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पर-परचइ पु० अपने देशसे भिन्न देश, दूसरा देश। -देशी-वि० परई।-स्त्री० मिट्टीका बड़ा कसोरा । [हिं०] दूसरे देशका । पु० दूसरे देशमें रहनेवाला; परकना*-अ० क्रि० परचना किसी विषयमें ढीठ बनना। प्रवासी ।-द्रोही (हिन्),-द्वेपी (पिन्)-वि० दूसरेसे परक(ग)सना*-अ० कि० प्रकाशित होना; प्रकट होना। द्वष या शत्रुता करनेवाला । -धन-पु० दूसरेका धन, परकार-पु० [फा०] (डिवाइडस) वृत्तकी परिधि बनाने, परायी संपत्ति । -धर्म-पु० दूसरेका या दूसरा धर्म, | नापने आदिका दो भुजाओंवाला एक आला; *दे० प्रकार । अपने धर्मसे भिन्न धर्म ।-पक्ष-पु० शत्रुका पक्ष; विरोधी.
धम ।-पक्ष-पु० शत्रुका पक्ष; विरोधी परकाल-पु० दे० 'परकार'। का मतविरोधीकी दलील । -पक्षनाही-वि० (टर्नकोट) परकाला-पु० सीढ़ी; देहली; [फा०] टुकड़ा; शीशेका टुकड़ा; अपना दल या पक्ष छोड़कर दूसरा दल या पक्ष ग्रहण कर चिनगारी । [आफतका परकाला-गजब ढानेवाला।] लेनेवाला; अपने विश्वासों या सिद्धांतोंका परित्याग कर परकास*-पु० दे० 'प्रकाश' । दूसरे विचारों-सिद्धांतोंका अनुयायी बन जानेवाला। परकासना*-सक्रि० प्रकाशित करना; प्रकट करना। -पद-पु० दे० 'परमपद' । -पार-पु० दूसरा किनारा, अ० क्रि० प्रकाशित होना । दूसरा छोर । -पीड़क-वि० दूसरोंको पीड़ा पहुँचाने- परकिति, परकीति, परकीती*-स्त्री० दे० 'प्रकृति' । वाला, दूसरोंको सतानेवाला; * दूसरोंके दुःखसे दुःखी | परकीय-वि० [सं०] दूसरेका । होनेवाला । -पुरुष-पु० पतिसे भिन्न पुरुष; अजनवी; परकीया-स्त्री० [सं०] वह नायिका जो गुप्त रूपसे परपुरुषोत्तम विष्णु । -पुष्ट-वि० जिसका पालन-पोषण | पुरुपसे प्रेम करे। दूसरेने किया हो। पु० कोयल । -पुष्टा-स्त्री० वेश्या, परकीरति-स्त्री० दे० 'प्रकृति' । रंडी; वंदाक । -बस-वि० [हिं०] दे० 'परवश'। परकोटा-पु० गढ़ आदिकी रक्षाके लिए चारों ओर उठायी -बसताई*-स्त्री० परवशता । -ब्रह्म (न्)-पु० गयी दीवार; पानी आदि रोकनेका बाँध । निर्गुण और उपाधिरहित ब्रह्म । -भाग्योपजीवी परख-स्त्री० गुण, दोष आदिके निर्णयकी दृष्टिसे किसी (विन्)-वि० दूसरेकी कमाई या दूसरेका अन्न खाकर | वस्तुको देखनेकी क्रिया, परीक्षा किसीके गुण-दोषका पता निर्वाह करनेवाला ।