- बिशृंखल-वि० [सं०] शृंखलारहित, बंधनहीन; अनिका उल्लू ; शिव; गरुड़ा एक नाग।
यंत्रित; लंपट; बहुत अधिक शब्द करनेवाला। विशालाक्षी-स्त्री० [सं०] बड़ी आँखोंवाली स्त्री; नागदंती विशृंग-वि० [सं०] बिना सींगका, शृंगहीन(वह पर्वत)
पार्वती स्कंदकी एक मातृका; एक योगिनी । | जिसके कोई चोटी न हो। विशिख-वि० [सं०] शिखाहीन; गंजा; (बाण) जिसकी नोक विशेष-वि० [सं०] असाधारण, असामान्य; अधिक प्रचुर। भोथरी हो गयी हो; (आग) जिसमें लपट न हो;पुच्छहीन | पु० भेद; खास धर्म या गुण; एक अर्थालंकार-(१) जहाँ
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विशेषक-विश्व
७४८
बिना आधारके ही आधेयका वर्णन हो. (२) थोड़ा सा विश्राम-पु० [सं०] श्रम दूर करना; आराम; शांति काम करनेपर ही बड़ा काम या लाभ हो अथबा (३) आराम करनेकी जगह । -भवन-पु० (रेस्ट-हाउस) जहाँ एक वस्तुका एक साथ कई स्थानों में होना वर्णित यात्रा या दौरेपर जानेवाले व्यक्तियों अथवा छोटे अधिहो। -ज्ञ,-विद-वि० किसी विषयका विशेष ज्ञान कारियों आदिके ठहरने, भोजन, विश्रामादि करनेके लिए रखनेवाला।
बनाया गया भवन । -वेश्म(न्)-पु० आराम करने विशेषक-वि० [सं०] भेद स्पष्ट करनेवाला (चिह्न)। पु० का कमरा।
भेद करनेवाला गुण; तिलक रंगीन गंधद्रव्यसे शरीरपर विश्रामालय-पु० [सं०] पांथशाला, यात्रियोंके विश्राम रेखाएँ खीचना; एक अर्थालंकार।
करनेका स्थान दे० 'विश्राम-भवन' ( रेस्ट-हाउस )। विशेषण-वि० [सं०] विशेषताद्योतक । पु० संशाका गुण | विश्री-वि० [सं०] श्रीहीन, कांतिहीन; बदशकल । बतलानेवाला शब्द (व्या०), विशेषता, अंतर प्रकट करने | विश्रुत-वि० [सं०] बहा हुआ विख्यात प्रसिद्ध । वाला चिह्न ।
विश्रति-स्त्री० [सं०] ख्याति क्षरण, श्राव । विशेषता-स्त्री० [सं०] खसूसियत, खूबी ।
विश्लथ-वि० [सं०] ढीला; बंधनमुक्त कृति । विशेषना*-सक्रि०विशेषता प्रदान करना ।
विश्लथित-वि० [सं०] ढीला, बंधनमुक्त किया हुआ। विशेषित-वि० [सं०] विशेषणयुक्त; लक्षित विशेष गुणके विश्लिष्ट-वि० [सं०] ढीला किया हुआ; पृथक् किया हुआ; द्वारा जिसका भेद किया गया हो; उत्तम, श्रेष्ठ । | दलसे अलग किया हुआ; स्थान-भ्रष्ट ( अंगादि)। -स्वीकृति-स्त्री० (कालिफाइड एक्सेप्टेंस) किसी प्रस्ताव ! विश्लेष-पु० [सं०] वियोग; विप्रलंभ; पार्थक्य हानि । आदिके संबंधमें विशेष प्रतिबंधों के साथ या सीमित स्थिति- विश्लेषण-पु० [सं०] पृथक करना, किसी चीजके अंगोंको में दी गयी स्वीकृति, सप्रतिबंध स्वीकृति।
अलग-अलग करना; भंग करना। विशेषोक्ति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार, जहाँ पूर्ण या विश्लेषी(षिन् )-वि० [सं०] बिखरनेवाला; ढीला किया
समर्थ कारणके रहते हुए भी कार्यकान हो सकना दिखाया हुआ; (प्रिय वस्तुसे) अलग, वियुक्त। जाय।
विश्वंभर-वि० [सं०] सबका भरण करनेवाला । पु० ईश्वर । विशेष्य-पु० [सं०] विशेषणयुक्त संज्ञा (व्या०)। वि० | विश्वंभरा, विश्वंभरी-स्त्री० [सं०] पृथ्वी । जिसका भेद करना हो, विशेषता दिखलानी हो।
विश्व-पु० [सं०] एक देववर्ग; समग्र ब्रह्मांड; संसार विष्णु । विशोक-पु० [सं०] शोकका अंत । वि० शोकरहित -कर्ता(1)-पु० सृष्टिका रचयिता, परमेश्वर । -कर्माजिसमें शोककी कोई चर्चा न हो।
(मन्)-पु०देवशिल्पी; सूर्यः परमेश्वर; शिवः राज बढ़ई। विशोणित-वि० [सं०] रक्तहीन ।
-काय-वि० ब्रह्मांड जिसका शरीर है। पु० विष्णु । विशोधन-पु० [सं०] शुद्ध करना, साफ करना।
-कोश,-कोष-पु. वह भंडार जिसमें विश्वको सारी विशोधनीय-वि० [सं०] शुद्ध, साफ करने योग्य; रेचन
वस्तुएँ संगृहीत हो; वह ग्रंथ जिसमें संसारके सारे विषयोंकराने योग्य; सुधार करने योग्य ।
का विवरण हो। -गुरु-पु० लोकपिता, विष्णु । विशोधित-वि० [सं०] साफ, शुद्ध किया हुआ; मैल, दाग
-गोचर-वि० सबके लिए बोधगम्य । -चक्ष(स)आदिसे मुक्त किया हुआ।
वि० सबको देखनेवाला । पु० विष्णु । -जनीन, विशोषण-वि० [सं०] शुष्क करनेवाला; (घाव) सुखाने- -जनीय,-जन्य-वि० सबके लिए उपयुक्तः सबके वाला । पु० शुष्क करनेकी क्रिया।
लिए लाभदायक । -जयी(यिन् )-वि० संसारको विशोषित-वि० [सं०] शुष्क किया हुआ; मुर्शाया हुआ। जीतनेवाला । -जित्-वि० सबको जीतनेवाला।-नाथ विशोषी(पिन)-वि० [सं०] अच्छी तरह सोखनेवाला -पु. शिव; काशीका एक प्रसिद्ध ज्योतिलिंग ।-नाथ. सुखानेवाला।
नगरी,-नाथपुरी-स्त्री० काशी |-पा-पु० सबकी रक्षा विश-स्त्री० [सं०] दे० 'विट्' (कन्या, प्रजा)।
करनेवाला, परमात्मा; सूर्य । -पाल-पु० विश्वका पालन विश्रंभ-पु० [सं०] विश्वास घनिष्ठता, आत्मीयता; गोप- करनेवाला, ईश्वर । -पावन-वि० सबको पवित्र करनेनीय विषय; विश्राम; प्रणय कलह, स्नेहपूर्वक पूछताछ वाला ।-पावनी,-पूजिता-स्त्री० तुलसी। -पूजितकरना। -कथा-स्त्री. प्रेमालाप ।
वि० सबके द्वारा पूजा जानेवाला। -पूज्य-वि० सर्वविश्रंभण-पु० [सं०] विश्वास प्राप्त करना।
सम्मान्य । -प्रकाशक-पु० सबको प्रकाशित करनेवाला, विधभी(भिन)-वि० [सं०] विश्वास करनेवाला। सूर्य । -भर्ता(त)-पु० सबका भरण करनेवाला, ईश्वर । विश्वस्त ।
-भुक(ज)-वि० सबका भोग करनेवाला । पु० इंद्र । विश्रब्ध-वि० [सं०] विश्वसनीय निभीक; शांत धीर ।। -भोजन-पु० सब प्रकारकी चीजें खाना ।-मूर्ति-वि.
-नवोढा-स्त्री० नायकपर विश्वास करनेवाली नवोढा | सब रूपोंमें रहनेवाला, सर्वव्यापक । पु० ईश्वर; शिव । नायिका।
-मोहन-वि० सबको मुग्ध करनेवाला ।-लोचन-पु० विश्रांत-वि० [सं०] सुस्ताया हुआ, विश्राम किया हुआ | सूर्य चंद्रमा । -विख्यात-वि० जो सारे संसारमें प्रसिद्ध
विश्राम करनेवाला; शांत; घटा हुआ (दुःखादि)। हो।-विजयी(यिन)-वि० सबको विजित करनेवाला । विश्रांति-स्त्री० [सं०] आराम, विश्राम; कमी; अंत।- -विद-वि० सब कुछ जाननेवाला, सर्वश । पु० ईश्वर । काल-पु० (रिसेस ) दे० 'अल्पावकाश' ।
-विद्यालय-पु. वह महान् विद्यापीठ जिसमें विविध
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७४९
विश्वसनीय-विषम विषयोंकी उच्च शिक्षा देनेवाले अनेक महाविद्यालय हों।। नाल; एक सुगंधित गोंद । -कंठ-पु० शिव ।-कन्यका, -विश्रत-वि. विश्वविख्यात । -व्यापक,-व्यापी- -कन्या-स्त्री. वह विषाक्त कन्या जिससे संभोग करने(पिन्)-वि० जो सर्वत्र व्याप्त हो। पु० ईश्वर ।-श्रवा- वालेकी मृत्यु हो जाती है। -कुंभ-पु० विषपूर्ण घट । (वस)-पु०रावणका पिता । -श्री-वि० सबके लिए -घातक-वि०विषका प्रभाव हरण करनेवाला; विषका उपयोगी (अग्नि)। -संभव-वि० जिससे सब कुछ प्रयोग कर मारनेवाला ।-घाती (तिन्)-वि० विषका उत्पन्न हुआ हो । पु० ईश्वर ।-संहार-पु० विश्वका नाश प्रभाव नष्ट करनेवाला। -घ्न-वि० विषनाशक । पु० -सख-पु० सबका मित्र । -सृक् (ज)-वि० सबकी सिरिसका पेड़, जवासा । -तंत्र-पु० साँप आदिका विष रचना करनेवाला। पु० ब्रह्मा । -सृष्टि-स्त्री० विश्वकी। दूर करनेकी प्रक्रिया (आ० वे०)। -दंड-पु० विषका रचना ।-स्रष्टा(ट)-पु० सृष्टिका रचयिता ।-स्वास्थ्य हरण करनेवाली जादूकी लकड़ी; कमलनाल ।-दोषहरसंघटन-पु० (वर्ल्ड हेल्थ-आरगैनिजेशन) संसारके वि० विषका प्रभाव दूर करनेवाला ।-धर-वि. विषैला । विभिन्न देशोंमें लोकस्वास्थ्यकी उन्नतिके प्रयलों में सहायता पु० साँप; जलाधार। -धरी-स्त्री० सपिणी । -पगकरनेवाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ।-हर्ता(तू)-पु० शिव । पु० जहरीला साँप ।-पुच्छ-पु० बिच्छू ।-प्रयोग-पु० -हेतु-पु० सबकी उत्पत्तिका कारण, विष्णु ।
औषध विषका प्रयोग करना। -भक्षण-पु० जहर विश्वसनीय-वि० [सं०] विश्वास-योग्य, जिसका एतबार खाना। -भिषक् (ज)-पु० विषवैद्य । -मंत्र-पु० किया जा सके।
सर्पदंशका मंत्र मंत्र द्वारा सर्पविष दूर करनेवाला, सँपेरा। विश्वस्त- वि० [सं०] विश्वसनीय; विश्वासपूर्ण निर्भय ।। -वमन-पु० जहर उगलना, बहुत ही अप्रिय एवं कड़वी विश्वारमा(त्मन्)-पु० [सं०] ईश्वर; सूर्य; ब्रह्मा शिव ।। बातें कहना। -विज्ञान-पु० (टॉक्सिकोलॉजी) विषोंकी विश्वाद-वि० [सं०] सर्वभक्षी । पु० अग्नि ।
उत्पत्ति, प्रभाव आदिका विवेचन करनेवाला शास्त्र । विश्वाधार-पु० [सं०] विश्वका सहारा, ईश्वर ।
-वृक्ष-पु० विपैला वृक्ष; गूलर । -वृक्ष-न्याय-पु० विश्वाधिप-पु० [सं०] विश्वका स्वामी, ईश्वर ।
एक न्याय जिसमें कहा जाता है कि वस्तु बुरी होते हुए विश्वामित्र-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध ऋषि (ये मूलतः क्षत्रिय भी उत्पादकको उसे नष्ट नहीं करना चाहिये । -वैद्य
थे। इनके पिताका नाम गाधि था और ये कान्यकुब्जके पु० ओषधि या मंत्र आदिसे विषका प्रभाव दूर करने नरेश थे। एक गाय-नंदिनी-के लिए वसिष्ठसे इनका वाला ।-व्रण-पु. एक तरहका विपला फोड़ा, जहरबाद । युद्ध हुआ जिसमें ये पराजित हो गये । ब्राह्मणत्वका इन- -हंता (त)-वि०विषका प्रभाव दूर करनेवाला । पु० पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा और ये उसे प्राप्त करनेके सिरिस । -हर-पु० विषका प्रभाव हरनेवाला मंत्र या लिए तपस्या करने लगे। अंतमें इसमें उन्हें सफलता मिली| औषध; चोरक । -हा (हन्)-वि० विष नष्ट करने
और वसिष्ठने भी इन्हें ब्रह्मर्षिके रूप में स्वीकार कर लिया)। वाला । पु० एक तरहका कदंब । -होन-वि० जिसमें विश्वास-पु० [सं०] किसीके विषयमें उसके विशेष प्रकार- विष न हो (सर्प आदि)। -हृदय-वि० कुटिल हृदय, का होनेकी धारणा, यकीन; भरोसा; गुप्त संवाद या भेद।। बुरे दिलका । -कारक,-कृत-वि. विश्वास उत्पन्न करनेवाला । | विषण्ण-वि० [सं०] दुःखी, विषादयुक्त; शोकमग्न । -घात-पु० विश्वासके विपरीत कार्य करना । -घातक -चेता (तस),-मना (नस)-वि० खिन्न, उदास । -घाती(तिन् )-वि० विश्वास भंग करनेवाला; विश्वास- -मुख,-वदन-वि० जिसके चेहरेसे उदासी झलकती हो। के विपरीत कार्य करनेवाला । -पात्रा-भाजन-वि०विषण्णता-स्त्री० [सं०] उदासी; जड़ता। जिसका विश्वास किया जाय, विश्वसनीय । -प्रद-वि० विषम-वि० [सं०] जो समतल न हो, असम, असमान, विश्वास उत्पन्न करनेवाला । -प्रस्ताव-पु० (मोशन दोसे पूरा-पूरा न बँटनेवाली (संख्या); कठिन; दुर्बोध, ऑफ कॉनफिडेंस) किसी मंत्रिमंडल में या किसी संस्थाके जो जल्द समझमें न आये; विकट, जटिल, जो जल्द हल अध्यक्षादिमें विश्वास प्रकट करनेके लिए उपस्थित किया न हो; दुर्गमा रुखड़ा, मोटा; कष्टकर; उग्र, प्रचंड जानेवाला प्रस्ताव । -भंग-पु० विश्वासके प्रतिकूल कार्य खतरनाक बुरा, प्रतिकूल; असाधारण, अद्वितीय; बेईमान, करना।
छली; दुष्ट, सविराम, अंतर देकर होनेवाला (ज्वर आदि); विश्वासिक-वि० [सं०] जो विश्वासयोग्य हो।
भिन्न । पु० संकट; ऊबड़-खाबड़ जमीन; असम वृत्त, ऐसा विश्वासी(सिन्)-वि० [सं०] विश्वास करनेवाला; छंद जिसके चरणोंके अक्षरादि वराबर न हों; एक काव्याजिसका विश्वास किया जाय; दे० 'बिसवासी'।
लंकार, जहाँ अत्यंत विलक्षणता या विभिन्नताके कारण दो विश्वास्य-वि० [सं०] विश्वसनीय, विश्वास करने योग्य । वस्तुओंका संयोग-'कहाँ यह कहाँ वह' कहकर-अयोग्य विश्वेदेव-पु० [सं०] अग्नि एक देववर्ग; तेरहकी संख्या । बतलाया जाय; या जहाँ कार्य तथा कारण एक दूसरेसे विश्वेश-पु० [सं०] विश्वका स्वामी (ब्रह्मा, विष्णु, शिव)। बिलकुल विरूप या विरुद्ध हो या फिर कोई अच्छा काम विश्वेश्वर-पु० [सं०] ईश्वर शिवकी एक मूर्ति (काशीस्थ)। करनेकी चेष्टा करने पर लाभ न होकर उलटे हानि उठानी विश्वोत्पत्ति-विज्ञान-पु० [संव] (कॉस्मोगोनी) विश्वकी पड़े। -कोण-समचतुर्भुज-पु० (रोबस ) वह समानांउत्पत्ति तथा विकासका विवेचन करनेवाला विज्ञान, तर चतुर्भुज जिसकी दो आसन्न भुजाएँ बराबर हों, परंतु सृष्टिविज्ञान।
जिसका कोई भी कोण समकोण न हो। -चतुर्भुज,विष-पु० [सं०] जहर; गरल; वत्सनाभ; जल; कमल- चतुष्कोण-पु० वह चतुर्भुज जिसकी.भुजाएँ असमान हों।
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विषमता-विसदृश
-ज्वर-पु० जीर्णज्वर । -त्रिभुज-पु. वह त्रिभुज विषाण-पु० [सं०] शृंग (बाजा); सींग; शूकर, हाथी या जिसकी तीनों भुजाएँ असमान हों । -दृष्टि-वि० ऐंचा- गणेशका दाँत । ताना । -नयन, नेत्र-विलोचन-पु० शिव । -पाद विषाणी(णिन्)-वि० [सं०] सींगवाला; दाँतवाला । पु० -वि.जिसके चरण असमान हों। -बाण,-विशिख, सींग या दाँतवाला जानवर हाथी ऋषभक; शृंगाटक । -शर-पु० कामदेव। -बाह-त्रिभुज-पु० (स्केलीन विषाद-पु० [सं०] अवसाद, उदासी; गम; नैराश्य ट्राइएंगिल ) वह त्रिभुज जिसकी कोई भी दो भुजाएँ बरा- उत्साहहीनता; तंद्रा, लांति; सुस्ती; जड़ता; मन उचट बर न हों। -वृत्त-पु० वह छंद जिसके चरणोंकी मात्राएँ | जाना; एक संचारी भाव । आदि समान न हों। -संधि-स्त्री. एक तरहकी संधि, विषानन-पु० [सं०] साँप । समसंधिका विलोम ।
विषान-पु० [सं०] विषमिश्रित खाद्य पदार्थ । विषमता-स्त्री०, विषमत्व-पु० [सं०] असमता; अंतर विषापहरण-पु० [सं०] विषका प्रभाव नष्ट करना। निरापदता भीषणता; जटिलता।
विषायुध-पु०[सं०] साँप; विषैला जंतु जहर में बुझा अस्त्र । विषमाक्ष-पु० [सं०] शिव ।
विषास्त्र-पु. [सं०] साँप; जहर में बुझाया हुआ हथियार । विषमायुध-पु० [सं०] कामदेव ।
विषुव-पु० [सं०] वह समय जब दिन-रातका मान बराविषमित-वि० [सं०] असमय या दुर्गम बनाया हुआ; बर होता है। -रेखा-स्त्री. वह कल्पित रेखा जो दोनों अव्यवस्थित; जो खतरनाक, बैरी बन गया हो।
ध्र वोंके बीचोबीच पृथ्वीतलपर चारों ओर गयी है। विषमेक्षण-पु० [सं०] शिव ।
विषुवत्-वि० [सं०] बीचका, मध्यस्थित । पु० दे० विषुव'। विषमेषु-पु० [सं०] कामदेव ।
विषुवहिन, विषुवदिवस-पु० [सं०] वह दिन जब दिनविषय-पु० [सं०] ज्ञानेंद्रियों द्वारा गृहीत होनेवाले पदार्थ । रातके मानमें कोई अंतर नहीं होता। (रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द ), शंद्रियार्थ; भौतिक विचिका-स्त्री० [सं०] एक तरहका अजीर्ण जिसमें कै पदार्थ कारबारस इंद्रियजन्य आनंद लक्ष्यः क्षेत्र, विस्तार और दस्त होता है और पेशाब नहीं उतरता, हैजा। विभाग; व्याख्या आदिका प्रकरण; देश राज्य शासन- विष्कंभ-पु० [सं०] बाधा, रोक; अर्गल; शहतीर; स्तंभ व्यवस्थायुक्त बृहत् क्षेत्र; आश्रय स्थान; ग्राम-समूह । -
__ अंकोंके मध्य रखा जानेवाला वह अंश जिसमें कथानककी कर्म(न)-पु० सांसारिक कार्य । -ज्ञान-पु० सांसा- | प्रगतिका संकेत रहता है (ना०)। रिक कार्योंका शान। -निरति-स्त्री. विषयासक्ति । - विष्टप-स्त्री० [सं०] स्थान, भूभाग, स्वर्गलोक । निर्धारिणी समिति,-निर्वाचिनी समिति-स्त्री० किसी विष्टि-स्त्री० [सं०] व्याप्ति काम, पेशा; मजदरी, वेतन सभामें उपस्थित किये जानेवाले विषय, प्रस्ताव आदिका
बेगार । निश्चय करनेवाली उपसमिति । -पति-पु. राज्यपाल | विष्ठा-स्त्री० [सं०] मल, पाखाना; पेट । -भुक(ज)(गवर्नर)।-पराड्यख-वि० सांसारिक विषयोंसे विरक्त। पु० शूकर । -लोलुप-पु० विषयसुखका लोभी । -समिति-स्त्री० | विष्णु-पु० [सं०] आर्यों और हिंदुओं के एक प्रधान देवता कुछ चुने हुए सदस्योंकी वह समिति जो किसी सम्मेल- (इनकी त्रिदेवमें गणना है और ये पालनकर्ता माने जाते नादिमें प्रस्तत किये जानेवाले प्रस्तावों या विषयोंके संबंध- है); अग्नि । -पदी-स्त्री० गंगा नदी। -पुरी-स्त्री० में निश्चय करती है। -सुख-पु० इंद्रियजन्य सुख । वैकुंठ, विष्णुलोक । -प्रिया-स्त्री. लक्ष्मी; तुलसीका -स्पृहा-स्त्री० विषय-सुखकी इच्छा।
पौधा । -यान,-रथ-पु० गरुड़। -लोक-पु० वैकुंठ, विषयक-वि० [सं०] संबंधी, विषयका ।
गोलोक । -वल्लभा-स्त्री० लक्ष्मी; तुलसीका पौधा; कलिविषयांतर-पु० [सं०] प्रसंगको छोड़कर भिन्न विषयका यारी, अग्निशिखा । -वाहन,-वाह्य-पु. गरुड़ । उपस्थापन करना; मूल विषयको छोड़कर इधर-उधरकी
-शक्ति-स्त्री० लक्ष्मी ।-शिला-स्त्री० शालग्राम, काले चर्चा करना।
चिकने पत्थरकी गोल बटिया। विषया-स्त्री० विषयवासना; विषयवासनाकी वस्तु ।
विष्फार-पु० [सं०] दे० 'विस्फार' (धनुष की टंकार)। विषयात्मक-वि० [सं०] विषय-संबंधी; इंद्रिय-संबंधी।। विसंगत-वि० [सं०] बेमेल, जिसके साथ संगति न हो। विषयाधिप-पु० [सं०] दे० 'विषय-पति'।
विसंवाद-पु० [सं०] झूठा कथन; धोखा; प्रतिज्ञा भंग विपयाधिपति-पु०[सं०] प्रांतका शासक(गवर्नर);राजा।। करना; निराश करना; खंडन, असहमति । विषयानुक्रमणिका-स्त्री० [सं०] विस्तृत विषयसूची(इंडेक्स)।
| विसंवाहक-पु० (इन्स्यूलेटर) चीनी मिट्टी आदिका बना विषयाभिरति, विषयाभिलाष-पु० [सं०] विषयभोग। वह कुचालक पदार्थ जो विद्युत् या तापका प्रवाह रोकनेके विषयासक्त-वि० [सं०] विषय रत ।
लिए विद्युन्मय या तापभय पदार्थ तथा विद्युविहीन विषयासक्ति-स्त्री० [सं०] विषयभोगमें लीन रहना।
तापविहीन पदार्थ के बीच में लगा दिया जाता है। विषयी(यिन)-वि० [सं०] विलासी, कामी। पु० कामी विसंवाहन-पु० (इनस्यूलेशन) विद्यत् या तापका प्रवाह पुरुषः कामदेव; अमीर ।
रोकनेके लिए किसी वस्तुको कुचालक पदार्थ द्वारा पृथक् विषांतक-पु० [सं०] शिव । वि. विषका प्रभाव दूर कर देना। करनेवाला।
विस-पु० [सं०] दे० 'विस' (पौनार)।। सर्व० उस । विषाक्त-वि० [सं०] विषमिश्रित ।
| विसदृश-वि० [सं०] असमान, भिन्न; असाधारण ।
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विसयना-विहार विसयना, विसवना-अ.क्रि० अस्त होना ।
चेचक फूटने, भड़कनेवाला पदार्थ । वि० फूटनेवाला । विसर्ग-पु० [सं०] दान; हटाना, पृथक करना; परित्याग; | विस्फोटन-पु०[सं०] फूट पड़ना फोड़ा निकलना; गर्जन । मोक्षा एक अक्षरका संकेत (6) जिसका उच्चारण आधे 'ह'के विस्मयंकर, विस्मयंगम-वि० [सं०] आश्चर्यजनक । समान होता है। प्रलय ।
विस्मय-पु० [सं०] समझमें न आ सकनेवाले पदार्थके विसर्जन-पु० [सं०] दान; अंत, समाप्ति त्याग; फेंकना; | देखने, सुनने आदिसे उत्पन्न होनेवाला भाव, आश्चर्य, किसी कामपर भेजना हाँक ले जाना(पशुओंको); प्रतिमा- | अचंभा; एक स्थायी भाव (सा०); -कारी(रिन)-वि० का धारामें बहाया जाना; आहूत देवताओंसे जानेकी __ आश्चर्य उत्पन्न करनेवाला। प्रार्थना करना (आवाहनका उलटा); भंग किया जाना। | विस्मयन-पु० [सं०] आश्चर्य होना। विसर्जित-वि० [सं०] भेजा हुआ हटाया हुआ; त्यक्त।। विस्मयाकुल-वि० [सं०] आश्चर्ययुक्त । विसर्पि, विसर्पिका-स्त्री० [सं०] खुजली नामका रोग। विस्मयी(यिन्)-वि० [सं०] विस्मययुक्त, अचंभेमें विसी (पिन्)-वि० [सं०] पसरने, फैलनेवाला; रेंगने- | पड़ा हुआ। वाला; खुजली रोगसे पीड़ित ।।
विस्मरण-पु० [सं०] भूल जाना। विसाल-* वि०दे० 'विशाल' । पु० [अ०] मिलन, संयोग। विस्मित-वि० [सं०] आचर्ययुक्त, चकित । विसूचिका, विसूची-स्त्री० [सं०] दे० 'विचिका'। विस्मृत-वि० [सं०] भूला हुआ। विसूरण-पु०, विसरणा-स्त्री० [सं०] दुःख, शोक चिंता; | विस्मृति-स्त्री० [सं०] विस्मरण, भूल जाना । विरक्ति।
विस्रब्ध-वि० [सं०] दे० 'विश्रब्ध'। विसृष्ट-वि० [सं०] त्यक्त प्रेषिता फेंका हुआ प्रदत्त ।। विस्रस्त-वि० [सं०] बिखरा हुआ; ढीला पड़ा हुआ; विस्तर-वि० [सं०] विस्तृत लंबाप्रभूत । पु० फैलाव, कमजोर, अशक्त। -बंधन-वि० जिसके बंधन खुल विस्तार, व्योरा; आसन, पीठ, पलंग।
गये हों। -वसन-वि० जिसके वस्त्र ढीले पड़ गये हों। विस्तरणी-स्त्री० [सं०] (स्ट्रैचर) असमर्थ रोगी या हताहत -हार-वि० जिसका हार सरककर गिर गया हो। व्यक्तिको उठाने-ले जानेका फैला हुआ ढाँचा जिसे दोनों | विस्राम-पु० विश्राम, आराम ।
ओरसे दो आदमी थामे रहते हैं ।--वाहक-पु० (स्ट्रैचर. विस्रावण--पु० [सं०] बहाना; रक्त बहाना; अर्क चुलाना । वेयरर) विस्तरणो में रोगी या आहत व्यक्तिको उठाकर विस्तृत-वि० [सं०] बहा हुआ, रिसा हुआ । ले जानेवाला (प्रत्येक) व्यक्ति ।
विस्रुति-स्त्री० [सं०] बहना, क्षरण । विस्तार-पु० [सं०] फैलाव; लंबाई-चौड़ाई; विशालता; विस्वर-वि० [सं०] स्वरहीन, बेमेल (स्वर); कर्कश । ब्योरा।
विस्वाद-वि० [सं०] स्वादहीन । विस्तारण-पु० [सं०] बढ़ाने या फैलानेकी क्रिया । विहंग-पु० [सं०] पक्षी; बाण; बादल; सूर्य, चंद्रमा । वि० विस्तारना*-सक्रि० फैलाना ।
आकाशमें गमन करनेवाला। -राज-पु० गरुड । विस्तारित-वि० [सं०] फैलाया हुआ; विस्तारपूर्वक | विहंगम-पु० [सं०] पक्षी; सूर्य; एक देववर्ग । कहा हुआ।
विहंगमा-स्त्री० [सं०] चिड़िया (मादा); बहँगी। विस्तारी विधेयक-पु० (एक्सटेंडिंग बिल) किसी पुराने विहंगमिका-स्त्री० [सं०] बहँगी । अधिनियम आदिकी अवधि बढ़ानेके लिए विधानसभा | विहंगाराति-पु० [सं०] बाज । आदिमें उपस्थापित विधेयक ।
विहंगिका-स्त्री० [सं०] बहँगी । विस्तीर्ण-वि० [सं०] फैला हुआ, विस्तृत; लंबा-चौड़ा। विहँडना*-स० क्रि० नष्ट करना; मार डालना। विस्तृत-वि० [सं०] फैला हुआ खुला हुआ विस्तारवाला; विहंतव्य-वि० [सं०] वध करने योग्य नष्ट करने योग्य । बड़ा, विशाल, प्रचुर व्याप्त ।
विहँसना*-अ० क्रि० मुसकाना । विस्तति-स्त्री० [सं०] फैलाव, विस्तार, लंबाई, चौड़ाई। विहग-पु० [सं०] पक्षी; बाण; सूर्य, चंद्र, मेघ, ग्रह । विस्थापन-पु० (डिसप्लेसमेंट ) किसी स्थानपर रहनेवाले | -पति,-राज-पु० गरड़ ।
लोगोंका वहाँसे जबरन हटा दिया जाना, उद्वासन । विहगेंद्र, विहगेश्वर-पु० [सं०] गरुड़ । विस्थापित-वि. (डिसप्लेस्ड) जो अपने निवासस्थानसे । विहरण-पु० [सं०] हटाना, ले जाना; आनंदके लिए जबरन हटा दिया गया हो, उदासित ।
घूमना-फिरना; मौज। विस्फार-पु० [सं०] थरथराहट, ज्याकी टंकार; खुलना । विहरना*-अ० क्रि० विहार करना, घूमना-फिरना । विस्फारण-पु० [सं०] फैलाना (डैना); खोलना। विहसन-पु० [सं०] मंद, मधुर हास्य, मुसकान । विस्फारित-वि० [सं०] खोला, फैलाया हुआ; फाड़ा हुआ। विहसित-पु० [सं०] मुसकान । वि० मुसकुराता हुआ। विस्फीति-स्त्री० (डीप्लेशन) बहुत फूले हुए पदार्थमेंसे जो हँसा गया हो। हवा निकाल लेने, फुलाव कम कर देनेकी क्रिया; मुद्राका | विहान-पु० भोर, प्रातःकाल | बाहुल्य या विस्तार घटाकर पूर्व स्थितिपर पहुँचा देना। विहाना*-स० क्रि० छोड़ना, अपनेको पृथक् करना । विस्फुटित-वि० [सं०] खिला हुआ खुला हुआ। विहायस-पु० [सं०] आकाश पक्षी । विस्फोट-पु० [सं०] फटना, फूट पड़ना; जहरीला फोड़ा। विहार-पु० [सं०] हरण; मटरगश्ती; घूमकर मनोरंजन विस्फोटक-पु० [सं०] बड़ा फोड़ा; एक प्रकारका कुष्ठ; करना; कदम बढ़ाना; क्रीड़ा; क्रीडोद्यान, मनोरंजनका
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७५३
विहारी-वीर स्थान; भिक्षुओंका मठ; कंधा; इंद्रका प्रासाद या ध्वजा; किया हुआ; स्वीकृत; जो युद्ध में काम आने योग्य न हो; प्रासादा फैलाव । -गृह-पु. क्रीड़ा-भवन। -भूमि- शांत; पालतू रहित, निवृत्त; इच्छित । -कल्मष-वि० स्त्री० मनोरंजनका स्थान; चरागाह । -वन-पु. क्रीडो. पापसे मुक्त ।-काम-वि० इच्छासे रहित ।-घृण-वि० द्यान । -वापी-स्त्री० क्रीड़ाके लिए बना हुआ तालाब । निर्दय, निष्ठुर । -चिंत-वि. चिंतामुक्त। -जन्म. -स्थली-स्त्री०,-स्थान-पु० क्रीड़ास्थान ।
जरस-वि. जन्म और बुढ़ापेसे मुक्त।-तृष्ण-वि०जिसमें विहारी(रिन्)-वि० [सं०] मनोरंजनके लिए घूमने- वासनाएँ न रह गयी हों। -दंभ-वि. निरभिमान, वाला; आनंद लेनेवाला; सुंदर । पु० कृष्ण ।
विनम्र । -भय-वि० निभीक । पु० विष्णु, शिव । - विहास-पु० [सं०] मुसकान ।
भीति-वि.निीक । -मसर-वि० मत्सररहित, द्वेषाविहित-वि० [सं०] किया हुआ, कृत; आदिष्ट; रखा। दिसे रहित। -मल-वि० स्वच्छ, निष्पाप । -मोहहुआ; करने योग्य; जिसका विधान किया गया हो। वि० मोहसे रहित । -राग-वि० वासनारहित; इच्छा-निषिद्ध कर्म-पु० (एक्टस ऑफ कमीशन एंड ओमि- हीन; शांत बिना रंगका । पु. वह व्यक्ति जिसने आसक्ति शन) वे कर्म जिन्हें करनेका शास्त्र आदेश देता है तथा आदिका परित्याग कर दिया है। बौद्ध या जैन महात्मा । वे जिन्हें न करनेका शास्त्रीय विधान हो; वे कर्म जिन्हें -बीड-वि० निर्लज्ज । -शंक-वि०निःशंक, निर्भय । करना चाहिये तथा चे जिन्हें न करना चाहिये।
-शोक-वि० शोकरहित, गतशोक । पु० अशोक वृक्ष । विहीन-वि० [सं०] पूर्णतः त्यक्ता नीच; वंचित, रहित। वीथि, वीथी-स्त्री० [सं०] पंक्ति, कतार, दौड़का चक्र, -जाति,-योनि,-वर्ण-वि० नीच जातिका ।
घुड़दौड़का रास्ता बाजार, दुकान; चित्रोंकी कतार; विहून*-वि० रहित ।
नक्षत्रोंके अवस्थानका एक भाग; सूर्यका मार्ग मकानमें विहृत-पु० [सं०] स्त्रियोंके दस हावोंमें से एक (सा०)। सामनेका छज्जा; मार्ग, सड़क दृश्य काव्यका एक भेद विह्वल-वि० [सं०] क्षुब्ध, अशांत; व्याकुल; भयाभिभूत; जिसमें एक ही अंक, एक-दो पात्र और विषय शृंगारप्रधान हतबुद्धि।
होता है और पात्र आकाश-भाषितके रूप में बोलता है। विह्वलता-स्त्री०, विह्वलत्व-पु०[सं०] व्याकुलता,चिंता। वीथिका-स्त्री० [सं०] पंक्ति सड़क; चित्रोंकी पंक्ति चित्रां वीक्ष-पु० [सं०] दृष्टि; दृश्य वस्तु; (लेस) किरणोंको केंद्री- कित दीवार या पट्ट, छज्जा; दृश्य काव्यका एक भेद भूत करनेवाला शीशेका ताल ।
(दे० 'बीथी')। वीक्षण-पु० [सं०] विशेष रूपसे देखना, निरीक्षण; जाँचवीप्सा-स्त्री० [सं०] व्याप्ति कार्यका नरंतर्य सूचित करनेके दृष्टि, नजर आँख ।
लिए शब्दकी आवृत्ति, पुनरुक्तिः एक शब्दालंकार, जहाँ वीक्षणीय-वि० [सं०] देखने योग्य; विचार करने योग्य । आदर, आश्चर्य आदिका भाव प्रकट करनेके लिए एक वीचि, वीची-स्त्री० [सं०] तरंग, लहर, अविवेक । शब्द कई बार कहा जाय । -क्षोभ-पु० तरंगोंका उठना ।-तरंगन्याय-पु० लगा- वीर-स्त्री० दे० 'बीर' । वि० [सं०] बहादुर, जवांमर्द, तार उठनेवाली लहरोंकी तरह एकके बाद दूसरा कार्य शूर; शक्तिशाली । पु० योद्धा; एक रस (जिसके चार भेद होना। -माली (लिन)-पु. समुद्र ।
है-दानवीर, धर्मवीर, दयावीर और युद्धवीर); अभिनेता चीज-पु० [सं०] दे० 'बीज' (समास भी)।
अग्निः पुत्रः पति; जैन; विष्णु; सरकंडा; काली मिर्च वीजक-पु० [सं०] दे० 'बीजक' ।।
काँजी, खस, उशीरमूल; शृंगी विष; पुष्करमूल; एक वीजन-पु० [सं०] पंखा; चँवर, पंखा झलना; चकोर । असुर; * पु० भाई। -कर्मा(मन)-वि० वीरोवीजांकुर-न्याय-पु० [सं०] दे० 'बीजांकुर-न्याय' । चित कर्म करनेवाला । -केश(स)री(रिन्)-वि० वीजित-वि० [सं०] झला हुआ, पंखा झलकर ठंढा किया वीरोंमें सिंहके समान पराक्रमी। -गति-स्त्री० युद्ध में हुआ; जलसे सींचा हुआ।
प्राणांत होनेपर मिलनेवाली गति, स्वर्ग। -चक्र-पु० वीटक-पु० [सं०] पानका बीड़ा।
स्वतंत्र भारतके किसी सैनिकको रणक्षेत्र में विशेष वीरता वीटा-स्त्री० [सं०] प्राचीन काल में खेला जानेवाला लड़कों-/ दिखानेपर दिया जानेवाला तृतीय श्रेणीका पदक । - का एक खेल, एक तरहका गुल्ली-डंडा, गुल्ली ।
चक्रेश्वर-पु० विष्णु । -जननी-स्त्री० वीर पुत्रको जन्म वीटि, वीटी-स्त्री० [सं०] नागवाली; पानका बीड़ा। देनेवाली माता । -धन्धा(न्वन)-पु० कामदेव । वीटिका-स्त्री०[सं०] दे० 'बीटि'; कपड़ेका बंधन या गाँठ।। -पट्ट-पु. एक प्रकारका सैनिक वस्त्र (ललाटपर पहननेवीण-स्त्री० दे० 'वीणा'।
का)। -पत्नी-स्त्री० वीरकी भार्या । -पाण,-पाणक वीणा-स्त्री० [सं०] सितार जैसा एक बाजा जिसके दोनों -पु. एक पेय जो युद्ध में जाते समय या युद्ध में सैनिक सिरोंपर तुंबे लगे रहते हैं। बिजली। -दंड-पु० वीणाका पीते थे। -पान,-पानक-पु० दे० 'बीरपाण' । -पूजा लंबा दंड, तुंबोंके बीचका हिस्सा। -पाणि-पु. नारद । -स्त्री० ( हीरो वरशिप) वीरों, महान् पुरुषोंका समुचित स्त्री० सरस्वती।-रव-पु. वीणाका स्वर । वि० वीणाकी आदर-सम्मान । -प्रजायिनी,-प्रजावती-स्त्री० वीर तरह गुनगुनानेवाला ।-वादक-पु० वीणा बजानेवाला। उत्पन्न करनेवाली स्त्री, वीरमाता ।-प्रसवा-प्रसविनी, -वादन-पु० मिजराब; वीणा बजाना। -वादिनी- -प्रसू-स्खी० दे० 'वीरप्रजायिनी' ।-भट-पु० योद्धा। स्त्री० सरस्वती।
-भद्र-पु० अश्वमेधका घोड़ा; खस; शिवकी जटासे वीत-वि० [सं०] गत, लुप्त प्रस्थित छोड़ा हुआ; अपवाद | उत्पन्न एक वीर श्रेष्ठ वीर । -भद्रक-पु० उशीर, खप्त ।
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७५३
- भार्या स्त्री० वीरपत्नी । -मर्दल, - मर्दलक- पु० युद्धका नगाड़ा । - माता (तृ) - स्त्री० वीर जननी । -मानी (निन्) - वि० अपनेको वीर समझनेवाला। - मार्ग - पु० स्वर्ग । -रस- पु० प्रबल शत्रुका दमन करने, आर्त्त जर्नाका दुःख दूर करने तथा किसी भारी कठिनाई आदिपर विजय पानेके प्रयत्न में प्रदर्शित दृढ़ता एवं उत्साहका द्योतन करनेवाला एक काव्यरस, वीरताका भाव । - राघव-पु० राम । - व्रत- वि० हदसंकल्प, दृढव्रत । शयन - पु०, शय्या - स्त्री० वीरोंके सोनेका स्थान, रणक्षेत्र; बाणोंकी शय्या । - श्रेष्ठ- पु० अद्वितीय वीर । -सू-स्त्री० वीरमाता, वीरजननी । वीरा - स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पति और पुत्र जीवित हों; वीर भार्या; पत्नी; माता; मदिरा । वीराचारी (रिन् ) - पु० [सं०] वाममार्गियों का एक भेद जो मद्यादि में देवताओंकी कल्पना करते हैं ।
वीरान - वि० [फा०] उजड़ा हुआ, जनद्दीन; तबाह । वीराना - पु० [फा०] उजाड़ जगह; जंगल | वीरासन - पु० [सं०] योगासनका एक प्रकार; एक घुटना टेककर बैठना ।
वीरुत् (ध) - स्त्री० [सं०] लता; शाखा, टहनी । वीरेंद्र - पु० [सं०] वीरोंका प्रधान । वीरेश, वीरेश्वर - पु० [सं०] महादेव; बहुत बड़ा योद्धा । वीर्य - पु० [सं०] वीरता, पौरुष शक्ति, चल; पुंस्त्व; शरीर की एक धातु, शुक्र, रेत; साहस ।
वीर्यवान् (वत्) - वि० [सं०] बलवान्, शक्तिशाली; पुष्ट । वीर्याधान - पु० [सं०] गर्भाधान ।
वीहार - पु० [सं०] मंदिर, मठ (बौद्ध, जैन) । वुज़ - पु० [अ०] नमाज से पहले यथाविधि हाथ-पाँव और मुँह धोन
वुराना * - अ० क्रि० उराना, समाप्त होना (बिहारी) । वुसूल - पु० [अ०] पहुँचना; मिलना; हासिल, प्राप्ति । - बाकी - स्त्री० वह इकम जो प्राप्त न हुई हो; बकाया रकम या रुपया वसूल करना । वसूली - वि० [अ०] वसूल करने योग्य । स्त्री० वह रकम जिसे वसूल करना हो या जो वसूल की गयी हो । वृंत - पु० [सं०] बौड़ी, देंही; डंठल; चूचुक । वृंद - पु० [सं०] दल, समूह, झुंड, गुच्छा; एक मुहूर्त । वि० बहुसंख्यक | गायक- पु० कई गायकों के साथ गानेवाला । चाद्य-पु० (आरकेस्ट्रा) नाट्यशाला आदि में विशेष स्थानपर समवेत वादकों द्वारा सामूहिक रूपसे प्रस्तुत किया गया वाद्य ।
वृंदा - स्त्री० [सं०] तुलसी; राधा । - वन- पु० गोकुलके पासका एक स्थान जो तीर्थ माना जाता है ।
वृंदार - पु० [सं०] देवता ।
वृंदारक - पु० [सं०] श्रेष्ठ जन; नायक; देवता । वृक- पु० [सं०] भेड़िया; गीदड़; उल्लू; कौवा; चोर । - कर्मा (र्मन्) - वि० भेड़ियेकी तरह काम करनेवाला । -दंश- पु० कुत्ता | वृकाराति, वृकारि - पु० [सं०] कुत्ता | वृकोदर - पु० [सं०] भीमसेन; ब्रह्मा ।
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वीरा- वृत्य
वृक्क, वृक्कक - पु० [सं०] गुरदा | वृक्का - स्त्री० [सं०] हृदय ।
वृक्ष - पु० [सं०] पेड़, विटप; वंशवृक्ष, कुरसीनामा | - रोपण -पु० वृक्ष लगानेकी क्रिया । - वाटिका, - वाटी - स्त्री० उपवन, बाग । - सेचन-पु० वृक्षमें पानी देना, सींचना। -स्नेह-पु० पेड़का निर्यास, गोंद । वृक्षायुर्वेद- पु० [सं०] वृक्षों के रोग और चिकित्सा-संबंधी
शाख ।
वृज - पु० दे० 'व्रज' |
वृजन्य - वि० [सं०] ग्राम में रहनेवाला, सरल (व्यक्ति) । वृजिन - पु० [सं०] पाप; दुःख, कष्ट; बाल; घुँघराले बाल; दुष्ट जन; रक्त चर्म ।
वृत्त - वि० [सं०] घटित; पूरा किया हुआ; निष्पन्न; किया हुआ; गत, व्यतीत; गोलाकार । पु० घटना; इतिहास; व॒त्ता॑त; समाचार; आचरण, चालचलन; एक तरहका छंद (सरकिल) वह समक्षेत्र जो ऐसी वक्र रेखासे घिरा हो जिसका प्रत्येक बिंदु उक्त क्षेत्रके केंद्र या मध्य विदुसे समान दूरीपर हो। - खंड- पु० वृत्तका कोई भाग; (सेक्टर) दो त्रिज्याओं (अर्द्धव्यास रेखाओं) तथा चापके द्वारा घिरा वृत्तका अंश । -चूड - वि० जिसका चूड़ाकरण संस्कार हो चुका हो । वि० मेहराबदार ( झरोखा : ) । - पत्र - पु० ( जर्नल ) वह वही या पंजी जिसमें प्रतिदिनके कार्य या घटनावलीका विवरण अथवा जिसमें विधानसभा आदिके प्रति दिनके विनिश्चयोंका संक्षिप्त अभिलेख लिखा जाता है। -पत्रक - पु० (हिस्ट्रीशीट) वह पत्रक या फलक जिसपर किसी बंदी के पूर्वापराधोंका इतिहास या लेखा दिया रहता है, अपराधलेखा, दुर्वृत्त फलक ।
वृत्तांत - पु० [सं०] समाचार; विवरण; वर्णन | वृत्तांतानुमेय साक्ष्य-पु० [सं०] (सरकम्सटैंशल एवीडेंस) कोई बात साबित करनेमें सहायता करनेवाली ऐसी बातें जो किसीने अपने बयान में न कही हों, पर परिस्थिति या जानी हुई घटनाओंके आधारपर जिनका अनुमान किया जा सके ।
वृत्तार्ध - पु० [सं०] वृत्तका अर्धभाग । वृत्ति - स्त्री० [सं०] अस्तित्व रहना; मनकी अवस्था, हालत, कार्य, व्यापार; तरीका, ढंग; पेशा; स्वभाव; रहन-सहन (समासांत में ); जीविका; पारिश्रमिक; कार्यका कारण; सम्मानपूर्ण वर्ताव; व्याख्या, कारिका; चक्कर खाना; लुढ़कना; चक्र या वृत्तकी परिधि; शब्द-शक्ति (अभिधा आदि); रचनाशैली (कैशिकी आदि); सहायतार्थ दिया जानेवाला धन; विचारसरणी; आधेय; एक अस्त्र; प्रचलन; अनुप्रासका एक भेद, 'वृत्त्यनुप्रास' । -कर- पु० ( प्रोफेशन टैक्स) वृत्ति या पेशेपर लगनेवाला कर । -मूलक प्रतिनिधित्व - पु० (फंक्शनल रेप्रेजेंटेशन) दे० 'व्यावसायिक प्रतिनिधित्व' ।
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वृत्यनुप्रास - पु० [सं०] अनुप्रास अलंकारका एक भेद (जहाँ एक या अनेक वर्णोंकी समानता कई बार दिखायी जाय) |
वृत्य - वि० [सं०] नियुक्ति के योग्य; वरणके योग्य; घेरा
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वृत्र-वेत्री
७५४ जाने योग्य रखा जाने योग्य ।
वृहस्पति-पु० [सं०] दे० 'बृहस्पति' । वृत्र-पु०[सं०] अंधकारका मूर्त रूप एक दानव जिसे इंद्रने वेंकटेश, वेंकटेश्वर-पु० [सं०] विष्णु (वेंकटगिरिस्थ मूर्ति)। मारा था; बादल; अंधकार; शत्रु । -घ्न,-हंता(तृ),- वे-सर्व० 'वह'का बहुवचन । हा(हन )-पु० इंद्र।
वेकट-पु०[सं०] एक मछली, भाकुर विदूपका युवा जौहरी। वृत्रारि-पु० [सं०] इंद्र।
वेक्षण-पु० [सं०] अच्छी तरह देखना; देखभाल । वृथा-अ० [सं०] बेकार, बेमतलब, निष्प्रयोजन । वि० वेग-पु० [सं०] तीव्र प्रवृत्ति प्रचंडता; प्रवाह; मलअनुचित; झूठ निरर्थक, निरुपयोगी ।-वादी(दिन)- मूत्रके निकलनेकी प्रवृत्ति, शक्तिसंचार (विषादिका); वि० झूठ बोलनेवाला।
जल्दी, शीघ्रता; बाणकी गति; प्रगाढ़ प्रणय; आंतरिक वृद्ध-वि० [सं०] बढ़ा हुआ; बूढ़ा, अधिक अवस्थाका; बड़ा; भावकी बाह्य अभिव्यक्ति, अनुभाव तेज, वायु आदिमें
चतुरः विद्वान् ; योग्य या सम्मानित । पु० बूढ़ा आदमी; पाया जानेवाला एक गुण (न्या०)। -गा-स्त्री० नदी। सम्मानित व्यक्ति।
-वृद्धि-स्त्री० (एक्सिलरेशन) वेग या रफ्तार बढ़नेकी वृद्धता-अधिदेय-पु० [सं०] (सूपर एनुएशन अलाउंस)| क्रिया।। वृद्धताके कारण किसी कर्मचारीके काम करने में असमर्थ हो वेगवान् (वत्)-वि० [सं०] वेगयुक्त; तेज चलनेवाला; जानेपर दी जानेवाली वृत्ति या भत्ता।
तीव्र, उग्र। वृद्धा-वि० स्त्री० [सं०] बुढ़िया, बुड्ढी । स्त्री० बूढ़ी स्त्री। वेगानिल-पु० [सं०] प्रचंड वायु, प्रभंजन । वृद्धावस्था-स्त्री० [सं०] बुढ़ापा ।
| वेणि-स्त्री० [सं०] चोटी गूंथना; बालोंकी लटकती हुई वृद्धाश्रम-पु० [सं०] संन्यास ।
चोटी; जल-प्रवाह दो या अधिक नदियोंका संगम; गंगा, वृद्धि-स्त्री० [सं०] बढ़ती, बाढ़ प्रगति; चंद्रकलाका बढ़ना; यमुना और सरस्वतीका संगम । धन-संपत्तिका बढ़ना; अभ्युदय; सफलता; संपत्ति; ब्याज, वेणी-स्त्री० [सं०] बालोंकी चोटी; धारा। -दान-पु० सूद सूदखोरी; लाभ; शोथ; अ, इ, उ आदिका आ,ऐ, औ प्रयागमें बाल कटवानेका एक संस्कार । -संवरण,आदि रूप ग्रहण करना (व्या०)। -कर-वि० वृद्धि संहरण,-संहार-पु० चोटी गूंथना, जूड़ा बाँधना । करनेवाला । -कर्म (न्)-पु. नांदीमुख श्राद्ध। वेणु-पु० [सं०] वाँस; नरसल, बाँसुरी। -कार-पु० वृश्चिक-पु० [सं०] बिच्छू; एक राशि; मार्गशीर्ष मास। बाँसुरी बनानेवाला । -वादक-पु० बाँसुरी बजानेवाला। वृष-पु० [सं०] बैल, साँड़, एक राशि वह जो अपने वर्गमें -वादन,-वाद्य-पु० बाँसुरी बजाना । सर्वश्रेष्ठ हो (प्रायः समासांतमें);मजबूत, हट्टा-कट्टा आदमी वेणुमय-वि० [सं०] बाँसका बना हुआ । ( कामशास्त्रके अनुसार चार प्रकारके पुरुषोंमेंसे एक)। वेतन-पु० [सं०] नियत समयपर, प्रायः महीने-महीने, -कर्मा (मन)-वि० बैलकी तरह काम करनेवाला दिया जानेवाला पारिश्रमिक, तनख्वाहा वृत्ति । -क्रम-केतन-पु. शिव। -पति-पु. शिव; छोड़ा हुआ पु० (ग्रेड ऑफ पे) वेतनका क्रम या दरजा । -जीवीसाँड़। -भान-पु० राधाका पिता। -भानु-पु० (विन)-वि० वेतनसे अपना निर्वाह करनेवाला; वेतन वृषका सूर्य; राधाका पिता। -भानुजा-भानुनंदिनी, लेकर काम करनेवाला। -दाता(त)-पु० (पे मास्टर)
-भानुसुता-स्त्री० राधा । -वाहन-पु० शिव । सैनिकों, श्रमिकों आदिको वेतन वितरित करनेवाला । वृषण-पु० [सं०] अंडकोश; अंड; शिव ।
-फलक-पु० (पे-शीट) कर्मचारियों, कर्मियोंको मिलनेवृषभ-पु० [सं०] बैल, साँड़ ।-केतु,-ध्वज-पु० शिव ।। वाले किसी मासके वेतनका पूरा-पूरा ब्यौरा देनेवाला -धुज*-पु० दे० 'वृषभध्वज'।
कागज या फलक । -भोगी(गिन् )-पु. वेतन लेकर वृषल-पु० [सं०] शूदा अधार्मिक व्यक्ति चंद्रगुप्त मौर्य । काम करनेवाला, वैतनिक कर्मचारी। वृषली-स्त्री० [सं०] शूद्रा; अविवाहित रजस्वला कन्या; वेताल-पु० [सं०] प्रेत (विशेषकर जिसका शवपर अधिवह स्त्री जिसे रजःस्राव हो रहा हो; बंध्या स्त्री।
कार हो); शिवका एक गणाधिप; द्वारपाल । -साधनवृषादित*, वृषादिय-पु०[सं०] ज्येष्ठकी संक्रांतिके सूर्य । पु० साधना द्वारा वेतालको वशमें करना। वृषोत्सर्ग-पु० [सं०] एक धार्मिक कृत्य, मृत जनोंके नाम- वेत्ता(त्त)-वि० [सं०] जानकार, शाता; अनुभव करने. पर चक्रसे दागकर साँड़ छोड़ना।
वाला । पु० ऋषि जिसे आत्मा-परमात्माका शान हो। वृष्ट-बि० [सं०] बरसा हुआ; वर्षाके रूपमें गिरा हुआ। वेत्र-पु० [सं०] बेत; डंडा; द्वारपालका दंड। -कारवृष्टि-स्त्री० [सं०] वर्षा, मेघसे जलविंदुओंका गिरना; पु० बेतका काम करनेवाला । -धर-धारक-पु. वर्षाकी तरह किसी चीजका बहुत बड़ी संख्या या परि. द्वारपाल, छड़ीबरदार। -धारी(रिन्)-पु. रईसका माणमें गिरना, झड़ी। -कर-वि० वृष्टि करनेवाला । नौकर । -पाणि,-हस्त-पु० छड़ीबरदार । -भृत्-काल-पु० बरसात, प्रावृट् । -पात,-संपात-पु० दे० 'वत्र-धर'। वर्षाका होना।
वेत्रक-पु० [सं०] सरपत । वृष्य-वि० सं०] पुंस्त्व बढ़ानेवाला; कामोद्दीपक । वेत्राघात-पु० [सं०] वैत लगाना, बेतकी छड़ीसे मारना। वृहत्-वि० [सं०] बड़ा, महान् ; भारी।
वेत्रासन-पु० [सं०] बेंतकी कुरसी या बेतकी कुरसीनुमा वृहन्नला-स्त्री० [सं०] विराटराजके यहाँ अज्ञातवास करते | डोली । समयका अर्जुनका नाम ।
| वेत्री(बिन्)-पु० [सं०] द्वारपाल; आसाबरदार ।
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वेद-वेष्टन वेद-पु० [सं०] ज्ञान; यथार्थ ज्ञान, हिंदुओंके आदि धर्म- छेड़छाड़ । -शाला-स्त्री. वह स्थान जहाँ यंत्रोंकी सहा. ग्रंथ (पहले ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद-ये ही तीन यतासे ग्रहों आदिकी गतिका पर्यवेक्षण किया जाता है । थे, पीछे अथर्ववेद भी मिलाया गया)।-घोष-पु० वेद- वेधक-वि० [सं०] छेद करनेवाला, छेदनेवाला ( रत्नोंपाठकी ध्वनि । -ज्ञ-वि० वेदोंका जानकार । -तत्त्व- आदिको); प्रभावित करनेवाला । पु० वेदोंका रहस्य, मुख्य अभिप्राय । त्रय-पु०,-त्रयी- वेधन-पु० [सं०] छेदनेकी क्रिया (बाणसे) निशाना मारना; स्त्री०ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदका समाहार ।-ध्वनि- प्रवेश; खनन; गहराई; गड़ाना, आहत करना। स्त्री०,-नाद-पु० दे० 'वेदघोष' । -निंदक-पु. वेदोंमें | वेधनिका-स्त्री० [सं०] (रत्नमें) छेद करनेकी तेज नोकअविश्वास करनेवाला-नास्तिक, बौद्ध, जैन । -निंदा- | वाली बरमी । स्त्री० वेदोंमें अविश्वास ।-पाठ-पु० वेदोंका पाठ करना। वेधनी-स्त्री० [सं०] रत्नमें छेद करने की बरमी; हाथीका -पाठक,-पाठी (ठिन)-पु. वेदका पाठ करनेवाला। अंकुश । -पारग-वि० वेदज्ञ। पु० वेदज्ञ ब्राह्मण ।-माता (त)-| वेधनीय-वि० [सं०] छेदा जाने योग्य, भेदनीय । स्त्री० सरस्वती गायत्री। -वचन-पु. वेदमें आये हुए | वेधालय-पु० [सं०] दे० 'वेधशाला'। वचन या मंत्र । -वाक्य-पु. वेदका बाक्य, पूर्णतः | वेधित-वि० [सं०] छेदा हुआ, विद्ध । प्रामाणिक वाक्य; अखंडनीय बात । -वाद-पु० वेदोंके | वेधी(धिन्)-वि० [सं०] वेध करनेवाला, छेद करनेसंबंध होनेवाली बहस । -वादी (दिन)-वि० वेदज्ञ। वाला; निशाना मारनेवाला। -विक्रयी (यिन)-वि० धन लेकर वेद पढ़ानेवाला। वेध्य-वि० [सं०] वेधन करने योग्य । पु०निशाना, लक्ष्य । -विद-वि० वेदश । पु० विष्णुः वेदश ब्राह्मण ।-विहित- वेपथु-पु० [सं०] कँपकँपी, कंप। वि. वेदानुमोदित । -व्यास-पु० दे० 'कृष्ण-द्वैपायन'। वेपन-पु० [सं०] काँपना, कंपन; वातरोग । वि. कॉपने-सम्मत-वि० वेदानुमोदित। .
वाला; कॅपानेवाला। वेदक-वि० [सं०] जाननेवाला; होशमें लानेवाला। । वेला-स्त्री० [सं०] सीमा, मर्यादा; फासला; समुद्र और वेदन-पु०, वेदना-सी० [सं०] शान; अनुभूति पीड़ा। स्थलकी सीमा तट, कूल; समुद्रतटा समुद्रकी लहर समय वेदांग-पु० [सं०] वेदोंके अंग, वेदोंके अंगस्वरूप कुछ समयका एक मान, घंटा या पहर, अवसर, अवकाश ग्रंथ जो वेदमंत्रोंके उच्चारण, अर्थ समझने आदिमें सहायक तरंग; प्रवाह । -कूल-पु० समुद्रतट; ताम्रलिप्त देश । होते है (इनकी संख्या ६ है-शिक्षा, कल्प, निरुक्त, छंद, -जल,-सलिल-पु० ज्वारका जल (टाइडल वाटर्स) । ज्योतिष और व्याकरण)।
-तट-पु० समुद्रतट । -पत्रक-पु० ( टाइमटेबुल) दे० वेदांत-पु० [सं०] ब्रह्मविद्या (उपनिषद् और आरण्यकके 'समयसारिणी'।
अंतिम भाग जिनमें आत्मा, परमात्मा और जगत्का | वेलातिक्रम-पु० [सं०] विलंब । निरूपण किया गया है); छः दर्शनों में से एक (इसमें ब्रह्म-वेलातिग-वि० [सं०] किनारेके ऊपरसे बहनेवाला । को ही पारमार्थिक सत्ता कहा है और जीव तथा जगत् वेलादि-पु० [सं०] समुद्रतटवती पर्वत । अतिरिक्त पदार्थनहीं माने गये हैं)।-ज्ञ-वि०वेदांत जानने वेल्लि-स्त्री० [सं०] लता । वाला। -वादी(दिन)-वि. वेदांत दर्शन मानने- | वेश-पु० [सं०] प्रवेश; मकान खेमा; वेश्यालय; वेश्याका वाला।
बर्ताव; बाना। -धर,-धारी(रिन् )-वि० दूसरेका वेदांती(तिन्)-वि०,पु०[सं०] वेदांतका पंडित, ब्रह्मवादी। बाना धारण करनेवाला। -भूषा-स्त्री० पहनावा, वेदाध्ययन-पु० [सं०] वेदोंका अध्ययन ।
पोशाक। -युवती,-योषित्,-वधू-वनिता-स्त्री० वेदाध्यापक-पु० [सं०] वेदका अध्यापन करनेवाला, वेश्या ।। आचार्य ।
वेश्म(न)-पु० [सं०] घर, मकान । वेदाध्यायी(यिन)-वि० [सं०] वेदोंका पाठ करनेवाला। वेश्मांत-पु० [सं०] अंतःपुर, जनानखाना । वेदिका-स्त्री० [सं०] वेदी, यज्ञभूमि धामिक कृत्यों के लिए | वेश्या-स्त्री० [सं०] नाच-गान तथा कसबसे जीविका बनाया हुआ छोटा चबूतरा आसन ।
चलानेवाली स्त्री, गणिका । -गमन-पु० कामवासनाकी वेदित-वि० [सं०] निवेदित, सूचित; देखा हुआ। तृप्तिके लिए गणिकाके पास जाना। -गामी (मिन)-पु० वेदितव्य-वि० [सं०] ज्ञातव्य, जानने योग्य ।
रंडीबाज । -गृह-पु. चकला। -घटक-पु० वेश्या वेदी-स्त्री० [सं०] यश इत्यादिके लिए तैयार किया हुआ पहुँचानेवाला दलाल ।-पति-पु० वेश्याका पति, जार। स्थान मंदिर या प्रासादके प्रांगण में बना हुआ चतुष्कोण | -पुत्र-पु० वेश्याका पुत्र, अवैध पुत्र। -वृत्ति-स्त्री. स्थान या मंडप ।
कसब कमाना, धन लेकर पर-पुरुषोंसे संभोग कराना। वेदोक्त-वि० [सं०] वेदोलिखित, वेदानुमोदित । वेश्यालय-पु०[सं०](ब्रोथेल) वेश्या या वेश्याओंके रहनेकी वेद्य-वि० [सं०] जानने, समझने योग्य; कथनीय, कहने | जगह, चकला । योग्य; बतलाने योग्य; स्तुत्य प्राप्त करने योग्य । वेष-पु० [सं०] वेश; नेपथ्य, रंगमंचके पीछे वेश-रचनाका वेध-पु० [सं०] वेधना, छेद करना; घुसाना; आहत स्थान; बदला हुआ भेस ।-धर-वि० दूसरेका भेस धारण करनाछिद्र, बिल; खुदाई; गड्ढेकी गहराई; निशाना करनेवाला ।-धारी (रिन्)-विदे० 'वेशधारी'; ढोंगी। मारना; सूर्य, किसी ग्रहका दूसरे ग्रहके सामने पहुँचना; वेष्टन-पु० [सं०] घेरना, लपेटना; लपेटनेवाली चीज
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वेष्टित - वैधव
[
बेठन; पगड़ी; पट्टी; बंध; चहारदीवारी; आवरण, खोल । वेष्टित - वि० [सं०] घिरा हुआ; लपेटा हुआ; वस्त्राच्छादित । वेष्य - वि० [सं०] जिसने भेस बदला है (अभिनेताके रूपमें) । पु० श्रम; कर्म; पगड़ी; पट्टी; जल । वेसन - पु० [सं०] दे० 'बेसन' । वेसर - पु० [सं०] खच्चर, अश्वतर । वेस्टकोट - पु० [अ०] फतुही, जाकेट | वै* - अ० एक निश्चयबोधक शब्द | वि० दो । वैकटिक - पु० [सं०] जौहरी, रत्नपरीक्षक । वैकट्य - पु० [सं०] विकटता; विशालता; भीषणता । वैकथिक - पु० [सं०] बढ़-बढ़कर बातें कहनेवाला, डींग मारनेवाला ।
वैकल्पिक - वि० [सं०] ऐच्छिक संदिग्ध, अनिश्चित । - सदस्य - पु० (आलटरनेटिव मेंबर) दो सदस्यों में से एक; एकके सदस्यता स्वीकार न करने आदिको स्थिति में उसका स्थान ग्रहण कर सकनेवाला सदस्य | वैकल्य-पु० [सं०] विकलता, क्षोभ, उत्तेजना, दोष, त्रुटि । बैकाल - पु० [सं०] अपराह्ण; संध्या । वैकालिक - वि० [सं०] संध्या-संबंधी; संध्या समय होने वाला | पु० संध्याकालकी प्रार्थना; ब्यालू । वैकालीन - वि० [सं०] दे० 'वैकालिक' | वैकुंठ - पु० [सं०] इंद्र विष्णुः विष्णुलोक; स्वर्गं । - चतु देशी - स्त्री० कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी ।-भुवन, - लोकपु० विष्णुलोक ।
वैक्रम - वि० [सं०] विक्रम-संबंधी; शक्ति-संबंधी । वैक्रमी - वि० [सं०] विक्रमका; विक्रम-संबंधी ( संवत् ) । ana, वैकुor - g० [सं०] विकलता, व्याकुलता; पीड़ा । वैखरी - स्त्री० [सं०] कंठसे उच्चार्यमाण स्वरविशेष; वाक्शक्ति; वाग्देवी, सरस्वती ।
वैखानस - वि० [सं०] वानप्रस्थ, तपस्वी । वैगुण्य-पु० [सं०] गुणका अभाव, गुणरराहित्य; अच्छे गुणोंका अभाव; दोष, त्रुटि; गुण या धर्मकी भिन्नता । वैचक्षण्य-पु० [सं०] चातुर्य; कुशलता ।
चित्र - पु० [सं०] विचित्रता ।
वैचित्र्य - पु० [सं०] विचित्रता, अनोखापन; भिन्नता । वैजन्य - पु० [सं०] एकांत, निर्जनता । वैजयंत- पु० [सं०] इंद्रप्रासाद; घर; इंद्र; स्कंद; एक पर्वत; अरणी, अग्निमंथ वृक्ष; ध्वजा; इंद्रकी ध्वजा । वैजयंती - स्त्री० [सं०] झंडा; चिह्न; विजयमाल; जानुतक लटकनेवाली पाँच रंगोंकी एक माला; एक फूल । वैजयिक - वि० [सं०] विजय-संबंधी; विजयदायक; विजय
सूचक |
वैजात्य - पु० [सं०] विजातीयता; वर्ण या जातिको भिन्नता; वैचित्र्य ।
वैज्ञानिक - पु० [सं०] विज्ञानका पंडित । वि० विज्ञान
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७५६
वैतनिक - वि० [सं०] वेतन या मजदूरी लेकर काम करनेवाला, वेतनभोगी ।
वैतरणि, वैतरणी - स्त्री० [सं०] एक पौराणिक नदी; इस नदीको पार करानेवाली गाय ( जो ब्राह्मणको दी जाती है); उड़ीसा की एक पवित्र नदी ।
वैतस - वि० [सं०] बेंत-संबंधी; बेंत जैसा (प्रबल शत्रुके सामने झुक जाना-जैसे वैतसी वृत्ति) ।
वैताल - वि० [सं०] वेतालका; वेताल-संबंधी । पु० दे० 'वेताल' ; स्तुतिपाठक ।
वैतालिक - पु० [सं०] स्तुतिपाठक, स्तुति पाठ करके राजाओं को सवेरे जगानेवाला; वेतालका उपासक । वैतुष्य - पु० [सं०] भूसीका निकाला जाना । वैतृष्ण्य - पु० [सं०] प्यास बुझाना; इच्छासे रहित होना, उदासीनता ।
वैत्तपाल्य - वि० [सं०] कुबेर-संबंधी । वैत्रक - वि० [सं०] बेंतदार | वैत्रकीय - वि० [सं०] बेंत या छड़ी संबंधी | चैत्रासुर - पु० [सं०] एक असुर । वैद-पु० वैद्य । वि० [सं०] विद्वान्-संबंधी; विद्वान् । वैदat - पु० दे० 'वैद्यक' ।
वैदग्ध, वैदग्ध्य - पु० [सं०] दक्षता; चतुरता; पांडित्य । वैदर्भी स्त्री० [सं०] विदर्भकी राजकुमारी; अगस्त्य -पत्नी; दमयंती; रुक्मिणी; एक रीति जिसमें माधुर्य-व्यंजक वर्णोंका प्रयोग किया जाता है (सा० ), उपनागरिका । वैदिक - वि० [सं०] वेद-संबंधी; जो वेदके अनुकूल हो, वेदविहित; पवित्र | पु० वेदश ब्राह्मण । - कर्म (न्) - पु० वेदविहित कर्म ।
वैदूर्य - पु० [सं०] एक रत्न, लहसुनिया । वैदेशिक - वि० [सं०] विदेशका विदेश संबंधी । पु० दूसरे देशका व्यक्ति, विदेशी । -नीति- स्त्री० किसी राष्ट्रकी परराष्ट्र या अन्य राष्ट्रोंके साथ बरती जानेवाली नीति । - व्यापार - पु० किसी देशका अन्य देशोंके साथ होनेवाला व्यापार ।
वैदेही- - स्त्री० [सं०] विदेहकी राजकुमारी, सीता । वैद्य - वि० [सं०] वेद संबंधी; वेदविहित | पु० विद्वान्; आयुर्वेदका ज्ञाता, चिकित्सक । -राज-पु० धन्वंतरि; श्रेष्ठ वैद्य । -विद्या- सी० चिकित्साशास्त्र । -शास्त्रपु० चिकित्सा संबंधी ग्रंथ या विद्या । वैद्यक - पु० [सं०] चिकित्सक चिकित्साशास्त्र । वि० चिकित्सा-संबंधी ।
वैद्या - स्त्री० [सं०] काकोली; वैद्यकी स्त्री; स्त्री वैद्य । वैद्युत - वि० [सं०] विजलीका; विजली-संबंधी । पु० वपुष्मान्का एक पुत्र ; बिजलीकी अग्नि । वैदुम - वि० [सं०] विद्रुम, मूँगेका ।
वैध - वि० [सं०] विधि-संगत, विहित; जायज; कानूनके मुताविक ।
संबंधी ।
वैधर्मिक - वि० [सं०] जो धर्मसंगत न हो, अविहित ।
वैडूर्य - पु० [सं०] एक रत्न, वैदूर्य; एक पर्वत । वैतंडक - पु० [सं०] व्यर्थका झगड़ा करनेवाला; तर्क- वैधर्म्य - पु० [सं०] असमानता, अंतर; धर्म या गुणकी प्रिय । वि० वितंडा-संबंधी,
वैतथ्य - पु० [सं०] मिथ्यात्व असत्यता ।
भिन्नता; कर्तव्यको भिन्नता; वैपरीत्य; अवैधता; नास्तिकता । वैधव - पु० [सं०] विधु -चंद्रमाका पुत्र, बुध ।
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अनुकूल ।
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वैधवेय-वैश्य वैधवेय-पु० [सं०] विधवाका, विधवाके गर्भसे उत्पन्न पुत्र । वि० शत्रुता पैदा करनेवाला । -कारी(रिन्),-कृत्वैधव्य-पु० [सं०] रँडापा ।-लक्षणोपेता-स्त्री० वैधव्यके वि० झगड़ालू । -प्रतिक्रिया-स्त्री०,-प्रतीकार-पु० चिह्नोंसे युक्त (विवाहके अयोग्य) कन्या।
वैर-प्रतिशोध । -भाव-पु० शत्रुता ।-रक्षी(क्षिन्)वैधानिक-वि० [सं०] विधान-संबंधी; विधान(संविधान)के वि० शत्रुताका निवारण करनेवाला। -शुद्धि-स्त्री०
वैरका बदला। -व्रत-पु० शत्रुताका व्रत, प्रतिशा। वेधीकरण-पु० [सं०] (वैलिडेशन) विधिके अनुरूप या वैरल्य-पु० [सं०] विरलता, न्यूनता । अनुकूल बना देना, वैध रूप दे देना।
वैरस, वैरस्य-पु० [सं०] विरसता; अनिच्छा, इच्छा वैधुर्य-पु० [सं०] विधुरता, वियोग; अविद्यमानता; कात- न होना, अरुचि।। रता नैराश्य।
वैरागी(गिन)-पु० [सं०] एक वैष्णव संप्रदाय, उदासी। वैनतेय-पु० [सं०] विनता-पुत्र, गरुड़ ।
वि०विषयकी इच्छासे रहित, विरक्त, उदासीन । वैनयिक-वि० [सं०] विनय, शिष्टता, अनुशासन-संबंधी। वैराग्य-पु० [सं०] रंग बदलना, विवर्ण होना; विषयवैनायक-वि० [सं०] विनायक, गणेश-संबंधी।
वासना और सांसारिक संबंधोंसे मनका उचट जाना, वैनाशिक-वि० [सं०] विनाश-संबंधी; नश्वर विनाशमें विरक्ति, उदासीनता। विश्वास करनेवाला विनाश करनेवाला ।
वैराज्य-पु० [सं०] दो राजाओंकी संयुक्त शासनप्रणाली, वपरीत्य-पु० [सं०] विपरीत होनेका भाव, प्रतिकूलता। दुराज; ऐसे शासनवाला देश विदेशी शासन । वैपारी-पु० दे० 'व्यापारी' ।
वैरि-पु० [सं०] वैरी, दुश्मन । वैपुल्य-पु० [सं०] प्राचुर्य, अधिकता: विशालता। वैरी(रिन)-वि० [सं०] शत्रुतापूर्ण । पु० शत्रुः योद्धा । वैफल्य-पु०[सं०] विफलता; निरर्थकता, उपयोगराहित्य । वैरूप्य-पु० [सं०] विरूपता; विकृति; कुरूपता; रूप. वैभव-पु० [सं०] शक्ति; ऐश्वर्य; गौरवान्वित पद; महत्ता विभिन्नता । __ अलौकिक शक्ति ।-शाली(लिन)-वि० वैभव-विशिष्ट वरेचन, वैरेचनिक-वि० [सं०] विरेचन संबंधी। ऐश्वर्यवाला।
वैरोचन-वि० [सं०] सूर्य-संबंधी; विरोचनसे उत्पन्न । पु० वैभापिक-वि० [सं०] वैकल्पिक । पु० विभाषा (एक बौद्ध | सूर्यका एक पुत्र; विरोचनका पुत्र, बलि ।-निकेतन-पु० संप्रदाय)का अनुयायी।
पाताल । वैभिव्य-पु० [सं०] विभिन्नता ।
वैरोचनि-पु० [सं०] बलि; एक बुद्ध; सूर्यका एक पुत्र । वैभ्राज-पु० [सं०] विष्वक्सेन; एक लोक; एक पर्वत; एक वैलक्षण्य-पु० [सं०] विचित्रता विभिन्नता; अंतर । देवोद्यान, देवोद्यानस्थ सरोवर; एक अरण्य ।
वैवर्ण-पु० दे० 'वैवर्ण्य' । वैभ्राजक-पु० [सं०] एक देवोद्यान ।
वैवर्य-पु० [सं०] विवर्णता, रंग बदल जाना; मालिन्य । चमत्य-पु० [सं०] मतभेद, फूट; नापसंदी। -सूचक- | वैवश्य-पु० [सं०] विवशता; आत्मानयत्रणका अभाव वि० (डिसकॉट) असहमति या भिन्न मत सूचित करने वैवाहिक-वि० [सं०] विवाह-संबंधी।
वैवाह्य-वि० [सं.] विवाह-संबंधी विवाह द्वारा संबद्ध । वैमनस्य--पु० [सं०] अन्यमनस्कता; मनमुटाव, वैर । पु० विवाह-संस्कार। वैमल्य-पु० [सं०] निर्मलता, स्वच्छता, विशुद्धता । वैशंपायन-पु० [सं०] वेदव्यासके शिष्य (इन्होंने जनमे. वैमात्र, वैमात्रेय-वि० [सं०] सौतेला । पु० सौतेला भाई। जयको महाभारतकी कथा सुनायी थी); एक प्राचीन ऋषि । वैमात्रक-पु० [सं०] सौतेला माई।।
वैशद्य-पु० [सं०] विशदता, निर्मलता; कांति स्पष्टता । वैमात्रा, वैमात्री, वैमात्रेयी-स्त्री० [सं०] सौतेली बहन । वैशाख-पु० [सं०] चैत्रके बादका महीना; मथानी। वैमानिक-वि० [सं०] विमान-संबंधी। पु० विमानारोही; | -नंदन-पु० गधा। गगनपर्यटक; (एअरमैन) विमान-चालन आदिका काम | वैशाखी-स्त्री० [सं०] वैशाखकी पूर्णिमा । करनेवाला, विमानका चालक या अन्य कर्मचारी। वैशारद्य-पु० [सं०] दक्षता, पांडित्य; बुद्धि । वैमुख्य-पु० [सं०] विरक्ति; विमुखता; पलायन; घृणा। वैशिक-वि० [सं०] वेश्यागामी । पु० वेश्यागामी नायक । वैयक्तिक-वि० [सं०] व्यक्तिगत, निजी। -बंध-पु० | वैशिष्ट-पु० [सं०) विशिष्टता, विशेषता; अंतर । (पर्सनल बांड) किसी व्यक्ति द्वारा लिखा गया ऐसा प्रति- वैशिष्ट्य-पु० [सं०] विशेषता, अंतर; श्रेष्ठता। ज्ञापत्र जिसमें लिखी हुई बातें पूरी करनेको वह बाध्य | वैशेषिक-वि० [सं०] विशेषतायुक्त श्रेष्ठ; विशेष विषयहो तथा जिन्हें पूरा न करनेपर निर्धारित धन दंड-स्वरूप संबंधी; वैशेषिक दर्शन-संबंधी। पु० कणाद-प्रवर्तित एक देनेके लिए वह अपने आपको जिम्मेदार समझे।
दर्शन जिसमें तत्वोंका विवेचन किया गया है। इस वैया-पु. एक प्रत्यय = वाला, (कोई काम) करनेवाला । दर्शनका अनुयायी। वैयाकरण-पु० [सं०] व्याकरणका विद्वान् ।
वैशेष्य-पु० [सं०] विशेषता; प्राधान्य। वैयाघ्र-वि० [सं०] व्याघ्र-संबंधी; व्याघ्र जैसा ।
वैश्य-पु० [सं०] द्विजातियों में तीसरा और अंतिम वर्ण वयात्य-पु० [सं०] धृष्टता; निर्लज्जता; अविनय, उजमुपन । (जिसका पेशा कृषि, वाणिज्य आदि है)। वि० वैश्य जातिवैरंकर-वि० [सं०] शत्रुता दिखलानेवाला ।
संबंधी । -कर्म(न)-पु० वैश्यका पेशा-कृषि, वाणिज्य वैर-पु० [सं०] विरोध, शत्रुता, दुश्मनी; घृणा ।-कारक- आदि । -वृत्ति-स्त्री० वैश्यका पेशा ।
वाला ।
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वैश्रवण-व्यथयिता
वैश्रवण - पु० [सं०] कुबेर; रावण | वि० कुबेर-संबंधी । वैश्वजनीन - वि० [सं०] विश्व भरके लोगोंसे संबंध रखनेवाला; समस्त विश्वके लोगोंका कल्याण साधक । वैश्वदेव - वि० [सं०] सब देवोंसे संबंध रखनेवाला । पु० विश्वदेवके उद्देश्यसे किया हुआ होम, यश; एक एकाइ; उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ।
वैश्वदेव, वैश्वदैवत - पु० [सं०] उत्तराषाढ़ा नक्षत्र जिसके अधिपति विश्वदेव कहे जाते हैं ।
वैश्यदेविक, वैश्यदेव्य - वि० [सं०] विश्वदेव-संबंधी । वैश्वमनस - पु० [सं०] एक साम । वैश्वयुग - पु० [सं०] बृहस्पतिके पाँच संवत्सरोंका
समाहार ।
वैश्वरूप - वि० [सं०] बहुत से रूपोंवाला; विभिन्न प्रकारका । पु० विश्व |
वैश्वरूय - वि० [सं० ] दे० 'वैश्वरूप' । पु० बहुरूपता; विभिन्नता ।
वैश्वानर - वि० [सं०] अग्नि-संबंधी । पु० अग्नि; जठराग्नि, पित्त; चित्रक वृक्ष ।
वैषम्य - पु० [सं०] विषमता; समतल न होना; अनुपातराहित्य; कठिनाई; संकट; कठोरता; अनौचित्य; भूल । वैषयिक - वि० [सं०] विषय-संबंधी; प्रदेश, भूभाग संबंधी; पु० कामी, लंपट |
वैषुवत- पु० [सं०] विषुव (संक्रांति ); केंद्र, मध्य । वि० मध्यवर्ती; विषुव रेखा-संबंधी ।
|
वैष्णव - वि० [सं०] विष्णु-संबंधी; विष्णुको पूजनेवाला । पु० विष्णुकी उपासना करनेवाला; एक धार्मिक संप्रदाय ( जिसमें विष्णुकी उपासना की जाती है ) । वैष्णवी - स्त्री० [सं०] वैष्णव संप्रदाय की स्त्री; विष्णुकी शक्ति; दुर्गा और मनसा; अपराजिता; शतावरी; तुलसी । वैसा - वि० उस तरहका । अ० उस प्रकार; उतना । वैसress - पु० [सं०] विषमता, असमानता; अंतर । वैसे - अ० उस प्रकार से; यों । वैहायस - वि० [सं०] आकाशमें विचरण करनेवाला;
उद्देश्य से कहे गये विपरीतार्थ- बोधक शब्द, ताना।-चित्रपु० व्यंग्य या उपहासको दृष्टिसे बनाया गया चित्र । व्यंग्योक्ति - स्त्री० [सं०] गूढ़ भाषा, वह उक्ति जिसमें व्यंग्य हो ।
व्यंजक - वि० [सं०] प्रकट करनेवाला, प्रकाशकः अर्थका संकेत करनेवाला |
व्यंजन- पु० [सं०] प्रकट करना; स्वरहीन वर्ण; चिह्नः परिचायक चिह्न भोजन-सामग्री, मसाले आदि; पका हुआ भोजन ( बोलचाल ); पंखा (व्यजनका विकृत रूप ); दे० 'व्यंजना' (सा० ) । - कार - पु* भोजन बनानेवाला । - संधि - स्त्री० व्यंजन वर्णोंके मिलनसे होनेवाला विकार । व्यंजनास्त्री० [सं०] व्यक्त करनेकी क्रिया; तीन प्रकारकी शब्दशक्तियों में से एक जो अभिधा और लक्षणाके विरत हो जानेपर संकेतितार्थ प्रकट करती है। -वृत्ति - स्त्री० व्यंग्यपूर्ण भाषा लिखनेकी शैली; व्यंजना-शक्ति । व्यंजित - वि० [सं०] प्रकट किया हुआ; चिह्नित; संकेतित । व्यक्त - वि० [सं०] प्रकट; विकसित; प्रत्यक्ष, स्पष्ट, श्य । व्यक्ति स्त्री० [सं०] व्यक्त, प्रकट होनेकी क्रिया; प्रकट रूप; स्पष्टता । पु० व्यष्टि, जन (जाति या समष्टिका उलटा ) । - गत- वि० एक व्यक्तिका, अपना, निजी । व्यक्तित्व-पु० [सं०] व्यक्तिकी अपनी विशेषता, गुण; वह विशेषता जो किसी व्यक्तिमें असामान्य रूपसे पायी जाय । व्यक्तीकरण पु० [सं०] व्यक्त, प्रकट करनेकी क्रिया । व्यक्तीभूत- वि० [सं०] जो प्रकट हो गया हो । व्यप्र- वि० [सं०] व्याकुल, परेशान, घबड़ाया हुआ; डरा हुआ; संलग्न, व्यस्त; अस्थिर । - मना (नस) - वि० घबड़ाया हुआ, परेशान । व्यजन-पु० [सं०] पंखा झलना; पंखा ।
व्यतिक्रम - पु० [सं०] बीतना, गुजरना (समय); उल्लंघन; उपेक्षा; रीति-भंग; क्रम विपर्यय; संकट; बाधा । व्यतिक्रमण-पु० [सं०] क्रमभंग करना; पाप करना, बुराई करना ।
व्यतिक्रमी (मिन्) - वि० [सं०] पापी, अपराधी । व्यतिक्रांत - वि० [सं०] भंग किया हुआ; उल्लंघित; विपर्यस्त; बिताया हुआ ।
व्यतिक्षेप - पु० [सं०] अदल-बदल; वितंडा, कहासुनी, झगड़ा ।
व्यतिचार - पु० [सं०] पापाचरण, बुराई ।
वोछा* - बि० दे० 'ओछा' ।
व्यतिपात - पु० [सं०] विष्कंभ आदि सत्ताईस योगों में से एक ।
वोट- पु० [अ०] किसी व्यक्तिके निर्वाचनके लिए दिया व्यतिरिक्त-वि० [सं०] अतिशय, बहुत अधिकः पृथक् । जानेवाला मत ।
अ० सिवा, अलावा, छोड़कर ।
वोड़ना * - स० क्रि० फैलाना, पैसारना ।
वोढव्य - वि० [सं०] सहनीय; ले जाये जाने योग्य, वाह्म । वोद - वि० [सं०] आर्द्र, गीला ।
व्यतिरेक- पु० [सं०] भेद, अंतर, पार्थक्य; अभाव, राहित्य; एक काव्यालंकार जहाँ उपमानकी अपेक्षा उपमेयकी अधिकता कही जाय ।
वोदर, वोद्र* - पु० उदर- 'जग जाके वोदर बसै तिहि तूं व्यतीत - वि० [सं०] बीता हुआ, गत; प्रस्थितः मृतः त्यक्त । ऊपर लेय' - दास ।
व्यतीतना* - अ० क्रि० व्यतीत होना, बीतना, गुजरना । व्यतीपात - पु० [सं०] दे० 'व्यतिपात'; भारी उपद्रव । व्यत्यय, व्यत्यास - पु० [सं०] व्यतिक्रम; विपर्यय, वैपरीत्य; परिवर्तन; विरोध; बाधा ।
व्यथयिता (तृ) - वि० [सं०] पीड़ा देनेवाला; दंड देनेवाला ।
आकाशस्थ, वायु संबंधी । पु० देवता; एक झील । वैहासिक-पु० [सं०] बिदूषक; अभिनेता । वि० हँसाने
वाला ।
वोक* - स्त्री० तरफ, ओर - 'सूर स्याम कालीपर निर्तत आवत व्रजकी वोक' - सू० ।
वोर* - स्त्री० अंत; तरफ ।
वोहित्थ - पु० [सं०] जहाज, पोत, बड़ी नाव |
व्यंग्य - वि० [सं०] व्यंजनावृत्ति द्वारा बोधित, संकेतित । पु० संकेतितार्थ, गूढ़ार्थ; चिढ़ाने, नीचा दिखाने आदिके
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व्यथा-व्यवस्थिति व्यथा-स्त्री० [सं०] पीड़ा, दुःख ।-कर-वि० कष्टदायक । व्यवदात-वि० [सं०] साफ; चमकीला। व्यथाकुल-वि० [सं०] कष्टग्रस्त, व्यथित ।
व्यवदान-पु० [सं०] शुद्धि, संस्कार, सफाई । व्यथाक्रांत-वि० [सं०] दे० 'व्यथित' ।
व्यवदीर्ण-वि० [सं०] खंडित, जो टुकड़े-टुकड़े हो गया हो; व्यथित-वि० [सं०] पीड़ित, दुःखित डरा हुआ। हतबुद्धि । व्यपकर्ष-पु० [सं०] अपवाद ।
व्यवधा-स्त्री० [सं०] वह जो बीचमें आ पड़े, व्यवधान; व्यपगत-वि० [सं०] गया हुआ, प्रस्थित लुप्त;...से गिरा | परदा, आवरण; छिपाव । हुआ; वंचित, रहित; (लैप्स्ड) ढिलाई या भूलसे उचित व्यवधाता(तृ)-वि० [सं० ] पृथक् करनेवाला; बीचमें समयपर काममें न लाये जानेके कारण जो हाथसे निकल | पड़नेवाला; परदा करनेवाला, आड़ करनेवाला । गया हो या बेकार (रद्द) हो गया हो। -रश्मि-वि० व्यवधान-पु० [सं०] बीचमें पड़नेवाली वस्तु; बाधा; जिसकी किरणें विलीन हो गयी हों।
ओटमें हो जाना; आवरण, परदा; पार्थक्य, विभाग; अंत, व्यपगति-स्त्री०, व्यपगमन-पु० [सं०] ( लैप्स) किसी | समाप्ति । अधिकार, सुविधा आदिका उचित समयके भीतर प्रयोग न | व्यवधायक-वि० [सं०] परदा करनेवाला, ओटमें करनेहोनेके कारण हाथसे निकल जाना या रद्द हो जाना। | वाला; ढकनेवाला; खलल डालनेवाला, बाधक । व्यपगम-पु० [सं०] प्रस्थान लोप; बीतना (समय)। व्यवसाय-पु० [सं०] प्रयास, उद्योग; अभिप्राय; व्यापार, व्यभिचार-पु० [सं०] कुमार्ग-गमन; पाप, दुराचार, कारबारः कर्म; अवस्था; कौशल; छल; कोई पेशा करना; दुष्कर्म, अनुचित यौन संबंध, नियमका अपवादा गलत जीविका; वृत्ति, आचरण; डींग; विष्णु, शिव धर्मका एक तर्क, एक तर्क छोड़कर दूसरेका सहारा लेना; गलत हेतु, पुत्र । -प्रशिक्षण-पु. (वोकेशनल ट्रेनिंग) किसी साध्यरहित हेतु (न्या०)।
व्यवसाय या पेशेमें योग्यता प्राप्त करनेके लिए दिया व्यभिचारिणी-स्त्री० [सं०] पुंश्चली, कुलटा ।
जानेवाला प्रशिक्षण । -बुद्धि-वि० हदनिश्चय । -वर्ती व्यभिचारी(रिन)-वि० [सं०] कुमार्गगामी; दुश्चरित्र; (तिन)-वि० हढ़ निश्चयके साथ काम करनेवाला । अनुचित यौन संबंध करनेवाला; जोस्थिर न रहे, अस्थायी -संघ-पु० (ट्रेडयूनियन ) किसी व्यवसाय, कारखाने भंग करनेवाला, उल्लंघन करनेवाला; नियम-विरुद्ध कई आदिमें काम करनेवाले श्रमिकों तथा अन्य कर्मचारियोंकी गौण अर्थोंवाला (शब्द)। -भाव-पु० एक प्रकारके संस्था जो मालिकों या नियोजकोंके सामने कर्मियों के हितभाव जो स्थायी न रहकर सभी रसोंमें सहायकके रूपमें के संबंधकी बातें रखने आदिमें उनका प्रतिनिधित्व करे। संचरण करते है (आचार्योंने इनकी संख्या तैतीस मानी व्यवसायात्मक-वि० [सं०] संकल्प, उत्साहसे पूर्ण । है), संचारीभाव (सा०)।
व्यवसायी(यिन्)-वि० [सं०] उत्साही, उद्यमी, परिव्यय-पु० [सं०] क्षय, लोप, नाश; धन आदिका किसी श्रमी; दृढ़संकल्पः अध्यवसायी; कोई काम करता हुआ, काममें लगना, खर्च (आयका उलटा); त्याग; लग्नसे किसी पेशेमें लगा हुआ। पु. व्यापारी; कारबार करनेबारहवाँ स्थान; एक संवत्सर । -शाली(लिन्),- वाला; शिल्पी। शील-वि० अपव्ययी।।
व्यवस्था-स्त्री० [सं०] प्रबंध, इंतजाम; आपेक्षिक अंतर या व्ययित-वि० [सं०] खर्च, व्यय किया हुआ।
स्थिति; दृढ़ता; अध्यवसाय: निश्चित सीमा; विधान%B व्ययी(यिन् )-वि० [सं०] खूब खर्च करनेवाला; क्षय
अवस्था, स्थिति अवसर; शत; वस्तुओंकी स्थिति या क्रम, होनेवाला।
उन्हें करीनेसे रखना; पार्थक्य । -पत्र-पु० किसी विषयव्यर्थ-वि० [सं०] निरुपयोगी, बेकार; निष्फल; संपत्ति
का लिखित शास्त्रीय विधान; दस्तावेज । हीन; बेमानी; असंगत । अ० यों ही, बिना मतलबके, व्यवस्थान-पु० [सं०] प्रबंध; निश्चय विधान; स्थिरता; नाहक।
हृढ़ता; अध्यवसाय; पार्थक्य अवस्था; विष्णु । -प्रज्ञप्तिव्यर्थन-पु० [सं०] पहलेके किसी आदेश या निर्णयादिको
स्त्री० एक बहुत बड़ी संख्या (बौद्ध)। रद्द कर व्यर्थ बना देना (नलिफिकेशन)।
व्यवस्थापक-पु० [सं०] प्रबंध करनेवाला; करीनेसे रखने व्यलीक-वि० [सं०] असत्य; अप्रिया कष्टकर अनुचित । पु० वाला; निश्चय करनेवाला; किसी विषयपर शास्त्रीय व्यव
अप्रिय वस्तु; दुःखका कारण; अपराध; छल; अप्रियता । स्था देनेवाला; व्यवस्थापिका सभाका सदस्य । व्यवकलन-पु० [सं०] पार्थक्य, जुदाई; एक संख्यामेंसे । व्यवस्थापिका सभा-स्त्री० [सं०] विधान बनानेवाली दूसरी संख्या घटाना, बाकी, घटाब ।
वह सभा जिसके अधिकतर सदस्य जनता द्वारा निर्वाव्यवकलित-वि० [सं०] वियोगिता हीनित; व्यवकलन | चित किये गये होते हैं। किया हुआ, घटाया हुआ।
व्यवस्थापित-वि० [सं०] जिसकी व्यवस्था की गयी हो व्यवच्छिन्न-वि० [सं०] काटकर अलग किया हुआ पृथक | | विधिपूर्वक रखा या रखवाया हुआ; नियमित । किया हुआ; विभक्त भिन्न विशेषित बाधित ।
व्यवस्थित-वि० [सं०] ठीक हालतमें किया हुआ, विधिव्यवच्छेद-पु० [सं०] काटकर अलग करना; विभाजन | पूर्वक रखा हुआ; ब्यूहबद्ध; स्थित; निश्चित; निणीत;
शवच्छेद; पृथक् करना; अंतर दिखलाना; निश्चय । विधान द्वारा निर्दिष्ट अवलंबित, आधृत; जो ठहरा हो; व्यवच्छेदक-वि० [सं०] भिन्न करनेवाला, विशेषता दिख- अविकारी; वर्तमान । लानेवाला, अलग करनेवाला ।
| व्यवस्थिति-स्त्री० [सं०] अलग रखा जाना, भेद किया ४८-क
हेढ़ता
नलिफिकेला निर्णयादि
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व्यवहर्ता-व्याख्यान
७६०
जाना; ठहरना, रहना; लगा रहना, अध्यवसाय; निश्चित सत्ता तथा अधिकार माननेका सिद्धांत । नियम ।
व्यसन-पु० [सं०] खामी, त्रुटिं; संकट, विपत्ति; दुर्भाग्य व्यवहर्ता(र्तृ)-वि० [सं०] कारबार करनेवाला; रीति- | पाप, दुराचरण; बुरी आदत, लत; बहुत ज्यादा आदी नीतिका पालन करनेवाला। पु० किसी कारबारका प्रबं- होनाप्रिय विषय । -काल-पु० संकटका समय, दुर्दिन। धक या संचालक; विचारपति मुकदमा लड़नेवाला; वादी; | | -प्राप्ति-स्त्री० दुर्दिन आना। साथी; वैश्य ।
व्यसनाक्रांत-वि० [सं०] संकटग्रस्त । व्यवहार-पु० [सं०] कार्य अनिवार्य कार्य; आचरण, व्यसनागम-पु० [सं०] दुर्दिनका आना । बर्ताव, प्रयोग; कारबार पेशा, व्यापार महाजनी; विषय, व्यसनात्यय-पु० [सं०] संकटका अंत । माजरा, रीति, प्रथा, रिवाज; शत, पण; स्थिति विवाद: व्यसनान्वित, व्यसनाप्लुत-वि० [सं०] संकटमें पड़ा मुकदमा; मुकदमेका कारण; मुकदमेका विचार; दंड हुआ, विपद्ग्रस्त । कारबार सँभालनेकी योग्यता औचित्य (विधानके विचार व्यसनात-वि० [सं०] संकटापन्न । से); संबंध; पद खड्गः एक वृक्ष । -ज्ञ-वि० दुनियाके व्यसनी(निन्)-वि० [सं०] जिसे किसी विषयका बहुत तौर-तरीकेका जानकार; अपना कारबार सँभालने योग्य, शौक हो; विषयासक्त; किसी बुरी चीजका आदी; पापी; बालिग; मुकदमेकी काररवाई समझनेवाला । -तंत्र-पु० | बदनसीब किसी कार्य में जी-जानसे लगा हुआ। आचारशास्त्र । -दर्शन-पु० मुकदमेकी जाँच, मुकदमेका | व्यस्त-वि० [सं०] फेंका हुआ, उछाला हुआ; तितर-बितर विचार । -द्रष्टा(ष्ट्र)-पु० विचारपति ।-निरीक्षक- किया हुआ, बिखेरा हुआ; हटाया हुआ; निकाला हुआ, पु. वह अधिकारी जो सामान्य मुकदमों में सरकार- पृथक् किया हुआ; व्यष्टि रूपमें ग्रहण किया हुआ समासकी ओरसे पैरवी करता है ( कोर्ट इन्स्पेक्टर)।-न्याया- रहित (व्या०); विभिन्न घबड़ाया हुआ; क्षुब्ध; जो क्रममें लय-पु० (सिविल कोर्ट ) नागरिकोंके अधिकारों आदि- न हो, जो ठीक हालतमें न हो; उलटा हुआ; व्याप्त संबंधी विवादोंपर विचार करनेवाला न्यायालय ।-पद- निहित; कार्यादिमें संलग्न, उलझा हुआ; परिवर्तित । पु० व्यवहार, मुकदमेका विषय । -प्राप्त-वि० जिसकी -केश-वि०जिसके बाल बिखरे हों। अवस्था सोलह वर्षसे अधिक हो गयी हो, बालिग । | व्याकरण-पु०[सं०] वह विद्या जिसके द्वारा भाषाके शब्दों, -लक्षण-पु० मुकदमेकी जाँच-संबंधी विशेषता।-वाद- उनके रूपों और प्रयोगों आदिका शान होता है। पु० (सिविल सूट ) नागरिकोंके अधिकारों आदि-संबंधी व्याकीर्ण-वि० [सं०] फैलाया, बिखेरा हुआ; अस्त-व्यस्त विवादका मामला । -विधि-स्त्रीव्यवहारका विधान, व्याकुल, क्षुब्ध । पु० अस्तव्यस्तता; गड़बड़ । न्यायशास्त्र । -विषय,-स्थान-पु० मुकदमेका विषय । | व्याकुल-वि० [सं०] घबड़ाया हुआ, हतबुद्धि; व्यग्र भीत; -शास्त्र-पु. वह शास्त्र जिसमें विवाद-संबंधी बातोंका अभिभूत; किसी काममें लगा हुआ; तेजीसे इधर-उधर विवेचन किया गया हो। -सिद्धि-स्त्री० धर्मशास्त्रके चलता हुआ, कंपित (जैसे विद्युत् )। -चित्त,-मनाअनुसार मुकदमेका निर्णय । -स्थिति-स्त्री० मुकदमेके | (नस),-हृदय-वि. जिसका दिल बहुत घबड़ाया विचारसे संबंध रखनेवाली काररवाई।
हुआ हो, व्यग्र । -मूर्धज-वि०जिसके बाल बिखरे हों। व्यवहारक-पु० [सं०] व्यापारी ।
-लोचन-वि०जिसकी दृष्टि मंद हो गयी हो। व्यवहारार्थी(थिन् )-पु० [सं०] वादी, मुद्दई । व्याकुलित-वि० [सं०] घबड़ाया हुआ; भीत । व्यवहारासन-पु० [सं०] न्यायासन, विचारासन । व्याकूति-स्त्री० [सं०] छल, कपट; बुरी नीयत । व्यवहारास्पद-पु० [सं०] फरिगाद, नालिश । | व्याकृति-स्त्री० [सं०] पार्थक्य, भेद, अंतर; विश्लेषण व्यवहारिक-वि० [सं०] कारबार-संबंधी; कारबार में लगा व्याख्या रूप-परिवर्तन; व्याकरण । हुआ; कानून-संबंधी; मुकदमेबाज; प्रचलित व्यवहारमें | व्याक्रोश-पु०सं०] गाली देना, भर्त्सना करनाचिलाना।
आनेवाला । -जीव-पु० ज्ञानमय कोष (वेदांत )। व्याख्या-स्त्री० [सं०] कठिन पदादिका अर्थ स्पष्ट करने व्यवहारी(रिन्)-वि० [सं०] कारबारमें लगा हुआ; वाला विवरण, टीका; वर्णन। -गम्य-वि० व्याख्याके मुकदमा लड़नेवाला; प्रचलित, जो व्यवहारमें आता हो। जरिये समझा जानेवाला । व्यवहार्य-वि० [सं०] व्यवहारके योग्य, काममें लाने | व्याख्यात-वि० [सं०] जिसकी व्याख्या, टीका की गयी योग्य; करने योग्य; जिसके साथ व्यवहार किया जा हो; वणित, कथित । सके, जिसका साथ किया जा सके; प्रचलित; मुकदमेके व्याख्यातव्य-वि० [सं०] व्याख्या करने योग्य, जिसकी लायक (विषय)। पु० खजाना।।
व्याख्या करनी हो। व्यवहित-वि० [सं०] अलग रखा हुआ; किसी वस्तुके व्याख्याता (त)-पु० [सं०] व्याख्या करनेवाला; भाषण द्वारा पृथक् किया हुआ; रोका हुआ; छिपाया हुआ। करनेवाला। दूरवर्ती; जिसका लगातार संबंध न हो।
व्याख्यान-पु० [सं०] टीका करना, व्याख्या करना; व्यवहृत-वि० [सं०] आचरित, अनुष्ठित व्यवहार या | वर्णन; भाषण, वक्तृता। -पीठ-पु. ( रोस्ट्रम) मंचका प्रयोगमें लाया हुआ।
वह ऊँचा स्थान जहाँ खड़ा होकर कोई वक्ता व्याख्यान व्यष्टि-स्त्री० [सं०] प्राप्ति; सफलता; एक होनेका भाव; देता या भाषण करता है। -शाला-स्त्री० व्याख्यान, समष्टिका एक स्वतंत्र अंश । -वाद-पु० व्यष्टिकी स्वतंत्र भाषणके लिए बना स्थान ।
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व्याघात-व्यावसायिक प्रतिनिधित्व व्याघात-पु० [सं०] चोट, आघात; पराजयः क्षोभा खलल; व्यापना-अ० क्रि० व्याप्त होना, फैलना । बाधा, विघ्न (दो कथनोंका) परस्पर विरोध; एक काव्या- व्यापादक-वि० [सं०] नाशकारी; घातक (जैसे रोग)। लंकार जहाँ एक व्यक्ति द्वारा जिस उपायसे जो. कार्य व्यापादनीय, व्यापाद्य-वि० [सं०] नष्ट, वध करने योग्य । किया जाय, वहाँ अन्य व्यक्ति द्वारा उसी उपायसे उसके | व्यापादित-वि० [सं०] नष्ट किया हुआ, ध्वस्त; हत । विपरीत किया जाय, अथवा जहाँ परस्पर विरोधी क्रियाओं व्यापार-पु० [सं०] कार्य, काम; क्रिया; कारबार, पेशा; द्वारा एक ही कार्यका होना दिखलाया जाय।
वाणिज्य प्रयोग अभ्यास उद्योग प्रभाव सहायता करना। व्याघ्र-पु० [सं०] एक हिंस्र जंतु, बाघ । वि० (समासांतमें) | -चिह्न-पु० (ट्रेडमार्क) किसी व्यापारी या उद्योगपति सर्वश्रेष्ठ, प्रधान ।-चर्म(न)-पु० बाधकी खाल । नख- द्वारा अपने मालपर अंकित किया जानेवाला वह विशेष पु० बाघका नख या पंजा; नखी नामक गंधद्रव्य । चिह्न जिससे उक्त माल अन्य किसीके मालसे अलग पह-पुच्छ,-पुच्छक-पु० बाघकी पूँछ, एरंड। -लोम- चाना जा सके। -मंडल-पु. (चैवर ऑफ कामर्स) (न)-पु० शेरके बाल; मुँहपरके बाल, मूंछ ।-वक्त्र- व्यापारियोंका प्रतिनिधित्व करनेवाली संस्था । वि० बाघकसे मुखवाला।
व्यापारिक-वि० [सं०] व्यापार-संबंधी। व्याघ्राण-पु० [सं०] सूंघनेकी क्रिया।
व्यापारी-वि० व्यापार-संबंधी । व्याघ्री-स्त्री० [सं०] बाधिन; कंटकारी; एक कौड़ी। व्यापारी(रिन् )-पु० [सं०] काम करनेवाला रोजगारी, व्याज-पु० [सं०] छल, धोखा, फरेब; बहाना; कौशल, व्यवसायी; अभ्यास करनेवाला । वि० किसी व्यवसाय या धूर्तता; दुष्टता। -निंदा-स्त्री० स्तुतिकी भोटमें निंदा | एक काव्यालंकार जहाँ किसीकी स्तुतिसे वस्तुतः निंदा | व्यापी(पिन्)-वि० [सं०] व्याप्त होनेवाला; सर्वत्र ही प्रकट हो अथवा जहाँ एककी निंदा करनेसे किसी फैलनेवाला; आच्छादक । अन्यकी निंदा प्रकट हो। -स्तुति-स्त्री० निंदाके बहाने व्याप्त-वि० [सं०] पूरित, भरा हुआ; आच्छादित समास्तुति; एक काव्यालंकार जहाँ देखने में तो किसीकी निंदा- क्रांत; स्थपित परिवेष्टित प्राप्त; ढकनेवाला; अंतर्भूता की जाय किंतु समझनेपर वह स्तुति प्रकट हो अथवा जहाँ प्रसिद्ध फैला हुआ; नित्य साथ रहनेवाला।। किसी एककी बड़ाई करनेसे अन्यकी बड़ाई जान पड़े। व्याप्ति-स्त्री० [सं०] व्याप्त होनेका भाव; एक पदार्थ में व्याजी-स्त्री० [सं०] तौलनेके बाद कुछ दे देना, धलुआ। दूसरेका पूर्णतः मिल जाना; नित्य साहचर्य; विश्वजनीन ध्याजोक्ति-स्त्री० [सं०] छलपूर्ण बात; एक काव्यालंकार नियम; पूर्णता प्राप्ति; व्यापकता; आठ ऐश्वर्यों में से एक। जहाँ प्रकट होती हुई बातका कपटसे, बहाना आदि व्यामूढ-वि० [सं०] बहुत घबड़ाया हुआ। बनाकर, गोपन किया जाय ।
व्यामोह-पु० [सं०] अशान; घबड़ाहट । व्याड-पु० [सं०] (व्याघ्रादि) शिकारी जानवर; सर्पः खल । | व्यायाम-पु० [सं०] फैलाना; कसरत; अभ्यास, वांति; दुष्ट, बढ़ । वि० द्वेषी; बुराई करनेवाला ।
श्रम; फौजकी कवायद ।-भूमि,-शाला-स्त्री० व्यायाम व्यादान-पु० [सं०] खोलने, फैलानेकी क्रिया।
करनेका स्थान। व्याध-पु० [सं०] शिकार द्वारा जीविका चलानेवाली एक व्यायामी(मिन्)-वि० [सं०] व्यायाम, कसरत करने
संकर जाति; यह पेशा करनेवाला आदमी, बहेलिया। । वाला, कसरती; परिश्रमी । व्याधि-स्त्री० [सं०] पीड़ा; रोग; झंझट; कष्ट पहुँचानेवाला व्यायोग-पु० [सं०] एक प्रकारका रूपक जो एक ही अंकव्यक्ति या वस्तु (ला०); एक संचारी भाव (सा०)।-कर- का और वीररसप्रधान होता है। वि० रोग उत्पन्न करनेवाला, अस्वास्थ्यकर । -ग्रस्त- व्याल-पु० [सं०] दुष्ट हाथी; सर्प; सिंह बाध; चीता; वि० रोगग्रस्त, रुग्ण, बीमार। -निग्रह-पु. रोगका राजा; ठग; विष्णु । -खजा-नख-पु० व्याघ्रनख नामक दबाया जाना। -पीडित-वि० रोगग्रस्त । -भय- गंधद्रव्य । -ग्राह-ग्राही (हिन् )-पु० सर्प पकड़नेपु० रोगका भय । -मंदिर-पु. शरीर। -युक्त-वि० वाला, सँ पेरा । -पाणि,-प्रहरण,-बल,-वल-पु० रुग्ण । -रहित-वि० रोगमुक्त ।-हर-वि० रोगनाशक । दे० 'व्यालनख' । -सूदन-पु० गरुड़ । व्याधित-वि० [सं०] रोगग्रस्त, रुग्ण ।
| व्यालाद-पु० [सं०] सर्प खानेवाला, गरुड़ । व्यान-पु० [सं०] शरीरस्थ पाँच वायुओंमेंसे एक। व्यालू-पु० दे० 'ब्यालू'। व्यापक-वि० [सं०] दूरतक, सर्वत्र फैला हुआ, जो किसी व्यावर्तक-वि० [सं०] घेरनेवाला; अलग करनेवाला, चीजके सारे विस्तारमें हो; आच्छादक; जिसमें बहसके ___ हटानेवाला; भेद, अंतर करनेवाला । सारे विचारणीय विषयोंका अंतर्भाव हो; जो एक भावसे | व्यावर्तन-पु० [सं०] पराङ्मुख होना; निवारण, अलग किसीमें हमेशा रहता हो; जो व्याप्यसे अधिक विस्तृत | करना; सर्पकुंडली; लौटना, मुड़ना; चक्कर खाना; परिहो (न्या०)। -पुरुषमताधिकार-पु. (यूनिवर्सल | वेष्टित करना; बराबर होनेवाला परिवर्तन । मैनहुड सफरेज) देशके या राज्यके प्रायः प्रत्येक प्राप्त- व्यावर्तित-वि० [सं०] मोड़ा, लौटाया हुआ; चक्कर वयस्क व्यक्तिको, जो पागल न हो तथा जिसने किसी खिलाया हुआ; बदला हुआ। बड़े अपराध दंड न पाया हो, दिया गया मत प्रदान | व्यावसायिक प्रतिनिधित्व-पु० [सं०] (फंक्शनल करनेका अधिकार ।
रेप्रेजेंटेशन) व्यवसाय या पेशेके आधारपर दिया गया ध्यापन-पु० [सं०] सर्वत्र फैलना, भरना, व्याप्त होना। । प्रतिनिधित्व ।
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व्यावहारिक-व्रज्या व्यावहारिक-वि० [सं०] साधारण जीवन, व्यवहार, व्यतिक्रम, क्रमभंग; अस्तध्यस्तता; अपराध; मृत्यु । कार्य-संबंधी; व्यवहार में आने लायक प्रचलित; वास्तविक व्युत्थान-पु० [सं०] सचेष्टता, सक्रियता; विरोधमें उठना; मिलनसार, मुकदमा-संबंधी । -ऋण-पु. व्यवसाय | (रिवोल्ट, अपराइजिंग) राजा या राज्यशासकके विरुद्ध आदिके लिए लिया हुआ ऋण ।
उठ खड़ा होना। व्यावृत-वि० [सं०] खुला हुआ, अनावृत; ढका हुआ, व्युत्पत्ति-स्त्री० [सं०] उत्पत्ति; मूल, उद्गम; शब्दका परदा किया हुआ; हटाया हुआ, पृथक् किया हुआ; अप- | | मूल रूप; बाद, विकास; दक्षता प्रगाढ पांडित्य ।-रहितवाद किया हुआ।
वि० जिसका मूल रूप अशात हो। व्यावृति-स्त्री० [सं०] आवृत करना, ढकना पृथक् करना, व्युत्पन्न-वि० [सं०] उत्पादित; मूल रूपसे बनाया हुआ; छाँटना; अनावृत करना (?) ।
जिसकी व्युत्पत्ति की गयी हो पूरा किया हुआ; पूर्ण पंडित । व्यावृत्त-वि० [सं०] हटा हुआ; अलग किया हुआ, छाँटा व्युत्पादक-वि० [सं०] उत्पन्न करनेवाला; शब्दकी हुआ; अविद्यमान; चक्कर खाया हुआ; परवेष्टित; विरता| व्युत्पत्ति करनेवाला। विभक्त भिन्न; तोड़ा-मरोड़ा हुआ; लौटा हुआ; असंगत; | व्युपदेश-पु० [सं०] बहाना, ठगी । मुक्त; गत, लुप्त पसंद किया हुआ घेरा हुआ; प्रशंसित । | व्यूढ-वि० [सं०] फैला हुआ; विकसित; दृढ़, व्यवस्थित व्यावृत्ति-स्त्री० [सं०] मुँह मोड़ना; घेरना; पीछेकी ओर व्यूहबद्ध जिसका स्थान परिवर्तित हो गया होविवाहित । लुढ़काना; घुमाना (नेत्रादि); आवृत्ति; छुटकारा, मुक्ति व्यूह-पु० [सं०] यथास्थान, विधिपूर्वक रखना; सैनिकोंको वंचित होना, छोड़ दिया जाना; हटाया जाना; भेद, युद्धभूमिमें यथोचित स्थान पर रखना; अलग करना, अंतर, पार्थक्य; स्पष्टता; भिन्नता; विराम, अंत; एक | विभाग करना; स्थान-परिवर्तन रचना, समूह; शरीर । प्रकारका यज्ञ; ढकना; प्रशंसा, स्तुति; खंडन; पसंद; -भंग,-भेद-पु० सैनिकोंका यथास्थान न रहना, अविद्यमानता।
सेनाका छिन्न-भिन्न होना। -रचना-स्त्री० सैनिकोंको व्यासंग-पु० [सं०] अत्यधिक आसक्ति; प्रबल इच्छा; यथास्थान रखना। भक्ति; अध्यवसायपूर्ण अध्ययन; मनोयोगः पार्थक्य, | व्यूहन-पु०[सं०] व्यूहकी रचना,सैनिकोंको विशेष स्थितिमें बिलगाव, घबड़ाहट; योग, जोड़ ।
रखना; शरीरके अंगोंकी बनावट; स्थानपरिवर्तन । व्यास-पु० [सं०] पार्थक्य अंगोंमें विभाग करना; समस्त व्यूहित-वि० [सं०] व्यूहबद्ध । पदके अंगोंको अलग-अलग करना; मिश्र पदार्थ आदिका व्योम(न्)-पु०[सं०] आकाश अवकाश; शरीरस्थ वायु । विश्लेषण चौड़ाई केंद्रसे होती हुई दोनों ओर परिधिपर | -केश,-केशी(शिन)-पु. शिव । -गंगा-स्त्री० समाप्त होनेवाली रेखा अथवा दूरी (डाइमीटर); आकाशगंगा । -ग,-गामी(मिन्)-वि० गगनचारी । विस्तार; विस्तृत विवरण; एक उच्चारण-दोष; संकलन पु०देवता आदि ।-गमनीविद्या-स्त्री०आकाशमें उड़नेकी करना; संकलनकर्ता एक मुनि, कृष्णद्वैपायन (ये सत्य- विद्या । -चर-वि० गगनचारी। पु० तारा इत्यादि । वतीके गर्भसे पराशरसे उत्पन्न हुए थे। पांडु, धृतराष्ट्र -चारी(रिन्)-वि० दे० 'व्योम-ग' । पु० पक्षी और विदुर नियोग द्वारा इन्हींसे उत्पन्न हुए. थे। इन्होंने देवता; संत; ब्राह्मण; आकाशीय पिंड। -पुष्प-पु. वेदोंका वर्तमान रूपमें संकलन किया और महाभारत, असंभव वस्तु ।-यान-पु० वायुयान, विमान ।-रत्नवेदांतसूत्र तथा १८ पुराणोंकी रचना की); रामायण, पु० सूर्य । -वर्म(न)-पु० आकाश-मार्ग -सरितामहाभारत आदिको कथाएँ लोगोंको सुनानेवाला ब्राह्मण, स्त्री० [हिं०] आकाशगंगा। -सरित्-स्त्री० आकाशकथावाचक । -कूट-पु० महाभारतमें आये हुए कूट- गंगा। -स्थली-स्त्री० पृथ्वी, भूमि । श्लोक वे कूट-श्लोक जो रामने माल्यवान् पर्वतपर रहते ब्रज-पु० [सं०] मार्ग, सड़क; गमन, भ्रमण; समूह, झुंड; समय मनबहलावके लिए रचे थे।-देव-पु० बादरायण, गोस्थान, गोष्ठ; मथुर।के पासका एक स्थान; गोपोंकी कृष्णद्वैपायन । -पूजा-स्त्री० गुरु और ध्यासकी पूजा बस्ती। -किशोर,-नाथ-पु० कृष्ण । -भाषा-स्त्री. जो आषाढ़ी पूर्णिमाको होती है। -माता (त),-सू- मथुरा आदिकी तरफ बोली जानेवाली एक बोली जो कई स्त्री० सत्यवती।
सौ वर्षों तक हिंदी काव्यकी मुख्य भाषा रही है। -भूव्यासक्त-वि० [सं०] अत्यधिक आसक्त संबद्ध संलग्न । वि० व्रजमें उत्पन्न । स्त्री व्रजमूमि । -मंडल-पु. व्रजध्यासार्द्ध-पु० [सं०] केंद्रसे परिधितककी दूरी।
का क्षेत्र । -मोहन,-राज,-वल्लभ-पु० कृष्ण । व्यासासन-पु० [सं०] कथावाचकका आसन ।
-युवती,-रामा -वधू-वनिता,-सुंदरी, -स्त्रीग्यासिद्ध-वि० [सं०] निषिद्ध वर्जित (माल)।
स्त्री० गोपिका। व्यासेध-पु० [सं०] निषेध; वर्जन रोक, प्रतिबंध । व्रजक-पु० [सं०] भ्रमण करनेवाला संन्यासी । व्याहत-वि० [सं०] चोट पहुँचाया हुआ; निवारिता | वजन-पु० [सं०] गमन, भ्रमण; देशत्याग । निषिद्ध व्यर्थ; परस्पर विरोधी ।
वजांगना-स्त्री० [सं०] ब्रजकी रहनेवाली स्त्री; गोपी । व्याहृति-स्त्री० [सं०] उक्ति कथन; भूः, भुवः आदि ब्रजेंद्र, ब्रजेश, ब्रजेश्वर-पु० [सं०] कृष्ण । सप्तलोकात्मक मंत्र (किसी-किसीके मतसे इसके आरंभिक व्रज्या-स्त्री० [सं०] भ्रमण गति; संन्यासीके रूपमें भ्रमण तीन मंत्र) जिनका जप संध्या करते समय किया जाता है। करना; कूच, आक्रमण; श्रेणी, वर्ग; वगीकरण; समूह व्युत्क्रम-पु० [सं०] सन्मार्गका त्याग; अतिक्रमणः | रंगभूमि।
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व्रण-शंक व्रण-पु० [सं०] फोड़ा, घाव, जख्म । -कारक गैस- समापन-पु० व्रतकी पूर्ति । -स्नान-पु. व्रतके बादका स्त्री० [हिं०] (ब्लिस्टर गैस) एक तरहकी विषाक्त गैस, स्नान । -हानि-स्त्री० व्रतका परित्याग । जिसका संस्पर्श होनेसे शरीरपर चकत्ते-से निकल आते हैं। व्रतति, व्रतती-स्त्री० [सं०] लिपटनेवाली लता फैलाव, -ग्रंथि-स्त्री० फोड़ेकी गाँठ। -पहा-पट्टक-पु०,- | विस्तार । पट्टिका-स्त्री० फोड़ेपर बाँधी जानेवाली पट्टी।-शोधन- व्रती(तिन्)-वि० [सं०] व्रतका अनुष्ठान करनेवाला; पु० घावकी सफाई। -संरोहण-पु० घावका भरना। | धर्माचारी । पु० ब्रह्मचारी संन्यासी; यजमान । व्रणित-वि० [सं०] जिसे घाव लगा हो, आहत (अलस-नाचट, वाचड-स्त्री० एक अपभ्रंश भाषा जो पहले सिंधमें रेटेड)जो व्रणमें परिणत हो गया हो; जिसमें व्रण हो बोली जाती थी; पैशाचिक भाषाका एक भेद । गया हो।
बात-पु० [सं०] समूह, दल, झुंड; विवाहोत्सव में सम्मिव्रणी(णिन् )-वि० [सं०] जिसे व्रण हुआ हो; आहत । लित होनेवाले लोग; मनुष्य; शारीरिक श्रम; दैनिक श्रम, व्रत-पु० [सं०] धार्मिक कृत्य, धार्मिक अनुष्ठान, नियम, | मजदूरी। -पति-पु० संघका अध्यक्ष । संयम आदि; पुण्यके विचारसे उपवास करना; प्रतिज्ञा। वाय-पु० [सं०] संस्कारहीन, जातिच्युत द्विज । -ग्रहण-पु० कोई धार्मिक कार्य करनेका संकल्प करना; ब्रीड-पु० [सं०] लज्जा। संन्यास लेना । -चर्या-स्त्री० धार्मिक अनुष्ठान, व्रत वीडन-पु० [सं०] अपकर्ष शर्म, लज्जा; नम्रता । रखना। -पारण-पु०,-पारणा-स्त्री० व्रत, उपवासकी | ब्रीडा-स्त्री० [सं०] लज्जा संकोच नम्रता । समाप्ति । -भंग-पु. व्रत, प्रतिशाका खंडित हो जाना। ब्रीडित-वि० [सं०] लज्जित: विनीत । -लोप,-लोपन-पु० व्रत-भंग । -विसर्जन-पु० व्रत ब्रीहि-पु० [सं०] चावल; चावलका दाना बरसातमें पकनेसमाप्त करना । -संरक्षण-पु. व्रतका पालन । - वाला धान ।
श-देवनागरी वर्णमालाका तीसवाँ व्यंजन, ऊष्म वर्ण। । फॅकना-युद्धकी घोषणा करना; देश, व्यक्ति, जातिमें शंकना*-अ० क्रि० संदेह करना; डरना ।
जागरण, उत्साह आदिकी भावना भरना । शंकनीय-वि० [सं०] जिसके संबंधमें शंका करनेकी । शंखासुर-पु० [सं०] ब्रह्माके यहाँसे वेद चुराकर समुद्र में गुंजाइश हो, शंकायोग्य ।।
छिपानेवाला एक राक्षस (इसीको मारनेके लिए विष्णुने शंकर-पु० [सं०] शिव शंकराचार्य; एक छंद; एक राग; मत्स्यावतार लिया था); मुर राक्षसका पिता । भीमसेनी कपूर * दे० 'संकर'। वि० कल्याणकारी । शंखिनी-स्त्री० [सं०] कामशास्त्रके अनुसार स्त्रियोंके चार शंकरा-पु० एक राग । स्त्री पार्वती मंजिष्ठा ।
भेदों में से एक; बौद्धों द्वारा मानी जानेवाली एक शक्ति शंकराचार्य-पु० [सं०] अद्वैतवादके प्रवर्तक प्रसिद्ध दार्श- (देवी); एक प्रकारकी अप्सरा एक वनौषधि । निक ( ये ईसाकी आठवीं शतीके अंत तथा नवीं शतीके | शंगरफ-पु० [फा०] ईगुर, शिंगरफ। आरंभमें विद्यमान थे)।
शंजरफ-पु० [फा०] इंगुर ।। शंकरी-स्त्री० [सं०] पार्वती; मजीठ; शमी वृक्ष ।
शंठ-पु० [सं०] मूर्ख व्यक्ति हिजड़ा। शंका-स्त्री० [सं०] संशया भय; एक संचारी भाव । -शंड-पु० [सं०] साँड़ा नपुंसक; अंतःपुरका परिचारक । जनक-वि० शंका उत्पन्न करनेवाला । -निवारण-पु० शंपा-स्त्री० [सं०] बिजली, विद्युत् । संशयका दूर होना या दूर किया जाना । -निवृत्ति- शब-पु० [सं०] इंद्रका वज्र; बिजली । स्त्री० दे० 'शंका-निवारण' । -शील-वि० शंका करना शंबर-पु० [सं०] जल; बादल धन; युद्ध; एक राक्षस । जिसका स्वभाव हो, जो प्रायः शंका किया करता हो। -सूदन-पु०कामदेव (प्रद्युम्न जिन्होंने शंबरको मारा था)। -समाधान-पु० शंकाका निराकरण ।
शंबरारि-पु० [सं०] कामदेव । शंकित-वि० [सं०] शंकायुक्त भीत ।
शंबल-पु०[सं०] तट; यात्राके लिए भोज्य पदार्थ, पाथेय । शंकु-पु० [सं०] भाला; कील; खूटी; बाणकी नोक; हूँठ । शंबु, शंबुक, शंबुक्क-पु० [सं०] घोंघा । शंकुला-स्त्री० [सं०] सुपारी काटनेका औजार, सरौता। शंबूक-पु० [सं०] घोंघा; शंख, हाथीकी सूंड़की नोक; शंख-पु० [सं०] समुद्र में पैदा होनेवाले एक जंतुका खोल रामराज्यमें बसा एक शूद्र तपस्वी। या घर जो पत्थरसा कड़ा और सफेद होता है; सौ पद्मकी शंभु-पु०[सं०] शिव; ग्यारह रुद्रोंमें प्रधान रुद्र ।-लोकसंख्या; शंखासुर ( जो विष्णु द्वारा मारा गया ); ललाट | पु० कैलास, शिवलोक । हाथीके दोनों दाँतोंके बीचका भाग। -क्षीर-पु० असंभव शंस, शंसा-स्त्री० [सं०] प्रशंसा; इच्छा; मंगल-कामना। बात । -चरी,-चर्ची-स्त्री० (ललाटका) चंदनका शऊर-पु० दे० 'शुऊर'। -दार-वि० कामका दंग टीका । -धर-पु० विष्णु; कृष्ण । -पाणि,-भृत्-पु० | जाननेवाला, सलीकादार । विष्णु । -विष-पु० संखिया । मु०-बजना-सफलता | शक-पु० [अ०] संदेह, संशय, शंका; भ्रांति; [सं०] मिलना । -बजाना सफलता मिलनेपर आनंद करना प्राचीन कालमें शकद्वीप(मध्य एशिया)में रहनेवाली एक (व्यंग्य) असफल होनेपर पछताना, बकबक करना आदि।। समृद्ध जाति । -संवत्-पु० ईसवी सन्के ७८ वर्ष पीछे
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शकट-शत
७६४ महाराज शालिवाहन द्वारा प्रवर्तित एक संवत् । शक्यार्थ-पु० [सं०] शब्दकी अभिधा शक्तिसे शेय अर्थ । शकट-पु० [सं०] गाड़ी जिसे पशु अथवा मनुष्य खींचे, शक्र-पु० [सं०] इंद्र; शिव; चौदहकी संख्या (चौदह इंद्र छकड़ा, सग्गड़, बैलगाड़ी; एक राक्षस । -व्यूह-पु० होनेके कारण)। -गोप-पु० इंद्रगोप, बीरबहूटी । शकटके आकार में रचित व्यूह, सैन्यरचना ।-हा(हन्)- -चाप-पु० इंद्रधनुष । -ज,-जात-पु० कोआ। - पु० कृष्ण ।
जित्-पु० मेघनाद ।-नंदन-पु० अर्जुन । -वाहनशकर-स्त्री० [फा०] चीनी, शर्करा, बूरा ।-कंद-पु०मोटी पु० मेष । -सुत-पु० जयंत; बालि; अजुन । मूलीकी शकलका एक कंद जो काफी मीठा होता है और | शक्राणी-स्त्री० [सं०] शची, इंद्राणी । जिसे उबाल या भूनकर खाते हैं। -ज़बान-वि० | शक्ल-स्त्री० [अ०] रूप, आकृति चेहरा नकशा, बनामधुरभाषी। -पारा-पु. एक मिठाई (एक तरहका वट; ढंग, अंदाज; उपाय, ढब (निकलना, निकालना); खुरमा)। मु०-से मुह भरना-खुशखबरी सुनानेवाले- रेखागणितकी कोई आकृति । मु०(अपनी)-तो देखो को मिठाई खिलाना।
(देखिये)-अपनी योग्यता, अपनी सामर्थ्य तो देखो, शकल-पु० [सं०] चमड़ा; छिलका, छाल; खंड, टुकड़ा। अनधिकार चेष्टापर व्यंग्य । -दिखाना-मिलना, सामने शकल-स्त्री० दे० 'शक्ल'।-सूरत-स्त्री० मुखाकृति, रूप। आना। -देखते रह जाना,-देखा करना-चकित, शकांतक-पु० [सं०] शक लोगोंको देशके बाहर निकाल मुग्ध हो जाना। -न दिखाना-न मिलना, मुँह देनेवाला, विक्रमादित्य ।
छिपाना। -पकड़ना-रूप, आकार ग्रहण करना । शकाब्द-पु० [सं०] दे० शक-संवत्' ।
-पहचानना-सूरतसे पहचानना चेहरा या सूरत देखशकारि-पु० [सं०] दे० 'शकांतक' ।
कर शीलस्वभाव जान लेना (मैं चोरको शकृसे पहचानता शकुंत-पु० [सं०] चिड़िया, पक्षी, नीलकंठ ।
हूँ)। -बनाना-शकु बिगाड़ना, असुंदर बन जाना। शकुंतला-स्त्री० [सं०] मेनका और विश्वामित्रके सहवाससे | -बिगाड़ना-चेहरेको असुंदर कर लेना या कर देना; उत्पन्न तथा कण्व ऋषि द्वारा पालित-पोषित कन्या, दुष्यंत- पीटकर मुँहको सुजा देना। की पली तथा उनके पुत्र भरतकी माता; कालिदासका | शरस-पु० [अ०] मानवदेह व्यक्ति, आदमी। एक प्रसिद्ध नाटक।
शरूसी-वि० [अ०] एक आदमीका, वैयक्तिक ।-हुकूमतशकुन-पु० [सं०] विशिष्ट पशु, पक्षी, व्यक्ति, वस्तु, स्त्री० एकतंत्र राज्य । व्यापारके देखने-सुनने, होने आदिसे मिलनेवाली शुभ, शरसीयत-स्त्री० [अ०] वैयक्तिक विशेषताएँ; व्यक्तित्व । अशुभकी पूर्वसूचना, सगुन शुभ घड़ी, शुभ अवसरपर शग़ल-पु० [अ०] काम धंधा; मनबहलाव । होनेवाले, मंगल कार्यमें गाये जानेवाले गीत; पक्षी। शगुन-पु० दे० 'शकुन'; विवाह पक्का होनेकी रस्म -शास्त्र-पु० वह शास्त्र जिसमें शकुनके शुभाशुभ होने तिलक। तथा उसके फलोंका विचार किया गया हो।
शगूफा-पु० दे० 'शिगूफा'। शकुनि-पु० [सं०] पक्षी; गिद्ध चिल्ल; दुर्योधनका मामा । शचि, शची-स्त्री० [सं०] इंद्राणी; बल, क्रियाशक्ति वाणी, शक्कर-स्त्री० दे० 'शकर' (चीनी)।
वाक्य शक्ति पवित्र कर्म प्रज्ञा सतावर । -पति-पु० इंद्र। शक्की-वि० शक करनेवाला, शंकाशील ।
शजरा-पु० [अ०] वंशवृक्ष, नसबनामा । शक्त-वि० [सं०] शक्तिमान् समर्थ पटु ।
शटा-स्त्री० [सं०] जटा; सिंहकेसर, शेरका अयाल । शक्ति-स्त्री० [सं०] बल, सामर्थ्य क्षमता, योग्यता; वश; शठ-वि० [सं०] धूर्त; लंपट मूढ आलसी; मध्यस्थ; जड़। प्रभाव एक तरहका बाण; साँग, तलवार, तंत्रमतवणित पु०छलिया नकली प्रेम प्रकट करनेवाला नायक धतूरेका किसी पीठकी सृष्टि, पालन, प्रलय आदि सामर्थ्य से युक्त पेड़, तगर, कुंकुम, लोहा । अधिष्ठात्रि देवी दुर्गा, लक्ष्मी, गौरी; ईश्वर-शक्ति (माया, शठता-स्त्री०, शठत्व-पु० [सं०] शठका भाव, कर्म प्रकृति); देव-शक्ति (वैष्णवी, रौद्री इ०); राज-शक्ति (प्रभु, अथवा धर्म । मंत्र, उत्साह); शब्द-शक्ति (अभिधा, लक्षणा, व्यंजना)। शण-पु० [सं०] सनका क्षुप । -तुलाधर-पु० स्वामी कात्तिकेयभाला-बरदार ।-पर-शत-पु० [सं०] सौकी संख्या। वि० सौ; असंख्य । स्तात्-अ० (अलट्रावायर्स) किसाकी शक्ति या अधिकारके -कोटि-पु० इंद्रका वज्र । स्त्री० सौ करोड़। -क्रतुबाहर । -पूजक-पु० शक्तिका उपासक, शाक्त, तांत्रिक । वि० जिसने सौ यज्ञ किये हों। पु० इंद्र। -खंड-पु० -पूजा-स्त्री० शक्तिकी उपासना। -भृत्-पु० स्वामी सोना, सुवर्ण । -गु-वि० सौ गायोंका मालिक ।-ग्रंथिकात्तिकेय ।-संतुलन-पु० (बैलेंस ऑफ पावर ) परस्पर स्त्री०दूब ।-नी-स्त्री० पत्थर में लोहेकी कीलोंको गाड़कर विरोध करनेवाले देशोंका ऐसा विभाजन या गुटबंदी बनाया गया चार ताल लंबा प्राचीन शस्त्र एक बारमें जिससे दोनों ओरकी शक्ति संतुलित रहे, बलसाम्य । सौ आदमियोंको मारनेवाला शस्त्र (या तोप ?) । -संपन-पु० शक्तिशाली, बलवान् ।
-दल-पु० कमल । -दु-स्त्री० पंजाबकी पाँच नदियोंशक्तिमत्ता-स्त्री०, शक्तिमत्व-पु० [सं०] शक्ति-युक्त मेंसे एक, सतलज नदी। -पत्र-पु. कमल; मयूर । होनेका भाव ।
-पद-पु. कनखजूरा, गोजर । -पदी-स्त्री० दे० शक्तु-पु० [सं०] सत्त ।
'शतपद'। -पाद-पु० दे० 'शतपद'। -पुत्री-स्त्री. शक्य-वि० [सं०] होने योग्य, साध्य, संभव । | सतपुतिया । -मख-पु० इंद्र उल्लू । -मन्यु-बि०
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७६५
शतक-शब्द महाक्रोधी । पु० इंद्र, उल्लू । -वार्षिक-वि० सौ वर्षों- -ग्रहण-पु० कोई पदादि ग्रहण करते समय निष्ठा एवं पर होनेवाला। -वार्षिकी-वि० स्त्री० सौ वर्षों में होने गुप्तता आदिकी शपथ लेना। -पत्र-पु० ( एफीडेविट ) वाली, सौ वर्ष-व्यापिनी। स्त्री० सौ वर्षपर होनेवाला किसी न्यायालय में शपथपूर्वक दिया गया लिखित वक्तव्य उत्सव । -वीर-पु. विष्णु । -शीर्ष-पु० विष्णु।। जो प्रमाणके रूपमें प्रयुक्त किया जा सके, हलफनामा । -हदा-स्त्री. विजली; वज्र ।
शपन-पु० [सं०] शपथ; दुर्वचन, गाली। शतक-वि० [सं०] सौकी संख्यासे संबद्ध । पु० प्रायः एक शकत-स्त्री० [अ०] अनुग्रह; दया प्रेम । ही प्रकार अथवा एक ही व्यक्तिकी सौ वस्तुओं, रचनाओं | शफर-पु०, शफरी-स्त्री० [सं०] पोठी मछली । आदिका संग्रह (जैसे-शृंगारशतक, अमरुशतक आदि); शफा-स्त्री० [अ०] नीरोगता, स्वास्थ्य । -खाना-पु० शती, शताब्दी; क्रिकेटके खेलमें किसी एक बल्लेबाज द्वारा अस्पताल, चिकित्सालय। किये गये सौ धावनोंका समूह (सेंचुरी), शतक । शब-स्त्री० [फा०] रात ।-नम-स्त्री० ओस ।-(बे)वस्लशतधा-अ० [सं०] सौ प्रकारसे।
स्त्री० मिलनरात्रि; वह रात जिसमें प्रेमीका प्रेमिकासे शतरंज-पु०, स्त्री० [अ०] एक प्रसिद्ध खेल जिसके मुहरे मिलन हो। -(बो)रोज-अ० रात-दिन, हर वक्त। . बादशाह, वजीर, हाथी, घोड़ा, प्यादे आदि होते हैं शबनम-स्त्री० [फा०] दे० 'शब'में; सफेद रंगका एक निहा (संस्कृत चतुरंग या फारसी शतरंगका विकृत रूप)। यत बारीक कपड़ा। -का नक्शा-शतरंजके कुछ मोहरोंकी ऐसी चाल शबनमी-स्त्री० [फा०] वह कपड़ा जो ओससे बचनेके लिए जिससे विपक्षीको मात दी जा सके । -बाज़-पु० शतरंज छपरखटपर तान देते हैं। मसहरी। खेलनेवाला । -बाजी-स्त्री० शतरंज खेलना।
शबर-पु० [सं०] दक्षिण भारतकी एक पहाड़ी और असभ्य शतरंजी-स्त्री० [अ०] रंग-बिरंगी या शतरंजके खानोंकी- जाति जंगली मनुष्य शिव । वि० दे० 'शबल'। सी बुनावटवाली मोटी चादर जो दरी आदिके ऊपर शबरी-स्त्री० [सं०] शबर जातिकी नारी रामायणमें वर्णित बिछायी जाती है। रंग-बिरंगी दरी; शतरंज खेलनेकी | शबर जातिकी एक रमभक्त नारी। बिसात । पु० शतरंजबाज ।
शबल-वि० [सं०] विविध रंगोंवाला; कई रंगोंसे अंकित शतशः(शस)-अ० [सं०] सैकड़ों प्रकारसे ।
विभिन्न भागोंमें विभक्त; अनुकृत। शतांश-पु० [सं०] सौवाँ हिस्सा। -तापमापक-पु० शबला-स्त्री० [सं०] चितकबरी गाय, कामधेनु । (सेंटीग्रेड थर्मामीटर) सौ अंशोंमें विभक्त तापमापक यंत्र । शबाब-पु० [अ०] जवानी, बीससे चालीसतककी उम्र । शतानंद-पु० [सं०] राजा जनकके राजपुरोहित । शबीह-स्त्री० [अ०] रूपसाम्य; चित्र, तसवीर । शतानीक-पु० [सं०] वृद्ध श्वशुर; एक मुनि ।
शब्द-पु० [सं०] आकाशमें किसी भी प्रकारसे उत्पन्न क्षोभ शताब्द-पु०, शताब्दी-स्त्री० [सं०] शती, सी सालोंका जो वायुतरंग द्वारा कानोंतक जाकर सुनाई पड़े अथवा समय।
पड़ सके, ध्वनि, आवाज; आप्त-वचन, आप्त पुरुष द्वारा शतायु (स.)-वि० [सं०] सौ वर्षोंकी आयुवाला। व्यक्त ज्ञान, शिक्षा आदिकी बातें। -कोश,-कोष-पु० शतावधान-पु० [सं०] मनोयोगपूर्वक बिना त्रुटिके सौ वह ग्रंथ जिसमें शब्दोंके सम्यक वर्ण-विन्यास, अर्थ, प्रयोग,
अथवा बहुतसे कामोंको एक साथ करनेवाला व्यक्ति । पर्याय आदि हों, अभिधान । -चातुर्य-पु० शब्द-प्रयोगशती-स्त्री० [सं०] सौका संग्रह सदी, शताब्दी; क्रिकेटमें की कला, चातुरी, बोलनेके ढंगकी निपुणता। -चित्रसौ धावनोंकी संख्या (सेंचुरी)।
पु० एक शब्दालंकार; साहित्यरचनाका एक नवीन प्रकार शत्रुजय-वि० [सं०] शत्रुको जीतनेवाला।
जिसमें शब्दों द्वारा किसी वस्तु, व्यक्ति आदिका रूप शत्रु-पु० [सं०] वैरी; दुश्मन । -न-वि० शत्रु नाशक । खड़ा किया जाता है ( स्केच)। -चोर-पु० दूसरेकी पु० दशरथकी पत्नी सुमित्राके पुत्र । -जित्-वि० शत्रुको रचनाके शब्द उड़ाकर अपनी कविता, लेखादिमें प्रयोग जीतनेवाला ।-हंता (त)-वि० दे० 'शत्रुहा', शत्रुध्न । | करनेवाला ।-पति-पु. कहने भरको स्वामी या राजा। -हा (हन)-वि० शत्रुको मारनेवाला।
-प्रमाण-पु. मौखिक प्रमाण; आप्तप्रमाण । -भेदशत्रुता-स्त्री० [सं०] दुश्मनी, वैर ।
पु० (पाट्स ऑफ स्पीच) वाक्यमें प्रयुक्त शब्दोंका, शत्वरी-स्त्री० [सं०] रात्रि।
व्याकरणके अनुसार, उनके कार्यों, प्रयोग आदिकी दृष्टिसे, शद्वि-पु० [सं०] हाथी, बादल, अर्जुन । स्त्री० बिजली। । किया गया भेद । -भेदी(दिन)-पु० दे० 'शब्दवेधी'। शनाख्त-स्त्री० [फा०] पहचान; परिचय । मु०-करना- -विद्या-स्त्री० शब्दशास्त्र, व्याकरण । -वेधी(धिन) पहचानना।
-पु० वह व्यक्ति जो केवल शब्द सुनकर बिना देखे ही शनि-पु०[सं०] नवग्रहोंमेंसे सातवाँ ग्रह सप्ताहका अंतिम | लक्ष्यपर बाण मारे एक प्रकारका बाण, अर्जुन, दशरथ । दिन, शनिवार । -प्रिय-पु. नीलम । -वार-पु० -शक्ति-स्त्री० शब्दकी विशेष अर्थबोधक शक्ति ( यह शुक्रवारके बादका दिन।
तीन प्रकारकी होती है-अभिधा, लक्षणा, व्यंजना)। शनैः-अ० [सं०] धीरे, चुपचाप; क्रमशः, उत्तरोत्तर । -शास्त्र-पु० व्याकरण । -श्लेष-पु० किसी शब्दका दो -शनैः-अ० धीरे-धीरे, क्रमशः।
या दोसे अधिक अर्थों में प्रयुक्त होना । -संग्रह-पु० शनैश्चर-पु० [सं०] दे० 'शनि' । वि० धीरे चलनेवाला। शब्दोंका चयन; शब्दकोष । -साधन-पु० शब्दोंकी शपथ-स्त्री० [सं०] सौगंद, कसम प्रतिज्ञा (करना, लेना)। व्युत्पत्ति, रूपांतर आदि दिखानेवाला व्याकरणका भाग ।
तमया
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शब्दशः-शरण्य
-सौंदर्य-पु० दे० 'शब्दसौष्ठव' । - सौकर्य - पु० शब्दोंके उच्चारणकी सरलता, सुगमता, मुखसुख । -सौष्ठव - पु० रचना - शैली के शब्दों का सौंदर्य, किसी शब्दयोजनाकी सुंदरता ।
शब्दशः ( शस् ) - अ० [सं०] किसीके लिखे या कहे गये प्रत्येक शब्दके अनुसार, उसके शब्दोंका ठीक-ठीक अनुसरण करते हुए ।
शब्दाडंबर- पु० [सं०] अनावश्यक रूपसे और बिना प्रसंग विद्वत्ताके ज्ञापनार्थ बड़े-बड़े शब्दों का प्रयोग जिसमें भावाभिव्यक्तिकी कमी हो, शब्दोंका घटाटोप, शब्दजाल । शब्दातीत - वि० [सं०] जिसका शब्दों द्वारा वर्णन न हो सके, वर्णनातीत । पु० ईश्वर ।
शब्दाध्याहार - पु० [सं०] वाक्यगत संपूर्ण अर्थकी प्राप्तिके लिए उसमें आवश्यक शब्दोंका समावेश करना । शब्दायमान- वि० [सं०] शब्द करता हुआ, शब्दकारी । शब्दार्थ पु० [सं०] शब्दका अर्थ या अभिप्राय । शब्दालंकार - पु० [सं०] वे अलंकार जिनमें रचनाका चमत्कार या माधुर्य विशिष्ट शब्दों अथवा वर्णोंके प्रयोगपर निर्भर करता है, उनके अर्थपर नहीं । शब्दावली - स्त्री० [सं०] किसी कथन या रचना में प्रयुक्त शब्द-समूह |
शम - पु० [सं०] शांति; मानसिक स्थिरता; मुक्ति; अंत:करण और मनका संयम । - लोक - पु० शांतिलोक, स्वर्ग । शमई - वि० शमाका; शमाके रंगका । -रंग-पु० स्याहीमायल हरा रंग |
शमन - पु० [सं०] शांति; बुझाना; दूर करना; दबाना;
यम । वि० निवारक, दूर करनेवाला । शमशीर, शमशेर - स्त्री० [फा०] तलवार । -का खेतरणक्षेत्र । - ज़नी - स्त्री० तलवारकी लड़ाई । दम- वि० तलवारकी बाढ़ रखने, तलवारकी काट करनेवाला । - बहादुर - वि० खङ्गवीर, तलवारका धनी । शमा स्त्री० [अ० 'शमअ' ] मोम मोमबत्ती; दीया । - दान-पु० वह चीज जिसमें मोमबत्ती लगाकर जलाते हैं; दीवट । व परवाना - पु० दीपक और पतंग (ला० ) प्रेमी और प्रेमपात्र । शमित- वि० [सं०] जिसका शमन किया गया हो; शांत । शमी - स्त्री० [सं०] एक वृक्ष ( कहा जाता है कि इसकी लकड़ी के भीतर विशेष आग होती है जो रगड़नेपर निक लती है); शिंबा ।
शमी (मिनू ) - वि० [सं०] शांत; आत्मसंयमी । शमीकरण - पु० [सं० ] (पैसिफिकेशन ) दो पक्षोंके बीच चलनेवाले झगड़े या विवादको दूर करना; शान्ति स्थापित करना; क्रुद्ध या उत्तेजित व्यक्तियों (सेना, भीड़ आदि )को शांत करना ।
शय - पु० [सं०] शय्या; निद्रा; साँप; दावें; हाथ; शाप । शयन - पु० [सं०] निद्रा; शय्या; नारी सहवास ।-आरतीस्त्री० [हिं० ] रात्रि में देवताओंको सुलाते समय की जानेवाली आरती । -कक्ष, गृह-पु० सोनेका घर, शयनागार । - मंदिर - पु० दे० 'शयनकक्ष' । - शालास्त्री० ( डॉर मिटरी ) वह बड़ा शयनकक्ष जिसमें कई
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७६६
व्यक्तियों के सोनेकी व्यवस्था हो । शयनागार - पु० [सं०] दे० 'शयनकक्ष' । शयनीय - वि० [सं०] शयन करने योग्य | पु० शय्या | शयालु - वि० [सं०] निद्राशील; सोया हुआ । पु० अजगर; कुत्ता; गीदड़ ।
शयित-वि० [सं०] निद्रित, सोया हुआ; लेटा हुआ । शय्या - स्त्री० [सं०] सेज, पलंग, खाट; विस्तर । - गतवि० पलंगपर सोया हुआ; अस्वस्थता के कारण खाटपर पड़ा हुआ, बीमार । - दान-पु० मृतककर्मके अंतर्गत प्रेतशांति के लिए एकादशाह तथा द्वादशाहको महापात्र या पुरोहितको दिया जानेवाला पलंग, विछावन आदिका दान, सेजियादान । - पाल, - पालक - ५० राजाके शयन- गृहका प्रबंधक । व्रण- पु० ( बेडसोर ) रोगी के बहुत दिनों तक शय्या ग्रस्त रहनेके कारण उसकी रोढ आदिके छिल जानेसे होनेवाला घाव । शय्याध्यक्ष - पु० [सं०] दे० 'शय्यापाल' | शरंड - पु० [सं०] पक्षी; गिरगिट; छलिया; लंपट | शर-पु० [सं०] बाण; शरपत्र, सरपत; सरकंडा; खस; हिंसा; चिता; 'पाँच' की संख्या; दहीकी भलाई । -कांडपु० सरकंडा । - जाल- पु० बाणोंका समूह । -धिवि० तरकश । -पट्टा पु० एक शस्त्र । - चारण- पु० ढाल । - शय्या - स्त्री० वीरगतिप्राप्त योद्धाके लिए निर्मित बाणोंकी शय्या । - संधान- पु० बाण द्वारा लक्ष्य साधन, निशाना लगाना ।
शरअ - स्त्री० [अ०] सीधी राह; वह सीधी राह जो ईश्वरने बनायी और बंदोंके लिए बतायी हो; इसलामी धर्मशास्त्र, शरीअत । -अन्-अ० शरभके अनुसार । शरई - वि० [अ०] शरभके अनुकूल । - दादी- स्त्री० एक मुट्टी और दो अंगुल लंबी दाढ़ी। -पाजामा - पु० वद्द पाजामा जो टखनोंसे ऊँचा हो । - शादी - स्त्री० बिना धूमधाम, गाजे-बाजेका ब्याह | शरघा * - स्त्री० मधुमक्खी (कविप्रि०) । शरच्चंद्र- पु० [सं०] शरत् ऋतुका चंद्रमा । -चंद्रिकास्त्री० शरद ऋतुकी चाँदनी ।
शरण - स्त्री० [सं०] आश्रय; घर; रक्षाका स्थान; अधीन व्यक्ति; रक्षक । - दाता (तृ) - वि० आश्रयदाता, रक्षक । -स्थान- पु० (सेंक्टुअरी) वह स्थान जहाँ शरण लेनेसे कोई आदमी सजा पाने, पकड़े जाने आदि से अपने आपको बचा सकता I शरणागत- पु० [सं०] शरण में आया व्यक्ति । वि० शरणमें आया हुआ ।
शरणापत्र - वि० [सं०] दे० 'शरणागत' ।
शरणार्थी (थिन् ) - वि० [सं०] शरण चाहनेवाला, अपनी रक्षाका अभिलाषी । पु० ( रिफ्यूजी ) वह जो एक देशसे विस्थापित होकर दूसरे देश में आश्रय ग्रहण करे । बस्तीस्त्री० [हिं०] ( रिफ्यूजी टाउनशिप) शरणार्थी जहाँ बस गये या बसाये गये हों वह बस्ती ।
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शरणि- स्त्री० [सं०] मार्ग; पृथ्वी; पंक्ति, अवली; हनन । शरण्य - वि० [सं०] रक्षा के योग्य, शरण देने योग्य; शरण देनेवाला; शरणागतका रक्षक ।
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शरता-शत शरता*-स्त्री० बाण चलानेकी कला (कविप्रि०)। शरारत-स्त्री० [अ०] शरीर (दुष्ट) होनेका भाव, पाजीपन, शरत्, शरद-स्त्री० [सं०] एक ऋतुका नाम जो कारसे शैतानियत । कातिकतक रहती है। वत्सर, वर्ष । -काल-पु. शरत् | शराश्रय-पु० [सं०] तूणीर, तरकश । ऋतुकी अवधि, कार और कातिकका महीना।
शरासन-पु० [सं०] धनुषु । शरबत-पु० [अ०] पेय; पेयकी वह मात्रा जो एक वारमें | शरिष्ट*-वि० दे० 'श्रेष्ठ' । पी ली जाय; फल, फूल या औषधिका अर्क जो चीनी या | शरीअत-स्त्री० [अ०] खुदाके बनाये हुए कानून; मजहबी मिसरी में पका लिया जाय; शकर, खाँड़ आदिको पानीमें कानून; न्याय । घोलकर प्रस्तुत किया हुआ पेय, रस। -पिलाई-स्त्री० शरीक-वि० [अ०] शिरकत रखनेवाला, मिला हुआ, शरबत पिलानेकी रस्मका नेग। -ति)दीदार-पु० | शामिल; साझी; जोड़ीदार; साथ देनेवाला। -(के) शरबतरूप (शर्बत सरीखा मधुर, तृप्ति-शांतिकर) दर्शन । | | जलसा-वि० सभामें उपस्थित ( जन )। -जुर्म-वि० मु०-पिलाना-ब्याहके पहले या पीछे बरातियोंको शर- अपराधमें साथ देने, सहायता करनेवाला। बत पिलाना (एक रस्म)। -के प्यालेपर निकाह कर शरीफ-वि० [अ०] भला, नेक; कुलीन; प्रतिष्ठित; ऊँचे (पढ़ा)देना-बिना कुछ खर्च किये ब्याह कर देना। | - घरानेका पवित्र (अन्य शब्दसे युक्त होकर सम्मानका शरबती-वि० [अ०] शरबतके रंगका रसदार, सरस ।।
अर्थ प्रकट करता है-'कुरानशरीफ', 'मक्काशरीफ')। पु० पु० हलका पीला रंग जिसमें थोड़ी सुखी भी हो, मलमल- भलामानस, कुलीन, प्रतिष्ठित जन; मक्केके शासककी से मिलता-जुलता एक निहायत बारीक और बढ़िया पदवी। -जादा-पु० शरीफका बेटा, कुलीन जन । कपड़ा; एक तरहका कबूतर; चकोतरा नीबू । -नीबू- शरीफा-पु० एक फल या उसका वृक्ष, सीताफल । पु० मीठा नीबू, चकोतरा। -फ्रालसा-पु० फालसेका शरीर-वि० [अ०] दुष्ट, नटखट, पाजी। पु० [सं०] अस्थि, एक भेद जो कुछ बड़ा और खट-मीठा होता है।
मांस, मज्जा आदिसे निर्मित स्थलचर, जलचर, नभचर शरभ-पु० [सं०] हाथीका बच्चा; ऊँट; सिंहसे भी बलवान् । जीवोंके संपूर्ण अंगोंका समुच्चय। -ज-पु० कामदेव एक कल्पित पशु जिसे 'अष्टपाद' (आठ पैरोंवाला) कहते काम-वासना पुत्र; रोग। -त्याग-पु० मृत्यु ।-दंडहै; टिड्डी; एक वर्णवृत्त ।
पु. शारीरिक दंड; शरीरको कष्ट देना । -पतनशरम-स्त्री० दे० 'शर्म' (फा०)।
पु. शरीरका क्रमशः जीर्ण होना; मृत्यु । -पातशरमाऊ-वि० दे० 'शरमीला'।
पु० मृत्यु। -बंध-पु० देहयष्टि, शरीरका ढाँचा। शरमाना-स०क्रि०लज्जित करना । अ०कि०लजित होना । -भृत्-पु० वह जिसने शरीर धारण किया है, शरीरशरमाशरमी-अ० शर्मकी वजहसे ।
धारी; आत्मा। -यात्रा-स्त्री० जीवन-रक्षणके साधन शरमिंदा-वि० दे० 'शर्मिदा'।
जीवनवर्धनकी वस्तुएँ; जीवन। -रक्षक-पु० आक्रमण शरमौला-वि० लजाधुर, लज्जाशील ।
आदिसे राजा, अमीर-उमरा आदिके शरीरकी रक्षा शरह-स्त्री० [अ०] वर्णन; व्याख्या दर, भाव ।-बंदी- करनेवाला व्यक्ति, अंगरक्षक ।-विज्ञान-पु० दे० शरीरस्त्री० भावोंकी तालिका। -मुऐयन-वि० जिसकी शास्त्र' ।-वृत्ति-स्त्री० शरीर-रक्षाके लिए व्यापार, नौकरी मालगुजारी सुनिश्चित हो, अतः जिसमें वृद्धिकी संभावना इ०, जीविका। -शास्त्र-पु. शरीरके बाहरी-भीतरी न हो। -लगान-स्त्री० लगानकी दर। -सूद-स्त्री०
अवयवोंकी रचना, क्रिया आदिकी विवेचना करनेवाला ब्याजकी दर ।
शास्त्र, शरीर-विज्ञान । शराकत-स्त्री० [फा०] साझा, हिस्सेदारी।
शरीरांत-पु० [सं०] मृत्यु, देहावसान । शराटि, शराटिका, शराडि, शराति-स्त्री० [सं०] एक शरीरी(रिन् )-पु० [सं०] शरीरधारी; मनुष्य प्राणी । चिड़िया जो प्रायः जलके निकट रहती है, टिट्टिभ, कुररी। शरु-पु० [सं०] कण; हथियार; इंद्रका वज्र, क्रोध; हिंसा शराफ-पु० दे० 'सराफ' ।
हिंसक । वि० शीर्ण; सूक्ष्म पतला । शराफत-स्त्री० [अ०] भलमनसी; भद्रता; कुलीनता।
शर्करा-स्त्री० [सं०] शक्कर, रवादार चीनी; बालुकाकण । शराफा-पु० दे० 'सराफ ।
-धेनु-स्त्री० दानके लिए शकरकी बनी गाय ।-प्रमेहशराफी-स्त्री० दे० 'सराफी' ।
पु० मधुमेह रोग। शराब-स्त्री० [अ०] पेय; मद्य । -खाना-पु. शराबकी शर्त-स्त्री० [अ०] प्रतिज्ञा, किसी संधि-समझौतेकी अंगभूत दुकान, मदिरालय । -खोर-पु० दे० 'शराबरूवार'। प्रतिज्ञा; वह बात जिसपर किसी बातका होना, किया -खोरी-स्त्री०दे० 'शराबख्वारी' ।-रवार-पु० शराबी, जाना, कायम रहना अवलंबित हो; वस्तु या कार्यविशेषमद्यव्यसनी। -ख्वारी-स्त्री. शराब पीनेका व्यसन । के लिए अनिवार्य वस्तु; कैद, पाबंदी; होड़, बाजी। -(बे)वहर-स्त्री० बिहिश्तमें मिलनेवाली पवित्र शराब । -बंद-वि० शर्तसे बँधा हुआ, प्रतिज्ञापत्र लिखकर मु०-का दौर चलना-पानगोष्ठी में सम्मिलित लोगोंका। नियत अवधितक काम करनेको बँधा हुआ (मजदूर), प्यालेपर प्याला खाली करना, पीनेवालोंके प्यालोंका 'गिरमिटिया' । मु०-बद(बाँध)कर सोना-बहुत देरभरा और खाली किया जाना।
तक सोना, बड़ी लंबी नींद लेना । -बदना,-बाँधनाशराबी-पु. शराब पीनेवाला, मद्यव्यसनी ।
बाजी लगाना । (किसी बातकी)-होना-किसी बातशराबोर-वि० भींगा हुआ, बिलकुल गीला ।
के लिए अनिवार्य, अत्यावश्यक होना। -यह है-इस
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शर्तिया-शश शर्त पर।
सर्जन, चीर-फाड़ द्वारा चिकित्सा करनेवाला, शल्यशर्तिया, शर्तीया-वि० अचूक, पक्का (-इलाज)। अ० चिकित्सक। -क्रिया-स्त्री० शस्त्रचिकित्सा। -चिकिशर्त बदकर।
त्सक-पु. (सर्जन) फोड़ों, विकृत या रुग्ण अंगोंको शर्ती-वि०किसी शर्त,प्रतिज्ञापर आश्रित । अ०दे० शर्तिया। चीर-फाड़कर ठीक करनेवाला तथा टूटी या स्थानच्युत शर्बत-पु० दे० 'शरबत'।
हड्डी आदिको जोड़ने-बैठानेवालाचिकित्सक ।-चिकित्साशर्बती-वि० दे० 'शरबती' ।
स्त्री० चीर-फाड़ द्वारा शरीरको नीरोग करनेकी विधि । शर्म-स्त्री० [फा०] लज्जा, हया; इज्जत, लाज (रखना, -तंत्र-पु. शल्यशास्त्र संबंधी आयुर्वेदीय ग्रंथ, सुश्रुतमें रहना); खयाल, लिहाज । -गी-वि० शर्मिदा, लज्जा- वर्णित आठ तंत्रोंमेंसे एक तंत्र जिसमें चीर-फाड़के शस्त्रों युक्त । -नाक-वि० लजानेलायक, लज्जाजनक ।-सार- आदिका वर्णन है। -लोम (न)-पु० साहीका काँटा । वि० शर्मिदा, लज्जित । मु०-आना-लाज लगना । -विज्ञान-पु०,-विद्या-स्त्री० (सर्जरी) चीर-फाड़ द्वारा -करना-लज्जित होना; लिहाज करना। -की बात- फोड़ों या विकृत एवं रुग्ण अंगादि ठीक करनेकी विद्या लज्जाजनक कार्य । -खाना-लज्जा अनुभव करना। या शास्त्र । -शास्त्र-पु. वह शास्त्र जिसमें शल्यचिकि -से गटरी हो जाना-(दुलहिनका) लाजके मारे सुकड़. त्साका वर्णन हो। कर गठरीसा बन जाना, जमीनमें गड़ जाना।
शल्यारि-पु० [सं०] शल्यराजको मारनेवाले युधिष्ठिर । शर्म(न्)-पु० [सं०] सुख, आनंदगृह (वै०); आश्रय: शल्याहरण-पु० [सं०] शरीरमें गड़े काँटे, बाण आदिको
आशीर्वचन: रक्षा । -द-वि० आनंददायक । पु० विष्णु। निकालनेका कार्य। शर्मा(मन)-पु० [सं०] ब्राह्मणवर्ण-बोधक उपाधि । शल्योद्धरण-पु० [सं०] दे० 'शल्याहरण'। शर्माऊ, शर्माल-वि० लज्जाशील, शीला ।
शल्योद्योग-पु० (सजिकल इट्र मेंट्स इंडस्ट्री) शल्यचिकिशर्माना-स० कि०, अ० कि० दे० 'शरमाना'।
त्सामें प्रयुक्त होनेवाले औजारोंके निर्माणका उद्योग । शर्माशर्मी-अ० लज्जावश, संकोचवश ।
शल्ल-पु० [सं०] त्वचा; वस्कल, पेड़की छाल, मेढक । शर्मिंदगी-स्त्री० [फा०] शर्मिंदा होना।
शल्लक-पु० [सं०] सलईका पेड़ दे० 'शल्ल' । शर्मिदा-वि० [फा०] लज्जित, लजाया हुआ।
शल्ली-स्त्री० [सं०] दे० 'शल्ल'; साही नामक जंतु । शर्मीला-वि० लज्जाशील ।
शव-पु० [सं०] लाश, मृत शरीर ।-काम्य-पु० कुत्ता। शर्व-पु० [सं०] शिवः विष्णु ।
-दहन,-दाह-पु० मृत शरीर जलानेकी क्रिया । शर्वर-पु० [सं०] कंदर्प, कामदेव, अंधकार संध्याकाल । ~दाहस्थान-पु० श्मशान । -परीक्षा-स्त्री. मृत्युके शर्वरी-स्त्री० [सं०] रात्रि; हल्दी। -कर-पु० चंद्रमा । कारणका पता लगानेके लिए की गयीं शवकी जाँच । -नाथ,-पति-पु० चंद्रमा ।
-भस्म(न)-पु० जले मुद्देकी राख । -यान,-रथशर्वरीश-पु० [सं०] चंद्रमा ।
पु०श्मशानतक शव ले जानेके लिए बाँस, लकड़ी आदिकी शर्वाणी-स्त्री० [सं०] शिव-पत्नी, पार्वती।
बनी अरथी, टिकठी।-शयन-पु० श्मशान -समाधिशलराम-पु० [फा०] एक कंदशाक जिसकी जड़ तरकारी, स्त्री० शवको भूगर्भ अथवा जल में रखने, टालनेका
अचार आदिके रूप में और पत्तेसागकी तरह खाये जाते हैं। संस्कार । -साधन-पु० श्मशानमें शवपर बैठकर मंत्र शलजम-पु० दे० 'शलराम' ।
जगानेकी तंत्रशास्त्रोक्त क्रिया, साधना ।। शलजमी-वि० शलजमसे मिलता-जुलता। -आँखें- | शवर-पु० [सं०] दे० 'शबर' ।-लोध्र-पु० सफेद लोध्र । बड़ी-बड़ी आँखें।
शवरी-स्त्री० दे० 'शबरी'। शलभ-पु० [सं०] पतंग, फतिंगा; टिड्डी; छप्पय छंदका शवल-वि० [सं०] दे० 'शबल' । एक भेद; एक असुर (साहित्यमें शलभ (पतंग)को प्रेमीका शवलित-वि० [सं०] मिश्रित चिह्नित । प्रतीक माना गया है)।
शवली-स्त्री० [सं०] दे० 'शबला । (चितकबरी गाय)। शलाका-स्त्री० [सं०] किसी धातु, लकड़ी आदिकी बनी शवाच्छादन-पु० [सं०] कफन, मृतचेल । सलाई, सीख सुरमा लगानेकी सलाई फोड़े,धाव आदिकी शवान-पु० [सं०] गला-पचा अन्न अखाद्य अन्न; शवमांस। गहराई नापनेवाली डाक्टरको सलाई; छातेकी तीली शव्वाल-पु० [अ०] हिजरी सन्का दसवाँ महीना । पासा, बाण; चित्रकारकी कूँची, तूला; सलई (बैलट) शश-पु० [सं०] शशक, खरगोश, खरहा; चंद्र लांछन, वह छोटी, रंगीन गोली, पुरजा या टिकट जो चुनावके चौदका धब्बा; लोध्र वृक्षा बोल गंधद्रव्य; कामशास्त्रोक्त समय मतदाता द्वारा गुप्त रूपसे मत-दान-पेटीमें डाला। पुरुषके चार प्रकारों से एक प्रकार (शशपुरुष मृदुभाषी, जाता है। इस प्रकारका गुप्त मतदान ।
सुशील, कोमल शरीरवाला, मुकेश, सकलगुणनिधान शली-स्त्री० [सं०] साही नामक जंतु जिसके शरीर भरमें और सत्यभाषी होता है)।-घातक,-घाती(तिन्)काँटे होते हैं।
पु० बाज पक्षी । -धर-पु०चंद्रमा कपूर । -लक्षण,शलूका-पु० दे० 'सलूका' ।
लांछन-पु० चंद्रमा । -विषाण,-शृंग-पु० जैसे खरशल्य-पु०[सं०] कील, खूटी; काँटा; शलाका, बाणभाला | गोशके सींगोंका होना असंभव है वैसी ही कोई असंभव डाक्टरका चीरफाड़ करनेका औजार, विष; दुर्वचन; पाप; बात, आकाशकुसुम । अस्थि, साही जानवर ।-कर्ता(त),-कार-पु० जराह, शश-वि० [फा०] पाँच और एक, छ । पु०६ की संख्या।
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शशक-शह -पहल,-पहलू-वि० छ कोनोंवाला, षट्कोण ।-माही- प्रकारका केतु जिसके दिखाई देनेपर महामारी फैलती है। वि० हर छ महीने में होनेवाला (परीक्षा इ०), छमाही। शस्त्रागार-पु० [सं०] दे० 'शस्त्रगृह' । शशक-पु० [सं०] खरगोश । -विषाण-पु०असंभव बात || शस्त्राजीव-पु० [सं०] दे० 'शस्त्रजीवी' । शशांक-पु० [सं०] चंद्रमा । -ज-पु० बुध । -मुकुट, शस्त्री-स्त्री० [सं०] छोटा शस्त्र, छुरी ।
-शेखर-पु० शिव । -सुत-पु० बुध ग्रह ।। शस्त्री(स्त्रिन्)-वि० [सं०] शस्त्रधारी, शस्त्रसे सुसज्जित । शशा-पु० दे० 'शश'।
पु० सैनिक। शशि-पु० दे० 'शशी'।
शस्त्रोपजीवी(विन)-पु० [सं०] दे० 'शस्त्रजीवी' । शशी(शिन् )-पु० [सं०] चंद्रमा । -कर-पु० चंद्रमा. शस्य-वि० [सं०] प्रशंसनीय; श्रेष्ठ, बढ़िया। पु० नयी की किरण । -कला-स्त्री० चंद्रकला, चंद्रमाका अंश: - घास फसल; अन्न, धान्य; वृक्षादिसे निकला हुआ फल, एक वर्णवृत्त । -कांत-पु० चंद्रकांत मणि कुमुद ।। फूल आदि; योग्यता, गुण । -क्षेत्र-पु० अनाजका क्षेत्र । -खंड-पु० चंद्रमाकी कला शिव । -ग्रह-पु० चंद्र- -ध्वंसी(सिन)-पु० तून या तूर्णका पेड़ । वि० धान्यग्रहण । -ज-पु० बुध ग्रह । -तिथि-स्त्री० पूर्णिमा । का नाश करनेवाला । -भक्षक-वि० अनाज खाने-धर-पु० शिव । -पुत्र-पु० बुध ग्रह । -प्रभ- वाला ।-मंजरी-स्त्री० गेहूँ आदिकी नयी बाल, कणिश। वि० जो चंद्रमाके सदृश प्रभासे युक्त हो । पु० मोती; -शाली(लिन्),-संपन्न-वि० धान्यसे परिपूर्ण । कुमुद । -प्रभा-स्त्री० चाँदनी। -प्रिया-स्त्री० सत्ता- -संपद-स्त्री० धान्यकी बहुलता । ईसों नक्षत्र जिन्हें पुराणोंने चंद्रमाकी पत्नियाँ माना है। शस्यागार-पु० [सं०] अन्न रखनेका स्थान, खलिहान । -भाल,-भूषण,-भृत्-पु० शिव । -मंडल-पु० | शस्यारु-पु० [सं०] शमी वृक्षका एक भेद । चंद्रमंडल, चंद्रमाका घेरा। -मणि-पु. चंद्रकांत मणि ।। शहंशा, शहंशाह-पु० [फा०] राजाओंका राजा, सम्राट् । -मुख-वि० चंद्रमाके समान मुखवाला। [स्त्री० 'शशि-शहंशाही-स्त्री० शहंशाहका भाव या कार्य; शाही रंगमुखी'] । -मौलि-पु० शिव । -रस-पु. सुधा, ढंग; शहंशाहका पद । वि० शाही दंगका, राजसी। अमृत । -रेखा-स्त्री. चंद्रकला। -लेखा-चंद्ररेखा; शह-पु० [फा०] (शाहका लघु रूप) बादशाह; मदद एक वर्ण वृत्त; गुडुची। -वदना-स्त्री० एक वर्णवृत्त । | हिमायत; उकसाना, उभारना; शतरंज में बादशाहको वि० स्त्री० शशिमुखी। -शाला-स्त्री० शीशमहल । दी गयी किश्त पतंगको धीरे-धीरे डोर पिलानेकी क्रिया, -शेखर-पु० शिव । -सुत-पु० बुध । -हीरा-पु० ढील । -कार-पु० दे० 'शाहकार'। -चाल-स्त्री. [हिं०] चंद्रकांत मणि ।
शतरंजके बादशाहकी चाल जो कोई और मुहरा न रह शशीश-पु० [सं०] शिव।।
जानेपर चली जाती है। -जादगी-स्त्री० शहजादा शस्ति-स्त्री० [सं०] प्रशंसा; स्तुति ।
होनेकी स्थिति, चाल । -जादा-पु० शाहका बेटा, राजशसा*-पु० खरहा।
कुमार । -जादी-स्त्री० बादशाहकी बेटी, राजकुमारी। शस्त्र-पु० [सं०] हथियार, अस्त्र औजार, उपाय । -कर्म- -ज़ोर-वि० अति बली।-ज़ोरी-स्त्री० बलवान् होना; (न्)-पु. फोड़े आदिके चीरने-फाइनेका काम । जबरदस्ती। -तरा-पु० दे० 'शाहतरा। -तीर-कार-कारक-पु० शस्त्र निर्माता । -कोष-पु० शस्त्र पु० पाटनके नीचे दी हुई बड़ी कड़ी। -तूत-पु० एक रखनेका खाना, म्यान । -क्रिया-स्त्री० फोड़े आदिको। प्रसिद्ध पेड़ और उसका फल जो पकनेपर काफी मीठा चीरने फाड़नेका काम । -गृह-पु० जहाँ अनेक प्रकारके होता है। -पर-पु० पक्षीके डैनेका सबसे बड़ा पर । शस्त्र रखे जाते हों, शस्त्रागार । -चिकित्सा-स्त्री० शस्त्र (मु०-पर झाड़ना-पक्षीका डैनेको फैलाकर जोरसे द्वारा उपचार, शल्य-चिकित्सा (सर्जरी)। -जीवी. हिलाना कि खराब और कमजोर पर झड़ जायें)। (विन)-पु० युद्ध ही जिसकी जीविका हो वह, सैनिक। -बाज़-पु. बड़ा बाज; बड़ी जातिका बाज । - -त्याग-पु० हथियार डाल देना, शस्त्रन्यास । -धर- बाला-पु. विवाहकी प्रायः सभी रस्मोंमें वरके साथ धारी(रिन्),-भृत्-वि० शस्त्र धारण करनेवाला । रहनेवाला छोटा लड़का जो आम तौरसे उसका छोटा पु० योद्धा, सैनिक। -निर्माणशाला-स्त्री. (आर्डनेंस भाई होता है। -बुलबुल-स्त्री० लाल देह और काली फैक्टरी) तोप, गोले तथा शस्त्रादि तैयार करनेका कार- गर्दनवाली बुलबुल । -मात-स्त्री० शतरंजमें बादशाहको खाना । -न्यास-पु० शस्त्रोंका परित्याग । -पाणि- ऐसी जगह किश्त देना कि उसके चलनेके लिए कोई वि०, पु० दे० 'शस्त्रधर'। -पूत-वि० शस्त्रों द्वारा घर न रह जाय और मात हो जाय; (ला०) निरुत्तर, रणभूमिमें निहत होनेके कारण जो पवित्र हो गया हो। चुप कर देनेवाली बात । (मु०-मात करना-निरुत्तर, -प्रहार-पु० शस्त्रकी चोट या आघात । -विद्या-स्त्री० चुप कर देना)। -रग-स्त्री० दे० 'शाहरग' । -रुखशस्त्र चलानेका शान, कौशल; धनुर्वेद । -वृत्ति-पु० स्त्री० शतरंज में बादशाहको रुख (हाथी)की शह ।-रुखीवह जिसकी जीविका शस्त्र चलानेपर ही आश्रित हो, स्त्री० बादशाहको ऐसे घरमें रखना जिससे रुखकी शह सैनिक । -शाला-स्त्री० शस्त्रगृह, शस्त्रागार । -शास्त्र- पड़े, सामनेकी चोट । -सवार-पु० कुशल घोड़सवार । पु० दे० 'शस्त्रविद्या' ।-हत-वि० शस्त्र द्वारा मारा गया -सवारी-स्त्री० अच्छी घोड़सवारी। मु०-देना-लड़ने(आदमी, जानवर आदि)।
झगड़नेको उकसाना, उभारना; शतरंजमें बादशाहको शस्त्राख्य-पु० [सं०] शस्त्रकेतु, पूर्व में उदित होनेवाला एक किश्त देना; पतंगको डोर पिलाना, ढील देना।
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शहद - शांति
I
शहद - पु० [अ०] किंचित् लाली लिये हुए पीले या सफेद रंगका मीठा शीरा जो मधुमक्खियों और कुछ अन्य कीड़ों द्वारा संगृहीत पुष्परसका रूपांतर होता है, मधु वि० अति मधुर । -की छुरी-मीठी छुरी; जबानका मीठा, दिलका खोटा । - की मक्खी - मधुमक्खी; लोभी और पीछा न छोड़नेवाला आदमी । मु० ( जबान में ) - घुलना - मिठास से भर जाना । ( कानों में ) - घोलनाअति मधुर, सुखद वचन बोलना । -लगाकर अलग हो जाना - झगड़ा लगाकर आप अलग हो जाना, दूरसे तमाशा देखना । -लगाकर चाटना-निरर्थक चीजको नसे रखे रहना ।
शहना - स्त्री० [फा०] दे० 'शहनाई' | शहनाई - स्त्री० [फा०] मुँहमे फूँककर बजाया जानेवाला एक प्रसिद्ध बाजा, नफीरी ।
शहर- पु० [फा०] नगर। -ख़बरा - वि० शहरभरकी, घर-घरकी खबर रखनेवाला । - गश्त, -गिर्द - वि० शहरमें घूमनेवाला, पतरौल - दार- पु० शहरका रहनेवाला, शहरी । - पनाह - स्त्री० परकोटा, नगरके रक्षार्थ बनायी हुई चहारदीवारी | बंद - पु० जेलखाना; कैदी । -बदरवि० निर्वासित (करना, होना) । - बशहर - अ० एकसे दूसरे और दूसरे से तीसरे शहरतक, जगह-जगह । - बाशपु० शहरका रहनेवाला, शहरी । यार पु० बादशाह; समकालीन बादशाहोंमें प्रमुख । - यारी - स्त्री० बादशाही; शाहाना दबदबा | मु० - की दाई - घर-घरकी खबर रखनेवाली स्त्री ।
शहवत - स्त्री० [अ०] कामना; भोगेच्छा; संभोगकी इच्छा । शहादत - स्त्री० [अ०] गवाही, साक्ष्यः खुदाकी राह में शहीद होना; धर्मयुद्ध में लड़ते हुए मारा जाना; वध । - नामा - ५० वह पुस्तक जिसमें इमाम हुसैनकी शहादतका वर्णन हो; कपड़ेपर लिखा हुआ शहादतका कलमा जिसे मुसलमान मुर्दे के कफन में रख देते हैं । शहाना - वि० [फा०] ( 'शाहाना' का लघु रूप ) । राजसी, राजोचित; सुंदर, बढ़िया । पु० दूल्हे को पहनाया जाने - वाला लाल जोड़ा; व्याहका एक गीत; एक गत; संपूर्ण जातिका एक राग । कान्हड़ा - पु० कान्हड़ा रागका एक भेद । - जोड़ा - पु० दूल्हेका सुर्ख जोड़ा; सुर्ख पोशाक । - वक्त-पु० शामका वक्त; सुहावना समय । - ( नी ) चूड़ियाँ - स्त्री॰ लाल रंगकी सुंदर चूड़ियाँ । - मँहदीस्त्री० गहरे रंगवाली मेंहदी ।
शहाब - पु० [फा०] गहरा लाल रंग; कुसुमको भिगोकर निकाला जानेवाला गहरा लाल रंग ।
शहाबी - वि० शहाबके रंगका, लाल । शही - स्त्री० वादशाही; मिठाई । शहीद - वि० [अ०] जो धर्म या शुभ कार्यके लिए लड़ते हुए मारा जाय; हत, कतल किया हुआ; अपनेको बलि, कुरबान कर देनेवाला ।
शहीदी - वि० शहीद होनेको तैयार; लाल ! - जत्था - पु० शहीद होने को तैयार जनोंका जत्था । - तरबूज - पु० तरबूजकी एक बढ़िया किस्म जिसका छिलकातक सुर्ख होता है ।
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शांकर- पु० [सं०] शंकराचार्य के मत, संप्रदायका अनु यायी । वि० शिव-संबंधी; शंकराचार्य-संबंधी । शांख-पु० [सं०] शंख ध्वनि । वि० शंख निर्मित, शंखका; शंख-संबंधी ।
शांत - वि० [सं०] शांतियुक्त; मौन, चुप, निःशब्द, सूनसान; धीर, स्थिरमना, अचंचल, अनुद्वेगशील; श्रांत, थका हुआ; स्थित, रुका हुआ; शमित, मिटा हुआ; संतुष्ट; जीवन के लक्षणोंसे दीन, मृत; सांसारिकतासे निवृत्त; इंद्रियोंको दमित करने या जीतनेवाला; उत्साहहीन, अप्रयत्नशील, शिथिल, शिष्ट, सौम्य प्रकृतिवाला, विनम्र; समाप्त, बुझा हुआ; क्रोधादिसे निवृत्त, मनोविकारहीन, स्वस्थमना; किसी घटना, किसी बात, किसी मनोभाव आदिसे प्रभावित न होनेवाला । पु० साहित्यशास्त्रवर्णित नौ रसों में से एक रस (इसका स्थायी भाव 'निवेंद' है) । शांतनु - पु० [सं०] महाराज प्रतीपके पुत्र, भीष्मके पिता (ये चंद्रवंशी थे और द्वापरयुगमें हुए थे) । शांता - स्त्री० [सं०] महाराज दशरथकी कन्या जिसे अंगराज लोमपादने गोद लिया था और जो शृंगी ऋषिको ब्याही गयी थी ।
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शांति-स्त्री० [सं०] निःशब्दता, सूनापन; धीरता, मनकी स्थिरता, अनुद्वेगशीलता; सांत्वना, तसल्ली; काम, क्रोध, रोग, पीड़ा, अग्नि, ताप आदिका शमन; आराम, चैन, सुख; मृत्युः जितेंद्रियता; शिष्टता, सौम्यता; क्रोधादि मनोविकारोंसे निवृत्ति, मनकी स्वस्थता; सांसारिकतासे विराग; युद्धादिका रुक जाना या न होना; अनिष्ट, अमं गल आदिका पूजा, व्रत, यश आदि द्वारा शमन ( जैसे ग्रहशांति आदि) । - कर, - कारी (रिन्) - वि० शांति करने, लानेवाला । - कर्म ( नू ), - कार्य - पु० दे० 'शांतिक' । - कलश-घट - पु० शांति के लिए स्थापित कलश । - गृह- पु० यशके अंत में शांति- जलसे स्नान करनेका घर; विश्रामगृह । -जल-पु० यश, पूजा आदि में सुख, शांतिदायक मंत्रपूत अवशिष्ट जल -ददाता (तृ), - दायक - दायी (यिन् ) - वि० शांति देनेवाला । - निकेतन - पु० शांतियुक्त, शांतिदायक गृह, स्थान; विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा बंगाल प्रांतके बोलपुर नामक स्थान में स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्यासंस्था । - पर्व (न्) - पु० 'महाभारत'का बारहवाँ पर्व (इसमें युद्ध की विभीषिकासे तप्त युधिष्ठिर के मनकी शांति के लिए ज्ञान, उपदेश आदिके प्रसंग वर्णित हैं ) । - पात्र - पु० यश, पूजा आदिके अवसरोंपर ग्रह, अमंगल आद्रिकी शांति के लिए जलयुक्त पात्र । -प्रद - वि० शांतिदायक - प्रिय - वि० ( वह व्यक्ति) जिसे शांति प्रिय हो, शांतिका भभिलाषी । - भंग-पु० शांति-नाश; उपद्रवका होना; शासन, अनुशासन आदिका न माना जाना, विघ्नोत्पादन । -रक्षक- पु० अमन कायम रखनेवाला । - रक्षा - स्त्री० उपद्रव निवारण। -वाद-पु० (पैसिफिज्म) विश्व में शांति बनाये रखने, किसी भी स्थिति में युद्ध न होने देने पर जोर देनेका सिद्धांत या इसके लिए किया जानेवाला आंदोलन। -वादी (दिन) - वि० (पैसिफिस्ट) शांतिवाद के सिद्धांतका अनुयायी । -स्थापन
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शांतिक-शागिर्द पु० अमन कायम करना।
बतानेवाला, शकुनश । शांतिक-वि० [सं०] शांति-संबंधी। पु. अमंगल, दुष्ट शाकुनेय-पु० [सं०] छोटा उस्लू वृकासुर । वि. पक्षिग्रहादिके निवारणार्थ होनेवाला पूजापाठ, यज्ञ इत्यादि। | संबंधी। शांतिमय-वि० [सं०] शांतियुक्त, शांतिपूर्ण; शांति- शाक्त-पु० [सं०] वह जो शक्तिकी उपासना करता हो, गुणयुक्त; निावघ्न ।
दुर्गा, काली आदि देवियोंका उपासक; तंत्र-संप्रदाय में शांब-पु० [सं०] जांबवतीसे उत्पन्न कृष्णका पुत्र ।
दीक्षित । वि० शक्ति-संबंधी। शांबर-वि० [सं०] शंबर मृग-संबंधी; शंबर राक्षस संबंधी। शाक्तिक-पु० [सं०] शाक्त, शक्तिका उपासक; शक्ति, शांबरिक-पु० [सं०] ऐंद्रजालिक, जादूगर ।
भाला नामक हथियार रखने, चलानेवाला व्यक्ति। शांबरी-स्त्री० [सं०] इंद्रजाल, मायाविद्या, जादू (शंबर | शाक्तय, शाक्त्य-पु० [सं०] शक्तिकी उपासना करनेदैत्यने इसका निर्माण किया था, अतः इसे 'शांबरी' कहते वाला व्यक्ति । हैं); ऐंद्रजालिका, जादूगरनी।।
शाक्य-पु० [सं०] एक प्राचीन क्षत्रियकुल जिसमें गौतमशांबुक, शांबूक-पु० [सं०] घोंधा।
बुद्ध उत्पन्न हुए थे; बुद्धदेव । -मुनि-पु. बुद्धदेव । शांभव-वि० [सं०] शंभु-संबंधी । पु. शंभुका पुत्र शंभुका शाक्र-वि० [सं०] शक्र, इंद्र-संबंधी; इंद्रार्पित । उपासक, शैव; कपूर, गुग्गुल; विषका एक प्रकार; शिव- शाख-स्त्री० [फा०] शाखा, डाली; पौधेकी कलम सींग; मल्लीका पौधा; देवदारु वृक्ष ।
नदी या नहरकी मुख्य धारासे निकली हुई छोटी धारा; शांभवी-सी० [सं०] पार्वती, दुर्गा; नीली दूब; ब्रह्मरंध्र । टुकड़ा; फाँक अंश; (ला०) वंश; कमानकी लकड़ी।-दरशाइत-वि० [अ०] दे० 'शायक।
शास्त्र-वि० दूरतक फैला हुआ, शाखा-प्रशाखाओंशाइर-पु० [अ०] दे० 'शायर'।
वाला । मु०-निकालना-टहनी निकालना; ऐब निकाशाइरा-स्त्री० [अ०] दे० 'शायरा'।
लना, नुक्ता-चीनी करना; नयी बात पैदा करना । शाइस्तगी-स्त्री० [फा०] शिष्टता, सभ्यता; विनय । शाखा-स्त्री० [सं०] विटप, पेड़की डाल; बाहु; शरीरावशाइस्ता-वि० [फा०] शिष्ट, सभ्य, विनीत, सुशील; यव; ग्रंथपरिच्छेद, अध्याय; पक्षांतर, प्रतिपक्ष; किसी सीधा, शरारत न करनेवाला (-घोड़ा)।
वस्तु आदिका अंग, भाग, भेद; किसी दर्शन, शास्त्र आदि शाकंभरी-स्त्री० [सं०] दुर्गाशांभरी (साँभर) नामक नगर। का भेद, संप्रदाय (स्थूल); वेदकी संहिताओंको पदपाठ शाकंभरीय-वि० [सं०] साँभर झीलसे उत्पन्न । पु० साँभर और स्वरकी दृष्टिसे व्यवस्थित करनेवाले किसी ऋषिके नमक।
नामपर उसके वंशजों अथवा शिष्यों द्वारा परंपराके शाक-पु० [सं०] खाद्य जड़, डंठल, पत्ती, फूल, फल आदि रूपमें चलाया जानेवाला संप्रदाय । -चंक्रमण-पु. जो प्रायः उबाल, पकाकर खाये जाते हैं, साग, तरकारी एक डालसे दूसरी डालपर कूदना, हाथमें लिये एक कामशाक वृक्ष, सागौनका पेड़, शिरीष वृक्षा एक द्वीप; शक- को पूरा किये बिना ही दूसरा काम करने लगना, कोई राज शालिवाहन द्वारा प्रवर्तित संवत् । -तरु-द्रुम
कार्य अव्यवस्थित रूपसे करना। -चंद्रन्याय-पु. पु० सागौनका पेड़। -भक्ष-वि० शाक खानेवाला । पु० अवास्तविक वस्तु, घटना आदिको सत्य मान लेनेके अव
वह व्यक्ति जो शाक ही खाता हो, मांस न खाता हो। सर पर कही जानेवाली एक उक्ति (किसी विशेष स्थानसे शाकल-वि० [सं०] शकल या टुकड़ेसे संबद्ध । पु० एक देखनेपर ज्ञात होता है कि चंद्र वृक्षकी शाखापर ही है, द्वीपका नाम हवन-मामग्री।
मगर स्थिति ऐसी होती नहीं। इसी स्थितिके आधारपर शाकाहार-पु० [सं०] पत्र, फूल, फल, अन्न आदि खाद्य यह उक्ति बनी है)। -नगर-पु० उपनगर । -पित्तपदार्थ अथवा इनका भोजन ।
पु० हाथ-पैर में जलन पैदा करनेवाला एक रोग। -पुरशाकाहारी(रिन्)-वि०, पु० [सं०] दे० 'शाकभक्ष। पु० दे० 'शाखानगर'। भृत्-पु० वृक्ष । -मृग-पु० शाकिनी-स्त्री० [सं०] शाकयुक्त भूमि; दुर्गाकी एक | वानर, गिलहरी । -रंड-पु० अन्यशाखक, वेदकी अपनी अनुचरी।
शाखाको छोड़कर दूसरेकी शाखाका अध्येता । -रथ्याशाकिर-वि० [अ०] शुक्र करनेवाला, कृतश।
स्त्री० बड़ी सड़कसे निकली हुई छोटी सड़क ।-वात-पु. शाकी-वि० [अ०] शिकायत करनेवाला; फरियाद करने- एक प्रकारका वातरोग। वाला।
शाखा-पु० [फा०] टहनी, शाखा सींग सींगकी शकलका शाकुंतल, शाकुंतलेय-वि० [सं०] शकुंतला-संबंधी। पु० प्याला; वह लकड़ी जिसमें अपराधीका सिर और हाथ शकुंतलासे संबद्ध कालिदासकृत 'अभिज्ञान शाकुंतल' । देकर उसे दंड देते हैं। नाटक; शकुंतलाका पुत्र भरत ।
शाखोच्चार-पु० [सं०] विवाह-मंडपमें पाणि-ग्रहणके अवसर शाकुंतिक-पु० [सं०] चिड़ीमार, बहेलिया।
पर वर तथा कन्या-पक्षके पुरोहितों द्वारा अपने-अपने यजशाकुन-वि० [सं०] पक्षियों संबंधी; पक्षियोंका; शकुन- मानकी कुलीनताके शापनार्थ उनकी वंशावलीका बखान । (सगुन)संबंधी। पु० पक्षी आदिके रूप, लक्षण आदि शाखोट, शाखोटक-पु० [सं०] सिहोरका पेड़। देखकर मनुष्यके शुभाशुभका निश्चय करानेवाला ग्रंथ, | शाख्य-वि० [सं०] शाखा-संबंधी; शाखाके सदृश । शास्त्र; सगुन बतानेवाला; पक्षी पकड़नेवाला । | शागिर्द-पु० [फा०] गुरुसे विद्या या शिक्षा प्राप्त करनेशाकुनिक-पु० [सं०] चिड़ीमार, बहेलिया, व्याध; सगुन | वाला, विद्यार्थी, शिष्य । -पेशा-पु० किसी दफ्तर या
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अनुचरा
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शागिर्दाना - शामी
विभागके ( मातहत) कर्मचारियोंकी समष्टि, अमला, नौकरचाकर; नौकर-चाकरके रहनेके मकान जो बँगलों आदि में एक किनारे या पास ही बना दिये जाते हैं । शागिर्दाना - वि० [फा०] शिष्योचित, शागिर्द की तरह । पु० गुरुदक्षिणा |
शागिर्दी - स्त्री० शागिर्द होना, शिष्यता । मु० - करना - शागिर्द बनकर सीखना, शिष्य होना ।
शाज्ञ - वि० [अ०] दुर्लभ, कमयाब; अनोखा ।
शाटिका, शाटी - स्त्री० [सं०] साड़ी; वस्त्र । शाठ्य-पु० [सं०] शठता ।
शाण - पु० [सं०] सान, एक प्रकारका कृत्रिम पत्थर जिस पर रगड़कर हथियार, औजार आदिकी धार तेज की जाती है; सन (ण) का बना वस्त्र; कसौटी; चार माशेकी एक तौल; करपत्र, आरा । वि० सनका बना हुआ । शाक - पु० [सं०] सनका बना वस्त्र । शाणाजीव- पु० [सं०] शाणपर काम करके अपनी जीविका चलानेवाला व्यक्ति, इथियारों, औजारों आदिकी सफाई, उन्हें तेज करनेवाला व्यक्ति, अस्त्र मार्जक |
शातोदरी - स्त्री० [सं०] क्षीण कटिवाली औरत । शात्रव - पु० [सं०] शत्रुता, दुश्मनी, शत्रु-समूह, दुश्मनोंका गिरोह । वि० शत्रु-संबंधी ।
शादियाना - पु० [फा०] ब्याह में बजायी जानेवाली नौबत, खुशीका बाजा ( बजाना); ब्याह या खुशीके मौकोंपर गाया जानेवाला गीत (गाना); बधावा; किसानों द्वारा शादी के अवसर पर जमींदारको दी जानेवाली रकम । शादी - स्त्री० [फा०] खुशी; इर्षोत्सव; विवाह | शाइल - वि० [सं०] नयी, हरी घाससे युक्त हरा । पु० घास का मैदान, हरित भूमि, गोचारणभूमि; मरुद्वीप (ओएसिस ) ।
शान - पु० [सं०] शाण; निकष, कसौटी। स्त्री० [फा०] गौरव, बड़प्पन; दबदवा; ताकत; कुदरत (खुदाकी शान); प्रतिष्ठा (शान घटना); ठाट; ठसक, आन, अंदाज; रूप, शकल; अवसर । - गुमान - पु० दे० ' सानगुमान' ।-दार वि० शानवाला, भड़कीला, भव्य, सुंदर । - -शौकतस्त्री०ठाट-बाट । मु० - बरसना - गौरव, दबदबा प्रकट होना । - मेँ बट्टा लगना-प्रतिष्ठा घटना, हेठी होना । शाप - पु० [सं०] 'अमुकका बुरा हो' ऐसी बुरी भावना व्यक्त करना, आक्रोश, बददुआ; जली-कटी सुनाना ।
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- ग्रस्त - वि० अभिशप्त । - निवृत्ति, मुक्ति - स्त्री० शाप से छुटकारा । -मुक्त-वि० अभिशप्त होकर बादमें जो किसी कारणवश उससे मुक्त हो गया हो । शापना * - स० क्रि० शाप देना । शापांत-पु० [सं०] शापकी समाप्ति ।
शाप - पु० [सं०] वह जल जिसे हाथमें लेकर शाप दिया जाय, शापोदक |
शाणि - स्त्री० [सं०] पट्टवृक्ष, पटुआ ।
शाणित- वि० [सं०] जो तेज या तीक्ष्ण किया गया हो, शाबरी-स्त्री० [सं०] शबर जातिकी भाषा ।
सान रखा हुआ; कसौटीपर कसा हुआ ।
शाणी - स्त्री० [सं०] सनके रेशोंसे बना वस्त्र, टाट; तंबू छिद्रमय वस्त्र, फटी पोशाक; उपनयन संस्कार के अवसर पर ब्रह्मचारीको पहननेके लिए दिया जानेवाला सनका बना वस्त्र; सान; कसौटी ।
शाणोपल - पु० [सं०] सान धरनेका पत्थर । शात - वि० [सं०] निशित, तेज किया हुआ; पतला; दुबला, कमजोर; पतित; सुंदर; सुखी; दीप्तिशाली । शातिर - वि० [अ०] चालाक, काइयाँ; चोर, गठकतरा; पक्का चोर; शतरंज खेलनेवाला ।
शापावसान- पु० [सं०] दे० 'शापांत' | शापित - वि० [सं०] जिसे शाप दिया गया हो, अभिशप्त; जिसे शपथ दिलायी गयी हो ।
-
शापोद्धार - पु० [सं०] शापसे छूटना, शाप-मोक्ष, शापमुक्ति ।
शाफरिक - पु० [सं०] मछली मारनेवाला व्यक्ति, मछुआ । शाना - पु० [फा०] रुई की बत्ती जो दवायें भिगोकर जख्मके अंदर रखी जाय; आँखके ऊपर रखा जानेवाला रुईका फाया; पाखाना लाने के लिए प्रयुक्त साबुनको बत्ती । शाबर - वि० [सं०] शबर-संबंधी, जंगली, क्रूर । पु० अपराध, गलती; पाप; दुष्टता, बदमाशी; शबर मृगका चमड़ा; ताँबा; अँधेरा ।
शाबल्य - पु० [सं०] शबलता, कई रंगों या वस्तुओंका मेल । शाबाश - अ० [फा० शाहबाश' - 'खुश रहो' का लघु रूप ] खुश रहो; वाहवा; साधु-साधु । शाबाशी - स्त्री० [फा०] सराहना, साधुवाद |
शाब्द - वि० [सं०] शब्द-संबंधी; शब्दमय; शब्दपर ही आश्रित ('आर्थ' का उलटा ) ; शब्दाडंबर से युक्त (व्याख्यान, शैली); मौखिक । - व्यंजना- स्त्री० वाक्य में प्रयुक्त शब्दविशेषके आधारपर हुई व्यंजना (सा० ) ।
शाब्दिक - वि० [सं०] शब्द संबंधी; एक-एक शब्दके विचारसे ठीक (अनुवाद, लिटरल) ।
शाम - स्त्री० [फा०] सूर्यास्तका समय, संध्या; (ला० ) अंतकाल (शामे जवानी, शामे जिंदगी) । पु० सीरिया नामक देश । मु० - का फूलना - सूर्यास्तकाल में पश्चिमी क्षितिजपर लालीका छिटकना । - की सुबह करना - सारी रात जागकर बिताना, सवेरा कर देना । - सुबह करना या लगानाटालमटोल करना ।
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शामत - स्त्री० [अ०] दुर्भाग्य, कमबख्ती; मुसीबत । मु०आना - बुरे दिन आना, दुदैवकी प्रेरणा होना, कमबख्ती आना । - का मारा - जिसकी शामत आयी हो, अभागा, दुर्दशाग्रस्त । - की मार - दुर्भाग्य, कमबख्ती । (किसीपर ) - सवार होना - दे० 'शामत आना' । शामती - वि० शामतका मारा, अभागा । शामियाना- पु० [फा०] बड़ा और साधारणतः चारों ओर खुला हुआ तंबू |
शामिल वि० [अ०] मिला हुआ; इकट्ठा। - मिसिलवि० मुकदमे के कागजात के साथ नत्थी किया हुआ । शामिलात- स्त्री० साझेकी जायदाद, अनेक हिस्सेदारोंकी संयुक्त संपत्ति; हिस्सेदारी (यह महाल शामिलात हैं) । शामिलाती - वि० संयुक्त ।
शामी - वि० शाम देश-संबंधी या शाम देशका | पु० छड़ी
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शायक-शासनादेश या औजार मादिकी रक्षाके लिए उसपर पहनाया जाने नाई; बरछी धारण करनेवाला । वाला लोहे, पीतलका छल्ला।
शालाक्य-पु० [सं०] आयुर्वेदोक्त शल्यचिकित्सा-संबंधी शायक-पु० [सं०] वाण तलवार ।
एक शाखा, तंत्र जिसमें गर्दनके ऊपरकी इंद्रियोंकी शायक्र-वि० [अ०] शौक करनेवाला; इच्छुक ।
चिकित्साका विवेचन है। उक्त इंद्रियोंका शल्यचिकित्सक। शायद-अ० [फा०] कदाचित् । संभवतः ।
शालातुरीय-पु० [सं०] पाणिनि (ये शालातुर नामक शायर-पु० [अ०] शेर कहनेवाला, कवि ।
ग्राममें उत्पन्न हुए थे, इसी कारण इनका यह नाम पड़ा)। शायरा-स्त्री० [अ०] स्त्री कवि, कवयित्री।
शालि-पु० [सं०] चावल; जड़हन चावल, जिसका पौधा शायरी-स्त्री० [अ०] शेर कहना कविकर्म कविता। रोपा जाता है (वह हेमंत ऋतु में होता है)। -गोप-पु. शाया-वि० [अ०] प्रकट; विशापित; प्रकाशित (पुस्तक धानके खेतका रखवाला; खेत, खलिहान, बारी, बगीचा आदि)। मु०-करना-प्रकाशित करना।
आदिका रखवाला। -चूर्ण-पु० चावलका आटा । शायित-वि० [सं०] सोया, लेटा हुआ; लेटाया हुआ। -धान-पु० [हिं०] बासमती चावल, अगहनी चावल । शायी(यिन्)-वि० [सं०] सोने, लेटनेवाला।
-वाहन-पु० शक-संवत्का प्रवर्तक शक जातीय एक शारंग-पु० [सं०] दे० 'सारंग'।
प्रसिद्ध राजा । -होत्र-पु० घोड़ा, अश्वशास्त्रप्रवर्तक एक शारंगी-स्त्री० [सं०] दे० 'सारंगी'।
राजा पशुचिकित्सा-विज्ञान । -होत्री(त्रिन्)-पु० शारद-वि० [सं०] शरत्कालमें उत्पन्न; शरत्कालसे संबद्ध घोड़ोंका चिकित्सका घोड़ा। वार्षिक, वर्ष-संबंधी; नवीन। -ज्योत्स्ना-स्त्री. शरद् | शाली(लिन)-वि० [सं०] युक्त, सहित (समासमें)। ऋतुकी चाँदनी जो उज्ज्वलता और शीतलताके लिए शालीन-वि० [सं०] विनम्र लज्जाशील, सुशील; धनी । प्रसिद्ध है।
शालीनता-स्त्री० [सं०] विनम्रता; लज्जा। शारदा-स्त्री० [सं०] सरस्वती; दुर्गा; एक प्रकारकी वीणा; शालीय-वि० [सं०] शाला-संबंधी। ब्राह्मी।
| शालेय-पु० [सं०] वह खेत जिसमें शालि धान पैदा हो शारदीय-वि० [सं०] शरद-ऋतु-संबंधी; शरत्कालका। सौंफ । वि० शाला तथा शाल वृक्ष-संबंधी। शारय-वि० [सं०] शारदीय, शरद्-ऋतु-संबंधी। पु० शाल्मल, शाल्मलि-पु० [सं०] शाल्मली, सेमलका पेड़ शरझें होनेवाला अन्न ।
पृथ्वीके सात खंडोंमेंसे एक खंड। शारि-पु० [सं०] जुआ खेलनेका सामान; पासेकी गोट; शाव-पु० [सं०] शिशु, विशेषतः पशुपक्षीका शिशु । शतरंजकी गोटी छोटा गेंद । स्त्री० शारिका, मैना। शावक-पु० [सं०] पशु-पक्षीका बच्चा। शारिका-स्त्री० [सं०] मैना पक्षी; वीणा आदिका वादन; शाश्वत-वि० [सं०] नित्य, निरंतर सततस्थायी। शतरंजकी गोटी; शतरंज आदिका खेलना।
शाश्वतिक-वि० [सं०] दे० 'शाश्वत'। शारीर-वि० [सं०] शरीर-संबंधी; शरीरसे संबद्ध देहज । शासक-पु० [सं०] राजा, शासन करनेवाला व्यकि, शारीरक-वि० [सं०] देह-संबंधी; देहज । पु० आत्मा । | शासनकतो, शास्ता; राज्य-शासनका संचालक, व्यवस्थाशारीरिक-वि० [सं०] दे० 'शारीरक' ।
पक, हाकिम दंड देनेवाला व्यक्ति जहाजका शासन या शाकर-वि० [सं०] शर्करानिर्मित, चीनीका या चीनीसे प्रबंध जिसके हाथमें हो वह।-मंडली-स्त्री०,-वर्ग-पु. बना हुआ; शर्करायुक्त रवीला, रवेदार ।
राज्य के विभिन्न विभागोंके संचालकों,हाकिमोंका संघ,समूह । शाङ्ग-वि० [सं०] शृंग-संबंधी; सींगका बना हुआ धनु- शासन-पु० [सं०] किसी सरकार द्वारा किसी व्यक्ति, र्धारी । पु० धनुष ; विष्णुका धनुषु । -धन्वा(न्वन्), जाति, नगर, प्रांत, देशके नियंत्रण, संचालन, हुकूमतका -धारी(रिन्),-पाणि,-मृत्-पु० विष्णुः कृष्ण; कार्य; आशा, हुक्म; राज्यादेश, सरकारी हुक्म; किसीके धनुर्धर सैनिक ।
कार्यादिकी देखरेख, उनका निर्देशन, नियंत्रण; अनुशायुध-पु० [सं०] दे० 'शार्ङ्गधन्वा' ।
शासन; किसीको वशमें रखना; कागज, ताम्रपट्ट आदिपर शार्दल-पु० [सं०] व्याघ, बाघ, चीता, पक्षि-विशेष ।। लिखित दान आदि; शास्ति, दंड। -कर्ता (1)-पु. वि० श्रेष्ठ (जैसे-नर-शार्दूल)।
शासक । -तंत्र-पु० राज्यशासनप्रणाली, रीति, पद्धति । शार्वरी-स्त्री० [सं०] रात।
-पत्र-पु० राज्यादेशपत्र, राज्याज्ञापत्र, सरकारी हुक्मशाल-पु० [सं०] साखू, सखुआका पेड़ वृक्ष; मत्स्यविशेष ।। नामा, फरमान ताम्रपत्रादिपर खुदी भूमि-दानादि संबंधी
-ग्राम-पु० एक पर्वत; जलप्रवाहसे घिसी, गोली, अति राजाशा । -प्रणाली-स्त्री० शासनकी विधि या पद्धति । चिकनी, श्याम वर्ण उस पर्वतके पत्थरकी वटिका जो -व्यवस्था-स्त्री० शासन संबंधी प्रबंध, शासनप्रणाली। विष्णुके रूपमें पूजी जाती है।
शासनांतर्गत, शासनाधीन-वि० [सं०] जो शासनमें, शाल-स्त्री० [फा०] ऊनी या रेशमी चादर; कश्मीरमें | शासनके भीतर हो; अधिकृत; वशीभूत । बननेवाली दुबेके बालोंकी चादर । -दोज़-पु० शालपर शासनादिष्टप्रदेश-पु०[सं०] (मैनडेटेड टेरीटरी) वे पिछड़े बेलबूटे बनानेवाला । -बाफ-पु. शाल बुननेवाला।। हुए प्रदेश या भूखंड जिनका शासनभार प्रथम महायुद्धके शालभ-वि० [सं०] शलभ-संबंधी ।
बाद राष्ट्रसंघके आदेशसे ब्रिटेन आदि उन्नत विजेता राष्ट्रोंशाला-स्त्री० [सं०] गृह; स्थान ।
को सौंप दिया गया था। शालाकी(किन्)-पु० [सं०] शस्य-चिकित्सक, अस्त्र-वैद्यः । शासनादेश-पु०[सं०](मैनडेट) प्रथम महायुद्धके पूर्व जर्मनी
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शासनिक विपर्यय - शिकरा
तथा तुर्की के अधिकार में जो उपनिवेश या क्षेत्र थे, उनपर उनके स्वशासनयोग्य होनेतक शासन करनेका ब्रिटेन, फ्रांस आदिको राष्ट्रसंघ द्वारा दिया गया आदेश । शासनिक विपर्यय- पु० [सं०] (डेटा) शासन व्यवस्था में एकाएक एवं बलपूर्वक किया गया परिवर्तन; बलात् सत्तापद्दरण |
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शाहंशाह - पु० शाहका शाह, सम्राट, राजाधिराज । शाहंशाही - स्त्री० शाहंशाह, राजाधिराजका पद या कार्य । शाह - पु० [फा०] स्वामी; राजा, बादशाह; मुसलमान फकीरोंकी पदवी; ताश और गंजीफेका एक पत्ता; शतरंजका एक मुहरा । ( कर्मधारय समासमें बड़ा, प्रधान, श्रेष्ठका अर्थ देता है - 'शाहकार', 'शाहरग' इ० ) -कारपु० किसी कलाकारकी सबसे अच्छी कृति । खर्चवि० शाहकी तरह, बहुत अधिक खर्च करनेवाला । - जादगी - स्त्री० शाहजादा होनेकी स्थिति, काल; शाहजादेकी किशोरावस्था । - जादा-पु० बादशाहका बेटा, राजकुमार । - तरा-पु० पितपापड़ा। दरा- पु० गाँव या बस्ती जो शाही महल या किलेके नीचे या सामने हो । - बंदर - पु० देशविशेषका प्रधान बंदरगाह । -रगस्त्री० गलेसे होकर जानेवाली बड़ी रग । -राह-स्त्री० राजमार्ग, चौड़ा और आम रास्ता ।
शासनीय - वि० [सं०] शासन या नियंत्रणके योग्य; दंड्य । शासित - वि० [सं०]जिसका शासन किया गया हो;दंडित । शासिता (तु) - वि० [सं०] शासन करनेवाला; दंड देनेवाला । शासिनिकाय - पु० [सं० ] ( गवर्निंग बॉडी ) ( किसी विद्यालय, चिकित्सालय आदिका ) प्रबंध या नियंत्रण करनेवाले व्यक्तियोंका समूह या मंडल । शास्ता (स्तु) - पु० [सं०] शासक; राजा; शिक्षक, गुरु । शास्ति - स्त्री० [सं०] शासन; आशा; दंड; राजदंड । शास्त्र - पु० [सं०] धर्म, दर्शन, विज्ञान, साहित्य, कला आदि-संबंधी ग्रंथ जिनके द्वारा मानव समाज तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रोंकी स्थिति और रक्षाकी प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से शिक्षा मिलती है; ज्ञानकी कोई शाखा । - कार - कृत - पु० शास्त्र-निर्माता; शास्त्रकर्ता ऋषि । - कोविद - वि० शास्त्रोंका विशेष ज्ञान रखनेवाला । - चक्षु - पु० व्याकरण जो शास्त्रोंके अध्ययन के लिए नेत्र (परम आवश्यक वस्तु) है । -चर्चा- स्त्री० शास्त्रका अध्ययन, मनन, अनुशीलन; शास्त्रपर विचार-विमर्श । - ज्ञ - वि०, पु० शास्त्रका जाननेवाला । -दर्शी (र्शिन् )पु० वह व्यक्ति जिसने शास्त्र देखा, सुना है, शास्त्रका जानकार, शास्त्रज्ञ । - प्रवक्ता, - वक्ता ( क्तृ ) - पु० शास्त्रोपदेशक; आचार, व्यवहार आदिके संबंध में शास्त्रपर दृष्टि रखते हुए निर्णय देनेवाला, घोषणा करनेवाला व्यक्ति । - वित्, -विद् - वि०, पु० शास्त्रज्ञ । - विधान - पु०, - विधि - स्त्री० आचार, व्यवहार-संबंधी शास्त्रोक्त आदेश, अनुशासन | - विमुख - वि० जो शास्त्राध्ययन न करता हो; शास्त्रोंसे जिसे चिढ़ हो । - विरुद्ध वि० जिसका विधान शास्त्र में न हो, अशास्त्रीय; अवैध । -विहितवि० शास्त्रानुमोदित, शास्त्र सम्मत । - संगत, -सम्मतवि० दे० 'शास्त्र-विहित' - सिद्ध - वि० शास्त्र द्वारा प्रमाणित; शास्त्रानुकूल । शाखाचरण - पु० [सं०] शास्त्रादेशका पालन; शास्त्रका शिकंजवीन - पु० दे० 'सिकंजबीन' । अध्ययन, मनन, अनुशीलन ।
शास्त्रानुमोदित - वि० [सं०] दे० 'शास्त्र विहित' । शास्त्रानुशीलन- पु० [सं०] शास्त्रका अध्ययन, मनन । शास्त्रार्थ - पु० [सं०] शास्त्रका अर्थ, तात्पर्य, अभिप्राय;
नुमोदित; वैज्ञानिक |
शास्त्रोक्त - वि० [सं०] शास्त्र द्वारा कथित; शास्त्र-विहित । शास्त्र - वि० [सं०] शासन-योग्य; शिक्षणीय; दंडनीय ।
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शाहाना - वि० [फा०] बादशाह के लायक, राजसी, राजोचित; बहुत बढ़िया । पु० शहानी चूड़ियोंका जोड़ा । - जोड़ा - पु० दूल्हे को पहनाया जानेवाला सुर्ख जोड़ा; सुर्ख पोशाक । -मिज़ाज-पु० राजसी, नाजुक मिजाज । शाहिद- पु० [अ०] शहादत देनेवाला, गवाह | बि० सुंदर । शाही - वि० [फा०] बादशाहका; शाहाना | शिंगरफ-पु० ईंगुर । शिंगरफी - वि० इंगुर जैसा लाल ।
शिघाण- पु० [सं०] काँच, शीशेका पात्र; फेन, गाज; लौहमल, जंग; नासिकामल; कफ, श्लेष्मा | शिघाणक - पु० [सं०] नासिकामल; कफ, बलगम । शिंजन पु० [सं०] नुपूर आदिकी झनकार; मधुर ध्वनि,
आवाज ।
शिंजित - वि० [सं०] झंकृत, झनझनाता हुआ, ध्वनि करता हुआ; बजता हुआ । शिजिनी - स्त्री० [सं०] प्रत्यंचा, धनुष्की डोरी; नूपुर । शिंबा, शिंबि, शिबिका, शिंबी - स्त्री० [सं०] छोमी; सेम | शिंशपा- स्त्री० [सं०] शीशमका पेड़; अशोकवृक्ष । शिशुपा* - स्त्री० दे० 'शिशपा' । शिंशुमार - पु० [सं०] दे० ' शिशुमार ' ।
वाद-विवाद (जो शास्त्र के अर्थ, ज्ञानके सहारे होता है) । शास्त्री (त्रिन्) - वि० [सं०] शास्त्रका जानकार, शास्त्रज्ञ । पु० वह व्यक्ति जिसने शास्त्रका पक्का ज्ञान कर लिया |शिकम-पु० [फा०] पेट । है, शास्त्रका पूर्ण अधिकारी, विद्वान्, पंडित; परीक्षा में उत्तीर्ण होनेपर प्राप्त होनेवाली एक उपाधि ।
शास्त्रीय - वि० [सं०] शास्त्र संबंधी; शास्त्र सम्मत, शास्त्रा
शिकंजा - पु० [फा०] यंत्रणा देनेका यंत्र जिसमें पुराने जमाने में अपराधियों के हाथ-पाँव देकर दबा दिये जाते थे; एक यंत्र जिसमें जिल्दसाज किताबें दबाकर पन्ने काटते हैं; रूई दबाने की कल; कोल्हू; (ला० ) यंत्रणा; पकड़, दबाव । शिकन - स्त्री० [फा०] सिलवट, सिकुड़न । वि० (समास में ) तोड़नेवाला (बुतशिकन, दिलशिकन) ।
परवर - वि० पेट पालने
वाला, पेटू
शिकमी - वि० [फा०] पेटका; पैदाइशी; भीतरी (शिकमी शरीक) । पु० वह काश्तकार जो असल काश्तकार से जमीन लेकर जोते- बोये ।
शिकरम- स्त्री० एक तरहकी गाड़ी । शिकरा- पु० [फा०] एक शिकारी पक्षी जो बाजसे कुछ
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शिकवा-शिखा छोटा होता है। मु०-पालना-बोझ अपने सिर लेना।। शिक्षाके अध्ययन अध्यापनके लिए तत्कालीन शिक्षालय शिकवा-पु० [फा०] शिकायत ।
जहाँ उसके अधिकारी किसी विशेष ऋषिकी शिक्षा-पद्धति शिकस्त-स्त्री० [फा०] हार, मात (खाना, देना, पाना)। चलती थी और जो उसीके नामसे प्रसिद्ध होता था; किसी शिकस्ता-वि०[फा०] टूटा हुआ, भग्न घसीट (लिखावट)। विद्यापीठ( विश्वविद्यालय के अध्यापकों तथा अन्य शिक्षा
-दिल-वि० खिन्न, भग्नहृदय । -नवीस-वि०, पु० विशेषशोंकी वह परिषद् जो पाठ्यक्रम, शिक्षणनीति आदिघसीट लिखनेवाला । -हाल-वि० फटेहाल, गरीब, का निर्णय करती है। -प्रणाली-स्त्री० दे० 'शिक्षापरीशान ।
पद्धति' । -प्रद-वि० शिक्षादायक । -प्रसार-योजनाशिकायत-स्त्री० [अ०] दोषकथन, गिला, निंदा, बुराई; स्त्री० (एजुकेशन एक्सपैंशन स्कीम) बालकों, स्त्रियों, प्रौढों, दुखड़ा; रोग, पीड़ा (पेटकी शिकायत); दोष माननेका अंधों आदिमें अधिकाधिक विस्तारपूर्वक शिक्षा फैलानेकी कारण, शिकायतकी वजह । मु०-करना-गिला करना, योजना ।-मंत्री(त्रिन)-पु.शिक्षा-विभागकी देखरेख दुखड़ा रोना; बुराई करना; उलाहना देना, पीड़ा बताना करनेवाला मंत्री । -विभाग-पु० शिक्षाको व्यवस्था (शिरदर्दकी शिकायत करना)।
तथा उसके सँभालनेके निमित्त बना विभाग। -शास्त्रशिकायती-वि०शिकायत करनेवाला; जिसमें शिकायत पु० शिक्षाविधिका विवेचन करनेवाला शास्त्र । हो (शि० चिट्ठी)।
| शिक्षार्थी(र्थिन् )-पु० [सं०] शिक्षाप्राप्तिके लिए इच्छुक शिकार-पु० अखेट, पशु-पक्षियोंको (क्रीड़ा या आहारके व्यक्ति, विद्यार्थी, छात्र । लिए) मारना; मारा हुआ पशु-पक्षी, शिकारका जानवर; शिक्षालय-पु० [सं०] विद्यालय, स्कूल, कालिज । लूटका माल, दलाल, वेश्या, डाकू आदिके फंदे में आया शिक्षित-वि० [सं०] शिक्षायुक्त; अधीत; मेधावी, निपुण हुआ आदमी । -गाह-पु०, स्त्री० शिकार खेलनेकी विनीता पालतू ; विद्वान् , विश । जगह, जंगल, रमना जंगल में बना हुआ वह मंच जिसपर शिक्षिताक्षर-पु० [सं०] शिक्षक छात्र; लेखक, मुहर्रिर । बैठकर शेर, बनैले सूअर आदिका शिकार किया जाता है। शिक्ष्यमाण-वि०,पु० [सं०] (ऐतंटिस) दे० 'पदशिक्षार्थी। -बंद-पु० वह तसमा जो घोड़ेकी दुमके पास चार- शिखंड, शिखंडक-पु० [सं०] चोटी, कलँगी, शिखा जामेके पीछे शिकार या दूसरी जरूरी चीज बाँध लेनेके मयूरपुच्छ; काकपक्ष, काकुल ।। लिए लगा होता है। -की टट्टी-छोटीसी टट्टी जिस- | शिखंडिनी-वि०, स्त्री० [सं०] शिखंडयुक्ता । स्त्री० मोरनी; पर घास बिछाकर बहेलिये अपने साथ-साथ रखते हैं। यूथिका, जूही; गुंजा, धुंधची; राजा द्रुपदकी कन्या। मु०-करना-आखेट करना; फंदे में फाँसना; मुट्टीमें शिखंडी(डिन्)-वि० [सं०] शिखायुक्त । पु० मोर; करना।-खेलना-आखेट करना। (किसीका)-होना- मोरकी पूँछ, मुर्गा; स्वर्णयूथिका; धुंधची; बाण; द्रुपदका फंदे में फंसना; किसी रोग, दुर्घटना आदिसे मरना या पुत्र जो स्त्रीरूपमें उत्पन्न हुआ था, मगर तपस्या द्वारा पीड़ित होना; किसीके रोषादिकी बलि होना ।
एक यक्षसे अपने स्त्रीरूपको बदलकर पुरुष हो गया था। शिकारी-वि०, पु० शिकार करनेवाला; व्याध ।-कुत्ता- शिख*-स्त्री०शिखा ('नखशिख'में प्रयुक्त)। पु० शिकार पकड़नेवाला, शिकारमें सहायक कुत्ता। | शिखर-पु० [सं०] पर्वताप, पहाड़का सबसे ऊँचा भाग, -जानवर-पु. वह जानवर जो आहारके लिए दूसरे शृंग, कूट; मकानका सबसे ऊँचा हिस्सा, मुड़े मंदिरका पशुओंका शिकार करता है।
सर्वोच्च भाग, कलश, गूरा; वृक्षका सबसे ऊपरी हिस्सा, शिक्य-पु०,-शिक्या-स्त्री० [सं०] छींका,सिकहर। इसका सिरा खड्गका अग्रभाग; किसी भी वस्तुका सिरा, शिक्षक-पु० [सं०] शिक्षा देनेवाला; अध्यापक, गुरु । । अग्रभाग, उसकी चोटी, नोक आदि; शिखा। शिक्षण-पु० [सं०] शिक्षा देने या लेनेका काम; शिक्षा- | शिखरन-पु० दहीमें चीनी, केसर आदि मिलाकर तैयार प्राप्ति । -कला-स्त्री० पढ़ानेकी कला। -शास्त्र-पु० किया गया पेय या लेह्य पदार्थ, श्रीखंड । (पेडेगाजी) छात्रोंको पढ़ाने, शिक्षा देनेकी विद्या। शिखरिणी-स्त्री० [सं०] नारीरत्न, उत्तम कोटिकी नारी; शिक्षणीय-वि० [सं०] शिक्षाके योग्य, पढ़ाने योग्य । रसाला, सिखरन, श्रीखंड; रोमावली जो वक्षस्थलसे चलशिक्षा-स्त्री० [सं०] व्यवस्थित रूपसे किसी शिक्षा-संस्था में __ कर नाभितक जाती है। मलिका; किशमिश एक वर्णवृत्त । या शिक्षक, गुरु आदिसे शान या विद्याकी प्राप्तिः वि० स्त्री० शिखरवाली, शिखरयुक्ता। चारित्रिक तथा मानसिक शक्तियोंका विकास प्रशिक्षण, | शिखरी (रिन्)-वि० [सं०] शिखरयुक्त । पु० पर्वत पहाड़ी ट्रेनिंग (जैसे-'व्यायाम-शिक्षा'); उपदेश; सबक, दंड किला; वृक्ष; अपामार्ग, चिचड़ा; बंदाक; कुंदरुक; कर्कट(व्यंग्य); विद्या, विज्ञान, कला (जैसे-'संगीत-शिक्षा', शृंगी, काकड़ासिंगी; यावनाल, ज्वार सिखरन । 'रण-शिक्षा'); वेदके षडंगोंमेंसे एक अंग जिसमें वेद- शिखलोहित-पु० [सं०] कुकुरमुत्ता। मंत्रों के उच्चारणकी विवेचना है; उच्चारण विज्ञान (फोनेशिखा-स्त्री० [सं०] चूड़ा, चोटी; आगकी लपट, दीयेकी टिक्स) (जैसे-'पाणिनीय शिक्षा'); श्योनाक वृक्ष । लौ प्रकाशकी किरण मोर, मुर्गा आदि जंतुओंके सिरपर-गुरु-पु० शिक्षक; शानदाता गुरु, 'दीक्षागुरु'का की कलँगी; किसी वस्तुकी नोक या नुकीला सिरा पैरके विलोम । -दीक्षा-स्त्री. शिक्षा, उपदेश आदि द्वारा पंजेका अगला हिस्सा; पेड़की जटायुक्त जड़, पेड़(विशेष किसीका बौद्धिक, चारित्रिक, मानसिक विकास ।-पद्धति- रूपसे जड़ पकड़ते हुए)की शाखा, डाली; एक वर्णवृत्त; स्त्री शिक्षा देनेका ढंग। -परिषद-स्त्री० वैदिक दे० 'शिखर'। -तरु-पु० दीपाधार, दीवट । -धर
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शिखावान्-शिला
पु० मयूर मंजुघोष । -बंधन-पु० चोटियाका बाँधना। शिरम्पीडा-स्त्री० [सं०] सिरदर्द सिरदर्दका रोग । -मणि-पु० सिरपर पहननेका रत्न । -वृद्धि-स्त्री. शिरःशूल-पु० [मं०] दे० 'शिरःपीडा। प्रतिदिन बढ़नेवाला ब्याज। -सूत्र-पु० चोटी और | शिर-पु० [सं०] सिर । -ज-पु० बाल, केश ।-त्राण*जनेऊ, जो द्विजोंके चिह्न है।
पु०दे० 'शिरस्त्राण'।-पँच-पु० [हिं०] दे० 'सिरपंच'। शिखावान(वत)-वि० [सं०] शिखायुक्त; ज्वालयुक्त ।। -फूल-पु० [हिं०] सीस फूल नामक आभूषण ।
पु० दीपक; अग्नि; चित्रक वृक्षा केतु ग्रह; पुच्छल तारा। शिर(स)-पु० [सं०] सिर, पर्वतकी चोटी, शिखर शिखिनी-स्त्री० [सं०] मोरनी, मुगी ।
वृक्षाग्रा किसी वस्तुका सर्वोच्च अंश, भाग; सेनाका अगला शिखी(खिन्)-वि० [सं०] शिखायुक्त, शिखावाला; भाग, नासीर मुखिया, प्रधान । नुकीला अभिमानी। पु. मयूर; कुक्कुट, बैल, घोड़ा शिरकत-स्त्री० [अ०] शरीक होना; साझा। -नामाअग्नि दीपक, दीया; बाण, पर्वत; वृक्ष । -पिच्छ,- | पु. वह दस्तावेज जिसमें साकी शर्ते लिखी हों। पुच्छ-पु० मोरकी पूँछ । -वाहन-पु० कात्र्तिकेय । | शिरकती-वि० साझेका संयुक्त । शिगाफ-पु० [फा०] चीरा दरारा झरी; छिद्र । शिरश्छेद, शिरश्छेदन-पु० [सं०] सिर काटना ।-यंत्रशिगूफा-पु० [फा०] कली; अनोखी बात; चुटकुला। पु० (गिलोटिन) शिरश्छेद कर देने, धड़से सिरको उड़ा मु०-खिलाना-कोई अनोखी बात करना झगड़ा उठाना। देने के निमित्त प्रयुक्त होनेवाला यंत्र । -छोड़ना-झगड़ा-फसाद खड़ा करानेवाली बात कहना, | शिरसिज, शिरसिरह-पु० [सं०] दे० 'शिरज' । करना।
शिरस्क-पु० [सं०] पगड़ी; शिरस्त्राण । शित-वि० [सं०] तेज किया हुआ,सान धरा हुआ; दुबला- शिरस्त्र, शिरस्त्राण-पु० [सं०] लोहेका टोप, जो युद्धादिपतला, क्षीण, कृश; कमजोर, दुर्बल ।
के अवसरोंपर अस्त्र-शस्त्रसे शिरके रक्षार्थ पहना जाता शिताफल-पु० [सं०] सीताफल, शरीफा। शिताब-अ० [फा०] जल्द, झटपट । वि० जल्दबाज । शिरस्थ-० [सं०] मुखिया, नेता, प्रधान । शिताबी-स्त्री० जल्दी; उतावली, घबराहट ।
शिरहन*-पु० सिरहाना, तकिया।
| शिरा-स्त्री० [सं०] धमनी, खूनकी नाड़ी, रक्तवहा नाड़ी। पु० मोर; चातक शिव ।
शिराकती-वि० साझेका, संयुक्त । -कारबार-पु० साझेशिथिल-वि० [सं०] ढीला; बिन बधा, खुला हुआ; सुस्त, |
आलसी श्रमसे थका हुआ; (डालसे) गिरा, टूटा हुआ शिरीप, शिरीषक-पु० [सं०] अति कोमल फूलोंवाला बिना पूरे दबावका, जिसे कुछ छूट दी गयी हो, पूरी एक वृक्ष, सिरिस ।। सावधानीसे जिसका पालन न हो ।-बल-वि०जिसकी शिरोगृह, शिरोगह-पु० [सं०] अट्टालिकाके सबसे ऊपरताकत कम पड़ गयी हो।
का घर, चंद्रशाला। शिथिलता-स्त्री० [सं०] ढीलापन; सुस्ती, आलस्य श्रांति; शिरोज-पु० [सं०] बाल । छूट देना, नियमका पालन कराने पर पूरा ध्यान न देना; शिरोदाम(न)-पु० [सं०] पगड़ी, मुरेठा, साफा । काव्य रचना, वाक्य रचना आदिमें दोषके कारण चुस्ती- | शिरोधार्य-वि० [सं०] शिरपर धारण करने योग्य, सादर का न होना; तर्क आदिकी अपुष्टता।
स्वीकार करने योग्य, अतिशय मान्य । शिथिलाई-स्त्री० शिथिलता।
शिरोपाव-पु० दे० 'सिरोपाव' । शिथिलाना*-अ० कि. ढीला पड़ना, मंद पड़ना,थकना। शिरोभूषण-पु० [सं०] शिरपर पहननेका आभूषण शिथिलित-वि० [सं०] जो इलथ हो गया हो, जो ढीला (जैसे-कलँगी, टीका, सीसफूल मादि); श्रेष्ठ व्यक्ति। हो गया हो।
शिरोभ्यंग-पु० [सं०] सिरमें तेल मालिश करना । शिथिलीकरण-पु० [सं०] ढीला करनेका काम । शिरोमणि-पु० [सं०] मस्तकपर धारण करनेका रत्न, शिथिलीकृत-वि० [सं०] ढीला किया हुआ। | शिरोरत्न, चूड़ामणि । वि० सर्वश्रेष्ठ । शिथिलीभूत-वि० [सं०] दे० 'शिथिलित' ।
शिरोमाली(लिन)-पु० [सं०] मुंडमालधारी शिव । शिक्षत-स्त्री० [अ०] कठिनाई; कष्ट; तीव्रता; कठोरता शिरोरुह-पु० [सं०] सिरके बाल ।
अधिकता, प्रबलता (बारिशकी, जाड़ेकी शिद्दत)।-का- शिरोरोग-पु० [सं०] सिर-दर्द, मस्तक-पीड़ा। जोरका, तीव्र (शिद्दतका बुखार)।
शिरोवर्ती (तिन)-वि०, पु० [सं०] प्रधान, मुखिया । शिनाख्त-स्त्री० [फा०] पहचान; भले-बुरे, सच्चे-झूठेका | शिरोवेष्टन-पु० [सं०] शिरोदाम, पगड़ी, मुरेठा । भेद समझनेकी शक्ति, परख ।
| शिर्क-पु०[अ०] खुदाके साथ किसी औरको शरीक जानना, शिप्रा-स्त्री० [सं०] शिप्र सरोवरमे निकली एक नदीका | ईश्वर में द्वैतभावना रखना।
नाम जिसके तटपर उज्जयिनी नगर बसा हुआ है। शिल-पु० [सं०] उंछ, खेत कट जानेके पश्चात् उसमें से शिफर*-पु० सिपर, ढाल ।
शेष अन्न बीननेकी क्रिया। शिक्षा-स्त्री० [अ०] स्वास्थ्य, आरोग्य, रोगसे मुक्ति। शिलक, शिल्लक-स्त्री० नकद, रोकड़ ।
(देना, पाना)।-खाना-पु० चिकित्सालय, अस्पताल। शिला-स्त्री० [सं०] पत्थर: पत्थरकी पटिया, पट्टी, उंछ शिबिका-स्त्री० [सं०] दे० 'शिविका'।
| वृत्ति । -ज-पु० शिलाजीत; लोहा; पेट्रोल ।-जतु-पु.
