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कौवाली - स्त्री० [अ०] सूफियाना गजल या गीत; संगीत में
एक ताल ।
कौशल - पु० [सं०] कुशलता, दक्षता; मंगल, कल्याण । कौशलेय - पु० [सं०] कौशल्या के पुत्र, राम | कौशल्य - पु० [सं०] दे० 'कौशल' ।
कौशल्या - स्त्री० [सं०] दशरथकी पट्टमहिषी, रामकी माता | कौशांत्री-स्त्री० [सं०] वत्सदेशकी प्राचीन राजधानी जिसे कुशके पुत्र कौशांबने बसाया था, आधुनिक कोसम । कौशिक - पु० [सं०] कुशिकका वंशज; विश्वामित्र इंद्र; कोशकार; कोषाध्यक्ष; उल्लू ; नेवला; शृंगार रस; मज्जा; गुग्गुल । वि० म्यानमें रखा हुआ; उल्लू-संबंधी; कुशिक वंशका; रेशमी । - प्रिय - पु० राम । कौशिकी - स्त्री० [सं०] दुर्गा; के.सी नदी; दृश्य काव्यकी चार वृत्तियोंमेंसे एक; एक रागिनी । - कान्हड़ा - पु० [हिं०] कौशिकी और कान्हड़ा के योगसे बना एक संकर राग । कौशी (पी) धान्य- पु० [सं०] कोशसे उत्पन्न होनेवाला धान्य, तिलादि ।
कौशीलव- पु० [सं०] नट, अभिनेताका पेशा । कौशे (पे) - पु० [सं०] रेशम; रेशमी कपड़ा; रेशमी साड़ी । वि० रेशमी । कौसल्या - स्त्री० रामचंद्र | कौसिक* - पु० दे० 'कौशिक' |
[सं०] दे० 'कौशल्या' । -नंदन - पु०
कौसिला* - स्त्री० दे० 'कौशल्या' । कौस्तुभ - पु० [सं०] समुद्र मंथन से निकला हुआ एक रल जिसे विष्णु छातीपर धारण किये रहते हैं ।
क्या - सर्व० प्रश्नवाचक सर्वनाम । वि० कितना; बहुत; कैसा बहुत बढ़िया । अ० किम लिए, किस कारण; प्रश्नसूचक शब्द |
क्यार - * प्र० दे० 'का' पु० पेड़का थाला । क्यारी - स्त्री० बाग या खेतकी मेंड बनाकर प्रायः चौकोर खानेकी शकल में किया हुआ विभाग ।
ऋतु - पु० [सं०] विष्णु; एक प्रजापतिः संकल्पः प्रज्ञा,
: विवेक; इच्छा; देवताकी स्तुति आदि; यश; अश्वमेध यज्ञ । - पति-पु० यश करनेवाला । - पशु, -हय- पु० यज्ञका घोदा । - पुरुष - पु० विष्णु । - भुक् ( ज् ) - पु० हविष्य खानेवाला, देवता ।
क्रथन - पु० [सं०] काटना; वध; एक दानव । क्रम - पु० [सं०] आगे बढ़नेके लिए कदम उठाना, डग भरना; उग, कदम; आरंभ; घटनाओं, वस्तुओं, व्यक्तियोंकी आगे पीछे या ऊपर-नीचेके विचारसे यथास्थान अवस्थिति, तरतीब, सिलसिला; नियमित व्यवस्था;
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कौवाली- क्रिकेट
वेदपाठकी एक विशेष प्रणाली; शक्ति; आक्रमणकी मुद्रा; तैयारी; कल्प; विष्णु ( वामनरूपमें ); एक अर्थालंकार ( ' यथासंख्य' ); * कर्म, कार्य, कृत्य । - बद्ध - वि० क्रमयुक्त, सिलेसिलेवार -भंग - पु० क्रम - तरतीबका टूट जाना । संख्या - स्त्री० किसी वस्तु, व्यक्तिकी क्रमप्राप्त संख्या, सिलसिलेका नंबर । - संन्यास - पु० ब्रह्मचर्यादि आश्रमोंमें रह चुकने के बाद लिया हुआ संन्यास । - स्थापन - पु० ( ग्रेडिंग ) श्रेणी, कोटि या क्रमके अनुसार रखना । क्रमनासा * - स्त्री० कर्मनाशा नामकी नदी । क्रमशः - अ० [सं०] यथाक्रम, सिलसिलेसे; धीरे-धीरे । क्रमांक - पु० [सं०] क्रमसंख्या । क्रमागत- वि० [सं०] क्रमप्राप्त; कुलक्रमागत, बाप-दादासे चला आता हुआ ।
