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ज़बानी-जमाना
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लगना । -.खुश्क होना-बहुत प्यासा होना; बहुत बातें | जमक*-पु० दे० 'यमक' । करना । -खोलना-कुछ कहना, बोलना; उन या जमघट (टा)-पु० आदमियोंकी भीड़, जभाव, मजमा । शिकायत करना। -चलना-मुँहसे शब्दोंका जल्दी- जमघट्ट-पु० दे० 'जमघट' । जल्दी निकलना, तेजीसे बोलना। -चलाना-तेजीसे ज़मज़म-पु० [अ०] काबाके पासका एक कुआँ । बोलना; बदनबानो करना । -चलायेकी रोटी खाना- जमदग्नि-पु० [सं०] एकवैदिक ऋषि जो परशुरामके पिता थे। चापलूसीसे पेट पालना। -थामना-दे० 'ज़बान जमन-पु० दे० 'यवन' । पकड़ना' । -देना-वचन देना, वादा करना । जमना-स्त्री० दे० 'यमुना' । अ०क्रि० पतली चीजका गाढ़ी -पकड़ना-किसीको अपनी बात कहनेसे रोकना, या ठोस होना (दहा, पानी); किसी जगह देरतक बैठना; बोलने न देना; वचनमें दोष, गलती निकालना; अपनी जगह पर डटा, बना रहना, टिकना, दृढ़तासे स्थित टोकना । -पर आना-किसी बातका मुँहसे निकालना, होना; जड़ मजबूत होना, ठीक तौरसे चलने लगना नीचे कहा जाना । -पर मुहर होना-जबान बंद होना, बोल बैठना (तल-छट); जमा, इकद्रा होना; दिलमें बैठना; न सकना। -पर लाना-कहना, बयान करना। -पर सुंदर, सफल, यथेष्ट रसोत्पादक होना (गाना, खेल, होना-हर वक्त याद रहना; कंठस्थ होना; चर्चाका विषय व्याख्यान); चल निकलना ( दुकान इ०); ठीक आना, होना (यह बात आज बहुतोंकी जबानपर है)।-पलटना बैठना (टोपी, पगड़ी इ०); (घोड़ेका) ठुमुककर चलना -बात कहकर मुकरना, वचन भंग करना । -बंद होना | उगना (बीज, बाल)। -बोल न सकना, चुप रहनेको विवश होना; बहसमें हार | जमनिका-स्त्री० दे० 'जवनिका'; * काई । जाना। -बदलना-दे० 'जबान पलटना' । -बिगढ़ना जमवट-स्त्री० लकड़ीका गोला चकर जिसके ऊपर पके -अपशब्द कहने, गालियाँ बकनेकी आदत पड़ना; चटोर- कुएँकी जोड़ाई होती है। पनकी आदत लगाना !-में काँटे पढ़ना-जबानका सूख-जमा-स्त्री० [अ०] समूह, जमात; जोड़ (ग०); बहुवचन कर खुरदरी हो जाना। -में: वुजली होना-लड़ने, (व्या०); पूँजी, धन; वही-खातेका वह भाग या भद जिसमें उलझनेको जी चाहना । -में(पर)ताला लगना-चुप प्राप्ति या आमदनी लिखी जाय; लगान। -खर्च-स्त्री० रहना, मौनावलंबन करना । -में लगाम न होना- आमदनी और खर्च आमदनी-खर्चका हिसाब, ब्योरा । बोलने में उचित-अनुचितका विचार न होना, मुँहफट हो -जथा-स्त्री० पूँजी,धन-संपत्ति। -दार-पु० सिपाहियों जाना । (मुँहमें)-रखना-बोलनेमें, उत्तर देने में समर्थ आदिका मुखिया पुलिसका हेडकांस्टेबल; भंगियोंके कामकी होना। -रुकना-बोलनेमें अटकना, चुप होना । निगरानी करनेवाला कर्मचारी। -पूँजी-स्त्री० दे० 'जमा-रोकना-बोलना बंद करना, चुप हो रहना; जबान जथा' । -बंदी-स्त्री० लगानका हिसाब; पटवारीकी वह पकड़ना ।