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शिलात्मज-शिश्नोदरपरायण शिलाजीत गेरू । -जित्,-जीत-स्त्री० [हिं०] सूर्यके मंगल, कल्याण, मुखअद्वैत ब्रह्म मोक्ष । वि० मंगलकारी, तापसे तपी शिलाओंसे निकला काला रस जो वैद्यकके शुभावह सुखी। -कांता-स्त्री० पार्वती, दुर्गा ।-कारीअनुसार पुष्टिकारक माना गया है। -तल-पु० पत्थरका (रिन्)-वि० मंगलकारी, शुभावह । -धातु-स्त्री० ऊपरी भाग, शिला, पाषाण-पृष्ठ । -दान-पु० पुराणोक्त पारा।-निर्माल्य-पु. शिवार्पित वस्तु, शिवपुजनकी एक दान जिसमें ब्राह्मणको शालग्रामकी बटिया दी जाती सामग्री, शिवभोग आदि अग्राह्य वस्तु । -पुरी-स्त्री० है। -निर्माण-विज्ञान-पु० (पिट्रोलॉजी) चट्टानोंकी काशीपुरी, वाराणसी, बनारस । -प्रिय-वि. वह जो रचना, स्वरूप आदिका अध्ययन करनेकी विद्या । शिवको प्रिय हो । पु० रुद्राक्ष स्फटिक; धतूरा; बिल्वपत्र; -निर्यास-पु० दे० 'शिलाजीत' । -न्यास-पु० वक वृक्ष । -प्रिया-स्त्री० दुर्गा । -बीज-पु० पारा। (भवनादिकी) नीवँका पत्थर रखना ।-पट्ट-पट्टक-पु० -मौलिसता-स्त्री० गंगा। -रात्रि-स्त्री० शिवका कोई चीज पीसने के लिए शिला-खंड, सिल; बैठनेके लिए एक व्रत-पर्व जो फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशीको होता है। शिला-खंड, पत्थरकी चौकी; पत्थरका टुकड़ा, चट्टान । -रानी-[हिं०] स्त्री० पार्वती। -लिंग-पु० मिट्टी, -पुत्र-पुत्रक-पु० किसी वस्तुको पीसनेवाला थोड़ा पत्थरकी शिवकी लिंगमूर्ति, पिंडी। -लोक-पु. वह लंबा और गोला पत्थर, लोढ़ा।-फलक-पु० शिलापट्टक, लोक जहाँ शिव निवास करते हैं, कैलास ।-वल्लभ-पु. पत्थरकी पटिया । -बंध-पु० पत्थरका बना परकोटा, आम्र वृक्ष । -वल्लभा-स्त्री० शतपत्री, सेवती; सफेद किलेकी चहारदीवारी। -भव-पु० शिलाजीत; शैलेय। गुलाब; दुर्गा, पार्वती । -वीर्य-पु० पारा। -मुद्रित-वि० (लिथोग्राफ्ड) विशेष प्रकारके पत्थरपर शिवता-स्त्री०, शिवत्व-पु० [सं०] शिवपद, शिवलिख या खोदकर छापा हुआ।-रस-पु० शैलेय नामक सायुज्य; अमरता; मोक्ष । गंधद्रव्य । -रोपण-पु० दे० 'शिला-न्यास' ।-लिपि- शिवा-स्त्री० [सं०] शिवकी पत्नी, पार्वती, दुर्गा; शृगाली; स्त्री०,-लेख-पु० सम्राट, धर्माचार्य आदि विशिष्ट मुक्ति कल्याणी नारी, भाग्यशालिनी स्त्री। व्यक्तियों द्वारा किसी वस्तुके प्रचार, प्रमाण, स्थायित्व शिवानी-स्त्री० [सं०] शिवको पत्नी, पार्वती, दुर्गा । आदिके लिए पत्थरपर खोदवाया अनुशासन, आदेश, शिवाराति-पु० [सं०] कुत्ता (शिवा-शृगाली); कामदेव । दान आदि । -वृष्टि-स्त्री० उपलवृष्टि, ओलोंकी वर्षा | शिवालय-पु० [सं०] वह मंदिर जिसमें शिवमूर्ति, शिव-सार-पु. लोहा । -स्वेद-पु० शिलाजीत ।-हरि- लिंग स्थापित हो; देवमंदिर । पु० शालग्रामकी बटिया, मूर्ति ।
शिवाला-पु० दे० 'शिवालय'। शिलात्मज-पु० [सं०] लोहा ।
शिविका-स्त्री० [सं०] डोली, पालकी; अरथी; चबूतरा । शिलास्व-पु० [सं०] शिलाका भाव या धर्म, पत्थरपन । शिविर-पु० [सं०] सेनाके लिए विश्रामस्थल, सेना निवेश शिली-स्त्री० [सं०] दरवाजेके चौखटके नीचेकी लकड़ी, तंबू, खेमा; दुर्ग, किला । डेहरी स्तंभशीर्ष; भाला; बाण; मेंढकी; केंचुआ ।-पद- शिवेतर-वि० [सं०] अमंगल, अशुभ । पु० श्लीपद, पादस्फीति, फीलपाँव रोग। -मुख-पु० शिशिर-पु० [सं०] भारतकी छः ऋतुओंमेंसे एक ऋतु भ्रमर युद्ध; बाण; मूर्ख ।
जो माघ और फाल्गुनमें पढ़ती है। ओप्स; शीत, शीतशिलेय-वि० [सं०] शिला-संबंधी पथरीला। पु० शैलेय काल । वि० शीतल । -काल,-समय-पु० जाड़ेकी गंधद्रव्य शिलाजीत ।।
ऋतु, शिशिर ऋतु । -किरण,-दीधिति-पु. चंद्रमा। शिलोद्भव-पु०[सं०] शैलेय गंधद्रव्य; एक प्रकारका चंदन। -न-पु० अग्नि । -मयूख,-रश्मि-पु०चंद्रमा । शिल्प-पु० [सं०] कला आदि कर्म, हुनर, कारीगरी शिशिरांत-पु० [सं०] शिशिर ऋतु समाप्त होनेपर आनेस्रवा। -कला-स्त्री० दस्तकारीका कौशल, हुनरकी वाली ऋतु, वसंत ऋतु । दक्षता । -कार,-कारक,-कारी (रिन्)-पु० शिल्पी, | शिशिरांशु-पु० [सं०] चंद्रमा। कारीगर ।-कौशल-पु. शिल्पकला, शिल्पचातुर्य ।-गृह- शिशु-पु० [सं०] नवजातसे लेकर लगभग आठ वर्षतकके पु० कारीगरोंके काम करनेका स्थान, कारखाना । वयका बालक; बालक, बच्चाजानवरों, पक्षियों आदिका -जीवी(विन)-पु० कारीगरीका काम करके जीवन- बच्चा, शावक । -कल्याण-केंद्र-पु० (चाइल्डवेलफेयर यापन करनेवाला व्यक्ति, शिल्पी । -लिपि-स्त्री० पत्थर सेंटर) वह स्थान जहाँ बच्चों के स्वास्थ्य आदिकी देखभाल आदिपर अक्षर खोदना। -विद्या-स्त्री० वस्तु-निर्माण- की जाती और विविध उपायों द्वारा उनके हित-साधनका पद्धतिका शान, चीजोंको बनानेके ढंगकी जानकारी। प्रयत्न किया जाता है। -पाल-पु० चेदि (वर्तमान -विद्यालय-पु० शिल्प-शिक्षाका स्कूल ।-शाला-स्त्री. बुंदेलखंड) का एक प्रसिद्ध राजा जिसे कृष्णने मारा था। शिल्प विद्यालय; शिल्प संबंधी काम करनेका स्थान या -मार-पु. ( स नामका जलजीव । घर, शिल्पगृह, कारखाना । -शास्त्र-पु. वह शास्त्र, शिशुता-स्त्री० [सं०] लड़कपन, बचपन । विद्या, ग्रंथ जिसमें शिल्प-संबंधी निर्माणका शान, विवेचन | शिशताई*-स्त्री० दे० 'शिशुता' । हो, शिल्प-विद्या, शिल्प-विज्ञान ।
शिशुख-पु०सं०] दे० 'शिशुता' । शिल्पी(ल्पिन्)-पु० [सं०] शिल्पकार, कारीगर । शिशुपन*-पु० बचपन, लड़कपन । शिव-पु० [सं०] महादेव, महेश, हिंदुओंके तीन प्रधान शिश्न-पु० [सं०] पुरुषकी जननेंद्रिय, पुरुषका उपस्थ । देवताओं(त्रिमूर्ति)मेंसे एक जिनका कार्य सृष्टिसंहार है। शिश्नोदरपरायण-वि० [सं०] कामुक और उदरंभरि
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शिमोदरवाद-शीताद लंपट और पेटू ।
शीघ्रता-स्त्री०, शीघ्र व-पु० [सं०] क्षिप्रता, फुरती। शिश्नोदवाद-पु० [सं०] वह वाद, शास्त्र, मत, संप्रदाय शीत-वि० [सं०] शीतल, आलस्ययुक्त । पु० शीतकाल जिसका संबंध जननेंद्रिय और उदरसे हो फ्रायडका काम- जो अगहन, पूस, माघ तीन महीनोंका होता है; जादा, सिद्धांत तथा मार्क्सका समाजवाद (व्यंग्य)।
टंडक, शीतलता; सरदी, जुकाम, जल; तुषार । -कटिशिष*-पु० शिष्य । स्त्री० सीख, शिक्षा, नेक सलाह बंध-पु. भूमंडलके उत्तरी तथा दक्षिणी अंशोंके दो चोटी, चुटिया।
कल्पित विभाग जो भूमध्य रेखाके ६६॥ अंश उत्तर तथा शिषा-स्त्री. शिखा।
इतने ही अंश दक्षिणसे शुरू होकर ध्रवप्रदेशतक फैले हैं। शिषी*-पु. मोर ।
-कर-पु० हिमकर, चंद्रमा कपूर । वि० शीतल करने शिष्ट-वि० [सं०] सभ्य, शिक्षा-दीक्षा द्वारा संस्कृत हो | वाला । -कारी यंत्र-पु० (रेफ्रीजरेटर ) ठंढक पहुँचाने, सभ्य समाजमें रहने योग्य; आधुनिक लोकाचार, व्यव- ठंढा बनानेवाला यंत्र; ठंढा बनाये रखकर भोजन आदिको हार आदिमें पटुः सुशील; शांत; बुद्धिमान् धीर: विनीत; शीघ्र खराब होनेसे बचानेवाला आलमारी या संदूकके शिक्षित, नीतिमान् ; श्रेष्ठ, वशीभूत, आज्ञाधीन; अव- ढंगका ढाँचा। -काल-पु० जाड़ेका मौसिम जो अगहन, शिष्ट । पु० मंत्रदाता, सलाहकार; किसी सभाके सदस्य, पूस और माघमें पड़ता है, हेमंत और शिशिर ऋतु, सभ्य, पार्षद् । -प्रयोग-पु. शिष्टों द्वारा व्यवहार में अगहन और पूस महीनों में पड़नेवाली हेमंत ऋतु । लाया जाना । -मंडल-पु० (मिशन; डेलीगेशन) किसी -कालीन-वि० शीतकाल-संबंधी; शीतकाल में होनेसभा, संधि-वार्ता आदिमें भाग लेनेके लिए भेजे गये वाला। -किरण-पु० चंद्रमा ।-ज्वर-पु० जाड़ा देकर अधिकृत प्रतिनिधियोंका दल ।-सभा-स्त्री०शिष्ट-परिषद्', आनेवाला ज्वर, जूड़ी, जया बुखार |-तरंग,-लहरराज्य परिषद् । -सम्मत-विशिष्टों द्वारा अनुमोदित। स्त्री० (कोल्ड वेव) किसी स्थान या क्षेत्रमें तुपारपात आदि शिष्टता-स्त्री०, शिष्टरव-पु० [सं०] शिष्ट होनेका भाव, होनेके कारण ठंढ बहुत अधिक बढ़ जानेसे उसके प्रभावमें भलमनसाहत, सौजन्य, सभ्यता।
आयी हुई हवाकी लहर जो अन्य स्थानोंमें भी जाड़ा या शिष्टाचार-पु० [सं०] शिष्ट व्यक्तियोंका आचार, व्यव- गलाव उत्पन्न कर देती है। -दीधित-पु० चंद्रमा । हार, सदाचार; विनम्रता; किसी समाज, संस्था, कार्यालय -द्युति-पु० चंद्रमा । -प्रधान-वि० (वह स्थान) जहाँ आदि द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार आचरण शीतका प्राधान्य हो; (वह वस्तु) जिसमें शीतगुणका (फारमैलिटी)।
आधिक्य, प्राधान्य हो। -भानु-पु० हिमकर, चंद्रमा । शिष्टाचारी(रिन्)-वि० [सं०] शिष्ट आचरण करनेवाला, -मयूख,-मरीचि-पु० चंद्रमा कपूर । -मूलक-पु० सदाचारी विनम्र किसी समाज, संस्था, कार्यालय आदि
उशीर, खस । वि० ठंढी जड़वाला। -युद्ध-पु० (कोल्ड द्वारा निर्धारित नियमोंके अनुसार आचरण करनेवाला।
वार) वह स्थिति जिसमें सेनाओं और शस्त्रास्त्रों के प्रत्यक्ष शिष्य-वि० [सं०] शिक्षणीय; उपदेश्य; शासनयोग्य । पु०।
प्रयोगकी भीषणता न होते हुए भी राष्ट्रोंमें पररपर अमैत्रीछात्र, विद्यार्थी (शिक्षकसे शिक्षा प्राप्त करनेवाला) चेला। पूर्ण भाव विद्यमान हो, एक दूसरेके विरुद्ध प्रचारकार्य -परंपरा-स्त्री०किसी गुरुसंप्रदायकी परंपरित शिष्यमंडली।
किया जा रहा हो तथा आर्थिक विध्वंसका भी प्रयत्न हो शिष्यता-स्त्री०, शिष्यत्व-पु० [सं०] शिष्य होनेका रहा हो। -रश्मि-पु० चंद्रमा; कपूर । -संग्रह-पु० भाव, कर्म आदि।
(कोल्ड स्टोरेज) विशेष रूपसे ठंढे बनाये गये कोष्ठ या शिस्त-स्त्री० [फा०] सीध, निशाना ।
कमरे में रखी गयी वस्तुओंका मंग्रह जिसमें वे सड़नेशीभा-पु० [अ०] मुसलमानोंके दो बड़े संप्रदायोंमेंसे एक बिगड़ने न पायें। जो मुहम्मदके बाद अलीकोही खिलाफतका हकदार और | शीतल-वि० [सं०] शीतगुणयुक्त, ठंढा सौम्य, मृदु; शांत, उनके पहले के तीनों खलीफाओंको अपहारक मानता है। ठंढे दिमागवाला; संतुष्ट, आनंदित। -चीनी-स्त्री. शीकर-पु० [सं०] वायुप्रेरित जलकण, फुहार; जलकण । । [हिं०] एक प्रकारका मसाला, कबाबचीनी।-पाटी-स्त्री० शीघ्र-अ० [सं०] क्षिप्र, सत्वर, जल्द, तुरत, झटपट । [हिं०] एक प्रकारकी पतली और चिकनी चटाई । -कारी (रिन् )-वि० तुरत काम करनेवाला; तुरत | शीतलता-स्त्री० [सं०] शैत्य, ठंढापन, टटक जड़ता। असर करनेवाला ( भोजन, औषध आदि)। -कोपी-शीतलताई*-स्त्री० दे० 'शीतलता'। (पिन्)-वि० जल्द ऋद्ध हो उठनेवाला, चिड़चिड़ा। शीतलत्व-पु० [सं०] दे० 'शीतलता' । -ग-वि० द्रतगामी । पु० वायुः सूर्य ।-गामी (मिन्)- शीतला-स्त्री० [सं०] एक विस्फोटक रोग जो वसंत और वि० दे० 'शीघ्रग'। -पतन-पु. नारीसंभोग करते। ग्रीष्म ऋतुओं में अधिक होता है, चेचक, वसंतरोग । समय वीर्यका शीघ्र स्खलन, गिरना। -बुद्धि-वि० -वाहन-पु० गधा। तीक्ष्ण बुद्धिवाला । -किपि-स्त्री० (शॉर्ट हैड) लिखनेका शीतांशु-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर । वह ढंग या प्रणाली जिसमें बोलनेवालेके शब्द अत्यंत शीताकुल-वि० [सं०] ठंढसे व्याकुल; जाड़ेके मारे शीघ्रतासे, उनके उच्चरित होनेके साथ-साथ लिखे जा
उच्चारत हानक साथ-साथ लिखे जा काँपनेवाला। सकें, त्वरालिपि, लघुलिपि । -वेधी (धिन)-१० | शीतातप-पु० [सं०] जाड़ा और गी । निशाने पर तुरत तीर चलानेवाला, कुशल बाण चलानेशीताद-पु० [सं०] ( पायोरिया) मसूड़ोंके पक जाने या वाला, लघुहस्त ।
। उनमें व्रण हो जानेका रोग।
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शीतादि-शुक शीताद्वि-पु० [सं०] हिमवान् पर्वत, हिमालय पर्वत । । शील-पु० [सं०] चारत्र, चालचलन, मनकी स्थायी वृत्ति, शीताभ-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर ।
स्वभाव; सद्वृत्ति, शुद्ध चरित्र; सत्स्वभाव; रागद्वेषविहीशीतोष्ण-वि० [सं०] ठंढा और गरम ।
नता, तटस्थ व्यवहार, चालचलन संकोचीप्रकृति,स्वभाव, शीत्कार-पु० [सं०] रतिकालमें संभोग्य स्त्री द्वारा की गयी मुरौवत । वि० प्रवृत्त, उन्मुख स्वभाववाला, (समासमें)। अव्यक्त, अस्फुट ध्वनि; ('सी सी' ध्वनि) ।
मु०-तोड़ना-बेमुरौवत होना, निःसंकोच हो रिआयत, शीन-पु० [अ०] अरबी-फारसी वर्णमालाका एक वर्ण जो। दया आदि न करना। (आँखाम)-न होना-बेमुरौवत देवनागरीके तालव्य 'श'का काम करता है । मु०-काफ होना, करताका व्यवहार करना। -निभाना-किसीके दुरुस्त न होना-उच्चारण शुद्ध, अस्खलित न होना। द्वारा अपना अनिष्ट होनेपर भी पूर्वकी भाँति ही उसके शीभर-पु० [सं०] शीकर, जलकी फुहार । वि० साथ सवृत्तिपूर्वक व्यवहार करना; सत्स्वभावको न आनंददायक ।
छोड़ना। -मर जाना-संकोच, सद्भाव, सद्वृत्ति आदि: शीर-पु० [फा०] दूध, क्षीर । -खोर-वि० दे० 'शीर- का किसी व्यक्तिसे निकल जाना, दुर्वृत्त होना; बेमुरौवत ख्वार' । -स्वार-वि० दूधपीता (बच्चा)।-(२)मादर- होना। -रखना-मुरौवत न छोड़ना, सद्व्यवहार पु० माँका दूध । वि० हलाल, जायज (ला०)।
रखना, करना। शीरां-पु० [फा०] चाशनी, किवाम; किसी चीजको घोंट- शीलवान(वत्)-वि० [सं०] अच्छे शील या आचरण
छानकर प्रस्तुत किया हुआ पेय (बादामका शीराँ)। वाला, सुशील, नेकचलन । शीरा-पु० दे० 'शीराँ'।
शीश-पु० दे० 'शीर्ष। शीराज़ा-पु० [फा०] किताबकी जुजबंदीके बंद जो पुश्तेके शीशमहल-पु. वह कमरा या भवन जिसमें हर तरफ दोनों ओर लगा दिये जाते हैं; पुस्तक और पुट्ठोंपर की शीशे जड़े हों। जानेवाली सिलाई; (ला०) प्रबंध; शृंखला । -बंद-वि० शीशम-पु० एक पेड़ जिसकी लकड़ी मेज, कुसी आदि (पुस्तक) जिसकी सिलाई, जिल्दबंदी हो चुकी हो। मु०- | बनानेके काम आती है, शिंशपा। बँधना-किताबके जुजोंकी सिलाई होना; बिखरी हुई शीशा-पु०[फा०] काँच, आईना; काँचकी सुराही, बोतल। चीजोंका इकट्ठा, शृखलित किया जाना । -बिखरना- मु०-(शे)में उतारना-भूत-प्रेतको शीशे बोतलमें विशृखलित हो जाना, बिगड़ जाना।
उतार लेना; वश में कर लेना। शीराज़ी-वि० [फा०] शीराजका । पु० शीराजका रहने- शीशी-स्त्री० शीशेका छोटा पात्र जिसमें दवा आदि रखी वाला; गोला कबूतरका एक भेद; एक शराब ।
जाय। शीरौं-वि० [फा०] मीठा, मधुर, प्यारा, प्रिय । स्त्री० शंग-पु० [सं०] वटवृक्षा प्राचीन भारतका एक ब्राह्मण फरहादकी प्रेयसी।-कलाम,-ज़बान-वि० मधुरभाषी, सुंदर भाषा बोलनेवाला । -बयान-वि० मधुरभाषी।
शंटि, शंठी-स्त्री० [सं०] शुष्काईक, सूखा अदरक, सोंठ । -बयानी-स्त्री० मधुरभाषण, मीठा बोलना।
शुंड-पु० [सं०] जवान हाथीके गंडस्थल, कनपटीसे बहनेशीरीनी-स्त्री० [फा०] मिठास मिठाई (चढ़ाना, बाँटना)।
वाला मद, दान; हाथीकी सूंड़। शीर्ण-वि० [सं०] कुम्हलाया हुआ; सड़ा-गला, नष्ट; टूटा- शंडक-पु० [सं०] शराब उतारनेवाला, शोडिक रणभेरी। फूटा, चिथड़े चिथड़े हुआ; छितराया हुआ, विकीर्ण, कृश;
शंडा-स्त्री० [सं०] हाथीकी सूंद सुरा; मद्यपानगृह । शुष्क । -काय-वि० कृश शरीरवाला।
शुंडापान-पु० [सं०] मद्यशाला । शीर्णता-स्त्री०, शीर्णत्व-पु० [सं०] शीर्ण होनेका भाव
शुंडाल-पु० [सं०] हाथी । या धर्भ; कृशता; टूटा-फूटा होना।
शंडिका-स्त्री० [सं०] गलेका कौआ, घाँटी; दे० 'शंडा । शीर्ष-पु० [सं०] सिर मस्तक, माथा,ललाट किसी वस्तुका झुंडी(डिन्)-पु० [सं०] शौडिक, मद्य बेचनेवाला हाथी । सिरा, सबसे ऊपरी हिस्सा; खातेकी मद; (वरटेक्स) किसी शुभ-पु० [सं०] एक दानव जो गवेष्ठीका पुत्र और प्रह्लादत्रिभुजकी आधाररेखाके ऊपरका वह विंदु जिसपर दो का पौत्र था (यह दुर्गा द्वारा मारा गया था)।-घातिनी, सरल रेखाएँ दो ओरसे आकर कोण बनायें। -च्छेद -नाशिनी,-मर्दिनी-स्त्री० दुर्गा । -पु० सिर काटनेकी क्रिया, मस्तकछेदन । -ब्राण-पु० शंशुमार-पु० [सं०] ( स नामक जलजंतु । शिरस्त्राण । -पट,-पटक-पु. शिरमें बाँधनेका कपड़ा, शुऊर-पु० [अ०] शान; बुद्धि ढंग, सलीका ।-दार-वि० पगड़ी, साफा आदि । -रक्ष-पु० शिरस्त्राण । -विंद
जिसे कामका ढंग आता हो, तमीजदार।। पु० सिरके ऊपर सबसे ऊँचा स्थान; मोतियाबिंद (जेनिथ)
शुक-पु० [सं०] सुग्गा, तोता; वस्त्र, पोशाक; व्यास दे० 'ऊर्ध्व विंदु'।-स्थान-पु० माथा सिर: सर्वोच्च स्थान ।
मुनिके पुत्र, शुकदेव ।-तरु-पु. सिरीसका पेड़ ।-तुंड-स्थानीय-वि० मूर्धन्य, सर्वोच्च, प्रधान, श्रेष्ठ । पु० सुग्गेकी चोंच । -देव-पु० कृष्णद्वैपायन वेदव्यासके शीर्षक-पु० [सं०] सिर सिरा; सिरकी रक्षा करनेवाली पुत्र । -दुम-पु० दे० 'शुकतरु'। -नलिका न्यायवस्तु (लोहेका टोप आदि); सिरकी हड्डी,शिरोस्थि; पगड़ी, पु० लोभवश फँसनेकी रीति (पक्षी फँसानेकी लासा लगी, टोपी आदि सिरपर देनेकी वस्तु; किसी निबंध, ग्रंथ | नलिनी, नलिका लगाकर उसके पास चारा रख देते हैं,
आदिके विषयका परिचायक शब्द, शब्दसमूह जो इन- सुग्गा (या पक्षी) चारेके लोभसे नलिनीपर बैठता है और (निबंध, ग्रंथ आदि)के ऊपर रखा जाता है (हेडिंग)। । उसके पंजे लासे में फंस जाते है। लोभवश फँसनेकी इसी
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शुकादन-शुद्धापति
७८० क्रियाके आधार पर यह न्याय बना)। -नासिका-स्त्री० मानना (करना, अदा करना)। सुग्गेकी ठोरकीसी नाक। -पुच्छ-पु० सुग्गेकी पूँछ | शुक्ल-वि० [सं०] श्वेत, सफेद, उज्ज्वल, शुद्ध । पु० गंधक ।-वल्लभ-पु० दाडिम, अनार ।-वाह-वाहन- रजत, चाँदी; नवनीत, मक्खन, श्वेत वर्ण, शुभ्र वर्ण; पु० कामदेव जिसका वाहन शुक माना गया है। शुक्ल पक्ष, उजाला पाख; शुक्ल नामक योग जिसमें शुभ शुकादन-पु० [सं०] दाडिम, अनार ।
कार्य करनेका विधान है (ज्यो०); आँखके सफेद अंशमें शुकी-स्त्री० [सं०] सुग्गी ।
होनेवाला एक रोग; श्वेत एरंड वृक्ष, शिव, विष्णु, ब्राह्मणोंशुकेष्ट-पु० [सं०] सिरिसका पेड़।।
की एक उपाधि । -दुग्ध-पु. सिंघाड़ा नामक जलशुकोदर-पु० [सं०] तालीशपत्र ।
फल । -धातु-स्त्री० खड़िया मिट्टी। -पक्ष-पु० शुकोह-पु०[फा०] दबदबा, प्रताप; आतंक (दाराशुकोह)। | महीनेका कृष्ण पक्षके अतिरिक्त दूसरा पक्ष जिसमें चंद्रमाशुक्त-वि० [सं०] साफ किया हुआ, चमकदार, पवित्र | की कला प्रति दिन बढ़ती है और रात उजेली होती जाती किया हुआ; जोड़ा हुआ, सटाया हुआ; अम्ल, खट्टा है । फेन-पु० समुद्रफेन नामक औषध । निष्ठुर कठोर; निर्जन । पु० मांस; कांजिक, काँजी; | | शुक्ला-स्त्री० [सं०] सरस्वती; शर्करा काकोली; विदारी; वह (मधुर) वस्तु जो कुछ दिन रखी रहनेके कारण खट्टी सेंहुड़, श्वेतवर्णवाली स्त्री। हो गयी हो सिरका खटाई; द्रवद्रव्यविशेष ।
शुक्लिमा(मन्)-स्त्री० [सं०] श्वेतता । शुक्ति-स्त्री० [सं०] सुतुही नामक जलजीव; सुतुही नामक शुक्लौदन-पु० [सं०] अरवा चावल । जलजंतुका कड़ा खोल (वैद्य इसका भस्म बनाकर औषधके शुचि-वि० [सं०] पवित्र, शुद्ध निदोष, निरपराध; निर्मल, काममें भी लाते हैं); सीप जिससे मोती निकलता है। __साफ; निष्कपट, निश्छल; श्वेत, उजला; चमकदार, सीपका खोल, शंख, शंखनख, छोटा शंख; नखी गंधद्रव्य देदीप्यमान । पु० अग्नि, सूर्य, चंद्र, श्वेत वर्ण; शृंगार कपालखंड; अश्वावर्त, घोड़ेकी छाती(गरदन)पर बालोंकी शिव । स्त्री० पवित्रता, सफाई । -कर्मा(र्मन्)-वि० भौंरी; एक नेत्ररोग; अर्शरोग, बवासीर, एक तौल जो दो पवित्र कर्म करनेवाला, अच्छे काम करनेवाला । -दुमकर्ष या चार तोलेके बराबर होता है। -ज-पु० मोती।। पु० पीपलका पेड़। -रोचि(स.)-पु० चंद्र । -व्रत-पत्र-पर्ण-पु० सप्तपर्ण वृक्ष, छतिवनका पेड़ । -पुट-| वि० पवित्र संकल्प करनेवाला, अच्छे कामका बीड़ा पु०,-पेशी-स्त्री० सीपका खोल, सुतुही । -बीज,- उठानेवाला। मणि-पु० मोती। -वधू-स्त्री०सीपी; सीपीके भीतर शुचिता-स्त्री०, शुचिच-पु० [सं०] पवित्रता, निर्मलता। रहनेवाला कीड़ा । -स्पर्श-पु० मोतीके धब्बे । शुचिष्मान् (मत्)-वि० [सं०] देदीप्यमान, प्रकाशयुक्त । शुक्र-पु० [सं०] वीर्य, बीज, रेत; सार, तत्त्व; बल, शक्तिः | शुजा-वि० [अ०] वीर, बहादुर । एक ग्रह, सुकवा सप्ताहका छठा दिन ( यह शुक्र ग्रहका शुतुर-पु० [फा०] ऊँट । -खाना-पु० उष्ट्रशाला । भोग्य दिन माना जाता है); शुक्राचार्य, दैत्यगुरु; अग्नि -गाव-पु. एक चौपाया जिसकी गरदन ऊँटकीसी और ज्येष्ठ मास; चित्रक वृक्ष; एक नेत्ररोग, फूली। वि० चम- खुर बैलकासा होता है, जिराफा। -नाल-स्त्री० छोटी कीला; श्वेत, उज्ज्वल; विशुद्ध ।-दोष-पु० वीर्यके दोषके तोप जो ऊँटकी पीठपर लादी और उसीपरसे चलायी कारण हुई नपुंसकता। -प्रमेह-पु० वीर्यक्षीणता ( यह जातो है। -मुर्ग-पु० एक विशालकाय पक्षी जिसकी रोग माना गया है)। -भुक (ज)-स्त्री० मयूरी।। गरदन ऊँटकी तरह लंबी होती है। -सवार-पु० -भू-पु० मज्जा । -ल-वि० शुक्र-संबंधी; वीर्य- साँड़नीसवार ।। वृद्धि करनेवाला । -वार,-वासर-पु. सप्ताहका छठा शुदनी-स्त्री० [फा०] भवितव्यता, होनहार । दिन । -स्तंभ-पु० बहुत दिनोंतक ब्रह्मचर्य रखनेके शुदा-वि० [फा०] जो हो या बीत चुका हो (समासमेंकारण उत्पन्न एक रोग, नपुंसकताका एक भेद, ध्वजभंग। पासशुदा, रजिस्ट्रीशुदा)। शुक्र-पु० [अ०] कृतज्ञताप्रकाश, उपकार मानना, ईश्वरके | शुद्ध-वि० [सं०] पवित्रा निर्मल, साफ; निदोष; सही, उपकारोंकी बड़ाई। -गुज़ार-वि० एहसान माननेवाला, ठीक; श्वेत, सफेद, चमकीला; बिना मिलावटका, सच्चा, शुक्र अदा करनेवाला। -गुज़ारी-स्त्री० कृतज्ञता प्रकट । असली; साफ, निर्मल किया हुआ; निश्छल; केवल; करना । मु०-करना-(खुदाका) एहसान मानना निष्पाप; निष्कलंक। -कर्मा(र्मन्)-वि० शुद्ध कार्य भगवान्के कियेपर संतुष्ट, प्रसन्न रहना। -बजा लाना- करनेवाला; पवित्र । -धी,-मति-वि० शुद्ध विचारोंकृतज्ञता प्रकाश करना । -है-खुदाका शुक्र है, भगवान्- वाला, सच्चा, ईमानदार । -पक्ष-पु० शुक्ल पक्ष । का परम अनुग्रह है।
-हृदय-वि० जिसका हृदय पवित्र, निष्कपट हो। शुक्रांग-पु० [सं०] मोर पक्षी ।
शुद्धता-स्त्री०, शुद्धव-पु० [सं०] शुद्ध होनेका भाव । शुक्रा-स्त्री० [सं०] वंशलोचन नामक एक औषध । शुद्धांत-पु० [सं०] अंत:पुर, रनिवास ('साकेत')।-चारीशुक्राचार्य-पु० [सं०] एक ऋषि जो राक्षसोंके गुरु थे। ये (रिन्),-रक्षक-पु० अंतःपुररक्षक । भृगुके पुत्र थे।
शुद्धा-स्त्री० [सं०] इंद्रजी। शुक्राना-पु० [फा०] वह रकम जो वकील या पेशकारको शुद्धारमा(त्मन्)-पु० [सं०] शिव । वि० पवित्र, शुद्ध, मुकदमा जीतनेके बाद, मेहनतानेके अतिरिक्त, दी जाय। साफ हृदयवाला। शुक्रिया, शुक्रीया-पु० [फा०] कृतशताप्रकाश, उपकार | शुद्धापद्वति-सी० [सं०] अपहति अलंकारका एक भेद
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शुद्धि-शूक जहाँ वास्तविक उपमेयका निषेध करके उपमानकी स्थापना शुभ्रता-स्त्री० [सं०] उज्ज्वलता, सफेदी; दीप्ति । की जाय।
शुभ्रांशु-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर । शुद्धि-स्त्री० [सं०] शुद्ध करनेकी क्रिया, मार्जन; पवित्रता; शुमार-पु० [फा०] भय; गिनती, लेखा । मु०-में न सफाई; बुरा कर्म करने, दूसरे धर्म में परिवर्तित होने आदि- रहना,-मन होना-बेशुमार, संख्यातीत होना। -में के कारण अपवित्र हुए व्यक्तिको शुद्ध करते समयका | न लाना-कुछ न समझना, नितांत उपेक्षणीय मानना। संस्कार (वैदिक धर्म)।-पत्र-पु० वह पत्र, सूची, जिसमें शुमाली-वि० [अ०] उत्तरका, उत्तरी । -अमरीका-पु० (प्रायः) शब्द वा अर्थ शुद्ध करके रखे गये हों; शुद्धिके | उत्तरी अमरीका। पश्चात् धर्मशास्त्रश पंडितों द्वारा शुद्धि वा प्रायश्चित्तके | शरुआत-स्त्री० 'शुरु'का बहु० (हिंदीमें एकवचनमें प्रमाणरूप दिया गया व्यवस्थापत्र ।
प्रयुक्त) आरंभ। शुद्धोदन-पु० [सं०] बुद्धके पिता जिनके राज्यकी राज- शुरू-पु० [अ० 'शुरुअ'] आरंभ उठान । धानी कपिलवस्तु थी।
शुल्क-पु० [सं०] कर, महसूल जो राज्य द्वारा घाट, शुद्धाशुद्धि-स्त्री० [सं०] शुद्ध और अशुद्धका भाव । मार्ग आदिपर लिया जाता है। आवेदनपत्र देने, पढ़ने शुन-पु० [सं०] कुत्ता।
आदिका कर, फीस ( जैसे-प्रवेशशुल्क आदि ); कन्याके शुनक-पु० [सं०] कुत्ता; कुत्तेका पिल्ला ।
माता-पिता द्वारा वरके माता-पितासे अथवा स्वयं वरसे शुनाशीर, शुनासीर-पु० [सं०] इंद्रा उल्लू ।
कन्या देनेके बदले लिया हुआ द्रव्य; दहेज; स्त्री-धनका शुनी-स्त्री० [सं०] कुक्कुरी, कुतिया; कुष्मांडी।
भेद (जैस-भगिनीशुल्क); संभोगके बदले दिया गया शुनीर-पु० [सं०] कुक्कुरीसमूह, कुतियोंका झुंट। द्रव्य ग्राह्य धन ।-ग्राहक-ग्राही(हिन्)-पु० शुल्क शुबहा-पु० [अ०] भ्रम, धोखा, संदेह ।
एकत्र करनेवाला ।-द-पु०विवाहके लिए शुल्क देनेवाला। शुभंकर-वि० [सं०] मंगलकारी, कल्याणकर ।
शुल्काध्यक्ष-पु० [सं०] चुंगीका अध्यक्ष । शुभंकरी-वि०स्त्री० [सं०] मंगलकारिणी । स्त्री०पार्वती,दुर्गा। शुल्काई-वि० [सं०] (ड्यूटिएबिल) शुल्क या कर बैठाये शुभ-वि० [सं०] मंगलमय, कल्याणकर, सुखद अनुकूल जाने योग्य,जो उन वस्तुओंकी सूचीके अंतर्गत हो जिनपर अच्छा । पु० मंगल, कल्याण, सुख ।-कर-वि० कल्याण- शुल्क ग्रहण करनेका निश्चय हुआ हो। कारी, मंगलकारक । -करी-वि० स्त्री० मंगलकारिणी। शुश्रपक-वि० [सं०] सेवा-कार्य करनेवाला, खिदमतगार; स्त्री० पार्वती।-कर्मा (मन)-वि० अच्छा कर्म करने- आज्ञाकारी । पु० नौकर, दास । वाला । -ग-वि० सुंदर; भाग्यवान् । -ग्रह-पु० शुश्रषा-स्त्री० [सं०] सेवा-टहल; (बच्चेका) पालन-पोषण; मंगलकारी, अनुकूल ग्रह-गुरु, शुक्र आदि । -चिंतक- खिदमतगारी स्वास्थ्यकी देखरेख, परिचर्या कथन सुननेवि०किसीकी भलाई चाहनेवाला, हितैषी ।-दंती-स्त्री० की इच्छा । -प्रणाली-स्त्रो० रोगीकी यथोचित सेवाका सुंदर दाँतोंवाली स्त्री। -दर्शन-वि० सुंदर; जिसके । ढंग, नियम। दर्शनसे मंगल हो, जिसका मुँह देखनेसे शुभ शकुन हो। शुष्क-वि० [सं०] सूखा, अनार्द्र, जिसमें गीलापन न -दायी (यिन्)-वि० मंगलप्रद, शुभद । -लग्न-पु० हो शीर्ण, नीरस, कठिन, दिमागको थकानेवाला (जैसेशुभ मुहूर्त, मंगल-घड़ी। -शंसी (सिन्)-वि० मंगल- शुष्क कार्य); समाजके सुख-दुःखपर ध्यान न रखनेवाला, कथन करनेवाला, मंगलकी सूचना देनेवाला ।-सूचक- हृदयहीन (जैसे-शुष्क व्यक्ति); निष्प्रयोजन, निस्सार । वि० मंगलकी सूचना देनेवाला । -सूचन-पु०,-सूचना- -वृक्ष-पु० धव वृक्ष । -व्रण-पु. वह घाव जो सूख स्त्री० मंगलज्ञापन, मंगलसूचना। -स्थली-स्त्री० मंगल- गया हो, अच्छा हो गया हो, भरा, पूजा घाव । भूमि; यशस्थल ।
शुष्कता-स्त्री० [सं०] नीरसता; कठिनता, हृदयहीनता; शुभांग-वि० [सं०] सुंदर ।
व्यर्थता । शुभांगी-वि० स्त्री० [सं०] सुंदरी (नारी) । स्त्री० रति । । शुष्कांग-वि० [सं०] जिसका शरीर सूख गया हो, दुबलाशुभा-पु०दे० शुबहा' । स्त्री० [सं०] शोभा, सौंदर्य, दीप्ति, | पतला । पु० धव वृक्ष ।। कांति; कामना, इच्छा; देवसभा।
शुष्का, शुष्काईक-पु० [सं०] सोंठ, गुंठी । शुभाकांक्षी(क्षिन्)-वि० [सं०] हितैषी, हितेच्छु । शुहदा-पु० [अ०] गुंडा; बदमाश, बदचलन । -पन,शुभागमन-पु० [सं०] मंगलप्रद, सुखद आगमन । पना-पु० गुंडई; बदमाशी। शुभानुष्ठान-पु० [सं०] मांगलिक कर्म ।
शुहरत-स्त्री० [अ०] ख्याति, प्रसिद्धि; चर्चा; नेकनामी शुभावह-वि० [सं०] मंगलकारी।
बदनामी (देना, पाना, होना)। शुभाशीर्वाद-पु० [सं०] मंगलकारी आशीर्वचन ।
शूक-पु० [सं०] किसी वस्तुका चिकना नुकीला अग्रभाग; शुभाशीष-पु० दे० 'शुभाशीर्वाद ।
जौ आदिका नुकीला अग्रभाग, जौ आदिकी बालका शुभ्र-वि० [सं०] उज्ज्वल देदीप्यमान, चमकीला सफेद। नुकीला हिस्सा, हूँड, शिखा, दया; जल-मल में पैदा होनेपु० श्वेत वर्ण, सफेद रंग; चंदन, अभ्रक, अबरक; सेंधा वाला जहरीला कीड़ा; (पिन) दे० 'कटिका'। -धानीनमक; चाँदी; कसीस । -कर-पु० (श्वेत किरणोंवाला)। स्त्री० (पिनकुशन) दे० 'कंटिकाधार'। -धान्य-पु० चंद्रमा कपूर । -भानु-पु० चंद्रमा। -रश्मि-पु० । ट्रॅडवाले अनाज (जैसे-जौ आदि)। -पत्र-पु० विषचंद्रमा।
हीन स। -पिंडी,-शिंबा,-शिंबी-स्त्री० केवाँच,
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शूकर-श्रृंग
७८२ कपिकच्छु ।
शूर-वि० [सं०] शौर्यशाली, वीर; शक्ति संपन्न । पु० शूकर-पु० [सं०] वाराह, सूअर नामक पशु। -के शौर्यवान् या वीर व्यक्ति । -मानी(निन्)-पु. अपनी पु० वाराही कंद । -क्षेत्र-पु० सूकरखेत, सोरी नामक वीरतापर घमंड करनेवाला व्यक्ति। -विद्या-स्त्री० तीर्थस्थान ।
युद्ध-विद्या । -वीर-पु. वीर व्यक्ति, योद्धा ।-श्लोकशूकरी-स्त्री० [सं०] सूअरी, वाराही; वराहक्रांता । पु० वीरोंके शौर्यपूर्ण कार्योंकी स्तुति, प्रशंसा, कहानी। शूकवती-स्त्री० [सं०] केवाँच, कपिकच्छु ।
-सेन-पु० मथुरा और उसके आस-पासका प्रदेश; शूचिवेधन-पु० दे० 'सूचीवेधन' ।
कृष्णके पितामहका नाम जो शूरसेन प्रदेशके राजा थे। शूची*-स्त्री० सूई।
-सेनप-पु० शूरोंकी सेनाके पालक, रक्षक, कात्तिकेय । शूति-स्त्री० [सं०] वृद्धि, बढ़ती। -पर्ण-पु. आरग्वध शूरण-पु० [सं०] एक जमीकंद, सूरन श्योनाक । वृक्ष, अमलतासका पेड़।
शूरता-स्त्री०, शूरत्व-पु० [सं०] शूर होनेका भाव । शूद्र-पु० [सं०] वैदिक आर्यों द्वारा निर्धारित वर्णव्यवस्था- | शूरताई-स्त्री० दे० 'शूरता'। मेंसे चतुर्थ वर्ण, सबसे निम्न वर्ण जिसका कर्तव्य अन्य | गुरा*-पु. शूर, योद्धा; सूर्य, रवि।। तीन वर्गों की सेवा है। अछूत, हरिजन; निम्न कोटिका शूर्प-पु० [सं०] अन्न साफ करने, पछोड़नेके लिए सकि, व्यक्ति ।-जन्मा(न्मन्)-वि० शूद्रसे उत्पन्न ।-प्रिय- बाँसके छिलके आदिका बना पात्र, सूप । -कर्ण-पु. वह पु० पलांडु, प्याज । -याजक-पु० शूद्रके लिए यज्ञ जिसके कान शूपके सदृश हों-हाथी, गणेश आदि । करानेवाला । -सेवन-पु०,-सेवा-स्त्री० शूद्रकी परि- -णखा,-णखी-स्त्री. रावणको बहिन जिसे लक्ष्मणने चर्या या नौकरी करना।
नाक-कानविहीन कर दिया। शूद्रक-पु० [सं०] 'मृच्छकटिक' नाटकके रचयिता प्रसिद्ध शुल-पु० [सं०] शरीरगत वातप्रकोपजन्य एक वेदना रोग; कवि और राजा।
वेदना, व्यथा, पीड़ा खूप नुकीला लोहेका काँटा, त्रिशूल; शूद्रा-स्त्री० [सं०] शूद्र वर्णकी स्त्री। -वेदी(दिन्)- एक शस्त्र, बरछा, भाला; प्राचीन काल में मृत्युदंड देनेका पु० शूद्रासे विवाह करनेवाला उच्च वर्णका व्यक्ति ।-सुत- एक औजार, सूली; मांस भूननेका काँटा, सीखचा केतन, पु० शूद्राके गर्भसे उत्पन्न पुत्र ।
ध्वज, झंडा; मृत्यु; ज्योतिषके अनुसार विष्कम आदि शूद्राणी-स्त्री० [सं०] शूद्रकी स्त्री, शूद्री।
सत्ताईस योगोंमेंसे नवाँ योग ।-धन्वा (वन),-धरशूद्रान-पु० [सं०] शूद्र वर्णके स्वामीका अन्न, शूद्र वर्णके पु० शिव । -धारी(रिन्)-पु० शिव । -नाशन-पु० स्वामीसे प्राप्त जीविका।
सौवर्चल लवण कई औषधोंको मिलाकर बना हुआ एक शूद्री-स्त्री० [सं०] शूद्राणी, शूद्रकी स्त्री।
चूर्ण जो शूल रोगमें खाया जाता है (आवे०)।-नाशीशून-वि० [सं०] शून्य फूला हुआ; वद्धित।
(शिन्)-पु० हींग । -पाणि-पु० शिब ।-हस्त-वि० शूना-स्त्री० [सं०] घंटी; अधोजिहिका, प्राणिवधस्थान; शूल धारण करनेवाला । पु० शिव । -हृत-पु. हींग । गृहस्थीके वे स्थान या वस्तुएँ जहाँ या जिनसे छोटे-छोटे मु०-उठना-शूल चुभानेकीसी पीड़ाका होना। -देना जीवोंकी हत्या होनेकी संभावना रहती है (वे स्थान है- | -तीव्र व्यथा उत्पन्न करना। चूल्हा, चक्की, झाड़, ऊखल आदि)।
शूलना*-अ० क्रि० शूलकी भाँति गड़ना; पीड़ा देना। शून्य-वि० [सं०] असंपूर्ण, रिक्त, खाली; निर्जन; तुच्छ शूलिका-स्त्री० [सं०] सलाख जिसमें माँस गोदकर हीन, रहित (जैसे-शानशून्य); निराकार; उदास । पु० | भूनते है। रिक्तता; अभावसूचक चिह्न, विदुः निर्जन स्थान, खाली शूलिनी-स्त्री० [सं०] दुर्गा । जगह; आकाश; अभाव; ब्रह्म । -गर्भ-पु. एक फल, | शूली-स्त्री० [सं०] दे० 'सूली' । पपीता । -दृष्टि-स्त्री० लक्ष्यहीन, उदास दृष्टि । -पथ- शूली(लिन)-वि० [सं०] शूल धारण करनेवाला। पु. पु० आकाश; निर्जन मार्ग । -पदवी-स्त्री० ब्रह्मरंध्र । शिव भालाबरदार ।। -मध्य-वि० (वह वस्तु) जिसका भीतरी हिस्सा खाली | शुल्य-वि० [सं०] शूलमें खोंसकर पकाया हुआ। पु० हो ( नल, नलिका, नरकट आदि)। -मनस्क,- | कबाब; सूली देने योग्य व्यक्ति। -पाक,-मांस-पु० मना(नस.)-वि० अन्यमनस्क, भग्नचेता, कोई काम कबाब । करते, किसीकी बात सुनते हुए भी मनको दूसरी ओर शृंखल-पु० [सं०] शृंखला, सिक्कड़, सिकड़ी; हाथीका पैर लगाये रखनेवाला। -वाद-पु० वह दार्शनिक सिद्धांत बाँधने के लिए लोहेकी जंजीर, निगड़, पादबंधन; बेड़ी जो जीव, ईश्वर आदिकी सत्ता स्वीकार नहीं करता, बौद्ध बंधन; करधनी; परंपरा, सिलसिला। दर्शन; नास्तिकता ।-वादी(दिन)-पु० बौद्धा नास्तिक। शृंखलता-स्त्री० [सं०] क्रमिकता, शृंखलाबद्धता।
-हृदय-वि० शून्यमनस्क; खुले दिलवाला; जिसके मनमें शृंखला-स्त्री० [सं०] परंपरा, क्रम, कोटिक्रम, श्रेणी; किसी तरहका संदेह न हो।
कमरकी पेटी जिससे पुरुष अपनी धोती आदि बाँधते है, शून्यता-स्त्री०, शून्यत्व-पु० [सं०] शून्यका भाव । कमरबंदा दे० 'शृंखल'।-बद्ध-वि०क्रमयुक्त, श्रृंखलित । शूप-पु० 'शूर्प'।
| श्रृंखलित-वि० [सं०] सिकड़ीसे जकड़ा हुआ; बँधा हुआ शूरंमन्य-वि० [सं०] शूर न होते हुए भी जो व्यर्थ ही क्रमयुक्त। अपनेको शूर मानता हो, शूरमानी।
श्रृंग-पु० [सं०] पर्वतशिखर, पहाड़की चोटी; मकान,
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शृंगार-शैतान मंदिर आदिका ऊपरी हिस्सा, कँगूरा, ऊपरी भाग; कोटि, रना-डींग मारना, अपने मुहँ अपनी बड़ाई करन।। सिरा चंद्रमाकी नोक, शशिविषाण; बाणकी नोक; सींग; शेफालिका, शेफाली-स्त्री० [सं०] निर्गुडी, नीलिका 'सिंघा' नामक बाजा । -ग्राहिता न्याय-पु० मरकहे | नील सिंधुवारका पौधा ।। साँड़का एक सींग पकड़ लेने पर दूसरा सींग भी आसानीसे शेर-पु० [फा०] बाघ, व्याघ्र; सिंह (ला०) वीर पुरुष, पकड़ा जा सकता है, इसी तथ्यके आधारपर यह न्याय निडर व्यक्ति । [स्त्री० 'शेरनी' 1] -दरवाज़ा-पु० वह बना है, इसका तात्पर्य यह है कि किसी दुष्कर कार्यका द्वार या फाटक जिसके दोनों ओर शेरकी प्रतिमा बनी कुछ हिस्सा हो जानेपर उसका शेष भाग भी संपन्न हो हो, सिंहद्वार । -दहाँ-वि० शेरकासा मुहँवाला (कड़ा); जाता है। -ज-पु० अगुरु चंदन, अगर; बाण । वि० (मकान) जो सामने अधिक और पीछे कम चौड़ा हो। शृंगसे उत्पन्न । -प्रहारी(रिन् )-वि० सींगसे मारने- -दिल-वि० वीर, निडर । -नुमा-वि० शेरकी शकलवाला। -प्रिय-पु.शिव । -मूल-पु० सिंघाड़ा। वाला । -पंजा-पु० एक हथियार, बधनखा।-बच्चाशृंगार-पु० [सं०] साहित्यशास्त्रके नवरसोंमेंसे एक प्रधान पु० शेरका बच्चा एक तरहकी छोटी बंदूक । वि० वीर, रस (इसे रसराज कहते हैं जिसका कारण इसकी व्यापकता साहसी। -बबर-पु० सिंह । -का नाखन-बधहै, अर्थात् जीवनके दो प्रधान पक्षों संयोग तथा वियोग नखा। -का.बाल-शेरकी मूंछका बाल जो विष है दोनोंतक इसकी पहुँच है। इसीसे इसके दो भेद माने गये और जिसे खानेसे, कहते हैं कि कलेजा कटकर गिर ह-संयोगशृंगार और वियोग वा विप्रलंभशृंगार । इसके पड़ता है।-की खाला-बिल्ली । मु०-करना-हौसला रसराज कहे जानेका एक कारण यह भी है कि इसमें | बढ़ा देना, निडर बना देना ।-की नज़र घूरना-कोपरसके सभी अवयव-विभाव, अनुभाव, संचारी अपने भरी दृष्टि से देखना। -के मुंहमें जाना-जान-जोखिमसभी भेदों सहित प्राप्त होते हैं); संभोग, सहवास; सौंदर्यके वाले स्थानमें जाना । -के महसे शिकार लेना-जबरप्रसाधनों द्वारा स्त्री वा पुरुष-शरीरका बनाव-सजाव; किसी दस्तसे कोई चीज छीन लेना। -बकरीका एक घाट वस्तुका सजाव; शोभाकी वस्तु; हाथीके शरीरपर बनाये पानी पीना-शुद्ध न्यायका राज्य होना, छोटे-बड़े सबके गये सेंदुरके निशान । -चेष्टा-स्त्री० काम-चेष्टा, संभोग- | साथ एकसा व्यवहार होना । -होना-हौसला बढ़ना; चेष्टा ।-भाषित-पु० प्रेमालाप ।-भूषण-पु० सिंदूर ।। प्रबल होना । -वेश-पु० रमणीय, आकर्षक, सुंदर वेशभूषा जिसे | शेरवानी-स्त्री० एक तरहका आधुनिक ढंगका अँगरखा। धारण कर प्रेमी अपने प्रियसे मिलनके लिए जाता है। शेल-पु० शल्य, बरछी ( कविप्रि०)। -हाट-पु० वेश्याओं के बैठनेका बाजार ।
शेवाल-पु० [सं०] सेवार । शृंगारण-पु० [सं०] सजानेकी क्रिया; शृंगारचेष्टा । शेष-वि० [सं०] बचा हुआ, बाकी, अवशिष्ट; छोड़ा हुआ शृंगारिणी-स्त्री० [सं०]खूब बनाव-सजाव करनेवाली नारी। उच्छिष्ट; समाप्त । पु० स्वीकृत वस्तुसे अतिरिक्त वस्तु शृंगारिक-वि० [सं०] श्रृंगारसे संबंध रखनेवाला, भंगारका। कामकी चीजके अलावा बची चीज, भागकी बाकी (गणित); शृंगारिया-पु० शृंगार करनेवाला; बहुरुपिया।
घटानेके बाद बची संख्या वध नाश ध्वंस; अनंत नामक शृंगारी(रिन्)-वि० [सं०] शृगारकी वृत्तिसे युक्त शृंगा- सर्पराज; लक्ष्मण बलरामः । -काल-पु० मरणकाल । रिक । पु० कामुक, प्रेमी व्यक्ति सुंदर वेशवाला व्यक्ति । | -धर-पु. शिव । -रात्रि-स्त्री० रात्रिका अंतिम प्रहर, शृंगी-स्त्री० [सं०] सिंघी नामक मछली; गहना बनानेके पिछली रात। -शयन,-शायी(यिन)-पु० विष्णु । लिए सोना; विष; अतीस ।
शेषर*-पु० दे० 'शेखर'। शृंगी(गिन)-वि० [सं०] शृंगयुक्त । पु० पर्वत हाथी | शेषांश-पु० [सं०] बचा भाग अंतिम भाग। मेष, भेड़ा, वृक्ष; एक ऋषि (इन्हींके शापसे परीक्षितको शेषावस्था-स्त्री० [सं०] बुढ़ापा । तक्षकने टसा था); सिंगा बाजा; शिव।
शेषोक्त-वि० [सं०] सबके या सब कुछ कह लेने के बाद शृग-पु० शृगाल।
अंतमें कहा हुआ; सबके अंतमें लिखा हुआ। शृगाल-पु० [सं०] सियारः डरपोक व्यक्ति; खल; धूर्त | शैख़-पु० [अ०]वृद्ध; गुरुजन; धर्मशास्त्रका पंडित; खानकाह आदमी।
या दरगाहका खलीफा; महंत अरब कबीलोंका सरदार शेख-पु० दे० 'शैख' मुसलमानोंकी चार जातियों (शेख, | मुसलमानोंकी चार जातियों मेंसे एक । सैयद, मुगल, पठान)मेंसे एक ।-चिल्ली-पु० एक कल्पित | शैतान-पु० [अ०] कुरानके अनुसार अजाजील जिन जो मूर्ख जिसकी मूर्खताकी अनेक कहानियाँ जनसाधारणमें बड़ा पंडित था और फिरिश्तोंको पढ़ाया करता था, पर प्रसिद्ध है; बड़ी-बड़ी हवाई योजनाएँ बनानेवाला व्यक्ति ।। खुदाके आदमको सिजदा करनेकी आशाका अहंकारवश -चिल्लीका मनसूबा-हवाई योजना। -सदो-पु० पालन न करनेके कारण स्वर्गसे निकाला गया और अपढ़ स्त्रियों में पृजित एक पीर या जिन ।
तबसे वह आदमकी संतान मनुष्य जातिको सन्मार्गसे शेखर-पु० [सं०] शिरोभूषण, किरीट, मुकुट आदि; सिर- बहकानेका काम करने लगा, इबलीस प्रेत, पिशाच ।
पर लपेटी हुई माला; पर्वत-शिखर, शृंग, चोटी; शीर्ष । वि० बहकानेवाला; नटखट; दुष्ट, उपद्रव खड़ा करानेवाला । शेखी-स्त्री० घमंड; डोंग ।-खोर-वि० दे० 'शेखीबाज'। -का. बच्चा-भारी दुष्ट, खुराफाती आदमी। -का -बाज़-वि० डींग मारनेवाला, दूनकी लेनेवाला । मु. लश्कर-नटखट लड़कोंका समूह । -की आँत-बहुत -किरकिरी होना,-झड़ना-धमंड चूर होना ।-बघा- | लंबी चीज, वह चीज जिसका सिलसिला बहुत दूरतक
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शैतानी-शोधना चला जाय; लंबी कथा । -की खाला-दुष्ट, कलह वियोग, नाशसे मनमें बार-बार उठनेवाली चिता, मनःकरनेवाली स्त्री । -की डोर-मकड़ीके जालेका तार जो पीड़ा। -कारक-वि० शोकदायक, पीड़ा देनेवाला। अक्सर रास्तेमें उड़ता रहता है और आँखमें पड़ जाता है। -नाशन-वि० शोक दूर करनेवाला । -परायण-वि० मु०-उतरना-क्रोध शांत होना; बुराई या उपद्रवकी शोकसे ग्रस्त, पीडाभिभूत । -विकल,-विह्वल-वि० प्रवृत्ति या हठका दूर होना ।-के कान काटना-शैतानीमें शोकाकुल । -संतप्त-वि० गमसे जला हुआ, शोकशैतानसे बढ़ जाना। -(सिरपर) चढ़ना,-सवार | पीड़ित । -सूचक-वि० शोककी सूचना देनेवाला, शोकहोना-गुस्सा चढ़ना; शरारत, बुराईपर आमादा होना। प्रकाशक । -हर-वि० शोकहर्ता जिद चड़ना।
शोकाकुल-वि० [सं०] शोकसे विह्वल, व्याकुल । शैतानी-वि० [अ०] शैतानका । स्त्री० शैतानका काम; शोकातुर-वि० [सं०] शोकसे छटपटानेवाला। शरारत, दुष्टता।
शोकाभिभूत-वि० [सं०] शोकसे ग्रस्त, पीड़ित । शैत्य-पु० [सं०] शीतलता, सदीं।
शोकार्त-वि० [सं०] शोकके कारण दीन-हीन बना हुआ, शैथिल्य-पु० [सं०] शिथिलता, सुस्ती; ढीलापन । शोकके कारण जिमकी अवस्था कारुणिक हो गयी हो। शैदा-वि० [फा०] प्रेममें पागल हो जाने, सुध-बुध खो। शोकाविष्ट-वि० [सं०] शोकसंत्रस्त । देनेवाला।
शोकावेग-पु० [सं०] गमका दौर, बार-बार शोवकी तीव्र शैल-वि० [सं०] शिला-संबंधी; पथरीला; पत्थर जैसा अनुभूतिका होना । कठोर । पु० पर्वत, पहाड़, गिरि, बड़ा पत्थर या शिला। शोकोपहत-वि० [सं०] गमका मारा। -कन्या,-कुमारी-स्त्री. गिरिजा, पार्वती, शिव-पत्नी। शोख-वि० [फा०] ढीठ; चंचल; नटखट; गहरा (रंग)। -कूट-पु० पहाड़की चोटी। -ज,-जात-पु० शैलेय । शोखी-स्त्री० [फा०] ढिठाई; चंचलता (रंगका) गहरापन। -जा-स्त्री० पार्वती, दुर्गा । -तटी-स्त्री० पहाड़की शोच-पु० [सं०] चिंता; शोक; दुःख, पीड़ा। घाटी।-तनया-स्त्री० पार्वती।-धर-पु० गोवर्धनधारी शोचनीय-वि० [सं०] चित्य, चिंतनीय, शोच्या जिसे कृष्ण । -नंदिनी-स्त्री० गिरिजा, पार्वती । -निर्यास- देखकर पीड़ा, रंज हो, रंज करने लायक । पु० शिलाजीत ।-पति-पु० पहाड़ोंका स्वामी हिमालय। शोच्य-वि० [सं०] शोचनीय चिंतनीय; दयनीय । -पुत्री-स्त्री० पार्वती, गंगा जिसका उद्गम हिमालय । शोण-वि० [सं०] लाल, लालिमायुक्त । पु० लाल रंग; पहाड़ है। -रंध्र-पु० गुफा, गह्वर । -राज-पु० हिमा- लालिमा, लाली रुधिर, रक्त; सिंदूर, अग्नि, सोन नद लय । -राज-सुता-स्त्री. पार्वती, दुर्गा; गंगा नदी। जो गोंडवानेसे निकल पटनेके पास गंगामें मिला है। -वीज-पु० भल्लातक वृक्ष, भिलावाँ। -सुता-स्त्री० -पद्म-पु. लाल कमल । -भद्र-पु० सोन नद । गिरिजा ज्योतिष्मती।
-रत्न-पु० पद्मराग मणि, लाल, मानिक । शैलाधिप, शैलाधिराज-पु० [सं०] हिमालय ।
शोणित-वि० [सं०] लाल, रक्तवर्णवाला । पु० रक्त, खून शैली-स्त्री० [सं०] किसी कामके करनेका ढंग, तरीका, कुंकुम । -चंदन-पु. लाल चंदन । रीति, पद्धति साहित्य, कला आदिकी रचना, अभिव्यक्ति- | शोणितोपल-पु० [सं०] माणिक्य, लाल । की रीति इनकी रचना, अभिव्यक्तिका कौशल 1-कार- शोणिमा(मिन्)-स्त्री० [सं०] लालिमा । पु० साहित्य, कला आदिको विशिष्ट, आकर्षक शैलीका शोथ-पु० [सं०]सूजन ।-नी-स्त्री०पुनर्नवा, गदहपूरना। निर्माण करनेवाला व्यक्ति ।
शोथारि-पु० [सं०] गदहपूरना । शैलूष-पु० [सं०] नट, अभिनेता; नर्तकधूर्त, शैतान ।। शोध-पु० [सं०] शुद्धि, सफाई; गलतको सही, शुद्ध शैलेंद्र-पु०[सं०] हिमालय ।-सुता-स्त्री० पार्वती; गंगा। करनेकी क्रिया, संस्कार; चुकाना, अदा करना; खोज, शैलेय-वि० [सं०] शैल-संबंधी; शैलसे उत्पन्न; पथरीला; / अनुसंधान ।
सदृश अचल; पत्थरके समान कठिन । पु० शैलज | शोधक-पु० [सं०] शुद्धिकर्ता, सफाई करनेवाला व्यक्ति नामक गंधद्रव्य, शिलाजतु: तालपर्णी; सैंधव, सेंधा नमक। श्रुटि शुद्ध करनेवाला व्यक्ति खोजी, अन्वेषक । वि० शुद्ध शैल्य-वि० [सं०] शिला-संबंधी पथरीला; पत्थरसा कड़ा।। करनेवाला। शैव-वि० [सं०] शिवका या शिवसे संबंध रखनेवाला। शोधम-वि० [सं०] शुद्धिकारक, साफ करनेवाला । पु० पु० शिव-संबंधी संप्रदाय, मत, दर्शनका अनुयायी शिव- शुद्धीकरण; संशोधन, सही करनेकी क्रिया; परिष्करण, भक्त; शिवोपासक संप्रदाय ।
मार्जन (जैसे-व्रण आदिका शोधन); ऋण चुकानेकी शैवल-पु० [सं०] पद्मकाष्ठ, सेवार ।
क्रिया; प्रतिशोध; अन्वेषण, खोज करनेका कार्य; धातुको शैवलिनी-स्त्री० [सं०] नदी, सरिता ।
औषधरूपमें प्रयोगके लिए उसे शुद्ध करनेकी क्रिया (आ० शैवाल-पु० [सं०] सेवार ।
वे०); किसी शुभ कार्यके लिए विहित-अविहित मास, दिन शैशव-पु० [सं०] शिशुकी अवस्था, बचपन, शिशु-वृत्ति । आदिके विचार करनेकी क्रिया (ज्यो०); शरीर-शुद्धिके वि०शिशु-संबंधी।
लिए विरेचन; सफाई आदिके लिए वस्तुओंका हटाना, शैशिर-वि० [सं०] शिशिर ऋतु-संबंधी; शिशिर ऋतुमें अपनयन; भाज्यमेंसे भाजकको घटाना (गणित)। उत्पन्न ।
शोधना-सक्रि० शुद्ध करना; गलतको सही करना; साफ शोक-पु०[सं०] इष्ट वस्तु अथवा प्रिय व्यक्ति(बंधु-बांधव)के करना, परिष्कार करना; खोज करना धातुको ओषधरूपमें
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शोधनी-शौच प्रयोगके लिए शुद्ध करना (आ० वे०); किसी शुभ कार्यके करनेवाली बात कहना। लिए मास, तिथि आदिका विचार करना (ज्यो०)। शोष-पु० [सं०] शुष्कता, सूखापन; सूखनेका भाव या शोधनी-स्त्री० [सं०] मार्जनी, झाड़ ताम्रवल्ली; नीली। क्रिया; क्षीण होने, दुबला-पतला होने, मुरझानेका भाव; शोधनीय-वि० [सं०] शोधनके योग्य, शोध्य ।
यक्ष्मा रोगका एक प्रकार जिसमें आदमी क्षीण और पीला शोधवाना-स० क्रि० शोधका कार्य कराना साफ कराना होता जाता है। सुखंडी रोग। ठीक कराना; खोज कराना।
शोषक-वि०, पु० [सं०] शोषण करनेवाला, सोखनेवाला; शोधाई-स्त्री० शोधनेकी क्रिया या उजरत ।
सुखानेवाला; चूसनेवाला क्षीण करनेवाला । शोधित-वि० [सं०] शुद्ध किया हुआ सही किया हुआ, शोषण-पु० [सं०] सोखनेकी क्रिया; चूसनेको क्रिया; सुधारा हुआ; मार्जित चुकाया हुआ; अन्वेषित । रस, स्नेहसे रहित करना; क्षीण करनेकी क्रिया; किसीके शोधया-पु. शोधक, शुद्ध करनेवाला।
श्रमसे या व्यापार आदिसे अनुचित लाभ उठाना। शोध्य-वि० [सं०] शोधनीय । -पत्र-पु० (प्रफ) किसी शोषणीय-वि० [सं०] शोषणके योग्य । छपनेवाली वस्तुका वह नमूना जो उसकी छपाईके पहले शोपयिता(त)-वि०, पु० [सं०] शोषण करनेवाला। अशुद्धियाँ ठीक करनेके लिए तैयार किया जाता है। शोषित-वि० [सं०] सोखा हुआ; सुखाया हुआ; क्षीण शोबदा-पु० [अ०] जादू या इंद्रजालका काम; हाथकी किया हुआ खत्म किया हुआ, नष्ट किया हुआ। सफाईका काम, करतब, बाजीगरी छल, धोखा । -बाज़ शोषी(पिन )-वि० [सं०] शोषण करनेवाला। वि० शोबदा करनेवाला, बाजीगर छलिया।
शोहदा-पु० दे० 'शुहदा'। -पन-पु०.दे.'शुहदापन' । शोबा-पु० [अ०] टुकड़ा, विभाग; शाखा।
शोहरत-स्त्री० [अ०] प्रसिद्धि, ख्याति; धूम, जोरदार शोभ*-स्त्री० शोभा, दीप्ति ।
खबर । शोभन-वि० [सं०] दीप्तिमान् , सुंदर, मनोहर, मंगल, शोहरा-पु० दे० 'शोहरत' । शुभ सज्जित । पु० सौंदर्य अलंकार, मंडन शुभ । शौंड-वि० [सं०] मत्त, मतवाला; मद्य पीनेका अभ्यासी, शोभना-स्त्री० [सं०] हरिद्रा, हल्दी; गोरोचना; सुंदर | शराबी; दक्ष, कुशल, चतुर ।
स्त्री । * अ० क्रि० सोहना, शोभा देना, शोभित होना। शौंडिक-पु० [सं०] प्राचीन कालीन विशेष जाति जो मद्य शोभांजन-पु० [सं०] शोभनक वृक्ष, सहिजनका पेड़। । प्रस्तुत कर इसका व्यापार करती थी। शोभा-स्त्री० [सं०] प्रभा, कांति, चमक; (शारीरिक तथा शौंडिकी, शौडिनी-स्त्री० [सं०] शौडिक जातिकी स्त्री। प्राकृतिक) सौंदर्य, छवि; काव्यगत दस गुणोंमेंसे एक शौंडी(डिन्)-पु० [सं०] शौडिक, मद्यविक्रेता। गुण; एक काव्यालंकार; एक वर्णवृत्त हरिद्रा, हलदी। शौभाल, शौवाल-पु० [अ०] मुसलमानोंका दसवाँ चांद्र -कर-वि० सौंदर्य उत्पन्न करनेवाला। -धर-वि० मास जिसकी पहली तारीखको ईद मनायी जाती है। शोभा धारण करनेवाला, सुंदर । -शून्य,-हीन-वि० शौक-पु० [अ०] प्रबल इच्छा, चाहा रुचि, चसका, असुंदर, सौंदर्यरहित।।
व्यसन; उत्साही धुन । मु०-करना-भोग करना (हुक्का, शोभान्वित-वि० [सं०] सौंदर्यपूर्ण, छविमय ।
सिगरेट आदि देते समय 'शौक कीजिये' कहते है)। शोभामय-वि० [सं०] सौंदर्ययुक्त ।
-चर्शना-इच्छाका तीव्र होना। -से-रुचिपूर्वक शोभायमान-वि० [सं०] जो देखने में सुंदर लगता हो। । खुशीसे निस्संकोच। शोभित-वि० [सं०] शोभायुक्त, शोभान्वित; सज्जित; शौकत-स्त्री० [फा०] बल, शक्ति प्रताप, दबदबा; गौरव । विराजमान ।
शौकिया-अ० दे० 'शौक़ीया'। शोभिनी-वि० स्त्री० [सं०] शोभा देनेवाली, सुंदरी। शौकीन-वि० शौक-चाह, रुचि रखनेवाला; बनावशोभी(भिन्)-वि० [सं०] दीप्तिमान् , कांतिमान् ! सिंगारका शौक रखनेवाला, छैला; तमाशबीन । शोभा देनेवाला, सुंदर ।
शौकीनी-स्त्री० शौकीन होना । शोर-पु० [फा०] हल्ला, कोलाहल (करना, मचना, मचाना)। शौक्रीया-अ० [अ०] शोकसे, शौक होनेसे दिल-बहलावधूम, प्रसिद्धि । -ग़ल-पु० हला।
के लिए। शोरबा, शोरवा-पु० [फा०] तरकारी, मांस आदिका | शौक्तिक-वि० [सं०] सीपीसे उत्पन्न मोती संबंधी; अम्ल । रसा। -(बे)दार-वि० रसेदार ।
पु० मोती। शोरा-पु० [फा०] एक क्षार जो बारूद बनाने, पानी ठंडा | शौक्तिकेय, शौक्तेय-पु० [सं०] मुक्ता। करने आदिके काममें आता है। -(२)की पुतली-अति | शौक-वि० [सं०] शुक्र-संबंधी। गौरवर्ण युवती।
शौक्ल्य-पु. [सं०] शुक्लता, उज्ज्वलता, सुफेदी । शोरिश-स्त्री० [फा०] शोर-गुल, कोलाहल; उपद्रव । शौच-पु० [सं०] शुद्धि, पवित्रता, शुचिता; किसी निकटशोला-पु० [अ०] आगकी लपट; आँच।।
संबंधीकी मृत्यु होनेपर लोक व्यवहारके अनुसार निश्चित शोशा-पु० [फा०] छोटा टुकड़ा, रेजा; सोनेका डला; दिन क्षौरकर्म आदि कराकर शुद्ध होना; प्रातःकालीन फारसी-अरबी अक्षरोंके नीचे लगाया जानेवाला चिह्नः । नैमित्तिक कर्म द्वारा शुद्धिमल-त्याग द्वारा शरीर-शुद्धि, निकली हुई नोक; (ला०) अनोखी बात, झगड़ा उठाने- पाखाने जाना । -कर्म (न्)-पु० लोक व्यवहार और वाली बात । मु०-छोड़ना-अनोखी या झगड़ा खड़ा शास्त्रानुसार शुद्धिकी क्रिया । -कूप-पु. संडास ।
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शौचागार-श्रम -गृह-पु० पाखानेकी कोठरी आदि ।
कृष्ण सारिका; काले रंगकी गाय; यमुना, (अंधकारमयी) शौचागार-पु० [सं०] शौचगृह ।
रात्रि; छाया; तुलसी। शौचाचार-पु० [सं०] दे० 'शौच-कर्म'।
श्यामाक-पु० [सं०] साँवाँ चावल । शौचालय-पु० [सं०] (लैवेटरी) शौच जानेकी कोठरी या श्यामिका-स्त्री० [सं०] कालापन, श्यामता; अपवित्रता; स्थान; वह कोठरी या कक्ष जिसमें पानीकी तथा लघुशंका | खोटापन; मलिनता; मैल (बरतन आदिका)। इत्यादिकी व्यवस्था हो; दे० 'प्रक्षालन-गृह'।
श्याल-पु० [सं०] साला, पत्नीका भाई; * शृगाल । शौद्धोदनि-पु० [सं०] महाराज शुद्धोदनके पुत्र बुद्ध । श्यालक-पु० [सं०] श्याल, साला । शोध-वि० शुद्ध, निर्मल, पवित्र । स्त्री सुधि (सू०)। | श्यालकी, श्यालिका, श्याली-स्त्री० [सं०] साली । शौनिक-पु०[सं०] मांसविक्रेता, कसाई बहेलिया,वधिक । श्येन-पु० [सं०] बाज पक्षी; हिंसा । -जीवी(विन्)शौरसेन-पु० [सं०] महाराज शूरसेनका राज्य, आधुनिक | पु० बाज पकड़ और उसे बेचकर जीवन-निर्वाह करनेवाला व्रज-मंडल (इसकी राजधानी शूरसेन-मथुरा थी)। | व्यक्ति। शौरसेनी-वि० शौरसेन प्रदेश-संबंधी। सी० [सं०] प्राचीन | श्यनिका-स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त; मादा बाज । कालमें शौरसेन प्रदेशमें (मथुराके आस-पास) बोली जाने-| श्येनी-स्त्री० [सं०] दे० 'श्येनिका' । वाली प्राकृत भाषा; प्राचीन कालमें उक्त प्रदेश में व्यवहृत । श्रद्धा-स्त्री० [सं०] प्रेम और भक्तियुक्त पूज्यभाव, मनोवृत्तिअपभ्रंश भाषा। .
विशेष; संप्रत्यय, विश्वास; आदरः शुद्धि, पवित्रता; स्पृहा; शौर्य-पु०[सं०] शूरता, वीरता; पराक्रमः आरभटी नामक कामना; दोहद, गर्भवती स्त्रीकी इच्छा; किसी धर्म, संप्र. नाट्यवृत्ति जिसका उपयोग वीर और अद्भुत रसोंके दाय, शास्त्र, दर्शन आदिमें आस्था; मनःशांति, मनकी अभिनयमें होता है।
प्रसन्नता; प्रजापतिकी पुत्री; दक्षकी पुत्री और धर्मकी पत्नी; शौल्किक-वि० [सं०] शुल्क-संबंधी । पु० कर वसूल करने वैवस्वत मनु की पत्नी। वाला; शुल्काध्यक्ष, शुल्काधिकारी।
श्रद्धालु-वि० [सं०] श्रद्धावान् कामनायुक्त । शोहर-पु० [फा०] पति, स्वामी, खाविंद ।
श्रद्धावान् (वत्)-वि० [सं०] श्रद्धायुक्त । श्मशान-पु० [सं०] शवदाह-स्थान, मसान, मरघट । श्रद्धास्पद-वि० [सं०] श्रद्वाका पात्र, श्रद्धा करने योग्य,
-निवासी (सिन)-पु. शिव; भूत, प्रेत । -पति- | श्रद्धेय । पु० शिव । -पाल-पु. चांडाल, डोम चौधरी। श्रद्धय-वि० [सं०] प्रेम और भक्तिके योग्य, पूजनीय, -वैराग्य-पु० श्मशानमें जानेपर संसारकी अस्थिरता, विश्वसनीय, श्रद्धा-भाजन । देखनेसे उत्पन्न क्षणिक वा अस्थायी वैराग्य । -साधन- |श्रम-पु० [सं०] परिश्रम, मेहनत प्रयत्न, प्रयास, दौड़पु० तांत्रिकोंके अनुसार श्मशानमें मुर्देकी छातीपर बैठकर धूप; श्रांति, थकान, व्यायाम, कवायद तपः शास्त्राभ्यास; किसी सिद्धिके लिए अर्ध रात्रि में मंत्र-साधना करना। खेद; साहित्यशास्त्रोक्त एक संचारी भाव । -कण-पु. श्मश्र-पु० [सं०] डाढ़ी-मूंछ । -कर-पु. डाढ़ी बनाने- शारीरिक श्रम करनेसे निकली पसीनेकी उदें। -कार्या
वाला, नाई। -मुखी-स्त्री० डाढ़ी-मूंछवाली औरत । लय-पु. (लेबर ब्यूरो) श्रमिकोंकी संख्या, स्थिति श्मश्रुल-वि० [सं०] डाढ़ी-मूंछवाला, श्मश्रुधारी।
आदि संबंधी जानकारी देनेवाला कार्यालय। -नश्याम-वि० [सं०] काला, साँवला; काला और नीला वि० थकान दूर करनेवाला । -जल-पु. प्रस्वेद, मिश्रित; गाढ़ा हरा। पु० कृष्ण काला रंग; गाढ़ा हरा पसीना। -जित-वि० [हिं०] श्रमसे न थकनेवाला। रंग काला और नीला मिश्रित रंग, मेघ, बादल; कोयल; -जीवी(विन्)-वि० शारीरिक तथा बौद्धिक परिश्रम प्रयागका प्रसिद्ध वटवृक्ष जो यमुनाके किनारे है।-कंठ- कर जीविका चलानेवाला। पु० मेहनतकश, मजदूर । पु. शिव; नीलकंठ पक्षी; मयूर, मोर । -कर्ण-पु० काले | -दान-पु. सड़क, विद्यालय, कुआँ आदि बनाने तथा कानवाला धोड़ा जिसका सारा शरीर श्वेत और केवल सार्वजनिक हितके लिए, कोई पारिश्रमिक न लेकर, स्वेच्छाकान काला होता है (इसे सुलक्षण माना गया है। यह से अपने श्रमका दान करना, निर्माणकार्य में सहयोग घोड़ा अश्वमेधके उपयुक्त माना जाता है)। -कांडा- देना । -वारि-विंदु-पु. प्रस्वेद, स्वेद, पसीना। स्त्री० गंडदूर्वा, गाँडर दूब । -चटक-पु०,-चूड़ा-स्त्री० -विभाग-पु. कामका बँटवारा, किसी कामको पूर्ण श्यामा पक्षी । -टीका-पु० [हिं०] दिठौना। -सुंदर- करनेके लिए उसके विभिन्न अंगोंको विभिन्न व्यक्तियोंके पु० कृष्ण ।
जिम्मे कर, बाँट देना (अर्थशास्त्र); श्रमिकोंके हितादिश्यामता-स्त्री० [सं०] श्याम, काला होनेका भाव, कालापन। संबंधी मामलोंकी देख-रेख करनेवाला सरकारी महकमा । श्यामल-वि० [सं०] श्याम वर्णवाला । पु० काला रंग। -विवाद-पु० (लेबर डिसप्यूट) श्रमिकोंके वेतन, अधिश्यामलता-स्त्री० [सं०] श्यामता ।
लाभांश तथा अन्य प्रश्नोंके संबंध उठ खड़ा हुआ विवाद श्यामा-स्त्री० [सं०] कृष्णप्रिया राधा; काली, कालिका या झगड़ा। -शीकर,-सीकर-पु० श्रमजल, पसीना, देवी, श्याम वर्णकी स्त्री; षोडशवर्षीया युवती; सुंदरी प्रस्वेद-विंदु । -शील-वि० परिश्रमी । -संघ-पु. नारी; तरुणी स्त्री जिसे संतान न हुई हो; तपे हुए (लेबर यूनियन ) कारखानों आदिमें काम करनेवाले सोनेके रंगकी युवती जो सर्वागसे शीतमें सुखोष्ण और श्रमिकोंका संघ जो उनके स्थिति सुधार तथा हितरक्षाकी ग्रीष्ममें सुखशीतल होती है। श्यामा नामकी चिड़िया, ओर ध्यान देता है। -साध्य-वि० जो (काम) परि
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श्रमण-श्री श्रम, दौड़-धूप, प्रयत्नसे पूर्ण हो सके, परिश्रमसे होवे, (मन)-पु० श्राद्धकर्म करनेवाला। -कर्म(न)सधनेवाला।
पु०, -क्रिया-स्त्री० श्राद्धके सिलसिले में होनेवाले श्रमण-पु० [सं०] बौद्ध संन्यासी, बौद्ध भिक्षु, यति । (शास्त्रोक्त, लोक-व्यवहारके) काम । -दिन-पु. श्रमणक-पु० [सं०] बौद्ध या जैन संन्यासी।
वार्षिक श्राद्धका दिन, किसी व्यक्तिके मरनेकी तिथि, जिस श्रमिक-पु० [सं०] शारीरिक श्रम कर रोजी कमानेवाला, तिथिको वर्ष में एक बार उसके लिए श्राद्धकर्म किया जाता मेहनतकश,मजदूर ।-कल्याण-कार्य-पु०( लेबर वेलफेयर है। -पक्ष-पु० कारका कृष्ण पक्ष जिसे पितृ-पक्ष भी वर्क) श्रमिकोंकी भलाईके लिए किया जानेवाला कार्य कहते हैं। (स्वास्थ्य-रक्षा, साफ और हवादार मकानोंकी व्यवस्था | श्राद्धिक-वि० [सं०] श्राद्ध-संबंधी। पु० श्राद्धभोक्ता । आदि )।-कल्याण केंद्र-पु० ( लेबर वेलफेयर सेंटर) श्राप-पु० शाप । वह केंद्र या स्थान जहाँ श्रमिकोंकी भलाईके विभिन्न कार्य श्रावक-वि० [सं०] सुननेवाला। पु० बौद्ध भिक्षुः जैनकिये जाते है। -क्षतिपूर्ति अधिनियम-पु. (वर्कमेंस | संन्यासी; शिष्य । कंपेनसेशन ऐक्ट ) श्रमिकों तथा कर्मकारोंको काम करते | श्रावण-पु० [सं०] चांद्र वर्ष के बारह महीनोंमेंसे पाँचवाँ समय लगनेवाली चोट या अन्य रूपसे होनेवाली हानिके महीना जो वर्षाकाल में पड़ता है। श्रवणेंद्रियग्राह्य ज्ञान बदले में मालिकों या व्यावसायिक संस्थाओंसे हरजाना | पाषंड । वि० श्रवणेंद्रिय-संबंधी; श्रवण नक्षत्रमें उत्पन्न । दिलाने के लिए बनाया गया अधिनियम, कर्मकार-हानि. | श्रावणी-स्त्री० [सं०] चांद्र श्रावण मासको पूर्णिमा (इस पूरण-अधिनियम । -दिन-पु. ( मैन डेज) एक दिन- दिन ब्राह्मणोंका रक्षा-बंधन'का पर्व होता है); रक्षाबंधनका में एक आदमी द्वारा किये गये कामको इकाई मानकर त्योहार, सलोनो। हड़ताल आदिके समय हुई हानिका हिसाब लगानेसे प्राप्त | श्रावस्ती-स्त्री० [सं०] उत्तर कोसलस्थित लवकी पुरी दिनोंकी संख्या।
(रामायण में इसे 'शरावती' कहा गया है)। श्रमित-वि० [सं०] परिश्रम करके थका हुआ; थका हुआ। श्रावा-स्त्री० [सं०] माँड़। श्रवण-पु० [सं०] श्रवणेंद्रिय, कर्ण, कानः सुननेकी क्रिया | श्रावित-वि० [सं०] सुनाया गया, कथित । कणेंद्रियशान, कानसे सुनकर हुआ ज्ञान; नौ प्रकारकी श्राव्य-वि० [सं०] सुनने योग्य, जो सुना जा सके। भक्तियों मेंसे एक भक्ति जिसके अनुसार भक्त भगवान्के | श्री-स्त्री० [सं०] शोभा, सौंदर्य संपद्, संपत्ति विभूति, नाम, रूप, गुण, लीला, धाम आदिका श्रवण करता है। शान-शौकत राजोचित गौरव वेश-विन्यास, वेश-रचना सुनकर प्राप्त किया गया ज्ञान: अंधतापसका पुत्र जो माता- सजावट प्रभा; कीति, यशः वृद्धि सिद्धि; विष्णुकी पत्नी, पिताका अनन्य भक्त था; सत्ताईस नक्षत्रोंमें बाईसवाँ लक्ष्मी सरस्वती, वाणी; त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ, काम प्रकार नक्षत्र; बहना, टपकना, क्षरण, रसना। -गोचर-वि० उपकरण, साधन; अधिकार ऋद्धि नामक औषध, लवंग; जो सुनाई पड़नेको सीमामें हो, श्रवणप्रत्यक्ष । -पथ- सरल वृक्ष कमल बिस्व वृक्ष; रागविशेष, छः रागों मेंसे पु० सुननेकी शक्तिसे युक्त श्रवणेंद्रिय, कान । -पालि, | पाँचवाँ राग; एक वैष्णव संप्रदायका नाम, वैष्णवोंका -पाली-स्त्री० कानकी नोक, कानकी ललरी।-प्रत्यक्ष निंबार्क संप्रदाय; आदर-सूचक शब्द जो प्रायः व्यक्तियोंके -वि० श्रवण-गोचर । -विद्या-स्त्री. वह विद्या जो नामके पूर्व लगाया जाता है; एक एकाक्षर वृत्त ।-कंठकानसे सुनकर ग्रहण की जाती हो। -विवर-पु. पु. शिव; महाकवि भवभूतिका नामांतर । -कर-पु० कानका छेद । -विषय-पु. श्रवणेंद्रियकी सीमामें विष्णुः रक्तोत्पल, लाल कमल । वि० कल्याणकारक । आनेवाला विषय, श्रवण-गोचर वस्तु, व्यापार आदि । -कांत-पु० कमलापति, विष्णु । -कारी(रिन्)-पु० श्रवणीय-वि० [सं०] श्रवण योग्य, सुनने योग्य । एक प्रकारका मृग ।-क्षेत्र-पु० जगन्नाथ पुरी। -खंडश्रवणेंद्रिय-स्त्री० [सं०] सुननेकी शक्ति कान ।
पु० चंदन; सिखरन, एक लेह्य पदार्थ । -गणेश-पु० श्रवन-पु० कान; सुनना।
आरंभ । -दामा(मन्)-पु० कृष्णके साले (ये राधाके श्रवना*-अ० कि० बहना, टपकना, चूना । स० क्रि० | भाई थे); कृष्णके एक सखा, सुदामा।-धाम-पु० लक्ष्मीबहाना, गिराना, टपकाना, चुआना।
के रहनेका स्थान, कमल । -नंदन-पु. लक्ष्मीपुत्र, श्रवित-वि० [सं०] क्षरित, टपका हुआ, बहा हुआ। कामदेव । -नाथ-पु० विष्णु । -निकेत,-निकेतनश्रव्य-वि० [सं०] सुनने योग्य । -काव्य-पु० इंद्रिय- पु० लक्ष्मीका वास स्थान; वैकुंठ, विष्णु । -निवासप्रत्यक्षकी दृष्टिसे भारतीय साहित्यशास्त्र द्वारा निर्धारित पु० विष्णु; लक्ष्मीका निवासस्थान; विष्णुलोक, वैकुंठ । काव्यके दो भेदों-दृश्य, श्रव्य-मेंसे एक भेद (श्रव्य काव्य -पंचमी-स्त्री. वसंतपंचमी, जो माघ-शुक्ला पंचमीको सुना जाता है, इसका अभिनय नहीं होता)।
पड़ती है। -पति-पु० लक्ष्मीपति, विष्णु, राजा, नृपति । श्रांत-वि० [सं०] श्रांतियुक्त, थका हुआ।
-पथ-पु० राजमार्ग। -फल-पु० बिल्व वृक्ष, बेलका श्रांति-स्त्री० [सं०] थकान; श्रम खेद ।
पेड़, खिरनीका पेड़, लक्ष्मीकी कृपाका फल, धन, द्रव्य । श्राद्ध-पु० [सं०] शास्त्रविहित पितृ-कर्म, शास्त्र तथा लोक- -भ्राता(त)-पु० चंद्रमा घोड़ा।-मुख-पु० शोभायुक्त विधिके अनुसार पितरोंका क्रिया कर्म पितरोंकी प्रसन्नताके आनन, मुख । मूर्ति-स्त्री विष्णु वा लक्ष्मीकी प्रतिमा। लिए श्रद्धापूर्वक अन्न, वस्त्र आदिका दान; कोई काम -युक्ता-युत-वि० लक्ष्मीवान्, सौंदर्यपूर्ण; आदर-सूचचौपट कर देना, बुरे ढंगसे करना ।-कर्ता(त), कर्मा- | नार्थ पुरुषोंके नामके पूर्व लगाया जानेवाला विशेषण ।
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श्रीमंत-श्रोतव्य
७८८ -रमण-पु० विष्णु । -रवन*-पु० विष्णु । -राग- ध्वनि वेदस्थित विषय, वेद-वर्णित वस्तु । -वेध-पु. पु० छः रागोंमेंसे तीसरा राग । -राम-पु० दशरथ पुत्र कर्णवेध संस्कार, कनछेदन । -सुख-वि० कानोंके लिए राम ।-वत्स-पु० विष्णु, विष्णुके वक्षस्थलपर बना भृगुके सुखद । पु० श्रवणेंद्रिय द्वारा प्राप्त आनंद, संगीत आदि लात मारनेका चिह्न । -घर-पु.विष्णु । -वल्लभ- द्वारा मिली कर्ण तृप्ति । -सुखकर,-सुखद-वि० कर्णपु० विष्णु; जो व्यक्ति लक्ष्मीका प्रिय है, धनी व्यक्ति। मधुर, श्रवणानंददायक । -स्मृति-स्त्री० वेद और धर्म-सहोदर-पु० (समुद्र-मंथनमें लक्ष्मीके साथ उत्पन्न शास्त्र । -हर-हारी(रिन्)-वि० श्रवणेंद्रियको आकृष्ट होनेवाला) चंद्रमा। -हत-वि० सौंदर्यहीन; कांतिहीन । करनेवाला ( जैसे-संगीत आदि)। -हरि-पु० विष्णु ।
श्रत्य-वि० [सं०] श्रवणीय, सुना जाने योग्य; विश्रुत, श्रीमंत-वि० धनी, लक्ष्मीवान्, सौंदर्य-शाली। पु० एक विख्यात । शिरोभूषण; सीमंत देश, माँग ।
श्रुत्यनुप्रास-पु० [सं०] अनुप्रासका एक भेद, जिसमें श्रीमती-स्त्री० [सं०] राधिकाः स्त्रियोंके नामके पूर्व जोड़ा मुखके एक ही स्थानसे उच्चरित होनेवाले व्यंजनोंकी कई जानेवाला आदरसूचक शब्द: पुरुषोंके नामके पूर्व आदर- बार आवृत्ति हो। सूचनार्थ लगाये जानेवाले 'श्रीमान्' शब्दका स्त्रीलिंग रूप श्रुवा-स्त्री० [सं०] सुवा। जिससे उनकी पत्नीका बोध होता है। पत्नी।
श्रयमाण-वि० [सं०] जो सुना जाय; सुना जाता हुआ। श्रीमान् (मत्)-वि० [सं०] शोभायुक्त; धनी, संपत्ति- | श्रेणि-स्त्री० [सं०] विच्छेद-रहित पंक्ति, शृंखला; रेखा; शाली, संपन्न, गौरवशाली। पु० विष्णु; शिव; कुबेर __ अवली; समूह, संघ, दल, वर्ग; एक ही व्यापार, शिल्पपुरुषोंके नामके पूर्व आदर-सूचनार्थ लगाया जानेवाला | कार्य आदि करनेवालोंका संघटन, संघ, समूह; जल-पात्र । शब्द ।
-बद्ध-वि० दे० 'श्रेणीबद्ध। श्रील-वि० [सं०] शोभायुक्त; जो अश्लील न हो। श्रेणिका-स्त्री० [सं०] तंबू । श्रीवंत*-वि० श्रीमंत, श्रीमान् ।
श्रेणी-स्त्री० [सं०] दे० 'श्रेणि'।-धर्म-पु० किसी संप्रदाय, श्रीश-पु० [सं०] लक्ष्मीपति विष्णु ।
वर्ग, दल आदिके नियम; व्यापारिवर्गकी रीति, इसका श्रत-वि० [सं०] सुना हुआ, आकर्णित; विश्रत, प्रसिद्ध । नियम ।-पाद-पु० श्रेणी-प्रधान राष्ट्र, जनपद ।-बद्धपु० परंपरासे सुनकर रक्षित वेद, शास्त्र।:-कीर्ति-स्त्री० वि० एक पंक्ति में स्थित; एक शृंखलामें बँधा हुआ दलजनकके भाई कुशध्वजकी कन्या जिसका विवाह शत्रुघ्नसे बद्ध । -भुक्त-वि० श्रेणीके बीच आया, मिला हुआ, हुआ था। -शील-वि० जिसका शील, सदाचार विश्रुत, | श्रेणीबद्ध । प्रसिद्ध हो।
श्रेणीकरण-पु० [२०] क्रमसे सजाने, लगानेका कार्य; श्रताध्ययन-पु० [सं०] वेदका अध्ययन ।
अलग-अलग श्रेणियोंमें बाँटना, वर्गीकरण । श्रुतानुश्रत-पु० [सं०] (हियरसे) बहुतोंसे सुनी हुई बात, श्रेणीकृत-वि० [सं०] क्रमसे लगाया हुआ, वगीकृत । गप्प, किंवदंती। वि० बहुतोंसे सुना हुआ; इधर-उधर श्रेय (स)-पु०[सं०] धर्म; मुक्ति (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जिसकी चर्चा हो। -साक्ष्य-पु० (हियरसे एव्हीडेंस) अर्थात् चतुर्वर्गको भी श्रेय कहा गया है); शुभ, मंगल; विभिन्न लोगोंसे सुनी हुई बातोंपर आधारित साक्ष्य। | यश; सुख: पुण्य (श्रेयान् )। वि० अपेक्षाकृत अच्छा, श्रति-स्त्री० [सं०] सुननेकी क्रिया; कान; शब्द, ध्वनि; बेहतर श्रेष्ठ, उपयुक्त हितकर, मंगलमय । वेदः शान; किंवदंती, जनश्रुति; श्रवण नक्षत्र, चारकी | श्रेयस्कर-वि० [सं०] मंगलकारी, कल्याणकर । संख्या अनुप्रासका एक प्रकार; एक स्वरसे दूसरे स्वरपर | श्रेष्ठ-वि० [सं०] सबसे अच्छा, अति उत्तम, उत्कृष्ट; सर्वजाते समयका अत्यंत सूक्ष्म स्वरांश (संगीत)। -कटु- प्रधान वयमें सबसे बड़ा, ज्येष्ठ; अत्यंत प्रिय । वि० कर्णकटु, कानोंको खटकने, कठोर लगनेवाला । पु० श्रेष्ठा-स्त्री० [सं०] (सौंदर्य, शील आदिमें) उत्तम नारी। एक काव्य-दोष जो कर्णकटु वर्णों, 'ट'वर्ग आदिके प्रयोगसे | श्रेष्ठाश्रम-पु० [सं०] गृहस्थाश्रम (इस आश्रमको श्रेष्ठ इसआ जाता है।-कीर्ति-स्त्री० दे० 'श्रुतकीर्ति' ।-गम्य,- | लिए कहा गया कि इसमें रहकर तीनों आश्रमोंका पालनगोचर-वि. जो सुना जा सके, श्रवणेंद्रियग्राह्यः श्रुत, पोषण हो सकता है); गृहस्थ । सुना हुआ। -पथ-पु० कर्ण-कुहर, श्रवणेंद्रियका मार्ग; | श्रेष्ठी (ष्ठिन् )-पु० [सं०] व्यापारियों, व्यवसायियों, वेद-मार्ग, वेद-विहित पथ । -प्रमाण-पु. वेदका प्रमाण, | बनियोंका प्रधान सेठ, अत्यंत धनी व्यक्ति । वेदकी स्वीकृति । -भाल-पु. चतुरानन, ब्रह्मा । श्रोण-वि० [सं०] पंगु, लँगड़ा । पु०एक रोग; *शोण,लहू । -मंडल-पु. कानका बाहरी घेरा। -मधुर-वि० श्रोणि-स्त्री० [सं०] कटि, कमरः नितंब । -सूत्र-पु. कानको मीठा लगनेवाला, कर्ण सुखद । -मुख-पु. मेखला; कमरसे लटकती हुई तलवार आदिका बंधन । ब्रह्मा। -मूल-पु. कर्णमूल, कानकी जड़, वेदका मूल | श्रोणित*-पु० दे० 'शोणित'। पाठ, वेद-संहिता । -रंजक-रंजन-वि० कानोंको श्रोणी-स्त्री० [सं०] दे० 'श्रोणि' । आनंद-दायक, कर्ण-मधुर । -लेख-पु० (डिक्टेशन) | श्रोत (स)-पु० [सं०] कर्ण, कान, श्रवणेंद्रिय; इंद्रिय किसीके बोले हुए वाक्योंको सुनकर लिखना या इस तरह (जिनके मार्गसे शरीरके मल तथा आत्मा निकलती है)। जो कुछ लिखा जाय, आलेख, इमला। -विवर-पु० श्रोतव्य-वि० [सं०] श्रवणीय, श्रव्य, जो सुना जाय, कर्णकुहर । -विषय-पु० श्रवणेंद्रियका विषय, शब्द,। सुनने योग्य ।
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गगा
श्रोता-श्वेत श्रोता (त)-पु० [सं०] श्रवणकर्ता, सुननेवाला व्यक्ति। कुत्तोंका मालिक, कुत्ते पालनेवाला । -भीरु-पु० (कुत्ते-धर्ग-पु० (आडिएंस) एक स्थानमें समवेत होकर किसी से डरनेवाला) स्यार, शृगाल । -वृत्ति-स्त्री० (कुत्तेके नेता, उपदेशक, व्याख्याता आदिका भाषण, उपदेश, समान) पराधीन वृत्ति, सेवा, नौकरी; कुत्तेकी भाँति प्रवचन सुननेवाले समस्त लोग।
जूठन खाने, चाटनेवाली वृत्ति, पराश्रित रहनेकी आदत । श्रोत्र-पु० [सं०] कर्ण, कान, श्रवणेंद्रियः वेद, श्रुति वेद- श्वशुर, श्वशुरक-पु० [सं०] ससुर-पति या पत्नीका विषयक नैपुण्य । -पेय-वि० कानों द्वारा ग्रहण करने | पिता। योग्य, श्रवणीय । -मूल-पु० कर्णमूल । -सुख-वि०, श्वश्र-स्त्री० [सं०] पति या पत्नीकी माता, सास । पु० दे० 'श्रुतिसुख।
श्वसन-पु० [सं०] साँस लेना; हाँफना; आह भरना; वायु। श्रोत्रिय-वि० [सं०] वेदश, वेदाध्ययनकर्ता। पु० वेदश | श्वसित-पु० [सं०] श्वास आह । वि० श्वास निकालने, ब्राह्मण, वेदाध्ययन करनेवाला ब्राह्मण ।
ग्रहण करनेवाला; श्वासयुक्त, जीवित आह भरनेवाला। श्रोत्री-पु० दे० 'श्रोत्रिय' ।
श्वस्तन-वि० [सं०] आगामी कल-संबंधी; भविष्य-संबंधी । श्रीन*-पु० दे० 'शोण'।
श्वा(श्वन्)-पु० [सं०] कुत्ता । श्रोनित*-पु० दे० 'शोणित' ।
श्वान-पु० [सं०] कुक्कुर, कुत्ता; दोहेका एक प्रकार श्रौत-वि० [सं०] श्रवण, कर्ण-संबंधी; वेद, श्रुति-संबंधी; | छप्पयका एक प्रकार । -निद्रा-स्त्री० कुकुर-नि दिया, वेदोक्त, वेदसम्मत; यज्ञ-संबंधी।
कुत्तेकी भाँति तुरत खुल जानेवाली नींद, हलकी नींद। श्रौत्र-पु० [सं०] कर्ण, कान; श्रोत्रियकर्म ।
-वैखरी-स्त्री० कुत्तेका गुर्राना। श्रीन*-पु० दे० 'श्रवण'।
श्वानी-स्त्री० [सं०] कुतिया। लक्षण-वि० [सं०] अल्प या महीन; चिक्कण, चिकना; श्वापद-वि० [सं०जंगली, बर्बर । पु० हिंस्र पशु । कोमल, नरम, मधुर, मनोहर, सुंदर । -स्वक् (च)- | श्वास-पु० [सं०] नाकसे प्राणवायु, ताजी हवा शरीरके पु० अश्मंतक वृक्ष; सुंदर वस्कल ।
भीतर ले जाने तथा भीतरसे दूषित वायु निकालनेका श्लक्ष्णक-वि० [सं०] श्शक्षण । पु० पूगफल, सुपारी । कार्य, साँस, श्वसित आह; हाँफनेकी क्रिया; वायु, श्वास, श्लथ-वि० [सं०] शिथिल, ढीला ढीला किया हुआ; छूटा | दमा नामक रोग। -कष्ट-पु० साँस लेने और निकाहुआ, बिखरा हुआ (जैसे-बाल); दुर्बल ।
लनेकी तकलीफ ('श्वास-कष्ट' का प्रयोग प्रसंगतः 'दमा' श्लथांग-वि० [सं०] जिसके अंग ढीले हो गये हों। रोगके लिए भी होता है)। -कास-पु० ३वासयुक्त कास श्लाघन-पु० [सं०] ( अपनी) प्रशंसा, तारीफ करना; रोग; श्वासजनित खाँसी, दमा। -क्रिया-स्त्री० श्वासचापलूसी करना।
ग्रहण और त्यागका कार्य। -कुठार-पु० श्वास रोगकी श्लाघनीय-वि० [सं०] श्लाध्य, प्रशंसनीय ।
एक औषध । -धारण-पु० दम रोकनेका काम, कुंभक श्लाघा-स्त्री० [सं०] प्रशंसा; चापलूसी; आत्म-प्रशंसा, प्राणायाम । -प्रश्वास-पु० साँस लेना और निकालना। आत्मगुण-कथन, अभिलाष; परिचर्या ।
-रोध-पु० साँस लेनेकी क्रियाको बंद रखना; श्वासका श्लाघ्य-वि० [सं०] श्लाघनीय, प्रशस्य ।
रुद्ध होना, दम घुटना। -हिक्का-स्त्री० एक प्रकारकी श्लिष्ट-वि० [सं०] .आलिंगित, परिरंभित; सम्मिलित, हिचकी। -हीन-वि० मृत। संयुक्तः श्लेषयुक्त, द्वयर्थक, अनेकार्थक । -रूपक-पु० | श्वासा-स्त्री० साँस । वह अलंकार जहाँ लिष्ट शब्द द्वारा रूपकका विधान किया श्वासोच्छास-पु० [सं०] वेगपूर्वक साँस लेना और बाहर गया हो।
निकालना। शिलष्टि-स्त्री० [सं०] आलिंगन; सटाव, लगाव । श्वेत-वि० [सं०] सफेद, उज्ज्वल, उजला; बेधब्बेका, इलीपद-पु० [सं०] टाँग या पैर फूलनेका रोग, फीलपाँव। निष्कलंक; गौर, गोरा (जैसे-श्वेत जाति)। पु० शुक्ल वर्ण, श्लीपदी(दिन)-वि० [सं०] फीलपाँवका रोगी। सफेद रंग; चाँदी, रूपा। -काक-पु० सफेद कौमाश्लील-वि० [सं०] जो अश्लील न हो, शिष्ट समाजमें कोई अनहोनीसी बात। -कुष्ट-पु० सफेद कोद । - दिखाये या पढ़े जाने योग्य, सभ्योचित श्रेष्ठ, शोभायुक्त। गज-पु० इंद्रका ऐरावत हाथी । -च्छद-पु० इंस । श्लेष-पु० [सं०] आलिंगन; संयोग, लगाव; एक शब्दा- -दूर्वा-स्त्री० सफेद दूब ।-द्युति-पु० चंद्रमा। -धातु लंकार जिसमें एक शब्द के कई अर्थों द्वारा काव्यमें चम- -स्त्री० खड़िया मिट्टी; सफेद रंगकी धातु । -पत्र-पु. कार उत्पन्न किया जाता है।
हंसा (ह्वाइट पेपर) किसी वार्ता, संधि-चर्चा आदिके अंतमें श्लेष्मा(प्मन्)-पु० [सं०] कफ, बलगम ।
उसमें तय हुई बातों आदिके संबंधमें सरकार द्वारा प्रकाइलैष्मिक-वि० [सं०] कफ-संबंधी; कफ पैदा करनेवाला। शित लिखित विवरण या वक्तव्य । -प्रदर-पु० प्रदरका श्लोक-पु० [सं०] यश, कीर्ति (जैसे-पुण्यश्लोक); एक भेद जिसमें स्त्रियोंकी जननेंद्रियसे सफेद रंगका स्राव प्रशंसा संस्कृतका अनुष्टुप छंद या कोई पद्य ।
होता है। प्रस्तर-पु० सफेद संगमर्मर । -भानु-पु० श्वः (श्वस)-अ० [सं०] आगामी कल ।
चाँद, चंद्रमा ।-मयूख-पु०चंद्रमा ।-सार-पु० खदिर, श्व(न)-पु० [सं०] 'श्वा'का समस्त पदोंमें व्यवहृत | खैर (स्टार्च) सफेद सत्त जैसा खाद्यतत्त्व जो आलू , चावल रूप। -पच,-पाक-पु. चांडाल; वधिक, फाँसी देने इत्यादिमें अधिक मात्रामें पाया जाता है (कपड़ोंपर कलफ वाला कुत्तेका मांस पकाने, खानेवाला । -पति-पु० करनेमें इसका प्रयोग किया जाता है)। -हय-पु०इंद्रका
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श्वेतांक-षोडन् उच्चैःश्रवा घोड़ा; सफेद घोड़ा; अर्जुन; इंद्र । -हस्ती बना हो। (स्तिन् )-पु०इंद्रका ऐरावत हाथी ।
श्वेतांग-वि० [सं०] जिसके शरीरका रंग सफेद हो, गौरश्वेतांक-पु० [सं०] (वाटर मार्क) कागजके भीतर, उसकी वर्णका, गौरांग । बनावटमें ही, विशेष प्रक्रियासे बनाया हुआ सफेद-सा श्वेतांबर-पु० [सं०] श्वेत, सफेद वस्त्र; जैनोंके एक प्रमुख चिह्न, छाप या अक्षरावली।
संप्रदायका नाम । श्वेतांकित-वि० [सं०] (वाटरमार्ड) जिसपर श्वेतांक । श्वेतांशु-पु० [सं०] दे० 'श्वेत-मयूख' ।
प
ष-नागरी वर्णमालाका इकतीसवाँ व्यंजन, ऊष्म वर्ण । दुरभिसंधि, किसी व्यक्तिके अनजानमें उसके अनिष्ट पंड-पु० [सं०] बैल; माँड़ नपुंसक, हिजड़ा।
साधनके उपाय करना, साजिश । -योग-पु० पंडक-पु० [सं०] नपुंसक, हिजड़ा।
योगाभ्यासमें प्रयुक्त छः तरीके । -योनि-पु. शिलापंढ-पु० [सं०] नपुंसक, कीब।
जतु । -रस-वि० छः प्रकारके स्वादोंवाला । पु० छ: षंढा-स्त्री० [सं०] पुरुष जैसी प्रवृत्तिवाली स्त्री, मरदानी प्रकारके स्वाद-मीठा, नमकीन, कड़वा, तीता, कसैला औरत ।
और खट्टा। -राग-पु. भैरव, मलार, श्री, हिंडोल, षट् (प)-वि० [सं०] छः, पाँच और एक। -कर्म(न)
मालकोस और दीपक-ये छः राग; झंझट, बखेड़ा । पु० ब्राह्मणोंके छ: कर्तव्य (अध्ययन, अध्यापन, यजन, -रिपु-पु० काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अहंकार-ये याजन, दान और प्रतिग्रह); ब्राह्मणोंके निर्वाह-संबंधी छ: षडविकार । -लवण-पु० सैंधव, सामुद्र आदि छः कर्म (उंछ, प्रतिग्रह, भिक्षा, वाणिज्य, कृषि और पशु- प्रकारके नमक । -वक्त-वदन-वि० छ: मुखोंवाला। पालन); छः तांत्रिक कर्म (मारण, उच्चाटन, स्तंभन, पु० स्कंद । -वर्ग-पु० छः पदार्थों आदिका समाहार, वशीकरण, शांति और विदूषण); योग संबंधी छ: कर्म । षड्रिपुः पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और मन । -विकार-पु० (धौती, वस्ती, नेती, त्राटक, नौलिक और कपालभाती)। शरीरधारी(जीव)के छः विकार-उत्पत्ति, वृद्धि, बाण्या-कोण-वि० (वह क्षेत्र) जिसमें छ: कोण हों; छपहला ।। वस्था, यौवन, वार्धक्य और मृत्यु । -विध-वि० छ: पु० इंद्रका वज्र, हीरा। -चक्र-पु० शरीरके भीतर प्रकारका सुषुम्ना नाडीके मध्य स्थित अतिसूक्ष्म कमलाकार छ: षड्धा-अ० [सं०] छः प्रकारसे । चक्र (मूलाधार, अधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध और षण-वि० [सं०] 'प'का समासगत रूप । -मास-पु० आज्ञा); षड्यंत्र ।-तिला-स्त्री० माघ-कृष्णा एकादशी । | छः मास । -मासिक-वि० अर्धवार्षिक । -मास्य-पद-वि० छः पैरोंवाला । पु० छः पैरोंवाला प्राणी; | पु० छः मासका समय । वि० छः मासका । -मुखभ्रमर; किलनी; छः पदोवाला छंद । -पदी-वि० स्त्री० वि० छ: मुखोंवाला । पु० स्कंदा एक बोधिसत्त्व । छः पैरोंवाली। स्त्री भ्रमरी; किलनी; छः चरणोंवाला | षष्टि-स्त्री० [सं०] साठकी संख्या। वि० साठ । छंद, छप्पय । -रस-वि०, पु० [हिं०] दे० 'षड्स'। षष्ट यंशक-पु० [सं०] एक यंत्र जिससे नक्षत्रोंके सहारे -राग-पु० [हिं०] दे० 'घटराग'। -रिपु-पु० [हिं०] जहाजकी स्थिति निर्धारित की जाती है । दे० 'षडरिपु'। -शास्त्र-पु. वेदको प्रमाण मानकर षष्ठ-वि० [सं०] छठा। चलनेवाले छ: हिंदू-दर्शन ।
षष्टांश-पु० [सं०] छठा भाग, विशेषकर अन्नका वह छठा षड-वि० [सं०] 'षष्'का समासगत रूप। -अंग-वि० भाग जो राजस्वके रूपमें दिया जाता था ।
छः अंगोंवाला । पु० छठा भाग; शरीरके छः अवयव षष्ठी-स्त्री० [सं०] पक्षकी छठी तिथि; संतानोत्पत्तिके दिन (शिर, धड़, दो हाथ और दो पैर); वेदके छः अंग (शिक्षा, से छठा दिन, छट्ठी, कात्यायनी (दुर्गाका एक नाम) कल्प, निरुक्त, छंद, व्याकरण, ज्योतिष); गायसे प्राप्त जिनकी बच्चेके कल्याणके लिए छट्टीको पूजा होती है। छः पदार्थ (मूत्र, गोमय, क्षीर, सर्पि, दधि और रोचन); संबंधकारककी विभक्ति ।-तत्पुरुष-पु०तत्पुरुष समासका किन्हीं छः वस्तुओंका समाहार; छोटा गोखरू।-अंघ्रि- एक भेद जिसमें पूर्वपद संबंधकारककी विभक्ति षष्ठीमें पु० भ्रमर । -अग्नि-स्त्री० कर्मकांड-संबंधी छ: प्रकारको होता है (जैसे-विद्यालय)। अग्नि (गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि, सभ्याग्नि, षाडण्य-पु० [सं०] पड्गुणसमुच्चय, छः गुणोंका समूह; आवासथ्य और औपासनाग्नि) । -आनन-वि० छ: | राजनीति में व्यवहार्थ छः अंग, कर्म, दे० 'षड्गुण'; किसी मुखोंवाला । पु० कात्तिकेय । -ऋतु-स्त्री० छः ऋतुएँ। संख्याको छःसे गुणा करनेपर प्राप्त गुणनफल । -गुण-वि० छगुना छः गुणोंसे युक्त । पु० परराष्ट्रनीतिकी पाण्मातुर-पु० [सं०] कात्र्तिकेय (जिनका पालन छ: सफलताके लिए. राजा द्वारा व्यवहार्य छ: उपाय-संधि, माताओंने किया था)। विग्रह, यान (चढ़ाई ), आसन (विराम), द्वैधीभाव पाण्मासिक-वि० [सं०] छमाही, छः महीनेका । पु०
और संश्रयः छः गुणोंका समाहार। -दर्शन- मृत्युके छ: महीने पश्चात् होनेवाला मृतक श्राद्ध । पु० हिंदुओंके ये छः दर्शन-सांख्य, मीमांसा, षोडंत-वि० [सं०] छः दाँतोंवाला। न्याय, वैशेषिक, योग और वेदांत । -यंत्र-पु० षोडन्(त)-वि० [सं०] छः दाँतोंवाला । पु० छः दाँतों
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षोडश-संकेंद्रण वाला बैल ।
ठोड़ीपर तिल बनाना, मेंहदी रचना, सुगंधित द्रव्योंका षोडश-वि० [सं०] सोलहवाँ ।
प्रयोग करना, अलंकार धारण करना, पुष्पहार पहनना, षोडश(न्)-वि० [सं०] सोलह । पु० सोलहकी संख्या । पान खाना, ओठ रँगना और मिस्सी लगाना) । -कल-वि० सोलह अंशोंवाला। -कला-स्त्री० अमृता, -संस्कार-पु. शास्त्रविहित गर्भाधानसे लेकर मृत्युतकके मानदा, पूषा आदि चंद्रमाकी सोलह कलाएँ (अंश) जो| सोलह संस्कार । यथातिथि घटती-बढ़ती रहती है। -दान-पु० श्राद्ध षोडशी-स्त्री० [सं०] दस या बारह महाविद्याओंमेंसे एक आदिके अवसरपर देय भूमि, आसन, गाय, सोना आदि | सोलह वर्षकी स्त्री, तरुणी प्रेतकर्मविशेष । सोलह वस्तुएँ । -पूजन-पु० दे० 'षोडशोपचार' । षोडशोपचार-पु० [सं०] देवपूजनके सोलह अंग (आसन, -मातृका-स्त्री० गौरी, पद्मा, शची आदि सोलह देवियाँ । स्वागत, अर्घ्य, आचमन, मधुपर्क, स्नान, वस्त्राभरण, -विध-वि० सोलह प्रकारका । -शृंगार-पु० साज- यज्ञोपवीत, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, परिसज्जाके सोलह अंग, संपूर्ण शृंगार (उबटन लगाना, स्नान क्रमा और वंदना)। करना, वस्त्र धारण करना, बाल सवाँरना, अंजन लगाना, ठीवन-पु० [सं०] थूकनेकी क्रिया; थूक, लार । सिंदूर भरना, महावर लगाना, भालपर तिलक बनाना, | ष्ठीवित-वि० [सं०] थूका हुआ।
स-देवनागरी वर्णमालाका बत्तीसवाँ व्यंजन, ऊष्म वर्ण। दानादि धार्मिक कृत्य करनेका निश्चय या प्रतिज्ञा करना । सँइतना -स० क्रि० जोड़ना, बटोरना; सुरक्षित रखना। अ० क्रि० इरादा करना। सँउपना*-स० क्रि० दे० 'सपना' ।
संकलित-वि० [सं०] एकत्रीकृत संगृहीत; मिलाया हुआ; संक*-स्त्री० शंका, डर भ्रम ।
गृहीत; जोड़ा हुआ (गणित)। संकट-वि० [सं०] संकीर्ण, तंग । पु० [सं०] तंग रास्ता संकल्प-पु० [सं०] इच्छा; निश्चय; नीयत; विचार, दर्रा कठिनाई खतरा; विपत्ति, मुसीबत भीड़ ।-नाशन- कल्पना; कोई कृत्य करनेकी प्रतिज्ञा; सती होनेकी इच्छा; वि० कष्ट दूर करनेवाला। -मुख-वि० जिसका मुँह मंत्रोच्चारणके साथ धार्मिक कृत्य करनेकी प्रतिज्ञा करना। तंग हो। -मोचन-वि० संकटसे छुड़ानेवाला । पु० संकल्पक-वि० [सं०]संकल्प करनेवाला विचार करनेवाला। हनूमान्की काशीस्थ एक मूत्ति ।-संकेत-पु० (एस. ओ. संकल्पित-वि० [सं०] जिसका संकल्प, निश्चय किया गया एस., 'एसोएस') डूबते हुए जहाज, ध्वस्त होते हुए | हो; जिसका विचार या कल्पना की गयी हो। विमान आदिमे भयंकर संकटकी सूचना देनेके लिए बेतार- संकष्ट-पु० दे० 'संकट'। के तार द्वारा प्रेरित संदेश ।
संका*-स्त्री० शंका, डर । संकटापन्न-वि० [सं०] विपग्रस्त, कष्ट में पड़ा हुआ। सकाना*-अ० क्रि० शंकित होना, डरना । संकत*-पु० दे० 'संकेत'।
संकारना*--स० क्रि० संकेत, इशारा करना । संकना*-अ० कि० डरना; शंका, संदेह करना । संकाश-वि० [सं०] तुल्य, समान (समासमें); निकटवती । संकर-पु० [सं०] मिश्रण; योग, एकमें मिलना; दो अ० निकट, पास। जातियोंका मिश्रण; अंतर्जातीय संबंधसे उत्पन्न संतान एक | संकास*-वि० दे० 'संकाश'। ही वाक्य में दो या अधिक अलंकारोंका मिश्रण (सा०)। । संकीर्ण-वि० [सं०] तंग, संकुचित; छोटा । संकर-पु० दे० 'शंकर'। [स्त्री० 'संकरी' 1] -घरनी- | संकीर्णता-स्त्री० [सं०] तंगी क्षुद्रता । स्त्री पार्वती।
संकीर्तन-पु० [सं०] सम्यक् वर्णन; प्रशंसा; स्तुति देवतासकरा-वि० तंग, संकीर्ण । पु० संकट; एक राग । स्त्री० | के नामका जप। सिकड़ी, जंजीर । मु०-(२)में पड़ना-कष्टमें पड़ना। संकु-पु० [सं०] छिद्र (?); * बछीं। सँकराना-स० क्रि० तंग, संकुचित, संकीर्ण करना । | संकुचन-पु० [सं०] सिकुड़ना, संकुचित होना। संकरीकरण-पु० [सं०] मिलाना; जातिका अवैध मिश्रण। संकुचना-अ० कि० दे० 'सकुचना'। संकर्षण-पु० [सं०] खींचकर निकालना; पास लाना; संकुचित-वि० [सं०] सिकुड़ा हुआ; तंग; बंद नत । जोतना बलराम । -विद्या-स्त्री० एक स्त्रीके पेटसे बच्चा | संकुपित-वि० [सं०] ऋद्ध उत्तेजित । निकालकर दूसरी स्त्रीके पेट में रखनेकी विद्या ।
संकुल-वि० [सं०] घबड़ाया हुआ; भरा हुआ, धना; संकल-पु०[सं०] एकत्र करना; राशि, ढेर योग । + स्त्री० संकीर्ण; असंगत; जटिल । पु० भीड़, मजमा, झुंड; युद्ध साँकल, जंजीर ।
असंगत वाक्य । संकलन-पु०[सं०] एकत्रीकरण; योग, जोड़; अच्छे विषयों- संकुलता-स्त्री० [सं०] परिपूर्णता गड़बड़ जटिलताधनापन ।
को चुनकर एकत्र करना; इस ढंगसे बना हुआ ग्रंथ । संकुलित-वि० [सं०] भरा हुआ, पूरित (समासमें); संकलना-स्त्री० [सं०] एकत्र करना; मिलाना, जोड़ना। सिकोड़ा हुआ अस्त-व्यस्त; घबड़ाया हुआ। संकलप*-पु० दे० 'संकल्प'।
संकेंद्रण-पु० [सं०] (कॉनसेंट्रेशन) केंद्र की ओर ले जाना, संकलपना-स० क्रि० संकल्प करना, निश्चय करना; जमाना, एक स्थान या केंद्रपर लगाना, इकट्ठा करना
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संकेंद्रित प्रयास-संग
७९२ (ध्यान, शक्ति, फौजें)। -सिद्धांत-पु. (थिअरी ऑफ न होने दे (दवा इ०) । कॉनसेंट्रेशन)मार्क्सवादियोंका यह सिद्धांत कि बड़े-बड़े पूँजी- | संक्रमित-वि० [सं०] पहुँचाया, प्रवेश कराया हुआ; पति अंततोगत्वा प्रायः सभी छोटे पूँजीपतियोंको या तो| हस्तांतरित । -माल-पु० [हिं०] (गुड्स इन ट्रांजिट) निकाल बाहर करेंगे या अपनेमें मिला लेंगे जिससे सारी वह माल जो किसी स्थानसे रवाना कर दिया गया हो, पर पूँजी थोड़ेसे शक्तिशाली गुटों, न्यासों (ट्रस्टों) या बैंकोंमें | अभी उदिष्ट स्थानतक पहुँचा न हो-बीचमें, यात्रामार्गमें संकेंद्रित हो जायगी।
ही हो। संकेंद्रित प्रयास-पु० [सं०] (कॉनसेंट्रेटेड एफर्ट) वह | संक्रांत-वि० [सं०] गत, गुजरा हुआ; प्रविष्ट; स्थानांतप्रयास जिसमें सारी शक्ति एक ही स्थान या कामपर रित प्राप्त गृहीत प्रतिफलित, प्रतिबिंबित चित्रित । लगा दी गयी हो।
संक्रांति-स्त्री० [सं०] साथ गमन; मिलन; एक विंदुसे संकेत-पु० [सं०] अभिप्रायसूचक अंगचेष्टा, इंगित, इशारा; दूसरे विंदुतकका मार्ग; सूर्य या किसी ग्रहका एक राशिसे चिह्नः ठहराव प्रेमी-प्रेमिकाका आपसका ठहराव प्रेमी- दूसरी राशिमें प्रवेश करना हस्तांतरण प्रतिबिंब अंकन । प्रेमिकाके मिलनेका निर्दिष्ट स्थान शर्त । -गृह,-निके -काल-पु० (ट्रांजीशनल पीरियड) दे० 'संक्रमणकाल'। तन-पु० प्रेमी-प्रेमिकाके मिलनेका स्थान । -चिह्न, | संक्रामक-वि० [सं०] एकसे दूसरे में संक्रमण करनेवाला; रूप-पु० (ऍब्रीवियेशन) नाम, पद आदिके सूचक छूत आदिसे फैलनेवाला (रोग)। वे चिह्न या लघु रूप जो संकेतकी तरह प्रयुक्त होते हैं | संक्रामित-वि० [सं०] हस्तांतरित किया हुआ; दूसरेको ( जैसे अ० क्रि०-अकर्मक क्रिया)। -भूमि-स्त्री०, बतलाया हुआ। -स्थान-पु० दे० 'संकेत-गृह'।
संक्रामी(मिन)-वि० [सं०] संक्रमण करनेवाला; फैलसँकेता-पु० संकटकी स्थिति, कठिनाई।
नेवाला; संपर्क द्वारा फैलनेवाला हस्तांतरित होनेवाला। संकेतना*-स० क्रि० संकट, विपत्तिमें डालना । अ० क्रि० संक्रोन*-पु. संक्रांति, संक्रमण-'काहू पुन्यन पाइसंकुचित होना,-'कँवल सँकेता, कुमदिनि फूली'-प० ।। यत बैस संधि संक्रोन'-बि० । संकेताक्षर-पु० [सं०] ( साइफर ) संकेत रूपमें लिखे गये। संक्रांश-पु० [सं०] साथ-साथ चिल्लाना, जोरसे शब्द अक्षर, गुप्त लिपि।
करना क्रोधमें चिल्लाना। संकेतित-वि० [सं०] ठहराया हुआ, निश्चित; इशारा संक्षिप्त-वि० [सं०] फेंका हुआ; छोटा किया हुआ घटाया किया हुआ।
हुआ खुलासा; छोटा। -लिपि-स्त्री० लिखनेकी एक संकेलना -सक्रि० समेटना, बटोरना; खींचकर इकट्ठा प्रणाली जिसमें विशेष ध्वनियोंके लिए छोटे-छोटे चिह्न करना।
निश्चित रहते हैं (शार्ट हैंड राइटिंग)। -विधिक विचारसंकोच-पु० [सं०] सिकुड़ना; बंद होना, मुँदना (नेत्रका); पु० (समरी ट्रायल) न्यायालय द्वारा किसी वाद या हलकी लज्जा; संक्षेप; सूखना (जलाशयका); कमी; मामलेपर विधिक दृष्टिसे संक्षेपमें किया गया विचार । हिचक; एक अलंकार । -कारी(रिन् )-वि० विनम्र, संक्षिप्तीकरण-पु० [सं०] किसी कथा, विषय आदिको शरमानेवाला । -रेखा-स्त्री० झुरी, सिलवट ।
संक्षिप्त करना, संक्षेपण।। संकोचन-पु० [सं०] सिकुड़ना एक पहाड़; ( कॉम्प्रेशन) संक्षेप-पु० [सं०] फेंकना; हरण; घटाना; छोटा रूप; दबाव डालकर किसी वस्तुका आयतन कम करना । सारांश। संकोचना*-स० क्रि० संकुचित करना । अ० कि० संकोच | संक्षेपक, संक्षेप्ता(प्त)-वि० [सं०] फेंकनेवाला; संक्षिप्त करना।
या छोटा रूप देनेवाला। संकोचनी-स्त्री० [सं०] लजालू ।
| संक्षेपण-पु० [सं०] फेंकनाः (ऐबिजमेंट) संक्षिप्त करना । संकोची(चिन्)-वि० [सं०] संकुचित होनेवाला | संक्षेपतः(तस)-अ० [सं०] संक्षेपमें, थोड़ेमें । (पुष्पादि); सिकुड़नेवाला; लजानेवाला; विनम्र । संख-पु० दे० 'शंख' । -नारी-स्त्री० एक छंद । संकोपना-अ.क्रि. क्रोध करना ।
संखिया-पु० एक बहुत तेज विष जो एक उपधातु है; इस संक्रम-पु० [सं०] साथ जाना; गमन; भ्रमण; प्रगति; उपधातुका भस्म । संक्रमण; सूर्य या नक्षत्रकी वीथी; तंग रास्ता, दुर्गम मार्गः | संख्यक-वि० [सं०] संख्यावाला (समासांतमें)। कठिनाईसे आगे बढ़ सकना पुल, सेतु; घाट; उद्देश्य- | संख्या-स्त्री० [सं०] गणना, गिनती; अंक; तादाद; लिखे प्राप्तिका साधन; तारेका टूटना, स्कंदका एक अनुचर ।। गये पत्रों या सामयिक पत्रादिपर दिया गया क्रमांक संक्रमण-पु० [सं०] गमन भ्रमण; एक स्थिति या अवस्था- नाम । -लिपि-स्त्री० लिखनेकी एक प्रणाली जिसमें से दूसरीमें प्रवेश; राश्यंतरमें सूर्यका प्रवेश, संक्रांतिः | अक्षरोंकी जगह अंक रखते हैं। -वाचक-वि०जिससे हस्तांतरण मृत्यु । -काल-पु० (ट्रांजीशनल पीरियड) संख्याका बोध हो, संख्याका सूचक । एक स्थिति या युगसे निकलकर पूर्ण रूपसे दूसरी स्थिति | संख्यातीत-वि० [सं०] अगणित, बेशुमार । या युगमें संक्रमित (प्रविष्ट ) हो जानेके बीचका समय । संख्यान-पु० [सं०] गणना, शुमार राशि, संख्यामाप । -नाश-पु० (डिसइनफेक्शन) रोगके संक्रमणसे बचाव संख्येय-वि० [सं०]गणनीय,जो गिना जा सक विचारणीय। या मुक्ति । -नाशक-वि० (डिसइनफेक्टेंट) जो रोग संग-अ० साथ, सहित । पु० [सं०] मिलन; साथ होना; फैलनेवाले कीटाणुओंका नाश कर सके, रोगका संक्रमण | योग; दो नदियोंका मिलना, संगमः संसर्ग, स्पर्श,
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संग-संग्रही संपर्क; मैत्री; साथ; आसक्ति । -त्याग-पु० विरक्ति। ठहराव, वादा; अंगीकार; सौदा; ज्ञान; भक्षण; विष; -साथ-पु० [हिं०] मैत्री, दोस्ती। मु०-करना-साथ + आपत् , संकट; शमीका फल । होना; दोस्ती करना ।-छोड़ना-साथ छोड़ना। -जाना संगराम*-पु० दे० 'संग्राम' । -साथ जाना, हमराह होना। -लग लेना-साथ हो संगाती-पु० साथ रहनेवाला, साथी, संगी; दोस्त । लेना ख्वाइमख्वाह साथ हो जाना, पीछा करना।-लेना संगायन-पु० [सं०] साथ-साथ गाना या स्तुति करना।
-साथ ले चलना ।-होना-साथ होना, हमराह होना। संगिनी-स्त्री० [सं०] साथ रहनेवाली, साथिन, पत्नी। संग-पु० [फा०] पत्थर, चट्टान ।-अंदाज-पु० ढेलवाँस | संगिस्तान-पु० [फा०] पथरीला प्रदेश । किलेकी दीवार में शत्रुपर पत्थर फेंकनेके लिए बने हुए संगी-वि० [फा०] पत्थरका, संगीन । पु. एक तरहका छेदइन छेदोंसे शत्रुपर पत्थर फेंकनेवाला । -चक्रमाक रेशमी कपड़ा। -पु. एक तरहका पत्थर जिसपर चोट लगनेसे आग संगी(गिन्)-वि० [सं०] साथ रहनेवाला संपर्कमें आनेनिकलती है।-तराश-पु० पत्थर गढ़नेवाला ।-दिल- वाला; आसक्त कामुक । पु० साथी दोस्त । वि० कठोर हृदय, निर्दय। -दिली-स्त्री० बेरहमी, संगीत-वि० [सं०] साथ मिलकर गाया हुआ। पु. वह निर्दयता । -पुश्त-पु० कछुवा । -मरमर(मर्मर)- गाना जिसे कई आदमी मिलकर गायें; वाद्योंके साथ पु० एक तरहका सफेद पत्थर जो इमारतमें लगाया जाता | गाया जानेवाला गाना; नृत्य, वाद्य और गीतका समाहार; है।-मुरदार-पु० मुरदासंख।-मूसा-पु० एक तरहका नृत्य और वाधके साथ गानेकी कला । -ज्ञ-पु० संगीत काला चिकना पत्थर । -रेजा-पु० पत्थरकी गिट्टी। विद्याका ज्ञाता, गायक । -वेश्म(न)-पु०,-शाला-साज़-पु० छापेका पत्थर दुरुस्त करनेवाला । -सार स्त्री० संगीत भवन । -विद्या-स्त्री. वह विद्या जिसमें -पु० एक तरहकी सजा, पत्थर मारकर मार डालना। संगीत-संबंधी विषयोंका निरूपण हो । -शास्त्र-पु. वि० पत्थर मारनेवाला । -सारी-स्त्री० दे० 'संगसार'। संगीतविद्या। -सुर्ख-पु. एक तरहका लाल पत्थर । -सुलेमानी- संगीन-वि० [फा०] पत्थरका पत्थरका बना हुआ सख्त, पु० एक तरहका पत्थर जो काला और सफेद होता है। कठोर; भारी; भीषण; मजबूत । स्त्री०, पु० एक तरहका -(गे)आतिश-पु० चकमाक। -पा-पु० पैरका मैल नोकदार हथियार जो बंदूकपर चढ़ाया जाता है। जुर्मसाफ करनेका पत्थर, झाँवाँ । -मज़ार-पु० कब्र में लगा पु० ऐसा अपराध जो कठिन दंडके योग्य हो। -दिलहुआ वह पत्थर जिसपर मृत व्यक्तिका नाम आदि अंकित वि० दे० 'संगदिल' । -दिली-स्त्री० बेरहमी। हो । -राह-पु० रास्तेपर पड़ा हुआ पत्थर जिससे आने- संगीनी-स्त्री० [फा०] मजबूती; ठोसपन । जानेवालोंको कष्ट हो।
संगप्त-वि० [सं०] भली-भाँति छिपाया हुआ; सुरक्षित । संगठन-पु० दे० 'संघटन' ।
संगृहीत-वि० [सं०] संग्रह किया हुआ, एकत्र किया संगठित-वि० दे० 'संघटित' ।
हुआ; जकड़ा हुआ; संयत किया हुआ, शासित प्राप्त, संगणना-स्त्री० [सं०] ( कांप्यूटेशन) गिनकर या हिसाब स्वीकार किया हुआ। लगाकर देखना, आँकड़ों आदिके आधारपर ठीक-ठीक संगृहीता-पु० दे० 'संग्रहीता'। अंदाज लगाना।
संगोपन-पु० [सं०] छिपाना। संगत-वि० [सं०] मिला हुआ, युक्ता एकत्रीभूत; ठीक संग्रंथन-पु० [सं०] एक साथ बाँधना संघटन । तरहसे बैठने, खप जानेवाला, उपयुक्त, मौनँ । स्त्री० मेल; संग्रह-पु० [सं०] पकड़ना; ग्रहण करना; जमा करना; मिलन, संबंध, संपर्क; साथ; मैत्री; गाने आदिके साथ एक साथ इकट्ठी की हुई वस्तुएँ; शासन, नियंत्रण करना; बाजा बजाना (हिं०); उदासी साधुओंका मठ (हिं०)। राशीकरण; (ग्रंथादिका) संकलन; जोड़ सूची; भांडार
मु०-करना-गानेवालेके साथ कोई वाध बजाना। गृह मंत्र-बलसे प्रक्षिप्त अस्त्र लौटा लेना; कोष्ठबद्धता संगतरा-पु० [फा०] संतरा।
विवाह -कार-पु० संकलनकर्ता। संगतार्थ-वि० [सं०] उपयुक्त अर्थवाला।
संग्रहण-पु० [सं०] ग्रहण करनेकी क्रिया प्राप्त करना; संगति-स्त्री० [सं०] मेल; मिलन, योग; संघ; साथ संपर्क, संकलन करना; एकत्र करना; (रत्नादि) जड़ना । संसर्गः मिलनके लिए जाना; सामंजस्य; उपयुक्तता, मौजूं संग्रहणी-स्त्री० [सं०] अतीसारका एक रूप जिसमें खाना होना।
बिना पचे ही मलके रूपमें निकल आता है। संगतिया, संगती-पु० साथी; गाने आदिके साथ साज | संग्रहणीय-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य; (औषधके बजानेवाला।
रूपमें) सेवन करने योग्य; एकत्र करने योग्य । संगम-पु० [सं०] मिलन, संयोग; साथ, संगति; संपर्क, संग्रहना*-स० क्रि० संग्रह, संचय करना; अपनाना। स्पर्श; मैथुन नदियोंका मिलन; उपयुक्तता; युद्ध, मुकाबला; संग्रहाध्यक्ष, संग्रहालयाध्यक्ष-पु० [सं०] (क्यूरेटर) (ग्रहोंका) योग।
किसी संग्रहालय (म्यूजियम )की देखरेख या व्यवस्था संगमित-वि० [सं०] मिलाया, संयुक्त किया हुआ। । करनेवाला मुख्याधिकारी। संगर-पु० [फा०] खेत या बागके चारों ओर बनायी संग्रहालय-पु० [सं०] वह स्थान जहाँ विशेष प्रकारकी जानेवाली काँटोंकी बाड़, दीवार जो लड़ाईके मौकेपर वस्तुओंका संग्रह किया गया हो। बनायी जाती है। मोरचा खाई [सं०] संघर्ष, युद्ध संग्रही(हिन्)-पु० [सं०] संग्रह, जमा करनेवाला।
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संग्रहीता-संचारना
७९४ संग्रहीता(त)-वि० सं०] एकत्र, संग्रह करनेवाला | संघर्ष-पु० [सं०] दो चीजोंका आपसमें रगड़ खाना; ग्रहण करनेवाला; अपनानेवाला।।
होड़, स्पर्धा, द्वेष; कामोत्तेजना; धीरे-धीरे लुढ़कना, संग्राम-पु० [सं०] युद्ध, लड़ाई। -जित्-वि० युद्ध में रेंगना, संसर्प । -शाली (लिन्)-वि० स्पर्धा, द्वेष विजय प्राप्त करनेवाला ।-तूर्य-पु० युद्धपटह ।-पटह- करनेवाला । -समिति-स्त्री. (कमिटी ऑफ ऐक्शन) पु० युद्ध में बजाया जानेवाला नगाड़ा। -भूमि-स्त्री० स्वाधीनता या प्राप्य अधिकारों, माँगों आदिकी पूर्तिके समरभूमि, युद्धक्षेत्र । -मृत्यु-स्त्री० वीर गति । लिए चलाये जानेवाले आंदोलन या संघर्षका संचालन संग्रामांगण-पु० [सं०] युद्धक्षेत्र, लड़ाईका मैदान । करनेवाली समिति, आंदोलनसमिति ।। संग्रामार्थी (र्थिन् )-वि० [सं०] युद्धेच्छु ।
संघर्षण-पु० [सं०] रगड़ खाने या रगड़नेकी क्रिया; संग्राहक-पु० [सं०] संग्रह, जमा करनेवाला; संकलन- रगड़ने, मलनेके काम आनेवाली वस्तु, उबटन आदि । कर्ता । वि० एकत्र करनेवाला; कब्ज करनेवाला, काबिज । संघर्षी (र्षिन् )-वि० [सं०] रगड़नेवाला; स्पर्धा, द्वेष संग्राही (हिन्)-वि० [सं०] एकत्र करनेवाला; कब्ज | करनेवाला ।
करनेवाला; अपने साथ करने, अपनानेवाला । संघात-पु० [सं०] आघात; वध; बंद करना (द्वार); युद्ध संग्राह्य-वि० [सं०] संग्रह, एकत्र करने योग्य; रोकने ठोस, धनीभूत करना; संग, साथ-'धुआँ उठ मुख साँस योग्य; अपनाने योग्य ।
संघाता'-५०; संयोग; समूह; झुंडा राशि; साथ यात्रा संघ-पु० [सं०] समूह, झुंड, दल, मंडली; विशेष उद्देश्यसे | करनेवालोंका दल, कारवाँ। -चारी(रिन्)-वि० एक साथ रहनेवाले व्यक्तियोका समूह; समाज; विशेष- दलमें रहनेवाला । उद्देश्यकी पूर्तिके लिए बना हुआ श्रमिकों आदिका संघटन; | संघाती-पु० साथ देनेवाला, साथी; दोस्त ।। बौद्ध भिक्षुओं आदिका समूह; प्राचीन भारतमें प्रचलित संघाती(तिन् )-वि० [सं०] घातक, प्राणहारी। एक प्रकारका प्रजातंत्र; मठ । -चारी (रिन् )-वि० संघाती*-पु० दे० 'संधाती'। झुंडमें चलनेवाला, बहुमतके पीछे चलनेवाला । पु० संघार*-पु० दे० 'संहार' । मछली । - जीवी (विन्)-वि० दल बनाकर रहने- संघारना*-स० क्रि० संहार, नाश करना; वध करना । वाला । -न्यायालय-पु. (फेडेरल कोर्ट ) संघराज्यका संघाराम-पु०[सं०] बौद्ध भिक्षुओंके रहनेका स्थान, विहार । सर्वोच्च न्यायालय । -पति-पु० दलनायक। -भेद- संघीय संविधान-पु० [सं०] (फेडेरल कांस्टिट्यूशन) पु० संघमें फूट डालना जो पाँच अक्षम्य अपराधों में गिना | उन राज्योंके संघका संविधान जो आंतरिक मामलों में तो जाता है (बौद्ध)। -भेदक-वि० संघमें फूट डालनेवाला प्रायः स्वतंत्र हो, किंतु रक्षा एवं परराष्ट्र नीतिके संबंध (बौद्ध)। -वृत्ति-स्त्री० साथ मिलनेकी वृत्ति, दल में रहने | केंद्रीय या संघसरकारके अधीन हों। या काम करनेका भाव ।-समाजवाद-पु० (सिंडिकेलिज्म) | संघोष-पु० [सं०] जोरका शब्द घोष, ग्वालोंकी बस्ती। वह क्रांतिकारी श्रमिक आंदोलन जो व्यवसायसंघों (ट्रेड संच-*पु० एकत्र करना; रक्षण, देखभाल; कुशल । यूनियन्स)को ही सामाजिक क्रांतिका तथा भावी समाजका संचक-पु० संचय करनेवाला । आधार मानता है (हड़ताल कराना इसका मुख्य साधन संचना*-सक्रिजमा करना, बटोरना, देखभाल करना। और लक्ष्य है); राज्यसंस्था समाप्त कर व्यवसायसंघोंकी संचय-पु. [सं०] एकत्र करना; भांडार, राशि, ढेर । सत्ता स्थापित करना।
संचयन-पु० [सं०] एकत्र करनेकी क्रिया, ढेर लगाना । संघट-वि० [सं०] राशीकृत, ढेर लगाया हुआ। पु० राशि | संचयिक-पु० [सं०] संग्रह करनेवाला। * झगड़ा; संयोग संघट्ट ।
संचयी(यिन्)-वि० [सं०] संचय करनेवाला; कंजूस, संघटन-पु० निर्माण, रचना, व्यवस्थित करनेका कार्य, | कृपण धनवान् । गठन, संग्रंथन; कार्यविशेषकी सिद्धिके लिए निर्मित कोई | संचरण-पु० [सं०] गमन; गति पार करना; फैलाना । संस्था; [सं०] संयोग, मेल ।
संचरना*-अ० वि० चलना, फिरना; फैलना; पहुँचना। संघटना-स्त्री० [सं०] मिलाना, संयुक्त करना; स्वरों या सक्रि० चलाना। शब्दोंका संयोग।
संचान-पु० [सं०] श्येन, बाज, शिकरा। संघटित-वि० कार्यविशेषके लिए परस्पर संबद्ध व्यवस्थित संचार-पु० [सं०] गमन; भ्रमण; सूर्यका दूसरी राशिमें [सं०] एकत्रीभूत वादित (मंगीत)।
प्रवेश; रोग संक्रमण । -जीवी(विन)-वि० खानासंघट्ट-पु० [सं०] संघर्षः मुठभेड़, भित; स्पर्धा, आघात, बदोश; शरणापन्न । -पथ-पु० टहलनेका स्थान ।
चोट; संयोग; दूतीकी सहायतासे नायक-नायिकाका -साधन-पु. (मीन्स ऑफ कम्यूनिकेशन) दो या मिलन; आलिंगन ।
अधिक स्थानों या व्यक्तियों के बीच संबंध स्थापित करने के संघट्टन-पु०, संघट्टना-स्त्री० [सं०] संघर्षण; टक्कर साधन-डाक, तार, समुद्री तार, रेडियो आदि (वार्ता
घनिष्ठ संपर्क; दो पहलवानोंकी भिडंत, गुत्थमगुत्था। वहनके साधन)। संघट्टित-वि० [सं०] घर्षित; माँडा, गूंधा हुआ; एकत्री- संचारक-वि० [सं०] ले जाने, फैलानेवाला। कृत; परिचालित ।
संचारण-पु०[सं०] नजदीक लाना या ले जाना मिलाना, संघती -पु. साथी।
जोड़ना संवाद कहना। संघरना*-सक्रि० संहार, नाश करना; वध करना। संचारना*-स० क्रि० फैलाना; प्रवेश कराना; उत्पन्न
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७९५
संचारिका-संतप्त करना प्रयोगमें लाना ।
सँजोउ*-पु. संयोग तैयारी-'अबही बेगहिं करोसँजोऊ' संचारिका-स्त्री० [सं०] कुटनी: दूती।
-५०; सामग्री। संचारित-वि० [सं०] गतिमान् किया हुआ, चलाया हुआ; संजोग-पु० दे० 'संयोग'।
उकसाया हुआ, जिसे बढ़ावा दिया गया हो; संक्रमित संजोगिता-स्त्री० जयचंदकी कन्या जिसका पृथ्वीराजने किया हुआ (रोग)।
हरण किया था । संचारी(रिन्)-वि० [सं०] गतिशील, चल; भ्रमणकारी; | संजोगिनी*-स्त्री० दे० 'संयोगिनी' । एकसे दूसरे में संक्रमण करनेवाला, संक्रामक (रोग); प्रवेश संजोगी*-वि० दे० 'संयोगी'। पु० वह पुरुष जो अपनी करनेवाला; साथ आने, मिलनेवाला; अस्थिर । पु० एक प्रियाके साथ हो। प्रकारके भाव जो तैतीस होते हैं और स्थायी भावको पुष्ट | सँजोना-स. क्रि० सजाना एकत्र करना; संचित करना; कर विलीन हो जाते हैं, व्यभिचारी भाव (सा०)। पूरा करना। संचालक-पु० [सं०] संचालन करनेवाला, गति प्रदान | सँजोवना*-स० क्रि० दे० 'सँजोना' । करनेवाला; कारखाने आदिके ठीकसे जारी रहनेका | संजोवल*-वि० सजा हुआ; सन्नद्ध सैन्यादिविशिष्ट । प्रबंध करनेवाला।
संज्ञा-स्त्री० [सं०] बोध, ज्ञान; होश: प्रशा; संकेत, इंगित संचालन-पु० [सं०] चलाना, गति देना। -व्यय-पु० नाम; वह शब्द जो किसी व्यक्ति, वस्तु आदिका नाम (वर्किंग एक्सपेंसेज़) किसी कारखाने, संस्था, प्रमंडल हो (व्या०); गायत्री मंत्र; सूर्यकी स्त्री जो विश्वकर्माकी पुत्री आदिके चलानेका व्यय ।
थी। -करण-पु० नाम रखना। -पुत्री-स्त्री० यमुना। संचित-वि० [सं०] इकट्ठा किया हुआ, जमा किया हुआ, -सुत-पु० शनि । -हीन-वि० वेहोश ।। ढेर लगाया हुआ। -कर्म(न)-पु. पूर्वजन्मके वे कर्म | संज्ञात-वि० [सं०] अच्छी तरह जाना, समझा हुआ। जिनका फलभोग नहीं हुआ है। -कोष-पु० (प्रॉविडेंट संज्ञान-पु० [सं०] बोध, ज्ञान, सम्यक अनुभूति । . फंड) दे० 'भविष्यनिधि'।
संझला -वि० संध्या-संबंधी; मँझलेसे छोटा (भाई, पुत्र)। संचिति-स्त्री० [सं०] एकत्र करने, जमा करनेकी क्रिया । संझवाती-स्त्री० विवाहादिमें शामको गाया जानेवाला संचेय-वि० [सं०] संचय करने योग्य ।
गीत; शामको जलाया जानेवाला दीप । संजम*-पु० दे० 'संयम' ।
संझा* -स्त्री० संध्या। संजमी-वि० दे० 'संयमी' ।
सँझोखा*-पु. संध्याकाल । संजय-पु० [सं०] एक प्रकारका व्यूहा धृतराष्ट्रका एक
सँझाख*-अ० संध्याकालमें । सारथि जो उन्हें युद्धका समाचार सुनाया करता था।
संड-पु० पंड, साँड़ । -मुसंड-वि० मोटा-ताजा। संजात-वि० [सं०] उत्पन्न; व्यक्त; व्यतीत (समय आदि)। सँड़सा-पु० दो छोटे छड़ोंका बना हुआ एक कैंचीनुमा -कोप-पु० कद्ध । -कौतुक-वि० चकित । -निर्वेद औजार जो गरम चीजें आदि पकड़नेके काम आता है। वि० विरक्त।
सँड़सी-स्त्री० एक तरहका छोटा सँड़सा जिससे गरम संजाफ-पु० [फा०] हाशिया, गोट; एक तरहका कपड़ा।
बटलोई आदि पकड़कर उतारते हैं । जिसकी गोट लगाते हैं।
संडा-वि० मोटा-ताजा, मजबूत । संजानी-वि० [फा०]हाशियादार; जिसमें किनारी लगी हो। संडास-पु० कुएँ जैसा बना हुआ पाखाना जिसे मेहतर संजाब*-पु. एक तरहका घोड़ा।
साफ नहीं करता, मल जमा होनेपर सोडा आदि डाल संजीदगी-स्त्री० [फा०] संजीदा होना; गांभीर्य; समझ- देते है; ऊपरकी मंजिलपर इसी तरहका बना हुआ दारी, शिष्टता।
पाखाना जिसमें मल नीचे गिरता और मेहतरसे साफ संजीदा-वि० [फा०] तुला हुआ; गांभीर्ययुक्त शिष्ट, कराया जाता है। समझदार।
संडासी-स्त्री० सँड़सी (५०)। संजीवन-पु० [सं०] साथ रहना पुनर्जीवित करना; एक संत-पु० ['सत्'का प्रथमा बहुवचनांत रूप] साधु, धर्मात्मा, नरक । वि० जीवन शक्ति देनेवाला ।।
विरक्त, महात्मा; गृहास्थाश्रममें प्रवेश करनेवाला साधु । संजीवनी-स्त्री० [सं०] मृतको जीवित करनेवाली एक | -समागम-५० संतोंका सत्संग-स्थान-पु०साधुओंका कल्पित औषधि । वि० स्त्री० जीवन देनेवाली ।-विद्या- स्थान, मठ। स्त्री० मृत व्यक्तिको जिलानेकी एक कल्पित विद्या। संतत-* स्त्री० संतति, संतान । वि० [सं०] अविच्छिन्न संजीवित-वि० [सं०] पुनर्जीवित किया हुआ।
बराबर रहनेवाला । अ० हमेशा; लगातार, निरंतर । संजुक्ता-वि० दे० 'संयुक्त।
-ज्वर-पु० बराबर रहनेवाला ज्वर, विषम ज्वर । संजुग-पु० युद्ध, संग्राम ।
संतति-स्त्री० [सं०] फैलाव, विस्तार; नैरंतर्य; अविच्छिन्नता संजुत*-वि० मिला हुआ, सहित ।
कुल संतान । -निरोध-पु. प्राकृतिक (संयम आदि) सँजूत*-वि० तैयार, सन्नद्ध,-'होहु सँजूत बहुरि नहिं अथवा कृत्रिम उपायों द्वारा गर्भाधान न होने देना। अवना'- सावधान ।
संतपन-पु० [सं०] बहुत तपना तप्त करना; कष्ट देना, संजोइ*-अ० संग, साथमें । पू०क्रि० इकट्टा कर,जुटाकर। उत्पीड़न । सजोइल*-वि० इकट्ठा किया हुआ; सज्जित ।
संतप्त-वि० [सं०] तप्त, जलता हुआ; जला हुआ, झुलसा
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संतरण-संदोह
७९६ हुआ; पिघला हुआ; कष्टग्रस्त, पीड़िता क्लांत ।
संद-पु० छेद, बिल; * दबाव । संतरण-वि० [सं०] पार करनेवाला; उद्धारक । पु० पार | संदर्भ-पु० [सं०] एक साथ बाधना, व्यवस्थित करना। करनेकी क्रिया; (लांचिंग) तैयार हो जानेपर किसी पोत | साहित्यिक रचना, निबंध आदि; संबंध-निर्वाह; लेखआदिको पहली बार पानीमें उतारना, तैराना। -शील | पुस्तक आदिमें आया हुआ हुआ प्रसंग जिसका उल्लेख हिमशिला-स्त्री० (आइसवर्ग) पानी में उतराती हुई बर्फकी हो; अर्थ-प्रकाशक ग्रंथ । -विरुद्ध-वि० जिसमें संबंधका चट्टान ।
निर्वाह न हुआ हो। संतरा-पु. एक तरहका मीठा नीबू , बड़ी नारंगी। संदर्शन-पु० [सं०] अच्छी तरह देखना; टकटकी लगाकर संतरी-पु० [अं० 'सेंट्री'] प्रहरी, पहरेदार द्वारपाल । देखना; परस्पर मिलन; पर्यवेक्षण, विचार । संतर्जन-पु० [सं०] धमकाना; डाँट-डपट करना। संदल-पु० [अ०] चंदन । -का बुरादा-चंदनका चूरा । संतान-स्त्री० [सं०] वंश; संतति, औलाद; शाखा- संदली-वि० [अ०] चंदनका; चंदनके रंगका। स्त्री० प्रशाखा । -कर्म(न्)-पु० संतानोत्पादन, प्रजनन । चौकी; ऊँची तिपाई जिसपर चढ़कर दीवार पर चूना -निग्रह-पु० दे० 'संतति निरोध'।
__ आदि करते हैं । पु० हलका पीला रंग। संताप-पु० [सं०] तेज गरमी अग्नि, कष्ट, पीड़ा; ग्लानि, | संदि*-स्त्री० मेल, संधि। पापादिसे उत्पन्न अनुताप । -कर-कारी(रिन्)- संदिग्ध-वि० [सं०] जिसमें संदेह हो, अनिश्चित; जो वि० कष्ट देनेवाला। -हर-हारक-वि० ताप दूर
खतरेसे खाली न हो (पोतादि); जिसपर संदेह हो। करनेवाला; आराम देनेवाला; सांत्वना देनेवाला ।
-जनसूची-स्त्री० (ब्लैक लिस्ट) दे० 'दुर्वृत्तसूची। संतापन-पु० [सं०] ताप देना, तप्त करना, जलाना; -बुद्धि,-मति-वि० शक्की, जो हर बालमें संदेह किया कष्ट देना; कामके पाँच बाणोंमेंसे एक।
करे। संतापना*-स० क्रि० पीड़ा, कष्ट देना ।
संदग्धिता, संदिग्धत्व-पु० [सं०] संदिग्ध होना; एक संतापित-वि० [सं०] तपाया हुआ, झुलसा हुआ; पीड़ित । | दोष जो वाक्यका अर्थ स्पष्ट न होनेपर माना जाता है। संती-* १० द्वारा + बदले में।
संदिग्धार्थ-वि० [सं०] जिसका अर्थ संदेहयुक्त हो। संतुलन-पु० [सं०] आपेक्षिक ताल बराबर होना या | संदीपक-वि० [सं०] उद्दीपक । रखना; दो देशों, पक्षोंका बल बराबर रखना या होना; संदीपन-पु० [सं०] उद्दीपन, कामदेवके पाँच बाणोंमेंसे आय तथा व्ययमें, आयात-निर्यातमें सामंजस्य रखना। | एक; एक ऋषि, कृष्णके गुरु । संतुलित-वि० [सं०] जिन (दो देशों, राशियों, वस्तुओं संदक-पु० [अ०] लकड़ी या लोहेका बकस जो कपड़े आदि) का भार, बल, फैलाव आदि बराबर रखा गया | आदि रखनेके काम आता है। वह लंबा बकस जिसमें हो, जिनमें संतुलन हो।
मुरदे दफन करने के लिए ले जाते हैं, ताबूत । संतुष्ट-वि० [सं०] जिसे संतोष हो गया हो; तप्तः से | संदूकचा-पु० छोटा संदूक । प्रसन्न राजी, रजामंद।
संदूकची-स्त्री० छोटा संदूकचा । संतुष्टि-स्त्री० [सं०] संतुष्ट होनेका भाव; तृप्ति, इच्छापति।। संदूकड़ी-स्त्री० छोटा संदूक । संतोख*-पु० दे० 'संतोष' ।
संदूख-पु० दे० 'संदूक' । संतोखी*-वि० दे० 'संतोषी' ।
| संदूर* -पु० दे० 'सिंदूर'। संतोष-पु० [सं०] जो मिले उसासे प्रसन्न रहनेका भाव; | संदेश-पु० [सं०] संवाद; आदेश; किसीके पास भेजवाया तृप्तिः प्रसन्नता।
गया महत्त्वपूर्ण आदेश या समाचार; एक मिठाई । - संतोषक-वि० [सं०] संतुष्ट करनेवाला प्रसन्न करनेवाला। वाहक-हर-हारक,-हारी( रिन् )-पु० संवादसंतोषण-पु० [सं०] संतुष्ट, प्रसन्न करनेकी क्रिया । वाहक । संतोषना*-सक्रि०संतुष्ट करना । अ०क्रि०संतुष्ट होना। | संदेशा-पु० संवाद, खबर । संतोषित-वि० [सं०] संतुष्ट, प्रसन्न किया हुआ * संतुष्ट । | संदेस-पु० दे० 'संदेश'। संतोषी(पिन्)-वि० [सं०] संतुष्ट रहनेवाला; सब संदेसा-पु० दे० 'संदेशा' । करनेवाला।
संदेह-पु० [सं०] शक, अनिश्चय; खतरा; एक अर्थासंत्यक्त-वि० [सं०] परित्यक्त;"से रहित, वंचित । लंकार, जहाँ किसी वस्तुके संबंध, साश्यके कारण, संत्यजन-पु० [सं०] परित्याग।
अन्य वस्तु होनेका संदेह हो और वह दूर न होकर बना संत्रस्त-वि० [सं०] बहुत डरा हुआ, भयसे काँपता हुआ। रहे। -वाद-पु० (स्केप्टिसिज्म) सत्यके संबंधमें कोई संत्रास-पु० [सं०] भय, आतंक; अहितकी संभावनासे स्थिर विश्वास या सिद्धांतपर न पहुँचनेकी स्थिति, प्रवृत्ति, उत्पन्न भय (सा०)।
संशयवाद ।-वादी (दिन)-वि० (स्केप्टिक) वस्तुतः सत्य संत्रासित-वि० [सं०] डरवाया हुआ ।
या तत्त्व क्या है, इस संबंध जो कोई निश्चय न कर संत्री-पु० दे० 'संतरी'।
सका हो, जिसके मनमें बराबर संदेह बना रहता हो संथा-स्त्री० पाठ, सबक ।
(ऐसा दार्शनिक); अविश्वासी, संशयात्मा। संदंश-पु० [सं०] सँड़सी चिमटी ।
संदेहात्मक-वि० [सं०] संदेहपूर्ण, संदिग्ध । संदंशिका-स्त्री० [सं०] सँड़सी; चिमटी ।
संदोह-पु० [सं०] दुइना, साथ दुइना; सारा दूध ( सारे
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"पुषा
७९७
संधना-संपृक्त झुंडका); राशिः प्राचुर्य ।
संपरीक्षण-पु० [सं०] (स्क्रटिनी) किसी लेख, मनोसंधना*-अ० कि.मिलना, संयुक्त होना।
नयनपत्र, कार्य आदिकी सूक्ष्म जाँच कर यह देखना कि संधाता-पु०[सं०] (वेल्डर) लोहे आदिके पदार्थों, टुकड़ोंको वह ठीक और नियमानुरूप है या नहीं। जोड़नेवाला; विष्णु।
संपर्क-पु० [सं०] संयोग, लगाव; स्पर्श; मैथुन । -पदासंधान-पु. [सं०] मिलाना, जोड़ना; योगसंघटन; धिकारी(रिन्)-पु. (लियेजाँ आफिसर) मित्र देशकी सुधार; निशाना लगाना; लक्ष्य-'एक पंथ और एक सेनाओंमें या सरकार और प्रजाजनों में परस्पर संबंध संधाना'-प०, संधि; ध्यान; दिशा; सँभालना; मदिरा | स्थापित करनेवाला पदाधिकारी, ग्रथनाधिकारी। चुलाना पीनेकी इच्छा उत्तेजित करनेवाली चटपटी चीजें | | संपा-स्त्री० [सं०] बिजली (दास०); साथ पान करना। अचार आदि; सीमा; घावका भरना; मैत्री, दोस्ती; अनु- संपात-पु० [सं०] एक साथ गिरना या मिलना; भिड़त, भूति; काँजी; काँसा; अन्वेषण ।
टक्कर वह स्थान जहाँ एक रेखा दूसरीसे मिले या काटकर संधानना-सक्रि० बाण चढ़ाना, निशाना लगाना; आगे बढ़ जाय; संगम । चलानेके लिए कोई अस्त्र ठीक करना ।
संपाती (तिन्)-वि० [सं०] एक संग कूदने, झपटनेसंधाना-पु० अचार-'पुनि संधाने आये बसौंधे'-प० । वाला; एक साथ उड़नेवाला; उड़नेमें होड़ करनेवाला । संधानित-वि० [सं०] जोड़ा हुआ, मिलाया हुआ; बद्ध । पु० एक पौराणिक पक्षी, संपातिएक राक्षस । संधि-स्त्री० [सं०] संयोग, मेल, संबंध; समझौता सुलहा संपादक-वि० [सं०] प्रस्तुत करनेवाला; पूरा करनेवाला । दोस्ती; शरीरका जोड़ सुरंग, छेद, दरार; सेंध; विभाग, | पु. वह व्यक्ति जो दूसरेकी रचना शुद्ध कर प्रकाशनके पार्थक्य; दो शब्दोंके साथ-साथ आनेपर एकके अंतिम | योग्य बनाता या सामयिक, दैनिक आदि पत्रका संपादन
और दूसरेके प्रथम वर्णके मिलनेसे होनेवाला विकार, | संचालन करता है। संहिता; अवकाश, विराम परिवर्तनकाल; शुभ अवसर संपादकीय-वि० [सं०] संपादक-संबंधी। पु० पत्रका वह नाटककी पाँचों अवस्थाओंको मिलानेवाले स्थल, मुखसंधि लेख, टिप्पणी आदिवाला अंश जो स्वयं संपादकका आदि तारुण्य, कैशोर आदि अवस्थाओंका योगा-कुशल लिखा हो। -वि० मैत्री स्थापनमें चतुर । -चोर,-चौर,-तस्कर- संपादन-पु०[सं०] पूरा करना; प्रस्तुत करना; क्रम आदि पु० सेंध लगाकर चोरी करनेवाला । -भंग-पु० किसी ठीक करना; ग्रंथादि शुद्ध कर प्रकाशनके योग्य बनाना; जोड़का संबंध छूट जाना; सुलहकी शर्ते तोड़ देना।- सामयिक या दैनिक पत्र विषय आदिकी दृष्टिसे ठीक विग्रहक,-विग्रहिक-पु० संधि और युद्धका निर्णायक करना और उसका संचालन करना । -कला-स्त्री० पत्र, मंत्री। -विच्छेद-पु० समझौता तोड़ना या टूटना पुस्तके आदि संपादित करनेकी विशेष कला । व्याकरणमें संधि-गत शब्दोंको अलग-अलग करना। संपादना-सक्रि० पूरा करना, ठीक करना-'विविध संधेय-वि० [सं०] जोड़ने, मिलाने योग्य; शांत करने अन्न संपति संपादहु'-रघु० । योग्य; जिससे संधि की जा सके।
संपादित-वि० [सं०] निष्पन्न, पूरा किया हुआ; प्रस्तुत, संध्या-स्त्री० [सं०] योग, मेल; सुबह, दुपहरी या शामका तैयार किया हुआ; ठीक कर प्रकाशनके योग्य बनाया वह समय जब दिनके भागोंका मेल होता है। इन समयों-| हुआ (ग्रंथादि)। पर किये जानेवाले धार्मिक कृत्य; दो युगोंके बीचका संपालक-पु० [सं०] (कस्टोडियन) दे० 'अभिरक्षक' । समय: साँझ, शाम; ब्रह्माकी पुत्री सूर्यकी स्त्री ।-कार्य-संपीडन-पु० [सं०] दबाना; निचोड़ना; प्रेषणः क्षुब्ध पु० संध्योपासन ।-राग-पु० शामकी लालिमा; शामको | करना; कष्ट देना। . गाया जानेवाला राग (शामकल्याण)। -वंदन-पु० संपुट-पु० [सं०] कटोरे जैसी कोई वस्तु; दोना; अंजली संध्योपासन ।
रसादि फूंकनेका मिट्टीका बना हुआ पात्र; रत्न-मंजूषा संध्योपासन-पु० [सं०] संध्याके समय की जानेवाली गोलार्द्ध * धुंघरू-'नाचे तदपि घरीक लौं, संपुट पगन पूजा आदि।
बजाई'-छत्र० । * वि०बंद-'घोष सरोज भये है संपुट संन्यास-पु० [सं०] दे० 'सन्न्यास' ।
दिनमणि हबिगसाओ-भ्र। संन्यासी(सिन)-वि०, पु० [सं०] दे० 'सन्न्यासी'। संपुटी-स्त्री० प्याली, छोटी कटोरी या तश्तरी।। संपति*-स्त्री० दे० 'संपत्ति' ।
संपुष्टि स्त्री० [सं०] (कॉरोबोरेशन) किसीके कथन, वक्तव्यकी संपत्ति-स्त्री० [सं०] समृद्धि, संपन्न स्थिति; ऐश्वर्य; धन, अन्य सूत्रोंसे पुष्टि हो जाना। जायदाद; सिद्धि बहुतायत, प्राचुर्य । -दान-पु० धन-संपूज्य-वि० [सं०] बहुत आदरणीय ।। संपत्तिका दान; भूमिहीनोंको भूमि दिलानेके आंदोलनकी संपूर्ण-वि० [सं०] पूरे तौरसे भरा हुआ, युक्त, भरा-पूरा सफलताके लिए धन-संपत्तिका दान देकर सहयोग करना। सारा अत्यधिक, अतिशय पूरा किया हुआ, संपन्न । पु० संपदा-स्त्री. धन-संपत्ति, ऐश्वर्य ।
रागकी वह जाति जिसमें सातों स्वर लगते हैं। संपद-स्त्री० [सं०] सफलता, सिद्धि; संपत्ति, धन, समृद्धि | संपूर्णतः (तस), संपूर्णतया-अ० [सं०] पूर्ण रूपसे,
सौभाग्य; बाहुल्या कोष,खजाना; सद्गुणोंकी वृद्धि सौदर्य। | अच्छी तरह। संपन्न-वि० [सं०] उन्नतिशील; धनी; कृतकाम; साधित, | संपृक्त-वि० [सं०] मिश्रित, मिला हुआ; संयुक्त संबद्ध । पूरा किया हुआ; पूर्ण प्राप्त, लब्ध;"से युक्त । | -द्रावण-पु० ( सैचुरेटेड सॉल्यूशन) वह द्रावण या
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संपृष्ट-संभार घोल जिसमें, विशेष तापक्रम हो जानेपर, और घुल्य न संबंध प्रकट करनेवाला शब्द । घुल सके।
संबत्-पु० दे० 'संवत्' । संपृष्ट-वि० [सं०] जिससे प्रश्न किये गये हों, पूछ-ताछ संबद्ध-वि० [सं०] साथ जुड़ा या बँधा हुआ; संलग्न की गयी हो।
संबंधी, विषयक अर्थ-संबंध रखनेवाला। सँपेरा-पु. साँप पकड़ने, पालने या साँपका तमाशा संबद्धीकरण-पु०[सं०] (एफिलियेशन) किसी एक परिवार दिखलानेवाला।
या समाजका सदस्य बना लिया जाना; किसी विद्यालय सं -स्त्री० दे० 'संपत्ति'-'संपै देखि न इर्षिये विपति या महाविद्यालयका संबंध विश्वविद्यालयसे हो जाना। देखि ना रोइ'-कबीर ।
संबर-पु० [सं०] सेतु, पुल; एक तरहका हिरन । संपोला-पु० साँपका बच्चा ।
संबरण*-पु० दे० 'संवरण' । सपीलिया-पु० साँप पकड़नेवाला ।
संबरना*-स० कि० रोकना, नियंत्रण करना । संपोषित-वि० [सं०] भली भाँति पोषण किया हुआ,पालित। संबल-पु० [सं०] जल; दे० 'शंबल'; सहारा । संपोष्य-वि० [सं०] पालन-पोषणके योग्य ।
संबाद*-पु० दे० 'संवाद'। संप्रज्ञात-वि० [सं०] अच्छी तरह जाना हुआ । -योगी-संबुक*-पु. घोंघा। (गिन्)-पु. वह योगी जिसका विषय-बोध बना हुआ | संबुद्ध-वि० [सं०] पूर्णतः जाग्रत् ;ज्ञानी, चतुर, बुद्धिमान्, हो । -समाधि-स्त्री. समाधिका एक भेद जिसमें | पूर्णतः ज्ञात । पु० बुद्धः जिन । विषयोंका बोध बना रहता है।
संबुद्धि-स्त्री० [सं०] पूर्ण-बोध या शान; पूरी चेतना । संप्रति-अ० [सं०] अभी, इस काल, वर्तमान समयमें। संबोध-पु० [सं०] पूर्ण ज्ञान, सम्यक बोध; समझाना,संप्रदान-पु० [सं०] देना, प्रदान करना, हस्तांतरित बतलाना; ढाढ़स भेजना; फेंकना; नाश, बरबादी।
करना; ब्याह देना; दान; भेंट चतुर्थ कारक (व्या०)। संबोधन-पु० [सं०] जगाना; बतलाना, समझाना संबोसंप्रदाय-पु० [सं०] परंपरागत विश्वास या प्रथा; विशेष | धित करना संबोधन करने में प्रयुक्त की जानेवाली उपाधि धार्मिक मत; किसी मतके अनुयायियोंका समूह (कम्यू- वह शब्द जिससे किसीको पुकारने या उससे कुछ कहनेनिटी; स्कूल)।-बाद-पु० केवल अपने संप्रदायको ही की बात सूचित हो, आठवाँ कारक (व्या०); आकाशविशेष महत्त्व देना और अन्य संप्रदायवालोंसे द्वेष करना। | भाधित (ना०)। -वादी(दिन्)-पु. वह कट्टर विचारोंवाला व्यक्ति जो | संबोधना*-स० क्रि० सांत्वना देना; समझाना। केवल अपने संप्रदायको श्रेष्ठता प्रदान करे तथा अन्य संबोधित-वि० [सं०] चिताया हुआ; जिसका ध्यान संप्रदायवालोंको हेय समझे (कम्यूनलिस्ट) ।
आकृष्ट किया गया हो; बोध कराया हुआ। संप्रसारण-पु० [सं०] विस्तार करना; य, व, र् ल् , संबोध्य-वि० [सं०] जिसे बतलाया, समझाया जाय। का इ, उ, ऋ,ल में परिवर्तन (व्या०)।
जिसे संबोधित किया जाय । संप्राप्त-वि० [सं०] अच्छी तरह प्राप्त; जिसने प्राप्त किया। संभर-वि० [सं०] भरण, पोषण करनेवाला दे० 'संभार'। है, पहुँचा हुआ प्रस्तुत (काल); उत्पन्न घटित ।-यौवन- संभरण-पु० [सं०] पालन, पोषण; साथ रखना; रचना । वि० बालिग, युवा। -विद्य-वि० जिसने पूरी विद्या -निधि-स्त्री० (प्रॉविडेंट फंड) दे० 'भविष्यनिधि', प्राप्त कर ली हो।
सुविधायक कोष । संप्रेक्षक-पु० [सं०] दर्शक ।
सँभरना*-अ० क्रि० दे० 'सँभलना। संप्रेक्षण-पु० [सं०] भली भाँति देखना; निरीक्षण, जाँच सँभलना-अ०कि. अपनी बिगड़ती हुई स्थिति ठीक कर करना।
लेना; रुकना, थमना; काबूमें रहना; सावधान होना; संप्रेषण-पु०[सं०] (ट्रांसमिशन) एक स्थान या एक व्यक्तिके टिका रहना; स्वस्थ होना; चोट आदिसे बचाव करना। पाससे दूसरे स्थान या व्यक्तिके पास ( समाचार, रोगाणु, संभव-पु० [सं०] जन्म, उत्पत्ति अस्तित्व; होना, घटित विचारादि) भेजना, पहुँचाना, स्थानांतरित करना। होना; उत्पत्ति और पोषण; कारण, मूल । वि० जिसकी संबंध-पु० [सं०] एक साथ बँधना या जुड़ना, मेल; साथ; सत्ता हो; जो सकता हो। रिश्ता, नाता; विवाहमैत्री; छठा कारक (न्या०)। संभवतः(तस्)-अ० [सं०] संभव है, हो सकता है । -कारक-पु० एक शब्दका दूसरेसे संबंध सूचित करने संभवना*-स० कि० पैदा करना, उत्पन्न करना । अ० वाला कारक, जैसे 'रामका पत्र में 'रामका' संबंध | क्रि० पैदा होना हो सकना, संभव होना ।। कारकमें है।
संभवनीय-वि० [सं०] मुमकिन, हो सकनेवाला। संबंधातिशयोक्ति-स्त्री० [सं०] अतिशयोक्ति अलंकारका संभार-पु० [सं०] इकट्ठा, एकत्र करना; तैयारी;-'भलो भेदविशेष, जहाँ असंबंधसे संबंध दिखलाकर अतिशयोक्ति | विचार कियो नरनायक करहु यश संभारा'-रघु० साजकी जाय।
सामान, उपकरण; संपत्ति पूर्णता; समूह; परिमाण; संबंधी(धिन)-वि० [सं०].."से संबद्ध; संबंध रखने- अतिशयता, आधिक्य पालन-पोषण ।। वाला; प्रसंग, प्रकरण, विषयका; जिसका विवाह आदिके सँभार*-पु०, स्त्री रोक-थाम, देख-भाल-'सूरदास प्रभु कारण संबंध हो। पु० वह जिसके साथ विवाहके कारण | अपने ब्रजकी काहे न करत सँभार'-सू०; पालन-पोषण; संबंध हो; समधी; रिश्तेदार, नातेदार । -शब्द-पु. होश; तैयारी; संपत्ति; राशि, समूह ।
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संभारना-संयोगी सँभारना -स० दे० 'सँभालना'; स्मरण करना-'यह त्वरामय, स्फूर्तियुक्त; समाहत, सम्मानित । पु० आदरसुनि बोली नारि केकयी अपनो वचन सँभारो'-सू०, णीय व्यक्ति। 'तेहि खल पाछिल बयरु सँभारा'-रामा।
| संभ्रांति-स्त्री० [सं०] घबड़ाहट; उतावली; चकपकाहट । सभाल--स्त्री० देख-भाल; व्यवस्था, प्रबंध; चेत, होश | संभ्राजना*-अ० क्रि० शोभित, शोभायमान होना । पोषणादिका भार ।
संयत-वि० [सं०] रोका हुआ, दमित संयमी, जितेंद्रिय सभालना-स० क्रि० रोक-थाम करना; टेकना, सहारा बद्ध, कैद किया हुआ; व्यवस्थित किया हुआ; उद्यत देना; रक्षा करना; पालन करना; ग्रहण करना; काबूमें | सीमित । -चेता(तस.),-मना(नस)-वि० जिसका रखना; सहायता देना; प्रबंध करना; सहेजना; भार| मन, चित्तवृत्ति नियंत्रित हो। उठाना; अपनेको जब्त करना, संयत करना।
संयतामा(त्मन)-वि० [सं०] दे० 'संयतचेता'। सँभाला-पु० मरनेके पहलेकी चेतनावस्था ।
संयताहार-वि० [सं०] मिताहारी। संभावना-स्त्री० [सं०] पूजा-सत्कार, आदर-भाव; हो संयति-स्त्री० [सं०] तपश्चर्या, निरोध, संयमन । सकना, मुमकिन होना; एक काव्यालंकार-जहाँ किसी | संयम-पु० [सं०] रोक, निग्रह, नियंत्रण, दमन; इंद्रियएक बातके होनेपर दूसरीके होनेकी संभावना वर्णित की निग्रह बाँधना; बंद करना (नेत्र); ध्यान, धारणा और जाय।
समाधि (योग); धार्मिक अनुष्ठान या व्रत; तपस्या; तपस्या संभावनीय-वि० [सं०] पूज्य, सम्मान्य; कल्पनाके योग्य आरंभ करनेके पूर्व किया जानेवाला धार्मिक कृत्य; बुरी जिसकी संभावना हो, मुमकिन ।
| वस्तुओंसे परहेज। संभावित-वि० [सं०] सम्मानित, आहत; स्वाभिमानी; | संयमन-पु० [सं०] निग्रह, दमन, आत्मनिग्रह; बाँधना,
प्रस्तुत किया हुआ; विचारित; कल्पित; मुमकिन । जकड़ना; खींचना, कैद करना । संभावितव्य-वि० [सं०] दे० 'संभावनीय' ।। संयमित-वि० [सं०] नियंत्रित, रोका हुआ दमन किया संभाव्य-वि० [सं०] आदरणीय, सम्मान्य; विचारणीय हुआ, बंधा हुआ; रोक रखा हुआ धार्मिक प्रवृत्तिवाला । मुमकिन उपयुक्त योग्य ।
संयमी(मिन्)-वि० [सं०] निग्रह, निरोध करनेवाला संभाषण-पु० [सं०] बातचीत; कथोपकथन । -निपुण- आत्मनिग्रही, जितेंद्रिय बँधा हुआ। वि० वार्तालाप करने में कुशल ।
संयुक्त-वि० [सं०] जुड़ा, मिला हुआ; संबद्ध; संबंधी; संभाषणीय-वि० [सं०] बातचीत करने योग्य । किसी कामको संयुक्त रूपसे करनेवाला (-संपादक); संभाषी(पिन)-वि० [सं०] बात कहनेवाला; वार्तालाप । संपन्न, अन्वित, सहित । -कुटुंब,-परिवार-पु. वह करनेवाला।
कुटुंब जिसमें माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-भतीजे आदि संभाष्य-वि० [सं०] बात करने योग्य ।
मिलकर साथ-साथ रहते हों। -निर्वाचकवर्ग-पु० संभीत-वि० [सं०] बहुत डरा हुआ।
(जॉइंट इलेक्टरेट) निर्वाचकोंका वह समूह जिसमें सभी संभु*-पु० दे० 'शंभु।
संप्रदायोंके लोग हों तथा जिन्हें असांप्रदायिकताके आधारसंभुक्त-वि० [सं०] खाया हुआ; उपभोग किया हुआ पर ही मत देनेका अधिकार हो। -राष्ट्रसंघ-पु० प्रयोगमें लाया हुआ; अतिक्रांत ।
(यूनाइटेड नेशन्स आरगेनिजेशन) अंतरराष्ट्रीय झगड़ों संभूत-वि० [सं०] उत्पन्न; "से निर्मित,रचित;"से मिला और समस्याओंपर विचार करनेवाली विश्वके बहुसंख्यक हुआ, युक्त, संपन्न; उपयुक्त ।
देशोंके आधिकारिक प्रतिनिधियोंकी संस्था । -लेखा-पु० संभूय-अ० [सं०] साथ होकर या आपसमें मिलकर; [हिं०](जॉइंट एकाउंट) एकसे अधिक व्यक्तियोंके नाम संयुक्त साझेमें। -समुत्थान-पु० साझेका कारबार, कारबारमें रूपसे चलनेवाला हिसाब-किताब |- सरकार-स्त्री० [हिं०] साझेदारी।
(कोलीशन गवर्नमेंट) संकट या विशेष आवश्यकताकी संभृति-स्त्री० [सं०] संग्रह; राशि; समूह; साज-सामान, स्थितिमें बनायी गयी दो या अधिक दलोंके सदस्योंकी तैयारी; आधिक्य पूर्णता पालन-पोषण रक्षा ।
सरकार । -स्कंधप्रमंडल-पु० (जॉइंट स्टॉक कंपनी) संभेद-पु० [सं०] टूटना; भिदना ढीला होना; अलगाव; वह प्रमंडल जिसमें एकाधिक व्यक्तियोंकी साझेदारी हो। वियोग, पार्थक्या फूट पैदा करना ।
संयोग-पु० [सं०] मिलन, मेल; घनिष्ठ संपर्क; मिश्रण; संभोग-पु० [सं०] उपभोग; किसी चीजमें आनंद लेना; संबंध, वैशेषिकोंके चौबीस गुणों में से एक विवाहजन्य संबंध रति, मैथुन, शृंगार रसका एक भेद, संयोग-शृगार; युक्त, अन्वित होना; मतैक्य: किसी कार्यमें संलग्न होना; उपयोग, कब्जा।
दो आकाशीय पिंडोंका योग (ज्यो०); जोड़ा योगफल; संभोगी(गिन्)-वि० [सं०] कामुक उपभोग करनेवाला। दो व्यक्तियों, बातों आदिका अचानक एक साथ होना, पु० लंपट, कामी पुरुष ।
इत्तफाक; शृंगार रसका एक भेद, प्रेमी-प्रेमिकाका मिलन संभोजन-पु० [सं०] बहुतोंके साथ खाना; भोज, दावत । (सा०)। -शृंगार-पु० शृंगार रसका वह भेद जिसमें संभ्रम-पु० [सं०] चक्कर खाना; उतावली; जल्दबाजी प्रेमियोंके मिलन आदिसे संबद्ध बातोंका वर्णन होता है। हलचल, घबड़ाहट; उत्साह आदर,सम्मान; भूल, गलती; संयोगिनी-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो अपने पति या प्रियशोभा, सौंदर्य । * अ० उतावलीमें, शीघ्रतापूर्वक । तमके साथ हो, वियोगिनी न हो। संभ्रांत-वि० [सं०] घबड़ाया हुआ क्षुब्ध, उत्तेजित तेज, संयोगी(गिन)-वि० [सं०] मिलनेवाला; जो संपर्क,
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संयोजक-संविदा संसर्गमें हो। पु० वह प्रेमी जो प्रियासे युक्त हो।
शक्ति हो।-शेष-पु० (कोजिंग बैलेंस) दिनका हिसाब संयोजक-पु० [सं०] जोड़ने, मिलानेवाला; शब्दों या बंद करते समय बची हुई रकम, रोकड़ बाकी । -स्कंधवाक्योंको जोड़नेवाला शब्द, सभा, समिति आदिकी. | पु० (क्लोजिंग स्टॉक) दिनका (या निर्धारित अवधिका) बैठकका भायोजन करनेवाला (कनवीनर ।)
लेन-देन समाप्त होनेके बाद गोदाममें बचा हुआ माल । संयोजन-पु० [सं०] जोड़ने, मिलानेकी क्रिया सभा- | सँवरना*-अ०कि. ठीक होना; सँभलना-'विधि अब समितिकी बैठकका आयोजन । -करना-अ० क्रि० (टु सँवरी बात बिगारी'-रामा० सज्जित होना । स० क्रि० कनवीन) सभा आदिका आयोजन करना, समाह्वान | स्मरण करना-'जौलहि जिऔं रातदिन सँवरौं ओहिकर करना।
नाँव'-प० । संयोज्य-वि० [सं०] जोड़ने, मिलाने योग्य ।
सँवरिया-वि० दे० 'साँवला' । पु० कृष्ण । संयोना*-सक्रि० दे० 'सँजोना।
संवर्ती सूची-स्त्री० (कॉनकरेंट लिस्ट) वह सूची जो एक संरक्षक-वि०, पु० [सं०] रक्षा करनेवाला, देख-भाल, साथ कई स्थानोंसे प्रकाशित की जाय । निरीक्षण करनेवाला, पालक आश्रयदाता ।
| संवर्द्धक, संवर्धक-वि० [सं०] बढ़ानेवाला; आवभगत संरक्षकता-स्त्री० [सं०] संरक्षक होनेका भावःसंरक्षकका कार्य करनेवाला, अतिथिपरायण । संरक्षण-पु० [सं०] रक्षा करनेकी क्रिया, हिफाजत; संवर्द्धन, संवर्धन-पु० [सं०] बढ़ना; पालन-पोषण विदेशी प्रतियोगिता आदिसे बचाना; देखरेख, निगरानी करना, उन्नत करना। निरीक्षण प्रतिबंध । -कर-पु० (प्रोटेक्टिव ब्ध टी) संवल-पु० [सं०] दे० 'संबल' । अनुचित प्रतियोगितासे देशी उद्योग-व्यवसायकी रक्षा सवाँ*-वि० सश, समान। -..."सोना सँवाँ सरीर' करनेके लिए बाहरी मालपर लगाया जानेवाला कर। -कबीर । संरक्षणीय-वि० [सं०] रक्षा करने योग्य; जिसे (विदेशी संवाद-पु० [सं०] वार्तालाप; बहस, वाद-विवाद, संदेश, प्रतियोगिता आदिसे) बचाना उचित हो; सुरक्षित रखने खबर विवरण; सहमति, स्वीकृति । -दाता(7)-पु० योग्य ।
समाचार भेजनेवाला। -विलोपन-पु० (ब्लैक आउट) संरक्षित-वि० [सं०] सुरक्षित; अच्छी तरह बचाया हुभा; सदाचारपत्रों में कुछ विशेष प्रकारके समाचारोंका जानसंरक्षण में लिया हुआ। -राज्य-पु० (प्रोटेक्टरेट) बह बूझकर छोड़ दिया जाना, बिलकुल ही प्रकाशित न किया छोटी तथा कमजोर रियासत जो सुरक्षाकी दृष्टिसे किसी जाना। बड़े राज्य के अधीन या माश्रित हो।
संवादन-पु० [सं०] राजी होना वार्तालाप करना; एकसंरक्ष्य-वि० [सं०] रक्षणके योग्य, देख-भाल करने योग्य । राय होना; बजाना। सरसी+-स्त्री० मछली फँसानेकी कँटिया, बंसी। संवादी(दिन)-वि० [सं०] बात करनेवाला; सहमत संराधन-पु० [सं०] प्रसन्न करना; पूजा आदिके द्वारा होनेवाला; सदृश, समान । पु० संगीतमें वह स्वर जिसका तुष्ट करना; (रिकांसिलियेशन) रूठे या असंतुष्ट व्यक्तियोंको वादीसे मेल हो और जो राग-विशेषमें वादीसे कम पर प्रसन्न करना, झगड़ेवाले दो पक्षों में पुनः अच्छे संबंध | अन्य स्वरोंसे अधिक महत्व रखता हो। स्थापित कराना; ध्यान; नारा; ऊँची आवाज ।
संवार*-पु० रचना समाचार । संराधित-वि० [सं०] पूजा आदिके द्वारा तुष्ट किया हुआ। सँवारना-स० क्रि० सुसज्जित करना,सजाना; ठीक करना, संराध्य-वि० [सं०] तुष्ट करने योग्य; ध्यान द्वारा प्राप्त तरतीबसे रखना; सँभालना। करने योग्य ।
संवारित-वि० [सं०] हटाया हुआ; वारित; ढका, छिपाया संलग्न-वि० [सं०] सटा, लगा या चिपका हुआ; संबद्ध हुआ। लीन।
| संवार्य-वि० [सं०] हटाने, दर रखने योग्य; मना करने संलाप-पु० [सं०] वार्तालाप, गपशप; अपने आप बकना योग्य; ढकने, छिपाने योग्य ।। या बड़बड़ाना ( पूर्वानुरागकी एक दशा); आवेगरहित संवावदक-वि० [सं०]सहमत होनेवाला, राजी होनेवाला । कथोपकथन (ना०)।
संवास-पु० [सं०] साथ बसना; मिलना-जुलना; बस्ती संलिप्त-वि० [सं०] गर्क, लीन; प्रसक्त, लगा हुआ। सभा, खेल आदिका सार्वजनिक स्थान सुगंध । संलेख-पु० [सं०] (डीड) कोई विधिक कृत्य या उसका संवासित-वि० [सं०] सुगंधित बनाया हुआ। प्रामाणिक ब्यौरा देनेवाला लिखित पत्र, दे० 'विलेख'। संवाहक-पु० [सं०] मुक्की लगानेवाला, बदन दबानेवाला संवत्-पु० [सं०] सन् , वर्ष, साल (संवत्सरका लघु रूप); नौकरः ले जानेवाला । वि. गति प्रदान करनेवाला, विक्रम संवत्सर वर्षगणनाका कोई वर्ष ।
चलानेवाला। संवत्सर-पु० [सं०] सन् , वर्ष विक्रम संवत् । संवाहन-पु० [सं०] ले जाना, ढोना; बदन दबाना । संवत्सरीय-वि० [सं०] हर साल होनेवाला, वार्षिक । संवित्-स्त्री० [सं०] दे० 'संविद्'। -पत्र-पु० संधिपत्र। संवर*-स्त्री० स्मरण, स्मृति हाल ।
संविद-वि० [सं०] चेतन, सशान । पु० करार, ठहराव । संघरण-पु० [सं०] रोकना, दबाना; निग्रह; ढकना, संविदा-स्त्री० [सं०] (कंट्रैक्ट ) कुछ निश्चित शतोंपर छिपाना; अंत करना; आवरण, ढक्कन चुनना, पसंद दो या दोसे अधिक पक्षोंके बीच होनेवाला समझौता; करना; पति चुनना। -शील-वि० जिसमें रोकनेकी ठहराव, करार ।
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८०१
संविदात-संसक्ति संविदात-वि० [सं०] जाननेवाला, समझदार, सांमजस्य- | संशयालु-वि० [सं०] संदेहशील । पूर्ण ।
संशयित-वि० [सं०] संशयमें पड़ा हुआ; संदिग्ध, जो संवि-स्त्री० [सं०] प्रज्ञा चेतना; अनुभूति; बोध, शान; निरापद् न हो। ठहराव स्वीकृति युद्ध, लड़ाई नाम, संज्ञा; संकेत तोषण; संशयिता(त)-पु० [सं०] अविश्वासी, संशय करनेवाला । सहानुभूति वार्तालाप; भाँग, समाधिः संकेतस्थल, मिलन-संशयी(यिन्)-वि० [सं०] संशय, संदेह करनेवाला । स्थान; योजना; वृत्तांत, हाल; संपत्ति ।
संशयोच्छेदी(दिन)-वि० [सं०] संदेह दूर करनेवाला । संविधान-पु० [सं०] व्यवस्था, प्रबंध, आयोजन; संपा-संशयोपमा-स्त्री० [सं०] उपमाका एक प्रकार जिसमें दन रचना; गेजना (कांस्टिट्य शन) वह विधान तथा संदेहके रूपमें सादृश्यका कथन हो। मौलिक सिद्धांतोंका समूह जिसके अनुसार किसी देश या संशीति-स्त्री० [सं०] संदेह, अनिश्चय । राज्य या संस्थाका संघटन, संचालन आदि होता है। संशीलन-पु० [सं०] नियमित रूपसे अभ्यास करना; -सभा-स्त्री० (कांस्टिटुएंट असेम्बली) किसी देशका किसी कामको आदतन करना; संसर्ग । संविधान तैयार करनेवाली सभा।।
संशद्ध-वि० [सं०] पूरी तरह शुद्ध किया हुआ, विशुद्ध संविधि-स्त्री० [सं०] (स्टैटूट) विधानसभा द्वारा स्वीकृत वह - चमकाया, पालिश किया हुआ जुर्मसे बरी किया हुआ लिखित विधान जो स्थायी विधि(कानून)के रूप में हो। जिसने प्रायश्चित्त आदिके द्वारा अपनेको निर्दोष बना संविभाजन-पु०[सं०] (एपोर्शनमेंट) लोगोंको देने, बाँटने लिया है। परीक्षित ।
आदिकी दृष्टिसे किसी वस्तुके अलग-अलग अंश या टुकड़े संशुद्धि-स्त्री० [सं०] पूरी सफाई; शुद्धीकरण सुधार । करना; दोष या दायित्व आदिका संश्लिष्ट व्यक्तियोंमें संशोधक-वि० [सं०] सुधारनेवाला; परिष्कार करनेवाला । उचित रूपसे विभाजन करना।
संशोधन-पु० [सं०] दोष या त्रुटि ठीक करना; शुद्धीसंवृत-वि० [सं०] ढका हुआ, छिपा हुआ; गुप्त; घिरा हुआ करण; अदायगी; सुधारना; संस्कार करना। रक्षित;"से युक्त; अलग रखा हुआ; दबाया हुआ; रुद्ध । संशोधनीय-वि० [सं०] दे० 'संशोध्य' । संवृद्ध-वि० [सं०] पूरा बढ़ा हुआ; उन्नति करता हुआ; संशोधित-वि० [सं०] ठीक किया हुआ; सुधारा हुआ। जो बढ़कर बड़ा, लंबा, ऊँचा हो गया हो।
संशोधी विधेयक-पु. ( एमेंडिंग बिल) किसी अधिनियम संवृद्धि-स्त्री० [सं०] बढ़ती, अभ्युदयः शक्ति ।
आदिमें संशोधन या सुधार करनेके लिए उपस्थित किया संवेग-पु० [सं०] तीव्र उत्तेजना, क्षोभ, भय; तीव्र वेग जानेवाला विधेयक। तीव्रता; जोर; उग्रता, प्रचंडता; शीघ्रता, आतुरता। संशोध्य-वि० [सं०] सुधारने, साफ करने योग्य; जिसे संवेदन-पु० [सं०] दे० 'संवेदना' । -वाद-पु० (सेन- सुधारा, साफ किया जाय: चुकाने योग्य । सेशनलिज्म) यह सिद्धांत या मत कि हमें समस्त संश्रय-पु० [सं०] संयोग, मेल; संपर्क, संबंध; सहारा ज्ञानकी प्राप्ति संवेदनसे ही होती है।
लेना, आश्रय ग्रहण करना; पनाह । संवेदना-स्त्री० [सं०] ज्ञान; अनुभूति; जताना, सूचित संश्रयण-पु० [सं०] शरण लेना, सहारा लेना। करना; प्रकट करना।
संश्रयी(यिन)-वि० [सं०] सहारा, शरण लेनेवाला। संवेदनीय-वि० [सं०] अनुभव करने योग्य; बोध, शान | संश्रित-वि० [सं०] लगा हुआ, संयुक्त; किसीके सहारे कराने योग्य ।
- टिका हुआ, परावलंबी; शरणागत; आश्रित । संवेदित-वि० [सं०] अनुभव किया हुआ; बोध कराया | संश्लिष्ट-वि० [सं०] आलिंगित; मिला हुआ जुड़ा हुआ हुआ, जताया हुआ।
मिश्रित संलग्न; संबद्ध अस्पष्ट । संवेष्टक-पु० [सं०] ( पैकर) वह व्यक्ति जो पुस्तकें, दवाएँ संश्लेष-पु० [सं०] संयोग संबंध; संधि, जोड़; आलिंगन; या अन्य माल कागज, दफ्ती, बोरे आदिमें लपेटकर या बंधन, तसमा। संदूकमें रखकर अन्यत्र भेजनेके लिए प्रस्तुत करे। संश्लेषण-पु. [सं०] जुटाना, मिलाना; संलग्न करना, संवेष्टन-पु० [सं०] ढकना लपेटना; फेरना; लपेटनेका लगाना; संबद्ध करना; विभिन्न कारणों या परिणामोंपर कपड़ा, बेठन । -व्यय-पु० ( पैकिंग चार्जेज़ ) बाहर विचारकर संबंध दिखलाना, मिलान करना (सिनथेभेजनेके लिए माल किसी डिब्बे, बोरे, थैले आदिमें बंद | सिस)। करनेके कारण होनेवाला व्यय ।
संश्लेषित-वि० [सं०] जोड़ा, मिलाया हुआ; संबद्ध किया संवेष्टिका-स्त्री० [सं०] (पैकेट) किसी वस्तुका छोटा बंडल,
लकड़ी,दफ्ती आदिके डिब्बों आदिमें बंद किया हुआ माल। संस-*पु० दे० 'संशय'; बरकत । संवेष्टित-वि० [सं०] (एनक्लोज्ड) जो किसी अन्य कागज, संसइ*-पु० दे० 'संशय'। पत्रादिके साथ भीतर रख दिया गया हो।
संसक्त-वि० [सं०] लगा हुआ, मिला हुआ, संबद्धः प्रवृत्त, संशय-पु० [सं०] अनिश्चय, हिचक; संदेह खतरा, संकट, | संलग्न, लीन; अनुरक्त; आसन्न, निकटवर्ती। -चेताकठिनाई।
(तस),-मना(नस्)-वि० जिसका मन किसी संशयात्मक-वि० [सं०] संदेहपूर्ण, अनिश्चित । विषयपर जमा हुआ हो। संशयात्मा(त्मन्)-वि०, पु० [सं०] शक्की, अविश्वासी, संसक्ति-स्त्री० [सं०] लगाव, घनिष्ठ संबंध घनिष्ठता, मेलसंदेहवादी।
| जोल; आसक्ति प्रवृत्ति ।
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संसजन-संस्थापित
८०२ संसजन-पु० [सं०] (मोबिलाइजेशन) युद्ध के लिए संस्कार-पु० [सं०] सुधारना; शुद्धि, सफाई; धातुकी चीजें (सेनाका) पूर्णतः तैयार या शस्त्रास्त्रोंसे सज्जित किया जाना। माँजकर चमकाना; शब्दों, वाक्यों आदिकी शुद्धता; संसज्जित-वि० [सं०] ( मोविलाइज्ड ) युद्ध के लिए प्रस्तुत पवित्रीकरण, पापादिका प्रक्षालन करनेवाले यज्ञादि कृत्य या तैयार की गयी (सेना)।
द्विजातियोंके शास्त्रविहित कृत्य (जो मनुके अनुसार बारह संसत्, संसद्-स्त्री० [सं०] सभा; न्यायालय; न्याय, और कुछ लोगोंके अनुसार सोलह है); अंत्येष्टि क्रिया धर्मकी सभा; (पालिमेंट) किसी देश या राज्यकी जनता शुद्ध करनेवाला कोई कृत्य स्मरण-शक्ति; मनपर पड़ी हुई द्वारा चुने गये प्रतिनिधियोंकी वह सर्वोच्च (केंद्रीय) छाप; पूर्वजन्मके कृत्योंकी वासना; बाह्य जगत्-विषयक विभानसभा जिसका काम शासन-संबंधी कार्यों में सहायता
यता, कल्पना, भ्रांति-मूलक बिश्वास; धारणा । -कर्ता (1)देना, आयव्ययक स्वीकार करना, विधान बनाना, उनमें
पु० संस्कार करनेवाला ब्राह्मण । -ज-वि० संस्कारसे संशोधन करना आदि हो ( साधारणतया इसमें दो सदन उत्पन्न । -पूत-वि० संस्कार द्वारा विशुद्ध किया हुआ; होते हैं, जैसे ब्रिटेनमें कामंस सभा तथा सरदार सभा और शिक्षा आदिके द्वारा परिष्कृत । -रहित,-वर्जित-वि० भारतमें लोकसभा तथा राज्यसभा)।
दे० 'संस्कार हीन'। -हीन-वि० जिसके संस्कार न हुए संसय-पु० दे० 'संशय' ।
हों। पु० द्विजातिका वह व्यक्ति जिसका यज्ञोपवीत संस्कार संसरण-पु० [सं०] गमन, भ्रमण; जन्म और पुनर्जन्म, | न हुआ हो, व्रात्य । पार्थिव जीवन; राजमार्ग ।
संस्कारक-वि० [सं०] सुधारनेवाला; तैयार करनेवाला; संसर्ग-पु० [सं०] साथ रहनेसे होनेवाला संबंध; संपर्कः । शुद्ध करनेवाला मनपर छाप डालनेवाला । साथ मिलन; सहवासा वह विंदु जहाँ दो रेखाएँ, कटती हों। संस्कृत-वि० [सं०] सुधारा हुआ, परिष्कृत संस्कार द्वारा -ज-वि० संपर्कसे उत्पन्न । -दोष-पु० संगतिसे उत्पन्न
शुद्ध, पवित्र किया हुआ; सजाया हुआ। स्त्री. भारतीय बुराई ।
आर्योंकी प्राचीन साहित्यिक भाषा ( जो वैदिक भाषाके संसा-*पु० दे० 'संशय'; सँड़सा ।
बाद प्रयोगमें आयी थी)। संसार-पु० [सं०] संसृति, जन्म-मरण; जगत्, दुनिया | संस्कृति-स्त्री० [सं०] शुद्धि सुधार, परिष्कार निर्माण मायाजाल, लाविक प्रपचा मत्यलाका गृहस्था। -चक्र- सजावट, आचरण-गत परंपरा। पु० भवचक्र, संसृति । -बंधन-पु० सांसारिक बंधन । संस्खलित-वि० [सं०] गिरा हुआ; भूला, चूका हुआ। -यात्रा-स्त्री० संसार में रहना, जीवन बिताना; जिंदगी। संस्तवन-पु० [सं०] स्तुति करना; (कॉमेंडिंग) प्रशंसा -सुख-पु० भौतिक सुख ।
करनेका कार्य, किसी व्यक्तिको योग्य बताकर किसीके संसारी(रिन)-वि० [सं०] लौकिका भौतिक दुनिया- सामने उसका समर्थन करने या उसकी नियुक्ति आदिपर दार दुनियामें रहनेवाला; व्यवहार-कुशल । पु० संसारी| जोर देनेका कार्य । मायामें लिप्त जीव या व्यक्ति ।
संस्ताव-पु० [सं०] प्रशंसा, स्तुति सम्मिलित स्तुति-पाठा संसिक्त-वि० [सं०] तर किया हुआ, सींचा हुआ। यशमें स्तुति पाठकोंके रहनेका स्थान । -करना-अ० संसिद्ध-वि० [सं०] अच्छी तरह निष्पन्न किया हुआ | क्रि० (कॉमेंड) योग्य समझकर किसीके पक्षमें अनुकूल पककर तैयार (भोजन); उद्यत, तैयार संतुष्ट; चतुर, सम्मति देना या उसकी नियुक्ति आदिपर जोर देना। कुशल; जिसे सिद्धि प्राप्त हो गयी हो, मुक्त।
संस्ताव्य-वि० [सं०] (कॉमेंडेबिल) प्रशंसनीय । संसिद्धि-स्त्री० [सं०] कार्यका सम्यक् संपादन, सफलता; संस्था-स्त्री० [सं०] ठहरना, रहना; सभा समूह, मंडली; मोक्ष, अंतिम फल; निश्चित मत; पककर तैयार होना। स्थिति, अवस्था रहन-सहनका बँधा हुआ तरीका, रूढ़िा संसूचित-वि० [सं०] प्रकट किया हुआ दिखलाया हुआ; विधि, नियमः सदाचार धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक डाँटा-फटकारा हुआ; भली भाँति सूचित कराया हुआ। कार्योंकी दृष्टिसे स्थापित सभा या समिति; विशिष्ट सिद्धांतों, संसृति-स्त्री० [सं०] आवागमन; संसार ।
नियमोंके अनुसार संघटित समाज या मंडल; चिरकालसे संसृष्ट-वि० [सं०] सेहजात, एक साथ उत्पन्न (जैसे पशु- चली आनेवाली कोई सामाजिक परंपरा या प्रथा ( जैसे
शावक); मिला हुआ, संयुक्त मिश्रित अंतर्भूत, सम्मिलित। विवाह)। संसृष्टि-स्त्री० [सं०] साथ-साथ होनेवाली उत्पत्ति; संयोग, | संस्थागार-पु० [सं०] सभाभवन । मेल; मेल-जोल; एकत्रीकरण निर्माण, रचना साझेदारी; संस्थान-पु०[सं०) ठहरना, रहना, थितिः सत्ता, अस्तित्व, एक परिवार में रहना; राशि, समूह; एक ही वाक्य में दो जीवन; निवास्थान, बस्ती; सार्वजनिक स्थान (नगरस्थ); या अधिक अलंकारांका इस तरह प्रयुक्त होना कि दोनोंका साहित्यादिकी उन्नतिके लिए स्थापित संस्था समाप्ति; रूप पृथक्-पृथक् दिखाई दे ।
सामीप्य पड़ोस; चतुष्पथ, चौराहा; चिह्न ढाँचा । संसेवित-वि० [सं०] जिसकी भली भाँति सेवा की गयी संस्थापक-पु० [सं०] स्थापित करनेवाला (संस्था, औषहो; अच्छी तरह व्यवहार में लाया हुआ।
धालय आदि); मत आदिका प्रवर्तक । संसौ*-पु० श्वासा, प्राण (बि०) ।
संस्थापन-पु० [सं०] खड़ा करना, निर्माण करना; स्थापित संस्करण-पु० [सं०] क्रमबद्ध करना; शुद्ध करना, परिष्कृत करना; रूप प्रदान करना; कोई नयी बात जारी करना । करना; पुस्तकादिका एक बारका मुद्रण ।
संस्थापित-वि० [सं०] जमाया हुआ; स्थापित किया संस्कर्ता(त)-पु०[सं०] शुद्ध करनेवाला संस्कार करनेवाला। हुआखड़ा किया हुआ; बनाया हुआ; प्रवर्तित ।
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संस्थिति-सकुचना
अनि
।
संस्थिति-स्त्री० [सं०] साथ होना; ठहरना; खड़ा, टिका शक्ति, भरसक । रहना; सामीप्य; निवास स्थान; अवस्था, स्थिति । सकता-स्त्री० शक्ति, बल, ताकत, सामर्थ्य । पु० [अ०] संस्फेट, संस्फोट-पु० [सं०] भिड़त, लड़ाई ।
मूर्छा रोग; किसी शब्दके घट-बढ़ जानेसे शेरका वजन संस्मरण-पु० [सं०] स्मरण, याद करनेकी क्रिया; नाम | बिगड़ जाना। लेना, जपना; स्मृतिके आधारपर किसी विषय या व्यक्ति- सकती*-स्त्री० शक्ति, बल, सामर्थ्य एक अस्त्र, शक्ति । के संबंधमें लिखित लेख या ग्रंथ ।
सकना-अ० क्रि० समर्थ होना, योग्य होना संभव होना, संस्मरणीय-वि० [सं०] याद करने योग्य; महत्त्वपूर्ण । । मुमकिन होना। संस्मारक-पु० [सं०] स्मरण करानेवाला; किसी व्यक्तिकी। सकपक-स्त्री. हिचक, घबड़ाहट । स्मृतिमें निर्मित भवन, स्तंभ, संस्था आदि।
सकपकाना-अ० कि. हिचकना, आगा-पीछा करना; संहत-वि० [सं०] जुड़ा हुआ, संयुक्त मिलाकर एक किया चकित होना; लज्जा आदिके कारण घबड़ाहट में पड़ जाना; हुआ ठोस, कड़ा; घना; दृढ़ा एकत्र ।।
हिलना। संहति-स्त्री० [सं०] दृढ़ संबंध, एका, मेल; संधि, संयोगः | सकर-वि० [सं०] हस्तयुक्त सूंडवाला (हाथी); किरणों
घनत्व, ठोसपन; सामंजस्य; समूह, राशि, ढेर।। वाला। + स्त्री० शकर । -पाला-पु० एक तरहकी संहरण-पु० [सं०] बटोरना; एक साथ बाँधना, गूंथना चौकोर मिठाई या नमकीन; इस शकलकी सिलाई एक (केश); पकड़ना; लौटा लेना (मंत्रसे बाण आदि); नाश, काबुली नीबू । ध्वंस करना।
सकरना-अ० क्रि० स्वीकार किया जाना, कबूला जाना । संहरना*-अ०क्रि नष्ट, विनष्ट होना। स०कि नष्ट करना। सकरा-वि० तंग, संकीर्ण; जूठा । पु० जूठन । संहार-पु० [सं०] बटोरना, एकत्र करना; (हाथीका) सूंड़ सकरुण-वि० [सं०] कोमलचित्त, करुणाशील, दयायुक्त । अंदरकी ओर ले जाना; बाँधना (बाल); (मंत्रबलसे) छोड़ा सकर्ण-वि० [सं०] कानोंवाला; सुननेवाला। हुआ बाण लौटाना; नाश; प्रलय; (नाटक या नाटकके सकर्मक-वि० [सं०] प्रभावकारी; कोई काम करनेवाला किसी अंकका) अंत ।-कारी(रिन)-वि० प्रलय करने जो कर्मके साथ हो, (वह क्रिया) जिसका प्रभाव कर्तापर वाला; नाश करनेवाला । -काल-पु० प्रलयकाल । न पड़कर दूसरेपर पड़े (व्या०)। संहारक-वि०, पु० [सं०] नाश करनेवाला । | सकल-वि० [सं०] सब, समस्त, सब अंगोंसे युक्त सारी संहारना*-स० क्रि० नाश करना; वध करना।
कलाओंसे पूर्ण (चंद्रमा)। -परिसंपत्-स्त्री० (ग्रॉस असेसंहारी(रिन्)-वि० [सं०] नाश करनेवाला।
ट्स) वह समस्त परिसंपत् जिसमेंसे ऋणादिकी रकम बाद संहित-वि० [सं०] साथ रखा हुआ, मिलाया हुआ, संयुक्त न की गयी हो। -प्रिय-वि० जो सबको अच्छा लगे । किया हुआ; एकत्र किया हुआ, संकलित ।
पु० चना। संहिता-स्त्री० [सं०] संयोग, मेल; संधि (व्या०); संग्रह, । सकलात-पु० रजाई, दुलाई भेंट, उपहार, मखमल । संकलन; मनु आदि द्वारा रचित धर्म-शास्त्र, वेदोंका पंत्र- सकलाती-वि० अति उत्तम, बढिया; मखमलका । भाग; अधिनियमों, विधियों आदिका क्रमबद्ध संग्रह सकसकाना-अ० कि० बहुत डरना। (कोड)।
सकसना*-अ० कि० भयभीत होना; अँड्स जाना। संहृति-स्त्री० [सं०] संकोच, संक्षेप, सार; नाश; प्रलयः | सकसाना*-अ० कि. भयभीत होना, डर मानना ।
अंत; रोक पकड़ना, ग्रहण, संचय, संग्रह हरण । स० क्रि० अँड़साना। संहृष्ट-वि० [सं०] रोमांचयुक्त (भय, आनंद आदिसे);! सकाए-पु० दे० 'सका। प्रसन्न; खड़ा (रोम); ज्वलित । -मना(नस)-वि० सकाना*-अ० क्रि० शंका करना, डरना; हिचकना। प्रसन्नचित्त ।
सकाम-वि० [सं०] कामनायुक्त इच्छुक; लब्धकाम, तृप्तस-पु० [सं०] विष्णुः सर्प, शिव पक्षी; वायु; चंद्रमा काम कामी; फलाकांक्षासे कार्य करनेवाला प्रेमी। इ० षट्ज स्वरका सूचक अक्षर (संगीत)। उप० यह सकारना-स० क्रि० स्वीकार करना, मंजूर करना, मान शब्दोंके आरंभमें आकर सह (सरोष), समान (सजाति, लेना हुंडीपर हस्ताक्षर कर उसे स्वीकार कर लेना । सगोत्र), वही (सपिंड) आदि अर्थोंका द्योतन करता है। सकारा-पु. हुंडी सकारने और समय बढ़ाने के लिए लिया सह-अ० साथ, से । प्र० करण और अपादानकी विभक्ति। जानेवाला धन * सबेरा। सइना*-स्त्री० सेना, फौज ।
सकारात्मक-वि० सहमति-सूचक, स्वीकारात्मक । सइयो*-स्त्री० सहेली, सखी।
सकारे, सकार*-अ० तड़के, सबेरे; कुछ जल्दी । सई-स्त्री० बढ़ती, वृद्धि, बरकत; * सरस्वती नदी; सखी। सकाल-वि० [सं०] समयोचित । अ० ठीक समयपर सबेरे सईस-पु० साईस।
-'कनक छायामें, जब कि सकाल खोलती कलिका उरके सउँ*-अ० (विभक्ति) सों, से।।
द्वार'-पल्लव । सक-स्त्री० शक्ति, बल, सामर्थ्य । + पु० शक, संदेहः सकाश-पु० [सं०] सामीप्य, निकटता पड़ोस । अ० पास । * साका, धाक; मर्यादा स्थापित करना।
सकिलना*-अ० संकुचित होना; इकट्ठा होना, बटुरना । सकट-पु० शकट, सग्गड़, छकड़ा।
सकुच*-स्त्री० संकोच, लज्जा । सकत*-खी० शक्ति, सामर्थ्य धन, वैभव । अ० यथा- सकुचना*-अ० क्रि० लज्जा करना, लज्जित होना संकु
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सकुचाई-सगरा
८०४ चित होना, सिकुड़ना; मैंदना, संपुटित होना।
सखरा-वि० खारा निखराका उलया । पु० कच्ची रसोई। सकुचाई-स्त्री० संकोच, शरमिंदगी, या ।
सखरी-स्त्री० कच्ची रसोई (दाल-भात आदि)। सकुचाना*-अ० क्रि० संकोच करना । स० कि० सिको- सखसावन-पु० आरामकुसी; पलंग पालकी। ड़ना; संकुचित, लज्जित करना ।
सखा(खि)-पु० [सं०] साथी, संगी; मित्र; सहचर, सहसकुचीला -वि० संकोची, शीला ।
योगी; नायकका सहचर (ना.)।-भाव-पु० घनिष्ठता। सकुचौहाँ*-वि० संकोचशील ।
सखा, सखावत-स्त्री० [अ०] उदारता, दानशीलता । सकुड़ना -अ० कि० दे० 'सिकुड़ना'।
सखी-स्त्री० [सं०] सहचरी, सहेली; नायिकाकी सहेली सकुन*-पु० दे० 'शकुंत'; शकुन ।
(ना०); एक छंद । -भाव-पु० अपनेको उपास्य देवकी सकुनी*-पु० दुर्योधनका मामा, शकुनि । स्त्री० पक्षी; पत्नी माननेका भाव । -संप्रदाय-पु. वैष्णबोंका एक चील।
संप्रदाय जिसमें भक्त अपनेको उपास्य देवकी स्त्री सकुपना-अ० क्रि० क्रोध करना ।
मानता है। सकुल्य-वि० [सं०] सगोत्र (तीसरीसे आठवीं पीढ़ीतकका); | सखी-वि० [अ०] दाता, दानशील, उदार। पु० एक ही कुलका, पर दूरका संबंधी ।
सखुआ-पु० दे० 'साखू' । सकूनत-स्त्री० दे० 'सुकूनत' ।
सख्खन-पु० दे० 'सुखन'। सकूनती-वि० दे० 'सुकूनती' ।
सख्त-वि० [अ०] कड़ा, कठोर; दृढ़ा कठिन; तीखा, तेज सकृत्-अ० [सं०] एक बार; किसी समय; फौरन; सर्वदा।। (सख्त धूप); भारी (सख्त मुश्किल); सख्ती करनेवाला, सकेत-*.पु. संकेत, इशारा प्रेमी प्रेमिकाका मिलनस्थल कठोरहृदय । -गीर-वि० सामान्य दोपपर भी कड़ी कष्ट, संकट । वि० संकीर्ण, तंग ।।
सजा देनेवाला; जालिम ।-घड़ी-स्त्री० कष्ट, कठिनाईका सकेतना*-अ.क्रि. संपुटित होना, संकुचित होना। काल । -ज़बान-वि० कटुभाषी, बदजबान । -दिलसकेरना*-स० क्रि० इकट्ठा करना, समेटना बंद करना। वि० कठोर हृदय, निर्दय ।-पंजा-वि० लोभी।-मिजाज सकेलना*-सक्रि० इकट्ठा, जमा करना ।
-वि० क्रोधी।-लगाम-वि० मुहँजोर, सरकश (घोड़ा)। सकेला-पु. एक तरहका लोहा । स्त्री० इस लोहेकी बनी | सस्ती-स्त्री० [अ०] कड़ापन; कठोरता; दृढ़ता; कष्ट, तलवार ।
कठिनाई; अर्थकष्ट, तंगी; जुल्म, कठोर व्यवहार । मु. सकैतव-वि० [सं०] छली, कपटी।
सख्तियाँ उठाना, सख्ती उठाना-जुल्म बरदाश्त सकोच* -पु० दे० 'संकोच'।
करना मुसीबत झेलना ।-से-कष्ट, कठिनाईसे (सख्तीसे सकोड़ना-स० क्रि० दे० 'सिकोड़ना।
दिन गुजारना)।-से पेश आना-कड़ाई करना, कठोर, सकोपना*-अ० क्रि० क्रोध करना।
निर्दयताका व्यवहार करना । सकोपित*-वि० क्रुद्ध, नाराज।
सख्य-पु० [सं०] सखापन; मैत्री, दोस्ती, सौहार्द; ईश्वरको सकोरना*-स० क्रि० सिकोड़ना।
सखा मानकर उपासना करनेका भाव (वैष्णव); समानता; सकोरा-पु० कटोरी जैसा मिट्टीका एक बरतन, कसोरा। मित्र । -विसर्जन-पु० मैत्री-भंग। सक्का -पु० [फा०] पनभरा; भिश्ती । -(के)की बाद. सख्यता-स्त्री० मैत्री, दोस्ती (असाधु)। शाही-दो चार दिनकी हुकूमत (निजाम नामके भिश्ती- सगंध-वि० [सं०] गंधयुक्त; खुशबूदार; उसी गंधका; ने हुमायूँ को डूबनेसे बचाकर इनाममें २।। दिनकी बाद- अभिमानी । पु० ज्ञाति, संबंधी। शाही पायी और राज्य में चमड़ेका सिक्का चलाया)। सग*-वि० सगा, अपना । -पन-पु० दे० 'सगापन'। सक्तु-पु० [सं०] भूने हुए अन्नका पिसान, सत्तू (विशेष- सगड़ी-स्त्री० छोटा सग्गड़ । कर जीका)।-कार,-कारक-पु० सत्त बनाने, बेचने- सगण-वि० [सं०] दल या सेनासे युक्त । पु० शिव वाला। -धानी-स्त्री० सत्तु रखनेका पात्र ।
छंदःशास्त्रका एक गण जिसमें दो लघुके बाद एक गुरु सक्थि-स्त्री० [सं०] जंघा; हड्डी; गाड़ीका लट्ठा । मात्रा होती है। सक्र*-पु० दे० 'शक'। -धनु-पु० इंद्रधनुष । सगन*-पु० सगण (पिंगल); शकुन । सक्रारि*-पु० इंद्रका शत्रु, मेघनाद ।
सगनौती-स्त्री० शकुन विचारना । सक्रिय-वि० [सं०] क्रियायुक्त; फुतीला; भ्रमणशील । | सगपहतीसगपती-स्त्री०साग मिलाकर पकायी हुई दाल। -सेवा-स्त्री० (ऐक्टिव सरविस) किसी सैनिक द्वारा सगबग-वि० आई, तर, सराबोरा द्रवित भीत । युद्धक्षेत्रादिमें किया गया काम या सेवा ।
सगबगना*-अ० क्रि० जाग्रत होना, उबुद्ध होना । सक्षण-वि० [सं०] सावकाश, बाफुरसत ।
सगबगाना-अ० क्रि० सकपकाना, घबड़ा जाना; हिलना. सक्षम-वि० [सं०] क्षमता-युक्त, शक्तिशाली, समर्थ । । डुलना; तर होना, सराबोर होना। सखर-पु० [सं०] एक राक्षस; * चोखा; तेज; उग्र खर सगभत्ता -पु. साग मिलाकर पकाया हुआ भात । राक्षससे युक्त-'सखर सुकोमल मंज'-रामा०।
सगर-वि० [सं०] विषयुक्त । पु. एक सूर्यवंशी राजा सखरच, सखरज*-वि० खुलकर अमीरोंकी तरह खर्च जिनके साठ हजार पुत्र थे; सागर; तालाब-'काहेक करनेवाला, शाहखर्च ।
दादुल सगर खोदायेउ...'-गीत । सखरस-पु० मक्खन ।
सगरा-वि० सब, समस्त । पु० तालाब झील ।
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८०५
सगर्भ-सजग सगर्भ-वि० [सं०] सगा, सहोदर (भाई)।
सचारु-वि० [सं०] बहुत सुंदर । सगर्भा-स्त्री० [सं०] गर्भवती स्त्री सगी बहन ।
सचावटो-स्त्री०सचाई । सगल*-वि० सकल, सब ।।
सचित-वि० [सं०] चिंतायुक्त, चिंतित । सगा-वि० एक माँ-वापसे उत्पन्न, सहोदर, निकट संबंधी। सचिक्कण-वि० [सं०] बहुत चिकना ।
-पन-पु० आत्मीयतापूर्ण संबंध, सगा होनेका भाव। सचिकन-वि० दे० 'सचिक्कण'। सगाई-स्त्री० मँगनी, विवाहका ठहराव; नाता, रिश्ता: सचित्त-वि० [सं०] बुद्धिमान्, प्रज्ञा-विशिष्ट; सावधान विधवा या परित्यक्ताका एक तरहका विवाह या विवाह | जिसका ध्यान किसी एक विषयपर हो। जैसा संबंध ।
सचित्र-वि० [सं०] चित्रोंसे युक्ता चित्रित । सगारत-स्त्री० सगापन ।
सचिव-पु० [सं०] साथी, मित्र, काला धतूरा, (सेक्रेटरी) सगुण-वि० [सं०] ज्यायुक्त; गुणवान्। सदगुणसंपन्न मंत्री किसी संस्था या संघटनके संचालनके लिए उत्तरदायी भौतिक, साहित्यिक गुणोंसे युक्त (रचना)। पु० सत्त्व, व्यक्ति किसीके निजी कार्य, पत्रव्यवहार, व्यवस्था आदिमें रज, तमसे युक्त ब्रह्मा, ईश्वरके सगुण रूपकी उपासना | सहायता करनेवाला व्यक्ति; शासनव्यवस्थाके किसी करनेवाला संप्रदाय-विशेष ।
विभागका उच्चाधिकारी। सगुणोपासना-स्त्री० [सं०] साकार ब्रह्मकी उपासना । सचिवता-स्त्री०, सचिवत्व-पु०[सं०] मंत्रित्व, बजारत । सगुन-पु. शकुन । वि०, पु० दे० 'सगुण' ।
सचिवालय-पु० [सं०] (सेक्रेटैरियट) किसी राज्यकी सगुनाना-अ० कि० शकुन विचारना, शकुन बतलाना । सरकारके सचिवों, मंत्रियों तथा विभिन्न विभागोंके प्रधान सगुनिया-पु० शकुनका विचार करनेवाला ।
अधिकारियों आदिके कार्यालयोंका समूह, वह इमारत या सगुनौती-स्त्री० शकुन विचारने, निकालनेकी क्रिया।। स्थान जहाँ ये स्थित हों। सगुरा-वि०जिसने गुरुसे दीक्षा ली हो।
सची-स्त्री० [सं०] दे० 'शची'; अगर । -नंदन,-सुतसगृह-वि० [सं०] सपरिवार, घर-गृहस्थीवाला । पु० जयंत; चैतन्यदेव । सगोत-वि० दे० 'सगोत्र'।
सचु*-पु० सुख, आनंद, प्रसन्नता । सगोती-वि० एक ही गोत्रका । पु० एक ही गोत्रके लोग, सचेत-वि० चेतनाविशिष्ट, समझदार; सावधान, सतर्क । भाईबंद।
सचेतक-पु० [सं०] (हिप) दे० 'चेतक' । सगोत्र-वि० [सं०] एक ही गोत्रका । पु० एक ही गोत्रका सचेतन-वि० [सं०] चेतनायुक्त, समझदार, सशान; सावव्यक्ति तर्पण, पिंडदान आदि साथ करनेवाला व्यक्ति, धान । पु० सज्ञान प्राणी। एक ही कुलका व्यक्ति दूरका संबंधी; वंश, खानदान। सचेती-स्त्री० सतर्कता, सावधानी । सगौती-स्त्री० खानेका गोश्त, कलिया।
सचेल,सचैल-वि० [सं०] वस्त्राच्छादित । अ०वस्त्रों सहित । सगढ़-पु० सामान ढोनेकी गाड़ी या ठेला, जिसे आदमी सचेष्ट-वि० [सं०] चेष्टाशील; चेष्टा करनेवाला । खींचते हैं।
सच्चरित, सच्चरित्र-वि० [सं०] अच्छे चरित्रका, सदासघन-वि० [सं०] धना, गझिन; ठोस मेघाच्छन्न ।
चारी । पु० अच्छा आचरण; सदाचारियोंका वृत्त । सघनता-स्त्री० [सं०] निविड़ता।
सच्चा-वि० सच बोलनेवाला; ईमानदार; यथार्थ; विशुद्ध । सच-पु० सच्ची बात । वि० सत्य, ज्योंकी त्यों कही हुई।
सच्चाई-स्त्री० सञ्चापन, सत्यता; ईमानदारी। (देखी, सुनी बात)। -मुच-अ० वस्तुतः, यथार्थमें,
सच्चापन-पु० सचाई, सत्यता। निस्संदेह।
सञ्चिकन*-वि० दे० 'सचिक्कण' । सचकित-वि० [सं०] आश्चर्य में पड़ा हुआ, विस्मित सच्चिदानंद-पु० [सं०] सत्, चित् और आनंद-स्वरूप, भयसे काँपता हुआ।
परमेश्वर । सचना*-स० क्रि० पूरा करना--..."पितु तर्पणादि क्रिया
सच्छंद-वि० दे० 'स्वच्छंद' । सची'-राम०; सजाना; जमा करना, बटोरना। अ०
सच्छत*-वि० घायल । वि. प्रसन्न होना।
सच्छाय-वि० [सं०] छायादार; सुंदर रंगोंवाला, चमक सचर*-वि० सचल, चलायमान, जंगम ।
दार; एक ही रंगका। सचरना-अ० कि० फैलना; प्रचलित होना, प्रसिद्ध
| सच्छास्त्र-पु० [सं०] उत्तम शास्त्र, अच्छा सिद्धांत-ग्रंथ । होना प्रवेश करना।
सच्छिद्र-वि० [सं०] छेददार सदोष । सचराचर-वि० [सं०] जिसमें स्थावर-जंगम सभी हों। ।
सच्छी-पु०, स्त्री० दे० 'साक्षी' । सच्चल-वि० [सं०] चलनेकी शक्तिसे युक्त, जंगम । पु० सच्छील-पु०[सं०] सदाचार । वि०शीलवान् उदाराशय । जंगम पदार्थ ।
सछिद्रता-स्त्री० (पोरासिटी) ऐसे छिद्रोंसे युक्त होना सचलता-स्त्री० [सं०] गतिशीलता ।
जिनसे होकर पानी एक ओरसे दूसरी ओर चला जाय । सचल लवण-पु० साँचर नमक ।
सज-स्त्री० सजना, सजावट; रूप, आकृति; शोभा एक सचाई-स्त्री० सत्यता; ईमानदारी; वास्तविकता।
वृक्ष । -दार-वि० सुडौल, अच्छी आकृतिका, सुंदर । - सचान-पु० बाज, श्येन ।
धज,-बज-स्त्री० सजावट, बनाव-शृगार; ठाटबाट । सचारना*-स० क्रि० फैलाना, संचारित करना।
सजग-वि० सतर्क, सावधान, होशियार ।
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सजन-सटिया
सजन पु० पति, प्रियतम; सज्जन; [सं०] एक ही परि वारके आदमी, संबंधी । वि० जनयुक्त मनुष्यों द्वारा अधिवति ।
सजना - अ० क्रि० वस्त्राभूषण से अलंकृत होना; उत्तम लगना, फबना, भला जान पड़ना; युद्धादिके लिए तैयार होना । स० क्रि० धारण करना; सजाना । सजनी - स्त्री० सखी, सहेली ।
सजल - वि० [सं०] जलयुक्त, भीगा हुआ; अश्रुपूर्ण; आबदार, चमकदार । -नयन - वि० जिसके नेत्र अश्रुपूर्ण हों । सजवना* - पु० सजना, तैयारी - 'बहुतन अस गढ कीन्ह सजवना' - प० ।
सजवाई - स्त्री० सजवानेकी क्रिया या पारिश्रमिक | सजवाना-स० क्रि० किसीको सजने के काममें प्रवृत्त करना या सहायता पहुँचाना । सजा - स्त्री० [फा०] अपराधका बदला, दंड; जुर्माना । -ए-मौत - स्त्री० प्राणदंड, फाँसीको सजा । यातावि० दंडप्राप्त, दंडित । -याब - वि० सजा पानेवाला, दंडका अधिकारी |
सजाइ * - स्त्री० सजा, दंड ।
सजाई - स्त्री० सजाने की क्रिया; सजानेकी मजदूरी । सजागर - वि० [सं०] जागरूक; सावधान, सतर्क । सजात - वि० [सं०] साथ उत्पन्न, एक ही समय उत्पन्न संबंधियोंसे युक्त । -काम- वि० संबंधियोंपर शासन करनेका इच्छुक |
|
सजाति - वि० [सं०] एक ही जाति या वर्गका; एक जैसा । सजातीय- वि० [सं०] दे० 'सजाति' । -कर्म-पु० ( कागनेट आब्जेक्ट ) किसी क्रियाका वह कर्म जिसका वही अर्थ हो जो क्रियाका हो (जैसे मैं 'दौड़' दौड़ता हूँ) । सजात्य - पु० [सं०] भ्रातृत्व; संबंध, रिश्ता ।
सजान* - वि० सशान, जानकार ।
करना ।
सजानि - वि० [सं०] सपत्नीक ।
सजाय - *स्त्री० दे० 'सजा' वि० [सं०] सपत्नीक, विवाहित ।
सजाव- पु० सजावट ।
सजावट - स्त्री० अलंकरण, सज्जा; शोभा; तैयारी । सजावन * - पु० अलंकरण; तैयार, सुसज्जित करना । सज्ञावल - पु० [ तु० ] मालगुजारी या सरकारी रुपया वसूल करनेवाला; दारोगा । सजीउ - वि० दे० 'सजीव' |
सजीला - वि० सजधजवाला, सजधज से रहनेवाला, छैला । सजीव - वि० [सं०] सप्राण, प्राणयुक्त, जीवित; ज्यायुक्त । सजीवन - पु० संजीवनी बूटी । - बूटी - स्त्री० रुद्रवंती, संजीवनी बूटी । -मूर, मूल* - पु० संजीवनी बूटी । सजीवनी - स्त्री० दे० 'सजीवन' । - मंत्र - पु० मृतकको जिलानेवाला कल्पित मंत्रः कार्यसाधक उपाय । सजुग* - वि० दे० 'सजग' |
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सजाना - स० क्रि० सँवारना, सुसज्जित करना; व्यवस्थित सटकारा * - वि० चिकना और लंबा ।
सजोयल * - वि० दे० 'सँजोइल' । सजोषण-पु० [सं०] साथ-साथ आनंदोपभोग करना; पुरानी प्रीति ।
सज्ज - वि० [सं०] सजा हुआ; तैयार; शस्त्रादिसे युक्त । सज्जन- पु० [सं०] तैयारी करना; पहरेदार; तैयारी; कुलीन व्यक्ति; भला आदमी; प्रिय व्यक्ति । सज्जनता - स्त्री० [सं०] सौजन्य, भलमंसी । सज्जनताई * - स्त्री० दे० 'सज्जनता' |
सज्जा- स्त्री० शय्या; [सं०] पोशाक, सजावट, साज-सामान; फौजी सामान, कवच आदि ।
सज्जाद - वि० [अ०] सिजदा करनेवाला, पूजक, उपासक । सज्जादा-पु० [अ०] नमाज पढ़नेका आसन, जानमाज; किसी साधु-संतकी गद्दी । -नशीं वि० गद्दीधर (फकीर, महंत ) ।
सज्जित - वि० [सं०] सजा हुआ, अलंकृत; सामान आदि से युक्त, तैयार; हथियारोंसे लैस ।
८०६
सज्जी - स्त्री० एक प्रकारकी क्षारयुक्त मिट्टी । - खार - पु० सज्जी | -बूटी - स्त्री० एक क्षुप जिससे सज्जीखार बनाते हैं। सज्ञान - वि० [सं०] ज्ञानयुक्त; बुद्धिमान्, समझदार । सज्य - वि० [सं०] ज्यायुक्त ( धनुष ) ।
सज्या* - स्त्री० शय्या |
सटक- स्त्री० लचनेवाली पतली छड़ी; लंबा, मुड़नेवाला नैचा; चुपके से चल देनेकी क्रिया ।
सटकना - अ० क्रि० धीरेसे खिसक जाना । स० क्रि० नाज निकालने के लिए डंठल पीटना ।
सटकाना - स० क्रि० छड़ी आदिसे मारना; 'गुड़-गुड़' ध्वनि उत्पन्न करते हुए हुक्का पीना ।
सटकार - स्त्री० सटकानेकी क्रिया; झटकारना; गौ आदिको हाँकना ।
सटकारना - स० क्रि० छड़ी आदिसे मारना; झटकारना ।
सटकारी - स्त्री० पतली, लचीली छड़ी ।
सटक्का - पु० झपट, दौड़ । मु०-मारना - तेजीसे जाना । सटना- अ० क्रि० दो वस्तुओंका एक साथ लग जाना; चिपकना; साथ होना ।
सटपट - स्त्री० हिचकिचाहट, संकोच; द्विविधाः घबराहट । सटपटाना - अ० क्रि० संकोच करना, हिचकिचाना; भौंचक्का होना; दब जाना; 'सटपट' शब्द करना । सटर-पटर - वि० तुच्छ; बहुत मामूली । स्त्री० झंझट, बखेड़ा; अदनी चीज ।
सट सट - अ० 'सट सट' शब्द करते हुए; जब्द, फौरन । सटा - स्त्री० [सं०] साधुओंकी जटा; शेरका अयाल; सूअरका बाल; कबरी, जूड़ा; कलेंगी, शिखा । सटाक - पु० 'सट' की ध्वनि ।
सटाकी - स्त्री० पैनेके सिरेपर बँधी हुई चमड़े की पट्टी | सटान - स्त्री० सटनेकी क्रिया; जोड़ ।
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सजूरी - स्त्री० एक मिठाई ।
सटाना - स० क्रि० जोड़ना, मिलाना; चिपकाना । सटियल - वि० घटिया ।
सजोना। - अ० क्रि० शृंगार करना, सज्जित करना; तैयारी सटिया - स्त्री० सोने-चाँदीकी चूड़ी; सिंदूर भरनेकी चाँदीकी करना, सामान आदि ठीक करना ।
शलाका; षड्यंत्र रचना; * छड़ी, साँटी ।
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८०७
सटीक - वि०बिलकुल ठीक; [सं०] टीका, व्याख्या से सटोरिया - पु० दे० 'सट्टेबाज़' |
सह-पु० [सं०] दरवाजेकी चौखट में दोनों पाइवों में लगायी जानेवाली लकड़ियाँ ।
सट्टक - पु० [सं०] प्राकृत भाषा में रचित एक उपरूपक; जीरा मिला हुआ तक्र !
