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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पपड़ा-पर १४८ स्त्री० पन्नीसाजका काम, पन्नीसाजका पेशा। पयोमुक्()-पु० [सं०] बादल; मोथा । पपड़ा-पु० लकड़ी आदिका सूखा छिलका रोटीका छिलका। परंच-अ० [सं०] और भी पर, लेकिन, तो भी । पपड़िया, पपरिया-वि० जिसमें पपड़ी हो, पपड़ीदार । परंजय-पु० [सं०] शत्रुको जीतनेवाला; वरुण । -कथा-पु० सफेद कत्था । परंतप-वि० [सं०] शत्रुको संतप्त करनेवाला, शत्रुतापक । पपड़ियाना-अ० क्रि० किसी चीजपर पपड़ी पड़ना; इतना परंतु-अ० [सं०] पूर्वकथित स्थितिसे वैपरीत्य या अंतर सूख जाना कि ऊपर पपड़ी पड़ जाय, बहुत अधिक दिखलानेके लिए प्रयुक्त किया जानेवाला एक शब्दसूख जाना। मगर, लेकिन, किंतु । पपड़ी-स्त्री० छोटा पपड़ा; किसी वस्तुकी वह ऊपरी परत परंतक-पु० (प्रॉविजो) किसी अधिनियम, प्रलेख आदिकी जो उसके बहुत अधिक सूख जानेसे चिटककर अलगसी धाराके साथ लगी हुई कोई शर्त या उसके पूर्ण रूपसे हो गयी हो, सूखकर ऐंठी हुई ऊपरी परत; घावका पालन या कार्यान्वित किये जानेमें पड़नेवाली किसी खुरंट पत्तरके रूपमें जमायी हुई मिठाई; वृक्षकी सूखकर कठिनाईसे बचनेके लिए निकाला हुआ रास्ता । चिटकी हुई छाल। परंद, परंदा-पु० दे० 'परिंदा'। पपड़ीला-वि० पपड़ीवाला, पपड़ीसे युक्त । परंपद-पु० [सं०] वैकुंठा मोक्ष; उच्च पद । पपनी -स्त्री० बरौनी। परंपरया-अ० [सं०] परंपराके अनुसार परंपरासे । पपिहा -पु० दे० 'पपीहा'। परंपरा-स्त्री० [सं०] अविच्छिन्न क्रम, चला आता हुआ पपीता-पु० एक फलदार वृक्ष, एरंट मेवा । अटूट सिलसिला; क्रमबद्ध समूह या पंक्ति प्रथा, प्रणाली पपीलि*-स्त्री० दे० 'पिपीलिका'। पुत्र-पौत्र आदि, वंश, संतति; अनुक्रमः वध । पपीहरा-पु० दे० 'पपीहा'। परंपरागत-वि० [सं०] सदासे चला आता हुआ क्रमागत । पपीहा-पु० हलके काले रंगका एक प्रसिद्ध पक्षी जो परंपरित-वि० [सं०] परंपरायुक्त; परंपरापर अवलंबित । वसंत और पावसमें मीठे बोल बोला करता है, चातक । -रूपक-५० वह रूपक जिसमें एकका आरोप किसी (कहा जाता है कि यह 'पी कहाँ'-'पी कहाँ की रट | दूसरेके आरोपका हेतु होता है। लगाया करता है और केवल स्वातीकी बूंदसे प्यास बुझाता | पर-अ० किंतु, तो भी, लेकिन; पीछे; * पास । वि० है); सितारका पक्का तार; पपैया । [सं०] अपनेसे भिन्न, अन्य, दूसरा, गैर; दूसरेका, पपैया -पु० सीटी; अमोलेका बना बाज।। पराया; आगेका, बादका; जो जदा या अलग हो; पपोरना*-स० क्रि० बाहोंकों ऐंठकर उनकी पुष्टता देखना | अतिरिक्त; जो दूर या परे हो; जो किसी हदके बाहर