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सिखा-सितारा सिखा*-स्त्री० दे० 'शिखा'।
धुंधची।-च्छद-वि० सफेद पत्रोंवाला; सफेद पंखोवाला। सिखाना-स० क्रि० शिक्षा देना, पढ़ाना, बतलाना; पु० हंस, सहिजनका एक प्रकार । -तुरग-पु० अर्जुन । ताड़ना, दंड देना।
-दर्भ-पु० श्वेत दूर्वा ।-दीधिति-पु. चंद्रमा ।-दुसिखापन*-पु० शिक्षा, उपदेश; शिक्षणकार्य ।
शुक्लवर्ण वृक्ष; मोरट-विशेष। -दुम-पु. शुक्लवर्ण सिखावन-स्त्री० शिक्षा, उपदेश, नसीहत ।
वृक्ष; अर्जुन । -द्विज-पु० हंस । -धातु-स्त्री० श्वेत सिखावना*-स० कि० दे० 'सिखाना'।
खनिज द्रव्य खड़िया मिट्टी। -पक्ष-पु० उजेला पाख, सिखिर*-पु० शिखर जैनोंका एक तीर्थ,पारसनाथ पहाड़। सफेद पंख; हंस । -पच्छ*-पु० हंसा शुक्ल पक्ष । सिखी*-पु० मुर्गा; मोर।
-पम-पु० श्वेत कमल | -पुंडरीक-पु० श्वेत कमल । सिगनल-पु० [अं०] रेलगाड़ीके आने-मानेका सूचक चिह्न- -भानु-पु० चंद्रमा। -मणि-पु० स्फटिक । -मनाविशेष, सिंगल, सिकंदरा संकेत ।
(नस)-वि० पवित्र हृदयवाला । -यामिनी-स्त्री. सिगरा*-वि० संपूर्ण, सब ।
चाँदनी रात चंद्रिका । -रश्मि-पु. चंद्रमा । -रागसिगरेट-पु०, स्त्री० [अं०] धूमपानके लिए कागजमें तंबाकू पु० चाँदी। -रुचि-वि० सफेद रंगका। पु० चंद्रमा । लपेटकर बनायी हुई एक तरहकी बत्ती।
-वराह-पु० श्वेत वराह । -वल्लरी-ली० कठजामुन । सिगरो, सिगरौ*-वि० दे० 'सिगरा'।
-वाजी (जिन्)-पु० अर्जुन । -वारण-पु० दे० सिगार-पु० [अं०] चुरुट ।
'सित-कुंजर' । -सर्षप-पु० पीली सरसों। -सिंधुसिचान*-पु० बाज चिड़िया।
पु०क्षीरसागर । स्त्री० गंगा नदी । सिचाना-सक्रि० दे० 'सिंचाना।
सितकंठ*-पु. शिव; दे० 'सित'में । सिच्छक*-पु० शिक्षा देनेवाला दंड देनेवाला-'साहिन | सितता-स्त्री० [सं०] श्वेतता, सफेदी। के सिच्छक, सिपाहिनके पातसाह'-भू० ।
सितम-पु० [फा०] जुल्म, अन्याय, उत्पीडन, अंधेर; सिच्छा*-स्त्री शिक्षा ।
गजब । -कश,-ज़दा,-रसीदा-वि० जुल्म सहनेसिजदा-पु० [अ०] माथा टेकना; खुदाके आगे सिर वाला, उत्पीड़ित ।-गर-गार-वि० जालिम, अन्यायी, झुकाना मुसलमानोंकी उपासनाका एक अंग जिसमें माथा,
अत्याचारी । मु०-ढाना-जुल्म, भारी अन्याय करना। नाक, कुहनियाँ, घुटने और पाँवोंकी उँगलियाँ जमीनपर
-तोड़ना-अन्याय, अत्याचार करना । लगती हैं। -गाह-पु०, स्त्री० उपासना स्थल । सितांग-पु० [सं०] श्वेत रोहित; कपूर, शिव; बेला । सिझना-अ०क्रि० आँचपर पक जाना, सिझाया जाना। सितांबर-वि० [सं०] श्वेत वस्त्रधारी। पु० एक तरहके सिझाना-सक्रि० आँचपर पकाना, राँधना; शरीरको जैन साधु, श्वेतांबर ।