युक्त 1
सट्टा - पु० इकरारनामा; बाजार । - बट्टा-पु० मेल-जोल; छलपूर्ण उपाय ( लड़ाना) । - ( है ) बाज़ - पु० अधिक लाभकी आशा से जोखिम उठाते हुए भी चीजोंका सौदा
करना ।
सट्टी - स्त्री० किसी एक चीजका बाजार । मु० - मचानाशोरगुल करना । - लगाना - चीजें अस्त-व्यस्त करना । सठ - वि०, पु० दे० 'शठ' |
सडायँध - स्त्री० सड़ी हुई चीजसे निकलनेवाली दुर्गंध । सड़ाव - पु० सड़ने की क्रिया या स्थिति ।
सड़ासड़ - अ० ' सड़ सड़' की ध्वनिके साथ ।
सड़ियल - वि० सड़ा, गला हुआ; खराब, रद्दी; तुच्छ । सण - पु० [सं०] दे० 'शण' । : - तूल- पु० सनके रेशे । - सूत्र - पु० सनकी रस्सी ।
सत* - वि० सत्य, यथार्थ । पु० सचाई, यथार्थता; सत्त्व, किसी पदार्थका सार, मूल तत्त्व; जीवशक्ति । - कार - पु० आदर-सम्मान । -गुरु-पु० अच्छा गुरु; परमात्मा । - जुग - पु० सत्ययुग । भाय, -भाव * - पु० सद्भाव । - युग-पु० सत्ययुग। -वंती - स्त्री० सती, पतिव्रता । - संग - पु०, - संगति- स्त्री० अच्छी संगति । -संगीवि० सत्संग में रहनेवाला । मु०-पर चढ़ना-सती होना । - पर रहना - पातिव्रत्यका पालन करना । सत* - वि० सौ दल* पु० शतदल, कमल । - पत्र* - पु० कमल । - परब - पु० बाँस । - मख* - पु० इंद्र | - मूली- स्त्री० शतमूली, शतावर ।
सत - वि० 'सात'का समासगत रूप । -कोन- वि० सात कोनोंवाला । - दंता - वि० सात दाँतोंवाला (पशु) । - पतिया - स्त्री० एक तरहकी तरोई; सात पति करनेवाली स्त्री, पुंश्चली । - पुतिया स्त्री० एक तरइकी तरोई । -पदी, - भौंरी - स्त्री० दे० 'सतफेरा' - फेरा - पु० सप्तपदी नामक वैवाहिक कृत्य । - मासा, वाँसा - वि० सात मासमें उत्पन्न होनेवाला (बच्चा) । पु० वह बच्चा जिसकी
-
५१-क
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सटीक - सती
पैदाइश सात महीनेपर हुई हो। -रंगा - वि० सात रंगोंवाला | पु० इंद्रधनुष् । -लड़ा - वि० सात लड़ियोंवाला (हार) । - लड़ी, लरी - स्त्री० सात लड़ियोंका हार । - सई - स्त्री० सात सौ पद्योंवाला ग्रंथ । सतकारना* - स० क्रि० आदर-सम्मान करना । सतत - वि० [सं०] अविच्छिन्न (समास) । अ० हमेशा, सर्वदा । - गति - पु० वायु । ज्वर-पु० हमेशा बना रहनेवाला ज्वर । - दुर्गत- वि० हमेशा कष्ट में रहनेवाला । सतनजा- पु० सात तरहके अनाजोंका मिश्रण । सतनु - वि० [सं०] शरीरवाला; शरीरयुक्त । सतरंज - पु०, स्त्री० दे० 'शतरंज' | सतरंजी - स्त्री० दे० 'शतरंजी' ।
सठता * - स्त्री० शठता; मूर्खता । सठियाना - अ० क्रि० साठ वर्षको अवस्थाका होना; वृद्ध होना; वार्द्धक्य के कारण मानसिक शक्तिका हास होना । सड़क - स्त्री० मनुष्यों, सवारियों आदिके गमनागमनके योग्य बना हुआ चौड़ा मार्ग; मार्ग, रास्ता । सड़न - स्त्री० सड़नेकी क्रिया ।
सड़ना - अ० क्रि० किसी चीजका गलना, संयोजक तत्त्वोंका सतराहट - स्त्री० कोप, रोष ।
अलग-अलग हो जाना; बुरी हालत में रहना ।
सड़सठ - वि० साठ से सात अधिक । पु० साठ और सातकी संख्या, ६७ ।
सड़ान - स्त्री० सड़ने की क्रिया; सड़ने की बू ।
सड़ाना - स० क्रि० किसी चीजको सड़ने में प्रवृत्त करना; सतर्पना* स० क्रि० अच्छी तरह संतुष्ट, तृप्त करना । बुरी हालत में रखना ।
सतलज - स्त्री० पंजाबकी एक नदी, शतद्र ।
सतह - स्त्री० [अ०] वस्तुका ऊपरी भाग; तल; वह वस्तु जिसमें लंबाई-चौड़ाईभर हो, गहराई न हो (ग० ); जलका ऊपरी भाग; फर्श; छत ।
सतर * वि० वक्र, टेढ़ा, कुटिल; क्रुद्ध । स्त्री० [अ०] पंक्ति, लकीर । पु० छिपाना; स्त्री या पुरुषका गोपनीय स्थान, गुह्यांग; परदा। -पोश- वि० (वह चीज ) जिससे तन ढाँके, लज्जा-निवारण करें । -पोशी-स्त्री० तन ढाँकना, लज्जा - निवारण |
सतरह - वि०, पु० दे० 'सत्तरह ' । सतराना * - अ० क्रि०कोप, गुस्सा करना; कुढ़ना, बिगड़ना ।
सतरौहाँ० - वि० क्रोधयुक्तः क्रोधसूचक - 'सतरौंही भौंहनि नहीं दुरे दुराये नेह' - मति० ।
सतर्क - वि० [सं०] तर्कयुक्त तर्ककुशल; सचेत, सावधान । सतर्कता - स्त्री० [सं०] सावधानी, होशियारी ।
सतहत्तर - वि० सत्तरसे सात अधिक । पु० सत्तर से सात अधिककी संख्या ७७ । सतांग * - पु० रथ - ' कोउ तुरंग चदि कोउ मतंग चढ़, 'को सतांग चढ़ि धायें' - रघु० । सतानंद - पु० [सं०] गौतमके पुत्र जो राजा जनकके पुरोहित थे, शतानंद |
सताना - स०क्रि०पीडित करना, कष्ट देना; परेशान करना । सतार - वि० [सं०] ताराओंसे युक्त । पु० ग्यारहवाँ स्वर्ग (जैन) ।
सतालू - पु० दे० 'सफतालू' ।
सतावना * - स० क्रि० दे० 'सताना' |
सतावर स्त्री० एक बेल जो झाड़दार होती है और दवा के काम आती है, शतावर ।
सतासी - वि० अस्सीसे सात अधिक । संख्या, ८७ ।
सति स्त्री० दान; अंत, नाश। * वि०, पु० दे० 'सत्य' । सतिवन- पु० सप्तपर्ण, छतिवन ।
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पु० सतासीको
सती-स्त्री० पु० सत्यका अनुयायी ( जती सती ) | [सं०] साध्वी, पतिव्रता स्त्री; पतिके शव के साथ जल जानेवाली स्त्री; संन्यासिनी; दक्षकी एक कन्या; एक वृत्त । -चौरा
० [हिं०] किसी सती के स्मारक के रूपमें बना हुआ चबूतरा ।
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सतीत्व - सरव
- पुत्र - पु० साध्वी स्त्रीका पुत्र । - व्रत- पु० पातिव्रत्य । -व्रता - स्त्री० पतिव्रता स्त्री । मु०-होना- पतिके शक्के साथ जल मरना; किसीके पीछे परेशान होना, मर मिटना । सतीत्व - पु० [सं०] सती होनेका भाव, पातिव्रत्य । - हरण - पु० सतीत्व नष्ट करना ।
सतीन- वि० [सं०] यथार्थ, वास्तविक । पु० मटरका एक भेद, कलाय; बाँस; जल ।
सतीपन- पु० दे० 'सतीत्व' |
सतीर्थ - वि० [सं०] तीर्थयुक्त | पु० सहाध्यायी, साथ अध्ययन करनेवाले ब्रह्मचारी; शिव ।
सतुआ-पु० भुने हुए अन्नका चूर्ण, सक्तु, सत्तू संक्रांति - स्त्री० मेषकी संक्रांति (जिस दिन सत्तू के दान और भोजन का विधान है ) । - सोंठ - स्त्री० एक तरहकी सोंठ । सतुआन - स्त्री० दे० 'सतुआ संक्रांति' । सतुष - वि० [सं०] भूसीवाला | पु० तुषयुक्त अन्न सतून - पु० [फा०] खंभा, स्तंभ |
सतना -५० बाजके झपटनेका एक ढंग ।
सतृद् (ष), सतृष, सतृष्ण - वि० [सं०] प्यासा; इच्छुक । सतेजा (जस) - वि० [सं०] कांतियुक्त; जीव-शक्ति-संपन्न । सतोखना * - स० क्रि० संतोष देना; ढाढ़स दिलाना; संतुष्ट करना ।
सतोगुण - पु० दे० 'सत्त्वगुण' |
सतोगुणी + - वि० सत्त्वगुणमे युक्त । सतौसर - पु० सात लड़ियोंका हार ।
सत् - वि० [सं०] सत्तायुक्त, वर्तमान, विद्यमान; यथार्थ, सत्य; स्थायी; भला, धार्मिकः पवित्र; उच्च, उत्तम; उचित; सम्मान्यः विद्वान्, चतुर; सुंदर; धीर । पु० संत, सज्जन, धार्मिक व्यक्ति; वह जिसका अस्तित्व हो; यथार्थता, सत्य; ब्रह्म । - कथा - स्त्री० अच्छी वार्ता या कथा । -करणपु० सत्कार करना; अंत्येष्टि क्रिया । कर्तव्य - वि० जिसका सम्मान करना हो । कर्ता (र्तृ) - पु० अच्छा काम करनेवाला; हितैषी; सत्कार करनेवाला; विष्णु । - कर्म (न्) - पु० नेक काम, पुण्य कर्म, वेदविहित कर्म; सत्कार; अंत्येष्टि; प्रायश्चित्त । - कर्मा ( र्मन् ) - वि० अच्छा काम करनेवाला । - कला - स्त्री० ललित कला । - कवि - पु० उत्तम कवि, सुकवि । -कायदृष्टि - स्त्री० मृत्यु के बाद आत्मा, शरीर आदिको सत्ताका भ्रांत सिद्धांत (बौद्ध) । - कार - पु० आदर-सत्कार, आवभगत; आतिथ्य; देखभाल; पर्व, उत्सव; दावत । -कार्य - वि० सम्मान के योग्य; जिसकी अंत्येष्टि की जाय । पु० कारणमें कार्यका निहित रखना (सांख्य); अच्छा काम । -कार्यवाद- पु० कारणके अभाव में कार्यकी उत्पत्ति न माननेका सिद्धांत । - कीर्ति स्त्री० सुयश, अच्छी कीर्ति । वि० जिसका अच्छा नाम फैला हो ।-कुल- पु० उत्तम कुल । वि० कुलीन, सद्वंशजात । - कुलीन - वि० अच्छे वंशका | - कृत - वि० अच्छी तरह किया हुआ; पूजित; सम्मानित; जिसकी आवभगत की गयी हो; जिसका अच्छा स्वागत किया गया हो । पु०शिव; सम्मान; आतिथ्य; पुण्य कार्य । - कृति - स्त्री० अच्छा कर्म करना, पुण्यः सद्व्यवहार; आदर-सत्कार । क्रिय- वि० अच्छा कर्म करनेवाला ।
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८०८
- क्रिया- स्त्री० नेक काम, पुण्य; व्यवस्थित करना; सत्कार, आतिथ्य; सौजन्यः संस्कार; मृतककर्म । - पथ- पु० सुमार्ग, अच्छी सड़क; सदाचार। -पात्रपु० योग्य व्यक्ति, वह व्यक्ति जो कोई चीज पानेके योग्य हो । - पुत्र- पु० योग्य पुत्र; वह पुत्र जो पितरोंके निमित्त विहित कर्म करे । - पुरुष - पु० भला आदमी, सज्जन । -संग- पु०, - संगति - स्त्री० अच्छे आदमियोंका साथ । - संसर्ग-पु० दे० 'सत्संग' | - सन्निधान, - समागम - पु० दे० 'सत्संग' । -सहाय - पु० अच्छा मित्र । वि० जिसके मित्र नेक हों । सन्त-पु० सत्त्व, सारभाग, रस; तत्त्व; * सत्यः सतीत्व । सत्तम - वि० [सं०] सर्वश्रेष्ठ परम पूज्य ।
सत्तर- वि० साठसे दस अधिक । पु० सत्तरकी संख्या, ७० । सत्तरह - वि० दससे सात अधिक । पु० सत्तरद्दकी संख्या, १७ ।
सत्तांतरित प्रदेश - पु० [सं०] (सीडेड टेरिटरी) वह प्रदेश जिसका शासन या सत्ता दूसरेको सौंप दी गयी हो, जो दूसरेको अर्पित कर दिया गया हो ।
सत्ता - पु० सात बूटियोंवाला ताशका पत्ता । स्त्री० [सं०] अस्तित्व; यथार्थता; उत्तमता; अधिकार, प्रभुत्व ( हिं० ) । - धारी (रिन्) - वि० जिसके हाथमें शासनसूत्र हो । सत्ताइस, सत्ताईस - वि० बीससे सात अधिक । पु० सत्ताइसकी संख्या, २७ ।
सत्तानबे - वि० नब्बेसे सात अधिक । पु० सत्तानवेकी संख्या, ९७ ।
सत्तार - पु० [अ०] परदा डालनेवाला, दोष ढाँकनेवाला; ईश्वर
सत्तावन - वि० पचास से सात अधिक । पु० सत्तावनकी संख्या, ५७ ।
सत्तासी - वि० अस्सीसे सात अधिक । पु० सत्तासीकी संख्या, ८७ ।
सत्तू - पु० सक्तु, भुने हुए अन्न (जौ, चने का आटा | मु० - बाँधकर पीछे पड़ना- किसीके विरुद्ध निरंतर चेष्टाशील रहना; पूरी तैयारीसे किसी काममें लगना । सत्र- पु० [सं०] सोमयज्ञ जो साधारणतः तेरह से सौ दिनोंतक चलता था; यश; होम, दानादि; उदारता; पुण्य, धर्मः मकान; आच्छादन; वस्त्र; संपत्ति; जंगल; तालाब; छल, धोखा; छद्मवेश; आश्रयस्थान, पनाइ; वह स्थान जहाँ दरिद्रोंको खाना बाँटा जाता है, लंगर; दो बड़े अवकाशोंके बीच किसी संस्थाका लगातार चलनेवाला कार्यकाल |
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सत्व - पु० [सं०] अस्तित्व; सहजात प्रकृति, स्वभाव; धर्म, गुण, आत्मतत्त्व, चैतन्य; प्राण वायु, जीवन; भ्रूण; पदार्थ; धन; मूल तत्त्व, वायु आदि; प्राणी, जीवधारी; प्रेतः धार्मिकता; सत्य, यथार्थता; शक्ति, जीवशक्ति; बुद्धि, समझदारी; विशेषता; प्रकृतिके तीन गुणोंमेंसे एक जो सर्वोच्च है (सांख्य); संज्ञा । - कर्ता ( ) - पु० प्राणियोंका स्रष्टा । - गुण - पु० प्रकृतिके तीन गुणोंमेंसे एक । - गुणी ( णिन् ) - वि० सत्त्व गुणवाला । - धाम (न्) - पु० विष्णु । - पति-पु० जीवधारियोंका स्वामी ।
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सत्ववान्-सथूत्कार -प्रधान-वि० सत्त्वगुणी । -लक्षणा-स्त्री० गर्भके वाला । पु० कुबेर । -संध-वि० वचन पूरा करनेवाला, लक्षणोंसे युक्त स्त्री। -लोक-पु० जीवलोक ।-शाली- सत्यसंकल्प । -संधा-स्त्री. द्रौपदी। -संरक्षण-पु. (लिन्)-वि० उत्साही, साहसी । -शील-वि० | वचन-पालन करना। -साक्षी(क्षिन)-पु० विश्वस्त सत्त्वगुणी।-संपन-वि० सत्त्वगुणयुक्त धीर, शांतचित्त। गवाह । -सार-वि० पूर्णतः सत्य । -स्थ-वि. अपने सत्ववान(वत्)-वि० [सं०] जीवित, जिसका अस्तित्व वचनपर टिकनेवाला । -स्वप्न-वि०जिसके स्वप्न सत्य हो; सत्त्वयुक्त पुण्यात्मा साहसी ।
होते हों। सत्यंकार-पु० [सं०] सत्य करना; वादा पूरा करना, | सत्यतः(तस्)-अ० [सं०] सचमुच, दरअसल, वस्तुतः । समझौतेकी शर्ते पूरी करना; वादे, ठेकेका काम पूरा सत्यता-स्त्री० [सं०] सचाई, वास्तविकता; नित्यता। करनेके लिए जमानतके रूपमें पेशगी दी जानेवाली | सत्यवती-स्त्री० [सं०] पराशरकी पत्नी और व्यासकी रकम ।
माता मत्स्यगंधा; नारदकी पत्नी। सत्य-वि० [सं०] सच, यथार्थ; यथातथ्यः ईमानदार | सत्यवान (वत्)-वि० [सं०] सत्यसे युक्त, सच्चा । पु० विश्वस्त पूरा किया हुआ; पुण्यात्मा खरा, सच्चा । पु. एक अस्त्र-मंत्र; मनु रैवतका एक पुत्र; मनु चाक्षुषका एक ब्रह्मलोक; पीपलका पेड़, रामचंद्र विष्णु; नांदीमुखश्राद्धका | पुत्र; सावित्रीके पति। देवता; सच्ची बात सचाई, यथार्थता; लगन; विशुद्धता, सत्या-स्त्री० [सं०] सच्चाई; एक दाक्ति सीता; व्यासजननी खरापन; अच्छाई पारमार्थिक सत्ता; शपथ; वादा कृत- सत्यवती सत्यभामा धर्मकी एक कन्या। युग, सत्ययुग प्रमाणित सिद्धांत; जल; ब्रह्मा; नवाँ कल्प; सत्याग्रह-पु० [सं०] सत्यके लिए आग्रह (सत्य पक्षके मन्वंतरके सात ऋषियोंमेंसे एक । -काम-वि० सत्यका लिए कष्ट आदि झेलते हुए लक्ष्यकी प्राप्तिका उद्योग प्रेमी। -न-वि० प्रतिज्ञा भंग करनेवाला । -जित्- | करना)। पु० तीसरे मन्वंतरका इंद्र; एक दानव; एक यक्ष । -ज्ञ- सत्याग्रही(हिन)-वि० [सं०] उद्देश्य-पूर्ति के लिए सत्यावि० सत्यका जानकार । -दर्शी(शिन)-वि० सत्या- ग्रहका सहारा लेनेवाला । सत्यका विवेक करनेवाला । पु० तेरहवें मन्वंतरका एक सत्यात्मक-वि० [सं०] सत्य जिसका सार हो । ऋषि । -हक(श)-वि० दे० 'सत्यदशी'। -धन- सत्यात्मज-पु० [सं०] सत्या या सत्यभामाका पुत्र । वि० सत्यको ही सर्वस्व माननेवाला, परम सत्यवादी। सत्यात्मा(मन्)-वि० [सं०] सत्यपरायण । पु० सत्य-धर्म-पु. शाश्वत सत्य; तेरहवें मनुका एक पुत्र ।। वादी व्यक्ति । वि० जिसके आदेश सत्य हों। -नामा(मन)-वि० सत्यानास-पु० सर्वनाश, बरबादी। जिसका नाम सही हो। -नारायण-पु० एक देवता | सत्यानासी-वि०सत्यानास,सर्वनाश करनेवाला; अमागा, (जो बंगाल में सत्यपीर कहे जाते हैं)।-निष्ठ-वि०सत्यपर | भाग्यहीन । स्त्री० भड़भाँड, घमोय । निष्ठा रखनेवाला, सत्यका प्रेमी। -पर-परायण-वि० सत्यानुरक्त-वि० [सं०] सत्यवादी, सत्यभक्त । ईमानदार, सच्चा । -पारमिता-स्त्री० सत्यकी सिद्धि | सत्यापन-पु० [सं०] सत्यकी जाँच-पड़ताल (वेरिफिकेशन) (बौद्ध)। -पूत-वि० सत्य द्वारा विशुद्ध किया हुआ। जाँच-पड़तालके बाद किसी बातकी सत्यता स्थापित करना; -प्रतिज्ञ-वि० वादेका पक्का, वचनका पालन करने- | प्रमाणादि देकर किसी कथनकी सत्यता दिखाना; सत्य वाला ।-भामा-स्त्री०सत्राजितकी एक कन्या और कृष्णको भाषण या सत्यका पालन; सौदेका इकरार । आठ पत्नियोंमेंसे एक ।-भेदी(दिन)-वि० वचन भंग | सत्यालापी(पिन्)-वि० [सं०] सत्यवादी। करनेवाला। -युग-पु० चार युगोंमेंसे पहला, कृतयुग । | सत्येतर-पु० [सं०] वह जो सत्यसे भिन्न हो, असत्यता । -युगी-वि० [हिं०] सत्ययुगका; बहुत नेक; बहुत सत्र-पु० [सं०] दे० 'सत्त्र'। -न्यायालय-पु० (सेशनपुराना । -रत-वि० सत्यपरायण । -लोक-पु० सबसे | कोर्ट) जूरी आदिकी सहायतासे हत्या आदि अभियोगोंपर ऊपरका लोक, ब्रह्मलोक । -वक्ता(क्त.)-वि० सत्य- विचार करनेवाली अदालत । वादी। -वचन-पु० सत्य भाषण; वादा, प्रतिज्ञा । वि० सत्रप-पुण्दे० क्षत्रप'। वि०[सं०] लज्जाशील,संकोची विनम्र । सत्यवादी । -वाक-पु० सत्य बोलना। -वाक (च) सत्रह-वि०, पु० दे० 'सत्तरह' । -स्त्री० सत्य वचन । पु० ऋषि; एक अस्त्र-मंत्र; कौवा सत्रहीं-स्त्री० मृत्युके बाद १७वें दिनका कृत्य । मनु चाक्षुषका एक पुत्र; मनु सावर्णिका एक पुत्र । वि० सत्रावसान-पु० [सं०] (प्रोरोगेशन) विधानसभा आदिका सत्यवादी । -वाक्य-पु० सत्य वचन । -वाचक-वि० पूर्णतः भंग या उत्सर्जन किये बिना अनिश्चित कालके लिए, सत्यवादी। -वाद-पु० वादा, प्रतिज्ञा ।-वादी(दिन) प्रायः अगले सत्रतकके लिए, स्थगित कर दिया जाना । -वि० स्पष्टवक्ता । -वाहन-वि० सत्यका वहन करने-सत्रु*-पु० दे० 'शत्रु' । -घन,-हन-पु० दे० 'शत्रुघ्न'। वाला (स्वप्न)। -वृत्त-पु० सदाचार । वि० सदाचारी । सत्व-पु० दे० 'सत्त्व' । -वृत्ति-स्त्री०सत्यका आचरण ।-व्रत-वि० सत्यका व्रत सत्वर-वि० [सं०] तेज, फुतीला । अ० शीघ्र, फौरन । रखनेवाला। पु० सत्यपालनका व्रत; एक प्राचीन नरेश | सथर*-पु० स्थल, भूमि, पृथ्वी । मनु वैवस्वत; धृतराष्ट्रका एक पुत्र । -शील,-शीली. सथिया*-पु० दीवार, कलश आदिपर अंकित किया आने(लिन्)-वि. सत्यपरायण । -संकल्प-वि० दृढ़ वाला एक मांगलिक चिह्न, स्वस्तिक [+] । संकल्प । -संगर-वि. अपने वचनका पालन करने-सत्कार-वि० [सं०] जिसके मुँहसे बोलते समय थक
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सद-सद्
८१० निकले । पु० बातके साथ थूक निकलना।
जो हमेशा गतियुक्त रहे । पु० वायु (कविप्रि०); सूर्य सद-वि० ताजा-'सद माखन साजो दधि मीठो मधु ब्रह्म । -फल-वि० हमेशा फलनेवाला । पु० बेल; कटमेवा पकवान'-सू० । नया, हालका । स्त्री०आदत, टेव ।। हल; नारियल, गूलर; एक नीबू । -बरत-पु० [हिं०] अ० सद्यः, तुरंत ।
दे० 'सदावर्त'। -बहार-पु० [हिं०] एक फूल । वि० सद(स)-पु० [सं०] निवास स्थान; सभा ।
हमेशा फूलनेवाला; जिसमें हमेशा पत्तियाँ रहें । -वर्तसदई*-अ० दे० 'सदा'।
पु० [हिं०] हमेशा अन्न बाँटनेका व्रत, ऐसा अन्न । वर्तीसदका-पु० [अ०] वह चीज जो खुदाके नामपर फकीरों- वि०, पु. हमेशा अन्न वितरण करनेवाला, दानी ।-शिवको दी जायः खैरात वह चीज जो किसीपर वारकर दान | वि. जो सदा दयालु रहे; जो हमेशा प्रसन्न या उन्नतशील की जाय या चौराहेपर रख दी जाय, अनुग्रह, प्रसाद रहे । पु.शिव । -सुहागिन-बि०, स्त्री० [हिं०] जो (यह सब...""का सदका है)। -(के)का-सदका किया हमेशा सुहागिन बनी रहे । स्त्री० सिंदूरपुष्पी; एक छोटी हुआ, वारा हुआ (..'का कौआ, चिराग, बुलबुल इ०)। चिड़िया; वेश्या । -का कौआ-वह कौआ जो किसीपर वारकर छोड़ दिया सदा-पु० [अ०] ध्वनि, आवाज; प्रतिध्वनि; आहट; जाया (ला०) काला-कलूटा आदमी। -का गुड़ा-दे० फकीरके माँगनेकी आवाज; पुकार, रट । मु०-देना,'सदकेका पुतला। -का चौराहा-वह चौराहा जहाँ लगाना-फकीरका आवाज लगाना; पुकारना। सदकेकी चीजें रखी जायँ । -का पुतला-वह पुतला जो | सदाकत-स्त्री० [अ०] सचाई; खरापन; तसदीक । सदकेकी चीजोंके साथ चौराहेपर रख दिया जाता है। सदाचरण-पु० [सं०] सद्व्यवहार, अच्छा चाल-चलन । म.-(क) उतारना-कोई चीज किसीके सिरके चारों | सदाचार-पु० [सं०] अच्छा चाल-चलन, अच्छा व्यवहार। ओर घुमाकर किसीको देना या चौराहे पर रख आना। सदाचारिता-स्त्री० [सं०] दे० 'सदाचरण'। -करना-निछावर करना, वारना(स्त्रि०)चूल्हे में डालना | सदाचारी(रिन्)-वि० [सं०] अच्छे चाल-चलनवाला, ('उन हार्थोके सदके करूँ जो मेर बच्चेपर चलें)।-जाना | सुकी। -वारी जाना, निछावर होना। -मैं छोड़ना-वारकर सदात्मा(त्मन्)-वि० [सं०] अच्छे स्वभावका, नेक। छोड़ना (किसी चिड़ियाको)। -होना-निछावर होना, | सदानंद-वि० [सं०] हमेशा आनंदमें रहनेवाला; हमेशा वारी जाना।
आनंद देनेवाला । पु० हमेशा रहनेवाला आनंद; शिव; सदन-पु० [सं०] निवासस्थान, घर, मकान; वह भवन विष्णु । या स्थान जहाँ किसी विधानसभा आदिका अधिवेशन हो | सदार-वि० [सं०] सपत्नीक । उक्त स्थानमें होनेवाली सभा या उसमें उपस्थित सदस्योंका | सदारत-स्त्री० [अ०] सद्रका पद, सभापतित्व । सम्हा यज्ञभवन: बैठना, आसन; एक भक्त कसाई। सदाशय-वि० [सं०] उदाराशय, ऊँचे विचारका । सदमा-पु० [अ०] धक्का, आघात; चोट, दिलपर लगने- | सदिया-स्त्री० भूरे रंगकी मुनियाँ । वाली चोट, दुःख शोकका आघात; हानि, नुकसान । | सदी-स्त्री० [फा०] सौ सालका काल, शताब्दी सैकड़ा। मु०-उठाना-दुःख, हृदयपर हुए आघातको सह लेना। सदुक्ति-स्त्री० [सं०] अच्छे शब्द, अच्छा कथन । -पहुँचना-चोट लगना नुकसान पहुँचना।
सदुपदेश-पु० [सं०] उत्तम शिक्षा; अच्छी सलाह । सदय-वि० [सं०] दयालु, रहमदिल । -हृदय-वि० सदुपयोग-पु० [सं०] अच्छा उपयोग, अच्छे काममें रहमदिल, कोमलचित्त ।
लगाया जाना। सदर-पु० दे० 'सद्र'। -अमीन-पु० वह अधिकारी जो सदूर*-पु० शार्दूल सिंह । जजके मातहत हो। -आला-पु. मातहत जज (सब | सदृश-वि० [सं०] समान, एक जैसा; उचित उपयुक्त । जज)। -जहाँ-पु० मुसलमान स्त्रियोंका माना हुआ सदृशता-स्त्री० [सं०) समानता, एकरूपता । एक जिन । -दीवान-पु० साही खजानेका प्रधान | सदेह-वि० [सं०] देहयुक्त । अ० बिना शरीर छोड़े। अधिकारी । -दीवानी-अदालत-स्त्री० हाईकोर्ट । सदैव-अ० [सं०] सर्वदा, हमेशा ही। -बाज़ार-पु० छावनीका बड़ा बाजार । -बोर्ड-पु० सदोष-वि० [सं०] दोषयुक्त, दोषी, अपराधी । -मानवमालका सर्वोच्च विभाग । -मालगुजार-पु० वह आदमी हत्या-स्त्री० (कल्पेबिल होमीसाइड) ऐसा मानववध जो जो सीधे सरकारको मालगुजारी अदा करे ।
दोष या अपराध माना जाय । सदरी-स्त्री० बिना आस्तीनकी मिरजई, फतुही। सद-वि० [सं०] 'सत्'का समासगत रूप। -गति-स्त्री. सदर्थना*-स० क्रि० समर्थन, पुष्टि करना ।
अच्छी दशा; मोक्ष-प्राप्रि। -गव-पु० अच्छा साँड़। सदर्प-वि० [सं०] घमंडी । अ० दर्प-पूर्वक ।
-गुण-वि० अच्छे गुणोंसे युक्त । पु० अच्छा गुण; सजसदसद्विवेक-पु० [सं०] भले-बुरेकी पहचान ।
नता । -गुरु-पु० अच्छा गुरु, धर्मगुरु । -ग्रंथ-पु० सदसि-अ० [सं०] सभामें । * गृह सभा ।
उत्तम ग्रंथ, सन्मार्गकी ओर प्रवृत्त करनेवाला ग्रंथ । सदस्य-पु० [सं०] किसी सभा, समाजसे संबंध रखने- | -ग्रह-पु० शुभ ग्रह । -धर्म-पु० अच्छा धर्म; अच्छा वाला व्यक्ति, सभ्य, सभासद, पंच ।
नियम; अच्छा न्याय। -भाव-पु० नेकमिजाजी; सजसदस्यता-स्त्री० [सं०] सदस्यकी स्थिति, भाव या पद।। नता; अच्छी नीयत; दयालुता । -वंश-पु० अच्छा सदा-अ० [सं०] नित्य, हमेशा निरंतर । -गति-वि०! बाँस; अच्छा कुल । -वार्ता-स्त्री० अच्छी वार्ता; अच्छा
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सह-सनाथ समाचार |-वृत्त-पु०सुंदर वर्तुलाकार आकृति; सदाचार। सन-स्त्री० किसी चीजके हवामें तेजीसे चलनेसे उत्पन्न वि० सदाचारयुक्त; अच्छे छंदोंवाला । -वृत्ति-स्त्री० शब्द । -सन-स्त्री० हवाकी आवाज, सनसनाहट । सद्व्यवहार, सदाचार।
| सनत-स्त्री० [अ०] कारीगरी; हुनर, पेशा; अलंकार सह-पु० शब्द, ध्धनि । अ० शीघ्र । वि० ताजा, टटका। (सा०)। -गर-पु० कारीगर, पेशावर । सद्म (न)-पु० [सं०] मकान, निवास स्थान; वेधशाला, सनई-स्त्री०सनका एक भेद। युद्ध, संघर्ष, पृथ्वी और आकाश ।
सनक-पु० [सं०] ब्रह्माके चार मानसपुत्रोंमेंसे एक । स्त्री० सद्यः (द्यस)-अ० [सं०] आज ही; उसी दिन; तत्क्षण, [हि०] धुन, झोंक; खन्त, दीवानगी, पागलपन । मु०फीरन तेजीसे हाल में हो, कुछ ही काल पूर्व, अभी-अभी। आना-पागल होना । -चढ़ना,-सवार होना-धुन -(द्यः) कृत-वि. जो तुरंत, उसी समय किया गया सवार होना । -लेना-पागलपनका कोई काम करना । हो । -क्रीत-वि० उसी दिन खरीदा हुआ। पु० एक सनकना-अ० क्रि० उन्मत्त, पागल, झक्की होना। एकाह । -प्रसूता-स्त्री० वह स्त्री जिसने अभी-अभी सनकाना-स० कि. किसीको पागल बनाना । प्रसव किया है। -प्राणकर-वि० तुरंत शक्ति बढ़ाने | सनकारना*-स० क्रि० इशारा करना; इशारेसे बुलानावाला। -फल-वि० जिसका फल तुरंत देख पड़े। 'सनकारे सेवक सकल चले स्वामि रुख पाइ'-रामा०; -स्नात-वि० तुरंतका नहाया हुआ।
किसी कामके लिए संकेत करना । सद्यश्च्छिन्न-वि० [सं०] तुरंतका काटा या काटकर ! सनकियाना-सक्रि० संकेत करना; पागल बनाना । अलग किया हुआ।
अ० क्रि० पागल होना। सद्यस्तन-वि० [सं०] ताजा, नया; उसी समयका । सनत्-पु० [सं०] ब्रह्मा। -कुमार-पु. ब्रह्माके चार सद्योजात-वि० [सं०] जो अभी उत्पन्न हुआ हो। मानस पुत्रों मेंसे एक जैनोंके बारह चक्रवतियों में से एक सद्योजाता-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसे हाल में ही बच्चा यौवनकीसी अवस्था बनाये रखनेवाला कोई संत; तीसरा पैदा हुआ हो।
स्वर्ग (जैन)। सद्योत्पा-वि० सं०] दे० 'सद्योजात' ।
सनद-स्त्री० [अ०] वह जिसपर पीठ टेकी जाय, तकियासद्योव्रण-पु० [सं०] ताजा घाव ।
गाह प्रमाण प्रमाणपत्र, सर्टिफिकेट; अनुमति-पत्र; तमसद्योहत-वि० [सं०] जो अभी हत हुआ हो।
स्सुक, किबाला; काजी या मुफ्तीकी मुहर । वि० प्रामासद-पु० [अ०] छाती, सीना; सर्वोच्च स्थान; शीर्षभागः णिक, प्रमाणरूप; भरोसा करने योग्य । -याफ्ता-वि०
उच्च पदस्थ जनके बैठनेका स्थान; प्रधान अधिकारीके जिसके पास सनद या प्रमाणपत्र हो। रहनेका स्थान; सदर मुकाम; सभापति; मकानका सहना | सनदी-वि० प्रामाणिक; सनदयाफ्ता । * स्त्री० हाल, सामनेका रुख । -अदालत-स्त्री० सर्वोच्च न्यायालय । वृत्तांत । --(द)आज़म-पु० वजीरे आजम, प्रधान मंत्री प्रधान | सनना-अ० क्रि० जलके योगसे चूर्णादिका एकमें मिलना; जज । -मजलिस-पु० सभापति, मीर मजलिस। लथपथ होना; लिप्त होना, पगना । सधन-वि० [सं०] धनी, धनयुक्त। पु. सम्मिलित धन, | सननी-स्त्री० पानीमें साना हुआ भूसा, सानी । सामान्य धन ।
सनमान*-पु० दे० 'सम्मान'। सधना-अ० क्रि० काम पूरा होना, कार्य सिद्ध होना; सनमानना*-स० क्रि० आदर, सत्कार करना । सँभलना; अपने अनुकूल होना; घोड़ों आदिका सीखकर | सनमुख*-अ० दे. 'सम्मुख' । कामके लायक होना, निकलना अभ्यस्त होना; साधा सनसनाना-अ० कि. गतिशील पदार्थ में हवा लगने, जाना, नापा जाना; निशाना ठीक होना ।
हवा चलने या पानी उबलने आदिसे 'सन-सन' शब्द सधर*-पु० ऊपरी ओठ ।
उत्पन्न होना। सधर्म-वि० [सं०] एक ही धर्म या स्वभाववाला; एक ही | सनसनाहट-स्त्री० हवा चलने, कोरे घड़े में पानी डालने, नियमके अंदर आनेवाला, समान, सश: पुण्यात्मा, सच्चा; जलके उबलने आदिसे उत्पन्न 'सन-सन'की आवाज । एक ही जैसे कर्तव्योंवाला।
सनसनी-स्त्री० झुनझुनी, भय, आश्चर्य आदिके कारण सधर्मा(मन)-वि० [सं०] समान धर्मयुक्त ।
उत्पन्न स्तब्धता; सन्नाटा; खलबली; सनसनाहट । सधर्मी(र्मिन्)-वि० [सं०] समान धर्मका अनुयायी । सनहकी-स्त्रीमुसलमानोंके काममें आनेवाला बड़ी सधवा-स्त्री० [सं०] सुहागिन, सौभाग्यवती।
तश्तरी जैसा मिट्टीका एक बरतन । सधाना-स० क्रि० साधनेके काममें दूसरेको प्रवृत्त करना। सनाढ्य-पु० ब्राह्मणोंकी एक उपजाति । सधावर-पु० गर्भवती स्त्रीको दिया जानेवाला उपहार । सनासन-वि० [सं०] नित्य; अनादि सुनिश्चल, स्थायी सधूम-वि० [सं०] धुएँसे भरा या ढका हुआ।
प्राचीन । पु० ब्रह्मा, विष्णु, शिव । -धर्म-पु. प्राचीन सनंदन-पु० [सं०] ब्रह्माके चार मानस पुत्रोंमेंसे एक।। धर्म; परंपरागत धर्म (जो साधारण हिंदु जनतामें प्रचलित सन-वि० स्तब्ध । * प्र० करणकी विभक्ति। पु० एक पौधा है)। -पुरुष-पु. विष्णु; आदि पुरुष । जिसकी छालसे ररसी आदि बनाते हैं। दे० 'सन' [सं०] | सनातनी-वि० सनातन धर्मका अनुयायी; बहुत पुराना । ब्रह्माके चार मानस पुत्रोंमेंसे एक लाभ, प्राप्ति हाथीका | स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; दुर्गा; सरस्वती । कान फटफटाना। -पर्णी-स्त्री० असनपणी ।
सनाथ-वि० [सं०] स्वामियुक्त, जिसका कोई रक्षक हो;
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सनाथा-संपन्न
.."से युक्त; * सफल-'भये सखि नैन सनाथ हमारे'- सन्निधान-पु०, सन्निधि-स्त्री० [सं०] साथ, पास रखना; सू० कृतकृत्य-'जो कदाचि मोहि मारिहैं तौ पुनि होब सामीप्य; गोचरता; आधार; अपने पास रखना; योग। सनाथ'-रामा० ।मु०-करना-आश्रय देना।
सन्निपात-पु० [सं०] एक साथ गिरना; मिलना, संगम सनाथा-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पति जीवित हो, | टक्कर मेल, योग समूह; बात, पित्त और कफका एक जीवद्भर्तृका ।
साथ प्रकोप जो भीषण होता है। सनाभि-वि० [सं०] नाभियुक्त; समान केंद्रवाले (जैसे सन्निविष्ट-वि० [सं०] साथ बैठा हुआ एकत्रीभूत लीन; पहियेके आरे); सहोदर, सगा; सपिंडा समान, सदृश । | समाया हुआ, प्रविष्ट; आसन्नवती, निकटस्थ; जिसने पु० सगा भाई; सातवीं पीढ़ीतकका संबंधी ।
पड़ाव डाला हो । -करना-स० क्रि० (टु इनसर्ट) हटाये सनाभ्य-पु० [सं०] एक ही वंशका सातवीं पीढ़ीतकका हुए शब्द, शब्दसमूह आदिके स्थानमें अन्य शब्द, शब्दसंबंधी।
समूह आदि रखना या बैठाना । सनामा(मन)-वि० [सं०] समान या एक ही नामका । | सन्निवेश-पु० [सं०] प्रवेश करना; साथ बैठना; एकत्र सनाय-स्त्री० एक पौधा जिसकी पत्तियाँ रेचक होती हैं, होना; समाना, अँटना; बैठने, रहनेका स्थान; कुटीर, सोनामुखी।
वासस्थान; उचित स्थानपर बैठाना; जमाना नगर आदिसनाह-पु० कवच, बख्सर ।
के पासका वह मैदान जहाँ मनोरंजन, व्यायाम आदिके सनि*-पु० दे० 'शनि' ।
लिए लोग एकत्र होते हैं; रचना, निर्माण । सनित*-वि० साना, मिलाया हुआ, मिश्रित ।
सन्निवेशन-पु० [सं०] बैठाना; रखना; जमाना; जड़ना; सनिद्र-वि० [सं०] सोया हुआ, निद्रायुक्त ।
मूर्ति स्थापित करना वासस्थान; व्यवस्था। सनियम-वि० [सं०] नियमित; जो धर्मानुष्ठान कर सन्निवेशित-वि० [सं०] प्रविष्ट कराया हुआ; बैठाया, रहा हो।
जमाया हुआ ठहराया हुआ स्थापित किया हुआ। सनिघृण-वि० [सं०] निष्ठुर, कठोर, बेरहम ।
सन्निहित-वि० [सं०] पास रखा हुआ निकटस्थ, आसन्न सनीचर*-पु० दे० 'शनैश्चर'।
उपस्थित रखा, जमाया हुआ; ठहराया हुआ; उद्यत, सनीचरी-स्त्री० शनिकी दशा। विशनिवारको लगने- तैयार ठहरा हुआ, स्थित । वाला (बाजार)।
सन्न्यसन-पु० [सं०] त्याग; अलग करना; सांसारिक सनीड, सनील-वि० [सं०] जो एक ही घोंसलेमें रहते । विषयोंका त्याग; जमा करना, सौंपना रखना, धरना । हों साथ रहनेवाले संबंधी, समीपी।
सन्न्यस्त-वि० [सं०] अलग किया हुआ, छोड़ा हुआ; सनेस, सनेसा*-पु० दे० 'संदेश'।
विरक्त रखा हुआ; जमा किया हुआ सौंपा हुआ; ठहसनेह*-पु० दे० 'स्नेह'।
राया हुआ। सनेहिया-पु० दे० 'सनेही'।
सन्न्यास-पु० [सं०] छोड़ना, परित्याग, विरक्ति हिंदुओंसनेही-वि• स्नेही, प्रेमी। पु० प्रेम करनेवाला । का चतुर्थाश्रम; धरोहर; पण, दानू, बाजी; शरीरत्याग, सन-सनै*-अ० दे० 'शनैः-शनैः'।
मृत्युः जटामासी; ठहराव, शर्त; एक तरह का मूर्छारोग । सनोवर-पु० [अ०] चीड़का पेड़।।
-ग्रहण-पु० चतुर्थाश्रम में प्रवेश करना। सन्-पु. [अ०] साल, संवत् ।-ईसवी-पु० ईसाइयोंका सन्न्यासी(सिन्)-वि० [सं०] त्याग करनेवाला; पृथक् संवत् जो ईसाके जन्मदिनसे चला है। -हाल-पु० वर्त करनेवाला; भोजनका त्याग करनेवाला, त्यक्ताहार । मान संवत् ।-हिजरी-पु० मुसलमानोंका संवत् जिसका पु० चतुर्थाश्रममें प्रविष्ट व्यक्ति । आरंभ मुहम्मदके मक्केसे हिजरत करनेकी तिथिसे हुआ सन्मान-पु० दे० 'सम्मान' [सं०] सज्जनोंका आदर । है। -(ने)जुलूस-पु० किसी राजाके राज्याभिषेककी सन्मानना*-सक्रि० दे० 'सनमानना' । तिथिसे चलनेवाला संवत् ।
सन्मार्ग-पु० [सं०] सुमार्ग, सुपथ । सन्न-वि० भय आदिसे स्तब्ध, स्तंभित ।
सन्मुख-अ० दे० 'सम्मुख' । सनद्ध-वि० [सं०] कटिबद्ध बक्तरवंद युद्ध के लिए तैयार; सन्यासी-पु० दे० 'सन्न्यासी' । व्याप्त,से संपन्न, युक्त संलग्न ।
सपक्ष-वि० [सं०] डैनीवाला; पंखदार (बाण); पक्षवाला, सबाटा-पु० निस्तब्धता, नीरवता; निर्जनता; स्तब्धता, जिसका दो पक्षों से कोई एक पक्ष हो; एक ही (समान) चुप्पी, हवा चलनेका शब्द, सनसनाहट । वि० निर्जन पक्षका; मित्रों, सहायकोंसे युक्त; एकजातीय; समान, नीरव । मु०-खींचना,-मारना-बिलकुल चुप हो सश (ला०); जिसमें साध्य या अनुमानका विषय हो। जाना । -बीतना-उदासीमें वक्त कटना। -(टे)का- पु० मित्र, सहायक; समर्थक सहजातीय व्यक्ति; वह सनसन आवाजके साथ बहनेवाला । -के साथ,-से- दृष्टांत जिसमें साध्य हो । तेजीसे ।-में आना-स्तंभित हो जाना,चुप रह जाना। सपच्छ*-वि०, पु० दे० 'सपक्ष। समाह-पु० [सं०] इथियारसे लैस होना; कवच । सपत*-अ० दे० 'सपदि'। सन्निकट-अ० [सं०] पास, नजदीक ।
सपताक-वि० [सं०] झंडेसे युक्त । सन्निकर्ष-पु० [सं०] निकट लाना; सामीप्य; उपस्थिति; सपत्न-वि० [सं०] शत्रुताका भाव रखनेवाला, वैरी । संबंधइंद्रियका विषयसे संबंध (न्या०)।
| पु० शत्रु, दुश्मन । -जित्-वि० शत्रुओंको जीतनेवाला।
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८१३
सपत्नी - स्त्री० [सं०] सौत | सपत्नीक - वि० [सं०] पत्नी के साथ | सपन - वि० [सं०] पंखदार |
सपथ - स्त्री० दे० 'शपथ' ।
सपदि - अ० [सं०] शीघ्र, तत्काल, तुरंत । सपन* - पु० दे० 'स्वप्न' |
सपना - पु० दे० 'स्वप्न' । मु० - होना - अप्राप्य होना । सपरदा, सपरदाई- पु० नाचनेवाली वेश्या के साथ साज बजानेवाला, साजिंदा, समाजी, भँडुआ ।
सपना - अ० क्रि० पार लगना, पूरा होना, हो सकना; तैयारी करना; + स्नान करना (बुंदेल०) ।
सपाट - वि० चौरस, समथर, जो ऊबड़-खाबड़ न हो । सपाटा पु० तेजी, झोंक; झपट; दौड़ ।
सपाद - वि० [सं०] चरण सहित; चतुर्थांश बढ़ाया हुआ । सपिंड - पु० [सं०] उन्हीं (समान) पितरोंको पिंड देनेवाला; छः पुश्त ऊपरसे छः पुश्त नीचेतकका संबंधी । सपिंडीकरण - पु० [सं०] श्राद्धविशेष जिसमें मृतकको पिंडदान द्वारा पितरोंके साथ मिलाते हैं, किसीको सपिंड होनेका अधिकार प्रदान करना । सपुलक - वि० [सं०] रोमांचयुक्त |
सपूत - पु० अच्छा, कुलका नाम बढ़ानेवाला, पुत्र । सपूती - स्त्री० सपूत होनेका भाव; अच्छे पुत्रकी माता । सपेव - वि० सफेद, श्वेत ।
सपेती* - स्त्री० दे० 'सफ़ेदी' |
सपराना स० क्रि० पूरा करना, खतम करना, पार
लगाना; तैयारी कराना; + स्नान कराना ।
सप्तम - वि० [सं०] सातवाँ ।
सपरिकर - वि० [सं०] अनुचरोंके दलके साथ, दलबल के साथ । सप्तमी - स्त्री० [सं०] पक्षकी सातवीं तिथि; अधिकरण सपरिजन - वि० [सं०] दे० 'सपरिकर' ।
सपरिवार - वि० [सं०] परिवार के सदस्योंके साथ । सपरिवाह - वि० [सं०] उपटकर बहता हुआ; ऊपरतक भरा हुआ ।
सपरिश्रम कारावास - पु० [सं०] ( रिगरस इंप्रिज़नमेंट) वह कारावास जिसमें वंदीसे कठिन परिश्रमके काम कराये
जायँ ।
सफेद - वि० [फा०] दे० 'सफेद' ।
सपेला, सपोला- पु० पोवा, साँपका छोटा बच्चा । सप्त (न्) - वि० [सं०] छः से एक अधिक । पु० सातकी संख्या । - ऋषि - पु० दे० 'सप्तर्षि' । -कोण-पु० सात रेखाओंसे घिरा हुआ क्षेत्र । -जिह्न - वि० सात जिह्वाओं वाला | पु०अग्नि । -ज्वाल - पु०अग्नि । - दश (न्) - वि० सत्तरह । - द्वीप - पु० पृथ्वी के सातों खंड । - धातु - वि० सात धातुओंवाला (शरीर) । स्त्री० शरीर के सात तत्त्वपित्त, रक्त, मांस, वसा, अस्थि मज्जा और शुक्र । - नाडिका - स्त्री० सिंघाड़ा। -पदी-स्त्री० विवाहकी एक विधि जिसमें अग्निकी सात बार परिक्रमा की जाती है; संधि पक्की करने के लिए अग्निकी सात बार परिक्रमा करना । - पर्ण, - पर्णक- वि० सात पत्तोंवाला | पु० छतिवन । पर्णी - स्त्री० लजालू; छतिवनका फूल; एक मिठाई । - पाताल - पु० सात अधोलोक - अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल |-पुत्री
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सपत्नी - सफ़ा
स्त्री० एक तरह की तुरई, सतपुतिया । -पुरी-स्त्री० सात पुरियाँ - अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका - जो मोक्ष देनेवाली मानी जाती हैं । - प्रकृति - स्त्री० राज्य के सात अंग-राजा, मंत्री, मित्र, कोश, राष्ट्र, दुर्ग और सेना । - भुज-पु० ( हेप्टेगॉन ) सात भुजाओंवाली आकृति । -राशिक- पु० त्रैराशिक जैसी गणितकी एक क्रिया जिसमें सात राशियाँ होती हैं। - विध- वि० सात प्रकारका । -शती-स्त्री० सात सौका समूह; सात सौ पद्योंका संग्रह । - स्वर - पु० संगीतका सप्तक । - हय-पु० दे० सप्ताश्व' ( सूर्य ) । सप्तक - पु० [सं०] सातका संग्रह; संगीतके सात स्वरोंका समाहार ।
कारककी विभक्ति (व्या० ) ।
सप्तर्षि - पु० [सं०] सात ऋषियों-गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वसिष्ठ, कश्यप और अत्रि-का मंडल; सात ताराओंका एक मंडल ।
सप्तांशु वि० [सं०] सात किरणोंवाला | पु० अग्नि । सप्तार्चि ( स ) - वि० [सं०] सात शिखाओंवाला । पु० अग्नि ! सप्तार्णव- पु० [सं०] सातों समुद्र 1 सप्तालु - पु० [सं०] सफ्तालू, सतालू । सप्ताश्र - पु० [सं०] सप्तभुज क्षेत्र । सप्ताश्व - पु० [सं०] सूर्य (सात घोड़ोंवाले रथ के कारण ) । सप्ताह - पु० [सं०] सात दिनकी अवधि, हफ्ता । सप्रतिबंध स्वीकृति - स्त्री० [सं०] ( कंडीशनल या क्वालिफाइड एक्सेप्टेंस ) दे० 'विशेषित स्वीकृति' । सप्रमाण - वि० [सं०] प्रमाणयुक्तः प्रामाणिक, ठीक । सन - स्त्री० [अ०] पाँत, कतार; फर्श; चटाई । -दरवि० [अ०] सफोको तोड़नेवाला; वीर, योद्धा । सफतालू - पु० एक फल-वृक्ष, आडू । सफ़र-पु० [अ०] हिजरी सन्का दूसरा महीना जिसे मुसलमान स्त्रियाँ मनहूस समझती हैं; शहर से बाहर जाना; यात्रा; रवानगी, कूच । - खर्च पु० सफरका खर्च, मार्गव्यय । - नामा - पु० भ्रमणवृत्तांत । सफर मैना - पु० [अ० सेपर मैन] सेनाके वे कर्मचारी जो फौजके आगे जाकर खाई, रास्ता आदि तैयार करते हैं । सफरी-स्त्री० [सं०] एक तरहकी छोटी चमकीली मछली । सफ़री - वि० [अ०] सफरका ; यात्रा-संबंधी; यात्राके उपयुक्त । पु० मुसाफिर, यात्री; अमरूद - 'सफरी, सेब, छुहारे, पिस्ता जे तरबूजा नाम' - सू० । स्त्री० राहखर्च । सफल - वि० [सं०] फलयुक्तः फल उत्पन्न करनेवाला; कृतकार्य, कामयाब; सार्थक; अंडयुक्त, बधिया नहीं । सफलता - स्त्री० [सं०] कामयाबी; पूर्णता; सार्थकता । सफलित- वि० दे० 'सफलीभूत' ।
सफलीकरण - पु० [सं०] सफल करना; सिद्ध, पूर्ण करना । सफलीभूत-वि० [सं०] कामयाब; जो सिद्ध, पूर्ण हो । सनहा - पु० [अ०] पन्ने या वरकका एक पार्श्व, पृष्ठ | सफ़ा - स्त्री० [अ०] सफाई | वि० दे० 'साफ' । -चट
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सफाई-सभाग्रणी
- ८१४ वि०बिलकुल साफ, मैदान, जिसपर कोई पेड़-पौधा न हो; सबील-स्त्री० [अ०] रास्ता उपाय-'बचै न बड़ी सबील हू अच्छी तरह मुँडा हुआ (सिर) । पु० सफहा, पृष्ठ । चील घोंसुआ मांस'-बि०, वसीला; वह स्थान जहाँ सफाई-स्त्री० साफ होना, स्वच्छता, झाड़-पोंछ, मैल- लोगोंको पानी, शरबत आदि पिलाया जाय, प्याऊ । गंदगीका दूर किया जाना; चमक; चिकनाहट; खुरदरा- सबीह-स्त्री० दे० 'शबीह' । वि० [अ०] गोरा-चिट्टा । पनका न रहना; सरलता; हृदय-शुद्धि; नेकनीयती, | सबूत-पु० दे० 'सुबूत'। सचाई, खरापन; हिसाबका चुकता हो जाना; मेल, सुलह सबेरा-पु० दे० 'सवेरा' । (सफा हो जाना); समाप्ति; तबाही, बरबादी; दोपसे मुक्ति सब्ज़-वि० [फा०] हरा, कच्चा हरा-भरा।-कदम-वि० अभियुक्तका बचाव, उसकी निर्दोषता सिद्ध करनेके लिए | जिसके कदम, पौरा, अमंगलकर माने जाते हों, मनहूस पेश की जानेवाली गवाही इ०, अभियुक्तपक्ष (-का गवाह, (केवल व्यंग्यमें)।-बस्ती-स्त्री० खुशनसीबी, सौभाग्य । वकील); फुरती, चतुराई (-का हाथ); (ला०) निर्लज्जता। मु०-बाग़ दिखाना-ठगनेके लिए झूठी आशाएँ दिलाना, सफाया-पु० समाप्ति; नाश; संहार । मु०-कर देना- धोखा देना। -होना-हरा-भरा होना, फलना फूलना।
खत्म कर देना, मिटा देना सबको मार डालना। सब्ज़ा-पु० [फा०] हरी घास, हरियाली; पन्ना; नीलसफ़ीना-पु० किताब; बही; समन ।
कंठ; वह घोड़ा जिसकी सफेदीमें स्याह रंगकी झलक हो । सफीर-स्त्री.चिड़ियोंकी आवाज; सीटी; आवाज । सब्ज़ी-स्त्री० [फा०] हरा रंग; हरियाली; साग-पात, सफीर-पु० [अ०] दूत, राजदूत ।
हरी तरकारी; भंग । -रांश-पु० साग-तरकारी बेचनेसफील-स्त्री० दे० 'सफीर' (सीटी; आवाज)।
वाला । -मंडी-स्त्री. वह जगह जहाँ साग-तरकारी सफूफ़-पु० [अ०] चूर्ण; चूर्णरूप औषध, चूरन ।
और ताजा फल बिकते हों। सफ़ेद-वि० [फा०] उजला, श्वेत; गोरा कोरा; सादा | सब-पु० [अ०] सहन, बरदाश्त; धैर्यः संतोष, तसल्ली । (कागज) । -दाग़-पु० श्वेतकुष्ठ । -पोश-वि० सफेद मु०-आना-धीरज धरना। -करना-जुल्मको चुपकपड़े पहननेवाला; भला आदमी; जो अमीर न होते हुए | चाप सह लेना; ठहरना, धैर्य रखना ।-की सिल छातीभी भले आदमियोंकी तरह रहे, शिष्ट किंतु अल्पवित्त (दिल)पर रखना-"चुपचाप धैर्यपूर्वक सह लेना ।-देना (जन)। -(दा) सियाह-पु० भला-बुरा, बनाना-बिगा- -(ईश्वरका) सहनेकी शक्ति देना; धीरज बँधाना। डना । मु०-पड़ जाना-(भय, रोग आदिसे) चेहरेका | सभंग-वि० [सं०] खंडयुक्त । -श्लेष-पु० श्लेषका एक रंग उड़ जाना, पीला पड़ जाना।
प्रकार जो शब्दका खंड करने पर बनता है । सफ़ेदा-पु. एक तरहका आम; एक पेड़ जिसका धड़ सभय-वि० [सं०] डरा हुआ, भययुक्त खतरनाक । सफेद होता है; जस्तेसे बनाया जानेवाला सफेद चूर्ण जो सभर्तृका-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पति जीवित दवाके काम आता है।
हो, सधवा। सक्नेदी-स्त्री० सफेद होना, श्वेतता; गोराई, चूनेकी पुताई | सभा-स्त्री० [सं०] गोष्ठी, मजलिस; परिषद्, समिति (करना, फेरना, होना); सबेरेका उजाला; सफेद रंगका सभास्थल, सभाभवन, न्यायालय; दरबार; द्यतशाला; स्राव । मु०-आना-बुढ़ापा आना, बाल सफेद होना।। पथिकालय; अतिथिशाला; भोजनालय; वह स्थान जहाँ सबंधमुक्ति-स्त्री० [सं०](पैरोल) किसी बंदीका कारागृहसे इस लोग प्रायः आते-जाते हों; कार्य-विशेषके लिए संघटित प्रतिबंधपर कुछ समयके लिए छोड़ दिया जाना कि अवधि संस्था । -कक्ष-पु० (लॉबी) दे० 'प्रकोष्ठ'। -गृह-पु. समाप्त होते ही वह पुनः कारागारमें उपस्थित हो जायगा सभा-भवन । -चातुर्य-पु० सभा, समाजमें बोलने,
और मुक्तिकालमें कोई अवांछनीय या वर्जित कार्य न व्यवहार करनेकी चतुरता। -त्याग-पु. (वॉक आउट) करेगा, सप्रतिबंधमुक्ति, साधिमुक्ति।
अध्यक्षकी किसी व्यवस्था या सभाकी किसी कार्रवाई आदि. सब-वि० कुल (संख्या या राशि); समस्त, सारा, संपूर्ण । के विरोधमें एक या अधिक सदस्योंका सभा छोड़कर सबक्र-पु० [अ०] पाठ, पुस्तकका उतना अंश जितना बाहर चला आना।-नायक,-पति-पु० सभाका अध्यक्ष एक दिनमें गुरुसे पढ़ा जाय, शिक्षा, सीख; वह दंड जो जुएका अड्डा चलानेवाला ।-नेता(तु)-पु० (लीड ऑफ चेतावनीका काम दे ( देना, मिलना )।मु०-पढ़ाना- दि हाउस) दे० 'सभाग्रणी' ।-मंडन-पु० सभा-भवनकी शिक्षा देना; पट्टी पढ़ाना, बहकाना। -लेना-पढ़ना: सजावट । -सचिव-पु० (पार्लिमेंटरी सेक्रेटरी) विधाननसीहत लेना।
सभा या लोकसभाका वह सदस्य जो किसी मंत्रीके साथ सबज-वि० दे० 'सब्ज'।
रहकर उसके समस्त विभागीय कार्यों में सहायता करता सबद-पुं० शब्द; किसी महात्माकी बानी, भजन आदि । और जिसे इस कार्यके लिए वेतन भी मिलता है। संसत्ससबब-पु० [अ०] कारण; उपादान कारण, हेतु; दलील । चिव । -सदा-सद्-पु० सदस्य; जूरीका सदस्य, सबर-पु० दे० 'सब' । * वि० दे० 'सबल'।
अदालतकी पंचायतका सदस्य । सबरा*-वि० सब, कुल, सारा।
सभागा*-वि० भाग्यशाली; सुंदर। सबरी-स्त्री० गड्ढा या दीवार खोदनेका आला, छोटा सभाग्य-वि० [सं०] भाग्यशाली । रंभा दे० 'शबरी'।
सभाग्रणी-पु० [सं०] (लीडर ऑफ दि हाउस) संसद सबल-वि० [सं०] सशक्त, बलवान् सेनायुक्त ।
या विधानसभाके सदस्यों द्वारा चुना गया वह नेता सबार, सबारै*-अ० जल्द, शीघ्र ।
जो संसद या सभाका कार्यक्रम आदि निर्धारित करता
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सभार्य-सम है (कभी-कभी यह प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्रीसे भिन्न विद्या०।-तोलन-पु० समान करना तराजूके पलड़ाको भी होता है)।
बराबर करना। -त्रिबाहु त्रिभुज-पु० ( ईविलेटरल सभार्य, सभार्यक-वि० [सं०] सपत्नीक ।
ट्राइएंगिल) वह त्रिभुज जिसकी तीनों भुजाएँ बराबर सभेय-वि० [सं०] सभोचित विद्वान् । शिष्ट ।
हों । -त्रिभुज-वि० जिसकी तीनों भुजाएँ समान सभोचित-वि० [सं०] सभाके योग्य ।
हों। पु०ऐसा क्षेत्र (ज्या०)। -दर्शन-वि० एकरूप, सभ्य-वि० [सं०] सभाका सभासे संबद्ध सभाके योग्य; एक जैसी शकलवाला; एक नजरसे देखनेवाला । -दीशिष्ट, संस्कृत नम्र विश्वस्त । पु० सभासद पंच। (शिन्)-वि० सबको एकसा देखने-समझनेवाला । सभ्यता-स्त्री०, सभ्यत्व-पु० [सं०] सभ्य होनेका भाव; | -दृष्टि-वि० दे० 'समदशी'। स्त्री० सबको एक नजरसे सदस्यता; शिष्टता, नम्रता, भद्रता; कुलीनता ।
देखनेकी क्रिया । -द्युति-वि० समान कांतियुक्त । सभ्येतर-वि० [सं०] उजड्डु, बेशऊर ।
-द्विबाहु त्रिभुज-पु० (आइसॉसिलीज ट्राइएं गिल) वह समंजस-वि० [सं०] उचित, उपयुक्तठीक, समीचीन । त्रिभुज जिसकी दो भुजाएँ बराबर हों।-द्विभाग करनासमंत-पु० [सं०] सीमा, हद ।।
स० क्रि० (टु बाइसेक्ट ) दो बराबर भागोंमें बाँटना । समंद-पु० [फा०] बादामी रंगका घोड़ा जिसका अयाल, -द्विभुज-वि० जिसकी दो भुजाएँ बराबर हो । पु० ऐसा दुम और जाँघ या पाँव और जाँधके बाल स्याह हों; चतुर्भुज । -धर्मा(मन)-वि० एक जैसे स्वभावका । (अच्छी नस्लका) घोड़ा।
-परिधान-पु० (यूनीफार्म) दे० 'विपरिधान'।-प्रभसमंदर*-पु० समुद्र ।
वि० समान कांतिवाला । -बहुभुज-पु. (रेगुलर सम-* स्त्री० समता, बराबरी । वि० [सं०] एक ही, पॉलीगान ) वह बहुभुज जो समान भुजिक और समान अभिन्न; सश, एकसा; बराबर चौरस, इमवार, कोणिक, दोनों हो। -बुद्धि-वि० सुख-दुःखादि एकसा जो दोसे पूरा-पूरा बँट जाय, विषम नहीं; पक्षपात रहित। समझनेवाला, उदासीन । स्त्री० वह बुद्धि जो किसी निष्पक्ष; ईमानदार, सच्चा साधु, नेक; मामूली, साधारण; हालतमें विचलित न हो। -भाग-पु० बराबर हिस्सा। कमीना; सीधा; उपयुक्त, सुविधाजनक; उदासीन, वि० बरावर हिस्सा पानेवाला। -भुज (या समानविरक्त सब, समग्र । पु० चौरस मैदान; एक काव्या भुजिक) बहुभुज-पु. (ईकिलेटरल पॉलीगॉन) वह लंकार (१) जहाँ दो वस्तुओं में यथायोग्य संबंधका होना बहुभुज जिसकी सब भुजाएँ आपसमें बराबर हों।-भूमिदिखाया जाय या (२) जहाँ कारणके साथ कार्यका सारूप्य स्त्री हमवार जमीन ।-मित आकृति-स्त्री० (सिमेट्रिकल हो अथवा (३) जिसके लिए प्रयल किया जाय उसकी फिगर) वह आकृति जिसको बीचकी रेखाके बल तह सिद्धिविना अनिष्टके ही होना वर्णित किया जाय; तालका। करनेपर रेखाके एक ओरका भाग ठीक-ठीक दूसरी ओरके एक अंग, संगीतमें वह स्थान जहाँ लयकी समाप्ति और भागको टूक ले । -रस-वि० एक ही, प्तमान भावसे तालका आरंभ होता है। * दे० 'शम'। -कक्ष-वि० युक्त; एक रसवाला; एकसा । -रूप-वि० समान समान वजनका, बराबरीका । कक्ष सरकार-स्त्री० [हिं०] रूपका। -रूप प्रस्ताव-पु० ( आइडें टिकल मोशन) (पैरेलल गवर्नमेंट) दे० 'प्रति-सरकार'। -कालीन- किसी अन्य प्रस्तावसे बिलकुल मिलता-जुलता प्रस्ताव । वि० एक समयमें रहने या होनेवाले (कनटेंपोरेरी), सम- -लंब चतुर्भुज-पु० (ट्रैपीजियम) वह चतुर्भुज जिसकी सामयिक ।-कोण-वि० बराबर कोणोंवाला (क्षेत्र) । पु० केवल एक जोड़ी आमने-सामनेकी भुजाएँ समानांतर हों। (राइट एंगिल) वह कोण जो ९० अंशके बराबर हो । - -लोष्टकांचन-वि. जिसकी दृष्टि में ढेला और सोना कोण त्रिभुज-पु०(राइट एंगिल्ड ट्राइएंगिल) वह त्रिभुज बराबर हों। -वयस्क-वि० बराबर उम्रका, एक ही जिसका एक कोण समकोण हो। -क्षेत्र-पु०,-तला.
उम्रका, हमउम्र । -वर्ण-वि० एक ही रंगका; एक ही कृति-स्त्री० (प्लेन फिगर ) समतलका वह भाग जो एक जातिका । -वर्ती(र्तिन)-वि०किसीके प्रति पक्षपात या अधिक सरल या वक्र रेखाओंसे घिरा हो । -चतुरश्र, न दिखानेवाला; एकसा व्यवहार करनेवाला; समान -चतुरस्र-वि०जिसके चारों कोण बराबर हो । पु०वर्गक्षेत्र दूरीपर स्थित ( कॉनकरेंट) साथ-साथ होने, रहने या (ज्या०)।-चतुर्भुज-पु० वह क्षेत्र जिसकी चारों भुजाएँ चलनेवाला। -वितरण-पु० ( राशनिंग) खाद्यान्न या बराबर हों (ज्या०)। -चतुष्कोण-वि० जिसके चारों वस्त्रादिकी कमी होनेपर नागरिकोंको प्रति दिन या प्रति कोण बराबर हों (ज्या०)। -चर-वि० एकसा व्यवहार मासके लिए निर्धारित समान मात्रा वितरित करनेका
या आचरण रखनेवाला। -चित्त-वि० धीर, शांत; कार्य या व्यवस्था, खुराकबंदी। -विभाग-पु० बराबर । उदासीन; जिसके विचार एक ही विषयपर केंद्रित हों।। हिस्सों में संपत्तिका बँटवारा। -विषम-पु. वह जमीन
-चेता(तस्)-वि० दे० 'समचित्त'। -जातीय- | | जो ऊबड़-खाबड़ हो । -वीर्य-वि० बराबर बलवाला । वि० (होमोजीनिअस) समान जाति या प्रकारका, -वृत्त-पु० वह छंद जिसके चारों चरण समान हों। एक ही प्रकारका। -तल-वि० चौरस, हमवार । पु० वि० बराबर गोलाईवाला । -वृत्ति-स्त्री० धीरता, मनकी (प्लेन सरफेस ) वह तल जिसमें यदि कोई भी दो बिंदु स्थिरता । -वेष-पु० एक जैसी पोशाक । -शीतोष्णले लिये जायँ तो इनको मिलानेवाली सरल रेखा सब वि० (स्थान) जहाँ सदी गर्मीकी मात्रा बराबर रहे, न जगह उसी तलमें रहती है। -तुलित-वि० बराबर वज- अधिक उष्णता हो न शीत । -शीतोष्ण कटिबंध-पु. नका |-तूल*-वि०समान-'सुजनक प्रेम हेम समतूला'- (टेपरेट जोन) उष्ण कटिबंध तथा उत्तरी शीत कटिबंध
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समक्ष-समर्पण
और उष्ण कटिबंध तथा दक्षिणी शीत कटिबंधके बीचमें समपहरण-पु० [सं०](कनफिसकेशन) दंडके रूपमें सरकार पड़नेवाले पृथ्वीके वे दो कल्पित भाग जहाँ प्रायः सम- द्वारा किसीके धन या संपत्तिका छीन लिया जाना, उसशीतोष्ण जलवायु पाया जाता है। -शील-वि० एक पर कब्जा कर लेना। ही जैसे स्वभाव या आचरणका ।-संधि-स्त्री० बराबरीकी | समय-पु० [सं०] काल, वक्त; अवसर फुरसत; उपयुक्त शर्त पर होनेवाली सुलह पूरी सहायता करनेकी शर्तके काल; अंत समय; ठहराव; प्रथा; विहिताचार; कविसमय; साथ होनेवाली संधि (को०)। -समयवर्ती(तिन्)- समझौता: नियम; संकटकी स्थिति; शपथसंकेत; प्रतिशा; वि० युगपत् होनेवाले, साथ-साथ होनेवाले ।-सामयिक- अंत । -च्युति-स्त्री० मौका चूक जाना, अवसर हाथसे वि० (वे दो या अधिक) जो एक ही समयमें हुए हों या निकल जाना। -ज्ञ-वि० समयका शान रखनेवाला । विद्यमान रहे हों।
-दान-पु० (एंगेजमेंट) किसीसे मिलने, बात करने समक्ष-वि० [सं०] जो आँखोंके सम्मुख हो, गोचर,! आदिके लिए कोई समय पहलेसे निर्धारित या निश्चित उपस्थित । अ० सामने ।
कर देना। -निष्ठ-वि० (पंक्चुअल) समयकी पाबंदी समग्र-वि० [सं०] सब, पूरा।
रखनेवाला, प्रत्येक काम समयपर करनेवाला ।-बंधनसमझ-स्त्री० बुद्धि, प्रज्ञा खयाल, विचार । -दार-वि० ! वि० प्रतिशाबद्ध । पु० प्रतिशाका बंधन । -भेद-पु. बुद्धिमान् । .
प्रतिशा भंग करना। -विपरीत-वि० वादेके खिलाफ समझना-अ० कि० जान लेना; बिचारना । स० कि.. वादा पूरा न करनेवाला । -विभाग,-विभागपत्रअच्छी तरह ध्यान में लाना; किसी बातको जान लेना। पु० (टाइमटेबिल) दे० 'समयसूची'। -सारिणी,-सूचीसमझ-बूझकर-जान-बूझकर ।
स्त्री० (टाइमटेबिल) ट्रेनोंके पहुँचने तथा छूटने या विशेष समझाना-स० कि० बोध, ज्ञान कराना, जतलाना। विषयोंकी पढ़ाई, परीक्षा आदि शुरू होनेके लिए निर्धारित समझाव, समझावा-यु० समझने, समझानेका भाव। समयकी सूची, समय-विभागपत्र, वेलापत्रक । समझौता-पु० दोनों पक्षों द्वारा संधिकी शौकी स्वीकृति, समयानुवर्ती(र्तिन)-वि० [सं०] प्रचलित रीतिके अनुराजीनामा, मेल ।
सार चलनेवाला। समता-स्त्री०, समव-पु० [सं०] चौरस होनेका भावः | समयोचित-वि० [सं०] अवसरके उपयुक्त ।
साहश्य, बराबरी, अनुरूपता; निष्पक्षता; धीरता। समर-पु० [सं०] युद्ध, लड़ाई। -कर्म(न)-पु. समत्थ-वि० दे० 'समर्थ' ।
युद्धकर्म, लड़नेका कार्य । -भूमि-स्त्री. युद्धक्षेत्र । समदन-* पु० भेंट, नजर, उपहार [सं०] युद्ध । -पोत-पु० युद्धपोत, रणपोत ।-विजयी(यिन्)-वि० समदना*-अ० क्रि० भेंटना, मिलना । स० क्रि० मेंट, युद्ध में विजय प्राप्त करनेवाला । -शूर-पु० युद्ध में वीरता नजर करना; सौंपना; ब्याहमें देना-'दुहिता समदौ प्रकट करनेवाला व्यक्ति । -सीमा-स्त्री० युद्धभूमि । सुख पाइ अबै-राम०; आनंदसे मनाना ।
समरत्थ-वि० दे० 'समर्थ' । समदाना*-स० क्रि० सौंपना; रखना, धरना । समरथ*-वि० दे० 'समर्थ'। समधिक-वि० [सं०] बहुत अधिक, अतिशय ।
समरांगण-पु० [सं०] युद्धभुमि । समधियाना-पु० पुत्र या पुत्रीकी ससुराल ।
समरागम-पु० [सं०] युद्ध छिड़ना । समधी-पु० पुत्रका या पुत्रीका ससुर ।
समराजिर-पु० [सं०] युद्धक्षेत्र । समधीत-वि० [सं०] अच्छी तरह पढ़ा हुआ, अध्ययन समराना*-स० कि० पहनाना, सजाना-'आभूषन सब किया हुआ।
जड़ावके समराये'-अष्टछाप ।। समधौरा-पु० विवाहकी एक रस्म जिसमें समधी पर-| समरोचित-वि० [सं०] युद्धके उपयुक्त (जैसे हाथी)। स्पर मिलते हैं।
समरोद्यत-वि० [सं०] युद्ध के लिए तैयार । समध्व-वि० [सं०] साथ यात्रा करनेवाला ।
समर्घ-वि० [सं०] सस्ता, कम दामका । समन-* पु० शमन; यमः [अं॰ 'सम्मन्स'] प्रतिवादी या समर्चन-पु० [सं०] अच्छी तरह पूजन करना; भादरगवाहको अदालतमें हाजिर होनेके लिए उसकी ओरसे | सत्कार करना। भेजी जानेवाली लिखित सूचना ।
समर्चना-स्त्री० [सं०] दे० 'समर्चन' । समनुज्ञा-स्त्री० [सं०] अनुमति ।
समर्थ-वि० [सं०] बलवान्, सशक्त; योग्य, उपयुक्त। समनुज्ञात-वि० [सं०] पूर्णतः स्वीकृत; जिसे अधिकार दिया | समर्थक-वि० [सं०] समर्थन करनेवाला, पुष्टि करनेवाला।
गया हो; जिसे जानेकी आज्ञा दी गयी हो; अनुगृहीत। समर्थता-स्त्री०, समर्थव-पु० [सं०] योग्यता, सामर्थ्य । समन्वय-पु० [सं०] नियमित क्रम; संबद्ध फल, कार्य- | समर्थन-पु० [सं०] पुष्टि करना; विवेचन; पक्ष ग्रहण कारण-मंबंधका निर्वाह संयोग मेल, पटरी।
करना; किसी वस्तु के औचित्यानौचित्यका निर्णय करना। समन्वित-वि० [सं०] संयुक्त; स्वाभाविक रूपमें क्रमबद्ध; समर्थना-स्त्री० [सं०] आमंत्रण; अनुरोध । अनुगत;"से युक्त द्वारा प्रभावित ।
| समर्थनीय-वि० [सं०] समर्थन करने योग्य । समन्वेषण-पु० [सं०] (एक्सप्लोरेशन) किसी प्रदेश या समर्थित-वि० [सं०] जिसकी पुष्टि की गयी हो प्रमाणित । क्षेत्रके भीतर जाकर, वहाँ पहुँचकर, चारों तरफकी स्थिति समर्पक-वि० [सं०] समर्पण करनेवाला । आदिका पता लगाना।
समर्पण-पु०[सं०] सौंपना, देना, मेंट करना; जतलाना।
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८१७
- मूल्य - पु० ( सरेंडर वैल्यू ) अवधि पूरी होनेके पहले ही बीमापत्र समर्पित कर देनेपर बीमा करानेवालेको उसके बदले दिया जानेवाला धन ।
समर्पना * - स० क्रि० सौंपना, समर्पण करना । समर्पयिता (तृ) - वि० [सं०] समर्पण करनेवाला । समर्पित - वि० [सं०] समर्पण किया हुआ, दिया हुआ, सौंपा हुआ; निक्षिप्त; रखा या जमाया हुआ; प्रत्यर्पित । समलंकृत - वि० [सं०] खूब सजा हुआ, अलंकारादिसे पूर्णतः विभूषित ।
समल- वि० [सं०] मलयुक्त, गंदा, अशुद्ध; पापी । समवरोध - पु० [सं०] ( ब्लाकेड ) किसी स्थान आदिका शत्रुकी सेनाओं, जहाजों आदि द्वारा इस तरह घेर लिया जाना जिससे आवागमनके मार्ग बिलकुल अवरुद्ध हो जायें, नाकेबंदी |
समवाय- पु० [सं०] संयोग, मेल, राशि, समूह; एकत्र होना; घनिष्ठ संबंध; अभेध संबंध, नित्य संबंध (जैसेपदार्थ और गुण, अंगी और अंगका - वैशेषिक दर्शन ); नियमानुसार गठित वह व्यापारिक संस्था जिसमें कई हिस्सेदारोंकी पूँजी लगी हो, जिन्हें अपने हिस्सोंकी पूँजीके अनुसार लाभांश पानेका हक होता है । समवायी (यिन) - वि० [सं०] घनिष्ठ रूपमें संबद्ध; जिसके साथ अमेध संबंध हो, नित्य संबंधी; राशिमय; बहुल | पु० हिस्सेदार, अंग, अवयव । -कारण-पु० वह कारण जो पृथक् न किया जा सके, अंतर्निहित हो, उपादान कारण (वैशेषिक) ।
समसर* - स्त्री० बराबरी - 'प्रीतम रूप कजाक के समसर कोई नाहि' - रतन० ।
समसेर * - स्त्री० शमशेर, तलवार ।
समस्त - वि० [सं०] जोड़ा हुआ, संयुक्त किया हुआ; समास के रूप में परिणत; सब, संपूर्ण; संक्षिप्त किया हुआ । समस्या-स्त्री० [सं०] पूर्ण करनेके लिए दिया जानेवाला छंदका अंतिम चरण या चरणांश; कठिन विषय, जटिल प्रश्न । - पूर्ति - स्त्री० छंदके चरण या चरणांशके आधारपर उसे अंतमें रखते हुए छंदकी पूर्ति करना । सभा - पु० समय; ऋतु; जमाना, मौका; बहार; दृश्य, नजारा, रौनक, चमक-दमक । मु०- बँधना-रंग जमना; गाने या नाचसे लोगोंका प्रभावित होना । -बदल जाना - स्थिति बदल जाना। - बाँधना - रंग जमाना । समा- पु० दे० 'समाँ'; [अ०] आकाश, आसमान । स्त्री० [सं०] वर्ष, संवत्सर, साल ।
समवेत - वि० [सं०] इकट्ठा किया हुआ, संयुक्त, एकत्र । समवेतन - पु० (रैली) बालचरों, अनुयायियों आदिका एक स्थानपर जमा होना; तितर-बितर हुए सैनिकोंका पुन: एकत्र होना; समागमन ।
समवेत होना - अ० क्रि० ( टु मीट, टु असेंबल ) इकट्ठा | समाजीकरण - पु० [सं०] ( सोशलाइजेशन ) किसी उद्योगहोना, सभा के सदस्योंका सभाके रूपमें एकत्र होना । समष्टि - स्त्री० [सं०] संपूर्णता; एक जैसे अंगों का समूह, व्यष्टिका उलटा ।
व्यवसायादिको ऐसा रूप देना जिससे उसपर सारे समाजका अधिकार हो जाय और उसका लाभ सब लोग समान रूपसे उठा सकें ।
समाज्ञात- वि० [सं०] जाना हुआ; माना हुआ । समादत्त - वि० [सं०] गृहीत; प्राप्त । समादर - पु० [सं०] विशेष आदर, प्रतिष्ठा, सत्कार । समादरणीय- वि० [सं०] विशेष आदर करने योग्य, सम्मान्य ।
समाई - स्त्री० समानेका भाव; सामर्थ्य; औकात; गुंजाइश । समाउ * - पु० गुंजाइश, निर्वाह ।
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समर्पना- समाधानना
समाकलन- पु० [सं०] ( क्रेडिट) किसी के खाते में उससे प्राप्त कोई रकम या धन जमाकी ओर लिखना । समाख्यान - पु० [सं०] नाम लेना; वर्णन; ब्याख्या । समागत- वि० [सं०] पहुँचा हुआ; कहींसे आया हुआ; जो सामने उपस्थित या विद्यमान हो ।
समागम - पु० [सं०] भेंट, मिलना; भिड़ंत; साथ, संगति; आना, आगमन; (ग्रहोंका) योग; संघ, समूह; मैथुन । समागमन- पु० [सं०] ( रैली ) दे० 'समवेतन' । समाचार - पु० [सं०] वृत्तांत, संवाद, खबर; विवरण । - पत्र - पु० वह कागज जिसमें देश-विदेश की खबरें छपी रहती हैं, अखबार । - प्रेव - पु० ( न्यूज डिस्पैच ) समाचारोंका भेजा जाना; वह सामग्री जो समाचारके रूपमें भेजी जाय, समाचार सामग्री । - सूचना - स्त्री० ( प्रेस (नोट) समाचारपत्रोंके लिए या समाचारके रूपमें प्रकाशित सूचना ।
समाज - पु० [सं०] मिलना, एकत्र होना; समूह; संघ, दल; सभा, समिति; आधिक्य; समान कार्य करनेवालोंका समूह; विशेष उद्देश्यकी पूर्तिके लिए संघटित संस्था; ग्रहोंका एक योग। -वाद- पु० ( सोशलिज्म ) यह सिद्धांत कि उत्पादन के समस्त साधनोंपर समाजका अधिकार हो और उनसे उत्पन्न होनेवाली संपत्तिका यथासंभव समान रूपसे वितरण हो । -वादी ( दिन ) - पु० (सोशलिस्ट) समाजवादका अनुयायी । -शास्त्र- पु० मनुष्यको सामाजिक प्राणी मानकर समाजके प्रति उसके कर्तव्यों आदिका विवेचन करनेवाला शास्त्र । - सेवक - पु० समाजके हितके लिए कार्य करनेवाला । - सेवा - स्त्री०समाजका हित-साधन । समाजी- पु० आर्य समाजके सिद्धांतोंको माननेवाला; वेश्याओं के साथ तबला, मँजीरा आदि बजानेवाला, सपरदाई
समादान - पु० [सं०] पूर्ण रूपसे ग्रहण करना; अपनेपर लेना; * दे० 'शमादान' ।
समाहत - वि० [सं०] सत्कृत, सम्मानित | समादेय - वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य | समादेश- पु० [सं०] आज्ञा, आदेश, निर्देश । समाद्रित * - वि० दे० 'समाप्त' ।
समाधान- पु० [सं०] मिलाना; मेल बैठाना; ध्यान; समाधि; संदेहनिवारण, निराकरण; प्रतिपादन; सहमत होना; मुख संधिका एक अंग, बीजस्थापन ( वह घटना जिससे कथानककी उत्पत्ति होती है) । समाधानना* - स०क्रि० संतोष, समाधान करना; सांत्वना देना ।
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समाधि-समारोपण
८१८ समाधि-स्त्री० [सं०] साथ रखना, मिलाना; एक जगह समानार्थक-वि० [सं०] एक ही अर्थ रखनेवाले (शब्द)। जमाना; योगका अंतिम अंग-मनको ब्रह्मपर केंद्रित करना; समानोदक-वि० [सं०] साथ तर्पण करनेवाले (ग्यारहवींसे मनोयोग, तपस्या; मतभेद दूर करना; मौन; अंगीकार, चौदहवीं पीढ़ीतक एक ही पूर्वजवाले-सातवीतकके संबंधी स्वीकृति प्रतिज्ञा; परिशोध; पूरा करना; अध्यवसाय; समानोदक होनेके साथ सपिड भी होते हैं)। असंभव बातके लिए प्रयत्न करना; (दुर्भिक्षमें) अन्न जमा समानोदर्य-वि० [सं०] एक गर्भसे उत्पन्न, सहोदर । पु० करना; वह मकान आदि जो शव-स्थल पर बनाया जाता सगा भाई। है; एक अर्थालंकार जिसमें अन्य कारणोंके योगसे कार्य समापक-वि० [सं०] समाप्त, पूर्ण करनेवाला। सिद्धि वर्णित होती है। क्षेत्र,-स्थल-पु० वह स्थान जहाँ समापन-पु० [सं०] पूर्ण, समाप्त करना; प्राप्ति; वध साधुओं आदिको गाड़ते है। -दशा-स्त्री० ध्यानमें ब्रह्म- करना; (वाइंडिंग अप, क्लोजर) कुछ और कहने या तर्क साक्षात्कारको अवस्था। -निष्ठ-वि० समाधिस्थ ।-भंग आदि देनेके बाद किसी प्रश्नका विचार या विवाद समाप्त -पु० बाधा पड़नेके कारण समाधि, ध्यानका भंग होना। करना। -प्रस्ताव-पु. (मोशन ऑफ क्लोजर) दे० -लेख-पु० (एपिटा) किसी कब्र या समाधिके पत्थरपर 'विवादांतप्रस्ताव'। याददाश्तके रूपमें लिखा जानेवाला लेख । -स्थ-वि० समापनीय-वि० [सं०] समाप्त करने योग्य; वध करने समाधिमें स्थित ।
योग्य, वध्य ।-पट्टा-पु०[हिं०] (टरमिनेबिल लीज) कुछ समाधित-वि० [सं०] तुष्ट, शांत किया हुआ, जिसने | समयके बाद समाप्त हो जानेवाला पट्टा । समाधि लगायी या ली हो (१) ।
समापन-वि० [सं०] प्राप्त; घटित; आया हुआ; पूरा समाधी(धिन्)-वि० [सं०] समाधिस्थ ।
किया हुआ;"से युक्त; कष्टग्रस्त; निहत ।। समाधेय-वि० [सं०] (कंपाउंडेबिल) जिसे आपस में निपटा | समापादन-पु० [सं०] पूरा करना; मूल रूप प्रदान लेने-समाधान करनेका अधिकार दोनों पक्षोंको हो । करना। (अपराध, विवाद)।
समापिका-स्त्री० [सं०] वाक्य पूर्तिके निमित्त आनेवाली समान-वि० [सं०] तुल्य, सदृश, एकसा, बरावर आकार, क्रिया (व्या०)। उम्र, पद आदिका; नेक, भला; साधारण; तुल्य परि- समापित-वि० [सं०] समाप्त, पूर्ण किया हुआ । माणका । -कोणिक बहुभुज-पु. (ईक्विएंग्यूलर पॉली- समापी (पिन् )-वि० [सं०] समाप्त करनेवाला । गॉन) वह बहुभुज जिसके सब कोण आपसमें बराबर हों। | समाप्त-वि० [सं०] पूरा किया हुआ; चतुर, बुद्धिमान् । -धर्मा(मन्)-वि०एक ही जैसे गुणवाला(ले)।-नामा -प्राय-वि० लगभग समाप्त । (मन्)-वि० समान नामवाला, नामरासी।-वयस्क- समाप्ति-स्त्री० [सं०] अंत, पूर्ति, पूर्ण होना; पूर्ण प्राप्ति वि० हमउम्र । -वर्ण-वि० एकसे रंगवाले; एक ही स्वर- (विद्यादिकी); शरीरकी पंचत्व-प्राप्ति, विभिन्न तत्वोंमें वर्णवाले ।-शील-वि० वैसे ही स्वभाववाले |-संख्य- मिल जाना; विवादका अंत करना, अंतर दूर करना । वि० बराबर संख्यावाला ।
समाप्य-वि० [सं०] समाप्त, पूरा करने योग्य । समानता-स्त्री०, समानत्व-पु० [सं०] तुल्यता, सादृश्य, समायुक्त-वि० [सं०] जोड़ा हुआ; तैयार किया हुआ। बरावरी।
समायोग-पु०सं०] युक्त करना (धनुषसे बाण); निशाना समानयन-पु० [सं०] एकत्र करना;आदरपूर्वक ले आना। ठीक करना राशि,समूह बहुत आदमियोंका एकत्र होना। समानांतर-वि० [सं०] (पैरेलल) (रेखाएँ आदि) जो नित्य समायोजन-पु०[सं०](सप्लाई) आवश्यक वस्तुओंका जोगाड़ समान अंतरपर रहें; साथ-साथ चलने, काम करनेवाला करना; जो कुछ आवश्यक हो उसे जुटाना और ऐसी (-सरकार)।-चतुर्भुज-पु० (पैरेलेलोग्राम) वह चतु- व्यवस्था करना कि जिसे चाहिये उसे वह मिल जाय, र्भुज जिसकी आमने सामनेकी भुजाएँ समानांतर हों। उसके पास पहुँच जाय । -रेखाएँ-स्त्री० (पैरेलल लाइंस) वे रेखाएँ जो एक ही समारंभ-पु० [सं०] आरंभ; उद्यम, साहसपूर्ण कार्य । समतलमें हों और जो एक दूसरीसे न मिलें चाहे वे दोनों समारंभण-पु० [सं०] ग्रहण करना; आरंभ करना; ओर कितनी भी दूरतक बढ़ायी जाय ।
आलिंगन, अंगराग लगाना । समाना-अ० क्रि० भीतर आना; अटना। स० क्रि० समारब्ध-वि० [सं०] आरंभ किया हुआ; जिसने कार्याअटाना, भरना।
रंभ किया है। घटित । समानाधिकरण-वि० [सं०] समान कारक विभक्तिसे | समारभ्य-वि० [सं०] आरंभ करने योग्य । युक्त; एक ही श्रेणीका जिनका आधार एक ही पदार्थ हो समाराधन-पु० [सं०] तुष्ट, प्रसन्न करना; प्रसन्न करनका (वैशेषिक); जो समान स्थानपर हो। पु० एक ही कारक- साधन; सेवा-टहल, आराधना । की विभक्तिसे युक्त होना; समान श्रेणी; समान आधार | समारूढ-वि० [सं०] जो चढ़ा हो; जो चढ़ा गया हो; आदि ।
जिसने अंगीकार किया है। बढ़ा हुआ; भरा हुआ (घाव)। समानाधिकार-पु० [सं०] जातीय गुण; बराबरीका | समारोप-पु० [सं०] ऊपर रखना; चढ़ाना (धनुष); अधिकार ।
स्थानांतरण । समानार्थ-वि० [सं०] जिनका उद्देश्य एक हो; एक समारोपक-वि० [सं०] उपजानेवाला; बढ़ानेवाला। अर्थवाले (शब्द)।
| समारोपण-पु० [सं०] आरोप करना; स्थानांतरण
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८१९
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चढ़ाना (धनुष्) ।
समारोपित - वि० [सं०] चढ़ाया हुआ; ताना हुआ (धनुष); रखा हुआ; स्थानांतरित । समारोह-पु०[सं०]धूमधाम; धूमधाम से होनेवाला उत्सव । समार्हता - स्त्री० [सं०] ( पैरिटी ) मूल्य, योग्यता आदिमें समान होना ।
समालिंगन - पु० [सं०] प्रगाढ आलिंगन ।
समालोचक - पु० [सं०] किसी वस्तुकी सम्यक् परीक्षा करनेवाला; किसी पदार्थके गुण-दोष आदिका सम्यक् विवेचन करनेवाला; किसी कृति, रचना, ग्रंथ आदिके गुण, दोष, महत्त्व आदिका प्रतिपादन करनेवाला । समालोचन - पु० [सं०] समालोचना ।
समालोचना - स्त्री० [सं०] अच्छी तरह देखना, निरीक्षण करना; किसी वस्तु, कृति, व्यक्ति आदिमें गुण-दोषका सम्यक विचार करना; गुण-दोषका विचार प्रस्तुत करने वाला निबंध, ग्रंथ आदि, आलोचना । समावर्तन - पु० [सं०] लौटना, वापस होना; अध्ययन पूर्ण करने के बाद ब्रह्मचारीका घर लौटना; इस अवसर पर होनेवाला संस्कार; पदवीदान समारोह | समावह - वि० [सं०] उत्पन्न, प्रस्तुत करनेवाला; कारण समिध - पु० [सं०] अग्नि; ईंधन ।
बननेवाला (आ० वे० ) ।
समावास पु० [सं०] निवास स्थान; टिकनेका स्थान; शिविर, पड़ाव ।
समावासित वि० [सं०] बसाया, ठहराया हुआ । समाविष्ट - वि० [सं०] पूर्णतः प्रविष्ट; जिसका समावेश हुआ हो; समाया हुआ ।
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समारोपित - समुच्छिन
समासोक्ति - स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार, जहाँ विशेष शब्दरचना के कारण प्रस्तुतसे अप्रस्तुतका भान हो । समाहरण - पु० [सं०] संयुक्त करना; एकत्र करना । समाहर्ता (तृ)- वि० [सं०] मिलाने, जमा करनेवाला । पु० (कर आदिका) संग्राहक |
समिधा, समिधि-स्त्री० यज्ञमें जलानेकी लकड़ी ।
समावाय - पु० [सं०] संबंध, साथ; अभेध संबंध; समूह, समिध स्त्री० [सं०] ईंधन; यज्ञीय लकड़ी । राशि ।
गुरुकुलसे लौटा हुआ; पूरा किया हुआ । समावेश - पु० [सं०] प्रवेश; साथ रहना; मिलना, एकत्र होना; अंतर्भाव शामिल होना; प्रेतावेश; घुसना, व्याप्त होना; साथ-साथ होना या घटित होना । समाश्लिष्ट - वि० [सं०] सम्यक् रूपमें आलिंगित; संलग्न । समाश्लेष - पु० [सं०] प्रगाढ़ आलिंगन । समाश्वस्त - वि० [सं०] जिसे जीमें जी आया हो, तसल्ली
हो गयी हो, ढाढ़स बँध गया हो; प्रोत्साहित; विश्वासपूर्ण । समाश्वासन - पु० [सं०] ढाढ़स बँधाना; उत्साह बढ़ाना। समास - पु० [सं०] योग, मेल; समर्थन; संबंध; साथ रहना; संक्षिप्त करना; संक्षेप - 'कपि सब चरित समास बखाने' - रामा० दो या अधिक पदोंको मिलाकर एक पदका रूप देना । - चिह्न - पु० ( हाइफन ) दे० 'समास - रेखा' । - प्राय, - बहुल - वि० जिसमें समासोंकी बहुलता हो । - रेखा - स्त्री० (हाइफन) दो या दो से अधिक शब्दोंको मिलाकर संयुक्त शब्द बनानेके लिए उनके बीचमें दी जानेवाली लघु रेखा | समासीन - वि० [सं०] सम्यक् प्रकारसे बैठा हुआ; साथ
बैठा हुआ ।
५२
समाहार - पु० [सं०] ग्रहण; जोड़; संग्रह; समूह । - द्वंद्व - पु० द्वंद्व समासका एक भेद (जिसमें दो पद आपस में मिलकर वर्ग या समूहके बोधक होते हैं, जैसे 'पंचवटी') । समाहित-वि० [सं०] एकत्र किया हुआ; तै किया हुआ; शांत; लीन; पूरा किया हुआ; व्यवस्थित; स्थापित, प्रतिपादित; स्वीकृत | पु० एक अलंकार ।
समाहूत - वि० [सं०] बुलाया हुआ; ललकारा हुआ। समाह्याता (तृ) - वि० [सं०] आह्वान करनेवाला; ललकारने, चुनौती देनेवाला ।
समाह्वान - पु० [सं०] सम्यक् प्रकार से आह्वान करना; चुनौती देना; जानवरोंकी लड़ाईपर बाजी रखना । समितिंजय-पु० [सं०] युद्धविजेता; सभाविजेता; यम । समिति - स्त्री० [सं०] एकत्र होना; सभा; युद्ध; विशेष कार्यके लिए गठित थोडेसे आदमियोंकी सभा ।
समीक्षण - पु० [सं०] देखना; अन्वेषण; जाँच, परीक्षा ।
समावृत - वि० [सं०] घेरा हुआ; ढका हुआ; छिपाया समीक्षा - स्त्री० [सं०] सम्यक् परीक्षा; छानबीन, अनुहुआ; रक्षित; रोका हुआ । संधान; समालोचना |
समावृत्त - वि० [सं०] लौटा हुआ; अध्ययन समाप्त कर समीचीन - वि० [सं०] संगत, उचित; ठीक, यथार्थ; न्याय्य । समीचीनता - स्त्री० [सं०] संगति, औचित्य; यथार्थता । समीति* - स्त्री० दे० 'समिति'; समाधान ।
समीप - वि०, अ० [सं०] निकट, पास । -वर्ती (तिन) - वि० निकट रहनेवाला, पासका स्थ-वि० दे० 'समीतवत' । समीपता - स्त्री० [सं०] निकटता, सामीप्य । समीर - पु० [सं०] हवा, वायु कुमार पु० हनुमान् । समीरण- पु० [सं०] वायु; पवनदेव ।
समीहा - स्त्री० [सं०] चेष्टा, उद्योग; इच्छा; जाँच, अन्वेषण । समुंद* - पु० समुद्र ।
समुंदर- पु० दे० 'समुद्र' । -फल- पु० दे० 'समुद्र- फल' | समुचित - वि० [सं०] उपयुक्त; ठीक, उचित; यथेष्ट । समुच्चय- पु० [सं०] कई वस्तुओंका एक साथ होना; समूह, राशि, समाहार; एक काव्यालंकार, जहाँ कई भावोंका एक साथ ही प्रकट होना दिखलाया नाय या जहाँ एक ही कार्य के लिए कई कारणोंका विद्यमान रहना वर्णित किया जाय ।
समीकरण - पु० [सं०] समान, बराबर करना; ज्ञात राशि
की सहायता से अज्ञात राशि निकालनेकी क्रिया (गणित); जमीन बराबर करनेका बड़ा बेलन (रोलर ) । समीक्षक - वि० [सं०] सम्यक् रूपसे देखनेवाला, छानबीन करनेवाला; समालोचक ।
समुच्छित्ति - स्त्री० [सं०] टुकड़े-टुकड़े करना; बरबादी, विनाश ।
समुच्छिन्न- वि० [सं०] फटा हुआ; उन्मूलित; नष्ट-विनष्ट ।
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समुच्छेद-सम्मत
८२० समुच्छेद-पु० [सं०] ध्वंस, विनाश; उन्मूलन ।
वाला तार । समुच्छेदन-पु० [सं०] जड़से उखाड़ना; ध्वस्त करना । समुद्रीय-वि० [सं०] समुद्रका; समुद्र-संबंधी । समुच्छास-पु० [सं०] दीर्घ प्रश्वास ।
समुद्वेग-पु० [सं०] घबड़ाहट; भय, त्रास । समुज्ज्वल-वि० [सं०] अत्यंत उज्ज्वल; चमकीला । समुन्नत-वि० [सं०] ऊपर उठाया हुआ; विशेष रूपसे समुझ*-स्त्री० दे० 'समझ'।
उन्नत, ऊँचा गौरवान्वित । समुझना*-अ०क्रि० दे० 'समझना।
| समुन्नति-स्त्री० [सं०] ऊपर उठाना; ऊँचाई, उच्चता; समुझनि*-स्त्री० समझनेकी क्रिया।
गौरव; उच्च पद प्राधान्य; उन्नति, समृद्धि । समुत्कंटकित-वि० [सं०] रोमांचयुक्त ।
समुन्मूलन-पु० [सं०] जड़से उखाड़ देना, निर्मूलन । समुत्कंठा-स्त्री० [सं०] गहरी इच्छा ।
समुपकरण-पु० [सं०] सामग्री, सामान । समुत्कीर्ण-वि० [सं०] अच्छी तरह खोदा हुआ; पूरे तौर- समुपस्थित-वि० [सं०] उपस्थित, आया हुआ; प्रकट । से छेदा हुआ।
समुल्लास-पु० [सं०] विशेष आनंद, उमंग, क्रीड़ा; समुत्थान-पु० :[सं०] ऊपर उठना; उन्नति; उत्तोलन | ग्रंथका परिच्छेद ।। (ध्वजाका); उद्भव।
समुल्लेख-पु० [सं०] चारों ओर जमीन खोदना ( पैर समुत्थापक-वि० [सं०] उठानेवाला;जगानेवाला (बौद्ध)। आदिसे); उत्सादन, उन्मूलन । समुत्सुक-वि० [सं०] अधीर, विशेष इच्छुक, उत्कंठित । । समुहा*-वि० आगे, सामनेका । अ० आगे, सामने । समुद-वि० [सं०] प्रसन्नतायुक्त । अ० प्रसन्नतापूर्वक । समुहाना*-अ० क्रि० सामने आना, होना-'अति भय
* पु० समुद्र । -लहर*-पु. एक कपड़ा (५०)। त्रसित न कोउ समुहाई'-रामा । समुदय-पु० [सं०] (सूर्यका) ऊपर आना, उदित होना; समुह*-अ० सामने । विकास; उत्थान; अभ्युदय राशि, समूह, समुदाय । समूचा-वि० संपूर्ण, समग्र, पूरा। समुदाय-पु० [सं०] समूह, राशि, झुंड ।
समूढ-वि० [सं०] एकत्र किया हुआ राशीकृत विवाहित समुदायि* -पु०समूह, झुंड ।
नीत सद्योजात; भुक्त; संगत । समुदाव-पु० समूह, झुंड, राशि ।
समूर-पु० [सं०] दे० 'समूर' । * वि०, अ० दे० 'समूल'। समुदित-वि० [सं०] ऊपर उठा हुआ; ऊँचा; उत्पन्न । समूरू, समूहक-पु० [सं०] साबर हिरन । समुद्गीर्ण-वि० [सं०] वमित; उत्तोलित; कथित । समूल-वि० [सं०] जड़वाला, मूल युक्तः सकारण । अ० समुद्धरण-पु० [सं०] ऊपर उठाना खींचकर निकालना, जड़से, मूलसहित ।। उद्धार करना हटाना, दूर करना उन्मूलन ।
समूह-पु० [सं०] ढेर, राशि, झुंड, समुदाय, समाज, वर्ग । समुद्धर्ता(त)-वि०,पु० [सं०] उठानेवाला, उद्धार करने -कार्य-पु० समाज या वर्गविशेषका कार्य । -वादवाला; उन्मूलन करनेवाला।
पु० ( कलेक्टिविज्म ) उद्योग-व्यवसाय में सामूहिक पूँजीके समुद्धार-पु० [सं०] दे० 'समुद्धरण' ।
प्रयोगका प्रतिपादन करनेवाला सिद्धांत; भूमि तथा समुद्धोधन-पु० [सं०[ पूर्णतः जाग्रत् करना होशमें लाना। उत्पादनके साधनोंपर सामूहिक प्रभुत्वकी आवश्यकतापर समुद्यत-वि० [सं०] ऊपर उठाया हुआ तैयार प्रवृत्त । जोर देनेवाला सिद्धांत ।। समुद्र-पु० [सं०] सागर, चारकी संख्या (ला०) गुण समहोत्पादन-पु०[सं०](मासप्रॉडक्शन)दे० पुंजोत्पादन' ।
आदिका बहुत बड़ा परिमाण (समासमें)। -गमन- समृद्ध-वि० [सं०] उन्नतिशील, प्रसन्न धनी, संपन्न । पु० समुद्रयात्रा । -गा-स्त्री० नदी। -गामी(मिन)- समृद्धि-स्त्री० [सं०] बढ़ती, उन्नति; संपन्नता; बाहुल्य । वि. समुद्र में जाने या समुद्री व्यापार करनेवाला । समेटना-स० क्रि० बटोरना, इकट्ठा करना (बिखरी चीजे); -झाग-पु० [हिं०] समुद्रका फेन । -तटवर्ती प्रदेश- तह करके रखना (जाजिम आदि); अंगीकार करना। पु० (मैरिटाइम प्रॉविंस) किसी देशका वह भूभाग जो समेत-अ० साथ । वि० [सं०] मिला हुआ, एकत्र, संयुक्त। समुद्रके किनारे हो। -दयिता-पत्नी-स्त्री० नदी। समै, समैया-पु० समय । -फल-पु. एक वृक्ष या उसका फल । -फेन-पु० | समो*-पु० समय। समुद्रका झाग । -मंथन,-मथन-पु० समुद्रका विलो- | समोखना*-स० क्रि० ताकीदसे कहना। इन; अनेक ग्रंथों या विषयोंकी छानबीन । -मालिनी-समोना*-सक्रि० मिलाना। स्त्री० पृथ्वी । -मेखला-स्त्री० पृथ्वी। -यात्रा-स्त्री. समोसा-पु० सिंघाड़ेकी शकलका एक नमकीन पकवान । समुद्री सफर |-यान-पु० समुद्रयात्रा पोत ।-लवण- | समौ*-पु० समय । पु० समुद्रजलसे निकलनेवाला नमक । -वल्लभा-स्त्री० समौरिया-वि० समवयस्क, हमउम्र । पृथ्वी ।-वसना-स्त्री० पृथ्वी ।-वति-पु० बडवानल । सम्-उप० [सं०] यह शब्दोंके पूर्व आकर साथ, पूर्णता,
-वासी(सिन्)-वि० समुद्रके पास रहनेवाला। आधिक्य, सामीप्य, अच्छाई आदिका द्योतन करता है। समुद्रांबरा-स्त्री० [सं०] पृथ्वी ।
सम्मंत्रणा-स्त्री० [सं०](कानफरेंस) परस्पर सलाह-मशविरा समुद्री-वि० समुद्रका; समुद्र-संबंधी; समुद्रकी ओरसे | करनेका कार्य । आनेवाली (हवा)समुद्रपर की जानेवाली; नौबल संबंधी। सम्मत-वि० [सं०] एक ही रायका, सहमतः माना हुआ; -तार-पु. (केबिल) समुद्र में पानीके भीतरसे जाने विचारित प्रसिद्ध सम्मानितः प्रिय ।
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८२१
सम्मति-सर सम्मति-स्त्री० [सं०] सहमति स्वीकृति राय, मत। सम्राट (ज)-पु० [सं०] वह जिसका शासन और राजाओंसम्मन-पु० [अ० 'सम्मन्स'] अदालतकी ओरसे प्रतिवादी पर हो, राजेश्वर (जिसने राजसूय यश किया है)। या गवाइको नियत तिथिपर उपस्थित होनेके लिए भेजी। सम्हलना-अ०क्रि० दे० 'सँभलना'। जानेवाली लिखित सूचना या आदेश, आह्वानपत्र । सय*-वि० सी। सम्मर्द-पु० [सं०] रगड़ना युद्ध झगड़ा, भीड़ । सयण, सयन*-पु० लेटनेकी क्रिया बिस्तर । सम्मान-पु० [सं०] इज्जत, आदर, प्रतिष्ठ। मापना। सयान*-पु० समझदारी, बुद्धिमानी । वि० चतुर । -प, सम्मानना*-सक्रि० आदर करना।
-पन-पु० चतुराई। सम्मानित-वि० [सं०] पूजित, आरत ।
सयाना-वि० प्राप्त वयस्क, प्रौढ़ अवस्थाका; बुद्धिमान, सम्मान्य-वि० [सं०] आदरणीय, आदरके योग्य । चालाक । पु० वृद्ध जन, बड़ा-बूढ़ा आदमी। सम्मार्जक-पु०[सं०] मेहतर झाट् । वि०साफ करनेवाला। सरंजाम-पु० [फा०] कामका नतीजा; पूर्ति, प्रबंध, सम्मार्जन-पु० [सं०] झाड़ना-बहारना, साफ करना । तैयारी (करना, होना)। सम्मार्जनी-स्त्री० [सं०] झाद ।
सरंड-पु० [सं०] पक्षी; लंपट; गिरगिट; द्रुष्ट व्यक्ति एक सम्मार्जित-वि० [सं०] अच्छी तरह झाड़ा-बुहारा या| आभूषण । साफ किया हुआ; हटाया हुआ नष्ट किया हुआ। सरकाक-पु० [सं०] हंस । सम्मिलन-पु० [सं०] मिलना, एकत्र होना ।-विलेख- सरकाकी-स्त्री० [सं०] हंसी । पु० (इंस्ट्र भेंट ऑफ ऐक्सेशन) वह लिखित समझौता, सर-पु० [फा०] सिर; चोटी, शीर्ष भाग; आदि, आरंभ; जिसमें किसी राज्य, भू-क्षेत्रादिके अन्य राज्यमें सम्मिलित शीर्षक: सिरा, सरदार (सरपंच); किनारा; ताश, गंजीफेकिये जानेकी शर्ते दी हो और जिसपर दोनों पक्षोंके का कोई बड़ा पत्ता (इक्का, बादशाह ३०)।-अंजाम-पु० आधिकारिक व्यक्तियों के हस्ताक्षर हों।
दे० 'सरंजाम' ।-कश-वि० उदंड; जो किसीसे न दबे सम्मिलित-वि० [सं०] साथ मिला हुआ, युक्त एकत्र।। बागी। -कशी-स्त्री० उइंडता; विद्रोह । -कार-स्त्री० सम्मिश्रक-पु० [सं०] (कंपाउंडर) अस्पतालों या पश्चिमी दे० 'क्रममें' । -खत-पु० किरायानामा; वह कागज दंगके औषधालयों में कई औषधियोंका सम्मिश्रण कर रोग- जिसपर नौकरीकी तारीखकी याददाश्त लिखी जाय । विशेपकी दवा तैयार करनेवाला कर्मचारी ।
-गना-वि० सरदार, मुखिया। -गरोह-पु० सरदार, सम्मिश्रण-पु० [सं०] मिलानेकी क्रिया मिलावट । नेता, मुखिया । -गर्मी-स्त्री० मुस्तैदी; उत्साह; दिलसे सम्मिश्रित-वि० [सं०] मिलाया हुआ, एक साथ किया और पूरी शक्तिके साथ प्रयत्न करना। -जमीन-स्त्री. हुआ मिलावटी।
देश, मुस्का राज्य । -ज़ोर-वि० सरकश, अवशाकारी । सम्मीलन-पु०[सं०] (पुष्पादिका) संकुचित होना,मुंदना । -तराश-पु. नाई; सिर मुंडनेवाला । -ताज-पु० दे० सम्मुख-वि० [सं०] जो सामने हो अनुकूल । अ० सामने। "सिरताज'।-दर्द-पु० सिरका दर्द, व्यथा, कष्ट ।-दार -कोण-पु० (वर्टिकली अपोजिट एंगिल्स):दो सरल -पु. मुखिया, नेता; सेनापति; सिखोंकी पदवी। रेखाओंके किसी एक बिंदुपर एक दूसरीको काटनेसे बने -दारनी-स्त्री० सरदारकी पत्नी प्रतिष्ठित सिख महिला। हुए आमने सामनेके कोण ।
-दारी-स्त्री० सरदारका पद । -नाम-वि० नामी, सम्मेलन-पु० [सं०] आपसमें मिलना, एकत्र होना; जम- मशहूर ।-नामा-पु० चिट्ठी पानेवालेका पता जो चिट्ठी. घट सभा आदि मिश्रण मेल ।
के ऊपर या आरंभमें लिखा जाता है, प्रशस्ति ।-पंचसम्मोदन-पु०(सेंकशन) किसी नियम, अधिनियम आदि- पु० प्रधान पंच, पंचौका मुखिया। -परस्त-वि० संरकी उच्चाधिकारियों द्वारा पुष्टि, आधिकारिक स्वीकृति ।।
क्षक सहायका वली।-परस्ती-स्त्री० संरक्षण सहायता। सम्मोह-पु० [सं०] व्याकुलता; मूर्छा, संशाहीनता; -पंच,-पेच-पु. पगड़ीके ऊपर लगानेका एक गहना अज्ञान, मूर्खता; विमोहन, वशीकरण ।
एक तरहका गोटा । -राज-वि० जिसका सिर ऊँचा सम्मोहक-वि० [सं०] बेहोश, संशाहीन करनेवाला हो; जिसे बड़ाई मिली हो, सम्मानित; घमंडी।-फरोश मुग्ध, वशमें करनेवाला।
-वि० जानपर खेलनेवाला, निडर । -फरोशी-स्त्री० सम्मोहन-वि० [सं०] दे० 'सम्मोहक' । पु० मुग्ध करना; जान देनेको तैयार होना; वीरता । -बराह-वि० प्रबंधबहकाना कामदेवका एक बाण; एक पौराणिक अस्त्र । कर्ता, कारिंदा। -बसर-अव्य० बराबर; सोलहों आने, सम्मोहित-वि० [सं०] मुग्ध किया हुआ मूच्छित । सरासर । -बाज़-वि० जानपर खेलनेवाला; निडर । सम्म्राज-पु० साम्राज्य ।
-बुलंद-वि०जिसका सिर ऊँचा हो; उच्चपदस्थ प्रतिष्ठित, सम्यक (च,म्यंच)-वि० [सं०] ठीक, सही उपयुक्त सम्मानित । -माया-पु० दे० 'क्रम'में। -व(रो)पाउचित; मनोनुकूल, प्रिया संपूर्ण, समग्र । अ० अच्छी अ. सिरसे पैरतक, नख-शिख । पु० सर्वांग । -व(रो)तरह ठीक-ठीक; पूर्णतः स्पष्टतः ।।
सामान-पु० सामान, असबाब । -शुमारी-स्त्री० सम्याना*-पु० दे० 'शामियाना' ।
सिरोंकी गिनती, मर्दुमशुमारी। -हद,-हद-स्त्री. सम्रथ*-वि० समर्थ ।
वह स्थान जहाँ कोई देश समाप्त होता हो। -हदीसम्राज्ञी-स्त्री० [सं०] सम्राटकी पत्नी साम्राज्यके शासन- वि० सीमा-संबंधी; सरहदका। -(रे)इजलास-अ० सूत्रका संचालन करनेवाली खी।
भरी कचहरीमें, हाकिमके सामने । -दरबार-१०
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सर-सरवन खुलमखुल्ला, भरे दरबार में । -बाज़ार-अ० खुले खजाने, जाई, आगे बैठा पीठ फिराई'-कबीर । सबके सामने । -राह-अ० रास्तेके सिरेपर, रास्ते में। सरधा*-स्त्री० श्रद्धा, शक्ति । -लश्कर-पु० सेनापति । -शाम-अ० शामके शुरूमें, | सरन*-स्त्री० दे० 'शरण' । संध्या होते ही। मु०-करना-(किला, मुहिम) जीतना सरनदीप*-पु० स्वर्णद्वीप; सिंहल, लंका । हराना; दबाना, काबूमें कर लेना; दागना, छोड़ना (तोप- सरना-अ० क्रि० सरकना; काम चलना, पूरा पड़ना; बंदूक); ताश, गंजीफेमें खिलाड़ीका ऐसा पत्ता डालना निकलना; * सड़ना; बीत जाना, पूरा हो जाना-'सुनहु जिसपर दूसरे खिलाड़ियोंको बड़ा पत्ता डालना पड़े। कंस तेरो आयु सरयो'-सू० कटना । सर*-पु० बाण, चिता-'ककनू पंखि जैस सर साजा'-५०% | सरनी*-स्त्री० रास्ता, मार्ग । सरकंडा-'मसि खूटी सागर जल भीजे, सर दो लागि | सरपी-पु० सर्प । जरे'-सू० । -घर-पु० तरकश ।-पंजर-पु० बाणोंका | सरपट-स्त्री० घोड़ेकी सबसे तेज चाल जिसमें धोड़ा अगले पिंजड़ा।
पैरों को एक साथ फेंकता हुआ दौड़ता है। वि० सपाट । सर(स)-पु० [सं०] झील, ताल, जलाशय; जल । | अ० सरपट चालमें। सरई-स्त्री० सरपतका एक भेद ।
| सरपत-पु० कुशकी जाातका एक तृण। सरकंडा-पु० एक सरपत जिसमें गाँठे होती हैं। सरपि-पु० धी। सरक-पु० [सं०] पथिकोंकी लगातार पंक्ति; ताल, झील; सरफराना*-अ० क्रि० व्यग्र होना, घबराना । रत्न सरकना; काफिला, कारवाँ; आकाश; मदिरा। सरफा-पु० दे० 'सर्फी' । * स्त्री० खुमार ।
सरब*-वि० दे० 'सर्व'। -बियापी-वि० सर्वव्यापक । सरकना-अ० क्रि० जमीनसे सटे हुए आगे बढ़ना, रेंगना, सरबत्तरि*-अ० सर्वत्र-'सो मुलना सरबत्तरि गाजा'खिसकना; हट जाना; काम चलना समयका टल जाना। कबीर । सरकस-पु० [अं॰] दे० 'सर्कस' ।
सरबदा*-अ० सर्वदा, हमेशा । सरकार-स्त्री० [फा०] राजदरबार; राज्य, हुकूमत; शासन सरबस*-पु० सर्वस्व, सब कुछ । करनेवाली संस्था, शासनमंडल अधिकारी रियासत | पु० सरबोर*-वि० दे० 'सराबोर'। प्रांतका एक विभाग, जिला (मुगलराज्य-प्रबंध); मालिका | सरम-स्त्री० लज्जा। घरका मालिक प्रबंधकर्ताः बड़ेका संबोधन, हुजूर । सरमद-वि० [अ०] सदा रहनेवाला, नित्य, कायम; मस्त । सरकारी-वि० सरकारका, राजकीय: दफ्तरका मालिक- सरमा-पु० [फा०] जाडेका मौसिम, शीतकाल । स्त्री० का। -अहलकार,-मुलाज़िम-पु० राजकर्मचारी। | [सं०] देवताओंकी कुतिया, देवशुनी ( कहा जाता है, -भामदनी-स्त्री० राज्यकी आय, राजस्व । -काग़ज़- यह यमके चार आँखवाले कुत्तेकी जननी थी); कुतिया पु० स्टांपका कागज; प्रामिसरी नोट । -काम-पु० सर- विभीषणकी स्त्री। -पुत्र-सुत-पु. कुत्ता। कारका काम, दफ्तरका काम ।
सरमाई-वि० [फा०]जाड़ेका । स्त्री०जाड़ेके कपड़े,जड़ावर । सरग*-पु० स्वर्ग । -तिय-स्त्री० अप्सरा।
सरमाया-पु० [फा०] पूँजी, मूल धन ।-दार-पु० पूँजीसरगम-पु० स्वरोंके आरोह-अवरोहका क्रम (संगीत)। पति, धनी । -दारी-स्त्री० सरमायादार होना । वि० सरगही-स्त्री० दे० 'सहरगही' ।
पूँजी प्रधान, पूँजीवादको माननेवाली (सरकार, हुकूमत)। सरगुन*-वि० दे० 'सगुण' ।
सरय-स्त्री० [सं०] एक प्रसिद्ध नदी जिसके तटपर अयोध्या सरगुनिया*-पु. वह जो सगुणोपासक हो।
स्थित है, घाघरा। सरजना*-स० क्रि० सृष्टि करना बनाना, निर्माण करना। सरराना*-अ० क्रि० हवाके तेज चलने या किसी वस्तुकी सरजा-पु० सिंह, सरदार शिवाजीकी उपाधि ।
तीव्र गतिसे 'सर-सर' शब्द उत्पन्न होना। सरजीव*-वि० सजीव, जीववाला (कबीर)।
सरल-वि० [सं०] सीधा, जो वक्र न हो; सही, ठीक सरण-पु० [सं०] गमन, सरकना, खिसकना; लौह किट्ट । खरा, निश्छल, सीधे स्वभावका; यथार्थ, असली; आसान, वि० युद्धसे संबद्ध । -मार्ग-पु० गमन करनेका मार्ग सुकर । पु० चीड़का पेड़ अग्नि; गंधाविरोजा । -काष्ठसरणि, सरणी-स्त्री० [सं०] मार्ग, रास्ता; व्यवस्था पु० चीड़की लकड़ी । -द्रव,-निर्यास-पु. गंधाबितरीका; सीधी या लगातार पंक्ति रेखा; पगडंडी। रोजा ।-रेखा-स्त्री० (स्ट्रट लाइन) बह रेखा जिसकी सरताबरता-पु० बँटाई; हिस्सा-बाँट । मु०-करना- दिशा सर्वत्र एक ही रहती है। एक दूसरेकी सहायतासे काम चलाना।
सरलता-स्त्री० [सं०] सीधापन; खरापन, ईमानदारी, सरतारा*-वि० निश्चित, बाफुरसत, सावकाश-'बैद निष्कपटता, सिधाई; आसानी; सादगी। . भये हरगोविंदजी तबसे जमदूत फिर सरतारे'-गुलाब । सरलित-वि० [सं०] सीधा किया हुआ; सीधा । सरद-वि० दे० 'सर्द' । * स्त्री० शरत् ऋतु ।
सरलीकरण-पु० [सं०] (सिप्लिफिकेशन) कठिन विषयसरदई-वि० दे० 'सर्दई ।
को आसान बना देना; किसी जटिल या कठिन भिन्नको सरदर-अ० औसतन एक सिरेसे।।
सरल रूपमें परिणत करना (गणित)। सरदा-पु० दे० 'सर्दा'।
सरव-वि० [सं०] शब्दायमान । * पु० दे० 'सराव' । सरधन*-वि० धनी, अमीर-'जो निर्धन सरधन के सरवन-पु० दे० 'श्रमण'; 'श्रवण' ।
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८२३
सरवनी-सरित् सरवनी*-स्त्री० सुमिरनी।
सराई-स्त्री० कसोरा दीया; + सलाई; सरकंडेकी पतली सरवर*-पु० सरोवर । स्त्री० बराबरी।
लंबी छड़ी; पाजामा; * ठंढक । सरवरि*-स्त्री० बराबरी, स्पर्धा ।
सराग-* पु० सीखचा, शलाका-'विरह सरागन्हि भू जै सरवरिया-वि० सरयूपार, सरवारका । पु० वह ब्राह्मण माँसू'-५०% कुलाबेके बीचकी लकड़ी। वि० [सं०] रंगजो सरयूपारका हो।
वाला, रंगदार; लाखसे रँगा हुआ; प्रेमाविष्ट; सुंदर । सरवाक*-पु० संपुट प्याला, कसोरा, दीय।।
सराजाम -पु० सामान, सामग्री। सरवानी-पु० खेमा, तंबू ।
सराध*-पु० दे० 'श्राद्ध। सरवार--पु० सरयूपारका भूखंड ।
सराना*-स० क्रि० संपादित कराना, पूरा कराना। सरस-वि० [सं०] रसयुक्त, रसीला; स्वादिष्ठ; गीला; सराप-पु० दे० 'शाप'। पसीनेसे तरबतर ताजा; सुंदर, मोहका रसपूर्ण (काव्य)। सरापना*-स० क्रि० शाप देना, बुरा-भला कहना। सरसई-स्त्री० सरसों जैसे फलके दाने; * सरस्वती (नदी, सरापा-अ० [फा०] सिरसे पैरतक, संपूर्ण । पु० सर्वांग, देवी); सरसता, ताजगी।
नख शिख; वह पद्य जिसमें नख-शिखका वर्णन हो। सरसठ-वि० साठ और सात । पु० सरसठकी संख्या, ६७। सराफ-पु० [अ० 'सर्राफ'] रुपये, गहने इत्यादिका लेनसरसना*-अ० कि० रसयुक्त होना; पनपना, हरा भरा देन करनेवाला सोने-चाँदीके गहने, बरतन आदि बेचनेहोना, लहलहाना; शोभा देना; भावाविष्ट होना। वाला; भाँज लेकर नोट, रुपये आदिके बदले में छोटे सर-सर-पु. हवाके चलने या साँप आदिके रेंगनेका शब्द । सिक्के देनेवाला । -ख़ाना-पु० बंक, कोठी । अ० 'सर-सर' ध्वनिके साथ ।
सराफा-पु० सराफी सराफोंका बाजार बंक, कोठी। सरसराना-अ० कि. 'सर-सर' आवाज होना; हवाका सराफ्री-स्त्री० सराफका धंधा; भाँज, भुनाई; कोठीवाली तेजीसे चलना; साँप आदिका रेंगना ।
लिपि । -पारचा-पु० हुंडी, चेक । मु०-करना-रुपयेसरसराहट-स्त्री० हवा, साँप आदिके चलनेका शब्द । । पैसे परखना; सराफका काम करना । सरसरी-वि० जल्दी या रवारवीका, लापरवाईसे किया सराब-पु० [अ०] रेतीले मैदानपर सूर्यको किरणें पड़नेसे जानेवाला, चलता (काम) । अ० जल्दी में, बिना अधिक होनेवाली जलकी भ्रांति, मृगमरीचिका; धोखा, भ्रांति । सोचे-विचारे, चलते तौरपर, बिना बारीकीसे देखे-समझे। स्त्री० दे० 'शराब। -तहकीकात-स्त्री. वह जाँच या तहकीकात जिसमें सराबोर-वि० तरबतर, अच्छी तरह भीगा हुआ। पूरी शहादत न लिखी जाय । -नज़र-निगाह-स्त्री० सराय-स्त्री० [फा०] सरा, मुसाफिरखाना ।-ए-फानीचलती निगाह । -तौरपर-मोटे तौरपर ।
स्त्री० दुनिया । -का कुत्ता-(ला०) अति लोभी । सरसाई*-स्त्री० सरसता; आधिक्य; सुंदरता।
सराव*-पु० प्याला, मधुपात्र; कसोरा; दीया। सरसाना*-स० क्रि० हरा-भरा करना; रसपूर्ण करना। सरावगी-पु० जैनमतानुयायी। अ० क्रि० दे० 'सरसना'।
सरावनी -पु० पटेला, हेंगा । सरसिका-स्त्री० [सं०] बावली; छोटा ताल, सरोवर । सरास*-पु० भूसी-'कहो कौन पैकढो जाइ कन बहुत सरसिज-पु० [सं०] कमल । -योनि-पु० ब्रह्मा । सरास पछोरी-सू० । सरसी-स्त्री० [सं०] छोटा ताल बावली ।-रुह-पु०कमल । | सरासन-पु० धनुष , कमान । सरसुति*-सी० सरस्वती।
सरासर-अ० इस सिरेसे उस सिरेतक, सोलहों आने, सरसेटना-स० क्रि० फटकार बतलाना, डाँटना । पूर्णतया। वि० [सं०] इतस्ततः भ्रमण करनेवाला । सरसौं-स्त्री० एक तेलहन, सर्षप ।
सरासरी-वि०अ० दे० सरसरी' । स्त्री० जल्दी; आसानी सरसौहाँ*-वि० सरस बनाया हुआ, रसयुक्त ।
अनुमान। सरस्वती-स्त्री० [सं०] एक प्रसिद्ध नदी; विद्यादेवी जो | सराह*-स्त्री० प्रशंसा, स्तुति, बड़ाई। ब्रह्माकी पत्नी मानी जाती हैं, वाग्देवी; देववाणी; वाणी, सराहना-स० क्रि० प्रशंसा, स्तुति, बड़ाई करना। स्त्री० शब्द, स्वर । -पूजन-पु०,-पूजा-स्त्री० सरस्वतीके तारीफ, बड़ाई। जन्मदिनके उपलक्ष्य में होनेवाली पूजा जो माघ-शुक्ला | सराहनीय*-वि० प्रशंसनीय, उत्तम । पंचमीको होती है।
सरि-स्त्री० [सं०] झरना; जलप्रपात; दिशा; * नदी सरहंग-पु० सेनापति कोतवाल ।
लड़, माला; बराबरी, समता । * वि० तुल्य, सदृश । सरह*-पु० शलभ, पतंग ।
* अ० तक, पर्यंत-'आऊ सरि राजा पहँ रहा'-प०। सरहज-स्त्री० सालेकी स्त्री।
सरिका-स्त्री० [सं०] गमन, प्रस्थान हिंगुपत्री; जानेवाली सरहद-स्त्री० दे० 'सर'के साथ ।
स्त्री; मोतियोंकी लड़ी; मुक्ता; ताल, झील; एक तीर्थ । सरहरा-वि० ऊपरको सीधे बढ़ा हुआ (पेड़), लंबोतरा। सरिगम-पु० दे० 'सरगम' । सरहरी-स्त्री० सरपत जैसा एक तृण; सर्पाक्षी ।
सरित*-स्त्री० नदी। सरहिंद-पु० यमुना और सतलजके बीचका भूभाग । । सरितांपति-पु० [सं०] समुद्रा चारको संख्या। सरा--* स्त्री०चिता-'सत कहँ सती सँवारै सरा'-५०% सरिता-स्त्री. नदी; धारा । [फा०] घर: मुसाफिरखाना, धर्मशाला ।
|सरित्-स्त्री० [सं०] नदी सूत्र, डोरी ।-पति-पु०समुद्र ।
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सरिस्वान्-सर्प
८२४ सरित्वान् (स्वत्)-पु० [सं०] समुद्र ।
सरोष-वि० [सं०] ऋद्ध, कुपित । सरियाना-स० क्रि० तरतीबसे रखना, व्यवस्थित करना; सरोही-स्त्री० दे० 'सिरोही'। बटोरकर ठीक तरहसे रखना ।
सरौता-पु० सुपारी काटनेका एक औजार । सरिवन-पु० एक ओषधि, शालपर्ण ।
सरीती-खी० छोटा सरौता; एक तरहका ऊख । सरिवर, सरिवरि*-स्त्री० बराबरी, समता ।
सर्कस-पु० [अं॰] वह स्थान जहाँ नृत्य, शौर्य आदिके सरिश्त-स्त्री० [फा०] सृष्टि; बनावट; प्रकृति, स्वभाव । प्रदर्शनके साथ सिखाये हुए जानवरोंके खेल दिखाये जायें; सरिश्ता-पु० [फा०] दफ्तर, महकमा; कचहरी रीति | नटों और पशुओंके खेलोंका प्रदर्शन करनेवाली मंडली। उपाय । -दार-पु० दफ्तरका प्रधान; माल और दीवानी | सर्कार-स्त्री० दे० 'सरकार'। दफ्तरोंका एक विशेष कर्मचारी।
सर्ग-पु० [सं०] त्याग रचना, निर्माण सृष्टि; प्रकृति सरिस-वि० समान, तुल्य, बराबर ।
प्रवृत्ति स्वभाव; (काव्य) ग्रंथका अध्यायः कूच; आक्रमण सरी-स्त्री० [सं०] छोटा सरोवर सोता, झरना ।
मतस्याग; मूल, उद्गम; प्रजनन; संतान उथम, चेष्टा; सरीका-वि० दे० 'शरीक' ।
(किसी तरल पदार्थका) प्रवाह; गति प्राणी। -कर्तासरीकता*-स्त्री०साझा, शिरकत ।
(र्तृ)-पु० सृष्टिकर्ता । -बंध-पु० सर्गों में विभक्त सरीखा-वि० समान, सहश ।
महाकाव्य। सरीफा-पु० दे० 'शरीफा' ।
सर्ग*-पु० दे० 'स्वर्ग'। -पताली-वि० ऐंचाताना। पु० सरीर*-पु० दे० 'शरीर'।
वह बैल जिसका एक सींग ऊपर गया हो और दूसरा सरीसृप-वि० [सं०] रेंगनेवाला । पु० रेंगनेवाला कीड़ा, नीचे झुका हो। साँप आदि।
सर्गुन -बि० दे० 'सगुण' । सरीहन्-अ० [अ०] खुले तौरपर ।
सर्चलाइट-स्त्री० [अं॰] बिजलीकी तेज रोशनी जिसे सरुज-वि० [सं०] रोगयुक्त, रोगी।
प्रकाशपरावर्तक द्वारा बहुत दूरतक फैलाया जाता है, सरुष-वि० [सं०] क्रुद्ध, कुपित ।
अन्वेषक प्रकाश, प्रकाश-प्रक्षेपक (जो जहाज आदिमें सरुहना*-अ० क्रि० सुधरना, अच्छा, ठीक होना। लगाया जाता है)। सरुहाना*-स० कि० अच्छा, चंगा करना।
सर्ज-स्त्री० [अं॰] एक तरहका बढ़िया गरम कपड़ा। पु. सरूप-वि० [सं०] साकार, रूपवाला; एक हो रूपका; [सं०] शालवृक्ष; धूना; सलईका पेड़। -निर्यासक,
समान, तुल्य, एक सा; सुंदर । * पु० दे० 'स्वरूप' । रस-पु० धूना । सरूपता-स्त्री०,सरूपत्व-पु० [सं०] तुल्यरूपता,साहश्य। सर्जन-पु० [सं०] त्याग, छोड़ना; निर्माण, रचना, सृष्टि । सरूर-पु० दे० 'सुरूर'।
सर्जू-स्त्री० सरयू नदी। सरेख*:-वि० उम्र में बड़ा और चालाक; सज्ञान ।
सर्त -स्त्री० दे० 'शर्त'। सरेखना-सक्रि० सहेजना, सँभालनेके लिए प्रवृत्त करना। सर्द-वि० [फा०] ठंढा; फीका, बेमजा; उदास, बेरौनक सरेखा* -वि० दे० 'सरेख'-'हँसि हँसि पूछहि सखी | (ला) निरुत्साह निर्जीव ।-गर्म-वि० ऊँच-नीच काल सरेखी'-प० ।
या दशाके उलट-फेर । (मु०-गर्म झेलना-दुनियाके सरेश-पु० [फा०] एक लसदार पदार्थ जो पशुओंके चमड़े भले-बुरे, दशाके परिवर्तनोंका अनुभव प्राप्त करना। आदिसे तैयार किया जाता है । वि० लसदार ।
-गर्म देखे हुए होना-जमाना देखे हुए होना) । सरेस-पु० दे० 'सरेश'।
-बाज़ारी-खी०बाजारका ठंडा होना, माँग या पूछ न सरौंट*-स्त्री० कपड़ोंकी सिलवट, सिकुड़न ।
होना । -मिज़ाज-वि० शीतप्रकृतिः उत्साहहीन; सरो-पु० बनझाऊ, एक सुंदर, सुडौल पेड़ जो सीधा बेमुरौवत । मु०-हो जाना-ठंढा हो जाना; गरमी दूर बढ़ता और ऊपरकी ओर गावदुम होता है (उर्दू फारसी हो जाना; मर जाना। कवितामें कद या सुंदर देह-यष्टिका उपमान ।
सई-वि० सर्वेके रंगका, हरापन लिये हुए पीला । सरोई-पु० एक ऊँचा पेड़ ।
सर्दा-पु० [फा०] खरबूजेका एक भेद । सरोकार-पु० [फा०] लगाव, वास्ता प्रयोजन । सर्दार-पु० दे० 'सरदार'। सरोकारी-वि० [फा०] सरोकार रखनेवाला।
सर्दी-स्त्री० ठंढा, जाड़ा; जाडेका मौसिम; जुकाम जुड़ी। सरोज-वि० [सं०] ताल आदिमें उत्पन्न । पु. कमल । -गरमी-स्त्री० जाड़ा-गरमी । मु०-खाना-ठंढ लगना; -मुखी-स्त्री० कमलके समान मुखवाली स्त्री।
ठंढसे कष्ट पाना। सरोजना*-स० क्रि० पाना।
सर्प-पु० [सं०] रेंगना, सरकना; गमन साँप; म्लेच्छोंकी सरोजिनी-स्त्री० [सं०] कमलोंसे भरा तालाब; कमल- एक जाति । -कोटर-पु० साँपका बिल । -गृह-पु० समूह कमलका पौधा।
साँपका बिल । -फेण-पु० अफीम । -बेलि-स्त्री० सरोता*-पु० श्रोता; सरौता।
[हिं०] नागवल्ली, पान । -भक्षक-पु० मयूर नकुलसरोद-पु० [फा०] एक बाजा।
कंद। -भुक(ज)-पु० मयूर सारसः गरुड़ नकुलसरोरुह-पु० [सं०] कमल ।
कंद । -मणि-पु. सर्पके सिरपर पाया जानेवाला सरोवर-पु० [सं०] तालाब, ताल, झील ।
मणि। -यज्ञ-याग-पु० सपोंके नाशका यज्ञ (जो
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८२५
जनमेजयने किया था)। -राज-पु० वासुकि । -लता, - वल्ली - स्त्री० नागवल्ली । -विद् - वि० जिसे सपका ज्ञान हो । पु० सँपेरा। -विद्या- स्त्री० सर्प-संबंधी विद्या; साँपों को पकड़ने आदिकी विद्या । - विवर- पु० साँपका बिल । - वेद-पु० सर्पविधा ।-सत्-पु० दे० 'सर्पयश' । - हा ( हनू ) - पु० नेवला; गरुड़ । सर्पण -पु० [सं०] रेंगनेकी क्रिया; धीरेसे खिसकना; टेढ़ा चलना; बाणका जमीन के पाससे उसके समानांतर चलना । सर्पा - स्त्री० [सं०] साँपिन; फणिलता । सर्पाक्ष - पु० [सं०] रुद्राक्ष ।
सर्पाति - पु० [सं०] दे० 'सर्पारि' | सर्पारि - पु० [सं०] गरुड़; नेवला; मोर ।
सर्पावास - पु० [सं०] साँपके रहनेका स्थान; बामी; चंदन । सर्पाशन - पु० [सं०] मोर; गरुड़ |
सर्पि - पु० [सं०] धी; एक ऋषि ।
सर्पिणी - स्त्री० [सं०] साँपिन; एक लता, भुजगी । सर्पिल - वि० [सं०] साँपकासा; साँपकी तरह कुंडली मारे हुए ।
सर्पा * - पु० घी ।
सर्पी (र्पिन् ) - वि० [सं०] रेंगने, धीरे-धीरे चलनेवाला । सर्फ - पु० [फा०] फजूल खर्च, अपव्ययः [अ०] खर्च करना; बसर करना, बिताना । सफ़ - पु० [अ०] खर्च; अपव्ययः कंजूसी, खर्च में तंगी करना (फा० ) ।
सर्फी - वि० [अ०] व्याकरण जाननेवाला, वैयाकरण | सर्वस* - पु० दे० 'सर्वस्व' ।
सर्म* - स्त्री० दे० 'शर्म' ।
सर्राफ - पु० [अ०] सोना-चाँदी रुपये आदि परखनेवाला; दे० 'सराफ' ।
सर्राफ्रा - पु० दे० 'सरराफ़ा' ।
सर्राफ्री-स्त्री० दे० 'सरराफ़ी' |
सर्वंकष - वि० [सं०] सबको पीड़ित करनेवाला, निर्दय । पु० दुष्ट व्यक्ति; पाप ।
सर्वभरि - वि० [सं०] सबका भरण-पोषण करनेवाला । सर्व सहा - स्त्री० [सं०] पृथ्वी ।
सर्वर - वि० [सं०] सब कुछ ले जानेवाला ।
सर्व - वि० [सं०] सब, समस्त, समग्र, कुल । पु० शिव; विष्णु; एक मुनि; एक जनपद; जल । -कांचन - वि० खालिस सोनेका । - काम - वि० सब इच्छाएँ रखनेवाला; सब तरद्दकी इच्छा पूरी करनेवाला । पु० शिव; एक अर्हत् । - कामिक- वि० सारी इच्छाएँ पूरी करनेवाला; जिसकी सारी इच्छाएँ पूर्ण हों । - कामी (मिन् ) - वि० सारी इच्छाएँ पूरी करनेवाला; स्वेच्छापूर्वक काम करनेवाला; जिसकी सारी इच्छाएँ पूर्ण हों । -काम्यवि० सर्वप्रियः जिसकी हर एक व्यक्ति इच्छा करे । - कारी (रिन्) - वि० सब कुछ करनेवाला या करनेमें समर्थ । पु० सबका निर्माता । -काल- अ० सर्वदा, हमेशा । -कालीन - वि० सब कालका । - कृत्- वि० सर्वोत्पादक । - क्षमा- स्त्री० ( एमनेस्टी) किसी विशेष अवसरपर या विशेष कारणसे किसी कोटिके बहुतसे बंदि -
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सर्पण - सर्व
योंको क्षमा प्रदान कर कारागृहसे मुक्त कर देना । - क्षय- पु० सबका नाश, प्रलय । - क्षारनीतिस्त्री० ( स्कार्चड अर्थ पालिसी ) युद्ध भूमिमें पीछे हटनेवाली सेना द्वारा इमारतों, खेतों, पुलों, रेलों आदिका संपूर्ण विनाश जिससे शत्रु उनका प्रयोग न कर सके या उनसे लाभ न उठा सके, सर्वस्वादानीति । -गंध-वि० जिसमें हर तरह की गंध हो । पु० कपूर, कक्कोल, अगुर आदिका समाहार । -ग- वि० सब जगह जानेवाला, सर्वव्यापक । पु० ब्रह्म; आत्मा; शिव; जल । - गामी ( मिनू ) - वि० दे० 'सर्वग' । - ग्रंथि - ग्रंथिक- पु० पिप्पलीमूल । - ग्रह - वि० सब कुछ एक ही बार खा जानेवाला । - ग्रास - वि० सब खा जानेवाला । पु० खग्रास ग्रहण | - जनीन - वि० सबसे संबंध रखनेवाला, सार्वजनिक । - जनीय - वि० सबके हितका । - जित्- वि० सबको जीतनेवाला, अजेय । पु० मृत्यु । -जीवी (विन्) - वि० जिसके पिता, पितामह और प्रपितामह जीवित हों । - ज्ञ - वि० सब कुछ जाननेवाला । पु० ईश्वर; देवता । -ज्ञाता (तृ) - वि० सर्वज्ञ । -द- वि० सब देनेवाला । पु० शिव । - दम, दमन- वि० सबका दमन करनेबाला । पु० शकुंतलाका पुत्र, भरत । - दर्शी (शिंन्) - वि० सब कुछ देखनेवाला । पु० ईश्वर । -दाबि०, स्त्री० सब कुछ देनेवाली । - दाता (तृ) - वि० सव कुछ देनेवाला । - दान - पु० सर्वस्वका दान | - दिग्विजय - स्त्री० विश्वविजय । - देवमय - वि० जिसमें सब देव हों । पु० शिव । - देशीय - वि० सब देशोंसे संबद्ध; सब देशोंमें पाया जानेवाला । - द्रष्टा (ष्ट्र) वि० सर्वदशीं । - धन्वी (न्विन् ) - पु० कामदेव । - नाम(मन्) - पु० संज्ञाके स्थान में प्रयुक्त होनेवाला शब्द ( व्या० ) । -- नाश - पु० विध्वंस, बरबादी, तबाही। - नियंता (तृ) - पु० सबको अपने वशमें रखनेवाला । - पावन - वि० सबको पवित्र करनेवाला । पु० शिव । - पूजित - वि० सबके द्वारा पूजित । पु० शिव । पूतवि० पूर्णतः शुद्ध । - प्रद- वि० सब कुछ देनेवाला ।प्रिय - वि० जो सबको प्रिय हो, लोकप्रिय; जिसे सब प्रिय हों । - अंधविमोचन - वि० सभी बंधनोंसे मुक्त करनेवाला । पु० शिव । -भक्षी (क्षिन्) - वि० सब कुछ खानेवाला । पु० अग्नि । - भोगी (गिन् ) - वि० सबका भोग करनेवाला; सब कुछ खानेवाला । - भोग्य - वि० सबके लिए लाभदायक, सबके भोगके योग्य । - मंगलास्त्री० दुर्गा; लक्ष्मी । -रक्षी ( क्षिन् ) - वि० सबकी रक्षा करनेवालां । - रसोत्तम - पु० नमक । -वल्लभवि० जो सबको प्रिय हो । -वल्लभा - स्त्री० असती नारी, व्यभिचारिणी । -विद् - वि० सर्वश | पु० ईश्वर । - विद्य- वि० सारी विद्याएँ जाननेवाला, सर्वज्ञ । - वेत्ता (तृ) - वि० सर्वज्ञ । - व्यापक - वि० सबमें रहनेवाला । - व्यापी (पिन) - वि० दे० 'सर्वव्यापक' । पु० ईश्वर; एक रुद्र । - शक्तिमान् ( मत्) - वि० सब कुछ करनेकी शक्ति युक्त । पु० ईश्वर । - शून्य - वि० बिलकुल रिक्त; सबको अस्तित्वरहित माननेवाला । - श्राव्य - वि० सबके सुनने योग्य । -श्री- वि० आदर
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सर्वतः-सलवार
८२६ सूचित करनेवाला एक विशेषण जिसका प्रयोग अनेक सर्वांतक-वि० [सं०] सबका अंत करनेवाला । व्यक्तियोंके नाम एक साथ आनेपर, उन सबके लिए सामू- सर्वात्मा(त्मन्)-पु० [सं०] समस्त, संपूर्ण विश्वकी हिक रूपसे केवल एक बार, आरंभमें, किया जाता है। आत्मा, ब्रह्मा शिव । -श्रेष्ठ-वि० सर्वोत्तम । -संगत-पु. एक तरहका सर्वाधिक-वि० [सं०] सबसे बढ़ा हुआ, सबसे अधिक । जल्द तैयार होनेवाला धान, साठी। -सम्मत-वि० सर्वाधिकार-पु०[सं०] पूरा अख्तियार; सब कुछ करनेका सब सदस्यों आदिकी राय जिसके पक्षमें हो।-सम्मति- अधिकार । स्त्री० सबकी स्वीकृति या राय। -सह-वि० सब कुछ | सर्वाधिकारी(रिन)-पु० [सं०] सारे अधिकार रखनेसहन करनेवाला, सहनशील । पु० गुग्गुल । -सहा- वाला; शासक निरीक्षक अध्यक्ष । स्त्री० पृथ्वी । -साक्षी (क्षिन्)-वि० सब कुछ देखने-सर्वाधिपस्य-पु० [सं०] वह आधिपत्य या प्रभुता जो वाला । पु० ईश्वर, वायु, अग्नि । -साधारण-पु० सबपर हो। साधारण लोग, जनता। -सामान्य-वि० जो सबमें सर्वान्नभक्षक, सर्वानभोजी(जिन)-वि० [सं०] हर पाया जाय (कामन); जो सबके प्रयोगके लिए हो तरहका खाद्य-पदार्थ खानेवाला । (पब्लिक)। -सुलभ-वि० जो सबको आसानीसे प्राप्त सर्वाशय-पु० [सं०] सबका आश्रय, आधार; शिव । हो सके। -स्व-पु० सब कुछ, सारी संपत्ति; सर्वाश । | सर्वाशी(शिन्)-वि० [सं०] सर्वभक्षी। -स्व-दंड-स्व-हरण,-स्व-हार-पु. सारी संपत्तिका सर्वास्तिवाद-पु० [सं०] समस्त वस्तुओंकी सत्ताको हरण ।-स्व-युद्ध-पु० (टोटल वार) समस्त साधनोंसे लड़ा वास्तव मानना (वैभाषिक बौद्ध सिद्धांतके चार भेदोंमेंसे जानेवाला युद्ध, वह युद्ध जिसमें शत्रुके विरूद्ध समस्त एक जो गौतमपुत्र राहुल द्वारा प्रवर्तित माना जाता है)। साधन और सारी शक्ति लगा दी जाय, सर्वांगिक युद्ध । सर्वेश, सर्वेश्वर-पु० [सं०] सबका स्वामी, मालिका -स्वाहानीति-स्त्री० (स्कॉर्चड अर्थ पॉलिसी) दे० 'सर्व- चक्रवर्ती राजा, सम्राट शिव; ईश्वर । -बाद-पु० (पैथीक्षारनीति' ।-हारा-पु० [हिं०] (प्रोलेटेरियट) समाजका | इज्म) सर्व जगत् ईश्वरका प्रतिरूप है और ईश्वर सर्व अकिंचन वर्ग, निम्नतम श्रमिक वर्ग ।
जगत्का, यह सिद्धांत; सब देवताओंको मानने, उनकी सर्वतः (तस)-० [सं०] चारों ओर, सर्वत्र; सब पूजा करनेका सिद्धांत। प्रकारसे; सब तरफसे; पूर्णतः ।
सर्वेसर्वा-वि०जिसे किसी मामले में सब कुछ करनेका सर्वतोदक्ष-वि० [सं०] (ऑल राउंडर) जो कई बातों, अधिकार हो, प्रधान कर्ताधर्ता, पूर्णाधिकारी। कामों आदिमें दक्ष हो; ( वह खेलाड़ी) जो बल्लेबाजी, सर्वोच्च-वि० [सं०] सबसे ऊँचासबसे बड़ा। -न्यायागोलंदाजी, क्षेत्ररक्षण आदि सबमें दक्ष हो।
लय-पु० (सुप्रीम कोर्ट) देशका सबसे बड़ा न्यायालय, सर्वतोभद्-वि० [सं०] जो सब प्रकारसे कल्याणकर हो; उच्चतम न्यायालय। -सत्ता-स्त्री० ( पैरामाउंट पॉवर) जिसके सारे सिर, मूंछ आदिके बाल मुंड़े हों। पु. वह देशकी सबसे बड़ी या प्रधान सत्ता (शक्ति)। वर्गाकार मंदिर या प्रासाद जिसमें चारों तरफ द्वार हो | सर्वोत्तम-वि० [सं०] सबसे अच्छा, सर्वश्रेष्ठ । एक तरहका व्यूह; एक तरहका चित्रकाव्यः (पूजाके समय) सर्वोदय-पु० [सं०] सब लोगोंके आर्थिक, नैतिक, सामावेदी ढंकनेके वस्त्रपर बनाया जानेवाला एक चिहा वह जिक उत्थानके लिए चलाया गया स्वतंत्र भारतका एक मकान जिसमें चारों ओर छज्जा हो सिर, मूंछ आदिका आंदोलन ।। मुँडाया जाना।
सर्वोपकारी(रिन्)-वि० [सं०] सबका उपकार, सहायता सर्वतोमुख-वि० [सं०] जिसका मुँह चारों ओर हो; करनेवाला । पूर्ण; असीम ।
सर्वोपरि-अ० [सं०] सबसे ऊपर या बढ़कर । सर्वत्र-अ० [सं०] सब जगह हर वक्त, हमेशा। | सर्षप-पु० [सं०] सरसों; एक बहुत छोटी तौल । सर्वथा-अ० [सं०] हर तरहसे; पूर्णतः; बिलकुल; अत्यंत । सलई-स्त्री० चीड़, चीड़का गोंद। सर्वदा-अ० [सं०] हमेशा,सदा । वि०स्त्री०दे० 'सर्व'के साथ । सलक्षण-वि० [सं०] समान चिह्नोंवाला । सर्वरी-स्त्री० दे० 'शर्वरी'।
सलग-वि० समग्र पूरा, अखंडित,समूचा-'सलग रुपैया सर्वरीस*-पु० दे० 'शर्वरीश'।
भैया कापै दयो जात है। सर्वशः(शस)-अ० [सं०] पूर्णतः; सब प्रकारसे । सलगम, सलजम-पु० दे० 'शलराम' । सर्वस*-पु० सर्वस्व, सब कुछ।
सलन-वि० [सं०] हयादार, लज्जाशील; विनम्र । सर्वांग-पु० [सं०] सारा शरीर; संपूर्ण अंश या अवयव । सलतनत-स्त्री० दे० 'सल्तनत' । -पूर्ण-वि० सब तरहसे पूर्ण । -सम त्रिभुज-पु० सलना*-अ० क्रि० गड़ना; छिदना, साला जाना; किसी (आइडें टिकली ईक्कल; कांग्रएंट) वे दोनों त्रिभुज जिनमेंसे छिद्र में (लकड़ी आदि) बैठाया जाना । पु० बरमा । एकके सभी छः अंग (तीनों भुजाएँ व तीनों कोण) दूसरेके सलभ*-पु० दे० 'शलभ' पतंग । छ: अंगोंके बराबर हों। -संदर-वि० जिसके सब अंग सलमा-पु० सोने-चाँदीका गोलाईमें लपेटा हुआ तार, सुंदर हों, बहुत सुंदर।
बादला। सर्वांगीण-वि० [सं०] सब अंगोंसे संबंध रखनेवाला; | सकवट-स्त्री० दे० 'सिलवट' । संपूर्ण, बहुक्षेत्र-व्यापी।
सलवार-स्त्री०जाँघिया:पंजाबी ढंगका ढीला-ढाला पैजामा।
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.. सलहज-सल्तनत सलहज-स्त्री० सालेकी पत्नी।
मुर्गाबी । -क्रिया-स्त्री० पितृतर्पण शव-स्नान । -जसला-स्त्री० [अ०] भोजनके लिए बुलाना; दावतका वि० जलमें उत्पन्न । पु. कमल; जलीय जीव घोंघा । निमंत्रण । -(ए)आम-स्त्री० आम दावत, वह भोज -जन्मा(न्मन्)-वि० जलमें उत्पन्न । पु० कमल । जिसमें हर आदमी निमंत्रित समझा जाय ।
-पति-पु० वरुण । -प्रिय-पु० शूकर । -भय-पु० सलाई-स्त्री० धातु या लकड़ीकी पतली और छोटी तीली; जल या जलप्लावनका भय । -भर-पु० झील, ताल । दियासलाई; सालनेकी क्रिया या मजदूरी; सलई । मु. -मुक(च)-पु० बादल ।-योनि-वि० जलसे उत्पन्न । -फेरना-मुरमा, दवा लगाना (आँख में); आँख फोड़ना, पु० ब्रह्मा; जलसे उत्पन्न पदार्थ । -राज-पु० दे० 'सलिसलाई गरम करके आँखमें लगाना ।
लपति' । -राशि-पु० समुद्रजलाशय । सलाक*-स्त्री० शलाका, सलाई, तीर, बाण ।
सलिलांजलि-स्त्री० [सं०] जलांजलि, तर्पण । सलाख-सीधातुकी छड़, सलाई ।
सलिलाधिप-पु० [सं०] वरुण । सलाकना -अ० क्रि० सलाई या सलाई जैसी चीजसे | सलिलार्थी(र्थिन)-वि० [सं०] पिपासित, प्यासा । निशान बनाना।
सलिलालय-पु० [सं०] समुद्र । सलाजीत-स्त्री० दे० 'शिलाजीत'।
सलिलाशय-पु० [सं०] तालाब, ताल । सलात-स्त्री० [अ०] नमाज ।
सलिलेचर-वि० [सं०] जलचर । पु० जलीय जीव । सलातीन-पु० [अ०] 'सुलतान'का बहुवचन ।
सलिलेश, शलिलेश्वर-पु० [सं०] वरुण । सलाद-पु० [अं० 'सैलैड'] कच्चे मूल, पत्र आदिका नीबू, सलिलोद्भव-वि० [सं०] जलमें उत्पन्न । पु० कमल; घोषा। सिरके आदिके योगसे तैयार किया जानेवाला एक खाद्य | सलिलोपजीवी(विन्)-वि० [सं०] पानीसे जीविका एक पौधा जिसके पत्ते उपर्युक्त रूपमें खाये जाते हैं । प्राप्त करनेवाला । पु० मछुआ। सलाबत-स्त्री० [अ०] कठोरता; वीरता प्रताप । सलिलौका(कस)-वि० [सं०] जल में रहनेवाला। सलाम-पु० [अ०] नमस्कार, प्रणाम, बंदगी।-अलैकम-| स्त्री० जोंक। स्त्री० तुम सलामत रहो, तुमपर सलामती हो (मुसलमान | सलीका-पु० [अ०] हर चीजको ढंगसे और यथास्थान एक दूसरेको प्रायः यही कहकर नमस्कार करते हैं । दूसरा रखनेकी बुद्धि ढंग, शऊर; गुण; योग्यता सभ्यता, व्यक्ति जवाबमें 'वालेकुम स्सलाम' 'तुमपर भी सलामती | शिष्टता । -दार,-मंद-वि० शऊरदार। हो' कहता है)। मु० (किसीको)-करना-दूर रहनेकी सलीता-पु० एक तरहका मोटा मारकीन । इच्छा प्रकट करना; त्यागना; बिदा होना; (किसीकी) | सलीम-वि० [अ०] सरल, विनीत; ठीक, दुरुस्त; स्वस्थ । उस्तादी, बड़ाई आदि मान लेना।
पु० जहाँगीरका युवराजकालका नाम । -चिश्ती-पु. सलामत-स्त्री० [अ०] बचाव, रक्षा; कुशल । वि० सुर- अकबरके समयके एक प्रसिद्ध मुसलमान संत जो फतहपुर क्षित, स्वस्थ; जीवित; अखंड, सावित । अ० सकुशल, सिकरीमें रहते थे । जहाँगीरका जन्म इनके आशीर्वादका सही-सलामत । मु०-रहना-कायम रहना, बना रहना। फल मानकर अकबरने उसका पुकारनेका नाम उन्हींके सलामती-स्त्री० [फा०] रक्षा; कुशल; तंदुरुस्ती; जीवित नामपर, शाहजादा सलीम रखा था। -शाही-स्त्री. होना, जिंदगी (मुसल० स्त्रि०)। मु०-का जाम पीना-- दिल्ली में बननेवाली एक तरहकी सुंदर, मुलायम जूती । स्वास्थ्यकामनाका प्याला पीना । -चाहना-कुशल सलीस-वि० [अ०] आसान: चलती (भाषा), क्लिष्ट शब्दामनाना । -से-भगवत्कृपासे, खुदाके फज्लसे (मुसल० | वलीसे रहित समतल । -ज़बान-स्त्री. सुबोध भाषा । स्त्रियाँ अच्छी बात कहनेके पहले मंगलकी भावनासे कहती सलूक-पु० दे० 'सुलूक'। हैं-'सलामतीसे उसके चार बच्चे है।')
सलूका-पु० पूरी बाँहकी (जनानी) कुरती, बंडी; बंदर सलामी-स्त्री० [फा०] सलाम करनेकी रस्म; हथियारोंको नचानेवाला। उठाकर सलाम करना; तोपों या बंदूकोंकी बाढ़ जो सलूनो-पु० दे० 'सलोनो'। राजाओं, बड़े अधिकारियों आदिके सम्मानार्थ दागी जाय | सलैना -स० क्रि० काटकर ठीक करना, सालना। (देना, लेना); वह धन जो दूल्हे या दुलहिनको सलाम- सलैला*-वि० पिच्छिल, फिसलनवाला, चिकना । की रस्ममें दिया जाय; नजराना। मु०-उतारना- सलोट*-स्त्री० दे० 'सिलवट'। किसीके सम्मानार्थ तोपों या बंदूकोंकी बाढ़ दागना । सलोतर-पु० पशुओं, विशेषतः अश्वोंका चिकित्साशाख । सलाह-* स्त्री० सुलह, मेल-'सिवासों सलाह राखिये | सलोतरी-पु० पशुओं, विशेषतः अश्वोंका चिकित्सक । तो बात भली है'-भू० । [अ०] मंत्रणा, मशवरा राय । सलोन*-वि० दे० 'सलोना'। -कार-वि० सलाह देनेवाला ।
सलोना-वि० लवणयुक्त, नमकीन; लावण्यमय, सुंदर । सलिंगी(गिन्)-वि० [सं०] केवल चिह्न धारण करने
-पन-पु० लावण्य, सौंदर्य । वाला, आडंबरी, ढोंगी।
सलोनो-पु० श्रावण-पूर्णिमाको होनेवाला एक त्योहार, सलि*-खी चिंता।
रक्षाबंधन। सलिता*-स्त्री० सरिता, नदी।
सलौना -वि० दे० 'सलोना'। सलिल-पु० [सं०] जल; वर्षाका जल; वर्षा; अश्रु । - सल्तनत-स्त्री० [अ०] राज्य, बादशाहत हुकूमत, अमलकुंतल-पु० शैवाल । -कुक्कुट-पु० एक जलीय पक्षी, | दारी; प्रबंध ।
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लकी-ह
सल्लकी - स्त्री० [सं०] सलईका पेड़ |
सल्लम - पु०, स्त्री० एक मोटा कपड़ा, गजी, गाढ़ा । सव - पु० * शव ।
सवत, सवति * - स्त्री० दे० 'सौत' ।
सवत्स - वि० [सं०] जो बछड़े के साथ हो; संतानयुक्त । सवधूक - वि० [सं०] सपत्नीक |
सवन- पु० [सं०] सोमरस निचोड़कर निकालना; यज्ञ; तर्पण; यश-स्नान; प्रसव; अग्नि ।
सवयस, सवयस्क - वि० [सं०] समवयस्क, हमउम्र सवर्ण - वि० [सं०] समान रंगका; समान जातिका । सवर्णन - पु० [सं०] भिन्नोंको समान हरवाले भिन्नोंके रूप में लाना ( गणित ) । सवाँग-* पु० दे० 'स्वाँग' ; + अपने परिवारका व्यक्ति । सवा - वि० चतुर्थांशके साथ (एक या कोई अंक), सपाद । सवाई - वि० चतुर्थांशयुक्त एक, सवा; बढ़-चढ़कर । स्त्री० सूद लेनेका एक प्रकार जिसमें मूल धन अपने चतुर्थांशसे युक्त हो जाता है; जयपुर नरेशोंकी उपाधि । सवाक् चित्र - पु० [सं०] ( टॉकी) वह चलचित्र जिसमें पात्रों के कार्य ही न दिखाई दें, उनका बोलना, गाना, रोना आदि भी सुनाई दे - जो मूक न रहकर बोलता हुआ-सा जान पड़े, बोलपट । सवाद* - पु० दे० 'स्वाद' | सवादिक, सवादिल* - वि० स्वाद देनेवाला, स्वादिष्ठ | सवाब- पु० [अ०] बदला; सुफल; सत्कर्मका (परलोक में
मिलनेवाला) फल | मु० - कमाना - पुण्य संचय करना । सवाया - वि० सवा गुना ।
सवार - पु० [फा०] घोड़े, हाथी, ऊँट आदिपर चढ़ा हुआ, आरोही; अश्वारोही; अश्वारोही सैनिक । वि० सवारी (गाड़ी, मोटर आदि) पर बैठा हुआ; (ला० ) मस्त, नशेमें चूर । * अ० सबेरे, जल्द ।
सवारा* - पु० प्रातःकाल, सवेरा । सवारी - स्त्री० सवार होनेकी क्रिया; वह चीज जिसपर सवार हों (घोड़ा, गाड़ी, पालकी इ० ); सवार; जुलूस (निकलना); कुश्तीका एक पेंच ।
- पुत्र, - सुत - पु० शनि, यमादि । विद्य - वि० [सं०] एक ही, समान विषयका अध्ययन करनेवाला; विद्वान् विज्ञानविद ।
सविधि - वि० [सं०] विधियुक्त | अ० विधिके अनुसार । सविनय - स्त्री० [सं०] विनययुक्त, शिष्टतापूर्ण; विनम्र । -अवज्ञा - स्त्री० ( अन्यायपूर्ण) मुल्की कानूनकी अव
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सवारे, सवारें * - अ० जल्द, शीघ्र - 'तुरत चलौ अब ही ससी* - पु० चंद्रमा ।
फिर आवैं, गोरस बेंचि सवारें'- सू०; सबेरे । सवाल - पु० [अ० 'सुवाल'] माँगना; माँग; पूछना; प्रश्न याचना, भिक्षाकी याचना (फकीर का सवाल ); प्रार्थना, निवेदन; अर्जी; नालिश, फरियाद; गणितका प्रश्न मसला । - ख़्वानी - स्त्री० अदालत में दर्खास्तोंको पढ़ना । - जवाब- पु० प्रश्नोत्तर; बहस; जिरह । मु०-करना पूछना; जाँचके लिए कोई बात पूछना; माँगना; याचना करना । - कुछ जवाब कुछ प्रश्नसे असंबद्ध उत्तर देना ।
मानना ।
सविशेष - वि० [सं०] विशेष गुणोंसे युक्त; असाधारण; श्रेष्ठ । सविस्तर - वि० [सं०] ब्योरे के साथ, तफसीलवार । अ० पूर्व
सविस्मय - वि० [सं०] आश्चर्ययुक्त । अ० विस्मयके साथ । सवेरा - पु० सूर्योदय-काल, प्रातःकाल । सवैया - पु० सवा सेरका बाट; सवाका पछाड़ा; एक छंद । सव्य - वि० [सं०] बायाँ; दक्षिणी; प्रतिकूल; दाहिना । पु० विष्णु जनेऊ । - साची (चिन्) - ५० अर्जुन (दोनों हाथोंसे एक जैसे वेगसे वाण चलानेके कारण); कृष्ण । सव्येतर - वि० [सं०] दाहिना ।
सशंक - वि० [सं०] शंकायुक्त, शंकित; भीरु, डरपोक । सशंकना* - अ० क्रि० डरना; शंकित होना । सशब्द- वि० [सं०] शब्दयुक्तः शोरगुलसे भरा हुआ । सशरीर - पि० [सं०] शरीरयुक्त, मूर्त; अस्थियुक्त । - प्रतिभू - पु० (होस्टेज) जमानतके रूप में रखा गया आदमी;ओल । सशस्त्र - वि० [सं०] शस्त्र या शस्त्रोंसे युक्त, शस्त्रसज्जित । सश्रम कारावास - पु० [सं०] ( [रगरस इंप्रिज़नमेंट) दे० 'सपरिश्रम कारावास' ।
८२८
सस * - पु० चंद्रमा; शशकः शस्य, धान्य । -धर, -हरपु० चंद्रमा ।
ससक* - पु० शशक, खरहा।
ससकना * - अ०क्रि० दिल धड़कना, घबड़ाना, झिझकना । ससना, ससाना * - अ० क्रि० दे० 'ससकना '... चौंक चितै मुख सूख ससानी' - वसंतमंजरी । ससहाय - वि० [सं०] साथियों आदिके साथ । ससा - * पु० शशक; + खीरा ।
ससि* - पु० दे० 'सस' । घर, -हर- पु० चंद्रमा ।
ससुर - पु० दे० 'श्वशुर' । वि० [सं०] देवताओंसे युक्त । ससुरा - पु० ससुर; एक गाली; + ससुराल | ससुरार, ससुरारि* - स्त्री० दे० 'ससुराल' | ससुराल - स्त्री० पति या पल्लीके पिताका घर । ससेन, ससैन्य- वि० [सं०] सेनाके साथ
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सस्ता- वि० अल्प मूल्यका; जिसका मूल्य घट गया हो, मंदा; जो आसानी से मिल सके; घटिया । - माल - पु० घटिया माल । - समय-पु० सस्तीका जमाना । मु०छूटना, सरते छूटना - ज्यादा खर्च भादिकी जगह थोड़े में ही काम चल जाना। -लगा देना-सस्ता बेचना । सस्ताना - अ० क्रि० सस्ता हो जाना । स० क्रि० दाम कम करना ।
सविकल्प, सविकल्पक - वि० [सं०] विकल्पयुक्त; संदिग्ध; (शाता और शेयका) अंतर माननेवाला, निर्णय न कर पानेके कारण दोनोंको माननेवाला, संशयवादी । सविकार - वि० [सं०] परिवर्तनयुक्त; जिसके भावों में परि | सस्ती - स्त्री० सस्तापन, मंदी, मँहगीका न होना । वर्तन हो गया हो; जो सड़-गल रहा हो । सस्त्रीक - वि० [सं०] स्त्री, पत्नीसहित; विवाहित । सविता (तृ) - पु० [सं०] सूर्य; अकवन; बारहकी संख्या । सस्नेह - वि० [सं०] तैलयुक्त; प्रेमपूर्ण ।
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८२९
सस्पृह-सहस्त्र सस्पृह-वि० [सं०] इच्छुक, ख्वाहिशमंद ।
सहत*-पु० दे० 'शहद' ।वि० सस्ता । सस्मित-वि० [सं०] अक्ष्पहासयुक्त । अ० मुस्कराहटके साथ। सहताना*-अ० क्रि० सुसताना, थकान मिटाना; सस्ता सस्य-पु० [सं०] धान्य ।-आवर्तन-पु० (क्रॉप-रोटेशन) होना । खेतमें क्रम-क्रमसे दूसरी फसल बदल-बदलकर तैयार | सहदानी*-स्त्री० चिह्न, निशानी । करना, फसल-बदल । -पाल,-रक्षक-पु० खेतका सहदूल*-पु० दे० 'शार्दुल'। रखवाला।
सहदेई-स्त्री० एक वनौषधि ।। सहगा*-वि० सस्ता, 'महँगा'का उलटा।
सहन-पु० [अ०] आँगन; खुली हुई समतल भूमि; बड़ा सह-अ० [सं०] साथ, सहित; साथ-साथ, युगपत् । वि० | थाल; एक बढ़िया रेशमी कपड़ा; [सं०] सहिष्णुता; सहनेसहन करनेवाला; धीर; समर्थ; सशक्त । -कर्ता (त)- की क्रिया क्षमा। वि० सहिष्णु, धीर, क्षमाशील; शक्तिपु० साथ काम करनेवाला सहायक । -कार-पु० साथ शाली। -शील-वि० सहिष्णु, धीर; संतोषी। काम करना, सहायता देना; एक तरहका सुगंधित आम । सहनभंडार*-पु० धनराशि, खजाना। -कारता,-कारिता-सी० सहायता; सहायक होनेका | सहना-स० क्रि० झेलना, सहन करना, बरदाश्त करना; भाव । -कारी (रिन्)-वि० साथ काम करनेवाला। फल भोगना; भार ग्रहण करना। पु० सहायक कार्यकर्ता । -गमन-पु० साथ जाना; सती सहनाई*-स्त्री० दे० 'शहनाई। होना । -गवन-पु० दे० 'सहगमन' । -गान-पु० | सहनीय-वि० [सं०] सहने योग्य; क्षमाके योग्य । कई व्यक्तियोंका एक साथ मिलकर गाना, समवेतगान; वह सहबाला-पु० दे० 'शहवाला'। गीत जो इस प्रकार गाया जाय (कोरस)। -गामिनी- | सहम-पु० [फा०] डर, भय । -नाक-वि० डरावना, स्त्री० सती होनेवाली की पत्नी ।-गामी(मिन)-वि० | भयंकर । साथ जानेवाला ।-गौन*-पु०दे० 'सहगमन' ।-चर- सहमना-अ० क्रि० डरना; शंका मानना घबरा जाना । वि० साथ चलने या रहनेवाला । पु० साथी, मित्र; अनु-सहमाना-स० क्रि० डराना; घबराहट में डालना। चर, सेवक । -चरी-स्त्री० सखी; पली। -चारिणी- सहर-पु० जादू, टोना; सिहोर; * शहर सिं०] एक स्त्री० सखी; पत्नी ।-ज-वि० साथ-साथ या एक ही समय दानव [अ०] भोर, सूर्योदयके पहलेका काल । -गहीउत्पन्न; जन्मजात प्राकृतिक, आद्यंत एकसा रहनेवाला; स्त्री० वह हलका भोजन जो रमजानके दिनोंमें रोजा साधारण; आसान । पुष्सगा भाई स्वभाव ।-जात-वि० रखनेवाले मुसलमान कुछ रात रहते कर लेते हैं (हिंदू एक साथ उत्पन्न; एक ही समय उत्पन्न, समवयस्का प्राकृ- स्त्रियाँ भी हरितालिका और जीवत्पुत्रिका व्रतोंसे पहले तिक; जुड़वाँ (बच्चे); सहोदर ।-देव-पु०माद्रीसे उत्पन्न सहरगही (सरगही) खाती हैं ।-गाहा-दम-अ० तड़के। पांडुके पाँचवें पुत्र । -धर्मिणी-स्त्री० पत्नी। -धर्मी-सहराई-वि० [अ०] जंगली, वन्य । (र्मिन्)-वि० समान कर्तव्योंवाला; समान धर्मवाला। सहराना*-स० क्रि० दे० 'सहलाना'। अ० कि० सिह-पाठी(ठिन)-पु. साथ पढ़नेवाला । -प्रतिवादी रना; डरना। (निन्)-पु० (को डिफेंडेंट) किसी मामले में मुख्य प्रति- सहरी-स्त्री० शफरी मछली, सिधरी। वि० [अ०] प्रात:वादीके साथ गौण रूपसे मान लिया गया अन्य प्रतिवादी। कालीन । स्त्री० दे० 'सहरगही' । -भोज-पु० (विभिन्न जातियों, श्रेणियोंके) बहुतसे आद- सहल-वि० [अ०] नरम सहजमें होनेवाला, आसान । मियोंका एक साथ बैठकर भोजन करना । -भोजन-पु० सहलाना-स० क्रि० धीरे-धीरे मलना या हाथ फेरना, मित्रों आदिके साथ भोजन करना। -मत-वि० जिसका | सुहराना; गुदगुदाना । अ० क्रि० गुदगुदी मालूम होना। मत दूसरेसे मिलता हो। -मरण-पु० सती होना, सह-सहस-वि० [सं०] हासयुक्त, हँसता हुआ; * दे० सहस्र। गमन ।-योग-पु०साथ मिलकर काम करना; सहायता। -किरण,-गो-पु० सूर्य । -जीभ,-फन,-बदन,-योगी(गिन)-वि०,पु० सहयोग करनेवाला; मददगार मुख,-सीस-पु० शेषनाग । -दल,-पत्र-पु० कमल।
साथ काम करनेवाला या साथ प्रकाशित होनेवाला; सहसा-अ० [सं०] अचानक, एकाएक प्रचंड वेगसे; समकालीन । -लंगी*-पु. साथी; हमराही ।-वर्ती हठात् । (र्तिन)-वि० साथ करने, रहनेवाला । -वास-पु० सहसाक्रामक चमू-स्त्री० [सं०](शॉक ट्र.प्स) सेनाकी वह साथ रहना; संभोग, मैथुन । -विस्तारी(रिन)-वि. टुकड़ी जिसे अचानक ऐसा भयावह आक्रमण करनेकी (कोएक्सटेंसिव) साथ-साथ फैला हुआ। -शय्या-स्त्री० शिक्षा दी गयी हो जिसमें असाधारण वीरता और साहससाथ सोना।
की आवश्यकता हो। सहजन -पु० दे० 'सहिजन'।
सहसाक्षि, सहसाखी*-पु० सहस्राक्ष, इंद्र । सहजारि-पु० [सं०] वह जो प्रकृत्या शत्रु हो (जिससे सहसानन -पु० शेषनाग । संपत्ति आदिके संबंधमें झगड़ा होनेकी संभावना हो, जैसे | सहसोपचार-पु०[सं०] (शॉक ट्रीटमेंट) चकित करने या सौतेला या चचेरा भाई)।
झकझोर देनेवाला वह उपाय जो सहसा काममें लाया जाय, सहजै+-अ० सरलतापूर्वक, आसानीसे, अनायास । वह उपचार जो सहमा किसीकी मानसिक स्थितिपर प्रभाव सहजोदासीन-वि० [सं०] जो प्रकृत्या मित्र या शत्रु न डालकर रोगादिका शमन करनेके लिए किया जाय । हो, साधारण रूप में परिचित ।
| सहस्त्र-वि० [सं०] दस सौ, हजार । पु० हजारकी संख्या।
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सहस्रधा-साँई -कर-किरण-पु० सूर्य। -कांडा-स्त्री० श्वेत दूर्वा । सहार-प० सहना, बरदाश्त करना; सहनशीलता। " -गु-वि० हजार गायोंवाला हजार किरणोंवाला; हजार सहारना*-स० कि. सहन करना-'भूख और प्यास नेत्रोंवाला । पु० सूर्य; इंद्र । -गुण-वि० हजार गुना। सहारी'- रत्ना०, सँभालना गवारा करना। -घाती(तिन्)-वि. एक हजारको मारनेवाला। सहारा-पु० भरोसा, मदद; आश्रया टेक । पु. एक युद्धयंत्र । -चक्षुष)-वि० हजार नेत्रों-सहालग-पु. शुभ वर्ष (ज्यो०); शादी, विवाह के दिन । वाला । पु० इंद्र। -दल-पु० शतदल । -दीधिति- सहावल-पु० [फा० 'शाकूल'] लटकन, साहुल । पु० सूर्य । -धी-वि० बहुत चतुर । -नयन,-नेत्र- सहिजन, सहिजन-पु० एक वृक्ष, शोभांजन, 'मुनगा । पु० विष्णु; इंद्र । -नामा(मन्)-वि० हजार नामों सहिजानी*-स्त्री० दे० 'सहिदानी' । वाला । पु० विष्णु; शिव । -पति-पु० हजार गाँवोंका सहित-अ० [सं०] साथ, समेत । शासक या स्वामी । -पत्र-पु० कमल । -बाहु-पु० सहिता(त)-वि० [सं०] सहन करनेवाला, सहनशील। कार्तवीर्य, बाणासुर । -बुद्धि-वि० बहुत चतुर ।-भानु- सहिथी*-स्त्री० बरछी। वि० हजार किरणोंवाला । पु० सूर्य। -भुजा-स्त्री० सहिदान*-पु० पहिचान, चिह्न । दुर्गा, महालक्ष्मी (महिषासुरका वध करनेवाली)।-मरीचि, सहिदानी*-स्त्री० निशान, पहचान, परिचय-चिह्न-रश्मि-पु० सूर्य । -लोचन-पु. इंद्र विष्णु । - 'दीन्हि राम तुम कहँ सहिदानी'-रामा० । वक्त्र-वि० हजार मुखोंवाला। -वदन-पु० विष्णु । | सहिष्णु-वि० [सं०] सहनेवाला, सहनशील । -शीर्षा(अन)-वि० हजार सिरोंवाला । पु० विष्णु। | सहिष्णुता-स्त्री०, सहिष्णुत्व-पु० [सं०] सहनशीलता, सहस्रधा-अ० [सं०] हजार भागों); हजार गुना; हजार तितिक्षा क्षमा। तरहसे।
सही-वि० दोषरहित; ठीक, दुरुस्त । स्त्री० हस्ताक्षर सहस्रशः(शस)-अ० [सं०] हजारहा।
* सखी । अनिश्चयपूर्वक। -सलामत-वि. नीरोग, सहस्रांशु-पु० [सं०] सूर्य । -ज-पु० शनि ।
स्वस्थ, दोषरहित; निरापद । सहस्राक्ष-वि० [सं०] हजार आँखोंवाला । पु० इंद्र। | सह-अ० सामने, सम्मुख; तरफ, ओर । सहस्राधिपति-पु० [सं०] एक हजार गाँवोंका शासक सहुलियत-स्त्री० [अ०] नरमी; आसानी। राजप्रतिनिधि; एक हजार व्यक्तियोंका नायक ।
सहृदय-वि० [सं०] कोमलचित्त; दयालु, सच्चा समझसहस्त्रानन-पु० [सं०] विष्णुः शेषनाग ।
दार प्रसन्नमना रसिक। पु० विद्वान् व्यक्ति; वह जो सहस्राब्दि-स्त्री० [सं०] हजार वर्षोंकी समाप्तिपर होने- गुण पहचाने रसका अनुभव करनेवाला व्यक्ति । वाला कार्य या उत्सव ।
सहृदयता-स्त्री० [सं०] दयालुता; चित्तकी कोमलता। सहा-स्त्री० [सं०] पृथ्वी ।
सहेजना-सक्रि० सँभालना; कोई चीज सचेत करके सहाइ*-पु० सहायक । स्त्री० सहायता।
सौंपना। सहाई*-पु० सहायक । स्त्री० सहायता ।
सहेट*-पु० दे० 'सहेत'। सहाध्यायी(यिन)-पु० [सं०] सहपाठी; एक ही, समान सहेत*-पु. प्रेमी-प्रेमिकाके मिलनेका निश्चित स्थान, विषयका अध्ययन करनेवाला।
संकेतस्थल । सहाना-पु० एक राग । * वि० दे० 'शहाना'। सहेतु-वि० [सं०] कारणयुक्त, युक्तियुक्त । सहानुभूति-स्त्री० [सं०] किसीके दुःखादिसे दुःखी होना, सहेतुक-वि० [सं०] सकारण, सोद्देश्य । इमददीं।
सहेलरी -स्त्री० सखी, सहेली। सहापराधी(धिन)-पु०[सं०] (एकांप्लिस) किसी अपराधमें | सहेली-स्त्री० साथ, संग रहनेवाली स्त्री सखो, साथिन; मुख्य अपराधीका साथ देनेवाला, उसकी सहायता | दासी, सेविका। करनेवाला।
सहया-वि० सहने, बरदाश्त करनेवाला। * पु० सहायक; सहाब-पु० दे० 'शहाब'; [अ०] बादल, मेध ।
मददगार। सहाय-पु० [सं०] साथी; मैत्री सहायक सहायता। सहोक्ति-स्त्री० [सं०] साथ बोलना; एक अर्थालंकार, जहाँ सहायक-पु० [सं०] सहायता करनेवाला, सहकारी संग, सहित आदि पदोंका प्रयोग करते हुए एक ही कामअधीनतामें काम करनेवाला । -आजीविका-स्त्री. के साथ अन्य कितनी ही बातोंका होना मनोरंजक ढंगसे (सबसिडियरी आक्युपेशन ) मुख्य पेशे या कामसे होने वर्णित किया जाय । वाली आमदनीसे पूरा न पड़नेपर सहायताके रूपमें किया सहोदर-वि० [सं०] सगा, एक मातासे उत्पन्न; एक जानेवाला कोई अन्य कार्य या धंधा। -नदी-स्त्री. वह | जैसा । पु० सगा भाई। नदी जो किसी बड़ी नदीमें मिलती हो। -संपादक-पु. सह्य-वि० [सं०] जो सहा जा सके; सहन करने में समर्थ; वह व्यक्ति जो किसी संपादकको संपादन-कार्यमें सहायता मुकाबला करने में समर्थ; शक्तिशाली; प्रिय, सुमधुर । देता हो।
पु० सह्यादि-श्रेणी; आरोग्य; सहायता उपयुक्तता । सहायता-स्त्री० [सं०] साथ, मैत्री; मदद; मित्र-मंडली। सह्याद्रि-पु० [सं०] बंबई प्रांतकी एक पर्वतश्रेणी जो -गृह-पु० (रेस्क्यू होम) खतरे या संकटमें पड़े हुए समुद्रतटके समीप स्थित है। लोगोंकी सहायताके लिए स्थापित गृह ।
| साँई-पु० स्वामी; ईश्वर पति मुसलमान फकीर ।
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साँकर-साँप साँकड़-खी जंजीर, सीकड़ा पैरका एक गहना, साँकड़ा। भाँजका एक प्रकार । साँकड़ा-पु० पैरका एक गहना।
| साँझ*-स्त्री. संध्या, सायंकाल । सॉकर*-पु. संकट, कष्ट । स्त्री० जंजीर, सीकड़ । वि० | साँझा-पु० दे० 'साझा'। सँकरा, तंग; कष्टयुक्त।
साँझी-स्त्री० मंदिर में देवमूर्तिके सामने चौक पूरने जैसी साँकरा-पु० कष्ट-'साँकरेकी साँकरन सनमुख होत | की जानेवाली फूलोंकी सजावट । तोरै-रामा० साँकड़ा। वि० तंग ।
साँट-स्त्री० छड़ी कोड़ा, छड़ीकी चोटका दाग । सांकर्य-पु० [सं०] मिश्रग, मिलावट, संकरता।
साँटा-पु० डंडा; ईख । साँकला-स्त्री० शृंखला, जंजीर ।
| साटिया-पु० डुग्गी पीटनेवाला। सांकेतिक-वि० [सं०] संकेत संबंधी, संकेतवाला। | साँटी-स्त्री० पतली छड़ी, बाँसकी कमची, कइन; * मेलसांक्रमिक-वि० [सं०] संक्रमण करनेवाला, संक्रामक । - जोल; बदला, प्रतिकार । सांक्षेपिक-वि० [सं०] संक्षिप्त, छोटा किया हुआ। साँठ-पु० साँटा; ईख, अन्न पीटनेका डंडा; सरकंडा, मेल, सांख्य-वि० [सं०] संख्या संबंधी; गणना करनेवाला। योग । -गाँठ-स्त्री० हेल-मेल; गुप्त-संबंध; दुरभिसंधि, पु० छः दर्शनोंमेंसे एक जिसके कर्ता कपिल ऋषि थे (इसमें | साजिश । प्रकृति ही सारे विश्वका मूल और पुरुप द्रष्टामात्र माना | साँठना*-स० क्रि० पकड़े रहना। गया है)।
साँठि, साँठी*-स्त्री० पूँजी, धन-'बाम्हन तहवाँ लेइ का, सांख्यिक-पु० (स्टैटिस्टीशियन) जनन, मरग, उत्पादन | गाँठि साँठि सुठि थोर'-५०। आदि-संबंधी प्रामाणिक आँकड़े एकत्र करनेवाला कर्मचारी सांड-वि० [सं०] अंडयुक्त, जो बधिया न किया गया हो। अथवा विशेषज्ञ, आंकिक ।
साँड़-पु० मृतककी स्मृतिमें दागकर छोड़ा हुआ बैल; घह सांख्यिकी-स्त्री० (स्टैटिसटिक्स) जनन, मरण, उत्पादन, बैल या घोड़ा जो बधिया न कर जोड़ खिलानेके लिए अपराध आदि संबंधी आँकड़े (संख्याएँ) प्रामाणिक रूपसे पाला गया हो। वि० शक्तिशाली, मोटा-ताजा; आवारा, एकत्र करने, तैयार करने आदिकी विद्या; इस तरह तैयार लंपट । मु०-की तरह घूमना-आजादी और बेफिक्रीसे किये गये आँकड़ोंका समूह ।
घूमते फिरना ।-की तरह डकरना-जोरसे चिल्लाना। सांख्यिकीय मंत्रणाकार-पु. ( स्टैटिस्टिकल एडवाइजर) साँड्नी-स्त्री० (तेज चालवाली) ऊँटनी । जनन, मरण, उत्पादन आदिके आँकड़ोंके संग्रह, अध्य- साँड़ा-पु० गिरगिटकी जातिका एक जंतु जिसका तेल यन, विवेचन इत्यादिके संबंध परामर्श देनेवाला(आंकिक दवाके काम आता है। मंत्रणाकार)।
साँड़िया-पु० तेज रफ्तारवाला ऊँट; साँड़नीका सवार । सांग-वि० [सं०] अंगयुक्त प्रत्येक अवयबसे पूर्ण; छ: सांत-* वि० दे० 'शांत'; [सं०] अंतयुक्त प्रसन्न । अंगोंसे युक्त।
सांतर-वि० [सं०] अंतर या अवकाशयुक्त; झीना। साग-स्त्री० बरछी।
सांतापिक-वि० [सं०] ताप पहुँचानेवाला; कष्ट देनेवाला। सांगतिक-वि० [सं०] संगति-संबंधी; सामाजिक । पु० | सांति-स्त्री० दे० 'शांति'। अतिथि; अजनबी; जो किसी कारबारके सिलसिले में | सांत्वन-पु० [सं०] तुष्ट करना, ढाढ़स बँधाना; तसरली आया हो।
तुष्ट करनेका साधन; तुष्ट करनेवाले शब्द । साँगी-स्त्री० बरछी; जुएपर गाड़ीवानके बैठनेका स्थान । | सांत्वना-स्त्री० [सं०] दे० 'सांत्वन'। सांगोपांग-वि० [सं०] अंगों, उपांगों और उपनिषदोंसे | साँथरी-स्त्री० दे० 'साथरी'। युक्त अंगोंसे युक्त, पूर्ण ।
सांदीपनि-पु० [सं०] एक मुनि जो कृष्ण और बलरामके सांघात-पु० [सं०] दल, यूथ, समूह ।
गुरु थे। सांघातिक-वि० [सं०] मारात्मक, घातक, हननकारक । सांद्र-वि० [सं०] घना, ठस, गफ; मोटा; एकमें मिला सांघिक-वि० [सं०] (भिक्षुओं आदिके) संघ-संबंधी। हुआ; हृष्ट-पुष्ट; अत्यधिक प्रचंडा स्निग्ध; चिकना; साँच*-वि० ठीक, सत्य। पु० सच्ची बात ।
कोमल । पु० राशि, झुंडा जंगल । साँचर नमक-पु० सौवर्चल लवण ।
सांध-वि० [सं०] संधि, जोड़-संबंधी; जो जोड़पर हो। साँचला -वि० सत्यवादी, सच्चा।
साँध-पु० निशाना, लक्ष्य । साँचा-पु. वह ढाँचा जिसमें कोई गीली चीज भरकर साँधना*-स० कि० निशाना लगाना; लक्ष्यपर रखना, खास शकलकी चीज ढालते हैं। छोटा नमूना; कपड़ेपर चढ़ाना-करतल चाप रुचिर सर साँधा'-रामा०, सिद्ध फूल आदि छापनेका लकड़ीका ठप्पा । * वि. सच्चा। करना; साधनासानना, मिलाना, गूंधना । -(चे)मैं ढला-सुडौल, सुंदर ।
सांधिविग्रहिक-पु० [सं०] संधि और युद्धका निश्चय सांचारिक-वि० [सं०] जंगम ।।
करनेवाला मंत्री। साँचिया-पु. साँचा बनानेवाला; साँचेमें कोई चीज सांध्य-वि० [सं०] प्रातःकाल यासंध्या-संबंधी। कुसुमाढालनेवाला।
स्त्री० शामको फूलनेवाला पौधा या बेल । -भोजनसाँचिला*-वि० सच्चा ।
| पु० भ्यालू । साँची-पु. एक तरहका पान । स्त्री० छपाई तथा कागजकी | साँप-पु० पेटके बल रेंगनेवाला एक प्रसिद्ध विषैला कीड़ा,
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सांपत्तिक-साइबान सर्प । -धरण*-पु० शिव । मु०-उतारना-साँपका सांव्यवहारिक-वि० [सं०] प्रचलित, जो व्यवहारमें आता जहर दूर करना । -कलेजे या छातीपर लोटना-बहुत हो । पु० साझे में व्यापार करनेवाला व्यक्ति । व्याकुल होना; भारी सदमा पहुँचना। -का पाँव | सांशयिक-वि० [सं०] संदिग्ध; संदेह करनेवाला । देखना-असंभव बातके लिए प्रयत्न करना । का बच्चा- साँस-स्त्री० नाक या मुँह से अंदर खींची और बाहर निकाली दुष्ट, जालिम । -की तरह जमीन पकड़ना-जरा भी जानेवाली हवा गुंजाइश; फुरसत; दमा। मु०-अंदरकी न हिलना । -की तरह फन झाड़ या मारकर रह अंदर, बाहरकी बाहर रह जाना-भयसे स्तब्ध रह जाना-वश न चलना, प्रयत्नमें विफल होना । जाना । -उखड़ना-हाँफना, साँस छूटना । -उड़ना -कीलना-मंत्र द्वारा साँपको काटनेसे रोकना।-की सी -दम रुकना । -उलटी चलना-उपरको चढ़नाकेंचुली झाड़नाया डालना-साफ-सुथरा होना; आरोग्य
आसन्न-मृत्यु होना। -ऊपर-नीचे होना-बहुत व्यस्त लाभ करना । -के मुँहमें-खतरेमें । -खेलाना-मंत्रके
होना; साँस स्कना। -खींचना-जोरसे साँस लेना बलसे साँप पकड़ना। -छछूदरकी गति या दशा- दम साधना। -गिनना-आसन्नमृत्युकी साँस देखकर द्विविधाकी स्थिति। -लहराना-साँपकी तरह आचरण
हालतका निश्चय करना । -चढ़ना-हॉफना, सॉस करना; बहुत व्याकुल होना; ईर्ष्यासे जलना। -सा
फूलना । -चढ़ाना-दम साधना, मुर्दा बन जाना। लोटना-बहुत व्याकुल होना । -सूघ जाना-साँपका -चलना-जिंदा होना । -टूटना-साँसका नियमित काटना या काटनेसे मर जाना। -से खेलना-खतर
रूपसे न चलना ।-डकार न लेना-भाल पचा जाना और नाक आदमीसे मेल-मिलाप करना।
पता न लगने देना। -तक न लेना-बिलकुल मौन सांपत्तिक-वि० [सं०] संपत्ति संबंधी, आर्थिक ।
रहना, कुछ न बोलना । -न निकालना-चुप रहना । सांपद-वि० [सं०] संपत्ति-संबंधी;"के उपकरण-संबंधी।
-फूलना-दम चढ़ जाना, हाँफना । -भरना-ऊपरसाँपा-पु० सियापा।
का दम लेना, हाँफना आह भरना । -रहते-जीते जी। साँपिन-स्त्री० सर्पिणी, साँपकी मादा; धोड़े, बैलके शरीर- -रुकना-दम बंद होना; सांस लेने में तकलीफ होना । परकी एक तरहकी भौरी जो बुरी मानी जाती है।
-लेना-साँस फेफड़ों में ले जाना और बाहर निकालना; साँपिया-पु० साँपके रंगसे मिलता हुआ रंग।
आह भरना दम लेना, रुक जाना, सुस्ता लेना । (उलटी) सांप्रत-अ० [सं०] तत्काल, अभी, इस समय ।
-लेना-बड़ी तकलीफ होना। -लेनेकी फुरसतसांप्रतिक-वि० [सं०] आधुनिक, वर्तमानकाल-संबंधी |
थोडीसी फुरसत । -सीनेमें अड़ना-साँस रुकना, मर(करेंट); उपयुक्त, ठीक ।
णासन्न होना। सांप्रदायिक-वि० [सं०] किसी संप्रदायसे संबंध रखनेवाला। साँसत-स्त्री० साँस रुकने जैसी तकलीफ; बहुत बड़ा कष्ट; सांप्रदायिकता-स्त्री० [सं०] सांप्रदायिक होनेका भाव; | यंत्रणा बखेड़ा। -घर-पु. कालकोठरी, जेलके अंदर वह केवल अपने संप्रदायका हित चाहना और दूसरे संप्रदायोंके छोटीसी कोठरी जिसमें कैद-तनहाईकी सजावाला आदमी हितोंकी उपेक्षा करनेको तैयार रहना।
अकेले रखा जाता है। सांबर-पु० पाथेय; [सं०] साँभर हिरन; साँभर नमक । | साँसति*-स्त्री० दे० 'साँसत'। साँभर-पु० राजपूतानेकी एक झील; उस झीलसे प्राप्त सांसद-वि० [सं०] जो संसद या उसके सदस्योंकी मर्यादा नमक; एक तरहका हिरन; * संबल, पाथेय-'साँभर सोइ के अनुकूल हो। गाँठि जो होई'-प० ।
साँसना*-सक्रि० शासन करना,दंड देना; पीड़ा देना। सामुही-अ० सामने ।
साँसा-पु० फिक्र, चिंता; अंदेशा, शंका; डर सोच-विचार, साँवत-पु. एक राग; * योद्धा ।
सॉस पीड़ा । मु०-पड़ना-संदेह होना; फिक पड़ना। सांवत्सर-वि० [सं०] वार्षिक । पु० गणक, ज्योतिषी, -रहना-अंदेशा रहना। पंचांग बनानेवाला; चांद्रमास । -रथ-पु० सूर्य। सांसारिक-वि० [सं०] संसार-संबंधी, लौकिक, ऐहिक । सांवत्सरिक-वि० [सं०] वार्षिक वार्षिक यश-संबंधी। सांस्कारिक-वि० [सं०] संस्कार संबंधी अंत्येष्टि या अन्य -श्राद्ध-पु० हर साल किया जानेवाला श्राद्ध ।
संस्कारोंके लिए आवश्यक । सांवत्सरी-स्त्री० [सं०] मृत्युके एक साल बाद होनेवाला | सांस्कृतिक-वि० [सं०] संस्कृति-संबंधी। श्राद्ध ।
सांस्पर्शिक-वि० [सं०] (कंटेजस) संस्पर्श या छूतसे होने, साँवरी-वि० साँवला।
फैलनेवाला (रोग); छूतका, छूतवाला (रोग)। साँवलताई।-स्त्री० साँवलापन ।
सा-पु० सप्तकके प्रथम स्वर-'षडज'का सांकेतिक रूप । साँवला-वि० श्याम वर्णका । पु. कृष्ण; पति प्रेमी। अ० सदृश, समान, जैसा एक मानसूचक शब्द ( फारसी--पन-पु. श्यामता।
में यह 'साँ' और 'आसा'का संक्षिप्त रूप है और तुल्य साँवलिया-वि० श्याम रंगका । पु० कृष्ण ।
आदि अर्थोंका ही द्योतक है)। साँवाँ-पु. बॅगनी जैसा एक कदन्न ।
साइक*-पु० दे० 'शायक'; संध्याकाल । सांवादिक-वि० [सं०] संवाद या समाचार-संबंधी। पु० | साइत-स्त्री० [अ० 'साअत'] पल, छन; मुहूर्त, लग्न, समाचार भेजनेवाला पत्रकार ( न्यूजमैन) सड़कपर घूम- (टलना, देखना; बिचारना इ०)। धूमकर समाचार-पत्र बेचनेवाला।
| साइबान-पु० दे० 'सायबान'।
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साइयाँ-सागरांत साइयाँ*-पु० दे० 'साँई'।
-कार-पु० ज्ञान, अनुभूति; मिलन, देखादेखी । -कृत साइरी-पु० दे० 'सायर' ।
वि० प्रत्यक्ष, गोचर कराया हुआ। साई-पु० दे० 'साँई'।
साक्षादृष्ट-वि० [सं०] (अपनी) आँखों देखा हुआ। साई-स्त्री०वह धन जो गाने-बजाने या इस तरहके काम साक्षिता-स्त्री०, साक्षित्व-पु० [सं०] गवाही, प्रमाण ।
करनेवालोंको नियत समयपर काम करनेके लिए अग्रिम | साक्षी-स्त्री० गवाही, गवाहका बयान । दिया जाता है, बयाना; + किसानोंकी आपसकी सहा- साक्षी(क्षिन्)-वि० [सं०] (अपनी) आँखों देखनेवाला, यता। वि० [अ०] सई (कोशिश) करनेवाला; दौड़-धूप | चश्मदीद । पु० अहम् चश्मदोद गवाह । -परीक्षणकरनेवाला।
पु०, -परीक्षा-स्त्री. गवाहकी परीक्षा, जिरह, दे० साईस-पु० घोड़ेकी देखभाल करनेवाला नौकर ।
'प्रतिपरीक्षण' (कास-इग्जामिनेशन)। साईसी-स्त्री० साईसका काम ।
साक्षीकरण-पु० [सं०] (अटेस्टेशन) किसी बातके साक्षिसाउज*-पु. वे जानवर जिनका शिकार किया जाय- रूपमें हस्ताक्षर करना, किसी लेख या प्रमाणपत्रादिकी 'कीन्हेसि साउज आरन रहई'-५०।
प्रतिलिपिपर हस्ताक्षर कर स्वीकार करना कि वह सच्ची साक-पु० तरकारीके रूपमें खाया जानेवाला पौधेका पत्ता, और सही प्रतिलिपि है, सत्यापन । साग सागौन । * स्त्री० साखः धाक ।
साक्षीकृत-वि० [सं०] (अटेस्टेड) जिसपर साक्षिरूपमें साकट*-पु० शाक्त मत माननेवाला; मद्य, मांस आदिका हस्ताक्षर किया गया हो, हस्ताक्षर द्वारा जिसका सच्ची सेवन करनेवाला, निगुरा: खल ।
प्रतिलिपि होना स्वीकार किया गया हो। साकत-पु० दे० 'साकट'।
साक्षेप-वि० [सं०] आक्षेपात्मक, जिसमें व्यंग्य, ताना हो। साकर-+ वि० सँकरा, नंग। * स्त्री० साँकल । साक्ष्य-पु० [सं०] गवाही प्रमाण । -विधि-स्त्री० (लॉ साकल्य-पु० दे० 'शाकल्य'; [सं०] समग्रता, संपूर्णता। __ ऑफ एविडेंस) साक्ष्य-संबंधी विधि या कानून । -वचन-पु० पूरा पाठ।
साख-स्त्री० रोव, दबदबा; लेन-देन-संबंधी एतबार या साकांक्ष-वि० [सं०] इच्छायुक्त, इच्छुक; जिसके लिए प्रतिष्ठा; * डाली; जाति या वंशका भाग या अंग। -पत्र पूरक आवश्यक हो।
पु० (सिक्यूरिटीज) साखपर लिये गये ऋणका सूचक पत्र, साका-पु० शाका, संवत् रोब, दबदबा नामवरी कीर्ति- उस तरहके सार्वजनिक ऋणका सूचक पत्र जिसकी जामिन स्मारक । * स्त्री० इच्छा, चाह-'आजु आइ पूजी वह प्रायः देशकी सरकार होती है और कंपनियों के हिस्सों साका'-प० ।मु०-चलना-रोब माना जाना।-चलाना आदिकी तरह जिसकी खरीद-बिक्री अंकित मूल्यसे कम -दबदबा कायम करना।
या अधिकपर की जा सकती है। साकार-वि० [सं०] आकारयुक्त, रूपविशिष्ट, मूर्त, स्थूल; साखना*-स० क्रि० गवाही, साक्षी देना।
अच्छे आकारका, सुंदर । पु० ईश्वरका सगुण रूप । साखर*-वि० दे० 'साक्षर'। साकारोपासना-स्त्री० [सं०] ईश्वरके सगुण रूपकी उपासना। साखा-स्त्री० शाखा, ढाली; जाति या वंशका अंग । साकिन-वि० [अ०] गति हीन । पु० हलवर्ण; रहनेवाला, साखी-पु० गवाह पंच; * वृक्ष । स्त्री० गवाही; (कबीर निवासी । -हाल-वर्तमान निवासी (वर्तमान निवास आदिके) शान-विराग-विषयक पद । बतानेके लिए कहते हैं)।
साखू-पु० शालका पेड़, सखुआ। साक्री-पु०[अ०] पानी पिलानेवाला; शराब पिलानेवाला। साखोचार, साखोचारन*-पु० दे० 'शाखोच्चार'। साकूत-वि० [सं०] सार्थक, अर्थगर्भ; साभिप्रायः क्रीड़ा. | साख्य-पु० [सं०] मैत्री, दोस्ती। युक्त। -स्मित,-हसित-पु० साभिप्राय मंद हास; साग-पु. भाजीके रूप में खायी जानेवाली पत्तियाँ, शाक; प्रणयसूचक हास और चितवन ।
तरकारी। -पात-पु० साग-भाजी; रूखा-सूखा भोजन । साकेत, साकेतन-पु० [सं०] अयोध्या ।
सागर-पु० [सं०] ससुद्र (कहा जाता है कि राजा सगरके साकेतक-पु० [सं०] अयोध्या निवासी।
नामपर इसका नाम सागर पड़ा); सरोवर; चार या साक्तुक-पु० [सं०] जौ; जौका सत्त; एक विष । वि० सातकी संख्या; एक बहुत बड़ी संख्या (दस पद्म); सत्त-संबंधी।
एक नाग; सगर राजाके पुत्र; एक मृग; (ला०) बहुत बड़ी साक्ष-वि० [सं०] नेत्रयुक्त; जपमालासे युक्त ।
राशि या पुंज । वि. समुद्र-संबंधी। -गंभीर-पु० साक्षर-वि० [सं०] पढ़ा-लिखा, शिक्षित ।
समाधिका एक प्रकार । -गम,-गामी (मिन)-वि० साक्षरता-स्त्री० [सं०] पढ़े लिखे होनेका भाव । -आंदो- समुद्रमें जानेवाला । -गा-स्त्री० नदी गंगा। -गालन-पु. (लिटरेसी के पेन) निरक्षरोको साक्षर, अपढ़ोंको | सुत-पु० भीष्म ।-ज-पु०समुद्रलवण । -धरा-स्त्री० पढ़ा हुआ, बनाने के लिए चलाया गया आंदोलन । पृथ्वी । -धीर,-चेता(तस)-वि० जिसका मन सागरसाक्षात्-अ० [सं०] आँखोंके सामने, प्रत्यक्ष; स्पष्टतः; की तरह शांत और गंभीर हो । -नेमि,-नेमीवस्तुतः; सीधे । -कर-कारी(रिन्)-वि० प्रत्यक्ष, -मेखला-स्त्री० पृथ्वी ।-वासी (सिन्)-वि० समुद्रगोचर करनेवाला; मिलनेवाला। -करण-पु० आँखोंके तटपर रहनेवाला। -शुक्ति-स्त्री० समुद्री सीप ।-सूनुसामने रखनेकी क्रिया; अनुभूति; किसी बातका तात्का
| पु० चंद्रमा। लिक कारण। -कर्ता(त)-वि० सब कुछ देखनेवाला।सागरांत-पु० [सं०] समुद्रतट ।
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सागरोता-साथ
८३४ सागरांता, सागरांबरा-स्त्री० [सं०] पृथ्वी ।
साटना-स० क्रि० मिलाना, जोड़ना; चिपकाना। सागवन, सागवान-पु० दे० 'सागौन'।
साटा*-पु० बदला। सागू-पु० [अं० 'सैगो'] ताड़की जातिका एक पेड़ जिसके | साटी-स्त्री० छड़ी, कमची; पत्रभंग; सामान + गदहपूर्ना; तने के अंदरके पदार्थसे सागूदाना बनाया जाता है। * बदला। -दाना-पु० सागूके तनेके अंदरका भाग पीसकर बनाया | साटोप-वि० [सं०] घमंडसे फूला हुआ; गरजता हुआ हुआ दाना।
(जैसे बादल)। सागौन-पु. एक पेड़ जिसकी लकड़ी मेज, कुरसी आदि | साठ-वि० पचाससे दस अधिक । पु० साठकी संख्या,६० । बनानेके काम आती हैं ।
स्त्री० साँठि, पूँजी। साचि-अ० [सं०] तिरछे, टेढे । -विलोकित-पु० तिरछी | साठनाठ-वि० जिसकी पूँजी नष्ट हो गयी हो, धनहीन; चितवन ।
| रसहीन, रूखा; छिन्न-भिन्न । साचिविक-वि० [सं०] (सेक्रेटेरियल ) सचिव या उसके | साठा-वि० साठ वर्षकी अवस्थाका । पु० साठी धान ऊख कर्तव्योंसे संबंध रखनेवाला। -स्तरपर-वि. (ऑन | लंबा-चौड़ा खेत; एक मधुमक्खी । सेक्रेटेरियल लेवल) (समझौते, जाँच आदि-संबंधी बात- साठी-पु. एक धान जो बहुत जल्द तैयार होता है । चीत) जो दो या अधिक राज्योंके विभागीय सचिवोंके साड़ी-स्त्री० स्त्रियोंकी धोती; साढ़ी। बीच की जाय।
साढसाती*-स्त्री० दे० 'साढ़ेसाती'। साज़-पु० [फा०] सामग्री, सामान; सजावटकी सामग्री; | साढ़ी-स्त्री० असाढ़में बोयी जानेवाली फसल; मलाई । लहँगेकी सजावट; गानेके साथ बजाये जानेवाले बाजे साढ़ -पु. पत्नीकी बहनका पति। (सारंगी, तबला इ०); घोड़ेको सवारीके लिए तैयार करने या | साढ़े-वि० आधेके साथ। -साती-स्त्री० शनि ग्रहकी सजानेका सामान (जीन, काठी, लगाम इ०); युद्धसामग्री, | एक अनिष्टकर स्थिति । मु०-साती आना या चढ़नाआयुध; मेल-जोल; अनुकूलता; सुरोंका मेल; साजिश, विपत्तिग्रस्त होना। साठ-गाँठ । वि० (केवल समासमें) बनानेवाला (कारसाज, सात-वि. छ. और एक । पु. सातकी संख्या, ७ । रंगसाज); बनाया हुआ (खुदासाज, ईश्वरका बनाया -पाँच-पु०चालाकी, चालबाजी; दगा बहाना तकरार । हुआ; दस्तसाज-हाथका बनाया हुआ)। -बाज-पु० स्त्री० सप्तपदी। मु०-की नाक कटना-सारे परिवारका ठाट-बाट; मेल-जोल; तैयारी; : साजिश, साँठ-गाँठ । बदनाम होना। -घर भीख माँगना-दर-दर माँगना । -सामान,-(जो) सामान-पु०(वस्तु या कार्यविशेषके -परदे लगना-परदेमें रहना (उस स्त्रीके लिए प्रयुक्त लिए) आवश्यक सामग्री; सामान, चीज, वस्तु । -का जो अमीर होनेपर परदे में रहने लगी हो)। -परदौम परदा-सारंगी, सितार आदिका वह पुरजा जिससे कोई रखना-छिपाकर रखना; बड़ी सावधानीसे रखना। विशेष स्वर बजाया जाय । मु०-करना-मेल करना; -पाँच न जानना-भोला-भाला होना। -राजाओंसाजिश करना।-छेड़ना-साज बजाना।
की साक्षी देना-किसी बातकी सचाई पर जोर देना। साजन-पु० प्रेमी; पति, भर्ता; सज्जन, सुजन; ईश्वर । -समुंदर पार-बहुत दूर । -(ती) भूल जानासाजना*-स० कि० सजाना, सुसज्जित करना; तैयार | होशहवास खो देना। करना। पु० साजन ।
सातत्य-पु० [सं०] नैरंतर्य, अविच्छिन्नता, स्थायित्व । साजा*-वि० सुंदर-'ये सुत कौनके शोभहिं साजे'-रामसाति-स्त्री० * दंड, शास्ति ।। अच्छा ।
सातिक, सातिग-वि० दे० 'सात्त्विक' । साजात्य-पु० [सं०] जाति या वर्गकी समानता, सह- सात्त्विक-वि० [सं०] यथार्थ सत्य, प्राकृतिक; सत्त्वगुणवर्गीयता।
युक्त, ईमानदार, नेका शक्तिशाली; सत्त्वगुण-संबंधी; साज़िंदा-पु० [फा०] साज बजानेवाला (सारंगिया, इ०)। सत्त्वगुणप्रधान; भावजन्य । पु. एक भाव (अनुभाव) साजिद-वि० [अ०] सिजदा करनेवाला,वंदना करनेवाला। जिसमें स्तंभ, स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, कंप, वैवर्ण्य, अश्रु साजिश-स्त्री० [सं०] मेल-जोल; अविहित या अपराधरूप और प्रलय-ये आठ प्रकारके अंग-विकार होते हैं। इन कार्य में गुप्त सहयोग ऐसे कार्यके लिए की जानेवाली गुप्त अंग-विकारोंका प्रदर्शन करनेवाला अभिनय ब्रह्मा ब्रह्मा मंत्रणा, चक्र।
प्रजापतिकी आठवीं सृष्टि । साज़िशी-वि० [फा०] साजिश करनेवाला, चक्री।। सात्म्य-पु०[सं०] प्रकृतिके अनुकूल होनेका भाव; सारूप्य; साजुज्य*-पु० दे० 'सायुज्य'।
अनुकूल आहार आदि अभ्यास । साझा-पु० शिरकत, हिस्सेदारी; पत्ती।-(झे)दार-पु० | सानिक परीक्षा-स्त्री० [सं०] (टरमिनल इग्जामिनेशन)
दे० 'साझी'।-दारी-स्त्री० साझेदार होना, हिस्सेदारी। विद्यालय आदिका एक सत्र समाप्त होनेपर ली जानेवाली साझी-पु.हिस्सेदार; वह जिसकी पत्ती हो।
परीक्षा। साट-स्त्री० छड़ी; छड़ीकी चोटका दाग। -मार-पु० | सात्विक-वि०, पु० दे० सात्त्विक'। हाथियोंको लड़ानेवाला ।
साथ-पु० संग, हेल मेल; साथी । अ० सहित से; बिरुद्ध साटक-पु० भूसी, छिलका तुच्छ वस्तु; एक छंद । प्रति; * द्वार।। -साथ-अ० एक साथ (चलना, रहना साटन-पु. [अं॰ 'सैटिन'] एक बढ़िया रेशमी कपड़ा। आदि)। मुक-करना-संपर्क में रहना, पास रहना ।
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साथरा-साध्य -का खेला-लँगोटिया यार, बचपनका साथी। -घसी. जरिया, वसीला; कारण; करणकारक (व्या०); औजार टना-जबरदस्ती शरीक करना। -छटना-साथियोंसे सामग्री; पदार्थ, द्रव्य सेना; सहायता प्रमाण; उपाय: अलग होना, वियुक्त होना; दोस्ती छूटना। -देना- हेतु (न्या०); तुष्टीकरण; अनुगमन; तपश्चर्या मंत्रादि निबाहना; सहायता देना; शरीक होना; साथ यात्रा सिद्ध करना; मोक्षप्राप्तिः धातु-शोधन, औषध-निर्माण करना। -निबहना-निबाह होना। -रहना-संग शरीरका कोई अवयव शिश्न; धन, संपत्ति मैत्री; लाभ; रहना। -सुलाना,-सोना-किसीका एक बिस्तरेपर मृत-संस्कार । -हार*-वि० सिद्ध करनेवाला सिद्ध होने दूसरेके निकट सोना; हमबिस्तर होना, सहवास करना । योग्य । -सोकर मुंह छिपाना-घनिष्ठता होनेपर भी संकोच | साधनता-स्त्री०, साधनस्व-पु० [सं०] उद्देश्यपूर्तिका करना । -ही-सिवा, अलावा ।-ही-साथ-एक साथ । | जरिया होना सिद्ध करनेकी क्रिया; सिद्धिकी अवस्था । -होना-शरीक होना।
साधना-स्त्री० [सं०] कार्य-सिद्धि; आराधना, उपासना साथरा*-पु० दे० 'साथरी'।
तुष्टीकरण । स० क्रि० सिद्ध करना, पूरा करना; अभ्यास साथरी*-स्त्री० कुश आदिकी चटाई ।
करना; शुद्ध करना ठीक करना; इकट्ठा करना; निशाना साथी-पु० वह जो साथ रहता हो; मित्र, दोस्त; सहायक ।। लगाना; वशमें करना; जाँच करना; नापना प्रमाणित साद-पु० [सं०] विषाद: क्लोति; क्षीणता; क्षय, नाश करना; * सहन करना। पीड़ा, स्वच्छता, विशुद्धता; शरण; गति । वि० [अ०] साधनीय-वि० [सं०] सिद्ध करने योग्य निर्माण करने भला, भद्रा शुभ, मांगलिक । पु० किसी बातको योग्य (शब्द); प्राप्त करने योग्य (जैसे ज्ञान); प्रमाणित ठीक मानने, पसंद करने या स्वीकार करनेका करने योग्य। चिह्न। मु०-करना-सही मानना, स्वीकृति सूचित | साधयिता(त)-पु० [सं०] साधक, सिद्ध करनेवाला। करना।
साधर्म्य-पु० [सं०] धर्म, स्वभाव, पद, कर्तव्य आदिका सादगी-स्त्री० [फा०] सादापन, बनावटका अभाव; सर- साम्य, एकधर्मता। लता भोलापन ।
साधस-पु० दे० 'साध्वस' । सादर-अ० [सं०] आदरके साथ ।
साधार-वि० [सं०] जिसका कोई आधार हो, जो किसीसादा-वि० [फा०] विना सजावट, बिना काम, बिना गोटे | पर टिका हो। किनारीका; जिसमें बनावट न हो; कोरा, बिना लिखा साधारण-वि० [सं०] निर्विशेष, मामूली; सदृश, समान, हुआ (कागज); सरलहृदय, भोला; खालिस, बेमेल; जिस- | सामान्य, लौकिक आसान, सरल; मिला-जुला एकाधिक पर टिकट या स्टांप न लगा हो। -कपड़ा-पु. वह विषयोंसे संबद्ध, अनैकांतिक (न्या०); बीचका । -धर्मवस्त्र जिसपर काम न हो या जिसका रंग शोख न हो। पु० सबमें पाया जानेवाला धर्म; सार्वजनिक कर्तव्य -कागज़-पु. कोरा कागज; कागज जिसपर स्टाप न (अहिंसा, सत्य आदि)। -निर्वाचन-पु. (जनरल लगाया गया हो । -कार-पु. सोने-चाँदीपर बदिया इलेक्शन) समूची विधानसभा या संसद् आदिके सदस्योंकाम बनानेवाला ( सुनार)। -दिल-वि० सरलचित्त, का निर्वाचन ('उपनिर्वाचन से भिन्न)। -स्त्री-स्त्री० सीधा ।-मिज़ाज-वि० जिसके मिजाजमें बनावट न हो। वेश्या । सादिक-वि० [अ०] सच्चा ठीक, दुरुस्त ।
साधारणतः (तस)-अ० [सं०] आम तौरपर, प्रायः । सादित-वि० [सं०] विषादित; शरण प्राप्त कराया हुआ; साधारणतया-अ० [सं०] दे० 'साधारणतः'।
समाप्त किया हुआ; क्षीण किया हुआ; कति किया हुआ। साधिका-वि० स्त्री० [सं०] सिद्ध करनेवाली। सादी-स्त्री० एक चिड़िया (यह लाल जातिकी, भूरे रंगकी, साधित-वि० [सं०] सिद्ध, पूरा किया हुआ; वसमें किया
छोटी सी होती है); बिना पीठीवाली पूरी + दे० शादी हुआ; प्रमाणित प्राप्त दंडित; दापित; शोधित (ऋणादि)। पु० फारसीका यशस्वी कवि और गुलिस्ताँ-वोस्ताँ आदिका साधु-वि० [सं०] बढ़िया, उत्तमः पूर्ण; उपयुक्त, ठीक; रचयिता, शैख मुसलिहुद्दीन शीराजी (१९८४-१२९२ धार्मिक, धर्मपरायण; दयालु शुद्ध प्रियकुलीन; शिष्ट । ई०) वि० स्त्री० दे० 'सादा' ।
पु० सच्चा या नेक आदमी; संत मुनि जौहरी व्यापारी। सादूर-पु० सिंह हिंसक जीव ।
-भाव-पु० अच्छा स्वभाव, दयालुता। -वाद-पु० सादृश्य-पु० [सं०] समानता, तुल्यता; बराबरी, तुलना । शावाशी देना। -वादी (दिन)-वि० उचित कहनेसाद्यंत-वि० [सं०] पूरा, संपूर्ण ।
वाला; प्रशंसा करनेवाला। -संसर्ग-पु० सत्संगति । साध-वि० अच्छा, भला, उत्तम । * पु० महात्मा, साधुः । -सम्मत-वि० अच्छे व्यक्तियोंको मान्य ।-साधु-अ० सज्जन; योगी । स्त्री० कामना, इच्छा ।
शाबाश धन्य धन्य । साधक-वि० [सं०] सिद्ध करनेवाला; संपन्न, पूरा करने- साधुता-स्त्री०, साधुत्व-पु० [सं०] सज्जनता; नेकी; वाला; समर्थ, योग्य कुशलमंत्रबलसे सिद्ध करनेवाला; सरलता विशुद्धता, पवित्रता; सचाई। सहायता देनेवाला; उपयोगी । पु० सहायक; साधन; साधू-पु० दे० 'साधु'। कुशल व्यक्ति (विशेषकर जादूमें); आराधक; तपस्वी, साधो*-पु० दे० 'साधु' (संबोधनमें) । योगी।
साध्य-वि० [सं०] सिद्ध होने योग्य पूरा किये जाने साधन-पु० [सं०] पूरा करना; सिद्धि; उद्देश्यप्राप्तिः | योग्य प्रयोगमें लाये जाने योग्य; सरल प्राप्या प्रमाणित
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सात
साध्यता-साफ़ी
८३६ करने योग्य निष्पाद्य वशमें करने योग्य; अच्छा करने | सापत्न्य-पु० [सं०] सपत्नीभाव, सौतपन, सौतेलापन; योग्य (रोग); वध्यः शोधनीय । पु० एक देववर्ग; देवता; सौतका पुत्र सौतेला भाई; शत्रुता प्रतिद्वंद्वी शत्रु । एक मंत्र सिद्धि, पूर्ति; वह जिसे प्रमाणित करना हो; सापना*-स० क्रि० शाप देना; कोसना। सत्ताईस योगों में से एक; अनुमेय पक्ष । -पक्ष-पु. वह सापवादक-वि० [सं०] अपवादयुक्त, जिसमें अपवाद पक्ष जिसे प्रमाणित करना हो (व्यवहार)। -सिद्धि-| हो सके। स्त्री०जिसे करना है उसका संपादन, निष्पत्ति । | सापिंड्य-पु० [सं०] सपिंडता । साध्यता-स्त्री० [सं०] शक्यता; (रोगका) अच्छा किये सापेक्ष-वि० [सं०] जिसमें किसीकी अपेक्षा हो, जो दूसरेजानेकी स्थितिमें होना।।
पर अवलंबित हो। साध्वस-पु० [सं०] क्षोभा भय, त्रास घबड़ाहट; बना- साप्ताहिक-वि० [सं०] सप्ताह-संबंधी; सप्ताह भरका; एक वटी भय (ना.)।
सप्ताहके अंतरसे होने या निकलनेवाला। पु. नियत साध्वाचार-पु० [सं०] साधुओंका आचार; शिष्टाचार, दिन हर हफ्ते निकलनेवाला समाचारपत्र । भद्रोचित कार्य।
साफ-वि० [अ०] स्वच्छ, निर्मल उज्ज्वल; बेदाग; निदोष, साध्वी-स्त्री० [सं०] पतिव्रता स्त्री धर्मपरायणा स्त्री। खालिस, शुद्ध पवित्र; स्पष्ट; खुला हुआ; पढ़ने, सुनने, सानंद-वि० [सं०] आनंदयुक्त, प्रसन्न । अ० आनंदपूर्वक, समझने में आसान (लिखावट, आवाज); जिसमें मैल, खुशीके साथ।
बुराई न हो, बिना छल-कपटका; पका, दोटूका समतल, सान-पु० पत्थरकी वह चक्की जिसपर उस्तुरा, कैची आदि- बराबर; जिसमें कोई पेच-पाच न हो (बात, मामला); की धार तेज की जाती है (चढ़ानादेना,धरना) + स्त्री० जिसमें सफाई हो (मजा हुआ)। अ० खुले तौरपर (साफ शान । -गुमान-पु० सुराग; निशान; खयाल; इशारा। कहना); पूरे तौरपर (साफ छिपना); सफाईसे, कुशलतासानना -स० कि० गूंधना, माँड़ना शरीक करना, भागी पूर्वक (उड़ाना, निकल जाना, इ०); स्पष्ट रूपसे (साफ बनाना; लपेटना।
देखना) । -इनकार-पु० स्पष्ट, दोटूक इनकार । सानी-स्त्री० पशुओंका पानीमें साना हुआ चारा; गाड़ीके -गोई-स्त्री. स्पष्टभाषिता । -जवाब-पु. दोटूक पहिये में लगाया जानेवाला गिट्टक; बेतरीके मिलाये हुए | जवाब । वि. दोटक जवाब देनेवाला। -दिल-वि० कई तरहके खाद्यपदार्थ (व्यंग्य); सनई। वि० [अ०] | जिसके दिल में छल-कपट, वैर-बुराई न हो। -साफदूसरा; जोड़ समता करनेवाला ।
अ० खुले तौरपर, स्पष्टतः । मु०-करना-सफाई करना; सानु-पु० [सं०] पहाड़की चोटी, शृंग ।
धोना, माँजना मल दूर करना; फिरसे लिखना, कटीसानुकंप-वि० [सं०] दयालु, कोमलचित्त ।
कुटी लिखावटको ठीक करके लिखना; समतल, मैदान सानुकूल-वि० [सं०] दे० 'अनुकूल' ।
बनाना (जंगल); विघ्न-बाधा दूर करना, खोलना (रास्ता); सानुक्रम संस्थान-पु०[सं०] (हायरैरकी) क्रमानुगत अधि- चुकाना, निबटाना (हिसाब); कुछ बाकी न छोड़ना, सब कारियोंवाली कोई संस्था।
उठा ले जाना (चोरोंने घर साफ कर दिया); सब खा-पी सानुक्रोश-वि० [सं०] दयालु, करुणाशील ।
डालना; मार डालना; सबको खतम कर देना, किसीको सानुज-वि० [सं०] अनुज, छोटे भाईसे युक्त ।
जीवित न छोड़ना (हैजेने घरके घर साफ कर दिय); सानुनय-वि० [सं०] विनयशील, शिष्ट । अ० विनय
अभ्यास पक्का करना (हाथ साफ करना)। -कहना
खरी, बेलाग कहना, सच्ची बात बिना कुछ घटाये-छिपाये सानुनासिक-वि० [सं०] जिस(अक्षर)के उच्चारणमें नाक्रका कहना; खुलकर, स्पष्ट रूपमें कहना। -छटना-बेदाग योग हो; नाकके योगसे गाने या बोलनेवाला।
छूटना, निर्दोष सिद्ध होकर रिहाई पाना। -बचनासानुप्रास-वि० [सं०] अनुप्रासयुक्त ।
बाल बाल बचना, तनिक भी आँच न आना । -बननासान्नहनिक-वि० [सं०] कवच धारण-संबंधी; युद्धार्थ पाक-साफ बनना, सचाई, साधुताका ढोंग करना। प्रस्तुत होनेके लिए प्रोत्साहित करनेवाला । पु. कवच- -बोलना-उच्चारण और लहजा ठीक होना, शुद्ध प्रवाहधारी सैनिक।
के साथ बोलना। -मैदान पाना-कोई विघ्न-बाधा न सान्निध्य-पु० [सं०] सामीप्य सन्निकटता; मुक्तिका एक होना; एकांत मिलना । -होना-साफ किया जाना। प्रकार ।
साफल्य-पु० [सं०] उपयोगिता; लाभ; सफलता। सान्निपातिक-वि० [सं०] जटिल, विषम; त्रिदोषजन्य साफा-पु० एक तरहकी पगड़ी जो कुछ अधिक ऊँची होती विषम रोगवाला।
है, मुरेठा; वह कपड़ा जो इस काममें लाया जाय । सान्वय-वि० [सं०] आनुवंशिका वंशजोंसे युक्त सकुल; मु०-देना-शिकारी जानवरोंको इसलिए भूखा रखना अर्थगर्भ; समान कार्य करनेवाला ।
कि वे शिकारपर ज्यादा तेजीसे टूटें, कबूतरको अधिक साप-पु० दे० 'शाप'।
ऊँचे उड़नेके लिए भूखा रखना। सापत्न-वि० [सं०] सौत-संबंधी या सौतसे उत्पन्न । पु० | साफिर-वि० [अ०] सफर करनेवाला । पु० दुबला घोड़ा। सौतेली संतान ।
साफ्री-स्त्री० छाननेका कपड़ा, खासकर वह कपड़ा जिससे सापत्मक-पु० [सं०] सौतोंकी आपसकी होड़ या दुश्मनी। भंग छानी जाया गाँजेकी चिलमके नीचे लपेटनेका कपड़ा; सापरनेय-वि० [सं०] सौतेला ।
वह कपड़ा जिससे बाबरची देग आदि पकड़कर चूल्हेसे
पूर्वक।
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साबर-सामाजिक उतारते हैं। -नामा-पु० राजीनामा ।
-विद्-वि० सामवेदका ज्ञाता। -वेद-पु० तीसरा साबर-पु० एक मंत्र जो शिवका बनाया माना जाता है। वेद । -वेदी(दिन)-पु० सामवेद जाननेवाला ब्राह्मण । साँभर हिरन या उसका चमड़ा; सेंहुड़ मिट्टी आदि खोद- -साली*-वि०, पु० राजनीतिज्ञ । नेका रुखानी जैसा एक औजार, सबरी ।
सामग्री-स्त्री० [सं०] आवश्यक वस्तुओंका समूह,सामान, साबल-पु० भाला, बरछी; सबरी ।
माल-असबाब प्रयोजन-संबंधी वस्तुएँ, उपकरण; साधन । साबिक-वि० [अ०] पिछला, बीता हुआ, गत । -दस सामत*-स्त्री० शामत, विपत्ति, बदकिस्मती । पु०सामंत । -अ० पुराने दस्तूर, रीतिके अनुसार, यथापूर्व । -में- | सामध*-पु० समधियोंका । आपसमें मिलना (एक रस्म) अतीत कालमें, पहले।
-'सामध देखि देव अनुरागे'-रामा० । साबिका-पु० [अ०] वास्ता, सरोकार काम (पड़ना, सामना-पु० मुकाबला; भेंट; लड़ाई, भित, मुठभेड़ होना)।
किसी चीजका अगला हिस्सा, मोहरागुस्ताखी, धृष्टता । साबित-वि० [अ०] स्थिर; दृढ़ सिद्ध प्रमाणित, साबूत, सामने-अ० आगे मुकाबलेमें; रूबरू; मौजूदगी में सीधमें। अखंड, समूचा। -क़दम-वि० दृढ़, वचन, निश्चयपर मु०-आना-मुकाबलेमें आना; रूबरू होना; मुँह दृढ़ रहनेवाला।
दिखाना; दिखाई देना। -करना-मुकाबले में लाना; साबिर-वि० [अ०] सब करनेवाला, सहन करनेवाला। पेश करना; आगे करना। -का-आगेका, मौजूदगीका; साबुन-पु० दे० 'साबून'।
अपना देखा हुआ। -की चोट-खुली हुई चोट । -की साबूदाना-पु० दे० 'सागूदाना' ।
बात-मौजूदगीका हाल ।-पड़ना-रोककर खड़ा होना; साबून-पु० [अ०] कास्टिक सोडा, सज्जी, तेल आदिके। संयोगसे मिल जाना। -से उठ जाना-मौजूदगीमें योगसे प्रस्तुत एक प्रसाधन जिसे पानी में रगड़नेसे फेन | न रहना; मर जाना। -होना-रूबरू होना; परदा न निकलता और जो शरीर, कपड़े आदि साफ करनेके काम करना; मुकाबला करना; लड़नेको तैयार होना; धृष्टता
आता है। -साजी-स्त्री० साबुन बनानेका धंधा। पूर्वक बर्ताव करना। साभिप्राय-वि० [सं०] अभिप्राययुक्त विशेष अर्थयुक्त सामयिक-वि० [सं०] समयोचित, समयके विचारसे उपअपने निश्चय पर द; विशेष प्रयोजनवाला ।
युक्त समय-संबंधी; वर्तमानकाल-संबंधी; जो ठहरावके साभिमान-वि० [सं०]गवीला, धमंडी । अ०धमंडके साथ। मुताबिक हो; अस्थायी नियत समयपर होने या निकलने सामंजस्य-पु० [सं०] औचित्य संगति; अनुकूलता उप- वाला । -पत्र-पु० नियत समयपर प्रकाशित होनेवाले युक्तता; विरोध, विषमता न होना, मेल ।
पत्र या पत्रिकाएँ; (पीरियाडिकल) दे० 'सावधिक पत्र' । सामंत-वि० [सं०] सीमावर्ती, पड़ोसी, सार्वभौम । पु० -वार्ता--स्त्री० (टॉपिकल टॉक) आकाशवाणी द्वारा प्रसापड़ोसी; पड़ोसका राजा; कर देनेवाला राजा; मांडलिक, रित की जानेवाली सामयिक घटनाओं या किसी सामयिक बड़ा जमींदार, योद्धा नायक पड़ोस ।-चक्र-पु० पड़ोस- प्रश्न, विषय आदिकी चर्चा; मुकदमेकी शामिल पैरवीके के राजाओंका मंडल। -तंत्र-वाद-पु० (फ्यूडल
लिए (बहुतोंका) लिखा जानेवाला इकरारनामा । सिस्टम, फ्यूडलिज्म) किसी राज्यकी वह शासन व्यवस्था
सामर-* पु० समर । * वि० श्याम रंगका; [सं०] देवजिसमें राज्यकी भूमि बड़े-बड़े सामंतों, सरदारों या जमी- युक्त, समर-संबंधी। दारोंके जिम्मे रहती थी और ये उसके बदले राजाको सामरथ, सामी -स्त्री० दे० 'सामर्थ्य'। आर्थिक या सैनिक सहायता देते थे।।
सामराधिप-पु० सेनापति । सामंतेश्वर-पु० [सं०] सम्राट्, राजेश्वर ।
सामरिक-वि० [सं०] युद्ध-संबंधी; समरका । साम-पु० एशियाका एक देश, स्यामः [अ०] नूहका बड़ा सामरिकता-स्त्री० [सं०] युद्धकार्यों में लग्न रहना, लड़ाईबेटा, अरब, यहूदी, मिस्री आदि जिसकी संतान माने | भिड़ाई। जाते हैं। वि० [सं०] जो अच्छी तरह पचा न हो; * सामरेय-वि० [सं०] समर-संबंधी । श्याम, काले रंगका । स्त्री० दे० 'शाम'; शामी। सामर्थ-स्त्री० दे० 'सामर्थ्य' । साम(न)-पु० [सं०] चार वेदोंमेंसे एक; वेदके गेय मंत्र; सामर्थ्य-पु०, स्त्री० [सं०] शक्ति, बल, क्षमता; शब्दकी स्तुतिमंत्र; शांत करना; तुष्ट करना; राजाके चार उपायों- अर्थशक्ति । -हीन-वि० शक्तिहीन, निर्बल। मेंसे एक (कह-सुनकर अपनी ओर कर लेना); मधुर सामवायिक-वि० [सं०] समूह, दल-संबंधी; अभेद्य संबंधवचन; कोमलता, नरमीयत ।-कारी(रिन)-वि० ढाढ़स विषयक। -राज्य-पु० युद्ध भयसे आत्मरक्षार्थ मैत्री बधानेवाला, शांत करनेवाला; मधुरभाषी । पु० सामका | करनेवाला राज्य (को०)। निर्माता एक तरहका सामगान। -ग-पु. सामवेदी सामसाली-वि०, पु० दे० 'साम'में । ब्राह्मण; विष्णु ।-गर्भ-पु० विष्णु |-गान-पु० सामका | सामस्त*-वि० दे० 'समस्त'। गायक: सामका गान -गान-प्रिय-पु.शिव ।-गाय,-सामहिं, सामहि*-अ० सामने, समक्ष । गीत-पु० सामका गान । -गायक-पु० सामवेदी | सामाँ, सामा-पु० साँवाँ सामान । खी० डील, प्रबंध । ब्राह्मण । -गायी(यिन)-वि०, पु० साम गानेवाला। सामाजिक-वि० [सं०] समाज-संबंधी समाजमें पाया -वय-पु० सोंठ, हरें और गिलोयकासमाहार ।-ध्वनि जानेवाला । -व्यवस्था-स्त्री० (सोशल आर्डर) समाजके -स्त्री० सामगानकी ध्वनि । -वाद-पु० मीठे वचन ।। निर्माणादिका ढंग ।-सुरक्षा-स्त्री० (सोशल सिक्यूरिटी)
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सामान-सायर
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बेकारी और अभाव तथा चोर-डाकुओं आदिसे परित्राणकी सामोद-वि० [सं०] आनंदयुक्त, प्रसन्न, सुगंधित । व्यवस्था। .
