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विंशोत्तरी-विचित
विंशोत्तरी-स्त्री० [सं०] मनुष्यका शुभाशुभ जाननेकी लेकर कहा जाय कि या तो यही बात होगी नहीं तो विशेष रीति (ज्यो०)।
वह-या काम पूरा करूँगा, या शरीर छोड़ दूंगा। वि-उप० [सं०] एक उपसर्ग जो शब्दोंके पूर्व लगनेपर | विकल्पन-पु० [सं०] अनिश्चय, संदेह मानना; दो या पार्थक्य (वियोग), कार्यवैपरीत्थ (विक्रय, विस्मरण), दोसे अधिक विषयोंमेंसे किसी एकको मानना। भाग या अंशीकरण (विभाग), अंतर (विशेष), कम | विकल्पित-वि० [सं०] व्यवस्थित विभक्त; अनिश्चित, (विधा), प्रतिकूलता (विरोध), आधिक्य (विध्वंस), संदिग्ध; अनियमित । निषेध या राहित्य (विमल), परिवर्तन (विकार) | विकसन-पु० [सं०] खिलना, प्रस्फुटन ।
भादिका सूचन करता है। पु० घोड़ा; अन्न; आकाश आँख। विकसना-अ० क्रि० खिलना, प्रस्फुटित होना। विकंपन-पु० [सं०] एक राक्षस (सूर्यका) काँपना; गति । । विकसाना-सक्रि० दे० 'बिकसाना' । विकंपित-वि० [सं०] काँपता हुआ, अस्थिर ।
विकसित-वि० [सं०] प्रस्फुटित, प्रफुल्ल प्रसन्न । चिकंपी(पिन्)-वि० [सं०] काँपता हुआ, हिलता हुआ। विकस्वर-वि० [सं०] खुला हुआ; प्रफुल्ल, विकासशील; विकच-पु० [सं०] ध्वजा; एक धूमकेतु; एक दानव साफ सुनाई देनेवाला (शब्द); निष्कपट । पु० एक बालोंका समूह, लट । वि०खिला हुआ, विकसित; फैला काव्यालंकार ( इसमें विशेष बातकी पुष्टि सामान्य बातसे हुआ, केशहीन, बिना बालोंका ।
की जाती है)। विकचित-वि० [सं०] खुला हुआ; खिला हुआ । विकार-पु० [सं०] रूप; धर्म आदि स्वाभाविक अवस्थाका विकट-वि० [सं०] भद्दा विशाल; भयंकर; दुर्गम; बड़ा, परिवर्तित होना; परिवर्तन रोग; दोष, विचार, उद्देश्य विस्तृत; टेढ़ा मुश्किल।
आदिमें परिवर्तन होना; भावना; वासनाः क्षोभ आकृति, विकटाकृति-वि० [सं०] भयावनी शकलवाला ।
शकलका विकृत होना; व्याकरणके नियमोंसे शब्दका विकटाक्ष-वि० [सं०] डरावनी आँखोंवाला।
रूप बदलना। विकत्थन-वि० [सं०] डींग मारनेवाला । पु० डीग मारना; विकारी(रिन)-वि० [सं०] परिवर्तनशील; विकारयुक्त, व्यंग्य; मिथ्या श्लाघा प्रशंसा।
विकारवाला; क्रोध आदि दुष्ट मनोविकारोंवाला; आसक्ता विकथा-स्त्री० [सं०] डींग प्रशंसा मिथ्या प्रशंसा व्यंग्य । विकारग्रस्त, परिवर्तित । पु० एक संवत्सर । विकरार*-वि० विकराल, भयंकर विकल, व्याकुल । विकाल, विकालक-पु० [सं०] दिनांत, संध्या उपयुक्त विकराल-वि० [सं०] भीषण, भयंकर ।।
समय बीत जानेके बादका समय, अतिकाल । विकर्ण-पु० [सं०] (डायेगोनल) वह सरल रेखा जो चतु- विकाश-पु० [सं०] प्रदर्शन, प्रकाश; विस्तार, फैलाव र्भुजके आमने-सामनेके कोणोंके शीर्षोंको मिलाती है। खुलना; खिलना, प्रस्फुटन; एक काव्यालंकार । (कर्ण = हाइपॉटेन्यूस) । वि० बड़े कानोंवाला; कर्णरहित; | विकाशित-वि० [सं०] दे० 'विकासित' । बहरा।
