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-पु०३०
सिक
दीप, लेक
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सिंधुर-सिखवना -कन्या-स्त्री० लक्ष्मी। -ज-पु० सेंधा नमक; ईरान, अफगानिस्तान और हिंदुस्तान में तक्षशिला तथा सोहागा; शंख । -जा-स्त्री० लक्ष्मी; सीप । -जन्मा- | सिंधुके इस पारका कुछ भाग भी जीत लिया था। (न्मन्)-वि० समुद्र या सिंधदेशमें उत्पन्न । पु० चंद्रमा | सिकंदरा-पु० रेलका सिगनल । सेंधा नमक ।-संगम -पु. नदीका मुहाना ।-सुता- सिकड़ी-स्त्री० साँकल, जंजीर, जंजीर जैसा गलेका एक स्त्री० लक्ष्मी; सीप ।
गहना, करधनी जंजीर जैसी उनचन । सिंधुर-पु० [सं०] हाथीआठकी संख्या। -मणि-पु० सिकत*-स्त्री० बाल। गजमुक्ता।-बदन-पु० गणेश, गजानन ।
सिकता-स्त्री० [सं०] बलुई जमीन, बालुकायुक्तभूमि बालू । सिंधुरागामिनी-वि० स्त्री० [सं०] गजगामिनी । सिकतामय-वि० [सं०] बालुकामय । पु० बालूसे बना सिंधोरा-पु० लकड़ीका बना हुआ सिंदूरपात्र ।
हुआ तट; वह द्वीप जिसके तट बालूसे बने हों। सिँधोरी-स्त्री० सेंदुर रखनेकी छोटी डिबिया । सिकत्तर-पु० [अं॰ 'सेक्रेटरी'] किसी संस्था या व्यक्तिका सिंसपा-स्त्री० शीशमका पेड़ ।
कार्यनिर्वाहक मंत्री। सिंह-पु० [सं०] केसरी, मृगेंद्र, शेर, बारह राशियों मेंसे सिकर*-पु. शृगाल-'सिकर स्वान दुइ पंथ निहार'एक राशि; (समासमें) अपने वर्गका सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति ।। बीजक । स्त्री० जंजीर । -द्वार-पु० प्रासाद आदिका प्रधान द्वारा सदर दरवाजा। सिकली-स्त्री० हथियार माँजकर तेज करना। -गढ़*-ध्वनि-स्त्री० सिंहका गर्जन; ललकार, रणनाद । पु० दे० 'सिकलीगर'। -गर-पु० हथियार तेज करने-नाद-पु० सिंहका गर्जन; युद्ध-ध्वनि, ललकार; जोर बाला; चमक लानेवाला। देकर कोई बात कहना। -पीर-पु० [हिं०] सिंहद्वार । | सिकहर-पु० छींका । -वाहना,-वाहिनी-स्त्री० दुर्गा ।
सिकहरा*-पु० दे० 'सिकहर' । सिंहनी-स्त्री० शेरनी, सिंहकी मादा; एक वृत्त । सिकार*-पु० दे० 'शिकार' । सिंहल-पु० [सं०] भारतके दक्षिण स्थित एक द्वीप, लंका। सिकारी*-वि०, पु० दे० 'शिकारी' । सिंहली-वि.सिंहल द्वीप-संबंधी; सिंहलका । स्त्री० एक | सिकडन-स्त्री०सिकुड़नेकी क्रिया, संकोच; सिकुड़नेका तरहकी पिप्पली; सिंहलकी भाषा ।
चिह्न, शिकन। सिंहाण, सिहान-पु० [सं०] 'सिंधण', नाकका मल, सिकुड़ना-अ० क्रि० संकुचित होना; बटुरना, सिमटना; रेंट; लोहेका मुरचा।
- तंग होना; शिकन पड़ना। सिंहानक-पु० [सं०] नाकका मल ।।
सिकुरना*-अ० क्रि० दे० 'सिकुड़ना' । सिंहारहार*-पु० हरसिंगार ।
सिकोड़ना-स० क्रि० संकुचित करना; बटोरना, समेटना। सिंहावलोकन-पु० [सं०] सिंहका आगे बढ़ते हुए पीछेकी सिकोरना*-सक्रि० दे० 'सिकोड़ना'।
ओर देखना; आगे बढ़ते हुए पीछेकी बातोपर दृष्टिपात कर सिकोरा-पु० कसोरा । लेना (न्या०); छंदकी रचनाका एक प्रकार जिसमें दूसरा | सिकोही-वि० गीला; पराक्रमी, वीर।
चरण पहले चरणके अंतिम शब्दोंसे आरंभ होता है। सिक्कड़-पु० जंजीर, सिकड़ी। सिंहासन-पु० [सं०] राजा, देवता आदिका आसन । सिक्कर*-पु० दे० 'सिक्कड़।
-भ्रष्ट-वि० गद्दीसे उतारा हुआ, राज्यच्युत । -स्थ- सिक्का-पु० [अ०) ठप्पा, छाप, मुद्रा, रुपया; वह ठप्पा वि० तख्तनशीन ।
जिससे रुपये आदि अंकित करते हैं। पदक । मु०-चलाना सिंहिका-स्त्री० [सं०] राहुकी माता । -तनय,-पुत्र- -(अपना) सिक्का जारी करना। -जमना-बैठनापु० राहु ।
रोब-दाब कायम होना, अधिकार स्थापित होना। सिंहिकेय-पु० [सं०] सिंहिकापुत्र, राहु ।
-जमाना,-बैठाना-रोब-दाब कायम करना, अधिकार सिंहिनी-स्त्री० [सं०] एकदेवी (बौद्ध); * शेरनी, सिंहनी। स्थापित करना।
[सं०] शेरनी; राहुकी माता, सिंहिका; नस: | सिक्ख-पु० गुरु नानकका चलाया हुआ एक संप्रदाय अडूसा थूहर सिंघा नामक बाजा नाडीशाक; कंटकारी। इस संप्रदायका अनुयायी। सिंहोदरी-वि० स्त्री० [सं०] सिंहके समान कटिवाली। सिक्त-वि० [सं०] सींचा हुआ; गीला, भीगा हुआ। सिनि*-स्त्री०सिलाई ।
सिक्थ-पु० [सं०] मोम, मधूच्छिष्ट; माँड़ निकाला हुआ सिअरा*-वि० ठंढा किया हुआ, ठंढा-'सिअरे बदन सूखि भात, भातका पिंड या ग्रास; नीली; मोतियोंका गुच्छा। गये कैसे'-रामा।
सिखंडी-पु० दे० 'शिखंडी'। सिआना*-स० कि० दे० सिलाना'।
सिख-पु० दे० 'सिक्ख'; शिष्य । * स्त्री शिक्षा, उपदेश सिआर-पु. गीदड़।
चोटी। सिकंजबीन-स्त्री० [फा०] नीबूके रस या सिरकेका पका सिखना*,-सक्रि० सिखाना। हुआ शरबत ।
सिखर*-पु० दे० 'शिखर' मुकुट, सिकहर । सिकंजा-पु० दे० 'शिकंजा'।
सिखरन-स्त्री० दे० 'शिखरन' । सिकंदर-पु. सुप्रसिद्ध यूनानी विजेता जो मकदूनिया- सिखलाना-स० क्रि० सिखाना। नरेश फिलिप्स( फैलक्स)का बेटा था और जिसने मिस्र, ' सिखवना*-स० क्रि० सिखलाना ।
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