सामोपचार, सामोपाय-पु० [सं०] नरम उपाय काममें सामान-पु० [फा०] असबाब, चीज-वस्तु; किसी कार्यके लाना। लिए आवश्यक, साधनरूप वस्तुएँ, सामग्री ।-(न)जंग- साम्मत्य-पु० [सं०] सहमति, सम्मत होनेका भाव । पु० युद्ध-सामग्री । -सफ़र-पु० यात्राके लिए आवश्यक साम्मुख्य-पु० [सं०] उपस्थिति, विद्यमानता; अनुग्रह । वस्तुएँ। मु०-करना-तैयारी करना, आवश्यक चीजें साम्य-पु० [सं०] साश्य, समानता; सामंजस्य; उदा. जुटाना ।-बनना,-होना-प्रबंध या तैयारी होना। । सीनता, निष्पक्षता; दृष्टिकोणकी एकरूपता । -तंत्र-पु० सामान्य-वि० [सं०] साधारण, मामूली; समान; औसत | साम्यवादके सिद्धांतानुसार चलनेवाली शासन-प्रणाली । दरजेका तुच्छ, अदना, महत्त्वहीन संपूर्ण, समग्र । पु० -वाद-पु० मार्क्स द्वारा प्रतिपादित एक सिद्धांत जिसका सादृश्य, समानता; मानसिक साम्य; मध्यकी अवस्था । उद्देश्य ऐसे वर्गहीन समाजकी स्थापना है जिसमें संपत्तिसबमें पाया जानेवाला गुण या चिह्न; एक अर्थालंकार | पर समाजका समान अधिकार होगा और व्यक्तिसे -जहाँ दो या अधिक वस्तुओंका पृथक् अस्तित्व होते हुए शक्ति भर काम लेकर उसकी सारी आवश्यकताएँ पूर्ण भी एकरूपता, समानता आदिके कारण भेद न जान की जायेंगी। -वादी (दिन्)-वि० साम्यवादका सिद्धांत पड़े। -ज्ञान-पु० सामान्य बातोंका शान । -नायिका माननेवाला। -स्त्री० दे० 'सामान्यवनिता'। -भविष्यत्-पु० भवि-साम्यावस्था-स्त्री०, साम्यावस्थान-पु० [सं०] प्रकृतिके ध्यत् कालका एक भेद जिसमें भविष्य में होनेवाली क्रियाका तीनों गुणों-सत्त्व, रज और तम-की समावस्था । साधारण रूप रहता है। -भूत-पु० भूत कालका एक साम्राज्य-पु० [सं०] सार्वभौम सत्ता पूर्ण प्रभुता; आधिभेद जिसमें भूत कालकी क्रियाका साधारण रूप रहता है, पत्या प्राधान्य, बाहुल्या शासनाधीन बहुत बड़ा क्षेत्र कोई विशेषता नहीं होती। -लक्षण-पु. वह चिह्न जो जिसमें कई देश हों। -लक्ष्मी-स्त्री० साम्राज्यकी अधिजाति भरमें पाया जाय ।-वनिता-स्त्री० वेश्या ।-वर्त- ष्ठात्री देवी (तंत्र); साम्राज्यका वैभव । -वाद-पु० एक
न-पु० वर्तमान कालका एक भेद जिसमें क्रियाका राष्ट्रका दूसरेको अधिकारमें लाकर उसे अपने हितका वर्तमान कालमें होना दिखलाया जाता है। -विधि- साधन बनानेका सिद्धांत; (इंपीरियलिज्म) सैनिक विजय, स्त्री० आदेशका साधारण रूप जिसमें कोई विशेष बात, राजनीतिक छलबल अथवा आर्थिक आधिपत्य द्वारा अपवाद आदि न हो।
साम्राज्य स्थापित करनेकी प्रवृत्ति या नीति । -वादीसामान्यतः(तस)सामान्यतया-अ० [सं०] साधारणतः, (दिन)-वि० साम्राज्यवादका अनुयायी। मामूली तौरसे ।
| साम्राज्यांतर्गत अधिमान्यता-स्त्री० [सं०] (इंपीरियल सामासिक-वि० [सं०] सामूहिक संक्षिप्त समास-संबंधी। प्रेफरेंस) व्यापार-वाणिज्यके मामलेमें ब्रिटिश साम्राज्यके सामिष-वि० [सं०] मांसयुक्त ।
भीतरके देशोंको, अन्य देशोंकी तुलनामें, परस्पर कम सामी-* पु०दे०'स्वामी' ।स्त्री० छड़ी, औजार आदिकी आयात निर्यात-कर लगाकर, अधिमान्यता देनेकी नीति । रक्षाके लिए उसपर पहनाया जानेवाला लोहे, पीतल साम्हने-अ० दे० 'सामने' । आदिका छल्ला।
सायं-अ०[सं०] 'सायम्'का समासगत रूप ।-काल-पु० सामीप्य-पु० [सं०] निकटता, समीपता, पड़ोस ।
शामका वक्त । -कालिका-कालीन-वि० संध्याकालसामुझि*-स्त्री० दे० 'समझ'।
संबंधी। -गृह-वि० जहाँ संध्या हो वहीं घर बना लेने, सामुदायिक-वि० [सं०] समुदाय-संबंधी; सामूहिक । ठहर जानेवाला । -निवास-पु० सायंकालका विश्राम
-योजना-स्त्री० (काम्यूनिटी प्रोजेक्ट) कृषिसुधार, शिक्षा- गृह । -प्रातः(तस्)-अ० सुबह-शाम । -भोजनप्रसार, पथ-निर्माण, नल-कूपखनन आदिकी ऐसी योजना पु० ब्यालू । -संध्या-स्त्री० गोधूलि, मंद प्रकाश सायंजिसे देशके किसी भागका जनसमूह ही, मुख्य रूपसे, कालीन उपासना; वह देवी जिसकी उपासना संध्या कार्यान्वित करे।
समय की जाय। सामुद्र-वि० [सं०] समुद्र जन्य; समुद्र-संबंधी । पु० नाविका सायक-पु० [सं०] बाण; खड्गः पाँचकी संख्या (कामदेवके सामुद्रिक व्यापार करनेवाला; समुद्रलवण; समुद्र-फेन पाँच बाणोंसे); * सायंकाल । -पुंख-पु० बाणका पंखदेहचिह्नः नारियल । -ज्ञ-वि० दे० 'सामुद्रविद्'। वाला भाग। -बंधु-पु० चंद्रमा।-विद्-वि० देह चिह्नोंका ज्ञाता। सायत-स्त्री० दे० 'साइत' । सामुद्रक-पु० [सं०] समुद्रलवण, देहचिह्नोंके शुभाशुभ सायन-वि० [सं०] अयनांश अर्थात् क्रांतवृत्त और नाडीहोनेका विचार करनेवाला ग्रंथ या व्यक्ति ।
वृत्तोंके संपातसे युक्त (सूर्यकी स्थिति)। सामद्रिक-वि० [सं०] देहचिह-संबंधी; समुद्रजन्य । पु० सायबान-पु० [फा०] वह छप्पर या कपड़े आदिका परदा सामुद्रका वह विद्या जिसके सहारे इन चिह्नोंका ज्ञान प्राप्त जो धूप या वर्षासे बचावके लिए मकान या खीमेके आगे किया जाता है। नाविक ।
लगा लिया गया हो। सामुहाँ*-अ० सामने ।
सायम-वि० [अ०] रोजा रखनेवाला। सामुह *-अ० सामने।
सायम्-अ० [सं०] संध्याके समय, शामके वक्त । सामूहिक-वि० [सं०] समूह-संबंधी; समूहमें एकत्र । | सायर-*पु० सागर-'नैन नीर सब सायर भरे'-५०%3B
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भ्रमणकारी; खर्च - ५०
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+ पटेला । वि० [अ०] सैर करनेवाला, अनियत, अस्थायी । पु० महसूल, चुंगी । फुटकर खर्च, अनिश्चित, असाधारण खर्च । सायल - वि०, पु० [अ०] सवाल करनेवाला; चाहनेवाला; प्रार्थी, अर्जी देनेवाला; याचना करनेवाला । साया- पु० साड़ीके नीचे पहननेकी घाँघरेकीसी एक पोशाकः [फा०] छाया, छाँद्द; परछाई; (ला० ) आश्रय, संरक्षण; सुहबतका असर; जिन, परीकी सवारी, प्रेतबाधा; चित्र या फोटोका छाया दिखानेवाला भाग -दारवि० छायायुक्त, छाँवाला । मु०-उठना-संरक्षकका मर जाना। -उतरना - छायाका ऊपर से नीचे आना; प्रेतबाधा दूर होना । - पड़ना - छाँह पड़ना; सुहबतका असर होना । - होना - जिन, परीका असर, प्रेतबाधा होना । - ( ये ) की तरह साथ-साथ फिरना या होनाहर वक्त साथ लगे रहना, छन भरके लिए भी विलग न होना । - मेँ आना - जिन, परी आदिका असर पड़ जाना, प्रेतबाधा होना । - से बचकर चलना - बहुत दूर रहना, असर न पड़ने देना । -से भागना - भड़कना; सामीप्यसे डरना; नफरत करना । सायुज्य - पु० [सं०] ऐसा संयोग जिसमें कोई भेद न रहे, एक में मिल जाना, एकत्व; मुक्तिका एक भेद जिसमें जीवात्मा परमात्मा में लीन हो जाता है; एकरूपता । सारंग - वि० [सं०] नानावर्ण; बुंदोंवाला; रंजित; * सुंदर; सरस | पु० विभिन्न वर्ण; चित्रमृग; मृग - 'स्नारंग प्रीति करी जो नाद सो सनमुख बान सह्यो' - सू० ; सिंह; हाथी; भ्रमर; कोयल; खंजन; लवा पक्षी; मयूर; राजहंस; चातक; मधुमक्खी; एक वृत्त; एक राग; बादल; वृक्ष; छाता; वस्त्रः बाल; शंख; शिव, कामदेव; पुष्प; कमल; कपूर; धनुष; विष्णुका धनुप् ; चंदन; एक वाद्य, सारंगी; आभूषण; सुवर्ण; पृथ्वी; रात्रि; प्रकाश; दीप्ति; शोभा; रत्न; अश्व; सरोवर; समुद्र; जल; कपोत; स्तन; वायस; हाथ; नक्षत्र; छल; मेढक; आकाश; अंजन; विद्युत्; सर्प; चंद्रमा । - चर - पु० शीशा । -ज-पु० हिरन । -ज-दृशी - वि० स्त्री० मृगनयनी । - नाथ- पु० सारनाथका प्राचीन नाम । - पाणि-पु० विष्णु । - पानि - पु० विष्णु । -लोचना - वि० स्त्री० मृगनयनी ।
सारथी - पु० दे० 'सारथि' |
|
सारद* - स्त्री० दे० 'शारदा' । * वि० दे० 'शारद' | सारदी - स्त्री० [सं०] जलपीपल । * वि० शारदीय । सारदूल* - पु० दे० 'शार्दूल' |
सारना* - स० क्रि० दूर करना, निकालना; पोंछना, साफ करना; पूरा करना; लगाना; काढ़ना - 'जातहि राम तिलक तेहि सारा' - रामा०; दुरुस्त करना; सँभालना; सुंदर बनाना; चलाना । सारनाथ- पु० बनारसके उत्तर- पूरब, लगभग तीन मीलपर स्थित एक स्थान जो बौद्धोंका प्रसिद्ध तीर्थ है । सारभाटा - पु० दे० 'ज्वारभाटा' ।
सारंगा - स्त्री० एक ही लकड़ीकी बनी हुई डोंगी; एक सारमेय - पु० [सं०] सरमाकी संतान; कुत्ता (विशेषकर तरहकी बनी नाव; एक रागिनी ।
यमके चार आँखोंवाले दो कुत्तों में से एक) । - चिकित्सास्त्री० कुत्तेके काटनेका उपचार । सारमेयी - स्त्री० [सं०] कुतिया ।
सारल्य - पु० [सं०] सरलता; सचाई, ईमानदारी । सारवान् (वत्) - वि० [सं०] कठिन, ठोस; दृढ़, मजबूत; पोषक मूल्यवान्; रसदार; जिसमेंसे निर्यास निकले । सारस - वि० [सं०] तालाब-संबंधी; चिल्लानेवाला; सारस पक्षी-संबंधी । पु० हंसकी जातिका लंबी टाँगोंवाला एक पक्षी; हंस पक्षी; चंद्रमा; कमल; कमरबंद, करधनी; गरुड़का एक पुत्र; छप्पय छंदका एक भेद; झील आदिका जल; एक ताल (संगीत) । - प्रिया - स्त्री० सारसी । सारसुता *- स्त्री० यमुना । सारसुती* -
* - स्त्री० दे० 'सरस्वती' ।
सारंगाक्षा - वि० स्त्री० [सं०] मृगनयनी । सारंगिक - पु० [सं०] बहेलिया, चिडीमार; एक वर्णवृत्त । सारंगिया - पु० सारंगी बजानेवाला ।
सारंगी - स्त्री० [सं०] एक प्रसिद्ध तंत्रवाद्य |
सार - * स्त्री० संदेश, खबर - ' तलफत छाँड़ि चले मधुवनको, फिर कै लई न सार' - सू०; होश हवास । वि० [सं०] मुख्य; सर्वोत्तम; यथार्थ; हद् पु० मूल भाग; सत; मज्जा; गूदा; यथार्थ बात; निर्यास, गोंद; मथि - तार्थ; शक्ति, बल; शौर्य; साहस; ध्दता; संपत्ति; अमृत; ताजा मक्खन; वायुः साढ़ी; रोग; पूय; श्रेष्ठता; शतरंजका मोहरा; पाँसा; वज्रक्षार; हृदय; औचित्य; जंगल; इस्पात, लोहा - 'मुए चामकी साँस ते सार भसम हो जाय';
५३-क
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सायल - सारसुती
अस्थि मज्जा आदि शरीरस्थ आठ ( कुछके मत से सात ) पदार्थ; मूल्य, महत्त्व; गोवर; नतीजा, फल; दुहनेके बाद तुरंत औटा हुआ दूध; चिरौजीका पेड़; अनारका वृक्ष; मूँग काढ़ा; नीलका पौधा; गमन, गति; विस्तार, फैलाव; एक वृत्त; एक अर्थालंकार - जहाँ वर्णित वस्तुओंका उत्तरोत्तर उत्कर्ष या अपकर्ष दिखलाया जाय; साला; *सँभाल, सेवा - 'करिहैं सास ससुर सम सारा' - रामा०; हथियार; शल्य; धैर्य; शय्या; मैना । - गर्भ, - गर्भित - वि० तत्त्वपूर्ण । - ग्राही ( हिन्) - वि० किसी वस्तुका मुख्य तत्त्व ग्रहण करनेवाला । - दा - स्त्री० सरस्वती; दुर्गा ।-भुक् (ज) - वि० किसी वस्तुका मुख्य भाग खा. जानेवाला । पु० अग्नि ( लोहा खा जानेके कारण) । - भूत-वि० जो सर्वश्रेष्ठ हो, सर्वोत्तम । पु० मुख्य या सर्वश्रेष्ठ वस्तु । - मिति - पु० वेद । - रूप - वि० सर्वोत्तम, मुख्य ।
- लोह - पु० इस्पात
।
- वर्जित - वि० निःसार; नीरस । - वस्तु - स्त्री० मूल्यवान् या महत्त्वपूर्ण वस्तु । - विद्वि० किसी चीजका मूल्य या तत्त्व जाननेवाला ।-शून्यवि० निःसार; निकम्मा |
सार - पु० [फा०] ऊँट । - बान- पु० ऊँटहारा । सारखा। - वि० सदृश, समान । सारणि-स्त्री० [सं०] छोटी नदी; धारा; प्रणाली | सारणिक - पु० [सं०] पथिक, यात्री । सारणी-स्त्री० [सं०] क्षुद्र नदी; जल-प्रणाली; तालिका | सारथि - पु० [सं०] रथ चलानेवाला, सूत; नायकः सागर, समुद्र, साथी, सहायक ।
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सारस्य-साला सारस्य-पु०[सं०] पुकार, चिल्लाइट जलप्राचुर्यः सरसता। हुआ घृतयुक्त। सारस्वत-वि० [सं०] सरस्वती(देवी या नदी) सबंधी सार्व-वि० [सं०] सबसे संबंध रखनेवाला, आम; सबके सारस्वत ऋषि-संबंधी; सारस्वत देश-संबंधी; वाग्मी, लिए उपयुक्त । विद्वान् । पु० सरखतीतटवती देश-विशेष; एक ऋषि सार्वकालिक-वि० [सं०] सब समयोंके लिए उपयुक्त सब (जिनकी उत्पत्ति सरस्वती नदीसे मानी जाती है); सार- काल-संबंधी। स्वत देशका निवासी ब्राह्मणोंकी एक उपजाति; सरस्वती- सार्वजनिक-वि० [सं०] सबसे संबंध रखनेवाला; सबके पूजा-संबंधी एक विशेष कृत्य। -कल्प-पु० सरस्वती- लिए उपयुक्त । -निर्माण-विभाग-पु० (पब्लिक वसं पूजा-संबंधी कृत्य विशेष ।-व्रत-पु० सरस्वतीके निमित्त डिपार्टमेंट) दे० 'लोकनिर्माण-विभाग'। -व्यवस्थाकिया जानेवाला व्रत-विशेष ।।
स्त्री० (पब्लिक आर्डर) सर्वसाधारणमें शांति बनाये रखने सारस्वतोत्सव-पु० [सं०] सरस्वती-पूजनका समारोह । तथा विधि-विधानोंके समादरणका भाव; जनतामें उपद्रव, सारांश-पु० [सं०] सार, निचोड, नतीजा; तात्पर्य, अशांति या विधिके उल्लंघनकी प्रवत्ति न फैलने देना। मथितार्थ उपसंहार ।
सार्वदेशिक-वि० [सं०] सब देशोंसे संबद्ध । सारा-वि० पूरा, संपूर्ण, समस्त । * पु० दे० 'साला'। सार्वनामिक-वि० [सं०] सर्वनाम-संबंधी (व्या०)।
स्त्री० [सं०] दूर्वा कुश कृष्ण त्रिवृता; थूहर केला। गर्वभौतिक-वि० [सं०] सब भूतों, जीवोंसे संबंध रखनेसारार्थी (र्थिन् )-वि० [सं०] किसी चीजसे लाभ उठाने वाला। का इच्छुक ।
सार्वभौम-वि० [सं०] सारी भूमि-संबंधी; सारी पृथ्वीका सारि-पु०, स्त्री० [सं०] शतरंज या पासेकी गोटी-'आसा | शासन करनेवाला । पु० चक्रवती राजा, सम्राट कुबेरका फिरि-फिरि मारसी ज्यों चौपड़की सारि'-कबीर । स्त्री० हाथी (उत्तरका दिग्गज); विश्वका साम्राज्य । मैना; सारंगीकी खूटी (?); पाँसा-'बैठि कुँअरि सब खेलहिं सार्वभौमिक-वि० [सं०] सारी पृथ्वीपर फैला हुआ। सारी'-५०।-फलक-पु० बिसात ।
सार्वरात्रिक-वि० [सं०] सारी रात टिकनेवाला (दीपक सारिउ*-स्रो० मैना।
भादि)। सारिका-स्त्री० [सं०] मैना पक्षी; चांडालवीणा: तंत्रवाधका सावलौकिक-वि० [सं०] सबको ज्ञात; सारे संसार में व्याप्त पुल जैसा वह हिस्सा जिसपर तार टिके रहते है, घोरिया। सार्वजनिक । -मुख-पु० एक विषैला कीड़ा।
सार्वत्रिक-वि० [सं०] सब स्थानोंसे संबंध रखनेवाला; सारिखा*-वि० दे० 'सरीखा'।
सब स्थानों या अवस्थाओं में लागू होनेवाला । सारिणी-स्त्री० [सं०] सहदेई; दुरालभा; प्रसारिणी; रक्त सार्षप-वि० सं०] सरसों-संबंधी। पु० सरसोंका शाक, पुनर्नवा; जल-धारा, जलप्रणाली।
तेल आदि। सारिवा-स्त्री० [सं०] अनंतमूल ।
सालंकार-वि० [सं०] आभूषणयुक्त, अलंकृत । सारी-स्त्री० [सं०] सारिका, मैना; सप्तला; भ्रभंगिमा सालंब-वि० [सं०] जिसे किसीका सहारा हो (समासमें)। गोटी; पासा; साढ़ी, मलाई; साली; * साड़ी:-क्रीड़ा- साल-* स्त्री. शाला। पु० जस्म पीड़ा छेदा काँटा; स्त्री० शतरंज जैसा एक खेल।
वह जो दुःख देता हो; *धान । [सं०] वृक्षविशेष, साखू सारूप्य-पु० [सं०] एकरूप होनेका भाव; रूप सादृश्य । सालका निर्यास; जड़ वृक्षः परकोटा, प्राकार, दीवार; सारो-+पु० एक अगहनिया धान । * स्त्री०दे० सारिका'। एक तरहकी मछली। -ग्राम-पु० दे० 'शालग्राम' । सारोपा-स्त्री० [सं०] लक्षणाका एक प्रकार जिसमें एक -रस-पु० राल । -वाहन-पु० शालिवाहन नरेश ।
पदार्थमें दूसरेका आरोप किया जाता है (सा०)। साल-पु० [फा०] बरस, १२ महीनेका काल । -आइंदासार्थ-वि० [सं०] अर्थयुक्त,अभिप्राययुक्त; उपयोगी; धनी। पु० आनेवाला वर्ष । -गिरह-स्त्री० वार्षिक जन्मतिथि, पु० धनी आदमी; कारवाँ, वणिक्समूह; जनसमूह समूह नव वर्ष में प्रवेशका उत्सव, वरसगाँठ। -गुज़श्ता-पु० व्यापारिक माल (को०); व्यापारी । -न-वि. कारवाँको बीता हुआ साल, गतवर्ष । -तमाम-पु० वर्षका अंत । नष्ट करनेवाला। पु. डाकू। -पति-पु. कारवाँका -तमामी-स्त्री० वार्षिक विवरण । -नामा-पु० किसी मुखिया। -पाल-पु० कारवाँका रक्षक । -भृत्-पु. पत्र-पत्रिकाका विशेषांक जो नये वर्ष में प्रवेशके अवसर पर कारवाँका नेता। वि० मालदार। . हा(हन)-वि० निकाला जाय । मु०-पलटना-बरस पूरा होकर दूसरा कारवाँको नष्ट करनेवाला । पु० डाकू। -हीन-वि० आरंभ होना। -भारी होना-वर्षका अशुभ, अनिष्टकर जिसका कारवाँसे साथ छूट गया हो।
होना। सार्थक-वि० [सं०] अर्थपूर्ण; उपयोगी; लाभदायक । सालक*-वि० सालने, दुःख देनेवाला । सार्थकता-स्त्री० [सं०] महत्त्व; उपयोगिता ।
सालन-पु. मांस रसेदार तरकारी; [सं०] सालनिर्यास । सार्दूल-पु० दे० 'शार्दूल'।
सालना-स० क्रि० कष्ट देना; चुभाना; चारपाईकी पाटी सार्द्ध, सार्ध-वि० [सं०] आधेके साथ पूर्ण (संख्या)। ठीक करना । अ० क्रि० चुभना; कष्टकर होना; खटकना। अ० सहित, साथ।
सालम मिस्री-स्त्री० क्षुपविशेष, सुधामूली । साई-वि० [सं०] नम, गीला, भीगा हुआ।
सालसा-पु. एक रक्तशोधक औषध ।। सार्पिष, सार्पिष्क-वि० [सं०] घृत संबंधी; धीमें बनाया साला-पु० पत्नीका भाई। इस संबंधके आधारपर बनी
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सालातुरीय-साहवीय एक गाली; * सारिका, मैना । * स्त्री० दे० 'शाला'। वि०जिसका जीवन अभी समाप्त न हुआ हो, जिसकी सालातुरीय-पु० दे० 'शालातुरीय' ।
आयु बची हो। -बंधन-वि० जिसका बंधन अभी सालाना-वि० [फा०] सालका, वार्षिक साल भरपर होने | बना हो। वाला । अ० हर साल, साल-ब-साल । पु० भृति या वृत्ति सावित्री-स्त्री० [सं०] गायत्री; उपनयनसंस्कार, ब्रह्माकी जो साल में एक बार, वर्षातमें दी जाय ।
पत्नी; पार्वती, अश्वपतिकी पुत्री और सत्यवानकी पत्नी सालार-पु० [फा०] नायक, नेता, सरदार ।-(२)ज (जिसने अपने सतीत्वके बलसे अपने पतिको यमराजके पु० सेनापति।
हाथसे छुड़ाया था); दक्षकी पुत्री और धर्मकी पत्नी; सालि-पु० दे० 'शालि'।
कश्यपकी पत्नी; धारानरेश भोजकी पत्नी; अष्टावक्रकी सालिग्राम-पु० दे० 'शालग्राम' ।
एक पुत्री; यमुना नदी; सरस्वती नदी। -व्रत-पु. सालिम-वि० [अ०] सुरक्षित; अखंड, पूरा, साबित । पतिकी दीर्घायुके लिए ज्येष्ठकी अमावस्याको रखा जानेसालियाना-पु० वार्षिक वृत्ति । वि० सालाना ।
वाला हिंदू स्त्रियोंका एक व्रत । सालिस-पु० [अ०] पंच, तिसरैत । -नामा-पु. सावित्रेय-पु० [सं०] यम । पंचनामा।
साश्चर्य-वि० [सं०] आश्चर्यजनक । अ० आश्चर्यके साथ। साली-स्त्री. जमीन या बँधी हुई रकम जो बढ़ई, नाई साश्रु-वि० [सं०] अश्रुपूर्ण, रोता हुआ।
आदिको उनके कामके बदले दी जाती है पत्नीकी बहन । साष्टांग-वि० [सं०] आठ अंगोंसे युक्त। -प्रणाम-पु० * पु० धान।
आठ अंगों(सिर, हाथ, पैर, आँख, जाँध, हृदय, वचन सालोक्य-पु० [सं०] एक ही लोकमें रहना, मुक्तिका एक और मन)के योगसे किया जानेवाला प्रणाम । -योगप्रकार।
पु० यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, सावंत-पु० दे० 'सामंत'।
ध्यान और समाधि-इन आठों अंगोंवाला योग । साव-पु० दे० 'साहु'।
सास-स्त्री० पति या पत्नीकी माता। सावक-पु. बौद्ध या जैन संन्यासी; [सं०] शावक । सासति-स्त्री० दंड, सजा, शासन-'सासति करि पुनि सावकाश-वि० [सं०] जिसे अवकाश, फुरसत हो, बाफुर- करहिं पसाऊ'-रामा०।
सत । अ० फुरसतसे, मौकेसे । पु० अवकाश, मौका ।। सासन-पु० दे० 'शासन' । सावचेत*-वि० सतर्क, सावधान ।
सासना*-स्त्री० दे० 'शासन' (दंड, साँसत, कष्ट)। सावचेती-स्त्री० सतर्कता, होशियारी ।
सासरा*-पु० ससुराल । सावज -पु० दे० 'साउज'।
सासा*-स्त्री० संशय, संदेह श्वास । सावत*-पु० सौतियाडाह; ईर्ष्या ।
सासुरी-पु० ससुराल; ससुर । सावधान-वि० [सं०] सचेत, सतर्क, खबरदार। साह-पु० सुजन: साहूकार; महाजन; देहलीजका बाजू, सावधानता-स्त्री० [सं०] सतर्कता, होशियारी।
चौखटके आधारपर लगनेवाले आमने-सामनेके स्तंभ सावधि-वि० [सं०] जिसकी अवधि, सीमा निश्चित कर दे० 'शाह' ।-बुलबुल-स्त्री० एक तरहकी लंबी पूँछदी गयी हो । -आधि-स्त्री० नियत समयके अंदर छुड़ा | वाली सफेद बुलबुल । ली जानेवाली गिरवी। -निक्षेप-पु० (फिक्स्ड डिपॉ- साहचर्य-पु० [सं०] सहगमन, सहचरता साथ, संगति । ज़िट) विशेष अवधितकके लिए रुपया जमा करना; साहजिक-वि० [सं०] सहजात, स्वाभाविक । मीयादी खाते में जमा की गयी रकम ।
साहनी*-स्त्री० मेल; सेना-'आये निसाचर साहनी सावधिक-वि० (पीरियाडिकल) निश्चित अवधिके बाद साजि-रघु० । पु० साथी; प्रधान; पारिषद । होने या निकलनेवाला। -पत्र-पु० (पीरियाडिकल)। साहब-पु० [अ०] मित्र, साथी; मालिक, स्वामी; हाकिम, वह पत्र या पत्रिका जिसका प्रकाशन एक निश्चित सरदार ईश्वर (संत कवि); आदरणीय व्यकिका संबोधन भवधि-एक सप्ताह, एक पक्ष, एक माह-के बाद होता | नाम या पदवीके साथ व्यवहृत 'जी'का समानार्थक शब्द हो। -प्रस्फोट-पु० (टाइम बम) वह प्रस्फोट (बम) युरोपियन अंग्रेज या अंग्रेजी दंगसे रहनेवाला हिंदस्तानी जो निर्धारित अवधिके बाद अपने आप फट पड़े, प्रज्व- अफसर । -जादा-पु० बड़े आदमीका बेटा; संबोध्य लित हो उठे।
जनका बेटा; (ला०) अल्हड़, अनुभवहीन नवयुवक । सावन-पु० आषाढके बादका महीना, श्रावण; सावनमें -बहादुर-पु० अंग्रेज अफसर; साहबी ढंगसे रहनेवाला गाया जानेवाला एक लोकगीत, कजली; * समूह प्राचुर्य, | हिंदुस्तानी अफसर । -सलामत-स्त्री० परस्पर अभि
आधिक्य [सं०] यजमान; पूरा दिन और रात । वादन, सलाम-बंदगी सामान्य परिचय । सावनी-स्त्री० वरपक्षसे वधूके यहाँ सावनमें भेजी जाने-साहबाना-वि० [अ०] साहबका; साहबी। वाली सौगात सावनमें गाया जानेवाला लोकगीत । साहबी-वि० साहबका; साहब जैसा (-ठाठ)। स्त्री० सावर-पु. शिवकृत एक मंत्र; एक मुंग। .
साहबपन, अफसरी; (संत सा०) हुकूमत; मालिकी; सावये-पु० [सं०] रंग या जातिकी समानता । ईश्वरत्व, ऊँचा पद, एक तरहका अंगूर; एक धारीदार सावशेष-वि० [सं०] जिसका कुछ अंश बाकी बचा हो; कपड़ा।मु०-करना-अफसरी शान दिखाना। अपूर्ण, अधूरा । पु० शेष, बचा हुआ अंश । -जीवित- साहबीयत-स्त्री० साहबी चाल-ढाल; अंग्रेजोंकी नकल ।
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साहस-सिंधु
८४२ साहस-पु० [सं०] हिम्मत, किसी असाधारण कार्यमें दृढ़ता- सिंगार, सिँगार-पु० शृंगार, सजावट; सजधज; शृंगार पूर्वक प्रवृत्त होनेकी वृत्ति, जीवट; जल्दबाजी; औद्धत्या रस। -दान-पु. प्रसाधन रखनेका छोटा संदक । दंडा जुर्माना; बलात्कार; लूट, अपहरण, परस्त्रीगमन। -मेज-स्त्री. वह आईनेदार मेज जिसके सामने बैठकर साहसिक-वि० [सं०] हिम्मतवर, दिलेर निभीक; उद्धता शृंगार किया जाता है। -हाट-स्त्री० वेश्याओंका अविवेकी; निष्ठुर, अत्याचारी; परुषवादी। पु० हिम्मत- | वासस्थान । वर आदमी डाकू, लुटेरा खतरनाक आदमी; परस्त्रीगामी। सिंगारना*-स० क्रि० शृंगार करना, सँवारना, सजाना। साहसी(सिन्)-वि० [सं०] प्रचंड पराक्रमी; हिम्मतवर | सिंगारिया-पु० मूर्तिका भंगार करनेवाला । निष्ठुर; उद्धत ।
सिंगारी-पु० दे० 'सिंगारिया। साहस्र-वि० [सं०] हजार-संबंधी; एक हजारवाला; एक | सिंगिया-पु० एक विष जो एक पौधेका मूल है और
हजार में खरीदा हुआ हजार पीछे दिया जानेवाला। | सूखनेपर सींगकी शकलका होता है। साहाय्य-पु० [सं०] सहायता, मदद; मैत्री, साथ । सिंगी-स्त्री०बी लगानेकी नली। पु०सींगका बना बाजा। साहि*-पु० राजा; भला भादमी।
सिँगौटी-स्त्री० तेल आदि रखनेका सींगका पात्र; सिंदूर साहित्य-पु० [सं०] साथ, संयोग, मेल; वाक्यमें पदोंका आदि रखनेकी पिटारी बैलके सींगका गहना । सापेक्ष-संबंध; गयात्मक या पद्यात्मक रचना; लिपिबद्ध सिंघ*-पु० दे० 'सिंह'। विचार, शान आदि ग्रंथोंका समूह, वाङ्मय; काव्यशास्त्र, | सिंघण-पु० [सं०] लोहेका मुरचा; नाकसे निकला हुआ हितयुक्त होनेका भाव । -शास्त्र-पु० साहित्यके विभिन्न | श्लेष्मा, रेंट। अंगों-रस, अलंकार आदि-का विवेचन या विवेचना- सिंघल*-पु० दे० 'सिंहल'। त्मक ग्रंथ ।
सिंघली-वि० दे० 'सिंहली'। साहित्यादि महाविद्यालय-पु० [सं०] (आटस कालेज) साहित्य, इतिहास आदि विषयोंकी शिक्षा प्रदान करने- सिंघाड़ेके आकारकी एक मिठाई और एक नमकीन वाला महाविद्यालय ।
तिकोनी सिलाई। एक तरहकी आतिशबाजी। साहित्यिक-वि० [सं०] साहित्य संबंधी। पु० साहित्य- सिंघाण-पु० [सं०] दे० 'सिंघण' । सेवी, साहित्यकार (असाधु)।-उपनाम-पु० (पेन-नेम) सिंघासन*-पु० दे० 'सिंहासन'। लेखक या कवि द्वारा साहित्यिक रचनाओं में अपने असली | सिंधिनी-स्त्री० शेरनी। नामके बदले या उसके साथ-साथ प्रयुक्त किया जानेवाला सिंधी-स्त्री० सिंगी मछली सोंठ । बनावटी नाम।
सिंघेला*-पु० शेरका बच्चा । साहिनी-स्त्री० दे० 'साहनी' ।
सिंचन-पु०[सं०] सींचना,खेत, पेड़ आदिमें पानी डालना। साहिब-पु० दे० 'साहब'।
सिंचना-अ० कि० सींचा जाना। साहियाँ*-पु० दे० 'साँई"।
सिँचाई-स्त्री० सींचनेका काम; सींचनेकी उजरत । साहिल-पु० [अ०] समुद्र या नदीका किनारा । सिँचाना-स० क्रि० किसीको सींचने में प्रवृत्त करना । साही-स्त्री० एक छोटा (बिल्लीसे कुछ बड़ा) जानवर जिसका | सिंचित-वि० [सं०] सींचा हुआ। सारा शरीर तेज लंबे काँटोंसे भरा रहता है और जो | सिँचौनी-स्त्री० दे० 'सिँचाई'। जमीनमें माँद बनाकर रहता है। वि० दे० 'शाही | सिंजा-स्त्री० [सं०] गहनोंके हिलने आदिसे उत्पन्न झंकार । साहु-पु० भला आदमी, सज्जन; महाजन; बनियोंका | सिंजित-पु० [सं०] दे० 'सिंजा'। आदरपूर्ण संबोधन ।
सिंदन*-पु० स्पंदन, रथ । . साहल-पु० डोरेसे लटकनेवाला लट्टू जैसा राजगीरोंका सिंदर-पु० [सं०] एक वृक्षा एक लाल चूर्ण जिससे स्त्रियाँ एक औजार जिससे दीवारकी सीध जाँची जाती है। माँग भरती है। -तिलक-पु० सिंदूरका चिह्न हाथी। साहु-पु० दे० 'साहु'।
-तिलका-स्त्री० सधवा स्त्री (जिसकी माँग सिंदूरसे भरी साहूकार-पु० बड़ा व्यापारी, धनाढ्य महाजन ।
रहती है)। -दान-पु० विवाहकी एक रस्म जिसमें वर साहकारा-पु० रुपयोंके लेन-देनका काम; साहूकारोंकी वधूकी माँगमें सिंदूर लगाता है। -बंदन,-चंदन-पु. बस्ती; बाजार । वि. साहूकारोंका।
दे० 'सिंदूरदान'। साहुकारी-खी० साहूकारका काम, महाजनी ।
सिंदूरिया-वि० सिंदूरके रंगका । साहेब-पु० दे० 'साहब'।
सिंदूरी-वि० सिंदूरके रंगका । स्त्री० [सं०] रोचनी । साह*-स्त्री. भुजाएँ, बाजू । अ० सामने, सम्मुख । सिंदोरा-पु० सिंदूर रखनेकी लकड़ीकी टिबिया। सिँउ*-अ० दे० 'स्यो।
सिंध-पु. पाकिस्तानका एक प्रांत । स्त्री० एक प्रसिद्ध सिँकना-१० क्रि० सेंका जाना (आँचपर); पकना । नदी; एक रागिनी। सिंगरफ-पु० ईगुर।
सिंधी-वि०सिंध देशका । पु० इस देशका रहनेवाला, सिंगरौर-पु० प्राचीन शृंगवेरपुरका बर्तमान नाम । एक तरहका घोड़ा। स्त्री० इस देशकी भाषा । सिंगल-पु० दे० 'सिगनल' ।
सिंधु-पु० [सं०] सागर, समुद्र; एक प्रसिद्ध नदी; इस सिंगा-पु० फूंककर बजाया जानेवाला एक बाजा, शृंग। नदीके आस-पासका देशाचारकी या सातकी संख्या।
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-पु०३०
सिक
दीप, लेक
८४३
सिंधुर-सिखवना -कन्या-स्त्री० लक्ष्मी। -ज-पु० सेंधा नमक; ईरान, अफगानिस्तान और हिंदुस्तान में तक्षशिला तथा सोहागा; शंख । -जा-स्त्री० लक्ष्मी; सीप । -जन्मा- | सिंधुके इस पारका कुछ भाग भी जीत लिया था। (न्मन्)-वि० समुद्र या सिंधदेशमें उत्पन्न । पु० चंद्रमा | सिकंदरा-पु० रेलका सिगनल । सेंधा नमक ।-संगम -पु. नदीका मुहाना ।-सुता- सिकड़ी-स्त्री० साँकल, जंजीर, जंजीर जैसा गलेका एक स्त्री० लक्ष्मी; सीप ।
गहना, करधनी जंजीर जैसी उनचन । सिंधुर-पु० [सं०] हाथीआठकी संख्या। -मणि-पु० सिकत*-स्त्री० बाल। गजमुक्ता।-बदन-पु० गणेश, गजानन ।
सिकता-स्त्री० [सं०] बलुई जमीन, बालुकायुक्तभूमि बालू । सिंधुरागामिनी-वि० स्त्री० [सं०] गजगामिनी । सिकतामय-वि० [सं०] बालुकामय । पु० बालूसे बना सिंधोरा-पु० लकड़ीका बना हुआ सिंदूरपात्र ।
हुआ तट; वह द्वीप जिसके तट बालूसे बने हों। सिँधोरी-स्त्री० सेंदुर रखनेकी छोटी डिबिया । सिकत्तर-पु० [अं॰ 'सेक्रेटरी'] किसी संस्था या व्यक्तिका सिंसपा-स्त्री० शीशमका पेड़ ।
कार्यनिर्वाहक मंत्री। सिंह-पु० [सं०] केसरी, मृगेंद्र, शेर, बारह राशियों मेंसे सिकर*-पु. शृगाल-'सिकर स्वान दुइ पंथ निहार'एक राशि; (समासमें) अपने वर्गका सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति ।। बीजक । स्त्री० जंजीर । -द्वार-पु० प्रासाद आदिका प्रधान द्वारा सदर दरवाजा। सिकली-स्त्री० हथियार माँजकर तेज करना। -गढ़*-ध्वनि-स्त्री० सिंहका गर्जन; ललकार, रणनाद । पु० दे० 'सिकलीगर'। -गर-पु० हथियार तेज करने-नाद-पु० सिंहका गर्जन; युद्ध-ध्वनि, ललकार; जोर बाला; चमक लानेवाला। देकर कोई बात कहना। -पीर-पु० [हिं०] सिंहद्वार । | सिकहर-पु० छींका । -वाहना,-वाहिनी-स्त्री० दुर्गा ।
सिकहरा*-पु० दे० 'सिकहर' । सिंहनी-स्त्री० शेरनी, सिंहकी मादा; एक वृत्त । सिकार*-पु० दे० 'शिकार' । सिंहल-पु० [सं०] भारतके दक्षिण स्थित एक द्वीप, लंका। सिकारी*-वि०, पु० दे० 'शिकारी' । सिंहली-वि.सिंहल द्वीप-संबंधी; सिंहलका । स्त्री० एक | सिकडन-स्त्री०सिकुड़नेकी क्रिया, संकोच; सिकुड़नेका तरहकी पिप्पली; सिंहलकी भाषा ।
चिह्न, शिकन। सिंहाण, सिहान-पु० [सं०] 'सिंधण', नाकका मल, सिकुड़ना-अ० क्रि० संकुचित होना; बटुरना, सिमटना; रेंट; लोहेका मुरचा।
- तंग होना; शिकन पड़ना। सिंहानक-पु० [सं०] नाकका मल ।।
सिकुरना*-अ० क्रि० दे० 'सिकुड़ना' । सिंहारहार*-पु० हरसिंगार ।
सिकोड़ना-स० क्रि० संकुचित करना; बटोरना, समेटना। सिंहावलोकन-पु० [सं०] सिंहका आगे बढ़ते हुए पीछेकी सिकोरना*-सक्रि० दे० 'सिकोड़ना'।
ओर देखना; आगे बढ़ते हुए पीछेकी बातोपर दृष्टिपात कर सिकोरा-पु० कसोरा । लेना (न्या०); छंदकी रचनाका एक प्रकार जिसमें दूसरा | सिकोही-वि० गीला; पराक्रमी, वीर।
चरण पहले चरणके अंतिम शब्दोंसे आरंभ होता है। सिक्कड़-पु० जंजीर, सिकड़ी। सिंहासन-पु० [सं०] राजा, देवता आदिका आसन । सिक्कर*-पु० दे० 'सिक्कड़।
-भ्रष्ट-वि० गद्दीसे उतारा हुआ, राज्यच्युत । -स्थ- सिक्का-पु० [अ०) ठप्पा, छाप, मुद्रा, रुपया; वह ठप्पा वि० तख्तनशीन ।
जिससे रुपये आदि अंकित करते हैं। पदक । मु०-चलाना सिंहिका-स्त्री० [सं०] राहुकी माता । -तनय,-पुत्र- -(अपना) सिक्का जारी करना। -जमना-बैठनापु० राहु ।
रोब-दाब कायम होना, अधिकार स्थापित होना। सिंहिकेय-पु० [सं०] सिंहिकापुत्र, राहु ।
-जमाना,-बैठाना-रोब-दाब कायम करना, अधिकार सिंहिनी-स्त्री० [सं०] एकदेवी (बौद्ध); * शेरनी, सिंहनी। स्थापित करना।
[सं०] शेरनी; राहुकी माता, सिंहिका; नस: | सिक्ख-पु० गुरु नानकका चलाया हुआ एक संप्रदाय अडूसा थूहर सिंघा नामक बाजा नाडीशाक; कंटकारी। इस संप्रदायका अनुयायी। सिंहोदरी-वि० स्त्री० [सं०] सिंहके समान कटिवाली। सिक्त-वि० [सं०] सींचा हुआ; गीला, भीगा हुआ। सिनि*-स्त्री०सिलाई ।
सिक्थ-पु० [सं०] मोम, मधूच्छिष्ट; माँड़ निकाला हुआ सिअरा*-वि० ठंढा किया हुआ, ठंढा-'सिअरे बदन सूखि भात, भातका पिंड या ग्रास; नीली; मोतियोंका गुच्छा। गये कैसे'-रामा।
सिखंडी-पु० दे० 'शिखंडी'। सिआना*-स० कि० दे० सिलाना'।
सिख-पु० दे० 'सिक्ख'; शिष्य । * स्त्री शिक्षा, उपदेश सिआर-पु. गीदड़।
चोटी। सिकंजबीन-स्त्री० [फा०] नीबूके रस या सिरकेका पका सिखना*,-सक्रि० सिखाना। हुआ शरबत ।
सिखर*-पु० दे० 'शिखर' मुकुट, सिकहर । सिकंजा-पु० दे० 'शिकंजा'।
सिखरन-स्त्री० दे० 'शिखरन' । सिकंदर-पु. सुप्रसिद्ध यूनानी विजेता जो मकदूनिया- सिखलाना-स० क्रि० सिखाना। नरेश फिलिप्स( फैलक्स)का बेटा था और जिसने मिस्र, ' सिखवना*-स० क्रि० सिखलाना ।
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सिखा-सितारा सिखा*-स्त्री० दे० 'शिखा'।
धुंधची।-च्छद-वि० सफेद पत्रोंवाला; सफेद पंखोवाला। सिखाना-स० क्रि० शिक्षा देना, पढ़ाना, बतलाना; पु० हंस, सहिजनका एक प्रकार । -तुरग-पु० अर्जुन । ताड़ना, दंड देना।
-दर्भ-पु० श्वेत दूर्वा ।-दीधिति-पु. चंद्रमा ।-दुसिखापन*-पु० शिक्षा, उपदेश; शिक्षणकार्य ।
शुक्लवर्ण वृक्ष; मोरट-विशेष। -दुम-पु. शुक्लवर्ण सिखावन-स्त्री० शिक्षा, उपदेश, नसीहत ।
वृक्ष; अर्जुन । -द्विज-पु० हंस । -धातु-स्त्री० श्वेत सिखावना*-स० कि० दे० 'सिखाना'।
खनिज द्रव्य खड़िया मिट्टी। -पक्ष-पु० उजेला पाख, सिखिर*-पु० शिखर जैनोंका एक तीर्थ,पारसनाथ पहाड़। सफेद पंख; हंस । -पच्छ*-पु० हंसा शुक्ल पक्ष । सिखी*-पु० मुर्गा; मोर।
-पम-पु० श्वेत कमल | -पुंडरीक-पु० श्वेत कमल । सिगनल-पु० [अं०] रेलगाड़ीके आने-मानेका सूचक चिह्न- -भानु-पु० चंद्रमा। -मणि-पु० स्फटिक । -मनाविशेष, सिंगल, सिकंदरा संकेत ।
(नस)-वि० पवित्र हृदयवाला । -यामिनी-स्त्री. सिगरा*-वि० संपूर्ण, सब ।
चाँदनी रात चंद्रिका । -रश्मि-पु. चंद्रमा । -रागसिगरेट-पु०, स्त्री० [अं०] धूमपानके लिए कागजमें तंबाकू पु० चाँदी। -रुचि-वि० सफेद रंगका। पु० चंद्रमा । लपेटकर बनायी हुई एक तरहकी बत्ती।
-वराह-पु० श्वेत वराह । -वल्लरी-ली० कठजामुन । सिगरो, सिगरौ*-वि० दे० 'सिगरा'।
-वाजी (जिन्)-पु० अर्जुन । -वारण-पु० दे० सिगार-पु० [अं०] चुरुट ।
'सित-कुंजर' । -सर्षप-पु० पीली सरसों। -सिंधुसिचान*-पु० बाज चिड़िया।
पु०क्षीरसागर । स्त्री० गंगा नदी । सिचाना-सक्रि० दे० 'सिंचाना।
सितकंठ*-पु. शिव; दे० 'सित'में । सिच्छक*-पु० शिक्षा देनेवाला दंड देनेवाला-'साहिन | सितता-स्त्री० [सं०] श्वेतता, सफेदी। के सिच्छक, सिपाहिनके पातसाह'-भू० ।
सितम-पु० [फा०] जुल्म, अन्याय, उत्पीडन, अंधेर; सिच्छा*-स्त्री शिक्षा ।
गजब । -कश,-ज़दा,-रसीदा-वि० जुल्म सहनेसिजदा-पु० [अ०] माथा टेकना; खुदाके आगे सिर वाला, उत्पीड़ित ।-गर-गार-वि० जालिम, अन्यायी, झुकाना मुसलमानोंकी उपासनाका एक अंग जिसमें माथा,
अत्याचारी । मु०-ढाना-जुल्म, भारी अन्याय करना। नाक, कुहनियाँ, घुटने और पाँवोंकी उँगलियाँ जमीनपर
-तोड़ना-अन्याय, अत्याचार करना । लगती हैं। -गाह-पु०, स्त्री० उपासना स्थल । सितांग-पु० [सं०] श्वेत रोहित; कपूर, शिव; बेला । सिझना-अ०क्रि० आँचपर पक जाना, सिझाया जाना। सितांबर-वि० [सं०] श्वेत वस्त्रधारी। पु० एक तरहके सिझाना-सक्रि० आँचपर पकाना, राँधना; शरीरको जैन साधु, श्वेतांबर ।
कष्टमय स्थितिमें रखना; (बरतन आदिके लिए मिट्टी) | सितांबुज, सितांभोज-पु० [सं०] श्वेत पद्म । तैयार करना; (चमड़ा) पकाना ।
सितांशु-पु० [सं०] कर्पूर चंद्रमा । सिटकिनी-स्त्री० किवाड़ बंद करनेके लिए उसमें लगा | सितांशक-वि० [सं०] श्वेत वस्त्रधारी, सफेदपोश । हुआ छोटासा छड़, चटखनी।
सिता-स्त्री० [सं०] शर्करा; मिसरी; चंद्रिका; सुंदरी सुरा; सिटपिटाना-अ० क्रि० दब जाना; भय खाना; मंद पड़ | श्वेत दू; मल्लिका; श्वेत कंटकारी; बकुची; गंगा आठ जाना; स्तब्ध हो जाना।
देवियों में से एक (बौद्ध)। सिट्टी-स्त्री० बढ़-चढ़कर बातें करना, वाचालता। मु०- सितातपत्र-पु० [सं०] श्वेत छत्र (राज-चिह्न)।
गुम होना-घबराकर चुप हो जाना, सिटपिटा जाना। सितानन-वि० [सं०] श्वेत मुखवाला । पु० गरुड़ । सिट्टी-स्त्री० दे० 'सीठी' ।
सिताब* -अ० तुरंत, झटपट । स्त्री० शीघ्रता-'तातें ढील सिठाई-स्त्री० फीकापन।
न होइ, काम यह है सिताबको'-सुजान० । सिड-स्त्री० पागलपन, दीवानगी, खब्त, सनक; धुन । सिताबी*-अ० दे० 'सिताब' । स्त्री० शीघ्रता चाँदनी।
-पन,-पना-पु० दे० 'सिड़ ।-बिला,-बिल्ला-वि० सिताब्ज-पु० [सं०] श्वेत पन । मूर्ख, बेअक्क, पागल, सनकी। मु०-सवार होना-सितार-पु. एक प्रसिद्ध तंत्रवाद्य । -बाज़-वि०, पु० सनक सवार होना।
सितार बजानेवाला । -बाज़ी-.. सितार बजाना। सिड़ी-वि० सनकी, पागल, मनमौजी।
सितारा--पु० [फा० 'सतारा'] तारा, नक्षत्र (ला०) भाग्य; सितंबर-पु०[अं० सेप्टेंबर'] ईसवी सनका नवाँ महीना। | चाँदी-सोनेके पत्तरकी टिकली जो टोपी, जूते आदिपर सित-वि० [सं०] श्वेत, सफेद चमकीला; विशुद्ध, निर्मल लगायी जाती है, चमकी; आतिशबाजी बंदूककी टोपीका
पु० सफेद रंग; शुक्ल पक्ष; शुक्र ग्रह शुक्राचार्य; बाण; गोल और सफेद भाग; कुछ घोड़ोंके माथेपर पाया जाने, चाँदी; चंदन शर्करा । -कंठ-वि० सफेद गरदनवाला। वाला सफेद निशान जो अँगूठेसे ढक जाय (यह चिह्न पु. चातक; * शिव । -कर-पु. चंद्रमा कपूर। अशुभ माना जाता है); * सितार । -(Oहिंद-पु० -कर्णिका-कर्णी-स्त्री. वासक । -कर्मा (मैन् )- एक उपाधि जो भारतमें अंग्रेज सरकारकी ओरसे सम्मावि० जिसके कर्म पवित्र हों।-काच-पु० हलब्बी शीशा नार्थ दी जाती थी। मु०-चमकना-भाग्य जगना, बिल्लौर,स्फटिक ।-कुंजर-पु० इंद्र ऐरावत; सफेद हाथी ।। बढ़ती-चढ़तीके दिन होना। -बुलंद होना-सौभाग्य-खंड-पु० मिसरीका डला । -गंजा-स्त्री० सफेद | काल होना।
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८४५
सितारिया-सिधाना सितारिया-पु० सितार बजानेवाला ।
सिद्धता-स्त्री०, सिद्धत्व-पु० [सं०] सिद्ध होनेका भाव; सिताश्व-पु० [सं०] अर्जुन, चंद्रमा।
सिद्धि पूर्णता प्रामाणिकता। सितासित-वि० [सं०] सफेद और काला; भला और सिद्धांगना-स्त्री० [सं०] सिद्ध जातिके देवोंकी स्त्री; वह
बुरा । पु० बलदेव शुक्र और शनि प्रयाग । | स्त्री जिसे सिद्धि प्राप्त हो गयी हो। सिति-वि० [सं०] बाँधनेवालादे० 'शिति' (समास भी)। सिद्धांजन-पु० [सं०] एक अंजन (कहा जाता है इसके सितुई, सितुही-स्त्री० सुतुही, सीपी ।
प्रयोगसे भूगर्भकी चीजें दिखाई देने लगती है)। सितापल-पु० [सं०] सफेद कमल ।
सिद्धांत-पु० [सं०] अंतिम उद्देश्य या अभिप्रायः पूर्वपक्षके सितोद्भव-पु० [सं०] चंदन । वि० चीनीका; चीनीसे | खंडनके बाद सिद्ध मत; निश्चित मत जिसको सत्यके बना हुआ।
रूपमें ग्रहण किया जाय, उसूल; पक्की राय; निर्धारित सितोपल-पु० [सं०] बिल्लौर, स्फटिक; खरिया, दुद्धी । मतके आधार पर लिखित शास्त्रीय ग्रंथ । -कोटि-स्त्री० सितोपला-स्त्री० [सं०] चीनी; मिस्री खरिया। तर्कका वह स्थल या बिंदु जो निर्णायक हो ।-कौमुदीसिथिल*-वि० दे० 'शिथिल'।
स्त्री० भट्टोजिदीक्षित-रचित संस्कृत व्याकरणका एक प्रसिद्ध सिदना-सक्रि० कष्ट पहुँचाना ।
ग्रंथ ।-ज्ञ-वि० सिद्धांत जाननेवाला, तत्त्वज्ञ । -पक्षसिदामा-पु० दे० 'श्रीदामा'।
पु० तर्कसंगत पक्ष । -वाद-पु० मतवाद। सिदिक-स्त्री० दे० 'सिद्' । * वि० सच्चा।
सिद्धांती (तिन)-पु० [सं०] आपत्तियोंका निराकरण सिदौसी*-अ० शीघ्रतापूर्वक ।
कर अनुमानकी स्थापना करनेवाला; मीमांसका वह जो सिदक-स्त्री० [अ०] सचाई, निष्कपट भाव, दिलकी सफाई। सिद्धांतग्रंथोंका जानकार हो । सिद्ध-वि० [सं०] पूरा किया हुआ; प्राप्त, लब्ध; निश्चित; सिद्धांतीय-वि० [सं०] सिद्धांत-संबंधी ।
प्रमाणित; दृढ़, पक्का (नियम); सत्य माना हुआ; निर्णीत, | सिद्धांबा-स्त्री० [सं०] दुर्गा । जिसका फैसला हो गया हो (व्यवहार); चुकाया हुआ; सिद्धान-पु० [सं०] पक अन्न । पकाया हुआ (भोजन); पका हुआ (फलादि); अच्छी तरह | सिद्धापगा-स्त्री० [सं०] दे० 'सिद्धसिंधु'। तैयार किया हुआ प्रस्तुत (रुपया); पराभूतवशीकृत सिद्धार्थ-वि० [सं०] जिसकी कामनाएँ पूरी हो गयी हों, (मंत्रादि द्वारा); दक्ष, विशेषश; शुद्ध किया हुआ (तप- सफलमनोरथ, लक्ष्यतक ले जानेवाला; जिसका अभिप्राय श्चर्या आदिसे); मुक्त; अलौकिक शक्तिसे संपन्न धर्मात्मा शात हो। पु० गौतम बुद्ध; एक मारपुत्र; स्कंदका एक पवित्रा अमर प्रसिद्ध दीप्तिमान् । ठीक घटा हुआ । पु० अनुचर; महावीर के पिता दशरथका एक मंत्री; सफेद या संत या योगी जिसे सिद्धि प्राप्त हो गयी हो; संत; ऋषि; पीली सरसों; एक संवत्सर ।। एक देवयोनि; जादूगर, मुकदमा, व्यवहार; एक योग | सिद्धासन-पु० [सं०] एक योगासन । (ज्यो०)। -काम-वि० जिसकी इच्छाएं पूरी हो गयी सिद्धि-स्त्री० [सं०] सफलता, अभ्युदयः निष्पत्ति; अनुहों। -कार्य-वि० कृतकार्य, सफल । -गुटिका-स्त्री. मान; निश्चय; (ऋणका) परिशोध; पाक-क्रिया प्रश्नका एक मंत्रसिद्ध वटिका जिसे मुहँ में रखनेपर मनुष्य अदृश्य हल; पूर्ण शुद्धि; अणिमा, गरिमा आदि अलौकिक हो सकता है। -जल-पु० पकाया हुआ पानी; शक्तियाँ दक्षता, निपुणता; सुपरिणाम; मोक्ष, योगका माँड़ । -तापस-पु. अलौकिक शक्तियुक्त साधु । एक प्रकार; दक्षकी एक कन्या; गणेशकी एक पत्नी । -नर-पु० दैवश; वह व्यक्ति जिसे सिद्धि प्राप्त हो गयी -कर-वि० सफल बनानेवाला, समृद्ध करनेवाला । हो।-नाथ-पु० महादेव । -पक्ष-पु० किसी प्रतिज्ञा- -कारक-वि० लक्ष्य प्राप्ति करानेवाला; प्रभावकर । - का वह पक्ष जो प्रमाणित हो गया है। -पुरुष-पु० वह
कारी(रिन्)-वि०किसी बातकी सिद्धि करानेवाला। व्यक्ति जिसे योगादिमें सिद्धि प्राप्त हो गयी हो।-प्राय- -द-वि० मोक्ष देनेवाला; सिद्धि देनेवाला । -दातावि० जो करीब-करीब सिद्ध हो चुका हो । -भूमि-स्त्री० | ()-पु० गणेश । -प्रद-वि० सिद्धि देनेवाला । - सिद्धोंका स्थान; वह स्थान जहाँ योगादिकी सिद्धि शीघ्र ! भूमि-स्त्री. वह स्थान जहाँ सिद्धि जल्द मिले । -मार्ग होती हो । -मंत्र-पु० सिद्धिप्राप्त मंत्र । -योगी- -पु० सिद्धलोकमें पहुँचानेवाला रास्ता । -यात्रिक-पु० (गिन्)-पु. शिव । -रस-पु. पारा; वह जिसने | सिद्धिकी प्राप्तिके लिए यात्रा करनेवाला व्यक्ति । -लाभ पारा सिद्ध कर लिया है। कीमियागर; धातुप्रभृति । -पु० सिद्धिकी प्राप्ति । -वाद-पु० ज्ञानगोष्ठी। -- -रसायन-पु० दीर्घायु बनानेवाला रस। -लक्ष-वि० विनायक-पु० गणेशकी एक मूर्ति । -स्थान-पु० तीर्थ जिसने निशाना ठीक-ठीक लगाया है। जिसका निशाना | स्थान; मोक्षप्राप्तिका स्थान ।। न चूके। -लोक-पु० सिद्धोंका लोक। -विनायक-सिद्धीश्वर-पु० [सं०] महादेव; एक तीर्थ । पु० गणेशकी एक मूर्ति । -संकल्प-वि० जिसका संकल्प सिद्धेश्वर-पु० [सं०] योगिराज; शिव; गुलतुर्रा । पूरा हो गया हो।-सारस्वत-वि० जिसे सरस्वती सिद्ध | सिद्धेश्वरी-स्त्री० [सं०] देवीविशेष । हो।-सिंधु-स्त्री० मंदाकिनी, स्वर्गगंगा ।-स्थाली-स्त्री० | सिध*-वि० दे० 'सिद्ध'।। सिद्ध पुरुषकी बटुई जिससे इच्छानुसार भोजन प्राप्त किया। सिधाई-स्त्री० सरलता, सीधापन । जा सकता है। -हस्त-वि० जिसका हाथ मँजा हो, सिधाना-अ० क्रि० चला जाना, प्रस्थान करना; आना, दक्ष, कार्यकुशल ।
-'तब कर जोरि कह्यो कोशलपति हे प्रभु भले सिधायो'
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सिधारना-सियासत -रघु०।
सिफत-स्त्री० [अ०] गुण, विशेषता लक्षण; विशेषणपद । सिधारना-अ० क्रि० जाना, प्रस्थान करना; विदा, रवाना सिफर-पु० [अ०] विदुः शून्य । वि० मूल्यरहित । होना; मर जाना । * स० क्रि० सुधारना ।
सिफलगी-सी० कमीनापन, नीचता । सिधि*-स्त्री० दे० 'सिद्धि। -गुटका-पु० दे० 'सिद्ध- सिफ़ला-वि० [अ०] कमीना, नीच, क्षुद्र, छिछोरा । गुटिका'।
-पन-पु० ओछापन, नीचता। सिध्मा-स्त्री० [सं०] कुष्ठका दाग, कुष्ठ रोग ।
सिफली-वि० [अ०] नीचेका, निचला। -अमल-पु० सिन(अ)-पु० [अ०] उम्र, वय ।
वह मंत्र जिसमें शैतान या प्रेतात्माओंसे सहायता ली जाय । सिनक-स्त्री० नाकका मल, रेंट ।
सिफा-स्त्री० दे० 'शिफा'। सिनकना-सक्रि० साँसके झोंकेसे नाकका मल निका- सितारत-स्त्री० [अ०] सफीर (दूत)का पद या काम, लना, छिनकना।
दूतत्व; एक राज्यसे दूसरेको भेजा हुआ प्रतिनिधिमंडल । सिनी-स्त्री० [सं०] गौरवर्णकी स्त्री।
-खाना-पु० दूतावास, राजदूतका दफ्तर । सिनीवाली-स्त्री० [सं०] एक वैदिक देवी; शुक्ल पक्षकी सिफारिश-स्त्री० [फा०] किसीके विषयमें भलाईकी बात प्रतिपदा।
कहना; किसीका कोई काम करने के लिए दूसरेसे कहना; सिनेट-स्त्री० [अं०] विश्वविद्यालयकी प्रबंध समिति । किसी में किसी पद, कार्य इत्यादिकी योग्यता बताना; सिनेमा-पु. [अं०] चलचित्र, छायाचित्र; बह स्थान जहाँ। खुशामद; जरीया (क०)।-नामा-पु०सिफारिशी चिट्टी।
चलचित्र प्रदर्शित किये जायें।-हाउस-पु० सिनेमाघर । सिफारिशी-वि० [फा०] जिसमें किसीकी सिफारिश की सिमी -स्त्री० मिठाई खुशीमें या देवताको चढ़ाकर प्रसाद गयी हो; सिफारिश करनेवाला ।-टटू-पु० वह आदमी के रूपमें बाँटी जानेवाली मिठाई।
जो योग्यताके बिना, महज सिफारिश या चापलूसीसे सिपर-स्त्री० [फा०] ढाल, फरी; रोका (ला) पनाह | कोई पद पा जाय। मददगार । मु०-डाल या फेंक देना-हथियार डाल सिताल-पु० [फा०] मिट्टीका बरतन; ठीकरा । देना, हार मान लेना । - पर लेना-हिफाजतके लिए | सिफ़ाला-पु० [फा०] मिट्टीका बरतन; ठीकरा खपड़ा। ढाल उठाना।
सिविका*-स्त्री० दे० शिविका'। सिपरा-स्त्री० दे० 'सिप्रा'
सिमंत*-पु० दे० 'सीमंत' । सिपह-पु० [फा०] 'सिपाह'का लधु रूप। -गरी-स्त्री० सिमई-स्त्री० सिवई। सिपाहीका काम या पेशा,सैनिकवृत्ति । -दार-पु० सेना सिमटना-अ० क्रि० सिकुड़ना, संकुचित होना; सिकुड़न नायक । -सालार-पु० सेनापति ।
पड़ना; एकत्र होना, बटुरना; लज्जित हो जाना,सहमना। सिपाई*-पु० दे० 'सिपाही'।
सिमरना*-स० क्रि० दे० स्मरण, याद करना। सिपारसा-स्त्री० दे० 'सिफारिश' ।
सिमल-पु० हलका जूआ जूएकी खूटी। सिपारसी -वि० दे० 'सिफारिशी'।
सिमाना -पु० हद, सीवाना । * सक्रि०दे०सिलाना। सिपारिश-स्त्री० [फा०] दे० 'सिफारिश' ।
सिमिटना*-अ० क्रि० दे० सिमटना। सिपाह-पु० [फा०] सेना, फौज । -गरी-स्त्री० सिपाही सिमृति*-स्त्री० दे० 'स्मृति' ।
का काम या पेशा, सैनिक वृत्ति ।-सालार-दे० 'सिपह- सिमेटना*-स० क्रि० दे० 'समेटना' । सालार।
सिय*-स्त्री० सीता। सिपाहियाना-वि० [फा०] सिपाहियोंकासा, सैनिकोचित | सियना*-स० कि० सर्जन करना, बनाना, उत्पन्न करना; (सिपा० ठाट)।
+सीना। सिपाही-पु० [फा०] सैनिक योद्धा कांस्टेबिल, चपरासी। सियरा*-वि० शीतल, ठंडा कच्चा । पु० छायासियार। सिपुर्द-वि० [फा०] सौंपा हुआ, हवाले किया हुआ। सियराई-स्त्री० शीतलता, ठंढक ।
-गी-स्त्री० सिपुर्द करनेका भाव; तहबील, हिरासत । सियराना-अ० कि० शीतल, ठंडा होना। (""में लेना)। -नामा-पु० सिपुर्द करनेका लेख, सम• सिया*-स्त्री० सीता, जानकी। र्पणपत्र । म०-करना-सौंपना, हवाले करना: हिरासत-सियादत-स्त्री० [अ० सरदारी,बड़ाई:राज्य: सैयद जाति ।
सियाना-वि० दे० 'सयाना' । स० कि० दे 'सिलाना' । सिप्पर*-स्त्री० दे० 'सिपर'।
सियापा-पु० स्त्रियोंका एकत्र होकर कुछ दिनोंतक मातम सिप्पा-पु० सीपका अर्थाश ढब निशाना; मतलब; काम | मनाना (पंजाब आदिका एक रिवाज); मातम । निकालनेका उपाय, डौल, टिप्पस धाक । मु०-जमाना-सियारी-पु. गीदड़, शृगाल ।-लाठी-स्त्री०अमलतास । भूमिका बाँधना, डौल खड़ा करना । -भिड़ना,-लड़ना सियाल*-पु० शृगाल, गीदड़।। -मौका मिलना, उपाय लग जाना। -भिडाना,-सियाली -वि. जाड़ेके मौसिमका; जाड़ेमें होनेवाली लड़ाना-टिप्पस जमाना, तदबीर करना । -मारना,- (फसल) । स्त्री० एक तरहका विदारी कंद ।
लगाना-निशाना लगाना, फंदा लगाना,जाल डालना। सियासत-स्त्री० [अ०] देशरक्षा; राज्यप्रबंध; राजकाज%B सिप्रा-स्त्री० [सं०] स्त्रियोंका कटिबंध; भैस, एक झील; दंड; शास्ति; दबदबा, भय मारपीट । -दा-विराजउज्जैनके पासकी एक नदी ।
नीतिज्ञा शासनपट्ट।
में देना।
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सियासी - वि० राज्यप्रबंध या राजकाजसे संबद्ध; राजनीतिक ।
।
सियाह - वि० [फा०] काला, श्याम; अशुभ । -कारवि०बदकार, दुराचारी; अत्याचारी ।-कारी-स्त्री०बदकारी, पाप; जुल्म । - चश्म - वि० काली आँखोंवाला; बेमुरौवत, बेवफा | -ज़बान - वि० बदजबान; जिसका शाप जल्दी पड़े । - दिल - वि०बेमुरौवत; निर्दय । -पोश- वि० काले रंगके कपड़े पहननेवाला; शोक या मातम मनानेवाला । मु० - पोश होना- मातम मनाना । ] -बख़्त - वि० अभागा । - सफ़ेद - पु० भलाई - बुराई मु० (काग़ज ) - करना - लिखना; बहुत लिखना । सियाहा - पु० [फा०] वह रोजनामचा जिसमें रोजका आमदनी खर्च लिखा जाय, बही; वह बही जिसमें लगान या मालगुजारीकी वसूली लिखी जाय। -नवीस - पु० सियाहा लिखनेवाला; रजिस्टर में आशाएँ लिखनेवाला । सियाही स्त्री० [फा०] कालापन; कालिमा, कालिख; अंधकार; रोशनाई, मसि; दोष । चटा, सोख - पु० स्याही सोखनेवाला कागज (ब्लाटिंग पेपर) । सिर- पु० मनुष्य तथा अन्य जानवरोंका गरदनके ऊपरका हिस्सा; खोपड़ी, कपाल; किसी चीजका ऊपरका हिस्सा; चोटी; आरंभ; किनारा; सरदार; दिमाग; पिप्पलीमूल । -कटा - वि० जिसका सिर कटा हो; दूसरोंका सिर काटनेवाला, अपकारी । - खप - वि० सिर खपानेवाला, मेहनती; बहादुर । खपी - स्त्री० जान लगाकर मेहनत करना । -चंद - पु० हाथीके मस्तकका एक अर्द्धचंद्राकार भूषण । - चढ़ा - वि० मुँहलगा, ढीठ । - ताज-पु० सरदार; मालिक; स्त्रियोंका एक सिरका गहना; पति, शौहर । - त्राण * - पु० दे० 'शिरस्त्राण' । -दार*पु० दे० 'सरदार' । - दारी* - स्त्री० दे० 'सरदारी' | - नामा - पु० पत्रपर लिखा जानेवाला पता; लेखादिका शीर्षक । - नेत- पु० सिरकी पगड़ी - 'रे नेही मत डगमगे बाँधि प्रीति- सिरनेत' - रतन० । -पाँच- - पाव * - पु० दे० 'सिरोपाव' । - पेंच, पेच - पु० पगड़ी; पगड़ीके ऊपरका छोटा कपड़ा; पगड़ीपर बाँधनेका एक गहना । - पोश- पु० सिरका आवरण । - फूल-पु० स्त्रियोंका एक शिरोभूषण । - फँटा, - बंद - पु० पगड़ी । -बंदी - स्त्री० माथेपरका एक गहना । मगजन - पु० माथापच्ची । - मनि* - पु० शिरोमणि । -मुँड़ा - वि० जिसके सिरके बाल मुँड़े हों; निगोड़ा (त्रि०) । -मौर- पु० दे० 'सिरताज' । - रुह * - पु० दे० 'शिरोरुह' । - हाना - पु० खाटका वह हिस्सा जिधर सिर रहता हैं। मु०- आँखाँ - पर, - आँखों से - स्वीकार है, शौकसे । - आँखोंपर बि (बै) ठाना - बहुत इज्जत करना । - आँखोंपर रखनाबड़ी आवभगत करना । - आँखोंपर होना - खुशीसे स्वीकार होना । -आना- सिरपर वार करना; प्रेताविष्ट होना; किसीके पीछे पड़ना, झगड़ना । -आ बननाइलजाम लगना; मुसीबत पाना उकसाना - सिर ऊँचा करना; बगावत करना। -उठाकर चलना - इत राना, गरूर करना । - उठाना - फुर्सत, साँस, अवकाश पाना; उपद्रव, फसाद करना; अकड़ दिखाना, घमंड
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सियासी - सिर
करना; प्रतिष्ठा, आत्मसम्मान से रहना । - उठानेकी फुरसत नहीं- जरा भी अवकाश नहीं। उड़ाना, - उतारना - सिर काटना । -ऊँचा करना - आत्मसम्मानपूर्वक रहना । (किसी का) - ऊँचा करना - प्रतिष्ठा देना । - कदमपर रखना - पाँवपर सिर रखना, मिन्नत करना; इज्जत करना । - करना - जिम्मेवार बनाना; लड़ानाभिड़ाना; जबर्दस्ती देना; चोटी गूँथना; ताश आदिकी बाजी जीतना । - का पसीना पाँवको आना या पाँवपर बहना - बहुत ज्यादा मेहनत करना । -का बोझ उतरना - किसी काम से फुरसत पाना । -का बोझ उतारना या टालना - लापरवाहीसे कोई काम करना । -की टली जानपर आयी एक तरफ संकट टला, दूसरी तरफ से आया । - की सुध न पाँवकी बुध-कुछ होश नहीं, लापरवाह । - के बल - सिरके सहारे, अदबके साथ ( चलना, जाना) । खपाना- किसी काम में बहुत माथापच्ची करना । - खाना- व्यर्थकी बातों से परेशान करना; शोर मचाना ।-खाली करना - बेकार माथापच्ची करना; बकझक करना । - खुजलाना, खुजाना- शामत आना, मार खानेको जी चाहना (व्यंग्य) । - गंजा करना - इतना मारना कि सिरपर बाल न रह जायँ; कंगाल कर देना । - घुटनों में देना - खिन्न होना; लज्जित होना । घूमना, - चकराना -सिर में दर्द होना; चक्कर आना; बेहोशी होना; पागल हो जाना। -चढ़कर - निडर होकर ; खुद छेड़खानी करके । -चढ़कर बोलना-अपने आप भेद खुलना; भूत-प्रेत आदिके आवेशमें रोगीकी बकझक । -चढ़कर लड़ना - लड़ाई लेना; खाहमखाह छेड़खानी करना । -चढ़ाकर पटकना - आदर देकर अपमानित करना । - चढ़ाना - आदरका भाव दिखाना; गुस्ताख बनाना; देवी-देवताको बलि देना । -जाना - सिर कटना; किसी के जिम्मे पड़ना । - जोड़कर बैठना - मंत्र - परामर्शके लिए पास-पास बैठना । - जोड़ना - सिर मिलाना; एकत्र होना; मेल होना; राय करना; षड्यंत्र करना । -झुकना - सिर नीचा होना (लज्जा, पराजय आदिसे ) । -झुकाना - नमस्कार करना; लज्जासे गर्दन नीची करना; चुपचाप स्वीकार कर लेना । -तोड़ कोशिश करना - बेहद कोशिश करना | थामकर बैठ जाना या बैठना - शोक, क्षोभ, आघात आदिके वेगसे सिर पकड़कर बैठ जाना । - थोपना- किसीके जिम्मे करना; इलजाम लगाना । - दबाना, - दाबना - सिरकी मालिश करना; पराजित करना । - दुखाना - सिर में दर्द पैदा करना; परेशान करना । - देना- प्राण निछावर करना, जान देना । - दे मारना - सिर पीटना ( शोकादि में ) । - धुननाशोक, पश्चात्ताप आदिके वेगसे सिर पीटना; शोक करना; पछताना | - धोना - सिरके बालोंको खली, मिट्टी वगैरह डालकर पानी से साफ करना (स्त्रि०) । - नंगा करनासिर खोलना; बेइज्जत करना । - न उठाने देना -दम भरकी मुद्दलत न देना, काममें लगाये रखना; सरकशी न करने देना; बोलने की फुरसत न देना ।-न पाँच, - न पैर-बेतुका, बेतरतीब, क्रमहीन । -नवाना नमस्कार करना; दीन बनना । - नीचा करना - लज्जित करना;
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सिर उदास होना। -नीचा होना-पराजित होना; लज्जित होना । -पचाना--सोच विचार करने में हैरान होना। -पटकना-बहुत परिश्रम करना; सिर फोड़ना; तिलमिलाना; सिर धुनना, पछताना नाराज होना; घबड़ाना। -पड़ना-जिम्मे पड़ना; हिस्से में आना ।-पड़ेका सौदाजिम्मे पड़ेका मामला, मजबूरीका सौदा। -पर-बहुत निकट, पास। -पर अजल या मौतका खेलना या हँसना-मृत्युके लक्षण दिखाई देना ।-पर आ चढ़नापीछे पड़ जाना, छातीपर आ मौजूद होना। -पर आ जाना-बहुत समीप आ जाना, थोड़े ही दिन और रह । जाना । -पर आना-बहुत पास आ जाना । -पर आ पड़ना-जिम्मे पड़ना; अपने ऊपर घटित होना। -पर आ पहुँचना-सन्निकट आना। पर आसमान उठानाबहुत शोर-गुल मचाना ।-पर आसमान टूटना-बहुत बड़ी विपत्ति आना; देवीकोप होना ।-पर उठाना,-पर उठा लेना-बहुत ऊधम, शोर-गुल करना (घरको सिरपर उठा लेना)। -पर कफन बाँधना-मरनेके लिए तैयार रहना ।-पर कयामत टूटना-मुसीबत, विपत्ति आना। -पर कोई न होना-कोई मददगार या संरक्षक न होना । -पर कोदी दलना-दूसरेको जलानेके लिए | कोई काम करना; सौत लाना। -पर खड़ा होनासामने रहना; सन्निकट होना; बेअदबीसे खड़ा होना। -पर खून चढ़ना,-पर खून सवार होना-किसी हत्यारेपर हत्याका आवेश आना, इत्या करनेका लक्षण प्रकट होना । -पर खेलना-प्रेतका सिरपर आकर बातें करना, सिरपर आना; जान जोखिममें डालना । -पर चढ़ना-मुँह लगना । -पर चढ़ाना-इज्जत करना; बढ़ावा देना, मुँहलगा करना । -पर चिल्लाना-पास आकर शोर करना। -पर छत उठा लेना-बहुत हल्लागुल्ला करना, चिल्लाना । -पर जहान भरका बेड़ा उठा लेना-बड़ा झगड़ा मोल लेना, बूतेसे बाहर काम ले बैठना । पर जिन खेलना-अभुआना, प्रेतके आवेशमें अंगोंका अस्वाभाविक परिचालन और प्रलाप करना। -पर जिन सवार होना-भूत-प्रेतका सिरपर आना; जिद, हठ होना । -पर जूं न रंगना-चेत न होना, होश न होना। -पर ढोल बजाना-शोर-गुल करना, चिल्लाना । -पर नक्कारा बजना-हंगामा, शोर-गुल होना। -पर न रहना-किसी बड़े-बूढ़े, अभिभावक, मददगारका मर जाना । -पर पड़ना-माथे होना, जिम्मे होना । -पर पत्थर ढोना-बड़ी तकलीफसे जिंदगी बिताना, अत्यधिक कष्ट सहना; बहुत मेहनत करना । -पर पहाड़ गिरना-मुसीबत आ पड़ना । -पर पाँवका जूता टूटना-जूतोंसे किसीका इतना पीटा जाना कि जूता टूट जाय । -पर पाँव रखकर उड़। जाना-तेजीसे भाग जाना । -पर पांव रखना-बहुत | जल्द भाग जाना; उदंडताका व्यवहार करना। -पर पृथ्वी उठाना-बहुत उत्पात करना; बहुत परिश्रमका काम करना । -पर बाल होना-बोलनेकी ताकत होना, मजाल होना। -पर बि(ब)ठाना-सम्मानपूर्वक पास बैठाना; बहुत इज्जत करना। -पर बोझ पड़ना-अह-
सानमंद होना; चिंतित होना; जिम्मेवारी पड़ना। -पर बोलना-मंत्रबलसे साँपकाटे रोगीका साँपकी ओरसे बोलना, बात करना ।-पर भूत सवार होना-बदहवास होना; पागल होना; किसी बातकी धुन होना सिरपर भूत-प्रेतका आना । -पर मौतका खेलना-मौत निकट आना। -पर रखना-आदरार्थ कोई चीज सिरपर रखना; आदर देना ।-पर शैतान चढ़ना या सवार होना-दुराग्रह, हठ होना; क्रोध चढ़ना; पापकी प्रवृत्ति होना । -पर सनीचर सवार होना-मुसीबत आना। -पर सफेदी आना-बुढ़ापा आना। -पर सवार रहना-धृष्ट होना; साथ रहना; साथ न छोड़ना; कड़ाईसे निगरानी करना। -पर सवार होना-भूत-प्रेतका साया, प्रभाव होना; किसी बातकी धुन होना। -पर साया रखना-किसीका अभिभावकत्व करना; कृपारखना। -पर हाथ फेरनाधीरज, दिलासा देना प्यार करना । -पर होना-सहायक, समर्थक होना; जिम्मे पड़नाथोड़े दिनकी अवधि रह जाना, बहुत निकट आ पड़ना। -पाव न होना-सिलसिला न होना, बेढंगा होना। -पाँवपर धरना-पैरों पड़ना, दीनता प्रकट करना।-पैर न होना--आदि और अंतका न होना ।-फट जाना-सिर फूटना,सिरपर गहरी चोट लगना (लाठी आदिसे)।-फटा जाना-फटा पढ़ना -सिर और आँखों में अत्यधिक पीड़ा होना । फिर जानासिर चकराना; पागल होना । -फूटना-सिरका घायल होना (ईट, पत्थर, लाठी आदिकी चोटसे)।-फोड़नासिर दे मारना, पत्थर, ईंट आदिसे सिरको चुटीला करना। (किसीके)-बीतना-सिरपर पड़ना । -मग़ज़न करना -बकवास करना। -मढ़ना-बलपूर्वक किसीके जिम्मे लगाना । -मारते फिरना-सिर टकराते फिरना; कठिनाइयोंसे जान-बूझकर उलझना । -मारना-समझातेसमझाते हैरान होना; सोचने-बिचारने में हैरान होना, अत्यधिक परिश्रम करना; चिल्लाना । -मुंड़ाते ही ओले पड़ना-आरंभमें ही विघ्न-बाधा पड़ना । -मुंडानाबाल घुटाना साधु हो जाना। -में बाल होना-मार खाने, झेलनेकी ताकत होना। -रंगना-सिर फोड़ना, लहू-लुहान करना। -से कफन बाँधना-मरनेके लिए तैयार होना। -से खेल जाना-मरने के लिए तैयार हो जाना; बड़ी दिलेरीका काम करना ।-से निन उतारना -क्रोध धीमा करना; भय दूर करना। -से टलनापीछा छूटना। -से पॉवतक-आदिसे अंततका ऊपरसे नीचेतक, तमाम ।-से पैरतक-आदिसे अंततक; ऊपरसे नीचेतक । -से पैरतक आग लगना-अत्यधिक क्रोध चढ़ना। -से बेगार टालना-बेदिलीसे काम करना । -से बोझ उतरना-निश्चितता, बाफका हाना, झझट दूर होना। -से बोझ उतारना-बोझ टालना; किसी भार और दायित्वसे मुक्ति प्राप्त करना। -से लगानाआदर, सम्मान करना ।-से साया उठना-अभिभावक, गुरुजनका देहावसान होना । (किसीके)-से सेहरा बंधना-औरोंसे अधिक सफलता या यश प्राप्त करना । -हथेली पर धरना, रखना, लिये फिरना, लेनाबहादुरीसे जान देनेके लिए तैयार रहना, जान-बूझकर
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सिरई-सिवई दिलेरीसे मौतका सामना करना। -हिलाना-सिरको सिर्का-पु० दे० 'सिरका' । ऊपर-नीचे या अगल-बगल हिलाना (प्रशंसा, स्वीकृति, सिर्फ़-वि० [अ०] खालिस; अकेला; केवल । अ० केवल । अस्वीकृति आदिकी सूचनाके लिए)। (किसीका सिल-स्त्री० शिला, चट्टान मसाला आदि पीसनेकी पत्थरकिसीके)-हाना-पीछा न छोड़ना, पीछा करना; बार- की चौकोर पटिया; इमारतमें लगानेकी गढ़ी हुई पटिया बार किसी चीजका आग्रह करके परेशान करना; उलझ पूनी बनानेकी काठकी पटरी । पु० उंछ वृत्ति । -बट्टापड़ना, झगड़ा करना। (किसी बातके)-होना- पुसिल और लोदिया। -वट-पु० सिल; सिल और समझ लेना, ताड़ लेना।
बट्टा । स्त्री० दे० क्रममें। सिरई-स्त्री० सिरहानेकी पाटी।
सिलगना*-अ० क्रि० दे० 'सुलगना' । सिरका-पु० [फा०] धूपमें सड़ाकर खमीर उठाया हुआ सिलप-पु० दे० 'शिल्प' । ईख, अंगूर आदिका रस ।
सिलपट-वि० चौरस, बराबर साफ, चौपट । पु० चप्पल । सिरकी-स्त्री० सरकंडा, सरहरी; सरकंडेकी बनी हुई टट्टी। सिलवट-स्त्री० शिकन, सिकुड़न । पु० दे० 'सिल में । सिरगा*-पु० घोड़ोंकी एक जाति ।
सिलवाना-स० क्रि० किसीसे सीनेका काम कराना। सिरजक*-पु० सृष्टिकर्ता, बनानेवाला ।
सिलसिला-* वि० आर्द्र, चिकना-'ऐसी सिलसिली ओप सिरजन*-पु० निर्माण, सृष्टि करना। -हार-पु० सुंदर कपोलनकी खिसिल सिसिल परै दीठि जिन परतें'कर्तार, निर्माता, स्रष्टा।
सुंदर । पु० [अ०] कड़ी, शृखला; बेड़ी; पंक्ति; क्रम, सिरजना*-स० कि० उत्पन्न करना, रचना, बनाना तरतीब, वेशा कुरसीनामा लगाव, संबंध(जोड़ना,तोड़ना)। संचय करना । स्त्री० सृष्टि, रचना ।
-(ले)वार-वि० क्रमयुक्त, तरतीबवार । सिरजित*-वि० रचा हुआ, सृष्ट ।
सिलह-पु० [अ०] हथियार, आयुध । -खाना-पु० सिरस, सिरिस-पु० दे० 'शिरीष'।
अस्त्रागार । -पोश-वि. हथियारोंसे लैस, शस्त्रसन्नद्ध । सिरहाना-पु० दे० 'सिर में ।
सिलहिला-वि० पंक आदिके कारण चिकना, जिसपर पैर सिरा-पु० अंतका भाग, छोर; शुरूका भाग; ऊपरका फिसले, पिच्छल ।
भाग; अगला भाग नोक । -(२)का-परले दरजेका। सिला-* स्त्री० दे० 'शिला'। पु० फसल कटनेके बाद सिरा-स्त्री० [सं०] रक्तनलिका, धमनी, नाड़ी; नाड़ी जैसा खेतमें गिरे हुए दाने उंछ वृत्ति; फटकनेके लिए रखा जलका तंग सोता, जलकी संकीर्ण प्रणाली नसोंकी तरह हुआ गल्लेका ढेर ।-जीत-पु० दे० शिलाजतु'।-रसएक दूसरीको काटनेवाली रेखाएँ; डोल। -जाल-पु० पु० सिल्क वृक्ष; उसका निर्यास ।-वट-पु०दे० क्रममें । नाड़ियोंका जाल; आँखकी कोशिकाओं (सूक्ष्म धमनियों), सिलाई-स्त्री० सीनेका काम या मजदूरी; सीयन, टाँका; का शोथ। -प्रहर्ष-पु० दे० 'सिराहर्ष'। -हर्ष-पु० सीनेका ढंग।
नाड़ियोंका पुलको आँखके डोरोंकी लालीका बढ़ जाना। सिलाना-स० कि० दे० 'सिलवाना'; दे० 'सिराना' । सिराजी-पु० शीराजका घोड़ा।
सिलाबी-वि० सैलाबी, गीला, नम । सिरात-स्त्री० [अ०] रास्ता, सड़कमुसलमानोंके विश्वासा- सिलावट-पु० पत्थर काटनेवाला, संगतराश ।
नुसार कयामतके दिन दोजखपर बनाया जानेवाला पुल । सिलाह-पु० [अ०] हथियार, आयुध । -ख़ाना-पु० सिराना*-अ० क्रि० ठंढा होना; बीतना, समाप्त होना शस्त्रागार । -पोश,-बंद-वि० हथियारबंद । -'चरचहिं सिगरी रेन सिरानी'-प्रागनि दर होना। | सिलाही-पु० सैनिक, सिपाही । उत्साह ढीला पड़ना; शांत होना, हार मान लेना । स० सिलिप-पु. शिल्प, कारीगरी । क्रि० ठंढा करना; पानीमें डुबाना-'तुलसी भाँवरके परे सिलीपट-पु० [अ० 'स्लीपर'] लकड़ी आदिकी वह
नदी सिरावत भौर'-तुलसी; खतम करना; बिताना। पटिया जिसपर रेल बिछायी जाती है। सिरावन-पु० हेगा, पाटा, पटेला ।
सिलीमुख-पु० दे० 'शिलीमुख' । सिरावना*-स० क्रि० दे० 'सिराना'।
सिलेट-स्त्री० दे० 'स्लेट' । सिरिख*-पु० दे० 'शिरीष'।
सिलोच*-पु० एक पर्वत जो रामको जनकपुरकी यात्राके सिरिश्ता-पु० दे० 'सरिश्ता' (समास भी)।
मार्गमें मिला था। सिरी-स्त्री० * लक्ष्मी, ऐश्वर्य; शोभा, सौंदर्य रोली, सिलौट, सिलौटा-पु० सिल; सिल और बट्टा ।
सिरका एक गहना। -पंचमी-स्त्री. वसंत पंचमी।। सिलौटी-स्त्री० भाँग आदि पीसनेकी छोटी सिल । सिरीस-पु० दे० 'शिरीष'।
सिल्क-पु० [अं॰] रेशम रेशमी वस्त्र । सिरोपाउ*-पु० दे० 'सिरोपाव' ।
सिल्ला-पु. कटनीके बाद खेतमें गिरे हुए दाने खलिसिरोपाव-पु० सिरसे पेरतकका पहनावा जो बादशाहकी | यानमें गिरा हुआ अन्न । ओरसे सम्मानार्थ मिलता था, खिलअत ।
सिल्की-स्त्री. उस्तुरा आदि तेज करनेका पत्थर: पत्थरसिरोमनि*-पु० दे० 'शिरोमणि' ।
| की पटिया; फटके जानेवाले अनाज या भूसेका ढेर ।' सिरोरुह -पु० दे० 'शिरोरुह' ।
सिव*-पु० दे० 'शिव'। -लिंग-पु० दे० 'शिवलिंग। सिरोही-पु० तलवारके लिए प्रसिद्ध राजपूतानाका एक सिवई-स्त्री० आटे या मैदेके सुखाये हुए लच्छे जिन्हें घीमें स्थान । स्त्री० तलवार एक चिड़िया।
| तलनेके बाद चीनीके साथ दूधमें पकाकर खाते हैं ।
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सिवा-सीजना
८५० सिवा-अ० [अ०] अलावा, छोड़कर, अतिरिक्त । वि० साँग-पु. गाय, बैल, भैसे, मेढ़े, हिरन आदिके सिरके अधिक, बढ़ा हुआ। * स्त्री० पार्वती; शृगाली।
दोनों ओर निकली हुई कड़ी नुकीली शाखा जैसी चीज सिवाइ-१० दे० 'सिवा' ।
जिससे वे दूसरे प्राणियोपर आघात करते हैं, शृंग, विषाण सिवान-पु० सीमांत, सरहद गाँवकी सीमावती भूमि । सींगका बना हुआ बाजा, सौगी। मु०-कटा(तुड़ा)कर सिवाय-अ०, वि० दे० 'सिवा'।
बछड़ों में मिलना-बूढ़ा या बड़ी उम्रका होकर भी बच्चोंसिवार-पु० एक जलीय पौधा, शैवाल ।
के से काम करना, उनकी सुइबत करना । मु०-निकसिवाल-पु० दे० 'सिवार'।
लना-(ला०) सनक जाना । -पूंछ गिरा देना-अति सिवाला-पु० शिवालय, मंदिर ।
दीन बन जाना। -समाना-स्थान, मौका मिलना, सिविका*-स्त्री० दे० 'शिविका'।
ठिकाना दिखाई देना (जहाँ सींग समाये वहाँ चले जाओ)। सिविर*-पु० दे० 'शिविर' ।
(सिरपर, में)-होना-कोई विशेषता, कोई विशेष सिवैयाँ-स्त्री० दे० 'सिवई'।
चिह्न होना (क्या बेवकूफके सिरमें सींग होते हैं)। सिष, सिष्य*-पु० दे० 'शिष्य'।
सींगड़ा-पु० सींगका बना हुआ चोंगा जिसमें बारूद रखते सिष्ट*-स्त्री० बंसीको डोरी । वि० दे० 'शिष्ट' ।
हैं, बारूददान; सींगी। सिस*-पु० दे० 'शिशु'-'दन चंदके लखनको सिस सींगी-स्त्री०हिरनके सींगका बना हुआ बाजा; सूराखदार ज्यों बिरझत नैन'-रतन।
सींग जिसे शरीरपर लगाकर खराब खून निकालते है। सिसकना-अ० क्रि० भीतर ही भीतर रोना, खुलकर न मु०-लगाना-सींग लगाकर रक्त चूसना । रोना; सिसकी भरना; व्याकुल होना।
साँच-स्त्री० सींचनेकी क्रिया, सिंचाई । सिसकारना-अ० कि० मुँहसे सीटीकी सी आवाज निका-साँचना-सक्रि० पेड़-पौधोंको पानी देना, सिंचाई करना; लना; शीत्कार करना । स क्रि० (कुत्तोंको) आक्रमण तर करना; छिड़कना। करनेके लिए बढ़ावा देना, लहकारना।
सीव, साँव-स्त्री० सीमा, हद । मु०-चरना-जोरसिसकारी-स्त्री० मुँहसे निकाली हुई सीटीकी सी आवाज;/ जबरदस्ती करना, कष्ट पहुँचाना । लहकारनेकी क्रिया शीत्कार ।
सी-अ० 'सा'का स्त्रीलिंग रूप, सश, समान । स्त्री० सिसकी-स्त्री० सिसकनेकी आवाज; शीत्कार ।
पीडाकी हलकी अनुभूति होने या सरदी लगनेपर मुहँसे सिसिर*-पु० दे० 'शिशिर'।
निकलनेवाली आवाज, सीत्कार। सिसु*-पु० दे० 'शिशु'। -पाल-पु० दे० 'शिशुपाल'। सीउ*-पु० दे० 'शीत'। -मार-पु० दे० 'शिशुमार'।
सीकर-पु० [सं०] पानीका छोटा, जलकण, शीकर, स्वेदसिसुता*-स्त्री० बचपन, शैशव ।
बिंदु * गीदड़-'सीकर स्वान कागका भोजन तनकी यहै सिस्टि*-स्त्री० दे० 'सृष्टि'।
बड़ाई-बीजक । * स्त्री० सिकड़ी, जंजीर । सिस्य*-पु० दे० 'शिष्य' ।
सीकल-पु० दे० 'सैकल', सिकली; डालका पका सिहरन-स्त्री० सिहरनेकी क्रिया, कंपन ।
हुआ आम। सिहरना-अक्रि० काँपना; ठंढसे काँपना भयभीत होना, सीकस*-पु० ऊसर, बंजर भूमि । दहल जाना; रोमांच होना ।
सीका-पु.शिरोभूपण दे० 'छाँका'। सिहरा-पु० दे० 'सेहरा' ।
सीकाकाई-स्त्री० एक वृक्ष जिसकी फलियोंका झाग बाल सिहराना-स० क्रि० कँपाना; भयभीत करना; सहलाना। मलनेके काम आता है। अ० क्रि९ दे० 'सिहलाना' ।
सीख-स्त्री० सिखावन, शिक्षा; सलाह । मु०-लेनासिहलाना-अ०क्रि०ठंढा होना सरदी खाना ठंढ पड़ना। शिक्षा, उपदेश ग्रहण करना। सिहरी-स्त्री० कँपकँपी; भय; रोमांच, जूड़ीका बुखार । सीख-स्त्री० [फा०] लोहेकी सलाख या छड़ जिसपर सिहाना*-अ० क्रि० ईर्ष्या करना; ललचना; देखकर कबाब भूनते हैं; सूआ; छड़के आकारकी लकड़ी जिससे प्रसन्न होना; मुग्ध होना । स० क्रि० ईर्ष्या या तृष्णाकी। बोरियोंका मुँह बाँधते हैं। दृष्टिसे देखना प्रशंसा करना।
सीखन*-पु० सिखावन, सीख । सिहारना*-स०क्रि० हूँढना ढूँढकर लाना।
सीखना-स० कि. किसी विषयका ज्ञान प्राप्त करना, सिहिटि*-स्त्री० सृष्टि ।
पढ़ना; किसी हुनर या कलाकी शिक्षा प्राप्त करना, सिहोड़, सिहोरी-पु० थूहर, सेहुँड ।
अभ्यास करना (सितार सीखना); शिक्षा ग्रहण करना, सीक-स्त्री० मँजकी जातिके एक तृणकी तीली जिसकी अनुभव प्राप्त करना (आदमी कुछ खोकर सीखता है)। झाड़ बनाते हैं। किसी घासका लंबा-पतला डंठल; नाकमें | सीखा-पढ़ा-वि०शिक्षित, जानकार; चतुर । पहननेकी कील ।
सीखा-सिखाया-वि० शिक्षित, कुशल; किसी कला या सीका-पु० पेड़-पौधोंकी बहुत पतली टहनी । दे० 'छीका' | हुनरका जानकार । सीकिया-वि० सीकसा पतला । पु० एकधारीदार कपड़ा। सीग़ा-पु० [अ०] साँचा; विभाग; क्रियाका रूप (काल, -पहलवान-पु० बहुत दुबला-पतला आदमी जो अपने पुरुष, प्रयोग आदिकी दृष्टिसे); शीओंका निकाह । आपको बली समझे (व्यंग्य) ।
| सीजना-अ० क्रि० दे० 'सीझना'।
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सीझ-सीमंत सीझ-स्त्री० सीझने, पकनेकी क्रिया, पकाव ।
मरकहा न हो ( गाय, घोड़ा), नम्र, विनीत; दाहिना सीझना-अ० क्रि० आग और पानीकी सहायतासे पकना; (सीधा हाथ)। अ० ठीक सामने बिना मुड़े-घूमे बिना पककर नरम होना; गलना-रहिमन नीर पखान भीजै और कहीं गये या रुके (सीधा घरका रास्ता लिया)। पै सीझै नहीं'-रहीम, चमड़ेका सिझावसे नरम, चिकना -उलटा-दे०बि० 'उलटा सीधा'। -पन-पु० सिधाई होना; पगना; कष्ट पाना; तपस्या करनाठंढ खाना; भोलापन :-सादा(धा)-विभोला-भाला,सरलस्वभाव । पसेव निकलना; रिसना; प्राप्त होनेकी स्थितिमें होना -तीरसा-बिलकुल सीधा, ठीक सामने (सीधा तीरसा (जैसे व्याज आदि); ऋणका भुगताया जाना ।
गया) मु०-आना-सामनेसे आना; सामना करना, सीटी-स्त्री० दोनों होठोंको सिकोड़कर बीचसे हवा निका- भिड़ना (दिल्ली)। -करना-वक्रता, कुटिलता, ऐंठ, लनेसे पैदा होनेवाली सुरीली आवाज; छोटा बाजा जिसे अकड़ दूर करना, सीधी राइपर लाना; ठोंक-पीटकर ठीक मुँहसे फूंकनेसे इस तरहकी आवाज निकलती हैबाजे करना; निशाना बाँधनेके लिए तीर, बंदूकको लक्ष्यके आदिसे निकला हुआ सीटी जैसा शब्द। -बाज़-पु० सामने करना । होना-सीधा किया जाना, ऐंठ, कुटिसीटी बजानेवाला । मु०-देना-सीटी बजाना; सीटी लता आदि दूर होना; आमादा होना; मेहरबान होना। बजाकर कोई संकेत करना; रेलका खुलनेके पहले इंजनमें | सीधी-वि०, स्त्री० दे० 'सीधा' ।-तरह-अ० भलमनसीलगे हुए यंत्रसे सीटीकी सी आवाज निकालना।
से, सिधाईसे। -नज़र,-निगाह-स्त्री० कृपादृष्टि, प्रसन्नसीठा-वि० फीका, बेमजा । -पन-पु. नीरसता। तासूचक दृष्टि ।-बात-स्त्री० खुली, साफ बात, आसानीसीठी-स्त्री. रस चूस या निकाल लिये जानेपर बचा | से समझमें आनेवाली बात । -राह-स्त्री० भलाईका हुआ फोक या फुजला; साररहित वस्तु ।
रास्ता, सत्पथ । लकीर-स्त्री० सरल रेखा । मु०-उँगसोड़-स्त्री० दे० 'सील' (आर्द्रता, नमी)।
लियौँ घी नहीं निकलता-नरमीसे काम नहीं चलता। सीढ़ी-स्त्री० ऊँचे नीचे स्थानपर चढ़ने-उतरनेके लिए बना -सुनाना-खरी-खरी कहना; खुली गालियाँ देना। हुआ लकड़ी, पत्थर, लोहे आदिके डंडों या पायौंका सिल- | सीधे-अ० ठीक सामने, बिना मुड़े-झुके बिना और कहीं सिला, जीना, निसेनी; उन्नति-क्रम ।
गये या रुके सिधाईसे; नरमी, भलमनसीसे । -मुंह-अ० सीत*-पु० दे० 'शीत' । -कर*-पु. चंद्रमा। शिष्टता, भलमनसीसे (सीधे मुँह बात न करना)।-सेसीतल*-वि० दे० 'शीतल'।-चीनी-स्त्री० दे० शीतल- भलमनसीसे, सिधाईसे। चीनी'। -पाटी-स्त्री० दे० 'शीतल-पाटी'।
सीन-पु० [अं॰] दृश्य, नज्जारा; नाटकका कोई परदा, सीतला-स्त्री० दे० 'शीतला'। -माई-स्त्री. शीतलादेवी। गर्भाक; नाटक या कहानी में वर्णित घटनाओंके घटित सीता-स्त्री० [सं०] हलके फालसे धरतीमें बननेवाली होनेका स्थान, घटनास्थल । -सीनरी-स्त्री० रंग-मंचकी रेखा, फॅड जोती हुई जमीन कृषिकर्म; फाल; सीरध्वज | सजावटका सामान । जनककी कन्या जो रामको ब्याही गयी। -जानि,- सीनरी-स्त्री० [अं०] किसी स्थानके प्राकृतिक दृश्य; रंगनाथ,-पति-पु० रामचंद्र । -फल-पु० शरीफा मंचकी सजावटका सामान । • कुम्हड़ा। -रमण-पु० राम । -रवन,-रौन*-पु. सीना-स० क्रि० सूई या सूएसे किये हुए छेदोंसे तागा दे० 'सीतारमण'। -वर-वल्लभ-पु. रामचंद्र । निकालकर कपड़े, टाट, चमड़े आदिके टुकड़ोंको जोड़ना, -हरण-पु० सीताका रावण द्वारा अपहरण ।
टाँका मारना, सिलाई करना। -पिरोना-स० क्रि० सीताध्यक्ष-पु० [सं०] राजाकी सीरका प्रबंध करनेबाला | सिलाई-बुनाईका काम करना । पु० सिलाईका काम । कर्मचारी।
सीना-पु० [फा०] छाती।-ज़ोर-वि० बली, जबरदस्त । सीत्कार-पु०, सीस्कृति-स्त्री० [सं०] 'सीसी की ध्वनि -जोरी-स्त्री० जबरदस्ती, धींगा-धींगी। -बंद-पु० सिसकी।
अँगिया; घोड़ेकी पेटी जो तंगके ऊपर कसी जाती है। वह सीथ*-पु० पके हुए चावल या जूठनका दाना-'बचे कपड़ा जो बच्चोंकी छातीपर इसलिए बाँध देते हैं कि राल सोथ संतनके पाऊँ'-ललितकि० ।
टपकनेसे और कपड़े खराब न हों; रुईदार फतुही या सीथि*-पु० दे० 'सीथ'।
वास्कट । सीदना*-अ० क्रि० कष्ट पाना ।
सीप-पु०, स्त्री० शंख, घोंघे आदि की जातिका एक जलसीध-स्त्री० सीधा होनेका भाव; ठीक सामनेकी दिशा जीव, शुक्ति; इस कीड़ेका किश्तीनुमा, कड़ा खोल जिसके ऋजुता।
बटन आदि बनाते हैं और जिसका भस्म दवाके काम आता सीधा-पु० भोजनकी असिद्ध, कच्ची सामग्री (चावल, है। -ज*-पु० मोती। -सुत*-पु० मोती । दाल, आटा आदि) जो किसीको पकाकर खानेके लिए या सीपति-पु० दे० 'श्रीपति' । दानरूपमें दी जाय । वि. जो ठीक सामनेकी ओर या| सीपर*-स्त्री० दे० 'सिपर' । किसी एक ही दिशामें गया हो, जिसमें टेढ़ापन या घुमाव सीपिज*-पु० मोती। न हो, सरल, ऋजुः खड़ा; जो शरीर, फसादी, लड़ाका | सीपी-स्त्री० दे० 'सीप' । न हो, भला; जिसमें ऐंठ, अकड़, बनावट आदि न हो, सीबी*-स्त्री० 'सी-सी'का शब्द, सीत्कार । भोला-भाला, बिना छक्के पंजेकाखुला, साफ, बिना सीमंत-पु० [सं०] सिरमें निकाली हुई माँग; हद, सीमाऐंच-पेंचका (सीधा जवाब), आसान (काम); जो कटहा, रेखा, सीमंतोन्नयन संस्कार; इडियोंका जोड़, अस्थि
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सीमंतोन्नयन-सु
८५२ संघात । -करण-पु. माँग काढ़ना।।
सीव-स्त्री० दे० 'सीमा' । सीमंतोशयन-पु० [सं०] द्विज स्त्रियोंके लिए विहित सीवक-पु० [सं०] सीनेवाला । बारह संस्कारोंमेंसे एक, जो गर्भवतीको गर्भके चौथे, छठे सीवन-स्त्री० [सं०] सिलाई, सूचीकर्म टाँका; संधि । या आठवें महीने करना होता है।
सीस-पु० [सं०] सीसा। -अंकनी-स्त्री० (लेडपेंसिल) सीम*-स्त्री० दे० 'सीमा'। म०-काँडना,-चरना-दे० सीसेकी बनी पेंसिल । -ज-पु० सिंदर। 'साँव' के साथ। -चाँपना-हद दबाना, दूसरेकी हदमें सीस*-पु० सिर, शीर्ष । -ताज-पु. वह टोपी जिससे घुसकर उसकी जमीनपर कब्जा करना।
शिकारके लिए पाले हुए बाज आदिका सिर, आँख ढककर सीमल*-पु० सेमल ।।
रखी जाती है और शिकारके वक्त खोली जाती है, कुलहा। सीमांकन-पु० [सं०] (डिमार्केशन) (किसी खेत, भूक्षेत्र -ब्रान-पु० दे० 'शिरस्त्राण' । -फूल-पु० सिरपर आदिकी) सीमा निश्चित या निर्धारित करना।
पहननेका एक गहना। सीमांत-पु० [सं०] हद, सीमा सिवाना, सीमावती सीसक-पु० [सं०] सीसा । स्थान । -पूजन-पु० सीमाकी पूजा; गाँवकी सीमाके | सीसम-पु० एक प्रसिद्ध पेड़ जिसकी लकड़ी दरवाजा, पास आनेपर की जानेवाली वरकी पूजा। -प्रदेश-पु० टेबुल, कुरसी आदि बनानेके काम आती है। सरहदी इलाका।
सीसमहल-पु. वह कमरा या मकान जिसकी दीवारोंपर सीमा-स्त्री० [सं०] हद; सिवाना; खेत, गाँव आदिकी | हर जगह शीशा जड़ा हो। सीमापरका बाँध या मेंड़, सीमाचिह्नः बाँध; किनारा, सीसा-पु० एक प्रसिद्ध मूल धातु जिसकी चादरें, गोलियाँ कूल; चरम बिंदु । -गुल्म-पु० (बैरियर) सीमापर स्थित आदि बनती और जिसका भस्म ओषधरूपमें प्रयुक्त होता चौकी । -चिह्व-पु. (लैंडमार्क) किसी देश, स्थान | है। * शीशा। आदिकी सीमा बतानेवाला पदार्थ देश, जाति या व्यक्ति- सीसी-स्त्री. 'सी-सी'की आवाज; * शीशी। के इतिहासकी कोई मुख्य परिवर्तनकारी घटना ।-पारण, सीसी, सीसो-पु० सीसम । -प्रक्षेपण-पु. ( बाउंडरी) बल्लेसे गेंदपर इतने जोरका | सीह*-स्त्री० गंध । पु० दे० 'सिंह'। प्रहार करना कि वह खेलके मैदानकी बाहरी सीमातक सँ*-अ० दे० 'सो'। पहुँच जाय या उसके पार हो जाय ।-बद्ध-वि० जिसकी संगवंश-पु० अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथके सेनापति पुष्पसीमा बाँध दी गयी हो, परिमित ।-शुल्क-पु० (कस्टम्स मित्र द्वारा संस्थापित राजवंश । ड्यूटी) बाहर जानेवाले या भीतर आनेवाले मालपर देश- | संघनी-स्त्री० सूंघनेकी चीज; तंबाकूके पत्तेका बारीक चूर्ण, की सीमाके समीप वसूल किया जानेवाला शुल्क । नास। सीमातिक्रयण-पु० [सं०] सीमोलंघन ।
संघाना-स० कि. किसीकी नाकके पास कोई चीज इस सीमेंट-पु० [अं०] पत्थरका विशेष प्रकारसे तैयार किया उद्देश्यसे लगाना कि वह उसकी गंध ग्रहण करे, आघ्राण हुआ चूर्ण जो पलस्तर आदि करनेके काम आता है। कराना। सीमोल्लंघन-पु० [सं०] सीमा पार करना ।
सुंड-पु० दे० 'शुंड' । -भुसुंड*-पु० हाथी । सीय*-स्त्री० सीता।
सुंडा-स्त्री० सूंड़ लद्दू गधेकी पीठपर रखनेका गद्दा । सीयनो-स्त्री० सिलाई, सिलाईका जोड़।
सुंदर-वि० [सं०] जो आँखोंको अच्छा लगे, सुरूप, खूबसीयरा*-वि० दे० 'सियरा'।
सूरत, शोभना भला, अच्छा। सीर-पु० [सं०] इल; हलमें जोता जानेवाला बैल; सूर्य संदरता-स्त्री०, संदरव-पु० [सं०] सौंदर्य, खूबसूरती । आक । -धर-पु० बलराम ।-ध्वज-पु० राजा जनक | इंदरताई*-स्त्री० दे० 'सुंदरता'। बलराम । -पाणि,-भृत्-पु० बलराम । -वाह,-संदरम्मन्य-वि० [सं०] अपनेको सुंदर माननेवाला। वाहक-पु० हल जोतनेवाला, हलवाहा ।
सुंदराई*-स्त्री० सुंदरता। सीर-खी वह जमीन जिसे जमींदार खुद जोतता हो। संदरी-वि०,स्त्री० [सं०] रूपवती । स्त्री० सुंदर स्त्री; त्रिपुरपु० रक्तनलिका । * वि० ठंढा, शीतल । मु०-करना- सुंदरी देवी; सवैया छंद; एक वर्णवृत्त । जमींदारका किसी जमीनको खुद जोतना, काश्त करना । सुधाई, सुंधावट-स्त्री० सोंधापन । -खुलवाना-फस्द खुलवाना ।
पु० पत्थर तोड़नेका एक भारी औजार, सीरख, सीरष-पु० दे०'शीर्ष'।
तोपका गज; खूटी। सीरनी-स्त्री० दे० 'शीरीनी' ।
सुंबुल-पु० [फा०] एक सुगंधित घास जो फारसी-उर्दू सीरा-पु० दे० 'शीरा'; सिरहाना । * वि० ठंढा; शांत । कवितामें मुंदर घुघराले वे.शका उपमान मानी गयी है। सीरायुध-पु० [सं०] बलराम ।
सु-उप० [सं०] शब्दोंके साथ जुड़कर यह सुंदर (सुदर्शन), सील-स्त्री० जमीनकी नमी, सील । * पु० दे० 'शील'।। उत्तम (सुगंध), अधिक, अतिशय (सुयोग्य), सहज, अना-वंत-वान-वि० सुशील ।।
यास (सुकर, सुलभ), भली भाँति, पूरे तौरपर ( सुजीर्ण, सीला-पु० डाँठसे झड़े हुए दाने जो फसल काटनेके बाद | सुसेवित, सुशासित) आदि अर्थोंका द्योतन करता है।
खेतमें पड़े रह जाते हैं, शिल; ऐसे दानोंको चुनकर निर्वाह वि० अच्छा; भला; सम्मानाई । * सर्व० दे० 'सो'। करनेकी वृत्ति, उंछ वृत्ति । वि० नम, जिसमें सील हो। * अ० तृतीया, पंचमी और षष्ठी विभक्ति ।
शब्दोंके साथ
योग्य), सजीर्ण,
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सुअ-सुख सुभ*-पु० पुत्र ।
सुकुमार-वि० दे० 'सुकुमार'। सुभटा*-पु० शुक, तोता।
सुकुड़ना-अ० क्रि० दे० 'सिकुड़ना' । सुअन*-पु० बेटा, पुत्र ।
सुकुति*-स्त्री० दे० 'शुक्ति'। *-पु० एक फूल, सोनजर्द ।
सुकुमार-वि० [सं०] कोमल; बहुत नाजुक । पु० सुंदर, सुअना*-पु. शुक, तोता। अ० क्रि० उत्पन्न होना, कोमलांग बालक या किशोर; काव्यका एक गुण । जनमना; उदय होना।
| सुकुमारता-स्त्री०, सुकुमारत्व-पु० [सं०] कोमलता, सुअर-पु० दे० 'सूअर'।-दंता-वि० जिसके दाँत सूअर- मृदुलता, नजाकत । केसे हों। पु० वह हाथी जिसके दाँत जमीनकी ओर झुके सुकुमारी-वि०, स्त्री० [सं०] कोमलांगी । स्त्री० कोमलांगी हुए हों।
बालिका; नवमल्लिका।। सुअबसर-पु० अच्छा अवसर, मौका ।
सुकुरना*-अ० क्रि० दे० 'सिकुड़ना'। सुआ-* पु० तोता, शुक; बड़ी सुई।
सुकुल-पु० [सं०] सदंश । वि० कुलीन; * शुक्छ। -ज,सुभाउ*-वि० बड़ी आयुवाला, दीर्घायु ।
| जन्मा(न्मन्)-वि० सद्वंशजात । सुआद*-पु० स्वाद ।
सुकुवाँर, सुकुवार-वि० दे० 'सुकुमार' । सुआन*-पु० दे० 'इवान'।
सुकूनत-स्त्री० [अ०] निवास, रहाइश । सुआमी*-पु० दे० 'स्वामी' ।
सुकूनती-वि० [अ०] रहनेका, रहाइशी (-मकान)। सुआर*-पु० दे० 'सूपकार'-'लागे परसन निपुन सुकृत-पु० [सं०] पुण्य, सत्कर्म; सौभाग्य । वि० शुभ, सुमारा'-रामा०।
| सुविहित; भाग्यवान्। ठीक तरहसे किया हुआ;सुनिर्मित । सुभारव*-वि० मधुर ध्वनि करनेवाला, सुरीला । सुकृति-स्त्री० [सं०] सत्कर्म, पुण्य । वि० धर्मात्मा । सुआसन-पु० सुंदर, बढ़िया आसन ।
सुकृती(तिन्)-वि० [सं०] धार्मिक, पुण्यवान्। भाग्यसुआसिन, सआसिनी*-स्त्री. सुहागिन स्त्री, पड़ोसिन । शाली; बुद्धिमान् । सुई-स्त्री० दे० 'सूई'।
सुकृत्-वि० [सं०] पुण्यवान् ,धार्मिक, सुकृती; बुद्धिमान सकंठ-वि० [सं०] अच्छे गलेवाला, सुरीला । पु० सुग्रीव । | विद्वान् भाग्यशाली । पु० कुशल कार्यकर्ता; त्वष्टा । सुकंदक-पु० [सं०] प्याज; वाराहीकंद ।।
सुकृत्य-पु० [सं०] सत्कर्म, पुण्य । सुक-पु०दे० शुक' ।-देव-पु०दे० 'शुकदेव' ।-नासा- सुकेशा-वि० स्त्री० [सं०] सुंदर बालोंवाली (स्त्री)। वि० जिसकी नाक तोतेकी ठोर जैसी नुकीली हो। सुकेशी-वि० स्त्री० [सं०] सुंदर केशवाली (स्त्री) स्त्री० एक सुकचाना*-अ० क्रि० दे० 'सकुचाना'।
अप्सरा; एक सुरांगना। सुकड़ना-अ० क्रि०प्तिमटना, ठिठुरना; शिकन पड़ना। | सुक्ख*-पु० दे० 'सुख'। सुकन्या-स्त्री० [सं०] च्यवन ऋषिकी पत्नी जो महाराज | सुक्ति-* वी० दे० 'शुक्ति'। पु० [सं०] एक पर्वत । शर्यातिकी कन्या थो; अच्छी कन्या ।
सुक्र*-पु० दे० 'शुक'। सुकर-वि० [सं०] जो आसानीसे किया जा सके, सरल, सुक्रित*-पु० दे० 'सुकृत' ।
जो आसानीसे काबूमें किया जा सके (घोड़ा, गाय)। । सुक्ल*-वि० दे० 'शुकु' । सुकरा-स्त्री० [सं०] सीधी गाय ।
सुक्षम*-वि० दे० 'सूक्ष्म' । सुकरात-पु० [अ०] प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक जो आफला- सुखंडी-स्त्री० बच्चोंको होनेवाला एक रोग, सूखा रोग । तून(प्लेटो)का गुरु था।
वि० दुबला, क्षीण। सुकराना*-पु० दे० 'शुक्राना।
सुखंद*-वि० सुख देनेवाला, सुखद । सुकरित* -वि० भला, अच्छा । पु० दे० 'सुकृत'। सुख-पु० [सं०] वह अनुभूति जो तन-मनको भाये, अनुसुकर्मा (मन्)-वि० [सं०] सत्कर्म करनेवाला, पुण्य- कूल हो; कामनाकी पूर्तिसे होनेवाला आनंद; आराम,
शाली; कर्मकुशल । पु० विश्वकर्मा, कुशल कारीगर । । आनंद; आमोद; चैन; अभ्युदयः कल्याण; सुविधा सुकर्मो(मिन)-वि० [सं०] अच्छा काम करनेवाला; अच्छे स्वर्ग: आरोग्य । वि० प्रसन्न; अनुकूल, प्रिया धार्मिक कर्मोंवाला, पुण्यात्मा, सदाचारी।
सरल; उपयुक्त । -आसन-पु० [हिं०] पालकी। सुकल्पित-वि० सं०] सुसज्जित, हथियारोंसे लैस । -कंद-वि० सुख देनेवाला। -कंदन*-वि० दे० सुकाना*-स० क्रि० दे० 'सुखाना'।
'सुखकंद'। -कंदर*-वि. जो सुखका धाम, सुखका सुकाल-पु० [सं०] अच्छा समय; वह वर्ष या काल जिसमें | आकर है। -कर-वि० आनंददायक; सुकर, सरल । अन्न खूब उपजा हो, सुभिक्ष ।
पु० राम । -करण-वि० सुखोत्पादक। -करन*सुकावना*-स० क्रि० दे० 'सुखाना'।
वि० दे० 'सुखकरण'। -कारक,-कारी(रिन),सुकिज*-पु० दे० 'सुकृत' ।
कृत-वि० सुखदायक । -ग-वि० सुखपूर्वक जानेसुकिया*-स्त्री० स्वकीया नायिका।
वाला । -ग्रान-वि. जो आसानीसे ग्रहण किया जा सुकीउ*-स्त्री० स्वकीया नायिका ।
सकेसुबोध । -जनक-वि० सुख देने, उपजानेवाला। सकीर्ति-स्त्री० [सं०] सुयश, नेकनामी। वि. अच्छी। -ढरन*-वि० सुखधाम । -तला-पु० [हिं०] चमड़ेकीर्तिवाला।
| का वह टुकड़ा जिसे जूतेके अंदर रखते हैं । -थर*-पु.
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सुखक-सुगंध सुखस्थल, सुखका स्थान । -द-वि० सुख देनेवाला, | सुखमा-स्त्री० एक वर्णवृत्त; * दे० 'सुषमा'। आनंददायक । -दनिया*-वि० सुखदायक। -दा- सुखवंत*-वि० सुखी, प्रसन्न; सुखद । वि० स्त्री० सुख देनेवाली । स्त्री० अप्सरा। -दाहन*- | सुखवना-पु० सूखनेके लिए धूपमें डाला हुआ अनाज वि० स्त्री० दे० 'सुखदायिनी'। -दाई*-वि० दे० 'सुख- सूखनेसे चीजकी तौलमें होनेवाली कमी। दायी' । -दात*-वि० दे० 'सुखदाता'। -दाता() सुखवा*-पु० सुख ।
-वि० सुखदायक, आनंददायक। -दान-दानी- सखवान(वत)-वि० [सं०] मुखी । वि० [हिं०] सुख देनेवाला । -दाय,-दायो*-वि० सुखवार-वि० सुखी, प्रसन्न । दे० 'सुखदाता'। -दायक-वि० दे० 'सुखदाता'। सुखांत-वि० [सं०] जिसका अंत, परिणाम सुखमय हो। -दायिनी-वि० स्त्री० सुख देनेबाली । -दायी -नाटक-पु० पाश्चात्य नाटकका एक प्रकार जिसका अंत (यिन)-वि० सुख देनेवाला। -दाव*-वि० सुख सुखमय होता है (कामेडी)। देनेवाला । -दासा-पु० बढ़िया जातिका एक धान । सुखाधिकारवाद-पु० (सूट ऑफ ईजमेंट) वह मामला -दुःख-पु० आराम और कष्ट; आनंद और शोक ।। या नालिश जो दूसरेकी किसी भूमि, पथ आदिका अपने -देनी-दैनी*-वि० स्त्री० सुख देनेवाली । -दैन*- | आरामके लिए प्रयोग करनेसे हो या अपनी भूमि आदिवि० सुख देनेवाला। -दोह्या-स्त्री० बह गाय जो का दूसरे द्वारा दुरुपयोग होनेसे रोकना ही जिसका आसानीसे दुही जा सके । -धाम-पु० सुखका घर, विषय हो, सुविधाधिकार-संबंधी वाद। वैकुंठ । वि० [हिं०] सुखदायक सुखी।-पाल-पु०[हिं०] | सुखाना-स० क्रि० तरी, गीलापन दूर करना गीली चीजएक तरहकी पालकी।-प्रद-वि०आनंददायक ।-प्रश्न- को सूखी बनाना, खुश्क करना । अ० क्रि० दे० 'सूखना' । पु० कुशल-प्रश्न । -प्रसवा-वि० स्त्री० आरामसे, बिना सुखानुभव-पु० [सं०] सुखको अनुभूति । कष्टक बच्चा जननेवाली (स्त्री, गाय इ०)। -प्राप्त-वि० | सुखापन्न-वि० [सं०] जिसे सुख प्राप्त हो। सुखी; आसानीसे मिला हुआ । -भा(ज),-भागी- सुखारा, सुखारी*-वि० सुखी, सुखमय । (गिन)-वि० सुखी, सुख भोगनेवाला। -भक(ज) सुखार्थी(र्थिन्)-वि० [सं०] सुख चाहनेवाला। -वि० सुखी; भाग्यवान् । -भोगी(गिन)-वि० सुखाली*-वि० आनंददायक । सुखका भोग करनेवाला । -भोजन-पु. स्वादिड | सुखावह-वि० [सं०] सुखजनक, सुखद । भोजन । -रात्रि-स्त्री० दिवालीकी रात सुहागरात | सुखासन-पु० [सं०] सुखद आसन, वह आसन जिसपर शांत और आनंददायक रात । -राशि-वि० जो सुख- बैठनेमें आराम मिले; पद्मासन पालकी । की राशि, भंडार है। -रास,-रासी*-वि० दे० 'सुख-सुखासीन-वि० [सं०] जो सुखसे बैठा हो। राशि' । -वाद-पु० इंद्रियसुख, शरीरसुख ही जीवन- सखिआ*-वि० दे० 'सुखिया'। की सार्थकता है, यह मत । -शयन-पु० आरामसे सखित-* वि० सूखा हुआ, शुष्क; [सं०] सुखी, प्रसन्न । सोना । -शय्या-स्त्री० आरामदेह पलंग आदि; आराम- पु० आनंद, सुख । की नींद । -शांति-स्त्री० सुख और शांति, सुख-चैन । सुखिया-वि० दे० 'सुखी' । -सलिल-पु० कुनकुना या गरम पानी । -सागर- सुखिर*-पु० साँपका बिल । पु० सुखका समुद्रा एक ग्रंथ जो भागवतके दशम स्कंधका| सुखी(खिन्)-वि० [सं०] सुखयुक्त, जिसे सुख प्राप्त हिंदी अनुवाद है। -साधन-पु. सुख प्राप्त करनेका हो, जिसकी जिंदगी आरामसे कट रही हो प्रसन्न; जिसे जरिया । -साध्य-वि० जो आसानीसे हो या किया खाने-पीने, रुपये-पैसेका सुख प्राप्त हो, खुशहाल । जा सके, सहज; आसानीसे दूर होनेवाला (रोग)। -सार सुखेसर-पु० [सं०] वह जो सुखसे भिन्न हो, कष्ट । वि० -पु० मोक्ष। -स्पर्श-वि. जिसका स्पर्श सुखद हो। जो सुखी न हो, भाग्यहीन । -स्वप्न-पु० सुखमय जीवनकी कल्पना। -की नींद- न-*पु० 'सुषेण' । अ० [सं०] सुखपूर्वक । वह नींद जिसमें खलल न पड़े, आरामकी नींद । मु०- सुखैना*-वि० सुखदायी। मानना-किसी परिस्थिति में आराम मानना। -लूटना षिन)-वि० [सं०] सुख चाहनेवाला । -सुखोपभोग करना।
सखोत्सव-पु० [सं०] आनंदोत्सव, उछाव-बधाव; यति । सुखक*-वि० दे० 'शुष्क'।
सुखोदक-पु० [सं०] दे० 'सुख-सलिल' । सुखता-स्त्री०, सुखत्व-पु० [सं०] आराम, चैन, आनंद। सुखोपेक्षी(क्षिन्)-पु० [सं०] (स्टोइक) विविध सुखों एवं सखन(सखन)-पु० [अ०] बात, वचन, बातचीतः उक्तिः विलासादिके प्रति उदासीन रहते हुए सदाचारमयसात्त्विक कौल, कविता, पद्यरचना । -तकिया-पु०वह शब्द, जीवन बितानेको ही परम लक्ष्य माननेवाला दार्शनिक । वाक्यखंड या लघुवाक्य जो सार्थक होते हुए निरर्थक | सखोष्ण-वि० [सं०] कुनकुना । पु० कुनकुना जल । होता है और जिसे कुछ लोग आदतके कारण, वाक्यके सुख्ख-पु० सुख । बीचमें, अक्सर आगेकी बात झट सोच न सकनेपर, कहा सुख्यात-वि० [सं०] सुप्रसिद्ध । करते हैं ('क्या नाम है', 'जो है सो' इ०), अवलंबन । सुख्याति-स्त्री० [सं०] प्रसिद्धि, नामवरी। सखना*-अ० क्रि० दे० 'सूखना' ।
सगंध-वि० [सं०] खुशबूदार, सुंदर गंधवाला । स्त्री०अच्छी सुखमन-स्त्री० दे० 'सुषुम्ना'।
। गंध, सुवास, खुशबू ।-बाला-खी० एक सुगंधयुक्त वनौ
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सुगंधि-सुजोधन षधि जो ज्वर, अतिसार, रक्तविकार आदिकी दवा है। सुचरित्र-वि०[सं०] सदाचारी, नेकचलन । पु० सदाचार । सगंधि-वि० [सं०] सुंदर गंधवाला; खुशबूदार । स्त्री० सुचा*-स्त्री० ज्ञान, चेतना विचार । वि०चि, निर्मल । अच्छी गंध, सुवास।
सुचाना-सक्रि० सोचनेकी क्रिया दसरेसे कराना ध्यान सगंधित-वि० [सं०] सुगंधयुक्त, खुशबूदार। ,
आकृष्ट करना; चिताना, समझाना।। सुगठित-वि० सुंदर गठन, गढ़नवाला; कसा हुआ। सचार*--स्त्री० दे० 'सुचाल' । वि० दे० 'सुचारु' । सुगणक-वि० [सं०] अच्छा ज्योतिषी ।
सुचारु-वि० [सं०] अति चारु, सुंदर, मनोहर । सुगत*-वि० सरल, आसान-'मेरे जान ब्रह्मको बिचा- सुचाल-स्त्री० अच्छी चाल, सदाचार, 'कुचाल'का उलटा । रिबो सुगत है'-बेनी० । पु० [सं०] बुद्ध भगवान्। बौद्ध । सुचालक-वि० [सं०] (गुड कंडक्टर) (वह वस्तु) जिसमें सुगति-स्त्री० [सं०] सद्गति; मोक्ष कल्याण सुख । विद्युत् , ताप आदिका परिचालन सुगमतासे हो सके, सुगना -पु० दे० तोता, सहिजन ।
सुसंवाहक । सुगम-वि० [सं०] सहजमें जाने या पाने योग्य; आसान, सचाली-वि० अच्छे चाल-चलनवाला, नेकचलन । सुबोध ।
सुचाव-पु० सुचाना; सूचना, सुझाव । सुगमता-स्त्री० [सं०] सुगम होना, आसानी ।
सुचिंतित-वि० [सं०] भली भाँति सोचा-विचारा हुआ। सुगर*-वि० सुकंठ, सुघर चतुर ।
सुचि -वि० दे० 'शुचि' । स्त्री० सूई । -कर्मा-वि० दे० सुगल*-पु० सुग्रीव ।
'शुचिकर्मा' ।-मंत-वि० शुद्ध आचरणवाला, पाक-साफ। सुगाध-वि० [सं०] जिसकी थाह सहज में मिल सके, कम सुचित-वि० दे० 'सुचित्त'।
गहरा, अगाधका उलटा जो आसानीसे पार किया जा सके। सुचितई-स्त्री० सुचित्तता। सुगाना-अ० क्रि० क्रुद्ध होना; खिन्न होना। स० कि० सुचिती*-वि० दे० 'सुचित्त' । शक करना।
सचित्त-वि० [सं०] स्थिरचित्तः चितानिवृत्तः संपन्न । सुगुप्त-वि० [सं०] अच्छी तरह छिपाया हुआ, जो बहुत सुचित्तता-स्त्री० [सं०] सुचित्त होना,इतमीनान,निश्चितता। गुप्त रखा गया हो। -लेख-पु० अत्यंत गुप्त पत्र; ऐसे सुचित्र-वि० [सं०] विभिन्न प्रकारका विभिन्न रंगोंका । अक्षरों या चिहोंमें लिखा हुआ पत्र जिसे पानेवालेके सिवा सुची*-स्त्री० 'शची', इंद्राणी । और कोई न समझ सके।
सुचेत-वि० सावधान; सचेत । सुगुरा-वि० जिसका गुरु अच्छा हो।
सचेता(तस)-वि० [सं०] सुंदर चित्तवाला; उदाराशय । सुग्रहीत-वि० [सं०] अच्छी तरह पकड़ा हुआ; अच्छी सुच्छंद*-वि० दे० 'स्वच्छंद'।
तरह समझा हुआ; प्रातःस्मरणीय । -नामा (मन)- सुच्छ*-वि० दे० 'स्वच्छ' । वि० जिसका नाम सबेरे कल्याणकी कामनासे लिया जाय, | सुच्छम-वि० दे० 'सूक्ष्म । प्रातःस्मरणीय ।
सुजंघ-वि० [सं०] सुंदर जाँघोंवाला । सुगैया* - स्त्री० चोली।
सुजन-पु० [सं०] सज्जन, भला आदमी; * स्वजन । सुग्गा-पु०दे० 'शुक'।-पंखी-पु. एक तरहका धान। सजनता-स्त्री० [सं०] भद्रता, भलमनसी। सुग्रीव-वि० [सं०] सुंदर गरदनवाला। पु० किष्किधाका सुजनी-स्त्री० [फा० 'सोज़नी'] कई तह कपड़ेको साटकर वानर राजा जो बालिका छोटा भाई था; हंस इंद्रशंख । | और ऊपर सुईसे बारीक काम करके बनाया हुआ बिछौना; सुघट-वि० [सं०] सुघड़, सुडौल ।।
एक तरहका पलंगपोश । सुघटित-वि० [सं०] जिसकी बनावट, गठन, सुंदर हो, सुजन्मा(न्मन्)-वि० [सं०] सत्कुलमें उत्पन्न, कुलीन । सुडौल ।
सुजला-वि० स्त्री० [सं०] जहाँ जलकी बहुतायत हो नदीसुघड़-वि० जिसकी बनावट सुंदर हो, सुडील; किसी कार्यमें | बहुला। कुशल, चतुर, हुनरमंद ।-पन-पु० सुंदरता कुशलता। सुजस*-पु० दे० 'सुयश'। सुघड़ई, सुघड़ता-स्त्री० सुघड़पन; सुंदरता; निपुणता। | सुजाका-पु० दे० 'सूजाक' । सुघड़ाई-स्त्री० सुघड़पना सुंदरता; कुशलता, ढब । सुजागर-वि० प्रकाशमान; सुंदर, मनोहर । सुघड़ी-स्त्री० अच्छी, शुभ घड़ी।
सुजात-वि० [सं०] सुजन्मा, कुलीन; सुंदर । सुघर-वि० दे० 'सुघड़' । -पन-पु० दे० 'सुघड़पन'। सुजाता-वि० स्त्री० [सं०] कुलीना; सुंदरी । स्त्री० एक सुधरई, सुघरता-स्त्री० दे० 'सुघड़ई'।
किसान बालिका जिसने भगवान् बुद्धको बुद्धत्व-प्राप्तिके सुघराई-स्त्री० दे० 'सुघड़ाई।
बाद खीर खिलायी थी; तुवरी; गोपीचंदन । सघरी*-स्त्री० दे० 'सुघड़ी'। वि० स्त्री० दे० 'सुघड़' । सुजान-वि०चतुर; ज्ञानी, सुविज्ञ; प्रवीण । पु०प्रेमी प्रभु । सुच*-वि० दे० 'शुचि'।
सुजानता-स्त्री० सुजान होना । सुचक्षु (स)-वि० [सं०] सुंदर आँखोंवाला (शिव);अच्छी सुजानी-वि० दे० 'सुजान'। निगाहवाला; बुद्धिमान्, विवेकी । पु० गूलरका पेड़ । सुजिह्व-वि० [सं०] सुंदर जीभवाला; मधुरभाषी। सुचना*-सक्रि० जोड़ना, संचय करना।
सजेय-वि० [सं०] आसानीसे जीतने योग्य । सुचरित-वि० [सं०] सदाचारी, सत्कर्मी । पु० सदाचार । | सुजोग*-पु० दे० 'सुयोग'। सुचरिता-स्त्री० [सं०] पतिव्रता स्त्री।
। सुजोधन*-पु० दे० 'सुयोधन'। ५४-क
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सुर-दु
सुजोर* - वि० शहजोर, बलवान्; ध्द, पायदार | सुज्ञ - वि० [सं०] सुविज्ञ; पंडित ।
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सुतिन* - स्त्री० दे० 'सुतनु' । सुतिनी - स्त्री० [सं०] बेटेवाली स्त्री, पुत्रवती ।
सुझाना - स० क्रि० दिखाना; बताना, सूचना देना । अ० सुतिया - स्त्री० गलेमें पहननेका एक गहना, हँसली । क्रि० दिखाई देना, सूझ पड़ना । - पु० सुतार, शिल्पी ।
सुझाव- पु० सुझाने की क्रिया; तजवीज, सलाह ।
सुटुकना - भ० क्रि० चुपकेसे निकल जाना; सिकुड़ना । सुतीक्षण* - वि०, पु० दे० 'सुतीक्ष्ण' | स० क्रि० चाबुक लगाना; निगल जाना । सुठ* - वि० दे० 'सुठि' ।
सुंदर, अच्छा। अ० अति, बहुत ज्यादा;
सुतंतर* - वि० दे० 'स्वतंत्र' । सुतंत्र* - वि० दे० 'स्वतंत्र'। * अ०स्वतंत्रतापूर्वक; आजादी से | सुत - वि० [सं०] उत्पन्न, पैदा किया हुआ । पु० बेटा, पुत्र । - दा - वि० स्त्री० पुत्र देनेवाली । स्त्री० पुत्रदा लता; एक देवी ।
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सुतधार* - पु० सूत्रधार, नियंता । सुतना+ - पु० सूधन । अ० क्रि० सोना ।
सुतनु - वि० [सं०] सुंदर शरीरवाला; बहुत ही नाजुक, दुबला-पतला । स्त्री० सुंदर स्त्री, कोमलांगी । सुतर* - पु० दे० 'शुतुर' । -नाल * - स्त्री० दे० 'शुतुरनाल' | - सवार* - पु० दे० 'शुतुरसवार' | सुतरां (राम्) - अ० [सं०] और भी; अतः, इसलिए । सुतरी -* स्त्री० तुरही; + दे० 'सुतली' । सुतल - पु० [सं०] नीचेके सात लोकों में से छठा । सुतली - स्त्री० सन या पटसनके रेशोंसे बटकर बनायी हुई जिससे खाट बुनते और दूसरे काम लेते हैं । सुतहर, सुतहार* - पु० दे० 'सुतार' | सुतही - स्त्री० सीपी |
सुठहर* - पु० अच्छा ठौर, स्थान । सुठार* - वि० 'सुडौल ' ।
सुठि* - वि० पूरा-पूरा ।
सुठोना* - वि० अच्छा, सुंदर । सुड़कना - स० क्रि० किसी तरल पदार्थको नाककी राह, साँसके साथ भीतर खींचना, नास लेना; नाकके मलको ऊपर की ओर खींचकर निगलना; पी जाना । सुरसुड़ाना - स० क्रि० (हुक्का आदि) इस तरह पीना कि सुथनिया* - स्त्री० सुथनी, ढीला जायजामा |
सुथना - पु० पायजामा |
'सुड़· सुइ' की आवाज निकले ।
सुडौल - वि० सुंदर बनावटवाला, सुघड़, सुंदर ।
सुढंग - पु० अच्छा, सुंदर ढंग । वि० सुंदर, सुघड़; अच्छे सुथरा - वि० साफ, स्वच्छ, परिष्कृत; निर्दोष ( सुधरा
स्वभावका ।
सुदर* - वि० प्रसन्न, अनुकूल; सुडोल । सुढार* - वि० सुडौल, सुंदर ।
मजाक ) । - पन - पु० स्वच्छता, सफाई; परिष्कार । सुथराई - स्त्री० सुधरापन ।
सुतंत* - वि० दे० 'स्वतंत्र' ।
सुदंत - वि० [सं०] सुंदर दाँतोंवाला । पु० अच्छा दाँत । सुदंष्ट्र - वि० [सं०] या सुंदर दाँतोंवाला । सुदक्षिण- वि० [सं०] बहुत कुशल; नम्र; सच्चा, खरा; बहुत उदार, दक्षिणा देनेवाला । पु० एक कंभोजनरेश | सुदक्षिणा - स्त्री० [सं०] दिलीपको पली; कृष्णकी एक पली । सुदच्छिन* - ५० दे० 'सुदक्षिण' ।
८५६
सुतिहार*
सुती ( तिनू ) - वि० [सं०] जिसके बेटा हो, पुत्रवान् ।
सुतारी - स्त्री० जूता सीनेका सूआ; बढ़ईगिरी । सुतार्थी (र्थिन् ) - वि० [सं०] संतानका अभिलाषी ।
सुतीक्ष्ण - वि० [सं०] अति तीक्ष्ण । पु० अगस्त्य मुनिके भाई जो वनवासमें रामसे मिले थे; सहिजन । सुतीखन, सुतीच्छन* - वि०, पु० दे० 'सुतीक्ष्ण' । सुतीर्थ - वि० [सं०] जो आसानीसे पार किया जा सके । पु० अच्छा मार्ग; पवित्र स्नानस्थल; पूज्य वस्तु । सुतुही। - स्त्री० सीपी | सुतोत्पत्ति - स्त्री [सं०] पुत्रजन्म |
सुतोष, सुतोषण - वि० [सं०] जो जहद प्रसन्न हो जाय । सुत्थना - पु० सुथना ।
सुथनी - स्त्री० स्त्रियों के पहनेका ढीला पायजामा; एक कंद, पिंडालू |
सुदती - वि० स्त्री० [सं०] सुंदर दाँतोंवाली (स्त्री) । सुदरसन* - पु० दे० 'सुदर्शन' । -पानि-पु० विष्णु | सुदर्श - वि० [सं०] जो देखने में सुंदर हो; जो आसानीसे देखा जा सके ।
सुदर्शन - वि० [सं०] प्रियदर्शन, सुंदर; जिसका सहज में दर्शन हो सके, सुदृश्य । पु० गृध्रः शिवः विष्णुका चक्र; मत्स्य । -चक्र-पु० विष्णुका चक्र ! - चूर्ण - पु० आयुवेदका एक योग जो ज्वरकी प्रसिद्ध औषध है । -पाणिपु० विष्णु ।
सुदामा ( मन्) - पु० [सं०] बादल; एक पर्वत; ऐरावत; समुद्रः कृष्णका एक दरिद्र सहपाठी जिसे उन्होंने ऐश्वर्यशाली बना दिया ।
सुदि - स्त्री० शुक्ल पक्ष ।
सुदिन - पु० [सं०] अच्छा दिन, शुभ दिन; सुखके दिन ।
सुता - स्त्री० [सं०] लड़की, बेटी । - दान-पु० कन्यादान । सुदी - स्त्री० शुक्ल पक्ष ।
- पति-पु० दामाद । - पुत्र, सुत - पु० नाती ।
सुदीपति* - स्त्री० दे० 'सुदीप्ति' ।
सुतान - वि० [सं०] सुंदर; सुरीला । सुताना+स० क्रि० दे० 'सुलाना' ।
सुदीप्ति - स्त्री० [सं०] तेज रोशनी या चमक । सुदीर्घ - वि० [सं०] बहुत लंबा ( देश, काल ); सुविस्तृत ।
सुतार - पु० बढ़ई; शिल्पी + सुभीता, अनुकूल अवसर । सुदुःसह - वि० [सं०] जिसका सहन करना कठिन हो । * वि० बहुत अच्छा ।
सुदुर्लभ - वि० [सं०] अति दुर्लभ, जिसे प्राप्त करना बहुत कठिन हो; बहुत नायाब ।
सुदुष्कर - वि० [सं०] अति कष्टसाध्य, बहुत ही कठिन ।
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५
सुदुष्प्राप-सुनसान सुदुष्प्राप-वि० [सं०] जिसे प्राप्त करना बहुत कठिन हो। पु० अमृत बरसानेवाला । -सदन-पु० चंद्रमा । सुदुस्त्यज-वि० [सं०] जिसका त्याग करना बहुत -सागर-पु. अमृतका समुद्र। -सिंधु-पु० सुधाका कठिन हो।
समुद्र । -सिक्त-वि० सुधासे सींचा हुआ, सुधासे तर । सुदूर-अ० [सं०] अति दूर, बहुत दूर । वि० बहुत दूरका । सुधाई-स्त्री० दे० 'सिधाई।
-पूर्व-पु० अति पूर्वके देश, चीन, जापान इत्यादि । सुधाकर-पु० [सं०] चंद्रमा । सुदृढ-वि० [सं०] बहुत मजबूत, सुरक्षित ।
सधाधर-वि० [सं०] जिसके अधर में अमृत हो। पु० दे० सुदृष्टि-वि० [सं०] अच्छी निगाहवाला । पु० गिद्ध। 'सुधामें'। सुदेश-पु० [सं०] उपयुक्त स्थान; अच्छा, सुंदर, देश । सुधाना*-स० क्रि० सुध कराना, याद दिलाना; ठीक * वि० सुंदर ।
कराना; शोध कराना। सुदेस*-पु० अच्छा स्थान; स्वदेश । वि० अच्छा, सुंदर । सुधामय-वि० [सं०] अमृतपूर्ण; चूनेका बना हुआ । सुदेसी-वि० दे० 'स्वदेशी'।
पु० प्रासाद। सुदौसी*-अ० शीघ्रतापूर्वक ।
सुधार-पु० दोष दूर करने या होनेका भाव; संस्कार । सुहा-पु० [अ०] सूखा, कड़ा मल ।
वि० अच्छी धार या नोंकवाला (बाण)। -प्रन्याससुद्ध*-वि० दे० 'शुद्ध'।
पु० (इंप्रूवमेंट ट्रस्ट) किसी नगरके सुधार, नवनिर्माण सुद्धि*-स्त्री० दे० 'शुद्धि'; दे० 'सुध' ।
आदिके लिए स्थापित संस्था । सुधंग*-पु० अच्छा ढंग ।
सुधारक-पु. सुधार करनेवाला; सुधारका आंदोलन सुध-स्त्री० याद होश, चेत खबर । * वि० शुद्ध । बुध- करनेवाला । स्त्री० होश-हवास, चेत। -मना*-वि० होशवाला, सुधारना-सक्रि० दोष, त्रुटि दूर करना, दुरुस्त करना। सचेत । मु०-दिलाना-याद दिलाना। -न रहना
लाना याद दिलाना। -न रहना-सुधारा*-वि० सीधा, भोला । याद, होश न होना। -बिसरना-याद न रहना, सुधारालय-पु० (रिफामेंटरी) एक तरहका वंदीगृह जहाँ होश न रहना । -लेना-खोज-खबर लेना; याद करना। अपराध करनेके कारण सजा पाये हुए बालक रखे जाते सुधन-वि० [सं०] अति धनी, बहुत पैसेवाला (वै०)। । हैं और शिल्प इत्यादिकी शिक्षा देकर उन्हें सुधारनेका सुधना-अ० क्रि० शुद्ध होना, ठीक किया जाना । प्रयत्न किया जाता है। सुधन्वा(न्वन्)-वि० [सं०] जिसका धनुष बहुत बढ़िया | सुधावास-पु० [सं०] चंद्रमा । हो; धनुर्विद्यामें कुशल ।
सुधि-स्त्री० दे० 'सुध' । सुधरना-अ० क्रि० दुरुस्त होना, दोष या विकृतिका दर सुधी-पु० [सं०] पंडित, बुद्धिमान् व्यक्ति । स्त्री० सुंदर होना, बिगड़े हुएका बनना ।
बुद्धि, सुबुद्धि । वि० सुंदर बुद्धिवाला, सुबुद्धियुक्त । सुधरवाना-स० क्रि० सुधार कराना, ठीक कराना। सुधीर-वि० [सं०] ढ़, धैर्यवान् । सुधराई-स्त्री० सुधार सुधारनेकी उजरत ।
सधौत-वि० [सं०] अच्छी तरह धुला, साफ किया हुआ; सुधर्म-पु० [सं०] सुंदर, उत्तम धर्म, न्याय, कर्तव्य । चमकाया हुआ। सुधा*-अ० साथ, समेत ।
सुनकिरवा-पु. एक कीड़ा जिसके पर पन्नेके रंगके होते सुधांग-पु० [सं०] चंद्रमा।
हैं, जुगनू * एक पौधा (?) । सुधांशु-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर ।
सुनगुन-स्त्री० हलकी, अस्पष्ट चर्चा, कानाफूसी; उड़ती सुधा-स्त्री० [सं०] अमृत; मकरंद रस; दूध, जल; शहद | हुई खबर टोह (पाना, मिलना)। पृथ्वी; विष; चूना सफेदी । -कंठ-पु० कोयल ।-कार- सुनत-वि० [सं०] बहुत झुका हुआ । * स्त्री दे० 'सुन्नत' । पु० चूना, सफेदी करनेवाला, राज । -क्षालित-वि० सुनति-पु० [सं०] एक दैत्य । * स्त्री० दे० 'सुन्नत'। सफेदी किया हुआ। -गेह-पु० चंद्रमा । -घट-पु० सुनना-स० क्रि० श्रवणेंद्रियसे शब्दका ग्रहण करना, चंद्रमा । -जीवी(विन्)-पु० सफेदी करनेवाला, कानोंसे आवाज मालूम करना; ध्यान देना; बुरा-भला राज। -दीधिति-पु० चंद्रमा। -धर-पु. चंद्रमा सहना, फटकारा जाना (एक कहोगे, दस सुनोगे); मुक-धवल-वि० सफेदी किया हुआ; चूनेसा सफेद । दमा सुनना। मु. सुना सुनाया-दूसरोंके मुहँसे सुना -धवलित-वि० सफेदी किया हुआ। -धी*-वि. हुआ, जो आँखों देखा न हो। सुनी-अनसुनी करनासुधावालासुधातुल्य । -निधि-पु० चंद्रमा; समुद्र; एक | बात सुनकर भी उसपर ध्यान न देना। वृत्त । -पाषाण-पु० सफेद खली, खड़िया।-भवन- सुनबहरी-स्त्री० एक तरहका कुष्ठ रोग जिसमें रुग्ण-स्थल वि० चूना पुता हुआ मकान, पंचम मुहूर्त। -भित्ति- सुन्न हो जाता है। स्त्री० सफेदी की हुई दीवार । -भुक(ज),-भोजी- सनयना-वि० स्त्री० [सं०] सुलोचना । स्त्री० नारी राजा (जिन)-पु. अमृतपान करनेवाला, देवता । मयूख- जनककी पत्नी। पु० चंद्रमा। -रश्मि-पु० चंद्रमा। -रस-पु० अमृत सुनरिया, सुनी -स्त्री० सुंदरी । दूध । वि० सुधा सा स्वादिष्ट । -वर्ष-पु०,-वृष्टि-स्त्री० सनवाई-स्त्री०श्रवण मुकदमे या फरियादका सुना जाना। अमृतकी वर्षा । -वर्षी(र्षिन)-वि० अमृत बरसाने-सुनवैया-पु० सुननेवाला; * सुनानेवाला । वाला। पु० ब्रह्मा, चंद्रमा एक बुद्ध । -श्रवा- सुनसान-विनिर्जन, जनशून्य; वीरान । पु० सन्नाटा ।
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सुनहरा-सुप्त
८५८ सुनहरा, सुनहला-वि० सोनेके रंगका।
वृत्त । वि० सुंदर मार्गवाला; * चौरस । सुनहा-पु० श्वान, कुत्ता ।-'सुनहा खेदै कुंजर असवारा' सुपथ्य-वि० [सं०] वहुत हितकर बहुत स्वास्थ्यकर । -कबीर।
सुपन, सुपना*-पु० दे० 'स्वप्न'। सुनाई-स्त्री० दे० 'सुनवाई'।
सुपनाना-सक्रि० सपना दिखाना। अ०क्रि० स्वप्न सुनाद-वि० [सं०] सुंदर ध्वनिवाला, सुस्वर । पु० शंख । । देखना। सुनाना-स० क्रि० किसीके सामने, किसीको संबोधित
सामन, किसाका सबाधित | सुपरण, सुपरन*-वि०, पु० दे० 'सुपर्ण' । करके कुछ कहना, दूसरेको श्रवण कराना; जताना; खरी- सुपररायल-पु [0] कागजके तावकी एक नाप खोटी कहना, फटकारना।
(२२४२९ इंच)। सुनाभ-वि० [सं०] सुंदर नाभिवाला; बढ़िया मूठवाला । सुपरस*-पु० दे० 'स्पर्श' । पु० सुदर्शन चक्र, मैनाक पर्वत पर्वत ।
सुपर्ण-वि० [सं०] सुंदर पत्तोंवाला; सुंदर पंखवाला । पु० सुनाभि-वि० [सं०] सुंदर नाभिवाला (वै०)।
सुंदर पत्ता; देवगंधर्व गरुड़ कोई बड़ा शिकारी पक्षी। सुनाम(न)-पु० [सं०] नेकनामी, कीर्ति, यश। सपर्णक-वि० [सं०] सुंदर पत्तोंवाला सुंदर पंखोंवाला। सुनामा(मन्)-वि० [सं०] सुंदर नामवाला, कीर्तिशाली। पु० गरुड़ या कोई दिव्य पक्षी; अमलतास; सप्तपर्ण । सुनार-पु० सोने-चाँदीके गहने गढ़नेवाला, स्वर्णकार । सुपर्णी-स्त्री० [सं०] कमलिनी; गरुड़की माता; मादा सुनारी-स्त्री० सुनारका काम; सुनारकी स्त्री।
चिड़िया; अग्निकी सात जिह्वाओंमेंसे एक रात्रि पलाशी। सुनावनी-स्त्री० परदेशसे किसी स्वजन-संबंधीकी मृत्युका सुपर्णेय-पु० [सं०] गरुड़।। समाचार आना; ऐसा समाचार मिलनेपर किया जाने- सुपर्वा-स्त्री० [सं०] श्वेत दूर्वा । वाला स्नान आदि ।
सुपर्वा(वन्)-वि० [सं०] सुंदर गाँठों या पोरोंवाला; सनासा-स्त्री० [सं०] सुंदर नाक; काकनासा ।
सुंदर पर्यो, अध्यायोंवाला (ग्रंथ); बहुप्रशंसित । पु० शुभ सुनासिक-वि० [सं०] सुंदर नाकवाला।
काल; बेत; बाँस, बाण धूम, धुआँ देवता । सुनासीर-पु० [सं०] इंद्रा देवता ।
सुपात्र-पु०[सं०] सुंदर पात्र; योग्य व्यक्ति (जो दानादिसुनाहक*-अ० दे० 'नाइक़'।
का अधिकारी हो)। सुनिग्रह-वि० [सं०] अच्छी तरह नियंत्रित; जिसपर सुपार-वि० [सं०] जो आसानीसे पार किया जा सके। भासानीसे नियंत्रण किया जा सके।
जो जल्द गुजर जाय (जैसे वर्षा); सफलताकी ओर ले सुनिद्र-वि० [सं०] गाढ़ी नींदमें सोया हुआ।
जानेवाला।-ग-वि० अच्छी तरह पार जानेवाला। सुनिश्चय-पु० [सं०] पक्का निश्चयः सुंदर निश्चय । सपारण-वि० [सं०] जिसका पाठ या अध्ययन करना सुनिश्चित-वि० [सं०] भली भाँति निश्चित, पक्का । आसान हो। सुनीति-स्त्री० [सं०] सुंदर नीति; ६ वकी माता । सुपारी-स्त्री० नारियलकी जातिका एक पेड़ इस पेड़का सुनेत्र-वि० [सं०] सुंदर आँखोंवाला ।
फल जो पानके साथ या अलगसे मुख-शुद्धिके लिए खाया सुनैया-पु० सुननेवाला।
जाता है, छालिया, डली; शिश्नका अगला भाग । मु०सुनोची-पु. एक तरहका घोड़ा।
लगना-सुपारीके टुकड़ेका गले में अटक जाना। सन-पु० शुन्य, मुन्ना। वि०निर्जीव, जड़वत, संवेदन- | सुपाश्र्व-पु० [सं०] सुंदर पाव वर्तमान अवसर्पिणीके रहित । -सान-वि० दे० 'सुनसान'।
७वें तीर्थकर या अर्हत् (जैन)। वि० सुंदर पार्श्ववाला। सुन्नत-स्त्री० [अ०] राहा रीति, दस्तूर; वह रास्ता या | सुपास-पु० आराम, सुभीता। भाचारपथ जिसपर मुहम्मद और उनके प्रमुख साथी- सुपासी-वि० सुख, आराम देनेवाला; सुखी-'तुलसी बसि पहलेके चार खलीफा-चले हों; खतना, मुसलमानी। हरपुरी राम जपु जो भयो चहै सुपासी'-विनय० । सुना-पु० शून्य, सिफर।।
सुपीन-वि० [सं०] बहुत मोटा । सुनी-पु० [अ०] मुसलमानोंका एक फिरका।
सुपुत्र-पु० [सं०] लायक बेटा, सपूत; जीवक वृक्ष । वि० सुपंख-वि० [सं०] सुंदर पंखोंवाला; सुंदर तीरोंवाला।
अच्छे पुत्रोंवाला। सुपंथ-पु० [सं० 'सुपंथा'] उत्तम मार्ग सन्मार्ग। सपुत्रिका-वि० स्त्री० [सं०] अच्छे पुत्र(या पुत्रों)वाली। सुपक*-वि० दे० 'सुपक्क' ।
सपुरुष-पु० [सं०] भला आदमी; सुंदर पुरुष । सुपक्क-वि० [सं०] अच्छी तरह पका हुआ। पु० एक | सुपुर्द-वि० दे० 'सिपुर्दे'। सुगंधयुक्त आम ।
सुपुष्करा-स्त्री० [सं०] स्थलपभिनी। सुपच*-पु० दे० 'श्वपच'।
सुपूत-पु० दे० 'सपूत' । वि० [सं०] अतिपूत, पवित्र । सुपठ-वि० [सं०] जो आसानीसे पढ़ा जा सके। सुपूती-स्त्री० दे० 'सपूती' । सुपत*-वि० जिसकी अच्छी प्रतिष्ठा हो, प्रतिष्ठित । | सुपेत, सुपेदी-वि० सफेद । सपत्न-पु० [सं०] तेजपत्ता, हिंगोट; आदित्यपत्र । वि. सपेती*-स्त्री० दे० 'सफ़ेदी'।
सुंदर पत्तोंवाला; सुंदर पंखोंवाला, सुंदर परसे युक्त(वाण)। सुपेदी-स्त्री० तोशक रजाई दे० 'सफेदी' । सुपत्थ-पु० दे० 'सुपथ'।
सुपेली-स्त्री० छोटा सूप । सुपथ-पु० [सं०] अच्छा रास्ता सन्मार्ग, सदाचार; एक सुप्त-वि० [सं०] निद्रित, सोया हुआ; सोनेके लिए लेटा
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८५९
हुआ; सुन्न; मुँदा हुआ; संकुचित ( जैसे पुष्प ); निष्क्रिय, बेकार; सुस्त; अविकसित (शक्ति) । - घातक - वि० सोये हुएकी हत्या करनेवाला, हिंस्र । -ज्ञान-विज्ञान - पु० स्वप्न देखना; स्वप्न -प्रबुद्ध - वि० सोकर जागा हुआ । - प्रलपित - पु० ( स्वप्नावस्था में ) बर्राना । वाक्य- पु० स्वप्नावस्था में निकले हुए शब्द । सुप्तता - स्त्री०, सुप्तत्व-पु० [सं०] निद्रित होनेका भाव; नींद; निश्चेष्टता (अंगकी) ।
-
सुप्तांग - पु० [सं०] वह अंग जो सुन्न, निश्चेष्ट हो गया हो । सुप्ति - स्त्री० [सं०] नींद, ऊँघ; सपना; सुन्न हो जाना । सुप्तोत्थित - वि० [सं०] सोकर उठा हुआ । सुप्रज- वि० [सं०] अधिक या अच्छी संतानोंवाला । सुप्रतिज्ञ - वि० [सं०] अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रहनेवाला । सुप्रतिष्ठ - वि० [सं०] ढ़तापूर्वक स्थित रहनेवाला; अच्छी प्रतिष्ठावाला; सुप्रसिद्ध ।
सुप्रतिष्ठा - स्त्री० [सं०] सुंदर प्रतिष्ठा; प्रसिद्धि | सुप्रतिष्ठित - वि० [सं०] सुंदर प्रतिष्ठायुक्तः सुप्रसिद्ध; ढ़तापूर्वक स्थित; अच्छी तरह स्थापित किया हुआ । सुप्रयुक्त - वि० [सं०] ठीक तरहसे चलाया या प्रयुक्त किया हुआ; सुंदर ढंग पाठ किया हुआ; ( कपट) जिसकी योजना खूब सोच-विचारकर बनायी गयी हो; सुव्यवस्थित सुप्रसन्न - वि० [सं०] बहुत खुश; बहुत साफ (जैसे जल ); बहुत चमकीला (जैसे चेहरा ); बहुत अनुकूल या कृपालु । सुप्रसव - पु० [सं०] आसानीसे, बिना कष्टके होनेवाला
प्रसव |
सुप्रसिद्ध - वि० [सं०] अति प्रसिद्ध, खूब मशहूर | सुप्राप, सुप्राप्य - वि० [सं०] सुलभ । सुप्रिया - वि० स्त्री० [सं०] अति प्यारी । स्त्री० एक अप्सरा; एक छंद; प्रिय पत्नी ।
सुफल - पु० [सं०] सुंदर फल; अनार; बेर; कैथ । वि० सुंदर फलोंसे युक्त; सुंदर फलवाला ( खङ्गादि), सफल (हिं०) । सुफलक* - पु०श्वफरक, अक्रूरके पिता । - सुत - पु०अक्रूर । सुफेद - वि० दे० 'सफ ेद' । सुबंत - वि० [सं०] प्रथमासे सप्तमीतककी विभक्तियोंसे युक्त . (शब्द) । -पद-पु० कारक विभक्तियुक्त शब्द । सुबंधु - पु० [सं०] अच्छा भाई; एक बौद्ध नाटककार । सुबरन* - पु० सोना, सुवर्ण, अच्छा रंग; सुंदर अक्षर ( शब्द ) - ' सुबरन कहूँ ढूँढ़त फिरें कवि, विभिचारी, चोर' । सुबल-वि० [सं०] अति बली । पु० शिवः शकुनिका पिता; कृष्णका एक सखा; एक दिव्य पक्षी (वैनतेयका पुत्र ) । सुबस* - वि० अच्छी तरह बसा हुआ; स्वाधीन । अ० स्वेच्छापूर्वक, आजादी से; के कारण ।
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सुप्ततां - सुभानु
का डर न रहे । - कर देना- रात गुजार देना । -का निकला शामको आना-आवारागर्दी करना । - शाम करना - टाल-मटोल, आज-कल करना । सुबहान, सुभान* - अ० पवित्र परमेश्वर । सुबास - स्त्री० दे० 'सुगंध' ।
सुबासना * - स्त्री० सुगंध । स० क्रि० सुवासित करना । सुबासिक, सुबासित - वि० दे० 'सुवासित' । सुबाहु - पु० [सं०] एक राक्षस जो मारीचका भाई था और उसके साथ विश्वामित्रके यशमें विघ्न करते हुए राम-लक्ष्मणसे पराजित हुआ । वि० सुंदर या बलवान् बाँहोंवाला । * स्त्री० सेना, फौज । - शत्रु-पु० राम । सुबिस्ता - पु० सुभीता, सुविधा ।
सुबीज - पु० [सं०] अच्छा बीज; खसखस; शिव । वि० सुंदर या अच्छे बीजोंवाला । सुबीता - पु० दे० 'सुभीता' ।
सुबुक - वि० [फा०] इलका; नाजुक; तेज, चुस्त; * सुंदर । - दस्त - वि० फुरतीसे काम करनेवाला, लघुहस्त । - दस्ती - स्त्री० हाथकी फुरती, हस्तलाघव | सुबुद्धि - स्त्री० [सं०] अच्छी, सुंदर बुद्धि । वि० अच्छी बुद्धिवाला, बुद्धिमान् । सुबू - स्त्री० दे० 'सुबह' । सुबूत - पु० [अ०] प्रमाण; साक्ष्य से सिद्धि । सुबोध-वि० [सं०] जो सहज ही समझमें आये, आसान । सुभंग - वि० [सं०] जो आसानी से टूट जाय, तुनुक । पु० नारियलका पेड़ ।
सुभ* - वि० दे० 'शुभ' । सुभक्ष्य - पु० [सं०] बढ़िया भोजन । सुभग - वि० [सं०] भाग्यवान् ; सुंदर; प्रिय; नाजुक । सुभगा - वि० स्त्री० [सं०] सुंदरी; सुहागिन स्त्री० पतिप्रिया, पतिकी प्यारी स्त्री; (दुर्गाके प्रतीक के रूपमें पूजी जानेवाली) पंचवर्षीया कुमारी; एक रागिनी; हल्दी । सुभग्ग * - वि० दे० 'सुभग' | सुभट - पु० [सं०] रणकुशल योद्धा । सुभटवंत* - पु० दे० 'सुभट' ।
सुभट्ट - पु० नामी योद्धा; [सं०] बहुत बड़ा पंडित । सुभद्र - वि० [सं०] अति शुभ, अति मांगलिक । सुभद्रा - स्त्री० [सं०] कृष्णकी बहिन जिसे अर्जुनने हरण करके ब्याह किया और जिससे अभिमन्युकी उत्पत्ति हुई । सुभद्रेश - पु० [सं०] अर्जुन । सुभर - वि०अच्छी तरह भरा हुआ; सुपुष्ट- 'सिर औ पायँ सुभर गिउ छोटी' - ५०१ शुभ्र, उज्ज्वल - 'मानसरोवर सुभर जल हंसा केलि कराहि' - कबीर; [सं०] घना; प्रचुर । सुभाइ* - पु० दे० 'स्वभाव' । * अ० दे० 'स्वभावतः " । सुभाउ* - पु० दे० 'स्वभाव' । सुभाग - वि० [सं०] भाग्यवान् । * पु० सौभाग्य | सुभागी - वि० भाग्यवान् । सुभागीन* - वि० सौभाग्यशाली । सुभाग्य* - पु० दे० 'सौभाग्य' ।
सुबह - स्त्री० [अ० 'सुबह' ] सवेरा, भोर, प्रातःकाल । - दुम- अ० गजरदम, मुहँ अँधेरे । -सुबह- अ० बहुत सबेरे, तड़के | - का तारा, - का सितारा- शुक्र ग्रह । - का सफेदा - पौ फटने के समयका उजाला । - से शामतक - सारा दिन । मु० - उठकर हाथ देखना- सबेरे आँख खुलते ही अपने दोनों हाथों की रेखाएँ देखना, जिसमें किसी मनहूसका मुँह देखनेसे अधिक अनिष्ट होने
सुभाना* - अ० क्रि० सुहाना, शोभित होना । सुभानु - वि० [सं०] सुंदर दीप्तियुक्त | पु० कृष्णका एक
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सुभाय-सुर
८६० पुत्र; सतरहवाँ संवत्सर ।
गेहूँ । वि० उदाराशय, संतुष्ट । सुभाय-पु० दे० 'स्वभाव' ।
सुमनित*-वि० सुंदर मणि या मणियोंसे युक्त । सुभायक*-वि० दे० 'स्वाभाविक'।
सुमनोकस, सुमनौकस-पु० [सं०] स्वर्ग । सुभाव*-पु० दे० 'स्वभाव' ।
सुमरन*-पु० दे० 'स्मरण' । स्त्री० सुमरनी। सुभावित-वि० [सं०] अच्छी तरह सिक्त किया हुआ। सुमरना*-सक्रि० स्मरण करना, जपना । सुभाषित-वि० [सं०] मुंदर रूपसे कथित वाग्मी; सुंदर सुमरनी-स्त्री० २७ दानोंकी जपमाला । भाषण करनेवाला । पु० सुंदर, कवित्वमय उक्ति, सूक्ति। सुमात्रा-पु० मलयद्वीपपुंजके अंतर्गत एक द्वीप ।
द-पु० (विट एंड यमर) अनोखी बात सुमानस-वि० [सं०] अच्छे मनवाला, नेकमिजाज । कहने-विलक्षण उत्तर देने की क्षमता तथा हास्य-प्रियता। | सुमानी(निन्)-वि० [सं०] स्वाभिमानी । सुभाषी(षिन् )-वि० [सं०] सुंदर भाषण करनेवाला, सुमार-1 पु० दे० 'शुमार' । * वि० चुना हुआ। सुवक्ता।
सुमार्ग-पु० [सं०] अच्छी राह, सुपथ । सुभास्वर-वि० [सं०] खूब चमकनेवाला, दीप्तिमान् । सुमाली (लिन्)-पु० [सं०] एक राक्षस जिसकी कन्या पु० पितरोंका एक वर्ग ।
कैकसीके गर्भसे रावण, कुंभकर्ण आदिकी उत्पत्ति हुई। सुभिक्ष-पु० [सं०] भिक्षा या अन्नकी सुलभता; वह काल | सुमित्र-पु० [सं०] अच्छा दोस्त, सन्मित्र ।
जब देशमें अन्नकी बहुतायत हो, भिक्षा सुलभ हो, सुकाल। सुमित्रा-स्त्री० [सं०] दशरथकी मँझली रानी जो लक्ष्मण सुभी*-वि० स्त्री० शुभकारिणी।
और शत्रुघ्नकी माता थीं; मार्कडेयकी माता। -तनय,सुभीता-पु० आसानी; सुयोग; आराम ।
नंदन,-पु० लक्ष्मण और शत्रुघ्न । सुभुज-वि० [सं०] सुंदर भुजाओंवाला।
| सुमिरना-पु० दे० 'स्मरण' । सुभूषित-वि० [सं०] सुंदर रूपसे भूषित, खूब सजाया, | सुमिरना-स० क्रि० दे० 'सुमरना' । सँवारा हुआ।
सुमिरनिया*-स्त्री० दे० 'सुमरनी' । सुभौटी*-स्त्री० शोभा।
सुमुख-वि० [सं०] सुंदर मुखवाला, सुंदर, मनोशा प्रसन्न । सुभ्र*-वि० दे० 'शुभ्र'।
सुमुखी-वि० स्त्री० [सं०] सुंदर मुखवाली। स्त्री० सुंदरी सुभ्र, सुभ्र-वि० [सं०] सुंदर भौवाला । स्त्री०सुंदरी,नारी। | स्त्री आईना; एक मूर्छना (संगीत); एक वृत्त एक अप्सरा । सुमंगली-स्त्री० कन्यापक्षके पुरोहितको दी जानेवाली समृत, समृति* -स्त्री० दे० 'स्मृति' । सिंदूरदानकी दक्षिणा ।
सुमेध*-वि० दे० 'सुमेधा'। सुमंत-पु० दे० 'सुमंत्र'।
सुमेधा-स्त्री० [सं०] ज्योतिष्मती, मालकँगनी। सुमंत्र-पु० [सं०] दशरथका मंत्री और सारथि जो वनको धा(धस)-वि० [सं०] सुंदर मेधा,बुद्धिवाला, सुबुद्धि । जाते समय रामको रथपर बैठाकर नगरसे बाहर ले गया; सुमेरु-पु०[सं०] एक पर्वत जो पुराणों के अनुसार इलावृतसुंदर मंत्र, अच्छी सलाह।।
वर्ष में अवस्थित है और सोनेका बना हुआ है, स्वर्णगिरि; सुमंत्रित-वि० [सं०] जिसे अच्छी सलाह दी गयी हो; उत्तर ध्रव; जपमालाके बीचका बड़ा दाना; एक वर्णवृत्त । जिसकी योजना बुद्धिमत्तापूर्वक बनायी गयी हो। सयं*-अ० दे० 'स्वयम्'। -वर*-पु० दे० 'स्वयंवर'। सुम-पु. [फा०] घोड़े या गधेका खुर जो बीचसे फटा | सुयश(स)-पु० [सं०] सुंदर यश, सुकीर्ति । नहीं होता; [सं०] फूल; चंद्रमा । -दोन-पु० फूलोंसे | सुयशा(शस)-वि० [सं०] सुंदर यशवाला। भरा दोना-'गुरु समीप सुमदोन दोउ धरि पद कियो सुयुक्ति-स्त्री० [सं०] सुंदर युक्ति, अच्छा उपाय । प्रनाम'-रघु। .
