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साहस-सिंधु
८४२ साहस-पु० [सं०] हिम्मत, किसी असाधारण कार्यमें दृढ़ता- सिंगार, सिँगार-पु० शृंगार, सजावट; सजधज; शृंगार पूर्वक प्रवृत्त होनेकी वृत्ति, जीवट; जल्दबाजी; औद्धत्या रस। -दान-पु. प्रसाधन रखनेका छोटा संदक । दंडा जुर्माना; बलात्कार; लूट, अपहरण, परस्त्रीगमन। -मेज-स्त्री. वह आईनेदार मेज जिसके सामने बैठकर साहसिक-वि० [सं०] हिम्मतवर, दिलेर निभीक; उद्धता शृंगार किया जाता है। -हाट-स्त्री० वेश्याओंका अविवेकी; निष्ठुर, अत्याचारी; परुषवादी। पु० हिम्मत- | वासस्थान । वर आदमी डाकू, लुटेरा खतरनाक आदमी; परस्त्रीगामी। सिंगारना*-स० क्रि० शृंगार करना, सँवारना, सजाना। साहसी(सिन्)-वि० [सं०] प्रचंड पराक्रमी; हिम्मतवर | सिंगारिया-पु० मूर्तिका भंगार करनेवाला । निष्ठुर; उद्धत ।
सिंगारी-पु० दे० 'सिंगारिया। साहस्र-वि० [सं०] हजार-संबंधी; एक हजारवाला; एक | सिंगिया-पु० एक विष जो एक पौधेका मूल है और
हजार में खरीदा हुआ हजार पीछे दिया जानेवाला। | सूखनेपर सींगकी शकलका होता है। साहाय्य-पु० [सं०] सहायता, मदद; मैत्री, साथ । सिंगी-स्त्री०बी लगानेकी नली। पु०सींगका बना बाजा। साहि*-पु० राजा; भला भादमी।
सिँगौटी-स्त्री० तेल आदि रखनेका सींगका पात्र; सिंदूर साहित्य-पु० [सं०] साथ, संयोग, मेल; वाक्यमें पदोंका आदि रखनेकी पिटारी बैलके सींगका गहना । सापेक्ष-संबंध; गयात्मक या पद्यात्मक रचना; लिपिबद्ध सिंघ*-पु० दे० 'सिंह'। विचार, शान आदि ग्रंथोंका समूह, वाङ्मय; काव्यशास्त्र, | सिंघण-पु० [सं०] लोहेका मुरचा; नाकसे निकला हुआ हितयुक्त होनेका भाव । -शास्त्र-पु० साहित्यके विभिन्न | श्लेष्मा, रेंट। अंगों-रस, अलंकार आदि-का विवेचन या विवेचना- सिंघल*-पु० दे० 'सिंहल'। त्मक ग्रंथ ।
सिंघली-वि० दे० 'सिंहली'। साहित्यादि महाविद्यालय-पु० [सं०] (आटस कालेज) साहित्य, इतिहास आदि विषयोंकी शिक्षा प्रदान करने- सिंघाड़ेके आकारकी एक मिठाई और एक नमकीन वाला महाविद्यालय ।
तिकोनी सिलाई। एक तरहकी आतिशबाजी। साहित्यिक-वि० [सं०] साहित्य संबंधी। पु० साहित्य- सिंघाण-पु० [सं०] दे० 'सिंघण' । सेवी, साहित्यकार (असाधु)।-उपनाम-पु० (पेन-नेम) सिंघासन*-पु० दे० 'सिंहासन'। लेखक या कवि द्वारा साहित्यिक रचनाओं में अपने असली | सिंधिनी-स्त्री० शेरनी। नामके बदले या उसके साथ-साथ प्रयुक्त किया जानेवाला सिंधी-स्त्री० सिंगी मछली सोंठ । बनावटी नाम।
सिंघेला*-पु० शेरका बच्चा । साहिनी-स्त्री० दे० 'साहनी' ।
सिंचन-पु०[सं०] सींचना,खेत, पेड़ आदिमें पानी डालना। साहिब-पु० दे० 'साहब'।
सिंचना-अ० कि० सींचा जाना। साहियाँ*-पु० दे० 'साँई"।
सिँचाई-स्त्री० सींचनेका काम; सींचनेकी उजरत । साहिल-पु० [अ०] समुद्र या नदीका किनारा । सिँचाना-स० क्रि० किसीको सींचने में प्रवृत्त करना । साही-स्त्री० एक छोटा (बिल्लीसे कुछ बड़ा) जानवर जिसका | सिंचित-वि० [सं०] सींचा हुआ। सारा शरीर तेज लंबे काँटोंसे भरा रहता है और जो | सिँचौनी-स्त्री० दे० 'सिँचाई'। जमीनमें माँद बनाकर रहता है। वि० दे० 'शाही | सिंजा-स्त्री० [सं०] गहनोंके हिलने आदिसे उत्पन्न झंकार । साहु-पु० भला आदमी, सज्जन; महाजन; बनियोंका | सिंजित-पु० [सं०] दे० 'सिंजा'। आदरपूर्ण संबोधन ।
सिंदन*-पु० स्पंदन, रथ । . साहल-पु० डोरेसे लटकनेवाला लट्टू जैसा राजगीरोंका सिंदर-पु० [सं०] एक वृक्षा एक लाल चूर्ण जिससे स्त्रियाँ एक औजार जिससे दीवारकी सीध जाँची जाती है। माँग भरती है। -तिलक-पु० सिंदूरका चिह्न हाथी। साहु-पु० दे० 'साहु'।
-तिलका-स्त्री० सधवा स्त्री (जिसकी माँग सिंदूरसे भरी साहूकार-पु० बड़ा व्यापारी, धनाढ्य महाजन ।
रहती है)। -दान-पु० विवाहकी एक रस्म जिसमें वर साहकारा-पु० रुपयोंके लेन-देनका काम; साहूकारोंकी वधूकी माँगमें सिंदूर लगाता है। -बंदन,-चंदन-पु. बस्ती; बाजार । वि. साहूकारोंका।
दे० 'सिंदूरदान'। साहुकारी-खी० साहूकारका काम, महाजनी ।
सिंदूरिया-वि० सिंदूरके रंगका । साहेब-पु० दे० 'साहब'।
सिंदूरी-वि० सिंदूरके रंगका । स्त्री० [सं०] रोचनी । साह*-स्त्री. भुजाएँ, बाजू । अ० सामने, सम्मुख । सिंदोरा-पु० सिंदूर रखनेकी लकड़ीकी टिबिया। सिँउ*-अ० दे० 'स्यो।
सिंध-पु. पाकिस्तानका एक प्रांत । स्त्री० एक प्रसिद्ध सिँकना-१० क्रि० सेंका जाना (आँचपर); पकना । नदी; एक रागिनी। सिंगरफ-पु० ईगुर।
सिंधी-वि०सिंध देशका । पु० इस देशका रहनेवाला, सिंगरौर-पु० प्राचीन शृंगवेरपुरका बर्तमान नाम । एक तरहका घोड़ा। स्त्री० इस देशकी भाषा । सिंगल-पु० दे० 'सिगनल' ।
सिंधु-पु० [सं०] सागर, समुद्र; एक प्रसिद्ध नदी; इस सिंगा-पु० फूंककर बजाया जानेवाला एक बाजा, शृंग। नदीके आस-पासका देशाचारकी या सातकी संख्या।
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