हो; (बलाभिमानका सूचन)-'कंस लाज भय गर्व युत चल्यो जो सबसे आगे या ऊपर स्थित हो; सबसे बड़ा, श्रेष्ठ पपोरत बाँह'-सू०। सर्वातीत; शत्रुतापूर्ण, विरोधी; लगा हुआ; लीन; निरत । पबना*-स० क्रि० पाना। सर्व० दूसरा व्यक्ति । पु० अजनबी; चरम विदु; गौण पबारना*-स० क्रि० दे० 'पँवारना'। अर्थ; शत्रु; केवल ब्रह्म; शिव; ब्रह्मा; मोक्ष । -काजपबि, पब्बि *-पु० दे० 'पवि' । पु० [हिं०] दूसरेका काम । -काजी-वि० [ हिं०] पब्बय-पु० पर्वत, पहाड़ा पत्थर । दूसरेका काम करनेवाला, परोपकारी। -क्रामणपमाना*-अ० क्रि० डींग मारना। पु० (नेगोशियेशन) पूरे अधिकारों समेत (बंधपत्रादि) पमार-पु० राजपूतोंका एक भेद; चकड़ । दूसरेको हस्तांतरित करनेकी क्रिया । -क्राम्य-वि० पयःपान-पु० [सं०] दूध पीना। (नेगोशियेबिल) (बह बंध-पत्रादि) जो दूसरेको, समस्त पय(स)-पु० [सं०] दूध, जल, शुक्र, वीर्यः अन्न, अधिकारों समेत हस्तांतरित किया जा सके। -क्षेत्र-पु० आहार, ओज, शक्ति ।-द-पु० दे० 'पयोद'।-धि, दूसरेका शरीर; दूसरेका खेत; दूसरेकी स्त्री । -गाछा-निधि*-पु० पयोधि, पयोनिधि । -हारी-पु० पु० [हिं०] दूसरे पेड़ोंपर लगनेवाला पौधा, बंदाक । [हिं०] केवल दूध पीकर रहनेवाला साधु । -गाछी-स्त्री० [हिं०] अमरवेल । -च्छंदानुवर्तीपयस्विनी-स्त्री० [सं०] नदी; दूध देनेवाली गाय, धेनु । (तिन् )-वि० जो दूसरेकी इच्छाके अनुसार काम करे, पयादा-वि० पैदल । पु० दे० 'प्यादा' । पराधीन । -च्छिद्र (छिद्र)-पु० दूसरेका दोष । पयान-पु० प्रस्थान, गमन, रवानगी । -ज-वि० जिसका पालन-पोषण किसी दूसरेने किया पयाम-पु० [फा०] पैगाम, संदेश । हो । पु० [हिं०] एक राग।-जन-पु० पराया, स्वजनका पयार*-पु० दे० 'पयाल'। उलटा; * दे० 'परिजन'। -जात-वि० अन्य द्वारा पयाल-पु० पके हुए धान, कोदो आदिके वे डंठल जिनसे | पालित; परावलंबी । पु० नौकर; [हिं०] दूसरी जातिका दाने अलग कर लिये गये हों। मु०-झाड़ना-व्यर्थ मनुष्य । स्त्री० दूसरी जाति । -जाति-स्त्री. दूसरी श्रम करना; ऐसे व्यक्तिकी सेवा करना जिससे कुछ | जाति । -जित-वि० दूसरेके द्वारा पाला पोसा हुआ प्राप्त न हो। जिसे किसीने जीत लिया हो, विजित । पु० कोयल। पयोद-पु० [सं०] बादल । -तंत्र-वि० जो दूसरेके वशमें हो, पराधीन । -दारपयोधर-पु० [सं०] बादल; स्तन; मोथा, नारियल, रीढ़ ।। स्त्री० दूसरेकी स्त्री, परायी स्त्री; * लक्ष्मी, पृथ्वी । पयोधि, पयोनिधि-पु० [सं०] समुद्र । | -दारिक,-दारी (रिन्)-पु० व्यभिचारी । -देश For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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