सुयोग-पु० [सं०] सुंदर योग; बदिया मौका । सुमत*-स्त्री० दे० 'सुमति' ।
सुयोग्य-वि० [सं०] अति योग्य, बहुत लायक । समति-वि० [सं०] बहुत चतुर। स्त्री० अच्छी बुद्धि या | सयोधन-पु० [सं०] दुर्योधन । स्वभाव, उदाराशयता सुरुचि ।
सुरंग-पु० लाल या लाखी रंगका घोड़ा । वि० [सं०] सुमधुर-वि० [सं०] अति मधुर बहुत नाजुक ।
सुंदर रंगवाला; सुंदर; * सरस; स्वच्छ । स्त्री० सेंध सुमध्यमा, सुमध्या-वि० स्त्री० [सं०] पतली कमरवाली मकानके नीचे खोदकर बनाया हुआ गुप्त मार्गः जमीनके (स्त्री)।
नीचे खोदकर बनायी हुई नाली जिसमें बारूद बिछाकर सुमन(स)-पु० [सं०] पुष्प; * देवता । -चाप-पु० किलेकी दीवार, चट्टान आदि उड़ाते हैं (आधुनिक); जमीन [हिं०] कामदेव । -माल-पु० [हिं०] पुष्पहार।-राज* या समुद्र में रखा जानेवाला बारूद आदिसे भरा गोला पु० इंद्र।
जिसका स्पर्श होनेपर विस्फोट होता है और जहाज आदि सुमनस-पु० देवता; विद्वान् । पुष्प । वि०सुंदर मनवाला, नष्ट हो जाते हैं। -प्रसारक पोत-पु० (माइनलेयर) प्रसन्न ।
आक्रमणकारी शत्रुके जहाजोंको रोकनेके लिए समुद्र में सुमनस्क-वि० [सं०] प्रसन्नचित्त ।
बारूदकी सुरंगें बिछानेवाला पोत । -मार्जक(-हारक) सुमना-स्त्री० [सं०] चमेली; सेवती, कबरी गाय; धर्मकी | पोत-पु० (माइनस्वीपर) समुद्र में बिछायी गयी बारूदसे पत्नी केकय नरेशकी एक कन्या।
भरी सुरंगोंको हटाने, दूर करनेवाला जहाज । सुमना(नस्)-पु० [सं०] देवता; नेक आदमी; विद्वान् सुर-पु० [सं०] देवता; सूर्यः मुनिः पंडित ! -कंत*-पु०
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(धस
सुर-सुरता इंद्र। -कानन-पु० देवोद्यान। -कामिनी-स्त्री० विष्णुः इंद्र । -सिंधु-स्त्री० गंगा; मंदाकिनी । -संदरीअप्सरा। -कारु-पु० देवताओंके शिल्पी, विश्वकर्मा। स्त्री. अप्सरा, दुर्गा; एक योगिनी। -सुरभी-स्त्री. -कामुक-पु० इंद्रधनुष । -गज-पु० ऐरावत ।-गाय- कामधेनु । -सेनप-पु० देवताओंके सेनापति, कात्तिस्त्री० [हिं०] कामधेनु । -गिरि-पु० मेरु । -गुरु- केय । -सेना-स्त्री० देवताओंकी सेना । -सैयाँ*-पु० पु० बृहस्पति । -गैया-स्त्री० कामधेनु । -चाप- दे० 'सुरसाई"। -सैनी*-स्त्री० हरिशयनी एकादशी। पु० इंद्रधनुष । -जन-पु० देववर्ग; दे० क्रममें । -तरं- -स्त्री-स्त्री० अप्सरा। -स्रोतस्विनी-स्त्री. गंगा । गिणी-स्त्री. आकाशगंग'; गंगा नदी। -तरु-पु० -स्वामी(मिन)-पु० इंद्र; विष्णुशिव ।
त-पु० कश्यप; इंद्र । -माण,-त्राता-सर-पु० स्वर, आवाज। -कुदाव*-पु० स्वर-परिवर्तन (त)-पु० विष्णु; इंद्र। -द्रुम-पु० कल्पवृक्ष देवदारु । द्वारा धोखा देना। -तान-स्त्री० स्वरका आलाप; दे० -द्विट(प)-पु० सुरद्वेषी, असुर; राहु । धाम(न)-पु० क्रममें । -ताल-पु० स्वर और ताल । -दार-वि० स्वर्ग । (मु०-धाम सिधारना-मर जाना।)-धुनी- सुरीला ।-फॉकताल-पु० तालका एक प्रकार -बहार स्त्री० गंगा। -धेनु-स्त्री० कामधेनु । -नदी-स्त्री० -पु० सितार जैसा एक बाजा । -भंग-पु० दे० 'स्वरगंगा। -नाथ,-नायक-पु० इंद्र। -नारी-स्त्री० भंग। -सिंगार-पु० एक बाजा। मु०-मिलानादेवांगना । -नाह*-पु० दे० 'सुरनाथ'। -निम्नगा- आवाज मिलाना, स्वरोंका मेल करना । स्त्री० गंगा । -निर्झरिणी-स्त्री० आकाशगंगा । -प*- सुरकना-स० क्रि० दे० 'सुड़कना'। पु० दे० 'सुरपति'। -पति-पु० इंद्रा शिव । -पति सुरक्त-वि० [सं०] गाढ़ा रँगा हुआ; गाढ़ा लाल; बहुत तनय-पु० अर्जुन; जयंत । -पथ-पु० आकाश; छाया- प्रभावित; अनुरक्त; बहुत सुंदर । पथ। -पर्वत-पु० मेरु पर्वत । -पादप-पु० कल्प- सुरक्षण-पु० [सं०] सम्यक् रक्षण । वृक्ष । -पाल,-पालक-पु० इंद्र। -पुर-पु० अमरा- सुरक्षा-स्त्री० [सं०] सम्यक, समुचित रक्षा । - वती; स्वर्ग । -पुरी-स्त्री० अमरावती। -पुरोधा- स्त्री० (सिक्यूरिटी काउंसिल) संयुक्त राष्ट्रसंघकी कार्य
)-पु० बृहस्पति ।-प्रिया-स्त्री० जाती, चमेली; पालिका परिषद् जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस तथा अप्सरा । -बाला-स्त्री०देवांगना। -बृच्छ*-पु० दे० चीन-इन देशोंके पाँच स्थायी सदस्य और अन्य राष्ट्रोंके 'सुरवृक्ष'। -बेल-स्त्री० [हिं०] कल्पलता। -भवन- चार अस्थायी सदस्य लिये जाते हैं। (विश्वशांति-संबंधी पु० देवमंदिर । -भान*-पु० इंद्र; सूर्य। -भिषक- समस्याएँ मुख्य रूपसे इसीके सामने विचारार्थ उपस्थित (ज)-पु० अश्विनीकुमार । -भूप-पु० [हिं०] इंद्रा की जाती हैं ।) विष्णु । -भूरुह-पु. देवदारु कल्पवृक्ष । -भोग-पु० सुरक्षित-वि० [सं०] भली भाँति, अच्छी तरह रक्षित । देवताओंका भोग्य, अमृत । -भीन*-पु० दे० 'सुर- -कोष्ठक-पु० (सेफ्टीवाल्ट) किसी अधिकोष(बैंक)के भवन'। -मणि-पु० चिंतामणि । -मृत्तिका-स्त्री० कोषागारमें कबूतरके दरबेकी तरह बने हुए कोष्ठक, घर या गोपीचंदन । -मौर*-पु० विष्णु ।-युवति,-योषित- खाने जिनमें ग्राहकोंसे किराया लेकर उनकी बहुमूल्य स्त्री० अप्सरा । -राइ*-पु० इंद्र; विष्णु । -राज,- वस्तुएँ-आभूषण, सोना, रत्नादि-सुरक्षित रखी जाती है। राद (ज्)-पु० इंद्र। -राय,-राव-पु० दे० सुर- सुरख*-वि० दे० 'सुख'। राज' । -रिपु-पु० देवशत्रु, राक्षस, दानव । -रूख- सुरखा*-पु० दे० 'सुर्खा' । पु० कल्पवृक्ष । -लता-स्त्री. महाज्योतिष्मती लता। सुरखाब-पु० दे० 'सुबि' । -लोक-पु० स्वर्ग, देवलोक । - लोक सुंदरी-स्त्री० सुरखिया-स्त्री० एक चिड़िया जिसका सिर, गरदन और अप्सरा दुर्गा । -वधू-स्त्री० देवांगना। -वन-पु० पीठ लाल रंगकी होती है । देवोद्यान । -वर्म(न्)-पु. आकाश । -वल्लभा- सुरखी-स्त्री० दे० 'सुखीं' । स्त्री० सफेद दूब । -वाणी-स्त्री० देववाणी, संस्कृत । सुरग-पु० दे० 'स्वर्ग' । -वास-पु० स्वर्ग । -वाहिनी-स्त्री० आकाशगंगा। सुरच्छन*-पु० दे० 'सुरक्षण' । -विटप,-वृक्ष-पु० कल्पवृक्ष । -वैरी-पु० (देवताओं- सुरज*-पु. सूर्य। के शत्रु) असुर । -विलासिनी-स्त्री० अप्सरा ।-वीथी- सुरजन*-पु० सुजन, नेक आदमी । वि० चतुर । स्त्री० नक्षत्रवीथी, नक्षत्रोंका मार्ग । -वीर*-पु० इंद्र । सुरझन*-स्त्री० दे० 'सुलझन'। -वैद्य-पु० अश्विनीकुमार । -शत्रु-पु० असुर । सुरझना*-अ० कि० दे० 'सुलझना'। -शाखी(खिन)-पु० कल्पवृक्ष । -शिल्पी(ल्पिन्)- सुरझाना*-स० कि० दे० 'सुलझाना'। पु० विश्वकर्मा । -श्रेष्ठ-पु. वह जो देवताओं में श्रेष्ठ हो; सुरझावना*-स० क्रि० दे० 'सुलझाना' ।
गणेश; इंद्रधर्म । -सदन,-सद्म(न)- सरत*-स्त्री० ध्यान, याद । पु० [सं०] संभोग, कामपु० स्वर्ग; देवालय । -सरि(री)*-स्त्री० गंगा; गोदा- क्रीड़ा; एक भिक्षु (बौद्ध)। वि०क्रीड़ाशील; अति अनुरक्त । वरी। -सरिता-स्त्री० [हिं०] दे० 'सुरसरित्' । सरित- -केलि,-क्रीड़ा-स्त्री० कामक्रीड़ा ।-गुप्ता,-गोपनास्त्री० गंगा। -सरित्सुत-पु. भीष्म । -साई-पु० स्त्री० रतिचिह्न छिपानेवाली नायिका । - ग्लानि-स्त्री० इंद्र विष्णुः शिव । -साल*-वि० देवताओंको सालने- सुरत-जनित शिथिलता। वाला, सुरपीड़क । -साहब-पु० देवताओंके स्वामी, सुरता-स्त्री० [सं०] देवत्व; सुरसमूह; एक अप्सरा; पत्नी;
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सुरतान-सुराही * ध्यान; होश । पु० समाधि लगानेवाला, ध्यान करने- | -जीवी(विन्)-पु. कलाल । -प-वि• सुरापान वाला; श्रोता-'कथता, बकता, सरता सोई...'-कबीर । करनेवाला, शराबी। -पान-पु. शराब रखने या सुरतान-पु० दे० 'सुलतान'; दे० 'सुर' [हिं०] में। पीनेका पात्र । -पान-पु० शराब पीना; मद्यपानके सरति-स्त्री० [सं०] रति, कामक्रीड़ा, विहार । -गोपना- समय खायी जानेवाली चाट, गजक । -पीत-वि. स्त्री० दे० 'सुरत-गोपना'।
जिसने मद्यपान किया है। -प्रिय-वि० जिसे मद्य प्रिय सुरतिवंत*-वि० कामविह्वल ।
हो।-मंड-पु० (खमीर पैदा होनेपर) शराबके ऊपर सुरती-स्त्री० तंबाकूका सुखाया हुआ पत्ता।
उठ आनेवाला फेन, मधफेन । -भांड-पु० दे० 'सुरा. सुरत्न-वि० [सं०] अच्छे रत्नोंवाला; सर्वश्रेष्ठ । पु० सुवर्ण पात्र'। -भाजन-पु० मदिरा रखने या पीनेका पात्र । लाल आदि अच्छे रत्न ।
-मत्त-वि० मदमस्त, शराबके नशेमें चूर । -मदसुरथा-स्त्री० [सं०] एक अप्सरा; एक पुराणवर्णित नदी। पु० शराबका नशा। -समुद्र-पु० दे० 'सुराब्धि' । सुरथाकार-पु० [सं०] एक वर्ष, भूखंड, देश ।
-सार-पु० मद्यका सार (स्पिरिट), (अलकोहल)। सुरबुली-स्त्री० एक पौधा जिसकी छालसे रंग बनाते हैं। सुराई*-स्त्री० शूरता, बहादुरी । सुरभि-वि० [सं०] सुगंधित, खुशबूदार प्रिय, मनोरम । सुराख-पु० दे० 'सूराख' सुराग । स्त्री० सुगंधि, सुवासः सल्लकी; एक पौराणिक गाय जो सुराग-पु० दे० 'सुराग'; [सं०] प्रगाढ़ प्रेम; अच्छा रंग। गोजातिकी माता मानी जाती है। गायपृथ्वी; तुलसी। सुराग़-पु० [अ०] खोज, निशान, पद-चिह्न । -चूर्ण-पु० खुशबू मिलाया हुआ चूरा ( पाउडर)। सुरागाय-स्त्री० एक तरहकी जंगली गाय जिसकी पूँछके -तनय,-पुत्र-पु० बैल । -तनया-स्त्री० गाय ।। बालका चँवर बनाते हैं। -मास-पु. वसंत ऋतु; चैत्र मास । -मुख-पु० | सुरागार-पु० [सं०] शराबखाना; देवालय । वसंतका आरंभ। -समय-पु० वसंत ऋतु ।
सुराग़ी-पु० खोजी जासूस मुखबिर । सरभित-वि० [सं०] सुगंधित किया हुआ, बासा हुआ। सुराचार्य-पु० [सं०] बृहस्पति । सुरभिमान् (मत्)-वि० [सं०] सुगंधियुक्त । सुराज-पु० अच्छा राज्य; स्वराज्य । सुरभी-स्त्री० [सं०] खुशबू ; गाय; सलई ।
सुराजा(जन)-पु० [सं०] अच्छा राजा। सरमई-वि० सुरमेके रंगका, हलका नीला। पु० सुरमेके सुराजीव-पु० [सं०] विष्णु; कलाल । रंगसे मिलता-जुलता रंग; इस रंगका कबूतर । स्त्री० सराजीवी(विन)-पु० [सं०] कलाल । हलके काले रंगकी एक चिड़िया ।
सुराज्य-पु० [सं०] सुंदर, प्रजारंजक राज्य; + दे० सुरमा-पु० [फा०] एक खनिज पदार्थ जिसका बारीक _ 'स्वराज्य'। चूर्ण आँखोंमें अंजनके रूपमें लगाया जाता है; अंजन । | सुराधानी-स्त्री० [सं०] शराब रखनेका छोटा घड़ा। वि० बहुत बारीक (करना, होनाके साथ)। -कश-वि० सुराधिप, सुराधीश-पु० [सं०] इंद्र । सुरमा लगानेवाला। पु० सुरमा लगानेकी सलाई । सुरानीक-पु० [सं०] देवसेना । -दान-पु०,-दानी-स्त्री० सुरमा रखनेकी डिबिया। सुरापगा-स्त्री० [सं०] गंगा। सुरमै*-वि०, पु० दे० 'सुरमई'।
सुराब्धि-पु० [सं०] सुराका समुद्र, पुराणोक्त समुद्रसुरम्य-वि० [सं०] अति रमणीय, मनोहर ।
विशेष । सुरर्षि-पु० [सं०] देवर्षि ।
सुराय*-पु० अच्छा, श्रेष्ठ राजा। सुरली*-स्त्री० सुंदर क्रीड़ा।
सुरायुध-पु० [सं०] देवास्त्र । सुरवाल-पु० पायजामा सेहरा।
सुरारि-पु० [सं०] (देवताओंका शत्रु) असुर, राक्षस । सुरस-वि० [सं०] सुंदर रसयुक्त, रसीला सुस्वादु; मधुर । | -हंता(त)-पु० असुरोंका नाश करनेवाले, विष्णु । सुरसती*-स्त्री० दे० 'सरस्वती'।
-हा(हन्)-पु० शिव । सुरसा-स्त्री० [सं०] समुद्र लाँघकर लंका जाते समय हनू- सुरार्चन-पु० [सं०] देवपूजा। मान्का रास्ता रोकनेवाली एक नागमाता; एक राक्षसी।। सुरालय-पु० [सं०] स्वर्ग; मेरु; देवालय; मदिरालय । सुरसुराना-अ० क्रि० कीड़ोंका रेंगना; खुजली होना। सुराव-पु० [सं०] सुंदर ध्वनि । सुरसुराहट-स्त्री० हलकी खुजली; सुरसुरानेका भाव।। सुरावास-पु० [सं०] सुमेरु, स्वर्ग; देवालय । सुरसुरी-स्त्री० सुरसुराहट, छडूंदर नामकी आतिशबाजी। सुराश्रय-पु० [सं०] मेरु पर्वत । सुरहना*-अ० क्रि० (घाव आदिका) भर आना, सूख | सरासार-पु० दे० 'सुरा में । जाना-'सुरह्यो घाइ देह बल आयो'-छत्र० ।
सुरासुर-पु० [सं०] सुर और असुर । सुरहरा*-वि० जिससे 'सुर-सुर'की आवाज निकलती हो। | सुराही-स्त्री० [अ०] लंबी गरदन और तंग मुहँका बरतन सुरही-स्त्री० चमरी गाय; एक घासा दे० 'सोरही। जो पहले शराब और अब अधिकतर पानी रखनेके काम सुरांगना-सी० [सं०] देवपत्नी; अप्सरा।
आता है। सुराहीकी शकलका कपड़ा जिसे अँगरखे आदिकी सुरा-स्त्री० [सं०] मद्य, शराब । -कार-पु० शराब दोनों बगलोंके नीचे सुंदरताके लिए लगाते हैं। नैचेका चुआनेवाला, कलाल । -कुंभ,-घट-पु० शराब रखने- चिलमके नीचे रहनेवाला हिस्सा ।-दार-वि० सुराहीकी का मटका या घड़ा, मद्यपात्र । -गृह-पु० मदिरालय । शकलका ।-दार गरदन-स्त्री० लंबी और सुंदर गरदन ।
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सुरी-सुलाखना -नुमा-वि० सुराहीकी शकलका ।
सुलगन-स्त्री० सुलगनेकी क्रिया। सुरी-स्त्री० [सं०] देवांगना-'नरी किन्नरी आसुरी, सुरी | सुलगना-अ०कि. (लकड़ी, उपले आदिका) आग पकड़ना, रहत सिरनाय'-कवि० ।
जलने लगना; (तंबाकू आदिका) धुआँ देने लगना, पीने सुरीला-वि० मधुर स्वरवाला।
लायक होना; (ला०) ईOसे जलना, कुढ़ना। सुरुख-वि०जिसका रुख अच्छा हो, प्रसन्न दे० 'सुख'। सुलगाना-अ०कि. आग जलाना; भड़काना, झगड़ा -रू-वि० 'सुखरू'।
उकसाना; (तंबाकू आदि) पीने योग्य बनाना । सुरुचि-स्त्री० [सं०] सुंदर, संस्कृत रुचि, सुंदर प्रकाशा | सुलच्छन*-वि०, पु० दे० 'सुलक्षण' । सुदीप्ति; राजा उत्तानपादकी पत्नी, ध्रु वकी सौतेली माँ। सुलच्छनी*-वि० स्त्री० दे० 'सुलक्षणा' । वि० सुंदर रुचिवाला । पु० एक यक्ष; एक गंधर्व राजा।। सुलछ*-वि० देखनेमें सुंदर । सुरुज-वि० [सं०] बहुत बीमार । * पु० दे० 'सूर्य'। सुलझन-स्त्री० सुलझनेकी क्रिया सुलझाव । -मुखी*-स्त्री० दे० 'सूर्यमुखी'।
सुलझना-अ० कि० गुत्थी, उलझी हुई डोर आदिका सुरूप-वि० [सं०] अच्छी शक्लवाला, सुंदर ।
खुलना; मसलेका हल होना, उलझन, पेचीदगीका दूर सुरूर-पु० [अ०] आनंद; हलका, सुखद नशा, खुमार; होना। मादकता।
सुलझाना-स० क्रि० गुत्थी खोलना, उलझन दूर करना; सुरेंद्र-पु० [सं०] देवराज, इंद्र। -गोप-बीरबहूटी। इल करना, पेचीदगी दूर करना। -चाप-पु० इंद्रधनुप् ।
सुलझाव-पु० सुलझनेका भावः निबटारा। सुरेश-पु० [सं०] देवराज, इंद्रः विष्णुः शिव ।
सुलटा-वि० सीधा, 'उलटा'का उलटा। सुरेस*-पु० दे० 'सुरेश'।
सुलतान-पु० [अ०] बादशाह हिंदुस्तानके तुर्क बादशाहों सुरै*-स्त्री० एक हानिकर घास ।
और तुकाके सम्राटोंकी पदवी। सुरैत-स्त्री० रखेली। -वाल,-वाला-पु० सुरैतके पेटसे सुलताना-स्त्री० [अ०] मलिका; सुलतानकी पत्नी या जनमा हुआ लड़का।
माँ। -चंपा-पु. एक पेड़, पुन्नाग । सुरैतिन-स्त्री० दे० 'सुरैत'
सुलतानी-वि० सुलतानका, शाही । स्त्री० राज्य, बादसुरोचि*-वि• सुंदर।
शाही । -बानात-स्त्री० एक तरहकी बहुत बढ़िया और सुरोपम-वि० [सं०] देवतुल्य ।
मोटी बानात । -बुलबुल-स्त्री० बुलबुलका एक भेद सुर्ख-वि० [फा०] लाल । -पोश-वि. जो लाल कपड़े | जिसकी चोटी स्याह और पर सुखी मायल होते हैं। पहने हो। -रू-वि० जिसका मुँह लाल हो; सफल, | सुलप*-वि० दे० 'स्वल्प' । यशस्वी प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाला। -सर,-सार-पु० | सुलफ-वि० लचीला; नाजुक । एक चिड़िया जिसका सिर लाल होता है; (ला०) ईरानी। सुलता-पु० बिना तवा रखे भरा हुआ तंबाकू, गाँजेकी -(खों) सफ़ेद-वि० जिसकी गोराई में सुखीं मिली हो तरह भरकर पिया जानेवाला तंबाकू; चरस ।-(क)बाज़सुंदर । पु० सुखीं मिली हुई गोराई; (ला०) सोना-चाँदी।। वि० गाँजा, चरस पीनेवाला। मु०-होना-दे० 'लाल होना।
सुलभ-वि० [सं०] जो आसानीसे मिल जाय, सुखलभ्य, सुख-पु० [फा०] लाल रंग; लाल रंगका कबूतर घोड़ेका आसान; (किसीके लिए) स्वाभाविक, समुचित उपयोगी। एक रंग; आँखपर होनेवाली सुखी ।
-मद्रा-स्त्री० ( सॉफ्ट करेंसी) किसी देशकी वह मुद्रा सुर्खाब-पु० [फा०] चक्रवाक, चकवा-चकवी ।-का पर- जो अन्य देशोंके पास आवश्यकतासे अधिक संख्यामें
अनोखी बात, खास-खूबी (कलगियों में लगाये जानेके इकट्ठी हो गयी हो और जिसे वे उस देशसे और अधिक कारण)। मु०-का पर लगा होना-कोई अनोखी माल मँगाकर खर्च करने में असमर्थ हों (यह सुवर्ण में परिबात, कोई खास खूबी होना।
णत नहीं की जा सकती, अन्यथा इसे देकर अन्यान्य सी-स्त्री० [फा०] लाल रंग; लाल स्याही; शीर्षक: देशोंसे माल मँगा लिया जाता और यह बटुरने न ईंटोंका चूरा जो ईंटोंकी जुड़ाई और फर्श बनानेके काम पाती)। -मुद्रा-क्षेत्र-पु० (सॉफ्ट करेंसी एरिया) सुलभआता है ।-मायल-वि० जिसमें हल्की लाल रंगत हो। मुद्रावाले देशोंका क्षेत्र । मु०-कायम करना-शीर्षक लगाना ।
सुलभ्य-वि० [सं०] जो आसानीसे प्राप्त हो सके। सुर्ता*-वि० समझदार ।
सुललित-वि० [सं०] अति ललित, सुंदर, क्रीडाशील। सुर्ती-स्त्री० दे० 'सुरती'।
सुलह-स्त्री० [अ०] मेल, परस्पर अनुकूलता; लड़ाई या सुलंक, सुलंकी*-पु० दे० 'सोलंकी' ।
झगड़ेके बाद किया जानेवाला मेल, समझौता । -कुलसुलक्ष-वि० [सं०] शुभ लक्षणोंवाला; भाग्यवान् । वि. सबके साथ मेल रखनेवाला, जो किसीके साथ सुलक्षण-वि० [सं०] सुंदर या शुभ लक्षणोंवाला; भाग्य- शत्रुभाव न रखे । स्त्री० सबके साथ मेल, मैत्री रखना। शाली । पु० सुंदर या शुभ लक्षण; परीक्षण ।
-नामा-पु. वह कागज जिसमें सुलह हो जानेकी बात सुलक्षणा-वि०सी० [सं०] सुंदर या शुभ लक्षणोंवाली। या उसकी शर्ते लिखी गयी हों, राजीनामा, संधिपत्र । सुलक्षणी-वि०, स्त्री० दे० 'सुलक्षणा'।
सुलाखना-* सक्रि० छेद करना; + सोने-चाँदीको तपा. सुलग-अ० निकट, पास ।
कर परखना।
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रंग।
सुवार-
संदर वास,
सुलागना-सुवृत्त
८६४ सुलागना*-अ० क्रि० दे० 'सुलगना' ।
खानोंवाली, स्वर्णप्रसवा (भूमि)। -गिरि-पु० एक पर्वत सुलाना-सक्रि० किसीको सोने या लेटने में प्रवृत्त करना। (जो राजगृहमें है)। -गैरिक-पु. लाल गेरू ।-द्वीपसुलाह*-स्त्री० दे० 'सुलह ।
पु० सुमात्रा टापू । -धेनु-स्त्री० दानके लिए निर्मित सुलिपि-स्त्री० [सं०] उत्तम, स्पष्ट लिपि ।
सोनेकी गाय । -पद्म-पु० लाल कमल । -पृष्ठ-वि० सुलूक-पु० [अ०] बर्ताव, व्यवहार, आचरणानेकी,मलाई जिसकी सतह सोनेकी हो, जिसपर सोनेका पत्तर चढ़ाया
मेल; मुहब्बत (सुलूकसे रहना); ईश्वरसामीप्यकी इच्छा । गया हो। -प्रतिमा-स्त्री० सोनेको मूर्ति । -मानसुलेख-वि० [सं०] शुभ रेखाओंवाला। पु० अच्छी पु० (गोल्ड स्टैंडर्ड) वह मुद्रा-प्रणाली जिसमें बैकके नोटोंलिखावट ।
(कागजी मुद्रा) का भुगतान किसी भी समय, निर्धारित सुलेखक-पु० [सं०] सुंदर अक्षर लिखनेवाला,खुशनवीस दरके अनुसार, सुवर्णके रूपमें किया जा सके। -मित्रसुंदर लेख, निबंध लिखनेवाला, प्रसिद्ध लेखक ।
पु० सुहागा। -यूथिका,-यूथी-स्त्री. सोनजूही। सुलेमाँ-पु० दे० 'सुलैमान'।
-रंभा-स्त्री. चंपाकेला । -लेखा-स्त्री० (कसौटपरकी) सुलैमान-पु० [फा०] दाऊदका बेटा; यहूदियोंका तीसरा | सोनेकी लकीर । -सूत्र-पु० सोनेकी सिकड़ी।
बादशाह जिसने यरूशलम नगरका निर्माण कराया। सुवर्षा-स्त्री० [सं०] अच्छी वर्षा; मलिका, मोतिया। सुलोक-पु० [सं०] स्वर्ग ।
सुवस*-वि० जो अपने अधिकारमें हो। सुलोचन-वि० [सं०] सुंदर आँखोंवाला । पु० हिरन । सुबह-वि० [सं०] सुखसे वहन करने योग्य; धीर । सुलोचना-वि० स्त्री० [सं०] सुंदर आँखोंवाली। सी० सुवा*-पु० सुग्गा, तोता। मेघनादकी पत्नी जो वासुकि नागकी कन्या थी। सुवाग्मी(ग्मिन्)-वि०, पु० [सं०] सुवक्ता । सुलोचनी-वि० स्त्री० दे० 'सुलोचना' ।
सुवाच्य-वि० [सं०] आसानीसे पढ़े जाने योग्य । सुलोम-वि० [सं०] सुंदर रोमों या बालोंबाला। . सुवाना*-स० कि० दे० 'सुलाना'। सुलोहित-वि० [सं०] गहरा लाल। पु० सुंदर लाल रंग। सुवार-पु० [सं०] सुंदर दिन * सूपकार, रसोइया । सुव*-पु० पुत्र ।
सुवास-पु० [सं०] सुंदर वास, सुगंध; सुंदर आवास । सुवक्ता(क्त)-वि०, पु० [सं०] सुंदर वक्ता, वाग्मी । सुवासित-वि० [सं०] सुवासयुक्त, सुगंधित । सुवक्त्र-वि० [सं०] सुंदर मुखवाला, सुमुख ।
सुवासिन*-स्त्री० दे० 'सुआसिन'। सुवक्षा-स्त्री० [सं०] त्रिजटा और विभीषणकी माता । सुवासिनी-स्त्री० [सं०] पिताके घर में रहनेवाली युवती सुवक्षा(क्षस)-वि० [सं०] सुंदर, चौड़ी छातीवाला। सुहागिन, भद्र सधवा स्त्रीके लिए प्रयोगमें आनेवाला सुवच-वि० [सं०] जो आसानीसे कहा जा सके। एक आदर-सूचक शब्द । सुवचन-पु० [सं०] सुंदर वचन। वि० सुवक्ता:मधुरभाषी! | सविख्यात-वि० [सं०] बहुत प्रसिद्ध । सुवटा*-पु० दे० 'सुअटा'।
सुविग्रह-वि० [सं०] सुंदर देहवाला, रूपवान् । सुवदन-वि० [सं०] सुंदर मुखवाला। पु० एक पौधा । सविचारित-वि० [सं०] भली भाँति सोचा-बिचारा हुआ। सुवदना-वि० स्त्री० [सं०] सुमुखी । स्त्री० एक वृत्त । सुविदग्ध-वि० [सं०] बहुत चालाक, काइयाँ । सुवन-* वि० अच्छे मनवाला । * पु० पुत्रः पुष्प, सुमन सुविदित-वि० [सं०] अच्छी तरह विदित, शात । देवता; पंडित; [सं०] सूर्यः अग्नि, चंद्रमा ।
सुवि-पु० [सं०] विद्वान् या चतुर व्यक्ति। वि० विद्वान् । सुवना*-पु० तोता।
सुविद्य-वि० [सं०] बड़ा विद्वान्, सुपंडित । सुवनारा*-पु० दे० 'सुअन'।
सुविधा-स्त्री० दे० 'सुभीता'। सुवपु(स.)-वि० [सं०] सुंदर शरीरवाला ।
सुविधाधिकार-पु० (राइट ऑफ ईज़मेंट) किसीकी भूमि, सुवरण-पु० सुवर्ण, सोना; धन; अच्छी जाति; अच्छा पथ आदिका अपने आरामके लिए प्रयोग करने या अपनी रंग; अच्छा शब्द ।
भूमि आदिका दूसरे द्वारा दुरुपयोग होनेसे रोकनेका सुवर्चक, सुवर्चिक-पु० [सं०] सज्जी।
अधिकार । सुवर्चल-पु० [सं०] एक देश काला नमक; शिव । सुविधायक कोष-पु० (प्रॉविडेंट फंड) दे० भविष्य निधि', सवर्चला-स्त्री० [सं०] सूर्यकी पत्नी, ब्राह्मी; अलसी, संचित कोष । आदित्यभक्ता, हुरहुर, सूर्यमुखी फूल ।
सुविधि-स्त्री० [सं०] अच्छा नियम या आदेशा अच्छा ढंग । सुवर्चस-पु० [सं०] शिव । वि० दीप्तिमान् ।
सुविनीत-वि० [सं०] अति विनीतअच्छी तरह सिखाया, सुवर्चस्क-वि० [सं०] कांतिमान्, दीप्तिमान् । | सधाया हुआ (घोड़ा आदि)। सुवर्ण-वि० [सं०] अच्छे रंगका पीला, सुनहला, चम-सुविस्मित-वि० [सं०] बहुत चकित: बहुत आश्चर्यजनक । कीला; सोनेका बना हुआ; अच्छी जातिका प्रसिद्ध । सुविहित-वि० [सं०] अच्छी तरह किया हुभा; अच्छी पु० अच्छा रंग; अच्छी जाति; सोना; एक यश; शिव; तरह रखा हुआ; सुव्यवस्थित ।। धतूरा; सोनेका सिक्का, धन, दौलत एक तरहका गेरू, सुवीज-पु०, वि० [सं०] दे० 'सुबीज' ।। स्वर्णगैरिक। -कदली-स्त्री. चंपाकेला। -कमल- सुवीर-वि० [सं०] बहुत बड़ा वीर, योद्धा; बहुतसे वीरों, पु० रक्त कमल । -करनी*-स्त्री० एक जड़ी। -कार, पुत्रों आदिवाला। पु० स्कंद; शिव; बेरका पेड़।। -कृतू-पु० सुनार । -गर्भा-वि० स्त्री० सोनेकी सवृत्त-वि० [सं०] सच्चरित्र, नेक; खूब गोल; अच्छे छंदमें
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सुराज्य ।
सुवृत्ति-सुसिक्त रचित । पु० सुंदर वृत्त, चरित्र; सूरना कल्याण । सुषमनि*-स्त्री० दे० 'सुषुम्ना'। सुवृत्ति-स्त्री० [सं०] सुंदर वृत्ति, जीविका; सुंदर आचरण, सुषमा-स्त्री० [सं०] परम शोभा, अतिशय सुंदरता; एक सदाचार संयम, पवित्रताका जीवन ब्रह्मचर्य ।
वर्णवृत्त । -शाली(लिन)-वि० अति सुंदर । सुवेल-पु० [सं०] लंकाका त्रिकूट पर्वत जिसपर रामकी सुषाना*-स० क्रि० सुखाना । अ० कि० सूखना । सेनाने पड़ाव किया था। वि० शांत; बहुत झुका हुआ। सुषारा*-वि० दे० 'सुखारा। सुवेश, सुवेष-वि० [सं०] सुंदर वेशयुक्त; सुंदर कपड़े सुषिक्त-वि० [सं०] अच्छी तरह सींचा हुआ। पहने हुआ; सुंदर सजीला। पु० बढ़िया पोशाक । सुषिर-वि० [सं०] छेदवाला, सूराखदार, खोखला; सवेस-वि० दे० 'सुवेश' । पु० सुंदर वेश ।
सावकाश । पु० बाँस बेंत, काठ; चूहा; छेद; अग्नि सुवैया-पु० सोनेवाला।
फूंककर बजाया जानेवाला बाजा। सुव्यवस्था-स्त्री० [सं०] सुंदर व्यवस्था, सुप्रबंध ।
सषप्त-वि० [सं०] गहरी नींदमें सोया हुआ। पु० सुषुप्तासुव्यवस्थित-वि० [सं०] सुंदर व्यवस्थायुक्त ।
वस्था । सुव्रत-वि० [सं०] सुंदर व्रतधारी; दृढ़तासे व्रतका पालन सुषुप्ति-स्त्री० [सं०] गहरी नींद; सत्वप्रधान अज्ञान, करनेवाला, धर्मनिष्ठ; सीधा, सधा हुआ (घोड़ा आदि)।| आनंदमय कोष । पु० ब्रह्मचारी; एक प्रजापति ।
सषुम्णा, सुषुम्ना-स्त्री० [सं०] मेरुदंडके बहिर्मार्गमें इड़ा सुव्रता-वि० स्त्री० [सं०] सुंदर व्रतवाली; साध्वी। स्त्री० और पिंगला नाड़ियोंके बीच में स्थित एक नाड़ी; आयुर्वेदके दक्षकी एक पुत्री; सीधी गाय; पतिव्रता स्त्री।
अनुसार नाभिके मध्यमें स्थित एक प्रधान नाड़ी। सुशंस-वि० [सं०] प्रशंसनीया कीर्तिमान प्रख्यात । सुषेण-वि० [सं०] दिव्यास्त्रवाला (कृष्ण, इंद्र)। पु० सुशब्द-वि० [सं०] सुस्वर, मधुर स्वरयुक्त (जैसे बाँसुरी)। विष्णु, एक गंधर्व, एक वानर जो सुग्रीवका चिकित्सक था। सुशासन-पु० [सं०] मुंदर शासन, उत्तम राज्य प्रबंध, सुषोपति, सुषोप्ति-स्त्री० दे० 'सुषुप्ति' ।
सुष्टु-अ० [सं०] अतिशय सुंदर रीतिसे; ठीक-ठीक । सशासित-वि० [सं०] भली भाँति शासित; सुनियंत्रित । वि० उत्तम; सुंदर । सुशास्य-वि० [सं०] जिसपर आसानीसे शासन या नियं: | सष्ठता-स्त्री [सं०] सुंदरता; कल्याण, अभ्युदय । त्रण किया जा सके।
सुष्मना*-स्त्री० दे० 'सुषुम्ना' । -वि० [सं०] सुशिक्षाप्राप्त, जिसने अच्छी शिक्षा सुसंग-पु० [सं०] अच्छी सुहबत, सत्संग । पायी हो अच्छी तरह सधाया,सिखाया हुआ(घोड़ाआदि)। | ससंगत-वि० [सं०] बहुत उचित, युक्त । सुशील-वि० [सं०] सुंदर शीलवाला, सत्स्वभाव; सच्च- सुसंगति-स्त्री० [सं०] अच्छी सुहबत; अच्छा मेल; (रलीरित्र; विनीत; सीधा । पु० अच्छा स्वभाव ।
बेंसी) अच्छी तरह मेल खाने, ठीक बैठने, उपयुक्त होनेकी सशीलता-स्त्री० [सं०] सच्चरित्रता; विनम्रता; सीधापन । क्रिया या भाव। सशीला-स्त्री० [सं०] सुदामाकी पत्नी; यमकी पली; कृष्ण- ससंपन्न-वि० [सं०] अति संपन्न, जिसके पास यथेष्ट धन
की आठ पटरानियों में से एक; राधाकी एक सहेली। संपत्ति हो; अच्छी तरह पूरा किया हुआ। सुशोभन-वि० [सं०] अति सुंदर, सुहावना ।
सुसंस्कृत-वि० [सं०] सुंदर संस्कारयुक्त; भली भाँति सुशोभित-वि० [सं०] अति शोभायुक्त विराजमान । संस्कार किया हुआ; घृतादि द्वारा भली भाँति पकाया सश्राव्य-वि० [सं०] जो सुनने में अच्छा लगे, श्रुतिमधुर ।
हुआ। सुश्री-वि० [सं०] अति सुंदर, शोभन; अति धनी। सस*-स्त्री० स्वसा, बहिन । स्त्री० स्त्रियोंके नामके पूर्व आदर-सूचनार्थ लगाया जाने
सुसकना*-अ० क्रि० दे० 'सिसकना। वाला शब्द ।
ससज्जित-वि० [सं०] अच्छी तरह सजा यासजाया हुआ। सुश्रीक-वि० [सं०] संदर श्री-युक्त।
सुसताना-अ० क्रि० दे० 'सुस्ताना' । सुश्रुत-वि० [सं०] अच्छी तरह सुना हुआ; बहुत प्रसिद्ध
सुसमय-पु० [सं०] अच्छा समय, सुकाल । वेदश । पु० आयुर्वेदके अति प्राचीन और स्तंभभूत आचार्य
सुसमा-स्त्री० दे० 'सुषमा'। जो विश्वामित्रके पुत्र कहे जाते हैं और जिनका ग्रंथ
सुसर-पु० पति या पत्नीका पिता, श्वशुर । सुश्रुतसंहिता आयुर्वेदकी बृहत्त्रयीके अंतर्गत है; सुश्रत
सुसरा-पु० दे० 'सुसर'। संहिता ।-संहिता-स्त्री० सुश्रुतरचित प्रसिद्ध चिकित्सा
सुसरार, सुसरारि-स्त्री० दे० 'ससुराल'। ग्रंथ ।
सुसराल-स्त्री० दे० 'ससुराल'। सुखा *-स्त्री० दे० 'शुश्रषा' ।
ससह-वि० [सं०] जिसका सरलतासे सहन किया जा सुश्रूषा*-स्त्री० दे० 'क्षुश्रषा'।
सके; सहनशील । पु० शिव । सुश्रीणि-वि०स्त्री० [सं०]मुंदर नितंबोंवाली । स्त्री०एक देवी। ससा*-स्त्री० दे० 'स्वसा' । पु० एक चिड़िया। सश्लिष्ट-वि० [सं०] मजबूतीसे जुड़ा, मिला हुआ। ससाध्य-वि० [सं०] जिसका साधन सहज हो, सुखसुश्लोक-वि० [सं०] पुण्यशाली; सुप्रसिद्ध ।
साध्य; जो आसानीसे नियंत्रणमें रखा जा सके; आसान । सुष*-पु० सुख।
ससाना-अ० कि० सिसकना, सिसकी भरना । सुषमना*-स्त्री० दे० 'सुषुम्ना'।
ससिक्त-वि० [सं०] दे० 'सुषिक्त ।
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सुसिद्ध-सुहेला सुसिद्ध-वि० [सं०] अच्छी तरह पका या पकाया हुआ; सहाग-पु० सुहागिन होनेकी अवस्था, सौभाग्य, अहिवात; जिसे अच्छी सिद्धि प्राप्त हो।
व्याहमें गाया जानेवाला मांगलिक गीत; वे गहने कपड़े सुसुकना-अ० कि. 'सिसकना ।
जो सुहागिन स्त्री पहनती है। वह कपड़ा जो व्याहके समय सुसुपि*-स्त्री० दे० 'सुषुप्ति।
दूल्हा पहनता है; सौभाग्य-सूचक सिंदूर (देना, लेना); सुसेन-पु० दे० 'सुषेण'।
एक तरहका इत्र, प्यार, मुहब्बत, प्रणय-चेष्टा ( अपना सुसेव्य-वि० [सं०] सेवा करने योग्य; आसानीसे अनु- सुहाग अपने पास रखो)। -घोड़ी-स्त्री० ब्याहके गीत धावन करने योग्य (मार्ग)।
जो दूल्हेके घर में दुलहिनके रूप गुणके बखानमें गाये जाते सुस्त-वि० [फ०]ढीला; कमजोर; आलसी; धीमा; मंद- | हैं।-पिटारा-पु०,-पिटारी-स्त्री० गहनों और शृंगारबुद्धि; उदास, उतरा हुआ (चेहरा)। -क़दम-वि० सामग्रीका डिब्बा जो दूल्हेकी ओरसे दुलहिनको दिया धीमा चलनेवाला।
जाता है ।-पुड़ा-पु०,-पुड़िया-स्त्री० गोट आदि लगासुस्तना, सुस्तनी-वि. स्त्री० [सं०] सुंदर स्तनों- कर कागजकी बनायी हुई सुंदर पुड़िया जिसमें सुगंधित वाली (स्त्री)।
वस्तुएँ रखकर दुलहिनके लिए भेजी जाती हैं। -भरीसुस्ताई*-स्त्री० सुस्ती।
वि० स्त्री० सुख-सौभाग्ययुक्त, सुखी । -रात-स्त्री. सुस्ताना-अ० क्रि० थकावट दूर करना, आराम करना। दुल्हे-दुलहिनके मिलनकी पहली रात। -सेज-स्त्री. सुस्ती-स्त्री० [फा०] ढिलाई; कमजोरी; आलस्य; पुरुर्षे बरातका पलंग जिसपर दूल्हा दुलहिन सोते हैं। मु०द्रियकी शिथिलता। मु०-उतारना,-तोड़ना-अंगड़ाई उजड़ना-विधवा होना। -उतरना-पतिके मरनेपर लेना।
पलीके शरीरसे सुहागकी चीजों (चूड़ियाँ, सिंदूर आदि)का सुस्तैन*-पु० दे० 'स्वस्त्ययन' ।
उतारा जाना; विधवा होना । -मनाना-सौभाग्य, सुस्थ-वि० [सं०] सुखपूर्वक स्थित स्वस्थ, सुखी; उन्नति- अहिवातकी कामना करना ।
शील । -चित्त,-मानस-वि० प्रसन्नचित्त सुखी। सहागन, सुहागिन-स्त्री० वह स्त्री जिसका पति जीता हो, सस्थता-स्त्री० [सं०] आरोग्य, स्वास्थ्य सुख प्रसन्नता। | सधवा, सौभाग्यवती। सुस्थिति-स्त्री० [सं०] अच्छी हालत सुखकी स्थिति सुहागा-पु. एक क्षारद्रव्य जो सोना गलाने और दवाके अभ्युदय।
काम आता है; + लकड़ीका आला जिससे किसान खेतके सस्थिर-वि० [सं०] अधिक स्थिर, खूब दृढ़ शांत । । मिट्टीके ढेले तोड़ते हैं। सुनात-वि० [सं०] जिसने यशोपरांत स्नान किया हो; सहागिनि, सहागिनी, सहागिल*-स्त्री०दे० सुहागिन'। अच्छी तरह स्नान किया हुआ।
सुहाता-वि० सहने लायक । सुस्पर्श-वि० [सं०] छूने में बहुत अच्छा मालूम होनेवाला, सहाना-अ० क्रि० शोभित होना, सुंदर लगना, फबना, मुलायम, कोमल ।
भाना, पसंद आना । वि० सुंदर, सुहावना । सुस्मित-वि० [सं०] मधुर हास्ययुक्त, मुस्कराता हुआ। सुहाया-वि० सुहावना । सुस्मिता-स्त्री० [सं०] हँसमुख स्त्री।
सुहारी-स्त्री० सादी पूरी। सस्वर-वि० [सं०] सुमधुर स्वरवाला; सुरीला; जोरका सहाल-पु० एक नमकीन पकवान जो मैदे में मोयन देकर (शब्द) । पु० मधुर शब्द; शंख, गरुड़का एक पुत्र । बनाया जाता है। सुस्वाद-वि० [सं०] अच्छे स्वादका, जायकेदार; मीठा। सुहाव*-वि० दे० 'सुहावना' । पु० सुंदर हाव । सुस्वादु-वि० [सं०] दे० 'सुस्वाद'। -तोय-वि० मीठे सुहावता-वि० सुहानेवाला। जलवाला।
सुहावन*-वि० दे० 'सुहावना'। सुहंग*-वि० दे० 'सुहँगा।
सुहावना-वि० सुंदर, मला लगनेवाला। सहंगम*-वि० सरल, सुगम ।
सुहावला*-वि० दे० 'सुहावना' । सुहँगा-वि० सस्ता, महँगाका उलटा ।
सुहास-पु० [सं०] सुंदर, मृदु हास । सुहटा*-वि० सुंदर, सुहावना ।
सुहासिनी-वि० स्त्री० [सं०] सुंदर हँसो हँसनेवाली, मधुर सुहनी*-स्त्री० दे० 'सोहनी' ।
मुस्कानयुक्त (स्त्री)। सुहबत-स्त्री० [अ०] संग, साथ; मित्रता; साथ उठना- सुहृत्-वि० [सं०] सुंदर, स्नेहयुक्त हृदयवाला । पु०मित्र; बैठना; जलसा, गोष्ठी, सहवास, मैथुन । मु०-उठाना- कुंडली में लग्नसे चौथा स्थान । -त्याग-पु. मित्रका किसीकी सुहबतमें रहकर कुछ सीखना; पास रहना। परित्याग। -प्राप्ति-स्त्री०मित्रकी प्राप्ति। , -बिगड़ना-अनबन हो जाना, मित्रता भंग हो जाना; सुहृत्ता-स्त्री० [सं०] मैत्री, दोस्ती । खराब सुहबत में पड़ जाना।
सुहृदय-वि० [सं०] सुंदर हृदयवाला; स्नेही । सहबती-वि० साथ उठने-बैठनेवाला; मैत्रीभाव रखनेवाला। सुहृद्-वि०, पु० [सं०] दे० 'सुहृत्' । -बल-पु० मित्रसहराब-पु० [फा०] रुस्तमका बेटा जो उसीके हाथों (राजा)की सेना। -भेद-पु.मित्रका पृथक होना। मारा गया।
सुहेल-पु० दे० 'सुहैल'। सुहल*-पु० दे० 'सुहेल'।
सुहेलरा*- वि० दे० 'सुहेला' । सुहा-पु. लाल नामकी चिड़िया ।
सुहेला-वि० सुहावना सुखद। पु०मंगलगीत*प्रियजन ।
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सुहैल-सूखा सुहैल-पु० [अ०] एक तारा जिसका उदित होना शुभा- सूक्षम-वि० दे० 'सूक्ष्म । वह समझा जाता है।
सूक्ष्म-वि० [सं०] बहुत बारीक; बहुत छोटा; अणुरूप V*-अ० दे० 'सों', से।
तहतक पहुँचनेवाली, बारीक बातोको देखने-समझने में सूइस-पु० दे० 'तूंस'।
समर्थ (दृष्टि, बुद्धि); रोमकूपसे प्रवेश करनेवाली (औषध); संघना-स० कि० नाकसे गंध ग्रहण करना, वास लेना। कठिनाईसे समझमें आने, ग्रहण करने योग्य; महत्त्वहीन, (ला०) बहुत कम खाना; (साँपका) सना।
तुच्छ । पु० अणुः परमात्मा शिव अध्यात्म; एक अर्थासुंघा-पु० मिट्टी सूंघकर जमीनके अंदरकी चीजें बतलाने- लंकार जहाँ दूसरेका किया हुआ कोई सूक्ष्म कृत्य देखकर वाला; सूंघकर शिकारकी टोह लगानेवाला भेदिया,जासूस। संकेतसे उसका उत्तर देना या समाधान कर देना दिखाया सूंड-स्त्री० हाथीकी स्तंभाकार नाक जो नीचे लटकती जाय । -कोण-पु० न्यून कोण । -तंडुल-पु० खसरहती है, शुंड।
खास, पोस्तेका दाना । -दर्शकयंत्र-पु. खुर्दबीन, सूडाल-पु० शुंडाल, हाथी।
अणुवीक्षण। -दर्शी(शिन् ),-दृष्टि-वि० अत्यंत सँडी-स्त्री० फसलोंमें लगनेवाला एक कीड़ा।
छोटी-छोटीबातें तक समझ लेनेवाला, बहुत बुद्धिमान् । सूंस-पु० चार-पाँच हाथ लंबा एक जल-जंतु जो नदीकी -देह-स्त्री० सूक्ष्म शरीर । -पत्रिका-स्त्री० सौंफ धारामें कभी-कभी कलैया लेता हुआ-सा देख पड़ता है। । शतावरी, लघुब्राझी छोटीपोय; दुरालभाआकाशमांसी। सूह-अ० सामने ।
-परीक्षण-पु० (स्क्रुटिनी) बारीकीसे जाँच करना; सूअर-पु. एक जानवर जिसके पालतू और जंगली दो ब्योरे आदिके संबंधमें अच्छी तरह छानबीन करना; भेद होते हैं, पालतू मैलाखोर और जंगली बहुत बलवान् । बेईमानी, पक्षपात आदिकी शंका होनेपर मतदानपत्रों, तथा हिंस्र होता है। -बियान-स्त्री० प्रति वर्ष बच्चा उत्तर-पुस्तकों आदिकी सावधानतापूर्वक फिरसे की जानेजननेवाली स्त्री; बहुत बच्चे जनना। -का बच्चा-हराम- वाली जाँच। -बदर-पु०,-बदरी-स्त्री० झड़बेरी। जादा (गाली)।
-बीज-पु. पोस्ता दाना । -बुद्धि,-मति-स्त्री० सुअरनी-स्त्री० शुकरी; (ला०) बहुत बच्चोंकी माँ । बारीक बातोंको समझ सकनेवाली, तहको पहुँचनेवाली सूआ-पु० बड़ी सूई; * तोता, शुक ।
बुद्धि । वि० ऐसी बुद्धिवाला, तीक्ष्ण-बुद्धि । -शरीरसई-स्त्री० लोहेका बारीक, नोकदार तार जिसके एक सिरे- पु० जीवका भोगशरीर, पंच प्राण, पंच ज्ञानेंद्रिय, पंच परके छेद में तागा डालकर कपड़ा सीते हैं, सूची; सूएके तन्मात्र और मन बुद्धि-इन १७ अवयवोंका समूह । आकारका छिद्ररहित काँटा जिससे बुनाई, जाली बनाने | -शर्करा-स्त्री० रेत, बालुका । आदिका काम करते हैं; तराजूका काँटा, घड़ी, कुतुबनुना सूक्ष्मा-स्त्री० [सं०] यूथिका, जूही; छोटी इलायची । आदिका काँटा; रगों में दवा प्रविष्ट करानेका नलीके ढंगका | सुख-वि० सूखा हुआ, शुष्क । नुकीला औजार; इस औजारसे दवा भीतर प्रविष्ट कराने- सूखना-अ० क्रि० जलहीन होना; तरी या गीलापनका की क्रिया (इनजेक्शन, अंतःक्षेपण); अनाज, कपास आदि न रह जाना; रसहीन होना; दुबला होना; डरना नष्ट का अँखुआ। -कारी-स्त्री० (नीडिल वर्क) दे० 'सूची- होना; कड़ा पड़ जाना। मु० सूखकर काँटा हो कार्य'। -डोरा-पु० मालखंभकी एक कसरत । -का। जाना-बहुत दुबला हो जाना। सूख जाना-सुन्न, काम-सूईसे बनाये हुए बेल-बूटे। -का नाका-सूईका स्तब्ध हो जाना (""सुनकर सूख गया) । छेद । मु०-का भाला (फावड़ा) बना देना-जरासी सूखा-वि० सूखा हुआ, खुश्क, रसहीन; निस्तेज, उदास; बातको बहुत तूल दे देना। -के नाकेसे ऊँट निका- स्नेहरहित; निरा; बेमुरौवत (सूखा आदमी); कोरा, दोलना-अनहोनी बात कर दिखाना। -पिरोना-सूईके टूक । पु० अवर्षण, अकाल ("पड़ना); बच्चोंका एक छेदमें तागा डालना। -सहयों नाज पिरोना-बहुत रोग जिसमें उनकी देह सूखती और हड्डियाँ, खासकर कंजूसी करना (स्त्रि०)।
रीढकी हड्डी नरम होती जाती है। नदी किनारेकी सूखी सूक-पु० [सं०] बाण, वायुः कमल; हृदका एक पुत्र; * जमीन खुश्क तंबाकू; भाँग। -जवाब-पु० सफा, दो.
दे० 'शुक'-'उआ सूक जस नखतन्ह माहाँ'-५० । ट्रक इनकार । -(खी)खुजली-स्त्री० वह खुजली जिसमें सूकना*-अ० क्रि० दे० 'सूखना।
दाने निकलकर पकते नहीं, केवल खुजली होती है। सूकर-पु० [सं०] सूअर, शूकर, एक तरहका हिरन । -तनख्वाह-स्त्री० जिसके साथ भोजन, भत्ता या ऊपरी -क्षेत्र-पु. एक पुराना तीर्थस्थान, सोरों। -खेत*- आमदनी न हो। -तरकारी-स्त्री० विना रसेकी तरपु० दे० 'सूकरक्षेत्र' । -गृह-पु० सूअरके रहनेका बाड़ा, कारी। -(खे)टुकड़े-पु० रोटीके सूखे टुकड़े, गरीबका खोभार।
भोजन । मु०-टालना-कोरा जवाब देना। -पड़नासूकरी-स्त्री० [सं०] मादा सूअर, सूअरी ।
पानी न बरसना, अकाल पड़ना। -लगना-सूखा रोग सूका-पु० रुपयेका चतुर्थांश, चवन्नी; सूखा, अवर्षण। होना, दुबला हो जाना । -(खी)सुनाना-साफ जवाब वि० सूखा ।
देना, दोटूक इनकार करना । -(खे)घाटौँ उतारनासूक्त-वि० [सं०] सुंदर रीतिसे कथित; सुंदर उक्तिविशिष्ट वंचित रखना। -टुकड़ोंपर कौए उड़ाना-छोटीसी (वाक्य) । पु० वेदका मंत्र या स्तोत्र सुंदर कथन । तनखाहपर जलील करना। -धानोंपर पानी पड़नासूक्ति-स्त्री० [सं०] सुंदर उक्ति चमत्कारपूर्ण वाक्य, पद्य ।। नैराश्यकी दशामें मनोकामना पूरी होना।
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सूघर-सूतका सूघर*-वि० दे० 'मुघड़।
दी गयी हो। -भेद्य-वि० दे० 'सूचिभेद्य' ।-मुख-पु. सूचक-वि० [सं०] सूचना करनेवाला, जतानेवाला, सूईकी नोक; एक नरक; सितकुश; हीरा पक्षी; मच्छर । शापक भेद बतानेवाला । पु० सीनेवाला, दरजी; सूई; | वि० सूई जैसी चोंच आदिवाला; सूई जैसा तीक्ष्ण । चुगलखोर भेदिया, शिक्षकवर्णन करनेवाला; नाटकका -वेधन-पु. ( इनजेक्शन) सूईकी सहायतासे दवाका सूत्रधार; कुत्ता कौआ दुष्ट व्यक्ति ।-वाक्य-पु० भेदिये प्रवेश कराना, अंतःक्षेपण (सूई देना,-लगाना)।-ब्यूहकी बतायी हुई बात।
पु० एक तरहकी व्यूहरचना । -सूत्र-पु० सीनेका तागा । सूचन-पु० [सं०] सूचित करना, जताना, शापन; छेदने सूच्छम-वि० दे० 'सूक्ष्म'। की क्रिया; भेद खोलना; संकेत करना, इशारेसे बतलाना; सूच्य-वि० [सं०] सूचना करने योग्य व्यंग्य (?)। वर्णन करना; जासूसी करना; दुष्टता; चोट पहुँचाना; सूच्यग्र-पु० [सं०] सूईकी नोक (ला०बहुत थोड़ा);काँटा। मार डालना।
सूच्याकार-वि० [सं०] सूईकेसे आकारका । सूचना-* अ० क्रि० प्रकट करना, व्यक्त करना । स्त्री० सुच्यार्थ-पु० [सं०] व्यंग्यार्थ । [सं०] बताने, जतानेकी क्रिया; कुछ बताने, जतानेके | सछम, सूछिम*-वि० दे० 'सूक्ष्म'। लिए कही, लिखी गयी बात, इत्तिला; संकेत; विज्ञापन । | सूज-* स्त्री० सूई; + सूजन । -पट्ट-पु० (नोटिसबोर्ड) वह तख्ता जिसपर लोगोंकी | सूजन-स्त्री० सूजनेका भाव या स्थिति, वरम, शोथ । जानकारीके लिए सूचनाएँ चिपका या टाँग दी जाती हैं। सूजना-अ० क्रि० किसी अंगका फूल आना, वरम या -पत्र-पु. वह पत्र या लेख जिसमें कोई सूचना हो, शोथ होना। मु०सूजा-फूला-मुँह फुलाये हुए, खफा। इत्तलानामा, इश्तिहार । -मंत्री(विन्)-पु० (इनफर- सूजनी-स्त्री० दे० 'सुजनी' । मेशन मिनिस्टर) जनहित-संबंधी सरकारी कार्योकी सूचना सूजा-पु. बड़ी सूई या इस तरहका कोई आला । जनतामें प्रसारित करने और जनताकी माँगों, शिकायतों, सजाक-पु० [फा०] एक रोग जिसमें पेशाबमें जलन और कष्टों.आदि-संबंधी विवरण सरकारतक पहुँचानेका काम पीड़ा होती है। करनेवाले विभागका नियंत्रण करनेवाला मंत्री। सूजी-स्त्री० गेहूँ का रवेदार आटा जो हलवा आदि बनानेके सूचनाधिकारी(रिन)-पु० [सं०] (इनफरमेशन ऑफिसर) | काम आता है। * सुई । * पु० दरजी, सूचिक।। राज्यका या किसी संस्थाका वह अधिकारी जो उसके कार्यों सूझ-स्त्री० सूझनेका भाव; निगाह, उपज, कल्पना; कोई या प्रगति आदि-संबंधी प्रामाणिक जानकारी लोगोंमें नयी या दूरकी बात सोचना । -बूझ-स्त्री० सोचनेप्रसारित या वितरित करता है।
समझनेकी शक्ति, बुद्धि । सूचनालय-पु० [सं०] (इनफरमेशन ब्यूरो) आवश्यक | सझना-अ० क्रि० दिखाई देना दिमाग या ध्यानमें आना; समाचार या जानकारीप्रसारित करने, प्रदान करनेवाला * छुट्टी पाना। कार्यालय ।
सूट-पु० [अं०] पूरा (अंग्रेजी) पहनावा, कोट-पतलून सूचनीय-वि० [सं०] सूचना करने, बताने, जताने योग्य। आदि। -केस-पु० पहनने के कपड़े रखनेका बक्स । सूचा*-वि० शुद्ध, साफ; संज्ञायुक्त, होश-हवासमें । सूत-पु० रुई, रेशम आदिका बारीक तार, कच्चा धागा, सूचि-स्त्री० [सं०] सूई या छेद करनेका कोई आला; सूत्र; धागा, डोरा; लकड़ी या पत्थरपर निशान डालनेकी किसी नोकदार चीजकी नोक; दर्भाकुर, सिटकनी; कट- डोरी; इस तरह डाला हुआ निशान; एक नाप, तसूका घरा; सेनाका एक व्यूह; ग्रंथके विषयोंकी तालिका। १६ वाँ भाग; मोटाईकी एक नाप, इंचका ८ वाँ भाग -पत्र-पु० दे० 'सूचीपत्र' । -भेद्य-वि० सूईसे भेदन (४ सूतका छड़ =१२ इंच मोटा छड़); लहसुनियापरकरने योग्य; बहुत धना (जैसे अंधकार)।
की रेखा; * करधनी; बच्चोंके गलेका गंडा; * बहुत थोड़ेमें सूचिक-पु० [सं०] सिलाई करनेवाला, दरजी।
कहा हुआ बहुलार्थक वाक्य, सूत्र । * वि० अच्छा, भला। सूचिका-स्त्री० [सं०] सूई; हाथीकी सूंड़ । -धर-पु० -धार-पु० बढ़ई। -लड़-पु० रहँट । मु०-धरना,हाथी।-मुख-वि० नुकीले मुहँवाला । पु० शंख । बाँधना-लकड़ी आदिपर निशान डालना। सूचित-वि० [सं०] बताया, जताया हुआ, शापित; कहा सूत-पु० [सं०] रथ हाँक्नेवाला; रथ हाँकनेका काम करने हुआ; इशारेसे बताया हुआ; छेद किया हुआ ।
वाली एक वर्णसंकर जाति; बंदी, भार; पुराणकी कथा सूचितव्य-वि० [सं०] दे० 'सूच्य' ।
कहनेवाला; व्यासके शिष्य लोमहर्पण मुनि; सूर्य; बढ़ई; सूची-स्त्री० [सं०] दे० 'सूचि'; मात्रिक छंदोंकी शुद्धता, पारा । वि० उत्पन्न, प्रसूत; प्रेरित । -कर्म(न्)-पु० संख्या आदि जाँचनेकी एक रीति । -कटाह-न्याय-पु. । रथ चलानेका काम । -ज-पु० सारथिका पुत्र कर्ण । एक न्याय जिसका प्रयोग सरल और कठिन दो प्रकारके -तनय-पु० कर्ण । -नंदन-पु. उग्रश्रवा । -पुत्रकामोंमेंसे पहले सरल काम करनेके संबंध किया जाता पु० सारथिका पुत्र सारथि; कर्ण; कीचक । -पुत्रकहै।-कर्म(न)-पु० सीनेका काम, सिलाई । -कार्य,- | पु० कर्ण। शिल्प-पु० (नीडिल वर्क) कपड़े आदिपर सूई और डोरेसे सूतक-पु० [सं०] जन्म; जन्मका अशौच, जननाशीच बेल-बूटे या कोई आकृति आदि बनानेका काम, सूईकारी। | अशीचा पारा; बाधा।-गेह-पु. प्रसूति गृह । भोजन-पत्र-पु० बह पत्र या पुस्तक जिसमें पुस्तकों या और पु० जन्म-संबंधी भोज । किसी चीजकी नामावली विषय, दाम आदि बताते हुए सुतका-स्त्री० [सं०] दे० 'सूतिका' ।
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सूतकाशौच-सून सूतकाशौच-पु० [सं०] संतान-जन्मके कारण लगनेवाला सूत्रण-पु० [सं०] सूत्ररूपमें रचना; सूत्ररूपमें नत्थी करना; अशौच ।
सिलसिलेसे सजाना। . सूतता-स्त्री० [सं०] सूत, सारथिका काम ।
सूत्रिका-स्त्री० [सं०] सेंवई; हार, माला । सूतना-अ० क्रि० दे० 'सोना'।
सूत्रित-वि० [सं०] नत्थी किया हुआ; सिलसिलेसे लगाया सूतरी*-स्त्री० दे० 'सुतली'।
हुआ; सूत्ररूपमें कथित । सूति-स्त्री० [सं०] जनन, प्रसव; संतान; सिलाई; सोम- सूत्री(त्रिन्)-वि० [सं०] सूत्र-विशिष्ट । पु० कौआ निष्पीडन सोमरस निकालनेका स्थान; उद्गम; फसलकी (नाटकका) सूत्रधार । पैदावार । -काल-पु० प्रसवकाल ।-गृह-पु० सूतिका- सूत्रीय-वि० [सं०] सूत्र-संबंधी । गृह, जच्चाखाना। -मारुत,-वात-पु० प्रसववेदना। सूथन-पु० दे० 'सुथना' । -रोग-पु० दे० 'भूतिकारोग'।
सुथनी-स्त्री० स्त्रियोंके पहननेका पाजामा । सूतिका-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसने तुरत या हालमें ही सूद-पु० [सं०] हनन, वध; व्यंजन; रसोइया ।-शालाबच्चा जना हो, नवप्रसूता, जच्चा; सद्यःप्रसूता गौ ।-गृह- पु० रसोईघर । -शास्त्र-पु० पाकविद्या। गेह,-भवन-पु० जच्चाखाना, सौरी-मारुत-पु०दे० सूद-पु० [फा०] लाभ, नफा; ब्याज । -खोर,-स्वार'सूतिमारुत' । -रोग-पु० प्रसूताको आहार-विहारके पु० सूद लेनेवाला, ब्याजसे जीविका चलानेवाला। दोषसे होनेवाला रोग।
-खोरी-स्त्री० सूद लेना, ब्याज-बट्टेका रोजगार । सूतिकागार, सूतिकावास-पु० [सं०] जच्चाखाना ।
-दरसूद-पु. वह ब्याज जो मूल और ब्याज दोनोंको सूती-* स्त्री० सीपी; [सं०] सूतकी पत्नी। वि० सूतका, जोड़कर लगाया जाय, चक्रवृद्धि ब्याज । सूतका बना हुआ। -कपड़ा-पु० सूतका बना हुआ | सदक-वि० [सं०] मारने, नष्ट करनेवाला। कपड़ा।
सूदन-पु० [सं०] हनन, वध; फेंकना; अंगीकार करना; सूतीगृह-पु० [सं०] दे० 'सूतिगृह' ।
हिंदीके एक प्रसिद्ध कवि, ('सुजान-चरित्र' के रचयिता)। सूतीघर-पु० सूतिकागार।
वि० हनन, नाश करनेवाला (रिपुसूदन, मधुसूदन)। सूकार-पु० [सं०] सिसकारी, सीत्कार ।
सूदना*-स० क्रि० हनन करना, नष्ट करना। सूत्र-पु० [सं०] सूत, तंतु; तागा धागोंकी राशि; यज्ञसूत्र, | सदी-वि० (रकम) जिसपर ब्याज मिलता हो। मु०जनेऊ कठपुतली नचानेकी डोरी, रेशा व्यवस्था, नियम; चलाना-सूदपर रुपया देना । योजना छोटा, अर्थगर्भ वाक्य जिसमें दर्शनादि शास्त्रोंकी सूद्रा-पु० दे० 'शूद्र'।। रचना हुई है। ऐसे वावयों में रचित मूल ग्रंथ (कल्पसूत्र, सध-वि० दे० 'सूधा'; शुद्ध । स्त्री० सीध । * अ०सीधा। गृह्यसूत्र इ०); करधनी; कारण, निमित्त; (हिं०) जरीया, सधना-अ० क्रि० सत्य होना; सफल होना। किसी सूचना-समाचारके मिलनेका स्थान (विश्वसनीय
| सूधरा*--वि० दे० 'सूधा'। सूत्रसे)। -कंठ-पु० ब्राह्मण, कबूतर; पेंडुकी; खंजन । सधा*-वि० निष्कपट, भोला-भाला, सीधा; जो वक्र न -करण-सूत्रवाक्यका निर्माण । -कर्ता(त)-पु० सूत्र-| होः जो उलटा न हो। ग्रंथका रचयिता। -कर्म(न)-पु० बढ़ई, मेमारका सूधे*-अ०सीधेसे। -सूध-अ० सीधा, दोटूक । काम जुलाहेका काम। -कार-पु० सूत्र रचनेवाला; | सन*-वि० दे० 'शून्य'; दे० 'सूना'; रहित । -सानबढ़ई; सूत कातनेवाला; जुलाहा। -कृत्-पु० दे० वि० दे० 'सुनसान'। 'सूत्रकार'। -क्रीडा-स्त्री० सूतका एक खेल जिसकी सुन-वि० [सं०] जनमा हुआ, जात; खिला हुआ; रिक्त, गणना ६४ कलाओंमें है । -जाल-पु० सूतका खाली। पु० प्रसव कली; फूल, फल; पुत्र। -शर-पु० बना हुआ जाल। -दरिद्र-वि० जिसकी बुनावटमें कामदेव । कम सूत लगाया गया हो, झीना। -धर-वि० सूत्र सूना-वि० खाली, शून्य, जनहीन । पु० एकांत स्थान । धारण करनेवाला। पु० सूत्रज्ञ व्यक्ति दे० 'सूत्रधार'।
-पन-पु० सूना लगना, शून्यता। मु०-लगना-धार-पु. नास्यशालाका व्यवस्थापक या प्रधान नरः उचाट, उदास लगना । इंद्रा बढ़ई । -पदी-वि० स्त्री० सूत जैसे पतले पैरवाली।। सूना-स्त्री० [सं०] कन्या, पुत्री; पशुओं आदिका वध-पात-पु० कार्यका आरंभ; मापवाले सूतसे मापनका स्थान; मांसविक्रय; चोट पहुँचाना; वध करना; गलेका कार्य । -बद्ध-वि० सूत्ररूपमें लिखित, रचित । -भृत्- कौवा गलग्रंथियोंका शोथ; गलसुआ; हाथीकी सूंड़ घरपु० नाटकका सूत्रधार । -यंत्र-पु० सूतका बना जाल; की उन पाँच वस्तुओं (चूल्हा, चक्की, ओखली, घड़ा और करघा ढरकी। -वाप-पु० बुननेका कार्य । -विद- झाडू) मेंसे कोई जिनसे जीवहिंसाकी संभावना हो; वि० सूत्रश।-वीणा-स्त्री०वीणाका एक भेद जिसमें तार- तत्काल होनेवाली मृत्यु । -दोष-पु० घरकी उक्त पाँच की जगह सूत लगे होते थे, लाबुकी। -वेष्टन-पु० वस्तओंसे होनेवाली हिंसाका दोष । बुननेकी क्रिया; ढरकी। -शाला-स्त्री० सूत कातने, सूनिक, सूनी(निन्)-पु० [सं०] ब्याध; मांस बेचनेएकत्र करनेका कारखाना (को०)। -संचालक-पु० |
वाला। (वायर पुलर) वह राजनीतिज्ञ जो गुप्त रूपसे घटनाओंका | सन-पु० [सं०] बेटा बच्चा; नाती; छोटा भाई; सूर्य । सूत्रसंचालन करता हो, दुरभि-संधिक ।
सूनू-स्त्री० [सं०] बेटी ।
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सूनृत-सूर्य
८७०
शूरण, I
रत-पु.
शूर्प-
ह न थी।
जीझर
सूनृत-वि० [सं०] सत्य और प्रियः प्रिय सद्भावपूर्ण । सिखाना; अति प्रसिद्ध पुरुषका परिचय देना। -पर सूप-पु० [अ०] पकी हुई दाल; रसा, जूस, मसाला थूकना,-पर धूल फेकना-नितांत निर्दोष जनपर बरतन; रसोइया; बाण । -कर्ता(१),-कार-कृत्- लांछन लगाकर खुद लांछित होना । पु० रसोइया, पाचक । -कारी*-पु० दे० 'सूपकार'। सूरण-पु० [सं०] शूरण, जमीकंद । -धूपक-धूपन-पु० हींग। -शास्त्र-पु० पाकशास्त्र। सूरत-पु० भारतका एक प्रसिद्ध नगर । * स्त्री० स्मरण, सूप-पु० अनाज फटकनेका छाज । -नखा-स्त्री० शूर्प- याद; सुध; [अ०] कुरानका एक अध्याय, रूप, शकल; णखा नामकी राक्षसी जो रावणकी बहन थी।-झरना- चित्र; सुंदरता, भेस; हालत, स्थिति; उपाय, ढब, ढंग, पु० एक तरहका सूप जो झरनेका भी काम देता है । तौर, लक्षण, रंग-ढंग; वस्तुका बाह्य रूप, ऊपरी हालत । सूपक-पु० रसोइया ।
-आशना-वि० शकल पहचाननेवाला, मामूली जानसूपच*-पु० दे० 'श्वपच'।
पहचानवाला । -आशनाई-स्त्री० जान-पहचान, अल्पसूपा-पु० [सं०] सूप, छाज ।
परिचय । वि० रूपकी पूजा करनेवाला; केवल रूप देखने सूपिक-पु० [सं०] सूपकार, रसोइया ।
वाला, जाहिर-परस्त । -शकल,-शक्ल-स्त्री० रूप । सून-पु० [अ०] ऊन; दवातमें डाला जानेवाला कपड़ा, -हराम-वि. जो ऊपरसे अच्छा और भीतरसे बुरा घावमें भरा जानेवाला कपड़ा।
हो, जिसकी सूरतसे धोखा हो। -(ते)हाल-स्त्री० सूफिया-पु० [अ०] मुसलमान साधुओंका एक संप्रदाय । स्थिति, वर्तमान अवस्था ।मु०-दिखाना-शकल दिखाना, सूफियाना-वि० [अ०] सूफियों जैसा, सादा।
सामने आना ।-नज़र आना-उपाय सूझना ।-निकल सूनी-वि० [फा०] ऊनी कपड़े पहननेवाला; संत, पवित्र ।। आना-अधिक सुंदर हो जाना; उपाय सूझ जाना। पु० संसारकी आसक्तिसे मुक्त होकर ईश्वरप्राप्तिकी साधना -पर झाड़ फेरना-अतिशय घृणाके कारण शक्ल न करनेवाला; सूफिया संप्रदायका अनुयायी। -खयाल- देखना, नाम न लेना (स्त्रि०)। -बदलना-भेस बदवि० सूफियोंकेसे विचार रखनेवाला ।
लना; हालत बदलना । -बनाना-शकल बनाना चेहरेसूबा-पु० [अ०] राज्यका विभाग जिसमें कई जिले से कोई भाव प्रकट करना; चित्र बनाना मुँह चिढ़ाना; शामिल हों, प्रदेश, प्रांत; सूबेदार । -(ब)दार-पु० रूपरेखा बनाना। -बिगड़ना-शकल बुरी हो जाना; सूबेका शासक, गवर्नर; फौजका एक छोटा अफसर । अवस्था बिगड़ना । -बिगाड़ना-शकल खराब कर देना; -दारी-स्त्री० सूबेदारका पद या कार्य।
चेहरेसे दोष, अप्रसन्नता प्रकट करना। -से बेज़ार सूभर*-वि० दे० 'शुभ्र' ।
होना-अतिशय घृणा या रोष होना, देखना भी सह्य सूम-वि० कंजूस, कृपण ।
न होना। सूमड़ा-वि० सूम।
सूरता, सूरताई*-स्त्री० वीरता । सूमी -पु. एक पेड़ जिसकी लकड़ीसे मेज, कुर्सी आदि सूरति*-स्त्री० शकल, रूप; याद, स्मरण । बनाते हैं।
सूरन-पु. एक कंद शाक, शूरण, जमीकंद । सूर-वि० अंधा। पु० सूरदास । -दास-पु० ब्रजभाषा | सूरपनखा*-स्त्री० दे० 'शूर्पणखा'। और कृष्णकान्यके सर्वश्रेष्ठ कवि ।
सूरमा-पु० बहादुर, योद्धा, शूरवीर । -पन-पु० वीरता। सूर*-वि० दे० 'शूर; शूल'; पु० शूकर, भूरे रंगका सूरवा*-पु० दे० 'सूरमा' । घोड़ा। -कुमार-पु० वसुदेव । -ज-पु० शूरवीरका | सूरा-पु० * अंधा मनुष्य । लड़का । -बीर-पु० दे० 'शूरवीर'। -सावंत-पु० सूराख-पु० [फा०] छेद । -दार-वि०जिसमें छेद हो। वीर सरदार; युद्धसचिव । -सेन-पु० दे० 'शूरसेन' । सरि-पु० [सं०] सूर्य पंडिता ऋत्विक पूजा करनेवाला; -सेन पुर-पु० मथुरा नगरी।
कृष्ण, जैनाचार्योंकी उपाधि ('मल्लिनाथ सूरि')। सर-पु० [सं०] सूर्य; आक; विद्वान व्यक्ति, आचार्य । सरी-स्त्री० [सं०] सूर्यपत्नी कुंती राई पंडिता; * शूली; -कंद-पु० सूरन, ओल । -कांत-पु० सूर्यकांत मणि । बरछा । वि० [फा०] सूर जातिका । पु० भारतका एक -ज-पु० शनि, सुग्रीव यमकर्ण; दे० क्रममें । -जा- मुसलिम राजवंश जो शेरशाहसे चला और जिसने स्त्री० यमुना । -पुत्र-पु० सुग्रीवः शनि कर्ण । -मुखी- १५३० से १५५६ ई० तक राज्य किया। (खिन्)-पु० दे० 'सूर्यमुखी'। -मुखीमनि-पु० सूरुज*-पु० दे० 'सूर्य' ।। सूर्यकांत मणि । -सुत-पु० दे० 'सूरज'। -सुता- सूरुवा-पु० दे० 'सूरमा'। स्त्री० यमुना । -सूत-पु० सूर्यका सारथि, अरुण । सूर्प-पु० [सं०] 'शूर्प' । -नखा-स्त्री० [हिं०] दे० सूर-पु० [अ०] तुरही, नरसिंघा।
'शूर्पणखा। सूरज-पु० सूर्य; एक तरहका गोदना; सूरदास, दे० 'सूर' | सूर्य-पु० [सं०] सौर-मंडलका प्रधान पिंड या तारा में । -तनी*-स्त्री० सूर्यतनया, यमुना। -बंसी-पु० जिसकी पृथ्वी और मंडलके दूसरे ग्रह प्रदक्षिणा किया दे० 'सूर्यवंशी'। -भगत-पु० एक तरहकी गिलहरी। करते हैं और जो पृथ्वीको प्रकाश तथा उष्णता मिलनेका -मुखी-पु० दे० 'सूर्यमुखी' । -सुत-पु० सुग्रीव ।। स्रोत और उसके ऋतुक्रमका कारण है, आदित्य, रवि, -सुता-स्त्री० यमुना । मु०-को चिराग (दीपक) भानु: आक; १२ की संख्या। -कमल-पु० सूरजमुखीदिखाना-अति गुणवान् या बुद्धिमान्को कुछ बताना- का फूल। -कर-पु० सूर्यकिरण । -कांत-पु० एक
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८७१
सूर्याशु-संगर तरहका स्फटिक जिससे सूर्य के सामने करनेसे आँच निक- स० क्रि० भालेसे छेदना; दुःख देना । लती है, आतशी शीशा; स्फटिक; एक पुष्प (आदित्य- सूली-स्त्री० नुकीला लोहेका छड़ इलाकर प्राणदंड देनेका पणी)। -कांति-स्त्री० सूर्यकी दीप्ति, चमक । -ग्रहण- एक प्रकार । * पु०३० 'शूली' । पु. चंद्रमाकी छाया पड़नेसे सूर्य बिंबका छिप जाना | सूचना*-अ० क्रि० बहना, सवना । पु० सुग्गा, तोता। (पौराणिक मतसे राहु या केतु द्वारा सूर्यका ग्रास)। सूवरी-पु० दे० 'सूअर'। -ज-पु० दे० 'सूर्य-तनय'। -जा-स्त्री० दे० 'सूर्य- सूवा-पु० सुग्गा। तनया' । -तनय-पु० शनि; यमसावणि मनु; रेवंत; सूस-पु. एक जलजंतु, शिशुमार। स्त्री० [अ०] मुलेठी; सुग्रीवः कर्ण। -तनया-स्त्री० यमुना। -तेज(स)- [फा०] एक जंतु, गोह । पु० सूर्यका तेज, धूप । -नंदन-पु० दे० 'सूर्य-तनय'। सूसमार-पु० सैंस । स्त्री० [फा०] गोह । -नगर-पु० कश्मीरका एक प्राचीन नगर, कश्मीरकी | सूसि* -पु० दे० 'सूस' । राजधानी। -नारायण-पु० सूर्य भगवान् । -पक्क- सूहा-पु० एक तरहका गहरा लाल रंग; एक संकर राग। वि० सूर्यतापसे पका हुआ, स्वयं पक्क ! -पत्नी-स्त्री० वि० लाल । -कान्हड़ा-पु० एक संकर राग ।-टोड़ीसंज्ञा; छाया। -पर्व(न्)-पु० सूर्यके नयी राशिमें | स्त्री० एक रागिनी। -बिलावल-पु० एक संकर राग । प्रवेश या सूर्यग्रहण आदिका पुण्यकाल । -पुत्र-पु० -श्याम-पु० एक संकर राग । - वरुण शनि; यम; अश्विनीकुमार; सुग्रीवः कर्ण -पुत्री- सूही-वि० स्त्री० दे० 'सूहा' । स्त्री० लालिमा। स्त्री० यमुना बिजली। -पुर-पु० दे० 'सूर्यनगर'। सुंखला*-स्त्री० दे० 'शृंखला'। -प्रभ-वि० सूर्यके समान प्रकाशित, प्रभायुक्त ।-बिंब- सुंग*-पु० शृंग, चोटी, सिरा, कगूरा; सींग; शृंगबाजा। पु० सूर्यका मंडल । -मंडल-पु० सूर्यका घेरा; एक | -बेर-पु. अदरका सोंठ । -बेर पुर*-पु० दे० ' गंधर्व । -मणि-पु० सूर्यकांत मणि; एक फूल ।-मुखी
'शृंगवेरपुर'। (खिन)-पु० पीले रंगका एक बड़ा फूल जो सूर्यकी संगी*-पु० दे० 'शृगी'। गतिके साथ ऊपर उठता और नीचे झुकता है। -यंत्र- सूकंड-स्त्री० [सं०] कंडू रोग, खुजलीकी बीमारी। पु० सूर्योपासनामें व्यवहृत सूर्यका चित्र या प्रतिमा सूर्यके सक-पु० [सं०] वायु, हवा कमल, बाण,त वेधमें काम आनेवाला एक यंत्र। -रश्मि-स्त्री० सूर्यकी * स्त्री० माला। किरण; सविता। -लोक-पु० सूर्यका लोक, सौरभुवन । | सकाल*-पु० दे० 'शृगाल'। -वंश-पु० भारतवर्षके दो प्रमुखतम राजवंशोंमेंसे एक सृग-पु० [सं०] भिदिपाल, एक प्रकारका बरछा; भाला; जिसकी उत्पत्ति वैवस्वत मनुके पुत्र इक्ष्वाकुसे मानी जाती बाण । * स्त्री० माला। है, इक्ष्वाकुवंश। -वंशी(शिन)-वि० सूर्यवंशका। सृगाल-पु० [सं०] गीदड़, दुष्ट, धूर्त, बुरे स्वभावका या पु० सूर्यवंशमें उत्पन्न पुरुष । -संक्रम,-संक्रमण-पु०, कटुभाषी मनुष्य कायर आदमी । -संक्रांति-स्त्री० सूर्यका दूसरी राशिमें प्रवेश ।। सृगालिनी, सृगाली-स्त्री० [सं०] गीदड़ी; लोमड़ी। -सिद्धांत-पु० भास्कराचार्य रचित गणित ज्योतिषका | सृग्विनी*-स्त्री० दे० 'स्रग्विणी'। एक प्रसिद्ध ग्रंथ । -सुत-पु० शनि सुग्रीवा कर्ण, यम। सृजक*-पु० स्रष्टा, रचनेवाला । सूर्यांशु-पु० [सं०] सूर्यको किरण ।
सुजन*-पु० दे० 'सर्जन'।-शीलता-स्त्री० रचनाशक्ति । सूर्या-स्त्री० [सं०] सूर्यकी पत्नी संज्ञा; इंद्रवारुणी; नव- -हार-पु० स्रष्टा, सृष्टिकर्ता । विवाहिता स्त्री।
सृजना*-स० क्रि० रचना करना, बनाना, उत्पन्न करना। सूर्याणी-स्त्री० [सं०] सूर्यपत्नी, छाया ।
सृज्य-वि० [सं०] छोड़ने योग्य; उत्पन्न करने योग्य । सूर्यातप-पु० [सं०] धूप ।
सृत-वि० [सं०] गत; विचलित; खिसका हुआ। सूर्यात्मज-पु० [सं०] शनि कर्ण; सुग्रीव यम । |:सृष्ट-वि० [सं०] निर्मित, बनाया हुआ; युक्तत्यक्त,
पु० [सं०] हुरहुरका पौधा; सुवर्चला; गज, त्यागा हुआ, फ्रेंका हुआ; सजित, विभूषित संपन्न, 'से पिप्पली; अर्द्धकपाली, आधासीसी; समाधिका एक प्रकार । युक्त तुला हुआ; प्रचुर; निश्चित । सूर्यास्त-पु० [सं०] सूरजका डूबना सूरजके डूबनेका | सृष्टि-स्त्री० [सं०] परित्याग; निर्माण, निर्मिति; जगत् , समय, संध्या।
संसार; प्रकृति; संसारकी उत्पत्ति, संसारके बनानेकी सूर्योदय-पु० [सं०] सूरजका उगना; सूरजके उगनेका | क्रियाः समुह । -कर्ता(6)-पु० ब्रह्मा। -कृत्-पु० समय, सबेरा । -गिरि-पु० उदयाचल ।
सृष्टि करनेवाला; ईश्वर; ब्रह्मा। -विज्ञान,-शास्त्रसूर्योपासक-पु० [सं०] सूर्यको उपासना करनेवाला, पु० सृष्टिकी रचना आदिकी, मीमांसा करनेवाला शास्त्र सूर्यपूजक ।
दे० 'विश्वोत्पत्ति विज्ञान' (कॉस्मोजेनी)। सूर्योपासना-स्त्री० [सं०] सूर्यदेवकी पूजा, आराधना । सृष्टयंतर-पु० [सं०] अंतर्जातीय विवाहसे उत्पन्न संतान । सूल*-पु० दे० 'शूल', मालाका फुलरा। -धर-पु० सैंक-स्त्री० सेंकनेकी क्रिया । दे० 'शूलधर'। -धारी-पु० दे० 'शूलधारी'।-पानि- सेकना-सक्रि० आगपर पकाना; गरम करना।मु०पु० दे० 'शूलपाणि'।
आँखें सेंकना-सुंदर छवि देखकर नेत्रोंकी तृप्ति करना । सूलना*-अ० क्रि० दुखना, चुभना, व्यथित होन
पु. एक पौधा; बबूलकी छीमी; एक धान; राज५५-क
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सुरंग।
सेंट-सेन पूतोंका एक भेद।
दे० 'शैख'। सेंट-* स्त्री० दूधकी धार। पु० [अं॰] सुगंधिपूर्ण द्रव्य। | सेखर*-पु० दे० 'शेखर'। सत-स्त्री० किसी वस्तुकी प्राप्तिमें कुछ रुपया-पैसा न | सेखावत-पु. राजपूतोंकी एक उपशाखा । लगना । -में त-अ० मुफ्तमें, बिना दाम दिये नाहक । | सेखी-स्त्री० दे० 'शेखी' । -का-वह जिसके लिए कुछ देना न पड़ा हो। -में- सेगा-पु० दे० 'सीगा' (विभाग)। मुफ्त में।
सेच-पु० [सं०] सिंचाई, छिड़काव । सतना-स० क्रि० सँभालकर रखना; बटोरना; समेटना।। सेचक-पु० [सं०] बादल । वि० सींचनेवाला। सति से ती*-स्त्री० दे० 'सेंत' । प्र० करण और अपा-सेचन-पु० [सं०] सिंचाई छिड़काव, अभिषेक, स्राव दानकी विभक्ति।
नहानेका फुहारा; ढलाई (लोहे आदिकी); बालटी; पानी संथी*-स्त्री० शक्ति, बरछी।
उलीचनेका पात्र । -घट-पु० सींचनेका बरतन । सेंदुर*-पु० दे० 'सिंदूर'।
सेचनक-पु० [सं०] नहानेका फुहारा अभिषेक । संदुरा-वि० दे० 'सेंदुरिया'।
सेचनी-स्त्री० [सं०] डोल, बालटी । संदुरिया-पु. लाल फूलोंवाला एक पौधा । वि० सिंदूर- | सेचनीय-वि० [सं०] सींचने, छिड़काव करने योग्य । के रंगका । -आम-पु. एक आम जो पकनेपर कुछ सेचित-वि० [सं०] सींचा, तर किया हुआ। लाल होता है।
सेच्य-वि० [सं०] दे० 'सेचनीय' । से दुरी-वि० दे० 'सेंदुरिया'। स्त्री० लाल रंगकी गाय । सेज-स्त्री० शय्या, बिस्तरा । -पाल-पु० राजाके शयनासेंद्रिय-वि० [सं०] इंद्रिययुक्त, सजीव; पुंस्त्वयुक्त । । गारका पहरेदार। सँध-स्त्री० वह छेद जो चोर दीवार तोड़कर बनाते हैं, सेजरिया*-स्त्री० दे० 'सेज' ।
सेजिया-स्त्री० दे० 'सेज'। से धना -स० क्रि० सेंध लगाना ।
सेज्या*-स्त्री० दे० 'सेज'। से धा-पु० सिंधु नदीके पाससे निकलनेवाला एक खनिज | सेझदारि*-पु० सह्याद्रि श्रेणी । नमक।
सेझना*-अ० क्रि० पृथक होना, अलग होना। से धिया-वि० सेंध लगानेवाला । पु० एक मराठाराजवंश। सेटना-सक्रि० मानना, समझना कुछ महत्त्व समझना। से धुआरी-पु० एक मांसाहारी जंतु ।
सेठ-पु. महाजन, बड़ा साहकार, व्यापारी; धनी आदमी से मल*-पु० शाल्मलि, सेमल।
सुनार । [स्त्री. 'सेठानी'] । सेंवई-स्त्री० मैदेसे बनाये हुए सूतकेसे लच्छे । मु०- सेढ़ा-* पु० नाकका मैल-..."आँखि में गीडर नाकमें सेढ़ो'
पूरना,-बटना-हथेलियोंसे बटकर सेंवई बनाना। | -सुंदर। से वर*-पु० दे० 'सेमल' ।
सेत*-वि० श्वेत, सफेद । -दुति-पु० चंद्रमा। से हुआ-पु. एक तरहका चर्मरोग जिसमें चमड़ेपर सफेद- | सेत*-पु० सेतु, पुल । -बंध-पु० दे० 'सेतुबंध' । सा धब्बा हो जाता है।
सेती*-प्र० से। से हुड़-पु० स्नुही, थूहर ।
सेतु-पु० [सं०] मेंड, बाँध; पुल; बंधन; पहाइपरका तंग से-प्र० करण कारक और अपादान कारकका चिह्न । वि० रास्ता; मर्यादा, सीमा; रोक; निश्चित नियम प्रणव, 'सा' का बहुवचन, समान, तुल्य । सर्व० 'सो' या 'जे' ओम् कारिका, टीका। * वि० श्वेत । -कर--पु० पुल का अवधी बहुवचन रूप, वे।
आदिका निर्माण करनेवाला। -कर्म (न)-पु० पुल सेई।-स्त्री० काठका एक बरतन जिससे अनाज नापते हैं। आदिके निर्माणका काम । -पथ-पु० पहाड़ी, दुर्गम सेउ*-पु० सेब नामका फल ।
स्थानों में जानेवाला मार्ग। -चंध-पु० बाँध, पुल सेकंड-पु० [अं॰] कालका एक बहुत छोटा परिमाण, | आदिका निर्माण, रामके लंका जानेके लिए समुद्रपर मिनिटका साठवाँ हिस्सा । वि० दूसरा ।
नल-नीलका बनाया हुआ पुल; पुल; नहर (को०)। सेक-पु० [सं०] सींचनेकी क्रिया; छिड़काव; आर्द्र करना -बंधन-पु० पुलका निर्माण; बाँध; पुल; सीमापरकी अभिषेक तर्पण; स्राव नहानेके काम आनेवाला फुहारा। मेंड़ आदि । -भेत्ता (त्त)-पु० बाँध, पुल आदि तोड़ने-पात्र-भाजन-पु० पानी सींचनेका बरतन, डोल। वाला ।-भेद-पु० बाँध, पुल आदिका टूटना ।-शैलसेक्तव्य-वि० [सं०] सींचने योग्य।
पु० सीमाका काम देनेवाला पर्वत । सेता(क्त)-वि० [सं०] सींचनेवाला । पु. वह जो सेतुक-पु० [सं०] बाँध; पुल; वरुण वृक्ष । * अ० सामने, सींचनेका काम करे, पानी लानेवाला; पति ।
सम्मुख । सेक्रेटरी-पु०[अं॰] किसी संस्था, संघटनके कार्य संचालनके | सेतुवा*-पु० सत्तू । लिए उत्तरदायी व्यक्ति (जैसे सोशलिस्ट पार्टीका सेक्रेट्ररी), | सेथिया-पु. नेत्रचिकित्सक । मंत्री किसीके निजी कार्य, पत्रव्यवहार, व्यवस्था में सहा- सेद-पु० दे० 'स्वेद' ।-ज-पु० स्वेदजन्य कीट । यता करनेवाला; शासन व्यवस्थाके किसी विभागका उच्च सेदरा-पु० तीन द्वारोंवाला दालान । अधिकारी, सचिव ।
सेन-पु० शरीर, वैद्यजातीय बंगालियोंकी उपाधि; दिगंबर सेख*-पु० शेषनागा बचा हुआ अंश; अंत, समाप्तिः जैन साधुओंका एक भेद: * श्येन, बाज पक्षी। सी.
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८७३
* सेना । - कुल, वंश - पु० बंगालका एक राजवंश । - जित - वि० सेनाको विजित करनेवाला । प, पति*पु० सेनानायक | सेनक - पु० [सं०] शंबरका एक पुत्र; एक वैयाकरण । सेनांग - पु० [सं०] सेनाका कोई अंग - पैदल, हाथी, घोड़ा और रथ; सेनाका कोई भाग, टुकड़ी। पति-पु० टुकड़ीका नायक |
सेना - स्त्री० [सं०] रणशिक्षा प्राप्त और सशस्त्र व्यक्तियोंका दल, वाहिनी, फौज; शक्ति, भाला; इंद्राणी । -कक्ष-पु० सेनाका पार्श्व । - कर्म (न्) - पु० सेनाका प्रबंध या नेतृत्व । -चर- पु० सैनिक, सिपाही । - दार- पु० [हिं०] सेनानायक, चलानेवाला, सैनिक । -नायक- पु० सेना पति । - नी-पु० सेना नायक, कार्तिकेय; एक रुद्र । -पति- पु० सिपहसालार; कार्त्तिकेयः शिवः धृतराष्ट्रका एक पुत्र; हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि । पति-पति- पु० प्रधान सेनापति । - पाल- पु० सेनानायक । -पृष्ठपु० सेनाका पृष्ठभाग । -भंग-पु० सेनाका तितर-बितर हो जाना। -मुख- पु० सेनाका अग्रभाग - रसद विभाग - पु० (कमिसैरियट) सेना के लिए खाद्य सामग्री आदि जुटाने, पहुँचानेवाला विभाग । - वास - पु० शिविर; फौजकी छावनी । -वाह-पु० सेनानायक । - व्यूह - पु० सैनिकोंकी विशेष स्थानोंपर स्थापना । -स्थान- पु० शिविर; छावनी ।
सेना - पु० [सं०] सेनाका अगला हिस्सा । सेनाजीव, सेनाजीवी (विन्) - पु० [सं०] सैनिक कार्यों से आजीविका प्राप्त करनेवाला ।
सेनाधिकारी (रिन्) - पु० [सं०] सेनानायक, फौजी
अफसर |
-
सेनाधिनाथ- पु० [सं०] सेनाका प्रधान । सेनाधिप, सेनाधिपति -पु० [सं०] सेनापति । सेनाधीश - पु० [सं०] सेनापति । सेनाध्यक्ष - पु० [सं०] सेनापति । सेना भिगोता (तृ) - पु० [सं०] सेनाका रक्षक | सेनायत्त करना - स० क्रि० (कमांडियर) लोगोंको सेनामें भरती होनेके लिए विवश करना; सेनाकी आवश्यकताओं के लिए किसीकी संपत्ति आदिपर कब्जा कर लेना । सेनि * - स्त्री० श्रेणी, पंक्ति ।
सेब - पु० [फा०] एक प्रसिद्ध फल और उसका पेड़ । सेम-स्त्री० एक फली जो तरकारीके काम आती है, शिंबी । सेमई - वि० इलके सब्ज रंगका । पु० ऐसा रंग । * स्त्री० सेंवई ।
सेमर* - पु० शाल्मलि, सेमल; 1 दलबल | सेमल - पु० एक बड़ा वृक्ष जिसके फूल लाल होते हैं और फलों से रुई निकलती है । - मूसला - पु० सेमलकी जड़ । सेमिटिक - पु० नृवंश शास्त्र के अनुसार एक मानव-वर्ग
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सेनक-सेवनी
जिसमें अरब, यहूदी, मिस्री और सीरियन जातियोंकी गणना है । वि० शेमसे उत्पन्न (जातियाँ) ।
सेर - पु० [सं०] सोलह छटाँककी एक तौल; * शेर, व्याघ्र । - साहि* - पु० शेरशाह जिसने हुमायूँको परास्त कर दिल्लीका शासन प्राप्त क्रिया था ।
सेरवा। - पु० ओसानेके लिए परौता मारने, भूसा उड़ानेका कपड़ा; दे० 'सेरा'; दीवालीके प्रातःकाल सूप पीटने - की प्रथा ।
सेरही- स्त्री० फसलकी उपजपर लगनेवाला एक कर । सेरा - पु० खाटकी सिरकी ओरकी पाटी; वह जमीन जिसकी सिंचाई हो चुकी हो ।
सेराना-स० क्रि० ठंढा करना; तृप्त करना; बहा देना । अ० क्रि० ठंढा होना; तृप्त होना; समाप्त होना; मारना । + पु० सिरहाना ।
सेरी-स्त्री० [फा०] तृप्ति; जी भर जाना। * रास्ता, मार्ग । - 'जा सेरी साधू गया सो तो राखी मूँदि' - साखी । सेर्ध्य - वि० [सं०] ईर्ष्यासे भरा हुआ । सेल- पु० साँग, भाला ।
सेलखड़ी - स्त्री० एक चिकना पत्थर; खरिया मिट्टी । सेलना। - अ० क्रि० दे० 'सेल्हना'; छेदना । सेला- पु रेशमी चादर या साफा ( वर आदिका); उसना चावल |
सेवई - स्त्री० दे० 'सेंवई'; चारे के काम आने वाली एक घास । सेवर* - पु० व्याहकी एक रस्म ।
सेव - पु० बेसन से बननेवाला सूत या डोरी जैसा पतला या कुछ मोटा पकवान जो नमकीन या मीठा होता है; [सं०] दे० 'सेवन'; [फा०] दे० 'सेब' । * स्त्री० सेवा ।
सेनिका - स्त्री० मादा बाज, एक छंद ।
सेनी - पु० सहदेवका अज्ञातवासकालीन नाम । स्त्री०काबी; सेवक - वि० [सं०] सेवा, पूजा, सम्मान करनेवाला;
* श्रेणी; सीढ़ी; * मादा बाज । सेनुरी- पु० सिंदूर ।
सेफालिका - स्त्री० दे० 'शेफालिका' ।
अभ्यास करनेवाला; प्रयोग में लानेवाला; आश्रित । पु० नौकर, परिचारक; आश्रित व्यक्ति; भक्त; आराधक । सेवकाई - स्त्री० सेवा, टद्दल, परिचर्या । सेवग* - पु० दे० 'सेवक' ।
सेवड़ा - पु० मैदेका एक पकवान; जैन साधुओंका एक भेद । सेवति* - स्त्री० दे० 'स्वाति' ।
सेलिया* - पु० घोड़ेकी एक जाति । स्त्री० बिल्ली । सेली - स्त्री० बरछी; छोटी चादर; सूत आदिको योगियोंकी बद्ध; स्त्रियोंका एक गहना; एक मछली । सेल्ल, सेल्ला - पु० भाला, बरछा । सेल्ह - पु० भाला, बरछा ।
सेल्हना + - अ० क्रि० चल बसना, मर जाना ।
सेल्हा- पु० एक अगहनिया धान; । रेशमी चादर या
साफा ।
सेल्ही - स्त्री० छोटी चादर; सूत, ऊन आदिकी माला । सेवें। - पु० एक ऊँचा पेड़ जिसकी लकड़ीसे आलमारी आदि बनाते हैं ।
सेवती - स्त्री० [सं०] एक फूल, सफेद गुलाब | सेवन - पु० [सं०] सेवा, टहल; पूजन, उपासना, भक्ति; अभ्यास; व्यवहार; उपभोग; वास करना; बाँधना; सीना । सेवना - *स० क्रि० सेवा करना । स्त्री० [सं०] आराधना । सेवनी - स्त्री० [सं०] सूई; सीवन; * दासी ।
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सेवनीय - सैथी
सेवनीय - वि० [सं०] आराध्य, पूज्य; व्यवहार्य; सेव्य । सेवर-पु० दे० 'शवर’; * सेमल । + वि० कम पका हुआ ('खर' का उलटा ) । सेवरा* - पु० दे० 'सेवड़ा' । सेवरी* - स्त्री० दे० 'शवरी' | सेवांजलि - स्त्री० [सं०] अंजलि में कोई वस्तु रखकर किसोको भक्तिपूर्वक अर्पित करना; अंजलिबद्ध होकर भक्तिपूर्वक प्रणाम करना । सेवा - स्त्री० [सं०] परिचर्या, खिदमत, नौकरी; पूजा, आराधना; प्रयोग; उपभोग; संभोग; व्यसन, आसक्ति; आश्रयण, शरण; रक्षण। -काल- पु० वह अवधि या समय जिसमें किसीने कोई सेवा या नौकरी की हो । - जन- पु० नौकर, सेवक । - टहल-स्त्री० [हिं०] खिदमत, शुश्रूषा । - दक्ष - षि० सेवा करनेमें कुशल । - धर्म - पु० सेवा-संबंधी कर्तव्य । - नियोजनालय - पु० (एम्प्लॉयमेंट ब्यूरो) दे० 'नियोजन केंद्र' । - भृत्वि० सेवा, आराधना में संलग्न । -योजक- पु० (एम्प्लॉयर) कोई काम करने या किसी सेवाके लिए व्यक्तियोंको अपने कारखाने आदिपर नियुक्त करनेवाला, नियोजक । - योजनालय - पु० (एम्प्लॉयमेंट ब्यूरो) दे० 'नियोजनालय' । - विलासिनी - स्त्री० सेविका, दासी । वृत्तिस्त्री० सेवा द्वारा प्राप्त जीविका, नौकरी । सेवाती * - स्त्री० दे० 'स्वाति' । सेवाभिरत - वि० [सं०] सेवामें लीन । सेवायुक्त - वि० (एम्प्लॉइड) जो कोई काम करने या किसी सेवा के लिए नियुक्त किया गया हो, नियोजित । सेवार - पु० दे० 'सिवार' ।
सेवारा* - पु० दे० 'सेवड़ा' ।
सेवाल* - पु० दे० 'सिवार' |
सेवि - वि० पूज्य, आराध्यः पूजित । सेविका - स्त्री० [सं०] दासी, परिचारिका । सेवित - वि० [सं०] जिसकी सेवा की गयी हो; पूजित; प्रयुक्त; उपभुक्त; आश्रित; से युक्त, संपन्न । सेवितव्य - बि० [सं०] बसने, रहने योग्य; प्रयोगमें लाने योग्य; रक्षा करने योग्य ।
सेविता (तृ) - पु० [सं०] सेवक; पूजक; अनुसरण करने
सेस * - पु० दे० 'शेष' । - नाग-पु० शेषनाग | सेसर- पु० ताशका एक खेल; जाल; धूर्त्तता । सेसरिया - वि० जाल करनेवाला, जालिया । सेहत- स्त्री० [अ०] 'सेहत'] स्वास्थ्य, आरोग्य; रोगमुक्ति; शुद्धि; सही, ठीक होना; निर्दोष होना। -ख़ाना - पु० पाखाना, शौचालय | -नामा- पु० शुद्धिपत्र; तंदुरुस्तीका प्रमाणपत्र । - बख़्श-वि० आरोग्यप्रद । मु०-पानाआरोग्यलाभ करना, रोगमुक्त होना । सेहरा - पु० वे फूलों या गोटे आदिकी लड़ियाँ जो दूल्हे और दुलहिनके सिरपर बाँधी जाती हैं और मुँहपर लटकती रहती हैं; वह गाना जो सेहरा बाँधने के समय गाया जाता है; कके ताखेपर रखी जानेवाली फूलकी माला । - बँधाई - स्त्री० सेहरा बाँधनेका नेग जो बहनोईको मिलता है । मु० - बाँधना - सेहरा सिर पर रखा जाना; दूल्हा बनाया जाना; कामका श्रेय दिया जाना । - के फूल खिलना - विवाहका समय आना । सेहरी-स्त्री० एक तरहकी मछली, सहरी । सेही - स्त्री० दे० 'साही' | सेहुँआ - पु० दे० 'सें हुआ' | सैंगर - पु० बबूलकी फली । सतना - स० क्रि० दे० 'सेंतना' |
सैंतालीस - वि० चालीस और सात । पु० सैंतालीस की संख्या, ४७ ।
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सैंतीस - वि० तीस और सात । पु० सैंतीसकी संख्या, ३७। सैंधी * - स्त्री० भाला, शक्ति- 'इंद्रजीत लीन्हीं जब सैंथी देवन हा करो' - सू० ।
सेंदूर - वि० [सं०] सिंदूरी, सिंदूर के रंगवाला; सिंदूर से
रँगा हुआ ।
सैंधव - वि० [सं०] सिंधु प्रदेशका; सिंधु, समुद्र-संबंधी; सिधुमें उत्पन्न; समुद्र में उत्पन्न । पु० सिंघनरेश; सिंधु-प्रदेशके निवासी; एक प्रकारका लवण, सेंधा नमक; सिंधु प्रदेशका घोड़ा, सिंधी घोड़ा। पति-पु० सिंध- नरेश;
जयद्रथ ।
सैंधवी - स्त्री० [सं०] एक रागिनी ।
सैयाँ - पु० दे० 'सैयाँ' ।
सैंह
-
वि०
[सं०] सिंह-संबंधी
* अ० दे० 'सौ' । सैंहथी - स्त्री० बहीं, छोटा बर्छा सैंहिकेय - वि० [सं०] सिंहिकासे उत्पन्न | पु० सिंहिकाकी संतान ( एक दानववर्ग ) ; राहु |
से * - वि०, पु० दे० 'सौ' । स्त्री० शक्ति, ताकत; सार; वृद्धि, बढ़ती ।
सैकड़ा - पु० सौ |
सैकड़े
८७४
सिंहका; सिंह जैसा ।
वाला ।
सेवी (विन्) - वि० [सं०] सेवा करनेवाला; आराधक, उपासक; (समासांत में संभोग, उपभोग करनेवाला । सेवोपहार - पु० ( ग्रैड (चु) इटी) वह धन जो किसी सैनिक या कर्मचारीको अवकाश ग्रहण के समय, उसके (लंबे) सेवाकालके उपहारस्वरूप दिया जाय ।
सेव्य - वि० [सं०] सेवा करने योग्य; आराध्य, पूज्य, व्यवहारमें लाने योग्य; रक्षणीयः अध्ययनके योग्य; संचित करने योग्य | पु० स्वामी । - सेवक भाव - पु० उपास्यको स्वामी मानकर सेवकके समान अपना आचरण रखना ।
|
सैकत - वि० [सं०] सिकतामय, बालूसे भरा, रेतीला; बालुका बना । पु० बालुकामय तट; रेतीला किनारा । सैकसिक - वि० [सं०] सिकतामय, रेतीला ।
सेश्वर - वि० [सं०] ईश्वर की सत्ता माननेवाला (दर्शन- ये सैकल - पु० [अ०] सफाई, जिला; हथियारोंको माँजकर
न्याय और योग हैं); ईश्वरयुक्त । सेष* - पु० दे० 'शेष'; दे० 'शैख' ।
- अ० प्रतिशत, फी सदी, सौ पीछे ।
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चमकाना |
सैथी - स्त्री० छोटा बरछा, भाला ।
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८७५
सैद-सौंटा सैद*-पु० दे० 'सैयद'; [अ०] शिकार शिकारका जान- सैफी*-वि० तिरछा, टेढ़ा। वर । -गाह-पु०, स्त्री० शिकारगाह ।
सैफी-स्त्री० [अ०] तसबीह एक दुआ (मु०)। सैद्धांतिक-वि० [सं०] सिद्धांत-संबंधी; सिद्धांत । पु० सैयद-पु० [अ०] नेता, सरदार इमाम; फातमासे उत्पन्न सिद्धांत जाननेवाला व्यक्ति।
अलीका वंश; इस वंशका जन । सैन-स्त्री० संकेत, इशारा; निशान, परिचायक :चिह्न * सैयाँ*-पु. पति, मालिका स्वामी । सेना । * पु० शयन; बाज पक्षी ।-पति-पु०सेनापति । सैया*-स्त्री० शय्या, बिस्तरा। -भोग-पु० शयनकालका भोग, नैवेद्य ।
सैयाद-पु० [अ०] बहेलिया चिड़ीमार शिकारी; मछुआ। सैना*-स्त्री० फौज, सेना । पु० संकेत । -पति-पु० सैरंध्र-पु० [सं०] एक तरहका निम्नश्रेणीका या घरका सेनानायक।
काम करनेवाला नौकर एक संकर जाति ।। सैनापत्य-वि० [सं०] सेनापति-संबंधी। पु० सेनापतिका सैधिका-स्त्री० [सं०] दासी, नौकरानी। कार्य, सेनापतित्व।
सैरंध्री-स्त्री० [सं० अंतःपुरकी दासी; अज्ञातवासमें विराटसैनिक-वि० [सं०] सेना-संबंधी, फौजी । पु० सिपाही, नरेशके अंतःपुर में काम करते समय द्रौपदीका नाम । योद्धा, प्रहरी, संतरी। -वाद-पु० युद्धका समर्थन सैर-स्त्री० [अ०] भ्रमण; मन बहलावके लिए भ्रमण करनेवाला सिद्धांत । -सहचारी-पु० (मिलिटरी अटेशे) किसी रमणीय स्थानमें जाकर खाना-पीना, गाना-बजाना किसी राजदूतके दलबलका वह सैनिक कर्मचारी जिसे दृश्य तमाशा, (ला०) मनोरंजनके लिए किसी पुस्तकको सैनिक विषयोंकी विशेष जानकारी हो।
पढ़ना, उलट-पुलटकर देखना। -गाह-पु०,स्त्री० सैरकी सैनिकता-स्त्री० [सं०] सैनिक जीवन; युद्ध; सुसज्जित | जगह, रमणीय स्थान; वह कंदील जिसमें कागजके हाथी सेना रखने और युद्धके लिए तैयार रहनेका भाव । घोड़ोंकी छाया चलती हुई दिखाई देती है। -सपाटा-पु. सैनिकीकरण-पु० [सं०] लोगोंको सैनिक बनाने तथा मनबहलाव या सुंदर दृश्य देखनेके लिए घूमना ।
सैन्य सामग्री एकत्र करनेका कार्य । (मिलिटैरिजेशन)। सैरिंध्री-स्त्री० [सं०] दे० 'सैरंध्री'। सैनी*-स्त्री० दे० 'सेना' । पु० नापित, नाई ।
सैल-स्त्री०, पु० [अ०] पानीका बहाव, जलधारा बाढ़ । सेनेय-वि० युद्ध करने योग्य ।।
* पु० दे० 'शैल' । स्त्री० दे० 'सैर'। -कुमारी,-जासैनेश, सैनेस*-पु० सेनापति, सिपहसालार ।
तनया,-सुता-स्त्री० पार्वती। सैन्य-वि० [सं०] सेना-संबंधी। पु० सेना; सैनिक, सैला-पु. लकड़ीका चीरा हुआ टुकड़ा, छेद आदिमें सिपाही; रक्षक, प्रहरी, संतरी; शिविर । -कक्ष-पु० भरनेका पचड़ जुएके सिरेपर लगायी जानेवाली खूटी सेनाका पार्श्व । -क्षोभ-पु० सेनाका विद्रोह। डंठलसे दाने झाड़नेका डंडा; पतवारका दस्ता । -द्रोह-पु० ( म्यूटिनी) संघटित राजसत्ताके विरुद्ध, | सैलात्मजा*-स्त्री० पार्वती । विशेषकर उच्चाधिकारियोंके विरुद्ध, सेना द्वारा किया सैलानी-वि० सैर करनेका शौकीन, घुमक्कड़, मनमौजी । गया विद्रोह ।-नायक-पु० सेनापति ।-निवेशभूमि- सैलाब-पु० [फा०] बाढ़, पानीका चढ़ाव । -ची-स्त्री० स्त्री० सेनाके ठहरने, पड़ाव डालनेका स्थान । -पति,- चिलमवी। पाल-पु. सेनापति । -पृष्ट-पु. सेनाका पिछला सैलाबा-पु० पानी में डूबी हुई फसल । भाग ।-वास-पु० शिविर,सेनाका पड़ाव । -विभागा- सैलाबी-वि० [फा०] बाढ़-संबंधी । स्त्री० ठंढक, तरी; वह ध्यक्ष-पु० (एडजूटेंट जनरल ) सेनाके किसी विभागका | जमीन जो नदीकी बाढ़से सींची जाती हो। अध्यक्ष जो सेनापतिके आदेशों आदिका पालन करता हैं। सैलूख-पु० दे० 'शैलूप' । -वियोजन-पु० (डिमोबिलाइजेशन ) युद्धकी आव- सैव-पु० दे० 'शैव'। श्यकतावश प्रस्तुत किये गये सैनिकोंको सैन्यसेवासे पृथक सैवल*-पु० दे० 'शैवाल'। करना, सैन्यविघटन । -शिक्षार्थी-पु० (केडेट) सैनिक सैवलिनी*-स्त्री० दे० 'शैवलिनी' । विद्यालयमें शिक्षा पानेवाला युवक । -संसजन-पु० | सैव्य*-पु. 'शैव्य' (घोड़ा, कृष्णका एक घोड़ा, पांडवोंकी (मोबिलीज़ेशन ऑफ दि आरमी) सेनाओंको शस्त्रास्त्रोंसे सेनाका एक यूथप)। सुसज्जित कर युद्धार्थ प्रयाणके लिए तैयार रखना।। लैस, सैसक-वि० [सं०] सीसा-संबंधी; सीसेका बना। -सज-स्त्री० सेना या युद्धकी तैयारी।
सैसव*-पु० दे० 'शैशव' । सैन्यादेशवाहक-पु० (एडेकांग) युद्ध-क्षेत्रमें सेनापतिके
सैसवता*-स्त्री० दे० 'शैशव' । आदेश विभिन्न अधिकारियों, सैनिकों आदिके पास पहँ- सैवाल-पु० [सं०] दे० 'शैवाल'। चाने तथा वस्तुस्थितिका विवरण सेनापतिको देनेवाला सैहथी-स्त्री० शक्ति, भाला, बरछी, सेंथी। कर्मचारी।
सौ*-प्र० करण तथा अपादान कारकोंका चिह्न, 'से। सैन्याधिपति, सैन्याध्यक्ष-पु० [सं०] सेनानायक । । वि० सदृश, तुल्य । अ० सम्मुख, सामने साथ, सहित, सैन्यावास-पु० (बैरक) सैनिकोंके रहनेके लिए बने संग । स्त्री० सौंह, शपथ । सर्व० सो, वह । दालान जैसे आवास, 'बारिक'।
साँचर नमक-पु० सौवर्चल, काला नमक । सैन्योपवेशन-पु० [सं०] सेनाका पड़ाव डालना। | सौंजो-स्त्री० दे० 'सौंज'। सैफ--स्त्री० [अ०] तलवार ।
सौंटा-पु० लाठी, डंडा, भाँग घोंटनेके काममें आनेवाला
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सोह* - स्त्री० दे० 'सौंह' । अ० सामने | सोही * - अ० दे० 'सौँ इ' ।
साँई * - अ० दे० 'सौंह' ।
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साँठ-सौधवाना
८७६
सोचना स० क्रि० विचार करना, किसी विषय बात आदिकी विवेचना करना । अ० क्रि० शोक, दुःख करना; चिंता करना; पछताना |
डंडा, भंगघोंटना; एक पौधा, लोबिया । -बरदार- पु० बल्लमबरदार, आसाबरदार जो राजा, सरदार, अमीर आदिकी सवारीके आगे-आगे चलता है । साँठ- स्त्री० सूखा अदरक, शुंठी । साँठौरा - पु० जच्चाको दिया जानेवाला गुड़ या चीनीके योगसे सोंठ, मेवा आदि मिलाकर बनाया हुआ एक पुष्टिकारक मोदक |
सोचाना - स० क्रि० किसीको सोचनेमें प्रवृत्त करना, विचार करवाना, दिखलाना ।
सोज - स्त्री० शोथ, सूजन, सौंज, सामग्री, सामान । सोज़ - पु० [फा०] जलन; मनस्ताप, वेदना ।
साँध - * पु० दे० 'सौंध' । + दे० 'सोधा' । वि० दे० सोज़न-स्त्री० [फा०] सूई । -कारी - स्त्री० सूईकारी | 'सोंधा' । सोजाक - पु० दे० 'सूजाक' ।
सौंधा - वि० सुगंधित, सुवासित; मिट्टीपर प्रथम वर्षका जल पड़नेसे उठी गंध जैसा । पु० बाल, केश साफ करने, धोनेके काम आनेवाला एक सुगंधित द्रव्य, मसाला; तपी जमीन, मिट्टी, धूल पर पानी पड़नेसे उठी गंध; अन्न भूनते समय उठी सुगंध; महँक, सुगंध ।
सोझ* - वि० जो टेढ़ा न हो, सरल, सीधा । अ० सीधे । सोझा - वि० सीधा, सरल; खड़ा । + अ० सामने | सोटा - पु० दे० 'सोटा'; * तोता ।
साँधु - वि० सोंधा ।
सोडा - पु० [अ०] सज्जी से रासायनिक क्रिया द्वारा तैयार किया हुआ एक क्षार, सार्जिकाक्षार । -वाटर- पु० सर्जिकाक्षार के योगसे बनाया जानेवाला एक प्रकारका पाचक खारा जल जिसे गैसकी सहायता से बोतल में भरकर रखते हैं ।
सो - सर्व ० वह । * वि० समान, भाँति । अ० इसलिए । सोऽहम् - [सं०] मैं वह ( वही ) हूँ ( इसका तात्पर्य यह है कि 'मैं' ब्रह्म हूँ - यह वेदांत दर्शनका वाक्य है ) । सोऽहमस्मि - [सं०] दे० 'सोऽहम्' ।
सोअना* - अ० क्रि० दे० 'सोना' ।
सोई - सर्व० वही । अ० इसलिए ।
सोऊ* - सर्व ० वह भी ।
सोक* -- पु० दे० 'शोक' ।
सोआ - पु० एक साग जिसकी पत्तियाँ बहुत महीन सोतिया * - स्त्री० छोटा सोता ।
होती हैं ।
सोखता - वि० दे० 'सोख्ता' |
सोखना - स० क्रि० कोई तरल पदार्थ या किसी पदार्थका
रस ग्रहण या जज्ब कर लेना ।
सोखाई - स्त्री० सोखनेकी क्रिया; किसी वस्तुको सोखाने या सोखनेकी मजदूरी ।
सोख्त - स्त्री० [फा०] जलन । मु०-होना जब्त, नष्ट, बेकार होना ।
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सोतिहास - वि० जिसमें स्रोत या सोतेका पानी आता हो (कूप) |
सोकन - पु० कालापन लिये हुए सफेद रंगका बैल |
सोती - स्त्री० स्रोत; धारा; जलकी शाखा; * स्वाती नक्षत्र । सोत्कंठ - वि० [सं०] प्रबल इच्छासे युक्त, लालसाभरा । सोत्कर्ष - वि० [सं०] उन्नत, उन्नतिशील; उत्तम । सोत्सव - वि० [सं०] उत्सवयुक्त, उछाह भरा; आनंदित । सोथ - पु० शोथ, सूजन |
सोकना* - अ० क्रि० शोक करना । स० क्रि० सोखना । सोकित* - वि० शोकित, शोकान्वित, शोकयुक्त ।
सोखक * - वि०, पु० शोषक, आर्द्रता दूर करनेवाला; रस | सोदर - वि० [सं०] सगा, एक उदरसे उत्पन्न | पु० सगा चूस लेनेवाला; तत्त्व हरण करनेवाला ।
भाई ।
सोख्ता - पु० स्याहीसोख । वि० [फा०] जला हुआ, दग्ध; खिन्न, विषादयुक्तः प्रेमी, आशिक । पु० बुझा हुआ कोयला जिसमें जल्दी आग लग जाती है । सोग* - पु० शोक, किसीके मरनेपर दुःखकी अभिव्यक्ति । सोगिनी * - वि० स्त्री० शोक करनेवाली, शोकान्वित (स्त्री) । सोगी* - वि० शोक करनेवाला ।
सोढ - वि० [सं०] सहन किया हुआ; सहिष्णु, धीर । सोढर* - वि० बुद्धू, बेवकूफ, भोंदू ।
सोच - पु० सोचनेकी क्रिया; शोक, किसी प्रियके मरने पर दुःखका प्रकटीकरण; चिंता; पश्चात्ताप, पछतावा, सोचविचार | - विचार - पु० किसी विषय, व्यक्ति आदिपर बुद्धिपूर्वक छानबीन करना; गौर ।
सोढव्य - वि० [सं०] सहन करने योग्य, क्षम्य । सोत* - पु० दे० 'सोता' ।
सोता - पु० नदी, नाले, झरने आदिका उद्गम स्थान; झरना; नदी, नाले आदिकी शाखा मूल, मूल स्थान (ला० ) ।
सोदरा, सोदरी - स्त्री० [सं०] सगी बहिन | सोदरीय - वि० [सं०] सोदर, सहोदर ।
सोध* - पु० अनुसंधान, अनुशीलन, खोज; हालचाल, खोज-खबर; सुधार; होशहवास, सुध-बुध; किसी व्यक्तिसे ऋण आदि लेकर उसे चुकानेकी क्रिया । सोधक* - पु० दे० 'शोधक' ।
सोधन* - पु० अनुसंधान करनेकी क्रिया, खोज करनेका काम; सुधारने, ठीक करनेका काम; अदा करने, चुकाने
का काम ।
सोधना * - स० क्रि० अनुसंधान, अनुशीलन करना; ढूँढ़ना, खोजना; त्रुटि दूर करना, गलती दुरुस्त करना, संशोधन करना; ऋण आदि चुकाना, अदा करना; किसी वस्तुकी गंदगी दूर करना, सफाई करना; गणना करना, विचार देना ( जन्मपत्री आदि ); औषधके लिए धातु (पारा, सोना आदि) की सफाई करना । सोधवाना। -स० क्रि० ढुंढ़वाना, खोज करवाना; ठीक कराना; साफ करवाना ।
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सोधाना-सोम सोधाना-स० कि० दे० 'सोधवाना।
सोना-अ० क्रि० निद्राग्रस्त होना, शयन करना; लेटना। सोन-पु० गंगाकी एक प्रसिद्ध सहायक नदी जो दानापुर- सोते-जागते-अ०हरवक्त, हमेशा । के पास उसमें मिलती है, शोण; * सोना; 'सोना'का | सोनिजरद*-स्त्री० दे० 'सोनजद'। समासगत रूप; एक जलपक्षी । * वि. लाल |-किरवा- सोनित*-पु० दे० 'शोणित' । पु० दे० 'सुनकिरवा'। -केला-पु० चंपाकेला।-गेरूपु० सोनागेरू । -चंपा-पु० पीला, सोनेके रंगका सोपकरण-वि० [सं०] उपकरणयुक्त । चंपा । -चिरी*-स्त्री० नर्तकी, नटी ।-जरद,-जर्द- सोपत*-पु० सुविधा, सुभीता । जिरद*-स्त्रो० सोनजूही, स्वर्णयूथिका। -जूही-स्त्री.सोपाधि, सोपाधिक-वि० [सं०] उपाधिसहित; किसी जूहीका एक प्रकार जो पीला होता है, स्वर्णयूथिका। विशेषतासे युक्ता विशिष्ट । -भद्द-पु० सोन नदी। -रास*-पु. पका हुआ सोपान-पु० [सं०] निःश्रेणी, सीढ़ी, मोक्षप्राप्तिका उपाय पान । -हार*-पु० एक समुद्री पक्षी।
(जैन) ।-कूप-पु० सीढ़ीदार कुआँ ।-पंक्ति,-परंपरासोनरास*-पु० दे० 'सोन' के साथ ।
स्त्री० सीढ़ियोंका सिलसिला । -पथ,-मार्ग-पु० जीना, सोनवाना*-वि० सोनेका, सुनहला।
सीढ़ी। -पद्धति-स्त्री० दे० 'सोपान-पथ' ।। सोनहला-वि० सोनेके रंग और चमकका, स्वर्णिम । सोपानिका-स्त्री० [सं०] (लिफ्ट) दे० 'उत्थानक' । सोनहा-पु० कुत्तेकी जातिका एक जंगली हिंस्र पशु जो -चालक-५० (लिफ्टमैन) उत्थानकमें बैठाकर नीचे-ऊपर बाघको भी मार डालता है।
ले जानेवाला कर्मचारी। सोना-पु० पीले रंगको एक बहुमूल्य धातु जो विशेष रूपसे | सोपानित-वि० [सं०] सोपानयुक्त। आभूषण आदि बनानेके काम आती है और भस्म करके | सोपि*-सर्व० [सं०] 'सोऽपि वह भी। दवाके रूप में इस्तेमाल की जाती है; (ला०) बढ़िया और सोफता-पु० ऐसा स्थान जहाँ कोई न हो, एकांत स्थान । बहुमूल्य वस्तु, श्रेष्ठ व्यक्ति आदि; एक तरहका हंस | सोना-पु० [अं०] गद्दीदार पुश्त और बिस्तरेवाला आसन एक वृक्ष । -गेरू-पु० गेरूका एक भेद । -चाँदी-स्त्री० जो बैठने या लेटनेके काम आता है (कोच) । माल, धन, दौलत । -पाठा-पु० एक ऊँचा वृक्ष । सोफियाना-वि० दे० 'सूफियाना' सादा देख पड़ते हुए -मक्खी,-माखी-स्त्री० एक खनिज द्रव्य जिसमें सोने भी भला लगनेवाला । का कुछ अंश होता है और जो औषधके काममें भी सोफी-वि०, पु० दे० 'सूफी' । आता है। एक तरहका रेशमका कीड़ा। -मुखी-स्त्री० | सोभ*-स्त्री० शोभा। स्वर्णपत्री, सनाय । मु०-कसना-सोना जाँचना, पर- सोभन*-वि०, पु० दे० 'शोभन'। खना। -कसाना-सोनेको परखवाना। -चढ़ना-सोभना*-अ० क्रि० सुंदर लगना, शोभायुक्त होना। किसी चीजपर सोनेका मुलम्मा होना। -चढ़वाना- सोभनीक*-वि० शोभायुक्त, सुंदर । किती चीजपर सोनेका मुलम्मा करवान।। -चढ़ाना
मा करवाना। -चढ़ाना- सोभर-पु० सूतिगृह, सौरी । किसी चीजपर सोनेका मुलम्मा करना। -लेकर मिट्टी सोभांजन-पु० [सं०] दे० 'शोभांजन'। (तक) न देना-बेईमानी करना, नादेहंदा होना। सोभा*-स्त्री० दे० 'शोभा'। -कारी-वि० शोभायुक्त, -(ने)का घर मिट्टी हो जाना-बना-बनाया घर मिट - सुंदर । जाना, बनी गृहस्थी बिगड़ जाना। -का पानी- सोभायमान-वि० दे० 'शोभायमान' । सोनेका मुलम्मा। -की चिड़िया-मालदार आदमी; सोभार-वि० उभारदार । अ० उभारके साथ । अमीर आदमी। -की चिड़िया उड़ जाना या हाथसे सोभित-वि० दे० 'शोभित'। निकल जाना-मालदार आदमीका चंगुलसे निकल | सोम-पु० [सं०] एक लता जिसका रस यज्ञमें तर्पण तथा जाना; सुअवसरका निकल जाना। -की चिड़िया पान करनेके काम आता था; इस लताका रस, चंद्रमा मिलना, हाथ आना या लगना-किसी बहुमूल्य वस्तु- चंद्रवार; सोमयश; अमृत; कपूर; वायुः जल; प्रधान का मिलना किसी मालदार आदमीका काबूमें आना। (नृसोम); एक स्त्री रोग ।-कर-पु० चंद्रकिरण |-कलश-की तौल तौलना-कोई मामूली कीमतको भी चीज पु० सोमरस रखनेका घड़ा। -कांत-वि० चंद्रमा जैसा तौलमें एकदम ठीक देना जैसा सोना तौलने में किया सुंदर चंद्रमा जैसा प्रिय । पु० चंद्रकांत मणि । -कामजाता है, कम कीमतकी चीज भी अधिक कीमतकी चीज- पु० सोमपानकी इच्छा । वि० सोमपानका इच्छुक । की भाँति तौलना। -के महल उठाना-बहुन धनवान् -जाजी*-पु० सोमयाजी। -देव-पु. चंद्रदेव; कथाहोना । -के मोल-बहुमूल्य । -में घुन लगना-असं- सरित्सागरके रचयिता (जो कश्मीर में ग्यारहवीं शताब्दीमें भव बातका होना। - में सुगंध होना-किसी अच्छी हुए थे)। -नाथ-पु० भारतके सुप्रसिद्ध बारह लिंगवस्तुमें और भी अच्छाई या विशेषताका होना। -में मंदिरोंमेंसे एक :जिसे महमूद गजनवीने १०२४ ईसवीमें सुहागा-गलते सोने में सुहागा मिला देनेसे उसका रंग लूटा था। -प-वि० सोमरस पीनेवाला। -पर्वन)निखर जाता है। किसी वस्तु अथवा व्यक्तिका उच्चतर, पु० सोमोत्सवका समय ।-पा-वि० सोमरस पीनेवाला। बेहतर होना। -से लदे रहना या होना-बहुत गहने पु० सोमयज्ञ; यश करनेवाला। -पात्र-पु. सोमरस पहने रहना।
रखनेका पात्र । -पान-पु० सोमरस पीना। -पायी
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सोमन-सोहरत
- (यिन्) - वि० सोमरस पीनेवाला । - पुत्र- पु० बुध ग्रह | - प्रदोष-पु० सोमवारको किया जानेवाला विशेष प्रदोषव्रत । - प्रभ - वि० चंद्रमा जैसा कांतिमान् । - बंधु - पु० कुमुद; सूर्य; बुध । - बेल - स्त्री० [हिं०] गुलचाँदनी । - मख-पु० सोमयज्ञ । -मद-पु० सोमपानसे होनेवाला नशा । यज्ञ-पु० एक तरहका यश जिसमें सोमपान किया जाता था। -याग-पु० सोमयश; एक त्रैवार्षिक यज्ञ जिसमें सोमपान होता था । - रस - पु० सोमलताका रस । -राग- पु० राग- विशेष ( संगीत ) । - राज - पु० चंद्रमा । - राज्य-पु० चंद्रलोक । - रोग - पु० प्रमेह जैसा स्त्रियोंका एक रोग । - लता - स्त्री० सोम नामकी लता, सोमवल्ली; गोदावरी नदी । - लतिका - स्त्री० गुडूची; सोमलता । -लोक- पु० चंद्र लोक । - वंशीय, वंश्य - वि० चंद्रवंश संबंधी; चंद्रवंशी त्पन्न । - वल्लरि, - वल्लरी - स्त्री० सोमलता; ब्राह्मी । - वल्ली - स्त्री० गुडूची; सोमलता; सोमराजी; ब्राह्मी । - वार,-वासर-पु० रविवारके बादका दिन, चंद्रवार। - विक्रयी (यिनू ) - वि०, पु० सोम बेचनेवाला । - सुतपु० बुध ग्रह । - सुता - स्त्री० नर्मदा नदी । सोमन* - पु० एक अस्त्र ।
सोमनस* - पु० दे० 'सौमनस्य' ।
वाली अमावास्या ।
सोमवती अमावास्या - स्त्री० [सं०] सोमवारको पड़ने सोषक* - वि०, पु० दे० 'शोषक' । सोषण * - पु० दे० 'शोषण' । सोषना-स० क्रि० दे० 'सोखना' | सोपु, सोसु* - वि० सुखा डालनेवाला ।
सोमाष्टमी - स्त्री० [सं०] सोमवारको पड़नेवाली अष्टमी । सोमा - पु० [सं०] एक अस्त्र जिसका संबंध सोम (चंद्रमा)से माना जाता है ।
सोमाह - पु० [सं०] चंद्रवार, सोमवार । सोमाहुति - स्त्री० [सं०] सोमयज्ञ । सोमेश्वर- पु० [सं०] दे० 'सोमनाथ' ।
सोमोद्भव - वि० [सं०] चंद्रमासे उत्पन्न । पु० कृष्ण सोमोद्भवा - स्त्री० [सं०] नर्मदा नदी ।
सोम्य - वि० [सं०] सोम-संबंधी; मुलायम, कोमल । सोय* - सर्व० वही । वि० वैसा ।
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सोम - वि० [फा०] तीसरा । सोया - पु० दे० 'सोआ' ।
सोर - * पु० शोरगुल, कोलाहल; ख्याति । + स्त्री० मूल, जड़; * सौरी ।
सोरठ- पु० भारतका एक प्रांत, सौराष्ट्र; एक रागिनी ।
- मल्लार - पु० एक राग ।
सोरठा - पु० एक मात्रिक छंद ।
सोरठी- स्त्री० एक रागिनी ।
सोरनी । - स्त्री० झाड़ ; एक मृतक संस्कार । सोरबा - पु० दे० 'शोरबा' ।
सोरह * - वि०, पु० दे० 'सोलह' । सोरही - स्त्री० सोलह चित्ती कौड़ियोंसे खेला जानेवाला एक प्रकारका जुआ; उक्त प्रकारका जुआ खेलनेके निमित्त एकत्र सोलह चित्ती कौड़ियाँ । सोरा* - पु० दे० 'शोरा' । सोलंकी - पु० क्षत्रियोंका एक राजवंश जिसका राज्य गुजरात, काठियावाड़, राजपूताना आदि में था ।
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८७८
सोल- वि० [सं०] शीतल, ठंढा; कसैला, खट्टा और तीता । पु० ठंढक कसैला, खट्टा और तीता स्वाद । सोलह - वि० पंद्रह और एक । पु० सोलहकी संख्या, १६ । - नहीं - पु सोलह नखोंवाला (हाथी) । - सिंगार - पु० दे० 'षोडश-शृंगार' । - (हाँ ) आने- बिलकुल, पूर्णतः । सोला+ - पु० दलदली भूमिमें उगनेवाला एक झाड़ जिसकी सीधी और मजबूत डालियोंके छिलकेसे सोला हैट बनता है ।
सोल्लास - वि० [सं०] उल्लासयुक्त, आनंदभरा । अ० उल्लास के साथ |
सोवज* - पु० शिकारका जानवर आदि । सोवन* - पु० सोनेकी क्रिया । सोवना* - अ० क्रि० दे० 'सोना' ।
सोवनार* - स्त्री० सोनेका कमरा, शयनागार । सोवरी* - स्त्री० सौरा । सोवा- पु० दे० 'सोआ' |
सोवाना* - स० क्रि० दे० 'सुलाना' । सोवियत - पु० [ रूसी] रूसके किसी जिलेकी वह सभा जो मजदूरों और सिपाहियोंके चुने हुए प्रतिनिधियोंसे बनी हो; रूसका आधुनिक प्रजातंत्र । सोवैया* - पु० सोनेवाला ।
सोसनी * - वि० सौसनके फूलके रंगका, लाली लिये हुए नीले रंगका ।
सोस्मि * - दे० 'सोऽहमस्मि' |
सोह* - अ० दे० 'सौंह' । सोहं * - दे० 'सोऽहम्' । सोहंग * - दे० 'सोऽहम्' । सोहंगम * - दे० 'सोऽहम्' ।
सोहगी - स्त्री० तिलकके बादकी एक रस्म जिसमें कन्याके लिए वस्त्राभूषण, खिलौने आदि भेजे जाते हैं; सुहागकी चीजें ।
सोहन - * वि० शोभन, सुंदर, मोहक, सुहावना | पु० सुंदर व्यक्ति; नायक; + एक वृक्ष; रेती । स्त्री० एक पक्षी जिसका शिकार करते हैं। -पपड़ी - स्त्री० एक रेशेदार मिठाई जो मैंदा और चीनी एकमें मिलाकर बनायी जाती है । - हलवा- पु० मेवे, घी, चीनी आदिके मेलसे बनी एक स्वादिष्ठ तथा प्रसिद्ध मिठाई जो कतरोंके रूपमें जमी और घीसे तर रहती है । सोहना-स० क्रि० (खेत) निराना। * अ० क्रि० भला मालूम होना, सुंदर लगना । + वि० सुंदर, मोहक । सोहनी-स्त्री० कूँची, झाड़ ; एक रागनी; निरानेकी क्रिया । सोहबत - स्त्री० [अ०] मंडली, संगति; संभोग । सोहमस्मि * - दे० 'सोऽहमस्मि' |
सोहर - पु० संतानोत्पत्तिके अवसरपर गाया जानेवाला एक मंगलगीत |
सोहरत * - स्त्री० दे० 'शोहरत' ।
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सोहराना-सौक सोहराना*-स० क्रि० दे० 'सहलाना'।
साँधना-स. क्रि० सुगंधयुक्त करना, सुगंधित करना, सोहला-पु० सोहर मंगलगीत; पूजाके अवसरपर गाया खुशबूदार बनाना; सानना, लिप्त करना । जानेवाला गीत ।
साँधा-वि० सुगंधित, रुचिकर । पु० खुशबू; बालोंमें सोहाइन*-वि० सुहावना, रमणीक ।
लगानेका एक सुगंधित मसाला। सोहाई-स्त्री० निरानेका काम; निरानेकी मजदूरी। | सौनमक्खी*-स्त्री० दे० 'सोना-मक्खी' । सोहाग*-पु० सुहागा; सुहाग, सौभाग्य, अहिवात; सीनी-पु० सोनी, सुनार । सुहागका गीत एक सदाबहार पेड़।
सौंपना-स० क्रि० (कोई वस्तु आदि ) किसीके जिम्मे, सोहागा-पु० दे० 'सुहागा'; हेंगा, पटेला।
सिपुर्द करना; सहेजना। सोहागिन, सोहागिनी, सोहागिल-स्त्री०दे० 'सुहागिन'। सौंफ-स्त्री. सोए जैसा एक पौधा जिसका फल दवा और सोहाता-वि० दे० 'सुहाता'; * सुंदर, सुहावना । मसालेके काम आता है, शतपुष्पा । सोहाना*-वि० सुहावना। अ० कि० अच्छा लगना, साँफिया, सौंफी-वि० (खाद्यपदार्थ या पेय) जिसमें सौंफमनोनुकूल होना; सुशोभित होना।
का योग हो । स्त्री० सौंफके योगसे बनी हुई शराब; वह सोहाया*-वि० सुंदर, मनोहर, सुशोभित ।
बीड़ी जिसकी सुरतीमें सौंफका अर्क पड़ा हो। सोहारद*-पु० दे० 'सौहार्द'।
सौ भरि*-पु० एक प्राचीन ऋषि, सोभरि (जिन्होंने सोहारी-स्त्री० पूरी।
मांधाताकी पचास कन्याओंसे विवाह किया था)। सोहावन-वि० दे० 'सुहावना'।
सार-स्त्री० चादर । पु० संतानोत्पत्तिके दसवें दिन फेंके सोहावना*-वि० सुंदर । अ० क्रि० अच्छा लगना, भला या तोड़े जानेवाले मिट्टी के पात्र । मालूम होना; शोभित होना।
सौ रई*-स्त्री० श्यामलता, साँवलापन । सोहासित*-वि० मनोनुकूल, सुहावना सुभाषित, अच्छा सौ रना*-स० क्रि० स्मरण करना, याद करना-'लरिलगनेवाला, मुँहदेखा।
काईके सौरियत चोर मिहिचनी खेल'-मति०, सुमिरन सोहिं*-अ० दे० सौह'।
करना । अ० क्रि० दे० 'सँवरना। सोहिनी-स्त्री० एक रागिनी।
सौ रा*-वि० श्यामल, साँवला । सोहिल-पु० दे० 'सुहैल'।
सौ ह*-स्त्री० कसम, शपथ । अ० सामने, रूबरू । सोहिला-पु० दे० 'सोहला'।
सी ही-स्त्री० एक प्रकारका अस्त्र । अ० सामने । सोहीं, सोहैं *-अ० सामने ।
सौ-वि० नब्बे और दस, शत; बहुत । पु० सौकी संख्या, सी*-स्त्री० सौंह, शपथ, कसम । अ० समान, सहश,
१००। * अ०सा ।मु०-की एक बात-बहुत ही उचित भाँति । प्र० करण और अपादानकी विभक्ति ।
बात सर्वमान्य बात ।-के सवाये करना-पचीस प्रतिशत सौंकारा, सौ केरा -पु० सबेरा, तड़का।
लाभ करना ।-कोस भागना-दूर रहना, अलग रहना । सौं केरो-अ० तड़के समयसे कुछ पहले ।
-छिपाये -चाहे किसी तरह भी गोप्य रखें; हरचंद सौंघा*-वि० भला, अच्छा ।
छिपायें । -जतन करना-बहुत प्रयत्न करना । -जानसे सौंघाई*-स्त्री० अच्छाई; आधिक्य, प्रचुरता, बहुतायत ।
-पूरे दिलसे, पूर्णतः । -जानसे आशिक होना, फिदा सींचना -अ० क्रि० मलत्याग करना; आबदस्त लेना। होना-अत्यंत मुग्ध होना। -दो सौमें-बहुतमें (से सौचर नमक-पु० काला नमक ।
कुछ-छाँटनेके अर्थ में)। -पचास-कई, अनेक । -पर साँचाना-स० क्रि० शौच, पाखाना कराना; आबदस्त सौ-शत-प्रतिशत, सौ फी सदी । -बातकी एक बातदिलाना।
सारांश । -बात सुनाना-बुरा-भला कहना, लानतसीज*-स्त्री० सामग्री, सामान-'मातु बचन सुनि मलामत करना। -मनका-बहुत भारी। -में एकमैथिली सकल सौंज लै साथ । जाय अलिनयुत पूजिकै बहुत कम । -में कहना-बिना हिचकिचाहटके खुले गिरिजहिं नायो माथ'-रामरसा० सरंजाम ।
तौरसे कोई बात कहना। -सनाना-बहुत गालियाँ सौजाई-स्त्री० सजावटको वस्तु ।
देना, बहुत बुरा-भला कहना । -सौ कोस (दूर) सौतुख*-अ० सम्मुख, सामने।
भागना-निकट न आना, बहुत दूर भागना। -सौ सौंदन-स्त्री० धोबियोंका गंदे कपड़े रेहमें सानना। घड़े पानी पड़ना-बहुत लज्जित होना। -सौ नाम सौंदना-सक्रि० सानना, लिप्त करना; मिट्टीसे गंद।। धरना-अनेक त्रुटियाँ निकालना, बहुत नुक्ताचीनी करना।
करना। -सौ पलटे लेना,-सौ फेरे करना-किसी सौंदर्ज*-पु० दे० 'सौंदर्य' ।
जगहके बहुत चक्कर लगाना । -सौ बल खाना-बहुत सौंदर्य-पु० [सं०] सुंदरता, खूबसूरती; उदाराशयता। पेच खाना । -सौ मनके पाँव होना-डर, घबड़ाहटके -विज्ञान-पु० (ईस्थेटिक्स) सौंदर्य, सुरुचि और कला- कारण चल न सकना। -हाथका कलेजा हो जानासंबंधी शास्त्र।
प्रसन्नताके कारण अत्यंत उत्साहित होना । -हाथकी सौंदर्यता*-स्त्री० दे० 'सौंदर्य' (असाधु) ।
जबान होना-चटोर होना। सौंध*-स्त्री० सुगंध, खुशबू । पु० महल, प्रासाद, अट्ट
सौक-* वि० एक सौ । स्त्री० सपत्नी, सौत । पु० दे० लिका।
__ 'शौक'।
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सौकर-सौभाग्यवान्
८८० सौकर, सौकरक-वि० [सं०] सूकर-संबंधी; वाराहावतार- जाय क्रय-विक्रयकी वस्तु, माल । -गर-पु० व्यापारी, (विष्णु)संबंधी। पु० इस नामका तीर्थ ।
तिजारत करनेवाला। -गरी-स्त्री० सौदागरका काम, सौकरिक-पु० [सं०] सूअरका शिकार करनेवाला व्यक्ति; व्यापार, तिजारत । वि० तिजारती। -गरी मालबहेलिया।
पु० तिजारती माल, बिक्रीके लिए इकट्ठा किया हुआ सौकरीय-वि० [सं०] सूकर-संबंधी।
माल । -बही-स्त्री० खरीद-बेची लिखनेकी बही । सौकर्य-पु० [सं०] सुकरता, आसानी; साध्यता; दक्षता । -सुलफ़ (सुलुन)-पु० बाजारसे खरीदी जानेवाली सौकीन-वि० दे० 'शौकीन' ।
चीजें। -(दे) बाज-वि• अपने लाभका पूरा ध्यान सौकुमार्य-पु० [सं०] सुकुमारता, कोमलता, मुलायमि- रखकर सौदा पटानेवाला। मु०-पटना-खरीद-बेचीका यता यौवन । वि० कोमल ।
मामला तै होना, भाव या दाम ठीक होना । -पटानासौम्य-पु० [सं०] सूक्ष्मता, बारीकी ।
मोल-भाव करके दाम ते करना। -होना-सौदा पट सौख*-पु० शौक।
जाना। सौख्य-पु० [सं०] सुख, आनंद, कल्याण । -द-दायी- सौदाई-वि० [अ०] पागल, सनकी खस्तीप्रेमी,आशिक ।
(यिन् )-वि० सुख देनेवाला ।-दायक-वि० सुखद । | सौदामनी, सौदामिनी-स्त्री० [सं०] विद्युत्, मालाकार सौगंद-स्त्री० कसम, शपथ ।
विद्युत् ऐरावत(गज)की पत्नी; एक रागिनीका नाम । सौगंध-स्त्री० शपथ । वि० [सं०] सुगंधित, खुशबूदार । सौदायिक-पु० [सं०] विवाहके अवसर पर माता-पिता
पु० अत्तारसुगंधि, सुवास, खुशबू; एक तृण, कत्तण। | तथा संबंधियोंसे कन्याको मिलनेवाला धन जिसपर विधासौगंधिक-वि० [सं०] सुगंधयुक्त, खुशबूदार । पु० सुगंध, नतः कन्याका अधिकार होता है। दहेज । इत्र, तेल आदिका व्यवसायी, गंधी; नीलोत्पल, श्वेत सौध-वि० सं०] सुधा-संबंधी; सुधायुक्त, चूना (सुधा) कमल; पद्मराग मणि गंधक; एक प्रकारकी सुगंधित घास ।। पुता हुआ, पलस्तर किया हुआ । पु० चूना पुता निवास, सौगंध्य-पु० [सं०] सुबास, खुशबू।
घर; महल, प्रासाद, चूना; दुधिया पत्थर, दुग्धपाषाण; सौगत-वि० [सं०] सुगत-संबंधी; सुगतमतको मानने- चाँदी; एक रत्न। -कार-पु. सौधनिर्माण करनेवाला वाला । पु० बौद्ध, शून्यवादी।
व्यक्ति, राज, राजगीर, मेमार । -तल-पु० महलका सौगतिक-पु० [सं०] बौद्ध बौद्ध भिक्षुः अनीश्वरवादी।। नीचेका तला। सौगम्य-पु० [सं०] सुगमता सुविधा ।
सौधर्म्य-पु० [सं०] सुधर्मका भाव, साधुता, सज्जनता। सौगात-स्त्री० [फा०] भेंट, उपहार, तुहफा ।
सौन-वि० [सं०] पशुवधालय-संबंधी। पु० बूचड़, बूचड़ सौग़ाती-वि० [फा०]उपहार में देने योग्य; बढ़िया, उत्तम । | द्वारा प्रस्तुत विक्रयार्थ ताजा मांस । * अ० सामने । सौघा*-वि० सस्ता, महँगाका उलटा ।
सोनक*-पु. एक ऋषि, शौनक । सौच*-पु० दे० 'शौच'।
सौनन-स्त्री० दे० 'सौदन'। सौचि, सौचिक-पु० [सं०] सूची, सूईका काम करके सौना*-पु० दे० 'सोना' । निर्वाह करनेवाला व्यक्ति, दरजी।।
सौनिक-पु० [सं०] पशु-पक्षियोंका मांस बेचनेवाला व्यक्तिसौचिक्य-पु. [सं०] दरजीका काम ।
कसाई, बूचड़, व्याध । सौज*-सी० दे० 'सौंज' ।
सौनीतेय-पु० [सं०] सुनीतिके पुत्र, ध्रुव । सौजना*-अ० क्रि० शोभा देना, सजना ।
सौपना-सक्रि० दे० 'सौंपना। सौजन्य-पु०[सं०] सुजन होनेका भाव, सुजनता, सज्ज- | सौभद्-वि० [सं०] सुभद्रा-संबंधी। पु० सुभद्राके पुत्र नता, भलमनसी; उदाराशयता।
अभिमन्युः एक तीर्थ । सौजन्यता-स्त्री० दे० 'सौजन्य' (असाधु) ।
सौभद्य-पु० [सं०] सुभद्रा-पुत्र अभिमन्यु; बहेड़ा। सौजा-पु० आखेट योग्य पशु-पक्षी ।
सौभांजन-पु० [सं०] सहिजन । सौत-स्त्री० पतिकी दूसरी पत्नी, सपत्नी।
सौभागिनी-स्त्री० सौभाग्यवती स्त्री, सधवा । सौतन, सौतनि*-स्त्री० सौत ।
सौभागिनेय-पु० [सं०] ज्येष्ठ। (सबसे प्रिय) पत्नीका पुत्र सौति-स्त्री० सौत । पु० [सं०] (सूतपालित) कर्ण । सम्मानित माताका पुत्र । सौतिन*-स्त्री० सोत।
सौभाग्य-पु०[सं०] अच्छा भाग्य, खुश-किस्मती कल्याण सौतिया डाह-स्त्रीदो सौतोंमें होनेवाली ईर्ष्या,द्वेष आदि । समृद्धि; सफलता; सौदर्य प्रेम; कृपा; आनंद; शुभकामना सौतुक, सौतुख, सौतुष*-अ० दे० 'सौँ तुख' । सुहाग, अहिवात; सिंदूर सुहागा; एक पौधा; ज्योतिषका सौतेला-वि० सौत-संबंधी, जिसका संबंध सौतसे हो; एक योग; एक व्रत । -चिह्न-पु. अच्छे भाग्यका सौतसे उत्पन्न (सौतेला भाई) ।
चिह्न महिवातका चिह्न (जैसे सिंदूर आदि)। -तंतु,सौत्र-वि० [सं०] सूत्र संबंधी; सूतका बना हुआ। सूत्र-पु. वह सूत्र जो विवाहमें वर द्वारा कन्याके गले में सौत्रांतिक-पु० [सं०] बौद्ध मतकी चार प्रमुख शाखाओं
बाँधा जाता है; भंगल सूत्र । -तृतीया-स्त्री. हरिमेंसे एक (यह 'अनुमान'-प्रधान शाखा है)।
तालिका तीज । सौदा-पु० [अ०] उन्माद, सनक, प्रेम, इश्क; [फा०] | सौभाग्यवती-स्त्री० [सं०] सधवा, सुहागिन । खरीद-बेची; वाणिज्य; वह चीज जो बाजारसे खरीदी | सौभाग्यवान् (वत्)-वि० [सं०] भाग्यशाली, खुश.
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सौभिक्ष्य-स्खलित . किस्मत ।
होनेवाला । पु० सोंचर नमक; सर्जिकाक्षार । सौभिक्ष्य-पु० [सं०] सुकाल, सुभिक्ष ।
सौवर्चस-वि० [सं०] चमकदार, कांतिमान् । सौम-वि० दे० 'सौम्य' ।
सौवर्ण-वि० [सं०] सुवर्णका, स्वर्ण-निर्मित । पु० सोना । सोमन-पु० [सं०] एक दिव्यास्त्र ।
सौवर्णिक-पु० [सं०] सुनार । सीमनस-वि० [सं०] सुमन-संबंधी; मनोहर; रुचिकर । सीवीर-पु० [सं०] बदरीफल, बेर; कांजी विशेष जो जौसे
पु० आनंद; संतोष कृपा, दया; एक अस्त्रका नाम । बनायी जाती है। सिंधु नदीके पासका एक प्रदेशइस सौमनस्य-पु० [सं०] तुष्टि, प्रसन्नता; विवेक ।
प्रदेशके निवासी। सौमिक-वि० [सं०] सोमरस-संबंधी; सोमरस द्वारा सौवीरांजन-पु० [सं०] सुरमा । किया जानेवाला (यश); सोमयश संबंधी; चंद्र-संबंधी; एव-पु० [सं०] उत्तमता; सौंदर्य, सुडौलपन; दक्षता । चांद्रायण व्रत करनेवाला । पु० सोमरसका पात्र । सौसन-स्त्री० [फा०] लाली लिये नीले रंगका एक फूल सौमित्र-पु० [सं०] मैत्री सुमित्राके पुत्र लक्ष्मण ।
। उर्द-फारसी कवितामें जबानका उपमान है। सौमित्रा-स्त्री० दे० 'सुमित्रा'।
| सौह* -स्त्री० कसम, शपथ । अ० सम्मुख, समक्ष, सामने । सौमित्रि-पु० [सं०] सुमित्राके पुत्र लक्ष्मण शत्रुध्न । | सौहरी-पु० दे० 'शौहर'। सौमुख्य-पु० [सं०] सुमुखता, सुर्खरूई; प्रसन्नता । सौहार्द-पु० [सं०] हृदयकी सरलता; सद्भाव; मैत्री। सौम्य-वि० [सं०] सोम (चंद्रमा या सोमलता)-संबंधी; सौहाद्य-पु० [सं०] मैत्री, दोस्तो । सोमके गुणोंसे युक्त सुंदर, प्रिय: नम्र और सुशील; मृदुल- सौहीं-* भ० सामने, सम्मुख । | पु० एक तरहकी रेती। कोमल; स्निग्ध; शांत । पु० बुध; ब्राह्मणके संबोधनकी | सौहृद-वि० [सं०] मित्र-संबंधी। पु० मित्र मैत्री। उचित उपाधि; वह रस जो अभी रक्तके रूपमें लाल न | सौहृद्य-पु० [सं०] मैत्री, दोस्ती। हुआ हो।-ग्रह-पु० शुभ ग्रह । -दर्शन-वि० देखने में स्कंत्ता(त्त)-वि० [सं०] कृदनेवाला, छलाँग मारनेवाला। भला । -मुख-वि० सुंदर मुखवाला।
स्कंद-पु० [सं०] क्षरण, बहना; नाश, ध्वंस; पारा; उछसौम्यता-स्त्री० [सं०] स्निग्धता; नम्रता; उदारता; सौंदर्य । लना; शरीर; कात्तिकेय । -गुप्त-पु० गुप्तवंशका एक सौम्यत्व-पु० [सं०] मार्दव, कोमलता; सौंदर्य; उदारता । | प्रसिद्ध सम्राट् । -जननी-स्त्री० पार्वती। सौम्याकृति-वि० [सं०] सुंदर आकृतिवाला।
स्कंदक-पु० [सं०] कूदने उछलनेवाला व्यक्ति सैनिक । सौर-स्त्री० चादर सौरी मछली । वि० [सं०] सूर्य-संबंधी स्कंध-पु० [सं०] कंधा, पीठका ऊपरी भाग; पेड़का तना; सूर्यसे उत्पन्न; सूर्यापित; सूर्योपासक; सूर्यकी गतिका अनु- मोटी डाल; विज्ञान आदिका कोई विभाग; ग्रंथका भाग या सरण करनेवाला; देवता-संबंधी; मदिरा-संबंधी। पु. खंड जिसमें अनेक अध्याय होते हैं (जैसे भागवतके १२ सूर्यकी पूजा करनेवाला व्यक्ति शनि ग्रह । -मास- स्कंध); सेनाका कोई अंग या भाग; सेनाका ब्यूह समूह, पु० सूर्यसंक्रांतिके अनुसार होनेवाला महीन।। -लोक- झंड; पाँचों ज्ञानेंद्रियोंके विषय; जीवनके पाँच तत्त्व-रूप, पु० दे० 'सूर्यलोक'।-वर्ष,-संवत्सर-पु० सूर्यसंक्रांतिके वेदना, संशा, संस्कार और विज्ञान (बौद्ध); पिंड (जैन); अनुसार होनेवाला वर्ष ।
अभिषेकके अवसरपर काम आनेवाले छत्र, जलपूर्ण कलश सौरज*-पु० दे० 'शौर्य'
आदि उपकरण; युद्ध; सड़क, मार्ग; (स्टॉक) बेचनेके सौरभ-पु० [सं०] सुगंधि, खुशबू ; केसर धनिया; आम । | लिए रखा गया तरह-तरहके मालका भांडार । -पंजीसौरभित-वि० [सं०) सौरभयुक्त, सुगंधयुक्त, खुशबूदार ।
स्त्री० (स्टॉक रजिस्टर ) भांडार या गोदाममें मौजूद सौरस्य-पु० [सं०] सुरस होनेका भाव, सुरसता।
मालका विवरण लिखनेकी पंजी। -मणि-पु. एक -पु० [सं०] सुराज्य, अच्छा शासन ।
तरहका रक्षाकवच । -वाह-वाहक-पु० कंधेपर भार सौराष्ट्र-पु० [सं०] सुराष्ट्र देश, काठियावाड़ तथा गुज- वहन करनेवाला (बैल आदि)।-वा-वि० जो कंधेपर रातका पुराना नाम; सुराष्ट्र देशका निवासी ।-मृत्तिका- ढोया जाय। स्त्री० सुराष्ट्र देशकी एक तरहकी मिट्टी जो सुगंधित होती | स्कंधाचार-पु० [सं०] राजाका शिविर राजधानी; सेना है, गोपीचंदन ।
सैन्यस्थिति; व्यापारियोंके ठहरनेका स्थान । सौराष्ट्रिक-वि० [सं०] सौराष्ट्र प्रदेशसे संबद्ध । पु० एक | स्कंधिक-पु० [सं०] कंधेपर भार ढोनेवाला बैल; दे० विष; सुराष्ट्र-निवासी; काँसा ।
'स्कांधिक' । सौरास्त्र-पु० [सं०] एक दिव्य अस्त्र ।
स्कंभ-पु० [सं०] खंभा, टेक, सहारा पुरुष, परमेश्वर । सौरि-पु० [सं०] शनि; असन वृक्ष; * वसुदेव कृष्ण | स्कांधिक-पु० [सं०] ( स्टॉकिस्ट ) बिक्रीके लिए बहुत-सी -रत्न-पु० नीलम ।
चीजें अपनी दूकान या गोदाममें रखनेवाला। सौरी-स्त्री० सूतिगृह सफरी मछली ।
स्कूल-पु० [अं०] पाठशाला, अध्यापनका स्थान; विशिष्ट सौर्य-वि०सं०] सूर्य-संबंधी। पु० सूर्यका पुत्र, शनि वर्ष। विचारधारा। सौर्यप्रभ-वि० [सं०] सूर्यकी प्रभासे संबंध रखनेवाला।। सौलक्षण्य-पु०[सं०] सुलक्षण होनेका भाव, सुलक्षणता। स्खलन-पु० [सं०] पतन मार्गसे विचलित होना; लड़सौलभ्य-पु० [सं०] सुलभ होनेका भाव, सुलभता । खड़ाना; थरथराहट; भूल करना, गलती; क्षरण । सौवर्चल-वि० [सं०] सुवर्चल देश-संबंधी या वहाँ उत्पन्न स्खलित-वि० [सं०] लुढ़का हुआ, पतित; लड़खड़ाया
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स्टांप-स्तोत्र
८८२ हुआ; अस्थिर; मत्त; भूल करनेवाला; क्षरित; विफल । वि० दूधपीता। -रोग-पु० माताके दूधके विकारसे स्टांप-पु० [अं॰] पक्की लिखापढ़ी करने या अर्जीदावा, होनेवाला रोग। लिखनेका कागज; डाकखानेका टिकट; छाप, मोहर । स्तबक-पु० [सं०] गुच्छ; फूलोंका गुच्छा, गुलदस्ता, स्टीमर-पु० [अं०] भापसे चलनेवाला छोटा जहाज । मोरकी पूँछका पंख; समूहरेशमका झब्बा । स्टूल-पु० [अं०] तीन या चार पायोंकी एक कुसीनुमा | स्तब्ध-वि० [सं०] स्थिर, हद कड़ा; जड़ीभूत, गतिहीन; छोटी चौकी, तिपाई।
संज्ञाहीन; धीमा, सुस्त; रुद्ध । -दृष्टि,-नयन-वि० स्टेशन-पु० [अं॰] रेलगाड़ियोंके ठहरनेका स्थान जहाँ जिसकी पलकें न गिर रही हों, टकटकी बँध गयी हो । यात्री उतरते और चढ़ते हैं। रिक्शे, मोटर आदि सवारियों- -बाहु-वि० जिसके हाथ निश्चेष्ट हो गये हों। -मतिके ठहरनेका स्थान; कार्यविशेषके लिए लोगोंकी नियुक्ति | वि० मंदबुद्धि, जिसकी बुद्धि कुंठित हो । और निवासका स्थान (जैसे पुलिस स्टेशन)। -मास्टर- स्तब्धता-स्त्री०, स्तब्धत्व-पु० [सं०] जड़ता, कड़ापन पु० रेलवे स्टेशनका प्रधान अधिकारी।
स्थिरता; निश्चेष्टता, स्पंदनहीनता; धर्मड । स्तंब-० [सं०] गुल्म, प्रकांड-रहित पौधा-झिंटी आदि; स्तब्धाक्ष-वि० [सं०] दे० 'स्तब्धदृष्टि'।
तृणादिका गुच्छ झुरमुटा हाथी बाँधनेका खूटा, खंभा । स्तब्धि-स्त्री० [सं०] जड़ता स्थिरता, निश्चलता; दृढ़ता। स्तंभ-पु० [सं०] गतिहीनता; संशाहीनता; खंभा; पेड़का | स्तभि-स्त्री० [सं०] जड़ता। तना; सहारा, टेक मंत्रबलसे किसी शक्ति या अनुभूतिका स्तर-पु० [सं०] कोई फैली हुई चीज; तह; कालविशेषमें दमन; जड़ता; एक सात्त्विक भाव (सा०); (कॉलम) समा- पड़ी हुई भूमिकी परत; सतह मान; शय्या, पलंग । चारपत्रादिके पृष्ठका खड़ा विभाग या किसी विशेष विषयके | स्तरण-पु० [सं०] फैलाना, विछाना; पलस्तर करना। लिए निर्धारित स्थान । -लेखक-पु० (कॉलमिस्ट) समा- | स्तरिमा (मन्)-पु० [सं०] तल्प, सेज।
चार-पत्र में विशेष विषय पर लेखादि लिखनेवाला। स्तरीभूत-वि० [सं०] (स्ट्रैटिफाइड) जो स्तरके रूपमें परिस्तंभक-वि० [सं०] रोकनेवाला; कब्ज करनेवाला; वीर्य- णत हो गया हो। को शीघ्र स्खलित होनेसे रोकनेवाला ।
स्तव-पु० [सं०] प्रशंसा, स्तुति स्तोत्र । स्तंभन-वि० [सं०] जड़ बना देनेवाला; रोकनेवाला कब्ज स्तवक-पु० [सं०] स्तुति; स्तुतिपाठक, बंदीजन; फूलोंका करनेवाला । पु० कामदेवका एक बाण; सहारा देना; गुच्छा, गुलदस्ता समूह; अध्याय, परिच्छेद । जड़ीकरण; (मंत्रादिके द्वारा) किसीकी शक्ति कुंठित करना; | स्तवन-पु० [सं०] स्तुति करना; स्तोत्र । वीर्य आदिका स्त्राव आदि रोकना वीर्य रोकनेवाली दवा।। स्तवनीय, स्तवन्य-वि० [सं०] स्तुतिके योग्य । स्तंभित-वि० [सं०] स्थिर किया हुआ, दृढ़ किया हुआ; | स्तावक-वि० [सं०] स्तुति करनेवाला । पु० बंदीजन ।
जड़ीभूत, स्तब्ध; चकित; रोका हुआ; दबाया हुआ। स्तिमित-वि० [सं०] गीला, आई, स्थिर, निश्चल; शांत । स्तनंधय-वि० [सं०] स्तन-पान करनेवाला। पु० शिशु। -नयन-वि० जिसे टकटकी लग गयी हो। स्तन-पु० [सं०] स्त्रियोंका अंगविशेष, कुच; मादा पशुका स्तीर्ण-वि० [सं०] छितराया, बिखेरा, फैलाया हुआ। थन चूचुक, ढेपनी । -कलश,-कुंभ-पु० सुपुष्ट स्तन । स्तुक-पु० [सं०] केशगुच्छ; संतान । -कील-पु० स्तनका एक रोग, थनैली। -कुडमल,- स्तुत-वि० [सं०] जिसकी स्तुति की गयी हो, प्रशंसित । कोरक-पु० कली जैसा स्तन । -चूचुक-पु. ढेपनी। स्तुति-स्त्री० [सं०] गुणगान, प्रशंसा स्तोत्र चाटुकारिता। -त्याग-पु० स्तनपानका त्याग। -दात्री-स्त्री० स्तन- -पाठक-पु०स्तुतिका पाठ करनेवाला, बंदीजन ।-प्रियपान करानेवाली।-प-वि० स्तन-पान करनेवाला । पु० वि० प्रशंसाका इच्छुक ।-वचन,-वाद-पु० प्रशंसात्मक दुधमुँहा बच्चा । -पतन-पु० स्तनका ढीला पड़ना, लट- वचन, गुणानुवाद । -वादक-पु० प्रशंसा करनेवाला; कना।-पान-पुस्तनका दूध पीना।-पायी (यिन)- मुँहदेखी बोलनेवाला। वि० दे० 'स्तनप' । -मंडल-पु० स्तनका घेरा।-मुख-| स्तुत्य-वि० [सं०] स्तवनीय, प्रशंसनीय । पु० ढेपनी। -शोष-पु० स्तन सूखनेका एक रोग । स्तूप-पु० [सं०] केशगुच्छ ढेर, राशि: मिट्टी, ईट आदिसे स्तनन-पु० [सं०] ध्वनि; मेघशब्द; कराहना ।
बना दह, विशेषकर बौद्धोंका (बुद्धके अवशिष्ट चिह्न रखनेस्तनांशुक-पु० [सं०] स्तन बाँधने, ढकनेका कपड़ा। के लिए)। -भेदक-पु० स्तूप नष्ट करनेवाला। स्तनाग्र-पु० [सं०] ढेपनी, चूचुक ।
स्तन-पु० [सं०] चोर; लुटेरा; चोरी। -निग्रह-पु० स्तनावरण, स्तनोत्तरीय-पु०[सं०] स्तन ढकनेका कपड़ा। चोरोंका दमन ।
नित-वि० [सं०] गजित, ध्वनित, शब्दायमान । स्तेय-० [सं०] चोरी रहजन; चोरी गयी हुई या चोरी पु० मेघनिर्घोष ताली बजानेका शब्द, शब्द टंकोर । जाने योग्य वस्तु; छिपायी हुई या गोप्य वस्तु । स्तन्य-वि० [सं०] जो स्तनमें हो; स्तन संबंधी। पु० स्तन, स्तन्य-पु. [सं०] चोरी; चोर । दूध । -त्याग-पु० बच्चेका स्तन-पान छोड़ना । -दा- स्तोक-वि० [सं०] छोटा, लघु; कुछ; थोड़ा; नीच। वि० स्त्री० जिसके स्तनोंसे दूध निकले । -दान-पु. | -काय-वि० छोटे कदका । स्तनपान कराना स्तनसे दूध देना ।-प-वि० स्तन-पान | स्तोतव्य-वि० [सं०] स्तुत्य । करनेवाला । पु० दुधमुँहाँ बच्चा। -पान-पु० स्तनका स्तोता (त)-वि० [सं०] प्रार्थना, स्तुति करनेवाला। दूध पोना; शैशवकाल । -पायी(यिन्),-भुक(ज)- | स्तोत्र-पु० [सं०] स्तुति; स्तुत्यात्मक श्लोक; श्लोकबद्ध
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८८३
स्तोत्राह-स्थान स्तुतिपरक ग्रंथ। -कारी ० स्तोत्रका पाठ पु० संभोग, मैथुन । -स्वभाव-पु० स्त्रियोंकी प्रकृति करनेवाला।
खोजा। -हरण-पु० बलात् स्त्रीका हरण कर ले जाना। स्तोत्राह-वि० [सं०] स्तुत्य । '
-हारी(रिन)-पु० स्त्रीका बलात् हरण करनेवाला स्तोम-पु० [सं०] स्तुति, गुणगानयज्ञ समूह, राशि । । पुरुष । स्तोम्य-वि० [सं०] स्तुतिके योग्य ।
स्त्रीता-स्त्री०, स्त्रीत्व-पु. [सं०] स्त्री होनेका भाव, स्तौपिक-पु० [सं०] बुद्ध-द्रव्य, स्तूपमें रखे हुए दंत, अस्थि नारीत्व पत्नीत्व; नारीसुलभ कोमलता, दुर्बलता आदि । आदि अवशिष्ट पदार्थ ।
स्त्रण-वि० [सं०] स्त्री-संबंधी; स्त्रियोंके योग्य, नारीसुलभ स्त्रीद्रिय-स्त्री० [सं०] योनि ।
स्त्रीरत स्त्री द्वारा शासित । स्त्री-स्त्री० [सं०] औरत; पली; मादा पशु; सफेद चींटी, | स्त्र्यागार-पु० [सं०] अंतःपुर । दीमक । -कुसुम-पु० रजःस्राव । -गमन-पु० संभोग, स्त्र्याजीव-पु० [सं०] अपनी या दूसरी स्त्रियोंसे वेश्या. रतिक्रिया। -घातक,-न-वि०किसी स्त्री या पलीकी | वृत्ति कराकर रोजी कमानेवाला। हत्या करनेवाला ।-चरित्र-पु० स्त्रियोंके कार्य।-चित्त- स्थंडिल-पु० [सं०] अनावृत भूमि; यशके लिए साफ और हारी(रिन्)-वि० स्त्रियोंका मन हरण करनेवाला । चौरस की हुई चौकोर जमीन; सीमा । -शायी(यिन्) पु० शोभांजन, सहिजन ।-चिह्न-पु० योनि, स्त्री-संबंधी -वि०, पु० बिना बिस्तरके जमीनपर सोनेवाला। कोई चिह्न । -जन-पु० स्त्रीजाति । -जननी-स्त्री० | स्थ-वि० [सं०] (समासमें) ठहरा हुआ, स्थित; उपस्थित सिर्फ कन्याएँ उत्पन्न करनेवाली स्त्री। -जाति-स्त्री० संलग्न, रत; रहनेवाला । पु० स्थल, स्थान । -पतिस्त्रीवर्ग ।-जित-वि० स्त्रीके वशमें रहनेवाला,जनमुरीद। पु० राजा; शासक; शिल्पी, बढ़ई; मेमार, राजा सारथि । -तंत्र-पु० (आइनैरकी) स्त्री या स्त्रियों द्वारा परिचालित स्थगन-पु० [सं०] छदन, आवृत करना, ढकना; छिपाना; शासन-व्यवस्था । -द्विट(प),-द्वेषी(पिन)-पु. अपवारण; समिति आदिकी काररवाई स्थगित करना स्त्रियोंसे द्वेष करनेवाला, रमणी-द्वेषी। -धन-पु० वह (आधु०)। धन या संपत्ति जिसपर स्त्रीका ही अधिकार हो (जैसे स्थगित-वि० [सं०] ढका हुआ, आवृत; छिपाया हुआ; दहेज आदि)। -धर्म-पु० स्त्रियोंका कर्तव्य; स्त्री-संबंधी | अवरुद्ध कुछ समयके लिए मुलतबी किया हुआ। विधान; मैथुन, संभोग; रजःस्राव । -धर्मिणी-स्त्री० | स्थल-पु० [सं०] दृढ़ और सूखी भूमि; किनारा, कछार; ऋतुमती स्त्री। -नाथ-वि० स्त्री जिसकी स्वामिनी हो। धरती; स्थान; मैदान; भूभाग; ठहरनेका स्थान; ढूह -पण्योपजीवी(विन)-पु० वेश्याएँ रखकर जीविका । विषय (विचार आदिका); पुस्तकका अध्याय परिस्थिति, चलानेवाला। -पर-वि० कामी, लंपट । -पुर-पु० अवसर । -कमल-पु०,-कमलिनी-स्त्री० स्थल पर स्त्रियोंके रहनेका स्थान, अंत:पुर ।-प्रसंग-पु० संभोग । होनेवाला एक पुष्प, स्थलपद्म । -कुमुद-पु० करवीर । -प्रसू-स्त्री० दे० 'स्त्री-जननी'। -प्रिय-वि०स्त्रियोंको -चर,-चारी(रिन्)-वि० जमीनपर रहनेवाला प्यारा । पु० आम; अशोक । -बाध्य-वि० स्त्रीसे परे- (प्राणी)। -च्युत-वि० किसी स्थान या पदसे गिरा या शान किया जानेवाला। -बुद्धि-स्त्री० स्त्रीकी बुद्धि ।। हटाया हुआ। -देवता-पु० स्थानीय देवता । -नीरज -भोगपु० मैथुन । -रंजन-पु० पान। -रज(स)| -पु० स्थलपद्म । -पथ-पु० खुश्की रास्ता। -पम-पु० रजःस्राव ।-रत-वि० स्त्रीके प्रति विशेष अनुरक्त।। पु० मानकच्चू स्थलकमल; छत्रपत्र, तमालक। -पशिनी -रत्न-पु० उत्तम स्त्री लक्ष्मी। -राज्य-पु० स्त्रियों
-स्त्री० दे० 'स्थलकमलिनी' । -मार्ग-पु० खुश्की द्वारा शासित एक महाभारतोक्त प्रदेश दे० 'स्त्री-तंत्र'। रास्ता । -युद्ध-पु. भूभागपर चलनेवाली लड़ाई । -रोग-पु० स्त्रियोंके विशेष रोग। -लंपट-वि० स्त्रीका -वर्म(न)-पु० दे० 'स्थलमार्ग'। -शुद्धि-स्त्री० इच्छुक, कामी । -लक्षण-पु० कोई स्त्री संबंधी चिह्न । भूमिकी सफाई ।-सेना-स्त्री० स्थलपर लड़नेवाली सेना। -लिंग-पु० जननेंद्रिय, योनि, स्त्री-बोधक लिंग | स्थलो-स्त्री० [सं०] शुष्क भूमि; प्राकृतिक भूमि (जैसे (व्या०)। -लोल-वि० दे० 'स्त्री-लंपट'। -लौल्य-१० वनकी); उपत्यका । स्त्रीकी चाह । -वश,-वश्य-वि० स्त्री द्वारा शासित । | स्थलीय-वि० [सं०] स्थल, भूमि-संबंधी स्थानीय। -वित्त-पु० पत्नीसे प्राप्त होनेवाला धन । -वियोग- | स्थलेशय-वि० [सं०] भूमिपर सोनेवाला। पु० ऐसा पु० पत्नीसे पृथक् होना। -विषय-पु० मैथुन । - जीव (वाराह आदि)। व्यंजन-पु० स्त्री होनेके चिह्न-स्तन आदि । -व्रत-पु० स्थविर-वि० [सं०] हढ़, स्थिर, अचल; वृद्ध; प्राचीन अपनी पत्नीके सिवा दूसरी स्त्रीको कामना न करनेका आदरणीय । पु० वृद्ध व्यक्ति; ब्रह्मा; वृद्ध भिक्षु । व्रत, एकपत्नीव्रत । -शेष-वि० जिसमें केवल स्त्रियाँ स्थविरता-स्त्री० [सं०] वृद्धावस्था । बच रही हों। -संग-पु० स्त्रियोंके साथ संपर्क संभोग । | स्थाई-वि० दे० 'स्थायी' । -संग्रहण-पु० किसी स्त्रीका बलात् आलिंगन या भोग स्थाणु-वि० [सं०] दृढ़, स्थिर, अचल । पु० शिव; स्तंभ, करना । -संज्ञ-वि० ऐसे नामवाला जिसका अंत स्त्री- खंभा खूटी; पेड़का हूँठ । वाचक शब्दसे होता हो । -संभोग-पु० मैथुन । - | स्थातव्य-वि० [सं०] ठहरने योग्य, रहने योग्य । संसर्ग-पु० स्त्रियोंका संपर्क; मैथुन । -समागम-पु० स्थान-पु० [सं०] स्थित होने, ठहरनेकी क्रिया, टिकाव, मैथुन । -सुख-पु० संभोग; शोभांजन। -सेवन- ठहराव स्थिति, अवस्था; जगह; पद, आहृदा; संबंध;
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स्थानांतर-स्थिति
८८४ रहनेकी जगह, घर, देश, भूभाग, नगर, अवसर; विषय आदिको यह परिमित स्वराज्य प्राप्त हो। कारण; उपयुक्त अवसर पवित्र जगह, मंदिर आदि; अव- | स्थानेश्वर-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध तीर्थ, थानेश्वर । काश। -ग्राही पदाधिकारी-पु० (रिलीव्हिग ऑफि- स्थापक-वि० [सं०] स्थापित करनेवाला; खड़ा करनेसर) वह अधिकारी जो किसी अन्य अधिकारीके पदका वाला; स्थिर करनेवाला। पु० मूर्तिकी स्थापना करने. भार ग्रहण कर उसे छुट्टी आदि लेकर कहीं जाने या वाला कोई संस्था स्थापित करनेवाला; किसीके पास कुछ अपने पदसे कुछ कालके लिए हटनेका अवसर दे।-व्युत- जमा करनेवाला; सूत्रधारका सहायक (ना०)। वि० स्थानभ्रष्ट, अपने स्थानसे गिरा हुआ अपने पदसे स्थापत्य-पु० [सं०] भवन-निर्माण; अंतःपुरका रक्षक हटाया हुआ, पदच्युत । -त्याग-पु० निवास स्थानका | किसी भूभागके शासकका पद वास्तुविद्या ।-कला-स्त्री० त्याग पदकी हानि। -पति-पु० स्थानका अधिकारी वास्तुविद्या । -वेद-पु० एक उपवेद, वास्तुशास्त्र।। विहार आदिका अध्यक्ष । -पाल-पु० स्थानविशेषका स्थापन-पु० [सं०] खड़ा करना, स्थित करना; स्थिर रक्षक या प्रधान निरीक्षक प्रहरी, चौकीदार । -प्राप्ति- करना, जमाना; स्थापित करना (संस्था आदि); निर्देशन, स्त्री० किसी स्थान या पदका मिलना । -बद्ध करना- रंगमंचकी व्यवस्था; ध्यान धारणा; निवासस्थान; गर्भासक्रि० (टु इंटर्न) किसी व्यक्तिकी गति-विधि स्थान- धान संस्कार; पुंसवन, प्रतिपादन; लटकाना; अंगोंको विशेषके भीतर हो सीमित कर देना, दे० 'अंतर्वासित सशक्त करना। करना'। -मंग-पु. किसी स्थानकी बर्बादी या पतन । स्थापना-स्त्री० [सं०] रखना, जमाना, स्थापित करना; -माहात्म्य-पु० किसी स्थानका गौरव या देवता आदि- सँभालना एकत्र करना; संरक्षण करना; प्रतिपादन । के कारण प्राप्त महत्त्व । -वंचित-वि० (अनसीटेड) दे० स्थापनीय-वि० [सं०] स्थापित करने योग्य । 'अनासीन'। -सीमन-पु० ( लोकेलिजेशन) इधर- | स्थापयिता(त)-वि०[सं०] स्थापित करनेवाला, संस्थापक। उधर फैले हुए कार्यों, व्यापार, उपद्रवों आदिको बटोर- स्थापित-वि० [सं०] जिसकी स्थापना की गया हो; कर या काबू में लाकर एक स्थानपर आबद्ध करना, सीमित जमाया हुआ; कायम किया हुआ, प्रतिष्ठित किया हुआ। करना; (उद्योगादिका) क्षेत्र विशेषके भीतर कर दिया | स्थाप्य-वि० [सं०] स्थापित करने योग्य (मूर्ति आदि); जाना; किसीके लिए कोई स्थान निर्धारित करना या रखे जाने योग्य किसी पदपर नियुक्त किये जाने योग्य । बताना।
| स्थायिता-स्त्री०, स्थायित्व-पु० [सं०] बने रहनेका स्थानांतर-पु० [सं०] भिन्न, दूसरा स्थान । -गत-वि० ।
| भाव; टिकाव, ठहराव दृढ़ता, स्थिरता। जो अन्यत्र चला गया हो।
स्थायी(यिन)-वि० [सं०] स्थितियुक्त ठहरने, टिकनेस्थानांतरण-पु० [सं०] [सं०] (ट्रांसफर) किसी व्यक्ति या वाला, बना रहनेवाला; विशेष स्थितिमें रहनेवाला । वस्तुका एक स्थानसे हटाकर किसी दूसरे स्थानपर पहुँ- -भाव-पु. भावका एक प्रकार जो मनमें बना रहता चाया या भेजा जाना, तबादला करना।
है और परिपाक होनेपर रसावस्थामें परिणत होता है स्थानांतरित-वि० [सं०] (ट्रांसफर्ड) एक स्थानसे दूसरे | (रति, हास, क्रोध, शोक, जुगुप्सा, विस्मय, भय, उत्साह
स्थानपर किया हुआ; जिसका तबादला हो गया हो। और निर्वेद)। -समिति-स्त्री० (स्टैडिंग कमिटी) चुने स्थानाध्यक्ष-पु० [सं०] स्थानविशेषका रक्षक या शासक । हुए सदस्योंकी वह समिति जो अगले अधिवेशनतक सब स्थानापन-वि० [सं०] दूसरेकी जगह अस्थायी रूपसे काम | कामोंकी व्यवस्था करती रहे स्थायी रूपसे बनी रहकर करनेके लिए नियुक्त।
कोई विशेष कार्य करनेके लिए नियुक्त की गयी समिति । स्थानाबद्धकारी अधिनियम-पु०(पेगिंग ऐक्ट) वह अधि-स्थाह-पु० [सं०] थाल, कटोरा, बटलोई आदि पात्र । नियम जिसके अनुसार कुछ जातियों या वर्गोंका निवास | स्थाली-स्त्री० [सं०] मिट्टीके बने हुए पाकपात्र-हंडी, विशेष स्थान या क्षेत्रतक ही सीमित कर दिया गया हो। कड़ाही आदिः सोमरस तैयार करनेके काम आनेवाला (जैसा कि दक्षिण अफ्रीकामें किया गया है)।
एक तरहका पात्र; पाटला वृक्ष । -पुलाक-पु० स्थालीमें स्थानाश्रय-पु० [सं०] खड़े होनेकी जगह, आधार । पकाया हुआ चावल ।-पुलाक-न्याय-पु० एक चावलकी स्थानासेध-पु० [सं०] किसी व्यक्तिको किसी स्थानपर | परीक्षासे सारेका पता लग जानेकी तरह अंशके आधारकैद करना या रोक रखना।
पर अंशीके संबंधमें अनुमान करना । स्थानिक-वि० [सं०] स्थानविशेषसे संबद्ध, स्थानीय । स्थावर-वि० [सं०] गतिहीन; अचल; स्थायी; निष्क्रिय पु० स्थानविशेषके लिए उपयुक्त । -स्वशासन-पु० अचल संपत्ति-संबंधी। पु०पर्वत; कोई गतिहीन या निजीव विभिन्न नगरों, जिलों आदिको अपना स्थानीय प्रबंधादि पदार्थ (पत्थर, पौधा आदि)। करनेके लिए मिला हुआ अधिकार ।
| स्थित-वि० [सं०] खड़ा; ठहरा हुआ; टिका हुआ; रहता स्थानीय-वि० [सं०] स्थानविशेषसे संबंध रखनेवाला; हुआ घटित किसी स्थानपर रखा या नियुक्त किया हुआ; स्थानविशेषके लिए उपयुक्त। -करण-पु० दे० 'स्थान- किसी नियम, आदेश आदिका पालन करने में रत; रोका सीमन' ।-स्वशासन-पु० (लोकल सेल्फ गवर्नमेंट) देश हुआ, वारिता जड़ा हुआ, जमाया हुआ; स्थिर, ढ़ा या राज्योंके नगरों, जिलों आदिको प्राप्त अपनी सड़कें कृतसंकल्प; विहित धीर कर्तव्य परायण। -प्रज्ञ-वि० बनवाने, सफाई, पानी आदिकी व्यवस्था करनेका अधि- जो संयमी, मात्मसंतुष्ट, धीर,स्थिरबुद्धि और निष्काम हो। कार वह शासनपद्धति जिसके अनुसार नगरों, जिलों स्थिति-स्त्री० [सं०] रहना; ठहरना; निवास; रुकना;
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चुपचाप खड़ा रहना; अवस्था; सामाजिक, आर्थिक आदि दृष्टियोंसे देखी जानेवाली किसी व्यक्ति, संस्था, देश आदिकी दशा; अभियोग, वक्तव्य आदिपर प्रकाश डालनेवाली वे बातें जो कोई व्यक्ति अपनी ओरसे उपस्थित करे; स्वभाव, प्रकृति; स्थायित्व; पद, ओहदा; निर्वाह; जीवनका बना रहना; मर्यादा; किसी स्थानपर लगातार बने रहना; जड़ता, निश्चलता । - प्रद- वि० ढ़ता या स्थायित्व प्रदान करनेवाला । -स्थापक - वि० पूर्व अवस्था प्रदान करनेवाला; लचीला | -स्थापकत्व - स्त्री० ( इलैस्टिसिटी) (मोड़े या खींचे जाने के बाद) पुनः पूर्व अवस्था प्राप्त कर लेनेकी शक्ति या गुण, लचीलापन । स्थिर - वि० [सं०] द; गतिहीन; अचल; स्थायी; शांत; धीर; नियत; विश्वस्त; निश्चित । -चित्त- चेता (तस् ) - जि० अपने विचारों, मतादिपर पढ़ रहनेवाला, स्थिरबुद्धि । - बुद्धि-वि० जिसकी बुद्धि संकटादिके कारण विचलित न हो, चित्त । -मति - स्त्री० स्थिर बुद्धि । वि० स्थिर बुद्धिवाला | - मना ( नस् ) - वि० स्थिरचित्त । स्थिरक - पु० [सं०] सागौन । स्थिरता - स्त्री०, स्थिरत्व - पु० [सं०] स्थिर होनेका भाव, ढ़ता; अचलता; कठोरता; स्थायित्व; धीरता, शांति । स्थिरा - स्त्री० [सं०] स्थैर्ययुक्त स्त्री; पृथ्वी; शालपर्णी । स्थिरात्मा ( मनू ) - वि० [सं०] चित्त |
स्थिरानुराग - पु० [सं०] सच्चा प्रेम । वि० जिसका प्रेम स्थिर हो ।
|
स्थिरीकरण - पु० [सं०] स्थिर करना; अस्थिर रहनेवाली, घटने-बढ़नेवाली वस्तुओं, उनके स्वरूप, भावादिको स्थिरता प्रदान करना; ध्द करना; समर्थन । स्थूल - वि० [सं०] बड़ा; पीन, मोटा घना; बली; विषम; अपरिपक्व; मोटे हिसाब से अनुमान किया गया; सुस्त; ( व्याख्या या विवरण ) जो बारीकी या व्योरेके साथ न देकर मोटे तौरपर दिया गया हो । - बुद्धि - वि० मंदबुद्ध, मूर्ख । स्थूलता - स्त्री०, स्थूलत्व-पु० [सं०] मोटापन; मूर्खता । स्थैर्य - पु० [सं०] स्थिरता; बढ़ता; धैर्य; शांति; स्थायित्व । स्थौल्य - पु० [सं०] स्थूलता; भारीपन; बुद्धिकी मंदता । स्वपित - वि० [सं०] नहाया हुआ, स्नात । स्नात - वि० [सं०] नहाया हुआ । पु० वह जिसका वेदा ध्ययन पूरा हो गया हो; स्नातक । स्नातक - पु० [सं०] वह जो वेदाध्ययन समाप्त करनेके अनंतर स्नान कर गृहस्थाश्रममें प्रवेश करे; वह ब्राह्मण जो किसी धार्मिक उद्देश्य से भिक्षु बन गया हो; किसी विश्वविद्यालयकी शिक्षा समाप्त कर उपाधि प्राप्त करनेवाला व्यक्ति । - व्रत- पु० स्नातकके कर्तव्य । वि० दे० 'स्नातकव्रती' । - व्रती ( तिनू ) -- वि० स्नातक के कर्तव्यों का पालन करनेवाला | स्नातकोत्तर अध्ययन-पु० [सं०] (पोस्ट ग्रेजुएट स्टडी) स्नातक ( ग्रेजुएट) हो जानेके बाद किया जाने, जारी रखा जानेवाला अध्ययन ।
|
स्थिर - स्पंद
आदिका सेवन; जलकी सहायतासे धोकर शुद्ध करना; मूर्तिको नहलाना। -गृह-पु० नहानेका कमरा । - तीर्थ- पु० वह स्थान जहाँ धार्मिक स्नान किया जाय । - वेश्म (न्) - पु० स्नानगृह । - शाला - स्त्री० स्नाना
गार ।
स्नानांबु पु० [सं०] स्नान करनेका जल । स्नानागार - पु० [सं०] दे० 'स्नानगृह' । स्नानी ( निन् ) - वि० [सं०] स्नान करनेवाला । स्नानोदक - पु० [सं०] दे० 'स्नानांबु' । स्नापक - पु० [सं०] स्नान करानेवाला सेवक । स्नापित - वि० [सं०] नहलाया हुआ । स्नायविक - वि० [सं०] स्नायु-संबंधी । स्नायी (यिन् ) - वि० [सं०] स्नान करनेवाला । स्नायु- स्त्री० [सं०] रग, नाही; पेशी; धनुष्की डोरी । पु० एक रोग जिसमें अंगों के छोरपर चर्मस्फोट होता है । - मंडल, - संस्थान - पु० (नर्व्हस सिस्टम) सुषुम्ना तथा उससे संबद्ध मस्तिष्ककी और शरीर के अन्य भागोंकी नाड़ियों का समूह, नाड़ी संस्थान । -रोग-पु० नहरुआ रोग । - शूल - पु० स्नायुओंमें होनेवाली वेदना । स्निग्ध - वि० [सं०] तेल लगा हुआ; चिपकनेवाला; चिकना; आर्द्र; ठंढा करनेवाला; अनुरक्त; दयालुः मृदुल; सुंदर, प्रिय; धना । -जन-पु० प्रिय व्यक्ति ।
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स्नुषा - स्त्री० [सं०] पुत्रवधू; थूहड़ । स्नुहास्नुहि, स्नुही - स्त्री० [सं०] थूहड़ । स्नेह - पु० [सं०] [प्रेम, मुहब्बत कोमलता; दयालुता; तेल, मलाई आदि चिकने पदार्थ; वसा, भेजा आदि शरीर के रसवाले पदार्थ; आर्द्रता; एक राग । -कुंभ, - घट - पु० तेल रखनेका भाँड़ा आदि । - गर्भ-पु० तिल । - पक्क - वि० तेलमें तला हुआ। -पान - पु० प्रेमका पात्र, प्यारा व्यक्ति; तेलका बरतन । -पान-पु० दवाके रूप में तेल पीना । - प्रिय-पु० दीपक । वि० जिसे तेल अधिक प्रिय हो । - बद्ध - वि० प्रेमसूत्र में बँधा हुआ । - भांड - पु० तेल रखनेका बरतन । -सम्मेलन- पु० ( सोशल गैदरिंग ) दे० 'प्रीति सम्मेलन' । -सार- पु० मज्जा | वि० जिसका मुख्य अंग तेल हो । स्नेहक - वि० [सं०] प्रेम करनेवाला, प्रेमी; दयालु । स्नेहन-पु० [सं०] तैलमर्दन; तैलयुक्त होना; उबटन । स्नेहाकुल- वि० [सं०] प्रेमसे विह्वल । स्नेहाश, स्नेहाशय - पु० [सं०] दीपक । स्नेहित- वि० [सं०] जिससे प्रेम किया गया हो; दयालु; प्रेमी; तेल लगाया हुआ । पु० मित्र ।
स्नेही ( हिन्) - वि० [सं०] प्रेमयुक्त; तैलयुक्त | पु० प्रेम करनेवाला; मित्र; तेल मलनेवाला । स्नेहोत्तम पु० [सं०] तिलका तेल |
स्नेझ - वि० [सं०] स्नेह करने योग्य; तेल लगाने, चिकनाने योग्य ।
स्पंज - पु० [अ०] बहुतसे छेदों और रेशोंवाला एक मुलायम पदार्थ जो पानी ग्रहण कर लेता और दबानेपर निकाल देता है, मुरदाबादल ।
स्नातव्य - वि० [सं०] स्नान कराने योग्य ।
स्नान - पु० [सं०] जलसे सारे शरीरको धोना; धूप, वायु स्पंद-पु० [सं०] कंपन; प्रस्फुरण, फड़कना; गति ।
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स्पंदन - स्फुरित
स्पंदन - पु० [सं०] कंपन, हिलना; विस्फुरण, फड़कना । स्पंदित - वि० [सं०] कंपायमान, काँपता हुआ; गतिशील किया हुआ; गया हुआ । पु० स्पंदन, फड़कन; कंपन | स्पर्द्धन, स्पर्धन- पु० [सं०] होड़; ईर्ष्या । स्पर्द्धनीय, स्पर्धनीय - वि० [सं०] स्पर्द्धा करने योग्य; अभिलषणीय ।
स्पर्द्धा स्पर्धा - स्त्री० [सं०] छोड़, प्रतियोगिता; ईर्ष्याः हौसला, अभिलाषा की बराबरी; चुनौती । स्पर्दी (नि), स्पर्धी (र्धिन्) - वि० [सं०] होड़, प्रति योगिता करनेवाला; ईर्ष्यालु; घमंडी । स्पर्श - पु० [सं०] छूना, संपर्क, संपर्कशान; त्वचाका विषयः छूने से होनेवाला ज्ञान ( ताप आदिका ); प्रभाव; रोग; 'क्' से 'म्'तकके वर्ण; ग्रहणको छायाका आरंभ | - कोण - पु० परिधिके किसी विंदुपर किसी सीधी रेखाका संपर्क होनेसे बननेवाला कोण । -ज- वि० स्पर्शसे उत्पन्न होनेवाला । -जन्य - वि० दे० 'स्पर्शज' । - दिशा - स्त्री० ग्रहण में छाया के स्पर्शकी दिशा । -मणि - पु० पारस पत्थर । - रेखा - स्त्री० ( टैनजेंट ) वृत्तकी परिधिको एक विंदुपर स्पर्श करती हुई बाहर ही बाहर एक ओरसे दूसरी ओर जानेवाली सरल रेखा । - वर्ण - पु० 'कु' से 'म' तक के वर्ण । - वेद्य- वि० स्पर्शके द्वारा जिसका ज्ञान हो । - संचारी (रिन् ) - वि० संक्रामक | - सुख - वि० जिसका स्पर्श आनंददायक हो । - स्नान - पु० ग्रहण आरंभ होनेके समयका स्नान । - हानि - स्त्री० त्वचाकी स्पर्शसे संवेदन ग्रहण करनेकी - शक्तिका नष्ट हो जाना ।
स्पर्शक - वि० [सं०] छूनेवाला; अनुभव करनेवाला । स्पर्शनीय - वि० [सं०] छूने योग्य | स्पर्शनेंद्रिय - स्त्री० [सं०] स्पर्शकी इंद्रिय, त्वचा । स्पर्शी (शि) - वि० [सं०] छूनेवाला, प्रवेश करनेवाला (समासांतमें) ।
स्पर्शेद्रिय- स्त्री० [सं०] स्पर्शका शान प्राप्त करनेवाली इंद्रिय, त्वचा ।
स्पर्शोपल - पु० [सं०] पारस पत्थर |
स्पष्ट - वि० [सं०] जो साफ-साफ देखा जा सके; व्यक्त; प्रत्यक्ष; बोधगम्य; सरल, सीधा (वक्रका उलटा ); वास्तविक, सत्यः सही । - गर्भा - स्त्री० वह स्त्री जिसके गर्भके साफ चिह्न देख पढ़ें । - तारक- वि० साफ दिखाई देने वाले तारोंवाला (आकाश) । - भाषी ( चिनू ), - वक्ता - ( क्तृ ); - वादी ( दिन्) - वि० साफ-साफ कहनेवाला स्पष्टार्थ - वि० [सं०] जिसका अर्थ साफ, सुबोध दो । स्पष्टीकरण-पु० [सं०] किसी बातको सुगम करके समन झाना, स्पष्ट करना ।
।
स्पष्टीकृत - वि० [सं०] स्पष्ट किया हुआ । स्पृश्य - वि० [सं०] छूने लायक; अधिकृत करने योग्य । स्पृष्ट-वि० [सं०] छुआ हुआ; " से प्रभावित; पहुँचनेवाला | पु० 'क्' से 'म्'तकके वर्णोंके उच्चारणमें होनेवाला आभ्यंतर
प्रयत्न ।
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८८६
स्पृहणीय - वि० [सं०] जिसके लिए स्पृहा की जाय, अभिलषणीयः ईर्ष्या करने योग्य; रमणीय, मोहक । स्पृहयालु - वि० [सं०] इच्छा करनेवाला, अभिलाषी । स्पृहा - स्त्री० [सं०] अभिलाषा; धर्मानुकूल पदार्थ की प्राप्तिकी कामना (न्या० ); ईर्ष्या । स्पृहालु - वि० [सं०] दे० ' स्पृहयालु' |
स्पृही ( हिन्) - वि० [सं०] इच्छुक; ईर्ष्या करनेवाला । स्पृह्य - वि० [सं०] बांछनीय ।
स्फटन, स्फटिकीकरण- पु० [सं०] ( क्रिस्टेलिजेशन ) ऐसी - प्रक्रिया करना जिससे कोई वस्तु स्फटिकका (या स्फटिक सश) रूप ग्रहण कर ले; निश्चित और ठोस आकार धारण करना ।
स्फटा - स्त्री० [सं०] साँपका फन । स्फटि, स्फटी-स्त्री० [सं०] फिटकिरी । स्फटिक- पु० [सं०] बिलौर; सूर्यकांत मणिः कपूर; फिटकिरी | वि० (क्रिस्टलाइन) पीसनेपर जिसके कण चमकीले और खुरदरे जान पड़ें। -प्रभ - वि० स्फटिक जैसा चमकीला, पारदर्शी । - मणि - पु०, - शिला - स्त्री० बिलौर पत्थर ।
स्फटिकाचल- पु० [सं०] कैलास पर्वत । स्फटिकाद्रि- पु० [सं०] कैलास पर्वत । स्फटित - वि० [सं०] विदीर्ण |
स्फरण - पु० [सं०] काँपना; फड़कना; प्रवेश करना । स्फार - वि० [सं०] बड़ा; बढ़ा हुआ; विकट; घना; ऊँचा (स्वर); फैला हुआ; बहुत, प्रचुर । पु० वृद्धि; धक्का | स्फारण - पु० [सं०] स्फुरण, कंपन । स्फारित - वि० [सं०] फैलाया हुआ ।
स्फालन - पु० [सं०] हिलाना, कपाना; फटफटाना; थपथपाना; घर्षण ।
स्फीत - वि० [सं०] बढ़ा हुआ; घना; मोटा; फूला हुआ; सफल; समृद्ध; बहुत अधिक ।
स्फीति - स्त्री० [सं०] वृद्धि; प्राचुर्य; मुद्रा आदिका परिमाण बहुत अधिक बढ़ जाना ।
स्फुट - वि० [सं०] फटा हुआ; खिला हुआ, विकसित; व्यक्त, प्रकट; स्पष्टः प्रथित; फैला हुआ; अत्युच्च (स्वर); फुटकर । - चंद्रतारक - वि० चंद्रमा और ताराओंसे प्रकाशित (रात्रि) । - पुंडरीक - पु० (हृदयका) खिला हुआ कमल । स्फुटन- पु० [सं०] फटना, विदीर्ण होना; विकसित होना; ( जोड़ों का) चटकना ।
स्फुटा - स्त्री० [सं०] साँपका फन ।
स्फुटित - वि० [सं०] फटा हुआ; खिला हुआ । स्फुटीकरण - पु० [सं०] प्रकट, स्पष्ट करना; ठीक करना । स्फुत्कार - पु० [सं०] फुफकार |
स्फुरण - पु० [सं०] काँपना, हिलना; फड़कना ( अंग); फूटकर व्यक्त होना; चमकना; मनमें एकाएक आना । स्फुरति * - स्त्री० दे० 'स्फूर्ति' ।
स्फुरना* - अ० क्रि० हिलना; फड़कना; व्यक्त होना; प्रकाशित होना ।
स्पृष्टास्पृष्ट- पु०, स्पृष्टास्पृष्टि - स्त्री० [सं०] छुआछूत, स्फुरित- वि० [सं०] स्पंदनयुक्त, कंपित; अस्थिर; चमकता स्पर्शास्पर्श, परस्पर स्पर्शन ।
हुआ; व्यक्त, प्रकट ।
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सफेद
दिलानेवाला ।
स्फुर्तना, स्फुर्दना* - स्त्री० स्फूर्ति; किसी बातका अचा नक ज्ञान होना; स्पष्टतः देख पड़ना; प्रकाशित होना । स्फुलिंग - पु० [सं०] अग्निकण, चिनगारी । स्फुलिंगिनी - स्त्री० [सं०] अग्निकी सात जिह्वाओं में से एक । स्मारी (रिन्) - वि० [सं०] स्मरण रखनेवाला; याद स्फूर्ज - पु० [सं०] बादलों की गड़गड़ाहट; इंद्रका वज्र । स्फूर्जित - वि० [सं०] गर्जित; गरजने वाला । स्फूर्त - वि० [सं०] कंपित; जिसकी अचानक स्मृति हुई हो । स्फूर्ति - स्त्री० [सं०] कंपन, स्फुरण; उछलना; मानसिक आवेश, उत्तेजना; उत्साह; तेजी, फुरती । स्फोट - पु० [सं०] फूटकर निकलना; फैलना; (किसी बातका) प्रकट हो जाना; फोड़ा; अर्बुदः टुकड़ा । स्फोटक - पु० [सं०] फोड़ा; फुंसी; भल्लातक । स्फोटन - पु०
[सं०] फाड़ना, विदारण करना; व्यक्त करना; अचानक फट पड़ना; उँगलियाँ चटकाना । स्फोटा - स्त्री० [सं०] साँपका फन; हाथ हिलाना; अनंतमूल ।
स्फोटित - वि० [सं०] जिसका स्फोट किया गया हो; प्रक टित । -नयन - वि० जिसकी आँखें फोड़ दी गयी हों । स्फोटिनी - स्त्री० [सं०] कर्कटी, ककड़ी । स्मयन - पु० [सं०] मंद हास, मुसकान । स्मयी (यिन् ) - वि० [सं०] मंद हासयुक्त, मुसकानेवाला । स्मर - पु० [सं०] स्मृति, स्मरण; प्रेम; कामदेव । -कथास्त्री० प्रेमवार्ता । - ज्वर-पु० कामज्वर, कामजन्य ताप । - दशा - स्त्री० शरीरकी कामजन्य अवस्था (असौछव, ताप, पांडुता, कृशता, अरुचि, अधृति, अनालंबन, तन्मयता, उन्माद और मरण) । - दहन - पु० शिव । - पीडित- वि० कामदेवका सताया हुआ । - प्रियास्त्री० रति । - शत्रु-पु० शिव । -शर- पु० कामदेव के
बाण । - सख- पु० ऋतुराज; चंद्रमा । - हर- पु० शिव । स्मरण - पु० [सं०] स्मृति, याद; चिंता; स्मृतिशक्ति; स्मृतिके आधारपर हस्तांतरित होना; देवताके नामका जप (भक्तिका एक प्रकार); खेदपूर्ण स्मृति; एक अर्था लंकार जहाँ कोई सदृश वस्तु (कभी-कभी विसदृश वस्तु) देखकर, सुनकर या सोचकर किसी विशेष वस्तुका स्मरण हो आवे । - पत्र - पत्रक - पु० याद दिलाने के लिए लिखा हुआ पत्र । - शक्ति - स्त्री० याद रखनेकी शक्ति । स्मरणीय - वि० [सं०] स्मरण करने योग्य | स्मरना * - स० क्रि० याद करना ।
स्मरांध - वि० [सं०] कामांध |
स्मराकुल- वि० [सं०] कामरोग से ग्रस्त, कामविह्वल । स्मरातुर - वि० [सं०] कामातुर । स्मर्ण * - पु० दे० 'स्मरण' ।
स्मर्तव्य - वि० [सं०] स्मरणके योग्य; जिसकी केवल स्मृति शेष रह गयी हो ।
स्मर्ता (र्तृ) - वि० [सं०] याद करने, रखनेवाला | स्मर्य - वि० [सं०] स्मरणीय ।
स्मशान, स्मसान - पु० दे० 'श्मशान' । स्मार - पु० [सं०] (मेमो) दे० 'ज्ञापन' । स्मारक - वि० [सं०] याद दिलानेवाला । पु० किसीकी स्मृति रक्षाके अभिप्रायसे निर्मित भवन, स्तंभ आदि ५६ - क
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स्फुर्तना
- स्थाना
( मेमोरियल ) । - ग्रंथ - पु० (कमेमोरेशन वाल्यूम) किसी विद्वान्, दार्शनिक, नेता आदिकी स्मृति बनाये रखने के लिए रचित ग्रंथ ।
स्मार्त - वि० [सं०] स्मृति-संबंधी; जो स्मृति में हो; स्मृतिके आधारपर बना हुआ, स्मृतिविद्दित; वैध; स्मृतिको माननेवाला; गृह-संबंधी (जैसे अग्नि) । पु० स्मृतिविहित कर्म; स्मृतियों के अनुसार चलनेवाला एक संप्रदाय इस संप्रदायका अनुयायी । - कर्म (न्) - पु० स्मृतिविहित कर्म । स्मित- पु० [सं०] मंद हास, मुसकान । वि० खिला हुआ;
मुसकाता हुआ । -मुख - वि० हँसमुख | स्मिति - स्त्री० [सं०] मंदहास; हास ।
स्मृत - वि० [सं०] स्मरण किया हुआ; उल्लिखित । स्मृति-स्त्री० [सं०] स्मरण, याद; चिंतन; एक संचारी भाव; धर्मशास्त्र । - उपायन - पु० ( स्वेनीर) पुरानी घटनाओं, अवसरों, स्थानों आदिकी स्मृति बनाये रखनेके लिए रखा गया या किसीको भेंट में दिया गया चित्रादिका संग्रह या अन्य कोई वस्तु । - कार - पु०स्मृतिका निर्माता - - कारक - वि० स्मरण शक्ति बढ़ानेवाला । - भ्रंश - पु० स्मृतिका नष्ट हो जाना, याद न रहना; ज्ञान न रहना । - विभ्रम- पु० स्पष्ट स्मरण न होना । विरुद्ध - वि० शास्त्रविरुद्ध । - शास्त्र - पु० धर्मशास्त्र । -शेष- वि० जिसकी केवल स्मृति रह गयी हो, गत, मृत । पु० ( रेलिक) किसी महात्मा या महापुरुषके शरीरकी अस्थि, केश, दाँत आदि अथवा उसका कोई वस्त्र, खड़ाऊँ, पात्र आदि जो उसकी मृत्युके बाद उसकी स्मृतिके रूपमें सुरक्षित रखा गया हो। - शैथिल्य - पु० स्मरणशक्तिकी दुर्बलता । - सम्मत- वि० धर्मशास्त्रविहित । - सिद्धवि० शास्त्रविहित | -हीन- वि० जो स्मरण न रख सके, विस्मरणशील |
स्यंद-पु० [सं०] रिसना, चूना, टपकना, स्राव; प्रवाहित होना; पसीना निकलना; गलना, पानी होना । स्यंदन - वि० [सं०] तेजीसे जानेवाला (जैसे रथ); बहने - वाला; रिसनेवाला; गलनेवाला । पु० रथ; युद्धरथ; वायु; तीव्र गति या प्रवाह; स्राव; जल; तिनिश वृक्ष; तिंदुक वृक्ष
स्पंदनारूढ - वि० [सं०] रथारूढ ।
स्यंदी (दि) - वि० [सं०] स्राव करनेवाला, रिसनेवाला । स्यमंतक - पु० [सं०] एक प्रसिद्ध मणि जिसे चुरानेका दोष कृष्णको लगा था ।
स्यात् - अ० [सं०] कदाचित्, शायद ।
स्याद्वाद - पु० [सं०] जैनोंका संशयवाद, अनेकांतवाद । स्थान* - वि० दे० 'स्याना' । - पन - पु० चतुरता, चालाकी ।
स्यानप* - पु० दे० 'स्थानपन' ।
स्याना - वि० चतुर, होशियार; धूर्त; बालिग, प्रौढ । पु० बड़ा-बूढ़ा; ओझा, नंबरदार, मुखिया; हकीम । -चारी - स्त्री० गाँवके मुखियाको मिलनेवाला रसूम । -पनपु० बालिग होनेकी अवस्था, युवावस्था; होशियारी,
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- स्रोन
स्यापा
चालाकी; धूर्तता ।
स्थापा- ५० दे० 'सियापा' । मु०- पड़ना - रुदन क्रंदन होना; सुनसान, उजाड़ होना ।
स्याबास * - अ० दे० 'शाबास' ।
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स्याम - पु० बरमाके पूर्व में स्थित एक देश; * दे० 'श्याम' । * वि० दे० 'श्याम' । - करन - पु० दे० 'श्यामकर्ण' । - ताई - स्त्री० दे० 'श्यामता' ।
-ता
स्यामक* - पु० वसुदेवके एक भाई, श्यामक ।
स्यामल* - वि० दे० 'श्यामल' | -ता - स्त्री० श्यामलता, साँवलापन |
स्यामलिया * - पु० कृष्ण ।
स्यामा * - स्त्री० दे० 'श्यामा' |
स्यार - पु० गीदड़, सियार । -जन- पु० डरपोक आदमी । - पन - पु० शृगालकीसी आदत ।
स्यारी - स्त्री० शृगाली, गीदड़ी; । जाड़ेकी फसल ।
स्याल - पु० स्यार; [सं०] साला, श्याल | स्यालक - पु० [सं०] साला ।
स्थालिका - स्त्री० [सं०] पत्नीकी छोटी बहन ।
स्याली - स्त्री० [सं०] साली |
स्यालू - पु० ओढ़नी, चादर, सालू ।
स्यावज* - पु० सावज, शिकार । स्याह - वि० [फा०] काले कानोंवाला एक हिंस्र जंतु (समास भी) । - गोसर* - पु० दे० 'सियाइगोश' । - जीरा - पु० काला जीरा । - तालू - पु० वह घोड़ा जिसका तालू काला हो ( यह अशुभ माना जाता है ) । स्वाहा- पु० दे० 'सियाहा' । स्याही स्त्री० [साही नामक जानवर; [फा०] कालापन; अँधेरा; कालिख; काजल; रोशनाई; दाग; दोष, ऐब । - चट- पु० सोख्ता । दान-पु० दवात । -साज़पु० स्याही बनानेवाला । - सोख - पु० सोख्ता (ब्लाटिंग पेपर) | मु० - जाना - उम्र ढलना । - दौड़ना - स्याही छा जाना। -धो जाना-दुर्भाग्य या दोष दूर होना। - लगाना -मुँह काला करना, बदनाम करना । स्यूत - वि० [सं०] सिया हुआ; बुना हुआ; भिदा हुआ । स्यूति - स्त्री० [सं०] सिलाई; बुनाई; संतान; थैला | स्यूना - स्त्री० [सं०] किरण; कमरबंद | स्यूम - पु० [सं०] जल; किरण । स्यूमक- पु० [सं०] आनंद |
|
स्याँ स्यो* - अ० सहित; नजदीक, पास । स्योनाक- पु० [सं०] एक वृक्ष, सोनापादा | ग* - पु० दे० 'श्रृं ंग' |
स- पु० [सं०] पतन; शयन, सोना । स्रंसित - वि० [सं०] गिराया हुआ; ढीला किया हुआ । सी (सिन्) - वि० [सं०] फिसलने, गिरनेवाला; लटकनेवाला; ढीला पड़नेवाला; पात होनेवाला (गर्भ) । स्रक (ज) - स्त्री० [सं०] पुष्पहार (विशेषकर सिरपर बाँधनेका); माला; एक वृक्ष; एक वृत्त; एक योग (ज्यो० ) । स्रग* - स्त्री० दे० 'स्रक' ।
गाल * - पु० गीदड़ ।
खग्धरा - स्त्री० [सं०] एक वृत्त; एक देवी (बौद्ध) ।
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स्रग्विणी - स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त; एक देवी । सृजन * - पु० सृष्टि, सर्जन ।
नजना* - स० क्रि० रचना, बनाना, निर्माण करना ।
स्रद्धा * - स्त्री० दे० 'श्रद्धा' |
स्रम* - पु० श्रम, मेहनत ।
स्रमना * - अ० क्रि० श्रम करना; थक जाना । स्रमित* - वि० श्रमित, थका हुआ, क्लांत ।
स्रवंती - स्त्री० [सं०] जलप्रवाह; नदी; एक बूटी; यकृतप्रदेश ।
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स्रव - पु० [सं०] क्षरण, स्राव; निर्झर; प्रवाह; * श्रवण । स्रवण- पु० [सं०] बहना, प्रवाहित होना; गर्भपात; प्रस्वेद । स्रवन* - पुं० दे० 'श्रवण' |
स्रवना* - अ० क्रि० टपकना, चूना; गिरना । स० क्रि० बहाना, टपकाना; गिराना ।
स्रष्टव्य - वि० [सं०] सर्जन करने योग्य |
स्रष्टा (ष्ट्र ) - वि० [सं०] निर्माता, रचयिता । पु० सृष्टिका निर्माण करनेवाला, ब्रह्मा ।
त्रस्त - वि० [सं०] च्युत, पतित; ढीला पड़ा हुआ; हिलता हुआ, लटकता हुआ; धँसा हुआ (जैसे नेत्र) । स्त्राध* - पु० दे० 'श्राद्ध' |
स्राप * - पु० दे० 'शाप' | खापित* - वि० दे० 'शापग्रस्त' ।
स्राव - पु० [सं०] बहाव, क्षरण; टपकना, रिसना; गर्भपात; निर्यास ।
स्रावक - वि० [सं०] बहाने, स्राव करानेवाला । स्रावनी * - स्त्री० दे० 'श्रावणी' | स्रावित - वि० [सं०] स्राव कराया हुआ 1
स्रावी ( चिन् ) - वि० [सं०] बहाने वाला; टपकानेवाला, आनेवाला |
स्त्राव्य - वि० [सं०] स्राव कराने योग्य । त्रिंग* - पु० दे० 'शृंग' ।
स्त्रिजन * - पु० सर्जन, सृष्टि, रचना | स्त्रिय* - स्त्री० मंगल, कल्याण ।
नुक्र (च्) - स्त्री० [सं०] यज्ञाग्नि में घी डालने के लिए पलाश या खदिरकी लकड़ीकी बनी हुई खुवा ।
स्रुत - वि० [सं०] बहा हुआ, क्षरित; जो रिसकर खाली हो गया हो; * दे० 'श्रुत' ।
स्रुति - स्त्री० [सं०] बहाव; क्षरण; निर्यास; स्रोत, प्रवाह; * दे० 'श्रुति' । - कीर्ति* - स्त्री ० ' श्रुतिकीर्ति' । - माथ* - पु० विष्णु ।
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खुवा - स्त्री० [सं०] धीकी आहुति डालनेकी एक करछी ( लकड़ी की बनी ); शल्लकी ।
त्रेनी * - स्त्री० दे० 'श्रेणी' | स्रोत- पु० [सं०] धारा, सोता ।
स्रोत (स ) - पु० [सं०] जलप्रवाह, धारा; नदी; तीव्र वेग; शरीर के पोषण पहुँचानेवाले मार्ग; तरंग । स्रोतस्वती, स्रोतस्विनी - स्त्री० [सं०] नदी । सोता* - पु० दे० 'श्रोता' ।
स्रोतोंजन (स्रोतोंऽजन ) - पु० [सं०] सुरमा | स्रोन * - पु० दे० 'श्रवण' ।
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स्रोनित-स्व स्रोनित*-पु० दे० 'शोणित' ।
पक्षका व्यक्ति, मित्र; अपना मत ।-पक्षत्यागी(गिन्)स्लीपर-पु० [अ० 'स्लिपर"] एड़ीकी ओर खुली हुई जूती; वि० (रेनीगेड) अपने पूर्व-विचारों या सिद्धांतोंका, अपने लकड़ीका चौकोर लंबा टुकड़ा (जो रेलकी पटरियोंके नीचे पक्षवालोंका, परित्याग कर देनेवाला ।-प्रकाश-वि० जौ बिछाते हैं)।
अपने आप स्पष्ट हो; स्वयं प्रकाशित ।-बंधु-पु० अपना स्लेट-स्त्री० [अं॰] एक तरहके काले पत्थरकी चौकोर संबंधी या मित्र । -भट-पु. वह जो स्वयं अपनी रक्षा पटरी जो लिखनेके काम आती है।
करता हो। -भाउ*-पु० स्वभाव, प्रकृति । -भावस्व-पु० [सं०] आत्मीय जन, संबंधी; आत्मा विष्णुधन, पु. अपनी अवस्था; सहज प्रकृति । -भावज,संपत्ति । वि० आत्मीय, अपना; सहजात, स्वाभाविक । भावजनित-वि० सहज, प्राकृतिक ।-भावतः(तस)-गत-वि० आत्मीय; अपने प्रति कथित । अ० आप अ० स्वभावसे ही, प्रकृतितः। -भावसिद्ध-वि० सहज, ही आप (कहना)। -गत कथन-पु० किसी पात्रका प्राकृतिक । -भावोक्ति-स्त्री० दे० क्रममें। -भू-वि० बोलकर अपना विचार इस प्रकार व्यक्त करना जैसे दूसरे आप ही आप उत्पन्न होनेवाला । पु० ब्रह्मा, विष्णु, शिव । उसे सुनते न हों।-गृह-पु० अपना घर ।-गृहस्मारी- स्त्री० स्वदेश | -रस-पु० किसीका अपना (अमिश्रित) (रिन्)-वि० (होमसिक) जिसे बाहर जानेपर बार-बार रस पत्रादिका पीसकर निकाला हुआ रस, प्राकृतिक अपने घरका स्मरण आये, घरसे दूर जानेपर जिसे दुःख- स्वाद तैलीय पदार्थ सिलपर पीसनेपर लगी हुई तरौंछ; का अनुभव हो ।-चालित तोप-स्त्री० [हिं०](ऑटोमैटिक अपनी मनोवृत्ति अपने लोगोंके प्रति होनेवाली भावना। गन) बिना किसी चालकके, स्वतः चलनेवाली तोप । | वि० रुचिके अनुकूल । -राजी-वि० [हिं०] स्वराज्यके -च्छंद-पु० अपनी इच्छा या पसंद । वि०अपनी इच्छाके
लिए आंदोलन करनेवाला ।-राज्य-पु० स्वाधीन राज्य, अनुसार चलनेवाला, अनियंत्रित, स्वाधीन; आपसे जहाँके शासक वहींके लोग हों; एक साम ।-राज्यभोगीआप उगा हुआ, जंगली । -च्छंद-चर,-च्छंद-चारी (गिन)-वि० जिसे स्वराज्य या आत्मशासन प्राप्त हो। (रिन्)-वि. अपनी इच्छासे चलनेवाला, आजाद । -राट् (ज)-वि० जो स्वयं प्रकाशित हो। पु० ब्रह्मा -च्छंद-चारिणी-स्त्री० वेश्या । -जन-पु० आत्मीय विष्णु, सूर्यकी सात रश्मियोंमेंसे एक ऐसे राज्यका राजा जन संबंधी । -जन पक्षपात-पु० (नेपाटिज्म) (संरक्षण जहाँ स्वराज्य हो। -राष्ट्र-पु० अपना राज्य; एक जनआदि देने में) अपने संबंधियों, मित्रों आदिके प्रति पक्षपात | पद। -राष्ट्रमंत्री(त्रिन)-पु० देशके आंतरिक शासनकरना। -जनी-स्त्री० सखी सहेली । -जन्मा- संबंधी कार्योंकी देख-भाल करनेवाला । -राष्ट्रसदस्य(न्मन्)-वि० जो आप ही आप उत्पन्न हुआ हो।। पु० (शासनपरिषद्का) गृहसदस्य । -रुचि-स्त्री. अपनी -जा-स्त्री० पुत्री। -जात-वि. अपनेसे उत्पन्न । रुचि या पसंद । वि. अपनी रुचिसे चलनेवाला । -रूप पु० पुत्र । -जाति-स्त्री० अपनी जाति या वर्ग। वि. -पु० अपनी आकृति अपनी विशेषता, स्वभाव, आत्मा, अपने वर्गका। -जाति-द्विद ()-पु० कुत्ता । विशेष उद्देश्य प्रकार; मूर्ति; चित्र । अ० (समासांतमें) -जातीय,-जात्य-वि० अपनी जाति या वर्गका । तौरपर । वि० अपनी विशेषतासे युक्त; समान, तुझ्या -जित-वि. आत्मनिग्रही, जितेंद्रिय । -तंत्र-वि. सुंदर, मनोहर । -रूपज्ञ-वि० तत्वशानी, आत्मा-परस्वाधीन, आजाद; बालिग। -तंत्रता-स्त्री० स्वाधीनता, मात्माका रूप समझनेवाला ।-रूपप्रतिष्ठा-स्त्री० अपनी आजादी।-तंत्र पत्रकार-पु० (फ्री लांस जर्नलिस्ट) वह विशेषतासे युक्त होना । -रूपमान*-वि० दे० 'स्वरूपपत्रकार जो किसी एक ही पत्र या संवादसंस्था आदिका वान्' । -रूपवान् (वत्)-वि० सुंदर । -लक्षण-पु. वेतन-भोगी कर्मचारी न होकर स्वतंत्र रूपसे लेख लिखकर विशेषता, विशेष गुण । -लिखित-वि. अपना लिखा या संवाद भेजकर पारिश्रमिक पाता हो और उसीसे निर्वाह हुआ। -वंश्य--वि० अपने परिवारका ।-वर्गीय-वि० करता हो।-दार-स्त्री०अपनी पत्नी।-दारगामी(मिन)- अपने वर्गका। -वश-वि० आत्मनिग्रही, स्वाधीन । वि० केवल अपनी पत्नीसे संबंध रखनेवाला । -देश- -वश्य-वि० अपने ही वशमें रहनेवाला ।-वासिनीपु० जन्मभूमि, मातृभूमि, वतन ।-देश-निस्सारण-पु० स्त्री० पिताके घर रहनेवाली कन्या या विवाहिता स्त्री। - (एक्सपैट्रियेशन) किसीको स्वदेशसे बाहर भेज देना।। -विकत्थन-वि० डींग मारनेवाला । -विग्रह-पु० -देश-प्रतिप्रेषण-पु० (रिपैट्रियेशन) किसीको जबरन् अपना शरीर । -विधेय-वि. जो अपने करनेका हो। उसके देश वापस भेज देना। -देश-प्रेम-पु० जन्म- -विनाश-पु० अपना नाश, आत्महत्या। -विवेकभूमिका प्रेम । -देशस्मारी(रिन)-वि० घरके लिए | पु० उचित-अनुचित समझनेकी अपनी शक्ति । -वृत्तिउत्सुक, घरसे अधिक प्रेम रखनेवाला। -देशी-वि० | स्त्री० अपने जीवन-यापनका ढंग; आत्मनिर्भरता। वि० [हिं०] दे० स्वदेशीय'। -देशीय-वि. अपने देशसे आत्मनिर्भर, स्वावलंबी। -श्लाघा-स्त्री० आत्मप्रशंसा । संबंध रखनेवाला; अपने देशका स्वदेशमें बना। -धर्म -संभूत-वि० आत्मसंभव । -संवेदन-पु. अपना -पु० अपना कर्तव्य; अपनी विशेषता । -धर्म-च्युत- प्राप्त किया हुआ शान । -संवेद्य-वि०जिसका शान वि. अपने अधिकारसे वंचित अपने कर्तव्यका पालन न केवल अपनेको हो सके।-सचिव-पु०(प्राइवेट सेक्रेटरी) करनेवाला । -नामधन्य-वि० जो अपने नामके कारण | दे० 'निजसचिव' ।-स्थ-वि० अपने में स्थित; जो अपनी धन्य हो। -नामा(मन)-वि. जो अपने नामसे स्वाभाविक अवस्था में हो, तंदुरुस्त, नीरोग; स्थिरचित्त; विख्यात हो। -पक्ष-पु. अपना पक्ष या दल; अपने संतुष्ट, सुखी; स्वाधीन आत्मनिर्भर । -स्थ चित्त-वि०
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स्वकीय-स्वयं जिसके मन में किसी तरहका विकार न हो।-स्थित-वि० स्वपना*-पु० दे० 'स्वप्न'। स्वाधीन । -हंता(त)-पु० आत्महत्या करनेवाला । | स्वपनीय, स्वप्तव्य-वि० [सं०] सोने योग्य । -हरण-पु० संपत्तिका हरण ।-हस्त-पु. अपना हाथस्वप्न-पु० [सं०] निद्रा भर्द्ध सुप्तावस्थामें जाग्रत् मनका हस्ताक्षर ।-हस्तिका-स्त्री० कुदाल -हित-वि. अपने । व्यापार-विशेष, ख्वाब, सपना; ऊँची कल्पना, कोई महलिए लाभदायक।
त्वपूर्ण कार्य करनेका विचार । -कर-वि. निद्रा लानेस्वकीय-वि० [सं०] अपना, निजी अपने परिवारका । वाला। -काम-वि. सोनेका इच्छुक । -कृत-वि. पु० मित्र, अपने लोग।
निद्रा लानेवाला । -गत-वि. जो सो गया हो। - स्वकीया-स्त्री० [सं०] अपनी पत्नी; केवल अपने पतिसे गृह-पु० शयनागार । -ज्ञान-पु० स्वप्न में होनेवाली प्रेम करनेवाली नायिका ।
अनुभूति । -दर्शन-पु. स्वप्न देखना। -दोष-पु० स्वक्ष-* वि० दे० 'स्वच्छ' [सं०] सुंदर धुरीवाला; पूर्ण स्वप्नावस्थामें होनेवाला शुक्रपात । -प्रपंच-पु० स्वप्नअंगोंवाला सुंदर नेत्रोंवाला।
में प्रकट होनेवाला संसार । -लब्ध-वि० स्वप्नमें प्राप्त, स्वच्छ-वि० [सं०] निर्मल, पवित्र; सफेद, स्पष्ट, निश्छल; स्वप्नमें दृष्ट । -विकार-पु० स्वप्नकृत परिवर्तन। - सुंदर, स्वस्थ । -मणि-पु. बिल्लौर ।
विचारी(रिन)-वि० स्वप्नका विचार करनेवाला । स्वच्छता-स्त्री० [सं०] सफाई, निर्मलता; विशुद्धता। - पु० स्वप्नशास्त्री। -विनश्वर-वि० स्वप्न जैसा क्षणवर्द्धक-वि० (सैनिटरी) गंदगीका निवारण कर मकान भंगुर । -शील-वि० निद्रालु । -सात्-वि० स्वप्नमें आदिके चारों तरफकी स्वच्छता बढ़ानेवाला; स्वच्छता
लीन । -सृष्टि-स्त्री० स्वप्नका निर्माण | -स्थान-पु० आदिके कारण स्वास्थ्यरक्षामें सहायक ।
शयनागार। स्वच्छत्व-पु० [सं०] दे० 'स्वच्छता'।
स्वमाना*-सक्रि० स्वप्न दिखाना । स्वच्छना*-स० क्रि० साफ करना।
स्वमालु-वि० [सं०] निद्रालु । स्वच्छी*-वि० 'स्वच्छ ।
स्वप्नावस्था-स्त्री० [सं०] स्वप्नकी अवस्था (जीवनके लिए स्वतः(तस)-अ० [सं०] आप ही, अपनेसे । -प्रमाण, प्रयुक्त)। -सिद्ध-वि० स्वयं सिद्ध, स्वयं प्रत्यक्ष ।
स्वमिल-वि० [सं०] सुप्त; स्वप्नका । स्वतोविरोधी(धिन)-वि० [सं०] अपना ही विरोध | स्वप्नोपम-वि० [सं०] स्वप्नतुल्य । करनेवाला।
स्वबरन*-पु० सुवर्ण, सोना। स्वत्व-पु० [सं०] अपना भाव; स्वतंत्रता; अधिकार, | स्वभाविक-वि० दे० 'स्वाभानिक' । स्वामित्व । -संलेख-पु० (टाइटिल डीड) वह संलेख स्वभावोक्ति-स्त्री० [सं०] एक काव्यालंकार, जहाँ जो या आधिकारिक लिखित पत्र जिसमें किसी मकान, खेत जिसका स्वभाव हो, जैसा जिसका रूप, गुण आदि हो, आदिपर किसीके पूर्ण और निद्व स्वत्वकी बात स्वीकार ठीक उसी तरह वर्णित किया जाय । की गयी हो। -स्व-पु० ( रायल्टी) दे० 'स्वामिस्व' ।। स्वयं-अ० [सं०] दे० 'स्वयम्'। -कृत-वि० आत्मकृत, -हस्तांतरण-पु० ( एलियनेट) किसी संपत्ति आदिका __ अपना किया हुआ; प्राकृतिक; गोद लिया हुआ।-कृष्टअधिकार (स्वत्व) दूसरेको देना या उसके नाम लिखना। विखुद जोता हुआ ।-ज्योति (स)-वि० जो आप ही -हानि-पु० अधिकारका न रहना।
आप प्रकाशित हो । पु० परमेश्वर । -दत्त-वि० जिसने स्वत्वाधिकारी(रिन)-पु० [सं०] स्वामी, मालिक । अपनेको स्वयं दे दिया है। पु. वह लड़का जो दूसरेका स्वदन-पु० [सं०] आस्वादन, खाना; लेह, चाटना । दत्तक पुत्र बन गया हो। दूत-पु० स्वयं अपना दूतत्व स्वदित-वि० [सं०] चखा हुआ, खाथा हुआ।
करनेवाला नायक । -दूती-स्त्री० अपना दूतत्व आप ही स्वधा-अ० [सं०] पितरोंके उद्देश्यसे हवि देते समय करनेवाली नायिका । -पतित-वि० जो भाप ही आप उच्चारण करनेका एक शब्द । स्त्री अपनी प्रकृति, स्वभाव गिरा हो। -पाकी (किन)-वि० स्वयं अपना भोजन पितरोंको दी जानेवाली हवि। -भक (ज),-भोजी- बनानेवाला । -प्रकाश-वि० जो खुद प्रकाशित हो। (जिन्)-पु० पितरः देवता ।
-प्रकाशमान-वि० दे० 'स्वयंप्रकाश' । -प्रज्वलितस्वधाधिप-पु० [सं०] अग्नि ।
वि० जो आप ही आप जल रहा हो। -प्रम-वि० जो स्वधाशन-पु० [सं०] पितर ।
आप ही आप चमक रहा हो। -प्रभा-स्त्री० एक स्वधीत-वि० [सं०] जिसका अच्छी तरह पाठ किया गया अप्सरा; मयकी एक कन्या। -प्रभु-वि० जो स्वयं हो; अच्छी तरह अध्ययन किया हुआ।
शक्तिशाली हो; जो खुद अपना मालिक हो ।-प्रमाणस्वनंदा-स्त्री० [सं०] दुर्गा ।
वि. जो स्वयं प्रमाणित हो, जिसके लिए प्रमाणकी आवस्वन-पु० [सं०] ध्वनि, शब्द; एक अग्नि ।
श्यकता न हो। -भू-वि० जो स्वयं उत्पन्न हुआ हो; स्वनि-पु० [सं०] ध्वनि, शब्द, अग्नि ।
बुद्ध-संबंधी। पु० ब्रह्मा, विष्णु; शिव; बुद्ध कामदेव; स्वनित-वि० [सं०] शब्दित, ध्वनित । पु० शब्द बादलों- * स्वायंभुव । -भूत-वि० जो आप ही आप उत्पन्न की गर्जना गर्जन ।
हुआ हो। -मृत-वि. जिसकी प्राकृतिक मृत्यु हुई हो; स्वपच*-पु० दे० 'श्वपच'।
जो स्वेच्छासे मरा हो। -पर-पु० उपस्थित विवाहास्वपन-पु० [सं०] नींद स्वप्न संशाहीनता (त्वचाकी)।। थियों में से कन्या द्वारा स्वयं पतिका वरण या चुनाव; ऐसे
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स्वयम्-स्वर्ग वरणकी सभा या उत्सव । -वर-विवाह-पु० स्वयंवरकी स्वरतत्त्व । -वेधी(धिन)-पु० 'शब्दवेधी'।-शास्त्रविधिसे होनेवाला विवाह, स्मृतियों में जायज माने हुए पु० दे० 'स्वरविज्ञान' । -शून्य-वि० बेसुरा।-संक्रमआठ प्रकारके न्याहोंमेंसे एक । -वरण-पु० पतिका पु० सुरोंके उतार-चढ़ावका क्रम (संगीत)। -संगतिचुनाव । -वरयित्री-स्त्री० स्वयं पतिका चुनाव करने स्त्री० सुरोंका मेल । -संदर्भ-पु० दे० 'स्वरसंक्रम' । वाली कन्या । -वरा-स्त्री० पतिका स्वयं वरण, चुनाव | -संधि-स्त्री० स्वरवर्णों या स्वरांत और स्वरादि पदोंमें करनेवाली कन्या, पतिवरा । -वश-वि० स्वाधीन । होनेवाली संधि । -संपद-स्त्री. स्वरोंका मेल, सुर -विक्रीत-वि. जिसने खुद अपनेको बेचा हो। (संगीत)। -संपन्न-वि० सुरीला, जिसमें स्वरोंका मेल -विलीन-वि० जो आप ही आप (दूसरेमें) लीन हो - हो। -सप्तक-पु० संगीतके सात सुरोंका समूह । गया हो। -सिद्ध-वि० जिसके लिए प्रमाणकी आव- -साधन-पु० विभिन्न सप्तकोंके स्वरोंको ठीक-ठीक श्यकता न हो; जो स्वयं अपने में पूर्ण हो (लोक)। निकालनेका अभ्यास करना। मु०-उतरना-स्वरका -सिद्धि-स्त्री० (एक्शम) ऐसी सरल बात जिसका सच | धीमा पड़ना। -चढ़ाना-स्वर ऊँचा करना। -निकाहोना बिना किसी प्रमाणके ही मानना पड़े। -सेवक- लना-स्वर उत्पन्न करना। -भरना-एक ही स्वरको पु० (वालंटियर) किसी तरहकी सामाजिक सेवा या ऐसा देरतक निकालना; एक ही स्वर बजाकर बजानेवालेके ही अन्य कार्य स्वेच्छासे, बिना वेतन लिये करनेवाला स्वरकी पूर्ति करना। -मिलाना-किसीके स्वरके अनुव्यक्ति । -सेविका-स्त्री० स्त्री स्वयंसेवक ।
सार स्वर निकालना। -साधना-सप्तकके स्वरोंका स्वयम्-अ० [सं०] खुद, आप, अपने आप, अपने तई, अभ्यास करना। स्वतः; अकेले। -अर्जित-वि० खुद उपार्जित किया| स्वरग*-पु० दे० 'स्वर्ग'। हुआ (धन)। -आगत-वि० आपसे आप आया हुआ; स्वरांत-वि० [सं०] स्वरसे अंत होनेवाला । बिना कहे किसी बातमें दखल देनेवाला। -उद्घाटित-स्वरांतर-पु० [सं०] दो स्वरोंके उच्चारणके बीचका विराम। वि० जो आप ही आप खुल गया हो (दरवाजा)। -उप-स्वरांश-पु० [सं०] आधा या चौथाई स्वर (संगीत); स्थित-वि० जो आप ही, अपनी इच्छासे आया हो। सप्तमांश । -उपागत-वि० स्वेच्छासे आया हुआ। -एव-अ० स्वरित-वि० [सं०] स्वरयुक्त ध्वनित; उच्चरित। पु० स्वयं ही, अपने आप।
उदात्त-अनुदात्तके बीचका, मध्यम स्वर । स्वर-पु० [सं०] आवाज; कंठध्वनि; वह वर्ण जिसका पूरा स्वरोदय-पु० [सं०] स्वरका उदय, उत्पत्ति श्वासभेदसे उच्चारण अन्य वर्णकी सहायताके बिना हो सके (व्या०); शुभाशुभ फल जाननेकी विद्या।