-भाषा-स्त्री० संस्कृतसे भिन्न भाषा; लगानेकी शक्ति। -नली-स्त्री (टेस्टट्यूब) दे० 'परीक्षणदूसरी भाषा। -भुक्ता-वि० स्त्री० ( वह स्त्री) जिसका नलिका'। केसी दूसरेके साथ समागम हो चुका हो । -भृत-वि० परखचा-पु० टुकड़ा, खंड । मु०-(चे)उड़ाना-खंड-खंड जसका पालन दूसरेने किया हो। पु० कोकिल; * षडा- कर देना, धज्जियाँ उड़ाना। नन । -भृत्-पु० कौआ। -मर्मज्ञ-वि० दूसरेका भेद | परखना-स० क्रि० गुण-दोषके निर्धारणके लिए किसी जाननेवाला । -राष्ट्र-पु० अपने देशको छोड़कर अन्य व्यक्ति या वस्तुको भली भाँति देखना; भली भाँति देखकर राष्ट्र । -राष्ट्र-मंत्री-पु० विदेशी मामलोंकी देखरेख गुण-दोष जान लेना; किसीकी राह देखना । करनेवाला मंत्री, विदेशमंत्री। -लोक-पु० स्वर्ग आदि परखवाना-स० कि० दे० 'परखाना' । लोक जहाँ मृत्युके पश्चात् प्राणीकी आत्मा जाती है। परखवैया, परखैया-पु० परखनेवाला, परखानेवाला -लोकगमन,-लोकवास-पु० मृत्यु (आदराथेक)। परखाई-स्त्री० परखनेका काम; परखनेकी उजरत । (मु०परलोक बनना-मृत्युके पश्चात् सद्गति प्राप्त होना। परखाना-स० कि० किसीसे परखनेका काम कराना; सहे-बिगड़ना-मृत्युके पश्चात् अच्छी गतिको प्राप्त न होना। जवाना। -सिधारना-मरना।)-वश,-वश्य-वि० जो दूसरेके परखी-स्त्री० लोहेका पतला, लंबा आला जिसे गेहूँ, चावल वशमें हो, पराधीन । -वशता,-वश्यता-स्त्री० परवश आदिके बोरेमें घुसाकर परखनेके लिए नमूना निकाला होनेका भाव, पराधीनता ।-वाद-पु० अफवाह; दूसरेकी जाता है। निंदा प्रत्युत्तर, विरोधरूप उत्तर । -वादी (दिन)- परग-पु० डग, कदम । पु० वह जो किसीके विरोधमें कुछ कहे, प्रत्युत्तर देनेवाला, परगट*-वि० प्रकट, स्पष्ट । प्रतिवादी । -साल-अ० [हिं०] पिछले या अगले साल ।
परगटना*-अ० क्रि० प्रकट होना। स० क्रि० प्रकट करना। -स्त्री-स्त्री० परायी स्त्री। -स्व-पु० दूसरेका धन, परगन*-पु० दे० 'परगना'। दमरेकी संपत्ति । -स्व-हरण-पु० दूसरेका धन हर परगना-पु० [फा०] एक भूभाग जिसके अंतर्गत बहुतसे लेना। -हित-पु. दूसरेका कल्याण । वि० दूसरेका | | गाँव होते हैं । -दार-पु० परगनेका अफसर । कल्याण करनेवाला।
परगसना*-अ० क्रि० प्रकाशित होना; प्रकट होना। पर-पु० [फा०] पंख, डैना। -कट,-कटा-वि० जिसके परगाढ़-वि० दे० 'प्रगाढ' । पर या पंख कटे हों । मु०-कट जाना-अशक्त हो जाना। परगार-पु० [फा०] वृत्तकी परिधि बनानेका एक आला । -काट देना-अशक्त बना देना। -कैच करना-कबूतर परगास*-पु० दे० 'प्रकाश' । आदिके पंख काट देना । -जमना-पंख जमना; शरारत परगासना-स० क्रि० प्रकाशित करना । अ० क्रि० प्रका. सूझना । (जाते हुए)-जलना,-टूटना-गति या जाने शित होना । का साहस न होना। -न मारना-जान सकना ।
नहाना। -न मारना-जान सकना। परघट*-वि० दे० 'प्रकट'। -निकलना,-व बाल निकलना-नया पर निकलना; परचंड*-वि० दे० 'प्रचंड' । होशियार होना । -बाँध देना-बेबस करना ।
| परचइ -पु० दे० 'परिचय'।
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