विकाशी (शिन)-वि० [सं०] चमकने या देख पड़नेविकर्म (न्)-पु० [सं०] निषिद्ध, अनुचित कर्म विभिन्न वाला खुलने या खिलनेवाला, विकासशील । प्रकारके कार्य कामसे अवसर ग्रहण करना। वि० दुरा- विकास-पु० [सं०] खिलना; खुलना (मुख आदिका); चारी, कर्मभ्रष्ट कर्म न करनेवाला।
प्रसन्नता, आनंद; फैलाव; बाढ़। -वाद-पु० डविन विकल-वि० [सं०] भीत; बेचैन, व्याकुल; क्षुब्ध; इतो. द्वारा प्रतिपादित एक सिद्धांत जिसमें यह माना जाता त्साह अपूर्ण खंडित; अपंग; घटा हुआ, न्यून ।
है कि प्राणियोंका प्रादुर्भाव एक ही मूल तत्त्वसे हुआ है विकलन-पु० [सं०] (डेबिट) किसीको ऋणादिके रूपमें दी और वेकमशः विकसित होते हुए वर्तमान रूपमें पहुंचे हैं। गयी रकम, या दिये गये माल आदिके मूल्यरूपमें प्राप्य विकासक-वि० [सं०] खोलने या (बुद्धि) बढ़ानेवाला। धन, खातेमें उसके नाम लिखना; किसीके खातेमें खर्चको विकासन-पु०[सं०] प्रदर्शन; खिलाना फैलानाखोलना। ओर कोई रकम लिखना।
विकासना*-सक्रि० विकसित करना; प्रकट करना; विकलांग-वि० [सं०] अधिक अंगवाला; अंगहीन, न्यूनांग। निकालना । अ० क्रि० प्रकट या विकसित होना। विकला-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका स्राव बंद हो गया विकासित-वि० [सं०] प्रकाशित; प्रदर्शित; प्रस्फोटित
हो; समयका एक बहुत छोटा मान, कलाका ६०वाँ भाग। विस्तारित ।। विकलाना*-अ० कि० व्याकुल होना।
विकिर-पु० [सं०] पक्षी; कुआँ; बिखेरना। विकलित-वि० व्याकुल, बेचैन; दुःखी, पीड़ित । विकिरण-पु० [सं०] छितरानेकी क्रिया, तितर-बितर विकलीकृत-वि० (डिसेबिल्ड) जो विकलांग ( लँगड़ा, करना; चारों ओर फैलना या फैलाना; (रैडियेशन) एक लूला आदि) हो जानेके कारण अपना काम करने में | स्थान या केंद्रसे ताप, प्रकाश आदिका सीधी रेखाओं में असमर्थ हो गया हो।
चलकर इधर-उधर फैलना; किरणोंका एकत्रीकरण (जैसे विकल्प-पु० [सं०] विभिन्नता; उपाय; भेदयुक्त ज्ञान; आतिशी शीशेमें); एक समाधि ।
अनिश्चय, संदेहः भूल; अशाना वक्तव्य, कथन; भ्रांत विकीर्ण-वि० [सं०] छितराया, फैलाया हुआ; भरा हुआ; धारणा; गणना; चिंतन; संबंध; एक समाधि; अवांतर मशहूर । -कारी-वि० [हिं०] फैलानेवाला । -केशकल्प वैचित्र्य; कई नियमों आदिमेंसे एकका ग्रहण, एक मूर्धज-वि. जिसके बाल बिखरे हों। अर्थालंकार जहाँ दो समान बलवाली विरुद्ध बातोंको विचित-स्त्री० [सं०] सिकुड़ा हुआ, मुड़ा हुआ।
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