कष्टमय स्थितिमें रखना; (बरतन आदिके लिए मिट्टी) | सितांबुज, सितांभोज-पु० [सं०] श्वेत पद्म । तैयार करना; (चमड़ा) पकाना ।
सितांशु-पु० [सं०] कर्पूर चंद्रमा । सिटकिनी-स्त्री० किवाड़ बंद करनेके लिए उसमें लगा | सितांशक-वि० [सं०] श्वेत वस्त्रधारी, सफेदपोश । हुआ छोटासा छड़, चटखनी।
सिता-स्त्री० [सं०] शर्करा; मिसरी; चंद्रिका; सुंदरी सुरा; सिटपिटाना-अ० क्रि० दब जाना; भय खाना; मंद पड़ | श्वेत दू; मल्लिका; श्वेत कंटकारी; बकुची; गंगा आठ जाना; स्तब्ध हो जाना।
देवियों में से एक (बौद्ध)। सिट्टी-स्त्री० बढ़-चढ़कर बातें करना, वाचालता। मु०- सितातपत्र-पु० [सं०] श्वेत छत्र (राज-चिह्न)।
गुम होना-घबराकर चुप हो जाना, सिटपिटा जाना। सितानन-वि० [सं०] श्वेत मुखवाला । पु० गरुड़ । सिट्टी-स्त्री० दे० 'सीठी' ।
सिताब* -अ० तुरंत, झटपट । स्त्री० शीघ्रता-'तातें ढील सिठाई-स्त्री० फीकापन।
न होइ, काम यह है सिताबको'-सुजान० । सिड-स्त्री० पागलपन, दीवानगी, खब्त, सनक; धुन । सिताबी*-अ० दे० 'सिताब' । स्त्री० शीघ्रता चाँदनी।
-पन,-पना-पु० दे० 'सिड़ ।-बिला,-बिल्ला-वि० सिताब्ज-पु० [सं०] श्वेत पन । मूर्ख, बेअक्क, पागल, सनकी। मु०-सवार होना-सितार-पु. एक प्रसिद्ध तंत्रवाद्य । -बाज़-वि०, पु० सनक सवार होना।
सितार बजानेवाला । -बाज़ी-.. सितार बजाना। सिड़ी-वि० सनकी, पागल, मनमौजी।
सितारा--पु० [फा० 'सतारा'] तारा, नक्षत्र (ला०) भाग्य; सितंबर-पु०[अं० सेप्टेंबर'] ईसवी सनका नवाँ महीना। | चाँदी-सोनेके पत्तरकी टिकली जो टोपी, जूते आदिपर सित-वि० [सं०] श्वेत, सफेद चमकीला; विशुद्ध, निर्मल लगायी जाती है, चमकी; आतिशबाजी बंदूककी टोपीका
पु० सफेद रंग; शुक्ल पक्ष; शुक्र ग्रह शुक्राचार्य; बाण; गोल और सफेद भाग; कुछ घोड़ोंके माथेपर पाया जाने, चाँदी; चंदन शर्करा । -कंठ-वि० सफेद गरदनवाला। वाला सफेद निशान जो अँगूठेसे ढक जाय (यह चिह्न पु. चातक; * शिव । -कर-पु. चंद्रमा कपूर। अशुभ माना जाता है); * सितार । -(Oहिंद-पु० -कर्णिका-कर्णी-स्त्री. वासक । -कर्मा (मैन् )- एक उपाधि जो भारतमें अंग्रेज सरकारकी ओरसे सम्मावि० जिसके कर्म पवित्र हों।-काच-पु० हलब्बी शीशा नार्थ दी जाती थी। मु०-चमकना-भाग्य जगना, बिल्लौर,स्फटिक ।-कुंजर-पु० इंद्र ऐरावत; सफेद हाथी ।। बढ़ती-चढ़तीके दिन होना। -बुलंद होना-सौभाग्य-खंड-पु० मिसरीका डला । -गंजा-स्त्री० सफेद | काल होना।
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