सात सुरों-षड्ज, ऋषभ आदिमेंसे कोई; श्वासः स्वरोपघात-पु० [सं०] स्वरभंग । सातकी संख्या उच्चारणमें स्पंदनकी मात्रा (उदात्त, स्वर-पु०[सं०] स्वर्ग; आकाशा-आपगा-स्त्री० स्वर्गगा। अनुदात्त और स्वरित); खर्राटा; * स्वर, आकाशा -गंगा-स्त्री० गंगाकी स्वर्ग में बहनेवाली धारा, मंदाविष्णु । -कंप-पु० स्वरका हिलना। -कर-वि० | किनी। -ग-वि०, पु० दे० क्रममें । -गणिका-स्त्री० आवाजको खोलने, सुरीली बनानेवाला, स्वर उत्पन्न | अप्सरा । -गति-स्त्री०,-गमन-पु० मृत्यु, स्वर्ग करनेवाला । -क्षय-पु० स्वरकी हानि । -ग्राम-पु० जाना। -गा-स्त्री० दे० 'स्वगंगा'। -धुनी,-नदीसंगीतके सातों स्वरोंका क्रम, स्वर-सप्तक, सरगम । स्त्री० मंदाकिनी। -धेनु-स्त्री० कामधेनु । -नगरी-च्छिद्र-पु० बाँसुरीका स्वरवाला छेद । -नादी- सो. अमरावती। -पति-पु० इंद्र। -मणि-पु. (दिन)-पु० मुहँ से फूंककर बजानेका बाजा । सूर्य। -योषित्-स्त्री० अप्सरा । -लोक-पु० स्वर्ग; -पात-पु० शब्दके उच्चारणमें किसी अक्षरपर कुछ रुक मेरु देवता ।-वधू-स्त्री० अप्सरा । -वाहिनी-स्त्री० जाना (एक्सेंट)। -प्रधान-वि० (राग) जिसमें स्वरकी मंदाकिनी। -वेश्या-स्त्री० अप्सरा । -वैद्य-पु० ही प्रधानता हो, तालकी नहीं। -बद्ध-वि० ताल- भश्विनीकुमार। स्वर में बँधा हुआ (गाना)। -भंग-पु० गले या आवाज- | स्वर्ग-वि० [सं०] देवलोक जानेवाला। पु० हिंदुओंके का बैठ जाना; गलेका एक रोग। -भंगी(गिन)- माने हुए ऊपरके सात लोकोंमेंसे तीसरा जिसका विस्तार .वि. स्वरभंग रोगसे पीड़ित । -भेद-पु० स्वरभंग; सूर्यलोकसे ध्र वलोकतक है और जहाँ पुण्य कर्म करने
आवाजका बैठ जाना; उच्चारणमें लाया जानेवाला अंतर वाले देह-त्यागके अनंतर जाकर दुःखलेशरहित सुखका संगीतके स्वरका अंतर । -मात्रा-स्त्री० उच्चारणकी भोग करते हैं, देवलोक; अमरावती; अतिसुंदर, सुखद, मात्रा। -योग-पु० शब्द, ध्वनि । -लहरी-स्त्री० स्वर्गकी समता करनेवाला स्थान; आकाश (हिं०);* स्वरोंकी लहर, तरंग। -लिपि-स्त्री०संगीतके स्वरोको ईश्वर । -काम-वि० स्वर्गकी अभिलाषा करनेवाला । लिखनेकी लिपि या रीति, रागविशेषमें प्रयुक्त स्वर, ताल, -गंगा-स्त्री० मंदाकिनी ।-गत-वि० स्वर्ग गया हुआ, लय, मात्रा इत्यादि बतानेवाले चिह्नोंका समूह; ऐसे मृत ।-गति-स्त्री०,-गमन-पु० स्वर्गकी यात्रा करना, चिह्नोंकी सहायतासे प्रस्तुत पाठ। -वाही(हिन्)- मरण । -गामी(मिन्)-वि० स्वर्ग गमन करनेवाला। वि० (बाजा) जो केवल स्वर निकाल सके, ताल आदि | -गिरि-पु० मेरु पर्वत । -च्युत-वि० स्वर्गसे गिरा नहीं । -विकार-पु० आवाजका बिगड़ जाना। हुआ। -जित्-वि० स्वर्गको जीतनेवाला । -जीवी-विज्ञान-पु० स्वरोंका विवेचन करनेवाला विज्ञान, | (विन्)-वि० स्वर्गमें रहनेवाला । -तरंगिणी-त्रा०
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स्वर्गापगा-स्वस्रीय
८९२ मंदाकिनी। -तरु-पु० कल्पवृक्ष । -द-दायक-वि० सर्राफ सोनेका व्यापारी। -वर्ण-वि० सोनेके रंगका। स्वर्ग प्रदान करनेवाला । -धाम -पु० स्वर्गलोक । पु० हलदी; हरताल, पीला गेरू। -वर्णा-स्त्री० हरिद्रा; -धेनु-स्त्री० कामधेनु । -नदी-स्त्री. आकाशगंगा। दारुहलदी । -विद्या-स्त्री० सोना बनानेकी विद्या, -पति-पु० इंद्र। -पुरी-स्त्री० अमरावती। -प्रद- | कीमियागरी। बि० दे० 'स्वर्गद'। -भर्ता(त)-पु० स्वर्गपति, इंद्र । स्वर्णक-पु० [सं०] सोना । वि० सोनेका, सुनहला । -लाभ-पु० स्वर्गकी प्राप्ति; मृत्यु । -लोक-पु० देव- स्वर्णिम-वि० [सं०] सोनेका; सुनहला। लोक । -वधू-स्त्री० अप्सरा। -वाणी-स्त्री० आकाश- स्वर्णोपधातु-स्त्री० [सं०] सोनामक्खी । वाणी। -वास-पु० स्वर्गमें निवास करना; मरना। स्वल्प-वि० [सं०] बहुत थोड़ा, अत्यल्प; बहुत छोटा [मु०-वास होना-मरना] -वासी(सिन्)-वि० तुच्छ; संक्षिप्त । -चटक-पु० गौरैया। -जंबुक-पु० स्वर्गमें निवास करनेवाला; मृत । -श्री-स्त्री० स्वर्गका लोमड़ी। -दृष्टि-वि० अदूरदशी। -भाषी (षिन्)वैभव ! -संपादन-पु० स्वर्गकी प्राप्ति । -सुख-पु० वि० कम बोलनेवाला, मितभाषी । -विरामज्वर-पु० स्वर्गमें प्राप्त होनेवाला सुख । -स्त्री-स्त्री० अप्सरा।। वह ज्वर जो बीच-बीचमें कम पड़ जाता हो। -व्यक्ति -स्थ-वि० स्वर्गमें स्थित, मृत । -स्थित-वि० दे० तंत्र-पु० चंद लोगोंका शासन (ओलिगाकी)। शरीर'स्वर्गस्थ'।
वि० बहुत छोटे कदका, ठिंगना। -स्मृति-वि० जिसे स्वर्गापगा-स्त्री० [सं०] मंदाकिनी, स्वगंगा ।
बहुत कम याद रहे। स्वर्गाभिकाम-वि० [सं०] स्वर्गकी अभिलाषा करनेवाला। स्वल्पांगुलि-स्त्री० [सं०] कनिष्ठिका, कानी उँगली। स्वर्गारूढ-वि० [सं०] स्वर्ग गया हुआ ।
स्वल्पायु (स)-वि० [सं०] अल्पजीवी । स्वर्गारोहण-पु० [सं०] स्वर्गगमन, मरना।
स्वल्पाहार-वि० [सं०] थोड़ा खानेवाला। स्वर्गिक-वि० स्वर्गीय ।
स्वल्पिष्ठ-वि० [सं०] थोड़ेसे थोड़ा; छोटेसे छोटा । स्वर्गी(गिन्)-वि० [सं०] स्वर्ग-संबंधी; स्वर्गीय; स्वर्गको स्वल्पेच्छ-वि० [सं०] जिसकी इच्छाएँ बहुत कम हों, जाननेवाला; स्वर्गगामी, मृत । पु० देवता।
संतोषी। स्वर्गीय-वि० [सं०] स्वर्गका; अलौकिका स्वर्गवासी, मृत । | स्ववरन*-पु० सुवर्ण । स्वर्ग्य-वि० [सं०] स्वर्ग दिलाने, स्वर्गकी प्राप्ति कराने स्वशुर-पु० दे० 'श्वशुर'। वाला; स्वर्ग-संबंधी।
स्वसा (स)-स्त्री० [सं०] बहिन । स्वर्जिका-स्त्री० [सं०] सज्जी। -क्षार-पु० सज्जीखार। स्वस्ति-० [सं०] 'कल्याण हो' इस अर्थका आशीर्वाद स्वर्जी(र्जिन)-पु० [सं०] सज्जी; शोरा ।
दान-स्वीकारका मंत्र । स्त्री० कल्याण ब्रह्माकी एक पली। स्वर्ण-पु० [सं०] अग्नि-विशेष, सोना नामकी धातु -कर्म (न)-पु० कल्याण करना ।-कार-पु० स्वस्तिका सोनेका सिका; एक तरहका गेरू, धतूरा, नागकेशर । उच्चारण करनेवाला बंदीजन। -पाठ-पु. 'स्वस्ति नः' -कदली-पु० सोनकेला। -कमल-पु० रक्तपम ।। आदि मंत्रका पाठ । -मुख-वि० जिसके मुखपर स्वस्ति -काय-पु० गरुड़ । वि० सोने जैसी देहवाला। -कार, शब्द हो। पु० ब्राह्मण; स्तुतिपाठक। -वचन-पु० -कारक-पु० सुनार । -कूट-पु. हिमालयकी एक स्वस्ति शब्दका उच्चारण । -वाचक-पु. आशीर्वाद चोटी -कृत्-पु० सुनार । -केतकी-स्त्री० पीले रंगकी आशीर्वाद देनेवाला व्यक्ति। -वाचन,-वाचनक-पु. केतकी। -क्षीरिणिका,-क्षीरी-स्त्री० सत्यानासी। - यश या मंगलकार्य आरंभ करते समय किया जानेवाला गिरि-पु० एक पर्वत, सुमेरु ।-गैरिक-पु. एक तरहका। एक धार्मिक कृत्य; ऐसे अवसरपर ब्राह्मणको दी जानेवाली पीला गेरू। -चूड,-चूडक-पु० नीलकंठ; मुर्गा । दक्षिणा आदि । -वाचनिक-वि० आशीर्वाद देनेवाला, -चूल-पु० दे० 'सुवर्णचूड'। -ज-पु. राँगा। वि० कल्याण मनानेवाला । पु० दे० 'स्वस्तिवाचन'। सोनेसे उत्पन्न । -जीवी(विन)-पु० सुनार ।-जूही- स्वस्तिक-पु० [सं०] चारणोंका एक प्रकार (जो स्वस्तिस्त्री० [हिं०] पीली जूही। -तीर्थ-पु० एक प्राचीन पाठ करता है); कोई मंगलद्रव्य; एक मंगलचिह्न जो तीर्थ । -दीधिति-पु०अग्नि ।-द्वीप-पु०सुमात्रा द्वीप ।। शरीर या किसी पदार्थपर बनाया जाता है (5); नष्ट -धातु-स्त्री० सोना; पीले रंगका गेरू । -पत्र-पु० शल्य निकालनेका एक प्राचीन यंत्र; एक योगासन । - सोनेका पत्तर । -पत्री-स्त्री० सनाय । -पुरी-स्त्री० यंत्र-पु० नष्ट शल्य निकालनेका एक प्राचीन यंत्र । लंका। -प्रतिमा-स्त्री० सोनेकी मूर्ति । -फल-पु० स्वस्तिमती-स्त्री० [सं०] एक मातृका । वि०स्त्री०कल्याणी । धतूरा । -फला-स्त्री० पीत रंभा, चंपाकेला । -बंध,- स्वस्तिमान् (मत्)-वि० [सं०] सुखी, सौभाग्ययुक्त । बंधक-पु० सोना गिरवी रखना। -माक्षिक-पु० स्वस्ययन-पु० [सं०] कृत्य-विशेषके आरंभमें विघ्नशांतिएक उपधातु, सोनामक्खी । -मुखी-स्त्री० सनाय की कामनासे किया जानेवाला मंत्रोच्चार या प्रायश्चित्त-मुद्रा-स्त्री० सोनेका सिका । -युग-पु० सुख- विधान; समृद्धिप्राप्तिका साधन; किसी मांगलिक कृत्यमें समृद्धिका समय । -यूथिका-यूथी-स्त्री० पीली जाते समय दलके आगे-आगे ले जाया जानेवाला जलपूर्ण जूही। -रंभा-स्त्री०.चंपाकेला । -रेखा-स्त्री० सोनेकी कलश; दान स्वीकारके बाद ब्राह्मणका आशीर्वाद देना। लकीर (कसौटीपरकी); एक नदी । -लाम-पु० वि० मंगलकारक । स्वर्णकी प्राप्ति; एक अस्त्र-मंत्र । -वणिक् (ज)-पु० / स्वस्स्रीय-पु० [सं०] बहिनका बेटा, भानजा।
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स्वाक्षर - पु० [सं०] दस्तखत, हस्ताक्षर, सही; (आटोग्राफ) किसी ( प्रसिद्ध ) व्यक्तिका स्वहस्ताक्षर । -युक्त- वि० जिसपर दस्तखत किया गया हो । स्वाक्षरित - वि० [सं०] हस्ताक्षर किया हुआ । स्वागत - पु० [सं०] किसीके आगमनपर कुशल प्रश्न आदिके द्वारा इर्षप्रकाश, भगवानी; एक बुद्ध । वि० स्वयं आया हुआ; बौद्ध उपायोंते प्राप्त (धनादि) । -कारिणी समिति, -समिति - स्त्री० किसी सभा, सम्मेलन में आनेवाले प्रतिनिधियों, दर्शकोंको टिकाने खिलाने-पिलानेका प्रबंध करनेवाली स्थानीय समिति (रिसेप्शन कमीटी) । - कारी (रिन्) - वि० स्वागत करनेवाला । - पतिकास्त्री० दे० 'आगत-पतिका' - प्रश्न- पु० मिलनेपर स्वास्थ्यादि के संबंध में पूछना । भाषण- पु० स्वागतसमिति के अध्यक्षका भाषण ।
८९३
स्वस्रीया, स्वत्रेयी - स्त्री० [सं०] बहिनकी बेटी, भानजी । स्वहाना* - अ० क्रि० दे० 'सुहाना' | स्वांग - पु० [सं०] अपना ही अंग । स्वाँग - पु० हँसी-मजाक या धोखा देनेके लिए बनाया हुआ दूसरेका रूप; हँसी-मजाकका खेल-तमाशा; होली आदिपर निकाला जानेवाला हास्यजनक वेशभूषावाला जुलूस; करतब; जो न हो वैसा होनेका ढब अख्तियार करना | मु०- बनाना, - भरना-रूप भरना, भेस बनाना; नकल करना । - लाना - दे० 'स्वाँग भरना' । स्वाँगना * - स० क्रि० स्वाँग बनाना । स्वाँगी - पु० ढोंगी, स्वाँग करनेवाला, अनेक रूप भरने स्वादनीय - वि० [सं०] जायकेदार; स्वाद लेने योग्य । वाला व्यक्ति । वि० रूप बनानेवाला । स्वादित - वि० [सं०] चखा हुआ, जिसका स्वाद लिया स्वांगीकरण - पु० (एसीमिलेशन) किसी पोषकतत्त्व, विचार, गया हो; जायकेदार बनाया हुआ; प्रसन्न किया हुआ । सिद्धांतादिको अपने में पूरी तरह मिला लेना या मिला- स्वादिष्ट - वि० दे० 'स्वादिष्ठ' । कर एक कर लेना, आत्मसात् करना । स्वतः सुखाय - [सं०] केवल अपना मन प्रसन्न करने, जी बहलाने के लिए, किसी अन्य लाभके लिए नहीं । स्वांत- पु० [सं०] अपना अंत, मृत्युः हृदय, अंतःकरण; गह्वर । -ज-पु० प्रेम; काम । - स्थवि हृदयस्थ । स्वाँस* - पु०, स्त्री० दे० 'साँस' |
स्वादिष्ठ - वि० [सं०] अतिशय स्वादु बहुत ही जायकेदार । स्वादी ( दिन) - वि० [सं०] स्वाद लेनेवाला । स्वादीला - वि० स्वादिष्ठ, जायकेदार, सुस्वादु । स्वादु - वि० [सं०] स्वादयुक्त, जायकेदार, रुचिकर; मीठा; सुंदर; इष्ट । - फला- स्त्री० बेरका पेड़ खजूरका पेड़; मुनक्का ।
स्वाँसा* - स्त्री० दे० 'साँस' ।
स्वादेशिक - वि० [सं०] स्वदेश संबंधी । स्वाद्य - वि० [सं०] स्वाद लेने योग्य; जायकेदार । स्वाधिकार - पु० [अ०] अपना अधिकार या पद; अपना कर्तव्य |
[सं०] स्वच्छंदता, नियंत्रणका अभाव,
स्वागतिक - वि०, पु० [सं०] स्वागतकर्ता । स्वाच्छंथ - पु० निरंकुशता । स्वातंत्र्य - पु० [सं०] आजादी, स्वतंत्रता । - युद्ध - पु० ( बार ऑफ इंडिपेंडेंस ) विदेशी शासनसे मुक्त होने या स्वतंत्र होनेके लिए किया जानेवाला युद्ध । संग्रामपु० आजादी की लड़ाई | - प्रिय, - प्रेमी ( मिनू ) - वि० स्वतंत्रताका प्रेमी, आजादी पसंद | स्वात* - स्त्री० दे० 'स्वाति' ।
स्वाति - स्त्री० [सं०] २७ नक्षत्रों में से १५ वाँ जो शुभ माना गया है (कवि समय के अनुसार चातक इसमें ही होनेवाली वर्षाका जल पीता है, और वही जल सीपके संपुटमें पहुँच कर मोती और बाँसमें वंशलोचन बनता है); सूर्यकी एक पत्नी; तलवार | - पंथ, - पथ* - पु० आकाशगंगा । - बिंदु - पु० स्वाति नक्षत्र में बरसनेवाले जलकी बूँद ।
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स्वस्त्रीया - स्वापन
- योग - पु० आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में स्वाति नक्षत्रका चंद्रमा के साथ योग :- सुत, सुवन* - पु० मोती । स्वाती - स्त्री० [सं०] दे० 'स्वाति' ।
स्वाद - पु० [सं०] कुछ खाने-पीने से जीभको होनेवाला रसानुभव, जायका, लज्जत; मजा; (काव्यगत) सौंदर्य; * चाह, इच्छा । मु० - चखाना - दे० 'मजा चखाना' । स्वादक - पु० [सं०] स्वाद चखनेवाला; राजा आदिकी पाकशाला में इस कामपर नियुक्त कर्मचारी । स्वादन - पु० [सं०] स्वाद लेना, चखना; रस लेना (कविता आदिका); जायकेदार बनाना ।
स्वाधिष्ठान - पु० [सं०] हठयोग में माने हुए छः चक्रोंमें से दूसरा जिसका स्थान शिश्नमूल और रूप षड्दलकमलका माना जाता है; अपना स्थान ।
स्वधीन - वि० [सं०] जो अपने ही अधीन हो, दूसरे के नहीं, स्वतंत्र, आजाद; जो अपने वश में हो; स्वच्छंद, किसीका अंकुश, दाब न माननेवाला । - पतिका, - भर्तृका - स्त्री० पतिको अपने वशमें रखनेवाली नायिका । स्वाधीनता- स्त्री० [सं०] स्वतंत्रता, आजादी । -प्रेमपु० स्वातंत्र्यप्रियता, आजादीका प्रेम । स्वाधीनी* - स्त्री० दे० 'स्वाधीनता' | स्वाध्याय- पु० [सं०] आवृत्तिपूर्वक वेदाध्ययन; शास्त्राध्ययन; वेद; अध्ययन; वह दिन जब अनध्यायके बाद वेदपाठ आरंभ होता है ।
स्वाध्यायार्थी (र्थिन् ) - पु० [सं०] वह विद्यार्थी जो अध्ययनकालमें अपनी जीविका खुद कमानेका यत्न करे । स्वाध्यायी (यिन् ) - वि० [सं०] वेदपाठ करनेवाला; नियमपूर्वक अध्ययन करनेवाला | स्वान - पु० [सं०] शध्द, ध्वनि; घड़घड़ाहट ( रथादिकी ); * दे० 'श्वान' |
स्वाना * - स०क्रि० 'सुलाना' ।
स्वानुभव - पु०, स्वानुभूति - स्त्री० [सं०] अपना अनुभव | स्वानुरूप - वि० [सं०] अपने अनुरूप, योग्य; सहज । स्वाप - पु० [सं०] नींद; स्वप्न; तंद्रा; सुन्न हो जाना । स्वापक - वि० [सं०] निद्रा लानेवाला । स्वापन - पु० [सं०] सुलाना, नींद लाना; मंत्रबल से चालित एक अस्त्र जिसके प्रभावसे शत्रुदल सो जाता था;
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स्वापराध-स्वास्थ्य
८९४ नींद लानेवाली दवा । वि.नींद लानेवाला ।
स्वारथी-वि० स्वार्थी, अपना लाभ देखनेवाला,खुदगर्ज । स्वापराध-पु० [सं०] अपने प्रति अपराध ।
स्वारस्य-पु० [सं०] सहज, स्वाभाविक रस, मिठास स्वापी(पिन)-वि० [सं०] नींद लानेवाला।
खूबी स्वाभाविकता। स्वाप्त-वि० [सं०] बहुत अधिक सुकुशल, विश्वस्त; अपने स्वाराज्य-पु० [सं०] स्वाधीन राज्य; इंद्रका राज्य, स्वर्गप्रयत्नसे प्राप्त । -समाचार-पु० (स्कूप न्यूज) विशेष लोक ब्रह्मके साथ तादात्म्य या अभेद । महत्त्वका समाचार जो किसी संवाददाताने खोज निकाला | स्वारी*-स्त्री० दे० 'सवारी'। हो तथा अपने पत्रको सबसे पहले दिया हो, एकांतिक स्वार्जित-वि० [सं०] अपना कमाया हुआ। समाचार ।
स्वार्थ-पु० [सं०] (शब्दका) अपना अर्थ, वाच्यार्थ; अपना स्वाभाविक-वि० [सं०] स्वभावसे उत्पन्न, स्वभावसिद्ध, धन; अपना मतलब, गरज, प्रयोजन; अपना लाभ । प्राकृतिक पैदाइशी। -वर्णन-पु० यथार्थ, बनावट या -त्याग-पु. अपने स्वार्थ, अपने लाभका त्याग, आत्मअत्युक्ति-रहित वर्णन।
त्याग ।-त्यागी(गिन)-वि० स्वार्थत्याग करनेवाला। स्वाभिमान-पु० [सं०] अपनी प्रतिष्ठाका अभिमान, -पंडित-वि० स्वार्थसाधनमें चतुर ।-पर-परायणआत्म-सम्मान ।
वि० जिसे अपने ही स्वार्थकी चिंता हो, जो आना ही स्वामि*-पु० दे० 'स्वामी' ।
मतलब देखे, खुदगर्ज। -परता,-परायणता-स्त्री० स्वामित*-पु० स्वामित्व ।
स्वार्थीपन, खुदगी । -भाक् (ज)-वि• अपना कारबार स्वामिता-स्त्री, स्वामित्व-पु० [सं०] मालिकपन, प्रभु- देखनेवाला । -लिप्सु-वि० स्वार्थसाधनके लिए लालात्व; राजत्व ।
यित रहनेवाला। -संपादन-पु० दे० 'स्वार्थ-साधन'। स्वामिनी-स्त्री० [सं०] मालिकिन प्रभुकी पत्नी; राधिका -साधक-वि० अपना मतलब निकालनेवाला।-साधन (वल्लभ-संप्रदाय)।
-पु० अपनी गरज, मतलब निकालना, प्रयोजनकी पूर्ति । स्वामी(मिन्)-वि० [सं०] जिसे स्वत्व प्राप्त हो। पु० -साधनतत्पर-वि० अपना मतलब निकालनेपर तुला मालिक, प्रभु; नरेश, पति, शौहर, गुरु, आचार्य; घरका हुआ।-सिद्धि-स्त्री० प्रयोजनकी पूर्ति, काम निकलना। मुखिया; विद्वान् ब्राह्मण, संन्यासी; कात्र्तिकेय; ईश्वर । स्वार्थाध-वि० [सं०] जो स्वार्थचिता, स्वार्थ-साधनमें -कार्तिक-पु० कात्तिकेय; एक ताल (संगीत)। -कार्य ___ अंधा हो गया हो, जो केवल अपना ही मतलब देखे, दूसरे-पु० राजा या मालिकका कार्य । -कार्यार्थी(र्थिन्)- | की हानि और लाभका खयाल न करे। वि० मालिकका फायदा चाहनेवाला। -कुमार-पु० स्वार्थी(र्थिन)-वि० [सं०] जो अपना ही मतलब देखे, कात्तिकेय । -भक्त-वि० स्वामीमें भक्ति रखनेवाला खुदगर्ज। वफादार (नौकर) । -भक्ति-स्त्री० स्वामीके प्रति भक्ति- स्वाल*-पु० दे० 'सवाल'। भाव, वफादारी।-भट्टारक-पु० उत्तम स्वामी ।-भाव स्वावमानन-पु०, स्वावमानना-स्त्री० [सं०] आत्म-पु० स्वामित्व, स्वामीका भाव ।-सेवा-स्त्री० स्वामीकी भर्त्सना। टहल; पतिका आदर-सम्मान । -स्व-पु० (रायल्टी) स्वावलंबन-पु० [सं०] अपना ही भरोसा करना, दूसरेसे किसी ग्रंथके लेखकको, किसी वस्तुका आविष्कार करने- सहायता न लेना। वालेको या किसी भूमिके स्वामीको उसकी रचना, आवि- स्वावलंबी (बिन्)-वि० [सं०] अपने ही बलपर काम
कार या स्वामित्वसे होनेवाले लाभके रूपमें मिलनेवाला करनेवाला, दूसरेका भरोसा न रखने, दूसरेसे सहायता 'पूर्ण आयका निश्चित अंश । -हीनत्व-पु० ( बोना _ न लेनेवाला। वैकेंशिया) किसी वस्तु के मिलने पर उसका कोई स्वामी न | स्वाश्रय-पु०[सं०] अपने भरोसे रहना। वि०विचारणीय जान पड़ना।
विषयसे संबंध रखनेवाला; जिसे केवल अपना भरोसा हो। स्वाम्य-पु० [सं०] प्रभुत्व, मालिकी स्वत्वशासनाधिकार।। स्वाश्रित-वि० [सं०] स्वावलंबी । स्वाम्युपकारक-वि० [सं०] मालिकका हित करनेवाला। स्वास*-पु०, स्वासा-पु०, स्त्री० दे० 'श्वास'। स्वायंभुव-पु० [सं०] प्रथम मनु जिनकी उत्पत्ति स्वयं स्वास्थ्य-पु० [सं०] स्वस्थता, आरोग्य संतोष, चित्तका
ब्रह्माके दाहिने अंगसे मानी जाती है। अत्रि; नारद । शांत, निरुद्विग्न होना। -कर,-प्रद-वि० स्वास्थ्य स्वायंभू-पु० [सं०] स्वायंभुव ।।
देनेवाला ।-निवास-पु० (सैनेटोरियम) स्वास्थ्य-सुधारके स्वायत्त-वि० सं०] जो अपने हो अधीन,अपने ही अधि- लिए, विशेषकर यक्ष्मापीड़ित व्यक्तियोंके लिए, पहाड़ी कारमें हो, जिसपर दूसरेका शासन-नियंत्रण न हो। आदिपर बनाया गया निवास स्थान, आरोग्यशाला । -शासन-पु० लोकप्रतिनिधियों द्वारा परिचालित -भंग-पु० स्वास्थ्य बिगड़ जाना । -रक्षा-स्त्री० शासन; (ऑटोनॉमी) अपने देशका शासन स्वयं ही करने- स्वास्थ्य, तंदुरुस्तीकी रक्षा । -विज्ञान-पु० (हाइजीन) का अधिकार स्थानिक शासन (जिला बोर्ड आदिका)। स्वास्थ्य रक्षण के नियमों, सिद्धांतों, उपाय आदिका विवे-शासी(सिन)-वि० (ऑटोनॉमस) (वह देश) जिसे चन करनेवाला शास्त्र। -विभाग-पु० राज्य, म्युनिसि. अपना शासन स्वयं ही करनेका अधिकार प्राप्त हो। पल बोर्ड आदिका जनस्वास्थ्यकी रक्षाका प्रबंध करनेवाला स्वारथ*-पु० स्वार्थ, अपना फायदा, अपना काम । वि० महकमा। -सदन-पु. (सैनेटोरियम) दे० 'स्वास्थ्यसिद्ध, सफल, कृतार्थ ।
निवास'। -हानि-स्त्री० स्वास्थ्यका नाश, तंदुरुस्तीका
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बिगड़ जाना ।
।
स्वाहा-स्त्री० [सं०] इवि; अग्निकी पत्नी । अ० हविर्दानके समय उच्चारण किया जानेवाला एक शब्द । वि० [हिं०] नष्ट | - करण - पु० स्वाहाका उच्चारण करते हुए इवि देना । - कार - पु० 'स्वाहा' शब्दका उच्चारण; [हिं०] विनाश । - पति, प्रिय, -वल्लभ-पु० अग्नि । भुक्( ज् ) - पु० देवता । मु० - करना - फूँक डालना, नष्ट कर देना । - होना - नष्ट होना । स्विदित - वि० [सं०] जिसे पसीना
-
निकला या निकल
रहा हो; पिघला हुआ ।
स्विन - वि० [सं०] पसीने से तर; उबला हुआ, सीझा हुआ; सिक्त ।
स्वीकरण - पु० [सं०] स्वीकार करना, ग्रहण करना, अप
नाना; मानना; वचन देना; पत्नी रूपमें ग्रहण करना । स्वीकरणीय, स्वीकर्तव्य - वि० [सं०] स्वीकार के योग्य । स्वीकर्ता (तृ) - वि० [सं०] स्वीकार करनेवाला । स्वीकार - पु० [सं०] अंगीकार; अपनानेकी क्रिया, अपना कर लेना; ग्रहण; पत्नी रूप में ग्रहण; मानना, कबूल
करना; वचन, इकरार । स्वीकारना* - स० क्रि० स्वीकार करना; ग्रहण करना । स्वीकारात्मक - वि० [सं०] ( अफर मेटिव ) ( ऐसा वाक्य, कथन या उत्तर) जिसमें कोई बात स्वीकार की गयी हो, मान ली गयी हो या उसकी पुष्टि की गयी हो, 'हाँ' सूचक । स्वीकारोक्ति स्त्री० [सं०] (अपना अपराध) स्वीकार करना । स्वीकार्य - वि० [सं०] स्वीकार करने योग्य | स्वीकृच्छ्र - पु० [सं०] एक व्रत ।
स्वीकृत - वि० [सं०] स्वीकार किया हुआ, माना, अपनाया हुआ; वादा किया हुआ ।
स्वीकृति - स्त्री० [सं०] स्वीकार, मंजूरी; सम्मति । स्वीय - वि० [सं०] अपना, स्वकीय | पु० आत्मीय, स्वजन ।
स्वीया - स्त्री० [सं०] पतिमें अनुराग रखनेवाली, पतिव्रता स्त्री, स्वकीया ।
स्वाहा-करानी
सैन्य सेवा के लिए अपना नाम देनेवाले लोगोंका दल । स्वेच्छाचार-पु० [सं०] मनमाना आचरण, जो मनमें आये वह करना, निरंकुशता । स्वेच्छाचारिता - स्त्री० मानी करनेका भाव ।
[सं०] निरंकुशता, अपनी मन
स्वेच्छाचारी (रिन्) - वि० [सं०] मनमाने आचरण करनेवाला, निरंकुश, यथेच्छाचारी; नियम कानूनका बंधन न माननेवाला (शासक) । स्वेत* - वि० दे० 'श्वेत' ।
स्वे* - वि० दे० 'स्व' |
स्वेच्छा - स्त्री० [सं०] अपनी इच्छा, मरजी । -कृत, - दत्त, - प्रेरित - वि० ( वालंटरी ) जो बिना किसी बाहरी दबावके, स्वेच्छासे किया या दिया गया हो ।-चार - पु० दे० क्रममे । - चारी (रिन्) - वि० दे० क्रममें । - भरणपु०, वि० दे० ‘स्वेच्छा-मृत्यु' । - मृत्यु - स्त्री० अपनी इच्छासे मरना । पु० भीष्मपितामह । वि० अपनी इच्छासे मरनेवाला, स्वेच्छामरणका अधिकारी। -सेवक - पु० दे० 'स्वयं-सेवक' । - सैनिक - पु० अवैतनिक सिपाही, या अफसर | - सैनिकदल - पु० (वालंटरी कोर) स्वेच्छा से
ह
ह - नागरी वर्णमालाका तैंतीसवाँ और अंतिम ऊष्म वर्ण । हंक* - स्त्री० हॉक, पुकार; ललकार; बढ़ावा । हँ कड़ना - भ० क्रि० हुंकारना, चुनौती देना, ललकारना; गला फाड़कर चिल्लाना; साँड़ आदिका जोरसे बोलना ।
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स्वेद - पु० [सं०] पसीना; भाप; गरमी; पसीना लानेका साधन - चूषक - पु० ठंडी हवा । -ज- वि० पसीने से उत्पन्न होनेवाला; ताप या भापसे उत्पन्न होनेवाला । पु० स्वेद से उत्पन्न होनेवाले जीव-खटमल आदि । -जलपु० पसीना । - जलकण- पु०, - जलकणिका - स्त्री० पसीने की बूँद । - बिंदु - पु० पसीने की बूँद । -वारिपु० दे० 'स्वेदजल' ।
स्वेदक - वि० [सं०] पसीना लानेवाला । पु० कांतिलौह । स्वेदन - पु० [सं०] पसीना पसीना लाना; स्वेदन-यंत्र; पारेका शोधन; बफारा देना । वि० पसीना लानेवाला । स्वेदनी - स्त्री० [सं०] तवा; कड़ाही । स्वेदांबु - पु० [सं०] स्वेदजल । स्वेदित-वि० [सं०] जिसे पसीना हुआ हो, स्वेदयुक्त; बफारा दिया हुआ; जिसका पसीना निकाला गया हो । स्वेदोदक- पु० [सं०] स्वेदजल | स्वै* - सर्व० सो ही, वही ।
स्वैर - वि० [सं०] मनमाना आचरण करनेवाला, निरंकुश, स्वच्छंद, स्वेच्छाचारी; सुस्त, मंद; ढीला; धीरे-धीरे, सतर्कतापूर्वक चलनेवाला; ऐच्छिक । पु० मनमानी, स्वच्छंदता; यथेच्छ विहार। -कथा-स्त्री० अबाधित वार्तालाप, बकवास । - गति - स्त्री० स्वेच्छापूर्वक भ्रमण करना । --चारी (रिन्) - वि० मनमाने काम करनेवाला, स्वतंत्र । - विहारी ( रिन्) - वि० इच्छानुसार भ्रमण करनेवाला । - वृत्ति - वि० इच्छानुसार काम करनेवाला । स्त्री० मनमानी, स्वच्छंदता ।
स्वैरता, स्वैरिता - स्त्री० [सं०] मनमानी, स्वच्छंदता । स्वैराचार - वि० [सं०] स्वेच्छाचारी । पु० स्वेच्छाचार | स्वैराचारी (रिन्) - वि० [सं०] स्वेच्छाचारी, निरंकुश | स्वैरिणी- स्त्री० [सं०] कुलटा, व्यभिचारिणी । स्वैरी ( रिनू ) - वि० [सं०] इच्छानुसार घूमने या काम करनेवाला, निरंकुश, स्वच्छंद । स्वोपार्जित - वि० [सं०] अपना कमाया हुआ, स्वयमर्जित । स्वोरस - पु० [सं०] तैलीय पदार्थ सिलपर पीसने के बाद उसमें लगा हुआ (उस पदार्थका) अंश या तलछट ।
७
कड़ान - स्त्री०, हँकड़ाव - पु० हँकड़नेकी क्रिया । हँ करना * - अ० क्रि० दे० 'हँकड़ना' । स० क्रि० बुलवाना, बुला भेजना।
हॅकराना * - स० क्रि० बुलाना, पुकारना; बुलवाना ।
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हकरावे-हंसावली
हॅकरावा-पु० बुलावा, आमंत्रण, निमंत्रण; हंबा, भा-स्त्री० [सं०] बैल आदिका राँभना। पुकारने, बुलानेकी क्रिया।
| हंस-पु० [सं०] बड़ी-बड़ी झीलोंमें रहनेवाला एक सफेद हॅकवा-पु० शेरके शिकारमें शोर-गुल मचा, बाजा आदि जलपक्षी (कविसमयके अनुसार यह दूधसे पानी अलग कर बजाकर उसे मचानके निकट लाना जिसमें शिकारी उसका देता है); ब्रह्मा आत्मा; जीवात्मा; पंच प्राणवायुओं मेसे शिकार कर सके।
एक; सूर्यः शिवः विष्णु, कामदेव, संन्यासियोंका एक भेद । हकवाना-म०क्रि० चौपायोंको किसीके द्वारा हटवाना, -गति-स्त्री० ईसकीसी मोहक गति; ब्रह्मप्राप्तिः एक भगवाना; (इक्के, बैलगाड़ी आदिको किसीके द्वारा) चल. वृत्त । -गमन-पु० हंसकी चाल । -गामिनी-स्त्री. वाना; किसीसे किसीको पुकरवाना, बुलवाना।
हंसकीसी गतिवाली स्त्री; ब्रह्माणी । -ज-पु० स्कंदका हंकवैया-पु० हाँकनेवाला व्यक्ति ।
एक अनुचर धर्मराज, कर्ण आदि । -जा-स्त्री० सूर्यपुत्री, हंका*-स्त्री० हाँक, पुकार; ललकार । मु०-देना,- यमुना । -नाद-पु० हंसध्वनि, हंसका कलरव । मारना-ललकारना; पुकारना।
-नादिनी-वि० स्त्री० मधुरभाषिणी ।-नादी(दिन)हँकाई-स्त्री० चौपायोंको हाँकनेकी क्रिया बैलगाड़ी आदि- वि० हंस जैसी ध्वनि करनेवाला । -माला-स्त्री० के हाँकनेका काम; हाँकनेका पारिश्रमिक ।
हंसपंक्ति; एक तरहकी बतख, एक वृत्त । -रथ-पु० हँकाना-सक्रि० हँकवाना हाँकना ।
ब्रह्मा । -राज-पु० बड़ा हंसा एक बूटी। -वंश-पु० हंकार-स्त्री० वह ललकार जो युद्ध, लड़ाई-झगड़ेके अव- सूर्यवंश।-वाहन-पुब्रह्मा ।-सुता-स्त्री यमुना नदी ।
सरोंपर सुनी जाती है, हुंकार । * पु० अहंकार, घमंड। हंसक-पु० [सं०] हंस पक्षी; पैरोंमें पहननेका भूषण, हँकार-स्त्री० ललकार किसीको पुकारने संबोधन करने- नूपुर, विछिया आदि। की ऊँची आवाज, हुंकार । सु०-देना-पुकारना। हँसन-स्त्री० हँसनेकी क्रिया; हँसनेका ढंग। -पढ़ना,-लगना-बुलाने, संबोधन करनेकी क्रियाका हँसना-अ०क्रि० खुले मुँहसे वेगपूर्वक हर्षध्वनि निकालना होना, पुकार या चिल्लाइट मचना।
प्रसन्न होना; खुशी मनाना, मजाक करना अच्छा देख हंकारना-सक्रि० ललकारना; ऊँचे स्वरसे बुलाना, पड़ना, रौनकदार जान पड़ना। * स० कि. उपहास पुकारना, संबोधित करना; पास बुलाना, निकट आनेके करना । हँसता चेहरा,-मुंह-पु. प्रसन्न मुखड़ा । लिए कहना । अ० क्रि० हुँकारना, हुंकार भरना। हसतामुखी*-वि० प्रसन्नवदन । मु० हंसकर बात हँकारा-पु० बुलावा, आमंत्रग, निमंत्रण; पुकार, बुलवाने- उड़ाना-किसी बातको अनावश्यक समझकर उसपर की क्रिया।
ध्यान न देना । हँसते-बोलते-मजाक करते-करते, हंकारी*-वि• अहंकारी, घमंडी।
दिल्लगीसे । हँसते हँसते-हँस-हँसकर, बहुत हँसते हंगामा-पु० [फा०] मार-पीट, हल्ला-गुल्ला, उपद्रव । हुए। हँसते-हँसते पेटमें बल पड़ जाना-अधिक हंटर-पु० एक तरहका चाबुक जो लंबा होता है, कोड़ा। हँसने के कारण पेट में एक प्रकारकी ऐंठन होने लगना। हंडना-अ० कि० घूमना, फिरना; बेमतलब घूमना । हँसते हँसते लोट जाना-बहुत हँसते हुए लोटपोट स० क्रि० चीजोंको उलट-पलटकर दूँदना ।
होने लगना। हँस देना-हँसने लगना । हंसनाहंडा-पु० पानी इत्यादि भरनेका ताँबे या पीतलका बना बोहना-दिल्लगी, मजाक करना, प्रसन्नतापूर्वक वार्तालाप घड़े जैसा बड़ा पात्र । स्त्री० [सं०] मिट्टीका बहुत बड़ा करना। हंस पड़ना-हँस देना। हंस-बोलकर बसर पात्र; निम्न जातिकी स्त्री, दासी आदि ।
करना-प्रसन्नतापूर्वक जीवन निर्वाह करना। हँस-बोल हंडिका-स्त्री० [सं०] बटलोई जैसी आकृतिवाला मिट्टीका लेना-प्रसन्नतापूर्वक वार्तालाप करना, हँसी-खुशीसे बरतन, हाँडी।
बातचीत करना। डिया-स्त्री० एक प्रकारका मिट्टीका बर्तन, इंडिकाके हेसनि*-स्त्री० दे० 'हसन' । ढंगका शीशेका पात्र जो शोभाके लिए रईसोंके कमरेमें | हंसनी-स्त्री० मादा हंस, हंसी । अथवा विवाह आदिके अवसरोंपर छतसे लटकाया जाता हँसमुख-वि० प्रसन्न, प्रफुल्लवदन, हँसते चेहरेवाला; है। एक तरहकी शराब जो जौ, चावल आदिसे बनायी दिल्लगीबाज, विनोदी। जाती है।
हंसली-स्त्री० गलेके नीचेकी एक हड्डी; स्त्रियोंका एक हंडी-स्त्री० [सं०] दे० 'हंडिका' ।
गहना जो गले में पहना जाता है। हंत-अ० [सं०] खेद, विषाद, अनुकंपादि सूचक शब्द । हँसाई-स्त्री० ठट्ठा, हँसी; निंदा, बदनामी; उपहास । हंतष्य-वि० [सं०] वध्य, हननके योग्य, मार डालने | हंसाधिरूढा-स्त्री० [सं०] सरस्वती। योग्य।
हँसाना-सक्रि० किसीको हास्योन्मुख करना, हँसनेमें हंता(त)-पु० [सं०] मार डालनेवाला, विनाशक; डाकू । प्रवृत्त करना; खुश करना। मु० हसा मारना-बहुत हंबी-वि० स्त्री० [सं०] वध करनेवाली।
हँसाना। हँथोरी*-स्त्री० दे० 'हथेली।
हँसाय-स्त्री० हँसी, हँसाई । हथौरा-पु० दे० 'हथौड़ा'।
हंसारूढ-वि० [सं०] हंसपर सवार । पु० ब्रह्मा । हँथौरी-स्त्री० दे० 'हथौड़ी' ।
हंसारूढा-स्त्री० [सं०] सररवती। हुँफनि*-सी० हाँफनेकी क्रिया ।
हिसावली-स्त्री० [सं०] हंस श्रेणी।
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हंसिका-हगास हंसिका-खी० [सं०] हंसी।
जैसा चाहिये उस तरह करना (नौकरीका हक अदा हंसिनी-स्त्री०सी; [सं०] चलनेका एक विशेष दंग।। करना)। -पर लड़ना-हकके लिए, न्यायके लिए हँसिया-पु. लोहेका एक धनुषाकार औजार जिससे लड़ना। -पर होना-न्यायका पक्ष लेना, न्याय्य अधिफसल, तरकारी आदि काटते हैं।
कारका आग्रह करना। -मारना-नेग आदि न देना । हंसी-स्त्री [सं०] मादा इंस, एक वर्णवृत्त ।
(किसीके)-में-विषयमें पक्षों के लिए । (किसीके) हँसी-स्त्री० हँसनेकी क्रिया, हासा मजाक, दिल्लगी; उप- | -में काँटे बोना-बुराई करना। हास; बदनामी खेल, आसान काम 1-खेल-पु०दिल्लगी। इकबकाना-अ०कि. स्तंभित होना, भौचक रह जाना।
और खेल, आसान काम । -ठठोली-स्त्री० हंसी-मजाक, हकला-वि० हकलानेवाला, रुक-रुककर बोलने, एक ही दिल्लगी। सु०-उड़ना-किसीका मजाक होना, किसीका अक्षर या शब्द कई बार कहनेवाला । -पन-पु० दे० बनाया जाना । -उड़ाना-किसीको बनाना, किसीकी | 'हकलाहट'। भ६ करना। -छटना-तेजीसे हँसो आना ।-ज़ब्त कर हकलाना-अ० क्रि० वाग्यंत्रके दोष (विशेषतः जिह्वादोष)लेना-हँसी रोक लेना । -मानना-मामूली या आसान | के कारण रुक-रुककर बोलना । काम या बात समझना। -में उड़ जाना,-में उड़ना हकलाहट-स्त्री० हकलानेका भाव; हकलानेका दोष । -किसी कामका मजाक या दिल्लगीमें टल जाना। -में। हकलाहा*-वि० हकला, हकलानेवाला। उड़ा देना,--में उड़ाना-किसी कामको दिल्लगीमें हकार-मु० [सं०] 'ह' की ध्वनि या 'ह' वर्ण। टाल देना। -में टालना-किसी बुरी बातको गंभीरता- हक्रारत-खी० [अ०] हलकापन, तुच्छता । मु०-की नज़र पूर्वक ग्रहण न करना, किसीकी बुरीहरकतपर गौर न कर | (निगाह)से देखना-तुच्छ समझना, हेय मानना। हँसकर सहन कर लेना। -में फूल झड़ना-किसीका | हकीकत-स्त्री० [अ०] वस्तुका स्वरूप; असलीयत, यथाहँसना (हँसनेकी क्रिया) अच्छा लगना,मधुर हसी हँसना । र्थता; सचाई, सच बात; हालत; हाल, वृत्तांता शब्दका -में ले जाना-किसी बातको मजाक बना देना। -में असली, अभिधेयार्थ में व्यवहार हैसियत, बिसात (उसकी ले लेना-किसी बातको गंभीरतापूर्वक ग्रहण न करना। क्या हकीकत है)। मु०-खुल जाना-सत्यका प्रकट हो -समझना-आसान बात या काम मानना; खयाल, | जाना। -में-दरअसल, सचमुच, वस्तुतः। परवाह न करना। -सूझना-हास्य, विनोद, मजाका हकीकतन-अ० [अ०] हकीकतमें, वस्तुतः। करनेकी प्रवृत्ति होना।
हकीक़ी-वि० [अ०] असली, सच्चा सगा (-भाई बहिन)। हँसुली-स्त्री० दे० 'हँसली'।
हकीम-पु० [अ०] शानी, बुद्धिमान् यूनानी चिकित्साहँसोड़-वि०विनोदप्रिय, विनोदी, दिल्लगीबाज।
शास्त्रका पंडित, तबीब । हसोर*-वि० दे० 'हँसोड़।
हकीमी-स्त्री० [अ०] हकीमका काम, पेशा; यूनानी हसोहाँ, हँसौहाँ*-वि० हास्ययुक्त; मजाकभरा, परि- चिकित्साशास्त्र । वि० हकीमका (-इलाज)। हासपूर्ण; हंसनेकी प्रकृतिवाला, जो स्वभावसे ही हँसने-हक्रक-पु० [अ०] 'हक'का बहुवचन । वाला हो।
हक्क-पु० [अ०] दे० 'हक'। -(क्के)नमक-पु० ह-पु० [सं०] शिव; जल; आकाश; स्वर्ग।
नमकका हक, किसीका नमक खानेसे उसके प्रति होनेहई-पु० हयी, आश्वारोही, घुड़सवार । स्त्री० आश्चर्य । वाला कर्तव्य ( हक अदा करना)। -मालिकाना-पु० हउँ*-अ० कि० दे० 'हो' । सर्व० दे० 'हो'।
मालिकका हक । हको-पु. आश्चर्य, शोक आदिके अवसरोंपर हृदयके हकाक-पु० [अ०] नग जड़नेवाला, नगीनासाजा मुहर सहसा धड़क उठनेकी क्रिया, धक । -दक-वि० चकित, खोदनेवाला। विस्मित। -बक-वि० हक्काबक्का।
हकाबका-वि० स्तंभित, घबड़ाया हुआ, भौचक, चकित । हल-पु० [अ०] सत्य, सचाई उचित पक्ष, ईश्वर, हक्कार-पु० [सं०] आह्वान, पुकार ।
खुदा; स्वत्व अधिकार; दावा फर्ज, कर्तव्य नेग; दस्तूरी हक्कारना*-स० क्रि० चुनौती देना, ललकारना । बदला, मुआवजा (नमकका हक)। वि. ठीक, दुरुस्त, हगना-अ० क्रि० शौच करना, पाखाना फिरना; (ला०) सही; न्याय्यः प्राप्य ।-असाइश-पु० पड़ोसीकी जमीन- | अत्यधिक मात्रामें देना (जैसे-आजकल उनका रोजगार पर रास्ता आदि पानेका अधिकार । -तलफ्री-स्त्री० इक रुपया हग रहा है); (ला०) धमकी या दबाबके कारण मारना; बेइंसाफी नुकसान । -ताला-पु० महिमाशाली विवश होकर किसीको कोई चीज दे देना (जैसे-लात ईश्वर, परमेश्वर । -दार-वि० हकवाला, अधिकारी । खानेपर वे चुरायी चीजें हग देंगे)। वि० हगनेवाला -नाहक-पु० हक और नाहक, न्याय-अन्याय, सत्य- अधिक हगनेवाला । मुहग मारना-मलका वेग सँभाल असत्य । अ० जबर्दस्ती; व्यर्थ ।-परस्त-वि० ईश्वरभक्त न सकनेके कारण तुरंत उसे त्याग देना; बहुत डर जाना; सच्चा; न्यायशील ।-मौरूसी-पु०आनुवंशिक अधिकार। कोई वस्तु बहुत गंदी कर देना। -रसी-स्त्री० न्याय पाना, न्याय मिलना। -शा- हगनेटी, हगनौटी-स्त्री०पाखाना जानेका स्थान,शौचालय । पु० दे० 'हक्कशुफ़ा'।-शुक्रा-पु०अपनी जायदादसे लगी हगाना-सक्रि० पाखाना फिराना । मुहगा मारनाहुई जायदादको दूसरोंसे पहले खरीदनेका हक । मु. बहुत थका देना परेशान करना। (किसी चीज़का)-अदा करना-फर्ज पूरा करना, हगास-स्त्री० हगनेकी आवश्यकताका अनुभव, पाखानेकी
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हगोड़ा - हठादेशी
हाजत ।
हगोड़ा, हग्गू - वि० बार-बार शौच जानेवाला । हचक - स्त्री० धक्का, झोंका, झटका ।
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हचकना - अ०क्रि० ऊपर-नीचे, आगे-पीछे हिलना- डोलना, झोंके से इधर-उधर होना । स० क्रि० झोंका देना, हिलाना डुलाना; (ला० ) जोर से मारना ।
इचका - पु० दे० 'इचक' |
हचकाना - स० कि० झोंकेसे हिलाना - डुलाना ।
हचकीला - वि० झोकेसे, तेजीसे हिलने-डोलनेवाला । हचकोला - पु० इचक, इचका ।
इचना * - अ० क्रि० किसी कामके करनेमें असमंजस होना; हाँ नहीं करना, हिचकना ।
हज - पु० मुसलमानोंका मक्केकी यात्रा करना । हज़म-पु० [अ०] पाचन-क्रिया; गवन, चोरी । मु० - कर जाना, - करना - पचाना; गबन कर लेना, माल मारना । - होना - पचना; गवनका प्रकट न होना ।
हज़रत - पु० [अ०] समीपता; दरबार; सम्मानसूचक संबोधन, जनाब, महोदय; (ला० ) मुहम्मद । वि० दुष्ट, खोटा; चालबाज; शरारत करनेवाला (व्यंग्य) । हजामत - स्त्री० [अ०] सिर मूँड़ना, क्षौर; सफाई; दुर्दशा ।
मु० - बनाना - सिर मूँड़ना; ठगना, लूटना । हज़ार - वि० [फा०] दस सौ; अनगिनत । पु० हजारकी संख्या | अ० कितना ही, हरचंद । -हा - वि० सहस्रों; बेहद अनगिनत |
हज़ारा - पु० [फा०] फौवारा; छिड़काव के काम आनेवाली एक बालटी जिसमें बहुतसे छेदोंवाला नल लगा रहता है; बहुत से पटलोंवाला फूल; एक आतिशबाजी । हज़ारी - वि० [फा०] हजारसे संबंध रखनेवाला । पु० हजार आदमियोंका सरदार; हजार आदमियोंकी पलटन | हजारौँ - वि० दे० 'हजारहा' । मु०-घड़े पानी पड़ जाना - बहुत लज्जित होना । - मे - बहुतों में; खुल्लमखुल्ला ।
हजूम - पु० [अ०] जमघट, भीड़भाड़; भीड़ करना । हजूर* - पु० दे० 'हुजूर' । हजूरी* -
* स्त्री०, पु०, वि० दे० 'हुज़ूरी' |
हजो- स्त्री० व्यंग्योक्ति; निंदा ।
हज्ज -पु० [अ०] संकल्प करना; नियत कालपर कावेके दर्शन और प्रदक्षिणा करना, हज; मक्केकी यात्रा ।
हज्जाम - पु० [अ०] हजामत बनानेवाला, नाई । हब्नामी - स्त्री० हज्जामका धंधा |
हटक * - स्त्री० मना करनेकी क्रिया, वर्जन; चौपायोंको इटाने, हाँकनेकी क्रिया ।
हटकना - स्त्री० दे० 'हटक े'; पटकनी, चौपायोंको हाँकनेकी लाठी |
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८९८
हटतार - * पु० मालाका सूत । + स्त्री० हड़ताल । हटताल - स्त्री० किसी कर, अन्याय-अत्याचार आदिके विरोध में दुकानों में ताले लगाकर खरीद-बेच, काम-काज आदि बंद कर देना, हड़ताल ।
|
हटना - अ० क्रि० किसी स्थानसे चलकर, खिसककर दूसरी जगह जाना; किसी पद से हट जाना, पद त्याग करना; किसी स्थानसे अवकाश, विश्राम ग्रहण करना; पीछे हटना, भागना; आलसी होना, काम न करना, जी चुराना; किसी कामका आगेके लिए टल जाना; वादेपर कायम न रहना । * सु० क्रि० इटकना । मु० - बढ़नाचुपके से भाग जाना, खिसक जाना, इधर-उधर होना । हटबया - पु० हाट बाजार में सामान लगाकर बेचनेवाला व्यक्ति, दूकानदार ।
हटवाई - *स्त्री० बाजारका काम, सामान खरीदने-बेचनेका काम, दूकानदारी; + इटवानेकी मजदूरी । हटवाना - स० क्रि० हटानेका काम दूसरेसे करवाना | हटवार -* पु० हाट बाजार में सामान बेचनेवाला व्यक्ति, दूकानदार। + वि० हटानेवाला । हटवैया - वि० हटाने, इटवानेवाला ।
हटाना - स० क्रि० किसी वस्तु, व्यक्तिको एक स्थानसे दूसरे स्थानपर रखना, स्थानांतरित करना, खिसकाना; किसी बातपर ध्यान न देना, किसीको महत्त्व न देना, उपेक्षा करना; खत्म करना बंद करना, सिलसिला तोड़ना; खदेड़ना; किसी पद, नौकरीसे अलग करना । हटुवाई - स्त्री० दूकानदारी ।
हट्ट - पु० [सं०] हाट, बाजार; मेला । - - चौरक- पु० बाजार में चोरी करनेवाला व्यक्ति, गँठकटा, पाकेटमार । हट्टा-कट्टा - वि० हृष्ट-पुष्ट; मोटा-ताजा; बलवान् । हट्टाध्यक्ष - पु० [सं०] बाजारका निरीक्षक । हठ-पु० [सं०] बलात्कार, बलप्रयोग, जबरदस्ती; उत्पीड़न; किसी बात पर अड़े रहनेकी प्रवृत्ति, दुराग्रह; ध्द प्रतिज्ञा; शत्रुके पृष्ठभाग में पहुँच जाना। - कर्म ( नू ) - पु० बलप्रयोगका काम । - धर्मपु० सत्यासत्यका विवेक किये बिना किसी बातको सत्य मानकर उसपर डटे रहना । - धर्मी - स्त्री० [हिं० ] हठधर्म, दुराग्रह । -योगपु० योगका एक प्रकार जिसमें नेती धोती, आसन आदि क्रियाएँ करते और त्राटक, धारणा, ध्यान आदिके द्वारा चित्तवृत्ति बाह्य विषयोंसे हटाकर अंतर्मुख करते हैं । - योगी (गिन् ) - पु० हठयोग करनेवाला व्यक्ति । -विद्या- स्त्री० हठयोगकी विद्या । -शील- वि० हठी, जिद्दी । मु० - पकड़ना - जिद करना। -माँड़ना* इठ पकड़ना । - में पड़ना - छठ करना; किसीके दृढ़ संकल्पका शिकार होना । - रखना- किसीके दृढ़ संकल्पकी पूर्ति करना । - रोपना - इठ माँड़ना ।
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हटकना * - स० क्रि० बरजना, मना करना, रोकना, कहीं से किसीको विरत करना, हटाना; चौपायोंको किसी ओर जाने से रोककर दूसरी ओर मोड़ना, हाँकना अ० क्रि० पश्चात्पद होना, हिचकिचाना । हटका - पु० दरवाजे आदि खुलने, इटनेसे रोकने के लिए हठादेशी ( शिन् ) - वि० [सं०] किसी के विरुद्ध बलप्रयोगका लगी हुई चीज; अर्गल, ब्योंड़ा ।
हठना* - अ० क्रि० इठ करना, जिद्द करना - 'करिहौं न तुमसों मान हठ, छठिहौं न माँगत दान' - सू० । हठात् - अ० [सं०] हठपूर्वक; बलपूर्वक । - कार - पु० बलात्कार, जबरदस्ती ।
उपाय बतलानेवाला ।
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हठाश्लेष-हताश्रय हठाश्लेष-पु० [सं०] बलपूर्वक आलिंगन करना। हड्डियोंका जोड़ खुल जाना। -गढ़ना-बुरी तरह हठी(ठिन)-वि० [सं०] हठ करनेवाला, जिद्दी । पीटना । -गुड्डी तोड़ना,-तोड़ना-बुरी तरह पीटना । हठीला-वि० हठी; युद्ध में दृढ़ धीर ढ़संकल्प ।
-चबाना-किसी वस्तुका अभाव होनेपर भी उसे जबहड़-स्त्री० हरी; एक गहना, लटकन । पु० 'हाइका समा- | रदस्ती प्राप्त करनेका प्रयत्न करना। -बोलना-हड्डी सगत रूप। -कंप-पु० तहलका, आतंक । (मु०-कंप टूटना । -से हड़ी बजाना-लड़ना, लड़ाई-झगड़ा मचना-आतंक फैलना ।) -फूटनी-स्त्री. हड्डियों में | करना। -हड्डी चूसना-अशक्त व्यक्तिसे जबरदस्ती होनेवाला दर्द।
लेना, काम कराना भादि । हड्डियाँ दिखाई पड़ना,हड़क-स्त्री० पागल कुत्तेके काटनेसे उत्पन्न जलका भय, निकल आना-इतना दुबला हो जाना कि हड्डियाँ जलातंक; कोई वस्तु पानेकी उत्कट इच्छा।
दिखाई देने लगें। हड़कना-अ० कि० किसी वस्तु के लिए लालायित होना। हत-वि० [सं०] मार डाला हुआ; घायल किया हुआ; हड़का-पु० हड़कनेका भाव; तरसनेका भाव, तरस । ताडित, पीटा हुआ; फोड़ा हुआ (जैसे नेत्र); तंग किया हड़काना-स० क्रि० तरसाना; हतोत्साह करना; दूर हटा हुआ; विरहित; छला हुआ; विफलप्रयास, निराश, देना; तंग करने में किसीको प्रवृत्त करना।
भग्नहृदय; जिसमें बाधा डाली गयी हो, भ्रष्ट किया हड़काया-वि० उतावला; पागल (कुत्ता)।
हुआ; ध्वस्त, विलुप्त गुणित; ग्रस्त (कष्टसे); संपर्कमें आया हड़ताल-स्त्री० दे० 'हटताल' । -तोड़क-पु० (ब्लैकलेग) हुआ (ज्यो०) निकम्मा सदोष ।-किल्बिष-वि० जिसके वह कर्मचारी जो किसी कारखाने या व्यापारिक संस्था में पाप नष्ट हो गये हों। -चित्त,-चेता(तस.)-वि० हड़ताल हो जानेपर भी अपने मालिकके लिए काम वेसुध; घबड़ाया हुआ । -चेतन-वि० हतज्ञान । करनेको, हड़तालियोंकी चेष्टा विफल करनेको कटिबद्ध हो। -जीवन-पु० दुःखमय जोवन । -ज्ञान-वि० संज्ञाहड़प-पु० खूराक निगलना; ग्रास एक ही बार निगल हीन, बेसुध । -त्रप-वि० निर्लज्ज । -दैव-वि• हतजाना; बिना चबाये निगल जाना; किसीका माल लेकर भाग्य, भाग्यहीन। -द्विट(प)-वि. जिसने अपने हजम कर जाना।
शत्रुओंका नाश कर दिया है। -धी,-बुद्धि-वि० दे० हड़पना-स०कि. किसी वस्तुको अनुचित साधनों द्वारा 'हतचित्त' । -ध्वांत-वि० अंधकारसे मुक्त । -पुत्रकभी न देनेकी इच्छासे अपने अधिकार में कर लेना, वि० जिसके पुत्रकी हत्या की गयी हो। -प्रभ-वि. जबरदस्ती या चोरीसे किसी वस्तुको लेकर कभी न देना; जिसकी कांति क्षीण होगयी हो।-प्रभाव-वि.जिसका जल्दी (और प्रायः अधिक) खाना, निगलना।
प्रभाव नष्ट हो गया हो, अधिकारवंचित । -प्राय-वि० हड़प्पा-पु० दे० 'हड़प'; गाली जो मर्द औरतोंको देते हैं; जो करीब-करीब मार डाला गया हो।-भाग-भाग्यसिंधका एक स्थान जहाँ बहुत प्राचीन चिह्न पाये गये हैं। वि० भाग्यहीन, बदकिस्मत । -भागी* -वि० दे० 'हतहड़बड़-स्त्री० घबड़ाहटसे उत्पन्न जल्दबाजी, उतावली। भाग'। -वीर्य-वि०जिसकी शक्ति नष्ट हो गयी हो। हड़बड़ाना-अ० कि. हड़बड़ी, घबड़ाहटमें कोई काम -बीड-विनिर्लज्ज । -शिष्ट-शेष-वि० जो जीवित करना । स० क्रि० जल्दी कार्य करनेके लिए किसीको बच गया हो। -श्री-वि. जिसका वैभव नष्ट हो गया प्रेरित करना।
हो; मुरझाया हुआ, उदास । -संपद-वि० दे० 'हतश्री'। हड़बड़िया-वि० हड़बड़ी मचानेवाला, जल्दबाज ।
-स्त्रीक-वि० जिसने किसी स्त्रीका वध किया हो; हड़बड़ी-स्त्री० हड़बड़, जल्दबाजी, उतावली। मु०- | जिसकी स्त्री मार डाली गयी हो। -स्मर-पु०शिव । पड़ना-किसी कामके लिए जल्दबाजी होना; घबड़ाहट -स्वर-वि० जिसका स्वर भंग हो गया हो। -हृदयहोना । (पेटमे)-पड़ना -बहुत घबड़ाना । सवार वि० भग्नहृदय, हताश । होना-किसी कामको जल्दी करनेकी धुन होना। हतक-वि० [सं०] जिसे चोट पहुँचायी गयी हो;"से हड़हड़ाना-स० क्रि० 'हड़-हड़' शब्द करना; शीघ्र कार्य | ग्रस्त ( दुर्दैव आदिसे); दोन-दुःखी; पापी-'अब सजनी करनेके लिए किसोको प्रेरित करना । अ० कि. 'हड़-हड़' | दुनो चढ्यो हतक मनोजहिं दाप'-मतिराम । पु० नीच शब्द होना।
व्यक्ति भीर आदमी । स्त्री० [अ०] बेइज्जती, मानहानि, हड़हा-वि०हाड़-संबंधी; अस्थिशेष (व्यक्ति), जिसके शरीर- हे ठी; धृष्टता। -इज्जती-स्त्री० मानहानि, बेइज्जती ।
में हड्डी-हड्डी रह गयी हो, बहुत दुबला-पतला । इतना*-स० कि० जानसे मारना, वध करना; मारनाहडावरि, हडावल*-स्त्री. हड्डियोका ढेर, अस्थिपंजर, ठठरी; अस्थिमाल, हड्डियोंकी माला।
हतवाना*-स० क्रि० मरवा डालना पिटवाना। हडीला-वि० इड्रीवाला, अस्थिशेष (व्यक्ति), जिसके हता-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका सतीत्व भंग किया गया
शरीरमें हड्डियाँ ही रह गयी हों, बहुत दुबला-पतला। हो। * अ०कि. होनाका भूतकाल-था। हडु-पु० [सं०] अस्थि, हड्डी, हाड़। -ज-पु० मज्जा। हताना*-स० क्रि० दे० 'हतवाना। हडा-पु० भिड़की जातिका एक कीड़ा जो उससे कुछ हतावशेष-वि० [सं०] दे० 'हतशिष्ट' । बड़ा होता है।
हताश-वि० [सं०] जिसकी आशा नष्ट हो गयी हो; दीन। हड्डी-स्त्री० शरीरका वह कड़ा भाग जिससे उसका ढाँचा | हताश्रय-वि० [सं०] जिसका सहारा नष्ट हो गया हो, बनता है; (ला०) कुल, खानदान । मु०-उखड़ना- निराश्रय ।
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हताहत-हथोरी
९०० हताहत-वि० [सं०] मारे गये और घायल ।
उत्तेजित होकर मार बैठनेकी आदत हो। -छोड़ा-वि० हते*-अ० कि. 'हता'का बहुवचन, थे।
दे० 'इथछुट'। -फूल-पु. एक आतिशबाजी; हाथके हतो*-अ० क्रि० दे० 'हता' (था)।
पंजेके ऊपरी भागपर पहननेका स्त्रियोंका एक आभूषण । हतोज*-वि० दे० 'हतौजा'।
-फेर-पु० द्रव्य लेने-देनेवालेके हाथकी सफाई जिससे हतोत्तर-वि० [सं०] निरुत्तर, जो कुछ जवाब न दे सके। खोटा या कम सिक्का दूसरे पक्षके जिम्मे पड़ जाता है; हस्तहतोत्साह-वि० [सं०] जिसका उत्साह भंग हो गया हो। कौशल द्वारा किसी वस्तुको गायब करनेकी क्रिया; प्यारसे हतोद्यम-वि० [सं०] विफलप्रयत्न ।
शरीरपर हाथ फेरनेकी क्रिया; हथउधार । वि० हाथकी हतीजा(जस)-वि० [सं०] ओजहीन, वीरोत्साहसे रहित।। सफाईसे चीजोंको गायब करनेवाला, हथलपक । लपकहत्थ*-पु० हाथ ।
वि० आँख बचाकर चुपकेसे चीजोंको गायब कर देनेवाला, हत्था-पु० किसी वस्तुका वह भाग जो हाथसे पकड़ा हथफेर ।-लपका, लपक्का-वि० हथलपक ।-लेवाजाय या जिसपर हाथ रखा जाय, मूठ, दस्ता; कुरसीकी पु० हाथको हाथमें लेनेवाला व्यक्ति ('नामलेवा'की भाँति); बाँही; दंड करते समय हाथके नीचे रखनेका पत्थर या विवाहके अवसरपर वर द्वारा कन्याका हाथ अपने हाथमें इंट; पूजन आदिके अवसरोंपर ऐपन आदिसे दीवाल था लेनेका कृत्य, पाणिग्रहण । -घाँस-पु. नाव खेनेका भूमिपर बनाया जानेवाला हाथके पंजेका चिह्न केलेका सामान । -संकर,-साँकड़, -साँकर, -साँकल,धौद; कंबल बुनते समय उसकी पटिया ठोंकनेका एक साँकला-पु० इथफूल नामक आभूषण । औजार, रेशमी वस्त्र वुननेके काममें आनेवाला एक औजार हथनाल-स्त्री० हाथीपर चलनेवाली तोप । जो छतसे लटका रहता है। खेतकी नालीके पानीको चारों हथनी-स्त्री० हाथीकी मादा । ओर उलीचनेका एक औजार ।
हथवाँसना*-सक्रि० अधिकार करना-'हथवाँसहु बोरङ हस्थि*-पु० हाथी।
तरनि कीजिय घाटारोह'-रामा० अधिकार करके इस्तेहत्थी-स्त्री० औजार, हथियार आदिका दस्ता; कड़ाहमें माल करना; पहले पहल प्रयोगमें लाना । रखा ईखका रस चलानेकी लकड़ी; बुनाई के कामका एक हथसार-स्त्री० हाथियोंके रहनेका स्थान, हस्तिशाला, औजार ।
फीलखाना। हाथमें । मु०-चढ़ना-अनजाने अपने विरोधीके हथाहथी*-अ० हाथोहाथ, शीघ्र, जल्द । पंजे में, हाथमें आ जाना उपयुक्त अवसरपर वशमें आना। हथिनी-स्त्री० हाथीकी मादा । -लगना-हाथमें आना, मिलना ।
हथिया-पु० हस्त नक्षत्र । हत्या-स्त्री० [सं०] जानसे मारनेका काम, खून, वध | हथियाना-स० क्रि० अपने अधिकार में कर लेना; जबरहत्या करनेका पाप; बखेड़ा; झगड़ा; बहुत दुबला-पतला दस्ती किसीकी चीज ले लेना; हाथसे पकड़ना। या बीमार व्यक्ति आदि । मु०-टलना-झंझट दूर होना। हथियार-पु० अस्त्र-शस्त्र औजार । -घर-पु० अस्त्र-शस -पल्ले बाँधना-झगड़ेसे संबंध स्थापित करना ।-मोल रखनेका बड़ा घर, शस्त्रागार । -बंद-वि० अस्त्र-शस्त्र लेना-हत्या पल्ले बाँधना। -सवार होना-मुखाकृति धारण करनेवाला, सशस्त्र । मु०-उठाना-युद्धके लिए आदिसे हत्याकी प्रवृत्ति प्रकट होना, खून चढ़ना। प्रस्तुत होना ।-डालना-लड़ाई बंद करना । बाँधना,-सिर मढ़ना-अपराधी ठहराना; लड़ाई-झगड़ेका काम लगाना-अस्त्र-शस्त्रसे सज्जित होना। सौंपना। -सिर लेना-पापका भागी होना।
हथुईरोटी-स्त्री०वह रोटी जो बेलनेसे न बेलकर हाथकी हत्यारा, हत्यारा-पु० हत्या करनेवाला व्यक्ति, खूनी। | अँगुलियोंसे दबाकर चौड़ी की गयी हो। हत्यारी-स्त्री० हत्या करनेवाली स्त्री, हत्यारिन । हथेरा-पु० खेतमें पानी उलीचनेका हत्था। हथ-पु. 'हाथ'का समासगत रूप; [सं०] चोट, आघात; हथेरी*-स्त्री० दे० 'हथेली' । वध; मृत्यु; हताश मनुष्य । -उधरा-पु० दे० 'हथ- | हथेली-स्त्री० कलाईके आगे नीचेका चिकना और चौड़ा उधार'। -उधार-पु० बिना लिखा-पढ़ीके किसीको थोड़े भाग, करतल चरखेकी मुठिया। मु०-का फफोलासमयके लिए कर्ज देना । -कंडा-पु० षड्यंत्र; धूर्तता अत्यन्त कोमल वस्तु जिसके टूटनेका भय बरबर बना करनेकी पद्धति; चतुराईकी चाल; किसी कामके करने में रहे। -खुजलाना-द्रव्यप्राप्तिका शकुन होना, द्रव्यहाथको फुतीसे इस ढंगसे चलाना कि कामकी गुप्त पद्धति- प्राप्तिकी पूर्व सूचना मिलना । -देना,-लगाना-हाथका को देखनेवाला भाँप न सके किसी काम करने में हस्त- सहारा देना ।-पर जान रखना या लेना-दे० 'हथेलीलाधव, हाथकी सफाई । (मु०-कंडा चलना-चालबाजी पर सर रखना या लेना'।-पर जान होना-जान जानेकी कारगर होना। -कंडा दिखाना-हाथकी सफाईका स्थितिमें होना ।-पर दही जमाना-कोई काम करानेके प्रदर्शन करना चालबाजीकी कला दिखाना ।) -कड़ी-| लिए जल्दी मचाना।-पर बाल जमना-किसीमें साहस, स्त्री० लोहेका विशेष ढंगका बना कड़ा जो कैदी या अप- शक्तिका आना ।-पर सर रखना या लेना-जान देनेके राधीको विवश करनेके लिए पहनाते हैं। (मु०-कड़ी लिए.तैयार रहना । -पर सरसों जमाना-कोई कठिन डालना-हथकड़ी पहनाना; दोषी करार देना। -कड़ी। काम फुर्तीसे करना । -पीटना-बजाना-ताली बजाना। पड़ना-हथकड़ीसे हाथोंका बाँधा जाना; अपराधी माना | हथोड़ा-पु० दे० 'हथौड़ा'। जाना दोषी ठहराया, जाना।) -छट-वि० जिसे तुरत | हथोरी-स्त्री० हथेली ।
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किसी काममें हाथ लगाना । मु०-जमना, - मँजना, सधना-हाथ खूब सध जाना, कौशल प्राप्त होना । हथौड़ा - पु० धातु, पत्थर, ईंट, लोहा आदि पीटने, ठोंकने के काम आनेवाला लोहेका एक औजार । हथौड़ो - स्त्री० छोटा हथौड़ा ।
हथ्याना * - स० क्रि० दे० 'इथियाना' । हथ्यार* - पु० दे० 'हथियार' |
हृद-स्त्री० [अ० 'हद्द' ] किनार ; सीमा; अंत; औचित्यकी सीमा; इसलामी शरीअतके अनुसार दिया हुआ दंड । - बंदी - स्त्री० इद बाँधना, सीमानिर्धारण । मु०-कर देना, - करना - अति कर देना, औचित्यकी सीमा लाँघ जाना। - से ज़्यादा - अत्यधिक ।
९०१
हथौटी - स्त्री० हस्तकौशल, काम करनेका अच्छा ढंग | हबड़ा - वि० बड़दंता; कुरूप ।
हदका* - पु० धक्का, हचका- 'अति खाय मग हृदका पताका फरफराति अपार' - सत्यना० ।
हननीय - वि० [सं०] वध्य, मार डालने योग्य ।
हनवाना * - स० क्रि० मरवा डालना; पिटवाना, ठुकवाना । हनाना * - अ० क्रि० दे० 'नहाना' ।
हनितवंत * - पु० हनुमान् ।
हनु - स्त्री० [सं०] ऊपरी जबड़ा; ठुड्ढी । हनुमंत* - पु० दे० 'हनुमान्' । हनुमज्जयंती - स्त्री० [सं०] कार्त्तिक कृष्ण चतुर्दशी या चैत्र पूर्णिमा जिसे हनुमान्का जन्मदिन मानते हैं ।
हनुमत* - पु० दे० 'हनुमान्' । हनुमान - पु० दे० 'हनुमान्' । - बैठक-स्त्री० बैठक( कसरत) का एक प्रकार । हनुमान् ( मत्) - पु० [सं०] सुग्रीवके एक मंत्री (ये अंजना से उत्पन्न पवन के पुत्र थे । रामके ये अनन्य भक्त थे । सीताका पता इन्होंने लगाया था) | वि०जबड़ेवाला । - कवच - पु० हनुमान्को प्रसन्न करनेका एक मंत्र; हनुमान्की एक स्तुति ।
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हथौटी - हमाल
हबरदबर, हबरहबर - अ० जल्दी-जल्दी ; हड़बड़ीके साथ । हबराना - अ० क्रि० दे० 'हड़बड़ाना' |
हबश, हबशा - पु० [अ०] हन्शियोंका देश, पूर्वी अफ्रीका के अंतर्गत एक देश |
इब्स - पु० [अ०] कैद, अवरोध; कैदखाना; ऊमस (हि०) ।
हृदस - स्त्री० ऐसी घबराहट या भय जिससे बालक ( या हम - सर्व ० 'मैं' का बहुवचन रूप; । * पु० अहंकार, घमंड; व्यक्ति) स्तब्ध-सा रह जाय ।
हदसना - अ० क्रि० भयसे सन्न हो जाना, डर बैठना ।
हद्द - स्त्री० [अ०] दे० 'हद' |
हनन - पु० [सं०] वध करना, जानसे मार डालना; पीटना, मारना; गुणन । - शील- वि० खूनी स्वभावका, निष्ठुर । हनना * - स० क्रि० वध करना, कत्ल करना; पीटना, मारना - 'बाँक नैन जनु इनहि कटारी- प० लकड़ी से पीटकर नगाड़ा आदि बजाना ।
बड़प्पनकी भावना । - ता* - स्त्री० अहंकार | हम - अ० [फा०] समान, एक सा; संग, साथ; आपस में । - असर - वि० एक जैसे प्रभाववाले; समप्रवृत्ति । -उम्रवि० समवयस्क । - कौम - वि०एक जातिवाले, सजातीय । -ख़्वाबा- वि०स्त्री०साथ सोनेवाली (पत्नी) - जिंस - वि० एकसा; एक ही पेशावाले । -जोली- वि० एक ही उम्रका; बचपनमें साथ खेला हुआ। - दर्द - वि० ( कष्ट, पीड़ा, दुःखमें) सहानुभूति रखनेवाला । - दर्दी - स्त्री० सहानुभूति, दर्दमंदी । - पेशा- वि० समान पेशा करनेवाला; सदव्यवसायी । - बिस्तर - वि० ( किसी के साथ ) एक ही बिस्तरपर सोनेवाला । - बिस्तरी - स्त्री० एक ही बिस्तरपर सोनेकी क्रिया, सहशयन, संभोग | - मज़हब - वि० समान धर्मको माननेवाला, सहधर्मी । - राह - वि० साथ चलनेवाला । अ० साथमें। (मु० - राह करना- किसीको कहीं जानेके लिए किसीके साथ कर देना । - राह होना - साथ जाना ।) - राही - वि० सहगामी । - वतन - पु० एक ही देशके निवासी । -वारवि० बराबर, चौरस; एकसा । - सफ़र - वि० साथ यात्रा करनेवाला । - सबक - वि० साथ पढ़नेवाला । -सायापु० पड़ोसी । -सिन - वि० दे० 'हमउम्र' । हमन* - सर्व० दे० 'हम' |
हमरा हमरो। सर्व० दे० 'हमारा' |
हमल - पु० [अ०] बोझ; गर्भ; भ्रूण । - (ले) हराम - पु० हरामका इमल, व्यभिचारसे स्थित गर्भ ।
हनुव* - पु० दे० 'हनुमान्' ।
हनू - स्त्री० [सं०] दे० 'इनु' |
हनूमान ( मत्) - पु० [सं०] दे० 'इनुमान्' । हनोद - पु० एक राग ।
हन्यमान- वि० [सं०] इननीय, वध्य; मारा जाता हुआ । हफ़्त - वि० [फा०] सात । हफ़्ता - पु० [फा०] सप्ताह ।
हबकना + - स० क्रि० किसी वस्तु- फल आदि - को झटसे दाँतसे काटकर खाना, चटसे काटना; किसी व्यक्तिको झपटकर दाँतसे काटना ।
हबशी - पु० [अ०] हबशका रहनेवाला; हबशी जातिका आदमी । वि० काला-कलूटा |
हबीब - वि० [अ०] प्रेमी; दोस्त; प्यार! | हबेली - स्त्री० दे० 'हवेली' ।
हब्बा - पु० अनाजका दाना; रत्ती; अत्यल्प मात्रा; (ला० ) पैसा-कौड़ी । - भर - रत्तीभर । - हब्बा-पैसा-पैसा, कौड़ी कौड़ी ।
हब्बा डब्बा - पु० [अ०] बच्चोंका एक रोग जिसमें उनकी साँस बहुत तेजी से चलती है ।
हमला - पु० [अ०] आक्रमण, धावा, चढ़ाई; चोट, वार । - भावर ( हमलावर ) - वि०, पु० हमला करनेवाला,
आक्रमणकारी ।
हमाक़त - स्त्री० [अ०] मूर्खता, नासमझी, हिमाकत । हमाम - पु० दे० 'इम्माम' |
हमायल -- स्त्री० [अ०] परतला; गले में डालनेकी चीज; गले में पहननेका एक गहना, हुमेल । हमार* - सर्व० दे० 'हमारा' ।
हमारा - सर्व० 'हम' का संबंध कारकका रूप । हमाल - पु० दे० ' हम्माल' |
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हमाहमी-हरताल
९०२ हमाहमी-स्त्री० अनेकके स्वार्थ में अपने स्वार्थ के लिए दौड़- आकृष्ट करनेवाला; हकदार; विभाजन करनेवाला; कब्जा धूप, स्वार्थपरायणता; अपने अहंभावको ही आगे करनेका करनेवाला । पु. शिव; भाजक भिन्नका निम्नांक; ग्रहण । यत्न । मु०-करना-स्वार्थपरायण होना, स्वाथी होना, -गिरि-पु. कैलास पर्वत ।-गौरी-स्त्री० शिवकी अर्थअपने अहंकारकी तुष्टिके लिए यत्न करना, अपनी बात | नारीश्वर मूर्ति ।-द्वार-पु. [हिं०] हरिद्वार । -बीजजबरदस्ती मनवानेका प्रयत्न करना ।
पु० शिवका वीर्य पारद, पारा । -वाहन-पु० (शिवका हमीर-पु० दे० 'हम्मीर'।
वाहन) बैल । -शेखरा-स्त्री० गंगा । -सूनु-पु. हमे -सर्व०'हम'का कर्म तथा संप्रदान कारकका रूप,हमको। कात्तिकेय, गणेश ।-हार-पु० शेषनाग, सर्प । हमेल-स्त्री० सोने या चाँदीके गोल सिक्को या सिक्केके | हर-वि० [फा०] प्रत्येक ।-एक-वि० प्रत्येक । -कहीं
रूपमें गढ़े हुए धातुखंडोंमें कोंदा लगाकर बनी हुई माला । | अ० हर जगह । -चंद-भ० जिस कदर, कितना ही। हमेव*-पु. अहंकार, घमंड ।
-जाई-वि० मारा-मारा फिरनेवाला, आवारागर्द; सब हमेशा-अ० [फा०] सदैव ।
जगह जानेवाला । वि० स्त्री० व्यभिचारिणी, कुलटा । हमेस, हमेसा*-अ० दे० 'हमेशा'।
-तरह-अ० हर हालतमें । -दम-अ० हमेशा । हम*-सर्व० दे० 'हमें।
-फ्रन मौला-वि० हर एक फन जाननेवाला ।-रोज़हम्द-पु० [फा०] ईश्वरस्तुति, ईश्वरकी महिमाका गान । अ० प्रति दिन । हम्माम-पु० [अ०] स्नानका स्थान; गरम स्नानागार। हर*-पु० दे० 'हल'। -पुजी-स्त्री० हलका पूजन जो -की लंगी-नहानेकी लुंगी; (ला) वह चीज जो हर किसान कात्तिकमें करते हैं। -वाह-वाहा-पु० हल आदमीके काममें आये।
जोतनेवाला । -वाही-स्त्री० हल जोतनेका काम या हम्मार*-सर्व० दे० 'हमारा' ।
मजदूरी। हम्माल-पु० [अ०] बोझ उठानेवाला, मोटिया, कुली। हरएँ*-अ० धीरे-धीरे, आहिस्तेसे-'दिनकर तनया स्याम हम्मीर-पु० रणथंभोरका एक वीर नरेश (चौदहवीं सदी)। जल द्वै घट भरे बनाइ । ताके भर गए भये हरएँ धारति
जो अलाउद्दीन खिलजीसे युद्ध करते समय मारा गया; [सं०] एक संकर राग । -नट-पु० एक संकर राग । हरकल-स्त्री० [अ०] हिलनाडोलना, गति, चेष्टा; स्वर; हयंद*-पु० अच्छा घोड़ा, बड़ा घोड़ा।
(व्या०) स्वरसूचक चिह्न, मात्रा (जेर, जबर, पेश); काम हय-पु० [सं०] घोटक, घोड़ा; एक विशेष जातिका आदमी; बुरा काम, शरारत । मु०-करना-हिलना; चलना, सातकी संख्या; एक छंदका नाम; इंद्र धनु राशि । प्रस्थान करना (फौजका हरकत करना)। -देना-जेर, -कोविद-वि०, पु० अश्वविद्या जाननेवाला । -गृह- जबर, पेश लगाना। पु० धुड़सार, अश्वशाला। -ग्रीव-पु० विष्णुका एक हरकना*-स० क्रि० रोकना, वर्जन करना । रूप जो मधु-कैटभसे वेदोंका उद्धार करनेके लिए ग्रहण | हरकारा-पु० दूत डाकिया, डाक ढोनेवाला। किया गया था; एक दैत्य । -ज्ञ-पु० घोड़ेका व्यापारी; हरख*-पु० दे० 'हर्ष' । साईस । -नाल-स्त्री० घोड़ेसे खींची जानेवाली तोप। हरखना*-अ० कि० प्रसन्न होना, खुश होना। -निर्घोष-पु० घोड़ेके टापकी आवाज ।-प-पु०साईस। हरखाना*-अ० क्रि० दे० 'हरखना' । स० क्रि० खुश -प्रिय-पु० जी; जई ।-विद्या-पु० अश्व-संबंधी विद्या।। करना, प्रसन्न करना। -शाला-स्त्री० घुड़सार, अस्तबल । -शास्त्र-पु०,- हरगिज़-अ० [फा०] कभी, किसी हालत में । शिक्षा-स्त्री० घोड़ोंको शिक्षा देनेकी विद्या। -शीर्ष,- | हरज-पु० [अ०] हानि, क्षति; देर, समय-नाश; काममें शीर्षा (पन्)-वि० घोड़ेके सिरवाला । पु०विष्णु । होनेवाली रुकावट (करना, होना)। हयना*-स० क्रि० दे० 'हनना'; काटना-'प्रभु बहु बार हरजा-पु० [अ०] नुकसान; हरजाना, तावान । बाहु सिर हये'-रामा ।
हरजाना-पु० [फा०] नुकसानके बदले में दी जानेवाली हयांग-पु० [सं०] धनु राशि ।
रकम, क्षतिपूर्ति । हया-स्त्री० [अ०] लज्जा, शर्म । -दार-वि० लाज-शर्म- हर-वि० हृष्ट-पुष्ट, हट्टाकट्टा । वाला, लज्जाशील । -दारी-स्त्री० लज्जाशीलता । हरण-वि० [सं०] (समासांतमें) ले लेनेवाला; दूर करनेहयात-स्त्री० [अ०] जीवन, जिंदगी प्राण ।
वाला; धारण करनेवाला। पु० नष्ट करना; दूर करना; हयाध्यक्ष-पु० [सं०] अश्वपाल, घोड़ोंका निरीक्षक । ले लेना, छीन लेना चुरा लेना ले जाना या ले भाना; हयानन-पु० [सं०] हयग्रीव हयग्रीवके रहनेकी जगह । । भगा ले जाना; वंचित करना; भाग (गणित)। हयायुर्वेद-पु० [सं०] अश्वचिकित्सा-संबंधी शास्त्र । हरणीय-वि० [सं०] हरण करने, छीन लेने योग्य । हयारूढ, हयारोह-पु० [सं०] अश्वारोही।
हरता*-पु० दे० 'हर्ता' । -धरता-पु० बनाने-बिगाड़नेहयालय-पु० [सं०] अश्वशाला, अस्तबल ।
वाला, सर्वेसर्वा सर्वशक्तिमान् । हयी-स्त्री० [सं०] घोड़ी।
हरतार*-स्त्री० दे० 'हरताल'। हयी (यिन)-पु० [सं०] अश्वारोही; घोड़ेवाला। हरताल-स्त्री०गंधक और संखियाके योगसे बना एक पीला हर-वि० [सं०] हरण करनेवाला, दूर करनेवाला; नष्ट खनिज द्रव्य । मु०-फेरना,-लगाना-किसी बने कामकरनेवाला; लानेवाला; ले जानेवाला; ग्रहण करनेवाला | को बिगाड़ देना, नष्ट करना।
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हरदिया देव* - पु० दे० 'हरदौल ' ।
हरदी | - स्त्री० हल्दी |
हरदौल - पु० ओड़छाके राजा जुझारसिंहके छोटे भाई जो वीरता और भ्रातृभक्तिके लिए बड़े प्रसिद्ध हैं ( राजा जुझार सिंह ने अपनी पत्नीके साथ अनुचित संबंध होनेके संदेह में उसकी सतीत्व परीक्षा के लिए उसीके हाथसे इन्हें विष खिलवालर इनका अंत करा दिया ) । हरना - स० क्रि० हरण कर लेना, छीन लेना; दूर करना; आकृष्ट करना । अ० क्रि० हार जाना; परास्त होना; शिथिल पड़ जाना । * पु० मृग, हिरन । हरनाकस * - पु० दे० 'हिरण्यकशिपु' । हरनाच्छ * - पु० 'हिरण्याक्ष' ।
९०३
हरताली - वि० हरतालके रंगका । पु० हरतालकासा रंग । हरद* - स्त्री० दे० 'हल्दी' |
हरदिया * - वि० हल्दी के रंगका, पीला । पु० पीले रंगका | हरहाई - वि० स्त्री० शरारती (गाय) । घोड़ा ।
हरनी। - स्त्री० हिरनकी मादा ।
हरनौटा - पु० हिरनका बच्चा ।
हरपrt - पु० वह छोटा डब्बा जिसमें सुनार तराजू आदि रखते हैं; सिंधोरा |
हरफ़ - पु० दे० 'इ' ।
हरफारेवड़ी - स्त्री० आँवलेके बराबर खट्टे फलोंवाला एक वृक्ष या उसका फल, लवली ।
हरफार चोरी * - स्त्री० दे० 'हरफारेवड़ी' |
हरबर* - स्त्री० दे० 'हड़बड़' । अ० हड़बड़ी के साथ, उतावली में, जल्द-तहँ मुनिवर हरबर आयो' - रघु० । हरबराना * - अ० क्रि० हड़बड़ाना । हरबा - पु० [अ०] युद्धका साधन, हथियार, आयुध । - हथियार - पु० अस्त्र-शस्त्र ।
हरबौंग - वि० गुंडा, लट्ठधारी; मूढ़, मूर्ख । पु० कुव्यवस्था; अंधेर । - पुर - पु० अंधेर नगरी ।
हरम - पु० [अ०] काबेकी चहारदीवारी, घेरा; अंतःपुर; विवाहिता स्त्री; रखेली बनायी हुई बाँदी। खाना, - सरा- पु० जनानखाना, अंतःपुर ।
हरमज़दगी - स्त्री० हरामजादापन, दुष्टता, शरारत । हरयाल * - स्त्री० 'हरियाली' ।
हरये * - अ० दे० 'हरएँ' ।
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हरताली - हरि
हरहा - वि० हैरान, परेशान करनेवाला, भागा फिरनेवाला (पशु) । पु० इलमें जुतनेवाला बैल; + भेड़िया ।
हाँस* - पु०, स्त्री० ज्वरांश, हरारत थकावट | हरा - वि० घास पत्तोंके रंगका, सब्ज, हरित; अधपका; बिना पूजा, भरा (धाव); तरोताजा; खुश, आनंदित, प्रफुल | पु० हरा रंग; चौपायोंका हरा चारा; * हार, माला । स्त्री० [सं०] हर, शिवकी पत्नी पार्वती ।-भरावि० हरियालीसे भरा हुआ; ताजा; प्रसन्न, प्रफुल्ल | मु० - करना - आनंदित, हर्षित, प्रसन्न करना । - दिखाई पड़ना, -सूझना - सुख, आशा आदिकी व्यर्थ कल्पना, अपने अज्ञान के कारण झूठी आशा बाँधना । - बाग दिखाई पड़ना, सूझना - दे० 'हरा दिखाई पड़ना' । हराना - स० क्रि० युद्ध, लड़ाई-झगड़े, प्रतिद्वंद्विता आदि में शत्रु, प्रतिद्वंद्वी आदिको परास्त करना, पछाड़ना; थकाना । हराम - वि० [अ०] निषिद्ध, अविहित; धर्मशास्त्र में निषिद्ध; शरअ ( इसलामी धर्मशास्त्र ) के विरुद्ध, इलालका उलटा; त्याज्य; अग्राह्य; अपवित्र । पु० पापकर्म; व्यभिचार, बदकारी । - कार - पु० व्यभिचारी, बदकार ।-कारी - स्त्री० व्यभिचार,बदकारी ।-खोर - वि०हराम चीजें खानेवाला; हरामका माल खानेवाला; घूसखोर; मुफ्तखोर; नमकहराम । - खोरी - स्त्री० मुफ्तखोरी; घूसखोरी; नमकहरामी । - जादा - पु० जारज, दोगला; दुष्ट, पाजी । -ज्ञादीस्त्री० दोगली स्त्री; खोटी स्त्री । मु०-कर देना - कठिन, दुःखद बना देना, नामुमकिन कर देना ( जीना, खाना, सोना, हराम कर देना ) । -का खाना - बिना मेहनत किये खाना, मुफ्तखोरी करना । -का जना- जो हराम, व्यभिचारके गर्भ से जनमा हो, हरामजादा । -का पिल्ला, - का बच्चा - दोगला; दुष्ट | - का पेट - व्यभिचार, अविहित संबंधसे रह जानेवाला गर्भ । -का माल - अधर्म, बेईमानी से कमाया हुआ धन; मुफ्तका माल । - की कमाई - अधर्म, बेईमानी से कमाया हुआ पैसा, पापकी कमाई । -की मौत मरना- जहर खाकर मरना, आत्मघात करना । - होना- कठिन, दुःखद, नामुमकिन होना; त्याज्य होना (रोजा हराम होना ) । हरामी - वि० [अ०] हरामका जना; दुष्ट, पाजी । हरारत - स्त्री० [अ०] गर्मी; हलका ज्वर; (ला० ) जोश ।
हरवल - पु० बिना ब्याजके हलवाहेको दिया हुआ द्रव्यः हरावर* - पु० दे० 'हरावल' |
*
पु० दे० 'हरावल' |
हरावरि* - स्त्री० दे० 'हड़ावरि' ।
हरवली* - स्त्री० सेनाका नेतृत्व; मालिकका पद, स्वामित्व हरावल - पु० [तु०] सेनाका अग्रभाग; ठगोंका मुखिया । हरवा * - पु० दे० 'हार' । वि० इलका | हरवाना * - अ० क्रि० हड़बड़ाना, जल्दी करना; इलका
हरास - पु० हास; विषाद, दुःखः नैराश्य - 'धनुष तोरि हरि. सबकर हयो हरास' - बरवै रामा०; दुर्घटनाका भय, आशंका; डर ।
होना । स० क्रि० 'हराना' और 'हरना' का प्रेरणार्थक रूप । हरप* - पु० दे० 'इर्ष' ।
हरपना, हरसना* - अ० क्रि० प्रसन्न होना ।
हरषाना, हरसाना* - अ० क्रि० प्रसन्न होना । स० क्रि० प्रसन्न करना ।
हरषित - वि० दे० 'हर्षित' ।
हरसिंगार - पु० एक फूल, परजाता । हरहटा - वि० दे० 'हरहा' |
५७ क
हराहर* - पु० दे० 'इलाहल' |
हराहरि * - स्त्री० थकावट, कांति- 'सुठि अंग हराहरि खोइ गयी' - उ० राम० ।
हरि - वि० [सं०] इरा; हरापन लिये पीला; पिंगल; पीत । पु० विष्णुः इंद्रः शिवः ब्रह्मा; यम; सूर्य; चंद्रमा; मनुष्य; प्रकाशकी किरण; अग्नि; वायुः सिंह, सिंह राशि; अश्व; गीदड़; इंद्रका घोड़ा; बंदर; बनमानुसः इंस; कोयल;
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हरि-हरिनाक्ष
मेढ़क साँप; मोर - 'हरि (बादल) गर्जन सुनि हरि (मेढक ) बोलेला, हरिक सबद सुन हरि (साँप ) चलेला । हरि | (मोर) बिचहिं मिलल, हरि हरिके लिहल; हरिक परतापसे इरि बचेला'; तोता; कृष्ण; राम; भर्तृहरिः शुक्र; एक पर्वत; एक लोकः एक वर्ष, भूभाग । - कथा - स्त्री० विष्णुके अवतारोंके चरित्रोंका वर्णन । -कीर्तन-पु० हरिविष्णुके अवतारों आदि का गुणगान । -गण-पु० घोड़ोंका झुंड । - गिरि- पु० एक पर्वत । - गीतिकास्त्री० एक वृत्त । - चंदन - पु० पाँच देवतरुओंमेंसे एक; पीला चंदन । - चाप - पु० इंद्रधनुष् । -जन - पु० भगवनका सेवक, अछूत जातिका व्यक्ति (आधु० ) । - जान* - पु० विष्णुवाहन, गरुड़ । - तालिका - स्त्री० दूर्वा भाद्रशुका तृतीया, जिस दिन स्त्रियाँ तीजका पर्व मनाती हैं। - तुरंगम, - तुरग - पु० इंद्रका घोड़ा । - दास-पु० विष्णुभक्त । - दिक् (श्) - स्त्री०इंद्रकी दिशा, पूरब दिशा । -द्वार - पु० हृषीकेशके पासका एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान । - द्विद (ष) - पु० असुर । धनुष-पु० इंद्रधनुष् । - धाम (न्) - पु० वैकुंठ । -नख- पु० सिंहका नख; बाघके नखवाला तावीज जो बच्चोंको पहनाया जाता है । - नग* - पु० सर्पमणि । - नाथ- पु० हनुमान् ।-पदपु० वैकुंठ | - पर्ण - वि० हरी पत्तियोंवाला । पु० मूली । - पर्वत - पु० एक पहाड़। -पुर-पु० बैकुंठ । प्रियवि० विष्णुको प्रिय । पु० कदंब; बंधूकः विष्णुकंद; शंख; उशीर; मूर्ख; पागल आदमी; रक्त या कृष्ण चंदन । - प्रिया - स्त्री० लक्ष्मी; पृथ्वी; तुलसी; सुरा । - बीजपु० हरताल | - बोधिनी - स्त्री० कार्तिक शुक्ला एकादशी । -भक्त-पु० भगवान्का भक्त, हरिसेवक । -भक्तिस्त्री० भगवान्की भक्ति । - भुक् (ज्) - पु० ( मेढक खानेवाला ) सर्प । - मंदिर - पु० विष्णुमंदिर । - मणिपु० सर्पका मणि । - मेध - पु० अश्वमेध; विष्णु । -यानपु० गरुड़ | - वंश - पु० कृष्णका वंश; बंदरोंका वंश; एक प्रसिद्ध ग्रंथ जो महाभारतका परिशिष्ट है । - वर्ष पु० जंबूद्वीपका एक खंड | -वल्लभा - स्त्री० लक्ष्मी; तुलसी; जयाः अधिक मासकी एकादशी। -वास - वि० पीत वस्त्रधारी (विष्णु) । पु० अश्वत्थ, पीपल । -वासरपु० एकादशी; रविवार । -वाहन- पु० गरुड़ इंद्र; सूर्य । - शयनी - स्त्री० आषाढ़ शुक्ला एकादशी ( विष्णुके सोनेका दिन ) । - संकीर्तन - पु० विष्णुका गुणगान । - सुत - पु० अर्जुन; प्रद्युम्न - सूनु-पु० अर्जुन । - सौरभ - पु० कस्तूरी । - हय-पु० इंद्रका घोड़ा; इंद्र; सूर्य; स्कंद; गणेश । - हर- पु० विष्णु और शिव । -हरक्षेत्र- पु० एक तीर्थस्थान जो सोनपुर (विहार) में है और जहाँ कार्तिकी पूर्णिमाको बहुत बड़ा मेला लगता है । हरि* - अ०धीरे | हरि-अ० धीरे-धीरे, आहिस्ते-आहिस्ते । हरिअर* - वि० हरा |
हरिअराना - भ० क्रि० हरा होना ।
हरिआना * - अ० क्रि० हरे रंगका होना, हरा होना; थकानका दूर होना, ताजा होना; आनंदित, प्रसन्न होना।
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९०४
-
हरिआली स्त्री० दे० 'हरिअरी' । हरिश्चंद* - पु० दे० 'हरिश्चंद्र' | हरिजाई* - वि० स्त्री० दे० 'हरजाई' | हरिण पु० [सं०] मृग, हिरनः शिवः विष्णुः सूर्य; नेवला; हंस; एक लोक पीलापन लिये सफेद रंग, पांडुवर्ण । वि० पीलापन लिये सफेद, भूरा, पांडु रंगका; हरा । -कलंकपु० चंद्रमा । - चर्म (न्) - पु० मृगछाला । -धामा(नू ) - पु० चंद्रमा । -नयना, - नयनी, नेत्रा - स्त्री० हरिण जैसी आँखोंवाली स्त्री । - लक्षण, - लांछन - पु० चंद्रमा । - लोचना - स्त्री० दे० 'हरिणनयनी' । - लोलाक्षीस्त्री० हरिण जैसी चंचल आँखोंवाली स्त्री । - हृदय - वि० हरिणके समान भीरु हृदयवाला, बुजदिल । हरिणांक - पु० [सं०] चंद्रमा | हरिणाक्षी-स्त्री० [सं०] दे० 'हरिणनयना' | हरिणाधिप - पु० [सं०] सिंह | हरिणारि - पु० [सं०] सिंह | हरिणी - स्त्री० [सं०] मादा हरिण, मृगी; हरिद्रा; इरा रंग; स्वर्णजूथी, सोनजुही; मंजिष्ठा, मजीठ; स्त्रियोंके चार भेदों में से एक जिसे चित्रिणी कहते हैं; तरुणी, युवती; सुंदरी स्त्री; एक वर्णवृत्तः स्वर्णप्रतिमा । - हशी, - नयना - स्त्री० मृगी जैसे नेत्रोंवाली स्त्री । हरिणेश- पु० [सं०] सिंह |
हरित - वि० [सं०] हरा; ताजा; भूरा; पीला; गहरा नीला । पु० हरा रंग भूरा रंग; इन रंगों का पदार्थ | सोना; सब्जी आदि; पांडु रोग । -कपिश-वि० पीलापन लिये भूरा । - गोमय- पु० ताजा गोवर - धान्य- पु० कच्चा अन्न ( जो अभी पका न हो ) । - नेमी ( मिन् ) - वि० जिसके रथ के पहिये सुवर्णके हो ( शिव ) । -प्रभवि० जिसका रंग पीला पड़ गया हो, पांडु । - भेषजपु० कमला रोगकी दवा । - मणि- पु० मरकत । हरिताश्म (न्) - पु० [सं०] मरकतमणि, पन्ना; तूतिया । हरितोपल - पु० [सं०] मरकत ।
हरित् वि० [सं०] हरा; पीला; पिंगल; हरा मिश्रित पीला | पु० हरा रंग पीला रंग; पिंगल वर्ण; सूर्यका एक घोड़ा, मरकत; विष्णुः सूर्य सिंह; मूँग; घास । स्त्री० हलदी; दिशा; तृण, घास। पति-पु० दिक्पति । - पर्ण-पु० मूली । हरिदंबर - वि० [सं०] पीला या हरा वस्त्र धारण करनेवाला । हरिद्र- पु० [सं०] पीला चंदन |
हरिद्रा - स्त्री० [सं०] हलदी; हल्दीका चूर्ण; एक नदी । - गणपति, गणेश- पु० 'तंत्रसारोक्त' एक प्रकारके पीत रंगके गणेश । - प्रमेह, मेह-पु० एक प्रकारका प्रमेह, जिसमें जलन के साथ पीला पेशाब होता है। -रागवि० जिसका प्रेम हलदीके रंगकी तरह अस्थायी हो । पु० अस्थायी प्रेम |
हरिद्राभ - वि० [सं०] हलदीके रंगका, पीला ।
हरिअरी* - स्त्री० हरियाली, हरी वनस्पतिका ढेर, हरी हरिन - पु० कुरंग, मृग; (क्लोरिन) पीले तथा हरेसे रंगकी घास, हरे पेड़-पौधों की राशि; हरा रंग ।
दुर्गंधियुक्त गैस, जो वजनदार भी होती है । हरिनाकुस* - पु० दे० 'हिरण्यकशिपु' । हरिनाक्ष, हरिनाच्छ* - पु० दे० 'हिरण्याक्ष' ।
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हरिनीग-हर्षाना हरिनीग-विली. मृगनैनी (उदा०' हरै)। 'सापनेमें बिछुरे हरि हेरि हरैइ हरै हरिनीग रोवै'हरिन्मणि-पु० [सं०] मरकत मणि, पन्ना।
भाववि०। हरिमा (मन्)-स्त्री० [सं०] पीलापन, पांडुता हरापन । हरैना-पु० हलका वह भाग जिसमें नीचेकी ओर फाल हरियर*-वि० दे० 'हरिअर'।
लगाते हैं। बैलगाड़ीका वह भाग जो सामनेकी ओर हरियराना*-अ० क्रि० दे० 'हरिअराना।
निकला रहता है। हरियाई-स्त्री० दे० 'हरियाली' ।
हरैया-पु० हरण करनेवाला, दूर करनेवाला । हरियाथोथा-पु० तृतिया।
हरोल, हरौल*-पु० दे० 'हरावल' । हरियाना-भ० क्रि० दे० 'हरिआना' । पु० बाँगड़ देश। | हरौती-स्त्री० दे० 'हलवत' । हरियानी-स्त्री० हिंदीकी एक बोलीका नाम; बाँगडू, | हर्ज-पु० दे० 'हरज'। जाटू बोली।
हर्तव्य-वि० [सं०] हरण करने योग्य । हरियाली-स्त्री० दे० 'हरिआली' । मु०-सूझना-(प्रायः हर्ता(त)-पु० [सं०] हरण करनेवाला; ले जानेवाला नष्ट भ्रमसे) सुख ही सुखका आभास होना ।
करनेवाला; लानेवाला; डाकू चोर काटकर अलग करनेहरिला-पु० हारिल पक्षी।
वाला; कर लगानेवाला (राजा)। हरिश्चंद्र-पु० [सं०] त्रेतायुगके सूर्यवंशके २८ वें राजा हर्फ़-पु० [अ०] अक्षर, वर्ण; शब्द, बात (शिकायतका (ये त्रिशंकुके पुत्र थे और अपनी उदारता तथा सत्य- हर्फ); अव्यय, प्रत्यय (व्या); दोष, ऐब । वादिताके लिए प्रसिद्ध थे)।
| हर्ब-पु० [अ०] युद्ध । -गाह-पु०, स्त्री० युद्धभूमि । हरिस-स्त्री० हलकी वह लंबी लकड़ी जिसका एक सिरा हर्बा-पु० दे० 'हरबा। हलकी फालवाली मोटी लकड़ीसे संबद्ध होता है और हर्म्य-पु० [सं०] बहुत बड़ा मकान, महल, प्रासाद । दूसरा बैलोंके जुएसे।
हर-स्त्री०, हर्रा-पु०, हरें-स्त्री. हरीतकी। मुहर्रा हरिसिंगार-पु. हरसिंगार, परजाता।
लगे न फिटकरी, रंग चोखा हो जाय-बेखर्चके काम हरिहाई-वि० स्त्री० दे० 'हरहाई'। स्त्री० पशुओंकी | बन जाय । परेशान करनेवाली प्रवृत्ति ।
हरैया-पु० हरें जैसे दानोंवाला हाथका एक गहना, कंठेके हरी-स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त; बंदरोंकी माता; * जमी- छोरोंपरका दाना।।
दारको दी जानेवाली हलकी बेगार । * पु० दे० 'हरि'। हर्ष-पु० [सं०] प्रिय वा इष्ट वस्तु, व्यक्ति आदिके देखने, हरीक्षणा-स्त्री० [सं०] मृगनयनी ।
उनके विषयमें सुनने, पढ़ने आदिसे उत्पन्न होनेवाला हरीत-पु० दे० 'हारीत'।
एक सुखात्मक भाव, आनंद, प्रसन्नता; रोमांच, रोंगटोंका हरीतकी-स्त्री० [सं०] हड़, हर्रका पेड़ इस पेड़का फल । खड़ा होना; एक संचारी भाव (सा०); कामोत्तेजना; दे० हरीतिमा-स्त्री. हरा रंग, हरियाली ।
'हर्षवर्द्धन'। -कर,-कारक-वि० प्रसन्न करनेवाला । हरीफ-पु० [अ०] हमपेशा प्रतिद्वंद्वी लड़नेवाला, शत्रु । -गद्द-वि० जिसकी आवाज आनंदसे भर्रायी हुई हो, हरीरा-पु० [अ०] प्रसूताके लिए हलदी, सोंठ, पंचमेवा गद्गदकंठ । -चरित-पु. बाणभट्टरचित एक गद्यकाव्य
आदि गुड़में पकाकर बनाया जानेवाला पेय, अछवानी। जिसमें सम्राट हर्षवर्द्धनका चरित वर्णित है। -ज-वि. + वि० हरा; * प्रसन्न, ताजा ।
हर्षसे उत्पन्न । पु० शुक्र । -दान-पु० आनंदपूर्वक दिया हरीश-पु० [सं०] बानरोंका राजा, सुग्रीव हनुमान् । हुआ दान । -ध्वनि-स्त्री०,-नाद-पु० आनंदातिरेकसे हरीषा-स्त्री० [सं०] मांसका एक व्यंजन ।
की जानेवाली आवाज । -चर्द्धन,-वर्धन-वि० हर्षको हरीस-स्त्री० दे० 'हरिस'। वि० [अ०] हिर्स करनेवाला, बढ़ानेवाला, आनंदवर्धक । पु० विक्रमकी सातवीं शतीमें लोभी, लालची; पेटू।
होनेवाले भारतके अंतिम सम्राट (चीनी यात्री हुएनसांग हरुअ, हरुआ, हरुवा*-वि० हलका ।
इन्हींके राजत्वकालमें आया था। ये स्वयं कवि थे और हरुआई, हरुवाई*-स्त्री० हलकापन ।
सुप्रसिद्ध संस्कृतकवि बाणभट्टके आश्रयदाता थे)। -विवहरुआना*-अ० क्रि० हलका होना; जल्दी करना। धन-वि० आनंद बढ़ानेवाला। -विहल-वि. आनंदहरुए*-अ० धीरे-धीरे, हलके हलके।
विभोर । -समन्वित-वि. आनंदयुक्त। -स्वन-पु० हरू*-वि० दे० 'हरुअ'।
आनंदध्वनि। हरूफ-पु० [अ०] 'हर्फ़' का बहुवचन ।
हर्षक-वि० [सं०] आनंददायक, प्रसन्न करनेवाला। पु० हरे*-अ०दे० 'हरुए'। -हरें -अ० धीरे-धीरे,हौले-होले। | एक पर्वत; चित्रगुप्तका एक पुत्र । हरे*-अ० आहिस्ते, धीरे, हौले। -हरये*-अ० धीरे-हर्षण-वि० [सं०] आनंददायक, प्रसन्नता उत्पन्न करने धीरे, हौले-हौले-हरे-अ० राम! राम!!; * धीरे-धीरे ।
वाला । पु. प्रसन्न होना; (रोंगटोका) खड़ा होना आनंद; हरेक-वि० दे० 'हर-एक' ।
कामदेवके पाँच बाणोंमेंसे एक । हरेरी*-स्त्री० हरिअरी, सब्जी।
हर्षना*-अ० कि. आनंदित होना, प्रसन्न होना। हरेव-पु० मंगोल जाति: मंगोल देश ।
हर्षमाण-वि० [सं०] हर्षयुक्त, प्रसन्न । हरेवा-पु. हरे रंगका एक पक्षी।
हर्षातिशय-पु० [सं०] आनंदातिरेक । हरै*-अ० दे० 'हरे' । -हरे-* अ० धीरे-धीरे- हर्षाना*-अ० कि० दे० 'हर्षना'। स० क्रि० आनंदित,
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हर्षान्वित-हलवा
प्रसन्न करना।
हलकारा*-पु० दे० 'हरकारा'। हर्षान्वित, हर्षाविष्ट-वि० [सं०] आनंदयुक्त, प्रसन्न । हलकोरा-पु० जलकी तरंग, लहर, हिलोरा। हर्षाश्र-पु० [सं०] आनंदसे निकले हुए आँसू , आनंदाश्रु । हलचल-स्त्री० किसी अनिष्ट घटना, अवसर आदिके उपहर्षित-वि० [सं०] आलादित, प्रसन्न प्रसन्न किया हुआ। स्थित होनेपर होनेवाला लड़ाई-झगड़ा, भाग-दौड़, शोरहरफुल्ललोचन-वि० [सं०] जिसके नेत्र आनंदसे गुल, तोड़-फोड़ आदि; अराजकता, उपद्रव, हड़कंप खिले हुए हों।
(तरल पदार्थकी) अस्थिरता, हिलने-डोलनेकी क्रिया। हलंत-वि० [सं०] जिसके अंतमें स्वररहित व्यंजन वर्ण हो। मु०-डालना-उथल-पुथल मचाना, अराजकता, अव्यहल-पु० [सं०] खेत जोतनेका एक औजार, लांगल; वस्था उत्पन्न करना। -पड़ना-उपद्रव, अराजकताका भूमिकी एक माप; एक शस्त्र । -कुकुद्-पु० हलका होना। -मचना-दे० 'हलचल पड़ना। -मचानावह भाग जिसके नीचेके हिस्से में फाल जड़ते हैं।-ग्राही- दे० 'हलचल डालना'। (हिन्)-वि० हल चलानेवाला । -जीवी(विन्)- | हलदिया-पु० एक रोग जिससे आँख और सारा शरीर वि० हलके सहारे जीविका चलानेवाला। -जुता-पु० पीला पड़ जाता है, कँवल रोग; एक प्रकारका विष । [हिं०] हल जोतनेवाला किसान, साधारण कृषक; गँवार हलदी-स्त्री० एक प्रकारका पौधा जिसकी जड़में होनेवाली आदमी । -दंड-पु० हरिस । -धर-पु. बलराम । पीले रंगकी गाँठ मसाले,रंग और औषधके काममें आती -पाणि-पु० बलराम । -भृति-स्त्री० कृषिकर्म, है। मु०-उठना,-तेल उठना-विवाहके कुछ दिन किसानी । -भृत्-पु० हलधर । -मार्ग-पु० जुताईसे पहले वर और कन्याको हलदी और तेल मिला उबटन बनी हुई लकीर, फॅड। -मुख-पु० फाल । -वंश- लगानेकी रस्म । -का हाथ होना-विवाह होना। पु० हरिस । -वाह-पु० [हिं०] हल जोतनेका काम -चढ़ना-दे० हलदी उठना'।-लगना-विवाह होना। करनेवाला । -वाहा-पु० [हिं०] हलवाह ।
-लगाकर बैठना-कोई काम न करना; अपनेको बहुत हल-पु० [अ०] खुलना, सुलझाव; कठिनाईका दूर होना; कुछ समझना। घुलना; गणितकी प्रक्रिया सवालका जवाब। मु०- हलबी-स्त्री० [सं०] हरिद्रा, हलदी। करना-सुलझाना, घोंटना, पीसकर मिलाना; सवालका हलना*-अ.क्रि० हिलना, अस्थिर होना प्रविष्ट होना। जवाब निकालना, पहेली बूझना।
हलफ-पु० [अ०] शपथ, कसम । -दरोगी-स्त्री० झूठी हलकंप-पु० दे० 'हड़कंप'।
शपथ लेना । -नामा-पु० लिखा हुआ हलफी बयान । हलक-पु० [अ० 'हल्क'] गला, कंठ; गरदन । मु०-का मु०-उठाना,-लेना-कसम खाना, कुरान या गंगाजल दरबान-खाने-पीनेमें रोक-टोक करनेवाला; बोलनेसे | लेकर कहना। रोकनेवाला । -तक भरना-दूंस-ठूसकर खाना। -पर हलफन्-अ० [अ०] हलफकी रूसे, शपथ-पूर्वक । छुरी फेरना-दे० 'गलेपर छुरी फेरना' ।-से उतरना- | हलफा-पु० लहर ऊँचीतरंग तेज साँस । मु०-चलनागलेसे उतरना; मनमें बैठना।
बहुत तेज साँस चलना (बच्चोंका हब्बा-डब्बासे ग्रस्त हलकई-स्त्री० हलकापन; छोटापन, अप्रतिष्ठा । होना)। -मारना-ऊँची-ऊँची तरंगोंका पछाड़ खाना । हलकन*-स्त्री० हिलने-डुलनेकी क्रिया।
हलफ्री-वि० [अ०] हलफ लेकर कहा, दिया हुआ हलकना*-अ० क्रि० हिलना-डोलना, पानीका हिलकोरा (-बयान)। मारना।
हलब-पु० [अ०] शामका एक नगर जहाँका शीशा पुराने हलका-वि० कम वजनवाला, जो भारी न हो; मात्रामें | समयमें प्रसिद्ध था। थोड़ा, कमा मामूली, कम मूल्यवाला; पतला, अधिक | हलबल*-स्त्री० हलचल, खलबली । जल या अन्य तरल वस्तु मिला हुआ; कम सांघातिक, | हलबी-वि० [अ०] हलबका । पु० हलबका आईना, जो (प्रहार) तेज या अधिक कष्टप्रद न हो, मंद, मामूली बढ़िया मोटे दलका शीशा । महीन, पतला, झीना; एकदम खाली, छूछा; ताजा, | हलब्बी-पु० दे० 'हलबी' । थकानरहित, श्रांतिहीन; कमीना, नीच, भोछा; निंदित, हलबलाना*-अ० क्रि० घबड़ाना। स० क्रि० दूसरोंको अप्रतिष्ठित कम परिश्रममें ही हो जानेवाला, सहल, घबड़ाहटमें डालना। अनुपजाऊ जो गाढ़ा, गहरा, चटकीला न हो, ओछा। -पन-पु० हलका होनेकाभाव, भार न होना तुच्छता, | हलभल*-स्त्री० दे० 'इलबल'।
ओछापन; बुराई; कमीनापन: अपमान, बेइज्जती। हलभली*-स्त्री० हलचल । हलका-पु० [अ०] घेरा, मंडल; वृत्ताकार वस्तु; मंडली; हलराना-स० क्रि० छोटे बच्चोंको हाथपर या गोदमें लेकर पहिया; पहियेका हाल, लौह या लकड़ीका गोल कुंडा, उन्हें प्यार करने, चुप कराने, सुलाने आदिके लिए गाँवों आदिका मंडल जो किसी विशेष कर्मचारी या अधि- हिलाना। कारीका कार्यक्षेत्र हो। मु०-बाँधना-घेरा डालना। हलवत-स्त्री० वर्ष में पहली बार खेतमें हल ले जानेकी हलकाना-वि० दे० 'हलाकान'।
रस्म, हरौती। हलकाना -स० क्रि० हलका करना; किसी तरल वस्तुको | हलवा-पु० [अ०] एक मिष्ठान्न जो सूजी या आटेको धीमें हिलाना-डुलाना, इलकोरना । अ० कि० हलका होना।। भूनकर पानी या दूधमें शकर देकर पकानेसे बनता है,
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९०७
हलवाई-हवा मोहनभोग (ला०) तर और मुलायम चीज; बहुत आसान । हल्य-वि० [सं०] हल-संबंधी; जोती हुई; जोतने योग्य काम (हलवा समझना)। -सोहन-पु० घी-मैदेके योगसे | (जमीन); विरूप, भद्दा । बननेवाली एक मशहूर मिठाई । मु०-निकल जाना- हल्ला-पु. अनेक आदमियोंकी बातचीत, लड़ाई-झगड़े कचूमर निकल जाना; गत बन जाना ।-निकाल देना- आदिसे हुई मम्मिलित स्वरध्वनि, शोर-गुल; ललकार; पीटकर गत बना देना। (अपने) हलवे माँ डेसे काम धावा, हमला । -गुल्ला-पु. शोर-गुल, कोलाहल । होना-केवल अपना भला, अपना मतलब देखना, दूसरेके मु०-बोलना-ललकारकर धावा करना। -मचनाहानि-लाभकी परवाह न करना।
शोर होना । -मचाना-शोर करना। हलवाई-पु० [अ०] हलवा बनाने-बेचनेवाला, मिठाई हल्लीश-पु० [सं०] स्त्रियोंका मंडलाकार नृत्य जिसमें बनाने-बेचनेवाला, मोदककार ।
एक पुरुष और कई स्त्रियाँ होती हैं। अठारह उपरूपकोंमेंसे हलहलाना -स० क्रि० घुसेड़ना; झटकेसे हिलाना, झक- | एक जिसमें नृत्य-गानकी प्रधानता होती है। झोरना; तरल पदार्थ भरे पात्र या वस्तुको झकझोरना, | हल्लीशक-पु० [सं०] स्त्रियोंका मंडलाकार नृत्य । हिलाना । अ० क्रि० काँपना ।
हवन-पु० [सं०] मंत्र पढ़कर किसी देवताके लिए अग्निमें हला-स्त्री० [सं०] सखी; पृथ्वी, जल; मदिरा । अ० सखीको __ आहुति देना, होम; अग्नि या अग्निदेव; हवनकुंडा खुवा
संबोधित करनेका एक शब्द (ना०)। * पु० हल्ला। होम करना। हलाक-पु० [अ०] मौत; तबाही; बरबादी। वि० इच्छुक। हवनीय-वि० [सं०] आहुतिके रूप में दिये जाने योग्य। मु०-होना-मरना; तबाह होना।
हवलदार-पु० फौजका एक छोटा अफसर जिसके मातहत हलाकान-वि० हैरान, परेशान ।
कुछ सिपाही होते हैं। बादशाही जमानेका एक कर्मचारी हलाकानी -स्त्री० हैरानी, परेशानी ।
जो कर-संग्रह आदिका निरीक्षण करता था। हलाकू-वि० [अ०] वधिक, घातक ।
हवस-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाह; उमंग; शौक, लालच हलाना*-सक्रि० दे० 'हिलाना'; धसाना ।
दिलेरी खब्त झूठा प्रेम । मु०-निकलना-हौसला पूरा हलाभला-पु० निबटारा, तै-तमाम नतीजा, फल । होना। -निकालना-उमंग पूरी करना । -पकानाहलायुध-पु० [सं०] बलराम ।
किसी इच्छाकी पूर्ति के लिए मन ही मन मंसूबे बाँधना । हलाल-वि० [अ०] 'हराम'का उलटा, विहित, जायजा | -बुझना-उमंग शांत होना। शरभके अनुकूल; जिसका ग्रहण, भोग विहित हो। पु० हवा-स्त्री० [अ०] एक तत्त्व जो भूमंडलको चारों ओरसे शरई रीतिसे पशु-वध । -ख़ोर-पु. भंगी, मेहतर । घेरे हुए है और कुछ गैसों-विशेषकर आक्सीजन और -खोरी-स्त्री० हलालखोरका काम; हलालखोरकी स्त्री।। नाइट्रोजन-के मेलसे बना है, समीर, वायु, साँस; गोज; मु०-करके खाना-मेहनत करके, बदलेमें पूरा काम भूत, प्रेतादि; लालच; खाहिश, अरमान; धुन; ख्याति; करके खाना । -करना-पशुका शरअकी विधिसे वध साख; संबंधजन्य प्रभाव; जमाना; अफवाह; चकमा; करना, जबह करना; गला काटना; यंत्रणा देना; बदले में आडंबर; (ला०) बहुत हलकी वस्तु । -खोरी-स्त्री० पूरा काम कर देना, स्वकर्तव्यका पालन करना। -का- टहलना (वायुसेवन)। -चक्की-स्त्रो० हवासे चलनेवाली जायज, वैध (संतान), हरामका उलटा ।-की कमाई- चक्की । -दार-वि० जहाँ खूब हवा आती हो; खैरखाह । ईमानदारी, मेहनतसे कमाया हुआ पैसा।
पु० अमीरोंके काम आनेवाली एक तरहकी सवारी जिसे हलाहल-पु० [सं०] एक तरहका भीषण विष, कालकूट
कहार ढोते हैं। -पानी-पु० आबहवा । -बाज़-पु० समुद्रमंथनसे प्राप्त एक भयंकर विष; एक विषैला पीधा । वायुयानचालक । -रोक-वि० (एयर-टाइट) जिसमेंसे हली(लिन्)-पु० [सं०] किसान; बलराम ।
होकर या जिसके द्वारा हवा न आ-जा सके। मु०हलीम-वि० [अ०] सहनशील, धीर; शांत ।
उखड़ना-बाजार में साख न रहना। -उड़ना-किसी हलुआ, हलुवा -पु० दे० 'हलवा'।
समाचारका प्रसारित होना, अफवाह फैलना ।-उड़ानाहलुक, हलुका-वि० दे० 'हलका'।
झूठी बातका प्रचार करना, अफवाह फैलाना; गोज हलोर*-स्त्री० हिलोर, लहर ।
करना। -करना-पंखा झलना; किसी वस्तुसे पंखेका हलोरना-सक्रि० जल अथवा अन्य तरल पदार्थको हाथसे काम लेकर हवा उत्पन्न करना। -का गुज़र न होनाहिलाना, चंचल करना; सूप या अन्य पात्र में अन्न अथवा किसीकी रसाई न होना। -का रुख जानना-परिस्थिति दूसरी वस्तुओंको रखकर उन्हें इस प्रकार पछोड़ना कि समझना। -का रुख देखना-जमानेका हाल समझकर उनका खोखला अंश अलग हो जाय, बहुत सहूलियतके काम करना । -का रुख बताना-परिस्थितिका आभास साथ अधिक परिमाणमें द्रव्य प्राप्त करना (व्यंग्य)। पहले ही दे देना; परिस्थितिका शान कराना ।-के घोड़ेहलोरा*-पु० दे० 'हलोर' ।
पर आना-बहुत तेज आना। -के घोड़ेपर सवार हल-पु० [सं०] स्वरहीन व्यंजन, विशुद्ध व्यंजन [ऐसे। होना-बहुत जल्दीमें होना। -के रुख जाना-हवाकी
व्यंजनके नीचे एक विशेष चिह्न (.) दिया जाता है । गतिकी दिशामें जाना; जमानेके मुताबिक चलना । हल्ल-पु० [अ०] दे० 'हलक' ।
-खाना-खुली जगहमें टहलना असफल रहना, हल्का -वि० दे० 'हलका'।
नाकामयाब होना। (कहींकी)-खाना-कहीं जाना । हल्दी-स्त्री० दे० 'इलदी' ।
-खिलाना-किसीको असफल बनाना; बहकाना, चकमा
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१० ३० हल गो, सौंपनाना) । मु
हवाई-हसरत
९०८ देना । (कहीँकी)-खिलाना-कहीं भेजना ।-गाँठमें या -छोड़ना-आतिशबाजी छोड़ना । -होना-चेहरेका मुट्ठीमें बाँधना-असंभव कामके लिए प्रयत्न करना। रंग उड़ जाना । (चेहरे, मुँहपर) हवाइयाँ उड़ना-गिरना-तेज हवाका मंद हो जाना। -छोड़ना- मुखका विवर्ण होना, चेहरेके रंगका फीका पड़ना । अपानवायु छोड़ना, गोज करना । -देखना-जमानेकी हवाल*-पु० समाचार, खबर अवस्था, दशा फल । हालत समझना। -देना-हवा करना; हवामें रखना; हवालदार-पु० दे० 'हवलदार'।। मुँइसे आग या और कोई चीज फूंकनाः फसाद कराना; | हवाला-पु० [अ०] सिपुर्दगी, सौंपनेकी क्रिया; पता, कबूतरोंको उड़ाना । -पलटना-हवाका रुख बदलना | निशान पते या प्रमाणके लिए उल्लेख (देना)। मु०परिस्थितिका परिवर्तित होना । -पीकर, फाँककर । देना-पता-निशान देना, प्रमाणके लिए (पुस्तक, पृष्ठ रहना-निराहार रहना (व्यंग्य)। -पीटना-व्यर्थ ही आदिका) उल्लेख करना। -(ले)करना-कब्जे में देना, कोई काम करना, ऐसा कोई काम करना जिसका कोई सौंपना । -पड़ना*-कब्जे में, बसमें आना। नतीजा न हो । -फिरना-दे० 'हवा पलटना' । - हवालात-स्त्री० [अ०] पहरे-चौकीमें रखना, हिरासत फे कना-किसी वस्तुसे तेजीके साथ हवाका बाहर | वह मकान जिसमें विचाराधीन कैदी रखे जाते है । निकलना । -बताना-टालमटोल करना; टरका हवालाती-वि० जो हवालात में रखा गया हो, विचाराधीन देना । -बदलना-दे० 'हवा पलटना'। -बांधकर | हो । पु० विचाराधीन कैदी। जाना-हवाकी उलटी ओर नाव खेना ।-बाँधना-नाम | हवाली-पु० [अ०] आसपासका स्थान । -मवाली-पु. करना; धाक जमाना डींग मारना; बात बनाना । - | संगी-साथी। बिगड़ना-वायुमंडलका दूषित होना; परिस्थिति खराब हवास-पु० [श०] 'हासा'का बहु०, देखने, सुनने, चखने होना; किसी स्थानका रीति-रवाज बिगड़ जाना। -भर आदिकी शक्तियाँ, पंचज्ञानेंद्रिय; मनकी शक्तियाँ (कल्पना, जाना-खुशीसे फूल जाना घमंड होना; मतका बदल विचार, स्मृति इ०); संवेदनकी शक्ति होश, सुध । जाना। -लगना-हवाका मिलना, हवाका शरीरसे -बाख्ता-वि० खन्तुलहवास, धबड़ाया हुआ, भौचक । स्पर्श होना; वात रोगसे ग्रस्त होना; प्रेताविष्ट होना; मु०-उड़ना,-गुम होना-होश ठिकाने न रहना। दिमाग फिरना प्रभावमें आना । (कहाँकी)-लगना- हवि(स.)-स्त्री० [सं०] हवनीय द्रव्य, यज्ञ, हवन में देवकिसी स्थानसे विशेष प्रेम होना। (किसीकी)-लगना ताओं के लिए, अग्निमें छोड़ी जानेवाली आहुतिके द्रव्य । -किसीके संसर्गका प्रभाव पड़ना, संसर्गजन्य दोष आना। हविष्य-वि० [सं०] हविके उपयुक्त या उसके लिए तैयार -से बातें करना-हवाकी तरह तेज दौड़ना; आप ही किया हुआ; हवि पानेके योग्य (जैसे शिव)। पु० हविका आप बड़बड़ाना। -से लड़ना-झगड़ा करनेके लिए द्रव्य धी; तिन्नी; धी मिला हुआ चावल । मौका हूँढ़ना; अकारण झगड़ा करना। -हो जाना- हविष्यान-पु० [सं०] व्रत आदिके अवसरोंपर खाये जानेबहुत तेजीसे भागना; गायब हो जाना।
| वाले पवित्र पदार्थ । हवाई-वि० हवासे संबद्ध, वायु-संबंधी; हवाको चीरकर हविसा-स्त्री० दे० 'हवस'। चलनेवाला; तीव्र गतिवाला; चालाक; आवारा; डींग हवेली-स्त्री० [अ०] चारदीवारीवाला मकान; बड़ा और मारनेवाला; कल्पित, व्यर्थ । स्त्री० एक तरहकी आतिश- | पक्का मकान, महल । बाजी, अगिनबान; ऊपरी आमदनी; बेहूदा बात; अफवाह हव्य-वि० [सं०] यशमें आहुतिके रूप में छोड़े जाने योग्य । नकली वस्तु । -अडा-पु० (एरोड्रोम) हवाई जहाजोंके पु० यज्ञमें किसी देवताके लिए दी जानेवाली आहुतिः उतरने, रुकने या प्रस्थान करनेका स्थान । -आँख- आहुति घृत ।-कव्य-पु० क्रमशः देवताओं तथा पितरोंस्त्री० वह आँख जो एक जगह न रहे। -किला,- को दी जानेवाली आहुति । -भुक(ज)-पु० अग्नि । महल-पु० खयाली पुलाव, मनोराज्य ।-ख़बर,-बात | हव्याद-वि० [सं०] हव्य खानेवाला। -स्त्री० अफवाह । -जहाज़-पु. वायुयान । -डाक- हव्याश, हव्याशन-पु० [सं०] हुताशन, अग्नि । खी० वायुयानसे जानेवाली डाक ।-तोपची-पु० (एयर हश्र-पु० [अ०] प्रलय, कयामत कोलाहल; उपद्रव । गनर) हवाई जहाजपर रखी हुई तोप चलानेवाला कर्म- हसद-पु० [अ०] दूसरेकी अच्छी हालत देखकर जलना, चारी। -पत्रचित्र-पु० (एयरग्राफ) हवाई डाक द्वारा कीना, डाह, ईर्ष्या ।। प्रेषित करनेके लिए चिट्रियों आदिका पहलेसे ले लिया | हसन-पु० [सं०] सिनेकी क्रिया; मजाक । वि० [अ०] गया चित्र, डाकीय लघुचित्र । -फ़ैर-पु० डराने आदिके, भला, नेक; सुंदर । पु० अलीके बड़े बेटेका नाम । लिए सिर्फ बारूद भरकर या ऊपरकी ओर किया जाने हसनीय-वि० [सं०] हँसने योग्य; उपहास योग्य । वाला फैर । -बंदूक-स्त्री० नकली बंदूक । -मार्ग:- हसरत-स्त्री० [अ०] खेद, दुःख वस्तुकी अप्राप्तिका दुःख रास्ता-पु० वायुयानके गमनागमनका मार्ग । -मुठभेड़ चाह, अरमान, लालसा। -भरा-वि० लालसाओंसे -स्त्री० युद्धक विमानोंकी भिडंत । -युद्ध-पु०,-लड़ाई भरा हुआ। मु०-करना-इच्छा करना, चाहना। स्त्री० वायुयानोंसे लड़ी जानेवाली लड़ाई। -हमला- -टपकना-हसरत जाहिर होना ।-निकलना-लालसा पु० वायुयानों द्वारा होनेवाला इमला । मु०-उड़ना- पूरी होना। -निकालना-अरमान निकालना। -बरअफवाह फैलना; मुँह फक होना। -उड़ाना-अफवाह | सना-विषादकी व्यंजना होना; नैराश्य प्रकट होना। फैलाना । -गुम होना-अक्कु गायब होना, सिटपिटाना। -बाकी रहना-अरमान पूरा न होना ।
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हसित-हहर हसित-वि० [सं०] हँसा या हँसता हुआ, जो हँसा है। हस्तांजलि-स्त्री० [सं०] हाथोंकी वह स्थिति जिसमें वे विकसित; जो हँसा गया है । पु० हास्य परिहास । गहराई बनाते हुए मिले हों, करसंपुट। हसिता(त)-वि० [सं०] हँसनेवाला ।
हस्तांतर-पु० [सं०] दूसरा हाथ; दूसरे हाथमें जाना। हसीन-वि० [अ०] सुंदर, हुस्नवाला प्यारा, लुभावना। -पत्र-पु. ( कानवेयेस) संपत्ति आदिके हस्तांतरणहस्त-पु० [सं०] शरीरका एक अवयव, हाथ; एक हाथचौबीस अंगुल-की एक माप, हाथीकी सैंड, हाथका एक हस्तांतरण-पु० [सं०] दूसरेके हाथ में देना; (ट्रांसफरेंस) विशेष विन्यास या मुद्रा; एक नक्षत्र । -कला-स्त्री० (संपत्ति, शक्ति, अधिकार आदिका ) एक व्यक्तिके हाथसे (मैनुअल आर्ट ) हाथसे किया गया कलात्मक काम, दूसरे हाथमें जाना या दिया जाना । हस्त-कौशल । -कार्य-पु. हाथसे किया जानेवाला हस्तांतरित-वि० [सं०] दूसरेके हाथमें दिया हुआ । काम, दस्तकारी। -कौशल-पु० हाथका काम करनेकी | (ट्रांसफर्ड ) (वह संपत्ति आदि) जो एकके हाथसे दूसरेके कुशलता।-क्रिया-स्त्री० दस्तकारी हस्तमैथुन ।-क्षेप- हाथमें गयी या दी गयी हो। पु० दूसरोंकी बात या काममें दखल देना, दस्तंदाजी। हस्ता-स्त्री० [सं०] हस्त नक्षत्र । -गत-वि० हाथमें आया हुआ, अधिकृत, प्राप्त ।-ग्रह- हस्ताक्षर-पु० [सं०] दस्तखत, सही। -कर्ता(त)-पु. पु० पाणिग्रहण, विवाह । -चापल्य-पु० हस्तकौशल, (सिग्नेटरी) वह जिसने किसी संधि-पत्र, आवेदन-पत्र हाथकी सफाई । -चालन-पु० हाथ हिलाना, हाथसे | आदिपर हस्ताक्षर किये हों। संकेत करना ।-तल-पु० हथेली।-त्राण-पु० अस्त्रादिसे हस्ताक्षरित-वि० [सं०] जिसपर हस्ताक्षर किया गया हो। हाथकी रक्षाके लिए धारण किया जानेवाला दस्ताना।। हस्ताग्र-पु० [सं०] हाथका अगला भाग, अँगुली। -दीप-पु० हाथकी लालटेन । -दोष-पु० नाप या हस्तामलक-पु० [सं०] हाथमेंका आँवला ( जो बिलकुल तीलमें चोरी करनेका दोष; हाथसे होनेवाली भल। स्पष्ट और बोधगम्य होनेका सूचक है)। -धारण-पु० हाथ पकड़कर सहारा देना; आघातका हस्ताहस्ति-स्त्री० [सं०] हाथापाई। निवारण करना; पाणिग्रहण । -पाद-पु० हाथ-पैर । हस्ताहस्तिका-स्त्री० [सं०] गुत्थमगुत्थी,दस्तबदस्त लड़ाई । -पुस्तिका-स्त्री० (मैनुअल) हाथमें आसानीसे आ जाने हस्तिनापुर-पु० [सं०] चंद्रवंशी नरेश हस्ती द्वारा निर्मित लायक, छोटी-सी पुस्तक; किसी लंबे-चौड़े विषयपर सार एक (प्राचीन) नगर जो वर्तमान दिल्लीसे लगभग ५७ रूपमें लिखी गयी लघु पुस्तक । -पृष्ठ-पु० हथेलीका | मील पूर्वोत्तर था। पृष्ठभाग । -प्रद-वि० सहारा देनेवाला । -प्राप्त-वि० हस्तिनी-स्त्री० [सं०] हथिनी; स्त्रियोंके चार भेदोंमेंसे एक हस्तगत । -मणि-पु० कलाई पर पहना जानेवाला रत्न । हस्तिनापुर । -मुद्रा-स्त्री० नृत्य में हाथकी भाव-सूचक विशेष स्थिति । हस्ती-स्त्री० [फा०] जीवित, विद्यमान होनेका भाव, -मैथुन-पु. शिश्नका हाथसे संचालन कर वीर्यपात अस्तित्व । मु०-खोना-नष्ट होना, (किसीके) नामोकरना । -रेखा-स्त्री० हथेलीपरकी रेखाएँ (जिनके निशानका न रहना । -मिटना-नाश होना; बरवाद आधारपर शुभाशुभ फल निकालते है)। -लक्षण-पु० होना। -मिटाना-नष्ट, बरबाद करना। -होनाहस्तरेखाओंका शुभाशुभ फल । -लाघव-पु० हाथकी जीवित, विद्यमान रहना; महत्त्वका होना। फुती, हाथकी कुशलता; हाथकी सफाई, बाजीगरी। हस्ती(स्तिन्)-वि० [सं०] कर-युक्त; सँड़वाला; कार्य-लिखित-वि० हाथका लिखा हुआ (ग्रंथादि)।-लिपि- कुशल । पु० हाथी। -पाल,-पालक-पु० पीलवान । स्त्री० हाथकी लिखावट, इस्तलेख । -लेख-पु० हाथकी -राज-पु० बहुत बड़ा हाथी; हाथियों के झुंडका मुखिया। लिखावट,चित्रादि ।-विज्ञापनक-पु० हैंडबिल) सिनेमा, -व्यूह-पु० हाथियोंसे बना एक तरहका व्यूह जिसमें सरकस आदि या किसी दवा, सार्वजनिक सभा इत्यादिका हाथी मध्य और पक्षमें रहते हैं। -शाला-स्त्री० गजवह छोटा विज्ञापन जो इधर-उधर हाथसे वितरित किया गृह, फीलखाना। -शुंड-पु० हाथोकी Vड़। जाय ।-विन्यास-पु० हाथोंकी स्थिति ।-विषमकारी- हस्ते-अ० हत्थे, द्वारा, मार्फत ।। (रिन्)-वि० हाथकी कुशलतासे बाजी जीतनेवाला। हस्त्य-वि० [सं०] हाथ-संबंधी; हाथसे किया हुआ हाथसे -श्रम-पु० (मैनुअल लेबर) हाथकी मेहनत, शारीरिक दिया हुआ। परिश्रम, व्रात ।-संवाहन-पु० हाथसे रगड़ना, मालिश | हस्त्यध्यक्ष-पु० [सं०] हाथियोंका निरीक्षक । करना या दबाना । -सिद्धि-स्त्री० हाथसे किया जाने हस्त्यायुर्वेद-पु० [सं०] हस्तिचिकित्सा संबंधी शास्त्र। वाला काम; हाथका श्रम ।-सूत्र,-सूत्रक-पु० विवाहके हस्त्यारोह-पु० [सं०] महावत, पीलवान । अवसर पर बाँधा जानेवाला मंगलसूत्र ।
हस्त्यारोही (हिन्)-पु० [सं०] हाथीका सवार । वि० हस्तक-पु० [सं०] हाथ; एक हाथकी माप हाथोंकी स्थिति | हाथीपर सवारी करनेवाला।
हस्तमुद्रा ताल (संगीत); ताली; करताल नामका बाजा। हस्ब-अ०[अ०] अनुसार, अनुकूल, मुताबिक ।-जाबिताहस्तांकित ऋणपत्र-पु० [सं०] (हैंडनोट) ऋण लेते समय । अ० जाबिते, कानूनके अनुसार, यथानियम । -(स्बे) हाथसे लिखा गया वह पत्र जिसमें लिखा रहता है कि जैल-अ० नीचे लिखे हुए ब्योरेके अनुसार ।-हैसियतऋण लेनेवाला निर्धारित अवधिके भीतर कुल रकम ब्याज अ० अपनी हैसियत, अपने वित्तके अनुसार। समेत चुका देगा, प्रोनोट।
| हहर-स्त्री० भय; चकपकाहट; प्रसन्नता-मिश्रित हड़बड़ी।
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हहरना - हाज़मा
हहरना - अ० क्रि० डरना; आश्चर्यचकित होना, चकपकाना, दंग होना; परेशान होना - ' बरसि बरसि इहरे सब बादर'-सू०; डरसे काँपना; शीतसे काँपना; अतीव प्रसन्नता और उत्सुकतापूर्वक किसीसे मिलना; किसीकी संपन्नता देखकर ईर्ष्या करना, सिहाना । मु० हहरकर मिलना - अत्यंत प्रसन्नता तथा उत्सुकतापूर्वक किसीसे मिलना ।
हहराना - अ० क्रि० दे० 'इहरना' । स० क्रि० भीत करना, डराना, दहलाना ।
हहल - स्त्री० दे० 'इहर' । पु० [सं०] हलाहल विष । हहलना - अ० क्रि० दे० 'इहरना' । हहलाना - अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'हहराना' । हहा - स्त्री० दे० 'हाहा' । मु०-खाना - बहुत गिड़गिड़ाना । हाँ - अ० स्वीकृति, निश्चय, आत्मसंतोष, स्मृति आदिका सूचक शब्द । स्त्री० स्वीकृति; स्वीकृति देने- हाँ कहनेका कार्य । -कारी - पु० (आइज ) किसी प्रस्तावके पक्ष या संबंध में 'हाँ' कहनेवाले सदस्य । - हाँ - अ० वर्जन करनेके लिए प्रयुक्त शब्द । मु० - जी हांजी करना - चापलूसी करना । - में हाँ मिलाना - चापलूसी करना; बिना समझे किसीकी स्वीकृतिको ठीक मान लेना, खुशामद, भय आदिके कारण बिना विचार किये ही दूसरे द्वारा स्वीकृत बातको ठीक कहना । - हाँ करना- स्वीकृति देना, किसी वस्तु के सही होनेकी बात मानना । हाँक- स्त्री० जोरसे बोलकर किसीको पुकारनेकी क्रिया; हुंकार, गर्जना, ललकार; युद्ध, प्रतियोगिता आदि में किसीको आगे बढ़नेके लिए दी गयी ललकार, बढ़ावा; उद्धार, सहायता, रक्षा आदिके लिए किसी सशक्त व्यक्ति या ईश्वरका आह्वान | मु०-देना, - मारना, - लगानाऊँची आवाज से पुकारना, संबोधित करना । हाँकना - स०क्रि० इक्का, बैलगाड़ी आदि बाहनों को चलाना; गाड़ी में जुते घोड़ा, बैल आदि चौपायोंको चावुक मारकर या मुँह से बोलकर एक स्थानसे दूसरे स्थानपर करना; चौपायोंसे प्रायः किसी वस्तुकी रक्षा के लिए उन्हें किसी स्थान से हटाना; पंखा झलना; लंबी-चौड़ी बातें करना, बढ़ा-चढ़ाकर बातें कहना; अत्यधिक दाम बताना; उच्च स्वर से बोलकर पुकारना, आह्नान करना; हाँक लगाना, ललकारना । मु० हाँक पुकारकर कहना - सबको जनाकर कोई बात कहना ।
हाँका - पु० दे० 'हँकवा'; * दे० 'हाँक' । हांगर - पु० [सं०] एक बड़ी मछली ।
हाँगा - पु० ताकत, जोर, शारीरिक बल; बलप्रयोग । हाँगी - स्त्री० मंजूरी, हामी, स्वीकृति । मु० - भरनामंजूर करना, स्वीकृति देना, हामी भरना । हाँड़ना - अ० क्रि० आवारागर्दी करना । वि० आवारागर्द हाँड़ी - स्त्री० दे० 'हंडी' । मु० - उबलना - पकती हुई
चीजका उबलना; मारे खुशीके फूलना । - पकना - हाँड़ी में रखी वस्तुओंका आँचके कारण पकना; किसी षड्यंत्रका रचा जाना; गप लड़ना । (किसीके नामपर ) - फोड़नाकिसी अप्रिय व्यक्तिके चले जानेपर प्रसन्नता प्रकट करना । हाँता * - वि० त्यक्त, छोड़ा हुआ; हटाया हुआ; दूर ।
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हाँपना, हाँफना - अ० क्रि० किसी प्रकारके शारीरिक श्रम या रोग के कारण साँसकी गतिका तीव्र होना । हाँफा - पु० हॉफनेकी क्रिया । मु० - छूटना - कड़ । शारी रिक श्रम करनेपर तुरंत हॉफने लगना । हाँफी - स्त्री० दे० 'हाँफा' । हाँसना * - अ० क्रि० दे० 'हँसना’।
हाँसल - पु० एक प्रकारका घोड़ा जिसका रंग मेहँदीका सा और चारों पैर कुछ काले रंगके होते हैं । हाँसी - स्त्री० हँसनेकी क्रिया, हँसी; मजाक, दिल्लगी, परिहास; बदनामी, निंदा, उपहास । हाँसु* - स्त्री० हँसी; हँसली ।
हा - अ० [सं०] आनंद, शोक, खेद, पीड़ा, घृणा, आश्चर्य, क्रोध आदिका सूचक शब्द - हंत- अ० बड़े शोककी अवस्था में निकलनेवाला एक शब्द । -हा-अ० दे०क्रम में | हा (न्) - वि० [सं०] मार डालनेवाला, नष्ट करनेवाला (समासांत में) ।
हाइ* - अ० दे० 'हाय' । स्त्री० ढंग; अवस्था; गौं । हाइल- वि० दे० 'हायल' |
हाई* - स्त्री० ढंग, पद्धति, ढब, अवस्था, परिस्थिति । वि० [अं०] ऊँचा; बड़ा । -कोर्ट पु० उच्च न्यायालय, प्रांत या राज्यकी सबसे बड़ी अदालत । - स्कूल - पु० वह अँगरेजी स्कूल जिसमें मैट्रिकतककी पढ़ाई होती है । हाऊ - पु० छोटे बच्चोंको डरवानेके लिए एक मनगढ़ंत डरावने जीवका नाम, भकाऊँ, हौवा । हॉकर-पु० [अ०] फेरी करके छोटी-मोटी वस्तुएँ बेचने - वाला व्यक्ति ।
हाकिम- पु० [अ०] हुक्म करनेवाला; हुकूमत करनेवाला, शासक; राजा; प्रधान अधिकारी; मालिक । - (मे) बाला - पु० प्रधान अधिकारी, बड़ा अफसर; (ला० ) ईश्वर । - के कुत्ते - बड़े अफसरके नौकर-चाकर जो बिना भेंटपूजाके उसके पास न जाने दें। हाकिमाना - वि० हाकिमके जैसा, अधिकारीके योग्य | ( :- ढंग, लहजे ) । हाकिमी - स्त्री० हुकूमत; अफसरी । वि० शासन-संबंधी । हॉकी - स्त्री० [अ०] एक अंग्रेजी खेल जिसमें टेढ़े डंडेके
सहारे गेंद आगे बढ़ाते हुए गोल करते हैं । हाजत- स्त्री० [अ०] आवश्यकता; अभाव; इच्छा, चाह; शौच आदिका वेग; हवालात । -ख़्वाह-दि० मुद्दताज; प्रार्थी । - मंद - वि० जिसे अभाव, आवश्यकता हो; मुँहताज; इच्छुक । -रवा- वि० हाजत पूरी करनेवाला । - रवाई - स्त्री० जरूरत पूरी करना, किसीका काम निकालना | मु० - रफ़ा करना - हाजत पूरी करना; पाखाने
जाना ।
हाजती - स्त्री० वह बरतन जिसमें बीमार चारपाई पर पड़ेपड़े पेशाब कर ले; रातको अमीरोंके पलंग के पास पेशाब करने के लिए रखा जानेवाला बरतन । पु० फकीर; प्रार्थी । वि० हाजतवाला; हवालाती । हाज़मा पु० [अ०] हजम करने, पचानेकी ताकत । मु० - खराब होना, -बिगड़ना - पाचन क्रियाका ठीक तरहसे न होना ।
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हाजिर-हाथ हाजिर-वि० [अ०] जो सामने हो, उपस्थित, मौजूदः 'हथकंडा'। -तोड़-पु. कुश्तीका एक दाँव । -पानप्रस्तुत, तैयार ।-जवाब-वि० जो बातका तुरत जवाब पु० पानके आकारका एक आभूषण जो हाथके पंजेके दे, जिसे बातका बढ़िया,यथायोग्य जवाब तुरत सूझ जाय। ऊपरी भागपर पहना जाता है। -फूल-पु० हथेलीके -जवाबी-स्त्री० हाजिर जबाब होना,बातका तुरत बढ़िया ऊपरी भागपर पहननेका फूलके आकारका एक गहना । जवाब सोच लेनेकी शक्ति ।-जामिन-पु० वह जो किसी मु०-आँखोंसे लगाना-बहुत आदर-सम्मान करना आदमीको अदालत में हाजिर कर देनेकी जिम्मेदारी ले । ( कारीगरीकी प्रशंसा आदिके अवसरपर)। -आगे -नाज़िर-वि० मौजूद और देखनेवाला।
करना-किसी वस्तुको लेने या देनेके लिए हाथ बढ़ाना। हाज़िरात-स्त्री० [फा०] अनेक प्रेतात्माओंका एक साथ -आजमाना-किसी कामके करने में अपनी कारीगरी, आवाहन, जिन, भूत-प्रेत इत्यादिकी हाजिरीका जलसा शक्ति आदिकी आजमाइश करना । -आना-वशमें (करना, होना)।
होना, अधिकारमें होना; फायदा होना ।-उठा-उठाकर हाज़िरी-स्त्री० [फा०] उपस्थिति, मौजूदगी; दरबादारी; कोसना-आसमानकी ओर हाथ करते हुए बहुत बदसवेरेका खाना; अंग्रेजोंका नाश्ता; (मुसल०) वह खाना जो दुवाएँ देना। -उठाकर देना-स्वेच्छासे किसीको कुछ मुर्दे के दफन किये जानेके बाद मृत जनके कुटुंबियोंके देना; दान देना । (किसीको)-उठाना-किसीका लिए भेजा जाय । मु०-देना-हाजिर होना, उपस्थितिकी अभिवादन करना, प्रणाम करना, नमस्कार करना । सूचना देना ।-बजाना-किसी बड़े आदमीके पास बरा- (किसीपर)-उठाना-किसीको ताड़ित करना, मारना। बर रहना, दरबारदारी करना। -लेना-नाम पुकारकर -उठा बैठना-किसीको मार बैठना; असहयोग कर देना, छात्रों आदिकी उपस्थिति मालूम करना, लिखना। किसी काममें सहायता देना बंद करना । -उठा लेनाहाज़िरीन-पु० [अ०] 'हाजिर'का बहु०, (सभा आदिमें) सहायता बंद करना । -उतरना-हाथ उखड़ना, उपस्थित जन, श्रोतृमंडली । -(ने) जलसा-पु० सभामें हाथकी हडीका स्थानभ्रष्ट होना। -ऊँचा करनाउपस्थित जनसमाज ।
खचीला होना; किसीके लिए दुवा करना, किसीको हाजी-० [अ०] हज करनेवाला; जो इज कर चुका हो । आशीर्वाद देना ।-ऊँचा होना-दानी होना;दानवृत्तिकी हाट-स्त्री. बाजार; बाजार लगनेका दिन; दुकान । ओर उन्मुख होना; खर्चीला होना।-कट जाना-विवश -व्यवस्था-स्त्री० (मारकेटिंग) उत्पादित वस्तुओंके हो जाना, बेकाबू हो जाना; किसीको किसी कामके लिए खरीदने, बेचने तथा बिकवानेकी व्यवस्था । मु०- वचन देकर बँध जाना। -कटा देना-कटाना-कटा करना-दुकान करना, किसी बाजारमें दुकान खोलकर लेना-दे० 'हाथ कट जाना' । -करना-ताश आदि बेचना-खरीदना बाजारमें सामान खरीदना । -खोलना खेलमें बाजी जीतना । -कलम करना-पूरा हाथ -दुकान करना; दुकान लगाना। -चढ़ना-बाजारमें काटना । -का झूठा-रुपये-पैसेके मामले में, लेन-देनमें बिकनेके लिए जाना । -बाजार करना-सौदा खरीदनेके | जिसपर विश्वास न किया जाय, बेईमान ।-काट देनालिए बाजार जाना। -लगना-बाजार, दुकानमें बेचनेके विवश कर देना, बेकाबू कर देना; किसी द्वारा किसीके लिए चीजोंका सजाया जाना।
लिए पत्र, बचन आदि दिलाकर उसे विवश, बेकाबू कर हाटक-वि० [सं०] स्वर्णनिर्मित, स्वर्णमय । पु० स्वर्ण, देना। -का दिया-दान दिया हुआ; दान ('हाथदिया' सोना धतूरा; दुकानका किराया; एक देश । -गिरि- रूप भी चलता है)। -का मैल-सामान्य परिश्रमसे पु० सुमेरु ।-पुर-पु० (स्वर्णनिर्मित) लंका ।-लोचन- मिल जानेवाला पदार्थ; तुच्छ वस्तु । -का सञ्चा-रुपयेपु० हिरण्याक्ष ।
पैसेके मामले में, लेन-देनमें जिसपर विश्वास किया जाय, हाटकेश, हाटकेश्वर-पु० [सं०] गोदावरी नदीके तटपर ईमानदार । -की सफाई-हाथके उद्योग, बाजीगरी पूजित होनेवाला एक शिवलिंग ।
आदिमें हाथकी कारीगरी; लड़ाई-भिड़ाई में वार करनेका हाड़*-पु० इड्डी; कुलीनता ।
अच्छा अभ्यास । -को हाथ नज़र न आना-धना हाड़ा-पु० क्षत्रिय जातिकी एक शाखा; हजा।
अंधकार होना। -खाली जाना-जुए आदिमें दाँव, हातव्य-वि० [सं०] छोड़ने, त्याग करने योग्य ।
बाजीका न आना वार चूकना, हमला नाकामयाब होना; हाता-पु० दे० 'एहाता'; रोक । * वि० परित्यक्त; दूर युक्ति, चालाकी, उपायका न लगना, न सफल होना । नाशक।
-खाली न होना-काममें व्यस्त रहना, कामसे फुर्सत हातिम-पु० [अ०] अरबके ते कबीलेका एक सरदार जो न मिलना। -खाली होना-बिना पैसेका होना । दानशीलता और परोपकार-परायणताका आदर्शसा माना। -खीरना-किसी कामसे हट जाना, उसमें सहयोग न जाता है। वि० अति दानशील; अति परोपकारी ।-ताई करना; द्रव्य देना बंद करना, आर्थिक सहायता रोकना। -पु० हातिम; हातिमताईका किस्सा। मु०-की कनपर -खुजलाना-द्रव्यप्राप्तिकी पूर्व सूचना मिलना; चपत लात मारना-दानशीलता या परोपकारमें हातिमसे जमाने, थप्पड़ लगाने, पीटनेकी प्रवृत्ति होना ।-खुलनाबढ़ जाना।
दानोन्मुख होना; खचीला होना हाथका चलना, काम हात्र-पु० [सं०] वेतन, पारिश्रमिक ।
देने लगना, हथछुट होना । -खोलना-दान करना; हाथ-पु० दे० 'हस्त'; ताश, कौड़ी आदि खेलनेवालोंकी खूब खर्च करना; आजादी देना; तंगी न रहने देना । बारी, दावदस्ता, मूठ, कर्मचारी। -कंडा-पु० दे० -गलना-हाथ ठिठुरना, अत्यंत शीतसे हाथका सुन्न
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हाथ
पड़ जाना। - घिस जाना बहुत ही परिश्रम से कोई ( हाथका ) काम बहुत देरतक करना । -चढ़ना - दे० 'हाथ आना' । - चमकाना- औरतों की तरह हाथ उठा, हिलाकर बातें करना; औरतोंका हाथकी उँगलियाँ टेढ़ी कर हाथ हिलाना; तलवारको म्यानसे निकालकर हिलाना । - चलना-किसीके द्वारा कामका अच्छी तरह किया जाना; किसीका मारनेकी ओर अधिक प्रवृत्त होना । -चलाना- किसी कामको भली भाँति करना; मारना । - चूमना-किसीके हाथकी कारीगरीसे प्रभावित होकर उसके हाथोंको चूमना । -छुटा होना - बेधड़क मारनेकी आदत होना । - छूटना - मारनेके लिए प्रवृत्त होना, मारनेके लिए हाथ उठना; वैवाहिक संबंधका विच्छिन्न होना । - छोड़ना - मारना; वैवाहिक संबंध भंग करना । - जड़ना - तमाचा लगाना, थप्पड़ मारना, प्रहार करना, मारना । - जमना - तमाचा, थप्पड़ पड़ना, प्रहार होना; किसी हाथके कामके करने में हाथका अभ्यस्त होना, किसी व्यक्तिका किसी हस्तकौशल में निपुण, प्रवीण होना । - जमाना - दे० 'हाथ जड़ना'; किसी हस्तकौशल में हाथको अभ्यस्त, निपुण करना, किसी इस्तकौशलमें कुशल होना । - जोड़ देना- हार मान लेना; क्षमा माँग लेना । —जोड़ना- प्रायः साक्षात्कार होनेपर दोनों हाथोंको मिलाकर अभिवादन करना, नमस्कार, प्रणाम करना; प्रार्थना, अनुनय, विनय करना; मारे डरके किसीको हाथ जोड़कर क्षमा-याचना करना, प्रार्थना करना; संबंध-विच्छेद करना ( व्यंग्य ) । - झाड़कर खड़ा हो जाना - पासमें एक पैसा भी न होनेकी बात करना । - झाड़कर जाना - जुए आदिमें रुपया-पैसा हारकर खाली हाथ जाना। - झाड़ना-दे० 'हाथ झाड़कर खड़ा होना'; तड़ातड़ थप्पड़, पटाका मारना, प्रहार करना; मार-पीट, युद्ध में खुलकर अस्त्र-शस्त्र चलाना । - झुलाते आना - दे० 'हाथ हिलाते आना' ।-झूठा होना, - झूठा पड़ना - हाथ सुन्न होना, हाथका काम करनेके योग्य न रहना; वार खाली जाना। - टेकना - सहारा, सहायता लेना । - डालना - कोई काम आरंभ करना; किसी काममें दखल देना; द्रव्य आदि लूटना । - तंग होना- रुपये-पैसे की कमी होना । - तकना- किसी के भरोसे रहना, किसीपर अवलंबित होना । - दिखाना - हस्तरेखाविद्को भूत, भविष्य के संबंध में जानकारीके लिए हाथ की रेखाएँ दिखाना; वैद्यको नाड़ी दिखाना । - देखना- भूत, भविष्यकी बातोंको बतानेके लिए हस्तरेखा देखाना; नाड़ी देखना । देना- सहायता देना, सहायक होना; वचन देना ( वाग्बद्ध होते समय लोग आपस - में हाथ मिला लेते हैं ); बाजी लगाना; जुआ जादिके खेल में बाजी हारना; मारना पीटना; रुकने के लिए इशारा करना । - धरना-सहारा देना, सहायता करना; रक्षा करना; किसीको कोई काम करनेसे रोकना, मना करना; पाणिग्रहण करना । - धोकर पीछे पड़नाजी-जान से किसी काम में (विशेषकर किसीका अनिष्ट करनेमें) जुट जाना | -धोना, -धो बैठना-खो देना, खो बैठना । - पकड़ते पहुँचा पकड़ना - थोड़ीसी रिआ
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यत पा जानेसे ही बहुत हिलमिल जाना; थोडासा सहारा मिल जानेपर अधिक प्राप्तिका अवसर ढूँढ़ना ( दे० 'उँगली' के मु० में ) |- पकड़ना - दे० 'हाथ धरना' । - पकड़े की लाज करना, - पकड़ेकी लाज रखना- किसीको वचन या आश्रय देकर उसका निर्वाह करना । -पड़ जाना - बिना परिश्रम, प्रयत्नके, यों ही किसी वस्तुका मिल जाना; चोरी हो जाना। -पढ़ना-दे० 'हाथ आना'; लूटा जाना । पत्थर तले दबना-संकट में पड़ना, किसीपर विपत्ति आ जाना; किसी चलते कामको एकदम रोक देनेके लिए बाध्य, विवश होना। -पर तोता पालना-अपने हाथके घाव, फोड़े, फुंसीको अच्छा न होने देना; अपने हाथको चोटेल, जख्मी करना । - पर धरा रहना- किसी वस्तुका किसीके लेनेके लिए हाथपर होना, तैयार रहना । -पर धरा हुआ होनाकिसी वस्तुका हर वक्त पास या तैयार रहना । - पर नाग खेलाना-जान जोखों डालना, प्राणको संकटमें डालना । - पर हाथ धरकर बैठ जाना-निराश हो जाना - पर हाथ धरे बैठना, बैठे रहना-कुछ काम न करना, निरुद्यम होना, आलसी होना । - पर हाथ मारना - वाग्बद्ध होना, प्रतिज्ञा करना; बाजी लगाना । - पसारना - याचना करना, माँगना; भिक्षा माँगना । -पसारे जाना - इस संसारसे बिना कुछ लिये परलोक जाना, इस जगत् से खाली हाथों जाना। -पाँव कहने में होना - हाथ-पैरका काबू में रहना । -पाँवका जवाब देना, - पाँवका हारना - अस्वस्थता या बुढ़ापेके कारण शरीरका काम करनेके योग्य न रह जाना। -पाँव चलना - उद्योगी होना; शरीर में शक्तिका रहना । - पाँव चलाना - उद्योग करना, कर्मशील होना । -पाँव ठंडे होना - मरणासन्न होना; मृत्यु होना, मर जाना; अत्यंत भीत होना; स्तब्ध होना, काठ मार जाना । - पाँव पटकना - तड़फड़ाना, छटपटाना । पाँव फूलना - विपत्ति से घबड़ा जाना । -पाँव फैलाना - उन्नति करना; कार्यक्षेत्र बढ़ाना | - पाँव बचाना- किसी कष्ट, खतरे आदिसे शरीरको बचाना। - पाँव मारना - तैरनेमें हाथ-पैर हिलाना, चलाना; खूब कोशिश करना, कष्ट सहते हुए भी प्रयत्न करना; खूब काम करना; पीड़ा, शोक आदिसे तड़फड़ाना, छटपटाना | -पाँव सीधे करना - सीधा लेटकर हाथ-पाँवको आराम देना । - पाँव हारना - निःशक्त होना; निराश होना; साहसद्दीन होना । - पाँव हिलाना - दे० ' हाथ-पाँव मारना' ।-पीले करना - विवाह करना । - फेंकना - जुए आदिके खेलमें अपनी पारीपर कौड़ी, पासा आदि फेंकना । फेर देना- किसी वस्तुको चुरा, उड़ा लेना । - फेरना-प्यारसे किसीकी पीठ, किसीका सिर सहलाना, लाड़-प्यार करना । - फैलाना - याचना करना। -बँटाना-सहायता देना, सहयोग करना । - बचाना - आक्रमण रोकना, वार बचाना | - बढ़ाना- कोई वस्तु लेने, पकड़ने आदिके लिए हाथ आगे करना, फैलाना; अपने अधिकार, हक, अपनी सीमासे अधिक माँगना, जाना। - बाँधे खड़ा रहना, - बाँधे रहना - हाथ जोड़े खड़ा रहना; सेवाभि
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मुख रहना, खिदमतके लिए हर वक्त तैयार रहना । ( किसीके ) -बिकाना- किसीका क्रीत दास होना, विवश हो, किसीके कहनेके अनुसार काम करना । - बैठना - दे० 'हाथ जमना'। -भरका कलेजा होनाबहुत खुश होना; खुशीसे दिल बढ़ जाना। -भरकी ज़बान होना - कटुभाषी होना, गुस्ताख होना; खाद्य पदार्थोंका लालची होना ।-भरा होना- धनवान्, दौलमंद होना; हाथमें किसी चीज (मेहँदी आदि) का लगा रहना । - मँजना - दे० ' हाथ जमना' । - मलना - पछताना, पश्चाताप करना । - माँजना -अभ्यास करना । - मारना -हाथ साफ करना; हाथपर हाथ मारना, बाजी लगाना; किसी वस्तुको सफाईसे चुरा लेना, गायब करना, हड़पना; अच्छा भोजन मिलनेपर खूब खाना; कुशलतापूर्वक किसीपर हथियारका वार करना । ( उलटा ) - मारना - प्रत्याक्रमण करना, वारका जवाब वारसे देना । -मिलानासाक्षात्कार होनेपर अभिवादनके रूप में आपस में हाथका मिलाना (यह अंगरेजी प्रथा है); कुश्ती लड़नेके पूर्व लड़नेवालेसे हाथ मिलाना; रोजगारियोंका आपसमें सौदा तै करना, खरीद फरोख्त करना । -माँजना - दे० 'हाथ मलना' । - मुँहपर रख देना- बोलने न देना । -में करना - बलात् या प्रेमपूर्वक किसीको वश में करना; अधिकार करना । - में जाना- किसीके अधिकार में जाना, किसी के पास पहुँचना । -में ठीकरा देना- किसीकी आर्थिक स्थिति खराब कर उसे गरीब, भिखारी बनाना । - में पड़ना - दे० 'हाथ आना' - में लेना- किसी कामका जिम्मा अपने ऊपर लेना, किसी कामकी जिम्मे दारी अपने ऊपर ओढ़ना; पकड़ना । - में सनीचर आना - बहुत गरीब हो जाना। - में हाथ देनापाणिग्रहण कराना, ब्याह कराना। - में हुनर होनाहाथकी कारीगरीमें काबिल होना । - में होना - वशमें होना, अधिकारमें होना । - रँगना - कोई अकरणीय कार्य कर बदनाम होना; हाथमें मेहँदी लगाना, हाथको मेहेंदीसे रँगना; घूस लेना । ( किसीके सिरपर ) - रखनाकिसीका रक्षक, प्रतिपालक होना । - रोकना- किसी कामके करनेमें अड़ंगा लगाना, किसी कामके करने में बाधा उपस्थित करना; काम करना बंद करना; किसीको मारते-मारते रुकना; किसी कारणवश किसीको मारनेके लिए उद्यत होकर भी न मारना । - लगना - अधिकार में आना, मिलना; किसी द्वारा किसी कामका होना; किसी चीजका किसी के हाथ से छू जाना, स्पर्श हो जाना; किसी कामका शुरू, आरंभ होना; गणितके प्रश्नोंमें दद्दाईकी संख्याका आगे जोड़नेके लिए बचना । - लगाना- कोई काम आरंभ करना; किसी चीजको छूना । —लगाये कुम्हलाना - अत्यंत कोमल, निहायत नाजुक होना । - लगे मैला होना- किसी वस्तुका इतना चमकदार और स्वच्छ होना कि वह छूनेमात्रसे मैली हो जाय । -लपकाना - हाथ बढ़ाना ।-समेटना - दे० 'हाथ खीँचना' । - साधना - दे० 'हाथ आजमाना'; दे० 'हाथ माँजना'; दे० 'हाथ साफ करना' । (किसी पर) - किसीको मार डालना; हड़पना; दे० 'हाथ मारना' ।
|
- साफ करना
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हाथ - हामी
- से काम निकलना- किसीके जरिये कोई काम होना । - से जाना, - से निकलना-हाथसे छूट, गिर जाना; किसी के काबू, वशके बाहर होना; अधिकार में न रहना । - से दिल जाना) - से दिल फिसलना- किसीपर मुग्ध, आशिक होना । - हिलाते भाना-खाली हाथों आना, बिना पैसा-कौड़ी लिये आना । - होना - वश, सहयोग या कारस्तानी होना । - (याँ) उछलना - खूब तड़पना; खूब कूदना । कलेजा उछलना-अत्यंत उत्साहित होना; अत्यंत प्रसन्न होना। - के तोते उड़ जानाभौंचक्का होकर रह जाना। - में रखना - बड़े प्यारसे पालना, रखना । ( दोनों ) - समेटना - खूब धन एकत्र करना । - हाथ - एक हाथसे दूसरे हाथमें, तुरत, शीघ्र । - हाथ उठाकर ले जाना - ऊपर ही ऊपर ले जाना । हाथ उड़ जाना, बिक जाना-तुरत, दम मारते भर में बिकना । - हाथ लेना - अत्यंत आदर के साथ स्वागत
करना ।
हाथा - पु० हथियार आदिका दस्ता, मुठिया; खेत सींचने का एक औजार, हत्था; दीवारपर पंजेसे डाली हुई ऐपनकी छाप । - छाँही - स्त्री० लेन-देन आदि में धूर्तता करना । - पाई, - बाँही - स्त्री० ऐसी सामान्य लड़ाई जिसमें लड़नेवाले एक दूसरेको हाथ-पैर के बलसे मारते, पटकते हैं, उठा-पटक भिड़ंत । हाथी-पु० हस्ती, एक सूँड़दार चौपाया जो बहुत बड़ा होता है और पालतू बनाकर सवारीके काममें भी लाया जाता है; शतरंजका एक मोहरा । * स्त्री० हाथका सहारा । - खाना - पु० इस्तिशाला, फीलखाना । दाँतपु० हाथी के मुँहके बाहर निकले हुए गोल और लंबे दाँत जिनसे आभूषण, सजावट के सामान आदि बनाये जाते हैं । - पाँव - पु० फीलपाँव नामक रोग । -वान - पु० महावत । मु० - के साथ गन्ने खाना- ऐसे व्यक्तिकी बराबरी करनेकी चेष्टा करना जिसकी बराबरी करना संभव न हो । - पर चढ़ना - बहुत बड़ा सम्मान प्राप्त करना; बहुत धनी होना । -पर चढ़ाना - बहुत सम्मान देना ।
हादसा, हादिसा- पु० [अ०] दुर्घटना, विपद् । हान- पु० [सं०] परित्याग; नुकसान; विफलता । हानि - स्त्री० [सं०] परित्याग; नुकसान, क्षति; विफलता; अनस्तित्व, लोप; हास; उपेक्षा; क्षय; कमी; त्रुटि; बरबादी । - कर, कारक, -कारी (रिन् ) - वि० हानि पहुँचानेवाला, अपकारी । - लाभ-पु० व्यापारादि या किसी काममें होनेवाला नुकसान और फायदा । मु० - उठाना
-घाटा सहना, नुकसान बरदाश्त करना । हाफ़िज़ - वि० [अ०] हिफाजत करनेवाला, रक्षक (खुदाहाफ़िज़ - ईश्वर रक्षक है) । पु० वह आदमी जिसे पूरा कुरान कंठ हो ।
हामिल - वि० [अ०] बोझ उठानेवाला; ले जानेवाला । हामिला - स्त्री० [अ०] गर्भवती स्त्री ।
हामी - स्त्री० स्वीकृति | वि० [अ०] हिमायत करनेवाला, पृष्ठपोषक सहायक | मु० - भरना- किसी कामको करनेकी स्वीकृति देना, स्वीकार करना ।
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हाय-हास्य
९१४
शाका
हाय-अ० मानसिक और शारीरिक पीड़ा होनेपर मुखसे समाचार । अ० * हाल में; अभी, तुरत। -का-थोड़े निकलनेवाला शब्द । स्त्री० व्यथा, कष्ट, तकलीफ ।-हाय दिनोंका, कुछ ही दिन पहलेका ।-में-थोड़े दिन पहले। -अ० दे० 'हाय' । स्त्री० दे० 'हाय'; व्यस्तता, परेशानी, हालत-स्त्री० [अ०] दशा, अवस्था; आर्थिक स्थिति । घबड़ाहट । मु०-करके रह जाना-विवश होकर शारी- | हालना*-अ० क्रि० हिलना-डोलना; काँपना; झूमना । रिक या मानसिक पीड़ा सह लेना। -पड़ना-कष्ट देने- हालरा-पु० बच्चोंको गोदमें लेकर हिलाना; झटका, झोंका; वालेको किसीको दिये हुए कष्टका बुरा परिणाम मिलना। पानीका झटका, झोका, लहर । हाय करना-परेशान होना, बस्त रहना । —होना- | हालहल-पु० [सं०] दे० 'हलाहल'। किसीके सुख, वैभव आदिको देखकर पीड़ा होना, डाह | हालाँकि-अ० यद्यपि, गोकि । करना।
हाला-स्त्री० [सं०] मद्य, शराब । हायन-पु० [सं०] संवत्सर, वर्ष; अग्निशिखा ।
हालात-पु० [फा०] 'हाल'का बहु०, दशाओंकी समष्टि, हायल-वि० बीचमें आनेवाला, रुकावट डालनेवाला, परिस्थिति वृत्त, समाचार । बाधक; * चोटैल, घायल, दुःखीलांत ।
हालाहल-पु० [सं०] एक विषैला पौधा; इसकी जड़से हार-स्त्री० जीतका उलटा, पराजय, असफलता ।-जीत- | बना हुआ घातक विष; समुद्रमंथनसे प्राप्त विष । स्त्री० जय-पराजय । मु०-खाना-पराजित होना, हार हालिक-वि० [सं०] हल-संबंधी। पु० हलवाहा, कृषक, जाना । -देना-पराजित करना ।
किसान; हल खींचनेवाला (जैसे बैल); शस्त्रके रूपमें हल हार-* पु० जंगल; हाल-'हारिल बिनवै आपन हारा'- लेकर लड़नेवाला व्यक्ति एक छंदका नाम, कसाई, बूचड़ । ५० । वि० [सं०] ले जानेवाला; हरण करनेवाला; चुराने- हाली-वि० [अ०] वर्तमान कालका; सामयिक । । अ० वाला; (कर) बैठाने, लगाने, उगाहनेवाला। पु० हरण; अभी, तत्काल । जन्ती; क्षया श्रांति; हानि माला; मुक्तामाला; वियोग । हाव-पु० [सं०] स्त्रियोंके हृदयमें शृंगार, प्रेमका भाव -गुटिका-स्त्री० मालाका मोती या दाना।
उदित होनेपर उनके द्वारा की गयी स्वाभाविक चेष्टाएँ हारक-वि० [सं०] हरण, ग्रहण करनेवाला; चुरा या लूट जो पुरुषोंको आकृष्ट करती हैं। -भाव-पु० नाजलेनेवाला; आकृष्ट करनेवाला; मोहक । पु० चोर लुटेरा नखरा, चोचला । ठग; खल; जुआरी; भाजक (गणित); मोतियोंकी लड़ी। हावन-पु० [फा०] कूटनेका बरतन, खल । -दस्ता-पु० हारद-वि० हृदय-संबंधी, हार्दिक ।
खल-बट्टा। हारना-अ.क्रि० युद्ध, खेल, प्रतियोगिता, मुकदमे आदिमें | हावहाव-स्त्री. किसी वस्तुको प्राप्त करनेकी लालच भरी असफल, पराजित होना; थकना । स० क्रि० खोना; देना। त्यागना।
हावी-वि० [अ०] घेरनेवाला, दबा रखनेवाला। हारमोनियम-पु० [अं॰] एक संदूकनुमा अँगरेजी वाजा। हाशिया-पु० [अ०] गोट, किनारा कोरा लिखते समय हारला-पु० दे० 'हारिल'।।
| पृष्ठके किनारे खाली छोड़ी हुई जगह; हाशियेपर लिखित हारवार*-स्त्री० हड़बड़ी, उतावली, जल्दबाजी।
टीका, फुटनोट; टीकाकी टीका । मु०-चढ़ाना-गोट हारा-प्र० 'वाला'-सूचक एक प्रत्यय । [स्त्री० 'हारी'।] टाँकना या टीका लिखना; अपनी ओरसे कुछ जोड़ना, हारावलि, हारावली-स्त्री० [सं०] मोतियोंकी लड़ी। बढ़ाना, नमक-मिर्च लगाना । -(ये)का गवाह-वह हारि-वि० [सं०] रुचिर, मनोहर । पु० हार, पराजय, गवाह जो किसी दस्तावेजके हाशियेपर अपना नाम लिखे जुएमें दाँव हारना । * स्त्री० थकावट ।
या सही बनाये। हारिल-पु. एक पक्षी जो अपने चंगुल में पतली लकड़ी | हास-पु० [सं०] हँसनेकी क्रिया, हँसी; प्रसन्नता, खुशी लिये रहता है।
हास्य रसका स्थायी भाव ( सा०); उपहास; मजाक, हँसी हारी(रिन)-वि० [सं०] हरण करनेवाला, अपहारका दिल्लगी; खिलना, विकास । वहन करनेवाला, वाहक; चोरी करने, लूट लेनेवाला | हासक-पु० [सं०] मजाकिया, विदूषक, हँसोड़ । नाश करनेवाला; अस्त-व्यस्त करनेवाला, गड़बड़ करने- हासिल-वि० [अ०] जो कुछ बचा हो; जो कुछ हाथ लगे, वाला; ग्रहण करनेवाला,लेनेवाला; इकट्ठा करने, उगाहने- लब्ध । पु० वस्तुका अवशेष; लाभ; उपज; नतीजा । मु० वाला; मोहक, मनोहर आनंदकारी, प्रसन्न करनेवाला । -आना-(गणित) आगे जोड़ने या लिखे जानेके लिए हारीत-पु० [सं०] चोर; शठा धूर्त चोरी; एक कबूतर। , बच रहना, हाथ लगना ( ग्यारह दुना बाईसके दो, हारौल-पु० दे० 'हरावल।
हासिल आयी दो) । -करना-पाना; कमाना; पैदा हार्दिक-वि० [सं०] हृदय-संबंधी, आंतरिक, दिली। करना। -होना-मिलना, हाथ लगना। हार्य-वि० [सं०] हरणयोग्य; ग्रहण करने योग्य, ग्रहणीयः | हास्तिक-वि० [सं०] हाथी-संबंधी। पु. महावत, पीलवहन करने योग्य हटाये जाने योग्य ।
वान; हाथीपर चढ़नेवाला व्यक्ति हाथियोंका झुंड । हाल-सौ. लकड़ीके पहियेपर चढ़ाया जानेवाला लोहेका हास्य-वि० [सं०] हँसने योग्य; उपहास्य; हास्यजनक । पट्टा हिलना, कंप; झोका, झटका । -गोला-पु० गेंद । पु० हँसी; आनंद, प्रसन्नता; मजाक, दिल्लगी; एक रस -डोल-पु० हिलना-डुलना; हलचल ।
(सा०)। -कथा-स्त्री० हँसी-उत्पन्न करनेवाली वार्ता। हाल-पु० [अ०] वर्तमान काल; दशा, अवस्था; वृत्तांत, | -कर,-जनक-वि० हास्योत्पादक, हँसी उत्पन्न करने
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विचार
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हास्यास्पद-हिकमती वाला ।-कौतुक-पु० हँसी-खेल, हँसी-तमाशा । -रस- | बिहार आदिमें मुख्य रूपसे बोली जाती है)। पु० एक काव्यरस जिसका स्थायी भाव हास है। -रसा- हिंदुत्व-पु० हिंदू होनेका भाव या गुण; हिंदुओंके आचारत्मक-वि. जिसमें हास्यरस हो (काव्य)।-रसिक
हिंदू-धर्मका भाव । वि० विनोदप्रिय हास्यरसका प्रेमी।
हिंदुस्तान-पु० [फा०] हिंदुओंका निवास स्थान, भारतवर्ष, हास्यास्पद-पु० [सं०] हास्यका आलंबन, हँसीका विषय, भारतवर्षका उत्तरी भाग जो गंगा तथा यमुनाके दाबेके वह जिसे देखकर हँसी उत्पन्न हो; उपहासका विषय । मध्यमें पड़ता है, जिसे प्राचीन समयमें अंतर्वेद या मध्य हास्योत्पादक-वि० [सं०] हास्व उत्पन्न करनेवाला । देश कहते थे। हा हंत-अ० [सं०] दे० 'हा'के साथ ।
हिंदुस्तानी-वि० [फा०] हिंदुस्तान-संबंधी। पु० हिंदुस्तानमें हाहा-पु० [सं०] एक गंधर्व । अ० आश्चर्य, शोक आदिका | रहनेवाला व्यक्ति, भारतवासी । स्त्री० हिंदुस्तानकी भाषा; सूचक एक शब्द । -कार-पु. रुदनकी उच्च ध्वनि युद्ध- खड़ी बोली हिंदीका वह बनावटी रूप जिसमें अरबी, का कोलाहल । -रव-पु० 'हाहा' करके चिल्लानेकी फारसी, उर्दू के तत्सम शब्दोंका बाहुल्य तथा संस्कृत, आवाज । -हत*-पु० भयजन्य कोलाहल ।
हिंदी और अंगरेजी शब्दोंकी विरलता हो। हाहा-पु० खुलकर हँसनेकी आवाज अनुनय-विनय, गिड़- हिंदुस्थान-पु० दे० 'हिंदुस्तान'। गिड़ानेकी आवाज । -ठीठी-स्त्री० हँसी-मजाक, हास- हंदू-पु० [फा०] प्रत्यक्षतः या परोक्षतः वेदोक्त विचारों के परिहास, हँसी-ठट्ठा ।-हीही-दे० 'हाहा-ठोठी'।-हुए- आधारपर बने आचार-व्यवहार, रीति-नीति, समाजपु० हँसी-ठट्ठा। मु०-करना,-खाना-गिड़गिड़ाना। व्यवस्था, धर्म आदिमें किसी न किसी रूपमें विश्वास करने -हीही करना-सी-ठट्टा करना ।
और उनपर चलनेवाला भारतीय । -पन-पु० दे० हाही-स्त्री० किसी वस्तुकी प्राप्तिके लिए व्यग्रता । मु०- 'हिंदुत्व'। पड़ना-किसी वस्तु की प्राप्तिके लिए अत्यंत व्यग्र होना। हिंदकुश-पु० [फा०] अफगानिस्तानके उत्तर में स्थित एक हाहू*-पु० ऊधम, हुड़दंग, शोरगुल ।
पर्वत-श्रेणी जो हिमालयसे मिली हुई है। हिँकरना-अ० क्रि० हिनहिनाना, हिंसना कराहना। हिंदोल-पु० [सं०] झूला, हिंडोला; श्रावणके शुक्ल पक्षमें हिंकार-पु० [सं०] 'हिं' ध्वनि करनेकी क्रिया; (भानेका होनेवाला दोलोत्सवः एक राग भगवयात्रा। शब्दा बाघके बोलनेका शब्द ।
हिंदोलक-पु०, हिंदोला-स्त्री० [सं०] झूला; पालना। हिंग-पु. हींग।
हिंदोस्तानी-वि०, पु०, स्त्री० दे० 'हिंदुस्तानी' । हिंगु-पु० [सं०] एक वृक्ष जो मुलतान तथा खुरासानमें हिंयाँ*-अ० यहाँ। विशेष रूपसे होता है। इस वृक्षके मूलका निर्यास, हींग
वृक्षके मूलका निर्यास, हींग | हिंवारी-पु० हिम। वंशपत्री।
हिंस*-स्त्री० घोड़की हिनहिनाइट, हींस । हिंगुक-पु० [सं०] हिंगु वृक्ष ।
हिंसक-वि० [सं०] हिंसा करनेवाला; घातक; बुराई करने हिंगुल, हिंगुलि, हिंगुलु-पु० [सं०] ईगुर।
वाला, हानिकर । पु० हिंस्र पशु, खूखार जानवर । हिंगोट--पु. हिंगुपत्र, इंगुदी।
हिंसन-पु० [सं०] मारना; चोट पहुँचाना; सताना । हिंछा*-स्त्री० इच्छा।
हिंसना*-अ० क्रि० हींसना, हिनहिनाना । स० क्रि० हिंडक-वि० भ्रमणशील |-पोत-पु. र) द्रुतगामी मार डालना; चोट पहुँचाना सताना नुकसान पहुँचाना। युद्धपोत, प्रधावी पोत, गश्ती जहाज।
हिंसा-स्त्री० [सं०] घात, मारण; नाश; चोट या हानि हिंडन-पु० [सं०] भ्रमण; संभोग; लेखन ।
पहुँचाना क्षति; बुराई । -कर्म(न)-पु. नुकसान हिंडोरना*-पु० दे० 'हिडोला'-'हिंडोरनो माई झूलत
पहुँचानेवाला काम, बुराईका काम; तंत्रप्रयोग द्वारा गोकुलचंद'-सू० । स० क्रि० दे० 'हिँडोलना'।
मारण, उच्चाटन आदि कार्य । हिँडोरा-पु० दे० 'हिंडोला ।
हिंसात्मक-वि० [सं०] जिसमें हिंसा हो; हिंसायुक्त बुराई हिँडोरी*-स्त्री० छोटा हिंडोला ।
करनेवाला, हानिकारक । हिँडोल-पु० हिंडोला; एक राग ।
हिंसाल-वि० [सं०] हिंसा करनेवाला, हिंसक। हिंडोलना -पु० हिंडोला । स० क्रि० आलोडित करना, हिंस-वि० [सं०] हानिकारक, बुराई करनेवाला; घातक घुघोलना।
निष्ठर, निर्दय, भयानका जंगली, खुंखार ।-जंतु,-पशु हिँडोला-पु० झूला; पालना नीचे-ऊपर चक्कर खानेवाला -पु. खूखार जानवर । एक तरहका झूला।
हिंस्रक-पु० [सं०] हिंस्र पशु, खूखार जानवर । हिंडोली-स्त्री० एक रागिनी।
हि-प्र० एक विभक्ति जो कई कारकों, विशेषकर कर्म और हिंताल-पु० [सं०] छोटी जातिका एक जंगली खजूर। संप्रदानमें प्रयुक्त होती थी । अ० ही। हिंद-पु० [फा०] भारतवर्ष, हिंदुस्तान ।
हिअ*, हिआ*-पु० वक्ष, छाती हृदय । हिंदवी-स्त्री० [फा०] हिंदुस्तानकी भाषा (उर्दू फारसी| हिआउ, हिआव*-पु० हिम्मत, साहस ।
और कुछ पुराने हिंदी लेखकों द्वारा हिंदीके अर्थ में प्रयुक्त । हिकमत-स्त्री० [अ०] बुद्धिमानी, चतुराई; बुद्धिः चाल, हिंदी-वि० [फा०] हिंद, हिंदुस्तानसे संबद्ध । पु. हिंद- युक्ति चिकित्साकार्य, हकीमी । निवासी । स्त्री० भारतवर्षकी राष्ट्रभाषा ( जो उत्तर प्रदेश, | हिकमती-वि० चालाक, जोड़-तोड़ लगानेवाला।
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हिकारत-हिम हिकारत-स्त्री० दे० 'हकारत' ।
| हिताई-स्त्री० संबंध, रिश्ता, मेलजोल । हिक्का-स्त्री० [सं०] हिचकी हिचकीका रोग।
हिताकांक्षी(क्षिन)-वि० [सं०] भलाई चाहनेवाला । हिक्किका-स्त्री० [सं०] हिचकी; खर्राटा।
हिताधिकारी(रिन्)-पु० [सं०] (बेनीफिशियरी) वह हिचक-स्त्री० सफलतामें संदेह, सामर्थ्यहीनता आदिके जिसे किसी वस्तु, व्यवस्था आदिसे लाभ हो रहा हो कारण किसी कामके करने में मनका रुकना; आगा-पीछा या होनेकी संभावना हो। करना, हिचकिचाहट, झिझक ।
हिताना*-अ० क्रि० मित्र सदृश होना, भलाई करनेवाला हिचकना-अ० क्रि० कोई काम करनेसे पहले किसी होना; प्रेमयुक्त होना, किसीकी ओर प्रेमकी दृष्टि होना; आशंकासे या असमर्थता आदिके कारण कुछ रुकना, प्रिय लगना, अनुकूल मालूम पड़ना; अच्छा प्रतीत होना आगा-पीछा करना।
-'नवल वधूके संगमें अहितौ बात हिताति'-मतिः । हिचकिचाना-अ.क्रि० मनका आगा-पीछा करना। हितार्थी(र्थिन्)-वि० [सं०] मंगलाकांक्षी, हितेच्छु । हिचकिचाहट-स्त्री० दे० 'हिचक'।
हितावह-वि० [सं०] कल्याणकारी । हिचकी-स्त्री० दे० 'हिक्का'; अत्यधिक रोनेके बाद एक हिताहित-पु० [सं०] भलाई-बुराई; लाभालाभ ।
साथ तीन-चार बार जोर-जोरसे साँस लेनेकी क्रिया । मु० हिती-वि० हितैषी, भलाई चाहनेवाला। पु० हितैषी -बंध जाना,-लगना-ज्यादा रोनेसे साँस रुकने लगना। व्यक्ति, मित्र, दोस्त । हिचकियाँ लगना-प्राणांतके समय वायुका मुखसे हितु, हितू-पु.हितेच्छ व्यक्ति मित्र, सखा; संबंधी। निकलनेके प्रयत्नके कारण ठहर-ठहरकर हिचकीका आना; हितेच्छा-स्त्री० [सं०] हितकामना, किसीकी भलाईकी मृत्युके निकट होना । -लेना-रोते समय साँसका रुक- | इच्छा । रुककर निकलना।
हितेच्छ-वि० [सं०] भलाई चाहनेवाला, हितैषी। हिचर-मिचर-पु० हिचक; टालमटोल ।
हितैषणा-स्त्री० [सं०] हितेच्छा। हिजड़ा-पु० नपुंसक, खोजा।
हितैषिता-स्त्री० [सं०] हितैषी होनेका भाव । हिजरी-पु० [अ०] मुसलमानी संवत् जो मुहम्मदके मक्का-हितैषी (पिन)-वि० [सं०] हितेच्छु । पु०मित्र । से मदीना पलायन करनेकी तिथि १५ जुलाई, सन् ६२२- हितोक्ति-स्त्री० [सं०] सत्परामर्श, अच्छी, नेक सलाह । से आरंभ होता है।
हितोपदेश-पु० [सं०] हितकारी उपदेश, सत्परामर्श, नेक हिजाब-पु० [अ०] परदा, ओट, लज्जा।
सलाह; विष्णुशर्माकृत नीतिशास्त्र-संबंधी एक ग्रंथ । हिजे-पु० [अ०] किसी शब्दमें आये हुए वर्णों तथा मात्रा- | हितौना*-अ० क्रि० दे० 'हिताना' ।
ओंको अलग-अलग कहना, वर्ण-विवृति, वर्तनी । हिदायत-स्त्री० [अ०] मार्ग-प्रदर्शन, रहनुमाई, आदेश । हिज्र-पु० [अ०] वियोग, विरह, जुदाई ।
-नामा-पु.हिदायतों, आदेशों आदिकी किताब । हिडिंब-पु० [सं०] एक विशालकाय राक्षस जिसे भीमने | हिनती*-स्त्री० होनता ।
मारा था। -जित,-द्विट(प)-रिपु-पु० भीम। हिवाना-पु० तरबूज । हिडिंबा-स्त्री० [सं०] एक राक्षसी जो हिडिबकी बहन थी हिनहिनाना-अ० क्रि० (धोड़ेका) हींसना । (इसने अपनेको सुंदर स्त्रीके रूपमें परिवर्तित कर भीमसे | हिनहिनाहट-स्त्री० (घोड़ेके) हांसनेकी आवाज । व्याह किया । उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम | हिना-स्त्री० [अ०] मेहँदी। -बंदी-मुसलमानों में होनेघटोत्कच था)।-पति,-रमण-पु० भीम ।
वाली ब्याहकी एक रस्म । हित-वि० [सं०] उचित, अच्छा; लाभदायक, उपयोगी; हिनाई-वि० मेंहदीके रंगका । स्त्री० पीलापन लिये हुए अनुकूल, स्वास्थ्यकर; उदार, शुभ । पु० मित्र संबंधी; सुर्ख रंग; हीनता; मानहानि । भलाई चाहनेवाला: लाभ, भलाई उपयुक्त वस्तु; कल्याण, हिफाज़त-स्त्री० [अ०] रक्षा, निगरानी; बचाव । मंगल; सद्भाव, प्रेम । अ० [हिं०]"के निमित्त, के लिए। हिब्बा-पु० दे० 'हब्बा'; दान, नजर । -नामा-पु० -कर-वि० मित्रसा व्यवहार करनेवाला, हितेच्छु; उप- दानपत्र । योगी, लाभप्रद स्वास्थ्यवर्धक ।-कर्ता(त)-वि० उपकार | हिमंचला-पु० दे० 'हिमाचल'। करनेवाला । पु० उपकारी व्यक्ति ।-काम-वि० हितेच्छ, हिमंत-पु० दे० 'हेमंत' । मंगलाकांक्षी । -कारक,-कारी(रिन् )-वि० दे० हिम-वि० [सं०] ठंढा, शीतल । पु० बर्फ, पाला; शीत, 'हितकर'।-चिंतक-वि०किसीकी भलाईके लिए सोचने, ठंढक, जाड़ा, हेमंत ऋतु; हिमालय पर्वत, चंदन; चंदन बिचारने, चिंतना करनेवाला। -चिंतन-पु० किसीकी | वृक्ष; चंद्रमा; नवनीत, मक्खन; कपूर । -उपल-पु. भलाई सोचना या चाहना। -बुद्धि-स्त्री० मैत्रीपूर्ण ओला, पत्थर । -ऋतु-स्त्री. जाड़ेका मौसिम, हेमंत भावना। -मित्र-पु० उदार मित्र; भाई-बंद । -वचन, ऋतु । -कण-पु० ओसकी बूंदें; बर्फ के कण । -कर-वाक्य-पु० मैत्रीपूर्ण परामर्श। -वादी(दिन) पु० चंद्रमा कपूर । वि० ठंढक लानेवाला ।-कर-तनयवि० भलाईकी बात कहनेवाला सत्परामर्श देनेवाला। पु० बुध ग्रह । -किरण-पु. चंद्रमा । -कूट-पु० हितवना-अ० कि. हित, मित्र जैसा आचरण करना। शिशिर ऋतु; हिमालय पर्वत; हिमालयकी चोटी। हितवार*-पु० प्रेम, स्नेह-'चुबत अंग परस्पर मनु जुग -खंड-पु० ओला। -गर्भ-वि० बर्फसे भरा हुआ। चंद करत हितवार-सू० ।
-गिरि-पु० हिमालय पर्वत । -गिरि-सुता-खी०
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हिममय वृष्टि-हिरण्य पार्वती। -गु-पु० चंद्रमा। -गृह-गृहक-पु. वह एक पर्वतमाला (इसकी चोटियाँ बहुत ऊँची-ऊँची हैं और कमरा जो ठंढक लानेवाली चीजोंके जरिये ठंढा बनाया उनपर बराबर बर्फ जमी रहती है):-सता-स्त्री०पार्वती। गया हो। -गौर-वि० बर्फ जैसा सफेद । -न-वि० | हिमि*-पु० दे० 'हिम' । हिमका निवारण करनेवाला । -जा-स्त्री. पार्वती, | हिमिका-स्त्री० [सं०] पाला, तुषार । गिरि-सुता; शची; खिरनीका पेड़। -ज्वर-पु० जाड़ा- हिमीकर-वि० (रिफ्रीजरेटर) हिमकी तरह (ठंढा) बना बुखार । -दीधिति-पु० चंद्रमा । -दुर्दिन-पु० पाला, देनेवाला । पु० (खाद्य पदार्थोंको) ठंढा बनाकर सड़ने या अति ठंढक पड़नेके कारण कष्टदायक दिन या मौसिम । | नष्ट होनेसे बचानेका यंत्र । -धुति-पु० चंद्रमा । -धर-पु. हिमालय पर्वत । | हिमेश-पु० [सं०] हिमालय ।
न)-पु० चंद्रमा। -ध्वस्त-वि० पालेका | हिम्मत-स्त्री० [अ०] साहस, वीरता, बहादुरी; पौरुष, मारा हुआ।-पात-पु०पालेका पड़ना ओलेका गिरना। पराक्रम । मु०-पड़ना-साहस होना। -हारना-पस्त -भानु,-मयूख-पु० चंद्रमा । -रश्मिा -रुचि-पु० | हो जाना, साहस छोड़ना। चंद्रमा। -रेखा-स्त्री० (स्नोलाइन) पर्वतोंकी ऊँचाईपर हिम्मती-वि० [अ०] साहसी वीर; पराक्रमी, पुरुषार्थी । मानी गयी वह रेखा जिसके ऊपर बर्फ निरंतर जमी हिय-पु० हृदय, मन; वक्षःस्थल, छाती, सीना। मु०रहती है, गर्मी में भी नहीं पिघलती। -वृष्टि-स्त्री० हारना-हिम्मत हारना, शारीरिक या मानसिक दृष्टिसे पाला पड़ना; ओले गिरना । -शिलास्खलन-पु. थक जाना। (एवेलांश) हिमराशिका मिट्टी, पत्थर आदिसे मिलकर | हियरा-पु० दे० 'हिय' । बड़ी चट्टान जैसा रूप धारण करनेके बाद वेगपूर्वक नीचे हियाँt-अ० यहाँ। खिसक पड़ना । -शीतल-वि० बहुत ठंढा; जमा देनेहिया-पु०दे० 'हिय' । मु०-जलना-बहुत गुस्सा करना। वाला (शीत)। -शुभ्र-वि० बर्फ जैसा सफेद ।-शैल- -ठंढा होना-कलेजा ठंढा होना, सुख, आनंदका अनुपु० हिमालय पर्वत । -संघात-पु०,-संहति-स्त्री० भव होना ।-फटना-कलेजा फटना, शोक, दुःख, पीड़ाबर्फका ढेर।
के अतिरेकका अनुभव होना। -भर आना-करुणा हिममय वृष्टि-स्त्री० ( स्लीट ) वह वर्षा जिसमें पानोके । होना, शोककातर होना, दुःखात होना। -भर लेनासाथ-साथ ओलों या हिमकी भी वर्षा हो ।
शोक, दुःख, पीड़ा आदिके कारण लंबी साँस लेना; शोक, हिमर्तु-स्त्री० [सं०] हेमंत ऋतु, जाड़ेका मौसिम । दुःख, पीड़ा आदिकी अभिव्यक्ति करना ।-शीतल होना हिमवान् (वत्)-पु० [सं०] हिमालय कैलास । वि० -दे० 'हिया टंढा होना' । -(ये)का अंधा-भीतरी बीला । -सुत-पु० मैनाक । -सुता-स्त्री० पार्वती; आँखोंसे हीन, अज्ञान, मूर्ख, बेवकूफ । -की फूटनागंगा।
सत् असत्का विवेक न रहना, ज्ञानका न रहना। -पर [सं०] (फ्रीजिंग पाइंट) वह तापमान जहाँ । पत्थर धरना-सब कर लेना।-में लोन सा लगनापानी जमकर बर्फ बनने लगता है (फारेन हाइटका ३२ कटेपर लोन लगनेकी तरह मनमें बहुत पीड़ा होना ।
अंश अथवा सेंटीग्रेड तापमापक यंत्रमें शून्य अंश)। -लगना-हृदयसे लगना, भेंटना । हिमांत-पु० [सं०] जाड़ेके मौसिमकी समाप्ति ।
हियाव-पु. साहस । मु०-खुलना-धड़क खुलना; हिमांबु, हिमांभ (स)-पु०सं०] ठंढा पानी ओस। साहस, एढ़ताका आना। -पड़ना-हिम्मत पड़ना। हमांशु-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर ।
हिरकना*-अ० क्रि० किसी व्यक्ति या वस्तुसे सटना, हिमानत-स्त्री० दे० 'हमाकत'।
विपकना-'फिरै फिरकीसी मौन फिरकी रहैं न नेक, हिमाचल-पु० [सं०] हिमालय पर्वत ।
कोउ खिरकीमें कोऊ हिरकी किवारमें'-रामरसा। हिमाच्छन्न-वि० [सं०] तुषारावृत ।
हिरकाना*-स० क्रि० निकट ले जाना, सटाना, स्पर्श हिमाद्रि-पु० [सं०] हिमालय पहाड़। -जा-स्त्री० गंगा कराना।
पावेती; खिरनी । -तनया-स्त्री० दुर्गा; गंगा पार्वती। | हिरण-पु० [सं०] स्वर्ण; * हिरन, मृग । हिमानिल-पु० [सं०] सर्द हवा, बफीली हवा। हिरण्मय-वि० [सं०] सोनेका, सोनेका बना; सुनहरा । हिमानी-स्त्री० [सं०] हिम-समूह, पालेका समूह; ओस- पु० ब्रह्मा; एक ऋषि; अग्नीध्रका एक पुत्र; संसारके नौ कण-समूह हिमशर्करा।
खंडों में से एक । -कोश-पु. सूक्ष्म शरीर, आत्माके सप्त हिमाज-पु० [सं०] नील कमल ।
आवरणों मेंसे एक जो अंतिम है। हिमायत-स्त्री० [अ०] तरफदारी; मदद; रखवाली। हिरण्य-पु० [सं०] सुवर्ण; स्वर्णपात्र; चाँदी। वि० स्वर्णहिमायती-वि० [फा०] तरफदारी करनेवाला, पक्ष ग्रहण निर्मित । -कंठ-वि० सोनेके कंठवाला । -कर्ता करनेवाला।
पु० सुनार । -कवच-वि० सोनेके कवचवाला। पु० हिमाराति-पु० [सं०] सूर्य; अग्नि अर्क वृक्ष चित्रक वृक्ष । शिव । -कशिपु-पु. कश्यप और अदितिका पुत्र और हिमारि-पु० [सं०] अग्नि ।
प्रसिद्ध भक्त प्रह्लादका पिता जिसे विष्णुने नरसिंहके रूपमें हिमात-वि० [सं०] पालेसे ठिठुरा, जमा हुआ।
खंभेसे प्रकट होकर मारा था । -कार-पु० सुनार । हिमाउ-पु० [सं०] हिमालय ।
-केश-वि० सोनेके केशवाला । पु० विष्णु । -गर्भहिमालय-पु० [सं०] भारतवर्षकी उत्तरी सीमापर स्थित पु० ब्रह्मा (सोनेके अंडेसे उत्पन्न होनेके कारण); विष्णुः
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हिरण्याक्ष-हिसाब .
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सूक्ष्म शरीर धारण करनेवाली आत्मा, सूत्रात्मा; एक फँसाना, उलझाना; पास लाना। लिंग । वि० ब्रह्मा-संबंधी। -पुरुष-पु०स्वर्णनिर्मित पुरुष. | हिलना-अ० कि. अस्थिर होना, चंचल होना; किसी प्रतिमा ।-रेता (तस)-पु० अग्नि, सूर्य, शिवचित्रका स्थानपर स्थिर, जमा याद न रहना; किसी स्थानसे वृक्ष । -वर्चस-वि० सोनेकीसी कांतिवाला। -वाह- इधर-उधर जाना, डोलना, होना; काँपना; जल में प्रविष्ट पु० सोन नदी; शिव ।-वीर्य-पु० अग्नि; सूर्य ।-स्रक- होना; परचना, परिचित होना। मुहिल जानास्त्री० सोनेकी माला या सिकड़ी।
परच जाना। हिलना-ढोलना-चंचल होना; घूमनाहिरण्याक्ष-पु० [सं०] हिरण्यकशिपुका यमज भाई जिसे फिरना; काम-धाम करना; उद्यम, प्रयत्न, कोशिश विष्णुने वराहका रूप धारण कर मारा था ।
करना। -मिलना-घुलना-मिलना, एक हो जाना; हिरदय-पु० दे० 'हृदय' ।
भेंट-मुलाकात करते रहना। हिरदा-पु० हृदय ।
हिलमोचि, हिलमोचिका-स्त्री० [सं०] एक शाक। हिरदावल-पु० घोड़ेके सीनेपरकी भौरी जो अशुभ है। हिलसा-स्त्री० एक तरहकी मछली । हिरन-पु० हरिण, मृग। मु०-हो जाना-चंपत हो हिलाना-सक्रि० चंचल करना, अस्थिर करना, किसी
जाना, लुप्त हो जाना; तुरत भागकर दूर हो जाना। चीजको इधर-उधर करना, डोलाना; किसी वस्तु या हिरनाकुस*-पु० दे० 'हिरण्यकशिपु' ।
व्यक्तिको किसी स्थानसे हटाना, खिसकाना; कपाना; हिरनौटा-पु. मृगशावक, हिरनका बच्चा।
जलमें प्रविष्ट कराना परचाना; किसी वस्तुको ऊपर-नीचे, हिरमजी-स्त्री० [फा०] एक तरहकी लाल मिट्टी जिससे | दायें-बायें ले जाना, डोलाना। दीवार आदि रँगते हैं; एक तरहका लाल फूल जिससे हिलाल-पु० [अ०] नया चाँद नया और आखिरी चाँद । कपड़े रँगते है। एक रंग।
हिलोर-स्त्री० हिल्लोल, जल-तरंग। हिरसा-स्त्री० दे० 'हिर्स' ।
हिलोरना-स० कि० हिलकोरना; इलोरना; कपड़ेको हिराती-वि०हिरात-संबंधी। पु० एक तरहका घोड़ा (जो पानीमें डालकर हिलाना जिससे मैल छंट जाय । हिरात नामक स्थान में होता है)।
हिलोरा-पु० हिलोर । मु०-लेना-हिलकोरा लेना, हिराना-अ० क्रि० खो जाना, लुप्त हो जाना; अस्तित्व तरंगित होना।
न रह जाना, अभाव होना, सुध-बुध खो देना; स्तब्ध हिलोल-पु० हिल्लोल, लहर । रह जाना; नष्ट होना। स० क्रि० याद न रखना, विस्म- हिल्लोल-पु० [सं०] लहर मनकी तरंग; हिंदोल राग । रण करना, भूलना; हुँढ़वाना।
हिल्वला-स्त्री० [सं०] मृगशिरा नक्षत्रके सिरके पासके हिरास-स्त्री० [फा०] डर, भय, दहशत, नैराश्य मायूसी। पाँच छोटे तारे। वि.हिरासाँ, निराश-'यो कहि सुमंत हिये है हिरास हिवा-पु० बर्फ, तुषार, पाला । -रामरसा।
हिवंचल-पु० हिमाचल; पाला, हिम, बर्फ । हिरासत-स्त्री० [अ०] निगरानी नजरबंदी हवालात । | हिवार-पु० हिम, पाला। मु०-होना-बहुत शीतल हिरासाँ-वि० [फा०] भीत; निराश, मायूस ।
होना। हिरौल*-पु० दे० 'हरावल' ।
हिस(हिस्स)-स्त्री० [अ०] अनुभूति; किसी ज्ञानेद्रियके हिर्स-पु० [भ] लोभ, लालच, तृष्णा, हवस ।
द्वारा जानना, संवेदन; गति, चेष्टा । हिसाहिर्सी-अ० दूसरोंको करते देखकर, देखा-देखी । हिसाब-पु० [१०] गिनती, गणना; जोड़, किसी आर्थिक हिस-वि० [फा०] लालची।
व्यवहारका विवरण, लेन-देन, खरीद-बेची भादिका म्योरा, हिलकना -१० कि० दे० 'हिरकना; हिचकी लेना; लेखागणित विद्या; गणितका प्रश्न; भाव, निर्ख, नियम, सिसकना । स० कि. सिकोड़ना।
रीति; हाल; ढंग, तरीका; लेन-देन; राय, खयाल, हिलकी-स्त्री० हिचकी-'जागत हू पिय हिय लगी,हिल- समझ । -किताब-पु. आर्थिक व्यवहारका ब्योरा, की तऊ न जाय'-मति० सिसकनेकी क्रिया, सिसका लेखा; लेन-देन; बही-खाता; (ला) ढंग, तरीका । उमंग; लहर।
-चोर-पु. वह जो हिसाव करने में कोई रकम दबा ले। हिलकोर-पु० जलकी तरंग, हिलोल ।
-दा-वि०हिसाब जाननेवाला, गणितश। -दार-पु. हिलकोरना-स० क्रि० जलको तरंगित करना, पानीमें | हिसाब रखनेवाला। -बही-स्त्री. वह बही जिसमें लहरें उठाना।
आमदनी-खर्चका ब्योरा लिखा जाय । मु०-करना-देनाहिलकोरा-पु० दे० 'हिलकोर' । मु०-देना-पानीको पावना समझना, जोड़ना । -चुकता करना-देना चुका धक्केसे हिलाना, तरंगित करना। -लेना-तरंगित देना। -तलब करना-हिसाब माँगना, हिसाब समहोना।
झानेको कहना ।-देना-हिसाब समझाना ।-न होनाहिलग-स्त्री० परचनेका भाव, मेलजोल, प्रेम-'हिलगके बेहिसाब होना, गिनती न होना। -पर चढ़ना-बही पद गायो करते'-अष्टछाप ।
या खातेमें लिखा जाना। -पाक करना-देना चुका हिलगना-अ० कि० परचना, मेलजोल होना, हिरकना; देना। -पूछना-हिसाब माँगना। -बेबाक करनाउलझना, फँसना; पास आना।
खातेमें कुछ बाकी न रह नाना। -बैठना-ब्योंत बैठना, हिलगाना-स० क्रि० परचाना, मेलजोल कायम करना सब कामों, आवश्यकताओंका उपाय निकल आना; मेल
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हिसाबी-हुंकार मिलना । -साफ करना-हिसाब चुकता करना ।-से- आचरणका । -नायक-वि० जिसका नायक अधम हो अंदाजासे, परिमित मात्रामें, किफायतसे (हिसाबसे खर्च (नाटक)। -पक्ष-पु० तर्क द्वारा समर्थित न होनेवाला करो, चलो); क्रमसे, "मात्रामें (जिस हिसाबसे ज्वर पक्ष, तर्क, दलीलकी दृष्टिसे कमजोर पक्ष । वि० अरक्षित । बढ़ेगा."); हिसाबके मुताबिक । (किसीके)-से-'"की -बल-वि० निर्बल, कमजोर । -बुद्धि,-मति-वि० दृष्टिसे,"के विचारसे । -से चलना-नाप-तौलकर काम बुद्धिहीन, मूढ़, मूर्ख ।-यान-पु. बौद्ध मतकी दो शाखाकरना; किफायतसे खर्च करना ।
ओंमेंसे एक (इसकी दूसरी शाखाका नाम 'महायान' है)। हिसाबी-वि० हिसाब जाननेवालाहिसाबसे चलनेवाला। -योनि-वि० बुरे खानदानमें उत्पन्न, नीच जातिका । हिसार-पु० [अ०] घेरा, इहाता; परकोटा; किला । मु०- -रस-पु. काव्यगत एक दोष जो रसविरोधी भावके करना-घेरा डालना। -बाँधना-घेरा डालना; चारों प्रसंगकी नियोजनासे होता है। -रोमा (मन्)-वि०
ओर सैनिकोंकी पाँत या कोई दूसरी रोक खड़ी कर देना। केशहीन, गंजा। -वर्ग,-वर्ण-वि. नीच जातिका हिसिषा -स्त्री० ईर्ष्या-'जो ऐसहि हिसिषा करहिं नर | शूद्रवर्णका । -वाद-पु० दोषपूर्ण तर्क; विरोधी बात, विवेक अभिमान'-रामा०; स्पर्धा; किसीसे चढ़ा-ऊपरी तक कमजोर दलील; दोषी प्रमाण, साक्ष्य । -वादीकरनेकी भावना, होड़।
(दिन)-वि० परस्पर विरोधी बातें कहनेवाला, (ऐसा हिस्सा-पु० [अ०] भाग, अंश खंड; बाँट, बखरा; विभाग; व्यक्ति या गवाह) जिसकी पूर्वापर कही बातें असंगत हों, अंशाधिकार, साझा; अंग (बदनके किसी हिस्से में)। विरुद्धार्थवादी। -बखरा-पु०अंश,भाग। [मु०-बखरा होना-बटवारा हीनता-स्त्री०, हीनत्व-पु० [सं०] सदोषता; राहित्य, होना, जायदादका हिस्सेदारों में बँट जाना] । -रसदी- अभाव; नीचता; बुराई । अ० हिस्सेके अनुसार, जितना जिसके हिस्से में आये । हीनांग-वि० [सं०] अंगहीन, विकलांग । -(स्सेदार-पु० अंशका अधिकारी, जिसका किसी हीनोपमा-स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद जिसमें संपत्ति या रोजगारमें हिस्सा हो, साझी। -दारी-स्त्री० बड़ेकी उपमा छोटेसे दी जाय । हिस्सेदार होना, साझा । मु०-लेना-शिरकत करना, हीय, हीयरा, हीया*-पु.दे० 'हिय', 'हियरा', 'हिया'। भाग लेना। -(स्से)करना-बाँटना । -में आना- हीर-पु० सार अंश, गूदा; वीर्य, शक्ति; [सं०] एक रत्न, बाँटेमें पड़ना, बटवारेसे मिलना।
हीरा; वज्र; शिव; सिंह; सर्प । हिहिनाना*-अ०क्रि० दे० 'हिनहिनाना'।
हीरक-पु०[सं०] हीरा नामक रत्न; एक वृत्त ।-जयंतीहाँग-स्त्री० दे० 'हिंगु' ।
स्त्री. (डायमंड जुबिली) किसीके शासन, विवाहित जीवन हीछना*-अ०कि० इच्छा करना, चाहना; कामना करना। आदिके साठवें वर्षका उत्सव; किसी संस्था आदिकी हाँछा*-स्त्री० इच्छा, कामना ।
स्थापनाका साठवाँ वार्षिकोत्सव ।। हीताल-पु० [सं०] हिंतालवृक्ष ।
हीरा-पु० एक बहुमूल्य रत्न जो अत्यंत कठिन और प्रायः हाँस-स्त्री० घोड़ेकी हिनहिनाहट ।
श्वेत कांतियुक्त होता है, हीरक; (ला०) उत्तम व्यक्ति या हाँसना-अ० क्रि० घोड़ेका हिनहिनाना।
वस्तु । -आदमी-पु० बहुत नेक आदमी, भलामानुस । हाँसा -पु०हिस्सा, भाग ।
-कसीस-पु० गंधकके योगसे उत्पन्न लोहेका विकार । ही-अ० इसका प्रयोग निश्चय, सीमा, कमी, अकेलापन, -मन-पु. लोककथाओंमें वर्णित तोतेकी एक कल्पित अनन्यता आदिके अवसरोंपर होता है। सभी अवस्थाओं में जाति । मु०-खाना-आत्महत्या करनेके विचारसे हीरेयह किसी बातपर जोर देने तथा निश्चयके लिए हो प्रयुक्त | का कण खा लेना; ईर्ष्यासे जान देना। -चाटना-हीरा मिलता है । * पु० हिय, हृदय । * अ० कि० थी। चाटकर मर जाना । -(२)की कनी खाना, चाटनाहीअ*-पु० दे० 'हिय'।
दे० 'हीरा खाना'। हीक-स्त्री० एक प्रकारकी दुर्गध जिससे प्रायः मतली आती | हीलना*-अ० कि० दे० 'हिलना'। है। हिचकी। मु०-मारना-बार-बार बुरी महक फेंकना, हीला-पु० [अ०] बहाना, बनावट; वसीला; रोजगार, गंधाना।
काम; + कीचड़ । -हवाला-पु० टालमटोल । -(ले) हीचना*-अ० कि. हिचकिचाना, किसी कामके करने में गर,-बाज़,-साज़-वि० बहाने बनानेवाला।-गरी,आगा-पीछा देखना।
बाज़ी,-साज़ी-स्त्री० बहानेबाजी, फरेब । मु०-निकहीछना-अ० क्रि० दे० 'हौंछना'।
लना-उपाय निकल आना। -होना-बहाना होना; हीन-वि० [सं०] अधम, नीच, निंद्य, गर्दा रहित, वर्जित | नौकर होना; कोशिश होना। परित्यक्तः निम्न कोटिका; जिसकी आर्थिक स्थिति बुरी हीसका*-स्त्री० ईर्ष्या प्रतिद्वंद्विता । हो, दीन; दबता हुआ, कमजोर अनुपयुक्त पद, मार्ग, हीही-स्त्री० जोरसे हँसनेकी ध्वनि, उच्च हास्य-ध्वनि स्थान आदिसे च्युत, भ्रष्ट; सदोष; अधूरा; क्षीण ।। हीनता प्रदर्शित करते हुए हँसना । -कर्मा(मन्)-वि० नीच काम करनेवाला । -कुल-हुँ-अ० बात करते समय बात सुनने या उस बातकी वि० नीच कुलका, कलंकित वंशका । -क्रम-पु० स्वीकृतिका सूचक शब्द, हाँ; * दे० 'हूं'। काव्यगत एक दोष जिसमें वर्णित विषयोंके क्रमका
करना-अ० कि० दे० 'हुंकारना' । निर्वाह न हुआ हो। -चरित-वि० कदाचारी, बुरे हुंकार-पु० [सं०] दर्पयुक्त होकर 'हुँ' शब्द करना;
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हुंकारना-हुटक
९२० गर्जना ललकार सूअरका गुर्राना; धनुषकी टंकोर । दरीसे खारिज कर देना, खान-पान बंद करना।] - हंकारना-अ० क्रि० दर्पयुक्त होकर 'हु' शब्दका उच्चारण बरदार-पु. हुक्का लेकर साथ चलनेवाला टहलू । - करना; गर्जन करना, युद्ध, लड़ाई-झगड़े, प्रतियोगिता बाज़-पु० जो बहुत हुक्का पीये मदारी, बाजीगर । मु० आदिमें अपने शत्रु, प्रतिद्वंद्वी आदिको ललकारना; -ताजा करना-फरशीका पानी बदलना और नेचेको चिग्घाड़ना।
तर करना । -भरना-चिलमपर तंबाकू और आग रखहुँकारी-खी 'हुँ-हुँ' शब्द द्वारा स्वीकृति सूचित करनेकी | कर हुक्का तैयार करना। क्रियाः बिकारी । मु०-भरना-कहानी सुनते समय 'हुँ। हुकाम-पु० [अ०] 'हाकिम'का बहुवचन । हुँ' शब्द द्वारा कहानी सुनते रहनेकी सूचना देना; किसी। | हुक्म-पु० [अ०] आशा, आदेश फैसला; शरई फैसला, कामके लिए स्वीकृति देना।
फतवा; इजाजत; हुकूमत, भधिकारः ताशका एक रंग, हंकृत-पु० [सं०] हुंकार; सूअरकी गुर्राहट, मेघगर्जन; काला पान । -कतई-पु० अंतिम निर्णय ।-गश्ती-पु० मंत्र; रंभानेका शब्द ।
वह आज्ञा जो सब जगह फिरायी जाय।-दरमियानीहुंकृति-स्त्री० [सं०] दे० 'हुंकार' ।
पु. वह आशा जो अंतिम निर्णय या कतई हुक्मके पहले हुँडार-पु० भेड़िया ।
दी जाय । -नामा-पु. आशापत्र । -बरदार-वि० हुंडावन-पु. हुंडीकी दस्तूरी; हुंडीकी दर ।
आशापालक । -घरदारी-स्त्री० आशाका पालन, फरमाँहंडी-स्त्री० [सं०] वह पत्र जो आपसमें लेन-देन करने- बरदारी। -रान-वि० हुक्म चलानेवाला; शासन करने वाले महाजन किसीको रुपया दिलानेके लिए भेजते हैं, वाला । -रानी-स्त्री० हुकूमत, शासन । मु०-की महाजनी 'चेक'; कर्ज देनेका एक तरीका जिसमें महाजन तामील-आज्ञापालन । -चलना-हुकूमत होना, अधिसूदकी रकम मूल में पहले ही शामिल करके एक बार या कार होना। -चलाना-आशा प्रचारित करना हुकूमत किस्त करके लेता है। -बही-स्त्री० [हिं०] हुंडियोंका करना। -बजा लाना-आशाका पालन करना। -में ब्योरा रखनेकी बही; वह बही जिसमेंसे हुंडी काटकर दी होना-आशाधीन होना; अधिकारमें होना। -लगाना जाय । मु०-करना-हुंडी लिखना। -खड़ी रखना- -पक्को राय देना, फैसला करना।। किसी वजहसे हुंडीको मुस्तबी रखना। -पटना-हुंडीके | हुक्मी-वि० अचूक, खता न करनेवाला (-दवा); आशारुपयेका अदा होना। -भेजना-हुंडी द्वारा द्रव्य चुकता। धीन, जो हुक्म मिले वह करनेवाला (-बंदा)। -बंदाकरना, अदा करना। -सकारना-हुंडीमें लिखी रकम | पु० आज्ञाधीन, हुक्मका गुलाम । देना स्वीकार करना।
हचकी-स्त्री० दे० 'हिचकी'। हते-प्र० हिंदीके करण तथा अपादान कारकोंकी | हजूम-पु० [अ०] जनसमूह, भीड़। विभक्ति से, द्वारा (किसीकी) ओरसे; (किसीके) लिए, हजूर-पु० [अ०] हाजिर होना, सामने आना, उपस्थिति हेतु, वास्ते,-'तुम हुँत मँडप गयेउ परदेसी'-प०। दरबार, इजलासा सम्मान्य जनका संबोधन, श्रीमन्, ह*-अ०भी।
जनाबआली; (मातहत कर्मचारी अफसरका तथा वकील, हआँ-पु० गीदड़ोंके बोलनेकी आवाज । + अ० वहाँ । मुख्तार जज-कलेक्टर आदिका इसी शब्दसे संबोधन हआना-अ० क्रि० 'हुआँ हुआँ' शब्द करके बोलना। करते हैं )।-तहसील-स्त्री० सदर तहसील ।-वालाहक-पु० [अं॰] एक ओर मुड़ी कील, कँटिया जिसमें या पु० (संबोधन) श्रीमन् , जनाबआली। (किसीके)-मेंजिससे कोई चीज फँसायी जाती है। स्त्री० गर्दन या पीठकी नसोंका तनाव जिससे उस अवयवको हिलाना-हजूरी-स्त्री० समीपता हाजिरी; शाही दरबार । पु० (राजा डुलाना मुश्किल होता और ऐसा करनेसे चिलक होती है। आदिका) खास नौकर; दरबारी। हुकरना-अ० कि० दे० 'हुँकरना।
हुजत-स्त्री० [अ०] दलील; बहसः विवाद, झगड़ा। हुकुमां-पु० दे० 'हुक्म'।।
हुजती-वि० हुज्जत करनेवाला, झगड़ालू । हकुर-पुकुर, हुकुर हकुर-स्त्री० शारीरिक कमजोरी, भय,
हुड़क-स्त्री० दे० 'हुड़का'। आशंका आदिके कारण हृद्गतिका तीव्र होना, कलेजेका हड़कना-अ० कि. छोटे बच्चेका अपने प्रिय व्यक्तिजल्दी-जल्दी धड़कना।
(जिससे वह हिला-मिला हो) के न मिलनेपर रोना, हुकूक-पु० [अ०] 'हक'का बहुवचन ।
डरना, खाना-पीना छोड़ देना आदि । हकमत-स्त्री० [१०] शासन, राज्य, अधिकार, प्रभुत्व । हड़का-पु. विरहजनित पीड़ा (विशेषतः बच्चोंको होनेमु०-चलाना-मधिकारका उपयोग करना; दूसरेपर हुक्म | वाली ); दे० 'हुडुक'।। चलाना । -जताना-अधिकार, प्रभुत्वका प्रदर्शन करना।
हुड़काना-स० क्रि० तलफाना, दुःखित करना। हुक्का-दे० 'हुक्का'।
हुड़दंग, हुड़दंगा-पु० ऊधम, उपद्रव, हुल्लड़ । हुक्का -पु० [अ०] तंबाकू पीनेका, नरकुलकी दो नलियों हुडुंब-पु० [सं०] भूना हुआ चिउड़ा ।
और फरशीके योगसे प्रस्तुत यंत्र, गुड़गुड़ी, जवाहिरात हडुक-पु० दे० 'दुडुक'। रखनेकी डिबिया। -पानी-पु. हुक्का पीने-पिलानेका हुडुक्क-पु० [सं०] एक बाजा जो डमरूकी शकलका, पर व्यवहार, जाति-बिरादरीका संबंध । [ मु०-पानी आकारमें उससे बड़ा होता है। एक पक्षी। पिलाना-आवभगत करना । -पानी बंद करना-बिरा हुढक्क*-पु० हुडुक बाजा ।
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९२१
हुत - * अ० क्रि० 'होना' का हवन किया हुआ; जिसके पु० शिवः हवन सामग्री ।
भूतकाल, था । वि० [सं०] निमित्त हवन किया गया है । भक्ष-पु० अग्नि । -भुक् | ( ज् ) - पु० अग्नि । शिष्ट, शेष-पु० हवनका बचा हुआ अंश ।
हुता* - अ० क्रि० दे० 'हुत' (था) ।
ताग्नि स्त्री० [सं०] हवनकी अग्नि, यज्ञाग्नि । हुताशन- पु० [सं०] अग्नि ।
हुति - स्त्री० [सं०] होम, हवन । * प्र० अपादान और करणकी विभक्ति ।
हुदूद - पु०, स्त्री 'हद' का बहु०; चारों ओरकी सीमा । हुन पु० स्वर्ण, सोना; स्वर्णमुद्रा, सोनेका सिक्का । मु०बरसना - द्रव्यका आधिक्य होना । हुनना-स० क्रि० हव्य - घृत, यव आदि - अग्नि में डालना, आहुति देना; यश करना, होम करना; भस्म करना । हुनर-पु० [फा०] फन, कारीगरी; हाथकी कारीगरी; खूब; निपुणता; योग्यता । - मंद - वि० हुनर जाननेवाला, गुणी; निपुण, कुशल | -मंदी - स्त्री० कारीगरी; कुशलता, निपुणता |
हुन्न, हुन्ना * - पु० दे० 'हुन' - 'पीरी- पीरी हुन्नै तुम देत हौ मँगा मैं, सुबरन हम सों परखि करि लेत हो' - भू० । हुब्ब - स्त्री० [अ०] प्रेम, मुहब्बत; मित्रता; चाह । हुब्बुलवतन, हुब्बेवतन - स्त्री० [अ०] स्वदेशप्रेम, वतन की मुहब्बत ।
हुमकना, हुमगना - अ० क्रि० उल्लसित होना, आनंदातिरेकसे उछलना-कूदना; छोटे बच्चोंका अल्हड़पनके साथ चलना, ठुमकना; चोट करनेके लिए पैरको फुर्तीसे उठाना, तानना । हुमसाना, हुमसावना * - स० क्रि० मनमें कामना, इच्छा, विचार आदि उठाना, हृदयके भावों, मनके विचारोंको उत्तेजित करना; जोर लगाकर उठाना, हटाना । हुमा पु० [फा०] एक कल्पित पक्षी ( कहा जाता है कि यह जिसके सिरसे गुजर जाय वह राजा हो जाय ।) हुमेल - स्त्री० स्त्रियोंके गलेका एक गहना जो अशर्फियों, रुपयों कोढ़ा जोड़कर और उन्हें तागमें गूँथकर पहनने के योग्य बनाया जाता है (पशुओंके गलेका भी यह गहना है ) ।
हुरदंग, हुरदंगा - पु० दे० 'हुड़दंग' । हुरमत - स्त्री० [अ०] इज्जत, आबरू, बड़ाई, प्रतिष्ठा । हुरमति* - स्त्री० दे० 'हुरमत' - 'कहै कबीर बाप राम राय, हुरमति राखहु मेरी'- कबीर ।
तो* - अ० क्रि० दे० 'हुत ( था ) |
हुदकाना* - स० क्रि० उभाड़ना ।
हुदना* - अ० क्रि० आश्चर्यचकित होना, ठक रह जाना । हुलासी - वि० उल्लासपूर्ण, आनंदयुक्त; उत्साहपूर्ण । हुदहुद - पु० [अ०] कठफोड़ा पक्षी । हुलिया - पु० [अ०] चेहरा; शकल; नख-शिख, शकल -
सूरतका ब्योरा । -नामा पु० शकल-सूरत भादिका विवरणपत्र | मु० - कराना, - लिखाना - भगे या खोये हुए आदमीकी पहचान पुलिस में लिखाना । तंग होनापरेशानी में पड़ना । बताना, -बयान करना - शकलसूरतका हाल बताना। - बिगड़ना-बुरी हालत होना, गत बनना । - बिगाड़ देना, - बिगाड़ना- मुँहपर ऐसा मारना कि सूरत बिगड़ जाय ।
|
हुल्लड़ - पु० शोर-गुल, हो-हल्ला; उत्पात, ऊधम; दंगा
फसाद; गड़बड़ |
हुश - अ० किसीको अकरणीय कार्य करने या करनेके प्रयत्नसे विरत करने के लिए झटके से मुँह से निकलनेवाला एक शब्दः पशु-पक्षी आदिको भगानेका शब्द | हुसियार* - वि० दे० 'होशियार' ।
हुसैन - पु० [अ०] अली के दूसरे बेटे जो करबला के युद्ध में शहीद हुए ।
हुस्न- पु० [अ०] भलाई, खूबी; सुंदरता, लावण्य; शोभा । - परस्त - वि० सौंदर्यकी पूजा करनेवाला, सौंदर्यप्रेमी । -परस्ती - स्त्री० सौंदर्य प्रेम, सौंदर्योपासना | हुस्यार* - वि० दे० 'होशियार' ।
-अ० दे० 'हुँ'; दे० 'हू' । अ० क्रि० उत्तम पुरुषके एक वचनके साथ प्रयुक्त होनेवाला 'होना' क्रियाका वर्तमानकालिक रूप । * सर्व० हौं, मैं ।
हुरहुर - पु० एक बरसाती पौधा जिसके कई भेद होते हैं और जो दवा के भी काममें आता है । हुरिहार* - पु - पु० होलीका राग-रंग करनेवाला, होली खेलनेवाला ।
हुलकना - अ० क्रि० वमन करना, के करना ।
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हुत-हूक
हुलकी - स्त्री० उलटी, वमन, कै । हुलना - अ० क्रि० लाठी आदिका ठेला जाना । हुलसना-अ० क्रि० उल्लसित, आनंदित होना; स्फुरित होना, उमड़ना; * शोभित होना । * स० क्रि० उल्लसित करना ।
हुलसाना-स० क्रि० आनंदित करना। * अ० क्रि० दे० 'हुलसना' ।
हुलसी - स्त्री० हुलास, उल्लास, मनकी तरंग; गोस्वामी तुलसीदासकी माताका नाम (कुछ लोगों के मतसे) । हुलहुल - पु० दे० 'हुरहुर' ।
हुलास - पु० उल्लास, मनकी उमंग, आनंदकी उठान; उत्साह । + स्त्री० सुँघनी । - दानी -स्त्री० नसदानी |
हूँकना - अ० क्रि० 'हुँ' शब्द करना, हुंकार करना, गर्जन करना; मानसिक या शारीरिक पीड़ासे जोर-जोर से रोना; पीड़ाके कारण गायका रँभाना, बोलना, हुड़कना । हूँकार - पु० [सं०] दे० 'हुंकार' |
ठ* - वि० साढ़े तीन ।
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ठा-पु० साढ़े तीनका पहाड़ा |
-स्त्री० सिंचाई आदि खेतीके कामों में किसानोंकी आपसकी सहायता ।
हँस - स्त्री० किसीको सकारण और अकारण भी कटूक्ति "कहते रहनेकी क्रिया, भर्त्सना; ईर्ष्या; बुरी नजर । हँसना - स० क्रि० बुरी नजर से देखना, नजर लगाना । अ० क्रि० ईर्ष्या करना; कुढ़ना, बुरा-भला कहना । हू* - अ० भी ।
हूक- स्त्री० साल; पीड़ा, कसक; मानसिक पीड़ा; खटका ।
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समा
एकना-हृषीकेश
९२२ हकना-अ० क्रि० पीड़ा होना, दर्द करना; सालना। हुए छ: चक्रोंमेंसे एक जो हृदयके पास स्थित है। -तापहटना*-अ०क्रि०विलग होना, पृथक होना; विमुख होना, पु० हृदयकी जलन, मनोव्यथा। -पंकज,-पद्म-पु.