-संभालना-बोलनेमें उचित-अनुचितका विचार बही जिसमें गाँवके हर काश्तकारके लगानका हिसाब और रखना, अनुचित शब्द मुँहसे न निकालना। -से निक- ब्योरा लिखा होता है; गाँव, महाल या हिस्सेका कुल लना-उच्चारित होना, कहा जाना ।-हारना-वचनबद्ध लगान।-मार-वि० दूसरेका पावनाहजम कर जानेवाला, होना, प्रतिज्ञा करना। -हिलाना-बोलनेकी कोशिश बेईमान । मु०-खर्च करना-हिसाब बराबर करनेके करना; बोलना।
लिए किसी रकमको जमामें लिखकर फिर खर्चमें लिखना। जबानी-वि० [फा०] जो केवल जबानसे कहा गया हो। -मारना-लगान, ऋण या अमानतके रूपमें दूसरेका मौखिक अलिखित (इजहार, सवाल, संदेशा इ०); ऊपरी, पावना हजम कर जाना, दूसरेका पैसा मार लेना। दिखाऊ । -जमाखर्च-पु. वह बात जो कही जाय, पर | जमाअत-स्त्री० [अ०] समुदाय, जत्था; भीड़, मजमा दल; की न जाय, दिखाऊ, मौखिक काररवाई।
कक्षा, श्रेणी; नमाजियोंकी पंक्ति । ज़बून-वि० [फा०] खराब, निकृष्ट; निर्बल।
जमाअती-वि० [अ०] सामुदायिक । जब्त-पु० [अ०] प्रबंध; निगरानी; सहन; धैर्य-धारण; जमाई-पु० दामाद । स्त्री० जमानेकी क्रिया या मजदूरी । राज्य द्वारा किसी वस्तु, संपत्तिका हरण (करना, होना)। | जमात-स्त्री० दे० 'जमाअत'। -शुदा-वि० जब्त किया हुआ।
जमानत-स्त्री० [अ०] जिम्मेदारी; किसीके कोई काम करनेजब्ती-स्त्री० [अ०) किसी चीजका जब्त किया जाना,कुर्की। (समयपर हाजिर होने, ऋण चुकाने, प्रतिज्ञाका पालन जब-पु० [अ०] दबाव, मजबूरी; जबरदस्ती; सख्ती जुल्म । करने आदि)की जिम्मेदारी जो दूसरा आदमी अपने ऊपर जबन-अ० [अ०] जबरदस्तीसे, दबाव देकर, बलात् । ले किसी बातके किये जाने के इतमीनानके लिए जमा की जब्ह-पु० [अ०] गला काटकर जान लेनेका कार्य । हुई रकम, जायदाद; इस तरहका इतमीनान दिलानेवाली जम-पु० दे० 'यम' ।-कात, कातर*-स्त्री० एक तरह- चीज, गारंटी। -दार-पु० जमानत करनेवाला, जामिन। का खाँडा, यमका खाँड़ा। पु० भँवर । -घंट-पु० दे० -नामा-पु० जामिन होनेकी लिखित स्वीकृति । 'यमघट' । -ज-वि० जुड़वाँ (बच्चे )।-डाद-स्त्री० एक जमानती-वि० [अ०] जिसमें या जिसकी जमानत हो झुकी नोकवाली कटार । -दिसा*-स्त्री० दक्षिण दिशा।। सके, जमानतके काबिल (-वारंट)। -दत-पु० दे० 'यमदूत' । -धर-पु० दे० 'जमडाद'। जमाना-स० क्रि० पतली चीजको गाढ़ी या ठोस बनाना -बार* -पु० दे० 'यमद्वार' ।-राज-पु० दे० 'यमराज'।। (दही, बरफ आदि); मजबूतीसे बैठाना; दिलमें बैठाना; मु०-हो जाना-न टलना, पीछा न छोड़ना।
सजाकर रखना, चुनाई करना; जमनेका कारण, हेतु
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