क्याली * - स्त्री० दे० 'क्यारी' |
क्यों - अ० किस लिए, किस कारण । -कर- अ० कैसे | -कि- अ० कारण यह कि, इसलिए कि । - नहीं - अ० अवश्य, बेशक । - न हो-अ० क्या कहना, शाबाश । क्रंदन - पु० [सं०] रोना, विलाप, युद्धके लिए आह्वान | कंदित - वि० [सं०] ललकारा हुआ, आहूत | क्रकच - पु० [सं०] आरा; एक बाजा; एक नरक; करीलका | क्रशित- वि० [सं०] क्षीणकाय, दुबला-पतला । पेड़, ग्रंथिल वृक्ष; ज्योतिष में एक योग ।
क्रमानुसार - अ० [सं०] यथाक्रम, सिलसिले से । क्रमि पु० [सं०] दे० 'कृमि' |
क्रमिक - वि० [सं०] क्रमागत; कुलक्रमागत । क्रमुक - पु० [सं०] सुपारीका पेड़, नागरमोथा; पठानी लोध; शहतूतका पेड़; कपासकी डोंड़ी । क्रमेल, क्रमेलक - पु० [सं०] ऊँट
क्रय - पु० [सं०] मोल लेना, खरीदना । - पंजी - स्त्री० ( परचेजेज जर्नल ) प्रतिदिन खरीद की गयी वस्तुओं आदिका विवरण लिखनेकी वही, खरीद - बही ।-प्रपंजीस्त्री० (परचेज़ेज़ लेजर ) वह प्रपंजी या खाताबही जिसमें समय-समय पर खरीदी हुई विभिन्न वस्तुओंका हिसाब, हर एकका अलग-अलग, क्रयपंजीसे उतारकर लिखा जाता है। - लेख्य-पु० बयनामा, कवाला । ० पत्रपु० किसी वस्तुके क्रय-विक्रय से संबंध रखनेवाला पत्र | - विक्रय - पु० खरीद-बिक्री, व्यापार । -विक्रयिकपु० व्यापारी । -शक्ति-स्त्री० (पचेंजिंग पॉवर) बाजार में उपलब्ध वस्तुओं को खरीद सकनेकी जनताको सामर्थ्य या क्षमता ।
क्रयण- पु० [सं०] खरीदना ।
क्रय्य - वि० [सं०] जो खरीदा जा सके; विक्रीके लिए रखा हुआ (माल) ।
क्रवान * - पु० कृपाण, तलवार ।
क्रव्याद, क्रव्याद् - वि० [सं०] कच्चा मांस खानेवाला । पु० राक्षस, मांसभक्षी जंतु - बाघ, भेड़िया आदि ।
क्रांत - वि० [सं०] गया हुआ; बीता हुआ; लाँधा हुआ; दबा हुआ; चढ़ा हुआ । पु० पाँव; घोड़ा; गमन; डग; चंद्रमा के किसी ग्रहके साथ योगकी स्थिति । क्रांति - स्त्री० [सं०] क्रमण; जाना; लाँघना; सूर्यका भ्रमण - मार्ग; दिक्पात; स्थिति में भारी उलट-फेर; पूर्ण परिवर्तन; राज्यव्यवस्थाका उलट दिया जाना, राजक्रांति । -कक्ष, - मंडल, - वृत्त - पु० सूर्यका भ्रमणमार्ग । -कारी (रिन्) - वि० स्थिति, व्यवस्था में भारी उलट-फेर कर देनेवाला । पु० राजक्रांतिका प्रयासी ।
काय (थि) क - पु० [सं०] खरीदनेवाला; व्यापारी । क्रिकेट - पु० [अ०] गेंदका एक खेल जो बलेसे खेला जाता है ।
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