मुँह मोड़ना-'काल-बस जंगतें नाहिं हूट्यो'-सुजान। कमलवत् हृदय । -पिंड-पु० सीनेके पास स्थित अंगहठा-पु० अँगूठा ठेंगा; चिढ़ानेकी मुद्रा। -देना-मु० विशेष, हृदय । -पीड़न-पु० हृदयको कष्ट देना। अँगूठा दिखाना; चिढ़ाना।।
-पीड़ा-स्त्री० मनोव्यथा । हूड़-वि० हुडु, अनाड़ी, मूढः लापरवाह ।
हृदयंगम-वि० [सं०] मर्मस्पर्शी; सुंदर; हृदयगत; समझमें हुण, हन-पु० [सं०] एक म्लेच्छ जाति जिसने भारतकी आया हुआ; आकर्षक आनंददायका प्रिय । पश्चिमोत्तर सीमापर कई बार आक्रमण किया था और हृदय-पु० [सं०] वक्षके भीतर बायीं ओर स्थित मांसका जिसे एक बार विक्रमादित्यने बुरी तरह हराया भी था | रक्तकोश जिसमें भरा शुद्ध रक्त नाड़ियों द्वारा सारे एक स्वर्णमुद्रा।
शरीर में प्रवाहित होता है, दिल, छाती, सीना; मन, इत-वि० [सं०] बुलाया हुआ, आमंत्रित ।
अंतःकरण; आत्मा; नीरक्षीरविवकिनी बुद्धि; किसी स्थानका हृति-स्त्री० [सं०] आह्वान; ललकार नाम, संज्ञा ।
भीतरी भाग जो प्रायः महत्त्वपूर्ण होता है; सार वस्तु, हतो*-अ० दे० 'हुति'।
तत्त्व, हीर; बहुत ही प्रिय, प्यारा व्यक्ति । -क्षोभ-पु० हूदा-पु० पीड़ा, शूल; धक्का ।
मनकी अशांति । -गत-वि० हृदय-संबंधी, हार्दिक, हनना-स० आगमें डालकर भूनना; विपत्तिमें झोंकना। आंतरिका हृदयस्थित । -ग्रंथि-स्त्री० हृदयकी गाँठ, हबह-वि० ज्योंका त्यों, वैसा ही।
दिलको कष्ट देनेवाली बात । -ग्राही(हिन्)-वि० हर-स्त्री० [अ०] बिहिश्त या स्वर्गलोककी स्त्री, अप्सरा मनोहर मनोरंजक । -चोर-पु० हृदयका हरण करने (ला०) परम सुंदरी, परी जैसी सुंदर स्त्री; * दे० 'हूल' वाला व्यक्ति ।-च्छिद-वि० हृदयका छेदन करनेवाला। -का बच्चा-बहुत सुंदर आदमी।
-ज-पु० पुत्र । -ज्ञ-वि. दिलकी बात समझनेवाला, हरना-स० क्रि० पेलना, ठेलना; चुभाना, गड़ाना । | रहस्य जाननेवाला । -ज्वर-पु. दिलकी जलन । -'किहु दूर ही ते दये हरि नेजा'-सुजान ।
-दाही(हिन्)-वि० हृदय जलानेवाला ।-दौर्बल्यहरा-पु० लाठी आदिका छोर।।
पु० दिलकी कमजोरी।-निकेत,-निकेतन-पु० मनोज, हुल-स्त्री० लाठीके हूरे, तलवार, भाले आदिकी नोक कामदेव । -प्रमाथी(थिन् )-वि० मनको क्षुब्ध करने
तेजीसे कहीं गड़ाने, गोदने, भोंकनेकी क्रिया; पीड़ा, वाला; मुग्ध करनेवाला । -प्रिय-वि. दिलको प्यारा, वेदना, शूल; वमन, कैकी प्रवृत्तिका होना; हला-गुल्ला, स्वादिए ।-रोग-पु० हृदयमें होनेवाला रोग।-वल्लभउलट-पलट, शोर-गुल-'परी हूल जोगिन गढ़ छेका' पु० प्राणप्रिय व्यक्ति, प्रियतम ।-विदारक-वि० हृदयको -५०%, आनंदध्वनि, खुशीसे उत्पन्न आवाज; प्रसन्नता, विदीर्ण करनेवाला, शोक, करुणा आदि उत्पन्न करनेवाला। हर्ष, युद्ध आदिके हेतु आह्वान, ललकार, बहेलियेका -विध,-वेधी(धिन् )-वि० मर्माहत करनेवाला । चिड़िया फँसानेका लासा लगा बाँस ।
-व्यथा-पु० मानसिक पीड़ा ।-व्याधि-स्त्री० हृदयका हुलना-सक्रि० दे० 'हरना।
रोग। -शल्य-पु. दिलका काँटा; दिलका जख्म । हूला-पु० हूलने, हरनेकी क्रिया ।
-शून्य-वि० दे० 'हृदयहीन' ।-स्थ-वि. जो हृदयमें हुश-वि० नाहिल, जंगली, उजटु ।
स्थित हो। -स्थली-स्त्री०,-स्थान-पु. वक्षःस्थल । हूह-स्त्री० युद्धकी ललकार हुंकार, गर्जन ।
-स्पी (शिंन्)-वि० हृदयको प्रभावित करनेवाला । हह-पु० आगके जलनेका शब्द [सं०] एक गंधर्व । -हारी(रिन)-वि०मनको मुग्ध करनेवाला।-हीनहृत-वि० [सं०] हरण किया हुआ; गृहीत; वहन किया वि०निष्ठुर, अरसिक । हुआ, ले जाया गया हुआ; वंचित; मुग्ध; स्वीकृत; हृदयवान (वत्)-वि० [सं०] कोमल हृदय, दयालु । विभक्त । पु० भाग, हिस्सा । -दार-वि० पत्नी-रहित । हृदयालु-वि० [सं०] दे० 'हृदयवान्' उदार; सहृदय । -द्रव्य-वित्त-वि० संपत्तिसे वंचित । -प्रतिदान-पु० हृदयिका हृदयी(यिन्)-वि० [सं०] दे० 'हृदयवान्। (रेस्टीट्यशन) छीनी हुई या जब्त की हुई वस्तु, संपत्ति | हृदयेश, हृदयेश्वर-पु० [सं०] पति, परम प्रिय व्यक्ति । आदिका पुनः लौटा दिया जाना । -प्रत्यर्पण-पु० हृदयेशा, हृदयेश्वरी-स्त्री० [सं०] पत्नी, प्रियतमा । (रेस्टोरेशन) हरे हुए, छीने हुए व्यक्ति या राज्यादिको | हृद्-पु० [सं०] दिल, मन आत्मा; सीना; किसी पदार्थका पुनः अर्पित कर देना, सौंप देना; दे० 'पूर्ववत्करण'। भीतरी भाग, हीर । -गत-वि० मनमें आया हुआ, -वासा(सस)-वि० वस्त्रविरहित । -सर्वस्व-वि० हृदयस्थ हृदय-संबंधी; वांछित प्रिय; आनंददायक अभिजिसका सब कुछ ले लिया या नष्ट कर दिया गया हो। प्रेत । -दाह-पु० हृदयकी जलन ।-देश-पु. हृदयका हृताधिकार-वि० [सं०] भधिकारवंचित, पदच्युत । क्षेत्र; हृदय; वक्षःस्थल । -रोग-पु० हृदयका रोग शोका हृति-स्त्री० [सं०] अपहरण, ले लेने, लूटनेकी क्रिया | प्रेम । -व्यथा-स्त्री० मनोव्यथा; हृदयका स्पंदन । ध्वंस, नाश।
-व्रण-पु० कलेजेका जख्म । हृत्-वि० [सं०] (समासांतमें) हरण करनेवाला; ग्रहण हृद्य-वि० [सं०] हार्दिक; प्रियवांछित; अनुकूल; करनेवाला ले जानेवाला; मुग्ध करनेवाला। पु० हृदय। आनंददायक, सुंदर, मनोहर, स्वादिष्ठ; हृदयसे उत्पन्न । -कंप-पु० दिलकी धड़कन ।-कमल-पु. योगमें माने | हृषीकेश-पु० [सं०] परमात्मा, इंद्रियोंका स्वामी; मन;
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९२३
हृष्ट-हैंडबैग विष्णुः कृष्ण, एक तीर्थ जो हरिद्वारके निकट है। हेमंत-पु० [सं०] छः ऋतुओं में से एक जो मार्गशीर्ष और हृष्ट-वि० [सं०] प्रसन्न रोमांचित विस्मित। -चित्त,- पौषमें पड़ती है। -समय-पु० जाडेका मौसिम । चेतन,-चेता (तस्)-वि० प्रसन्नचित्त । -पुष्ट-वि० हेम-पु० [सं०] सुवर्ण; धतूरा; काले या भूरे रंगका घोड़ा। तगड़ा, हट्टाकट्टा । -मना (नस),-मानस-वि० हेम(न)-पु० [सं०] सोना; जल; पाला, हिम; धतूरा। प्रसन्नचित्त । -रोमा (मन्)-वि० रोमांचयुक्त । -कार-कारक-पु० सुनार । -कूट-पु० हिमालयके -वदन-वि० प्रसन्न मुद्रावाला।
उत्तरका एक पर्वत । -तरु-पु० धतूरा । -प्रतिमाहृष्टि-स्त्री० [सं०] हर्ष, प्रसन्नता रोमांच दर्प।
स्त्री० सोनेकी मूर्ति । -माली(लिन्)-वि० सोनेका हँगा-पु० जोती हुई जमीन बराबर करनेका पटरा, पटेला । हार धारण करनेवाला सोनेसे अलंकृत । पु० सूर्य । है है-अ० धीरे-धीरे इसनेकी ध्वनि गिड़गिड़ानेके वक्त हेमान्य-वि० [सं०] सोनेसे भरा-पूरा। निकलनेवाला शब्द । मु०-करना-गिड़गिड़ाना। हेमाद्रि-पु० [सं०] मेरु । हे-अ० [सं०] संबोधन, आह्वानके लिए प्रयुक्त शब्द; हेय-वि० [सं०] त्याज्य; बुरा, खराब; जाने योग्य; तुच्छ ।
अवज्ञा, घृणा-सूचक शब्द । * अ० क्रि० थे। | हेरंब-पु० [सं०] गणेश; भैसा । हेकड़-वि० बलवान् (बुरे अर्थमें), जबरदस्त; अशिष्ट, हेर*-स्त्री० खोज, तलाश । जाहिल, उजड्डः मजबूत शरीरवाला, तंदुरुस्त ।
हेरना*-सक्रि० किसी चीजको हूँढ़ना, तलाश करना, हेकड़ी-स्त्री. जबरदस्ती, बलात् कुछ करनेकी प्रवृत्ति खोजना; देखना, निहारना; किसी वस्तुको विवेकपूर्वक अशिष्टता, उजड्डपन।
देखना, परीक्षा करना, जाँच-पड़ताल करना, परखना। हेच-वि० [फा०] निकम्मा; बेकार, अकिंचन, क्षुद्र, तुच्छ; मु०-फेरना-एक जगहकी चीज दूसरी जगह करना, निस्तत्त्व, सारहीन । -पोच-वि० अदना, घटिया उलट-पलट करना; अदल-बदल करना, परिवर्तन करना । निकम्मा।
हेरफेर-पु० परिवर्तन, उलट-पलटकी क्रिया; अदल-बदल हेट-वि० कमः नीचा हीन । अ० नीचे-'हेठ दाबि करनेका काम, विनिमय; भेद, अंतर, दूरी; टेढ़ी-सीधी कपि भालु निसाचर'-रामा० ।
बात, साफ-साफ बात न करनेकी क्रिया चालबाजी। हेठा-वि० दे० 'हे'।
हेरवाना -स० क्रि० पता लगवाना, खोजवाना: खोना । हेठी-स्त्री० अप्रतिष्ठा, मानहानि, हीनता ।
हेराना*-स० क्रि० दे० 'हेरवाना' । अ० कि० गायब हो हेडिंग-स्त्री० [अं०] शीर्षक ।
जाना, खो जाना; एकदम न रह जाना,अभाव हो जाना; हेत*-पु० हेतु: प्रीति, प्रेम ।
अपनेको भूल जाना, अपनी सुध-बुध खोना। हेति-स्त्री० [सं०] अस्त्र; सूर्यकिरण; आगकी कपट, लौ हेरा-फेरी-स्त्री० हेर-फेर; उलट-पलट, वस्तुओंका यथास्थान प्रकाश, तेज; आघात, चोट; जख्म ।
न रह जाना, चीजोंका इधर-उधर होना । हेती-पु. प्रेमी, हित-मित्र संबंधी।
हेरी*-स्त्री० आह्वान, पुकार, गुहार । मु०-देना-गुहार हेतु-पु० [सं०] कारण लक्ष्य, मकसद प्रेम; ऐसी घटना, लगाना, आह्वान करना। काम आदि जिसके बिना हुए दूसरी घटना, दूसरा काम हेलन-पु० [सं०] अवहेलना; रस-क्रीड़ा, किलोल। न हो, मूल कारण, एकमात्र कारण; एक अर्थालंकार जहाँ हेलना-स्त्री० [सं०] दे० 'हेलन' । * अ०क्रि० राग-रंग कारणको ही कार्यरूप वर्णन करते हैं। तर्क, दलील; तर्क- मनाना, क्रीड़ा करना; निश्चित रहना, परवाह न करना; शास्त्र; व्यापक ज्ञापक कारण, ऐसा कारण जो व्याप्ति, खेलना (जानपर); प्रवेश करना (जलमें); हँसी-मजाक अव्याप्ति और अतिव्याप्ति नामक दोषोंसे दूषित न हो; करना । स० कि० अवहेलना, उपेक्षा करना, तुच्छ सम* प्रेम । अ० वास्ते,"के लिए। -युक्त-वि० सकारण, झना तैरना, हलकर पार करना। साधार । -वादी(दिन)-पु० तर्क करनेवाला, तार्किक हेलनीय-वि० [सं०] उपेक्षाके योग्य । नास्तिक । -विद्या-स्त्री०, -शास्त्र-पु० तर्कशास्त्र । हेलमेल-पु. मेल-जोल, घनिष्ठता। -शून्य- वि० हेतुरहित, निराधार । -हेतुमगाव- हेलया-अ० [सं०] खेल ही खेलमें, आसानीसे । पु० कारण और कार्यका संबंध । -हेतुमद्भत-पु० हेला-पु० मेहतर आह्वान, पुकार; उतारा-'और घाट भूतकालका एक भेद जिसमें कारणरूप क्रिया न होनेपर ह कीजे हेला'-छत्र; आक्रमण, धावा; ठेलनेकी क्रिया, कार्यरूप क्रियाका न होना दिखलाया जाता है। धक्का खेवा, खेप । स्त्री० [सं०] तिरस्कार, अवशा; अपहेतुता-स्त्री०, हेतुत्व-पु० [सं०] कारणका होना। मान; केलि, क्रीड़ा चंद्रिका; आनंद, प्रसन्नता; स्त्रियोंका हेतुमान् (मत्)-वि० [सं०] जो सकारण हो; तर्कयुक्त श्रृंगार-सूचक व्यक्त हाव जो अनुभावोंका एक उपभेद है। साधार । पु० कार्य।
हेली-स्त्री० सखी, सहेली।। हेतूत्प्रेक्षा-सी० [सं०] उत्प्रेक्षा अलंकारका एक भेद जहाँ। हेलीमेली-वि० जिससे हेल-मेल हो। अहेतुको हेतु मानकर उत्प्रेक्षा की जाय ।
हेवंत*-पु० दे० 'हेमंत'। हेवपहनुति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जिसमें प्रकृतके हैं-अ० क्रि० 'है'का बहुवचन रूप। अ० आश्चर्यसूचक निषेधका हेतु व्यक्त रहता है।
| शब्दा अस्वीकृति, निषेधसूचक शब्द । हेत्वाभास-पु० [सं०] वह हेतु जो किसी कार्यका कारण डबैग-पु० [अं०] हाथमें लेने योग्य चमड़े आदिका छोटा तो न हो परंतु हेतुसा आभासित हो, कुतर्क, हेतुदोष। बक्स ।
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है-होना
है - क० क्रि० 'होना' का वर्तमान कालका एकवचन रूप । *पु० हय, अश्व, घोड़ा । -बर- पु० सुंदर घोड़ा । हैकड़ - वि० दे० 'हेकड़' ।
हैकल - स्त्री० चौकोर, पानके तथा अन्य प्रकार के आकार के कई जंतरोंसे बना गलेमें पहननेका एक गहना, हुमेल । हैज़ - पु० [अ०] स्त्रियोंको होनेवाला मासिक रजःस्राव । हैज़ा - पु० [अ०] संक्रामक माना जानेवाला एक रोग जिसमें कै और दस्त आते हैं, विषूचिका । हैट - पु० [अ०] अंग्रेजी टोप । हैदर - पु० [अ०] शेर ।
हैना * - स० क्रि० मारना, हनन करना । हैफ़ - पु० [अ०] खेद, अफसोस । अ० हा, हंत, अफ़सोस । हैबत - स्त्री० [अ०] डर, भय, दहशत | -ज़दा - वि० भीत, डरा हुआ । -नाक- वि० डरावना । हेमंत - वि० [सं०] हेमंत संबंधी; जाड़े में उत्पन्न होनेवाला; जाड़े के उपयुक्त । पु० हेमंत ऋतु ।
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हैम - वि० [सं०] हिम-संबंधी; हिमसे उत्पन्न; जाड़ेमें होने वाला; बर्फ से ढका हुआ; हिमालय संबंधी; सोनेका बना हुआ; सोनेके रंगका । पु० हिम, पाला; ओस । -मुद्रा, - मुद्रिका - स्त्री० सोनेका सिक्का । वल्कल - वि० सोनेका पत्तर चढ़ा हुआ हैरत - स्त्री० [अ०] अचंभा, विस्मय। -अंगेज - वि० विस्मयजनक | -ज़दा - वि० चकित, विस्मित; भौचक्का । हैरान - वि० [अ०] चकित; हतबुद्धि, भौचक्का; परेशान । हैरानी - स्त्री० [अ०] विस्मय; परेशानी । हैवान - पु० [अ०] प्राणी; पशु । वि० (ला० ) उजड्ड । हैवानियत - स्त्री० पशुता; जंगलीपन । हैसियत - स्त्री० [अ० 'हैसीयत' ] ढंग, तौर; योग्यता; सामर्थ्य; बिसात; मालियत; आर्थिक योग्यता; धन-संपत्ति; दरजा, श्रेणी (जमीनकी है ० ) ; मान-प्रतिष्ठा । - दार- वि० हैसियतवाला, जिसके पास पैसा या जायदाद हो । हैहय - पु० [सं०] एक देश या वहाँका निवासी । -राजपु० सहस्रार्जुन ।
है-है- अ० खेद, दुःख आदिका सूचक शब्द, हाय-हाय । हाँ - अ० क्रि० 'होना' का संभावना सूचक (बहुवचन) रूप । हाँठ-पु० मुँहके बाहरका ऊपर या नीचेका भाग, ओष्ठ, दंतच्छद; घड़े आदिके मुँहका किनारा । मु० - काटना, - चबाना - क्रोध, शोक आदिके आवेशमें दाँतोंसे होंठको काटना । -चाटना -- कोई स्वादिष्ठ पदार्थ अधिक से अधिक खानेकी इच्छा करना; किसी अच्छी चीजका स्वाद याद आना । - चिपकना- किसी मनचाही मीठी चीजका नाम सुनते ही उसे पानेकी प्रबल इच्छा होना । - चूसना - अधर (रस) पान करना। -सी लेना-मौन हो जाना । - हिलाना - बोलना । हाँठोंपर छठीका दूध याद आ जाना - बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ना । हाँठल - वि० बड़े-बड़े मोटे होंठोंवाला ।
हो - अ० क्रि० 'होना' का संभावनासूचक ( अन्य पुरुष, एकवचनका ) रूप; * 'होना' का सामान्य भूत, था । अ० संबोधन में प्रयुक्त शब्द, हे । होटल - पु० [अं० 'होटेल' ] द्रव्य देकर यात्रियों तथा अन्य
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लोगों के भी खाने, रहने, मनोरंजन आदिकी आधुनिक ढंगकी व्यवस्था से युक्त स्थान । होड़-स्त्री० किसी विषय में एक दूसरेसे बढ़ जानेकी चाह और प्रयत्न, लाग-डाट, चढ़ा ऊपरी, प्रतिस्पर्धा; किसी काममें हार-जीत होनेपर पूर्व निश्चयके अनुसार किसीको कुछ देने या उससे कुछ लेनेकी प्रतिज्ञा, बाजी, शर्त । होड़ाहोड़ी - स्त्री० दे० 'होड़' । अ० होड़ लगाकर । होतब, होतब्य - पु०, होतब्यता* - स्त्री० होनेवाली बात, भवितव्यता, होनहार ।
होतव्य - वि० [सं०] इवन करने योग्य ।
होता (तृ) - वि० [सं०] हवन करनेवाला । पु० मंत्र पढ़ते हुए यश कुंड में इव्य डालनेवाला व्यक्ति, यज्ञकर्ता, यज्ञ करानेवाला पुरोहित ।
होनहार - वि० होनेवाला, अवश्यमेव होनेवाला; भविष्य में उत्कर्ष समृद्धि आदिका आभास देनेवाला । पु०, स्त्री० भवितव्यता, अवश्यमेव घटित होनेवाली घटना, बात आदि । होना- अ० क्रि० कायम, मौजूद, विद्यमान रहना; परिस्थिति, अवस्था आदिमें परिवर्तन आना, एक स्थितिसे दूसरी स्थितिका आना, कुछसे कुछ होना; प्रस्तुत होना, बनना, तैयार होना; किसी कार्यका पूरा होना, निर्मित होना; शरीर में किसी प्रकारकी व्याधिका होना; समयका व्यतीत होना, दिन बीतना; किसी घटनाका घटित होना; उत्पन्न होना, पैदा होना; काम चलना, निकलना, किसी कामका हो जाना । मु० (जो) हुआ सो हुआजो घटना या बात हो चुकी उसके लिए चिंता करनेकी आवश्यकता नहीं; जो घटना या बात हो चुकी उसे पुनः भविष्य में न होने देना चाहिये, काम तो बुरा हुआ, अब फिर इसे कदापि न करना चाहिये। तो क्या हुआ ?जाने दो, कोई परवाह नहीं (नहीं करना चाहते हो तो कोई परवाह नहीं) | हुआ-हुआ- किसी से कोई काम न होनेपर कही जानेवाली उक्ति (व्यंग्यरूप में प्रयुक्त होनेके कारण यह विधिमें रहकर भी निषेधका अर्थ देता है); बहुत कुछ कह चुकनेपर किसीको मना करनेके लिए कही गयी बात । हो आना कहीं जाकर लौट आना; किसीसे भेंट मुलाकात करने जाना, मिलने जाना । होकर - पाससे, समीपसे, बीचसे, मध्यसे । होकर रहना - जरूर होना, अवश्य घटित होना । हो गुजरना - घटनाका घटित होना; समाप्त होना । हो चलना - समाप्ति के निकट आना; बहुत हो जाना। हो चुकना - समाप्त हो जाना, तमाम हो जाना; खर्च हो जाना; मर जाना; किसी बात, वस्तु आदिका सीमातक पहुँच जाना, हद हो जाना । हो जाना - काम पूरा हो जाना, काम बन जाना; कहीं आकर चला जाना; किसीसे मिलकर चला जाना; मर जाना; बन जाना, किसी भी क्षेत्र में स्थितिका अच्छा हो जाना; (किसी कामका) खत्म हो जाना; लड़ाईझगड़ा, मार-पीट हो जाना; कुछ लायक हो जाना; भूतप्रेतका प्रभाव पड़ जाना; भोजन आदिका तैयार हो जाना । होते हुए - दे० 'होकर' । हो न हो - कौन जाने (अनिश्चय -सूचनार्थ) । ( लाखोंमे एक) होना- किसीका अनेक में श्रेष्ठ होना, अत्यंत उच्च कोटिका होना ।
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होना- हवाना - होना-जाना । होनेका - होनेवाला । होने लगना- किसी कामका आरंभ होना । हो पड़नाअकस्मात कुछ घटित हो जाना; अचानक झगड़ा तकरार हो जाना । हो बैठना - हो जाना, बन पड़ जाना; कुछ हो जाना, (बड़ा आदमी आदि ); दे० 'हो पड़ना' । हो रहना - हो जाना, होना । ( कहीँका) हो रहना - कहींसे लौटनेमें बहुत देर लगाना; कहीं से न लौटना । (किसीका) हो रहना- किसीका प्रिय या प्रेमी हो जाना। हो लेना - हो चुकना, समाप्त होना; पूरा होना, पूर्ण रूपसे होना; कोई मार्ग ग्रहण कर लेना; किसी पक्षका हो जाना; साथ चलना; पैदा होना, उत्पन्न होना; लड़ाईझगड़ा होना । (पीछे-पीछे) हो लेना -पीछे-पीछे जाना, चलना; किसीकी पैरवी करना । हो सो हो- चाहे जो कुछ हो ( निश्चयार्थक ) । हो हवा चुकना - हो चुकना । होनिहार* - वि०, पु०, स्त्री० दे० 'होनहार' | होनी - स्त्री० होनहार ।
होम - पु० [सं०] हवन, यज्ञ; गृहस्थों द्वारा नित्य किये जानेवाले पंच महायशोंमेंसे एक, देवयज्ञ । - कर्म (न्) - पु० यज्ञ-संबंधी कर्तव्य या विधियाँ। - द्रव्य - पु० हवनकी सामग्री, घी आदि ) - धान्य-पु० तिल । -धूमपु० होमकी अग्निका धुआँ । - भस्म (नू ) - पु० इवनकी राख । - शाला - स्त्री० यज्ञशाला । मु० - करते हाथ जलना- किसीका उपकार करते ( उपकार करनेवालेका) अपकार होना । - कर देना - बलिदान कर देना, उत्सर्ग कर देना; अग्नि में जला डालना; जलाकर नष्ट कर देना । होमना-स० क्रि० इवन करना; बलिदान करना; अर्पण करना; नष्ट करना ।
होमाग्नि- स्त्री०, होमानल - पु० [सं०] यज्ञाग्नि । होमियोपैथ - पु० [अ०] होमियोपैथिक पद्धतिके अनुसार चिकित्सा करनेवाला व्यक्ति ।
होमियोपैथी - स्त्री० [अ०] हनीमान द्वारा आविष्कृत एक चिकित्सा पद्धति ।
होरसा - पु० रोटी बेलने या चंद्रन आदि धिसनेका पत्थरका बना चौका |
होरहा - पु० चनेका फलदार हरा पौधा; आगपर भूना हुआ चने आदिका हरा दाना ।
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होरा - पु० दे० 'होला' । स्त्री० [सं०] ज्योतिष शास्त्रोक्त लग्न; ढाई घड़ी; आधी राशि; होराशापक शास्त्र; जन्म पत्री; चिह्न, रेखा । विदू - वि० जन्मपत्री देखनेमें कुशल | - शास्त्र - पु० फलित ज्योतिष | होरिल, होरिलवा, होरिला* - पु० शिशुः नवजात शिशु होरिहार* - पु० होली खेलनेवाला ।
।
होरी - स्त्री० दे० 'होली'; जहाजपर माल लादने और उसपर से उतारने के काम आनेवाली बड़ी नाव । होला - पु० मटर आदिकी आगपर भूनी हुई फलियाँ | स्त्री० [सं०] होलीका त्योहार । - खेलन- पु० फाग खेलना |
होलाका - स्त्री० [सं०] वसंतोत्सव, होलीका त्योहार । होलाष्टक - पु० [सं०] होली के पूर्वके आठ दिन जिनमें विवाह नहीं होता ।
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होनहार - हौ
होलिका - स्त्री० [सं०] होलीका त्योहार; लकड़ी, पेड़, घास-फूस आदिका ढेर जिसका दहन होलीके दिन होता है; एक राक्षसी जो हिरण्यकशिपुको भगिनी थी । होली - स्त्री० होलीका त्योहार; एक प्रकारका गीत जो विशेष रूपसे होली के अवसरपर गाया जाता है; दे० 'होलिका' । मु० - खेलना - फाग खेलना, एक दूसरेपर रंग आदि डालना ।
होश- पु० [फा०] जीवकी अपनी संज्ञा, जीवित रहनेका ज्ञान, चेतना; सुधबुध, स्मरण; अक्कु, बुद्धि, समझ । - मंद - वि० बुद्धिमान्, समझदार - हवास-पु० सुधबुध । मु० - आना - समझ आना, समझदार होना, चतुर होना,
बुद्धि आना; आपमें आना, चेतनायुक्त होना । - उड़ जाना, - उड़ना, - उड़ा देना, - उड़ाना - बदहोश हो जाना, घबड़ा जाना; आश्चर्यचकित हो जाना, हैरत में आ जाना; अक्कु खोना । काक्रूर होना- दे० 'होश उड़ जाना' । - खोना - दे० 'होशसे बाहर होना' । -गुम होना - होश उड़ना । - जाता रहना, -जाना - दे० 'होश उड़ जाना' । -ठिकाने रहना - होशहवास दुरुस्त रहना । - ठिकाने होना - अक्कु ठीक होना । - दंग होना - दे० 'होश उड़ना' । -दिलाना-स्मरण कराना, याद दिलाना । न रहना-खबर न रहना, होश उड़ जाना; बेहोश हो जाना । न होना - होश- हवास दुरुस्त न होना । - बाख्ता होना- दे० 'होश उड़ जाना' । - बिखरना- दे० 'होश उड़ जाना' । - में आना - ज्ञान प्राप्त करना, अक्ल हासिल करना; तमीज सीखना, व्यवहार सीखना; समझदार, होशियार होना; आपेमें आना, सँभलना । - रखना - बुद्धिमान् होना, अक्ल रखना । - सँभालना - सयाना होना, बड़ा होना; आचार-व्यव हार, तमीज सीखना । -से बाहर होना-चेतनाहीन होना, बेहोश होना, बेखुद हो जाना। - हवा होना, - हिरन होना - दे० ' होश उड़ जाना' । - होना - अक्कु होना; खबर होना; होश-द्दवास दुरुस्त होना; किसी प्रकारके नशे में न होना; बड़ा होना, सयाना होना । होशियार - वि० [फा०] अक्कुमंद, बुद्धिमान्; खबरदार, सावधान, सजग; प्रवीण; अनुभवी । मु० - करना - असावधानको सावधान करना । -रहना - सावधान रहना, चौकस रहना । - हो जाना - सावधान हो जाना । होशियारी - स्त्री० [फा०] बुद्धिमानी; सावधानी; चालाकी । होस * - पु० दे० 'होश' |
होस्टल - पु० [अ० 'होस्टेल'] छात्रावास |
हाँ। - सर्व० उत्तम पुरुष एकवचन सर्वनाम, मैं । अ० क्रि० वर्तमानकालिक क्रिया 'होना' के उत्तम पुरुष एकवचनका रूप हूँ |
हाँकना - * अ० क्रि० हुंकारना, गर्जन करना; हाँफना; + स० क्रि० पंखे आदिको हवासे आगको दहकाना; पंखे आदिसे हवा करना ।
हाँस - स्त्री० दे० 'होस' |
हौंसला - पु० दे० 'हौसला' ।
हो* - अ० क्रि० 'होना' का मध्यम पुरुष एकवचन का वर्त मानकालिक रूप, हो; 'होना' का भूतकालिक रूप, था;
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हौआ - ऐतिह्य
दे० 'हो' |
हौआ - पु० एक कल्पित वस्तु जिसका नाम लेकर स्त्रियाँ बच्चोंको डराया करती हैं, भकाऊँ; असाधारण और डरावनी चीज । स्त्री० दे० 'हौवा' |
हौका - पु० खानेकी तृष्णा, पेटूपन; लोभ, लालच । हौज़ - पु० [अ०] कुंड, चहबच्चा ; नाँद । हौज़ा - पु० [फा०] हौदा, हाथीकी अम्मारी ।
हौड़ * - स्त्री० दे० 'छोड़' ।
हौद - पु० हौज, कुंड; नाँद । हौदा - पु० दे० 'हौज़ा'; दे० 'हौज़' । हौरा - पु० हल्ला, शोरगुल । हौरे हौरे * - अ० धीरे-धीरे हौले-हौले, आहिस्ते से । हौल - पु० [अ०] भीति, भय, डर, दहशत । - खौल, - जौल - स्त्री० जल्दी, शीघ्रता; उतावली; शीघ्रताजनित उद्विग्नता, घबराहट । -दिल-स्त्री० दिलकी धड़कन, हृत्कंप; दिल धड़कनेकी एक बीमारी । वि० भीत, डरा हुआ; व्यग्र, व्याकुल; जिसे दिलकी धड़कन (की बीमारी) होती हो। -दिला - वि० डरपोक । - नाक - वि० भयंकर, खौफनाक । मु० - पैठना, - बैठना- मनमें डर पैदा होना, दहशत समाना ।
हौली - स्त्री० शराब बिकनेकी जगह, कलवरिया, मदिरालय । हौले-हौले - अ० धीरे-धीरे, आहिस्ते से । हौता - स्त्री [अ०] आदमकी पत्नी, इसलाम, ईसाई यहूदी धर्मों के अनुसार मानव जातिकी माता; दे० 'होआ' | हौस-स्त्री० [अ०] हवस, हौसला; मनकी तरंग, उमंग; उत्कंठा, प्रबल इच्छा ।
अ
अंततोगत्वा - अ० [सं०] अंतमें जाकर, निदान, आखिरकार । अंतद्वंद्व - पु० [सं०] हृदयके भीतरका द्वंद्व, असमंजसकी
अवस्था ।
अत्यंतातिशयोक्ति - स्त्री० [सं०] अतिशयोक्तिका एक भेद - जहाँ कारणका आरंभ होनेके पूर्व ही कार्यका हो जाना वर्णित किया जाय ।
|
आ
आंकिक - पु० [सं०] सांख्यिक (स्टेटिशियन) । आख़ता, आख़्ता- वि० [फा०] (वह घोड़ा आदि) जिसका अंडकोष निकाल लिया गया हो, बधिया ।
छूटे हुए शब्द और अर्थ
आबला - पु० [फा०] छाला, फफोला ( चलते-चलते पाँव में आबले पड़ गये ) ।
आमक - पु० वह श्मशान जहाँ मृत व्यक्तियोंके शरीर कोओं, गृद्धों आदिके खानेके लिए यों ही फेंक दिये जाते हैं।
|
आवर्तनी - स्त्री० [सं०] धातु गलानेकी कुम्हिया; दोहरानेकी क्रिया ।
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हौसला - पु० [अ०] सामर्थ्य; साहस, हिम्मत, उत्साह; लालसा | - मंद - वि० हौसलेवाला, उत्साही । मु०निकालना - अरमान पूरा करना, इवस निकालना । - पस्त होना - जोश ठंढा पड़ना, हिम्मत टूट जाना । ह्याँ* - अ० यहाँ ।
ह्यो* - पु० हिया, हृदय ।
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इद-पु० [सं०] गहरा जलाशय; गहरी झील; गहरा गड्ढा । हृदिनी - स्त्री० [सं०] नदी; विद्युत् ।
हसित - वि० [सं०] संक्षिप्त किया हुआ, छोटा किया हुआ, घटाया हुआ; ध्वनित ।
हस्व - वि० [सं०] छोटा, लघु (दीर्घका उलटा ); नाटा, ठिंगना; तुच्छ, नीचा, अनुच्च (जैसे द्वार) | पु० बौना । हस्वांग - वि० [सं०] वामन, बौना, ठिंगना । हास - पु० [सं०] क्षय, क्षीणता; अवनति; शब्द, ध्वनि; छोटी संख्या; अभाव, कमी । हासन-पु० [सं०] क्षीण करनेकी क्रिया; कम करनेका
काम, घटाना ।
हासनीय - वि० [सं०] कम करने, घटाने योग्य | हित- वि० [सं०] हरण किया हुआ, लाया हुआ, नीत । ही - स्त्री० [सं०] लज्जा, व्रीडा, संकोच । -जित- वि० लज्जा के वशीभूत, लज्जाशील, संकोची । ह्लादक - वि० [सं०] प्रसन्न करनेवाला | ह्लादित - वि० [सं०] आनंदित । *+ - अ० वहाँ ।
ह्वान - पु० [सं०] शोरगुल, पुकार, निकट बुलाना, आह्वान | है* - पूर्वका० क्रि० ' होकर' ।
आहव - पु० [सं०] यश; युद्ध; (तुमुल ) । इ इंसान- पु० दे० ' इनसान' ।
इज़ाफ़त - स्त्री० [अ०] संबंध, लगाव; एक शब्दका दूसरे से संबंध, समास ( व्या० ) ।
इमरतीदार - वि० इमरतीके ढंगको बनावटवाला ।
उ
उड़नतश्तरी - स्त्री, उड़नथाल - पु० उड़नेवाली तश्तरी जैसा एक आधुनिक युद्धोपकरण ।
उत्कर्णता - स्त्री० [सं०] सुननेकी उत्सुकता - 'देख भावप्रवणता, वर-वर्णता, वाक्य सुननेको हुई उत्कर्णता' - साकेत ।
उलटबाँसी - स्त्री० कविता में ऐसी उक्ति जिसमें सामान्य से उलटी बात कही गयी हो ।
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उसवास - पु० प्रवेग, प्रवृत्ति ।
ऐ
ऐतिह्य - पु० [सं०] परंपरा प्राप्त उपदेश या प्रमाण - ' नहिं पराग...' वाले दोहेका ऐतिह्य लोक-प्रसिद्ध हैं' - चुने फूल |
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ओषजन-पागुर जोम-पु० समूह, झुंड; तीक्ष्णता; उत्साह, उमंग ।
ओ
ओषजन-पु० आक्सिजन नामक गैस जिसके योगसे पानी बनता है।
टीपटाप-स्त्री० छत आदिकी छिटफुट मरम्मत ।
कणिश-पु० [सं०] जौ-गेहूँ आदिकी बाल ।
डेद्रिया-पु० (अनाज) उधार देनेका वह प्रकार जिसमें कथकाला, कथाकाली-स्त्री० नृत्यकी एक विशिष्ट शैली।। फसलपर मूलका ड्योढ़ा वसूल किया जाता है। कलमुंडी-स्त्री० कलैया-'कलमुँडी खाकर'-गधभारती । काठ-पु० "मु०-मार जाना-गतिहीन हो जाना, सुन्न को-पु० दे० 'झोझ' ।
हो जाना। कालिब-पु० [अ०] साँचा, कलबूत; देह ।
तबेला*-पु० एक तरहका बरतन । किल्विषी(पिन्)-वि० [सं०] पापी; दोषयुक्त । तब्बर*-पु० पुत्र । कुणप-पु० [सं०] लाश; भाला; दुर्गध ।।
तर*-पु० तरु, वृक्ष । कुत्ता-पु० तालेके अंदरका वह खटका जिसे ताली द्वारा तसू-पु० इमारती कामकी एक माप । सरका देनेसे ताला बंद हो जाता है ।
ताल-पु० चश्मेके शीशेका पल्ला । क्षीव-वि० [सं०] उन्मत्त, मतवाला-'विजयका उत्साह ताला*-पु० लोहेका तवा। दिखाने वे यहाँ किस मुँहसे आये हैं जो हिंसक, पाखंडी, तूफानी दस्ता-पु. पुलिस या सेनाकी वह टुकड़ी जो क्षीव और क्लीव हैं'-ध्रुवस्वा० ।
संकट या आकस्मिक भावश्यकताके समय क्षिप्र गतिसे
सहायतार्थ भेजी जा सके। खंगवा -पु० खुर पकनेका रोग, खाँग । खजमजाना-अ० कि. (तबीयतका) कुछ अस्त-व्यस्त- थमाना-सक्रि० किसीको (कोई वस्तु) थामने में प्रवृत्त सा हो जाना, अस्वस्थता जैसी प्रतीति होना।
करना, पकड़ाना, ग्रहण कराना। खेवइया-पु० दे० 'खेवैया' ।
थूक-स्त्री० थूकनेकी क्रिया।
गुलता-पु० गुलेलेसे फेंकी जानेवाली मिट्रीकी गोली। गेंड़ी-स्त्री० बाँसके दो डंडे जिनमेंसे प्रत्येकपर खडाऊँ जैसा एक-एक पावदान लगा रहता है-इनपर चढकर लोग चलते-फिरते, कूदते फाँदते हैं (अंग्रेजी 'स्टिक्ट')। गेसू-पु० [फा०] जुल्फ, काकुल ।
दिवसस्वा -पु० [सं०] दे० 'दिवास्वप्न'। देवका-स्त्री० दीमक । देवापगा-स्त्री० [सं०] गंगा। दीगरा-पु० तपी हुई धरतीपर होनेवाली ग्रीष्म ऋतुकी अस्पवृष्टिः शोर-गुल, हल्ला-गुल्ला ।
च
घड़ी-स्त्री० पानी, बिजली आदिके खर्चका परिमाण | धौंस-स्त्री० दे० 'धुवाँस'।
सूचित करनेवाला यंत्र, 'मीटर' (पढ़ना, देखना)। घोष-पु० [सं०] एक वर्ण-समूह (प्रत्येक वर्गका तीसरा, नउजा-म० दे० 'नौज। चौथा, पाँचवाँ वर्ण और य, र, ल, व, ह)।
ना-किस-वि० [फा०] नीच, बुरा; निकम्मा, नालायक ।
नामरासी-वि० समान नामवाला, हमनाम । चेना-पु. कॅगनी या साँवाँकी जातिका एक मोटा अनाज। निरधन*-वि० दे० 'निर्धन'।
निस्फल-वि० व्यर्थ अंडकोश-हीन । छायापात्र-धु० [सं०] घी या तेलसे भरी हुई वह कटोरी
आदि जिसमें अपने शरीरकी छाया देखी जाती है पंगुपीठ-पु० [सं०] लँगड़ेको बिठाकर कहीं ले जानेकी गाड़ी। (अरिष्ट-निवारणार्थ)।
पगड़ी-स्त्री० दूकान आदि किरायेपर देनेके पूर्व भावी
किरायेदारसे नजरानेके रूपमें ली जानेवाली रकम । जनमुरीद-वि० [फा०] पत्नीके वशमें रहनेवाला, जोरूका पटोली*-स्त्री० चादर, पटोरी। गुलाम।
पट्टकीट-पु० [सं०] रेशमका कीड़ा।। जरा-मना-अ० थोड़ा-बहुत ।
पनारीदार चादर-स्त्री० कलईदार चद्दर जिसमें नालियाँजलवायु-पु० [सं०] किसी स्थानकी गमी, जाड़ा, वर्षा, सी बनी होती हैं और जो खासकर छाजनके काम आती
आदि सूचित करनेवाली वह प्राकृतिक स्थिति जिसका है (कोरोगेटेड टिन)।। प्रभाव वहाँकी आबादी तथा वनस्पति आदिपर पड़ता परवाही-पु० शवको बिना जलाये नदीमें बहा देना। है, आव-हवा।
परिवेषण-पु० [सं०] भोजन परसना-'परिवेषणतक मृदुल जीवप्रभा-स्त्री० [सं०] भात्मा (केशव०)।
करोंसे तुम्हें न करने दूँगी मैं'-पंचव० दे० 'परिवेष' । जी-हजूरी-स्त्री० 'जी हुजुर, जी हुजूर' कहते रहनेका परिसेवना-खी० [सं०] विशेष सेवा । भाष, खुशामद ।
| पाँगुर*-पु० पैरकी उँगली ।
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पान-हाय
९२८ पान-पु० जूतेमें एडीके पीछे लगाया जानेवाला पानके मुकेस*-पु. एक तरहका कपड़ा, बादला । आकारका टुकड़ा।
मुक्तागृह-पु० [सं०] सीप। पीडी-स्त्री० पौधा उखाड़ते समय जड़के चारों ओरकी मिट्टीका पिंड, पिंडी।
रसर*-स्त्री० रस्सी-'दो घड़े काँख कर, कंधे पड़ी रसर, पूखन*-पु० पूषण, सूर्य ।
चली अपनी डगर'-'आज'। पौध-स्त्री... पीढ़ी, 'नयी पौधके लेखक'-आज । राग-रंग-पु० [सं०] गाना-बजाना, रंग छिड़कना प्रघट्टक-पु० [सं०] अनुच्छेद, पैरा।
आदि। प्रतिष्ठान-पु० [सं०] संघटन, संस्था (आ०)।
रुक्ष-पु० [सं०] वृक्ष, रूक्ष । प्रतिहार्य-वि० [सं०] लौटाया, हटाया जानेवाला; जिसका | रूपसी*-स्त्री० रूपवती स्त्री । प्रतिरोध किया जाय । ..
रौरि*-स्त्री० कोलाहल, शोर । प्रदीपिका-स्त्री० [सं०] (किसी विषयकी) जानकारी करानेवाली छोटी पोथी (मेला-प्रदीपिका)।
लचर-वि० तथ्यहीन, कमजोर (-दलील)। प्रयोजनीय, प्रयोज्य-वि० [सं०] प्रयोगमें लाने योग्य । लस्तगा-पु० प्रारंभ करना (इस कामका लस्तगा लगा प्रस्फुटन-पु० [सं०] प्रकट या विकसित होना, विकास । दो); लगाव, संबंध; सिलसिला (दूरतक लस्तगा चला
गया है)। फटफटिया-स्त्री० 'फट-फट' करती हुई पेट्रोलकी सहायता- | लुक-पु० दे० 'लूक' भी। से चलनेवाली सायकिल, मोटर-सायकिल ।
लहरि, लहरी-स्त्री० [सं०] महातरंग । फाला-पु० हलमें लगाया जानेवाला फाल । फेनिल-पु० [सं०] रीठा।
वाष्पीकरण-पु० [सं०] (इवैपोरेशन) वह क्रिया जिससे
कोई द्रव पदार्थ गैस रूपमें परिवर्तित हो जाय । बतकट-वि० जो कही हुई बातको काट दे, खंडन किया करे-'नसकट खटिया, बतकट जोय'-घाघ ।
शरास-पु० [सं० शरासन] धनुष्-'दीखते उनसे विचित्र बादशाह-पु० [फा०] ईश्वर ।
तरंग हैं। कोटि शक्र-शरास होते भंग हैं'-साकेत । बारक*-अ० एक बार।
शेर-पु० [अ०] फारसी, उर्दू कविता आदिके दो चरण । बावेला-पु० दे० 'वावैला'। बिडौजा-पु० दे० 'विडोजा।
संस्कारी (रिन् )-वि० [सं०] अच्छे संस्कारवाला बिमौट, बिमौटा-पु० बाँवी (मूल में 'बिमोट' छप गया है)। (आशाराम संस्कारी पुरुष थे)। बुर्दा-फरोश-पु० स्त्रियोंको उड़ाकर बेच देनेवाला | समसीरा-स्त्री० [सं० 'समक्षीरा'] भाईकी बराबरीसे (किड्नैपर)।
दूध पीनेवाली, बहिन । बूड़ा-पु० जलमें डूबकर मरनेवाला आदमी जो प्रेत बन | सरीह-वि० [अ०] खुला हुआ, प्रकट; स्पष्ट । गया हो।
सवाई-स्त्री०, सवाया-पु० (अनाज) उधार देनेका वह
प्रकार जिसमें फसलपर मूलका सवाया वसूल किया भरेटा-पु० दे० 'भरेठ'।
जाता है।
सापना*-पु० दे० 'स्वप्न' ( उदा. 'हर-हरै)। मझुआ-पु० कलाई पर दूसरे गहनोंके बीचमें पहननेका | सालि*-स्त्री० दे० 'साल' (पीड़ा)। एक गहना।
सुखलभ्य-वि० [सं०]आसानीसे प्राप्त होने योग्य, सुलभ । मसाना-पु० [अ०] पेशाबकी थैली, मूत्राशय, फुकना। सुसन, सुसना-पु० एक साग। महारथी-पु० महान् एवं अनुभवी योद्धा, लेखक, आदि; सौतना-स० क्रि० वार करनेके लिए (तलवार, भाला उद्भट विद्वान् ।
आदि ) तत्पर करना, सन्नद्ध करना। माधुकरी-वि० स्त्री० [सं०] मधुकर जैसी, भ्रमरकी-सी। | स्थायी(यिन)-पु० [सं०] गीतका पहला चरण, जो मानकच्चू-पु. एक तरहका मीठा कंद, मानकंद । | अंतराओंको गा-गाकर फिर-फिर गाया जाता है, टेक। मिल-मालिक-पु० किसी कल-कारखानेका मालिक, स्फट-पु० [सं०] रवा । -संचालक। मुकुत*-पु० मुक्ता, मोती।
हाथ-पु० वार करनेका ढंग।
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पारिभाषिक शब्दावली-अंग्रेजी-हिन्दी
A
Acquisition प्राप्ति, अर्जन Abandonment परित्यजन
Acquittal मुक्ति, रिहाई Abatement हास, उपशमन, न्यूनीकरण; समाप्ति Act अधिनियम Abatement of suit वाद-समाप्ति
Acting कार्यकारी Abbreviation संकेतचित
Acting n. अभिनय Abdicate राजत्व-त्याग, राजपद-त्याग
Acting in his discretion स्वविवेकसे कार्य करते हुए Abduction अपनयन
Action, Direct प्रत्यक्ष काररवाई Abetment दुरुत्साहन
Active service सक्रिय सेवा Abeyance आस्थगन
Activities गतिविधि, कार्यकलाप, हलचल Abhorence जुगुप्सा, घृणा
Activity कार्यकलाप Abide अनुपालन, अनुसरण करना
Actuals वास्तविक आँकड़े Abnormal असाधारण
Adapt अनुरूप या अनुकूल बनाना Abolition उन्मूलन, समाप्ति
Adaptation अनुकूलन Aboriginal आदिवासी
| Adaptation of Act अधिनियमका अनुकूलीकरण Abortive निष्फल, विफल
Adapted अनुकूलित, अनुरूपित Above par अंकित मूल्यसे ऊपर, अधिमूल्यपर
Addendum संयोज्यांश, अनुयोजितांग Abridge न्यून करना, संक्षेप करना
Addition जोड़ा परिवृद्धि Abridged संक्षिप्त
Additional afaftin Abridgement न्यूनन, संक्षेपण
Address संबोधन: अभिभाषण अभिनंदनपत्र; पता Abrogate निराकरण उत्सादन; विखंडन
Addressed संबोधित Absconder पलायक, भगोड़ा
Addressee पानेवाला, प्रेषिती Absolute monarchy निरंकुश राजतंत्र
Adherence agafii Absolute power परम सत्ता
Ad hoc Committee तदर्थ समिति Abstinence संयम, विरति, निवृत्ति
Adjourn स्थगित करना Abstract सारांश; उपसंक्षेप
Adjournment motion कार्य-स्थगन प्रस्ताव Abuse दुरुपयोग
Adjudication न्यायिक निर्णय Academic discussion शास्त्रीय वाद-विवाद
Adjustment समाधान; समायोजन Access प्रवेश
Adjutant सहसेनाध्यक्ष Accession सम्मिलन
Adjutant general सैनिक कार्यालयका विभागाध्यक्ष, Accommodation वास व्यवस्था वासस्थान सविधा-दान सैन्य विभागाध्यक्ष Accomplice सहापराधी, अभिषंगी
Administrative function प्रशासनीय कृत्य Account लेखा, गणना
Administrator प्रशासक Account, audited अंकेक्षित लेखा
Admiral नौबलाध्यक्ष, नौकाध्यक्ष Accountancy लेखाकर्म, मुनीमी
Admiralty नौकाधिकरण Accountant लेखाध्यक्ष, गणनाध्यक्ष, गणक, लेखापाल Admissible giu Accountant General महागणनाध्यक्ष, महालेखापाल | Admissibility ग्राह्यता Accredited विश्वस्त, प्रमाणित (प्रतिनिधि इ०) Admission Card प्रवेशपत्रक Accrued प्राप्त, उपार्जित
Adolescent किशोर, अल्पवयस्क Accumulated पुंजित, संचित
Adoption दत्तक-ग्रहण ग्रहण, स्वीकरण Accurate यथार्थ
Adult franchise,-suffrage वयस्क मताधिकार Accusation 3793171
Adulteration अपमिश्रण Accused afayah
Ad valorem मूल्यानुसार Acknowledgment प्राप्तिस्वीकार प्राप्तिपत्र, पावतीपत्र Advance अग्रिमधन, अग्रिम Acquired प्राप्त, अधिगत, अर्जित
J Adventure साहसिक प्रयत्न
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Advertiser-Ambassador
Advertiser विज्ञापनदाता, विज्ञापक Advertising agency विज्ञापनक संस्था Advice मंत्रणा, परामर्शः सूचना Advisor मंत्रणाकार Advisory Committee परामर्शदात्री समिति Advocate अधिवक्ता Advocate general महाधिवक्ता Aegis संरक्षण, छत्रछाया Aerial bombardment हवाई बमवर्षा Aerodrome हवाई अड्डा Aeronautical Survey of India भारतीय हवाई पर्यवलोकन Aeronautical Wireless Service वैमानिक बेतारव्यवस्था Aeronautics विमानचालन-विज्ञान Aesthetics सौंदर्यबोध, सौंदर्यविज्ञान Affectation बनाव, बाह्याडंबर Affected areas प्रभावित क्षेत्र Affectionate gift स्नेहोपहार Affidavit शपथ-पत्र Affiliation संबद्धीकरण Affinity निकट संबंध, बंधुता साश्य Affirmation प्रतिज्ञान; पुष्टि Affirmative स्वीकारात्मक Afforestation वनरोपण After-thought परिचिंतन Age-limit वयःसीमा Agency अभिकरण Agenda कार्यसूची Agent कार्यवाहक, अभिकर्ता, घटक Agent, Polling मतार्थी घटक Aggrarian कृषिक, कृषिसंबंधी Aggression प्रथमाक्रमण Agnosticism अशयवाद Agreement संविदा, करार सहमति Agricultural कृषि विषयक Aid, Grant in सहायक अनुदान Aide-De-Camp अंगरक्षक सैन्यादेशवाहक Air battle आकाश-युद्ध Air communication हवाई यातायात Air-conditioned argfafara Air-conditioning ताप-नियंत्रण Aircraft carrier विमानवाहक पोत Air-crash विमानध्वंस, विमानपात Air-crew विमान-कर्मी Air-graph हवाई चित्र Air-gunner हवाई तोपची Air-man & Alfatchi Air-navigation विमानसंचालन, विमानपरिवहन Air-raid-alarm हवाई खतरेका भों
Air raid precautions हवाई हमलेसे हिफाजत A.R.P.
(ह. ह. हि.) Air Raid Shelter हवाई शरणगृह, हवाई आश्रय Air Squadron विमानदल, हवाईदस्ता Air strip अवतरण-पथ Air-tight हवारोक Airways वायुमार्ग, वायुपथ Alarm खतरेकी घंटी; 'पगली' (जेलका शब्द) Album चित्राधार . Alcohol सुरासार, मद्यसार Alibi अन्यत्र उपस्थिति, अन्यत्रोपस्थिति-तर्क Alien अन्यदेशीय Alienate स्वत्वहस्तान्तरण, अन्य संक्रामण Alienation of land भूमिका हस्तांतरण Alimentary Canal अन्ननलिका, पोषिका Alimony भृति, निर्वाह-व्यय Alkali क्षार Alkaloid क्षारोद, उपक्षार All clear signal 'खतरा दूर' की सूचना Allegation अभिकथन Alleged तथाकथित Allegiance, Oath of निष्ठाकी शपथ Alliance मैत्रीसंधि Allied power मित्र-शक्ति Alliteration अनुप्रास All round progress सर्वतोमुखी उन्नति Allocation बँटवारा, विभाजन, निर्दिष्टि Allot आवंटन Allotment निर्दिष्ट, निर्धारण, भावंटन:-of shares अंश निर्दिष्ट Allottee नियतभागी, आवंट्य Allowance अधिदेय, भत्ता; छूट Allowance, Conveyance यानाधिदेय Allowance, Superannuation वृद्धता अधिदेय Allowance, Travelling यात्राधिदेय Alloy मिश्र धातु; मिश्रण, मेल, संकर Alluvial soil जलोढ भूमि, पूरानीत भूमि, कछारी भूमि Almanac पंचांग, तिथिपत्र । Alphabetical order वर्णक्रम, अक्षरक्रम Alrernate एकान्तर, एकान्तरिक Alternative n. विकल्प, adj वैकल्पिक Alternative foods वैकल्पिक खाय Alternative member वैकल्पिक सदस्य Altitude समुद्रको सतहसे ली जानेवाली ऊँचाई त्रिमुजलंब (ज्यामिति) Altruism परार्थवाद Alum फिटकिरी A. M. मध्याह्नपूर्व (म.पू.) Amalgamation सम्मिश्रण Ambassador राजदूत
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Ambiguous-Arrear.
Ambiguous संदिग्धार्थ, व्यर्थक, अस्पष्ट
Apartheid policy 747918-cifa Ambulance आहत-परिचर्या विभाग ।-Car परिचार- Apathy अरति, औदाप्तीन्य गाड़ी रोगीवाहक गाड़ी। -Corps आहतोपचारी दल | Apoplexy अपस्मार Amendment संशोधन
Apparatus उपकरण-समूह; उपकरण, प्रयोगयंत्र Amenities सुखसुविधाएँ
Apparent प्रतीयमान, भासमान Ammunition गोलाबारूद,युद्धसामग्री:-dump गोला Apparition छायापुरुष; छायाव्यक्ति बारुदका ढेर
Appeal पुनरावेदन, पुनाय-प्रार्थना Amnesty सर्वक्षमा
Appeasement तुष्टीकरण Amphibious operations जल-स्थलीय काररवाई Appellant पुनरावेदक, पुनाय-प्राथी Amputation अंगविच्छेद
Appellate tribunal अपीली अदालत, पुनर्विचार Amulet जंतर, ताबीज
न्यायाधिकरण Amusement-tax प्रमोद कर
Appellate authority अपील सुननेवाला अधिकारी, Anachronism कालदोष
पुनर्विचारक अधिकारी Anaesthesia(sis) अचेतनीकरण, अचेतमता
Appellation 39169 Anaesthetic अचेतनक
Appended संलग्न Analogy सादृश्य, समरूपता
Appendix परिशिष्ट Analysis विश्लेषण
Applause प्रशंसा-घोष Anarchism अराजकतावाद
Application आवेदनपत्र प्रयोग Ancillary सहायक
Apportionment संविभाजन Animal husbandry पशुपालन
Appreciation मूल्योत्कर्ष, मूल्याधिरोहा रसास्वादन Annexation संयोजन, अधिकारकरण
प्रशंसा यथोचित गुणावधारण Annexed संयोजित
Apprentice शिक्ष्यमाण; उम्मेदवार, पदशिक्षाथीं Annexure संयोजित वस्तु
Appropriate समुचित; v. विनियोजन करना Anniversary वार्षिकोत्सव, वार्षिकी
Appropriation Bill विनियोग विधेयक Annotated सटीक
Approval अनुमोदन Announcement अभिज्ञापन घोषणा, ऐलान
Approver राजसाक्षी Announcer अभिशापक, प्रघोषक
Apropos अनुसार, अनुरूप;-to प्रसंगमें Annual संवत्सरी, वर्षबोध, अब्द-कोश
Aquarium मत्स्यागार, मत्स्यालय Annual financial statement वार्षिक वित्त-विवरण | Aquarius कुंभराशि Annual review वार्षिक सिंहावलोकन
Arbitral tribunal पंच न्यायाधिकरण Annuities वार्षिक वृत्ति, वार्षिकी
Arbitration पंच-निर्णय Annulment, Annulling अभिशुन्यन
Arbitrator पंच Anonymous अनाम, गुप्तनाम
Arc चाप Antedated पूर्वतिथीय
Archaeologist पुरातत्त्वश Antediluvial पूर्वप्लावनिक
Archaeology पुरातत्त्व विज्ञान Anthropological Survey नृवंशविज्ञान-पर्यवलोकन | Archipelago द्वीपपुंज विभाग
Architect वास्तुकार. वास्तुकर्मश Anthropology नृवंशविज्ञान, मानवविज्ञान, नृतत्त्व- | Architecture भवन-निर्माण-विज्ञान विज्ञान
Archive पुरालेख Anti-aircraft guns fantaasit alo
Archivist पुरालेख-पाल Antibiotic जीवाणुनाशक
Aries मेष राशि Anticipated excess प्रत्याशित व्यय-वृद्धि
Aristocracy अभिजात-तंत्र, कुलीनतंत्र Anticipation प्रत्याशा, पूर्वानुमान; प्रत्यपेक्षा Armaments युद्धोपकरण; सज्जसेना Anti-note मारक
Armistice अस्थायी संधि Anti-inflationary मुद्रास्फीतिरोधक
Armoured Car कवचित यान, बख्तरबंद गाड़ी Anti Rabic जलातंक रोग
Armoury आयुध शाला Anti-rabbies Centre प्रत्यलर्क केंद्र
Army Head-quarters सेनाका प्रधान कार्यालय, Anti-septic प्रतिपौतिक
बड़ा सैनिक दफ्तर Anti-Venom Serum विषनिरोधक रस
Arrangement of files नस्तित पत्रियोंका विन्यास Antonym विपर्याय, विरुद्धार्थक
Arrear अवशेष (ऋणावशेष या कार्यावशेष) ५९
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Arsenal-Batting
९३२
Arsenal अस्त्रागार
Authority प्राधिकारी प्राधिकार Arsenic संखिया
Autobiography आत्मचरित Artery धमनी
Autograph स्वाक्षर Article अनुच्छेद; लेख
Automatic स्वचालित Articles of association संस्थाके नियम
Autonomous स्वायत्तशासी Artisan शिल्पी
Autonomy स्वायत्त शासन Aspirate महाप्राण
Avalanche हिमशिलास्खलन Assault प्रहार
Award पंचनिर्णय, पंचाट, परिनिर्णव Assemble समवेत होना, एकत्र होना समवेत करना Axiom स्वयंसिद्धि Assembly विधान सभा सभा
Axis धुरी, अक्ष Assent स्वीकृति, अनुमति
Axis country धुरीदेश, धुरीराष्ट्र Assessed कूता हुआ; आँका हुआ
Ayes हाँ पक्षवाले; हाँकारी Assessment करनिर्धारण
B Assets आदेय, परिसम्पत् (संपत्ति), मालमत्ता Bachelor of law विधिस्नातक Assets and liabilities देना-पावना, देयादेय Back bencher कचिद्भापी (अपवादी) सदस्य Assign स्वत्वार्पण करना, नियत करना, बाँटना, जिम्मे
करना. नियत करना. बाँटना जिम्मे | Back door चोरदरवाजा, पक्ष-द्वार लगाना
Background पृष्ठभूमि, पूर्वपीठिका Assigned अभ्यर्थित
Bacteria जीवाणु Assignee अभ्यर्थिती
Bacteriologist ofangrac Assignment अभिहस्तांकन
Bacteriology जीवाणु-विज्ञान Assignor अभ्यर्पक, अभ्यपी
Bad conductor कुचालक, बुरा परिचालक Assimilation स्वांगीकरण; समीकरण
Badge बिल्ला, परिचायक चिह्न Association संघ, संस्था, साहचर्य
Bail प्रतिभु Association, Memorandum of प्रतिष्ठानपत्र Bailable प्रतिभूमोच्य, प्रतिभाव्य Asterisk तारक, तारक चिह्न
Balance शेष, संतुलन Astronomy ज्योतिष (गणित)
Balanced diet संतुलित भोजन Atheism निरीश्वरवाद, नास्तिकता
Balance of payment भुगतान-तुला Atlas मानचित्र-संग्रह, मानचित्रावली
Balance of power शक्ति-संतुलन Atomic आणविक
Balance of trade व्यापाराधिक्य Atomism परमाणुवाद
Balance sheet चिट्ठा, देयादेय फलक Attache सहचारी
Ballad गाथा; गीत Attached आसिद्ध, (आसंजित)
Ballot box मतपेटिका Attachment आसेध, कुकी
Ballot paper मतपत्र, शलाका, गूढपत्र Attested साक्षीकृत
Banish निर्वासित करना Attestation साक्षीकरण
Bank अधिकोष, बैंक Attorney प्राभिकर्ता
Banker अधिकोषिक, कोठीवाल Attorney General महान्यायवादी, महाप्राभिकर्ता Bankrupt दिवालिया, नष्टनिधि Auctioneer नीलाम करनेवाला, धोष विक्रेता
Bancruptcy दिवालियापन, नष्टनिधित्व Audible श्रव्य
Banner heading पताका-शीर्षक, पृष्ठ- शीर्षक Audience श्रोतृवर्गदर्शन, साक्षात्कार
Bar रुकावट, अर्गल; अधिवक्तृत्व; पानालय;-fetters Audit लेखापरीक्षण
डंडा बेड़ी Audited account अंकेक्षित लेखा
Barometer वायुभारमापक यंत्र Auditor General महालेखापरीक्षक
Barrack सैन्यावास Auditorium दर्शक स्थान
Barrier सीमा-गुल्म, प्रतिबंध, रुकावट Austerity scheme अल्पभोग या अल्पोपभोग-योजना, Barter वस्तुविनिमय न्यूनाहार-योजना, कष्ट सहन-योजना
Bases, War सामरिक अड्डे Authentication प्रमाणीकरण
Basic Education भाधारभूत शिक्षा Authorisation प्राधिकरण
Batsman बल्लेबाज Authorised प्राधिकृत
Battallion-बटालियन, पलटन Authorised Agent प्राधिकृत अभिकर्ता
Batting बल्लेबाजी
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Battleship जंगी जहाज, महारणपोत Bearer Cheque वाहक धनादेश Beat गश्त; हलका, क्षेत्र Bed pan जती Bedsore शय्या-व्रण Beleaguer सैन्यावरोध करना Belligerency युद्धस्थिति, युद्धलिप्ति Belligerent युद्धरत, युद्धलिप्त, युद्धग्रस्त Below par बट्टेसे, अवमूल्य पर Bench न्यायाधीशवर्ग, (न्यायपीठ), पीठ Beneficiary लाभार्थी, हिताधिकारी Benefit हित Betting पण लगाना, पणन, पणक्रिया Bibliography (विशिष्ट) ग्रन्थसूची Bicameral द्विसदनात्मक, व्यागारिक Bicycle द्विचक्रयान, पैरगाड़ी Biennial fegiferanto Bigamy दिविवाहकरण, द्विगामित्व Bilateral contract द्विपक्षीय संविदा Bill विधेयक Bill विपत्र प्राप्यक Billiard अंटेका खेल;-room गेंदघर Bimetallic feuitate Bimetallism द्विधातुता, द्विधातुत्व Biology जीव-विज्ञान Birth certificate जन्म-प्रमाणक Birth control संतति-निग्रह Birthrate जननगति Bisect समद्विभाग करना Bisector अर्द्धक Black-leg हड़तालतोड़क Black list असित-सूची, दुर्वृत्त-सूची, सन्दिग्धजन-सूची Black market चोर बाजार Blackout चिरागगुल, अंधाकुप्प; संवाद-विलोपन Bladder मूत्राशय Blank Cheque निरंक धनादेश Bleaching विरंजन Blinds झंझरी, झिलमिली Blister gas व्रणकारक गैस Blockading नाकावंदी, समवरोध Blocked capital समवरुद्ध पूँजी Bloodbank रक्त-संग्रह बैंक Blood pressure रक्तचाप Blood transfusion रक्तक्षेपण Blue print मूलयोजना Blunder भारी त्रुटि Board मण्डल, पटल Board, Arbitration पंच मण्डल Board, District जिलापालिका, जिला बोर्ड, मांडलिक समिति, मंडल परिषद्
Battleship Bridgehead Board, Municipal नगरपालिका Board of Directors संचालक-मंडल Board of revenue राजस्व मंडल Boarding house 3171918 Body निकाय, वर्ग Body, corporate निगम निकाय Body, governing शासी निकाय Boiling point क्वथनांक Bomb प्रस्फोट, बम Bomb, incendiary दाहक बम, दाहक प्रस्फोट Bombast शब्दाडंबर Bomber बमवर्षी, बमवर्षक, बममार Bonafide विश्वस्त, प्रामाणिक सद्भावपूर्ण ( या सद्भावपूर्वक) Bonafides विश्वस्तता, प्रामाणिकता, सद्भाव Bona vacantia failheaca Bond बंधपत्र (ऋणपत्र) Bone of contention कलहकारण Bonus अधिलाभांश Book, v दर्ज करना Book depot पुस्तक-विक्रयालय, पुस्तक-भवन Booking प्रवेशपत्र (प्रयोगपत्र ) विक्रयः प्रेष्यवस्तु
आलेखन Booking office प्रयोगपत्र कार्यालय, टिकटघर Booklet पुस्तिका Bookpost पुस्तडाक Booty लूटका माल Borrower अधमर्ण Borrowings उधार-ग्रहण Boss अधिपुरुष Botany वनस्पति-शास्त्र Bottleneck उत्पादनबाधा परिवहन-बाधा, परिवहन-कष्ट Bottleneck policy गलाघोंटू नीति Bottleup विकासावरोध Boundary सीमा; सीमा-प्रक्षेपण Boundary, Natural प्राकृतिक सीमा Bounds परिधि Burgeois मध्य वित्त वर्ग Bowler गेंदबाज, गोलंदाज Bowling गेंदबाजी, गोलंदाजी Boxing मुष्टिद्वन्द्व, मुक्केबाजी, मुक्की Boyscout बालचर Breach दरार, छिद्रा भंग Breach of law विधिभंग Breach of peace शांतिभंग Breach of trust विश्वासघात Breakdown of administration प्रशासन-विस्थापन Brengun बेनगन, छोटी चदार तोप Brevity लघुता, अल्पता, संक्षिप्त कथन, लघूक्ति Bridgehead गुल्म
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Brief-Cattle-pound
Brief-n. वादसंक्षेप Brigade वाहिनी Brigadier वाहिनीपति Broadcast प्रसारित करना Broadcast talk प्रसारित वार्ता Broad gauge बड़ी लाइन
Broker मध्यग, दलाल Bronze age कांस्य युग Brothel वेश्यालय Buck ammunition छर्रा
Budget आयव्ययक
Budget, Deficit घाटेका आयव्ययक
Budget estimate आयव्ययका प्राक्कलन
तंत्र अधिकारिवर्ग
Burner वर्त्तिग्रह
Business कार्य, कारबार
Business crisis व्यापार-संकट
Business, Government सरकारी कार्य Businessman व्यवसायी
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Budget, Supplementary अनुपूरक आयव्ययक
Buffer State अंतराल राज्य
Bulletin आधिकारिक विज्ञप्ति
Bullion सोना चाँदी
Bureau कार्यालय, कार्यपीठ Bureau, Information सूचनालय Bureaucracy नौकरशाही, अधिकारिराज्य, कर्मचारि Capricornus मकर
Business-mindedness व्यावसायिक बुद्धि
Bust आवक्ष प्रतिमा
Buying and selling क्रयविक्रय Byelection उपनिर्वाचन Bye-law ufafa
By-pass बचके निकल जाना By-products उपोत्पादन
C
Cabbage पातगोभी
Cabinet मंत्रिमंडल
Cabinet Council मंत्रिपरिषद् Cabinet Councillor मंत्रि-परिषद् Cabinet crisis मंत्रिमंडलीय संकट Cabinet system मंत्रिमंडलीय प्रणाली Cable, to समुद्री तार भेजना Cadet सैन्यशिक्षार्थी, सैन्यछात्र Cadre of service सेवास्तर Calculation, Rough स्थूलगणन Calendar तिथिपत्र
Called up capital आहूत पूँजी, अभियाचित पूँजी
Calling आजीविका
Calory उष्णांक ( पोषणकी मात्रा ) Camera meeting बंद कमरे में बैठक Camouflage छलावरण, छद्मावरण
Camp शिबिर, स्कंधावार, निवेश Campaign अभियान, आंदोलन Canal system नहरजाल Cancellation विलोपन; निरसन Candidate अभ्यर्थी, उम्मेदवार; पदार्थी Canned products टिनबंद चीजें Canvasser मतानुयाचक, अनुयाचक Capacity सामर्थ्य; भायतन, अभाव Capillary कैशिक adj.; केशिका n. Capital expenditure पूँजीगत व्यय Capital goods पूँजीगत माल Capital levy पूँजीकर Capital, Issued निर्गमित पूँजी Capital market पूँजीका बाजार Capital, Paid परिदत्त पूँजी Capital Ship महायुद्ध पोत Capital, Subscribed प्रार्थित पूँजी Capitation tax प्रतिव्यक्ति कर Capitulation आत्मसमर्पण
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Capsule gat Capsuled पुटित
Captain कप्तान, नायक; दलनेता (खेल)
Caption शीर्षक
Captive रणबंदी Carbon अंगारक
Carbon paper मसिपत्र Carbuncle दुष्टव्रण
Careerism उदर पूर्तिवाद
Caretaker अवधायक, अवधाता
Cargo boat पण्यवाहक नौका, भारवाही पोत
Carriage परिवहन; गाड़ी
Carrier वाहक; वाहन Carrier, public लोकवाहन Carrot गाजर
Carry-out कार्यान्वित करना Case कांड, वाद, मामला Cashbook रोकड़ बही
Cash Memo विक्रयपत्र, नकदी पुरजा, रोकपत्रक
Cashier रोकड़िया
Cash-crop नकदी फसलें
Casting vote निर्णायक मत
Casual vacancy आकस्मिक रिक्ति ( रिक्तस्थान )
Casuality हताहत ( संख्या )
Cataract मोतियाबिंद
Catchment area जलप्राप्ति क्षेत्र
Catechism प्रश्नोत्तरी
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९३४
Category प्रवर्ग, कोटि
Cattle- pound पशुनिरोध-गृह, पशुनिरोधिका, काँजी
हाउस
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Cauliflower-Clemency
Cauliflower फूलगोभी
Cheque धनादेश, चेक Cause वाद
Cheque, Bearer वाहक धनादेश Cause of action वादमूल, वादहेतु
Cheque, Blank निरंक धनादेश Caution money परिभाव्य धन
Cheque, Crossed रेखित धनादेश Cease-firc युद्धस्थगन
Cheque, Order आदिष्ट धनादेश Ceded territorics सत्तांतरित प्रदेश
Cheque, Postdated उत्तरतिथीय धनादेश Ceiling price उच्चतम (अधिकतम) मूल्य
Chief Election Commissioner :मुख्य निर्वाचन Cell कोशाणु
आयुक्त Censor दोषवेचक; दोषवेचन
Chief Judge मुख्य न्यायाधीश Censorship दोषवेचन, समाचार-नियंत्रण
Chief Justice मुख्य न्यायाधिपति Census जनगणना
Chief minister मुख्य मंत्री Centralisation केंद्रीयकरण
Chief of staff सैनिक दफ्तरका प्रधान Central Housing Board केंदीय आवासमंडल Child welfare centre शिशु कल्याणकेंद्र Centrifugal forces केंद्रापसारी शक्तियाँ
Chord जीवा, चापकर्ण Centripetal forces केंद्रोपसारी (केंद्रोन्मुख) शक्तियाँ Chorus सहगान, समवेत गान Century शती, शतक (खेलकी या समयकी); शताब्दी, Chronic चिरकालिक, जीर्ण सदी (समयकी)
Chronicle पुरावृत्त Cereals अनाज
Chronology कालक्रम Ceremonial आनुष्ठानिक
C. I. D. गुप्तचर विभाग Ceremony अनुष्ठान
Cinema चलचित्र चलचित्र-मंदिर, सिनेमा Certificate प्रमाणपत्र, (प्रमाणक)
Cipher संकेताक्षर, शून्य Certification प्रमाणन
Circle क्षेत्र, मंडल; हलका; वृत्त Certiorary, Writ of उत्प्रेषण-लेख, उत्प्रेषणादेश Circular परिपत्र; गश्ती चिट्ठी Cess उपकर
Circulate परिचारित या परिपत्रित करना Chair कुसी, मंचिका; अधिपीठ, पीठिका ( वि. विद्या.) Circulation प्रचार, परिचारण, प्रचार (संख्या) Chamber मंडल
Circumference परिधि Chamber of Commerce व्यापार मंडल
Circumlocation वाग्जाल Chamber of Princes नरेंद्रमंडल
Circumscribed circle परिगत वृत्त, परिवृत्त Chancellor प्रधान मंत्री (जर्मनी); अधिपति Circumstantial evidence वृत्तांतानुमेय साक्ष्य (विश्वविद्यालयका)
Citation प्रोद्धरण Chancellor of the exchequer ब्रिटेनका अर्थमंत्री | Citizenship नागरिकता Channel प्रणाली
City Council नगर परिषद् Channel, Through proper उचित कमसे, संबद्ध City father नगरपिता अधिकारियोंके पास होते हुए
City slums नगरकी गंदी बस्तियाँ ( मलिनावास) Character roll आचरण-पत्र
Civic नागरिक Charge आरोप, दोषारोप प्रभार अधिरोप; व्यय Civic guard नगर-रक्षक Charge de aflairs प्रभारी राजदूत
Civil नागरिक, असैनिक Charge of office पदभार (देना, लेना)
Civil aviation department नागरिक उड्डयन विभाग Chargeable affatica
Civil Court व्यवहार न्यायालय Charged विद्युन्मय
Civil estimates प्रशासकीय व्ययानुमान Charge sheet आरोपपत्र, आरोपफलक
Civil liberty नागरिक स्वतंत्रता Charitable and religious endowment पूर्त तथा | Civil service नागरिक भृत्या (सेवा) धर्मस्व, पूर्त तथा देवोत्तर सम्पत्ति
Claim दावा Charitable instituion धर्मार्थिक संस्था, पूर्त संस्था Clarification स्पष्टीकरण Charity दातव्य; सहायता
Clarion-call समाह्वान Chart रेखापत्र
Classical Economics प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र Charter अधिकार-पत्र
Classification वगीकरण Chartered accountant अधिकृत गणक
Clause खंड Chemical examiner रासायनिक परीक्षक
Cleavage संभेद, विभेद, दरार, पार्थक्य, मतभिन्नता Chemical fertiliser रासायनिक खाद या उर्वरक Clemency राजदया
५९-क
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नाटस
Clerical-Communique Clerical mistake लिपिक-विभ्रम
Collector समाहर्ता, जिलाधीश Clerk लिपिक, लेखक
Collector, Deputy प्रति समाहर्ता Climax पराकाष्ठा, चरमविन्दु
College महाविद्यालय Client ग्राहक, मवक्किल
Colony उपनिवेश Clinic निदानगृह; निजी उपचारगृह
Colonisation उपनिवेशन Clique गुट्ट
Colour blind aning Cliquish गुटबाज
Colour prejudice वर्ण-विद्वेष Clock-tower घंटाघर
Coloured races erzaa Fifati Clock-wise घटिकानुक्रमसे
Column स्तंभ Closing balance रोकड़ बाकी, संवरण शेष
Columnist ( पत्रका) स्तंभलेखक Closing entry संवरण प्रविष्टि
Combatants and noncombatants युद्ध-प्रवृत्त और Closing stock संवरण स्कंध
युद्ध-निवृत्त Closure motion समापन प्रस्ताव, विवादांत प्रस्ताव, Combustible दह्य, ज्वल्य, ज्वलनशील बहसबंदीका प्रस्ताव।
Come of age (प्राप्त ) वयस्क होना Clue संकेत, सूत्र, सुराग
Comma अल्पविराम Coach गाड़ी; सवारीका डब्बा
Command समादेशः पूर्ण अधिकार, प्रभुत्व Coagulation जमाव, आतंचन
Commandant सेनानायक Coalition government संयुक्त सरकार
Commandecr सेनायत्त करना Coastal traffic समुद्रतटवर्ती यातायात
Commander समादेशका सेनानायक Cockpit अखाड़ा; संघर्षभूमि
Commander-in-chief प्रधान सेनापति Code संहिता, सांकेतिक भाषा
Commend संस्ताव करना Co-defendent सहप्रतिवादी
Comment टीका, मतविवेचन, आलोचना Codified संगृहीत, संहित
Commentary विवृत्ति, अभिटिप्पण, टीका Codification of law विधियों का ग्रंथीकरण
Commerce वाणिज्य Coexisting सहवर्ती
Commercial atfaftur Coextensive सहविस्तारी
Commercial crops वाणिज्यिक फसलें Cognate सजातीय; -object सजातीय कर्म
Commissar मंत्री Cognisance अभिज्ञान; हस्तक्षेप
Commissariat सेना-रसद-विभाग Cognition संज्ञान
Commission आयोग Cognizable हस्तक्षेप्य, संशय, पुलिसके हस्तक्षेप योग्य | Commission छट, बट्टा, वर्तन Coherence सामंजस्य
Commission agent वर्त्तन अभिकर्ता Cohesion संसक्ति
Commission and omission, Acts of fafenCoin टंक, मुद्रा, सिक्का
निषिद्ध कर्म Coin, spurious जाली सिका
Commissioned officer आयुक्त अधिकारी Coinage, Coining टंकण
Commissioner आयुक्त Coincidence संपात, संयोग
Commit सिपुर्द करना Coir Industry नारियल जटा उद्योग
Committee afafa; --of action har afha Cold शीत प्रतिश्याय, जुकाम
Committee, Select प्रवर समिति Cold storage शीत-संग्रह; स्थगित करना
Committee, Standing part afaret Cold war "शीत" युद्धराजनीतिक युद्ध, अशस्त्रीययुद्ध Commodity पण्य द्रव्य, पण्य वस्तु; जिस Cold wave शीत लहर, शीत तरंग, शीत लहरी Commodity market पण्यक्षेत्र, जिंस बाजार Collapsible सिमटने या सिकुड़नेवाला, आकुंचनशील, Common seal सामान्य मुद्रा संहरणशील
Common sense सामान्य बुद्धि Collection संग्रहण, एकत्रीकरण
Commonwealth राष्ट्रमंडल Collection charges संग्रहण व्यय
Communalist संप्रदायवादी Collection of data सामग्री-संग्रहण
Communicate संचार करना, संसूचित करना Collective सामूहिक
Communication संचारण; संचारः संसूचना; संवादCollective responsibility सामूहिक उत्तरदायित्व | वहन Collective security सामूहिक सुरक्षा
Communication, Means of संचारसाधन Collectivism समूहवाद; सामूहिकतावाद
Communique faufe
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९३७
Communism साम्यवाद Communist साम्यवादी
Community समाज, सम्प्रदाय
Community project सामुदायिक योजना
Commute लघुकरण
Commutation of pension पेंशनका संराशिकरण
Company प्रमंडल
Comparative तुलनात्मक
Compass परकार; दिग्दर्शक यंत्र Compassion अनुकंपा
Compatible संगत
Compendium संक्षेपण; उपसंक्षेप; लघुपुस्तिका
Compensate क्षतिपूरण
Compensatory allowance प्रतिकर भत्ता
Compensation क्षतिपूर्ति, प्रतिकर
Competent सक्षम, समर्थ
Compilation संकलन
Compiled संकलित Complainant अभियोक्ता
Complaint अभियोग, शिकायत, फरियाद; परिदेवना,
परिवाद; परिवादपत्र
Complement ( विधेयार्थ ) पूरक
Complementary adj. पूरक
Compliance मान लेना, पालन, पूरा करना
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Compliments शुभकामना; प्रशंसा
Component parts अंशभूत भाग, अवयवभूत अंश
Compost वानस्पतिक खाद, कूड़े की खाद Compound यौगिक
प्रयास
Conception अवधारणा
Concerned सम्बद्ध, संश्लिष्ट
Concession छूट, रियायत Conciliation board संराधन समिति, विवाद- निवा
रक समिति
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Communism- Consolidation
Conclave गुप्त सभा Conclusion परिणाम, निष्पत्ति Conclusive निश्चयात्मक, अखंड्य Concommitant सहवती, साथ-साथ (दंडादि), युगपद्द्वारी, संधावी, समचारी Concurrence सहमति
Concurrent संगामी, संवती
Concurrent list समवर्ती सूची
Condensed food घनीभूत खाद्य Conditional सप्रतिबंध
Conditions of service सेवाकी शर्तें
Condolence संवेदना
Condominiutn द्वैराज्य; शामलात Condonation क्षमादान
Condone क्षमा करना Conductor संवाहक
Cone शंकु, शंक्वाकार घन Confederation परिसंघ
Conference सम्मेलन; संमंत्रणा
Confession अपराध-स्वीकरण; स्वीकारोक्ति Confirmation अभिपुष्टि, पुष्टिकरण; स्थायीकरण
Confiscation समपहरण, जब्ती
Conflagration अग्निकांड, महाप्रज्वलन
Congential सहजात
Congratulation बधाई, प्रतिनंदन
Congruent सर्वांगसम ( त्रिभुज ) Consanguine सगोत्र
Consanguinity सगोत्रता
Compoundable मिश्रणशील; समाधेय
Conscience अंतःकरण
Compoundable offence समाधेय अपराध, राजी- Conscript अनिवार्य भर्ती करना; वि० इस तरह भत्तीं
नामे योग्य अपराध
Compounder संमिश्रक
Comprehensive questionaire fara graiafo Compromise समझौता, बीचका रास्ता Comptroller नियंत्रक
Compulsory अनिवार्य, बाध्यतामूलक, आवश्यक - retirement अनिवार्य निवृत्ति Computation संगणना Concave lens नतोदर ताल Concentration संकेंद्रण
Concentration of authority प्राधिकारका संकेंद्रण Concentration camp निरोधन शिविर, नजरबंदी
शिविर: कारा- शिविर
Concentrated efforts एकाग्रोकृत प्रयास, संकेंद्रित Consignee परेषणी
Consignor परेषक
किया हुआ ।
Conscription अनिवार्य मत्ती Consecutive क्रमागत; लगातार Consensus एकरूपता, समानता Consensus of opinion ऐकमत्य Consent सम्मति
Consequential आनुषंगिक
Consequently फलतः, परिणामस्वरूप Conservancy system मलवाहन पद्धति
Conservation संरक्षण
चलनेवाला
Conservator of forests वनसंरक्षक Consigned परेषित, अर्पित
Consignment परेषण, परेषित वस्तु
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Consistancy संगति
Consolidated एकीकृत, संचित, संपिंडित Consolidated fund संचित निधि Consolidation of debt ऋण-संपिंडन Consolidation of holdings खेतोंकी चकबंदी
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Conspirancy-Counter charge
Conspiracy yeria
समारोह Constant cost स्थिर परिव्यय
Cooperative Society सहकारी समिति Constellation नक्षत्र
Co-opt विनियुक्त करना, अधिनिर्वाचित करना Constipation मलावरोध, मलबद्धता, कब्ज
Coopted members अधिनिर्वाचित सदस्य Constituency निर्वाचन-क्षेत्र ।
Coordinate समान पदवाला, समकक्ष; v. मेल बैठाना Constituent Asembly संविधान सभा
Coordination एकसूत्रीकरण; समन्वय Constitution संविधान संघटन; संकल्पपत्र; देहयष्टि Co-partner सहयोगी, साझेदार Constitutional deadlock सांविधानिक गतिरोध Copied प्रतिलिपित Constitutionalist संविधानवादी
Copper age ताम्रयुग Constructive programme रचनात्मक कार्यक्रम Copper plate ताम्रपत्र Construe अर्थ करना
Copy प्रतिकृति, प्रतिलिपि Consul वाणिज्य-दूत राजप्रतिनिधि
Copyholder लेखधारक Consul-general महावाणिज्यदूत
Copyist प्रतिलेखक प्रतिलिपिक Consulate वाणिज्य दूतावास
Copyright कृतिस्वाम्य Consulting room परामर्शालय, परामर्शकक्ष Coroner अपमृत्यु मीमांसक Consumer's goods उपभोग्य वस्तुएँ
Corporal punishment शारीरिक दंड Consumption उपभोगः क्षय, क्षयरोग
Corporate नैगम Contagious सांस्पर्शिक, सांसर्गिक
Corporation निगम, पौरसंघ Contamination दूषण
Corps निकाय, दल, सैन्यदल Contemporary समसामयिक, समवत्ती, समकालीन Corps, Diplomatique राजदूत समूह, दूतसमाज सहयोगी (समाचारपत्र)
Corrected शोधित Contempt अवमान, अवमानना, अपमान
Correspondence पत्र-व्यवहार, पत्राचार Contents अन्तर्वस्तु, अन्तविषय
Correspondent संवाददाता Context संदर्भ
Corresponding तत्स्थानीय, तदनुरूप संगत (कोण) Contiguity संसक्ति, सान्निध्य, संलग्नता
Corridor गलियारा, बीचमेंसे होकर जानेवाला Contingency आकस्मिकता
संकीर्ण पथ Contingency fund प्रासंगिक व्यय, आकस्मिकता-निधि Corroboration अभिपुष्टि Contraband trade विनिषिद्ध व्यापार, प्रतिबंधित | Corrupt practice भ्रष्टाचार व्यापार
Cosmic Rays TeIIS TECH Contradiction खंडन, प्रतिवाद: असंगति
Cosmogeny विश्वोत्पत्तिविज्ञान Contrary विरुद्ध, प्रतिकूल
Cosmology ब्रह्मांड विज्ञान Contribution अंशदान, अवदान, योगदान, चंदा Cosmopolitan सार्वदेशिक, सार्वभौम विश्वनागरिक Contributory Provident fund अंशदायी सुवि-Cosmos ब्रह्मांड धायक ( या संचित) कोष
Cost परिव्यय, लागत Control Room नियंत्रण-कोष्ठ
Cost of living जीवन-यापन व्यय Controversy खंडनमंडन, वादविवाद
Cost of maintenance निर्वाह-परिव्यय Convalescence ( रोगोत्तर)खास्थ्यलाभ
Cost of production उत्पादन-परिव्यय Convection वहन
Costs वाद-व्यय Convener संयोजक
Cottage Industry गृहोद्योग, ग्रह शिल्प, कुटीर-शिल्प Convention प्रसभा अभिसमय, रूढ़ि
Council परिषद् Conventional यथाचार, पारंपरिक
Councillor पारिषद् Convergent एककेंद्राभिमुख, एकविंदुगामी
Council of action कार्य-परिषद् Converse प्रतिलोम
Council of States राज्य परिषद् Conversion परिवृत्ति धर्मपरिवर्तनमतपरिवर्तन Counter गणनाफलक; "खिड़की" Convertible परिवर्त्य
Counter act विप्रतिकार करना, प्रभावहीन या व्यर्थ Convertion रूपांतरण, परिवर्तन
बनाना Convex उन्नतोदर: उन्नतोदर बहुभुज (ज्यामिति) Counter action प्रतिकरण, प्रतिकारात्मक कार्य Conveyance हस्तांतरपत्र; सवारी
Counter attack प्रत्याक्रमण Convicted अभिशस्त, दोषसिद्ध
Counter balance प्रतिसंतुलन Convocation दीक्षांत समारोह, समावर्तन, पदवीदान | Counter charge प्रत्यारोप
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Counterfeit-Debacle Counterfeit Fjat
Crossword puzzle वर्गपहेली Counterfoil प्रतिपत्रक, प्रतिपर्ण, दू सरी प्रति
Crusade धर्मयुद्ध Counter part प्रतिरूप, प्रतिमूर्ति
Cruiser गश्ती जहाज, हिंडक पोत Countersigned प्रतिहस्ताक्षरित
Crystalisation स्फटिकीकरण, कणीकरण Counter statement प्रत्यावेदन प्रतिवक्तव्य
Culpable homicide अपराद्ध नरहत्या Countervailing duty प्रतिशुल्क
Cultivable कृष्य, कृषियोग्य Coup detat आकस्मिक शासन-परिवर्तन, शासनिक | Cultivable land कृषियोग्य भूमि विपर्यय; बलात् सत्तापहरण
Culture संस्कृति, संस्कार; पालन (जैसे कोशकीटपालन) Coupon पर्णिका, कूपन
Cumulated समुच्चित, समुच्चयित Courier धावक, धावन, हरकारा
Curable चिकित्स्य, साध्य Course पाठ्यक्रम मार्ग, पथ; प्रवाह, धारा रीति Curator अध्यक्ष, परिरक्षक ( संग्रहालय आदिका) Court fee न्यायशुल्क, अधिकरण शुल्क
Currency चलार्थ, मुद्रा प्रचलन Court, High उच्च न्यायालय
Current प्रचलित, चालू ; n. धारा Court Inspector व्यवहार-निरीक्षक
Current account चालू खाता Court martial सैनिक विचार सैनिक न्यायालय Curve वक्रता, वक्र, ( वक्ररेखा), मोड़ Court of appeal पुनर्विचार न्यायालय
Curved line वक्ररेखा Court of records अभिलेख न्यायालय
Custodian संपालक, अभिरक्षक Court of wards प्रतिपालक अधिकरण
Custodian of evacuee property निष्क्रांतोंकी Court, Regional क्षेत्रीय न्यायालय
संपत्तिका अभिरक्षक Court, Supreme सर्वोच्च न्यायालय
Custody अभिरक्षा, हिरासतमें लेना Covenant प्रतिश्रुति, प्रतिश्रतिपत्र, प्रतिज्ञापत्र समझौता | Custom रूदि, अभ्यास, रीति Covenanted प्रतिश्रत
Customs निराकम्यकर, सीमाशुल्क Crane भारोत्तोलन यंत्र, भारोद्वहन यंत्र
Cut motion कटौती प्रस्ताव Credentials परिचयपत्र
Cut-throat competition कंठच्छेदि स्पर्धा Credit प्रत्यय, साखः समाकलन; उधार
Cycle चक्र; द्विचक्रयान Credit balance समाकलन भाधिक्य
Cyclostyle चक्रलेखित्र Credit bill fazaa tu gust
Cypher code गूदलेख संहिता Credit entry समाकलन-प्रवृष्टि
D Credit facilities ऋणसुविधा
Daily register दैनिक पंजी Credit note जमाकी हुंडी, समाकलन-पत्र
Dairy दुग्धशाला, गव्यशाला Creditor उत्तमर्ण, महाजन
Dais मंच Credit sale उधार-विक्रय
Damages afa få Credit side धनपक्ष, जमाकी तरफ
Dash समरेखा-चिह्न Cremation ground, crematory F431157 Data आँकड़ा, सामग्री Crew नाविक दल, खलासी; विमानकमी
Date तिथि, दिनांक Cricket गेंदबल्ला , क्रिकेट
Dated तिधित, दिनांकित Crime अपराध
Daybook दैनिकी Criminal वि० दंड्य; अपराधशील, पु० अपराधी Day dream दिवास्वप्न Criminal breach of trust दंडनीय विश्वासघात Day, Preceding पूर्ववत्ती दिन Criminal conspiracy दंड्य या अपराद्ध षड्यंत्र Day scholar अनावासिक छात्र Criminal court दंड न्यायालय
Days of grace अनुग्रहकाल Criminal investigation department अपराधा- Dead account मृत लेखा न्वेषण विभाग, गुप्तचर विभाग
Dead language मृत भाषा Criminal procedure code दंडविधि संहिता Dead letter office agar fagtat Criminal settlement जरायमपेशा लोगोंकी बस्ती Dead-lock गतिरोध, गत्यवरोध Criminal tribes अपराधशील जातियाँ
Dealer व्यापारी Criterion निकष, मानदंड, कसौटी
Dealings व्यवहार, लेना-देना Crop rotation शस्य आवर्तन; फसल-बदल
Death certificate मरण-प्रमाणक, मृत्यु-प्रमाणक Cross breeding अन्योन्य प्रजनन
Death-rate मरण-गति Cross-examination प्रतिपरीक्षण, जिरह साक्षि-परीक्षा Debacle ध्वंस, विभंग पूर्ण पराजय
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Debate-Designation
Debate वाद-विवाद
Debenture ऋणपत्र Debit देयांश, विकलन
Debt conciliation board ऋण समझौता बोर्ड Debt redemption ऋणमुक्ति
Debtor अधमर्ण, ऋणी
Decade दशाब्द, दशक, दशी
Decadence अवक्षय, हास
Decagon दशभुज Deceased प्रमीत, मृत Decentralization विकेंद्रीयकरण
Deciding vote विनिश्चयकारी मत
Decimal system दाशमिक क्रम, दशमलव पद्धति
Decision विनिश्चय
Decision, pending the विनिश्चय होने तक
Decisive विनिश्चयात्मक
Declaration ज्ञापन, घोषणा
Declension कारक- रचना, रूपसाधन
Decontrol fafariau
Decorum शिष्टाचार, शिष्टता
Decree आदेश, आशप्ति
Dedicate समर्पण
Dedicated समर्पित
Deduction काटना, कटौती; निगमन Deed संलेख
Defaced coin विकृत टंक De facto तत्वतः, तथ्यतः
Defalcation व्यय, हरण, खयानत Defamatory अपकीर्तिकर
Defaulter प्रमादी, तिथि- संक्रामी
Defeatist attitude पराजयमूलक भावना Defence bond प्रतिरक्षा ऋण पत्र Defence expenditure प्रतिरक्षा व्यय Deferred अभिस्थगित
Deficit घाटा, न्यूनता Deficit area अभावग्रस्त क्षेत्र
Deficit budget घाटेका आयव्ययक Deficit financing न्यूनार्थ-व्यवस्था
Defined परिभाषित
Deflation farfa
Deflection वलन
Deforestation वननाशन
Deformity विरूपता
Degenerate अपजात
Degeneration आपजात्य
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Degree अंश
Dehumidifying plant आर्द्रतानाशक यंत्र Dehydrated vegetable निर्जलीकृत शाक Dehydration निर्जलीकरण Deism ईश्वरवाद
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De-Jure विधानतः, अधिकारतः
Delegated प्रदत्त, प्रत्यायुक्त, प्रत्यायोजित किया हुआ Delegation प्रत्यायोजन; शिष्टमंडल
Delete अपमार्जन करना, निकालना Delimitation परिसीमन
Delinquency कर्त्तव्यहीनता, अपराध Deliverence उद्धार, मुक्ति
Delivery सामानका भुगतान देना; सौंपना; पत्र वितरण;
बटनी; भाषणविधिः प्रसव; रिहाई Deluge प्लावन Demand अभियाचन, माँग Demarcation सीमांकन
Demilitarisation असैनिकीकरण
Demobilisation सैन्य- विघटन, सैन्य वियोजन Democratisation लोकतंत्रीकरण
Demonetisation विमुद्रीकरण
Demonstration प्रदर्शन; उपपादन Demurrage विलम्ब शुल्क De novo नये सिरे से Dentistry दन्तचिकित्सा Departmental वैभागिक, विभागीय Depot भरतीकेन्द्र; गोदाम Depopulation निर्जनीकरण Deposit जमा करना, निक्षेप करना Deposit, current चलनिक्षेप Deposition साक्षीका कथन
Depositor निक्षेपक
Depreciatory remark अपमानकारी अभ्युक्ति
Depreciation मूल्यहास, मूल्यापकर्ष मूल्यावरोह,
अर्धपतन
Depressed class दलित वर्ग
Depression अवसाद, व्यापारिक शैथिल्य, मन्दी Deprive वंचित करना
Depth charge समुद्री गोला, जलप्रस्फोट Deputation शिष्टमंडल; प्रतिनियुक्ति Deputed प्रतिनियुक्त
Deputy speaker उपाध्यक्ष
९४०
Derailment पटरीपरसे उतर जाना
Deranged अस्त-व्यस्त, विक्षिप्त, विक्षुब्ध
Derivation व्युत्पत्ति
Derivative व्युत्पन्न
Derogatory लघूकारक, अपकीर्तिकर, अपमानकारी Descendent वंशज
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Descent उद्भव
Desert संपरित्याग करना, छोड़ देना Deserter दलत्यागी, भगोड़ा, पलायक
Design परिकल्पना, रूपांकन, रचना वैशिष्ट्य, परिरूप Designate (v.) नामोद्देशन करना, नामाभिधान करना; वि० नामोद्दिष्ट, मनोनीत Designation पदनाम, ओहदा
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९४१
Designer-Distiliary
Designer परिरूपक
Director, Managing प्रबंध-संचालक Despatch-book प्रेषण पुस्तक
Director of Public Education लोकशिक्षणDespatcher डाकप्रेषक प्रेषणकमी; प्रेषक
संचालक Destroyer faejauta
Directory निदेशिका Detailed विस्तृत, ब्योरेवार
Disability निर्योग्यता Details विस्तार, विवरण, ब्यौरा
Disabled विकलीकृत Detention कारारोध, अवरोध, निरोध, निरोधन Disagreement असहमति Deterioration of currency चलार्थकी अवनति Disapprobation प्रतिनिन्दन, अमान्यन Determination पक्का निश्चय, अवधारणा
Disapproved निरनुमोदित Determinist नियतिवादी
Disarmament निरस्त्रीकरण Deterrent sentence निवारक दंड, निरोधक दंड Disarmed निरस्त्रीकृत Detrimental अहितकारी
Disband सेनाभंग Devaluation अवमूल्यन
Disbursing officer भुगतानक अधिकारी Development expenses विकास व्यय
Disbursement आयोजित वितरण Deviate विचलित होना
Discharge उन्मोचन परिशोधन; पालन स्राव Devolution of power अधिकारका अवक्रमण Discharge of functions कृत्योंका निर्वहन Devolve अवक्रमण होना, सौंपना, जिम्मे आ पड़ना Discipline अनुशासन Diagnosis निदान
Discord मतभेद, वैमत्य, फूट, झगड़ा Diagonal faut
Discordant वैमत्यसूचक, विस्वर Dialctical materialism दंद्वात्मक भौतिकवाद Discount, At a बट्टे पर Dialogue कथोपकथन
Discovery sifas art Diametre व्यास
Discrepancy भिन्नता, अंतर; असंगति Diamond jublee हीरक जयंती
Discretion स्वविवेक Diarchy द्वैधशासन
Discretionary विवेकाधीन Diary दिनपंजी, दैनंदिनी
Discrimination विभेदीकरण, विभेद Dictation आलेख, इमला, श्रुतिलेख
Discussion पर्यालोचन, चर्चा Dictator अधिनायक
Diseasc, Venercal रतिज रोग, यौन रोग Dictatorship अधिनायकवादः अधिनायकतंत्र; अधि- Dishonesty अनार्जव नायकत्व
Dishonour अनादरण Didactics शिक्षाशास्त्र
Dishonoured cheque अनाहत धनादेश Dichard कट्टर, दुराग्रही (राजनीतिज्ञ)
Disinfectant संक्रमण-नाशक Dietics आहार-शास्त्र
Disinterested अलिप्त, निस्पृह Differntial duty सापेक्ष कर, भेदक कर
Dismissal पदच्युति; अमान्यन Diffuse विस्तारित करना, प्रसारित करना, विकीर्ण या Disparity असमता, असमानता प्रक्षेपित करना
Dispensary (दातव्य) औषधालय Digest संक्षिप्त संग्रह
Disperse विसर्जन Dilemma धर्मसंकट, उभयसंकट
Displaced faenfra Diluvial प्लावनिक
Displacement विस्थापन, स्थान-च्युति, हटाव Diminishing आहासी हासमान
Disposal निस्तारण, समापन, निपटाना Dimunitive अल्पार्थक, न्यूनताबोधक
Disposition मनोवृत्ति, मनोभाव; शील; विक्रय Diplomacy कूटनीति, राजनय
Disprove असत्य प्रमाणित करना, खंडन करन। Diploma उपाधिपत्र
Dispute fais Direct निदेश करना
Disqualification नियोग्यता, अनर्हता Direct clection 999 farafaa
Disqualified अनर्ह Direction निदेश
Disqualify नियोग्य बना देना, अनहीकरण Directorate विभाग
Dissection विच्छेदन Director अधिकर्ता, संचालक, निदेशक
Dissemination फैलाना Director General Commercial Intelligence Dissent विमति (असहमति) and Statistics वाणिज्यिक तथ्यांक विभागके प्रधान | Dissolution विलयन, विसर्जन, भंग होना, समापन संचालक
Distillary afuerauft
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Distillation-Elastic
९४२ Distillation af 1907
Drought सूखा, अनावृष्टि Distilled water अभिस्रावित जल
Dry cleaning निर्जल धुलाई Distinct भिन्न
Dualism द्वैतवाद Distinction विशेष योग्यता
Duck 37547 Distress warrant अभिहरणका अधिपत्र
Due प्राप्य देय; उपयुक्त, यथावत् Distribution वितरण विभाजन
Duet दोगाना District जिला, मंडल प्रदेश, क्षेत्र
Duly विधिवत् District Board, see 'board'
Dump, Ammunition गोला बारूदका ढेर District Magistrate जिलाधीश
Dumping of goods वस्तुओंका राशिपातन; विदेशोंDitto तदेव
में माल अधिक सस्ता बेचना Divergent अवसारी, विभिन्न दिशागामी
Duplicate प्रतिलिपि Diversion विषयांतर; विचलन
Duplicate copy द्वितीय प्रतिलिपि Dividend लाभांश; भाज्य
Duress दबाव, धमकी Divisible भाज्य, भागाई
During the pleasure of प्रसादपर्यंत Division भाग; विभाजन, विभाग प्रमंडल, प्रखंड Dustbin अवकरी ( अवकर = कूड़ा, कतवार), अवकरचमू (वाहिनी ब्रिगेड)
पात्र, कूड़ेकी टोकरी Divisional प्रामंडलिक, प्राखंडिक
Dutiable शुल्कयोग्य, शुस्काई Division bell famiga til
Duty शुल्का कर्तव्य Divorce विवाहविच्छेद; त्याग, पृथकीकरण
Duty, On काम पर Dock नौनिवेश, जहाजी मालघाट, गोदीकटघरा Dyarchy द्वैध शासन Doctrine धार्मिक सिद्धांत
Dynamic गतिशील Document प्रलेख
Dynamics गतिविज्ञान Documentary film प्रलेख चित्र
Dynamite प्रध्वंसक Documentary proof लिखित प्रमाण
E Domestic गृह्य, गार्हस्थ्य, घरेलू
Earmarked पृथक रक्षित Domestic science गार्हस्थ्य-विज्ञान, गृहशाख Earned leave afha yet Domicile अधिवास
Earnest money बयाना, सत्यंकार, साई Domicile certificate अधिवासी प्रमाणक
Easement, Right of मुविधाधिकार, गमन-निर्गमना. Domiciled aftalet
धिकार, सुखाधिकार Dominion अधिराज्य, स्वतंत्र उपनिवेश
Ecclesiastical धार्मिकचर्च संबंधी Donation दान
Ecoing प्रतिध्वनन Donee प्रतिगृहीता, दानगृहीता
Economic advisor आर्थिक मंत्रणाकार Donor ajai
Economic blockade भार्थिक समवरोध Dormant सुप्त
Economic dislocation आर्थिक अस्तव्यस्तता Dormatory 74951131
Economy अर्थव्यवस्था मितव्ययिता Double द्विगुण; पु० प्रतिरूप
Economy committee aga ufafa Double plough दुफारा हल
Economy, Planned योजनायुक्त अर्थनीति Double member constituency द्विसदस्य-निर्वाची | Edible खाद्य
Edict राजादेश, राजघोषणा Double shift दोहरी पारी
Edition, Evening सायं संस्करण Doubles युग्मक
Editorial संपादकीय (वि० सं० दोनोंमें) Draft प्रारूप मसौदा हुंडी
Education Expansion scheme शिक्षाप्रसार योजना Draftsman प्रारूपकार; मानचित्रकार
Educationist शिक्षाविशेषश, शिक्षाविशारद Drain निर्गम; नाली; उत्सारण
Effective, To be प्रभावी होना Drainage scheme जलोत्सारण योजना
Effects संपत्ति Draught cattle भारवाही (भाराकी ) पशु
Efficiency कार्यक्षमता, दक्षता Drawee आहायीं भुगतानकर्ता
Efficiency bar दक्षता-अर्गल Drawer आहर्ता, हुंडीकार
Egress चले जाना, निर्गमन, निष्क्रमण Dressing मरहमपट्टी; प्रतिसारण
Ejectment निष्कासन, बेदखली Dropper विन्दुपातक
Elastic स्थितिस्थापक
क्षेत्र
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९४३
Election-Epigraph
Election निर्वाचन Election, Bye उपनिर्वाचन Election campaign निर्वाचन-आंदोलन Election commissioner निर्वाचन आयुक्त Election malpractices निर्वाचन कदाचरण Election petition निर्वाचन-प्रार्थनापत्र, निर्वाचन- याचिका Election returns निर्वाचन विवरण Election tactics faratanatit ata Election-tribunal निर्वाचन अधिकरण Electoral college निर्वाचक मंडल Electoral roll निर्वाचक नामावली, निर्वाचक-सूची Electorate निर्वाचकगण Electric mains विद्युत् प्रसंवाही Electrical वैद्यतिक Electrified fagrany Electron faqau Electrocution विजलीकी फाँसी, विद्युद्धात Electroscope विद्युद्दर्शक यंत्र Element तत्व, भूत; अंश Elevans एकादशक Eliciting opinion सम्मति प्राप्त करना,राय जाननाEligible पात्र, वरणीय Eliminating अपाकरण, दूरीकरण Elocution वक्तृत्वकला Elocution competition वक्तृत्व प्रतियोगिता Elucidation स्पष्टीकरण, विशदीकरण Emancipation उद्धार, विमोचन Embarkation आरंभ करना Embargo पोताधिरोध, प्रतिबंध Embassy दूतावास राजदौत्य Embezzlement मोषण, गबन, अपभोग, अपहार Embryo भ्रूण Embryology भ्रूणविज्ञान, गर्भविंज्ञान Emergency आकस्मिक संकटकाल, आपात Emergency area आपात-क्षेत्र Emergency commission आपातिक आयोग Emergency order आकस्मिक आदेश Emergency meeting आपाती अधिवेशन Emergency, State of संकटकी स्थिति Emergency Reserve संकटकोष Emigrant उत्प्रवासी (प्रवासी) Emigration उत्प्रवास Emissory प्रणिधि Emmersion प्रवाह, मसान Emoluments परिलाभ, उपलब्धियाँ Empiricism अनुभूतिवाद Employed सेवायुक्त Employee सेवी, कर्मचारी Employees State Insurance Act कर्मचारी बीमा
कानून Employer सेवायोजक, नियोजक Employer's liability सेवायोजक उत्तरवादिता Employment सेवानियोजन, नियोजन Employment exchange कामदिलाऊ दफ्तर, भृतियोजनालय सेवायोजनालय, नियोजनालय Emporium वाणिज्यालय Emulation स्पर्धा Enact अधिनियम बनाना Enactment विधायन, अधिनियमन Enblock सामूहिक रूपसे, समूहतः, गुटका गुट, दलका दल Enclave परिगत भूभाग, अंतर्गत भूभाग Enclosed संवेष्टित, सन्निविष्ट, संपुटित Enclosure संवेष्टित वस्तु, घेरा, संवेष्टन Encumberance ऋणग्रस्तता, ऋणभार Encumbered भारग्रस्त, ऋणग्रस्त Encyclopaedia विश्वकोश Endorsement पृष्ठांकन Endorsed qgilana Endowment प्राभृत, धर्मस्व Endowment policy बंदोबस्ती बीमापत्र Energy ऊर्जा, शक्ति Enforcement gatia Engagement समयदान विवाह-निश्चयः संघट्ट Engine गंत्र, इंजन Engineer अभियंत्रा, यंत्रविद्, इंजीनियर Engineering यंत्रशास्त्र, यंत्रविद्या Engineering,industry यंत्रोद्योग Engrave उत्कीर्ण करना Enima वस्ति Enlargement परिवर्द्धन Enquiry परिपृच्छा Enquiry office परिपृच्छा -गृह Entrolment fee नामलेखन शुल्क, पंजीयन शुल्क Ensign पोतध्वज Entente राष्ट्रमैत्री, गुटबंदी Entertainment tax प्रमोदकर Enthralment दासता Enticement परिलोभन, परिमोहन Entomology कीटविज्ञान Entrance fee प्रवेश-शुल्क Entrepreneur उपक्रमी Entry प्रविष्टि Enumerated प्रगणित Environment वातावरण Envoy दूत Epic महाकाव्य Epidemic महामारी Epigraph शिलालेख
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Epitah-Expert committee
Epitah समाधि लेख
Equal protection of laws विधियोंका समान संरक्षण
Equation समीकरण
Equator भूमध्य रेखा, विषुवत् रेखा Equiangular polygon समानकोणिक बहुभुज Equilateral समानभुजिक
Equilibrium साम्य, साम्यावस्था
Equinox सायन
Equipment सज्जा, साज-सज्जा, साज-सामान Equitable न्याय्य, ( उपयुक्त )
Equitable tax न्यायसंगत कर
Equity न्यायभावना; साम्य
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Equivalent पर्यायवाची, समानार्थक; बराबर ; n. पर्याय
Era युग; संवत्
Erase उद्घर्षण; अवमर्षण
Erasures कटकुट
Erosion कटाव
Erratum शुद्धिपत्र
Error विभ्रम
Errors and omissions लोप विभ्रम, भूल चूक
Escort रक्षकवर्ग; मार्गरक्षक
Escort vessel रक्षक पोत Espionage चारकर्म, चारव्यवस्था Essential service परमाश्यक सेवाएँ
Establish स्थापित करना
Establishment प्रतिष्ठान; स्थापना
Establishment charges स्थापना प्रभार स्थापनव्यय
Estate रिक्थ, सम्पदा, भूसंपत्ति
Estimates प्राक्कलन, अनुमान
Estimated cost प्राक्कलित ( अनुमानित ) परिव्यय
Eternal शाश्वत, चिरंतन
Ether आकाश; सूक्ष्म वायु Evacuation निष्क्रमण Evacuee निष्क्रांत
Evacuec property निष्क्रांतोंकी संपत्ति Evaporation वाष्पीकरण
Evasion अपवंचन
Evasion of tax करापवंचन
Even distribution समवंटन
Eviction अधिनिष्कासन
Evidence साक्ष्य
Evidence, Circumstantial वृत्तांतानुमेय साक्ष्य
Evidence, Hearsay श्रुतानुश्रुत साक्ष्य
Evolution उद् विकास
Evolutionary उद्विकासी
Evolved उद्विकसित
Exaction बलादूग्रहण Exaggerated अतिरंजित
Exaggeration अतिशयोक्ति, अतिरंजन Examination Hall परीक्षाभवन, परीक्षालय
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Examinee परीक्षित, परीक्षार्थी Excavation खुदाई, उत्खनन
Except as provided उपबंधितके अतिरिक्त, इसमें दिये गये उपबंधों को छोड़कर Excess profit tax अतिरिक्त लाभ कर Exchange, Bank of विनिमय अधिकोष Exchange, Favourable अनुकूल विनिमय Exchange of opinion विचार-विनिमय Exchange, Telephone दूरवाणी- मिलान केंद्र Exchequer राजकोष, अर्थविभाग; वित्त Excise duty उत्पादन कर
Excise Commissioner, Central केंद्रीय उत्पादन
कर आयुक्त
Excise department आबकारी विभाग Excluded Area अपवर्जित क्षेत्र
Exclusion अपवर्जन
Exclusive एकांतिक, अनन्य
Exclusive jurisdiction अनन्य क्षेत्राधिकार
Execution निष्पादन, इकरसी, तामील; पूरा करना;
फाँसी
Executed निष्पादित, निष्पन्न; प्राणदंडित Executive कार्यकारिणी, कार्यपालिका Executive authority अधिशासी अधिकारी Executor निष्पादक, निर्वाहक; रिक्थसाधक Exemption मुक्ति
Exequatur वाणिज्य दूतको राजमान्यता देना Exercise of right अधिकारका उपयोग Exhibit प्रदर्शित वस्तु
Exhibition प्रदर्शनी, नुमाइश
९४४
Exit बहिर्गमनद्वार
Exodus बहिर्गमन
Ex-officio पदेन
Expanding ( university ) प्रसारी ( विश्वविद्यालय )
Expansion प्रसार
Expansion of credit प्रत्यय- प्रसार
Ex-parte एक पक्षीय
Expatriation स्वदेश- निस्सारण
Expedient उपपन्न, समयोचित, ( वांछनीय )
Expedite शीघ्रता करना
Expedition अभियान Expel निष्कासित करना
Expenditure, Contingent सम्भाव्य व्यय Expenditure charge on revenue राजस्वपर निहित ( भारित ) व्यय
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Expenditure, Side प्रार्श्व-व्यय
Expenditure, Recurring आवत्ती व्यय
Experiment प्रयोग; परीक्षण
Experimental प्रायोगिक; संपरीक्ष्य Experimental farm संपरीक्ष्य प्रक्षेत्र Expert committee विशारद-समिति, विशेषज्ञ समिति
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९४५
Expiration अवसान Expiry समाप्ति, अवसान
Explanation व्याख्या; स्पष्टीकरण Explanation, To demand जवाब तलब करना Explanatory statement व्याख्यात्मक कथन Exploitation शोषण
Exploited शोषित
Exploiter शोषक Exploration समन्वेषण
Explosive विस्फोटक; विस्फोटक पदार्थ Export Bank निर्यात अधिकोष Export trade निर्यात व्यापार Exporter निर्यातक
Exposition fafa
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Facts and figures तथ्य और अंक
Factory उद्योगालय, निर्माणशाला, निर्माणी, कारखाना Factory Act निर्माणी अधिनियम Factory cost निर्माणी प्ररिव्यय Factory system निर्माणी पद्धति Fair dealing सत्य व्यवहार, न्याय्य व्यवहार Fair-wages committee उचित वेतन समिति Fair price उचित मूल्य
Fait accompli सिद्ध वस्तु, सिद्ध कार्य Faith श्रद्धा, विश्वास; निष्ठा, धर्म
Faith and credit विश्वास तथा प्रत्यय Faithfully yours भवन्निष्ठ
Fallacy (भ्रांति ); हेत्वाभास Fallow land अक्षेत्रा भूमि, परती भूमि
False accounts फर्जी हिसाब-किताब, कल्पित लेखा False charge मिथ्या आरोप
Express स्पष्ट; आशुग; v. व्यक्त करना Express letter आशुपत्र Expressive व्यंजक, अभिव्यंजक Expropriate संपत्तिहरण
Family allowanc परिवार - अधिदेय
Family doctor पारिवारिक चिकित्सक Family pedigree वंशवृक्ष
Expulsion अपसारण, निष्कासन
Expunge निकाल देना, उन्मार्जित कर देना, व्यामृष्ट Family planning परिवारनियोजन, पारिवारिक
करना
आयोजन
Extending bill विस्तारी विधेयक
Extension विस्तार
Extent विस्तार
Extern निर्वासन, बहिष्प्रेषण External trade बाह्य व्यापार Extinction निर्वाण, उच्छेद; लोप Extirpation उन्मूलन, उत्पाटन
Extortion बलात् आदान Extract उद्धरण, निष्कर्ष
Extra curricular activities पठनेतर कार्य Extradite अपराधीको प्रत्यर्पित करना Extradition बंदि प्रत्यर्पण, उदर्पण Extraordinary charge असाधारण प्रभार Extra payment अतिरिक्त भुगतान Extra-territorial राज्यक्षेत्रातीत Extreme चरमसीमा; अत्यधिक Extremist चरमपंथी
Exuberance प्राचुर्य
Eye-witness प्रत्यक्षदर्शी, चाक्षुष गवाह
Extempore speech अतर्कित ( अप्रस्तुत ) भाषण; Family tradition कुल परंपरा
अलिखित भाषण, तत्काल प्रस्तुत भाषण ।
F Fabricated evidence गढ़ा हुआ (अप-रचित) साक्ष्य
Fabrication छलरचना
F. A. O खाद्य तथा कृषिसंघटन
Face value अंकित मूल्य Facility सुविधा, सौकर्य, सौगम्य Facsimile अनुलिपि Fact तथ्य
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Expiration-Ferry toll
Famine relief fund दुर्भिक्ष सहायता कोष Fanatic धर्मांध, मतांध; कठमुल्ला
Farce प्रहसन, दिखाऊ वस्तु, तमाशा Far East पूर्वी एशिया, "दूर पूर्व" Fare किराया
Farewell address प्रस्थानकालिक मानपत्र
Far-fetched बलात् संकलित, अस्वाभाविक, क्लिष्ट Far-reaching दूरप्रभावी; दूरव्यापी, बहुकालव्यापी
Fashion भूषाचार; देशाचार Fatal सांघातिक
संतुलन (तुला) Favouritism पक्षपात
Fatalist भाग्यवादी, दैववादी Fatherland पितृभूमि, पितृदेश
Fatigue duty दलेल
Favourable balance of trade अनुकूल व्यापार
Feasible संभाव्य
Feature घटना विवरणात्मक लेख
Feature programme रूपक कार्यक्रम
Features वैशिष्ट्य, विशिष्टांग
Federal Assembly संघीय विधानसभा
Federal Constitution संघीय संविधान Federal Court संघ न्यायालय Federation संघ, संधान
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Fee शुल्क
Fellow ( महाविद्यालयका ) पारिषद Fermentation अंतःक्षोभ Ferry toll घट्ट कर
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Fertiliser-Foreign minister
Fertiliser उर्वरक, खाद
Feudalism सामंतवाद
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Figure of speech अलंकार, काव्यालंकार Figure-head नामधारी (अगुआ), नाममात्रका प्रमुख File नस्ती, नत्थी; नस्तित पत्रसमूह, संगृहीत पत्रादि, नस्तिपत्री; रेती
Feudal system सामंत-तंत्र
Fictitious account अवास्तविक लेखा
Fictious assets अवास्तविक परिसंपत् (देय, मालमत्ता ) Flag hoisting ध्वजोत्तोलन
Field book क्षेत्रमाप-पुस्तिका
Fielder क्षेत्ररक्षक Field-glasses क्षेत्र-दूरे क्षिका Fieldgun रणक्षेत्रीय तोप Fielding क्षेत्ररक्षण, क्षेत्ररक्षा Field investigation क्षेत्रानुसंधान Field-worker क्षेत्रकमी Fifth columnist पंचमांगी
Fighter plane युद्धक विमान
Figurative आलंकारिक
Film company चलचित्र प्रमंडल
Filteration निर्गलन, गालन Filterred water निर्गलित जल Final bill अंतिम प्राप्यक Final dividend अंतिम लाभांश Finance bill वित्त विधेयक Finances वित्तसाधन, अर्थव्यवस्था Financial वैतिक, वित्तीय Financier वित्तप्रबंधक, अर्थविनियोक्ता Financing वित्त प्रबंध करना Finding न्यायिक निर्णय
Finger print अंगुलांक
Fire fighting equipment आग बुझानेका सामान Fire proof अग्निवारक, अग्निरोधक, अग्निजित्, अग्न्यभेद्य Firm adj. ढ़
Firm n. व्यावसायिक प्रतिष्ठान, कोठी
First aid प्रथमोपचार
९४६
Fixtures स्थावर संपत्ति; खेल प्रतियोगिता आदि संबंधी तिथि निर्धारण
Flagged पताकित
Flag, halfmast आधा झुका झंडा, अर्द्धात्तोलित ध्वज
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Flagship ध्वज-पोत
Flag-staff ध्वजदंड, ध्वजस्तंभ Flag, unfurling
}
or breaking Flank guard पार्श्वरक्षक सेना
Filed नस्तित; प्रस्तुत किया या दायर किया ( मामला ) Flying fortress उड़न किला File register नस्ती-पंजी
Filibuster अनावश्यक बाधा डालनेवाला
ध्वजा फहराना,
Flexible नभ्य, आनम्य, नमनीय, लचीला, लचकदार Flexible constitution नम्य (या लचीला ) संविधान Floating capital चल पूँजी
Floating debt अल्पकालिक ऋण, प्लवमान ऋण Floor price निम्नतम ( न्यूनतम ) मूल्य Florid पुष्पसज्जित, अलंकृत, अलंकारमयी (भाषा) Fluctuating market अस्थिर बाजार Flush latrine स्वक्षालन शौचालय Flying boat उड़न नौका
Flying squad द्रुतगामी दल, ( आरक्षी ) त्वरित दल,
( पुलिसका ) तूफानी दस्ता Fodder चारा, पशुभोजन Folk dance लोकनृत्य Folk lore लोक-साहित्य Folk song लोकगीत
Following निम्नलिखित, अधोलिखित, n. अनुयायी Fomentation सेंक, सेचन, प्रस्वेदन; उद्दीपन, उत्तेजन Food control खाद्य-नियंत्रण Foodgrains खाद्यान्न
Food rationing खाद्य-समवितरण, नियंत्रित खाद्यवितरण
Foot-path अनुरथ्या, पटरी Footing आधार, दृढ़स्थिति
Footwear पादुका, पदत्राण
F. OR price रेल भाड़ायुक्त मूल्य, भाड़े समेत मूल्य Forbearance क्षमाशीलता, धैर्य
Force, By बलात्
Forced labour बेगार
First aid post प्रथमोपचार केंद्र; प्रारंभिक सहायता केंद्र Forced landing विवश अवतरण, बलादवतरण
Fisc राजकोष
Forcelanded बलादवतरित
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Fordable सुगाध
Fiscal policy राजकोषीय नीति, राजस्वविषयक नीति
Fiscal year राजकोषीय वर्ष, माली साल
Forecast पूर्वानुमान
Fisheries मीनक्षेत्र
Fixation of pay वेतन-निर्धारण
Forecast of weather ऋतु-संबंधी भविष्यकथन Forceps एक तरह की चिमटी, गर्भशंकु, संदंशक Foregoing पूर्वगामी
Fixed asset स्थायी परिसंपत्
Fixed capital fet geft
Foregone conclusion पूर्वानुमित निष्कर्ष Foreign bill विदेशी हुंडी
Fixed deposit स्थायी जमा, सावधि निक्षेप Fixed deposit account मीयादी खाता, सावधि Foreign exchange वैदेशिक विनिमय
निक्षेप - लेखा
Foreign minister विदेशमंत्री, परराष्ट्रमंत्री
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९४७
Foreman श्रमप्रमुख, श्रमनायक Forest department वन विभाग
Forest-ranger वनरक्षक
Forest Research Institute वन अनुसंधानशाला Forestry वनविद्या
Foreword प्राक्कथन
Forfeit अपवर्त्तन करना, राजसात् करना, जब्त करना,
हरण करना
Forfeiture अपवर्तन, हरण, जब्ती
Forged जाली, कूट Forgery जालसाजी
Form प्रपत्र; आकारपत्र, रूपपत्र; रूप; फरमा Formal औपचारिक, यथानियम
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Fragmentation of holdings क्षेत्रापखंडन Frame ढाँचा; चौखटा; देहयष्टि, शरीर
Frame a charge, To अपराध लगाना
Fraternity बंधुत्व, भ्रातृभाव
Fraud धोखा, छल
Fraudulent कपटी, प्रतारक Free competition अवाध प्रतियोगिता Freedom of action कार्य स्वातंत्र्य Freedom of choice वरण-स्वातंत्र्य Freedom of press मुद्रण स्वातंत्र्य Freedom of speech भाषण स्वातंत्र्य Freedom of worship उपासना - स्वातंत्र्य
६०
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Free gift निर्मूल्य देन, स्वेच्छा दान Free-hold उन्मुक्त भूम्यधिकार Freelance journalist स्वतंत्र पत्रकार Free of charge निःशुल्क Free passage निःशुल्क यात्रा Free port उन्मुक्त पोताश्रय Free-thinker स्वतंत्र मनीषी
Formality औपचारिकता
Formally औपचारिक रूपसे, उपचारतः, नियमतः
Formula सूत्र
Formulated सूत्रित, संनिबद्ध
For public purposes लोक-प्रयोजनार्थ
For the time being तत्काल, फिलहाल, संप्रति सांप्रतिक Frontier सीमांत
Forwarded अग्रेप्रेषित, अग्रसारित
Porward delivery अग्रेप्रदान
Forward exchange अग्रेविनिमय Forward market वादा, वादेका बाजार Forward price अग्रेमूल्य
Fossil ( भूमिगत ) जीवावशेष, पुरावशेष Foundation laying शिलान्यास Founder प्रतिष्ठाता, प्रवर्त्तक, संस्थापक Foundry ढलाईघर
Four dimensions चतुर्विस्तृति Fours चौवे, चौके
Foxhole रणक्षेत्र में एकाकी सैनिक किलेबंदी Pracas संक्षोभ, कोलाहल, विवाद
Fraction भिन्न, प्रभाग, लघु अंश; फूट Fracture अस्थिभंग; विभंग
Fragment अपखंड
Foreman-Gallery, Press
Free trade अबाध व्यापार, मुक्त वाणिज्य
Freeze ऋण-पावनेका भुगतान बंद करना, रिक्थावरोध
Freezing जड़ीकरण, स्तंभन
Freezing point हिमांक
Freights वस्तु भाड़ा
Frequency वारंवारता, विशेष ध्वनिलहरी, ध्वनि घनत्व Fresco भित्तिचित्र, स्तरचित्र (स्तर = पलस्तर )
Friction संघर्ष; घर्षण
Front मोर्चा
Front benches सरकारी बेंचें ( पंक्तियाँ ) Front line अग्रिम पंक्ति
Frozen assets जड़ीकृत परिसंपत् Fruit preservation फल- परिरक्षण Fugitive भगोड़ा, पलायक Full bench पूर्ण न्यायपीठ Fully paid shares पूर्णदत्त अंश Fumigation धूम्रीकरण, धुआँना, धूपन Function कृत्य, कार्य; उत्सव, समारोह Function, administrative प्रशासनीय कृत्य Functional representation व्यावसायिक प्रतिनिधित्व, वृत्तिमूलक प्रतिनिधित्व Functionary पदाधिकारी Fund निधि, कोष, संस्थाकोष
Fund, Depreciation मूल्यहास कोष, घिसाई कोष Fund, Sinking ऋणपरिशोध-कोष, ऋणशोधन - कोष Fundamental आधारभूत; मौलिक, सात्त्विक Fundamental rights मूल अधिकार
Fungus छत्रक
Furnished उपस्कृत
Furniture उपस्कर; परिवर्ध ( पुराना शब्द ) Fuse ( पतले तारका ) दहन; दहनवर्त्ति
Franchise मताधिकार
Franchise, functional वृत्तिमूलक (या व्यावसायिक ) | Fusion विलय, विलयन
मताधिकार
Future market वादा बाजार
G
For Private and Personal Use Only
Gag मुख बंद करना, बोलने न देना, मुखरोधन, मुखा वरोधन
Gallery दीर्घा
Gallery, Assembly सभा-दीर्घा
Gallery, Council परिषद्-दीर्घा
Gallery, Distinguished visitors' विशिष्टदर्शक दीर्घा Gallery, Ladies' महिला दीर्घा Gallery, Press पत्रकार दीर्घा
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Gallery Speaker's-Gunner
९४८ Gallery, Speaker's अध्यक्ष-दीर्घा
Goodwill सद्भाव सुनाम, ख्याति Gallup survey विशिष्टजनीन मतसंग्रह
Gorge घाटीमार्ग Gang समूह, दल, ( काम करनेवालों, डाकुओं आदिका) | Governed by के द्वारा शासित, या नियमित Gamut सप्तक, स्वरग्राम.
Government सरकार, शासन Garrage गराज, यानशाला, गाड़ीखाना
Government house राजभवन Garrison दुर्गरक्षक सेना, दुर्ग-निवेश
Governor राज्यपाल, प्रांतपति Gazette राजपत्र
Gradation क्रमस्थापन; कोटिबंध Gazetted राजपत्रित
Grade of pay वेतनक्रम, वेतन-स्तर Gear दंतिचक्र, दाँता, गीयर उपयांत्र
Gradding of eggs अंडोंका क्रमस्थापन Gemini मिथुन
Graduate स्नातक; v. चिह्नांकित करना, मापांकित Genealogy वंशावली
करना General व्यापक सामान्य, सार्विक
Graduated आनुक्रमिक, चिह्नांकित General Headquarters प्रधान सैनिक केंद्र
Grammar व्याकरण Generalisation साधरणीकरण, व्यापक परिणाम |
का व्यापक परिणाम | Grant अनुदान (निष्पत्ति) निकालना
Grantee माफीदार Generation उत्पादन पीढ़ी
Grant-in-aid सहायक अनुदान Generator उत्पादन-यंत्र (गैस आदिका)
Graph paper विदुरेखापत्र Genius प्रतिभा प्रतिभावान व्यक्ति
Gratification अनुतोषण Genocide प्रजातिसंहार
Gratuitous निर्मूल्य; स्वेच्छा-प्रदत्त; निष्कारण Gentleman's agreement भलेमानुसोंका समझौता Gratuity सेवोपहार, अनुग्रहधन Gentlemen of the jury सभ्यगण
Gravitation, Law of गुरुत्वाकर्षण Genuine वास्तविक, अकृत्रिम, विशुद्ध
Greater India बृहत्तर भारत Geologist भूगर्भ-विशेषज्ञ
Grievous hurt दारुण आघात Geology भूगर्भविज्ञान
Grounded आधारित; जो किनारेपर चढ़ गया हो। Geographical भौगोलिक
भू-अवतरित; जो उड़नेसे रोक दिया गया हो (विमान) Geometrical ज्यामितिक, रेखागणित-संबंधी
Grouping of states रियासतोंका समूहीकरण Geometry ज्यामिति, रेखागणित (भूमिति)
Gross assets सकल परिसंपत् Germ कीटाणु
Gross income सकल आय Germination aiheut
Gross revenue सकल आगम Glacier हिमानी, हिमनद, हिमप्रवाह
Gross value सकल अर्हा Gilt edged securities उत्तम (प्रथम श्रेणीके) साखपत्र Gurantee प्रत्याभूति, प्रतिश्रुति Gland ग्रंथि, गिलटी
Guardian अभिभावक, अभिरक्षक Glandular ग्रंथिमय
Guerilla warfare छापामार लड़ाई Glass ware काच-भांड, काँचके सामान
Guest-house अतिथिगृह, अतिथि-भवन, अतिथिशाला Glider इंजनहीन विमान
Guidance पथ-प्रदर्शन Glucose द्राक्षशर्करा
Guide पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक Glycerine मधुरिन
Guild शिल्पिसंघ, श्रमिक-निकाय Goal-keeper गोलकी, प्रवेशरोधक
Guild socialism निकाय समाजवाद, श्रेणी-समाजवाद God-father धर्मपिता:
Guillotine शिरश्छेदयंत्र; मुखबंध Godown भांडागार, गोदाम
G. a motion प्रस्ताव-विवाद-नियंत्रण, मुखबंध-प्रयोग Going concern उन्नतिशील संस्था
Guilty अपराधी Gold currency सुवर्ण चलार्थ
Guilty, To plead अपराध-स्वीकृतिका प्रतिपादन Gold reserve सुवर्ण-कोष
Gun, Anti-air-craft विमानध्वंसक (विमानवेधी) तोप Gold standard सुवर्णमान
Gun, Automatic स्वचालित तोप Good conductor सुचालक, अच्छा परिचालक, सु- Gun, Long range दूरप्रहारी तोप, लंबीमार तोप, संवाहक
दूरमार तोप Good faith सद्भाव
Gun, Machine मशीनगन, चक्रतोप, यंत्रचालित तोप Goods वस्तु, सामान, माल
Gunpowder बारूद Goods, Consumer's उपभोग्य वस्तुएँ
Gunshot छर्रा Goods, Contraband fafarroa ataš
Gunner तोपची
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९४९
Gunnery तोपविद्या Gutter गंदी नाली Gynarchy स्त्री-राज्य, स्त्रीतंत्र Gyroplane विरनीदार विमान
H
Habeas corpus व्यक्ति-स्वातंत्र्य, बंदी प्रत्यक्षीकरण Habitual drunkard अभ्यस्त मद्यप
Habitual offender अभ्यस्त अपराधी, पक्का अपराधी
Haemorrhage रक्तस्राव
Hail भोला, उपल Hall-mark प्रमाणांक
Hallucination दृष्टिभ्रम, विभ्रम, दृष्टि- बंध
Halo प्रभामंडल, परिवेश
Hand bill इस्त-वितरणीय विज्ञापन, हस्त- विज्ञापनक
Hand cuffed निगड हस्त
Hand-grenade हथगोला
Handicraft हस्तशिल्प, दस्तकारी
Handloom industry करघा उद्योग
Handmaid कठपुतली
Handnote हस्तांकित ऋणपत्र
Hand-out हस्तपत्रक, हस्तज्ञापन
Hand-to-hand fight इस्ताहस्तिका
Hangar विमानगृह, विमानघर, विमानशाला Hard currency area दुर्लभ-मुद्रा-क्षेत्र
Head of the department विभागाध्यक्ष Head office प्रधान कार्यालय
Head quarters सदर मुकाम, मुख्यालय, प्रधान
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निवास, मुख्यावास
Hear, hear साधु, साधु; क्या खूब ! क्या कहना है ! Hearing सुनवाई
Hearsay श्रुतानुश्रुत, सुनीसुनाई
Heatwave तापतरंग
Heater तापक
Heaven आकाश; स्वर्ग; सुखप्रद स्थान; ईश्वर
Heinous गति
H. offence गर्हित अपराध
Heir उत्तराधिकारी
Heir apparent युवराज, विधिक उत्तराधिकारी, निकटतम उत्तराधिकारी
Hardware लौहभाण्ड
Haves and have nots अस्तिमंत तथा नास्तिमंत, Homage श्रद्धांजलि
Home-guard गृहरक्षक
सस्व तथा निःस्व, सघन + अधन Hazardous संकटास्पद, संकटावर Head शीर्ष, मदः प्रधान, अध्यक्ष Heading शीर्ष
Headman मुखिया
Home minister गृहमंत्री Home sick स्वगृहस्मारी Homicide मानवहत्या, नरहत्या H. by misadventure दुर्दैवात् नरहत्या Homicide, Culpable अपराद्ध नरहत्या H., justifiable न्याय्य नरहत्या H. mania नरद्दत्योन्माद Homogeneous एकजातीय, एकरूप Homologous एकानुरूप
Honey-moon आनंदमास, प्रमोदकाल Honorarium मानदेय
H. expectance प्रत्याशित उत्तराधिकारी
H. presumptive सम्भावित उत्तराधिकारी
Hemp सन
Herald
अग्रदूत
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Gunnery-Hostage
Hereditary वंशागत, आनुवंशिक Heredity वंशपरंपरा, आनुवंशिकता Heresy वैधर्म्य, धर्मद्रोह, ईश्वरनिंदा Her Excellency शुभमूर्ति, महामहिमावती Heritage पैतृक संपत्ति, दाय ( थाती ) -, cultural सांस्कृतिक उत्तराधिकार Hero-worship वीर-पूजा Heterogeneous विजातीय, भिन्न जातीय Hierarchy पुरोहिततंत्र, पुरोहित राज्य; सानुक्रम संस्थान; अनुक्रम; आनुपूर्व्य
High command हाईकमान, उच्चाधिकारी High commissioner हाईकमिश्नर, उच्चायुक्त (कारभारी) High court उच्च न्यायालय Highway राजमार्ग, राजपथ Hindu law हिन्दूधर्म, हिन्दूविधि His Excellency महामहिम His Majesty महामान्य
History-sheetइतिवृत्त पत्रक, दुर्वृत्त फलक History-sheeter पूर्वापराधी
Hoarding अनुचित संग्रह, अपसंग्रह, अपसंचय
Hoarding and Profiteering Act अपसंचय तथा
अपलाभ-विरोधी अधिनियम
Hold good काम देना, लागू होना
Holding कृषिस्वामित्व; क्षेत्र, जोत
Holding, uneconomic अलाभकर जोत
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Honorary अवैतनिक
Honour, Military सैनिक सम्मान Honour (a bill or draft) सकारना
Honourable माननीय
Honourable minister माननीय मंत्री Horizon fafa
Horizontal क्षैतिज, अनुप्रस्थ, दिगंतसम, सपाट Horse power अश्वशक्ति
Horticultural scheme औद्यानिक योजना Horticulture उद्यानकर्म
Host मेजमान, आतिथेय
Hostage सशरीर प्रतिभू, व्यक्ति-प्रतिभू, ओल
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९५०
Hostility-Inalienable Hostility युद्ध-स्थिति; शत्रुता, द्वेषभाव
Imaginary कास्पनिक House सदन, भवन
Imaginative कल्पनात्मक H., Lower निम्न सदन, अवरागार, प्रथम सदन Immersion प्रवाहा भसान; डुबोना, निमज्जन H., Upper उच्च सदन, वरागार, द्वितीय सदन Immigrant आप्रवासी H. of commons कामन सभा, ब्रिटिश लोक-सभा I. labour आप्रवासी श्रमिक H. of lords सरदार-सभा
Immature अपरिपक्व H. of People लोक-सभा
Immigration आप्रवास (आवास) H. of representatives प्रतिनिधिसभा (अमेरिका)। Imminent आसन्न House-tax गृह-कर
Immoral अनैतिक House-trespass भवनमें अनधिकृत प्रवेश, भवनापचरण Immovable property अचल संपत्ति, स्थावर संपत्ति Humanism मानववाद
Immunity उन्मुक्ति Humanitarianism मानवदयावाद, मानवतावाद
Impartiality निष्पक्षता Humidity आर्द्रता
Impeach प्राभियोग लगाना Humour faata
Impeachment महाभियोग, प्राभियोग Hunger-strike भूख हड़ताल
Imperative Mood आशार्थनियम Husbandry कृषिकर्म
Imperial साम्राज्य-संबंधी; शाही, राजकीय Hydraulic उदिक
I. preference साम्राज्यगत अधिमान्यता Hydrodynamics नदीप्रवाह-विज्ञान
Imperialism साम्राज्यवाद Hydro-electric stofagara
Impersonation छद्मव्यक्तिता Hydro-electric power pofagasti
Implement n. उपकरण Hydro-electrycity जलविद्युत् , पनबिजली Implement v. अभिपूर्ति करना, अमल करना कार्याHydrogen उदजन, जलजन
न्वित करना Hydropathy जलचिकित्सा
Implicate आलिप्त करना, फँसाना Hydrophobia जलातंक
Implied ध्वनित, लक्षित, गर्भित Hygiene स्वास्थ्यविज्ञान
Import 371917 Hygrometry 312 arfirfa
Import duty आयातशुल्क Hyphen समासरेखा, समास-चिह्न
Importer आयातकर्ता, आयातक Hypotenuse कर्ण
Impose आरोपित करना, लगाना; छापते समय टाइपके Hypothesis उपकल्पना
पृष्ठोंका सिलसिला ठीक करना; n. पृष्ठक्रम Hypothetic उपकल्पित
I. restriction निबंध लगाना
Imposition आरोपण Iceburg हिमशैल
Impost कर Ideal आदर्श
Impounding रोधन (रोक रखना, बाँध रखना) Idealism आदर्शवाद; वेदांत
Impregnated गर्मित Idealist आदर्शवादी
Impregnation गर्भाधान Identical motion समरूप प्रस्ताव
Imprest अग्रिम देय अग्रधन Identification अभिज्ञान, पहिचान
I. account पेशगीका हिसाब Identity ऐकात्म्य परिचय
Imprison कारावास देना I. card परिचयपत्रक, अभिशान-पत्रक
Imprisonment कारावास, कारारोध Ideology विचारधारा
Improved समुन्नत Ideological सैद्धांतिक, विचारधारा-संबंधी
Improvement trust सुधार प्रन्यास Ill-advised कुमंत्रित, अपमर्शित
Impulse अंतःप्रेरणा, प्रेरणा, आवेग Illegal अवैध
Impute अध्यारोपित करना Illegal practice अवैधाचरण
Imputation अध्यारोप; अभ्यारोप Illegitimate अवैधजा विधिविरुद्ध जारज
| Imputed value अध्यारोपित मूल्य Illicit अवैधजात; अवैधप्राप्त, अननुमत
| In abeyance आस्थगित, निलंबित स्थितिमें Illusion भ्रांति, माया; इंद्रजाल
| In accordance with law विधिके अनुसार Illusory भ्रांतिजनक, मायामय
| Inadmissible अग्राह्य Illustrative निदशी
Inadvertence असावधानता, अनवधानता, प्रमाद I. election facit fagiga
| Inalienable अहस्तांतरकरणीय असंक्राम्य
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९५१
Inalienability of sovereignty प्रमुसत्ताकी अहस्तांतरकरणीयता
In anticipation प्रत्याशा में
Inappropriate अनुपयुक्त Inauguration उद्घाटन
In-camera गुप्त Incapacity असमर्थता
Incarceration कारारोधन, कारावास
Incarnation अवतार
Incendiary bomb दाइक प्रस्फोट
Incentive वि० उत्तेजक; पु० उत्तेजन In-charge प्रभारी, कार्यवाहक
Incidence of taxation करानुपात
Incident प्रमुंग
Incidental प्रासंगिक, आनुषंगिक In-circle अंतर्वृत्त; अंतर्गत वृत्त
Incite उत्तेजित करना
Inclement weather आँधी-पानी आदि, प्रतिकूल
मौसम Inclination Inclusion अंतर्भाव
Inclusive मिलाकर
झुकाव, नति
Income, National राष्ट्रीय आय
Income tax आयकर
Income tax officer आयकर अधिकारी Income, unearned अनर्जित भाय Incompatible अननुरूप, संगतिविरुद्ध Incompetency अयोग्यता, अक्षमता Incongruous असंवद्ध, विसंगत
Inconsistency असंगति
Inconsistent असंगत
Incontrovertible अखंडनीय, निर्विवाद Inconvertible अपरिवर्त्य
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Incorporate (v.) मिलाना, निगमित करना Incorporated (adj.) समाविष्ट, निगमित; अंतर्भावित Incorporated company निगमित प्रमंडल
Incorporation निगमन
Increment वृद्धि
Incumbent निर्भर
I. of an office पदधारी Incumbrance ऋणभार Incurable असाध्य, अचिकित्स्य Incurred उपगत, प्राप्त, उठाया, सह्य Indebted ऋणी
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Inalienability-Industrialist
प्रसारण
Indent (v.) वस्तु मँगाना Indenture प्रतिज्ञापत्र
Indentured labour प्रतिज्ञाबद्ध श्रमिक, अनुबद्ध श्रमिक
Independent स्वतंत्र; अदलीय Indeterminate अनिर्धारित
sentence अनिर्धारित दंड
"
Index finger प्रदेशिनी, तर्जनी, देशिनी
Indexing सूचीबद्ध करना
Index number मूल्य सूचनांक
Index of production उत्पादन-सूचनांक, उत्पादननिर्देशनांक
India Act, Govt. of भारत शासन विधान India office भारत-मंत्री कार्यालय
Indian administrative service भारतीय प्रशासनसेवा, भारतीय प्रशासन विभाग
Indian Council of Agricultural Research भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्
Indian Penal Code भारतीय दंडसंहिता
Indian Police Service भारतीय आरक्षी सेवा, भारतीय पुलिस विभाग
Indians overseas प्रवासी भारतीय Indianization भारतीयकरण Indict आरोप करना
Indigenous देशी; देशज Indirect tax अप्रत्यक्ष कर
indirect election परोक्ष निर्वाचन
Indiscriminate अविवेकी; विभेदहीन, अंधाधुंध
Indispensable अपरिहार्य
Indisputable निर्विवाद
Individualism व्यष्टिवाद
Individualist व्यक्तिवादी, व्यष्टिवादी
Individuality व्यक्तित्व, विशिष्टत्व Indivisible अविभाज्य
Indoor patient प्रविष्ट रोगी, अंतर्वासी रोगी Indorsement ( See Endorsement ) सकारना Induction अनुगम; उपपादन (विद्युत्का ) In due course यथासमय Industrial औद्योगिक Industrial Chemist औद्योगिक रसायनश Industrial Court औद्योगिक न्यायालय Industrial data औद्योकिक तथ्य Industrial depression औद्योगिक मंदी Industrial dispute औद्योगिक विवाद Industrial efficiency औद्योगिक दक्षता Industrial expansion औद्योगिक प्रसार I housing औद्योगिक वास व्यवस्था I. Truce औद्योगिक शांति समझौता Industrialisation औद्योगिकीकरण
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Indebtedness ऋणग्रस्तता Indemnification क्षतिपूरण Indemnify क्षतिपूर्ति कराना Indemnity क्षतिपूर्ति
Indemnity bill क्षतिपूर्ति विपत्र
Indent (a.) वस्तु-प्रेषणादेश, माँगपत्र; पार्श्व-वृद्धि, पार्श्व | Industrialist उद्योगपति
६०-क
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९५२
Industty, Key-Inspection Industry, Key आधारोद्योग, प्रमुख उद्योग
Inherent right जन्मज अधिकार Inefficiency अदक्षता
Inherit दाय पाना Ineligible अपात्र, अयोग्य, अवरणीय
Inheritance दाय, रिक्थ । Ineligibility अपात्रता
Inheritance, Law of दायविधि Inequality असमानता
Inheritance, Right of दायाधिकार Inequitable न्याय-विरुद्ध
Inheritance tax दायकर, रिक्थकर Inequity विषमता
In his discretion स्वविवेकसे Inevitable अपरिहार्य
Inhuman अमानुषिक Inevitable payments अपरिहार्य भुगतान
Jnitialled आधारित Inexpedient असमयोचित, अनुपयुक्त
Initial pay आरंभिक वेतन Infant mortality शिशु-मरण
Initials संक्षिप्त हस्ताक्षर, नामके आद्यक्षर Infanticide शिशु-हत्या
Initiate सूत्रपात या प्रारंभ करना, उपक्रमण करना Infantile paralysis शिशु-पक्षाघात
Initiative पहल, प्रेरणा पहलकारी Infantry पैदल सेना, पदाति
Initiative and referendum उपक्रम और जननिर्देश Infection संक्रमण
Injection शूचिवेधन, सूई देना; सूई ( 'लेना'के साथ); Infectious संक्रामक
वेधनोपचार शूचीचिकित्सा Inference निष्कर्ष, अध्याहार
Injunction निरोधाज्ञा Inferior Court निम्न न्यायालय
Injunction, Writ of निरोधाशा, समादेश Inferior servant निम्न कर्मचारी, अवर सेवक Inland अंतर्देशीय Inferiority complex हीन मनोभाव, लछुमन्यता Inland revenue अंतर्देशीय आय Infinite अनंत; असीम
Jnland trade अंतर्देशीय व्यापार Infirmity निर्बलता, कमजोरी
Inland waterways अंतर्देशीय जलपथ Inflammable ज्वलनशील
Innermost अंतरतम Inflammatory उत्तेजक
Innings पाली Inflation मुद्रास्फीति, मुद्राविस्तार
Innocent निरीह, निरपराध, निश्छल Infiationary trend मुद्रास्फीतिकारी प्रवृत्ति, मुद्रा- Innocuous अनपकारी, अहानिकर धिक्यप्रवृत्ति
Innovation अभिनव परिवर्तन Inflexiblc अनाम्य
Innuendo व्यंग्योक्ति, सूचकोक्ति, पर्यायोक्ति Inflexible constitution अनाम्य संविधान
Inoculation टीका लगाना Influence, undue अयुक्त प्रभाव
In open court खुली अदालतमें Influx अंतरागम, बढ़ाव
Inoperative अप्रवृत्त, अप्रवर्ती Informal behaviour अनौपचारिक व्यवहार Inopportune असामयिक Informal meeting अयथाविधि भेट; अनौपचारिक | In order नियम-संगत; नियमानुकूल; यथाक्रम बैठक
Inordinate delay अत्यधिक विलंब Informant सूचक
in person Fazi Information सूचना; जानकारी
In query प्रश्नवाचक चिह्नमें Information department सूचना विभाग Inquest अकाल-मृत्यु-विचारणा Information minister सूचना-मंत्री
Inquiry जाँच, परिप्रश्न, परिपृच्छा Information, On point of सूचनार्थ
Inquisition न्यायालयिक अन्वेषण Informer भेदिया
Inscribed अंतलिखित, अंतरंकित Infringe उल्लंघन करना
Inscription अंतलेखन, अंतरंकन Infringement उल्लंघन, व्याघात
Insecticide कीटनाशक कीटनाशन Ingenious पद्ध, चतुर, पटुतापूर्ण
Insemination गर्भ-रोपण Ingenuity पटुता, चार्य
Insert सन्निविष्ट करना Ingredient संघटक, संयोगांग
Insertion प्रकाशन, सन्निवेश Ingress आना, प्रवेश
Insignia राजांक, राजचिव पदसूचक चिह्न Inhabitant fatale
Insolvency दिवालियापन, असंपन्नता Inherent सहज, जन्मजात; अंतर्निहित
Insolvent दिवालिया, शोधनाक्षम Inherent disease पैतृकरोग, जन्मज व्याधि
Insomnia उन्निद्ररोग Inherent power ajafafea sifti
Inspection factor
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९५३
Inspector-Invoice Inspector निरीक्षक
Internal regulation आंतरिक विनियम Inspector-General of Police पुलिसका महा. International अंतरराष्ट्रीय निरीक्षक, आरक्षी महानिरीक्षक
International conference अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन । Inspectorate निरीक्षक कार्यालय, निरीक्षकालय International, first मार्क्स द्वारा स्थापित प्रथम अंतरInspiration देवी-प्रेरणा, अंतःप्रेरणा
राष्ट्रीय समाजवादी संस्था Inspired अंतःप्रेरित, उत्प्रेरित
International, second प्रथम अंतरराष्ट्रीयके विसर्जनके Installation अधिष्ठापन, प्रतिष्ठापन
बाद स्थापित समाजवादियोंकी दूसरी अंतरराष्ट्रीय संस्था Instalment प्रभाग, किस्त, खंडिका, विखंड
International, third कम्युनिस्टोंकी अंतरराष्ट्रीय संस्था Instinct सहज प्रवृत्ति, आंतरिक प्रेरणा
Internationale कम्युनिस्टोंका अंतरराष्ट्रीय गीत Instinctive साइजिक
Internecine war परस्पर संहारक युद्ध Institute शानमंदिर प्रतिष्ठान, v. दायर करना, बैठाना Internee नजरबंद: अंतर्वासित Institution संस्था प्रथा
Internment नजरबंदी, अंतर्वासन, क्षेत्रीय निरोध, Instruction अनुदेश, (निर्देश), शिक्षा
स्थानासेध Instrument विलेख लिखत; करण, करणपत्र
Interpellation प्रश्नोत्तर Instrumental (music) वाद्यसंगीत
Interpose अंतस्स्थापन, बीच में रखना Instrument of Association सम्मिलन-विलेख Interpret ब्याख्या करना, अर्थ करना Instrument of instructions निर्देशका विलेख Interpretation व्याख्या, निर्वचन, अर्थापन; अर्थ Insubordination अविनय, भाज्ञा-भंग
Interpreter दुभाषिया Insular संकुचित, संकीर्ण हृदय द्वीपिक
Inter regnum राजसिंहासन जब रिक्त हो Insulation विसंवाहन
Interrex राजप्रतिनिधि Insulator विसंवाहक
Interrogate प्रश्न करना In supersession of अकारथ या रद करते हुए Interrogatory प्रश्नात्मक, प्रश्नसूचक Insurance बीमा
Intestacy इच्छापत्र-हीनत्व Insurance, Fire आग-बीमा
Intimation (लिखित) सूचना Insurance, Life जीवन बीमा
Intimidate धमकी देना, भयभीत करना Insurance policy बीमा-पत्रक
In toto पूर्णतया Insurgency प्रजाक्षोभ
Intoxication मादकता Insurrection उपप्लव
Intransigent दुराग्रही Intact अविकल, अक्षुण्ण, अखंड
Intra wires अधिकारांतर्गत Integration एकीकरण
Intricate जटिल Integrity अखंडता; ईमानदारी; न्याय.लता
Intrigue दुरभिसंधि Intellectualism बुद्धिवाद
Intrinsic value धात्विक मूल्य, वास्तविक मूल्य Intelligence बुद्धि
Introduce प्रस्तुत करना, पुरः स्थापित करना; परिचय Intelligence department खुफिया विभाग
कराना Intelligence test बुद्धिपरीक्षा
Introduction, Letter of परिचय-पत्र Intelligentia बुद्धिजीवी वर्ग
Intrusion अनाहूत प्रवेश Intensive cultivation घना कृषिकार्य, धनी खेती Intuition अंतर्ज्ञान, अंतर्बोध Intercede मध्यस्थ बनना, बिचवई करना
In unequivocal terms असंदिग्ध शब्दों में Intercept बीचमें रोक लेना
Invalid अमान्य; असमर्थ Inter-dependent अन्योन्याश्रित
Invalidity pension असमर्थता निवृत्तिवेतन Interest ब्याज
Inventory संपत्ति-सूची, सामान-सूची Interest, Compound सूददरसूद, चक्रवृद्धि ब्याज Inversion विलोमना Interest, vested निहित स्वार्थ
invest पूँजी लगाना Interim अंतरिम, मध्यवती
Investigation जाँच-पड़ताल Interior, Minister of the गृहमंत्री, स्वदेशमंत्री Investiture अभिषेक Intermediary उभय-मध्यस्थ, अंतःस्थायी
Investment पूँजी लगाना धनविनियोग Intern अंतर्वासित करना,स्थानबद्ध करना, नजरबंदकरना
Invidious द्वेषजनक Internal आंतरिक
Invigilator निरीक्षक Internal affair घरेलू विषय
In vogue प्रचलित Internal disorder आंतरिक अशांति
| Invoice बीजक
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Involve-Labour union
९५४ Involve अंतर्ग्रसन
Journalistic etiquette पत्रकारीका नैतिक आदर्श Involved अंतर्ग्रस्त, अंतर्गत
Judge v. निर्णय करना Ipso facto यथार्थतः, तथ्यतः
Judge n. न्यायाधिकारो, न्यायाधीश Iron-age लोहयुग
| Judge, additional अपर न्यायाधीश Iron curtain लौहपट, लौह-दीवार, लौह-आवरण Judge, Sessions दौरा जज, सत्र न्यायाधीश Iron ore कच्चा लोहा
Judgement निर्णय, न्याय-निर्णय, (अदालतका) फैसला Irony व्यंग्य
Judicature न्यायाधिकरण, न्यायव्यवस्था Irrecoverable अप्रत्यादेय
Judicial न्यायिक Irredeemable अमोचनीय, अशोध्य
Judicial decision न्यायिक निर्णय Irregular अनियमित
| Judicial department न्याय-विभाग Irrelevent असंगत, अप्रासंगिक
Judicial enquiry न्यायिक जाँच Irrigation भूसिंचन, सिंचाई
Judicial proccedings न्यायालयको काररवाई,अदाIsolate एकाकीकरण, पृथक् करना
लतकी काररवाई Isolationist Policy पृथक्तावादी नीति
Judiciary न्यायपालिका; न्यायाधिकारी वर्ग Issue समस्या निर्गम वादविषय वादपद, विवादविषय | Judicious विवेकपूर्ण; न्यायसम्मत Issue department निर्गम विभाग
Jurisdiction अधिकार-क्षेत्र क्षेत्राधिकार Issue price निर्गम-मूल्य
Jurisprudence न्यायशास्त्र; विधिशास्त्र Issues (n) वादहेतु
Jurist न्यायश Isthmus स्थल-डमरूमध्य
Jury न्याय-सभ्य; जूरी Item मद, विषय
Justice न्यायाधिपति; न्याय Items on the agenda कार्यावलीका विषयक्रम Justice of peace शांतिके न्यायाधिकारी Itemwise विषय-क्रमसे
Justiciable निणेय, व्यवहार्य
Justifiable न्यायानुमोद्य, न्यायतः समर्थनीय Jaggery गुड़
Juvenile delinquency किशोरोंकी अपराधवृत्ति Jail कारागार
K Jailor कारागारिक, कारापाल
Kaleidoscope बहुरूपदर्शक Jammed अवरुद्ध ( मार्ग); जकड़ गया (यंत्र, पुरजा)। Keeper of records अभिलेखपाल ( उल्लेखपाल) Job कृत्य नौकरी
Kennel श्वानालय Jobbers ठेकेदार
Key industry आधारोद्योग, प्रमुख उद्योग Join कार्य ग्रहण या आरम्भ करना
Kidnapping ( बालापहरण ); अपहरण Joining time कार्य-ग्रहणकाल
Kind, In उपज या मालके रूपमें Joint संयुक्त
Kindred (adj.) सगोत्र, तद्वत् , तत्समान; n. रक्तसंबंध Joint account संयुक्त लेखा
Kine house पशुनिरोधशाला Joint and several responsibility संयुक्त तथा पृथक् उत्तरदायित्व
Kit यात्राका सामान, सामानका झोला Joint capital संयुक्त पूँजी
Kleptomania चौर्योन्माद Joint electorate संयुक्त निर्वाचक वर्ग
Kulak धनिक किसान Joint estate संयुक्त भूसम्पत्ति Joint family संयुक्त परिवार
Lable नामपत्र Joint ownership संयुक्त स्वामित्व
Labelled नामपत्रित Joint production संयुक्त उत्पादन
Labial ओष्ठ्य Joint secretary संयुक्त सचिव
Labio-dental catcza Joint stock company संभूय समुत्थान, संयुक्त स्कंध- | Laboratory प्रयोगशाला प्रमंडल
Labour श्रम; श्रमिक Jointure स्त्रीधन
Labour bureau श्रमालय, श्रमकार्यालय Journal दैनिक पंजी वृत्तपत्र
Labour dispute श्रम-विवाद Journal entry पंजी-प्रविष्टि
Labour federation श्रमिक संधान [purchasers j. क्रयपंजी, खरीद-बही;
Labour, organized संघटित श्रमिक sales j. विक्रयपंजी, बिक्री-बही]
Labour party श्रमिकदल Journalism पत्रकारी, पत्रकारता; पत्रकारकला | Labour union श्रमिक-संघ
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९५५
Labour unrest-Legaté Labour unrest श्रमिक अशांति
प्रतिपक्ष-नेता Labour, Unskilled अकुशल श्रमिक
Leaderette संपादकीय टिप्पणी या छोटा अग्रलेख Labour welfare work श्रमिक-कल्याण-कार्य Leading article अग्रलेख Lactation period दुध देनेकी भवधि
Lead pencil सीस-अंकनी, पेंसिल Lady-president सभानेत्री ।
Leaflet पर्णक, पर्चा, चौपतिया Ladies-gallery महिला दीर्घा
League of Nations राष्ट्रसंघ Laissezfaire अहस्तक्षेप-नीति
Leakage च्यवन, च्यवन-छूट, च्यवनमोक, रहस्यका Laminated wood परतदार लकड़ी
प्रकट हो जाना Lance Corporal उप-कारपोरल
Leap-year (अधिक दिनयुक्त वर्ष) अधिवर्ष, लौंदका साल Land acquision act भूमि-अवाप्ति-भधिनियम Lease n. पट्टा Land alienation act भूमि-हस्तांतरण अधिनियम Lease v. पट्टेपर देना Landing ground अवतरण-भूमि
Lease deed पट्टेका कागज, पट्ट-विलेख Landlord भूस्वामी
Lease, permanent दवामी पट्टा Landmark सीमाचिस
Lease, terminable समापनीय पट्टा Land records भू-अभिलेख
Leave अवकाश, छुट्टी; अनुमति Land revenue भू-राजस्व, मालगुजारी
Leave, Maternity प्रसवावकाश, प्रसूति-छुट्टी, Land route स्थल-मार्ग
प्रसूत्यवकाश Landed interest भूमिहित, भूमिगत स्वार्थ
Leave of absence aggregazit agafa Landed property भूसंपत्ति
Leave, privilege रियायती छुट्टी। Landscape भूदृश्य
Leave preparatory to retirement Parghera Land-survey भूपरिमाप
पूर्वकी छुट्टी • Lapse व्यपगत होना (कालातीत होना)
Leave, quarentine स्पर्शवर्जन छुट्टी Large scale industry बड़े पैमानेके उद्योग
Leave to withdraw a motion प्रस्ताव वापस Large scale production बड़े पैमानेपर उत्पादन लेनेकी अनुमति Late भूतपूर्व स्वगीय
Ledger gusht Late news छपते-छपतेका समाचार
creditors 1. उत्तमर्ण प्रपंजी Latent अप्रकट, अदृश्य
purchases 1. क्रय-प्रपंजी Latitude अक्षांश
sales 1. विक्रय-प्रपंजी Launch ( आंदोलनादि) प्रारम्भ करना
suppliers 1. उत्तमर्ण प्रपंजी Launching a ship पोत-संतरण
general 1. सामान्य प्रपंजी Lavatory शौचालय, प्रक्षालनगृह
Ledger account प्रपंजी लेखा Law विधि, नियम, सिद्धांत
Lentry प्रपंजी-प्रविष्टि -abiding विधिपालक
L. folio प्रपंजी-पृष्ठ -book विधि-पुस्तक
Left hander बयँहत्था, वामहस्तिका वामहस्ताघात -charges विधि-व्यय
Left side वाम पार्श्व -, International अंतरराष्ट्रीय विधि ( या विधान) | Leftist वामपक्षी, वामपंथी -of marginal utility सीमांत उपयोगिता नियम Leg before wicket पदबाधा, पदरोध -of nature प्रकृतिका नियम
Legacy बपौती; मृत्युपत्र; दायदान Lawful विधिवत् , विध्यनुसार, (वैध )
Legal वैध, विधि-विहितः विधिक Lawlessness अव्यवस्था, अराजकता
Legal action वैध काररवाई, कानूनी काररवाई Law of evidence साक्ष्यविधि
Legal defect वैधानिक त्रुटि Lawn दूर्वाक्षेत्र
Legal interest वैध हित Lawyer विधिश, वकील
Legal monopoly वैध एकाधिकार Lay-man सामान्य जन, अविशेषज्ञ
Legal procedure वैध प्रक्रिया Lay-out अभिन्यास
Legal process वैध प्रणाली Lead अग्रांश, अग्रभाग
Legal remembrancer विधि-परामशी, विधि-प्रशापक Leader नेता, अग्रणी अग्रलेख
Legal Secretary विधि-सचिव Leader, Floor गृहाग्रणी
Legal tender विधिग्राह्य Leader of the House सभाग्रणी, सभानेता Legal tender money विधिग्राह्य मुद्रा Leader of the opposition विरोधी दलका नेता, Legate (विदेशस्थित) उपराज-प्रतिनिधि, उपराजदूत
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Legation - Lockout Legation उपदूतावास
Light literature रंजनकारी साहित्य Legislation विधान
Lightning arrester विधुदद्धारक Legislative विधायी
Lightning war क्षिप्रगति-युद्ध, विद्युयुद्ध Legislative Assembly विधान-सभा
Limit सीमा Lagislative Council विधान परिषद्
Limitation परिसीमा, परिसीमन न्यूनता, त्रुटि Legislature विधान-मंडल
Limited coinage सीमित टंकण Legitimate न्याय्य वैध, युक्तियुक्त यथार्थ औरस Limited company सीमित प्रमंडल Lender उधार देनेवाला, महाजन, साहूकार
Limited legal tender सीमित विधिग्राह्य Lens वीक्ष, ताल
Limited liability company सीमित देय प्रमंडल Lentil मसूर
Limited monarchy सीमित राजतंत्र Leo सिंह राशि
Limited option सीमित विकल्प Leper asylum कुष्ठालय
Limited partnership सीमित भागिता Lessee पट्टेदार, पट्टधारी
Line रेखा, पंक्ति Lessor पट्टा देनेवाला
Liner नियमित यात्री-पोत Lethal weapon घातक शस्त्र
Linguist भाषाविद् Letter box पत्रपेटिका
Linguistics तुलनात्मक भाषाविज्ञान Letter of administration प्रशासन-पत्र
Liquidate परिसमापन करना Letter of credit प्रत्यय-पत्र
Liquidation of debt ऋण-परिसमापन Letter of introduction परिचय-पत्र
Liquidator परिसमापका विघटनकर्ता Letters patent एकस्व-पत्र
List of business कार्यसूची Level of prices मूल्य-तल, मूल्य-स्तर
List of prices मूल्य-सूची Leviable आरोप्य
Literacy campaign साक्षरता-आंदोलन Lery आरोपण; उद्ग्रहण
Lithographed प्रस्तर-मुद्रित, शिलामुद्रित Levy a tax कर लगाना, करारोपण
Litigant विवादी Lewis gun झड़ीदार बंदूक
Litigation मुकदमेबाजी Lexicon शब्दकोश, कोश
Livestock पशुधन Liabilities देय, देय धन, ऋण
-farm पशुप्रक्षेत्र Liability देयता, दायित्व
-inspector पशुनिरीक्षक Liasison officer ग्रथनाधिकारी, संपर्क पदाधिकारी | Living wage निर्वाहभृति, (जीवनभृति) Libel अपमानलेख
Load stone चुंबक प्रस्तर Liberal Federation उदारद संघ
Loan उधार, ऋण . liberty, Civil नागरिक स्वाधीनता
Loan and advances ऋण एवं अग्रिम Liberty of conscience विवेक-स्वातंत्र्य, अंत:करणकी Loan at short notice अल्पसूचना-देय ऋण स्वतंत्रता
Loan, Public राज्य-ऋण Liberty of press मुद्रण-स्वातंत्र्य
Loaves & fishes व्यक्तिगत लाभ Liberty of speech भाषण-स्वातंत्र्य
Lobby सभाकक्ष, प्रकोष्ठ Libra तुला राशि
Lobby talk प्रकोष्ठ-वार्ता, सभाकक्षीय वार्ता Librarian ग्रंथागारिक, पुस्तकाध्यक्ष
| Local administration स्थानीय प्रशासन Licence अनुज्ञापत्र, अनुशप्ति
Local authority स्थानीय प्राधिकारिवर्गः स्थानीय Licence fees अनुशा-शुल्क
प्राधिकार Licensed प्राप्तानुज्ञ, दत्तानुश
Local board स्थानीय समिति Licensee अनुज्ञाधारी, प्राप्तानुज्ञ
Local bodies स्थानीय संस्थाएँ Licensor अनुशाता
Local government स्थानीय शासन Lieutenant Governor 390154917
Local self-government स्थानीय स्वशासन Life belt जीवनरक्षक पेटी
Local staff स्थानीय कर्मचारिवर्ग Life boat जीवन-नौका
Local tax स्थानीय कर Lift उत्थानक, उन्नयन-यंत्र, सोपानिका, लिफ्ट
Localisation स्थान सीमन, स्थानीय करण Liftinan सोपानिकाचालक, उन्नयनयंत्रचालक
Localisation of industries उद्योगोंका स्थान-सीमन Light प्रकाश
Localisation of sovereignty प्रभुत्वका स्थाननिर्धारण Light-house प्रकाशस्तंभ, कंडीलिया
Lockout द्वारताल, तालाबंदी
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Lock-up-Manual art Lock-up हवालात, अस्थायी बंदीगृह, बंदीखाना Machine-shop यंत्रशाला Locomotive चलित्र
Machine tool यंत्रोपकरण Loco workshop लोको कारखाना, इंजनघर
Machinery यंत्रजात, यंत्रसमूह Locus fafe
Machinist यांत्रिक Locous standi मान्य स्थिति
Magazine शस्त्रागार; पत्रिका Locust टिड्डी
Magistrate दंडाधीश, दंडाधिकारी Logic तर्कविज्ञान, न्यायशास्त्र तर्क
Magna charta महाधिकार-पत्र Logical तर्कसंगत, तर्कप्रेरित
Magnetic चुंबकीय Logician नैयायिक, तर्कशास्त्री, तार्किक
Magnitude परिमाण; मात्रा वितान; विस्तार महत्त्व Longing उत्कट अभिलाषा, उत्कंठा
Maiden speech प्रथम भाषण Longitude asiat
Maintained by the state राज्य द्वारा संपोषित Longstanding complaint पुरानी शिकायत Maintenance भरण-पोषण, रोटी-कपड़ा Long term credit दीर्घावधि प्रत्यय, दीर्घकालिक उधार -, cost of भरण-पोषणका व्यय निर्वाह-व्यय Loose leaf ledger अबद्धपत्र प्रपंजी
Maintenance of law and order कानून और Loose tools अबद्ध उपकरण
व्यवस्थाका संधारण Loss हानि
Major प्राप्तवयस्क, बालिग Loss, gross सकल (संपूर्ण) हानि
Major charge मुख्य आरोप Loss, Net वास्तविक (या विशुद्ध) हानि
Majority बहुमत, प्राप्तवयस्कता Loss of weight भार-हानि
-party बहुसंख्यक दल, संख्यागरिष्ठ दल Loss sustained प्रसोढ हानि, उठायी या सही हुई हानि | Majority, Absolute पूर्ण बहुमत Loss, Total समस्त हानि
Malaria सविरामज्वर, हिमज्वर, शीतज्वर, जूड़ी Lost लुप्त, जो खो गया हो
Maldistribution कुवंटन, कुवितरण Lost bill लुप्त विपत्र
Mala fide दुर्भावपूर्वक; दुर्भावपूर्ण Lost cheque लुप्त धनादेश
Malleability कुट्यता, कुट्टनीयता, धनवर्धनीयता Lots भाग्यपत्रक, (भाग्यक)
Malnutrition कुपोषण, अपर्याप्त पोषण, न्यून पोषण Lottery भाग्यदा, लाटरी
Malpractice कदाचार Loud-speaker ध्वनि-विस्तारक, ध्वनि-वर्धक
Malpractitioner कदाचारी Lounge उपवेशिका
Mammal स्तनपायी Lower exchange fara afara
Man-at-arms सैनिक Lower house अवरागार, निम्न भवन, निम्न सदन, Management charges प्रबंध-व्यय प्रथम सदन
| Managing agents प्रबंध-अभिकर्ता Lower house of legislature विधानमंडलका | Managing committee प्रबंध-समिति भवरागार (निम्न सदन, प्रथम सदन)
Managing director प्रबंध-संचालक Loyalty राजभक्ति, निष्ठा
Mandamus परमादेश Lubricants चिकनाई, तेल
Mandate शासनादेश Lucrative gamit
Mandated territory शासनादिष्ट प्रदेश Lull स्तब्धता, शांति
Man-days श्रमिक दिन Lullaby लोरी
Manifestation afwaffe Lump sum एक मुश्त, एक राशि, पिंडराशि
Manifesto नीति-घोषणा, लोक-घोषणा Lunacy उन्माद
Manipulation छलयोजन Lunatic asylum विक्षिप्तालय, पागलगृह
Manipulation of accounts लेखा-छलयोजन Luxury goods विलास-वस्तुएँ
Manipulation of statistics सांख्यकीय छलयोजन Lymph चर्मोदक, लसीका
Manoeuvre युद्धाभ्यास, सैन्यव्यूहन; दुर्योजन, Lyric गीत, गीतकाव्य
तिकड़मबाजी Lyric poet गीतकार
Man-of-war शस्त्रसज्ज-पोत Lyrical गीतात्मक
Manor स्वामिभू, जागीर M
Manpower जनशक्ति Machine यंत्र
Manual हस्तपुस्तिका, गुटका; वि० हाथसे किया जानेMachine gun मशीनगन, यंत्र-तोप, यंत्रचालित तोप | वाला, शारीरिक श्रम) Machine-made यंत्र-निर्मित
Manual art हस्तकला
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९५८
Manual labour-Medium Manual labour हस्तश्रम
Matriarchal मातृसत्तात्मक Manual training हस्तकला-प्रशिक्षण
Matriatchy मातृसत्ता Manufacture निर्माण
Matricide मातृवध, मातृहत्या Manufactured goods afha atgš
Matron मातृका Manuscript हस्तलिपि, पांडुलिपि
Matter of fact तथ्यात्मक March n. क्रमप्रयाण, प्रयाण
Mathematically गणितानुसार March v. प्रयाण करना, कूच करना
Maturation परिपाक, परिपचन Margin पार्श्व, उपांत, सीमांत, मात्रा
Mature, matured परिपक्क, प्रौढ़ Margin of profit लाभकी मात्रा
Maturity परिपक्कता, परिपाक Marginal सीमांत
Maturity, Date of परिपाक-तिथि Marginal cost सीमांत परिव्यय
Maxim सूत्र सिद्धांत; सिद्धांतवाक्य, नीतिवचन; अनुMarginal heading पाच-शीर्षक
भवोक्ति, तथ्योक्ति Marginal note पार्श्व-टिप्पण
Maximum अधिकतम, महत्तम Marginal price सीमांत मूल्य
Mayor नगरनिगमाध्यक्ष, नगरपति Marginal profit सीमांत लाभ
Mean मध्यपरिमाण मध्य Marginal utility सीमांत उपयोगिता
Means साधन Marine सामुद्र, -hospital नाविक चिकित्सालय -of communication संचारके साधन Maritime सामुद्रिक, -law सामुद्रिक विधि, नौविधि -of subsistence निर्वाहके साधन Mark चिह्न अंक; वेध्य
-of transportation परिवहनके साधन Marked fafea
Measure उपाय, परिमाण, प्रस्ताव काररवाई Marked cheque चिह्नित धनादेश
Mechanic यांत्रिक, यंत्रविद , मिस्त्री Marketable fa que
Mechanical advantage यांत्रिक लाभ Marketable goods विपण्य वस्तुएँ
Mechanical condition यांत्रिक दशा Marketing हाट-व्यवरथा
Mechanical transport यांत्रिक परिवहन Mars मंगल ग्रह
Mechanically propelled vessels यंत्र-प्रणोदित Marshal बलाधिकृत
पोत, यंत्रचालित नौकाएँ Marshal, Field महाबलाधिकृत
Mechanisatian of Agriculturc कृषि-यंत्रीकरण Marshalling एकत्र करना
Mechanised army यंत्रसज्जित सेना Martial सैनिक युद्धप्रिय
Mechanism यंत्ररचना, यंत्रचालन; रचना, बनावट Martial law फौजी कानून, सैनिक विधि
प्रक्रिया, गतिविधि Masculine पुंलिंग; वि० पुरुषोचित, पुरुषोंके योग्य, | Median माध्यिका, मध्यांतर रेखा पुरुषों जैसा
Mediation मध्यस्थता Mask वर्णक, नकाब, मुखावरण, मुखच्छद
Media of publicity प्रकाशनके माध्यम Mass contact जनसंपर्क
Medical भैषजिक, चिकित्सकीय, चिकित्सा-संबंधी Mass migration सामूहिक प्रव्रजन, सामूहिक
-certificate भैषजिक (चिकित्सकीय) प्रमाणपत्र स्थानांतर-गमन
-colloge भैषजिक विद्यालय Mass production पुंजोत्पादन, समूहोत्पादन
-department चिकित्सा विभाग Mass treatment समूहोपचार
-equipment fafci-F5371 Match जोड़ा आनुरूप्य; समर, प्रतियोगिता
-expenses चिकित्सा-व्यय Material n. सामग्री; adj. भौतिक
-institution भैषजिक संस्था Material civilisation भौतिक सभ्यता
-Literature भैषजिक साहित्य Materal goods भौतिक वस्तुएँ
-practitioner भैषजवृत्तिक, चिकित्साजीवी Material prosperity भौतिक वैभव
-science भैषजिक विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान Material resources भौतिक साधन
Medicine भेषज Material well-being भौतिक कल्याण
Medicinal भेषजीय ( मेडिकल = भैषजिक) Materials, consumed उपभुक्त सामग्री
Medicinal science भेषजविज्ञान (भोषधिविज्ञान) Maternity relief प्रसूति साहाय्य
Medieval मध्ययुगीन, मध्यकालीन Maternity welfare centre मातृकल्याणगृह
Meditation ध्यान, चिंतन Maternity welfare work प्रसूति-कल्याण-कार्य, Mediterranean Sea भूमध्य सागर मातृकल्याण-कार्य
Medium माध्यम, साधन
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९५९
Medium gauge-Misdirection
" माल
Medium gauge मझोली लाइन
Mileage क्रोश संख्या कोशाधिदेय Medium of exchange विनिमय-माध्यम
Militarisation सैनिकीकरण Medium of instruction शिक्षाका माध्यम
Militarism सैनिकवाद Meeting अधिवेशन, बैठक
Military attache सैनिक सहचारा -, Energent आपाती अधिवेशन
, installation सैनिक प्रतिष्ठान -, Extraordinary असाधारण अधिवेशन
Military tribunal सैनिक न्यायालय Melting point gaurito
Militia देशरक्षक सेना, जानपद सैन्य Member in charge प्रभारी सदस्य
Mill निर्माणी, मिल, कारखाना; चको Memo स्मार शाप, शापन
[Flour mill आटा-चक्की] Memoir संस्मरण अनुसंधान-लेख
Millenium सहस्राब्दी; सुवर्णयुग Memorandum स्मारकपत्र, ज्ञापन अनुरोधका
Mine-field सुरंग-क्षेत्र संक्षेप-लेख
Minelayer सुरंग-प्रसारक पोत, सुरंगपोत Memorandum of Association प्रतिष्ठानपत्र Mineral resources खनिज-साधन, खनिज-संपत् Memorial आस्मारक
Minerology खनिजशास्त्र, खनिजविज्ञान Menace अभिशाप, बिभीषिका
Mine-sweeper सुरंग-मार्जक पोत, सुरंगहारक या Menopause रजोविरति
सुरंगनाशक पोत Menses मासिकधर्म, माहवारी
Miniature लघु रूप Mensuration afafa
Minimum न्यूनतम, अल्पिष्ठ Mental deficiency मनोवैकल्य
Minimum subscription अल्पिष्ठ अभिदान, न्यून" weakness मनोदौर्बल्य
तम चंदा Mentioned उल्लिखित, कथित, चर्चित
Mining settlement aferanfa Mercenary adj. भृतिभोगी। n. भृतक सैनिक Minister in-charge प्रभारी मंत्री Merchandise वाणिज्य-द्रव्य, माल
Minister of State राज्य-मंत्री Merchantile marine वाणिज्यपोत, व्यापारिक बेड़ा
| Minister Plenipotentiary पूर्णाधिकारी दूत Merchantman, merchantship a forzugta Minister without:portfolio बिना विभागका Mercury पारद, पारा; बुधग्रह
मंत्री, निर्विभाग मंत्री Mercy, Petition of दयाभिक्षा
Ministerial party मंत्रिपक्ष, मंत्रिपक्षीय दल Merged विलीन ( विलयित )
Ministerial service निम्न कर्मचारिवर्ग Merger विलय, विलयन
Ministry मंत्रिविभाग, मंत्रालय Merit, according to गुणानुक्रमसे, योग्यता-क्रमसे -of industry and supply उद्योग और रसदMessenger संदेशहर, वातवाहक
मंत्रालय -service संदेशहर-व्यवस्था
Minor अवयस्क, नाबालिग, न्यूनवयस्क लघु, अमुख्य Metallurgy धातुविज्ञान
Minor head लघु शीर्षक, लघु मद Metaphor रूपक
Minority अल्पसंख्यक वर्ग, अल्पमत; अवयस्कता Metaphor, sustained सांग रूपक
, party अल्पसंख्यक दल, संख्यालघिष्ठ दल Meteorology अंतरिक्षविज्ञान
Mint पुदीना, टकसाल. Meter gauge छोटी लाइन
Minus वियुक्त, विरहित ऋण-चिह्न Mica अबरक
Minute-book कार्य-विवरण-पुस्तक Microphone ध्वनिक्षेपक यंत्र
Minute of dissent विमति-टिप्पण Microscope सूक्ष्मदर्शक यंत्र, अणुवीक्षण यंत्र
Minutes of proceeding कार्यवाहीका संक्षेप Micro wave अणुतरंग
(बैठकका) संक्षिप्त कार्यविवरण Middle East मध्यपूर्व (पश्चिमी एशिया तथा उत्तर- Miracle माश्चर्यकी बात, चमत्कार पूर्वी अफ्रीका)
Misappropriation अपयोजन, दुरुपयोजन Middle man दलाल, मध्यजन
Misbehaviour कदाचार Midwife प्रसाविका, दाई, धात्री
Miscarriage गर्भपात; विफलता; अपगमन, Midwifery धात्रीविद्या
Miscarriage of justice न्यायवैफल्य, न्यायविभ्रंश Migrant प्रव्रजक
Miscellaneous प्रकीर्ण, -account प्रकीर्ण लेखा Migration प्रव्रजन
Misconception मिथ्याचरण Migration certificate विश्वविद्यालयांतरण प्रमाणक | Misdemeanour दुराचरण Milch breeds दुधारू नस्लें
| Misdirection विमार्ग-दर्शन, कुपथ-नयन
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Misnomer-Narration Misnomer मिथ्या नाम, अयथार्थ नाम
Mortgagee बंधक-ग्रहीता Misrepresentation मिथ्या प्रदर्शन, भ्रांत कथन, Mortgager बंधनकर्ता मृषा वर्णन
Mortuary मुर्दाघर, शवालय, मृतकगृह Mission प्रचारक दल; उद्देश्य, जीवन-लक्ष्य सेवाव्रत, Motherland मातृ-भूमि, मातृदेश दौत्य
Mother tongue #144191 Mis-understanding गलतफहमी, समझकी भूल, Motion गति प्रस्ताव विभ्रम
Motion, Adoption of प्रस्ताव स्वीकृत करना Mitigation मृदूकरण, (न्यूनीकरण), शमन
-, Adjournment काम-रोको प्रस्ताव, कार्य-स्थगन Mixture मिश्रण
प्रस्ताव Mob mentality सामूहिक मनोवृत्ति, सामूहिक प्रवृत्ति --for consideration faiciel genia Mob psychology सामूहिक मनोविज्ञान, सामूहिक | Motive उद्देश्य प्रेरक हेतु मनोभाव
Motive, To impute नीयतमें शक करना Mobile चलिष्णु, चलता-फिरता
Movable property चल संपत्ति Mobilisation of the army सैन्यसंसज्जन सैन्यसंघटन Move, to प्रस्ताव करना Mobilisation of industry उद्योग-संघटन
Movement आंदोलन Model प्रतिमान, आदर्श
Mover प्रस्तावक Moderate संयत, संतुलित; अनुग्र; अनधिक
Movies चल चित्र Moderation संयम नरमी, मुलायमियत
Multifarious agget Moderator नरम बना देनेवाला, मध्यस्थ
Multimember constituency बहुसदस्यModest विनयशील, नम्र सलज्ज; लघु
निर्वाची क्षेत्र Modesty शील, सतीत्व ( outrage the...of शीला- Multipoint sales tax प्रतिपद विक्रीकर घात, शील भंग करना, सतीत्वनाश)
Multipurpose society बहुप्रयोजन समिति Modification संपरिवर्तन, रूपभेद .
, scheme बहुमुखी योजना Modus operandi कार्यप्रणाली, कार्यविधि
Mummy पुरातन शव, (सुरक्षित शव), ममी Mofussil नगरेतर क्षेत्र
Municipal area नगरक्षेत्र Mole faro
Municipal committee नगरसमिति, नगरपालिका Molecule अणु
Municipal corporation नगर-निगम Momentum प्रवर्तक शक्ति, वेगबल
Municpality नगरपालिका Monarchy राजतंत्र
Munition युद्ध-सामग्री Monetary मुद्रा-संबंधी, मौद्रिक
Muscle मांसपेशी Monetary fund मुद्राकोष
Museum संग्रहालय, अजायबघर Monetary unit मौद्रिक एकक (इकाई)
Mushroom छत्रक, खुभी Money bill (मुद्राविधेयक), धनविधेयक
Mushroom growth अनियमित बाद,आकस्मिक वृद्धि Money-lending साहूकारी, महाजनी
Music, Instrumental वाद्य-संगीत Money order धनप्रेषादेश, धनप्रेषणादेश, (धनादेश) Music, Vocal कंठ-संगीत Monism अद्वैतवाद
Muster एकत्र करना Monitor छात्रनायक
Mutation परिवर्तन, नामांतर लेखन Monitoring जाँचके लिए रेडियो या टेलीफोनपर Mutatis mutandis आवश्यक परिवर्तन सहित सुनना
Mutiny सैन्य-द्रोह Monogamy एकपत्नी-विवाह, एकनिष्ठ विवाह Muzzle मुखबंधनी Mono-metallism एकधातुता
Mycology फफूंद-विज्ञान Monopoly एकाधिकार, इजारा
Mystic रहस्यवादी Monotony एकतानता, एकरसता वैचित्र्याभाव, नीरसता Mysticism रहस्यवाद Monument स्मारक
Myth पुराणकथा, कल्पना, दंतकथा Moral end नैतिक उद्देश्य; -force नैतिक बल; -support नैतिक समर्थन
Nadir अधोविंदु Morale नेतिक स्तर, नैतिकता; हौसला
N. B. ( see Nota Bene ) Moratorium शोध-विलंबकाल ऋण-स्थगन
Naked debenture अप्रतिभूत ऋणपत्र Mortar मॉर्टर नामक छोटी तोप
Naming नामोल्लेख Mortgage बंधक, प्राधि-deed बंधकपत्र
Narration वर्णन, आख्यान
N
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Nasal-Non-violent
Nasal अनुनासिक Nascent नवजात, उदीयमान Natal जन्मसंबंधी Nation राष्ट्र National राष्ट्रीय, जातीय National Anthem राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान National debt राष्ट्रीय ऋण National Dietary राष्ट्रीय भोजन-विज्ञान National health राष्ट्रीय स्वास्थ्य Nationalisation राष्ट्रीयकरण Nationality राष्ट्रीयता, जातीयता Native देशी Natural-born citizen जन्मतः नागरिक Natural boundary प्राकृतिक सीमा Naturalisation देशीय-करण Naturalism प्रकृतिवाद Nautical नौकाविषयक, नौपरिवहन-विषयक Naval नौसेना-संबंधी, नाविक Naval attache नाविक सहचारी Navicert पोत-प्रमाणपत्र Navigable नौगम्य, नौतार्य, नाव्य Navigation नीपरिवहन, नौतरण Navy नौसेना, जहाजी बेड़ा Near East "निकट पूर्व", पूर्वी यूरोप Needlework सूचीशिल्प, सूचीकार्य, सूईकारी Negative नकारात्मक विलोमा ऋण Negative attribute विलोम गुण Negatived निषेधित Negative number ऋण-संख्या Negative quantity Fucifer Negative vote नकारात्मक मत Negation निषेध Negotiable हस्तांतरणीय, परक्राम्य Negotiate समझौता-वार्ता करना Negotiation परक्रामण, हस्तांतरण; पत्रालाप Nepotism स्वजन-पक्षपात, कुनबापरस्ती Neptune वरुण Nerve स्नायु Nervous system स्नायुसंस्थान, स्नायुमंडल Net शुद्ध वास्तविक -income शुद्ध आय -loss शुद्ध हानि, वास्तविक हानि -profit शुद्ध लाभ -price शुद्ध मूल्य Neuralgia वातशुल Neurasthenia aist alda Neutral तटस्थ Neutralisation arefroitor Neutrality तटस्थता New-deal नव्य अर्थनीति ( अमेरिकाकी)
News समाचार News agency समाचार समिति, वृत्त-संस्था News commentary संवाद-आलोचना News correspondent संवाददाता News despatch समाचार-प्रेष ,, recl समाचार-फलक News relay समाचार-प्रसारण Newsman सांवादिक Newspaper समाचारपत्र News sheet समाचार-पत्रक Nib लेखनी-जिह्वा Nihilism शून्यवाद, निषेधवाद No-confidence motion अविश्वासका प्रस्ताव Noes असहमत, 'ना' पक्ष, नाकारी Nomad यायावर, भ्रमणशील (जाति), खानाबदोश , No-man's land नि:स्वामिक भूमि, नीराज्यिक भूमि Nomenclature नामपद्धति Nominal नाममात्रका, अभिहित Nominal capital अभिहित पूँजी Nominal cost अभिहित परिव्यय Nominal price नाममात्रकी कीमत
,, value अभिहित मूल्य Nominated मनोनीत Nomination paper नामनिर्देशन-पत्र, नामांकनपत्र मनोनयन पत्र Nominee मनोनीत व्यक्ति Non-aggression pact अनाक्रमण संधि Non-bailable अप्रतिभाव्य, अलग्नक मोच्य Non-cognizable अहस्तक्षेप्य, अननुसंधेय Non-combatant अयोद्धा Non-cumulative असंचयी Non-commissioned बेसनद, अनायुक्त -officer अनायुक्त अधिकारी Non-entity नगण्य व्यक्ति Nonferrous लौहेतर, लौहविहीन (धातु), अलोह Non-gazetted अराजपत्रित Non-metallic अधात्वीय Non-observance न बरतना, अपालन Non-official गैर-सरकारी Non-party conference निर्दल सम्मेलन Non-payment न चुकता करना, अशोधन (ऋणादिका) अदातृत्व, अप्रदानता (करादिको) Non-productive अनुत्पादी Non-recurring expenditure अनावत्ती व्यय Non-regulation province fara a festa Non-resident अनावासिक Non-sovereign state पूर्ण प्रभुत्वहीन राज्य Non-stop बिना रुके, अविराम Non-transferable अपरावर्तनीय, अहस्तांतरणीय Non-violent resistance अहिंसात्मक प्रतिरोध
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Non-votable-Onus
९६२ Non-votable expenditure अमतदेय व्यय Obligation and right दायित्व और अधिकार Normal सामान्य
Obligatory अनिवार्य, अवश्यकरणीय, बाध्यतामूलक Normal, Below सामान्यसे नीचे
Obliterate नष्ट करना, अभिलोपन करना Normal school प्रशिक्षण विद्यालय
Oblivion, Act of विस्मृति व्यवस्था Nota bene पुनश्च, विशेष सूचनार्थ (धि० सू०), इदमपि Obnoxious अप्रीतिकर अवधेयं (इ० अ०)
Observation पर्यवेक्षण Notary लेख्य प्रमाणक
Observation post (पर्यवेक्षण) चौकी Notation स्वरलिपि, संकेत प्रणाली
Observatory वेधशाला Note टिप्पणी; लघुलेख संक्षिप्त अभिलेख पाठसूत्र, पत्रमुद्रा Observer पर्यवेक्षक प्रेक्षक Noted उल्लिखित ख्यातिप्राप्त अभिलिखित
Obtuse angle अधिक कोण Notice सूचना; सूचनापत्र
Obverse n. सीधी तरफका या सामनेका भाग, चेहरा, Notice-board सूचना-पट्ट
तथ्यका दूसरा पक्ष या भाग, adj. सीधा Notice in writing लिखित सूचना
Occidental पाश्चात्य Notice of motion प्रस्ताव-सूचना
Occupancy right भोगाधिकार, दखीलकारी Notice to quit निष्कासन-सूचना
Occupation व्यवसाय, धंधा; अधिवास Notification अधिसूचना
Occupation, Army of आधिपत्य करनेवाली सेना, Notified area अधिसूचित क्षेत्र
अधिकारिका सेना Notless than से अन्यून
Occupation-franchise व्यावसायिक मताधिकार Nucleus केंद्रबिंदु, नाभि-हृदय
Octagon अष्टभुज Nudism नग्नतावाद
Octavo अठपृष्ठी, अठपेजी Nuisance कंटक, बाधक, बाधा
Octroi barrier उद्घाट, चुंगी-चौकी Null and void शुन्य और व्यर्थ
Octroi-tax चुंगीकर Nullification अभिशून्यन
Off duty कार्यसे छुट्टीपर Nullify रद्द करना
Offence अपराध, आक्षेपआक्रमण; उत्कोपन, आकोपन Numbered संख्यात, जिसपर नंबर डाला गया हो Offence against law विधि-विरुख अपराध Numerical order संख्याक्रम
Offence, Capital मृत्युदंड योग्य अपराध Numismatics मुद्राविज्ञान
Offensive expression आक्षेपवचन, आक्षेपपद, रोषNurse n. उपचारिका, परिचारिका
कारी पदावली, अप्रीतिकर शब्दावली Nurse v. परिचर्या ( परिचारण) करना
Offer प्रस्ताव, दित्सा-प्रस्ताव Nursery जखीरा, बीजोद्यान, पौधशाला; शिशुशाला, Office पद कार्यालय शिशुभवन
Officer in charge प्रभारी अधिकारी,अवधायक अधिकारी Nutrition पोषण
Official adj. सरकारी, शासकीय; n. अधिकारी Nux Vomica कुचला
Official party राजकीय पक्ष, सरकारी पक्ष
Official Reporter राजकीय प्रतिघेदक, सरकारी प्रतिOasis हरितभूमि, मरुद्वीप, शादल
वेदक Oath of allegiance निष्ठाकी शपथ
Official residence पदावास Oath of fidelity एकांतनिष्ठाकी शपथ
Official visit शासकीय परिदर्शन आधिकारिक आगमन Oath of office पदकी शपथ
Officiating स्थानापन्न Oath of secrecy गूढ़ताकी शपथ, गोपन-शपथ Offset अनुलंब Oath, to administer शपथ देना
Offtake निकासी; निष्क्रम-नलिका Obdurate दुराग्रही
Oil-tanker तैल-पोत Obedient servant, Most परम आज्ञाकारी सेवक Oligarchy अभिजाततंत्र, अल्पजनतंत्र Obituary notice मृत्यु-समाचार
Omission विलोपन, विलोप, (दे० विधि-निषेध), Object लक्ष्य, अभिप्राय
अनाचरण Object and reason उद्देश्य और हेतु
Omnipotent सर्वशक्तिसंपन्न Objection, technical शाब्दिक आपत्ति, प्राविधिक Omnipresent सर्वव्यापक आपत्ति
Omniscient सर्वश Objective वस्तुरूप, वस्तुगत; बाह्य
On average pay औसत वेतनपर Obligation आभार दायित्व अवश्य करणीयता, बंधन,On service राजसेवामें, राजप्रेष्य बाध्यता
Onus भार, दायित्व
जगापरण
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Operation शल्यक्रिया, शल्योपचार, चीरफाड़; व्यापार Operation, military सामरिक कार्य
९६३
Open General Licence सर्वमुक्त साधारण अनुज्ञापत्र Original draft मूल प्रारूप
Open door policy मुक्तद्वार नीति Opening balance प्रारंभिक रोकड़ Opening entry प्रारंभिक प्रविष्टि Open market खुला बाजार Opera गीति नाट्य
Operate शल्यक्रिया करना; कार्यसंपादन करना, प्रवतित करना
Operator चालक
Opinion, Favourable अनुकूल मत Opportune समयानुकूल Opportunism अवसरवादिता, अबसरबाद Opportunist अवसरवादी
Opposition विरोधी पक्ष, प्रतिपक्ष; विरोध Opposition bench विरोधी पौठ, विरोधी दलपंक्ति Opposition, Leader of the विरोधी पक्षका नेता,
प्रतिपक्ष नेता
Optics नेत्र विज्ञान, दृष्टिविज्ञान, काशिकी
Optimism आशावाद
Optimist आशावादी
Option विकल्प
Optional वैकल्पिक, ऐच्छिक
Oracle देववाणी, आकाशवाणी Oral evidence मौखिक साक्ष्य
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Orator सुवक्ता, वाग्मी
Orchestra वादकदल, वादकवृन्द; वाद्यस्थान; वृंदवाद्य,
समूहवादन
Ordeal अग्नि परीक्षा
Order आदेश, आज्ञाः क्रमः व्यवस्था Order, By आज्ञानुसार, की आज्ञासे Order-form प्रेषणादेश पत्र Order in Council परिषद्-आदेश Order, Law and विधि और व्यवस्था Order of merit योग्यतानुसार, योग्यता क्रमसे
Order, Order शांति ! शांति !
Order, Standing स्थायी आदेश
निर्माणशाला
Ordnance Stores अस्त्रभंडार
Organ अवयव, इंद्रिय; मुखपत्र Organic सेंद्रिय
Organisation संघटन
Organiser संघटनकर्त्ता, आयोजक Orgasm कामोन्माद, मदनलहरी Oriental प्राच्य, पौर्वात्य Original budget estimate आयव्ययका प्रथम
अनुमान
६१
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Open General-Panel of
Original jurisdiction मूल अधिकार क्षेत्र Originating chamber उद्भव वेश्म Originator आरंभक ( प्रवर्त्तक ) Orphanage अनाथालय
Orthography वर्णविचार
Outdoor patient बाह्य रोगी, बहिर्वासी रोगी Outflank पीछेसे हमला करना Outgoing पदमुक्त Outhouse बाह्यगृह
Outlet निर्गम-द्वार, निकास Outline रूपरेखा, स्थूल रूप
Out of date दिनातीत, तिथ्यतीत Outpost बाहरी चौकी, नाका
Outskirts नगरोपांत, ग्रामांत, उपकंठ, परिसर Ovary डिंबाशय
Overall deficit कुल घाटा
Overdraw ( जमा किये हुए रुपयोंके हिसाब में से) क्षमता
से अधिक लेना या निकालना Overdraft अधिविकर्ष Overloaded afanıkta
Over-lord अधिराज
Ordinance अध्यादेश
Packet संवेष्टिका
Ordnance factory गोलाबारूदका कारखाना, शस्त्र Packing charges संवेष्टन-व्यय
Pact समझौता
Paid वैतनिक
Paid up Capital प्राप्त पूँजी, चुकता मूलधन Painting चित्रण, रंग लगाना, रंजन Palatal तालव्य
Overpayments अधिक भुगतान
Overpopulation अतिप्रजनन, अतिजनसंख्या
Overproduction अत्युत्पादन
Overruled रद्द कर दिया गया, विपर्यस्त; अधिविक्षेपित;
अध्यनुशासित
Over-sea समुद्र-पार
Overseer अधिकर्मी, कार्य निरीक्षक
Ovum fea
Own स्वामित्व होना; स्वीकार करना Owner स्वामी
Ownership, Limited सीमित स्वामित्व
P Pacification शांतिकरण, समीकरण Pacifism शांतिवाद
Pacifist शांतिवादी
Packer संवेष्टक
Paleo Botany पादप शास्त्र
Pan Islamism सर्व - इसलामवाद
Panel लकड़ी आदिका चौकोर टुकड़ा, दिल्ला; चौकोर
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स्थान
Panel of Chairmen सभापति तालिका
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९६४
Panic--Pen-down Panic आतंक
Passage money मार्गव्यय Pantheism सर्वेश्वरवाद
Passed पारित, स्वीकृत; उत्तीर्ण Papacy पोपपद
Passive resistance निष्क्रिय प्रतिरोध Papal state पोप-राज्य
Passport पारपत्र, निष्क्रमपत्र, राहदानी Paper currency पत्र चलार्थ
Pasteurised milk कृमिशोधित दुग्ध Paper Currency reserve पत्र-चलार्थ रक्षितकोष Pastureland गोचरभूमि, पशुचर भूमि Paper-Setter प्रानिक
Patent एकस्व Paper-weight पत्रभारक, पत्रचाप
Patent medicine एकस्व भेषज Papers पत्रजात
Patent, letters एकस्वपत्र par, Above अधिमूल्यपर
Pathalogist निदानशास्त्री Par, At सममूल्यपर
Patriarchal पितृसत्तात्मक Par, Below बट्टेसे, अवमूल्यपर
Patriarchy पितृसत्तात्मक व्यवस्था, पितृतंत्र Par value सममूल्य
Patricide पितृहत्या Paradox विरोधाभास
Patrimony पैतृक धन Parachute हवाई छतरी
Patrol n. परिरक्षी; परिरक्षक, पतरोल; v. रक्षार्थ भ्रमण Paragraph कंडिका, अनुच्छेद, प्रस्तर
करना, परिक्रमण करना, गश्त लगाना Parallel समानांतर समकक्ष
Patron संरक्षक Parallel government प्रति सरकार, समकक्ष सरकार |
| Patronage संरक्षण Parallelogram समानांतर चतुर्भुज
Pauper suit अकिंचनवाद Paralyse ठप करना, गतिहीन या संशाशून्य बना देना Pawn आधि Paramount power सार्वभौम सत्ता, सर्वोच्च सत्ता Pawner आधिकर्ता Parapet मुंडेर
Pawnee आधिग्राही Parasite परजीवी, परोपजीवी, परांगभक्षी
Payable देय Parboiled rice भुजिया चावल
-at sight दर्शनेदेय-to bearer वाहकदेय; Parcel पोट, पार्सल
-to order आदेशदेय Pardon क्षमा
Payee प्राप्तक, प्राप्तिकर्ता Parity समार्हता, बराबरी
Payer दाता Park उपवन, संवाह (पुराना शब्द)
Paymaster aaagiat Parliament संसद
Payment भुगतान, शोधन Parliamentary government पार्लमेंटरी शासन Payscale वेतनमान Parliamentary language संसदीय भाषा, संयत या| Paysheet वेतन-फलक शिष्ट भाषा
Peace gifa Parliamentary secretary संसद्-सचिव, सभासचिव Peace offensive utfaggia Parody अनुकृति काव्य
Peaceful penetration शांतिपूर्वक प्रवेश या अधिParole प्रतीतिवचन सप्रतिबंध मुक्ति, साधि मुक्ति, सबंध | कार करना
Peak production चरमोत्पादन Parling पदव्याख्या
Peasantry कृषिवर्ग Partially आंशिक रूपसे, अंशतः
Pecuniary धन संबंधी Partially excluded areas अंशतः अपवर्जित क्षेत्र Pedagogical शिक्षाशास्त्रीय Particulars विवरण
Pedagogy शिक्षणशास्त्र Parties concerned संबद्ध पक्ष
Pedigree वंशावली, कुलपरंपरा Partition विभाजन
Pedigree cattle बढ़िया नस्लके पशु Partnership wifiar
Pegging Act स्थानाबद्धकारी अधिनियम Parts of speech शब्दभेद
Penal दंडविषयक दंडनीय Party पक्ष, दल
Penal code दंड संहिता Party-caucus दलकी अंतगोष्ठी
Penal settlement दंडितोंकी बस्ती Party in power अधिकारारूढ़ दरू
Penalize दंडित करना Pass v. पास होना या करना, उत्तीर्ण होना; पारित करना Penalty दंड, शास्ति निग्रह Pass n. प्रवेशपत्र; पारणका दरी, दर्रा
pending विचाराधीन; लंबित; लंबमान Passage लेखांश
Pen-down strike लेखनीकर्म-रोधन
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९६५
Peninsula -Point
Peninsula grata
Physically fit शरीरसे योग्य Pen-name साहित्यिक उपनाम
Physiognomy fafagiat Penology दंड-विज्ञान
Picket फौजकी छोटी टुकड़ी Penpicture शब्दचित्र
Picketing धरना देना, प्रवेशरोधन Pension निवृत्तिवेतन, पूर्व सेवावृत्ति
Picnic party वनभोज, प्रमोदगोष्ठी Peon पत्रवाह
Piecemeal खंडशः -book पत्रवाइपंजिका
Piers पोतघाट Peoples' war लोकयुद्ध
Pigeon-hole कोष्ठखंड Per capita प्रतिव्यक्ति पीछे
Pilot चालक Percentage प्रतिशतता
Pin शूक, कंटिका Per unit प्रति एकक
Pin-cushion शूकधानी Peremptory order अनुलंघनीय आदेश
Pioneer अग्रगामी Perimetre परिमिति
Pipette नश्लिका Period अवधि, -of service सेवाकाल
Piracy जलदस्युता Periodical सावधिक, नियतकालिक; सावधिक पत्र,
Pirate जलदस्यु सामयिक पत्र
Pitch धावनस्थली; उच्चतम स्थान Permanent settlement स्थायी व्यवस्था, स्थायी Placard भित्तिपत्रक भूप्रबंध
Placenta अपरा, जरायुमूल, पुरइन Permanent tenant स्थायी कृषक
Plaint वाद-पत्र Permission अनुमति, प्रानुमति
Plaintiff वादी Permit gigafaqa
Plan योजना, उपाय Permutation प्रस्तार क्रमचय, क्रमविस्तार
Plane figure समक्षेत्र, समतलाकृति Perpendicular लंब
, surface समतल Perpetual शाश्वत
Planning आयोजन, नियोजन Perpetual succession शाश्वत उत्तराधिकार
Plant उद्योग-यंत्रावली, यंत्र-समुच्चय Perpetuity Hiaca
Planter रोपक Perquisite अनुलाभ, परिलब्धि
Plaster पलस्तर, स्तरण Persona grata ग्राह्य व्यक्ति
Play खेल; नाटक, अभिनय Persona non-grata अग्राह्य व्यक्ति
-ground खेलका मैदान, खेलाधार Personal Assistant वैयक्तिक सहायक, निजी सहायक | Plea तक प्रतिपादन बहाना Personal bond वैयक्तिक बंध
Plea, Admissible ग्राह्य तर्क Personality aylanica
Plead पक्ष-समर्थन, वकालत करना, अभिवचन करना Personal law वैयक्तिक विधि, स्वीय विधि
Plead guilty do guilty * Personnel सदस्यगण, कर्मचारिगण
Pleader अभिवक्ता, वकील Pertinent संगत
Pleading अभिवचन Pervasion व्याप्ति
| plebian साधारणजन Perverse तर्कविरुद्ध विकृत, उलटा
Plebiscite जनमतसंग्रह Pessimism दुःखवाद, नैराश्यवाद
Pledge प्रतिज्ञा, बंधन Petit bourgeois farat fetar
Plenary session पूर्णाधिवेशन Petition प्रार्थनापत्र, याचिका; अर्जी
Plenipotentiary पूर्णाधिकार प्राप्त दूत Petrology खनिज तैलविज्ञान; शिला विज्ञान
Plot दुरभियोजन भूक्षेत्र कथानक Phantom मनोलीला, छायापुरुष
Plural vote अनेकसंख्यक मत Pharmacopoeia aitty Thorstia
Pluralism अनेकवाद Pharmacy भेषजालय, औषधालय
Plurisy पार्श्वशूल Philology 191fara
Plutarchy धनिकतंत्र Phonetics स्वर-विज्ञान
Plutocratic democracy धनिकारूढ़ लोकतंत्र Phoney war नकली युद्ध, झूठा युद्ध
Ply wood परतदार लकड़ी Photo छायाचित्र
Pneumonia फुफ्फुस-प्रदाह Phraseology पद-विन्यास; शब्दावली
Point n. बिंदु: प्रश्न; बात; संकेत; विषय Physical शारीरिक, भौतिक प्राकृतिक (भूगोल) 1 Point v. निर्दिष्ट करना, लक्ष्य करना
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Point of-Preside Point of order नियमापत्ति, विधानका प्रश्न Posture अंगविन्यास, अंगस्थिति, आसन Poise अंगसौष्ठव.
Potentiality क्षमता संभाव्यता; दवाकी शक्ति (प्रभावPolitburo केंद्रीय समितिकी अंतरंगगोष्ठी, नीतिनिर्धा- | कारिता) रिणी समिति (रूस और अन्य देशोंकी कम्युनिस्ट | Poultry keeping कुक्कुटादिपालन पार्टियोंकी)
Pound पशुनिरोध-गृह, पशुनिरोध-शाला Politic, Body राज्य-संस्था
Poundage निरोध-शुरुक Police आरक्षी, आरक्षक, पुलिस,-force आरक्षक बल, Power शक्ति शक्तिशाली देश; अधिकार -guard पुलिस गारद
Power, Conferment of अधिकार प्रदान Policy बीमापत्र कार्यपद्धति
Power, Exercise of अधिकार-प्रयोग Polish 3119
Power politics अधिकारार्थ कूटनीति; बड़े राष्ट्रोंकी Polity राज्यपद्धति
कूटनीति Poll मतदान
Power of attorney मुख्तारनामा, प्रतिनिधि-पत्र Poll tax मुंड-कर, व्यक्तिकर
Power, To asaume अधिकार ग्रहण करना Polling booth मतदान-उपकेंद्र, मतदानकक्ष Practice व्यवहार, अभ्यास; डाक्टरी, वकालत आदिका Polling station मतदान केंद्र
काम Polygamy aglaaie
Preamble प्रस्तावना Polyglot बहुभाषाश, बहुभाषाविद्
Precaution पूर्वोपाय, पूर्वावधानता Polygon बहुभुज
Precautionary अनिष्ट निवारक, पूर्वावधानता हेतुक Pontiff रोमन धर्मगुरु (पोप)
Precedence पूर्वता, पूर्ववर्तिता, पूर्वस्थानीयता Pool गोलक
Precedent पूर्वदृष्टांत, पूर्वोदाहरण, नजीर, Pooling एकत्रीकरण, समूहीकरण
Precept उपदेश, निदेश Popular Assembly जन-प्रातिनिधिक सभा
Precluded प्रतिबाधित Popular front जन-मोरचा
Precursor पुरोगामी Port पोताश्रय, बंदरगाह
Predecessor पूर्वाधिकारी, पूर्वंग Portfolio मंत्रीका कार्य-विभाग
Predominant प्रबल, सर्वतोऽधिक, सर्वप्रमुख Portrait प्रतिकृति
Pre-eminent सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम Pose ठवन, मुद्रा
Pre-emption पूर्वक्रय Position स्थिति, स्थान; पदवी; योग्यता
Pre-emption, Right of पूर्वक्रयका अधिकार Positive विध्यात्मक, निश्चयात्मक
Prefabricated house factory प्रस्तुतांग-गृहPositivism प्रत्यक्षवाद
निर्माणशाला Possession अधिकार, कब्जा, स्ववश
Preface प्राकथन, प्रस्तावना Post पद: डाका स्तम्भ स्थान, जगह
Preference अधिमान, अधिमान्यता, वरीयता तरजीह Postal order पत्रालयिक आदेश, डाकीय आदेश
Preferential treatment पक्षपातपूर्ण (या अधिमान्यता Postdated उत्तरतिथित
युक्त) व्यवहार Posted नियत, नियुक्त पत्रालयित
Pregnant सगर्भा, गर्भवती अर्थगर्भ से युक्त से गर्मित Post-entry पश्चाद् उल्लेख
Prehistoric प्रागैतिहासिक Poster भित्तिविज्ञापनक, विज्ञापनपत्रक
Prejudice प्रतिकूल प्रभाव, पूर्व धारणा Posterity भावी संतान
Prejudiced प्रतिकूल धारणायुक्त, पूर्व धारणान्वित Post-graduare study स्नातकोत्तर अध्ययन Prelude मंगलाचरण Posthumous मृत्यूत्तर जात, मृत्यूत्तरप्राप्त
Premises गृहपरिभाग, गृहोपांत परिसर Posting नियुक्ति, स्थापन; पत्रालयित करना
Premium अधिशुल्क बीमेकी किस्त Post-master पत्रपाल, डाकपति
Prerogative विशिष्टाधिकार, परमाधिकार Postmaster General महापत्रपाल, महाडाकपति
Prescribed प्रदिष्ट; नियत विहित Post-mortem शवपरीक्षा
Prescription औषधनिर्देश चिरभोग, चिरभोग-जनित " room चीरघर, शव परीक्षणालय अधिकार Postnatal period प्रसवोत्तर काल
Present v. उपस्थित करना, प्रस्तुत करना; n. उपहार Postman पत्र वितरक, डाकिया
भेंट; adj. उपस्थित विद्यमान, वर्तमान Post office पत्रालय, डाकघर
Preservation परिरक्षण Post-war युद्धोत्तर
Preservation of fruits फल-परिरक्षण Post-war economy युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था
Preside पीठासीन, सभापति होना
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९६७
Presided by-Pronote Presided by अध्यक्षतामें, सभापतित्वमें
Privy council अंतरंग परिषद्, ब्रिटिश साम्राज्यका Presidency सभापतिका पद या उसकी कार्यावधि; सर्वोच्च न्यायालय आहाता, महाप्रांत (ब्रिटिश शासनकालमें)
Privy purse राजाधिदेय President सभापति राष्ट्रपति
prize पारितोषिक President, Deputy उपाध्यक्ष, उपसभापति
Probation परीक्षणकाल President-elect मनोनीत सभापति
Probation officer परीक्षाकालीन अधिकारी, अस्थायी Presiding officer अधिष्ठाता ।
अधिकारी Presidium सोवियत स्थायी कार्य-समिति, प्रेसीडियम | Probationer परीक्ष्यमाण Prevention of crime अपराध-निवारण
Pro bono publico सर्वजनहिताय Press मुद्रणालय; समाचारपत्र (सामूहिक रूपसे) Problem समस्या Press conference पत्र प्रतिनिधि-सम्मेलन
Procedure कार्यपद्धति, कार्यविधि, ( कार्य-प्रक्रिया) Press information bureau पत्रसूचना विभाग Procedure, Civil व्यवहार-विधि, व्यवहार प्रक्रिया Press material प्रकाशन-सामग्री
Procedure, Criminal defarer Press note समाचार-सूचना, प्रेस विज्ञप्ति
Proceedings लिखित विवरण, कार्यवाही Press and platform समाचारपत्र और सभाएँ Process प्रक्रिया, आदेशिका Presumption अनुमान, धारणा
Process of unification एकीकरणकी प्रक्रिया Presumptive आनुमानिक
Process-fee आदेशिका-शुल्क Prevention of Cruelty to Animals Act 431 Proclamation उद्घोषणा निर्दयता-निवारण अधिनियम
Proclamation of emergency आपातको उद्घोषणा, Preventive detention रोधात्मक कारावास, निवारक संकटकालीन स्थितिकी घोषणा निरोध
Proconsul उप-वाणिज्यदूत Preventive messures निरोधो व्यवस्था
Procurement वसूली ( अन्नकी), अन्नोपलब्धि Previous consent पूर्व सम्मति
Product गुणनफल; उत्पादित वस्तु, उत्पादन Previous sanction पर्व सम्मोदन, पूर्व स्वीकृति Production उत्पादन Prewar युद्ध-पूर्व
Production of documents लेख्य-प्रस्तुति Price-control मूल्य-नियंत्रण
Productivity उत्पादनक्षमता, उर्वरता Prima-facieप्रथम दृष्टितः, आपाततः
Profession वृत्ति, व्यवसाय, पेशा Prime minister प्रधानमंत्री
Professional Conduct व्यावसायिक आचरण Primer प्रवेशिका
Professor प्राध्यापक Primitive society आदिम समाज
Proficiency निपुणता Primogeniture अग्रजाधिकार
Profit लाभ Princes' chamber नरेन्द्रमण्डल
Profit, Excess afafiti TH Principal (money) मूलधन
Profit-sharing scheme लाभ-विभाजन योजना Principal adj. मुख्य, प्रधान; n. आचार्य
Programme कार्यक्रम, ( पुरोगम) Printer मुद्रक
Progressive increase उत्तरोत्तर वृद्धि Prior claim प्राथमिक या अग्रिम दावा
Progressive tax क्रमशः वर्धमान कर Priority अग्राधिकार प्राथमिकता
Prohibited निषिद्ध, प्रतिषिद्ध Priority list प्राथमिकता-सूची
Prohibition मद्य-निषेध प्रतिषेध Prism त्रिपार्श्वकाच
prohibition, writ of प्रतिषेध-लेख Prison कारावास बंदीगृह
Prohibitory निषेधक, प्रतिषेधक Prison von कैदी गाड़ी, बंदीयान
Project परियोजना Prisoner dat
Projection प्रक्षेपण Privacy एकांतता गुप्तता; एकांतस्थान
Proletariat सर्वहारा वर्ग Private निजी; n. सामान्य सैनिक
Promissory note प्रतिज्ञापत्रमुद्रा; वचनपत्र Private enterprise निजी उद्यम
Promotion पदोन्नति कक्षोन्नति उन्नयन Private member गैर-सरकारी सदस्य
Prompt क्षिप्र Private secretary अंतरंग-सचिव, निजी सचिव Promulgate जारी करना, प्रवर्तन करना, प्रख्यापन Privation कष्ट, असुविधा
करना, विघोषित करना Privilege विशेषाधिकार प्राप्ताधिकार प्राप्त सुविधा Promulgation प्रवर्तन, विघोषण Privileged classes विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग
Pronote ऋणबंधन-पत्र ६१-क
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Proof-Purpose
Proof प्रमाण; शोध्य पत्र
• Proof reader ईक्ष्यवाचक, शोध्य शोधक Propaganda प्रचारकार्य, प्रचार Propagandist प्रचारक
Protest प्रत्याख्यान Protocol मूलपत्र, मूलसंधिपत्र Protractor चाँदा, कोणमापक Provide निवेशित करना
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Propagate प्रचार करना Property संपत्ति; विशेषता, गुण
Property, movable and immovable अचल संपत्ति
Property tax संपत्तिकर
Prophet देवदूत, पैगंबर
Prophylactic Drug रोगनिरोधक द्रव्य
Propitiation प्रसादन
Proportion' 1 representation आनुपातिक प्रति- Public debt सरकारी ऋण
निधित्व
Proposal प्रस्थापना Proposer प्रस्थापक
Proposition प्रमेय Proprietorship स्वामित्व Prorogue सत्रावसान; ( विसर्जन )
Proscribe जब्त करना, प्रतिषिद्ध करना, वारित करना Prosecution प्राभियोजन; प्राभियोक्ता पक्ष इस्तगासा Prosecutor, public राजकीय प्राभियोक्ता Prosody छन्दःशास्त्र
Prospective भावी
Prospectus विवरणपत्रिका (पाठ्यक्रमादि); नियमावली Prostitution वेश्याकर्म, वेश्यावृत्ति; दुरुपयोजन Protection of industries उद्योगोंका संरक्षण Protective duty संरक्षण कर Protectorate संरक्षित राज्य
provided परंतु
Provided that पर, उपबंध यह है कि
Provident fund भविष्यनिधि, संचित कोष, संचित
कोष
Province प्रांत, प्रदेश; अधिकारक्षेत्र, कार्यक्षेत्र
Provincial autonomy प्रांतीय स्वराज्य; स्वायत्त
शासन
Provincial Homeguards प्रांतीय रक्षादल Provincialism प्रांतीयता
Provision निवेश; रसद, खाद्यसामग्री; उपबंध Provision of law विधि-निवेश
निधि, सुविधायक कोष; संभरण निधि Provident fund, Contributory अंशदायी संचित - Pump उद्वहन यंत्र
Pulse दाल; नाही; स्पंदन
Pun श्लेष
Provisional government अस्थायी सरकार Provisional programme अस्थायी कार्यक्रम Proviso प्रतिबंध, प्रतिबंधात्मकवाक्य, शर्त, परंतुक Provost Marshal सैनिक न्यायाधीश
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Proximity सन्निकटता, सान्निध्य
Proxy प्रतिपुरुष, प्रतिपत्री Pseudonym ( स्यूडोनिम ) छद्मनाम
Psychiatrist मनोरोग चिकित्सक Psychology मनोविज्ञान Psycho-analysis मनोविश्लेषण Puberty तारुण्यागम
Public accounts committee लोकलेखा समिति Public activity लोक कार्यकलाप
Public affairs लोककार्य
Public concern, matter of लोकविषयक बात Public criticism सार्वजनिक आलोचना
Public demands सार्वजनिक अभियाचना Public entertainment लोक प्रमोद Public function सार्वजनिक कृत्य Public good लोकहित Public health लोक-स्वास्थ्य
Public holiday सार्वजनिक छुट्टी Public notification सार्वजनिक अधिसूचना Public nuisance लोककंटक, लोकपीडक; लोकपीडन Public opinion लोकमत
Public order सार्वजनिक व्यवस्था
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Public relation officer जनसंपर्काधिकारी Public Safety Act जनरक्षा अधिनियम Public servant राजकर्मचारी, लोकसेवक Public Service Commission लोकसेवा आयोग Public utility services लोकोपयोगी सेवाएँ, जनोपयोगी सेवाएँ
Publicist सार्वजनिक विषयोंपर लेखादि लिखनेवाला Publicity प्रसिद्धि, लोकविश्रुतिः प्रकास, प्रचार, जनसंवेदन
Public Works Dpt. लोकनिर्माण विभाग Puisney Judge छोटा जज, उप-न्यायाधीश Pulley घिरनी, गड़ारी, धिरी Pulsation स्पंदन
punching छिद्रण
Punctual समयनिष्ठ Punctuation fagina Punitive दंडात्मक Punitive tax दंडकर, ताजीरी कर Purchasing power क्रयशक्ति Purge परिष्करण, परिष्कार, सफाई Puritanism विशुद्धिवाद, कठोरतावाद Purport अभिप्राय
Purporting to be done कर्तुमभिप्रेत Purpose, charitable पुण्यार्थ
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- ९६९
Pyorrhea शीताद ( पुराना शब्द ) Q
Quadrangle चतुष्कोण Quadrilateral चतुर्भुज Quaint विलक्षण
Quantum प्रमात्रा
Quarantine post रोगप्रतिबंध निरोधा, निरोधा Quarter चतुर्थांश; त्रिमास; आवास, निवास; आश्रय, क्षमादान; मुहक्ला, बस्ती
Quarterly त्रैमासिक ( विवरण इ० ); पु० त्रैमासिक पत्र Quarter-master-general प्रधान रसद व्यवस्थापक,
प्रधान सैन्यवास व्यवस्थापक Quarto चौपेजी, चौपृष्ठी Quasi अर्ध
Quell शमन करना Query प्रश्न
Qualification योग्यता, अर्हता
Qualified acceptance विशेषित स्वीकृति, सप्रतिबंध Rating शुल्क निरूपण स्वीकृति
Questionaire प्रश्नावली- पत्रक Quickening अतिसर्पण
Quinquennial पंचवर्षीय
Quisling विभीषण, जयचंद, शत्रुपोषी Quittance उन्मोचन
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Quorum गणपूर्ति, कार्यवाह संख्या
Quota नियतांश, वंटितांश; अभ्यंश
Quotation अवतरण; बाजारभाव ( see rate-quo
tations )
Quotient भागफल, भजनफल Quo warranto अधिकार पृच्छा
R
Race प्रजाति
Racial discrimination प्रजातिगत भेदभाव
Rack afe
Radiation दीप्तिप्रसारण; (ताप, प्रकाश या विद्युत् )
विकिरण
Radical आमूल परिवर्तनवादी, उग्र सुधारवादी
Radicalism आमूल सुधारवाद
Radio programme रेडियोवार्ता, आकाशवाणी-कार्यक्रम
Radio transmitter बेतार यंत्र
Radius अर्धव्यास, त्रिज्या
Raid धावा, छापा Raider आक्रमणकारी Railway रेलवे, अयोमार्ग
Rally एक होकर खड़े हो जाना, समवेतन, उपस्थान,
समाहृति, समागमन ( बालचरोंका )
Rampart प्राकार
Rancour अतिद्वेष, अतिद्रोह
Ranger वनपाल
Rank श्रेणी, पदवी, पदश्री
Rank and file समस्त सामान्य सैनिक; सामान्य जन Ransom निष्कृतिधन, ( पनहा- भोजपुरी ) Ratable करयोग्य
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Rate उपशुल्क, उपकर; दर; अनुपात; गति
Pyorrhea-Reconnoitring
Ratification अनुसमर्थन, पुष्टिकरण - of boundaries सीनासंशोधन Rational युक्तिमूलक
Rationalisation of industry उद्योग-समीकरण; उद्योगकी वैज्ञानिक व्यवस्था; अभिनवीकरण Rationing समवितरण, नियंत्रित वितरण, खुराकबंदी Reactionary प्रतिक्रियावादी, प्रतिगामी, प्रतिक्रियात्मक Reader पाठक; वाचक; पाठोंवाली पुस्तक; पेशकार, उपस्थापक; प्राध्यापक
Reading वाचन, पठन, पठत, पढ़त; अनुमान
Rebate छूट, अवहार Rebellion विद्रोह
Ready money नकद
Real estate स्थावर भूसंपत्ति
Realist यथार्थवादी
Real value वास्तविक अर्हा
Rear पृष्ठभाग Rearguard अनुबल
Rearguard Action पृष्ठरक्षक युद्ध Re-armament पुनरस्त्रीकरण
Recall v. वापस बुलाना, प्रत्याहूत करना; n. प्रत्याहयन Receipt प्राप्ति रसीद, प्राप्तिका
Receiver आदाता; प्रतिग्राहक, ग्राहकयंत्र, ग्राहकांग
Receiving Apparatus ग्राहकयंत्र
Reception Committee स्वागत समिति
Recess अल्पावकाश, मध्यावकाश, विश्रांतिकाल Recession भावका गिरना
Recipient प्राप्तिकर्त्ता, प्रापक
Reciprocal पारस्परिक; परस्परबोधक ( सर्वनाम ) Reciprocity पारस्पर्य, पारस्परिकता
Recital आख्यान, पाठ
Reclaim (भूमिका) उद्धार करना; कुपथसे सुपथपर लाना Recognition प्रस्वीकृति; मान्यता, अभिशा
Recognized प्रस्वीकृतः अभिशात, मान्य Recollection अनुस्मरण
Recommendation अभिस्ताव, सिफारिश, अनुशंसा Recommended अभिस्तावित, अनुशंसित
Recompense प्रतिदान देना
Reconciliation फिर राजी करना, समझौता; समाधान,
संराधन
Reconnaissance गइत, पर्यवेक्षण
Range पर्वतश्रेणी; माला; पंक्ति; विस्तारक्षेत्र, गतिक्षेत्र; Reconnaissance plane टोइक (टोह लेने वाला) विमान Reconnoitring सामरिक दृष्टिसे की जानेवाली जाँच
विस्तार
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Record-Rent controller पड़ताल
Regressive taxation प्रतिगामी कर Record अमिलेख, लेखाजोखा, लिखित विवरण कीर्तिमान | Regular नियमित, नियमशील Recorded अभिलिखित
Regular army नियमित सेना Recording अभिलेखन, ध्वन्यभिलेखन
Regulate विनियमन करना Record-keeper अभिलेखपाल
Regulating Act विनियमन अधिनियम Records कागज-पत्र
Regulation विनियम विनियमन Recoup हानिपूरण करना
Regulator विनियमक Recovery वसूली, प्रत्यादान, प्रतिलब्धि, स्वास्थ्यलाभ Rehabilitation पुनर्वास, पुनर्वासन Recruitment wat
Rehearsal पूर्वाभिनय Rectangle 81477
Reign of terror आतंकका राज्य Rectify संशोधन करना, ठीक करना
Reimbursement भरपायी, अदायगी Rector अधिशिक्षक, मुख्याधिष्ठाता
Reinforcement कुमक भेजना। Recurring expenditure आवर्तक (आवती) व्यय Reinforce पुनः प्रवलित करना; कुमक भेजना Redemption ऋणमुक्ति विमोचन
Reinstallation पुनरभिषेक, पुनःस्थापन Redeemable fàhtsa
Re-instate पुनः नियुक्त करना, बहाल करना Redemption charges विमोचन-व्यय
Reinstatement पुननियुक्ति, पुनःस्थापन, बहाली Red letter शुभा महत्वपूर्ण, स्मरणीय
Rejection अस्वीकरण Red rag भड़कानेवाली ( उद्वेगकारी) वस्तु
Rejoinder प्रत्युत्तर Redtapism दीर्घसूत्रता, अत्यौपचारिकता
Relative सापेक्ष; n. संबंधी, रिश्तेदार Redress प्रतिकार, क्लेशमुक्ति
Relay (पुनः) प्रसारित करना (आकाशवाणीका कार्यक्रम) Reduction कमी, छूट, छंटनी
Release मुक्ति, छोड़ दिया जाना. Redundant व्यर्थ, अनावश्यक
Relevancy सुसंगति Reenactment पुनरधिनियमन, पुनर्विधायन
Relevant सुसंगत Refer निर्देश करना प्रतिप्रेषण करना
Reliability of data आँकडोंकी विश्वसनीयता Referee पंच, खेलपंच, अभिनिर्णायक
Relic स्मृतिशेष Reference निर्देश, अभिनिर्देश
Relief सहाथता, आराम, पदमोचन Reference book आकर-ग्रंथ (संदर्भ-ग्रंथ ), Relief map उभाड़दार नक्शा , उद्गत मानचित्र Referendum निर्वाचकोंके मत लेनेकी पद्धति, जननिर्देश | Relief work आपत्-सहाय-कार्य Reflection gafafora
Relieving officer स्थानग्राही अधिकारी Reflector प्रकाश-परावर्तक, प्रतिफलक
Remand प्रत्यावर्तित करना, लौटा भेजना, हवालात Reflex angle पुनर्युक्त कोण
वापस भेजना Reformatory सुधारालय
Remark अभ्युक्ति, टीका Refrigerator हिमीकर, प्रशीतक
Remedial measures प्रतिकारक उपाय Refugee शरणार्थी
Remedy उपचार, साधन Rrfugee township शरणाथी वस्ती
Reminder अनुस्मारक, अनुस्मरण-पत्र Refund लौटाना, वापसी, (धन) प्रत्यर्पण
Reminiscence संस्मरण Refundable प्रत्यर्पणीय, लौटाये जाने योग्य
Remission परिहार, छूट क्षमादान Refuting, refutation खंडन
Remit भेजना, विप्रेषण Regal राजोचित राजकीय
, a sentence दंडका प्रतिहार करना Regalia राजचिह्न
Remittance विप्रेषित धनः विप्रेषण Regency Council राज्यसंचालक परिषद्
Remitter विप्रेषक Regent प्रतिशासक, राज्यसंरक्षक
Removal हटाना पृथक्करण, Regiment सैन्यदल
Remuneration पारिश्रमिक Region प्रदेश, प्रक्षेत्र
Renaissance पुनरुत्थान Regional Council प्रादेशिक परिषद्
Renegade स्वमतत्यागी, स्वपक्षत्यागी Register पंजी; V. पंजीबद्ध करना
Renewal नवीकरण, नवीनीकरण Registered पंजीबद्ध, रजिस्ट्रीशुदा, निबद्ध
Renovation नूतनीकरण, नवीकरण Registrar लेखकाधिपति पंजीयक, निबंधक
Rent किराया, भाटक, लगान, भूमिकर Registrar (of a University) पीठस्थविर, कुलसचिव | Rental भाटक-राशि, कुल लगान Registration पंजायन, दर्ज करना, निबंधन | Rent controller किराया नियंत्रक
नावाद
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Renunciation-Revenue
Renunciation स्वस्वत्याग, संन्यास Reorganization पुनस्संघटन Repairs मरम्मत, सुभार, संस्कार Reparable सुधारयोग्य, पूरणीय Reparations क्षतिपूर्ति, हरजाना Repatriate स्वदेश प्रतिप्रेषण, पुनः स्वदेश लौटाना Repayable प्रतिदेय, प्रतिशोध्य Repayment प्रतिशोधन Repeal विलोपन करना, विलोपीकरण,निरसन,रद्द करना Repercussion मानसिक प्रतिक्रिया, अप्रत्यक्ष प्रभाव Repetition पुनरुक्ति, पुनरावृत्ति, आवृत्ति Replenishment क्षतिपूर्ति करना Replete विपुल, परिपूर्ण Report विवरण, विवरणी सूचना देना प्रतिवेदन Reporter संवाददाता, सूचक Represent निवेदन करना, प्रतिनिधित्व करना Representation प्रतिनिधित्व, निवेदन Representative n. प्रतिनिधि
-, adj. प्रातिनिधिक, प्रतिनिधिमूलक Repression दमन Reprieve प्रविलंब करना Reprimand भर्त्सना Reprinted पुनर्मुद्रित Reprisal प्रतिपीड़न प्रतिहरण Reproduction पुनरुत्पादन Republic गणराज्य, प्रजातंत्र Republican गणतंत्रात्मक; गणतंत्रवादी Repudiate अनंगीकार करना Repugnance विरोध, घृणा Repugnant विरुद्ध, प्रतिकूल Reputed ख्यात, प्रसिद्ध Request निवेदन, प्रार्थना, अभिज्ञापन Required अपेक्षित Requisite standard अपेक्षित मान Requisition अधिग्रहण, कामके लिए ले लेना, अधि- याचन, अपेक्षण Rescinding निरसन Rescue बचाना, उद्धार Rescue-homes सहायतागृह Research गवेषणा, शोध Reservation आरक्षण, संरक्षण Reserve fund भारक्षित कोप Reserved आरक्षित, संरक्षित Reserved forest आरक्षित वन Reserved subject आरक्षित विषय Reshuffling हेर-फेर, आपरिवर्तन Resident निवासी; आवासिक आवासी प्रतिनिधि Residential जहाँ लोग रहते हों, छात्रावासीय (विश्वविद्यालय) Residential quarters आवासगृह
Residue अवशेष Residuary अवशिष्ट Residuary powers अवशिष्ट शक्तियाँ Resignation पदत्याग, त्यागपत्र; ईश्वरेच्छानुवृत्ति, अविरोधका भाव Resistance प्रतिरोध Resolution निश्चय, संकल्प दृढ़ता Resolve संकल्प करना; दृढ़ निश्चय करना Resort 891914 Resourcefulness साधनसंपन्नता, प्रत्युत्पन्नमतित्व Resources साधन; धन; आय Respectively यथाक्रम, क्रमात् Respite लघु विराम, फुरसत क्षणिक स्थगन Respondent प्रतिवादी Response उत्तर Responsible, severally पृथक्-पृथक उत्तरदायी Responsive cooperation प्रतिक्रियात्मक सहयोग, सापेक्ष सहयोग Rest-house विश्रामभवन, विश्रामालय Restitution प्रत्यानयन, हृतप्रतिदान, प्रत्यर्पण पूर्वस्थितिस्थापन; क्षतिपूर्ति Restoration पुनरुद्धारा प्रतिदान, हृतप्रत्यर्पण, प्रत्यानयन; पूर्ववत्करण Restraint संयम Restrict सीमित करना Restriction रुकावट, निबंधन, (निरोध) Resultant परिणामी Resume one's seat पुनः आसन ग्रहण करना Resumption पुनर्ग्रहण, पुनरारंभ Retail फुटकर Retail price फुटकर मूल्य Retail sale फुटकर बिक्री Retailer खुदरा बेचनेवाला Retire अवसर ग्रहण करना Retired अवसर प्राप्त, अवकाश प्राप्त, निवृत्त Retirement निवृत्ति, अवसर-ग्रहण Retort stand डट्टा Retrenchment Gaaft Retribution प्रतिफल, प्रतिकार Retrospective effect, With पूर्वप्रभाव सहित, अनु दशी प्रभावसहित, गतकालापेक्षी प्रभावसहित Return प्रत्याय: प्रतिफल; विवरण प्रत्यावर्तन, पुनरागमन Returning officer निर्वाचन अधिकारी Revaluation पुनर्मूल्यन Revenue राजस्व, आगमन, मालगुजारी; किसी मदकी
भाय Revenue account आगम-लेखा Revenue court माल न्यायालय Revenue minister मालमंत्री, राजस्वमंत्री
सिप
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S
Revenue year-Scar Revenue year कृषिवर्ष, फसली साल
Rule नियम, शासन Reverberation प्रतिनिनाद
Rule of the road पथनियम Reversal पराजयः विपर्यय
Rule out नियमविरुद्ध घोषित करना Reverse v. उलट देना, विपर्यय करना, निरसन या| अभिशून्यन करना, प्रतिकरण; n. पीठ, पुश्त; adj. | Ruling व्यवस्था उलटा, विपरीत
Rumour जनश्रुति, किंवदंती, प्रवाद Reverse council bill प्रतिपरिषद्-विपत्र
Run धावन Reverses हार, पछाड़
Runway विमानका अवतरण-पथ, धावनमार्ग Reversion विपर्यय प्रत्यावर्तन
Rural ग्राम संबंधी, ग्राम्य Reversionary प्रतिवतीं; उत्तरभोग्य
Rural uplift ग्रामोन्नति, ग्राम्बसुधार Reversionary bonus प्रतिवती अधिलाभांश Rust गेरुई Reversioner उत्तरभोगी
Rusticate निस्सारित करना Revert प्रतिवर्तन करना प्रत्यावर्तित होना
Rustication निस्सारण Review बालोचन, पुनर्विलोकन Revision पुनरीक्षण, निगरानी; दोहराना
Sabotage अंतध्वंस, तोड़फोड़ Revision of scale वेतनक्रमका संशोधन
Sacrifice त्याग; याग, यश Revival पुनरुज्जीवन, पुनः प्रचलन
Safe conduct अभयपत्र Revive पुनर्जीवित करना, पुनरुद्धार करना, पुनः प्रच- Safe-guard सुरक्षण परित्राण, रक्षाकवच लित करना
Safety-vault सुरक्षित कोष्टक Revocation निरसन प्रतिसंहरण
Salaried aafar Revolution क्रांति
Salary बेतन Revolutionary क्रांतिकारी
Sale-deed विक्रय-लेख Revolutionist क्रांतिवादी
Sales-tax विक्रीकर Rewards पारितोषिक प्रतिफल
Salesman faalifornia Rhetoric अलंकारशास्त्र, रीतिशास्त्र
Salesmanship विक्रय कला Rhombus विषमकोण समचतुर्भुज
Salient प्रधान, मुख्य Rhythmic तालबद्ध
Salvage भ्रंशोद्धार Right n. अधिकार, स्वत्व
Salvation Army मोक्ष-सेना, मुक्ति सेना Right adj. ठीक, युक्त, उचित सरल, दक्षिण Salvo तोपोंकी बाढ़ Right angle समकोण
Sanatorium स्वास्थ्यनिवास, स्वास्थ्यसदन, आरोग्य Rightist दक्षिणपंथी
शाला Rights, Civic नागरिक अधिकार
Sanction स्वीकृति, संमोदन; दंडोपबंध Rights, Civil दीवानी अधिकार
Sanction, Military सैनिक अनुशाप्ति Rinderpest खूनी दस्त
Sanctuary शरणस्थान; अभयस्थल Rise उदय; उत्थान, उन्नति, उत्कर्ष
Sanguinary रुधिरप्रिया रक्तमय Ritual संस्कार
Sanitation स्वच्छता, संमार्जन Rivalry प्रतिद्वन्द्रिता, प्रतियोगिता
Sappers and miners सपर-मैना River valley scheme नदी-घाटी योजना
Sarcasm व्यंग्य, आक्षेप, ताना Robing room परिधान-गृह
Satrap प्रांतपति, क्षत्रप Roll सूची, तालिका, नियमावली
Sattelite उपग्रह Roller बेलन
Saturated solution संपृक्त द्रावण Rostrum व्याख्यानपीठ
Savant प्राश, पंडित, शानी Rotation चक्रानुक्रम पर्याय
Savings Bank aaa aiat Round दौरस बाद चक्र, चक्कर, रौद, गश्त
Savings campaign मितव्ययिता-आन्दोलन Round-Table Conference गोलमेज सम्मेलन Saviour उद्धारक Route Hilf
Scale पैमाना, अनुमाप; तराजू Routine नित्यक्रम
Scale, large बड़े पैमानेपर Rowdyism हुलडबाजी
Scale of salary वेतन-क्रम Royal seal राजमुद्रा
Scandal परिवाद, लोकप्रवाद, अपवाद Royalty अधिकार-शुस्का स्वामित्व, स्वत्वस्व JScar क्षतचिह्न
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९७३
Sceptic-Sentimentality Sceptic संदेहवादी, संशयात्मा
Secretary, Under अवरसचिव Scepticism संदेहवाद, संशयवाद
Secretary of State राज्य मंत्री (ब्रिटेन), परराष्ट्र मंत्री Sceptre राजदंड
(अमेरिका) Schedule परिगणना, अनुसूची
Secretary, Private निजी सचिव (निज-सचिव ) स्व Scheduled castes परिगणित जातियाँ, अनुसूचित सचिव, अंतरंग-सचिव जातियाँ
Secretion स्राव निस्सारण Scheduled time निर्धारित समय
Sect उपसंप्रदाय Scheduled tribes अनुसूचित जनजातियाँ
Sectarianism धार्मिक दलबंदी Scheme योजना
Section धारा (नियम); अनुविभाग, खंड Schism फूट
Sector खंड; वृत्तखंड Scientific apparatus वैज्ञानिक यंत्र
-of a circle दैत्रिय School शाला; मत, संप्रदाय; अध्ययनशाखा
Secular धर्मनिरपेक्ष, लौकिक Scoop news स्वाप्त समाचार ऐकान्तिक समाचार Secure सुरक्षित Scope विस्तार, क्षेत्र, सीमा
Securities साख-पत्र, प्रतिभूतियाँ Scorched earth-policy सर्वक्षार नीति
Security प्रतिभूति, प्रतिभू (व्यक्ति) Score गोल करना रन बनाना विजयी होना; n. विषय | Security Council सुरक्षापरिषद् कारण
Security measure सुरक्षा-व्यवस्था Scorpio वृश्चिक राशि
Security of tenure पदधारण-सुरक्षा Scramble छीनाझपटी
Sedition राजद्रोह Screen पट
See धर्माध्यक्षका क्षेत्र -,Silver रजतपट
Segment of a circle अवधा Script fosfat
Segregation पार्थक्य, पृथकीकरण Scripture धर्मग्रंथ
Seismograph भूकंप-मापक यंत्र Scrutiny सूक्ष्मपरीक्षण, संपरीक्षण
Seismology Taig fastiat Seaborne trade समुद्री व्यापार
Select committee प्रवर समिति Sealed मुद्रांकित, मुहर किया हुआ
Selection (चुनाव ) अंतर्वाचन, प्रवरण Search-light प्रकाश-प्रक्षेपक, अन्वेषक प्रकाश, विद•| Self-contained स्वतःपूर्ण र्शनालोक
Self-determination आत्मनिर्णय Season ticket म्यादी टिकट
Self-government स्वशासन Seasonal occupations मौसमी धंधे
Self-sufficiency आत्मभरितता Seasoned wood fhaidthst
Self-sufficiency plan आत्मभरित योजना -worker अनुभवी कार्यकर्ता (श्रमिक)
Selling विक्रय Seaworthiness of vessels पोतोकी यात्रा-क्षमता Semi-circle अर्द्धवृत्त Secant छेदक, छेदक रेखा
Semi-final उपांत, अंतिमप्राय Secession संबंध-विच्छेद
Seminar विचारगोष्ठी, विचार-संमेलन; अध्ययन-गोष्ठी Second, To अनुमोदन करना
Semi-weekly अर्धसाप्ताहिक Second chamber द्वितीय वेश्म, अपर सदन
Semitic सामवंशोत्पन्न, अरब-यहूदी. Second person मध्यम पुरुष
Senate प्रमुखसभा प्रबंधसमिति Secondary माध्यमिकगौण
Sender प्रेषक Seconder अनुमोदक
Senior ज्येष्ठ पुराना Secret रहस्य; adj. गुप्त
Seniority ज्येष्ठता, प्राथम्य Secret Agent प्रणिधि, गुप्तचर
Sensation संवेदन; सनसनी Secret ballot गुप्त मतदान
Sensationlism संवेदनवाद Secret service गुप्तचर विभाग
Sense अभिप्राय, भाव, अर्थ, समझदारी होश, संशा Secretariat सचिवालय
Sense of the assembly सभाका अभिप्राय या भाव Secretary सचिव
Sensualism इन्द्रियार्थवाद Secretary, Additional अतिरिक्त सचिव, अपरसचिव | Sentence दंडादेश, सजा; वाक्य Secretary, Assistant सहायक सचिव
Sentence, to uphold सजा बहाल रखना Secretary, Deputy उप-सचिव, प्रति-सचिव
Sentry प्रहरी, संतरी Secretary, Joint संयुक्त सचिव
Sentimentality भावुकता
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९७४
Septic-Solicit Septic पौतिक
Simultaneous समकालिक Septinial Act सप्तवार्षिक व्यवस्था
Sine die अनिश्चित कालतकके लिए Sericulture कोशकीट-पालन
Single member constituency एक सदस्य निर्वाची Series माला, शृंखला
क्षेत्र Serum रक्तांबु, सौम्य
Single transferable vote एकल संक्रमणीय मत Served अभ्यर्पित (भादेश इ.), तामील
Singular एकवचन; अनोखा Service सेवा, नौकरी, भृत्वा-book सेवापुस्तिका Sinking fund ऋणपरिशोधन कोष, निक्षेपनिधि Service charge सेवा-व्यय
Sinus नासूर, नाड़ी-व्रण Service, Civil नागरिक राजसेवा
Sitting उपवेशन, बैठक Service, Condition of सेवाकी शर्त
Sixers, sixes छक्के, छौवे Servicemen सैनिक
Sketch रूपरेखा, रेखाचित्र Service of notice सूचनापत्रका तामील होना Skilled labourer कुशल श्रमिक Session सूत्र, अधिवेशन; बैठक
Skirmish छिटपुट संघर्ष Session Court सत्र न्यायालय, दौरा अदालत Sky-scraper अभ्रंकष, गगनचुम्बी भवन Session, termination of सत्रावसान
Slander अपमान-वचन, अपवाद Set-back (प्रतिकूल स्थिति), प्रगतिरोध
Slaughter-house पशु-वधालय Settlement बस्ती भूमिव्यवस्था, बन्दोबस्त निपटारा Sleeper सिलापट Severence of diplomatic relation राजनीतिक | Sleeping partner उदासीन भागीदार संबंध-विच्छेद
Sliding scale विसप अनुमाप Sexual मैथनिक कामजनित लैंगिक
Slogan नारा, घोष Shade छाया, आभा आभाभेद
Slum दरिद्रावसति, मलिनावास Shadow प्रतिबिंब, छाया
Slump मूल्यावपात, अर्धपतन, सस्ती Sham छायिक अयथार्थ
Slur कलंक Sham fight छायायुद्ध
Small cause Court लधुवाद न्यायालय, अदालतShampoo संवाह, संवाहन
खफीफा Share अंश, भाग, हिस्सा
Smoke-screen धूमपट, धूमावरण Share-holder हिस्सेदार, भागीदार
Smuggle करापहार, चुंगीचोरी, अवैध प्रेषण (अपहरण Share-market शेयर बाजार
-कौटिल्य ) Sheet ताव; फलक
Sniper कपटाघाती, छलाघाती Sheet, Charge आरोपपत्र
Snowline हिमरेखा Shell गोला (तोपका); कवच (कका छिलका)
| Soap stone गोरा पत्थर, घीया पत्थर Shift पाली
Social लोकप्रिय सामाजिक Ship-building industry पोतनिर्माण उद्योग Social boycott सामाजिक बहिष्कार Shock treatment सहसोपचार
Social custom सामाजिक रूदि Shock-troops सहसाक्रामक चमू
Social gathering स्नेहसम्मेलन, प्रीतिसम्मेलन Shorthand शीघ्रलिपि, त्वरालिपि
Social Insurance सामाजिक बीमा Short-notice question अल्पसूचित प्रश्न
Social order सामाजिक व्यवस्था Short term loan अल्पकालीन ऋण, भक्ष्पावधिक ऋण | Social security सामाजिक सुरक्षा Shot ori
Social service सामाजिक सेवा Show-down बलपरीक्षण, अंतिम परीक्षा
Socialisation समाजीकरण Shrinkage सिकुड़न, आकुंचन
Socialism समाजवाद Sign-board नाम-पट्ट, नामपटल
Society समाज Signal संकेत; सिकंदरा
Society for prevention of cruelty to animals Signatory हस्ताक्षरकर्ता
(S.P.C. A.) पशु-निर्दयता-निवारण समिति Silt पंकराशि
Soft currency area सुलभ मुद्राक्षेत्र Silver Jubilee रजत-जयंती
Soil conservation भूमिसंरक्षण -screen रजतपट
Soil erosion भूमिकी कटन-छंटन, भूमिका कटाव Silviculture वनविज्ञान, वनवर्धन
Soil, sandy बलुई भूमि, भूड़ Simile उपमा
Soil, virgin अकृष्टपूर्वा भूमि, बंजर भूमि Simplification सरलीकरण
Solicit साग्रह प्रार्थना करना
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९७५
Solid-Sublimation
Solid ठोस, पुष्ट
नायक, राजनायक Solitary cell काल-कोठरी साँसत घर
Station अवस्थान, स्टेशन S. confinement तनहाई कैद, एकांत कारावास
Stationery लेखनसामग्री Solubility घुलनशीलता
Statistical Adviser सांख्यकीय मंत्रणाकार, आंकिक Solution घोल, द्रावण; हल
मंत्रणाकार Solute घुल्य
Statistician सांख्यिक, आंकिक Solvent घोलक
Statistics सांख्यिकी, भांकिकी, आँकड़े Somnambulism निद्राभ्रमण, निद्राचार
Status quo यथापूर्व स्थिति Sophistry सिद्धांताभास, युक्त्याभास
Statute संविधि Sore व्रण, घाव
Statutory Rationing संविहित राशन-व्यवस्था Sorter पत्रवियोजक
Stay-in strike काम न करो हड़ताल Sound स्वस्थ, निर्दोष
Steering Committee कर्णधार समिति, संचालन समिति S.O.S.संकट-संकेत
Stenographer आशुलिपिक Sound Recorder ध्वनिसंग्राहक, ध्वन्यभिलेखक
Sterilization निष्कीटण, वंध्यीकरण Souvenir स्मृति-चिह्न, स्मृति-उपायन
Sterilized निष्किीटित, वंध्यीकृत Sovereign Democratic Republic संपूर्ण प्रभुत्त्व- | Sterling balance पौंड पावना सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य
Stipend वृत्ति Sovereignty प्रभुसत्ता, पूर्णसत्ता
Stipulation करार, शर्त, अभिसंविदा Soviet पंचायत
Stock संचित राशि अंश पूँजो राजऋण स्कंध Speaker अध्यक्ष, प्रमुख
Stock exchange सराफा, श्रेष्ठिचत्वर Specialisation विशिष्टीकरण
Stockist स्कांधिक, भांडारिक Specification विनिर्देश
Stock register स्कंध-जी Specimen नमूना, प्रतिरूप
Stoic सुखोपेक्षी Spectrum वर्णच्छटा, वर्णपट, श्याभास
Stone-age प्रस्तर-युग Speculation भटकलबाजी; सट्टा, फाटका
Stop press छपते-छपते Spelling हिज्जे, वर्तनी, अक्षरी, वर्णविवृत्ति
Storekeeper भंडारी, भांडारपाल Sphere गोल; कार्यक्षेत्र, प्रभावक्षेत्र
Stores भांडार Spine मेरुदंड, पृष्ठवंश, रीढ़
Straight angle ऋजुकोण Splinter पत्थर, बम आदिके पतले, नुकीले टुकड़े Strata स्तर Spokesman प्रवक्ता, मुखपात्र
Stratagem दाव-बात, छल-बल Sporadic raids छिटपुट हमले
Strategic सामरिक महत्त्ववाला Squadron दस्ता
Strategy रणनीति Square वर्ग; चत्वर
Stratified स्तरीभूत Stabilization स्थिरीकरण
Stretcher विस्तरणी Staff कर्मचारिवृंद
Stretcher bearer विस्तरणीवाहक Stage प्रक्रम अवस्थान; रंगमंच, मंच
Stricture तीव्रालोचना, निंदात्मक अभ्युक्ति Stamp अंकपत्र
Strike हट्टताल, हड़ताल, कर्मरोधन Stamped अंकपत्रित
Stringency अर्थसंकट Standard प्रमाप, मान, मानक, कोटि, स्तर
Student's Lodge छात्रनिकेतन Standard of living जीवनयापनका स्तर
Studio चित्रशाला, रंगशाला Standardization प्रमापीकरण; माननिर्धारण
Study अध्ययन अध्ययन-कक्ष Standing committee स्थायी समिति , Study circle अध्ययन केंद्र Stand-still agreement यथास्थिति समझौता
Sub-division उपविभाग तहसील Starch श्वेत सार
Subject matter विषय-वस्तु, वादविषय Starred तारकित, तारांकित
Subjects committee विषय-समिति State राज्य
Subject to confirmation अभिपुष्टि सापेक्ष State funds राज्यनिधि
Sub-judice (न्यायालयके) विचाराधीन, अभिनिर्णयाधीन Stately भव्य, प्रौद
Subjugation अधीनीकरण, पराभव Statement वक्तव्य, विवरण, कथन
Sublet शिकमी देना Statesman राज्यनेता, राज्यविशेषज्ञ, राजपुरुष, राष्ट्र: | Sublimation उन्नयन; ऊर्ध्वपतन
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Submarine-Taboo
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Submarine जलाभ्यंतरवाहिनी नौका, पनडुब्बी, डुबकनी Supernatural आधिदैविक
Subordinate अधीनस्थ अवर
Subordinate court अधीन न्यायालय
Subordinate officer अवीन (मातहत ) अधिकारी
Subordination अधीनता, परवशता
Sub-registrar उपपंजीयक
Subscribe चंदा देना; अनुहस्ताक्षर करना Subscribed capital प्रार्थित पूँजी, बिकी हुई पूँजी Subscriber अभिदाता; पत्रादिका ग्राहक, ग्राहक Subscription अभिदान, चंद्रा
Subsection उपधारा
Suit अभियोग, वाद
Suit, Civil व्यवहारवाद, दीवानी मुकदमा Suit for injunction निरोधाज्ञा वाद Summary trial संक्षिप्त विधिक विचार Summarily dealt with संक्षेपतः निणीत Summon आह्वान, आह्राय; आह्वानपत्र, आदेशपत्र Summon a meeting सभा बुलाना
Super tax अधिकर Supervise पर्यवेक्षण
Superintendence अधीक्षण
Superintendent अधीक्षक
Superior प्रवर, वरिष्ठ, श्रेष्ठ
Superiority complex अहम्मन्यता, गुरुम्मन्यता
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Subsequent अनुवर्ती Subsidiary सहायक, गौण
Subsidiary occupation सहायक आजीविका Subsidy आर्थिक सहायता Subsistence-allowance निर्वाह भत्ता
Subsoil उपभूमि
Substitute स्थानापन्न व्यक्ति या वस्तु
Substitution प्रतिहस्तापन
Sub tenant शिकमी काश्तकार
Suburb उपनगर
Subvention to religious associations धर्मादा,
धर्मार्थ सहायता
Subversive बिध्वंसकारी
Succeed दायाधिकारी होना, उत्तराधिकारी ( या उत्तरासीन ) होना
Succeeding section उत्तरवर्ती धारा
Succession उत्तराधिकार; आनुपूर्व्य; अभंग परंपरा Succession certificate उत्तराधिकार प्रमाणक Successive stages उत्तरोत्तर प्रक्रम Sue मुकदमा दायर करना, व्यवहार लाना Suffragate मताधिकारका आंदोलन करना Suffrage, Adult वयस्क मताधिकार Suffragette मताधिकार के लिए आंदोलन करनेवाली स्त्री | Sustained metaphor सांगरूपक
Suzerain अधिराज
Suzerainty अधिराज्य, अधिराजत्व Symbol प्रतीक Symbolism प्रतीकवाद
Symmetrical प्रतिसम; सममित Symmetry प्रतिसाम्य Syndicalism संघ- समाजवाद Synonym पर्याय, समानार्थक शब्द
Sunbath आतपस्नान
Super annuation pension वृद्धावस्थाकी ( पचपन - Synopsis सारांश, ( परिचयात्मक ) रूपरेखा
साला) पेंशन
Supercede अवक्रम करना, अधिक्रांत करना Superficial बहिस्पर्शी, ऊपरी, दिखाऊ
Supplement अनुपूरण; अनुपूरक, क्रोडपत्र Supplementary अनुपूरक Supplementary examination अनुपूरक परीक्षा Supplementary question अनुपूरक प्रश्न Supplemented अनुपूरित Supplier पूरक, समायोजक
Supply रसद, संभरण, पूर्ति, (उपलब्धि), समायोजन Supply officer पूर्त्यधिकारी
Supremacy of law विधि-सर्वोच्चता
Supreme authority सर्वोच्च सत्ता
Supreme command सर्वोच्च कमान, सर्वोच्च समादेश Supreme Court उच्चतम न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय) Surcharge अधिभार
Surety प्रतिभू
Surety for appearance दर्शन-प्रतिभू
९७६
Surface तल; पृष्टभाग
Surgeon शस्यचिकित्सक, शक्यकार
Surgery शल्यविद्या, शस्य-शास्त्रः शल्यक्रिया, शल्यचिकित्सा
Surgical Instruments Industry शस्योद्योग Surplus बचत Surrender value समर्पण मूल्य Survey पर्यालोकन; क्षेत्रमाप Survival बच रहना, अतिजीवन Survival of the fittest बलिष्ठातिजोवन Survivor अतिजीवी
Susceptible ग्रहणक्षम
Suspended निलंबित, अनुलंबित
Suspense account अनुलंब खाता, उचंत खाता Suspension निलंबन, अनुलंबन
Synthesis संश्लेषण, समन्वय
Synthetic products बनावटी या रासायनिक वस्तुएँ
T
Table मेज, पंटल; तालिका, सूची, सारिणी Table of contents विषय-सूची Tableland उच्च समभूमि Taboo निषेध, वर्जन
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९७७
Tabulate-Title
Tabulate तालिकाबद्ध करना
Telepinter दूरमुद्रक Tabulator गणनक जोड़क
Telescope दूरवीक्षण-यंत्र Tacit मौन
Televison दूरदर्शनकारी यंत्र Tacit acceptance मौन स्वीकरण
Temperence मद्यनिषेध Tactics कार्य-नीति
Temperate zone समशीतोष्ण कटिबंध Take effect qurat cial
Temperature तापमान Take part सम्मिलित होना
Tempo प्रवेग, प्रगति Talk वक्तृता, भाषण, वार्ता
Tenancy Act काश्तकारी कानून, कृषिविधान Talkie बोलपट, सवाक् चित्र
Tenant किसान; किरायेदार Tan चमड़ेको सिझाना, चर्मशोधन
Tender प्राकलन-पत्र Tangent स्पर्श-रेखा
Tender money सत्यकार, बयाना Tanker तैलवाहक जहाज
Tenet fasta Tannery चर्मशोधनालय
Tentative प्रयोगात्मक, परीक्षात्मक Tapioca टैपिभोका, दक्षिणी मूल
Tenure पदावधि, धारणावधि Target लक्ष्य
Tenure of land भूधारण-अधिकार Tariff प्रशुल्क, तटकर, तटकर-व्यवस्था, प्रशुस्क-सूची, Term कार्यकाल; अवधि सत्र; (बहु व०) शर्ते प्रशुरुक-पद्धति
Terminal सात्रिका आंतिक Tariff Board प्रशुल्कमंडल
Terminal tax आंतिक कर सीमा-कर Taurus वृषराशि
Terminal examination सात्रिक परीक्षा Tax कर
Termination अवसान, परिसमाप्ति । Tax, Calling आजीविका कर
Terminology परिभाषा-संग्रह, पारिभाषिक शब्दावली Tax, Capitation प्रतिव्यक्ति कर
Terrestrial telescope पार्थिव दूरबीन Tax, Corporation निगम कर
Territorial Army प्रादेशिक सेना Tax, Entertainment प्रमोद-कर, मनोरंजन-कर Territorial waters जलप्रांगण, जलीय क्षेत्र Tax-free करमुक्त
Terrorist आतंकवादी Tax, Income आयकर
Testament मृत्युलेख Tax, Impact of कर-संघात
Testimony प्रमाणित वक्तव्य या कथन, साक्ष्य Taxpayer करदाता
Testimonial प्रमाणपत्र Tax, Sales बिक्री कर
Test-tube परीक्षण नलिका, परखनली Tax, Terminal सीमा-कर
Text मूलपाठ Tax, Trade व्यापार कर
Textile वस्त्र Taxable कर-योग्य
Textile industry वस्त्रोद्योग Taxidermist चर्मप्रसाधक
Theism आस्तिकवाद Tear gas अश्रगैस
Theocracy धर्मतंत्र Technical पारिभाषिक, प्रौद्योगिक प्राविधिक, पद्धति-| Thumb impression अंगुष्ठ चिह्न संबंधी; विशान और शिल्पसंबंधी
Theoretical सैद्धांतिक Technical education शिल्प-शिक्षा, प्रौद्योगिक शिक्षा | Theory वाद, सिद्धांत Technical objection प्राविधिक आपत्ति
Therapeutics औषधिविज्ञान Technical point प्राविधिक प्रश्न
Thermometer तापमापक यंत्र Technical training शिल्प-प्रशिक्षण, प्रौधोगिक | Thesis अधिनिबंध, निबंध प्रशिक्षण
Ticket प्रवेशपत्र प्रयोगपत्र, टिकट Technical words पारिभाषिक शब्द
Tidal waters ज्वार-जल Technician प्राविधिज्ञ, शिल्पी, यंत्री
Time-barred कालतिरोहित, कालातीत Technique शैली, कार्यपद्धति, विशेष उपाय,यंत्र-चातुर्य, | Timebomb नियत समयपर फूटनेवाला बम, सावधिक प्राविधि
प्रस्फोट, नियतकालिक प्रस्फोट Technology शिल्पविज्ञान
Timefuse नियतकालिक पलीता Teething दंतीभेद, दाँत निकलना
Timehonoured चिरसम्मानित, चिरमान्य Telegraph तार
Time-table समयसूची, समय-सारिणी, बेलापत्रक Telephone दूरवाणी, दूरभाष, टेलीफोन :
समयविभागपत्र Telephone exchange दरवाणी मिलान केंद्र Title हक, स्वत्व उपाधि; शीर्षनाम
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Title deed -Turbulent -page मुखपृष्ठ, मलपृष्ठ
Transmitter दूर-विक्षेपक Title deed स्वत्व-संलेख
Transmitting station दूर-विक्षेपण केंद्र Titular नाममात्रका, नामधारी
Transparent पारदर्शक Toilet प्रसाधन प्रसाधन द्रव्य
Transplantation स्थानांतर रोपण, अन्य स्थान-रोपण Token cut प्रतीक कटौती, प्रतीक न्यूनन
Transport परिवहन, यातायात Tolls पथकर
Transportation निर्वासन परिवहन: दीपांतरण Tool उपकरण, औजार
Trapesium समलंब चतुर्भुज Tonnage जहाजी वजन टनोंमें, नौप्रभार
Travelling allowance यात्राधिदेय, सफर-भत्ता Topical talk सामयिक वार्ता
Transversal तिर्यगरेखा (ज्यामिति) Topography स्थानवर्णन
Trawler मछुआ जहाज Torrid zone उष्ण कटिबंध
Treason राजद्रोह, अभिद्रोह, देशद्रोह Toss सिक्का उछालकर निर्णय, निक्षेप-निर्णय
Treasure-trove निखात-निधि Total war सर्वस्त्र युद्ध, सर्वांगिक युद्ध
Treasurer कोषाध्यक्ष, खजांची Totalitarianism एकदलीय शासनतंत्र
Treasury कोषागार, खजाना Tour दौरा, पर्यटन
Treasury-benches सरकारी पीठ, (३); मंत्रिवर्ग Tournament खेलन-प्रतियोगिता
Treasury-bills राजकोष-विपत्र, खजानेकी इंडियाँ Toxicology विषविज्ञान
Treatise (साहित्यिक) रचना, निबंध, संदर्भ पुस्तक Town planning नगरनिर्माण योजना, नगर-आयोजन Treaty संधि Town-hall नगरभवन
Treaty obligations संधि-दायित्व . Track चरणपथ, मार्ग
Trend of market बाजारका रुख Trade व्यापार
Trespass अपवरण, अनधिकार-प्रवेश Trade-dispute व्यापारिक विवाद
Trespass, criminal दंडनीय अनधिकार-प्रवेश Trade-mark व्यापार-चिह्न, मार्का
Trial परीक्षा, परीक्षण (न्यायिक) विचार Trade Union व्यवसाय संघ, श्रमिक संघ, कार्मिक-संघ | Triangle त्रिभुज, त्रिकोण Trade Unionist श्रमिक संघी
-,acuteangled न्यूनकोण त्रिभुज Traffic यातायात, व्यापार-police यातायात पुलिस -, equilateral समत्रिबाहु त्रिभुज Traffic in human beings मानवपणन, मानव-क्रय- -,isosceles समद्विबाहु त्रिभुज विक्रय, मानव-व्यापार
-, obtuse-angled अधिककोण त्रिभुज Traffic Manager परिवहन व्यवस्थापक
-, right-angled समकोण त्रिभुज Trainee प्रशिक्षणार्थी
-, scalene विषमबाहु त्रिभुज Training प्रशिक्षण
Tribal areas कबायली क्षेत्र, जनजाति-क्षेत्र Training of river courses नदी-मार्ग नियंत्रण Tribe जनजाति Tramway TTTTTT
Tribunal न्यायाधिकरण Trance समाधि
Tribune जनाभिवक्ता Tranquillity प्रशांति, अक्षोभ
Tributory करद राज्य सहायक नदी Transaction लेन-देन करना, व्यवहार, सौदा
Tricycle त्रिचक यान Transcription प्रतिलेखन
Triennial त्रैवार्षिकी Transfer हस्तांतरण; स्थानांतरण, तबादला
Tripartite treaty त्रिदलीय संधि Transferable परावर्त्य हस्थांतरणीय
Triple boycott त्रिविध बहिष्कार Transformation रूपांतर रूपांतरण
Tropics उष्ण कटिबंध Transformed रूपांतरित
Trooper अश्वारोहो सैनिक Transgression afarator
Trophy विजयोपहार Transhipment यानांतरण
Truce विराम-संधि Ttansit, goods in संक्रमित माल
Trump card काटका पत्ता ब्रह्मास्त्र, विजयात्र Transit pass रवन्ना, निकासी
Trust न्यास, प्रन्यास, ट्रस्ट Transition संक्रमण, संक्रांति
Trustee न्यासी, प्रन्यासी Transitional period संक्रांतिकाल, संक्रमण काल Tube-well नलकूप Transmigration देशांतर-गमन; देहांतर-प्रवेश Tuber कंदमूल Transmission दूरविक्षेपण, ध्वनिविक्षेपण, संप्रेषण Tumour अर्बुद Transmit संप्रेषित करना
Turbulent उपद्रवी
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९७९
Turncoat-Variable Turncoat परपक्षग्राही
Union list संघसूची Turnover समस्त क्रय-विक्रया पूर्ण बिक्री
Unit टुकड़ी, इकाई, एकक Turpitude नीचता, क्षुद्रता
Unitary एकात्मक Turret-gun बुर्ज तोप
United National Organization संयुक्त राष्ट्रसंघ Tutelage अभिरक्षण
Universal Manhood-suffrage व्यापक पुरुष मताTyped मुद्रलिखित
धिकार Type मुद्र, टाइप
University Court विश्वविद्यालय सभा Typewriter मुद्रलेखन यंत्र
University Senate विश्वविद्यालय प्रबंध समिति Typist मुद्रलेखक, टाइप बाबू
Unlawful assembly अवैध सभा Typographical error मुद्रणसंबंधी भूल
Unofficial गैरसरकारी, बेसरकारी Typography मुद्रणकला, मुद्रण-सौंदर्य
Unopposed निर्विरोध U
Unparliamentary असांसद
Unproductive अनुत्पादक Ubiquity of the King राजाकी सर्वव्यापकता Unredeemed balance अशोधित शेष U-boat जर्मन पनडुब्बी
Unsent स्थानच्युत करना, अनासीन करना या होना; Ulcer व्रण
स्थानवंचित होना Ulcerated afua
Unscated वि० अनासीन, स्थानवंचित Ultimate ailda
Unskilled labour अनिपुण या अकुशल श्रमिक Ultimatum अंतिम चेतावनी, अंतिमेत्थम्
Unsoundness of mind चित्त-विकृति Ultimo गतमास
Unspcnt balance अव्ययित शेष Ultra vires शक्तिपरस्तात्, शक्तिके परे, अधिकार- Untoward:अभद्र सीमाके बाहर
Unveil अनावरित करना Umbra भूछाया, प्रतिच्छाया
Unyielding अटल Umpire विपंच खेलपंच
Upper House उच्च सदन Unanimous सर्वसम्मत
Upstart सहसोन्नत व्यक्ति सकृदुन्नत (क्षिप्रोन्नत ) व्यक्ति Unattached असंलग्न
Uptodate अद्यावधिक Unauthorized अनधिकारिक अनधिकृत
Upward trend ऊर्ध्वगति Unbecoming अशोभन
Urban नगर संबंधी Unbiased f16927
Urgent अविलंब्य, (अत्यावश्यक) Uncashed अभुक्त
Usage रीति Unclaimed document अस्वामिक लेखपत्र
Usance अवधि Uncultivated अकृषित
Usury सूदखोरी Under-developed area अद्धोन्नत क्षेत्र, न्यूनोन्नत क्षेत्र Utilitarianism उपयोगितावाद Undergraduate level, On स्नातकपूर्व स्तरपर Utility उपयोगिता Underground गुप्त, अंतभीम, भूम्यंतर्गत
Utopia रामराज्य, काल्पनिक स्वर्ग, (स्वप्नलोक) Underhand गुप्त, प्रच्छन्न, छलयुक्त
Utterance उद्गार, उक्ति Under-nourishment न्यूनपोषण, अल्पपोषण Under-secretary सहसचिव, अवरसचिव Unearned अनर्जित
Vacancy रिक्तता, रिक्ति Undertaking वचना स्वीकृतिः हस्तगृहीत व्यवसाय | Vacancies रिक्तस्थान किंवा योजना
Vacation दीर्घावकाश Under-trial अभियोगाधीन
Vaccination टीका Undischarged अनुन्मुक्त
Vacuam शून्यस्थल, शून्य Uneconomic holding अलाभकर जोत
Vagrancy आवारागर्दी, आहिंडन, अनिश्चितता Unemployment बेकारी
Vague अस्पष्ट, धूमिल, अनिश्चित Unequivocal असंदिग्ध
Valid मान्य, विध्यनुकूल Unicameral एक-सदनात्मक
Validation वैधीकरण Uniform विपरिधान, समपरिधान
Validity मान्यता, विध्यनुकूलता Unilateral एकपक्षीय
Valuation मूल्यांकन, मूल्यन, मूल्य निरूपण Union संघ
Variable capital परावर्तनीय पूँजी
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Variation-War of liberation
Variation रूपांतर, विकार, घटबढ़ Variegated चित्र-विचित्र
Vassal अधीन सरदार
-state अधीन राज्य
Vehicle चक्रयान Veia शिरा Velocity प्रवेग
Venerial disease यौन रोग, रतिज रोग, फिरंगरोग
Venture उपक्रम
Venue स्थल
Venus शुक्र
Verbal alteration शाब्दिक परिवर्तन
Verbatim अक्षरशः
Verdict अन्तिम निर्णय, अभिनिर्णय Verification सत्यापन, सत्याकरण Versatile बहुविद्य, ( बहुश्रुत ); बहुमुखी Versed निष्णात
Version, Authorized अधिकृत विवरण Version, Revised पुनरीक्षित पाठ, संशोधित पाठ
Versus विरुद्ध, बनाम
Vertex शीर्ष
Vested interest निहित स्वार्थ
Veterinary doctor पशुचिकित्सक, शालिहोत्री Veterinary hospital पशु-चिकित्सालय, घोड़ा अस्पताल
Veto, n. प्रतिषेधाधिकार
Veto, v. प्रतिषेधाधिकारका प्रयोग करना
Via media मध्यपथसे
Vice admiral उपनौकाध्यक्ष
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Vice-Chairman उपाध्यक्ष Vice-Chancellor कुलपति
विपरीत क्रमसे भी
Vicious circle अपचक्र, दुश्चक्र, विषमवृत्त Vicissitude चढ़ाव उतार, परिवर्तन
Victuals भोजन-सामग्री, अन्न सामग्री View point दृष्टिकोण Vilification मिथ्यारोपण Village Council ग्रामपरिषद् Village uplift ग्रामसुधार, ग्रामोत्थान Vindictive प्रतिहिंसात्मक
Violation उल्लंघन, अतिक्रमण
Virgin soil अकष्टपूर्वा भूमि Virgo कन्याराशि
Visa अनुवेशपत्र, द्रष्टांक, देशागमनका अनुमतिपत्र Visit दर्शनार्थ गमन
Visitor दर्शक, परिदर्शक; दर्शनार्थी; आगंतुक Vitamin खाद्योज, जीवनतत्त्व, पोषकतत्त्व, विटामिन Vitality ओज, जीवनशक्ति
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Viva voce मौखिक परीक्षा Valuepayable articles मूल्यादेय वस्तुएँ Vocal music कंठ-संगीत Vocation व्यवसाय
Vocational training व्यवसाय प्रशिक्षण Voice, Active कर्तृवाच्य — Passive कर्मवाच्य
Vice-regent उप-राजसंरक्षक
Vice-president उपराष्ट्रपति; उपसभापति
Vice versa विपर्येण भी, विपरीततः भी, विलोमतः भी, Wagon मालगाड़ोका डब्बा
— Impersonal भाववाच्य Void adj. शून्य, रिक्त; n. रिक्तता Volatile वाष्पशील; अस्थिर, चंचल Voluntarily स्वेच्छापूर्वक, स्वेच्छया Voluntary स्वैच्छिक, स्वेच्छादत्त, स्वेच्छाप्रेरित,
स्वेच्छाकृत
Voluntary association स्वेच्छाकृत संयोग Volunteer स्वयं सेवक
Volunteer corps स्वेच्छा सैनिक दल Votable मतदेय
Vote n. मत; V. मत देना
Vote, Casting निर्णायक मत
Vote List system of मतकी सूची- प्रणाली Vote of censure निंदा प्रस्ताव
Vote of credit प्रत्ययानुदान Vote on account लेखानुदान Voter मतदाता
Voter-list मतदाता सूची
Voucher खर्चका पुरजा, प्रमाणक
Vulnerability जेयता, दुर्बलता, भेद्यता
W
Wage मजदूरी, भृति
Wage, Living निर्वाह-भृति, जीने योग्य मजूरी Wager बाजी, पण; ठाननेवाला
Waiting-room प्रतीक्षागृह, प्रतीक्षालय Waive आग्रह न करना, छोड़ देना Walkout सभात्याग
Walk over अनायासिक विजय, सरल विजय Wall Street न्यूयार्कके शेयर बाजारका स्थान Wanted आवश्यकता है
Want of confidence विश्वासका अभाव War, Cold ठंढी लड़ाई, "शीत युद्ध" War-criminals युद्धापराधी War-efforts युद्धोद्योग, युद्ध-प्रयत्न War-monger युद्धोत्तेजक, ( युद्धपिपासु ) War-mongering युद्धोत्तेजन
War, Offensive आक्रमणात्मक युद्ध War of attrition धैर्यनाशक युद्ध War of aggression आक्रमणात्मक युद्ध War of Independence स्वातंत्र्य युद्ध War of liberation मुक्तियुद्ध
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War of nerves आतंकयुद्ध, आतंकप्रसार युद्ध Ward हलका, नगरभाग; (कारागृह या चिकित्सालयका ) कक्ष, भवनांग, अभिरक्ष्य बालक या बालिका, अभिरक्षित Ward-master कक्षाधिपाल, छात्रावासादिका संरक्षक Warden छात्राभिरक्षक; क्षेत्राभिरक्षक
Warder कक्षापाल
Warfare युद्धकार्य
Warrant अधिपत्र
Warship रणपोत, युद्धपोत Waste land परती भूमि
Wastage छीजन, छीज
Wasting disease क्षयकारी रोग
Watch and ward पहरा और प्रतिपालन ( रक्षण )
- police चौकी पुलिस
Watch word प्रहरी-संकेत; दलसिद्धांत
Water-channel जलप्रणाली
Water-colour जलीय रंग, जलरंग
Water-fall जलप्रपात
Water-proof जिसपर पानीका असर न हो, जला
वरोधक, जलवारक
Water-mark at
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Water pump जलोत्तोलक यंत्र, जलोद्वहन यंत्र Watertight compartment सर्वथा पृथक-पृथक खंड
Water-works पानीकल,
Waterways जलमार्ग, जलपथ
Wavelength तरंग दैर्ध्य
Ways and means उपाय और साधन
Weapon शस्त्र
Weather forecast ऋतु अनुमान
Weather report ऋतु वृत्तांत, मौसिमका हाल, दिन
विकृति विवरण
Wedge. व्यूहभेद, दरार
Weightage अधिक प्रतिनिधित्व
Welcome address अभिनंदनपत्र
Welfare centre जन कल्याण केंद्र
Welfare state कल्याणकारी राज्य, जनहितैषी राज्य
Whale fafifie
Wharf जहाज घाट
Wheatmeal सूजी
Wheedle फुसलाना Whereas यतः, चूँकि Whip सचेतक, चेतक
Whirlwind बवंडर
Whitepaper श्वेतपत्र
White-wash लीपा-पोती, भयथार्थ विवरण देकर अप
राध या दोष छिपानेकी चेष्टा
Whole time officer समग्रकालीन पदाधिकारी
Wholesale धोक, राशिगत
trade स्तोमक व्यापार, थोक व्यापार
""
Wicket यष्टित्रय, यष्टि; खेलाड़ी; धावन-स्थलीकी स्थिति
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War of nerves-Yours
Wicket-keeper यष्टि-रक्षक Will इच्छापत्र, वसीयत Wind-direction हवाका रुख Winding up समापन
Wing Commander पार्श्वनायक, विमान- सेनाधिकारी Wireless license नितंत्र अनुशा
Wireless network बेतार जाल, नितंत्र - जाल Wirepullers सूत्र संचालक
Wit and humour सुभाषित और विनोद Withdrawl प्रत्याहार
With effect from से लगाकर, से शुरू कर
With retrospective effect विगत अवधिसे, पूर्वप्रभाव सहित
Withhold consent सहमति रोकना
Women's Auxiliary Service महिला सहायक
व्यवस्था
Woodapple कैथ
Wording शब्दावली Wordwar शब्दयुद्ध
Work, Contributional अंशदायी कर्म
Working expenses कार्यसंचालन व्यय
Working committee कार्यसमिति
. Working day कार्यदिवस
Workman's Compensation Act श्रमजीवि क्षति
पूर्ति अधिनियम
Works कार्यशाला; कृतियाँ
Workshop कर्मशाला, कारखाना Wreckage भग्नावशेष, ध्वंसावशेष
Writ लेख, निर्देशपत्र, आदेश
Writ certiorari उत्प्रेषण लेख, उत्प्रेषणादेश
Writing लेख, लेखन, लिखावट; ग्रंथ रचना Write off बट्टेखाते डालना
Wrong अपकार, अन्याय
Wrongful confinement अवैध कारावास, अवैध निरोधन
X
X-ray क्षकिरण, पारदर्शी किरण
Y
Yankee अमेरिकानिवासी, अमेरिकी Year-book वर्षबोध, अब्दकोश, अब्द-पुस्तक Yearly वार्षिक
Yellow peril पीत जातियोंका आतंक, पीतातंक
Yellow press व्यर्थकी बदनामी फैलानेवाले संवादपत्र,
प्रोत्तेजक समाचारपत्र
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Yeomanry कृषक अश्वदल Younger afg
Yours faithfully भवन्निष्ठ Yours obediently भवदनुगत
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Yours Sincerely-सर्वात्मक राष्ट्र Yours Sincerely भवदनुरत
सुघड़ी, अभियानवेला Zionism यहूदीवाद
Zodaic भचक्र, राशिचक्र Zamindary abolition जमींदारी-उन्मूलन, जमींदारी- Zone कटिबंध; क्षेत्र, अंचल समाप्ति
Zone, Demilitarized सेनामुक्त (सेनाविहीन) अंचल Zenith शीर्षविदु, ऊर्ध्वविदु
Zone, Neutral निष्पक्ष अंचल Zero hour संकटका क्षण; नियुक्त क्षण, निर्धारित क्षण; I Zoology जंतु-विज्ञान
-
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अवशिष्ट पारिभाषिक शब्द
Air-hostess स्वागतिका Convassing पक्षप्रचार Circumlocution 917515
| Corrigendum शुद्धिपत्र
Roaming ambassador पर्यटक राजदूत | Traditionalism परंपरा-पालकता
अनुमाप-पु० (स्केल)मापनेकासाधना (मानचित्रादि बनाते कीर्तिमान-पु०[सं०] तैराकी, खेल-कूद आदिमें उत्कृष्टता, समय) निश्चित दूरीके लिए मानी हुई इकाई, पैमाना। कुशलताकी अभिलिखित पराकाष्ठा । अनौपचारिक-वि० [सं०] (इनफार्मल) जिसमें निर्धारित छिद्रयण-पु० (पंचिंग) किसी नुकीली चीजसे छेद कर नियमों, रीतियो, उपचारों आदिका अनुपालन न किया| देनेका कार्य। गया हो, लिहाज न रखा गया हो।
जातिसंहार नीति-स्त्री० [सं०] (जेनोसाइड) दे० 'वंशअभिनिर्देश-पु० [सं०] (कन्सल्टेशन, रेफरेन्स ) किसी संहार नीति'। शब्दके अर्थ, प्रयोग, स्वरूप आदिके संबंधों शंका उत्पन्न | न्यूनवयस्क-वि० [सं०] (माइनर) दे० 'अवयस्क'। होनेपर या किसी घटना, व्यक्ति आदिके संबंधमें विशेष परंपरा-पालकता-स्त्री० [सं०] (ट्रैडिशनलिज्म) पुरानी जानकारी प्राप्त करनेके लिए किसी कोश या अन्य आकर- परिपाटीको बनाये रखनेको प्रवृत्ति । ग्रंथको खोलकर उसमें दिये हुए विवरण, व्याख्या आदिसे प्रमोदकाल-पु० [सं०] (हनीमून) दे० 'आनंदमास' । सहायता लेनेका कार्य।
वंशसंहार-नीति-स्त्री० [सं०] (जेनोसाइड) किसी वंश, आनंदमास-पु० [सं०] (हनीमून) (पश्चिममें ) विवाह | जाति या संप्रदाय-विशेषके सामूहिक संहार या विनाशकी होनेके ठीक बादका लगभग एक मासका वह समय जो नीति, जातिसंहार-नीति । वर-वधू द्वारा, प्रायः किसी रमणीक स्थानमें जाकर सैर- वाग्जाल-पु० [सं०] (सरकमलोक्यूशन) सीधी-सादी सपाटे तथा आनंद-मौज में बिताया जाता है, प्रमोदकाल'। | बातको टेढ़े-मेढ़े ढंगसे कहना, शब्द-बाहुल्यका प्रयोग कर एकसूत्रीकरण-पु० [सं०] (को-आर्डिनेशन) समान स्तरपर | असली बात छिपा जाना। लाने, परस्पर समुचित रूपसे संबद्ध करने आदिका कार्य। संचालन समिति-स्त्री० [सं०] (स्टीयरिंग कमिटी) दे० ऐकांतिक समाचार-पु० [सं०] (स्कूप न्यूज) दे० 'स्वाप्त। 'कर्णधार समिति' । समाचार' ।
सर्वात्मक राष्ट्र-पु० [सं०] (टोटैलिटैरियन स्टेट) वह राष्ट्र औपचारिक-वि० [सं०] (फार्मल) जिसमें निर्दिष्ट नियमों, या राज्य जहाँ केवल एक ही दल, शासक-दल, का रीतियों या उपचारादिका पालन किया गया हो या जो आधिपत्य हो जिसकी परिधिमें नागरिकोंका सार्वजनिक उनके अनुरूप हो।
जीवन ही नहीं, व्यक्तिगत जीवन भी आ जाता हो।
-
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परिशिष्ट
छूटे हुए अन्य शब्द
अंतरद्वंद्व - पु० [सं०] दे० 'अंतर्द्वंद्व' । अंतरा* - पु० अंतर, बीच- 'पारसमें अरु संतमें बड़ो अंतरो जान । वह लोहा कंचन करै यह पुनि आप समान ।'
अ
अंगारकाडी+ - स्त्री० दियासलाई । अंगारपेटी+ - स्त्री० दियासलाईकी डिबिया । अँगेट-स्त्री॰ अंगदीप्ति -‘एड़ी ते सिखा लाँ है अनूठियै अचौन* - पु० दे० 'अचवन' ।
अँगेट आछी' - घन० ।
अंछ* - स्त्री० अक्षि, आँख (रासो) । अंजर* - वि० उज्ज्वल ।
अंमि* - पु० अमृत; अँबिया, आमका छोटा फल । अंशकालिक - वि० [सं०] थोड़े समयसे, पूरे समय के कुछ भागसे, जिसका संबंध हो ( नौकरी, सेवा); किसी काममें पूरा समय न देकर थोड़ा समय लगानेवाला (पार्ट टाइम) ( कार्यकर्ता) |
अंषि, अंपी* - स्त्री० आँख, अक्षि ।
|
अकती । - स्त्री० अक्षयतृतीयाका त्योहार (वैशाख शुक्ला तृतीया ) जिस दिन नववधूसे उसकी सखियाँ, ननद आदि उसके पतिका नाम पूछती हैं या उसे कागजपर लिख देनेका आग्रह करती है (बुंदेलखंडका रिवाज ), - 'तुम नाम लिखावती हो इमपै हम नाम कहा कहो लीजिये जू । कवि 'किंचित्' औसर जो अकती सकती नहीं हाँ पर कीजिये जू । ' - कवि० कौ० । अकस* - अ० अकस्मात् (रासो) ।
अगर* - पु० आगार, घर- 'जे संसार अँधियार अगर में भये मगनवर' - काव्यांगकौ० ।
!
अगराई * - स्त्री० अग्रता, श्रेष्ठता - 'गिरा अगराई गुन• गरिमा गगन कों' - घन० ।
अगसर - अ० आगे, - 'अगसर खेती, अगसर भार, घाव कहैं ये कबहुँ न हार' - अमर० ।
अगाद* - वि० अगाध ।
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अग्निकांड - पु० [सं०] आग लगानेकी घटना, आगजनी | अचाह* - वि० जिसकी चाह करनेवाला कोई न हो'चाह आलबाल औ अचाहके कलपतरु' - घन० । अचिन * - पु० आश्चर्य, अचंभा ।
अगिलाई * - स्त्री० अग्निदाह - 'जोन्ह नहीं सु नई अगिलाई' - घन० ।
अग्गग* - वि०, अ० दे० 'अग्र' |
६२-क
अच्छ* - बि० अच्छा, सुंदर - 'मानहु बिधि तन अच्छ छत्रि स्वच्छ राखि काज' - बि० । अच्छिर* - पु० अक्षर (रासो) । अछग * - वि० अछक, अतृप्त । अजोतर* - वि० स्वच्छंद ।
अकि* - अ० अथवा, या फिर - ' आणि जरौं अकि पानी अत्त* - वि० आप्त, प्राप्त ।
परौं' - घन० ।
अत्यंतातिशयोक्ति - स्त्री०
[सं०] अतिशयोक्तिका एक भेद - जहाँ कारणका आरंभ होनेके पूर्व ही कार्यका हो जाना वर्णित किया जाय ।
अकिलैनि* - स्त्री० अनन्य प्रेमिका- 'कान्ह ! परे बहुता ताय मैं अकिलैनिकी बेदन जानौ कहा तुम' - धन० । अक्षरपूजक - वि० [सं०] धार्मिक पुस्तकों में लिखी बातोंका अक्षरशः पालन करनेवाला ।
अज्ज* - अ० आज ।
अजान * - अ० आजानु, घुटनेतक ।
अझूना * - पु० आग - 'बारि दियो हिये मैं उद्देगको अझूनो है' - घन० ।
अटक+ - स्त्री० जरूरत - 'तीसरीकी अटक भी क्या 1 तुम्हारे और भैयाके लिए एक ही मछहरी बहुत है'
- मृग० ।
अटाला + - पु० अट्टालिका, महल ।
अठी* - पु० सिपाही, योद्धा (रासो) ।
अढ़ना* - अ० क्रि० लगना- 'रीझनि भीजे सुधारत स्याम सदा घन आनंद ऐंड अढ़ी है' - घन० । अढ़ी* - वि० स्त्री० करनेवाली; युक्त | अतिभारित - वि०
(ओव्हरलोडेड) जिसपर उचित से अधिक भार लाद दिया गया हो। अतिसंधान - पु० [सं०] (ओव्हर-हिटिंग, ओव्हर-शूटिंग ) उचित लक्ष्यसे आगे निशाना लगाना ।
अथाही -स्त्री० वसूली, उगाही ।
अदब्ब* - पु० दे० ' आदाब' ।
अधिवासी किसान पु० वह किसान जो भूमिधर, सीरदार अथवा काश्तकार शरहमुअइअनसे लगान पर खेत लेकर जीतता है । वह उसे जीवनभर जोतता रह सकता है। पर हस्तांतरित नहीं कर सकता । अधीजना* - अ० क्रि० अधीर होना ।
अघोटी - स्त्री० गाय, भैंस आदिकी खालका भाधा दाम जो लाश फेंकनेपर चमारसे लिया जाय । अननुकूल - वि० [सं०] जो अनुकूल न हो; प्रतिकूल,
उलटी ।
अनुपालन - पु० (नॉनकम्प्लायेंस) किसी माशा, आदेश
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अनसह
आदिका पालन न करना । अनसह* - वि० दे० 'अनसहत' । अनिमेखी* - अ० निरंतर ! अनिस* - अ० अनिश, लगातार, अहर्निश - 'कृस्नकथा आनंद-रसायन | गावत अनिस ब्यास द्वैपायन' - घन० । अनुपयोगिता - स्त्री० [सं०] उपयोगी न होना, निर र्थकता ।
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अनुबंध - पु० [सं०] (कंट्रैक्ट, कंट्रैक्टका फार्म) बंधनपत्र, शर्तनामा, - 'लेखकों और प्रकाशकों के बीच एक आदर्श अनुबंधका मसविदा प्रकाशित किया' - 'आज' । अनुमानतः ( तस् ) - अ० [सं०] अनुमानसे । अनुरणित - वि० [सं०] प्रतिध्वनित; झंकृत | अनेही * - वि० अस्नेही, जो स्नेह न करे । अनोट- पु० पैर के अँगूठेका एक आभूषण, अनवट । अनौँठा * - वि० अनूठा । [स्त्री० अनौठी ] । अपछरी* - स्त्री० अप्सरा, देवांगना ।
दरै न ढरै' - धन० ।
अपरस * - वि० अलिप्त, अनासक्त, दूर - 'अपरस रहत
• सनेह तगातें नाहिन मन अनुरागी' - सूर; नीरस ।
अभिनै* - पु० दे० 'अभिनय' ।
अभिरक्ष्य - पु० [सं०] (वार्ड) दे० 'प्रपन्न' | अमग्ग* - पु० अमार्ग, कुपथ ।
अमरभनित* - पु० देववाणी ।
अवगरा* - वि० सूझबूझवाला । अवगरी* - वि० स्त्री० बुद्धिमती ।
अपढार* - वि० बेढंगे तरहसे ढलनेवाला - 'अस जो अपठार अवगहना * - स० क्रि० थहाना |
अवधनरेश- पु० [सं०] दे० 'अवधेश' |
अमली - वि० दे० मूल में । मु० - जामा पहनाना - कार्यरूप देना, कार्यमे परिणत करना । अमिलताई * - स्त्री० अम्लता, खटाई, कपट, दूर-दूर रहने का स्वभाव - ' मिलत न क्यौं हूँ भरे रावरी अमिलताई '
अमूमन् - अ० अनुमानतः ; बहुत करके ।
अमेँड * - वि० मर्यादारहित ।
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अप्पान* पु० अपान, अपनापन, आत्मज्ञान ।
अफनाना - अ० क्रि० ऊब उठना, घबराना, साँस रुकने अवसरवादिता - स्त्री० [सं०] अवसर से लाभ उठानेकी
जैसा अनुभव होना; दे० मूलमें ।
अबर* - वि० अपर, अन्य ।
अमँडई * - स्त्री० शरारत ।
अमैदा* - वि० मर्यादा न माननेवाला - ' आपनो आनन जान अमै ड़े' - घन० ।
अरबरानि* - स्त्री० घबराहट, हड़बड़ी- 'लोचै वही मूरति
अरबरानि आवरे' - घन० । अरबीला * - वि० अड़ियल, अड़नेवाला - 'घूमत घुरत अरबीले न मुरत' - घन०; दे० मूलमें ।
अरीझना * - अ० क्रि० उलझना, बँध जाना ।
अरुड - वि० रुष्ट, जो रूठ गया हो ।
अरुणाभ - वि० [सं०] लाल आभायुक्त, लालिमा लिये
निहित हो ।
अर्द्धांगी (गिन् ) - पु० [सं०] पक्षाघातका रोगी, वह जिसे लकवा मार गया हो; दे० मूल में । अलकलड़ा* - वि० दे० 'अलकलड़ता' । अलल्ल* - पु० घोड़ा (रासो) । अलानाहक - अ० नाइक, व्यर्थं । अलेख* - पु० अदृश्य, निराकार ब्रह्म- 'भूल्यों कहा तू अलेखद्दि लेखि लै' - घन०; देवता- 'सितासित अरुनारे पानिपके राखिबेकौं तीरथके पति हैं अलेख लखि हारे हैं' - दास ।
हुए ।
अल* - वि० दे० 'अड़ियल' ।
अर्थ नर्भ - वि० [सं०] अर्थपूर्ण, जिसमें विशिष्ट अर्थ
अल्पजनतंत्र - पु० [सं०] थोडेसे लोगों द्वारा शासित राज्य । अल्लोल* - वि० लोल, चंचल ।
अवक्षयकोष - पु० [सं०] (डिप्रीशियेशन फंड) दे० 'मूल्यहास कोष' (घिसाई कोष) ।
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अवधारना - स० क्रि० दे० मूलमें; मानना - 'उपजे जाँ जिय दुष्टता सु असूया अवधारु' - भाव० । अवसन - वि० [सं०] वस्त्रहीन, विवस्त्र |
- घन० ।
अमीच * - अ० बिना मृत्युके ही- 'सुख या दुख-बीच अहप्पति* - पु० अधिपति, शेषनाग । अमीच मरै' - घन० ।
अहागति * - स्त्री० आनंदकी स्थिति ।
प्रवृत्ति ।
अशोक - पु० [सं०] माणिक्यका एक दोष, दे० 'लहसुन'। असरार- वि० बेहोश - 'केसो कहि कहि कृकिये ना सोइये असरार' - साखी /
असा डा* - सर्व० हमारा - 'आनंद जीवन ज्या न असाडी ज्यारिया' - धन० ।
असानूँ* - सर्व० हमको ।
असार* - पु० असवार, सवार ।
अस्तप्राय - वि० [सं०] डूबता हुआ; मरता हुआ - 'किनारेपर पड़े हुए अस्तप्राय सुअरको देखने लगा' - मृग० । अस्थि - वि० स्थिर ।
अहियान * - पु० शेषशायी विष्णु -पदी-स्त्री० (विष्णुके पदसे उद्भूत) गंगा - 'देवनदी अहियानपदी महिमान बदी स्तुति साखि बिसेखी' - धन० ।
अहुराना * - स० क्रि० खींच देना, हटा देना - 'फिरि फिरि पट तानें तक बहुरयों महुराऊँ' - घन० । अहुरि- बहुरि* -
* - अ० अहुर-बहुरकर, किसी प्रकार बचकर ।
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आ आंकिक - पु० [सं०] (स्टेटिशियन) सांख्यिक । आँस+ - स्त्री० मूछोंका आरंभिक रूप, रोमावलीकी हलकीसी रेखा, मस- 'अटल युवक था। आँसें भीग चुकी थीं' - मृग० ।
आँसना + - अ० क्रि० खटकना, गड़ना, चुभना । आँह* - अ० भरोसे - 'रह्यौ न काम कछू काहू सो पालत प्रान रावरी आह' - घन० ।
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cho
भाकाशवाणी-उबटा भाकाशवाणी-स्त्री० [सं०] रेडियो द्वारा प्रसारित वाणी। इत्यूँ-१० यहाँ । -केंद्र-पु. वह स्थान जहाँसे रेडियो द्वारा वार्ता, इमरतीचाल, इमरतीदार-वि० इमरतीके ढंगकी बनावटसमाचार, संगीत आदि प्रसारित किया जाय।
वाला। आगजनी-स्त्री० उपद्रवकारियों द्वारा घर, दुकान आदिमें आग लगा देनेका कार्य ।
ईक्ष्यवाचक-पु० [सं०] (प्रफरीडर) दे० 'शोध्य शोधक'। आगपेटी-स्त्री० दियासलाईकी डिबिया । आगी*-वि० अग्रगण्य, बढ़ा हुआ-'जान कहाय अजाननि |
ईश्वरीय-वि० [सं०] ईश्वर द्वारा किया गया, दिया गया आगो'-घन।
या भेजा गया दे० मूलमें । आजना*-स० कि० बिछाना-‘पदकमय मंडल मनोहर मृदुल आसन आजि'-घन।
उकताहट-स्त्री० अधीरता, जल्दबाजी-'घर जानेकी आदौ*-अ० बीचमें।
उकताइटमें थे'-अमर । आत्मतृप्त-वि० [सं०] जो अपने आपमें संतुष्ट हो। आत्मतृप्ति-स्त्री० [सं०] अपनी अंतरात्माका संतोष,
| उकलाना*-अ० क्रि० अकुलाना, व्याकुल होना-'आवण
कह गये अजहुँ न आये जिवड़ो अति उकलावै'-मीरा । आत्मसतोष। आत्मसंतोष-पु० [सं०] आत्मतृप्ति, आत्मतुष्टि ।
उखनींद*-स्त्री० उखडी, उचटी नींद ।
उगचना*-अ० कि० बढ़ना। आदित*-पु० आदित्य, सूर्य । आनबान-स्त्री० प्रतिष्ठा, मर्यादा; दे०मूल में ।
उग्गार*-पु० उद्गार, वमन विचार या भावकी अभिआपचारना-अ०कि. मनमानी करना-'कै बिसासी |
व्यक्ति। आपवारयौ'-घन।
उझिल*-स्त्री० उमड़ाव-'रूपकी उझिल आछे आननपै आव्रत*-पु० दे० 'आवर्त'।
नयी नयी'-धन। आमक-पु. वह श्मशान जहाँ मृत व्यक्तियोंके शरीर
उड़नतश्तरी-स्त्री०, उड़नथाल-पु० उड़नेवाली तश्तरी कौओं, गिद्धा आदिके खानेके लिए यों ही फेंक दिये
जैमा एक आधुनिक युद्धोपकरण । जाते हैं।
उडीकना*-स० क्रि० प्रतीक्षा करना। आमोदयात्रा-स्त्री० [सं०] (ट्रिप) आनंदके लिए, मन
उतू*-पु. बेलबूटा निकालनेका औजार, बेलबूटा बुनावट । बहलानेके लिए की गयो छोटी सी यात्रा ।
उत्कर्णता-स्त्री० [सं०] सुननेकी उत्सुकता-'वाक्य सुननेकी आरति -स्त्री० लालसा-'मोहन सौह न जोहनकी लगियै
हुई उत्कर्णता'-साकेत। रहै आँखिनके उर आरति'-घन ।
उत्तमंग*-पु० उत्तमांग, सिर । आतिनाशन-पु. [सं०] क्लेश दूर करना, कष्ट-निवारण ।
उत्तरप्रदेश-पु० [सं०] दिल्ली पंजाब और बिहारके बीचका वि० कटनिवारक।
प्रदेश जिसे ब्रिटिश शासनकाल में संयुक्तप्रांत कहते थे।
उथराई*-स्त्री० उठान-'नैननि बोरति रूपके भौर अचंभे भालमपनाह-पु० जहाँपनाह, बादशाह आदिका
भरी छतिया उथराई'-घन। संबोधन । आवरा-पु. आवरण, खोल, गिलाफ; ढकनेवाली
उथराना*-अ० कि० किंचित् उठना, उन्नत होना। चादर /* वि. शिथिल,दीन, व्याकुल । [स्त्री० 'आवरी'।]
| उदियाना-अ० क्रि० व्याकुल होना, परेशान होना, -'मोहमैं आवरी है बुधि बावरी'-घन ।
थक जाना। आवर्तनी-स्त्री० दोहरानेकी क्रिया।।
उद्पात्र*-पु० उदरपात्रा वह व्यक्ति जिसके पास उदरके आवस -स्त्री० ऊमस, औंस (भाप ?)।
सिवा और कोई बरतन न हो। भासिध्य-पु० आशीष, आशीर्वाद ।
उनचालीस-+-वि०, पु० दे० 'उनतालीस' । आसेतुहिमाचल-वि० [सं०] सेतुबंध रामेश्वरसे हिमा
उनतालीस-वि० एक कम चालीस । पु० ३९की संख्या।
उनमनी*-स्त्री० दे० 'उन्मनी'। लयतक विस्तीर्ण (भारत, राज्य)। आहि*-10 क्रि० है-'जानेको आहि बसै केहि ग्रामा'
उना -स्त्री० दे० 'उन्हारी'।
उन्हारी -स्त्री० चैतमें तैयार होनेवाली फसल, चैती, -सुदामा।
रबी (बुदेल०)।
उपदेष्टा(ष्ट्र)-पु० [सं०] दे० 'उपदेशक' । इंद्रधा*-स्त्री० इंद्रिय ।
उपनेत*-वि० उत्पन्न-'कीनी नेम धरम-कहानी उपनेत इंसान-पु० दे० 'इनसान' ।
है'-घन। इकबाली गवाह-पु० अपराधि-साक्षी या राज-साक्षी। उपासी-वि० उपासक । इकसार*-अ० समान ढंगसे ।
उबटबटा*-पु० उद्बम, ऊबड़खाबड़ रास्ता गलत रास्ता, इकोस*-अ० अकेले, एकांतमें ।
कुपंथ । इग्यारी*-स्त्री० अगियारी; अग्न्याधान; आरती। उबटा-+ पु० रास्तेमें उभड़े हुए छोटे पत्थरसे लगनेवाली इछु-वि० इच्छुक ।
पाँवकी चोट, ठोकर धक्का, आषात ।
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उम्भौ-करिस्मान उम्भौ*-वि० उमय, दोनों।
-घन। उमड़ाव-पु० उमड़नेका भाव या क्रिया ।
ऐराक*-पु. इराक देशका घोड़ा। उमने-अ० उन्मन भावसे (रातो)।
ऐहिकतापरक-वि० [सं०] (सेक्यूलर) जिसका संबंध सांसाउरझेरी*-स्त्री० हृदयकी व्याकुलता।
रिक बातोंसे हो। उरमंडन*-पु. प्रियतम (हृदयका आभूषण)-'गाढ़े भुज
ओ दंडनके बीच उरमंडन को धारि...'-घन।
ओगण*-पु० अवगुण-'म्हाँमें ओगण धणा छै हो प्रभुजी उररना*-अ० क्रि० उमंगित होना।
थे ही सतो तो सहो'-मीरा । उर्वर-वि० जिससे बहुतसे विचार, सुझाव आदि |
ओछना*-स. क्रि० पोंछना, साफ कर देना- ललित निकलें (-मस्तिष्क)।
कपोलनि ओठेऊ पाछे लाली लसति सुहाई है'-धनः । उलटवाँसी-स्त्री० कवितामें ऐसी उक्ति जिसमें सामान्यसे
ओटपाय*-पु० उपद्रव-'कैसे गनै बनै जे ऽब ओटपाय उलटी बात कही गयी हो ।
तबके-घन। उलाह*-पु० उछाह, उल्लास, उमंग-'मिले मग आनि |
ओलंदेजी-वि० हालैंड देशका । अनेक उलाहू-धन।
ओषजन-पु० 'आक्सिजन' नामक गैस जिसके योगसे पानी उसवासा-पु० प्रवेग, प्रवृत्ति ।
बनता है। उसार- स्त्री० कामधंधा, सेवा, पशुओंका गोबर आदि हटाकर सफाई करना-'समय कम है। ढोरोंकी उसार
औंघाई-स्त्री० उँघाई, झपकी, नींद । करनी है'-मृग।
औड़ना-अ० क्रि० उमड़ना, बढ़ना, उभड़ना । उहट*-स्त्री० उचाट, ऊब जानेकी क्रिया-'अति रसमगन
औंस*-स्त्री० ऊमस । उहट नहिं मानत कबहुँ होति हाहा मनवारी'-घन ।
औधरना-अ० क्रि० घूमना-'घर लागै औधूरि कहे मन उही*-सर्व० दे० 'उहै।
कहा बँधावै'-सूर ।
औटपाई*-स्त्री० दे० 'ओठपाय' । ऊक*-अ० आगेकी ओर, मुँहके बल ।
औ?--अ० वहाँ-'म्हानै तौ थारी औलू सतावै थे औठे" ऊखिल*-वि० अनजान, पराया-'ऊखिल ज्यो खरकै बिलमाया'-धन । पुतरिनमें'-घन०।-ताई-स्त्री० परायापन ।
औलू*-स्त्री० बिरहकी स्मृति । ऊठ*-स्त्री० उठान-धरिवारियै ऊठ उमै ठी'-घन०:| औषदि*-स्त्री० दे० 'औषधि । दीप्ति-'मुखकी ऊठ औरई कछु अंतरको रस बाहिर
क छलक्यौ'-धन; उमंग-"रिस-रूसने रूखियै ऊठ अनू
कंतरि*-पु. कांतार, वन । ठियै'-धन।
कतार*-पु. कांतार, वन, जंगल । ऊबना -अ० क्रि० सुशोभित होना, शोभा पाना-'गहने
कंदरिया-स्त्री० जड़, मूल । पहिने रहो। कुँवर साहब भी तो देख लें, कैसी ऊब रही
कंदू*-पु. कीचड़-'अगनि जु लागी नीरमें कंद जलिया हो'-मृग०।
झारि'-साखी। ऊबनी-सी० (कन्यापक्षके) द्वारकी शोभा बढ़ानेकी रस्म,
कंद्रप*-पु० कंदर्प, कामदेव । द्वारचार (बुदेल०)।
कंपोटरी-पु० कंपाउंडर, मलहम-पट्टी करनेवाला या ऊभा-वि० खड़ा।
दवा तैयार कर देनेवाला डाक्टरका सहायक । ऊमटना*-अ० क्रि० उमड़ना-'काली पीली घटा ऊमटी|
कंमोद*-पु० कुमुद । बरस्यौ एक धरी'-मीरा ।
कंसकडोरना-स्त्री० सिरके बाल पकड़कर घसीटना ऊरस*-वि० दे० 'उरस' ।
-'दारी, झोटा पकड़कर कंसकड़ोरन करूँगी बहुत मुँह ऊसीजना*-अ० कि. उसनना, सीझना-'अंग उसीजै |
चलाया तो'-अमर। उदेगकी आवस'-धन ।
कगग*-पु० काग, काक, कौआ ।
कग्गद*-पु. कागद, कागज; पत्र, चिट्ठी । ऋतुरौन--पु० ऋतुरमण, वसंत-'गावत कोकिल रैगभरे, कचका-स्त्री० कुचल जाने, दब जानेकी चोट । धावत छबि ऋतुरौन'-काव्यांगकौ०।
कच्चा-वि० दे० मूलमें। मु. कच्ची गोलियाँ खेलनाऋतुवती*-वि० स्त्री० रजस्वला, ऋतुमती।
बेवकूफीमें समय बिताना। कछना*-सक्रि० पहनमा, धारण करना।
कटाली*-स्त्री० कटारी, काटनेवाली। एन, ऐना-पु० गायका थन ।
कटिस्नान-पु० [सं०] टबमें बैठकर किया जानेवाला एक
तरहका स्नान जिसमें केवल कटि तथा पेडूका भाग पानीमें ऐचा -वि०तिरछा, दूसरी तरफ खिंचा हुआ (ऐंची आँख)। डुबाया जाता है, शेष भाग पानीको सतहसे ऊपर रहता ऐ परि*-अ० फिर भी-'ऐ परि यौं मरियैगो मसोसनि'। है (प्राकृतिक चिकित्सा)।
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कठण-कुची
कठण*-वि० कठिन, विकट-'लागी सो ही जाणै कठण | काई*-अ० काऊ, कभी-'सूरदास ऐसे अलि जगमें लगण दी पीर'-मीरा।
तिनकी गति नहि काई'-सूर । कठतार*-पु० दे० 'कठताल' ।
काछ*-अ० दे० 'काछे। कठप्रेम*-पु० प्रियके उदासीन रहने पर भी उससे किया कानीहौद-स्त्री० दे० 'कांजीहाउस' (पशु-वंदीगृह) । जानेवाला प्रेम-'नेह कथं सठनीर मर्थे हठक कठप्रेमको काफिर-पु० [अ०] मुसलिम धर्मको न माननेवाला दे. नेम निबाहै'-धन।
मूलमें। कत्तिन-स्त्री० सूत कातनेका काम करनेवाली स्त्री। कामदार+-पु० जायदादका प्रबंध करनेवाला अधिकारीकत्ती-पु० सूत कातनेवाला ।
'कामदाराँ तूं काम नहीं रे, मैं तो जाव करूँ दरबार' कथकाली, कथाकाली-स्त्री० नृत्यकी एक विशिष्ट शैली ।। -मीरा। कदन* -पु० कष्ट, पीड़ा-'अब पिय कपट न करियै हरियै | कामदुह*-वि० दे० 'कामदुघ' । कदनकों'-घन० दे० मूलमें।
कार्यवाही(हिन)-वि०, पु० [सं०] कार्यका भार उठानेकदी*-अ० कभी, कधी।
वाला। कदव-पु. कर्दम, कीचड़ ।
कार्याध्यक्ष-पु० [सं०] नगरपालिकाका वह प्रधानाधिकारी कनब्रत*-पु० कण चुननेकी आदत ।
जो प्रशासन-संबंधी कार्योंकी देख रेख करता है । कनय*-पु० कनिक, आटा दे० मूल में ।
काला कानून-पु. लोकमतके विरुद्ध बनाया गया कानून कनसुई-स्त्री० गोबरकी गौर फेंककर सगुन बिचारना। (ब्रिटिश शासनकालका आडिनैस) । कनौड़*-पु० संकोच ।
काली*-पु० कालिय नाग। कनौड़ना*-अ० क्रि० दबना-'काहूकी कानि कनौड़त कै काष्ठौषधि-स्त्री० [सं०] जड़ी-बूटी जो दवाके काममें को'-घन।
प्रयुक्त हो। कपित्थपत्रक-पु०, कपित्थपर्णी-स्त्री० [सं०] एक क्षुप, किंमति-स्त्री० दे० 'कीमत'।। स्वरसा।
किनर-मिन-स्त्री. नाक-भौं सिकोड़ने, हीला-हवाला कपोतनी*-स्त्री० कपोती, कबूतरी-'करमें बिकल कपोतनी, करनेका भाव या ध्वनि-'अन्न देनेमें वे किनर मिनर कर तरुपै बिकल कपोत'-'माधुरी' पत्रिका ।
रहे थे-मृग०। करछौंह-पु० हलका काला रंग।
किन्नर-पु० गाने-बजानेवाली एक जाति । करतली*-स्त्री० कैची, कतरनी-'निसि बासर मग कर- किमखाब-पु० 'कमख्वाब' । तली लिये काल कर वाहि । कागद सम भइ आयु तब, किरचा*-पु० दे० 'किरच' । छिन-छिन कतरत ताहि'-घवदास ।
किरना*-अ० क्रि० विमुख होना-'अब तो ऐसियै जिय करधौनी -स्त्री० दे० 'करधनी'।
आई प्रीतमके पनतें क्यों किरिहौं'-घन० कष्ट सहनाकरिहाँ, करिहाउँ*-स्त्री० कटि, कमर-'के गयी काटि | 'मन बुधि चित अहँकार एक तुम करहु कृपा कितहूँ न करेजनिक कतरे कतरे पतरे करिहाँकी'-पद्माकर-'नलिन | किरौं'-धन। खंड दुइ तस करिहाउँ'-५० ४०१ ।
किलपना-अ० क्रि० बिलख-बिलखकर रोना, विलाप करिहैयाँ*-स्त्री० दे० 'करिहाँ' (पूर्ण०)।
करना, हाय-हाय करना, छटपटाना, कलपना, भीतर करून*-वि० कर, कठोर, निष्ठुर ।
ही भीतर व्याकुल होना (अमर०)। कलमुंडी -स्त्री० कलैया (कलमुँडी खाकर-'गद्यभारती')। किलोर*-स्त्री०किलोल, कल्लोल, लहर । कलामुख-पु० चंद्रमा (दास०)।
किलोवाट-पु० [अं०] बिजलीका परिमाण जो १००० कलाही- स्त्री० कलाई, पहुँचेका निचला भाग।
वाटके बराबर होता है। कलोल-स्त्री० लहर, तरंग-'सूर यह सुख गोप-गोपी किल्विषी(पिन्)-वि० [सं०] पापी; दोषयुक्त । पियत अमृत कलोल'-सूर ।।
कीचर*-पु० दे० 'कीचड़'-आँखिन बरौनिनमें कीचर कल्लिय*-स्त्री० कली, पुष्पकलिका।
छपानो है'-बेनी। कल्लोलिनी-वि० स्त्री० [सं०] कलोल, क्रीड़ा करनेवाली, कीरतिदा*-स्त्री० यशोदा । कलकल ध्वनि करनेवाली-'इस प्यारी नदीकी कल्लोलिनी कुंजरमनि*-पु. गजमुक्ता-'कुंजरमनि कंठा कलित धारको अपने पास रक्खू'-मृग० ।
उरन्ह तुलसिका माल'-मीरा। कवनी-वि० कमनीय, सुंदर ।
कुंजा*-पु० क्रौंच पक्षी-'अंबर कुंजाँ कुरलियाँ गरज भरे कसीसना*-स० कि० खींचना-'साँस हिये न समाय सब ताल'-साखी।।
सकोचनि हाय इते पर बान कसीसत'-धन । कुंठा-स्त्री० चिद, क्रोध-'अपनी कुंठा उतार रही थी। कसुंभ*-पु० कुसुंभी रंग ।
कुंडलित-वि० [सं०] चक्करके रूपमें लपेटा हुआ। कांती-स्त्री० एक प्रकारका घटिया लोहा जिसमें मिट्टीकी कुकड़ी*-स्त्री० मुगी (कबीर); दे० मूलमें । मिलावट होती है, जो रेलिंग, कड़ाही आदि बनानेके कुचियाज-स्त्री० छोटी टिकिया; कम बढ़ायी हुई रोटी। काम आता है।
कुची -स्त्री० कूची, ब्रश; कुंजी-'शान कपाट कुची जनु काँवरी*-स्त्री० दे० 'कामरी'
| खोलत'-राम। १२-ख
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कुचील-खिसना
९८८ कुचील*-वि० मैला, गंदा-'बसन कुचील, चिहुर लपटाने, | लड़कीके संबंधमें प्रयुक्त) । मु०-भंग करना-किसी देह पीतांबर बरनी'-सूर ।
लड़की या अक्षतयोनि महिलासे प्रथम बार समागम करना। कुजा -पु० पुरवा, मिट्टीका प्याला जैसा पात्र (कबीर), क्रम*-पु० कर्दम, कीचड़ कष्ट, विपत्ति । दे० मूलमें।
क्रीत*-स्त्री० कीर्ति, यश-'ही कहा कही सूरके प्रभुकी कुटनई।-स्त्री० कुटनपन, कुटनीका कार्य ।
निगम कहत जाकी क्रीत'-सूर । कुटवारी-पु० गाँवका चौकीदार, (कोट्टपाल, कोतवाल), क्रीलना-अ० क्रि० क्रीड़ा करना। गोड़इत ।
क्रीला*-स्त्री० क्रीड़ा-'जा बनमें क्रीला करी, दाझत है कुटवाल*-पु० कोट्टपाल, कोतवाल ।
बन सोइ'-साखी। कुडिया*-स्त्री० टोपी।
क्षुरी-स्त्री० [सं०] छुरी, क्षुरिका । कुढ-स्त्री० कुढ़न, खीझ । कुत्ता-पु० खटका (तालेका कुत्ता)।
खंगार-पु० एक जाति । कुपचा-पु० अपच, अजीर्ण ।
खगोरिया-स्त्री० (दरिद्र ग्रामीणोंके पहननेकी) चाँदीकी कुबील*-वि० ऊबड़-खाबड़, ऊँचा-नीचा-'राज पंथते हँसुली। टारि बतावत उरझ कुबील कुपैंडो'-सूर।
खंडरू-पु० फर्शपर बिछानेका कपड़ा, जाजिम । कुम्हडा-पु. कुम्हड़ा-'सूरजदास समाय कहाँ लौं अजके खंडवर्षा-स्त्री० [सं०] वह वर्षा जो नगरादिके एक भागमें बदन कुम्हैडा'-सूर।
हो, दूसरेमें न हो।। कुरुखि-स्त्री० तिरछी चितवन, कटाक्ष-'बार बार अवलोकि खंडहला-पु० दे० 'खंडहर'। कुरुखियन कपट नेह मन हरत हमारे'-सूर ।
खखरियाज-स्त्री० एक नमकीन पकवान जो पापड़ जैसा कुरुरना*-अ० कि० पक्षियोंका बोलना-'मोरे अँगनवाँ | होता है। चननकर गछिया ताहि चढ़ काग कुरुरयेरे'-विद्या। खखेना-सक्रि० दे० 'खखेटना'। कुलंगा-स्त्री० छलांग।
खगमगी*-स्त्री० धंसन । कुलरा*-पु० कुटुंब, परिवार-'यो संसार सकल जग झूठो, । खजमजाना-अ० क्रि० (तबीयतका) कुछ अस्त-व्यस्त-सा झूठा कुलरा नाती'-मीरा।
होना, अस्वस्थता जैसी प्रतीति होना। कुलाच-स्त्री० कलैया, सिर नीचे, पाँव ऊपर कर उलट | खबरनवीस-पु० [फा०] समाचार लिखनेवाला कर्मचारी । जाना-'नटिनी कुलाचें खाने लगो'-मृगः ।
खब्तुलहवास-वि० (ऐ बसेंटमाइंडेड) जिसके होश हवास कुलिया-स्त्री० तंग गली, कोलिया।
ठिकाने न होजिसका ध्यान किसी दूसरी ओर हो। कुलिस*-पु० वज्रः हीरा ।
खर-वि० खरा, ज्यादा सिंका हुआ (सेंवरका उलटा)। कल्ला-पु. एक तरहको ऊँची या कटोरानुमा टोपी खरहरी-वि० स्त्री० (खाट) जिसपर कोई कपड़ा आदि न (शेखर०)।
बिछाया गया हो ('निखहर')-'नींद न जाने खरहरी कुल्हरा-पु० लकड़ी काटने, फाइनेका औजार, कुल्हाड़ा, | खाट'। हाँगा ।
खरी*-वि० स्त्री० उत्कट-'खरी अभिलापनि सुजान पिय कुल्ही -स्त्री० छोटा कुरुहाड़ा, टाँगी ।
भेटिहौँ'-धन० दे० मूलमें । कुसर*-स्त्री० दे० 'कुशल'।
खल नायक-पु० [सं०] (विलेन) नाटक या उपन्यासके कुपरात*-स्त्री० 'कुसलात' ।
मुख्य नायकका वह प्रतिद्वंद्वी जो उसकी लक्ष्य प्राप्तिमें कुसी -स्त्री० खुशी, आनंद (मीरा) ।
बाधाएँ उपस्थित करता रहता है और जो दुष्प्रवृत्तियोंकुह*-पु० अंधकार ।
का प्रतीक होता है। कुहकुहाना-अ० क्रि० कोयलका बोलना, कूकना-'कुहकु-| खाँदा-पु. पदचिह्न, जानवरके खुर आदिके निशान
हाय आये बसंत ऋतु अंत मिलै कुल अपने जाय'-सूर। 'जानवरोंके खाँद तो मिलते हैं, पर दिखलाई पूँछतक कूकस-पु० भूसी-'कूकसके कूटे कहूँ निकसत कन है' | नहीं पड़ती'-मृग०। सुंद।
खाकसाही*-स्त्री० काली राख, छार (भू०)। केशकर्तनालय-पु० [सं०] (हेयर कटिंग हाउस) सिरके खाद्यनलिका-स्त्री० [सं०] (एलिमेंटरी कैनाल) दे० बाल कटवानेकी दुकान ।
'पोषिका'। कैदु*-अ० कदाचित् ।
खिंड जानाt-अ० कि० छितरा जाना, बिखर जाना; बह कोकहर-पु० चंद्रमा।
जाना। कोथली*-स्त्री० कोठरी।
खिआला-पु० हँसी, मजाक, खियाल । कोग्दार-वि० किनारदार नुकीला।
खियरानि*-स्त्री० खेदभरी स्थिति। कोरिया*-स्त्री० झोपड़ी-'+दि फिरे घर कोउ न बतावै खिलवती*-पु० घनिष्ठ मित्र। स्वपच कोरिया लों-सूर; दे० मूलमें।
खिवना*-अ० क्रि० चमकना-'बिजुरी-सी खिवै इकलौ कोरी-स्त्री० कोड़ी, बीसका समूह ।
छतियाँ'-घन। कौमार्य-पु० [सं०] कौमार, कुँवारापन; (प्रायः अविवाहित | खिसना-अ० कि० टपक पड़ना; खिसक जाना, चला
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खिसारा-गुरझनि जाना (सूर)।
गहमह*-स्त्री० चहल-पहल-'गोकुल गरयारिनमै महा खिसारा-वि० खीसोवाला (जंगली सुअर)।
गहमह माँची'-घन । खिसीहा-वि० लज्जित सा; खिसियाया हुआ या क्रुद्ध-सा। गहमहई*-स्त्री० प्रचुरता, धूमधड़का-'घर घर चहल खीली-स्त्री० पानका बीड़ा।
चैनकी रहई । जित तित गोधनकी गहमहई ।'-धन । खीसना*-स० कि० नष्ट करना-'तुमहीं जु दीसि परी गारडू*-पु० दे० 'गारुडी' । सोई देखौ पनहिं न खीसत हो'-धन ।
गारो*-पु० घर-'गोबरको गारो सुतौ मोहिं लगै प्यारो खुरखुर-स्त्री० साँस लेते समय, कफ आदि रहनेके कारण, | "'-रसखानि । होनेवाली आवाज, घरघराहट ।
गाला-पु० ढेर, पुंज (कलस०)। खुसफुसाना -अ० क्रि० दे० 'फुसफुसाना'।
गितार*-पु० एक बाजा। खेवइया*-पु० दे० 'खेवैया'।
गिरंद*-पु० फंदा। खाँच-पु० झोली, कौँ छ ।
गिरदा*-वि० फंदा डालनेवाला । खोपनि*-स्त्री० फटना-हिय-खोपनि पोपनि कोपनि गिरोही-पु० दलका आदमी, संगी, साथी,-'काली सिंहका झालरि'-धन।
कोई गिरोही'-अमर०। खौरना*-सक्रि० छेडछाड़ करना-'मोही सों जबतब गिलाव -पु० गारा, कीचड़। खौरत ही सब मिलि कर चवाव'-घन।
गिलोल-स्त्री० दे० 'गुलेल'। खोरी*-वि० स्त्री० कष्टदायिनी, बुरी-'यह बैरिनि बसुरिया गीडा-पु० दे० 'गीडर'। अति ही खौरी है'-घन ।
गीडरी-पु० आँखका मैल, कीचड़-'थूकरु लार भरथो मुख दीसत आँखिनमें गीडर नाकमें सेढो'-सुंद० ।
गुंजलिका-स्त्री० फेंट, शिकंजा-'वह अजगरकी तरह उसे गटकीला-वि०निगल जानेवाला, खा जानेवाला ।
अपनी गुंजलि कामें लपेटनेके लिए चल पड़ी'-गुनाहोंके गटा-पु० नेत्रगोलक, डेला ।
देवता। गढ़ास*-स्त्री० गढ़न-'मान-मवास गढ़ासकी घाटी'- गुड़-पु० दे० मूल में । मु०-गोबर करना-चौपट करना, घन।
नष्ट करना । -गोबर होना-बर्बाद होना, नष्ट होनागढ़ासी*-वि०, पु० विद्रोही, विप्लवी-'बाँधि लिये कुल
'तुम्हारी भूलसे ही सब गुड़ गोबर हो गया। नेम गढ़ासी'-घन।
गुड़ला -पु० नमक डालकर बनाया हुआ गीला भात । गणतंत्रदिवस-पु० [सं०] गणतंत्र स्थापित होनेके स्मारक- गुड़िया-स्त्री० छोटे-छोटे पाँव-'छोटी-छोटी गुड़ियाँ अँगुरियाँ रूपमें माना जानेवाला दिन या उस संबंधमें होनेवाला
छोटी छबीली'-सूर । समारोह (२६ जनवरी)।
गुड़ी-स्त्री० सिकुड़न, सिलवट । गणवेश-पु० [सं०] वरदी, विपरिधान ।
गुणन्चित-अंकन-पु० [सं०] (क्वालिटी मार्किग) घी, करघे. गताधि-वि० [सं०] निश्चित, चिताविहीन ('तुमुल')।
के कपड़े आदिपर उनकी उत्तमताका सूचक अंक डालना, गद*-पु० स्थूलता, मोटापन (रतन०)।
निशान बनाना। गदेली -स्त्री० हथेली-'लाखीने हाथकी गदेली पसार दी' गुणन-चिह-पु० [सं०] गुणन या गुणाका सूचक चिह्न-मृग०।
विशेष (x)। गभरू-वि०प्रिय ; दे० 'गबरू' ।
गुणा-पु० गणित में जोड़नेकी एक संक्षिप्त रीति जिससे कोई गमकना-अ० क्रि० उत्साहपूर्ण होना (भू०) ।
संख्या कई बार जोड़ने के बजाय एक बार में ही उतनी गुनी गमि-स्त्री० दे० 'गम' (पहुँच)-'अगम अगोचर गमि नहीं
बढ़ा ली जा सकती है।। तहाँ जगमगै जोति'-साखी
गुणाकार-अ० गुणनके चिह्न जैसा, उस तरह एक दूसरे गरंथ*-पु० ग्रंथ, पुस्तक (प०)।
को काटकर, स्पर्श कर जाते हुए-'नटने बाँसोंको गुणाकार गरबाही -स्त्री० दे० 'गलबाही' ('गल'के साथ')।
गाडकर रस्सेको कसकर तान लिया-मृग । वि० गुणितगरी-वि० स्त्री० टेढ़ी-'सोहै सुजान गुमान गरठी' के चिह्न जैसा, कैंचीनुमा। -घन०।
गुनकारी*-वि० दे० 'गुणकारी'। गत्यारी*-स्त्री० दे० 'गलियारी'।
गुना-पु० बेसनका बना एक पकवान । गलद-भावुकता-स्त्री० [सं०] (मॉडलिन सेंटिमेंटलिज्म)
गुपुत*-सी० गूढ बात, रहस्य-'ऊधो बृहति गुपुत छोटी-छोटी बातमें भी आँसू ला देनेवाली भावुकता। तिहारी'-सूर । गल्ल* -पु० हल्ला, शोरः दे० मूल में ।
गुप्तांग-पु० [सं०] स्त्री या पुरुषके गुप्त अंग, उपस्थ । गवरि*-स्त्री० गौरी, पार्वती।।
गुरु अई-स्त्री० दे० 'गुरुडम'; दे० मूलमें । गह*-स्त्री० टेक ।
गुरक्षा-स्त्री० गाँठ-'ममता गुरझैं उरझावत क्यों ?' गहबर-पु० निकुंज, गुप्तस्थान; दे० 'गहर'।
-घन। गहबरनि*-स्त्री. व्याकुलता, अफनाइट-'गहकि-गहकि गरझनि*-स्त्री० गाँठ-'राग भरे हियमै बिराग-गुरझनि गहबरनि गरें मचै'-घनः ।
| है'-घन ।
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गुरझियाना-चौमुखी
९९० गरझियाना*-अ० कि० दे० 'गुरचियाना'। स० मि.चतुरस्त्र पांडित्य-पु० [सं०] चौमुखी विद्वत्ता, चारों उलझाना, गाँठ डालना।
दिशाओं में व्याप्त शान । गुराइ, गुराउ*--पु० तोप ढोनेकी गाड़ी।
चतुर्दश-वि० [सं०] दे० 'चतुर्'के साथ मूलमें। -पदीगुलटप्पा -पु० गप्प ।
स्त्री० चौदह पदोंवाला एक छंद जो अंग्रेजीके 'सॉनेट'के गुलफ*-पु० गुरुफ, टखना।
अनुकरणपर चलाया गया है। गुह-वि० गुंफित, गुहा ।
चपरना*-अ० क्रि० फुरती करना । गूथना- पु० गोफन, ढेलवाँस-'गूथने घुमा-धुमाकर | चपरावना*-स० क्रि० बहकाना-'चोरी करि चपरावत चिबियोंको भगाना'-मृग० ।
सौहनि काहे को इतनो फॉफट फाँकत'-धन। गड़ी-स्त्री० बाँसके दो डंडे जिनमेसे प्रत्येकपर खड़ाऊँ चलापन*-पु० चंचलता-'है धन आनँद भौह-चलापन' । जैसा एक एक पावदान लगा रहता है-इनपर चढ़कर चहचारा*-पु० चहल-पहल-'भोर भयौ लागे बोलन सुकलोग चलते-फिरते, कूदते-फाँदते है (अंग्रेजी 'स्टिल्ट')। सारौ है चहचारौ'-धन०।। गौंदा-पु० मिट्टीका साना हुआ ढेर या पिंड, लोंदा। चहर*-स्त्री० बया चिड़िया (मीरा)। गोदर*-वि० गदराया हुआ; यौवनके कारण भरा हुआ। चार सौ बीस-पु० पुलिस अधिनियमकी वह धारा जिसमें गोभा-पु० अंकुर प्राकट्य, अभिव्यक्ति । स्त्री० दे० मूलमें। धोखादेही, चालबाजी, छल-छंदादिका सहारा लेनेवालेको गोराधार*-वि० दे० 'गोलाधार'।
दंड देनेका विधान है। वि० धूर्त, धोखेबाज । ' गोला -पु० एक तरहका बड़ा कंडा-'अँगीठीके पेट में गोला | चार सौ बीसी-स्त्री० धोखेबाजी, छलप्रपंच, धूर्तता। डालो'-जिंदगी।
चारिका-स्त्री० पदक्षेप-'उनके कुंठ नृत्यकी प्रत्येक चारिका' गोलाबारी*-स्त्री० तोपसे की जानेवाली गोलोंकी वर्षा । -हजारीए० भिक्षाके लिए जाना। गोष*-पु० गवाक्ष, गोखा, खिड़की।
चितारना*-स० क्रि० ध्यान में लाना, याद करना-'रे अब्ब*-पु० गर्व, घमंड, दर्प। -हन-वि० गर्वघ्न, घमंड | पपइया प्यारे कबको बैर चितारथो'-मीरा। दूर करनेवाला, दर्पहारी।
चित्रोत्पला-[सं०] गोदावरी नदी। ग्रिह*-पु. गृह, घर-'तुम देख्याँ बिन कल न पड़त है | चिनौती -स्त्री०चुनौती, ललकार (मृग०)। ग्रिह अंगणो न सुहाई रे'-मीरा।
चिरौल-पु. एक पेड़-रेवजे, चिरौल इत्यादिके पेड़ इधर
उधर उगे थे'-अमर। घ
चिहरार-पु० चिकुरभार, केशराशि । घघोना*-सक्रि० दे० 'फँघोरना'।
चीतांबर*-पु० चित्रांबर, विचित्र वस्त्रवाला। घट्ट*-स्त्री० घटा-'सुभट-ठट्ट धन-घट्ट सम, मर्दहिं रच्छन | चीनिया केला-पु० दे० 'चिनिया केला'। तुच्छ' ।
चहटना*-स० कि० चिकोटी काटना-'चुंझुटि जगाई घदना*-स० क्रि० दे० 'घड़ना' ।
अधराति औटपाई आनि'-घन० । घाँ*-पु० प्रकार, तरह-'कहिबो न छिपै किहि घों सुगमै चुक*-वि०किंचित् ।। -घन०।
चुहट*-स्त्री० कसक-'तेरे नैन-सुभट चुहट-चोट लागें वीर' घियरा*-पु० घी।
-धन० । घुमेरी*-स्त्री० बेसुध होनेकी स्थिति, बेहोशी-'निसि-चौस | चूँटना -अ० क्रि० चींटीकी तरह चिपक जाना। घुमेरिनि भौरि परयौ'-घन ।
चेजारा*-पु० चुनाईका काम करनेवाला, राज-कोई घुरना*-अ० क्रि० कसना-'धुरि आसकी पास उसास- चेजारा चिणि गया मिल्या न दूजी बार'-साखी। गरें जु परी-धन।
चेतक-वि० जादूभरा-'घात लै अनूठी भरै चेतक घृठन*-अ० घुटनोंके बल ।
चितौन-मूठी-धन। घूमरा*-वि० नशीला, मदयुक्त-'केसरि खौरि घूमरे नैना | चाँच-स्त्री० दे० मूलमें । मु० (दो-दो) चौंच होनाबिथुरी अलक बदन रँग भीनौ'-धन।
कहा सुनी होना। घटी -स्त्री० चना आदिका डोंडा जिसके भीतर दाना चोम*-पु० जोम, घमंड । रहता है, देंढी-'खेतके चने हरी-पीली घंटियोंसे लद | चोरबजारिया-पु० चोरबाजारीद्वारा रुपया कमानेवाला। गये'-अमर।
चौखट -पु० देहयष्टि, शरीरका ढाँचा-'आपने भी क्या दिलकश चौखटा पाया है।'
चौखाना -पु० चौखूटे खानोंवाला कपड़ा। चंपना*-स० कि० दबाना, चाँपना, चढ़ बैठना । चौचंद-पु. रसकेलि, क्रीड़ा, कौतुक-'कै रस चाँचरि चकचोढ़ा*-पु० चकाचौंध ।
चौधंदमै छतियापर छैल नखच्छत छाए'-घन० दे० चञ्चर*-पु० चाँचर, होलीके समय गाया जानेवाला | मूलमें। गीत।
चौडोल*-पु. पालकी; दे० मूल में । चच्छ-पु०, चच्छि -स्त्री० चक्षु, आँख ।
चौमुखी-वि० चारों ओर होनेवाला, जानेवाला (-प्रतिभा, चड़ाका-पु० चटककर टूटनेका शब्द ।
-विकास)।
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९९१
छंद-ॉपना जटना*-सकि० जुड़ जाना-'करौस ज्यौं चित चरन
जटै'-धन। छंद*-पु० उपाय-'फंदकी मृगीलौ छंद छूटिबेको नेकौ
जन-जीवन-पु० [सं०] जनताका जीवन, सर्वसाधारणके नाहिं'-घन।
रहन-सहनका ढंग। छकिहारी*-स्त्री० छाक ले जानेवाली।
जनसेवा-आयोग-पु० (पब्लिक सर्विस कमीशन) दे० छकाही-वि० स्त्री० छका देनेवाली; संतुष्ट; मस्त कर
'लोकसेवा आयोग। देनेवाली-'प्यार सों छकौ ही ढरको ही मृदु बानि-बस'
जमार-पु० यमद्वार। -घन।
जरा-मना-अ० थोड़ा-बहुत । छग्गर*-पु० सग्गड़, शकट ।
जरूला*-वि० गभुआरे केशवाला; जटुलयुक्त, लच्छनवाला। छपका-पु० ठप्पेका छापा हुआ बड़ा फूल आदि; बड़ा.
जलधरा-पु० पानीके घड़े रखनेका स्थान । सा धब्बा ।
जलतरोई, जलतुरई-स्त्री० मछली (साधुओंकी भाषा)। छरद*-स्त्री० छर्दि, वमन-'जबतें अक्रूर ले गये मधुपुरी
जलबम-पु० (डेप्थचार्ज) दे० 'जलप्रस्फोट' । भई बिरह तन बाय छरद'-सूर ।
जलवायु-पु० [सं०] (क्लाइमेट) किसी स्थानकी गमी, जाड़ा, छराय*-पु० दे० 'छलावा' ।
वर्षा आदि सूचित करनेवाली वह प्राकृतिक स्थिति जिसका छलमलना-अ० क्रि० छलकना-'बंसीधुनि घनघोर
प्रभाव वहाँकी आबादी तथा वनस्पति आदिपर पड़ता है, रूपजल छलमलै'-घन।
आबहवा। छाँदा-पु० परोसा दे० मूलमें ।
जलावतरण-पु० [सं०] (लांचिंग) दे० 'पोतसंतरण' । छाती-स्त्री० देखो मूलमें । मु० -का काँटा-पु० हमेशा
जसु*-स्त्री० यशोदा। खटकने या दुःख देनेवाली चीज ।
जसो*-स्त्री० यशोदा। छानी-वि० स्त्री० छन्न, छिपी हुई-'छानी बात उघाडै
जिंद-स्त्री० जिंदगी-'जिंद असाडी ज्यारी है'-धन। छै'-घन।
जिमींदारी-पु० दे० 'जमींदार'। छायापात्र-पु० [सं०] घी या तेलसे भरी हुई वह कटोरी
जिलाधीश-पु० दे० 'जिला मजिस्ट्रेट'। आदि जिसमें अपने शरीरकी छाया देखी जाती है (अरिष्ट
जिलापालिका-स्त्री० (डिस्ट्रिक्ट बोर्ड) दे० 'जिलाबोर्ड'। निवारणार्थ)।
जिवड़ा*-पु० हृदय (मीरा)। छायावान-पु० सायबान (अहिल्या०)।
जिवारी*-वि० स्त्री०जिलानेवाली-'आयी है दिवारी चीते छिछ-वि० ठूछा दे० मूलमें ।
काजनि जिवारी प्यारी'-धन । छिकना-अ० कि० रुकना, छेका जाना-'रूप अलबेली सु
जिवावन -वि०जिलानेवाला । नवेली एरी तेरी आँखें ताकि छाकि मार हुरिहाई न कहूँ
जी-हजूरी-स्त्री. 'जी हुजूर, जी-हुजूर' कहते रहनेका छिकै'-घन।
भाव, खुशामद । छित*-वि० सित, श्वेत ।
जं बश-स्त्री० गति, हरकत, हिलना । छियना*-स० क्रि० छूना-'देखि जियो, न छियौ धन
जुग्गिनी*-स्त्री० योगिनीपुरी, दिल्ली। आनँद'।
जुलपित्ती-स्त्री० एक रोग जिसमें शरीर पर लाल-लाल छीजना*-स० क्रि० छूना-'आनँद घन रसरासि पायकै
चकत्ते निकल आते हैं, दे० 'जुड़पित्ती'। क्यों जग छीलर छीजै । अ० क्रि० दे० मूल में ।
जुब्वन-पु० यौवन-'दिन दिन अवद्धि जुम्वन घटय, छुटौती-स्त्री० छुड़ाने, रिहा करानेका कार्य या उसके
कंत बसंत न गम करहु'-रासो। बदले लिया जानेवाला धन,-'तब छोड़ा जब घरसे छुटौती.
जुसाँदा -पु० दे० 'जोशाँदा' (काटा)। के पैसे मँगवाकर उन्हें दिये'-अहिल्या० दे० मूलमें ।
जूरा*-स्त्री० जरा, वृद्धावस्था । Jछना -पु. बाहर निकला हुआ दरी आदिका लंबा
जूपी-पु० यशस्तंभ(यूप)से बँधा हुआ पशु, बलिपशु । रेशा, फुचढ़ा।
जूरना -अ० कि० जुरना, उपलब्ध होना। छेकना-स० कि० दे० 'छेकना'।
ज़ुभकास्त्र-पु. [सं०] जंभक नामक अरू जिसका प्रयोग छेवला -पु० पलाशका पेड़, जिसके पत्तोंसे पत्तल और
करनेसे शत्रुको अँभाई आने लगती है, वह शिथिल पड़ दोने बनाये जाते हैं।
जाता है। छेहरा-पु० विरह-'कहो न परत कछु रयौ न परत है जोगिनी -खी० सहारा लेनेकी लकड़ी, ठकोरी। सह्यौ न परत छिन छेहरा'-धन ।
जीरा-स्त्री० जरा। छोति -स्त्री० स्पर्श।
ज्यारा*-वि० जिलानेवाला। [स्त्री० 'ज्यारी']:-'भान
की दुलारी धन आनँद जीवन-ज्यारी'-घन। जंत*-पु० जंतु, जीव, व्यक्ति ।
ज्यौर-पु० जी, जान-'बूड़त ज्यौ घन आनंद सोचि'जंबूनद-पु० दे० 'जांबूनद' (सोना)।
घन । अ० दे० मलमें। जखीरा-[अ०] पेड़-पौधे या बीज मिलनेका स्थान दे०
अपना-अ० कि० दे० 'झपना दे० मूलमें। ३२-ग
मूलमें।
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झकूटा- डेढ़िया
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झिनझिनी + स्त्री० दे० 'झुनझुनी' ।
झीम स्त्री० उनींदे व्यक्तिका नींदपर काबू पाने के प्रयत्न में झूम जाना, ऊँघ (दे० झूम), झपकी ।
शकूटा+पु० छोटी झाड़ी ।
फोल्डिंग, सफरी (मेज, कुरसी इ० ) ।
झमारना - स० क्रि० झाँवर कर देना; जलसे भर देना- टैंट - पु० दे० 'टेंटर' । मु० (कानी के) - पर सिंदूर की
'आनंदको घन रंग झलनि झमारई' - घन० |
झरना कलम- स्त्री० दे० 'फाउंटेन पेन' ।
बिंदी (बुंदेल० ) - कुरूप स्त्रीका अपनी कुरूपता दूर करने के प्रयत्न में और अधिक असुंदर बन जाना; और भी भद्दी लगनेवाली चीज |
झराँ*-पु० खौ जाने, चुरा जानेकी क्रिया या भाव - 'सो धन झरौँ गयौ' - घन० ।
टैंठी* - वि० स्त्री० चंचल (स्त्री) - 'नाक चढ़ाएई डोलत टैंठी' - घन० ।
झराहर* - पु० ज्वालाघर, सूर्य ।
झाँझ+ - स्त्री० (भाँगका) नशा - 'ऐसा न हो कि झाँझ हो टोट* - स्त्री० कमी (त्रुटि) - 'ध्यासकी न टोट है' - घन० । जाये जरा गहरी' - जिंदगी० ।
टौंडिक* - वि० शरारती । टौड़िक* - वि० पेटू ।
झाई* - स्त्री० दे० 'झाँई”” ।
झाझ* - पु० जहाज - 'राम नामका झाझ चलास्याँ भव- टौरिया + - स्त्री०
सागर तर जास्याँ' - मीरा ।
टीला |
झाला* - पु० बकवाद - ' काहेको झाला लै मिलवत कौन ट्यूबवेल - पु० [अ०] दे० ' नलकूप' |
चोर तुम डाँडे' - सुर ।
झिंझरी - स्त्री० जालीदार खिड़की ।
झूखना* - अ० क्रि० दुःखी होना, संतप्त होना - ' अवधि गनत इक टक मग जोवत तब एती नहिं झूखी' - सूर । झूलना* - अ० क्रि० समाप्त हो जाना - 'मति बावरी है रही झूलिहै जू' - घन० ।
झौर* - पु० दे० 'झर' |
ट
टग * - स्त्री० टकटकी - 'टग लाय रहीं पल पॉवड़े कै'
घन० ।
टन्नाना+ - अ० क्रि० 'टनटन' आवाज करना । टपरा - पु० घास-फूस, टीन आदिसे छाया छोटा घर, झोपड़ा-‘टीनवाले टपरोंके सामने चौड़ा मैदान था'
- अमर० ।
मोरी
टपरिया - स्त्री० झोपड़ी, मँड़ैया - 'कित गयी प्रभु टूटी टपरिया हीरा मोती लाल कसे' - मीरा । टाकर* - स्त्री० ताकना, टकटकी; जगना । टापा* - पु० टीका, तिलक - 'रामनाम जाणै नहीं आये टापा दीन- 'साखी ।
टुंग+ - पु० पहाड़की गोल चोटी - 'मदनमहलकी छाँह में दो टुंगों के बीच | जमा गड़ी कई लाखकी दो सोनेकी ईट' |
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टूटदार - वि० जिसके हिस्से अलग-अलग कर एक में मिला देने से पुनः समूची वस्तु तैयार हो जाय, मोड़दार,
९९२
छोटी पहाड़ी, बड़े-बड़े पत्थरोंवाला
어
ठटवारी * - स्त्री० टट्टी - 'मुरली मधुर चेंपकर काँपो मोरचंद्र ठटवारी' - सूर ।
उठनrt - अ० क्रि० (काँटे, तीर आदिका) चुभकर रह जाना, गड़ जाना; दे० 'ठटना' ।
ठिक* - पु० स्थैर्य - 'जासों नहीं ठहरै ठिक मानको'
घन० ।
ठियrt - पु० जंगली पशुओंके रहने, ठहरनेका स्थान (मृग०) ।
ठिलठिलाना + - अ० क्रि० जोर से हँसना । ठोठ । - वि० ठूंठा; निराला ।
ड
ढंगरा - पु० खरबूजा (बुंदेल०) । डंडना * - स० क्रि० दंड देना ।
डँडा * - पु० बाहु - 'गोरे डँडा पहुँचान
बिलोकत'
घन० ।
डंडूल* - स्त्री० आँधी - 'करसेती माला जपै हिरदे ब डंडू' - साखी /
डरारी* - वि० स्त्री० डरावनी-' पापिनि डरारी भारी'
टिकटघर - पु० (बुकिंग आफिस ) रेल के स्टेशनका या सिनेमा, सरकस आदिके अहातेका वह स्थान या कमरा जहाँ गाड़ी में बैठने, सरकस आदि में प्रविष्ट होनेका अनुमतिपत्र पैसा देकर प्राप्त किया जा सकता है । टिपटाप - वि० जीवनके हर क्षेत्र में - वेशभूषा, रहन-सहन आदिमें - नियम और व्यवस्थाका कड़ाई से पालन करनेवाला (आदमी) ।
टीकी* - स्त्री० टिकुली, बिंदी - 'काजल टीकी हम सब डिंडिमघोष - पु० [सं०] डुग्गी पिटवाना, डुगडुगी पिटवाकर त्याग्या, त्याग्यो छै बाँधन जूड़ो' - मीरा ।
घन० ।
डवा * - पु० थैल | (कटोरा ?) - 'बिषको डवा है कै उदेगको अंबा है' - घन० ।
डाँवर - पु० डामर, अलकतरा । डाक-शुल्क- पु० ( पोस्टेज) चिट्ठी-पत्री आदिपर टिकटके रूपमें लगनेवाला महसुल 1
डागल*- पु० ऊबड़-खाबड़ भूमि - 'डागल ऊपरि दौड़णाँ, सुख नींदड़ी न सोइ' - साखी । डाढा - वि० गहरा, ढ़ ।
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घोषित करना ।
डिडकार - स्त्री० (साँड़ आदिके) डकरने, जोरसे बोलने की आवाज, दहाड़ - 'अरनेने जोरकी डिडकार लगायी ' - मृग० ।
डेढ़िया - पु० (अनाज) उधार देनेका वह प्रकार जिसमें फसल पर मूलका ड्योढ़ा वसूल किया जाता है ।
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ढ
ढरकहाँ* - वि० ढरक जानेवाला, अनुकूल - 'ढरको हैं देखि विवस बकि परी मौन' - घन० । ढरहरा* - वि० अनुकूल, द्रवीभूत- 'कहा कहौं कृपाकी दरनि ढरहरे हौं' - घन० ।
ढलवारि* स्त्री० हँसी-ठट्ठा । ढाठी - स्त्री० 'ढट्ठी' ।
ढिल्ली*-स्त्री० दिल्ली नामकी प्राचीन नगरी । - वै-पु०
दिल्लीपति ।
ढौरी* - स्त्री० ढंग, ढब - 'गौरी गाय ढौरी सों बुलावें गौरी
गायको - घन० ।
ढौली* - स्त्री० दे० 'ढौरी' ।
ढिल्लेस * - पु० दिल्लीश्वर, दिल्लीपति ।
ढी + स्त्री० (नदी, नालोंका ) ऊँचा किनारा ।
बैँक - पु० दे० 'झोझ' ।
|
ढेलेबाज - पु० ढेला फेंककर मारनेवाला; ढेलेसे निशाना मारनेवाला ।
तुबक* - स्त्री० दे० 'तुपक' (तोप) ।
तुल्ल* - वि० तुल्य, बराबर । तुसाडाँ* - सर्व० तुम्हारा ।
तूल-तूफान - पु० हो-हल्ला उत्पात । तृकुटी * - स्त्री० दे० 'त्रिकुटी' | तेली+ - स्त्री० पेउसी (बुंदेल०) । तैडा* - सर्व० तेरा ।
तबलावादक - पु० तबला बजानेकी कला जाननेवाला, तबलिया, तबलची ।
ਰ
तंत्रवाद्य - पु० [सं०] वीणा, सारंगी आदि तारवाले बाजे, तोन* - पु० तूण, तूणीर । तंतुवाद्य ।
त्रसरैनि* - स्त्री० दे० ' त्रसरेणु' |
तँवारा* - पु० दे० 'तँवारी' ।
त्रिवृता - स्त्री० [सं०] एक लता, निसोथ, त्रिवृत् ।
तखड़ी, तखरिया - स्त्री० तराजू ।
थ
ततूरी + - स्त्री० पैरों में तप्त भूमिके स्पर्श या गरम धूल लग जानेके कारण होनेवाली तापकी अनुभूति - 'मजदूर लू और ततूरी में काम कर रहे थे' - मृग० । (संस्कृत 'ततुरि'
= अग्नि 1)
सनजेब - पु० दे० ' तंजेब' |
तबलावादन - पु० तबला बजानेका कार्य या कला ।
तबेली* - स्त्री० दे० 'तलबेली' |
तयना* - स० क्रि० तपाना, संतप्त करना - 'आनंद घन जग सुनस छाइकै पतित पपीहै निपट न तैयै' । तरेड़-स्त्री० दरार-‘आत्मविश्वास में संदेह की तरेड़ डाल दी' - जिंदगी० ।
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ढरकहाँ - दच्छिनता
तिमिर* - पु० तैमूर - 'तिमिर-बंस- हर अरुनकर आयो सजनी भोर' - भू० ।
तिलक - पु० [सं०] किसी ग्रंथपर लिखी गयी टीका या भाष्य - 'स्वतंत्र ग्रंथ नहीं, टीकापर टीका, तिलकपर तिलक, लिखे जा रहे थे' - हजारीप्र० ।
तिलोनी * - वि० स्त्री० फुलेल से सुगंधित - 'अंग अति लोनी लसै ललित तिलोनी सारी' - घन० ।
तिस* - स्त्री० तृष्णा, लालसा; प्रेम- 'तिस उपजावति प्यासहि नासि' - घन० ।
ती* - अ० क्रि० थी- 'बिरंचि बिचारि कै जाति रची ती'घन० ।
तुजनूँ *
* - सर्व० तुझको ।
तरेरना* - स० क्रि० थपेड़ा देना - 'उपावकी नाव तरेरति तोरति' - घन० ।
थंभा* - पु० दे० 'थंभ' |
थरसना* - अ० क्रि० त्रस्त होना, थहरना - 'आवरी बावरी है धरसै' - घन० ।
थाँवरा* - पु० दे० 'थाँवला' (थाला ) ।
था कि * - स्त्री० थकावट, क्लांति - 'कबीर हरिरस यों पिया, बाकी रही न थाकि' - साखी ।
थावरा* - पु० थाला ।
थुथराई* - स्त्री० थोड़ा होना, कम पड़ना - ' जान मद्दागरु-गुन मैं घन आनँद हेरि रह्यौ थुथर । ई' - घन० । थुथराना * - अ० क्रि० थोड़ा होना, कम पड़ना । थूमा-पु० लकड़ीका अनगढ़ खभा, टेक । थेगली * - स्त्री० कंथा; दे० 'थिंगली' ।
द
दंगह* - वि० दंग करनेवाला, अद्भुत (रासो) । दंतचिकित्सक - पु० [सं०] ( डेंटिस्ट) दाँतोंकी चिकित्सा करनेवाला तथा हिलते, टूटे दाँत उखाड़ने, नकली दाँत लगानेवाला ।
व्याकुलता - 'परम मरम
तवा - पु० छातीके बचावका साधन जो तवेके आकारका होता है - 'योधा झिलमटोप और तवे चढ़ाये हुए थे' - मृग० । तापतौटी* - स्त्री० तापजन्य अपरस तापतौटीके' - घन० । तामियाँ - वि० ताँबे जैसा, लाल, तामड़ा । तारक - पु० [सं०] छपाईमें तारे जैसा चिह्न (*); दे० मूलमें ।
तारा* - पु० ताला - 'टरें टारै नहीं तारे कहूँ सु लगे मनमोहन-मोहके तारे' - घन० दे० मूल में | तिगलिया + - पु० वह स्थान जहाँ तीन रास्ते या तीन दच्छिनता* - स्त्री० दक्षिणता, अपनी सभी नायिकाओंसे गलियाँ आकर मिलती हों, तिराहा ।
समान प्रेम रखनेका गुण ।
दंतचिकित्सा - स्त्री० [सं०] (डेंटिस्ट्री) दाँतों की दवा करनेकी विद्या या कला ।
दईजार - वि० (दैव द्वारा जलाया हुआ), अभागा, शैतान (स्त्रियों द्वारा गालीके रूपमें प्रयुक्त - 'सबेरे ही दईजारी मशीनों को देखने निकली' - अमर०) ।
दगाती* - वि० दगाबाज- 'छल बल करि नहिं काहू पकरत दौरि दगाती' - घन० ।
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दश्मना-नवैयत दश्झना-अ०.क्रि० दग्ध होना।
दोसत*-पु० दोस्त, मित्र (साखी)। दप्प-पु० दर्प, घमंड ।
दोही-स्त्री० दुहाई-'फिरी हग रावरे रूप की दोही'दब*-स्त्री० दाव, दबाव, रोब, शासन-'कहा करौं कछ | घन।
बनि नहिं आवै अति गुरुजनकी दबरी'-धन० । दीची -स्त्री० ठोकर लगनेसे धातुके बर्तनमें पड़ी हुई दरकीला-वि० आसानीसे टूट-फूट जानेवाला, भुरभुरा। पचकन, चिपटापन । दरबर*-स्त्री० उतावली-'अहो हरि आये महा हरबरमैं, द्रप्पन -पु० दर्पण-'द्रप्पनसम आकास स्रवत जल अमृत कहा बनि आवै टहल दरबरमैं'-घन ।
हिमकर'-(रासो)। दरबराना*-अ० क्रि० छटपटाना-'देखनकौं ग दर-द्वाभा-स्त्री० सबेरे या संध्याके समयका वह मंद प्रकाश बरात'-घन।
जब सूर्य क्षितिज रेखाके नीचे हो (ट्वाइलाइट)। दह-पु० नदी किनारेका (मटमैले पानीका) छिछला गड्ढा-'सुअर और अरने भैंसे नदी किनारे किसी दहमें लोर रहे होंगे'-मृगः ।
धकना*-अ.क्रि. तप्त होना, धिकना-'जरनि बुझ दही-प० दे० मलमें।म०-CETथ.महमें),-जमा रहना| दुख-जाल धौ-धन । -निष्क्रिय हो जाना या रहना; परस्पर बातचीत न होना | धक्याना*-अ० कि० जलना-'जियरा उड्यौ सो डोले -७८ दिनतक दोनों के मुंह में दही जमा रहा'-प्रेम० । __ हियरा धक्यौई करै-धन० । दा*-प्र० का-'नंददा सोहना'-धन ।
धजी*-स्त्री० धज्जी, टुकड़ा। दाझणा*-पु० जलन, दाह-'आठ पहरका दाझणा मोपै धनवाद-पु० [सं०] (मनीसूट) वह मुकदमा जिसमें धनके सह्या न जाइ'-कबीर ।
लिए दावा किया गया हो। दातुरी*-स्त्री० दानकी वृत्ति-'दानी बड़े पै न माँगे बिन | धरनि*-स्त्री० दे० मूलमें टेक-'ज्यों अहि डसत उदर ढरै दातुरी'-धन।
नहिं पूरत ऐसी धरनि धरी'-सूर । दान-पु० [फा०] रखनेकी चीज या पात्र, आधार | धाँगना --स० कि० कुचलना, रौंदना।
(समासमें-जैसे कलमदान, पानदान, पीकदान)। धीजना*-अ० क्रि० ठहरना-'चाह बढ़-चौ चित चाकदामणी*-स्त्री० दामिनी, बिजली-'चहुँदिस चमकै दामणी चदयौ सो फिरैतित ही इत नेक न धीजे-घन। गरजै धन भारी हो'-मीरा।
धुनक*-पु० धनुष, धनुर्धर । दायबी-विदा, अवसरको खोजमें रहनेवाला-'मन धुनाई-स्त्री० पिटाई, मरम्मत। बसमै न रोक रहै दायबी'-धन ।
धुपधूप*-वि० दगदगा, साफ, चोखा-'मेरो मन, मेरो दारुजात-पु० भ्रमर, भौंरा (सूर)।
अलि, लोचन लै जो गये धुपधूप' -सूर । दावत-तवाजा-पु० [अ०] खान-पान, आदर-सत्कार | धुराधुर*-पु० आधार-'प्रान पपीहनिके घन आनंद होत आदि।
· आए हौ धुराधुर'। दिग्द्योतक यंत्र-[सं०] दे० 'दिग्दर्शक यंत्र' कुतुबनुमा। धूताई*-स्त्री० धूर्तता, चालाकी-'साँची कहहु देह दीवानी-वि० [फा०] रुपये और जायदाद-संबंधी (-मुक- स्रवननि सुख, छोडहु जिया कुटिल धृताई -सूर । दमा)। -अदालतस्त्री०,-न्यायालय-पु. वह अदालत | धूम-अ० तेजीसे। जिसमें जायदाद-संबंधी मुकदमोंपर विचार हो।
धैन*-स्त्री० धेनु। दुखदागर-पु० दुःखका नाश करनेवाला-'पालागौं धौताल*-वि० शरारती- 'होरीके दिन चारिकतें तुम भये द्वारका सिधारौ बिरहिनिके दुखदागर'-सूर ।
हो निपट धौताल हो'-धन । दखहाई*-वि० स्त्री० दुःखकी मारी-'न खुली मुँदी धम्म-पु० दे० 'धर्म'।
जानि परै कछु ये दुखहाई जगेपर सोवति हैं'-धन । ध्वनिघनस्व-पु० [सं०] (फ्रीक्वेंसी) प्रति सेकंडमें उत्पन्न दुगध-पु० दुग्ध, दूध । -नदीस*-पु० दुग्धसमुद्र, की जानेवाली ध्वनिकी आवर्तनीके अनुसार मानी जाने
क्षीरसागर-'इंद्रको अनुज हेरै दुगध-नदीसको'-भू० । वाली ध्वनिकी धनता । दुग्धशाला-स्त्री० [सं०] दे० 'डेरी'। दून-स्त्री० दो पहाड़ोंके बीचकी जगह, घाटी (अमर०)। देन-स्त्री० दे० मूल में वह उपयोगी या अमूल्य वस्तु जो नगड़िया-स्त्री० एक तरहका छोटा-सा नगाड़ा, डुग्गी । किसीको दी जाय या दी गयी हो-'जगतको जो हम | नन*-अ० मत-'नन करहु गवन नन भवन तजि, कत सबसे बड़ी देन दे सकते हैं, वह यही आदर्श है'- | दुसह दारुन सरद'-रासो । राजेंद्रप्र०।
नबी*-वि० नवीन । देयासिनि*-स्त्री० झाड़-फूंक करनेवाली (विद्यापति)। नभोनंदिनी-स्त्री० प्रतिध्वनि (विरहिणीवजा०)। देवता-पु० [सं०] दे० मूल में । मु०-कूच कर जाना- नरवै*-पु० नरपति, राजा (रासो) । अत्यंत भीत हो जाना, होश गायब हो जाना।
नवसर -वि० नयी उम्रका । देसड़ा, देसडे*-पु० दे० 'देस'।
नवैयत-स्त्री० (टेन्यूर) भूमि या संपत्ति रखनेकी अवधि देहवंत-वि० शरीरवाला । पु० देहधारी, प्राणी । और शर्ते ।
नबा
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भाँवरा-पतोखी नॉवरा*-पु. नाम।
नीबू-पु० दे० मूलमें । मु०-नमक चटाना-ठेगा नॉसी*-स्त्री० मारनेका स्वभाव-'जा मुख हाँसी लसी धन | दिखाना, कुछ भी न देना, निराश करना, कोरा जवाब आनँद कैसें सुहाति बसी तहाँ नाँसी'-धनः ।
देना । -नमक चाटना-निराश होना, प्रायः कुछ भी नाती-पु. नातेदार, संबंधी (मीरा)।
न पाना। नालि*-स्त्री० चिता-"बिरहणि थी तो क्यू रही, जली न नीलकाँटा-पु. एक झाड़। पिवके नालि'-साखी।
नीसार*-पु० (संस्कृत 'नीशार') आवरण, पर्दा (रासो) । निखरक*-अ० बेखटक-'निधरक जान अलबेले निखरक । नेरी*-अ० थोड़ा भी-'... पत्यातिन नेरी'-धन । ओर'-धन०।
नैत*-पु० सुअवसर । निखरहर, निखहर-वि० बिछौनेसे रहित ।
नैनी*-स्त्री० नैनू , नवनीत-'किसीकी नैनी ले भागे तो निगडहस्त-वि० [सं०] (हैंडकपड) जिसके हाथमें हथकड़ी। किसीकी छाछ फैला दी'- केशवप्र० । पड़ी हो।
नोअना, नोना*-स० क्रि० गायके पैर में रस्सी बाँधनानिगुड़वा*-वि० दे० 'निगोड़ा।
_ 'कपट हेतुकी प्रीति निरंतर नोह चोखाई गाय'-सूर । निचीता*-वि०निश्चित ।
नौथारी -पु० निमंत्रित व्यक्ति। निझनक*-वि०निर्जन, नीरव ।
न्यौज*-पु० दे० 'नेवज'। निपाँख*-वि० पंखसे हीन सहायकसे रहित (ला०)- प*-पु० नृप, राजा।
'निपाँख करि छोरि देहु'-घन । निपेटी*-वि० स्त्री० भुक्खड़-'अघाति न आँखि निपेटी'घन०।
पंख-पु० दे० मूलमें। मु. -परेवा बना डालनानिबेसित*-विनिवेशित ।
बातका बतंगड़ बना देना, छोटी-सी चीजको तूल दे देना, निरज*-वि० रजोहीन, निर्मल।
मामूली-सी बातको बहुत बढ़ा देना (अमर०)। निरजास*-पु० दे० 'निरजोस'- 'लह्यौ परम रसको निर- पंग-पु. कन्नौज नरेश जयचंद (रासो)। -जा-स्त्री. जास । श्री ब्रज बुदाबिपिन बिलास'-घन ।
संयोगिता। निरवद्य-पु० [सं०] तीन योगशक्तियों मेंसे एक (शेष दो पंचशील-पु० [सं०] अंतरराष्ट्रीय शांतिरक्षाके वे पाँच सावद्य और सूक्ष्म हैं); दे० मूलमें ।
सिद्धांत या शील जिनकी घोषणा पहले-पहल जवाहरलाल निराना*-अ० कि० दे० 'नियराना'।
नेहरू तथा चाऊ एन लाईके संयुक्त वक्तव्य में की गयी थी। निरालंब नारीसदन-पु० [सं०] (डेस्टिट्यूट-वीमेंस होम) पाँचों शील ये हैं-(१) राज्यकी अविच्छिन्नता और प्रभुत्व
असहाय नारियोंकी सहायताके लिए स्थापित संस्था । के लिए परस्पर समादर; (२) परस्पर अनाक्रमणका निरिनि*-अ० निकट-'निरिनि रहत ब्रजमंडन जिनके। आश्वासन; (३) भीतरी बातोंमें अहस्तक्षेप (४) समता हरि-हित-सहित मनोरथ इनके।'-घन।
और पारस्परिक लाभ; (५) शांतिमय सह-अस्तित्व । निरैठी*-वि० स्त्री० मस्त-'लाइनि निरैठी मति बोलनि पंचाली-स्त्री. पांचाली, द्रौपदी; दे० मूलमें । हरै हरी-घन।
पक्का-वि० दे० मूलमें । -पानी-पु० गेहुआँ रंग । निर्गम-निषेधाज्ञा-स्त्री० [सं०] (करफ्यूआर्डर) दंगा फसाद | पगड़े *-अ० प्रभातमें-'सधली रैनि आनँदधन बरस्या
या उपद्रवादिके समय आरक्षाधिकारियों द्वारा घरसे बाहर पगड़े म्हाँ पर छाया' (पगड़ा, पगरा = सबेरा)। निकलनेकी मनाही करनेवाली आज्ञा ।।
पचना*-अ० क्रि० परेशान होना-'बृथा रुचि बीच निर्झर लेखनी-स्त्री० [सं०] दे० 'फाउंटेनपेन'। पच्यौपरि क्यों ?'-घन; दे० मूलमें । निर्दल सम्मेलन-पु० [सं०] ऐसे नेताओं, कार्यकर्ताओं पछियाना-अ० क्रि० पीछे-पीछे चलना । स० क्रि० पीछा
आदिका सम्मेलन जिनका संबंध किसी दल-विशेषसे न हो। करना। निर्बरा -वि० धुंधला, अस्पष्ट- एक आकार दिखलाई पड़ा। पटकना*-अ० क्रि० परेशान होना-‘ऐसी कौन बावरी साफ नहीं, निर्बरा'-मृग० ।।
सयान लैन पटकै'-घन । निर्यासन-पु० [सं०] दे० मूलमें; उत्पीड़न, कष्ट देना- | परपरा-पु० पहाड़के ऊपरकी समतल भूमि ।
'यह निर्यातन अब और न सहेंगे'-'पथके दावेदार'। पटम*-पु० छल-छंद-'काहेको एतौ पटम रचत हो मन निर्वनीकरण-पु० [सं०] (डीफॉरेस्टेशन) दे० 'वन रूखे मुँह चिकने बैन'-धन । नाशन'।
पटरोल*-पु० पट्टवस्त्र, रेशमी वस्त्र । निष्प्रभाव-वि० [सं०] जिसका कोई प्रभाव न रह गया पटेला-पु० चूड़ीका काम देनेवाला (चाँदीका) चिपटा हो, जिसका प्रभाव नष्ट या रुद्ध कर दिया गया हो, | कड़ा। अप्रभावी।
पतंगी-वि० स्त्री० रंग-बिरंगी-'गोरे तन पहिरि पतंगी निसवादिल*-वि० दे० 'निसवादला'।
सारी, झमकि झमकि गार्चे गारी'-घन । निस्यौना*-अ० कि० निश्चित होना-'अनंगके रंग निस्यौं पतिलीन*-वि० प्रतिष्ठाहीन-'गतिहीननकी पतिलीननकी करि'-धन।
रति'-धन। नीव-स्त्री० दे० 'नी।
| पतोखो-स्त्री० रातमें बोलनेवाली एक चिड़िया ।
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पती-प्रतिपूयिक, प्रतिपौतिक पत्ती-स्त्री० दे० मूल में; दे० 'ब्लेड' ।
पातालतोड़-वि० बहुत गहरा (कुँआ)। पत्यानि*-स्त्री. विश्वास-'झूठी बतियानिकी पत्यानिते पानी-पु० दे० मूलमें । मु०-पानी करना-किसीका उदास है कै'-घन।
__ क्रोध शांत करना। पत्रचाप-पु० (पेपरवेट) लकड़ी, शीशे, पत्थर आदिका वह | पानुस*-पु० दे० 'फानूम'।
छोटा टुकड़ा जिसका प्रयोग कागजपत्रोंको दबाये रखने, पिटना-अ० क्रि० पछाड़ दिया जाना, हार खाना-'इस हवामें उड़ जानेसे रोकने के लिए किया जाता है, चुनावमें कैथलिक लीग बुरी तरह पिटी' । पत्रमारक ।
पियाला-पु० दे० 'प्रियाल'। पत्रभारक-पु० (पेपरवेट) दे० 'पत्रचाप'।
पिसण-वि० पु० पिशुन । पथ्थार*-पु. प्रस्तार, विस्तार (रासो) ।
पीरक*-वि० दे० 'पीडक' । पदवीदान समारोह-पु० [सं०] दे० 'समावर्तन संस्कार'। पुजना*-अ० क्रि० पूजना, पूरा होना । पदावनति-स्त्री० [सं०] (डीग्रेडेशन) ऊँचे पदसे हटाकर पुत्तारी*-पु० पुत्र, सुत । नीचे पद पर कर दिया जाना, तनज्जुली।
पुत्ति*-स्त्री० पुत्री, लड़की। पदु-पु० दे० 'पद'; बदला।
पुन्निम*-स्त्री० पूर्णिमा। पद्मविभूषण-पु० [सं०] किसी असामान्य या विशिष्ट | पुप्फ*-पु. पुष्प, फूल । सेवाके लिए स्वतंत्र भारत सरकार द्वारा दिया जाने पुरवा*-वि० पूर्ण करनेवाला-'चलि राधे बूंदाबन बिहरन वाला एक सम्मान ।
| औसर बन्यौ है मनोरथ-पुरवा'-धन। पय*-पु० पद, चरण-'पयलग्गि प्रानपति बीनवों नाह| पुरालिपि-स्त्री० [सं०] पुरातन काल में प्रचलित लिपि । नेह मुझ चित धरहु'-रासो।
-शास्त्र-पु. प्राचीन लिपियोंका विवेचन करनेवाला पया-पु० दस सेर अनाजकी तौलवाला बरतन (अमर०)।। शास्त्र। परगनाधीश-पु० दे० 'परगना हाकिम' ।
पुलिस-स्त्री० दे० मूलमें । -काररवाई-स्त्री० किसी परगना हाकिम-पु० [अ०] परगनेकी देखरेख करनेवाला स्थानमें शांति स्थापित करनेके लिए की गयी सख्त प्रधान अधिकारी, परगनाधीश ।
काररवाई । -राज-पु. पुलिसका शासन, दबदबा या परमुखापेक्षिता-स्त्री० [सं०] दूसरेका मुँह जोहने, दूसरे आतंक। पर निर्भर रहनेकी प्रवृत्ति-'मनुष्यको पर मुखापेक्षिताके | पुहप्प-पु० पुष्प । दलदलसे निकालना 'साहित्यका लक्ष्य'-हजारीप्र०।। पुहवै*-पु० प्रभु, स्वामी । परमुखापेक्षी (क्षिन्)-वि० [सं०] दूसरेका मुँह जोहने- पूर*-पु० दे० मूल में; धारा-'उगिलत हो पयपूरको वाला।
| निगलत सो तमताम'। परिमार्जनीय-वि० [सं०] जिसकी त्रुटियाँ दूर करना | पूर्णकालिक-वि० [सं०] जो पूरे समय काम करे, जो पूरे आवश्यक हो, संशोध्य ।
समयके लिए नियुक्त किया गया हो; पूरे समयसे जिसका परीसना-स० क्रि० परोसना-'आनँद धन पिय न्यौति | संबंध हो। पपीहनि प्यास परीसत हो'-घन; स्पर्श करना-'मधुर पेटनटा-पु० पेटके लिए नाचनेवाला । त्रिभंगी जौ लौ कृपान परीसई'-धन ।
पेया-स्त्री० [सं०] शर्बत, मदिरा आदि पेय पदार्थ । परैना-पु० पशुओंको हाँकनेका एक हथियार ।
पेशबंदी-स्त्री० [फा०] बचावकी युक्ति जो पहलेसे की जाय; पर्नसालिका*-स्त्री० कुटिया।
दे० मूल में । पर्वतारोही दल-पु. पहाड़की ऊँचाई आदिका पता | 4छर*-अ० पीछे-पीछे । लगानेके लिए अभियान करनेवाला दल ।
| पैरहनी-पु० कश्मीरियोंका लबादा जैसा लंबा पहनावा पलायनवाद-पु० [सं०] (एस्केपिज्म) वह मतवाद जिसमें | (शेखर०)। जीवनकी वास्तविकता और कठिनाइयोंसे भागनेकी प्रवृत्ति- पैसंगा*-स्त्री० पेशीनगोई, भविष्यवाणी। को प्रश्रय दिया जाता है।
पोला -पु. एक त्योहार जिसमें बैलोंकी पूजा होती है दीदिन)-वि०. प० [सं०] पलायनवादका | और उनकी दौड़ करायी जाती है। सहारा लेनेवाला (कवि, लेखक इ०)।
प्रकाशनाधिकार-पु० [सं०] (कॉपीराइट) दे० 'कृतिस्वाम्य' । पशुवंदीगृह-पु० दे० 'कांजी-हाउस' ।
प्रग्रिह*-पु० परिग्रह। पसर-स्त्री० दे० मूल में । मु० -चराना-पशुओंको प्रछेद-पु. प्रस्वेद, पसीना ।
रातमें चुपकेसे थोड़ी देरके लिए किसीके खेत में चराना। | प्रजरंत*-वि० प्रज्वलित, जलता हुआ। पांडरित-वि० [सं०] जो पीला बना दिया गया हो- प्रतग्याँ*-स्त्री० प्रतिज्ञा । 'वदनचंद्रके लोध्र रेणुसे गंगाका जल पांडुरित हो जाता | प्रतषि-वि. प्रत्यक्ष । था'-हजारीप्र०।
प्रतिनमस्कार-पु० [सं०] नमस्कारके जवाबमें किया पाज*-पु. बंधन, बाँध-'ब्रजतिय-हिय-सरबर रसभरे । गया नमस्कार, प्रत्यभिवादन । लाज-पाज तजि उमगनि ढरे।'-घन।
प्रतिपूयिक, प्रतिपौतिक-वि. जो सड़न या मवाद न पाटण-पु० पत्तन, नगर ।
उत्पन्न होने दे (ऐंटी-सेप्टिक)।
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प्रपत्र-बना
प्रपन्न-पु० [सं०] (बाई) वह व्यक्ति जो नाबालिग होनेके फेनिल-पु. रीठा ।
कारण अपने अभिभावकके अधीन हो, अभिरक्ष्य । फैक्टरी-स्त्री० कारखाना । प्रबंधसंचालक-पु० [सं०] किसी संस्थाके प्रबंधादिकी देख- फैयाज-वि० उदार । रेख करनेवाला संचालक ।
फौतीनामा-पु. मृत व्यक्तियोंके नाम पता आदिकी वह प्रब्बत*-पु० पर्वत ।
मूची जो नगरपालिकाकी चौकीपर तैयार की जाती है। प्रम-वि० परम।
फ्रेम-पु. शीशे या तसवीर आदिके चारो तरफ लगाया प्रमोधना*-स० क्रि० प्रबोधना, समझाना ।
जानेवाला चौखटा। प्रयत्नशील-वि० [सं०] प्रयत्नमें लगा हुआ, जो प्रयत्न कर रहा हो। प्रयोगवाद-पु० [सं०] (एक्सपेरिमेंटलिज्म) भाषा, विषय, | बंकनाल-स्त्री० सुनारोंकी महीन फुकनी जिसे मुँहसे फूकभाव, छंद, आदि संबंधी पुरानी परंपराके विरोधी नये- | कर दीयेकी लौसे बारीक टुकड़ों की जुड़ाई की जाती है। नये प्रयोग करते रहनेकी साहित्यिकों, कवियोंकी प्रवृत्ति | बंदर भबकी-स्त्री० दे० 'बदरघुड़की'। जिसकी तहमें पाठकोंको चौंका देनेकी लालसा भी, अज्ञात बध छुड़ाई-स्त्री० विवाहके अंतमें बंदनवारके पत्तेकी रूपसे, विद्यमान रहती है।
गाँठ खोलनेकी रस्म । इसे वधूकी रुखसतके पूर्व वर प्रवेशद्वार-पु० [सं०] भीतर जानेका द्वार या रास्ता खोलता है और नेग माँगता है। प्रालंयपर्वत-पु० [सं०] हिमालय पहाड़ ('श्यामापुर')। बधिया-स्त्री० छोटा बाँध या मेंड़-'खेत भर गया तो एक प्रीतिपेय-पु० [सं०] (टोस्ट) किसीकी स्वास्थ्य-कामनासे , ओरसे बँधिया काटकर फालतू पानी निकाल दिया' ग्रहण किया जानेवाला पेय ।
-मृग०।
बंब*-स्त्री० अहंकार-धंधा ही में मरि गया बाहर हुई न फ
बंब'-साखी। फटफटिया, फटफटया-स्त्री० (फटफट आवाज करनेवाली) बका-पु. वाक्, वाणी, वाक्य, बोल । मु. -फटनामोटर साइकिल ।
मुँहसे आवाज या बोल निकलना-'क्या कहूँ, बक नहीं फटीचरी-वि. जो मैले कुचैले कपड़े पहने हो, भद्दी | फटता'-मृग। वेशभूषा, सूरत-शक्लवाला-'शकल सूरत फटीचर और बकेल-स्त्री० पलास (छेवले)की जड़ जिसे कूटकर रस्सीकी नाम रख दिया मनोहरदास'-नया जीवन ।
तरह प्रयुक्त करते हैं, बकौंडा (बुदेल०)। फनमाली*-पु० शेषनाग-'कालिका कृपान, मुंडमालीके बकौंडा-पु० दे० 'बकेल' । त्रिशूलसे हैं, रामचंद्र-बान फनमालीके जहरसे'-लछिराम । | बखरी-पु० एक तरहका हल । फनाली*-स्त्री० फनोंका समूह-'कालीकी फनालीपै नचत बगड़ी*-स्त्री० बाग, बगीचा। बनमाली है'-पद्माकर ।
बगदना- अ० कि. * लौटना; दे० मूलमें । कॉफट*-पु. कूड़ाकरकट ।
बगदरी-पु० मच्छर (बुंदेल०) । फाउंटेन पेन-पु० [अं॰] वह कलम जिसकी नलिकामें | बगदाना-स० क्रि० ढकेल देना, धक्का देकर गिरा देना स्याही भर देनेसे लिखते समय उसे बार-बार दावातमें बिगाड़ना; बहकाना, भटकाना । डुबाना नहीं पड़ता, झरना कलम, निझर लेखनी । बगरी-पु० (पशुओंका) झुंड, समूह-'ढोरीका एक पूरा फुकली-स्त्री० दे० 'फोकली'।
बगर सामने पेश कर दिया-अमर । फुनि* --अ० पुनि, पुनः।
बग्ग, बग्गु*-पु० बाग, लगाम, वेगा। कलड़िया -स्त्री० जूती-'फाटी तो फूलडिया पाँव उभाणे | बजकना -अ० क्रि० बजबजा उठना, सड़नेके कारण चलते चरण धसे'-मीरा ।
बुलबुले ऊपर फेंकने लगना । फूलेड़ा-पु. एक उत्सव जो चैत सुदी एकादशीको मनाया बटना*-अ० क्रि० बँट जाना, समाप्त हो जाना-पनकी जाता है और जिसमें श्रीकृष्णके लिए फूलोंका झूला बनाया
पटिहै वह जौ बटिहै'-घन हटना, बहकना 'चित्त कहूँ जाता है।
न काहू भाँति बटै'-घन। फूलभाग-स्त्री० एक तरहकी भाँग ।
बटिया-स्त्री० बँटाई, बँटैया, जमीनकी वह व्यवस्था फूला-पु० पक्षियोंका एक रोग।
जिसमें मालिकको लगानके रूपमें पैदावारका नियत भाग फूवा-स्त्री० दे० 'फुआ'।
मिले। फूहा-पु० रूईका गाला।
बडु*-वि० बड़ा। फेदा-पु० अरुई नामक तरकारी ।
बदेस*-पु० विदेश। फेनदुग्धा-स्त्री० दृधफेनी नामक पौधा जो औषधके काम | बनक*-स्त्री० मैत्री-'जासों अनबन मोहिं, तासों बनक आता है।
बनी तुम्है'-धन। फेनमेह-पु० एक प्रकारका प्रमेह जिसमें फेन जैसा वीर्य बनराव*-पु. बड़ा जंगल; बड़ा वृक्ष-'चंदनकी कुटकी थोड़ा-थोड़ा करके गिरता है।
भली ना बबूल बनराँव'-कबीर। फेनिका-स्त्री० सुतफेनी नामक मिठाई।
बनाt-पु०. बनरा, दूल्हा ।
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बमेक-भड
९९८ बमेक*-पु० विवेक।
बिभछ -पु० वीभत्स रस-शृंगार बार करना बिभछ बरदाश्त-स्त्री०सहनेकी शक्ति या भाव, सहनशक्ति, सहन। मय अद्भुत हसंत सम-रासो। बरबटी-सी० बोड़ा (छत्तीस०)
बिरबिराना -स० क्रि० शिकायतकी तरह धीरे-धीरे कुछ बरबरानाt-अ.क्रि० दे० 'बड़बड़ाना' ।
कहना। बरसाइना-स्त्री. हर साल बच्चा देनेवाली गाय । बिसारी*-वि० स्त्रीविषयुक्त-'साँपिनि निसा बिसारी' बरीसानु*-पु० राधाका जन्मस्थान बरसाना।
-धन। बर्तना-अ.क्रि० से व्यवहार करना 'निवासियोंके साथ | बिसास*-पु० विश्वासघात-"बिष भोए विषम-बिसास-बान
वर्त्तने में तीन बातोंका ध्यान रखा जाता'-अंताराष्ट्रिय वि०। हत हैं-धन। बर्दाश्त-स्त्री० दे० 'बरदारत'।
बिस्वाससँगाती*-वि०, पु० विश्वासघाती-'छोड़ गया बलकनि*-स्त्री० प्रवाह, उल्लास, जोश-रस-बलकनि बिस्वाससँगाती प्रेमकी बाती बराय'-मीरा। उनमदि न कहूँ सके'-घन० ।
बिहित*-पु. बिहिश्त, स्वर्ग-"बिहित न मेरे चाहिये बलांगक-पु० [सं०] वसंत ऋतु ।
बाझ पियारे तुझ'-साखी। बल्लभी*-स्त्री० दे० मूलमे; छत-'ताकी बर बस्लभी, बीतनि -स्त्री० क्षणभंगुरता-'बीतनिको रूप हूँ ठहरि बिचित्र अति ऊँची, जासों निपटै नजीक सुरपतिको | हेरि गये बीते'-धन। अगार है' (काव्यांगको०)।
| बीनवना*-स० क्रि० बिनती करना-'पय लग्गि प्रानपति बस*-वि० सुवासित ।
बीनवौं'-रासो। बसेंडा-पु० पतला बाँस ।
| बुर्जुआ-पु० [फा०] धनिक मध्यम वर्ग (व्यापारी तथा बहरना*-अ० कि० बीतना, कटना (समय)-'बहरि परै बड़ा वेतन पानेवाले लोग)। वि० इससे संबंध रखनेवाला। नहिं समै गमै जियरा'-घन।
बुल्लना*-स० कि० बोलना-'सकुच न हिय छिन एक बहराना*-अ० कि. बहरा हो जाना-'रूई दिये रहोगे बचन मनमाने बुल्लै'-रासो।।
कहाँ लौ बहरायबेकी'-घन । स० क्रि० दे० मूलमें। बूची*-वि० स्त्री० कनकटी। बहुपदी बिक्रीकर-पु० दे० 'प्रतिपद बिक्रीकर'। | बूंदा-स्त्री० राधा-'चंद्रमस्ली पुंजकी नवकुंज बिहरत बाँधिल*-वि० बँधा हुआ, बद्ध-'गुन बाँधिल होहन आय । जहाँ बृंदा अति भली विधि रची बनक बनाय।' छोटियै जू-धन।
-धनः । बाढी-पु० बढ़ई-'बाढ़ी आवत देखिकर तरुवर डोलन | बेडिया-पु. एक तरहका नट । लाग'-कबीर ।
बो-स्त्री. वधू , पत्नी (भाईजी बो= (भौजी), जेठानी; बापरना -स० कि० व्यवहार करना, काममें लाना। रामा-बो, इत्यादि)। बाबल*-पु० बाबुल, पिता, बाबा-'बाबल बैद वुलाइया | बोहना-+ अ० क्रि० स० कि० (बीज) बोना, खेतमे रे, पकड़ दिखायी म्हारी बाँह'-मीरा ।
बीज छिटकना (अमर०)। बारस*-वि०, पु० दे० 'बारह'-'बारस मास जहाँ | बोहनी -स्त्री० बीज बोने, छिड़कनेकी क्रिया-'जुताइयाँ चौमासो'-घन + स्त्री० द्वादशी ।
हुई और बोहनी भी'-अमर। बारै-वि०, पु० बारह ।
ब्लेड-पु. [अं०] इस्पातका चौकोर पतला पत्तर या बालपक्षाघात-पु० [सं०] (इनफैनटाइल पैरालिसिस) । टुकड़ा जिससे डाढ़ी बनानेका काम लिया जाता है, पत्ती।
बच्चोंको होनेवाला पक्षाघात । वालिस गाड़ी-स्त्री० (बैलास्ट ट्रेन) गिट्टी तथा सड़क बनानेका सामान ढोकर ले जानेवाली रेलगाड़ी।
भकभूर-वि० उजजु, मूढ़-'प्रेमाचीर-कथा कह कहा बावदकता*-स्त्री० वाग्मिता।
भकभूर सौं'-धन। बिगसना -अ० क्रि० दे० मूलमें फूटना, फटना, छितरा भकुरना -अ० क्रि० नाराज होना, रूठना, क्षुब्ध होकर जाना-'मिट्टीका लडट्ट छातीपर जाकर बिगस गया'- मुँह डाल लेना-'निन्नीने मनाया, अरी ठहर भी, यों मृग।
ही भकुरने लगी'- मृग० । बिगूता -वि. उलझा हुआ।
भगरड़ी*-पु० भग। बिटंबे -स्त्री.विडंबना।
भग्नहृदय-वि० [सं०] जिसका हृदय, दुःखादिके कारण, बिड़ौ-पु. विटप।
टूट गया हो; निराश; उदास । बिडीजा-पु० दे० विडोजा (इंद्र)।
भटभटी*-स्त्री० देखते हुए भी न दिखाई पड़ना-'भटभटी बितुंडे*-पु० वितंडावाद ।
लागै जो पै बीच बारुनी बसै'-धन । बितुनना -स० कि० रेशा-रेशा अलग कर देना-'हाय | भटभेर*-पु० दे० 'भटभेरा'।
ब्रज व्यौहार-गति अति मतिहिं बितुनति धूम'-घन। भठ*-वि० भ्रष्ट-'साधु-मतो क्यों मान दुरमति जाको बिदकाना-स० कि० (मुँह) टेढ़ा-मेढ़ा बनाना, चिढ़ाना, सबै सयान परथो भठ'-धन। बिचकाना-'स्त्रियों मुँह विदकाकर हँस पड़ी'-मृगभड-पु० ब्राह्मणोंकी एक उपजाति जो भविष्य दे० मूलमें।
बतलानेका काम करती है। इस जातिका व्यक्ति-'भड
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भदूना-मरमराहट कहै सुन भरी बिन बरसे ना जाय ।
भैरव-वाहन-पु० [सं०] कुत्ता, श्वान । भदूना -पु० ढेर (मृग०)।
भोजल*-पु० भवजल, भवसागर । भद्रा-स्त्री० [सं०] दे० मूलने । मु० -उतारना-मर• भोथराना-अ० क्रि० भोथरा होना। म्मत करना, सजा देना।
भोम*-स्त्री० भूमि, धरती-'जित जाऊँ तित पाणी पाणी भया*-पु० भैया, भाई।
हुई सब भोम हरी'-मीरा । भरका-पु० नदी किनारेका ढालवाँ हिस्सा (?)-'वे | भौंडू*-पु० टोला, कगार । दोनों नदीके भरकेमें उतर गयी'-मृग०; खड्ड ।
भौरहाई-स्त्री० भौं रोंका मँडराना-'आरस विभावरी है भवनदीपिका-स्त्री० [सं०] घरका भीतरी तालाब । होत भी रहाई है'-धन । भाँभी*-वि० स्त्री० घूमनेवाली।
भ्रत्तार*-पु० भर्तार, पति । भावना -स० क्रि० धुमाना, मथना (मट्टा भावना), बिलोना; दे० मूलमें। भाँवरा*-पु० आवर्त, भँवर; परिक्रमा ।
मंजन*-पु० स्नान, मालिश-'मंजन कै नित न्हाय के भाईता-वि० भाड़ेपर काम करनेवाला, भृतिभोगी।
अंग अंगोछि कै बार झुरावन लागी'-ललित०, माँ जना, भारतरत्न-पु० [सं०] प्रगाढ पांडित्य, अद्वितीय राष्ट्रसेवा, रगड़ना; दे० मूल में । विश्वशांतिके प्रयत्नादिके लिए भारत सरकार द्वारा दिया| मंदल*-पु० मृदंग (घन०)। जानेवाला सबसे बड़ा सम्मान । सन् १९५५ तक यह इन | मंदिलरा*-पु. मृदंग-'मंदिलरा बाजै रंग सो'-धनः । लोगोंको दिया जा चुका है-सर्वपल्ली राधाकृष्णन् , सी० | मगसर*-पु. मार्गशीर्ष, अगहन-'मगसर ठंढ बहोती वी० रमण, राजगोपालाचारी, डाक्टर भगवान्दास, पड़े मोहि बेगि सम्हालो हो'-मीरा। धोंडो केशव कर्वे, जवाहरलाल नेहरू।
मगारना*-स० क्रि० जलाना-'बिरह अंगारनि मगारि भारती-स्त्री० [सं०] दे० मूलमें; मडन मिश्रकी पत्नी । हिय होरी-सी'-घन। भारिक-पु० [सं०] (पोर्टर) (रेलयात्रियोंका) सामान, कपड़े मछहरी -स्त्री० दे० 'मसहरी ।। आदि बोझ ढोनेवाला।
मटीला -वि० मटियाला, मटमैला (मृग०)। भास*-स्त्री० दे० 'भाषा'।
मठा-मूसल-पु० मठा (तक) और मुसल जैसी बेमेल भासा*-स्त्री० दे० 'भाषा' ।
बातें (मठा-मूसलकी धमकना = बेमेल बातें करना, भित्तिपत्रक-पु० [सं०] (प्लैकार्ड) दीवारपर चिपकाया, मृग०)। जानेवाला वह कागज जिसके एक ही ओर बड़े अक्षरों में मतवाद-पु० [सं०] वह मत जो वादका रूप ग्रहण कर ले। विज्ञापन, सूचना आदि छपी हो या हाथसे लिखी गयी हो। मता, मतो*-पु. सलाह, उपदेश, सम्मति; सुमतिभींचना -स० क्रि० दबाना, काटना; दे० मूलमें। 'बिना मतेको राज गयो रावणको साँई-गिरिधर । भीजना*-अ० कि. बढ़ना-'जीव सूक्यौ जाय ज्यौं ज्यौं मदअंतिका*-स्त्री० दे० 'मदयंतिका' । भीजत सरबरी'-घन०।।
मदीला-वि० मदभरा, उन्मादकारी (मदीली चितवन, भीजा-वि० सरस, सुखी-'भीजे धन आनँद बिराजौं। अमर०) दे० मूल में । निधरक तुम-घन।
मद्यनिर्माणशाला-स्त्री० [सं०] (डिस्टिलरी) शराब तैयार भीमरा*-वि० स्त्री० भयानक आकार-प्रकारवाली-'फेरि करनेकी जगह, अभिस्रावणी । भीमरा कृष्णा गाही'-छत्र।
मधुयामिनी-स्त्री० [सं०] वर-वधूकी प्रथम मिलनरात्रि । भुथराई*-स्त्री० भोथरा होना, कुंदपना-'पैने कटाछनि | मध्याहभोजन-पु० [सं०] (लंच) दोपहर में किया जाने
ओज मनोजके बानन बीच बिंधी भुथराई'-घन । वाला मुख्य भोजन। भुथराना-अ० क्रि० दे० 'भोथराना'।
मनसायना-वि० जहाँ चहल-पहल हो । पु० दे० मूल में । भुल्लना*-स० क्रि०, अ० क्रि० भूलना।
मनस्कार-पु० [सं०] किसी विषयके प्रति मनकी आसक्ति, भुसना*-अ० क्रि० दे० ' सना' (मूंकना)-'हस्ती चढ़ि | चित्ताभोग; दे० मूल में । नहिं डोलिये कूकर भुसें जु लाख'-साखी ।
ममान, ममाना-पु० मामाका घर । भूरा*-पु० भ्रमर ।
ममियाउरी-पु० दे० 'ममियौरा' । भूतागति*-स्त्री. भूतका-सा व्यापार, विलक्षण बात- मरकत-मंदर-पु० नीलमका पहाड़-'मरकत-मंदरपर 'दौरि परें न निगोड़ी थक बड़ी भूतागति है'-घन । संगमी रतनहार, लहरै तरंगदार गंगा-यमुनाकी हैं' भूमिधर किसान-पु. वह काश्तकार जो दसगुना लगान -लछिराम । जमाकर भूमिका स्वामी बन गया हो और सीधे सर- मरकत-सैल*-पु० नीलमका पहाड़-'मानो मरकत-सैल कारको लगान देने लगा हो।
बिसाल मैं फैलि चली बर बीर-बहूटी'-तुलसी। भेड़ना -स० कि० भिड़ा देना, सटा देना, ओठंगाना मरमराहट-स्त्री० दवी आवाजमें, अपने आप, असंतोष
-'किवाड़ भेड़कर पत्नी चली गयी'-मनो, नव० ५५। प्रकट करनेकी क्रिया; असंतोष प्रकट करनेके लिए दबी भेला*-पु० साँप-'भेला पाया श्रम सों भवसागरके माँह। आवाज में कहे गये शब्द-'लूटमारके अंशने सिपाहियोंकी जो छाड़ों तो डूबिहौं, गहों तो डसिह बाँह'-कबीर। । मरमराहट बंद कर दी'-मृग डाल, आदिके टूटनेकी
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भैरपदं - प्रेग
आवाज ।
मरवद* - पु० मुँहपर रेखाएँ बनाना - 'अंजन ऑजि माँडि मुख मरवट फिरि मुख हेरौ री ' - धन० । मलपात्र - पु० [सं०] शौच जानेके लिए स्टूल आदिके नीचे रखा जानेवाला चीनी मिट्टीका पात्र, कमोड । मसरना* - स० क्रि० मसलना - 'कुँवर कान्ह जमुना मैं न्हात । मसरत सुभग साँवरे गात ।' - घन० । मसलन- स्त्री० मसलनेकी क्रिया, रगड़, मर्दन - 'मैं वह हलका-सी मसलन हूँ जो बनती कार्नोकी लाली' - कामायनी ।
महालील* - वि० महा लीला करनेवाला | महावायुपति -पु० (एयर मार्शल) वायु सेनाका सबसे वडा अधिकारी |
महिमंड* - वि० महिमामंडित - ' खोजें सिद्ध चारन मुनीस महिमड है' - घन० ।
महुर* - वि० मधुर (रासो) ।
महाछ- पु० दे० 'महाच्छव' ।
माँगपट्टी - स्त्री० बाल संवारना, केश-रचना, माँगचोटी | मांगल्य - पु० [सं०] मांगलिक द्रव्य - ' वेदाध्यायी ब्राह्मणों के उत्क्षिप्त मांगल्यसे राजमार्ग भर गया होगा'
हजारीप्र० । माँडना * - स० क्रि० फैला देना, रखना छत्तीस० ) - 'चौपडि माँडी चौहटै अरघ उरध - साखी । माँहि * - अ० हृदयके भीतर अपने ही अंदर - 'सब अँधियारा मिटि गया जब दीपक देख्या महि' - साखी । माइल * - वि० दे० 'मायल' |
(मँडाना, बाजार'
मागद* - पु० दे० 'मागध' ।
माचिस - स्त्री० दे० 'दियासलाई' | मादकद्रव्यविभाग-पु० [सं०] (एक्साइज डिपार्टमेंट) गाँजा, भाँग आदि मादक द्रव्यों पर नियंत्रण रखनेवाला सरकारी विभाग ।
मादी - स्त्री० [सं०] कृष्णकी एक पत्नीका नाम; दे० मूलमें । मामी - स्त्री० स्वीकृति; दे० मूलमें । मु० - भरना- हामी भरना, समर्थन करना - 'बेद भरत हैं मामी' - घन० । मिंबर- पु० मसजिद के बीच में बना वह ऊँचा स्थान जिस पर खड़े होकर इमाम धार्मिक भाषण करता 1 मिग* - पु० मृग, हरिण ।
मिड़ना * - अ० क्रि० चिपक जाना- 'घन आनँद ऍडिनि आनि मि' ।
मिलकाना, मुलकाना - सु० क्रि० दे० 'मलकाना' । मीडकी * - स्त्री० मेढकी ।
मील - पु० दे० मूलमें । -के पत्थर - दूरी या प्रगति बतानेवाले चिह्न |
मुचित* - वि० मुक्त, खुला ।
मुंजली* - वि० स्त्री० मूंकी ।
मुंस+ - पु० पति, शौहर, खसम (बुंदेल० - तिरस्कार में प्रयुक्त) - 'मुंस पूतको कोसनेमें नहीं लजाती' - अमर० । मुँहअधियारे - अ० दे० 'मुँह अँधेरे' । मुँहझाँसा - वि० जिसका मुँह झुलस दिया गया हो
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( एक गाली) ।
मुँहाचही * - स्त्री० बोलचाल; (प्रेमी-प्रेमिकाका) परस्पर मुख देखते रहने, नित्य साथ बने रहने की अवस्था'जीवन मुँहाचही को नीको' - सूर (?); दे० मूलमें । मुकलावा - पु० गौना ।
मुखनी । - स्त्री० मुख्य स्त्री या कार्यकत्री - ' हमारे गोलकी मुखनी है यह' - मृग० । मुखबंधनी - स्त्री० (मजिल) शैतान घोड़े, गाय आदिका मुँह बाँधने के लिए पहनायी जानेवाली जाली, जाबा । मुखारी - स्त्री० मुखाकृति; ऊपर या सामनेका भाग; दतुअन ।
मुखिल - वि० खलल डालनेवाला, बाधक ('ग़बन ') । मुगुध* - वि० दे० 'मुग्ध' - तिय- स्त्री० मुग्धा नायिका - 'कहा अँगोछति मुगुध तिय पुनि-पुनि चंदन जानि'ललित० ।
मुछाड़िया - पु० बड़ी मूछोंवाला, मुछैल, मुछंदर । मुजनूँ * - सर्व० मुझको ।
१०००
मुडवरिया - स्त्री० सिरहाना |
|
मुनगा -पु० सहिजन, शोभांजन |
मुर्शी- पु० पाँवमें पहननेका एक तरहका ऐंठनदार छड़ा; दे० मूलमें ।
मुलकित * - वि० पुलकित, प्रसन्नः दे० मूल में मुश्क- स्त्री० दे० मूलमें। मु० मुश्कें बाँध लेना - बाहोंपर रस्सी कसकर कब्जे में कर लेना, गिरफ्तार कर लेना ।
मुसका - पु० दे० 'जाबा' ।
मुसुक+ - स्त्री० मुश्क, कंधे से कोहनीतकका हिस्सा । मुहर* - वि० मुखर |
मूँद * - स्त्री० मुद्रिका, सुँदरी, अँगूठी ।
मूँड़ + - ५० दे० मूलमें। मु० नौ का हो जाना - बहुत शक्तिशाली और जबरदस्त हो जाना ।
मूझना * - अ० क्रि० मूच्छित होना - 'सोचनि जूझत मूझत ज्यौ' - घन० ।
मूली-स्त्री० दे० मूलमें । मु० - गाजर समझना - तुच्छ समझना, (किसी को) कुछ भी न गिनना । मूसली - स्त्री० छोटा मूसल; खरल में डालकर मसाला आदि कुटनेका पत्थर या लोहेका बट्टा या छोटा डंडा'इमामदस्तेकी मूसली उठा लाया और लगा तालेपर दनादन प्रहार करने' - मनो०, नव० ५५ । मँडडा * - सर्व० मेरा |
मेघपुष्प - पु० [सं०] कृष्णके चार घोड़ोंमेंसे एकका नाम । मेहरवा * - पु० मेद्द, बादल - 'उमड़ उमड़ घुमड़-घुमड़ रस राखिलौ नेह- मेहरवा' - घन० ।
मेहरा* - पु० वृष्टि, बादल - 'उघरि उघरि अब बरसन लाग्यो अचरजको यह मेहरा' - घन० ।
मँडा * - सर्व ० मेरा |
मैनू * - सर्व० मुझको ।
मैवासा * - पु० दे० 'मवास' |
मौन* - पु० मोयन, घीका मेल ।
मृग, म्रग्ग* पु० मृग ।
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1001
यंत्रतोप-रेडियो य
संपर्क-स्थापनकी प्रवृत्तिः आत्मा-परमात्माके अभेदकी यंत्रतीप-स्त्री० दे० 'मशीनगन'।
अनुभूति और अव्यक्तके प्रति आत्मनिवेदन ।
रॉकव-वि० रंक-'रॉकव कौन सुदामा हृते आप समान यज्ञवेदिका-स्त्री० [सं०] यज्ञकी वेदी ।
करे'-सूर। यथाशीघ्र-अ० [सं०] जितनी जल्दी संभव हो उतनी
राँध-वि० परिपक्व बुद्धिवाला (प०); दे० मूल में । जल्दी ।
राखदानी-स्त्री० सिगरेट, चुरुट आदिकी राख गिरानेका यन। *-सर्व० इनको।
तश्तरीनुमा पात्र। युद्धपरिषद-स्त्री० युद्धका संचालन करनेके लिए स्थापित
राचना*-वि० रचनेवाला । [स्त्री० राचनी।] राजनेताओंकी परिषद।
राजतंत्र-पु० [सं०] वह शासनप्रणाली जिसमें राजयुवराजी-स्त्री० [सं०] युवराजकी पत्नी ।
(स्टेट)का अधिपति राजा हो। युवराज्ञी-स्त्री० [सं०] वह युवती (ज्येष्ठ कन्या) जो युव
| राजभत्ता-पु०, राजवृत्ति-स्त्री० (प्रिवीपर्स) दे० 'राजाराजका पद ग्रहण करे (जैसे ब्रिटेनमें प्रिंसेज ऑफ वेल्स)।
घिदेय'। युवरानी*-स्त्री० दे० 'युवराज्ञी'।
राजसात्करण-पु० (कानफिस्केशन) दे० 'समपहरण' । यौगिक-वि० [सं०] योग-संबंधी; दे० मूलमें ।
रानना -स० क्रि० स्वीकार करना, कबूलना।
रामलड्डू-पु० प्याज (साधुओंकी भाषा)। रंगना-स० क्रि० दे० मूलमें । रंगा सियार-पु० सज्जन | रायसा-पु० किसी वीर पुरुष या सती नारीका यशोगीत बना हुआ व्यक्ति, पाखडी ।
दे० मूलमें। रखीसर-पु० ऋषीश्वर (कबीर)।
रारिश-स्त्री० दे० 'रार'-'रारि-सी मची है त्रिपुरारिके रगमगा*-वि० रंजित ।
तबेलामें-भूधर । रज-पु० राजत्व, महत्त्व-'अंजन यहै सूझहू यहै। रावल*-पु० राधाका ममियौरा । ब्रजरज-सरन गहै रज रहै।-घन ।
राष्ट्रध्वज-पु०, राष्ट्रपताका-स्त्री० [सं०] किसी देशका रतौहाँ-वि० रागमय, रक्ताक्त-'नाहर आय बसंत भयो राष्ट्रीय झंडा। नखकेसू रतौह किये हिये खौंपनि'-घन ।
रिंगावना*-स० क्रि० दे० 'रिगाना'। रत्नकार-पु० जौहरी- मारवाड़ी रत्नकारोंको लूटा'- रिक्शा -पु० दे० 'रिकशा'। भा० वै० विकास ।
रिगाना -स० क्रि० चिढ़ाना। रफ*-पु० सुंदर ढंग-'पियके अनुराग मुहाग भरी रतिहेरें। रिझोना-वि० रोझनेवाला। न पावति रूप-रफै'-घन।
रिणवास*-पु. रनिवास । रमड़ना*-अ० क्रि० बरसना-'धमड़ि सुर-रस रमडि रितीना-स० क्रि० दे० 'रितवना'। नित आनंद घन-आसार'।
रिपटना -अ० कि०:रपटना, फिसलना, खिसलना-'चंद्ररमतूला-पु० सिंगा नामक बाजा, धुधका ।
माकी रिपटती हुइ झिलमिल'-मृग। रमेना*-अ० क्रि० रमना ।
रियायती-वि० दे० 'रिआयती'। -छुट्टी-स्त्री० दे० रम्मट-पु० युद्ध के समय बजाया जानेवाला बाजा-'ये 'रिआयती रुखसत'। तुरही, रम्मट, धौसे'-मृग।
रिलना-अ० क्रि० भरभराकर एक औरको गिर पड़ना; रवानी*-वि० स्त्री० आनंद प्रवाहमें मग्न-'आज देखौं । दे० मूलमें। भाँति भाँति रावल रवानी है'-धन।
रीगना -अ० कि० चिढ़ना। रसम-स्त्री. रश्मि, किरण-'छूटी छबि-रसमैं चटक चोखे रीतिग्रंथ-पु० [सं०] नायिकाभेद, नखशिख, बारहबसमैं'-धन।
मासा, अलंकार आदिका विवेचन करने तथा उनके उदा. रसमसाना-अ० कि० रममसा होना, रस बरसना- हरण प्रस्तुत करनेवाली रचना । 'सता स्यामधन इत रसमसै'-घन।
रुचता*-वि० दे० 'रुचित'। रसाना-स० कि० आनंदित करना-'तिन्है रुचै सोई | रुरना-अ० क्रि० शोभित होना, छा जाना-'दसननि
करौं रसियानि रसाऊँ'-घन । अ० क्रि० दे० मूल में। - जोतिजाल मोतीमाल-सी रुरै'-धन। रसायनिक-पु० कीमियागर दे० मूलमें।।
रूम-पु० रोम, लोम (मीरा) । रसिया-पु. एक तरहका गीत (जो बुंदेलखंडमें प्रायः | रूमानी-वि० दे० 'रोमानी'। होलीके समय गाया जाता है)।
रूहिर-पु० रुधिर, रक्त । रसोत*-स्त्री. रसमयता-'कौन घरी रूपके रसोत जग- | वजा, वझा-पु. एक पेड़ जो कुछ-कुछ बबूलके पेड़से मगौगे' ?-घन० दे० मूलमें।
मिलता है। रह*-पु० रथ (रासो)।
रेडियो-पु० [अं॰] एक तरहका विद्युद्-यंत्र जिसकी सहारहठानि*-स्त्री० रहनेका स्थान-'जामै चलि जायबे यतासे बिना तारके ही वार्ता, संगीत, समाचार आदि बनाई रहठानि है'-घन ।
बहुत दूर-दूरतक प्रसारित किया जा सकता है। वह यंत्र रहस्यवाद-पु० [सं०] चिंतन, मनन द्वारा ईश्वरसे प्रत्यक्ष जिससे आकाशवाणी केंद्र द्वारा प्रसारित ऐसा समाचार,
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राँत-वैशेषिक
संगीत आदि सुना जा सके । राँत* - स्त्री० ठकुराई । रोचना- स्त्री० टीका, तिलक । रोडवेज - पु० [अ०] सरकारी मोटर गाड़ियों द्वारा यात्रियोंके गमनागमनकी नियमित व्यवस्था । रोहिणीकांत-पु० [सं०] चंद्रमा ।
ल
लगान-स्त्री० जंगलमें शिकारको टोह में बैठने के लिए ठीक किया गया स्थान - 'जंगल में लगान कहाँ-कहाँ है, किसको कहाँ बैठना है, निश्चित हो गया' - मृग० । लगुवा*-पु० प्रेमी, लागू - 'लटुवा भयो फिरत दिन वह * - सर्व वह ही, वही । रजनी लगुवा गोरी भोरीके' - घन० ।
लाइ * - स्त्री० प्रेमकी लगन; दे० मूल में । लागू* - पु० प्रेमी - 'साँवलिया मेरे मनको लागू नित इत आवै'-घन० ।
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१००२
लोध्ररेणु - पु० [सं०] लोभ वृक्षके फूलकी बुकनी जिसका प्रयोग अंगरागकी तरह किया जाता था ।
लौहपुरुष - पु० [सं०] ढ़ निश्चयवाला व्यक्ति, जो कठिनाइयों, बाधाओं या किसीकी धमकियोंसे विचलित न हो ।
व
वयोत्तर - वि० (ओव्हर-एज ) जिसकी उम्र अधिक हो गयी हो, जो निर्धारित वयसे अधिकका हो । वर्चस्व - पु० शक्ति, तेज, (संस्कृत वर्चस् ); प्राबल्य, प्राधान्य - 'राघवनका उत्साह उसके शारीरिक बल और मानसिक वर्चस्व से सीमित था' - अमर० ।
लज्जी* - स्त्री० प्रियतमा (रासो) । लड़कना* - अ० क्रि० ललकना - 'जुगल कुँवरकों लड़कि लड़ावै । परम प्रेमरस पारस पावै । - धन० । लड़ेया + - पु० सियार ( बुंदेल०) । [ हाथ भर- नौ गज पूँछ - आवश्यकता से बड़े वस्त्रादि धारण करना, अपने वित्त या सामर्थ्य से बाहर कोई काम करना । इससे मिलती-जुलती कहावत है 'वित्तेभर के वित्तनमियाँ सवा हाथकी डाढ़ी' ।]
वातजात-पु० [सं०] वायुपुत्र, हनुमान् । वापी - स्त्री० [सं०] बावली; दे० मूलमें | वायुपति-पु० (एयर वाइस मार्शल) वायुसेनाका उच्चाधिकारी जो महावायुपति से छोटा होता है। वारिचरकेतु-पु० [सं०] मीनकेतन, कामदेव - 'कोपेउ तब वारिचरकेतू' - रामा० ।
वाल्हा * - पु० प्रियतम, वल्लभ - 'मीरा कहे गोपिनको dies, हम भयो ब्रह्मचारी' - मीरा ।
लपटीला* - वि० रपटीला, पिच्छल, फिसलनवाला - "ऊँची नीची राह लपटीली, पाँव नहीं ठहराइ' - मीरा । लपेटा - पु० पगड़ी - 'केसरी लपेटा छैल विधिसों लपेटे' वासुकि सुता स्त्री० [सं०] सुलोचना (तुमल) । विखंडीकरण- पु० [सं०] ( गमेटेशन) खेतोंका टुकड़ों में विभाजित किया जाना ।
- घन० दे० मूल में |
लवदना* - अ० क्रि० लिपट जाना - 'ज्यों मैं खोले किवार त्यही आनि लवदि गौ गरें' - घन० ।
लूँ ' - साखी ।
लेखन - हड़ताल - बी० ( पेन डाउन स्ट्राइक) दे० 'लेखनी कर्मरोधन' ।
लेखांश, लेख्यांश - पु० [सं०] (पैसेज ) किसी लेखादिका
अंश ।
लोखरिया - स्त्री० लोखड़ी, लोमड़ी (बुंदैल०) ।
वाक्यखंड - पु० [सं०] दे० 'उपवाक्य' ।
वाट- पु० [अ०] बिजली के प्रकाश या चालक शक्तिको एकाई |
वितन* - वि० दे० 'वितनु' ।
लवना* - अ० क्रि० चमकना - 'चटक चोप चपला हिय वित्थार - पु० विस्तार, फैलाव ।
लवै' - घन० ।
लहाछेह* - स्त्री० शीघ्रता - 'लहाछेह कहा धौं मचाय रहे ब्रजमोहन हौ उखनींद भरे हौ' - घन० । वि० मूसलधार, द्रुतगतिवाली (वर्षा) | पु० दे० मूलगें । लाँझ * - स्त्री० लंघन, बाधा ।
विपरिधान - पु० [सं०] विशेष प्रकारका परिधान, वरदी, गणवेश |
विलयन - पु० [सं०] विलीन होनेकी क्रिया, विलय; दे० मूल
विलुलितकेशा - वि० स्त्री० [सं०] जिसके सिरके बाल बिखरे हों (स्त्री) ।
लाल कुरतीवाला दल - पु० भारतके असहयोग आंदोलन के समय सीमाप्रांत का वह राष्ट्रीय दल जिसके नेता सीमांत गांधी खाँ अब्दुल गफ्फार खाँ थे और जिसके सदस्य लाल कुरते पहना करते थे ।
विवदिषा - स्त्री० [सं०] बोलने की इच्छा । विवदिषु - वि० [सं०] बोलनेका इच्छुक । विशेषांक - पु० [सं०] किसी सामयिक पत्रादिका वह अंक जो किसी विशिष्ट अवसर पर, विशेष प्रकारकी उपयोगी सामग्री के साथ प्रकाशित किया गया हो । वेधक - वि० [सं०] घाव करनेवाला (वि०) । दे० मूलमें | वैतसी वृत्ति - स्त्री० [सं०] बेंतकी तरह झुक जानेकी आदत, नम्रताकी प्रवृत्ति ।
लावारा - वि० आवारा ।
लुखरो + - स्त्री० लोखड़ी, लोमड़ी (बुंदेल०) 1
लुथि* - स्त्री० लोथ ।
वैभिन्न्य- पु० [सं०] विभिन्नता ।
लूँण-पु० नमक- 'खूब खाँड़ है खीचड़ी माँहि पड़े टुक वैया-प्र० एक प्रत्यय वाला (कोई काम करनेवाला) । वैलती* - स्त्री० ओलती, ओरी- 'आनंद घन कितहूँ किनि वरसौ ये बरुनी वैलतियाँ' ।
वैशाखी - स्त्री० [सं० वरसाक्षी ] बरातके आगमन तथा कन्यादान की रस्म शुरू होनेके बीच जनवासेमें जाकर वरको देखने और उसे सम्मानित करनेकी रीति । वैशेषिक - वि० [सं०] विशेष विषय संबंधी; दे० मूलमें ।
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१००३
बोदना-संसारयात्रा वोढ़ना-सक्रि० दे० 'औदना'-'वो काला कापड़ा काटनेके बाद होनेवाला लाभ । नाँव धरावै सेत'-साखी।
शृंगारना*-स० क्रि० सजाना, भूषित करना, सँवारना । वोहथ्थ*-पु० वोहित्थ, जहाज ।
शेल*-पु० शल्य, बरछी (कविप्रि०)। व्यंजनतालिका-स्त्री० [सं०] (मेनू) (होटल इत्यादिमें) शोध्यशोधक-पु० [सं०] (प्रफरीटर) शोध्यपत्र (प्रफ) पढ़परोसे जा सकने योग्य व्यंजनोंकी सूची, व्यजिनी, कर उसकी अशुद्धियाँ दूर करनेवाला कर्मचारी, 'ईक्ष्यव्यंजनिका।
वाचक'। व्यंजना-स्त्री० [सं०] व्यक्त करनेकी क्रिया; दे० मूलमें। श्यामपट्ट-पु० [सं०] विद्यालयोंकी प्रत्येक कक्षामें रहनेव्यंजनिका-स्त्री० (मेनू) दे० 'व्यंजनतालिका'।
वाला वह काला तख्ता जिसपर खरिया मिट्टीसे लिखकर व्यंजिनी-स्त्री० [सं०] (मेन) (होटल में तैयार) व्यंजनोंका। अध्यापक गणित आदिके प्रश्न विद्यार्थियों को समझाता है।
ना=कमलसमूह); दे० 'व्यंजन• श्रमप्रमुख-पु० [सं०] दे० 'फोरमैन' । तालिका।
श्रमिकसंघ-पु० दे० श्रमसंध । व्याघ्रमुख-वि० [सं०] बाघ जैसे मुखवाला; (मकान) श्रावना*-सक्रि० बहाना, टपकाना । जिसका सामनेका भाग चौड़ा और पीछेका सकरा हो, गोमुखका उलटा (ऐसा मकान अमंगलकारी माना जाता है)।
षटदस*-पु० सोलहोशृंगार । व्यापक-स्त्री० व्यापकता-'मधुकरके पठये ते तुम्हरी व्यापक न्यून परी'-सूर ।
| संकीर*-वि० संकीर्ण ।। व्यावहारिक-वि० [सं०] व्यवहार में आने लायक; दे० संक्रमण-पु० [सं०] एक स्थिति या अवस्थासे दसरीमें मूलमें।
प्रवेशः हस्तांतरण; दे० मूलमें । बात जाति-स्त्री० [सं०] झुंड बनाकर चलनेवाली जाति । संख्या-स्त्री० [सं०] लिखे गये पत्रों या सामयिक पत्रादिव्हल-पु० [अं॰] दे० 'हेल' ।
पर दिया गया क्रमांक; किसी सामयिक पत्रादिकी विशिष्ट संख्या या क्रमांकवाली प्रति दे० मूल में।
संख्याविभाग-पु० [सं०] (स्टैटिक्स डिपार्टमेंट) जननशंक*-स्त्री० शंका, संदेह ।
मरण, उत्पादन आदि-संबंधी प्रामाणिक आँकड़े तैयार शय्या-स्त्री० [सं०] वीरगतिप्राप्त योद्धाके लिए निर्मित करनेवाला विभाग ।। बाणोंकी शय्या।
संग-स्त्री० दे० 'साँग'-'वियै संग सौ फोरि डाकरेजा' शहना-पु. लगान वसूल करनेवाला सरकारी कर्मचारी। -सुजा० ।
-'राज्यका शहना आया, छटवाँ अंश ले गया'-मृग० संघात*-अ० संग या साथमें-'धुआँ उठे मुख साँस कोतवाल ।
संघाता'-१० पु० दे० मूलमें। शाखाकार्यालय-पु० [सं०] किसी व्यापारिक संस्था या संजमना*-स० कि. एकत्र करना, बटोरना-'पलटि पट अन्य संस्थाका वह छोटा कार्यालय जो प्रधान कार्यालय के संजमत केसनि मृदुल अंग अंगोछि'-घन । मातहत या उसके नियत्रणमें हो।
संडास*-स्त्री० सँडसी (प०)। शानीला-वि० शानदार, रोबवाला।
संद*-पु. सनंदन-'महा आधार सनक सुक संदके' शाल-स्त्री० शय, एक तरहकी बरछी (कविप्रि०)। -धन। शिंजित-पु० [सं०] झंकार, ध्वनि ('साकेत'); वि० दे० संधि-स्त्री० [सं०] दो शब्दोंके साथ-साथ आनेपर एकके मूलमें।
अतिम और दूसरेके प्रथम वर्णके मिलनेसे होनेवाला शिकरम-स्त्री० एक तरहकी घोड़ागाड़ी।
विकार; ये तीन तरहकी होती हैं-स्वर संधि, व्यंजन संधि शिकारा-पु० कश्मीरी ढंगकी लंबी नाव जिसके बीच में | तथा विसर्ग संधिः दे० मूलमें । -तटी-स्त्री० संधिस्थल सायादार बैठनेका स्थान होता है (शेखर०)।
-'सोभासुमेरुकी संधितटी किधौं'-धन। शिक्षाशास्त्र-पु० [सं०] शिक्षाविधिका विवेचन करनेवाला । सं -स्त्री० शंपा, बिजली; दे० मूल में । शास्त्र।
संभरवै, संभरेस-पु. पृथ्वीराज । शिरमौर-पु. सरदार, श्रेष्ठ व्यक्ति ।
संरक्षण-पु० [सं०] (प्रोटेक्शन) विदेशी माल पर कर आदि शिशुगृह-पु०, शिशुशाला-स्त्री० [सं०] वह कमरा, लगाकर देशी उद्योग-व्यवसायको बाहरकी अनुचित प्रति
भवन या स्थान जहाँ धात्रियों की देखरेख में, छोटे बच्चे | योगितासे बचाना। रहते हों।
| संविधानज्ञ-पु० [सं०] (कांस्टिट्यूशनलिस्ट) संविधानको शीर्ष स्थ-वि० [सं०] शीर्षस्थानीय, चोटीका, प्रधान । जानकारी रखनेवाला दे० 'संविधानशास्त्री'। शीलभंग-पु० [सं०] (आउटरेजिग दि मॉडेस्टी ऑफ) संविधानशास्त्री(स्त्रिन)-पु० [सं०] (कांस्टिट्यशनैलिस्ट) किसी किशोरी या युबतीके साथ अनुचित छेड़छाड़। संविधानका विशेषज्ञ, उसकी बारीकियोको समझनेवाला, शुक्रिया-अ० [फा०] धन्यवाद ! दे० मूलमें ।
संविधान। शुद्ध लाभ-पु० [सं०] (नेट प्रॉफिट) लागत या कुल खर्चा संसारयात्रा-स्त्री० [सं०] संसारमें रहना, जीवन बिताना,
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खंहर्ता-साथरह
१००४ जिंदगी।
करि मुकाम नृपराज । सथ्य सयन सामंत भर, सूर जु संहर्ता(त)-पु० [सं०] लगान वसूल करनेवाला कर्मचारी- आये सान'-रासो। 'राज्यकी उगाहीके लिए संहर्ता आये'-मृग० ।
सयल*-वि० सकल, सब । संहिता-स्त्री० [सं०] (कोड) अधिनियमों, विधियों आदिका सरक-स्त्री० वेदना-'प्रेम सरक सबके उर सलै' धन% क्रमबद्ध संग्रह।
दे० मूलमें। सकती*-स्त्री० दे० मूल में; जबरदस्ती-'कवि किंचित सरकद, सरफूंदा-स्त्री० एक तरहका सरकनेवाला
औसर जो अकती सकती नहीं हाँ पर कीजिये जू'- | फंदा, जिसे किसी चीज पर डालकर खींचनेसे वह उसे कवि० को।
जकड़ ले (बुंदेल०, सरकवाँसी, भोजपुरी)। सख्त-स्त्री० कठिनाई, विपत्ति-'मुझ पै परी अब सख्त' सरबरना*-स० क्रि० उपमा देना। -सुजान ।
सरलीकरण-पु० [सं०] कठिन विषयको आसान बना सग*-वि० सगा, अपना ।
देना; किसी जटिल या कठिन भिन्नको सरल रूपमें परिसगरी-पु० सागर तालाब-'काहे क बाबुल सगर खोदा- | णत कर देना (ग)। येउ'-गीत ।
सरहंग-पु० सेनापति; कोतवाल । सघली*-वि० स्त्री० सब, सारी ।
सरित्त*-स्त्री० सरिता, नदी। सछंद-वि० सपरिकर ।
सरोतर-वि० साफ, स्पष्ट । सजावार-वि० [फा०] दंड पाने योग्य, दंडनीब-'फकत | सरौट*-स्त्री० सिलवट, शिकन-'मुरझे बिन ढंग अनंग इस सजाके सजावार हैं हम'।
सरोटनि'-धन। सठ*-स्त्री० दे० 'साँठि'-'किहि गौं हठ कैसठ-हानि सर्वेसर्वा-वि० प्रधान कर्ताधर्ताः दे० मूल में । लई'-धन।
सल्लना*-स० क्रि० सालना, दुःख देना । सतपत्र-पु. कमल ।
सवाती*-स्त्री. स्वाती नक्षत्र-सूरदास प्रभु प्रानहिं सतर्वासा-पु. गर्भस्थितिके सातवें मासमें होनेवाला राखहु है कै बूंद-सवाती'-सू० । उत्सवः दे० मूलमें।
सशस्त्र-वि० [सं०] जिसमें शस्त्रोंका प्रयोग हुआ हो; दे० सतिमा-स्त्री० सौतेली माँ ।
मूलमें। सतेस*-स्त्री० फुरती, शीघ्रता ।
ससक*-स्त्री० सिसक। सत्तमी*-स्त्री० सप्तमी।
ससिरिपु-पु० दिन-'ससिरिपु बरष सूर-रिपु युगवर, सत्ति*-स्त्री० शक्ति।
हर-रिपु किये फिरै घात'-सू० । सनिया-पु० रेशमी पटका या छोटी धोती-'सनिया | ससिहर*-स्त्री. शिशिर ऋतु-'कहि नारि पीय बिन पहरकर ही चीकेमें जाता था' -गुनाहोंका देवता । कामिनी रिति ससिहर किम जीजियइ'-रासो। सपरस*-वि० स्पृश्य, छूतसे युक्त-'अपरस ठौर तहाँ | ससील*-वि० सुशील, शीलसंपन्न ।। सपरस जाइ कैसें'-धन।
सह अस्तित्वका सिद्धांत-पु. (प्रिंसिपल ऑफ कोसबार, सबारा*-पु० दे० 'सबेरा'।
एग्जिस्टेंस) वह राजनीतिक सिद्धांत जो यह स्वीकार सबी*-ली० शबीह, छबि, चित्र-'चतुर चितेरे तुव सबी करता है कि विभिन्न प्रकारकी प्रणालियोंसे शासित और लिखत न हिय ठहराय'-रसनिधि ।
विभिन्न प्रकारके सिद्धांतोंसे अनुप्राणित राज एक दूसरेके समग्ग-वि० समग्र, पूरा, सब ।
साथ शांतिपूर्वक रह सकते हैं, सहभावका सिद्धांत । समताई-स्त्री० समता, बरावरी ।
सहभाव-पु० [सं०] (को-एग्जिस्टैस) दे० 'सहअस्तित्वका समथ*-वि० समर्थ ।
सिद्धांत'। समप्पन*-पु० दे० 'समर्पण' ।
सहभोज-पु० [सं०] (विभिन्न जातियों, श्रेणियों के) बहुतसे समाचार-प्रसारण-पु० [सं०] भाकाशवाणी द्वारा समा. आदमियोंका एक साथ बैठकर भोजन करना। चारोंका प्रसारित किया जाना।
सहसकर*-पु० सूर्य-'दुहीं करसों सहसकर मानियतु समानांतर सरकार-स्त्री. साथ-साथ काम करनेवाली | | तोहि, दुही बाहुसो सहसबाहु जानियतु है'-भू०। सरकार, एक सरकार के रहते हुए भी उसके विरुद्ध स्थापित सहस्राब्द-पु०, -स्त्री० [सं०] हजार वर्षोंका समय । प्रति पक्षियोंकी अन्य सरकार जो उसकी बराबरीसे काम सहिंदोली*-स्त्री० सखी। करे।
सहटी*-वि० स्त्री० अभिसारिणी-'दीठि भयी मिलि ईठि समुही*-अ० दे० 'समुहै।
सुजान न देहि क्यों पीठि जो दीठि सहेटी'-घन० [सहेट समोना -सक्रि० समन्वय करना, पटरी या मेल बैठाना - 'ऊपरके खंडसे दूसरे खंडको समोनेके लिए'-मृग०% सहोणी*-स्त्री०सखी। दे० मूलमें । * अ० क्रि० मिलना, अनुरक्त होना । साकसि-स्त्री० शक्ति। समोय*-अ० अनुरक्त होकर-'बनमाली कहाँ धौ समोय साता-स्त्री. शांति-'रूम रूम साता भइ उरमें मिटि चले'-धन।
गयी फेरा-फेरी'-मीरा। सयम*-स्त्री० सैन्य, सेना-'तट कालिंदी तहँ विमल, | साथर-पु० स्रस्तर, कुशासन ।
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१००५
साधा-स्कंदन
साधा*-पु० साध, उत्कंठा-'साधा सन हेरिय'-घन। सिलाम*-पु० सलाम, प्रणाम (मीरा)। साधिकार-अ० अधिकार सहित, अधिकारपूर्वक । वि० सीनातोड़-पु० कुश्तीका एक पेंच ।
अधिकारसे युक्त, जिसके पीछे कोई अधिकार हो। सीमंतनी*-स्त्री० दे० 'सीमंतिनी' । सापना*-पु० स्वप्न-'सापने में बिछुरे हरि हेरि हरैइ हरै सीरक*-वि० ठंडा-'सोइ करौ ज्यों मिटै हृदयको दाह' हरिनीग रोवै'-भाववि० ।
परै उर सीरक'-सू० । सापेक्षतावाद-पु० (प्यूरी ऑफ रिलेटिविटी) आइन्स्टाइन-सीवनी-स्त्री० शिश्नके नीचेकी रेखा । का यह सिद्धांत कि प्रकाशको छोड़कर अन्य सब वस्तुओं- सुकना-अ० कि० सूखना, सूख जाना-'सुकत सरोवर की गति सापेक्ष है और उसी तरह दिक् , काल तथा | मचत कीच तलफंत मीन तन'-रासो० । पदार्थकी मात्रा भी सापेक्ष होती है। [गति बढ़नेपर सुधारशाला-स्त्री० (रिफार्मेटरी) दे० 'सुधारालय'। मात्रा भी बढ़ती है और दिक तथा कालका मापन वे सुबर*-पु० सुभट । जिस प्रणालीमें धूम रहे है, उस प्रणालीकी गतिपर निर्भर सभंत*-वि० शोभित । रहता है।
सुरसुरी*-स्त्री० सुरमरी, गंगा। साबुत-वि० दे० 'साबूत' ।
सुरहरी -स्त्री० पानी, भात आदिका खाद्य-नलिकाके साबूत-वि० समूचा, पूरा, अखंड; दुरुस्त ।
बजाय श्वासनलिकामें चढ़ जाना या उससे होनेवाली साभार-अ० [सं०] आभारके साथ, एहसान प्रकट करते | संवेदना।।
सुरी*-स्त्री० छुरी। सामरिकवाद-पु० सामरिक तैयारी-सैन्य संख्या बढ़ाने, | सुलभ गणक-पु० (रेडीरेकनर) वह पुस्तक जिसमें दी
शास्त्रादिकी वृद्धि करने पर जोर देनेवाला सिद्धांत । हुई विभिन्न सारणियोंकी सहायतासे व्याज, वेतन, आदिसामानघर-पु. (लगेज आफिस) रेल-स्टेशन, बस-स्टेशन का हिसाब लगाने में आसानी हो।
आदिका वह कमरा जहाँ मुसाफिरोंका सामान तौलकर सलिप-वि० स्वल्प । महसूल लेने, सुरक्षित रखने आदिकी व्यवस्था होती है। सवर्णकोष, सुवर्णनिचय--पु० [सं०] (गोल्ड रिजर्व) कागजी सामानदान-पु० [फा०] (मोटर इत्यादिमें पीछेकी ओर । मुद्राके समुचित अनुपातमें सरकारी खजाने में रखा जाने. बनी) सामान रखने की जगह ।
वाला सुवर्णभंडार। सामान्या-स्त्री० [सं०] वारांगणा, वेश्या ।
सवर्णिम-वि० [सं०] दे० 'स्वर्णिम । सामिष भोजनालय-पु० (नॉन-वेजिटेरियन रिफ्रेशमेंट सविधाधिकार-पु० (राइट ऑफ ईजमेंट) दे० 'सुखा. रूम) वह भोजनालय जहाँ मांस या मांसके बने पदार्थ धिकारवाद'। भी भोजनार्थ उपलब्ध हों।
सुसारना*-म० क्रि० समझाना, समझाकर कहना-'दीजो सामुद्रिक विमान-पु. (मी प्लेन) जलपरसे उड़कर जल- उनहिं सुसारि उरहनों संधि-संधि समझाय'-सू० । पर ही उतर सकनेवाला हवाई जहाज ।
सही*-वि० स्त्री० लाल-'सुही माल हाल रूप गुन न सामुद्रिक शक्ति-स्त्री० (सी पावर) किसी देशकी नौ परै गनै'-धनः।। सेना-युद्धपोतादि-की शक्ति ।
सुई-वि० पूरा, ठीक, शुद्ध-'कहियै तौ समै लहियै न सायमाश-पु. (डिनर) (श्वेतांग जातियों में) संध्याको | सह-घनः । किया जानेवाला मुख्य भोजन ।
सूचना-पह-पु० [सं०] (नोटिस बोर्ड) लकड़ी लोहे आदिका सारंगहर*-पु० शा ईधर, विष्णु ।
वह पटल जिसपर आवश्यक सूचनाएँ लिख दी जायें सास-स्त्री० शाला; पशुशाला, ढोर बाँधनेकी जगह- या लिखकर चिपका दी जायँ । 'पशुओंको सारमें बाँधनेके बाद उन्होंने सारा वृत्तांत सुचा*-स्त्री० छेदनेवाली वस्तु । सुनाया' -मृग०।-पु० वस्त्र ।
सूर-रिपु*-स्त्री० रात्रि (सू०)। सावधानी-स्त्री० मावधानता, सतर्कता, होशियारी। सवार*-पु० शैवाल । सिंधुनंदन-पु० चंद्रमा।
सैनी-स्त्री० श्रेणी, पंक्ति । सिज्या*-स्त्री० शय्या।
साँझ-स्त्री० जमीनकी साझेदारीकी व्यवस्था; साझेदारी। सिट्टी-स्त्री० दे० मूल में । मु० -भूल जाना-घबराहटके सोहन*-अ० दे० 'सौंह' । मारे कुछ बोल न सकना, सिटापिटा जाना।
सौतना*-स० क्रि० संचित करना। सितक्षार-पु० एक तरहका सोहागा।
सौडि*-स्त्री० शय्या-'दरसन भया दयालका मूलि भई सितून-पु० [फा०] खभा, मीनार, थूनी ।
सुख सौडि'-साखी। सिराँह-स्त्री० शीतलता-'आनंद घन दुखताप मेंटियै सौनि*-स्त्री० स्वर्णकांति-'आनन समान छबि-छाँहपै कीजै कृपा-सिराँह'-धन ।
छिपैयै सौनि'-धन। सिरायना*-स० कि० दे० 'सिरावना' ।
सौबर* --पु० सुवर्ण-रावरको छवि घरनौं कैसे। सौबरसिरावन-वि० ठंडा या दूर करनेवाला-'जीव-जिवावन को घर सोहत जैसे।'-धन। ताप-सिरावन है, रसमय धन आनँद छायौ'-धन। पु० | स्कंदन-पु० (कोग्यूलेशन) द्रव-पदार्थका जम जाना, ठोस दे० मूलमें।
रूप ग्रहण कर लेना।
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स्यारी-हौन स्यारी-स्त्री० कातिक-अगहन में तैयार होनेवाली फसल, जग माँझ भई तिनतें हरई'-घन । खरीफ (बुंदेल०)।
| हराहर*-स्त्री० छीना-झपटी-'दिन होरी-खेलकी हराहर सौन-पु० दे० 'श्रवण'।
भरथो हो सुतौ'-घन। स्वक्षालन-शौचालय-पु० [सं०] (फ्लश लैट्रिन) वह हरिखंड-पु० मोरपंख-'कबहुँक इत पग धारि सिधारी धरि पैखाना जिसे साफ करनेके लिए मेहतरकी आवश्यकता हरिखंड सुबेस'-सू०।। न हो, जो पानी गिरा देनेसे अपने आप साफ हो हरीछाल केला-पु. हरे छिलकेवाला एक तरहका केला जाय।
जो वश्या केला भी कहलाता है। (चिनिया केला पीला स्वर्णजयंती-स्त्री० [सं०] (गोल्डन जुबिली) किसी संस्थाकी होता है।) स्थापना या किसीके शासन, विवाहित जीवन आदिके हागति-स्त्री० दुर्दशा। पचासवें वर्षका उत्सव ।
हियैल*-स्त्री० पछेली। स्वाध्याय सदन-पु० (स्टडी रूम) दे० 'अध्ययन कक्ष' । हीडना -स. क्रि० घुघोलकर गंदा करना (भोज०); स्वावना*-स० क्रि० सुलाना-'जागि-जागि स्वावत हो' हुड़कना (बुंदेल०)। -घन०।
हुतात्मा(स्मन्)-वि०, पु० [सं०] (मार्टर) किसी अच्छे स्वेच्छोपहार-पु० [सं०] (फ्री गिफ्ट) स्वेच्छासे दानमें या | कार्यमें अपनेको बलि कर देनेवाला, शहीद । उपहारमें दी गयी वस्तु ।
हरकनी -स्त्री० वेश्या ।
हरिहाई-स्त्री० होली खेलनेवाली। हँकनी-स्त्री० बैलोंको हाँकनेका एक तरहका डंडा जिसमें हेट*-पु० सहेट, संकेतस्थल । एक कील लगी रहती है, पैना।
होतर-वि० होने योग्य । टता*-स्त्री० सिलसिला; टकटकी-'वह रूपकी रासि होमर-पु० ग्रीक भाषाका प्राचीन कवि, जिसने 'इलियड' लखी तबतें सखी आँखिनकै हटतार भई'-धन । तथा 'ओडिसी' नामक महाकाव्योंकी रचना की थी हथिों -पु. हाथी।
(८५० ईसवी पूर्व)। हमरकाब-वि० [फा०] साथ-साथ सवारी करनेवाला-'साथ होर*-पु० ओर, मार्ग ।
भी होता वीर रक्षक शरीरका, हमरकाब'-निराला। होहल्ला-पु. शोरगुल, हुल्लड़ । हरई*-स्त्री० हल्कापन-'जिहिके परिभार पहार दबै,ौन*-पु० अपनापन ।
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